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अप्रत्याशित लेखन

प्रश्न 1. रटं त से क्या अशिप्राय है ?

उत्तर. किसी दस
ू रे व्यक्क्त द्वारा तैयार िी गई पठनीय सामग्री िो ज्यों
िा त्यों याद िरना और उसे दस
ू रे िे सामने प्रस्तुत िरना रटं त
िहलाता है।

प्रश्न 2. रटं त अथवा िुटे व िो बुरी लत क्यों िहा जाता है ?

उत्तर. रटं त िो बुरी लत इसशलए िहा जाता है क्योंकि क्जस ववद्याथी


अथवा व्यक्क्त िो यह लत लग जाती है, उसिे िावों िी मौशलिता
खत्म हो जाती है। इसिे साथ-साथ उसिी च त
ं न िक्क्त धीरे -धीरे क्षीण
हो जाती है और वह किसी ववषय िो अपने तरीिे से सो ने िी क्षमता
खो दे ता है। वह सदै व दस
ू रों िे शलखे पर आचित हो जाता है। उसे
अपनी बुद्चध तथा च त
ं न िक्क्त पर ववश्वास नहीं रहता।

प्रश्न 3. अशिव्यक्क्त िे अचधिार में ननबंधों िे नए ववषय किस प्रिार


सहायि शसद्ध होते हैं ?

उत्तर. अशिव्यक्क्त िा अचधिार मनष्ु य िा एि मौशलि अचधिार है


क्जसिे माध्यम से मनष्ु य अपने वव ारों िी अशिव्यक्क्त स्वतंत्र रूप से
िर सिता है। ननबंध वव ारों िी अशिव्यक्क्त िा एि सिक्त माध्यम
है। इसमें ननबंधिार अपने वव ारों िो सहज रूप से अशिव्यक्त िरता
है। वव ार अशिव्यक्त िरने िी प्रकिया ननबंधों िे पुराने ववषयों िे साथ
पूणत
ण ः घटटत नहीं होती क्योंकि पुराने ववषयों पर पहले से ही तैयार
िुद्ध सामग्री अचधि मात्रा में उपलब्ध रहती है। इससे हमारी
अशिव्यक्क्त िी क्षमता वविशसत नहीं होती। इसशलए हमें ननबंधों िे नए
ववषय पर अपने वव ार अशिव्यक्त िरने ाटहए। नए ववषयों पर वव ार
अशिव्यक्त िरने से लेखि िा मानशसि और आक्त्मि वविास होता है।
इससे लेखि िी च त
ं न िक्क्त िा वविास होता है। इससे लेखि िो
बौद्चधि वविास तथा अनेि ववषयों िी जानिारी होती है। इस प्रिार
हम िह सिते हैं कि अशिव्यक्क्त िे अचधिार में ननबंधों िे ववषय
बहुत सहायि शसद्ध होते हैं।

प्रश्न 4. नए अथवा अप्रत्याशित ववषयों पर लेखन से क्या तात्पयण है ?

उत्तर. किसी नए अथवा अप्रत्याशित ववषय पर िम समय में अपने


वव ारों िो संिशलत िर उन्हें सुंदर ढं ग से अशिव्यक्त िरना ही
अप्रत्याशित ववषयों पर लेखन िहलाता है।

प्रश्न 5. नए अथवा अप्रत्याशित ववषयों पर लेखन में िौन-िौन सी


बातों िा ध्यान रखना ाटहए ?

उत्तर. नए अथवा अप्रत्याशित ववषयों पर लेखन में ननम्नशलखखत बातों


िा ध्यान रखना ाटहए-

1. क्जस ववषय पर शलखना है लेखि िो उसिी संपण


ू ण जानिारी होनी
ाटहए।

2. ववषय पर शलखने से पहले लेखि िो अपने मक्स्तष्ि में उसिी एि


उच त रूपरे खा बना लेनी ाटहए।
3. ववषय से जुडे तथ्यों से उच त तालमेल होना ाटहए।

4. वव ार ववषय से सस
ु म्बद्ध तथा संगत होने ाटहए।

5. अप्रत्याशित ववषयों िे लेखन में 'मैं' िैली िा प्रयोग िरना ाटहए।

6. अप्रत्याशित ववषयों पर शलखते समय लेखि िो ववषय से हटिर


अपनी ववद्वता िो प्रिट नहीं िरना ाटहए।

प्रश्न 6. नए अथवा अप्रत्याशित ववषयों पर लेखन में क्या-क्या बाधाएँ


आती हैं ?

उत्तर. नए अथवा अप्रत्याशित ववषयों पर लेखन में अनेि बाधाएँ आती


हैं जो इस प्रिार है -

1. सामान्य रूप से लेखि आत्मननिणर होिर अपने वव ारों िो शलखखत


रूप दे ने िा अभ्यास नहीं िरता।

2. लेखि में मौशलि प्रयास तथा अभ्यास िरने िी प्रववृ त्त िा अिाव
होता है।

3. लेखि िे पास ववषय से संबचं धत सामग्री और तथ्यों िा अिाव होता


है।

4. लेखि िी च त
ं न िक्क्त मंद पड जाती है।

5. लेखि िे बौद्चधि वविास िे अिाव में वव ारों िी िमी हो जाती


है।

6. अप्रत्याशित ववषयों पर लेखन िरते समय िब्दिोि िी िमी हो


जाती है।
प्रश्न 7. नए तथा अप्रत्याशित ववषयों पर लेखन िो किस प्रिार सरल
बनाया जा सिता है ?

उत्तर-नए तथा अप्रत्याशित ववषयों पर लेखन िो सरल बनाने िे शलए


ननम्नशलखखत बातों िा ध्यान िरना ाटहए :

1. किसी िी ववषय पर शलखने से पूवण अपने मन में उस ववषय से


संबंचधत उठने वाले वव ारों िो िुछ दे र रुििर एि रूपरे खा प्रदान िरें ।
उसिे पश् ात ् ही िानदार ढं ग से अपने ववषय िी िुरुआत िरें ।

2. ववषय िो आरं ि िरने िे साथ ही उस ववषय िो किस प्रिार आगे


बढाया जाए, यह िी मक्स्तष्ि में पहले से होना आवश्यि है।

3. क्जस ववषय पर शलखा जा रहा है, उस ववषय से जड


ु े अन्य तथ्यों िी
जानिारी होना िी बहुत आवश्यि है। सुसंबद्धता किसी िी लेखन िा
बुननयादी तत्व होता है।

4. सुसंबद्धता िे साथ-साथ ववषय से जुडी बातों िा सुसंगत होना िी


जरूरी होता है। अतः किसी िी ववषय पर शलखते हुए दो बातों िा
आपस में जड
ु े होने िे साथ-साथ उनमें तालमेल होना िी आवश्यि
होता है।

5. नए तथा अप्रत्याशित ववषयों िे लेखन में आत्मपरि 'मैं' िैली िा


प्रयोग किया जा सिता है। यद्यवप ननबंधों और अन्य आलेखों में 'मैं'
िैली िा प्रयोग लगिग वक्जणत होता है किंतु नए ववषय पर लेखन में
'मैं' िैली िे प्रयोग से लेखि िे वव ारों और उसिे व्यक्क्तत्व िो
झलि प्राप्त होती है।

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