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अनक्र

ु मणिका

क्रमाक

विवरण

पष्ृ ठ संख्या

1.प्रस्तावना

2.सम्बन्धित साहित्य का सर्वेक्षण

3.अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्व

4.समस्या कथन

5.प्रयक्
ु त शब्दों का परिभाषीकरण

6.अध्ययन के उद्दे श्य

7.अध्ययन की परिकल्पना

8.अध्ययन की शोध प्रविधि

9.शोध जनसंख्या

10.शोध न्यादर्श

11.शोध उपकरण

12.अध्ययन की सांख्यिकी विधियां

13.सीमांकन

14.सन्दर्भ
1

प्रास्तावना :-

व्यक्ति, समाज और राष्ट्र सभी के विकास का मल ू आधार शिक्षा है । विचारकों के अनस ु ार


शिक्षा शब्द में ही नैतिकता का भाव निहित है । शिक्षा, शिक्षण अधिगम एवं प्रशिक्षण का
मख्
ु य कार्य व्यवहार में परिवर्तन लाना है । शिक्षा, विद्या, ज्ञान का मख्
ु य फल कर्म है ।

कर्म या व्यवहार में व्यवस्था आवश्यक है । पशओ ु ं के व्यवहार को प्रकृति व्यवस्थित कर


दे ती है । हम, मनष्ु यों में भी अनेक व्यवहार नैसर्गिक उत्तेजनाओं से प्रेरित एवं व्यवस्थित
होते हैं। सामाजिक जीवन में अनक ु रण द्वारा ही हम व्यवहार को व्यवस्थित करते हैं और
नीति भी हमारे कर्मों का संचालन कर उन्हे व्यवस्थित करती है । नीति यक् ु त कर्म एवं
प्रकार का कर्ज है , साधारणतः हम माता-पिता जाति, समाज, जनपद, राष्ट्र या ईश्वर को
कर्जदार मानते है और हमारे नैतिक कर्म इन्ही की ओर उन्मख ु होते हैं बालक को हम इन
नैतिक कर्म की जानकारी नैतिक मल् ू यों की शिक्षा के माध्यम से दे ते हैं।

डॉ० एस० राधाकृष्णन नैतिकता को व्यक्ति के बौद्धिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक


उन्नति के विकास का आधार मानते थे। उनके विचार में नैतिकता, सद्गण ु ों का समन्वय
मात्र नहीं है । वरन ् एक व्यापक गण
ु है तथा इसका प्रभाव मनष्ु य के समस्त क्रिया-कलापों
पर होता है । इससे हमारा व्यक्तित्व प्रभावित होता है ।

पं० मदन मोहन मालवीय के अनस ु ार "नैतिकता, मनष्ु य की उन्नति का आधार है ।


नैतिकता से रहित व्यक्ति पशओ
ु ं से भी निकृष्ट है ।"

नीति, कर्म का मनोविज्ञान है तथा कर्म, शीतल नैतिकता का सत ् असत ् विवेचन है ।


कुमार्ग से हटकर सद्मार्ग में ले चलना ही नीति है । नैतिक मल्
ू य नियमों
2

का एक सेट है । जो व्यक्ति को निर्देशित करता है सही तथा गलत के मल्


ू यांकन के लिए।

शिक्षा प्राप्ति का औपचारिक अभिकरण विद्यालय है और विद्यालय वातावरण बालक के


सर्वांगीण विकास में प्रमख
ु भमि
ू का निभाता है । विद्यालयी शिक्षा तथा वातावरण ही
बालकों के भविष्य का निर्धारण करते हैं।

“ विद्यालय एक ऐसा विशिष्ट वातावरण है जहाँ जीवन के निश्चित गण ु और कुछ विशेष


प्रकार की क्रियाओं और व्यवसायों की शिक्षा इस उद्दे श्य से दी जाती है कि बालक का
विकास वांछित दिशा में हो।"

जोन डी० वी० के अनस


ु ार - ऐसी सामाजिक संस्थाओं को विद्यालय कहते हैं जहां ऐसा
वातावरण हो कि बालकों में वांछित गण
ु ों और शक्तियों का विकास किया जा सके।
विद्यालय ही एक ऐसा स्थान है जिसके वातावरण में शैक्षिक प्रबंध, शिक्षार्थियों का
सर्वागीण विकास शैक्षिक प्रक्रिया द्वारा सम्पन्न किया जा सकता है ।

2. सम्बन्धित साहित्य का सर्वेक्षण -

शर्मा, पी० एवं के मक


ु े श (2006) ने उच्च माध्यमिक विद्यार्थियों में मल्
ू य प्रतिमान का
अध्ययन किया-

उद्दे श्य-

उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में अध्ययनरत बालक एवं बालिकाओं में नैतिक मल्
ू य
प्रतिमान लगाना।

3.
- उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में अध्ययनरत वाला वर्ग के विद्यार्थियों में नैतिक
मल्
ू य का अध्ययन करना।

निष्कर्ष-

उच्चतर माध्यमिक स्तर वो वाला वर्ग के छात्र-छात्रायें मल्ू यों की अपेक्षा सामाजिक,
सख ु वादी और स्वास्थ्य मल्
ू यों की ओर अधिक झक ु ाव रखते हैं तथा छात्र- छात्राओं के
प्रजातांत्रिक, आस्था व परिवारिक प्रतिष्ठा मल्
ू यों में कोई अंतर नहीं है ।

बेन्जामिन, (2011) ने उच्च माध्यमिक स्तर पर विद्यार्थियों के नैतिक मल्


ू यों पर
संस्थागत परिवेश के प्रभाव का अध्ययन किया-

निष्कर्ष- उच्च परिवेश वाले विद्यालय के विद्यार्थियों में नैतिक मल्


ू य मध्यम विद्यालयों
के विद्यार्थियों से अधिक थे तथा उच्च व मध्यम विद्यालयी परिवेश वाले विद्यार्थियों में
बालिकाओं में नैतिक मल् ू य बालकों से अलग थें।

शर्मा, (2012) ने नैतिक मल्


ू यों एवं सामाजिक सफलता के मध्य सहसम्बन्धों का
तल
ु नात्मक अध्ययन किया

निष्कर्ष-

निम्न की उपेक्षा उच्च सामाजिक- आर्थिक स्तर के विद्यार्थियों के नैतिक मल्


ू यों का स्तर
सार्थक रूप में उच्च है ।

ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्र के विद्यार्थियों के नैतिक मल्


ू यों तथा सामाजिक सफलता का स्तर
सार्थक रूप से उच्च है ।
4.

वी० चन्द्रशेखर (2002) ने चिन्ता, सामाजिक स्तर तथा विद्यालयी वातावरण पर एक


अर्न्तसम्बन्धित अध्ययन किया और पाया कि चिन्ता सामाजिक आर्थिक स्तर तथा
विद्यालयी वातावरण का पठन समझदारी पर सार्थक सामहि ू क प्रभाव है ।

श्रीवास्तव, निशा व सिंह (2014) ने विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि पर विद्यालय


वातावरण के प्रभाव का अध्ययन किया-

निष्कर्ष-

- विद्यालय वातावरण शैक्षिक उपलब्धि को प्रभावित करता है ।

अशासकीय विद्यालयों में शासकीय विद्यालयों की अपेक्षा विद्यालय परिसर स्वच्छ,


शान्त व अनश
ु ासित होता है ।

शर्मा (2014) ने माध्यमिक विद्यार्थियों में नैतिक मल्


ू यों के प्रति अभिवत्ति
ृ का अध्ययन
किया।

निष्कर्ष-

नैतिक मल् ू यों के प्रति शहरी विद्यालयों के छात्र- छात्राओं व ग्रामीण विद्यालयों के
छात्र-छात्राओं में कोई अन्तर नहीं है ।
सरकारी व गैर सरकारी विद्यालयों के छात्र- छात्राओं को नैतिक मल्
ू यों में कोई सार्थक
अन्तर नहीं है ।

3. अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्व -

वर्तमान यगु नित बदलते मल् ू यों, बढ़ती वैज्ञानिक तथा तकनीकी क्षमताओं और शैक्षिक
संस्कृति का यग
ु है । उच्च माध्यमिक स्तर के किशोरों के नैतिक मल्ू य उनके

5.

परिवार, आर्थिक स्तर और सामाजिक दायरे की एक अभिव्यक्ति होती है । इन किशोरों को


विद्यालयी वातावरण में अन्य सहपाठियों के साथ अपने व्यवहार का समायोजन कर
शैक्षिक क्षेत्र में आगे बढ़ना होता है । इस अंतरसंबन्ध के अध्ययन द्वारा विद्यार्थियों के
आदर्श नैतिक मल् ू यों का विकास कर सामाजिक तथा राष्ट्रीय जीवन में उनके योगदान को
विस्तारित कर आदर्श समाज व आदर्श राष्ट्र का निर्माण कर मानवता को गति एवं संबल
प्रदान किया जा सकता है ।
प्रस्तत
ु शोध अध्ययन से उच्च माध्यमिक स्तर के बालकों में नैतिक गण ु ों का विकास
करके उन्हे करूणा, सम्मान, दयालतु ा और विनम्रता जैसे गण
ु ों के साथ एक सकारत्मक
चरित्र बनाने में मदद मिलेगी।

4. समस्या कथन -

उच्च माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के नैतिक मल्


ू यों का उनके विद्यालयी वातारण के
संदर्भ में अध्ययन।"

5. प्रयक्
ु त शब्दों का परिभाषीकरण

उच्च माध्यमिक स्तर - प्रस्तावित लघु शोध अध्ययन में माध्यमिक स्तर से तात्पर्य
सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त उच्च माध्यमिक शिक्षा के विद्यालयों से है । जहाँ कक्षा 9 से
कक्षा 12 तक की शिक्षा प्रदान की जाती है ।

नैतिक मल्
ू य - उचित अनचि ु त व्यवहार को बताने वाले मल् ू यों को नैतिक मल्
ू य कहते है ।"
नैतिक मल्ू य नियमों का एक समह ू है जो व्यक्ति को निर्देशित करता है सही व गलत तथा
अच्छे व बरु े में मल्
ू यांकन के लिए, नैतिक मल् ू य एक व्यक्ति के व्यक्तिगत गण ु ों को भी
परिभाषित करता है ।
6.
विद्यालयी वातावरण

विद्यालयी वातावरण से तात्पर्य विद्यालय के परिदृश्य या उनके परिस्थितियों से है जो


शिक्षक, शिक्षण-सामग्री और शिक्षण विधि द्वारा उत्पन्न होती है तथा जिसका सापेक्षिक
प्रभाव बालक की ज्ञानेन्द्रियों पर पड़ता है और बालक अपनी कर्मेन्द्रियों की सहायता से
विद्यालयी परिस्थिति के अनरू ु प व्यवहार करने लगता है ।

6. अध्ययन के उद्दे श्य -

1. उच्च माध्यमिक स्तर के सरकारी एवं गैर-सरकारी विद्यालयों के विद्वालयी वातावरण


के मध्य अन्तर ज्ञात करना।

2. उच्च माध्यमिक स्तर के सरकारी एवं गैर सरकारी विद्यालयों के विद्यार्थियों के


नैतिक मल्
ू यों के मध्य अन्तर ज्ञात करना।

3. उच्च माध्यमिक स्तर के सरकारी विद्यालयों के विद्यालयी वातावरण एवं विद्यालयों


के नैतिक मल्
ू यों के मध्य सम्बन्ध का अध्ययन करना।

4. उच्च माध्यमिक स्तर के गैर-सरकारी विद्यालयों के विद्यालयी वातावरण एवं


विद्यार्थियों के नैतिक मल्
ू यों के मध्य सम्बन्ध का अध्ययन करना।

7. अध्ययन की परिकल्पना

1. उच्च माध्यमिक स्तर के सरकारी एवं गैर सरकारी विद्यालयों के विद्यालयी


वातावरण के मध्य कोई सार्थक अन्तर नहीं है ।

2. उच्च माध्यमिक स्तर के सरकारी एवं गैर सरकारी विद्यालयों के विद्यार्थियों के


नैतिक मल्
ू यों के मध्य कोई सार्थक अन्तर नहीं है ।
7

3. उच्च माध्यमिक स्तर के सरकारी विद्यालयों के विद्यालयी वातावरण एवं विद्यार्थियों


के नैतिक मल्
ू यों के मध्य सम्बन्ध में कोई सार्थक अन्तर नहीं है ।

4. उच्च माध्यमिक स्तर के गैर सरकारी विद्यालयों के विद्यालयी वातावरण एवं


विद्यार्थियों के नैतिक मल्
ू यों के मध्य सम्बन्ध में कोई सार्थक अन्तर नहीं है ।

8. अध्ययन की शोध प्रविधि -

प्रस्तत
ु लघु शोध अध्ययन उच्च माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के नैतिक मल्
ू यों का
उनके विद्यालयी वातावरण के संदर्भ में अध्ययन वर्तमान स्थिति को ज्ञात
8.

करने से संबन्धित है । इस प्रकार के अध्ययन वर्णनात्मक अनस


ु ध
ं ान के अन्तर्गत किए
जाते हैं।

अतः अध्ययन समस्या की प्रकृति एवं उनके स्वरूप के अनस


ु ार इस शोध अध्ययन हे तु
वर्णनात्मक सर्वेक्षण विधि का प्रयोग किया जायेगा।

चर-

स्वतंत्र चर विद्यालयी वातावरण

आश्रित चर - नैतिक मल्


ू य
9. शोध जनसंख्या -प्रस्तत
ु लघु शोध अध्ययन में शोध जनसंख्या के अन्तर्गत लखनऊ
जनपद के उच्च माध्यमिक विद्यालयों में अध्ययनरत कक्षा-11 के समस्त छात्र- छात्राओं
को सम्मिलित किया जायेगा।

10. शोध न्यादर्श - प्रस्तत


ु लघु शोधकार्य में लखनऊ जनपद के समस्त उच्च माध्यमिक
विद्यालयों में से 6 विद्यालयों का चयन सरल यादृच्छित विधि द्वारा किया जायेगा।
जिसमें कुछ 100 विद्यार्थियों को शोध के न्यादर्श के रूप में चयनित किया जायेगा।

11. शोध उपकरण - प्रस्तत ु लघु शोध अध्ययन के दौरान नैतिक मल्
ू य एवं विद्यालय
वातावरण से सम्बन्धित कोई नवीन उपकरण उपलब्ध होता है तो शोध में उन नवीन
उपकरणों का प्रयोग किया जायेगा, या स्वनिर्मित उपकरण का निर्माण सम्बन्धित
विशेषज्ञों की सहायता से किया जायेगा।

9.
12. अध्ययन की सांख्यिकी विधियाँ - प्रस्तत
ु लघु शोध अध्ययन में वर्णनात्मक
सांख्यिकी, अनमु ाननिक सांख्यिकी, तथा उचित चित्रिय सांख्यिकी (Graphical
Statistics) का प्रयोग किया जायेगा।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि मध्यमान, प्रमाणिक विचलन, टी- टे स्ट तथा का प्रयोग
किया जायेगा। एनोवा

13. सीमांकन -

प्रस्तत
ु लघु शोध अध्ययन उत्तर प्रदे श के लखनऊ जनपद तक सीमित रखा जायेगा।

शोध अध्ययन उच्च माध्यमिक शिक्षा (कक्षा-11) तक सीमित रखा जायेगा।


10.

सन्दर्भग्रन्थ सच
ू ी-

1. गप्ु ता, एस.पी एवं गप्ु ता अल्का (2011) आधनि


ु क मापन एवं मल्
ू यांकन परिवद्धित
संस्करण, इलाहाबाद, शारदा पस् ु तक भवन

2. कौल लोकेश (2010): शैक्षिक अनस


ु ध
ं ान की कार्य प्रणाली। चतर्थ
ु पर्न
ु मद्र
ु ण नई दिल्ली:
विकास पब्लिशिगं हाउस प्रा०लि०

3. कुमारी, के0 (2012): उच्च माध्यमिक स्तर के निम्न निष्पत्ति प्राप्त विद्यार्थियों के
नैतिक मल्
ू यों व व्यवसायिक रूचि का अध्ययन, एस०जी०वी० विश्वविद्यालय, जयपरु

4. शर्मा एस0 (2012): उच्च माध्यमिक स्तरीय शिक्षण के संदर्भ में नैतिक मल्
ू यों एवं
समाजिक सफलता के मध्य सहसम्बन्धों का तल ु नात्मक अध्ययन, जे०जे०टी०
विश्वविद्यालय राजस्थान।

5. करलिंगर, एन० एफ० (2000): फाउण्डेशन ऑफ विहे वियरल रिसर्च, पंचम पर्न
ु मद्रि
ु त
संस्करण, सरु जीत, पब्लिकेशन, दिल्ली

6. ऑस्टलिंग आर० (2009): इकोनॉमिक इन्फ्ल्यय


ू न्स ऑन मोरल वैल्यज
ू द बी० ई
जर्नल ऑफ इकोनॉमिक अनालिसिस एन पॉलिसी, 9 (1), 121-126

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