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यूपीएससी आईएएस (मेन) हिन्दी अनिवार्य परीक्षा पेपर UPSC IAS (Mains)

Hindi Compulsory Exam Paper - 2000


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यूपीएससी आईएएस (मेन) हिन्दी अनिवार्य परीक्षा पेपर UPSC IAS (Mains) Hindi
Compulsory Exam Paper - 2000

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In the case of Question No. 3, marks will be deducted if the precis is much longer or shorter
than the prescribed length.

1. निम्नलिखित विषयों में से किसी एक पर लगभग तीन सौ शब्दों में निबन्ध लिखिएः 100

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(क) भारतीय राष्ट्र की स्वरूपगत विशेषता
(ख) आतंकवाद का सामना कसे करें?
(ग) भारत के लघुतर राज्यों के विषय में
(घ) यात्रा शिक्षा के रूप में
(ङ) किसी की कलात्मक प्रवृत्ति का संवर्धनीकरण

2. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर अपने शब्दों में लिखिएःµ 5 × 12 = 60

हमारा राके ट द्रुत गति से छोड़ा जाना चाहिए, कम-से-कम 6.93 मील प्रति सेक.ड की रफ्तार से, क्योंकि यदि यह इससे
वु$छ भी कम गति से छोड़ा जाता है, तो यह एक साधारण बन्दूक की गोली की तरह पृथ्वी पर सिर्प$ वापस गिर कर रह
जाएगा। पर यदि 6.93 मील प्रति सेक.ड की रफ्तार से वू$च करता है, तो यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के जोर से तुरंत
मुक्त हो जाएगा, परन्तु जैसे ही यह मुक्त होगा इसकी अच्छी खासी गति हमें अपनी यात्रा पर ले चलने के लिए शेष नहीं रह
पाएगी। इसलिए हम 7 मील प्रति सेक.ड की रफ्तार से चलें, तो जब यह पृथ्वी के आकर्षण से मुक्त हो जाएगा, इसके बाद
भी इसमें एक मील प्रति सेक.ड चलने की गति शेष रहेगी और हम चन्द्रमा पर दो दिनों से कम में पहुँच जाएँगे।

हम पृथ्वी के वातावरण से होकर गुजरने में के वल वु$छसेक.ड लेते हैं, जिसकी पर्त बेर या आडू की पतली चमड़ी की तुलना
में शायद वु$छ अधिक मोटी है। जैसे ही हम इससे गुजरते हैं, धीरे-धीरे अपने नीचे हवा, धूल और जल-वाष्प के सारे कणों
को छोड़ने लगते हैं, जो सूर्य के प्रकाश को घेर लेते हैं और आकाश की छवि को नीला बना देते हैं। पर जैसे ही इन
कणिकाओं की संख्या कम होने लगती है, हम आकाश को नीले, गहरे नीले, गहरे बैंजनी और काले-भूरे रंगों के रूप में वेश
बदलते देखने लगते हैं।

अन्ततः हम अपने नीचे पृथ्वी का वातावरण छोड़ जाते हैं और सूर्य, चन्द्रमा तथा तारों के अतिरिक्त आकाश को काला
स्याह होता देखते हैं। अब ये पृथ्वी से देखे गये की अपेक्षा अधिक चमकीले दीखते हैं और अधिक नीले भी, क्योंकि उनमें से
कहीं कोई भी नीली रोशनी नीले आकाश की रचना के लिए घटायी नहीं गयी है। अैर अब देर तक सितारे हमें उस तरह
टिमटिमाते नहीं दीखते हैं जैसा पृथ्वी पर, क्योंकि अब उनकी रोशनी की धारा तक को बाधित करने के लिए कहीं कोई
वातावरण नहीं है।

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अब वे हमें रोशनी की तीखी, सख्त सुइयों से हमारी आँखों को वेधते प्रतीत होते हैं।

(क) यदि राके ट 6.93 मील प्रति सेक.ड की रफ्तार से उ$पर उठे तो क्या घटित होगा?
(ख) यदि राके ट 7 मील प्रति सेक.ड की रफ्तार से उ$पर उठे, तो ऐसी स्थिति में गुरुत्वाकर्षणµक्षेत्रा के बाहर उसकी गति
क्या होगी और चन्द्रमा तक पहुँचने में हमें कितना समय लगेगा?
(ग) पृथ्वी का वातावरण कितना मोटा है और उससे गुजरने में इसे कितना समय लगेगा?
(घ) जैसे ही हम वातावरण से बाहर निकलेंगे आकाश में हम रंगों का वै$सा परिवर्तन देखेंगे?
(ङ) पृथ्वी से देखे जाने की तुलना में बाह्य आकाश में सितारे हमें किस तरह दीखेंगे?

3. निम्नलिखित गद्यांश का संक्षेपण अपनी भाषा में लगभग 200 शब्दों में कीजिए। इसे इसके द्वारा निर्धारित कागज पर ही
लिखिए और उत्तर-पुस्तिका के अन्दर इसे नत्थी कर दीजिए। संक्षेपण में अपने द्वारा व्यक्त शब्दµसंख्या का उल्लेख अवश्य
कीजिए। निर्धारित कागज पर संक्षेपण नहीं करने पर या निर्धारित सीमा से अधिक में संक्षेपण करने पर आपके अंक काट
लिये जाएँगे। इसका ध्यान रखें। 60

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शायद भारतीय समाज की सर्वाधिक प्रमुख उपलब्धि भारतीय दर्शन है अथवा एक प्रकार से भारतीय दर्शन और भारतीय
धर्म दोनों है, क्योंकि जैसे हम तुरन्त बाद देखेंगे मानवीय आत्मा के क्रिया-कलाप के ये दो दर्शनµभेद कल्पनाशील और
ग्रहणशील हैं। इनमें एक ब्रह्मा.ड की जाँच-पड़ताल करता है और दूसरा इसके प्रति अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है।
यूरोप में ये दोनों पृथक-पृथक हैं और कई बार तो परस्पर विरोधी तक रहे हैं, पर भारत में ये लगातार अविभेद्य बने रहे हैं।
इसलिए मैं इस अध्याय के शीर्षक के अन्तर्गत दर्शन और धर्मµदोनों को समाविष्ट करने का इरादा रखता हूँ।

भारतीय दर्शन किसी दूसरे राष्ट्र से बिल्वु$ल असमान है। इसकी विभेदकता तीन विशेषताओं से स्पष्ट होती है। पहली
विशेषता इसकी निरन्तरता है। भारतीय चिन्तक ब्रह्मा.ड के स्वरूप और अर्थ के विषय में कमोबेश कोई तीन हजार सालों
की अवधि से लगातार पड़ताल करते आ रहे हैं। इसके समान तारीखी दस्तावेज के वल चीनी दिखा सकते हैं। इसकी दूसरी
विशेषता एकमतता की है। मोटे तौर पर कहें, तो सभी भारतीय चिन्तक इस विचार की मानने में सहमत रहे हैं कि ब्रह्मा.ड
अपने वास्तविक स्वरूप में महत्त्वपूर्ण अर्थ में एकतामय है। अब विश्व, जैसा दीखता है, निश्चय की एकता का सूचक नहीं
रह पाया है, बल्कि विजातीय विभिन्नता का सूचक बन गया है। कहना यह है कि यह जिसे धारण करता है, वह दृश्यतः
लोगों और वस्तुओं की अपरिमित संख्या का संग्रह है। इसलिए ब्रह्मा.ड जैसा वास्तव में है और जैसा यह दीखता है, इन
दोनों के बीच अवश्य अन्तर होना चाहिए। एक ऐसा विभेद या अन्तरµजिसे यह कहकर अभिव्यक्त किया जा सके कि
ब्रह्मा.ड एक ऐसा यथार्थ है जो अपनेµआपको विभिन्नता में ठीक वैसे ही अभिव्यक्त करता है जैसे किसी गीतात्मक रचना
की प्रधान कथावस्तु या संगीत की अन्तर्निििहत विषय-वस्तु अपनेµआपको वैयक्तिक स्वरµलहरी की विभिन्नताओं में
अभिव्यक्त करती है, जो सबµके µसब समान सांगीतिक विचार को ही व्यक्त करते हैं अब यह मोटे तौर पर सच है कि सभी
भारतीय चिन्तक इस अन्तर को बताने के लिए एकमत रहे हैं। तीसरे, हम दर्शन और धर्म के सम्पर्व$ पर आते है। भारतीय
दर्शन कभी भी बौद्धिक व्यापार तक सीमित नहीं रहा है। औपचारिक रूप में निस्सन्देह यह सत्य की खोज है। पर भारत में
दर्शन सत्य की खोज से कहीं अधिक करता रहा है। यह जीवन-मार्ग का अन्वेषण और उसका निर्धारण भी करता रहा है।
तथ्यतः अपने अन्तिम प्रयत्न के रूप में यह एक जीवन-मार्ग है। एक जीवन-मार्ग और विश्वास-मार्ग दोनों है। भारतीय दर्शन
का यह व्यावहारिक प्रभाव अनिवार्य तौर पर भारतीय दार्शनिकों के सिद्धान्तों का अनुसरण करने वाला है।

भारतीय दर्शन यह शिक्षा देता है कि जीवन का अपना अर्थ है और उसका एक उद्देश्य भी है। उस अर्थ को खोजना हमारा
कर्तव्य है और उस उद्देश्य को उपलब्ध कराना आखिरकार हमारा विशेषाधिकार है। इसलिए दर्शन जिस अर्थ को उद्घाटित
करना चाहता है, उस लक्ष्य के प्रति यह जहाँ तक सफल हो पाता है, वहाँ तक यह अपने अग्रगमन को नियोजित करता
है। इसके पीछे लक्ष्य क्या है? वास्तव की उपलब्धि तो, जिस अर्थ में इसे उपलब्ध करें, वहाँ के वल जानना नहीं है, बल्कि
उसके साथ ‘एक होना’ है। पर इस उपलब्धि में अड़चन कौन डालता है? कहना होगा कि इस मार्ग में अनेक अड़चनें हैं। पर
इसकी मुख्य अड़चन अविद्या है। अनिर्दिष्ट आत्मा यह नहीं जान पाती है कि ‘अनेक’ का यह दृश्यमान संसार अके ला नहीं है;
यह भी कि यह वास्तविक भी नहीं है। यह दर्शन है, जो उसे सिखाता और अनुदेश देता है और इसकी शिक्षा के द्वारा अविद्या
से हटकर मोक्ष की प्राप्ति होती है। अविद्याा से हटकर मोक्ष की प्राप्ति होती है। अविद्या वास्तव की संदृष्टि को हमेशा ढके
रहती है। इस प्रकार दर्शन यहाँ ज्ञान की वुं$जी-मात्रा नहीं है, बल्कि वास्तविकता की ओर ले चलने वाला मार्ग है। इस
मार्ग का अनुगमन करना के वल जानना नहीं है, बल्कि प्रयास करना है और यदि यह प्रयास सफल होता है, तो अन्ततः वह
हो जाता है। इस प्रकार एक दार्शनिक होना किसी बौद्धिक का अनुगमन करना नहीं, बल्कि एक महत्त्वपूर्ण ज्ञानानुशासन
का अनुसरण करना है, वास्तविकता की खोज में संलग्न अच्छे दार्शनिक के लिए उससे सदा उसके जीवन में आचरित किये
जाने की अपेक्षा की जाती थी, जिससे वह अपने द्वारा पड़ताल किये जाने वाले के साथ ‘एक होने’ ही दिशा में अपना जीवन
व्यतीत कर सके ।

4. Translate the following into Hindi: 20

Modern education has made great strides in encouraging inventiveness, but it still has a long
way to go before it can completely rid itself of the urge to suppress creativity. It is inevitable
that bright young students will be seen as a threat by older academics, and it requires great

3/6
self-control for teachers to overcome this. The system is designed to make it easy, but their
nature, as dominant males, is not. Under the circumstances it is remarkable that they
manage to control themselves as well as they do. There is a difference here between the
school level and the university level. In most schools the dominance of the master level. In
most schools the domainance of the master over his pupils is strongly and directly
expressed, both socially and intellectually. He uses his greater experience to conquer their
greater inventiveness. His brain has probably become more rigidified than theirs, but he
masks this weakness by imparting large quantities of 'hard' facts. There is not argument, only
instruction. (The situation is improving and there are, of course, exceptions, but this still
applied as a general rule.)

At the university level the scene changes. There are many more facts to be handed down,
but they are not quite to 'hard'. The student is now expected to questions them and assess
them, and eventually to invent new ideas of his own.

5. निम्नलिखित हिन्दी गद्यावतरण को अंग्रेजी में अनूदित कीजिएः 20

भारत हमेशा मेरे जीवन की पृष्टभूमि का अंग रहा है, लेकिन मैंने कभी भी उसे पूरा नहीं देखा और अपने तई अब तक नहीं।
फिर भी जो कहानियाँ हमारे भारतीय पारिवारिक चिकित्सक और उनकी पत्नी ने मुझे उस समय सुनायीं जब मैं बालक था,
जिन्हें मैंने अपने उभरते सपनों में इनके तई बुना था और मैंने लम्बे अरसे तक उस प्रत्येक चीज को पढ़ा था, जिसे उस देश
के बारे में मैं पा सका था। इसे मैंने अपने पिता से बुद्ध-धर्म के द्वारा और भगवान् बुद्ध के जीवन-इतिहास के माध्यम से सीखा
था।

वह विशेष शब्द-रंग मुझे उस कोलाहल की विविधता की याद दिलाता है, जो भारतीय जीवन में विद्यमान हैं यह उतना ही
विविधतापूर्ण है जितना कि हमारे अमेरिकी मानवीय दृश्य में। कश्मीर में, जहाँ, चिट्टे क् रूर हमलावरों ने बहुत पहले यूरोप से
प्रवेश किया, वहाँ प्रायः लोग साफ रंगों वाले हैं। सुनहरे-भूरे बालों वाली और नीली आँखों वाली नारियाँ वहाँ की सुन्दरता
हैं। मेरी एक युवा भारतीय मित्रा ने हाल में ही एक कश्मीरी पुरुष से विवाह किया है, यद्यपि उसके बाल काले और आँखें
साफ हरे रंग की हैं। कश्मीरी की त्वचा का रंग सुन्दर मक्खनी है और उसके रंग-रूप वैसे क्लासिक हैं जैसे ग्रीक के ।
लेकिन भारत के सभी लोगों को काके शियस प्रजाति से संबंधित मानना चाहिए, चाहे दक्षिण में इनकी त्वचा का रंग जो भी
हो, भले ही यह उतना काला ही क्यों न हो, जितना काला किसी अफ् रीकी की त्वचा का रगं होता है।

6. (क) निम्नलिखित मुहावरों और लोकोक्तियों में से के वल पाँच का अर्थ स्पष्ट करते हुए वाक्यों में प्रयोग कीजिएः 20

(i) आँख चूकना


(ii) आँसू पीकर रह जाना
(iii) न उ$धो का लेना न माधो का देना।
(iv) दाल में काला होना
(v) दिन-रात एक करना
(vi) आये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास
(vii) हाथों हाथ लेना
(viii) एड़ी चोटी का पसीना एक करना
(ix) खीरा ककड़ी समझना
(x) तख्ता पलटना

4/6
(ख) निम्नलिखित युग्मों में से किन्हीं पाँच को वाक्यों में इस तरह प्रयुक्त कीजिए कि उनका अर्थ स्पष्ट हो जाए, साथ ही
उनके बीच का अन्तर भी समझ में आ जाएः 10

(i) नारी - नाड़ी


(ii) परुष - पुरुष
(iii) प्रसाद - प्रासाद
(iv) नीर - नीड़
(v) वु$ल - वू$ल
(vi) मूल - मूल्य
(vii) तरणी - तरुणी
(viii) जलज - जलद
(ix) सुर - सूर
(x) दान - धान

(ग) निम्नलिखित वाक्यों में से किन्हीं पाँच वाक्यों के शुद्ध रूप लिखिएः 10

(i) सिवा आपको छोड़ कर कोई ऐसा बात नहीं कहेगा।


(ii) थोड़ी देर बाद सन्यासी वापस लौट आये।
(iii) वह विलाप करके रोने लगी।
(iv) कई सौ बरस तक पारत माता के गले में बेड़ियाँ पड़ी रही।
(v) आदर्श और यर्थाथ में, ज्योत्सना और अमा में क्या अन्तर है?
(vi) वह सवु$शल सहित अपने घर पुज गया।
(vii) यहाँ अनाधिकार परवेश वर्जित है।
(viii) उसका उद्देश्य आपके आँखों से आँसू बहाना नहीं था।
(ix) हमारे देश में बहुत सारे नदीया प्रमात्मा का देन हैं।
(x) मेरे अध्ययन अस्थान पर किसी की भी मन पढ़ने को मचलेगी।

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