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व्यावसाययक ह द

िं ी और उसके लक्षण, गुण, ववशेषताएँ व प्रयोग

भाषा अगर सभ्यता की यिशािी ै तो उसका व्याव ाररक प्रयोग सफलता का आधार। भाषा का मािक रूप भी ोता
ै लेककि उसका व्याव ाररक प्रयोग ी ज्यादा म त्वपूणण ै । अलग-अलग सामाजिक सिंदभों में भाषा के रूप भी
बदलते र ते ैं। जिस प्रकार कायाणलय के ललए अलग भाषा रूप अपेक्षक्षत ै और किंप्यूटर के ललए अलग भाषा रूप
उसी प्रकार लभन्ि-लभन्ि व्यवसायों के ललए भी भाषा का लभन्ि-लभन्ि रूप अपेक्षक्षत ै। सामान्य बोलचाल में कोई
शब्द जिस अर्ण में प्रयक्
ु त ोता ै ववत्त वाणणज्य के क्षेत्र में ,ववविन्न व्यवसायों के क्षेत्र में ठीक उसी अर्ण में उसका प्रयोग
ो य िरूरी ि ीिं। उसका प्रयोग व ािं लभन्ि अर्ण में ो सकता ै ।उदा रण के ललए अिंग्रेिी का शब्द
“Interest”(इिंटरे स्ट )जिसका सामान्य प्रयोग में अर्ण ै रुचच या हदलचस्पी लेककि बैंक या व्यवसाय क्षेत्र में इसका
अर्ण ै -सूद या ब्याि ।व्यावसाययक भाषा के प्रयोग के सामान्यतः दो रूप ोते ैं:- मौणिक (समीपवर्ती के साथ) और ललणित
(दूरस्थके साथ)। फोि फै क्स आहद का भी स योग ललया िाता ै ललणित रूप में फोि पैक आहद का भी स योग विया जार्ता है,
लेककि इस आधुयिक तकिीक के साधिों के बाविूद भाषा का ललणित प्रयोग ी पारिं पररक एविं ब ु प्रचललत ै।
व्यवसाय की सिंपूणण सफलता के ललए पत्र व्यव ार एक सुदृढ़ आधार ै।। आधुयिक व्यापार का आधारस्तिंभ ी ै पत्र
व्यव ार।। पत्र के द्वारा सिंवाद ललििे वाले का व्यजक्तत्व पता चलता ै । पत्र ललििे वाले के दृजटटकोण,
मिोववृ त्त,आचरण, सिंस्कार एविं मािलसक जस्र्यत की अिेकािेक परतें पत्र प्राप्त कत्ताण के सम्मुि उिागर ो िाती ैं

व्यावसावयक वहिंदी के अवनवायय िक्षण अथवा गुण वनम्न प्रकार हैं

1) व्यावसाययक पत्र में सरल भाषा का प्रयोग ककया िाता ै । साधारण प्रयोग में आिे वाले शब्दों के द्वारा ी अपिे ववचारों
को स्पटट ककया िा सकता ै। स्पटटता व्यावसाययक पत्र की सबसे िरूरी ववशेषता ै क्योंकक इसी गण
ु से पत्र पढ़िे वाले
को समझिे में सुववधा ोती ै ।पत्र की भाषा ऐसी िा ो कक पािे वाला समझ ी िा सके और उत्तर दे िे में असमर्ण ो िाए ।
2) व्यावसाययक पत्र सुिंदर आकृयत में ोिा चाह ए ।अच्छा कागि ,उत्तम ललिावट, ववराम चचन् आहद का उपयुक्त
प्रयोग शीषणक, हदिािंक, अलभवादि आहद पत्र को सुिंदरता प्रदाि करते ैं िो प्रेषक की कुशलता ,सतकणता, सुरुचच एविं
बुद्चधमत्ता का पररचय दे ते ैं ।
3) व्यावसाययक पत्र की भाषा ऐसी ोिी चाह ए कक तथ्यों में तारतम्य में बिा र े तर्ा एक अिुच्छेद में एक ी बात ो ।
4) पत्र व्यापार की आत्मा ै ।प्रभावी एविं कुशल पत्राचार ग्रा कों को सरलता से आकवषणत कर व्यापार की िीिंव बिाता ै
।अतः उस पत्राचार की भाषा ऐसी सरल सुबोध एविं आत्मीय ो कक प्रत्येक वाक्य ी ि ीिं उसके र शब्द और अक्षर , पत्र
की आकृयत भी प्राप्त कत्ताण पर प्रभाव डाल सकें
5) ।व्यापाररक पत्र भेंट से भी अचधक स्र्ाई प्रभाव डालते ैं ।व व्यापाररक कुशलता में मददगार एविं उन्ियत में स ायक ोते
ैं ।अतः इसकी भाषा वविम्रता एविं कृत्रत्रमता से युक्त ोिी चाह ए।
6) व्यापाररक पत्रों को अत्यिंत सिंक्षक्षप्त एविं चुस्त ोिा चाह ए। अचधक वाक्यों के प्रयोग से अिुचचत का ितरा ोता ै और
उसका प्रभाव क्षीण पड़ सकता ै ।
7) ववत्त एविं वाणणज्य के क्षेत्र में साह जत्यक एविं अलिंकृत भाषा अपेक्षक्षत ि ीिं ि ीिं ै। ऐसी भाषा प्रयोिि की लसद्चध में बाधक
ी ो ोती ै ।
8) व्यावसाययक पत्र में अलभधापरक भाषा का प्रयोग अचधक उपयोगी ै। शब्द ववचारों को व्यक्त करते ैं अगर वे
जक्लटठ ोंगे तो उद्दे श्य की प्राजप्त में कहठिाई ोगी ।
9) इसमें सीधे-साधे सरल शब्दों का प्रयोग अच्छा एविं प्रभावशाली ोता ै । पाररभावषक अर्वा प्रसिंग अिुरूप शब्दों का
प्रयोग करिा ी सवणर्ा उचचत ै ।

इस तर म दे िते ैं कक व्यावसाययक पत्र में पूणणता, सिंक्षक्षप्तर्ता, स्पटटता, प्रभाव पूणणता, लशटटता ,सुिंदरता, स्वच्छता
तर्ा उस व्यवसाय ववशेष से सिंबिंचधत प्रयुक्त ोिे वाले वैसे तकिीकी अर्वा पाररभावषक शब्दों का प्रयोग ी ोिा चाह ए
जिससे व्यवसाय में सफलता प्राप्त ो सके ।

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