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पाठ 12 -संसार पुस्तक है (पत्र )

*शब्द -अर्थ :-
१.अक्सर - प्राय:

२.इरादा -विचार

३.टापू -पानी से विरी हुई धरती

४.आबाद -बसा हुआ

५.गढ़ना -बनाना

५.रोड़ा -पत्र्र का छोटा-सा टु कड़ा

६.दररया -नदी

७.पेंदे -सतह

९.ज़राथ -कण

१०.िरौंदे -विट्टी का िर

*प्रश्न-उत्तर (संक्षप
े िें )
प्र१:-लेखक ने ‘प्रकृ वत के अक्षर’ ककन्हें कहा है ?

उ१:- लेखक ने पत्र्रों के टु कड़ों ,पहाड़ों ,सिु द्रों नकदयों ,जंगलों और जानिरों
की हवियों आकद को प्रकृ वत के अक्षर कहा है I

प्र२:-लाखों -करोड़ों िर्थ पहले हिारी धरती कै सी र्ी ?

उ२:-लाखों-करोड़ों िर्थ पहले हिारी धरती बहुत गरि र्ी I उस सिय यहााँ
ककसी भी जीि का कोई अवस्तत्ि नहीं र्ा क्योंकक इतनी गरिी िें कोई प्राणी
जीवित नहीं रह सकता र्ा I

प्र३:-दुवनया का हाल जानने के वलए ककस बात का ध्यान रखना पड़े गा ?

उ३:-दुवनया का हाल जानने के वलए दुवनया के सभी देशों और यहााँ बसी सभी
जावतयों का ध्यान रखना पड़े गा I

प्र४:-नेहरु जी ने संसार को पुस्तक क्यों कहा है ?


उ४:-नेहरु जी ने संसार को पु स्तक इसवलए कहा है क्योंकक संसार के हर पदार्थ
पर उसके वनिाथ ण और यात्रा की कहानी वलखी होती है I

*प्रश्न-उत्तर (विस्तार से ):-


प्र१:-गोल ,चिकीले रोड़े को यकद दररया और आगे ले जाता तो क्या होता ?

उ१:-गोल,चिकीले रोड़े को यकद दररया और आगे ले जाता तो िह छोटा होते -


होते अंत िें बालू (रे त ) का एक कण बन जाता और सिु द्र के ककनारे पहुाँचकर
अपने जैसे ही रे त के अन्य कणों से विल जाता I इस प्रकार ही सिु द्र के ककनारे
सुन्दर बालू का ककनारा बनता है ,जहााँ छोटे -छोटे बच्चे खेलते और बालू के
िरौंदे बनाते हैं I

प्र२:-पुराने ज़िाने की बात यकद हि बैठे-बैठे सोचने लगें तो क्या होगा ?

उ२:- पुराने ज़िाने की बात यकद हि बैठे-बैठे सोचने लगें तो कोई न कोई
िनगढ़ंत कहानी ज़रूर बन जाएगी I हिें जो अच्छा लगेगा हि िही सोच लेंगे I
हो सकता है हि सुन्दर पररयों और भयानक राक्षसों की कर्ा सोच लें परन्तु
वबना देखे -जाने ककसी बात की कल्पना करना गलत होता है ,क्योंकक ऐसी
बातों का न कोई तथ्य होता है ,न आधार I

प्र३:-इवतहास वलखे जाने से पूिथ और इवतहास वलखे जाने के बाद के ज़िाने की


बातें कै से जानी जा सकती हैं ?

उ३:-इवतहास वलखे जाने से पू िथ की जानकारी हिें पहाड़ों और जानिरों की


हवियों से विलती है I आरम्भ िें पृथ्िी बहुत अवधक गिथ र्ी इतनी अवधक गिथ
कक जीिन का रहना पृथ्िी पर संभि ही नहीं र्ी I धीरे -धीरे सिय बीता और
पृथ्िी का तापिान कि हुआ ,तापिान कि होने के बाद पृथ्िी पर िनस्पवतयााँ
उत्पन्न हुई और उसके बाद जीि पै दा हुआ Iआरम्भ िें वसर्थ जानिर ही पै दा
हुआ Iउसके बाद िनुष्य की उत्पवत्त हुई I िनु ष्य विकवसत हुआ और चीज़ों को
देखने और सिझने लगा I कर्र इवतहास वलखे जाने लगे Iिानि के पढ़ने -
सिझने -वलखने के बाद इवतहास पुस्तकों द्वारा जाना जाने लगा I

*िाक्य बनाइए:-
१.आबाद :-

२.शौक:-

३.इवतहास :-
४.िरौंदा :-

५.पृष्ठ:-

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