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University of Delhi
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मुक्त क्तशक्षा क्तवद्यालय, क्तदल्ली क्तवश्वक्तवद्यालय
© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्ु तशिक्षा पररसर, मक्ु तशिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्वशवद्यालय
िी.ए. (ऑनसा) राजनीतत तिज्ञान
• अध्ययन सामग्री को नए पाठ्यक्रम यू.जी.सी.एफ. 2022 के अनुसार क्तलखा और तैयार क्तकया गया है तथा इकाई-1
और इकाई-2 को सीबीसीएस से क्तलया गया है।
• स्व-क्तशक्षण सामग्री (एस.एल.एम.) में वैधाक्तनक क्तनकाय, डीय/ू क्तहतधारकों द्वारा प्रस्ताक्तवत सुधार/संशोधन/ सझ
ु ाव
अगले संस्करण में शाक्तमल क्तकए जाएँगे। हालाँक्तक, ये सुधार/सश ं ोधन/सुझाव वेबसाइट https://sol.du.ac.in पर
अपलोड कर क्तदए जाएँगे। कोई भी प्रक्ततक्तक्रया या सझ
ु ाव ईमेल- feedbackslm@col.du.ac.in पर भेजे जा सकते हैं।
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तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण
अनुक्रम
इकाई-I तल
ु नात्मक राजनीतत की समझ अभिषेक चौधरी 01
अनुवादक : राम ककशोर
इकाई-II तल
ु नात्मक राजनीतत का अध्ययन
करने के उपागम
© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्ु तशिक्षा पररसर, मक्ु तशिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण
इकाई-I
तल
ु नात्मक राजनीतत की समझ
डॉ. अभिषेक चौधरी
अनुवादक :राम ककशोर
संरचना
• इसअध्यायकोपढ़नेकेबादववद्याथीतुलनात्मकिाजनीततकीप्रकृततऔिकायषक्षेत्र
केबािे मेंजानेंगे।
• यहपाठउन्द्हें इसववर्यमें हमें तल
ु नाकिने कीआवश्यकताक्योंहै ? तुलनाकिने
केललएववलर्न्द्नतिीकेऔिदृष्ष्िकोणकोजानें गे।
• वे यह र्ी समझेंगे कक यिू ो-केंरवाद का अथष क्या है औि हमें यिू ो-केंरवाद से आगे
जानेकीआवश्यकताक्योंहै ?
1 | पष्ृ ठ
1.2 पररचय
इनकापिीक्षणकिनेसेपूव,ष यहसमझनाउधचतहोगाककतुलनात्मकिाजनीततकाक्या
अथष है ।ववद्वानोंने तुलनात्मकिाजनीततकोिाजनीततववज्ञानकेतीनमुख्यउपक्षेत्रोंमें से
एक के रूप में समझा है , अन्द्य दो िाजनीततक लसद्िांत औि अंतिाषष्रीय संबंि हैं।
तुलनात्मक िाजनीतत को कई प्रकाि से परिर्ावर्त ककया गया है । ध्यान दे ने योग्य कुछ
प्रमुखपरिर्ार्ाएाँइसप्रकािहैं—
जीनब्लोंडेल(1999)ने तुलनात्मकिाजनीततको‘‘दोयाअधिकिाजनीततकप्रणाललयों
कीएकसाथयाक्रलमकपिीक्षा’’से संबंधितहोने केरूपमें परिर्ावर्तककयाहै ।हे ग, है िोप
एवं मैककॉलिक(2016:12)केललए, तुलनात्मकिाजनीतत‘‘ववलर्न्द्नदे शोंमें सिकािएवं
िाजनीतत का व्यवष्स्थत अध्ययन है , ष्जसे उनके वविोिार्ासों औि समानताओं को धचत्रत्रत
किके उन्द्हें बेहति ढं ग से समझने के ललए धचत्रत्रत ककया गया है ।’’ यद्यवप, तल
ु नात्मक
िाजनीतत समानता एवं र्ेद की पहचान किने से कहीं अधिक है । तुलना ककसी को
‘‘समानताओं एवं अंतिों की पहचान’’ से आगे बढ़कि ‘‘अंततः संबंिों के एक बड़े ढााँचे में
िाजनीततकघिनाओंकाअध्ययन’’किनेकीअनुमततदे तीहै (मोहं ती1975)।यहदृष्ष्िकोण
लोगोंकोदीगईिाजनीततकघिनाकीसमझकोगंर्ीितापूवक
ष समझने में सहायताप्रदान
किताहै , एवं इसललएककसीकोबेहतिव्याख्याकिने कीष्स्थततमें िहने कीअनम
ु ततदे ता
है , यहमहसूसककयाजाताहै ककहमािीसमझकोपरिपक्वकिने, िाजनीततकघिनाओं का
उत्तिदे नेएवंसमझानेकेस्तिकोव्यापकबनानेमें सहायताकिे गा।
2 | पष्ृ ठ
3 | पष्ृ ठ
तुलनाशालमलहोसकतीहै ।
सामान्द्य शब्दों में, तुलनात्मक िाजनीतत के अंतगषत ववलर्न्द्न समाजों में चल िही
िाजनीततक व्यवस्थाओं का ववश्लेर्ण औि तुलना की जाती है । यह िाज्यों के र्ीति औि
बाहिकीइकाइयोंकीतुलनार्ीकिताहै ।तुलनाऔिववश्लेर्णपिअपने ध्यानकेसाथ,
यहववलर्न्द्निाजनीततकप्रणाललयोंमें िाजनीततकगततववधि, िाजनीततकप्रकक्रयाओं केसाथ-
साथिाजनीततकशष्क्तकोर्ीध्यानमें िखताहै ।
1. एकलदे शोंकेअध्ययनकीओिउन्द्मुख
2. कायषप्रणाली
3. ववश्लेर्णात्मक
पहली पिं पिा एकल दे शों के अध्ययन की ओि उन्द्मुख है । यह अमेरिकी तुलनावाददयों के
प्रािं लर्क झुकाव का अनुसिण किता है ष्जन्द्होंने अमेरिका के बाहि िाजनीततक व्यवस्था के
अध्ययनपिध्यानकेंदरतककया।यहपिं पिाइसववर्यपिएंग्लो-सैक्सनप्रर्ुत्वकोदशाषती
है औिववदे शोंमें ‘अन्द्य’केरूपमें अध्ययनकितीहै ।यहपिं पिाअक्सितुलनामें शालमल
हुए त्रबना अलग-थलग दे शों पि ध्यान केंदरत किती है । यह ककसी एक मामले का ववस्तत
ृ
ववविणदे ने तकसीलमतहै ।इसपिं पिाकीआलोचनाकेबावजूद, तुलनात्मकिाजनीततके
क्षेत्रमेंप्रमुखयोगदानएकलदे शोंकेववस्तत
ृ वणषनात्मकअध्ययनसेउत्पन्द्नहुआहै ।
दस
ू िी पिं पिा तल
ु ना के ललए तनयम औि मानक स्थावपत किना चाहती है । यह उन
तिीकोंपिध्यानकेंदरतकिताहै ष्जनसेतल
ु नात्मकजानकािी, स्पष्िीकिणऔिर्ववष्यवाणी
का बेहति र्ंडाि बनाया जा सकता है । इस अथष में , तल
ु नात्मक ववधि ‘‘चिों के बीच
अनर्
ु वजन्द्य संबंिों की खोज की एक ववधि’’ है (ललजफिष 1971)। इस प्रकाि, ‘तल
ु नात्मक
पद्ितत’ तल
ु नात्मक िाजनीतत के र्ीति उन पिं पिाओं में से एक है जो वणषनात्मक औि
ववश्लेर्णात्मक पिं पिाओं से अलग है । तनयमों औि मानकों पि ध्यान केंदरत किके, यह
पिं पिादे शोंयादे शोंकेसमूहोंकेववश्लेर्णकेललएप्रािं लर्कत्रबंदु प्रदानकितीहै ।
तीसिी पिं पिा ववश्लेर्णात्मक है औि ववधि के साथ अनुर्वजन्द्य ववविण का संयोजन
4 | पष्ृ ठ
प्रदान किती है । अधिकांश कायष ष्जन्द्हें आजकल ‘तुलनात्मक िाजनीतत के कायों’ के रूप में
वगीकृत ककया जाता है , इसी पिं पिा के अंतगषत आते हैं। दो या दो से अधिक दे शों में
िाजनीततक दलों, शासन के प्रकाि, सामाष्जक आंदोलनों आदद का तुलनात्मक अध्ययन
सादहत्य के इस तनकाय के कुछ उदाहिण हैं। कायष मुख्य रूप से सामान्द्य घिना की
‘‘व्यवष्स्थततुलना’’की ववधिकाउपयोगकिके ‘‘दे शोंके बीचअंतिऔिसमानताएं’’औि
उनकी‘‘संस्थाओं, अलर्नेताओं औिप्रकक्रयाओं’’कीपहचानऔिव्याख्याकिने से संबंधितहैं
(कािामनी2011:4)।
तल
ु नात्मक िाजनीतत के अनश
ु ासन की ववलर्न्द्न स्तिों पि आलोचना की गई है । इसे यिू ो-
केन्द्रवाद(Euro-centrism)मानागयाहै ष्जसकाअथष है कक‘‘पष्श्चमीमॉडल’’कोववश्वके
शेर् र्ागों की तल
ु ना में बेहति माना जाता है । इस प्रकाि की संकीणषतावाद एक ववशेर्
प्रणालीकेआधिपत्यकीप्रकृततकोबनाएिखने कीओिले जातीहै ।यहआगे ‘स्व’बनाम
‘अन्द्य’ पव
ू ाषग्रह की ओि ले जाता है । इससे ‘स्व’ की परिर्ार्ा ‘दस
ू िे ’ से हो जाती है । ऊपि
वर्णषतपहलीपिं पिाइसआलोचनाकेअिीनहै ।तीसिीपिं पिार्ीइसयूिो-केन्द्रवाद(Euro-
centrism)पूवाषग्रहकेआगेझुकजातीहै औि‘गैि-पष्श्चम’कीतुलनाइसतिहसेकीजाती
है जोपष्श्चमकोबेहतिऔिश्रेष्ठकेरूपमें प्रस्तुतकिताहै ।
िॉय सी. मैकक्रडडस (1955) ने अपने मौललक तनबंि में पािं परिक दृष्ष्िकोण की कुछ
सीमाओं की पहचान की। सबसे पहले, इसे ‘अतनवायष रूप से गैि-तुलनात्मक’ कहा गया है ,
ष्जसका अथष है कक संदर्ष त्रबंदु ककसी ददए गए दे श की संस्थागत संिचना है । यह आिोप
लगायागयाहै ककएकलकेसस्िडीकोतुलनात्मकअध्ययनकेरूपमें पारितककयाजािहा
है । उन्द्होंने आगे आिोप लगाया कक पािं परिक दृष्ष्िकोण अधिक वणषनात्मक औि कम
ववश्लेर्णात्मक है । यह आलोचना इस तथ्य से उत्पन्द्न है कक ऐततहालसक औि कानूनी
दृष्ष्िकोणों की अपनी सीमाएाँ हैं। ऐततहालसक दृष्ष्िकोण कुछ संस्थानों के ‘‘उत्पवत्त औि
ववकास’’ के अध्ययन पि केंदरत है (मैकक्रडडस 1955 : 17)। ऐसा किने में , यह ककसी
ववश्लेर्णात्मकयोजनाकोववकलसतकिनेकीददशामें कोईप्रयासनहींकिताहै ।इसप्रकाि,
ककसीदे शकेर्ीतिघिनाओंकेकालक्रमऔिउसदे शकीचुनीहुईसंस्थापिध्यानकेंदरत
िहता है । कानूनी दृष्ष्िकोण मुख्य रूप से सिकाि की ववलर्न्द्न शाखाओं की शष्क्तयों के
5 | पष्ृ ठ
अध्ययन पि केंदरत है । यह उन कािकों का ववश्लेर्ण किने की कोलशश नहीं किता है जो
ववलशष्ितिीकोंसे शष्क्तकेववशेर्रूपोंकोआकािदे ते हैं।इसप्रकाि, वे ककसीर्ी‘‘संदर्ष
का सामान्द्य ढााँचा’’ प्रदान किने में ववफल िहते हैं ष्जसका उपयोग वास्तव में तुलनात्मक
अथषमेंककयाजासकताहै (मैकक्रडडस1955:18)।
दस
ू िा, मैकक्रडडस पािं परिक दृष्ष्िकोण को ‘अतनवायष रूप से संकीणष’ मानता है । यह
आलोचनापष्श्चमीयिू ोपीयदे शोंकेसंस्थानोंपिअनुधचतध्यानकेंदरतकिने से संबधं ितहै ।
इस तिह के फोकस ने तुलनात्मक िाजनीतत के क्षेत्र को अधिकतम सीलमत कि ददया औि
अन्द्य शासन प्रकािों को कम महत्त्वपूणष बना ददया। तीसिा, मैकक्रडडस ने दृष्ष्िकोण को
‘अतनवायष रूपसे ष्स्थि’ कहा।इसकातात्पयष यहथाककतुलनात्मक िाजनीतत ने परिवतषन
औि ववकास की ओि ले जाने वाले लगाताि परिवततषत कािकों की अनदे खी की। अंत में ,
उन्द्होंने इसदृष्ष्िकोणको‘अतनवायष रूपसे मोनोग्राकफक’कहा, ष्जसकाअथष है ककअध्ययन
ककसीव्यवस्थाकेिाजनीततकसंस्थानोंपिकेंदरतिहा।इसकाअथष थाककतुलनावाददयोंका
ध्यानव्यष्क्तगतकेसस्िडीपिबनािहा।यहसमालोचनाउससमालोचनाकेकिीबहै जो
तुलनात्मकिाजनीततकोवणषनात्मकऔिव्यवष्स्थततनरूपणकीकमीकेरूपमें मानतीहै ।
नीिाचंडोक(1996)मैकक्रडडसकीआलोचनापिआिारितहै औितुलनात्मकिाजनीतत
केसंकिकापतालगातीहै ।सबसे पहले, लशष्यकोर्व्यलसद्िांतपिएकसामान्द्यहमले
कासामनाकिनापड़ा।प्रासंधगकववलशष्िताओं से ववर्योंकोहिाने केललएइसपिसवाल
उठायागयाथा।यहआगे इसपिसामान्द्यीकृततनयलमतताओं काआिोपलगायागयाथा।
अनश
ु ासनकोन्द्यन
ू तावादीमानाजाताथा।यहतल
ु नाकेललएसिलचिकीखोजकििहा
था।इसने िाजनीततकीजदिलपरिघिनाको‘कम’किकेसिलचिोंमें बदलददया, ष्जनकी
तल
ु नाआसानीसे कीजासकतीहै ।संकिकादस
ू िासंकेतअनश
ु ासनकीजातीयप्रकृततसे
उत्पन्द्न हुआ है औि ‘अन्द्य’ अन्द्य समाजों, अन्द्य शासन के प्रकािों, अन्द्य संस्थानों के
अध्ययनपिध्यानकेंदरतकिताहै ।तल
ु नात्मकिाजनीततकेसंकिकातीसिाकािणस्वयं
िाष्र-िाज्य का संकि है । तुलना की सामान्द्य श्रेणी, िाज्य को बाहिी ताकतों के साथ-साथ
आंतरिकस्वायत्तताआंदोलनोंकेकािणचुनौततयोंकासामनाकिनापड़ा।
तुलनात्मकववश्लेर्णद्वािाकीजाने वालीसमस्याओंकाएकसमूहपद्िततगतआयाम
से संबंधित है । ‘‘चयन पूवाषग्रह’’ (लैंडमैन 2008) होने के ललए ककसी र्ी केस स्िडी की
6 | पष्ृ ठ
अक्सि आलोचना होती है । तुलनात्मक अध्ययन किने के ललए दे शों का चुनाव
तुलनात्मकवादी के पूवाषग्रह पि आिारित हो सकता है । एक अन्द्य समस्या ‘‘व्यवहाि
दृष्ष्िकोण’’ पि बल दे ने से संबंधित है । सामान्द्य रूप से सामाष्जक ववज्ञान में व्यवहाि
दृष्ष्िकोण एवं ववशेर् रूप से तुलनात्मक िाजनीतत में वैज्ञातनक तिीकों का उपयोग किके
सामाष्जकघिनाकीव्याख्याकिने कीप्रववृ त्तसे संबंधितहै ।व्यवहािवाददयोंद्वािायहदावा
ककया गया था कक सामाष्जक वास्तववकता को दे खा जा सकता है , परिमार्णत ककया जा
सकताहै औिसामान्द्यीकृतककयाजासकताहै ।व्यवहािवादीसामाष्जकवास्तववकताओं को
समझाने के ललए नमूनाकिण, सवेक्षण, साक्षात्काि एवं सांष्ख्यकीय ववश्लेर्ण के प्रकािों का
उपयोगकितेहैं।
इन समस्याओं का उदाहिण गेत्रियल आमंड एवं लसडनी वबाष, द लसववक कल्चि :
पॉललदिकलएदिट्यड
ू एंडडेमोक्रेसीइनफाइवनेशंस(1963)द्वािामौललककायष केववरुद्ि
कीगईआलोचनाहै ।इसअध्ययनकोजातीयकेष्न्द्रतकहागयाक्योंककयहसबसे ष्स्थि
रूप के में सहमतत वाले लोकतंत्र का समथषन किता था। इसमें आगे बताया गया है कक
मैष्क्सकोकीिाजनीततकसंस्कृततकोजानबूझकिसंयुक्तिाज्यकीिाजनीततकसंस्कृततके
ववरुद्िखड़ाककयागयाथाताककयहसात्रबतहोसकेककउदािलोकतंत्र(अमेरिकाकीतिह)
एक-दलीयप्रणाली(जैसे उनवर्ोंकेदौिानमैष्क्सको)से बेहतिहैं।अध्ययनकोसामाष्जक-
िाजनीततक संबंिों की गततशील प्रकृतत औि प्रासंधगक ववलशष्िताओं की अनदे खी किते हुए,
दे शों को वगीकृत किने के ललए िाजनीततक झक
ु ावों को मापने के ललए व्यवहािवाददयों का
प्रयासर्ीकहाजाताथा।
दोयादोसेअधिकचीजोंकीतुलनाकिनामानवव्यवहािकाएकस्वार्ाववकगुणहै ।चाहे
स्कूलकेबादपढ़ाईकेललएववर्यचुननाहो, कपड़े, फोनयाअन्द्यकोईचीजखिीदनाहो,
तुलना में लगाताि शालमल होते हैं। िाजनीतत एक औि र्ी अधिक महत्त्वपूणष औि लगाताि
ववकलसतहोनेवालाक्षेत्रहै ष्जसमें ववलर्न्द्नघिनाओंकोसमानकिने, उनमें अंतिकिनेऔि
उनकाआकलनकिनेकेललएतुलनाकीआवश्यकताहोतीहै ।
िॉड लैंडमैन (2008) ने तुलना के चाि कािणों की पहचान की है —प्रासंधगक ववविण,
वगीकिण, परिकल्पना-पिीक्षणऔिर्ववष्यवाणी।
7 | पष्ृ ठ
यह िाजनीततक वैज्ञातनकों को यह जानने की अनुमतत दे ता है कक दे श क्या है (लैंडमैन
2008)।यहतुलनात्मकिाजनीततकाप्राथलमकउद्दे श्यिहाहै ष्जसमें ‘ककसीववशेर्दे शया
दे शों के समूह की िाजनीततक घिनाओं औि घिनाओं का वणषन’ (लैंडमैन 2008: 5) पि
ध्यानकेंदरतककयागयाहै ।यहमहत्त्
वपूणष है क्योंककयहएकबाहिीपयषवेक्षककोएकऐसी
प्रणालीकीसमझप्रदानकिताहै जोउसेपूिीतिहसेज्ञातनहींहै ।यहपहलूपहलीपिं पिा
के तनकि है औि तुलनावाददयों को एक िाजनीततक व्यवस्था के बािे में ववस्तत
ृ जानकािी
प्रदानकिताहै ।जबकककुछआलोचकोंकाकहनाहै ककएकल-दे शकेअध्ययनकोवास्तव
में तुलनात्मक नहीं माना जा सकता है , ककसी ववशेर् दे श या दे शों के समूह का अध्ययन
किने केलार्हैं।उदाहिणकेललए, यूनाइिे डककंगडमकीिाजनीततकव्यवस्थाकाववस्तत
ृ
ववश्लेर्णहमें संसदीयप्रणालीकेलार्ोंऔिसीमाओं केबािे में जानकािीप्रदानकिताहै ।
इससे हमें अन्द्यमामलोंकाआकलनकिने में मददलमलसकतीहै जहााँ समानयाववपिीत
व्यवस्थामौजूदहैं।
(2) विीकरण
8 | पष्ृ ठ
(3) पररकल्पना-परीक्षण
तुलनात्मकअनुसंिानसामाष्जकववज्ञानद्वािामान्द्यचिोंकेबीचववश्लेर्णात्मकसंबंिों
पि ध्यान केंदरत है , एक ऐसा फोकस जो उस संदर्ष में अंति से संशोधित होता है ष्जसमें
हमउनचिोंकातनिीक्षणऔिमापकितेहैं।अिें डललजफिष कादावाहै ककतुलना‘‘चिोंके
बीच परिकष्ल्पत अनुर्वजन्द्य संबंिों’’ (ललजफिष 1971) के पिीक्षण में मदद किती है ।
तल
ु नात्मक ववश्लेर्ण से अधिक जानकािी का संचय होता है , जो एक बेहति औि अधिक
संपण
ू ष व्याख्यात्मक लसद्िांत होने में मदद किता है । इसललए, दे शों की तल
ु ना किते समय
औि परिकल्पना का पिीक्षण किने से जानकािी के एक बड़े पल
ू के संचय की अनम
ु तत
लमलतीहै औिदतु नयाकेबािे में लोगोंकेज्ञानमें सि
ु ािहोताहै ।
9 | पष्ृ ठ
(4) िववष्यवाणी
दे शोंकीतुलनाऔिइसतिहकीतुलनाकेआिािपिसामान्द्यीकिणसंर्ाववतपरिणामोंकी
‘पूवाषनुमान’किने कीअनुमततदे ताहै । अन्द्यदे शों में संर्ाववतपरिणामजोमूलतुलना में
सष्ममललत नहीं हैं, एक मजबूत लसद्िांत के आिाि पि ककए जा सकते हैं। साथ ही, कुछ
कािकोंऔिशतोंकेआिािपिर्ववष्यमें परिणामोंकेबािे में र्ववष्यवाणीकीजासकती
है ।पव
ू ाषनम
ु ेयताएकअच्छे लसद्िांतकाएकउत्कृष्िगण
ु है औियहदावाककयाजाताहै कक
एक‘उत्तमलसद्िांत’बेहतिसिीकताकेसाथपरिणामोंकीर्ववष्यवाणीकिनेमें सक्षमहै ।
हे ग, है िोपऔिमैककॉलिक(2016)तुलनात्मकिाजनीततकेदोप्रमुखउद्दे श्योंकीपहचान
कितेहैं—
(1) दस
ू िोंदे शोंकेज्ञानकेत्रबनाकोईअपनेदे शकोनहींसमझसकताहै ।
(2) अन्द्य दे शों की पष्ृ ठर्लू म, संस्थानों औि इततहास को जाने त्रबना कोई अन्द्य दे शों को
नहींसमझसकताहै ।
(3) तुलनात्मक पद्ितत के त्रबना कोई र्ी सिकाि औि िाजनीतत के बािे में वैि
सामान्द्यीकिणनहींकिसकताहै ।
इस प्रकाि, यह तकष ददया जा सकता है कक वणषन किना, ववश्लेर्ण किना, र्ववष्यवाणी
किनाऔिसामान्द्यीकिणकिनातल
ु नात्मकिाजनीततकेचािप्रमुखगुणहैं जोइसे व्यापक
िाजनीततकववश्लेर्णकाएकमहत्त्वपूणष पहलूबनातेहैं।
10 | पष्ृ
ठ
कोपस्टीन एवं भलचबैक (2005) ने तकष ददया है कक ‘रुधचयों, पहचानों औि संस्थानों’ पि
ध्यानकेंदरतकिनातीनतिीकेहैंजोतुलनाकिनेकेववलर्न्द्नमागषप्रदानकितेहैं।इनचिों
काप्रर्ावइसबातपिपड़ताहै ककिाजनीततकव्यवस्थाकैसेसंचाललतहोतीहै ।
कुछ तुलनावादी दहतों पि ध्यान केंदरत किते हैं। उनके ललए लोगों का र्ौततक दहत सबसे
ज्यादामायने िखताहै ।लोगतकषसंगतगणनाओं केआिािपितनणषयलेते हैं औिअपनी
रुधच को अधिकतम किने के ललए िाजनीततक रूप से संगदठत होते हैं। वे एक ऐसे शासन
प्रकाि का समथषन किते हैं जो ‘उनके जीवन की संर्ावनाओं को अधिकतम किता है ’
(कोपस्टीन और भलचबैक 2005)।उदाहिणकेललए, लोगोंकाएकसमूहएकशासनप्रकाि
केर्खलाफसंगदठतहोसकताहै यापूिीतिहसे तकषसंगतगणनाओं केआिािपिइसका
समथषन कि सकता है । गणना दहत आिारित हैं औि इसललए, यह संर्व हो सकता है कक
ककसी ववशेर् समाज में एक ववशेर् शासन प्रकाि का समथषन ककया जाता है लेककन इसका
वविोिककसीअन्द्यसामाष्जकव्यवस्थामें ककयाजासकताहै ।हालााँकक, दहतोंपिअनधु चत
ध्यानदे नाभ्रामकहोसकताहै ।अगलेदोतिीकेदहतोंकीप्रासंधगकताकोकमकितेहैंऔि
पहचानयासंस्थानोंद्वािादहतोंकोआकािदे ने पिववचािकितेहैं।
कुछ तल
ु नात्मकवादी पहचान को सबसे महत्त्वपण
ू ष कािक मानते हैं। उनका तकष है कक कोई
वस्ततु नष्ठदहतनहींहैंऔिककसीकीरुधचउसकीपहचानसेपरिर्ावर्तहोतीहै ।पहचानके
दो सबसे सामान्द्य रूप हैं िमष औि जातीयता (कोपस्टीन और भलचबैक 2005)। लोग या
लोगोंकेसमूहअपनीपहचानकेआिािपिअपने दहतोंकोपरिर्ावर्तकिते हैं।एकसिल
उदाहिण एक िालमषक शासन के ललए िालमषक समथषन हो सकता है । एक अन्द्य उदाहिण
र्ाित में जातत आिारित या िमष आिारित दलों का उदय हो सकता है जहााँ ककसी ववशेर्
िाजनीततक दल को समथषन प्राथलमक रूप से पहचान पि आिारित होता है । जबकक कुछ
पहचान जन्द्म औि स्थान पि आिारित होती हैं, आितु नक समाज र्ी नई पहचान उत्पन्द्न
कितेहैं।उदाहिणकेललए, ललंगऔिपयाषविणजैसेववर्योंकेआयोजनसेनईपहचानोंका
तनमाषणहोताहै । हाल केअमेरिकीचुनावों(2020)ने ददखायाकककैसे ऐततहालसकपहचान
11 | पष्ृ ठ
औिनईपहचानलोगोंकीपसंदकोपिस्पिकक्रयाऔिआकािदे तीहैं।
कफि र्ी तुलनावाददयों के एक अन्द्य समूह का तकष है कक न तो र्ौततक दहत औि न ही
पहचानयहतनिाषरितकितीहै ककककसीदे शकीिाजनीततकैसे कामकितीहै ।उनकेललए,
संस्थानोंमें तनदहततनयमऔिप्रकक्रयाएाँसत्ताकेसंचालनऔिदे शोंकेकामकिने केतिीके
कोतनिाषरितकितीहैं (कोपस्टीन और भलचबैक 2005)।संस्थाएाँ प्रत्यक्षयाअप्रत्यक्षरूपसे
ककसी दे श के कायषकलाप को आकाि दे ती हैं। ववशेर् रूप से, लोकतंत्र में संस्थानों का एक
ववववि एवं जदिल समूह होता है जो परिर्ावर्त किता है कक कोई दे श कैसे आकाि लेगा।
उदाहिणकेललए, संयुक्तिाज्यअमेरिकाकीसंस्थागतचुनावीप्रणाली‘फस्िष -पास्ि-द-पोस्ि’
प्रणालीपिआिारितहै ।दस
ू िीओि, जमषनीमें ‘आनुपाततकप्रतततनधित्व’चुनावीप्रणालीहै ।
दोनों दे श लोकतांत्रत्रक हैं लेककन दोनों लोकतंत्रों का िाजनीततक जीवन औि िाजनीततक
संस्कृतत अलग-अलग है , औि संस्थानों में अंति में इस लर्न्द्नता का एक प्रमुख कािक है ।
तुलनात्मकवादीजोसंस्थानोंपिध्यानकेंदरतकिते हैं, संस्थानोंमें लर्न्द्नताकेआिािपि
परिणामों में लर्न्द्नता की व्याख्या किने का प्रयास किते हैं। ‘कायाषत्मक तुल्यता’ का पहलू
यहााँ प्रासंधगक है क्योंकक एक ही संस्थाएाँ अलग-अलग कायष कि सकती हैं औि ववलर्न्द्न
संस्थाएाँसमानकायषकिसकतीहैं।
12 | पष्ृ
ठ
(4) अवशेषों की ववगध : घिनाओं के एक जदिल समूह के सर्ी ज्ञात कािणों को घिाया
जाताहै ।जोबचताहै उसेकािणकहाजाताहै ।
इनमें से ‘सहमतत औि अंति की संयुक्त ववधि’ तुलनात्मक िाजनीतत के ललए प्रासंधगक है
क्योंकक यह समझौते औि अंति की ववधि को जोड़ती है । यह एक घिना के दो या दो से
अधिक उदाहिणों औि संर्ाववत कािण की सामान्द्य अनुपष्स्थतत के बीच एक समानता की
तलाश किना चाहता है (किन 2011)। जे.एस. लमल की ‘मेथड ऑफ डडफिें स’ को ‘सबसे
समान व्यवस्था’ के रूप में र्ी जाना जाता है । इसका उपयोग आधश्रत चि वाले समान
मामलों की तुलना किने में ककया जाता है । उनकी ‘समानता की ववधि’ को ‘सबसे लर्न्द्न
व्यवस्थािचना’(ब्लैक1966)केरूपमें र्ीजानाजाताहै ।इसकाउपयोगस्वतंत्रचिवाले
लर्न्द्नववर्योंकीतल
ु नाकिनेकेललएककयाजाताहै ।यद्यवपतल
ु नाकितेसमय, ककसीको
इस बात का ध्यान िखना चादहए कक क्या तल
ु ना किें औि कैसे तल
ु ना किें । उन घिनाओं
औिसंस्थानोंकीतल
ु नाकिने में बहुतअधिकमल्
ू यहै जोसमानसमयसीमामें ष्स्थतहैं,
जोसमयमें व्यापकरूपसे अलगहैं।ऐसे समाजोंयाछोिे समह
ू ोंकीतल
ु नाजोयथोधचत
रूप से समान समस्याओं से संबंधित हैं, कई सददयों से अलग (ब्लैक 1966) उपष्स्थत
समाजोंकेबीचतल
ु नाकीतल
ु नामें संतोर्जनकतनष्कर्षतनकालनेकीअधिकसंर्ावनाहै ।
इस प्रकाि, तल
ु नात्मक अनस
ु ंिान डडजाइन यातो समानता या अंति पि ध्यानकेंदरत
किसकते हैं (कािामनी2011)।डेतनयलकािामनी(2011)कातकषहै ककयहकहनासही
नहीं होगाककतुलनात्मकिाजनीततएकववलशष्िपद्िततपितनर्षिकितीहै ।ऐसाइसललए
है क्योंकक चुने गए मामलों की संख्या, उपयोग ककए गए तथ्य ववश्लेर्ण के प्रकाि औि
अध्ययन के अंतगषत समय अवधि के अंति के आिाि पि ववलर्न्द्न तिीकों को तनयोष्जत
13 | पष्ृ ठ
दस
ू िा कािण यह है कक तुलना के अंतगषत अलग-अलग आयाम हो सकते हैं। इसललए,
एक र्ी ववधि उपयोगी नहीं होगी। तुलना (ए) स्थातनक या पाि-अनुर्ागीय हो सकती है ,
ष्जसका अथष है कक दो िाजनीततक प्रणाललयों की तुलना एक क्रॉस सेक्शन के रूप में की
जाती है । उदाहिण के ललए, र्ाित औि कनाडा की संघीय व्यवस्थाओं की तुलना। यह
(बी)अनुदैध्यषहोसकताहै , ष्जसकाअथषहै ककसंस्थानोंऔिप्रणाललयोंकीतुलनापूिेसमय
में की जा सकती है । उदाहिण के ललए, र्ाित में कांग्रेस प्रणाली के चिण की गठबंिन
िाजनीततकेचिणकेसाथतुलना।यह(सी)कायाषत्मकयाक्रॉस-संगठनात्मकहोसकताहै ,
ष्जसकाअथषहै ककअध्ययनकाउद्दे श्यक्षेत्रीयरूपसेलर्न्द्ननहींहै , लेककनककसीददएगए
िाजनीततकव्यवस्थाकेर्ीतिहोसकताहै ।उदाहिणकेललए, सैन्द्यऔिलशक्षापिखचष से
संबंधितसिकािीनीततयोंकीतुलना।
14 | पष्ृ
ठ
15 | पष्ृ ठ
तुलनामेंअधिकमहत्त्वपूणष है ।
डब्लल्य.ू आथटर लई
ु स (1954)नेअपनेतकषकीशरु
ु आतदोक्षेत्रोंकेमॉडल—पाँज
ू ीवादीक्षेत्रऔि
तनवाषह क्षेत्र को दे खकि की। जबकक पाँज
ू ीवादी क्षेत्र में पन
ु रुत्पाददत पाँज
ू ी है औि यह अधिक
उत्पादकहै , तनवाषहक्षेत्रमेंउत्पादकताकातनमनस्तिहै ।बचतकीकमदिकेसाथ, तनवाषह
क्षेत्र में पाँज
ू ी के संचय की कमी होती है ष्जसे पन
ु ः उत्पन्द्न ककया जा सकता है । इसललए,
लई
ु सनेववकासकेललएपाँज
ू ीवादीक्षेत्रपिबलदे नेकातकषददया।
डब्लल्य.ू डब्लल्य.ू रोस्टो (1960) ने अपने ‘‘आधथषक ववकास के चिण’’ प्रस्तुत किके ववकास के
समाजवादीमॉडलकोएकवैचारिकचुनौतीप्रदानकी।िोस्िोने ववकासकीप्रकक्रयाकोपााँच
चिणों में ववर्ाष्जत ककया—(1) पािं परिक समाजस्य, (2) िे क-ऑफ के ललए पूवष शतष की
स्थापनाय, (3) िे क-ऑफ चिणय, (4) परिपक्वता के ललए ड्राइवय औि (5) उच्च जन
उपर्ोगकायुग।दस
ू िे चिणकेललए, उन्द्होंने ववलशष्िववकासक्षेत्रोंपिध्यानकेंदरतकिने
कीआवश्यकतापिबलददयाजोआधथषकववकासकेललएइंजनकेरूपमें कायष किें गे औि
ऐसे िाजनीततक, सामाष्जक औि संस्थागत ढााँचे की स्थापना की ओि अग्रसि होंगे जो
आिुतनकक्षेत्रमेंक्षमताकाउपयोगकिें गे।
ववकास औि आिुतनकीकिण के लसद्िांतों के बािे में अधिक जानकािी के ललए, सी जॉन
माहटट नसेन (1997), समाज, िाज्यऔिबाजािःववकासकेप्रततस्पिीलसद्िांतोंकेललएएक
गाइड, लंदन : जेड बुक्स लललमिे ड, अध्याय-5 औि एष्ल्वन वाई। सो (1990), सामाष्जक
परिवतषनऔिववकासि—आिुतनकीकिण, तनर्षिताऔिववश्वप्रणालीलसद्िांत, न्द्यूबिीपाकष,
सीए:सेजप्रकाशन।
पॉल बरन (1966) ने अधिशेर् के माक्सषवादी लसद्िांत का प्रयोग ककया औि वपछड़ी
अथषव्यवस्थाओंकीआंतरिकष्स्थततयोंपिध्यानकेंदरतकिनेकीमााँगकी।बािांनेचािवगों
की पहचान की ष्जनके संकीणष स्वाथष थे औि औद्योगीकिण को बढ़ावा दे ने में उनकी कोई
ददलचस्पी नहीं थी। इन चाि वगों—सामंती अलर्जात वगष, साहूकािों, व्यापारियों औि ववदे शी
पाँूजीपततयों ने अधिशेर् को ववतनयोष्जत ककया। इसललए, िाष्रीय स्ति पि तनयंत्रत्रत
औद्योगीकिणकोबढ़ावादे नेकेललएव्यापकिाज्यहस्तक्षेपकिनाआवश्यकथा(माहटट नसेन
1997: 87)। बािां के ववचािों ने बाद के तनर्षिता लसद्िांतकािों जैसे ए.जी. फ्ैंक, समीि
अमीन औि अतघषिी इमैनुएल को तीसिी दतु नया का परिप्रेक्ष्य प्रदान किने के ललए प्रर्ाववत
ककया।
16 | पष्ृ
ठ
आंिे िुंडर फ्रैंक (1967) ने ‘‘अल्पववकास के ववकास’’ का ववचाि प्रदान ककया। फ्ैंक के
अनुसाि, अनुर्वमेंअंतिकेकािणतीसिीदतु नयाकर्ीर्ीपष्श्चमद्वािाअपनाएगएमागष
का अनुसिण नहीं कि सकी (सो 1990: 96)। पष्श्चम ने उपतनवेशवाद का अनुर्व नहीं
ककयाजबककतीसिीदतु नयाकेअधिकांशदे शपष्श्चमकेपूवष उपतनवेशहैं।इसप्रकाि, फ्ैंक
ने आिुतनकीकिण स्कूल की ‘आंतरिक व्याख्या’ को खारिज कि ददया औि ‘बाहिी
स्पष्िीकिण’ पि बल ददया। सिल शब्दों में, तीसिी दतु नया का वपछड़ापन सामंतवाद या
अलर्जात वगष के कािण नहीं था, बष्ल्क औपतनवेलशक अनुर्व औि ववदे शी प्रर्ुत्व का
परिणामथा।
एजी फ्रैंक ने तीसिी दतु नया के अववकलसतता को समझाने के ललए एक ‘‘महानगि-उपग्रह
मॉडल’’ तैयाि ककया। उपतनवेशवाद ने महानगिों (या उपतनवेशवाददयों) औि उपग्रहों (या
उपतनवेशों) के बीच इस तिह से एक कड़ी बनाई कक व्यापाि के असमान संबंि के ललए।
उपग्रह को खिाब छोड़कि मेरोपोल द्वािा सर्ी अधिशेर् को ववतनयोष्जत ककया गया था।
स्थानीयबुजआ
ुष वगष नेर्ीइसअववकलसततामें योगदानददया, उपग्रहकेबाहिअधिशेर्को
हिाकि, आंतरिक रूप से तनवेश औि ववकास के ललए इसका उपयोग नहीं ककया औि
अंतिाषष्रीयअसमानताकोबनाएिखा।इसप्रकाि, जोहुआवहववश्वबाजािकेसाथललंक
के कािण अववकलसतता का ववकास था। इस दष्ु चक्र से बाहि तनकलने का एकमात्र तिीका
ववश्वबाजािसेअलगहोनाथा(सो1990)।
समीर अमीन (1976) ने ‘केंर औि परिधि’ की अविािणा प्रदान की। फ्ैंक के ववपिीत, जो
व्यापािऔिववतनमयसंबंिोंपिध्यानकेंदरतकिताथा, अमीन‘उत्पादनकीष्स्थततयोंऔि
संबंिों’ (माहटट नसेन 1997) से अधिक धचंततत था। अमीन ने दो आदशष-प्रकाि के सामाष्जक
मॉडल प्रदान ककए—स्वकेंदरत अथषव्यवस्था औि परििीय अथषव्यवस्था। तनिं कुश अथषव्यवस्था
आत्मतनर्षिहै ,लेककनआत्मतनर्षिताकीकमीहै ।यहव्यापकअंतिाषष्रीयव्यापािपितनर्षि
किता है । दस
ू िी ओि, परििीय अथषव्यवस्था में एक ‘‘अववकलसत तनयाषत क्षेत्र’’ है , जो
ववलालसता की खपत के ललए माल का उत्पादन किता है (मादिष नसेन 1997)। पाँज
ू ीवाद को
पाँज
ू ी के संचलन में दे खा जा सकता है , लेककन उत्पादन के तिीके पूव-ष पाँज
ू ीवादी िहते हैं।
इसललए केंरउच्च लार् अष्जषतकिने वाले परिधिसे संसािनऔिसस्ते श्रमतनकालने में
सक्षम है । तनर्षिता का यह संबंि असमान ववतनमय पि आिारित है औि यह असमलमत
संबंितनर्षिताकीतनिं तिताकीओिलेजाताहै ।
17 | पष्ृ ठ
डॉस सैंटोस (1971) ने तनर्षिता के तीन ऐततहालसक रूपों पि चचाष की—(1) औपतनवेलशक
तनर्षिता, (2)ववत्तीय-औद्योधगकतनर्षिता औि(3)तकनीकी-औद्योधगकतनर्षिता(सो1990:
99)।सैंिोसअववकलसतदे शोंकेऔद्योधगकववकासपिकुछसीमाओं कीपहचानकिताहै ।
अववकलसतदे शोंकोिाजनीततकतनर्षिताकेललएववदे शीपाँज
ू ीपितनर्षििहनापड़ताहै ।वे
एक एकाधिकाि बाजाि में हैं जहााँ कच्चे माल सस्ते हैं औि औद्योधगक उत्पाद अधिक हैं।
इसललए, आधश्रतदे शकोछोड़ने वालीपाँज
ू ीकीमात्राप्रवेशकिने वालीिालशसे कहीं अधिक
है ।साथही, प्रौद्योधगकीपिशाहीकेंरोंकाएकाधिकािसंबंिकोऔिर्ीववर्मबनादे ता
है । पाँज
ू ी-गहन प्रौद्योधगकी की उपष्स्थतत के साथ सस्ते श्रम के संदर्ष में घिे लू मजदिू ी के
स्तिमें अंतिहोताहै ।इसप्रकाि, ‘‘शोर्णकीउच्चदियाश्रमशष्क्तका‘अततशोर्ण’है ’’
(सो 1990)। इस प्रकाि ववदे शी पाँज
ू ी, ववदे शी ववत्त औि ववदे शी प्रौद्योधगकी पि एकाधिकाि
तनयंत्रण अववकलसत दे शों में आधथषक वपछड़ेपन औि आंतरिक सामाष्जक हालशए की ओि ले
जाताहै ।
अन्द्य ववद्वानों जैसे अतघषिी इमैनुएल (1972) औि जेफ्ी के (1975) ने र्ी परििीय
अथषव्यवस्थाओं के असमान आदान-प्रदान औि शोर्ण को दे खकि कुछ इसी तिह की
सैद्िांततक समझ प्रदान की। एफ.एच. कािदोसो (1974) ने ‘तनर्षिता में ववकास’ के ववचाि
को प्रस्तुत ककया औि परििीय दे शों को आधश्रत अथषव्यवस्थाओं के एकल समूह के रूप में
मानने कीप्रववृ त्तकोखारिजकिददया।उन्द्होंने आंतरिकष्स्थततयोंपिअधिकध्यानकेंदरत
ककयाऔितकषददयाककबाहिीकािकोंकेअलग-अलगपरिणामहोंगेजो‘‘असमानआंतरिक
ष्स्थततयों’’(मादिष नसेन1997)केआिािपिहोंगे।इसप्रकािकेतनदानकेकािण, काडोसो
सर्ीपरििीयदे शोंकेललएिणनीततयोंकेसामान्द्यसमूहकीलसफारिशकिने केर्खलाफर्ी
था। सामान्द्य तौि पि, तीसिी दतु नया का परिप्रेक्ष्य तुलनात्मक िाजनीतत के यूरो-केन्िवाद
पूवाषग्रहकोसमाप्तकिने काप्रयासकिताहै ।यह‘र्व्यआख्यानों’कीसीमाओं पिप्रकाश
डालताहै औिदोमहत्त्
वपूणष पहलओ
ु ं पिध्यानकेंदरतकिताहै —उपतनवेशवादकाप्रर्ावऔि
गैि-पष्श्चम की सांस्कृततक ववलशष्िता। यह ऐसी चुनौती के माध्यम से है कक अनुशासन
अपनेयरू ो-केन्िवादकेबल
ु बल
ु ेसेआगेबढ़नेमें सक्षमहै ।
1.7 तनष्कषट
तुलनात्मक िाजनीतत एक व्यापक उप-अनुशासन है ष्जसमें ववलर्न्द्न पिं पिाएाँ, ववधियााँ औि
दृष्ष्िकोण सष्ममललत हैं। इसमें िाजनीततक गततववधि का ववविण, ववश्लेर्ण, र्ववष्यवाणी
18 | पष्ृ
ठ
औि सामान्द्यीकिण शालमल है । तुलनात्मक िाजनीतत पि यरू ो-केन्िवाद, संकीणष, औपचारिक
औिअत्यधिकवणषनात्मकहोने काआिोपलगायागयाहै ।इनसीमाओं औिसमस्याओं के
बावजूद, ववद्वानों ने समािान खोजने औि तुलनात्मक िाजनीतत के दायिे को बढ़ाने की
कोलशश की है । जातीय केंदरत प्रकृतत को तोड़ना औि िाजनीततक प्रकक्रयाओं को संदर्ष में
स्थावपत किना महत्त्वपण
ू ष है । इस संबंि में, यह कहा जाता है कक ककसी को ऐततहालसक,
सांस्कृततक औि र्ौगोललक संदर्ों में ववश्लेर्ण किने की आवश्यकता है । यह ध्यान िखना
महत्त्वपूणष है ककअतत-सामान्द्यीकिणककसीर्ीलसद्िांतकाएकसमस्यात्मकपहलू है ।यदद
कोईिाजनीततकगततववधिकोपूिीतिहसे अमत
ू ष रूपमें समझाने कीकोलशशकिताहै , तो
यह वास्तववकता से दिू होगा। यदद अध्ययन केवल ववलशष्ि ष्स्थततयों को दे ख िहा है , तो
यह व्यापक संदर्ष के ललए अपनी प्रासंधगकता खो दे ता है । इसललए, ववद्वानों द्वािा मध्य-
स्तिकेआिािर्ूतलसद्िांतकीओिसे एकपरिवतषनकीवकालतकीगई(ब्ललोंडेल 1981)।
तुलनात्मकिाजनीततकववश्लेर्णकेक्षेत्रकेसंकुधचतहोने से र्ीकेस-उन्द्मुखअध्ययनोंपि
ध्यान केंदरत ककया गया। इस आलोचना के र्खलाफ कक तुलनावादी अविािणाओं को
सावषर्ौलमकबनाते हैं, कुछमामलोंपिआिारितववधियोंकेववकासपिनएलसिे से ध्यान
केंदरतककयागयाथा।यद्यवप, इसदृष्ष्िकोणकोर्ीसमस्याग्रस्तमानाजाताथाक्योंकक
खेल में कई कािक होने पि परिकल्पना पिीक्षण योग्य नहीं होती है । इन समस्याओं औि
केन्द्र-त्रबंदु केसंकीणष होने केबावजूद, तुलनात्मकिाजनीततकववश्लेर्णिाजनीततववज्ञानका
एक बहुत ही महत्त्वपूणष उप-ववर्य बना हुआ है । यह संदर्ष के वणषनात्मक, ववश्लेर्णात्मक
औि पद्िततगत ढााँचा प्रदान किके समकालीन िाष्रीय, क्षेत्रीय औि अंतिाषष्रीय िाजनीतत में
अंतदृषष्ष्िप्रदानकिताहै ।
1. यूिो-केंरवाद को परिर्ावर्त कीष्जए। तुलनात्मक िाजनीतत के अध्ययन पि इसके
प्रर्ावकाववश्लेर्णकीष्जए।
2. िाजनीततक व्यवस्था का वगीकिण तुलनात्मक िाजनीतत को समझने के ललए एक
महत्त्वपूणष उपकिणप्रदानकिताहै , इसकथनकामूल्यांकनकीष्जए।
19 | पष्ृ ठ
1.9 संदिट-ग्रंथ
20 | पष्ृ
ठ
इकाई-II : तल
ु नात्मक राजनीतत का अध्ययन करने के उपािम
संरचना
• इस अध्याय का अध्ययन किने के पश्चात ् ववद्याथी संस्थागत दृष्ष्िकोण, लसस्िम
दृष्ष्िकोणऔिसंिचनात्मक-कायाषत्मकदृष्ष्िकोणऔितुलनात्मकिाजनीततमें उनकी
प्रासंधगकताकेबािे में समझसकेंगे।
• ववद्याथीलसस्िमदृष्ष्िकोणकीउपयोधगताकोसमझेंगे तथातुलनात्मकिाजनीततमें
पड़नेवालेप्रर्ावकाअध्ययनकिें गे।
1.2 पररचय
वपछली इकाई में तुलनात्मक िाजनीतत के क्षेत्र औि प्रकृतत से पाठकों को परिधचत किाया
21 | पष्ृ ठ
गया है । यह अध्याय उन ववलर्न्द्न दृष्ष्िकोणों पि केंदरत है जो तुलनात्मक िाजनीततक
लसद्िांतमें प्रमुखहैं।इस ववर्य में ववशेर्रूपसे,हमस्वयं कोतीनमहत्त्वपूणष दृष्ष्िकोणों
तक सीलमत िखते हैं—संस्थागत उपागम, प्रणाली उपागम औि संिचनात्मक-कायाषत्मक
उपागम।इसअध्यायकाउद्दे श्यनकेवलतुलनात्मकिाजनीततमें प्रयक्
ु तइन उपागमोंपि
वाद-वववाद किना है , बष्ल्क प्रत्येक उपागम के गुण-दोर्ों तथा तुलनात्मक िाजनीतत के
ववकास में इनकी र्ूलमका तथा शोिकताष के ललए इसकी प्रासंधगकता को समझना एवं
प्रततत्रबंत्रबतकिनाहै ।इससेपहलेककहमइसववचािपि आगे बढ़ें ,यहआवश्यकहै ककहम
यह जानकािी प्राप्त किे ककउपागमक्याहैं?संकीणष अथष में ,यददहमकहें तो तुलनात्मक
िाजनीततअतनवायष रूपसे िाजनीततकजीवनकेववलर्न्द्नरूपोंकीतुलनाकििहीहै ,ष्जसके
तहतउपागमतुलनाकिने कीववलर्न्द्नववधियााँ हैं।उदाहिणकेललए,मानलीष्जएककहम
दोवस्तुओं—एऔिबीकीतुलनाकिनाचाहते हैं।उसष्स्थततमें ,हमािे पासपूवष तनयम
स्थावपत होने चादहए कक उनकी तुलना कैसे की जाए, ए औि बी की तुलना में ककन-ककन
ववशेर्ताओं को ध्यान में िखा जाए आदद। िाजनीततक प्रणाललयों की इस तुलना में ,
िाजनीततकसंस्कृततऔिसंस्थान, उपागमतुलनाकेतिीकोंकेरूपमें कायषकितेहैं।प्रत्येक
उपागमजदिलबौद्धिकइततहाससेववकलसतहोताहै औिउसववशेर्समयकीघिनाओं से
इसका स्वरूप तनिाषरित होता है । इसललए यह ध्यान िखना आवश्यक है कक अनुशासन में
प्रत्येकउपागमकीअपनीववशेर्प्रासंधगकताहोतीहै ।
तुलनात्मक िाजनीतत के लसद्िांत में प्रयुक्त उपागमों को मुख्य रूप से दो र्ागों में
वगीकृत ककया जा सकता है —पािं परिक उपागम औि आिुतनक उपागम। पािं परिक औि
आिुतनकउपागम केववपिीतस्वरूप पिबहुतअधिकजोिददएत्रबना,यहमाननाअपयाषप्त
है कक पािं परिक उपागम औपचारिक संिचनाओं, संस्थानों आदद के अध्ययन द्वािा पूिक
िाजनीततकेमानकपरिप्रेक्ष्यसे संबधं ितहैं।इसउपागमकेकुछप्रमुखसमथषकोंमें अिस्तू,
जेमस िाइस, हे िोल्ड लास्की, वाल्िि बेजहोि आदद शालमल हैं। सामाष्जक ववज्ञान में
व्यावहारिकक्रांततनेिाजनीततववज्ञानमें पािं परिकतिीकोंपि आघात ककयाऔितुलनात्मक
शोिमें वैज्ञातनकमानदं डोंकीआवश्यकतापिबल ददयागया।आिुतनकउपागमप्रणालीके
मापने योग्य पहलुओं को समझकि िाजनीततक प्रणाललयों का अध्ययन किने के ललए इन
वैज्ञातनकववधियोंकाउपयोगकितेहैं।
22 | पष्ृ
ठ
इससे पहले कक हम संस्थागत उपागम पि ववचाि-ववमशष किें , इस बात पि बल दे ना
महत्त्वपूणष है ककसंस्थाओं का अथष क्या है ? हालााँकक प्रथायाकानूनद्वािास्थावपतव्यवहाि
यागततववधियोंकेएकसुसंगतऔिसंगदठतप्रततरूपकोमोिे तौिपिएकसंस्थाकहाजा
सकताहै इसललएएकसंस्थाकेअथषमें केवलसंसदऔिन्द्यायपाललकाजैसेतनकायहीनहीं
बष्ल्कसमाजकेिीतत-रिवाजतथाककसीअन्द्यप्रततरूपवालेव्यवहािर्ीशालमल है जैसा कक
आप इस तथ्य से अवगत होंगे कक वववाह र्ी समाजशास्त्रीय अध्ययन हे तु एक संस्था है ।
अतः ‘संस्था’शब्दकीपरिर्ार्ामें अनुशासनात्मकलर्न्द्नताआश्चयषजनकनहीं होनीचादहए
इसललए,यहतकषददयाजासकताहै ककिाजनीततववज्ञानएकववर्यकेरूपमें संस्थाओंका
अध्ययनहै ।यहपिं पिात्रबल्कुलर्ीनवीन नहीं है बष्ल्कअिस्तू के ववचािों की तिह प्राचीन
है ।इसउपागमकीप्राथलमकधचंताकोमोिे तौिपिइस आिाि पिसमझाजासकताहै कक
संस्थाएाँ बेहतिजीवनकेललएसमाज,ववर्योंयानागरिकोंकापोर्णकैसे कितीहैं।अिस्तू
ने इस मानकप्रश्नकोसमझने केललए कक कौन सी संस्थाएाँ बेहति कायष किती है , 158
संवविानोंकीतुलनाकी।मैककयावेलीने वप्रंस कीसंस्थाकोअनेकसलाहदीताककप्रजापि
उधचततनयंत्रणककया जा सके।यहााँ तकककजबहॉब्सलेववथान(2009)ललखिहे थे,तब
र्ी वे अंग्रेजी गह
ृ यद्
ु ि से धचंततत थे औि इसललए उन्द्होंने मजबत
ू संस्थानों के ललए प्रचाि
ककया। संस्थानों से संबंधित ववचािकों की यह सूची अतत ववस्तत
ृ है औि इसे यहााँ ववस्तत
ृ
किनेकीआवश्यकतार्ी नहींहै ,पिं तु यहसमझना आवश्यकहै ककशुरूसेहीकईववचािक
ककसी-न-ककसीतिहसे संस्थानोंसे संबंधितथे।हालााँककबाद के समय में संस्थागतउपागम
एक ववधि के रूप में प्रमख
ु समथषकों कालष फ्ेडरिक, जेमस िाइस, ए. एल लोवेल, हिमन
फाइनिऔिसैमुअलफाइनि के ववचािों द्वािा मुख्यिािाबनगया।
जीन ब्लोंडेल ने इस संबंि में तकष ददया कक उन्द्नीसवीं शताब्दी के उत्तिािष में जेमस
िायस औि लोवेल इस क्षेत्र में उनके प्रमुख योगदान के कािण िाजनीततक अनुशासन के
तहत अध्ययनकीएकलर्न्द्न शाखाकेरूपमें तुलनात्मकिाजनीततकेसच्चे संस्थापकहैं।
िायसकोउनकेअमेरिकनकॉमनवेल्थ(1888)औिमॉडनष डेमोक्रेसीज़(1921)में योगदान
केललएजानाजाताहै ।अपने कायष द्वािा आिुतनकलोकतंत्रके तहत उन्द्होंने वविातयकाके
कामकाजऔिउसकेपतनकोसमझनेकीकोलशशकी।लोवेलनेफ्ांस,ष्स्वट्जिलैंड,जमषनी
23 | पष्ृ ठ
आददकाअलग-अलगअध्ययनककयाऔिजनमतसंग्रहऔिउसकेप्रर्ावकातुलनात्मक
अध्ययन किने की मााँग िखी। उनकी प्रलसद्ि कृततयों में गवनषमेंि एंड पािीज इन
कॉष्न्द्िनेंिलयूिोप(1896)औिपष्ब्लकओवपतनयनएंडपॉपल
ु िगवनषमेंि(1913)शालमलहैं।
हालााँकक उनसे पहले केववद्वानोंने र्ी संस्थानोंकाअध्ययनककया,िायसऔिलोवेलने
इस ववर्य में तकष ददया कक इस तिह के अध्ययन अिूिे थे पिं तु इसके ललए उन्द्होंने कोई
गहन तकषनहीं ददया।उन्द्होंने इस ववर्य पि बल दे ते हुए कहाहै ककन केवलसिकािके
सैद्िांततकआिािोंकाअध्ययनकिनाआवश्यकहै ,बष्ल्क ‘सिकािकीप्रथाओं’कोउजागि
किनार्ीउतनाहीमहत्त्
वपूणष है ,जोसंस्थागतउपागम से पहले के ववचािों में गायबथा।
इसके साथ हीएकशोिकताष कोिाजनीततकव्यवस्थाकीबेहतिसमझऔितुलनाकेललए
तथ्योंऔिसैद्िांततकतकोंदोनोंपिध्यानकेंदरतकिनाचादहए।आंकड़ों के एकत्रीकिण हे तु
उन्द्होंनेगुणात्मकऔिमात्रात्मकदोनोंववधियोंको प्रयोगकिनेकार्ी सुझावददया।
बीसवीं शताब्दी के पूवाषिष तक संस्थागत उपागम िाजनीततक ववज्ञान के अनुशासन के
मुख्यस्तंर्ोंमें से एकथा।अनेकववद्वानोंने इस ववर्य में ववलर्न्द्नसंस्थाओं कक र्ूलमका
को समझने का प्रयास ककया। उदाहिण के ललए, संयुक्त िाज्य अमेरिका के पूवष िाष्रपतत
वुडिो ववल्सन ने संयुक्त िाज्य अमेरिका औि यूिोप की सिकािों की तुलना किते हुए
बतलाया कक अमेरिकी सिकाि यूिोपीय सिकािों से क्या सीख सकती है (डोइग, 1983)।
संस्थागत उपागम की कुछ ववलशष्ि ववशेर्ताएाँ होती हैं जो इस उपागम को ववस्ताि से
समझने में सहायता प्रदानकितीहैं गाइपीिसष (1999)।संस्थागतउपागमकीववशेर्ताओं
कोतनमनानस
ु ािसूचीबद्िकितेहैं
1.3.1.1 ववगधपरायणता : संस्थागत उपागम ने ववलर्न्द्न संस्थानों की तुलना में कानून को
केंरीयस्थानददया।ऊपिललर्खतववल्सनकेउदाहिणमें र्ी,सिकािकेप्रकािोंपिउनके
द्वािा बल दे ने के माध्यम से कानन
ू की प्रमुखता ददखती हैं। कानून की प्रमुखता को मोिे
तौिपिइसतथ्यकेललएष्जममेदािठहिायाजासकताहै कककानूनिाजनीततकजीवनका
आिाि है औि नागरिकों के व्यवहाि को महत्त्वपूणष रूप से प्रर्ाववत किता है । उपागम में
इसकीकेंरीयताकेबावजूद,ववद्वानकानूनऔिसमाजकेबीचसंबंिोंकीव्याख्यामें लर्न्द्न
हैं।गाइपीिसष (1999)कामाननाहै ककिाजनीततकज्ञानकेआिािकेरूपमें कानूनके
अध्ययननेप्रलशयािाज्यमें औिउसकेबादजमषनीमें अपनीप्रशंसा प्राप्त की।
24 | पष्ृ
ठ
1.3.1.3 साकल्यवाद : संस्थागत उपागम का उपयोग किने वाले शोिकताषओं ने संपण
ू ष
प्रणाललयों की तुलना किने का प्रयास ककया। यद्यवप इस ववर्य का सामान्द्यीकिण किना
कदठनहै क्योंककशोिकताष बड़ीप्रणाललयोंकाहीअध्ययनकिते हैं,ष्जससे उन्द्हें िाजनीततक
जीवन की जदिल प्रकृतत औि व्यवहाि को प्रर्ाववत किने में ववलर्न्द्न पहलुओं की पिस्पि
कक्रयासेसुसष्ज्जतककयाजा सके।
1.3.2 आलोचना
संस्थागत उपागम, अनुशासन में प्रमुख था, हालााँकक इसमें कलमयााँ हैं जो मुख्य रूप से
व्यवहािवादी ववद्वानोंद्वािाइंधगतकीगईथीं।िाजनीततक ववज्ञानववर्यमें वैज्ञातनकक्रांतत
का मतलब था कक तथ्य-आिारित लसद्िांतों के ललए उपागम की काल्पतनक प्रकृतत को
खारिज कि ददया गया था। इन कलमयों को इंधगत किने का प्रयास यहााँ किें गे ष्जनका
25 | पष्ृ ठ
संस्थागतउपागमसामनाकिताहै।जैसाककपहलेउल्लेखककयागयाहै ,संस्थागतउपागम
नेिाजनीततकव्यवस्थाकीव्याख्यामें संिचनाकोएकप्रमुखर्ूलमकाप्रदान की हैं।हालााँकक,
उपागम की इस संिचनात्मक प्रकृतत ने कुछ ‘महापुरुर्ों’ को छोड़कि व्यवस्था के पोर्ण में
व्यष्क्तयों या समूहों की र्ूलमका पि ववचाि नहीं ककया। आज की वैश्वीकृत दतु नया से यह
बहुत स्पष्ि है कक िाज्य के गैि-संिचनात्मक पहलू जैसे कॉपोिे ि औि अन्द्य गैि-िाज्य
अलर्नेता र्ी इस व्यवस्था पि एक मजबूत प्रर्ाव िखते हैं। इसके अलावा, िॉय मैकक्रडडस
(1955)ने तकषददयाककऔपचारिकसंस्थानोंकाअध्ययनकिने केललएसंस्थागतवादकी
प्रववृ त्त ने इस उपागम को यूिो-केंदरत प्रकृतत में संकीणष बना ददया। आलमंड औि कोलमैन
(1960)ने यहर्ीबतायाककसंस्थागतउपागमकोएकसंकिकासामनाकिनापड़ता है
क्योंकक यह तीसिी दतु नया के दे शों की िाजनीततक व्यवस्था को समझ नहीं सका जहााँ यह
संस्थानयूिोपीयसमकक्षोंकीतिहकमयाववकलसतहीनहींथे।
इसकी कलमयों के बावजूद, यह तकष ददया जा सकता है कक संस्थागत उपागम िाजनीतत
ववज्ञान अनस
ु ंिान के स्तंर्ोंमें से एक है । औपचारिकसंस्थानोंऔिसमाजके साथउनके
संबंिोंपिआजर्ीककएगएशोिकीववशालमात्राइसउपागमकीप्रमुखताकाएकतनयम
है । व्यावहारिक क्रांतत ने तनष्श्चत रूप से उस उपागम की कमी की ओि इंधगत ककया है ,
26 | पष्ृ
ठ
िाजनीततक ववज्ञान में व्यवस्था उपागम की उत्पवत्त तुलनात्मक िाजनीतत के पािं परिक
उपागमों की आलोचना में हुई है । प्रणाली उपागम सदहत आिुतनक उपागम के समथषकों ने
अनुशासनकेसख्तववर्ाजनकोखारिजकिददया,जोपािं परिकउपागमकापरिणामथा।
उन्द्होंने ववलर्न्द्नअनुशासनात्मकववधियोंकेएकीकिणकेकािणों कासमथषनककया।ववशेर्
रूपसे,उन्द्होंनेसामाष्जकघिनाओंकोतनष्पक्षरूपसेसमझनेऔिऐसेवस्तुतनष्ठववश्लेर्ण
के माध्यम से र्ववष्यवार्णयों को अधिक सुसंगत बनाने के ललए प्राकृततक ववज्ञान से
आकवर्षतहोने कीआवश्यकताहे तु तकषददया।प्रणालीउपागमकीउत्पवत्त,सामान्द्यरूपसे,
जमषनजीवववज्ञानीलुडववगवॉनबिष लान्द्फीसे समझी जासकती है ,ष्जन्द्होंने सर्ीप्राकृततक
ववज्ञानों के एकीकिण के आंदोलन का बीड़ा उठाया था। यह िाजनीतत ववज्ञान में क्रमशः
एलमल दख
ु ीम,िॉबिष के.मेिषनऔििै ल्कॉि पासषन्द्सकेकायोंकेमाध्यमसे नवृ वज्ञानऔि
समाजशास्त्रजैसे ववर्योंमें अपने आवेदनकेमाध्यमसे आयाथा।यद्यवप ‘प्रणाली’शब्द
की परिर्ार्ा अलग-अलग ववर्यों में लर्न्द्न-लर्न्द्न होती है , बिष लान्द्फी (1956) ने इसे
“अंतःकक्रया में शालमल तत्त्वों के एक समह
ू ” के रूप में वर्णषत ककया। दस
ू िी ओि, मोिष न
कैपलन(1967),प्रणालीववश्लेर्णकेउद्दे श्यकोपरिर्ावर्तकिताहै , “अंतसंबंधितचिके
एक समह
ू का अध्ययन, जैसा कक समह
ू के वाताविण से अलग है , औि उन तिीकों से
ष्जसमेंयहसमह
ू प्रर्ावकेतहतबनाएिखाजाताहै ,पयाषविणकीगड़बड़ीकेकािण।”
डेववडएप्िि(1978)नेप्रणाललयोंकोतनमनललर्खततिीकेसेधचत्रत्रतककया—
1. प्रणालीअपनीतनददष ष्िसीमाओंयावाताविणकेर्ीतिककसीप्रकािकेसंचािकेआिाि
पि तत्त्वों के बीच कायाषत्मक अंति-संबंिों से बना होता है । ऐसी प्रणाली में तत्त्व
यादृष्च्छक एकत्रीकिण नहीं हैं, लेककन उनकी अन्द्योन्द्याश्रयता प्रणाली के अष्स्तत्व की
अनम
ु ततदे तीहै ।
2. एकप्रणालीकेर्ीतिउप-प्रणाललयााँहोतीहैं।
3. प्रणाली मााँग औि समथषन के रूप में इनपुि लेता है । प्रणाली उन इनपुि को कानूनों
27 | पष्ृ ठ
औिनीततयोंकेरूपमेंआउिपुिमें अनुवादकिताहै ।
वातावरण
सहयोग नीततयााँ
प्रततपुति
िाजनीततकव्यवस्थाकाएकसिलआिे खीयववविण
28 | पष्ृ
ठ
डेववड ईस्िन ने िाजनीतत ववज्ञान अनुशासन में प्रणाली ववश्लेर्ण के आंदोलन का बीड़ा
उठाया। उनके प्रलसद्ि कायष, ए लसस्िमस एनालललसस ऑफ पॉललदिकल लाइफ (1965) ने
“लसद्िांत के स्ति पि व्यवस्था किने औि एक नए औि सहायक तिीके से िाजनीततक
घिनाओं की व्याख्या किने के ललए अविािणाओं का एक मूल समूह” प्रदान ककया (डेववस
औि लई
ु स 1971)। ईस्िन ऐसे िाजनीततक लसद्िांत को बढ़ावा दे िहे थे जो िाष्रीय औि
अंतिाषष्रीयदोनोंिाजनीततकप्रणाललयोंकोसमझानेमें सक्षमहै तथा जोइनकीतुलनाकिने
में कािगि लसद्ि होता है ।उन्द्होंनेपािं परिकउपागमकेववद्वानोंकोजो मानक ववश्लेर्ण से
ग्रस्त थे खारिजकिददया,औििाजनीततकव्यवस्थाकोसमझने केललएवैज्ञातनकतिीकों
की आवश्यकता के कािण का समथषन ककया। ईस्िन ने अपने ववलर्न्द्न लेखो में प्रणाली
ववश्लेर्ण पि व्यापक रूप से ललखा है , हम उनके लसद्िांत को संक्षेप में प्रस्तत
ु किने का
प्रयासकिें गे।
डेववडईस्िननेिाजनीततकलसद्िांतमें प्रचललतमौजूदापरिर्ार्ाओंकाउपयोगकिनेके
बजाय ‘िाजनीतत’ औि ‘िाजनीततक व्यवस्था’ शब्दों के ललए नई परिर्ार्ाएाँ गढ़ी। ईस्िन के
ललए, िाजनीतत “मूल्यों का आधिकारिक आवंिन” है । एक िाजनीततक व्यवस्था, इसललए र्ी
“सामाष्जक व्यवहाि की समग्रता से अमूतष अंतःकक्रयाओं का एक समूह है , क्योंकक इसके
माध्यमसेसमाजकेललएमूल्योंकोआवंदितककयाजाताहै ”(ईस्िन1956)।यहध्यानमें
िखाजानाचादहएककईस्िनकेललए ‘मल्
ू य’ शब्द मल्
ू य-आिारितिाजनीततकेसमाननहीं
हैं। जौहिी (2011) का तकष है कक इस शब्द का प्रयोग संर्वतः आधथषक अथष में मल्
ू य या
कीमतकेअथष में ककयागयाथा।ईस्िनकामाननाहै ककसत्तामें िहने वाले लोगमल्
ू यों
कोतनिाषरितकितेहैं,औििाजनीततमल्
ू योंकाआवंिनबनजातीहै ।
प्राकृततकऔिसामाष्जकप्रणाललयोंमेंकुछसामान्द्यगुणहोतेहैं,जैसेएकमुकाबलातंत्र
जोउन्द्हें उत्पन्द्नहोने वालीगड़बड़ीसे तनपिने में सक्षमबनाताहै ।ईस्िनने तकषददयाकक
िाजनीततकव्यवस्थामें अपनीप्रकक्रयाकोसहीकिने,बदलने औिकफिसे समायोष्जतकिने
के ललए एक ‘प्रततकक्रया’ औि ‘स्व-ववतनयमन’ तंत्र है । इसललए िाजनीततक व्यवस्था केवल
ष्स्थि नहीं बष्ल्क एक गततशील मामला है , हालााँकक प्रत्येक प्रणाली अपनी पहचान को
बिकिाि िखने की कोलशश किती है । यह एक ‘फीडबैक’ तंत्र के माध्यम से होता है जो
पयाषविणसे िाजनीततकव्यवस्थातकसूचनाप्रसारितकिताहै ।ईस्िनकातकषहै ककएक
29 | पष्ृ ठ
िाजनीततक व्यवस्था को अर्ी र्ी पयाषविण से चुनौततयों का सामना किना पड़ सकता है ,
ष्जसे वे तनाव कहते हैं। तनावदो प्रकािके होते हैं—मााँग तनावऔि समथषन तनाव।यदद
प्रणालीफीडबैकपिववचािकिने में ववफलिहताहै याकुछमााँगोंकोपूिाकिने में ववफल
िहता है, तो मााँग तनाव उत्पन्द्न हो सकता है । इसे “मााँग-इनपुि अधिर्ाि” कहा जाता है ।
समथषनतनावतबउत्पन्द्नहोताहै जबिाजनीततकव्यवस्थाकेसदस्य,प्रणालीकासमथषन
नहींकितेहैंष्जसकेपरिणामस्वरूपप्रणालीववफलहोजातीहै इसललए,इनपुिऔिआउिपुि
के बीच उधचत संतुलन होना चादहए। इसके अलावा, िाजनीततक व्यवस्था का चुनाव,
िाजनीततक दलों औि िाजनीततक ववश्वासों औि व्यवस्था के अष्स्तत्व के ललए लोगों के
उपागम जैसे कुछ संिचनात्मक आिािों की र्ी आवश्यकता होती है । संक्षेप में , जैसा कक
डेववस औि लुईस (1971) ने बताया है , डेववड ईस्िन के ललए िाजनीततक व्यवस्था एक
“इनपुि-आउिपुि तंत्र है जो िाजनीततक तनणषयों औि इन ष्स्थततयों से जुड़ी गततववधियों से
तनपिताहै”।
1.4.3 आलोचना
डेववड ईस्िन की ‘िाजनीतत’ औि ‘िाजनीततक व्यवस्था’ शब्दों की परिर्ार्ा प्रकृतत में
बहुत व्यापक औि सािगलर्षत है । एक तिफ, “सर्ी घिनाओं को एक प्रणाली के ढााँचे में
मजबूिकिताहै ”(यंग1968)एवं दस ू िीतिफ ककसीर्ीपरिकल्पनाऔिप्रस्तावकोतैयाि
किनाबहुतसािगलर्षतहै ।दस ू िािाजनीततकव्यवस्थाकाबहुतअधिकववविणनहीं है ,जो
इसे प्रकृततमें अस्पष्िबनाताहै ।खुलीऔिबंदप्रणालीकेबीचकाअंतिर्ीबहुतिुंिला
है ।तीसिा,प्रणालीलसद्िांतकेवलवतषमानकोध्यानमें िखताहै औििाजनीततकव्यवस्था
की र्ववष्यवाणी किने के ललए आवश्यक ऐततहालसक औि सामाष्जक ष्स्थततयों की उपेक्षा
किताहै ।चौथा,प्रणालीलसद्िांतअर्ीर्ीपािं परिकउपागमकीसंकीणष प्रकृततकीसमस्या
कोदिू नहींकिताहै औिदतु नयाएवंिाजनीततकोकेवलपष्श्चमीलेंससेदे खताहै ।अंतमें
30 | पष्ृ
ठ
ईस्िन ने औपचारिक संस्थानों पि बहुत अधिक जोि दे ने के ललए पािं परिक उपागम की
आलोचना की, औि उन्द्होंने एक अलर्नेता के रूप में व्यष्क्त के माध्यम से िाजनीततक
व्यवस्थाकेव्यवहािकोसमझनेकीकोलशशकी।लेककनउनकेववश्लेर्णसेयहस्पष्िहोता
है ककईस्िनकोव्यष्क्तमें केवलतर्ीददलचस्पीथीजबवेव्यवस्थाकोसंिक्षक्षतकिनेकी
प्रकक्रयाकादहस्साहों।यद्यवपपािं परिकउपागमसे िाष्रयािाज्यशब्दकोिालागयाहै
औिइसे शब्दप्रणालीमें बदलददयागयाहै ,लेककनजोिकेवलप्रणालीपिहै ।इससंबंि
में,वमाष (1975)ने ठीकहीबतायाककईस्िन,पािं परिकउपागमकोव्यावहारिकसंदर्ष से
दिू जाने केअपने गंर्ीिप्रयासोंमें ,खुदकोकहीं बीचमें पाताहै ।पॉलएफ.क्रेस(1969)
का तकष है कक इस लसद्िांत में ईस्िन के प्रणाली ववश्लेर्ण की तिह, तथ्यों का सममान
किते हुएककसीर्ीसािकाअर्ावहै औिहमें ‘िाजनीततकीखालीदृष्ष्ि’केरूपमें प्रस्तुत
किताहै ।
ववलर्न्द्नववद्वानोंद्वािाउपिोक्तआलोचनात्मकदिप्पर्णयोंकेबावजूद,इसबातसे इनकाि
नहीं ककयाजासकताहै ककिाजनीततववज्ञानमें प्रणालीलसद्िांतकाअनुशासनपिकाफी
प्रर्ाव पड़ा है । इसने िाजनीततक व्यवस्था का एक वह
ृ द ववश्लेर्ण प्रदान ककया ष्जसका
तनष्पक्षअध्ययनककयाजासकताथा।इसने गैि-पष्श्चमीदतु नयाकीिाजनीततकव्यवस्थाओं
का अध्ययन किके अनुशासन के दायिे को र्ी ववस्तत
ृ ककया। हालााँकक ईस्िन पािं परिक
दृष्ष्िकोणों औि व्यावहारिक दृष्ष्िकोणों के बीच में लिके हुए थे, तथ्यों पि उनके जोि ने
अनश
ु ासनमें वैज्ञातनकक्रांततकानेतत्ृ वककया,जैसाककहमआजदे खतेहैं।
संिचनात्मक प्रकायषवाद तुलनात्मक िाजनीतत में तीसिा उपागम है ष्जसकी चचाष हम इस
अध्यायमें संस्थागतऔिप्रणालीउपागमकोिे खांककतकिने केबादकिसकते हैं।संक्षेप
में, संिचनात्मक-कायाषत्मकता का अथष है जांच के एक उपकिण के रूप में िाजनीततक
संिचनाओं केकायोंकीव्याख्याकिनाहै ।उदाहिणकेललएयददकोईशोिकताष र्ाितऔि
यूनाइिे डककंगडममें प्रिानमंत्रीकीसंस्थाकीतुलनाकिनाचाहताहै ,तोवहर्ाितऔि
यूनाइिे डककंगडमकेसंबंधितप्रिानमंत्रत्रयोंद्वािाककएगएकायोंकोसमझकिसमानताऔि
अंतिकापतालगासकताहै ।लेककनइससेपहलेककहमउपागमकीववस्तत
ृ चचाषकिें ,हमें
31 | पष्ृ ठ
एकसंिचनाऔिकायषक्याहैं,इसकीबुतनयादीसमझकीआवश्यकताहै ।यहााँइसबातपि
कफि से जोि दे ने की आवश्यकता नहीं है कक संिचना औि कायष की परिर्ार्ाएाँ न केवल
अनुशासनकेआिािपिलर्न्द्नहोतीहैं बष्ल्कअनुशासनकेर्ीतिकेववद्वानोंकेबीचर्ी
लर्न्द्नहोतीहैं।एकिाजनीततकव्यवस्थाकेर्ीतिकीव्यवस्थाजोएककायष याकुछकायष
किती है , मोिे तौि पि संिचना कहलाती है । ये कायष सिल या जदिल हो सकते हैं। इसके
अलावा,यहएकमामलाहोसकताहै ककसंिचना एकलकायष किसकतीहै ,यासंिचनाओं
केसमूहएकसाथजदिलकायष किसकते हैं।उपिोक्तचचाष से यहस्पष्िहोनाचादहएकक
फंक्शनक्याहै ,लेककनइसे सिीकशब्दोंमें परिर्ावर्तकिनाआवश्यकहै ।िॉबिष केमेिषन
(1959)नेकायोंको “उनदे खेगएपरिणामोंकेरूपमें परिर्ावर्तककयाहै जोककसीदीगई
प्रणालीकेअनुकूलनयापुन:समायोजनकेललएबनाते हैं;औिउनदे खे गएपरिणामोंको
खिाब किता है जो प्रणाली के अनुकूलन या समायोजन को कम किते हैं”। यदद प्रणाली
ववश्लेर्णिाजनीततकप्रणालीकोइनपुिऔिआउिपुिकेसाथएकसाइबिनेदिकमशीनके
रूपमेंमानताहै ,तोकायाषत्मकता ‘ऑगेतनक’सादृश्यकोस्थानदे तीहै ।
32 | पष्ृ
ठ
िाजनीततकव्यवस्थाकीष्स्थितासेधचंतततथे।उनकेअधिकांशववश्लेर्णकावणषनपहलेके
खंडोंमें ककयागयाथा।इसउपागममें एकअन्द्यप्रमुखववद्वानववललयमसी.लमशेलहैं।
लमशेल, ईस्िन के ववपिीत, िाजनीततक व्यवस्था को सामाष्जक व्यवस्था के साथ भ्रलमत
किने की गलती नहीं किते हैं औि इसे सामाष्जक व्यवस्था की एक उप-प्रणाली के रूप में
मानते हैं जोसामाष्जकव्यवस्थाकेलक्ष्योंकोपूिाकिने केललएसंसािनजुिाने काकायष
कितीहै ।डेववडएप्ििनेयुगांडाऔिघानाजैसेअफ्ीकीदे शोंकीिाजनीततकव्यवस्थाओंपि
ध्यान केंदरत ककया औि तकष ददया कक तीसिी दतु नया के दे शों में औपतनवेलशक आकाओं
द्वािा लगाए गई ‘आयाततत व्यवस्था’ औि पष्श्चमी ववद्वानों की र्ववष्यवाणी के अनुसाि
ठीक से काम नहीं किते हैं। उन्द्होंने सिकाि के कायों को समझकि तीसिी दतु नया में
िाजनीततक व्यवस्था को समझने की कोलशश की। इस प्रकाि, संिचनात्मक प्रकायषवाद ने
तीसिी दतु नया से संबधं ित िाजनीततक प्रणाललयों को समझने के ललए एक वैचारिक ढााँचा
ददया।
1.5.1 आलोचना
अनुशासनकेर्ीतिव्यावहारिकक्रांततकेबादिाजनीततकववज्ञानमें संिचनात्मकप्रकायषवाद
33 | पष्ृ ठ
प्रमुख व्याख्याओं में से एक बन गया हालााँकक, इसकी कुछ गंर्ीि सीमाएाँ हैं। हम इस
उपागम की कुछ कलमयों को दे खने का प्रयास किें गे। जैसा कक संिचनात्मक-कायाषत्मक
उपागम पि उपिोक्त चचाष से दे खा जा सकता है , प्रणाली उपागम ष्स्थि संबंिों पि अधिक
ध्यान केंदरत किता है । यह िाजनीततक व्यवस्था के गततशील संबंिों औि ऐततहालसक खाते
को ध्यान में िखने में ववफल िहता है । तुलना किने के ललए मात्रात्मक तिीकों की उनकी
खोजमें,िाजनीततववज्ञानकोसमद्
ृ िमानकप्रश्नोंकेउत्तिदे नेकेबजायष्स्थिसंबंिोंतक
सीलमत कि ददया गया था। दस
ू िे , ईस्िन, लमशेल, एप्िि, आलमंड औि अन्द्य प्रकायषवादी
लसद्िांतकािोंकेलसद्िांतव्यापकरूपसे प्रणालीकेअष्स्तत्वकेप्रश्नोंसे संबंधितथे औि
ककसीर्ीपरिवतषनकीष्स्थततमें ष्स्थिअनुकूलनववधिकाउत्तिदे ने कीमााँगकि िहे थे।
दस
ू िे शब्दोंमें,संिचनात्मक-कायाषत्मकतायथाष्स्थततवादीऔिककसीर्ीआकष्स्मकपरिवतषन
के ववरुद्ि थी। यथाष्स्थतत बनाए िखने के ललए इस अत्यधिक धचंता ने माक्सषवादी औि
आलोचनात्मकपिं पिाकेववद्वानोंमें र्ौंहें चढ़ादीं।उदाहिणकेललए,गोल्डनि(1971)ने
“औद्योधगकसमाजकेसमाजशास्त्रीयसंिक्षणवादहनी”केरूपमें प्रकायषवाददयोंकीआलोचना
की,औिर्ांबिी(1973)ने प्रकायषवाददयोंपि “घिपिपाँज
ू ीपततऔिववदे शोंमें सािाज्यवाद
केिक्षक”होने काआिोपलगाया।माक्सषवाददयोंने उसव्यवस्थामें एकक्रांततकािीपरिवतषन
की आवश्यकता पि बल ददया जहााँ िाजनीततक नेताओं की मदद से पाँज
ू ीपतत वगष द्वािा
जनताकाशोर्णककयाजाताहै ।इसललए,कायाषत्मकउपागमकोएकऐसे खतिे केरूपमें
दे खाजाताहै जोजनताकीक्रांततकािीचेतनाकोबाधितकिताहै ।
वपछले र्ाग में, हमने दे खा कक ककस प्रकाि प्रकायषवाद ने तीसिी दतु नया के दे शों की
िाजनीततक व्यवस्थाओं का अध्ययन किने के ललए एक वैचारिक ढााँचे को प्रोत्साहन ददया।
हालााँकक, यह आलोचना के ललए प्रवण नहीं है । कई लोगों ने इस ववडंबना की ओि इशािा
ककया कक कायाषत्मक उपागम के ववद्वानों ने ववकासशील समाजों को उनके आिामदायक
पस्
ु तकालयों, हावषडष औि लशकागो ववश्वववद्यालयों में कायाषलय कक्षों में समझने के ललए
रूपिे खा ववकलसत की, ष्जसमें िाजनीततक वास्तववकता का अर्ाव था। मात्रात्मक तिीकों के
ललए अत्यधिक धचंता ने शोर्क पष्श्चमी समाज को मान्द्यता दी औि तीसिी दतु नया के
समाजों पि पयाषप्त आितु नक नहीं होने का आिोप लगाया। लसद्िांत की संकीणष प्रकृतत को
आलमंड के लसद्िांत में दे खा जा सकता है , साथ ही उनका मानना था कक आदशष समाज
आिुतनकपष्श्चमीसमाजथाऔिपरिवतषनकेवलपािं परिकसेआिुतनकहोसकताहै ।
34 | पष्ृ
ठ
उपयक्
ुष त आलोचनाओं के बावजूद, इसमें कोई संदेह नहीं है कक पष्श्चमी लोकतंत्रों के
अध्ययनमेंसंिचनात्मक-कायाषत्मकउपागमकेकुछफायदे हैं,लेककनतीसिीदतु नयाकेदे शों
केमामले में आवेदनएकतनष्श्चतसाविानीकेसाथककयाजानाहै ।एकशोिकताष द्वािा
िाजनीततक व्यवस्था को पूिी तिह से न समझने वाले उपागम पि तनर्षि िहने के बजाय
िाजनीततकऔिसामाष्जकवास्तववकताओंकोप्राथलमकतादे नीहोगी।
1.6 तनष्कषट
1.8 संदिट-ग्रंथ
• Almond, G and Coleman, J. S. (1960), The Politics of Developing Areas, Princeton:
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• Apter, David (1978), Introduction to Political Analysis, New Delhi: Prentice Hall.
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36 | पष्ृ
ठ
संरचना
• इस अध्याय को पढ़ने के पश्चात ् ववद्याथी िाजनीतत में संस्कृतत के महत्त्व औि
आल्मंडऔिवबाषकीनागरिकसंस्कृततकीअविािणाकोसमझसकेंगे।
• िाजनीततक वैज्ञातनकों औि शोिकताषओं को व्यष्क्तगत व्यवहाि औि िाजनीततक
प्रणालीकेबीचपिस्पिकक्रयाकाअनुर्वजन्द्यववश्लेर्णकिनेमें सक्षमबनेंगे।
2.2 प्रस्तावना
37 | पष्ृ ठ
लसद्िांतों का सामाष्जक ववज्ञान के साथ-साथ िाजनीतत ववज्ञान के संदर्ष में एक महत्त्वपूणष
स्थानहै ।ये न केवल सामाष्जक-िाजनीततकघिनाओं केबािे में समझववकलसतकिने में ,
बष्ल्कजदिलसमस्याओं केसमािानखोजने में र्ी शोिकताषओं औििाजनीततकवैज्ञातनकों
को सक्षम बनाती है । ववशेर्कि, तुलनात्मक िाजनीतत के क्षेत्र में उपागम बहुत महत्त्वपूणष
स्थान िखते हैं क्योंकक वे हमें ववलर्न्द्न िाजनीततक प्रकक्रयाओं, िाजनीततक घिनाओं औि
संस्थागत गततववधियों के साथ-साथ सामाष्जक व्यवहािों की तुलनात्मक रूप से व्यवष्स्थत
व्याख्या किने में सहायता किते हैं। साथ ही, तुलनात्मक िाजनीतत ववद्वानों को सामाष्जक
औि िाजनीततक परिणामों की र्ववष्यवाणी किने के ललए प्रोत्सादहत किते हैं। पूवव
ष ती
अध्यायोंमें प्रमुखपािं परिकऔिआिुतनकउपगमोंपिववश्लेर्णप्रस्तुतककयागयाहै ।यह
अध्याय महत्त्
वपूणष आिुतनक उपगमों में से एक का मूल्यांकन किता है , अथाषत ्तुलनात्मक
िाजनीतत के अध्ययन के िाजनीततक संस्कृतत उपागम का। अध्याय की शुरुआत यह
‘िाजनीततक संस्कृतत’ शब्द के अथष पि ववमशष के साथ शुरू होती है औि इसके प्रमुख
प्रस्तावकों, ववशेर् रूप से Gabriel Almond औि Sidney Verba के द्वािा इस संदर्ष में
कीजानेवालीप्रमुखयोगदानोंकाअवलोकनकिताहै ।अध्यायकाअंततमर्ागइसउपागम
कीमुख्यसीमाओंऔिआलोचनात्मकमूल्यांकनपिकेष्न्द्रतहै ।
38 | पष्ृ
ठ
पािस्परिक संवाद के अध्ययन पि बल दे ता है । सामाष्जक ववज्ञान में व्यवहािवादी तिीकों
औिउपकिणोंकीबढ़तीलोकवप्रयताकेसाथ, ववद्वानोंनेिाजनीततकववज्ञानकेअध्ययनमें
संिचनात्मकऔिऐततहालसकपहलुओं कीतुलनामें समाजशास्त्रीय(सांस्कृततक)पहलुओं को
अधिकमहत्त्
वदे नाशुरूकिददया।इसकेअलावा, यहदे खागयाहै कक“िाजनीततकसंस्कृतत
सादहत्य ने द्ववतीय ववश्व युद्ि के बाद िाजनीततक ववज्ञान को वैिता (legitimacy) औि
प्राधिकाि(authority)काबोिकिवाने में सहायताकीहै ”(Formisano, 2001: 397)।इस
तिह, िाजनीततक संस्कृतत उपागम िाजनीततक ववज्ञान में एक नए युग के उद्र्व को
धचष्ननतकिताहै जहााँ ववद्वानोंकेशोिमें समाजशास्त्रीयऔिव्यवहािसंबंिीपहलुओं को
अधिकमहत्त्वलमला।
िाजनीततक संस्कृतत उपागम/दृष्ष्िकोण ने बीसवीं शताब्दी के मध्य में िाजनीततक
वैज्ञातनकों औि शोिकताषओं का ध्यान अपनी ओि आकवर्षत ककया। हालााँकक ववद्वान इसकी
उत्पवत्त का श्रेय Johann G. Herder, Alexis de Tocqueville औि Montesquieu के
लेखों कोदे तेहैं, लेककनवोGabriel Almondथे ष्जनकेववश्वववख्यातऔिअग्रणीपुस्तक
“Comparative Political Systems” (1956) ने आितु नक समय में िाजनीतत ववज्ञान के
क्षेत्रमें इसअविािणाकोलोकवप्रयबनाया।Almondकेमतानुसाि, “हििाजनीततकप्रणाली
िाजनीततक गततववधियों के अलर्ववन्द्यास (orientations) के एक ववशेर् प्रततरूपसे जुड़ी है ”
औि उन्द्होंने इस प्रततरूप को ही ‘िाजनीततक संस्कृतत’ के रूप में परिर्ावर्त ककया
(Formisano, 2001: 396 में उद्ित
ृ )। अथाषत ् इस परिर्ार्ा के अनस
ु ाि ककसी र्ी
िाजनीततकप्रणालीमें लोगोंकेझुकावयाअलर्ववन्द्यास(िाजनीततककायोंकेसंदर्ष में )को
समझनाअतनवायषहै ।
सामान्द्य तौि में िाजनीततक संस्कृतत शब्द िाजनीततक प्रणाली औि इसके ववलर्न्द्न
संस्थानों के साथ-साथ िाजनीततक प्रकक्रयाओं औि गततववधियों के प्रतत लोगों के व्यवहाि,
ववश्वास, दृष्ष्िकोण, िाय औि झक
ु ाव को संदलर्षत किता है । वास्तव में , “एक िाष्र की
िाजनीततक प्रववृ त्तयों को समझने के ललए उस िाज्य की जनता का िाजनीतत के प्रतत क्या
दृष्ष्िकोण है औि उनकी िाजनीततक प्रणाली में क्या र्ूलमका है आदद को समझना बेहद
आवश्यकहैउसिाष्रकीिाजनीततकसंस्कृततकोसमझनेकेललए”(Powell, et al. 2015:
63)। इस संबंि में , Alan A. Ball का तकष है कक “िाजनीततक संस्कृतत की अविािणा
समाजकेदृष्ष्िकोणों, ववश्वासों, र्ावनाओं औिमूल्योंसे बनीहै जोिाजनीततकप्रणालीऔि
39 | पष्ृ ठ
िाजनीततक मुद्दों से संबंधित है ” (Ball, 1971: 56)। इसी पक्ष को आगे बढ़ाते हुए,
Almond औि Verba (1963: 14) का मानना है कक यह अविािणा लोगों के िाजनीततक
अलर्ववन्द्यास(political orientations)—जोककककसीिाजनीततकप्रणालीऔिउसकेववलर्न्द्न
अंगों के प्रतत नागरिकों के दृष्ष्िकोण औि उसके तहत उनकी र्ूलमकाओं को दशाषता है —को
स्पष्िकितीहै ।”इसकेअलावा, Roy C. Macridisिाजनीततक संस्कृतत की अविािणा के
संबंिमें एकिोचकऔिथोड़ीअलगसमझप्रस्तुतकिते हैं,इनकेअनुसाियहअविािणा
“आमतौि पि व्यष्क्त औि समूहों की बातचीत के स्वीकृत तनयमों औि साझा लक्ष्यों को
िे खांककत किती है ष्जसके मद्दे नजि एक िाजनीततक प्रणाली के र्ीति िाजनीततक कताषओं
(political actors) के द्वािा ववलर्न्द्न आधिकारिक तनणषयों औि ववकल्पों का चुनाव ककया
जाता है (Kim, 1964: 331 में उद्ित
ृ )। दस
ू िे शब्दों में , सिकाि औि उसके ववलर्न्द्न
औपचारिक िाजनीततक संस्थानों के साथ मानवीय व्यवहाि का अध्ययन ही िाजनीततक
संस्कृततदृष्ष्िकोणमुख्यउद्दे श्यहै ।
40 | पष्ृ
ठ
समाज में अलग-अलग समूहों औि समुदायों की िाजनीततक संस्कृतत का स्वरूप उनकी
सामाष्जक-िाजनीततकसंदर्ोंकेअनुसािअलग-अलगहोसकताहै ।
41 | पष्ृ ठ
प्रणाली पि ववश्वास औि इसकी र्ूलमकाओं औि इन र्ूलमकाओं के पदग्राही के आगत औि
इसके तनगषत के बािे में ज्ञान को दशाषता है ” (Almond औि Verba, 1963: 7)। स्नेहपूणष
अलर्ववन्द्यास“िाजनीततकप्रणालीसेसंबंधितर्ावना, इसकीर्ूलमकाओं, कलमषयोंऔिप्रदशषन”
की व्याख्या किता है (Ibid)। तीसिा प्रमुख अलर्ववन्द्यास, मूल्यांकनात्मक अलर्ववन्द्यास
“िाजनीततकववर्य-वस्तओ
ु ंकेसंबंिललएजाने वालेतनणषयोंऔििायोंकोिे खांककतकिताहै
जोआमतौिपिसूचनाऔिर्ावनाओं केसाथमूल्यमानकोंऔिमानदं डोंकेसंयोजनको
शालमल किता है ” (Ibid)। िाजनीततक अलर्ववन्द्यास का ये त्रत्रस्तिीय वगीकिण िाजनीततक
प्रणालीऔिसमाजकेसदस्योंकेबीचसंबंिोंकोइंधगतकिताहै औिइससंबंिकास्ति
हीलोगोंकीिाजनीततमें र्ूलमकाकोपरिर्ावर्तकिताहै जोककउनकीिाजनीततकसंस्कृतत
कोआकािदे तीहै , जैसाककतनमनललर्खतपंष्क्तयोंमें चचाषकीगईहै ।
अपने क्रॉस-नेशनल फील्ड-वकष औि तुलनात्मक शोि के आिाि पि, Almond औि
Verbaनेिाजनीततकसंस्कृततयोंकोतनमनललर्खततीनमुख्यश्रेर्णयोंमें वगीकृतककयाहै —
(i) संकीणष िाजनीततक संस्कृतत (Parochial Political Culture): यह िाजनीततक संस्कृतत
ऐसे समाजोंकोिे खांककतकितीहै जहााँ नागरिकनतोअपनीिाजनीततकव्यवस्थाके
बािे में जानते हैं औिनहीिाजनीततकगततववधियोंऔिआयोजनोंमें ददलचस्पीिखते
हैं।संकीणष िाजनीततकसंस्कृततमें लोग, िाजनीततकगततववधियोंऔिप्रकक्रयाओं में कोई
ववशेर्ज्ञता औि रुधच नहीं िखते हैं जो स्पष्ि रूप से उनके िाजनीततक दृष्ष्िकोण औि
शन्द्
ू यददलचस्पीकोदशाषताहै ।साथही, इसप्रकािकेसमाजोंमें िाजनीततसे लोगोंकी
उममीदें वस्तत
ु :कोईनहीं हैं औिइसललएवे िाजनीततमें सकक्रयरूपसे र्ागनहीं लेते
हैं। उदाहिण के ललए; “अफ्ीकी आददवासी समाजों औि स्वायत्त स्थानीय समद
ु ायों की
िाजनीततक संस्कृततयााँ” इस प्रकाि की िाजनीततक संस्कृतत का आदशष उदाहिण हैं
(Almond औि Verba, 1963: 14)। यहााँ यह र्ी ध्यान दे ने योग्य तथ्य है कक इस
प्रकािकी“संकीणष िाजनीततकसंस्कृततववकलसतऔिमजबत
ू लोकतंत्रोंमें दल
ु र्
ष िहीहै ,
लेककनइसकेकुछतत्त्वोंकोअलग-थलगग्रामीणसमुदायोंमें पायाजासकताहै ”जहााँ
आम लोगों का जीवन िाष्रीय िाजनीतत से अप्रर्ाववत ददखाई दे ता है (Rod औि
Martin, 2004: 89)।दस
ू िे शब्दोंमें , इसप्रकािकीिाजनीततकसंस्कृततमें िाजनीततक
प्रणाली औि इसके ववलर्न्द्न ववर्यों की पूणष अज्ञानता के कािण ही नागरिकों की
िाजनीततक प्रणाली, िाजनीततक प्रकक्रयाओं औि िाजनीततक नेतत्ृ व के संदर्ष में समझ
42 | पष्ृ
ठ
(iii) सहर्ागी िाजनीततक संस्कृतत (Participant Political Culture): सहर्ागी संस्कृतत वह
है जहााँ समाज के सदस्य, अिीन संस्कृतत की तिह, अपने दे श की िाजनीतत औि
िाजनीततकप्रणालीकेबािे में अत्यधिकजानकािीिखते हैं।लेककनअिीनसंस्कृततके
ववपिीत, वेिाजनीततमेंसकक्रयर्ागीदािर्ीलेतेहैंक्योंककवेस्वंयकोइसकेमहत्त्वपूणष
दहतिािकों(stakeholders)में से एकमानते हैं जोनकेवलिाजनीततकपरिणामोंको
प्रर्ाववतकिसकते हैं बष्ल्कसिकािीनीततयोंऔितनणषयोंकोआकािर्ीदे सकते हैं।
इस संबंि में, Almond औि Verba (1963: 18) का तकष है कक नागरिक “स्वयं को
43 | पष्ृ ठ
िाजनीतत में एक ‘सकक्रय’ र्ूलमका को अदा किने की ओि उन्द्मुख दे खते है ...” इसके
अलावा, नागरिक िाजनीतत के एक उत्सुक पयषवेक्षक के रूप में अपनी मजबूत
िाजनीततक िाय िखते हैं औि इसका ववश्लेर्ण किते हैं औि इसके परिणामस्वरूप, वे
सिकाि के वविोि में अपनी आवाज उठाने में र्ी संकोच नहीं किते हैं, ववशेर्कि जब
कोई र्ी सिकािी तनणषय औि नीतत उनकी मााँगों के अनुरूप न हो। सहर्ागी संस्कृतत
अपनी जीवंत प्रकृतत के कािण लोकतांत्रत्रक व्यवस्थाओं के ललए सबसे अधिक अनुकूल
प्रतीतहोतीहै ।
संकीणषऔिअिीनसंस्कृततयोंकीतल
ु नामें , सहर्ागीसंस्कृतततनस्संदेहष्स्थिउदािलोकतंत्र
के ललए सबसे उपयक्
ु त िाजनीततक संस्कृतत के रूप में ददखाई दे ती है जहााँ नागरिकों को
सिकाि के ववलर्न्द्न स्तिों पि सकक्रय औि िचनात्मक र्लू मका तनर्ाने के ललए प्रोत्सादहत
ककयाजाताहै ।हालााँककAlmondऔिVerbaनेइसतिहकेककसीर्ीप्रस्तावकोपण
ू ष रूप
अस्वीकािकिददया, क्योंककउनकेअनस
ु ाि लोकतंत्रकेललए“ववलर्न्द्नसंस्कृततयोंएकववशेर्
लमश्रणयक्
ु तसमाजसबसे अधिकष्स्थिसात्रबतहोगा”, औिउन्द्होंने इसलमश्रणको“नागरिक
संस्कृतत”केरूपमें परिर्ावर्तककयाहै जैसाककधचत्र4.1में धचत्रत्रतककयागयाहै (Rod
औि Martin, 2004: 89)। दस
ू िे शब्दों में तीनों प्रमुख संस्कृततयों—संकीणष, अिीन औि
सहर्ागी संस्कृततयों—के तत्त्वों से युक्त लमधश्रत संस्कृतत ही एक लोकतांत्रत्रक िाजनीततक
प्रणालीकीष्स्थिताकेललएसबसेआदशषप्रतीतहोतीहै ।
44 | पष्ृ
ठ
संकीर्ण संस्कृति
सहभागी संस्कृति
नागरिक संस्कृतत में , अधिकांश नागरिकों को िाजनीततक प्रणाली औि उनके िाजनीततक
दातयत्वकेबािे में काफीजानकािीहोतीहै ,लेककनयह“तनष्ष्क्रयअल्पसंख्यकसमूहहोतेहैं,
चाहे संकीणष, अिीन या दोनों, [जो] ककसी प्रणाली को ष्स्थिता प्रदान किते हैं” (Rod औि
Martin, 2004: 90)। इसके अलावा, नागरिक (प्रततर्ागी) िाजनीतत में उस हद तक र्ाग
नहीं लेते हैं कक वे उन सिकािी फैसलों औि आदे शों का पालन किने से पिहे ज किने लगे
ष्जनसे वे सहमत नहीं हैं औि समाज में अिाजकता का स्रोत बन जाए। दस
ू िे शब्दों में ,
नागरिकसंस्कृततमेंनागरिकिाजनीततकगततववधियोंमें र्ागलेनेऔििाजनीततकपरिणामों
औितनणषयोंकोप्रर्ाववतकिनेमें सक्षमहैं(जैसेककवेर्ागीदाििाजनीततकसंस्कृततमें है ),
लेककनवेअक्सिऐसानहींकितेहैं(जैसेककसंकीणषऔिअिीनिाजनीततकसंस्कृततयोंमें )।
इसललए, लोकतांत्रत्रक प्रणाली में “लोकवप्रय तनयंत्रण औि प्रर्ावी शासन के बीच संतल
ु न”
बनाएिखने में नागरिकसंस्कृततएकमहत्त्वपण
ू ष र्लू मकातनर्ातीहै (Ibid)।दस
ू िे शब्दोंमें,
नागरिकोंकेपासएकतिफसिकािकेफैसलोंऔिनीतत-तनमाषणप्रकक्रयाकोप्रर्ाववतकिने
के ललए कई प्लेिफामों तक पहुाँच होती है , औि दस
ू िी तिफ िाजनीततक अलर्जात वगष के
पास कुछ संवेदनशील मद्
ु दों पि लोकमत के र्खलाफ कड़े फैसले लेने की क्षमता होती है ।
पााँच लोकतांत्रत्रक दे शों के अपने क्रॉस-नेशनल अध्ययन में , Almond औि Verba ने यह
तनष्कर्ष तनकाला कक त्रििे न औि संयुक्त िाज्य अमेरिका में िाजनीततक संस्कृतत (मैष्क्सको,
45 | पष्ृ ठ
इिली औि पष्श्चम जमषनी के ववपिीत) का नागरिक संस्कृतत के मानदं डों के साथ तालमेल
था, इसललए यहााँ की िाजनीततक संस्कृतत ष्स्थि लोकतंत्र के ललए सबसे उपयुक्त पाई गई।
क्योंककदोनोंसंयुक्तिाज्यअमेरिकाऔित्रििे नमें ,िाष्रकेसदस्योंने“महसूसककयाककवे
सिकािकोप्रर्ाववतकिसकते हैं, लेककनअक्सिऐसानकिने काचयनककया, इसप्रकाि
सिकािकोशासनकोचलानेकेललएआवश्यकलचीलापनप्राप्तहुआ”(Ibid)।
1980 के दशक के अंत तक िाजनीततक संस्कृतत उपागम ने इततहासकािों के बीच
प्रमुखताप्राप्तकिलीथी।ववशेर्रूपसे दोइततहासकािोंजैसे John L.Brookeने अपनी
पुिस्काि-ववजेता कृतत “Society and Political Culture on Worcester County
Massachusetts, 1773-1861” (1989) औि Daniel Walker Howe ने “The
46 | पष्ृ
ठ
Evangelical Movement and Political Culture in the North during the Second
Party System” (1991) नामक शीर्षक ग्रंथ में इस दृष्ष्िकोण का अनुसिण ककया है ।
वास्तवमें ,Howeने िाजनीततकसंस्कृततकेअंतगषतसामाष्जकआंदोलनोंऔििाजनीततक
शष्क्त हे तु ककए जाने वाले संघर्ोंकोशालमलकिते हुएइसके वैचारिकक्षेत्रको बढ़ायाहै ।
उन्द्होंनेजोिदे किइसतथ्यकोउजागिककयाहै कक“सत्ताकेललएहोनेवालेसर्ीसंघर्ोंको
शालमल ध्यान में िखकि िाजनीततक संस्कृतत को परिर्ावर्त किना चादहए न कक केवल
चुनावों द्वािा तय ककए गए” (Formisano, 2001: 416)। Howe के ललए, अमेरिकी
िाजनीतत में जेन्द्डि न्द्याय, पयाषविणसंिक्षण, नस्लीयन्द्यायऔिमजदिू वगोंकेअधिकािों
के ललए होने वाले जन आंदोलनों का महत्त्वपूणष स्थान िहा है , औि स्थानीय लोगों की
िाजनीततक संस्कृतत के बािे में व्यापक समझ ववकलसत किने के ललए इसका उपयुक्त
ववश्लेर्ण आवश्यक है। इस प्रकाि, Howe ने अपने अध्ययन में सामाष्जक आंदोलनों के
ववश्लेर्णकोसष्ममललतकि“िाजनीततकसंस्कृतत” केसाथ-साथ“िाजनीतत”कीपरिर्ार्ाको
व्यापकस्वरूपददया।
47 | पष्ृ ठ
सहर्ाधगताकोप्रोत्सादहतकिताहै ।
उपसभ्यताएाँ (Subcultures)
िाजनीततकसंस्कृततपिववद्वानोंकेकुछलेखनने इसतथ्यपिप्रकाशडालाककिाष्रर्ि
में एकरूपक िाजनीततक संस्कृतत का अष्स्तत्व एक आदशषवादी िािणा से अधिक कुछ नहीं
था।इसबातकीसंर्ावनाकाफीअधिकहै कक“ककसीएकिाष्रीयिाजनीततकसंस्कृततके
बजाय ककसी िाजनीततक प्रणाली के र्ीति कई िाजनीततक संस्कृततयााँ मौजूद हो सकती हैं”
(Rosamond,1997:67)।संस्कृततऔििाजनीततकप्रणालीकेमध्यअंतिसंबंिकेसंदर्ष
में व्यापक समझ ववकलसत किने के ललए, “ववलर्न्द्न उपसंस्कृततयों के आपसी संवाद औि
इनकेिाजनीततकप्रणालीपिपड़ने वाले प्रर्ावों”कीसमग्ररूपसे जााँचकिनामहत्त्वपूणष है ।
‘उपसंस्कृतत’ शब्द ककसी र्ी समाज में ववववि सामाष्जक समूहों औि समुदायों की ववलशष्ि
पहचानकोसंदलर्षतकिताहै ।िाजनीततकसंस्कृततकेसंदर्ष में, यहिाजनीततकप्रणालीकी
ओिववलर्न्द्नसमुदायोंऔिसामाष्जकसमूहोंकेव्यवहाि, िाय, अलर्ववन्द्यासऔिदृष्ष्िकोण
के अष्स्तत्व को संदलर्षत किता है । Dennis Kavanagh ने अपनी कृतत “Political
Culture”(1972)में“चािववलशष्िआिािोंकीपहचानकीहै , ष्जनपिउपसंस्कृततववकलसत
होती है : कुलीन बनाम जन संस्कृतत, कुलीन वगष के र्ीति सांस्कृततक ववर्ाजन, पीढ़ीगत
उपसंस्कृतत औि सामाष्जक संिचना” (Ibid)। इस तिह, इन चाि ववलशष्ि आिािों पि एक
समाज में ववलर्न्द्न उप-संस्कृतत का तनमाषण होता है , ष्जनका अलग-अलग सामाष्जक औि
िाजनीततक तनदहताथष होता है । अगले र्ाग में िाजनीततक संस्कृतत दृष्ष्िकोण की प्रमुख
आलोचनाओंऔिकलमयोंपिप्रकाशडालागयाहै ।
तुलनात्मकिाजनीततकेककसीर्ीअन्द्यउपागमवदृष्ष्िकोणकीर्ााँततिाजनीततकसंस्कृतत
उपागमर्ीिाजनीततकवैज्ञातनकोंकीआलोचनासे पिे नहीं है ।आलोचकोंकासवषप्रथमऔि
सबसे महत्त्वपूणष तकष है कक इस दृष्ष्िकोण के प्रस्तावक एक ददए गए समाज में समुदायों
औिसामाष्जकसमूहोंकीएकिाष्रीयिाजनीततकसंस्कृततकोधचत्रत्रतकिनेकाप्रयासकिते
हैं। इसके बजाय, ववद्वानों को “समाजों में िं ग औि वगष पि आिारित ववलर्न्द्न उपसंस्कृतत
पिअधिकध्यानकेंदरतकिनाचादहए”(Rod and Martin, 2004: 90)।उदाहिणकेललए,
यहसंर्वहोसकताहै ककएकसमुदायकेर्ीतिलोग(जातत, वगष, जातत, िमष इत्याददके
आिाि पि) अपने व्यष्क्तगत संतोर् औि जीवन के तिीके के अनुरूप ववलर्न्द्न िाजनीततक
49 | पष्ृ ठ
Edward W. Lehman का मत है कक िाजनीततक संस्कृतत उपागम में “सांस्कृततक
कािकों को सामाष्जक व्यवस्था (ववशेर् रूप से संिचना) तक सीलमत किने या उन्द्हें केवल
समाज के व्यष्क्तगत सदस्यों के झक
ु ाव के सांष्ख्यकीय एकत्रीकिण के रूप में दे खने की
प्रववृ त्तहै ”(Lehman, 1972: 362)।यहसंकुधचतदृष्ष्िकोणिाष्रीयऔिस्थानीयिाजनीतत
को आकाि दे ने वाले सांस्कृततक कािकों को एक बहुत ही संकीणष समझ पस्तुत किता है ।
इसके अलावा, Lehman का मत है कक क्रॉस-नेशनल सवेक्षण तिीका—ष्जसका उपयोग
Almond औिVerbaकेद्वािापााँचप्रमुखउदािलोकतांत्रत्रकदे शोंमें िाजनीततकसंस्कृततके
अध्ययनमेंतनयोष्जतककयागयाथा, जैसाककऊपिचचाषकीगईहै —नेगलततिीकेसेहमें
ववश्वासददलायाकक“प्रर्ुत्वशालीसांस्कृततकप्रततमानोंकोतनिाषरितकिनेमें समाजकेसर्ी
सदस्यसमान ‘उत्तोलन’ (leverage)िखते हैं यासर्ीसमूहसमानरूपसे उनकीसदस्यता
लेते हैं”(Ibid)।M.Mann(1970) जैसे ववद्वानोंकेअध्ययनोंने यहसात्रबतककयाहै कक
एक समाज में लोग िाजनीततक क्षेत्र में अलग-अलग तिह से अपनी र्ागीदािी सुतनष्श्चत
किते हैं औि साथ ही, िाजनीतत औि इसके ववलर्न्द्न संस्थानों तक पहुाँचने की उनकी
व्यष्क्तगतक्षमतार्ीअलग-अलगहोतीहै ।
दस
ू िी तिफ, आलोचकों का दावा है कक िाजनीततक संस्कृतत का दृष्ष्िकोण यथाष्स्थतत
बनाए िखने का माध्यम है , औि इस प्रकाि, सत्तािािी कुलीन वगष के दहतों का पक्षिि है ।
Lowell Dittmer का मत है कक “प्रणालीगत ष्स्थिता को लेकि िाजनीततक संस्कृतत की
अविािणा काफी तय ददखी, जैसे कक परिवतषन की अनुपष्स्थतत के हे तु ववविण आवश्यक
होताहै ”(Dittmer, 1974: 577)।दस
ू िे शब्दोंमें, आलोचकोंने इसकेिाजनीततकपरिणामों
के संदर्ष में इस उपागम को रूदढ़वादी पाया, औि इस प्रकाि, इसके द्वािा एक समाज में
50 | पष्ृ
ठ
परिवतषन लाने की सर्ी संर्ावनाओं को र्ी खारिज कि ददया। कई बाि सामाष्जक औि
िाजनीततक व्यवस्था में बदलाव लोकतंत्र के साथ इसकी बुतनयादी मूल्यों जैसे कक न्द्याय,
तनष्पक्षताऔिसमानताआददकोमजबूतऔिप्रसारितकिनेकेललएअतनवायषहै ।
इन खालमयों औि आलोचनाओं के बावजूद, तुलनात्मक िाजनीतत के अध्ययन में
िाजनीततक संस्कृतत उपागम के महत्त्व को नकािा नहीं जा सकता हैं। हाल ही के वर्ों में ,
Ronald Inglehart औिChristian Welzel(2003) जैसे ववद्वानोंने इनखालमयोंकोदिू
किने का प्रयास ककया है औि इस उपागम (व दृष्ष्िकोण) को िाजनीतत ववज्ञान में एक
महत्त्वपण
ू ष तल
ु नात्मकववश्लेर्णात्मकउपकिणकेरूपमें बनाएिखनेकाआनवानककयाहै ।
2.8 तनष्कषट
तुलनात्मक िाजनीतत के क्षेत्र में प्रचललत आितु नक उपगमों में िाजनीततक संस्कृतत उपागम
एक प्रमुख स्थान िखता है । एक ओि, इसने िाजनीततक वैज्ञातनकों औि शोिकताषओं को
व्यष्क्तगत व्यवहाि औि िाजनीततक प्रणाली के बीच के पािस्परिक संबंि को अनुर्ववादी
तिीकेसे ववश्लेर्णकिने में सक्षमबनायाहै , औिवहीं दस
ू िीओि,िाजनीततकष्स्थिताऔि
सिकािी प्रर्ावशीलता में नागरिक र्ागीदािी के महत्त्व का अवलोकन किने में उन्द्हें सुवविा
प्रदानकी।यहर्ीदे खागयाहै ककआिुतनकतुलनात्मकिाजनीततमें िाजनीततकसंस्कृतत
के दृष्ष्िकोण के उद्र्व ने “व्यष्क्तगत िाजनीततक तनणषयों के व्यवहािवादी ववश्लेर्ण” को
मजबूतीप्रदानकीहै , औिइसप्रकाि,िाजनीततकघिनाक्रमोंकाएकयथाथषवादीस्पष्िीकिण
उपलब्िकिवायाहै (Bove, 2002: 3)।हालााँकक, िाजनीततकसंस्कृततउपागमकेघिकोंऔि
क्षेत्रकोसंशोधितकिनेकेललएववद्वानोंकेप्रयासोंकीआवश्यकताहोतीहै ताककयहसमय
केसाथप्रासंधगकिहसके।
1. तुलनात्मकदृष्ष्िकोणकेक्षेत्रमें आिुतनकदृष्ष्िकोणपिसंक्षक्षप्ततनबंिललर्खए।
2. आल्मंड औि पॉवेल की संिचना प्रकायाषत्मक उपागमों की ववलर्न्द्न सीमाओं की
व्याख्याकीष्जए।
51 | पष्ृ ठ
2.10 संदिट-ग्रंथ
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53 | पष्ृ ठ
पाठ-3 : नव-संस्थावाद
येररामादासु उदय कुमार
अनुवादक:आशीष कुमार शुक्ल
संरचना
3.2 परिचय
3.3 ऐततहालसकसंस्थावाद
3.4 तकषसंगतववकल्पसंस्थावाद
3.5 समाजशास्त्रीयसंस्थावाद
3.6 तनष्कर्ष
3.7 अभ्
यासप्रश्न
3.8 संदर्ष-ग्रंथ
• इस अध्याय का अध्ययन किने के पश्चात ् ववद्याथी तुलनात्मक ववश्लेर्ण में
िाजनीततकीसंिचनाऔिऐततहालसक संस्थागतवादकेबािे में समझसकेंगे।
• इसकेअलावाववद्याथीिाजनीततववज्ञानककसप्रकािनएसंस्थागतवादकाअध्ययन
किताहै ।इसकाववस्तत
ृ अध्ययनकिें गे।
• नईसंस्थावादऔिववकासशीलदतु नयाकेबीचअंतिकोसमझनेकाप्रयासकिें गे।
3.2 पररचय
एक वरिष्ठ सहयोगी ने व्यक्त ककया कक कैथलीन थेलेन तथा स्वेन स्िीनमो ने अपनी
संपाददत पस्
ु तक स्रक्चरिंग पॉललदिक्स : दहस्िॉरिकल इंस्िीट्यश
ु ानललज़्म इन कमपेिेदिव
54 | पष्ृ
ठ
उदाहिणकेललएऊपिबताएगएनािे कोएकबािपन
ु ःदे खाजासकताहै —व्यष्क्तगत
िाजनीततक है । जब िाजनीतत को दहत एवं शष्क्त के रूप में दे खा जाता है , तब यह नािा
वविोिार्ासीलगताहै ।यहनािायहसलाहदे ताददखाईपड़ताहै ककपरिवाितथाव्यष्क्तगत
सत्तातथादहतोंसेबाहिहैं, जबककयहपूणत
ष ःअसत्यहै ।परिवाितथाव्यष्क्तदोनोंहीसत्ता
मेंगहिे तकडूबेिहतेहैं।संतान, वपत,ृ भ्रात ृ तथामात,ृ इनमेंसेकोईर्ीसत्तासेबाहिनहीं
है ।इसकेस्थानपिवेसर्ीउसिाजनीततसे बाहिहैं,ष्जसेहीगलने परिर्ावर्तककयातथा
55 | पष्ृ ठ
दस
ू िीओि, ऐततहालसकउपागमसंस्थाओं कीपरिवतषनीयताअथवाववकासकोववचारित
किता है । ऐततहालसक उपगाम अविािणा के ऊपि संदर्ष को महत्त्व दे ता है । कफि र्ी, इस
मतर्ेदों के बाद र्ी, ऐततहालसक दृष्ष्िकोण इस प्रश्न की प्रािं लर्क समझ से दिू नहीं हो
सकताककसंस्थाक्याहै ? इसप्रकाि, एकप्रािं लर्कपरिर्ार्ाअपरिहायषहै ।अतःसंस्थाक्या
है ? हमशैक्षर्णकसंस्थानों, सैन्द्यसंस्थानों तथाधचककत्सासंस्थानोंकेववर्यमें जानते हैं।
एकसंस्थाव्यष्क्तयोंकाएकसमच्
ु च्यहै ।जबककव्यष्क्तयोंकासमच्
ु च्यसंस्थाकीअतनवायष
ष्स्थतत है , केवल इतना ही पयाषप्त नहीं है । एक संस्था के ललए व्यष्क्तयों के समुच्च्य से
अधिक र्ी बहुत कुछ आवश्यक होता है । र्ीड़ तथा जनता र्ी व्यष्क्तयों का एक समुच्च्य
होताहै , पिं तुउन्द्हें संस्थानहींकहाजासकता।
जेमस माचष तथा जोहान ओल्सेन ने परिर्ावर्त ककया कक “एक संस्था तनयमों तथा
संगदठतप्रथाओंकाएकअपेक्षाकृतस्थायीसंग्रहहै , जोअथषतथासंसािनोंकीसंिचनाओंमें
56 | पष्ृ
ठ
यद्यवप, अपने दावों को बनाए िखने के ललया दोनों लसद्िांतों को आिाि के रूप में
स्थावपत होने के ललए तत्त्वमीमांसीय अलर्कथन की आवश्यकता है । इस प्रकाि, दोनों
लसद्िान्द्त प्रचारित एवं व्यष्क्त की तत्त्वमीमीमांसा पि आिारित थे। इन लसद्िांतों के
अनुसाि, व्यष्क्त स्व की इच्छा िखने वाला, उपयोधगता की अधिकता वाला, लक्ष्य-उन्द्मुख,
गणनात्मक, ववखंडडत तथा संकीणषतावादी है । एक ष्स्थत मानवीय ववशेर्ता के स्थान पि
ववखंडडतएवंसंकीणषतावादीव्यष्क्तआिुतनकव्यष्क्तकाववलशष्िलक्षणहै ।मानलीष्जएकक
57 | पष्ृ ठ
नव-संस्थावाद व्यवहािवाद तथा तकषसंगत ववकल्प दृष्ष्िकोण के इस ववध्वंसक उपगमों
काहलहै ।यद्यवपनवसंस्थावादव्यवहािवादकेसैद्िांततकगततिोितथातकषसंगतववकल्प
उपागम से अष्स्तत्वमें आया, पिं तु यहपिु ातनसंस्थावादसे र्ीववचललतहो गया। इससे
र्ीमहत्त्वपण
ू ष बातयहहै ककनव-संस्थावादएकीकृतदृष्ष्िकोणोंकाएकसमह
ू नहींहैं।इसके
अततरिक्तइसकेकईप्रस्तावकतथादृष्ष्िकोणहैं।व्यवहािवादकीअस्वीकृतततथातकषसंगत
ववकल्पउपागमसेउर्िे सादहत्यकेववशालतनकायकोध्यानमें िखतेहुए, उन्द्हें सादहत्यके
एक ही तनकाय तक सीलमत किना उधचत नहीं है । व्यवहािवाद के स्वीकृत अततिे क तथा
तकषसंगत ववकल्प उपागम के बाद र्ी, दोनों उपागमों के महत्त्व व महत्त्वहीनता पि नव-
संस्थावादकेववलर्न्द्नपक्षोंमें महत्त्वपूणष असहमततहै ।इसप्रकाि, पीििहॉलतथािोज़मेिी
िे लि नव-संस्थावाद को तीन व्यापक उपसमूहों में ववर्ाष्जत किते हैं। उनके अनुसाि नव-
संस्थावाद के र्ीति इन तीन उपसमूहों में ऐततहालसक संस्थावाद, तकष-संगत ववकल्प
संस्थावादतथासामाष्जकसंस्थावादसष्ममललतहै ।अलर्सिणतथाववचलनदोनोंकोदे खने
के ललए हम व्यष्क्तगत रूप से इन तीनों दृष्ष्िकोणों को दे खेंगे। यद्यवप, हॉल तथा िे लि
दोनोंने दिप्पणीकीककउनकेअततव्यापीदहतोंतथालक्ष्योंकेबादर्ीयहआश्चयषजनकहै
ककवेसंर्वतःहीकर्ीएकउपयोगीसहयोगकेललएएकसाथआतेहैं।
ऐततहालसक संस्थावाद के एक सिल उदाहिण के ललए हम ज्यूडडथ गोल्डस्िीन के लेख
आइडडयाज़, इन्द्स्िीट्यूशस
ं एंड अमेिीकन रे ड पॉललसी (1988) दे ख सकते हैं। इस कायष में
उन्द्होंने अमेरिकामें संिक्षणवादकोव्याख्यातयतकिने काप्रयासककयाहै ।सामान्द्यिािणा
केववपिीत, उन्द्होंने दे खाककएकप्रकािकेववचािोंकोदस
ू िे केसाथबदलने केस्थानपि,
58 | पष्ृ
ठ
िाज्य की नीतत के ववर्य में वविोिार्ार्ी ववचाि जैसे कक अहस्तक्षेप, संिक्षणवाद तथा
हस्तक्षेपवादएकसाथअमेरिकामें उपष्स्थतहै ।यहकहाजासकताहै ककयहघिनाअन्द्य
क्षेत्रों के ललए र्ी सत्य हो सकती है । ववचािों की इस सतह के आिाि पि वह तनष्कर्ष
तनकालती हैं कक ‘कानूनके शासन’ में ललप्तएकसमाज, कानूनीबािाएाँ सिकािीसंस्थाओं
को परिवततषत किने के स्थान पिस्तिीकिण को प्रोत्सादहत किती हैं।’ (गोल्डस्िीन, 1988)
कमकुशलसमकक्षकेस्थानपिकुशलएवं तकषसंगतदृष्ष्िकोणकेबजाए, उनकेशोिसे
ज्ञातहोताहै ककवविोिार्ासीववचािबनेिहतेहैं।ऐसाववश्लेर्णऐततहालसकसंस्थावादसेही
संर्व हुआ है । यह परिवतषनों तथा तनिं तिताओं का तनिीक्षण किने के ललए दीघष अवधि में
संस्थानोंकामूल्यांकनकिताहै ।
आगेबढ़नेसेपव
ू ष कुछमहत्त्वपण
ू ष योगदानकताषओंएवं कायोंकाउल्लेखकिनाआवश्यक
हो जाता है , ष्जन्द्होंने ऐततहालसक संस्थावाद की नींव िखी तथा उसे प्रोत्सादहत ककया। कुछ
प्रमुखलोगोंमें सुजैनबजषि, थेडास्कॉशपॉल, डगलसएश्फोडष, पीििहॉल, िोज़मेिीिे लि, जॉन
आइकेनबेिी, स्िीफनस्कोविोन तथापीििकेज़ेन्द्स्िीनसष्ममललतहैं।ये कुछप्रमुखववद्वान
हैं,ष्जन्द्होंने िाजनीततववज्ञानमें ऐततहालसकसंस्थावादकोआकािददयातथानव-संस्थावाद
कोनवीनगततप्रदानकी।यद्यवपयहसूचीसंपूणष नहीं है ।ऐततहालसकसंस्थावादकोकुछ
ववद्वानों तक सीलमत कि दे ना संर्व नहीं है । इस क्षेत्र में कुछ अन्द्य महत्त्वपूणष कायों को
सष्ममललतकिनासहायकहोसकताहै ।इनमें सुजैनबजषिकीपीज़ेंट्सअगेन्द्स्िपॉललदिक्स:
रुिल ऑगषनाइज़ेशन इन त्रिट्िनी, 1911-1967 (1972) तथा द फ्ेंच पॉललदिकल लसस्िम
(1974) प्रमुख हैं। पीिि केज़ेन्द्स्िीन की स्मॉल स्िे ट्स इन वल्डष माकेट्स (1985) तथा
कल्चिल नोमसष एंड नेशनल सेक्यरु ििी (1996), थेडा स्कॉशपॉल की स्िे ट्स एंड सोशल
िे वोल्यूशंस (1979) व सोशल पॉललसी इन द यूनाइिे ड स्िे ट्स (1995), पीिि हॉल की
पॉललसीपैिाडाइम, सोशललतनंगएंडदस्िे ि:दकेसऑफइकनॉलमकपॉललसीमेककंगइन
त्रििे न (1990), जॉन आइकेनबेिी की िीज़न्द्स ऑफ स्िे ि : ऑइल पॉललदिक्स एंड द
केपेलसिीज़ ऑफ अमेरिकन गवनषमेंि (1988) तथा स्िीफन स्कोविोन की त्रबष्ल्डंग ए न्द्यू
अमेरिकन स्िे ि (1982) ऐततहालसक संस्थावाद पि ललखी गई आलोचनात्मक एवं अतनवायष
कृततयााँहैं।
59 | पष्ृ ठ
संस्थावाद ने कहााँ से प्रेिणा ली? इसे प्रोत्साहन कहााँ से प्राप्त होता है ? “सामाष्जक एवं
िाजनीततक रूप से तनलमषत प्राथलमकताओं का ववचाि जो कई समकालीन ऐततहालसक
संस्थागतवाददयोंकेकायोंमें प्रमुखतासेआताहै , आधथषकसंस्थागत-इततहासकािोंकीवपछली
पीढ़ीकेलेखनकोप्रततध्वतनतकिताहै ।” (हॉलविोज़मेिी, 1996)
पीिि हॉल तथा िोज़मेिी िे लि ने दो दृष्ष्िकोणों का उल्लेख ककया ष्जन्द्होंने ऐततहालसक
संस्थावाद को प्रोत्साहन ददया। उनमें से एक समह
ू लसद्िांत है तथा दस
ू िा संिचनात्मक-
कायाषत्मकहै ।िाजनीततकासमह
ू लसद्िांतसंघर्षकेआिािपििाजनीततकोव्यक्तकितेहैं,
तथाइसप्रकािकासंघर्ष, उनकेववचािमें सदै वदल
ु र्
ष संसािनोंपिआिारितहोताहै ।इस
प्रकाि, समह
ू लसद्िांतोंकेललए, िाजनीततअतनवायष रूपसे दल
ु र्
ष संसिानोंपिकेवववादपि
आिारितहै ।ववश्लेर्णकीइसवविाने समह
ू लसद्िांतोंकोमाक्सषवादववगष ववश्लेर्णके
तनकि बना ददया। यद्यवप, ऐततहालसक संस्थावाद माक्सषवाद तथा समह
ू लसद्िांतों दोनों से
इसआिािपिदिू ीबनाने काप्रयासकिताहै ककदोनोंलसद्िांतएक-दस
ू िे से प्रततद्वंद्ववता
कितेहैं।पिं तुवेमध्यवतीस्तिकेसंघर्ोंकीव्याख्याकिनेमें ववफलहोतेहैं।वेिाष्रीयव
संस्थागतमतर्ेदोंकीउपेक्षाकिते हैं जोनीततपरिणामोंववववादकेललएस्थानदोनोंको
प्रर्ाववतकितेहैं।
60 | पष्ृ
ठ
माक्सषवादी वगष ववश्लेर्ण के अततरिक्त, ऐततहालसक संस्थावाद का उद्र्व एक अन्द्य
वविासत को दशाषता है —संिचनात्मक प्रकायाषत्मक। यद्यवप, वगष-ववश्लेर्ण के ववपिीत,
संिचनात्मक-कायाषत्मक एक पिस्पि वविोडी वगष अथवा समह
ू दहत पि ववश्लेर्ण का आिाि
नहींहै ।इसकेववपिीत, संिचनात्मक-कायाषत्मकताकेललए, व्यवस्थापिस्पिकक्रयाकिनेवाले
र्ागोंकाएकसमूहहै , जोइसेऐततहालसकसंस्थावादकेलक्ष्योंकेतनकिलाताहै ।यद्यवप,
दोनों की तुलना किने से पूवष एक महत्त्वपूणष दिप्पणी आवश्यक है । ऐततहालसक संस्थावाद
संिचनात्मक-कायाषत्मकताकेप्रकायषवादकेस्थानपिसंिचनावादकेसमानअथवातनकिहै ।
यहउधचतप्रकािसे स्थावपतहै ककसंस्थानव्यष्क्तगतव्यवहािकोप्रर्ाववतकिते हैं तथा
कुछसीमातकतनिाषरितर्ीकितेहैं, पिं तुसंस्थाएाँऐसीर्ूलमकाकातनवषहनकैसेकितीहैं?
इसप्रश्नकेसंबंिमें , िोज़मेिीतथाहॉलऐततहालसकसंस्थावादकेर्ीतिदोदृष्ष्िकोणोंके
साथप्रततकक्रयाकितेहैं; एकहै गणनाउपागमतथादस
ू िाहै सांस्कृततकउपागम।
गणना उपागम व्यष्क्तयों को िणनीततक, गणनात्मक तथा सािक के रूप में दे खता है ।
यद्यवप, येलक्षणसंस्थानोंसेस्वतंत्ररूपसेसंचाललतनहींहोते।व्यष्क्तिणनीततकहोतेहैं,
पिं तु वहिणनीततसंस्थाओं द्वािातनिाषरितमापदं डोंकेर्ीतिहीसीलमतहोतीहै ।वे आपे
कायोंकीगणनाअन्द्यअलर्कताषओंतथातनयमों, संदहताओंएवंसंस्थानोंकेअनुसािहीकिते
हैं।इसकेअततरिक्त, सािनसंस्थागतरूपसे अतनवायष हैं।र्ले हीव्यष्क्ततथािाजनीततक
अलर्कताष महत्त्वपूणष र्ूलमका का तनवषहन किते हैं, वे स्वयं को व्यवष्स्थ किते हैं तथा उन
तनयमोंतथाप्रथाओं केअनुसािकायष किते हैं जोसामाष्जकरूपसे तनलमषत, सावषजतनकरूप
से ज्ञात, प्रत्यालशत तथा स्वीकृत हैं।” (माचष तथा ऑलसेन, 1984) कोई यह तकष र्ी दे
61 | पष्ृ ठ
सकता है कक ककसी व्यष्क्त का सािन सामाष्जक रूप से तनलमषत तथा सावषजतनक रूप से
स्वीकािककयाजाताहै ।यद्यवपगणनादृष्ष्िकोणइसप्रकािकीिायकोअस्वीकृतकिने के
ललए साविान है । सांस्कृततक दृष्ष्िकोण के ववपिीत यह अर्ी र्ी ववश्लेर्ण के केंर में
व्यष्क्तगतगणनापिज़ोिदे ताहै ।
कैलकुलस दृष्ष्िकोण के ववपिीत, सांस्कृततक दृष्ष्िकोण व्यष्क्त को उपयोधगता उत्प्रेिक के
स्थान पि एक संतोर्जनक व्यष्क्त के रूप में धचत्रत्रत किता है । “विीयता तनमाषण
समस्याग्रस्त के रूप में लेते हुए, यह मानता है कक गठबंिन का तनमाषण समान (पहले से
उपष्स्थत औि स्पष्ि) स्वाथों वाले समूहों के पंष्क्तबद्ि होने से अधिक है ।” (हॉल औि
िोज़मेिी 1996) सांस्कृततक दृष्ष्िकोण के अनुसाि, एक व्यष्क्त उपयोधगता को अधिकतम
किने के ललए लगाताि प्रयास किने के स्थान पि ‘स्थावपत ददनचयाष’ का पालन किता है ।
यहकहने कीआवश्यकतानहीं है ककव्यष्क्ततकषसंगतऔिउपयोधगताकोअधिकतमकिने
वालेनहींहैं।लेककनऐसेलक्षणव्यष्क्तकीसचेतलक्ष्य-उन्द्मुखगततववधिकेबजायस्थावपत
ददनचयाष कादहस्साहैं।दस
ू िे शब्दोंमें , संस्थास्थावपतददनचयाष केमाध्यमसे व्यष्क्तको
उद्दे श्यपूणष औिलक्ष्य-उन्द्मुखहोने कीमााँगकितीहै ।ककसीसंस्थाकार्ागबनने केललए
व्यष्क्तद्वािाअधिकतमउपयोधगताकीमााँगकीजातीहै औिउसेलागूककयाजाताहै ।
3.3.3 आलोचना
ऐततहालसक संस्थावाद की शष्क्त इसका उदाि चरित्र है । यद्यवप, उदाि चरित्र इसकी
महत्त्वपण
ू ष आलोचनाकास्रोतर्ीहै ।जहााँ उदािवादइसकीशष्क्तहै , वहीं यहइसकीसबसे
बड़ी कमजोिी र्ी है । संस्थानों को समझने के ललए नए क्षक्षततज को सष्ममललत किने की
अपनीक्षमताकेकािण, इसने कर्ीर्ीव्यष्क्तऔिसंस्थाकेबीचअंतसंबंिोंकीव्याख्या
के ललए एक ववश्वसनीय मॉडल ववकलसत नहीं ककया, जैसा कक अन्द्य संस्थावाददयों द्वािा
ववस्तारितककयागयाहै ।
1970 के दशक में, तकषसंगत ववकल्प दृष्ष्िकोण का गहनता से अध्ययन किने वाले
ववद्वानोंनेअपनेदृष्ष्िकोणकीप्रर्ावकारितासेसंबंधितकुछसंदेहऔिधचंताओंकोउठाना
62 | पष्ृ
ठ
शुरूकिददया।ये संदेहकांग्रेसकेव्यवहािकेललएववलशष्िहैं।उपयोधगताअधिकतमकिण
औििणनीततकगणनाजैसीतकषसंगतपसंदकीिािणाओं केकठोिपालनसे नीतततनमाषण
में बहुसंख्यकोंकेतनिं तिगठनऔिववघिनकीआशाकीजातीहै ।यददकांग्रेसमें व्यष्क्त
िणनीततकहैं, तोउनकेपासबहुमतमें र्ागलेने काकोईकािणनहीं है , जहााँ उनकीरुधच
नहीं है ।आशाकेअनुसाि, इसप्रारूपसे ‘चक्रीयप्रर्ाव’ पैदाहोनाचादहएष्जसमें ककसीर्ी
बहुमत की संर्ावना असंर्व है । यद्यवप आशाओं के ववपिीत, कांग्रेस की वविातयका में
बहुमतकाफीहदतकष्स्थिहै ।उनकीअलर्व्यष्क्तमें स्पष्िववसंगततकेकािणतकषसंगत
ववकल्पसंस्थावादइसगततिोिसेउर्िा।इसप्रकाि, इनलसद्िांतकािोंनेतकषसंगतरुधचकी
मूलर्ूतिािणाओंकापालनकितेहुएसंस्थागतवादमें स्पष्िीकिणकीखोजकी।
ववकल्पों का तनयंत्रण औि कायषक्रम तनिाषिण संस्थानों के दो आवश्यक घिक हैं ष्जन्द्हें
तकषसंगत ववकल्प संस्थावाद तकषसंगत ववकल्प दृष्ष्िकोण की िािणाओं के साथ मानता है ।
व्यष्क्तअर्ीर्ीिणनीततक, गणनात्मकऔिउपयोधगताउत्प्रेिकहैं।यद्यवप, व्यष्क्तयोंके
उन पक्षों को या तो बढ़ाया या घिाया जाता है , कफि र्ी, तनष्श्चत रूप से संस्थानों द्वािा
संिधचतककयाजाताहै ।इसप्रकाि, संस्थानववकल्पोंकोतनयंत्रत्रतकिते हैं औिव्यष्क्तके
ललए उनकी उपयोधगता को अधिकतम किने के ललए एक कायषक्रम तनिाषरित किते हैं। इस
ददशा में इसने ‘संगठन के नए अथषशास्त्र’ से प्रेिणा औि उपकिण ललए। इन दृष्ष्िकोणों से
प्रेिणा लेकि, तकषसंगत ववकल्प संस्थावाद की िािणा है , संस्था लेन-दे न की लागत औि
अतनष्श्चतताओं को कम किती है । इस प्रकाि, व्यष्क्तयों को अधिकतम किने वाली
उपयोधगताअर्ीर्ीकक्रयाशीलहै , लेककनएकसंस्थानमें ष्जसमें ववकल्पतनयंत्रत्रतहोते हैं,
एजेंडा पहले से ही तनिाषरित होते हैं, लेन-दे न की लागत बहुत कम हो जाती है औि
अतनष्श्चतताएाँ कम हो जाती हैं। यद्यवप, संस्थागतवाद के अन्द्य दृष्ष्िकोणों के साथ एक
महत्त्वपूणष अंति यहााँ उल्लेखनीय है । अन्द्य दृष्ष्िकोणों के ववपिीत, तकषसंगत ववकल्प
संस्थावाद अर्ी र्ी इस िािणा का पालन किता है कक व्यष्क्त इततहास या समाज की
अवैयष्क्तक औि अतल
ु नीय शष्क्तयों द्वािा संचाललत नहीं होते हैं। वे ववशुद्ि रूप से
तकषसंगत औि व्यष्क्तगत प्रेिणा पि संचाललत होते हैं। यहााँ तक कक जब व्यष्क्त को
संस्थागतप्रततमानकेअनुसािसहयोगकिने औिकायष किने केललएवववशककयाजाताहै ,
तो उसका कािण व्यष्क्तगत औि िणनीततक गणनाएाँ हैं। वे मूल रूप से सामूदहक नहीं हैं।
इस प्रकाि, तकषसंगत ववकल्प के ललए संस्थावाद, संस्थाओं का गठन औि तनिं ति अष्स्तत्व
63 | पष्ृ ठ
उनसंस्थाओंद्वािाव्यष्क्तयोंकोप्रदानककएजानेवालेलार्ोंपिआिारितहै ।इसअथषमें ,
संस्थाव्यष्क्तयोंकास्वैष्च्छकगठनहै ।
हाल के वर्ों में , तकषसंगत ववकल्प संस्थावाद कांग्रेस के संिचना ववश्लेर्ण से अधिक
व्यापक अनुसंिान क्षेत्रों में ववस्तारित हुआ। इन क्षेत्रों में िाजनीततक दलों के बीच ववचाि-
ववमशष, कांग्रेस औि न्द्यायालयों के मध्य संबंि, कांग्रेस औि तनयामक एजेंलसयों के मध्य
संबंिसष्ममललतहैं।इसने अंतिाषष्रीयसंबंिोंकेअनश
ु ासनमें र्ीप्रर्ावकाववस्तािककया।
यह दृष्ष्िकोण अंतिाषष्रीय संस्थानों, अंतिाषष्रीय प्रततयोधगताओं औि वाताषओं पि लागू ककया
गयाहै ।
3.4.1. आलोचना
अब तक यह स्वतः स्पष्ि हो गया है कक तकषसंगत ववकल्प संस्थावाद तकषसंगत ववकल्प
लसद्िांतोंकेसमानहै , जोव्यष्क्तकेलक्षण-वणषनकीआलोचनासे ग्रस्तहै ।जबककइसके
लसद्िांतप्रायःव्यापकखांचे में लागू होते हैं, छोिे प्रततदशोंपिलागू होने पिवे अस्पष्िहो
जातेहैं।
ऐततहालसक संस्थावाद औि तकषसंगत ववकल्प संस्थावाद दोनों के ववपिीत, कुछ सीमा तक,
समाजशास्त्रीयसंस्थावादप्रतत-सहजहै ।यहइसिािणाकोअष्स्थिकिनेकेललएएकप्रतत-
उपायकेरूपमें उर्िाककजहााँ नौकिशाहीसंस्थाएाँ तकषसंगतहैं औिदक्षतापिकामकिती
हैं, वहींसमाजकेअन्द्यपक्षकेवलसंस्कृततहैं।समाजशास्त्रीयसंस्थावादइसर्ेदकोचन
ु ौती
दे ताहै ।नौकिशाहीवास्तवमेंतकषसंगतताऔिदक्षताकेलसद्िांतपिकामकितीहै , लेककन
ऐसा संचालन तकषसंगतनहोकिसांस्कृततकहै ।तकषसंगततासंस्कृततकाउतनाहीर्ागहै
ष्जतनाककलमथकऔिसमािोह।जबककसंगठनकेपूव-ष आिुतनकरूपलमथकऔिसमािोहों
पि आिारित होते हैं, आिुतनक संस्कृतत तकषसंगतता औि दक्षता पि काम किती है । इस
प्रकाि, यह तकष दे ता है कक नौकिशाही संस्थानों की स्व-स्पष्ि तकषसंगतता को सांस्कृततक
संदर्षमेंववस्तत
ृ औिलसद्िांतततककयाजानाचादहए।वेबिद्वािानौकिशाहीकीव्याख्याके
पश्चात ्से, कम-से-कमसमाजशास्त्रकेर्ीति, नौकिशाहीतकषसंगतताकोईऐसीचीजनहींहै
जो कहीं से र्ी उर्िी है , बष्ल्क उन सांस्कृततक रूपों के अंदि गहिाई से समा गई है जो
इससे पहले थे। नौकिशाही की तकषसंगतता की जड़ें पष्श्चमी िालमषक जीवन में हैं, जहााँ
64 | पष्ृ
ठ
तकषसंगततापहलेसेहीअंततनषदहतहै।नौकिशाहीकीप्रथाएाँनतोबनाईजातीहैंऔिनही
कायमिहतीहैंक्योंककवेतकषसंगतयाकुशलहोतीहैं।वेदोनोंगदठतऔिकायमहैंक्योंकक
वेसांस्कृततकरूपसेपष्श्चमीसांस्कृततकरूपोंमें अंततनषदहतहैं।
समाजशास्त्रीय संस्थावाद इस बात पि बल दे ता है कक तकषसंगत नौकिशाही र्ी स्पष्ि
प्रतीकात्मक व कमषकांडीय रूपों का पालन किती है , तथा ववश्लेर्ण के ललए इन रूपों पि
अधिकव्यापकशब्दोंमें ववचािककयाजानाचादहए।संस्थावसंस्कृततकेबीचकेअंतिको
तोड़ने के अपने प्रयासों में , समाजशास्त्रीय संस्थावादी संस्थाओं को पािं परिक रूप से
संस्थागतवादद्वािापरिर्ावर्तकीतल
ु नामें अधिकव्यापकशब्दोंमें मानतेहैं।यह‘अथषके
ढााँचे’ कोध्यानमें िखताहै ।अथष काढााँचातनयमों, प्रकक्रयाओं वमानदं डोंतथाप्रतीकात्मक
वनैततकसंज्ञेयकाएकव्यापकनेिवकषहै ।इस तिह, यहपहले संस्थानोंकीपरिर्ार्ामें
शालमलनहीं ककएगएपक्षोंकोसष्ममललतकिताहै औिइसकेदायिे औिअथष कोववस्तत
ृ
किताहै ।ष्जनसंस्थानोंकापहले अध्ययननहीं ककयागयाहै औिउन्द्हें मात्रसंस्कृतत के
रूपमें शालमलककयागयाहै औिउनकाववश्लेर्णककयागयाहै ।यहववस्तािसंस्थाओं से
जुड़ीववस्तत
ृ परिर्ार्ाकेकािणसंर्वहुआहै ।
समाजशास्त्रीयसंस्थावादद्वािादस
ू िामहत्त्वपूणष हस्तक्षेपसंज्ञानात्मकआयामपिइसका
बलहै ।संज्ञानात्मकआयामक्याहै ? हमइसववचािसे परिधचतहैं ककसंस्थाएाँ व्यष्क्तगत
व्यवहाि को आकाि दे ती हैं; यद्यवप, संज्ञानात्मक आयाम न केवल मानक है अवपतु
व्यष्क्तगत कक्रयाओं के ललए संज्ञानात्मक ललवपयों, प्रततमानों औि श्रेर्णयों का र्ी है । ऐसी
श्रेर्णयोंवप्रततमानोंकेअर्ावमें , व्यष्क्तगतकािष वाईअसंर्वहै ।दस
ू िे शब्दोंमें , संस्थाएाँ,
समाजशास्त्रीयसंस्थावादकेअनस
ु ाि, नकेवलउपयक्
ु तऔिअनप
ु यक्
ु तसत्र
ू प्रदानकितीहैं,
औि वे केवल िणनीततक मागष प्रदान नहीं किती हैं; वे वह ढााँचा प्रदान किती हैं ष्जसके
द्वािािणनीतत, उपयक्
ु ततातथागणनाकायषकितीहै ।संज्ञानात्मकआयामकक्रयाकोसाथषक
होने केललएआवश्यकक्षेत्रप्रदानकिताहै , ष्जसकेआिािपिककसीसंस्थामें व्यष्क्तगत
र्ूलमकाएाँ तनर्ाई जाती हैं। ककसी संस्था में व्यष्क्त केवल उसमें अंततनषदहत नहीं होता है ।
व्यष्क्तएकपदिािणकिताहै औिएकववलशष्िर्ूलमकामें ष्स्थतहोताहै ।मानलीष्जए
कक ककसी संस्थामें लशक्षकऐसाव्यष्क्तनहीं है जोलशक्षककीर्ूलमकातनर्ाताहै ।इसके
बजाय, व्यष्क्तलशक्षकबनजाताहै , छात्रोंसेसममानकीमााँगकिताहै , लशक्षणकेकतषव्यों
कापालनकिताहै औिसंस्थाकेतनमाषणमें र्ागलेताहै ।लशक्षकएकप्रदशषनसे अधिक
65 | पष्ृ ठ
व्यष्क्तयों के कायष न तो िणनीततक हैं औि न ही गणनात्मक। वे संस्थागत रूप से
संिधचतर्ूलमकाएाँ हैं।वे लार्औिहातनकेढााँचे तनिाषरितकिते हैं,ताककव्यष्क्तददएगए
ढााँचेकेर्ीतिकायषकिें ।ढााँचापहलेसेहीसांस्कृततकरूपसेतनददष ष्िहैं,ताककव्यष्क्तकायष
किसकें।इसललए समाजशास्त्रीयसंस्थावादव्याख्यात्मकहै ।यहसुझावदे ने कीआवश्यकता
नहीं है कक व्यष्क्त उद्दे श्यपण
ू ,ष िणनीततक औि लक्ष्य-उन्द्मख
ु नहीं हैं। जो िणनीततक औि
लक्ष्य-उन्द्मख
ु है ,वहपहलेसेहीसामाष्जकरूपसेअतनवायषयासामाष्जकरूपसेतनलमषतहै ।
इसप्रकाि, यददकोईसंस्थागतपरिवतषनहोतेहैं, तोवेतकषसंगतताऔिदक्षतासेउपजेनहीं
होतेहैं।वेउससांस्कृततकपरिवेशकीव्यापकवैितासेउपजेहैंष्जसमें संस्थाकायषकििही
है ।नौकिशाहीकीतकषसंगतताऔिदक्षताकेस्थानपि समाजशास्त्रीयसंस्थावादवैिताऔि
सामाष्जकउपयक्
ु ततापिबलदे ताहै ।ककसीसंस्थाकापरिवतषन, तनिं तिताऔिकायषप्रणाली
वैिताऔिसामाष्जकउपयुक्तताकेपरिवततषतमानदं डोंपिआिारितहोतीहै ।
3.5.1 आलोचना
समाजशास्त्रीय संस्थावाद की प्रमुख आलोचना ऐततहालसक संस्थावाद से होती है । सामाष्जक
संस्थावाद सत्ता औि संसािन तनयंत्रण के ललए संस्थाओं के र्ीति तनदहत संघर्ष पि ध्यान
नहीं दे ता है। एक अन्द्य प्रमुख आलोचना यह है कक संस्थाओं औि संस्कृतत के मध्य
तनिं तिता पि बल दे कि, समाजशास्त्रीय संस्थावाद उन ऐततहालसक ववदिणों को समाप्त कि
दे ताहै ष्जन्द्होंनेनईनौकिशाहीसंस्थाओंकोआकािददया।
3.6 तनष्कषट
3.8 संदिट-ग्रंथ
• Collier, D and Collier, R. B. (1991), Shaping the Political Arena: Critical Junctures,
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• Downing, Brian. (1992), The Military Revolution and Political Change, Princeton:
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• Goldstein, Judith. (1988), Ideas, Institutions, and American Trade Policy,
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67 | पष्ृ ठ
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• Hall, A.P and Taylor, C.R.R. (1996), Political Science and the Three New
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• Orren, K and Skowronek, S. (2004), The Search for American Political Development,
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• Skocpol, Theda. (1979), States and Social Revolutions: A Comparative Analysis of
France, Russia, and China, Cambridge: Cambridge University Press.
• Skocpol, Theda. (1996), Social policy in the United States: Future Possibilities in
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• Thelen, K and Steinmo, S. (1992), Structuring Politics: Historical Institutionalism in
Comparative Analysis, Cambridge: Cambridge University Press.
68 | पष्ृ
ठ
इकाई-III
तल
ु नात्मक राजनीतत के दृष्टिकोण : पारं पररक और नव-संस्थागतवाद
भशखा जायसवाल
अनुवादक : अतनरुध यादव
संरचना
69 | पष्ृ ठ
1.2 पररचय
िाजनीततक ववश्व बेहद जटिल है , ष्जसमें दो प्रकाि की संस्थाएाँ, अभिनेता औि ववचाि र्ाभमल
हैं जो समाज को र्ासन दे ने के भलए बबना रुके जमीन पि बातचीत किते हैं। िाजनीतत औि
सिकाि की जटिलता तब औि बढ़ जाती है जब हम कहते हैं कक कई अलग-अलग
िाजनीततक व्यवस्थाओं को समझें औि इन प्रणाभलयों के कायश किने के तिीकों की तल
ु ना
किें । जैसा कक तल
ु नात्मक िाजनीतत ने अलग-अलग दे र्ों या कई संस्थानों के सिल ववविणों
को आगे बढ़ाया है , ववद्वानों को साक्ष्य के ववर्ाल उपाय के माध्यम से छााँिने औि सबसे
अधधक लागू जानकािी पि ध्यान केंटित किने के भलए पयाशप्त मागशदर्शन की आवश्यकता है ।
इसभलए, हमें िाजनीतत में आवश्यक दृष्टिकोण ववकभसत किने की आवश्यकता है औि ववर्ेर्
रूप से ऐसे दृष्टिकोण ववकभसत किने की आवश्यकता है जो ववभिन्न प्रकाि की िाजनीततक
प्रणाभलयों में उपयोगी हों।
िाजनीततक भसद्धांत तल
ु ना के भलए इन दृष्टिकोणों के स्रोत हैं, व्यापक ष्स्थतत में ,
िाजनीतत के प्रतत प्रत्यक्षवादी औि िचनावादी दृष्टिकोणों औि सामाष्जक जीवन के बीच काफी
अंति है । तनचले सामान्य स्तिों पि, कई अलग-अलग भसद्धांत सापेक्ष िाजनीततक वैज्ञातनक
को दे खी जा िही िाजनीततक घिनाओं पि कुछ ताककशक अथश लगाने औि उस साक्ष्य को
70 | पष्ृ
ठ
िाजनीतत की एक औि व्यापक समझ से संबंधधत किने में सक्षम बनाते हैं। चचाश ककए गए
प्रत्येक दृष्टिकोण िाजनीतत के बािे में कुछ महत्त्वपूणश जानकािी प्रदान किते हैं, लेककन
जटिलता को पकड़ने के भलए कई पयाशप्त हैं।
सिी सिकािें जटिल वैष्श्वक मुद्दों के साथ संघर्श किती हैं, जैसे ववभिन्न नस्लीय
औि धाभमशक स्व-पहचानों को समायोष्जत किने की आवश्यकता, बेहति लािदायक सुिक्षा
औि ववकास के भलए संघर्श, सावशजतनक नागरिकता के भलए एक मजबत
ू आधाि दे ने की
खोज, औि लोकतंत्र की मााँगों को प्रबंधधत किने की पिे र्ानी औि िागीदािी। संस्कृतत,
िाजनीततक लोकतंत्र, िाज्य प्रर्ासन औि सावशजतनक कायशक्रमों के कई अलग-अलग रूपों के
साथ समान मामलों की ककस्में हैं।
तुलनात्मक िाजनीतत का अध्ययन प्राय: औपचारिक संस्थाओं में ककया जाता है , इसकी
तुलना यटद हम आधुतनक उपागमों से किें तो पायेंगे कक कायशप्रणाली औि िाजनीतत के महत्त्व
पि बल टदया जाता है । हालााँकक, व्यापक रूप से दृष्टिकोणों के जोि पि, तुलनात्मक अध्ययन
की पहल इसी पिं पिा में की गई थी, इसभलए तुलनात्मक अध्ययन को पािं परिक दृष्टिकोणों
से कम नहीं माना जा सकता है । है िी एष््स्िन के दृष्टिकोण के अनस
ु ाि, प्रमख
ु पािं परिक
तिीके हैं—
िमस्याग्रस्त दृतिकोण
71 | पष्ृ ठ
इस पद्धतत की सबसे बड़ी कमी यह थी कक इसका तथ्यों से कोई संबंध नहीं था,
इसके अततरि्त यह दे खा गया कक दार्शतनकों द्वािा प्रततपाटदत आदर्ों को व्यवहाि में लाना
बहुत कटिन है । यही कािण है कक प्लेिो के आदर्श िाज्य औि सि थॉमस मिू के एिोवपया
को पथ्
ृ वी पि स्थावपत नहीं ककया जा सकता है , इसभलए दार्शतनक दृष्टिकोण अपनी सीमा
तक आ गया है , लेककन यह समय औि उपयोग में बहुत सीभमत िहा है ।
72 | पष्ृ
ठ
73 | पष्ृ ठ
अत्यन्त सिल होने के ववपिीत इसमें अनेक दोर् पाये जाते हैं, इसभलये इसकी
आलोचना िी हुई। ववचािकों के एक समूह का मानना है कक यह दृष्टिकोण क्षेत्रीय रूप से
वणशनात्मक औि तुलनात्मक है । यद्यवप इसकी एक ववर्ेर्ता से इनकाि नहीं ककया जा
सकता है औि यह अ्सि तुलनात्मक अध्ययन किने का सबसे अच्छा तिीका है , पहले
ककसी दे र् की िाजनीततक व्यवस्था का अध्ययन किके एक िोस आधाि, पयाशप्त सामग्री औि
कफि एक अलग तुलनात्मक ववश्लेर्ण प्रदान ककया जाता है । व्यवस्थाओं का िाजनीततक
तुलनात्मक अध्ययन संिव हो जाता है । यटद ववभिन्न िाजनीततक व्यवस्थाओं के अध्ययन में
सामाष्जक एवं आधथशक कािकों को िी र्ाभमल ककया जाए तो इस उपागम को औि अधधक
वैज्ञातनक बनाया जा सकता है ।
74 | पष्ृ
ठ
1.3.6 क्षेत्रीय/क्षेत्र दृष्टिकोण :- द्ववतीय ववश्व युद्ध के बाद सापेक्ष िाजनीतत के अध्ययन का
मूल दृष्टिकोण उपयोगी हो सकता है , िाजनीतत के मध्यस्थता के अध्ययन में एक नया
चलन दे खा जाता है । ववचािकों ने ववकासर्ील औि अववकभसत दे र्ों की िाजनीतत को अपने
अध्ययन का केंि बबंद ु बनाया औि इसभलए स्वदे र्ी दृष्टिकोण का व्यापक रूप से उपयोग
होने लगा। मैकक्रडडस के अनुसाि इस उपागम में ऐसे क्षेत्र का अध्ययन ककया जाता है जहााँ
सिी दे र्ों में समान सामाष्जक-आधथशक एवं िाजनीततक एकरूपता हो ताकक एकता के साथ
इस सापेक्षक्षक अध्ययन में ककसी प्रकाि की असहमतत स्थावपत न की जा सके। इस स्वदे र्ी
रूप का उपयोग किके, हम इस िाय को दृढ़ कि सकते हैं कक ककसी दे र् में स्वर्ासन
सुिक्षक्षत या सुदृढ़ ्यों है ।
75 | पष्ृ ठ
तुलनात्मक िाजनीतत के अध्ययन में ककसी िी उपागम का प्रयोग किते समय पहले से
सावधान औि जागरूक होना आवश्यक है , ताकक हमािे तनटकर्श औि भसद्धांत सही हों। प्राय:
दे खा जाता है कक वतशमान िाजनीततक ष्स्थतत के बावजूद दे र्ों में िाजनीततक परिदृश्य में
ववववधता पाई जाती है । अतः तुलनात्मक िाजनीतत के व्यापक अध्ययन के भलए सांस्कृततक,
सामाष्जक, आधथशक औि नैततक आयामों का िी अध्ययन आवश्यक है ।
76 | पष्ृ
ठ
1. पिं पिागत तल
ु नात्मक िाजनीतत का अध्ययन पष्श्चमी दे र्ों तक ही सीभमत था।
पष्श्चमी दे र्ों में प्राय: लोकतांबत्रक र्ासन प्रणाली पाई जाती है , इसभलए लोकतंत्र के
अततरि्त अन्य सिी र्ासन प्रणाभलयााँ इस तल
ु नात्मक अध्ययन का अंग नहीं बन
सकीं। इसका परिणाम यह हुआ कक ववकासर्ील दे र्, कम ववकभसत दे र् औि उनकी
र्ासन प्रणाली औि िाजनीततक व्यवस्था तल
ु नात्मक अध्ययन में ही िह गए। अतः
इस आधाि पि पिम्पिागत उपागम को तल
ु नात्मक नहीं कहा जा सकता औि यटद
कहा िी जाय तो उसका आधाि अत्यन्त सीभमत एवं संकीणश िहा है ।
2. पािं परिक दृष्टिकोणों के तहत ककया गया तुलनात्मक अध्ययन बहुत औपचारिक िहा
है । लोकतंत्र, संसद, प्रर्ासन, नागरिक, ववधातयका, कायशपाभलका आटद का समूचा
तुलनात्मक अध्ययन औपचारिक र्ब्द के इदश -धगदश ही िहा है जो वास्तववक तो है
लेककन अध्ययन के भलए अधधकांर्तया इतना लािकािी भसद्ध नहीं हुआ।
77 | पष्ृ ठ
नए संस्थागत दृष्टिकोण की जड़ें 1980 के दर्क के मध्य में हैं। 20वीं र्ताब्दी के अंत में,
नए संस्थागत दृष्टिकोण के उद्िव के भलए कई कािकों ने योगदान टदया।
पुराना िंस्थागतिाद
व्यिहारिाद
िमन्वय
नई िंस्थािाद
1. व्यवहािवाटदयों द्वािा पािं परिक अध्ययनों को अस्वीकाि कि टदया गया था। जबकक
वस्तुतनटि अध्ययन पि बल टदया गया औि नव-संस्थावाटदयों ने अध्ययन की
वैज्ञातनक पद्धतत औि व्यवहािवाटदयों के पािं परिक दृष्टिकोण के बीच समन्वय औि
सामंजस्य स्थावपत किने का प्रयास ककया औि पािं परिक दृष्टिकोण संस्थानों में
संववधान के माध्यम से अध्ययन ककया गया। जबकक नव-संस्थावाटदयों ने वैज्ञातनक
ढं ग से संस्थाओं का अध्ययन ककया औि सामाष्जक सन्दिश में िी दे खने का प्रयास
78 | पष्ृ
ठ
2. तुलनात्मक िाजनीतत में पिम्पिागत उपागम के बाद संस्थाओं की पूिी तिह से उपेक्षा
की गई तथा िाजनीततक व्यवस्था के कायश तथा वाताविण पि मुख्य बल टदया गया।
लेककन संस्थानों के महत्त्व को नव-संस्थावाटदयों द्वािा कफि से स्वीकाि ककया गया।
79 | पष्ृ ठ
हैं जब वे एक िाजनीततक संस्थान का टहस्सा होते हैं। यह दृष्टिकोण अमेरिका में 1980 के
आसपास प्रिावी हो गया।
ककसी एक इकाई की सीमा तनधाशरित किना कोई आसान काम नहीं है ्योंकक यह
भसफश एक ‘वस्त’ु का नाम नहीं है , यह एक ‘प्रकक्रया’ िी है जो व्यष््तगत व्यवहाि को
तनधाशरित किने में महत्त्वपण
ू श िभू मका तनिाती है । एक संस्था वास्तव में स्थावपत कानन
ू ों,
िीतत-रिवाजों या प्रथाओं का एक समह
ू है । अतः संस्थाओं का अध्ययन किते समय केवल
औपचारिक तनयम-कायदों को समझना ही आवश्यक नहीं है , अवपतु अनौपचारिक ववधधयों को
िी समझना आवश्यक है । संस्थाओं में ऐसे कई तिीके हैं ष्जनसे लोग आत्मसात होते हैं औि
अपनी आदतों औि व्यवहाि में र्ाभमल हो जाते हैं। इन्हें सीधे नहीं दे खा जा सकता है ।
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ठ
लेककन उनके बीच अंति होता है । अ्सि संगिन ववभिन्न संगिनों के िीति काम किते हैं
औि उनसे प्रेरित िी होते हैं। संस्थाएाँ एक तिह से कुछ सांगितनक संबंधों का रूप होती हैं
ष्जनके आधाि पि व्यष््तयों की िूभमका, तनयम या व्यवहाि तनधाशरित होते हैं। िाजनीततक
जीवन में संस्थाओं का ववर्ेर् महत्त्व है ्योंकक वे अन्योन्याधश्रत तनयमों औि टदन-प्रततटदन
की गततववधधयों से संचाभलत होती हैं। एक व्यष््त ्या किे गा यह इस बात पि तनिशि किता
है कक ष्स्थतत ्या है औि उसकी िूभमका ्या है । ऐसी आवश्यकताएाँ स्वैष्च्छक हो सकती हैं
औि कानून या ववतनयमों के आधाि पि मान्य िी हो सकती हैं (नोथश, 1990: 384-85)।
द्ववतीय ववश्व युद्ध के बाद संयु्त िाज्य अमेरिका में व्यवहाि अध्ययन का प्रचलन
र्ुरू हुआ औि व्यष््त के िाजनीततक व्यवहाि को समझने के भलए अनौपचारिक व्यवहाि को
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82 | पष्ृ
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िाजनीतत ववज्ञान ने हमें ऐततहाभसक संस्थागतवाद टदया, अथशर्ास्त्र ने हमें तकशसंगत ववकल्प
संस्थागतवाद टदया, औि समाजर्ास्त्र ने हमें समाजर्ास्त्रीय संस्थागतवाद टदया (सेक गॉडडन
1996, 2-20; हॉल औि िे लि 1996, 936)। नया संस्थागतवाद एक गोदी से थोड़ा अधधक है
ष्जसके साथ ष्व्हग्स औि आधुतनकतावादी-अनुिववादी उस तिह के काम को आगे बढ़ा सकते
हैं जो व्यवहािवादी औि तकशसंगत पसंद के ढोंग से लंबे समय तक अप्रिाववत िहे हैं।
राजनीतत ऐततहातिक
तिज्ञान िंस्थािाद
अथशर्ास्त्र तकशिंगत-पिं द
िंस्थागतिाद
िमाज
िमाजर्ास्त्रीय
र्ास्त्र
िंस्थािाद
तीनों प्रारूपों की उत्पवि
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हमािे सामने चुनौती यह पता लगाने की नहीं है कक िाजनीतत के अध्ययन में सबसे अधधक
लागू होने वाला प्रारूप कौन सा है । एक-दस
ू िे से सापेक्ष अलगाव औि ववद्वानों के आदान-
प्रदान की कमी के बावजूद, यटद हम अत्यधधक मान्यताओं को कम महत्त्व दे ते हैं, तो हम
पाते हैं कक वे कई सामान्य आधािों में िाग लेते हैं औि एक प्रारूप का उपयोग किके प्राप्त
अंतदृशष्टि अन्य प्रारूपों की ताककशक सावधानी को गोल या मजबूत कि सकती है । इस प्रकाि,
र्ाष्ब्दक संस्थागतवाद अत्यंत महत्त्वपूणश है । इसके कई तनटकर्ों को तकशसंगत ववकल्प के रूप
85 | पष्ृ ठ
में आसानी से परििावर्त ककया जा सकता है , जबकक इसके साथ ही इसके कुछ अन्य
तनटकर्श िी सामाष्जक संस्थावाद की बात कि सकते हैं। संस्थागतवाद औि िाजनीतत के नए
संस्थानों के दृष्टिकोण के खखलाफ एक बड़ी चुनौती यह है कक यह संस्थानों की िूभमका पि
अधधक जोि दे ता है — औपचारिक या अनौपचारिक, औि कई तिह से संघर्ों औि टहतों को
कम महत्त्व दे ता है ।
कफि िी, नई संस्थावाद औि इसके तीन प्रारूप एक साथ भमलकि ककसी िी समाज में
िाजनीतत के कामकाज में अंतदृशष्टि प्रदान कि सकते हैं।
सबसे पहले, दोनों संस्थानों को “िाजनीततक संस्थानों को व्यष््तगत उद्दे श्यों को तनधाशरित
किने, आदे र् दे ने या संर्ोधधत किने औि संस्थागत टहतों के संदिश में स्वायत्तरूप से कायश
किने” (माचश औि ऑलसेन 1989 4) के रूप में िाजनीततक ववश्लेर्ण में एक केंिीय िूभमका
दे ते हैं।
दस
ू रा, पिु ानी औि नई दोनों संस्थाएाँ इस र्तश में र्ाभमल हैं कक िाजनीततक संस्थानों के
ऐततहाभसक ववकास पि ववर्ेर् ध्यान टदया जाता है । जैसा कक जेम्स िाइस ने अमेरिकी
िाजनीतत ववज्ञान संघ (1909) में अपने अध्यक्षीय िार्ण में कहा था, “िाजनीततक संस्थान...
वे र्ीर्श ववर्य हैं ष्जनसे हमािा ज्ञान संबंधधत है (औि) प्रत्येक संस्थान को इसके ववकास औि
इसके पयाशविण के माध्यम से अध्ययन ककया जाना चाटहए।”
86 | पष्ृ
ठ
दस
ू िी ओि ‘नए’ संस्थागतवादी ‘पुिाने’ संस्थागतवाद की तनम्नभलखखत ववर्ेर्ताओं के साथ
कुछ अलग आधाि पाते हैं।
पहले, पिु ाने संस्थागत दृष्टिकोण का ध्यान संसद, कायशपाभलका, न्यायपाभलका आटद पि था
औि नया संस्थागत दृष्टिकोण व्यापाि संघ, दबाव समूहों आटद जैसे अनौपचारिक संस्थानों
को लेता है ।
दस
ू रा, हम दे ख सकते हैं कक पुिाने संस्थागत दृष्टिकोण को अधधक समझाया जा सकता है
जबकक नया संस्थागत दृष्टिकोण ववर्ुद्ध रूप से भसद्धांत में है ।
तीसरा, पिु ाना संस्थागत दृष्टिकोण अधधक ष्स्थि है जबकक नया संस्थागत दृष्टिकोण
संस्थागत परिवतशन की गततर्ील प्रकक्रया का ववश्लेर्ण किने में अधधक रुधच िखता है ।
चौथा, पुिाना संस्थागत दृष्टिकोण अन्य मानव ववज्ञान ववधधयों जैसे कानून, इततहास,
समाजर्ास्त्र आटद पि आधारित है जबकक नया संस्थागत दृष्टिकोण खेलों के भसद्धांत पि
केंटित है ।
इस ववकासर्ील ववश्व में िाजनीतत को समझने के भलए नया संस्थागतवाद िी लागू होता है ।
हमने दे खा है कक ववश्व बैंक जैसे अंतििाटरीय तनकायों ने ववकास के उद्दे श्यों के भलए धन
आवंटित किते समय ववकासर्ील दतु नया में संस्थानों पि ध्यान केंटित ककया है । संस्थानों की
इस तिह की समझ में प्रमुख समस्या यह थी कक इसने एक तिफ बाह्य सहायता प्राप्त औि
बनावि ककए गए औपचारिक संस्थानों के बीच असहज संबंधों को नजिअंदाज कि टदया औि
दस
ू िी तिफ गहिाई से एम्बेडड
े स्थानीय संस्थानों को।
ववकास भसद्धांत में ववचािधािा में समय के साथ कई बदलाव हुए हैं औि अंतिाशटरीय
साधनों पि, द्ववतीय ववश्व युद्ध के बाद से सिकाि की बदलती अवधािणा सामने आई है
औि तब से इसे ववकास भसद्धांत या आधुतनकीकिण भसद्धांत के रूप में दर्ाशया गया है ।
पॉल डडमैगगयो (1951) और वाल्िर डब्लल्यू पॉवेल (1951): दोनों अमेरिकी समाजर्ास्त्री;
सांस्कृततक या सामाष्जक संस्थावाद; ववश्वास प्रणाली औि सांस्कृततक ढांचे व्यष््तगत
अभिनेताओं औि संगिनों द्वािा लगाए औि अनक
ु ू भलत ककए जाते हैं।
इस प्रकाि, िूभमकाएाँ बड़े ढााँचे द्वािा तनधाशरित एक बड़े टहस्से के भलए हैं, संस्थागत
समरूपतावाद का भसद्धांत टदया।
1.10 तनष्कषट
संस्थाएाँ तनयम, मानदं ड, पिं पिाएाँ, पिं पिाएाँ हैं, जो नश्वि संगिन की संिचना किती हैं,
व्यष््तगत व्यवहाि को आकाि दे ती हैं औि िाजनीततक प्रकक्रया को प्रिाववत किती हैं औि
परिणाम संस्थागतता संस्थागत दृष्टिकोण से िाजनीतत को समझ िही है ।
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औि संस्थानों को 1980 के दर्क में ध्यान में वापस लाने के भलए व्यवहाि की प्रततकक्रया
थी। नई संस्थावाद संस्थानों को धचपकाता है । सामाष्जक आधथशक अधधिचना की संिचना औि
व्यष््तगत िाजनीततक अभिनेता ष्जनके व्यवहाि औि कायों को उन संस्थाओं द्वािा आकाि
टदया जाता है ष्जनमें व्यष््त र्ाभमल होते हैं।
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(घ) ये सिी
6. तनम्न में से कौन तल
ु नात्मक पद्धतत की ववर्ेर्ता नहीं है ?
(क) यह एक वैज्ञातनक पद्धतत है ।
(ख) यह अनुिवजन्य संबंधों की खोज है
(ग) यह एक संकीणश औि ववभर्टि तकनीक है
(घ) यह तुलनात्मक ववश्लेर्ण की एक ववधध है
7. ववश्व में तल
ु नात्मक पद्धतत कब उपयोगी हुई?
(क) प्रथम ववश्व युद्ध के बाद
(ख) द्ववतीय ववश्व यद्
ु ध के बाद
(ग) र्ीत युद्ध के बाद
(घ) उपिो्त सिी
8. तल
ु नात्मक िाजनीततक व्यवस्थाओं में ककन दे र्ों की व्यवस्थाओं का अध्ययन ककया
जाता है ?
(क) ववकभसत दे र्ों की प्रणाली
(ख) एक ववकासर्ील दे र् की प्रणाली
(ग) समाजवादी व्यवस्था
(घ) उपिो्त सिी
9. तनम्नभलखखत में से ककस वर्श तल
ु नात्मक िाजनीतत में संस्कृतत पि जोि टदया जाने
लगा?
(क) 1950 के दर्क में
(ख) 1960 के दर्क में
(ग) 1970 के दर्क की र्ुरुआत में
(घ) 1970 के दर्क के अंत में
10. तुलनात्मक िाजनीतत का अध्ययन ्या है ?
(क) संस्थान औि कायश।
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1.12 संदिट-सच
ू ी
• ब्लोंडेल, जे. (1996) ‘दे न एंड नाओ: तुलनात्मक िाजनीतत’, िाजनीततक अध्ययन में ।
खंड 47 (1), पटृ ि 152-160।
• पेतनंगिन, एम. (2009) ‘थ्योिी, इंस्िीट्यूर्नल एंड कम्पेिेटिव पॉभलटि्स’, जे. बािा
औि एम. पेतनंगिन (संपा.) कम्पेिेटिव पॉभलटि्स: ए्सप्लेतनंग डेमोक्रेटिक भसस्िम।
सेज प्रकार्न, नई टदल्ली, पटृ ि 13-40।
92 | पष्ृ
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इकाई-IV
राजनीततक संस्कृतत: तल
ु नात्मक राजनीतत के अध्ययन के दृष्टिकोण
वैर्ाली मान
अनुवाददका : अंजु
संरचना
93 | पष्ृ ठ
• इसअध्
यायमें ववद्याथीिाजनीततकसंस्कृततऔिउसकेववलर्न्द्
नदृष्ष्िकोणोंकेबािे में
समझसकेंगे।
• ववद्याथीपुिमैनकीसामाष्जकपाँज
ू ीकेलसद्िांतकेबािे में जानसकेंगे।
1.2 पररचय
तल
ु नात्मक िाजनीतत का अथश है ववभिन्न प्रकाि की िाजनीततक व्यवस्थाओं की तल
ु ना किना।
तुलनात्मक िाजनीतत को िाजनीततक भसद्धांत ष्जतना पुिाना अनुर्ासन माना जाता है । अिस्तू को
व्यापक रूप से तुलनात्मक िाजनीतत का जनक माना जाता है ्योंकक वह दतु नया के 158 संववधानों
का तुलनात्मक अध्ययन किने वाले पहले िाजनीततक ववचािक थे। उन्होंने संववधानों का एक ववस्तत
ृ
वगीकिण प्रदान ककया।
i. प्रथम ववश्व युद्ध तक- पािं परिक तुलनात्मक िाजनीतत प्रथम ववश्व युद्ध तक- पािं परिक
तुलनात्मक िाजनीतत
पिं पिागत
तुलनात्मक राजनीतत का
दायरा/ववकास
आधुतनक
94 | पष्ृ
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पािं परिक तल ु नात्मक िाजनीतत को आमतौि पि दायिे में बहुत संकीणश माना जाता है । इसमें भसफश
पष्श्चमी दतु नया के संववधानों का अध्ययन र्ाभमल था। इसके पीछे कािण यह था कक जो दे र्
उपतनवेर् थे उनकी अपनी कोई िाजनीततक व्यवस्था नहीं थी। चाँकू क सिी पष्श्चमी दे र् ववकास के
समान स्तिों पि थे, उनके समाज, जीवन के तिीके, संस्कृतत एक दस
ू िे से बहुत भिन्न नहीं थे। अतः
तुलना का आधाि बहुत संकीणश औि सीभमत था। अधधकतम तुलना केवल सिकाि के रूपों पि ही की
जा सकती है ।
इसभलए, पािं परिक तुलनात्मक िाजनीतत िाजनीतत के अध्ययन के बजाय केवल सिकाि के
अध्ययन पि केंटित थी। चाँकू क संववधान औि सिकाि के रूपों का अध्ययन पािं परिक तुलनात्मक
िाजनीतत का फोकस क्षेत्र था, इसभलए ष्जस पद्धतत का उपयोग ककया गया वह कानूनी संवैधातनक
पद्धतत थी।
हालााँकक, पािं परिक पद्धतत कुछ सीमाओं से ग्रस्त थी जैसे कक यह दायिे में संकीणश थी
्योंकक इसमें गैि पष्श्चमी दे र्ों की िाजनीततक प्रणाभलयों के अध्ययन को र्ाभमल नहीं ककया गया
था। यह ष्स्थि था ्योंकक यह न केवल संववधानों के अध्ययन पि केंटित था, न कक िाजनीतत के
अध्ययन पि। यह अतनवायश रूप से गैि-तल
ु नात्मक िी था ्योंकक तल
ु ना का एकमात्र बबंद ु संववधान
था। इसभलए इसे एथनो-सेंटरक औि पैिोधचयल कहा जाता था।
a. व्यवस्था दृष्टिकोण
b. संिचनात्मक कायाशत्मक दृष्टिकोण
95 | पष्ृ ठ
लेककन हम इस पाि योजना के माध्यम से इनमें से एक दृष्टिकोण पि ध्यान केंटित कि िहे हैं—
िाजनीततक संस्कृतत दृष्टिकोण
पहले यह समझें कक वास्तव में िाजनीततक संस्कृतत का ्या अथश है । िाजनीततक संस्कृतत लोगों के
मानदं डों, मल्
ू यों औि िाजनीततक अभिववन्यास के समह
ू को संदभिशत किती है । िाजनीततक संस्कृतत
संस्कृतत का एक उपसमूह है । यह िाजनीततक व्यवस्थाओं के संबंध में लोगों के मानदं डों, मूल्यों,
झुकावों को दर्ाशता है ।
• पाई के अनुसाि, िाजनीततक संस्कृतत समाज में िाजनीततक प्रणाली के प्रतत ववश्वासों,
दृष्टिकोणों औि मूल्यों के समग्र पैिनश का वणशन किती है , या िाजनीततक ववज्ञान को आकाि
दे ने वाले मौभलक मूल्यों, िावनाओं औि ज्ञान का योग है ।
• ‘द भसववक कल्चि’ गेबियल आलमंड औि भसडनी वबाश द्वािा 1963 का उत्कृटि अध्ययन है ।
इनके अन्वेर्ण को िाजनीततक संस्कृतत उपागम का प्रथम व्यवष्स्थत अध्ययन कहा जाता है ।
• डेतनयल जे. एल्जार सावशजतनक क्षेत्र में लोगों की िागीदािी पि आधारित िाजनीततक संस्कृतत
के तीन आयामों की बात किते हैं- व्यष््तवादी, नैततकतावादी औि पिं पिावादी। िाजनीततक
संस्कृतत न केवल एक िाटरीय या स्थानीय परिघिना है बष्ल्क इसे वैष्श्वक स्ति पि िी
समझा जा सकता है ।
96 | पष्ृ
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यटद हम सवशप्रथम उिि आधतु नकतावाद र्ब्द को दे खें तो हमें पहले इसका अथश समझने की
आवश्यकता है । उिि आधुतनकतावाद र्ब्द िोनाल्ड इंगलहािश द्वािा लोकवप्रय ककया गया था। इसका
मूल रूप से मतलब है व्यष््तगत मल्
ू यों में बदलाव। यह परिवतशन मूल रूप से तब होता है जब
स्वायिता औि आत्म अभिव्यष््त के आधाि पि व्यष््तवादी मूल्यों के एक साथ िौततकवादी, आधथशक
औि िौततक दृष्टिकोण में परिवतशन होता है । यह अध्ययन उन्होंने अपनी पुस्तक द साइलेंि
रिवॉल्यर्
ू न में ककया है । औि ववश्लेर्ण पष्श्चमी समाजों में हुए परिवतशनों पि आधारित था। उन्होंने
अपने काम में कहा कक जैसे-जैसे पष्श्चमी समाज प्रगतत किते गए औि समद् ृ ध होते गए, इन समाजों
में उिि-िौततकवादी मूल्यों में धीिे -धीिे वद्
ृ धध हुई। इसे ही उन्होंने इंििजेनिे र्नल रिप्लेसमें ि कहा।
नए उिि-िौततकवादी मल् ू यों का स्वागत औि आभलंगन किने का यह परिवतशन यव ु ा पीढ़ी में बहुत
अधधक टदखाई दे िहा था।
उनके अनुसाि, इस परिवतशन के होने के भलए, अथाशत ् िौततकवादी से उिि िौततकवादी मूल्यों
में परिवतशन, यह बहुत महत्त्वपूणश है कक मनुटय की िौततक आवश्यकताओं को पहले संतुटि ककया
जाए। ्योंकक जब ये जरूितें पिू ी हो जाती हैं तिी व्यष््त र्ांतत, समद्
ृ धध, ववकास औि आत्मसम्मान
जैसे उिि िौततकवादी मूल्यों की ओि बढ़ने को तैयाि होता है ।
i. कमी परिकल्पना
िोनाल्ड इंगलहािश ने माना कक व्यष््त जीवन में कुछ लक्ष्यों का पीछा किते हैं लेककन एक
पदानुक्रभमत क्रम में । इसका मतलब यह है कक पहले व्यष््त जीवन में िौततकवादी लक्ष्यों का पीछा
किते हैं औि जब ये लक्ष्य पूिे हो जाते हैं तिी व्यष््त िौततकवादी से जीवन में िौततकवादी लक्ष्यों
की ओि बढ़ता है । जब लोग स्वतंत्रता औि स्वायिता के भलए प्रेरित किते हैं, तो वे पहले अपनी
बुतनयादी जरूितों को पूिा किने की कोभर्र् किते हैं। वे अपनी िूख, प्यास, र्ािीरिक सुिक्षा जैसी
जरूितों को पूिा किने की कोभर्र् किते हैं। िौततकवादी लक्ष्यों के बाद इन िौततकवादी लक्ष्यों की
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हमेर्ा प्राथभमकता होती है। यह केवल तब होता है जब िौततकवादी लक्ष्यों को पिू ा ककया जाता है ,
तब पोस्ि िौततकवादी लक्ष्य जैसे संबधं धत, सम्मान, औि सौंदयश औि बौद्धधक संतुष्टि तस्वीि में
आती है । जब िौततक लक्ष्य पूिे हो जाते हैं, तब ध्यान अन्य लक्ष्यों की ओि स्थानांतरित हो जाता
है ।
िोनाल्ड इंगलहािश अपनी परिकल्पना तैयाि किते समय एक अन्य अमेरिकी मनोवैज्ञातनक
अिाहम मास्लो से काफी प्रिाववत थे। 1973 में मास्लो ने ‘ए थ्योिी ऑफ ह्यूमन मोटिवेर्न’ नामक
पस्
ु तक भलखी। इस पस्
ु तक में , उन्होंने एक ववचाि प्रस्ताववत ककया कक मनटु यों की र्जरूितों का एक
पदानुक्रम होता है । उन्होंने इसे एक वपिाभमड के रूप में धचबत्रत ककया। सबसे नीचे िोजन, पानी जैसी
बुतनयादी मनोवैज्ञातनक जरूितें थीं। अगले स्ति पि सुिक्षा, सुिक्षा, ष्स्थिता, स्वास्थ्य, िोजगाि जैसी
जरूितें थीं। वपिाभमड में स्ति तब तक बढ़ता िहता है जब तक कक यह अंततम स्ति तक नहीं पहुंच
जाता है जहााँ लक्ष्य या आत्म-प्राष्प्त, स्वतंत्रता, िचनात्मकता औि नैततकता जैसी आवश्यकताएं
उििती हैं।
िौततकवाद के नजरिए से अगि हम पूिी दतु नया को दे खें तो धन/धन को एक सकािात्मक मूल्य के
रूप में माना जाता है औि उच्च सामाष्जक ष्स्थतत औि खर् ु ी के साथ जड़
ु ा हुआ है । ये िौततकवादी
मूल्य अ्सि दस ू िे लोगों की खुर्ी को अनदे खा किते हैं औि स्वयं के आध्याष्त्मक ववकास को िी
कम महत्त्वदे ते हैं। पहले ककए गए कई अध्ययनों से पता चलता है कक िौततकवादी मूल्यों को अधधक
महत्त्व दे ने वाले लोगों में र्ािीरिक औि मानभसक स्वास्थ्य का स्ति कम होता है । हालााँकक, पोस्ि
िौततकवाद के मामले में ऐसा नहीं है । िोनाल्ड इंगलहािश ने अपने हाल ही में ककए गए र्ोध में कहा
है कक 20वीं सदी के अंत में , वैष्श्वक उिि में यव
ु ा पीढ़ी अब उिि-िौततकवादी मल्
ू यों की ओि बढ़ िही
है । उनके अनुसाि उिि-िौततकवाद ने िाजनीततक सकक्रयतावाद, कट्ििवाद में िी वद्
ृ धध की है औि
अब िाजनीतत को केवल िौततक परिप्रेक्ष्य के बजाय वैचारिक दृष्टिकोण से दे खा जा िहा है ।
आइए अब एक अन्य ववचािक डेतनस कवनघ द्वािा प्रदान की गई िाजनीततक संस्कृतत को समझने
के भलए एक औि आयाम दे खें। डेतनस कवनघ एक बिटिर् िाजनीततक ववश्लेर्क हैं ष्जन्होंने युद्ध के
बाद की बिटिर् िाजनीतत पि व्यापक रूप से भलखा है । डेतनस कवनघ एक िाजनीततक संस्कृतत को
मूल्यों, ववश्वासों औि दृष्टिकोणों के समूह के रूप में परििावर्त किता है ष्जसके िीति एक
िाजनीततक प्रणाली संचाभलत होती है । िाजनीतत ववज्ञान के क्षेत्र में उनका सबसे बड़ा योगदान
उपसंस्कृतत की अवधािणा का िहा है । िाजनीततक संस्कृतत पि कुछ ववद्वानों के काम ने सझ
ु ाव टदया
कक यह धािणा कक एक िाटर में केवल एक ही प्रकाि की िाजनीततक संस्कृतत मौजूद है , एक पूणश
भमथक थी। यह एक बड़ी संिावना थी कक एक ही िाटरीय िाजनीततक संस्कृतत के बजाय ककसी िी
िाजनीततक व्यवस्था के िीति कई िाजनीततक संस्कृततयााँ एक साथ मौजूद थीं। िाजनीततक संस्कृतत
औि िाजनीततक व्यवस्था के बीच संबंधों को स्पटि रूप से समझने के भलए, सबसे पहले ववभिन्न
उपसंस्कृततयों के बीच होने वाली अंतःकक्रयाओं औि समग्र रूप से िाजनीततक व्यवस्था पि इस
अंतःकक्रया के प्रिाव को समझना बहुत महत्त्वपूणश था। यहााँउपसंस्कृतत र्ब्द बहुत महत्त्वपूणश हो जाता
है । आइए पहले समझें कक इसका ्या मतलब है । उपसंस्कृतत र्ब्द ककसी ववर्ेर् समय में ककसी िी
समाज में ववववध सामाष्जक समूहों औि समुदायों की ववभर्टि पहचान को संदभिशत किता है ।
िाजनीततक संस्कृतत के संदिश में , यह एक ववर्ेर् िाजनीततक व्यवस्था के प्रतत ववभिन्न समुदायों औि
सामाष्जक समूहों द्वािा धािण ककए गए ववभिन्न प्रकाि के व्यवहािों, ववचािों, झक
ु ावों औि दृष्टिकोणों
99 | पष्ृ ठ
डेतनस कवनघ ने अपनी अतत लोकवप्रय कृतत ‘पोभलटिकल कल्चि’ में चाि आधािों की पहचान
की है ष्जन पि उपसंस्कृततयां ववकभसत होती हैं—
ये चाि आधाि हमें एक समाज में उप-संस्कृततयों के ववभिन्न सेि प्रदान किते हैं ष्जनके अलग-अलग
सामाष्जक औि िाजनीततक तनटहताथश हैं। ववभिन्न उपसंस्कृतत प्रिागों के बािे में सोचने के इन तिीकों
में से प्रत्येक हमें जांच के नए रूप से परिधचत किाता है । आइए अब इन्हें ववस्ताि से दे खें—
अभिजात वगश बनाम जन संस्कृतत हमें मतिेदों को प्रततबबंबबत किती है , ववर्ेर् रूप से िाजनीततक या
अभिजात वगश वगश औि र्ेर् आबादी के बीच मौजूद व्यवहाि संबंधी मतिेद। अभिजात वगश औि
जनता का अलगाव उपयोगी है । कई ्लाभसक अध्ययनों का तकश है कक अभिजात वगश स्वयं िती में
पािं गत होते हैं, िाजनीततक अभिजात वगश को इस तिह से सामाष्जक बनाते हैं कक वे कुछ व्यवहारिक
पैिनश ववकभसत किते हैं। उदाहिण के भलए अमेरिकी िाजनीततक अभिजात वगश अतनटदश टि मानदं डों औि
तनयमों पि आम सहमतत ववकभसत किते हैं।
100 | पष्ृ ठ
प्रततस्थावपत होने के भलए मि जाती हैं। एक िाजनीततक प्रणाली में एजेंडा अंततनशटहत मल्
ू यों से प्राप्त
प्राथभमकताओं के अनुसाि बदलता िहता है औि िाजनीततक दलों औि िाजनीततक संस्थानों को
तदनुसाि उनके अनुकूल होना पड़ता है ।
लेककन पहले यह समझ लें कक एंिोतनयो ग्राम्स्की कौन थे। एंिोतनयो ग्राम्स्की एक इतालवी
मा्सशवादी बद्
ु धधजीवी औि िाजनीततज्ञ थे। मा्सशवादी धचंतन को परिटकृत किने का श्रेय उन्हें ही
जाता है । वे फासीवादी नेता बेतनिो मस
ु ोभलनी के मुखि आलोचक थे। 1926 में उन्हें कैद कि भलया
गया, जहााँवे 1937 में अपनी मत्ृ यु तक िहे ।
मा्सश के इततहास के भसद्धांत की कच्चे आधथशक तनधाशिणवाद के रूप में आलोचना की गई है । इसका
मतलब यह परिटकृत या अद्यतन नहीं ककया गया था। ग्राम्र्ी के योगदान के कािण उनका भसद्धांत
आधथशक तनधाशिणवाद नहीं िहा।
i. आधाि
ii. सुपिस्र्चि
102 | पष्ृ ठ
i. नागरिक समाज
ii. िाज्य
नागरिक समाज औि िाज्य दोनों भमलकि INTERGRAL STATE का तनमाशण किते हैं।
इस प्रकाि पाँज
ू ीवाद अपने पक्ष में सहमतत उत्पन्न किने की क्षमता के कािण जािी है । वह
ववचाि वचशस्ववादी ववचाि बन जाता है ष्जसे सिी सामान्य ज्ञान मानते हैं। यह जीवन का तिीका बन
जाता है । ग्राम्स्की का कहना है कक सहमतत पैदा किने के पीछे सबसे बड़ी ताकत बुद्धधजीववयों की
होती है ।
103 | पष्ृ ठ
1.3.3.3 बद्
ु गधजीववयों की िसू मका
ग्राम्स्की ने बद्
ु धधजीववयों की बहुत अलग व्याख्या की है । प्रत्येक समाज में बद्
ु धधजीववयों को
सवाशधधक सम्मान भमलता है । उन्हें उन लोगों के रूप में दे खा जाता है जो सच बोल सकते हैं।
सामान्य अथश में , वे व्यष््त ष्जन्हें कला, साटहत्य, ववज्ञान, धमश औि अन्य ववर्यों के क्षेत्र में स्वीकाि
ककया जाता है औि उपलष्ब्धयां हाभसल की जाती हैं। यह िी माना जाता है कक बुद्धधजीवी न्यूरल
लोग होते हैं जो सच्चाई को समझने में लगे िहते हैं।
i. जैववक बुद्धधजीवी
ii. पािं परिक बुद्धधजीवी
• पािं परिक बुद्धधजीवी— इनमें वे व्यष््त र्ाभमल हैं ष्जन्हें नए प्रिुत्वर्ाली वगश के उदय से
पहले बुद्धधजीववयों के रूप में मान्यता दी गई है । उदाहिण के भलए- पष्श्चमी समाजों में , चचश
के वपता पािं परिक बद्
ु धधजीवी थे। चाँकू क वे नए प्रित्ु वर्ाली वगश के साथ संगटित रूप से
उत्पन्न नहीं हुए हैं, वे स्वायि प्रतीत होते हैं।
ग्राम्स्की यहााँ एक बहुत ही टदलचस्प बात सुझाते हैं। उनका कहना है कक मजदिू वगश को बुद्धधजीवी
104 | पष्ृ ठ
पि
ु मैन की सामाष्जक पाँज
ू ीकी अवधािणा के तीन घिक हैं—
पुिमैन का मुख्य ववचाि यह है कक यटद ककसी क्षेत्र में अच्छी तिह से काम किने वाली आधथशक
व्यवस्था औि उच्च स्ति का िाजनीततक एकीकिण है , तो ये सामाष्जक पाँज
ू ी के सफल संचय का
प्रत्यक्ष परिणाम हैं। संयु्त िाज्य में , सामाष्जक पाँज
ू ी में धगिावि के कािण कई सामाष्जक समस्याएाँ
उत्पन्न हुई हैं। वह अपनी पुस्तक 'बॉभलंग अलोन' में सामाष्जक पाँूजीकी अपनी अवधािणा के बािे में
बात किता है । यह इस पुस्तक में है कक पि ु मैन ने एक िोस मामला िखा है कक 1960 के बाद से
अमेरिकी समाजों में सामुदातयक िागीदािी में बहुत धगिावि आई है ।
105 | पष्ृ ठ
अपनी ककताब ‘बॉभलंग अलोन’ में पुिमैन ने कुछ उदाहिण टदए हैं कक कैसे अमेरिकी
सामाष्जक जुड़ाव से ििक गए हैं—
जैसे—संघों में औसत सदस्य दि में कमी आई है । ्लब की बैिकों में िाग लेने वाले औसत
अमेरिककयों में िी िािी धगिावि आई है । 1960 के दर्क में चचश से संबंधधत समूहों की सदस्यता में
िी धगिावि आई। दोस्तों से भमलने बाहि जाना कम आम हो गया है , अमेरिकी समाजों में
समाजीकिण बहुत कम हो गया है । अब कम परिवाि एक साथ िोजन कि िहे थे। लीग बॉभलंग में
िागीदािी िी बहुत तेजी से धगिी थी। तो पि
ु मैन के अनुसाि लोग तब िी गें दबाजी कि िहे थे लेककन
अब वे अकेले गें दबाजी कि िहे थे। बड़े स्ति पि, इसका मतलब यह है कक लोग अिी िी अपनी
बुतनयादी गततववधधयों का संचालन कि िहे थे लेककन अब वे केवल उन गततववधधयों में िाग ले िहे थे
्योंकक अमेरिकी समाजों में सामाष्जक िागीदािी को झिका लगा था।
पुिमैन के काम को अमेरिकी समाज में बड़े पैमाने पि िाजनीततक संस्कृतत के अध्ययन में
बेहतिीन योगदान के रूप में सिाहा गया है । सामाष्जक पाँज ू ी पि उनकी अंतदृशष्टि के बहुत व्यापक
तनटहताथश हैं। यूिोपीय दे र्ों में िी नागरिक िागीदािी में समान धगिावि आई है । समाचाि पत्र पढ़ने
वालों, िाजनीततक दलों में िाग लेने वालों की संख्या में कमी आई है ।
अगि हम उस आलोचना को समझने की कोभर्र् किते हैं ष्जसका पुिमैन ने सामना ककया है,
तो यह स्पटि नहीं है कक सकक्रय िागीदािी ने वास्तव में नागरिक क्षेत्रों में सकािात्मक योगदान टदया
है या नहीं।
106 | पष्ृ ठ
1.4 तनष्कषट
इस पाठ ने िाजनीततक व्यवस्था में िाजनीततक संस्कृतत के महत्व को सािांलशत ककया। इसमें
उपसंस्कृततकेअथषऔिपरिर्ार्ाकेबािे में चचाषकीगईहै औिग्रामस्कीपुिमैनऔिडेतनसकवनघ
द्वािाददएगएआिािऔिसुपिस्रक्चिकेववचािकेबािे में बतायागयाहै ।
1. उपसंस्कृतत से आप क्या समझते हैं? उपसंस्कृतत पि डेतनस कवनघ की अविािणा पि
तनबंिललर्खए।
2. इततहास औि िाजनीततक संस्कृतत के माक्सषवादी लसद्िांत में ग्रामस्की के योगदान पि
व्याख्याकीष्जए।
1.6 संदिट-सच
ू ी
• जौहिी जे.सी., तुलनात्मक िाजनीतत, स्िभलिंग पष्ब्लर्सश प्रा. भलभमिे ड 1892 (1972)
• मकेिि नेि : आधुतनक जटिलताओं को नेववगेि किना, लेख का र्ीर्शक— िॉबिश पुिमैन
सामाष्जक पूाँजीपि अंतदृशष्टि। (2022)
107 | पष्ृ ठ
इकाई-V
तल
ु नात्मक राजनीतत के अध्ययन के उपािम : राजनीततक अथटव्यवस्था
डॉ. िररमा शमाट
अनव
ु ाददका : पारुल सलज
ू ा
संरचना
• छात्रिाजनीततकव्यवस्थाउपागमकीजानकािीसेअवगतहोंगे।
• छात्रिाजनीततऔिअथषव्यवस्थाकेबीचसंबंिोंकेववश्लेर्णमेंसक्षमहोंगे।
• छात्रोंकोववकासकेआितु नकीकिणलसद्िांतकीजानकािीप्राप्तहोगी।
• छात्रतनर्षितालसद्िांतकेअभ्युदयकेकािणोंकापतालगापाएाँगे।
1.2 िूभमका
108 | पष्ृ ठ
ददया था। लशक्षा जगत में उदािवाद की शुरुआत तथा कािणों की जााँच के उद्दे श्य से
मानवीयअष्स्तत्वकेसर्ीपहलुओं कापतालगाने केललएगैलीललयो, न्द्यूिनऔिवॉल्िे यि
जैसे उल्लेखनीयलोगोंकीवैज्ञातनकक्रांततयोंकेआगमनसे चचष कीपकड़िीिे -िीिे कमजोि
पड़नेलगीथी।हालांककबाजािअर्ीअपनीप्रािं लर्कअवस्थामें हीथे।इसकेकािणववलर्न्द्न
समाजों की ष्जममेदारियााँ र्ी चचष से हिकि िाज्य के प्रतत उन्द्मुख होने लगी। तुलनात्मक
अध्ययन में िाजनीततक व्यवस्था उपागम संस्था व बाजाि के बीच संबंिों के अध्यन का
दृष्ष्िकोणहै।
िाजनीततक अथषव्यवस्था का ऐततहालसक दौि पष्श्चमी जगत में चौदहवीं सदी के आिं र् से
लेकि सत्रहवीं सदी के अंत तक चला। तब से लेकि अब तक िाजनीततक अथषव्यवस्था
उपागम में इन ऐततहालसक परिवतषनों को तनमनललर्खत चाि र्ागों में ववर्क्त ककया जा
सकताहै —
• शास्त्रीयउदािवादीअथषव्यवस्था-िाजनीततकअथषव्यवस्थाउपागमकायहचिण17वीं
सदी से आिं र् हुआ औि 18वीं सदी के मध्य तक दे खा गया। इस दौि के मख्
ु य
उदािवादी ववचािक एडम ष्स्मथ (1723-1790), थॉमस माल्थस (1766-1834), डेववड
रिकाडो (1772-1823), नासाउ सीतनयि (1790-1864) तथा जीन-बैष्प्िस्ि से (1767-
1832)माने जाते हैं।इनसर्ीववचािकोंने बाजािकीक्षमतापिजोिददया।शास्त्रीय
िाजनीततकअथषशास्त्रीबाजािकेप्रततअपने आशावादएवं तनिाशावाददोनोंकेसंयोजन
के ललए प्रलसद्ि हैं। उदाहिण के ललए, िाजनीततक अथषशास्त्र के प्रबल समथषक एडम
ष्स्मथ ने अपनी शास्त्रीय कृतत ‘द वेल्थ ऑफ नेशंस’ (1776) में ‘अदृश्य हाथ’
(Invisible hand) के ववचाि द्वािा अहस्तक्षेप नीतत (laissez faire) अथवा मुक्त
बाजाि (free market) के प्रतत तनष्ठा व्यक्त की। उन्द्होंने व्यष्क्तगत स्वतंत्रता के
ववचाि की वकालत की। दस
ू िी ओि, उन्द्होंने यह र्ी कहा कक बाजाि हमेशा अपना
प्रर्ावनहींददखासकता।इसीतिह, थॉमसमाल्थसऔिडेववडरिकाडोनेिाज्यवचचष
कीबजायबाजािकीर्ूलमकापिबलददया।साथही, संसािनोंकेववतिणकेसंबंिमें
वेकुछसंशयवादीर्ीथे।
109 | पष्ृ ठ
• नव शास्त्रीय अथटशास्त्र—
वपछले सर्ी प्रबल दृष्ष्िकोण अब त्रुदिपूणष ददखाई दे ने लगे औि उन्द्होंने एक वैचारिक
शून्द्यता का तनमाषण ककया। इस शून्द्यता को समाप्त किने के ललए िाजनीततक
अथषव्यवस्था अध्ययन के इततहास में अब एक नया दृष्ष्िकोण उर्िना शुरू हुआ।
िाजनीततक अथषव्यवस्था में परिवतषन का श्रेय हमेशा तीन लसद्िांतकािों को जाता है —
110 | पष्ृ ठ
कालष मेंजि (1840-1921), ववललयम स्िे नली जेवन्द्स (1835-1882) औि ललयोन
वालिस। इन्द्होंने व्यष्क्तगत उपर्ोक्ता के आचिण औि प्रततस्पिी बाजािों पि
िाजनीततक अथषव्यवस्था के ध्यान केंदरत किने पि बल ददया। हालांकक नव शास्त्रीय
अथषशास्त्री र्ी कई प्रववृ त्तयों में बाँि गए। पहले वे थे ष्जन्द्होंने सिकाि के ककसी र्ी
हस्तक्षेप का वविोि ककया ओि दस
ू िी प्रववृ त्त के समथषक वे थे ष्जन्द्होंने सिकाि की
सकािात्मक र्ूलमका पि बल ददया। कुछ समय बाद सिकाि के समथषक कैष्मिज
अथषशास्त्री जॉन मेनाडष कीन्द्स (1883-1946) की कृतत के साथ अधिक लोकवप्रय हो
गए।उनकादावाथाककउन्द्मुक्तपाँूजीवाद(laissez faire capitalism) स्वार्ाववकरूप
से अवसाद औि बेिोजगािी को ओि प्रवत्त
ृ है , इसललए बाजाि के ववकास के ललए एक
सकक्रयसिकािकीसख्तजरूितहै ।
मैक्सवेबिऔििै ल्कॉिपासषन्द्सकेलेखनकाआिुतनकीकिणलसद्िांतपिमहत्त्वपण
ू ष
प्रर्ावपड़ा।मैक्सवेबिनेआितु नकीकिणलसद्िांतकीव्याख्यापिं पिागत, ग्रामीणएवं कृवर्
समाजकेिमषतनिपेक्ष, शहिीवऔद्योधगकसमाजकेरूपांतिणकेसंदर्ष में ककयाहै ।इसी
प्रकाि वॉल्ि िोस्तोव को र्ी आिुतनकीकिण के लसद्िांत के तनमाषण में एक सवाषधिक
प्रर्ावकािी ववचािक माना जाता है । अपनी पुस्तक ‘द स्िे ष्जस ऑफ इकोनॉलमक ग्रोथ : ए
नॉन-कमयतु नस्ि मैतनफेस्िो’ (1960) में उन्द्होंने ‘ववकास के चिणों’ की संकल्पना को स्पष्ि
ककयाहै ।उन्द्होंने आितु नकीकिणकेअंततमचिणतकपहुाँचाने केललएसमाजोंकेववलर्न्द्न
111 | पष्ृ ठ
1. परं पराित समाज (Traditional Societies): यह आधथषक ववकास की प्रािं लर्क
अवस्था है जहााँ अथषव्यवस्थाकृवर्पिआिारितहोतीहै ।आजीववकाकासािनकृवर्
औिश्रमहोताहै तथावैज्ञातनकप्रववृ त्तकाअर्ावपायाजाताहै ।िोस्तोवकेअनुसाि,
‘‘एक पिं पिागत समाज वह होता है ष्जसकी संिचना का ववकास सीलमत उत्पादक
गततववधियोंकेर्ीतिहोताहै ।ये पव
ू -ष न्द्यि
ू ोतनयनववज्ञानएवं तकनीकपिआिारित
होते हैं औि बाहिी दतु नया के ललए पव
ू -ष न्द्यि
ू ोतनयन दृष्ष्िकोण िखते हैं। ये समाज
तकनीकी औि आिािर्त
ू संिचनाओं के अर्ाव में मख्
ु य रूप से कृवर् पि अधिक
ववश्वासकिते हैं औिइनकीमल्
ू यव्यवस्थामें ‘लंबे समयतकर्ाग्यवाद’ काप्रर्ाव
बना िहा ष्जससे अधिक व्यावसातयक ववकल्प नहीं होते। िोस्तोव चीनी िाजवंशों,
मध्य-पूवी सभ्यताओं औि मध्ययुगीन यूिोप को इन पिं पिागत समाजों की श्रेणी में
िखतेहैं।
112 | पष्ृ ठ
1958 में , एक अन्द्य ववचािक डेतनयल लनषि ने अपनी एक महान कृतत ‘द पालसंग
ऑफ रे डडशनल सोसाइिीज’ द्वािा आिुतनकीकिण की अविािणा प्रस्तुत की। लनषि की
आिुतनकीकिणकीपरिकल्पनासाक्षिताकेस्ति, शहिीकिण, मीडडयाकीर्ागीदािीआददपि
आिारित थी। सािांश में , हम यह तनष्कर्ष तनकाल सकते हैं कक आिुतनकीकिण एक उच्च
स्तिीयसंिचनात्मकववर्ेदकीिणऔिववशेर्ीकिणहै ।यहकईप्रकािसेझलकताहै जैसेकक
113 | पष्ृ ठ
• यहलसद्िांतआंलशकरूपसे पष्श्चमीपाँज
ू ीवादीदे शोंकीष्स्थततकोसहीठहिाने के
इिादे सेबनायागयाथा।
• आिुतनकीकिणलसद्िांतपष्श्चमीसभ्यताकोश्रेष्ठबतानेकीकोलशशकिताहै ।
• तनर्षिता लसद्िांत इसके द्वािा अल्पववकलसत दे शों के संसािनों का दोहन किने के
ललएआलोचनाकिताहै ।
• यहलसद्िांतिाज्यकीअल्पववकलसतष्स्थततपिबाहिीतत्त्वोंकेप्रर्ावकोअनदे खा
किताहै ।
• आिुतनकीकिणलसद्िांतकोसमाजकीस्थानीयसंस्कृततकेललएएकखतिे केरूप
मेंदे खाजाताहै ।
114 | पष्ृ ठ
1.5 तनिटरता
ष्जस प्रकाि आिुतनकीकिण लसद्िांत ने पष्श्चमी दे शों के दृष्ष्िकोण से ववकास की व्याख्या
कीउसीतिहतनर्षितालसद्िांतनेतत
ृ ीय-ववश्वकेदृष्ष्िकोणसेववकासकीसंकल्पनाप्रस्तुत
की। तनर्षिता लसद्िांत की उत्पवत्त सबसे पहले लैदिन अमेरिका में हुई। कफि िीिे -िीिे यह
उत्तिीअमेरिकाकीओिबढ़नेलगा।1960केप्रािं र्में लैदिनअमेरिकामें आंरेगुंडिफ्ैंकने
तनर्षितालसद्िांतकापष्श्चमीदे शोंमेंववकासककया।अगिहमतनर्षितालसद्िांतकीउत्पवत्त
के कािणों का ववश्लेर्ण किें तो इसके तीन कािण तनकलकि सामने आते हैं। पहला,
ईसीएलए(ECLA)कायषक्रमकीववफलताकेप्रततकक्रयास्वरूप, दस
ू िा, रूदढ़वादीमाक्सषवादका
संकिऔितीसिा, संयक्
ु तिाज्यअमेरिकामें आिुतनकीकिणलसद्िांतकापतन।
औद्योगीकिण स्थावपत किने की आशा से ईसीएलए कायषक्रम की शुरुआत सबसे
पहले लैदिन अमेरिका में प्रेत्रबश (1960) के नेतत्ृ व में की गई। प्रेत्रबश के अनुसाि, लैदिन
अमेरिका के अल्पववकास का कािण एकतिफा अंतिाषष्रीय श्रम ववर्ाजन है । इस योजना के
तहत, लैदिन अमेरिका बड़े औद्योधगक केंरों के ललए खाद्य सामग्री व कच्चे माल का
उत्पादन किे गा औि बदले में लैदिन अमेरिका इन औद्योधगक दे शों से औद्योधगक वस्तुएाँ
प्राप्तकिे गा।लैदिनअमेरिकाकेववकासकेउद्दे श्यसेप्रेत्रबशनेएकतिफाश्रमववर्ाजनपि
िोक लगाने को कहा औि औद्योगीकिण पि बल ददया। वास्तव में यह ईसीएलए कायषक्रम
सफलनहींहोपायाऔिइससेलैदिनअमेरिकामें आधथषकठहिावऔििाजनीततकसमस्याएाँ
उत्पन्द्नहोगईं।
नव-माक्सटवाद
इस युग में , चीनी व क्यूबा क्रोंततयों की सफलता के साथ ही लैदिन अमेरिका में पुिानी
रूदढ़वादी माक्सषवादी ववचाििािा अब नव-माक्सषवाद की ओि मुड़ने लगी। नव-माक्सषवाद ने
ईसीएलए कायषक्रम व आिुतनकीकिण लसद्िांत दोनों की आलोचना किके तनर्षिता लसद्िांत
कोएकआिािप्रदानककया।नव-माक्सषवादने सािाज्यवादकोतत
ृ ीयववश्वकेववकासकी
दृष्ष्ि से दे खा। अपनी प्रासंधगक जरूितों के ललए इन तत
ृ ीय ववश्व के दे शों में सामाष्जक
क्रांततकोइन्द्होंनेजरूिीबताया।
115 | पष्ृ ठ
तनिटरता का भसद्धांत
ऐसे अनेक ववचािक हैं ष्जन्द्होंने तनर्षिता के लसद्िांत पि कायष ककया है । इन ववचािकों ने
सािाज्यवादकीसंिचनाकेर्ीतिकायष किने वाले आिुतनकीकिणलसद्िांतकेमूलआिािों
कोअनावत्त
ृ किने काप्रयासककया।इनमें डॉससेंिोससबसे सुप्रलसद्िववचािकहैं ष्जन्द्होंने
ववश्वव्यापीस्तिपितनर्षिताकीसंपूणष संिचनाकीव्याख्याप्रस्तुतकी।उनकातकषथाकक
सर्ीदे शववलर्न्द्नप्रकािसे आपसमें जुड़े हुएहैं।अन्द्यशब्दोंमें , ववश्वदोर्ागोंमें बाँिा
हुआहै -प्रमख
ु (प्रर्ुत्वशाली)औिआधश्रत(तनर्षिशील)।इनप्रमुखऔिआधश्रतदे शोंकेबीच
संबंि असमान हैं क्योंकक पहले का ववकास दस ू िे की कीमत पि हुआ है । िाजीललयन
अथषशास्त्री डॉस सेंिोस का तनर्षिता की संकल्पना के प्रततपादन के ललए िाजनीततक
अथषव्यवस्था के क्षेत्र में महत्त्वपूणष योगदान है । उन्द्होंने एक ‘नई तनर्षिता’ की संकल्पना
प्रस्तुत की। उनका तनर्षिता का लसद्िांत 1960 के दशक में काफी चधचषत हुआ। यह वह
समय था जब लैदिन अमेरिका के दे श आधथषक ष्स्थिता के ललए संघर्ष कि िहे थे। डॉस
सेंिोस ने इस तनर्षिता को तीन ऐततहालसक रूपों में अंति ददखाकि स्पष्ि ककया है —
औपतनवेलशकतनर्षिता, ववत्तीय-औद्योधगकतनर्षिताऔितकनीकी-औद्योधगकतनर्षिता।
• औपतनवेभशक तनिटरता— तनर्षिता का पहला ऐततहालसक रूप उपतनवेशों औि
उपतनवेशकों के बीच संबंिों में दे खा जा सकता है । उपतनवेशवादी हमेशा
116 | पष्ृ ठ
आिुतनकीकिण औि पष्श्चमीकिण के नाम पि उपतनवेशों के सर्ी संसािनों के
दरु
ु पयोगकिने काप्रयासकिते िहे ।डॉससेंिोसकेशब्दोंमें , ‘औपतनवेलशकिाज्यके
संयोजनसेप्रर्ुत्वशालीदे शकीवार्णष्ज्यकऔिववत्तीयपाँज
ू ीकादे शकीर्ूलम, खान
व मानव संसािनों तथा सोने-चााँदी के तनयाषत एवं उष्णकदिबंिीय उत्पादों आदद पि
एकाधिकािस्थावपतहोगया।’
• ववत्तीय-औद्योगिक तनिटरता—उपतनवेशवादकीसमाष्प्तकेबादतत
ृ ीयववश्वकेदे शों
की तनर्षिता ववत्तीय-औद्योधगक तनर्षिता की ओि उन्द्मुख हो गई। आधश्रत दे शों की
अथषव्यवस्था यूिोपीय दे शों में उपर्ोग के ललए कच्चे माल औि कृवर् उत्पादों के
तनयाषतपिकेंदरतहोगई।
• तकनीकी-औद्योगिक तनिटरता— डॉस सेंिोस के अनुसाि तनर्षिता का तीसिा
ऐततहालसक रूप तकनीकी औद्योधगक तनर्षिता के रूप में दे खा जा सकता है । इसके
अंतगषत ववकासशील दे श अपनी तकनीकी उन्द्नतत के ललए ववकलसत दे शों पि तनर्षि
होते हैं। यह रूप द्ववतीय ववश्व यद्
ु ि काल में उर्िा जब कई अववकलसत दे शों में
औद्योधगकववकासकीशुरुआतहुई।
डॉस सेंिोस तनष्कर्ष रूप में कहते हैं कक ‘अववकलसत दे शों के आधथषक वपछड़ेपन का कािण
पाँज
ू ीवादकेसाथएकीकिणकाअर्ावनहीं है ।ष्जनअध्ययनोंमें इसपरिणामकासमथषन
ककया जाता है वह लसफष एक ववचाििािा है ष्जसे ववज्ञान का नाम ददया गया है । इसके
बजाय, यहअल्पववकासववदे शीपाँज
ू ी, ववत्तऔितकनीकपिववकलसतदे शोंकाएकाधिकारिक
तनयंत्रणहै ।
• तनर्षिता लसद्िांत बाहिी कािकों के दृष्ष्िकोण से अल्पववकास को स्पष्ि किने का
प्रयास किता है । आिुतनकीकिण लसद्िांत दावा किता है कक बेिोजगािी, गिीबी औि
अलशक्षाजैसे आंतरिककािकअल्पववकासकाकािणहैं जबककतनर्षितालसद्िांतका
117 | पष्ृ ठ
तकष है कक तत
ृ ीय ववश्व के बाहिी आधश्रत कािक उन्द्हें ववश्व का अववकलसत र्ाग
बनातेहैं।
• तनर्षिता लसद्िांत एक आधथषक परिप्रेक्ष्य से ववकास के अर्ाव को स्पष्ि किने का
प्रयासकिताहै ।
• तनर्षिता लसद्िांत को ववकास के अनुरूप ् नहीं समझा जाता क्योंकक दतु नया में एक
वगषकाववकासहमेशादस
ू िे वगषकेशोर्णकीकीमतपिहीहुआहै ।
1.6 अल्पववकास
अपनी कृतत ‘कैवपिललज्म एण्ड अंडिडेवेलपमें ि इन लैदिन अमेरिका’ में प्रलसद्ि
िाजनीततक वैज्ञातनक आंरे गंड
ु ि फ्ैंक स्पष्ि किते हैं कक ववकास औि अववकलसतता ववश्व
पाँज
ू ीवादी व्यवस्था में आंतरिक वविोिार्ासों का परिणाम है । वे पॉल बिन के लेख ‘द
पॉललदिकलइकोनॉमीऑफग्रोथ’ (1957)सेप्रर्ाववतथेष्जसमें उन्द्होंनेसंघर्षऔिशोर्णके
आिाि पि पष्श्चमी यिू ोप औि ववश्व के अन्द्य र्ागों के बीच संबंिों की व्याख्या की थी।
हालांककआधथषकववकासऔिअववकलसतताकोअलग-अलगिखकिदे खाजाताहै पिस्वरूप
में ये दोनोंआपसमें संबंधितहैं।एकओिकाववकासहमेशाववश्वमें ककसीदस
ू िे र्ागके
अल्पववकास का कािण बनता है पि इसका यह अथष नहीं कक ववकास अल्पववकास का
ववपयाषयहै ।अन्द्यशब्दोंमें , फ्ैंकतकषदे ते हैं कक‘‘ककसीववकाससे पहले कोईअल्पववकास
नहीं था।ववकासऔिअल्पववकासदोनोंहीसमानऐततहालसकप्रकक्रयाओं द्वािाजुड़े हुएहैं।
अल्पववकास उसी ऐततहालसक प्रकक्रया से उत्पन्द्न हुआ था औि अब र्ी हो िहा है ष्जसने
आधथषकववकासकोर्ीउत्पन्द्नककया।’’ फ्ैंककेमुतात्रबकववकासकीअववकलसतताकेप्रमुख
118 | पष्ृ ठ
कािणकोऔपतनवेलशकइततहासमेंखोजाजासकताहै ।
119 | पष्ृ ठ
संबंिों को स्पष्ि किने के ललए, फ्ैंक ने एक ‘मेरोपोललस-सैिेलाइि’ मॉडल (महानगि-उपग्रह
मॉडल)काप्रततपादनककयाहै ।यहााँमेरोपोललसववकलसतदे शोंकोदशाषताहै जबककसैिेलाइि
शब्दकाप्रयोगअल्पववकलसतदे शोंकेललएककयागयाहै ।मेरोपोललसऔिसैिेलाइिकेबीच
ये संबंि औपतनवेलशक काल में दे खे जा सकते हैं मेरोपोललस दे श (महानगि) सैिेलाइि
(उपग्रह)से आधथषकलार्प्राप्तकिकेउन्द्हें वापसप्रमुखमहानगिोंमें पहुाँचाते थे।संसािनों
की इस प्रकाि तनकासी के कािण, ये सैिेलाइि दे श वव-उपतनवेशकीिण के बाद र्ी अपनी
अथषव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में सक्षम नहीं थे। अन्द्य शब्दों में , ऐसी ऐततहालसक प्रकक्रया
ष्जसने पष्श्चमीमेरोपोललसमें ववकासकोबलप्रदानककया, उसीप्रकक्रयाने समानान्द्तिरूप
सेसैिेलाइिदे शोंमेंअल्पववकासकोबढ़ावाददया।अपनेमेरोपोललस-सैिेलाइिमॉडलमें , फ्ैंक
नेतत
ृ ीयववश्वकेववकाससेजुड़ींकईिोचकपरिकल्पनाएाँप्रस्ताववतकीहैं-
• परिकल्पना-4: वे प्रदे श जो आज सबसे ज्यादा अल्पववकलसत औि सामंतवादी हैं,
उनकेअतीतमेंमेरोपोललसकेसाथनजदीकीसंबंिथे।
120 | पष्ृ ठ
• अल्पववकासकालसद्िांतववकासकेतनर्षितालसद्िांतकाववस्तािहै ।
• मेरोपोललस औि सैिेलाइि दे शों के बीच संबंिों का स्ति सैिेलाइि दे शों में
अल्पववकलसतताकेस्तिसेप्रततत्रबंत्रबतहोताहै ।
• सैिेलाइि दे शों से मेरोपोललस दे शों में संसािनों की तनकासी अल्पववकास के पीछे
प्रमुखकािणहै ।
• अल्पववकलसतताकालसद्िांतकेवलआधथषकआयामपिध्यानकेंदरतकिताहै औि
अल्पववकासकेअन्द्यसामाष्जक, िाजनीततकवसांस्कृततकआयामोंकोअनदे खाकि
दे ताहै ।
• एक वैश्वीकृत दतु नया में , ककसी र्ी दे श के ललए अलग-थलग िहकि अपनी
औद्योधगकव्यवस्थाकाववकासकिनासंर्वनहींहै ।
वैष्श्वक प्रणाली लसद्िांत का तनकितम संबंि सुप्रलसद्ि ववचािक इमैनुएल वॉलिस्िीन औि
समाजशास्त्रमें 1970केदशकमें उनकीअदमयकृततसेहै ।वॉलिस्िीनकीकृततउससमय
केमौजूदाआिुतनकीकिणएवंववकासकेउपागमोंकेसंदर्षमें एकवैकष्ल्पकव्याख्याप्रस्तुत
किती है । ऐसे तीन महत्त्वपूणष बौद्धिक आिाि थे ष्जन्द्होंने वॉलिस्िीन को वैष्श्वक प्रणाली
लसद्िांतकेतनमाषणकेललएप्रेरितककया-एनाल्सस्कूल, माक्सषऔितनर्षितास्कूल।
वॉलिस्िीनकेअनस
ु ाि, ‘‘वैष्श्वकप्रणालीलसद्िांतएकसामाष्जकव्यवस्थाहै ष्जसकी
सीमाएाँ, संिचनाएाँ, सदस्य समूह, वैिीकिण के तनयम औि सुसंगतता है । इसका जीवन
पिस्पिवविोिीशष्क्तयोंसेबनाहै जोइसेतनावसेएकसाथिखतीहैऔिइसेअलगकि
दे ती है । प्रत्येक समूह इसे अपने सलाहकाि के ललए इसे कफि से तैयाि किने की कोलशश
किताहै ।इसमें कुछपहलुओं में बदलावकेलक्षणहोते हैं औिकुछमें ष्स्थिताके।इसके
अंतगषत जीवन स्वयं तनदहत होता है औि इसमें ववकास की गततशीलता मुख्यतया आंतरिक
121 | पष्ृ ठ
होती है ।’’ (वॉलिस्िीन, प.ृ 347) एक ववश्व प्रणाली को वॉलिस्िीन ने एक ‘ववश्व
अथषव्यवस्था’ कीसंज्ञादीहै जोएकिाजनीततककेंरकीबजायएकबाजािसेजुड़ीहोतीहै ।
इसमें दोयाउससे अधिकप्रदे शर्ोजन, ईंिनवसंिक्षणजैसीआवश्यकताओं केललएएक-
दस
ू िे पितनर्षिहोतेहैंतथाइसमें दोयादोसेअधिकिाज्यहमेशाकेललएएकएकलकेंर
की उत्पवत्त के बजाय प्रर्ुत्व के ललए प्रततस्पिाष किते िहते हैं। (गोल्डफ्ैंक, 2000) अन्द्य
शब्दोंमें , वॉलिस्िीनवैष्श्वकप्रणालीलसद्िांतकोश्रमववर्ाजनकेरूपमें परिर्ावर्तकिते
हैं।इसश्रमववर्ाजनकोशष्क्तयोंकेमध्यसंबंितथासमग्ररूपसे ववश्वअथषव्यवस्थाके
उत्पादन के संबंिों के रूप में समझा जा सकता है । ववश्व प्रणाली लसद्िांत दे शों को दो
अंततनषर्िश्रेर्णयोंमेंववर्ाष्जतकिताहै —कोि(core)औिपरिधि(periphery)।
ववकास के आधतु नकीकरण भसद्धांत के ववस्तार एवं समीक्षा के रूप में वैक्श्वक प्रणाली
भसद्धांत
वैष्श्वकप्रणालीलसद्िांततनर्षितालसद्िांतकाववस्तत
ृ रूपप्रस्तुतकिताहै ष्जसे ववकासके
आिुतनकीकिणलसद्िांतकीसमीक्षाकेरूपमें प्रततपाददतककयागयाथा।तनर्षितालसद्िांत
की तिह वॉलिस्िीन आिुतनकीकिण लसद्िांत द्वािा प्रस्तुत ववकास के सावषर्ौलमक पथ को
चुनौती दे ते हैं। तथावप तनर्षिता लसद्िांत के ववपिीत, यह लसद्िांत तनमन स्तिीय दे शों में
न्द्यूनतमलार्कीपहचानकिताहै ।
• कोर
➢ कोिदे शआधथषकवसैतनकरूपसेदतु नयाकेसवाषधिकशष्क्तशालीदे शहैं।
➢ ये दे शअपने उच्चस्तिीयकौशलवऔद्योगीकिणकेललएजाने जाते हैं ये दे श
उत्पादनकेसािनोंकेस्वामीहैं।
➢ कोिदे शउत्पाददतवस्तओ
ु ंकेतनमाषताहैं।
➢ येदे शपरििीयदे शोंकाशासनएवंशोर्णकिकेमहत्त्वपूणष लार्प्राप्तकितेहैं।
122 | पष्ृ ठ
1.8 तनष्कषट
123 | पष्ृ ठ
• तनर्षितालसद्िांतवहपहलालसद्िांतथाष्जसने ववकासकेआिुतनकीकिणलसद्िांत
केइसआिािकीआलोचनाकीजोककसीदे शकीअल्पववकलसतताकेललएआंतरिक
कािकों को ष्जममेदाि मानता है । दस
ू िी ओि तनर्षिता लसद्िांत का दावा है कक
अल्पववकलसतता का ववश्लेर्ण बाहिी कािकों के आिाि पि ककया जाना चादहए जो
तत
ृ ीयववश्वकेदे शोंकोदतु नयाकेदस
ू िे दे शोंपितनर्षिबनातेहैं।
• तनर्षिता लसद्िांत जैसे वैष्श्वक प्रणाली लसद्िांत का सुझाव है कक संपन्द्न दे श दस
ू िे
दे शों से लार् उठाते हैं। हालांकक यह मॉडल वैष्श्वक प्रणाली में तनमन स्तिीय दे शों
द्वािान्द्यूनतमलार्कीपहचानकिाताहै ।समाजशास्त्रीइमेनुएलवॉलिस्िीनद्वािा
प्रततपाददत लसद्िांत कहता है कक एक दे श का पाँज
ू ीवादी ववश्व व्यवस्था के साथ
एकीकिणयहतनिाषरितकिताहै ककउसदे शकाककतनाआधथषकववकासहुआहै ।
स्व-मूल्यांकन प्रश्न
1. तुलनात्मकिाजनीततकेअध्ययनमें िाजनीततकअथषव्यवस्थाउपागमकीप्रासंधगकता
पिप्रकाशडाललए।
2. ववकासकोआिुतनकीकिणलसद्िांतकीआलोचनाकेकािणोंकापतालगाएाँ।
3. लैदिनअमेरिकामेंतनर्षितामॉडलकेउदयहोनेकेक्याकािणथे?
124 | पष्ृ ठ
4. ववकासकेआिुतनकीकिणलसद्िांतकेववफलताकेक्याकािणथे?
5. वॉलिस्िीनद्वािाअंतिाषष्रीयश्रमववर्ाजनकीव्याख्याकिें ।
बहुववकल्पीय प्रश्न
1. ववकासकेआिुतनकीकिणलसद्िांतकीआलोचनाकेप्रमुखकािणक्याथे?
(अ) औद्योगीकिणपिकेंदरत
(ब) प्रादे लशकसंस्कृततकीअवहे लना
(स) अल्पववकासकीआंतरिकव्याख्याप्रस्तुतकिनेकेललए
(द) उपिोक्तसर्ी
2. वैष्श्वकप्रणालीलसद्िांतकाप्रततपादनककसनेककया?
(अ) आंरेगुंडिफ्ैंक
(ब) डॉससेंिोस
(स) इमेनुएलवॉलिस्िीन
(द) पॉलप्रेत्रबश
3. ‘द स्िे ष्जस ऑफ इकोनॉलमक ग्रोथ: ए नॉन-कमयुतनस्ि मेतनफेस्िो’ पुस्तक के लेखक
कौनहैं?
(अ) डेतनयललनषि
(ब) मैक्सवेबि
(स) वॉल्ििोस्तोव
(द) उपिोक्तमेंसेकोईर्ीनहीं।
4. तनर्षितालसद्िांतऔिवैष्श्वकप्रणालीलसद्िांतमें क्यासमानताहै ?
(अ) दोनोंहीववकासकेआिुतनकीकिणलसद्िांतकीआलोचनाकितेहैं।
(ब) दोनोंअल्पववकासकेकािणकोस्पष्िकिनेकेललएएकववकल्पप्रदानकिते
हैं।
(स) दोनोंहीलसद्िांतमाक्सषवादीववचाििािासेप्रर्ाववतहैं।
(द) उपिोक्तसर्ी।
125 | पष्ृ ठ
5. फ्ैंकद्वािावर्णषतमेरोपोललस-सैिेलाइिव्यवस्थामें मेरोपोललसकौनथा?
(अ) तत
ृ ीयववश्वकेदे श
(ब) लैदिनअमेरिका
(स) अफ्ीकीदे श
(द) पष्श्चमीदे श
1.10 संदिट-सच
ू ी
126 | पष्ृ ठ
127 | पष्ृ ठ
इकाई-VI
भलंि तनधाटरण तल
ु नात्मक राजनीतत
डॉ. लततका बबश्नोई
अनव
ु ादक : अमर जीत
संरचना
लोकतंत्र के ववचाि का उदे श्य प्रत्येक समाज में समानता औि स्वतंत्रता लाना है । लोकतंत्र
नागरिकता का प्रतततनधित्व र्ी किता है तथा साथ में लोकतंत्रीकिण प्रकक्रया समावेलशता,
सीमांतता, प्रतततनधित्व औि तनणषय लेने की समझ र्ी िखता है । इसके साथ कुछ उदाि
शासनों में र्ी इन मद्
ु दों को ध्यान में िखा गया है लेककन अन्द्य शासनों को अर्ी र्ी
लोकतंत्रीकिण प्रकक्रया में एक लंबा िास्ता तय किना है । मद्
ु दा यह है कक इन शासनों में
नेतत्ृ व िाजनीततक अलर्जात वगष तक ही सीलमत िहा है जो ज्यादाति परु
ु र् हैं। लैंधगक
अंतिाल(जेंडरिंगलैकुना)िाजनीततमें लैंधगकअसंतल
ु नकापतालगाने काइिादािखतीहै ।
128 | पष्ृ ठ
िाजनीतत औि तनणषय लेने में मदहलाओं के कम प्रतततनधित्व को कई समाजों में अनदे खा
ककया गयाहै जोिाजनीततमें मदहलाओं केप्रतततनधित्वकेअवसिोंकोप्रकाशमें लाने में
ववफल िहे हैं। कई मदहला लामबंदी ने कर्ी-कर्ी लैंधगक अंतिाल पि जोि ददया है जो
मदहलाओं कोहालशएपििखताहै ।अवलोकनीयप्रश्नयहहै ककहमतुलनात्मकिाजनीततक
ववश्लेर्ण में एक मदहला के प्रर्ाव को कैसे दे खते हैं? क्या हम इसका ववश्लेर्ण
लोकतंत्रीकिणकेएकबड़े अध्ययनमें एकएकलचिकेरूपमें किते हैं याक्याहमइसे
एक ऐसे अध्ययन के रूप में समझते हैं जो लोकतंत्रीकिण की ओि ले जा सकता है । एक
ववर्यकेरूपमें जेंडरिंगलैकुनाकोहालहीमेंतुलनात्मकिाजनीततमें महत्त्वलमलाहै ।इस
अध्यायमेंअध्ययनकाउद्दे श्यअलग-अलगशोिकेबजायललंगऔितुलनात्मकिाजनीतत
को समग्र रूप से समझना है औि यह दे खना है कक िाजनीतत में मदहला प्रतततनधित्व की
अनदे खीक्योंकीगईहै ।ववलर्न्द्नलोकतांत्रत्रकशासनोंकेतुलनात्मकसादहत्यकेववश्लेर्ण
कोिाजनीततमें मदहलाओं केहालशयाकिणकोसमझने केिाजनीततकववश्लेर्णकीकंु जीके
रूपमेंदे खागयाहै ।
1.2 पररचय
ललंगअंतिाल(जेंडिलकुना)जेंडिऔििाजनीततववज्ञानकेअध्ययनमें अंतिालऔिअंति
कीसमझहै खासकितुलनात्मकिाजनीततकेअध्ययनमें ।ललंगअध्ययनमें मदहलाओं के
आख्यानों, उपदे शों औि अनुर्वों को बािीकी से दे खा गया है , लेककन इसके बावजूद
तुलनात्मक सादहत्य औि िाजनीतत के अध्ययन में मदहलाओं के प्रतततनधित्व को शालमल
किनेमेंव्यापकअंतिबनाहुआहै ।
कािण कई हो सकते हैं लेककन तथ्य यह है कक मदहला अध्ययन को एक तनष्श्चत
सीमातकतोस्वीकािककयागयाहै लेककनमदहलाआंदोलनोंकीस्वववकारिताबहुतकमहै
व मदहलाओं के अधिकाि एक छोिे से उपक्षेत्र तक सीलमत हैं औि तुलनात्मक िाजनीततक
सादहत्यमेंमदहलाओंकोमहत्त्वनहींददयागयाहै ।मतदानप्रकक्रयाकोर्ीपुरुर्ोंकेअनुरूप
बनाया गया है तथा तनवाषधचत होने के बावजूद मदहलाएाँ वविातयकाओं में तनणषय लेने का
दहस्सा नहीं होती हैं, कुछ लोकतंत्रों में मदहला लशक्षा उनके मतदान व्यवहाि के अनुरूप र्ी
नहीं िही है । िाजनीततक दलों में, मदहला उममीदवािों की तुलना में पुरुर् उममीदवािों को
अधिकतिजीहदीजातीहै , जबमदहलाओंकेमतदानव्यवहािकीबातआतीहै तोअस्पष्ि
129 | पष्ृ ठ
लोकतंत्रीकिणकीप्रकक्रयापिकईशोिोंहोने केबावजद
ू , ऐसादल
ु र्
ष हीअध्ययनहै
130 | पष्ृ ठ
ववद्वानों का तकष है कक समस्या दो दृष्ष्िकोण में तनदहत है ; तुलनात्मक िाजनीतत की
मुख्यिािामें लैंधगकअंतिालऔिमदहलाओं केएकीकिणकोसमझना।साथमें इसप्रकक्रया
कोसमझनाकककैसे ये दोनोंएक-दस
ू िे पिर्िोसाकिते हैं।इनदोसमूहोंसे संबंधितकई
ववद्वानोंद्वािाकीगईिािणाएाँ र्ीहैं।मुख्यिािाकेववद्वानोंकामाननाहै ककएकअलग
श्रेणी का अध्ययन होना कोई समस्या नहीं हो सकती है । अन्द्य अध्ययन जैसे सामाष्जक
आंदोलनऔिकईअन्द्यववधियााँ र्ीउपक्षेत्रहैं औिदस
ू िोंकीतिहललंगकईअन्द्यकेबीच
लसफषएकचिहै ।
ललसा बाल्डेज़ बताती हैं कक दोनों परिर्ार्ाएाँ ललंग औि लोकतंत्रीकिण को ध्यान में
िखते हुए समस्याग्रस्त हो सकती हैं, ष्जसे वह ‘अलर्जात वगष का फोकस’ कहती हैं।
तल
ु नात्मकअध्ययनमें लोकतंत्रीकिणसादहत्यपिललंगकीपरिर्ार्ाकीअनदे खीकीजाती
है , बावजूदइसकेककयहएकवववाददतअविािणाहै ।तथ्ययहहै ककलोकतंत्रकीपरिर्ार्ा
एकपरिवतषनशीलहै जोद्ववर्ाष्जतर्ीहै , ललंगकेमुद्दोंकोतबतकप्रकाशमें नहीं लाती
जबतकककलोकतांत्रत्रकसमाजोंमें मदहलाओं से संबंधितनागरिकताअधिकािोंकोववद्वानों
द्वािाइसे सामने नहीं लायाजाता।मदहलाओं केलोकतांत्रत्रकअधिकािोंकोकुछशासनोंमें
अनदे खा ककया गया है । इततहास में उदाहिण साक्ष्य है कक अधिकािों औि मदहलाओं के
मताधिकाि के ललए पुरुर्ों की तुलना में कम िक्त बहाया गया है ।iv िाजनेताओं द्वािा
मताधिकाि के ललए मदहलाओं की लामबंदी औि सकक्रयता की अनदे खी की गई है । बाल्डेज़
131 | पष्ृ ठ
लैंधगक परिप्रेक्ष्य का ववश्लेर्ण अलर्जात वगष केंदरत दृष्ष्िकोण के लेंस से र्ी ककया
जासकताहै जहां यहकोलशशकीजासकतीहै औिसमझाजासकताहै कककेवलकुछ
लोगहीिाजनीततकअलर्जातवगष क्योंबनते हैं।गैिलैंधगकदृष्ष्िकोणकेवलउनलोगोंको
समझने कीप्रववृ त्तिखताहै जोलोकतंत्रीकिणकीप्रकक्रयामें र्ागलेते हैं नकीमदहलाओ
को।सवालअर्ीर्ीबनाहुआहै ककवे ऐसाक्योंनहीं किते?लैंधगकदृष्ष्िकोणकोध्यान
में िखते हुए मंक के सुझाव को महत्त्वपूणष माना जा सकता है क्योंकक “एक अनुर्वजन्द्य
प्रश्न केरूपमें लोकतंत्रकेसमेकन केललए कौन से अलर्नेताप्रासंधगकहैं, इसमुद्दे पि
कफि से ववचाि किें ।”v तथा इस तथ्य पि सवाल उठाने के बजाय कक अधिकांश पुरुर्
िाजनीततक अलर्जात वगष क्यों हैं, यह समझने की कोलशश की जा सकती है कक
लोकतंत्रीकिण में नागरिकों द्वािा कुछ खास लोगों का समथषन क्यों ककया जाता है ? सैन्द्य
शासनमें जहााँ परु
ु र्त्वआिािहै वहााँ एकअच्छामौकाहै ककमदहलाओं कोउनकीदे खर्ाल
औिसहानर्
ु तू तकेकािणसमथषनददयाजासकताहै ।इसतिहकेसवालोंपिज्यादाजोि
दे नेऔिसमझनेकीजरूितहै ।
दस
ू िादृष्ष्िकोणयहप्रकाशमें लानाहै ककमदहलाओं कीलामबंदीसे कुलीनववचाि
कैसे प्रर्ाववतहोते हैं।लोकतंत्रीकिणप्रकक्रयामें संभ्रांतसुिािोंपिशायदहीकर्ीचचाष की
जातीहै औिउनकेतनणषयलोकवप्रयसमथषनपिआिारितहोते हैं।वैलेिीबन्द्सकातकषहै
ककइसतिहकासमथषनजनलामबंदीपिकेंदरतहै , जहााँमदहलाओंकीर्ागीदािीबड़ेपैमाने
पिदे खीजातीहै ।प्रश्नोंमें बदलावयहहोसकताहै ककएकसंभ्रांतव्यष्क्तसुिािपिक्या
ववचािकिताहै ? क्यायहजनलामबंदीहै ? क्यामदहलाओंकीअसहमततकोध्यानमें िखा
जाताहै ? बन्द्सकाकहनाहै ककयददइनप्रश्नोंकोध्यानमें िखाजाताहै तोमदहलाओंके
प्रर्ावपिबेहतिसहमततहोसकतीहै औिसंक्रमणप्रकक्रयामें इसेध्यानमें िखाजासकता
132 | पष्ृ ठ
है जहााँसंभ्रांततनणषयलेनेमेंलामबंदीमहत्त्वपूणष र्ूलमकातनर्ातीहै ।
लोकतंत्रीकिण पि अध्ययन मानककये अध्ययन पि तनर्षि किता है कक यह अन्द्य
शासन हैं जहां लोकतंत्र सफल हो सकता है । जब मदहलाओं की बात आती है तो यह सच
नहींहोसकताक्योंकककर्ी-कर्ीलोकतांत्रत्रकिाज्यमें लैंधगकसमानतार्ीत्रबगड़सकतीहै ।
अध्ययनोंसेपताचलताहै ककलोकतांत्रत्रकव्यवस्थानेमदहलाओंकोिाजनीततकशष्क्तयोंसे
बाहिकिनेकामागषप्रशस्तककयाहैजहााँमदहलाओंऔिउनकीर्ूलमकाओंकोकईसंदर्ोंमें
दे खाजासकताहै ।र्ाितमें , उदाहिणकेललए, सामाष्जकसुिािआंदोलनोंऔिनैततकता,
समानता औि उत्थान के नाम पि कुछ संस्थानों के उन्द्मूलन ने मदहलाओं को औि हालशए
पिडालददयाहै (उदाहिणकेललए, दे वदासीप्रथाजहााँ मदहलाओं कीएजेंसीकोअिीनकि
ददया गया था)।vi लोकतंत्र समानता औि स्वतंत्रता के ललए मागष प्रशस्त किता है , लेककन
साथहीकोईइसबातकीअनदे खीनहीं किसकताहै कककैसे लोकतांत्रत्रकशासनकेनाम
पिमदहलाओंकोअिीनककयागयाहै , बलदे ज़कातकषहै ।
133 | पष्ृ ठ
िततववगध
वपछले दशक में कई िाजनीततक वैज्ञातनकों ने खुद को तुलनात्मकतावाददयों के रूप में
स्थावपतकिनेकाप्रयासककयाहै ।कईिाजनीततकऔिमदहलाववद्वानखुदकोइसउपक्षेत्र
सेजोड़तेिहे हैं।इसकाकािणयहहोसकताहै ककइसक्षेत्रमें वचषस्ववादीएजेंडे काअर्ाव
है जहांतुलनात्मकिाजनीततकववश्लेर्णमें ललंगप्रमुखहै अनुसंिानकेनएक्षेत्रोंमें रुधचहै
पद्िततगतबहुलवादकागहिाईसे ववश्लेर्णककयाजाताहै औिअनस
ु ंिानकोसमझने का
vii
एकमहत्त्वपूणष क्षेत्रददयाजाताहै ।
उपक्षेत्र को ‘उत्पन्द्न’ किने का डि शायद कई ववद्वानों द्वािा दे खा गया है । इसमें
ललंग का आधश्रत या स्वतंत्र परिवतषनीय के रूप में ववश्लेर्ण किना शायद अध्ययन को
अधिकसमझदे सकताहै ।कईलोगोंने अध्ययनको‘मदहला’से ‘ललंग’तकले जाने का
134 | पष्ृ ठ
लेस्ली शववंड्ि-बायि के अनुसाि ललंग पि शोिकताषओं द्वािा कम-से-कम दो
िणनीततयोंकोध्यानमें िखाजानाचादहए।सबसे पहले वैष्श्वकस्तिपिहोिहे घिनाक्रमों
में उन्द्हें एकववलशष्िदे शकेतनष्कर्ोंकोध्यानमें िखनाचादहएऔिदस
ू िाउन्द्हें इसबात
पिजोिदे नाचादहएकककैसेललंगअनस
ु ंिानअन्द्यक्षेत्रोंमें किौतीकिसकताहै ; एकशोि
ष्जसे वहगैि-ललंगअध्ययनों, नएलसद्िांतोंकेमल्
ू यांकनऔिकैसे वे िाजनीततकप्रकक्रयामें
अंतिलासकते हैं, पिआिारित‘वधिषत-मल्
ू य’अनस
ु ंिानकेरूपमें दे खते हैं।हालााँकककई
अंतः ववर्यअध्ययनोंकीधचंताकीतिह, इसअध्ययनकोसाविानिहनेकीजरूितहै औि
साथही यह िाजनीतत ववज्ञानमें अधिकवैि अध्ययनबनने कीप्रकक्रयामें नािीवादीशोि
की कुछ समझ को नजिअंदाज कि सकता है । इस तिह के अध्ययन को संतलु लत किना
महत्त्वपूणष है।
तुलनात्मक िाजनीतत का ललंग के नजरिए से ववश्लेर्ण किने की कोलशश किते हुए
मोनाललीनािूककहतीहैं ककहालांककतुलनात्मकिाजनीततमें कुछअध्ययनोंने बाि-बाि
जेंडि के नजरिए से ववश्लेर्ण ककया है , गैि-जेंडि ववद्वानों ने इस उप-क्षेत्र औि इसके
योगदान पि ज्यादा ध्यान नहीं ददया है । सामाष्जक आंदोलनों, िाजनीतत से मदहलाओं का
बदहष्काि, ववलर्न्द्नसंगठनोंमें मदहलाओं कीर्ूलमकाशायदनािीवादीववद्वानोंकेशोिका
प्रमख
ु केंर िहा है । अध्ययन िाजनीततक अवसि मदहलाओं की लामबंदी व संिचनाओं औि
उनकीववफलताओं औिसफलताकोसमझने केललएहै , जोसमाजमें सामाष्जकपरिवतषन
केललएअग्रणीनईसमझकोसामनेलातीहै ।
अध्ययन औि िणनीततयों, संिचनाओं औि ववचाििािाओं पि ध्यान केंदरत किके
नािीवाददयोंद्वािामााँगोंकाजवाबकैसेदे तेहैंऔििाजनीततकदलोंमें मदहलाओंकीर्ूलमका
काववश्लेर्णकिने कार्ीप्रयासकिते हैं।वसाथमें एकपािीकैसे प्रततकक्रयादे तीहै औि
एकमदहलाउममीदवािकोआगेिखतीहै , यहमहत्त्वपूणष है।
इसकेसाथचुनावक्षेत्रकीर्ीजााँचकीजानीचादहए।वेकौनसेलैंधगकरुझानहैंजो
एकमदहलाकोिाजनीततकरूपसे तनवाषधचतहोने दे ते हैं? मदहलाओं कामताधिकािव्यापक
रूप से कानूनी है , कफि र्ी मदहलाओं के मतदान के पैिनष का ववश्लेर्ण पुरुर्ों से अलग
135 | पष्ृ ठ
प्रतीत होता है । ललंग अंति के कािण कुछ दे शों में मतदान में अंति र्ी दे खा गया है ।
मदहलाओंकीपहुाँचतनस्संदेहिाजनीततक, सामाष्जक, सांस्कृततकऔिआधथषकरूपसेपहचानी
जातीहै ।
तुलनात्मकिाजनीततऔिजेण्डिकोसमझनेमें अनेकचुनौततयााँआतीहैं।सबसेबड़ा
मुद्दाजोनािीवादीववद्वानोंनेअबतकउठायाहै वहललंगकोपरिर्ावर्तकिना।कफिकैसे
अलग-अलग पहलू आख्यानों औि अनुर्वों को आकाि दे ते हैं? मदहलाओं को एक समरूप
परिर्ार्ापिएकसमूहकेरूपमें नहीं दे खाजासकताहै ।हालााँककलॉिे लवाल्डेज़बताते हैं
ककइनमुद्दोंकेबावजूद, एकतुलनात्मकअध्ययनप्रततच्छे दनअध्ययनकोप्रकाशमें ला
सकताहै ; औिपहचानको“अप्राकृततकऔििाजनीततकबनाने”काप्रयाशककयाजासकता
है ।एकऔिमुद्दायहहै ककववद्वानोंने ज्यादातिववकलसतिाष्रोंकोमहत्त्वददयाहै जो
सफललोकतंत्रहैं वहकर्ीववश्वस्तिपितुलनाकाववश्लेर्णकिने कीजहमतनहीं उठाई
है ।सामान्द्यतायहववकलसतलोकतंत्रोंतकहीसीलमतहै ।इसललए, एकिाष्रकीसमस्याओं
को उजागि किते हुए तल
ु ना को महत्त्वपण
ू ष बनाने की आवश्यकता है , ष्जसकी जााँच दस
ू िे
िाष्रकीतल
ु नामें पहलेहीकीजाचक
ु ीहै ।एकऔिधचंतायहहै कक‘िाजनीततक’ कोकैसे
संर्ालाजाए।नािीवादीववद्वानोंने हमेशािाजनीततककीपरिर्ार्ाकोववस्तारितकिने की
मााँगकीहै , यहााँतकककउनअनौपचारिकसंिचनाओंकोर्ीशालमलककयाहै जोपरिर्ावर्त
नहीं हैं औि केवल औपचारिक संस्थानों तक सीलमत िहने के बजाय मदहलाओं के दै तनक
जीवन का दहस्सा हैं। लेककन कफि र्ी वपछले वर्ों में औपचारिक संिचनाएाँ र्ी बदली हैं,
इसललए सर्ी चौिाहों को समझना औि जेंडि लैकुना में तुलनात्मक ववश्लेर्ण को आगे
समझनेकेललएबािीकीसेसहयोगकिनामहत्त्वपूणष है ।
136 | पष्ृ ठ
िततववगध
यहकफल्मतलमलनाडुकीमुख्यमंत्रीएम.जयलललताकेजीवनपिआिारितहै ।
यहकफल्मकफल्मस्िािसे लेकिक्षेत्रीयपािीमें िाज्यकेएकिाजनेतातककी
उनकी यात्रा को दशाषती है । क्षेत्रीय दलों ने कई मदहला मुख्यमंत्रत्रयों का समथषन
ककया है , उदाहिण के ललए उत्ति प्रदे श, पष्श्चम बंगाल औि तलमलनाडु में सर्ी
क्षेत्रीयिाजनीततकदलोंकीमदहलामुख्यमंत्रीहैं।
िाजनीततक र्ागीदािी को जागरूक नागरिक या उनके िाजतनततक ज्ञान से परिर्ावर्त ककया
जाता है । अथाषत जो लोग जनता से संबंधित मुद्दों के बािे में अधिक िाय िखते हैं, वे
अधिकसहर्ागीहोतेहैं।तथ्ययहहै ककजोलोगर्ागलेतेहैंउनकेपासउपयुक्तज्ञानर्ी
है । मदहलाओं की र्ागीदािी िाजनीततमें एक महत्त्वपूणष उपक्षेत्रहै । यह ददखाताहै कककैसे
उदािलोकतंत्रवविायककेरूपमें मदहलाओं कीर्ागीदािीकोबढ़ाते हैं औिउनकातनिीक्षण
किते हैं।इसतथ्यकेबावजूद1920औि1920केदशकमें उदािलोकतंत्रोंमें अधिकांश
मदहलाओं को वोि दे ने का अधिकाि ददया गया था लेककन अध्ययनोंसे पता चलता है कक
पुरुर्ोंकीतल
ु नामें मदहलाओंकेवोिदे नेकीसंर्ावनाकमथी।यहअमेरिकाजैसेकईदे शों
में उलिाहुआहै जहााँ 1980से 2012तकमदहलाओं कीर्ागीदािीदृढ़तासे ददखाईदे िही
थी, हालााँककइनलोकतंत्रोंमें पुरुर्मतदाताअर्ीर्ीअधिकहैं औिबज
ु ुगोंकोअधिकर्ाग
लेने के ललए दे खा जाता है । पुरुर्ों को िाजनीततक संगठनों पि हावी दे खा जाता है , कई
ववकलसत औि ववकासशील दे शों में उच्च पदों पि आसीन होते हैं औि िाजनीतत के बािे में
अधिकजानकािीिखते हैंकािणयहहोसकताहै ककिाजनीततकरूपसे करियिबढ़ाने वाले
व्यवसायोंमें मदहलाएाँ परु
ु र्ोंकीतुलनामें कमददखाईदे तीहैं; आत्मववश्वासर्ीएकअन्द्य
कािणहोसकताहै औिवविातयकाओं कोअर्ीर्ी‘ललंगसंस्थाओं’ केरूपमें दे खाजाताहै
जहााँ मदहलाओं कीतुलनामें पुरुर्ोंकाहस्ताक्षेपअधिकहोताहै , औितनवाषधचतहोने पिर्ी
मदहलाएाँ कम बोलती हैं। कई िाष्रों ने िाजनीतत में मदहलाओं की र्ागीदािी बढ़ाने के ललए
137 | पष्ृ ठ
x
औपचारिकतंत्रअपनायाहै , इन्द्हें इसप्रकािववस्तत
ृ ककयाजासकताहै —
i. आरक्षक्षत सीटें
यह हाल ही में लैदिन अमेरिका में ववशेर् रूप से ददखाई दे ने वाली एक ववधि है औि यह
पािी कोिा के समान है , केवल यह कानून द्वािा मान्द्यता प्राप्त है औि सर्ी िाजनीततक
दलोंद्वािाइसकापालनककयाजाताहै ।
यहतकषददयाजाताहै ककआिक्षणमदहलाओंकेप्रतततनधित्वकोबढ़ानेकाउपायहै ।
लेककनकुछ दे शोंमें दे खा गयाहै कीपािीद्वािाददयागयाआिक्षणअन्द्यवविातयकोंकी
तुलना में कम है । उदाहिण के ललए फ्ांस ने 2000 में एक कानून पारित ककया, लेककन
2012 तकमदहलावविायकोंकीसंख्याबढ़किकेवल26 प्रततशतहुईतथ्ययहहै ककपुरुर्ों
केप्रर्ुत्वकोशायदहीकर्ीचुनौतीदीजातीहै ।लेककनइनखालमयोंकेबावजूद, मदहलाओं
कोबड़े पैमाने पिकायाषलययािाज्यकेप्रमुखकेरूपमें चुनाजािहाहै ।यहतकषवविायी
कोिाकासमथषनकिताहै , इसअथष में ककयददएकमदहलाकोिाज्यमें प्रतततनधिकेरूप
में चुना जाता है , तो कई अन्द्य दे श ऐसी प्रकक्रया अपनाते हैं जो मदहलाओं को िाजनीततक
रूपसेप्रमुखकेरूपमें प्रोत्सादहतकितीहै ।कैत्रबनेिमेंमदहलाएाँदतु नयार्िमें बढ़ीहैंऔि
क्षेत्रमेंिाजनीततऔिपरु
ु र्आधिपत्यकोखुलेतौिपिचुनौतीदे तीहैं।हालांककवेतनवाषधचत
होतीहैं, लेककनउन्द्हें ववत्त, िक्षायाववदे शनीततजैसे क्षेत्रोंकेबजायनिमक्षेत्रोंकेरूपमें
जानाजाताहै ।
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संयुक्तिाज्यअमेरिकालोकतंत्रकासबसेबड़ाउदाहिणहै ।एकलोकतांत्रत्रकिाज्यकेरूपमें
यह समझा जाता है कक िाजनीतत में मदहलाओं का प्रतततनधित्व शायद इस दे श में सबसे
अधिकहै ।लेककनइसकेववपिीतदतु नयाकेअन्द्यदे शोंकीतुलनामें संयुक्तिाज्यअमेरिका
में लगर्ग 17.1 प्रततशत मदहलाओं का िाजनीतत में प्रतततनधित्व है । दे श पुरुर्ों औि
मदहलाओं के बीच समान अधिकािों की गािं िी नहीं दे ता है औि जब मदहलाओं के
प्रतततनधित्व की बात आती है तो यह अन्द्य दे शों की तुलना में 68वें स्थान पि है ।
िाजनीततक व्यवहाि औि जनमत को समझने के दौिान, यह दे खा गया कक औपचारिक
कानूनों औि संस्कृततयों के बीच एक ललंग अंति है औि दख
ु की बात है कक मदहलाओं ने
पुरुर्ोंकीतुलनामें अधिकरूदढ़वादीरूपसे मतदानककया।इनलैंधगकअंतिोंने हालहीमें
मीडडया घिानों द्वािा अत्यधिक ध्यान आकवर्षत ककया है औि ववद्वानों ने अथषशास्त्र,
समाजीकिण औि िाजनीतत के आिाि पि लैंधगक अंतिाल पि अपने लसद्िांतों को सामने
िखा है । संिचनात्मक संिचना औि औद्योगीकिण के बाद मदहलाओं के दृष्ष्िकोण में
परिवतषनदे खागयाहै ।मदहलाओं केवोिकेमुद्दे कोदे िसे महत्त्वलमलाहै औिववद्वानों
कातकषहै कककायषकताषओं औिनेताओं द्वािाइसकाउपयोगकिने केतिीकेकेआिािपि
यहमायावीऔिवास्तववकहोसकताहै ।जबलैंधगकअंतिालऔिसावषजतनकनीततकीबात
आतीहै तोइसकेऔिउल्लेखनीयपरिणामसामने आते है ।यहतकषददयाजािहाहै कक
सावषजतनक क्षेत्र की नौकरियों में बेिोजगािी की बात आने पि मदहलाएाँ सिकाि से अधिक
गंर्ीिहोने कीउममीदकितीहैंक्योंककवे र्ीवेिोजगािीकेनक
ु सानकामक
ु ाबलाकितीहैं।
यहीनक
ु सानलोकतंत्रीकिणऔिपरिवािकीसंिचनाकेतथ्यमें र्ीदे खाजाताहै ।श्रमका
लैंधगक ववर्ाजन परिवाि की संिचना के र्ीति र्ी दीखता है , इसके साथ जब एक मदहला
वेतनश्रमनौकिीमें शालमलहोतीहैतोलैंधगकसमानतानहींहोतीहै ।तुलनात्मकअध्ययन
में मदहलाओं औि लोकतंत्रीकिण पि उन के द्वािा र्ी अंतिालों को दे खा गया है जो
मदहलाओंकेअधिकािोंऔिलोकतंत्रकासमथषनकितेहैं।क्योंककएकिनमयहहै ककपुरुर्
मदहलाओं कीतुलनामें बेहतिनेताचुनते हैं, यहएकऐसासमथषनहै ष्जसे दतु नयार्िमें
दे खागयाहै।जबकीइसकेववपिीतजैलसंडाअडषनष केमामले में हाललयाअवलोकनन्द्यूजीलैंड
िाज्य के प्रमुख के रूप में चुने गए औि कल्याणवाद पि उनके अनुकिणीय रुख औि
आतंकवादकेर्खलाफदतु नयार्िमें मदहलाओंकासमथषनहै ।इक्कीसवींसदीमें कईमदहला
139 | पष्ृ ठ
नेता उर्ि कि सामने आई हैं ष्जन्द्होंने नीततयों औि तनणषय लेने में बदलाव ककया है औि
अपनेमजबूतनेतत्ृ वकादावाककयाहै ।xi
केश स्टडी
उदाहिण के ललए र्ाित को चुनें औि आजादी के बाद से संसद में मदहला
वविायकों की संख्या का तनिीक्षण किें । कफि र्ाित के एक िाज्य में एक गााँव
चुनेंऔिवपछलेएकदशकमें मदहलाउममीदवािोंकाववश्लेर्णकिनेकाप्रयास
किें । क्या आपने मदहला वविायकों या मदहला प्रमुखों के उत्थान या पतन पि
ध्यान ददया है । क्या आप कोलशश कि सकते हैं औि कािणों को समझ सकते
हैं? क्यायहमदहलालशक्षा, मदहलाओं काडि, पािं परिकव्यवस्थामें मदहलाओं,
परिवािों या िाजनीततक संगठनों द्वािा मदहलाओं को कम या उनके द्वािा
अधिकप्रोत्सादहतककयाजाताहै ? कोलशशकिें औिकािणोंकोसमझें औियदद
आपकोलशशकिसकतेहैंऔिककसीअन्द्यदे शकेसाथतुलनाकिे ।
र्ाितीय सवविान प्रत्येक व्यष्क्त के िाजनीततक अधिकािों की गािं िी दे ता है । तथा उसके
कायाषत्मकलोकतंत्रकोकाफीहदतकइसतथ्यसे दे खाजासकताहै ककदे शजातत, वगष,
ललंग, िमषकेबावजूदप्रत्येकनागरिककोवोिदे नेकेअधिकािकीगािं िीदे ताहै ।र्ाितमें
तनिक्षिता औि प्राच्यवादी तकष के बावजूद, र्ाित ने लोकतंत्र को सहर्ागी बनाकि वयस्क
मताधिकाि के माध्यम से एक बड़ा कदम उठाया। लेककन यह अलग प्रश्न है की र्ागीदािी
ककतनीदिू तकसफलिहीहै ? िाजनीततकर्ागीदािीप्रत्येकनागरिककेमुद्दोंकोसमझने
औिलोकतंत्रीकिणकीप्रकक्रयाकोसफलबनानेकीकंु जीहै ।अधिकतियहदे खनामहत्त्वपूणष
है ककर्ाितजैसेववववििाष्रमें, लोकतंत्रीकिणप्रकक्रयामें प्रत्येकनागरिककोकैसे शालमल
ककयाजाताहै ? र्ाितनेवंधचतोंकोकईअधिकािोंकीगािं िीदीहै औिसाथमें िाजनीततक
कायाषलयोंमें उत्थानऔिमदहलाओंकेप्रतततनधित्वकेललएयोजनाओंकीगािं िीर्ीदीहै ।
र्ाितमेंदोसेअधिककायषकालकेललएएकमदहलाप्रिानमंत्रीिहीहै ।वतषमानववत्त
140 | पष्ृ ठ
मंत्री एक मदहला हैं। आाँकड़े बताते हैं कक वपछले कुछ सालों में संसद में मदहलाओं का
प्रतततनधित्वबढ़ाहै ।पहलेलोकसर्ाचुनावमेंकेवल5प्रततशतमदहलाएाँथीं, जबककसोलहवीं
लोकसर्ामें मदहलाप्रतततनधियोंकीसंख्यामें 11प्रततशतकीवद्
ृ धिदे खीगई।वविातयका
में मदहलाओं के ललए सीिें आिक्षक्षत किने के कई प्रयास ककए गए हैं। मदहला आिक्षण
वविेयक2008में पेशककयागयाथाऔि2013में लोकसर्ाकेववघिनकेकािणसमाप्त
हो गया था।xii लोकसर्ा औि िाज्य वविानसर्ाओं में मदहलाओं के ललए कम-से-कम 33
प्रततशत सीिें आिक्षक्षत किने का प्रयास ककया गया था। इस वविेयक में िाजनीतत में
वपतस
ृ त्तात्मकआधिपत्यकोदे खते हुएकईवविोिदे खे गएहैं।इसबातपिबहसहोतीिही
है ककचाँकू कर्ाितएकववववितापूणष दे शिहाहै , इसललएजबमदहलाआिक्षणकीबातआती
है तो कोिा के र्ीति एक कोिा होना चादहए। अन्द्य लोगों ने यह र्ी दे खा है कक यदद
आिक्षणददयाजाताहै तोअलर्जातवगषकीमदहलाओंकाकेवलएकतनष्श्चतवगषहीइससे
लार्ाष्न्द्वतहोगाऔिसीमांतमदहलाओंकोअर्ीर्ीनुकसानहोगा।
तल
ु नात्मक िाजनीतत में लैंधगक अंतिाल के अध्ययन में एक महत्त्वपण
ू ष योगदान
िाजनीततक दलों औि चन
ु ावी प्रणाललयों को समझने में है । ककसी र्ी अन्द्य दे श की तिह
र्ाितमें िाजनीततकदलमदहलाप्रतततनधिकोनालमतकिने याचन
ु ने में महत्त्वपण
ू ष र्लू मका
तनर्ाते हैं। किे न बेकववथ के अनस
ु ाि, पािं परिक अनस
ु ंिान तल
ु नात्मक िाजनीतत में
िाजनीततक परिणामों औि िाजनीततक दलों की र्ूलमका की अनदे खी किता है । उममीदवाि
चयनकेदौिानपािीकीसंिचना, वे ष्जसक्षेत्रसे चुनावलड़िहे हैं, जातत, िमष, सामाष्जक
संिचनासर्ीकोध्यानमें िखाजाताहै ।र्ाितमें कईिाजनीततकदलउममीदवािचयनके
ललए अपने परिवािों के कनेक्शन पि र्िोसा किते हैं। एक ववचाििािा र्ी है ष्जसे शायद
उममीदवािोंकाचयनकिते समयध्यानमें िखाजाताहै ।संिचनाएं क्षेत्रीयिाजनीततकदलों
141 | पष्ृ ठ
की तुलना में बड़े िाजनीततक दलों को सुवविा प्रदान किती हैं। क्षेत्रीय िाजनीततक दलों में
मदहलाओंकेचयनकेआाँकड़ेलगर्गनगण्यहैं।मोनालीनाक्रूकद्वािाददयागयासमािान
कोिाहै लेककनजैसाककपहले दे खागयाहै ककवपतस
ृ त्तात्मकसंिचनाओं में कोिालागू होने
केबावजूदकमकायाषत्मकहै ।
र्ाितीय िाज्यो ने आगे कुछ ऐसी योजनाएाँ बनाई हैं जो र्ाित में मदहलाओं के
उत्थानकेललएप्रर्ावशीलिहीहै जैसे—
सुकन्या समद्
ृ गध योजना2015में शुरूकीगईष्जसमे माता-वपताद्वािाबाललकाओं
केललएलशक्षाऔिबचतकोबढ़ावादे नेकाप्राविानककयागया
स्वच्छ िारत अभियान 2014 में मदहलाओं के ललए स्वच्छता सुवविाओं को ववशेर्
ध्यानदे नेकेसाथशुरूककयागयायहएकिाष्रीयअलर्यानहै ।
142 | पष्ृ ठ
1.9 तनष्कषट
तुलनात्मक िाजनीतत में लैंधगकता अंतिाल औि र्ाितीय िाजनीतत में मदहलाओं का
कम प्रतततनधित्व जदिल मुद्दे हैं ष्जनके ललए सूक्ष्म औि अंतःववर्य ववश्लेर्ण की
आवश्यकता है । िाजनीततक ववश्लेर्ण इन मद्
ु दों को समझने औि मदहलाओं के बढ़ते
िाजनीततकप्रतततनधित्वकेललएसमािानोंकीपहचानकिने केललएएकमूल्यवानरूपिे खा
143 | पष्ृ ठ
1. ललंगअंतिाल (जेंडिलैकुना)शब्दसेआपक्यासमझतेहैं?
2. तुलनात्मक िाजनीतत में मदहला िाजनीततक ववश्लेर्ण पि मुख्यिािा का तकष औि
जेडिशोिकताषओंकातकषक्याहै ?
3. तल
ु नात्मकअध्ययनसादहत्यमें ललंगअन्द्तिालकोसमझनेमेंक्यासमस्याएाँहैं?
5. क्या आपको लगता है कक तुलनात्मक िाजनीतत में जेंडि की कमी को समझने के
ललएमदहलाओंकेआंदोलनमहत्त्वपण
ू ष हैं क्यों?
1.11 संदिट-सच
ू ी
144 | पष्ृ ठ
i
Baldez, Lisa (2010) Symposium, The Gender Lacuna in Comparative Politics. March 10, Vol. 8/No. 199-205.
ii
Sue Tolleson Rinehard and Sue Carroll point out in Baldez, Lisa (2010) Symposium, The Gender Lacuna in
Comparative Politics. March 10, Vol. 8/No. 199-205.
iii
Georgina Waylen in ibid
iv
Baldez, Lisa (2010) Symposium, The Gender Lacuna in Comparative Politics. March 10, Vol. 8/No. 199-205.
v
Ibid
vi
Vijaisri Priyadarshni (2004), Recasting the Devadasi: Patterns of Sacred Prostitution in Colonial South India,
Kanishka Publisher, New Delhi.
vii
Karen beckwith in Krook Mona Lena (2011): Gendering Comparative Politics: Achievements and Challenges,
Politics and Gender 7 (1), pp. 99-105.
viii
Teri Caraway 2010; Schwindt-Bayer 2010 in ibid
ix
Ibid
x
As per the UN sponsored Beijing Platform for Action, 1995
xi
https://thenewsmen.co.in/photos/ten-women-prime-ministers-in-the-world-who-are-currently-
serving/31373-2156
xii
Madhavan, M.R (2017), “Parliament” in Kapur, Devesh, Mehta, Pratap Bhanu, and Vaishnav, Milan,
Rethinking Public Institutions in India, Oxford Scholarship Online: May.
xiii
Pai Sudha, 1998, “ Pradhanis in New Panchayats: Firld Notes from Meerut District”, Economic and Political
Weekly, Vol. 33, Issue No. 18, 02 May.
145 | पष्ृ ठ