Professional Documents
Culture Documents
Kichad Ka Kavya
Kichad Ka Kavya
1: नदि दकनारे अं दकत पिदचन्ह और सी ंगों के दचन्हों से मानो मदहषकुल के भारतीय यु द्ध का पू रा
इदतहास ही इस किण म ले ख में दलखा हो ऐसा भास होता है ।
उत्तर: इस पं क्ति में लेखक ने उस दृश्य का वर्ण न दकया है जब कीचड़ पर मवे दशयों के लड़ने से
तरह तरह के दनशान बन जाते हैं । ऐसे दनशान नाना प्रकार के होते हैं और एक दवशाल क्षे त्र में अं दकत
हो जाते हैं । तब ऐसा लगता है दक इस िे श में आज तक दजतने भी मवे दशयों के यु ि्/k हुए, कीचड़
उन सबका इदतहास बता रहा है ।
2: “आप वासु िेव की पू जा करते हैं इसदलए वसु िेव को तो नही ं पू जते, हीरे का भारी मू ल्य िे ते हैं दकंतु
कोयले या पत्थर का नही ं िे ते और मोती को कंठ में बााँ धकर दिरते हैं दकंतु उसकी मातुश्री को गले में
नही ं बााँ धते ।“ कम से कम इस दवषय पर कदवयों के साथ तो चचाण न करना ही उत्तम।
उत्तर: ले खक का मानना है दक कदव यथाथण से कोसों िू र होते हैं और वे दसक्के का केवल एक पहलू
िे खते हैं । ले दकन इस दवषय पर दकसी भी कदव से बहस करना बेकार है । कोई भी कदव शब्दों का
धनी होता है और अपनी वाकपटु ता से वह तकों में दकसी को भी हरा सकता है ।