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जनसंपर्क (पब्लिक रिलेशन्स) का सीधा अर्थ है 'जनता से संपर्क रखना'। जनसम्पर्क एक प्रक्रिया है जो एक उद्देश्य से व्यक्ति या वस्तु की छवि, महत्व

एवं विश्वास को समूह अथवा समाज में स्थापित करने में सहायक होती है। जनसंचार के विभिन्न उपकरणों के माध्यम से समाज या समूह से जीवन्त सम्बन्ध
बनाने में यह सेतु का कार्य करती है।

परिचय

जनसंपर्क , संचार और संप्रेषण का एक पहलू है, जिसमें किसी व्यक्ति या संगठन तथा इस क्षेत्र से संबंधित लोगों के बीच संपर्क स्थापित किया जाता है।
इस प्रकार यह सेवा लेने वालों तथा सेवा देने वालों के बीच एक सेतु का काम करता है। यह एक द्विपक्षीय कार्रवाई है, जिसमें सूचनाओं तथा विचारों का
आदान-प्रदान होता है।

आज किसी भी संस्था की साख बनाने के लिए जनसंपर्क एक आवश्यक अंग माना जाता है। सरकारों के अलावा निजी संस्थाएं भी जनसंपर्क के माध्यम से
अपनी साख बनाने का कार्य करती है। जनसंपर्क को संक्षेप में ऐसा कार्य कहा जाता है, जिसे जनता द्वारा सराहा जाए, जनसंपर्क का पहला तत्व है अच्छा
प्रदर्शन। किसी संगठन या किसी संस्था का जनता के साथ जो संबंध बनता है, उसे जनसंपर्क बढ़ता है, अच्छे जनसम्पर्क में सच्चाई और ईमानदारी होनी
चाहिए।

जनसंपर्क की प्रक्रिया विज्ञापन या विक्रय प्रमोशन की प्रक्रिया से अलग होती है, क्योंकि इसमें वांछित जानकारी को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बल्कि उसके वास्तविक
रूप में लेकिन प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। आज सभी छोटे-बड़े संस्थानों में जनसंपर्क क्रय तथा जनसंपर्क अधिकारी सूचना संप्रेषण तथा विचारों
की अभिव्यक्ति का दायित्व निभा रहे हैं और कै रियर निर्माण की दृष्टि से यह एक सम्मानजनक क्षेत्र माना जाता है।

जनसंपर्क का स्वरूप के वल दफ्तर खोलकर बैठे रहना ही नहीं है, बल्कि कई तरह से इस काम को अंजाम देना पड़ता है। इसके अंतर्गत मीडिया रिलेशन,
क्राइसिस मैनेजमेंट, मार्के टिंग कम्युनिके शन, फाइनेंशियल, पब्लिक रिलेशंस, सरकारी संबंध, औद्योगिक संबंध शामिल हैं।
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1. भाषा: जनसम्पर्क का प्रमुख तत्व भाषा होती है। भाषा माध्यम होती है जो एक समुदाय में लोगों को एक दूसरे से संवाद करने में मदद करती है।
भाषा एक समाज की भाषा होती है और वह उस समाज की आबादी के आधार पर अलग-अलग होती है।

2. संस्कृ ति: संस्कृ ति जनसम्पर्क का एक और महत्वपूर्ण तत्व है। संस्कृ ति उन सार्वजनिक और निजी जीवन के नियमों, विशेषताओं, सम्प्रदायों, मूल्यों
और रूढ़िवादों का समूह होता है जो एक समुदाय को अलग और विशिष्ट बनाता है। संस्कृ ति के माध्यम से, एक समुदाय के लोग अपने विशिष्टता को
उजागर कर सकते हैं और एक दूसरे को समझ सकते हैं।

3. संवाद: संवाद जनसम्पर्क के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण तत्व है। एक संवाद में एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के साथ अपने विचारों, भावनाओं और ज्ञान को
साझा करता है।

4. संवेदनशीलता: जनसम्पर्क में संवेदनशीलता का महत्वपूर्ण स्थान होता है। संवेदनशीलता का मतलब यह है कि आप अपने साथी के भावनाओं का सम्मान
करते हैं और उन्हें समझते हैं। इससे संबंधों में विश्वास बढ़ता है और अंत में संबंधों की दृढ़ता बढ़ती है।
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‘आमुख’ से तात्पर्य है, किसी फीचर लेखन के सबसे पहले पैराग्राफ अर्थात किसी फीचर लेखन में जो परिचय दिया जाता है, वह आमुख कहलाता है।
किसी फीचर के आरंभ में कम से कम वाक्यों में रोचक ढंग से संबंधित फीचर का परिचय देना ही ‘आमुख’ कहलाता है।

‘आमुख’ में पूरे फीचर की कथावस्तु का सार छु पा होता है और उसे इस तरह प्रस्तुत किया जाता है कि समाचार से संबंधित सारे तत्वों का उसमें
समावेश हो जाता है। आमुख की महत्ता फीचर लेखन में बहुत अधिक होती है। जिस तरह प्रथम प्रभाव ही अंतिम प्रभाव होता है, उसी तरह आमुख
प्रस्तुतीकरण से पूरे फीचर का स्वरूप निश्चित होता है और पाठक आगे बढ़ता है। यदि फीचर की शुरुआत आकर्षक ढंग से की जाए तो पाठक संपूर्ण फीचर
पढ़ने के लिए उत्सुक हो जाता है, यही एक अच्छे आमुख की विशेषता होती है।

आमुख के अनेक प्रकार होते हैं, जैसे सारयुक्त आमुख, विशिष्ट घटनात्मक आमुख, दृष्टान्वित आमुख, प्रत्यक्ष भावन्वित आमुख, रचनात्मक आमुख,
लघुवाक्य आमुख, प्रश्नात्मक आमुख, विरोधात्मक आमुख रोज, लघुवाक्य आमुख, चित्रात्मक आमुख और सादृश्यमूलक आमुख आदि।

आमुख के इन प्रकारों में आमुख के स्वरूप का निर्धारण फीचर की विषय-वस्तु से ही होता है। फीचर की विषय-वस्तु जैसी है, उसी तरह का आमुख
बनाया जाता है।
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समाचार संपादन किसी भी समाचार का एक सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है। समाचार संपादन का कार्य मुख्य समाचार संपादक करता है। बिना संपादन के कोई
भी समाचार गलत संदेश दे सकता है। समाचार जिस रूप में प्राप्त होता है, संपादक उसमें परिस्थिति के अनुसार संपादन करता है ताकि समाचार को पढ़ने
तथा सुनने योग्य बनाया जा सके । जिससे पाठक अथवा श्रोता को समाचार की मूल विषय को सही समझने में आसानी हो।

समाचार संपादन की क्रियाएं अनेक चरणों में होती है। इससे समाचार को आकर्षित बनाने का प्रयास किया जाता है। उसकी भाषा को सरल बनाया जाता है।
समाचार की विषय वस्तु और सामग्री को बहुत अधिक बड़ा तथा उबाऊ नहीं बनाया जाता। समाचार का शीर्षक भी समाचार की मूल विषय वस्तु के अनुरूप
और आकर्षक बनाया जाता है। शीर्षक को सुनकर ही पाठक या श्रोता समाचार को जानने के लिए उत्सुक हो उठे।

बिना समाचार संपादन के समाचार अर्थ का अनर्थ कर सकता है इसके लिए उसका समाचार संपादन बहुत जरूरी होता है।
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6.अपराध समाचार को उस अपराध पर की गई रिपोर्टिंग के लिए संदर्भित किया जाता है जो कि हुआ है। इस अपराध समाचार को रिपोर्ट करने के लिए
समाचार पत्रों में अलग-अलग रिपोर्टें हैं। फिर भी वे सभी पूरे समाचार चैनल का हिस्सा हैं। इस तरह की खबरों में दर्शकों की खासी दिलचस्पी होती है I
भले ही कनिष्ठ पत्रकार अपराध को कवर करें, यह एक विशेष कार्य है। यह कु छ नियमों और विनियमों के अनुसार किया जाना है।

रिपोर्टर का पुलिस और प्रशासन विभाग के अन्य महत्वपूर्ण लोगों से भी अच्छा संपर्क होना चाहिए। रिपोर्टर को दंड संहिता और विभिन्न प्रकार के कानूनों का
भी ज्ञान होना चाहिए।

रिपोर्टर को दर्शकों का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने नए लेख में सनसनी से बचना चाहिए और के वल मामले के मुख्य तथ्यों पर टिके रहना चाहिए।
उसे भी कु छ लोगों को बचाने के लिए कु छ ढकने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।

जो व्यक्ति अपराध समाचार को कवर कर रहा है वह अपने काम में न्यायपूर्ण होना चाहिए।अपराध रिपोर्टर को भी सावधान रहना चाहिए कि वह दूसरों के
निजी जीवन पर आक्रमण न करे।विभिन्न प्रकार के अपराध समाचार हैं। उनमें से कु छ हैं आग, दुर्घटना, डकै ती, सेंधमारी, धोखाधड़ी, हत्या, ब्लैकमेल,
अपहरण और बलात्कार।
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1.अजातशत्रु महात्मा बुद्ध का समकालीन था।
जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित नाटक 'अजातशत्रु' का प्रकाशन 1922 ई. में हुआ था।
अजातशत्रु नाटक में उसके मुख्य पात्र अजातशत्रु का मूलाधार अंतर्द्वन्द्व है।
मगध, कोशल और कौशांबी में प्रज्वलित विरोध की अग्नि को बहुत ही बेहतर ढंग से बताया गया है और यह अग्नि इस पूरे नाटक में फै ली हुई है।
उत्साह और शौर्य से परिपूर्ण इस नाटक में सभी चरित्रों का सजीव चित्रण किया गया है।
इसके सभी प्रमुख पात्र मानवीय गुणों से ओतप्रोत हैं।
यह नाटक उस समय के मगध साम्राज्य के वैभव को भी बहुत ही सुंदर ढंग से चित्रित करता है।
राजनीतिक उथल पुथल, रण की नीतियां, पात्रों का एक दूसरे से संबंध आदि मूल चीजों का बेहद सहज रूप में चित्रण किया गया है।
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10.भारत का पहला प्रिंटिंग प्रेस 1556 में सेंट पॉल कॉलेज, गोवा में फादर गैस्पर कालेजा के द्वारा स्थापित किया गया था। 30 अप्रैल 1556 के
एक पत्र के अनुसार, फादर गैस्पर कालेजा ने कहा कि एक जहाज एबिसिनिया में मिशनरी कार्य को बढ़ावा देने के लिए पुर्तगाल से एबिसिनिया (वर्तमान
इथियोपिया) जाने के लिए एक प्रिंटिंग प्रेस ले जा रहा था। हालाँकि, प्रिटिंग प्रेस को भारत छोड़ने पर रोक लगा दी गई थी। इस प्रकार, तब से गोवा में
छपाई का कार्य शुरू हो गया।

“कं क्लूषन फिलोसोपिक्स ” पहली प्रकाशित पुस्तक थी। एक साल बाद, अपने कवि, सेंट फ्रांसिस जेवियर की मृत्यु के पांच साल बाद, प्रिंटिंग प्रेस ने
अपनी दूसरी किताब, कै टिसिस्मो दा डॉक्ट्रिना क्रिस्टा प्रकाशित की। पहली पुस्तक जो भारतीय भाषा में प्रकाशित हुयी थी वह तमिल में थी|

1756 में लोयोला के सेंट इग्नाटियस को लिखे एक पत्र में, फादर गैस्पर कालेजा ने पुर्तगाल से एबिसिनिया तक एक प्रिंटिंग प्रेस ले जाने वाले एक
जहाज का उल्लेख किया है ताकि वहां मिशनरी काम में सहायता मिल सके । परिस्थितियों ने इस प्रिंटिंग प्रेस को भारत छोड़ने से रोक दिया और इस तरह
देश में छपाई शुरू हो गई।
जोआओ डे बस्टामांटे (1563 में जोआओ रोड्रि ग्स का नाम बदलकर), एक स्पेनवासी जो 1556 में सोसाइटी ऑफ जीसस में शामिल हुआ, भारत में
छपाई की शुरुआत के लिए जिम्मेदार था।
बस्टामांटे, एक कु शल प्रिंटर, और उनके भारतीय सहायक ने नए प्रेस की स्थापना की और उसका संचालन शुरू किया। बस्टामांटे को अन्य चीजों के
अलावा चार किताबें छापने के लिए जाना जाता है।
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9.
नवजागरण के कई प्रभाव हैं। कु छ मुख्य प्रभाव निम्नलिखित हैं:

व्यापक शिक्षा की प्रोत्साहना: नवजागरण उत्तरदायित्व और स्वतंत्रता के बारे में जागरूकता पैदा करता है जो शिक्षा को बढ़ावा देती है। लोग अधिक शिक्षा
प्राप्त करने के लिए उत्साहित होते हैं जो उन्हें उनके करियर और समाज के विकास के लिए उन्नत करता है।

समाज में सुधार: नवजागरण समाज में सुधार लाता है। यह लोगों को सशक्त और स्वच्छंद बनाता है और लोगों के मौलिक अधिकारों के बारे में जागरूक
करता है।

तकनीकी विकास: नवजागरण से तकनीकी विकास की गति तेजी से बढ़ती है। नए और सुधारित तकनीकों द्वारा, नए उत्पादों के उत्पादन में सुधार होता
है, जिससे बाजार में उन्नत उत्पादों की मांग बढ़ती है।

राष्ट्रीय एकता: नवजागरण देश के लोगों में राष्ट्रभक्ति का जज्बा जगाता है। इससे लोग अपनी भाषा, धर्म और संस्कृ ति के प्रति समझदारी
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8.
बहुमुखी प्रतिभा

बहुमुखी प्रतिभा शब्द कई अलग- अलग कौशल या गुण होने का वर्णन करता है। बहुमुखी प्रतिभा आपको कई अलग-अलग स्थितियों के अनुकू ल होने की
अनुमति देती है। खेलों में आपकी बहुमुखी प्रतिभा का अर्थ है कि आप फ़ु टबॉल, टेनिस और बास्के टबॉल खेल सकते हैं।

संज्ञा बहुमुखी प्रतिभा लैटिन शब्द वर्सेटिलिस से निकली है, जिसका अर्थ है "मोड़ना, घूमना, हिलना, विभिन्न विषयों या कार्यों को मोड़ने में सक्षम।"

कं पनियां ऐसे कर्मचारियों की तलाश करती हैं जिनमें बहुमुखी प्रतिभा हो ताकि वे विभिन्न कार्य स्थितियों के अनुकू ल हो सकें ।
बहुमुखी प्रतिभा वाला एक फ़ु टबॉल खिलाड़ी असाधारण रूप से आगे, रक्षा और गोल कीपर खेल सकता है।
एक मास्टर शेफ की बहुमुखी प्रतिभा का मतलब है कि उसे फ्रें च, अमेरिकी बिस्ट्रो, इतालवी और स्पेनिश व्यंजनों का व्यापक ज्ञान है।
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5.
भाषा का प्रयोग हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह हमारे विचारों, भावनाओं और विचारों को अद्वितीय तरीके से व्यक्त करने का माध्यम होता है। भाषा
के माध्यम से हम अपने विचारों को दूसरों के साथ साझा कर सकते हैं और समझा सकते हैं।

भाषा न के वल एक साधना है, बल्कि यह हमारी सांस्कृ तिक और सामाजिक पहचान का हिस्सा भी होता है। भाषा के माध्यम से हम अपने इच्छाशक्ति को
प्रकट करते हैं और अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए काम करते हैं।

भाषा का सही और सुविधाजनक प्रयोग हमारे विचारों को स्पष्ट रूप से प्रकट करने में मदद करता है। इसलिए हमें भाषा का समझना और उसका सही तरीके
से प्रयोग करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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