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अनच्

ु छे द लेखन
किसी एक भाव या विचार को व्यक्त करने के लिए लिखे गये सम्बद्ध और लघु वाक्य-समह
ू को
अनच्
ु छे द-लेखन कहते हैं।
दस
ू रे शब्दों में - किसी घटना, दृश्य अथवा विषय को संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित ढं ग से जिस लेखन-शैली
में प्रस्तत
ु किया जाता है , उसे अनच्
ु छे द-लेखन कहते हैं।
सरल शब्दों में - किसी भी विषय को संक्षिप्त एवं प्रभावपर्ण
ू ढं ग से प्रस्तत
ु करने की कला को अनच्
ु छे द
लेखन कहा जाता है ।
'अनच्
ु छे द' शब्द अंग्रेजी भाषा के 'Paragraph' शब्द का हिंदी पर्याय है । अनच्
ु छे द 'निबंध' का संक्षिप्त
रूप होता है । इसमें किसी विषय के किसी एक पक्ष पर 80 से 100 शब्दों में अपने विचार व्यक्त किए
जाते हैं।
अनच्
ु छे द में हर वाक्य मल
ू विषय से जड़
ु ा रहता है । अनावश्यक विस्तार के लिए उसमें कोई स्थान
नहीं होता। अनच्
ु छे द में घटना अथवा विषय से सम्बद्ध वर्णन संतलि
ु त तथा अपने आप में पर्ण

होना चाहिए। अनच्
ु छे द की
भाषा-शैली सजीव एवं प्रभावशाली होनी चाहिए। शब्दों के सही चयन के साथ लोकोक्तियों एवं
मह
ु ावरों के समचि
ु त प्रयोग से ही भाषा-शैली में उपर्युक्त गण
ु आ सकते हैं।
इसका मख्
ु य कार्य किसी एक विचार को इस तरह लिखना होता है , जिसके सभी वाक्य एक-दस
ू रे से
बंधे होते हैं। एक भी वाक्य अनावश्यक और बेकार नहीं होना चाहिए।
अनच्
ु छे द लेखन को लघु निबंध भी कहा जा सकता है । इसमें सीमित सग
ु ठित एवं समग्र दृष्टिकोण
से किया जाता है । शब्द संख्या सीमित होने के कारण लिखते समय थोड़ी सावधानी बरतनी चाहिए।
निबंध और अनच्
ु छे द लेखन में मख्
ु य अंतर यह है कि जहाँ निबंध में प्रत्येक बिंद ु को अलग-अलग
अनच्
ु छे द में लिखा जाता है , वहीं अनच्
ु छे द लेखन में एक ही परिच्छे द (पैराग्राफ) में प्रस्तत
ु विषय को
सीमित शब्दों में प्रस्तत
ु किया जाता है । इसके अतिरिक्त, निबंध की तरह भमि
ू का, मध्य भाग एवं
उपसंहार जैसा विभाजन अनच्
ु छे द में करने की आवश्यकता नहीं होती।
अनच्
ु छे द लिखते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए :
(1) अनच्
ु छे द लिखने से पहले रूपरे खा, संकेत-बिंद ु आदि बनानी चाहिए।
(2) अनच्
ु छे द में विषय के किसी एक ही पक्ष का वर्णन करें ।
(3) भाषा सरल, स्पष्ट और प्रभावशाली होनी चाहिए।
(4) एक ही बात को बार-बार न दोहराएँ।
(5) अनावश्यक विस्तार से बचें , लेकिन विषय से न हटें ।
(6) शब्द-सीमा को ध्यान में रखकर ही अनच्
ु छे द लिखें।
(7) परू े अनच्
ु छे द में एकरूपता होनी चाहिए।
(8) विषय से संबधि
ं त सक्ति
ू अथवा कविता की पंक्तियों का प्रयोग भी कर सकते हैं।

अनच्
ु छे द की प्रमख
ु विशेषताएँ
अनच्
ु छे द की प्रमख
ु विशेषताएँ निम्नलिखित है -
(1) अनच्
ु छे द किसी एक भाव या विचार या तथ्य को एक बार, एक ही स्थान पर व्यक्त करता है ।
इसमें अन्य विचार नहीं रहते।
(2) अनच्
ु छे द के वाक्य-समह
ू में उद्दे श्य की एकता रहती है । अप्रासंगिक बातों को हटा दिया जाता
है ।
(3) अनच्
ु छे द के सभी वाक्य एक-दस
ू रे से गठित और सम्बद्ध होते है ।
(4) अनच्
ु छे द एक स्वतन्त्र और पर्ण
ू रचना है , जिसका कोई भी वाक्य अनावश्यक नहीं होता।
(5) उच्च कोटि के अनच्
ु छे द-लेखन में विचारों को इस क्रम में रखा जाता है कि उनका आरम्भ, मध्य
और अन्त आसानी से व्यक्त हो जाय।
(6) अनच्
ु छे द सामान्यतः छोटा होता है , किन्तु इसकी लघत
ु ा या विस्तार विषयवस्तु पर निर्भर करता
है ।
(7) अनच्
ु छे द की भाषा सरल और स्पष्ट होनी चाहिए।
1. ग्लोबल वार्मिंग-मनष्ु यता के लिए खतरा
● ग्लोबल वार्मिंग क्या है ?
● ग्लोबल वार्मिंग के कारण
● ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव
● समस्या का समाधान।
गत एक दशक में जिस समस्या ने मनष्ु य का ध्यान अपनी ओर खींचा है , वह है -ग्लोबल वार्मिंग।
ग्लोबल वार्मिंग का सीधा-सा अर्थ है है -धरती के तापमान में निरं तर वद्
ृ धि। यद्यपि यह समस्या
विकसित दे शों के कारण बढ़ी है परं तु इसका नक
ु सान सारी धरती को भग
ु तना पड़ रहा है । ग्लोबल
वार्मिंग के कारणों के मल
ू हैं-मनष्ु य की बढ़ती आवश्यकताएँ और उसकी स्वार्थवत्ति
ृ । मनष्ु य प्रगति की
अंधाधंध
ु दौड़ में शामिल होकर पर्यावरण को अंधाधंध
ु क्षति पहुँचा रहा है । कल-कारखानों की स्थापना,
नई बस्तियों को बसाने, सड़कों को चौड़ा करने के लिए वनों की अंधाधंध
ु कटाई की गई है ।
इससे पर्यावरण को दोतरफा नक ु सान हुआ है तो इन गैसों को अपनाने वाले पेड़-पौधों की कमी से
आक्सीजन, वर्षा की मात्रा और हरियाली में कमी आई है । इस कारण वैश्विक तापमान बढ़ता जा रहा है ।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण एक ओर धरती की सरु क्षा कवच ओजोन में छे द हुआ है तो दसू री ओर
पर्यावरण असंतलिु त हुआ है । असमय वर्षा, अतिवष्टि
ृ , अनावष्टि
ृ , सरदी-गरमी की ऋतओ ु ं में भारी बदलाव
आना ग्लोबल वार्मिंग का ही प्रभाव है ।
इससे ध्रव
ु ों पर जमी बरफ़ पिघलने का खतरा उत्पन्न हो गया है जिससे एक दिन प्राणियों के विनाश
का खतरा होगा, अधिकाधिक पौधे लगाकर उनकी दे ख-भाल करनी चाहिए तथा प्रकृति से छे ड़छाड़ बंद
कर दे ना चाहिए। इसके अलावा जनसंख्या वद्
ृ धि पर नियंत्रण करना होगा। आइए इसे आज से शरू
ु कर
दे ते हैं, क्योंकि कल तक तो बड़ी दे र हो जाएगी।
2.जीना मश्कि
ु ल करती महँगाई
अथवा
दिनोंदिन बढ़ती महँगाई
● महँगाई और आम आदमी पर प्रभाव
● कारण
● महँगाई रोकने के उपाय
● सरकार के कर्तव्य।
महँगाई उस समस्या का नाम है , जो कभी थमने का नाम नहीं लेती है । मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग
के साथ ही गरीब वर्ग को जिस समस्या ने सबसे ज्यादा त्रस्त किया है वह महँगाई ही है । समय बीतने
के साथ ही वस्तओ
ु ं का मल्
ू य निरं तर बढ़ते जाना महँगाई कहलाता है । इसके कारण वस्तए
ु ँ आम आदमी
की क्रयशक्ति से बाहर होती जाती हैं और ऐसा व्यक्ति अपनी मल
ू भत
ू आवश्यकताएँ तक परू ा नहीं कर
पाता है ।
ऐसी स्थिति में कई बार व्यक्ति को भख
ू े पेट सोना पड़ता है ।महँगाई के कारणों को ध्यान से दे खने पर
पता चलता है कि इसे बढ़ाने में मानवीय और प्राकृतिक दोनों ही कारण जिम्मेदार हैं। मानवीय कारणों
में लोगों की स्वार्थवत्ति
ृ , लालच अधिकाधिक लाभ कमाने की प्रवत्ति
ृ , जमाखोरी और असंतोष की भावना
है । इसके अलावा त्याग जैसे मानवीय मल्
ू यों की कमी भी इसे बढ़ाने में आग में घी का काम करती है ।
सख
ू ा, बाढ़ असमय वर्षा, आँधी, तफ़
ू ान, ओलावष्टि
ृ के कारण जब फ़सलें खराब होती हैं तो उसका असर
उत्पादन पर पड़ता है । इससे एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति पैदा होती है और महँगाई बढ़ती
है ।महँगाई रोकने के लिए लोगों में मानवीय मल्
ू यों का उदय होना आवश्यक है ताकि वे अपनी
आवश्यकतानस
ु ार ही वस्तए
ु ँ खरीदें । इसे रोकने के लिए जनसंख्या वद्
ृ धि पर लगाम लगाना आवश्यक
है ।
महँगाई रोकने के लिए सरकारी प्रयास भी अत्यावश्यक है । सरकार को चाहिए कि वह आयात-निर्यात
नीति की समीक्षा करे तथा जमाखोरों पर कड़ी कार्यवाही करें और आवश्यक वस्तओ
ु ं का वितरण
रियायती मल्
ू य पर सरकारी दक
ु ानों के माध्यम से करें ।
3. समाचार-पत्र एक : लाभ अनेक
अथवा
समाचार-पत्र : ज्ञान और मनोरं जन का साधन
● जिज्ञासा पर्ति
ू का सस्ता एवं सल
ु भ साधन
● रोज़गार का साधन
● समाचार पत्रों के प्रकार
● जानकारी के साधन ।
मनष्ु य सामाजिक प्राणी है । वह अपने समाज और आसपास के अलावा दे श-दनि
ु या की जानकारी के लिए
जिज्ञासु रहता है । उसकी इस जिज्ञासा की पर्ति
ू का सर्वोत्तम साधन है -समाचार-पत्र, जिसमें दे श-विदे श
तक के समाचार आवश्यक चित्रों के साथ छपे होते हैं। सबु ह हुई नहीं कि शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में
समाचार पत्र विक्रेता घर-घर तक इनको पहुँचाने में जट
ु जाते हैं। कुछ लोग तो सोए होते हैं और
समाचार-पत्र दरवाजे पर आ चक
ु ा होता है ।
अब समाचार पत्र अत्यंत सस्ता और सर्वसल
ु भ बन गया है । समाचार पत्रों के कारण लाखों लोगों को
रोजगार मिला है । इनकी छपाई, ढुलाई, लादने-उतारने में लाखों लगे रहते हैं तो एजेंट, हॉकर और
दक
ु ानदार भी इनसे अपनी जीविका चला रहे हैं। इतना ही नहीं परु ाने समाचार पत्रों से लिफ़ाफ़े बनाकर
एक वर्ग अपनी आजीविका चलाता है । छपने की अवधि पर समाचार पत्र कई प्रकार के होते हैं।
प्रतिदिन छपने वाले समाचार पत्रों को दै निक, सप्ताह में एक बार छपने वाले समाचार पत्रों को
साप्ताहिक, पंद्रह दिन में छपने वाले समाचार पत्र को पाक्षिक तथा माह में एक बार छपने वाले को
मासिक समाचार पत्र कहते हैं। अब तो कुछ शहरों में शाम को भी समाचार पत्र छापे जाने लगे हैं।
समाचार पत्र हमें दे श-दनि
ु या के समाचारों, खेल की जानकारी मौसम तथा बाज़ार संबंधी जानकारियों के
अलावा इसमें छपे विज्ञापन भी भाँति-भाँति की जानकारी दे ते हैं।
4.. भ्रष्टाचार का दानव
अथवा
भ्रष्टाचार से दे श को मक्
ु त बनाएँ
● भ्रष्टाचार क्या है ?
● दे श के लिए घातक
● भ्रष्टाचार का दष्ु प्रभाव
● लोगों की भमि
ू का।
भ्रष्टाचार दो शब्दों ‘भ्रष्ट’ और ‘आचार’ के मेल से बना है , जिसका अर्थ है -नैतिक एवं मर्यादापर्ण

आचारण से हटकर आचरण करना। इस तरह का आचरण जब सत्ता में बैठे लोगों या कार्यालयों के
अधिकारियों द्वारा किया जाता है तब जन साधारण के लिए समस्या उत्पन्न हो जाती है । पक्षपात
करना, भाई-भतीजावाद को प्रश्रय दे ना, रिश्वत माँगना, समय पर काम न करना, काम करने के बदले
अनचि
ु त माँग रख दे ना, भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे ते हैं।
भ्रष्टाचार समाज और दे श के लिए घातक है । दर्भा
ु ग्य से आज हमारे समाज में इसकी जड़ें इतनी गहराई
से जम चक
ु ी हैं कि इसे उखाड़ फेंकना आसान नहीं रह गया है । भ्रष्टाचार के कारण दे श की मान
मर्यादा कलंकित होती है । इसे किसी दे श के लिए अच्छा नहीं माना जाता है । भ्रष्टाचार के कारण ही
आज रिश्वतखोरी, मन
ु ाफाखोरी, चोरबाज़ारी, मिलावट, भाई-भतीजावाद, कमीशनखोरी आदि अपने चरम पर
हैं।
इससे समाज में विषमता बढ़ रही है । लोगों में आक्रोश बढ़ रहा है और विकास का मार्ग अवरुद्ध होता
जा रहा है । इसके कारण सरकारी व्यवस्था एवं प्रशासन पंगु बन कर रह गए हैं। भ्रष्टाचार मिटाने के
लिए लोगों में मानवीय मल्
ू यों को प्रगाढ़ करना चाहिए। इसके लिए नैतिक शिक्षा की विशेष आवश्यकता
है । लोगों को अपने आप में त्याग एवं संतोष की भावना मज़बत
ू करनी होगी। यद्यपि सरकारी प्रयास
भी इसे रोकने में कारगर सिद्ध होते हैं पर लोगों द्वारा अपनी आदतों में सध
ु ार और लालच पर
नियंत्रण करने से यह समस्या स्वतः कम हो जाएगी।
5. मानव जीवन पर विज्ञापनों का असर
अथवा
विज्ञापनों की दनि
ु या कितनी लभ
ु ावनी
अथवा
मानव मन को सम्मोहित करते विज्ञापन
● विज्ञापन का अर्थ एवं प्रचार-प्रसार
● विज्ञापनों की लभ
ु ावनी भाषा
● विज्ञापन का प्रभाव
● विज्ञापन के लाभ-हानि।
‘ज्ञापन’ में ‘वि’ उपसर्ग लगाने से विज्ञापन शब्द बना है , जिसका शाब्दिक अर्थ है -सच
ू ना या जानकारी
दे ना। दर्भा
ु ग्य से आज विज्ञापन का अर्थ सिमट कर वस्तओ
ु ं की बिक्री बढ़ाकर लाभ कमाने तक ही
सीमित रह गया है । वर्तमान समय में विज्ञापन का प्रचार-प्रसार इतना बढ़ गया है कि अब तो कहीं भी
विज्ञापन दे खे जा सकते हैं। इस कारण से वर्तमान समय को विज्ञापनों का यग
ु कहने में कोई
अतिशयोक्ति नहीं है ।
विज्ञापनों की भाषा अत्यंत लभ
ु ावनी और आकर्षक होती है । इनके माध्यम से कम से कम शब्दों में
अधिक से अधिक अभिव्यक्ति का प्रयास किया जाता है । विज्ञापन की भाषा सरल एवं सटीक होती है ,
जिसे विशेष रूप से तैयार करके प्रभावपर्ण
ू ढं ग से प्रस्तत
ु किया है । दरू दर्शन और अन्य चलचित्रों के
माध्यम से दिखाए जाने वाले विज्ञापनों की भाषा और भी प्रभावी बन जाती है ।
विज्ञापन मानव मन पर गहरा असर डालते हैं। बच्चे और किशोर इन विज्ञापनों के प्रभाव में आसानी से
आ जाते हैं। विज्ञापनों का प्रस्तत
ु ीकरण, उनमें प्रयक्
ु त नारी दे ह का दर्शन, उनके हाव-भाव और अभिनय
मानवमन पर जाद-ू सा असर कर सम्मोहित कर लेते हैं। यह विज्ञापनों का असर है कि हम विज्ञापित
वस्तए
ु ँ खरीदने का लाभ संवरण नहीं कर पाते हैं।
विज्ञापन उत्पादक और उपभोक ता दोनों के लिए लाभदायी हैं। इसके माध्यम से हमारे सामने चन
ु ाव
का विकल्प, सलभ तो विक्रेताओं को भी भरपरू लाभ होता है । विज्ञापन के कारण वस्तओ
ु ं का मल्
ू य बढ़
जाता है । इनमें वस्तु के गुणों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तत
ु किया जाता है । अतः हमें विज्ञापनों से सावधान
रहना चाहिए।
6. विपति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत
अथवा
विपत्ति का साथी : मित्र
● मित्र की आवश्यकता
● मित्र का स्वभाव
● सन्मार्ग पर ले जाते मित्र
● मित्र के चयन में सावधानियाँ।
मानव जीवन को संग्राम की सभा से विभषि
ू त किया गया है , जिसमें दख
ु और सख
ु क्रमशः आते-जाते
रहते हैं। सख
ु का समय जल्दी और सरलता से कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता पर दख
ु के समय
में उसे ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत होती है जो उसके काम आए। अब उसे मित्र की आवश्यकता होती है जो
होती है जो उसे दख सहने का साहस प्रदान करे । मित्र का स्वभाव उदार. परोपकारी होने के साथ ही
विपत्ति में साथ न छोड़ने वाला होना चाहिए।
उसे जल की भाँति नहीं होना चाहिए जो जाल पड़ने पर जाल में फँसी मछलियों का साथ छोड़कर दरू हो
जाता है और मछलियों को मरने के लिए छोड़ जाता है । वास्तव में मित्र का स्वभाव श्रीराम और सग्र
ु ीव
के स्वभाव की भाँति होना चाहिए जिन्होंने एक-दस
ू रे की मदद करके अनक
ु रणीय उदाहरण प्रस्तत
ु किया।
एक सच्चा मित्र को बरु ाइयों से हटाकर सन्मार्ग की ओर ले जाता है ।
एक सच्चा मित्र अपने मित्र को व्यसन से बचाकर सत्कार्य के लिए प्रेरित करता है और उसके लिए
घावों पर लगी उस औषधि के समान साबित होता है जो उसकी पीड़ा हरकर शीतलता पहुँचाती है ।
व्यक्ति के पास धन दे खकर बहुत से लोग नाना प्रकार से मित्र बनने की चेष्टा करते हैं। हमें इन
अवसरवादी लोगों से सावधान रहना चाहिए। हमारी जी हुजरू ी और चापलस
ू ी करने वाले को भी सच्चा
मित्र नहीं कहा जा सकता है ।
हमारी गलत बातों का विरोधकर उचित मार्गदर्शन कराने वाला ही सच्चा मित्र होता है । हमें मित्र के
चयन में सावधान रहना चाहिए ताकि मित्रता चिरकाल तक बनी रहे ।
7.भारतीय समाज में नारी की स्थिति
अथवा
भारतीय समाज में नारी की बदलती स्थिति
● प्राचीन भारत में नारी की स्थिति
● मध्यकाल में नारी की स्थिति
● आधनि
ु क काल में नारी
● भारतीय नारी त्याग एवं ममता की मर्ति
ू ।
स्त्री और परु
ु ष जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं। इनमें स्त्रियों की स्थिति में दे श काल और परिस्थिति
के अनस
ु ार समय-समय पर बदलाव आता रहा है । प्राचीनकाल में हमारे दे श में स्त्रियों को सम्मानजनक
स्थान प्राप्त था। वह यज्ञ कार्यों, वेद-परु ाण और ऋचाओं की रचना में सहभागी रहती थी। वह परु
ु षों के
कंधे से कंधा मिलाकर चलती थी।
उस समय कहा जाता था कि ‘यत्र नार्यास्तु पज्
ू यन्ते रमन्ते तत्र दे वता’ अर्थात जहाँ नारियों की पज
ू ा
होती है वहीं दे वता निवास करते हैं। इससे नारी की उच्च स्थिति का अनम
ु ान स्वयं लगाया जा सकता
है । मध्यकाल तक नारियों की स्थिति में बहुत गिरावट आ चक
ु ी थी। परु
ु ष प्रधान समाज ने नारियों को
परदे की वस्तु बनाकर घर की चारदीवारी तक सीमित कर दिया।
उसे निर्णय लेने के अधिकार से वंचित कर दिया गया।मस
ु लमानों के आक्रमण के कारण वे घरों में रहने
को विवश थी। इस कारण उनकी शिक्षा में गिरावट आई और वे निरक्षरता का शिकार हो गई। आधनि
ु क
काल में स्त्रियों की दशा में खब
ू सध
ु ार हुआ है । स्वतंत्रता के बाद उनकी स्थिति में सध
ु ार लाने के लिए
शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया गया। इस कारण वह प्रगति की दौड़ में परु ु षों के साथ कंधे से कंधा
मिलाकर चल रही हैं।
चिकित्सा, शिक्षा, पलि
ु स सेवा, प्रशासन आदि में वह अपनी योग्यता से परु
ु षों से आगे निकलती जा रही
है । ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’, ‘लाडली योजना’ जैसी योजनाओं के कारण उनकी स्थिति में सध
ु ार हो रहा
है । नारी त्याग, ममता, सहानभ
ु ति
ू , स्नेह की मर्ति
ू है । हमें नारियों का सम्मान करना चाहिए।
8. प्रदष
ू ण की समस्या
अथवा
जीवन खतरे में डालता प्रदष
ू ण
● प्रदष
ू ण का अर्थ
● प्रदष
ू ण के कारण
● प्रदष
ू ण के प्रभाव
● प्रदष
ू ण से बचाव के उपाय।
स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यक है कि हम जिन वस्तओ
ु ं का सेवन करें , जिस वातावरण में रहें वह
साफ़-सथ
ु रा हो। जब हमारे पर्यावरण और वायम
ु ंडल में ऐसे तत्व मिल जाते हैं जो उसे दषि
ू त करते हैं
तथा इनका स्तर इतना बढ़ जाता है कि स्वास्थ्य के लिए  हानिकारक हो जाते हैं तब यह स्थिति
प्रदष
ू ण कहलाती है ।  आज सभ्यता और विकास की इस दौड़ में मनष्ु य के कार्य व्यवहार ने प्रदष
ू ण को
खब
ू बढ़ाया है ।
बढ़ती आवश्यकता के कारण एक ओर वनों को काटकर नई बस्तियाँ बसाई गईं तो दस
ू री ओर अंधाधंध

कल-कारखानों की स्थापना की गई। इन बस्तियों तक पहुँचने के लिए सड़कें बनाई गईं। इसके लिए भी
वनों की कटाई की गई।  सभ्यता की ऊँचाई छूने के लिए मनष्ु य ने नित नए आविष्कार किए।
मोटर-गाड़ियाँ वातानक
ु ू लित उपकरणों से सजी गाड़ियाँ और मकानों के कार्य आदि के कारण पर्यावरण
इतना प्रदषि
ू त हआ कि आदमी को साँस लेने के लिए शदध हवा मिलना कठिन हो गया है । प्रदष
ू ण के
दष्ु प्रभाव के कारण प्राकृतिक असंतल
ु न उत्पन्न हो गया है ।  वायम
ु ंडल में कार्बनडाई ऑक्साइड, सल्फर
डाई आक्साइड की मात्रा बढ़ गई है । इससे अम्लीय वर्षा का खतरा पैदा हो गया है ।
मोटर-गाड़ियों और फैक्ट्रियों के शोर के कारण स्वास्थ्य बरु ी तरह प्रभावित हुआ है । अति वष्टि
ृ ,
अनावष्टि
ृ और असमय वर्षा प्रदष ू ण का ही दष्ु परिणाम है । इस प्रदष
ू ण से बचने का सर्वोत्तम उपाय है
अधिकाधिक वन लगाना। पेड़ लगाकर प्रकृति में संतल
ु न लाया जा सकता है । इसके अलावा हमें सादा
जीवन उच्च विचार वाली जीवन शैली अपनाते हुए प्रकृति के करीब लौटना चाहिए।
9. भारतीय संस्कृति : अनेकता में एकता
संकेत बिंद ु –
● भारतीयता का भाव
● समानता
● समान भाषा
● पहनावा, संस्कृति व ् भोजन की भिन्नता में एकता
भारतवर्ष एक विशाल दे श है जिसमें कई संस्कृतियां रहती हैं। जैसे नदी अपनी स्वतंत्रता खो कर
समद्र
ु में विलीन हो जाती है , उसी प्रकार भारत में विभिन्न समद
ु ायों को “भारतीय” भी कहा
जाता है , भले ही उनकी अपनी विशेषताएं हों। विभिन्न धार्मिक मान्यताओं का पालन करने के
बाद भी ये सभी भारतीयों के जीवन में विलीन हो गए।
यह भारतीय विशेषता इस दे श को अन्य दे शों से अलग करती है । यहां सद्भाव से रहते हुए,
आपको सभी क्षेत्रों में मंदिर, मस्जिद, गरु
ु द्वारा या चर्च मिल जाएंगे। यहां के लोग सभी धर्मों को
मानते हैं। सभी धार्मिक अवकाश भी उत्साह के साथ मनाए जाते हैं।   जीवन के सभी क्षेत्रों से
भारतीयों ने उत्साहपर्व
ू क भाग लिया।
भारतीय संस्कृति की एकता भी इसी भाषा में अभिव्यक्त होती है । हिंद,ू मस्लि
ु म, ईसाई, सिख,
बौद्ध और जैन के लिए कोई अलग भाषा नहीं है । एक प्रांत के सभी निवासी एक ही भाषा
बोलते हैं। राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी के साथ परू ा दे श जड़
ु ा हुआ है ।
भारत के प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग वेशभष ू ा है । इस तरह के कपड़े जलवायु और स्थानीय
जरूरतों के अनस
ु ार विकसित हुए। उदाहरण के लिए, परू े उत्तर प्रदे श में किसान सिर पर पगड़ी
पहनते हैं।
भारत में कई नत्ृ य शैलियाँ हैं। भरतनाट्यम, ओडिसी, कुचिपड़
ु , कथकली, मणिपरु ी कथक, आदि
पारं परिक नत्ृ य शैलियाँ हैं, और भगड़ा, गिदा नागा, बिहू, आदि  नत्ृ य के लोकप्रिय रूप हैं।
परु े भारत में विचरण करें तो ज्ञात होगा भारत में भोजन की बहुत समद्
ृ ध विविधता है । कहीं
दाल-बाटी, तो कहीं चावल और मछली, तो कहीं रोटी-साग,  इडली और डोसा। इस विविधता के
बीच एकता का प्रमाण यह है कि आज दक्षिण भारतीयों को दाल और कबाब खाने का उतना ही
शौक है जितना उत्तर भारतीय  इडली डोसा खाते हैं। इसी कारण ये विश्वा में आकर्षण का केंद्र
बानी हुई है ।
10. कोरोना वायरस
प्रस्‍
तावना (परिचय) – कोरोना वायरस जिसे कोविड- 19 के नाम से भी जाना जाता है । कोरोना एक
प्रकार का निर्जीव वायरस है , यह वायरस इंसानों के लिये बहुत ही ज्‍यादा खतरनाक है । कोविड- 19 से
संकृमित व्‍
यक्ति के संपर्क में आते ही यह वायरस अन्‍
य व्‍
यक्ति को भी संकृमित कर दे ता है ।  विश्‍

स्‍वास्‍
थ्‍य संगठन (WHO) ने इसे महामारी घोषित कर दिया है ।
कोरोना वायरस के लक्षण  इसके शरु
ु वाती लक्षण आम बिमारीयों जैसे ही है जैसे बख
ु ार आना, सख
ु ी खासी
आना, सांस लेने में परे शानी होना, लगे में दर्द होना आदि।
COVID-19 वायरस से होने वाले प्रभाव पहले दिन में ज्‍यादा सक्रिय नहीं होता है इसलिये इसका असर
होने से सर्दी, जक
ु ाम, जैसी मामल
ू ी रूप में दे खने को मिलता है । इन्‍
ही लक्षणों को लेकर व्‍
यक्ति को
गंभीर रूप से सोचना समझना चाहिए एवं इसके उपचार का प्रबंध कर दे ना चाहिए।
कोरोना वायरस से बचाव –विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने कोरोना वायरस से बचाव के लिए कुछ
महत्‍
वपर्ण
ू सझु ाव दिये है जैसे  अपने हाथ बार बार धोएं, मह
ु नाक एवं आंख को बार-बार न छुएं
कम से कम १ फिट की सोसल डिस्‍टेंसिग का पालन करे , आवश्यक न हो तो घर से बहार न जाएं, मॉल,
बाज़ार, आदि जगहों पर न जाएं अपने रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर बनाएं साथ ही लॉकडाउन का
पॉलन करे । रे लगाड़ी, बस, आदि से यात्रा करने से बचें ।
कोरोना वायरस के लाभ ( लॉकडाउन के सकारात्मक प्रभाव) – इस वायरस की वहज से बहुत से
लाभ भी हुए है । इस वायरस के कारण सम्‍पर्ण
ू दे श में लॉकडाउन कर दिया गया जिससे लोगो का घरो
से निकलना बंद हो गया गाडियां बंद हो गई प्रदष
ु ण फैलाने वाली सभी फैक्‍ट्री बंद हो गई जिससे
वातावरण साफ हो गया एवं परू े दे श में प्रदष
ु ण का स्‍
तर निम्‍
न हो गया ।
नदियों में गं‍दंगी नही होने लगी जिससे नदियों का जल भी साफ हो गया । वातावरण में अच्‍छा खासा
परिवर्तन हो गया परू े दे श में स्‍वच्‍
छ हवा चलने लगी बादल साफ दिखाई दे ने लगे, बारिस होने लगी
जिससे किसाने को लाभ हुआ। सभी लोग इस दौरान साधा जीवन जीने लगे।
कोरोना वायरस से हानि (लॉकडाउन के दष्ु प्रभाव ) –
कोविड- 19 वायरस ने दे श की अर्थव्‍
यवस्‍
था पर बहुत ही गहरा प्रभाव डाला है । लोगो के रोजगार छिन
गये लोगो को दर दर भटकना पडा। कोविड- 19 के कारण सम्‍पर्ण ू दे श में लॉकडाउन घोषित कर दिया
गया था इस लॉकडाउन में घारा 144 लगा दी गई थी।
सभी रे लगाडी, बस, यातायात बंद कर दिये गये थे ऐसे में मजदरू ों को अपने निवास स्‍
थल पर पहुचने में
काफी परे शानी का सामना करना पडा। कोविड- 19 वायरस से कई परीवारों के सदस्‍य की जॉन चली
गई।
कोविड- 19 वायरस ने लोगो के बीच दरू ी बना दी। दे श में कई परीक्षाओं को रदद् करना पडां जिससे
काफी सारे छात्र को परे शानी उठानी पडी। एक मजरू से लेकर एक बडे व्‍
यापारी तक सबके काम काज
ठप हो गये। कोरोना वायरस की कारण परू ी शिक्षा निति ही बदल गई पहली बार ऐसा हुआ की 1
वायरस के कारण परू ी दनि
ू या के स्‍कूल कालेज बंद हो गये । लोग सिर्फ अपनी जान बचाने के लिए
अपने अपने घरो में बंद हो गये थे।
निष्‍कर्ष-
कोरोना वायरस एक प्रकार का संकृमण है जो आसानी से एक संकृमित व्‍
यक्ति से दस
ू रे व्‍
यक्ति में
फैलता है । इस वायरस से कोई भी दे श नही बचा है सावधानी ही सरु क्षा है । मानव द्वारा निर्मित यह
वायरस ने परु े विष्‍
व में महामारी फैला दी है अब यह महामारी का रूप ले चक
ु ा है ।
इससे लाखों लोगो की जाने गयी है । जितना हो सके अपने आप को संकृमित व्‍
यक्ति से बचा के रहे
अपने आप को सेनेटाईज करते रहे और मार्के ट से आने वाली सभी चिजों को साफ करने के पश्‍
चात ही
उपयोग की जावे। बचाव ही उपाय है । अब तक इसकी कोई वैक्‍सिन नही बनी है ।

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