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निम्ननिखित प्रश्नों के उत्तर एक दन पोंखियनों में दीनिए:

1: रं ग की शोभा ने क्या कर दिया?


उत्तर: उस सु बह रं गों की सारी शोभा उत्तर दिशा में जमी थी। उत्तर दिशा में लाल रं ग ने कमाल कर
दिया था।
2: बािल दकसकी तरह हो गए थे ?

उत्तर: बािल ’osr पू नी जैसे हो गए थे । धु नी हुई रुई को पू नी कहते हैं ।

3: लोग दकन-दकन चीजों का वर्ण न करते हैं ?


उत्तर: लोग आकाश, पृ थ्वी, जलाशयों, आदि का वर्ण न करते हैं लेदकन कोई भी कीचड़ का वर्ण न
नही ं करता।
4: कीचड़ से क्या होता है ?
उत्तर: कीचड़ से शरीर मै ला हो जाता है और कपड़े गंिे हो जाते हैं । कोई भी नही ं चाहता दक उसके
शरीर पर कीचड़ पड़े ।
5: कीचड़ जैसा रं ग कौन लोग पसं ि करते हैं ?
उत्तर: कलादभज्ञ लोग कीचड़ जैसा रं ग पसं ि करते हैं ।
6: निी के दकनारे कीचड़ कब सुं िर दिखता है ?
उत्तर: निी के दकनारे जब कीचड़ सू खकर बड़े टु कड़ों में बिल जाता है तो बहुत सुं िर दिखता है ।
7: कीचड़ कहााँ सुं िर लगता है ?
उत्तर: निी दकनारे जब मीलों तक एक जैसा समतल कीचड़ पसरा होता है तो वह बहुत सुं िर
दिखता है ।
8: ‘पं क’ और ‘पं कज’ शब्द में क्या अं तर है ?
उत्तर: ‘पं क’ का अथण होता है कीचड़, जबदक ‘पं कज’ का अथण होता है कमल।

निम्ननिखित प्रश्नों के उत्तर 25-30 शब्नों में निखिए:

1: कीचड़ के प्रदत दकसी की सहानुभूदत क्यों नही ं होती?


उत्तर: कीचड़ का नाम आते ही मै लेपन का खयाल आता है । कीचड़ को लोग गंिगी की दनशानी
समझते हैं । इसदलए कीचड़ के प्रदत दकसी की सहानुभूदत नही ं होती।
2: जमीन ठोस होने पर उस पर दकनके पिदचह्न अं दकत होते हैं ?
उत्तर: जमीन ठोस होने पर उस पर गाय, भैं स, बकरी, बै ल, आदि के पिदचन्ह अं क्ति हो जाते हैं ।
कभी कभी उस पर दचदड़या के पिदचन्ह भी अं दकत हो जाते हैं ।
3: मनुष्य को क्या भान होता दजससे वह कीचड़ का दतरस्कार न करता?
उत्तर: हमारा अन्न कीचड़ से ही पै िा होता है । यदि इसका जाग्रत भान मनुष्य को होता तो वह कीचड़
का दतरस्कार न करता।
4: पहाड़ लु प्त कर िे नेवाले कीचड़ की क्या दवशे षता है ?
उत्तर: समं िर के दकनारे या खं भात में जहााँ तक नजर जाए कीचड़ ही नजर आता है । मही निी के
मु हाने पर तो इतना कीचड़ होता है दक उसमें हाथी क्या पहाड़ भी लुप्त हो जाएाँ । इससे पता चलता है
दक वहााँ पर अथाह कीचड़ होता है ।

निम्ननिखित प्रश्नों के उत्तर 50-60 शब्नों में निखिए:

1: कीचड़ का रं ग दकन-दकन लोगों को खु श करता है ?


उत्तर: कीचड़ का रं ग कलादभज्ञ लोगों और बुn~f/kthवी लोगों को खु श करता है । कुछ कलाप्रे मी दमट्टी
के वै से बरतन या कलाकृदतयााँ जमा करते हैं दजनका रं ग कीचड़ जैसा हो। कुछ अदभजात लोग
कपड़ों के दलए भी कीचड़ जैसा रं ग ही पसं ि करते हैं । कई रुदचपू र्ण घरों की िीवारें भी कीचड़ के
रं ग की होती हैं ।
2: कीचड़ सू खकर दकस प्रकार के दृश्य उपक्तथथत करता है ?
उत्तर: जब कीचड़ थोड़ा सू ख जाता है तो उसपर दचदड़यों के चलने से दनशान बनते हैं । जब तीन
नाखू न आगे और एक नाखू न पीछे वाले ये दनशान मीलों तक जाते हैं तो ऐसा लगता है दक दकसी बड़े
नक्शे पर कारवााँ के दनशान बने हों। सू खे कीचड़ पर मवे दशयों के पिदचन्ह भी बनते हैं । कभी कभी
जब ये मवे शी लड़ते हैं तो कीचड़ पर इनकी लड़ाई के दनशान गवाही के रूप में बन जाते हैं ।
3: सू खे हुए कीचड़ का सौंियण दकन थथानों पर दिखाई िे ता है ?
उत्तर: सू खे कीचड़ का सौंियण दकसी भी निी के तट पर दिखाई िे ता है । गंगा जैसी बड़ी निी के तट
पर कीचड़ का भं डार दिखता है । यदि इससे भी मन न भरे तो आप समं िर के दकनारे या खं भात
जाकर कीचड़ की दवशाल रादश को िे ख सकते हैं । वहााँ पर तो इतना कीचड़ होता है दक उसमें हाथी
क्या पहाड़ तक समा जाएाँ ।
4: कदवयों की धारर्ा को लेखक ने वृ दत्त-शू न्य क्यों कहा है ?
उत्तर: कदव को लेखक ने यु क्ति शू न्य वृ दत्त वाला बताया है । लेखक के अनुसार, कदव को दसक्के का
केवल एक ही पहलू नजर आता है । कोई भी कदव ‘पं कज’ शब्द सु नकर आg~ykदित हो उठता है
लेदकन ‘पं क’ का नाम सु नते ही नाक भौं दसकोड़ने लगता है । ‘मल’ शब्द से कदव का मन मदलन हो
उठता है लेदकन ‘कमल’ शब्द सु नते ही कदव नाचने लगता है ।

निम्ननिखित का आशय स्पष्ट कीनिए:

1: नदि दकनारे अं दकत पिदचन्ह और सी ंगों के दचन्हों से मानो मदहषकुल के भारतीय यु द्ध का पू रा
इदतहास ही इस किण म ले ख में दलखा हो ऐसा भास होता है ।
उत्तर: इस पं क्ति में लेखक ने उस दृश्य का वर्ण न दकया है जब कीचड़ पर मवे दशयों के लड़ने से
तरह तरह के दनशान बन जाते हैं । ऐसे दनशान नाना प्रकार के होते हैं और एक दवशाल क्षे त्र में अं दकत
हो जाते हैं । तब ऐसा लगता है दक इस िे श में आज तक दजतने भी मवे दशयों के यु ि्/k हुए, कीचड़
उन सबका इदतहास बता रहा है ।
2: “आप वासु िेव की पू जा करते हैं इसदलए वसु िेव को तो नही ं पू जते, हीरे का भारी मू ल्य िे ते हैं दकंतु
कोयले या पत्थर का नही ं िे ते और मोती को कंठ में बााँ धकर दिरते हैं दकंतु उसकी मातुश्री को गले में
नही ं बााँ धते ।“ कम से कम इस दवषय पर कदवयों के साथ तो चचाण न करना ही उत्तम।
उत्तर: ले खक का मानना है दक कदव यथाथण से कोसों िू र होते हैं और वे दसक्के का केवल एक पहलू
िे खते हैं । ले दकन इस दवषय पर दकसी भी कदव से बहस करना बेकार है । कोई भी कदव शब्दों का
धनी होता है और अपनी वाकपटु ता से वह तकों में दकसी को भी हरा सकता है ।

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