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MAED-612

Semester IV
पाठ्यचयाा विकास
Curriculum Development

इकाई स०ं इकाई का नाम पृष्ठ सं०


1 पाठ्यचयाा प्रारुप, पाठ्यचयाा वनमााण के वसद्ांत एिं पाठ्यचयाा के सदं र्ा में पाठ्यचयाा को 1-15
सगं वठत करने की विवियााँ Meaning of Curriculum Design, Components and
Sources of Curriculum Design, Principles of Curriculum
Construction, Methods of Organization of Syllabus in Formulating
Curriculum Operations

2 पाठ्यचयाा प्रारुप : इसके प्रकार 16- 31


Curriculum Design: Its Categories

3 पाठ्यचयाा वनमााण के विवर्न्न प्रवतमान 32-45


Different Models and Principles of Curriculum Construction

4 पाठ्यचयाा मलू यांकन 46-63


Curriculum Evaluation

5 पाठ्यचयाा मलू यांकन के प्रवतमान 64-71


Models of Curriculum Evaluation

6 पाठ्यचयाा संबंिी शोि के क्षेत्र 72-82


Scope of Curriculum Research

7 र्ारत में पाठ्यचयाा सबं िं ी शोि 83-94


Curriculum Research in India

08 पाठ्यचयाा विकास से सम्बंवित विवर्न्न आयोगसझु ाि सवमवतयों के / 95-114


Suggestions/Recommendation Related to Curriculum Development
According to Different Education Commissions
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इकाई 1 पाठयचयाा प्रारुप, पाठयचयाा विमााण के वसद्ातां एिां पाठयचयाा के


सदां र्ा में पाठ्यचयाा को सगां वठत करिे की विवियााँ

1.1 प्रस्तिािा
1.2 उद्देश्य
1.3 पाठयचयाा प्रारुप का अर्ा एिां पररर्ाषा
1.4 पाठयचयाा प्रारुप के तत्ि
1.5 पाठयचयाा के स्रोत
1.6 पाठयचयाा विमााण के वसद्ाांत
1.7 पाठयचयाा की सांवक्रयाओ ां के सांदर्ा में पाठ्यचयाा सांगठि की विवियााँ
1.8 साराांश
1.9 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर
1.10 सांदर्ा ग्रांर्
1.11 विबांिात्मक प्रश्न

1.1 प्रस्ताििा
वशक्षा एक विध्रिु ीय प्रवक्रया है, विसमें वशक्षक, वशक्षार्ी एिां पाठयचयाा शावमल हैं। याँ तो वशक्षण
प्रवक्रया के ये तीिों ध्रिु महत्िपणा हैं लेवकि इि तीिों में पाठयचयाा सिााविक महत्िपणा है क्योंवक
समस्त वशक्षण प्रवक्रया इसी पाठयचयाा रुपी िरु र के चारों तरफ चक्कर काटती है। अतः विद्यावर्ायों
को पाठयचयाा के सांदर्ा में िािकारी होिा आिश्यक है। पिु ः पाठयचयाा विमााण एक िवटल प्रवक्रया
है। इसके तहत कई सारी उपप्रवक्रयाएाँ शावमल होती हैं तर्ा कई सारे तथ्य र्ी शावमल होते हैं।
पाठयचयाा प्रारुप उसके तत्ि, उसके स्रोत, पाठयचयाा विमााण के वसद्ातां , पाठ्यचयाा सगां ठि आवद
कई ऐसे तथ्य हैं वििके विषय में विद्यार्ी एिां वशक्षक दोिों को िािकारी होिा आिशय्क है। एक
अच्छा पाठयचयाा ही वशक्षण प्रवक्रया को प्रर्ािी बिाता है। अतः पाठयचयाा सांबांिी ये सारे तत्ि
महत्िपणा हो िाते हैं। प्रस्ततु इकाई की रचिा इन्हीं तथ्यों को ध्याि में रखकर की गई है।

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1.2 उद्देश्य
इस इकाई के अध्ययि के पश्चात् आप:
1. पाठयचयाा प्रारुप का अर्ा समझ सकें गे।
2. पाठयचयाा प्रारुप के विवर्न्ि तत्िों की व्याख्या कर सकें गे।
3. पाठयचयाा प्रारुप के विवर्न्ि स्रोतों का िणाि कर सकें गे।
4. पाठयचयाा विमााण के विवर्न्ि वसद्ातां ों को समझ सकें गे।
5. पाठ्यचयाा सांगठि की विवर्न्ि विवियों या उपागमों को समझ सकें गे।

1.3 पाठयचयाा प्रारुप: अर्ा एिां पररर्ाषा


पाठयचयाा प्रारुपशब्द अग्रां ेिी र्ाषा के शब्द कररकुलम वडिाइि का वहन्दी रुपातां र है। वडिाइि शब्द
का प्रयोग वक्रया की तरह या सांज्ञा की तरह वकया िाता है। िब इसका प्रयोग वक्रया की तरह वकया
िाता है तो यह एक प्रवक्रया को इवां गत करता है, िैसे- पाठयचयाा विमााण की प्रवक्रया। िब इसका
प्रयोग सज्ञां ा की तरह वकया िाता है तो यह उस प्रवक्रया के पररणामस्िरुप आए उत्पाद को इवां गत
करता है, िैसे- पाठयचयाा प्रारुप । कररकुलम यावि पाठयचयाा को िब वडिाइि शब्द के सार्
िोड़ा िाता है तो यह मख्ु य रुप से सज्ञां ा की तरह ही प्रयक्त
ु होता है। इस प्रकार सािारण शब्दों में
पाठयचयाा प्रारुप को पाठयचयाा की एक व्यवस्र्त रुपरे खा कहा िाता है, विसमें उसके विमााण एिां
मलयाांकि तक की सारी प्रवक्रया का क्रमिार वििरण होता है। पाठयचयाा प्रारुप को विम्ि शब्दों में
पररर्ावषत वकया िा सकता है- यह विवश्चत समयािवि के वलए विवश्चत अिदु श े ात्मक खडां ों की एक
प्रस्तावित रुपरे खा होती है, सार् ही इसमें उि अिदु शे ात्मक खडां ों को कै से अिपु ावलत वकया िाए
इसका र्ी विदेश होता है।
एक अच्छे पाठयचयाा प्रारुप की विशेषताएाँ
एक अच्छे पाठयचयाा प्रारुप की विम्िवलवखत विशेषतएाँ होती हैं:
1. एक अच्छा पाठयचयाा प्रारुप उद्देश्यपणा होता है-पाठयचयाा प्रारुप वसफा विषयिस्तु का
एक क्रमिार सक ां लि ही िहीं होता है बवलक यह एक स्पष्ट उद्देश्यों के सार् विषयिस्तु का
क्रमिार सांकलि होता है तावक पाठयचयाा अभ्यासकताा इसका प्रर्ािपणा प्रयोग कर सके ;
2. एक अच्छा पाठयचयाा प्रारुप सुव्यवस्र्त एिां सुवियोवित होता है-पाठयचयाा प्रारुप,
विमााणकताा के एक सव्ु यवस्र्त प्रयास का पररणाम होता है। इसमें क्या करिा है? कब करिा
है? और वकसे करिा है? इि सब बातों का स्पष्ट उललेख होता है;
3. एक अच्छा पाठयचयाा प्रारुप सृििात्मक होता है- स्पष्ट उद्देश्य एिां सव्ु यिवस्र्त पाठ्यिस्तु
के वििरण के सार्-सार् एक पाठयचयाा प्रारुप सृििात्मक र्ी होता है। यह वसफा
सपु ररर्ावषत विवियों, विन्हें विवर्न्ि चरणों में सांपावदत करिा होता है का ब्योरा ही िहीं
होता है बवलक इसमें हरे क पड़ाि पर ििाचार के अिसर होते हैं; तर्ा
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4. एक अच्छा पाठयचयाा प्रारुप को लोचशील होिा चावहए- लोचशीलता से आशय उस
गणु से है िो समय एिां पररवस्र्वत की मााँग के अिसु ार पररिताि का आदेश देती है। एक
पाठयचयाा प्रारुप को लोचशील र्ी होिा चावहए तावक समय एिां पररवस्र्वत के अिसु ार
समाि की बदलती हुई मााँग के अिक ु ल पाठयचयाा को सामवां ित वकया िा सके ।

अभ्यास प्रश्न
1. एक अच्छे पाठयचयाा प्रारुप के विशेषताओ ां की सची बिाएाँ।

1.4 पाठयचयाा प्रारुप के तत्ि


पाठयचयाा प्रारुप के पााँच प्रमख
ु तत्ि या घटक है:
1. वशक्षार्ी एिां समाि के विषय में माियताओ ां का एक सांरचिात्मक ढााँचा
2. लक्ष्य एिां उद्देश्य
3. विषयिस्तु का चयि, उसका क्षेि विस्तार एिां उसका क्रम
4. वक्रयान्ियि की विवि
5. मलयाांकि

अब आप बारी-बारी से एक-एक का अध्ययि करें ग।े


1. वशक्षार्ी एिां समाि के विषय में मान्यताओ ां का एक सरां चिात्मक ढााँचा- कोई र्ी
पाठयचयाा समाि एिां उसमें रहिेिाले व्यवक्तयों से सांबवित मान्यताओ ां के सार् प्रारांर् होता
है। पाठयचयाा विमााणकतााओ ां का पहला काया वशक्षार्ी की योग्यता, आिश्यकता, रुवच,
अवर्प्रेरणा एिां वकसी सामाविक एिां सास्ां कृ वतक विषयिस्तु को सीखिे की क्षमता का
वििाारण करिा होता है। उपयाक्त ु तथ्यों के सांदर्ा में विवर्न्ि विषयों िैसे वक मिोविज्ञाि,
माििशास्त्र, समािशास्त्र, वशक्षास्शास्त्र आवद में अिेक शोिकाया हुए हैं। उपयाक्त ु शोि
कायों में प्रमखु रुप से वशक्षार्ी क्या आत्मसात कर सकता है? वकस पररवस्र्वत में कर
सकता है? और उसके पररणाम क्या होंगे? आवद प्रश्नों के उत्तर देिे के प्रयास वकए गए हैं।
इिसे हमें पाठयचयाा प्रारुप के तत्ि की िािकारी वमलती है।
2. लक्ष्य एिां उद्देश्य-पाठयचयाा प्रारुप का दसरा प्रमखु तत्ि पाठयचयाा के लक्ष्य एिां उद्देश्य
होते हैं। चाँवक पाठयचयाा के उद्देश्य विषयिस्तु एिां मलयाांकि प्रवक्रया के चयि के आिार
होते हैं; अतः, ये सपु ररर्ावषत एिां सव्ु यिवस्र्त होिे चावहए। पिा-वििााररत उद्देश्यों के
बिाय, वशक्षार्ी की रुवच, आिश्यकता, आवद को ध्याि में रखकर ििीि उद्देश्यों का
विमााण होिा चावहए। इि उद्देश्यों के वििाारण में ज्ञाि, कौशल, मलय, अवर्क्षमता एिां
आदतों के विकास िो वक वशक्षण प्रवक्रया के िाांवछत पररणाम को प्रर्वित करते हैं, को र्ी

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ध्याि में रखिा चावहए। उद्देश्य एिां लक्ष्य वशक्षक के वलए, वशक्षण –अविगम के क्षेि को र्ी
वचिाांवकत करते हैं। उद्देश्य एिां लक्ष्य, समाि एिां अविगमकताा के दाशाविक मान्यताओ ां को
प्रवतवबवां बत करते हैं। ये िैवश्वक या विवशष्ट र्ी हो सकते हैं। ये अविगमकताा में वकसी विवशष्ट
व्यिहार को विकवसत करिे िाले हो सकते हैं या व्यिहार के सामान्य प्रारुप को विकवसत
करिेिाले। ये गवतशील होते हैं अर्ाात समाि में पररिताि के सार् ये र्ी पररिवतात हो िाते
हैं। इि दोिों प्रकार के पररितािों अर्ाात सामाविक पररिताि तर्ा उद्देश्य एिां लक्ष्य में
पररिताि के बीच साांमिस्य एक अच्छे पाठयचयाा प्रारुप की आिश्यक शता है लेवकि
आि समस्त विश्व में इस प्रकर के साांमिस्य का अर्ाि है।
3. विषयिस्तु क्ला चयि, उसका क्षेि विस्तार एिां उसका क्रम- विषयिस्तु को चयवित कर,
वशक्षक एिां वशक्षार्ी के प्रयोग के वलए, एक क्रम में व्यिवस्र्त वकया िाता है। विषयिस्तु
या पाठ्यिस्तु को विम्िवलवखत तीि रुपों में समझा िा सकता है:
i. एक िषीय पाठयचयाा के वलए विषयों की सची;
ii. एक अिश ु ासि( िैसे-विज्ञाि, गवणत आवद); तर्ा
iii. एक विवशष्ट विषय (िैसे- िीि विज्ञाि, र्ौवतवक आवद)
विषयिस्तु के चयि में तीि मख्ु य तत्िों को ध्याि में रखा िाता है:
i. ज्ञाि
ii. प्रवक्रया/कौशल; तर्ा
iii. प्रर्ाि
विषयिस्तु के चयि के वलए विकष-
i. प्रासांवगकता- विषयिस्तु ितामाि समय के सामाविक, साांस्कृ वतक एिां
तकिीवक आिश्यकताओ ां के अिक ु ल होिा चावहए।
ii. सांतलु ि- वशक्षा के दोिों ध्रिु ों अर्ाात क्या स्र्ायी है? और क्या पररितािशील
है? को समझकर उिके मध्य सांतल ु ि स्र्ावपत करिा पड़ता है।
iii. विषयिस्तु की िैिता- विषयिस्तु को िास्तविक रुप से उन्हीं अविगम
अिर्ु िों को प्रदाि करिेिाला होिा चावहए वििके वलए उन्हें चयवित वकया
गया है।
iv. वशक्षार्ी के वन्ित- विषयिस्तु का चयि वशक्षार्ी के विकास की अिस्र्ा के
अिक ु ल, होिा चावहए।
v. सहिता- विषयिस्तु समय, माििीय, र्ौवतक एिां वित्तीय सांसाििों की दृवष्ट
से सहि होिा चावहए।
4. वक्रयान्ियि की दशाएाँ –पाठयचयाा प्रारुप के एक तत्ि के रुप में वक्रयान्ियि की दशाओ ां
का आशय विषयिस्तु को वशक्षावर्ायों तक पहुचाँ ािे की विवर्न्ि विवियों से है। ये
पाठयचयाा प्रारुप का एक मख्ु य तत्ि है क्योंवक यह वशक्षार्ी के पररणाम को वििााररत
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करता है। यह वशक्षार्ी के अवर्रुवच एिां विषयिस्तु पर उसके स्िावमत्ि को प्रर्ावित करता
है सार् ही सार् वशक्षक के व्यिहार को र्ी प्रर्ावित करता है। पहले, वक्रयान्ियि की
दशाएाँ वशक्षक- के वन्ित हो या विद्यार्ी के वन्ित, इस बात पर बहुत ध्याि वदया िाता र्ा
लेवकि कालाांतर में विषयिस्तु के विद्यतु ीय प्रस्ततु ीकरण, िैसे वक स्माटाबोडा, पॉिरप्िायटां
प्रस्ततु ीकरण आवद के विकास के कारण वशक्षक की र्वमका में बदलाि आया है। पिु ः
वक्रयान्ियि की दशाओ ां को प्रत्यक्ष तर्ा अप्रत्यक्ष दो र्ागों में बााँटा िा सकता है। ये
बाँटिारा पाठयचयाा के वक्रयान्ियि में वशक्षक एिां वशक्षार्ी की र्ागीदारी की मािा के
आिार पर वकया िाता है। पाठयचयाा प्रारुप के विवर्न्ि तत्िों में से विस तत्ि पर सबसे
ज़्यादा शोि काया वकया िाता है, िो वक्रयान्ियि की दशाएाँ हैं।
5. मलयाांकि-पाठयचयाा प्रारुप के तत्ि के रुप में मलयाांकि के कई आयाम होते हैं। समेवकत
रुप में मलयाकां ि वशक्षार्ी को उसके विष्पादि के विषय में बताता है तर्ा विषयिस्तु को
अगले चरण की ओर विदेवशत करता है। इस प्रकार मलयाांकि विषयिस्तु के क्रम एिां
पाठयक्रम के वक्रयान्ियि को विदेवशत करते हैं। मलयाांकि का दसरा आयाम वशक्षार्ी के
अविगम के सांबांि में िो सचिा प्राप्त करिा है िो विद्यार्ी को चयवित एिां विरस्त, उतीणा
एिां अितु ीणा करिे में सहयोग प्रदाि करते हैं तर्ा इस सांदर्ा में वक विद्यालय राष्रीय िीवत
का वकतिे अच्छे तरीके से अिपु ालि कर रहे हैं, आाँकड़े एकवित करिा या प्रदाि करिा है
(िॉकर,1976)। इस प्रकार मलयाांकि वशक्षार्ी एिां वशक्षक के वलए पृष्ठपोषण का काया
करता है(ऐश,1974)।

अभ्यास प्रश्न
2. वशक्षार्ी एिां समाि के विषय में मान्यताओ ां का एक सांरचिात्मक ढााँचा, पाठयचयाा प्रारुप
के पााँच प्रमख
ु ______________ में से एक है।
3. सामाविक पररिताि तर्ा उद्देश्य एिां लक्ष्य में पररिताि के बीच सामां िस्य एक अच्छे
________________ की आिश्यक शता है।
4. विषयिस्तु के चयि में ध्याि में रखे िािे िाले तीि मख्ु य तत्िों के िाम ज्ञाि,
प्रवक्रया/कौशल तर्ा _______________ है।
5. वक्रयान्ियि की दशाओ ां का आशय ___________को वशक्षावर्ायों तक पहुचाँ ािे की
विवर्न्ि विवियों से है।
6. मलयाांकि वशक्षार्ी एिां वशक्षक के वलए ____________का काया करता है।
1.5 पाठयचयाा प्रारुप के स्रोत
पाठयचयाा प्रारुप के विम्िवलवखत तीि मख्ु य स्रोत हैं:
i. सव्ु यिवस्र्त पाठ्यिस्तु

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ii. विद्यार्ी
iii. समाि
अब आप बारी-बारी से एक-एक का अध्ययि करें ग।े
1. सव्ु यिवस्र्त पाठ्यिस्तु –पाठयचयाा प्रारुप के विवर्न्ि स्रोतों में यह सबसे ज़्यादा प्रयक्त

होिेिाला स्रोत है। इसका प्रयोग इसवलए वकया िाता है वक यह मािि िावत के सामवहक
ज्ञाि को प्रवतवबांवबत करता है तर्ा मिष्ु य़ के साांस्कृ वतक विरासत का प्रवतविवित्ि करता है।
ज्ञाि के एक सगां वठत इकाई के रुप में विवर्न्ि विषयों का अध्ययि सभ्यता के विकास के
वलए अिश्यक है। पाठयचयाा प्रारुप का यह एक प्रारांवर्क स्रोत है और इसके प्रयोग का
एक प्रमख ु लार् यह है वक यह विषयिस्तु के तावका क सांगठि को बल प्रदाि करता
है(हॉवकांस,1980 सेलर एण्ड अलेक्िेंडर,1974 ताबा,1962 िैस,1976)।
इस स्रोत के प्रयोग की विम्िवलवखत विशेषताएाँ हैं:
i. विवर्न्ि विषय, विद्यावर्ायों को उिके सास्ां कृ वतक विरासत को क्रवमक ढगां से
समझिे एिां सीखिे में सहायता करते हैं
ii. पाठयचयाा प्रारुप के इस स्रोत का प्रयोग कर पाठयचयाा के विमााण का एक लांबा
इवतहास है
iii. वशक्षक इसी तरीके से वशवक्षत वकए गए हैं
iv. अविकाांश उपयोगी सामग्री एिां सांसािि का विमााण इसी स्रोत का प्रयोग कर के
वकया गया है।
इस स्रोत के प्रयोग की विम्िवलवखत सीमाएाँ हैं:
i. यह ज्ञाि के खडां ि को बढ़ािा देता है, विससे विस्मरण की प्रिृवत को बल वमलता है;
ii. इस स्रोत के प्रयोग से बिा पाठयचयाा प्रारुप विद्यावर्ायों के िास्तविक िीिि से परे होता है;
iii. यह स्रोत विद्यावर्ायों की क्षमता, रुवच, आिश्यकता एिां विगत अिर्ु िों पर कम ध्याि देता
हैफलस्िरुप विद्यावर्ायों में अविगम के वलए अवर्प्रेरणा की कमी होती है; तर्ा
iv. यह अविगम में सतहीपि एिां विवष्क्रयता को बढ़ािा देता है।

2. विद्यर्ी पाठयचयाा प्रारुप के स्रोत के रुप में- िब विद्यार्ी को पाठयचयाा प्रारुप के स्रोत के
रुप में स्र्ाि वदया िाता है तो पाठयचयाा प्रारुप के विमााण में विद्यार्ी की आिश्यकताओ,ां
रुवचयों, क्षमताओ ां एिां विगत अिर्ु िों को महत्िपणा स्र्ाि वदया िाता है। अविगम अिर्ु ि
तर्ा विषयिस्तु के चयि एिां सगां ठि के वलए विद्यावर्ायों से सपां का कर उिका अिलोकि
वकया िाता है तर्ा उिसे साक्षात्कार वकया िाता है। विषय क्षेि विद्यावर्ायों के रुवच एिां
आिश्याकता के अिक ु ल होते हैं। िब विद्यार्ी को पाठयचयाा प्रारुप के मख्ु य स्रोत के रुप
में वलया िाता है तब इस प्रकार के पाठयचयाा को ििोवदत वक्रया-कलाप या अिर्ु ि पर
आिाररत पाठयचयाा कहा िाता है। मक्त ु विद्यालय, िैकवलपक विद्यालय, मक्त ु वशक्षा एिां
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विवटश वशशु विद्यालय इसी प्रकार के पाठयचयाा प्रारुप का प्रयोग करते हैं। इस स्रोत के
समर्ाक यह मािते हैं वक िास्तविक वशक्षा तर्ी सम्पन्ि हो सकती है िबवक विद्यार्ी खदु
अपिे वलए पाठ्यिस्तु का चयि करे और इसे कोई व्यवक्तगत अर्ा प्रदाि करें ।
इस स्रोत के प्रयोग की विम्िवलवखत विशेषताएाँ हैं:
i. िब विद्यार्ी को पाठयचयाा प्रारुप के स्रोत के रुप में प्रयक्त ु वकया िाता है तो
विद्यावर्ायों की आिश्यकताएाँ, रुवच, योग्यताएाँ एिां अिर्ु ि पाठयचयाा प्रारुप को
विदेवशत करती हैं,पररणामस्िरुप अविगम व्यवक्तगत, प्रासांवगक एिां अर्ापणा होता
है;
ii. विद्यार्ी स्ित:प्रेररत होते हैं और उन्हें अवर्प्रेरणा के वलए वकसी बाहरी तत्ि की
आिश्यकता िहीं होती है;
iii. व्यवक्तगत विवर्िाता को पणा महत्ि वदया िाता है; तर्ा
iv. विद्यावर्ायों को िीिि की मााँग को सांतष्टु करिे के वलए तैयार करता है(
हॉवकांस,1980 िैस,1976)।
इस स्रोत के प्रयोग की विम्िवलवखत सीमाएाँ हैं:
i. यह वशक्षा के सामाविक लक्ष्यों एिां मािि के सास्ां कृ वतक विरासत की उपेक्षा
करता है;
ii. अविगम के पररणाम अविवश्चत होते हैं; तर्ा
iii. पाठ्यसामग्री की उपलब्िता असहि होती है और यह खचीला होता है।

3. समाि- यह पाठयचयाा प्रारुप का तीसरा प्रमख ु स्रोत होता है। यह एक अवितीय पाठयचयाा
प्रारुप के विमााण में सहायक होता है, विसका मलय, समाि को समझिे एिां उन्ित करिे में
होता है। सामदु ावयक विद्यालय पाठयचयाा प्रारुप के इसी स्रोत का प्रयोग करते हैं। समाविक
अध्ययि के कायाक्रम र्ी समाि को पाठयचयाा प्रारुप के प्रमख ु स्रोत के रुप में प्रयक्त
ु करते
हैं। इस प्रारुप में पाठ्यिस्तु सामाविक िीिि से विकाली िाती है। यह समाि के काया,
सामाविक िीिि के मख्ु य काया-कलाप तर्ा विद्यावर्ायों या मिष्ु य़ की मख्ु य समस्याओ ां पर
बल देता है।
इस स्रोत के प्रयोग की विम्िवलवखत विशेषताएाँ हैं:
1. यह पाठ्यिस्तु की अखडां ता एिां विद्यार्ी तर्ा समाि के वलए उसकी प्रासांवगकता पर
बल देती है (ताबा,1962);
समस्या समािाि विवि पर बल वदया िाता है;
पाठ्यिस्तु विद्यावर्ायों के वलए व्यािहाररक रुप में होती है
2. इस प्रकार पाठ्यिस्तु विद्यावर्ायों के वलए प्रासांवगक एिां अर्ापणा होती है;

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3. चाँवक विद्यार्ी, अध्ययि के सर्ी चरण पर, इसमें सवक्रय रुप से शावमल होते हैं,
इसवलए िो अध्ययि को बिाए रखिे के वलए आतां ररक रुप से अवर्प्रेररत होते हैं; तर्ा
4. इस प्रारुप से समाि के विकास में र्ी सहायता वमलती है।
इस स्रोत के प्रयोग विम्िवलवखत सीमाएाँ हैं:
i. इसका क्षेि और क्रम स्पष्ट िहीं होता है
ii. वशक्षक इस विवि से पढ़ािे के वलए तैयार िहीं होते हैं
iii. ससां ािि िही ाँ उपलब्ि होते हैं।

अभ्यास प्रश्न
7. पाठयचयाा प्रारुप के एक स्रोत के रुप में सव्ु यिवस्र्त पाठ्यिस्तु की विशेषताओ ां का
उललेख करें ?।
8. पाठयचयाा प्रारुप के स्रोत के रुप में विद्यार्ी की सीमाओ ां का िणाि करें ।

1.6 पाठयचयाा विमााण के वसद्ाांत


पाठयचयाा के विमााण में दशाि, समाि, राज्यतिां , अर्ातिां , विज्ञाि एिां मिोविज्ञाि की महती र्वमका
होती है। चाहे कोई र्ी राष्र हो या कोई र्ी समाि, उपरोक्त उवललवखत सारे तत्ि पाठयचयाा पर
अपिा प्रर्ाि डालते हैं। इि तत्िों के प्रर्ाि को हीं वसद्ाांतों का िाम दे वदया गया है। वशक्षा के
वर्न्ि-वर्न्ि स्तर के वलए यह वर्न्ि-वर्न्ि होते है। ितामाि समय में हमारे देश में 10+2+3 वशक्षा
पद्वत प्रचवलत है और इसमें प्रर्म 10 िषों की वशक्षा सामान्य है। अतः, हम इसी 10 िषीय वशक्षा
के स्तर के वलए पाठयचयाा विमााण के वसद्ातां ों की चचाा करें ग।े इस स्तर के वलए पाठयचयाा विमााण
के वलए विम्िवलवखत 11 मख्ु य वसद्ाांत हैं-
1. उद्देश्यों की प्रावप्त का वसद्ाांत- वशक्षा प्रदाि करिे के कुछ उद्देश्य होते हैं और वशक्षा प्रदाि
करिे के वलए पाठयचयाा का होिा अवििाया है। अतः, पाठयचयाा का विमााण करते समय
हमें वशक्षा के उद्देश्यों को ध्याि में रखिा चावहए और पाठयचयाा में उन्हीं विषयों एिां
वक्रयाओ ां का समािेश करिा चावहए, वििको हम छािों में विकवसत करिा चाहते हैं।
2. उपयोवगता का वसद्ाांत-पाठयचयाा विमााण का दसरा महत्िपणा वसद्ाांत, उपयोवगता का
वसद्ाांत है। इस वसद्ाांत का आशय यह है वक पाठयचयाा विद्यार्ी के िास्तविक िीिि के
वलए उपयोगी होिा चावहए। इस सबां ांि में िि का कहिा है- “सािारण मिष्ु य सामान्यतः यह
चाहता है वक उसके बच्चे के िल ज्ञाि के प्रदशाि के वलए कुछ व्यर्ा की बातों को ही ि
सीखे, परांतु समग्र रुप से िह यह चाहता है वक उिको िो बातें वसखाई िाएाँ िो बालक के
िास्तविक िीिि से सांबांवित हो”। उदाहरणार्ा , आि का यगु कम्प्यटु र का यगु है। यवद

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आि हम कोई पाठयचयाा विवमात करते हैं तो हमें उसमें कम्प्यटु र प्रौद्योवगवक को ज़रूर
स्र्ाि देिा चावहए।
3. रचिात्मक काया का वसद्ाांत– प्रत्येक बालक अवितीय होता है और उसमें कुछ ि कुछ
सृिि करिे की शवक्त होती है। अतः, पाठयचयाा ऐसा होिा चावहए वक िो विद्यावर्ायों को
अपिे अदां र छुपी हुई रचिात्मक शवक्त को पहचाििे एिां पहचाि कर उसे विखारिे का
अिसर प्रदाि करे । रे मॉण्ट िे इस सदां र्ा में वलखा है- “ िो पाठयचयाा , ितामाि और र्विष्य
की आिश्यकताओ ां के वलए उपयक्त ु है, उसमें विवश्चत रुप से रचिात्मक विषयों के प्रवत
विवश्चत सझु ाि है”।
4. िरीयता क्रम का वसद्ाांत- पाठयचयाा अिेक विषयों का समह होता है। लेवकि यह समह्
अव्यिवस्र्त िहीं होता है। बवलक एक विवश्चत व्यिस्र्ा में बाँिा होता है। यह व्यिस्र्ा
पाठयचयाा में शावमल विषय एिां प्रत्येक विषय में शावमल पाठ्यिस्तु के क्रम को
विद्यावर्ायों की आिश्यकता के आिार पर वििााररत करती है। अतः, पाठयचयाा का
विमााण करते समय हमें इस िरीयता क्रम का र्ी ध्याि रखिा चावहए।
5. सामदु ावयक िीिि से सांबद्ता का वसद्ाांत- माध्यवमक वशक्षा आयोग के अिुसार-“
पाठयचयाा सामदु ावयक िीिि से सिीि की ओर आवां गक रुप से सांबांवित होिा
चावहए”।मिष्ु य एक सामाविक प्राणी है और िह समाि में ही अपिे िीिि के समस्त
काया–व्यापार सांपावदत करता है। अतः, उसे पढ़ाया िािेिाला पाठयचयाा र्ी सामदु ावयक
एिां सामाविक िीिि से सांबांवित होिा चावहए । पाठयचयाा विमााण के समय हमें इस तथ्य
को ध्याि में रखिा चावहए।
6. अग्रदवशाता का वसद्ाांत- वशक्षा विद्यावर्ायों का वसफा ितामाि ही िहीं िरि् र्विष्य र्ी
साँिारती है। अत:, पाठयचयाा का विमााण करते समय हमें इस तथ्य को ध्याि में रखिा
चावहए वक र्विष्य में वशक्षा की दशा एिां वदशा क्या होगी? अर्ाात र्विष्य में वकस क्षेि में
कुशल मािि शवक्त की मााँग होगी और वकतिी मािा में होगी।? इि तथ्यों को घ्याि में
रखकर पाठयचयाा में पाठ्यिस्तु का समािेश वकया िािा चावहए तावक पाठयचयाा
ितामाि के सार्-सार् र्विष्य की आिश्यकताओ ां को र्ी सांतष्टु कर सके ।
7. आिश्यकता का वसद्ाांत-पाठयचयाा विद्यार्ी के वलए विवमात वकया िाता है ि वक
विद्यार्ी पाठयचयाा के वलए। अतः, पाठयचयाा का विमााण करते समय विद्यावर्ायों की
आिश्यकताओ ां को ध्याि में रखिा चावहए। विद्यावर्ायों की आिश्यकताएाँ सामाविक,
राििैवतक, आवर्ाक, एिां िावमाक पररवस्र्वत के अिसु ार अलग-अलग होती है। अतः,
पाठयचयाा के विमााण में, इस बात को र्ी ध्याि में रखा िािा चावहए वक विद्यार्ी वकस
सामाविक, राििैवतक आवर्ाक एिां िावमाक पररवस्र्वत में रहते हैं। इसके इतर विद्यावर्ायों
की आिश्यकताएाँ, उिके शारीररक एिां मािवसक विकास की अिस्र्ाओ ां पर र्ी विर्ार

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करती है। अतः, पाठयचयाा विमााण के समय विद्यावर्ायों के शारीररक एिां मािवसक विकास
की अिस्र्ाओ ां को र्ी ध्याि में रखा िािा चावहए।
8. रुवच का वसद्ाांत- अतीत में हुए अिेक शोिकायों िारा यह प्रमावणत हो चक ु ा है वक
विद्यावर्ायों की रुवच एिां उिके शैवक्षक उपलवब्ि में गहि सांबांि होते हैं। इसका कारण यह है
वक विस काया में विद्यार्ी की रुवच होती है, उसे सीखिे के वलए विद्यार्ी आतां ररक रुप से
अवर्प्रेररत होते हैं और फलस्िरुप पररणाम अच्छा होता है। अतः, पाठयचयाा का विमााण
करते समय हमें विद्यावर्ायों की रुवच को ध्याि में रखिा चावहए।
9. ससु ांबद्ता का वसद्ाांत-पाठयचयाा के सांदर्ा में सांसु ांबद्ता से आशय इस बात से है वक
पाठ्यिस्तु एक-दसरे से र्ली-र्ााँवत सांबांवित हो। इसके अलािा िो वक्रया-कलाप
पाठयचयाा में शावमल वकए िाएाँ िो र्ी पाठ्यिस्तु से र्ली-र्ााँवत सांबांवित हो। अतः,
पाठयचयाा विमााण करते समय हमें ससु बां द्ता के वसद्ातां को ध्याि में रखिा चावहए।
10. वक्रया का वसद्ाांत- मिोविज्ञाि में हुए शोिकायों िे यह प्रमावणत वकया है वक ‘कर के सीखा
ज्ञाि’ ज़्यादा स्र्ायी होता है और यह व्यवक्तत्ि के विकास में सहायक होता है। अतः, हमें
पाठयचयाा का विमााण करते समय विवर्न्ि वक्रया-कलापों को पाठयचयाा में स्र्ाि देिा
चावहए तावक विद्यार्ी िारा अविात ज्ञाि में स्र्ावयत्ि आ सके और विद्यार्ी का सिाांगीण
विकास हो सके ।
11. विवििता एिां लचीलेपि का वसद्ाांत- माध्यवमक वशक्षा आयोग के अिसु ार, “ पाठयचयाा
में काफी विवििता एिां लचीलापि होिा चावहए, विससे वक िैयवक्तक विवर्न्िताओ ां और
िैयवक्तक आिश्यकताओ ां एिां रुवचयों का अिक ु लि हो सके ”। पाठयचयाा में विवििता एिां
लचीलापि इस कारण से होिा चावहए वक उसे विद्यावर्ायों वक शारीररक एिां मािवसक
क्षमताओ ां तर्ा उिकी रुवच के अिक ु ल बिाया िा सके । अतः, पाठयचयाा विमााण करते
समय हमें इस वसद्ाांत को ध्याि में रखिा चावहए।

अभ्यास प्रश्न
9. पाठयचयाा विमााण के विवर्न्ि वसद्ाांतों को सचीबद् करें ।

1.7पाठयचयाा की सांवक्रयाओ ां के सदां र्ा में पाठ्यचयाा सगां ठि की विवियााँ


पाठ्यचयाा मख्ु य रुप से इस बात पर विर्ार करती है हम विद्यावर्ायों में वकि अविगम अिर्ु िों को
विकवसत करिा चाहते हैं। दसरे शब्दों में यवद कहें तो अविगम के प्रत्यावशत पररणाम पर पाठ्यचयाा
का सांगठि विर्ार करता है। अतः, सिाप्रर्म, अविगम के पररणाम को विवश्चत वकया िाता है, उसके
बाद पाठ्यचयाा को। सामान्यतः पाठ्यचयाा में िो र्ी विषय रखिे होते हैं और उि विषयों के तहत िो

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र्ी पाठ्यिस्तु रखिी होती है, पहले उसपर सांबांवित विर्ाग में, तब उस विद्यालय या सांकाय के बोडा
ऑफ स्टडीज्स में और उसके बाद एके डवमक कौंवसल में चचाा की िाती है। इसके बाद इसे अवस्तत्ि
में लाया िाता है। वशक्षक इसमें दोहरी र्वमका विर्ाता है – एक तो उपरोक्त विकायों के सदस्य के
रुप में तर्ा दसरा पाठ्यचयाा के मल प्रारुप को तैयार करिे में। लेवकि वशक्षक अपिे मि से
पाठ्यचयाा में विषयों और विवर्न्ि विषयों के पाठ्यिस्तओ ु ां को शावमल िहीं करता है। इसके वलए
िो विवर्न्ि उपागमों का सहारा लेता है। ये उपागम ही पाठ्यचयाा के सगां ठि की विवियााँ या
पाठ्यचयाा के सांगठि के उपागम कहलाते हैं। ये विम्िवलवखत हैं:
i. विषयिस्तु / अिुशासि आिाररत उपागम
ii. विवशष्ट दक्षता उपागम
iii. माििीय गणु /प्रवक्रया उपागम
iv. सामाविक प्रकाया/वक्रया-कलाप उपागाम
v. व्यवक्तगत आिश्यकता एिां रुवच उपागम।

1. विषयिस्त/ु अिुशासि उपागम – अध्ययि वकए िािेिाले प्रत्येक विषय या अिश ु ासि के
अपिे विवशष्ट गणु एिां प्रारुप होते हैं िो एक पाठयचयाा विमााता को पाठ्यचयाा बिािे में
सहायता करते हैं। उदाहरण के तौर पर विज्ञाि विषय की विशेषता है, अिलोकि योग्य
तथ्यों का ज्ञाि, प्रयोग िारा प्रमावणत वकया िा सकिे िाला वसद्ाांत तर्ा उि वसद्ाांतों का
सामान्यीकरण। कला से सांबांवित विषयों की विशेषता है, उि सामाविक घटिाओ ां क
अध्ययि वििसे व्यिहार के प्रारुप का सामान्यीकरण होता है तर्ा विविि प्रकार के
सांस्कृ वत के अवस्तत्ि का िणाि करिे के वलए विवर्न्ि वसद्ाांतों का विमााण होता है। एक
बार अविगम उद्देश्य एिां उिके प्रत्यावशत पररणामों के आिार पर िब अिश ु ासि या विषय
का चयि कर वलया िाता है तब उसके क्षेि अर्ाात उसके अतां गात पढ़ाए िािेिाले
पाठ्यिस्तु का चयि वकया िाता है। इसके वलए अतां र-अिश ु ासविक उपागम का र्ी सहारा
वलया िाता है। उदाहरण के तौर पर, प्रबां िां विज्ञाि के एक पाठयचयाा में विज्ञाि और कला
दोिों अिश ु ासिों के विषय, िैसे- सांगठिात्मक प्रारुप एिां ऑपरे शि ररसचा शावमल होते हैं।
2. विवशष्ट दक्षता उपागम- प्रत्येक व्यवक्त में कुछ ि कुछ विशेष ग़णु होते हैं। पाठयचयाा ऐसा
होिा चावहए वक िो विद्यार्ी के अदां र विवहत विशेष गणु को पहचाििे का तर्ा पहचाि कर
उन्हें विखारिे का अिसर प्रदाि करे तावक विद्यार्ी उस गणु में दक्ष हो िाए और िो विशेष
गणु उसका एक कौशल बि िाए। पाठयचयाा के वलए, पाठ्यचयाा का सगां ठि करते समय
उसमें ऐसे वक्रया-कलापों एिां विषयों को स्र्ाि वदया िाता है िो उपरोक्त काया में विद्यार्ी
की सहायता कर सके । अविगम सांबांिी वक्रया-कलापों के सार्-सार् विद्यावर्ायों के विष्पवत्त
के सचक र्ी उन्हीं विवशष्ट कौशलों के इदा-वगदा घमते हैं। इसमें ‘कर के सीखिे’ पर ज़्यादा

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पर बल वदया िाता है। सर्ी व्यािसावयक पाठ्यक्रमों में पाठ्यचयाा सांगवां ठत करिे की इस
विवि का ज़्यादा प्रयोग वकया िाता है।
3. माििीय गणु /प्रवक्रया उपागम- यह विवि मख्ु य रुप से विद्यार्ी में माििीय मलयों, विशेषतः
सामाविक एिां राष्रीय मलयों को विकवसत करिे पर बल देती है। इसमें सबसे मख्ु य बात
उपयक्त
ु अिर्ु िों की उपलब्िता होती है। मलयों का विकास तर्ी सांर्ि है िब विद्यार्ी को
अिर्ु िों एि.ां गणु ों/मलयों के सबां िां के विषय में, सोचिे एिां विश्ले षण करिे का अिसर प्राप्त
हो। रोल मॉडल को र्ी स्र्ाि वदया िा सकता है क्योंवक मलयों के विकास में ये र्ी
सहायक होते हैं। र्ारतीय सांदर्ा में इस उपागम की बड़ी र्वमका होती है।
4. सामाविक प्रकाया/ वक्रया-कलाप उपागम – यह उपागम इस मान्यता पर आिाररत है वक
वशक्षण प्रवक्रया समाि में सम्पन्ि होती है और इसवलए उस समाि के प्रवत उत्तरदायी है
विसमें यह काया करती है। इस उपागम का प्रयोग कर िब पाठ्यचयाा का सगां ठि वकया
िाता है तो उसमें तीि बातों का विशेष रुप से ध्याि वदया िाता है:
 िीिि के िास्तविक पररवस्र्वतयों के इदा –वगदा विकवसत होिा चावहए;
 समाि की आिश्यकता को व्यवक्त विशेष की आिश्यकता से ज़्यादा बल देिा
चावहए;
 विद्यावर्ायों की प्रत्यक्ष सहर्ावगता के िारा सामाविक काया-क्षमता एिां सामाविक
पररिताि को बढ़ािा देिा चावहए।
5. व्यवक्तगत आिश्यकता एिां रुवच उपागम- इस विवि के िारा पाठ्यचयाा सांगठि में विद्यार्ी
को के न्ि में रखा िाता है। इस विवि के प्रयोग के पीछे यह मान्यता काया करती है वक
विद्यार्ी को के न्ि में रखिे से अविगम प्रवक्रया में उिकी रुवच बढ़ती है। ितामाि में
पाठयचयाा के सांदर्ा में िो शोि हो रहे है उिमें इस उपागम को ज़्यादा मह्तत्ि वदया िा रहा
है।
पाठ्यचयाा सांगठि की उपयक्त ु विवियों को िाििे के बाद यह स्पष्ट हो गया है वक
पाठ्यचयाा सांगठि के ये विवर्न्ि उपागम यद्यवप अपिे-आप में पणा है लेवकि इिमें से वकसी
एक के प्रयोग से सांतवु लत पाठयचयाा का विमााण िहीं हो सकता है। सांतवु लत पाठयचयाा
के विमााण में इि सर्ी उपागमों का सहरा लेिा पड़ता है। अतः, एक सांतवु लत पाठयचयाा के
विमााण के वलए इि सर्ी उपागमों का समवु चत प्रयोग आिश्यक है।

अभ्यास प्रश्न
10. पाठ्यचयाा सगां ठि की विवर्न्ि विवियों को सचीबद् करें ।

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11. सामाविक प्रकाया/ वक्रया-कलाप उपागम का प्रयोग कर िब पाठ्यचयाा का सांगठि वकया
िाता है तो विि तीि बातोंका विशेष रुप से ध्याि वदया िाता है, उन्हें सचीबद् करें ।

8.8साराश
ां
प्रस्ततु इकाई, पाठयचयाा प्रारुप का अर्ा, पाठयचयाा प्रारुप के विवर्न्ि तत्िों, पाठयचयाा प्रारुप के
विवर्न्ि स्रोतों, पाठयचयाा विमााण के विवर्न्ि वसद्ाांतों एिां पाठ्यचयाा सांगठि के विवर्न्ि उपागमों
की व्याख्या करता है। पाठयचयाा वशक्षा प्रणाली का एक महत्िपणा अगां है। इसका विमााण एक
आिश्यक प्रवक्रया है। ितामाि पररिेश में वशक्षक इसमें महत्िपणा र्वमका विर्ाता है। अत: वशक्षा
शास्त्र के विद्यावर्ायों के वलए यह आिश्यक है वक िो पाठयचयाा सांबांिी विवर्न्ि तथ्यों को िािें एिां
समझें। इसी उद्देश्य को ध्याि में रखकर इस इकाई की रचिा की गई है िो विद्यावर्ायों के वलए विवश्चत
ही उपयोगी होगी।

1.9 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर


1. एक अच्छे पाठयचयाा प्रारुप के विशेषताऐ ां विम्ि हैं-
i. एक अच्छा पाठयचयाा प्रारुप उद्देश्यपणा होता है
ii. एक अच्छा पाठयचयाा प्रारुप सव्ु यवस्र्त एिां सवु ियोवित होता है
iii. एक अच्छा पाठयचयाा प्रारुप सृििात्मक होता है
iv. एक अच्छा पाठयचयाा प्रारुप को लोचशील होिा चावहए
2. तत्ि
3. पाठयचयाा
4. प्रर्ाि
5. विषयिस्तु
6. पृष्ठपोषण
7. पाठयचयाा प्रारुप के एक स्रोत के रुप में सव्ु यिवस्र्त पाठ्यिस्तु की विशेषताऐ-ां
i. विवर्न्ि विषय, विद्यावर्ायों को उिके साांस्कृ वतक विरासत को क्रवमक ढांग से समझिे
एिां सीखिे में सहायता करते हैं
ii. पाठयचयाा प्रारुप के इस स्रोत का प्रयोग कर पाठयचयाा के विमााण का एक लबां ा
इवतहास है
iii. वशक्षक इसी तरीके से वशवक्षत वकए गए हैं
iv. अविकाांश उपयोगी सामग्री एिां सांसािि का विमााण इसी स्रोत का प्रयोग कर के वकया
गया है।
8. पाठयचयाा प्रारुप के स्रोत के रुप में विद्यार्ी की सीमाऐ-ां
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i. यह वशक्षा के सामाविक लक्ष्यों एिां मािि के साांस्कृ वतक विरासत की उपेक्षा करता है;
ii. अविगम के पररणाम अविवश्चत होते हैं; तर्ा
iii. पाठ्यसामग्री की उपलब्िता असहि होती है और यह खचीला होता है।
9. पाठयचयाा विमााण के विवर्न्ि वसद्ाांतोंकी सची विम्ि है-
i. उद्देश्यों की प्रावप्त की वसद्ाांत
ii. उपयोवगता का वसद्ातां
iii. रचिात्मक काया का वसद्ाांत
iv. िरीयता क्रम का वसद्ाांत
v. सामदु ावयक िीिि से सांबद्ता का वसद्ाांत
vi. अग्रदवशाता का वसद्ाांत
vii. आिश्यकता का वसद्ातां
viii. रुवच का वसद्ाांत
ix. ससु ांबद्ता का वसद्ाांत
x. वक्रया का वसद्ाांत
xi. विवििता एिां लचीलेपि का वसद्ाांत
10. पाठ्यचयाा सगां ठि की विवर्न्ि विवियों की सची-
i. विषयिस्तु / अिुशासि आिाररत उपागम
ii. विवशष्ट दक्षता उपागम
iii. माििीय गणु /प्रवक्रया उपागम
iv. सामाविक प्रकाया/वक्रया-कलाप उपागाम
v. व्यवक्तगत आिश्यकता एिां रुवच उपागम।
11. सामाविक प्रकाया/ वक्रया-कलाप उपागम का प्रयोग कर िब पाठ्यचयाा का सांगठि वकया िाता
है तो विि तीि बातोंका विशेष रुप से ध्याि वदया िाता है, िो विम्ि हैं-
i. िीिि के िास्तविक पररवस्र्वतयों के इदा –वगदा विकवसत होिा चावहए;
ii. समाि की आिश्यकता को व्यवक्त विशेष की आिश्यकता से ज़्यादा बल देिा चावहए;
iii. विद्यावर्ायों की प्रत्यक्ष सहर्ावगता के िारा सामाविक काया-क्षमता एिां सामाविक
पररिताि को बढ़ािा देिा चावहए।
1.10 सांदर्ा ग्रांर् सची
1. Eash, M. 1974. Instructional Materials In: Walberg H. J. (ed.) 1974.
Evaluating Educational Performance. Mc Cutchan, Berkeley,
California, Pp. 125-52.

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पाठ्यक्रम विकास Curriculum Development MAED-612 Semester IV
2. Hunkins, F.P. 1980. Curriculum Development: Program Planning and
Improvement. Merrill, Columbus, Ohio.
3. Saylor, J.G., Alexander, W.M. 1974. Planning Curriculum for Schools.
Holt,. Rinehart and Winston, New York.
4. Taba, H. 1962. Curriculum Development; Theory and Practice.
Harcourt, Brace and World, New York.
5. Walker, D.A. 1976, The IEA Six Subject Survey: An Empirical Study
of Education Twenty-one Countries. Almquist and wiksell, Stockhom.
6. Zais, R.S. 1976, Curriculum: Principles and Foundations. Crowell, New
York.
7. िन्द, के 0 वििय एिां त्यागी, गरुु सरिदास, 2005, उदीयमाि र्ारत में वशक्षा, वििोद पस्ु तक
मवां दर आगरा.
8. Hunkins, F.P. 1980. Curriculum Development: Program Planning and
Improvement. Merrill, Columbus, Ohio.
9. लाल, रमि वबहारी 2009. वशक्षा के दाशाविक एिां समािशास्त्रीय वसद्ाांत, रस्तोगी
प्रकाशि, मेरठ.
8.11 विबांिात्मक प्रश्न
1. पाठयचयाा का अर्ा समझाते हुए एक अच्छे पाठयचयाा प्रारुप की विशेषताओ ां का िणाि
करें ।
2. पाठयचयाा प्रारुप के विवर्न्ि तत्िों की व्याख्या करें ।
3. पाठयचयाा प्रारुप के स्रोतों पर एक सांवक्षप्त विबांि वलखें।
4. पाठयचयाा विमााण के विवर्न्ि वसद्ाांतों की व्याख्या करें ।
5. पाठयचयाा की सवां क्रयाओ ां के सदां र्ा में पाठ्यचयाा सगां ठि के विवर्न्ि विवियों की व्याख्या
करें ।
6. ितामाि माध्यवमक स्तर की पाठ्यचयाा की समीक्षा करते हुए यह बताए वक िह कौि से
प्रारुप पर आिाररत है और क्यों?

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इकाई 2 पाठयचयाा प्रारुप : इसके प्रकार

2.1 प्रस्तिािा
2.2 उद्देश्य
2.3 पाठयचयाा प्रारुप के प्रकार
2.3.1 विषय के वन्ित प्रारुप
2.3.2 विद्यार्ी के वन्ित प्रारुप
2.3.3 समस्या के वन्ित पाठयचयाा प्रारुप
2.4 साराांश
2.5 शब्दािली
2.6 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर
2.7 सांदर्ा ग्रांर् सची
2.8 सहायक/उपयोगी पाठ्यसामग्री
2.9 विबांिात्मक प्रश्न

2.1 प्रस्ताििा
पाठयचयाा प्रारुप,पाठयचयाा विमााण की वदशा में पहला कदम है। यह पाठयचयाा विमााण की
प्रवक्रया को वदशा विदेवशत करता है। चाँवक पाठयचयाा एक पररितािशील तत्ि है इसवलए पाठयचयाा
प्रारुप में र्ी विरांतर पररिताि होता रहता है। यह पररिताि बदलती हुई समाि की शैवक्षक
आिश्यकताओ ां की पवता हेतु करिा पड़्ता है। इि पररितािों के पररणामस्िरुप पाठयचयाा प्रारुप के
अिेक प्रकार अवस्तत्ि में आए।
पाठयचयाा वशक्षा प्रणाली का एक महत्िपणा अगां है। वकसी र्ी राष्र की वशक्षा प्रणाली को समझिे
के वलए, उसमें प्रचवलत पाठयचयाा को समग्र रुप में एिां खांड में समझिा पड़ता है। अर्ाात पाठयक्रम
के विवर्न्ि तत्िों के अलग-अलग प्रर्ाि को एिां समग्र प्रर्ाि को समझिा पड़ता है। इसके वलए
पाठयचयाा के विवर्न्ि प्रकार का ज्ञाि होिा आिश्यक है। ये विवर्न्ि प्रकार के पाठयचयाा , विवर्न्ि
प्रकार के पाठयचयाा प्रारुप पर विर्ार करते हैं। अतः पाठयचयाा प्रारुप के विवर्न्ि प्रकार का ज्ञाि र्ी
आिश्यक है।
वशक्षा प्रणाली के सांतवु लत विकास के वलए र्ी पाठयचयाा प्रारुप के विवर्न्ि प्रकार का ज्ञाि
आिश्यक है क्योंवक वकसी एक प्रारुप पर आिाररत पाठयचयाा से वशक्षा प्रणाली का समवु चत

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विकास िहीं हो सकता है। उपयक्त ु तथ्यों को ध्याि में रखकर इस इकाई की रचिा की गई है िो
विद्यावर्ायों को पाठयचयाा प्रारुप के विवर्न्ि प्रकारके विषय में िािकारी प्रदाि करे गा।

2.2 उद्देश्य
इस इकाई काअध्ययि करिे के पश्चात् आप -
1. पाठयचयाा प्रारुप के िाम बता सकें गे।
2. पाठयचयाा प्रारुप के विवर्न्ि प्रकार की व्याख्या कर सकें गे।
3. पाठयचयाा प्रारुप के विवर्न्ि प्रकार की विशेषताओ ां एिां सीमाओ ां से अिगत होसकें गे ।

2.3 पाठयचयाा प्रारुप के प्रकार


पाठयचयाा प्रारुप को मख्ु य रुप से तीि र्ागों में विर्ावित वकया िाता है| ये तीि प्रकार
विम्िवलवखत है:
1. विषयके वन्ित प्रारुप
2. विद्यार्ी के वन्ित प्रारुप
3. समस्या के वन्ित प्रारुप

2.3.1 विषय के वन्ित प्रारुप


पाठयचयाा का यह प्रारुप विवर्न्ि विषयों को के न्ि में रखता है। इस प्रारुप के तहत अविगम के
पारांपररक क्षेिों के वलए पारांपररक विषयों को, अतां िाश
ु ासविक विषयों के वलए समस्या-समािाि
सांबांिी तर्ा विणायि क्षमता सांबांिी प्रवक्रया को इस उद्देश्य के सार् शावमल वकया िाता है वक
विद्यार्ी इि से प्राप्त सचिाओ ां का आलोचिात्मक मलयाांकि कर सके । विषयके वन्ित प्रारुप को
विम्िवलवखत वचि के माध्यम से प्रदवशात वकया िा सकता है:

विषय के वन्ित प्रारुप को पारांपररक प्रारुप र्ी कहा िाता है। यह वफवलपींस देश में बहुत प्रवसद् है।

विषय के वन्ित प्रारुप की विशेषताएाँ


इसकी विम्िवलवखत विशेषताएाँ हैं:
1. इस प्रकार के पाठयचयाा प्रारुप की मख्ु य विशेषता है वक अत्यविक सांरचिात्मक स्िरुप के
कारण इसका विमााण काफी सरल होता है।

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यह प्रारुप इस बात पर बल देता है वक विद्यार्ी वकसी विशेष विषय या कोसा से सांबांवित ज्ञाि का
अविकतम अिाि कर सके ।

रे खावचि सांख्या - 1: विषय के वन्ित प्रारुप

विषय िो पढ़ािा है (विषयिस्त)ु

पढ़ाए िािेिाले सामान्य तथ्यों विषय के अतां गात पढ़ाए सहायक विषयकी पहचाि
को पररर्ावषत करिा िािेिाले शीषाक

उद्देश्यों का वििाारण

विषयिस्तु पर स्िावमत्ि हावसल करिे के वलए अविगम अिर्ु िों को विवश्चत करिा

अविगम अिर्ु िों का सांगठि

िो पढ़ाया गया उस पर स्िावमत्ि की मािा का मलयाांकि करिा

विषय के वन्ित प्रारुप की सीमाएाँ


1. इसमें अविगम अत्यांत सीवमत हो िाता है
2. यह विषयिस्तु पर इतिा ज़्यादा ध्याि देता है वक बालक की स्िार्ाविक प्रिृवत्तयों एिां
रुवचयों
की ओर ध्याि िहीं दे पाता है।

अभ्यासप्रश्न
1. पाठयचयाा प्रारुप के वकतिे मख्ु य प्रकार होते हैं?
2. पाठयचयाा का कौि सा प्रारुप विवर्न्ि विषयों को अपिे के न्ि में रखता है?
3. विषय के वन्ित पाठयचयाा प्रारुप का विमााण अत्यविक सरल होिे का क्या कारण है?
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4. पाठयचयाा का विषय के वन्ित प्रारुप, अविगम को अत्यांत सीवमत कर देता है। हााँ या िहीं
विषय के वन्ित प्रारुप के प्रकार
इसके पााँच प्रकार होते हैं:
1. विषय प्रारुप
2. अिश ु ासि प्रारुप
3. सहसांबांिात्मक प्रारुप
4. प्रवक्रया प्रारुप
5. विस्तृत क्षेि प्रारुप

विषय प्रारुप
यह प्रारुप मख्ु य रुप से इस मान्यता पर आिाररत है वक मिष्ु य को अवितीय उसकी बौवद्कता
बिाती है और ज्ञाि की खोि एिां प्रावप्त बौवद्कता की स्िार्ाविक आिश्यकता है।
यह सबसे प्राचीि एिां प्रवसद् पाठयचयाा प्रारुप है। इस प्रारुप के तहत पाठयचयाा में मख्ु य रुप से
र्ाषा (िाचि, लेखि, व्याकरण एिां सावहत्य), गवणत, विज्ञाि, इवतहास एिां विदेशी र्ाषाओ ां को
ध्याि में रखा िाता है।

विषय प्रारुप की विशेषताएाँ


1. इसकी विम्िवलवखत विशेषताएाँ हैं।
2. यह शावब्दक वक्रयाओ ां पर ज़्यादा बल देता है।
3. विद्यावर्ायों को समाि के वलए आिश्यक ज्ञाि से पररवचत करता है।
4. वक्रयावन्ित करिे में आसाि होता है।
5. यह पारांपररक है।

विषय प्रारुप की विशेषताएाँ:


1. इसकी विम्िवलवखत सीमाएाँ हैं-
2. यह व्यवक्त विशेष पर बल िहीं दे पाता है।
3. विद्यावर्ायों को हतोत्सावहत करता है।
4. विद्यावर्ायों के सामाविक, शारीररक एिां मिोिैज्ञाविक विकास करिे में असफल है।
5. अविगम को सीवमत करता है ।
6. विद्यावर्ायों की रुवच, आिश्यकता एिां अिर्ु ि को िकारता है।
7. विवष्क्रयता को बढ़ाता है।

अिश
ु ासि प्रारुप
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पाठयचयाा का यह प्रारुप सि् 1950 में प्रयोग में आिा शरुु हुआ और सि् 1960 में इसका परे िोर-
शोर से प्रयोग हो रहा र्ा। पाठयचयाा का यह प्रारुप ििु र के वसद्ाांत पर आिाररत है। ििु र िे अपिे
वसद्ातां में कहा वक वकसी र्ी उम्र के विद्यार्ी वकसी र्ी विषय की मलर्त बातों को समझिे के
योग्य होता हैं। इसके वलए वकशोरािस्र्ा या ियस्क होिे का इतां ज़ार िहीं करिा पड़ता है। अतः
पाठयचयाा को उस अिश ु ासि की सांरचिा के अिसु ार व्यवस्र्त करिा चावहए विसे पढ़िा है।
पाठयचयाा के इस प्रारुप में पाठ्यिस्तु को विस विवि से सीखिा होता है िो वििािों िारा अपिे क्षेि
में अध्ययि करिे के वलए प्रयोग में लाया िाता है। उदाहरणार्ा इवतहास का विद्यार्ी उसी विवि को
प्रयोग में लाता है िो इवतहासविद् प्रयोग में लाते हैं ।

अिश
ु ासि प्रारुप की विशेषताएाँ:
1. इस प्रारुप की विम्िवलवखत विशेषताएाँ र्ी
2. विद्यार्ी पाठ्यिस्तु पर स्िावमत्ि प्राप्त कर लेता है।
3. इस प्रारुप के तहत अविगम स्बतांि होता है।
4. विकास के वकसी र्ी अिस्र्ा पर विद्यार्ी को कोई र्ी विषय सीखाया िा सकता है।

अिशु ासि प्रारुप की सीमाएाँ


इस प्रारुप की विम्िवलवखत सीमाएाँ हैं:
1. यह ज्ञाि एिां सचिाओ ां की एक बड़ी मािा, विन्हें वकसी अिश ु ासि के रुप में िगीकृ त िहीं
वकया िा सकता हैको िज़रअां ,दाज़ करता है।
2. विद्यावर्ायों को पाठयचयाा को अपिे अिसु ार अिक
ु ु वलत करिा पड़ता है।

अभ्यासप्रश्न
5. सहसांबांिात्मक प्रारुप ............................................. का एक प्रकार है।
6. पाठयचयाा का अिश ु ासि प्रारुप सि् ................ में शरुु हुआ ।
7. ................... िे अपिे वसद्ाांत में कहा वक कोई र्ी बालक विकास के वकसी र्ीअिस्र्ा
में कुछ र्ी सीख सकता है।
8. विषय प्रारुप की एक सीमा यह है वक यह ............... को हतोत्सावहत करता है।

सहसबां ांिात्मक प्रारुप


पाठयचयाा का यह प्रारुप मख्ु य रुप से इस बात पर बल देता है वक दो अलग-अलग विषयों को कै से
एक-दसरे से सांबांवित वकया िाए तावक उिके बीच सहसां ांबांि र्ी स्र्ावपत हो िाए और उिकी
अलग-अलग विषयों के रुप में पहचाि र्ी बिी रहे। उदाहरणार्ा, अग्रां ेिी सावहत्य और इवतहास
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माध्यवमक स्तर पर सहसांबांवित होिेिाले दो विषय है। इवतहास के चक्र में इवतहास पढ़िे के बाद
विद्यार्ी अग्रां ेिी के चक्र में उसी अिवि के अग्रां ेिी सावहत्य को पढ़ता है।

सहसबां ांिात्मक प्रारुप की विशेषताएाँ


इस प्रारुप की मख्ु य विशेषता है वक इससे विषयों के बीच में अतां सांबांि स्र्ावपत होता है और विषयों
की खडां ता में कमी आती है;
सहसांबांिात्मक प्रारुप की सीमाएाँ
इसकी सीमाएाँ विम्िवलवखत हैं:
1. इसके वलए एक िैकवलपक समय सारणी की आिश्यकता होती है-।
2. अलग तरीके से योििा बिािे के वलए दक्ष वशक्षकों की आिश्यकता होती है।

प्रवक्रया प्रारुप
पाठयचयाा का यह प्रारुप , सामान्य विवियों एिां सामान्य प्रवक्रयाओ ां िो वक विषय विशेष के वलए
िहीं बवलक सर्ी विषयों को सीखिे के वलए प्रयोग में लाई िा सकती हैं, को सीखिे पर बल देता है।
आलोचिात्मक और सिािात्मक वचांति को सीखिे के वलए प्रयोग में लाए िािेिाले पाठयचयाा ,
प्रवक्रया प्रारुप का उदाहरण प्रस्ततु करते हैं।
यह प्रारुप इस मान्यता पर आिाररत है वक कुछ कौशल एिां प्रवक्रयाएाँ वकसी र्ी विषय को सीखिे के
वलए समाि रुप से आिश्यक होती हैं। उि प्रवक्रयाओ ां को सीखािा ही इस पाठयचयाा प्रारुप का
मख्ु य उद्देश्य है।

प्रवक्रया प्रारुप की विशेषता


इस प्रारुप की प्रमख ु विशेषता यह है वक यह विद्यावर्ायों को आलोचिात्मक रुप से वचांति करिा
सीखाता है।

प्रवक्रया प्रारुप की सीमाएाँ


यह विषयिस्तु पर बहुत कम ध्याि देता है।

विस्तृत क्षेि प्रारुप


इस प्रारुप को अतां िाशु ासविक प्रारुप र्ी कहा िाता है। पाठयचयाा का यह प्रारुप उि विषयिस्तओु ां
को, िो एक-दसरे के सार् तका सांगत रुप से िड़ु सकते है ाँ, को िोडिे का प्रयास करता है। उदाहरण के
तौर पर र्गोल, इवतहास, अर्ाशास्त्र, राििीवत विज्ञाि, समािशास्त्र विषय के अलग-अलग
पाठयचयाा को सांलवयत कर समािशास्त्र का पाठयचयाा बिाया गया। पाठयचयाा के विस्तृत क्षेि
प्रारुप को विम्िवलवखत रे खावचि के माध्यम से और अच्छे तरीके से समझा िा सकता है:

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रे खावचि सख्ां या-2 विस्तृत क्षेि पाठयचयाा प्रारुप

सामाविक
विज्ञाि

र्गोल इवतहास राििीवत विज्ञाि अर्ाशास्त्र समािशास्त्र

पररर्ाषीकरण:-सामान्यीकरणसमझ/अिर्ु ि

उद्देश्यों की पररर्ाषा

अविगम अिर्ु िों का चयि एिां सगां ठि

मलयाांकि:- विषयिस्तु पर स्िावमत्ि एिां सचिाओ ां का

विस्तृत क्षेि पाठयचयाा प्रारुप की विशेषताएाँ


इसकी विम्िवलवखत विशेषताएाँ हैं:
1. विद्यावर्ायों को विषयिस्तु के विवर्न्ि पक्षों के मध्य सांबांि स्र्ावपत करिे की अिमु वत देता है
2. ज्ञाि का प्रसकां रण होता है।

विस्तृत क्षेि पाठयचयाा प्रारुप की सीमाएाँ


पाठयचयाा के इस प्रारुप की मख्ु य सीमा यह है वक पाठ्यिस्तु में विस्तार तो हो िाता है लेवकि
उसकी गहिता खत्म हो िाती है।

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अभ्यासप्रश्न
9. सहसांबांिात्मक प्रारुप के वलए िैकवलपक समय-सारणी की आिश्यकता होती
है।(सत्य/असत्य)
10. प्रवक्रया प्रारुप समस्या के वन्ित पाठयचयाा प्रारुप का एक प्रकार है। (सत्य/असत्य)
11. प्रवक्रया प्रारुप विद्यावर्ायों को आलोचिात्मक रुप से वचांति करिा सीखािे पर बल देता है।
(सत्य/असत्य)
12. विस्तृत क्षेि प्रारुप में पाठ्यिस्तु में विस्तार होिे के सार्-सार् उसकी गहिता र्ी बिी रहती
है। (सत्य/असत्य)
13. विस्तृत क्षेि प्रारुप ज्ञाि के प्रसक
ां रण को िन्म देता है।(सत्य/असत्य)

2.3.2 विद्यार्ी के वन्ित प्रारुप


पाठयचयाा का यह प्रारुप मख्ु यत: विद्यावर्ायों की रुवच एिां आिश्यकता को के न्ि में रखकर बिाया
िाता है। इस प्रकार के प्रारुप में कुछ सामान्य काया-कलाप िैसे- खेल, वचिकला, कहािी आवद
विसमें वक बच्चों को शावमल वकया िा सकता है, को अध्ययि-अध्ययापि के के न्ि में रखा िाता
है। पाठ्यिस्तु अलग-अलग विषयों(गवणत, विज्ञाि) आवद में विर्ावित होकर काया-कलापों
(खेलिा, कहािी- कर्ि) आवद में विर्ावित रहता है। विद्यालय पिा स्तर पर इस प्रकार के
पाठयचयाा प्रारुप को काफी महत्ि वदया िाता है।

विद्यार्ी के वन्ित प्रारुप की विशेषताएाँ


इस पाठयचयाा प्रारुप की मख्ु य विशेषता यह है वक इसमें थ्री आर ( ररवडांग़, राइवटांग एिां अर्ामवे टक)
के सांप्रत्यय को विवर्न्ि काया-कलापों में समावहत कर वदया िाता है।

विद्यार्ी के वन्ित प्रारुप की सीमाएाँ


यह विद्यार्ी के बौवद्क विकास के पक्ष को िकारता है।

विद्यार्ी के वन्ित प्रारुप के प्रकार


इसके चार प्रकार हैं:
1. बाल के वन्ित प्रारुप
2. अिर्ु ि के वन्ित प्रारुप
3. रुमािी या रै वडकल प्रारुप
4. मािितािादी प्रारुप
बाल के वन्ित प्रारुप
पाठयचयाा का यह प्रारुप विद्यावर्ायों को उिके िास्तविक िातािरण में सवक्रय रखकर अध्ययि-
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अध्ययापि की बात करता है। अर्ाात पाठयचयाा का यह प्रारुप वशक्षण को िास्तविक िीिि से
अलग िहीं मािता है। पाठयचयाा के इस प्रारुप के विमााण में वशक्षक एिां विद्यार्ी दोिों की सवक्रय
र्वमका होती है। दोिों वमलकर पाठयचयाा के वलए योििा बिाते हैं, उसके उद्देश्य तय करते हैं,
काया-कलाप तर्ा प्रयोग में लाए िािेिाले साििों को तय करते हैं। इस तरह के पाठयचयाा प्रारुप
के समर्ाकों में िॉि डीिी, रुसो, पेस्टालॉिी, फ्रॉबेल का िाम उललेखिीय है।

बाल के वन्ित प्रारुप की विशेषताएाँ


1. सरांचिात्मक अविगम को प्रोत्सावहत करता है
2. पाठ्यिस्तु को अलग-अलग विषयों में िहीं बवलक अिुर्ि की इकाइयों के रुप में
विर्ावित वकया िाता है
3. कर के सीखिे पर ज़्यादा बल देता है, फलस्िरुप विद्यार्ी वशक्षक और िातािरण के मध्य
अतां वक्राया को र्ी बल वमलता है।

बाल के वन्ित प्रारुप की सीमाएाँ


1. पाठ्यिस्तु विवश्चत िहीं होती है।
2. कर के सीखिे की विवि हर तरह के पाठ्यिस्तु के वलए उपयक्त
ु िहीं होती है।

अिर्ु ि के वन्ित पाठयचयाा प्रारुप


पाठयचयाा का यह प्रारुप, बाल के वन्ित पाठयचयाा प्रारुप से बहुत ज़्यादा वमलत-िल ु ता है। लेवकि
इस तरह के पाठयचयाा प्रारुप में सबकुछ कायास्र्ल अर्ाात विद्यालय में वशक्षण के समय हीं
सपां ावदत होता है। इसमें विद्यावर्ायों की रुवचयों एि आिश्यकताओ ां को पहले से कवलपत िहीं वकया
िाता है। पाठयचयाा का यह प्रारुप, बच्चों के विद्यालय की दवु िया को व्यिवस्र्त करिे के वलए
बालकों के विचार एिां सोच को प्रयोग में लाते हैं।

अिर्ु ि के वन्ित पाठयचयाा प्रारुप की विशेषताएाँ


इसकी मख्ु य विशेषता है वक यह विद्यावर्ायों के स्िार्ाविक अिर्ु ि पर आिाररत होता है।

अिर्ु ि के वन्ित पाठयचयाा प्रारुप की सीमाएाँ


इसकी विम्िवलवखत सीमाएाँ हैं-
1. इसमें पाठयचयाा का कोई र्ी घटक विवशष्ट िहीं होता है।
2. एक सािार्ौम पाठयचयाा सांरचिा का विमााण िहीं वकया िा सकता है।
3. इस प्रकार के पाठयचयाा प्रारुप का वक्रयान्ियि अत्यांत हीं चुिौतीपणा है।

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रुमािी या रै वडकल प्रारुप


पठ्यक्रम का यह प्रारुप मवु क्त को वशक्षा का लक्ष्य मािता है। इसका माििा है वक विद्यावर्ायों को,
िागरुकता, दक्षता तर्ा अवर्रुवच विकवसत करिे की आिश्यकता है तावक अपिे इवन्ि्रयों या अपिे
िीििचयाा को वियांवित करिे में िो सक्षम हो सके । इस वसद्ाांत की पृष्ठर्वम में यह मान्यता काया
करती है वक ितामाि समाि भ्रष्ट एिां दमिकारी है तर्ा इसको ठीक करिा र्ी सर्ां ि िहीं है।

रुमािी या रै वडकल प्रारुप की विशेषताएाँ-


1. विद्यार्ी को मवु क्त मागा पर अग्रसर करता है।
2. इस प्रारुप का आिार दाशाविक वसद्ाांत है।
3. इस प्रकार का पाठयचयाा प्रारुप मिष्ु यों के मध्य पारस्पररक अतां वक्राया को बढ़ािा देता है।

रुमािी या रै वडकल प्रारुप की सीमाएाँ


1. यह समाि के अवस्तत्ि पर प्रश्नवचन्ह खड़ा करता है।
2. वसफा मवु क्त को वशक्षा का उद्देश्य िहीं मािा िा सकता है।

मािाितािादी प्रारुप
पाठयचयाा के इस प्रारुप के समर्ाकों में अिाहम मास्लो एिां काला रोिसा का िाम उललेखिीय है।
यह मख्ु य रुप से अिाहम मास्लो िारा विकवसत सेलफ एक्चुलाइिेशि के वसद्ातां पर आिाररत है।
पाठयचयाा का यह प्रारुप मिष्ु य अर्ाात विद्यार्ी की क्षमताओ ां को विकवसत करिे और विद्यार्ी को
स्िविमााण की प्रवक्रया में शावमल करिे सबां िां ी एिां गवतविवियों एिां पाठ्यिस्तओ
ु ां को के न्ि में रखता
है। पाठयचयाा का यह प्रारुप मािता है वक ‘स्ि-विमााण’ अविगम का अवां तम उद्देश्य है तर्ा
सांज्ञािात्मक, र्ािात्मक एिां मिोगत्यात्मक पक्ष अलग-अलग होते हुए र्ी एक-दसरे से सार्ाक रुप
में सहसबां वां ित हैं और इि तीिों को इसी रुप में पाठयचयाा में शावमल र्ी वकया िािा चावहए।

मािितािादी प्रारुप की विशेषताएाँ


1. यह व्यवक्त विशेष को सामथ्यािाि बिाता है। प्रत्येक व्यवक्त खदु की आिश्यकताओ ां को
र्ली-र्ााँवत िाििे में समर्ा हो िाता है
2. यह प्रारुप विद्यावर्ायों के सामाविक एिां सास्ां कृ वतक पररदृश्य को र्ी सम्माि देता है।
3. यह कक्षाकक्ष से बाहर की दवु िया के वलए आिश्यक वशक्षा तक विद्यावर्ायों की पहुचाँ
बिािे हेतु कक्षाकक्षगवतविवि एिां विद्यार्ी के मध्य एक प्रत्यक्ष सांबांि स्र्ावपत करता है।
पररणामस्िरुप, विद्यार्ी अपिे दैविक िीिि में, विद्यालय में सीखे गए ज्ञाि का आसािी से
प्रयोग कर सकता है।

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मािितािादी प्रारुप की सीमाएाँ
1. समाि की आिश्यकता की तुलिा में व्यवक्त विशेष की आिश्यकता पर बल देता है
2. इस प्रकार के पाठयचयाा प्रारुप के विमााण के वलए वशक्षक को उत्तरदायी मािा गया
है।लेवकि वशक्षक के पयााप्त मािा में योग्य िहीं होिे के कारण तर्ा सांसािि एिां समय की
कमी के कारण पाठयचयाा के इस प्रारुप का विमााण कवठि हो िाता है
3. विद्यावर्ायों की रुवचयों एिां ितामाि पररदृश्य के वलए आिश्यक कौशलों के मध्य सतां लु ि
स्र्ावपत करिा एक दष्ु कर काया है।

अभ्यासप्रश्न
14. समह ‘क’ को समह ’ख’ से वमलाइए।
समह क समह ख
1. मािितािादी प्रारुप (अ) पाठयचयाा विमााण में वशक्षक एिां विद्यार्ी
दोिों की सवक्रय र्वमका
2. रुमािी या रै वडकल प्रारुप (ब) विद्यावर्ायों के स्िार्ाविक अिर्ु ि पर आिाररत
3. अिर्ु ि के वन्ित प्रारुप (स) समाि के अवस्तत्ि पर प्रश्नवचन्ह
4. बाल के वन्ित प्रारुप (द) व्यवक्त विशेष की आिश्यकता पर अविक बल

2.3.3समस्या के वन्ित पाठयचयाा प्रारुप


वकसी िास्तविक या उपकवलपत समस्या को के न्ि में रखकर पाठ्यिस्तु को सांगवठत करिे के वलए
िब पाठयचयाा प्रारुप का विमााण वकया िाता है, तो इसे समस्या के वन्ित पाठयचयाा प्रारुप कहा
िात्ता है। पाठयचयाा के इस प्रारुप में विद्यार्ी अविक शावमल होते हैं क्योंवक उिका उद्देश्य अपिी
समस्या का समािाि करिा होता है। इस प्रकार के पाठयचयाा प्रारुप में मख्ु य रुप से विम्िवलवखत
समस्याओ ां को ध्याि रखा िाता है:
1. िीिि की िास्तविक समस्याएाँ
2. विद्यालयी िीिि की समस्याएाँ
3. स्र्ािीय पररवस्र्वत िवित समस्याएाँ
4. दाशाविक एिां िैवतक समस्याएाँ।

समस्या के वन्ित पाठयचयाा प्रारुप की विशेषताएाँ


इस प्रकार के पाठयचयाा प्रारुप की मख्ु य विशेषताएाँ यह है वक पाठयचयाा विसके वलए बिाया
िाता है िो वसफा सैद्ावां तक रुप से हीं िहीं िरि् व्यिहाररक रुप से र्ी अविक सहर्ावगता प्रदवशात

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करता है।

समस्या के वन्ित पाठयचयाा प्रारुप की सीमाएाँ


इस पाठयचयाा प्रारुप की मख्ु य सीमा यह है वक समय, िि एिां आिश्यक सांसाििों के अर्ाि में
इसका वक्रयान्ियि समवु चत रुप से िहीं हो पाता है।

समस्या के वन्ित पाठयचयाा प्रारुप के प्रकार


पाठयचयाा के इस प्रारुप के तीि प्रकार हैं-
1. िीिि-पररवस्र्वत प्रारुप
2. आिारर्त प्रारुप
3. सामाविवक समस्या एिां सरांचिात्मकिादी प्रारुप

िीिि पररवस्र्वत प्रारुप


पाठयचयाा का यह प्रारुप हबाटा स्पेंसर के पाठयचयाा सांबांिी लेखों पर आिाररत है। उन्होंिे अपिे
पाठयचयाा सांबांिी लेखों में उि वक्रया-कलापों िो िीिि को उन्ित करता है, व्यवक्त विशेष के
सामाविक और राििैवतक सबां िां ों को बिाए रखता है, अिकाश के समय में तर्ा काया एिां महसस
करिे की क्षमता में िृवद् करता है, पर बल वदया गया है। िीिि पररवस्र्वत पाठयचयाा प्रारुप र्ी
इससे प्रकार की वक्रयाओ ां को पठ्यक्रम में शावमल करिे पर बल देता है। पाठयचयाा का यह प्रारुप
म्रख्ु य रुप से तीि मान्याअताओ ां पर आिाररत है:
िीिि की िवटल पररवस्र्वतयााँ समाि को बेहतर एिां सफल काया प्राणली के वलए महत्िपणा है
पररणामस्िरुप उिको के न्ि में रखकर एक पाठयचयाा बिािा आिश्यक है;
विद्यार्ी िो पढ़ते हैं, उसकी प्रासांवगकता सामाविक िीिि के सांदर्ा में देखते हैं, यवद पाठ्यिस्तु
सामाविक िीिि के विवर्न्ि पहलओ ु ां को ध्याि में रखकर सांगवठत वकया गया है।विद्यार्ी समाि के
विकास में प्रत्यक्ष रुप से सहर्ागी होंगे।
इस प्रकार िब पाठयचयाा प्रारुप का विमााण विद्यार्ी की सामाविक विकास में प्रत्यक्ष सहर्ावगता
को बढ़ािे के उद्देश्य के सार्, विद्यार्ी के विगत एिां ितामाि अिर्ु िों के िार िीिि के आिारर्त
क्षेिों का विश्ले षण कर, उि क्षेिों को विकवसत करिेिाले काया-कलापों को के न्ि में रखकर वकया
िाता है, तो उसे िीिि-पररवस्र्वत पाठयचयाा प्रारुप कहते हैं।अवत सरल शब्दों में यवद कहा िाय तो
पाठयचयाा का यह प्रारुप िीिि की विवर्न्ि पररवस्र्वतयों एिां समस्याओ ां िैसे स्िास्थ्य, आिास,
व्यिसाय, िैवतकता आवद पर आिाररत होता है।

िीिि पररवस्र्वत प्रारुप की विशेषताएाँ

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1. पाठ्यिस्तु का िीिि की िास्तविक पररवस्र्वतयों से सांबांवित होिे के कारण, पाठयचयाा
की प्रासांवगकता में िृवद् हो िाती है।
2. विषयिस्तु को खडां ों के बिाय एक समग्र इकाई के रुप में प्रस्ततु करता है; तर्ा
3. समस्या समािाि विवि का पाठयचयाा के इस प्रारुप में बहुत प्रयोग वकया िाता है।

िीिि पररवस्र्वत प्रारुप की सीमाएाँ-


1. अविगम के आिश्यक क्षेिों एिां उसके क्रम को कै से वििााररत वकया िाएगा, पाठयचयाा का
यह प, इस विषय पर मौि है।
2. विद्यावर्ायों को उिके साांस्क्रृवतक विरासत से बहुत अविक पररवचत िहीं करा पाता है।

आिारर्त (कोर) प्रारुप


इस प्रकार का पाठ्यक्र्म प्रारुप औपचाररक वशक्षा पर आिाररत होता है। समस्याएाँ सामान्य माििीय
वक्रयाओ ां पर आिररत होती हैं वििका चयि वशक्षक एिां विद्यार्ी दोिों वमलकर कर सकते हैं या
दोिों में से कोई एक र्ी। विद्यावर्ायों के समक्ष वक्रयावन्ित करिे से पहले पाठयचयाा परी तरह
वियोवित हो िाता है लेवकि इस बात का र्ी ध्याि रखा िाता है वक यवद आिश्यकता पड़े तो उसमें
सामिां ि वकया िा सके ।
आिारर्त (कोर) प्रारुप की विशेषताएाँ-
1. पाठ्यिस्तु में एकरुपता होती है।
2. पाठ्यिस्तु प्रासांवगक होती है।
3. कक्षाकक्ष में प्रिातिां की र्ाििा के विकास का सिां द्ाि करता है।

आिारर्त (कोर) प्रारुप की सीमाएाँ


1. इसके वलए विशेष रुप से प्रवशवक्षत वशक्षकों की आिश्यकता होती है।
2. पाठ्यसामग्री की प्रावप्त र्ी एक दष्ु कर काया है।

सामाविक समस्या एिां पिु विामााणिादी प्रारुप


पाठयचयाा के इस प्रारुप का मख्ु य लक्ष्य अिेक गांर्ीर माििीय समस्याओ ां के विश्ले षण प्रवक्रया में,
विद्यार्ी को शावमल करिा होता है। यह मख्ु य रुप से उि वक्रया-कलापों पर आिाररत होता है िो
विद्यार्ी को स्र्ािीय, राष्रीयएिां अतां रााष्रीय समदु ाय का आलोचिात्मक विश्लेषण करिे में सहायता
प्रदाि करते हैं। व्यापाररयों एिां समाि के राििीवतक वक्रया-कलापों तर्ा अर्ाव्यिस्र्ा पर उसके
प्रर्ाि को र्ी पाठ्यिस्तु के अांतगात रखा िाता है।
सामाविक प्रारुप की विशेषताएाँ

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1. इस पाठयचयाा प्रारुप की प्रमखु विशेषता यह है वक पाठ्यिस्तु एिां शैवक्षक उद्देश्यों का
वििाारण उसी के िारा वकया िाता है िो िास्तविक रुप से पाठयचयाा का विमााण करता है।
2. पाठयचयाा के इस प्रारुप का उद्देश्य समाि का पिु विामााण है।

सामाविक प्रारुप की सीमाएाँ:


इस प्रारुप की मख्ु य सीमा यह है वक यह सामाविक विकास को व्यवक्तगत विकास की तल
ु िा में
अविक बल देता है ।

अभ्यासप्रश्न
15. विम्ि में से कौि समस्या के वन्ित पाठयचयाा प्रारुप का प्रकार िहीं है:
i. िीिि पररवस्र्वत प्रारुप
ii. आिारर्त प्रारुप
iii. सामाविक समस्या एिां सरांचिात्मकतािादी प्रारुप
iv. मािितािादी प्रारुप
16. समस्या के वन्ित पाठयचयाा प्रारुप के सांबांि में विम्िवलवखत में से कौि सा कर्ि असत्यहै-
i. अविगमकताा वसफा सैद्ाांवतक रुप से शावमल होता है।
ii. सैद्ांवतक एिां व्यािहाररक दोिों रुपों में शावमल होता है।
iii. आिश्यक सांसाििों के अर्ाि में अिवु चत वक्रयान्ियि।
iv. उपयक्त ु सर्ी सत्य है।
17. िीिि पररवस्र्वत प्रारुप वकसके लेखों पर मख्ु य रुप से आिाररत है:
i. अिाहाम मॉस्लो
ii. काला रोिसा
iii. फ्रोबेल
iv. हबाटा स्पेंसर
18. आिारर्त(कोर) प्रारुप के सांबांि में विम्िवलवखत में से कौि सा कर्ि असत्य है:
i. पाठ्यिस्तु में एकरुपता होती है
ii. पाठ्यिस्तु प्रासवां गक होती है
iii. पाठ्यसामग्री की प्रावप्त एक दष्ु कर काया है
iv. इसके वलए विशेष रुप से प्रवशवक्षत वशक्षकों की आिश्यकता िहीं है।

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2.4 साराांश
वशक्षा प्रणाली के एक महत्िपणा अगां , पाठयचयाा के विमााण से पहले उसके रुप-रे खा अर्ाात उसके
प्रारुप के विवर्न्ि प्रकार का ज्ञाि विद्यार्ी के वलए अवत उपयोगी है। इस तथ्य को ध्याि में रखकर
प्रस्ततु इकाई में पाठयचयाा प्रारुप के विवर्न्ि प्रकार की विस्तृत व्याख्या उिकी विशेषताओ ां एिां
सीमाओ ां के सार् की गई है। स्र्ाि-स्र्ाि पर उपयक्त ु उदाहरणों एिां रे खावचिों के िारा विषयिस्तु को
और अविक स्पष्ट करिे का प्रयास वकया गया है तावक विषयिस्तु अविगम कताा के वलए सग्रु ाह्य हो
सके । पाठयचयाा प्रारुप के मख्ु य प्रकार के सार्-सार् उिके उप प्रकारों का र्ी विस्तृत िणाि वकया
गया है तावक विषयिस्तु अविगमकताा को अविक स्पष्ट हो सके और अविगमकताा िीिि की
िास्तविक पररवस्र्वत में इसका उपयोग कर सके । इस प्रकार यह इकाई विद्यार्ी के वलए अवत
उपयोगी वसद् होगी।
2.5 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर
1. पाठयचयाा प्रारुप के 3प्रकार होते हैं
2. विषय के वन्ित प्रारुप
3. अत्यविक सांरचिात्मक स्िरुप
4. हााँ
5. विषय के वन्ित प्रारुप
6. 1950
7. ििु र
8. विद्यावर्ायों
9. सत्य
10. असत्य
11. असत्य
12. सत्य
13. सत्य
14. (1) द (2) स (3) ब (4) अ
15. iv मािितािादी प्रारुप
16. i अविगमकताा वसफा सैद्ाांवतक रुप से शावमल होता है।
17. iv हबाटा स्पेंसर
18. iv इसके वलए विशेष रुप से प्रवशवक्षत वशक्षकों की आिश्यकता िहीं है।
2.6 सांदर्ा ग्रांर् सची
1. Retrived from www.slideshare.com on 15 March,2013

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2. Retrived from www.slideshare.com on 17 March,2013

2.7सहायक/उपयोगी पाठ्यसामग्री
1. Anderson, D.C. (1980). Evaluating Curriculum proposals : A critical Guide.
Wiley, New York.
2. Rug, H.O. (1927). The foundations of curriculum making. Twenty-sixth
yearbook of the
3. National Society for the Study Of Education. Part II, Public school
publishing. Bloomington, Illinois.
4. Schubert, W.H. (1980). Curriculum Books : the first eighty years : context,
commentary andbibliography. University press of America, Lanham,
Maryland.

2.8विबांिात्मक प्रश्न
1. पाठयचयाा प्रारुप के विवर्न्ि प्रकारों का उिकी विशेषताओ ां एिां सीमाओ ां के सार् िणाि करें ।
2. विषय के वन्ित प्रारुप के विवर्न्ि प्रकारों का उिकी विशेषताओ ां एिां सीमाओ ां के सार् िणाि करें ।
3. विद्यार्ी के वन्ित पाठयचयाा प्रारुप के विवर्न्ि प्रकारों का िणाि उिकी विशेषताओ ां एिां
सीमाओकां े सार् करें ।
4. आप विस पाठयचयाा का अध्ययि कर रहे हैं िो वकस पाठयचयाा प्रारुप का अिपु ालि करता
है ? तका सांगत उत्तर दें।

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इकाई 3 पाठयचयाा विमााण के विवर्न्ि प्रवतमाि

3.1 प्रस्तिािा
3.2 उद्देश्य
3.3 पाठयचयाा प्रवतमाि का अर्ा एिां सप्रां त्यय
3.4 पाठयचयाा प्रवतमाि का िगीकरण
3.4.1 पाठयचयाा का उद्देश्य/मलयाांकि प्रवतमाि
3.4.2 पाठयचयाा का प्रवक्रया प्रवतमाि
3.4.3 पाठयचयाा का पररवस्र्वत प्रवतमाि
3.5 पाठयचयाा प्रवतमाि का िगीकरण: स्िरुप के आिार पर
3.5.1 पाठयचयाा विकास का सामान्य प्रवतमाि
3.5.2 पाठयचयाा विकास का विवशष्ट प्रवतमाि
3.6 साराांश
3.7 शब्दािली
3.8 अभ्यासप्रश्नों के उत्तर
3.9 सदां र्ा ग्रर्ां
3.10 विबांिात्मक प्रश्न

3.1 प्रस्ताििा
वकसी र्ी राष्र के सिाांगीण विकास के वलए वशक्षा एक आिश्यक प्रवक्रया है विसके सांपादि के
वलए पाठयचयाा एक आिश्यक शत्ता है। पाठयचयाा राष्र की राििैवतक, आवर्ाक, सामाविक
वस्र्वत आवद पर विर्ार करता है। अब चवक, राििैवतक, आवर्ाक एिां सामाविक वस्र्वतयााँ
पररितािशील है फलस्िरुप पाठयचयाा र्ी पररिवतात होते रहता है। इस प्रकार, देश, काल एिां
पररवस्र्वत के अिसु ार, पाठयचयाा के कई रुप सामिे आए लेवकि ये अस्पष्ट र्े और इिके पीछे कोई
िैज्ञाविक आिार िहीं र्ा। कालाांतर में िब पाठयचयाा विमााण के क्षेि में शोिकाया प्रारांर् हुए, तो
पाठयचयाा विमााण के अिेक प्रवतमाि विकवसत हुए। प्रस्ततु इकाई इन्हीं पाठयचयाा प्रवतमािों पर
प्रकाश डालती है।

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3.2 उद्देश्य
इस इकाई के अध्ययि के पश्चात आप-
1. पाठयचयाा विमााण के अर्ा एिां सांप्रत्यय को समझ सकें गे
2. पाठयचयाा प्रवतमाि का विवर्न्ि आिारों पर िगीकरण कर सकें गे
3. विवर्न्ि पाठयचयाा प्रवतमािों का उदाहरण प्रस्ततु कर सकें गे।

3.3 पाठयचयाा प्रवतमाि का अर्ा एिां सांप्रत्यय


प्रवतमाि शब्द आग्ां ल र्ाषा के शब्द ‘मॉडल’ का वहन्दी रुपाांतर है, विसका अर्ा होता है, वकसी
व्यवक्त, िस्त,ु अर्िा वक्रया के िास्तविक स्िरुप का बोि करािे िाला पररकलपिात्मक या
कायाात्मक रुप। हेिरी सीवसल िीलड िे ‘यवु ििसाल वडक्शिरी ऑफ एगां वलश लैंग्िेि’ में मॉडल को
पररर्ावषत करते हुए वलखा है – “ वकसी आदशा के अिरुु प व्यिहार वक्रया को ढ़ालिे तर्ा वक्रया
की ओर विदेवशत करिे की प्रवक्रया, मॉडल या प्रवतमाि होती है।
पाठयचयाा शब्द को प्रवतमाि के सार् िोड़ देिे पर यह पाठयचयाा प्रवतमाि हो िाता है, विसका
अर्ा होता है ‘पाठयचयाा का स्िरुप’ िो शैवक्षक लक्ष्यों पर आिाररत होता है। पाठयचयाा प्रवतमाि
को विम्ि शब्दों में पररर्ावषत वकया िा सकता है- पाठयचयाा प्रवतमाि से आशय शैवक्षक उद्देश्यों
की प्रावप्त हेत,ु पाठयचयाा के विमााण या इसके वलए वदशा-विदेशि की प्रवक्रया के स्िरुप वििाारण से
है।

अभ्यासप्रश्न
1. प्रवतमाि शब्द आग्ां ल र्ाषा के शब्द ‘मॉडल’ का वहन्दी रुपाांतर है?
2. हेिरी सीवसल िीलड िारा ‘यवु ििसाल वडक्शिरी ऑफ इवां ग्लश लैंग्िेि’ में ‘मॉडल’ शब्द
के वलए िो अर्ा वदया है उसे वलखें।
3.4 पाठयचयाा प्रवतमाि का िगीकरण
चाँवक पाठयचयाा में उद्देश्य, प्रवक्रया एिां पररवस्र्वत तीि तथ्यों को महत्िपणा स्र्ाि वदया िाता है,
इसवलए इि तीि तथ्यों में पररिताि के सार् पाठयचयाा विकास के प्रवतमाि में र्ी पररिताि होते रहते
हैं। ितामाि में मौिद पाठयचयाा प्रवतमाि को उपयाक्त ु तीि तथ्यों के आिार पर तीि िगों में
विर्ावित वकया िाता है। ये तीि िगा विम्िवलवखत हैं:
1. उद्देश्य या मलयाांकि प्रवतमाि
2. प्रवक्रया प्रवतमाि
3. पररवस्र्वत प्रवतमाि

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3.4.1 पाठयचयाा का उद्देश्य/मलयाांकि प्रवतमाि
इस प्रवतमाि में शैवक्षक उद्देश्यों को अत्यविक महत्ि प्रदाि करते हुए पाठयचयाा का विमााण वकया
िाता है। उद्देश्यों की प्रावप्त का ज्ञाि वशक्षार्ी के व्यिहार में िावां छत पररिताि से होता है और वशक्षार्ी
के व्यिहार में पररिताि का ज्ञाि मलयाांकि से होता है। अत:इसे मलयाांकि प्रवतमाि र्ी कहते हैं। इस
प्रवतमाि में विम्िवलवखत सोपाि का अिसु रण वकया िाता है:
i. वशक्षण उद्देश्यों का वििाारण
ii. उद्देश्यों की प्रावप्त के वलए अविगम
iii. िाांवछत व्यिहार पररिताि का मलयाांकि

पाठयचयाा विकास का यह प्रवतमाि व्यािहाररक मिोविज्ञाि पर आिाररत होता है।


3.4.2 पाठयचयाा का प्रवक्रया प्रवतमाि
इस प्रकार के प्रवतमाि में प्रवक्रया को प्रार्वमकता दी िाती है। इस प्रकार के प्रवतमाि में पाठ्यिस्तु
की सहायता से माििीय गणु ों को विकवसत करिे का प्रयास वकया िाता है। चाँवक यह एक प्रवक्रया
प्रवतमाि है और वशक्षण प्रवक्रया का सांपादि मख्ु य रुप से वशक्षक के िारा होता है। अतः इस प्रकार
के प्रवतमाि में वशक्षक की महत्िपणा र्वमका होती है। यह प्रवतमाि ‘मािि-व्यिस्र्ा वसद्ातां ’ पर
विर्ार करता है। इस प्रकार के प्रवतमाि में वशक्षण व्यिस्र्ा छाि-के वन्ित होती है तर्ा इसमें छािों की
अिश्यकताओ ां को र्ी ध्याि में रखा िाता है। इसी प्रवतमाि के आिार पर पाठयचयाा को अिर्ु ि-
के वन्ित, काया-के वन्ित तर्ा एकीकृ त पाठयचयाा का विमााण वकया गया है।
3.4.3 पाठयचयाा का पररवस्र्वत प्रवतमाि
इस प्रवतमाि के अतां गात उि पररवस्र्वतयों को महत्ि वदया िाता है िो वशक्षा एिां पाठयचयाा को
प्रर्ावित करती है। प्रणाली उपागम के प्रयोग िारा शैवक्षक पररवस्र्वतयों के िाह्य एिां आतां ररक घटकों
को पहचािा िाता है। तत्पश्चात इि घटकों को ध्याि में रखकर पाठयचयाा का विमााण वकया िाता
है। इस प्रवतमाि के आिार पर विषय के वन्ित पाठयचयाा , कोर पाठयचयाा , बाल-के वन्ित पाठयचयाा
तर्ा ससु ांबद् पाठयचयाा आवद का विमााण वकया गया है।

अभ्यास प्रश्न
3. पाठयचयाा प्रवतमाि के सामान्य िगीकरण के अिसु ार उसके वकतिे प्रवतमाि हैं?
4. पाठयचयाा के उद्देश्य/मलयाकां ि प्रवतमािमें -------------को अत्यविक महत्ि प्रदाि करते
हुए पाठयचयाा का विमााण वकया िाता है।
5. -------------प्रवतमाि ‘मािि-व्यिस्र्ा वसद्ाांत’ पर विर्ार करता है।
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6. पाठयचयाा के उद्देश्यप्रवतमािको मलयाांकि प्रवतमाि र्ी कहते हैं। (सत्य/असत्य)
7. -------------- प्रवतमाि के आिार पर विषय के वन्ित पाठयचयाा , कोर पाठयचयाा , बाल-
के वन्ित पाठयचयाा तर्ा ससु बां द् पाठयचयाा आवद का विमााण वकया गया है।
8. पाठयचयाा के पररवस्र्वत प्रवतमाि के अतां गात उि पररवस्र्वतयों को महत्ि वदया िाता है िो
वशक्षा एिां पाठयचयाा को प्रर्ावित करती है। (सत्य/असत्य)
9. -------------- प्रकार के प्रवतमाि में वशक्षण व्यिस्र्ा छाि-के वन्ित होती है।

3.5 पाठयचयाा प्रवतमाि का िगीकरण


स्िरुप के आिार पर पाठयचयाा प्रारुप को दो मख्ु य र्ागों में बााँटा गया है:
1. पाठयचयाा विकास का सामान्य प्रवतमाि
2. पाठयचयाा विकास के कुछ विवशष्ट प्रवतमाि।

3.5.1 पाठयचयाा विकासकासामान्यप्रवतमाि


इस प्रकार के पाठयचयाा प्रवतमाि का विकास वशक्षकों एिां वशक्षण प्रवक्रया के अन्य सहर्ागी घटकों
के सहयोग से सामान्य रुप में कर वलया िाता है। इस प्रकार के प्रवतमाि का विमााण में मख्ु य रुप से
विम्ि सोपािों का प्रयोग वकया िाता है:
1. वशक्षक तर्ा वशक्षण प्रवक्रया के अन्य सिीि तर्ा मता घटक के दल िारा पाठयचयाा के
क्षेिका सिेक्षण तर्ा उपलब्ि सािािों का आकलि।
2. शैवक्षक उद्देश्यों का वििाारण।
3. शैवक्षक उद्देश्यों के अिक ु ल पाठ्यिस्तु का चयि एिां विमााण।
4. विद्यालयों में पाठ्यिस्तु के पिा परीक्षण, पिु ःमलयाांकि एिां सांशोिि।
5. पाठ्यिस्तु का कुछ विद्यालयों में पिा परीक्षण।
6. पिा-परीक्षण के आिार पर पाठ्यसामग्री का मलयाक ां ि एिां आिश्यकतािसु ार सश
ां ोिि।
7. आिश्यकता पड़िे पर व्यापक स्तर पर पिा-परीक्षण पिु ः मलयाांकि तर्ा सांशोिि।
8. तैयार सामग्री का प्रकाशि एिां प्रसार तर्ा उसके उपयोग के वलए वशक्षकों के प्रवशक्षण
काआयोिि।
9. पाठयचयाा का वक्रयान्िय़ि।
10. पाठयचयाा का मलयाक ां ि एिां आिश्यकतािसु ार सांशोिि ।

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3.5.3 पाठयचयाा विकास के विवशष्ट प्रवतमाि
िब पाठयचयाा विशेषज्ञों िारा पाठयचयाा विकास के प्रवतमाि तैयार वकए िाते हैं तो इसे पाठयचयाा
विकास के विवशष्ट प्रवतमाि कहे िाते हैं। विशेषज्ञों िे कई महत्िपणा प्रवतमाि विकवसत वकए हैं
वििमें से कुछ प्रमख
ु का विम्िवलवखत हैं:
1. पाठयचयाा विकास का व्यस्र्ा आिाररत प्रवतमाि
2. पाठयचयाा विकास का कायाात्मक प्रवतमाि
3. पाठयचयाा आयोिि का प्रवक्रया प्रवतमाि
4. वहलदा टाबा का व्यापक मलयाांकि पाठयचयाा प्रवतमाि
5. मख ु ोपाध्याय विवमात पाठयचयाा प्रवतमाि
6. सरि अदा प्रणाली पाठयचयाा प्रवतमाि
7. टेलर का प्रवतमाि।

पाठयचयाा का व्यिस्र्ा आिाररत प्रवतमाि


पाठयचयाा के व्यिस्र्ा आिाररत प्रवतमाि के प्रवतपादक श्री एम0 एस0 हक महोदय है। इस
प्रवतमाि में पाठयचयाा को वििेश के रुप में तर्ा वशवक्षत मािि शवक्त को उत्पाद मािा िाता है। यह
प्रवतमाि पाठयचयाा पररिताि के समय स्िीकृ त सामाविक मलयों कोराष्रीय लक्ष्यों का एक
आिश्यक अगां मािाता है।

अभ्यासप्रश्न
10. िब पाठयचयाा विशेषज्ञों िारा पाठयचयाा विकास के प्रवतमाि तैयार वकए िाते हैं तो
िेपाठयचयाा विकास के --------- कहे िाते हैं।
11. पाठयचयाा के व्यिस्र्ा आिाररत प्रवतमाि के प्रवतपादक हैं -----------।
12. पाठयचयाा के व्यिस्र्ा आिाररत प्रवतमाि में पाठयचयाा को वििेश के रुप में तर्ा
वशवक्षत मािि शवक्त को उत्पाद मािा िाता है।(सत्य/ असत्य)

पाठयचयाा विकास का कायाात्मक प्रवतमाि


इस प्रवतमाि का प्रवतपादि िॉि एफ0 के र िे वकया र्ा। इस प्रवतमाि को विम्िवलवखत रे खावचि िारा
प्रदवशात वकया िा सकता है:

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पाठ्यक्रम के सांबांि में विय़ाण करिे के उपयोग हेतु सचिात्मक ज्ञाि का सांग्रह
स्रोत
वशक्षार्ी विषय िस्तु

मलयाांकि
उद्देश्य

परीक्षा साक्षात्कार िााँच अन्य

ज्ञािात्मकक्षेिर्ािात्मकक्षेिवक्रयात्मक क्षेि

विवर्न्ि विषय

सामाविक अिसर विद्यालय छाि-वशक्षक सबां िां


वसद्ाांतों एिां सांकलपिाओ ां का सांगठि एिां चयि

अविगम अिर्ु ि व्यवक्तगत


ज्ञाि

वशक्षण विवियााँ अतां िास्तु अविगम उद्यतता


सांग्रांर्ि क्रवमकता आिृवत

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पाठयचयाा आयोिि का प्रवक्रया प्रवतमाि- इसका प्रवतपादि सेलर एिां अलेक्िेंडर िे वकया र्ा। इस
प्रवतमाि में विवर्न्ि काया-कलापों को विम्िवलवखत क्रम में सांपावदत वकया िाता है:
1. पाठयचयाा के वििाारक तत्िों िो वक पाठयचयाा वियोिि के प्रश्नों से सबां वां ित होते हैं, के
सांबांि में वकया िाता है। पाठयचयाा के वििाारक तत्िों में छाि, सामाविक मलय सांरचिा
एिां मााँग, विद्यालयों के लक्ष्य एिां काया, ज्ञाि की प्रकृ वत तर्ा अविगम प्रवक्रया को शावमल
वकया िाता है। वशक्षक या पाठयचयाा विमााणकताा, इि वििाारक तत्िों के सांबांि में आाँकड़ों
का सांकलि करते हैं। ये सांकवलत आाँकड़े, पाठयचयाा आयोिकों का विवर्न्ि कायाात्मक
स्तरों पर मागादशाि करते हैं।
2. इस प्रवतमाि के दसरे पड़ाि पर पाठयचयाा की पाठ्यिस्तु के चयि एिां सांगठि तर्ा
वशक्षण काया के सांबांि में पाठयचयाा आयोिकों िारा विणाय वलए िाते हैं। ये विणाय कक्षा
स्तर पर, विद्यालय स्तर पर तर्ा राष्रीय स्तर पर वलए िाते हैं।
3. इसके बाद इस प्रवतमाि का तीसरा एिां आवखरी पड़ाि आता है िहााँ पर पाठयचयाा के
पाठ्यिस्तु सबां िां ी वलए गए विणाय के पररणामस्िरुप विद्यालयों िारा पाठयचयाा योििाएाँ
बिाई िाती हैं तर्ा उन्हें प्रस्ततु वकया िाता है। इि पाठयचयाा योििाओ ां में विद्यावर्ायों के
िैयवक्तक एिां िगागत अविगम अिर्ु िों के वलए पाठयचयाा सांगठि तर्ा वशक्षण की
व्यिस्र्ा सवम्मवलत रहती है। इि प्रस्ततु योििाओ ां में से कुछ को वशक्षकों एि अन्य
सांबांवित व्यवक्तयों के विदेशि के वलए पाठयचयाा विदेवशकाओ ां के रुप में वलवपबद् र्ी की
िाती है। इस प्रकार, अतां में पाठयचयाा अपिे रुप में आ िाता है।

वहलदा टाबा का व्यापक मलयाक


ां ि पाठयचयाा प्रवतमाि
टाबा के इस प्रवतमाि को पाठयचयाा विकास के ग्रास-रुट उपागम के रुप में िािा िाता है।
उिका माििा र्ा वक पाठयचयाा का विमााण वशक्षकों के िारा होिा चावहए ि वक शीषास्र्
अविकाररयों िारा। िो ये र्ी मािती र्ी वक पाठयचयाा विमााण की प्रवक्रया वशक्षकों िारा अपिे
विद्यालय में ही प्रारांर् की िािी चावहए ि वक प्रारांर् में ही एक सामान्य पाठयचयाा बिािा
चावहए। इस प्रवतमाि में ‘विवशष्ट से सामान्य की ओर’ के वशक्षण सि को ध्याि में रखते हुए
पाठयचयाा विमााण वकया िाता है। अर्ाात पहले विद्यालय स्तर पर वफर उस कक्षा के सर्ी
विद्यावर्ायों के वलए चाहे िो वकसी र्ी विद्यालय के हो पाठयचयाा का विमााण वकया िाता
है।पाठयचयाा विकास के इस प्रवतमाि का माििा है वक पाठयचयाा प्रारुप को विकवसत करिे में
मलयाक ां ि की महत्िपणा र्वमका होती है। टाबा िे अपिे इस प्रवतमाि में मलयाक ां ि शब्द का
प्रयोग उसी अर्ा में वकया है, विस अर्ा में ब्लम िे वकया है। टाबा िे अपिे प्रवतमाि में चार
प्रमख
ु सोपािों का ििाि वकया है विसे विम्िवलवखत रे खावचि िारा प्रदवशात वकया गया है-

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वहलदा टाबा का पाठयचयाा प्रवतमाि

(1)
उद्देश्यों का वििाारण

(3) (2)
अविगम को प्रर्ावित करिेिाले घटकों वशक्षण अविगम वक्रयाओ ां के वलए
के वलए प्रमाण प्रमाण

(4)
उद्देश्यों से सबां ांवित छािों के व्यिहारों के वलए प्रमाण

1. उद्देश्यों के वििाारण - इस प्रवतमाि के प्रर्म सोपाि अर्ाात उद्देश्यों के वििाारण में शैवक्षक
उद्देश्यों की दृवष्ट से पाठयचयाा का मलयाक ां ि वकया िाता है। इसमें उद्देश्यों के विवर्न्ि
आयामों, िैसे- ज्ञािात्मक, र्ािात्मक, वक्रयात्मक, सृििात्मक एिां प्रत्यक्षीकरण से
सांबांवित प्रमाणों को एकवित करके शैवक्षक उद्देश्यों का वििाारण वकया िाता है।
2. वशक्षण अविगम वक्रयाओ ां के वलए प्रमाण – इस पड़ाि पर अविगम के वलए पररवस्र्वतयााँ
उत्पन्ि की िाती है तर्ा अविगम अिुर्िों हेतु प्रमाण एकवित वकए िाते हैं।
3. अविगम को प्रर्ावित करिेिाले घटकों के वलए प्रमाण- इस सोपाि में अविगम को
प्रर्ावित करिेिाले घटकों के वलए प्रमाण एकवित वकए िाते हैं।
4. उद्देश्यों से सांबांवित छािों के व्यिहारों के वलए प्रमाण- इस पड़ाि पर आकर पाठयचयाा की
सार्ाकता की िााँच की िाती है, िो र्ी शैवक्षक उद्देश्यों की दृवष्ट से। अतः,व्यिहार पररिताि
के वलए प्रमाणों का सांकलि वकया िाता है।

मखु ोपाध्याय विवमात पाठयचयाा मलयाांकि का प्रवतमाि


पाठयचयाा विकास का यह प्रवतमाि वहलदा टाबा के प्रवतमाि से लगर्ग वमलता-िल ु ता है।
पाठयचयाा विकास के इस प्रवतमाि का विकास मख ु ोपाध्याय िे वकया है। मखु ोपाध्याय िी िे
र्ी अपिे प्रवतमाि में मलयाांकि शब्द का प्रयोग ब्लम के अर्ा में ही वकया है। इस प्रवतमाि का
विकास विशेष रुप से र्ारतीय पररवस्र्वतयों के वलए वकया गया है। इस प्रवतमाि में पाठयचयाा
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विकास की प्रवक्रया को, विन्हें कुल पााँच सोपािों में प्रवतपावदत वकया िाता है। इि पााँच सोपािों
में से प्रर्म तीि पाठयचयाा विकास की प्रर्म अिस्र्ा से सांबांवित होते हैं तर्ा अवां तम दो
सोपाि पाठयचयाा विकास की वदत्तीय या अवां तम अिस्र्ा से सबां वां ित होते हैं। इि सोपािों का
क्रमिार वििरण विम्िवलवखत है:
1. पाठयचयाा विकास की प्रर्म अिस्र्ा-
i. सोपाि 1-प्रारांवर्क उद्देश्योंका वििाारण(छाि, समाि एिां पाठ्यिस्तु के आिार पर)
ii. सोपाि2उद्देश्यों का विवशष्टीकरण(व्यािहाररक रुप में वलखिा),पाठ्यिस्तु
कीव्यिस्र्ा,अिदु श
े ि तर्ा वशक्षण अविगम प्रवक्रया के स्िरुप को विवश्चत करिा
विससे छािों के व्यिहार में अपेवक्षत पररिताि लाया िा सके ।
iii. सोपाि 3उपलब्ि साििों का समवु चत उपयोग।

2. पाठयचयाा विकास की वितीय अिस्र्ा


i. सोपाि 4 - वशक्षकों एिां विकास स्रोत के आिार पर पाठयचयाा के प्रारुप में
सिु ार(विरांतर विरीक्षण एिां मलयाांकि िारा)
ii. सोपाि 5-पाठयचयाा के प्रारुप में वकया गया सिु ार वकतिा उपयोगी एिां
सार्ाकरहा है, इसके वलए वशक्षणअविगम वक्रयाओ ां के विरीक्षण एिां मलयाक
ां ि के
िारा पाठयचयाा का मलयाांकि। पाठयचयाा का यह मलयाांकि र्ी उद्देश्य के वन्ित
होिा चावहए।
अभ्यासप्रश्न
13. स्तांर् ‘अ’ स्तांर् ‘ब’ को वमलाइए
(अ) (ब)
(अ) व्यिस्र्ा आिाररत प्रवतमाि (1) वहलदा टाबा
(ब) कायाात्मक प्रवतमाि (2) सेलर एिां अलेक्िेंडर
(स) आयोिि का प्रवक्रया प्रवतमाि (3) िॉि एफ0 के र
(द) व्यापक मलयाांकि प्रवतमाि (4) एम0 एस0 हक

सरि अदा प्रणाली पाठयचयाा प्रवतमाि


िाई0 सरि िे सि् 1976 में इस प्रवतमाि का विकास वकया। चवक इस प्रवतमाि का विकास र्ारतीय
पररवस्र्वत को ध्याि में रखकर वकया गया है इसवलए यह प्रवतमाि र्ारत में बहुत प्रचवलत हुआ।
प्रणाली विश्लेषण के माध्यम से विकवसत इस प्रवतमाि में विवशष्ट उद्देश्यों को प्रार्वमकता दी िाती है
तर्ा तकिीकी के तीि प्रमख ु पक्षों- अदा, प्रदा एिां प्रवक्रया के आिार पर पाठयचयाा को विश्लेवषत
वकया िाता है। इस विश्लेषण के पश्चात पाठयचयाा का विकास एिां सिु ार वकया िाता है। इस
प्रवतमाि की प्रमख
ु मान्यताएाँ विम्िवलवखत हैं:
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1. कोई र्ी पाठयचयाा हो उसमें सिु ार एिां विकास की सांर्ाििा सदैि रहती है क्योंवक िह
पणा िहीं होता है;
2. कोई िि-विवमात पाठयचयाा र्ी पणा िहीं हो सकता है, लेवकि ितामाि पाठयचयाा के
कमिोररयों एिां समस्याओ ां को दर कर उसे उन्ित बिाया िा सकता है विससे िह
अत्यविक उपयोगी हो िाए;
3. प्रणाली विश्ले षण से की सहायता से सिु ारा गयापाठयचयाा अविक उपयोगी होता है।

सरि अदा प्रवतमाि के प्रमखु पक्ष- इस प्रवतमाि के तीि प्रमखु पक्ष हैं िो विम्िवलवखत हैं:
1. अदा- इस पक्ष के अतां गात विशेषज्ञों के सझु ाि एिां आिश्यकता के आिार पर पाठ्यिस्तु
के स्रोतों की पहचाि की िाती है। उद्देश्यों का प्रवतपादि आिश्यकता के अिुकल वकया
िाता है तर्ा उद्देश्यों के अिकु ल अन्तिास्तु चयवित की िाती है। इसके पश्चात उद्देश्य एिां
पाठ्यिस्तु की सहायता लेकर पाठयचयाा के प्रारुप का विमााण वकया िाता है।
2. प्रवक्रया- िैसा वक िाम से ही स्पष्ट है इस पक्ष में वक्रया होती है । ये वक्रया उद्देश्यों को
व्यािहाररक रुप में वलखा िाता है अर्ाात उन्हें व्यािहाररक रुप वदया िाता है। पाठयचयाा
के वक्रयान्ियि के वलए उपयुक्त सांसाििों का विकास र्ी इसी पक्ष में वकया िाता है।
पाठयचयाा का वक्रयान्ियि र्ी इसी पक्ष का वहस्सा है।अविगम अिर्ु िों का प्रस्ततु ीकरण
र्ी इसी पक्ष का एक अगां है।
3. प्रदा- प्रदा पक्ष का इस प्रवतमाि में अपिा अलग महत्ि है। िाांवछत उद्देश्य प्राप्त हुए की िहीं,
यवद प्राप्त हुए तो वकस सीमा तक, इि बातों की िािकारी प्रदा पक्ष के िारा हीं होती है। इस
पक्ष का सबसे महत्िपणा अगां मलयाांकि प्रणाली होता है। यह प्रणाली उद्देश्य के वन्ित होती
है। इस प्रणाली का प्रयोग दो प्रमख ु कायों को सांपावदत करिे के वलए वकया िाता है। ये दो
प्रमखु काया विम्िवलवखत हैं:
 पहला, इस बात का विणाय करिा वक िाांवछत उद्देश्य प्राप्त हुए हैं वक िहीं और यवद हुए है तो
वकस सीमा तक;
 दसरा, यवद िाांवछत उद्देश्य प्राप्त िहीं हुए या कुछ सीमा तक ही हुए तो इसका कारण क्या है
और इसका वििारण क्या होगा?
इस प्रकार, प्रवतमाि के ये तीि पक्ष महत्िपणा हैं एिां पाठयचयाा विकास को वदशा प्रदाि करते
हैं। सरि अदा प्रवतमाि के प्रमख
ु सोपाि- इस प्रवतमाि में िौ सोपािों का अिसु रण वकया िाता
है। ये िौ सोपाि विम्िवलवखत है:
1. आिश्यकताओ ां के अिमु ाि हेतु सिेक्षण- साक्षात्कार, विरीक्षण एिां प्रश्नािली आवद
का प्रयोग कर, छि, समाि एिां राष्र की आिश्यकताओ ां का अिमु ाि लगया िाता है;

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2. र्विष्य की आिश्यकताओ ां का आकलि- इस पड़ाि पर व्यवक्त, समाि, एिां राष्र के
र्विष्य की आिश्यकताओ ां का अिमु ाि लगाया िाता है। चाँवक वशक्षा विद्यार्ी को
ितामाि के सार्-सार् र्ािी िीिि के वलए र्ी तैयार करती है, इसवलए र्विष्य की
आिश्यकताओ ां का आकलि आिश्यक है।
3. उद्देश्यों की पहचाि- सोपाि एक तर्ा सोपाि दो में अिुमावित आिश्यकताओ ां के
आिार पर शैवक्षक उद्देश्यों की पहचाि की िाती है।
4. उद्देश्यों को व्यिहाररक रुप में वलखिा- इस पड़ाि पर रॉबटा मेगटा विवि या क्षेिीय
वशक्षा महाविद्यालय मैसर विवि ( आर0 सी0 ई0 एम0 मेर्ड) का प्रयोग कर उद्देश्यों
को व्यािहाररक रुप में वलखा िाता है। उद्देश्यों का व्यािहाररक रुप में वलखा िािा
वशक्षणअविगम वक्रयाओ ां को सवु िवश्चत करता है।
5. पाठ्यिस्तु का चयि- पाठ्यिस्त,ु शैवक्षक उद्देश्यों को प्राप्त करिे का प्रमख
ु सािि है।
अतः, उद्देश्यों, वशक्षण स्तर, तर्ा छािों की बोिगम्यता को ध्याि में रखकर इसका
चयि वकया िाता है।
6. मलयाांकि प्रणाली का प्रारुप- इस प्रवतमाि का छाँ ठा सोपाि मलयाांकि प्रणाली के प्रारुप
के वििाारण का है। पाठयचयाा के सिु ार एिां विकास हेतु ठोस आिार मलयाांकि से ही
प्राप्त होते हैं। अतः मलयाक
ां ि के वलए एक सपु ररर्ावषत प्रणाली का होिा आिश्यक है।
7. सांसाििों का विकास- पाठयचयाा के बेहतर वक्रयान्ियि के वलए सांसाििों का विकास
आिश्यक है।
8. िााँच करिा- छािों एिां उद्देश्यों के सदां र्ा में पाठयचयाा की सार्ाकता की िााँच की
िाती है। यह काया अवत मह्तत्िपणा है।
9. समीक्षा- इस पड़ाि पर परे प्रारुप की समीक्षा होती है और इस समीक्षा के पश्चात
पाठयचयाा को अवां तम रुप वदया िाता है।
इस प्रकार यह प्रवतमाि अविक व्यािहाररक है।

टेलर का प्रवतमाि-
सि् 1949 में टेलर िे एक पस्ु तक ‘बेवसक वप्रांवसपलस ऑफ कररकुलम एण्ड इन्स्रक्शसां ’ प्रकावशत
कराई विसमें उन्होंिे पाठयचयाा विकास के वलए एक प्रवतमाि वदया। यह पाठयचयाा विकास का
सिााविक िैज्ञाविक प्रवतमाि है। इस प्रवतमाि के चार प्रमखु सोपाि हैं, िो विम्िवलवखत हैं:
1. उद्देश्यों का वििाारण
2. उद्देश्यों की प्रावप्त के वलए अविगम-अिर्ु िों का वििाारण
3. अविगम अिुर्िों का प्रर्ािपणा सांगठि
4. उद्देश्यों की प्रावप्त का मलयाांकि।

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इस प्रवतमाि के प्रर्म सोपाि में वशक्षक, सलाहकार सवमवत, विश्वविद्यालय के प्रशासक एिां वशक्षा
उद्योग में शावमल अन्य लोग, समाि एिां वशक्षार्ी की आिश्यकताओ ां को ध्याि में रखते हुए, वशक्षा
के उद्देश्यों के सबां िां में विय़ाण लेते हैं। उद्देश्यों का वििारण इस प्रवतमाि के अन्य सोपािों के सफल
वक्रयान्ियि के वलए आिश्यक है क्योंवक स्पष्ट एिां सपु ररर्ावषत उद्देश्य ही वशक्षण प्रवक्रया को वदशा-
विदेवशत करते हैं।
इस प्रवतमाि का दसरा सोपाि उि अविगम अिुर्िों का वििाारण करिा है िो वक उद्देश्यों की प्रावप्त
में सहायक होते हैं।
तीसरे सोपाि में यह विशेष रुप से ध्याि रखा िाता है वक िो र्ी अविगम अिर्ु ि वििााररत वकए
िाए िो अविगम के तीिों क्षेिों- सांज्ञािात्मक, र्ािात्मक एिां मिोगत्यात्मक को अपिे में समावहत
वकए हुए हो। अविगम अिर्ु िों को सरल से िवटल की ओर तर्ा सामान्य से विवशष्ट की ओर के
क्रम में व्यिवस्र्त वकया िाए। इस प्रकार, तीसरा सोपाि पणा रुप से अविगम अिर्ु िों के वििाारण से
सांबांवित होता है।
चौर्े सोपाि में इस बात का वििाारण वकया िाता है वक िो कौि से तरीके होंगे िो यह मलयाांवकत
करें गे वक वशक्षण प्रवक्रया के उपराांत वििााररत अविगम मलयों की प्रावप्त हुई वक िहीं। अर्ाात इस
सोपाि में वििााररत अविगम मलयों के वशक्षण प्रवक्रया के उपराांत प्रावप्त का मलयाांकि के तरीके
वििााररत वकए िाते हैं। मलयाांकि के वलए मख्ु य रुप से ‘फॉलो-अप स्टड्िीस’, ‘स्िातक उपावि
िारक विद्यावर्ायों के साक्षात्कार’ एिां ‘कायाक्रम-समीक्षा’ का सहारा वलया िाता है। इस प्रकार इि
चार सोपािों की सहायता से पाठयचयाा का विकास वकया िाता है।

अभ्यासप्रश्न
14. सरि अदा प्रणाली पाठयचयाा का विकास सि् -------------------- ई0 में वकया गया।
15. टेलर की पस्ु तक का िाम -------------------------------- है।

3.6 साराश
ां
प्रस्ततु इकाई वशक्षण प्रणाली के एक महत्िपणा घटक पाठयचयाा से सांबांवित है। बदलती हुई वशक्षण
प्रणाली के कारण पाठयचयाा के कई रुप सामिे आए। उि विवर्न्ि रुपों को वििािों िारा विवर्न्ि
समहों में िगीकृ त वकया गया। कालाांतर में पाठयचयाा विकास के क्षेि में हो रहे शोि कायों के
पररणामस्िरुप वििािों िारा पाठयचयाा विकास के प्रवतमाि विवमात वकए गए, वििमें पाठयचयाा
विमााण के वलए सवु िवश्चत एिां क्रमबद् सोपाि बताए गए तावक पाठयचयाा विकास की वक्रया सरल
एिां िैज्ञाविक हो िाए। प्रस्तुत इकाई में इन्हीं प्रवतमािों की विस्तृत चचाा की गई है। पाठयचयाा
विकास के प्रवतमाि के अर्ा एिां सांप्रत्यय, पाठयचयाा विकास के प्रवतमाि के िगीकरण एिां विवर्न्ि

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पाठयचयाा प्रवतमािों को समावहत वकएहुए यह इकाई अपिे-आप में अवत उपयोगी है। सार् ही सार्
यह पाठयचयाा विकास की प्रवक्रया में शावमल अन्य व्यवक्तयों के वलए र्ी उपयोगी है।

3.7 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर


1. प्रवतमाि शब्द आग्ां ल र्ाषा के शब्द ‘मॉडल’ का वहन्दी रुपातां र है
2. ‘यवु ििसाल वडक्शिरी ऑफ एांगवलश लैंग्िेि’ में मॉडल को पररर्ावषत करते हुए वलखा है
– “ वकसी आदशा के अिरुु प व्यिहार वक्रया को ढ़ालिे तर्ा वक्रया की ओर विदेवशत करिे
की प्रवक्रया, मॉडल या प्रवतमाि होती है।
3. पाठयचयाा प्रवतमाि के सामान्य िगीकरण के अिसु ार उसके तीि प्रवतमाि हैं
4. शैवक्षक उद्देश्यों
5. पाठयचयाा का प्रवक्रया प्रवतमाि
6. सत्य
7. पाठयचयाा का प्रवक्रया प्रवतमाि
8. सत्य
9. पाठयचयाा का प्रवक्रया प्रवतमाि
10. विवशष्ट प्रवतमाि
11. एम0 एस0 हक
12. सत्य
13. (अ) – 4
(ब) – 3
(स) - 2
(द) – 1
14. 1976
15. बेवसक वप्रांवसपलस ऑफ कररकुलम एण्ड इन्स्रक्शसां

3.8 सांदर्ा ग्रांर्


1. Howson, A.G. (ed.) (1970)Developing a New Curriculum, London,
Hieneman Educational Books Ltd.
2. Kerr, John F. (ed.) (1977) Changing the Curriculum, London,
University of London PressLtd.

उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 44
पाठ्यक्रम विकास Curriculum Development MAED-612 Semester IV
1. Tyler, R.W. (1969)Basic Principales of Curriculum and Instruction,
University of Chicago Press.
2. Wyld, C. Henery (1961), The Universal Dictionary of English
Language London.
3. Agrawal, J.C. (1993) Development and Planning of Modern Education
New Delhi, Vikas Publishing House.
4. यादि, वसयाराम (2011), पाठयचयाा विकास, आगरा, अग्रिाल पवब्लके शसां

3.9 विबांिात्मक प्रश्न


1. पाठयचयाा विकास के प्रवतमाि का अर्ा स्पष्ट करें ।
2. पाठयचयाा विकास के प्रवतमाि को िगीकृ त करें ।
3. पाठयचयाा विकास के सामान्य प्रवतमाि का िणाि करें ।
4. सरि अदा प्रणाली पाठयचयाा प्रवतमाि की व्याख्या करें ।
5. वहलदा टाबा िारा प्रवतपावदत व्यापक मलयाक
ां ि पाठयचयाा प्रवतमाि का िणाि करें ।

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इकाई- 4 पाठ्यचयाा मलयाांकि

4.1 प्रस्ताििा
4.2 उद्देश्य
4.3 पाठ्यचयाा मलयाक ां ि की सक ां लपिा
4.4 पाठ्यचयाा विमााण के चरण
4.5 पाठ्यचयाा मलयाांकि के उद्देश्य
4.6 पाठ्यचयाा मलयाांकि के प्रकार
4.7 पाठ्यचयाा मलयाांकि की आिश्यकता
4.8 पाठ्यचयाा मलयाक ां ि का महत्ि
4.9 पाठ्यचयाा मलयाक ां ि के चरण
4.10 पाठ्यचयाा मलयाांकि की तकिीकें
4.11 साराांश
4.12 शब्दािली
4.13 अभ्यासप्रश्नों के उत्तर
4.14 सन्दर्ा ग्रन्र् सची
4.15 विबांिात्मक प्रश्न

4.1 प्रस्ताििा
वशक्षा का मख्ु य उद्देश्य बालक में विवहत शवक्तयों को िागृत कर उन्हें चरमोत्कषा पर ले िािा है ।
इसके िारा उसके व्यिहार में ऐसा पररिताि लािा है वक र्विष्य की कवठिाइयों का सामिा िह
आसािी से कर िीिि को सरल तर्ा सहि बिा सके । वशक्षा माि िािकारी प्राप्त करिा िहीं बवलक
प्राप्त ज्ञाि को कक्षा से इतर िास्तविक िीिि एिां िास्तविक पररवस्र्वतयों में व्यिहार में लािा र्ी है ।
इस हेतु वशक्षा के कुछ लक्ष्य एिां उद्देश्य हैं । पाठ्यचयाा के माध्यम से यह प्रयास वकया िाता है वक
विद्यार्ी उि लक्ष्यों और उद्देश्यों को प्राप्त कर सकें । लक्ष्यों और उद्देश्यों की प्रावप्त के वलए आिश्यक
है वक पाठ्यचयाा के विवर्न्ि पर्ों एिां वक्रयाकलापों में िे सवन्िवहत हो । पाठ्यचयाा बालक में उि
शवक्तयों, उि गणु ों को िागृत करिे में तर्ा र्विष्य के वलए तैयार करिे में सक्षम है, यह िाििे हेतु
पाठ्यचयाा का मलयाांकि करिा आिश्यक है। प्रस्ततु इकाई में पाठ्यचयाा मलयाांकि से सम्बांवित
विवर्न्ि वबन्दओ ु ां का अध्ययि वकया िाएगा।

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4.2 उद्देश्य
इस इकाई के अध्ययि के पश्चात आप-
1. पाठ्यचयाा की सांकलपिा को स्पष्ट कर सकें गे।
2. मलयाांकि को पररर्ावषत कर सकें गे।
3. पाठ्यचयाा मलयाांकि की सांकलपिा का विश्ले षण कर सकें गे।
4. पाठ्यचयाा विकास के विवर्न्ि चरणों को बता सकें गे।
5. पाठ्यचयाा मलयाांकि के विवर्न्ि प्रकारों का िामोललेख कर सकें गे।
6. पाठ्यचयाा मलयाांकि के विवर्न्ि प्रकारों का अन्तर स्पष्ट करते हुए उिकी व्याख्या कर पाएगां ।ें
7. पाठ्यचयाा मलयाांकि की आिश्यकता को स्पष्ट कर सकें गे।
8. पाठ्यचयाा मलयाांकि के महत्ि को बता सकें गे।
9. पाठ्यचयाा मलयाक ां ि की विवर्न्ि चरणों की व्याख्या कर सकें गे।
10. पाठ्यचयाा मलयाांकि हेतु प्रयोग में लायी िािे िाली विवर्न्ि तकिीकों की व्याख्या कर पाएगां ।ें

4.3 पाठ्यचयाा मलयाांकि की सांकलपिा


इस इकाई में मख्ु य वबन्दओु ां के सार् कुछ अन्य वबन्दओ ु ां का अध्ययि वकया िाएगा िो पाठ्यचयाा
मलयाांकि से सम्बांवित हैं तर्ा पाठ्यचयाा मलयाांकि को समझिे हेतु उिका उललेख करिा आिश्यक
है ।
पाठ्यचयाा मलयाांकि में दो शब्द विवहत हैं; पहला शब्द है पाठ्यचयाा और दसरा मलयाांकि। सबसे
पहले पाठ्यचयाा क्या है? वपछली इकाईयों में पाठ्यचयाा क्या है इसका अध्ययि वकया िा चक ु ा है
अतः यहााँ हम अत्यांत सांवक्षप्त रूप में िािेंगे वक पाठ्यचयाा क्या है।

पाठ्यचयाा- पाठ्यचयाा को सर्ी अिर्ु िों के योग या रावश के रूप में पररर्ावषत वकया िा सकता है
िो एक शैवक्षक सांस्र्ाि में प्रदाि वकए िाते हैं । व्हीलर (1967) के अिसु ार “पाठ्यचयाा का अर्ा
विद्यालय के मागादशाि में वशक्षावर्ायों को वियोवित अिर्ु िों को देिा है ।” टैिर एिां टैिर (1975) िे
र्ी पाठ्यचयाा को वियोवित एिां विदेवशत वशक्षण अिर्ु िों के रूप में मािा है िो विद्यावर्ायों में
विद्यालय के तत्िाििाि में व्यिवस्र्त पिु विामााण के माध्यम से ज्ञाि एिां अिर्ु िों के िारा विद्यार्ी
का अकादवमक, व्यवक्तगत एिां सामाविक क्षमता में सतत एिां िावां छत विकास करती है।
इस प्रकार से देखा िा सकता है वक पाठ्यचयाा उि अिर्ु िों का सांकलि है िो विद्यालय के पररिेश
में वशक्षार्ी को दी िाती हैं। परन्तु कुछ वििाि इसे माि विद्यालय के िातािरण में वदए िा रहे
अिर्ु िों से िोड़ कर िहीं देखते बवलक इसे उच्चतर िीिि के वलए की िा रही प्रत्येक वक्रयायें िो
प्रवतवदि और वदि के प्रवत घटां े में की िाती हैं, से िोड़कर देखते हैं। अगर व्यापक पररप्रेक्ष्य में दी गयी
पाठ्यचयाा की पररर्ाषाओ ां को देखा िाए तो ये माि विद्यालय और विद्यालयी अिर्ु िों एिां
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विद्यालय में वदया िा रहा ज्ञाि ही िहीं है बवलक इसके अवतररक्त र्ी बहुत कुछ है।ले का माििा है
वक “पाठ्यचयाा का विस्तार िहाां तक है िहााँ तक िीिि का विस्तार है।” फ्रोबेल के अिसु ार
“पाठ्यचयाा सपां णा मािि िावत के ज्ञाि एिां अिर्ु ि का प्रवतरूप होिा चावहए।” इस प्रकार विस्तृत
अर्ा में पाठ्यचयाा िीिि िीिे के वलए आिश्यक कला को सीखिे में मदद करती है।

माध्यवमक वशक्षा आयोग िे पाठ्यचयाा को पररर्ावषत करते हुए कहा है वक-


“पाठ्यचयाा का अर्ा के िल उि सैद्ाांवतक विषयों से िहीं है िो विद्यालयों में परांपरागत रूप से पढ़ाये
िाते हैं, बवलक इसमें अिर्ु िों की िह सम्पणाता र्ी सवम्मवलत होती है, वििको विद्यार्ी विद्यालय,
कक्षा, पस्ु तकालय, प्रयोगशाला, कायाशाला, खेल के मैदाि तर्ा वशक्षक एिां विद्यावर्ायों के अिेकों
अिौपचाररक सांबांिों से प्राप्त करता है। इस प्रकार से विद्यालय का सांपणा िीिि पाठ्यचयाा ही हो
िाती है िो विद्यावर्ायों के िीिि के सर्ी पक्षों को प्रर्ावित करती है और उिके सतां वु लत व्यवक्तत्ि
के विकास में सहायता देती है।”
विस्तृत अर्ा में पाठ्यचयाा का अर्ा माि विद्यालय में विद्यावर्ायों के सिाांगींण विकास के वलए
चलाए िा रहे कायाक्रम से िहीं है बवलक विद्यालय से बाहर के र्ी उि अिुर्िों से है िो वदि के
प्रत्येक घटां े में विद्यार्ी आिीिि प्राप्त करता रहता है । वकन्तु समस्या यह है की विद्यालय से बाहर के
अिर्ु िों को वियोवित िहीं वकया िा सकता है या उन्हें मलयावां कत कर उिमें सांशोिि या पररिताि
िहीं वकया िा सकता है। अतः प्रस्ततु पाठ में हम पाठ्यचयाा के रूप में विद्यालय के अन्दर चलाए
िा रहे शैवक्षक कायाक्रम को ही सांबोवित करें ग।े
पाठ्यचयाा के पश्चात् अब अगला प्रश्न है वक मलयाांकि क्या है ?

मलयाांकि - मलयाांकि िैसा वक िाम से ही स्पष्ट है वक यह दो शब्दों से वमलकर बिा है मलय तर्ा
अकां ि, अर्ाात् वकसी र्ी चीि को मलय प्रदावयत करिाया या मलय का वििाारण करिा. रे मसा तर्ा
गेि (1955) िे मलयाांकि को पररर्ावषत करते हुए कहा है वक “मलयाांकि के अतां गात व्यवक्त या
समाि या दोिों की दृवष्ट से िो उत्तम एिां िाांछिीय हो उसका ही प्रयोग वकया िाता है ।”

प्रो. दाांडेकर िे मलयाांकि की पररर्ाषा इस प्रकार वदया है “मलयाांकि की पररर्ाषा एक व्यिवस्र्त


प्रवक्रया के रूप में की िा सकती है िो इस बात को विवश्चत करती है की वकस सीमा तक विद्यार्ी
शैवक्षक उद्देश्य प्राप्त करिे में समर्ा रहा है ।”
कोठारी कमीशि िे मलयाांकि की व्याख्या इस प्रकार से की है “अब यह मािा िािे लगा है वक
मलयाक ां ि एक अििरत प्रवक्रया है, िो वक सपां णा वशक्षा प्रणाली का एक अवर्न्ि अगां है तर्ा उसका
शैवक्षक उद्देश्यों से घविष्ठ सम्बन्ि रहता है।”
NCERT के अिसु ार “यह एक ऐसी सतत प्रवक्रया है िो देखती है वक (i) वििााररत शैवक्षक उद्देश्यों
(specified educationa। objectives)की प्रावप्त वकस सीमा तक हो रही है (ii) कक्षा में वदए गए
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अविगम अिुर्ि (।earning experiences) वकतिे प्रर्ािशाली रहे हैं तर्ा वशक्षा के लक्ष्य
(goa।s of education) वकतिे अच्छे से पणा हो रहे हैं।
इस प्रकार यह कहा िा सकता है वक मलयाांकि शैवक्षक प्रवक्रया से सम्बांवित है िो यह सवु िवश्चत
करता है की वकि-वकि वशक्षण उद्देश्यों की प्रावप्त वकस सीमा तक हुयी है।

पाठ्यचयाा मलयाांकि- इससे पहले इस इकाई में हम देख चक ु े हैं वक पाठ्यचयाा क्या है और
मलयाक ां ि क्या है। पाठ्यचयाा विकास का एक अवर्न्ि अगां पाठ्यचयाा मलयाक ां ि है। पाठ्यचयाा
मलयाांकि िैसा वक िाम से ही स्पष्ट है वक यह पाठ्यचयाा एिां मलयाांकि दोिों को अपिे अन्दर समेटे
हुए है। अगर इसे और र्ी स्पष्ट रूप में कहा िाए तो यह कहा िा सकता है की पाठ्यचयाा मलयाांकि
के अतां गात दो अवत महत्िपणा तथ्य समावहत हैं, प्रर्म; यह वक विि वििााररत उद्देश्यों की प्रावप्त हेतु
विवश्चत पाठ अर्िा पाठ्यचयाा का अध्यापि वकया गया है उिमें से वकि-वकि उद्देश्यों की प्रावप्त हुयी
है और इसके सार् ही सार् कौि कौि से उद्देश्य अप्राप्य रह गए हैं, वितीय; यह वक कक्षा में वशक्षण
के दौराि वशक्षण के प्रवत छािों के अिर्ु ि वकस प्रकार के रहे हैं। यही िहीं चाँवक पाठ्यचयाा स्ियां में
एक अवत विस्तृत अििारणा है िो अपिे अन्दर पाठयचयाा , पाठ्यिस्तु तर्ा इसके सार्- सार्
पाठ्य-सहगामी वक्रयाओ ां को र्ी वलए हुए है तो पाठ्यचयाा मलयाक ां ि के अतां गात इि सर्ी का
मलयाांकि र्ी सवम्मवलत वकया िाता है वक उपयाक्त ु सर्ी के सार् विद्यार्ी के अिर्ु ि वकस प्रकार
के रहे हैं।

McNei। (1977) के अिसु ार, "पाठयचयाा मलयाांकि में दो प्रश्नों पर प्रकाश डाल करिे का प्रयास
वकया िाता है: क्या वियोवित अविगम अिसरों, कायाक्रमों, पाठयचयाा , और गवतविवियों का
विकास एिां आयोिि इस प्रकार वकया गया वक िे िाांवछत पररणाम ला सकते हैं? सीखिे के रूप में
विकवसत की है और आयोिि िास्ति में िाांवछत पररणाम का उत्पादि की योििा बिाई है?
आयोवित पाठ्यचयाा में सिोत्तम होिे के वलए सिु ार वकस प्रकार हो सकता है?

Worthen & Sanders (1987) पाठ्यचयाा मलयाक ां ि को पररर्ावषत करते हुए कहते हैं वक
पाठ्यचयाा मलयाांकि “वकसी कायाक्रम, उत्पाद, योििा, प्रवक्रया उद्देश्य या पाठ्यचयाा की गणु ित्ता,
प्रर्ािशीलता या मलयों का वििाारण है।”
Gay (1985) के अिसु ार, “पाठ्यचयाा मलयाांकि का लक्ष्य पाठ्यचयाा से सम्बांवित दबु ाल एिां
सबल पक्षों के सार्-सार् कायाान्ियि में आई समस्याओ ां की पहचाि करिा, पाठ्यचयाा विकास
प्रवक्रया में सिु ार करिा, पाठ्यचयाा एिां आिवां टत वित्त की प्रर्ािकाररता का वििााररत करिा है।”
पाठ्यचयाा में उद्देश्यों एिां अिुर्िों की प्रावप्त को दो स्तरों पर मलयाांवकत वकया िा सकता है । इसमें
एक मलयाांकि को वशक्षक के िारा वकए गए मलयाांकि के रूप में देखा िा सकता है िो छोटे स्तर पर

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होता है विसमे अध्यापक वकसी पाठ या वकसी इकाई या वकसी विषय से सम्बांवित उद्देश्यों तर्ा
अिर्ु िों का मापि एिां मलयाांकि करता है और दसरे स्तर पर पाठ्यचयाा का िृहद् और विस्तृत
मलयाक ां ि वकया िाता है विसमें सपां णा पाठ्यचयाा का मलयाक ां ि वकया िाता है वक पाठ्यचयाा
वकतिी प्रर्ािी रही है अर्ाात सांपणा पाठ्यचयाा वकस स्तर तक विद्यावर्ायों के व्यिहार में पररिताि
करिे में सक्षम हुयी है तर्ा सार् ही विद्यार्ी के अिर्ु ि कै से रहे हैं।
पाठ्यचयाा को सपां णा मािि िावत के ज्ञाि एिां अिर्ु ि का प्रवतरूप होिा चावहए। इसके अर्ाि में
पाठ्यचयाा को सही िहीं मािा िा सकता है।

अभ्यासप्रश्न
1. “पाठ्यचयाा सांपणा मािि िावत के ज्ञाि एिां अिर्ु ि का प्रवतरूप होिा चावहए ।” पाठ्यचयाा की
यह व्यापक पररर्ाषा वकस वििाि िे दी है ?
2. “मलयाांकि एक ऐसी सतत प्रवक्रया है िो देखती है वक(i) वििााररत शैवक्षक उद्देश्यों (specified
educationa। objectives)की प्रावप्त वकस सीमा तक हो रही है(ii) कक्षा में वदए गए अविगम
अिर्ु ि (।earning experiences) वकतिे प्रर्ािशाली रहे हैं तर्ा वशक्षा के लक्ष्य (goa।s of
education) वकतिे अच्छे से पणा हो रहे हैं ।” मलयाांकि को यह पररर्ाषा वकसके िारा दी गयी
है ।
3. पाठ्यचयाा मलयाांकि के अतां गात वकि महत्िपणा तथ्यों का अध्ययि वकया िाता है?

4.4 पाठ्यचयाा विमााण के चरण


कोई र्ी पाठ्यचयाा कई स्तरों या चरणों से गिु रती हुयी सम्पणाता को प्राप्त करती है और यह
सम्पणाता र्ी समाि की आिश्यकताओ ां के अिरू ु प ही होता है विसमे समाि की ियी
आिश्यकताओ ां को देखते हुए परु ािी पाठ्यचयाा अव्यािहाररक हो िाती है । पाठ्यचयाा के विमााण में
कई चरण होते हैं । इि सर्ी चरणों से गिु रते हुए ही पाठ्यचयाा अपिे िास्तविक रूप में आती है । ये
चरण इस प्रकार हैं-
i. पाठ्यचयाा आिश्यकता विश्ले षण चरण
ii. पाठ्यचयाा अवर्कलप चरण
iii. पाठ्यचयाा वक्रयान्ियि चरण
iv. पाठ्यचयाा मलयाांकि चरण
पाठ्यचयाा के विमााण की प्रवक्रया को इस रे खावचि (11.1) के माध्यम से समझा िा सकता है ।
विमााण के प्रर्म चरण में सिाप्रर्म यह वििााररत वकया िाता है वक वकि आिश्यकताओ ां की पवता
हेतु पाठ्यचयाा का विमााण वकया िािा है । तदप् श्चात उि आिश्यकताओ ां के आिार पर पाठ्यचयाा
की वडज़ाइि या प्रारूप तैयार वकया िाता है । प्रारूप के विमााण के पश्चात् उस पाठ्यचयाा का
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वक्रयान्िि वकया िाता है और उसके उपराांत पाठ्यचयाा का मलयाांकि वकया िाता है । इि सर्ी स्तरों
पर पृष्ठ-पोषण वलया िाता रहता है तर्ा उसके आिार पर हर एक स्तर पर सांशोिि र्ी वकया िाता
रहता है ।

आरे ख: 11.1 पाठ्यचयाा विकास


के चरण

पाठ्यचयाा पाठ्यचयाा पाठ्यचयाा पाठ्यचयाा


आिश्यकता अवर्कलप चरण वक्रयान्ियि चरण मलयाांकि चरण
विश्ले षण चरण

पृष्ठ पोषण

4.5 पाठ्यचयाा मलयाांकि के प्रमख


ु उद्देश्य
पाठ्यचयाा मलयाांकि के कुछ उद्देश्यों को लेकर वकए िाते हैं । मलयाांकि से सम्बांवित विवर्न्ि उद्देश्य
इस प्रकार हैं-
i. पाठ्यचयाा के विमााण हेतु
ii. परु ािी पाठ्यचयाा में सांशोिि हेतु
iii. व्यवक्त के सम्बन्ि में विणाय लेिे हेतु
iv. प्रशासविक वियमि हेतु

4.6 पाठ्यचयाा मलयाांकि के प्रकार


िैसा की पहले ही बताया िा चक ु ा है वक पाठ्यचयाा का मलयाांकि पाठ्यचयाा विमााण एिां विकास से
सम्बांवित एक अहम् वबन्दु है विसके अर्ाि में पाठ्यचयाा के मलयाांकि हेतु कई विवियों का प्रयोग
वकया िाता है िो पाठ्यचयाा मलयाांकि के प्रकार के रूप में इस खांड में िवणात हैं । वबिा मलयाांकि के
पाठ्यचयाा उि उद्देश्यों की पवता करे गी अर्िा िहीं, विसके वलए उसका विमााण वकया गया है, के

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विषय में र्विष्यिाणी िहीं की िा सकती है ।पाठ्यचयाा मलयाांकि के ये प्रकार मलयाांकि की प्रवक्रया
को अत्यन्त व्यापक बिा देते हैं । मलयाांकि के विवर्न्ि प्रकार इस प्रकार हैं-

विमााणात्मक तर्ा योगात्मक मलयाांकि


विमााणात्मक मलयाांकि िैसा वक िाम से ही स्पष्ट है वक यह मलयाांकि पाठ्यचयाा के विमााण के दौराि
वकया िाता है। विमााणात्मक मलयाांकि में पाठ्यचयाा के मलयाांकि के वलए आक ां ड़ो का सांकलि
पाठ्यचयाा की योििा, विकास अर्िा विमााण के दौराि वकया िाता है विसके िारा विमााण के
दौराि ही पाठ्यचयाा का पिु रािलोकि करते हुए दोषों को दर वकया िा सके । इस प्रकार से
विमााणात्मक मलयाांकि पाठ्यचयाा के विमााण के चरण में ही पाठ्यचयाा में सांशोिि का अिसर देता
है । विमााणात्मक मलयाांकि के पररणाम पाठ्यचयाा विमााण के विि प्रयोििों में सहायक वसद् होते हैं
िे हैं, (1) पाठ्यचयाा के विवर्न्ि घटकों का चयि एिां (2) पाठ्यचयाा में शावमल दवषत तत्िों का
सश ां ोिि। विमााणात्मक मलयाांकि सिाप्रर्म यह विवश्चत करता है वक पाठ्यचयाा वक आिश्यकता
वकसे है, उसे पाठ्यचयाा की आिश्यकता वकस सीमा तक है और वििााररत पाठ्यचयाा वकस प्रकार
उि आिश्यकताओ ां की पवता करती है। वशक्षा में, विमााणात्मक मलयाांकि का उद्देश्य पाठ्यचयाा या
कायाक्रम को बेहतर बिािे के वलए सचिाएां इकठ्ठी करिी है। पाठ्यचयाा में सांशोिि के वलए
मलयाांकि दो स्तरों पर वकया िाता है पहला पाठ्यचयाा विकास के प्रवक्रया स्तर पर िहााँ प्रवक्रया का
मलयाांकि वकया िाता है तर्ा दसरा पाठ्यचयाा के वक्रयान्ियि स्तर पर िहााँ विद्यावर्ायों का
मलयाांकि वकया िाता है।
योगात्मक मलयाांकि के अांतगात आक ां ड़ो का सांकलि पाठ्यचयाा के वक्रयान्ियि के उपराांत वकया
िाता है। योगात्मक मलयाक ां ि तब वकया िाता है िब कोई ििीि पाठ्यचयाा को लाग वकया गया
हो। इसके वलए िए कायाक्रम को लाग करिे के सांपणा िषा के पश्चात् या कुछ महीिों के पश्चात् परीक्षा
के माध्यम से पाठ्यचयाा की प्रर्ािशीलता का मलयाांकि वकया िाता है। योगात्मक मलयाांकि में
मलयाांकि से पिा यह विवश्चत कर लेिे की आिश्यकता होती है वक मलयाांकि के िारा वकि प्रश्नों का
उत्तर ज्ञात करिे का प्रयास वकया िा रहा है तर्ा मलयाांकि िारा प्राप्त पररणामों से क्या विणाय वलए
िाएगें। इसमे यह ज्ञात करिे का प्रयास वकया िाता है वक विद्यावर्ायों िे पाठ्यचयाा के उद्देश्यों को
प्राप्त वकया है अर्िा पाठ्यचयाा के िारा िाांवछत उद्देश्यों की प्रावप्त हुयी है अर्िा िहीं। इि पररणामों
का वििाारण औपचाररक मलयाांकि िैसे परीक्षणों और परीक्षाओ ां में प्राप्त अक ां ो के आिार पर वकया
िा सकता है।यह इसका र्ी मलयाक ां ि करता है वक क्या ििाचार प्रर्ािी र्ा, क्या पाठ्यचयाा को परा
करिे के वलए पयााप्त समय वदया गया, क्या प्राप्त पररणामों में कुछ ऐसे र्ी पररणाम र्े िो अप्रत्यावशत
र्े?
विमााणात्मक और योगात्मक मलयाांकि को रोबटा स्टेक्स के इस कर्ि से समझा िा सकता है वक
“When the cook tastes the soup, that’s formative eva।uation;When the guests
taste the soup, that’s summative eva।uation” अर्ाात् िब कुक यावि र्ोिि पकािे िाला
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सप चखता है तो यह विमााणात्मक मलयाांकि होगा, िब मेहमाि सप चखेंगे तो यह योगात्मक
मलयाांकि होगा।

विकष सांदवर्ात तर्ा मािक सांदवर्ात मलयाांकि


विकष सांदवर्ात परीक्षण के िारा र्ी पाठ्यचयाा का मलयाांकि करते हैं। इस प्रकार के मलयाांकि में
सिाप्रर्म पाठ्यचयाा के सर्ी उद्देश्यों की सची तैयार की िाती है इस सची में सर्ी उद्देश्य
व्यिहारात्मक रूप में वलखे गए होते हैं सार् ही सार् कसौवटयों के परीक्षण के वलए पररवस्र्वतयों का
र्ी वििाारण वकया िाता है । इसके सार् ही मलयाांकिकताा इसका वििाारण र्ी करता है वक वकस
सीमा तक उद्देश्यों की प्रावप्त पर पाठ्यचयाा को उपयक्त
ु मािा िाएगा। इसके बाद विद्यावर्ायों का
परीक्षण वकया िाता है और यह ज्ञात वकया िाता है वक पाठ्यचयाा के िारा वकस सीमा तक उद्देश्यों
को प्राप्त वकया गया है अगर वििााररत सीमा तक उद्देश्यों की प्रावप्त हो िाती है तो पाठ्यचयाा को
उपयक्त
ु माि वलया िाता है।
मािक सांदवर्ात परीक्षण में वकसी मािक से तल ु िा करते हुए पाठ्यचयाा की उपयक्त
ु ता का मलयाांकि
वकया िाता है। वकसी अन्य पाठ्यचयाा को मािक मािते हुए उसके सापेक्ष में ियी पाठ्यचयाा का
मलयाांकि वकया िाता है। इस प्रकार के पाठ्यचयाा मलयाांकि में पाठ्यचयाा के दो सेट होते हैं और
विसमें एक का मािकीकरण पहले वकया िा चक ु ा होता है। मािकीकृ त पाठ्यचयाा के सापेक्ष में
ििीि पाठ्यचयाा का मलयाांकि उससे सहसम्बवन्ित करते हुए वकया िाता है।
पिा तर्ा पश्च परीक्षण
पाठ्यचयाा के मलयाांकि के वलए पिा तर्ा पश्च परीक्षण सामान्यतया सिााविक प्रयोग में लायी िाती
है. इस मलयाक ां ि विवि में पाठ्यचयाा के मलयाक
ां ि हेतु पाठ्यचयाा समाप्त होिे के पश्चात सिोपरातां में
विद्यावर्ायों के व्यिहार पररिताि के आकलि हेतु वकया िाता है। िैसा वक िाम से ही स्पष्ट है वक इस
परीक्षण में दो बार परीक्षा ली िाती है एक पहले और दसरी बाद में। दो बार के व्यिहार के आकलि
हेतु परीक्षणों के दो सेट पहले ही तैयार कर वलए िाते हैं। वकसी पाठ्यचयाा को पढ़ािे से पिा ही एक
सेट का प्रशासि विद्यावर्ायों पर करके विवशष्ट क्षेि में उिके ज्ञाि का मलयाांकि कर वलया िाता है
तत्पश्चात विद्यावर्ायों को वििााररत पाठ्यचयाा को पढाया िाता है। उसके बाद विद्यावर्ायों पर दसरे
सेट का प्रशासि कर व्यिहार एिां ज्ञाि में आए पररिताि का आकलि वकया िाता है । विद्यावर्ायों के
ज्ञाि में आए सकारात्मक अतां र को पाठ्यचयाा का पररणाम मािा िाता है सार् ही यह र्ी देखा
िाता है की विि उद्देश्यों की प्रावप्त का लक्ष्य रखा गया र्ा िे उद्देश्य प्राप्त हुए हैं की िहीं। यवद
व्यिहार में सकारात्मक पररिताि आया है और उद्देश्यों की प्रावप्त विवश्चत सीमा तक हो गयी है तो
पाठ्यचयाा को प्रर्ािशाली माि वलया िाता है।

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आरे ख 11.2
पिा तर्ा पश्च परीक्षण

फॉमा A

वशक्षण के उद्देश्यों का वििाारण पाठ्यचयाा का विमााण

फॉमा B

फॉमा A पाठ्यचयाा का फॉमा B


पिा परीक्षण वक्रयान्ियि पश्च परीक्षण

रे खावचि 11.2 के माध्यम से यह स्पष्ट रूप से समझा िा सकता है वक वकस प्रकार पिा और पश्च
परीक्षण विवि से पाठ्यचयाा का मलयाांकि वकया िाता है। इस प्रकार के मलयाांकि में शैवक्षक उद्देश्यों
के वििाारण के पश्चात विशेषज्ञों के िारा पाठ्यचयाा का विमााण वकया िाता है और इसके सार् ही
परीक्षण के वलए दो सेट तैयार कर वलए िाते हैं विसमें से एक का प्रशासि पाठ्यचयाा के प्रशासि के
पिा करके छािों के ज्ञाि का मलयाांकि उस विवश्चत क्षेि में कर वलया िाता है। तदप् श्चात दसरे सेट का
प्रशासि पाठ्यचयाा को पढ़ािे के पश्चात वकया िाता है और अक ां ों के आिार पर पाठ्यचयाा की
प्रर्ािशीलता का मलयाांकि कर वलया िाता है।

अभ्यासप्रश्न
4. पाठ्यचयाा मलयाांकि के उद्देश्य कौि-कौि से हैं?
5. पाठ्यचयाा मलयाक ां ि के विवर्न्ि प्रकार बताएां l
6. विमााणात्मक मलयाांकि के पररणाम पाठ्यचयाा विमााण के वकि प्रयोििों में सहायक वसद् होते
हैं?
4.7 पाठ्यचयाा मलयाांकि की आिश्यकता
समाि की आिश्यकता के अिसु ार पाठ्यचयाा में पररिताि होता है । यवद अगर बहुत लम्बे समय
तक वकसी पाठ्यचयाा में पररिताि या सांशोिि ि वकया िाए तो पररितािशील यगु के वलए
पाठ्यचयाा परु ािी हो िाएगी और ििीि आिश्यकताओ ां की पवता करिे में समर्ा और प्रर्ािी वसद्

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िहीं होगी। समय के सार् ििीि ज्ञाि अर्िा तथ्यों का पाठ्यचयाा में समािेश वकया िािा अवििाया
है। अतएि समय-समय पर पाठ्यचयाा का मलयाांकि करिा आिश्यक है तावक इसे समय की माांग के
वहसाब से प्रर्ािी बिाया िा सके । इस प्रकार पाठ्यचयाा मलयाक
ां ि पाठ्यचयाा विमााण/विकास का
एक अवर्न्ि अगां है। पाठ्यचयाा मलयाांकि की आिश्यकता को विम्ि वबन्दओ ु ां के माध्यम से समझा
िा सकता है।
ििीि पाठ्यचयाा के विमााण हेतु: वकसी र्ी ियी पाठ्यचयाा के विमााण हेतु पाठ्यचयाा मलयाांकि
आिश्यक है । िास्ति में समाि को उपयक्त ु वदशा पर ले िािे का बोझ वशक्षा के ऊपर ही है। वकसी
र्ी ियी पाठ्यचयाा को वबिा मलयाांवकत वकए विद्यालयों में लागु िहीं वकया िा सकता है। पाठ्यचयाा
के सन्दर्ा में यह देखा िािा आिश्यक है वक िह वशक्षा से िड़ु े लक्ष्यों और उद्देश्यों की पवता कर रही
है अर्िा िहीं। अतः ििीि पाठ्यचयाा के विमााण के सार् छािों पर उसके वक्रयान्ियि से पहले
पाठ्यचयाा का मलयाांकि आिश्यक होता है
पाठ्यचयाा में सांशोिि हेत:ु िो ज्ञाि आि ििीि है समय के सार् कल परु ािा हो िाएगा और उसके
पश्चात् िह अपचवलत हो िाएगा। ऐसी विवष्क्रय सामग्री को पाठ्यचयाा से हटािा अवििाया हो िाता
है। पाठ्यचयाा के मलयाांकि के िारा इि सामवग्रयों को पाठ्यचयाा से हटाया िा सकता है।
अप्रचवलत एिां विवष्क्रय सामवग्रयों को हटािे हेत:ु अप्रचवलत और विवष्क्रय सामवग्रयों को हटािे के
सार् सामवयक तथ्यों को पाठ्यचयाा में िोड़ा िािा र्ी आिश्यक है तावक पाठ्यचयाा व्यािहाररक
एिां उपयक्त
ु बिी रहे । इस हेतु ििीि ज्ञाि, तथ्य. सामवग्रयों को पाठ्यचयाा में शावमल वकया िाता है
इि तथ्यों को सही रूप में पाठ्यचयाा में सवम्मवलत करिे के वलए पाठ्यचयाा का मलयाांकि आिश्यक
होता है।
पाठ्यचयाा की व्यिहाररकता एिां प्रर्ािशीलता ज्ञात करिे हेत:ु इसी प्रकार कोई पाठ्यचयाा
सैद्ावन्तक रूप से अच्छी हो सकती है परन्तु आिश्यक िहीं वक िह व्यिहाररक रूप से प्रयक्त ु की
ही िा सके । उसकी विष्पवत में कई समस्याएां हो सकती है। उदाहरणस्िरुप- ितामाि युग के वलए
कांप्यटर वशक्षा आिश्यक है और इसे पाठ्यचयाा में शावमल वकया िािा चावहए। परन्तु इसे हर िगह
व्यिहाररक बिािा सर्ां ि िहीं है। र्ारत में कई गााँि ऐसे हैं िहााँ वबिली की सवु ििा उपलब्ि िहीं है।
ऐसे स्र्ािों के विद्यालयों में कांप्यटर की वशक्षा देिा सांर्ि िहीं है और यवद दी र्ी िाती है तो छािों
के वलए उतिी व्यिहाररक िहीं है वितिा कृ वष या कोई अन्य विषय होगा। ऐसे में पाठ्यचयाा
मलयाांकि के िारा ऐसे विषयों में पररशोिि वकया िा सकता है और पाठ्यचयाा तर्ा वशक्षा की
प्रर्ािशीलता को बढाया िा सकता है।
वशक्षा के उत्पाद के सम्बन्ि में िािकारी हेत:ु वशक्षा माि विषय की िािकारी देिे से सम्बांवित ि
होकर मिष्ु य को सही रूप में ससां ािि बिािे से र्ी सम्बांवित है। पाठ्यचयाा के िारा व्यवक्त की
कुशलता में िृवद् हो रही है या िहीं और िह समाि और देश के वलए वकतिा उपयोगी वसद् होगा

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यह आकलि करिा र्ी आिश्यक है। इसके वलए वििेश और उसके पश्चात उत्पादि का विश्लेषण
वकया िािा चावहए। पाठ्यचयाा मलयाांकि के िारा इसे ज्ञात वकया िा सकता है।
4.8 पाठ्यचयाा मलयाांकि का महत्ि
पाठ्यचयाा का मलयाांकि उतिा ही महत्िपणा है वितिी महत्िपणा पाठ्यचयाा स्ियां है। पाठ्यचयाा
मलयाक ां ि का सबसे बड़ा महत्ि यह है वक अविगम में सिु ार के सार्-सार् वशक्षण की गणु ित्ता में
सिु ार हेतु यह सबसे महत्िपणा उपकरण है। वबिा मलयाांकि के पाठ्यचयाा को उपयक्तु िहीं मािा िा
सकता है। पाठ्यचयाा मलयाक ां ि के महत्ि विम्िवलवखत हैं-
वकसी र्ी स्तर पर ियी पाठ्यचयाा के विकास हेतु परु ािी पाठ्यचयाा का मलयाांकि करिा आिश्यक
है वक विद्यमाि पाठ्यचयाा में कहााँ कमी है तर्ा वकि सांशोििों के पश्चात् पाठ्यचयाा ियी
आिश्यकताओ ां को सतां ष्टु करिे के अिरू ु प हो िाएगी। ियी पाठ्यचयाा के विकास पर विणाय के
वलए चल रही पाठ्यचयाा का मलयाांकि करिा आिश्यक हो िाता है।
पाठ्यचयाा मलयाांकि के िारा िीवत विमााताओ,ां प्रशासकों और समाि के अन्य सदस्यों को सचिा
वमल िाती है वक विवमात पाठ्यचयाा आिश्यताओ ां की पवता में सक्षम है वक िहीं। इसके सार् ही
इसके िारा वशक्षकों, पाठ्यचयाा विशेषज्ञों, विद्यालय प्रशासकों और उि सर्ी को िो पाठ्यचयाा
विकास में सवम्मवलत होते हैं उन्हें र्ी पाठ्यचयाा के सम्बन्ि में िािकारी वमल िाती है।यह
पाठ्यचयाा के मिबत और कमिोर पक्षों के सम्बन्ि में पृष्ठपोषण प्रदाि करता है वक पाठ्यचयाा
मािकों के अिरू
ु प है अर्िा िहीं।
पाठ्यचयाा समय के सार् परु ािी होिे लगती है तर्ा समय के सार् उसमें िवणात तथ्य तर्ा विचार
अव्यिहाररक हो िाते हैं विन्हें हटा कर िए तथ्यों और को सवम्मवलत करिा आिश्यक हो िाता है
विससे पाठ्यचयाा व्यिहाररक और उपयोगी बिी रहे। यवद परु ािे तथ्य या ज्ञाि व्यिहाररक और
उपयोगी हों तब र्ी पाठ्यचयाा में समय के सार् आए पररितािों से सम्बांवित ज्ञाि को िोड़ा िािा
िरुरी होता है तावक पाठ्यचयाा ितामाि की माांग को परी कर सके ।
पाठ्यचयाा का विमााण विवर्न्ि उद्देश्यों के आिार वकया िाता है। उि उद्देश्यों की प्रावप्त पाठ्यचयाा
का लक्ष्य होता है। अतः यह देखिा अत्यन्त िरुरी है वक विि उद्देश्यों की प्रावप्त के वलए पाठ्यचयाा
का विमााण वकया गया है क्या िे उद्देश्य पणा हो रहे हैं।पाठ्यचयाा एक विशेष समह के वलए र्ी विवमात
की िाती है तो मलयाांकि के िारा यह विवश्चत वकया िाता है की उि विशेष समहों की आिश्यकता
को पाठ्यचयाा परी कर रही है या िहीं।
पाठ्यचयाा माि सचिा देिे या िािकारी देिे से सम्बांवित िहीं है। मलयाांकि के िारा यह स्पष्ट हो
िाता है की पाठ्यचयाा विद्यावर्ायों को ज्ञाि देिे के सार्-सार् उिमे गहरी समझ का विकास करिे में
र्ी सक्षम है।

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4.9 पाठयचयाा मलयाांकि के चरण
पाठयचयाा मलयाांकि एक क्रवमक प्रवक्रया है विसके विवर्न्ि चरणों से गिु रते हुए मलयाांकि काया
वकया िाता है। इस प्रवक्रया के विवर्न्ि चरणों को चार र्ाग में विर्ावित वकया िा सकता है, िो
आरे ख 11.3 के माध्यम से समझा िा सकता है।

आरे ख: 11.3
पाठ्यचयाा मलयाांकि के चरण
मलयाांकि हेतु पाठ्यचयाा के पक्षों का वििाारण

मलयाांकि हेतु आांकड़ो का सांकलि

प्राप्त सचिाओ ां का विश्ले षण

प्राप्त सचिाओ ां का वििरण देिा

मलयाांकि हेतु पाठ्यचयाा के पक्षों का वििाारण:मलयाक ां िकताा सिाप्रर्म यह वििााररत करता है


वकपाठयचयाा के वकि पक्षों का मलयाांकि वकया िािा है। इस हेतु िह सिाप्रर्म मलयाांकि वक्रया के
उद्देशों को स्पष्ट रूप से पररर्ावषत करता है।
मलयाांकि हेतु आक ां ड़ो का सक ां लि: मलयाक
ां ि हेतु पाठ्यचयाा के पक्षों के वििाारण के पश्चात्
मलयाांकिकताा आक ां ड़ो का सांग्रहण करता है। इस हेतु िह पहले उि सचिाओ ां को वचवित करता है
वििका सांग्रहण वकया िािा है सार् ही सचिाओ ां के सांग्रहण हेतु विि उपकरणों का प्रयोग वकया
िािे िाला है उिका र्ी चयि वकया िाता है। उपकरणों के रूप में साक्षात्कार, परीक्षण, प्रश्नािली,
अिसु वचयों इत्यावद का प्रयोग वकया िाता है। इस क्रम में उस ििसांख्या को वचवन्हत तर्ा प्रवतदशों
को सचीबद् वकया िाता है वििपर उपकरणों का प्रशासि कर सचिाओ ां का सग्रां हण वकया िाता है।

प्राप्त सचिाओ ां का विश्ले षण: प्राप्त आक


ां ड़ों का तदप् श्चात विश्ले षण वकया िाता है और उन्हें तावलका
एिां ग्राफ के रूप में प्रस्ततु वकया िाता है। इसके हेतु उद्देश्यों, आक ां ड़ों एिां उपकरणों के आिार पर

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साांवख्यकी का प्रयोग वकया िाता है। साांवख्यकी का प्रयोग अक्सर दो या अविक पाठ्यचयाा के मध्य
सार्ाक अतां र या सहसांबांि िाििे के वलए वकया िाता है।
प्राप्त सचिाओ ां का वििरण देिा:आक ां ड़ों के विश्ले षण के पश्चात् प्राप्त सचिाओ ां का वििरण वदया
िाता है। वििरणों का लेखि प्राप्त विष्कषों पर आिाररत होता है। सचिाओ ां के विश्ले षण से कुछ
विष्कषा प्राप्त होते हैं। उन्हीं विष्कषों का लेखि इस चरण में वकया िाता है । विष्कषों के आिार पर
पाठ्यचयाा की प्रर्ािशीलता का मापि वकया िाता है। विि उद्देश्यों की प्रावप्त िहीं हुयी होती है
उिके वलए पाठ्यचयाा के कुछ पहलओ ां पर पिु विाचार करिे हेतु सस्ां तवु तयाां की िाती हैं।
4.10 मलयाांकि प्रवक्रया की तकिीकें
पाठ्यचयाा के मलयाांकि हेतु कई तकिीकों को प्रयोग में लाया िाता है। सर्ी तकिीकों का यहााँ पर
िणाि करिा मवु श्कल है अतः उिमें से कुछ मख्ु य तकिीकों का िणाि यहााँ पर वकया िाएगा।
i. प्रश्नािली: प्रश्नािवलयों का प्रयोग पाठ्यचयाा के सम्बन्ि में सचिाओ ां को प्राप्त करिे के
वलए वकया िाता है। प्रश्नािवलयों का प्रयोग पाठ्यचयाा से प्रत्यक्ष एिां परोक्ष दोिों रूपों से
िड़ु े stakeho।ders पर वकया िाता है विसमें छाि, अध्यापक, माता-वपता, प्रशासक एिां
पाठ्यचयाा विमााण से िड़ु े अन्य व्यवक्त आ िाते हैं। इन्हें पाठ्यचयाा से िड़ु े विवर्न्ि प्रश्न वदए
िाते हैं वििका उत्तर इन्हें देिा होता है।
ii. प्रेक्षण: यह पाठ्यचयाा के सम्पादि से सम्बवां ित है। प्रेक्षण तकिीक मलयाक ां िकताा को
मलयाांकि प्रवक्रया के हेतु सिााविक सम्बांवित पहल पर विशेष ध्याि देिे में मदद करता है।
यह विवि उस वस्र्वत में अविक िैि मािी िाती है िब इसमें व्यवक्तविष्ठता एिां िस्तवु िष्ठता
का उवचत समािेश होता है। प्रेक्षण के सार्-सार् साक्षात्कार एिां पृष्ठ-पोषण तर्ा इसके
सार् ही सार् अन्य वलवखत साक्ष्य प्रेक्षण से प्राप्त पररणामों वक सार्ाकता में िृवद् करते हैं।
iii. चेक वलस्ट: चेक वलस्ट को माि प्रयोग करके इसके िारा पणा िािकारी प्राप्त करिा कवठि
काया है अतः चेक वलस्ट को प्रश्नािली या साक्षात्कार के सार् एक परक या र्ाग के रूप में
प्रयोग करते हैं। यह उत्तरों की सांपणा सची होती है उत्तरदाता विसमें अपिे वहसाब से सबसे
उपयक्त ु उत्तरों को चिु ता है अर्ाात सही उत्तरों की सची में से कुछ उत्तरों को अपिे विचार
के आिार पर सही मिाता है और उन्हें सही के विशाि से चयवित कर लेता है।
मलयाांकिकताा को पाठ्यचयाा से सम्बांवित विवर्न्ि तथ्यों को सचीबद् कर उन्हें उत्तरदाता
को दे देिा चावहए एिां इसके िारा पाठ्यचयाा में वकि वबन्दओ ु ां में समस्याएाँ हैं; वकि पाठों
की आिश्यकता िहीं है, कौि से पाठ अप्रासांवगक हैं, कहााँ सांशोिि की आिश्यकता है
और कौि से िए पक्ष िोड़े िािे चावहए, की िािकारी ली िा सकती है।
iv. साक्षात्कार: साक्षात्कार, सचिाओ ां के सांग्रहण एिां मलयाांकि हेतु एक आिारर्त तकिीक
के रूप देखा िाता है। साक्षात्कार आिश्यकताओ ां और उद्देश्यों के आिार पर औपचाररक
एिां अिौपचाररक अर्िा सगां वठत अर्िा असगां वठत कै सा र्ी हो सकता है। इसके वलए
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पाठ्यचयाा से सम्बवन्ित विि सचिाओ ां की प्रावप्त साक्षात्कार के माध्यम से करिी है िह
उवचत प्रकार से पररर्ावषत एिां वलवखत होिा चावहए एिां प्रश्नों का प्रस्ततु ीकरण उवचत
प्रकार से होिा चावहए। अर्ाात साक्षात्कारकताा के िारा प्रश्न उवचत प्रकार से पछे िािे
चावहए और वकसी र्ी प्रकार की िलदबािी और पक्षपात िहीं करिा चावहए। मलयाांकि
हेतु पाठ्यचयाा के सम्बन्ि में वकसी विशेषज्ञ से उवचत प्रश् पछे िाएाँ और वफर उि उत्तरों के
आिार पर पाठ्यचयाा को मलयावां कत वकया िािा चावहए।
v. कायाशाला एिां समह पररचचाा: पाठ्यचयाा के मलयाांकि हेतु कायाशालाओ ां और समह
पररचचााओ ां का प्रयोग वकया है। इस तकिीक में विशेषज्ञों को पाठ्यचयाा पर अपिे विचार
व्यक्त करिे के वलए आमवां ित वकया िाता है और तदप् श्चात समह पररचचाा करायी िाती है
और वििााररत विकषों के आिार पर िो वक मलयाांकिकताा के िारा वििााररत की गयी होती
हैं, पर पाठ्यचयाा का मलयाक ां ि वकया िाता है।
पाठ्यचयाा मलयाांकि पाठ्यचयाा के विकास एिां उसके वक्रयान्ियि के वकए उपयोगी िािकारी प्राप्त
करिे की प्रवक्रया एिां माध्यम है। यवद इसे और स्पष्ट शब्दों में कहा िाए तो यह इसे इस र्ाांवत समझा
िा सकता है वक वकसी र्ी पाठ्यचयाा का विमााण कुछ विवश्चत उद्देश्यों की प्रावप्त हेतु वकया िाता है।
पाठ्यचयाा मलयाांकि के िारा यह ज्ञात वकया िाता है वक वििााररत पाठ्यचयाा के िारा वििााररत
उद्देश्यों की प्रावप्त हो रही है अर्िा िहीं और यवद हुयी है तो उद्देश्य वकस सीमा तक प्राप्त हुए हैं।
मलयाांकि के अर्ाि में पाठ्यचयाा वदशाहीि हो िाएगी और वदशाहीि पाठ्यचयाा विद्यावर्ायों को
कहााँ ले िाएगी इसकी कलपिा सहि ही की िा सकती है। विस प्रकार से गतां व्य का ज्ञाि होिे के
पश्चात् र्ी यवद चिु ा गया मागा सही िहीं हो तो गतां व्य तक िहीं िाया िा सकता ठीक उसी प्रकार
वशक्षण उद्देश्यों की िािकारी होिे पर र्ी यवद पाठ्यचयाा सही िहीं हो तो वििााररत उद्देश्यों तक कर्ी
िहीं पहुचां ा िा सकता है।

अभ्यासप्रश्न
7. पाठ्यचयाा मलयाांकि की आिश्यकता क्यों पड़ती है?
8. पाठ्यचयाा से अप्रचवलत एिां विवष्क्रय सामवग्रयों को हटाया िािा क्यों आिश्यक है?
9. पाठ्यचयाा मलयाांकि के िल ियी पाठ्यचयाा हेतु ही आिश्यक है।(सत्य/असत्य)
10. चेकवलस्ट का प्रयोग कर पाठ्यचयाा को पणा रूप से मलयावां कत वकया िा सकता है।
(सत्य/असत्य)
11. साक्षात्कार विवि में वकसी विशेषज्ञ के साक्षात्कार के िारा पाठ्यचयाा की प्रर्ािशीलता
मलयाांवकत की िाती है।(सत्य/असत्य)
12. पाठ्यचयाा मलयाांकि के विवर्न्ि चरण कौि-कौि से हैं?
13. पाठ्यचयाा मलयाक ां ि हेतु वकि-वकि तकिीकों को प्रयोग में लाया िाता है?

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4.11 साराांश

पाठ्यचयाा मलयाांकि: पाठ्यचयाा मलयाक


ां ि वकसी कायाक्रम, उत्पाद, योििा, प्रवक्रया उद्देश्य या पाठ्यचयाा की गणु ित्ता, प्रर्ािशीलता या मलयों
का वििाारण है

पाठ्यचयाा विमााण के चरण

आिश्यकता विश्ले षण चरण अवर्कलप चरण वक्रयान्ियि चरण मलयाांकि चरण

पाठ्यचयाा मलयाांकिके प्रकार

विमााणात्मक तर्ा योगात्मक मलयाांकि: विकष सांदवर्ात तर्ा मािक सांदवर्ात मलयाांकि: पिा तर्ा पश्च परीक्षण: इस प्रकार के
पाठ्यचयाा के विमााण के चरण में ही पाठ्यचयाा विकष सांदवर्ात मलयाांकि में यह ज्ञात वकया मलयाक ां ि में पाठ्यचयाा को पढ़ािे से पिा एक
की प्रर्ािशीलता िाििे के वलए वकया िािे िाता है वक पाठ्यचयाा के िारा वकस सीमा तक सेट का प्रशासि कर विद्यावर्ायों का विवशष्ट
िाला मलयाांकि विमााणात्मक मलयाांकि कहा उद्देश्यों को प्राप्त वकया गया है अगर वििााररत क्षेि में ज्ञाि का मलयाांकि कर वलया िाता है
िाता है।पाठ्यचयाा के वक्रयान्ियि के पश्चात् सीमा तक उद्देश्यों की प्रावप्त हो िाती है तो तत्पश्चात वििााररत पाठ्यचयाा विद्यावर्ायों को
पाठ्यचयाा की प्रर्ािशीलता को िाििे के पाठ्यचयाा को उपयक्त ु माि वलया िाता हैl पढ़ािे के पश्चात् दसरे सेट का प्रशासि कर
वलए वकए िािे िाला मलयाांकि योगात्मक मािक सांदवर्ात परीक्षण में वकसी मािक से व्यिहार एिां ज्ञाि में आए पररिताि का
मलयाांकि कहा िाता है। तलु िा करते हुए पाठ्यचयाा की उपयक्त ु ता का आकलि वकया िाता है।
मलयाांकि वकया िाता है।

पाठ्यचयाा मलयाांकि की आिश्यकता


(i) पाठ्यचयाा के विमााण हेतु (ii) पुरािी पाठ्यचयाा में सांशोिि हेतु (iii) व्यवक्त के सम्बन्ि में विणाय लेिे हेतु (iv) प्रशासविक वियमि हेतु
पाठ्यचयाा मलयाांकि का महत्ि : पाठ्यचयाा मलयाांकि अविगम में सिु ार के सार्-सार् वशक्षण की गणु ित्ता में सुिार हेतु यह सबसे महत्िपणा उपकरण है
पाठ्यचयाा मलयाांकि के चरण
पाठ्यचयाा मलयाांकि प्रवक्रया की तकिीकें
पाठ्यचयााके पक्षों का वििाारण
प्रश्नािली
आक ां ड़ो का सांकलि प्रेक्षण
सचिाओ ां का विश्ले षण
चेकवलस्ट
सचिाओ ां का वििरण
साक्षात्कार
कायाशाला एिां समह पररचचाा

उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 60
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4.12 शब्दािली
1. पाठ्यचयाा:पाठ्यचयाा वियोवित एिां विदेवशत वशक्षण अिर्ु ि है िो विद्यावर्ायों में
विद्यालय के तत्िाििाि में व्यिवस्र्त पिु विामााण के माध्यम से ज्ञाि एिां अिर्ु िों के िारा
विद्यार्ी का अकादवमक, व्यवक्तगत एिां सामाविक क्षमता में सतत एिां िाांवछत विकास
करती है।
2. मलयाांकि: मलयाांकि शैवक्षक प्रवक्रया से सम्बांवित है िो यह सवु िवश्चत करता है की वकि-
वकि वशक्षण उद्देश्यों की प्रावप्त वकस सीमा तक हुयी है
3. पाठ्यचयाा मलयाांकि:पाठ्यचयाा मलयाांकि पाठ्यचयाा से सम्बांवित दबु ाल एिां सबल पक्षों
के सार्-सार् कायाान्ियि में आई समस्याओ ां की पहचाि, पाठ्यचयाा विकास प्रवक्रया में
सिु ार, पाठ्यचयाा एिां आिवां टत वित्त की प्रर्ािकाररता का वििाारण है।
4. विमााणात्मक मलयाांकि:विमााणात्मक मलयाांकि मलयाांकि को कहते हैं विसमें पाठ्यचयाा के
मलयाांकि के वलए आांकड़ो का सांकलि पाठ्यचयाा की योििा, विकास अर्िा विमााण के
दौराि वकया िाता है विससे विमााण के दौराि ही पाठ्यचयाा का पिु रािलोकि करते हुए
दोषों को दर वकया िा सके । विमााणात्मक मलयाांकि पाठ्यचयाा के विमााण के चरण में ही
पाठ्यचयाा में सश ां ोिि का अिसर देता है।
5. योगात्मक मलयाांकि:योगात्मक मलयाांकि ििीि पाठ्यचयाा को लाग करिे के पश्चात् वकया
िाता है। इसके वलए िए कायाक्रम को लाग करिे के सांपणा िषा के पश्चात् या कुछ महीिों के
पश्चात् परीक्षा के माध्यम से पाठ्यचयाा की प्रर्ािशीलता का मलयाांकि वकया िाता है।
6. विकष सदां वर्ात मलयाांकि:विकष सांदवर्ात मलयाांकि में सिाप्रर्म पाठ्यचयाा के सर्ी उद्देश्यों
की सची तैयार की िाती है। इसके बाद विद्यावर्ायों का परीक्षण वकया िाता है और यह
ज्ञात वकया िाता है वक पाठ्यचयाा के िारा वकस सीमा तक उद्देश्यों को प्राप्त वकया गया है
अगर वििााररत सीमा तक उद्देश्यों की प्रावप्त हो िाती है तो पाठ्यचयाा को उपयक्त ु माि
वलया िाता है।
7. मािक सांदवर्ात मलयाांकि:मािक सांदवर्ात परीक्षण में वकसी मािक से तल ु िा करते हुए
पाठ्यचयाा की उपयक्त ु ता का मलयाक ां ि वकया िाता है । ऐसी पाठ्यचयाा मलयाकि के िारा
विसकी उपयक्त ु ता िााँच ली गयी हो, को मािक मािते हुए उसके सापेक्ष में ियी पाठ्यचयाा
का मलयाांकि वकया िाता है।

4.13अभ्यास प्रश्नोंके उत्तर


1. फ्रोबेल
2. NCERT

उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 61
पाठ्यक्रम विकास Curriculum Development MAED-612 Semester IV
3. पाठ्यचयाा मलयाांकि के अतां गात विि दो महत्िपणा तथ्यों का अध्ययि वकया िाता है िे हैं,
(i) विि वििााररत उद्देश्यों की प्रावप्त हेतु विवश्चत पाठ अर्िा पाठ्यचयाा का अध्यापि वकया
गया है उिमें से वकि-वकि उद्देश्यों की प्रावप्त हुयी है तर्ा कौि से उद्देश्य अप्राप्य रह गए हैं,
(ii) कक्षा में वशक्षण के दौराि वशक्षण के प्रवत छािों के अिर्ु ि वकस प्रकार के रहे हैं।
4. पाठ्यचयाा मलयाांकि के विवर्न्ि उद्देश्य विम्िवलवखत हैं-
i. पाठ्यचयाा के विमााण हेतु
ii. परु ािी पाठ्यचयाा में सांशोिि हेतु
iii. व्यवक्त के सम्बन्ि में विणाय लेिे हेतु
iv. प्रशासविक वियमि हेतु
5. पाठ्यचयाा मलयाांकि के विवर्न्ि प्रकार इस प्रकार हैं
i. विमााणात्मक एिां योगात्मक मलयाक ां ि
ii. विकष सांदवर्ात एिां मािक सांदवर्ात मलयाांकि
iii. पिा तर्ा पश्च मलयाांकि
6. विमााणात्मक मलयाांकि के िारा पाठ्यचयाा के विवर्न्ि घटकों का चयि एिां पाठ्यचयाा में
शावमल दवषत तत्िों का सांशोिि वकया िाता है।
7. पाठ्यचयाा की प्रर्ािशीलता बिाए रखिे के वलए पाठ्यचयाा मलयाक ां ि आिश्यक है।
8. पाठ्यचयाा को व्यािहाररक एिां उपयक्त ु बिाए रखिे के वलए पाठ्यचयाा से अप्रचवलत एिां
विवष्क्रय सामवग्रयों को हटाया िािा आिश्यक है।
9. असत्य
10. असत्य
11. सत्य
12. पाठ्यचयाा मलयाांकि के मख्ु य चरण इस प्रकार हैं
i. मलयाांकि हेतु पाठ्यचयाा के पक्षों का वििाारण
ii. मलयाक ां ि हेतु आकां ड़ो का सांकलि
iii. प्राप्त सचिाओ ां का विश्ले षण
iv. प्राप्त सचिाओ ां का वििरण देिा।
13. पाठ्यचयाा मलयाांकि हेतु प्रश्नािली, प्रेक्षण, चेकवलस्ट, साक्षात्कार, कायाशाला एिां समह
पररचचाा िैसी तकिीकों को प्रयोग में लाया िाता है ।

4.14 सन्दर्ा ग्रन्र् सची


1. Bharvad, J. A., (2010). Curricu।um Eva।uation. Internationa। Research
Journa। September, 1 (1), 72-74.

उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 62
पाठ्यक्रम विकास Curriculum Development MAED-612 Semester IV
2. Cronbach,. (1963). Course Improvement through Eva।uation. San
Fransisco: Jossey , Bars. (Teachers Co।।ege Record, 64, 672-683)
3. Do।।, R.C. (1986). Curricu।um Improvement: Decision Making and
Process. Boston: A।।yn and Bacon.
4. ayton, D. (1973). Science for Peop।e. New York: Science History
Pub।ications.
5. Ornstein, A. and Hunkins, F. (1998). Curricu।um: Foundations,
Princip।e and Issues. Boston, MA: A।।yn & Bacon.
6. Sanders, J.R. (1990). Curricu।um Eva।uation. In: Wa।berg, H. J. &
Haerte।, G.D. (eds.). The Internationa। Encyc।opaedia of Education
Eva।uation. New York: Pergamon Press.
7. Sowe।।, E. (2000). Curricu।um: An Integrative Introduction. NJ:
Prentice-Ha।।.
8. Stake, R.E. (1967). The Countenance of Educationa। Eva।uation
Teachers Co।।ege Record.
9. Stuff।ebeam, ।.D. (1971). Educationa। Eva।uation & Decision Making.
Itasea: I।।, Peacock.
10. Whee।er, D.K. (1967). Curricu।um Process. ।ondon: U.K. University of
।ondon Press ।td.
11. Wi।es, J. & Bondi, J. (1989). Curricu।um Deve।opment. A Guide to
Practice (3rd Edition). Co।umbus OH: Merri। Pub।ishing Company.
12. Worthen, B.R. (1990). Program Eva।uation. In: Wa।berg, H. J. &
Haerte।, G.D. (eds.). The Internationa। Encyc।opaedia of Education
Eva।uation. New York: Pergamon Press.

4.15 विबांिात्मक प्रश्न


1. पाठ्यचयाा मलयाांकि क्या है? पाठ्यचयाा मलयाांकि क्यों पड़ती है? पाठ्यचयाा के मलयाांकि
के विवर्न्ि चरणों का उललेख करें ।
2. पाठ्यचयाा मलयाांकि क्यों महत्िपणा है? पाठ्यचयाा मलयाांकि की विवर्न्ि तकिीकें कौि-
कौि सी हैं? सवां क्षप्त व्याख्या करें ।
3. एक ियी पाठ्यचयाा का विकास वकि-वकि चरणों से गिु रते हुए होता है? ियी पाठ्यचयाा
का मलयाक ां ि होिा क्यों आिश्यक है?

उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 63
पाठ्यक्रम विकास Curriculum Development MAED-612 Semester IV
इकाई 5- पाठ्यक्रम मलयाांकि के मॉडल,पाठ्यक्रम मलयाक
ां ि में प्रिृवत्तयाां
5.1 प्रस्ताििा
5.2 उद्देश्य
5.3 पाठ्यक्रम मलयाांकि
5.4 पाठ्यक्रममलयाक ां ि मॉडल
5.5 स्टफल बीम मॉडल
5.6 स्टेक मॉडल
5.7 आइििर का सक्ष्म विरूपण मॉडल
5.8 टायलर का उद्देश्य-कें वित मॉडल
5.9 साराश ां
5.10 अभ्यासप्रश्नों के उत्तर
5.11 सांदर्ा-ग्रन्र्
5.12 विबन्िात्मक प्रश्न
5.1 प्रस्ताििा
हमक्यावििााररतयोििा के रूप मेंपाठ्यक्रम िे अपिेलक्ष्यों और उद्देश्यों कोहावसल वकया हैपरध्याि
कें वित करें ग|े दसरे शब्दों में,वित्तऔरमािि सांसािि के मामलेमसें र्ीप्रयाससार्ाककर वदये गये हैंया
िहीं यह वििााररतकरिे के वलए पाठ्यक्रम मलयाांकिवकया िािा है| विवर्न्ि मलयाांकिकताा
पाठ्यक्रमको वकस हद तकसफलतापिाकलाग वकया गया हैिाििा चाहते हैं|एकपाठ्यक्रमके
मलयाांकिसेएकि िािकारीविणाय करिे के वलएआिार रूपों के बारे
मेंकैसेसफलतापिाककायाक्रमअपिे इवच्छतपररणाम औरकायाक्रममलयहावसल वकये हैं या के लायक
है|इस इकाई में हम पाठ्यक्रम मलयाांकि, एिां पाठ्यक्रम मलयाांकिके विवर्न्ि मॉडलोंकी चचाा करें गे ।
5.2 उद्देश्य
इस इकाई का अध्ययि करिे के पश्चात् आप -
1. पाठ्यक्रम मलयाांकि की पररर्ाषा तर्ा उसकी सांकलपिा समझ सकें गे।
2. पाठ्यक्रम मलयाांकिकी विविि पररर्ाषाएां बता सकें गे।
3. पाठ्यक्रम मलयाांकिके विवर्न्ि मॉडलोंकोबता सकें गे।
4. पाठ्यक्रम मलयाांकिके विवर्न्ि मॉडलों की विशेषताओ ां को बता सकें गे।
5. पाठ्यक्रम मलयाक ां ि अध्यापक और विद्यावर्ायों के वलए वकस प्रकार महत्िपणा है यह समझ
सकें गे।
उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 64
पाठ्यक्रम विकास Curriculum Development MAED-612 Semester IV
5.3 पाठ्यक्रम मलयाांकि
मलयाक ां िक्याहै?मलयाक ां िकायाक्रमको अपिािे,अस्िीकार,यासश ां ोवितकरिे के लायक के उद्देश्य
सेआक ां ड़ोंको एकवित करिे की प्रवक्रयाहै|कायाक्रमविवर्न्िपक्षों के प्रश्नोंऔरवचांताओ ां के ििाबका
मलयाांकि हैं| समाि िाििा चाहता है वककायाावन्ितपाठ्यक्रमिे अपिेलक्ष्य और उद्देश्य कोहावसल
वकया है|वशक्षक िाििा चाहते हैं वक क्यािो िेकक्षामेंकर रहे हैं,प्रर्ािीहै ?और
विकासकताायावियोिक िाििा चाहते हैं वककै से पाठ्यक्रमउत्पाद को बेहतर बिाया
िाये|मलयाक ां िकायाक्रमोंऔरप्रवक्रयाओकां ामहत्िया मलयवििाारण की प्रवक्रयाहै|
मेक िील (1977) के अिसु ार “पाठ्यक्रममलयाांकिदोप्रश्नोंपरप्रकाश डालिे का प्रयास है-सीखिे के
अिसर,कायाक्रमों,पाठ्यक्रमोंऔरगवतविवियोंकी विकवसतऔरसांगवठतयोििाकरिा िास्ति
मेंिाांवछत पररणाम प्राप्त हों|कै सेपाठ्यक्रममें प्रस्तावित रूप में सबसे अच्छासिु ार वकया िासकता
है?”
िार्ेि औरसैंडसा िे पाठ्यक्रममलयाांकिको पररर्ावषत-“एककायाक्रम,
उत्पाद,पररयोििा,प्रवक्रया,उद्देश्य,यापाठ्यक्रमकीगणु ित्ता,प्रर्ािशीलता,यामलय का औपचाररक
अििारणा या विरूपण से है|”
ऑवलिा(1988) िे पाठ्यक्रममलयाांकि को िािकारीप्रदाि करिेकीप्रवक्रया के रूप में, िणािकरिे
और प्राप्त करिे के वलए विणायि विकलपको पहचाििे के रूप में पररर्ावषत वकया|
मलयाांकिबातों का मलयवििााररत करिे के वलएएकअिश ु ावसतपड़ताल है|बातों में'कायाक्रम,प्रवक्रयाएां
यािस्तएु श
ां ावमल हो सकते हैं| सामान्यतयाअिसु ांिािऔरमलयाांकिमें समािडाटा सांग्रहउपकरणों का
इस्तेमालवकया िा सकता है, र्ले ही िे अलग हैं|तीिआयामहैं,विस परिेअलग हो सकते हैं-
1सबसे पहले,मलयाांकिको अपिेउद्देश्यकी ज्ञािकीपीढ़ी के रूप मेंिरूरत िहीं
है|अिसु ांिािबवु ियादीहो िाता है, िबवक मलयाांकिलाग वकया िाता है|
2 दसरा, मलयाांकिममु वकि हैविणाय यािीवतरूपके आिारबिािे के वलएउपयोग की िािे
िालीिािकारीका उत्पन्ि करती हो| मलयाक ां ितत्काल उपयोग की गयी िािकारीअविात करता
हैिबवक अिसु ांिािमें इसकी आिश्यकता िहीं है|
3 तीसरे , मलयाांकिबातोंका एकविणायहै| मलयाांकिमलय विणायपररणामहैिबवकअिुसांिािको
कुछिहींचावहएऔर िरूरत िहींहोती है

उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 65
पाठ्यक्रम विकास Curriculum Development MAED-612 Semester IV
5.4 पाठ्यक्रम मलयाांकि मॉडल
आपको कै सेपाठ्यक्रमके मलयाक ां ि के बारे में पता होिा चावहए?कईविशेषज्ञों िे विवर्न्ि मॉडलोंका
प्रस्ताि वदया हैवक कै सेऔरक्याएकपाठ्यक्रमके मलयाांकिमेंशावमल वकया िािा
चावहए|मॉडलउपयोगी होते हैंक्योंवकिे आपकोएक मलयाांकिके मापदडां ों कोपररर्ावषत करिे में
मददगार सावबत होते हैं|अिेकमलयाक ां िमॉडलों का विमााण वकया गया है लेवकि उिमे से कुछ प्रमख ु
मॉडलों का िणाि इस इकाई में वकया िा रहा है-
5.5 स्टफलबीम मॉडल
इसे Context, Input, Process, Product Model (CIPP Model) र्ी कहते हैं|डैविएल
एल.स्टफलबीम,विन्होंिेमलयाांकि परफाई डेलटाकापाराष्रीयअध्ययि सवमवत (Phi Delta Kappa
National Study Committee)की अध्यक्षता की िे मलयाक ां िका एकव्यापक रूप से
उद्तृ मॉडलCIPP Model पेश वकया|Stufflebeamके मॉडलका एक प्रमख ु पहलविणाय
लेिेयाकायाक्रम कीशरुु आत के बारे मेंवकसी के मि बिािेके
कायापरके वन्ितहै|पाठ्यक्रममलयाकां िकतााओ ां को सही ढगां से वकयाऔरविणाय लेिे की
प्रवक्रयामेंसहायता के वलए मलयाांकि करिे के वलए –
पहले क्यामलयाांकि वकया िािाहैउि िािकाररयों को वििााररत करिो एकिहो गयी हैिणाि करिा
(उदाहरण के वलए प्रार्वमकग्रेडमेंबच्चोंकीिैज्ञाविकसोच कौशलको बढ़ािे मेंिए विज्ञािकायाक्रम
कोकै सेप्रर्ािी वकयागया है)
दसराचयविततकिीकऔरतरीकों का उपयोग करिािकारीप्राप्त करिे याएकि करिे के
वलएहै(उदाहरण के वलए वशक्षकों के साक्षात्कार,छािोंके टेस्ट स्कोरएकि करिा)
तीसरे इच्छुक समदु ाय के वलए सचिा (तावलकाओ,ां ग्राफ के रूपमें)प्रदाि करिे या उपलब्ि करािेके
वलएहै|िए पाठ्यक्रमकोबिाए रखिे, सांशोवित करिे याकायाक्रमको समाप्त करिेके वलएमलयाांकिके
विम्िवलवखतप्रकार 4तय करिे की सचिाप्राप्त की है-सदां र्ा (context),प्रदा (input),प्रवक्रया
(process)औरउत्पाद (product).
मलयाांकिका स्टफलबीम(Stufflebeam)मॉडलएकपाठ्यक्रमकायाक्रम के समग्र प्रर्ाि को
वििााररत करिे के वलएदोिोंरचिात्मक ( formative) और योगात्मक
(summative)मलयाांकिपरविर्ार करता है(देखें वचि सांख्या 1)मलयाांकिकायाावन्ितकायाक्रमके सर्ी
स्तरों परआिश्यक है|

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पाठ्यक्रम विकास Curriculum Development MAED-612 Semester IV

Context FORMATIVE
Input
Process
+
Product
SUMMATIVE
1 सांदर्ामलयाांकि (Context Evaluation)(क्याकरिे की आिश्यकता है औरवकस सांदर्ाम?ें )
यहउद्देश्योंके वलए एक औवचत्यअर्िा मल कारण प्रदाि करिे के प्रयोििके सार्मलयाांकिका
सबसे बवु ियादीप्रकारहै|मलयाांकिकताािातािरणको पररर्ावषत करता है विसमेंपाठ्यक्रमिो
एककक्षा,स्कलयाप्रवशक्षणविर्ागहो सकता हैको लाग करता है|इसके अलािासमीक्षा के
तहतसांगठिमेंकवमयााँऔरसमस्याएां हैंवििकी पहचाि की गयी है (िैसे माध्यवमक
विद्यालयोंमेंछािोंका एक बड़ाअिपु ात,िाांवछतस्तरपरपढ़िे में असमर्ा हैं,कांप्यटरों के
वलएछािोंकाअिपु ातबड़ा है,विज्ञाि वशक्षकों का एक बड़ाअिपु ात अग्रां ेिी मेंपढ़ािे के वलएकुशल
िहींहै)लक्ष्य और उद्देश्य सांदर्ाके मलयाांकि के आिारपरविवदाष्ट हो रहे हैं|दसरे शब्दों
में,मलयाकां िकताापष्ठृ र्वमवििााररत करता हैविसमें ििाचारोंको लाग वकया िा रहाहै|
2 प्रदा मलयाांकि(input Evaluation) (यहकै सेवकया िािा चावहए?)
मलयाांकिउद्देश्यवििमें सेपाठ्यक्रमके उद्देश्यों को प्राप्तकरिे के वलएसांसाििों का उपयोगकरिे के
वलएकै सेवििााररत करिेके वलएिािकारीप्रदाि करिा है|दर्ु ााग्य से,इिपटु मलयाक ां िके तरीके वशक्षा के
क्षेि मेंकमी कर रहे हैं|प्रचवलतप्रर्ाओमां ें पेशिे रसावहत्य सेअपील, विचार विमशासवमवत, सलाहकार
औरमागादशाकप्रायोवगकपररयोििाओकां ासेिायोिि शावमल है|
3 प्रवक्रया मलयाांकि(Process Evaluation) क्या यह वकया िा रहा है?)
क्या आिती प्रवतपवु ष्ट काप्राििािहै िबवकपाठ्यक्रमकायाावन्ित वकया िा रहाहै?
4 उत्पाद मलयाांकि (Product Evaluation) क्या यह सफल र्ा?)
पाठ्यक्रम को पणा करिे के वलए व्यिवस्र्त रूप से प्राप्त करिे हेतु आक
ां ड़े (data) कोवििााररत करिे
के वलएएकि वकया िाता हैउदाहरण के वलए वकस हद तकके छािों मेंविज्ञािकी वदशा कीऔर
उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 67
पाठ्यक्रम विकास Curriculum Development MAED-612 Semester IV
अविकसकारात्मक दृवष्टकोणविकवसत वकया है|)उत्पाद मलयाांकि में उद्देश्यों की उपलवब्िको मापिे
के डेटा की व्याख्याऔर,िए पाठ्यक्रमको सांशोवितकरिे िारी रखिेया समाप्तकरिेिािकारीके
सार्उपलब्ि करािेके वलएतय करिा शावमल है|उदाहरण के वलए उत्पाद मलयाक ां ि छािों में विज्ञाि
के क्षेि मेंअविक रुवच हो इसके वलए िए विज्ञािपाठ्यक्रमके पररचय के बाद और इस विषयके
प्रवतअविकसकारात्मक रहे बता सकता है|
अभ्यास प्रश्न
1. एल.स्टफलबीम,विन्होंिेमलयाांकि परPhi Delta Kappa National Study
Committeeकी अध्यक्षता की । (सत्य/असत्य)
2. इसे Context, ............., Process, .......... Model र्ी कहते हैं|
3. मलयाांकिकताापष्ठृ र्वमवििााररत करता हैविसमें .......... को लाग वकया िा रहाहै|

5.6 स्टेक मॉडल


रॉबटास्टेक िाराप्रस्तावितमॉडल में पाठ्यक्रममलयाक
ां िके तीि चरणोंका पता चलता है-
पिाितीचरण,लेि देि-चरण,और पररणाम चरण|पिाितीचरणमेंअिदु श े ि के वपछलेपररणामोंसे
सांबांवितमौिदावस्र्वतयाांशावमलहो सकती हैं|लेिदेि-चरण वशक्षा कीप्रवक्रयाके गठिसे
,िबवकपररणामचरणकायाक्रमके प्रर्ािसे सांबांवित है| स्टेकदो बातों पर िोर देता है-वििरण
औरविणाय पर |
वििरण क्याप्रयोिि र्ा ,क्याउललेख करिे के वलएयाक्यािास्ति मेंमिाया गयाके अिसु ारविर्ावित
है|विणायपर पहुचां िेमयें ािास्तविकविणायकरिे के वलएइस्तेमाल वकयामािकोंका उललेख करिे
के अिसु ार विणाय को विर्क्त वकया हुआ है|

5.7आयििर का सक्ष्म-विरूपण मॉडल


इवलयटआइििर,एक प्रवसद्कलावशक्षकिे तका वदयावशक्षणबहुतिवटलर्ाइसवलए उद्देश्योंकी एक
सचीको छोटे र्ागों में तोड़ वदया हैऔर यह वििााररतकरिे के वलएयहिगह मािात्मकमाप िे ले ली
हैया िहीं|िब तक हमछािोंका मलयाांकिछािोंकी सचिा के आिार पर करते हैंहमेकेिलसचिाके
छोटे र्ागोंको सीखिा होगा|आइििर का तका है मलयाांकिहमेशापाठ्यक्रम कोचलािा औरकरिा है|
यवद हमचाहते हैंवक छाि समस्याओ ां के समािािऔरसक्षम रूप से विचार करिे में सक्षम होतोहमें
इस समस्याको सल ु झािेऔरमहत्िपणा सोच,कौशलका मलयाांकि करिा होगािोआिृवत्तअभ्याससे
सीखा िहींिा सकता है|तो,एककायाक्रमका मलयाांकिकरिे के वलएहमेंकक्षाकी घटिाओकां ी
समृवद्औरिवटलतापर अविकृ तकरिे का प्रयासकरिा चावहए|उन्होंिेसक्ष्म विरूपणमॉडलका प्रस्ताि
रखा, विसमें एकिािकारमलयाांकिकताावििााररत कर दािा कर सकता हैवक यवदकौशल

उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 68
पाठ्यक्रम विकास Curriculum Development MAED-612 Semester IV
औरअिर्ु िके सांयोिि का उपयोग करें तो पाठ्यक्रमसफल रहा है|शब्द‘connoisseurship’
लैवटि शब्दcognoscereसे विकला है,विसका अर्ािाििा है|उदाहरण के वलए,आपआलोचिा
करिे में सक्षमहैं और उससे पिा र्ोिि,वचिोंयावफलमोंके पारखीहोिे के
वलए,आपकोर्ोिि,वचिोंयावफलमोंके विवर्न्ि प्रकारों के सार्अिर्ु िऔर के बारे मेंज्ञािहोिा
आिश्यक है|एकआलोचकहोिे के वलए घटिामेंसक्ष्म अांतर वििकी आपिाांच कर रहे हैंउिके गणु ों
को िाििे और उिकी िािकारीआपको होिी चावहए|दसरे शब्दों में,पाठ्यक्रममलयाक ां िकताा को एक
शैवक्षकआलोचकहोिे कीतलाश करिा चावहए|परखमॉडल के
अिसु ार,मलयाांकिकताापाठ्यक्रमयोििाके कायाावन्ित हेतु वििरण औरव्याख्याप्रदाि करते हैं-
1) वििरण:मलयाांकिकतााछािों,वशक्षकोंऔरप्रशासकोंके अिर्ु िों के िातािरण की
विशेषताओऔ ां रवक्रयाओ ां का अवर्लेख रखते हैं| लोगमलयाांकि ररपोटाको पढ़ कलपिा
करिे में सक्षमहो िायेंगे िो प्रवक्रयाओकां ी तरहलग रहा है और स्र्ाि ले रहाहै|
2) व्याख्या:मलयाांकिकताासचिाघटिाओकां ो सांदर्ामें रखकरअर्ाबताते हैं|उदाहरण के
वलए,क्योंअकादवमकरूप से कमिोर छािों कोसिाल पछिे के वलएप्रेररतवकया िाता र्ा|

5.8 टायलर का उद्देश्य-के वन्ित मॉडल


शरुु आती पाठ्यक्रममलयाकां िमॉडलों में से एक हैिो कईमलयाकां िपररयोििाओकां ो प्रर्ावितकरिे के
वलएसतत है|रालफटायलर)1950िारापाठ्यक्रम और वशक्षाके मलवसद्ाांतों (Basic principles of
curriculum and Instruction) विषय पर लेखमें इसमॉडल को प्रस्ततु वकया गया| िैसा
वकइसकाममेंऔर कईबड़े पैमािे परमलयाांकिके प्रयासोंमें, प्रयोग कर व्याख्या
कीहै|टायलरदृवष्टकोणतका औरव्यिवस्र्त ढांग से कईसांबांवितचरणों के माध्यम सेप्रस्ततु है-
1. पहले से वििााररतवकये गये व्यिहाररकउद्देश्यों के सार्शरू ु करिा|उि उद्देश्यों कोसीखिेकी
सामग्रीऔरसांर्ावित छािव्यिहारदोिोंमें विवदाष्ट करिा चावहए:
2. इस व्यिहार के पैदायाप्रोत्सावहत करिे के वलएउि वस्र्वतयोंको पहचािें िोवकउद्देश्यमेंछाि
कोसवन्िवहतव्यिहारव्यक्त करिे का अिसरदे देंग|े इस प्रकार आपमौवखकर्ाषा के प्रयोगका
आकलिकरिा चाहते हैंतोमौवखकर्ाषाके उत्पन्ि होिे की वस्र्वतयोंकी पहचाि करें |
3. सश ां ोवित,याउपयक्त ु मलयाक
ां िउपकरणोंका विमााण,का चयि करें ,औरविष्पक्षता,
विश्वसिीयता और िैिताके वलएउपकरणोंकी िााँच करें .
4. सांक्षेप में प्रस्ततु करिा याआकलिके पररणामप्राप्त करिे के वलएउपकरणोंका उपयोग करें
5. दी गईअिवि के पहले और बाद में मािाका अिमु ाि लगािे के वलए कईउपकरणोंसेप्राप्त
पररणामोंकी तल ु िा अर्िा स्र्ाि लेिेकेक्रमकरें .
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ु विश्वविद्यालय 69
पाठ्यक्रम विकास Curriculum Development MAED-612 Semester IV
6. पाठ्यक्रमकीकमिोररयों और मिबती का वििाारण करिे के क्रममेंपररणामों का विश्ले षण
और मिबवतयों और कमिोररयोंके कारण इस विशेषपद्वत बारे मेंसांर्ि स्पष्टीकरणके वलए
पहचािकरिे के वलए|
7. पाठ्यक्रममेंआिश्यकसांशोिि करिे के वलएपररणामों का उपयोग करें
टायलर मॉडलके कई लार् हैं-यहसमझिे के वलए औरलाग करिे के वलएअपेक्षाकृ तआसािहै|
यहतका सांगतऔरव्यिवस्र्तहै|यहव्यवक्तगत छािोंके प्रदशाि के सार्परी तरह सेवचांवतत होिेके
बिाय,पाठयक्रम की मिबती और कमिोररयोंपरध्यािकें वित करता है|यहमलयाांकि, विश्ले षण और
सिु ारकीएक सततचक्रके महत्ि पर र्ी िोर देता है|Guba और linciln(1981) के
अिसु ार,हालावां क,यहकईकवमयोंसे ग्रस्त है| यहसझु ाि िहीं देता है वक कै से उद्देश्योंके वलए खदु का
मलयाांकि वकयािािा चावहए| यहमािकोंको िोड़िे यामािकों को विकवसतवकये िािे कासुझाि िहीं
देता है|पाठ्यक्रम विकासमेंरचिात्मकताको सीवमत करिे हेतु उद्देश्योंकी पिाकर्िपर िोर देता
हैऔरयहपरी तरह से ऐसा प्रतीत लगता है वक प्रारांवर्क आकलिके वलए की आिश्यकता की
अिदेखी,पिा आकलिऔर बादके आकलिपर अिवु चतिोर देता है|

5.9 साराांश
पाठ्यक्रमके मलयाांकिसेएकि िािकारीविणाय करिे के वलएआिार रूपों के बारे
मेंकैसेसफलतापिाककायाक्रमअपिे इवच्छतपररणाम औरकायाक्रममलयहावसल वकये गए हैं िािा िा
सकता है|वशक्षक िाििा चाहते हैं वक क्यािो िेकक्षामेंकर रहे हैं,प्रर्ािीहै ?और
विकासकताायावियोिक िाििा चाहते हैं वककै से पाठ्यक्रमउत्पाद को बेहतर बिाया
िाये|मलयाांकिकायाक्रमोंऔरप्रवक्रयाओकां ामहत्िया मलयवििाारण की प्रवक्रयाहै|कईविशेषज्ञों िे
विवर्न्ि मॉडलोंका प्रस्ताि वदया हैवक कै सेऔरक्याएकपाठ्यक्रमके मलयाांकिमेंशावमल वकया िािा
चावहए|Stufflebeamके मॉडलका प्रमख ु पहलविणाय लेिेयाकायाक्रम कीशरुु आत के बारे मेंवकसी
के मि बिािेके कायापरके वन्ितहै|रॉबटास्टेक िाराप्रस्तावितमॉडल में पाठ्यक्रममलयाांकिके तीि
चरणोंका पता चलता है-पिाितीचरण,लेि देि-चरण,और पररणाम चरण|इवलयटआइििर,एक
प्रवसद्कलावशक्षकिे तका वदयावशक्षणबहुतिवटलर्ाइसवलए उद्देश्योंको एक सचीके छोटे र्ागों में
तोड़ वदया |
5.10 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर
1. सत्य
2. Input, Product
3. ििाचारों

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ु विश्वविद्यालय 70
पाठ्यक्रम विकास Curriculum Development MAED-612 Semester IV
4. पाठ्यचयाा,पाठयचयाा
5. यिेस्को की ररपोटा
6. क्रो और क्रो
7. फ्राांवसस िे० िाउि
5.11 सांदर्ा-ग्रन्र्
1. Crow, ।.D, A।ice Crow (1962), Introduction of Education,
EurasiaPub।ishing House, New De।hi.
2. Spears, H (1953), Some Princip।es of Teaching,Prentice Ha।।, New
York.
3. http://peoplelearn.homestead.com/assess/module_8.evaluation.doc
4. मार्रु , एस०.एस० (1981), वशक्षण कला, वििोद पस्ु तक मवां दर, आगरा ।
5. वमश्र, आत्मािन्द(1985), वशक्षण कला, यवििवसाटी पवब्लके शन्स, िई वदलली ।

5.12 विबांिात्मक प्रश्न


1. पाठ्यक्रमके मलयाांकि से आप क्या समझते हैं?
2. स्टफलबीम के पाठ्यक्रममलयाांकिमॉडल को समझाइए ?
3. टायलर मॉडलसे आप क्या समझते हैं?इसके क्या लार् हैं ?

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इकाई 6 पाठयचयाा सांबांिी शोि के क्षेि

6.1 प्रस्ताििा
6.2 उद्देश्य
6.3 पाठयचयाा सांबांिी शोि के क्षेि : एक पररचय
6.4 ठ्यक्रम सांबांिी शोि की प्रिृवत
6.5 साराश ां
6.6 अभ्यासप्रश्नों के उत्तर
6.7 सांदर्ा ग्रांर् सची
6.8 विबांिात्मक प्रश्न

6.1 प्रस्ताििा
पाठयचयाा वशक्षण प्रणाली का सबसे महत्तिपणा अांग है। परा वशक्षण तांि पाठयचयाा के चारों तरफ
ही चक्कर काटता है। वशक्षण प्रवक्रया की शरुु आत से लेकर मलयाांकि तक सबकुछ पाठयचयाा के
िारा ही वििााररत होता है। अर्ाात क्या पढ़ािा है? वकसे पढ़ािा है? वकतिा पढ़ािा है? कै से पढ़ािा
है? और कौि पढ़ाएगा? आवद प्रश्नों के उत्तर हमें पाठयचयाा से ही प्राप्त होते हैं। ऐसे में पाठयचयाा के
सबां िां में शोिकाया महत्िपणा हो िाते हैं। चाँवक वशक्षा समाि का दपाण है। अतः, िैसा समाि होता
है िैसी ही अपिी वशक्षा पद्वत होती है। पाठयचयाा वशक्षा पद्वत का के न्िवबदु है। अतः,पाठयचयाा
र्ी समाि पर विर्ार करता है।उदाहरण के तौर पर उत्तर िैवदक काल में समाि में अध्यावत्मकता की
प्रिािता र्ी तो हमारा पाठयचयाा र्ी अध्यात्म से पररपणा र्ा। गरुु कुलों में विद्यावर्ायों को िेद,
परु ाण, स्मृवत, आवद पढ़ाए िाते र्े। कालाांतर में समाि में अमल-चल पररिताि हुए और इसके
पररणामस्िरुप पाठयचयाा में।
आि हमारा समाि विरांतर हो रहे पररितािों के दौर से गिु र रहा है। ऐसे में ितामाि पररदृश्य में समाि
को वकस प्रकार के वशक्षा की आिश्यकता है? र्विष्य में वशक्षा की क्या मााँग होगी? आवद िैसे प्रश्नों
के उत्तर िाििे के वलए पाठयचयाा के क्षेि में शोि होिा आिश्यक है। विरांतर शोिकाया हो र्ी रहे हैं
और अतीत में र्ी हुए हैं।प्रस्तुत इकाई में हम इस बात का अध्ययि करें गे वक पाठयचयाा सांबांिी
शोि में हम वकि- वकि शोि को शावमल कर सकते हैं अर्ात पाठयचयाा सांबांिी शोि के क्षेि क्या
होंगे।

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ु विश्वविद्यालय 72
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6.2 उद्देश्य
इस इकाई के अध्ययि के पश्चात् आप -
1. पाठयचयाा सांबांिी शोि के क्षेि का अर्ा समझ सकें गे
2. पाठयचयाा सांबांिी शोि के क्षेि का िणाि कर सकें गे
3. पाठयचयाा सांबांिी शोि के क्षेि की प्रिृवत की व्याख्या कर सकें गे।

6.3 पाठयचयाा सांबांिी शोि का क्षेि : एक पररचय


‘पाठयचयाा सांबांिी शोि’ एक व्यापक पद है विसके अतां गात मख्ु यतःपाठयचयाा के प्रस्ताि, वक्रया-
कलाप या उसके पररणाम िारा िवित समस्याओ ां को समझिे में शोि तकिीकों/प्रविवियों के
अिप्रु योग आवद समावहत होते हैं।
पाठयचयाा का व्यिहाररक अभ्यास कोई िई घटिा िहीं हैं। इसकी शरुु आत तब से मािी िा सकती
है िब से मिष्ु य िे वशक्षा प्रदाि करिे के पिु ीत काया की शरुु आत की। लेवकि पाठयचयाा विमााण
सबां िां ी वक्रया-कलापों का अध्ययि अपेक्षाकृ त एक िया प्रयास है। पाठयचयाा का एक अध्ययि क्षेि
के रुप में औपचाररक विकास 12िीं शताब्दी में मािा िाता है। हााँलावक इससे पिा र्ी र्ोड़े बहुत
प्रयास हो चक ु े र्े। फ्लरे िारा 1695 ई0 में “ द वहस्री ऑफ च्िॉयस एण्ड मेर्ड्स ऑफ स्टडी”
िामक पस्ु तक को पाठयचयाा सांबांिी प्रारांवर्क पस्ु तक मािी िाती है(स्चबु ेता(1980) । कालाांतर में
वशक्षण-प्रवक्रया में विद्यालय का महत्ि बढ़िे के कारण पाठयचयाा विमााण के प्रवत लोगों का रुझाि
बढ़ा और पाठयचयाा के स्िरुप, पाठयचयाा सबां िां ी सावहत्य, िो एक अध्ययि क्षेि को दसरे
अध्ययि क्षेि से अलग कर सके , से सांबांवित एक स्र्ायी स्िरुप के वचांति का विकास
हुआ(क्रेवमि,1971) । औपचाररक रुप से इसका उदय सांयक्त ु राज्य अमेररका में, 1927 में, वशक्षा के
अध्ययि के वलए बिी राष्रीय सोशाइटी के एक सवमवत िारा तैयार एक िावषाक पवु स्तका(इयरबक ु ),
विसमें पाठ्य्क्रम विमााण के वलए विचारों को एक सार् रखकर प्रयास करिे पर बल वदया गया र्ा,
के प्रकाशि के सार् हुई(रि, 1927)। समय के सार् इसमें विकास होता गया और आि इसका क्षेि
अवत व्यापक हो गया है। पाठयचयाा सांबांिी शोि के क्षेि को आप विम्िवलवखत वबन्दओ ु ां के माध्यम
से समझ सकते हैं:
i. पाठयचयाा विमााण की िीवत सांबांिी शोि
ii. पाठयचयाा विश्ले षण सांबांिी शोि
iii. पाठयचयाा प्रारुप, अिप्रु योग एिां वक्रयात्मक शोि
iv. पाठयचयाा मलयाांकि

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पाठ्यक्रम विकास Curriculum Development MAED-612 Semester IV
अभ्यासप्रश्न
1. पाठयचयाा का एक अध्ययि क्षेि के रुप में औपचाररक विकास .................शताब्दी में
मािा िाता है।
2. “ द वहस्री ऑफ च्िॉयस एण्ड मेर्ड्स ऑफ स्टडी” िामक पस्ु तक................... िे
वलखी।
3. “ द वहस्री ऑफ च्िॉयस एण्ड मेर्ड्स ऑफ स्टडी” िामक पस्ु तक िषा ........................
में वलखी गयी।
4. औपचाररक रुप से पाठयचयाा सांबांिी विकास का प्रारांर् ..................िामकदेश में हुआ ।

पाठयचयाा विमााण की िीवत सबां िां ी शोि Policy Related Curriculum Research
पाठयचयाा सांबांिी शोि के एक क्षेि के रुप में, पाठयचयाा सांबांिी िीवत विषयक शोि को मािा
िाता है। इसके तहत वशक्षा प्रणाली में अविकाररयों की िरीयता िो हर देश में अलग-अलग होती
है, को शावमल वकया िाता है।
िो देश, वििका पाठयचयाा के न्िीय होता है अर्ाात परे देश के वलए एक ही पाठयचयाा होता है, िो
वशक्षक की योग्यता एिां उिकी विशेषताओ ां के सांबांि में आाँकड़े एकि करिे में ज़्यादा रुवच रखते हैं।
िो ये र्ी िाििा चाहते हैं वक वशक्षक ितामाि वशक्षा प्रणाली के विकास में अपिे योगदाि दे सकते
हैं वक िहीं। इस प्रकार के शोि को र्ी पाठयचयाा सांबांिी िीवत विषयक शोि में स्र्ाि वदया िाता
है। विरांतर बदल रही आवर्ाक पररवस्र्वतयों के दबाि में आिवु िक, विकवसत एिां औद्योवगक रुप से
सशक्त देशों िे उत्तरदावयत्िबोि और उसके अिरुु प विद्यालयों को मािि-शवक्त के एक उत्पादक तांि
के रुप में देखिे की प्रिृवत विकवसत की है। इस प्रकार से शोि के एक और क्षेि का विकास हुआ है
विसके अतां गात पररिताि के सांकेतकों की माप की िाती है। ये सांकेतक िो चर होते हैं िो वकसी िीवत
के उि तथ्यों का प्रवतविवित्ि करते हैं, विसमें उस िीवत विकास का प्रयोग सचु ारु रुप से हो सके ।

वशक्षा प्रणाली में िीवत, वशक्षा प्रणाली के विवर्न्ि सांगठिों के मध्य घमु ती रहती है।यह मत्ता एिां
अमत्ता तथ्यों तर्ा के न्िीय एिां पररिीय तथ्यों के मध्य र्ी घमु ती रहती है। ऐसी पररवस्र्वत में
पाठयचयाा विषयक शोि, अपिे प्रायोिकों एिां अभ्यासकतााओ ां के सैद्ावां तक मान्यताओ ां पर
आिाररत होता है। सांर्ितः इसिे एक महत्िपणा सरकारी सचिा वक वििादास्पद मद्दु ों के समािाि
के रुप में इसका राििीवतकरण हो गया है के रुप में तटस्र् प्रिृवत प्राप्त की र्ी या सांर्ितः पाठयचयाा
पर हो रही पररचचाा के एक र्ाग के रुप में इसिे एक रोचक वस्र्वत प्राप्त कर ली र्ा। लेवकि इस बात
के र्ी कुछ प्रमाण वमले हैं की शोिकतााओ ां का समह इसकी र्वमका को कुछ ज़्यादा बढ़ा रहे र्े।
अमेररका में, फे डरल शैवक्षक वियमों को प्रर्ावित करिेिालों कारकों की सची में िीवत सबां िां ी
अध्ययि को सबसे िीचे का स्र्ाि एक अिसु ांिाि के तहत प्रदाि वकया गया र्ा। इसके पीछे
सम्माििीय एिां विश्वसिीय वमि राष्रों के प्रबल विचार र्े।
उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 74
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पाठयचयाा के सांदर्ा में िीवत सांबांिी शोि उसके स्र्ािीय अिक
ु लि को बढ़ािा देिे के वलए र्ी
वकया िाता है।
अपिी पस्ु तक ‘वबयोण्ड द स्टेबल स्टेट’ में डोिालड् स्कोि िे सीखे िािे िाले अिदु श े िों की चचाा
की है। लेवकि उिके मि में विस अविगम की बात चल रही र्ी िो स्र्ािीय िीवत-विमााता के
अिर्ु िों, विणायों और यवु क्तयुक्त ज्ञाि पर आिाररत र्ा। इसवलए विगत कुछ िषों से विद्यालय विशेष
के के स स्टडी को पाठयचयाा सांबांिी शोि में स्र्ाि वदया िािे लगा है और इससे प्राप्त औपचाररक
सामान्यीकरण को िीवत-विमााताओ ां को प्रमावणक पाठयचयाा शोि के रुप में प्रदाि वकया गया। अन्य
शब्दों में यवद कहा िाए तो विद्यालय विशेष के के स स्टडी को र्ी पाठयचयाा सांबांिी शोि में स्र्ाि
वदया गया। ऐसे शोि, िीवत-विमााताओ ां को शोिकताा का दज़ाा िहीं देते हैं और िहीं ये सािाराण रुप
से कुछ प्रश्नों का उत्तर देते हैं। ये उस प्रायोवगक आिार को विस्तृत करिे का प्रयास करते हैं विस पर
प्रचवलत पाठयचयाा के सांदर्ा में तावका क रुप से वकए िािेिाले गेस की िााँच की िा सके ।
कुछ देश विशेषतः इगां लैण्ड में पाठयचयाा के मामले में वदशा-विदेश का अर्ाि र्ा। िहााँ इस बात
को लेक भ्रम र्ा वक िास्ति में पाठयचयाा में कुल क्या-क्या चीिें शावमल हैं और विद्यालय विशेष
के वलए पाठयचयाा में क्या शावमल है? पररणामस्िरुप िहााँ इस वदशा में कुछ आिारर्त शोि की
आिश्यकताएाँ उत्पन्ि हुई ां तावक इस सांबांि में आाँकड़े एकि वकए िा सके वक विद्यालयों में क्या
पढ़ाया और सीखाया िािा चावहए। यिाइटेड वकांगडम में पाठयचयाा इस वििाद का विषय हो गया
र्ा वक क्या उतारदावयत्ि, बोडा के विचारों मे उत्पन्ि वििादों में वघरा रहिा चावहए। इसे पेशिरों(िो
वक वशक्षकों के विणायों पर बल दे रहे र्े) और िौकरशाह(िो स्ियां के विचारों पर बल दे रहे र्े) के
वििाद के रुप में र्ी पहचािा िा सकता है। वशक्षा और विज्ञाि विर्ाग तर्ा स्र्ािीय वशक्षण सस्ां र्ाएाँ
दोिों अपिे-अपिे स्र्ािों पर वशक्षा सांबांिी शोि कर रहे र्े। इस कायाक्रम का उद्देश्य पाठयचयाा पर
उत्तम वियिां ण पािा र्ा। िल
ु ाई, 1977 के ग्रीि पपेर में वकसी पाठयचयाा का कौि सा वहस्सा मख्ु य
होिा चावहए, विषय पर शोि करिे की आिश्यकता पर एक ररपोटा प्रकावशत वकया गया र्ा। दो िषा
बाद वशक्षा एिां विज्ञाि विर्ाग के एक सकाु लर 14/77 में विद्यालय के पाठयचयाा को व्यिवस्र्त
करिे के वलए स्र्ािीय अविकरणों की आिश्यकता की बात की गई र्ी। इसके अलािा विद्यालय
पररषदों िे कई शोि कायों िो पाठयचयाा के विश्ले षण एिां व्यिस्र्ा के विश्ले षण पर ज़्यादा बल दे
रहे र्े का प्रकाशि वकया।
पाठयचयाा सिु ार की प्रवक्रया को सांस्र्ागत करिे के क्षेि में काम कर रहे देशों, वििके पास विश्वास
एिां क्षमता की अलग-अलग मािाएाँ र्ी िे इस काया-कलाप के वलए ‘शोि एिां विकास’ िामक
सांस्र्ा का गठि वकया तर्ा तत्सांबांिी सावहत्य का प्रकाशाि काया वकया।
इस प्रकार आप देखते हैं वक पाठयचयाा विषयक शोि में पाठयचयाा सांबांिी िीवत को लेकर, विसमें
पाठयचयाा क्या होिा चावहए, वशक्षक योग्य है वक िहीं, पाठयचयाा सांबांिी शोि क्या होगी, कौि सी

उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 75
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सांस्र्ा पाठयचयाा सांबांिी शोि के वलए उत्तरदायी है आवद को लेकर अिेक शोि काया हुए हैं।
ितामाि में र्ी पाठयचयाा के सांबांि में िीवत-वििाारण एक महत्िपणा विषय है।

अभ्यासप्रश्न
5. िल ु ाई, 1977 के ग्रीि पपेर में वकसी पाठयचयाा का कौि सा वहस्सामख्ु य होिा चावहए
विषय पर शोि करिे की आिश्यकता पर एक ररपोटा प्रकावशत वकया गया र्ा।
(सही/गलत)
6. पस्ु तक ‘वबयोण्ड द स्टेबल स्टेट’ डोिालड् बफीलड िे वलखी है। (सही/गलत)
7. इगां लैण्ड में पाठयचयाा के मामले में वदशा-विदेश का अर्ाि र्ा। (सही/गलत)
8. पाठयचयाा के सांदर्ा में िीवत सांबांिी शोि उसके स्र्ािीय अिक ु लि कोबढ़ािा देिे के वलए
र्ी वकया िाता है। (सही/गलत)
9. वशक्षा प्रणाली में िीवत का वशक्षा प्रणाली के विवर्न्ि सांगठिों से कोईसांबांि िहीं होता है।
(सही/गलत)
पाठयचयाा विश्ले षण Curriculum Analysis
पाठयचयाा सांबांिी शोि का एक और क्षेि ितामाि पाठयचयाा या पाठयचयाा -प्रस्ताि का विश्लेषण
करिा है। इसके वलए प्रयक्त ु प्रविवि सत्तारुढ़ दल के कारण पररिवतात होते रहती है या विवर्न्ि देशों
में अलग-अलग होती है। प्रत्येक पाठयचयाा तत्कालीि सत्तारूढ़ राििीवतक दल के विचारों से
प्रर्ावित होता है। ऐसे में यह िाििा आिश्यक हो िाता है वक िो पठ्यक्रम प्रचलि में है उस पर
सत्तारूढ़ दल का वकतिा प्रर्ाि है और िह तत्कालीि वशक्षा प्रणाली के वलए कहााँ तक उपयोगी है
या वशक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करिे में िह कै से सहायक है। िैसे साम्यिादी देशों में पाठयचयाा को
माक्सािादी एिां ििमाक्सािादी, दोिों विचारिाराएाँ प्रर्ावित करती हैं। पररणामस्िरुप पाठयचयाा इि
दोिों विचारिारओ ां के बीच में उलझा रहता है। अतः इि देशों में इि विचारिाराओ ां को ध्याि में
रखकर पाठयचयाा विश्लेषण की आिश्यकता है।
विद्यालयों में िो पाठयचयाा प्रचलि में होता है उस पर गप्तु पाठयचयाा (वहडेि कररकुलम) का
महत्िपणा प्रर्ाि होता है। ये गप्तु पाठयचयाा साांकेवतक वहसां ा फै लािे में अपिा महत्िपणा योगदाि देते
है पररणामस्िरुप वशक्षण काया सचु ारु रुप से िहीं होता र्ा। इसको देखते हुए कई शोि काया
विद्यालयों की काया प्रणाली के विश्लेषण के क्षेि में र्ी वकए गए। पाठयचयाा या कक्षाकक्ष शोि में
व्यापक पररदृश्य की पृष्ठर्वम पर सक्ष्म एर्िोग्राफी पािा कवठि है। इसवलए इस क्षेि में िो कुछ
अच्छे काया हैं उिके प्रयोग उदाहरण के तौर पर अविक मािा में वकया िाता है। इस क्षेि में हुए कायों
की िो एक लांबी शृखल ां ा है, िो शोि की विर्ारता सामान्य तथ्यों पर प्रदवशात करती है। इस
पररवस्र्वत में यह विचार वक पिाँ ीिादी समाि में पाठयचयाा , िो पाँिीिावदयों िारा चलाया गया एक

उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 76
पाठ्यक्रम विकास Curriculum Development MAED-612 Semester IV
िोखा है, पीढ़ी दर पीढ़ी शासक या कुलीि िगा की श्रेष्ठता के वमर्क को प्रसाररत करता है। यह यवु क्त
‘शवक्त की असमािता’ को ‘सांस्कृ वत की असमिाता’ में पररिवतात करिे की है।
पाठयचयाा विश्ले षण सांबांिी शोि, पाठयचयाा या पाठयचयाा –प्रस्ताि के तावका क या आिवु र्िक
अध्ययि की बात करता है। फ्रासेर(1972) िे पाठयचयाा के उद्देशय सांबांिी मलर्त समस्याओ ां की
िाांच करिे के वलए अिेक तरीकों का सिेक्षण वकया। उसिे यह पाया वक इस बात को िाििे के वलए
वक कोई पाठयचयाा विशेषज्ञों की राय में िैि है वक िहीं, आिर्ु विक शोि का सहारा वलया िाता
है। इस प्रकार ऑस्रेवलयि साांइस प्रोिेट ट के उद्देशयों की िााँच एक सिे के माध्यम से की गई र्ी।
पाठयचयाा सांबांिी योििाओ ां के अध्ययि के स्र्ायी प्रकृ वत के कारण इस बात की शांका है की
शोिकताा अपिे विचारों एिां मलयों को प्रकाश में िहीं आिे देिा चाहते हैं। एण्डरसि(1980) िे
यद्यवप शोि प्रविवियों के विश्ले षण पर बहुत ज़्यादा ध्याि िहीं वदया है लेवकि िो पाठयचयाा के
वलवखत प्रस्ताि के अिुमोदि के वलए आिार प्रदाि करिा चाहते हैं।
पाठयचयाा प्रारुप, अिप्रु योग एिां वक्रयात्मक शोि Curriculum Design, Application and
Action Research
पाठयचयाा के अभ्यासकताा के दृवष्टकोण से पाठयचयाा प्रारुप का विमााण या विकास एक महत्िपणा
अध्ययि क्षेि है। कर्ी-कर्ी इिमें विचारों वििमें सिु वणात यवु क्तयों का सच ां य होता है िो वक
पाठयचयाा के अच्छे अभ्यास का पररणाम होती है। अक्सर, शोिकाया पाठयचयाा के प्रारुप के
विमााण से सांबद् होता है तावक पाठयचयाा प्रारुप वसद्ाांत और व्यिहार दोिों के स्तर पर सतां वु लत हो
सके । अर्ाात सैद्ाांवतक रुप से बिे पाठयचयाा के प्रारुप को व्यिहार में लाया िा सके । इस प्रकार के
शोिकाया के उदाहारण में, टेलर(1970) का शोिकाया “हाउ टीचसा प्लाि वदयर कोसा” एिां
िॉकर(1975) का “एकाउांट ऑफ द पावटाकुलर ऑफ इिकारिेशि ऑफ डेवलबरे वटि थ्योरी” को
शावमल वकया िाता है।
यद्यवप िॉकर(1976) के इस कर्ि वक ‘पाठयचयाा विमााण और सािारण तरीके से वशक्षण काया
करिा’ शोि के बहुत िवटल प्रकार िहीं है, से असहमत होिे का कोई काराण िहीं है तर्ावप बृहद्
स्तर के पाठयचयाा प्रस्ताि के वलए यह असािारण बात िहीं है वक उिके आिश्यक तत्िों का
आिार शोिकाया के पररणाम हो। यद्यवप यह आिश्यक िहीं है वक विमााण और विसरण मॉडल का
शोि, स्ियां पाठयचयाा सांबांिी शोि हो। अवत सािारण शब्दों में पाठयचयाा सिु ार आन्दोलि को
अपिे काया-कलापों के वलए इसे अद्ािज्ञै ाविक शोि कहा िा सकता है।
पाठयचयाा प्रारुप के सदां र्ा में यद्यवप वियोवित पररिताि का वसद्ातां काफी अस्पष्ट एिां अव्यिहाररक
है तर्ावप पाठयचयाा में वियोवित पररिताि सांबांिी शोि, दो उपलब्ि महत्िपणा पैराडाइम्स,
प्रणाली-विमााण एिां यावां िक में से वकसी एक में शावमल होिे की प्रिृवत रखता है। इसके अतां गात हम
ऑस्रेवलयि कररकुलम में हुए ििाचार पर वशक्षण िातािरण के प्रर्ाि को सारणीबद् करिे के वलए

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वतसर एिां पॉिर िारा 1978 में वकए गए शोिकाया, वििमें उिलोगों िे प्रतीपगमि विश्ले षण(रीग्रेशि
एिालवसस) का प्रयोग वकया र्ा को शावमल करते हैं।
पाठयचयाा के अिप्रु योग सांबांिी शोि की प्रिृवत, ििाचार के समािशास्त्र और समाि मिोविज्ञाि के
आिार पर समह बिािे की है। अिप्रु योग सांबांिी अध्ययि वकसी विशेष विद्यालय की के स स्टडी है
विसमें एक िई प्रिृवत मवलटसाइट सेवटांग में एर्िोग्रावफक शोि विसमें अतां ःसाइट सामान्यीकरण को
र्ी ध्याि में रखा िाता है, देखिे को वमल रही है(स्टेक और आइसेल, 1978)।
इस वस्र्वत में ये शोि एर्िोग्रावफक कम और क्षेिीय काया का ब्यरोक्राइटाइिेशि ज़्यदा प्रतीत होता
है। सार्-सार् ही ये अध्ययि सिे आिाररत अध्ययि एिां पॉवलसी आिाररत अध्ययि प्रतीत होते
र्े।
अर्ी वक्रयात्मक अिसु ांिाि में र्ी शोिकतााओ ां की रुवच िागृत हुई है। सामान्य रुप से इस प्रकार के
अध्ययि में सहर्ागी अिलोकि को शावमल वकया िाता है विसमें एक अिलोकिकताा स्ियां को
अिलोकि में स्िार्ाविक रुप से शावमल करता है तावक अिर्ु िों के िारा सीख सके । स्पष्टतः यह
वकसी व्यवक्त विशेष के स्ियां के विष्पादि के प्रवत उसके उत्साही, खोिी एिां वचांतिशील मवस्तष्क
की माांग करता है। िब वकसी विश्वविद्यालय का एक शोिकताा वकसी वशक्षक के सार् वमलकर शोि
काया करता है तो िह आतां ररक एिां िाह्य परस्पेवक्टव्स को शावमल कर र्ी सकता है और र्ी िहीं र्ी
लेवकि िब एक वशक्षक शोि काया करता है, तो िह सामान्यतः पाठयचयाा सांबिां ी उि
विचरिाराओ,ां िो वक िााँचे िाते हैं के प्रवत कुछ विचारणीय विश्ले षण के सांदर्ा में वदए गए बौवद्क
िणाि के परे िाकर अध्ययि करता है अर्ाात िह उि सारे विश्लेषणों को अपिे अध्ययि में शावमल
करता है, उि पर वचांति करता है तर्ा उिके सांदर्ा में अपिे विचार र्ी रखता है। इि विचारिाराओ ां
को विवि सांबांिी पररकलपिाओ ां के रुप में र्ी िािा िाता है। ‘द फोडा टीवचांग प्रोिेक्ट’ िे शोि के
तरीकों को स्र्ावपत करिे के में बहुत र्वमका विर्ाई है। यद्यवप उसके िारा प्रवतपावदत विचारिारा वक
इसकी, सहर्ावगयों में आत्म प्रािताि का सांिद्ाि करिे की योग्यता, कम है, इस सत्य को कहिे के
वलए बाहरिालों को कम महत्ि देिा चावहए, के सार् कुछ असहमवत र्ी है।

पाठयचयाा मलयाांकि Curriculum Evaluation


पाठयचयाा मलयाांकि सांबांिी कायाक्रम िे अतीत में शैवक्षक शोि की प्रविवियों के सांदर्ा में चल रहे
वििाद में मह्ततिपणा योगदाि वदया र्ा। कुछ लेखकों िे मलयाक ां ि को शोि से अलग करिे का
प्रयास वकया र्ा। उिका यह माििा र्ा वक ‘पाठयचयाा मलयाांकि’ कायाक्रम, पाठयचयाा के
प्रायोिकों, विमााणकतााओ ां एिां उपयोग करिेिाले समहों के प्रवत एक कायाात्मक उत्तरदावयत्ि के
कारण अपिी खदु की शोि समस्या उत्पन्ि करिे में अक्षम है लेवकि उिका ये कहिा की पाठयचयाा
का मलयाांकि वसफा ‘अभ्यासकताा को ज्ञाि’ प्रदाि करता है एिां ‘विस्तृत वसद्ाांत’ को िन्म देता है,
र्ी अच्छा िहीं है। पाठयचयाा मलयाक ां ि और शैवक्षक शोि के मध्य सबां िां को व्यक्त करिेिाला एक
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और तथ्य, सामान्य प्रिृवत, शोि पैराडाइम्स एिां विवि के अभ्यास के उदय पर बल देता है।
पाठयचयाा मलयाांकि तावका क रुप से पाठयचयाा विमााण की आिश्यकता है। स्टेिहाउस(1981) िे
यह सझु ाि वदया वक पाठयचयाा सिु ार आदां ोलि िे शैवक्षक प्रणाली में वित्तीय सांसाििों के
पिु विातरण को प्रदवशात वकया है। अतः, पाठयचयाा के मलयाांकि के वलए शोि पैरडाइम के विमााण
के प्रारांवर्क प्रयास को कुछ वित्तीय सांसाििों को सव्ु यिवस्र्त करिे के शोि के प्रयास के रुप में पढ़ा
िािा चावहए। इस प्रकार मलयाक ां ि की प्रविवि को सबसे पहले आिश्यक रुप से सामान्य वियमों के
खोि से सांबांवित शोि प्रविवि के समाि समझिा चावहए। वशक्षा में पाठयचयाा विमााण एक विवश्चत
उपचारात्मक कायाक्रम हो गया र्ा विसकी िााँच ठीक उसी तरीके से की िाती है विससे कृ वष
विज्ञाि में फसल उत्पादि की। शोि प्रविवि की आिश्यकताओ ां से वमलिे के वलए यह आिश्यक है
की ये प्रर्ाि मापिीय हो और मिोमीवतय उपागम का प्रयोग करे तावक िाांवछत ज्ञाि, कौशल और
अवर्िृवत्त उत्पन्ि वकया िा सके । लेवकि शीघ्र ही सावहत्य की कमी स्पष्ट हो गई और मलयाक ां ि की
तकिीवक, पाठयचयाा के प्रारुप के आगे-पीछे , ऊपर-िीचे घमु िे लगी। इस प्रकार के मलयाांकि
सांबांिी अध्ययिों को वकसी विशेष शैवक्षक कायाक्रम में क्या सीखा गया है और पाठयचयाा के एक
क्षेि विसकी विशेषता िणाािात्मक कौशल है, की सची के रुप में सचीबद् वकया िा सकता है।
क्रोिबैक(1975) िे सामान्य एिां पाठयचयाा मलयाक
ां ि सांबिां ी शैवक्षक शोिों की प्रार्वमकताएाँ उलटे
क्रम में कर देिे की बात की।
लेिी(1973) िे इस बात की ओर इशारा वकया वक पाठयचयाा मलयाांकि के ितामाि अिस्र्ा पर
चचाा करिा ज़्यादा तावका क होगा िो सैद्ाांवतक मॉडलों तर्ा अिप्रु यक्त ु शोि प्रविवियों में बहुत
ज़्यादा अतां र से र्रा पड़ा है। ये अतां र मख्ु य रुप से साइकोमेवरक और इलयवु मिेवटि तर्ा र्ाििाद एिां
प्रकृ वतिाद के मध्य है। फ्रासेर (1982) के पाठयचयाा मलयाांकि सावहत्य सांबांिी एिोटेटेड
वबबवलयोग्राफी पर दृवष्टपात करिे पर यह स्पष्ट होता है वक शोि विवि सबां िां ी यह भ्रम वकतिा
व्यापक है। एक तरफ बेस्तैि एिां सार्ी िैसे लेखकों िे अपिे आप को मख्ु य रुप से शोि की िवटल
समस्याओ ां िैसे- िाह्य िैिता का र्य और ‘उपचारों के भ्रामक प्रर्ाि’ को और ‘पररवस्र्वत के
प्रर्ाि’ को अलग करिे की आशा से िड़ु े मािते हैं तो दसरी ओर गबु ा(1978) और वस्मर्(1978)
िैसे लेखक खदु को अिसु ांिाि के प्राकृ वतक तरीके से िोड़कर देखते हैं तर्ा मािते हैं वक िो
पाठयचयाा प्रचलि में है उसका मलयाांकि, सहर्ागी अिलोकि के विणायों, सावहत्य एिां
अद्ााऐवतहावसक दस्तािेिों के आिार पर होिा चावहए। इस प्रकार, मलयाांकि अध्ययि, िब
‘सािारण अिर्ु िों’ को प्रसाररत करिे के बिाय ‘क्रमबद् अिर्ु िों एिां विचारों’ के प्रकाशि पर
बल देता है, तब शोि काया के समीप हो िाता है। स्िध्याय और स्िमलयाक ां ि, पाठयचयाा मलयाक ां ि
के वलए काफी प्रयोग में लाए िाते हैं। यह स्िमलयाांकि या स्िध्याय, पाठयचयाा सांबांिी वक्रयात्म्क
शोि से सांबद् हो सकते है। इिका सांबांि शोिकताा के पाठयचयाा मलयाांकि सांबांिी अपिे विचारों
को प्रकावशत करिे से र्ी होता है।

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अभ्यासप्रश्न
10. वमलाि करें
समह क समह ख
(अ) स्टेिहाउस(1981) (1) सामान्य एिां पाठयचयाा मलयाांकि सांबांिीशैवक्षक
शोिों की प्रार्वमकताएाँ उलटे क्रममें कर देिे की बात
की।
(ब) क्रोिबैक(1975) (2) पाठयचयाा सिु ार आदां ोलि िे शैवक्षक प्रणाली में
वित्तीय ससां ाििों के पिु विातरण को प्रदवशात वकया है।
(स) बेस्तैि (3) अिसु ांिाि के प्राकृ वतक तरीके सेसांबांवित।
(द) गबु ा(1978) (4) शोि की िवटल समस्याओिां सै े- व्िह्य िैिता का
र्य से सांबांवित।

6.4 पठ्यक्रम सांबांिी शोि की प्रिृवत Trends of Curriculum


Research
पाठयचयाा सांबांिी शोि के क्षेि में एक लांबी शृखांला होिे के बाििद िो सामान्य प्रिृवत है, िो
सख्ां यात्मक, एर्िोग्रावफक और वििेचिात्मक अध्ययि की है। कुछ सीमा तक हरमेिेवटक और
आइवडयोग्रावफक अध्ययिों को र्ी स्र्ाि वदया गया है। िैसा की िॉकर(1976) िे इवां गत वकया है
की यह एक अश ां है, क्योंवक पठ्यक्रम की िवटलता सत्य और रोचक पररकलपिाओ,ां वििको की
िााँचा िा सके , को बहुत ज़यादा मािा में िन्म िहीं देती है।
पाठयचयाा की समस्याओ ां के अध्ययि के वलए िाच
ां सह प्रमाण विवि र्ी अप्रत्यक्ष प्रयास के
अतां गात आते हैं।
कररकुलम को के स स्टडी िारा समझिे के प्रयास में िणािात्मक, विश्ले षणात्मक और प्रवक्रयात्मक
अध्ययि को शावमल वकया िाता है। इसके तहत विद्यालयों की के स स्टडी की िाती है। प्राकृ वतक
शोि र्ी बहुत प्रयोग में लाया गया है क्योंवक इसकी िैिता, िास्तविक कायास्र्ल पर वकए गए
अिलोकि की मिा पर विर्ार करती है।
इस प्रकार आप यह समझ सकते हैं वक पाठयचयाा सांबांिी शोि विवििताओ ां से र्रा हुआ है। इसएां
अिेक शोि प्रविवियों को स्र्ाि वदया गया है।

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6.5 साराांश
इस इकाई में पाठयचयाा सांबांिी शोि काया के क्षेि यावि वक स्कोप ऑफ कररकुलम ररसचा का िणाि
वकया गया है। इसके अतां गात पाठयचयाा सांबांिी शोि काया के क्षेि का अर्ा का िणाि वकया गया है
तर्ा क्षेि के अतां गात आिे िाले विवर्न्ि पहलओ ु ां की चचाा की गई है। इस इकाई में पाठयचयाा
सांबांिी शोि काया की प्रिृवत का र्ी िणाि वकया गया है।
चाँवक पाठयचयाा विरांतर पररितािशील है तर्ा वशक्षा प्रणाली के वलए महत्िपणा र्ी है। अतः, इस
विरांतर पररितािशील तथ्य को समझकर तर्ा पररिताि की मााँग को समझकर वशक्षा–प्रणाली को
समायोवित करिे के वलए इस इकाई का ज्ञाि अवत उपयोगी है।
इस इकाई में अतीत में यरोपीय एिां कुछ अन्य पवश्चमी देशों में हुए पाठयचयाा सांबांिी शोि काया को
आिार बिाया गया है विससे यह इकाई और र्ी उपयोगी हो िाती है।

6.6 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर


1. 12िीं
2. फ्लरे
3. 1695ई0
4. सांयक्त
ु राज्य अमेररका
5. सही
6. गलत
7. सही
8. सही
9. गलत
10. (अ) 2
(ब) 1
(स) 4
(द) 3

6.7 सांदर्ा ग्रांर् सची


1. Anderson, D.C. (1980).Evaluating Curriculum proposals : A critical
Guide. Wiley, NewYork.

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पाठ्यक्रम विकास Curriculum Development MAED-612 Semester IV
2. Bernstein, I. Bohrnstedt G. Brogalta E. , (1975). External validity and
evaluation research : A codification of problems. Soc. Methods res. 4.
3. Cremin, L. A. , (1971). Curriculum making in the united states teach.
Coll. Rec. 73, 20712.
4. Cronbach, L.J. (1975). Beyond the two Disciplines of Scientific
Psychology. Am. Psychol. 30, 116-27.
5. Frasser, B.J. (1977). Evaluating the intrinsic worth of curricular goals :
A discussion and anexample. J. Curric. Stud. 9 , 125-32.
6. Lewy, A. (1973). The practice of curriculum evaluation. Curric Theory
network 11, 6-33.
7. Rug, H.O.( 1927) The foundations of curriculum making. Twenty-sixth
yearbook of thenational society for the study of education . Part II,
Public school publishing.Bloomington, Illinois.
8. Schubert, W.H. (1980). Curriculum Books : the first eighty years :
context, commentary andbibliography. University press of America,
Lanham, Maryland.
9. Stenhouse, L.( 1981). Case study in educational research and
evaluation. Centre for appliedresearch in education (CARE), University
of East Anglia, Norwich.
10. Taylor, P.H. (1970). How Teachers Plan Their Courses : Studies In
Curriculum Planning, National foundation for educational research.
(NFER), Slough.
11. Walker, D.F. (1976). What curriculum Research? J. Corric. Stud. 5, 58-
72.
6.8 विबांिात्मक प्रश्न
1. पाठयचयाा सबां ांिी शोि के क्षेि से आप क्या समझते हैं?
2. पाठयचयाा सांबांिी शोि के एक क्षेि के रुप में पाठयचयाा मलयाांकि का िणाि करें ।
3. पाठयचयाा विमााण की िीवत सबां िां ी शोि से आपका क्या तात्पया है?
4. पाठयचयाा सांबांिी शोि की प्रिृवत का िणाि करें ।

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इकाई 7 र्ारत में पाठयचयाा सांबिां ी शोि

7.1 प्रस्ताििा
7.2 उद्देश्य
7.3 र्ारत में पाठयचयाा सबां िां ी शोि
7.4 र्ारत में पाठयचयाा सांबांिी हुए कुछ शोिकायों के उदाहरण
7.5 साराांश
7.6 अभ्यासप्रश्नों के उत्तर
7.7 सांदर्ा ग्रांर् सची
7.8 विबिां ात्मक प्रश्न

7.1 प्रस्ताििा
पाठयचयाा वशक्षा प्रणाली का सबसे महत्िपणा अगां है। यह वशक्षा की गणु ित्ता का वििाारक तत्ि है।
वशक्षा की गणु ित्ता अवां तम रुप से पाठयचयाा के व्यवक्तगत और सामाविक प्रासांवगकता तर्ा वशक्षण
सांस्र्ािों में इसके प्रर्ािपणा अिप्रु योग की सीमा पर विर्ार करता है। वशक्षा प्रणाली में पाठयचयाा
का प्रर्ािपणा अिप्रु योग तर्ी सर्ां ि है िब िह पाठयचयाा वशक्षा प्रणाली की आिश्यकता के
अिक ु ल हो। तात्पया यह है वक हमारी वशक्षा प्रणाली पररितािशील है और यह समाि एिां राष्र की
आिश्यकताओ ां के अिक ु ल पररिवतात होती रहती है। पाठयचयाा को र्ी उि पररितािों के अिक ु ल
पररिवतात करिा पड़ता है।
वशक्षा वकसी राष्र के सिाांगीण विकास के वलए रािपर् का काया करती है। विकास के विवर्न्ि पक्षों,
िैसे- सामाविक, आवर्ाक आवद में अिेक समािताएाँ होती है लेवकि इिकी अपिी कुछ विशेषताएाँ
र्ी होती हैं। इिकी ये विशेषताएाँ इिके पाठयचयाा में झलकिी चावहए और पाठयचयाा इि
विशेषताओ ां की प्रावप्त के वलए उपयक्तु होिा चावहए।प्रत्येक विद्यार्ी, विशेषतः वशक्षाशास्त्र के
विद्यार्ी को पाठयचयाा एिां पाठयचयाा सांबांिी शोि के सदां र्ा में िािकारी होिी चावहए। उपयाक्तु
तथ्यों को ध्याि में रखकर प्रस्ततु इकाई की रचिा की गई है। इस इकाई में र्ारत में हुए पाठयचयाा
सांबांिी कुछ शोि कायों पर प्रकाश डाला गया है तावक अध्येता उिसे अिगत हो सके ।
7.2 उद्देश्य
इस इकाई के अध्ययि के पश्चात् आप-
1. विद्यार्ी र्ारत में हो रहे पाठयचयाा सांबांिी शोिकाया की सांरचिा को समझ सकें गे

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2. विद्यार्ी र्ारत में वशक्षा के विवर्न्ि स्तरों पर हो रहे पाठयचयाा सांबांिी शोिकायों की
प्रिृवत का िणाि कर सकें गे
3. विद्यार्ी अविगम के विवर्न्ि क्षेिों मे हो रहे पाठयचयाा सबां िां ी विवर्न्ि शोिकायों का
र्ारतीय पररदृश्य में िणाि कर सकें गे
4. विद्यार्ी पाठयचयाा सांबांिी शोिकायों में प्रयक्त
ु होिेिाले प्रमख
ु शोि उपकरणों एिां प्रमख

शोि विवियों से अिगत हो सकें गे
5. विद्यार्ी पाठयचयाा के विवर्न्ि घटकों से सांबांवित शोिकायों की प्रिृवत से पररवचत हो
सकें गे।

7.3 र्ारत में पाठयचयाा सांबांिी शोि


र्ारत में पाठयचयाा सांबांिी शोिकाया एक ििीि घटिा है। इसका लगर्ग 57 िषों का अपिा एक
सांवक्षप्त इवतहास है। 57 िषों की इस अिवि में पाठयचयाा विमााण के क्षेि में अिेक शोिकाया हुए हैं।
ये शोिकाया बहुआयामी है और लगर्ग पाठयचयाा के प्रत्येक पहलु को समावहत वकए हुए हैं।
वकसी क्षेि विशेष की ओर शोिकतााओ ां का ध्याि कम या ज़्यादा रहा हो, ऐसा हो सकता है लेवकि
कोई र्ी पहल शोिकतााओ ां िे अछता िहीं छोड़ा है। इस बहुआयामी शोिकाया की प्रिृवत्त को
समझिे के वलए इसका विशद् अध्ययि अवत आिश्यक है।अध्ययि के सवु ििा की दृवष्ट से हम र्ारत
में अब तक हुए पाठयचयाा सांबांिी शोिकायों को मख्ु य रुप से पााँच र्ागों में बााँट सकते हैं। ये पााँच
र्ाग विम्िवलवखत हैं विसे हम पाठयचयाा सांबांिी शोिकाया की सांरचिा र्ी कह सकते हैं:

र्ारत में हो रहे पाठ्यक्रम सबां िां ी शोिकाया

वशक्षा के विवर्न्ि स्तर अविगम के क्षेि सांबांिी पाठ्यक्रम के तत्ि


सांबांिी शोिकाया शोिकाया सांबांिी शोिकाया

शोि उपकरण सांबांिी शोि पविवि सबां िां ी


शोिकाया शोिकाया

रे खावचि सांख्या-1

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1. वशक्षा के स्तर सांबांिी शोि – प्री-स्कल, प्रार्वमक कक्षाएाँ, माध्यवमक कक्षाएाँ, उच्चतर
माध्यवमक कक्षाएाँ, उच्च वशक्षा, समग्र तर्ा सामान्य;
2. अविगम के क्षेि सबां िां ी शोि – र्ाषा, गवणत, विज्ञाि, सामाविक विज्ञाि, काया अिर्ु ि,
व्यािसावयक/ तकिीवक वशक्षा; स्िास्र्य एिां शारीररक वशक्षा; ििसांख्या एि यौि वशक्षा,
समग्र एिां सामान्य;
3. पाठयचयाा के घटक – उद्देश्य एिां पाठ्यिस्त,ु अविगम अिर्ु ि, पाठ्यपस्ु तक, मलयाक ां ि,
शैक्षवणक सुवििाएाँ
4. शोि उपकरण सांबांिी शोि
5. शोि प्रविवि सांबांिी शोि।
वशक्षा के विवर्न्ि स्तरों पर पाठयचयाा सांबांिी शोिकाया
वशक्षा के विवर्न्ि स्तर पर पाठयचयाा सांबांिी शोिकाया की सांरचिा विम्िवलवखत है:
 प्री-स्कल(विद्यालय पिा)
 प्रार्वमक स्तर
 माध्यवमक स्तर
 उच्चतर माध्यवमक स्तर
 उच्च वशक्षा
 समग्र
 सामान्य

वशक्षा के विवर्न्ि स्तरों पर हुए पाठयचयाा सांबांिी शोिकायों का यवद अध्ययि वकया िाय तो यह
देखिे को वमलता है की पाठ्ययक्रम सांबांिी शोिकायों में, प्री-स्कल स्तर पर हुए शोिकायों का
स्र्ाि िगण्य है। इस तथ्य को िाििे के बाििद र्ी वक वकसी व्यवक्त के विकास के वलए यह एक
अवत महत्िपणा एिां सांिदे िशील अिस्र्ा है, यह सबसे उपेवक्षत रहा है। इस पर और ध्याि देिे की
आिश्यकता है।
प्रार्वमक स्तर पर सािााविक शोिकाया हुए हैं। सि् 1998 तक इि कायों का प्रवतशत 35% र्ा। और
इस क्षेि में विरांतर प्रगवत होती गयी है। इसका तात्पया यह है वक प्रार्वमक वशक्षा पर शोिकतााओ ां के
िारा उपयक्त
ु ध्याि वदया गया है। इसमें र्ी विम्ि प्रार्वमक वशक्षा पर ज़्यदा महत्ि वदया गया है।
माध्यवमक वशक्षा की ओर शोिकतााओ ां का रुझाि शरुु से हो रहा है। पाठयचयाा सांबांिी हुए समस्त
शोिकायों में इिका योगदाि लगर्ग 35.8% है। इससे से यह स्पष्ट होता है वक इस स्तर पर
पाठयचयाा विमााण को ज़्यादा महत्ि वदया गया है। हााँलावक इसमें उतार-चढ़ाि होते रहे हैं वफर र्ी
शोिकतााओ ां का पयााप्त ध्याि इस स्तर की ओर रहा है।

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उच्चतर माध्यवमक स्तर पर पाठयचयाा सांबांिी शोिकायों की सांख्या घती-बढ़ती रही है। सि् 1978-
83 की अिवि में िो सांख्या 3.7 % र्ी िो बढ़कर सि् 1983-88 में 14.1 % हो गई र्ी। सि्
1988-92 की अिवि में यह क्षेि अत्यांत ही उपेवक्षत रहा है। इससे तात्पया यह है वक इस स्तर पर
शोिकतााओ ां का रुझाि पररिवतात होते रहा है। लेवकि अवां तम रुप से इस स्तर को र्ी शोिकतााओ ां
िारा समवु चत सम्माि िहीं वदया गया क्योंवक बाद में इस क्षेि में और पति हुआ।
विद्यालय स्तर के समग्र पाठयचयाा सांबांिी शोिकाया को र्ी समवु चत स्र्ाि वदया गया है। सि्
1967-72 में 10%, सि् 1972-78 में 15.1%, सि् 1978-83 में 9.2%, सि् 1983-88 में 5.0%
शोिकाया इस क्षेि में हुए हैं। हााँलावक इसमें र्ी उतार-चाढ़ाि होते रहे हैं लेवकि वफर र्ी
शोिकतााओ ां का रुझाि इस ओर रहा है । ऐसा होिा र्ी चावहए क्योंवक विद्यालय स्तर का समग्र
पाठयचयाा , पाठयचयाा की समस्याओ ां को व्यापक पररदृश्य में देखता है ।
उच्च वशक्षा के स्तर पर शोिकतााओ ां का रुझाि हााँलावक पहले तो िहीं र्ा या बहुत कम र्ा लेवकि
िीरे -िीरे यह बढ़ता गया । सि् 1967-72 में 2.8%, सि् 1972-78 में 10.1%, सि् 1978-83 में
14.8% तर्ा सि् 1983-88 में यह 16.6% र्ा। सि् 1988-92 की अिवि में इस क्षेि में शोिकायों
की सांख्या 30% र्ी। इससे यह स्पष्ट होता है वक शोिकतााओ ां िे बाद में उच्च वशक्षा के स्तर पर
पाठयचयाा विमााण सांबांिी शोिकाया को स्र्ाि वदया । ितामाि पररदृश्य में देखा िाए तो प्री-स्कल
स्तर की ओर आि वबलकुल र्ी ध्याि िहीं वदया िा रहा है। प्रार्वमक और माध्यवमक वशक्षा की
ओर शोिकतााओ ां का रुझाि अर्ी र्ी बिा हुआ है। समस्त शोिकाया का लगर्ग 50% इस क्षेि में
हो रहे हैं। उच्च वशक्षा को र्ी महत्ि वदया िा रहा है तर्ा आिेिाले समय में पाठयचयाा विमााण के
महत्िपणा तत्ि की सची में इसका िाम र्ी शावमल हो िाएगा। सामान्य पाठयचयाा सांबांिी शोि की
र्ी कुछ ऐसी ही वस्र्वत है।

अभ्यासप्रश्न
1. उच्चतर माध्यवमक स्तर पर पाठयचयाा सांबांिी शोिकायों की सांख्या का प्रवतशत सि्
1983-88 में ................... र्ा।
2. उच्च वशक्षा के स्तर पर पाठयचयाा सबां िां ी शोिकायों की सख्ां या का प्रवतशत सि् 1967-
72 में .................... र्ा ।
3. 1967-72 में पाठयचयाा सांबांिी शोिकाया का ...................... प्रवतशत विद्यालय स्तर के
समग्र पाठयचयाा के क्षेि में हुआ र्ा।
4. वशक्षा के ....................... स्तर पर पाठयचयाा सांबांिी सिााविक शोिकाया हुए हैं।

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5. पाठयचयाा सांबांिी हुए समस्त शोिकायों में माध्यवमक स्तर पर ...................... प्रवतशत
शोिकाया हुए हैं।

अविगम के क्षेि सांबांिी शोिकाया


अविगम के विवर्न्ि क्षेि
 र्ाषा
 विज्ञाि
 गवणत
 सामाविक विज्ञाि
 ििसांख्या एिां यौि वशक्षा
 स्िास्थ्य एिां शारीररक वशक्षा
 काया अिर्ु ि, व्यािसावयक, तकिीवक एिां कृ वष वशक्षा
 मलय वशक्षा
 अविगम के समस्त क्षेि पर समािेशी

 र्ाषा- शोिकतााओ ां का रुझाि इस ओर प्रारांर् में तो बहुत अविक र्ा लेवकि बाद के िषों
मे इस तरफ से शोिकतााओ ां का रुझाि घटता गया। इस क्षेि में हुए शोिकायों पर दृवष्टपात
करिे से एक और बात स्पष्ट होती है वक इिमें से ज़्यादातर शोिकाया शब्दकोष या र्ाषा
विज्ञाि सांबांिी शोिकाया र्े। पाठयचयाा सांबांिी शोिकाया तो बहुत कम ही र्े।
 विज्ञाि- इस क्षेि में पाठयचयाा सबां िां ी शोिकायों की सांख्या घटती-बढ़ती रही है। सि्
1967-72 की अिवि में िो सांख्या 5.7% र्ी िो बढ़कर सि् 1978-83 में 23.9% हो गई
लेवकि सि् 1988-92 की अिवि में यह घटकर 13.04 % हो गया र्ा। चाँवक समय के
सार् विज्ञाि का महत्ि िीिि के हर क्षेि में बढ़ता िा रहा है, अतः इस क्षेि में शोिकायों
की सांखया बढ़िी चावहए। इस क्षेि में पयाािरण विज्ञाि के एक िए क्षेि को बल वमला है,
िो उत्साहििक है।
 गवणत- इस क्षेि की ओर शोिकतााओ ां के रुझाि में विज्ञाि की ही र्ााँवत वमली-िल ु ी प्रिृवत
रही है।
 सामाविक विज्ञाि- इस क्षेि को शोिकतााओ ां का प्रारांर् से ही कम रुझाि वमला है और यही
प्रिृवत बिी रही है।

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 ििसांख्या और यौि वशक्षा- ििसख्ां या एिां यौि वशक्षा के क्षेि में प्रारांवर्क िषों में तो
शोिकतााओ ां का ध्याि िहीं र्ा परांतु बाद के िषों में इस ओर इिका ध्याि खींचा। चाँवक
र्ारतीय विद्यालयों के पाठयचयाा में यह एक िई प्रविवष्ट र्ी इसवलए पाठयचयाा सांबांिी
शोिकायों में इसे सम्मािििक स्र्ाि वमलिा चावहए,लेवकि ऐसा है िहीं।
 स्िास्थ्य एिां शारीररक वशक्षा- इस क्षेि में पाठयचयाा सांबिां ी शोिकाया को बहुत ज़्यादा
महत्ि िहीं वदया गया है।अतीत में हुए 370 शोिकायों में वसफा 18 शोिकाया इस क्षेि से
सांबांवित र्े। इससे यह स्पष्ट होता है वक स्िास्थ्य एिां शारीररक वशक्षा के सांदर्ा में शोिकाया
हावसए पर वस्र्त है। इस क्षेि की ओर और अविक ध्याि की आिश्यकता है और इसके
वलए इस विषय़ से सबां वां ित वशक्षकों को शरुु आत करिी होगी।
 काया-अिुर्ि, व्यािसावयक, तकिीकी एिां कृ वष वशक्षा के क्षेि में पठ्यक्रम सांबांिी
शोिकायों की सांख्या लगर्ग वस्र्र रही है। कृ वष वशक्षा एिां व्यािसावयक वशक्षा की ओर
शोिकतााओ ां का ज़्यादा रुझाि रहा है। काया-अिर्ु ि पाठयचयाा में वबलकुल सीमा रे खा पर
वस्र्त है इसवलए शोिकतााओ ां का ध्याि इस ओर आकवषात िही हुआ है। तकिीकी वशक्षा
पर पहले से बहुत ज़्यादा ध्याि िहीं वदया गया र्ा लेवकि अब इस ओर ध्याि वदया िा रहा
है।
 मलय वशक्षा के क्षेि में बहुत बाद में पाठयचयाा सांबांिी शोिकाया प्रारांर् हुए लेवकि शीघ्र ही
इसिे शोिकतााओ ां की प्रार्वमकताओ ां की सची में अपिा स्र्ाि बिा वलया।
 अविगम के समस्त क्षेि पर समािेशी रुप से पाठयचयाा सांबांिी शोिकाया की ओर र्ी
शोिकतााओ ां का रुझाि र्ा। लेवकि उसमें उतार-चढ़ि होता रहा है । इस क्षेि में शोिकाया
होिा र्ी अवत महत्िपणा है।
पाठयचयाा के घटक सांबिां ी शोि काया
पाठयचयाा के विवर्न्ि घटक
 उद्देश्य एिां पाठ्यिस्तु
 अविगम अिर्ु ि
 पाठ्यपस्ु तक
 मलयाांकि
 शैक्षवणक सवु ििाएाँ
पाठयचयाा के घटक सांबांिी शोिकायों में प्रारांर् के कुछ िषों में सिााविक महत्िपणा स्र्ाि
शोिकतााओ ां िारा अविगम अिर्ु ि सांबांिी शोिकायों को वदया गया है। सि् 1967 से लेकर सि्
1988 तक इस क्षेि में हुए कुल शोिकायों की सांख्या 102 र्ी लेवकि इसके बाद इस क्षेि में

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शोिकतााओ ां का रुझाि वगरता गया । सि् 1988 से सि् 1992 तक की अिवि में वसफा एक शोि
काया इस क्षेि में हुआ । शोिकतााओ ां को इस क्षेि की ओर ध्याि देिा आिश्यक है ।
सर्ी घटकों पर सवम्म्मवलत रुप से काया करिे की प्रवत र्ी शोिकतााओ ां का रुझाि रहा है। सि्
1967-1988 की अिवि तक लगर्ग इस क्षेि में 80 शोिकाया हुए र्े । यह उत्साहििक प्रिृवत र्ी
और यह प्रिृवत बराबर बिी रही।
उद्देश्य और वसलेबस के क्षेि में शोिकायों की सांख्या में िृवद् और ह्रास की प्रिृवत दृवष्टगोचर हुई है।
प्रारांर् के िषों में इस क्षेि की ओर शोिकतााओ ां का रुझाि बहुत ज़्यादा र्ा। सि् 1967 से सि् 1978
तक की अिवि में इस क्षेि कुल 45 काया हुए र्े। लेवकि इसके बाद इस क्षेि में विरांतर ह्रास होता
गया है। सि् 1978-83 की अिवि में इस क्षेि में कुल 17 शोिकाया, सि् 1983-88 की अिवि में
14 तर्ा 1988-92 की अिवि में 2 शोिकाया इस क्षेि में हुए र्े। इस प्रकार पाठयचयाा का एक
महत्िपणा घटक लगातार उपेवक्षत होता गया है। एक प्रर्ािी पाठयचयाा बिािे के वलए शोिकतााओ ां
का इस ओर रुझाि होिा आिश्यक है।
पाठयचयाा का एक महत्िपणा घटक मलयाांकि र्ी है। इस क्षेि की ओर र्ी शोिकतााओ ां की रुवच में
उतार-चढ़ाि होता रहा है। सि् 1967-72 की अिवि में इस क्षेि में हुए शोिकायों की सख्ां या िहााँ
17 र्ी िो कालाांतर में घटते-घटते 1988-92 की अिवि में 6 हो गई र्ी। इस क्षेि में हो रहे
शोिकायों की सांख्या में विरांतर वगरािट ही आई है। यह वस्र्वत एक चेताििी है क्योंवक मलयाांकि
प्रवक्रया के वबिा कोई पाठयचयाा प्रर्ािी हो हीं िहीं सकता है।
पाठ्यपस्ु तकों के प्रवत शोिकतााओ ां का रुझाि र्ी विरांतर ह्रास की प्रिृवत प्रिवशत कर रहा है। विवर्न्ि
अिवि में पाठ्यपस्ु तकों के सबां ांि में हुए शोिकायों के प्रवतशत को यवद देखा िाए तो सि् 1967-78
में यह 12.8 % र्ा िो घटकर सि् 1988-92 में 4.35% रह गया र्ा । आगे र्ी इस प्रिृवत में ह्रास
दृवष्टगोचर हुआ है। लेवकि इस प्रिृवत में िृवद् के आसार वदख रहे है। पाठयचयाा सबां िां ी शोि का यह
क्षेि शोिकतााओ ां को अपिी ओर र्विष्य में आकवषात करे गा।
वशक्षक अिवु क्रया पाठयचयाा का एक िया घटक है विसकी ओर अर्ी शोिकताा आकवषात हो रहे
हैं। इसके अलािा अिदु ेशिात्मक प्रारुप एिां मॉड्यल ु र्ी पाठयचयाा का एक घटक है िो
शोिकतााओ ां को अपिी ओर आकवषात कर रहा है।

अभ्यासप्रश्न
6. पाठयचयाा के सर्ी घटकों पर सवम्म्मवलत रुप से सि् 1967-1988 की अिवि तक वकतिे
शोिकाया हुए र्े?
7. उद्देश्य और वसलेबस के क्षेि में शोिकायों की सांख्या में कै सी प्रिृवत दृवष्टगोचर हुई है?

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8. अतीत में हुए 370 शोिकायों में वसफा स्िास्थ्य एिां शारीररक वशक्षा से वकतिे शोिकाया
इस क्षेि से सांबांवित र्े?
9. र्ाषा के क्षेि में पाठयचयाा सबां िां ी शोिकायों के सदां र्ा में शोिकतााओ ां की प्रिृवत कै सी रही
है?
शोि के उपकरण
पाठयचयाा सांबांिी शोिकायों में विविि प्रकार के शोि उपकरणों का उपयोग वकया गया है। उिमें से
मख्ु य प्रश्नािली है विसका प्रयोग 39% शोिकायों में वकया गया है। साक्षत्कार और विषयिस्तु
विश्लेषण का र्ी प्रयोग पाठयचयाा सांबांिी शोिकायों में वकया गया है। इिका प्रयोग लगर्ग 26%
शोिकायों में वकया गया है। उपलवब्ि परीक्षण का 21.7% शोिकायों में उपयोग वकया गया है।
चेकवलस्ट, ओवपवियिआयर , व्यवक्तत्ि परीक्षण और सामान्य मािवसक योग्यता परीक्षण का र्ी
उपयोग इस क्षेि में वकया गया है। पाठयचयाा सांबांिी शोिकाया में सबसे कम प्रयक्त
ु वकए गए शोि
उपकरण, िैदाविक परीक्षण, अवर्िृवत्त परीक्षण अिसु ची आवद है। इस प्रकार यह कहा िा सकता है
वक पाठयचयाा सांबांिी शोि काया में, शोिकतााओ ां िारा प्रशिािली, साक्षात्कार और विषयिस्तु
विश्लेषण को समर्ाि वदया गया है।

शोि–प्रविवि
शोि-प्रविवि में पाठयचयाा सांबांिी शोिकायों में विवर्न्ि शोि प्रविवियों का प्रयोग शोिकतााओ ां
िारा वकया गया है। इिमें सािााविक प्रयक्त
ु विवि सिे विवि है। सि् 1967 से लेकर 1992 तक हुए
पाठयचयाा सबां िां ी विवर्न्ि शोिकायों में, उि शोिकायों वििमें वक सिे विवि का प्रयोग हुआ है का
प्रवतशत 47.83% है।
प्रयोग विवि दसरी सबसे ज़्यादा प्रयक्त
ु विवि है। इसका प्रवतशत उपयाक्तु अिवि में 25.14% रहा है।
हााँलावक इस विवि के प्रयोग के प्रवत शोिकतााओ ां का रुझाि घटता-बढ़ता रहा है वफर र्ी इस विवि
के प्रयोग को शोिकतााओ ां के मध्य एक सम्मािििक वस्र्वत प्राप्त है।
ऐवतहावसक विवि को शोिकतााओ ां िारा बहुत ज़्यादा महत्ि िहीं वदया गया है। मलयाक ां ि को र्ी
शोिकतााओ ां िारा एक विवि के रुप में प्रयक्त ु वकया गया है। हााँलावक इसका प्रयोग वमवश्रत प्रिृवत
वदखाता है अर्ाात इसके प्रयोग की मािा घटती-बढती रही है। ल्रेवकि इस अवस्र्र प्रिृवत के बाद र्ी
इसकी वस्र्वत सम्मािििक है और सि् 1967 से सि् 1992 तक हुए पाठयचयाा सांबांिी शोिकायों
में लगर्ग 13.5% शोिकायों में इसका प्रयोग हुआ है।
कुछ शोिकायों में सयां क्त
ु विवि अर्ाात् एक या अविक शोि विवियों का एक सार् प्रयोग वकया
गया है लेवकि इिकी सांख्या बहुत कम है। अब तक हुए पाठयचयाा सांबांिी शोिकायों में 6.75%
शोिकाया ऐसे हैं वििमें सांयक्त
ु विवि का प्रयोग वकया गया है।

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ु विश्वविद्यालय 90
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पाठयचयाा सांबिी शोिकायों में सबसे कम प्रयक्त
ु होिेिाली शोि विवि अिलोकि विवि है। वसफा
0.5% पाठयचयाा सांबांिी शोिकायों में इस विवि का प्रयोग वकया गया है। अिलोकि विवि शोि
के वलए एक शवक्तशाली है और इसका प्रयोग होिा चावहए। लेवकि दर्ु ााग्यिश ऐसा िहीं है।

अभ्यासप्रश्न
10. सि् 1967 से लेकर 1992 तक हुए पाठयचयाा सांबांिी विवर्न्ि शोिकायों में, उि
शोिकायों वििमें वक सिे विवि का प्रयोग हुआ है का प्रवतशत 47.83% है।(सही/गलत)
11. पाठयचयाा सबां िी शोिकायों में सबसे ज़्यादा प्रयक्त
ु होिेिाली शोि विवि अिलोकि
विवि है।(सही/गलत)
12. उपलवब्ि परीक्षण का 21.7% पाठयचयाा सबां िां ी शोिकायों में उपयोग वकया गया है।
(सही/गलत)
13. पाठयचयाा सांबांिी शोिकायों में प्रयक्त
ु शोि उपकरणों में मख्ु य, प्रश्नािली है। (सही/गलत)
14. ऐवतहावसक विवि को शोिकतााओ ां िारा बहुत ज़्यादा महत्ि वदया गया है। (सही/गलत)

7.4 र्ारत में पाठयचयाा सांबांिी हुए कुछ शोिकायों के उदाहरण


र्ारत में हुए पाठयचयाा सांबांिी विवर्न्ि शोिकायों में से दो शोिकाया का सांवक्षप्त िणाि विम्िवलवखत
है:
अरुि कुमार, पी., ए स्टडी ऑफ द एफे क्ट ऑफ ररऑगािाइविांग द प्रेस्क्राइब्ड कररकुलम फ्रेमिका
ऑि द कॉवम्बिेटोररयल ररिविांग एण्ड कांरोवलांग ऑफ िैररएबलस ऑि ग्रेड िाइन्र् स्टुडेन्टस,
पीएच0 डी0, ईडीय0ु , एमएसयु0 1985

इस अध्ययि के प्रमख ु उद्देश्य विम्िवलवखत र्े:


1. कक्षा 9 के विद्यावर्ायों के ररिविांग के स्तर का कॉवम्बिेटोररयल ररिविांग और चरों के
वियांिण के सांदर्ा में मलयाांकि करिा
2. विद्यावर्ायों में उपलब्ि ररिविांग स्तर के अिक ु ल बिािे के वलए पाठयचयाा के रसायि
शास्त्र विषय के र्ाग का पिु सांगठि करिे की दृवष्ट से मलयाांकि करिा
3. कॉवम्बिेटोररयल ररिविगां और चरों के वियिां ण के सदां र्ा में पाठयचयाा की सरां चिा के
पिु सांगठि के प्रर्ाि काितामाि पाठयचयाा सांरचिा की तल ु िा में, अध्ययि करिा
4. उपयक्त ु ररिविांग प्रारुप पर प्रीएसेसमेंट के प्रर्ाि का अध्ययि करिा
5. प्री मलयाक ां ि और रीटमेंट के मध्य अतां वक्राया का अध्ययि करिा।

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ु विश्वविद्यालय 91
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समस्या की िााँच सोलोमि फोर ग्रपु वडिाइि िहााँ बड़ोदा शहर के एक अग्रां ेिी माध्यम विद्यालय के
ििीं कक्षा के चार समह वलए गए वििमें विद्यावर्ायों के बाँटिारे के वलए कोई विवश्चत
विकष(क्राइटेररया) िहीं र्ा। प्रवतदशा की कुल सांख्या 204 र्ी विसमें 50, 52, 52 तर्ा 50 के 4
समह र्े। ये चारों समह आयु एिां बवु द् के स्तर पर समाि र्े। बवु द् परीक्षण के वलए ‘रािेि का
स्टैण्डडा प्रोग्रेवसि मैवरक्सेस’ का प्रयोग वकया गया र्ा । ‘ऑब्ििेशि ऑफ कॉगिेवटि प्रॉसेस इि
साइां स इसां रक्शि वसस्टम’ िाम के एक ऑब्ििेशि शेड्यल ु का र्ी प्रयोग शोिकताा िारा
अिदु श े िात्मक प्रवक्रया का अध्ययि के वलए वकया गया। विद्यावर्ायों के ररिविांग प्रारुप का अध्ययि
करिे के वलए, वपयािे के काया पर आिाररत िैदाविक साक्षात्कार का र्ी प्रयोग र्ी वकया गया।
आाँकड़ों के विश्ले षण के वलए गणु ात्मक तकिीवक एिां ‘टी-परीक्षण’ का प्रयोग वकया गया।
इस अध्ययि के पररणाम विम्िवलवखत है:
1. प्रस्तावित पाठयचयाा सांरचिा के पिु मला याांकि एिां अिदु श े ि के एक गवतशील मॉडल के
िारा उसके वक्रयान्ियि िे कॉवम्बिेटोररयल ररिविगां एिां चरों के वियिां ण को उि विद्यावर्ायों
की तल ु िा में िो प्रस्तावित पाठयचयाा पर आिाररत सामान्य कक्षाकक्ष वशक्षण पद्वत से
होकर गिु र रहे र्े, सकारात्म्क रुप से प्रर्ावित वकया है।
2. विद्यावर्ायों के ररिविगां प्रारुप के पिामलयाक ां ि(प्री एसेसमेंट) एिां रीटमेंट के बीच सार्ाक
अतां वक्राया है।
3. ररिविगां प्रारुप पर इवतहास एिां पररपक्िता का कोई असर िहीं पड़ता है।
उपयाक्त
ु विष्कषों के आिार पर यह कहा िा सकता है वक विद्यावर्ायों के ररिविांग पैटिा में
िृवद् के वलए ितामाि विज्ञाि विषय के पाठयचयाा को कॉवम्बिेटोररयल ररिविांग और चरों
के वियिां ण के सदां र्ा में पिु व्यािवस्र्त वकया िा सकता है।
कुमार, के 0 वटवचगां ऑफ पॉपल ु ेशि एिक ु े शि, पीएच0 डी0, साइको., आगरा वि0वि0, 1984.
इस शोिकाया की पररकलपिाएाँ विम्िवलवखत र्ी:
1. उच्च, मध्य एिां विम्ि सामाविक-आवर्ाक स्तर के प्रयोग एिां वियांवित समह के प्रयोज्यों के
पररिार वियोिि के प्रवत अवर्िृवत्त मापिी पर पिा एिां पश्च परीक्षण के प्राप्ताक ां ों के मध्य
कोई सार्ाक अतां र िहीं है।
2. ग्रामीण, उपिगरीय एिां िगरीय क्षेि के वियांवित एिां प्रयोगात्मक समह के प्रयोज्यों के
पररिार वियोिि के प्रवत अवर्िृवत्त मापिी पर पिा एिां पश्च परीक्षण के प्राप्ताांकों के मध्य
कोई सार्ाक अतां र िहीं है।
3. उच्च, औसत एिां विम्ि शैवक्षक पृष्ठर्वम िाले माता-वपता से सबां वां ित प्रयोज्यों के पररिार
वियोिि के प्रवत अवर्िृवत्त मापिी पर पिा एिां पश्च परीक्षण के प्राप्ताांकों के मध्य सार्ाक
अतां र िहीं है।

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4. उच्च, औसत एिां विम्ि सामाविक-आवर्ाक पृष्ठर्वम िाले प्रयोज्यों के पररिार वियोिि के
प्रवत अवर्िृवत्त मापिी पर पश्च परीक्षण के प्राप्ताांक के मध्य कोई सार्ाक अतां र िहीं है।
5. ग्रामीण, उपिगरीय एिां िगरीय क्षेि के वियवां ित एिां प्रयोगात्मक समह के प्रयोज्यों के
पररिार वियोिि के प्रवत अवर्िृवत्त मापिी पर पश्च परीक्षण के प्राप्ताांकों के मध्य सार्ाक
अतां र िहीं है।
6. उच्च, औसत एिां विम्ि शैवक्षक पृष्ठर्वम िाले माता-वपता से सबां वां ित प्रयोज्यों के पररिार
वियोिि के प्रवत अवर्िृवत्त मापिी पर पश्च परीक्षण के प्राप्ताक ां ों के मध्य सार्ाक अतां र िहीं
है।
प्रवतदशा के रुप में शोिकताा िे सि् 1982-83 के ििीं एिां दसिीं कक्षा के 360 विद्यावर्ायों का चयि
वकया गया र्ा िो 13-17 िषा की आयु के र्े।अध्ययि में प्री-टेस्ट पोस्ट टेस्ट एक्सपेरीमेंटल कांरोल
ग्रपु वडिाइि का प्रयोग वकया गया है।प्रयोगात्मक समह को सामान्य वशक्षा के सार्-सार् ििसांख्या
वशक्षा र्ी दी गई र्ी। पररिार वियोिि के प्रवत अवर्िृवत्त को एम0 ए0 हरवकि तर्ा यशिीर वसहां
िारा विकवसत “पररिार वियोिि के प्रवत अवर्िृवत्त मापिी” के िारा मापा गया।आाँकड़ों का
विश्ले षण करिे के वलए ‘टी-परीक्षण’ एिां सहसांबांि तकिीक का प्रयोग वकया गया र्ा।
अध्ययि के पररणाम विम्िवलवखत र्े:
1. सामाविक-आवर्ाक प्रवस्र्वत के कुछ पक्ष िैसे- वििास-स्र्ाि एिां माता-वपता के शैवक्षक
स्तर िे कांरोल ग्रपु के विद्यावर्ायों के पररिार वियोिि के प्रवत अवर्िृवत्त मापिी पर पिा एिां
पश्च परीक्षण के प्राप्ताांकों के मध्य सार्ाक अतां र वदखाए हैं।
2. ििसांख्या वशक्षा के वशक्षण का, पररिार वियोिि के प्रवत अवर्िृवत्त पर सार्ाक प्रर्ाि है।

7.5 साराांश
प्रस्ततु इकाई में र्ारत में हो रहे पाठयचयाा सांबांिी विवर्न्ि शोिकायों की प्रिृवत्त का िणाि वकया
गया है। पाठयचयाा सबां िां ी वितिे र्ी शोि काया हो चक ु े हैं या हो रहे है उिको मख्ु य रुप से पााँच
र्ागों में बााँटकर इस इकाई में प्रस्ततु वकया गया । ये पााँच र्ाग क्रमशः वशक्षा के विवर्न्ि स्तर,
अविगम के विवर्न्ि क्षेि, पाठयचयाा के विवर्न्ि घटक, पाठयचयाा सबां िां ी शोि में प्रयक्त ु उपकरण
एिां पाठयचयाा सांबांिी शोि में प्रयक्त ु शोि विवि है। शोिकायों की प्रिृवत्त को और अविक स्पष्टता
के सार् विद्यावर्ायों के समक्ष प्रस्ततु करिे के वलए इि पााँच र्ागों को विवर्न्ि उपविर्ागों में बााँटा
गया है। अतां में पाठयचयाा सबां िां ी शोिकाया के दो उदाहरण र्ी विद्यावर्ायों के वलए वदए गए हैं। इस
प्रकार, इस इकाई में पाठयचयाा सांबांिी शोिकायों की स्पष्ट व्याख्या करिे के का प्रयास लेखक िारा
वकया गया है। यह इकाई विद्यावर्ायों के वलए अवत उपयोगी है।

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7.6 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर
1. 14.1 %
2. 2.8 %
3. 10.00 %
4. प्रार्वमक
5. 35.8 %
6. 80
7. िृवद् और ह्रास
8. 18
9. वमली-िल ु ी
10. सही
11. गलत
12. सही
13. सही
14. गलत
7.7 सांदर्ा ग्रांर् सची
1. Buch, M..B., (1983-1988), Fourth survey of research in education,
Volume I,New Delhi: (NCERT)
2. Buch M..B.,(1988-1992), Fifth survey ofresearch in education, Volume
I, New Delhi:(NCERT)

7.8 विबांिात्मक प्रश्न


1. र्ारत में हो रहे पाठयचयाा सबां ांिी शोिकाया की प्रिृवत्त की सांरचिा का एक रे खावचिीय
प्रदशाि करें ।
2. र्ारत में अविगम के विवर्न्ि क्षेिों में हुए पाठयचयाा सांबिां ी शोिकायों की प्रिृवत्त का
िणाि करें ।
3. वशक्षा के विवर्न्ि स्तरों पर हुए पाठयचयाा सबां िां ी शोिकायों की प्रिृवत्त का िणाि करें ।
4. र्ारतीय पररदृश्य में, पाठयचयाा सांबांिी शोिकायों में प्रयक्त
ु शोि के उपकरणों एिां शोि
विवियों की प्रिृवत्त का सांवक्षप्त िणाि करें ।
5. पाठयचयाा के विवर्न्ि घटक को लेकर अब तक िो र्ी पाठयचयाा सांबांिी शोिकाया हुए
हैं, उिकी प्रिृवत्त का िणाि करें ।

उत्तराखण्ड मक्त
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इकाई 8: पाठयचयाा विकास से सम्बवां ित विवर्न्ि आयोग/सवमवतयों के सझु ाि

8.1 प्रस्ताििा
8.2 उद्देश्य
8.3 पाठयचयाा सरां चिा: एक सवां क्षप्त पररचय
8.4 आिादीपिा आयोग /सवमवतयों िारा पाठयचयाा पर सझु ाि
8.5 स्ितांिता के बाद के आयोग/सवमवतयों िारा पाठयचयाा पर सझु ाि
8.6 साराांश
8.7 शब्दािली
8.8 अभ्यासप्रश्नों के उत्तर
8.9 सदां र्ा ग्रर्ां सची
8.10 विबांिात्मक प्रश्न

8.1 प्रस्ताििा
पिा के इकाईयों में आप िे िािा वक पाठयचयाा से सम्बवन्ित शोि काया वकि वकि क्षेि में वकया
िाता है एिां र्ारत में विगत वदिों में पाठयचयाा पर वकस प्रकार के शोि काया हुए हैं।पाठयचयाा एक
ऐसा विषय है विस पर शोिकाया करिे से पहले शोिकताा को यह पता होिा चावहए वक यह शोि
वकस वदशा में होिा चावहए। शोि के वलए कौि कौि से वदशा-विदेशों का अिपु ालि आिश्यक हैं।
चाँवु क पाठयचयाा समाि का एक सम्पणा वचि प्रस्ततु करता है, इसवलए यह िरूरी है वक पाठयचयाा
में वकसी र्ी प्रकार का पररिताि या पररमािाि उस समाि के वलए वहतकारी हो। यह तर्ी सम्र्ि है
िब शोिकताा को यह पता रहे वक पाठयचयाा समाि के कौि कौि से पहलु से सम्बवन्ित है।
समय समय पर बिायें गये आयोग या सवमवतयााँ इन्ही बातों को ध्याि में रखकर पाठयचयाा पर
अपिा सझु ाि देते रहे हैं, विससे शोिकतााओ ां को एक वदशा-विदेश वमलता रहे और पाठयचयाा
सम्बवन्ित शोि काया और उन्ित तरीके से वकया िा सके ।
इसी बात को ध्याि में रखते हुए प्रस्ततु इकाई में आप लोग र्ारत में अलग-अलग समय पर स्र्ावपत
विवर्न्ि आयोग या सवमवतयों की पाठयचयाा सम्बवन्ित वसफाररशों को िािेंग।ें

उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 95
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8.2 उद्देश्य
इस इकाई का अध्ययि करिे के पश्चात आप-
1. विवर्न्ि आयोग ि उिके समयकाल को वचवन्हत कर सकें गे।
2. विवर्न्ि आयोग की पाठयचयाा सम्बवन्ित सझु ािों को सचीबद् कर सकें गे ।
3. विवर्न्ि आयोग की पाठयचयाा सम्बवन्ित सझु ािों की सवां क्षप्तीकरण कर सकें गे।
4. विवर्न्ि आयोग की पाठयचयाा सम्बवन्ित सझु ािों की समालोचिा कर सकें गे।
5. विवर्न्ि आयोग की पाठयचयाा सम्बवन्ित सझु ािों की तल
ु िा कर सकें गे।

8.3 पाठयचयाा सांरचिा: एक सांवक्षप्त पररचय


पाठयचयाा को सामान्यतः विषय रूपरे खा के रूप में ही अविक िािा िाता है। परन्तु यह अविकतर
लोग िहीं िािते वक पाठयचयाा वसफा विषय िस्तु या उसकी रूप रे खा िहीं है। आप िब वकसी
कक्षा में प्रिेश लेते हैं तो परे सि में वसफा विषय को िहीं पढ़ते, बवलक उसके सार् बहुत सारे काया र्ी
करते हैं, िैसे- पाठ्य सहगामी वक्रया आवद। िहीं उस विषय को पढ़ािे के वलए आपके वशक्षक
वशक्षण काया करते हैं और बाद में विषय पर आिाररत मलयाांकि र्ी होता है। मलयाक ां ि में यह देखते
है वक विषय पढ़के विि लक्ष्यों को प्राप्त करिा र्ा, िह आपिे प्राप्त वकया या िहीं।
अर्ाात, एक पाठयचयाा में विषय के सार्-सार् उसको पढ़ािे की विवि, उसको पढ़ािे का उद्देश्य,
उसकी मलयाांकि विवि एिां माध्यम र्ी महत्िपणा होते हैं। इसवलए िब र्ी आप पाठयचयाा का
उललेख करें गे, तर्ी स्ितः ही उसके सार् यह सब कारक चले आते हैं। वचि स0ां 1 से आप को
पाठयचयाा के विवर्न्ि अगां ो का पता चल िाएगा।

पाठ्यक्रम

उद्देश्य विषयिस्तु वशक्षण विवि मलयाांकि

माध्यम

वचि सांख्या 1

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पाठयचयाा के इन्ही अगां ो को ध्याि में रखते हुए यह देखिा िरूरी है वक विवर्न्ि आयोग एिां
सवमवतयों िे पाठयचयाा पर क्या क्या सझु ाि वदये हैं। आप लोग पायेंगे की प्रत्येक आयोग या
सवमवतयों िे पाठयचयाा के सर्ी अगां ो पर अपिी सस्ां तवु तयााँ िहीं दी हैं। िरि् उिकी सस्ां तवु तयाां
समयकाल पर आिाररत र्ी। अर्ाात स्ितांिता पिा समयकाल पर सझु ाि विषय एिां मलयाांकि
के न्िीत र्ी। िहीं स्ितां िता उत्तर काल में सझु ाि प्रायः पाठयचयाा के सर्ी अगां ो पर वदया गया र्ा।
अगले कुछ अिच्ु छे दों में आप लोग इन्ही आयोग एिां सवमवतयों मे से कुछ महत्िपणा आयोग एिां
सवमवतयों की सांस्तवु तयों को िािेंग।े

8.4 आिादीपिा आयोग /सवमवतयों िारा पाठयचयाा परसझु ाि


आिादी पिा वशक्षा से सम्बवन्ित आयोग एिां सवमवतयााँ मख्ु य रूप से वशक्षा के प्रचार एिां प्रसार के
वलए बिाए िाते र्े। इसवलए यह आयोग या सवमवतयााँ विषय स्तर, माध्यम एिां विस्तार पर ज्यादा
ध्याि देते र्े। पाठयचयाा के मलर्त अगां ो पर इिकी सांस्तवु तयााँ प्रायः िहीं वमलती हैं। अगले कुछ
अिच्ु छे दों में आपलोग इस समयकाल के कुछ महत्िपणा आयोग एिां सवमवतयों के सांस्तवु तयों को
िािेंग।े इस समयकाल के कुछ महत्िपणा आयोग एिां सवमवतयााँ विम्ि हैं -
1. िडु का घोषणापि
2. र्ारतीय वशक्षा आयोग (हण्टर कमीशि) 1882
3. लाडा किाि की प्रार्वमक वशक्षा िीवत में पाठयचयाा (1904)
4. 1905 से 1920 तक पाठयचयाा सिु ार
5. ििाा योििा 1937
6. प्रर्म आचाया िरे न्िदेि सवमवत (उत्तर प्रदेश)1939
7. सािेण्ट वशक्षा योििा (1944)

1. िडु का घोषणापि
उद्देश्य-िडु के घोषणापि में वशक्षा के उद्देश्यों को विम्ि प्रकार क्रमबद् वकया िा सकता है-
1. र्ारतीय ििता को आिवु िक िैज्ञाविक पद्वत से अग्रां ेिी र्ाषा, सावहत्य और विज्ञाि आदी
विषयों की वशक्षा प्रदाि करिा ।
2. र्ारतीय ििता का र्ौवतक एिाँ बौवद्क विकास करिा ।
3. कम्पवि की आवर्ाक प्रगवत में सहायता करिे के वलए समवु चत पररवस्र्वतयों का विमााण
करिा ।
4. सरकारी सेिाओ ां के वलए वशवक्षत कमाचारीयों को तैयार करिा ।
पाठयचयाा

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िडु िे अपिे सझु ाि में कहा र्ा की पाठयचयाा में बागल ां ा, सांस्कृ त, अरबी, फारसी र्ाषा के सार्
सार् अग्रां ेिी र्ाषा ि सावहत्य का वकया िाए । वकांतु पाठयचयाा में पाश्चात्य सावहत्य को ही प्रिािता
देते हुए यह व्यिस्र्ा की गई की छाि उसके प्रवत आकवषात हों । र्ोड़ी बहुत िावमाक वशक्षा की छुट
ईसाई वमशिरी विद्यालयों को प्रदाि की गई र्ी। बाइवबल का होिे अवििाया कर वदया गया र्ा ।
वशक्षण विवि
िावमाक वशक्षा के वलए उपदेश विवि की अिमु वत दी गई र्ी । शेष विषयों के वलए मौवखक ि
वलवखत विवियााँ एिाँ विज्ञाि आदी के वलए प्रयोगात्मक विवियों का समािेश वकया गया र्ा । उच्च
वशक्षा के वलए व्याख्याि विवि उत्तम मािी गई र्ी ।
हाईस्कुल तक की वशक्षा के वलए र्ारतीय प्रचवलत र्ाषायें स्िीकृ त र्ी । उच्च वशक्षा के वलए
अग्रां ेिी को ही स्िीकार वकया र्ा । िडु के अिसु ार र्ारतीय र्ाषाएाँ इतिी सशक्त और समृद् िहीं र्ीं
की उिमें विज्ञाि एिाँ पवश्चमी ज्ञाि की वशक्षा दी िा सके ।
2. र्ारतीय वशक्षा आयोग (हण्टर कमीशि) 1882
लॉडा रीपि िे र्ारत में 3 फरबरी, 1882 को एक सवमवत की वियवु क्त की, विसमें 20 सदस्य और
एक अध्यक्ष र्ा । इसमें र्ारतीयों और ईसाई वमशिरीयों का प्रवतविवित्ि र्ा । इसके अध्यक्ष
िॉयसराय की कायाकाररणी के सदस्य विवलयम हण्टर र्े ।
प्रार्वमक वशक्षा के क्षेि मे आयोग के सझु ाि विम्िित है -
उद्देश्य
1. वशक्षा िारा बालकों में स्िाबलम्बि और आत्मविर्ारता उत्पन्ि करिा ।
2. वशक्षा को ििसामान्य तक पहुचाँ ािा ।
3. वशक्षा को सामान्य िीिि के वलए उपयोगी बिािा ।
पाठयचयाा
आयोग के अिसु ार प्रार्वमक वशक्षा के पाठयचयाा में स्र्ािीय र्ाषा, सामान्य विज्ञाि, गवणत, कृ वष,
प्रार्वमक वचवकत्सा, बही-खाता, र्ौवतक विज्ञाि आवद विषयों को अवििाया होिा चावहए। इसके
अलािा कताई-बिु ाई, वसलाई आवद विषयों को व्यािसावयक विषय के रूप में पाठयचयाा में िोड़िे
की सांस्तवु त की गई र्ी।
प्रार्वमक वशक्षा के माध्यम के रूप में परम्परागत प्रचवलत स्र्ािीय र्ाषाओ ां को ज्यादा महत्ि वदया
गयार्ा।
माध्यवमक वशक्षा के क्षेि में आयोग का सझु ाि-
उद्देश्य-आयोग िे माध्यवमक वशक्षा के विम्िवलवखत उद्देश्य वििााररत वकये र्े-

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ु विश्वविद्यालय 98
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i. माध्यवमक वशक्षा िीििोपयोगी होिी चावहए।
ii. यह उच्च वशक्षा के वलए छािों को तैयार करें ।
पाठयचयाा
आयोग के माध्यवमक वशक्षा के पाठयचयाा को दो र्ागों में बााँटा र्ा। यह इस प्रकार है-
i. ‘अ’ िगा पाठयचयाा - इसका लक्ष्य वशक्षावर्ायों को विश्वविद्यालय में प्रिेश पािे योगय
बिािा र्ा।
ii. ‘ब’ िगा पाठयचयाा -इसका लक्ष्य विद्यावर्ायों को र्ािी िीिि के वलए तैयार करिा ि
स्िािलम्बी बिािा र्ा। इसमें विज्ञाि, कृ वष आवद विषयों को सवम्मवलत वकया गया र्ा।
प्रचवलत अग्रां ेिी को ही इस स्तर पर वशक्षा का माध्यम मािा गया र्ा।
उच्च वशक्षा के क्षेि में आयोग का सुझाि-
उद्देश्य-आयोग के अिसु ार उच्च वशक्षा के उद्देश्य विम्िित् र्े-
i. व्यवक्त की विवशष्ट योग्यताओ ां का विकास करिा।
ii. व्यािसावयक विषयों में पारांगत बिािा।
iii. िैवतक एिां चाररविक विकास करिा।

पाठयचयाा -उच्च वशक्षा के पाठयचयाा के विषय में आयोग िे कहा र्ा वक-
i. छािों को अपिी रूवच एिां योग्यता के अिसु ार विषय चयि की छट होिी चावहए।
ii. अविक से अविक विषयों को सवम्मवलत कर पाठयचयाा को व्यापकरूप वदया िािा
चावहए।
iii. छािों को िमा, माििता और िैवतकता का ज्ञाि कराया िािा चावहए।

वशक्षा के माध्यम के रूप में अांग्रेिी का ही प्रयोग करिे की सांस्तवु त आयोग िे की र्ी।

अभ्यास प्रश्न
1. र्ारतीय वशक्षा आयोग की स्र्ापिा वकसिे की?
2. 1882 के आयोग िे माध्यवमक पाठयचयाा को वकतिे र्ागों में बााँटा ?
3. वशक्षा के माध्यम से कम्पवि की आवर्ाक प्रगवत वक बात वकसिे की र्ी ?
4. र्ारतीय वशक्षा आयोगके अध्यक्ष िॉयसराय की कायाकाररणीके सदस्य ________ र्े

लाडा किाि की प्रार्वमक वशक्षा िीवत में पाठयचयाा (1904)

उत्तराखण्ड मक्त
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लाडा किाि िे गणु ात्मक विकास के तहत पाठयक्रम में सिु ार की वसफारीश की र्ी। उिका विचार
र्ा वक प्रार्वमक विद्यालयों का पाठयचयाा सरल ि होकर िृहद बिाया िाये। वशक्षा आयोग िे
पाठयचयाा को सरल बिाया र्ा, िो उसे पसन्द िहीं र्ा। उसिे वलखिे-पढ़िे और गवणत लगािे के
अवतररक्त पाठयचयाा में कृ वष को र्ी सवम्मवलत वकया। सार् ही सार् उसिे बालोद्याि पद्वत और
objective (िस्तवु िष्ठ) पद्वत को लागु करिे की सांस्तवु त की।
किाि की वशक्षा-िीवत सिाांगीण विकास की प्ररे क र्ी। उसिे माध्यवमक स्कलों के पाठयचयाा में
शारीररक व्यायाम को स्र्ाि वदया। िह िािते र्े वक ग्रामीण एिां शहरी िातािरणों में अन्तर होता है,
इसवलए पाठयचयाा विमााण करते समय िातािरण, समय-स्र्ाि, और आिश्यकताओ ां का ध्याि
रखा िाए। ग्रामीण क्षेि का पाठयचयाा शहर के पाठयचयाा से कुछ बातों में अिश्य वर्न्ि होिा
चावहए।
किाि के यह विचार बहु प्रसश
ां िीय र्े, परन्तु उन्हे लाग िहीं वकया गया।

4. 1905 से 1920 तक पाठयचयाा सिु ार


लॉडा किाि की वशक्षा िीवत का प्रार्वमक वशक्षा के विकास पर अच्छा प्रर्ाि पड़ा और 1905 से
1920 तक प्रार्वमक वशक्षा में सख्ां यात्मक ि गणु ात्मक विकास हुए। इस दौराि प्रमख
ु शैवक्षक
घतिाओमां ें गोखले वबल (1911), कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग (1917) एिां वशक्षा िीवत
(1915) मख्ु य है। इि सर्ी का सझु ाि पाठयचयाा के सन्दर्ा में इस प्रकार र्ा-

1. लोअर प्राईमरी पाठयचयाा में वचिकला, शारीररक व्यायाम, प्रकृ वत अध्ययि एिां गाांि के
िक्शे को विषयों के रूप में प्रयोगात्मक ढगां से पढ़ाया िाये।
2. गााँिएिां शहरी पाठयचयाा में आिश्यकताओ ां के अिसु ार अांतर होिा चावहए।
3. माध्यवमक वशक्षा में स्िास्थ्य वशक्षा ि विज्ञाि पढ़ाया िाये एिां अग्रां ेिी को माध्यम बिाया
िाए।
4. प्रार्वमक वशक्षा को अवििाया वकया िाए और गरीबों के वलए यह विःशलु क हो।
5. उच्च वशक्षा एिां शोि काया के वलए अविक सवु ििाएाँ प्रदाि करिा चावहये ।
6. स्िातक पाठयचयाा तीि िषीय होिा चावहए।
7. माध्यवमक पाठयचयाा विवर्न्ि प्रकार विवर्न्िताओ ां से यक्त ु होिा चावहए तर्ा इसमें
सावहत्य, विज्ञाि, गवणत, इवां िवियररांग, वचवकत्सा, कृ वष, िावणज्य आवद की वशक्षा
मातृर्ाषा अर्िा स्र्ािीय र्ाषा में होिा चावहए।
इि सबके अलािा हटााग सवमवत (1919) के अिसु ार वमवडल स्कलों का पाठयचयाा बहुत ही
सांकुवचत र्ा, इसे उत्तीणा करिे पर बालक िीविकोपािाि में असमर्ा रहता र्ा। यवद पाठयचयाा को

उत्तराखण्ड मक्त
ु विश्वविद्यालय 100
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उपयोगी बिा वदया िाता तो असफलता कम हो िाती। इसवलएसवमवत िे सझु ाि वदया वक वमवडल
स्कलों के पाठयचयाा में-
1. औद्योवगक तर्ा
2. व्यापाररक विषयों को स्र्ाि वदया िाए।

सवमवत िे हाईस्कल के पाठयचयाा में विविि प्रकार के विषयों को रखिे की सलाह दी तावक छाि
अपिी रूवच के अिक ु ल विषयों को छाटां सकें । इससे ग्रामीण क्षेिों में अविक अच्छा िातािरण
बिेगा और देहातों में पिु विमााण और पिु रोत्र्ाि की सम्र्ाििा बढ़ सके गी।

अभ्यास प्रश्न
5. बालोद्याि पद्वत लागु करिे की सांस्तवु त वकसिे की ?
6. लॉडा किाि के अिसु ार पाठयचयाा वकतिे प्रकार के होिे चावहये ?
7. 1917 शैवक्षक दृवष्ट से महत्िपणा है क्योंवक इस िषा ----------------- का गठि हुआ र्ा ।
i. वशक्षा िीवत
ii. हटााग सवमवत
iii. कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग
iv. गोखले वबल
8. हटााग सवमवत के अिसु ार पाठ्याक्रम में वकि वकि विषयों को स्र्ाि वदया िािा चावहये ?

ििाा योििा (1937)


इस सवमवत का विमााण 1937 में गॉांिी िी के शैवक्षक विचारों को ‘िई तालीम’ की योििा बिािे में
प्रयोग करिे के वलये वकया गया र्ा। इसके अध्यक्ष तत्कालीि ‘िावमया वमवलया’ के प्राचाया डॉ0
िावकर हुसैि र्े। पाठयचयाा के विवर्न्ि अगां ों पर इस सवमवत के सझु ाि इस प्रकार र्े -
उद्देश्य:
i. र्ारत के वलए एक सम्पणा वशक्षा पद्वत का विमााण करिा िो र्ारत की प्रगवत का मागा
प्रशस्त करें ।
ii. बालक का सिाांगीण विकास करिा तावक इिका शारीररक, मािवसक, सामाविक, शैवक्षक
एिां आवर्ाक विकास सम्र्ि पर हो सके ।
iii. बालकों में अच्छी िागररकता के गणु ों का विकास करिा विससे उिमें प्रेम, सद्भाि,
सहिशीतला, िैया, परोपकार, सत्यविष्ठा तर्ा सदाचार आवद लोकताांविक मलयों के प्रवत
गहरी विष्ठा हो सके ।
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iv. बालकों में सिोदय की र्ाििा का विकास करिा।
v. छािों का र्ारतीय मलयों और आदशों के अिसु ार िैवतक, चाररविक एिां साांस्कृ वतक
विकास करिा।
vi. छािों को अिश ु ावसत, स्िािलम्बी एिां पररश्रमी बिािा।
vii. छािों में र्ाििात्मक विकास के सार्-सार् व्यािसावयक वशक्षा को महत्ि देिा तावक छाि
आवर्ाक रूप से आत्मविर्र बि सकें ।
पाठयचयाा :
इस सवमवत के अिसु ार पाठयचयाा 7 िषा का होिा चावहए। सवमवत िे सम्पणा पाठयचयाा को दो
र्ागो में विर्ावित वकया र्ा, यर्ा-
1. बवु ियादी वशलप काया- इसके अन्तगात कृ वष, काष्ठकला, कताई-बिु ाई, चमड़े का काया,
मत्स पालि, कुम्हार का काया, बागिािी, फल सांरक्षण एिां स्र्ािीय हस्तकला आदी की
वशक्षा दी िािी र्ी विससे बालक र्विष्य में आवर्ाक आत्मविर्ारता प्राप्त कर सके ।।
2. शैवक्षक विषय- सवमवत के अिसु ार छािों को विम्िवलवखत विषयों का अध्ययि करिा
चावहए: मातृर्ाषा, गवणत, सामाविक अध्ययि, सामान्य विज्ञाि, प्रकृ वत अध्ययि, िन्तु
विज्ञाि, ििस्पवत विज्ञाि, रसायि विज्ञाि, शारीररक स्िास्थ्य विज्ञाि, खगोल विज्ञाि,
स्िास्थ्य और महाि व्यवक्तयों की िीिवियााँ , वहन्दी, गृह-विज्ञाि, कला एिां शारीररक
वशक्षा।
वशक्षण विवियााँ :
सवमवत िे दो प्रकार के विवियों को विशेष महत्ि वदया र्ा, िह इस प्रकार र्े-
i. वक्रया एिां अिुर्ि िारा सीखिा - इस विवि में वक्रया प्रिाि वशलप कलाओ ां को प्रमख
ु ता दी
गई र्ी। इि सबके िारा छािों को वमलिल ु कर सवक्रय रहिे का पयााप्त अिसर वमलिे की
सम्र्ाििा रहती है।
ii. सह सम्बन्ि िारा सीखिा- इस विवि के सहायता से वकसी एक वक्रया में सीखा गया ज्ञाि
दसरे काया में सहायक वसद् होता है। इसमें ज्ञाि को उत्पादि से िोड़े िािे के कारण वशक्षण
और उद्योगों में र्ी सम्बन्ि स्र्ावपत वकया िा सकता है।
ऊपर िवणात दोिों विवियों के अवतररक्त सैद्ावन्तक विषयों का अध्ययि, विरीक्षण, िाचि,
अवर्व्यवक्त, लेखि, मौवखक िाताालाप, आगमि-विगमि, विश्लेषण, अन्तदृावष्ट और अिक ु रण
विवियों आदी के माध्यम से र्ी वकये िािे का सझु ाि वदया गया र्ा।

प्रर्म आचाया िरे न्िदेि सवमवत (उत्तर प्रदेश)-1939:


1939 में आचाया िरे न्िदेि की अध्यक्षता में प्रार्वमक और माध्यवमक वशक्षा के पिु ागठि के वलए
सवमवत वियवु क्त की गई। सवमवत की पाठयचयाा सम्बवन्ित प्रमखु वसफाररशें इस प्रकार र्ी-

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1. माध्यवमक वशक्षा का पाठयचयाा पणा एिां स्ितांि हो।
2. माध्यवमक वशक्षा 6 िषा अििी के वलए हो।
3. िये कॉलेिों के पहले दो िषों का पाठयचयाा प्रार्वमक विद्यालयों के अवन्तम दो िषों िैसा
हो। अग्रां ेिी अवििायारूप से पढ़ायी िाये।
4. माध्यवमक स्कलों के पाठयचयाा में विम्िवलवखत विषय रखे िायें-
i. र्ाषा, सावहत्य, सामाविक विषय
ii. प्राकृ वतक विज्ञाि ि गवणत
iii. कला
iv. िावणज्य
v. तकिीवक एिां व्यिसावयक वशक्षा
vi. बावलकाओ ां के वलए गृह विज्ञाि
5. वशक्षा का माध्यम वहन्दस्ु तािी हों।
6. कॉलेिों में चररि-विमााण, राष्र-प्रेम, स्िालम्बि और समाि सेिा आवद के वलए अवतररक्त
कायाक्रमों की व्यिस्र्ा की िाए।
सािेण्ट वशक्षा योििा (1944)
यह ररपोटा यद्
ु ोत्तर वशक्षा योििा (PostWareducationScheme) के िाम से र्ी िािा िाता है।
इस योििा िे सम्पणा र्ारतीय वशक्षा की व्यिस्र्ा को 12 अध्यायों में प्रस्ततु वकया र्ा। पाठयचयाा
से सम्बवन्ित कुछ विशेष सझु ाि इस प्रकार र्े-
1. 3 से 6 िषा तक के पिा प्रार्वमक बेवसक स्कलों के बच्चों के वलए सामाविक अिुर्ि एिां
सदव्् यिहार की वशक्षा होिी चावहए ।
2. हाईस्कल दो प्रकार के होिे चावहए-
i. सावहवत्यक हाईस्कल एिां
ii. व्यािसावयक हाईस्कल
सावहवत्यक हाईस्कल में मातृर्ाषा, अग्रां ेिी, इवतहास, प्राच्य-र्ाषाएाँ, आुिविक र्ाषाएाँ, र्गोल,
गवणत, विज्ञाि, स्िास्थ्य-रक्षा, कृ वष, सांगीत, कला, अर्ाशास्त्र और िागररकशास्त्र आवद विषय पढ़ाये
िाएाँ।व्यािसावयक हाईस्कलों में व्यिहाररक विज्ञाि (appliedscience), काष्ठ कला, िातु कला,
अवर्याांिीकी, वचिकला आवद औद्योवगक विषय एिां बक ु कीवपांग, शाटा-हैण्ड, टाईवपांग, एकाउांटेंसी,
व्यापार-पद्वत िैसे व्यापाररक विषय पढ़ाये िायें।

अभ्यासप्रश्न
9. िरें ि देि सवमवत के अिसु ार माध्यवमक वशक्षा वकतिे अिवि वक होिी चावहये ?
10. वकस योििा के अिसु ार दो प्रकार के हाईस्कल होिा चावहये ?
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11. ‘िई तावलम’ वकिके विचारों पर आिाररत र्ी ?
12. डॉ ज़ावकर हुसेि वकस सांस्र्ा के अध्यक्ष र्े ?
13. ‘सिोदय की र्ाििा का विकास’ वकस सवमवत का उद्देश्य र्ा ?
14. ििाा वशक्षा योििा के अिसु ार वशक्षण की प्रमख ु विवि कौि सी र्ी ?

8.5 स्ितिां ता के बाद के आयोग/सवमवतयों िारा पाठयचयाा पर सझु ाि


1. विश्वविद्यालय वशक्षा आयोग (1948)
2. माध्यवमक वशक्षा आयोग (1952-53)
3. र्ारतीय वशक्षा आयोग (1964-66)
4. र्ारतीय वशक्षा िीवतयों में पाठयचयाा

विश्वविद्यालय वशक्षा आयोग (1948):


14 ििम्बर, 1948 को सीिे उच्च वशक्षा में सिु ार लािे के वलए र्ारत सरकार िे के वन्िय वशक्षा
सलाहकार पररषद (CABE) तर्ा अतां ाविश्वविद्यालय वशक्षा पररषद की सलाह पर एक
विश्वविद्यालय वशक्षा आयोग की वियवु क्त कीर्ी। इस आयोग के अध्यक्षता का र्ार प्रवसद्
वशक्षाविद डॉ0 एस0 रािाकृ ष्णि को सौंपा गया र्ा, इसवलए इसे रािाकृ ष्णि आयोग के िाम से र्ी
िािा िाता हैं ।
उद्देश्य:आयोग िे उच्च वशक्षा के उद्देश्यों को विम्िित सचीबद् वकया-
1. छािों में श्रेष्ठ माििीय सभ्यता का विकास करिा।
2. शारीररक एिां मािवसक रूप से स्िास्थ्य ि सामान्य व्यवक्तयों का विकास करिा।
3. िैयवक्तक विवर्न्िताओ ां के वसद्ाांत के आिार पर छािों के िैसवगाक गणु ों का पणा विकास
करिा।
4. छािों में राििीवतक िेतत्ृ ि क्षमता, प्रशासविक योग्यता, प्रौद्योवगकी में सहर्ावगता एिां
समाि के अन्य सामाविक क्षेिों में सहयोग र्ाि आदी गणु ों का विकास।
5. छािों में उत्कृ ष्ट िागररकता का विकास।
6. छािों में िैवतक एि-ां चाररविक विकास करिा।
7. र्ारत की गौरिशाली विरासत को सांरवक्षत रखिे की क्षमता उत्पन्ि करिा।
8. छािों में आध्यावत्मक र्ाििायें िागृत करिा।
9. छािों को राष्र के विकास के वलए अिश ु ावसत ि समवपात रहिे की प्रेरणा देिा।
पाठयचयाा :आयोग िे प्रचवलत पाठयचयाा के सन्दर्ा में विम्िाांवकत सझु ाि वदये र्े-
1. विश्वविद्यालय के पाठयचयाा को तीि र्ागों में विर्ावित वकया िाये, यर्ा-

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i. सामान्य वशक्षा िो प्रकृ वत, िीिि, न्याय और आध्यात्म से सम्बवन्ित ज्ञाि प्रदाि
करें ।
ii. उदारिादी वशक्षा िो स्ि-वििेक और स्र्ावपत सामाविक वियमों के अिसु ार
विवर्न्ि प्रकरणों पर स्िस्र् एिां रचिात्मक वचांति करिे की योग्यता प्रदाि करें ।
iii. व्यािसावयक वशक्षा िो एक सफल सामाविक, व्यािहाररक एिां आवर्ाक िीिि दे
सके ।

2. स्िातक पाठयचयाा कला एिां विज्ञाि िगा के वलए क्रमशः तीि िषा का होिा चावहए।
कला िगा में दो विषय समह के प्रत्येक से कम से कम एक विषय का चयि िरूरी र्ा। यह
समहु इस प्रकार र्े-
 समहु 1. शास्त्रीय या आिवु िक र्ारतीय र्ाषा, अग्रां ेिी, फ्रेंच या िमाि र्ाषा,
गवणत, फाईिआटास, इवतहास, दशाि।
 समहु 2. अर्ाशास्त्र, राििीवत शास्त्र, समािशास्त्र, मािि शरीर रचिा शास्त्र,
मिोविज्ञाि,अर्ाशास्त्र, र्गोल।
विज्ञाि िगा के छािों को र्ौवतक शास्त्र, रसायि शास्त्र, गवणत, ििस्पवत विज्ञाि, िन्तु
विज्ञाितर्ा र्गर्ा विज्ञाि में से दो विषयों का चयि िरूरी र्ा।

3. पी0एच0डी0 उपािी के वलए शोिार्ी का चयि अवखल र्ारतीय स्तर पर वकया िािा
चावहए।
4. स्िातक स्तर पर िावमाक वशक्षा दी िािी चावहए।
5. उच्च वशक्षा के माध्यम के रूप में वहन्दी एिां स्र्ािीय र्ाषा के प्रयोग करिे का सझु ाि आयोग
िे वदया र्ा। इस सम्बन्ि में आयोग िे कहा र्ा की वहन्दी को अन्य र्ाषाओ ां के प्रचवलत शब्दों
को ग्रहण कर लेिा चावहए एिां सर्ी र्ारतीय र्ाषाओ ां के वलए तकिीकी और िैज्ञाविक शब्दों
कीएक समरूप सचीकाविमााण वकया िािा चावहए। परन्तु माध्यवमक कक्षाओ ां में अग्रां ेिी का
वशक्षण पिाित चलते रहिा चावहए।

परीक्षा प्रणाली:तत्कालीि परीक्षा प्रणाली पर आयोग के सझु ाि विम्िित् र्े-


1. परीक्षा प्रणाली ऐसी होिी चावहए, विससे अवर्र्ािक अपिे बच्चों की शैवक्षक प्रगवत से
वियवमत रूप से अिगत होते रहें।
2. आतां ररक मलयाांकि के महत्ि को स्र्ावपत करिे के वलए बाह्य परीक्षाओ ां की सांख्या में कमी
की िािी चावहये।
3. िस्तवु िष्ठ मलयाक
ां ि के वलए समवु चत परीक्षाओ ां की सची में िृवद् की िािी चावहये।

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4. विबांिात्मक परीक्षाओ ां में समवु चत सांशोिि वकया िािा चावहए।
5. उच्च वशक्षा की कक्षाओ ां में प्रत्येक िषा के अांत में एक विश्वविद्यालय की परीक्षा होिी
चावहए।
6. परीक्षाओ ां में कृ पाांक की प्रर्ा समाप्त की िािी चावहए।
7. के िल स्िातकोत्तर एिां िृवत्तक पाठ्यक्रमों में ही मौवखक परीक्षाएाँ ली िािी चावहए।
8. प्रायोवगक विषय की परीक्षा में वलवखत, प्रयोगात्मक ि मौवखक तीिों प्रकार की परीक्षाएाँ
ली िािी चावहए।
9. सर्ी विश्वविद्यालयों के छािों के सफलता मािकों में यर्ा सम्र्ि समािता ि समरूपता
होिी चावहये।

अभ्यासप्रश्न
15. विश्वविद्यालय आयोग के अिुसार पाठ्याक्रम में वकतिे र्ाग होिे चावहये ?
i) 2 ii) 3 iii) 4 iv) 5
16. आयोग के अिसु ार पी.एच.डी. स्तर पर चयि कै से होिा चावहये ?
17. 1948 के आयोग के अिसु ार वशक्षा का माध्यम क्या होिा चावहये ?
18. आयोग के अिसु ार मौवखक परीक्षाएाँ वकस स्तर पर होिी चावहये ?
19. 1948 आयोग के अिसु ार परीक्षा में कृ पाांक की प्रर्ा होिी चावहये । (हााँ/िहीं)

माध्यवमक वशक्षा आयोग (1952-53)


के वन्िय वशक्षा सलाहकार पररषद िे र्ारत सरकार के सामिे माध्यवमक वशक्षा के वलए एक पणा एिां
सक्षम आयोग की वियवु क्त का प्रस्ताि रखा र्ा। 1951 में रखे गये इस प्रस्ताि के आिार पर सरकार
िे 15 वसतम्बर, 1952 को मिास विश्वविद्यालय के तत्कालीि कुलपवत डॉ0 ए0एल0एस0
मदु ावलयर की अध्यक्षता में माध्यवमक वशक्षा आयोग की वियवु क्त की। अध्यक्ष के िाम पर यह
मदु ावलयर कमीशि के िाम से र्ी िािा िाता है।

उद्देश्य:मदु ावलयर आयोग िे माध्यवमक वशक्षा के िो उद्देश्य वििााररत वकये र्े, िे इस प्रकार है-
i. छािों के व्यवक्तत्ि का पणा विकास विससे िे सामाविक, सास्ां कृ वतक, िैवतक एिां चाररविक
दृवष्ट से व्यिहार कुशल बि सकें ।
ii. छािों में लोकतांिीय वसद्ान्तों के प्रवत िागरूकता उत्पन्ि करिा तावक छािों में
समािता,सहयोग,िैया, सहिशीतला,िमाविरपेक्षता, र्ाईचारा, प्रेम, न्याय वप्रयता और
समाििादी वचांति का विकास हो सके ।

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iii. छािों में व्यािसावयक कुशलता का विकास करिा विससे िे अपिे िीिि को आवर्ाक दृवष्ट
से सफल बिा सकें ।
iv. छािों में िेतत्ृ ि शवक्त का विकास करिा तावक लोकतिां की िींि मिबत हो सके ।
v. छािों के िैवतक, चाररविक एिां आध्यावत्मक विकास पर पयााप्त िोर वदया िाये।

पाठयचयाा
माध्यवमक वशक्षा आयोग िे सिा प्रर्म माध्यवमक पाठयचयाा की ििीि सांकलपिा प्रस्तुत की र्ी।
आयोग के अिसु ार माध्यवमक पाठयचयाा िीििोपयोगी होिी चावहये एिां अपिे आप में एक इकाई
होिा चावहये। पाठयचयाा एैसा होिा चावहये िहााँ प्रत्येक विषय दसरे विषय से सह सम्बन्ि स्र्ावपत
कर सके और पाठयचयाा अिकाश का सदपु योग कर सके ।

आयोग िे विषयों की दृवष्ट से पाठयचयाा को दो र्ागों में विर्ावित वकया र्ा-


i. अवििाया विषय
ii. ऐवच्छक विषय

अवििाया विषयों में मातृर्ाषा या क्षेिीय र्ाषा एिां वहन्दी, प्रारवम्र्क अग्रां ेिी, उच्च अग्रां ेिी, एक
आिवु िक र्ारतीय र्ाषा, एक शास्त्रीय र्ाषा में से कोई एक र्ाषा चयि वकया िा सकता र्ा। इसके
अलािा सामाविक विज्ञाि, गवणत, सामान्य विज्ञाि एिां एक वशलप विषय पढ़ाये िािे का प्रस्ताि
र्ा। वशलप विषयों में कताई-बिु ाई, काष्ठकला, िातु काया, टांकण, वसलाई, कढ़ाई, बागिािी,
माडवलांग आवद सवम्मवलत र्े।

ऐवच्छक विषयों में 7 विषय समहु ों को प्राििाि र्ा। िे समहु इस प्रकार र्े-
िगा समह 1 (माििता शास्त्र): इसके अन्तगात एक शावस्त्रक र्ाषा विसे अवििाया विषय के रूप में ि
वलया गया हो, गवणत, इवतहास, र्गोल, सािारण अर्ाशास्त्र तर्ा िागरीक शास्त्र, सांगीत, सामान्य
मिोविज्ञाि ि तका शास्त्र तर्ा गृह विज्ञाि रखे गये र्े।
िगा समह 2 (विज्ञाि): इसमें रसायि शास्त्र, र्ौवतक शास्त्र, िीि विज्ञाि, शरीर विज्ञाि ि स्िास्थ्य
विज्ञाि, गवणत तर्ा र्गोल आवद रखे गये र्े।
िगा समह3 (तकिीकी):इसके अन्तगात व्यािहाररक गवणत तर्ा ज्यावमतीय ड्राइगां , याांविक
अवर्यावां िकी के तत्ि, विद्यतु ीय अवर्यावां िकी के तत्ि तर्ा व्यािहाररक विज्ञाि आवद विषय रखे
गये र्े।
िगा समह 4 (िावणज्य):इसमें कामवशायल प्रैवक्टस, िावणज्य र्गोल अर्िा अर्ाशास्त्र ि िागररक
शास्त्र के तत्ि तर्ा टांकण एिां आशलु ेखिे सवम्मवलत वकये गये र्े ।

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िगा समह 5 (कृ वष):इस िगा में सामान्य कृ वष, पशपु ालि, बागिािी एिां उद्याि, कृ वष रसायि एिां
ििवस्पत विज्ञाि से सम्बद् विषय सवम्मवलत वकये गये र्े।
िगा समह 6 (लवलत कलायें): लवलत कलाओ ां में वचिकला, ड्राइगां ि वडिाइविगां , कला इवतहास,
सांगीत, िृत्य तर्ा माडवलांग आवद कलायें सवम्मवलत की गई र्ी।
िगा समह 7 (गृह-विज्ञाि):यह विषय समह के िल बावलकाओ ां के वलये र्े।

वशक्षण विवि:वशक्षण विवि पर आयोग के सझु ाि विम्िित् र्े-


i. यह स्िािर्ु ि पर आिाररत होिा चावहये।
ii. विवियााँ प्रवतर्ाशाली, औसत एिां मन्दबु वद् आदी सर्ी छािों के वलए समाि रूप से
उपयोगी
होिी चावहए।
iii. वशक्षण विवियााँ बालकों में स्ि-प्रेरणा, स्ि-वक्रया तर्ा स्िाध्याय की प्रिृवत्त िागृत करिी
चावहए।
iv. इि विवियों के माध्यम से छािों में सामाविकता, प्रेम, सहयोग और वमल कर काम करिे
की र्ाििा उत्पन्ि होिी चावहये।
परीक्षा प्रणाली:माध्यवमक स्तर के परीक्षा प्रणाली में सिु ार के वलए आयोग िे विम्िावां कत सझु ाि
वदये र्े-
1. िास्तविक मलयाांकि के िल बाह्य परीक्षा िारा सम्र्िपर ि होिे के कारण इसकी सांख्या में
कमी की िािी चावहये।
2. माध्यवमक स्तर पर के िल एक अवन्तम बाह्य परीक्षा होिी चावहये ।
3. छािों की प्रगवत अवर्लेखों को अद्यति बिाये रखा िािा चावहये ।
4. विबन्िात्मक प्रश्न विचार प्रिाि बिाया िािा चावहये ।
5. िस्तवु िष्ठ प्रश्नों की सांख्या बढ़ाकर परीक्षा की विश्वसिीयता को बढ़ाया िा सकता है ।
6. छािों का मलयाांकि उिके िषा र्र के काया, व्यिहार, सिीय गवतविवियााँ तर्ा अन्य प्रकार
की उपलवब्ियों के आिार पर वकया िािा चावहये ।
7. आन्तररक परीक्षाओ ां के प्राप्ताक ां ो को र्ी महत्ि वदया िािा चावहये ।
8. ग्रेवडांग प्रणाली अपिाया िािा चावहये।
9. के िल एक विषय में अिुत्तीणा छािों के वलए परक परीक्षा का प्राििाि होिा चावहये ।
10. छािों का सांचयी अवर्लेख वियवमत रूप से बिाये िािे चावहये।

अभ्यास प्रश्न
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20. माध्यवमक वशक्षा आयोग को और वकस िाम से िािा िाता है ?
21. लोकतांि की िीिां मिबतु करिे के वलये क्या करिा चावहये ?
22. माध्यवमक वशक्षा आयोग के अिसु ार प्रत्येक विषय में आपसी सहसम्बिां होिा चावहये ।
(हााँ /िहीं)
23. आयोग िे ऐवच्छक विषयों को वकतिे विषय समहु ो में विर्ावित वकया ?
24. 'र्ाषा' िगा समहु आयोग के अिसु ार एक ऐवच्छक विषय समहु है । (हााँ / िहीं)

र्ारतीय वशक्षा आयोग (1964-66)


सि् 1964 में तत्कालीि वशक्षामिां ी र्ारत सरकार डॉ0 एम0सी0 छागला िे र्ारत की सम्पणा वशक्षा
व्यिस्र्ा पर िये वसरे से विचार करिे के वलए र्ारतीय वशक्षा आयोग (1964) के रूप में एक ििीि
आयोग की स्र्ापिा की।
इसके व्यापक उद्देश्य, स्िरूप और महत्ि के आिार पर इसे ‘वशक्षा आयोग’-1964-66 तर्ा
‘राष्रीय वशक्षा आयोग- 1964-66’ के िाम से र्ी िािा िाता है। अध्यक्ष डॉ. डी0एस0 कोठारी के
िाम पर यह आयोग ‘कोठारी कमीशि’ के िाम से र्ी प्रवसद् हुआ है।

उद्देश्य:
आयोग िे वशक्षा को राष्रीय महत्ि का उपकरण मािा है। इस आिार पर आयोग िे वशक्षा के वलए
िो र्ी राष्रीय लक्ष्य वििााररत वकये र्े िे विम्िित् हैं -
1. वशक्षा राष्रीय उत्पादि में सहायक होिी चावहये।
2. वशक्षा िारा समाि में लोकताांविक मलयों का प्रसार होिा चावहये।
3. वशक्षा को राष्रीय एकता तर्ा िमा-विरपेक्षता की स्र्ापिा में सहायक होिा चावहये।
4. वशक्षा िारा समाि और राष्रका आिवु िकीकरण वकया िािा चावहये।
5. वशक्षा में आिवु िकीकरण की प्रवक्रया को तीव्र वकया िािा चावहये।
6. वशक्षा िारा िागररकों के उत्तम चररि का विमााण वकया िािा चावहये।
7. वशक्षा िारा सामाविक, िैवतक एिां आध्यावत्मक मलयों की स्र्ापिा की िािी चावहये।
8. वशक्षा के माध्यम से राष्र का िैज्ञाविक, तकिीकी, औद्योवगक और व्यािसावयक विकास
वकया िािा चावहये।
पाठयचयाा :
आयोग िे प्रार्वमक वशक्षा के पाठयचयाा में पररिताि करते हुये कहा र्ा वक इसके अन्तगात बालकों
को खेलकद, कहािी, कविता, रचिात्मक काया, सामान्य व्यिहार, सफाई ि स्िच्छता तर्ा खािे-
पीिे-बोलिे का तरीका आवद वसखाया िािे चावहए।
माध्यवमक वशक्षा के पाठयचयाा के सन्दर्ा में आयोग िे विम्ि सझु ाि वदये र्े-
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i. विम्ि माध्यवमक वशक्षा के वलए- मातृर्ाषा, वहन्दी या अग्रां ेिी, विज्ञाि, गवणत, सामाविक
अध्ययि, काया अिर्ु ि, कला, सामाविक काया, िैवतक ि आध्यावत्मक वशक्षा एिां
स्िास्थ्य वशक्षा को विषय के रूप में वििााररत वकये िाये।
ii. माध्यवमक वशक्षा के वलए मातृर्ाषा, वहन्दी या कोई अन्य प्रावन्तय र्ाषा, एक यरोपीय या
शावस्त्रय र्ाषा, सामान्य विज्ञाि, गवणत, सामाविक विज्ञाि, काया अिर्ु ि, सामाविक
काया,कला,िैवतक तर्ा आध्यवत्मक वशक्षा एिां स्िास्थ्य वशक्षा आवद विषय सवम्मवलत
वकये िाये।
iii. उच्चतर माध्यवमक के वलये एक र्ारतीय र्ाषा, एक आिवु िक विदेशी र्ाषा तर्ा एक
शावस्त्रय र्ाषा में से कोई दो र्ाषायें तर्ा एक तीसरी र्ाषा, एिां विम्ि में से कोई दो विषय
सवम्मवलत करिे का सझु ाि र्ा। िे विषय इस प्रकार है- र्ौवतकी, रसायि शास्त्र, गवणत,
कला, इवतहास, र्गोल, मिोविज्ञाि, समािशास्त्र, तका शास्त्र, िीि विज्ञाि, गृह-विज्ञाि,
अर्ाशास्त्र तर्ा र्गर्ाशास्त्र।
उच्च वशक्षा के वलए आयोग िे कहा र्ा वक प्रर्म स्िातक पाठयचयाा तीि िषीय होिा चावहये तर्ा
स्िातक स्तर पर सामान्य, विवशष्ट एिां आिसा पाठयचयाा होिे चावहये। पाठयचयाा लचीला होिा
चावहये। पी0एच0डी0 उपािी के वलये छाि को 2 से 3 िषा तक का शोि काया करिे का अिसर
वदया िािा चावहये। विश्वविद्यालय स्तर पर सामाविक विज्ञािों के अध्ययि को स्तरीय रूप में वकये
िािे पर िोर वदया िािा चावहये। पाठयचयाा में ििीि विषयों को सवम्मवलत वकया िाये।
आयोग के अिसु ार वशक्षा का माध्यम मातृर्ाषा होिा चावहये। परन्तु अवखल र्ारतीय स्तर की
वशक्षण सांस्र्ाओ ां में अग्रां ेिी माध्यम का ही प्रयोग वकया िािा चावहये। वफर र्ी विद्यालय स्तर से ही
अग्रां ेिी के प्रयोग को प्रोत्साहि वदया िािा चावहये। आयोग िे विश्वविद्यालय स्तर पर वकसी र्ी र्ाषा
को अवििाया िहीं बिाये िािे का सझु ाि वदया र्ा। आयोग के अिसु ार उच्च वशक्षा में उदा र्ाषा को
प्रोत्सावहत वकया िािा चावहये।
वशक्षण विवि:
आयोग का यह सझु ाि र्ा की वशक्षकों को ििीि वशक्षण विवियों के प्रवशक्षण के वलए
कायाशालाओ,ां गोवष्ठयों तर्ा प्रवशक्षण कायाक्रमों का आयोिि वकया िाये। इसके अवतररक्त पिा
प्रार्वमक स्तर परबाल मिोविज्ञाि पर आिाररत खेल विवि तर्ा वक्रयात्मक विवि का प्रयोग वकया
िािा चावहये।
परीक्षा प्रणाली:
माध्यवमक स्तर में आयोग के अिसु ार प्रादेवशक स्तर पर एक सािािविक बाह्य परीक्षा होिी चावहये
विसका प्रबन्ि प्रदेश की माध्यवमक वशक्षा पररषद को करिा चावहये। इस स्तर पर वलवखत एिां
मौवखक दोिो प्रकार की परीक्षायें ली िािी चावहये। अन्य सझु ािों में आयोग िे कहा र्ा वक -
 परीक्षा यर्ा सम्र्ि िस्तवु िष्ठ बिाया िाये।
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 प्रयोगात्मक विषयों मेंप्रायोवगक परीक्षायें र्ी ली िािी चावहए।
 परीक्षा पररणाम ग्रेड प्रणाली के आिार पर घोवषत वकये िािे चावहये।
 प्रश्नपिों में विबन्िात्मक, दीघा-उत्तरीय, लघ-ु उत्तरीय तर्ा िस्तवु िष्ठ तीिों प्रकार के प्रश्न
सन्तवु लत रूप से वदये िािे चावहये।
उच्च वशक्षा के क्षेि में आयोग के अिसु ार-
 बाह्य परीक्षाओ ां के सार्-सार् आन्तररक परीक्षाओ ां एिां सतत् मलयाांकि िारा छािों की
क्षमताओ ां का पता लगािा चावहये।
 य0िी0सी0 को विरन्तर परीक्षा सिु ार के प्रयास करते रहिे चावहये। इिके वलए के न्िीय
परीक्षा सिु ार इकाई का गठि वकया िािा चावहये।
 वशक्षकों को मलयाक ां ि की ििीितम विवियों से अिगत कराया िािा चावहये।

र्ारतीय वशक्षा िीवतयों में पाठयचयाा :


राष्रीय वशक्षा िीवतयों में 1986 की राष्रीयवशक्षा िीवत को सबसे महत्िपणा मािा िाता है। इस िीवत
के अिसु ार वशक्षा का उद्देश्य इस प्रकार र्ा-
i. माििीय शवक्त (सांशोिि) को आिवु िक प्रगवतशील तकिीक के अिसु ार प्रवशवक्षत करिा।
ii. र्ारत की वशक्षा व्यिस्र्ा को आिवु िक यगु के िये िये व्यिसायों की चिु ौवतयों के अिरू
ु प
विकवसत करिा।
इस वशक्षा िीवत का आठिाां र्ाग विषय, वशक्षण विवि एिां परीक्षा प्रणाली से सम्बवन्ित र्ा। इसके
अिसु ार-
1. औपचाररक वशक्षा प्रणाली िारा देश की साांस्कृ वतक िरोहर की रक्षा करिी चावहए।
2. छािों को मलय वशक्षा दी िािी चावहए।
3. वशक्षा में आिवु िक सचां ार प्रौद्योवगकी का प्रयोग वकया िािा चावहए तावक आिश्यक
सचिाओ ां का ज्ञाि, वशक्षण प्रवशक्षण, शैवक्षक गणु ित्ता में िृवद् वकया िा सके ।
4. काया अिर्ु ि को सीखिे की प्रवक्रया का अवििाया अगां बिाया िािा चावहए।
5. विषय के माध्यम से पयाािरण सांरक्षण के प्रवत िागरूता उत्पन्ि वकया िािा चावहये ।
6. खेल को वशक्षा का अवििाया अगां बिाया िािा चावहये ।
7. परीक्षा प्रणाली में मलयाांकि प्रवक्रया को िैि, तर्ा विश्वसिीय बिाया िािा चावहए एिां
इसके वलए-
i. परीक्षा में आत्मविष्ठता को समाप्त वकया िाए।
ii. सांयोग िाले प्रश्नों को हटाया िाए।

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iii. रटिे के स्र्ाि पर समझिे पर िोर वदया िाये।
iv. परे सि के दौराि मलयाांकि प्रवक्रया चलते रहिा चावहए।
v. माध्यवमक स्तर से क्रमबद् रूप से सि प्रणाली लाग वकया िािा चावहये।
vi. मलयाांकि में अक ां ो के बिाए ‘ग्रेड’ प्रदाि वकया िािा चावहए।

अभ्यासप्रश्न
25. र्ारतीय वशक्षा आयोग (1964) के अध्यक्ष कौि र्े ?
26. र्ारतीय वशक्षा आयोग के अिुसार वशक्षा राष्रीय उत्पादि में सहायक होिी चावहये ।
(हााँ/िहीं)
27. आयोग िे उच्चतर माध्यवमक स्तर पर वकतिे र्ाषाओ ां के वशक्षण के वलये सझु ाि वदया र्ा?
28. आयोग के अिसु ार वशक्षा का माध्यम क्या होिा चावहये ?
29. आयोग िारा खेल-विवि का सुझाि वकस स्तर के वलये वदया गया र्ा ?
30. कें िीय परीक्षा सिु ार इकाई वकस स्तर पर गवठत वकया िािा चावहये ?
31. राष्रीय वशक्षा िीवत के अिसु ार मािविक शवक्त एक ससां ािि है । (हााँ/िहीं)
32. आत्मविष्ठता के िारा मलयाांकि प्रवक्रया िैि एिाँ विश्वसिीय होता है । (हााँ/िहीं)

8.6 साराांश
प्रस्ततु इकाई में आपिे िािा की िह कौि कौि से आयोग या सवमवतयााँ र्ी विन्होंिे पाठयचयाा के
सन्दर्ा में अपिी बहुमलय सांस्तवु तयाां दी र्ी। इिमें स्ितांिता पिा आयोग एिां सवमवतयााँ वशक्षा के
प्रचार-प्रसार पर ज्यादा के न्िीत र्ी। इन्होिे पाठयचयाा को मख्ु यरूप से विषय तक सवमवत रखा एिां
समय समय पर यह सझु ाि वदया वक वकस स्तर पर कौि सा विषय पढ़ाया िािा चावहए। माध्यम के
रूप में मख्ु यतः अग्रां ेिी को ही प्रोत्साहि वदया गया। परन्तु बाद में कुछ आयोग िे क्षेिीय र्ाषा के
महत्ि को यर्ोवचत सम्माि प्रदाि करते हुए उिको र्ी माध्यम के रूप में प्रयोग करिे का सझु ाि
वदया। स्ितांिता पिा ििाा वशक्षा आयोग इि सर्ी से कुछ अलग वदखाई पड़ता हैं। यह एक माि ऐसा
प्रयास है िहााँ पर स्िाध्याय एिां स्िािर्ु ि पर ज्यादा िोर वदया गया।
स्ितिां तोत्तर काल में आपिे िािा वक सबसे पहले उच्च वशक्षा के वलए आयोग बिाया गया र्ा।
इसमें सरकार की यह कमी वदखती है वक सरकारी स्तर पर प्रार्वमक एिां माध्यवमक वशक्षा वक
अिहेलिा की गई र्ी। बाद में इस गलती को सिु ारते हुए माध्यवमक वशक्षा आयोग का गठि वकया
गया। उच्च वशक्षा आयोग एिां माध्यवमक वशक्षा आयोग वशक्षा से सम्बवन्ित सब कवमयों को दर
िहीं कर पाया र्ा, इसवलए 1964 में र्ारतीय वशक्षा आयोग का गठि वकया गया र्ा। इस आयोग िे

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वशक्षा के हर क्षेि में अपिी सझु ाि वदए र्े। बाद में राष्रीय वशक्षा िीवत के माध्यम से वशक्षा
सम्बवन्ित सझु ािों को यर्ा सम्र्ि कायाावन्ित करिे की कोवशश की गई र्ी।

8.7 शब्दािली
1. CABE: यह एक ऐसीसांस्र्ा है िो विकास में अग्रणी र्वमका विर्ाती है तर्ा शैवक्षक
िीवतयों और कायाक्रमोंकी मािीटररांग करतीहै।
2. िई तावलम: िई का अर्ा है िया और तावलम एक उदा शब्द है विसका अर्ा है वशक्षा । िई
तावलम एक आध्यावत्मक वसद्ाांत पर आिाररत सम्प्रत्यय है िो यह कहता है वक ज्ञाि एिाँ
काया एक दसरे से वर्न्ि िहीं है ।
3. सहसम्बांि:वकन्ही दो या अविक चरों (मािाओ)ां के मध्य एक विवश्चत समयकाल में अलग
अलग प्रकार एिाँ मािा में होिे िाले सम्बिां ।
4. िस्तवु िष्ठ: िह िस्तु या ज्ञाि या सम्प्रत्यय िो स्र्ाि, काल एिाँ पाि विशेष के बदलिे पर र्ी
िहीं बदलता
8.8 अभ्यास प्रश्नों के उत्तर
1. लॉडा रीपि
2. 2
3. िडु के घोषणा पि िे
4. विवलयम हण्टर
5. लाडा किाि िे
6. 2
7. कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग
8. औद्योवगक एिाँ व्यापाररक विषय
9. 6 िषा
10. सािेण्ट वशक्षा योििा
11. गाांिी िी के
12. िावमया वमवलया
13. ज़ावकर हुसैि सवमवत / ििाा वशक्षा योििा
14. वक्रया ि अिर्ु ि िारा वशक्षण एिाँ सहसम्बिां िारा वशक्षण
15. 3
16. अवखल र्ारतीय स्तर पर परीक्षा के माध्यम से
17. वहदां ी एिाँ स्र्ािीय र्ाषा

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18. स्िातकोत्तर एिाँ िृवत्तक पाठयचयाा में
19. िहीं
20. मदु ावलयर कमीशि
21. िेतत्ृ ि शवक्त का विकास
22. हााँ
23. 7
24. िहीं
25. डॉ. डी. एस. कोठारी
26. हााँ
27. 3
28. मातृर्ाषा
29. पिा प्रार्वमक स्तर
30. उच्च वशक्षा स्तर पर
31. हााँ
32. िहीं
8.9 सांदर्ा ग्रांर् सची
1. विपाठी, शावलग्राम (2005), र्ारतीय वशक्षा का इवतहास, रािा पवब्लके शन्स, िई वदलली.
2. शील, अििींि (2005), र्ारतीय वशक्षा का विकास एिाँ समस्यायें, सावहत्य रत्िालय,
कािपर
3. चौबे, सरयप्रसाद एिाँ चौबे, अवखलेश (2008), र्ारतीय वशक्षा का इवतहास, र्िदीय
प्रकाशि, अयोध्या, फै ज़ाबाद.
4. ReportofUniversityEducationCommission
(1948),ManagerofPublications,Allahabad
8.10 विबांिात्मक प्रश्न
1. स्ितिां ता पिा आयोगों या सवमवतयों िारा पाठयचयाा सिु ार पर वटप्पिी करें ।
2. विश्वविद्यालय वशक्षा आयोग िारा वदये गये सझु ाि ितामाि में वकतिे प्रासांवगक है ?
3. र्ारतीय वशक्षा आयोग (1964 - 66) एिाँ ििाा योििा में समािता क्या क्या है ?
4. स्ितांिता उत्तर काल एिाँ स्ितांिता पिा काल के आयोगों के सझु ािों का तल ु िात्मक
वििेचि करें ।

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