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Hindi Course B Set1 2015 Sa2
Hindi Course B Set1 2015 Sa2
E Board
कक्षा : 10
ह द
िं ी B – 2015
सिंकलित परीक्षा II
[Summative Assessment II ]
समय: 3 घिंटे पूर्ाांक : 90
निदे श :
खण्ड क
प्र.1. ननम्नलिखखत गदर्ांश को ध्र्ानपूवयक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर
लिखखए : 26=12
मनष्ु र् िीवन की सबसे बड़ी लसद्धि अपने अहं के सम्पर्
ू य त्र्ाग में है ।
िहााँ वह शुि समपयर् के उदात्त भाव से प्रेररत होकर अपने ‘स्व’ का त्र्ाग
करने को प्रस्तुत होता है वहीीँ उसके व्र्जततत्व की महानता पररिक्षित होती
है । साहहत्र्ानुरागी िब उच्च साहहत्र् का रसास्वादन करते समर् स्वर्ं की
सत्ता को भुिाकर पात्रों के मनोभावों के साथ एकत्व स्थाद्धपत कर िेता है
तभी उसे साहहत्र्ानन्द की दि
ु यभ मुततामखर् प्राप्त होती है । भतत िब अपने
आराध्र् दे व के चरर्ों में अपने ‘आप’ को अद्धपयत कर दे ता है और पूर्त
य ः
प्रभु की इच्छा में अपनी इच्छा को िर् कर दे ता है तभी उसे प्रभु-भजतत की
अिभ्र् पाँूिी लमिती है । र्ह द्धवचचत्र द्धवरोधाभास है कक कुछ और प्राप्त करने
के लिए स्वर्ं को भूि िाना ही एकमात्र सरि और सुननजश्चत उपार् है । र्ह
अत्र्न्त सरि हदखने वािा उपार् अत्र्न्त कहिन भी है । भौनतक िगत में
अपनी िुद्रता को समझते हुए भी मानव-हृदर् अपने अजस्तत्व के झूिे Page 1
अहं कार में डूबा रहता है उसका त्र्ाग कर पाना उसकी सबसे कहिन परीिा
है । ककन्तु र्ही उसके व्र्जततत्व की चरम उपिजधध भी है । दस
ू रे का
ननःस्वाथय प्रेम प्राप्त करने के लिए अपनी इच्छा-आकांिाओं और िाभ-हानन
को भि
ू कर उसके प्रनत सवयस्व समपयर् ही एकमात्र माध्र्म है । इस प्राजप्त
का अननवचयनीर् सुख वही चख सकता है जिसने स्वर्ं को दे ना-िुटाना िाना
हो। इस सवयस्व समपयर् से उपिी नैनतक और चाररत्रत्रक दृढ़ता, अपूवय समद्धृ ि
और परमानन्द का सुख वह अनुरागी चचत्त ही समझ सकता है िो -
‘ज्र्ों-ज्र्ों बड़
ू े श्र्ाम रं ग, त्र्ों-त्र्ों उज्ज्वि होर्’
खण्ड ख
प्र. 3. शधद, पद के रूप में कब बदि िाता है ? उदाहरर् दे कर शधद और पद का
भेद स्पष्ट कीजिए। 1+1=2
प्र. 7. ननम्नलिखखत मह
ु ावरों का वातर्ों में इस प्रकार प्रर्ोग कीजिए कक उनका
अथय स्पष्ट हो िाए : 1+1=2
काम तमाम कर दे ना, हतका-बतका रह िाना।
खण्ड ग
प्र. 8 ननम्नलिखखत प्रश्नों के उत्तर दीजिए : 2+2+1=5
(क) ‘चगरचगट’ पाि में र्ेल्दीररन ने ख्र्ूकक्रन को उसके दोषी होने के तर्ा
कारर् बताए?
(ख) शेख अर्ाज़ के द्धपता भोिन छोड़कर तर्ों उि खड़े हुए? इससे उनके
व्र्जततत्व की ककस द्धवशेषता का पता चिता है ? ‘अब कहााँ दस
ू रों के
दख
ु से दख
ु ी होने वािे’ पाि के आधार पर लिखखए।
(ग) शुि-सोना और चगन्नी का सोना अिग-अिग कैसे है ? स्पष्ट कीजिए।
Page 4
प्र. 9. ‘चगरचगट’ कहानी समाि में व्र्ाप्त चाटुकाररता पर करारा व्र्ंग है – इसे
पाि के आधार पर सोदाहरर् लसि कीजिए। 5
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प्र. 13. टोपी नवीं किा में दो बार फेि हो गर्ा।एक ही किा में दो-दो बार बैिने
से टोपी को ककन भावनात्मक चुनौनतर्ों का सामना करना पड़ा होगा?
उसकी भावनात्मक परे शाननर्ों को ध्र्ान में रखते हुए लशिा व्र्वस्था में
आपके द्धवचार से तर्ा पररवतयन होने चाहहए? तकय-सहहत उत्तर दीजिए। 5
खण्ड घ
(क) हमारा दे श
भौगोलिक द्धवस्तार
समाि और संस्कृनत
आि का बदिता रूप
िाभ
सुझाव
दे श की प्रगनत और िनसंख्र्ा
हाननर्ााँ
सुझाव
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प्र.15. द्धवश्व पुस्तक मेिे ‘गााँधी दशयन’ से सम्बजन्धत स्टाि में गााँधी साहहत्र् के
प्रचार के लिए कुछ र्ुवक-र्ुवनतर्ों की आवश्र्कता है । आप अपनी
र्ोग्र्ताओं और रुचचर्ों का द्धववरर् दे ते हुए 'गााँधी-स्मनृ त' संस्था के अध्र्ि
को आवेदन पत्र लिखखए। 5
प्र. 16. आपके द्धवदर्ािर् में एक सप्ताह के लिए ‘नेत्र-चचककत्सा लशद्धवर’ िगार्ा
िा रहा है , जिसमें ननःशुल्क नेत्र-पररिर् ककर्ा िाएगा। स्थानीर् िनता की
सच
ू ना के लिए 30 शधदों में एक सच
ू ना-पत्रक लिखखए। 5
प्र. 17. मोबाइि फोन से होने वािे िाभ और हानन के संबंध में लमत्र से हुए
वातायिाप का एक संवाद 50 शधदों में तैर्ार कीजिए। 5
प्र. 18. हहन्दी की पुस्तकों की प्रदशयनी में आधे मूल्र् पर त्रबक रही महत्वपूर्य
पुस्तकों को ख़रीदकर िाभ उिाने के लिए िगभग 25 शधदों में एक
द्धवज्ञापन लिखखए। 5
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C.B.S.E Board
कक्षा : 10
ह द
िं ी B – 2015
सिंकलित परीक्षा II
[Summative Assessment II ]
समय: 3 घिंटे पूर्ाांक : 90
निदे श :
खण्ड क
प्र.1. ननम्नलिखखत गदर्ांश को ध्र्ानपूवयक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर
लिखखए : 26=12
मनष्ु र् िीवन की सबसे बड़ी लसद्धि अपने अहं के सम्पर्
ू य त्र्ाग में है ।
िहााँ वह शुि समपयर् के उदात्त भाव से प्रेररत होकर अपने ‘स्व’ का त्र्ाग
करने को प्रस्तुत होता है वहीीँ उसके व्र्जततत्व की महानता पररिक्षित होती
है । साहहत्र्ानुरागी िब उच्च साहहत्र् का रसास्वादन करते समर् स्वर्ं की
सत्ता को भुिाकर पात्रों के मनोभावों के साथ एकत्व स्थाद्धपत कर िेता है
तभी उसे साहहत्र्ानन्द की दि
ु यभ मुततामखर् प्राप्त होती है । भतत िब अपने
आराध्र् दे व के चरर्ों में अपने ‘आप’ को अद्धपयत कर दे ता है और पूर्त
य ः
प्रभु की इच्छा में अपनी इच्छा को िर् कर दे ता है तभी उसे प्रभु-भजतत की
अिभ्र् पाँूिी लमिती है । र्ह द्धवचचत्र द्धवरोधाभास है कक कुछ और प्राप्त करने
के लिए स्वर्ं को भूि िाना ही एकमात्र सरि और सुननजश्चत उपार् है । र्ह
अत्र्न्त सरि हदखने वािा उपार् अत्र्न्त कहिन भी है । भौनतक िगत में
अपनी िुद्रता को समझते हुए भी मानव-हृदर् अपने अजस्तत्व के झूिे Page 8
अहं कार में डूबा रहता है उसका त्र्ाग कर पाना उसकी सबसे कहिन परीिा
है । ककन्तु र्ही उसके व्र्जततत्व की चरम उपिजधध भी है । दस
ू रे का
ननःस्वाथय प्रेम प्राप्त करने के लिए अपनी इच्छा-आकांिाओं और िाभ-हानन
को भि
ू कर उसके प्रनत सवयस्व समपयर् ही एकमात्र माध्र्म है । इस प्राजप्त
का अननवचयनीर् सुख वही चख सकता है जिसने स्वर्ं को दे ना-िुटाना िाना
हो। इस सवयस्व समपयर् से उपिी नैनतक और चाररत्रत्रक दृढ़ता, अपूवय समद्धृ ि
और परमानन्द का सुख वह अनुरागी चचत्त ही समझ सकता है िो -
‘ज्र्ों-ज्र्ों बड़
ू े श्र्ाम रं ग, त्र्ों-त्र्ों उज्ज्वि होर्’
(ख) ‘साहहत्र्ानुरागी’ से तर्ा तात्पर्य है ? उसे आनंद ककस प्रकार प्राप्त होता
है ?
उत्तर: ‘साहहत्र्ानुरागी’ से र्हााँ तात्पर्य साहहत्र् के रसास्वादन से है ।उसे
र्ह तब प्राप्त होता है िब वह स्व को भुिाकर साहहत्र् के साथ
एकत्व स्थाद्धपत कर िेता है ।
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उत्तर : प्रभु-भजतत की पाँि
ू ी अिभ्र् बताई गई है ।भतत िब अपने
आराध्र् दे व के चरर्ों में अपने ‘आप’ को अद्धपयत कर दे ता है
और पूर्त
य ः प्रभु की इच्छा में अपनी इच्छा को िर् कर दे ता है
तभी उसे प्रभु-भजतत की अिभ्र् पाँूिी लमिती है ।
(च) ‘सवयस्व समपयर्’ का तर्ा तात्पर्य है और ऐसा करने के तर्ा िाभ हैं ?
उत्तर: ‘सवयस्व समपयर्’ से तात्पर्य दस
ू रों के लिए अपनी सारी इच्छा-
आकांिाओं और िाभ-हानन को भूि कर उसके प्रनत समद्धपयत हो
िाना।ऐसा करने से नैनतकता और चाररत्रत्रक दृढ़ता, अपूवय समद्धृ ि
और परमानन्द का सुख प्राप्त होता है ।
(क) हमें पव
ू ि
य ों से तर्ा-तर्ा सीखना चाहहए?
उत्तर : हमें अपने पूवयिों से िीना-मरना सीखना चाहहए।
खण्ड ख
प्र. 3. शधद, पद के रूप में कब बदि िाता है ? उदाहरर् दे कर शधद और पद का
भेद स्पष्ट कीजिए। 1+1=2
शधद वर्ों र्ा अिरों के साथयक समूह को कहते हैं।
उदाहरर् के लिए क, म तथा ि के मेि से 'कमि' बनता है िो एक खास
के र्ूि का बोध कराता है । अतः 'कमि' एक शधद है
कमि की ही तरह 'िकम' भी इन्हीं तीन अिरों का समूह है ककंतु र्ह
ककसी अथय का बोध नहीं कराता है । इसलिए र्ह शधद नहीं है ।
इसका रूप भी बदि िाता है ।
िब कोई शधद वातर् में प्रर्ुतत होता है तो उसे शधद न कहकर पद कहा
िाता है ।
हहन्दी में पद पााँच प्रकार के होते हैं -
1. संज्ञा
2. सवयनाम
3. द्धवशेषर्
4. कक्रर्ा
5. अव्र्र्
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(घ) तर्ा वह दे ख लिर्ा है ?
उत्तर : उसने तर्ा दे ख लिर्ा है ?
प्र. 7. ननम्नलिखखत मह
ु ावरों का वातर्ों में इस प्रकार प्रर्ोग कीजिए कक उनका
अथय स्पष्ट हो िाए : 1+1=2
काम तमाम कर दे ना, हतका-बतका रह िाना।
रानी िक्ष्मी बाई ने पीछा करते हुए दोनों अाँग्रेि सैननकों का काम
तमाम कर हदर्ा।
हतका-बतका रह िाना - ईमानदार शमायिी अपने ऊपर भ्रष्टाचार का
आरोप सुनते ही हतका-बतका रह गए।
खण्ड ग
प्र. 8 ननम्नलिखखत प्रश्नों के उत्तर दीजिए : 2+2+1=5
(क) ‘चगरचगट’ पाि में र्ेल्दीररन ने ख्र्ूकक्रन को उसके दोषी होने के तर्ा
कारर् बताए?
उत्तर : र्ेल्दीरीन ने ख्र्ूकक्रन को दोषी िहराते हुए कहा कक ख्र्ूकक्रन
हमेशा कोई-न-कोई शरारत करता रहता है । इसने ििती हुई
लसगरे ट से कुत्ते की नाक ििा दी होगी इसलिए कुत्ते ने इसे
काट हदर्ा होगा तर्ोंकक त्रबना कारर् तो कुत्ता ककसे काटता
नहीं है । इस तरह र्ेल्दीररन ने ख्र्कू क्रन को दोषी िहरार्ा।
(ख) शेख अर्ाज़ के द्धपता भोिन छोड़कर तर्ों उि खड़े हुए? इससे उनके
व्र्जततत्व की ककस द्धवशेषता का पता चिता है ? ‘अब कहााँ दस
ू रों के
दख
ु से दख
ु ी होने वािे’ पाि के आधार पर लिखखए।
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उत्तर : शेख अर्ाि के द्धपता अपने बािू पर कािा च्र्ोंटा रें गता दे ख
भोिन छोड़ कर उस च्र्ोंटे को कुएाँ पर छोड़ने के लिए उि
खड़े हुए तर्ोंकक उनके अनुसार उन्होंने उस च्र्ोंटे को घर से
बेघर कर हदर्ा था अत: त्रबना समर् गवााँए वे उस च्र्ोंटे को
उसके घर अथायत ् कुएाँ पर छोड़ आते हैं।
र्हााँ पर हमें शेख अर्ाि के समानता,मनुष्र्ता और अपनी
गिती का मानकर उसका तुरंत सुधार करनेवािे,दस
ू रों के
दःु ख से द्रद्धवत हो िाना िैसे व्र्जततत्व की द्धवशेषताओं का
पता चिता है ।
प्र. 9. ‘चगरचगट’ कहानी समाि में व्र्ाप्त चाटुकाररता पर करारा व्र्ंग है – इसे
पाि के आधार पर सोदाहरर् लसि कीजिए। 5
उत्तर : 'चगरचगट' कहानी के माध्र्म से समाि में व्र्ाप्त चापिलू सता इस
द्धवसंगनत पर करारा व्र्ंग्र् ककर्ा गर्ा है । आि भी हमारे समाि में
दे खने चापिूलसता की द्धवसंगनत को लमिती है । कमिोर िोगों को न्र्ार्
प्राप्त नहीं होता। ऊाँचे ओहदों का इस्तेमाि कर िोगों की चाटुकाररता
कर िोग अनैनतक कार्य करते हैं और कानून को िें गा हदखाते हैं । सच्ची
राह पर चिने वािे ईमानदार व्र्जतत को अनेकों मुसीबतों का सामना
करना पड़ता है । प्रस्तुत पाि में भी गरीब ख्र्ूकक्रन को इसलिएPage 15
न्र्ार् नहीं लमि पाता तर्ोंकक वह ओचोलमिााँव की हााँ में हााँ नहीं
लमिाता है और उसकी चापिूसी नहीं करता इसलिए सही होते हुए
भी अंत में उसे ही दोषी सात्रबत कर हदर्ा िाता है ।
(ख) ‘कर चिे हम किदा’ कद्धवता में कद्धव ने ‘साचथर्ों’ संबोधन का प्रर्ोग
ककसके लिए ककर्ा है और तर्ों?
उत्तर : कद्धव ने “साचथर्ों” शधद का प्रर्ोग सैननक साचथर्ों व
दे शवालसर्ों के लिए ककर्ा है । सैननकों का मानना है कक इस
दे श की रिा हे तु हम बलिदान की राह पर बढ़ रहे हैं। हमारे
बाद र्ह राह सूनी न हो िाए। सभी सैननकों व दे शवालसर्ों
को इससे सतकय रहना होगा। दे शवालसर्ों का परस्पर साथ
ही दे श की अनेकता में एकता िैसी द्धवलशष्टता को मज़बूत
बनाता है ।
(ग) ग्रीष्म ऋतु में संसार तपोवन-सा कैसे हो िाता है ? त्रबहारी के ‘दोहे ’
के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर : ग्रीष्म ऋतु की भीषर् गमी से परू ा िंगि तपोवन िैसा
पद्धवत्र बन िाता है । र्हााँ कद्धव के कहने का तात्पर्य र्ह है
कक इस समर् सबकी आपसी दश्ु मनी समाप्त हो िाती है ।
सााँप, हहरर् और लसंह सभी गमी से बचने के लिए साथ रह
रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है िैसे तपस्वी का साननध्र् पाकर
र्े आपसी वैर -भाव भूि गए हैं।
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प्र. 12. ‘मनुष्र्ता’ कद्धवता के माध्मर् से कद्धव ने ककन गुर्ों को अपनाने का
संकेत हदर्ा है ? तकय-सहहत उत्तर दीजिए। 5
उत्तर : मनुष्र्ता कद्धवता के माध्र्म से कद्धव ने मानवीर् गुर्ों को
अपनाने का संकेत हदर्ा है । कद्धव के अनुसार मानव को प्रेम भाव
से रहना चाहहए, एक दस
ू रे की सहार्ता करनी चाहहए। कोई
परार्ा नहीं है र्ह भाव मन में सदै व बनाए रखना चाहहए।सभी
को एक दस
ू रे के काम आना चाहहए। प्रत्र्ेक मनुष्र् को ननबयि
मनष्ु र् की पीड़ा दरू करने का प्रर्ास करना चाहहए। सबसे अहम ्
गुर् उदारता और परोपकार का होना चाहहए तर्ोंकक उदार व्र्जतत
ही मन, वचन, कमय से हमेशा मानवता की भिाई के बारे में ही
सोचता है ।
प्र. 13. टोपी नवीं किा में दो बार र्ेि हो गर्ा।एक ही किा में दो-दो बार बैिने
से टोपी को ककन भावनात्मक चुनौनतर्ों का सामना करना पड़ा होगा?
उसकी भावनात्मक परे शाननर्ों को ध्र्ान में रखते हुए लशिा व्र्वस्था में
आपके द्धवचार से तर्ा पररवतयन होने चाहहए? तकय-सहहत उत्तर दीजिए। 5
उत्तर : एक ही किा में दो दो बार बैिने से टोपी को-कई भावनात्मक
चुनौनतर्ों का सामना करना पड़ा िैसे वह अध्र्ापकों की हाँ सी का
पात्र होता तर्ोंकक कमिोर िड़कों के रूप में अध्र्ापक उसका ही
उदाहारर् दे ते थे। र्ेि होने के कारर् उसके कोई नए लमत्र भी
नहीं बन पाए। मास्टर उसकी ककसी भी बात पर ध्र्ान ही नहीं
दे ते थे वह ककसी से शमय के मारे खुिकर बातें नहीं कर पाता था।
बच्चे िेि होने पर भावनात्मक रूप से आहत होते हैं और
मानलसक रूप से परे शान रहने िगते हैं। वे शमय महसस
ू करते हैं ।
इसके लिए द्धवदर्ाथी के पुस्तकीर् ज्ञान को ही न परखा िाए
बजल्क उसके अनुभव व अन्र् कार्य कुशिता को भी दे खकर Page
उसे18
प्रोत्साहन दे ने के लिए लशिा व्र्वस्था में बदिाव ककर्ा िा
सकता है । ऐसे बच्चों के लिए वैकजल्पक लशिा की व्र्वस्था की
िानी चाहहए। लशिकों को इस तरह के बच्चों को समझने के
लिए उचचत मनोवैज्ञाननक प्रलशिर् हदर्ा िाना चाहहए तथा
पररवार वािों को उसकी भरपूर मदद करनी चाहहए न कक उसे
कमिोर कहकर उसपर व्र्ंग कसने चाहहए।
खण्ड घ
(क) हमारा दे श
भौगोलिक द्धवस्तार
समाि और संस्कृनत
आि का बदिता रूप
िाभ
सुझाव
Page 20
पररश्रम का हमारे िीवन में बहुत महत्त्व है । मनुष्र् पररश्रम के दवारा
कहिन से कहिन कार्य लसि कर सकता है । पररश्रम अथायत ् मेहनत के
ही दवारा मनुष्र् अपना िक्ष्र् प्राप्त कर सकता है । हर मानव की कुछ
इच्छाएाँ व आवश्र्कताएाँ होती हैं। वह सुख शाजन्त की कामना करता
है , दनु नर्ा में नाम की इच्छा रखता है । ककन्तु कल्पना से ही सब कार्य
लसि नहीं हो िाते, उसके लिर्े हमें कहिन पररश्रम का सहारा िेना
पड़ता है ।
पररश्रम के बि पर मानव अपने िक्ष्र् तक पहुाँच सकता है । पररश्रम
के ही बि पर मनुष्र् अपना भाग्र् बना सकता है । पररश्रम केवि
अकेिे मनुष्र् के लिए र्े ही नहीं िाभदार्क होता है । हम दे ख सकते
हैं, कक जिस दे श के िोग पररश्रमी होते हैं , वह पूरा दे श तरतकी प्राप्त
करता है । अमरीका, चीन, रूस और िापान, इसके उदहारर् हैं। छात्रों
के िीवन में तो पररश्रम का बहुत अचधक महत्त्व होता है । मानव का
शारीररक व मानलसक द्धवकास भी पररश्रम पर ननभयर करता है ।
आधुननक मनुष्र् वैज्ञाननक र्ंत्रों का पुिारी बनता िा रहा है ।पररश्रम
की ओर से िापरवाही इसमें घर करती िा रही हैं। नैनतक पतन हो रहा
है जिससे अशांनत र्ैिती िा रही है । र्िस्वरूप समाि और राष्र की
प्रगनत के लिए भी पररश्रम आवश्र्क है ।
कुछ िोग सििता का राज़, पररश्रम की िगह भाग्र् को मानते हैं ।
उनका कहना होता है , कक भाग्र् में िो लिखा होता है , उसे टािा नहीं
िा सकता। र्ह बात असत्र् है । मनष्ु र् र्हद पररश्रम करे , तो होनी को
भी टाि सकता है । ककसी ने सत्र् ही कहा है , कक पररश्रम ही सििता
की कुंिी है । एक आिसी व अकमयण्र् मानव कभी अपना िक्ष्र् नहीं
प्राप्त कर सकता।भाग्र् के सहारे बैिने से कार्य सम्पन्न नहीं होते।
द्धवदर्ाथी वगय को भी परीिा में सर्िता पाने के लिर्े अटूट श्रम करना
Page 21
पड़ता है । मानव पररश्रम से अपने भाग्र् को बना सकता है , कहा िाता
है कक ईश्वर भी उन्हीं की मदद करता है िो अपनी मदद स्वर्ं करते
हैं। िैसे सोए हुए शेर के मुख में पशु स्वर्ं ही प्रवेश नहीं करता उसे
भी पररश्रम करना पड़ता है , वैसे ही केवि मन की इच्छा से काम लसि
नहीं होते उनके लिए पररश्रम करना पड़ता है । पररश्रम ही िीवन की
सर्िता का रहस्र् है । पररश्रम व सर्िता का आपस में बड़ा गहरा
संबंध है । हमें तभी सर्िता लमिती है िब हम पररश्रम करते हैं।
पररश्रम से मनष्ु र् सदै व मेहनती बना रहता है , पररश्रम िीवन को गनत
प्रदान करता है । र्ह मनुष्र् के िीवन में बहुत ही महत्व रखता है ।
पररश्रम की उपेिा मनुष्र् को ननकम्मा व असर्ि बना दे ती है ।
पररश्रम समस्त कहिनाइर्ों से ननकािने में समथय होता है । पररश्रमी
मनष्ु र् भाग्र् के भरोसे नहीं बैिे रहते हैं । पररश्रम के दम पर कई
महान द्धवभनू तर्ों ने अंसभव कार्ों को संभव कर हदखार्ा है । जिस दे श
में िोग पररश्रम करते हैं , वह दे श उन्ननत, द्धवकास और सर्िता के
लशखर पर खड़ा रहता है ।
दे श की प्रगनत और िनसंख्र्ा
हाननर्ााँ
सुझाव
Page 22
िनसंख्र्ा बढ़ने से िीवन की प्राथलमक आवश्र्कताएाँ भोिन -, वस्त्र
और मकान भी पूरे नहीं पड़ते।
बढती हुई िनसंख्र्ा ककस तरह से प्रकृनतक संसाधनों को ननगिती िा
रही है इसका सबसे बड़ा उदाहरर् है बढ़ती हुई महाँ गाई। बढ़ती िनता
को रोिगार दे ने के लिए, िंगिों को खत्म करने के बाद बढ़ता
औदर्ोचगक अब हमारे गााँव में पैर पसार रहा है !र्िस्वरूप कारखाने
अब गााँव की शि
ु ििवार्ु में िहर घोि रही है वहााँ की उपिाऊ
िमीन पर बसी र्ैतरी अब गेहूाँ के दाने नहीं वो कााँच के गोलिर्ााँ पैदा
कर रही है ! आबादी बढने से जस्थनत और भी अचधक भर्ावह हो
िाएगी, तब ििापूनतय, आवास, पररवहन, गन्दे पानी का ननकास,
बेरोिगारी का अनतररतत भार, महाँ गाई, त्रबििी िैसी आधारभूत
संरचना पर अत्र्चधक दबाव पड़ता निर आर्ेगा।
सरकार को चाहहए कक वह कुछ गंभीर और सख्त ननर्म बनाए।
जिससे िनसंख्र्ा ननर्ंत्रत्रत की िा सके। आि िनसंख्र्ा के मामिे में
राष्र को सही लशिा दे ने की सबसे ज्र्ादा िरूरत है तर्ोंकक लशिा,
राष्र की सबसे सस्ती सुरिा मानी िाती रही है । िन िागरर्
अलभर्ान, पुरुष नसबंदी, गभय ननरोधक गोलिर्ााँ, दे र से द्धववाह
िनसंख्र्ा को रोकने के उपाए है ।
प्र.15. द्धवश्व पुस्तक मेिे ‘गााँधी दशयन’ से सम्बजन्धत स्टाि में गााँधी
साहहत्र् के प्रचार के लिए कुछ र्ुवक-र्ुवनतर्ों की आवश्र्कता है ।
आप अपनी र्ोग्र्ताओं और रुचचर्ों का द्धववरर् दे ते हुए 'गााँधी-स्मनृ त'
संस्था के अध्र्ि को आवेदन पत्र लिखखए।
5
सरिा भवन
नई हदल्िी
हदनााँक -15 माचय 20xx
अध्र्ि Page 23
गााँधी स्मनृ त
नई हदल्िी
मान्र्वर
द्धवषर् : गााँधी साहहत्र् का प्रचार करने हे तु
मुझे ‘हदल्िी टाईम्स’ समाचार पत्र दवारा ज्ञात हुआ कक आपको कुछ ऐसे
र्ुवकों की आवश्र्कता है िो आगामी द्धवश्व पुस्तक मेिे में ‘गााँधी दशयन’ से
सम्बंचधत स्टाि में गााँधी साहहत्र् का प्रचार कर सकें।
मैं इसी हे तु अपना आवेदन-पत्र आपको प्रेद्धषत कर रहा हूाँ। मेरी शैिखर्क
र्ोग्र्ताओं का द्धववरर् तथा अन्र् िानकारी इस प्रकार हैं :
मैंने गत वषय हदल्िी द्धवश्व द्धवदर्ािर् से बी.ए.(ऑनसय) की उपाचध प्राप्त
की है ।
कॉिेि और द्धवदर्ािर् में पढ़ते समर् में कई शािेर् और सांस्कृनतक
प्रनतर्ोचगतार्ों में सदै व प्रथम रहा हूाँ।
मैं हहन्दी और अंग्रेिी में धाराप्रवाह बातचीत कर सकता हूाँ।
मुझे आशा है कक आप मुझे सेवा का अवसर अवश्र् प्रदान करें गे।
धन्र्वाद
भवदीर्
क.ख.ग.
प्र. 16. आपके द्धवदर्ािर् में एक सप्ताह के लिए ‘नेत्र-चचककत्सा लशद्धवर’ िगार्ा
िा रहा है , जिसमें ननःशुल्क नेत्र-पररिर् ककर्ा िाएगा। स्थानीर् िनता की
सूचना के लिए 30 शधदों में एक सूचना-पत्रक लिखखए। 5
उत्तर : आवश्र्क सूचना,
गांधी द्धवदर्ािर् में एक सप्ताह के लिए ’चचककत्सा लशद्धवर-नेत्र‘
जिसमें सभी का नन ,िगार्ा िा रहा है ःःशुल्क नेत्र-परीिर् ककर्ा
िाएगा। र्ह परीिर् शहर के िाने माने डॉतटर दवारा ककर्ा -Page 24
िाएगा। नेत्र-परीिर् का समर् सुबह ९रहे गा ००.११ से ००.।कृपर्ा
इस सेवा का ज्र्ादा से ज्र्ादा िोग िाभ उिाए।
धन्र्वाद।
गांधी द्धवदर्ािर्,
किा का एक द्धवदर्ाथी १० :।
प्र. 17. मोबाइि र्ोन से होने वािे िाभ और हानन के संबंध में लमत्र से हुए
वातायिाप का एक संवाद 50 शधदों में तैर्ार कीजिए। 5
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प्र. 18. हहन्दी की पुस्तकों की प्रदशयनी में आधे मूल्र् पर त्रबक रही महत्वपूर्य
पुस्तकों को ख़रीदकर िाभ उिाने के लिए िगभग 25 शधदों में एक
द्धवज्ञापन लिखखए। 5
हहन्दी पस्
ु तक प्रदशयनी
हहंदस्
ु तान
पुस्तकाि
१०२ ,साधना मॉि ,
नवी मुंबई ।
समर् .९ हदनां
सुबहक :लसतं
०० बसेर रात्र
११ त्र: ९ ००.
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