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Garde-8 Hindi Sample Copy-2
Garde-8 Hindi Sample Copy-2
Hindi
Specimen copy
Semester-2
Year- 2022-23
पाठ -10 कामचोर
ले खिका – इस्मत चुगताई
जन्म – 15 अगस्त 1915
1. भू तकाल
2. वतामान काल
3. भकवष्यत काल
1. भूतकाल – बीते हुए समय को भू तकाल कहते हैं ।
जै से-
ले खन तवभाग
अनुच्छेद
तदवाली
दीपोत्सव याकन दीपोों के त्य हार को दीपावली कहते है |जो दो शब्ोों से कमलकर बना है दीप और अवली दीप का अथा कदये से और अवली
का अथा पखि, श्रों िला या दीप माला होता है|भारत में बहुत से त्य हार मनाये जाते हैं . कदवाली कहन्दु ओं ों का महवपूपूणा त्य हार हैं |यह प्रकाश
का त्य हार हैं . यह काकताक महीने में आता हैं |श्री रामचन्द्र रावण को मारने के बाद इस कदन अयोध्या ल टे थे|इसकलए हम इसे मनाते है |यह
प्रकाश की अाँधेरे पर कवजय है अथाा त अज्ञान पर ज्ञान की कवजय का प्रतीक पवा हैं |लोग अपने मकानोों व दु कानोों को साफ़ करते है | वे उन्हें
सजाते है |पुरुर् व खियााँ , लड़के व लड़ककयााँ , वृद्ध व युवा सभी प्रसन्न होते हैं |लोग कमठाइयााँ , खिल ने पटािे व अन्य चीजे िरीदते हैं |खियााँ
कवशे र् भोजन पकाती हैं|पररवार के सभी सदस्य साथ साथ भोजन करते हैं |राकत्र को लोग लक्ष्मी जो धन की दे वी है उसकी पूजा करते
हैं |दीपावली कजन्हें कदवाली और दीपोों का त्य हार भी कहा जाता है . यह कहों दुओं का मु ख्य पवा है | इसके आने का इन्तजार हम सभी को
रहता है कदवाली से कुछ कदन पूवा ही घरोों की साफ़-सफाई के कायािम शु रू कर कदए जाते है |इस अवसर पर घर को लाइट् स के साथ
सजाया जाता है|5 कदन तक चलने वाले इस कदवाली त्य हार की शु रुआत धनतेरस से मानी जाती है |जो भाई दू ज और ग वधान पूजा के साथ
समाप्त होता है |हर वर्ा कदवाली दशहरे के 20 कदन बाद अक्टू बर महीने के मध्याों तर में मनाई जाती है . कहन्दू कैलें डर के अनु सार इसे
काकताक महीने की अमावस्या के कदन मनाया जाता है |कहते है राम जी इसी कदन रावण को मारकर अयोध्या ल टे थे| माता सीता, लक्ष्मण
और श्रीराम जी के 14 वर्ा बाद दशा न करने के बाद अयोध्यावाकसयोों ने घी के कदए जलाकर इनका स्वागत ककया| इसी परम्परा का कनवाहन
करते हुए हम हर साल दीपोत्सव मनाते है|सारा शहर इस कदन र शनी के उजाले में जगमगा में नहा जाता है कदवापली का द्रश्य बेहद
मनमोहक होता है |
व्याकरण तवभाग
मुहावरे
1. आाँ खें चुराना (सामने आने से कतराना) – परीक्षा में कम अोंक लाने के कारण पुत्र कपता से आाँ िें चुरा रहा है ।
2. आाँ खें खुलना (होश आ जाना) – जब उसे अपने पुत्र की हरकतोों का पता चला, तो उसकी आाँ िें िु ल गईों।
3. आगा-पीिा करना (इधर-उधर होना) – प्राचाया के मै दान में आते ही छात्र आगा-पीछा करने लगे।
4. आस्था तहलना (तवश्वास उठना) – आजकल सच्ाई और ईमानदारी के प्रकत लोगोों की आथथा कहलने लगी है ।
5. कान भरना (चुगली करना) – ज्ञान को कान भरने की बुरी आदत है ।
6. कोई जोड़ न होना (मुकाबला न होना) – ने हा की कलिाई का कोई जोड़ नहीों है ।
7. कातर ढों ग से दे खना (भय के भाव से नज़र बचाकर दे खना) – कबना कारण कपटने पर डराइवर मु झे कातर भाव से दे िने लगा।
8. कलई खुलना (भेद खुलना) – पड़ोसी के घर में रोज महाँ गे-महाँ गे समान आ रहे थे । अचानक एक कदन पुकलस के आने से
उसकी सारी कलई िु ल गई।
9. घी के तदए जलाना (खुतशयााँ मनाना) – बेटे के आई. ए. एस. बनने पर मााँ -बाप ने घी के कदए जलाए।
10. नौ-दो ग्यारह होना (भाग जाना) – चोर ककमती सामान उड़ाकर न -दो ग्यारह हो गया।
11. पानी-पानी होना (अत्योंत लज्जित होना) – कमलावट िोरी करते हुए रों गे हाथ पकड़े जाने पर रजत पानी-पानी हो गया।
12. लाल-पीला होना (िोध करना) – वाकर्ा क परीक्षा में पुत्र के फेल होने से कपता जी लाल-पीले होने लगे।
13. हाथ मलना (पिताना) – अभी समय रहते पररश्रम कर लो, नहीों तो बाद में पछताना पड़े गा।
ले खन तवभाग
प्रश्-3 अपने गााँव लौटकर जब सुदामा अपनी झोोंपड़ी नही ों खोज पाए तब उनके मन में क्या-क्या तवचार आए?
उत्तर - जब सुदामा अपने गााँ व पहुाँ चे तो वहााँ का दृश्य पूरी तरह से बदल चुका था। अपने सामने आलीशान महल, हाथी घोड़े , बाजे गाजे ,
आकद दे िकर सुदामा को लगा कक वे रास्ता भूलकर कफर से द्वारका पहुाँ च गए हैं । थोड़ा ध्यान से दे िने पर सुदामा को समझ
में आया कक वे अपने गााँ व में ही हैं । वे लोगोों से पूछते हैं ले ककन अपनी झोपड़ी को िोज नहीों पाते हैं ।
प्रश्-4 द्वारका से खाली हाथ लौटते समय सु दामा मागथ में क्या-क्या सोचते जा रहे थे ? वह कृष्ण के व्यवहार से क्योों खीझ रहे थे ?
सुदामा के मन की दु तवधा को अपने शब्दोों में प्रकट कीतजए।
उत्तर – सुदामा कजस उम्मीद से कृष्ण से कमलने गये थे , उसका कुछ भी नहीों हुआ। कृष्ण के पास से वे िाली हाथ ल ट रहे थे । ल टते समय
सुदामा थोड़े खिन्न भी थे और सोच रहे थे कक कृष्ण को समझना मु खिल है । एक तरफ तो उसने इतना सम्मान कदया और दू सरी
ओं र मु झे िाली हाथ ल टा कदया। मैं तो जाना भी नहीों चाहता था, ले ककन पत्नी ने मु झे जबरदस्ती कृष्ण से कमलने भेज कदया था। जो
अपने बचपन में थोड़े से मक्खन के कलए घर-घर भटकता था उससे कोई उम्मीद करना ही बेकार है ।
व्याकरण तवभाग
समास
दो या दो से अकधक शब्ोों को सोंकक्षप्त करके नया शब् बनाने की प्रकिया दे ने की कवकध समास कहलाती है । यानी समास शब् का अथा है -
सोंक्षेप अथाा त छोटा करना; जैसे-रसोई के कलए घर के थथान पर रसोईघर’ कहना। कम से कम शब्ोों में अकधक से अकधक अथा प्रकट
करना ‘समास’ को मु ख्य उद्दे श्य है ।
समस्त पद – समास की प्रकिया के बाद जो नया शब् बनता है उसे सामाकसक पद या समस्त पद कहते हैं ।
समास-तवग्रह – समस्त पद को कफर से पहले जै सी खथथकत में लाने की प्रकिया समास-कवग्रह कहलाती है ।
1. द्वन्द्व समास
2. कद्वगु समास
3. तत्पु रुर् समास
4. कमा धारय समास
5. अव्ययीभाव समास
6. बहुव्रीकह समास
1. द्वन्द्व समास
कजस समास में पूवापद और उत्तरपद दोनोों ही प्रधान होों अथाा त् अथा की दृकष्ट से दोनोों का स्वतन्त्र अखस्तवपू हो और उनके मध्य सोंयोजक
शब् का लोप हो तो द्वन्द्व समास कहलाता है ;
जै से
ले खन तवभाग
अपने क्षे त्र में बढती अपराधवृकत्त तथा चोररयोों की घटनाओं ों के बारे में क्षे त्र के थाना अध्यक्ष को पत्र कलखिए।
थानाध्यक्ष महोदय
थाना लोनी, गाकजयाबाद
कदनाों क ..
कवर्य – अोंकुर कवहार क्षे त्र में बढते अपराधोों के सोंबोंध में
मान्यवर
इस पत्र के माध्यम से मैं आपका ध्यान अोंकुर कवहार क्षे त्र में बढते जा रहे अपराधोों तथा चोररयोों की घटनाओं ों की ओं र आककर्ा त करना
चाहता हाँ । कपछले कुछ कदनोों से इस क्षे त्र में अपराधोों की सोंख्या में लगातार वृखद्ध हो रही है । मकहलाओं ों के साथ अभद्र व्यवहार, कदन दहाड़े
चोरी की घटनाएाँ , मकहलाओं ों का पसा या चेन झपट ले ना जै सी घटनाओं ों के कारण आम नागररक परे शान है ।सबके मन में असुरक्षा का भय
व्याप्त हो गया है । मान्यवर, आप कजस क्षे त्र से थथानाों तररत होकर इस थाने में आए हैं , वहााँ आपकी छकव एक कताव्यकनष्ठ एवों ईमानदार
पुकलस अफ़सर के रूप में थी। इस क्षे त्र के कनवाकसयोों को पूणा कवश्वास है कक आप शीघ्र ही अपराध वृकत्त की इन घटनाओं ों पर अोंकुश लगाने
में समथा होोंगे।
आपसे अनु रोध है कक आप राकत्र में गश्त बढा दें तथा अपने अधीन कायारत पुकलसककमा योों को अपराकधयोों से कनपटने के कलए कड़े
कनदे श दें ।
सधन्यवाद
भवदीय
आयुर् रों जन
अध्यक्ष, आर० ए० डब्ल्यू ० अोंकुर कवहार
व्याकरण तवभाग
महादे वी वमाा बड़ी कवद्वान हैं । महादे वी वमाा बड़ी कवदु र्ी हैं ।
मे रे को घर जाना है । मु झे घर जाना है ।
मैं ने अपनी कलम मे रे भाई को दे दी। मैं ने अपनी कलम अपने भाई को दे दी।
ले खन तवभाग
आप आदशा कवद्यालय धनबाद के उपप्रधानाचाया शै लेंद्र कसोंह हैं । आगामी सत्र के कलए कवद्यालय के हाउस, िे लकूद, साों स्कृकतक कायािमोों
तथा अनु शासन व्यवथथा के कलए कैप्टन आकद के चुनाव की सूचना दे ते हुए एक सूचना कलखिए।
आदशथ तवद्यालय, धनबाद (झारखोंड)
सूचना
कदनाों क: 22 मई, 20..
तवद्यालय के तलए तवतभन्न कैप्टन का चुनाव
कवद्यालय, हाउस िे लकूद, साों स्कृकतक कायािमोों तथा अनुशासन व्यवथथा में योगदान दे ने के इच्छु क छात्रोों को सूकचत ककया जाता है कक
इच्छु क छात्र अपने नाम अधोहस्ताक्षरकताा को कदनाों क 30 मई तक स प ों दें । चयन के कलए साक्षात्कार की सूचना 5 जू न को दी जाएगी।
शै लेंद्र कसोंह
उपप्रधानाचाया
गकतकवकध-
पाठ 14
‚अकबरी लोटा‛
ले िक – अन्नपूणाा नन्द वमाा
जन्म – 21 कसतोंबर 1895 (काशी, उत्तर प्रदे श)
अकबरी लोटा पाठ प्रवेश
अन्नपूणाा नन्द की कहानी ‚अकबरी लोटा‛ एक हास्य पूणा कहानी है । ले िक ने कहानी को बहुत ही रोचोंक तरीके से प्रस्तु त ककया गया है
और साथ के साथ बताया गया है कक परे शानी के समय में परे शान न होकर समझदारी से ककस तरह से एक समस्या का हल कनकाला जा
सकता है और दू सरी बात इस कहानी में यह भी बताया गया है कक एक सच्ा कमत्र ही कमत्र के काम आता है और उसके कलए बहुत कुछ
कर गुजर जाता है । कहानी के माध्यम से लेिक हमें सीि दे ना चाहता है कक सही वक़्त पर सही समझ का उपयोग करना ककतना जरुरी
है । इस कहानी के मु ख्य पात्र हैं – लाला झाऊलाल और उनके कमत्र पोंकड़त कबलवासी कमश्र जी।
नए शब्द
1) प्रकतष्ठा 2) कवपदा
3) अदब 4) मुाँ डेर
5) ओं झल 6) कोर्
7) सोंदूक
शब्दाथथ
1) रोब – अकड़ 2) प्रकतष्ठा – इज्जत
3) दु म – पूोंछ 4) कवपदा – मु सीबत
5) िुक्ख – िाली हाथ 6) प्रकट – उपखथथत
7) अदब – सम्मान 8) मुाँ डेर – ककनारा
9) वेग – गकत 10) ओं झल – गायब
11) ईजाद – िोज 12) हल्रा – शोर
13) कोर् – िजाना 14) मॉडल – प्रकतरूप
15) सोंदूक – बक्सा
अततलघु प्रश्ोों के उत्तर
प्रश्-1 अोंग्रेज़ व्यज्जि ने लोटा तकतने में खरीदा?
उत्तर – अोंग्रे़ि व्यखि ने लोटा पााँ च स रूपए में िरीदा।
प्रश्-2 न्यू टन कौन थे?
उत्तर – न्यू टन इों ग्लैंड के एक वैज्ञाकनक थे कजन्होोंने गुरुवपूाकर्ा ण का कनयम और गकत के कसद्धाों त की िोज की थी।
प्रश्-3 जब अोंग्रेज़ व्यज्जि पर लोटा तगरा तब वह कहााँ था?
उत्तर – जब अोंग्रे़ि व्यखि पर लोटा कगरा तब वह एक दु कान से पीतल की कुछ पुरानी मू कतायााँ िरीद रहा था।
प्रश्-4 गली में ज़ोर का हल्ला क्योों हो रहा था?
उत्तर – गली में ़िोर का हल्रा इसकलए हो रहा था क्योोंकक लाला जी के हाथ से जल का भरा हुआ लोटा छूट कर नीचे ककसी व्यखि के पैर
पर कगर गया था।
प्रश्-5 अगर तबलवासी जी लाला जी की मदद नही ों करते तब क्या होता?
उत्तर – अगर कबलवासी जी लाला जी की मदद नहीों करते तब भी ककसी न ककसी तरह लाला जी रुपयोों का इों त़िाम जरूर करते क्योोंकक
यह उनकी प्रकतष्ठा का सवाल था।
प्रश्-6 तबलवासी जी ने अपनी पत्नी के गले से तसकड़ी क्योों तनकाली?
उत्तर – कबलवासी जी ने अपनी पत्नी के गले से कसकड़ी इसकलए कनकाली क्योोंकक उसमें लगी ताली से वह सोंदूक िोलना चाहते थे ताकक
ढाई स रूपये वापस रि सकें।
लघु प्रश्ोों के उत्तर
प्रश्-1 यतद तबलवासी की योज़ना अों ग्रेज़ को पता चल जाती तो क्या होता?
उत्तर – यकद कबलवासी की यो़िना अोंग्रे़ि को पता चल जाती तो लाला जी की पत्नी के कलए रुपयोों का प्रबोंध नहीों हो पाता और अोंग्रे़ि उन
दोनोों को धोिा दे ने के आरोप में जे ल भी कभजवा सकता था
प्रश्-2 ‚इस भेद को मेरे तसवाए मेरा ईश्वर ही जानता है । आप उसी से पू ि लीतजए। मैं नही ों बतााँऊोंगा।‛ तबलवासी जी ने यह बात
तकससे और क्योों कही? तलज्जखए।
उत्तर – ‘कबलवासी’ जी ने यह बात ‘लाला झाऊलाल’ से कही क्योोंकक जो वो रूपये लाए थे उसके पीछे कुछ ऐसी बात थी कजसे वे ककसी को
बताना नहीों चाहते थे । बात यह थी कक कबलवासी जी ने लाला झाऊलाल की मदद करने के कलए अपनी पत्नी के सोंदूक से चोरी
करके रूपयोों का प्रबों ध ककया था।
प्रश्-3 ‚उस तदन राति में तबलवासी जी को दे र तक नी ोंद नही ों आई।‛ समस्या झाऊलाल की थी और नी ोंद तबलवासी की उड़ी तो
क्योों?
उत्तर – "कबलवासी" जी ने अपने कमत्र "लाला झाऊलाल‛ की सहायता करने के कलए अपनी पत्नी के सोंदूक से रूपए चुराए थे । इसीकलए
"कबलवासी‛ जी अपनी पत्नी के सोने की प्रतीक्षा कर रहे थे ताकक वे अपनी पत्नी के गले से कसकड़ी कनकल सकें और उसमें लगी
ताली से सोंदूक िोल कर चुपचाप पैसे वापस रि सकें। यही कारण था कक उन्हें उस रात दे र तक नीोंद नहीों आ रही थी।
दीघथ प्रश्ोों के उत्तर
प्रश्-1अों ग्रेज़ के सामने तबलवासी जी ने झाऊलाल को पहचानने तक से क्योों इनकार कर तदया था? आपके तवचार से तबलवासी
जी ऐसा अजीब व्यवहार क्योों कर रहे थे ? स्पष्ट् कीतजए।
उत्तर – पररखथथकत दे िकर कबलवासी जी के कदमाग में लाला झाऊलाल की समस्या को हल करने का उपाए आया। वे अपनी इस योजना
को पुरी करना चाहते थे कजससे वे लाला जी के कलए पैसोों का इों त़िाम कर सकें। अगर वो लाला जी को पहचान लेते तो उनकी
योजना कवफल हो जाती, इसकलए वे ऐसा अजीब व्यवहार कर रहे थे कजससे अोंग्रे़ि का िोध शाों त हो जाए और उसे ़िरा भी सोंदेह
न हो कक लाला झाऊलाल और वो एक दू सरे से पररकचत हैं ।
व्याकरण तवभाग
वाच्य की पररभाषा
- किया के कजस रूपान्तर से यह ज्ञात हो कक वाक्य में प्रयुि किया का प्रधान कवर्य कताा , कमा अथवा भाव है, उसे वाच्य कहते हैं ।
वाच्य के भेद
उपयुाि प्रयोगोों के अनु सार वाच्य के तीन भे द हैं -
(1) कतृथवाच्य (Active Voice)
(2) कमथवाच्य (Passive Voice)
(3) भाववाच्य (Impersonal Voice)
(1) कतृथवाच्य (Active Voice)- किया के उस रूपान्तर को कतृावाच्य कहते हैं , कजससे वाक्य में कताा की प्रधानता का बोध हो।
सरल शब्दोों में- किया के कजस रूप में कताा प्रधान हो, उसे कतृावाच्य कहते हैं ।
उदाहरण के कलए-
रमे श केला िाता है ।
कदने श पुस्तक पढता है ।
उि वाक्योों में कताा प्रधान है तथा उन्हीों के कलए 'िाता है' तथा 'पढता है ' कियाओं ों का कवधान हुआ है , इसकलए यहााँ कतृावाच्य है ।
(2) कमथवाच्य (Passive Voice)- किया के उस रूपान्तर को कमा वाच्य कहते हैं , कजससे वाक्य में कमा की प्रधानता का बोध हो।
सरल शब्दोों में- किया के कजस रूप में कमा प्रधान हो, उसे कमा वाच्य कहते हैं ।
उदाहरण के कलए-
ककवयोों द्वारा ककवताएाँ कलिी गई।
रोगी को दवा दी गई।
उससे पुस्तक पढी गई।
उि वाक्योों में कमा प्रधान हैं तथा उन्हीों के कलए 'कलिी गई', 'दी गई' तथा 'पढी गई' कियाओं ों का कवधान हुआ है , अतुः यहााँ कमा वाच्य है ।
यहााँ कियाएाँ कताा के अनु सार रूपान्तरररत न होकर कमा के अनु सार पररवकतात हुई हैं । यहााँ ध्यान दे ने योग्य बात यह है कक अाँगरे जी की
तरह कहन्दी में कताा के रहते हुए कमा वाच्य का प्रयोग नहीों होता; जै से- 'मैं दू ध पीता हाँ ' के थथान पर 'मु झसे दू ध पीया जाता है ' कलिना गलत
होगा। हााँ , कनर्े ध के अथा में यह कलिा जा सकता है - मु झसे पत्र कलिा नहीों जाता; उससे पढा नहीों जाता।
(3) भाववाच्य (Impersonal Voice)- किया के उस रूपान्तर को भाववाच्य कहते हैं , कजससे वाक्य में किया अथवा भाव की प्रधानता
का बोध हो।
दू सरे शब्दोों में- किया के कजस रूप में न तो कताा की प्रधानता हो न कमा की, बखि किया का भाव ही प्रधान हो, वहााँ भाववाच्य होता है ।
उदाहरण के कलए-
मोहन से टहला भी नहीों जाता।
मु झसे उठा नहीों जाता।
धूप में चला नहीों जाता।
ले खन तवभाग
तकसी क्षे ि में कृतष योग्य भू तम पर फैज्जररयााँ लगाई जा रही हैं । इससे तकसानोों की भू तम और रोटी-रोजी तिन रही है । इस सोंबोंध में
दो तमिोों की बातचीत को सों वाद रूप में तलज्जखए।
अमन – अरे ! श्याम, कहााँ से चले आ रहे हो?
श्याम – अपने कमत्र के घर गया था, जो नहर के उस पार वाले गााँ व में रहता है ।
अमन – क्योों, क्या ़िरूरत आ गई थी?
श्याम – उस गााँ व के पास कुछ फैखक्टर यााँ लगाए जाने की योजना है । वहााँ के ककसानोों की भू कम अकधगृहीत की जा रही है ।
अमन – दे श के कवकास के कलए फैखक्टर योों की थथापना ़िरूरी है ।
श्याम – वह तो है पर क्या कभी सोचा है कक इससे ककसानोों की रोटी-रोजी कछन जाएगी। वे भू िोों मरने को कववश हो जाएाँ गे।
अमन – सुना है कक सरकार पररवार के ककसी एक व्यखि को न करी दे ती है ।
श्याम – एक व्यखि के न करी के बदले सोना उगलने वाली ़िमीन पर फैक्टर ी लगाना ठीक नहीों है । इससे लाभ कम नु कसान अकधक है ।
अमन – वह कैसे?
श्याम – फैखक्टर यााँ लगाने से हररयाली नष्ट तो होगी ही साथ ही पयाा वरण भी प्रदू कर्त होगा, कजसका दु ष्प्रभाव दू रगामी होता है ।
अमन – इसका उपाय क्या है?
श्याम – इसका एक कवकल्प यह है कक इन फैखक्टर योों को ऐसी जगह पर थथाकपत ककया जाए जहााँ की भू कम पथरीली या ऊसर हो।
अमन – इस कवर्य पर सरकार को कवचार करना चाकहए।
श्याम – हााँ , इससे हमारा पयाा वरण सोंतुकलत रह सकेगा और िाद्यान्न भी कमलता रहे गा।
व्याकरण तवभाग
लोकोज्जियााँ
1. अधजल गगरी िलकत जाए (कम जानने वाला व्यज्जि अतधक तदखावा करता है ।)
समीर को चपरासी की सरकारी न करी क्या कमल गई, पूरे गााँ व में ककसी से सीधे मुाँ ह बात नहीों करता। इसे कहते हैं – अधजल
गगरी छलकत जाए।
2. आम के आम गु ठतलयोों के दाम (दोहरा लाभ)
मैं परीक्षा दे ने कदल्री जा रही हाँ । लाल-ककला और इों कडया गेट दे ि लाँ गी। इसे कहते हैं आम के आम गुठकलयोों के दाम।
3. अों धोों में काना राजा (मूखाथ में थोड़ा जानने वाला व्यज्जि भी आदर पा जाता है ।)
पूरे गााँ व में मदनलाल,ही आठवीों पास है । गााँ व वाले उसे कवद्वान समझकर उसका आदर करते हैं । इसी को कहते हैं अोंधोों में काना
राजा।।
4. अकेला चना भाड़ नही ों फोड़ सकता (अकेला आदमी कुि नही ों कर सकता)
सामाकजक बुराईयोों से लड़ने के कलए हमें सबको एक साथ होकर लड़ाई लड़नी होगी। आपने सुना ही होगा कक अकेला चना भाड़
नहीों फोड़ सकता।
5. अपना हाथ जगन्नाथ (पररश्रम से ही सफलता तमलती है ।)
दू सरोों की कृपा पर कजों दा रहने से तो अच्छा है , पररश्रम करके िाओं , क्योोंकक अपना हाथ जगन्नाथ।
6. उलटा चोर कोतवाल को डााँ टे-(अपराध करने वाला उलटी धौ ोंस जमाए)
बबीत ने मे रा कॉपी चुरा कलया। उससे पूछा तो लड़ने लगा। इसी को कहते हैं – उलटा चोर कोतवाल को डााँ टे।।
7. एक अनार सौ बीमार-(एक वस्तु के अने क चाहने वाले)
न करी में पााँ च पद के कलए पचास हजार आवेदन पत्र दे िकर एक अनार स बीमार वाली कहावत चररताथा होती है ।
8. खोदा पहाड़ तनकली चुतहया-(अतधक पररश्रम करने पर कम लाभ)
पूरे वर्ा ककठन पररश्रम करने के बाद जब मों थन कक्षा में 25 प्रकतशत अोंक ला पाया, तो उसके मुाँ ह से यही कनकला िोदा पहाड़,
कनकली चुकहया।
9. ऊाँची दु कान फीके पकवान-प्रकसखद्ध के अनु रूप गुणोों का न होना
हमने तो इस दु कान का नाम सुनकर इससे सामान िरीदा था, पर वह बहुत ही घकटया कनकला। इसे कहते हैं ऊाँची दु कान फीके
पकवान।
10. दू ध का दू ध पानी का पानी (स्पष्ट् न्याय करना)
राजा कविमाकदत्य दू ध का दू ध और पानी का पानी कर कदया करते थे ।
ले खन तवभाग
अनुच्छेद लेखन
भ्रष्ट्ाचार
एक समय था जब भारत को सोने की कचकड़या कहा जाता था ले ककन आज यह खथथकत है कक भारत आकथा क रूप से इतना कपछड़ रहा है कक
कसवाय उस पर तरस िाने के और कुछ शे र् नहीों रह गया है। स्वतोंत्रता से पूवा हमने दे श से गरीबी, भु िमरी, अकशक्षा, अन्याय, धनी-कनधान
के मध्य की च ड़ी िाई आकद को कमटाने की जो कल्पनाएाँ की थी, भ्रष्टाचार रूपी दै त्य ने उनमें से हमारा कोई भी स्वप्न सत्य कसद्ध नहीों होने
कदया है । हमारे दे श में कभी-भी न तो उत्तम साधनोों का अभाव रहा है और न ही उच्कोकट के ने ता या समाज-सुधारकोों का, कफर भी
सोंसार के समृ द्ध राष्टरोों की तुलना में हमारा थथान कहीों भी नहीों है । इसका मु ख्य कारण सभी क्षे त्रोों में बढता भ्रष्टाचार है ।िाद्य पदाथों में
कमलावट और अपने मु नाफे के कलए जी भरकर कर रहे गलत कायों को करने वालोों की कोई कमी नहीों है । सरकारी कवभागोों में , कवशे र्कर
पुकलस और कचहररयोों में व्याप्त भ्रष्टाचार के कवर्य में यकद कलिने बैठा जाए तो आाँ िें शमा से नीची हो जाएाँ गी। इसका मुख्य कारण हमारे
दे श के कणाधार ने ताओं ों को कहना गलत न होगा। मों त्री पद की कुरसी पाने की भू ि राजनीकतक क्षे त्र में भ्रष्टाचार को जन्म दे रही है । दे िा
जाए तो ऐसा कोई क्षे त्र नहीों बचा है जहााँ भ्रष्टाचार के कदम न पहुाँ चे होों। आज आम आदमी कपसता चला जा रहा है ।बढती महाँ गाई ने
उसकी कमर तोड़ दी है और उस पर हर एक काम के कलए ररश्वत की बढती रकम ने उसकी उन्नकत की हर राह को रोक कदया है ।
आवश्यकता है ऐसे सच्े और अच्छे कणाधारोों की जो अपने कोंधे पर दे श की कजम्मेदारी को ले कर आगे बढें और भ्रष्टाचार को जड़ से
समाप्त करें ।
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