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स्पर्श - पाठ - धल

ू रामविलास र्माश
प्रश्न अभ्यास -
ननम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्ततयों में दें -
प्रश्न1 हीरे के प्रेमी उसे ककस रूप में पसंद करते हैं?
उत्तर - हीरे के प्रेमी को वह हीरा पसंद आता है , जो साफ-सुथरा, सुंदर आकार
में तराशा हुआ और अपने चमकदार रूप के कारण मोह िेता है ।
प्रश्न2 लेखक ने संसार में ककस प्रकार के सुख को दल
ु भ
श माना है ?
उत्तर - बचपन में धूि से िेिने के और जवानी के ददनों में अिाडे की लमट्टी
में सनने के सि
ु को िेिक ने दि
ु भ
ल (आसानी से ना लमिने वािा) माना है।
प्रश्न3 ममट्टी की आभा क्या है ? उसकी पहचान ककससे होती है ?
उत्तर - लमट्टी की आभा(चमक) धूि को बताया गया है और लमट्टी की आभा
की पहचान भी धि
ू से ही होती है ।
मलखखत -
(क) ननम्नमलखखत प्रश्नों के उत्तर (25-30) र्ब्दों में मलखखए -
प्रश्न1 धूल के बिना ककसी मर्र्ु की कल्पना क्यों नहीं की जा सकती है ?
उत्तर – धूि-लमट्टी में िेिना बच्चे को अच्छा िगता है और यह उसके धरती
से सहज जुडाव को बताता है तयोंकक बच्चे को ववकास के लिए सभी सामग्रियााँ
इसी धूि (लमट्टी) से लमिती हैं। क्जसने भी इस बात का अनभ
ु व कर लिया,
वह धूि के बबना ककसी लशशु की कल्पना कर ही नहीं सकता है।
प्रश्न2 हमारी सभ्यता धूल से क्यों िचना चाहती है ?
उत्तर - हमारी सभ्यता शहरी सभ्यता कही जाती है , जो लमट्टी के प्रनत प्रेम की
भावना न रिकर घण
ृ ा की भावना रिती है। जो शरीर पर लमट्टी िगने पर
गंदा हो जाना कहती है और उससे बचने के लिए ऊाँचे स्थान पर घर बनाती है ।
प्रश्न3 अखाडे की ममट्टी की क्या विर्ेषता होती है ?
उत्तर - िेिक के अनस
ु ार अिाडे की लमट्टी साधारण धूि नहीं होती है। उसमें
िोग पहिवानी करके, कुश्ती करके अपने शरीर को मजबत
ू बनाते हैं इसलिए
उसके प्रनत आदर की भावना रिते हैं और उसे अपने दे वता पर चढाते हैं।
अिाडे की लमट्टी तेि और मट्ठे से लसझाई (पतकी बनाई हुई) लमट्टी होती है।
प्रश्न4 श्रद्धा, भक्क्त, स्नेह की व्यंजना के मलए धूल सिोत्तम साधन ककस
प्रकार है ?
उत्तर - िेिक के अनस
ु ार धूि घण
ृ ा को बताने का माध्यम नहीं है । उन्होंने
पाया कक सती ने उसे माथे से िगाकर, सैननक ने उसे आाँिों से िगाकर,
यलू िलसस ने उसे चम
ू कर और यक्र
ू े न के िाि सैननक ने उसे छूकर अपनी श्रद्धा,
भक्तत, और स्नेह की भावना प्रकट की है । इस प्रकार बहुत से ऐसे उदाहरण
लमिते हैं क्जनसे पता िगता है कक यह श्रद्धा, भक्तत, स्नेह को बताने का
सवोत्तम साधन है ।
प्रश्न5 इस पाठ में लेखक ने नगरीय सभ्यता पर क्या व्यंग्य ककया है ?
उत्तर - हमारी सभ्यता पढी-लििी नगरीय सभ्यता है पर वह बनावटीपन को,
ददिावे को महत्त्व दे ती है। एक ओर तो वह जानती है कक लमट्टी से ही शरीर
ननमालण के आवश्यक तत्व प्राप्त होते हैं और दस
ू री तरफ वह उसे शरीर को
गंदा करने वािा बताती है । वह अपने बच्चों को उससे बचाती है कक लमट्टी
िगने पर वे गंदे ददिेंगे और कृबिम सौंदयल सामिी िगाकर उसे संद
ु र ददिाना
चाहती है। कफर भी उसकी सुंदरता गोधूलि से सने बािकृष्ण की सुंदरता के आगे
महत्त्व नहीं रिती है । धूि से बचने के लिए ऊाँचे स्थान पर अपना घर बनाना
चाहती है। अपने ननमंिण-पि में गोधूलि बेिा में आने का क्जक्र करती है जबकक
इमारतों और पतकी सडकों वािे शहर में गोधलू ि होती ही नहीं है । इस प्रकार
िेिक ने नगरीय सभ्यता के बनावटीपन को बताया है।
(ख) ननम्नमलखखत प्रश्नों के उत्तर (50-60 र्ब्दों) में मलखखए -
प्रश्न1 लेखक िालकृष्ण के मुुँह पर छाई गोधूमल को श्रेष्ठ क्यों मानता है ?
उत्तर - िेिक के अनस
ु ार बािकृष्ण के माँह
ु पर छाई गोधलू ि श्रेष्ठ इसलिए है
तयोंकक वह बच्चे के लमट्टी से स्वाभाववक जुडाव को प्रकट करती है और उसकी
प्राकृनतक सुंदरता को बढाती है जबकक नगरीय सभ्यता का कुिीन वगल इस
सुंदरता को बढाने के लिए कृबिम साधनों का प्रयोग करता है ।
प्रश्न2 लेखक ने धूल और ममट्टी में क्या अंतर िताया है ?
उत्तर - िेिक के अनस
ु ार लमट्टी की चमक का नाम धूि है । लमट्टी के रं ग-रूप
की पहचान उसकी धि
ू से ही होती है । दोनों आपस में ऐसे जुडे हुए हैं जैसे
शब्द के साथ में उसका आनंद; शरीर के साथ में प्राण और चााँद के साथ
चााँदनी। एक की कल्पना भी दस
ू रे के बबना नहीं की जा सकती है ।
प्रश्न3 ग्रामीण पररिेर् में प्रकृनत धूल के कौन-कौन से सुंदर चचत्र प्रस्तुत करती
है ?
उत्तर - िामीण वातावरण में प्रकृनत के धि
ू से जड
ु े बहुत से संद
ु र दृश्य दे िने में
आते हैं। जैसे कक -
i) आम के बगीचे के पीछे नछपे सूयल की ककरणों की सुंदरता का दृश्य, क्जसके
सामने सोने की सुंदरता भी फीकी हो जाती है।
ii) सूयालस्त के बाद गााँव के ककसी रास्ते पर जब कोई गाडी ननकिती है तो
उसके कारण उडी धूि रुई के बादिों की तरह ददिाई दे ने का सद
ुं र दृश्य या
कफर आकाश में तारों के समान क्स्थर होकर इंद्र के हाथी ऐरावत के ककसी
आकाशीय रास्ते के समान ददिाई दे ने की सुंदरता का दृश्य।
iii) चााँदनी रात में ककसी मेिे में जाने वािी गाडडयों के चिने पर उनके पीछे
उडती धि
ू का ऐसा िगने का दृश्य जैसे वह धि
ू न होकर ककसी कवव की
कल्पना हो, जो उसके पीछे उडती चिी जा रही है।
iv) बच्चे के मुाँह पर िग कर उसके लमट्टी के जुडाव को बताने के साथ-साथ
उसकी सुंदरता बढाने का दृश्य।
v) फूि की पंिुडडयों पर छाकर उसकी सुंदरता को बढाने का दृश्य।
प्रश्न4 'हीरा िही घन चोट ना टूटे ' - का संदभश पाठ के आधार पर स्पष्ट
कीक्जए।
उत्तर - कााँच चोट िाकर टूट जाता है परं तु हीरा इतना मजबत
ू होता है कक
हथौडे की चोट से टूटता नहीं है । यहााँ हीरा शब्द 'डायमंड्स' के अथल में आया है
पर इसके माध्यम से िेिक बच्चे के ववकास को बताता है कक बच्चे धूि में
िेिते हैं और धूि िगे होने के कारण गंदे ददिाई दे ते हैं, पर वे ही बडे होकर
हीरे की तरह मजबूत बनते हैं। वे बडे होकर ककसी भी प्रकार की पररक्स्थनत से
घबराएाँगे नहीं और अपने कायों से अमर होंगे। तब हम उसकी धूि को भी माथे
से िगाकर आदर दें गे।
प्रश्न5 धूल, धूमल, धूली, धूरर और गोधूमल की व्यंजनाओं को स्पष्ट कीक्जए।
उत्तर - िेिक ने धूि, धूलि, धूिी, धरू र और गोधलू ि को इस प्रकार से बताया
है -
* धूि को जीवन का यथाथलवादी गद्य बताया है ।
* धलू ि को धि
ू का भावप्रधान काव्यात्मक रूप कहा है।
* धि
ू ी को छायावादी दशलन के समान कहा है जो कक परमात्मा के समान
रहस्य से भरा हुआ है और क्जसकी वास्तववकता संददग्ध है ।
* धरू र को िोक-संस्कृनत का नवीन जागरण बताया है ।
* और गोधलू ि जब चरने गई गाएाँ वापस अपने घर िौट रही होती हैं, तब
उनके िुरों के स्पशल से धूि उडती है । उस धूि को गोधलू ि और संध्या के उस
समय को गोधलू ि-बेिा कहा जाता है। इस समय को बहुत पववि समय माना
गया है ।
प्रश्न6 'धूल' पाठ का मूल भाि स्पष्ट कीक्जए।
उत्तर - श्री रामवविास शमाल ने अपने इस ववचारप्रधान िेि में धि
ू की
ववशेषताओं को बताते हुए उसकी उपिब्धता और मानव-जीवन में उसकी
उपयोग्रगता के बारे में बताया है । उन्होंने प्राकृनतक सामीप्य से पण
ू ल िामीण-
जीवन और बनावटीपन से नघरे शहरी जीवन के बारे में बताया है । िामीण
जीवन में धूि की सुंदरता के ववलभन्न दृश्य ददिाए हैं, तो अपनी लमट्टी से
प्यार करने एवं दे शभक्तत की सीि भी दी है ।
प्रश्न7 कविता को विडंिना मानते हुए लेखक ने क्या कहा है ?
उत्तर - िेिक के अनस
ु ार शहरी कववयों ने 'गोधूलि' और 'गोधलू ि बेिा' पर बहुत
कुछ लििा है जबकक 'गोधलू ि' और 'गोधलू ि बेिा' तो गााँव में ही होती है ।
क्जसने गााँव का जीवन अनभ
ु व ही नहीं ककया है और वह गााँव के जीवन के
महत्त्वपूणल अंग 'गोधूलि' और 'गोधूलि बेिा' के बारे में बताए, यह उपहास की
बात है ।
(ग) ननम्नमलखखत का आर्य स्पष्ट कीक्जए -
1) फूल के ऊपर जो रे णु उसका श्रग
ृं ार िनती है , िही धूल मर्र्ु के मुुँह पर
उसकी सहज पाचथशिता को ननखार दे ती है ।
उत्तर - िेिक इन पंक्ततयों में बताना चाहते हैं कक धूि सुंदरता को बढाने का
कायल करती है । वह फूि के ऊपर िग कर उसकी संद
ु रता बढा दे ती है और बच्चे
के मुाँह पर िगकर उसके लमट्टी से जुडाव को स्वाभाववक रूप से और मजबूत
बनाती है। लमट्टी में िेिने वािा बच्चा अपनी लमट्टी से सदै व प्यार करे गा।
2) 'धन्य धन्य िे हैं नर मैले जो करत गात कननया लगाय धूरर ऐसे लररकान
की' - लेखक इन पंक्क्तयों द्िारा क्या कहना चाहता है ?
उत्तर - िेिक कवव की इन पंक्ततयों से सहमत नहीं है । इस पंक्तत का अथल इस
प्रकार होगा कक वे मनष्ु य धन्य हैं क्जन्हें धि
ू में सने बच्चे को अपनी गोद में
िेने का अवसर लमिता है चाहे बच्चे पर िगी धूि कणों से उसके स्वयं के
कपडे मैिे तयों न हो जाते हों। वस्तत
ु ः इन कवव महोदय ने धि
ू में सने बच्चे
का महत्त्व इन पंक्ततयों में कम ही ककया है , उसे बढाया नहीं है। िेिक के
अनुसार 'बच्चे को गोद में िेने वािा भाग्यशािी होता है ' - यह कह कर उसने
महत्त्व की बात तो की है पर दस
ू री तरफ मैिे शब्द का प्रयोग करके उसने धूि
में सने बच्चे को मैिा भी बता ददया है क्जसके कारण उस बच्चे को अपनी गोद
में िेने वािा व्यक्तत भी मैिा हो जाता है । इसके अिावा उसने 'ऐसे िररकान'
यानन ऐसे िडके कहकर बच्चों-बच्चों में भी भेद कर ददया है । बच्चे-बच्चे में भेद
ककए जाने के कारण यह पता िग जाता है कक जो बच्चे हीरे की तरह साफ-
सुथरे होते हैं वह उन्हें ही पसंद करता है, उन्हें नहीं जो धूि में सने हुए हों।
3) ममट्टी और धूल में अंतर है लेककन उतना ही, क्जतना र्ब्द और रस में , दे ह
और प्राण में, चाुँद और चाुँदनी में ।
उत्तर - इन पंक्ततयों में िेिक ने लमट्टी और धूि के आपसी जुडाव को बताया
है । इन दोनों में अंतर इतना ही है क्जतना शब्द और उससे लमिने वािे आनंद
में है अथालत क्जस प्रकार मधरु शब्द हमें सि
ु पहुाँचाते हैं और उससे उसकी
मधरु ता को अिग नहीं ककया जा सकता है । यह अंतर शरीर और प्राण क्जतना
ही है कक प्राणों के बबना शरीर का अक्स्तत्व ही नहीं है। यह अंतर चााँद और
चााँदनी क्जतना ही है कक चााँद के बबना चााँदनी की कल्पना नहीं की जा सकती।
4) हमारी दे र्भक्क्त धूल को माथे से न लगाए तो कम से कम उस पर पैर तो
रखे।
उत्तर - आज क्जस प्रकार से धूि के प्रनत िोगों की सोच दे िने में आती है ,
उसमें वह उसे माथे से िगाकर आदर दे ना पसंद नहीं करते हैं। यह भी जरूरी
नहीं है कक जो धि
ू को माथे से िगाए, वही सच्चा दे शभतत होता है । िेिक का
ववचार है कक हमें अपने दे श के बारे में जानना चादहए और अपनी लमट्टी से
घण
ृ ा नहीं अवपतु प्यार करना चादहए। उसे छोडकर नहीं जाना चादहए।
5) िे उलट कर चोट भी करें गे और ति काुँच और हीरे का भेद जानना िाकी न
रहे गा।
उत्तर - बच्चे धि
ू में िेिते हैं और धि
ू िगे होने के कारण गंदे ददिाई दे ते हैं
पर वही बडे होकर हीरे की तरह मजबत
ू बनते हैं। वे बडे होकर ककसी भी प्रकार
की पररक्स्थनत से घबराकर कााँच की तरह टूटें गे नहीं अवपतु उनका मुकाबिा
करके हीरे की तरह मजबूत होने का प्रमाण दें गे। उनके कायों से हमें पता
िगेगा कक कौन कााँच की तरह कृबिम, बनावटी, ददिावटी है और कौन हीरे के
समान मजबत
ू और प्राकृनतक रूप से श्रेष्ठ और सुंदर है ।

भाषा अध्ययन
1) ननम्नमलखखत र्ब्दों के उपसगश छाुँटटए -
उदाहरण : ववज्ञावपत - वव (उपसगल) ज्ञावपत
शब्द उपसगल
संसगल सम ्
उपमान उप
संस्कृनत सम ्
दि
ु भ
ल दरु ्
ननद्लवंद्व ननर्
प्रवास प्र
दभ
ु ालग्य दरु ्
अलभजात अलभ
संचािन सम ्

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