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Department of Distance and Continuing Education

University of Delhi
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lsesLVj-II
dkslZ ØsfMV-4
Discipline Specific Core Course (DSC-5)
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(Methods and Approaches in Comparative Political Analysis)

As per the UGCF - 2022 and National Education Policy 2020


तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

सपं ादक मंडल


डॉ. शक्ति प्रदायनी राउत
डॉ. शम्भु नाथ दुबे
डॉ. मंगल देव
पाठ्य-सामग्री लेखक
डॉ. अतिषेक चौधरी, िाग्यनगर तिनीत श्रीिात्सािा, डॉ. कमल
कुमार, येररामादासु उदय कुमार, तिखा जायसिाल
िैिाली मान, डॉ. गररमा िमाा, डॉ. लततका तिश्नोई
िैक्षतणक समन्ियक
दीक्षान्त अिस्थी

© दूरस्थ एवं सतत् क्तशक्षा क्तवभाग


ISBN: ________________

प्रथम संस्करण : 2023


ई-मेल : ddceprinting@col.du.ac.in
politicalscience@col.du.ac.in
Published by:
Department of Distance and Continuing Education under
the aegis of Campus of Open Learning/School of Open Learning,
University of Delhi, Delhi-110007

Printed by:
मुक्त क्तशक्षा क्तवद्यालय, क्तदल्ली क्तवश्वक्तवद्यालय

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
िी.ए. (ऑनसा) राजनीतत तिज्ञान

• अध्ययन सामग्री को नए पाठ्यक्रम यू.जी.सी.एफ. 2022 के अनुसार क्तलखा और तैयार क्तकया गया है तथा इकाई-1
और इकाई-2 को सीबीसीएस से क्तलया गया है।
• स्व-क्तशक्षण सामग्री (एस.एल.एम.) में वैधाक्तनक क्तनकाय, डीय/ू क्तहतधारकों द्वारा प्रस्ताक्तवत सुधार/संशोधन/ सझ
ु ाव
अगले संस्करण में शाक्तमल क्तकए जाएँगे। हालाँक्तक, ये सुधार/सश ं ोधन/सुझाव वेबसाइट https://sol.du.ac.in पर
अपलोड कर क्तदए जाएँगे। कोई भी प्रक्ततक्तक्रया या सझ
ु ाव ईमेल- feedbackslm@col.du.ac.in पर भेजे जा सकते हैं।

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तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

अनुक्रम

क्र.सं. विषय लेखक/अनुिादक प.ृ सं.

इकाई-I तल
ु नात्मक राजनीतत की समझ अभिषेक चौधरी 01
अनुवादक : राम ककशोर
इकाई-II तल
ु नात्मक राजनीतत का अध्ययन
करने के उपागम

पाठ-1 संस्थागत उपागम, प्रणाली उपागम, िाग्यनगर ववनीत श्रीवात्सावा 21


संरचनात्मक-कायाात्मक उपागम अनुवाददका : राखी
पाठ-2 तुलनात्मक राजनीतत अध्ययन के डॉ. कमल कुमार 37
दृष्टिकोण : राजनीततक संस्कृतत
दृष्टिकोण (उपागम)

पाठ-3 नव-संस्थावाद येररामादासु उदय कुमार 54


अनुवादक : आशीष कुमार शुक्ल
इकाई-III तल
ु नात्मक राजनीतत के दृष्टिकोण : भशखा जायसवाल 69
पारं पररक और नव-संस्थागतवाद अनुवादक : अतनरुध यादव
इकाई-IV राजनीततक संस्कृतत : तल
ु नात्मक वैशाली मान 93
राजनीतत के अध्ययन के दृष्टिकोण अनुवाददका : अंजु
इकाई-V तुलनात्मक राजनीतत के अध्ययन गररमा शमाा 108
के उपागम : राजनीततक अनुवाददका : पारुल सलज
ू ा
अथाव्यवस्था

इकाई-VI भलंग तनधाारण तल


ु नात्मक राजनीतत डॉ. लततका बिश्नोई 128
अनुवादक : अमर जीत

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तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

इकाई-I

तल
ु नात्मक राजनीतत की समझ
डॉ. अभिषेक चौधरी
अनुवादक :‍राम ककशोर

संरचना

1.1 उद्दे श्‍य‍


1.2 परिचय
1.3 तुलनात्मक‍िाजनीतत‍की‍प्रकृतत‍एवं‍क्षेत्र
1.3.1 तुलनात्मक‍िाजनीतत‍की‍प्रकृतत
1.3.2 तुलनात्मक‍िाजनीतत‍का‍क्षेत्र
1.4 तल
ु ना‍क्यों‍किें ?
1.5 तुलनात्मक‍ववधियााँ
1.6 यूिो-केन्द्रवाद‍से‍पिे
1.7 तनष्कर्ष
1.8 अभ्‍
यास‍प्रश्‍न‍
1.9 संदर्ष-ग्रंथ

1.1 उद्दे श्य

• इस‍अध्‍याय‍को‍पढ़ने‍के‍बाद‍ववद्याथी‍तुलनात्मक‍िाजनीतत‍की‍प्रकृतत‍औि‍कायषक्षेत्र‍
के‍बािे ‍में‍जानेंगे।
• यह‍पाठ‍उन्द्हें ‍ इस‍ववर्य‍में ‍ हमें‍ तल
ु ना‍किने‍ की‍आवश्यकता‍क्यों‍है ? तुलना‍किने‍
के‍ललए‍ववलर्न्द्न‍तिीके‍औि‍दृष्ष्िकोण‍को‍जानें गे।
• वे‍ यह‍ र्ी‍ समझेंगे‍ कक‍ यिू ो-केंरवाद‍ का‍ अथष‍ क्या‍ है ‍ औि‍ हमें ‍ यिू ो-केंरवाद‍ से‍ आगे‍
जाने‍की‍आवश्यकता‍क्यों‍है ?

1 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

1.2 पररचय

अध्याय‍ के‍ मख्


ु यत:‍ तीन‍ उद्दे श्य‍ हैं।‍ सवषप्रथम, यह‍ तल
ु नात्मक‍ िाजनीतत‍ के‍ उप-अनश
ु ासन‍
का‍एक‍लसंहावलोकन‍प्रदान‍ किता‍है , एवं‍ इसकी‍प्रकृतत‍औि‍इसकी‍व्यापकता‍का‍पिीक्षण‍
किने‍ का‍ प्रयास‍ किता‍ है ।‍ द्ववतीय, यह‍ तुलना‍ के‍ प्रकािों‍ की‍ तुलना‍ किने‍ के‍ औधचत्य‍ के‍
बािे ‍में ‍समझ‍प्रदान‍किता‍है ।‍अंत‍में , यह‍यिू ो-केन्द्रवाद‍(Euro-Centrism)‍की‍समस्या‍को‍
संबोधित‍किता‍है , एवं‍संबंधित‍समस्याओं‍से‍बाहि‍तनकलने‍का‍मागष‍प्रदान‍किता‍है ।

इनका‍पिीक्षण‍किने‍से‍पूव,ष यह‍समझना‍उधचत‍होगा‍कक‍तुलनात्मक‍िाजनीतत‍का‍क्या‍
अथष‍ है ।‍ववद्वानों‍ने‍ तुलनात्मक‍िाजनीतत‍को‍िाजनीतत‍ववज्ञान‍के‍तीन‍मुख्य‍उपक्षेत्रों‍में ‍ से‍
एक‍ के‍ रूप‍ में‍ समझा‍ है , अन्द्य‍ दो‍ िाजनीततक‍ लसद्िांत‍ औि‍ अंतिाषष्रीय‍ संबंि‍ हैं।‍
तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ को‍ कई‍ प्रकाि‍ से‍ परिर्ावर्त‍ ककया‍ गया‍ है ।‍ ध्यान‍ दे न‍े योग्य‍ कुछ‍
प्रमुख‍परिर्ार्ाएाँ‍इस‍प्रकाि‍हैं—

जीन‍ब्लोंडेल‍(1999)‍ने‍ तुलनात्मक‍िाजनीतत‍को‍‘‘दो‍या‍अधिक‍िाजनीततक‍प्रणाललयों‍
की‍एक‍साथ‍या‍क्रलमक‍पिीक्षा’’‍से‍ संबंधित‍होने‍ के‍रूप‍में ‍ परिर्ावर्त‍ककया‍है ।‍हे ग, है िोप‍
एवं‍ मैककॉलिक‍(2016‍:‍12)‍के‍ललए, तुलनात्मक‍िाजनीतत‍‘‘ववलर्न्द्न‍दे शों‍में ‍ सिकाि‍एवं‍
िाजनीतत‍ का‍ व्यवष्स्थत‍ अध्ययन‍ है , ष्जसे‍ उनके‍ वविोिार्ासों‍ औि‍ समानताओं‍ को‍ धचत्रत्रत‍
किके‍ उन्द्हें ‍ बेहति‍ ढं ग‍ से‍ समझने‍ के‍ ललए‍ धचत्रत्रत‍ ककया‍ गया‍ है ।’’‍ यद्यवप, तल
ु नात्मक‍
िाजनीतत‍ समानता‍ एवं‍ र्ेद‍ की‍ पहचान‍ किने‍ से‍ कहीं‍ अधिक‍ है ।‍ तुलना‍ ककसी‍ को‍
‘‘समानताओं‍ एवं‍ अंतिों‍ की‍ पहचान’’‍ से‍ आगे‍ बढ़कि‍ ‘‘अंततः‍ संबंिों‍ के‍ एक‍ बड़े‍ ढााँचे‍ में ‍
िाजनीततक‍घिनाओं‍का‍अध्ययन’’‍किने‍की‍अनुमतत‍दे ती‍है ‍(मोहं ती‍1975)।‍यह‍दृष्ष्िकोण‍
लोगों‍को‍दी‍गई‍िाजनीततक‍घिना‍की‍समझ‍को‍गंर्ीितापूवक
ष ‍समझने‍ में ‍ सहायता‍प्रदान‍
किता‍है , एवं‍ इसललए‍ककसी‍को‍बेहति‍व्याख्या‍किने‍ की‍ष्स्थतत‍में ‍ िहने‍ की‍अनम
ु तत‍दे ता‍
है , यह‍महसूस‍ककया‍जाता‍है ‍ कक‍हमािी‍समझ‍को‍परिपक्व‍किने, िाजनीततक‍घिनाओं‍ का‍
उत्ति‍दे ने‍एवं‍समझाने‍के‍स्ति‍को‍व्यापक‍बनाने‍में ‍सहायता‍किे गा।

1.3 तुलनात्मक राजनीतत की प्रकृतत एवं क्षेत्र

एक‍प्रमुख‍परिर्ार्ात्मक‍पहलू‍ इस‍प्रश्न‍से‍ संबंधित‍यह‍है ‍ कक‍ककसकी‍तुलना‍की‍जानी‍है ?

2 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

एक‍तिफ, अगि‍दो‍चीजें‍पूिी‍तिह‍से‍अलग‍हैं, तो‍तुलना‍का‍कोई‍अथष‍नहीं‍है ।‍दस


ू िी‍ओि,
यदद‍दो‍चीजें‍ पूिी‍तिह‍से‍समान‍हैं, तो‍तुलना‍र्ी‍उपयोगी‍नहीं‍ होगी।‍एक‍महत्त्‍वपूण‍ष पहलू‍
अविािणाओं‍ या‍संकेतकों‍(डोगन‍औि‍पेलासी‍1990)‍के‍बीच‍‘‘कायाषत्मक‍तुल्यता’’‍तनददष ष्ि‍
किना‍ है ।‍ यह‍ पहलू‍ दो‍ प्रमुख‍ ववचािों‍ पि‍ आिारित‍ है ।‍ पहला‍ यह‍ ववचाि‍ है ‍ कक‍ ‘‘ववलर्न्द्न‍
संिचनाएाँ‍ एक‍ही‍कायष‍ कि‍सकती‍हैं’’।‍दस
ू िा‍यह‍है ‍ कक‍एक‍ही‍संिचना‍‘‘कई‍अलग-अलग‍
कायष‍ कि‍सकती‍है ’’‍(डोगन‍औि‍पेलासी‍1990)।‍कायाषत्मक‍तुल्यता‍के‍पक्ष‍में ‍ तकष‍दे कि,
यह‍कहा‍जाता‍है ‍ कक‍संस्थागत‍समानता‍को‍दे खने‍ के‍बजाय, कोई‍र्ी‍िाजनीतत‍के‍र्ीति‍
औि‍बाहि‍ववलर्न्द्न‍संस्थानों‍द्वािा‍तनर्ाई‍गई‍र्ूलमकाओं‍औि‍कायों‍का‍आकलन‍कि‍सकता‍
है ।‍ इस‍ ववचाि‍ को‍ उन‍ ववद्वानों‍ ने‍ समथषन‍ ददया‍ है ‍ जो‍ ‘कायषकताष’‍ की‍ श्रेणी‍ में ‍ आते‍ हैं।‍
सिल‍ शब्दों‍ में , यह‍ ‘कायों’‍ का‍ प्रदशषन‍ औि‍ समाज‍ के‍ ववलर्न्द्न‍ अंगों‍ द्वािा‍ तनर्ाई‍ जाने‍
वाली‍र्ूलमका‍है ‍ जो‍मायने‍ िखती‍है ।‍इसमें ‍ गैि-िाजनीततक‍संस्थान‍र्ी‍सष्ममललत‍हो‍सकते‍
हैं।‍ ककसी‍ र्ी‍संस्था‍ को‍ केवल‍एक‍ही‍कायष‍ के‍ललए‍उत्तिदायी‍नहीं‍ ठहिाया‍जा‍सकता‍है ।‍
इसी‍प्रकाि‍कोई‍र्ी‍संस्था‍ककसी‍एक‍कायष‍ तक‍सीलमत‍नहीं‍ िह‍सकती।‍उदाहिण‍के‍ललए,
सेना‍ कुछ‍ िाज्यों‍ में ‍ सीमाओं‍ को‍ सुिक्षक्षत‍ किने‍ की‍ तुलना‍ में ‍ कहीं‍ अधिक‍ र्ूलमका‍ तनर्ा‍
सकती‍है ।‍या, िाष्रपतत‍का‍कायष‍दो‍अलग-अलग‍दे शों‍में ‍काफी‍लर्न्द्न‍हो‍सकता‍है ।

1.3.1 तुलनात्मक राजनीतत की प्रकृतत

डेतनयल‍कािामनी‍(2011)‍तुलनात्मक‍िाजनीतत‍में ‍ ‘‘क्या’’‍की‍तुलना‍की‍जा‍िही‍है , इसका‍


उत्ति‍ दे ना‍ चाहते‍ हैं।‍ उनका‍ तकष‍ है ‍ कक‍ ‘‘िाष्रीय‍ िाजनीततक‍ व्यवस्था’’‍ मुख्य‍ मामले‍ हैं‍
ष्जनकी‍तुलना‍ववश्व‍िाजनीतत‍में ‍ सबसे‍ महत्त्‍वपूण‍ष िाजनीततक‍इकाइयों‍के‍रूप‍में ‍ की‍जाती‍
है ।‍यद्यवप, वे‍ ‘‘एकमात्र‍ववर्य‍नहीं’’‍हैं‍ ष्जनका‍तुलनात्मक‍िाजनीतत‍द्वािा‍ववश्लेर्ण‍ककया‍
जाता‍है ‍ (कािामनी‍2011‍:‍5)।‍उदाहिण‍के‍ललए, तुलनात्मक‍िाजनीतत‍र्ाित‍के‍िाज्यों‍या‍
क्षेत्रों‍की‍तिह‍‘‘उप-िाष्रीय‍क्षेत्रीय‍िाजनीततक‍व्यवस्था’’‍का‍ववश्लेर्ण‍कि‍सकती‍है ।‍या वे‍
‘‘उत्तम-िाष्रीय‍इकाइयों’’‍का‍ववश्लेर्ण‍कि‍सकते‍ हैं‍ जैसे‍ (ए)‍क्षेत्र‍(पष्श्चम‍एलशया‍जैसे‍ एक‍
से‍ अधिक‍ दे श‍ सष्ममललत‍ हैं), (बी)‍ सािाज्यों‍ की‍ िाजनीततक‍ व्यवस्था‍ (जैसे‍ िोमन, तुकष,
मुगल, आदद), (सी)‍अंतिाषष्रीय‍या‍क्षेत्रीय‍संगठन‍(जैसे‍साकष, यूिोपीय‍संघ, नािो आदद)‍औि‍
(डी)‍ िाजनीततक‍ प्रणाललयों‍ के‍ प्रकाि‍ (लोकतांत्रत्रक‍ बनाम‍ सत्तावादी, आदद)‍ (कािामनी‍ 2011:‍
5)।‍तुलनात्मक‍िाजनीततक‍ववश्लेर्ण‍‘‘एकल‍तत्त्‍वों‍या‍घिकों’’‍की‍तुलना‍र्ी‍कि‍सकता‍है ।‍
इसमें ‍ दलीय‍ प्रणाललयों, चुनावी‍ प्रणाललयों, ववलर्न्द्न‍ संस्थाओं‍ के‍ ढााँचे, नीततयों‍ आदद‍ की‍

3 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

तुलना‍शालमल‍हो‍सकती‍है ।

सामान्द्य‍ शब्दों‍ में, तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ के‍ अंतगषत‍ ववलर्न्द्न‍ समाजों‍ में ‍ चल‍ िही‍
िाजनीततक‍ व्यवस्थाओं‍ का‍ ववश्लेर्ण‍ औि‍ तुलना‍ की‍ जाती‍ है ।‍ यह‍ िाज्यों‍ के‍ र्ीति‍ औि‍
बाहि‍की‍इकाइयों‍की‍तुलना‍र्ी‍किता‍है ।‍तुलना‍औि‍ववश्लेर्ण‍पि‍अपने‍ ध्यान‍के‍साथ,
यह‍ववलर्न्द्न‍िाजनीततक‍प्रणाललयों‍में ‍ िाजनीततक‍गततववधि, िाजनीततक‍प्रकक्रयाओं‍ के‍साथ-
साथ‍िाजनीततक‍शष्क्त‍को‍र्ी‍ध्यान‍में ‍िखता‍है ।

तुलनात्मक‍िाजनीतत‍के‍अनुशासन‍में ‍तीन‍पिं पिाएाँ‍हैं‍(कािमानी‍2011)—

1. एकल‍दे शों‍के‍अध्ययन‍की‍ओि‍उन्द्मुख

2. कायषप्रणाली

3. ववश्लेर्णात्मक

पहली‍ पिं पिा‍ एकल‍ दे शों‍ के‍ अध्ययन‍ की‍ ओि‍ उन्द्मुख‍ है ।‍ यह‍ अमेरिकी‍ तुलनावाददयों‍ के‍
प्रािं लर्क‍ झुकाव‍ का‍ अनुसिण‍ किता‍ है ‍ ष्जन्द्होंने‍ अमेरिका‍ के‍ बाहि‍ िाजनीततक‍ व्यवस्था‍ के‍
अध्ययन‍पि‍ध्यान‍केंदरत‍ककया।‍यह‍पिं पिा‍इस‍ववर्य‍पि‍एंग्लो-सैक्सन‍प्रर्ुत्व‍को‍दशाषती‍
है ‍ औि‍ववदे शों‍में‍ ‘अन्द्य’‍के‍रूप‍में ‍ अध्ययन‍किती‍है ।‍यह‍पिं पिा‍अक्सि‍तुलना‍में ‍ शालमल‍
हुए‍ त्रबना‍ अलग-थलग‍ दे शों‍ पि‍ ध्यान‍ केंदरत‍ किती‍ है ।‍ यह‍ ककसी‍ एक‍ मामले‍ का‍ ववस्तत
ृ ‍
ववविण‍दे न‍े तक‍सीलमत‍है ।‍इस‍पिं पिा‍की‍आलोचना‍के‍बावजूद, तुलनात्मक‍िाजनीतत‍के‍
क्षेत्र‍में‍प्रमुख‍योगदान‍एकल‍दे शों‍के‍ववस्तत
ृ ‍वणषनात्मक‍अध्ययन‍से‍उत्पन्द्न‍हुआ‍है ।

दस
ू िी‍ पिं पिा‍ तल
ु ना‍ के‍ ललए‍ तनयम‍ औि‍ मानक‍ स्थावपत‍ किना‍ चाहती‍ है ।‍ यह‍ उन‍
तिीकों‍पि‍ध्यान‍केंदरत‍किता‍है ‍ष्जनसे‍तल
ु नात्मक‍जानकािी, स्पष्िीकिण‍औि‍र्ववष्यवाणी‍
का‍ बेहति‍ र्ंडाि‍ बनाया‍ जा‍ सकता‍ है ।‍ इस‍ अथष‍ में , तल
ु नात्मक‍ ववधि‍ ‘‘चिों‍ के‍ बीच‍
अनर्
ु वजन्द्य‍ संबंिों‍ की‍ खोज‍ की‍ एक‍ ववधि’’‍ है ‍ (ललजफिष ‍ 1971)।‍ इस‍ प्रकाि, ‘तल
ु नात्मक‍
पद्ितत’‍ तल
ु नात्मक‍ िाजनीतत‍ के‍ र्ीति‍ उन‍ पिं पिाओं‍ में‍ से‍ एक‍ है ‍ जो‍ वणषनात्मक‍ औि‍
ववश्लेर्णात्मक‍ पिं पिाओं‍ से‍ अलग‍ है ।‍ तनयमों‍ औि‍ मानकों‍ पि‍ ध्यान‍ केंदरत‍ किके, यह‍
पिं पिा‍दे शों‍या‍दे शों‍के‍समूहों‍के‍ववश्लेर्ण‍के‍ललए‍प्रािं लर्क‍त्रबंद‍ु प्रदान‍किती‍है ।

तीसिी‍ पिं पिा‍ ववश्लेर्णात्मक‍ है ‍ औि‍ ववधि‍ के‍ साथ‍ अनुर्वजन्द्य‍ ववविण‍ का‍ संयोजन‍

4 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

प्रदान‍ किती‍ है ।‍ अधिकांश‍ कायष‍ ष्जन्द्हें ‍ आजकल‍ ‘तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ के‍ कायों’‍ के‍ रूप‍ में ‍
वगीकृत‍ ककया‍ जाता‍ है , इसी‍ पिं पिा‍ के‍ अंतगषत‍ आते‍ हैं।‍ दो‍ या‍ दो‍ से‍ अधिक‍ दे शों‍ में ‍
िाजनीततक‍ दलों, शासन‍ के‍ प्रकाि, सामाष्जक‍ आंदोलनों‍ आदद‍ का‍ तुलनात्मक‍ अध्ययन‍
सादहत्य‍ के‍ इस‍ तनकाय‍ के‍ कुछ‍ उदाहिण‍ हैं।‍ कायष‍ मुख्य‍ रूप‍ से‍ सामान्द्य‍ घिना‍ की‍
‘‘व्यवष्स्थत‍तुलना’’‍की‍ ववधि‍का‍उपयोग‍किके‍ ‘‘दे शों‍के‍ बीच‍अंति‍औि‍समानताएं’’‍औि‍
उनकी‍‘‘संस्थाओं, अलर्नेताओं‍ औि‍प्रकक्रयाओं’’‍की‍पहचान‍औि‍व्याख्या‍किने‍ से‍ संबंधित‍हैं‍
(कािामनी‍2011:‍4)।

1.3.2 तुलनात्मक राजनीतत का क्षेत्र

तल
ु नात्मक‍ िाजनीतत‍ के‍ अनश
ु ासन‍ की‍ ववलर्न्द्न‍ स्तिों‍ पि‍ आलोचना‍ की‍ गई‍ है ।‍ इसे‍ यिू ो-
केन्द्रवाद‍(Euro-centrism)‍माना‍गया‍है ‍ ष्जसका‍अथष‍ है ‍ कक‍‘‘पष्श्चमी‍मॉडल’’‍को‍ववश्‍व‍के‍
शेर्‍ र्ागों‍ की‍ तल
ु ना‍ में ‍ बेहति‍ माना‍ जाता‍ है ।‍ इस‍ प्रकाि‍ की‍ संकीणषतावाद‍ एक‍ ववशेर्‍
प्रणाली‍के‍आधिपत्य‍की‍प्रकृतत‍को‍बनाए‍िखने‍ की‍ओि‍ले‍ जाती‍है ।‍यह‍आगे‍ ‘स्व’‍बनाम‍
‘अन्द्य’‍ पव
ू ाषग्रह‍ की‍ ओि‍ ले‍ जाता‍ है ।‍ इससे‍ ‘स्व’‍ की‍ परिर्ार्ा‍ ‘दस
ू िे ’‍ से‍ हो‍ जाती‍ है ।‍ ऊपि‍
वर्णषत‍पहली‍पिं पिा‍इस‍आलोचना‍के‍अिीन‍है ।‍तीसिी‍पिं पिा‍र्ी‍इस‍यूिो-केन्द्रवाद‍(Euro-
centrism)‍पूवाषग्रह‍के‍आगे‍झुक‍जाती‍है ‍औि‍‘गैि-पष्श्चम’‍की‍तुलना‍इस‍तिह‍से‍की‍जाती‍
है ‍जो‍पष्श्चम‍को‍बेहति‍औि‍श्रेष्ठ‍के‍रूप‍में ‍प्रस्तुत‍किता‍है ।

िॉय‍ सी.‍ मैकक्रडडस‍ (1955)‍ ने‍ अपने‍ मौललक‍ तनबंि‍ में ‍ पािं परिक‍ दृष्ष्िकोण‍ की‍ कुछ‍
सीमाओं‍ की‍ पहचान‍ की।‍ सबसे‍ पहले, इसे‍ ‘अतनवायष‍ रूप‍ से‍ गैि-तुलनात्मक’‍ कहा‍ गया‍ है ,
ष्जसका‍ अथष‍ है ‍ कक‍ संदर्ष‍ त्रबंद‍ु ककसी‍ ददए‍ गए‍ दे श‍ की‍ संस्थागत‍ संिचना‍ है ।‍ यह‍ आिोप‍
लगाया‍गया‍है ‍कक‍एकल‍केस‍स्िडी‍को‍तुलनात्मक‍अध्ययन‍के‍रूप‍में ‍पारित‍ककया‍जा‍िहा‍
है ।‍ उन्द्होंने‍ आगे‍ आिोप‍ लगाया‍ कक‍ पािं परिक‍ दृष्ष्िकोण‍ अधिक‍ वणषनात्मक‍ औि‍ कम‍
ववश्लेर्णात्मक‍ है ।‍ यह‍ आलोचना‍ इस‍ तथ्य‍ से‍ उत्पन्द्न‍ है ‍ कक‍ ऐततहालसक‍ औि‍ कानूनी‍
दृष्ष्िकोणों‍ की‍ अपनी‍ सीमाएाँ‍ हैं।‍ ऐततहालसक‍ दृष्ष्िकोण‍ कुछ‍ संस्थानों‍ के‍ ‘‘उत्पवत्त‍ औि‍
ववकास’’‍ के‍ अध्ययन‍ पि‍ केंदरत‍ है ‍ (मैकक्रडडस‍ 1955‍ :‍ 17)।‍ ऐसा‍ किने‍ में , यह‍ ककसी‍
ववश्लेर्णात्मक‍योजना‍को‍ववकलसत‍किने‍की‍ददशा‍में ‍कोई‍प्रयास‍नहीं‍किता‍है ।‍इस‍प्रकाि,
ककसी‍दे श‍के‍र्ीति‍घिनाओं‍के‍कालक्रम‍औि‍उस‍दे श‍की‍चुनी‍हुई‍संस्था‍पि‍ध्यान‍केंदरत‍
िहता‍ है ।‍ कानूनी‍ दृष्ष्िकोण‍ मुख्य‍ रूप‍ से‍ सिकाि‍ की‍ ववलर्न्द्न‍ शाखाओं‍ की‍ शष्क्तयों‍ के‍

5 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

अध्ययन‍ पि‍ केंदरत‍ है ।‍ यह‍ उन‍ कािकों‍ का‍ ववश्लेर्ण‍ किने‍ की‍ कोलशश‍ नहीं‍ किता‍ है ‍ जो‍
ववलशष्ि‍तिीकों‍से‍ शष्क्त‍के‍ववशेर्‍रूपों‍को‍आकाि‍दे ते‍ हैं।‍इस‍प्रकाि, वे‍ ककसी‍र्ी‍‘‘संदर्ष‍
का‍ सामान्द्य‍ ढााँचा’’‍ प्रदान‍ किने‍ में‍ ववफल‍ िहते‍ हैं‍ ष्जसका‍ उपयोग‍ वास्तव‍ में ‍ तुलनात्मक‍
अथष‍में‍ककया‍जा‍सकता‍है ‍(मैकक्रडडस‍1955:‍18)।

दस
ू िा, मैकक्रडडस‍ पािं परिक‍ दृष्ष्िकोण‍ को‍ ‘अतनवायष‍ रूप‍ से‍ संकीणष’‍ मानता‍ है ।‍ यह‍
आलोचना‍पष्श्चमी‍यिू ोपीय‍दे शों‍के‍संस्थानों‍पि‍अनुधचत‍ध्यान‍केंदरत‍किने‍ से‍ संबधं ित‍है ।‍
इस‍ तिह‍ के‍ फोकस‍ ने‍ तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ के‍ क्षेत्र‍ को‍ अधिकतम‍ सीलमत‍ कि‍ ददया‍ औि‍
अन्द्य‍ शासन‍ प्रकािों‍ को‍ कम‍ महत्त्‍वपूण‍ष बना‍ ददया।‍ तीसिा, मैकक्रडडस‍ ने‍ दृष्ष्िकोण‍ को‍
‘अतनवायष‍ रूप‍से‍ ष्स्थि’‍ कहा।‍इसका‍तात्पयष‍ यह‍था‍कक‍तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ ने‍ परिवतषन‍
औि‍ ववकास‍ की‍ ओि‍ ले‍ जाने‍ वाले‍ लगाताि‍ परिवततषत‍ कािकों‍ की‍ अनदे खी‍ की।‍ अंत‍ में ,
उन्द्होंने‍ इस‍दृष्ष्िकोण‍को‍‘अतनवायष‍ रूप‍से‍ मोनोग्राकफक’‍कहा, ष्जसका‍अथष‍ है ‍ कक‍अध्ययन‍
ककसी‍व्यवस्था‍के‍िाजनीततक‍संस्थानों‍पि‍केंदरत‍िहा।‍इसका‍अथष‍ था‍कक‍तुलनावाददयों‍का‍
ध्यान‍व्यष्क्तगत‍केस‍स्िडी‍पि‍बना‍िहा।‍यह‍समालोचना‍उस‍समालोचना‍के‍किीब‍है ‍ जो‍
तुलनात्मक‍िाजनीतत‍को‍वणषनात्मक‍औि‍व्यवष्स्थत‍तनरूपण‍की‍कमी‍के‍रूप‍में ‍मानती‍है ।

नीिा‍चंडोक‍(1996)‍मैकक्रडडस‍की‍आलोचना‍पि‍आिारित‍है ‍ औि‍तुलनात्मक‍िाजनीतत‍
के‍संकि‍का‍पता‍लगाती‍है ।‍सबसे‍ पहले, लशष्य‍को‍र्व्य‍लसद्िांत‍पि‍एक‍सामान्द्य‍हमले‍
का‍सामना‍किना‍पड़ा।‍प्रासंधगक‍ववलशष्िताओं‍ से‍ ववर्यों‍को‍हिाने‍ के‍ललए‍इस‍पि‍सवाल‍
उठाया‍गया‍था।‍यह‍आगे‍ इस‍पि‍सामान्द्यीकृत‍तनयलमतताओं‍ का‍आिोप‍लगाया‍गया‍था।‍
अनश
ु ासन‍को‍न्द्यन
ू तावादी‍माना‍जाता‍था।‍यह‍तल
ु ना‍के‍ललए‍सिल‍चि‍की‍खोज‍कि‍िहा‍
था।‍इसने‍ िाजनीतत‍की‍जदिल‍परिघिना‍को‍‘कम’‍किके‍सिल‍चिों‍में ‍ बदल‍ददया, ष्जनकी‍
तल
ु ना‍आसानी‍से‍ की‍जा‍सकती‍है ।‍संकि‍का‍दस
ू िा‍संकेत‍अनश
ु ासन‍की‍जातीय‍प्रकृतत‍से‍
उत्पन्द्न‍ हुआ‍ है ‍ औि‍ ‘अन्द्य’‍ अन्द्य‍ समाजों, अन्द्य‍ शासन‍ के‍ प्रकािों, अन्द्य‍ संस्थानों‍ के‍
अध्ययन‍पि‍ध्यान‍केंदरत‍किता‍है ।‍तल
ु नात्मक‍िाजनीतत‍के‍संकि‍का‍तीसिा‍कािण‍स्वयं‍
िाष्र-िाज्य‍ का‍ संकि‍ है ।‍ तुलना‍ की‍ सामान्द्य‍ श्रेणी, िाज्य‍ को‍ बाहिी‍ ताकतों‍ के‍ साथ-साथ‍
आंतरिक‍स्वायत्तता‍आंदोलनों‍के‍कािण‍चुनौततयों‍का‍सामना‍किना‍पड़ा।

तुलनात्मक‍ववश्लेर्ण‍द्वािा‍की‍जाने‍ वाली‍समस्याओं‍का‍एक‍समूह‍पद्िततगत‍आयाम‍
से‍ संबंधित‍ है ।‍ ‘‘चयन‍ पूवाषग्रह’’‍ (लैंडमैन‍ 2008)‍ होने‍ के‍ ललए‍ ककसी‍ र्ी‍ केस‍ स्िडी‍ की‍

6 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

अक्सि‍ आलोचना‍ होती‍ है ।‍ तुलनात्मक‍ अध्ययन‍ किने‍ के‍ ललए‍ दे शों‍ का‍ चुनाव‍
तुलनात्मकवादी‍ के‍ पूवाषग्रह‍ पि‍ आिारित‍ हो‍ सकता‍ है ।‍ एक‍ अन्द्य‍ समस्या‍ ‘‘व्यवहाि‍
दृष्ष्िकोण’’‍ पि‍ बल‍ दे ने‍ से‍ संबंधित‍ है ।‍ सामान्द्य‍ रूप‍ से‍ सामाष्जक‍ ववज्ञान‍ में ‍ व्यवहाि‍
दृष्ष्िकोण‍ एवं‍ ववशेर्‍ रूप‍ से‍ तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ में ‍ वैज्ञातनक‍ तिीकों‍ का‍ उपयोग‍ किके‍
सामाष्जक‍घिना‍की‍व्याख्या‍किने‍ की‍प्रववृ त्त‍से‍ संबंधित‍है ।‍व्यवहािवाददयों‍द्वािा‍यह‍दावा‍
ककया‍ गया‍ था‍ कक‍ सामाष्जक‍ वास्तववकता‍ को‍ दे खा‍ जा‍ सकता‍ है , परिमार्णत‍ ककया‍ जा‍
सकता‍है ‍ औि‍सामान्द्यीकृत‍ककया‍जा‍सकता‍है ।‍व्यवहािवादी‍सामाष्जक‍वास्तववकताओं‍ को‍
समझाने‍ के‍ ललए‍ नमूनाकिण, सवेक्षण, साक्षात्काि‍ एवं‍ सांष्ख्यकीय‍ ववश्लेर्ण‍ के‍ प्रकािों‍ का‍
उपयोग‍किते‍हैं।

इन‍ समस्याओं‍ का‍ उदाहिण‍ गेत्रियल‍ आमंड‍ एवं‍ लसडनी‍ वबाष, द‍ लसववक‍ कल्चि‍ :‍
पॉललदिकल‍एदिट्यड
ू ‍एंड‍डेमोक्रेसी‍इन‍फाइव‍नेशंस‍(1963)‍द्वािा‍मौललक‍कायष‍ के‍ववरुद्ि‍
की‍गई‍आलोचना‍है ।‍इस‍अध्ययन‍को‍जातीय‍केष्न्द्रत‍कहा‍गया‍क्योंकक‍यह‍सबसे‍ ष्स्थि‍
रूप‍ के‍ में ‍ सहमतत‍ वाले‍ लोकतंत्र‍ का‍ समथषन‍ किता‍ था।‍ इसमें ‍ आगे‍ बताया‍ गया‍ है ‍ कक‍
मैष्क्सको‍की‍िाजनीततक‍संस्कृतत‍को‍जानबूझकि‍संयुक्त‍िाज्य‍की‍िाजनीततक‍संस्कृतत‍के‍
ववरुद्ि‍खड़ा‍ककया‍गया‍था‍ताकक‍यह‍सात्रबत‍हो‍सके‍कक‍उदाि‍लोकतंत्र‍(अमेरिका‍की‍तिह)‍
एक-दलीय‍प्रणाली‍(जैसे‍ उन‍वर्ों‍के‍दौिान‍मैष्क्सको)‍से‍ बेहति‍हैं।‍अध्ययन‍को‍सामाष्जक-
िाजनीततक‍ संबंिों‍ की‍ गततशील‍ प्रकृतत‍ औि‍ प्रासंधगक‍ ववलशष्िताओं‍ की‍ अनदे खी‍ किते‍ हुए,
दे शों‍ को‍ वगीकृत‍ किने‍ के‍ ललए‍ िाजनीततक‍ झक
ु ावों‍ को‍ मापने‍ के‍ ललए‍ व्यवहािवाददयों‍ का‍
प्रयास‍र्ी‍कहा‍जाता‍था।

1.4 तुलना क्यों करें ?

दो‍या‍दो‍से‍अधिक‍चीजों‍की‍तुलना‍किना‍मानव‍व्यवहाि‍का‍एक‍स्वार्ाववक‍गुण‍है ।‍चाहे ‍
स्कूल‍के‍बाद‍पढ़ाई‍के‍ललए‍ववर्य‍चुनना‍हो, कपड़े, फोन‍या‍अन्द्य‍कोई‍चीज‍खिीदना‍हो,
तुलना‍ में‍ लगाताि‍ शालमल‍ होते‍ हैं।‍ िाजनीतत‍ एक‍ औि‍ र्ी‍ अधिक‍ महत्त्‍वपूण‍ष औि‍ लगाताि‍
ववकलसत‍होने‍वाला‍क्षेत्र‍है ‍ष्जसमें ‍ववलर्न्द्न‍घिनाओं‍को‍समान‍किने, उनमें ‍अंति‍किने‍औि‍
उनका‍आकलन‍किने‍के‍ललए‍तुलना‍की‍आवश्यकता‍होती‍है ।

िॉड‍ लैंडमैन‍ (2008)‍ ने‍ तुलना‍ के‍ चाि‍ कािणों‍ की‍ पहचान‍ की‍ है —प्रासंधगक‍ ववविण,
वगीकिण, परिकल्पना-पिीक्षण‍औि‍र्ववष्यवाणी।
7 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

(1) प्रासंगिक वववरण

यह‍ िाजनीततक‍ वैज्ञातनकों‍ को‍ यह‍ जानने‍ की‍ अनुमतत‍ दे ता‍ है ‍ कक‍ दे श‍ क्या‍ है ‍ (लैंडमैन‍
2008)।‍यह‍तुलनात्मक‍िाजनीतत‍का‍प्राथलमक‍उद्दे श्य‍िहा‍है ‍ ष्जसमें ‍ ‘ककसी‍ववशेर्‍दे श‍या‍
दे शों‍ के‍ समूह‍ की‍ िाजनीततक‍ घिनाओं‍ औि‍ घिनाओं‍ का‍ वणषन’‍ (लैंडमैन‍ 2008:‍ 5)‍ पि‍
ध्यान‍केंदरत‍ककया‍गया‍है ।‍यह‍महत्त्‍
वपूण‍ष है ‍ क्योंकक‍यह‍एक‍बाहिी‍पयषवेक्षक‍को‍एक‍ऐसी‍
प्रणाली‍की‍समझ‍प्रदान‍किता‍है ‍जो‍उसे‍पूिी‍तिह‍से‍ज्ञात‍नहीं‍है ।‍यह‍पहलू‍पहली‍पिं पिा‍
के‍ तनकि‍ है ‍ औि‍ तुलनावाददयों‍ को‍ एक‍ िाजनीततक‍ व्यवस्था‍ के‍ बािे ‍ में ‍ ववस्तत
ृ ‍ जानकािी‍
प्रदान‍किता‍है ।‍जबकक‍कुछ‍आलोचकों‍का‍कहना‍है ‍ कक‍एकल-दे श‍के‍अध्ययन‍को‍वास्तव‍
में‍ तुलनात्मक‍ नहीं‍ माना‍ जा‍ सकता‍ है , ककसी‍ ववशेर्‍ दे श‍ या‍ दे शों‍ के‍ समूह‍ का‍ अध्ययन‍
किने‍ के‍लार्‍हैं।‍उदाहिण‍के‍ललए, यूनाइिे ड‍ककंगडम‍की‍िाजनीततक‍व्यवस्था‍का‍ववस्तत
ृ ‍
ववश्लेर्ण‍हमें ‍ संसदीय‍प्रणाली‍के‍लार्ों‍औि‍सीमाओं‍ के‍बािे ‍ में ‍ जानकािी‍प्रदान‍किता‍है ।‍
इससे‍ हमें‍ अन्द्य‍मामलों‍का‍आकलन‍किने‍ में ‍ मदद‍लमल‍सकती‍है ‍ जहााँ‍ समान‍या‍ववपिीत‍
व्यवस्था‍मौजूद‍हैं।

(2) विीकरण

इसका‍तात्पयष‍ सूचनाओं‍ को‍सिल‍औि‍व्यवष्स्थत‍किना‍है ‍ ताकक‍इसे‍ आसानी‍से‍ दे खा‍औि‍


वगीकृत‍ककया‍जा‍सके‍(लैंडमैन‍2008:‍5-6)।‍वगीकिण‍उन‍श्रेर्णयों‍के‍समूहन‍की‍अनुमतत‍
दे ता‍है ‍ जो‍समान‍नहीं‍ हैं,‍लेककन‍उनमें ‍ कुछ‍स्ति‍की‍समानता‍है ।‍उदाहिण‍के‍ललए, आइए‍
हम‍ दो‍ दे शों‍ की‍ कल्पना‍ किें ‍ जहााँ‍ एक‍ में ‍ संसदीय‍ प्रणाली‍ है ,‍ जबकक‍ दस
ू िे ‍ में‍ िाष्रपतत‍
प्रणाली‍ है ।‍ दोनों‍ के‍ बहुत‍ अलग‍ तनयम‍ हैं।‍ लेककन‍ दोनों‍ को‍ लोकतंत्र‍ के‍ रूप‍ में‍ ‘वगीकृत’‍
ककया‍ जा‍ सकता‍ है ।‍ इस‍ प्रकाि, वगीकिण‍ के‍ माध्यम‍ से‍ िाजनीतत‍ की‍ दतु नया‍ को‍ कम‍
जदिल‍बना‍ददया‍गया‍है‍(लैंडमैन‍2008:‍4)।

सबसे‍ पहले‍ ज्ञात‍ तल


ु नात्मकवाददयों‍ में ‍ से‍ एक, अिस्त‍ू (384-322‍ ईसा‍ पव
ू )ष ‍ ने‍ 158‍
शहि-िाज्यों‍को‍छह‍श्रेर्णयों‍में‍वगीकृत‍किते‍हुए‍एक‍ही‍तकष‍का‍इस्तेमाल‍ककया।‍िाजशाही,
अलर्जात‍वगष, िाजनीतत, अत्याचाि, कुलीनतंत्र‍औि‍लोकतंत्र।‍‘शासन‍किने‍ वालों‍की‍संख्या’‍
औि‍अच्छे ‍या‍भ्रष्ि‍रूपों‍के‍आिाि‍पि, अिस्तू‍ के‍वगीकिण‍को‍तनमनललर्खत‍ताललका‍के‍
माध्यम‍से‍संक्षेवपत‍ककया‍जा‍सकता‍है ’—

8 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

शासन करने वाले

एक व्यक्क्त कुछ व्यक्क्तयों का शासन बहु-संख्यक लोिों का शासन


शासन का शासन
के प्रकार अच्छा िाजतंत्र कुलीनतंत्र बहुतंत्र‍या‍संवैिातनक‍तंत्र
भ्रष्ट तनिं कुशतंत्र वगषतंत्र‍अथवा‍अल्पतंत्र लोकतंत्र‍अथव‍प्रजातंत्र

Source: Todd Landman (2008), Issues and Methods in Comparative Politics: An


Introduction, New York: Routledge.

इसी‍तिह, तुलनात्मक‍सामाष्जक‍क्रांतत‍पि‍सबसे‍प्रमुख‍कायों‍में ‍से‍एक, थेडा‍स्कोकपोल‍के‍


िाज्य‍ औि‍ सामाष्जक‍ क्रांतत‍ :‍ फ्ांस, रूस‍ औि‍ चीन‍ का‍ एक‍ तुलनात्मक‍ ववश्लेर्ण‍ (1979)‍
िाज्य‍संिचनाओं, अंतिाषष्रीय‍शष्क्तयों‍औि‍वगष‍संबंिों‍की‍र्ूलमका‍का‍एक‍वगीकृत‍ववश्लेर्ण‍
प्रदान‍किता‍है ।‍वह‍इसका‍उपयोग‍फ्ांसीसी‍क्रांतत, रूसी‍क्रांतत‍औि‍चीनी‍क्रांतत‍की‍व्याख्या‍
औि‍ववश्लेर्ण‍किने‍के‍ललए‍किती‍है ।

(3) पररकल्पना-परीक्षण

व्यवहाि‍ज्ञान‍का‍वणषन‍एवं‍ वगीकिण‍किने‍ के‍ बाद, अगला‍ताककषक‍कदम‍उन‍कािकों‍को‍


समझना‍ है ,‍ जो‍ बताते‍ हैं‍ कक‍ क्या‍ वर्णषत‍ औि‍ वगीकृत‍ ककया‍ गया‍ है ।‍ इस‍ पहल‍ू को‍
‘परिकल्पना‍पिीक्षण’‍कहा‍गया‍है ‍ औि‍इसका‍तात्पयष‍ कािकों‍की‍खोज‍से‍ है ,‍ताकक‍बेहति‍
लसद्िांतों‍ का‍ तनमाषण‍ ककया‍ जा‍ सके।‍ यह‍ पहलू‍ तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ की‍ दस
ू िी‍ पिं पिा‍ के‍
तनकि‍है ‍ जो‍ववश्लेर्ण‍पि‍केंदरत‍है ‍ औि‍चि‍के‍बीच‍संबंि‍स्थावपत‍किने‍ का‍प्रयास‍किती‍
है ।

तुलनात्मक‍अनुसंिान‍सामाष्जक‍ववज्ञान‍द्वािा‍मान्द्य‍चिों‍के‍बीच‍ववश्लेर्णात्मक‍संबंिों‍
पि‍ ध्यान‍ केंदरत‍ है , एक‍ ऐसा‍ फोकस‍ जो‍ उस‍ संदर्ष‍ में ‍ अंति‍ से‍ संशोधित‍ होता‍ है ‍ ष्जसमें ‍
हम‍उन‍चिों‍का‍तनिीक्षण‍औि‍माप‍किते‍हैं।‍अिें ड‍ललजफिष ‍का‍दावा‍है ‍कक‍तुलना‍‘‘चिों‍के‍
बीच‍ परिकष्ल्पत‍ अनुर्वजन्द्य‍ संबंिों’’‍ (ललजफिष ‍ 1971)‍ के‍ पिीक्षण‍ में ‍ मदद‍ किती‍ है ।‍
तल
ु नात्मक‍ ववश्लेर्ण‍ से‍ अधिक‍ जानकािी‍ का‍ संचय‍ होता‍ है ,‍ जो‍ एक‍ बेहति‍ औि‍ अधिक‍
संपण
ू ‍ष व्याख्यात्मक‍ लसद्िांत‍ होने‍ में‍ मदद‍ किता‍ है ।‍ इसललए, दे शों‍ की‍ तल
ु ना‍ किते‍ समय‍
औि‍ परिकल्पना‍ का‍ पिीक्षण‍ किने‍ से‍ जानकािी‍ के‍ एक‍ बड़े‍ पल
ू ‍ के‍ संचय‍ की‍ अनम
ु तत‍
लमलती‍है ‍औि‍दतु नया‍के‍बािे ‍में ‍लोगों‍के‍ज्ञान‍में ‍सि
ु ाि‍होता‍है ।‍

9 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

(4) िववष्यवाणी

दे शों‍की‍तुलना‍औि‍इस‍तिह‍की‍तुलना‍के‍आिाि‍पि‍सामान्द्यीकिण‍संर्ाववत‍परिणामों‍की‍
‘पूवाषनुमान’‍किने‍ की‍अनुमतत‍दे ता‍है ।‍ अन्द्य‍दे शों‍ में ‍ संर्ाववत‍परिणाम‍जो‍मूल‍तुलना‍ में‍
सष्ममललत‍ नहीं‍ हैं, एक‍ मजबूत‍ लसद्िांत‍ के‍ आिाि‍ पि‍ ककए‍ जा‍ सकते‍ हैं।‍ साथ‍ ही, कुछ‍
कािकों‍औि‍शतों‍के‍आिाि‍पि‍र्ववष्य‍में ‍ परिणामों‍के‍बािे ‍ में ‍ र्ववष्यवाणी‍की‍जा‍सकती‍
है ।‍पव
ू ाषनम
ु ेयता‍एक‍अच्छे ‍लसद्िांत‍का‍एक‍उत्कृष्ि‍गण
ु ‍है ‍औि‍यह‍दावा‍ककया‍जाता‍है ‍कक‍
एक‍‘उत्तम‍लसद्िांत’‍बेहति‍सिीकता‍के‍साथ‍परिणामों‍की‍र्ववष्यवाणी‍किने‍में ‍सक्षम‍है ।

इन‍चाि‍कािणों‍के‍अलावा, तुलना‍हमें ‍कम‍ज्ञात‍िाजनीततक‍व्यवस्थाओं‍को‍समझने‍के‍


ललए‍परिप्रेक्ष्य‍प्रदान‍किती‍है ।‍यह‍ववलर्न्द्न‍सामाष्जक-िाजनीततक‍समायोजन‍में ‍ परिणाम‍में ‍
अंति‍ को‍ समझने‍ में ‍ र्ी‍ मदद‍ किता‍ है ।‍ यह‍ यह‍ समझने‍ में ‍ र्ी‍ मदद‍ किता‍ है ‍ कक‍ दे श‍
ष्जस‍तिह‍से‍ववकलसत‍होते‍हैं‍उनका‍ववकास‍क्यों‍होता‍है ‍औि‍वे‍ष्जस‍तिह‍से‍शालसत‍होते‍
हैं, उन‍पि‍क्यों‍शासन‍ककया‍जाता‍है ।

हे ग, है िोप‍औि‍मैककॉलिक‍(2016)‍तुलनात्मक‍िाजनीतत‍के‍दो‍प्रमुख‍उद्दे श्यों‍की‍पहचान‍
किते‍हैं—

(1) यह‍िाजनीततक‍ववश्‍व‍के‍बािे ‍में ‍ककसी‍की‍समझ‍को‍ववस्तत


ृ ‍किता‍है

(2) यह‍िाजनीततक‍परिणामों‍की‍र्ववष्यवाणी‍किने‍में ‍मदद‍किता‍है ।

इसी‍तजष‍पि‍तकष‍दे ते‍हुए‍न्यूटन‍एवं‍वैन डेथ‍(2010)‍तुलनात्मक‍िाजनीतत‍के‍अध्ययन‍के‍


ललए‍तीन‍महत्त्‍वपण
ू ‍ष कािण‍प्रदान‍किते‍हैं—

(1) दस
ू िों‍दे शों‍के‍ज्ञान‍के‍त्रबना‍कोई‍अपने‍दे श‍को‍नहीं‍समझ‍सकता‍है ।

(2) अन्द्य‍ दे शों‍ की‍ पष्ृ ठर्लू म, संस्थानों‍ औि‍ इततहास‍ को‍ जाने‍ त्रबना‍ कोई‍ अन्द्य‍ दे शों‍ को‍
नहीं‍समझ‍सकता‍है ।

(3) तुलनात्मक‍ पद्ितत‍ के‍ त्रबना‍ कोई‍ र्ी‍ सिकाि‍ औि‍ िाजनीतत‍ के‍ बािे ‍ में ‍ वैि‍
सामान्द्यीकिण‍नहीं‍कि‍सकता‍है ।

इस‍ प्रकाि, यह‍ तकष‍ ददया‍ जा‍ सकता‍ है ‍ कक‍ वणषन‍ किना, ववश्लेर्ण‍ किना, र्ववष्यवाणी‍
किना‍औि‍सामान्द्यीकिण‍किना‍तल
ु नात्मक‍िाजनीतत‍के‍चाि‍प्रमुख‍गुण‍हैं‍ जो‍इसे‍ व्यापक‍
िाजनीततक‍ववश्लेर्ण‍का‍एक‍महत्त्‍वपूण‍ष पहलू‍बनाते‍हैं।
10 | पष्ृ ‍

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

1.5 तुलनात्मक ववगधयााँ

कोपस्टीन एवं भलचबैक (2005)‍ ने‍ तकष‍ ददया‍ है ‍ कक‍ ‘रुधचयों, पहचानों‍ औि‍ संस्थानों’‍ पि‍
ध्यान‍केंदरत‍किना‍तीन‍तिीके‍हैं‍जो‍तुलना‍किने‍के‍ववलर्न्द्न‍मागष‍प्रदान‍किते‍हैं।‍इन‍चिों‍
का‍प्रर्ाव‍इस‍बात‍पि‍पड़ता‍है ‍कक‍िाजनीततक‍व्यवस्था‍कैसे‍संचाललत‍होती‍है ।

(ए) हहतों पर ध्यान केक्न्ित

कुछ‍ तुलनावादी‍ दहतों‍ पि‍ ध्यान‍ केंदरत‍ किते‍ हैं।‍ उनके‍ ललए‍ लोगों‍ का‍ र्ौततक‍ दहत‍ सबसे‍
ज्यादा‍मायने‍ िखता‍है ।‍लोग‍तकषसंगत‍गणनाओं‍ के‍आिाि‍पि‍तनणषय‍लेते‍ हैं‍ औि‍अपनी‍
रुधच‍ को‍ अधिकतम‍ किने‍ के‍ ललए‍ िाजनीततक‍ रूप‍ से‍ संगदठत‍ होते‍ हैं।‍ वे‍ एक‍ ऐसे‍ शासन‍
प्रकाि‍ का‍ समथषन‍ किते‍ हैं‍ जो‍ ‘उनके‍ जीवन‍ की‍ संर्ावनाओं‍ को‍ अधिकतम‍ किता‍ है ’‍
(कोपस्टीन और भलचबैक 2005)।‍उदाहिण‍के‍ललए, लोगों‍का‍एक‍समूह‍एक‍शासन‍प्रकाि‍
के‍र्खलाफ‍संगदठत‍हो‍सकता‍है ‍ या‍पूिी‍तिह‍से‍ तकषसंगत‍गणनाओं‍ के‍आिाि‍पि‍इसका‍
समथषन‍ कि‍ सकता‍ है ।‍ गणना‍ दहत‍ आिारित‍ हैं‍ औि‍ इसललए, यह‍ संर्व‍ हो‍ सकता‍ है ‍ कक‍
ककसी‍ ववशेर्‍ समाज‍ में ‍ एक‍ ववशेर्‍ शासन‍ प्रकाि‍ का‍ समथषन‍ ककया‍ जाता‍ है ‍ लेककन‍ इसका‍
वविोि‍ककसी‍अन्द्य‍सामाष्जक‍व्यवस्था‍में ‍ ककया‍जा‍सकता‍है ।‍हालााँकक, दहतों‍पि‍अनधु चत‍
ध्यान‍दे ना‍भ्रामक‍हो‍सकता‍है ।‍अगले‍दो‍तिीके‍दहतों‍की‍प्रासंधगकता‍को‍कम‍किते‍हैं‍औि‍
पहचान‍या‍संस्थानों‍द्वािा‍दहतों‍को‍आकाि‍दे न‍े पि‍ववचाि‍किते‍हैं।

(बी) पहचान पर ध्यान केक्न्ित

कुछ‍ तल
ु नात्मकवादी‍ पहचान‍ को‍ सबसे‍ महत्त्‍वपण
ू ‍ष कािक‍ मानते‍ हैं।‍ उनका‍ तकष‍ है ‍ कक‍ कोई‍
वस्ततु नष्ठ‍दहत‍नहीं‍हैं‍औि‍ककसी‍की‍रुधच‍उसकी‍पहचान‍से‍परिर्ावर्त‍होती‍है ।‍पहचान‍के‍
दो‍ सबसे‍ सामान्द्य‍ रूप‍ हैं‍ िमष‍ औि‍ जातीयता‍ (कोपस्टीन और भलचबैक 2005)।‍ लोग‍ या‍
लोगों‍के‍समूह‍अपनी‍पहचान‍के‍आिाि‍पि‍अपने‍ दहतों‍को‍परिर्ावर्त‍किते‍ हैं।‍एक‍सिल‍
उदाहिण‍ एक‍ िालमषक‍ शासन‍ के‍ ललए‍ िालमषक‍ समथषन‍ हो‍ सकता‍ है ।‍ एक‍ अन्द्य‍ उदाहिण‍
र्ाित‍ में‍ जातत‍ आिारित‍ या‍ िमष‍ आिारित‍ दलों‍ का‍ उदय‍ हो‍ सकता‍ है ‍ जहााँ‍ ककसी‍ ववशेर्‍
िाजनीततक‍ दल‍ को‍ समथषन‍ प्राथलमक‍ रूप‍ से‍ पहचान‍ पि‍ आिारित‍ होता‍ है ।‍ जबकक‍ कुछ‍
पहचान‍ जन्द्म‍ औि‍ स्थान‍ पि‍ आिारित‍ होती‍ हैं, आितु नक‍ समाज‍ र्ी‍ नई‍ पहचान‍ उत्पन्द्न‍
किते‍हैं।‍उदाहिण‍के‍ललए, ललंग‍औि‍पयाषविण‍जैसे‍ववर्यों‍के‍आयोजन‍से‍नई‍पहचानों‍का‍
तनमाषण‍होता‍है ।‍ हाल‍ के‍अमेरिकी‍चुनावों‍(2020)‍ने‍ ददखाया‍कक‍कैसे‍ ऐततहालसक‍पहचान‍

11 | पष्ृ ‍ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

औि‍नई‍पहचान‍लोगों‍की‍पसंद‍को‍पिस्पि‍कक्रया‍औि‍आकाि‍दे ती‍हैं।

(सी) संस्थानों पर ध्यान केक्न्ित

कफि‍ र्ी‍ तुलनावाददयों‍ के‍ एक‍ अन्द्य‍ समूह‍ का‍ तकष‍ है ‍ कक‍ न‍ तो‍ र्ौततक‍ दहत‍ औि‍ न‍ ही‍
पहचान‍यह‍तनिाषरित‍किती‍है ‍ कक‍ककसी‍दे श‍की‍िाजनीतत‍कैसे‍ काम‍किती‍है ।‍उनके‍ललए,
संस्थानों‍में‍ तनदहत‍तनयम‍औि‍प्रकक्रयाएाँ‍सत्ता‍के‍संचालन‍औि‍दे शों‍के‍काम‍किने‍ के‍तिीके‍
को‍तनिाषरित‍किती‍हैं‍ (कोपस्टीन और भलचबैक 2005)।‍संस्थाएाँ‍ प्रत्यक्ष‍या‍अप्रत्यक्ष‍रूप‍से‍
ककसी‍ दे श‍ के‍ कायषकलाप‍ को‍ आकाि‍ दे ती‍ हैं।‍ ववशेर्‍ रूप‍ से, लोकतंत्र‍ में ‍ संस्थानों‍ का‍ एक‍
ववववि‍ एवं‍ जदिल‍ समूह‍ होता‍ है ‍ जो‍ परिर्ावर्त‍ किता‍ है ‍ कक‍ कोई‍ दे श‍ कैसे‍ आकाि‍ लेगा।‍
उदाहिण‍के‍ललए, संयुक्त‍िाज्य‍अमेरिका‍की‍संस्थागत‍चुनावी‍प्रणाली‍‘फस्िष -पास्ि-द-पोस्ि’‍
प्रणाली‍पि‍आिारित‍है ।‍दस
ू िी‍ओि, जमषनी‍में ‍ ‘आनुपाततक‍प्रतततनधित्व’‍चुनावी‍प्रणाली‍है ।‍
दोनों‍ दे श‍ लोकतांत्रत्रक‍ हैं‍ लेककन‍ दोनों‍ लोकतंत्रों‍ का‍ िाजनीततक‍ जीवन‍ औि‍ िाजनीततक‍
संस्कृतत‍ अलग-अलग‍ है , औि‍ संस्थानों‍ में ‍ अंति‍ में ‍ इस‍ लर्न्द्नता‍ का‍ एक‍ प्रमुख‍ कािक‍ है ।‍
तुलनात्मकवादी‍जो‍संस्थानों‍पि‍ध्यान‍केंदरत‍किते‍ हैं, संस्थानों‍में ‍ लर्न्द्नता‍के‍आिाि‍पि‍
परिणामों‍ में ‍ लर्न्द्नता‍ की‍ व्याख्या‍ किने‍ का‍ प्रयास‍ किते‍ हैं।‍ ‘कायाषत्मक‍ तुल्यता’‍ का‍ पहलू‍
यहााँ‍ प्रासंधगक‍ है ‍ क्योंकक‍ एक‍ ही‍ संस्थाएाँ‍ अलग-अलग‍ कायष‍ कि‍ सकती‍ हैं‍ औि‍ ववलर्न्द्न‍
संस्थाएाँ‍समान‍कायष‍कि‍सकती‍हैं।

तुलनावाददयों‍ने‍ ऊपि‍वर्णषत‍तीन‍तिीकों‍में ‍ से‍ एक‍या‍लमश्रण‍पि‍ध्यान‍केंदरत‍किके‍


अपने‍कायष‍में ‍आगे‍बढ़े ‍हैं।‍जबकक‍‘प्रकािों’‍में ‍से‍एक‍की‍सीमा‍हो‍सकती‍है , एक‍से‍अधिक‍
का‍लमश्रण‍ववर्यों‍की‍व्यापक‍समझ‍प्रदान‍किता‍है ।

िाजनीततक‍दाशषतनक‍जेम्स स्टुअटट भमल‍ने‍‘‘कैसे‍तल


ु ना‍किें ’’‍प्रश्न‍का‍उत्ति‍दे ने‍का‍एक‍
अलग‍ तिीका‍ ददया‍ है ।‍ वह‍ तल
ु ना‍ किने‍ के‍ ललए‍ पााँच‍ िणनीततयााँ‍ प्रदान‍ किता‍ है ‍ (किन
2011)—

(1) समझौते की ववगध :‍ककसी‍घिना‍(प्रर्ाव)‍के‍दो‍या‍दो‍से‍ अधिक‍उदाहिणों‍की‍तल


ु ना‍
यह‍दे खने‍के‍ललए‍की‍जाती‍है ‍कक‍उनमें‍क्या‍समानता‍है ।‍उस‍समानता‍को‍कािण‍के‍
रूप‍में ‍पहचाना‍जाता‍है ।

(2) अंतर की ववगध‍:‍एक‍घिना‍(प्रर्ाव)‍के‍दो‍या‍दो‍से‍ अधिक‍उदाहिणों‍की‍तुलना‍यह‍


दे खने‍ के‍ ललए‍ की‍ जाती‍ है ‍ कक‍ उन‍ सर्ी‍ में ‍ क्या‍ समानता‍ नहीं‍ है ।‍ यदद‍ उनमें‍ एक‍

12 | पष्ृ ‍

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

चीज‍को‍छोड़कि‍सब‍कुछ‍समान‍है , तो‍उस‍एक‍चीज‍को‍कािण‍के‍रूप‍में ‍ पहचाना‍


जाता‍है ।

(3) समझौते और अंतर की संयुक्त ववगध :‍समझौते‍औि‍अंति‍के‍तिीकों‍का‍एक‍संयोजन,


संयुक्त‍ववधि‍एक‍घिना‍के‍दो‍या‍दो‍से‍ अधिक‍उदाहिणों‍के‍बीच‍एक‍समानता‍की‍
तलाश‍किती‍है , औि‍संयुक्त‍ववधि‍उस‍संर्ाववत‍कािण‍की‍सामान्द्य‍अनुपष्स्थतत‍की‍
तलाश‍किती‍है ।

(4) अवशेषों की ववगध :‍ घिनाओं‍ के‍ एक‍ जदिल‍ समूह‍ के‍ सर्ी‍ ज्ञात‍ कािणों‍ को‍ घिाया‍
जाता‍है ।‍जो‍बचता‍है ‍उसे‍कािण‍कहा‍जाता‍है ।

(5) सहवती ववववधताओं की ववगध :‍अलग-अलग‍घिनाओं‍के‍बीच‍सह-संबंि‍की‍तलाश‍की‍


जाती‍है , अथाषत ्‍वस्तुओ,ं घिनाओं‍या‍तथ्यों‍के‍दो‍समूहों‍के‍बीच‍लर्न्द्नता‍में ‍पत्राचाि।

इनमें‍ से ‘सहमतत‍ औि‍ अंति‍ की‍ संयुक्त‍ ववधि’‍ तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ के‍ ललए‍ प्रासंधगक‍ है ‍
क्योंकक‍ यह‍ समझौते‍ औि‍ अंति‍ की‍ ववधि‍ को‍ जोड़ती‍ है ।‍ यह‍ एक‍ घिना‍ के‍ दो‍ या‍ दो‍ से‍
अधिक‍ उदाहिणों‍ औि‍ संर्ाववत‍ कािण‍ की‍ सामान्द्य‍ अनुपष्स्थतत‍ के‍ बीच‍ एक‍ समानता‍ की‍
तलाश‍ किना‍ चाहता‍ है ‍ (किन 2011)।‍ जे.एस.‍ लमल‍ की‍ ‘मेथड‍ ऑफ‍ डडफिें स’‍ को‍ ‘सबसे‍
समान‍ व्यवस्था’‍ के‍ रूप‍ में ‍ र्ी‍ जाना‍ जाता‍ है ।‍ इसका‍ उपयोग‍ आधश्रत‍ चि‍ वाले‍ समान‍
मामलों‍ की‍ तुलना‍ किने‍ में‍ ककया‍ जाता‍ है ।‍ उनकी‍ ‘समानता‍ की‍ ववधि’‍ को‍ ‘सबसे‍ लर्न्द्न‍
व्यवस्था‍िचना’‍(ब्लैक‍1966)‍के‍रूप‍में ‍ र्ी‍जाना‍जाता‍है ।‍इसका‍उपयोग‍स्वतंत्र‍चि‍वाले‍
लर्न्द्न‍ववर्यों‍की‍तल
ु ना‍किने‍के‍ललए‍ककया‍जाता‍है ।‍यद्यवप‍तल
ु ना‍किते‍समय, ककसी‍को‍
इस‍ बात‍ का‍ ध्यान‍ िखना‍ चादहए‍ कक‍ क्या‍ तल
ु ना‍ किें ‍ औि‍ कैसे‍ तल
ु ना‍ किें ।‍ उन‍ घिनाओं‍
औि‍संस्थानों‍की‍तल
ु ना‍किने‍ में ‍ बहुत‍अधिक‍मल्
ू य‍है ‍ जो‍समान‍समय‍सीमा‍में ‍ ष्स्थत‍हैं,
जो‍समय‍में‍ व्यापक‍रूप‍से‍ अलग‍हैं।‍ऐसे‍ समाजों‍या‍छोिे ‍ समह
ू ों‍की‍तल
ु ना‍जो‍यथोधचत‍
रूप‍ से‍ समान‍ समस्याओं‍ से‍ संबंधित‍ हैं, कई‍ सददयों‍ से‍ अलग‍ (ब्लैक‍ 1966)‍ उपष्स्थत‍
समाजों‍के‍बीच‍तल
ु ना‍की‍तल
ु ना‍में ‍संतोर्जनक‍तनष्कर्ष‍तनकालने‍की‍अधिक‍संर्ावना‍है ।
इस‍ प्रकाि, तल
ु नात्मक‍ अनस
ु ंिान‍ डडजाइन‍ या‍तो‍ समानता‍ या‍ अंति‍ पि‍ ध्यान‍केंदरत‍
कि‍सकते‍ हैं‍ (कािामनी‍2011)।‍डेतनयल‍कािामनी‍(2011)‍का‍तकष‍है ‍ कक‍यह‍कहना‍सही‍
नहीं‍ होगा‍कक‍तुलनात्मक‍िाजनीतत‍एक‍ववलशष्ि‍पद्ितत‍पि‍तनर्षि‍किती‍है ।‍ऐसा‍इसललए‍
है ‍ क्योंकक‍ चुने‍ गए‍ मामलों‍ की‍ संख्या, उपयोग‍ ककए‍ गए‍ तथ्य‍ ववश्लेर्ण‍ के‍ प्रकाि‍ औि‍
अध्ययन‍ के‍ अंतगषत‍ समय‍ अवधि‍ के‍ अंति‍ के‍ आिाि‍ पि‍ ववलर्न्द्न‍ तिीकों‍ को‍ तनयोष्जत‍
13 | पष्ृ ‍ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

ककया‍जा‍सकता‍है ।‍इस‍प्रकाि, शोि‍पद्ितत‍उस‍प्रश्न‍पि‍तनर्षि‍किे गी‍जो‍शोिकताष‍ पूछ‍


िहा‍है ।

दस
ू िा‍ कािण‍ यह‍ है ‍ कक‍ तुलना‍ के‍ अंतगषत‍ अलग-अलग‍ आयाम‍ हो‍ सकते‍ हैं।‍ इसललए,
एक‍ र्ी‍ ववधि‍ उपयोगी‍ नहीं‍ होगी।‍ तुलना‍ (ए)‍ स्थातनक‍ या‍ पाि-अनुर्ागीय‍ हो‍ सकती‍ है ,
ष्जसका‍ अथष‍ है ‍ कक‍ दो‍ िाजनीततक‍ प्रणाललयों‍ की‍ तुलना‍ एक‍ क्रॉस‍ सेक्शन‍ के‍ रूप‍ में ‍ की‍
जाती‍ है ।‍ उदाहिण‍ के‍ ललए, र्ाित‍ औि‍ कनाडा‍ की‍ संघीय‍ व्यवस्थाओं‍ की‍ तुलना।‍ यह‍‍‍‍
(बी)‍अनुदैध्यष‍हो‍सकता‍है , ष्जसका‍अथष‍है ‍कक‍संस्थानों‍औि‍प्रणाललयों‍की‍तुलना‍पूिे‍समय‍
में‍ की‍ जा‍ सकती‍ है ।‍ उदाहिण‍ के‍ ललए, र्ाित‍ में ‍ कांग्रेस‍ प्रणाली‍ के‍ चिण‍ की‍ गठबंिन‍
िाजनीतत‍के‍चिण‍के‍साथ‍तुलना।‍यह‍(सी)‍कायाषत्मक‍या‍क्रॉस-संगठनात्मक‍हो‍सकता‍है ,
ष्जसका‍अथष‍है ‍कक‍अध्ययन‍का‍उद्दे श्य‍क्षेत्रीय‍रूप‍से‍लर्न्द्न‍नहीं‍है , लेककन‍ककसी‍ददए‍गए‍
िाजनीततक‍व्यवस्था‍के‍र्ीति‍हो‍सकता‍है ।‍उदाहिण‍के‍ललए, सैन्द्य‍औि‍लशक्षा‍पि‍खचष‍ से‍
संबंधित‍सिकािी‍नीततयों‍की‍तुलना।

1.6 यूरो-केन्िवाद से परे

जैसा‍कक‍‘क्षेत्र‍तुलनात्मक‍िाजनीतत’‍पि‍खंड‍2.2‍में ‍ वववेचना‍की‍गई‍है ‍ कक‍अनुशासन‍को‍


संकीणष‍ औि‍ यूरो-केन्िवाद‍ होने‍ के‍ आिोप‍ का‍ सामना‍ किना‍ पड़ता‍ है ।‍ कायषप्रणाली‍ संबंिी‍
समस्याएाँ‍ हैं‍ औि‍ यह‍ आिोप‍ लगाया‍ गया‍ है ‍ कक‍ तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ ‘‘कैसे’’‍ पि‍ ध्यान‍
केंदरत‍किती‍है ,‍लेककन‍समस्या‍के‍‘‘क्या’’‍की‍उपेक्षा‍किती‍है ‍ (भलजिाटट 1971)।‍अनुशासन‍
की‍ यूरो-केन्िवाद प्रकृतत‍ ने‍ ग्रेि‍ त्रििे न, फ्ांस, जमषनी‍ औि‍ सोववयत‍ संघ‍ पि‍ अपना‍ ध्यान‍
केंदरत‍ककया।

मैकक्रडडस‍की‍संकीणषता‍औि‍यूिो-केन्द्रवाद‍के‍रूप‍में ‍ अनुशासन‍की‍आलोचना‍ने‍ रूपिे खा‍


को‍ चुनौती‍ दी‍ थी‍ लेककन‍ अनुशासन‍ को‍ कफि‍ से‍ परिर्ावर्त‍ किने‍ के‍ प्रयास‍ अर्ी‍ र्ी‍ एक‍
गहिी‍ जड़ें‍ वाले‍ पूवाषग्रह‍ पि‍ आिारित‍ थे।‍ इस‍ प्रकाि, ‘‘अनुशासन‍ के‍ पहले‍ संकि’’‍ को‍
संबोधित‍किते‍ हुए, एक‍‘‘दस
ू िा‍संकि’’‍आमंत्रत्रत‍ककया‍गया‍था‍(चंदोक 1996)।‍अनुशासन‍
के‍ क्षेत्र‍ का‍ ववस्ताि‍ किने‍ के‍ प्रयासों‍ ने‍ अमेरिकी‍ औि‍ पष्श्चमी‍ िाजनीततक‍ प्रणाललयों‍ औि‍
संस्थानों‍पि‍ध्यान‍केंदरत‍किने‍ को‍सीलमत‍कि‍ददया।‍यह‍उसी‍ववश्वदृष्ष्ि‍पि‍आिारित‍था‍
ष्जसने‍ ‘दस
ू िों’‍के‍ववश्वदृष्ष्ि‍को‍नजिअंदाज‍कि‍ददया।‍यह‍उस‍अनुशासन‍का‍यूिो-केन्द्रवाद‍
था‍ ष्जसने‍ या‍ तो‍ (ए)‍ पिू ी‍ तिह‍ से‍ पष्श्चम‍ पि‍ ध्यान‍ केंदरत‍ ककया‍ औि‍ शेर्‍ ववश्‍व‍ को‍

14 | पष्ृ ‍

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

अनदे खा‍कि‍ददया, अथवा‍(बी)‍यहााँ‍ तक‍कक‍जब‍शेर्‍ववश्‍


व‍के‍ककसी‍र्ी‍र्ाग‍का‍अध्ययन‍
तुलना‍ की‍ गई, तो‍ इसे‍ ‘कम‍ सभ्य’‍ माना‍ गया, ‘ववदे शी’, ‘अलग’‍ औि‍ ‘अवि’‍ यूिोपीय‍ औि‍
अमेरिकी‍मॉडल‍की‍तुलना‍में ।‍यूरो-केन्िवाद‍का‍तात्पयष‍ पष्श्चम‍की‍सभ्यता, संस्कृतत‍औि‍
नस्ल‍के‍पक्ष‍में ‍इस‍श्रेष्ठता‍औि‍पव
ू ाषग्रह‍से‍है ।
1940‍औि‍1950‍के‍दशक‍के‍दौिान‍एक‍‘‘तीसिी‍दतु नया‍का‍दृष्ष्िकोण’’‍उर्िना‍शुरू‍
हुआ, लेककन‍यह‍ज्यादाति‍लैदिन‍अमेरिकी‍अनुर्व‍तक‍ही‍सीलमत‍िहा।‍इस‍दृष्ष्िकोण‍के‍
शुरुआती‍ समथषकों‍ में‍ से‍ एक‍ पॉल‍ बिन‍ थे‍ ष्जन्द्होंने‍ नव-माक्सषवादी‍ दृष्ष्िकोण‍ से‍
आिुतनकीकिण‍लसद्िांत‍की‍आलोचना‍का‍नेतत्ृ व‍ककया‍था।‍मोिे ‍तौि‍पि‍‘तनर्षिता‍परिप्रेक्ष्य’‍
कहा‍ जाता‍ है , ववचाि‍ ‘परिधि‍ से‍ आवाज’‍ का‍ प्रतततनधित्व‍ किते‍ हैं‍ जो‍ ‘अमेरिकी‍
आिुतनकीकिण‍स्कूल‍के‍बौद्धिक‍आधिपत्य‍को‍चुनौती‍दे ते‍ हैं’‍(सो‍1990)।‍समालोचना‍में ‍
जाने‍ से‍ पहले, ववकास‍ औि‍ आिुतनकीकिण‍ के‍ कुछ‍ प्रमुख‍ लसद्िांतों‍ को‍ दे खना‍ उपयोगी‍
होगा।

ववकास और आधुतनकीकरण के प्रमुख भसद्धांत


पॉल रोसेनस्टीन-रोडन (1943)‍ने‍ ‘त्रबग‍पुश’‍का‍लसद्िांत‍ददया।‍उन्द्होंने‍ औद्योधगक‍क्षेत्र‍के‍
पक्ष‍में ‍ तकष‍ददया‍औि‍कृवर्‍क्षेत्र‍से‍ दिू ‍जाने‍ की‍वकालत‍की।‍उन्द्होंने‍ औद्योधगक‍क्षेत्र‍का‍
समथषन‍ ककया‍ क्योंकक‍ यह‍ ववकास‍ की‍ एक‍ स्व-स्थायी‍ गतत‍ की‍ स्थापना‍ के‍ ललए‍ पाँज
ू ी‍ के‍
अधिक‍से‍अधिक‍स्ति‍उत्पन्द्न‍किे गा।
रिनार नकटसे (1953)‍ने‍ इस‍िािणा‍को‍प्रस्तुत‍ककया‍ष्जसे‍ ‘दरकल-डाउन‍प्रर्ाव’‍के‍रूप‍में ‍
जाना‍जाता‍है ।‍उन्द्होंने‍ तकष‍ददया‍कक‍गिीब‍बचत‍नहीं‍ किते‍ हैं‍ औि‍इसललए‍ पाँज
ू ी‍उत्पन्द्न‍
किने‍के‍ललए‍उद्योगों‍में ‍तनवेश‍की‍आवश्यकता‍होती‍है ।‍अमीिों‍को‍आगे‍बढ़ने, बचाने‍औि‍
तनवेश‍किने‍की‍जरूित‍है ‍औि‍पाँज
ू ी‍का‍फल‍अंततः‍गिीब‍वगों‍को‍र्ी‍लमल‍जाएगा।
साइमन कुजनेट्स (1955)‍ ने‍ तकष‍ ददया‍ कक‍ पाँज
ू ीवादी‍ ववकास‍ वास्तव‍ में ‍ अल्पावधि‍ में ‍
आधथषक‍असमानता‍को‍जन्द्म‍दे गा।‍लेककन‍यह‍अंततः‍एक‍अधिक‍न्द्यायसंगत‍औि‍समद्
ृ ि‍
समाज‍की‍ओि‍ले‍जाएगा।‍र्ाितीय‍संदर्ष‍में , वी.एम.‍दांडक
े ि‍औि‍एन.‍िथ‍(1971)‍ने‍तकष‍
ददया‍कक‍ववकास‍की‍उच्च‍दि‍सबसे‍ गिीब‍10‍प्रततशत‍को‍छोड़कि, सर्ी‍सामाष्जक‍समह
ू ों‍
के‍ ललए‍ ववकास‍ की‍ तनमन‍ दि‍ से‍ बेहति‍ थी।‍ इस‍ प्रकाि, उन्द्होंने‍ दरकल-डाउन‍ प्रर्ाव‍ की‍
प्रर्ावशीलता‍ को‍ चन
ु ौती‍ दी‍ औि‍ ‘मल
ू र्त
ू ‍ आवश्‍यकताओं‍ की‍ िणनीतत’‍ के‍ ललए‍ तकष‍ ददया।‍
उन्द्होंने‍तकष‍ददया‍कक‍गिीबों‍के‍दृष्ष्िकोण‍से, ववकास‍का‍उधचत‍ववतिण‍सामान्द्य‍ववकास‍की‍

15 | पष्ृ ‍ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

तुलना‍में‍अधिक‍महत्त्‍वपूण‍ष है ।
डब्लल्य.ू आथटर लई
ु स (1954)‍ने‍अपने‍तकष‍की‍शरु
ु आत‍दो‍क्षेत्रों‍के‍मॉडल—पाँज
ू ीवादी‍क्षेत्र‍औि‍
तनवाषह‍ क्षेत्र‍ को‍ दे खकि‍ की।‍ जबकक‍ पाँज
ू ीवादी‍ क्षेत्र‍ में ‍ पन
ु रुत्पाददत‍ पाँज
ू ी‍ है ‍ औि‍ यह‍ अधिक‍
उत्पादक‍है , तनवाषह‍क्षेत्र‍में‍उत्पादकता‍का‍तनमन‍स्ति‍है ।‍बचत‍की‍कम‍दि‍के‍साथ, तनवाषह‍
क्षेत्र‍ में‍ पाँज
ू ी‍ के‍ संचय‍ की‍ कमी‍ होती‍ है ‍ ष्जसे‍ पन
ु ः‍ उत्पन्द्न‍ ककया‍ जा‍ सकता‍ है ।‍ इसललए,
लई
ु स‍ने‍ववकास‍के‍ललए‍पाँज
ू ीवादी‍क्षेत्र‍पि‍बल‍दे ने‍का‍तकष‍ददया।
डब्लल्य.ू डब्लल्य.ू रोस्टो (1960)‍ ने‍ अपने‍ ‘‘आधथषक‍ ववकास‍ के‍ चिण’’‍ प्रस्तुत‍ किके‍ ववकास‍ के‍
समाजवादी‍मॉडल‍को‍एक‍वैचारिक‍चुनौती‍प्रदान‍की।‍िोस्िो‍ने‍ ववकास‍की‍प्रकक्रया‍को‍पााँच‍
चिणों‍ में‍ ववर्ाष्जत‍ ककया—(1)‍ पािं परिक‍ समाजस्य,‍ (2)‍ िे क-ऑफ‍ के‍ ललए‍ पूव‍ष शतष‍ की‍
स्थापनाय,‍ (3)‍ िे क-ऑफ‍ चिणय,‍ (4)‍ परिपक्वता‍ के‍ ललए‍ ड्राइवय‍ औि‍ (5)‍ उच्च‍ जन‍
उपर्ोग‍का‍युग।‍दस
ू िे ‍ चिण‍के‍ललए, उन्द्होंने‍ ववलशष्ि‍ववकास‍क्षेत्रों‍पि‍ध्यान‍केंदरत‍किने‍
की‍आवश्यकता‍पि‍बल‍ददया‍जो‍आधथषक‍ववकास‍के‍ललए‍इंजन‍के‍रूप‍में ‍ कायष‍ किें गे‍ औि‍
ऐसे‍ िाजनीततक, सामाष्जक‍ औि‍ संस्थागत‍ ढााँचे‍ की‍ स्थापना‍ की‍ ओि‍ अग्रसि‍ होंगे‍ जो‍
आिुतनक‍क्षेत्र‍में‍क्षमता‍का‍उपयोग‍किें गे।
ववकास‍ औि‍ आिुतनकीकिण‍ के‍ लसद्िांतों‍ के‍ बािे ‍ में ‍ अधिक‍ जानकािी‍ के‍ ललए, सी जॉन
माहटट नसेन (1997), समाज, िाज्य‍औि‍बाजािः‍ववकास‍के‍प्रततस्पिी‍लसद्िांतों‍के‍ललए‍एक‍
गाइड, लंदन‍ :‍ जेड‍ बुक्स‍ लललमिे ड, अध्याय-5‍ औि‍ एष्ल्वन‍ वाई।‍ सो‍ (1990), सामाष्जक‍
परिवतषन‍औि‍ववकासि—‍आिुतनकीकिण, तनर्षिता‍औि‍ववश्व‍प्रणाली‍लसद्िांत, न्द्यूबिी‍पाकष,
सीए‍:‍सेज‍प्रकाशन।

पॉल बरन (1966)‍ ने‍ अधिशेर्‍ के‍ माक्सषवादी‍ लसद्िांत‍ का‍ प्रयोग‍ ककया‍ औि‍ वपछड़ी‍
अथषव्यवस्थाओं‍की‍आंतरिक‍ष्स्थततयों‍पि‍ध्यान‍केंदरत‍किने‍की‍मााँग‍की।‍बािां‍ने‍चाि‍वगों‍
की‍ पहचान‍ की‍ ष्जनके‍ संकीणष‍ स्वाथष‍ थे‍ औि‍ औद्योगीकिण‍ को‍ बढ़ावा‍ दे ने‍ में ‍ उनकी‍ कोई‍
ददलचस्पी‍ नहीं‍ थी।‍ इन‍ चाि‍ वगों—सामंती‍ अलर्जात‍ वगष, साहूकािों, व्यापारियों‍ औि‍ ववदे शी‍
पाँूजीपततयों‍ ने‍ अधिशेर्‍ को‍ ववतनयोष्जत‍ ककया।‍ इसललए, िाष्रीय‍ स्ति‍ पि‍ तनयंत्रत्रत‍
औद्योगीकिण‍को‍बढ़ावा‍दे ने‍के‍ललए‍व्यापक‍िाज्य‍हस्तक्षेप‍किना‍आवश्यक‍था‍(माहटट नसेन
1997: 87)।‍ बािां‍ के‍ ववचािों‍ ने‍ बाद‍ के‍ तनर्षिता‍ लसद्िांतकािों‍ जैसे‍ ए.जी.‍ फ्ैंक, समीि‍
अमीन‍ औि‍ अतघषिी‍ इमैनुएल‍ को‍ तीसिी‍ दतु नया‍ का‍ परिप्रेक्ष्य‍ प्रदान‍ किने‍ के‍ ललए‍ प्रर्ाववत‍
ककया।

16 | पष्ृ ‍

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

आंिे िुंडर फ्रैंक (1967)‍ ने‍ ‘‘अल्पववकास‍ के‍ ववकास’’‍ का‍ ववचाि‍ प्रदान‍ ककया।‍ फ्ैंक‍ के‍
अनुसाि, अनुर्व‍में‍अंति‍के‍कािण‍तीसिी‍दतु नया‍कर्ी‍र्ी‍पष्श्चम‍द्वािा‍अपनाए‍गए‍मागष‍
का‍ अनुसिण‍ नहीं‍ कि‍ सकी‍ (सो‍ 1990:‍ 96)।‍ पष्श्चम‍ ने‍ उपतनवेशवाद‍ का‍ अनुर्व‍ नहीं‍
ककया‍जबकक‍तीसिी‍दतु नया‍के‍अधिकांश‍दे श‍पष्श्चम‍के‍पूव‍ष उपतनवेश‍हैं।‍इस‍प्रकाि, फ्ैंक‍
ने‍ आिुतनकीकिण‍ स्कूल‍ की‍ ‘आंतरिक‍ व्याख्या’‍ को‍ खारिज‍ कि‍ ददया‍ औि‍ ‘बाहिी‍
स्पष्िीकिण’‍ पि‍ बल‍ ददया।‍ सिल‍ शब्दों‍ में, तीसिी‍ दतु नया‍ का‍ वपछड़ापन‍ सामंतवाद‍ या‍
अलर्जात‍ वगष‍ के‍ कािण‍ नहीं‍ था,‍ बष्ल्क‍ औपतनवेलशक‍ अनुर्व‍ औि‍ ववदे शी‍ प्रर्ुत्व‍ का‍
परिणाम‍था।
एजी फ्रैंक‍ ने‍ तीसिी‍ दतु नया‍ के‍ अववकलसतता‍ को‍ समझाने‍ के‍ ललए‍ एक‍ ‘‘महानगि-उपग्रह‍
मॉडल’’‍ तैयाि‍ ककया।‍ उपतनवेशवाद‍ ने‍ महानगिों‍ (या‍ उपतनवेशवाददयों)‍ औि‍ उपग्रहों‍ (या‍
उपतनवेशों)‍ के‍ बीच‍ इस‍ तिह‍ से‍ एक‍ कड़ी‍ बनाई‍ कक‍ व्यापाि‍ के‍ असमान‍ संबंि‍ के‍ ललए।‍
उपग्रह‍ को‍ खिाब‍ छोड़कि‍ मेरोपोल‍ द्वािा‍ सर्ी‍ अधिशेर्‍ को‍ ववतनयोष्जत‍ ककया‍ गया‍ था।‍
स्थानीय‍बुजआ
ुष ‍वगष‍ ने‍र्ी‍इस‍अववकलसतता‍में ‍योगदान‍ददया, उपग्रह‍के‍बाहि‍अधिशेर्‍को‍
हिाकि, आंतरिक‍ रूप‍ से‍ तनवेश‍ औि‍ ववकास‍ के‍ ललए‍ इसका‍ उपयोग‍ नहीं‍ ककया‍ औि‍
अंतिाषष्रीय‍असमानता‍को‍बनाए‍िखा।‍इस‍प्रकाि, जो‍हुआ‍वह‍ववश्व‍बाजाि‍के‍साथ‍ललंक‍
के‍ कािण‍ अववकलसतता‍ का‍ ववकास‍ था।‍ इस‍ दष्ु चक्र‍ से‍ बाहि‍ तनकलने‍ का‍ एकमात्र‍ तिीका‍
ववश्व‍बाजाि‍से‍अलग‍होना‍था‍(सो‍1990)।
समीर अमीन (1976)‍ ने‍ ‘केंर‍ औि‍ परिधि’‍ की‍ अविािणा‍ प्रदान‍ की।‍ फ्ैंक‍ के‍ ववपिीत, जो‍
व्यापाि‍औि‍ववतनमय‍संबंिों‍पि‍ध्यान‍केंदरत‍किता‍था, अमीन‍‘उत्पादन‍की‍ष्स्थततयों‍औि‍
संबंिों’‍ (माहटट नसेन 1997)‍ से‍ अधिक‍ धचंततत‍ था।‍ अमीन‍ ने‍ दो‍ आदशष-प्रकाि‍ के‍ सामाष्जक‍
मॉडल‍ प्रदान‍ ककए—स्वकेंदरत‍ अथषव्यवस्था‍ औि‍ परििीय‍ अथषव्यवस्था।‍ तनिं कुश‍ अथषव्यवस्था‍
आत्मतनर्षि‍है ,‍लेककन‍आत्मतनर्षिता‍की‍कमी‍है ।‍यह‍व्यापक‍अंतिाषष्रीय‍व्यापाि‍पि‍तनर्षि‍
किता‍ है ।‍ दस
ू िी‍ ओि, परििीय‍ अथषव्यवस्था‍ में ‍ एक‍ ‘‘अववकलसत‍ तनयाषत‍ क्षेत्र’’‍ है ,‍ जो‍
ववलालसता‍ की‍ खपत‍ के‍ ललए‍ माल‍ का‍ उत्पादन‍ किता‍ है ‍ (मादिष नसेन‍ 1997)।‍ पाँज
ू ीवाद‍ को‍
पाँज
ू ी‍ के‍ संचलन‍ में ‍ दे खा‍ जा‍ सकता‍ है ,‍ लेककन‍ उत्पादन‍ के‍ तिीके‍ पूव-ष पाँज
ू ीवादी‍ िहते‍ हैं।‍
इसललए‍ केंर‍उच्च‍ लार्‍ अष्जषत‍किने‍ वाले‍ परिधि‍से‍ संसािन‍औि‍सस्ते‍ श्रम‍तनकालने‍ में ‍
सक्षम‍ है ।‍ तनर्षिता‍ का‍ यह‍ संबंि‍ असमान‍ ववतनमय‍ पि‍ आिारित‍ है ‍ औि‍ यह‍ असमलमत‍
संबंि‍तनर्षिता‍की‍तनिं तिता‍की‍ओि‍ले‍जाता‍है ।

17 | पष्ृ ‍ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

डॉस सैंटोस (1971)‍ ने‍ तनर्षिता‍ के‍ तीन‍ ऐततहालसक‍ रूपों‍ पि‍ चचाष‍ की—(1)‍ औपतनवेलशक‍
तनर्षिता, (2)‍ववत्तीय-औद्योधगक‍तनर्षिता औि‍(3)‍तकनीकी-औद्योधगक‍तनर्षिता‍(सो‍1990:‍
99)।‍सैंिोस‍अववकलसत‍दे शों‍के‍औद्योधगक‍ववकास‍पि‍कुछ‍सीमाओं‍ की‍पहचान‍किता‍है ।‍
अववकलसत‍दे शों‍को‍िाजनीततक‍तनर्षिता‍के‍ललए‍ववदे शी‍पाँज
ू ी‍पि‍तनर्षि‍िहना‍पड़ता‍है ।‍वे‍
एक‍ एकाधिकाि‍ बाजाि‍ में‍ हैं‍ जहााँ‍ कच्चे‍ माल‍ सस्ते‍ हैं‍ औि‍ औद्योधगक‍ उत्पाद‍ अधिक‍ हैं।‍
इसललए, आधश्रत‍दे श‍को‍छोड़ने‍ वाली‍पाँज
ू ी‍की‍मात्रा‍प्रवेश‍किने‍ वाली‍िालश‍से‍ कहीं‍ अधिक‍
है ।‍साथ‍ही, प्रौद्योधगकी‍पि‍शाही‍केंरों‍का‍एकाधिकाि‍संबंि‍को‍औि‍र्ी‍ववर्म‍बना‍दे ता‍
है ।‍ पाँज
ू ी-गहन‍ प्रौद्योधगकी‍ की‍ उपष्स्थतत‍ के‍ साथ‍ सस्ते‍ श्रम‍ के‍ संदर्ष‍ में ‍ घिे लू‍ मजदिू ी‍ के‍
स्ति‍में‍ अंति‍होता‍है ।‍इस‍प्रकाि, ‘‘शोर्ण‍की‍उच्च‍दि‍या‍श्रम‍शष्क्त‍का‍‘अततशोर्ण’‍है ’’‍
(सो‍ 1990)।‍ इस‍ प्रकाि‍ ववदे शी‍ पाँज
ू ी, ववदे शी‍ ववत्त‍ औि‍ ववदे शी‍ प्रौद्योधगकी‍ पि‍ एकाधिकाि‍
तनयंत्रण‍ अववकलसत‍ दे शों‍ में ‍ आधथषक‍ वपछड़ेपन‍ औि‍ आंतरिक‍ सामाष्जक‍ हालशए‍ की‍ ओि‍ ले‍
जाता‍है ।
अन्द्य‍ ववद्वानों‍ जैसे‍ अतघषिी‍ इमैनुएल‍ (1972)‍ औि‍ जेफ्ी‍ के‍ (1975)‍ ने‍ र्ी‍ परििीय‍
अथषव्यवस्थाओं‍ के‍ असमान‍ आदान-प्रदान‍ औि‍ शोर्ण‍ को‍ दे खकि‍ कुछ‍ इसी‍ तिह‍ की‍
सैद्िांततक‍ समझ‍ प्रदान‍ की।‍ एफ.एच.‍ कािदोसो‍ (1974)‍ ने‍ ‘तनर्षिता‍ में ‍ ववकास’‍ के‍ ववचाि‍
को‍ प्रस्तुत‍ ककया‍ औि‍ परििीय‍ दे शों‍ को‍ आधश्रत‍ अथषव्यवस्थाओं‍ के‍ एकल‍ समूह‍ के‍ रूप‍ में ‍
मानने‍ की‍प्रववृ त्त‍को‍खारिज‍कि‍ददया।‍उन्द्होंने‍ आंतरिक‍ष्स्थततयों‍पि‍अधिक‍ध्यान‍केंदरत‍
ककया‍औि‍तकष‍ददया‍कक‍बाहिी‍कािकों‍के‍अलग-अलग‍परिणाम‍होंगे‍जो‍‘‘असमान‍आंतरिक‍
ष्स्थततयों’’‍(मादिष नसेन‍1997)‍के‍आिाि‍पि‍होंगे।‍इस‍प्रकाि‍के‍तनदान‍के‍कािण, काडोसो‍
सर्ी‍परििीय‍दे शों‍के‍ललए‍िणनीततयों‍के‍सामान्द्य‍समूह‍की‍लसफारिश‍किने‍ के‍र्खलाफ‍र्ी‍
था।‍ सामान्द्य‍ तौि‍ पि, तीसिी‍ दतु नया‍ का‍ परिप्रेक्ष्य‍ तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ के‍ यूरो-केन्िवाद‍
पूवाषग्रह‍को‍समाप्त‍किने‍ का‍प्रयास‍किता‍है ।‍यह‍‘र्व्य‍आख्यानों’‍की‍सीमाओं‍ पि‍प्रकाश‍
डालता‍है ‍ औि‍दो‍महत्त्‍
वपूण‍ष पहलओ
ु ं‍ पि‍ध्यान‍केंदरत‍किता‍है —उपतनवेशवाद‍का‍प्रर्ाव‍औि‍
गैि-पष्श्चम‍ की‍ सांस्कृततक‍ ववलशष्िता।‍ यह‍ ऐसी‍ चुनौती‍ के‍ माध्यम‍ से‍ है ‍ कक‍ अनुशासन‍
अपने‍यरू ो-केन्िवाद‍के‍बल
ु बल
ु े‍से‍आगे‍बढ़ने‍में ‍सक्षम‍है ।

1.7 तनष्कषट

तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ एक‍ व्यापक‍ उप-अनुशासन‍ है ‍ ष्जसमें ‍ ववलर्न्द्न‍ पिं पिाएाँ, ववधियााँ‍ औि‍
दृष्ष्िकोण‍ सष्ममललत‍ हैं।‍ इसमें ‍ िाजनीततक‍ गततववधि‍ का‍ ववविण, ववश्लेर्ण, र्ववष्यवाणी‍
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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

औि‍ सामान्द्यीकिण‍ शालमल‍ है ।‍ तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ पि‍ यरू ो-केन्िवाद, संकीणष, औपचारिक‍
औि‍अत्यधिक‍वणषनात्मक‍होने‍ का‍आिोप‍लगाया‍गया‍है ।‍इन‍सीमाओं‍ औि‍समस्याओं‍ के‍
बावजूद, ववद्वानों‍ ने‍ समािान‍ खोजने‍ औि‍ तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ के‍ दायिे ‍ को‍ बढ़ाने‍ की‍
कोलशश‍ की‍ है ।‍ जातीय‍ केंदरत‍ प्रकृतत‍ को‍ तोड़ना‍ औि‍ िाजनीततक‍ प्रकक्रयाओं‍ को‍ संदर्ष‍ में ‍
स्थावपत‍ किना‍ महत्त्‍वपण
ू ‍ष है ।‍ इस‍ संबंि‍ में, यह‍ कहा‍ जाता‍ है ‍ कक‍ ककसी‍ को‍ ऐततहालसक,
सांस्कृततक‍ औि‍ र्ौगोललक‍ संदर्ों‍ में ‍ ववश्लेर्ण‍ किने‍ की‍ आवश्यकता‍ है ।‍ यह‍ ध्यान‍ िखना‍
महत्त्‍वपूण‍ष है ‍ कक‍अतत-सामान्द्यीकिण‍ककसी‍र्ी‍लसद्िांत‍का‍एक‍समस्यात्मक‍पहलू‍ है ।‍यदद‍
कोई‍िाजनीततक‍गततववधि‍को‍पूिी‍तिह‍से‍ अमत
ू ‍ष रूप‍में ‍ समझाने‍ की‍कोलशश‍किता‍है , तो‍
यह‍ वास्तववकता‍ से‍ दिू ‍ होगा।‍ यदद‍ अध्ययन‍ केवल‍ ववलशष्ि‍ ष्स्थततयों‍ को‍ दे ख‍ िहा‍ है , तो‍
यह‍ व्यापक‍ संदर्ष‍ के‍ ललए‍ अपनी‍ प्रासंधगकता‍ खो‍ दे ता‍ है ।‍ इसललए, ववद्वानों‍ द्वािा‍ मध्य-
स्ति‍के‍आिािर्ूत‍लसद्िांत‍की‍ओि‍से‍ एक‍परिवतषन‍की‍वकालत‍की‍गई‍(ब्ललोंडेल 1981)।‍
तुलनात्मक‍िाजनीततक‍ववश्लेर्ण‍के‍क्षेत्र‍के‍संकुधचत‍होने‍ से‍ र्ी‍केस-उन्द्मुख‍अध्ययनों‍पि‍
ध्यान‍ केंदरत‍ ककया‍ गया।‍ इस‍ आलोचना‍ के‍ र्खलाफ‍ कक‍ तुलनावादी‍ अविािणाओं‍ को‍
सावषर्ौलमक‍बनाते‍ हैं, कुछ‍मामलों‍पि‍आिारित‍ववधियों‍के‍ववकास‍पि‍नए‍लसिे ‍ से‍ ध्यान‍
केंदरत‍ककया‍गया‍था।‍यद्यवप, इस‍दृष्ष्िकोण‍को‍र्ी‍समस्याग्रस्त‍माना‍जाता‍था‍क्योंकक‍
खेल‍ में‍ कई‍ कािक‍ होने‍ पि‍ परिकल्पना‍ पिीक्षण‍ योग्य‍ नहीं‍ होती‍ है ।‍ इन‍ समस्याओं‍ औि‍
केन्द्र-त्रबंद‍ु के‍संकीणष‍ होने‍ के‍बावजूद, तुलनात्मक‍िाजनीततक‍ववश्लेर्ण‍िाजनीतत‍ववज्ञान‍का‍
एक‍ बहुत‍ ही‍ महत्त्‍वपूण‍ष उप-ववर्य‍ बना‍ हुआ‍ है ।‍ यह‍ संदर्ष‍ के‍ वणषनात्मक, ववश्लेर्णात्मक‍
औि‍ पद्िततगत‍ ढााँचा‍ प्रदान‍ किके‍ समकालीन‍ िाष्रीय, क्षेत्रीय‍ औि‍ अंतिाषष्रीय‍ िाजनीतत‍ में‍
अंतदृषष्ष्ि‍प्रदान‍किता‍है ।

1.8 अभ्यास प्रश्न

1. यूिो-केंरवाद‍ को‍ परिर्ावर्त‍ कीष्जए।‍ तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ के‍ अध्ययन‍ पि‍ इसके‍
प्रर्ाव‍का‍ववश्‍लेर्ण‍कीष्जए।

2. िाजनीततक‍ व्यवस्था‍ का‍ वगीकिण‍ तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ को‍ समझने‍ के‍ ललए‍ एक‍
महत्त्वपूण‍ष उपकिण‍प्रदान‍किता‍है , इस‍कथन‍का‍मूल्यांकन‍कीष्जए।

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

1.9 संदिट-ग्रंथ

• Black, C.E. (1966), The Dynamics of Modernization: A Study in Comparative History,


New York: Harper and Row.
• Blondel, Jean (1981), The Discipline of Politics, Butterworths: London.
• Blondel, Jean (1999), “Then and Now: Comparative Politics”, Political Studies,
XLVII, pp. 152-160.
• Caramani, Daniele (2011), “Introduction to comparative politics”, in Daniele
Caramani (ed.) Comparative Politics, 2nd edition, Oxford: Oxford University Press.
• Chandhoke, Neera (1996), “Limits of Comparative Political Analysis”, Economic and
Political Weekly, 31 (4): 2-8.
• Dogan, Mattei and Dominique Pelassy (1990) How to Compare Nations: Strategies in
Comparative Politics, 2nd edition, Chatham, NJ: Chatham House.
• Finn, V.K. (2011), “J.S. Mill’s inductive methods in artificial intelligence systems.
Part I”, Scientific and Technical Information Processing, 38: 385-402.
• Hague, Rod, Martin Harrop and John McComrick (2016), Comparative Government
and Politics: An Introduction, 10th edition, London: Palgrave.
• Kopstein, J. and M. Lichbach, (eds.) (2005) Comparative Politics: Interests,
Identities, and Institutions in a Changing Global Order, Cambridge: Cambridge
University Press, pp.1-5; 16-36; 253-290.
• Landman, Todd (2008), Issues and Methods in Comparative Politics: An
Introduction, New York: Routledge.
• Lijphart, Arend (1971), “Comparative Politics and Comparative Method”, The
American Political Science Review, 65 (3): 682-693.
• Macridis, Roy C. (1955), “Major Characteristics of the Traditional Approach”, in The
Study of Comparative Politics, New York: Random House, pp. 7-14.
• Martinussen, John (1997), Society, State and Market: A guide to competing theories
of development, London: Zed Books Ltd.
• Mohanty, Manoranjan (1975), “Comparative Political Theory and Third World
Sensitivity”, Teaching Politics, 1 & 2.
• Newton, Kenneth and Jan W. Van Deth (2010), Foundations of Comparative Politics,
Cambridge University Press, 2010.
• So, Alvin Y. (1990), Social Change and Development: Modernization, Dependency
and World System Theories, London: Sage Publications.

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

इकाई-II : तल
ु नात्मक राजनीतत का अध्ययन करने के उपािम

पाठ-1 : संस्थाित उपािम, प्रणाली उपािम,


संरचनात्मक-कायाटत्मक उपािम
िाग्यनिर ववनीत श्रीवात्सवा
अनुवाददका : राखी

संरचना

1.1 उद्दे श्‍य‍


1.2 परिचय‍
1.3 संस्थागत‍उपागम
1.4 प्रणाली‍उपागम
1.5 संिचनात्मक‍कायाषत्मकता
1.6 तनष्‍कर्ष
1.7 अभ्‍
यास‍प्रश्‍न
1.8 संदर्ष-ग्रंथ

1.1 उद्दे श्य

• इस‍ अध्‍याय‍ का‍ अध्‍ययन‍ किने‍ के‍ पश्‍चात ्‍ ववद्याथी‍ संस्थागत‍ दृष्ष्िकोण, लसस्िम‍
दृष्ष्िकोण‍औि‍संिचनात्मक-कायाषत्मक‍दृष्ष्िकोण‍औि‍तुलनात्मक‍िाजनीतत‍में ‍उनकी‍
प्रासंधगकता‍के‍बािे ‍में ‍समझ‍सकेंगे।
• ववद्याथी‍लसस्िम‍दृष्ष्िकोण‍की‍उपयोधगता‍को‍समझेंगे‍ तथा‍तुलनात्मक‍िाजनीतत‍में ‍
पड़ने‍वाले‍प्रर्ाव‍का‍अध्‍ययन‍किें गे।

1.2 पररचय

वपछली‍ इकाई‍ में ‍ तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ के‍ क्षेत्र‍ औि‍ प्रकृतत‍ से‍ पाठकों‍ को‍ परिधचत‍ किाया‍

21 | पष्ृ ‍ठ

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

गया‍ है ।‍ यह‍ अध्याय‍ उन‍ ववलर्न्द्न‍ दृष्ष्िकोणों‍ पि‍ केंदरत‍ है ‍ जो‍ तुलनात्मक‍ िाजनीततक‍
लसद्िांत‍में‍ प्रमुख‍हैं।‍इस ववर्य में ववशेर्‍रूप‍से,‍हम‍स्वयं को‍तीन‍महत्त्‍वपूण‍ष दृष्ष्िकोणों‍
तक‍ सीलमत‍ िखते‍ हैं—संस्थागत‍ उपागम, प्रणाली‍ उपागम‍ औि‍ संिचनात्मक-कायाषत्मक‍
उपागम।‍इस‍अध्याय‍का‍उद्दे श्य‍न‍केवल‍तुलनात्मक‍िाजनीतत‍में ‍ प्रयक्
ु त‍इन उपागमों‍पि‍
वाद-वववाद‍ किना‍ है ,‍ बष्ल्क‍ प्रत्येक‍ उपागम‍ के‍ गुण-दोर्ों‍ तथा तुलनात्मक िाजनीतत के‍
ववकास में इनकी र्ूलमका तथा शोिकताष‍ के‍ ललए‍ इसकी‍ प्रासंधगकता‍ को‍ समझना‍ एवं‍
प्रततत्रबंत्रबत‍किना‍है ।‍इससे‍पहले‍कक‍हम‍इस‍ववचाि‍पि आगे‍ बढ़ें ,‍यह‍आवश्यक‍है ‍ कक‍हम
यह जानकािी प्राप्त किे कक‍उपागम‍क्या‍हैं?‍संकीणष‍ अथष‍ में ,‍यदद‍हम‍कहें ‍ तो तुलनात्मक‍
िाजनीतत‍अतनवायष‍ रूप‍से‍ िाजनीततक‍जीवन‍के‍ववलर्न्द्न‍रूपों‍की‍तुलना‍कि‍िही‍है ,‍ष्जसके
तहत‍उपागम‍तुलना‍किने‍ की‍ववलर्न्द्न‍ववधियााँ‍ हैं।‍उदाहिण‍के‍ललए,‍मान‍लीष्जए‍कक‍हम‍
दो‍वस्तुओं—‍ए‍औि‍बी‍की‍तुलना‍किना‍चाहते‍ हैं।‍उस‍ष्स्थतत‍में ,‍हमािे ‍ पास‍पूव‍ष तनयम‍
स्थावपत‍ होने‍ चादहए‍ कक‍ उनकी‍ तुलना‍ कैसे‍ की‍ जाए,‍ ए‍ औि‍ बी‍ की‍ तुलना‍ में ‍ ककन-ककन
ववशेर्ताओं‍ को‍ ध्यान‍ में ‍ िखा‍ जाए‍ आदद।‍ िाजनीततक‍ प्रणाललयों‍ की‍ इस तुलना‍ में ,‍
िाजनीततक‍संस्कृतत‍औि‍संस्थान, उपागम‍तुलना‍के‍तिीकों‍के‍रूप‍में ‍कायष‍किते‍हैं।‍प्रत्येक‍
उपागम‍जदिल‍बौद्धिक‍इततहास‍से‍ववकलसत‍होता‍है ‍औि‍उस‍ववशेर्‍समय‍की‍घिनाओं‍ से‍
इसका स्वरूप तनिाषरित होता है ।‍ इसललए‍ यह‍ ध्यान‍ िखना‍ आवश्यक‍ है ‍ कक‍ अनुशासन‍ में ‍
प्रत्येक‍उपागम‍की‍अपनी‍ववशेर्‍प्रासंधगकता‍होती‍है ।

तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ के‍ लसद्िांत‍ में ‍ प्रयुक्त‍ उपागमों‍ को‍ मुख्य रूप से दो‍ र्ागों‍ में ‍
वगीकृत‍ ककया‍ जा‍ सकता‍ है —पािं परिक‍ उपागम‍ औि‍ आिुतनक‍ उपागम।‍ पािं परिक‍ औि‍
आिुतनक‍उपागम के‍ववपिीत‍स्वरूप पि‍बहुत‍अधिक‍जोि‍ददए‍त्रबना,‍यह‍मानना‍अपयाषप्त‍
है ‍ कक‍ पािं परिक‍ उपागम‍ औपचारिक‍ संिचनाओं,‍ संस्थानों‍ आदद‍ के‍ अध्ययन‍ द्वािा‍ पूिक‍
िाजनीतत‍के‍मानक‍परिप्रेक्ष्य‍से‍ संबधं ित‍हैं।‍इस‍उपागम‍के‍कुछ‍प्रमुख‍समथषकों‍में ‍ अिस्तू,
जेमस‍ िाइस,‍ हे िोल्ड‍ लास्की,‍ वाल्िि‍ बेजहोि‍ आदद‍ शालमल हैं।‍ सामाष्जक‍ ववज्ञान‍ में ‍
व्यावहारिक‍क्रांतत‍ने‍िाजनीतत‍ववज्ञान‍में ‍पािं परिक‍तिीकों‍पि आघात ककया‍औि‍तुलनात्मक‍
शोि‍में‍ वैज्ञातनक‍मानदं डों‍की‍आवश्यकता‍पि‍बल ददया‍गया।‍आिुतनक‍उपागम‍प्रणाली‍के‍
मापने‍ योग्य‍ पहलुओं‍ को‍ समझकि‍ िाजनीततक‍ प्रणाललयों‍ का‍ अध्ययन‍ किने‍ के‍ ललए‍ इन‍
वैज्ञातनक‍ववधियों‍का‍उपयोग‍किते‍हैं।

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

1.3 संस्थाित उपािम

इससे‍ पहले‍ कक‍ हम‍ संस्थागत‍ उपागम‍ पि‍ ववचाि-ववमशष किें ,‍ इस‍ बात‍ पि‍ बल दे ना‍
महत्त्‍वपूण‍ष है ‍ कक‍संस्थाओं‍ का अथष क्या है ? हालााँकक प्रथा‍या‍कानून‍द्वािा‍स्थावपत‍व्यवहाि‍
या‍गततववधियों‍के‍एक‍सुसंगत‍औि‍संगदठत‍प्रततरूप‍को‍मोिे ‍ तौि‍पि‍एक‍संस्था‍कहा‍जा‍
सकता‍है ‍इसललए‍एक‍संस्था‍के‍अथष‍में केवल‍संसद‍औि‍न्द्यायपाललका‍जैसे‍तनकाय‍ही‍नहीं‍
बष्ल्क‍समाज‍के‍िीतत-रिवाज‍तथा‍ककसी‍अन्द्य‍प्रततरूप‍वाले‍व्यवहाि‍र्ी‍शालमल है ‍जैसा कक
आप‍ इस‍ तथ्य‍ से‍ अवगत होंगे कक वववाह‍ र्ी‍ समाजशास्त्रीय‍ अध्ययन‍ हे तु‍ एक‍ संस्था‍ है ।‍
अतः ‘संस्था’‍शब्द‍की‍परिर्ार्ा‍में ‍ अनुशासनात्मक‍लर्न्द्नता‍आश्चयषजनक‍नहीं‍ होनी‍चादहए‍
इसललए,‍यह‍तकष‍ददया‍जा‍सकता‍है ‍कक‍िाजनीतत‍ववज्ञान‍एक‍ववर्य‍के‍रूप‍में ‍संस्थाओं‍का‍
अध्ययन‍है ।‍यह‍पिं पिा‍त्रबल्कुल‍र्ी‍नवीन नहीं‍ है ‍ बष्ल्क‍अिस्तू‍ के ववचािों की तिह प्राचीन
है ।‍इस‍उपागम‍की‍प्राथलमक‍धचंता‍को‍मोिे ‍तौि‍पि‍इस आिाि पि‍समझा‍जा‍सकता‍है ‍कक‍
संस्थाएाँ‍ बेहति‍जीवन‍के‍ललए‍समाज,‍ववर्यों‍या‍नागरिकों‍का‍पोर्ण‍कैसे‍ किती‍हैं।‍अिस्तू‍
ने‍ इस मानक‍प्रश्न‍को‍समझने‍ के‍ललए‍ कक कौन सी संस्थाएाँ‍ बेहति कायष किती है , 158‍
संवविानों‍की‍तुलना‍की।‍मैककयावेली‍ने‍ वप्रंस की‍संस्था‍को‍अनेक‍सलाह‍दी‍ताकक‍प्रजा‍पि‍
उधचत‍तनयंत्रण‍ककया जा सके।‍यहााँ‍ तक‍कक‍जब‍हॉब्स‍लेववथान‍(2009)‍ललख‍िहे ‍ थे,‍तब‍
र्ी‍ वे‍ अंग्रेजी‍ गह
ृ यद्
ु ि‍ से‍ धचंततत‍ थे‍ औि‍ इसललए‍ उन्द्होंने‍ मजबत
ू ‍ संस्थानों‍ के‍ ललए‍ प्रचाि‍
ककया।‍ संस्थानों‍ से‍ संबंधित‍ ववचािकों‍ की‍ यह‍ सूची‍ अतत‍ ववस्तत
ृ ‍ है ‍ औि‍ इसे‍ यहााँ‍ ववस्तत
ृ ‍
किने‍की‍आवश्यकता‍र्ी नहीं‍है ,‍पिं तु यह‍समझना आवश्यक‍है ‍कक‍शुरू‍से‍ही‍कई‍ववचािक‍
ककसी-न-ककसी‍तिह‍से‍ संस्थानों‍से‍ संबंधित‍थे।‍हालााँकक‍बाद के समय में संस्थागत‍उपागम
एक ववधि के रूप में‍ प्रमख
ु ‍ समथषकों‍ कालष‍ फ्ेडरिक,‍ जेमस‍ िाइस,‍ ए.‍ एल‍ लोवेल,‍ हिमन‍
फाइनि‍औि‍सैमुअल‍फाइनि के ववचािों द्वािा मुख्यिािा‍बन‍गया।

जीन‍ ब्लोंडेल‍ ने‍ इस‍ संबंि‍ में ‍ तकष‍ ददया‍ कक‍ उन्द्नीसवीं‍ शताब्दी‍ के‍ उत्तिािष‍ में ‍ जेमस‍
िायस‍ औि‍ लोवेल‍ इस क्षेत्र में उनके प्रमुख योगदान के कािण‍ िाजनीततक अनुशासन‍ के‍
तहत अध्ययन‍की‍एक‍लर्न्द्न शाखा‍के‍रूप‍में ‍ तुलनात्मक‍िाजनीतत‍के‍सच्चे‍ संस्थापक‍हैं।‍
िायस‍को‍उनके‍अमेरिकन‍कॉमनवेल्थ‍(1888)‍औि‍मॉडनष‍ डेमोक्रेसीज़‍(1921)‍में ‍ योगदान‍
के‍ललए‍जाना‍जाता‍है ।‍अपने‍ कायष‍ द्वािा आिुतनक‍लोकतंत्र‍के तहत उन्द्होंने‍ वविातयका‍के‍
कामकाज‍औि‍उसके‍पतन‍को‍समझने‍की‍कोलशश‍की।‍लोवेल‍ने‍फ्ांस,‍ष्स्वट्जिलैंड,‍जमषनी‍

23 | पष्ृ ‍ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

आदद‍का‍अलग-अलग‍अध्ययन‍ककया‍औि‍जनमत‍संग्रह‍औि‍उसके‍प्रर्ाव‍का‍तुलनात्मक‍
अध्ययन‍ किने‍ की‍ मााँग‍ िखी।‍ उनकी‍ प्रलसद्ि‍ कृततयों‍ में ‍ गवनषमेंि‍ एंड‍ पािीज‍ इन‍
कॉष्न्द्िनेंिल‍यूिोप‍(1896)‍औि‍पष्ब्लक‍ओवपतनयन‍एंड‍पॉपल
ु ि‍गवनषमेंि‍(1913)‍शालमल‍हैं।‍
हालााँकक‍ उनसे‍ पहले‍ के‍ववद्वानों‍ने‍ र्ी संस्थानों‍का‍अध्ययन‍ककया,‍िायस‍औि‍लोवेल‍ने‍
इस ववर्य में तकष‍ ददया‍ कक‍ इस‍ तिह‍ के‍ अध्ययन‍ अिूिे‍ थे‍ पिं तु‍ इसके ललए उन्द्होंने‍ कोई‍
गहन तकष‍नहीं‍ ददया।‍उन्द्होंने‍ इस ववर्य पि बल दे ते हुए कहा‍है कक‍न‍ केवल‍सिकाि‍के‍
सैद्िांततक‍आिािों‍का‍अध्ययन‍किना‍आवश्यक‍है ,‍बष्ल्क ‘सिकाि‍की‍प्रथाओं’‍को‍उजागि‍
किना‍र्ी‍उतना‍ही‍महत्त्‍
वपूण‍ष है ,‍जो‍संस्थागत‍उपागम‍ से‍ पहले‍ के‍ ववचािों में‍ गायब‍था।‍
इसके साथ ही‍एक‍शोिकताष‍ को‍िाजनीततक‍व्यवस्था‍की‍बेहति‍समझ‍औि‍तुलना‍के‍ललए‍
तथ्यों‍औि‍सैद्िांततक‍तकों‍दोनों‍पि‍ध्यान‍केंदरत‍किना‍चादहए।‍आंकड़ों के एकत्रीकिण हे तु
उन्द्होंने‍गुणात्मक‍औि‍मात्रात्मक‍दोनों‍ववधियों‍को प्रयोग‍किने‍का‍र्ी सुझाव‍ददया।

बीसवीं‍ शताब्दी‍ के‍ पूवाषि‍ष तक‍ संस्थागत‍ उपागम‍ िाजनीततक‍ ववज्ञान‍ के‍ अनुशासन‍ के‍
मुख्य‍स्तंर्ों‍में ‍ से‍ एक‍था।‍अनेक‍ववद्वानों‍ने‍ इस ववर्य में ‍ ववलर्न्द्न‍संस्थाओं‍ कक र्ूलमका
को‍ समझने‍ का‍ प्रयास‍ ककया।‍ उदाहिण‍ के‍ ललए,‍ संयुक्त‍ िाज्य‍ अमेरिका‍ के‍ पूव‍ष िाष्रपतत‍
वुडिो‍ ववल्सन‍ ने‍ संयुक्त‍ िाज्य‍ अमेरिका‍ औि‍ यूिोप‍ की‍ सिकािों‍ की‍ तुलना‍ किते हुए
बतलाया कक‍ अमेरिकी‍ सिकाि‍ यूिोपीय‍ सिकािों‍ से‍ क्या‍ सीख‍ सकती‍ है ‍ (डोइग,‍ 1983)।‍
संस्थागत‍ उपागम‍ की‍ कुछ‍ ववलशष्ि‍ ववशेर्ताएाँ‍ होती‍ हैं‍ जो‍ इस उपागम‍ को‍ ववस्ताि‍ से‍
समझने‍ में‍ सहायता प्रदान‍किती‍हैं‍ गाइ‍पीिसष‍ (1999)।‍संस्थागत‍उपागम‍की‍ववशेर्ताओं‍
को‍तनमनानस
ु ाि‍सूचीबद्ि‍किते‍हैं

1.3.1. संस्थाित उपािम के लक्षण

1.3.1.1 ववगधपरायणता : संस्थागत‍ उपागम‍ ने‍ ववलर्न्द्न‍ संस्थानों‍ की‍ तुलना‍ में‍ कानून‍ को‍
केंरीय‍स्थान‍ददया।‍ऊपि‍ललर्खत‍ववल्सन‍के‍उदाहिण‍में‍ र्ी,‍सिकाि‍के‍प्रकािों‍पि‍उनके‍
द्वािा बल दे ने के‍ माध्यम‍ से‍ कानन
ू ‍ की‍ प्रमुखता‍ ददखती‍ हैं।‍ कानून‍ की‍ प्रमुखता‍ को‍ मोिे ‍
तौि‍पि‍इस‍तथ्य‍के‍ललए‍ष्जममेदाि‍ठहिाया‍जा‍सकता‍है ‍कक‍कानून‍िाजनीततक‍जीवन‍का‍
आिाि‍ है ‍ औि‍ नागरिकों‍ के‍ व्यवहाि‍ को‍ महत्त्‍वपूण‍ष रूप‍ से‍ प्रर्ाववत‍ किता‍ है ।‍ उपागम‍ में ‍
इसकी‍केंरीयता‍के‍बावजूद,‍ववद्वान‍कानून‍औि‍समाज‍के‍बीच‍संबंिों‍की‍व्याख्या‍में ‍लर्न्द्न‍
हैं।‍गाइ‍पीिसष‍ (1999)‍का‍मानना‍है ‍ कक‍िाजनीततक‍ज्ञान‍के‍आिाि‍के‍रूप‍में ‍ कानून‍के‍
अध्ययन‍ने‍प्रलशया‍िाज्य‍में ‍औि‍उसके‍बाद‍जमषनी‍में ‍अपनी‍प्रशंसा प्राप्त की।

24 | पष्ृ ‍

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

1.3.1.2 संरचनावाद : संस्थागत‍उपागम‍के‍ववद्वानों‍के‍अनुसाि,‍संिचना‍द्वािा ही‍व्यवहाि‍


को‍ तनिाषरित‍ ककया‍ गया है ‍ इसललए,‍ प्रमुख‍ संस्थागत‍ ववशेर्ताओं‍ तथा आदशष‍ प्रकाि‍ की‍
सिकाि—ष्जसमें‍ संसदीय‍या‍िाष्रपतत‍प्रकाि शालमल है ,‍इसके तहत संसद के‍ववलर्न्द्न‍मॉडल‍
औि‍िाष्रपतत‍सिकािों‍पि‍बड़े‍पैमाने‍ पि‍शोि‍ककया‍गया।‍इस‍उपागम‍में ‍ अध्ययन‍की गई
संिचना औपचारिक‍ औि‍ संवैिातनक थी ष्जसके ववर्य में‍ शोिकताष‍ द्वािा‍ यह िािणा‍ िखी
गई‍कक‍संिचना‍के‍मुख्य‍पहलओ
ु ं‍ की‍पहचान‍किके‍प्रणाली‍के‍व्यवहाि‍का‍अनुमान‍लगाया‍
जा‍सकता‍है ।

1.3.1.3 साकल्यवाद : संस्थागत‍ उपागम‍ का‍ उपयोग‍ किने‍ वाले‍ शोिकताषओं ने‍ संपण
ू ‍ष
प्रणाललयों‍ की‍ तुलना‍ किने का प्रयास ककया।‍ यद्यवप‍ इस ववर्य का‍ सामान्द्यीकिण‍ किना‍
कदठन‍है ‍ क्योंकक‍शोिकताष‍ बड़ी‍प्रणाललयों‍का‍ही‍अध्ययन‍किते‍ हैं,‍ष्जससे‍ उन्द्हें ‍ िाजनीततक‍
जीवन‍ की‍ जदिल‍ प्रकृतत‍ औि‍ व्यवहाि‍ को‍ प्रर्ाववत‍ किने‍ में ‍ ववलर्न्द्न‍ पहलुओ‍ं की‍ पिस्पि‍
कक्रया‍से‍सुसष्ज्जत‍ककया‍जा सके।

1.3.1.4 ऐततहाभसकता : समकालीन‍ िाजनीततक‍ संस्थाएाँ‍ तनस्संदेह‍ अपनी‍ ऐततहालसक‍


परिष्स्थततयों‍में‍ अंततनषदहत‍हैं।‍संस्थागत‍उपागम‍ में ‍ उन‍संस्थानों‍का‍ऐततहालसक‍ववश्लेर्ण‍
शालमल‍ था‍ ष्जन्द्हें ‍ शोिकताष‍ समझने‍ औि‍ ववश्लेर्ण‍ किने‍ के‍ ललए‍ तैयाि‍ है ।‍ ऐततहालसक‍
परिष्स्थततयों‍की‍समझ‍से‍ शोिकताष‍ को‍उधचत‍र्ववष्यवाणी‍के‍ललए‍ववकास‍के‍प्रततरूप‍को‍
समझने‍ में‍ मदद‍लमलती‍है ।‍ऐततहालसक‍परिष्स्थततयााँ‍ समाज‍औि‍िाजनीतत‍के‍बीच‍जदिल‍
संबंिों‍ की‍ र्लू मका‍ पि‍ र्ी‍ ववचाि‍ किती‍ हैं‍ जो‍ िाजनीततक‍ व्यवस्था‍ का‍ ही‍ एक‍ समद्
ृ ि‍
परिप्रेक्ष्य‍प्रस्तत
ु ‍किती‍हैं।
1.3.1.5 सामान्यता : संस्थागत‍ उपागम‍ प्रकृतत‍ से‍ तनयामक‍ था।‍ जीवन‍ क्या‍ होना‍ चादहए‍
औि‍ इसे‍ प्राप्त‍ किने‍ में ‍ अच्छी‍ सिकाि‍ की‍ क्या र्लू मका‍ होंगी जैसे‍ प्रश्नों‍ से‍ संबधं ित‍ था।‍
व्यवहािवादी‍ ववद्वानों‍ द्वािा‍ संस्थागतवाददयों‍ के‍ आदशाषत्मक‍ ववश्लेर्ण‍ पि‍ हमला‍ ककया‍
गया,‍ष्जसके‍बािे ‍में‍हम‍बाद‍के‍खंडों‍में ‍चचाष‍किें गे।

1.3.2 आलोचना

संस्थागत‍ उपागम,‍ अनुशासन‍ में ‍ प्रमुख‍ था,‍ हालााँकक‍ इसमें ‍ कलमयााँ‍ हैं‍ जो‍ मुख्य‍ रूप‍ से‍
व्यवहािवादी ववद्वानों‍द्वािा‍इंधगत‍की‍गई‍थीं।‍िाजनीततक ववज्ञान‍ववर्य‍में ‍ वैज्ञातनक‍क्रांतत‍
का‍ मतलब‍ था‍ कक‍ तथ्य-आिारित‍ लसद्िांतों‍ के‍ ललए‍ उपागम‍ की‍ काल्पतनक‍ प्रकृतत‍ को‍
खारिज‍ कि‍ ददया‍ गया‍ था।‍ इन‍ कलमयों‍ को‍ इंधगत‍ किने‍ का‍ प्रयास‍ यहााँ‍ किें गे‍ ष्जनका‍
25 | पष्ृ ‍ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

संस्थागत‍उपागम‍सामना‍किता‍है।‍जैसा‍कक‍पहले‍उल्लेख‍ककया‍गया‍है ,‍संस्थागत‍उपागम‍
ने‍िाजनीततक‍व्यवस्था‍की‍व्याख्या‍में ‍संिचना‍को‍एक‍प्रमुख‍र्ूलमका‍प्रदान की हैं।‍हालााँकक,‍
उपागम‍ की‍ इस‍ संिचनात्मक‍ प्रकृतत‍ ने‍ कुछ ‘महापुरुर्ों’‍ को‍ छोड़कि‍ व्यवस्था‍ के‍ पोर्ण‍ में ‍
व्यष्क्तयों‍ या‍ समूहों‍ की‍ र्ूलमका‍ पि‍ ववचाि‍ नहीं‍ ककया।‍ आज‍ की‍ वैश्वीकृत‍ दतु नया‍ से‍ यह‍
बहुत‍ स्पष्ि‍ है ‍ कक‍ िाज्य‍ के‍ गैि-संिचनात्मक‍ पहलू‍ जैसे‍ कॉपोिे ि‍ औि‍ अन्द्य‍ गैि-िाज्य‍
अलर्नेता‍ र्ी‍ इस व्यवस्था‍ पि‍ एक‍ मजबूत‍ प्रर्ाव‍ िखते‍ हैं।‍ इसके‍ अलावा,‍ िॉय‍ मैकक्रडडस‍
(1955)‍ने‍ तकष‍ददया‍कक‍औपचारिक‍संस्थानों‍का‍अध्ययन‍किने‍ के‍ललए‍संस्थागतवाद‍की‍
प्रववृ त्त‍ ने‍ इस‍ उपागम‍ को‍ यूिो-केंदरत‍ प्रकृतत‍ में ‍ संकीणष‍ बना‍ ददया।‍ आलमंड‍ औि‍ कोलमैन‍
(1960)‍ने‍ यह‍र्ी‍बताया‍कक‍संस्थागत‍उपागम‍को‍एक‍संकि‍का‍सामना‍किना‍पड़ता है ‍
क्योंकक‍ यह‍ तीसिी‍ दतु नया‍ के‍ दे शों‍ की‍ िाजनीततक‍ व्यवस्था‍ को‍ समझ‍ नहीं‍ सका‍ जहााँ‍ यह
संस्थान‍यूिोपीय‍समकक्षों‍की‍तिह‍कम‍या‍ववकलसत‍ही‍नहीं‍थे।

संस्थागत‍उपागम‍की ऐततहालसकता‍औि‍मानक‍ववश्लेर्ण‍पि‍अनुशासन‍में ‍ व्यावहारिक‍


क्रांतत‍के‍साथ‍हमला‍हुआ।‍व्यवहािवादी‍ववद्वानों‍ने‍ िाजनीततक‍व्यवस्था‍को‍समझने‍ औि‍
र्ववष्य‍ के‍व्यवहाि‍ की‍ र्ववष्यवाणी‍ किने‍ के‍ ललए‍ तथ्यों‍पि‍ अधिक‍ जोि‍ ददया,‍आदशष‍ से‍
तथ्य‍को‍अलग‍किने‍के‍ललए‍िै ली‍की,‍औि‍क्या‍होना‍चादहए‍के‍मानक‍प्रश्न‍के‍बजाय‍यह‍
समझने‍ में ‍ लगे‍ िहे कक‍ क्या‍ है ।‍ इसके‍ अलावा,‍ उपागम‍ का‍ समग्र‍ अनुसंिान,‍ ष्जसके‍ कई‍
फायदे ‍ हैं,‍इसमें न‍केवल‍सामान्द्यीकिण‍किना‍बष्ल्क‍इनकी तुलना‍किना‍र्ी‍मष्ु श्कल‍बन‍
जाता‍ है ।‍ मैकक्रडडस‍ (1960)‍ इस‍ संबंि‍ में ‍ उस समय सही‍ थे‍ जब‍ उन्द्होंने‍ बतलाया‍ कक‍
तल
ु नात्मक‍ िाजनीतत‍ तल
ु नात्मक‍ की‍ तल
ु ना‍ में ‍ अधिक‍ वणषनात्मक‍ है ।‍ इस‍ पि‍ थोड़ा‍ औि‍
ववस्ताि‍किने‍ के‍ललए,‍यदद‍हम‍र्ाित‍औि‍इंग्लैंड‍की‍िाजनीततक‍व्यवस्था‍पि‍शोि‍किते‍
हैं,‍ तो‍ हम‍ समग्र‍ उपागम‍ के‍ माध्यम‍ से‍ िाजनीततक‍ व्यवस्था‍ को‍ समझने‍ औि‍ औपचारिक‍
संस्थानों‍का‍अध्ययन‍किने‍ का‍प्रयास‍किते‍ हैं‍ ष्जसके अंतगषत‍पद्ितत‍संबंधित‍िाजनीततक‍
प्रणाललयों‍की‍तल
ु ना‍के‍बजाय‍उनका‍वणषन‍किती‍है ।
1.3.3 समापन हटप्पणी

इसकी‍ कलमयों‍ के‍ बावजूद,‍ यह‍ तकष‍ ददया‍ जा‍ सकता‍ है ‍ कक‍ संस्थागत‍ उपागम‍ िाजनीतत‍
ववज्ञान‍ अनस
ु ंिान‍ के‍ स्तंर्ों‍में ‍ से‍ एक‍ है ।‍ औपचारिक‍संस्थानों‍औि‍समाज‍के‍ साथ‍उनके‍
संबंिों‍पि‍आज‍र्ी‍ककए‍गए‍शोि‍की‍ववशाल‍मात्रा‍इस‍उपागम‍की‍प्रमुखता‍का‍एक‍तनयम‍
है ।‍ व्यावहारिक‍ क्रांतत‍ ने‍ तनष्श्चत‍ रूप‍ से‍ उस‍ उपागम‍ की‍ कमी‍ की ओि‍ इंधगत‍ ककया‍ है ,‍

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

लेककन‍इनमें‍ से कुछ‍कलमयों‍को‍नए‍संस्थागत‍उपागम‍के‍उदय‍से‍ संबोधित‍ककया‍गया‍है ,‍


ष्जसके‍बािे ‍में ‍आप‍अगले‍अध्याय‍में ‍अधिक‍जानेंगे।

1.4 प्रणाली उपािम

िाजनीततक ववज्ञान‍ में‍ व्यवस्था‍ उपागम‍ की‍ उत्पवत्त‍ तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ के‍ पािं परिक‍
उपागमों‍ की‍ आलोचना‍ में‍ हुई‍ है ।‍ प्रणाली‍ उपागम‍ सदहत‍ आिुतनक‍ उपागम‍ के‍ समथषकों‍ ने‍
अनुशासन‍के‍सख्त‍ववर्ाजन‍को‍खारिज‍कि‍ददया,‍जो‍पािं परिक‍उपागम‍का‍परिणाम‍था।‍
उन्द्होंने‍ ववलर्न्द्न‍अनुशासनात्मक‍ववधियों‍के‍एकीकिण‍के‍कािणों का‍समथषन‍ककया।‍ववशेर्‍
रूप‍से,‍उन्द्होंने‍सामाष्जक‍घिनाओं‍को‍तनष्पक्ष‍रूप‍से‍समझने‍औि‍ऐसे‍वस्तुतनष्ठ‍ववश्लेर्ण‍
के‍ माध्यम‍ से‍ र्ववष्यवार्णयों‍ को‍ अधिक‍ सुसंगत‍ बनाने‍ के‍ ललए‍ प्राकृततक‍ ववज्ञान‍ से‍
आकवर्षत‍होने‍ की‍आवश्यकता‍हे त‍ु तकष‍ददया।‍प्रणाली‍उपागम‍की‍उत्पवत्त,‍सामान्द्य‍रूप‍से,‍
जमषन‍जीवववज्ञानी‍लुडववग‍वॉन‍बिष लान्द्फी‍से‍ समझी जा‍सकती है ,‍ष्जन्द्होंने‍ सर्ी‍प्राकृततक‍
ववज्ञानों‍ के‍ एकीकिण‍ के‍ आंदोलन‍ का‍ बीड़ा‍ उठाया‍ था।‍ यह‍ िाजनीतत‍ ववज्ञान‍ में ‍ क्रमशः‍
एलमल‍ दख
ु ीम,‍िॉबिष ‍ के.‍मेिषन‍औि‍िै ल्कॉि‍ पासषन्द्स‍के‍कायों‍के‍माध्यम‍से‍ नवृ वज्ञान‍औि‍
समाजशास्त्र‍जैसे‍ ववर्यों‍में ‍ अपने‍ आवेदन‍के‍माध्यम‍से‍ आया‍था।‍यद्यवप ‘प्रणाली’‍शब्द‍
की‍ परिर्ार्ा‍ अलग-अलग‍ ववर्यों‍ में‍ लर्न्द्न-लर्न्द्न‍ होती‍ है ,‍ बिष लान्द्फी‍ (1956)‍ ने‍ इसे
“अंतःकक्रया‍ में ‍ शालमल‍ तत्त्‍वों‍ के एक‍ समह
ू ”‍ के‍ रूप‍ में ‍ वर्णषत‍ ककया।‍ दस
ू िी‍ ओि,‍ मोिष न‍
कैपलन‍(1967),‍प्रणाली‍ववश्लेर्ण‍के‍उद्दे श्य‍को‍परिर्ावर्त‍किता‍है , “अंतसंबंधित‍चि‍के‍
एक‍ समह
ू ‍ का‍ अध्ययन,‍ जैसा‍ कक‍ समह
ू ‍ के‍ वाताविण‍ से‍ अलग‍ है ,‍ औि‍ उन‍ तिीकों‍ से‍
ष्जसमें‍यह‍समह
ू ‍प्रर्ाव‍के‍तहत‍बनाए‍िखा‍जाता‍है ,‍पयाषविण‍की‍गड़बड़ी‍के‍कािण।”

1.4.1 प्रणाली की ववशेषताएाँ

डेववड‍एप्िि‍(1978)‍ने‍प्रणाललयों‍को‍तनमनललर्खत‍तिीके‍से‍धचत्रत्रत‍ककया—
1. प्रणाली‍अपनी‍तनददष ष्ि‍सीमाओं‍या‍वाताविण‍के‍र्ीति‍ककसी‍प्रकाि‍के‍संचाि‍के‍आिाि‍
पि‍ तत्त्‍वों‍ के‍ बीच‍ कायाषत्मक‍ अंति-संबंिों‍ से‍ बना‍ होता‍ है ।‍ ऐसी‍ प्रणाली‍ में ‍ तत्त्‍व‍
यादृष्च्छक‍ एकत्रीकिण‍ नहीं‍ हैं,‍ लेककन‍ उनकी‍ अन्द्योन्द्याश्रयता‍ प्रणाली‍ के‍ अष्स्तत्व‍ की‍
अनम
ु तत‍दे ती‍है ।
2. एक‍प्रणाली‍के‍र्ीति‍उप-प्रणाललयााँ‍होती‍हैं।
3. प्रणाली‍ मााँग‍ औि‍ समथषन‍ के‍ रूप‍ में ‍ इनपुि‍ लेता‍ है ।‍ प्रणाली‍ उन‍ इनपुि‍ को‍ कानूनों‍

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

औि‍नीततयों‍के‍रूप‍में‍आउिपुि‍में ‍अनुवाद‍किता‍है ।

जैसा‍कक‍ऊपि‍बताया‍गया‍है ,‍प्रणाली‍उपागम‍अन्द्य‍ववर्यों‍से‍ बहुत‍अधिक‍आकवर्षत‍होता‍


है ‍ औि‍ववर्यों‍के‍सख्त‍ववर्ाजन‍को‍अस्वीकाि‍किता‍है ।‍प्रणाली‍की‍अविािणा‍ने‍ उपागम‍
को‍ िाज्य,‍ औपचारिक‍ संस्थानों‍ औि‍ ऐततहालसकता‍ पि‍ अत्यधिक‍ ध्यान‍ केंदरत‍ किने‍ की‍
अनुमतत‍ दी‍ औि‍ हमें ‍ सामाष्जक‍ औि‍ सांस्कृततक‍ संस्थानों‍ सदहत‍ अततरिक्त-कानूनी‍ मामलों‍
को‍समझने‍ की‍अनम
ु तत‍दी।‍इस‍प्रकाि‍यह‍िाजनीततक‍प्रणाललयों‍को‍समझने‍ के‍ललए‍एक‍
बहु-ववर्यक‍ या‍ अंति-अनश ु ासनात्मक‍ उपागम‍ बनाता‍ है ।‍ यह‍ उपागम‍ ववस्तत
ृ ‍ आाँकड़ों‍ को‍
छााँिने‍औि‍प्रणाली‍के‍प्रततरूप‍को‍समझने‍में ‍बेहद‍मददगाि‍है ।‍यह‍शोिकताष‍को‍उक्त‍चािों‍
का‍ वस्ततु नष्ठ‍ अध्ययन‍ किके‍ इततहास‍ या‍ मानक‍ प्रश्नों‍ पि‍ बहुत‍ अधिक‍ जोि‍ ददए‍ त्रबना‍
िाजनीततक‍ व्यवस्था‍ के‍ ववकास‍ की‍ ददशा‍ को‍ समझने‍ में ‍ सक्षम‍ बनाता‍ है ।‍ हालााँकक,‍
सामाष्जक‍ ववज्ञानों‍ में‍ प्रणाली‍ लसद्िांत‍ का‍ उपयोग‍ सामाष्जक‍ वास्तववकताओं‍ को‍ ध्यान‍ में ‍
िखते‍ हुए‍अत्यंत‍परिश्रम‍के‍साथ‍ककया‍जाना‍है ।‍प्राकृततक‍वस्तुओं‍ के‍ववपिीत,‍जो‍प्रकृतत‍
में‍ ष्स्थि‍होती‍हैं,‍सामाष्जक‍वस्तुएाँ‍ बहुत‍अधिक‍अष्स्थि‍होती‍हैं,‍औि‍सामाष्जक‍घिनाओं‍
को‍समझने‍ में‍ प्रणाली‍लसद्िांत‍को‍लागू‍ किते‍ समय‍इसे‍ ध्यान‍में ‍ िखा‍जाना‍चादहए।‍इस‍
संबंि‍में‍ कापलान‍ने‍ ठीक‍ही‍बताया‍कक‍सामाष्जक‍शोिकताष‍ को‍प्राकृततक‍ववज्ञान‍ववधियों‍
औि‍सामाष्जक‍वास्तववकता‍की‍जदिलताओं‍के‍बीच ‘संतुलन’‍के‍रूप‍में ‍कायष‍किना‍चादहए।

वातावरण

मााँग राजनीततक व्यवस्था कानून

सहयोग नीततयााँ

प्रततपुति

िाजनीततक‍व्यवस्था‍का‍एक‍सिल‍आिे खीय‍ववविण

28 | पष्ृ ‍

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

1.4.2 डेववड ईस्टन का प्रणाली ववश्लेषण

डेववड‍ ईस्िन‍ ने‍ िाजनीतत‍ ववज्ञान‍ अनुशासन‍ में ‍ प्रणाली‍ ववश्लेर्ण‍ के‍ आंदोलन‍ का‍ बीड़ा‍
उठाया।‍ उनके‍ प्रलसद्ि‍ कायष,‍ ए‍ लसस्िमस‍ एनालललसस‍ ऑफ‍ पॉललदिकल‍ लाइफ‍ (1965)‍ ने
“लसद्िांत‍ के‍ स्ति‍ पि‍ व्यवस्था‍ किने‍ औि‍ एक‍ नए‍ औि‍ सहायक‍ तिीके‍ से‍ िाजनीततक‍
घिनाओं‍ की‍ व्याख्या‍ किने‍ के‍ ललए‍ अविािणाओं‍ का‍ एक‍ मूल‍ समूह”‍ प्रदान‍ ककया‍ (डेववस‍
औि‍ लई
ु स‍ 1971)।‍ ईस्िन‍ ऐसे‍ िाजनीततक‍ लसद्िांत‍ को बढ़ावा दे िहे थे जो‍ िाष्रीय‍ औि‍
अंतिाषष्रीय‍दोनों‍िाजनीततक‍प्रणाललयों‍को‍समझाने‍में ‍सक्षम‍है ‍तथा जो‍इनकी‍तुलना‍किने‍
में‍ कािगि लसद्ि होता है ।‍उन्द्होंने‍पािं परिक‍उपागम‍के‍ववद्वानों‍को‍जो मानक ववश्लेर्ण से
ग्रस्त थे खारिज‍कि‍ददया,‍औि‍िाजनीततक‍व्यवस्था‍को‍समझने‍ के‍ललए‍वैज्ञातनक‍तिीकों‍
की‍ आवश्यकता‍ के‍ कािण‍ का‍ समथषन‍ ककया।‍ ईस्िन‍ ने‍ अपने‍ ववलर्न्द्न‍ लेखो में ‍ प्रणाली‍
ववश्लेर्ण‍ पि‍ व्यापक‍ रूप‍ से‍ ललखा‍ है ,‍ हम‍ उनके‍ लसद्िांत‍ को‍ संक्षेप‍ में‍ प्रस्तत
ु ‍ किने‍ का‍
प्रयास‍किें गे।

डेववड‍ईस्िन‍ने‍िाजनीततक‍लसद्िांत‍में ‍प्रचललत‍मौजूदा‍परिर्ार्ाओं‍का‍उपयोग‍किने‍के‍
बजाय ‘िाजनीतत’‍ औि ‘िाजनीततक‍ व्यवस्था’‍ शब्दों‍ के‍ ललए‍ नई‍ परिर्ार्ाएाँ‍ गढ़ी।‍ ईस्िन‍ के‍
ललए,‍ िाजनीतत “मूल्यों‍ का‍ आधिकारिक‍ आवंिन”‍ है ।‍ एक‍ िाजनीततक‍ व्यवस्था,‍ इसललए‍ र्ी
“सामाष्जक‍ व्यवहाि‍ की‍ समग्रता‍ से‍ अमूत‍ष अंतःकक्रयाओं‍ का‍ एक‍ समूह‍ है ,‍ क्योंकक इसके
माध्यम‍से‍समाज‍के‍ललए‍मूल्यों‍को‍आवंदित‍ककया‍जाता‍है ”‍(ईस्िन‍1956)।‍यह‍ध्यान‍में ‍
िखा‍जाना‍चादहए‍कक‍ईस्िन‍के‍ललए ‘मल्
ू य’ शब्द मल्
ू य-आिारित‍िाजनीतत‍के‍समान‍नहीं‍
हैं।‍ जौहिी‍ (2011)‍ का‍ तकष‍ है ‍ कक‍ इस‍ शब्द‍ का‍ प्रयोग‍ संर्वतः‍ आधथषक‍ अथष‍ में ‍ मल्
ू य‍ या‍
कीमत‍के‍अथष‍ में‍ ककया‍गया‍था।‍ईस्िन‍का‍मानना‍है ‍ कक‍सत्ता‍में ‍ िहने‍ वाले‍ लोग‍मल्
ू यों‍
को‍तनिाषरित‍किते‍हैं,‍औि‍िाजनीतत‍मल्
ू यों‍का‍आवंिन‍बन‍जाती‍है ।‍

प्राकृततक‍औि‍सामाष्जक‍प्रणाललयों‍में‍कुछ‍सामान्द्य‍गुण‍होते‍हैं,‍जैसे‍एक‍मुकाबला‍तंत्र‍
जो‍उन्द्हें ‍ उत्पन्द्न‍होने‍ वाली‍गड़बड़ी‍से‍ तनपिने‍ में ‍ सक्षम‍बनाता‍है ।‍ईस्िन‍ने‍ तकष‍ददया‍कक‍
िाजनीततक‍व्यवस्था‍में ‍ अपनी‍प्रकक्रया‍को‍सही‍किने,‍बदलने‍ औि‍कफि‍से‍ समायोष्जत‍किने‍
के‍ ललए‍ एक ‘प्रततकक्रया’‍ औि ‘स्व-ववतनयमन’‍ तंत्र‍ है ।‍ इसललए‍ िाजनीततक‍ व्यवस्था‍ केवल‍
ष्स्थि‍ नहीं‍ बष्ल्क‍ एक‍ गततशील‍ मामला‍ है ,‍ हालााँकक‍ प्रत्येक‍ प्रणाली‍ अपनी‍ पहचान‍ को‍
बिकिाि‍ िखने‍ की‍ कोलशश‍ किती‍ है ।‍ यह‍ एक ‘फीडबैक’‍ तंत्र‍ के‍ माध्यम‍ से‍ होता‍ है ‍ जो‍
पयाषविण‍से‍ िाजनीततक‍व्यवस्था‍तक‍सूचना‍प्रसारित‍किता‍है ।‍ईस्िन‍का‍तकष‍है ‍ कक‍एक‍

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

िाजनीततक‍ व्यवस्था‍ को‍ अर्ी‍ र्ी‍ पयाषविण‍ से‍ चुनौततयों‍ का‍ सामना‍ किना‍ पड़‍ सकता‍ है ,‍
ष्जसे‍ वे‍ तनाव‍ कहते‍ हैं।‍ तनाव‍दो‍ प्रकाि‍के‍ होते‍ हैं—मााँग‍ तनाव‍औि‍ समथषन‍ तनाव।‍यदद‍
प्रणाली‍फीडबैक‍पि‍ववचाि‍किने‍ में ‍ ववफल‍िहता‍है ‍ या‍कुछ‍मााँगों‍को‍पूिा‍किने‍ में ‍ ववफल‍
िहता‍ है,‍ तो‍ मााँग‍ तनाव‍ उत्पन्द्न‍ हो‍ सकता‍ है ।‍ इसे “मााँग-इनपुि‍ अधिर्ाि”‍ कहा‍ जाता‍ है ।‍
समथषन‍तनाव‍तब‍उत्पन्द्न‍होता‍है ‍ जब‍िाजनीततक‍व्यवस्था‍के‍सदस्य,‍प्रणाली‍का‍समथषन‍
नहीं‍किते‍हैं‍ष्जसके‍परिणामस्वरूप‍प्रणाली‍ववफल‍हो‍जाती‍है ‍इसललए,‍इनपुि‍औि‍आउिपुि‍
के‍ बीच‍ उधचत‍ संतुलन‍ होना‍ चादहए।‍ इसके‍ अलावा,‍ िाजनीततक‍ व्यवस्था‍ का‍ चुनाव,‍
िाजनीततक‍ दलों‍ औि‍ िाजनीततक‍ ववश्वासों‍ औि‍ व्यवस्था‍ के‍ अष्स्तत्व‍ के‍ ललए‍ लोगों‍ के‍
उपागम‍ जैसे‍ कुछ‍ संिचनात्मक‍ आिािों‍ की‍ र्ी‍ आवश्यकता‍ होती‍ है ।‍ संक्षेप‍ में ,‍ जैसा‍ कक‍
डेववस‍ औि‍ लुईस‍ (1971)‍ ने‍ बताया‍ है ,‍ डेववड ईस्िन के ललए िाजनीततक व्यवस्था‍ एक
“इनपुि-आउिपुि‍ तंत्र‍ है‍ जो‍ िाजनीततक‍ तनणषयों‍ औि‍ इन‍ ष्स्थततयों‍ से‍ जुड़ी‍ गततववधियों‍ से‍
तनपिता‍है”।

1.4.3 आलोचना

हमने‍ उपिोक्त‍चचाष‍ से‍ दे खा‍है ‍ कक‍िाजनीतत‍ववज्ञान‍में ‍ प्रणाली‍ववश्लेर्ण‍प्राकृततक‍ववज्ञान‍


से‍आया‍है ।‍लेककन‍िाजनीतत‍ववज्ञान‍में ‍सामान्द्य‍प्रणाली‍लसद्िांत‍औि‍प्रणाली‍लसद्िांत‍पूिी‍
तिह‍से‍ समान‍नहीं‍ हैं।‍हमने‍ प्रणाली‍की‍ववशेर्ताओं‍ औि‍डेववड‍ईस्िन,‍प्रणाली‍लसद्िांत‍के‍
प्रमुख‍समथषकों‍में ‍से‍एक,‍क्षेत्र‍में ‍योगदान‍को‍र्ी‍दे खा‍है ।‍हालााँकक,‍डेववड‍ईस्िन‍के‍प्रणाली‍
लसद्िांत‍की‍कई‍ववद्वानों‍द्वािा‍िाजनीततक‍प्रणाललयों‍को‍समझने‍ में ‍ उपागम‍की‍सीमाओं‍
के‍ललए‍आलोचना‍की‍गई‍है ।‍हम‍कुछ‍आलोचनाओं‍का‍संक्षेप‍में ‍उल्लेख‍किें गे।

डेववड‍ ईस्िन‍ की ‘िाजनीतत’‍ औि ‘िाजनीततक‍ व्यवस्था’‍ शब्दों‍ की‍ परिर्ार्ा‍ प्रकृतत‍ में ‍
बहुत‍ व्यापक‍ औि‍ सािगलर्षत‍ है ।‍ एक‍ तिफ, “सर्ी‍ घिनाओं‍ को‍ एक‍ प्रणाली‍ के‍ ढााँचे‍ में ‍
मजबूि‍किता‍है ”‍(यंग‍1968)‍एवं‍ दस ू िी‍तिफ ककसी‍र्ी‍परिकल्पना‍औि‍प्रस्ताव‍को‍तैयाि‍
किना‍बहुत‍सािगलर्षत‍है ।‍दस ू िा‍िाजनीततक‍व्यवस्था‍का‍बहुत‍अधिक‍ववविण‍नहीं‍ है ,‍जो‍
इसे‍ प्रकृतत‍में ‍ अस्पष्ि‍बनाता‍है ।‍खुली‍औि‍बंद‍प्रणाली‍के‍बीच‍का‍अंति‍र्ी‍बहुत‍िुंिला‍
है ।‍तीसिा,‍प्रणाली‍लसद्िांत‍केवल‍वतषमान‍को‍ध्यान‍में ‍ िखता‍है ‍ औि‍िाजनीततक‍व्यवस्था‍
की‍ र्ववष्यवाणी‍ किने‍ के‍ ललए‍ आवश्यक‍ ऐततहालसक‍ औि‍ सामाष्जक‍ ष्स्थततयों‍ की‍ उपेक्षा‍
किता‍है ।‍चौथा,‍प्रणाली‍लसद्िांत‍अर्ी‍र्ी‍पािं परिक‍उपागम‍की‍संकीणष‍ प्रकृतत‍की‍समस्या‍
को‍दिू ‍नहीं‍किता‍है ‍औि‍दतु नया‍एवं‍िाजनीतत‍को‍केवल‍पष्श्चमी‍लेंस‍से‍दे खता‍है ।‍अंत‍में ‍

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

ईस्िन‍ ने‍ औपचारिक‍ संस्थानों‍ पि‍ बहुत‍ अधिक‍ जोि‍ दे ने‍ के‍ ललए‍ पािं परिक‍ उपागम‍ की‍
आलोचना‍ की,‍ औि‍ उन्द्होंने‍ एक‍ अलर्नेता‍ के‍ रूप‍ में ‍ व्यष्क्त‍ के‍ माध्यम‍ से‍ िाजनीततक‍
व्यवस्था‍के‍व्यवहाि‍को‍समझने‍की‍कोलशश‍की।‍लेककन‍उनके‍ववश्लेर्ण‍से‍यह‍स्पष्ि‍होता‍
है ‍कक‍ईस्िन‍को‍व्यष्क्त‍में ‍केवल‍तर्ी‍ददलचस्पी‍थी‍जब‍वे‍व्यवस्था‍को‍संिक्षक्षत‍किने‍की‍
प्रकक्रया‍का‍दहस्सा‍हों।‍यद्यवप‍पािं परिक‍उपागम‍से‍ िाष्र‍या‍िाज्य‍शब्द‍को‍िाला‍गया‍है‍
औि‍इसे‍ शब्द‍प्रणाली‍में‍ बदल‍ददया‍गया‍है ,‍लेककन‍जोि‍केवल‍प्रणाली‍पि‍है ।‍इस‍संबंि‍
में,‍वमाष‍ (1975)‍ने‍ ठीक‍ही‍बताया‍कक‍ईस्िन,‍पािं परिक‍उपागम‍को‍व्यावहारिक‍संदर्ष से‍
दिू ‍जाने‍ के‍अपने‍ गंर्ीि‍प्रयासों‍में ,‍खुद‍को‍कहीं‍ बीच‍में ‍ पाता‍है ।‍पॉल‍एफ.‍क्रेस‍(1969)‍
का‍ तकष‍ है ‍ कक‍ इस‍ लसद्िांत‍ में ‍ ईस्िन‍ के‍ प्रणाली‍ ववश्लेर्ण‍ की‍ तिह,‍ तथ्यों‍ का‍ सममान‍
किते‍ हुए‍ककसी‍र्ी‍साि‍का‍अर्ाव‍है ‍ औि‍हमें ‘िाजनीतत‍की‍खाली‍दृष्ष्ि’‍के‍रूप‍में ‍ प्रस्तुत‍
किता‍है ।

1.4.4 समापन हटप्पणी

ववलर्न्द्न‍ववद्वानों‍द्वािा‍उपिोक्त‍आलोचनात्मक‍दिप्पर्णयों‍के‍बावजूद,‍इस‍बात‍से‍ इनकाि‍
नहीं‍ ककया‍जा‍सकता‍है ‍ कक‍िाजनीतत‍ववज्ञान‍में ‍ प्रणाली‍लसद्िांत‍का‍अनुशासन‍पि‍काफी‍
प्रर्ाव‍ पड़ा‍ है ।‍ इसने‍ िाजनीततक‍ व्यवस्था‍ का‍ एक‍ वह
ृ द‍ ववश्लेर्ण‍ प्रदान‍ ककया‍ ष्जसका‍
तनष्पक्ष‍अध्ययन‍ककया‍जा‍सकता‍था।‍इसने‍ गैि-पष्श्चमी‍दतु नया‍की‍िाजनीततक‍व्यवस्थाओं‍
का‍ अध्ययन‍ किके‍ अनुशासन‍ के‍ दायिे ‍ को‍ र्ी‍ ववस्तत
ृ ‍ ककया।‍ हालााँकक‍ ईस्िन‍ पािं परिक‍
दृष्ष्िकोणों‍ औि‍ व्यावहारिक‍ दृष्ष्िकोणों‍ के‍ बीच‍ में ‍ लिके‍ हुए‍ थे,‍ तथ्यों‍ पि‍ उनके‍ जोि‍ ने‍
अनश
ु ासन‍में ‍वैज्ञातनक‍क्रांतत‍का‍नेतत्ृ व‍ककया,‍जैसा‍कक‍हम‍आज‍दे खते‍हैं।

1.5 संरचनात्मक कायाटत्मकता

संिचनात्मक‍ प्रकायषवाद‍ तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ में ‍ तीसिा‍ उपागम‍ है ‍ ष्जसकी‍ चचाष‍ हम‍ इस‍
अध्याय‍में ‍ संस्थागत‍औि‍प्रणाली‍उपागम‍को‍िे खांककत‍किने‍ के‍बाद‍कि‍सकते‍ हैं।‍संक्षेप‍
में,‍ संिचनात्मक-कायाषत्मकता‍ का‍ अथष‍ है ‍ जांच‍ के‍ एक‍ उपकिण‍ के‍ रूप‍ में ‍ िाजनीततक‍
संिचनाओं‍ के‍कायों‍की‍व्याख्या‍किना‍है ।‍उदाहिण‍के‍ललए‍यदद‍कोई‍शोिकताष‍ र्ाित‍औि‍
यूनाइिे ड‍ककंगडम‍में ‍ प्रिान‍मंत्री‍की‍संस्था‍की‍तुलना‍किना‍चाहता‍है ,‍तो‍वह‍र्ाित‍औि‍
यूनाइिे ड‍ककंगडम‍के‍संबंधित‍प्रिानमंत्रत्रयों‍द्वािा‍ककए‍गए‍कायों‍को‍समझकि‍समानता‍औि‍
अंति‍का‍पता‍लगा‍सकता‍है ।‍लेककन‍इससे‍पहले‍कक‍हम‍उपागम‍की‍ववस्तत
ृ ‍चचाष‍किें ,‍हमें ‍

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

एक‍संिचना‍औि‍कायष‍क्या‍हैं,‍इसकी‍बुतनयादी‍समझ‍की‍आवश्यकता‍है ।‍यहााँ‍इस‍बात‍पि‍
कफि‍ से‍ जोि‍ दे ने‍ की‍ आवश्यकता‍ नहीं‍ है ‍ कक‍ संिचना‍ औि‍ कायष‍ की‍ परिर्ार्ाएाँ‍ न‍ केवल‍
अनुशासन‍के‍आिाि‍पि‍लर्न्द्न‍होती‍हैं‍ बष्ल्क‍अनुशासन‍के‍र्ीति‍के‍ववद्वानों‍के‍बीच‍र्ी‍
लर्न्द्न‍होती‍हैं।‍एक‍िाजनीततक‍व्यवस्था‍के‍र्ीति‍की‍व्यवस्था‍जो‍एक‍कायष‍ या‍कुछ‍कायष‍
किती‍ है ,‍ मोिे ‍ तौि‍ पि‍ संिचना‍ कहलाती‍ है ।‍ ये‍ कायष‍ सिल‍ या‍ जदिल‍ हो‍ सकते‍ हैं।‍ इसके‍
अलावा,‍यह‍एक‍मामला‍हो‍सकता‍है ‍ कक‍संिचना एकल‍कायष‍ कि‍सकती‍है ,‍या‍संिचनाओं‍
के‍समूह‍एक‍साथ‍जदिल‍कायष‍ कि‍सकते‍ हैं।‍उपिोक्त‍चचाष‍ से‍ यह‍स्पष्ि‍होना‍चादहए‍कक‍
फंक्शन‍क्या‍है ,‍लेककन‍इसे‍ सिीक‍शब्दों‍में ‍ परिर्ावर्त‍किना‍आवश्यक‍है ।‍िॉबिष ‍ के‍मेिषन‍
(1959)‍ने‍कायों‍को “उन‍दे खे‍गए‍परिणामों‍के‍रूप‍में ‍परिर्ावर्त‍ककया‍है ‍जो‍ककसी‍दी‍गई‍
प्रणाली‍के‍अनुकूलन‍या‍पुन:‍समायोजन‍के‍ललए‍बनाते‍ हैं;‍औि‍उन‍दे खे‍ गए‍परिणामों‍को‍
खिाब‍ किता‍ है ‍ जो‍ प्रणाली‍ के‍ अनुकूलन‍ या‍ समायोजन‍ को‍ कम‍ किते‍ हैं”।‍ यदद‍ प्रणाली‍
ववश्लेर्ण‍िाजनीततक‍प्रणाली‍को‍इनपुि‍औि‍आउिपुि‍के‍साथ‍एक‍साइबिनेदिक‍मशीन‍के‍
रूप‍में‍मानता‍है ,‍तो‍कायाषत्मकता ‘ऑगेतनक’‍सादृश्य‍को‍स्थान‍दे ती‍है ।

सामाष्जक‍ववज्ञान‍में‍ संिचनात्मक-कायाषत्मक‍उपागम‍ने‍ 1960‍के‍दशक‍के‍मध्य‍तक‍


सामाष्जक‍ ववज्ञान‍ में‍ अपने‍ क्षण‍ को‍ धचष्ननत‍ ककया।‍ यह‍ िाजनीतत‍ ववज्ञान‍ में ‍ व्याख्या‍ के‍
प्रमुख‍तिीकों‍में‍ से‍ एक‍बन‍गया।‍िै डष्क्लफ‍िाउन‍औि‍माललनोवस्की‍दो‍प्रमुख‍ववद्वान‍हैं‍
ष्जन्द्हें ‍ सामाष्जक‍नवृ वज्ञान‍में ‍ संिचनात्मक‍कायाषत्मकता‍की‍शुरुआत‍के‍ललए‍जाना‍जाता‍है ।‍
िाजनीततक‍ समाजशास्त्र‍ में ‍ मैरियन‍ लेवी‍ जूतनयि,‍ िॉबिष ‍ के‍ मिष न‍ औि‍ िै ल्कॉि‍ पासषन्द्स‍ के‍
संिचनात्मक-कायाषत्मक‍ उपागम‍ का‍ िाजनीतत‍ ववज्ञान‍ अनुशासन‍ पि‍ गहिा‍ प्रर्ाव‍ पड़ता‍ है ,‍
ष्जसके‍ बाद‍ संिचनात्मक-कायाषत्मक‍ उपागम‍ का‍ व्यवष्स्थत‍ ववकास‍ हुआ‍ है ।‍ िाउन,‍
माललनोवस्की,‍लेवी,‍मेिषन‍औि‍पासषन्द्स‍के‍ववचािों की ववस्ताि‍से‍ व्याख्या किना‍यहााँ‍ हमािा‍
उद्दे श्य‍नहीं‍ हैं बष्ल्क हम‍ववशेर्‍रूप‍से‍ िाजनीतत‍ववज्ञान‍ववर्य‍में ‍ संिचनात्मक‍प्रकायषवाद‍
पि‍ध्यान‍केंदरत‍किते‍हैं।

हम‍इस‍ववर्य‍के‍कुछ‍ववद्वानों‍का‍संक्षेप‍में ‍ उल्लेख‍किें गे‍ ष्जनके‍ललए‍संिचनात्मक-


कायाषत्मकता‍उपागम‍में‍ वैचारिक‍ढााँचे‍ को‍श्रेय‍ददया जाता‍है ।‍चाँकू क‍अध्याय‍का‍केंर केवल‍
ववद्याधथषयों‍ को‍ संिचनात्मक-कायाषत्मक‍ उपागम‍ से‍ परिधचत‍ किाना‍ है ,‍ इसललए‍ हमें ‍
उष्ल्लर्खत‍प्रत्येक‍ववद्वान‍की‍गहन‍चचाष‍ की आवश्यकता नहीं ददखती‍हैं।‍डेववड‍ईस्िन‍को‍
िाजनीतत‍ववज्ञान‍में ‍ कायाषत्मक‍ववचाि‍के‍प्रमुख‍ववद्वानों‍में‍ से‍ एक‍माना‍जा‍सकता‍है ।‍वह‍

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

िाजनीततक‍व्यवस्था‍की‍ष्स्थिता‍से‍धचंततत‍थे।‍उनके‍अधिकांश‍ववश्लेर्ण‍का‍वणषन‍पहले‍के‍
खंडों‍में‍ ककया‍गया‍था।‍इस‍उपागम‍में ‍ एक‍अन्द्य‍प्रमुख‍ववद्वान‍ववललयम‍सी.‍लमशेल‍हैं।‍
लमशेल,‍ ईस्िन‍ के‍ ववपिीत,‍ िाजनीततक‍ व्यवस्था‍ को‍ सामाष्जक‍ व्यवस्था‍ के‍ साथ‍ भ्रलमत‍
किने‍ की‍ गलती‍ नहीं‍ किते‍ हैं‍ औि‍ इसे‍ सामाष्जक‍ व्यवस्था‍ की‍ एक‍ उप-प्रणाली‍ के‍ रूप‍ में ‍
मानते‍ हैं‍ जो‍सामाष्जक‍व्यवस्था‍के‍लक्ष्यों‍को‍पूिा‍किने‍ के‍ललए‍संसािन‍जुिाने‍ का‍कायष‍
किती‍है ।‍डेववड‍एप्िि‍ने‍युगांडा‍औि‍घाना‍जैसे‍अफ्ीकी‍दे शों‍की‍िाजनीततक‍व्यवस्थाओं‍पि‍
ध्यान‍ केंदरत‍ ककया‍ औि‍ तकष‍ ददया‍ कक‍ तीसिी‍ दतु नया‍ के‍ दे शों‍ में ‍ औपतनवेलशक‍ आकाओं‍
द्वािा‍ लगाए‍ गई ‘आयाततत‍ व्यवस्था’‍ औि‍ पष्श्चमी‍ ववद्वानों‍ की‍ र्ववष्यवाणी‍ के‍ अनुसाि‍
ठीक‍ से‍ काम‍ नहीं‍ किते‍ हैं।‍ उन्द्होंने‍ सिकाि‍ के‍ कायों‍ को‍ समझकि‍ तीसिी‍ दतु नया‍ में ‍
िाजनीततक‍ व्यवस्था‍ को‍ समझने‍ की‍ कोलशश‍ की।‍ इस‍ प्रकाि,‍ संिचनात्मक‍ प्रकायषवाद‍ ने‍
तीसिी‍ दतु नया‍ से‍ संबधं ित‍ िाजनीततक‍ प्रणाललयों‍ को‍ समझने‍ के‍ ललए‍ एक‍ वैचारिक‍ ढााँचा‍
ददया।

गेत्रियल‍ए.‍आलमंड‍एक‍अन्द्य‍िाजनीततक‍वैज्ञातनक‍हैं‍ ष्जन्द्होंने‍ िाजनीततक‍व्यवस्थाओं‍


में‍ पािं परिक‍ िाजनीतत‍ से‍ आिुतनक‍ में ‍ परिवतषन‍ को‍ समझने‍ की‍ कोलशश‍ की।‍ िाजनीततक‍
व्यवस्था‍ के‍ वगीकिण‍ में ,‍ आलमंड‍ के‍ वगीकिण‍ मॉडल‍ में ‍ िाजनीततक‍ व्यवस्था‍ की‍ दक्षता‍
प्रमुख‍ कािक‍ थी।‍ उन्द्होंने‍ वगीकृत‍ ककया‍ कक‍ पािं परिक‍ िाजनीतत‍ कम‍ प्रर्ावी‍ हैं‍ औि‍ एक‍
आिुतनक‍िाजनीततक‍व्यवस्था‍की‍ओि‍बढ़ती‍हैं‍ जो‍सबसे‍ प्रर्ावी‍है ।‍उनका‍मानना‍था‍कक‍
एक‍ शोिकताष‍ जो‍ ववकासशील‍ समाजों‍ में ‍ िाजनीततक‍ परिवतषन‍ को‍ समझना‍ चाहता‍ है ,‍ उसे‍
उधचत‍ ववश्लेर्ण‍ के‍ ललए‍ पष्श्चमी‍ समाजों‍ की‍ िाजनीततक‍ व्यवस्था‍ को‍ समझना‍ होगा।‍
आलमंड‍ के‍ ललए,‍ पष्श्चमी‍ आिुतनक‍ िाजनीततक‍ व्यवस्था‍ एक‍ आदशष‍ िाजनीततक‍ व्यवस्था‍
बनाती‍है ।‍उन्द्होंने‍तकष‍ददया‍कक‍एक‍िाजनीततक‍व्यवस्था‍में‍चाि‍ववशेर्ताएाँ‍होती‍हैं—‍प्रत्येक‍
िाजनीततक‍व्यवस्था‍में‍ववलर्न्द्न‍ववशेर्ज्ञता‍वाली‍संिचनाएाँ‍होती‍हैं;‍संिचनात्मक‍लर्न्द्नता‍के‍
बावजूद,‍ प्रत्येक‍ िाजनीततक‍ व्यवस्था‍ कुछ‍ समान‍ िाजनीततक‍ कायष‍ किती‍ है ;‍ कई‍ संिचनाएाँ‍
कई‍कायष‍ किती‍हैं,‍औि;‍िाजनीततक‍व्यवस्था‍की‍अपनी‍एक‍संस्कृतत‍होती‍है ।‍आप‍अगले‍
अध्याय‍में‍िाजनीततक‍संस्कृतत‍के‍बािे ‍में ‍औि‍जानेंगे‍ष्जसके‍ववर्य में आलमंड‍ने‍तुलना‍के‍
ध्यान‍को‍दे खने‍योग्य‍संस्थागत‍तंत्र‍से‍प्रणाली‍के‍कायों‍में ‍स्थानांतरित‍कि‍ददया।

1.5.1 आलोचना

अनुशासन‍के‍र्ीति‍व्यावहारिक‍क्रांतत‍के‍बाद‍िाजनीततक‍ववज्ञान‍में ‍ संिचनात्मक‍प्रकायषवाद‍

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

प्रमुख‍ व्याख्याओं‍ में ‍ से‍ एक‍ बन‍ गया‍ हालााँकक,‍ इसकी‍ कुछ‍ गंर्ीि‍ सीमाएाँ‍ हैं।‍ हम‍ इस
उपागम‍ की‍ कुछ‍ कलमयों‍ को‍ दे खने‍ का‍ प्रयास‍ किें गे।‍ जैसा‍ कक‍ संिचनात्मक-कायाषत्मक‍
उपागम‍ पि‍ उपिोक्त‍ चचाष‍ से‍ दे खा‍ जा‍ सकता‍ है ,‍ प्रणाली‍ उपागम‍ ष्स्थि‍ संबंिों‍ पि‍ अधिक‍
ध्यान‍ केंदरत‍ किता‍ है ।‍ यह‍ िाजनीततक‍ व्यवस्था‍ के‍ गततशील‍ संबंिों‍ औि‍ ऐततहालसक‍ खाते‍
को‍ ध्यान‍ में ‍ िखने‍ में ‍ ववफल‍ िहता‍ है ।‍ तुलना‍ किने‍ के‍ ललए‍ मात्रात्मक‍ तिीकों‍ की‍ उनकी‍
खोज‍में,‍िाजनीतत‍ववज्ञान‍को‍समद्
ृ ि‍मानक‍प्रश्नों‍के‍उत्ति‍दे ने‍के‍बजाय‍ष्स्थि‍संबंिों‍तक‍
सीलमत‍ कि‍ ददया‍ गया‍ था।‍ दस
ू िे ,‍ ईस्िन,‍ लमशेल,‍ एप्िि,‍ आलमंड‍ औि‍ अन्द्य‍ प्रकायषवादी‍
लसद्िांतकािों‍के‍लसद्िांत‍व्यापक‍रूप‍से‍ प्रणाली‍के‍अष्स्तत्व‍के‍प्रश्नों‍से‍ संबंधित‍थे‍ औि‍
ककसी‍र्ी‍परिवतषन‍की‍ष्स्थतत‍में ‍ ष्स्थि‍अनुकूलन‍ववधि‍का‍उत्ति‍दे ने‍ की‍मााँग‍कि िहे थे।‍
दस
ू िे ‍शब्दों‍में,‍संिचनात्मक-कायाषत्मकता‍यथाष्स्थततवादी‍औि‍ककसी‍र्ी‍आकष्स्मक‍परिवतषन‍
के‍ ववरुद्ि‍ थी।‍ यथाष्स्थतत‍ बनाए‍ िखने‍ के‍ ललए‍ इस‍ अत्यधिक‍ धचंता‍ ने‍ माक्सषवादी‍ औि‍
आलोचनात्मक‍पिं पिा‍के‍ववद्वानों‍में ‍ र्ौंहें ‍ चढ़ा‍दीं।‍उदाहिण‍के‍ललए,‍गोल्डनि‍(1971)‍ने
“औद्योधगक‍समाज‍के‍समाजशास्त्रीय‍संिक्षण‍वादहनी”‍के‍रूप‍में ‍प्रकायषवाददयों‍की‍आलोचना‍
की,‍औि‍र्ांबिी‍(1973)‍ने‍ प्रकायषवाददयों‍पि “घि‍पि‍पाँज
ू ीपतत‍औि‍ववदे शों‍में ‍ सािाज्यवाद‍
के‍िक्षक”‍होने‍ का‍आिोप‍लगाया।‍माक्सषवाददयों‍ने‍ उस‍व्यवस्था‍में ‍ एक‍क्रांततकािी‍परिवतषन‍
की‍ आवश्यकता‍ पि‍ बल‍ ददया‍ जहााँ‍ िाजनीततक‍ नेताओं‍ की‍ मदद‍ से‍ पाँज
ू ीपतत‍ वगष‍ द्वािा‍
जनता‍का‍शोर्ण‍ककया‍जाता‍है ।‍इसललए,‍कायाषत्मक‍उपागम‍को‍एक‍ऐसे‍ खतिे ‍ के‍रूप‍में ‍
दे खा‍जाता‍है ‍जो‍जनता‍की‍क्रांततकािी‍चेतना‍को‍बाधित‍किता‍है ।

वपछले‍ र्ाग‍ में,‍ हमने‍ दे खा‍ कक‍ ककस‍ प्रकाि‍ प्रकायषवाद‍ ने‍ तीसिी‍ दतु नया‍ के‍ दे शों‍ की‍
िाजनीततक‍ व्यवस्थाओं‍ का‍ अध्ययन‍ किने‍ के‍ ललए‍ एक‍ वैचारिक‍ ढााँच‍े को‍ प्रोत्साहन‍ ददया।‍
हालााँकक,‍ यह‍ आलोचना‍ के‍ ललए‍ प्रवण‍ नहीं‍ है ।‍ कई‍ लोगों‍ ने‍ इस‍ ववडंबना‍ की‍ ओि‍ इशािा‍
ककया‍ कक‍ कायाषत्मक‍ उपागम‍ के‍ ववद्वानों‍ ने‍ ववकासशील‍ समाजों‍ को‍ उनके‍ आिामदायक‍
पस्
ु तकालयों,‍ हावषड‍ष औि‍ लशकागो‍ ववश्वववद्यालयों‍ में ‍ कायाषलय‍ कक्षों‍ में ‍ समझने‍ के‍ ललए‍
रूपिे खा‍ ववकलसत‍ की,‍ ष्जसमें ‍ िाजनीततक‍ वास्तववकता‍ का‍ अर्ाव‍ था।‍ मात्रात्मक‍ तिीकों‍ के‍
ललए‍ अत्यधिक‍ धचंता‍ ने‍ शोर्क‍ पष्श्चमी‍ समाज‍ को‍ मान्द्यता‍ दी‍ औि‍ तीसिी‍ दतु नया‍ के‍
समाजों‍ पि‍ पयाषप्त‍ आितु नक‍ नहीं‍ होने‍ का‍ आिोप‍ लगाया।‍ लसद्िांत‍ की‍ संकीणष‍ प्रकृतत‍ को‍
आलमंड‍ के‍ लसद्िांत‍ में‍ दे खा‍ जा‍ सकता‍ है ,‍ साथ‍ ही‍ उनका‍ मानना‍ था‍ कक‍ आदशष‍ समाज‍
आिुतनक‍पष्श्चमी‍समाज‍था‍औि‍परिवतषन‍केवल‍पािं परिक‍से‍आिुतनक‍हो‍सकता‍है ।

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

उपयक्
ुष त‍ आलोचनाओं‍ के‍ बावजूद,‍ इसमें ‍ कोई‍ संदेह‍ नहीं‍ है ‍ कक‍ पष्श्चमी‍ लोकतंत्रों‍ के‍
अध्ययन‍में‍संिचनात्मक-कायाषत्मक‍उपागम‍के‍कुछ‍फायदे ‍ हैं,‍लेककन‍तीसिी‍दतु नया‍के‍दे शों‍
के‍मामले‍ में ‍ आवेदन‍एक‍तनष्श्चत‍साविानी‍के‍साथ‍ककया‍जाना‍है ।‍एक‍शोिकताष‍ द्वािा‍
िाजनीततक‍ व्यवस्था‍ को‍ पूिी‍ तिह‍ से‍ न‍ समझने‍ वाले‍ उपागम‍ पि‍ तनर्षि‍ िहने‍ के‍ बजाय‍
िाजनीततक‍औि‍सामाष्जक‍वास्तववकताओं‍को‍प्राथलमकता‍दे नी‍होगी।‍

1.6 तनष्कषट

इस‍ अध्याय‍ ने‍ पाठक‍ को‍ तल


ु नात्मक‍ िाजनीतत‍ में ‍ प्रयक्
ु त‍ प्रमख
ु ‍ दृष्ष्िकोणों‍ से‍ परिधचत‍
किाया‍ है ।‍ इस‍ अध्याय‍ के‍ पहले‍ खंड‍ में ‍ संस्थागत‍ उपागम‍ की‍ ववशेर्ताओं,‍ गुणों‍ औि‍
आलोचनाओं‍ पि‍ चचाष‍ की‍ गई‍ थी।‍ प्रणाली‍ ववश्लेर्ण‍ औि‍ संिचनात्मक‍ कायाषत्मकता‍ जैसे‍
दृष्ष्िकोणों‍का‍ववकास‍सामाष्जक‍ववज्ञान‍में ‍ व्यावहारिक‍क्रांतत‍के‍संदर्ष‍ में ‍ औि‍ववद्वानों‍के‍
दृढ़‍ अनुशासनात्मक‍ सीमाओं‍ को‍ दिू ‍ किने‍ के‍ ललए‍ ककया‍ गया‍ था‍ जो‍ सामाष्जक‍ औि‍
प्राकृततक‍ घिनाओं‍ के‍ बािे ‍ में ‍ ज्ञान‍ को‍ बाधित‍ किते‍ थे।‍ हमने‍ तकष‍ ददया‍ कक‍ इस‍ ववशेर्‍
अध्याय‍में‍ चचाष‍ ककए‍गए‍प्रत्येक‍उपागम‍की‍अपनी‍खूत्रबयााँ‍ औि‍कलमयााँ‍ हैं।‍एक‍शोिकताष‍
जो‍तुलनात्मक‍शोि‍किना‍चाहता‍है ,‍उसे‍ साविानीपूवक
ष ‍योजना‍बनानी‍चादहए‍कक‍कौन‍सा‍
उपागम‍ककसी‍ववशेर्‍उपागम‍को‍तनिाषरित‍किने‍के‍बजाय‍उनके‍शोि‍के‍क्षेत्र‍के‍अनुकूल‍हो‍
सकता‍है ।

1.7 अभ्यास प्रश्न

1. तुलनात्मक‍िाजनीतत‍में ‍ववलर्न्द्न‍दृष्ष्िकोणों‍पि‍संक्षेप‍में ‍तनबंि‍ललर्खए।


2. व्याख्या‍ कीष्जए‍ कक‍ अिाजनैततक‍ वाताविण‍ में ‍ तंत्र‍ उपागम‍ ककस‍ प्रकाि‍ कायष‍ किता‍
है ?
3. लसस्िम‍दृष्ष्िकोण‍पि‍संिचनात्मक-कायाषत्मक‍लसद्िांत‍पि‍व्याख्या‍कीष्जए।

1.8 संदिट-ग्रंथ
• Almond, G and Coleman, J. S. (1960), The Politics of Developing Areas, Princeton:
Princeton University Press.
• Apter, David (1978), Introduction to Political Analysis, New Delhi: Prentice Hall.

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

• Bertalanffy, Von Ludwig (1956), General systems theory, General systems, vol. 1, pp.
1-10.
• Bhambhri, C. P. (1973), “Functionalism in Politics”, Indian Journal of Political
Science, vol. XXXIV, No. 4, October-December.
• Bryce, James (1888), The American Commonwealth, London: MacMillan and Co.
• Bryce, James (1888), Modern Democracies, New York: MacMillan.
• Davies, Morton R. and Lewis, Vaughan A. (1971), Models of Political System, New
Delhi: Vikas Publications.
• Doig, J. (1983), ‘if I see a Murderous Fellow Sharpening a Knife Cleverly…’: The
Wilsonian Dichotomy and Public Authority, Public Administration Review, vol. 43,
pp. 292-304.
• Easton, David (1956), A Framework for Political Analysis, New Jersey: Prentice Hall.
• Easton, David (1965), A Systems Analysis of Political Life, Chicago: University of
Chicago Press.
• Gouldner, A. G. (1971), The Coming Crisis of Western Sociology, New Delhi: Hiene-
mann.
• Hobbes, Thomas (2009), Leviathan, Oxford: Oxford University Publications.
• Johari, J. C. (2011), Comparative Politics, New Delhi: Sterling Publishers.
• Kaplan, Morton A. (1967), “Systems Theory”, in James C. Charlesworth (eds.),
Contemporary Political Analysis, New York: Free Press.
• Kress, Paul F. (1969), “A Critique of Easton’s Systems Analysis”, in James A Gould
and Vincent V Thursby (eds.), Contemporary Political Thought: Issues in Scope,
Value, and Direction, New York: Holt, Rhinehart and Winston.
• Lowell, A. Lawrence (1896), Government and Parties in Continental Europe,
Cambridge: Harvard University Press.
• Lowell, A. Lawrence (1913), Public Opinion and Popular Government, New York:
Longmans, Green, and Co.
• Macridis, Roy (1955), The Study of Comparative Government, New York: Random
House.
• Merton, Robert K. (1959), Social Theory and Social Structure, Illinois: Free Press of
Glancoe.
• Peters, B. Guy (1999), Institutional Theory in Political Science: The ‘New
Institutionalism’, London: Pinter.
• Varma, S. P. (1975), Modern Political Theory, New Delhi: Vikas Publications.
• Young, O. R. (1968), Systems of Political Science, New Jersey: Prentice Hall.

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

पाठ-2 : तुलनात्मक राजनीतत अध्ययन के दृक्ष्टकोण : राजनीततक


संस्कृतत दृक्ष्टकोण (उपािम)
डॉ. कमल कुमार

संरचना

2.1 उद्दे श्‍य‍


2.2 प्रस्तावना
2.3 िाजनीततक‍संस्कृतत‍दृष्ष्िकोण
2.4 Almond औि‍Verba की‍िाजनीततक‍संस्कृतत‍की‍अविािणा
2.5 नागरिक‍संस्कृतत‍(Civic Culture)
2.6 िाजनीततक‍संस्कृतत‍पि‍अन्द्य‍प्रमुख‍अविािणाएाँ
2.7 िाजनीततक‍संस्कृतत‍का‍मूल्यांकन
2.8 तनष्‍कर्ष‍
2.9 अभ्‍
यास‍प्रश्‍न
2.10 संदर्ष-ग्रंथ

2.1 उद्दे श्य

• इस‍ अध्‍याय‍ को‍ पढ़ने‍ के‍ पश्‍चात ्‍ ववद्याथी‍ िाजनीतत‍ में ‍ संस्कृतत‍ के‍ महत्त्व‍ औि‍
आल्‍मंड‍औि‍वबाष‍की‍नागरिक‍संस्कृतत‍की‍अविािणा‍को‍समझ‍सकेंगे।
• िाजनीततक‍ वैज्ञातनकों‍ औि‍ शोिकताषओ‍ं को‍ व्यष्क्तगत‍ व्यवहाि‍ औि‍ िाजनीततक‍
प्रणाली‍के‍बीच‍पिस्पि‍कक्रया‍का‍अनुर्वजन्द्य‍ववश्लेर्ण‍किने‍में ‍सक्षम‍बनेंगे।

2.2 प्रस्तावना

इस‍अध्याय‍का‍मुख्य‍उद्दे श्य‍तुलनात्मक‍िाजनीतत‍के‍क्षेत्र‍में‍ प्रचललत‍िाजनीततक‍संस्कृतत‍


उपागम‍ (political culture approach)‍ का‍ ववश्लेर्ण‍ किना‍ है ।‍ उपगमों,‍ दृष्ष्िकोण‍ औि‍

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बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

लसद्िांतों‍ का‍ सामाष्जक‍ ववज्ञान‍ के‍ साथ-साथ‍ िाजनीतत‍ ववज्ञान‍ के‍ संदर्ष‍ में ‍ एक‍ महत्त्‍वपूण‍ष
स्थान‍है ।‍ये‍ न‍ केवल‍ सामाष्जक-िाजनीततक‍घिनाओं‍ के‍बािे ‍ में ‍ समझ‍ववकलसत‍किने‍ में ,
बष्ल्क‍जदिल‍समस्याओं‍ के‍समािान‍खोजने‍ में ‍ र्ी‍ शोिकताषओं‍ औि‍िाजनीततक‍वैज्ञातनकों‍
को‍ सक्षम‍ बनाती‍ है ।‍ ववशेर्कि,‍ तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ के‍ क्षेत्र‍ में ‍ उपागम‍ बहुत‍ महत्त्‍वपूण‍ष
स्थान‍ िखते‍ हैं‍ क्योंकक‍ वे‍ हमें ‍ ववलर्न्द्न‍ िाजनीततक‍ प्रकक्रयाओं, िाजनीततक‍ घिनाओं‍ औि‍
संस्थागत‍ गततववधियों‍ के‍ साथ-साथ‍ सामाष्जक‍ व्यवहािों‍ की‍ तुलनात्मक‍ रूप‍ से‍ व्यवष्स्थत‍
व्याख्या‍ किने‍ में ‍ सहायता‍ किते‍ हैं।‍ साथ‍ ही, तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ ववद्वानों‍ को‍ सामाष्जक‍
औि‍ िाजनीततक‍ परिणामों‍ की‍ र्ववष्यवाणी‍ किने‍ के‍ ललए‍ प्रोत्सादहत‍ किते‍ हैं।‍ पूवव
ष ती‍
अध्यायों‍में प्रमुख‍पािं परिक‍औि‍आिुतनक‍उपगमों‍पि‍ववश्लेर्ण‍प्रस्तुत‍ककया‍गया‍है ।‍यह‍
अध्याय‍ महत्त्‍
वपूण‍ष आिुतनक‍ उपगमों‍ में‍ से‍ एक‍ का‍ मूल्यांकन‍ किता‍ है , अथाषत ्‍तुलनात्मक‍
िाजनीतत‍ के‍ अध्ययन‍ के‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ उपागम‍ का।‍ अध्याय‍ की‍ शुरुआत‍ यह
‘िाजनीततक‍ संस्कृतत’ शब्द‍ के‍ अथष‍ पि‍ ववमशष‍ के‍ साथ‍ शुरू‍ होती‍ है ‍ औि‍ इसके‍ प्रमुख‍
प्रस्तावकों, ववशेर्‍ रूप‍ से‍ Gabriel Almond औि‍ Sidney Verba‍ के‍ द्वािा‍ इस‍ संदर्ष‍ में ‍
की‍जाने‍वाली‍प्रमुख‍योगदानों‍का‍अवलोकन‍किता‍है ।‍अध्याय‍का‍अंततम‍र्ाग‍इस‍उपागम‍
की‍मुख्य‍सीमाओं‍औि‍आलोचनात्मक‍मूल्यांकन‍पि‍केष्न्द्रत‍है ।

2.3 राजनीततक संस्कृतत दृक्ष्टकोण

समाज‍िाजनीततक‍प्रणाली‍ष्जसमें ‍लोकतांत्रत्रक‍प्रणाली‍र्ी‍शालमल‍है ,‍का‍एक‍अलर्न्द्न‍अंग‍है ‍


औि‍ इन‍ दोनों‍ (समाज‍ औि‍ िाजनीततक‍ प्रणाली)‍ के‍ बीच‍ होने‍ वाले‍ तनिं ति‍ संवाद‍ का‍
अध्ययन‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ उपागम‍ की‍ मुख्य‍ उद्दे श्य‍ है ।‍ इस‍ आिुतनक‍ दृष्ष्िकोण‍ में ‍
ववद्वानों‍की‍रुधच‍व्यवहािवादी‍ववज्ञान‍(behavioural science)‍के‍उद्र्व‍के‍साथ‍जुड़ी‍है ।‍
जैसा‍ कक‍ Andrew Bove‍ (2002: 3) ने‍ उल्लेख‍ ककया‍ है ‍ कक‍ “िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ को‍
व्यवहािवादी‍ ववज्ञान‍ (ष्जसका‍ मूल‍ स्पष्िीकिण‍ है , व्याख्यात्मक‍ ववविण‍ नहीं)‍ के‍ एक‍
सहयोगी‍के‍रूप‍में‍ लाया‍गया‍था,‍पिं तु‍ यह‍जल्द‍ही‍एक‍महत्त्‍वपूण‍ष अविािणा‍बन‍गई।”‍
व्यवहािवादी‍ िाजनीतत‍ ववज्ञान—पािं परिक‍ संस्थागत‍ दृष्ष्िकोण, ऐततहालसक‍ दृष्ष्िकोण‍ औि‍
दस
ू िे ‍ दाशषतनक‍ दृष्ष्िकोण‍ जैसे‍ पािं परिक‍ दृष्ष्िकोणों‍ के‍ ववपिीत—औपचारिक‍ िाजनीततक‍
संस्थानों‍ औि‍ प्रकक्रयाओं‍ के‍ अध्ययन‍ पि‍ जोि‍ दे ने‍ के‍ बजाय, मानवीय‍ व्यवहाि‍ औि‍ इसके‍
प्राकृततक‍ दतु नया‍ (िाजनीततक‍ संस्थाएाँ‍ औि‍ समाज‍ इस‍ अध्याय‍ के‍ संदर्ष‍ में )‍ के‍ साथ‍

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

पािस्परिक‍ संवाद‍ के‍ अध्ययन‍ पि‍ बल‍ दे ता‍ है ।‍ सामाष्जक‍ ववज्ञान‍ में ‍ व्यवहािवादी‍ तिीकों‍
औि‍उपकिणों‍की‍बढ़ती‍लोकवप्रयता‍के‍साथ, ववद्वानों‍ने‍िाजनीततक‍ववज्ञान‍के‍अध्ययन‍में ‍
संिचनात्मक‍औि‍ऐततहालसक‍पहलुओं‍ की‍तुलना‍में ‍ समाजशास्त्रीय‍(सांस्कृततक)‍पहलुओं‍ को‍
अधिक‍महत्त्‍
व‍दे ना‍शुरू‍कि‍ददया।‍इसके‍अलावा, यह‍दे खा‍गया‍है ‍ कक‍“िाजनीततक‍संस्कृतत‍
सादहत्य‍ ने‍ द्ववतीय‍ ववश्व‍ युद्ि‍ के‍ बाद‍ िाजनीततक‍ ववज्ञान‍ को‍ वैिता‍ (legitimacy)‍ औि‍
प्राधिकाि‍(authority)‍का‍बोि‍किवाने‍ में ‍ सहायता‍की‍है ”‍(Formisano, 2001: 397)।‍इस‍
तिह, िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ उपागम‍ िाजनीततक‍ ववज्ञान‍ में‍ एक‍ नए‍ युग‍ के‍ उद्र्व‍ को‍
धचष्ननत‍किता‍है ‍ जहााँ‍ ववद्वानों‍के‍शोि‍में ‍ समाजशास्त्रीय‍औि‍व्यवहाि‍संबंिी‍पहलुओं‍ को‍
अधिक‍महत्त्‍व‍लमला।

िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ उपागम/दृष्ष्िकोण‍ ने‍ बीसवीं‍ शताब्दी‍ के‍ मध्य‍ में ‍ िाजनीततक‍
वैज्ञातनकों‍ औि‍ शोिकताषओं‍ का‍ ध्यान‍ अपनी‍ ओि‍ आकवर्षत‍ ककया।‍ हालााँकक‍ ववद्वान‍ इसकी‍
उत्पवत्त‍ का‍ श्रेय‍ Johann G. Herder, Alexis de Tocqueville औि‍ Montesquieu‍ के‍
लेखों को‍दे ते‍हैं, लेककन‍वो‍Gabriel Almond‍थे ष्जनके‍ववश्व‍ववख्यात‍औि‍अग्रणी‍पुस्तक‍
“Comparative Political Systems”‍ (1956) ने‍ आितु नक‍ समय‍ में‍ िाजनीतत‍ ववज्ञान‍ के‍
क्षेत्र‍में‍ इस‍अविािणा‍को‍लोकवप्रय‍बनाया।‍Almond‍के‍मतानुसाि, “हि‍िाजनीततक‍प्रणाली‍
िाजनीततक‍ गततववधियों‍ के‍ अलर्ववन्द्यास‍ (orientations)‍ के‍ एक‍ ववशेर्‍ प्रततरूप‍से‍ जुड़ी‍ है ”
औि‍ उन्द्होंने‍ इस‍ प्रततरूप‍ को‍ ही ‘िाजनीततक‍ संस्कृतत’ के‍ रूप‍ में ‍ परिर्ावर्त‍ ककया‍
(Formisano, 2001: 396‍ में‍ उद्ित
ृ )।‍ अथाषत ्‍ इस‍ परिर्ार्ा‍ के‍ अनस
ु ाि‍ ककसी‍ र्ी‍
िाजनीततक‍प्रणाली‍में‍ लोगों‍के‍झुकाव‍या‍अलर्ववन्द्यास‍(िाजनीततक‍कायों‍के‍संदर्ष‍ में )‍को‍
समझना‍अतनवायष‍है ।

सामान्द्य तौि‍ में ‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ शब्द िाजनीततक‍ प्रणाली‍ औि‍ इसके‍ ववलर्न्द्न‍
संस्थानों‍ के‍ साथ-साथ‍ िाजनीततक‍ प्रकक्रयाओं‍ औि‍ गततववधियों‍ के‍ प्रतत‍ लोगों‍ के‍ व्यवहाि,
ववश्वास, दृष्ष्िकोण, िाय औि‍ झक
ु ाव‍ को‍ संदलर्षत‍ किता‍ है ।‍ वास्तव‍ में , “एक‍ िाष्र‍ की‍
िाजनीततक‍ प्रववृ त्तयों‍ को‍ समझने‍ के‍ ललए‍ उस‍ िाज्य‍ की‍ जनता‍ का‍ िाजनीतत‍ के‍ प्रतत‍ क्या‍
दृष्ष्िकोण‍ है‍ औि‍ उनकी‍ िाजनीततक‍ प्रणाली‍ में ‍ क्या‍ र्ूलमका‍ है ‍ आदद‍ को‍ समझना‍ बेहद‍
आवश्यक‍है‍उस‍िाष्र‍की‍िाजनीततक‍संस्कृतत‍को‍समझने‍के‍ललए”‍(Powell, et al. 2015:
63)।‍ इस‍ संबंि‍ में , Alan A. Ball‍ का‍ तकष‍ है ‍ कक‍ “िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ की‍ अविािणा‍
समाज‍के‍दृष्ष्िकोणों, ववश्वासों, र्ावनाओं‍ औि‍मूल्यों‍से‍ बनी‍है ‍ जो‍िाजनीततक‍प्रणाली‍औि‍

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

िाजनीततक‍ मुद्दों‍ से‍ संबंधित‍ है ”‍ (Ball, 1971: 56)।‍ इसी‍ पक्ष‍ को‍ आगे‍ बढ़ाते‍ हुए,‍
Almond‍ औि‍ Verba‍ (1963:‍ 14)‍ का‍ मानना‍ है ‍ कक‍ यह‍ अविािणा‍ लोगों‍ के‍ िाजनीततक‍
अलर्ववन्द्यास‍(political orientations)—जोकक‍ककसी‍िाजनीततक‍प्रणाली‍औि‍उसके‍ववलर्न्द्न‍
अंगों‍ के‍ प्रतत‍ नागरिकों‍ के‍ दृष्ष्िकोण‍ औि‍ उसके‍ तहत‍ उनकी‍ र्ूलमकाओं‍ को‍ दशाषता‍ है —को‍
स्पष्ि‍किती‍है ।”‍इसके‍अलावा, Roy C. Macridis‍िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ की‍ अविािणा‍ के‍
संबंि‍में‍ एक‍िोचक‍औि‍थोड़ी‍अलग‍समझ‍प्रस्तुत‍किते‍ हैं,‍इनके‍अनुसाि‍यह‍अविािणा‍
“आमतौि‍ पि‍ व्यष्क्त‍ औि‍ समूहों‍ की‍ बातचीत‍ के‍ स्वीकृत‍ तनयमों‍ औि‍ साझा‍ लक्ष्यों‍ को‍
िे खांककत‍ किती‍ है ‍ ष्जसके‍ मद्दे नजि‍ एक‍ िाजनीततक‍ प्रणाली‍ के‍ र्ीति‍ िाजनीततक कताषओं‍
(political actors)‍ के‍ द्वािा‍ ववलर्न्द्न‍ आधिकारिक‍ तनणषयों‍ औि‍ ववकल्पों‍ का‍ चुनाव‍ ककया‍
जाता‍ है ‍ (Kim, 1964: 331 में‍ उद्ित
ृ )।‍ दस
ू िे ‍ शब्दों‍ में , सिकाि‍ औि‍ उसके‍ ववलर्न्द्न‍
औपचारिक‍ िाजनीततक‍ संस्थानों‍ के‍ साथ‍ मानवीय‍ व्यवहाि‍ का‍ अध्ययन‍ ही‍ िाजनीततक‍
संस्कृतत‍दृष्ष्िकोण‍मुख्य‍उद्दे श्य‍है ।

यहााँ‍यह‍ध्यान‍िखना‍महत्त्‍वपूण‍ष है ‍कक‍ववलर्न्द्न‍समुदायों, समूहों‍औि‍समाज‍के‍सदस्यों‍


की‍अपनी‍व्यष्क्तगत‍िाजनीततक‍संस्कृतत‍हो‍सकती‍है ‍ जो‍उनकी‍ववशेर्‍िाजनीततक‍समझ‍
औि‍ अलर्ववन्द्यास‍ की‍ ओि‍ संकेत‍ किती‍ है ।‍ हालााँकक यह‍ लोगों‍ के‍ िाजनीततक‍ ववचािों‍ औि‍
व्यष्क्तगत‍िाजनीततक‍अलर्नेताओं‍ जैसे‍ सिकाि‍के‍अध्यक्ष‍(अमेरिका‍के‍संदर्ष‍ में ‍ िाष्रपतत‍
औि‍ र्ाित‍ के‍ संदर्ष‍ में‍ प्रिानमंत्री)‍ औि‍ िाजनीततक‍ दल‍ के‍ नेता‍ के‍ प्रतत‍ दृष्ष्िकोण‍ को‍
संदलर्षत‍ नहीं‍ किता‍ है ।‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ के‍ प्रमख
ु ‍ घिकों‍ का‍ मल्
ू यांकन‍ किते‍ हुए,
Samuel H. Beer‍तकष‍दे ते‍हैं‍कक‍“मल्
ू य, ववश्वास‍औि‍र्ावनात्मक‍दृष्ष्िकोण”‍प्रमुख‍घिक‍
हैं‍ (Kim, 1964: 324)।‍ दस
ू िे ‍ शब्दों‍ में , Beer‍ के‍ ललए िाजनीततक‍ प्रणाली‍ औि‍ शासन‍ के‍
प्रतत‍लोगों‍के‍मल्
ू य, ववश्वास‍औि‍दृष्ष्िकोण वह‍घिक‍है‍जो‍उनकी‍िाजनीततक‍संस्कृतत‍को‍
दशाषता‍ है ।‍ इसके‍ अलावा, िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ की‍ प्रकृतत‍ िाजनीततक‍ प्रणाली‍ में ‍ उनके‍
नागरिक‍जड़
ु ाव‍(civic engagement)‍के‍स्ति‍अनस
ु ाि‍लर्न्द्न-लर्न्द्न‍हो‍सकती‍है ।‍साथ‍ही,‍
ववलर्न्द्न‍ सामाष्जक-िाजनीततक‍ औि‍ आधथषक‍ संदर्ों‍ के‍ कािण, कुछ‍ िाजनीततक‍ प्रणाली‍ या‍
दे शों‍के‍कुछ‍र्ागों‍में‍नागरिक‍अन्द्य‍र्ागों‍की‍तुलना‍में ‍िाजनीतत‍में ‍अधिक‍सकक्रय‍होने‍की‍
संर्ावना‍र्ी‍हो‍सकती‍है ।‍एक‍उदाहिण‍के‍ललए‍र्ाित‍के‍चुनाव‍आयोग‍के‍अनुसाि, 2019
में‍ केिल‍वविानसर्ा‍के‍चुनावों‍में ‍ मतदान‍प्रततशत‍(77.68%)‍ददल्ली‍वविानसर्ा‍चुनाव‍के‍
प्रततशत‍ (62.82%) से‍ काफी‍ अधिक‍ िहा‍ था।‍ इसललए, यह‍ कहा‍ जा‍ सकता‍ है ‍ कक‍ एक‍

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

समाज‍ में ‍ अलग-अलग‍ समूहों‍ औि‍ समुदायों‍ की‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ का‍ स्वरूप‍ उनकी‍
सामाष्जक-िाजनीततक‍संदर्ों‍के‍अनुसाि‍अलग-अलग‍हो‍सकता‍है ।

2.4 Almond और Verba की राजनीततक संस्कृतत की अवधारणा

कई‍ववद्वानों‍जैसे‍ कक‍Lucian Pye, Edward W. Lehman, Edmund Burke, Samuel


H. Beer, Roy C. Macridis औि‍Ronald Inglehart‍इत्यादद‍ने‍ अलग-अलग‍दृष्ष्िकोण‍
से‍ िाजनीततक‍संस्कृतत‍के‍सैद्िांततक‍आिािों‍को‍अपने‍ लेखों‍में ‍ परिर्ावर्त‍किने‍ का‍प्रयास‍
ककया‍ है ।‍ िाजनीततक‍ सांस्कृततक‍ पि‍ शोि‍ किने‍ वाले‍ शोिकताषओं‍ औि‍ ववद्वानों‍ की‍ कई
पीदढ़यों‍ को‍ प्रेरित‍ किने‍ का‍ श्रेय‍ Gabriel A.‍ Almond औि‍ Sidney Verba‍ की‍ ववश्व‍
ववख्यात‍ कृतत,‍ शीर्षक “द‍ लसववल‍ कल्चि‍ :‍ पॉललदिकल‍ एदिट्यूड‍ एंड‍ डेमोक्रेसी‍ इन‍ फाइव‍
नेशंस”,‍(1963) को‍ददया‍जाता‍है ।‍उन्द्होंने‍ तुलनात्मक‍तिीकों‍औि‍अनुर्वजन्द्य‍सािनों‍का‍
पालन‍ किके‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ दृष्ष्िकोण‍ के‍ प्रमुख‍ तत्त्‍वों‍ को‍ व्यापक‍ रूप‍ से‍ परिर्ावर्त‍
कि‍ समझाया‍ है ।‍ आलमंड‍ औि‍ वबाष‍ का‍ ववश्लेर्ण‍ 1959-1960‍ के‍ दौिान‍ संयक्
ु त‍ िाज्य,
इिली, त्रििे न, मैष्क्सको‍ औि‍ पष्श्चम‍ जमषनी‍ जैसे‍ पााँच‍ लोकतांत्रत्रक‍ दे शों‍ में ‍ बड़े‍ पैमाने‍ पि‍
ककए‍ गए‍ क्रॉस-नेशनल‍ सवे‍ औि‍ साक्षात्काि‍ पि‍ आिारित‍ है ।‍ उनके‍ उत्कृष्ि‍ अध्ययन‍ का‍
प्राथलमक‍ उद्दे श्य‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ की‍ पहचान‍ किना‍ था‍ जो‍ उदाि‍ लोकतंत्र‍ को‍ बनाए‍
िखने‍ औि‍ मजबत
ू ‍ किने‍ में ‍ सहायक‍ हो‍ सके।‍ पस्
ु तक‍ के‍ परिचयात्मक‍ अध्याय‍ में ‍ अपने‍
अध्ययन‍के‍औधचत्य‍की‍व्याख्या‍किते‍हुए, Almond औि‍Verba‍ने‍एक‍सवाल‍उठाया‍कक‍
“कैसे‍ ये‍ सक्ष्
ू मताओं‍ औि‍मानवीय‍लशष्िाचाि‍यक्
ु त‍उदाि‍मानवीय‍लोकतंत्र‍इस‍ववज्ञान‍औि‍
प्रौद्योधगकी‍द्वािा‍तनयंत्रत्रत‍की‍जाने‍औि‍ववनाशकािी‍पिं पिा‍ग्रलसत‍दतु नया‍में ‍र्ी‍जीववत‍िह‍
सके?” (Almond औि‍ Verba, 1963: 7)।‍ दस
ू िे ‍ शब्दों‍ में , उन्द्होंने‍ शीत‍ युद्ि‍ के‍ दौि‍ को‍
लोकतांत्रत्रक‍शासन‍की‍ष्स्थिता‍के‍ललए‍एक‍संर्ाववत‍खतिा‍माना‍था, औि‍शायद‍इसीललए,
वे‍उदाि‍लोकतंत्र‍की‍संस्थाओं‍को‍मजबूत‍किने‍के‍तिीके‍तलाशने‍में ‍लगे‍हुए‍थे।

ववलर्न्द्न‍प्रकाि‍की‍िाजनीततक‍संस्कृतत‍को‍िे खांककत‍किते‍हुए, Almond औि‍Verba‍ने‍


तीन‍प्रकाि‍की‍िाजनीततक‍अलर्ववन्द्यासों‍(political orientations)‍पि‍(जो‍कक‍मुख्य‍रूप‍से‍
व्यष्क्तयों‍ औि‍ सामाष्जक‍ समूहों‍ के‍ बीच‍ मौजूद‍ है )‍ जोि‍ ददया,‍ जैसे‍ कक‍ संज्ञानात्मक‍
अलर्ववन्द्यास‍ (cognitive orientation), र्ावात्मक‍ अलर्ववन्द्यास‍ (affective orientation)
औि‍ मूल्यांकन‍ अलर्ववन्द्यास‍ (evaluational orientation)।‍ पहला‍ अलर्ववन्द्यास‍ “िाजनीततक‍

41 | पष्ृ ‍ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

प्रणाली‍ पि‍ ववश्वास औि‍ इसकी‍ र्ूलमकाओं‍ औि‍ इन‍ र्ूलमकाओं‍ के‍ पदग्राही‍ के‍ आगत‍ औि‍
इसके‍ तनगषत‍ के‍ बािे ‍ में ‍ ज्ञान‍ को‍ दशाषता‍ है ”‍ (Almond औि‍ Verba, 1963:‍ 7)।‍ स्नेहपूण‍ष
अलर्ववन्द्यास‍“िाजनीततक‍प्रणाली‍से‍संबंधित‍र्ावना, इसकी‍र्ूलमकाओं, कलमषयों‍औि‍प्रदशषन”‍
की‍ व्याख्या‍ किता‍ है‍ (Ibid)।‍ तीसिा‍ प्रमुख‍ अलर्ववन्द्यास, मूल्यांकनात्मक‍ अलर्ववन्द्यास‍
“िाजनीततक‍ववर्य-वस्तओ
ु ं‍के‍संबंि‍ललए‍जाने‍ वाले‍तनणषयों‍औि‍िायों‍को‍िे खांककत‍किता‍है ‍
जो‍आमतौि‍पि‍सूचना‍औि‍र्ावनाओं‍ के‍साथ‍मूल्य‍मानकों‍औि‍मानदं डों‍के‍संयोजन‍को‍
शालमल‍ किता‍ है ”‍ (Ibid)।‍ िाजनीततक‍ अलर्ववन्द्यास‍ का‍ ये‍ त्रत्रस्तिीय‍ वगीकिण‍ िाजनीततक‍
प्रणाली‍औि‍समाज‍के‍सदस्यों‍के‍बीच‍संबंिों‍को‍इंधगत‍किता‍है औि‍इस‍संबंि‍का‍स्ति‍
ही‍लोगों‍की‍िाजनीतत‍में‍ र्ूलमका‍को‍परिर्ावर्त‍किता‍है ‍ जोकक‍उनकी‍िाजनीततक‍संस्कृतत‍
को‍आकाि‍दे ती‍है , जैसा‍कक‍तनमनललर्खत‍पंष्क्तयों‍में ‍चचाष‍की‍गई‍है ।

अपने‍ क्रॉस-नेशनल‍ फील्ड-वकष‍ औि‍ तुलनात्मक‍ शोि‍ के‍ आिाि‍ पि, Almond औि‍
Verba‍ने‍िाजनीततक‍संस्कृततयों‍को‍तनमनललर्खत‍तीन‍मुख्य‍श्रेर्णयों‍में ‍वगीकृत‍ककया‍है —

(i) संकीणष‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ (Parochial Political Culture):‍ यह‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍
ऐसे‍ समाजों‍को‍िे खांककत‍किती‍है‍ जहााँ‍ नागरिक‍न‍तो‍अपनी‍िाजनीततक‍व्यवस्था‍के‍
बािे ‍ में‍ जानते‍ हैं‍ औि‍न‍ही‍िाजनीततक‍गततववधियों‍औि‍आयोजनों‍में ‍ ददलचस्पी‍िखते‍
हैं।‍संकीणष‍ िाजनीततक‍संस्कृतत‍में ‍ लोग, िाजनीततक‍गततववधियों‍औि‍प्रकक्रयाओं‍ में ‍ कोई‍
ववशेर्ज्ञता‍ औि‍ रुधच‍ नहीं‍ िखते‍ हैं‍ जो‍ स्पष्ि‍ रूप‍ से‍ उनके‍ िाजनीततक‍ दृष्ष्िकोण‍ औि‍
शन्द्
ू य‍ददलचस्पी‍को‍दशाषता‍है ।‍साथ‍ही, इस‍प्रकाि‍के‍समाजों‍में‍ िाजनीतत‍से‍ लोगों‍की‍
उममीदें ‍ वस्तत
ु :‍कोई‍नहीं‍ हैं‍ औि‍इसललए‍वे‍ िाजनीतत‍में ‍ सकक्रय‍रूप‍से‍ र्ाग‍नहीं‍ लेते‍
हैं।‍ उदाहिण‍ के‍ ललए; “अफ्ीकी‍ आददवासी‍ समाजों‍ औि‍ स्वायत्त‍ स्थानीय‍ समद
ु ायों‍ की‍
िाजनीततक‍ संस्कृततयााँ”‍ इस‍ प्रकाि‍ की‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ का‍ आदशष‍ उदाहिण‍ हैं‍
(Almond‍ औि‍ Verba,‍ 1963:‍ 14)।‍ यहााँ‍ यह‍ र्ी‍ ध्यान‍ दे ने‍ योग्य‍ तथ्य‍ है ‍ कक‍ इस‍
प्रकाि‍की‍“संकीणष‍ िाजनीततक‍संस्कृतत‍ववकलसत‍औि‍मजबत
ू ‍लोकतंत्रों‍में ‍ दल
ु र्
ष ‍िही‍है ,
लेककन‍इसके‍कुछ‍तत्त्‍वों‍को‍अलग-थलग‍ग्रामीण‍समुदायों‍में ‍ पाया‍जा‍सकता‍है ”‍जहााँ‍
आम‍ लोगों‍ का‍ जीवन‍ िाष्रीय‍ िाजनीतत‍ से‍ अप्रर्ाववत‍ ददखाई‍ दे ता‍ है ‍ (Rod औि‍
Martin, 2004: 89)।‍दस
ू िे ‍ शब्दों‍में , इस‍प्रकाि‍की‍िाजनीततक‍संस्कृतत‍में‍ िाजनीततक‍
प्रणाली‍ औि‍ इसके‍ ववलर्न्द्न‍ ववर्यों‍ की‍ पूण‍ष अज्ञानता‍ के‍ कािण‍ ही‍ नागरिकों‍ की‍
िाजनीततक‍ प्रणाली, िाजनीततक‍ प्रकक्रयाओं‍ औि‍ िाजनीततक‍ नेतत्ृ व‍ के‍ संदर्ष‍ में ‍ समझ‍

42 | पष्ृ ‍

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

बहुत‍कम‍या‍शायद‍शन्द् ू य‍होती‍है ।‍इसके‍अलावा, वे‍ िाजनीततक‍प्रकक्रयाओं‍ का‍दहस्सा‍


बनने‍ के‍ ललए‍ उत्सुक‍ र्ी‍ नहीं‍ ददखते‍ हैं‍ ताकक‍ वे‍ अपने‍ तनयलमत‍ जीवन‍ के‍ साथ‍
िाजनीततक‍परिणामों‍को‍प्रर्ाववत‍कि‍सकें।

(ii) अिीन‍िाजनीततक‍संस्कृतत‍(Subject Political Culture):‍िाजनीततक‍संस्कृतत‍के‍इस‍


दस
ू िे ‍ प्रकाि‍ में नागरिकों‍ को‍ िाजनीतत‍ औि‍ सिकाि—जो‍ उन्द्हें ‍ तनयंत्रत्रत‍ किती‍ है —की‍
अच्छी‍समझ‍होती‍है ।‍हालााँकक,‍नागरिक‍यहााँ‍ िाजनीततक‍गततववधियों‍में ‍ र्ाग‍ लेने‍ के‍
ललए‍ ज्यादा‍ इच्छुक‍ नहीं‍ होते,‍ क्योंकक‍ वे‍ स्वयं‍ को‍ िाजनीततक‍ प्रणाली‍ का‍ “अिीन”‍
मानते‍ हैं‍ न‍ कक‍ इसका‍ सकक्रय‍ र्ागीदाि‍ या‍ अलर्कताष।‍ इस‍ संबंि‍ में , Almond‍ औि‍
Verba‍ मानते‍ हैं‍ कक‍ इस‍ प्रकाि‍ की‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ में ‍ नागरिक‍ सिकािी‍ नीततयों‍
औि‍ कानून‍ को‍ “ऐसे‍ ववर्य‍ के‍ रूप‍ में ‍ दे खते‍ हैं‍ ष्जसका‍ [वे]‍ पालन‍ किते‍ हैं, न‍ कक‍
ष्जसके‍तनमाषण‍में ‍ [वे]‍सहायता‍किते‍ है ”‍(Almond‍औि‍Verba, 1963: 118)।‍अिीन‍
िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ उच्च‍ केंरीकृत‍ औि‍ पदानुक्रलमत‍ िाजनीततक‍ शासन‍ के‍ चरित्र‍ के‍
अनुरूप‍ अधिनायकवादी‍ शासनों‍ की‍ तिह‍ ददखाई‍ दे ती‍ है ,‍ जहााँ‍ लोगों‍ को‍ िाजनीततक‍
प्रणाली‍औि‍इसकी‍ववलर्न्द्न‍गततववधियों‍के‍बािे ‍ में ‍ अच्छी‍समझ‍व‍जानकािी‍तो‍जरूि‍
होती‍है , पिं तु‍उन्द्हें ‍अक्सि‍िाजनीतत‍में ‍र्ाग‍लेने‍के‍ललए‍प्रोत्सादहत‍नहीं‍ककया‍जाता‍है ‍
(Rod‍ औि‍ Martin,‍ 2004: 89)।‍ दस
ू िे ‍ शब्दों‍ में ,‍ संकीणष‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ के‍
ववपिीत,‍ यहााँ‍ लोगों‍ को‍ िाजनीततक‍ प्रणाली‍ औि‍ सिकाि‍ के‍ कायों‍ के‍ साथ-साथ‍ अपने‍
िाजनीततक‍ अधिकािों‍ के‍ संदर्ष‍ में ‍ अच्छी‍ समझ‍ है , लेककन‍ उनके‍ पास‍ िाजनीततक‍
तनणषयों‍ औि‍ इसकी‍ ववलर्न्द्न‍ प्रकक्रयाओं‍ को‍ प्रर्ाववत‍ किने‍ के‍ बहुत‍ ही‍ कम‍ या‍ शन्द्
ू य‍
अवसि‍ होते‍ हैं, औि‍ शायद‍ इसी‍ कािण‍ वे‍ (नागरिक)‍ िाजनीततक‍ रूप‍ से‍ तनष्ष्क्रय‍
(passive)‍होते‍हैं।

(iii) सहर्ागी‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ (Participant Political Culture):‍ सहर्ागी‍ संस्कृतत‍ वह‍
है ‍ जहााँ‍ समाज‍ के‍ सदस्य,‍ अिीन‍ संस्कृतत‍ की‍ तिह, अपने‍ दे श‍ की‍ िाजनीतत‍ औि‍
िाजनीततक‍प्रणाली‍के‍बािे ‍ में ‍ अत्यधिक‍जानकािी‍िखते‍ हैं।‍लेककन‍अिीन‍संस्कृतत‍के‍
ववपिीत, वे‍िाजनीतत‍में‍सकक्रय‍र्ागीदाि‍र्ी‍लेते‍हैं‍क्योंकक‍वे‍स्वंय‍को‍इसके‍महत्त्‍वपूण‍ष
दहतिािकों‍(stakeholders)‍में‍ से‍ एक‍मानते‍ हैं‍ जो‍न‍केवल‍िाजनीततक‍परिणामों‍को‍
प्रर्ाववत‍कि‍सकते‍ हैं‍ बष्ल्क‍सिकािी‍नीततयों‍औि‍तनणषयों‍को‍आकाि‍र्ी‍दे ‍ सकते‍ हैं।‍
इस‍ संबंि‍ में, Almond‍ औि‍ Verba‍ (1963: 18) का‍ तकष‍ है ‍ कक‍ नागरिक‍ “स्वयं‍ को‍

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

िाजनीतत‍ में‍ एक ‘सकक्रय’ र्ूलमका‍ को‍ अदा‍ किने‍ की‍ ओि‍ उन्द्मुख‍ दे खते‍ है ...”‍ इसके‍
अलावा,‍ नागरिक‍ िाजनीतत‍ के‍ एक‍ उत्सुक‍ पयषवेक्षक‍ के‍ रूप‍ में ‍ अपनी‍ मजबूत‍
िाजनीततक‍ िाय‍ िखते‍ हैं‍ औि‍ इसका‍ ववश्‍लेर्ण‍ किते‍ हैं‍ औि‍ इसके‍ परिणामस्वरूप, वे‍
सिकाि‍ के‍ वविोि‍ में ‍ अपनी‍ आवाज‍ उठाने‍ में ‍ र्ी‍ संकोच‍ नहीं‍ किते‍ हैं,‍ ववशेर्कि‍ जब‍
कोई‍ र्ी‍ सिकािी‍ तनणषय‍ औि‍ नीतत‍ उनकी‍ मााँगों‍ के‍ अनुरूप‍ न‍ हो।‍ सहर्ागी‍ संस्कृतत‍
अपनी‍ जीवंत‍ प्रकृतत‍ के‍ कािण‍ लोकतांत्रत्रक‍ व्यवस्थाओं‍ के‍ ललए‍ सबसे‍ अधिक‍ अनुकूल‍
प्रतीत‍होती‍है ।

उपिोक्त‍वर्णषत‍तीन‍श्रेर्णयों‍में ‍ िाजनीततक‍संस्कृततयों‍को‍वगीकृत‍किते‍ हुए, Almond‍


औि‍ Verba‍ (1963: 19) मानते‍ हैं‍ कक‍ उनका‍ यह‍ वगीकिण‍ “िाजनीततक‍ संस्कृततयों‍ की‍
एकरूपता‍को‍नहीं‍दशाषता‍है ।‍इस‍प्रकाि, मुख्य‍रूप‍से‍सहर्ागी‍संस्कृतत‍के‍युक्त‍िाजनीततक‍
प्रणाली‍में ‍ र्ी‍अिीन‍औि‍संकीणष‍ दोनों‍संस्कृततयों‍के‍तत्त्‍
वों‍(र्ले‍ ही‍सीलमत‍संदर्ों‍में ) को‍
दे खा‍ जा‍ सकता‍ है ”।‍ इस‍ तिह, सर्ी‍ तीन‍ िाजनीततक‍ संस्कृततयों‍ को‍ लोकतंत्र‍ सदहत‍ ककसी‍
र्ी‍िाजनीततक‍प्रणाली‍में ‍सह-अष्स्तत्व‍में ‍पाया‍जा‍सकता‍है ।

2.5 नािररक संस्कृतत (Civic Culture)

संकीणष‍औि‍अिीन‍संस्कृततयों‍की‍तल
ु ना‍में , सहर्ागी‍संस्कृतत‍तनस्संदेह‍ष्स्थि‍उदाि‍लोकतंत्र‍
के‍ ललए‍ सबसे‍ उपयक्
ु त‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ के‍ रूप‍ में ‍ ददखाई‍ दे ती‍ है ‍ जहााँ‍ नागरिकों‍ को‍
सिकाि‍ के‍ ववलर्न्द्न‍ स्तिों‍ पि‍ सकक्रय‍ औि‍ िचनात्मक‍ र्लू मका‍ तनर्ाने‍ के‍ ललए‍ प्रोत्सादहत‍
ककया‍जाता‍है ।‍हालााँकक‍Almond‍औि‍Verba‍ने‍इस‍तिह‍के‍ककसी‍र्ी‍प्रस्ताव‍को‍पण
ू ‍ष रूप‍
अस्वीकाि‍कि‍ददया, क्योंकक‍उनके‍अनस
ु ाि लोकतंत्र‍के‍ललए‍“ववलर्न्द्न‍संस्कृततयों‍एक‍ववशेर्‍
लमश्रणयक्
ु त‍समाज‍सबसे‍ अधिक‍ष्स्थि‍सात्रबत‍होगा”, औि‍उन्द्होंने‍ इस‍लमश्रण‍को‍“नागरिक‍
संस्कृतत”‍के‍रूप‍में ‍ परिर्ावर्त‍ककया‍है ‍ जैसा‍कक‍धचत्र‍4.1‍में ‍ धचत्रत्रत‍ककया‍गया‍है ‍ (Rod
औि‍ Martin, 2004: 89)।‍ दस
ू िे ‍ शब्दों‍ में तीनों‍ प्रमुख‍ संस्कृततयों—संकीणष, अिीन‍ औि‍
सहर्ागी‍ संस्कृततयों—के‍ तत्त्‍वों‍ से‍ युक्त‍ लमधश्रत‍ संस्कृतत‍ ही‍ एक‍ लोकतांत्रत्रक‍ िाजनीततक‍
प्रणाली‍की‍ष्स्थिता‍के‍ललए‍सबसे‍आदशष‍प्रतीत‍होती‍है ।

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

गचत्र 4.1 – नािररक संस्कृतत पर Almond और Verba का ववश्लेषण

संकीर्ण संस्कृति

अधीन संस्कृति नागरिक स्थायी लोकिंत्र


संस्कृति

सहभागी संस्कृति

नागरिक‍ संस्कृतत‍ में , अधिकांश‍ नागरिकों‍ को‍ िाजनीततक‍ प्रणाली‍ औि‍ उनके‍ िाजनीततक‍
दातयत्व‍के‍बािे ‍में ‍काफी‍जानकािी‍होती‍है ,‍लेककन‍यह‍“तनष्ष्क्रय‍अल्पसंख्यक‍समूह‍होते‍हैं,
चाहे ‍ संकीणष,‍ अिीन‍ या‍ दोनों, [जो]‍ ककसी‍ प्रणाली‍ को‍ ष्स्थिता‍ प्रदान‍ किते‍ हैं”‍ (Rod औि‍
Martin, 2004: 90)।‍ इसके‍ अलावा, नागरिक‍ (प्रततर्ागी)‍ िाजनीतत‍ में ‍ उस‍ हद‍ तक‍ र्ाग‍
नहीं‍ लेते‍ हैं‍ कक‍ वे‍ उन‍ सिकािी‍ फैसलों‍ औि‍ आदे शों‍ का‍ पालन‍ किने‍ से‍ पिहे ज‍ किने‍ लगे‍
ष्जनसे‍ वे‍ सहमत‍ नहीं‍ हैं‍ औि‍ समाज‍ में ‍ अिाजकता‍ का‍ स्रोत‍ बन‍ जाए।‍ दस
ू िे ‍ शब्दों‍ में ,‍
नागरिक‍संस्कृतत‍में‍नागरिक‍िाजनीततक‍गततववधियों‍में ‍र्ाग‍लेने‍औि‍िाजनीततक‍परिणामों‍
औि‍तनणषयों‍को‍प्रर्ाववत‍किने‍में ‍सक्षम‍हैं‍(जैसे‍कक‍वे‍र्ागीदाि‍िाजनीततक‍संस्कृतत‍में ‍है ),
लेककन‍वे‍अक्सि‍ऐसा‍नहीं‍किते‍हैं‍(जैसे‍कक‍संकीणष‍औि‍अिीन‍िाजनीततक‍संस्कृततयों‍में )।‍
इसललए, लोकतांत्रत्रक‍ प्रणाली‍ में‍ “लोकवप्रय‍ तनयंत्रण‍ औि‍ प्रर्ावी‍ शासन‍ के‍ बीच‍ संतल
ु न”‍
बनाए‍िखने‍ में‍ नागरिक‍संस्कृतत‍एक‍महत्त्‍वपण
ू ‍ष र्लू मका‍तनर्ाती‍है ‍ (Ibid)।‍दस
ू िे ‍ शब्दों‍में,‍
नागरिकों‍के‍पास‍एक‍तिफ‍सिकाि‍के‍फैसलों‍औि‍नीतत-तनमाषण‍प्रकक्रया‍को‍प्रर्ाववत‍किने‍
के‍ ललए‍ कई‍ प्लेिफामों‍ तक‍ पहुाँच‍ होती‍ है , औि‍ दस
ू िी‍ तिफ‍ िाजनीततक‍ अलर्जात‍ वगष‍ के‍
पास‍ कुछ‍ संवेदनशील‍ मद्
ु दों‍ पि‍ लोकमत‍ के‍ र्खलाफ‍ कड़े‍ फैसले‍ लेने‍ की‍ क्षमता‍ होती‍ है ।‍
पााँच‍ लोकतांत्रत्रक‍ दे शों‍ के‍ अपने‍ क्रॉस-नेशनल‍ अध्ययन‍ में ,‍ Almond‍ औि‍ Verba‍ ने‍ यह‍
तनष्कर्ष‍ तनकाला‍ कक‍ त्रििे न‍ औि‍ संयुक्त‍ िाज्य‍ अमेरिका‍ में ‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ (मैष्क्सको,

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

इिली‍ औि‍ पष्श्चम‍ जमषनी‍ के‍ ववपिीत)‍ का‍ नागरिक‍ संस्कृतत‍ के‍ मानदं डों‍ के‍ साथ‍ तालमेल‍
था, इसललए‍ यहााँ‍ की‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ ष्स्थि‍ लोकतंत्र‍ के‍ ललए‍ सबसे‍ उपयुक्त‍ पाई‍ गई।‍
क्योंकक‍दोनों‍संयुक्त‍िाज्य‍अमेरिका‍औि‍त्रििे न‍में ,‍िाष्र‍के‍सदस्यों‍ने‍“महसूस‍ककया‍कक‍वे‍
सिकाि‍को‍प्रर्ाववत‍कि‍सकते‍ हैं, लेककन‍अक्सि‍ऐसा‍न‍किने‍ का‍चयन‍ककया, इस‍प्रकाि‍
सिकाि‍को‍शासन‍को‍चलाने‍के‍ललए‍आवश्यक‍लचीलापन‍प्राप्त‍हुआ”‍(Ibid)।

2.6 राजनीततक संस्कृतत पर अन्य प्रमख


ु अवधारणाएाँ

Ronald Inglehart‍िाजनीततक‍संस्कृतत‍दृष्ष्िकोण‍के‍प्रमुख‍समथषकों‍में ‍ से‍ एक‍है ंं।‍ “The


Renaissance of Political Culture”‍(1988)‍नामक‍उनके‍लोकवप्रय‍अध्ययन‍में , वे‍कहते‍
हैं‍ कक‍नागरिक‍ववलर्न्द्न‍समाजों‍में ‍“दिकाऊ‍सांस्कृततक‍अलर्ववन्द्यास‍से‍वगीक्रत‍ककया‍जाता‍
है ‍ ष्जनके‍ प्रमुख‍ िाजनीततक‍ औि‍ आधथषक‍ परिणाम‍ होते‍ हैं”‍ (इंगलहािष , 1988: 1203)।‍ इस‍
संदर्ष‍ में , Inglehart— Almond औि‍ Verba‍ के‍ ववपिीत—िाजनीततक‍ ष्स्थिता‍ के‍ साथ-साथ‍
आधथषक‍ ववकास‍ को‍ र्ी‍ सांस्कृततक‍ कािकों‍ (नागरिक‍ संस्कृतत)‍ से‍ जोड़ते‍ हैं।‍ वह‍ नागरिक‍
संस्कृतत‍ शब्द‍ की‍ कुछ‍ हद‍ तक‍ लर्न्द्न‍ औि‍ ददलचस्प‍ व्याख्या‍ पेश‍ किते‍ हैं‍ औि‍ इसे‍
“व्यष्क्तगत‍ जीवन‍ की‍ संतुष्ष्ि, िाजनीततक‍ संतुष्ष्ि, पािस्परिक‍ ववश्वास‍ औि‍ मौजूदा‍
सामाष्जक‍व्यवस्था‍के‍ललए‍समथषन‍के‍एक‍सुसंगत‍लसंड्रोम‍के‍रूप‍में ‍ परिर्ावर्त‍किते‍ हैं”‍
(Ibid)।‍ Inglehart‍ के‍ ललए, इस‍ लसंड्रोम‍ की‍ उच्च‍ डडग्री‍ वाले‍ समाजों‍ में ‍ कम‍ डडग्री‍ वाले‍
समाजों‍की‍तुलना‍में‍ अधिक‍संर्ावनाएाँ‍ हैं‍ कक‍वहााँ‍ ष्स्थि‍लोकतंत्र‍स्थावपत‍हो‍सके‍हैं।‍दस
ू िे ‍
शब्दों‍ में ,‍ उनके‍ क्रॉस-नेशनल‍ ववश्लेर्ण‍ से‍ पता‍ चलता‍ है ‍ कक‍ व्यष्क्तगत‍ औि‍ िाजनीततक‍
संतुष्ष्ि‍के‍साथ-साथ‍पािस्परिक‍ववश्वास‍औि‍ष्स्थि‍लोकतंत्र‍के‍मध्य‍एक‍सकािात्मक‍सह-
संबंि‍है ‍ क्योंकक‍ये‍ सर्ी‍कािक‍“लोकतांत्रत्रक‍संस्थानों‍के‍प्रतत‍सकािात्मक‍दृष्ष्िकोण‍के‍एक‍
लसंड्रोम”‍का‍गठन‍किते‍ हैं‍ (Ibid.,‍1215)।‍इसललए‍यह‍कहा‍जा‍सकता‍है ‍ कक इस‍तिह‍के‍
लसंड्रोम‍के‍उच्च‍स्ति‍वाले‍ समाज‍(कम‍स्ति‍वाले‍ समाजों‍की‍तुलना‍में )‍लोकतांत्रत्रक‍मूल्यों‍
के‍साथ-साथ‍लोकतांत्रत्रक‍संस्थाओं‍को‍मजबूती‍प्रदान‍किते‍हैं।

1980 के‍ दशक‍ के‍ अंत‍ तक‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ उपागम‍ ने‍ इततहासकािों‍ के‍ बीच‍
प्रमुखता‍प्राप्त‍कि‍ली‍थी।‍ववशेर्‍रूप‍से‍ दो‍इततहासकािों‍जैसे‍ John L.‍Brooke‍ने‍ अपनी‍
पुिस्काि-ववजेता‍ कृतत‍ “Society and Political Culture on Worcester County
Massachusetts, 1773-1861”‍ (1989) औि‍ Daniel Walker‍ Howe‍ ने‍ “The

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

Evangelical Movement and Political Culture in the North during the Second
Party System” (1991)‍ नामक‍ शीर्षक‍ ग्रंथ‍ में‍ इस‍ दृष्ष्िकोण‍ का‍ अनुसिण‍ ककया‍ है ।‍
वास्तव‍में ,‍Howe‍ने‍ िाजनीततक‍संस्कृतत‍के‍अंतगषत‍सामाष्जक‍आंदोलनों‍औि‍िाजनीततक‍
शष्क्त‍ हे तु‍ ककए‍ जाने‍ वाले‍ संघर्ों‍को‍शालमल‍किते‍ हुए‍इसके‍ वैचारिक‍क्षेत्र‍को‍ बढ़ाया‍है ।‍
उन्द्होंने‍जोि‍दे कि‍इस‍तथ्य‍को‍उजागि‍ककया‍है ‍कक‍“सत्ता‍के‍ललए‍होने‍वाले‍सर्ी‍संघर्ों‍को‍
शालमल‍ ध्यान‍ में‍ िखकि‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ को‍ परिर्ावर्त‍ किना‍ चादहए‍ न‍ कक‍ केवल‍
चुनावों‍ द्वािा‍ तय‍ ककए‍ गए”‍ (Formisano,‍ 2001: 416)।‍ Howe‍ के‍ ललए, अमेरिकी‍
िाजनीतत‍ में‍ जेन्द्डि‍ न्द्याय, पयाषविण‍संिक्षण, नस्लीय‍न्द्याय‍औि‍मजदिू ‍वगों‍के‍अधिकािों‍
के‍ ललए‍ होने‍ वाले‍ जन‍ आंदोलनों‍ का‍ महत्त्‍वपूण‍ष स्थान‍ िहा‍ है , औि‍ स्थानीय‍ लोगों‍ की‍
िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ के‍ बािे ‍ में ‍ व्यापक‍ समझ‍ ववकलसत‍ किने‍ के‍ ललए‍ इसका‍ उपयुक्त‍
ववश्लेर्ण‍ आवश्यक‍ है।‍ इस‍ प्रकाि,‍ Howe‍ ने‍ अपने‍ अध्ययन‍ में ‍ सामाष्जक‍ आंदोलनों‍ के‍
ववश्लेर्ण‍को‍सष्ममललत‍कि‍“िाजनीततक‍संस्कृतत” के‍साथ-साथ‍“िाजनीतत”‍की‍परिर्ार्ा‍को‍
व्यापक‍स्वरूप‍ददया।

सामाक्जक पाँूजी (Social Capital) और राजनीततक संस्कृतत


बीसवीं‍ सदी‍ के‍ उत्तिािष‍ में , Robert Putnam‍ जैसे‍ ववद्वानों‍ के‍ कायों‍ के‍ फलस्वरूप‍
िाजनीततक‍संस्कृतत‍के‍उपागम‍ने‍ अधिक‍लोकवप्रयता‍प्राप्त‍की।‍अपने‍ ववश्व‍ववख्यात‍कृतत,‍
शीर्षक‍ “Making Democracy Work: Civic Traditions in Modern Italy”‍ (1993)‍ में,‍
Putnam‍ ने‍ ववलर्न्द्न‍ दृष्ष्िकोणों‍औि‍अनुर्वजन्द्य‍सािनों‍को‍उपयोग‍किते‍ हुए‍इिली‍की‍
क्षेत्रीय‍ सिकािों‍ की‍ कायषप्रणाली‍ का‍ अध्ययन‍ ककया‍ है ।‍ David D. Laitin‍ (1995) ने‍ इस‍
कृतत‍ को‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ अनस
ु ंिान‍ के‍ संदर्ष‍ एक‍ नई‍ शरु
ु आत‍ को‍ धचष्ननत‍ किने‍ का‍
श्रेय‍ ददया‍ है।‍ हालााँकक Putnam‍ ने‍ िाजनीतत‍में‍ लोगों‍ की‍ र्ागीदािी‍ की‍ जड़ों‍ का‍ ववश्लेर्ण‍
किने‍ के‍ललए ‘सामाष्जक‍पाँज
ू ी’ शब्द‍का‍इस्तेमाल‍ककया।‍यह‍शब्द‍“साझा‍मानदं डों, मल्
ू यों‍
औि‍समझ‍के‍साथ‍नेिवकष‍को‍संदलर्षत‍किता‍है ‍ जो‍समह
ू ों‍के‍मध्य‍या‍साथ‍सहयोग‍को‍
मजबत
ू ‍ किता‍ है ”‍ (Keeley, 2007: 103)।‍ Putnam‍ के‍ अनस
ु ाि, ष्स्थि‍ लोकतांत्रत्रक‍ औि‍
प्रशासतनक‍क्षमता‍के‍ललए‍“सामाष्जक‍पाँज
ू ी‍संर्वत:‍र्ौततक‍या‍मानव‍पाँज
ू ी”‍से‍ र्ी‍अधिक‍
महत्त्‍वपूण‍ष हो‍ सकती‍ है ”‍ (Rotberg, 1999: 339)।‍ चाँकू क‍ उन्द्होंने‍ सामाष्जक‍ पाँज
ू ी‍ की‍ एक‍
उच्च‍डडग्री‍वाले‍समाजों‍को‍परिकष्ल्पत‍ककया‍जो‍िाजनीततक‍ष्स्थिता‍औि‍प्रर्ावी‍शासन‍के‍
ललए‍ महत्त्‍वपूण‍ष मानी‍ जाने‍ वाली‍ (िाजनीततक‍ गततववधियों‍ औि‍ प्रकक्रयाओं‍ में )‍ नागरिक‍

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

सहर्ाधगता‍को‍प्रोत्सादहत‍किता‍है ।

नागरिक‍ संस्कृतत‍ (Almond औि‍ Verba)‍ औि‍ सामाष्जक‍ पाँज


ू ी‍ (Putnam)‍ के‍ बीच‍ के‍
अंतसंबंि‍ का‍ ववश्लेर्ण‍ किते‍ हुए,‍ Robert I. Rotberg‍ (1999: 341) तकष‍ दे ते‍ हैं‍ कक‍
“नागरिक‍ संस्कृतत‍ मौजूद‍ है ‍ क्योंकक‍ नागरिकों‍ ने‍ बड़ी‍ मात्रा‍ में ‍ सामाष्जक‍ पाँज
ू ी‍ को‍ संग्रह‍
ककया‍है ...‍[दस
ू िे ‍शब्दों‍में ] सामाष्जक‍पाँज
ू ी‍का‍उच्च‍स्ति‍िाजनीततक‍संस्कृतत‍के‍तनमाषण‍में ‍
योगदान‍ दे ता‍ है ‍ जो‍ खुला, बहुलवादी, ववचािशील, सदहष्ण‍ु औि‍ लोकतांत्रत्रक‍ है ”।‍ इस‍ तिह,
Putnam‍ के‍ क्लालसक‍ कृतत‍ ने‍ शोिकताषओं‍ को‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ उपागम‍ की‍ अविािणा‍
को‍ औि‍ अधिक‍ ववकलसत‍किने‍ के‍ललए‍प्रोत्सादहत‍ककया।‍सामाष्जक‍ पाँज
ू ी‍औि‍िाजनीततक‍
संस्कृतत‍ के‍ बीच‍ सकािात्मक‍ सह-संबंि‍ दे खा‍ जाता‍ है ‍ क्योंकक‍ दोनों‍ एक-दस
ू िे ‍ को‍ ववकलसत‍
किने‍में‍अहम‍र्ूलमका‍अदा‍किते‍हैं।

राजनीततक संस्कृतत और ववचारधारा


1960‍औि‍1970‍के‍दशक‍के‍दौिान, िाजनीततक‍संस्कृतत‍पि‍ववद्वानों‍का‍अध्ययन‍मख्
ु य‍
रूप‍ से‍ व्यवहाि‍ संबंिी‍ पहलओ
ु ं‍ तक‍ ही‍ सीलमत‍ था।‍ हालााँकक,‍ Louis Althusser‍ जैसे‍ नव-
माक्सषवादी‍ ववद्वानों‍ ने‍ िाजनीतत‍ में‍ संस्कृतत‍ की‍ र्ूलमका‍ का‍ ववश्लेर्ण‍ किने‍ के‍ ललए‍ एक‍
वैकष्ल्पक‍ दृष्ष्िकोण‍ (ववचाििािा‍ की‍ अविािणा‍ पि‍ जोि‍ दे ते‍ हुए)‍ की‍ पेशकश‍ की‍ है ।‍
Althusser‍ के‍ अनुसाि, “िाज्य‍ के‍ दो‍ प्रमुख‍ घिक‍ हैं‍ :‍ दमनकािी‍ औि‍ िाज्य‍ के‍ वैचारिक‍
तंत्र”‍ (Rosamond, 1997: 66)।‍ दमनकािी‍ तंत्रों‍ में ‍ सशस्त्र‍ औि‍ कानून‍ प्रवतषन‍ एजेंलसयााँ‍
जैसे‍ पुललस‍औि‍अिषसैतनक‍बल‍(शष्क्त‍औि‍बल‍के‍माध्यम‍से‍ कायष‍ किती‍है )‍शालमल‍हैं,
िाज्य‍ के‍ वैचारिक‍ तंत्र‍ में ‍ परिवाि, शैक्षर्णक‍ संस्थान, िमष‍ औि‍ संस्कृतत‍ (दस
ू िों‍ के‍ बीच‍
वैचारिक‍रूप‍से‍कायष‍किती‍है )‍शालमल‍है ।‍ददलचस्प‍बात‍यह‍है ‍कक‍वैचारिक‍तंत्र‍ऐसे‍समय‍
में‍शासन‍किने‍के‍ललए‍महत्त्‍वपूण‍ष हो‍जाते‍हैं‍जब‍कोई‍दमनकािी‍तंत्र‍उपयोगी‍न‍िहे ।

इस‍ दृष्ष्िकोण‍ के‍ अनस


ु ाि, “िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ एक‍ प्रचललत‍ मल्
ू य‍ प्रणाली‍ औि‍ ज्ञान‍
संिचना‍का‍रूप‍ले‍ लेती‍है , ष्जसे‍ ककसी‍र्ी‍समय‍प्रर्त्ु वशाली‍वगों‍के‍द्वािा‍पिू े ‍ समाज‍में ‍
प्रसारित‍ककया‍जा‍सकता‍है ” (Ibid., 65)।‍दस
ू िे ‍शब्दों‍में ,‍इस‍मतानस
ु ाि‍िाजनीततक‍संस्कृतत‍
को‍समाज‍के‍सदस्यों‍के‍िाजनीततक‍दृष्ष्िकोण‍औि‍अलर्ववन्द्यास‍के‍साथ‍संबंधित‍नहीं‍ है ,
बष्ल्क‍यह‍प्रर्ुत्वशाली‍वगों‍की‍एक‍मूल्य‍प्रणाली‍है ‍जोकक‍शालसत‍वगष‍को‍उनके‍िाजनीततक‍
प्रर्ुत्व‍(आधिपत्य)‍को‍बनाए‍िखने‍ में ‍ सहायक‍होती‍है , इस‍प्रकाि‍िाजनीततक‍व्यवस्था‍को‍
ष्स्थिता‍प्रदान‍किती‍है ।
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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

उपसभ्यताएाँ (Subcultures)

िाजनीततक‍संस्कृतत‍पि‍ववद्वानों‍के‍कुछ‍लेखन‍ने‍ इस‍तथ्य‍पि‍प्रकाश‍डाला‍कक‍िाष्र‍र्ि‍
में‍ एकरूपक‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ का‍ अष्स्तत्व‍ एक‍ आदशषवादी‍ िािणा‍ से‍ अधिक‍ कुछ‍ नहीं‍
था।‍इस‍बात‍की‍संर्ावना‍काफी‍अधिक‍है ‍ कक‍“ककसी‍एक‍िाष्रीय‍िाजनीततक‍संस्कृतत‍के‍
बजाय‍ ककसी‍ िाजनीततक‍ प्रणाली‍ के‍ र्ीति‍ कई‍ िाजनीततक‍ संस्कृततयााँ‍ मौजूद‍ हो‍ सकती‍ हैं”‍
(Rosamond,‍1997:‍67)।‍संस्कृतत‍औि‍िाजनीततक‍प्रणाली‍के‍मध्य‍अंतिसंबंि‍के‍संदर्ष‍
में‍ व्यापक‍ समझ‍ ववकलसत‍ किने‍ के‍ ललए, “ववलर्न्द्न‍ उपसंस्कृततयों‍ के‍ आपसी‍ संवाद‍ औि‍
इनके‍िाजनीततक‍प्रणाली‍पि‍पड़ने‍ वाले‍ प्रर्ावों”‍की‍समग्र‍रूप‍से‍ जााँच‍किना‍महत्त्‍वपूण‍ष है ।
‘उपसंस्कृतत’ शब्द‍ ककसी‍ र्ी‍ समाज‍ में ‍ ववववि‍ सामाष्जक‍ समूहों‍ औि‍ समुदायों‍ की‍ ववलशष्ि‍
पहचान‍को‍संदलर्षत‍किता‍है ।‍िाजनीततक‍संस्कृतत‍के‍संदर्ष‍ में, यह‍िाजनीततक‍प्रणाली‍की‍
ओि‍ववलर्न्द्न‍समुदायों‍औि‍सामाष्जक‍समूहों‍के‍व्यवहाि, िाय, अलर्ववन्द्यास‍औि‍दृष्ष्िकोण‍
के‍ अष्स्तत्व‍ को‍ संदलर्षत‍ किता‍ है ।‍ Dennis Kavanagh‍ ने‍ अपनी‍ कृतत‍ “Political
Culture”‍(1972)‍में‍“चाि‍ववलशष्ि‍आिािों‍की‍पहचान‍की‍है , ष्जन‍पि‍उपसंस्कृतत‍ववकलसत‍
होती‍ है ‍ :‍ कुलीन‍ बनाम‍ जन‍ संस्कृतत, कुलीन‍ वगष‍ के‍ र्ीति‍ सांस्कृततक‍ ववर्ाजन, पीढ़ीगत‍
उपसंस्कृतत‍ औि‍ सामाष्जक‍ संिचना”‍ (Ibid)।‍ इस‍ तिह, इन‍ चाि‍ ववलशष्ि‍ आिािों‍ पि‍ एक‍
समाज‍ में ‍ ववलर्न्द्न‍ उप-संस्कृतत‍ का‍ तनमाषण‍ होता‍ है ,‍ ष्जनका‍ अलग-अलग‍ सामाष्जक‍ औि‍
िाजनीततक‍ तनदहताथष‍ होता‍ है ।‍ अगले‍ र्ाग‍ में ‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ दृष्ष्िकोण‍ की‍ प्रमुख‍
आलोचनाओं‍औि‍कलमयों‍पि‍प्रकाश‍डाला‍गया‍है ।

2.7 राजनीततक संस्कृतत का मल्


ू यांकन

तुलनात्मक‍िाजनीतत‍के‍ककसी‍र्ी‍अन्द्य‍उपागम‍व‍दृष्ष्िकोण‍की‍र्ााँतत‍िाजनीततक‍संस्कृतत‍
उपागम‍र्ी‍िाजनीततक‍वैज्ञातनकों‍की‍आलोचना‍से‍ पिे ‍ नहीं‍ है ।‍आलोचकों‍का‍सवषप्रथम‍औि‍
सबसे‍ महत्त्‍वपूणष तकष‍ है ‍ कक‍ इस‍ दृष्ष्िकोण‍ के‍ प्रस्तावक‍ एक‍ ददए‍ गए‍ समाज‍ में ‍ समुदायों‍
औि‍सामाष्जक‍समूहों‍की‍एक‍िाष्रीय‍िाजनीततक‍संस्कृतत‍को‍धचत्रत्रत‍किने‍का‍प्रयास‍किते‍
हैं।‍ इसके‍ बजाय, ववद्वानों‍ को‍ “समाजों‍ में‍ िं ग‍ औि‍ वगष‍ पि‍ आिारित‍ ववलर्न्द्न‍ उपसंस्कृतत‍
पि‍अधिक‍ध्यान‍केंदरत‍किना‍चादहए”‍(Rod and Martin, 2004: 90)।‍उदाहिण‍के‍ललए,
यह‍संर्व‍हो‍सकता‍है ‍ कक‍एक‍समुदाय‍के‍र्ीति‍लोग‍(जातत, वगष, जातत, िमष‍ इत्यादद‍के‍
आिाि‍ पि)‍ अपने‍ व्यष्क्तगत‍ संतोर्‍ औि‍ जीवन‍ के‍ तिीके‍ के‍ अनुरूप‍ ववलर्न्द्न‍ िाजनीततक‍

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

संस्कृतत‍को‍धचत्रत्रत‍किे ।‍इसके‍अलावा, िाजनीततक‍संस्कृतत‍उपागम‍का‍अध्ययन‍किने‍वाले‍


ववद्वानों‍ ने‍ सामाष्जक‍ ववज्ञान‍ के‍ संदर्ष‍ में ‍ इसकी‍ उत्पवत्त‍ औि‍ ववकास‍ का‍ एक‍ व्यापक‍
ववविण‍प्रस्तुत‍नहीं‍ककया‍है , ष्जसके‍फलस्वरूप‍इस‍उपागम‍की‍ऐततहालसक‍समझ‍ववकलसत‍
किने‍ में ‍ काफी‍ बािाएाँ‍ उत्पन्द्न‍ होती‍ है ।‍ दस
ू िी‍ ओि,‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ का‍ उपयोग‍ एक‍
ववश्लेर्ण‍की‍पद्ितत‍औि‍उपकिण‍के‍रूप‍में ‍ मूलरूप‍से‍ पष्श्चमी‍लोकतंत्रों‍में ‍ नागरिकों‍की‍
िाजनीततक‍ अलर्रुधच‍ औि‍ ववश्वास‍ के‍ अध्ययन‍ के‍ ललया‍ ककया‍ गया‍ है ।‍ इसने‍ न‍ केवल‍
िाजनीततक‍संस्कृतत‍के‍अध्ययन‍के‍दायिे ‍ को‍सीलमत‍ककया, बष्ल्क‍इसके‍ववश्लेर्ण‍को‍र्ी‍
पष्श्चमीवादी‍बना‍ददया।

Edward W. Lehman‍ का‍ मत‍ है ‍ कक‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ उपागम‍ में ‍ “सांस्कृततक‍
कािकों‍ को‍ सामाष्जक‍ व्यवस्था‍ (ववशेर्‍ रूप‍ से‍ संिचना)‍ तक‍ सीलमत‍ किने‍ या‍ उन्द्हें ‍ केवल‍
समाज‍ के‍ व्यष्क्तगत‍ सदस्यों‍ के‍ झक
ु ाव‍ के‍ सांष्ख्यकीय‍ एकत्रीकिण‍ के‍ रूप‍ में ‍ दे खने‍ की‍
प्रववृ त्त‍है ”‍(Lehman, 1972: 362)।‍यह‍संकुधचत‍दृष्ष्िकोण‍िाष्रीय‍औि‍स्थानीय‍िाजनीतत‍
को‍ आकाि‍ दे ने‍ वाले‍ सांस्कृततक‍ कािकों‍ को‍ एक‍ बहुत‍ ही‍ संकीणष‍ समझ‍ पस्तुत‍ किता‍ है ।‍
इसके‍ अलावा, Lehman‍ का‍ मत‍ है ‍ कक‍ क्रॉस-नेशनल‍ सवेक्षण‍ तिीका—ष्जसका‍ उपयोग‍
Almond औि‍Verba‍के‍द्वािा‍पााँच‍प्रमुख‍उदाि‍लोकतांत्रत्रक‍दे शों‍में ‍िाजनीततक‍संस्कृतत‍के‍
अध्ययन‍में‍तनयोष्जत‍ककया‍गया‍था, जैसा‍कक‍ऊपि‍चचाष‍की‍गई‍है —ने‍गलत‍तिीके‍से‍हमें ‍
ववश्वास‍ददलाया‍कक‍“प्रर्ुत्वशाली‍सांस्कृततक‍प्रततमानों‍को‍तनिाषरित‍किने‍में ‍समाज‍के‍सर्ी‍
सदस्य‍समान ‘उत्तोलन’ (leverage)‍िखते‍ हैं‍ या‍सर्ी‍समूह‍समान‍रूप‍से‍ उनकी‍सदस्यता‍
लेते‍ हैं”‍(Ibid)।‍M.‍Mann‍(1970) जैसे‍ ववद्वानों‍के‍अध्ययनों‍ने‍ यह‍सात्रबत‍ककया‍है ‍ कक‍
एक‍ समाज‍ में‍ लोग‍ िाजनीततक‍ क्षेत्र‍ में ‍ अलग-अलग‍ तिह‍ से‍ अपनी‍ र्ागीदािी‍ सुतनष्श्चत‍
किते‍ हैं‍ औि‍ साथ‍ ही,‍ िाजनीतत‍ औि‍ इसके‍ ववलर्न्द्न‍ संस्थानों‍ तक‍ पहुाँचने‍ की‍ उनकी‍
व्यष्क्तगत‍क्षमता‍र्ी‍अलग-अलग‍होती‍है ।

दस
ू िी‍ तिफ, आलोचकों‍ का‍ दावा‍ है‍ कक‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ का‍ दृष्ष्िकोण‍ यथाष्स्थतत‍
बनाए‍ िखने‍ का‍ माध्यम‍ है ,‍ औि‍ इस‍ प्रकाि,‍ सत्तािािी‍ कुलीन‍ वगष‍ के‍ दहतों‍ का‍ पक्षिि‍ है ।‍
Lowell Dittmer‍ का‍ मत‍ है ‍ कक‍ “प्रणालीगत‍ ष्स्थिता‍ को‍ लेकि‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ की‍
अविािणा‍ काफी‍ तय‍ ददखी, जैसे‍ कक‍ परिवतषन‍ की‍ अनुपष्स्थतत‍ के‍ हे तु‍ ववविण‍ आवश्यक‍
होता‍है ”‍(Dittmer, 1974: 577)।‍दस
ू िे ‍ शब्दों‍में, आलोचकों‍ने‍ इसके‍िाजनीततक‍परिणामों‍
के‍ संदर्ष‍ में ‍ इस‍ उपागम‍ को‍ रूदढ़वादी‍ पाया,‍ औि‍ इस‍ प्रकाि, इसके‍ द्वािा‍ एक‍ समाज‍ में ‍

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

परिवतषन‍ लाने‍ की‍ सर्ी‍ संर्ावनाओं‍ को‍ र्ी‍ खारिज‍ कि‍ ददया।‍ कई‍ बाि सामाष्जक‍ औि‍
िाजनीततक‍ व्यवस्था‍ में ‍ बदलाव‍ लोकतंत्र‍ के‍ साथ‍ इसकी‍ बुतनयादी‍ मूल्यों‍ जैसे‍ कक‍ न्द्याय,
तनष्पक्षता‍औि‍समानता‍आदद‍को‍मजबूत‍औि‍प्रसारित‍किने‍के‍ललए‍अतनवायष‍है ।

इन‍ खालमयों‍ औि‍ आलोचनाओं‍ के‍ बावजूद,‍ तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ के‍ अध्ययन‍ में‍
िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ उपागम‍ के‍ महत्त्‍व‍ को‍ नकािा‍ नहीं‍ जा‍ सकता‍ हैं।‍ हाल‍ ही‍ के‍ वर्ों‍ में ,
Ronald Inglehart औि‍Christian Welzel‍(2003) जैसे‍ ववद्वानों‍ने‍ इन‍खालमयों‍को‍दिू ‍
किने‍ का‍ प्रयास‍ ककया‍ है ‍ औि‍ इस‍ उपागम‍ (व‍ दृष्ष्िकोण)‍ को‍ िाजनीतत‍ ववज्ञान‍ में ‍ एक‍
महत्त्‍वपण
ू ‍ष तल
ु नात्मक‍ववश्लेर्णात्मक‍उपकिण‍के‍रूप‍में ‍बनाए‍िखने‍का‍आनवान‍ककया‍है ।

2.8 तनष्कषट

तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ के‍ क्षेत्र‍ में ‍ प्रचललत‍ आितु नक‍ उपगमों‍ में ‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ उपागम‍
एक‍ प्रमुख‍ स्थान‍ िखता‍ है ।‍ एक‍ ओि,‍ इसने‍ िाजनीततक‍ वैज्ञातनकों‍ औि‍ शोिकताषओं‍ को‍
व्यष्क्तगत‍ व्यवहाि‍ औि‍ िाजनीततक‍ प्रणाली‍ के‍ बीच‍ के‍ पािस्परिक‍ संबंि‍ को‍ अनुर्ववादी‍
तिीके‍से‍ ववश्लेर्ण‍किने‍ में ‍ सक्षम‍बनाया‍है , औि‍वहीं‍ दस
ू िी‍ओि,‍िाजनीततक‍ष्स्थिता‍औि‍
सिकािी‍ प्रर्ावशीलता‍ में ‍ नागरिक‍ र्ागीदािी‍ के‍ महत्त्‍व‍ का‍ अवलोकन‍ किने‍ में ‍ उन्द्हें ‍ सुवविा‍
प्रदान‍की।‍यह‍र्ी‍दे खा‍गया‍है ‍ कक‍आिुतनक‍तुलनात्मक‍िाजनीतत‍में ‍ िाजनीततक‍संस्कृतत‍
के‍ दृष्ष्िकोण‍ के‍ उद्र्व‍ ने‍ “व्यष्क्तगत‍ िाजनीततक‍ तनणषयों‍ के‍ व्यवहािवादी‍ ववश्लेर्ण”‍ को‍
मजबूती‍प्रदान‍की‍है , औि‍इस‍प्रकाि,‍िाजनीततक‍घिनाक्रमों‍का‍एक‍यथाथषवादी‍स्पष्िीकिण‍
उपलब्ि‍किवाया‍है ‍(Bove, 2002: 3)।‍हालााँकक, िाजनीततक‍संस्कृतत‍उपागम‍के‍घिकों‍औि‍
क्षेत्र‍को‍संशोधित‍किने‍के‍ललए‍ववद्वानों‍के‍प्रयासों‍की‍आवश्यकता‍होती‍है ‍ताकक‍यह‍समय‍
के‍साथ‍प्रासंधगक‍िह‍सके।

2.9 अभ्यास प्रश्न

1. तुलनात्मक‍दृष्ष्िकोण‍के‍क्षेत्र‍में ‍आिुतनक‍दृष्ष्िकोण‍पि‍संक्षक्षप्त‍तनबंि‍ललर्खए।

2. आल्‍मंड‍ औि‍ पॉवेल‍ की‍ संिचना‍ प्रकायाषत्मक‍ उपागमों‍ की‍ ववलर्न्द्न‍ सीमाओं‍ की‍
व्याख्या‍कीष्जए।

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

2.10 संदिट-ग्रंथ

• Almond, Gabriel A. and Verba, Sydney. 1963. The Civic Culture: Political Attitudes and
Democracy in Five Nations. Princeton: Princeton University Press.
• Ball, Alan R. 1971. Modern Politics and Government. London: Macmillan.
• Bove, Andrew. 2002. The Limits of Political Cultures: An Introduction to G.W.F. Hegel’s
Notion of Bildung. In: A Bove. eds. Questionable Returns. Vienna: IWM Junior Visiting
Fellows Conference, Vol. 12.
• Dittmer, Lowell. 1974. Political Culture and Political Symbolism: Toward a Theoretical
Synthesis. World Politics, XXIX, accessed on 21 November 2020, online available at:
https://www.jstor.org/stable/2577258
• Formisano, Ronald P. 2001. The Concept of Political Culture. The Journal of
Interdisciplinary History, 31 (3), accessed on 04 November 2020, online available at:
https://www.jstor.org/stable/207089
• Hague, Rod and Harrop, Martin. 2004. Comparative Government and Politics: An
Introduction. 6th Ed. Hampshire and New York: Palgrave Macmillan.
• Inglehart, Ronald. 1988. The Renaissance of Political Culture. The American Political
Science Review, 82 (4), accessed on 18 November 2020, online available at:
https://www.jstor.org/stable/1961756
• Inglehart, Ronald and Welzel, Christian. eds. 2003. Political Culture and Democracy:
Analysing Cross-Level Linkage. Comparative Politics. 63 (1), accessed on 21 November
2020, online available at: https://www.jstor.org/stable/4150160
• Keeley, Brian. 2007. Human Capital: How What You Know Shapes Your Life. 1st Ed.,
OECD: Paris.
• Kim, Young C. 1964. The Concept of Political Culture in Comparative Politics. The
Journal of Politics, 26 (2), accessed on 04 November 2020, online available at:
https://www.jstor.org/stable/2127599
• Lehman, Edward W. 1972. On the Concept of Political Culture: A Theoretical
Reassessment. Social Forces, 50 (3), accessed on 21 November 2020, online available at:
https://www.jstor.org/stable/2577040
• Powell, G. Bingham, Dalton, Russell J. and Strøm, Kaare W. 2015. Comparative Politics
Today: A World View. 11 Ed. Harlow: Pearson.

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

• Pye, Lucien W. and Sydney, Verba. eds. 1965. Political Culture and Political
Development. Princeton: Princeton University Press.
• Rosamond, Ben. 1997. Political Culture. In: Barrie Axford. et al. Politics: An
Introduction, London: Routledge, pp. 57-81.
• Rotberg, Robert I. 1999. Social Capital and Political Culture in Africa, America,
Australasia and Europe. The Journal of Interdisciplinary History, 29 (3), accessed on 18
November 2020, online available at: https://www.jstor.org/stable/207132

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

पाठ-3 : नव-संस्थावाद
येररामादासु उदय कुमार
अनुवादक‍:‍आशीष कुमार शुक्ल

संरचना

3.1 उद्दे श्‍य‍

3.2 परिचय‍

3.3 ऐततहालसक‍संस्थावाद

3.4 तकषसंगत‍ववकल्प‍संस्थावाद

3.5 समाजशास्त्रीय‍संस्थावाद

3.6 तनष्कर्ष

3.7 अभ्‍
यास‍प्रश्‍न

3.8 संदर्ष-ग्रंथ

3.1 उद्दे श्य

• इस‍ अध्‍याय‍ का‍ अध्‍ययन‍ किने‍ के‍ पश्‍चात ्‍ ववद्याथी‍ तुलनात्मक‍ ववश्लेर्ण‍ में ‍
िाजनीतत‍की‍संिचना‍औि‍ऐततहालसक संस्थागतवाद‍के‍बािे ‍में ‍समझ‍सकेंगे।
• इसके‍अलावा‍ववद्याथी‍िाजनीतत‍ववज्ञान‍ककस‍प्रकाि‍नए‍संस्थागतवाद‍का‍अध्ययन‍
किता‍है ।‍इसका‍ववस्‍तत
ृ ‍अध्‍ययन‍किें गे।‍
• नई‍संस्थावाद‍औि‍ववकासशील‍दतु नया‍के‍बीच‍अंति‍को‍समझने‍का‍प्रयास‍किें गे।

3.2 पररचय

एक‍ वरिष्ठ‍ सहयोगी‍ ने‍ व्यक्त‍ ककया‍ कक‍ कैथलीन‍ थेलेन‍ तथा‍ स्वेन‍ स्िीनमो‍ ने‍ अपनी‍
संपाददत‍ पस्
ु तक‍ स्रक्चरिंग‍ पॉललदिक्स :‍ दहस्िॉरिकल‍ इंस्िीट्यश
ु ानललज़्म‍ इन‍ कमपेिेदिव‍

54 | पष्ृ ‍

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

एनालललसस में‍ दिप्पणी‍की, “िाजनीतत‍ववज्ञान‍संस्थानों‍का‍अध्ययन‍है।” अतः‍उन्द्‍होंने‍ प्रश्न‍


ककया‍कक‍‘नव-संस्थावाद‍के‍ववर्य‍में ‍ नवीन‍क्या‍है ?’ यह‍प्रश्न‍तथाकधथत‍नव-संस्थावाद‍के‍
प्रतत‍ एक‍ संदेह‍ को‍ प्रकि‍ किता‍ है , जो‍ ध्यान‍ दे ने‍ योग्य‍ है ।‍ िाजनीततक‍ ववचािकों,
समाजशाष्स्त्रयों‍तथा‍अथषशाष्स्त्रयों‍ने‍ बहुत‍लंबे‍ समय‍तक‍संस्थानों‍का‍अध्ययन‍ककया‍है ।‍
तो‍ यह‍ कोलाहल‍ ककस‍ ववर्य‍ में‍ है ? (थेलेन‍ तथा‍ स्िीनमो, 1992) अपने‍ साि‍ में‍ नव-
संस्थावाद‍ स्वयं‍ में ‍ एक‍ वविोिार्ास‍ है ।‍ िाजनीतत‍ के‍ अध्ययन‍ का‍ सिोकाि‍ सदै व‍ से‍ ही‍
संस्थाएाँ‍ िहा‍है ‍ औि‍िहे गा।‍संस्थाएाँ‍ िाजनीतत‍की‍आत्मा‍है ।‍इसमें ‍ कोई‍अततशयोष्क्त‍नहीं‍ है ‍
कक‍ यदद‍ संस्थान‍ नहीं‍ है ‍ तो‍ िाजनीतत‍ र्ी‍ नहीं‍ हो‍ सकती।‍ संस्थावाद‍ िाजनीतत‍ के‍ अनेक‍
उपागमों‍ के‍ मध्य‍ मात्र‍ के‍ उपागम‍ नहीं‍ है ।‍ इसके‍ स्थान‍ पि, अन्द्य‍ दृष्ष्िकोण‍ तनयमों‍ के‍
आिाि‍ पि‍ शालसत‍ होने‍ वाली‍ संस्थाओं‍ की‍ उपेक्षा‍ से‍ आगे‍ बढ़ते‍ हैं।‍ यदद‍ िाजनीतत‍ को‍
गंर्ीिता‍ से‍ ललया‍ जाए‍ तो‍ नव-संस्थावाद‍ संस्थानों‍ की‍ लौिने‍ के‍ स्थान‍ पि‍ तनष्पक्ष‍ रूप‍ से‍
स्वयं‍िाजनीतत‍में ‍जाने‍का‍प्रयास‍किता‍है ।

यद्यवप‍ इसे‍ अनदे खा‍ न‍ ककया‍ जाना‍ महत्त्‍वपण


ू ‍ष है , सर्ी‍ संस्थाएाँ‍ िाजनीततक‍ नहीं‍ हैं।‍
सर्ी-कर्ी‍संस्थाएाँ‍िाजनीतत‍की‍प्रततिोिी‍र्ी‍होती‍हैं।‍परिवाि, वववाह, िमष तथा‍अन्द्य‍अनेक‍
संस्थाएाँ‍िाजनीततक‍के‍र्ीति‍समादहत‍नहीं‍होती‍है ।‍इसके‍ववपिीत‍ये‍स्वयं‍को‍िाजनीतत‍के‍
हस्तक्षेप‍से‍बाहि‍िखने‍का‍प्रयास‍किती‍हैं।‍नािीवाद‍का‍र्ावुक‍नािा‍‘व्यष्क्तगत‍िाजनीततक‍
है ’, एक‍ प्रकाि‍ से‍ िाजनीतत‍ के‍ हस्तक्षेप‍ से‍ बाहि‍ िहने‍ के‍ ललए‍ परिवाि‍ की‍ इच्छा‍ की‍
अस्वीकृतत‍है ।‍जब‍हम‍िाजनीततक‍रूप‍में ‍ कुछ‍कहते‍ हैं‍ अथवा‍कोई‍व्यष्क्त‍िाजनीतत‍किता‍
है ‍ तो‍इससे‍ हमािा‍क्या‍तात्पयष‍ है ,‍यह‍पता‍चलता‍है ।‍इस‍शब्द‍के‍प्रचललत‍उपयोग‍ने‍ इसे‍
अस्पष्ि‍बना‍ददया‍है ।‍िाजनीतत‍प्रायः‍शष्क्त‍अथवा‍दहत‍के‍पयाषय‍के‍रूप‍में ‍ वववेधचत‍की‍
जाती‍है ।‍जबकक‍यह‍दृष्ष्िकोण‍व्यापक‍है ‍ तथा‍इसके‍बहुत‍से‍ समथषक‍हैं, यह‍िाजनीतत‍की‍
तनलमषतत‍की‍सवाषधिक‍तनःशक्त‍िािणा‍है ।

उदाहिण‍के‍ललए‍ऊपि‍बताए‍गए‍नािे ‍ को‍एक‍बाि‍पन
ु ः‍दे खा‍जा‍सकता‍है —व्यष्क्तगत‍
िाजनीततक‍ है ।‍ जब‍ िाजनीतत‍ को‍ दहत‍ एवं‍ शष्क्त‍ के‍ रूप‍ में ‍ दे खा‍ जाता‍ है ,‍ तब‍ यह‍ नािा‍
वविोिार्ासी‍लगता‍है ।‍यह‍नािा‍यह‍सलाह‍दे ता‍ददखाई‍पड़ता‍है ‍कक‍परिवाि‍तथा‍व्यष्क्तगत‍
सत्ता‍तथा‍दहतों‍से‍बाहि‍हैं, जबकक‍यह‍पूणत
ष ः‍असत्य‍है ।‍परिवाि‍तथा‍व्यष्क्त‍दोनों‍ही‍सत्ता‍
में‍गहिे ‍तक‍डूबे‍िहते‍हैं।‍संतान, वपत,ृ भ्रात ृ तथा‍मात,ृ इनमें‍से‍कोई‍र्ी‍सत्ता‍से‍बाहि‍नहीं‍
है ।‍इसके‍स्थान‍पि‍वे‍सर्ी‍उस‍िाजनीतत‍से‍ बाहि‍हैं,‍ष्जसे‍हीगल‍ने‍ परिर्ावर्त‍ककया‍तथा‍

55 | पष्ृ ‍ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

बाद‍में‍डेिीडा‍ने‍पुनपषरिर्ावर्त‍ककया; यह‍ना‍तो‍दहत‍है ‍तथा‍न‍ही‍शष्क्त; यह‍नैततक‍अंति‍


हैं।‍इस‍प्रकाि‍िाजनीतत‍नैततकता‍के‍साथ‍प्रततद्वंद्ववता‍है ।‍परिवाि‍तथा‍व्यष्क्तगत, यदद‍वे‍
िाजनीतत‍से‍ बाहि‍हैं‍ अथवा‍वे‍ िाजनीतत‍से‍ बाहि‍होना‍चाहते‍ हैं, तब‍र्ी‍वे‍ शष्क्त‍समबन्द्िों‍
से‍ बाहि‍नहीं‍ हो‍सकते।‍इसके‍स्थान‍पि, वे‍ नैततक‍प्रततद्वंद्ववता‍से‍ बाहि‍िहने‍ का‍प्रयास‍
किते‍ हैं, तथा‍वे‍ अपने‍ र्ीति‍तनदहत‍शष्क्त‍संबंि‍पि‍नैततक‍संघर्ष‍ का‍वविोि‍किना‍चाहते‍
हैं।‍इसके‍द्वािा, हमने‍ इस‍िािणा‍को‍सिल‍बनाने‍ के‍स्थान‍पि‍अधिक‍जदिल‍बना‍ददया‍
है ।‍ यद्यवप, वास्तववकता‍ की‍ गहिाई‍ तक‍ जान‍ का‍ यह‍ एकमात्र‍ उपाय‍है ।‍ संस्थाएाँ‍ संर्वतः‍
अधिक‍ गहन‍ तथा‍ िाजनीतत‍ से‍ पिे ‍ हैं, तो‍ िाजनीतत‍ ववज्ञान‍ में‍ नव-संस्थावाद‍ के‍ ववर्य‍ में‍
नया‍क्या‍है ?

नव-संस्थावाद‍का‍कोई‍र्ी‍लेखा-जोखा‍मात्र‍इस‍ष्स्थतत‍पि‍संर्व‍है ‍ कक‍हम‍पहले‍ यह‍


स्पष्ि‍ किे ‍ कक‍ संस्थावाद‍ क्या‍ है ‍ तथा‍ दस
ू िे , ‘नव’ व‍ ववशेर्‍ क्या‍ है ‍ जो‍ इसे‍ संस्थावाद‍ के‍
उपसगष‍के‍रूप‍में ‍प्रयोग‍ककया‍गया।‍इस‍प्रकाि, संस्थावाद‍पि‍कम‍से‍कम‍प्रािं लर्क‍दिप्पणी‍
अतनवायष‍ हो‍ जाती‍ है ।‍ संस्थावाद‍ अथवा‍ प्रत्येक‍ िाजनीततक‍ श्रेणी‍ का‍ ववश्लेर्ण‍ दो‍ लर्न्द्न‍
प्रकाि‍से‍ ककया‍जा‍सकता‍है ।‍प्रत्येक‍िाजनीततक‍श्रेणी‍को‍दाशषतनक‍तथा‍ऐततहालसक‍आिाि‍
पि‍ ववश्लेवर्त‍ ककया‍ जा‍ सकता‍ है ।‍ इस‍ ववर्य‍ में ‍ दाशषतनक‍ उपागम‍ अथवा‍ अविािणात्मक‍
उपागम‍ संस्था‍ के‍ अतनवायष‍ अथष‍ को‍ ववचारित‍ किता‍ है ।‍ यह‍ संस्था‍ को‍ अन्द्य‍ श्रेर्णयों‍ जैसे‍
वविोिी‍श्रेणी, व्यष्क्त, से‍पथ
ृ क् ‍किने‍का‍प्रयास‍किता‍है ।‍

दस
ू िी‍ओि, ऐततहालसक‍उपागम‍संस्थाओं‍ की‍परिवतषनीयता‍अथवा‍ववकास‍को‍ववचारित‍
किता‍ है ।‍ ऐततहालसक‍ उपगाम‍ अविािणा‍ के‍ ऊपि‍ संदर्ष‍ को‍ महत्त्‍व‍ दे ता‍ है ।‍ कफि‍ र्ी, इस‍
मतर्ेदों‍ के‍ बाद‍ र्ी, ऐततहालसक‍ दृष्ष्िकोण‍ इस‍ प्रश्न‍ की‍ प्रािं लर्क‍ समझ‍ से‍ दिू ‍ नहीं‍ हो‍
सकता‍कक‍संस्था‍क्या‍है ? इस‍प्रकाि, एक‍प्रािं लर्क‍परिर्ार्ा‍अपरिहायष‍है ।‍अतः‍संस्था‍क्या‍
है ? हम‍शैक्षर्णक‍संस्थानों, सैन्द्य‍संस्थानों तथा‍धचककत्सा‍संस्थानों‍के‍ववर्य‍में ‍ जानते‍ हैं।‍
एक‍संस्था‍व्यष्क्तयों‍का‍एक‍समच्
ु च्य‍है ।‍जबकक‍व्यष्क्तयों‍का‍समच्
ु च्य‍संस्था‍की‍अतनवायष‍
ष्स्थतत‍ है , केवल‍ इतना‍ ही‍ पयाषप्त‍ नहीं‍ है ।‍ एक‍ संस्था‍ के‍ ललए‍ व्यष्क्तयों‍ के‍ समुच्च्य‍ से‍
अधिक‍ र्ी‍ बहुत‍ कुछ‍ आवश्यक‍ होता‍ है ।‍ र्ीड़‍ तथा‍ जनता‍ र्ी‍ व्यष्क्तयों‍ का‍ एक‍ समुच्च्य‍
होता‍है , पिं तु‍उन्द्हें ‍संस्था‍नहीं‍कहा‍जा‍सकता।

जेमस‍ माचष‍ तथा‍ जोहान‍ ओल्सेन‍ ने‍ परिर्ावर्त‍ ककया‍ कक‍ “एक‍ संस्था‍ तनयमों‍ तथा‍
संगदठत‍प्रथाओं‍का‍एक‍अपेक्षाकृत‍स्थायी‍संग्रह‍है , जो‍अथष‍तथा‍संसािनों‍की‍संिचनाओं‍में‍

56 | पष्ृ ‍

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

अंततनषदहत‍है , जो‍व्यष्क्तयों‍की‍अपेक्षाओं‍ तथा‍बानय‍परिवतषनीय‍वाताविण‍के‍प्रर्ाव‍से‍ र्ी‍


अपरिवतषनीय‍ है ।” (माचष‍ तथा‍ ओल्सेन, 1984) उपिोक्त‍ परिर्ार्ा‍ से‍ यह‍ स्पष्ि‍ हैं‍ कक‍
व्यष्क्तयों‍ तथा‍ उनकी‍ स्वर्ावगत‍ प्राथलमकताओं‍ को‍ एक-दस
ू िे ‍ के‍ वविोिी‍ के‍ रूप‍ में ‍ प्रस्तुत‍
ककया‍जाता‍है ।‍यद्यवप‍व्यष्क्त‍के‍ववपिीत, एक‍संस्था‍नमय, स्थायी‍तथा‍परिवतषन‍के‍प्रतत‍
प्रततिोिी‍होती‍है ।‍संस्था‍के‍ववर्य‍में ‍ हम‍एक‍अन्द्य‍सुपरिधचत‍परिर्ार्ा‍को‍र्ी‍दे ख‍सकते‍
हैं।‍ पीिि‍ हॉल‍ तथा‍ िोज़मेिी‍ िे लि‍ संस्था‍ को‍ ‘िाजनीतत‍ अथवा‍ िाजनीततक‍ अथषव्यवस्था‍ के‍
संगठनात्मक‍ढााँचे‍में‍तनदहत‍औपचारिक‍तथा‍अनौपचारिक‍प्रकक्रयाओं, ददनचयाष, मानदं डों‍तथा‍
प्रथाओं‍ के‍रूप‍में‍ परिर्ावर्त‍किते‍ हैं।‍वे‍ संवैिातनक‍व्यवस्था‍के‍तनयमों‍या‍नौकिशाही‍की‍
मानक‍ संचालन‍ प्रकक्रयाओं‍ से‍ लेकि‍ रे ड-यूतनयन‍ व्यवहाि‍ अथवा‍ बैंक‍ संबंिों‍ तक‍ हो‍ सकते‍
हैं।” (हॉल‍तथा‍िोज़मेिी, 1996)

अब‍तक‍हमने‍परिर्ावर्त‍ककया‍कक‍एक‍संस्था‍क्या‍है , िाजनीतत‍क्या‍है , तथा‍िाजनीतत‍


एवं‍ संस्थानों‍की‍अन्द्योन्द्याश्रयता‍के‍ववर्य‍में ‍ प्रािं लर्क‍दिप्पणी‍दी।‍इसके‍पश्चात ्‍हम‍उन‍
ववलशष्ि‍ परिष्स्थततयों‍ को‍ ववश्लेवर्त‍ किें गे,‍ ष्जनके‍ अंतगषत‍ नव-संस्थावाद‍ का‍ उदय‍ हुआ।‍
िाजनीततक‍ दृष्ष्िकोण‍ के‍ रूप‍ में ‍ संस्थावाद, व्यवहािवाद‍ एवं‍ तकषसंगत‍ ववकल्प‍ उपागमों‍ के‍
प्रर्ाव‍ के‍ कािण‍ क्षीण‍ पड़‍ गया, ष्जनका‍ 1960-70‍ के‍ दशक‍ में‍ समाज‍ ववज्ञान‍ पि‍ प्रर्ुत्व‍
था।‍व्यवहािवाद‍एवं‍तकषसंगत‍ववकल्प‍उपगमों‍के‍जबिन‍प्रवेश‍के‍कािण‍संस्थावाद‍अचानक‍
ही‍पुिातन‍एवं‍ सूक्ष्म‍ददखाई‍दे ने‍ लगा।‍यद्यवप‍व्यवहािवाद‍एवं‍ तकषसंगत‍ववकल्प‍दोनों‍ही‍
उपागमों‍ ने‍ संस्थावाद‍ के‍ जीववत‍ िहने‍ की‍ संर्ावना‍ को‍ बाधित‍ कि‍ ददया।‍ वे‍ अवलोकनीय‍
तथ्यों‍ एवं‍ पूवाषनुमेय‍ प्रततमानों‍ का‍ ववश्लेर्ण‍ किना‍ चाहते‍ थे।‍ संस्थाओं‍ को‍ अलर्कताषओं‍ के‍
रूप‍में‍ दे खा‍जाता‍है , ष्जनके‍र्ीति‍स्वयं‍ इच्छुक‍व्यष्क्त‍ही‍सहर्ागी‍होते‍ हैं‍ न‍कक‍संथाएाँ‍
व्यष्क्तयों‍ को‍ तनिाषरित‍ किती‍ हैं।‍ ककसी‍ र्ी‍ लसद्िान्द्त‍ के‍ प्रतत‍ व्यवहािवाद‍ तथा‍ तकषसंगत‍
ववकल्प‍उपागम‍का‍वविोि‍स्वतः‍स्पष्ि‍है ।

यद्यवप, अपने‍ दावों‍ को‍ बनाए‍ िखने‍ के‍ ललया‍ दोनों‍ लसद्िांतों‍ को‍ आिाि‍ के‍ रूप‍ में ‍
स्थावपत‍ होने‍ के‍ ललए‍ तत्त्‍वमीमांसीय‍ अलर्कथन‍ की‍ आवश्यकता‍ है ।‍ इस‍ प्रकाि, दोनों‍
लसद्िान्द्त‍ प्रचारित‍ एवं‍ व्यष्क्त‍ की‍ तत्त्‍वमीमीमांसा‍ पि‍ आिारित‍ थे।‍ इन‍ लसद्िांतों‍ के‍
अनुसाि, व्यष्क्त‍ स्व‍ की‍ इच्छा‍ िखने‍ वाला, उपयोधगता‍ की‍ अधिकता‍ वाला, लक्ष्य-उन्द्मुख,
गणनात्मक, ववखंडडत तथा‍ संकीणषतावादी‍ है ।‍ एक‍ ष्स्थत‍ मानवीय‍ ववशेर्ता‍ के‍ स्थान‍ पि‍
ववखंडडत‍एवं‍संकीणषतावादी‍व्यष्क्त‍आिुतनक‍व्यष्क्त‍का‍ववलशष्ि‍लक्षण‍है ।‍मान‍लीष्जए‍कक‍

57 | पष्ृ ‍ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

फूको‍श्रमसाध्य‍रूप‍से‍ प्रस्तुत‍किता‍है ‍ कक‍सेना‍तथा‍कािागह


ृ ‍के‍शष्क्त‍की‍सूक्ष्म‍र्ौततकी‍
में‍ तनवेश‍के‍साथ‍मुक्त‍ववर्य, ष्जसे‍ वह‍ववनि‍शिीि‍कहता‍है , का‍उत्पादन‍किते‍ हैं।‍इस‍
प्रकाि‍ संकीणषतावादी‍ व्यष्क्त‍ एक‍ ष्स्थि‍ मानव‍ ष्स्थतत‍ नहीं‍ है ।‍ इसके‍ स्थान‍ पि, यह‍
संस्थागत‍ रूप‍ से‍ तनलमषत‍ है ।‍ यह‍ तनलमषतत‍ एक‍ उत्ति-आिुतनकतावादी‍ मुहाविा‍ है —‘ववर्य‍
तनमाषण’।‍संस्थाएाँ‍ केवल‍आत्म-केंदरत‍व‍गणनात्मक‍व्यष्क्तयों‍के‍मध्य‍संतुलन‍का‍अनुबंि‍
नहीं‍ हैं।‍ वे‍ संिचनाओं, तनयमों‍ तथा‍ मानक‍ संचालन‍ प्रकक्रयाओं‍ का‍ संग्रह‍ है ‍ ष्जनकी‍
िाजनीततक‍जीवन‍में ‍आंलशक‍रूप‍से‍स्वायत्त‍र्ूलमका‍है ।” (माचष‍तथा‍ऑलसेन, 1984)

नव-संस्थावाद‍ व्यवहािवाद‍ तथा‍ तकषसंगत‍ ववकल्प‍ दृष्ष्िकोण‍ के‍ इस‍ ववध्वंसक‍ उपगमों‍
का‍हल‍है ।‍यद्यवप‍नव‍संस्थावाद‍व्यवहािवाद‍के‍सैद्िांततक‍गततिोि‍तथा‍तकषसंगत‍ववकल्प‍
उपागम‍ से‍ अष्स्तत्व‍में‍ आया, पिं त‍ु यह‍पिु ातन‍संस्थावाद‍से‍ र्ी‍ववचललत‍हो‍ गया।‍ इससे‍
र्ी‍महत्त्‍वपण
ू ‍ष बात‍यह‍है ‍कक‍नव-संस्थावाद‍एकीकृत‍दृष्ष्िकोणों‍का‍एक‍समह
ू ‍नहीं‍हैं।‍इसके‍
अततरिक्त‍इसके‍कई‍प्रस्तावक‍तथा‍दृष्ष्िकोण‍हैं।‍व्यवहािवाद‍की‍अस्वीकृतत‍तथा‍तकषसंगत‍
ववकल्प‍उपागम‍से‍उर्िे ‍सादहत्य‍के‍ववशाल‍तनकाय‍को‍ध्यान‍में ‍िखते‍हुए, उन्द्हें ‍सादहत्य‍के‍
एक‍ ही‍ तनकाय‍ तक‍ सीलमत‍ किना‍ उधचत‍ नहीं‍ है ।‍ व्यवहािवाद‍ के‍ स्वीकृत‍ अततिे क‍ तथा‍
तकषसंगत‍ ववकल्प‍ उपागम‍ के‍ बाद‍ र्ी, दोनों‍ उपागमों‍ के‍ महत्त्‍व‍ व‍ महत्त्‍वहीनता‍ पि‍ नव-
संस्थावाद‍के‍ववलर्न्द्न‍पक्षों‍में ‍ महत्त्‍वपूण‍ष असहमतत‍है ।‍इस‍प्रकाि, पीिि‍हॉल‍तथा‍िोज़मेिी‍
िे लि‍ नव-संस्थावाद‍ को‍ तीन‍ व्यापक‍ उपसमूहों‍ में ‍ ववर्ाष्जत‍ किते‍ हैं।‍ उनके‍ अनुसाि‍ नव-
संस्थावाद‍ के‍ र्ीति‍ इन‍ तीन‍ उपसमूहों‍ में‍ ऐततहालसक‍ संस्थावाद, तकष-संगत‍ ववकल्प‍
संस्थावाद‍तथा‍सामाष्जक‍संस्थावाद‍सष्ममललत‍है ।‍अलर्सिण‍तथा‍ववचलन‍दोनों‍को‍दे खने‍
के‍ ललए‍ हम‍ व्यष्क्तगत‍ रूप‍ से‍ इन‍ तीनों‍ दृष्ष्िकोणों‍ को‍ दे खेंगे।‍ यद्यवप, हॉल‍ तथा‍ िे लि‍
दोनों‍ने‍ दिप्पणी‍की‍कक‍उनके‍अततव्यापी‍दहतों‍तथा‍लक्ष्यों‍के‍बाद‍र्ी‍यह‍आश्चयषजनक‍है ‍
कक‍वे‍संर्वतः‍ही‍कर्ी‍एक‍उपयोगी‍सहयोग‍के‍ललए‍एक‍साथ‍आते‍हैं।

3.3 ऐततहाभसक संस्थावाद

ऐततहालसक‍ संस्थावाद‍ के‍ एक‍ सिल‍ उदाहिण‍ के‍ ललए‍ हम‍ ज्यूडडथ‍ गोल्डस्िीन‍ के‍ लेख‍
आइडडयाज़, इन्द्स्िीट्यूशस
ं ‍ एंड‍ अमेिीकन‍ रे ड‍ पॉललसी‍ (1988) दे ख‍ सकते‍ हैं।‍ इस‍ कायष‍ में ‍
उन्द्‍होंने‍ अमेरिका‍में‍ संिक्षणवाद‍को‍व्याख्यातयत‍किने‍ का‍प्रयास‍ककया‍है ।‍सामान्द्य‍िािणा‍
के‍ववपिीत, उन्द्‍होंने‍ दे खा‍कक‍एक‍प्रकाि‍के‍ववचािों‍को‍दस
ू िे ‍ के‍साथ‍बदलने‍ के‍स्थान‍पि,

58 | पष्ृ ‍

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

िाज्य‍ की‍ नीतत‍ के‍ ववर्य‍ में ‍ वविोिार्ार्ी‍ ववचाि‍ जैसे‍ कक‍ अहस्तक्षेप, संिक्षणवाद‍ तथा‍
हस्तक्षेपवाद‍एक‍साथ‍अमेरिका‍में ‍ उपष्स्थत‍है ।‍यह‍कहा‍जा‍सकता‍है ‍ कक‍यह‍घिना‍अन्द्य‍
क्षेत्रों‍ के‍ ललए‍ र्ी‍ सत्य‍ हो‍ सकती‍ है ।‍ ववचािों‍ की‍ इस‍ सतह‍ के‍ आिाि‍ पि‍ वह‍ तनष्कर्ष‍
तनकालती‍ हैं‍ कक‍ ‘कानून‍के‍ शासन’ में ‍ ललप्त‍एक‍समाज, कानूनी‍बािाएाँ‍ सिकािी‍संस्थाओं‍
को‍ परिवततषत‍ किने‍ के‍ स्थान‍ पि‍स्तिीकिण‍ को‍ प्रोत्सादहत‍ किती‍ हैं।’ (गोल्डस्िीन, 1988)
कम‍कुशल‍समकक्ष‍के‍स्थान‍पि‍कुशल‍एवं‍ तकषसंगत‍दृष्ष्िकोण‍के‍बजाए, उनके‍शोि‍से‍
ज्ञात‍होता‍है ‍कक‍वविोिार्ासी‍ववचाि‍बने‍िहते‍हैं।‍ऐसा‍ववश्लेर्ण‍ऐततहालसक‍संस्थावाद‍से‍ही‍
संर्व‍ हुआ‍ है ।‍ यह‍ परिवतषनों‍ तथा‍ तनिं तिताओं‍ का‍ तनिीक्षण‍ किने‍ के‍ ललए‍ दीघष‍ अवधि‍ में ‍
संस्थानों‍का‍मूल्यांकन‍किता‍है ।

आगे‍बढ़ने‍से‍पव
ू ष कुछ‍महत्त्‍वपण
ू ‍ष योगदानकताषओं‍एवं‍ कायों‍का‍उल्लेख‍किना‍आवश्यक‍
हो‍ जाता‍ है ,‍ ष्जन्द्होंने‍ ऐततहालसक‍ संस्थावाद‍ की‍ नींव‍ िखी‍ तथा‍ उसे‍ प्रोत्सादहत‍ ककया।‍ कुछ‍
प्रमुख‍लोगों‍में ‍सुजैन‍बजषि, थेडा‍स्कॉशपॉल, डगलस‍एश्फोडष, पीिि‍हॉल, िोज़मेिी‍िे लि, जॉन‍
आइकेनबेिी, स्िीफन‍स्कोविोन तथा‍पीिि‍केज़ेन्द्स्िीन‍सष्ममललत‍हैं।‍ये‍ कुछ‍प्रमुख‍ववद्वान‍
हैं,‍ष्जन्द्होंने‍ िाजनीतत‍ववज्ञान‍में ‍ ऐततहालसक‍संस्थावाद‍को‍आकाि‍ददया‍तथा‍नव-संस्थावाद‍
को‍नवीन‍गतत‍प्रदान‍की।‍यद्यवप‍यह‍सूची‍संपूण‍ष नहीं‍ है ।‍ऐततहालसक‍संस्थावाद‍को‍कुछ‍
ववद्वानों‍ तक‍ सीलमत‍ कि‍ दे ना‍ संर्व‍ नहीं‍ है ।‍ इस‍ क्षेत्र‍ में ‍ कुछ‍ अन्द्य‍ महत्त्‍वपूण‍ष कायों‍ को‍
सष्ममललत‍किना‍सहायक‍हो‍सकता‍है ।‍इनमें ‍सुजैन‍बजषि‍की‍पीज़ेंट्स‍अगेन्द्स्ि‍पॉललदिक्स‍:‍
रुिल‍ ऑगषनाइज़ेशन‍ इन‍ त्रिट्िनी, 1911-1967 (1972) तथा‍ द‍ फ्ेंच‍ पॉललदिकल‍ लसस्िम‍
(1974) प्रमुख‍ हैं।‍ पीिि‍ केज़ेन्द्स्िीन‍ की‍ स्मॉल‍ स्िे ट्स‍ इन‍ वल्डष‍ माकेट्स‍ (1985) तथा‍
कल्चिल‍ नोमसष‍ एंड‍ नेशनल‍ सेक्यरु ििी‍ (1996), थेडा‍ स्कॉशपॉल‍ की‍ स्िे ट्स‍ एंड‍ सोशल‍
िे वोल्यूशंस‍ (1979) व‍ सोशल‍ पॉललसी‍ इन‍ द‍ यूनाइिे ड‍ स्िे ट्स‍ (1995), पीिि‍ हॉल‍ की‍
पॉललसी‍पैिाडाइम, सोशल‍लतनंग‍एंड‍द‍स्िे ि‍:‍द‍केस‍ऑफ‍इकनॉलमक‍पॉललसी‍मेककंग‍इन‍
त्रििे न‍ (1990), जॉन‍ आइकेनबेिी‍ की‍ िीज़न्द्स‍ ऑफ‍ स्िे ि‍ :‍ ऑइल‍ पॉललदिक्स‍ एंड‍ द‍
केपेलसिीज़‍ ऑफ‍ अमेरिकन‍ गवनषमेंि‍ (1988) तथा‍ स्िीफन‍ स्कोविोन‍ की‍ त्रबष्ल्डंग‍ ए‍ न्द्यू‍
अमेरिकन‍ स्िे ि‍ (1982) ऐततहालसक‍ संस्थावाद‍ पि‍ ललखी‍ गई‍ आलोचनात्मक‍ एवं‍ अतनवायष‍
कृततयााँ‍हैं।

ऐततहालसक‍संस्थावाद‍क्या‍है ? ऐततहालसक‍संस्थावाद‍व्यवहािवाद‍एवं‍ तकषसंगत‍ववकल्प‍


दृष्ष्िकोणों‍ की‍ अस्वीकृतत‍ से‍ उत्पन्द्न‍ हुआ।‍ यद्यवप‍ यह‍ स्पष्ि‍ नहीं‍ है ‍ कक‍ ऐततहालसक‍

59 | पष्ृ ‍ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

संस्थावाद‍ ने‍ कहााँ‍ से‍ प्रेिणा‍ ली? इसे‍ प्रोत्साहन‍ कहााँ‍ से‍ प्राप्त‍ होता‍ है ? “सामाष्जक‍ एवं‍
िाजनीततक‍ रूप‍ से‍ तनलमषत‍ प्राथलमकताओं‍ का‍ ववचाि‍ जो‍ कई‍ समकालीन‍ ऐततहालसक‍
संस्थागतवाददयों‍के‍कायों‍में ‍प्रमुखता‍से‍आता‍है , आधथषक‍संस्थागत-इततहासकािों‍की‍वपछली‍
पीढ़ी‍के‍लेखन‍को‍प्रततध्वतनत‍किता‍है ।” (हॉल‍व‍िोज़मेिी, 1996)

पीिि‍ हॉल‍ तथा‍ िोज़मेिी‍ िे लि‍ ने‍ दो‍ दृष्ष्िकोणों‍ का‍ उल्लेख‍ ककया‍ ष्जन्द्होंने‍ ऐततहालसक‍
संस्थावाद‍ को‍ प्रोत्साहन‍ ददया।‍ उनमें ‍ से‍ एक‍ समह
ू ‍ लसद्िांत‍ है ‍ तथा‍ दस
ू िा‍ संिचनात्मक-
कायाषत्मक‍है ।‍िाजनीतत‍का‍समह
ू ‍लसद्िांत‍संघर्ष‍के‍आिाि‍पि‍िाजनीतत‍को‍व्यक्त‍किते‍हैं,
तथा‍इस‍प्रकाि‍का‍संघर्ष, उनके‍ववचाि‍में‍ सदै व‍दल
ु र्
ष ‍संसािनों‍पि‍आिारित‍होता‍है ।‍इस‍
प्रकाि, समह
ू ‍लसद्िांतों‍के‍ललए, िाजनीतत‍अतनवायष‍ रूप‍से‍ दल
ु र्
ष ‍संसिानों‍पि‍के‍वववाद‍पि‍
आिारित‍है ।‍ववश्लेर्ण‍की‍इस‍वविा‍ने‍ समह
ू ‍लसद्िांतों‍को‍माक्सषवाद‍व‍वगष‍ ववश्लेर्ण‍के‍
तनकि‍ बना‍ ददया।‍ यद्यवप, ऐततहालसक‍ संस्थावाद‍ माक्सषवाद‍ तथा‍ समह
ू ‍ लसद्िांतों‍ दोनों‍ से‍
इस‍आिाि‍पि‍दिू ी‍बनाने‍ का‍प्रयास‍किता‍है ‍ कक‍दोनों‍लसद्िांत‍एक-दस
ू िे ‍ से‍ प्रततद्वंद्ववता‍
किते‍हैं।‍पिं तु‍वे‍मध्यवती‍स्ति‍के‍संघर्ों‍की‍व्याख्या‍किने‍में ‍ववफल‍होते‍हैं।‍वे‍िाष्रीय‍व‍
संस्थागत‍मतर्ेदों‍की‍उपेक्षा‍किते‍ हैं‍ जो‍नीतत‍परिणामों‍व‍वववाद‍के‍ललए‍स्थान‍दोनों‍को‍
प्रर्ाववत‍किते‍हैं।

अपने‍ कायष, स्िे ट्स‍एंड‍सोशल‍िे वोल्यूशन‍(1979) में ‍ स्कॉशपॉल‍िाज्यों‍तथा‍सामाष्जक‍


क्रांततयों‍की‍िाजनीततक‍गततशीलता‍की‍व्याख्या‍किने‍ के‍ललए‍वगष‍ ववश्लेर्ण‍की‍अपयाषप्तता‍
को‍प्रदलशषत‍किती‍हैं।‍अपनी‍पस्
ु तक‍में ‍उन्द्‍होंने‍फ्ांस, चीन‍तथा‍दक्षक्षण‍अफ्ीका‍में ‍सामाष्जक‍
क्रांततयों‍ की‍ तल
ु ना‍ किने‍ का‍ प्रयास‍ ककया‍ है ।‍ वह‍ दिप्पणी‍ किती‍ हैं‍ कक “वगष‍ ववश्लेर्ण‍ के‍
संदर्ष‍में ‍कायष‍किते‍हुए‍दक्षक्षण‍अफ्ीकी‍िाज्य‍की‍संिचना‍तथा‍अफ्ीकी‍लोगों‍की‍िाजनीततक‍
र्लू मका‍को‍पयाषप्त‍रूप‍से‍ स्पष्ि‍किना‍कदठन‍था।” (स्कॉशपॉल, 1979) दे शों‍के‍मध्य‍तथा‍
ववलशष्ि‍ दे शों‍ में‍ मजदिू ‍ वगष‍ अपनी‍ मााँगों‍ को‍ कैसे‍ व्यक्त‍ किता‍ है , इसमें ‍ एक‍ उल्लेखनीय‍
अंति‍है ।‍व्यापक‍सैद्िाष्न्द्तक‍सामान्द्यीकिण, यद्यवप‍यह‍ववश्लेर्ण‍का‍मागषदशषन‍किता‍है ,
दहत‍ अलर्व्यष्क्त‍ के‍ क्रम-परिवतषन‍ तथा‍ संयोजन‍ तथा‍ पूवाषग्रहों‍ की‍ लामबंदी‍ माक्सषवाद‍ के‍
दायिे ‍ से‍ बाहि‍ है ।‍ “पािं परिक‍ दहत-समूह‍ लसद्िांतों‍ तथा‍ माक्सषवादी‍ ववश्लेर्ण‍ के‍ समान‍
दृष्ष्िकोण‍की‍आलोहना‍किते‍ हुए, ये‍ लसद्िांतकाि‍यह‍जानना‍चाहते‍ थे‍ कक‍दहत‍समूहों‍ने‍
लर्न्द्न-लर्न्द्न‍दे शों‍में ‍लर्न्द्न-लर्न्द्न‍नीततयों‍की‍मााँग‍क्यों‍की‍तथा‍वगष‍दहतों‍िाष्रीय‍स्ति‍पि‍
ववलर्न्द्न‍ रूप‍ से‍ क्यों‍ प्रकि‍ ककया।” (थेलेन‍ एवं‍ स्िीनमो, 1992) यद्यवप‍ माक्सषवाद‍ की‍

60 | पष्ृ ‍

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

प्रततध्वतन‍ऐततहालसक‍संस्थावाद‍में ‍एक‍उपकिण‍के‍रूप‍में ‍जीववत‍है , ववधियों, सूक्ष्म-स्तिीय‍


िणनीतत‍ तथा‍ ‘उपयुक्तता‍ के‍ तकष’ को‍ नए‍ लसिे ‍ से‍ सष्ममललत‍ ककया‍ गया‍ है ।‍ माक्सषवाद‍
सैद्िांततक‍ दृष्ष्िकोण‍ को‍ सूधचत‍ किने‍ के‍ ललए‍ बना‍ िहा, जबकक‍ ऐततहालसक‍ संस्थावाद‍ ने‍
ऐततहालसक‍तथा‍क्षेत्रीय‍ववलशष्िताओं‍के‍ववश्लेर्ण‍में ‍प्रगतत‍की।‍ऐततहालसक‍संस्थावाददयों‍की‍
शब्दावली‍में‍ माक्सषवाद‍का‍प्रर्ाव‍स्पष्ि‍है ।‍उदाहिण‍के‍ललए, वे‍ ‘महत्त्‍वपूण‍ष त्रबंद’ु के‍संदर्ष‍
में‍संस्थाओं‍में ‍परिवतषन‍पि‍बल‍दे त‍े हैं, जो‍‘शाखा‍त्रबंद’ु को‍सक्षम‍किके‍उपष्स्थत‍संस्थागत‍
संिचना‍में‍व्यविान‍उत्पन्द्न‍किते‍हैं‍तथा‍नवीन‍संस्थागत‍संिचनाओं‍का‍मागष‍प्रशस्त‍किते‍
हैं।

माक्सषवादी‍ वगष‍ ववश्लेर्ण‍ के‍ अततरिक्त, ऐततहालसक‍ संस्थावाद‍ का‍ उद्र्व‍ एक‍ अन्द्य‍
वविासत‍ को‍ दशाषता‍ है —संिचनात्मक‍ प्रकायाषत्मक।‍ यद्यवप, वगष-ववश्लेर्ण‍ के‍ ववपिीत,
संिचनात्मक-कायाषत्मक‍ एक‍ पिस्पि‍ वविोडी‍ वगष‍ अथवा‍ समह
ू ‍ दहत‍ पि‍ ववश्लेर्ण‍ का‍ आिाि‍
नहीं‍है ।‍इसके‍ववपिीत, संिचनात्मक-कायाषत्मकता‍के‍ललए, व्यवस्था‍पिस्पि‍कक्रया‍किने‍वाले‍
र्ागों‍का‍एक‍समूह‍है , जो‍इसे‍ऐततहालसक‍संस्थावाद‍के‍लक्ष्यों‍के‍तनकि‍लाता‍है ।‍यद्यवप,
दोनों‍ की‍ तुलना‍ किने‍ से‍ पूव‍ष एक‍ महत्त्‍वपूण‍ष दिप्पणी‍ आवश्यक‍ है ।‍ ऐततहालसक‍ संस्थावाद‍
संिचनात्मक-कायाषत्मकता‍के‍प्रकायषवाद‍के‍स्थान‍पि‍संिचनावाद‍के‍समान‍अथवा‍तनकि‍है ।‍
यह‍उधचत‍प्रकाि‍से‍ स्थावपत‍है ‍ कक‍संस्थान‍व्यष्क्तगत‍व्यवहाि‍को‍प्रर्ाववत‍किते‍ हैं‍ तथा‍
कुछ‍सीमा‍तक‍तनिाषरित‍र्ी‍किते‍हैं, पिं तु‍संस्थाएाँ‍ऐसी‍र्ूलमका‍का‍तनवषहन‍कैसे‍किती‍हैं?
इस‍प्रश्न‍के‍संबंि‍में , िोज़मेिी‍तथा‍हॉल‍ऐततहालसक‍संस्थावाद‍के‍र्ीति‍दो‍दृष्ष्िकोणों‍के‍
साथ‍प्रततकक्रया‍किते‍हैं; एक‍है ‍गणना‍उपागम‍तथा‍दस
ू िा‍है ‍सांस्कृततक‍उपागम।‍

3.3.1 िणना उपािम

गणना‍ उपागम‍ व्यष्क्तयों‍ को‍ िणनीततक, गणनात्मक‍ तथा‍ सािक‍ के‍ रूप‍ में ‍ दे खता‍ है ।‍
यद्यवप, ये‍लक्षण‍संस्थानों‍से‍स्वतंत्र‍रूप‍से‍संचाललत‍नहीं‍होते।‍व्यष्क्त‍िणनीततक‍होते‍हैं,‍
पिं तु‍ वह‍िणनीतत‍संस्थाओं‍ द्वािा‍तनिाषरित‍मापदं डों‍के‍र्ीति‍ही‍सीलमत‍होती‍है ।‍वे‍ आपे‍
कायों‍की‍गणना‍अन्द्य‍अलर्कताषओं‍तथा‍तनयमों, संदहताओं‍एवं‍संस्थानों‍के‍अनुसाि‍ही‍किते‍
हैं।‍इसके‍अततरिक्त, सािन‍संस्थागत‍रूप‍से‍ अतनवायष‍ हैं।‍र्ले‍ ही‍व्यष्क्त‍तथा‍िाजनीततक‍
अलर्कताष‍ महत्त्‍वपूण‍ष र्ूलमका‍ का‍ तनवषहन‍ किते‍ हैं, वे‍ स्वयं‍ को‍ व्यवष्स्थ‍ किते‍ हैं‍ तथा‍ उन‍
तनयमों‍तथा‍प्रथाओं‍ के‍अनुसाि‍कायष‍ किते‍ हैं‍ जो‍सामाष्जक‍रूप‍से‍ तनलमषत, सावषजतनक‍रूप‍
से‍ ज्ञात, प्रत्यालशत‍ तथा‍ स्वीकृत‍ हैं।” (माचष‍ तथा‍ ऑलसेन, 1984) कोई‍ यह‍ तकष‍ र्ी‍ दे ‍

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

सकता‍ है ‍ कक‍ ककसी‍ व्यष्क्त‍ का‍ सािन‍ सामाष्जक‍ रूप‍ से‍ तनलमषत‍ तथा‍ सावषजतनक‍ रूप‍ से‍
स्वीकाि‍ककया‍जाता‍है ।‍यद्यवप‍गणना‍दृष्ष्िकोण‍इस‍प्रकाि‍की‍िाय‍को‍अस्वीकृत‍किने‍ के‍
ललए‍ साविान‍ है ।‍ सांस्कृततक‍ दृष्ष्िकोण‍ के‍ ववपिीत‍ यह‍ अर्ी‍ र्ी‍ ववश्लेर्ण‍ के‍ केंर‍ में ‍
व्यष्क्तगत‍गणना‍पि‍ज़ोि‍दे ता‍है ।

3.3.2 सांस्कृततक उपािम

कैलकुलस‍ दृष्ष्िकोण‍ के‍ ववपिीत, सांस्कृततक‍ दृष्ष्िकोण‍ व्यष्क्त‍ को‍ उपयोधगता‍ उत्प्रेिक‍ के‍
स्थान‍ पि‍ एक‍ संतोर्जनक‍ व्यष्क्त‍ के‍ रूप‍ में ‍ धचत्रत्रत‍ किता‍ है ।‍ “विीयता‍ तनमाषण‍
समस्याग्रस्त‍ के‍ रूप‍ में ‍ लेते‍ हुए, यह‍ मानता‍ है ‍ कक‍ गठबंिन‍ का‍ तनमाषण‍ समान‍ (पहले‍ से‍
उपष्स्थत‍ औि‍ स्पष्ि)‍ स्वाथों‍ वाले‍ समूहों‍ के‍ पंष्क्तबद्ि‍ होने‍ से‍ अधिक‍ है ।”‍ (हॉल‍ औि‍
िोज़मेिी‍ 1996) सांस्कृततक‍ दृष्ष्िकोण‍ के‍ अनुसाि, एक‍ व्यष्क्त‍ उपयोधगता‍ को‍ अधिकतम‍
किने‍ के‍ ललए‍ लगाताि‍ प्रयास‍ किने‍ के‍ स्थान‍ पि‍ ‘स्थावपत‍ ददनचयाष’ का‍ पालन‍ किता‍ है ।‍
यह‍कहने‍ की‍आवश्यकता‍नहीं‍ है‍ कक‍व्यष्क्त‍तकषसंगत‍औि‍उपयोधगता‍को‍अधिकतम‍किने‍
वाले‍नहीं‍हैं।‍लेककन‍ऐसे‍लक्षण‍व्यष्क्त‍की‍सचेत‍लक्ष्य-उन्द्मुख‍गततववधि‍के‍बजाय‍स्थावपत‍
ददनचयाष‍ का‍दहस्सा‍हैं।‍दस
ू िे ‍ शब्दों‍में , संस्था‍स्थावपत‍ददनचयाष‍ के‍माध्यम‍से‍ व्यष्क्त‍को‍
उद्दे श्यपूण‍ष औि‍लक्ष्य-उन्द्मुख‍होने‍ की‍मााँग‍किती‍है ।‍ककसी‍संस्था‍का‍र्ाग‍बनने‍ के‍ललए‍
व्यष्क्त‍द्वािा‍अधिकतम‍उपयोधगता‍की‍मााँग‍की‍जाती‍है ‍औि‍उसे‍लागू‍ककया‍जाता‍है ।

3.3.3 आलोचना

ऐततहालसक‍ संस्थावाद‍ की‍ शष्क्त‍ इसका‍ उदाि‍ चरित्र‍ है ।‍ यद्यवप, उदाि‍ चरित्र‍ इसकी‍
महत्त्‍वपण
ू ‍ष आलोचना‍का‍स्रोत‍र्ी‍है ।‍जहााँ‍ उदािवाद‍इसकी‍शष्क्त‍है , वहीं‍ यह‍इसकी‍सबसे‍
बड़ी‍ कमजोिी‍ र्ी‍ है ।‍ संस्थानों‍ को‍ समझने‍ के‍ ललए‍ नए‍ क्षक्षततज‍ को‍ सष्ममललत‍ किने‍ की‍
अपनी‍क्षमता‍के‍कािण, इसने‍ कर्ी‍र्ी‍व्यष्क्त‍औि‍संस्था‍के‍बीच‍अंतसंबंिों‍की‍व्याख्या‍
के‍ ललए‍ एक‍ ववश्वसनीय‍ मॉडल‍ ववकलसत‍ नहीं‍ ककया, जैसा‍ कक‍ अन्द्य‍ संस्थावाददयों‍ द्वािा‍
ववस्तारित‍ककया‍गया‍है ।

3.4 तकटसंित ववकल्प संस्थावाद

1970‍ के‍ दशक‍ में, तकषसंगत‍ ववकल्प‍ दृष्ष्िकोण‍ का‍ गहनता‍ से‍ अध्ययन‍ किने‍ वाले‍
ववद्वानों‍ने‍अपने‍दृष्ष्िकोण‍की‍प्रर्ावकारिता‍से‍संबंधित‍कुछ‍संदेह‍औि‍धचंताओं‍को‍उठाना‍

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

शुरू‍कि‍ददया।‍ये‍ संदेह‍कांग्रेस‍के‍व्यवहाि‍के‍ललए‍ववलशष्ि‍हैं।‍उपयोधगता‍अधिकतमकिण‍
औि‍िणनीततक‍गणना‍जैसी‍तकषसंगत‍पसंद‍की‍िािणाओं‍ के‍कठोि‍पालन‍से‍ नीतत‍तनमाषण‍
में‍ बहुसंख्यकों‍के‍तनिं ति‍गठन‍औि‍ववघिन‍की‍आशा‍की‍जाती‍है ।‍यदद‍कांग्रेस‍में ‍ व्यष्क्त‍
िणनीततक‍हैं, तो‍उनके‍पास‍बहुमत‍में‍ र्ाग‍लेने‍ का‍कोई‍कािण‍नहीं‍ है , जहााँ‍ उनकी‍रुधच‍
नहीं‍ है ।‍आशा‍के‍अनुसाि, इस‍प्रारूप‍से‍ ‘चक्रीय‍प्रर्ाव’ पैदा‍होना‍चादहए‍ष्जसमें ‍ ककसी‍र्ी‍
बहुमत‍ की‍ संर्ावना‍ असंर्व‍ है ।‍ यद्यवप‍ आशाओं‍ के‍ ववपिीत, कांग्रेस‍ की‍ वविातयका‍ में ‍
बहुमत‍काफी‍हद‍तक‍ष्स्थि‍है ।‍उनकी‍अलर्व्यष्क्त‍में ‍ स्पष्ि‍ववसंगतत‍के‍कािण‍तकषसंगत‍
ववकल्प‍संस्थावाद‍इस‍गततिोि‍से‍उर्िा।‍इस‍प्रकाि, इन‍लसद्िांतकािों‍ने‍तकषसंगत‍रुधच‍की‍
मूलर्ूत‍िािणाओं‍का‍पालन‍किते‍हुए‍संस्थागतवाद‍में ‍स्पष्िीकिण‍की‍खोज‍की।

ववकल्पों‍ का‍ तनयंत्रण‍ औि‍ कायषक्रम‍ तनिाषिण‍ संस्थानों‍ के‍ दो‍ आवश्यक‍ घिक‍ हैं‍ ष्जन्द्हें ‍
तकषसंगत‍ ववकल्प‍ संस्थावाद‍ तकषसंगत‍ ववकल्प‍ दृष्ष्िकोण‍ की‍ िािणाओं‍ के‍ साथ‍ मानता‍ है ।‍
व्यष्क्त‍अर्ी‍र्ी‍िणनीततक, गणनात्मक‍औि‍उपयोधगता‍उत्प्रेिक‍हैं।‍यद्यवप, व्यष्क्तयों‍के‍
उन‍ पक्षों‍ को‍ या‍ तो‍ बढ़ाया‍ या‍ घिाया‍ जाता‍ है , कफि‍ र्ी, तनष्श्चत‍ रूप‍ से‍ संस्थानों‍ द्वािा‍
संिधचत‍ककया‍जाता‍है ।‍इस‍प्रकाि, संस्थान‍ववकल्पों‍को‍तनयंत्रत्रत‍किते‍ हैं‍ औि‍व्यष्क्त‍के‍
ललए‍ उनकी‍ उपयोधगता‍ को‍ अधिकतम‍ किने‍ के‍ ललए‍ एक‍ कायषक्रम‍ तनिाषरित‍ किते‍ हैं।‍ इस‍
ददशा‍ में‍ इसने‍ ‘संगठन‍ के‍ नए‍ अथषशास्त्र’ से‍ प्रेिणा‍ औि‍ उपकिण‍ ललए।‍ इन‍ दृष्ष्िकोणों‍ से‍
प्रेिणा‍ लेकि, तकषसंगत‍ ववकल्प‍ संस्थावाद‍ की‍ िािणा‍ है , संस्था‍ लेन-दे न‍ की‍ लागत‍ औि‍
अतनष्श्चतताओं‍ को‍ कम‍ किती‍ है ।‍ इस‍ प्रकाि, व्यष्क्तयों‍ को‍ अधिकतम‍ किने‍ वाली‍
उपयोधगता‍अर्ी‍र्ी‍कक्रयाशील‍है , लेककन‍एक‍संस्थान‍में‍ ष्जसमें ‍ ववकल्प‍तनयंत्रत्रत‍होते‍ हैं,
एजेंडा‍ पहले‍ से‍ ही‍ तनिाषरित‍ होते‍ हैं, लेन-दे न‍ की‍ लागत‍ बहुत‍ कम‍ हो‍ जाती‍ है ‍ औि‍
अतनष्श्चतताएाँ‍ कम‍ हो‍ जाती‍ हैं।‍ यद्यवप, संस्थागतवाद‍ के‍ अन्द्य‍ दृष्ष्िकोणों‍ के‍ साथ‍ एक‍
महत्त्‍वपूण‍ष अंति‍ यहााँ‍ उल्लेखनीय‍ है ।‍ अन्द्य‍ दृष्ष्िकोणों‍ के‍ ववपिीत, तकषसंगत‍ ववकल्प‍
संस्थावाद‍ अर्ी‍ र्ी‍ इस‍ िािणा‍ का‍ पालन‍ किता‍ है ‍ कक‍ व्यष्क्त‍ इततहास‍ या‍ समाज‍ की‍
अवैयष्क्तक‍ औि‍ अतल
ु नीय‍ शष्क्तयों‍ द्वािा‍ संचाललत‍ नहीं‍ होते‍ हैं।‍ वे‍ ववशुद्ि‍ रूप‍ से‍
तकषसंगत‍ औि‍ व्यष्क्तगत‍ प्रेिणा‍ पि‍ संचाललत‍ होते‍ हैं।‍ यहााँ‍ तक‍ कक‍ जब‍ व्यष्क्त‍ को‍
संस्थागत‍प्रततमान‍के‍अनुसाि‍सहयोग‍किने‍ औि‍कायष‍ किने‍ के‍ललए‍वववश‍ककया‍जाता‍है ,
तो‍ उसका‍ कािण‍ व्यष्क्तगत‍ औि‍ िणनीततक‍ गणनाएाँ‍ हैं।‍ वे‍ मूल‍ रूप‍ से‍ सामूदहक‍ नहीं‍ हैं।‍
इस‍ प्रकाि, तकषसंगत‍ ववकल्प‍ के‍ ललए‍ संस्थावाद, संस्थाओं‍ का‍ गठन‍ औि‍ तनिं ति‍ अष्स्तत्व‍

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

उन‍संस्थाओं‍द्वािा‍व्यष्क्तयों‍को‍प्रदान‍ककए‍जाने‍वाले‍लार्ों‍पि‍आिारित‍है ।‍इस‍अथष‍में ,
संस्था‍व्यष्क्तयों‍का‍स्वैष्च्छक‍गठन‍है ।

हाल‍ के‍ वर्ों‍ में , तकषसंगत‍ ववकल्प‍ संस्थावाद‍ कांग्रेस‍ के‍ संिचना‍ ववश्लेर्ण‍ से‍ अधिक‍
व्यापक‍ अनुसंिान‍ क्षेत्रों‍ में ‍ ववस्तारित‍ हुआ।‍ इन‍ क्षेत्रों‍ में ‍ िाजनीततक‍ दलों‍ के‍ बीच‍ ववचाि-
ववमशष, कांग्रेस‍ औि‍ न्द्यायालयों‍ के‍ मध्य‍ संबंि, कांग्रेस‍ औि‍ तनयामक‍ एजेंलसयों‍ के‍ मध्य‍
संबंि‍सष्ममललत‍हैं।‍इसने‍ अंतिाषष्रीय‍संबंिों‍के‍अनश
ु ासन‍में ‍ र्ी‍प्रर्ाव‍का‍ववस्ताि‍ककया।‍
यह‍ दृष्ष्िकोण‍ अंतिाषष्रीय‍ संस्थानों, अंतिाषष्रीय‍ प्रततयोधगताओं‍ औि‍ वाताषओं‍ पि‍ लाग‍ू ककया‍
गया‍है ।

3.4.1. आलोचना

अब‍ तक‍ यह‍ स्वतः‍ स्पष्ि‍ हो‍ गया‍ है ‍ कक‍ तकषसंगत‍ ववकल्प‍ संस्थावाद‍ तकषसंगत‍ ववकल्प‍
लसद्िांतों‍के‍समान‍है , जो‍व्यष्क्त‍के‍लक्षण-वणषन‍की‍आलोचना‍से‍ ग्रस्त‍है ।‍जबकक‍इसके‍
लसद्िांत‍प्रायः‍व्यापक‍खांचे‍ में ‍ लागू‍ होते‍ हैं, छोिे ‍ प्रततदशों‍पि‍लागू‍ होने‍ पि‍वे‍ अस्पष्ि‍हो‍
जाते‍हैं।

3.5 समाजशास्त्रीय संस्थावाद

ऐततहालसक‍ संस्थावाद‍ औि‍ तकषसंगत‍ ववकल्प‍ संस्थावाद‍ दोनों‍ के‍ ववपिीत, कुछ‍ सीमा‍ तक,
समाजशास्त्रीय‍संस्थावाद‍प्रतत-सहज‍है ।‍यह‍इस‍िािणा‍को‍अष्स्थि‍किने‍के‍ललए‍एक‍प्रतत-
उपाय‍के‍रूप‍में ‍ उर्िा‍कक‍जहााँ‍ नौकिशाही‍संस्थाएाँ‍ तकषसंगत‍हैं‍ औि‍दक्षता‍पि‍काम‍किती‍
हैं, वहीं‍समाज‍के‍अन्द्य‍पक्ष‍केवल‍संस्कृतत‍हैं।‍समाजशास्त्रीय‍संस्थावाद‍इस‍र्ेद‍को‍चन
ु ौती‍
दे ता‍है ।‍नौकिशाही‍वास्तव‍में‍तकषसंगतता‍औि‍दक्षता‍के‍लसद्िांत‍पि‍काम‍किती‍है , लेककन‍
ऐसा‍ संचालन‍ तकषसंगत‍न‍होकि‍सांस्कृततक‍है ।‍तकषसंगतता‍संस्कृतत‍का‍उतना‍ही‍र्ाग‍है ‍
ष्जतना‍कक‍लमथक‍औि‍समािोह।‍जबकक‍संगठन‍के‍पूव-ष आिुतनक‍रूप‍लमथक‍औि‍समािोहों‍
पि‍ आिारित‍ होते‍ हैं, आिुतनक‍ संस्कृतत‍ तकषसंगतता‍ औि‍ दक्षता‍ पि‍ काम‍ किती‍ है ।‍ इस‍
प्रकाि, यह‍ तकष‍ दे ता‍ है ‍ कक‍ नौकिशाही‍ संस्थानों‍ की‍ स्व-स्पष्ि‍ तकषसंगतता‍ को‍ सांस्कृततक‍
संदर्ष‍में‍ववस्तत
ृ ‍औि‍लसद्िांततत‍ककया‍जाना‍चादहए।‍वेबि‍द्वािा‍नौकिशाही‍की‍व्याख्या‍के‍
पश्चात ्‍से, कम-से-कम‍समाजशास्त्र‍के‍र्ीति, नौकिशाही‍तकषसंगतता‍कोई‍ऐसी‍चीज‍नहीं‍है ‍
जो‍ कहीं‍ से‍ र्ी‍ उर्िी‍ है , बष्ल्क‍ उन‍ सांस्कृततक‍ रूपों‍ के‍ अंदि‍ गहिाई‍ से‍ समा‍ गई‍ है ‍ जो‍
इससे‍ पहले‍ थे।‍ नौकिशाही‍ की‍ तकषसंगतता‍ की‍ जड़ें‍ पष्श्चमी‍ िालमषक‍ जीवन‍ में ‍ हैं, जहााँ‍
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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

तकषसंगतता‍पहले‍से‍ही‍अंततनषदहत‍है।‍नौकिशाही‍की‍प्रथाएाँ‍न‍तो‍बनाई‍जाती‍हैं‍औि‍न‍ही‍
कायम‍िहती‍हैं‍क्योंकक‍वे‍तकषसंगत‍या‍कुशल‍होती‍हैं।‍वे‍दोनों‍गदठत‍औि‍कायम‍हैं‍क्योंकक‍
वे‍सांस्कृततक‍रूप‍से‍पष्श्चमी‍सांस्कृततक‍रूपों‍में ‍अंततनषदहत‍हैं।

समाजशास्त्रीय‍ संस्थावाद‍ इस‍ बात‍ पि‍ बल‍ दे ता‍ है ‍ कक‍ तकषसंगत‍ नौकिशाही‍ र्ी‍ स्पष्ि‍
प्रतीकात्मक‍ व‍ कमषकांडीय‍ रूपों‍ का‍ पालन‍ किती‍ है , तथा‍ ववश्लेर्ण‍ के‍ ललए‍ इन‍ रूपों‍ पि‍
अधिक‍व्यापक‍शब्दों‍में‍ ववचाि‍ककया‍जाना‍चादहए।‍संस्था‍व‍संस्कृतत‍के‍बीच‍के‍अंति‍को‍
तोड़ने‍ के‍ अपने‍ प्रयासों‍ में , समाजशास्त्रीय‍ संस्थावादी‍ संस्थाओं‍ को‍ पािं परिक‍ रूप‍ से‍
संस्थागतवाद‍द्वािा‍परिर्ावर्त‍की‍तल
ु ना‍में ‍अधिक‍व्यापक‍शब्दों‍में ‍मानते‍हैं।‍यह‍‘अथष‍के‍
ढााँचे’ को‍ध्यान‍में‍ िखता‍है ।‍अथष‍ का‍ढााँचा‍तनयमों, प्रकक्रयाओं‍ व‍मानदं डों‍तथा‍प्रतीकात्मक‍
व‍नैततक‍संज्ञेय‍का‍एक‍व्यापक‍नेिवकष‍है ।‍इस‍ तिह, यह‍पहले‍ संस्थानों‍की‍परिर्ार्ा‍में ‍
शालमल‍नहीं‍ ककए‍गए‍पक्षों‍को‍सष्ममललत‍किता‍है ‍ औि‍इसके‍दायिे ‍ औि‍अथष‍ को‍ववस्तत
ृ ‍
किता‍है ।‍ष्जन‍संस्थानों‍का‍पहले‍ अध्ययन‍नहीं‍ ककया‍गया‍है ‍ औि‍उन्द्हें ‍ मात्र‍संस्कृतत‍ के‍
रूप‍में‍ शालमल‍ककया‍गया‍है ‍ औि‍उनका‍ववश्लेर्ण‍ककया‍गया‍है ।‍यह‍ववस्ताि‍संस्थाओं‍ से‍
जुड़ी‍ववस्तत
ृ ‍परिर्ार्ा‍के‍कािण‍संर्व‍हुआ‍है ।

समाजशास्त्रीय‍संस्थावाद‍द्वािा‍दस
ू िा‍महत्त्‍वपूण‍ष हस्तक्षेप‍संज्ञानात्मक‍आयाम‍पि‍इसका‍
बल‍है ।‍संज्ञानात्मक‍आयाम‍क्या‍है ? हम‍इस‍ववचाि‍से‍ परिधचत‍हैं‍ कक‍संस्थाएाँ‍ व्यष्क्तगत‍
व्यवहाि‍ को‍ आकाि‍ दे ती‍ हैं; यद्यवप, संज्ञानात्मक‍ आयाम‍ न‍ केवल‍ मानक‍ है ‍ अवपत‍ु
व्यष्क्तगत‍ कक्रयाओं‍ के‍ ललए‍ संज्ञानात्मक‍ ललवपयों, प्रततमानों‍ औि‍ श्रेर्णयों‍ का‍ र्ी‍ है ।‍ ऐसी‍
श्रेर्णयों‍व‍प्रततमानों‍के‍अर्ाव‍में , व्यष्क्तगत‍कािष वाई‍असंर्व‍है ।‍दस
ू िे ‍ शब्दों‍में , संस्थाएाँ,
समाजशास्त्रीय‍संस्थावाद‍के‍अनस
ु ाि, न‍केवल‍उपयक्
ु त‍औि‍अनप
ु यक्
ु त‍सत्र
ू ‍प्रदान‍किती‍हैं,
औि‍ वे‍ केवल‍ िणनीततक‍ मागष‍ प्रदान‍ नहीं‍ किती‍ हैं; वे‍ वह‍ ढााँचा‍ प्रदान‍ किती‍ हैं‍ ष्जसके‍
द्वािा‍िणनीतत, उपयक्
ु तता‍तथा‍गणना‍कायष‍किती‍है ।‍संज्ञानात्मक‍आयाम‍कक्रया‍को‍साथषक‍
होने‍ के‍ललए‍आवश्यक‍क्षेत्र‍प्रदान‍किता‍है , ष्जसके‍आिाि‍पि‍ककसी‍संस्था‍में‍ व्यष्क्तगत‍
र्ूलमकाएाँ‍ तनर्ाई‍ जाती‍ हैं।‍ ककसी‍ संस्था‍ में ‍ व्यष्क्त‍ केवल‍ उसमें ‍ अंततनषदहत‍ नहीं‍ होता‍ है ।‍
व्यष्क्त‍एक‍पद‍िािण‍किता‍है ‍ औि‍एक‍ववलशष्ि‍र्ूलमका‍में ‍ ष्स्थत‍होता‍है ।‍मान‍लीष्जए‍
कक‍ ककसी‍ संस्था‍में‍ लशक्षक‍ऐसा‍व्यष्क्त‍नहीं‍ है ‍ जो‍लशक्षक‍की‍र्ूलमका‍तनर्ाता‍है ।‍इसके‍
बजाय, व्यष्क्त‍लशक्षक‍बन‍जाता‍है , छात्रों‍से‍सममान‍की‍मााँग‍किता‍है , लशक्षण‍के‍कतषव्यों‍
का‍पालन‍किता‍है ‍ औि‍संस्था‍के‍तनमाषण‍में ‍ र्ाग‍लेता‍है ।‍लशक्षक‍एक‍प्रदशषन‍से‍ अधिक‍

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

र्ूलमका‍का‍होता‍है ।‍इस‍प्रकाि, र्ूलमका‍पहले‍से‍ही‍अपेक्षाओं‍को‍पूव-ष स्थावपत‍किती‍है ।

व्यष्क्तयों‍ के‍ कायष‍ न‍ तो‍ िणनीततक‍ हैं‍ औि‍ न‍ ही‍ गणनात्मक।‍ वे‍ संस्थागत‍ रूप‍ से‍
संिधचत‍र्ूलमकाएाँ‍ हैं।‍वे‍ लार्‍औि‍हातन‍के‍ढााँचे‍ तनिाषरित‍किते‍ हैं,‍ताकक‍व्यष्क्त‍ददए‍गए‍
ढााँचे‍के‍र्ीति‍कायष‍किें ।‍ढााँचा‍पहले‍से‍ही‍सांस्कृततक‍रूप‍से‍तनददष ष्ि‍हैं,‍ताकक‍व्यष्क्त‍कायष‍
कि‍सकें।‍इसललए समाजशास्त्रीय‍संस्थावाद‍व्याख्यात्मक‍है ।‍यह‍सुझाव‍दे न‍े की‍आवश्यकता‍
नहीं‍ है‍ कक‍ व्यष्क्त‍ उद्दे श्यपण
ू ,ष िणनीततक‍ औि‍ लक्ष्य-उन्द्मख
ु ‍ नहीं‍ हैं।‍ जो‍ िणनीततक‍ औि‍
लक्ष्य-उन्द्मख
ु ‍है ,‍वह‍पहले‍से‍ही‍सामाष्जक‍रूप‍से‍अतनवायष‍या‍सामाष्जक‍रूप‍से‍तनलमषत‍है ।‍
इस‍प्रकाि, यदद‍कोई‍संस्थागत‍परिवतषन‍होते‍हैं, तो‍वे‍तकषसंगतता‍औि‍दक्षता‍से‍उपजे‍नहीं‍
होते‍हैं।‍वे‍उस‍सांस्कृततक‍परिवेश‍की‍व्यापक‍वैिता‍से‍उपजे‍हैं‍ष्जसमें ‍संस्था‍कायष‍कि‍िही‍
है ।‍नौकिशाही‍की‍तकषसंगतता‍औि‍दक्षता‍के‍स्थान‍पि समाजशास्त्रीय‍संस्थावाद‍वैिता‍औि‍
सामाष्जक‍उपयक्
ु तता‍पि‍बल‍दे ता‍है ।‍ककसी‍संस्था‍का‍परिवतषन, तनिं तिता‍औि‍कायषप्रणाली‍
वैिता‍औि‍सामाष्जक‍उपयुक्तता‍के‍परिवततषत‍मानदं डों‍पि‍आिारित‍होती‍है ।

3.5.1 आलोचना

समाजशास्त्रीय‍ संस्थावाद‍ की‍ प्रमुख‍ आलोचना‍ ऐततहालसक‍ संस्थावाद‍ से‍ होती‍ है ।‍ सामाष्जक‍
संस्थावाद‍ सत्ता‍ औि‍ संसािन‍ तनयंत्रण‍ के‍ ललए‍ संस्थाओं‍ के‍ र्ीति‍ तनदहत‍ संघर्ष‍ पि‍ ध्यान‍
नहीं‍ दे ता‍ है।‍ एक‍ अन्द्य‍ प्रमुख‍ आलोचना‍ यह‍ है ‍ कक‍ संस्थाओं‍ औि‍ संस्कृतत‍ के‍ मध्य‍
तनिं तिता‍ पि‍ बल‍ दे कि, समाजशास्त्रीय‍ संस्थावाद‍ उन‍ ऐततहालसक‍ ववदिणों‍ को‍ समाप्त‍ कि‍
दे ता‍है ‍ष्जन्द्होंने‍नई‍नौकिशाही‍संस्थाओं‍को‍आकाि‍ददया।

3.6 तनष्कषट

नव-संस्थावाद, शास्त्रीय‍ संस्थावाद‍ का‍ पन


ु रुत्थान‍ मात्र‍ है ।‍ व्यष्क्त‍ औि‍ संस्थाओं‍ के‍ मध्य‍
अंतःकक्रया‍ का‍ साविानीपूवक
ष ‍ ववस्ताि‍ किते‍ हुए, इसने‍ शास्त्रीय‍ संस्थावाद‍ को‍ पुनजीववत‍
ककया।‍ इस‍ प्रकक्रया‍ में‍ इसने‍ संस्थाओं‍ को‍ नई‍ ददशा‍ औि‍ प्रोत्साहन‍ ददया।‍ नव-संस्थावाद‍
िाजनीतत‍ ववज्ञान‍ के‍ र्ीति‍ प्रततस्पिी‍ प्रववृ त्तयों‍ औि‍ लसद्िांतों‍ के‍ मध्य‍ संवाद‍ के‍ ललए‍ एक‍
नया‍ स्थान‍ है ।‍ इसने‍ व्यवहािवाद, तकषसंगत‍ ववकल्प‍ दृष्ष्िकोण, संिचनावाद, प्रकायषवाद,
माक्सषवाद, उत्ति-संिचनावाद‍ औि‍ संिचनात्मक-कायाषत्मकता‍ जैसे‍ अन्द्य‍ दृष्ष्िकोणों‍ के‍ साथ‍
ववमशष‍ के‍ ललए‍ स्थान‍ उपलब्ि‍ किाया।‍ तकषसंगत‍ ववकल्प‍ इसके‍ घिकों‍ में ‍ से‍ एक‍ होने‍ के‍
बाद‍र्ी, नव-संस्थावाद‍एक‍संस्था‍की‍परिर्ार्ा‍से‍पिे ‍है ‍क्योंकक‍व्यष्क्तयों‍का‍संग्रह‍स्वेच्छा‍
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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

से‍ उनकी‍उपयोधगता‍को‍अधिकतम‍किने‍ के‍ललए‍एक‍साथ‍जुड़‍गया‍है ।‍एक‍संस्था‍केवल‍


व्यष्क्तयों‍ के‍ समूह‍ की‍ तुलना‍ में ‍ अधिक‍ जदिल‍ औि‍ बहुआयामी‍ होती‍ है ।‍ ऐततहालसक‍
संस्थावाद‍संघर्ष‍ को‍संस्थागत‍ववश्लेर्ण‍के‍मूल‍में ‍ लाने‍ में ‍ सफल‍िहा‍है ।‍कायाषत्मकता‍के‍
ववपिीत, ऐततहालसक‍संस्थावाद‍के‍कािण, सत्ता, संघर्ष‍ औि‍संघर्ष‍ संस्थाओं‍ की‍अविािणा‍के‍
ललए‍ केंरीय‍ ववशेर्ताएाँ‍ बन‍ गए।‍ यह‍ उस‍ असमान‍ शष्क्त‍ को‍ र्ी‍ प्रकाश‍ में ‍ लाया‍ ष्जसके‍
द्वािा‍कुछ‍अलर्कताष‍दस
ू िों‍पि‍लामबंद‍किने‍में ‍सक्षम‍होते‍हैं।

शास्त्रीय‍ संस्थावाद‍ की‍ शब्दावली‍ में ‍ सामान्द्य‍ मह


ु ाविा, ‘पव
ू ाषग्रहों‍ की‍ लामबंदी’, नव-
संस्थावाद‍के‍ववश्लेर्ण‍औि‍स्पष्िीकिण‍में ‍केंरीय‍घिक‍बन‍गया‍है ।‍इसके‍अततरिक्त, इसने‍
उन‍ ववववि‍ क्षेत्रों‍ के‍ कािण‍ ववशेर्‍ स्थान‍ प्राप्त‍ ककया‍ है‍ ष्जनके‍ साथ‍ नव-संस्थावाद‍ दीघष‍
अवधि‍में‍ जुड़ा‍हुआ‍है ।‍जबकक‍माक्सषवाद‍औि‍उत्ति-संिचनावाद‍ने‍ व्यापक‍ऐततहालसक‍औि‍
सांस्कृततक‍वववविताओं‍ का‍ववश्लेर्ण‍ककया, नव-संस्थावाद‍ने कई‍मामलों‍में सक्ष्
ू म‍स्ति‍पि‍
उन‍ लसद्िांतों‍ के‍ ललए‍ महत्त्‍वपूण‍ष र्ौततक‍ समथषन‍ ददया।‍ यद्यवप‍ तीनों‍ में ‍ से‍ कोई‍ र्ी‍
संस्थावादी‍ मूल‍ रूप‍ से‍ परिधचत‍ आिाि‍ पि‍ सहमत‍ नहीं‍ है , लेककन‍ उनके‍ पास‍ सीमांत‍ पि‍
एक‍दस
ू िे ‍ के‍साथ‍ववलय‍एवं‍ वाताष‍ किने‍ के‍ललए‍पयाषप्त‍स्थान‍है ।‍कई‍तकषसंगत‍ववकल्प‍
लसद्िांतवादी‍ अब‍ सांस्कृततक‍ औि‍ ऐततहालसक‍ ववश्लेर्ण‍ से‍ कम‍ प्रर्ाववत‍ हैं।‍ नव-संस्थावाद‍
के‍कई‍पक्षों‍में ‍एक‍साथ‍कायष‍किने‍पि‍अधिक‍जोि‍ददया‍गया‍है ।

3.7 अभ्यास प्रश्न

1. संस्थागतवाद‍ औि‍ नव-संस्थागतवाद‍ के‍ बीच‍ क्या‍ संबंि‍ है ?‍ इनका‍ तल


ु नात्‍मक‍
अध्‍ययन‍कीष्जए।
2. नव-संस्थावाद‍औि‍इसके‍ववलर्न्द्न‍प्रकािों‍की‍व्याख्या‍कीष्जए।

3.8 संदिट-ग्रंथ

• Collier, D and Collier, R. B. (1991), Shaping the Political Arena: Critical Junctures,
the Labor Movement, and Regime Dynamics in Latin America, Cambridge:
Cambridge University Press.
• Downing, Brian. (1992), The Military Revolution and Political Change, Princeton:
Princeton University Press.
• Goldstein, Judith. (1988), Ideas, Institutions, and American Trade Policy,
International Organization, Winter, 1988, Vol. 42, No. 1, The State and American
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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

Foreign Economic Policy (Winter, 1988), pp. 179-217: The MIT Press.
• Hall, A.P and Taylor, C.R.R. (1996), Political Science and the Three New
Institutionalisms.
• March, G. J and Olsen, P. J. (1984), The New Institutionalism: Organisational Factors
in Political Life, The American Political Science Review, Vol. 78, No. 3, pp. 734-749.
• Orren, K and Skowronek, S. (2004), The Search for American Political Development,
Cambridge: Cambridge University Press.
• Skocpol, Theda. (1979), States and Social Revolutions: A Comparative Analysis of
France, Russia, and China, Cambridge: Cambridge University Press.
• Skocpol, Theda. (1996), Social policy in the United States: Future Possibilities in
Historical Perspective, New York: Princeton University Press.
• Thelen, K and Steinmo, S. (1992), Structuring Politics: Historical Institutionalism in
Comparative Analysis, Cambridge: Cambridge University Press.

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

इकाई-III

तल
ु नात्मक राजनीतत के दृष्टिकोण : पारं पररक और नव-संस्थागतवाद
भशखा जायसवाल
अनुवादक : अतनरुध यादव

संरचना

1.1 उद्दे श्य


1.2 परिचय
1.3 तुलनात्मक िाजनीतत के पािं परिक दृष्टिकोण
1.3.1 दार्शतनक दृष्टिकोण
1.3.2 ऐततहालसक‍उपागम
1.3.3 औपचारिक कानन
ू ी दृष्टिकोण
1.3.4 समस्यात्मक‍दृष्ष्िकोण
1.3.5 ववन्द्यासात्मक‍दृष्ष्िकोण
1.3.6 क्षेत्रीय/क्षेत्र दृष्टिकोण
1.3.7 संिचनात्मक-कायाशत्मक दृष्टिकोण
1.4 पािं परिक तल
ु नात्मक िाजनीतत की आलोचना
1.5 नए संस्थागत दृष्टिकोण का उदय
1.5.1 नया‍संस्थागत‍दृष्ष्िकोण‍क्या‍है ?
1.6 नई‍संस्थावाद‍के‍प्रमुख‍प्रारूप
1.6.1 ऐततहालसक‍संस्थानवाद
1.6.2 तकषसंगत—ववकल्प‍संस्थानवाद
1.6.3 समाजर्ास्त्रीय संस्थावाद
1.7 पुिानी‍औि‍नई‍ऐततहालसक‍संस्थावाद‍:‍एक‍तुलना

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

1.8 नई संस्थावाद औि ववकासर्ील ववश्व


1.9 ववभिन्न ववचािक
1.10 तनटकर्श
1.11 अभ्‍
यास‍प्रश्‍न
1.12 संदर्ष-सूची

1.1 उद्दे श्य

इस इकाई को पढ़ने के बाद, हम सक्षम होंगे—

• तुलनात्मक िाजनीतत की अवधािणा को समझना।

• ऐततहाभसक, तकशसंगत-पसंद औि समाजर्ास्त्रीय संस्थावाद के बीच अंति किना।

• नई संस्थावाद औि ववकासर्ील दतु नया के बीच अंति को समझने के भलए।

1.2 पररचय
िाजनीततक ववश्व बेहद जटिल है , ष्जसमें दो प्रकाि की संस्थाएाँ, अभिनेता औि ववचाि र्ाभमल
हैं जो समाज को र्ासन दे ने के भलए बबना रुके जमीन पि बातचीत किते हैं। िाजनीतत औि
सिकाि की जटिलता तब औि बढ़ जाती है जब हम कहते हैं कक कई अलग-अलग
िाजनीततक व्यवस्थाओं को समझें औि इन प्रणाभलयों के कायश किने के तिीकों की तल
ु ना
किें । जैसा कक तल
ु नात्मक िाजनीतत ने अलग-अलग दे र्ों या कई संस्थानों के सिल ववविणों
को आगे बढ़ाया है , ववद्वानों को साक्ष्य के ववर्ाल उपाय के माध्यम से छााँिने औि सबसे
अधधक लागू जानकािी पि ध्यान केंटित किने के भलए पयाशप्त मागशदर्शन की आवश्यकता है ।
इसभलए, हमें िाजनीतत में आवश्यक दृष्टिकोण ववकभसत किने की आवश्यकता है औि ववर्ेर्
रूप से ऐसे दृष्टिकोण ववकभसत किने की आवश्यकता है जो ववभिन्न प्रकाि की िाजनीततक
प्रणाभलयों में उपयोगी हों।

िाजनीततक भसद्धांत तल
ु ना के भलए इन दृष्टिकोणों के स्रोत हैं, व्यापक ष्स्थतत में ,
िाजनीतत के प्रतत प्रत्यक्षवादी औि िचनावादी दृष्टिकोणों औि सामाष्जक जीवन के बीच काफी
अंति है । तनचले सामान्य स्तिों पि, कई अलग-अलग भसद्धांत सापेक्ष िाजनीततक वैज्ञातनक
को दे खी जा िही िाजनीततक घिनाओं पि कुछ ताककशक अथश लगाने औि उस साक्ष्य को

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

िाजनीतत की एक औि व्यापक समझ से संबंधधत किने में सक्षम बनाते हैं। चचाश ककए गए
प्रत्येक दृष्टिकोण िाजनीतत के बािे में कुछ महत्त्वपूणश जानकािी प्रदान किते हैं, लेककन
जटिलता को पकड़ने के भलए कई पयाशप्त हैं।

सिी सिकािें जटिल वैष्श्वक मुद्दों के साथ संघर्श किती हैं, जैसे ववभिन्न नस्लीय
औि धाभमशक स्व-पहचानों को समायोष्जत किने की आवश्यकता, बेहति लािदायक सुिक्षा
औि ववकास के भलए संघर्श, सावशजतनक नागरिकता के भलए एक मजबत
ू आधाि दे ने की
खोज, औि लोकतंत्र की मााँगों‍ को प्रबंधधत किने की पिे र्ानी औि िागीदािी। संस्कृतत,
िाजनीततक लोकतंत्र, िाज्य प्रर्ासन औि सावशजतनक कायशक्रमों के कई अलग-अलग रूपों के
साथ समान मामलों की ककस्में हैं।

1.3 तुलनात्मक राजनीतत के पारं पररक दृक्ष्टकोण

तुलनात्मक िाजनीतत का अध्ययन प्राय: औपचारिक संस्थाओं में ककया जाता है , इसकी
तुलना यटद हम आधुतनक उपागमों से किें तो पायेंगे कक कायशप्रणाली औि िाजनीतत के महत्त्व
पि बल टदया जाता है । हालााँकक, व्यापक रूप से दृष्टिकोणों के जोि पि, तुलनात्मक अध्ययन
की पहल इसी पिं पिा में की गई थी, इसभलए तुलनात्मक अध्ययन को पािं परिक दृष्टिकोणों
से कम नहीं माना जा सकता है । है िी एष््स्िन के दृष्टिकोण के अनस
ु ाि, प्रमख
ु पािं परिक
तिीके हैं—

तुलनात्मक राजनीतत के पारं पररक दृतिकोण

दार्शतनक दृतिकोण तिन्याि दृतिकोण

ऐततहातिक दृतिकोण िंरचनात्मक-कायाश त्मक


दृतिकोण

औपचाररक और कानूनी दृतिकोण


क्षेत्रीय दृतिकोण

िमस्याग्रस्त दृतिकोण

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

1.3.1 दार्शतनक दृष्टिकोण :- दार्शतनक दृष्टिकोण के अध्ययन के समय से ही तल


ु नात्मक
िाजनीतत का प्रयोग होता िहा है , प्लेिो से लेकि हे गेल तक ववभिन्न ववचािकों ने दार्शतनक
दृष्टिकोण को अपनाया औि प्रयोग ककया है । इस ववधध में तनगमनात्मक ववधध का प्रयोग
ककया गया है । इस ववधध में सवशप्रथम तनटकर्श तनकाले जाते हैं, कफि वैज्ञातनक आधाि पि
उन्हें पिखने का प्रयास ककया जाता है ।

इस पद्धतत की सबसे बड़ी कमी यह थी कक इसका तथ्यों से कोई संबंध नहीं था,
इसके अततरि्त यह दे खा गया कक दार्शतनकों द्वािा प्रततपाटदत आदर्ों को व्यवहाि में लाना
बहुत कटिन है । यही कािण है कक प्लेिो के आदर्श िाज्य औि सि थॉमस मिू के एिोवपया
को पथ्
ृ वी पि स्थावपत नहीं ककया जा सकता है , इसभलए दार्शतनक दृष्टिकोण अपनी सीमा
तक आ गया है , लेककन यह समय औि उपयोग में बहुत सीभमत िहा है ।

1.3.2 ऐततहाससक उपागम :- तुलनात्मक िाजनीतत के अध्ययन के पिम्पिागत उपागमों में


िी इसका ववर्ेर् महत्त्व है । पाश्चात्य धचन्तन में िी ऐततहाभसक दृष्टिकोण का व्यापक प्रयोग
हुआ है, इन धचन्तनों में अिस्तू, मास्त्रोस्क, हे गेल, हे निी मैन जाक तथा मैकाइवि के प्रमुख
नाम हैं। इन ववचािों ने ऐततहाभसक ववश्लेर्ण पि आधारित िाजनीततक भसद्धांतों को जन्म
टदया। उदाहिण के भलए,

अिस्तू ने इततहास के आधाि पि िाज्य के उत्पादन औि अष्स्तत्व की व्याख्या की है ।


दस
ू िी ओि, कालश मा्सश ने इततहास की आधथशक व्याख्या की। उनके अनुसाि इततहास में
परिवतशन के साथ-साथ धमश, नैततकता औि िाजनीततक व्यवस्था में िी परिवतशन होता है ।

मैकाइवि ने िी इततहास को िाज्य की उत्पवि औि ववकास का आधाि माना है , इस


प्रकाि हम दे ख सकते हैं कक ववभिन्न ववचािकों ने ऐततहाभसक पद्धतत को व्यापक रूप से
अपनाया।

बाद में ऐततहाभसक िाजनीततक ववकासवादी दृष्टिकोण ही अपनाया गया। तुलनात्मक


दृष्टिकोण के ववकास में इन ववकासवादी िाजनीततक भसद्धांतों का महत्त्वपूणश योगदान िहा है ।
एक तुलनात्मक अध्ययन, वास्तव में , ऐततहाभसक दृष्टिकोण ने केवल जीवन को समद्
ृ ध
ककया है ।

र्ासन जैसे उपागमों के उपय्


ुश त योगदानों के ववपिीत इससे जुड़ी अनेक समस्याएाँ‍ हैं
औि केवल एक अततरि्त उपागम का उपयोग िाजनीतत के अध्ययन में उस हद तक ककया

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

जा सकता है ष्जस सीमा तक यह ऐततहाभसक है । इततहास की घिनाओं को अलग-अलग


लेखकों ने िाजनीतत का अध्ययन किते समय अलग-अलग ककया है ।

ऐततहाभसक पद्धतत के साथ एक औि समस्या यह है कक वपछली घिनाओं औि


अनुिवों को आवश्यकता से अधधक महत्त्व नहीं टदया जाना चाटहए ्योंकक इततहास हमेर्ा
खुद को दोहिाता नहीं है । प्राय: यह दे खा जाता है कक ऐततहाभसक पद्धतत हल किने की
अपेक्षा अधधक प्रश्नों को जन्म दे ती है । इततहास केवल एक पक्ष को उजागि किता है , जबकक
तल
ु नात्मक िाजनीतत का क्षेत्र बहुत ववर्ाल है ।

1.3.3 औपचाररक कानूनी दृष्टिकोण :- कई स्वतंत्र दे र्ों ने अपने स्वयं के संववधानों का


तनमाशण ककया है औि तुलनात्मक िाजनीततक ववश्लेर्ण ने संववधान, कानून, प्रर्ासन, नीतत-
तनमाशण औि नौकिर्ाही पि अपने अध्ययन का आधाि बनाया है । औपचारिक औि कानूनी
दृष्टिकोण अपनाने वाले ववचािकों में धथओडोि बल्
ु सआई, बड्रो ववल्सन, दीउती आटद के नाम
ववर्ेर् रूप से उल्लेखनीय हैं। आधतु नक उपागमों के उदय के बाद िी इनका महत्त्व बना िहा,
यही कािण है कक कािश ि, हर्जश, न्यूमन
ै आटद लेखकों ने इसे अपनाया।

कानूनी औि औपचारिक दृष्टिकोण आगमन की कई आधािों पि आलोचना की जाती


है ्योंकक इन दृष्टिकोणों के तहत औपचारिक संस्थानों, कानूनों औि संववधानों पि अधधक
जोि टदया जाता है औि अन्य सामाष्जक-आधथशक मनोवैज्ञातनक कािकों पि ज्यादा ध्यान नहीं
टदया जाता है ।

प्राय: दे खा जाता है कक जो कथन कानन


ू ी दृष्टि से सत्य होते हैं, वे िाजनीततक दृष्टि
से िी सत्य नहीं होते। उदाहिण के भलए, बििे न में संसद सवोच्च है , लेककन व्यवहाि में ऐसा
नहीं है । औपचारिक औि कानन
ू ी दृष्टिकोण के आधाि पि ककया गया अध्ययन अधधक
वणशनात्मक औि कम ववश्लेर्णात्मक है ।

1.3.4 समस्यात्मक दृष्टिकोण :- तुलनात्मक अध्ययन के ववश्लेर्कों ने ववभिन्न समस्या


क्षेत्रों की पहचान की औि उन्हें हल किने के भलए पािं परिक तिीकों को अपनाया। लोकतंत्र
औि आधथशक तनयोजन, पंचायती िाज औि मटहलाओं का प्रतततनधधत्व, प्रर्ासतनक ववकास,
एक द्ववआधािी प्रणाली का ह्रास, र्ष््त का वविाजन, र्ष््त का ववकेंिीकिण, आटद उनके
मुख्य ववर्य थे। इस तिह के अध्ययन मुख्य रूप से औपचारिक संस्थानों औि संिचनाओं से
संबंधधत थे।

73 | पष्ृ ‍ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

कुछ ववचािकों ने इस प्रकाि के अध्ययन के बाद इन औपचारिक संस्थाओं में सुधािों


का िी सुझाव टदया, जैसे—‍हाउस ऑफ लॉर्डशस का पुनगशिन, कायाशत्मक प्रतततनधध सिाओं का
ववकास, आधथशक संघों की स्थापना, कायशपाभलका को सिा सौंपना, औि व्यापारिक समूहों को
नीतत-तनमाशण में िाग लेंना। नीतत तनमाशण में र्ाभमल अंगों के एकीकिण का अवसि प्रदान
किना औि लोकतांबत्रक व्यवस्था आटद में लोकतंत्र वविोधी दलों के ववकास को िोकने के
तिीके खोजना।

समकालीन दृष्टिकोण का सबसे बड़ा लाि यह था कक इसने पािं परिक औपचारिक


क्षेत्रों की समस्याओं को हल किने में महत्त्वपण
ू श योगदान टदया औि साथ ही आने वाले समय
के भलए एक मागश प्रर्स्त ककया कक कैसे समस्याग्रस्त दृष्टिकोण को अधधक मनटु यों औि
िाजनीततक के व्यवहाि पि लागू ककया जा सकता है । संस्थानों औि अन्य सामाष्जक आधथशक
संस्थानों।

1.3.5 ववन्यासात्मक दृष्टिकोण :- प्रारूपण ववधध का ववकास ऐततहाभसक औि कानूनी


दृष्टिकोण के बाद ककया गया था। इस पद्धतत के अन्तगशत प्रत्येक िाज्य की र्ासन
व्यवस्था, कानून एवं संववधान को अद्ववतीय मानकि उस दे र् की िाजनीततक व्यवस्था का
अध्ययन उस दे र् ववर्ेर् के सन्दिश में ककया जाता है न कक तुलना में । इस प्रकाि यह एक
सिल उपाय साबबत हुआ। इस पद्धतत के अंतगशत पहले आाँकड़े औि तथ्य एकबत्रत ककए जाते
हैं औि कफि उनका तलु नात्मक अध्ययन ककया जाता है । इस उपागम का प्रयोग अनेक
िाजनीततक ववचािकों ने ककया, ष्जनमें न्यम
ू ैन, कािश ि, हजश, िोचि, कफन्िे आटद के नाम प्रमुख
हैं।

अत्यन्त सिल होने के ववपिीत इसमें अनेक दोर् पाये जाते हैं, इसभलये इसकी
आलोचना िी हुई। ववचािकों के एक समूह का मानना है कक यह दृष्टिकोण क्षेत्रीय रूप से
वणशनात्मक औि तुलनात्मक है । यद्यवप इसकी एक ववर्ेर्ता से इनकाि नहीं ककया जा
सकता है औि यह अ्सि तुलनात्मक अध्ययन किने का सबसे अच्छा तिीका है , पहले
ककसी दे र् की िाजनीततक व्यवस्था का अध्ययन किके एक िोस आधाि, पयाशप्त सामग्री औि
कफि एक अलग तुलनात्मक ववश्लेर्ण प्रदान ककया जाता है । व्यवस्थाओं का िाजनीततक
तुलनात्मक अध्ययन संिव हो जाता है । यटद ववभिन्न िाजनीततक व्यवस्थाओं के अध्ययन में
सामाष्जक एवं आधथशक कािकों को िी र्ाभमल ककया जाए तो इस उपागम को औि अधधक
वैज्ञातनक बनाया जा सकता है ।

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तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

1.3.6 क्षेत्रीय/क्षेत्र दृष्टिकोण :- द्ववतीय ववश्व युद्ध के बाद सापेक्ष िाजनीतत के अध्ययन का
मूल दृष्टिकोण उपयोगी हो सकता है , िाजनीतत के मध्यस्थता के अध्ययन में एक नया
चलन दे खा जाता है । ववचािकों ने ववकासर्ील औि अववकभसत दे र्ों की िाजनीतत को अपने
अध्ययन का केंि बबंद ु बनाया औि इसभलए स्वदे र्ी दृष्टिकोण का व्यापक रूप से उपयोग
होने लगा। मैकक्रडडस के अनुसाि इस उपागम में ऐसे क्षेत्र का अध्ययन ककया जाता है जहााँ‍
सिी दे र्ों में समान सामाष्जक-आधथशक एवं िाजनीततक एकरूपता हो ताकक एकता के साथ
इस सापेक्षक्षक अध्ययन में ककसी प्रकाि की असहमतत स्थावपत न की जा सके। इस स्वदे र्ी
रूप का उपयोग किके, हम इस िाय को दृढ़ कि सकते हैं कक ककसी दे र् में स्वर्ासन
सुिक्षक्षत या सुदृढ़ ्यों है ।

ववभिन्न दे र्ों की भिन्न-भिन्न परिष्स्थततयों का ववश्लेर्ण कि जो तनटकर्श तनकलते


हैं, वे सही अथों में द्ववतीय ववश्वयद्
ु ध के बाद स्थावपत ववश्व व्यवस्था के ववश्लेर्ण के भलए
उपयोगी हो सकते हैं।

इन सिी फायदों के बावजूद तुलनात्मक अध्ययन के भलए क्षेत्रीय दृष्टिकोण वास्तव


में अच्छा नहीं है ्योंकक यह आवश्यक नहीं है कक ष्जन दे र्ों में सामाष्जक-आधथशक औि
िाजनीततक एकरूपता है वे िौगोभलक रूप से एक-दस
ू िे के किीब हों।

ववभिन्न ववचािकों ने क्षेत्रीय दृष्टिकोण का अनुसिण ककया है औि अनेक पुस्तकें


भलखी हैं। कुछ पुस्तकें हैं; िॉबिश स्कैलावपनो द्वािा “पूव-श यद्
ु ध जापान में लोकतंत्र औि पािी
आंदोलन”, बैरिंगिन मिू द्वािा “सोववयत िाजनीतत: र्ष््त की दवु वधा” औि मले फेन्सोड
द्वािा “रूस पि र्ासन कैसे ककया जाता है ”। आधुतनक समय में , जब अंतःववर्य दृष्टिकोण
वास्तव में लोकवप्रय हो िहा है , क्षेत्रीय या िौगोभलक दृष्टिकोण पि आधारित अध्ययन
फलदायी नहीं है । लेखकों ने अथशर्ास्त्र, समाजर्ास्त्र, नवृ वज्ञान, िार्ा ववज्ञान औि िाजनीतत
ववज्ञान पि आधारित तल
ु नात्मक अध्ययन को एक नई टदर्ा दी।

1.3.7 संरचनात्मक-कायाशत्मक दृष्टिकोण :- आधतु नक समय में, तल


ु नात्मक िाजनीतत का
अध्ययन किने के भलए संिचनात्मक-कायाशत्मक दृष्टिकोण का व्यापक रूप से उपयोग ककया
जाता है । इस दृष्टिकोण के तहत, संस्थानों का अध्ययन उनकी कायशक्षमता के भलए समान
रूप से महत्त्वपूणश है । यटद हम कक्रयात्मकता की अपेक्षा केवल संस्थाओं औि संगिन के
अध्ययन पि ध्यान केष्न्ित किते हैं तो हमािा अध्ययन पण
ू श नहीं होता। इसभलए, िाजनीततक

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संस्थानों के संगिनात्मक औि कायाशत्मक िागों पि समान जोि टदया जाना चाटहए। इस


दृष्टिकोण के तहत समग्रता में अध्ययन ककया गया। सम्पूणश िाजनीततक व्यवस्था को
अध्ययन के क्षेत्र में लाया गया औि उस सम्पूणश व्यवस्था को एक इकाई के रूप में दे खा
जाने लगा। हिमन फाइनि, कालश फ्रेडरिक, मौरिस डुवगशि, के.सी. व्हीिे आटद इस उपागम के
प्रमुख समथशक हैं।

संिचनात्मक-कायाशत्मक दृष्टिकोण ने काफी हद तक तल


ु नात्मक अध्ययन में एक
आधतु नक अंतदृशष्टि प्रदान की है । यद्यवप यह दृष्टिकोण आधुतनक होने के साथ-साथ समग्रता
िी ग्रहण किता है , पिन्तु इस दृष्टिकोण में अनेक दोर् िी दृष्टिगोचि होते हैं, जो इस प्रकाि
हैं—

I. िाजनीततक अध्ययन का एक ववर्ेर् गुण है - गततर्ीलता। तुलनात्मक अध्ययन में हम


ककसी िी दृष्टिकोण का उपयोग कि सकते हैं, लेककन वास्तव में उस दृष्टिकोण में
इस गततर्ीलता से संबंधधत आयामों का अध्ययन किने की क्षमता आवश्यक है
लेककन गततर्ीलता को समझने के भलए संस्थागत कायाशत्मक दृष्टिकोण पयाशप्त
आधाि नहीं दे ता है , ्योंकक इस दृष्टिकोण के तहत केवल ष्स्थि ववभिन्न िाजनीततक
प्रणाभलयों के संबंधों पि ववचाि ककया जाता है ।

II. कोई िी संस्था अलग-अलग परिष्स्थततयों में अलग-अलग कायश किती है । यह


आवश्यक नहीं है कक कोई िी संस्था सिी दे र्ों में समान कायश किे । इसभलए,
संिचनात्मक-कायाशत्मक दृष्टिकोण से तनकाले गए तनटकर्श हमेर्ा एक सावशिौभमक
सत्य नहीं हो सकते। उदाहिण के भलए, कायशर्ील लोकतंत्र, संसद, िाजनीततक दल,
चुनाव आयोग आटद सिी दे र्ों में एक दस
ू िे से काफी हद तक भिन्न होते हैं।

1.4 पारं पररक तल


ु नात्मक राजनीतत की आलोचना

तुलनात्मक िाजनीतत के अध्ययन में ककसी िी उपागम का प्रयोग किते समय पहले से
सावधान औि जागरूक होना आवश्यक है , ताकक हमािे तनटकर्श औि भसद्धांत सही हों। प्राय:
दे खा जाता है कक वतशमान िाजनीततक ष्स्थतत के बावजूद दे र्ों में िाजनीततक परिदृश्य में
ववववधता पाई जाती है । अतः तुलनात्मक िाजनीतत के व्यापक अध्ययन के भलए सांस्कृततक,
सामाष्जक, आधथशक औि नैततक आयामों का िी अध्ययन आवश्यक है ।

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पािं परिक दृष्टिकोणों के औपचारिक अध्ययन से पिे ववश्लेर्ण को गहिा किने की


आवश्यकता है । औपचारिक अध्ययन के अततरि्त, िाजनीततक व्यवहाि के अनौपचारिक
क्षेत्रों, अंतःववर्य पद्धतत, संस्थानों के कामकाज आटद का अध्ययन िी आवश्यक हो गया है ।
इस सन्दिश में मैक्रीडडस ने पािम्परिक तुलनात्मक िाजनीतत के अध्ययन की कुछ कभमयााँ‍
इस प्रकाि बताई हैं—

1. पिं पिागत तल
ु नात्मक िाजनीतत का अध्ययन पष्श्चमी दे र्ों तक ही सीभमत था।
पष्श्चमी दे र्ों में प्राय: लोकतांबत्रक र्ासन प्रणाली पाई जाती है , इसभलए लोकतंत्र के
अततरि्त अन्य सिी र्ासन प्रणाभलयााँ‍ इस तल
ु नात्मक अध्ययन का अंग नहीं बन
सकीं। इसका परिणाम यह हुआ कक ववकासर्ील दे र्, कम ववकभसत दे र् औि उनकी
र्ासन प्रणाली औि िाजनीततक व्यवस्था तल
ु नात्मक अध्ययन में ही िह गए। अतः
इस आधाि पि पिम्पिागत उपागम को तल
ु नात्मक नहीं कहा जा सकता औि यटद
कहा िी जाय तो उसका आधाि अत्यन्त सीभमत एवं संकीणश िहा है ।

2. पािं परिक दृष्टिकोणों के तहत ककया गया तुलनात्मक अध्ययन बहुत औपचारिक िहा
है । लोकतंत्र, संसद, प्रर्ासन, नागरिक, ववधातयका, कायशपाभलका आटद का समूचा
तुलनात्मक अध्ययन औपचारिक र्ब्द के इदश -धगदश ही िहा है जो वास्तववक तो है
लेककन अध्ययन के भलए अधधकांर्तया इतना लािकािी भसद्ध नहीं हुआ।

3. पिम्पिागत उपागम में वणशन की ववधध पि अधधक बल टदया जाता था जबकक


तुलनात्मक अध्ययन में ववश्लेर्ण, सत्यापन, िाजनीततक व्यवहाि का अध्ययन, तथ्य
संकलन आटद का ववर्ेर् महत्त्व होता है । अतः हम कह सकते हैं कक पािम्परिक
उपागम द्वािा तुलनात्मक अध्ययन का अध्ययन एक पक्षीय िहा है । पािं परिक
दृष्टिकोण से ककया गया अध्ययन न तो व्यवष्स्थत था औि न ही वैज्ञातनक।

4. पािं परिक दृष्टिकोण वणशनात्मक पक्ष के आसपास केंटित था औि समस्या पक्ष पि


अधधक ध्यान नहीं टदया, परिणामस्वरूप, जब समस्या पक्ष को मान्यता नहीं दी गई
तो समाधान पक्ष पि िी ध्यान नहीं टदया गया। िाजनीतत ववज्ञान मानव से संबंधधत
है इसभलए इसकी प्रकृतत ऐसी होनी चाटहए जो मानव जीवन में आने वाली समस्याओं
का समाधान खोजे लेककन पािं परिक दृष्टिकोण समाधान के धिातल पि सफल नहीं
होता।

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उपिो्त आलोचनाओं का तनटहताथश यह नहीं है कक इन दृष्टिकोणों का कोई महत्त्व नहीं है ।


जब तुलनात्मक िाजनीतत की र्ुरुआत हुई थी, तब संस्थाओं औि िाजनीततक व्यवस्था का
स्वरूप बहुत सिल था, परिणामस्वरूप तुलनात्मक अध्ययन के भलए पािं परिक दृष्टिकोण
बहुत प्रिावी था, लेककन समय के साथ संस्थानों औि िाजनीतत का रूप औि अधधक कटिन
हो गया औि पािं परिक दृष्टिकोण नहीं था। तुलनात्मक ववश्लेर्ण में प्रिावी औि आधुतनक
दृष्टिकोण की आवश्यकता थी। यद्यवप पािं परिक दृष्टिकोण आधुतनक दृष्टिकोणों द्वािा ककए
गए ववश्लेर्ण को 'तनववटि' दे ते हैं।

1.5 नए संस्थाित दृक्ष्टकोण का उदय

नए संस्थागत दृष्टिकोण की जड़ें 1980 के दर्क के मध्य में हैं। 20वीं र्ताब्दी के अंत में,
नए संस्थागत दृष्टिकोण के उद्िव के भलए कई कािकों ने योगदान टदया।
पुराना िंस्थागतिाद
व्यिहारिाद

िैज्ञातनक तिति िे व्यिहार का पारं पररक और औपचाररक पद्धतत िे


अध्ययन िंस्थानों का अध्ययन

िमन्वय

नई िंस्थािाद

1. व्यवहािवाटदयों द्वािा पािं परिक अध्ययनों को अस्वीकाि कि टदया गया था। जबकक
वस्तुतनटि अध्ययन पि बल टदया गया औि नव-संस्थावाटदयों ने अध्ययन की
वैज्ञातनक पद्धतत औि व्यवहािवाटदयों के पािं परिक दृष्टिकोण के बीच समन्वय औि
सामंजस्य स्थावपत किने का प्रयास ककया औि पािं परिक दृष्टिकोण संस्थानों में
संववधान के माध्यम से अध्ययन ककया गया। जबकक नव-संस्थावाटदयों ने वैज्ञातनक
ढं ग से संस्थाओं का अध्ययन ककया औि सामाष्जक सन्दिश में िी दे खने का प्रयास

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ककया। बेहति ढं ग से समझने के भलए, मानव व्यवहाि का अध्ययन किना आवश्यक


है । (1984, माचश औि जॉन ओल्सन द्वािा जेम्स जी)।

2. तुलनात्मक िाजनीतत में पिम्पिागत उपागम के बाद संस्थाओं की पूिी तिह से उपेक्षा
की गई तथा िाजनीततक व्यवस्था के कायश तथा वाताविण पि मुख्य बल टदया गया।
लेककन संस्थानों के महत्त्व को नव-संस्थावाटदयों द्वािा कफि से स्वीकाि ककया गया।

3. अनंततम कािक: उपतनवेर्वाद की समाष्प्त औि पुिाने उपतनवेर्ों में नए िाज्यों के


उििने से पता चला है कक िाजनीततक व्यवहाि को आकाि दे ने के भलए िाज्य की
िूभमका बहुत आवश्यक है । ववकासर्ील दे र्ों में िी, कुछ पष्श्चमी औि आधुतनक दे र्ों
में 'कल्याणकािी िाज्य' के प्रसािण ने पढ़ाई में ध्यान केंटित किने के तिीके को बदल
टदया है । ऐसे कई प्रिावी औि नए तिीके हैं ष्जनके माध्यम से नए िाजनीततक
संस्थानों का लोकतंत्र प्रकार् में आया, ष्जसने उन्हें समझने औि अध्ययन किने में
एक अच्छी छवव पेर् की। आज िाज्यों औि संस्थाओं ने एक बहुत ही महत्त्वपूणश
िूभमका तनिाई है ष्जसने एक तिह से यह छवव पेर् की है कक िाजनीतत का अध्ययन
तब तक पूिा नहीं हो सकता जब तक कक इस पि उधचत औि उधचत ध्यान न टदया
जाए।

4. र्ास्त्र के अंतगशत वाद-वववाद-िाजनीतत ववज्ञान के र्ास्त्र में िाज्य हमेर्ा से एक


िहस्यमय स्थान पि िहा है । जब िाज्य का अध्ययन औि िाजनीतत का अध्ययन र्रू

हुआ, तो ईस्िन औि आमण्डर्ड जैसे वैज्ञातनकों की एक आने वाली पीढ़ी ने कहा कक
समाज के वास्तववक िाजनीततक कािणों को समझने के भलए िाज्य अिी िी
अवधािणा में स्पटि नहीं है । हमें यह समझने के भलए िाज्य का अध्ययन किना होगा
कक यह समाज के ववभिन्न कायों से कैसे प्रिाववत औि प्रिाववत होता है । िाज्य के
प्रतत इस परिवतशन औि अवधािणा से इसमें िाजनीततक प्रकक्रया के ववस्तत
ृ संस्किण
को समझने के भलए संस्थानों में रुधच बढ़ सकती है ।

1.5.1 नया संस्थाित दृक्ष्टकोण क्या है ?

नया संस्थागत दृष्टिकोण िाजनीतत ववज्ञान के अध्ययन में एक पद्धततगत दृष्टिकोण है , जो


संयु्त िाज्य अमेरिका में र्ुरू हुआ है , जो इस बात की पड़ताल किता है कक कैसे संस्थागत
संिचनाएाँ, तनयम, मानदं ड औि संस्कृततयााँ‍ व्यष््तयों की पसंद औि कायों को बाधधत किती

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हैं जब वे एक िाजनीततक संस्थान का टहस्सा होते हैं। यह दृष्टिकोण अमेरिका में 1980 के
आसपास प्रिावी हो गया।

नया संस्थागतवाद पिं पिावादी ववद्वानों के टहतों को जोड़ने की कोभर्र् किता है ,


ष्जन्होंने व्यवहािवादी ववद्वानों के साथ औपचारिक संस्थागत तनयमों औि संिचनाओं का
अध्ययन किने पि ध्यान केंटित ककया, ष्जन्होंने व्यष््तगत िाजनीततक अभिनेताओं के कायों
की जााँच‍की।

इसका मानना है कक व्यवहाि पि संस्थागत बाधाओं की जांच ककए बबना व्यष््तगत


िाजनीततक व्यवहाि का अध्ययन िाजनीततक वास्तववकता की एक ववर्म समझ दे ता है । नव-
संस्थागतवाद व्यवहाि के बाद का दृष्टिकोण है ।

िाजनीततक जीवन में संस्थाओं का ववर्ेर् महत्त्व है । तथ्य यह है कक श्रभमकों का


िाजनीततक व्यवहाि िी उन संगिनों से प्रेरित होता है ष्जनसे वे संबंधधत हैं। िाजनीतत
ववज्ञान के अंतगशत ‘सिा’ औि ‘संस्थाओं’ का अध्ययन प्रािम्ि से ही ककया जाता िहा है ।
आधुतनक र्ासन व्यवस्था में िी संस्थाओं के महत्त्व को नकािा नहीं जा सकता। संस्थाओं का
महत्त्व इसभलए िी है ्योंकक उनके माध्यम से ही िाजनीततक नेता र्ष््त का प्रयोग किते हैं
औि संगिनों के संसाधनों का उपयोग किते हैं। संस्थाओं के आधाि पि िाजनीतत ववज्ञान का
ववद्याथी िाजनीततक दलों, चुनाव प्रणाली, नौकिर्ाही, संसद, संववधान औि न्याय व्यवस्था
को समझने की कोभर्र् किता है औि उन्हें ‘िाज्य’ के रूप में दे खता है । इसके अलावा वह
कुछ सुपिनैर्नल जैसे संयु्त िाटर, अंतिाशटरीय मुिा कोर्, यूिोपीय संघ का िी अध्ययन
किता है औि कुछ गैि-सिकािी संगिनों जैसे व्यापाि संघ आटद का िी अध्ययन किता है ।

ककसी एक इकाई की सीमा तनधाशरित किना कोई आसान काम नहीं है ्योंकक यह
भसफश एक ‘वस्त’ु का नाम नहीं है , यह एक ‘प्रकक्रया’ िी है जो व्यष््तगत व्यवहाि को
तनधाशरित किने में महत्त्वपण
ू श िभू मका तनिाती है । एक संस्था वास्तव में स्थावपत कानन
ू ों,
िीतत-रिवाजों या प्रथाओं का एक समह
ू है । अतः संस्थाओं का अध्ययन किते समय केवल
औपचारिक तनयम-कायदों को समझना ही आवश्यक नहीं है , अवपतु अनौपचारिक ववधधयों को
िी समझना आवश्यक है । संस्थाओं में ऐसे कई तिीके हैं ष्जनसे लोग आत्मसात होते हैं औि
अपनी आदतों औि व्यवहाि में र्ाभमल हो जाते हैं। इन्हें सीधे नहीं दे खा जा सकता है ।

आमतौि पि एक ‘संस्थान’ औि ‘संगिन’ के बीच कोई अंति नहीं ककया जाता है ,

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तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

लेककन उनके बीच अंति होता है । अ्सि संगिन ववभिन्न संगिनों के िीति काम किते हैं
औि उनसे प्रेरित िी होते हैं। संस्थाएाँ‍ एक तिह से कुछ सांगितनक संबंधों का रूप होती हैं
ष्जनके आधाि पि व्यष््तयों की िूभमका, तनयम या व्यवहाि तनधाशरित होते हैं। िाजनीततक
जीवन में संस्थाओं का ववर्ेर् महत्त्व है ्योंकक वे अन्योन्याधश्रत तनयमों औि टदन-प्रततटदन
की गततववधधयों से संचाभलत होती हैं। एक व्यष््त ्या किे गा यह इस बात पि तनिशि किता
है कक ष्स्थतत ्या है औि उसकी िूभमका ्या है । ऐसी आवश्यकताएाँ‍ स्वैष्च्छक हो सकती हैं
औि कानून या ववतनयमों के आधाि पि मान्य िी हो सकती हैं (नोथश, 1990: 384-85)।

कुछ िाजनीततक ववश्लेर्कों का यह िी मानना है कक संस्थाएाँ‍ महत्त्वपण


ू श हैं ्योंकक वे
िाजनीततक अभिनेताओं की र्ष््तयों औि प्राथभमकताओं को तनधाशरित किने में मदद किती हैं
(लेवी, 1990: 407)। उदाहिण के भलए, जो लोग सिकािी खजाने में काम किते हैं वे अन्य
सिकािी कमशचारियों की तल
ु ना में अधधक र्ष््तर्ाली होते हैं ्योंकक उनका सिकािी व्यय पि
तनयंत्रण होता है (हॉल, 1986: 19)। प्राय: संस्थाओं को अभिनेताओं के ‘ऊपि’ लेककन
ववभिन्न संिचनात्मक र्ष््तयों के ‘नीचे’ दे खा जाता है । ‘संिचनात्मक र्ष््तयों’ में घिे लू या
अंतिाशटरीय अथशव्यवस्था या िाजनीतत र्ाभमल हो सकती है । इसके अततरि्त, हमें यह नहीं
िूलना चाटहए कक कई अन्य कािक हमािे व्यवहाि को प्रिाववत किते हैं जैसे वगश संबंध।
इसके अलावा संस्थानों में ककसी की रुधच कम या ज्यादा िी हो सकती है । हााँ, यह हमेर्ा
एक जैसा नहीं िहता। इसभलए ‘नई संस्थावाद’ को समझना जरूिी है ।

उन्नीसवीं सदी के अंत औि बीसवीं सदी की र्रु


ु आत में , िाजनीतत ववज्ञान के
तल
ु नात्मक अध्ययन ने अ्सि सिकाि औि िाज्य की औपचारिक संस्थाओं, कानन
ू ों औि
लोक प्रर्ासन िाजनीतत की प्रणाभलयों को अधधक महत्त्व टदया। िाजनीतत ववज्ञान में , इसे अब
‘र्ास्त्रीय संस्थागतवाद’ औि ‘कानन
ू ी औपचारिक ऐततहाभसक अध्ययन’ के रूप में जाना जाता
है । इस प्रकाि के अध्ययन में आधतु नक अध्ययनों के ववपिीत सामान्य भसद्धांतों की खोज
पि ववर्ेर् ध्यान नहीं टदया गया। इसमें अ्सि घिनाओं के ववविण पि ध्यान टदया जाता
था, उनके ववश्लेर्ण पि नहीं। उस समय, अ्सि यह माना जाता था कक व्यष््त का
िाजनीततक व्यवहाि औपचारिक तनयमों औि कानूनों से प्रेरित होता है , जो ववभिन्न संस्थाओं
द्वािा बनाए जाते हैं।

द्ववतीय ववश्व युद्ध के बाद संयु्त िाज्य अमेरिका में व्यवहाि अध्ययन का प्रचलन
र्ुरू हुआ औि व्यष््त के िाजनीततक व्यवहाि को समझने के भलए अनौपचारिक व्यवहाि को

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िी समझने का प्रयास ककया गया, ष्जसके भलए गैि-सिकािी संगिनों का अध्ययन िी बन


गया। र्जरूिी। अब ‘िाज्य’ औि ‘सिकाि’ के स्थान पि ‘समाज’ से जुड़ी संस्थाओं की ओि िी
ध्यान जाने लगा। िाजनीतत को अब सिा के भलए संघर्श के रूप में दे खा जाने लगा है ।

माचश औि ओल्सन जैसे िाजनीततक ववद्वानों का मानना था कक िाजनीततक घिनाओं


को व्यष््तयों के तनजी व्यवहाि के स्ति पि समझा जा सकता है औि ‘व्यवहािवादी’ को
‘उपयोधगतावाद’ के साथ जोड़ा जा सकता है ्योंकक व्यवहाि में मानव व्यवहाि स्वाथी होता
है । वह कािण से प्रेरित होता है न कक अपने कतशव्यों या ष्जम्मेदारियों से (माचश औि ऑलसेन
1984: 735)

‘नव-संस्थागतवाद’ के कािण 1980 के दर्क से िाजनीतत ववज्ञान के अध्ययन में


पुनः संस्थाओं का महत्त्व टदया जाने लगा। इसके कई कािण थे। 1980 के दर्क के बाद से,
सामाष्जक-िाजनीततक औि आधथशक संस्थानों का प्रिाव बढ़ने लगा (माचश औि ऑलसेन,
1984: 734)। दस
ू िे , िाजनीततक ववद्वानों की कफि से ‘िाज्य’ में रुधच थी ्योंकक
कल्याणकािी िाज्यों के दौिान इसकी िूभमका औि प्रिुत्व में वद्
ृ धध हुई। तीसिा, िाजनीतत
ववज्ञान के र्ोधकताश यह जानना चाहते थे कक समान आधथशक कटिनाइयों के बावजद ू 1970
औि 1980 के दर्क में अलग-अलग दे र् अलग-अलग िाजनीततक औि संस्थागत िास्तों का
पालन ्यों कि िहे थे। चौथा, वे यह िी जानना चाहते थे कक इस अवधध के दौिान
सावशजतनक उद्यमों में सुधाि औि िाज्य की िूभमका को बदलने पि तेजी से जोि ्यों टदया
गया (बेल, 1997)।

संस्थाओं के अध्ययन का महत्त्व न केवल िाजनीतत ववज्ञान में बष्ल्क अथशर्ास्त्र औि


समाजर्ास्त्र में िी बढ़ िहा था। सिी मानववकी औि सामाष्जक ववज्ञानों की ववभिन्न
िाजनीततक या आधथशक घिनाओं को समझने के भलए, सामाष्जक प्रकक्रयाओं को समझने पि
जोि टदया गया औि एक अंतःववर्य अध्ययन पद्धतत को अपनाया गया ताकक समग्र सत्य
को समझा जा सके। िाजनीतत ववज्ञान में ‘व्यवहािवादी’ के स्थान पि पुनः नवीन संस्थावाद
को अपनाया गया। जहााँ‍ व्यवहािवाद में व्यष््त के वैयष््तक स्विाव पि बल टदया जाता था
वहीं नवीन संस्थावाद के अन्तगशत व्यष््त का व्यवहाि ही संस्था का आधाि होता है । प्रसंग
को समझने का प्रयास ककया गया है । नव-संस्थावादी ववचािकों का मानना था कक संस्थाएाँ‍
‘पिमाणुओं’ की तिह स्वतंत्र‍नहीं हैं, वे सामाष्जक पिं पिाओं से हैं।

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

यह िाजनीततक ववश्व व्यष््तगत नहीं है । पिमाणु ष्स्थि अणुओं औि यौधगकों से जुड़े


होते हैं। सिकािी अधधकारियों की प्राथभमकताएाँ‍ प्रर्ासतनक संिचनाओं, कानूनी प्रणाभलयों औि
स्थायी ववश्वासों से बंधी होती हैं।

1.6 नई संस्थावाद के प्रमख


ु प्रारूप

िाजनीतत ववज्ञान ने हमें ऐततहाभसक संस्थागतवाद टदया, अथशर्ास्त्र ने हमें तकशसंगत ववकल्प
संस्थागतवाद टदया, औि समाजर्ास्त्र ने हमें समाजर्ास्त्रीय संस्थागतवाद टदया (सेक गॉडडन
1996, 2-20; हॉल औि िे लि 1996, 936)। नया संस्थागतवाद एक गोदी से थोड़ा अधधक है
ष्जसके साथ ष्व्हग्स औि आधुतनकतावादी-अनुिववादी उस तिह के काम को आगे बढ़ा सकते
हैं जो व्यवहािवादी औि तकशसंगत पसंद के ढोंग से लंबे समय तक अप्रिाववत िहे हैं।

राजनीतत ऐततहातिक
तिज्ञान िंस्थािाद

अथशर्ास्त्र तकशिंगत-पिं द
िंस्थागतिाद

िमाज
िमाजर्ास्त्रीय
र्ास्त्र
िंस्थािाद
तीनों प्रारूपों की उत्पवि

1.6.1 ऐततहाससक संस्थानवाद

यह एक दृष्टिकोण है जो इस बात पि ध्यान केंटित किता है कक कैसे समय, अनक्र


ु म औि
पथ तनिशिता संस्था को समग्र रूप से प्रिाववत किती है औि िाजनीततक औि आधथशक
व्यवहाि को आकाि दे ने में िी मदद किती है ।

ऐततहाभसक संस्थागतवाद एक दृष्टिकोण के रूप में एक ओि बहुलवाटदयों जैसे


समथशकों के समह
ू औि दस
ू िी ओि संिचनात्मक-कायाशत्मक व्याख्याकािों के जवाब में ववकभसत
हुआ। संिचनात्मक प्रकायशवाटदयों द्वािा ऐततहाभसक संस्थागतवाद अधधक प्रिाववत था।
िाजनीतत के संिचनात्मक प्रकायशवादी ववचाि को संिचनात्मक प्रकायशवाटदयों द्वािा

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बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

अंतःकक्रयात्मक क्षेत्र की एक समग्र प्रणाली‍के रूप में स्वीकाि ककया जाता है ।

गैि-काल्पतनक संस्थागतवादी संस्थानों के संचालन औि ववकास से प्रिाववत र्ष््त के


असमान ववतिण औि संचालन पि जोि दे ते हैं। ऐततहाभसक संस्थावादी यह िी समझाते हैं
कक कैसे संस्थाएाँ‍ववभर्टि पथों का तनमाशण किती हैं, अथाशत ्, संस्थाएाँ‍आने वाली चुनौततयों के
भलए िाटर की प्रततकक्रया को कैसे आकाि या संिचना दे ती हैं। एक दृष्टिकोण के रूप में गैि-
काल्पतनक संस्थावाद वास्तव में संस्थानों औि ववचािों या ववश्वासों के बीच संबंध के प्रतत
चौकस है ।

1.6.2 तकशसंगत—ववकल्प संस्थानवाद

तकशसंगत ववकल्प संस्थागतवाद या आिसीआई पिू ी तिह से एक भसद्धांत-आधारित दृष्टिकोण


है जो संस्था के अध्ययन के भलए उनके उपयोग को अधधकतम किता है औि कैसे संस्थान
तकशसंगत व्यष््तगत व्यवहाि को प्रिाववत किते हैं।

क) तकशसंगत—ववकल्प संस्थागतवाद मुख्य रूप से अमेरिकी कांग्रेस के आचिण के माहौल


में एक सनसनी के अवलोकन से प्रेरित था, ष्जसे पिं पिागत तकशसंगत-पसंद
अकादभमक की धािणाओं से समझाया नहीं जा सका।

ख) तकशसंगत—ववकल्प संस्थागतवाद व्यावहारिक धािणाओं के एक ववभर्टि सेि को


तनयोष्जत किता है , जैसे कक अभिनेताओं के पास विीयताओं या कायों का एक
तनष्श्चत सेि होता है ।

ग) तकशसंगत—ववकल्प संस्थागतवाद िाजनीतत को संय्


ु त कािश वाई दवु वधाओं की एक
श्रंख
ृ ला के रूप में दे खता है ।

घ) तकशसंगत—ववकल्प संस्थागतवाद अभिनेताओं को उनके व्यष््तत्व-टहत के


अधधकतमकताश के रूप में दे खता है ।

ङ) तकशसंगत—ववकल्प ने ‘अध्येताववृ ि के नए अथशर्ास्त्र’ से फलदायी उधचत उपकिण


तनकाले जो संपवि ववर्ेर्ज्ञों के परिणाम पि जोि दे ते हैं, लेन-दे न की लागतों की मांग
किते हैं।

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तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

1.6.3 समाजर्ास्त्रीय संस्थानवाद

क) यह परििावर्त किता है कक संस्थाएाँ‍कुछ िी हैं जो ‘अथश के फ्रेम’ प्रदान किती हैं जो


प्राकृततक कक्रया को तनदे भर्त किती हैं, एक संस्था मानी जाती हैं। यह ‘संस्थाओं औि
समाज’ के बीच आदर्श उत्थान को तोड़ता है ।

ख) अधधकृत संिचनाओं को सबसे अधधक तकशसंगत औि फलदायी के रूप में दे खा गया


था, औि दिू के संस्थानों के रूप में स्पटि समानता को काम किने में तकशसंगत
कुर्ल होने की आवश्यकता से तनटपाटदत कहा जाता है ।

ग) समाजर्ास्त्रीय संस्थावाटदयों का तकश है कक अध्येताववृ ि लगाताि नई संस्थागत


प्रथाओं को अपनाती है , इसभलए नहीं कक संबंधधत प्रथाएाँ‍ मांगे गए लक्ष्यों की ओि ले
जाने के मामले में अधधक उपयोगी होती हैं, बष्ल्क इसभलए कक नए अभ्यास की तिह
संस्थानों या इसके प्रततिाधगयों की स्वीकायशता या वैधता को बढ़ाता है । सावशजतनक।

घ) समाजर्ास्त्रीय संस्थावाटदयों को संस्थानों औि व्यष््त की कािश वाई के बीच संबंधों की


एक ववभर्टि समझ है ।

ङ) समाजर्ास्त्रीय संस्थागतवाद इसे समझने का एक ववभर्टि तिीका है । समाजर्ास्त्रीय


संस्थावाटदयों का तकश है कक िाईचािा लगाताि नई संस्थागत प्रथाओं को अपनाता है ,
इसभलए नहीं कक पत्रकाि प्रथाएाँ‍मााँगे‍ गए भसिों की ओि ले जाने के मामले में अधधक
फलदायी होती हैं, बष्ल्क इसभलए कक नई प्रथा संघों या उसके प्रततिाधगयों की
स्वीकायशता या वैधता को जनता की नर्जि में बढ़ाती है ।

तीन ों प्रारूप ों के परिणाम

हमािे सामने चुनौती यह पता लगाने की नहीं है कक िाजनीतत के अध्ययन में सबसे अधधक
लागू होने वाला प्रारूप कौन सा है । एक-दस
ू िे से सापेक्ष अलगाव औि ववद्वानों के आदान-
प्रदान की कमी के बावजूद, यटद हम अत्यधधक मान्यताओं को कम महत्त्व दे ते हैं, तो हम
पाते हैं कक वे कई सामान्य आधािों में िाग लेते हैं औि एक प्रारूप का उपयोग किके प्राप्त
अंतदृशष्टि अन्य प्रारूपों की ताककशक सावधानी को गोल या मजबूत कि सकती है । इस प्रकाि,
र्ाष्ब्दक संस्थागतवाद अत्यंत महत्त्वपूणश है । इसके कई तनटकर्ों को तकशसंगत ववकल्प के रूप

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बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

में आसानी से परििावर्त ककया जा सकता है , जबकक इसके साथ ही इसके कुछ अन्य
तनटकर्श िी सामाष्जक संस्थावाद की बात कि सकते हैं। संस्थागतवाद औि िाजनीतत के नए
संस्थानों के दृष्टिकोण के खखलाफ एक बड़ी चुनौती यह है कक यह संस्थानों की िूभमका पि
अधधक जोि दे ता है — औपचारिक या अनौपचारिक, औि कई तिह से संघर्ों औि टहतों को
कम महत्त्व दे ता है ।

कफि िी, नई संस्थावाद औि इसके तीन प्रारूप एक साथ भमलकि ककसी िी समाज में
िाजनीतत के कामकाज में अंतदृशष्टि प्रदान कि सकते हैं।

1.7 परु ानी और नई ऐततहाभसक संस्थावाद : एक तल


ु ना

‘नए’ संस्थागतवादी ‘पुिाने’ संस्थागतवाद की कम से कम तीन ववर्ेर्ताओं के साथ सामान्य


आधाि पाते हैं।

सबसे पहले, दोनों संस्थानों को “िाजनीततक संस्थानों को व्यष््तगत उद्दे श्यों को तनधाशरित
किने, आदे र् दे ने या संर्ोधधत किने औि संस्थागत टहतों के संदिश में स्वायत्त‍रूप से कायश
किने” (माचश औि ऑलसेन 1989 4) के रूप में िाजनीततक ववश्लेर्ण में एक केंिीय िूभमका
दे ते हैं।

दस
ू रा, पिु ानी औि नई दोनों संस्थाएाँ‍ इस र्तश में र्ाभमल हैं कक िाजनीततक संस्थानों के
ऐततहाभसक ववकास पि ववर्ेर् ध्यान टदया जाता है । जैसा कक जेम्स िाइस ने अमेरिकी
िाजनीतत ववज्ञान संघ (1909) में अपने अध्यक्षीय िार्ण में कहा था, “िाजनीततक संस्थान...
वे र्ीर्श ववर्य हैं ष्जनसे हमािा ज्ञान संबंधधत है (औि) प्रत्येक संस्थान को इसके ववकास औि
इसके पयाशविण के माध्यम से अध्ययन ककया जाना चाटहए।”

तीसरा, नए औि पुिाने दोनों संस्थागतवाद एक अस्वािाववक रूप से जबिदस्त िाज्य मानते


हैं ष्जसे एक स्वायि अभिनेता के रूप में वखणशत ककया जा सकता है । वुडिो ववल्सन की िाज्य
की परििार्ा एक “व्यवष्स्थत र्ष््त” के रूप में है ष्जसका “आवश्यक स्नेह अधधकाि है ”,
ष्जस पि “स्वायि अल्पसंख्यक, या स्वायत्त‍बहुमत” का प्रिुत्व हो सकता है , औि जो संपवि
को “ष्जतना चाहें उतना ववतनयभमत कि सकता है ” (1898) 572, 623), ववद्वानों द्वािा हाल
की परििार्ाओं के किीब है जो सामाष्जक ज्ञान के भलए “िाज्य को वापस लाने” की तलार्
में हैं।

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तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

दस
ू िी ओि ‘नए’ संस्थागतवादी ‘पुिाने’ संस्थागतवाद की तनम्नभलखखत ववर्ेर्ताओं के साथ
कुछ अलग आधाि पाते हैं।

पहले, पिु ाने संस्थागत दृष्टिकोण का ध्यान संसद, कायशपाभलका, न्यायपाभलका आटद पि था
औि नया संस्थागत दृष्टिकोण व्यापाि संघ, दबाव समूहों आटद जैसे अनौपचारिक संस्थानों
को लेता है ।

दस
ू रा, हम दे ख सकते हैं कक पुिाने संस्थागत दृष्टिकोण को अधधक समझाया जा सकता है
जबकक नया संस्थागत दृष्टिकोण ववर्ुद्ध रूप से भसद्धांत में है ।

तीसरा, पिु ाना संस्थागत दृष्टिकोण अधधक ष्स्थि है जबकक नया संस्थागत दृष्टिकोण
संस्थागत परिवतशन की गततर्ील प्रकक्रया का ववश्लेर्ण किने में अधधक रुधच िखता है ।

चौथा, पुिाना संस्थागत दृष्टिकोण अन्य मानव ववज्ञान ववधधयों जैसे कानून, इततहास,
समाजर्ास्त्र आटद पि आधारित है जबकक नया संस्थागत दृष्टिकोण खेलों के भसद्धांत पि
केंटित है ।

1.8 नई संस्थावाद और ववकासशील ववश्व

इस ववकासर्ील ववश्व में िाजनीतत को समझने के भलए नया संस्थागतवाद िी लागू होता है ।
हमने दे खा है कक ववश्व बैंक जैसे अंतििाटरीय तनकायों ने ववकास के उद्दे श्यों के भलए धन
आवंटित किते समय ववकासर्ील दतु नया में संस्थानों पि ध्यान केंटित ककया है । संस्थानों की
इस तिह की समझ में प्रमुख समस्या यह थी कक इसने एक तिफ बाह्य सहायता प्राप्त औि
बनावि ककए गए औपचारिक संस्थानों के बीच असहज संबंधों को नजिअंदाज कि टदया औि
दस
ू िी तिफ गहिाई से एम्बेडड
े स्थानीय संस्थानों को।

ववकास भसद्धांत में ववचािधािा में समय के साथ कई बदलाव हुए हैं औि अंतिाशटरीय
साधनों पि, द्ववतीय ववश्व युद्ध के बाद से सिकाि की बदलती अवधािणा सामने आई है
औि तब से इसे ववकास भसद्धांत या आधुतनकीकिण भसद्धांत के रूप में दर्ाशया गया है ।

हम कह सकते हैं कक नया संस्थागतवाद इस बात की अंतदृशष्टिपूणश पिीक्षा प्रदान


किता है कक कैसे कुछ संस्थाएाँ‍ ववकासर्ील दतु नया में िाजनीततक व्यवहाि का कायश किती हैं
औि मागशदर्शन किती हैं जबकक अन्य ऐसा किते हैं। यह हमें सवालों के जवाब दे ने में िी
मदद कि सकता है जैसे औपचारिक संस्थानों की प्रथाओं के संदिश में अनौपचारिक मानदं ड
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बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

्यों औि ककन ष्स्थततयों में र्ष््तर्ाली हैं।

1.9 ववभिन्न ववचारक

जेम्स माचश (1928-2018) और जोहान ऑलसेन (1939): नए संस्थागतवाद के संस्थापक कहे


जा सकते हैं। “द न्यू इंस्िीट्यर्
ू नभलज्म: ऑगशनाइजेर्नल फै्िसश इन पॉभलटिकल लाइफ”
(1984), इसके बाद एक ककताब, रिडडस्कवरिंग इंस्िीट्यर्
ू ंस: द ऑगशनाइजेर्नल बेभसस ऑफ
पॉभलटि्स (1989)। लोकतांबत्रक र्ासन (1995)। उन्होंने तनणशय लेने के भसद्धांत का
‘गािबेज कैन मॉडल’ टदया।

डगलस सी नॉथश (1920-2015) अमेरिकी अथशर्ास्त्री; तकशसंगत ववकल्प संस्थागतवाद


“संस्थाएाँ‍ स्पटि इिादे वाले व्यष््तयों को अधधकतम किने वाली उपयोधगता द्वािा बनाई गई
हैं”; कैसे बाजाि अथशव्यवस्था में संस्थान लेनदे न की लागत।

ववसलयम स्कॉि (1932) अमेरिकी समाजर्ास्त्री, संगिनों औि उनके संस्थागत वाताविण के


बीच संबंध।

पॉल डडमैगगयो (1951) और वाल्िर डब्लल्यू पॉवेल (1951): दोनों अमेरिकी समाजर्ास्त्री;
सांस्कृततक या सामाष्जक संस्थावाद; ववश्वास प्रणाली औि सांस्कृततक ढांचे व्यष््तगत
अभिनेताओं औि संगिनों द्वािा लगाए औि अनक
ु ू भलत ककए जाते हैं।

इस प्रकाि, िूभमकाएाँ‍ बड़े ढााँचे‍ द्वािा तनधाशरित एक बड़े टहस्से के भलए हैं, संस्थागत
समरूपतावाद का भसद्धांत टदया।

1.10 तनष्कषट

संस्थाएाँ‍ तनयम, मानदं ड, पिं पिाएाँ, पिं पिाएाँ‍ हैं, जो नश्वि संगिन की संिचना किती हैं,
व्यष््तगत व्यवहाि को आकाि दे ती हैं औि िाजनीततक प्रकक्रया को प्रिाववत किती हैं औि
परिणाम संस्थागतता संस्थागत दृष्टिकोण से िाजनीतत को समझ िही है ।

र्ुरुआत से ही तुलनात्मक िाजनीतत के भलए संस्थागतवाद सबसे महत्त्वपूणश दृष्टिकोण


िहा है —अिस्तू की 150 िाज्यों के गिन की तुलना; प्लेिो का आदर्श िाज्य का भसद्धांत अिी
िी पिु ाना कानन
ू ी, औपचारिक, प्रामाखणक, वणशनात्मक संस्थागतवाद 1950 के दर्क में
व्यवहाि आंदोलन के चलते लगिग मत
ृ हो गया था। 1960 के दर्क में संस्थागतवाद िाज्य

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तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

औि संस्थानों को 1980 के दर्क में ध्यान में वापस लाने के भलए व्यवहाि की प्रततकक्रया
थी। नई संस्थावाद संस्थानों को धचपकाता है । सामाष्जक आधथशक अधधिचना की संिचना औि
व्यष््तगत िाजनीततक अभिनेता ष्जनके व्यवहाि औि कायों को उन संस्थाओं द्वािा आकाि
टदया जाता है ष्जनमें व्यष््त र्ाभमल होते हैं।

नया संस्थागतवाद, 'पिु ाने' की तुलना में अधधक ताककशक, व्याख्यात्मक औि


अनि
ु वजन्य है । यह कम जातीय औि अधधक सापेक्ष औि प्रासंधगक है ।

िाजनीतत को एक सापेक्ष परिप्रेक्ष्य में समझना आसान नहीं है , लेककन सैद्धांततक या


ताककशक मागशदशषन‍के ककसी रूप का होना उस समझ के भलए महत्त्वपूणश है । इस अध्याय में
चचाश ने िव्य भसद्धांत पि बहुत कम समय बबताया है औि ताककशक दृष्टिकोण पि ध्यान
केंटित ककया है जो अन्वेर्क को चिों के एक सेि के साथ दे ता है ष्जसका उपयोग
तुलनात्मक पिीक्षा के प्रश्नों को हल किने के भलए ककया जा सकता है ।

तुलनात्मक िाजनीतत को िाजनीततक ज्ञान में भसद्धांत-संिचना के केंि में होना


चाटहए, लेककन व्यष््तगत-स्थायी कायों पि जोि दे ने के कािण वह केंिीय ष्स्थतत कुछ हद
तक खो गई है । इसके अलावा, ववचािों की मांग के स्थान पि अमेरिकी िाजनीततक वैज्ञातनकों
के वचशस्व ने समकालीन िाजनीततक ज्ञान में तुलनात्मक र्ोध के संबंध की कुछ हद तक
अष्स्थि सामान्यता पैदा की है । मैं यह तकश दे ना जािी िखूंगा कक दतु नया िाजनीततक घिनाओं
को समझने के भलए एक प्राकृततक प्रयोगर्ाला प्रदान किती है । हम जांचकताशओं के रूप में
उस वाताविण में मूल बातों में हे िफेि नहीं कि सकते हैं, लेककन हम प्राकृततक पिीक्षणों से
उपलब्ध प्रमाण का उपयोग भसद्धांत का पिीक्षण किने औि भसद्धांत बनाने के भलए कि
सकते हैं।

1.11 अभ्यास प्रश्न

तनबंध प्रकार के प्रश्न

• तुलनात्मक िाजनीतत से आप ्या समझते हैं?

• बताएाँ‍औि परििावर्त किें कक नए संस्थागतवाद के तीन प्रकाि ्या हैं?

• नए संस्थागतवाद औि एक ववकासर्ील दतु नया के बीच अंति?

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

बहु ववकल्पीय प्रश्न


1. तल
ु नात्मक िाजनीतत के संस्थागत दृष्टिकोण में ककसका अध्ययन र्ाभमल है ?
क) ववधानमंडल
ख) कायशकािी
ग) न्यायपाभलका
घ) ये सब
2. तल
ु नात्मक िाजनीतत के संस्थागत दृष्टिकोण के समथशक हैं:
क) बेहति
ख) अिस्तू
ग) िाइस
घ) ये सब
3. नव-संस्थावाद के अंतगशत कौन-सी अवधािणाएाँ‍र्ाभमल हैं?
क) संस्थागतवाद
ख) व्यावहारिकता
ग) ‘क’ औि ‘ख’ दोनों
घ) इनमें से कोई नहीं
4. नवसंस्थावाद के ववकास में सवाशधधक योगदान टदया—
क) जोहान पी. ओल्सन
ख) जेम्स जी माकश
ग) ‘क’ औि ‘ख’ दोनों
घ) इनमें से कोई नहीं
5. नव-संस्थावाद की अवधािणा संबंधधत है ।
(क) िाजनीतत ववज्ञान
(ख) अथशर्ास्त्र
(ग) समाजर्ास्त्र

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तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

(घ) ये सिी
6. तनम्न में से कौन तल
ु नात्मक पद्धतत की ववर्ेर्ता नहीं है ?
(क) यह एक वैज्ञातनक पद्धतत है ।
(ख) यह अनुिवजन्य संबंधों की खोज है
(ग) यह एक संकीणश औि ववभर्टि तकनीक है
(घ) यह तुलनात्मक ववश्लेर्ण की एक ववधध है
7. ववश्व में तल
ु नात्मक पद्धतत कब उपयोगी हुई?
(क) प्रथम ववश्व युद्ध के बाद
(ख) द्ववतीय ववश्व यद्
ु ध के बाद
(ग) र्ीत युद्ध के बाद
(घ) उपिो्त सिी
8. तल
ु नात्मक िाजनीततक व्यवस्थाओं में ककन दे र्ों की व्यवस्थाओं का अध्ययन ककया
जाता है ?
(क) ववकभसत दे र्ों की प्रणाली
(ख) एक ववकासर्ील दे र् की प्रणाली
(ग) समाजवादी व्यवस्था
(घ) उपिो्त सिी
9. तनम्नभलखखत में से ककस वर्श तल
ु नात्मक िाजनीतत में संस्कृतत पि जोि टदया जाने
लगा?
(क) 1950 के दर्क में
(ख) 1960 के दर्क में
(ग) 1970 के दर्क की र्ुरुआत में
(घ) 1970 के दर्क के अंत में
10. तुलनात्मक िाजनीतत का अध्ययन ्या है ?
(क) संस्थान औि कायश।

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

(ख) सिी प्रकाि की िाजनीततक गततववधधयां, सिकािी औि गैि-सिकािी औि सिी


िाजनीततक संगिन।
(ग) िाजनीततक प्रकक्रयाएाँ।
(घ) तुलनात्मक िाजनीततक जांच की तकनीक औि तिीके।

1.12 संदिट-सच
ू ी

• ब्लोंडेल, जे. (1996) ‘दे न एंड नाओ: तुलनात्मक िाजनीतत’, िाजनीततक अध्ययन में ।
खंड 47 (1), पटृ ि 152-160।

• पेतनंगिन, एम. (2009) ‘थ्योिी, इंस्िीट्यूर्नल एंड कम्पेिेटिव पॉभलटि्स’, जे. बािा
औि एम. पेतनंगिन (संपा.) कम्पेिेटिव पॉभलटि्स: ए्सप्लेतनंग डेमोक्रेटिक भसस्िम।
सेज प्रकार्न, नई टदल्ली, पटृ ि 13-40।

• हे ग, आि औि एम। है िोप औि मैककॉभमशक, जे (2016) सैद्धांततक दृष्टिकोण


तुलनात्मक।

• सिकाि औि िाजनीतत: एक परिचय। (दसवााँ‍संस्किण) लंदन: पालग्रेव मैकभमलन।

• हॉल, पी, औि िोर्जमेिी सी.आि. िे लि (1996) ‘िाजनीततक ववज्ञान औि तीन नए


संस्थानवाद’, िाजनीततक अध्ययन ए्सएलआईवी, पटृ ि 936-957।

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

इकाई-IV

राजनीततक संस्कृतत: तल
ु नात्मक राजनीतत के अध्ययन के दृष्टिकोण
वैर्ाली मान
अनुवाददका : अंजु

संरचना

1.1 उद्दे श्‍य‍


1.2 परिचय
1.2.1 तुलनात्मक िाजनीतत का‍स्‍
वरूप‍औि कायशक्षेत्र
1.2.2 पािं परिक तल
ु नात्मक िाजनीतत
1.2.3 आधतु नक तल
ु नात्मक िाजनीतत
1.3 िाजनीततक संस्कृतत दृष्टिकोण
1.3.1 िोनाल्ड इंगलहािश —उिि िौततकवाद
1.3.1.1 कमी परिकल्पना
1.3.1.2 समाजीकिण परिकल्पना
1.3.1.3 िौततकवाद बनाम अिौततकवाद
1.3.2 उपसंस्कृतत— डेतनस कवनघ
1.3.2.1 अभिजात वगश बनाम जनसंस्कृतत
1.3.2.2 अभिजात वगश के िीति सांस्कृततक वविाजन
1.3.2.3 पीढ़ीगत उपसंस्कृतत
1.3.3 एंिोतनयो ग्राम्स्की द्वािा आधधपत्य
1.3.3.1 इततहास में मा्सशवादी भसद्धांत में ग्राम्स्की का योगदान
1.3.3.2 आधधपत्य को समझना
1.3.3.3 बुद्धधजीववयों की िूभमका
1.3.3.4 सामाष्जक पाँज
ू ी- पि
ु मैन संदिश
1.4 तनष्‍
कर्ष‍
1.5 अभ्‍
यास‍प्रश्‍न‍
1.6 संदिश-सूची

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

1.1 उद्दे श्य

• इस‍अध्‍
याय‍में ‍ववद्याथी‍िाजनीततक‍संस्कृतत‍औि‍उसके‍ववलर्न्द्‍
न‍दृष्ष्िकोणों‍के‍बािे ‍में ‍
समझ‍सकेंगे।

• वे‍एंिोतनयो‍ग्रामस्की‍द्वािा‍िोनाल्ड‍इंगलहािष ‍के‍उत्ति‍र्ौततकवाद, डेतनस‍के‍उपसंस्कृतत,


आधिपत्य‍के‍बािे ‍में ‍समझ‍सकेंगे।

• ववद्याथी‍पुिमैन‍की‍सामाष्जक‍पाँज
ू ी‍के‍लसद्िांत‍के‍बािे ‍में ‍जान‍सकेंगे।

1.2 पररचय

1.2.1 तुलनात्मक राजनीतत का स्वरूप और कायशक्षेत्र

तल
ु नात्मक िाजनीतत का अथश है ववभिन्न प्रकाि की िाजनीततक व्यवस्थाओं की तल
ु ना किना।
तुलनात्मक िाजनीतत को िाजनीततक भसद्धांत ष्जतना पुिाना अनुर्ासन माना जाता है । अिस्तू को
व्यापक रूप से तुलनात्मक िाजनीतत का जनक माना जाता है ्योंकक वह दतु नया के 158 संववधानों
का तुलनात्मक अध्ययन किने वाले पहले िाजनीततक ववचािक थे। उन्होंने संववधानों का एक ववस्तत

वगीकिण प्रदान ककया।

तुलनात्मक की प्रकृतत औि कायशक्षेत्र को दो चिणों में वविाष्जत ककया जा सकता है —

i. प्रथम ववश्व युद्ध तक- पािं परिक तुलनात्मक िाजनीतत प्रथम ववश्व युद्ध तक- पािं परिक
तुलनात्मक िाजनीतत

ii. द्ववतीय ववश्व युद्ध तक - आधुतनक तुलनात्मक िाजनीतत

पिं पिागत

तुलनात्मक राजनीतत का
दायरा/ववकास

आधुतनक

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तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

1.2.2 पारं पररक तल


ु नात्मक राजनीतत

पािं परिक तल ु नात्मक िाजनीतत को आमतौि पि दायिे में बहुत संकीणश माना जाता है । इसमें भसफश
पष्श्चमी दतु नया के संववधानों का अध्ययन र्ाभमल था। इसके पीछे कािण यह था कक जो दे र्
उपतनवेर् थे उनकी अपनी कोई िाजनीततक व्यवस्था नहीं थी। चाँकू क सिी पष्श्चमी दे र् ववकास के
समान स्तिों पि थे, उनके समाज, जीवन के तिीके, संस्कृतत एक दस
ू िे से बहुत भिन्न नहीं थे। अतः
तुलना का आधाि बहुत संकीणश औि सीभमत था। अधधकतम तुलना केवल सिकाि के रूपों पि ही की
जा सकती है ।

इसभलए, पािं परिक तुलनात्मक िाजनीतत िाजनीतत के अध्ययन के बजाय केवल सिकाि के
अध्ययन पि केंटित थी। चाँकू क‍ संववधान औि सिकाि के रूपों का अध्ययन पािं परिक तुलनात्मक
िाजनीतत का फोकस क्षेत्र था, इसभलए ष्जस पद्धतत का उपयोग ककया गया वह कानूनी संवैधातनक
पद्धतत थी।

हालााँकक, पािं परिक पद्धतत कुछ सीमाओं से ग्रस्त थी जैसे कक यह दायिे में संकीणश थी
्योंकक इसमें गैि पष्श्चमी दे र्ों की िाजनीततक प्रणाभलयों के अध्ययन को र्ाभमल नहीं ककया गया
था। यह ष्स्थि था ्योंकक यह न केवल संववधानों के अध्ययन पि केंटित था, न कक िाजनीतत के
अध्ययन पि। यह अतनवायश रूप से गैि-तल
ु नात्मक िी था ्योंकक तल
ु ना का एकमात्र बबंद ु संववधान
था। इसभलए इसे एथनो-सेंटरक औि पैिोधचयल कहा जाता था।

1.2.3 आधुतनक तुलनात्मक राजनीतत

यह द्ववतीय ववश्व यद्ु ध के बाद र्रू ु हुआ। इसके ववकास का मख्


ु य कािण ववऔपतनवेर्ीकिण की
प्रकक्रया औि तीसिी दतु नया के दे र्ों का उदय था। यह अब व्यापक रूप से स्वीकृत दृष्टिकोण बन
गया कक भसद्धांत औि व्यवहाि, पाि औि संदिश के बीच बहुत अंति था। इसभलए, यह महसूस ककया
गया कक केवल संववधान के अध्ययन के भलए जाना ही पयाशप्त नहीं है । इन समाजों में सामाष्जक-
सांस्कृततक कािकों को समझना िी उतना ही महत्त्वपूणश था।

साथ ही ववकासर्ील क्षेत्रों के अध्ययन की आवश्यकता व्यवहारिक आंदोलनों से मेल खाती है


ष्जसने आधुतनक तुलनात्मक िाजनीतत के अध्ययन को संिव बनाया। नए क्षेत्रों के अध्ययन की
आवश्यकता ने ही ववद्वानों को नए दृष्टिकोणों के भलए नवाचाि किने के भलए प्रेरित ककया।

ववसिन्न प्रकार की आधुतनक तल


ु नात्मक ववगधयााँ‍हैं जैसे—

a. व्यवस्था दृष्टिकोण
b. संिचनात्मक कायाशत्मक दृष्टिकोण

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बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

c. िाजनीततक ववकास दृष्टिकोण


d. िाजनीततक आधुतनकीकिण दृष्टिकोण
e. िाजनीततक संस्कृतत दृष्टिकोण
f. िाजनीततक समाजर्ास्त्र दृष्टिकोण
g. िाजनीततक अथशव्यवस्था दृष्टिकोण

लेककन हम इस पाि योजना के माध्यम से इनमें से एक दृष्टिकोण पि ध्यान केंटित कि िहे हैं—
िाजनीततक संस्कृतत दृष्टिकोण

1.3 राजनीततक संस्कृतत दृक्ष्टकोण

पहले यह समझें कक वास्तव में िाजनीततक संस्कृतत का ्या अथश है । िाजनीततक संस्कृतत लोगों के
मानदं डों, मल्
ू यों औि िाजनीततक अभिववन्यास के समह
ू को संदभिशत किती है । िाजनीततक संस्कृतत
संस्कृतत का एक उपसमूह है । यह िाजनीततक व्यवस्थाओं के संबंध में लोगों के मानदं डों, मूल्यों,
झुकावों को दर्ाशता है ।

ववभिन्न ववचािकों ने िाजनीततक संस्कृतत का ववभिन्न प्रकाि से वणशन ककया है —

• पाई के अनुसाि, िाजनीततक संस्कृतत समाज में िाजनीततक प्रणाली के प्रतत ववश्वासों,
दृष्टिकोणों औि मूल्यों के समग्र पैिनश का वणशन किती है , या िाजनीततक ववज्ञान को आकाि
दे ने वाले मौभलक मूल्यों, िावनाओं औि ज्ञान का योग है ।

• ‘द भसववक कल्चि’ गेबियल आलमंड औि भसडनी वबाश द्वािा 1963 का उत्कृटि अध्ययन है ।
इनके अन्वेर्ण को िाजनीततक संस्कृतत उपागम का प्रथम व्यवष्स्थत अध्ययन कहा जाता है ।

• डेतनयल जे. एल्जार सावशजतनक क्षेत्र में लोगों की िागीदािी पि आधारित िाजनीततक संस्कृतत
के तीन आयामों की बात किते हैं- व्यष््तवादी, नैततकतावादी औि पिं पिावादी। िाजनीततक
संस्कृतत न केवल एक िाटरीय या स्थानीय परिघिना है बष्ल्क इसे वैष्श्वक स्ति पि िी
समझा जा सकता है ।

• वैष्श्वक स्ति के ववश्लेर्ण का एक प्रमुख उदाहिण सैमुअल हं टिंगिन ने अपनी ‘सभ्यताओं का


संघर्श’ में प्रस्तुत ककया है । हं टिंगिन ने उनमें से सात या आि को दे खा—पष्श्चमी, जापानी,
इस्लामी, टहंद,ू स्लाव-रूटढ़वादी, लैटिन अमेरिकी, चीनी औि (संिवतः) अफ्रीकी।

1.3.1 रोनाल्ड इंगलहािश - उत्तर िौततकवाद

आइए अब हम िाजनीततक ववचािक िोनाल्ड इंगलहािश द्वािा प्रदान की गई िाजनीततक संस्कृतत के

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तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

िीति दृष्टिकोण पि नजि डालें। आइए इसका ववश्लेर्ण किते हैं।

िोनाल इंगलहािश एक अमेरिकी िाजनीततक वैज्ञातनक थे ष्जन्होंने तुलनात्मक िाजनीतत के क्षेत्र


में ववर्ेर्ज्ञता हाभसल की थी। िाजनीततक संस्कृतत के बािे में उनका मूल भसद्धांत यह था कक
िाजनीततक संस्कृतत हमेर्ा िाजनीततक व्यवस्था को तनदे भर्त किती है । उन्होंने प्रोिे स्िें िवाद औि
पष्श्चमी लोकतंत्रीकिण के बीच संबंध स्थावपत किने की कोभर्र् की।

यटद हम सवशप्रथम उिि आधतु नकतावाद र्ब्द को दे खें तो हमें पहले इसका अथश समझने की
आवश्यकता है । उिि आधुतनकतावाद र्ब्द िोनाल्ड इंगलहािश द्वािा लोकवप्रय ककया गया था। इसका
मूल रूप से मतलब है व्यष््तगत मल्
ू यों में बदलाव। यह परिवतशन मूल रूप से तब होता है जब
स्वायिता औि आत्म अभिव्यष््त के आधाि पि व्यष््तवादी मूल्यों के एक साथ िौततकवादी, आधथशक
औि िौततक दृष्टिकोण में परिवतशन होता है । यह अध्ययन उन्होंने अपनी पुस्तक द साइलेंि
रिवॉल्यर्
ू न में ककया है । औि ववश्लेर्ण पष्श्चमी समाजों में हुए परिवतशनों पि आधारित था। उन्होंने
अपने काम में कहा कक जैसे-जैसे पष्श्चमी समाज प्रगतत किते गए औि समद् ृ ध होते गए, इन समाजों
में उिि-िौततकवादी मूल्यों में धीिे -धीिे वद्
ृ धध हुई। इसे ही उन्होंने इंििजेनिे र्नल रिप्लेसमें ि कहा।
नए उिि-िौततकवादी मल् ू यों का स्वागत औि आभलंगन किने का यह परिवतशन यव ु ा पीढ़ी में बहुत
अधधक टदखाई दे िहा था।

उनके अनुसाि, इस परिवतशन के होने के भलए, अथाशत ् िौततकवादी से उिि िौततकवादी मूल्यों
में परिवतशन, यह बहुत महत्त्वपूणश है कक मनुटय की िौततक आवश्यकताओं को पहले संतुटि ककया
जाए। ्योंकक जब ये जरूितें पिू ी हो जाती हैं तिी व्यष््त र्ांतत, समद्
ृ धध, ववकास औि आत्मसम्मान
जैसे उिि िौततकवादी मूल्यों की ओि बढ़ने को तैयाि होता है ।

अपनी बात को स्पटि किने के भलए उन्होंने दो मॉडल का प्रयोग ककया—

i. कमी परिकल्पना

ii. समाजीकिण परिकल्पना

1.3.1.1 कमी पररकल्पना

िोनाल्ड इंगलहािश ने माना कक व्यष््त जीवन में कुछ लक्ष्यों का पीछा किते हैं लेककन एक
पदानुक्रभमत क्रम में । इसका मतलब यह है कक पहले व्यष््त जीवन में िौततकवादी लक्ष्यों का पीछा
किते हैं औि जब ये लक्ष्य पूिे हो जाते हैं तिी व्यष््त िौततकवादी से जीवन में िौततकवादी लक्ष्यों
की ओि बढ़ता है । जब लोग स्वतंत्रता औि स्वायिता के भलए प्रेरित किते हैं, तो वे पहले अपनी
बुतनयादी जरूितों को पूिा किने की कोभर्र् किते हैं। वे अपनी िूख, प्यास, र्ािीरिक सुिक्षा जैसी
जरूितों को पूिा किने की कोभर्र् किते हैं। िौततकवादी लक्ष्यों के बाद इन िौततकवादी लक्ष्यों की

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बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

हमेर्ा प्राथभमकता होती है। यह केवल तब होता है जब िौततकवादी लक्ष्यों को पिू ा ककया जाता है ,
तब पोस्ि िौततकवादी लक्ष्य जैसे संबधं धत, सम्मान, औि सौंदयश औि बौद्धधक संतुष्टि तस्वीि में
आती है । जब िौततक लक्ष्य पूिे हो जाते हैं, तब ध्यान अन्य लक्ष्यों की ओि स्थानांतरित हो जाता
है ।

1.3.1.2 समाजीकरण पररकल्पना

िोनाल्ड का दावा है कक िौततक ष्स्थततयों औि मल्


ू यों के बीच यह संबंध तात्काभलक संबंध नहीं है ।
कई सवेक्षणों ने संकेत टदया है कक यह बदलाव आमतौि पि वयस्कता तक पहुंचने पि होता है । ष्जन
लोगों ने आधथशक कमी का सामना ककया है , वे िौततक आवश्यकताओं को उच्च स्ति पि िखना जािी
िखेंगे, जबकक िौततकवादी रूप से संपन्न या समद्
ृ ध लोग इन िौततकवादी जरूितों से व्यष््तगत
सुधाि, सर्ष््तकिण, व्यष््तगत स्वतंत्रता, मानवतावाद, ष्स्थिता पि जोि जैसे मूल्यों की ओि बढ़ने
लगें गे।

िोनाल्ड द्वािा दी गई ये दो परिकल्पनाएाँ‍ हमें बताती हैं कक जब लोग लंबे समय तक


िौततकवादी संपन्नता का अनुिव किते हैं, तिी वे उिि-िौततकवादी मूल्यों की टदर्ा में आगे बढ़ने के
इच्छुक होते हैं। इंगलहािश के अनुसाि, ये परिकल्पनाएाँ‍ एक साथ दर्ाशती हैं कक पष्श्चमी दे र्ों में
व्याप्त समद्
ृ धध औि यद्
ु ध की अनप
ु ष्स्थतत में , यव
ु ा लोग आधथशक सिु क्षा औि िौततक सिु क्षा जैसे
मूल्यों पि कम जोि दे ते हैं, पुिानी पीढ़ी की तुलना में ष्जन्होंने आधथशक संकि के दौि का सामना
ककया है । संकि औि असुिक्षा औि इस तिह सुिक्षा जैसी अवधािणा पि अधधक मूल्य िखते हैं। युवा
आबादी गैि-िौततक जरूितों या ककसी के जीवन की गण
ु विा, स्वतंत्रता आटद जैसे मल्
ू यों को अपनाने
की कोभर्र् किती है ।

िोनाल्ड इंगलहािश अपनी परिकल्पना तैयाि किते समय एक अन्य अमेरिकी मनोवैज्ञातनक
अिाहम मास्लो से काफी प्रिाववत थे। 1973 में मास्लो ने ‘ए थ्योिी ऑफ ह्यूमन मोटिवेर्न’ नामक
पस्
ु तक भलखी। इस पस्
ु तक में , उन्होंने एक ववचाि प्रस्ताववत ककया कक मनटु यों की र्जरूितों का एक
पदानुक्रम होता है । उन्होंने इसे एक वपिाभमड के रूप में धचबत्रत ककया। सबसे नीचे िोजन, पानी जैसी
बुतनयादी मनोवैज्ञातनक जरूितें थीं। अगले स्ति पि सुिक्षा, सुिक्षा, ष्स्थिता, स्वास्थ्य, िोजगाि जैसी
जरूितें थीं। वपिाभमड में स्ति तब तक बढ़ता िहता है जब तक कक यह अंततम स्ति तक नहीं पहुंच
जाता है जहााँ‍ लक्ष्य या आत्म-प्राष्प्त, स्वतंत्रता, िचनात्मकता औि नैततकता जैसी आवश्यकताएं
उििती हैं।

इंगलहािश ने उिि िौततकवाद की अपनी अवधािणा के माध्यम से मास्लो की जरूितों के


पदानुक्रम का समथशन ककया। जब तक लोगों के जीवन में कमी थी, तब तक स्वास्थ्य, िोजगाि,
सुिक्षा जैसी जरूितें हमेर्ा स्वतंत्रता औि िचनात्मकता जैसी जरूितों पि हावी िहें गी। जैसे ही यह
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तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

अिाव समाप्त हुआ या हम यह िी कह सकते हैं कक जैसे ही मनटु य की सबसे मल ू ित


ू आवश्यकताएाँ‍
पूिी हुईं, व्यष््त अपनी आवश्यकताओं को गैि-िौततक मूल्यों जैसे सज
ृ नात्मकता, स्वतंत्रता औि
आत्मबोध की ओि ले जाने लगा।

1.3.1.3 िौततकवाद बनाम उत्तर िौततकवाद

िौततकवाद के नजरिए से अगि हम पूिी दतु नया को दे खें तो धन/धन को एक सकािात्मक मूल्य के
रूप में माना जाता है औि उच्च सामाष्जक ष्स्थतत औि खर् ु ी के साथ जड़
ु ा हुआ है । ये िौततकवादी
मूल्य अ्सि दस ू िे लोगों की खुर्ी को अनदे खा किते हैं औि स्वयं के आध्याष्त्मक ववकास को िी
कम महत्त्व‍दे ते हैं। पहले ककए गए कई अध्ययनों से पता चलता है कक िौततकवादी मूल्यों को अधधक
महत्त्व‍ दे ने वाले लोगों में र्ािीरिक औि मानभसक स्वास्थ्य का स्ति कम होता है । हालााँकक, पोस्ि
िौततकवाद के मामले में ऐसा नहीं है । िोनाल्ड इंगलहािश ने अपने हाल ही में ककए गए र्ोध में कहा
है कक 20वीं सदी के अंत में , वैष्श्वक उिि में यव
ु ा पीढ़ी अब उिि-िौततकवादी मल्
ू यों की ओि बढ़ िही
है । उनके अनुसाि उिि-िौततकवाद ने िाजनीततक सकक्रयतावाद, कट्ििवाद में िी वद्
ृ धध की है औि
अब िाजनीतत को केवल िौततक परिप्रेक्ष्य के बजाय वैचारिक दृष्टिकोण से दे खा जा िहा है ।

1.3.2 उपसंस्कृतत— डेतनस कवनघ

आइए अब एक अन्य ववचािक डेतनस कवनघ द्वािा प्रदान की गई िाजनीततक संस्कृतत को समझने
के भलए एक औि आयाम दे खें। डेतनस कवनघ एक बिटिर् िाजनीततक ववश्लेर्क हैं ष्जन्होंने युद्ध के
बाद की बिटिर् िाजनीतत पि व्यापक रूप से भलखा है । डेतनस कवनघ एक िाजनीततक संस्कृतत को
मूल्यों, ववश्वासों औि दृष्टिकोणों के समूह के रूप में परििावर्त किता है ष्जसके िीति एक
िाजनीततक प्रणाली संचाभलत होती है । िाजनीतत ववज्ञान के क्षेत्र में उनका सबसे बड़ा योगदान
उपसंस्कृतत की अवधािणा का िहा है । िाजनीततक संस्कृतत पि कुछ ववद्वानों के काम ने सझ
ु ाव टदया
कक यह धािणा कक एक िाटर में केवल एक ही प्रकाि की िाजनीततक संस्कृतत मौजूद है , एक पूणश
भमथक थी। यह एक बड़ी संिावना थी कक एक ही िाटरीय िाजनीततक संस्कृतत के बजाय ककसी िी
िाजनीततक व्यवस्था के िीति कई िाजनीततक संस्कृततयााँ‍ एक साथ मौजूद थीं। िाजनीततक संस्कृतत
औि िाजनीततक व्यवस्था के बीच संबंधों को स्पटि रूप से समझने के भलए, सबसे पहले ववभिन्न
उपसंस्कृततयों के बीच होने वाली अंतःकक्रयाओं औि समग्र रूप से िाजनीततक व्यवस्था पि इस
अंतःकक्रया के प्रिाव को समझना बहुत महत्त्वपूणश था। यहााँ‍उपसंस्कृतत र्ब्द बहुत महत्त्वपूणश हो जाता
है । आइए पहले समझें कक इसका ्या मतलब है । उपसंस्कृतत र्ब्द ककसी ववर्ेर् समय में ककसी िी
समाज में ववववध सामाष्जक समूहों औि समुदायों की ववभर्टि पहचान को संदभिशत किता है ।
िाजनीततक संस्कृतत के संदिश में , यह एक ववर्ेर् िाजनीततक व्यवस्था के प्रतत ववभिन्न समुदायों औि
सामाष्जक समूहों द्वािा धािण ककए गए ववभिन्न प्रकाि के व्यवहािों, ववचािों, झक
ु ावों औि दृष्टिकोणों

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

के अष्स्तत्व को संदभिशत किता है ।

डेतनस कवनघ ने अपनी अतत लोकवप्रय कृतत ‘पोभलटिकल कल्चि’ में चाि आधािों की पहचान
की है ष्जन पि उपसंस्कृततयां ववकभसत होती हैं—

i. अभिजात वगश बनाम जन उपसंस्कृतत

ii. अभिजात वगश के िीति सांस्कृततक वविाजन

iii. पीढ़ीगत उपसंस्कृतत

iv. सामाष्जक संिचना`

ये चाि आधाि हमें एक समाज में उप-संस्कृततयों के ववभिन्न सेि प्रदान किते हैं ष्जनके अलग-अलग
सामाष्जक औि िाजनीततक तनटहताथश हैं। ववभिन्न उपसंस्कृतत प्रिागों के बािे में सोचने के इन तिीकों
में से प्रत्येक हमें जांच के नए रूप से परिधचत किाता है । आइए अब इन्हें ववस्ताि से दे खें—

1.3.2.1 असिजात वगश बनाम जनसंस्कृतत

अभिजात वगश बनाम जन संस्कृतत हमें मतिेदों को प्रततबबंबबत किती है , ववर्ेर् रूप से िाजनीततक या
अभिजात वगश वगश औि र्ेर् आबादी के बीच मौजूद व्यवहाि संबंधी मतिेद। अभिजात वगश औि
जनता का अलगाव उपयोगी है । कई ्लाभसक अध्ययनों का तकश है कक अभिजात वगश स्वयं िती में
पािं गत होते हैं, िाजनीततक अभिजात वगश को इस तिह से सामाष्जक बनाते हैं कक वे कुछ व्यवहारिक
पैिनश ववकभसत किते हैं। उदाहिण के भलए अमेरिकी िाजनीततक अभिजात वगश अतनटदश टि मानदं डों औि
तनयमों पि आम सहमतत ववकभसत किते हैं।

1.3.2.2 अभिजात विट के िीतर सांस्कृततक वविाजन

यह मॉडल उन अंतिों पि ध्यान केंटित किता है जो एक ही या ववभिन्न िाजनीततक संस्कृतत के


िीति ववभिन्न अभिजात वगश के बीच मौजूद होते हैं। अभिजनों पि यह जोि इस ववचाि पि आधारित
है कक िाजनीतत का महत्त्वपूणश स्थल संभ्ांतों द्वािा आबाद क्षेत्र है । कुलीन व्यवहाि की प्रकृतत
लोकतांबत्रक िाजनीतत की कायशप्रणाली को समझने की कंु जी है ।

1.3.2.3 पीढीगत उपसंस्कृतत

यह मॉडल िाजनीततक गततर्ीलता पि आधारित है । यहााँ‍ तकश यह है कक अलग-अलग िाजनीततक


संस्कृततयााँ‍ अलग-अलग पीटढ़यों से संबंधधत हैं। िाजनीततक संस्कृतत समय के साथ बदलती है ्योंकक
ववर्ेर् पीटढ़यां अलग-अलग मूल्य सेिों में सामाष्जक हो जाती हैं, उन मल्
ू य सेिों के कब्जे में
िाजनीततक परिप्वता तक पहुंच जाती हैं औि अंततः एक नई पीढ़ीगत िाजनीततक संस्कृतत द्वािा

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तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

प्रततस्थावपत होने के भलए मि जाती हैं। एक िाजनीततक प्रणाली में एजेंडा अंततनशटहत मल्
ू यों से प्राप्त
प्राथभमकताओं के अनुसाि बदलता िहता है औि िाजनीततक दलों औि िाजनीततक संस्थानों को
तदनुसाि उनके अनुकूल होना पड़ता है ।

इस मॉडल को िोनाल्ड इंगलहािश द्वािा प्रदान ककए गए आधुतनकतावाद के बाद के मॉडल से


जोड़ा जा सकता है , ष्जन्होंने कहा कक अंततनशटहत मूल्य पष्श्चमी समाजों में ववर्ेर् रूप से 1970 के
दर्क में पीढ़ीगत बदलाव का अनुिव किते हैं।

1.3.3 एंिोतनयो ग्राम्स्की द्वारा आगधपत्य

ववचािधािा की अवधािणा के आधाि पि, कई मा्सशवादी औि नव मा्सशवादी ववचािकों ने िाजनीतत


के काम किने के तिीके के बािे में अलग-अलग सोचा है । मा्सश औि एंगेल्स ने ककसी िी ऐततहाभसक
यग
ु के प्रमख
ु ववचािों को उन ववचािों के रूप में माना ष्जन्हें वैध घोवर्त ककया गया है । यह माना
जाता है कक सिी िाजनीततक औि सांस्कृततक ववचाि प्रचभलत र्ष््त संबंधों में तनटहत हैं। ग्राम्स्की ने
अपने पािकों को यह समझने के भलए प्रिुत्व की धािणा ववकभसत की कक वास्तव में पाँज
ू ीवादी
समाजों में र्ष््त संबंध कैसे संचाभलत होते हैं।

लेककन पहले यह समझ लें कक एंिोतनयो ग्राम्स्की कौन थे। एंिोतनयो ग्राम्स्की एक इतालवी
मा्सशवादी बद्
ु धधजीवी औि िाजनीततज्ञ थे। मा्सशवादी धचंतन को परिटकृत किने का श्रेय उन्हें ही
जाता है । वे फासीवादी नेता बेतनिो मस
ु ोभलनी के मुखि आलोचक थे। 1926 में उन्हें कैद कि भलया
गया, जहााँ‍वे 1937 में अपनी मत्ृ यु तक िहे ।

उनके काम का र्ीर्शक 'जेल नोिबक


ु ' है औि इसे िाजनीततक भसद्धांत में सबसे बेहतिीन औि
सबसे महत्त्वपूणश योगदान माना जाता है । यह कायश धमश, फासीवाद, इतालवी इततहास, िाटरवाद,
नागरिक समाज, लोकवप्रय संस्कृतत जैसे ववर्यों की ववस्तत
ृ श्रंख
ृ ला को र्ाभमल किता है । ग्राम्स्की
अपने सांस्कृततक आधधपत्य के भसद्धांत के भलए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं। यह भसद्धांत मूल रूप
से यह वणशन किता है कक पाँज
ू ीपतत वगश के रूप में िी जाने जाने वाले अभिजात्य वगश ने पाँज
ू ीवादी
समाजों में सिा बनाए िखने के भलए सांस्कृततक संस्थानों औि प्रतीकों का उपयोग कैसे ककया।
ग्राम्स्की के अनुसाि, पाँज
ू ीपतत वगश ववचािधािा नामक एक उपकिण का उपयोग किके एक आधधपत्य
संस्कृतत ववकभसत किता है । अपना प्रिुत्व बनाए िखने के भलए टहंसा, आधथशक दबाव, बल का प्रयोग
किने के बजाय वे ववचािधािा को अपने सबसे र्ष््तर्ाली हधथयाि के रूप में इस्तेमाल किते हैं। वे
कुछ मूल्यों का भ्म पैदा किते हैं जो उनके अपने टहत के हैं। यह भ्म धीिे -धीिे जनता के बीच
व्याप्त COMMOM SENSE जैसा प्रतीत होता है । औि यही वह प्रकक्रया है ष्जसके द्वािा पूिी
यथाष्स्थतत बनाए िखी जाती है । इस प्रकाि ग्राम्स्की के अनुसाि, पाँज
ू ीवादी व्यवस्था के भलए सहमतत
बनाए िखने के भलए सांस्कृततक आधधपत्य की अवधािणा का उपयोग ककया जाता है । यह सांस्कृततक
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बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

आधधपत्य प्रित्ु वर्ाली वगश द्वािा उन संस्थाओं के माध्यम से उत्पन्न औि पन


ु रुत्पाटदत ककया जाता
है जो धाभमशक, सामाष्जक औि िाजनीततक संस्थानों की अधधिचना का तनमाशण किती हैं।

ग्राम्र्ी के योगदान को मा्सशवादी धचंतन के प्रमख


ु योगदानों में से एक माना जाता है ।
उन्होंने मा्सश की इततहास की व्याख्या की आलोचनात्मक जााँच की। उन्होंने इततहास की कई अन्य
व्याख्याओं की तलार् की औि वे वास्तव में एक अन्य इतालवी ववद्वान बेनेडि
े ो क्रोसे से प्रिाववत
हुए। क्रोस ने इततहास में सांस्कृततक कािकों की िूभमका पि बल टदया है । वे अन्य मा्सशवादी
ववचािकों से अलग थे। इसका कािण मा्सश औि एंगेल्स के आधथशक तनधाशिणवाद को अस्वीकाि किना
है । आधथशक तनधाशिणवाद का अथश है कक आधथशक संबंध ही एकमात्र आधाि है ष्जस पि समाज में अन्य
सिी सामाष्जक औि िाजनीततक व्यवस्थाएाँ‍ आधारित हैं। यह भसद्धांत दावा किता है कक दतु नया के
सिी समाज अलग-अलग आधथशक वगों में वविाष्जत हैं ष्जनकी सापेक्ष िाजनीततक र्ष््त िाजनीततक
व्यवस्था की प्रकृतत से तनधाशरित होती है ।

ग्राम्स्की ने महसूस ककया था कक हो सकता है कक मा्सश ने इततहास में सांस्कृततक कािकों


की िूभमका की उपेक्षा की हो।

1.3.3.1 इततहास के मार्कसशवादी ससद्धांत में ग्राम्स्की का योगदान

मा्सश के इततहास के भसद्धांत की कच्चे आधथशक तनधाशिणवाद के रूप में आलोचना की गई है । इसका
मतलब यह परिटकृत या अद्यतन नहीं ककया गया था। ग्राम्र्ी के योगदान के कािण उनका भसद्धांत
आधथशक तनधाशिणवाद नहीं िहा।

आइए ग्राम्स्की के योगदान को मा्सश मॉडल से तल


ु ना किके समझते हैं—

समाज के मा्सश मॉडल में दो संिचनाएाँ‍र्ाभमल थीं—

i. आधाि
ii. सुपिस्र्चि

आधाि आधथशक संिचना औि िाज्य है ; मीडडया, भर्क्षण संस्थान सप


ु िस्र्चि का टहस्सा हैं। मा्सश के
भलए, अधधिचना अपने आप में एक संिचना नहीं है बष्ल्क आधाि का प्रततबबंब है । इसका अथश है कक
यटद आधथशक ढााँचा बदलता है तो अधधिचना अपने आप बदल जाएगी। इसका मतलब है कक केवल
एक क्रांतत की आवश्यकता है —मूल संिचना या उत्पादन के तिीके में परिवतशन।

ग्राम्स्की ने यहााँ‍एक अलग दृष्टिकोण प्रस्तत


ु ककया— ग्राम्स्की के भलए; आधथशक ढााँचे‍के स्ति
पि लड़ना काफी नहीं है । हमें दो स्तिों पि लड़ना है — बेभसक स्र्चि औि सुपि स्र्चि। अधधिचना
को बदलना अधधक चुनौतीपूणश है । बुतनयादी ढााँचा एक टदन में बदल सकता है लेककन अधधिचना में

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तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

र्ताष्ब्दयााँ‍ लग सकती हैं ्योंकक संस्कृतत, मल्


ू य, मान्यताएाँ‍ बदलने में बहुत समय लगता है । सिी
मा्सशवाटदयों की िााँतत ग्राम्र्ी िी आधथशक ढााँचे को आधाििूत ढााँचा मानते हैं अथाशत ् अंततम तनधाशिक
आधथशक ढााँचा है । हालााँकक, मा्सश के ववपिीत, ग्राम्स्की का सुझाव है कक अधधिचना िी एक संिचना
है । उसने अधधिचना को दो पितों में वविाष्जत ककया है —

i. नागरिक समाज
ii. िाज्य

नागरिक समाज औि िाज्य दोनों भमलकि INTERGRAL STATE का तनमाशण किते हैं।

िाज्य का उद्दे श्य पाँज


ू ीवाद के एक साधन के रूप में कायश किना है । यह पाँज
ू ीपतत वगश के
र्ासन को कायम िखने या जािी िखने में मदद किता है । ग्राम्स्की के अनुसाि, िाज्य उन लोगों के
खखलाफ इस्तेमाल की जाने वाली जबिदस्ती का प्रतततनधधत्व किता है जो पाँज
ू ीवाद को चन
ु ौती दे ना
चाहते हैं।

नागरिक समाज का उद्दे श्य पाँज


ू ीपतत वगश के वचशस्व को कायम िखना िी है । यह आधाि के
बहुत किीब है औि सुिक्षा की पहली पित के रूप में कायश किता है । यह कुर्न या र्ॉक अवर्ोर्क के
रूप में कायश किता है । यटद िाज्य जबिदस्ती का उपयोग किता है , तो नागरिक समाज आकर्शण की
र्ष््त का उपयोग किता है । ग्राम्स्की के अनुसाि नागरिक समाज बुजआ
ुश जीवन र्ैली या मूल्यों के
प्रतत आकर्शण उत्पन्न किने का कायश किता है । आकर्शण की इस र्ष््त के भलए ग्राम्र्ी ने हे गेमनी
र्ब्द का प्रयोग ककया है ।

1.3.3.2 आगधपत्य को समझना

आधधपत्य का र्ाष्ब्दक अथश नेतत्ृ व है । नेता िी किते हैं बल प्रयोग ये दस


ू िों को िी अपनी इच्छा के
अनुसाि काम किने के भलए वववर् किते हैं। हालााँकक, नेता सहमतत उत्पन्न किने के भलए आकर्शण
की र्ष््त पि िी तनिशि किता है । इस प्रकाि, आधधपत्य सैन्य र्ष््त/बल के ववपिीत सॉफ्ि पावि का
प्रतततनधधत्व किता है ष्जसे हाडश पावि कहा जाता है । दोनों में अंति यह है कक यटद र्िीि पि किोि
र्ष््त का प्रयोग ककया जाता है , तो मन पि कोमल र्ष््त का प्रयोग ककया जाता है । अगि हाडश
पावि िोस है तो सॉफ्ि पावि अदृश्य है । अगि हाडश पावि जबिदस्ती पि आधारित है , तो सॉफ्ि पावि
सहमतत पि आधारित है ।

इस प्रकाि पाँज
ू ीवाद अपने पक्ष में सहमतत उत्पन्न किने की क्षमता के कािण जािी है । वह
ववचाि वचशस्ववादी ववचाि बन जाता है ष्जसे सिी सामान्य ज्ञान मानते हैं। यह जीवन का तिीका बन
जाता है । ग्राम्स्की का कहना है कक सहमतत पैदा किने के पीछे सबसे बड़ी ताकत बुद्धधजीववयों की
होती है ।

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बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

1.3.3.3 बद्
ु गधजीववयों की िसू मका

ग्राम्स्की ने बद्
ु धधजीववयों की बहुत अलग व्याख्या की है । प्रत्येक समाज में बद्
ु धधजीववयों को
सवाशधधक सम्मान भमलता है । उन्हें उन लोगों के रूप में दे खा जाता है जो सच बोल सकते हैं।
सामान्य अथश में , वे व्यष््त ष्जन्हें कला, साटहत्य, ववज्ञान, धमश औि अन्य ववर्यों के क्षेत्र में स्वीकाि
ककया जाता है औि उपलष्ब्धयां हाभसल की जाती हैं। यह िी माना जाता है कक बुद्धधजीवी न्यूरल
लोग होते हैं जो सच्चाई को समझने में लगे िहते हैं।

ग्राम्र्ी के अनुसाि, “प्रत्येक व्यष््त बुद्धधजीवी है पिन्तु प्रत्येक व्यष््त बुद्धधजीवी की


िूभमका नहीं तनिाता है ।” प्रत्येक व्यष््त बुद्धधजीवी है ्योंकक प्रत्येक व्यष््त कोई न कोई कायश
किता है । प्रत्येक कायश के भलए र्ािीरिक श्रम के साथ-साथ बौद्धधक श्रम की िी आवश्यकता होती है ।
लेककन प्रत्येक कायश को बौद्धधक कायश के रूप में मान्यता नहीं दी जाती है । ग्राम्स्की के अनुसाि
केवल उसी कायश को बौद्धधक कायश के रूप में मान्यता दी जाती है , ष्जसका उत्पादन प्रणाली में
अद्ववतीय महत्त्व‍है । बुद्धधजीववयों की मुख्य िूभमका ऐसे मूल्यों, जीवन र्ैली को उत्पन्न किके एक
ववर्ेर् प्रणाली का िखिखाव है जो व्यवस्था को बनाए िखने में मदद किती है ।

ग्राम्स्की ने बुद्धधजीववयों को दो प्रकािों में वगीकृत ककया है —

i. जैववक बुद्धधजीवी
ii. पािं परिक बुद्धधजीवी

• ऑगेतनक इंिेले्चुअल्स— जब एक नया प्रिुत्वर्ाली वगश उििता है , तो यह बद्


ु धधजीववयों का
एक वगश अष्स्तत्व में लाता है जो भसस्िम को बनाए िखने की िभू मका तनिाएगा। उदाहिण के
भलए- जब पाँूजीपतत वगश का उदय होता है तो यह इंजीतनयिों, बैंकिों, प्रबंधकों, पयशवेक्षकों,
भसववल सेवकों जैसे बुद्धधजीववयों का एक वगश िी अष्स्तत्व में लाता है जो व्यवस्था को
बनाए िखने में िूभमका तनिाते हैं। उन्हें जैववक कहा जाता है ्योंकक वे संगटित रूप से
प्रमुख वगश से जुड़े हुए हैं यानी उनका कल्याण प्रमुख वगश पि तनिशि है । ग्राम्र्ी के अनुसाि
उनकी प्रमखु िभू मका पाँजू ीवाद की संस्कृतत के तनमाशण में है । वे प्रमख
ु वगश के आधधपत्य को
बनाए िखने में मदद किते हैं। उन्हें प्रमुख वगश के प्रतततनधध िी कहा जाता है ।

• पािं परिक बुद्धधजीवी— इनमें वे व्यष््त र्ाभमल हैं ष्जन्हें नए प्रिुत्वर्ाली वगश के उदय से
पहले बुद्धधजीववयों के रूप में मान्यता दी गई है । उदाहिण के भलए- पष्श्चमी समाजों में , चचश
के वपता पािं परिक बद्
ु धधजीवी थे। चाँकू क वे नए प्रित्ु वर्ाली वगश के साथ संगटित रूप से
उत्पन्न नहीं हुए हैं, वे स्वायि प्रतीत होते हैं।

ग्राम्स्की यहााँ‍ एक बहुत ही टदलचस्प बात सुझाते हैं। उनका कहना है कक मजदिू वगश को बुद्धधजीवी

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तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

वगश के साथ सांिगांि स्थावपत किने का प्रयास किना चाटहए। बद्


ु धधजीववयों के बबना कोई क्रांतत नहीं
है । अब तक श्रभमकों ने तकनीभर्यन, पयशवेक्षक जैसे बुद्धधजीवी पैदा ककए हैं। अब इन कायशकताशओं
को अपने वगश के भलए काम किना चाटहए। उन्हें मजदिू वगश को नेतत्ृ व प्रदान किना चाटहए।
पयशवेक्षक औि तकनीभर्यन श्रभमक वगों के भलए जैववक बुद्धधजीववयों के रूप में कायश कि सकते हैं।

हमें यह समझने की जरूित है कक ग्राम्स्की के ववचािों के िाजनीततक औि व्यावहारिक


तनटहताथश दिू गामी थे ्योंकक उन्होंने उत्पादन के साधनों पि तनयंत्रण के भलए प्रत्यक्ष क्रांततकािी संघर्श
की सीभमत संिावनाओं के प्रतत आगाह ककया था। ग्राम्स्की के ववचािों ने लोकवप्रय भर्क्षा पद्धततयों
औि अनुसंधान ववधधयों को िी प्रिाववत ककया है । आधधपत्य के ववचाि ने नागरिक समाज के बािे में
बहस को िी प्रिाववत ककया है ।

1.3.3.4 सामाष्जक पाँज


ू ी—पुिमैन संदिट

पुिमैन द्वािा सामाष्जक पाँज


ू ी‍ तुलनात्मक िाजनीतत में उनके द्वािा टदए गए सबसे महत्त्वपूणश
योगदानों में से एक है । आइए समझते हैं कक यह अवधािणा ्या है । सामाष्जक पाँज
ू ी‍र्ब्द मूल रूप
से अमेरिकी भसद्धांतकाि जुडसन हनीफान द्वािा गढ़ा गया था। सामाष्जक पाँज
ू ी‍ को उन लोगों के
बीच संबंधों के नेिवकश के रूप में परििावर्त ककया जा सकता है जो ककसी ववर्ेर् समाज में िहते हैं
औि काम किते हैं, जो उस समाज को प्रिावी ढं ग से कायश किने में सक्षम बनाता है । इसमें मल
ू रूप
से अंति वैयष््तक संबंधों, पहचान की साझा िावना, समझ, मानदं डों, मूल्यों, ववश्वास औि सहयोग
के माध्यम से ववभिन्न सामाष्जक समूहों के प्रिावी कामकाज र्ाभमल हैं। इसमें सावशजतनक स्थान,
तनजी संपवि, अभिनेता, मानव पाँज
ू ी‍आटद सटहत मत
ू श औि गैि-मत
ू श दोनों संसाधन र्ाभमल हैं।

पि
ु मैन की सामाष्जक पाँज
ू ी‍की अवधािणा के तीन घिक हैं—

i. नैततक दातयत्व औि मानदं ड


ii. सामाष्जक मूल्य
iii. सोर्ल नेिवकश

पुिमैन का मुख्य ववचाि यह है कक यटद ककसी क्षेत्र में अच्छी तिह से काम किने वाली आधथशक
व्यवस्था औि उच्च स्ति का िाजनीततक एकीकिण है , तो ये सामाष्जक पाँज
ू ी‍ के सफल संचय का
प्रत्यक्ष परिणाम हैं। संयु्त िाज्य में , सामाष्जक पाँज
ू ी में धगिावि के कािण कई सामाष्जक समस्याएाँ‍
उत्पन्न हुई हैं। वह अपनी पुस्तक 'बॉभलंग अलोन' में सामाष्जक पाँूजी‍की अपनी अवधािणा के बािे में
बात किता है । यह इस पुस्तक में है कक पि ु मैन ने एक िोस मामला िखा है कक 1960 के बाद से
अमेरिकी समाजों में सामुदातयक िागीदािी में बहुत धगिावि आई है ।

पुिमैन के भलए, सामाष्जक पाँज


ू ी‍का भसद्धांत यह है कक “सामाष्जक नेिवकश का मूल्य है ”‍औि

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बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

इन कािकों से उत्पन्न बाह्यताओं का व्यापक समद


ु ाय के भलए तनटहताथश है । लोगों के बीच मौजद

सघन नेिवकश जैसे— उनके परिवािों या संगिनों के िीति या यहां तक कक उनके धमश के िीति
व्यवहाि के सकािात्मक रूपों में योगदान किते हैं। ये पािस्परिक संबंध लोगों को एक दस
ू िे पि ििोसा
किने की अनुमतत दे ते हैं औि स्वस्थ सामुदातयक बंधन बनाने में िी मदद किते हैं। इस तिह से
लोग साझा लक्ष्यों का पीछा किने में एक साथ काम कि सकते हैं। यही कािण है कक पािस्परिकता
का हमेर्ा एक महत्त्वपण
ू ‍श तत्त्व‍होता है ।

अब पुिमैन यहीं नहीं रुके। वह आगे सामाष्जक पाँज


ू ी‍के प्रकािों के बीच के अंतिों को ववस्तत

किता है जैसे— सामाष्जक पाँज
ू ी‍को जोड़ना औि सामाष्जक पाँज
ू ी‍को पािना। पूवश का मतलब उन तत्वों
से है जो उन लोगों के बीच संबंध बनाते हैं जो कुछ साझा किते हैं। औि बाद वाले का मतलब उन
तत्वों से है जो बबल्कुल अलग चीजों के बीच संबंध बनाते हैं। पि
ु मैन का कहना है कक यह दस
ू िा है
यानी बिष्जंग सोर्ल कैवपिल जो ववववध समाज में लोगों को जोड़ने का सबसे महत्त्वपूणश कािक बन
जाता है ।

अपनी ककताब ‘बॉभलंग अलोन’‍ में पुिमैन ने कुछ उदाहिण टदए हैं कक कैसे अमेरिकी
सामाष्जक जुड़ाव से ििक गए हैं—

जैसे—‍संघों में औसत सदस्य दि में कमी आई है । ्लब की बैिकों में िाग लेने वाले औसत
अमेरिककयों में िी िािी धगिावि आई है । 1960 के दर्क में चचश से संबंधधत समूहों की सदस्यता में
िी धगिावि आई। दोस्तों से भमलने बाहि जाना कम आम हो गया है , अमेरिकी समाजों में
समाजीकिण बहुत कम हो गया है । अब कम परिवाि एक साथ िोजन कि िहे थे। लीग बॉभलंग में
िागीदािी िी बहुत तेजी से धगिी थी। तो पि
ु मैन के अनुसाि लोग तब िी गें दबाजी कि िहे थे लेककन
अब वे अकेले गें दबाजी कि िहे थे। बड़े स्ति पि, इसका मतलब यह है कक लोग अिी िी अपनी
बुतनयादी गततववधधयों का संचालन कि िहे थे लेककन अब वे केवल उन गततववधधयों में िाग ले िहे थे
्योंकक अमेरिकी समाजों में सामाष्जक िागीदािी को झिका लगा था।

पुिमैन के काम को अमेरिकी समाज में बड़े पैमाने पि िाजनीततक संस्कृतत के अध्ययन में
बेहतिीन योगदान के रूप में सिाहा गया है । सामाष्जक पाँज ू ी‍ पि उनकी अंतदृशष्टि के बहुत व्यापक
तनटहताथश हैं। यूिोपीय दे र्ों में िी नागरिक िागीदािी में समान धगिावि आई है । समाचाि पत्र पढ़ने
वालों, िाजनीततक दलों में िाग लेने वालों की संख्या में कमी आई है ।

अगि हम उस आलोचना को समझने की कोभर्र् किते हैं ष्जसका पुिमैन ने सामना ककया है,
तो यह स्पटि नहीं है कक सकक्रय िागीदािी ने वास्तव में नागरिक क्षेत्रों में सकािात्मक योगदान टदया
है या नहीं।

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तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

1.4 तनष्कषट

इस‍ पाठ‍ ने‍ िाजनीततक‍ व्यवस्था‍ में ‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ के‍ महत्व‍ को‍ सािांलशत‍ ककया।‍ इसमें ‍
उपसंस्कृतत‍के‍अथष‍औि‍परिर्ार्ा‍के‍बािे ‍में ‍चचाष‍की‍गई‍है ‍औि‍ग्रामस्की‍पुिमैन‍औि‍डेतनस‍कवनघ‍
द्वािा‍ददए‍गए‍आिाि‍औि‍सुपि‍स्रक्चि‍के‍ववचाि‍के‍बािे ‍में ‍बताया‍गया‍है ।

1.5 अभ्यास प्रश्न

1. उपसंस्कृतत‍ से‍ आप‍ क्या‍ समझते‍ हैं? उपसंस्कृतत‍ पि‍ डेतनस‍ कवनघ‍ की‍ अविािणा‍ पि‍
तनबंि‍ललर्खए।

2. इततहास‍ औि‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ के‍ माक्सषवादी‍ लसद्िांत‍ में‍ ग्रामस्की‍ के‍ योगदान‍ पि‍
व्याख्या‍कीष्जए।

1.6 संदिट-सच
ू ी

• जौहिी जे.सी., तुलनात्मक िाजनीतत, स्िभलिंग पष्ब्लर्सश प्रा. भलभमिे ड 1892 (1972)

• मकेिि नेि : आधुतनक जटिलताओं को नेववगेि किना, लेख का र्ीर्शक— िॉबिश पुिमैन
सामाष्जक पूाँजी‍पि अंतदृशष्टि। (2022)

• लेख का र्ीर्शक— सामाष्जक पूाँजी‍पि नागरिक परिप्रेक्ष्य का परिचय

• पावि ्यूब : लेख का र्ीर्शक— ग्राम्स्की औि नायकत्व

• लेख का र्ीर्शक— तुलनात्मक िाजनीतत के भलए पााँच वैकष्ल्पक दृष्टिकोण

• लेख का र्ीर्शक— नागरिक संस्कृतत पि टिप्पणी

• ववट्िे डे हनास, लेख का र्ीर्शक— उिि िौततकवाद : वैचारिक अभिववन्यास औि मूल्य,


(2004)

107 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

इकाई-V

तल
ु नात्मक राजनीतत के अध्ययन के उपािम : राजनीततक अथटव्यवस्था
डॉ. िररमा शमाट
अनव
ु ाददका : पारुल सलज
ू ा

संरचना

1.1 उद्दे श्य


1.2 र्ूलमका
1.3 िाजनीततक‍अथषव्यवस्था‍का‍ऐततहालसक‍अवलोकन
1.4 ववकास‍का‍आिुतनकीकिण‍लसद्िांत
1.5 तनर्षिता
1.6 अल्पववकास
1.7 वैष्श्वक‍प्रणाली‍लसद्िांत
1.8 तनष्‍कर्ष
1.9 अभ्‍
यास‍प्रश्न
1.10 संदर्ष-सच
ू ी

1.1 उद्दे श्य

• छात्र‍िाजनीततक‍व्यवस्था‍उपागम‍की‍जानकािी‍से‍अवगत‍होंगे।
• छात्र‍िाजनीतत‍औि‍अथषव्यवस्था‍के‍बीच‍संबंिों‍के‍ववश्लेर्ण‍में‍सक्षम‍होंगे।
• छात्रों‍को‍ववकास‍के‍आितु नकीकिण‍लसद्िांत‍की‍जानकािी‍प्राप्‍त‍होगी।
• छात्र‍तनर्षिता‍लसद्िांत‍के‍अभ्युदय‍के‍कािणों‍का‍पता‍लगा‍पाएाँगे।

1.2 िूभमका

चौदहवीं‍ औि‍अठािहवीं‍ सदी‍के‍बीच‍का‍काल‍पष्श्चमी‍जगत‍में ‍ आधथषक‍बदलाव‍का‍समय‍


था।‍यह‍वह‍समय‍था‍जब‍बाजाि‍ने‍समाज‍के‍सर्ी‍आयामों‍का‍अधिक्रमण‍किना‍शुरू‍कि‍

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

ददया‍ था।‍ लशक्षा‍ जगत‍ में ‍ उदािवाद‍ की‍ शुरुआत‍ तथा‍ कािणों‍ की‍ जााँच‍ के‍ उद्दे श्य‍ से‍
मानवीय‍अष्स्तत्व‍के‍सर्ी‍पहलुओं‍ का‍पता‍लगाने‍ के‍ललए‍गैलीललयो, न्द्यूिन‍औि‍वॉल्िे यि‍
जैसे‍ उल्लेखनीय‍लोगों‍की‍वैज्ञातनक‍क्रांततयों‍के‍आगमन‍से‍ चचष‍ की‍पकड़‍िीिे -िीिे ‍ कमजोि‍
पड़ने‍लगी‍थी।‍हालांकक‍बाजाि‍अर्ी‍अपनी‍प्रािं लर्क‍अवस्था‍में ‍ही‍थे।‍इसके‍कािण‍ववलर्न्द्न‍
समाजों‍ की‍ ष्जममेदारियााँ‍ र्ी‍ चचष‍ से‍ हिकि‍ िाज्य‍ के‍ प्रतत‍ उन्द्मुख‍ होने‍ लगी।‍ तुलनात्मक‍
अध्ययन‍ में‍ िाजनीततक‍ व्यवस्था उपागम‍ संस्था‍ व‍ बाजाि‍ के‍ बीच‍ संबंिों‍ के‍ अध्यन‍ का‍
दृष्ष्िकोण‍है।

1.3 राजनीततक अथटव्यवस्था का ऐततहाभसक अवलोकन

िाजनीततक‍ अथषव्यवस्था‍ का‍ ऐततहालसक‍ दौि‍ पष्श्चमी‍ जगत‍ में ‍ चौदहवीं‍ सदी‍ के‍ आिं र्‍ से‍
लेकि‍ सत्रहवीं‍ सदी‍ के‍ अंत‍ तक‍ चला।‍ तब‍ से‍ लेकि‍ अब‍ तक‍ िाजनीततक‍ अथषव्यवस्था‍
उपागम‍ में ‍ इन‍ ऐततहालसक‍ परिवतषनों‍ को‍ तनमनललर्खत‍ चाि‍ र्ागों‍ में ‍ ववर्क्त‍ ककया‍ जा‍
सकता‍है —

• शास्त्रीय‍उदािवादी‍अथषव्यवस्था‍-‍िाजनीततक‍अथषव्यवस्था‍उपागम‍का‍यह‍चिण‍17वीं‍
सदी‍ से‍ आिं र्‍ हुआ‍ औि‍ 18वीं‍ सदी‍ के‍ मध्य‍ तक‍ दे खा‍ गया।‍ इस‍ दौि‍ के‍ मख्
ु य‍
उदािवादी‍ ववचािक‍ एडम‍ ष्स्मथ‍ (1723-1790), थॉमस‍ माल्थस‍ (1766-1834), डेववड‍
रिकाडो‍ (1772-1823), नासाउ‍ सीतनयि‍ (1790-1864)‍ तथा‍ जीन-बैष्प्िस्ि‍ से‍ (1767-
1832)‍माने‍ जाते‍ हैं।‍इन‍सर्ी‍ववचािकों‍ने‍ बाजाि‍की‍क्षमता‍पि‍जोि‍ददया।‍शास्त्रीय‍
िाजनीततक‍अथषशास्त्री‍बाजाि‍के‍प्रतत‍अपने‍ आशावाद‍एवं‍ तनिाशावाद‍दोनों‍के‍संयोजन‍
के‍ ललए‍ प्रलसद्ि‍ हैं।‍ उदाहिण‍ के‍ ललए, िाजनीततक‍ अथषशास्त्र‍ के‍ प्रबल‍ समथषक‍ एडम‍
ष्स्मथ‍ ने‍ अपनी‍ शास्त्रीय‍ कृतत‍ ‘द‍ वेल्थ‍ ऑफ‍ नेशंस’ (1776)‍ में ‍ ‘अदृश्य‍ हाथ’
(Invisible hand)‍ के‍ ववचाि‍ द्वािा‍ अहस्तक्षेप‍ नीतत‍ (laissez faire) अथवा मुक्त‍
बाजाि‍ (free market) के‍ प्रतत‍ तनष्ठा‍ व्यक्त‍ की।‍ उन्द्होंने‍ व्यष्क्तगत‍ स्वतंत्रता‍ के‍
ववचाि‍ की‍ वकालत‍ की।‍ दस
ू िी‍ ओि, उन्द्होंने‍ यह‍ र्ी‍ कहा‍ कक‍ बाजाि‍ हमेशा‍ अपना‍
प्रर्ाव‍नहीं‍ददखा‍सकता।‍इसी‍तिह, थॉमस‍माल्थस‍औि‍डेववड‍रिकाडो‍ने‍िाज्य‍व‍चचष‍
की‍बजाय‍बाजाि‍की‍र्ूलमका‍पि‍बल‍ददया।‍साथ‍ही, संसािनों‍के‍ववतिण‍के‍संबंि‍में ‍
वे‍कुछ‍संशयवादी‍र्ी‍थे।‍

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

• कट्टरपंथी माक्सटवादी अथटव्यवस्था

शास्त्रीय‍ िाजनीततक‍ अथषव्यवस्था‍ के‍ प्रततकक्रयास्वरूप, िाजनीततक‍ अथषव्यवस्था‍ के‍


इततहास‍ में ‍ एक‍ कट्ििपंथी‍ दृष्ष्िकोण‍ का‍ उदय‍ हुआ।‍ शास्त्रीय‍ उदािवादी‍ अथषव्यवस्था‍
का‍ कट्ििपंथी‍ दृष्ष्िकोण‍ में‍ प्रमुख‍ बदलाव‍ इस‍ कािण‍ से‍ हुआ‍ था‍ कक‍ वे‍ वस्तुतः‍
प्रबुद्िता‍ के‍ मूल्यों‍ (value of enlightenment)‍ को‍ अपनाना‍ चाहते‍ थे।‍ हालााँकक‍
शास्त्रीय‍िाजनीततक‍अथषशाष्स्त्रयों‍ने‍िाज्य‍की‍शष्क्त‍को‍चन
ु ौती‍दे ने‍के‍प्रयास‍ककए‍थे‍
पि‍एक‍आलोनात्मक‍दृष्ष्िकोण‍का‍अर्ाव‍था।‍कट्ििपंधथयों‍की‍मांग‍थी‍कक‍कािणों‍
के‍ पिीक्षण‍ की‍ जााँच‍ के‍ ललए‍ समाज‍ के‍ हि‍ पहल‍ू की‍ समीक्षा‍ की‍ जानी‍ चादहए।‍
प्रािं लर्क‍ कट्ििपंथी‍ या‍ उग्रपंथी‍ ववचािकों‍ में ‍ ववललयम‍ गॉडववन‍ (1756-1836), थॉमस‍
पेन‍(1737-1809), माष्क्वषस‍डी‍कोंडोिसेि‍(1743-1794), िॉबिष ‍ ओवेन‍(1771-1858),
चाल्सष‍फूरियि‍(1772-1837), हे निी‍डी‍सेंि-साइमन‍(1760-1825)‍के‍नाम‍शालमल‍हैं।‍
इन‍ सर्ी‍ ववचािकों‍ ने‍ तनजी‍ संपवत्त‍ के‍ ववचाि‍ की‍ आलोचना‍ किके‍ िाजनीततक‍
अथषव्यवस्था‍के‍इततहास‍में ‍कट्ििपंथी‍दृष्ष्िकोण‍का‍दौि‍शुरू‍ककया।‍कट्ििपंथी‍ववचािों‍
की‍ लोकवप्रयता‍ कालष‍ माक्सष‍ के‍ साथ‍ बढ़ती‍ गई, ष्जन्द्हें ‍ माक्सषवादी‍ ववचाििािा‍ का‍
समथषक‍माना‍जाता‍है ।‍इस‍जमषन‍दाशषतनक‍के‍पाँज
ू ीवाद‍के‍ववचािों‍पि‍जमषन‍दाशषतनक‍
जी.डब्लू.एफ.‍हीगल‍के‍ववचािों‍का‍प्रर्ाव‍था।‍माक्सष‍ ने‍ एक‍नए‍व‍बेहति‍सामाष्जक‍
संगठन‍की‍स्थापना‍में‍पाँज
ू ीवाद‍को‍एक‍आवश्यक‍बुिाई‍के‍रूप‍में ‍प्रकि‍ककया।‍माक्सष‍
की‍ मत्ृ यु‍ के‍ बाद, कई‍ ववचािक‍ उनकी‍ दाशषतनकता‍ से‍ प्रेरित‍ हुए‍ ष्जनमें ‍ ज्याजी‍
प्लेखानोव‍(1854-1938), कालष‍काउत्सकी‍(1854-1938)‍औि‍वी.‍एल.‍लेतनन‍(1870-
1940)‍ के‍ नाम‍ शालमल‍ हैं।‍ हालांकक‍ बाद‍ में ‍ कई‍ कट्ििपंथी‍ ववचािकों‍ का‍ रुख‍
माक्सषवादी‍ववचाििािा‍से‍हिकि‍समाजवाद‍की‍ओि‍हो‍गया।‍इन‍नए‍ववचािाकों‍ने‍एक‍
लोकतांत्रत्रक‍िाजनीततक‍प्रकक्रया‍द्वािा‍पाँज
ू ीवाद‍से‍ समाजवाद‍में ‍ क्रांततकािी‍बदलाव‍पि‍
बल‍ददया।

• नव शास्त्रीय अथटशास्त्र—

वपछले‍ सर्ी‍ प्रबल‍ दृष्ष्िकोण‍ अब‍ त्रुदिपूण‍ष ददखाई‍ दे न‍े लगे‍ औि‍ उन्द्होंने‍ एक‍ वैचारिक‍
शून्द्यता‍ का‍ तनमाषण‍ ककया।‍ इस‍ शून्द्यता‍ को‍ समाप्त‍ किने‍ के‍ ललए‍ िाजनीततक‍
अथषव्यवस्था‍ अध्ययन‍ के‍ इततहास‍ में ‍ अब‍ एक‍ नया‍ दृष्ष्िकोण‍ उर्िना‍ शुरू‍ हुआ।‍
िाजनीततक‍ अथषव्यवस्था‍ में ‍ परिवतषन‍ का‍ श्रेय‍ हमेशा‍ तीन‍ लसद्िांतकािों‍ को‍ जाता‍ है —‍

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

कालष‍ मेंजि‍ (1840-1921), ववललयम‍ स्िे नली‍ जेवन्द्स‍ (1835-1882)‍ औि‍ ललयोन‍
वालिस।‍ इन्द्होंने‍ व्यष्क्तगत‍ उपर्ोक्ता‍ के‍ आचिण‍ औि‍ प्रततस्पिी‍ बाजािों‍ पि‍
िाजनीततक‍ अथषव्यवस्था‍ के‍ ध्यान‍ केंदरत‍ किने‍ पि‍ बल‍ ददया।‍ हालांकक‍ नव‍ शास्त्रीय‍
अथषशास्त्री‍ र्ी‍ कई‍ प्रववृ त्तयों‍ में ‍ बाँि‍ गए।‍ पहले‍ वे‍ थे‍ ष्जन्द्होंने‍ सिकाि‍ के‍ ककसी‍ र्ी‍
हस्तक्षेप‍ का‍ वविोि‍ ककया‍ ओि‍ दस
ू िी‍ प्रववृ त्त‍ के‍ समथषक‍ वे‍ थे‍ ष्जन्द्होंने‍ सिकाि‍ की‍
सकािात्मक‍ र्ूलमका‍ पि‍ बल‍ ददया।‍ कुछ‍ समय‍ बाद‍ सिकाि‍ के‍ समथषक‍ कैष्मिज‍
अथषशास्त्री‍ जॉन‍ मेनाडष‍ कीन्द्स‍ (1883-1946)‍ की‍ कृतत‍ के‍ साथ‍ अधिक‍ लोकवप्रय‍ हो‍
गए।‍उनका‍दावा‍था‍कक‍उन्द्मुक्त‍पाँूजीवाद‍(laissez faire capitalism) स्वार्ाववक‍रूप‍
से‍ अवसाद‍ औि‍ बेिोजगािी‍ को‍ ओि‍ प्रवत्त
ृ ‍ है , इसललए‍ बाजाि‍ के‍ ववकास‍ के‍ ललए‍ एक‍
सकक्रय‍सिकाि‍की‍सख्त‍जरूित‍है ।

1.4 ववकास का आधुतनकीकरण भसद्धांत

ववकास‍का‍आिुतनकीकिण‍लसद्िांत‍पिं पिागत‍समाजों‍के‍आिुतनक‍समाजों‍में ‍ परिवतषन‍की‍


प्रकक्रया‍ को‍ प्रस्तुत‍ किता‍ है ।‍ द्ववतीय‍ ववश्व‍ युद्ि‍ के‍ बाद‍ सामाष्जक‍ ववज्ञान‍ में ‍
आिुतनकीकिण‍के‍लसद्िांत‍का‍बोलबाला‍हो‍गया‍था‍औि‍1991‍में ‍ शीत‍युद्ि‍की‍समाष्प्त‍
पि‍एक‍बाि‍कफि‍फ्ांलसस‍फुकुयामा‍की‍घोर्णा‍ने‍इस‍लसद्िांत‍को‍प्रर्ुत्वशाली‍ष्स्थतत‍प्रदान‍
की।‍ आिुतनकीकिण‍ लसद्िांत‍ के‍ अनुसाि, पिं पिागत‍ समाजों‍ का‍ ववकास‍ तर्ी‍ हो‍ सकता‍ है ‍
जब‍वे‍आिुतनक‍प्रणाललयों‍को‍अपनाएाँगे।‍उदाहिण‍के‍ललए, कोलमैन‍ने‍आिुतनक‍समाजों‍के‍
तीन‍प्रमुख‍लक्षण‍प्रस्तुत‍ककए—‍(अ)‍िाजनीततक‍संिचना‍का‍ववर्ेदीकिण, (ब)‍समानता‍के‍
लोकाचाि‍ सदहत‍ िाजनीततक‍ संस्कृतत‍ का‍ िमषतनिपेक्षीकिण‍ औि‍ (स)‍ समाज‍ की‍ िाजनीततक‍
व्यवस्था‍की‍क्षमता‍को‍प्रोत्साहन।

मैक्स‍वेबि‍औि‍िै ल्कॉि‍पासषन्द्स‍के‍लेखन‍का‍आिुतनकीकिण‍लसद्िांत‍पि‍महत्त्वपण
ू ‍ष
प्रर्ाव‍पड़ा।‍मैक्स‍वेबि‍ने‍आितु नकीकिण‍लसद्िांत‍की‍व्याख्या‍पिं पिागत, ग्रामीण‍एवं‍ कृवर्‍
समाज‍के‍िमषतनिपेक्ष, शहिी‍व‍औद्योधगक‍समाज‍के‍रूपांतिण‍के‍संदर्ष‍ में ‍ ककया‍है ।‍इसी‍
प्रकाि‍ वॉल्‍ि‍ िोस्‍तोव‍ को‍ र्ी‍ आिुतनकीकिण‍ के‍ लसद्िांत‍ के‍ तनमाषण‍ में ‍ एक‍ सवाषधिक‍
प्रर्ावकािी‍ ववचािक‍ माना‍ जाता‍ है ।‍ अपनी‍ पुस्तक‍ ‘द‍ स्िे ष्जस‍ ऑफ‍ इकोनॉलमक‍ ग्रोथ :‍ ए‍
नॉन-कमयतु नस्ि‍ मैतनफेस्िो’ (1960)‍ में ‍ उन्द्होंने‍ ‘ववकास‍ के‍ चिणों’ की‍ संकल्पना‍ को‍ स्पष्ि‍
ककया‍है ।‍उन्द्होंने‍ आितु नकीकिण‍के‍अंततम‍चिण‍तक‍पहुाँचाने‍ के‍ललए‍समाजों‍के‍ववलर्न्द्न‍

111 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

चिणों‍को‍प्रस्तुत‍ककया‍है ।‍िोस्तोव‍के‍अनुसाि, हि‍समाज‍को‍ववकास‍के‍तनमनललर्खत‍पााँच‍


चिणों‍में ‍ववर्ाष्जत‍ककया‍जा‍सकता‍है —

1. परं पराित समाज (Traditional Societies):‍ यह‍ आधथषक‍ ववकास‍ की‍ प्रािं लर्क‍
अवस्था है ‍ जहााँ‍ अथषव्यवस्था‍कृवर्‍पि‍आिारित‍होती‍है ।‍आजीववका‍का‍सािन‍कृवर्‍
औि‍श्रम‍होता‍है ‍तथा‍वैज्ञातनक‍प्रववृ त्त‍का‍अर्ाव‍पाया‍जाता‍है ।‍िोस्तोव‍के‍अनुसाि,
‘‘एक‍ पिं पिागत‍ समाज‍ वह‍ होता‍ है ‍ ष्जसकी‍ संिचना‍ का‍ ववकास‍ सीलमत‍ उत्पादक‍
गततववधियों‍के‍र्ीति‍होता‍है ।‍ये‍ पव
ू -ष न्द्यि
ू ोतनयन‍ववज्ञान‍एवं‍ तकनीक‍पि‍आिारित‍
होते‍ हैं‍ औि‍ बाहिी‍ दतु नया‍ के‍ ललए‍ पव
ू -ष न्द्यि
ू ोतनयन‍ दृष्ष्िकोण‍ िखते‍ हैं।‍ ये‍ समाज‍
तकनीकी‍ औि‍ आिािर्त
ू ‍ संिचनाओं‍ के‍ अर्ाव‍ में ‍ मख्
ु य‍ रूप‍ से‍ कृवर्‍ पि‍ अधिक‍
ववश्वास‍किते‍ हैं‍ औि‍इनकी‍मल्
ू य‍व्यवस्था‍में ‍ ‘लंबे‍ समय‍तक‍र्ाग्यवाद’ का‍प्रर्ाव‍
बना‍ िहा‍ ष्जससे‍ अधिक‍ व्यावसातयक‍ ववकल्प‍ नहीं‍ होते।‍ िोस्तोव‍ चीनी‍ िाजवंशों,
मध्य-पूवी‍ सभ्यताओं‍ औि‍ मध्ययुगीन‍ यूिोप‍ को‍ इन‍ पिं पिागत‍ समाजों‍ की‍ श्रेणी‍ में ‍
िखते‍हैं।

2. औद्योगिकी ववकास के पूवट की दशाओं की अवस्था (Pre-conditon to take off): ‍


ववकास‍ के‍ दस
ू िे ‍ चिण‍ को‍ संक्रमण‍ अवस्था‍ र्ी‍ कहा‍ जाता‍ है ‍ ष्जसमें ‍ ये‍ पूव-ष
न्द्यूिोतनयन‍समाज‍कृवर्‍से‍ उत्पादन‍की‍ओि‍अग्रसि‍होते‍ हैं।‍इस‍अवस्था‍में ‍ समाज‍
में‍ परिवतषन‍ की‍ र्ावना‍ उत्पन्द्न‍ होती‍ है ।‍ इसमें ‍ आधथषक‍ ववकास‍ से‍ पूव‍ष की‍ तैयािी‍
प्रािं र्‍हो‍जाती‍है ।‍इस‍समय‍सामाष्जक‍औि‍आधथषक‍आिािर्त
ू ‍संिचना‍का‍ववकास‍
प्रािं र्‍होता‍है ।‍नई‍औद्योधगक‍तकनीक‍औि‍आितु नक‍ववज्ञान‍को‍अपनाने‍की‍इच्छा‍
हाती‍है ‍ ताकक‍ह्रासमान‍प्रततफल‍से‍ बचा‍जा‍सकते‍ औि‍चक्रवद्
ृ धि‍ब्याज‍से‍ ववकल्प‍
खल
ु ‍सकें‍औि‍लार्‍प्राप्त‍ककया‍जा‍सके।

3. आगथटक उत्थान की अवस्था (take off): आधथषक‍उत्थान‍की‍अवस्था‍तीव्र‍ववकास‍की‍


अल्प‍ अवधि‍ है ।‍ ‘‘आधथषक‍ उत्थान‍ (िे क-ऑफ)‍ के‍ दौिान, नए‍ उद्योगों‍ का‍ तेजी‍ से‍
ववस्ताि‍होता‍है , लार्ांश‍उत्पन्द्न‍होता‍है ‍ ष्जसका‍पुनः‍ककसी‍नई‍संिचना‍में ‍ तनवेश‍
ककया‍ जाता‍ है ‍ औि‍ बदले‍ में ‍ ये‍ नए‍ उद्योग‍ अपने‍ तेजी‍ से‍ ववस्ताि‍ के‍ ललए‍ फैक्री‍
मजदिू ों, सहायक‍ सेवाओं‍ औि‍ अन्द्य‍ उत्पाददत‍ वस्तुओं‍ की‍ जरूितों‍ के‍ कािण‍ शहिी‍
क्षेत्रों‍व‍अन्द्य‍आितु नक‍औद्योधगक‍संयंत्रों‍में ‍ औि‍अधिक‍ववस्ताि‍को‍प्रोत्साहन‍दे ते‍
हैं।’’ आिुतनक‍क्षेत्र‍में‍ववस्ताि‍की‍इस‍समस्त‍प्रकक्रया‍से‍न‍केवल‍उच्च‍दिों‍पि‍आय‍

112 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

में‍ बचत‍होती‍है ‍ ‍बष्ल्क‍आिुतनक‍क्षेत्र‍में ‍ कायषित‍लोगों‍के‍ललए‍र्ी‍बचत‍होती‍है ।‍


फलस्वरूप‍ कुल‍ उत्पादन‍ एवं‍ प्रतत‍ व्यष्क्त‍ उत्पादन‍ दोनों‍ में ‍ वद्
ृ धि‍ होने‍ लगती‍ है ।‍
उद्यलमयों‍ का‍ एक‍ नया‍ वगष‍ उत्पन्द्न‍ होता‍ है ‍ औि‍ वह‍ तनजी‍ क्षेत्र‍ में ‍ तनवेश‍ के‍
ववकासशील‍ प्रवाह‍ का‍ तनदे शन‍ र्ी‍ किता‍ है ।‍ अथषव्यवस्था‍ वपछले‍ अप्रयुक्त‍ प्राकृततक‍
संसािनों‍व‍उत्पादन‍पद्िततयों‍का‍प्रयोग‍किती‍है ।‍(िोस्तोव‍1959)

4. आगथटक वयस्कता की अवस्था (Drive to maturity): िोस्तोव‍ के‍ अनस


ु ाि, इस‍
अवस्था‍को‍प्राप्त‍किने‍ में ‍ काफी‍लंबा‍समय‍लगता‍है ।‍इस‍अवस्था‍में ‍ जीवन‍स्ति‍
ऊपि‍उठता‍है , तकनीक‍का‍प्रयोग‍बढ़ता‍है ‍ तथा‍िाष्रीय‍अथषव्यवस्था‍का‍र्ी‍संपूण‍ष
ववकास‍ होता‍ है ।’’ औपचारिक‍ रूप‍ से‍ हम‍ वयस्कता‍ को‍ एक‍ ऐसे‍ चिण‍ के‍ रूप‍ में ‍
परिर्ावर्त‍कि‍सकते‍हैं‍ष्जसमें ‍ववकास‍की‍प्रकक्रया‍सर्ी‍आधथषक‍कक्रयाकलापों‍में ‍तीव्र‍
होती‍ है ।‍ इसमें‍ ववलर्न्द्न‍ प्रकाि‍ के‍ उद्योगों‍ में‍ आितु नक‍ प्रौद्योधगकी‍ का‍ प्रयोग‍ होने‍
लगता‍है ।‍(िोस्तोव‍1959)

5. अगधकागधक उपिोि की अवस्था (Age of high mass consumption): िोस्तोव‍


के‍ अनुसाि‍ यह‍ ववकास‍ का‍ अंततम‍ चिण‍ है ।‍ संयुक्त‍ िाज्य‍ अमेरिका‍ जैसा‍ दे श‍ इस‍
अवस्था‍में ‍ पहुाँच‍पाया‍है ।‍इस‍चिण‍में ‍ पहुाँचने‍ के‍बाद‍समाज‍ष्स्थि‍आधथषक‍ववकास‍
औि‍ शासन‍ की‍ ओि‍ अपना‍ रुख‍ कि‍ िहे ‍ हैं।‍ इस‍ अवस्था‍ में ‍ आधथषक‍ संवद्
ृ धि‍
सामाष्जक‍कल्याण‍औि‍सुिक्षा‍पि‍र्ी‍बल‍दे ती‍है ।‍इसी‍अवस्था‍में ‍एक‍कल्याणकािी‍
िाज्य‍के‍उदय‍की‍र्ी‍अपेक्षा‍की‍जा‍सकती‍है ।

िोस्तोव‍ के‍ अनुसाि, परिवतषन‍ की‍ प्रकक्रया‍ सिल‍ औि‍ आत्मतनर्षितापण


ू ‍ष है ।‍ आधथषक‍
ववकास‍को, ववकास‍के‍पााँच-स्तिीय‍मॉडल‍द्वािा‍प्राप्त‍ककया‍जा‍सकता‍है ।‍उनका‍कहना‍है ‍
कक‍‘‘सर्ी‍समाजों‍को‍आधथषक‍ववकास‍की‍इन‍पााँच‍अवस्थाओं‍ में ‍ से‍ ककसी‍एक‍अवस्था‍में ‍
िखा‍जा‍सकता‍है ।’’

1958‍ में , एक‍ अन्द्य‍ ववचािक‍ डेतनयल‍ लनषि‍ ने‍ अपनी‍ एक‍ महान‍ कृतत‍ ‘द‍ पालसंग‍
ऑफ‍ रे डडशनल‍ सोसाइिीज’ द्वािा‍ आिुतनकीकिण‍ की‍ अविािणा‍ प्रस्तुत‍ की।‍ लनषि‍ की‍
आिुतनकीकिण‍की‍परिकल्पना‍साक्षिता‍के‍स्ति, शहिीकिण, मीडडया‍की‍र्ागीदािी‍आदद‍पि‍
आिारित‍ थी।‍ सािांश‍ में , हम‍ यह‍ तनष्कर्ष‍ तनकाल‍ सकते‍ हैं‍ कक‍ आिुतनकीकिण‍ एक‍ उच्च‍
स्तिीय‍संिचनात्मक‍ववर्ेदकीिण‍औि‍ववशेर्ीकिण‍है ।‍यह‍कई‍प्रकाि‍से‍झलकता‍है ‍जैसे‍कक‍

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

उत्पादन‍पद्ितत, समाज‍का‍युष्क्तकिण‍तथा‍लोकतंत्र‍की‍ववलर्न्द्न‍गततववधियों‍में‍ नागरिकों‍


की‍ र्ूलमका।‍ ‘‘पिं पिागत‍ समाज‍ को‍ कई‍ प्रकाि‍ से‍ समझा‍ जा‍ सकता‍ है ‍ जैसे‍ कक‍ एक‍
आिोवपत, ववलशष्िवादी, असंगदठत‍ तथा‍ र्ावात्मक‍ स्वरूप‍ की‍ प्रबलता, ववववि‍ कक्रयाकलापों‍
सदहत‍ समतुल्य‍ संिचना, स्थातनक‍ व‍ सामाष्जक‍ गततशीलता‍ की‍ एक‍ अंति‍ स्तिीकिण‍
प्रणाली, अधिकांशतः‍ प्राथलमक‍ आधथषक‍ कक्रयाकलाप, सामाष्जक‍ इकाइयों‍ का‍ एकात्मकता‍ की‍
ओि‍ झुकाव, सत्ता‍ के‍ पिं पिागत, ववलशष्िवादी‍ एवं‍ वंशानुगत‍ स्रोतों‍ के‍ साथ-साथ‍ एक‍
अववर्ेददत‍ िाजनीततक‍ संिचना‍ आदद।‍ इसके‍ ववपिीत, आिुतनक‍ समाज‍ की‍ चारित्रत्रक‍
ववशेर्ताएाँ‍ हैं‍ -‍ उपलष्ब्ि‍ की‍ प्रिानता, सावषर्ौलमकता, ववलशष्ि‍ एवं‍ तिस्थ‍ कायषपद्ितत,
सीलमत‍ कायष‍ किने‍ वाली‍ एकल‍ पारिवारिक‍ संिचना, जदिल‍ औि‍ अत्यधिक‍ ववर्ेददत‍
व्यावसातयक‍ प्रणाली, स्थातनक‍ व‍ सामाष्जक‍ गततशीलता‍ का‍ उच्च‍ स्ति, परिवतषन‍ औि‍
आत्मतनर्षि‍ ववकास‍ की‍ प्रबलता, सत्ता‍ के‍ तकषसंगत-कानूनी‍ स्रोतों‍ सदहत‍ अत्यधिक‍ ववर्ेददत‍
िाजनीततक‍ संिचना‍ आदद।’’ हालांकक‍ आिुतनकीकिण‍ की‍ दृष्ष्ि‍ से‍ ववकास‍ के‍ लसद्िांत‍ का‍
दतु नया‍ र्ि‍ में ‍ स्वागत‍ नहीं‍ ककया‍ गया।‍ ववकासशील‍ दे शों‍ से‍ अनेक‍ ववचािकों‍ ने‍
आिुतनकीकिण‍ लसद्िांत‍ की‍ आलोचना‍ की‍ ष्जसे‍ िाज्यों‍ के‍ ववकास‍ में ‍ एक‍ लसफष‍ एक‍
मुख्यिािा‍लसद्िांत‍माना‍जाता‍है ।‍

आधुतनकीकरण भसद्धांत की आलोचना

• यह‍लसद्िांत‍आंलशक‍रूप‍से‍ पष्श्चमी‍पाँज
ू ीवादी‍दे शों‍की‍ष्स्थतत‍को‍सही‍ठहिाने‍ के‍
इिादे ‍से‍बनाया‍गया‍था।

• आिुतनकीकिण‍लसद्िांत‍पष्श्चमी‍सभ्यता‍को‍श्रेष्ठ‍बताने‍की‍कोलशश‍किता‍है ।

• तनर्षिता‍ लसद्िांत‍ इसके‍ द्वािा‍ अल्पववकलसत‍ दे शों‍ के‍ संसािनों‍ का‍ दोहन‍ किने‍ के‍
ललए‍आलोचना‍किता‍है ।

• यह‍लसद्िांत‍िाज्य‍की‍अल्पववकलसत‍ष्स्थतत‍पि‍बाहिी‍तत्त्वों‍के‍प्रर्ाव‍को‍अनदे खा‍
किता‍है ।

• आिुतनकीकिण‍लसद्िांत‍को‍समाज‍की‍स्थानीय‍संस्कृतत‍के‍ललए‍एक‍खतिे ‍ के‍रूप‍
में‍दे खा‍जाता‍है ।

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

1.5 तनिटरता

ष्जस‍ प्रकाि‍ आिुतनकीकिण‍ लसद्िांत‍ ने‍ पष्श्चमी‍ दे शों‍ के‍ दृष्ष्िकोण‍ से‍ ववकास‍ की‍ व्याख्या‍
की‍उसी‍तिह‍तनर्षिता‍लसद्िांत‍ने‍तत
ृ ीय-ववश्व‍के‍दृष्ष्िकोण‍से‍ववकास‍की‍संकल्पना‍प्रस्तुत‍
की।‍ तनर्षिता‍ लसद्िांत‍ की‍ उत्पवत्त‍ सबसे‍ पहले‍ लैदिन‍ अमेरिका‍ में ‍ हुई।‍ कफि‍ िीिे -िीिे ‍ यह‍
उत्तिी‍अमेरिका‍की‍ओि‍बढ़ने‍लगा।‍1960‍के‍प्रािं र्‍में ‍लैदिन‍अमेरिका‍में ‍आंरे‍गुंडि‍फ्ैंक‍ने‍
तनर्षिता‍लसद्िांत‍का‍पष्श्चमी‍दे शों‍में‍ववकास‍ककया।‍अगि‍हम‍तनर्षिता‍लसद्िांत‍की‍उत्पवत्त‍
के‍ कािणों‍ का‍ ववश्लेर्ण‍ किें ‍ तो‍ इसके‍ तीन‍ कािण‍ तनकलकि‍ सामने‍ आते‍ हैं।‍ पहला,
ईसीएलए‍(ECLA)‍कायषक्रम‍की‍ववफलता‍के‍प्रततकक्रयास्वरूप, दस
ू िा, रूदढ़वादी‍माक्सषवाद‍का‍
संकि‍औि‍तीसिा, संयक्
ु त‍िाज्य‍अमेरिका‍में ‍आिुतनकीकिण‍लसद्िांत‍का‍पतन।

ईसीएलए (संयुक्त राष्र-लैहटन अमेररका के भलए आगथटक आयोि)‍

औद्योगीकिण‍ स्थावपत‍ किने‍ की‍ आशा‍ से‍ ईसीएलए‍ कायषक्रम‍ की‍ शुरुआत‍ सबसे‍
पहले‍ लैदिन‍ अमेरिका‍ में ‍ प्रेत्रबश‍ (1960)‍ के‍ नेतत्ृ व‍ में ‍ की‍ गई।‍ प्रेत्रबश‍ के‍ अनुसाि, लैदिन‍
अमेरिका‍ के‍ अल्पववकास‍ का‍ कािण‍ एकतिफा‍ अंतिाषष्रीय‍ श्रम‍ ववर्ाजन‍ है ।‍ इस‍ योजना‍ के‍
तहत, लैदिन‍ अमेरिका‍ बड़े‍ औद्योधगक‍ केंरों‍ के‍ ललए‍ खाद्य‍ सामग्री‍ व‍ कच्चे‍ माल‍ का‍
उत्पादन‍ किे गा‍ औि‍ बदले‍ में ‍ लैदिन‍ अमेरिका‍ इन‍ औद्योधगक‍ दे शों‍ से‍ औद्योधगक‍ वस्तुएाँ‍
प्राप्त‍किे गा।‍लैदिन‍अमेरिका‍के‍ववकास‍के‍उद्दे श्य‍से‍प्रेत्रबश‍ने‍एकतिफा‍श्रम‍ववर्ाजन‍पि‍
िोक‍ लगाने‍ को‍ कहा‍ औि‍ औद्योगीकिण‍ पि‍ बल‍ ददया।‍ वास्तव‍ में ‍ यह‍ ईसीएलए‍ कायषक्रम‍
सफल‍नहीं‍हो‍पाया‍औि‍इससे‍लैदिन‍अमेरिका‍में ‍आधथषक‍ठहिाव‍औि‍िाजनीततक‍समस्याएाँ‍
उत्पन्द्न‍हो‍गईं।

नव-माक्सटवाद

इस‍ युग‍ में , चीनी‍ व‍ क्यूबा‍ क्रोंततयों‍ की‍ सफलता‍ के‍ साथ‍ ही‍ लैदिन‍ अमेरिका‍ में ‍ पुिानी‍
रूदढ़वादी‍ माक्सषवादी‍ ववचाििािा‍ अब‍ नव-माक्सषवाद‍ की‍ ओि‍ मुड़ने‍ लगी।‍ नव-माक्सषवाद‍ ने‍
ईसीएलए‍ कायषक्रम‍ व‍ आिुतनकीकिण‍ लसद्िांत‍ दोनों‍ की‍ आलोचना‍ किके‍ तनर्षिता‍ लसद्िांत‍
को‍एक‍आिाि‍प्रदान‍ककया।‍नव-माक्सषवाद‍ने‍ सािाज्यवाद‍को‍तत
ृ ीय‍ववश्व‍के‍ववकास‍की‍
दृष्ष्ि‍ से‍ दे खा।‍ अपनी‍ प्रासंधगक‍ जरूितों‍ के‍ ललए‍ इन‍ तत
ृ ीय‍ ववश्व‍ के‍ दे शों‍ में ‍ सामाष्जक‍
क्रांतत‍को‍इन्द्होंने‍जरूिी‍बताया।

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

आधुतनकीकरण स्कूल की आलोचना

1960‍के‍दशक‍में , अनेक‍ववचािकों‍ने‍ आिुतनकीकिण‍लसद्िांत‍की‍मौललक‍प्राक्कल्पना‍की‍


आलोचना‍की।‍फ्ैंक‍के‍अनुसाि, ववकास‍का‍आिुतनकीकिण‍लसद्िांत‍तत
ृ ीय‍ववश्व‍के‍दे शों‍के‍
वपछड़ेपन‍ की‍ ‘आंतरिक‍ व्याख्या’ प्रस्तुत‍ किता‍ है ।‍ आिुतनकीकिण‍ ववचािकों‍ का‍ मानना‍ था‍
कक‍ पिं पिागत‍ संस्कृतत, अत्यधिक‍ आबादी, न्द्यूनतम‍ तनवेश‍ औि‍ उपलष्ब्ि‍ की‍ प्रेिणा‍ का‍
अर्ाव‍तत
ृ ीय‍ववश्व‍के‍दे शों‍में‍ष्स्थि‍समाजों‍का‍कािण‍थे।‍इस‍स्पष्िीकिण‍का‍वविोि‍किने‍
के‍ललए‍फ्ैंक‍ने‍ तत
ृ ीय‍ववश्व‍के‍दे शों‍की‍ओि‍से‍ एक‍बाहिी‍व्याख्या‍प्रस्तत
ु ‍की‍है ।‍उनके‍
अनस
ु ाि, ‘‘तत
ृ ीय‍ववश्व‍के‍दे शों‍को‍प्राचीन, सामंती‍व‍पिं पिागत‍कहना‍गलत‍है ‍क्योंकक‍चीन‍
औि‍र्ाित‍जैसे‍ कई‍दे श‍अठािहवीं‍ सदी‍में ‍ उपतनवेशवाद‍का‍सामना‍किने‍ से‍ पहले‍ ही‍प्रायः‍
ववकलसत‍हो‍चक
ु े ‍थे।’’ अन्द्य‍शब्दों‍में , ‘अववकलसतता‍का‍ववकास’ एक‍प्राकृततक‍ष्स्थतत‍नहीं‍
है ‍ बष्ल्क‍तीसिी‍दतु नया‍के‍दे शों‍में ‍ औपतनवेलशक‍प्रर्त्ु व‍के‍लंबे‍ इततहास‍द्वािा‍तनलमषत‍एक‍
कक्रयात्मक‍ववकृतत‍है ।

तनिटरता का भसद्धांत

ऐसे‍ अनेक‍ ववचािक‍ हैं‍ ष्जन्द्होंने‍ तनर्षिता‍ के‍ लसद्िांत‍ पि‍ कायष‍ ककया‍ है ।‍ इन‍ ववचािकों‍ ने‍
सािाज्यवाद‍की‍संिचना‍के‍र्ीति‍कायष‍ किने‍ वाले‍ आिुतनकीकिण‍लसद्िांत‍के‍मूल‍आिािों‍
को‍अनावत्त
ृ ‍किने‍ का‍प्रयास‍ककया।‍इनमें ‍ डॉस‍सेंिोस‍सबसे‍ सुप्रलसद्ि‍ववचािक‍हैं‍ ष्जन्द्होंने‍
ववश्वव्यापी‍स्ति‍पि‍तनर्षिता‍की‍संपूण‍ष संिचना‍की‍व्याख्या‍प्रस्तुत‍की।‍उनका‍तकष‍था‍कक‍
सर्ी‍दे श‍ववलर्न्द्न‍प्रकाि‍से‍ आपस‍में ‍ जुड़‍े हुए‍हैं।‍अन्द्य‍शब्दों‍में , ववश्व‍दो‍र्ागों‍में ‍ बाँिा‍
हुआ‍है -‍प्रमख
ु ‍(प्रर्ुत्वशाली)‍औि‍आधश्रत‍(तनर्षिशील)।‍इन‍प्रमुख‍औि‍आधश्रत‍दे शों‍के‍बीच‍
संबंि‍ असमान‍ हैं‍ क्योंकक‍ पहले‍ का‍ ववकास‍ दस ू िे ‍ की‍ कीमत‍ पि‍ हुआ‍ है ।‍ िाजीललयन‍
अथषशास्त्री‍ डॉस‍ सेंिोस‍ का‍ तनर्षिता‍ की‍ संकल्पना‍ के‍ प्रततपादन‍ के‍ ललए‍ िाजनीततक‍
अथषव्यवस्था‍ के‍ क्षेत्र‍ में ‍ महत्त्वपूण‍ष योगदान‍ है ।‍ उन्द्होंने‍ एक‍ ‘नई‍ तनर्षिता’ की‍ संकल्पना‍
प्रस्तुत‍ की।‍ उनका‍ तनर्षिता‍ का‍ लसद्िांत‍ 1960‍ के‍ दशक‍ में ‍ काफी‍ चधचषत‍ हुआ।‍ यह‍ वह‍
समय‍ था‍ जब‍ लैदिन‍ अमेरिका‍ के‍ दे श‍ आधथषक‍ ष्स्थिता‍ के‍ ललए‍ संघर्ष‍ कि‍ िहे ‍ थे।‍ डॉस‍
सेंिोस‍ ने‍ इस‍ तनर्षिता‍ को‍ तीन‍ ऐततहालसक‍ रूपों‍ में ‍ अंति‍ ददखाकि‍ स्पष्ि‍ ककया‍ है —‍
औपतनवेलशक‍तनर्षिता, ववत्तीय-औद्योधगक‍तनर्षिता‍औि‍तकनीकी-औद्योधगक‍तनर्षिता।
• औपतनवेभशक तनिटरता—‍ तनर्षिता‍ का‍ पहला‍ ऐततहालसक‍ रूप‍ उपतनवेशों‍ औि‍
उपतनवेशकों‍ के‍ बीच‍ संबंिों‍ में ‍ दे खा‍ जा‍ सकता‍ है ।‍ उपतनवेशवादी‍ हमेशा‍

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

आिुतनकीकिण‍ औि‍ पष्श्चमीकिण‍ के‍ नाम‍ पि‍ उपतनवेशों‍ के‍ सर्ी‍ संसािनों‍ के‍
दरु
ु पयोग‍किने‍ का‍प्रयास‍किते‍ िहे ।‍डॉस‍सेंिोस‍के‍शब्दों‍में , ‘औपतनवेलशक‍िाज्य‍के‍
संयोजन‍से‍प्रर्ुत्वशाली‍दे श‍की‍वार्णष्ज्यक‍औि‍ववत्तीय‍पाँज
ू ी‍का‍दे श‍की‍र्ूलम, खान‍
व‍ मानव‍ संसािनों‍ तथा‍ सोने-चााँदी‍ के‍ तनयाषत‍ एवं‍ उष्णकदिबंिीय‍ उत्पादों‍ आदद‍ पि‍
एकाधिकाि‍स्थावपत‍हो‍गया।’
• ववत्तीय-औद्योगिक तनिटरता—‍उपतनवेशवाद‍की‍समाष्प्त‍के‍बाद‍तत
ृ ीय‍ववश्व‍के‍दे शों‍
की‍ तनर्षिता‍ ववत्तीय-औद्योधगक‍ तनर्षिता‍ की‍ ओि‍ उन्द्मुख‍ हो‍ गई।‍ आधश्रत‍ दे शों‍ की‍
अथषव्यवस्था‍ यूिोपीय‍ दे शों‍ में ‍ उपर्ोग‍ के‍ ललए‍ कच्चे‍ माल‍ औि‍ कृवर्‍ उत्पादों‍ के‍
तनयाषत‍पि‍केंदरत‍हो‍गई।‍
• तकनीकी-औद्योगिक तनिटरता— डॉस‍ सेंिोस‍ के‍ अनुसाि‍ तनर्षिता‍ का‍ तीसिा‍
ऐततहालसक‍ रूप‍ तकनीकी‍ औद्योधगक‍ तनर्षिता‍ के‍ रूप‍ में ‍ दे खा‍ जा‍ सकता‍ है ।‍ इसके‍
अंतगषत‍ ववकासशील‍ दे श‍ अपनी‍ तकनीकी‍ उन्द्नतत‍ के‍ ललए‍ ववकलसत‍ दे शों‍ पि‍ तनर्षि‍
होते‍ हैं।‍ यह‍ रूप‍ द्ववतीय‍ ववश्व‍ यद्
ु ि‍ काल‍ में ‍ उर्िा‍ जब‍ कई‍ अववकलसत‍ दे शों‍ में ‍
औद्योधगक‍ववकास‍की‍शुरुआत‍हुई।

डॉस‍ सेंिोस‍ तनष्कर्ष‍ रूप‍ में ‍ कहते‍ हैं‍ कक‍ ‘अववकलसत‍ दे शों‍ के‍ आधथषक‍ वपछड़ेपन‍ का‍ कािण‍
पाँज
ू ीवाद‍के‍साथ‍एकीकिण‍का‍अर्ाव‍नहीं‍ है ।‍ष्जन‍अध्ययनों‍में ‍ इस‍परिणाम‍का‍समथषन‍
ककया‍ जाता‍ है ‍ वह‍ लसफष‍ एक‍ ववचाििािा‍ है ‍ ष्जसे‍ ववज्ञान‍ का‍ नाम‍ ददया‍ गया‍ है ।‍ इसके‍
बजाय, यह‍अल्पववकास‍ववदे शी‍पाँज
ू ी, ववत्त‍औि‍तकनीक‍पि‍ववकलसत‍दे शों‍का‍एकाधिकारिक‍
तनयंत्रण‍है ।

तनिटरता भसद्धांत की धारणाएाँ

• सोलहवीं‍ सदी‍ से‍ लेकि‍ अब‍ तक‍ पाँज


ू ीवाद‍ के‍ संपूण‍ष इततहास‍ में ‍ तत
ृ ीय‍ ववश्व‍ के‍
अंतगषत‍तनर्षिता‍के‍सामान्द्य‍स्वरूप‍को‍धचत्रत्रत‍किना‍तनर्षिता‍लसद्िांत‍का‍उद्दे श्य‍
है ।

• तनर्षिता‍ लसद्िांत‍ बाहिी‍ कािकों‍ के‍ दृष्ष्िकोण‍ से‍ अल्पववकास‍ को‍ स्पष्ि‍ किने‍ का‍
प्रयास‍ किता‍ है ।‍ आिुतनकीकिण‍ लसद्िांत‍ दावा‍ किता‍ है ‍ कक‍ बेिोजगािी, गिीबी‍ औि‍
अलशक्षा‍जैसे‍ आंतरिक‍कािक‍अल्पववकास‍का‍कािण‍हैं‍ जबकक‍तनर्षिता‍लसद्िांत‍का‍

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

तकष‍ है ‍ कक‍ तत
ृ ीय‍ ववश्व‍ के‍ बाहिी‍ आधश्रत‍ कािक‍ उन्द्हें ‍ ववश्व‍ का‍ अववकलसत‍ र्ाग‍
बनाते‍हैं।‍

• तनर्षिता‍ लसद्िांत‍ एक‍ आधथषक‍ परिप्रेक्ष्य‍ से‍ ववकास‍ के‍ अर्ाव‍ को‍ स्पष्ि‍ किने‍ का‍
प्रयास‍किता‍है ।

• तनर्षिता‍ लसद्िांत‍ को‍ ववकास‍ के‍ अनुरूप ्‍ नहीं‍ समझा‍ जाता‍ क्योंकक‍ दतु नया‍ में ‍ एक‍
वगष‍का‍ववकास‍हमेशा‍दस
ू िे ‍वगष‍के‍शोर्ण‍की‍कीमत‍पि‍ही‍हुआ‍है ।

1.6 अल्पववकास

ववकास‍वह‍प्रकक्रया‍है ‍जो‍समाज‍के‍सर्ी‍क्षेत्रों‍‍में ‍प्रगततशील‍बदलावों‍की‍ओि‍इशािा‍किती‍


है ।‍िाजनीततक‍अथषशाष्स्त्रयों‍तथा‍ववकासवादी-समाजशाष्स्त्रयों‍के‍अधिकांश‍लसद्िांत‍पष्श्चमी‍
दतु नया‍ के‍ संदर्ष‍ में‍ प्रततपाददत‍ ककए‍ गए‍ थे।‍ द्ववतीय‍ ववश्व‍ युद्ि‍ के‍ बाद, ववकास‍ की‍
अविािणा‍अववकलसत‍दे शों‍के‍संदर्ष‍ में ‍ लोकवप्रय‍हुई, पि‍जल्द‍ही‍यह‍आर्ास‍हो‍गया‍कक‍
ववकास‍ से‍ जुड़ी‍ मौजूदा‍ संकल्पनाएाँ‍ अर्ी‍ र्ी‍ ववकासशील‍ दे शों‍ में ‍ गिीबी‍ उन्द्मूलन‍ जैसी‍
समस्याओं‍ से‍ जूझने‍ में ‍ नाकामयाब‍ हैं।‍ ववकास‍ के‍ इन‍ सर्ी‍ लसद्िांतों‍ को‍ फलस्वरूप‍
माक्सषवाद‍एवं‍ लैदिन‍अमेरिका‍में ‍ ववकास‍के‍अनुर्वों‍के‍बीच‍सैद्िांततक‍संवादों‍के‍माध्यम‍
से‍अल्पववकास‍का‍लसद्िांत‍प्रततपाददत‍ककया‍गया।

अपनी‍ कृतत‍ ‘कैवपिललज्म‍ एण्ड‍ अंडिडेवेलपमें ि‍ इन‍ लैदिन‍ अमेरिका’ में ‍ प्रलसद्ि‍
िाजनीततक‍ वैज्ञातनक‍ आंरे‍ गंड
ु ि‍ फ्ैंक‍ स्पष्ि‍ किते‍ हैं‍ कक‍ ववकास‍ औि‍ अववकलसतता‍ ववश्‍व‍
पाँज
ू ीवादी‍ व्‍यवस्‍था‍ में ‍ आंतरिक‍ वविोिार्ासों‍ का‍ परिणाम‍ है ।‍ वे‍ पॉल‍ बिन‍ के‍ लेख‍ ‘द‍
पॉललदिकल‍इकोनॉमी‍ऑफ‍ग्रोथ’ (1957)‍से‍प्रर्ाववत‍थे‍ष्जसमें ‍उन्द्होंने‍संघर्ष‍औि‍शोर्ण‍के‍
आिाि‍ पि‍ पष्श्चमी‍ यिू ोप‍ औि‍ ववश्व‍ के‍ अन्द्य‍ र्ागों‍ के‍ बीच‍ संबंिों‍ की‍ व्याख्या‍ की‍ थी।‍
हालांकक‍आधथषक‍ववकास‍औि‍अववकलसतता‍को‍अलग-अलग‍िखकि‍दे खा‍जाता‍है ‍ पि‍स्वरूप‍
में‍ ये‍ दोनों‍आपस‍में ‍ संबंधित‍हैं।‍एक‍ओि‍का‍ववकास‍हमेशा‍ववश्व‍में‍ ककसी‍दस
ू िे ‍ र्ाग‍के‍
अल्पववकास‍ का‍ कािण‍ बनता‍ है ‍ पि‍ इसका‍ यह‍ अथष‍ नहीं‍ कक‍ ववकास‍ अल्पववकास‍ का‍
ववपयाषय‍है ।‍अन्द्य‍शब्दों‍में , फ्ैंक‍तकष‍दे ते‍ हैं‍ कक‍‘‘ककसी‍ववकास‍से‍ पहले‍ कोई‍अल्पववकास‍
नहीं‍ था।‍ववकास‍औि‍अल्पववकास‍दोनों‍ही‍समान‍ऐततहालसक‍प्रकक्रयाओं‍ द्वािा‍जुड़‍े हुए‍हैं।‍
अल्पववकास‍ उसी‍ ऐततहालसक‍ प्रकक्रया‍ से‍ उत्पन्द्न‍ हुआ‍ था‍ औि‍ अब‍ र्ी‍ हो‍ िहा‍ है ‍ ष्जसने‍
आधथषक‍ववकास‍को‍र्ी‍उत्पन्द्न‍ककया।’’ फ्ैंक‍के‍मुतात्रबक‍ववकास‍की‍अववकलसतता‍के‍प्रमुख‍
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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

कािण‍को‍औपतनवेलशक‍इततहास‍में‍खोजा‍जा‍सकता‍है ।

‘द‍डेवेलपमें ि‍ऑफ‍अंडिडेवेलपमें ि’ नामक‍एक‍लेख‍में, ष्जसने‍ उनकी‍मुख्य‍सोच‍को‍


तनिाषरित‍ककया, फ्ैंक‍ने‍ तकष‍ददया‍कक‍‘अल्पववकास‍पुिातन‍संस्थाओं‍ के‍अष्स्तत्व‍औि‍उन‍
क्षेत्रों‍में‍ पाँज
ू ी‍की‍कमी‍के‍कािण‍नहीं‍ है ‍ जो‍ववश्व‍इततहास‍की‍िािा‍से‍ अलग-अलग‍िहे ‍ हैं‍
इसके‍ववपिीत, अल्पववकास‍उसी‍ऐततहालसक‍प्रकक्रया‍से‍उत्पन्द्न‍हुआ‍था‍औि‍अब‍र्ी‍हो‍िहा‍
है ‍ ष्जसने‍ आधथषक‍ववकास‍को‍र्ी‍उत्पन्द्न‍ककया—स्वयं‍ पाँज
ू ीवाद‍का‍ववकास।’ वे‍ आगे‍ (1967,
1969)‍ कहते‍ हैं‍ कक‍ आितु नकीकिण‍ स्कूल‍ के‍ अधिकांश‍ लसद्िांतों‍ औि‍ ववकासकािी‍ नीततयों‍
को‍ यिू ोपीय‍ व‍ उत्तिी‍ अमेरिकी‍ पाँज
ू ीवादी‍ िाष्रों‍ के‍ ऐततहालसक‍ अनर्
ु वों‍ से‍ अलग‍ िखा‍ गया‍
था।‍इस‍संदर्ष‍में ‍ये‍ पष्श्चमी‍लसद्िांत‍तीसिी‍दतु नया‍के‍दे शों‍की‍मौजद
ू ा‍समस्याओं‍के‍प्रतत‍
हमािी‍समझ‍को‍तनदे लशत‍किने‍में ‍असमथष‍हैं।

अल्पववकभसतता का ववकास : उपग्रह और मेरोपोल

फ्ैंक‍ ने‍ अपने‍ अल्पववकलसतता‍ के‍ ववचािों‍ को‍ पाँज


ू ीवादी‍ व्यवस्था‍ के‍ ववश्लेर्ण‍ द्वािा‍
प्रततपाददत‍ ककया।‍ पाँज
ू ीवादी‍ िाष्र‍ तत
ृ ीय‍ ववश्व‍ के‍ दे शों‍ की‍ अल्पववकलसतता‍ के‍ ललए‍ हमेशा‍
बाहिी‍कािणों‍की‍व्याख्या‍किते‍हैं।‍आिुतनकीकिण‍लसद्िांतकािों‍के‍अनुसाि, अल्पववकास‍के‍
कािणों‍का‍पता‍इन‍तत्त्वों‍से‍ लगाया‍जा‍सकता‍है ‍ -‍पिं पिागत‍संस्कृतत, अत्‍
यधिक‍आबादी,
न्द्यूनतम‍ तनवेश, प्रेिणास्रोत‍ का‍ अर्ाव‍ आदद।‍ इस‍ तकष‍ के‍ वविोि‍ में ‍ फ्ैंक‍ बाहिी‍ व्याख्या‍
प्रस्तुत‍किते‍ हैं।‍उनके‍अनुसाि, ‘आिुतनकीकिण‍का‍लसद्िांत‍अल्पववकलसतता‍की‍इस‍संपूण‍ष
संकल्पना‍ की‍ व्याख्या‍ आंतरिक‍ दृष्ष्िकोण‍ से‍ किता‍ है ।‍ उनका‍ तकष‍ है ‍ कक‍ तत
ृ ीय‍ ववश्व‍ के‍
दे श‍ पष्श्चमी‍ दे शों‍ की‍ तिह‍ समान‍ िास्ते‍ का‍ अनुसिण‍ नहीं‍ कि‍ सकते‍ क्योंकक‍ उन्द्होंने‍
उपतनवेशीकिण‍ के‍ दौिान‍ शोर्ण‍ का‍ अनुर्व‍ ककया‍ है ।‍ ‘सामंतवाद‍ अथवा‍ पिं पिावाद‍ द्वािा‍
तत
ृ ीय‍ववश्व‍के‍दे शों‍के‍वपछड़ेपन‍का‍स्पष्िीकिण‍नहीं‍ ककया‍जा‍सकता।‍वास्तव‍में , तत
ृ ीय‍
ववश्व‍ के‍ दे शों‍ को‍ ‘प्राचीन’, ‘सामंतवादी’ या‍ ‘पिं पिागत’ कहकि‍ चरित्रत्रत‍ किना‍ गलत‍ है ‍
क्योंकक‍ चीन‍ व‍ र्ाित‍ जैसे‍ कई‍ दे श‍ अठािहवीं‍ सदी‍ में ‍ उपतनवेशवाद‍ का‍ अनुर्व‍ किने‍ से‍
पहले‍‘उन्द्नत’ हो‍चुके‍थे।‍वास्तव‍में , उपतनवेशवाद‍के‍ऐततहालसक‍अनुर्व‍औि‍ववदे शी‍वचषस्व‍
ने‍ तत
ृ ीय‍ ववश्व‍ के‍ अनेक‍ ‘उन्द्नत’ दे शों‍ के‍ ववकास‍ को‍ उलि‍ ददया‍ था‍ औि‍ उन्द्हें ‍ आधथषक‍
वपछड़ेपन‍की‍खाई‍में ‍ िकेला‍गया‍था।’ सािािण‍शब्दों‍में , ‘‘अल्पववकलसतता‍के‍ववकास’’ की‍
अविािणा‍ तत
ृ ीय‍ ववश्व‍ के‍ दे शों‍ में ‍ ऐततहालसक‍ औपतनवेलशक‍ प्रर्ुत्व‍ द्वािा‍ अल्पववकास‍ के‍
कािणों‍ को‍ स्पष्ि‍ किने‍ का‍ प्रयास‍ किती‍ है ।‍ ववकलसत‍ औि‍ अल्पववकलसत‍ दे शों‍ के‍ बीच‍

119 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

संबंिों‍ को‍ स्पष्ि‍ किने‍ के‍ ललए, फ्ैंक‍ ने‍ एक‍ ‘मेरोपोललस-सैिेलाइि’ मॉडल‍ (महानगि-उपग्रह‍
मॉडल)‍का‍प्रततपादन‍ककया‍है ।‍यहााँ‍मेरोपोललस‍ववकलसत‍दे शों‍को‍दशाषता‍है ‍जबकक‍सैिेलाइि‍
शब्द‍का‍प्रयोग‍अल्पववकलसत‍दे शों‍के‍ललए‍ककया‍गया‍है ।‍मेरोपोललस‍औि‍सैिेलाइि‍के‍बीच‍
ये‍ संबंि‍ औपतनवेलशक‍ काल‍ में‍ दे खे‍ जा‍ सकते‍ हैं‍ मेरोपोललस‍ दे श‍ (महानगि)‍ सैिेलाइि‍
(उपग्रह)‍से‍ आधथषक‍लार्‍प्राप्त‍किके‍उन्द्हें ‍ वापस‍प्रमुख‍महानगिों‍में ‍ पहुाँचाते‍ थे।‍संसािनों‍
की‍ इस‍ प्रकाि‍ तनकासी‍ के‍ कािण, ये‍ सैिेलाइि‍ दे श‍ वव-उपतनवेशकीिण‍ के‍ बाद‍ र्ी‍ अपनी‍
अथषव्यवस्था‍ को‍ सुदृढ़‍ बनाने‍ में ‍ सक्षम‍ नहीं‍ थे।‍ अन्द्य‍ शब्दों‍ में , ऐसी‍ ऐततहालसक‍ प्रकक्रया‍
ष्जसने‍ पष्श्चमी‍मेरोपोललस‍में ‍ ववकास‍को‍बल‍प्रदान‍ककया, उसी‍प्रकक्रया‍ने‍ समानान्द्ति‍रूप‍
से‍सैिेलाइि‍दे शों‍में‍अल्पववकास‍को‍बढ़ावा‍ददया।‍अपने‍मेरोपोललस-सैिेलाइि‍मॉडल‍में , फ्ैंक‍
ने‍तत
ृ ीय‍ववश्व‍के‍ववकास‍से‍जुड़ीं‍कई‍िोचक‍परिकल्पनाएाँ‍प्रस्ताववत‍की‍हैं-

• परिकल्पना-1: मेरोपोललस‍ववश्व‍जो‍कक‍ककसी‍का‍र्ी‍सैिेलाइि‍नहीं‍है , उसके‍ववकास‍


की‍तुलना‍में ‍ िाष्रीय‍व‍अन्द्य‍अिीनस्थ‍मेरोपोललस‍का‍ववकास‍उनके‍सैिेलाइि‍की‍
ष्स्थतत‍ के‍ आिाि‍ पि‍ सीलमत‍ हो‍ जाता‍ है ।‍ उदाहिण‍ के‍ ललए, फ्ैंक‍ का‍ तकष‍ है ‍ कक‍
तत
ृ ीय‍ववश्व‍के‍दे श‍पष्श्चमी‍दे शों‍की‍र्ााँतत‍औद्योगीकिण‍द्वािा‍समान‍िास्ता‍नहीं‍
अपना‍सकते।

• परिकल्पना-2:‍जब‍सैिेलाइि‍दे शों‍का‍मेरोपोललस‍दे शों‍के‍साथ‍संबंि‍कमजोि‍होता‍है ‍


तो‍वे‍ उच्चतम‍आधथषक‍ववकास‍का‍अनुर्व‍किते‍ हैं‍ उदाहिण‍के‍ललए, फ्ैंक‍ने‍ लैदिन‍
अमेरिका‍के‍अनर्
ु व‍में ‍ पाया‍कक‍जब‍यह‍प्रथम‍यद्
ु ि‍के‍दौिान‍अलगाव‍की‍ष्स्थतत‍
में‍था, तो‍इसने‍औद्योगीकिण‍के‍महान‍स्ति‍का‍अनर्
ु व‍ककया।

• परिकल्पना-3:‍जब‍मेरोपोललस‍अपने‍ संकि‍से‍ तनकल‍जाता‍है ‍ औि‍व्यापाि‍व‍तनवेश‍


की‍पुनः‍शुरुआत‍किता‍है ‍ तब‍व्यवस्था‍में ‍ सैिेलाइि‍को‍दब
ु ािा‍शालमल‍ककया‍जाता‍
है , उस‍ष्स्थतत‍में ‍इन‍क्षेत्रों‍में ‍पुिाना‍औद्योधगकिण‍अवरुद्ि‍हो‍जाता‍है ।

• परिकल्पना-4:‍ वे‍ प्रदे श‍ जो‍ आज‍ सबसे‍ ज्यादा‍ अल्पववकलसत‍ औि‍ सामंतवादी‍ हैं,
उनके‍अतीत‍में‍मेरोपोललस‍के‍साथ‍नजदीकी‍संबंि‍थे।

अल्पववकास के भसद्धांत की मूल धारणाएाँ

• अल्पववकास‍ का‍ लसद्िांत‍ िाजनीततक‍ अथषव्यवस्था‍ के‍ ऐततहालसक‍ परिप्रेक्ष्य‍ से‍


अल्पववकलसतता‍के‍कािणों‍को‍स्पष्ि‍किने‍का‍प्रयास‍किता‍है ।

120 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

• अल्पववकास‍का‍लसद्िांत‍ववकास‍के‍तनर्षिता‍लसद्िांत‍का‍ववस्ताि‍है ।

• मेरोपोललस‍ औि‍ सैिेलाइि‍ दे शों‍ के‍ बीच‍ संबंिों‍ का‍ स्ति‍ सैिेलाइि‍ दे शों‍ में ‍
अल्पववकलसतता‍के‍स्ति‍से‍प्रततत्रबंत्रबत‍होता‍है ।

• सैिेलाइि‍ दे शों‍ से‍ मेरोपोललस‍ दे शों‍ में ‍ संसािनों‍ की‍ तनकासी‍ अल्पववकास‍ के‍ पीछे ‍
प्रमुख‍कािण‍है ।

अल्पववकास के भसद्धांत की आलोचना

• अल्पववकलसतता‍का‍लसद्िांत‍केवल‍आधथषक‍आयाम‍पि‍ध्यान‍केंदरत‍किता‍है ‍ औि‍
अल्पववकास‍के‍अन्द्य‍सामाष्जक, िाजनीततक‍व‍सांस्कृततक‍आयामों‍को‍अनदे खा‍कि‍
दे ता‍है ।

• इस‍ लसद्िांत‍ की‍ पाँज


ू ीवाद‍ के‍ प्रतत‍ अत्यधिक‍ तनिाशावादी‍ दृष्ष्िकोण‍ के‍ कािण‍
आलोचना‍की‍जाती‍है ।

• एक‍ वैश्वीकृत‍ दतु नया‍ में , ककसी‍ र्ी‍ दे श‍ के‍ ललए‍ अलग-थलग‍ िहकि‍ अपनी‍
औद्योधगक‍व्यवस्था‍का‍ववकास‍किना‍संर्व‍नहीं‍है ।

1.7 वैक्श्वक प्रणाली भसद्धांत

वैष्श्वक‍ प्रणाली‍ लसद्िांत‍ का‍ तनकितम‍ संबंि‍ सुप्रलसद्ि‍ ववचािक‍ इमैनुएल‍ वॉलिस्िीन‍ औि‍
समाजशास्त्र‍में ‍1970‍के‍दशक‍में ‍उनकी‍अदमय‍कृतत‍से‍है ।‍वॉलिस्िीन‍की‍कृतत‍उस‍समय‍
के‍मौजूदा‍आिुतनकीकिण‍एवं‍ववकास‍के‍उपागमों‍के‍संदर्ष‍में ‍एक‍वैकष्ल्पक‍व्याख्या‍प्रस्तुत‍
किती‍ है ।‍ ऐसे‍ तीन‍ महत्त्वपूण‍ष बौद्धिक‍ आिाि‍ थे‍ ष्जन्द्होंने‍ वॉलिस्िीन‍ को‍ वैष्श्वक‍ प्रणाली‍
लसद्िांत‍के‍तनमाषण‍के‍ललए‍प्रेरित‍ककया-‍एनाल्स‍स्कूल, माक्सष‍औि‍तनर्षिता‍स्कूल।

वॉलिस्िीन‍के‍अनस
ु ाि, ‘‘वैष्श्वक‍प्रणाली‍लसद्िांत‍एक‍सामाष्जक‍व्यवस्था‍है ‍ ष्जसकी‍
सीमाएाँ, संिचनाएाँ, सदस्य‍ समूह, वैिीकिण‍ के‍ तनयम‍ औि‍ सुसंगतता‍ है ।‍ इसका‍ जीवन‍
पिस्पि‍वविोिी‍शष्क्तयों‍से‍बना‍है ‍जो‍इसे‍तनाव‍से‍एक‍साथ‍िखती‍है‍औि‍इसे‍अलग‍कि‍
दे ती‍ है ।‍ प्रत्येक‍ समूह‍ इसे‍ अपने‍ सलाहकाि‍ के‍ ललए‍ इसे‍ कफि‍ से‍ तैयाि‍ किने‍ की‍ कोलशश‍
किता‍है ।‍इसमें ‍ कुछ‍पहलुओं‍ में ‍ बदलाव‍के‍लक्षण‍होते‍ हैं‍ औि‍कुछ‍में ‍ ष्स्थिता‍के।‍इसके‍
अंतगषत‍ जीवन‍ स्वयं‍ तनदहत‍ होता‍ है ‍ औि‍ इसमें ‍ ववकास‍ की‍ गततशीलता‍ मुख्यतया‍ आंतरिक‍

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

होती‍ है ।’’ (वॉलिस्िीन, प.ृ ‍ 347)‍ एक‍ ववश्व‍ प्रणाली‍ को‍ वॉलिस्िीन‍ ने‍ एक‍ ‘ववश्व‍
अथषव्यवस्था’ की‍संज्ञा‍दी‍है ‍जो‍एक‍िाजनीततक‍केंर‍की‍बजाय‍एक‍बाजाि‍से‍जुड़ी‍होती‍है ।‍
इसमें ‍ दो‍या‍उससे‍ अधिक‍प्रदे श‍र्ोजन, ईंिन‍व‍संिक्षण‍जैसी‍आवश्यकताओं‍ के‍ललए‍एक-
दस
ू िे ‍पि‍तनर्षि‍होते‍हैं‍तथा‍इसमें ‍दो‍या‍दो‍से‍अधिक‍िाज्य‍हमेशा‍के‍ललए‍एक‍एकल‍केंर‍
की‍ उत्पवत्त‍ के‍ बजाय‍ प्रर्ुत्व‍ के‍ ललए‍ प्रततस्पिाष‍ किते‍ िहते‍ हैं।‍ (गोल्डफ्ैंक, 2000)‍ अन्द्य‍
शब्दों‍में , वॉलिस्िीन‍वैष्श्वक‍प्रणाली‍लसद्िांत‍को‍श्रम‍ववर्ाजन‍के‍रूप‍में ‍ परिर्ावर्त‍किते‍
हैं।‍इस‍श्रम‍ववर्ाजन‍को‍शष्क्तयों‍के‍मध्य‍संबंि‍तथा‍समग्र‍रूप‍से‍ ववश्व‍अथषव्यवस्था‍के‍
उत्पादन‍ के‍ संबंिों‍ के‍ रूप‍ में ‍ समझा‍ जा‍ सकता‍ है ।‍ ववश्व‍ प्रणाली‍ लसद्िांत‍ दे शों‍ को‍ दो‍
अंततनषर्ि‍श्रेर्णयों‍में‍ववर्ाष्जत‍किता‍है —‍कोि‍(core)‍औि‍परिधि‍(periphery)।

ववकास के आधतु नकीकरण भसद्धांत के ववस्तार एवं समीक्षा के रूप में वैक्श्वक प्रणाली
भसद्धांत

वैष्श्वक‍प्रणाली‍लसद्िांत‍तनर्षिता‍लसद्िांत‍का‍ववस्तत
ृ ‍रूप‍प्रस्तुत‍किता‍है ‍ ष्जसे‍ ववकास‍के‍
आिुतनकीकिण‍लसद्िांत‍की‍समीक्षा‍के‍रूप‍में ‍ प्रततपाददत‍ककया‍गया‍था।‍तनर्षिता‍लसद्िांत‍
की‍ तिह‍ वॉलिस्िीन‍ आिुतनकीकिण‍ लसद्िांत‍ द्वािा‍ प्रस्तुत‍ ववकास‍ के‍ सावषर्ौलमक‍ पथ‍ को‍
चुनौती‍ दे ते‍ हैं।‍ तथावप‍ तनर्षिता‍ लसद्िांत‍ के‍ ववपिीत, यह‍ लसद्िांत‍ तनमन‍ स्तिीय‍ दे शों‍ में ‍
न्द्यूनतम‍लार्‍की‍पहचान‍किता‍है ।

कोर, पररगध और अधट-पररगध

वॉलिस्िीन‍ के‍ अनस


ु ाि, पाँज
ू ीवाद‍ की‍ उत्पवत्त‍ औि‍ ववस्ताि‍ अंतिाषष्रीय‍ श्रम‍ ववर्ाजन‍ का‍
तनमाषण‍ किता‍ है ‍ जो‍ ववश्व‍ को‍ चाि‍ आधथषक‍ श्रेर्णयों‍ में ‍ ववर्क्त‍ किता‍ है ‍ -‍ कोि, परिधि,
अिष-परिधि‍औि‍बाहिी‍क्षेत्र।

• कोर
➢ कोि‍दे श‍आधथषक‍व‍सैतनक‍रूप‍से‍दतु नया‍के‍सवाषधिक‍शष्क्तशाली‍दे श‍हैं।
➢ ये‍ दे श‍अपने‍ उच्च‍स्तिीय‍कौशल‍व‍औद्योगीकिण‍के‍ललए‍जाने‍ जाते‍ हैं‍ ये‍ दे श‍
उत्पादन‍के‍सािनों‍के‍स्वामी‍हैं।
➢ कोि‍दे श‍उत्पाददत‍वस्तओ
ु ं‍के‍तनमाषता‍हैं।
➢ ये‍दे श‍परििीय‍दे शों‍का‍शासन‍एवं‍शोर्ण‍किके‍महत्त्वपूण‍ष लार्‍प्राप्त‍किते‍हैं।

122 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

➢ ये‍दे श‍परििीय‍दे शों‍के‍घिे लू‍बाजाि‍में ‍अपना‍तैयाि‍माल‍बेचकि‍अधिक-से-अधिक‍


मुनाफा‍कमाते‍हैं।
• पररगध
➢ ये‍दे श‍आधथषक‍व‍सैन्द्य‍दृष्ष्ि‍से‍ववश्व‍के‍हालशए‍पि‍ष्स्थत‍दे श‍हैं।
➢ इन‍दे शों‍में ‍अकुशल‍श्रम‍का‍अधिक‍सैलाब‍है ‍जबकक‍दतु नया‍में ‍उत्पादन‍के‍सािनों‍
का‍न्द्यन
ू तम‍र्ाग‍है ।
➢ ये‍दे श‍कोि‍िाष्रों‍के‍ललए‍कच्चे‍माल‍के‍प्रमुख‍तनयाषतक‍हैं।
➢ इनमें‍सामाष्जक‍असमानता‍का‍स्ति‍काफी‍ऊाँचा‍है ।
➢ ये‍दे श‍कोि‍दे शों‍के‍बहुिाष्रीय‍व‍अंतिाषष्रीय‍तनगमों‍द्वािा‍शोवर्त‍हैं।
• अधट-पररगध
➢ ये‍दे श‍कोि‍औि‍परििीय‍दे शों‍के‍बीच‍मध्यवती‍दे श‍हैं।
➢ ये‍ दे श‍ परिधि‍ दे शों‍ की‍ श्रेणी‍ में ‍ जाने‍ से‍ बचते‍ हैं‍ औि‍ कोि‍ दे शों‍ के‍ बीच‍ अपनी‍
जगह‍बनाने‍का‍हि‍संर्व‍प्रयास‍किते‍हैं।
➢ ये‍ववश्व‍के‍औद्योगीकृत‍औि‍ववकासशील‍दे श‍हैं।‍
➢ इन‍दे शों‍का‍कोि‍औि‍परििीय‍दोनों‍दे शों‍के‍साथ‍आयात‍औि‍तनयाषत‍के‍संबंि‍
हैं।
➢ ववश्व‍व्यवस्था‍में ‍ अिष-परिधि‍दे शों‍का‍अष्स्तत्व‍महत्त्वपूण‍ष है ‍ क्योंकक‍ये‍ कोि‍औि‍
परिधि‍के‍बीच‍अंतस्थ‍की‍र्लू मका‍तनर्ाते‍हैं।
वॉलिस्िीन‍बाहिी‍क्षेत्र‍में ‍ चौथे‍ श्रम‍ववर्ाजन‍की‍र्ी‍बात‍किते‍ हैं।‍ये‍ पाँज
ू ीवादी‍व्यवस्था‍से‍
बाहि‍के‍क्षेत्र‍हैं।‍इन‍क्षेत्रों‍को‍बंद‍व्यवस्था‍र्ी‍कहा‍जाता‍है ।‍20वीं‍सदी‍तक‍रूस‍इसी‍श्रेणी‍
में‍था।

1.8 तनष्कषट

इस‍अध्याय‍में , िाजनीततक‍अथषव्यवस्था‍उपागम‍के‍संदर्ष‍ में ‍ हमने‍ तनमनललर्खत‍सैद्िांततक‍


त्रबंदओ
ु ं‍का‍अध्ययन‍ककया—

• आिुतनकीकिण‍ लसद्िांत‍ ववकास‍ का‍ आशावादी‍ स्वरूप‍ प्रस्तुत‍ किता‍ है ‍ ष्जसमें ‍


अल्पववकलसत‍ िाज्यों‍ को‍ पाँज
ू ीवाद‍ के‍ अंततम‍ चिण‍ तक‍ पहुाँचने‍ के‍ ललए‍ ववलर्न्द्न‍

123 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

चिणों‍से‍ होकि‍गुजिना‍पड़ता‍है ।‍ववकलसत‍दे श‍इन‍चिणों‍से‍ बहुत‍पहले‍ ही‍गज


ु ि‍
चुके‍हैं।

• तनर्षिता‍लसद्िांत‍वह‍पहला‍लसद्िांत‍था‍ष्जसने‍ ववकास‍के‍आिुतनकीकिण‍लसद्िांत‍
के‍इस‍आिाि‍की‍आलोचना‍की‍जो‍ककसी‍दे श‍की‍अल्पववकलसतता‍के‍ललए‍आंतरिक‍
कािकों‍ को‍ ष्जममेदाि‍ मानता‍ है ।‍ दस
ू िी‍ ओि‍ तनर्षिता‍ लसद्िांत‍ का‍ दावा‍ है ‍ कक‍
अल्पववकलसतता‍ का‍ ववश्लेर्ण‍ बाहिी‍ कािकों‍ के‍ आिाि‍ पि‍ ककया‍ जाना‍ चादहए‍ जो‍
तत
ृ ीय‍ववश्व‍के‍दे शों‍को‍दतु नया‍के‍दस
ू िे ‍दे शों‍पि‍तनर्षि‍बनाते‍हैं।‍

• ववकास‍की‍अल्पववकलसतता‍की‍संकल्पना‍प्रलसद्ि‍िाजनीततक‍अथषशास्त्री‍ ‘आंरे‍ गुंडि‍


फ्ैंक’ द्वािा‍ प्रस्तुत‍ की‍ गई।‍ उनके‍ अनुसाि, ‘अल्पववकलसतता‍ के‍ ववकास’ को‍ तत
ृ ीय‍
ववश्व‍ के‍ दे शों‍ में ‍ ऐततहालसक‍ औपतनवेलशक‍ आधिपत्य‍ द्वािा‍ अल्पववकास‍ के‍ कािणों‍
को‍ जानकि‍ स्पष्ि‍ ककया‍ जा‍ सकता‍ है ।‍ ववकलसत‍ औि‍ ववकासशील‍ दे शों‍ के‍ बीच‍
संबंिों‍ को‍ समझाने‍ के‍ ललए‍ फ्ैंक‍ ने‍ ‘मेरोपोललस-सैिेलाइि’ मॉडल‍ का‍ प्रततपाददन‍
ककया।‍ यहााँ‍ मेरोपोललस‍ का‍ अथष‍ ववकलसत‍ दे श‍ है ‍ औि‍ सैिेलाइि‍ शब्द‍ का‍ प्रयोग‍
अल्पववकलसत‍दे शों‍के‍ललए‍ककया‍गया‍है ।

• तनर्षिता‍ लसद्िांत‍ जैसे‍ वैष्श्वक‍ प्रणाली‍ लसद्िांत‍ का‍ सुझाव‍ है ‍ कक‍ संपन्द्न‍ दे श‍ दस
ू िे ‍
दे शों‍ से‍ लार्‍ उठाते‍ हैं।‍ हालांकक‍ यह‍ मॉडल‍ वैष्श्वक‍ प्रणाली‍ में ‍ तनमन‍ स्तिीय‍ दे शों‍
द्वािा‍न्द्यूनतम‍लार्‍की‍पहचान‍किाता‍है ।‍समाजशास्त्री‍इमेनुएल‍वॉलिस्िीन‍द्वािा‍
प्रततपाददत‍ लसद्िांत‍ कहता‍ है ‍ कक‍ एक‍ दे श‍ का‍ पाँज
ू ीवादी‍ ववश्व‍ व्यवस्था‍ के‍ साथ‍
एकीकिण‍यह‍तनिाषरित‍किता‍है ‍कक‍उस‍दे श‍का‍ककतना‍आधथषक‍ववकास‍हुआ‍है ।

1.9 अभ्यास प्रश्न

स्व-मूल्यांकन प्रश्न

1. तुलनात्मक‍िाजनीतत‍के‍अध्ययन‍में ‍ िाजनीततक‍अथषव्यवस्था‍उपागम‍की‍प्रासंधगकता‍
पि‍प्रकाश‍डाललए।

2. ववकास‍को‍आिुतनकीकिण‍लसद्िांत‍की‍आलोचना‍के‍कािणों‍का‍पता‍लगाएाँ।

3. लैदिन‍अमेरिका‍में‍तनर्षिता‍मॉडल‍के‍उदय‍होने‍के‍क्या‍कािण‍थे?

124 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

4. ववकास‍के‍आिुतनकीकिण‍लसद्िांत‍के‍ववफलता‍के‍क्या‍कािण‍थे?

5. वॉलिस्िीन‍द्वािा‍अंतिाषष्रीय‍श्रम‍ववर्ाजन‍की‍व्याख्या‍किें ।

बहुववकल्पीय प्रश्न

1. ववकास‍के‍आिुतनकीकिण‍लसद्िांत‍की‍आलोचना‍के‍प्रमुख‍कािण‍क्या‍थे?
(अ) औद्योगीकिण‍पि‍केंदरत
(ब) प्रादे लशक‍संस्कृतत‍की‍अवहे लना
(स) अल्पववकास‍की‍आंतरिक‍व्याख्या‍प्रस्तुत‍किने‍के‍ललए
(द) उपिोक्त‍सर्ी
2. वैष्श्वक‍प्रणाली‍लसद्िांत‍का‍प्रततपादन‍ककसने‍ककया?
(अ) आंरे‍गुंडि‍फ्ैंक
(ब) डॉस‍सेंिोस
(स) इमेनुएल‍वॉलिस्िीन
(द) पॉल‍प्रेत्रबश
3. ‘द‍ स्िे ष्जस‍ ऑफ‍ इकोनॉलमक‍ ग्रोथ:‍ ए‍ नॉन-कमयुतनस्ि‍ मेतनफेस्िो’ पुस्तक‍ के‍ लेखक‍
कौन‍हैं?
(अ) डेतनयल‍लनषि
(ब) मैक्स‍वेबि
(स) वॉल्ि‍िोस्तोव
(द) उपिोक्त‍में‍से‍कोई‍र्ी‍नहीं।
4. तनर्षिता‍लसद्िांत‍औि‍वैष्श्वक‍प्रणाली‍लसद्िांत‍में ‍क्या‍समानता‍है ?
(अ) दोनों‍ही‍ववकास‍के‍आिुतनकीकिण‍लसद्िांत‍की‍आलोचना‍किते‍हैं।
(ब) दोनों‍अल्पववकास‍के‍कािण‍को‍स्पष्ि‍किने‍के‍ललए‍एक‍ववकल्प‍प्रदान‍किते
हैं।

(स) दोनों‍ही‍लसद्िांत‍माक्सषवादी‍ववचाििािा‍से‍प्रर्ाववत‍हैं।

(द) उपिोक्त‍सर्ी।
125 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

5. फ्ैंक‍द्वािा‍वर्णषत‍मेरोपोललस-सैिेलाइि‍व्यवस्था‍में ‍मेरोपोललस‍कौन‍था?

(अ) तत
ृ ीय‍ववश्व‍के‍दे श

(ब) लैदिन‍अमेरिका

(स) अफ्ीकी‍दे श

(द) पष्श्चमी‍दे श

1.10 संदिट-सच
ू ी

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126 | पष्ृ ठ

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

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• Lim, C. Timothy. (2006). Doing Comparative politics: An Introduction to


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• Chilcote, H Ronald. (1994). Theories of Comparative Politics, Westview


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127 | पष्ृ ठ

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

इकाई-VI

भलंि तनधाटरण तल
ु नात्मक राजनीतत
डॉ. लततका बबश्नोई
अनव
ु ादक : अमर जीत

संरचना

1.1 उद्दे श्य


1.2 परिचय
1.3 तुलनात्मक‍िाजनीतत‍में ‍ललंग‍र्ेद‍
1.4 मुख्यिािा‍का‍शोि, ललंग‍शोि‍औि‍लोकतांत्रीकिण‍
1.5 ललंग‍अंतिाल‍:‍उपलष्ब्ियााँ‍औि‍चन
ु ौततयााँ
1.6 िाजनीततक‍प्रतततनधित्व :‍सिकाि‍औि‍िाजनीतत‍में ‍मदहलाएाँ‍
1.7 संयक्
ु त‍िाज्य‍अमेरिका‍औि‍मदहलाओं‍की‍िाजनीततक‍र्ागीदािी
1.8 र्ाित‍औि‍मदहलाओं‍की‍िाजनीततक‍र्ागीदािी
1.9 तनष्कर्ष
1.10 अभ्‍
यास‍प्रश्न
1.11 संदर्ष-सूची‍

1.1 उद्दे श्य

लोकतंत्र‍ के‍ ववचाि‍ का‍ उदे श्य‍ प्रत्येक‍ समाज‍ में ‍ समानता‍ औि‍ स्वतंत्रता‍ लाना‍ है ।‍ लोकतंत्र‍
नागरिकता‍ का‍ प्रतततनधित्व‍ र्ी‍ किता‍ है ‍ तथा‍ साथ‍ में लोकतंत्रीकिण‍ प्रकक्रया‍ समावेलशता,
सीमांतता, प्रतततनधित्व‍ औि‍ तनणषय‍ लेने‍ की‍ समझ‍ र्ी‍ िखता‍ है ।‍ इसके‍ साथ‍ कुछ‍ उदाि‍
शासनों‍ में‍ र्ी‍ इन‍ मद्
ु दों‍ को‍ ध्यान‍ में ‍ िखा‍ गया‍ है लेककन‍ अन्द्य‍ शासनों‍ को‍ अर्ी‍ र्ी‍
लोकतंत्रीकिण‍ प्रकक्रया‍ में ‍ एक‍ लंबा‍ िास्ता‍ तय‍ किना‍ है ।‍ मद्
ु दा‍ यह‍ है ‍ कक‍ इन‍ शासनों‍ में‍
नेतत्ृ व‍ िाजनीततक‍ अलर्जात‍ वगष‍ तक‍ ही‍ सीलमत‍ िहा‍ है जो‍ ज्यादाति‍ परु
ु र्‍ हैं।‍ लैंधगक‍
अंतिाल‍(जेंडरिंग‍लैकुना)‍िाजनीतत‍में ‍ लैंधगक‍असंतल
ु न‍का‍पता‍लगाने‍ का‍इिादा‍िखती‍है ।‍
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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

िाजनीतत‍ औि‍ तनणषय‍ लेने‍ में ‍ मदहलाओं‍ के‍ कम‍ प्रतततनधित्व‍ को‍ कई‍ समाजों‍ में ‍ अनदे खा‍
ककया‍ गया‍है ‍ जो‍िाजनीतत‍में ‍ मदहलाओं‍ के‍प्रतततनधित्व‍के‍अवसिों‍को‍प्रकाश‍में ‍ लाने‍ में ‍
ववफल‍ िहे ‍ हैं।‍ कई‍ मदहला‍ लामबंदी‍ ने‍ कर्ी-कर्ी‍ लैंधगक‍ अंतिाल‍ पि‍ जोि‍ ददया‍ है ‍ जो‍
मदहलाओं‍ को‍हालशए‍पि‍िखता‍है ।‍अवलोकनीय‍प्रश्न‍यह‍है ‍ कक‍हम‍तुलनात्मक‍िाजनीततक‍
ववश्लेर्ण‍ में‍ एक‍ मदहला‍ के‍ प्रर्ाव‍ को‍ कैसे‍ दे खते‍ हैं? क्या‍ हम‍ इसका‍ ववश्लेर्ण‍
लोकतंत्रीकिण‍के‍एक‍बड़े‍ अध्ययन‍में ‍ एक‍एकल‍चि‍के‍रूप‍में ‍ किते‍ हैं‍ या‍क्या‍हम‍इसे‍
एक‍ ऐसे‍ अध्ययन‍ के‍ रूप‍ में ‍ समझते‍ हैं‍ जो‍ लोकतंत्रीकिण‍ की‍ ओि‍ ले‍ जा‍ सकता‍ है ।‍ एक‍
ववर्य‍के‍रूप‍में ‍जेंडरिंग‍लैकुना‍को‍हाल‍ही‍में‍तुलनात्मक‍िाजनीतत‍में ‍महत्त्व‍लमला‍है ।‍इस‍
अध्याय‍में‍अध्ययन‍का‍उद्दे श्य‍अलग-अलग‍शोि‍के‍बजाय‍ललंग‍औि‍तुलनात्मक‍िाजनीतत‍
को‍ समग्र‍ रूप‍ से‍ समझना‍ है ‍ औि‍ यह‍ दे खना‍ है ‍ कक‍ िाजनीतत‍ में ‍ मदहला‍ प्रतततनधित्व‍ की‍
अनदे खी‍क्यों‍की‍गई‍है ।‍ववलर्न्द्न‍लोकतांत्रत्रक‍शासनों‍के‍तुलनात्मक‍सादहत्य‍के‍ववश्लेर्ण‍
को‍िाजनीतत‍में ‍ मदहलाओं‍ के‍हालशयाकिण‍को‍समझने‍ के‍िाजनीततक‍ववश्लेर्ण‍की‍कंु जी‍के‍
रूप‍में‍दे खा‍गया‍है ।

1.2 पररचय

ललंग‍अंतिाल‍(जेंडि‍लकुना)‍जेंडि‍औि‍िाजनीतत‍ववज्ञान‍के‍अध्ययन‍में ‍ अंतिाल‍औि‍अंति‍
की‍समझ‍है ‍ खासकि‍तुलनात्मक‍िाजनीतत‍के‍अध्ययन‍में ।‍ललंग‍अध्ययन‍में‍ मदहलाओं‍ के‍
आख्यानों, उपदे शों‍ औि‍ अनुर्वों‍ को‍ बािीकी‍ से‍ दे खा‍ गया‍ है , लेककन‍ इसके‍ बावजूद‍
तुलनात्मक‍ सादहत्य‍ औि‍ िाजनीतत‍ के‍ अध्ययन‍ में ‍ मदहलाओं‍ के‍ प्रतततनधित्व‍ को‍ शालमल‍
किने‍में‍व्यापक‍अंति‍बना‍हुआ‍है ।

कािण‍ कई‍ हो‍ सकते‍ हैं लेककन‍ तथ्य‍ यह‍ है‍ कक‍ मदहला अध्ययन‍ को‍ एक‍ तनष्श्चत‍
सीमा‍तक‍तो‍स्वीकाि‍ककया‍गया‍है ‍ लेककन‍मदहला‍आंदोलनों‍की‍स्वववकारिता‍बहुत‍कम‍है ‍
व‍ मदहलाओं‍ के‍ अधिकाि‍ एक‍ छोिे ‍ से‍ उपक्षेत्र‍ तक‍ सीलमत‍ हैं‍ औि‍ तुलनात्मक‍ िाजनीततक‍
सादहत्य‍में‍मदहलाओं‍को‍महत्त्व‍नहीं‍ददया‍गया‍है ।‍मतदान‍प्रकक्रया‍को‍र्ी‍पुरुर्ों‍के‍अनुरूप‍
बनाया‍ गया‍ है ‍ तथा‍ तनवाषधचत‍ होने‍ के‍ बावजूद‍ मदहलाएाँ‍ वविातयकाओं‍ में ‍ तनणषय‍ लेने‍ का‍
दहस्सा‍ नहीं‍ होती‍ हैं, कुछ‍ लोकतंत्रों‍ में ‍ मदहला‍ लशक्षा‍ उनके‍ मतदान‍ व्यवहाि‍ के‍ अनुरूप‍ र्ी‍
नहीं‍ िही‍ है ।‍ िाजनीततक‍ दलों‍ में, मदहला‍ उममीदवािों‍ की‍ तुलना‍ में ‍ पुरुर्‍ उममीदवािों‍ को‍
अधिक‍तिजीह‍दी‍जाती‍है , जब‍मदहलाओं‍के‍मतदान‍व्यवहाि‍की‍बात‍आती‍है ‍तो‍अस्पष्ि‍

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बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

तनष्कर्ष‍ होते‍ हैं‍ तथा‍पािं परिक‍ललंग‍र्ूलमकाएाँ‍ उनके‍अवसिों‍को‍सीलमत‍किती‍हैं, मदहलाओं‍


को‍िाजनीतत‍का‍दहस्सा‍बनने‍ के‍ललए‍कम‍प्रोत्सादहत‍ककया‍जाता‍है ‍ उनकी‍िाजनीत‍उनके‍
परिवाि‍ पि‍ तनर्षि‍ किती‍ है ‍ ष्जससे‍ िाजनीततक‍ प्रतततनधित्व‍ में ‍ लैंधगक‍ अंतिाल‍ बढता‍ जाता‍
है ।‍यह‍मदहलाओं‍के‍िाजनीततक‍प्रतततनधित्व‍में‍लैंधगक‍कमी‍का‍तुलनात्मक‍सादहत्य‍के‍रूप‍
में‍ मूल्यांकन‍किता‍है ।‍क्यों‍कुछ‍लोकतंत्रों‍में‍ पुरुर्ों‍की‍तुलना‍में ‍ अधिक‍मदहला‍प्रतततनधि‍
हैं‍ (यदद‍कोई‍हैं)? इस‍लैंधगक‍अंति‍को‍सीलमत‍किने‍ के‍ललए‍लोकतंत्र‍क्या‍किते‍ हैं? इस‍
ढााँचे‍ में ‍ मदहलाओं‍ की‍लामबंदी‍का‍ववश्लेर्ण‍कैसे‍ ककया‍जाता‍है , िाजनीतत‍में ‍ मदहलाओं‍ की‍
कम‍ र्ागीदािी‍ औि‍ प्रतततनधित्व‍ सर्ी‍ में ‍ लैंधगक‍ कमी‍ शालमल‍ है ‍ ष्जसे‍ ध्यान‍ में ‍ िखते‍ हुए‍
ध्यान‍दे ने‍की‍आवशयकता‍है ।

1.3 तुलनात्मक राजनीतत में भलंि िेद

लोकतंत्रीकिण‍की‍प्रकक्रया‍समावेलशता‍के‍ववचाि‍पि‍जोि‍दे ती‍है ।‍ववद्वानों‍का‍मानना‍है ‍ कक‍


िाजनीतत‍में‍ ललंग‍पि‍कम‍ध्यान‍ददया‍गया‍है ।i‍िाजनीतत‍के‍ललए‍जेंडि‍की‍प्रासंधगकता‍को‍
मुख्यिािा‍के‍ववद्वानों‍द्वािा‍शायद‍ही‍कर्ी‍दे खा‍गया‍है ‍औि‍िाजनीतत‍के‍ललए‍इसकी‍गैि-
प्रासंधगकता‍को‍जेंडि‍शोिकताषओं‍ द्वािा‍र्ी‍अनदे खा‍ककया‍गया‍है ।‍एक‍धचंता‍का‍ववर्य‍है‍
कक‍ललंग‍आिारित‍अनुसंिान‍पि‍छात्रववृ त्त‍को‍संस्थागत‍बना‍ददया‍गया‍है ‍औि‍िाजनीतत‍के‍
अध्ययन‍के‍ललए‍एक‍उपक्षेत्र‍बन‍गया‍है ।ii

ललंग‍ आिारित‍ अनस


ु ंिान‍ वपछले‍ दशकों‍ में ‍ कई‍ अध्ययनों‍ का‍ दहस्सा‍ बन‍ गया‍ है ‍
लेककन‍ अर्ी‍ र्ी‍ इसे‍ िाजनीतत‍ ववज्ञान‍ की‍ मुख्यिािा‍ का‍ र्ाग‍ नहीं‍ माना‍ जाता‍ है ।‍ लैंधगक‍
ववद्वता‍ ने‍ अब‍ कफि‍ से‍ उन‍ व्यवहािों, पैिनों‍ औि‍ यहााँ‍ तक‍ कक‍ र्ावनाओं‍ को‍ समझने‍ की‍
कोलशश‍की‍है ‍ ष्जन्द्हें ‍ िीलों‍औि‍ग्रंथों‍के‍रूप‍में ‍ िखा‍गया‍है ‍ लेककन‍शोि‍में ‍ मदहलाओं‍ औि‍
िाजनीतत‍को‍एक‍साथ‍िखने‍ के‍पैिनष‍ में ‍ एक‍तनष्श्चत‍कमी‍है ।‍लैंधगक‍अध्ययनों‍का‍अर्ी‍
र्ी‍ ‘वैि‍ सैद्िांततक‍ दृष्ष्िकोण’ के‍ रूप‍ में ‍ पालन‍ नहीं‍ ककया‍ गया‍ है ।‍ कई‍ शोि‍ मूल्यों,
सांस्कृततक‍ समझ‍ औि‍ अंति‍ के‍ महत्त्व‍ को‍ बताते‍ हैं कक‍ संक्रमण‍ औि‍ लोकतंत्रीकिण‍ की‍
प्रकक्रया‍ में‍ मदहलाओं‍ की‍ र्ूलमका‍ को‍ समझने‍ की‍ प्रकक्रया‍ को‍ काफी‍ हद‍ तक‍ अनदे खा‍ कि‍
ददया‍गया‍है।‍ललंग‍ववद्वानों‍द्वािा‍मदहलाओं‍की‍समस्याओं‍का‍हवाला‍ददया‍गया‍है‍लेककन‍
उनकी‍र्ागीदािी‍औि‍उनकी‍ललंग‍प्रकृतत‍की‍अनदे खी‍की‍गई‍है ।iii

लोकतंत्रीकिण‍की‍प्रकक्रया‍पि‍कई‍शोिों‍होने‍ के‍बावजद
ू , ऐसा‍दल
ु र्
ष ‍ही‍अध्ययन‍है ‍

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

जो‍ललंग‍औि‍मदहलाओं‍ या‍उनके‍काम‍के‍बािे ‍ में ‍ बताता‍हो।‍तथ्य‍यह‍है ‍ कक‍हम‍लोकतंत्र‍


में‍ मदहलाओं‍ की‍ समझ‍ को‍ औि‍ वपछले‍ कुछ‍ दशकों‍ में ‍ उनकी‍ र्ागीदािी‍ कैसे‍ िही‍ है ‍ को‍
नजिअंदाज‍किते‍ हैं‍ औि, ष्जससे‍ यह‍पता‍चलता‍है ‍ कक‍कैसे‍ एक‍अध्ययन‍के‍रूप‍में ‍ ललंग‍
को‍अर्ी‍र्ी‍महत्त्वपूण‍ष नहीं‍ माना‍जाता‍है ।‍ललंग‍अंतिाल‍पि‍तुलनात्मक‍अध्ययन‍में ‍ एक‍
िाजनीततक‍ववश्लेर्ण‍को‍लोकतंत्रीकिण‍की‍प्रकक्रया‍को‍समझने‍ के‍ललए‍अधिक‍जोि‍दे ने‍ की‍
आवश्यकता‍है , क्योंकक‍मदहलाओं‍ को‍हालशए‍पि‍िखा‍गया‍था‍औि‍िाजनीतत‍के‍मुख्य‍क्षेत्र‍
में‍ उनकी‍ अनुपष्स्थतत‍ थी, ष्जससे‍ मदहलाओं‍ औि‍ िाजनीतत‍ का‍ अध्ययन‍ कम‍ हुआ।‍ यह‍
अध्ययन‍तल
ु नात्मक‍ िाजनीतत‍ में ‍ ललंग‍अंतिाल‍ को‍समझने‍ औि‍लोकतंत्रीकिण‍ की‍ प्रकक्रया‍
में‍उनकी‍र्ूलमका‍को‍शालमल‍किने‍का‍एक‍प्रयास‍है ‍

1.4 मुख्यधारा का शोध, भलंि शोध और लोकतांत्रीकरण

ववद्वानों‍ का‍ तकष‍ है ‍ कक‍ समस्या‍ दो‍ दृष्ष्िकोण‍ में ‍ तनदहत‍ है ; तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ की‍
मुख्यिािा‍में‍ लैंधगक‍अंतिाल‍औि‍मदहलाओं‍ के‍एकीकिण‍को‍समझना।‍साथ‍में‍ इस‍प्रकक्रया‍
को‍समझना‍कक‍कैसे‍ ये‍ दोनों‍एक-दस
ू िे ‍ पि‍र्िोसा‍किते‍ हैं।‍इन‍दो‍समूहों‍से‍ संबंधित‍कई‍
ववद्वानों‍द्वािा‍की‍गई‍िािणाएाँ‍ र्ी‍हैं।‍मुख्यिािा‍के‍ववद्वानों‍का‍मानना‍है ‍ कक‍एक‍अलग‍
श्रेणी‍ का‍ अध्ययन‍ होना‍ कोई‍ समस्या‍ नहीं‍ हो‍ सकती‍ है ।‍ अन्द्य‍ अध्ययन‍ जैसे‍ सामाष्जक‍
आंदोलन‍औि‍कई‍अन्द्य‍ववधियााँ‍ र्ी‍उपक्षेत्र‍हैं‍ औि‍दस
ू िों‍की‍तिह‍ललंग‍कई‍अन्द्य‍के‍बीच‍
लसफष‍एक‍चि‍है ।

ललसा‍ बाल्डेज़‍ बताती‍ हैं‍ कक‍ दोनों‍ परिर्ार्ाएाँ‍ ललंग‍ औि‍ लोकतंत्रीकिण‍ को‍ ध्यान‍ में ‍
िखते‍ हुए‍ समस्याग्रस्त‍ हो‍ सकती‍ हैं, ष्जसे‍ वह‍ ‘अलर्जात‍ वगष‍ का‍ फोकस’ कहती‍ हैं।‍
तल
ु नात्मक‍अध्ययन‍में‍ लोकतंत्रीकिण‍सादहत्य‍पि‍ललंग‍की‍परिर्ार्ा‍की‍अनदे खी‍की‍जाती‍
है , बावजूद‍इसके‍कक‍यह‍एक‍वववाददत‍अविािणा‍है ।‍तथ्य‍यह‍है ‍कक‍लोकतंत्र‍की‍परिर्ार्ा‍
एक‍परिवतषनशील‍है‍ जो‍द्ववर्ाष्जत‍र्ी‍है , ललंग‍के‍मुद्दों‍को‍तब‍तक‍प्रकाश‍में ‍ नहीं‍ लाती‍
जब‍तक‍कक‍लोकतांत्रत्रक‍समाजों‍में ‍ मदहलाओं‍ से‍ संबंधित‍नागरिकता‍अधिकािों‍को‍ववद्वानों‍
द्वािा‍इसे‍ सामने‍ नहीं‍ लाया‍जाता।‍मदहलाओं‍ के‍लोकतांत्रत्रक‍अधिकािों‍को‍कुछ‍शासनों‍में ‍
अनदे खा‍ ककया‍ गया‍ है ।‍ इततहास‍ में ‍ उदाहिण‍ साक्ष्य‍ है ‍ कक‍ अधिकािों‍ औि‍ मदहलाओं‍ के‍
मताधिकाि‍ के‍ ललए‍ पुरुर्ों‍ की‍ तुलना‍ में ‍ कम‍ िक्त‍ बहाया‍ गया‍ है ।iv‍ िाजनेताओं‍ द्वािा‍
मताधिकाि‍ के‍ ललए‍ मदहलाओं‍ की‍ लामबंदी‍ औि‍ सकक्रयता‍ की‍ अनदे खी‍ की‍ गई‍ है ।‍ बाल्डेज़‍

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

बताते‍ हैं‍ कक‍मदहलाएाँ‍ दतु नया‍की‍आिी‍आबादी‍हैं‍ औि‍ककसी‍र्ी‍शासन‍को‍लोकतांत्रत्रक‍तब‍


तक‍नहीं‍ माना‍जा‍सकता‍है ‍ जब‍तक‍वह‍इस‍तथ्य‍की‍अनदे खी‍किता‍है ।‍लोकतंत्रीकिण‍
की‍प्रकक्रया‍का‍प्रायष्श्चत‍कई‍प्रकक्रयाओं‍की‍अनदे खी‍किता‍है ‍ष्जसमें ‍मदहलाओं‍की‍लामबंदी,
अत्याचाि‍के‍र्खलाफ‍उनका‍संघर्ष‍औि‍मदहलाओं‍के‍अनुकूल‍नीततयां‍शालमल‍हैं।

बाल्डेज़‍बताते‍ हैं‍ कक‍अलर्जात‍वगष‍ का‍ध्यान‍लोकतांत्रत्रक‍परिवतषन‍में‍ मदहलाओं‍ की‍


र्लू मका‍को‍िोकता‍है , कफि‍र्ी‍यह‍सवाल‍पछ
ू ने‍ से‍ नहीं‍ िोका‍जाना‍चादहए‍कक‍ऐसा‍क्यों‍है ‍
कक‍दतु नया‍र्ि‍में ‍िाजनीततक‍अलर्जात‍वगष‍ज्यादाति‍परु
ु र्‍हैं?

लैंधगक‍ परिप्रेक्ष्य‍ का‍ ववश्लेर्ण‍ अलर्जात‍ वगष‍ केंदरत‍ दृष्ष्िकोण‍ के‍ लेंस‍ से‍ र्ी‍ ककया‍
जा‍सकता‍है ‍ जहां‍ यह‍कोलशश‍की‍जा‍सकती‍है ‍ औि‍समझा‍जा‍सकता‍है ‍ कक‍केवल‍कुछ‍
लोग‍ही‍िाजनीततक‍अलर्जात‍वगष‍ क्यों‍बनते‍ हैं।‍गैि‍लैंधगक‍दृष्ष्िकोण‍केवल‍उन‍लोगों‍को‍
समझने‍ की‍प्रववृ त्त‍िखता‍है ‍ जो‍लोकतंत्रीकिण‍की‍प्रकक्रया‍में ‍ र्ाग‍लेते‍ हैं‍ न‍की‍मदहलाओ‍
को।‍सवाल‍अर्ी‍र्ी‍बना‍हुआ‍है ‍ कक‍वे‍ ऐसा‍क्यों‍नहीं‍ किते?‍लैंधगक‍दृष्ष्िकोण‍को‍ध्यान‍
में‍ िखते‍ हुए‍ मंक‍ के‍ सुझाव‍ को‍ महत्त्वपूण‍ष माना‍ जा‍ सकता‍ है ‍ क्योंकक‍ “एक‍ अनुर्वजन्द्य‍
प्रश्न‍ के‍रूप‍में‍ लोकतंत्र‍के‍समेकन‍ के‍ललए‍ कौन‍ से‍ अलर्नेता‍प्रासंधगक‍हैं, इस‍मुद्दे ‍ पि‍
कफि‍ से‍ ववचाि‍ किें ।”v‍ तथा‍ इस‍ तथ्य‍ पि‍ सवाल‍ उठाने‍ के‍ बजाय‍ कक‍ अधिकांश‍ पुरुर्‍
िाजनीततक‍ अलर्जात‍ वगष‍ क्यों‍ हैं, यह‍ समझने‍ की‍ कोलशश‍ की‍ जा‍ सकती‍ है ‍ कक‍
लोकतंत्रीकिण‍ में ‍ नागरिकों‍ द्वािा‍ कुछ‍ खास‍ लोगों‍ का‍ समथषन‍ क्यों‍ ककया‍ जाता‍ है ? सैन्द्य‍
शासन‍में‍ जहााँ‍ परु
ु र्त्व‍आिाि‍है ‍ वहााँ‍ एक‍अच्छा‍मौका‍है ‍ कक‍मदहलाओं‍ को‍उनकी‍दे खर्ाल‍
औि‍सहानर्
ु तू त‍के‍कािण‍समथषन‍ददया‍जा‍सकता‍है ।‍इस‍तिह‍के‍सवालों‍पि‍ज्यादा‍जोि‍
दे ने‍औि‍समझने‍की‍जरूित‍है ।

दस
ू िा‍दृष्ष्िकोण‍यह‍प्रकाश‍में ‍ लाना‍है ‍ कक‍मदहलाओं‍ की‍लामबंदी‍से‍ कुलीन‍ववचाि‍
कैसे‍ प्रर्ाववत‍होते‍ हैं।‍लोकतंत्रीकिण‍प्रकक्रया‍में ‍ संभ्रांत‍सुिािों‍पि‍शायद‍ही‍कर्ी‍चचाष‍ की‍
जाती‍है ‍ औि‍उनके‍तनणषय‍लोकवप्रय‍समथषन‍पि‍आिारित‍होते‍ हैं।‍वैलेिी‍बन्द्स‍का‍तकष‍है ‍
कक‍इस‍तिह‍का‍समथषन‍जन‍लामबंदी‍पि‍केंदरत‍है , जहााँ‍मदहलाओं‍की‍र्ागीदािी‍बड़े‍पैमाने‍
पि‍दे खी‍जाती‍है ।‍प्रश्नों‍में ‍बदलाव‍यह‍हो‍सकता‍है ‍कक‍एक‍संभ्रांत‍व्यष्क्त‍सुिाि‍पि‍क्या‍
ववचाि‍किता‍है ? क्या‍यह‍जन‍लामबंदी‍है ? क्या‍मदहलाओं‍की‍असहमतत‍को‍ध्यान‍में ‍ िखा‍
जाता‍है ? बन्द्स‍का‍कहना‍है ‍कक‍यदद‍इन‍प्रश्नों‍को‍ध्यान‍में ‍ िखा‍जाता‍है ‍ तो‍मदहलाओं‍के‍
प्रर्ाव‍पि‍बेहति‍सहमतत‍हो‍सकती‍है ‍औि‍संक्रमण‍प्रकक्रया‍में ‍इसे‍ध्यान‍में ‍िखा‍जा‍सकता‍

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

है ‍जहााँ‍संभ्रांत‍तनणषय‍लेने‍में‍लामबंदी‍महत्त्वपूण‍ष र्ूलमका‍तनर्ाती‍है ।

एम.‍स्िीवन‍कफश‍आगे‍ तकष‍दे ते‍ हैं‍ कक‍कैसे‍ मदहलाओं‍ की‍ष्स्थतत‍इस्लामी‍दे शों‍में ‍


लोकतंत्रीकिण‍ की‍ तनमन‍ ष्स्थतत‍ को‍ दशाषती‍ है ‍ जहां‍ मदहलाओं‍ की‍ अनेक‍ संस्थाओ‍ िालमषक-
िमषतनिपेक्ष‍ मुद्दा‍ पि‍ तनयंत्रण‍ केंरीय‍ संघर्ष‍ का‍ क्षेत्र‍ बन‍ गया‍ है ।‍ अफगातनस्तान‍ जैसे‍
इस्लामी‍ दे शों‍ में‍ मदहलाओं‍ की‍ ष्स्थतत‍ में ‍ सुिाि‍ को‍ लेकि‍ सुिािकों‍ औि‍ पिं पिावाददयों‍ के‍
बीच‍र्यंकि‍संघर्ष‍दे खा‍गया‍है ।‍हाल‍के‍घिनाक्रमों‍में ‍आगे‍दे खा‍गया‍है ‍कक‍कैसे‍मदहलाओं‍
को‍ िाजनीततक‍ कायाषलयों‍ से‍ हिा‍ ददया‍ गया‍ है , उन्द्हें ‍ स्कूल‍ जाने‍ औि‍ मीडडया‍ घिानों‍ का‍
दहस्सा‍बनने‍ की‍अनम
ु तत‍नहीं‍ है ।‍कफश‍बताते‍ हैं‍ कक‍यह‍वपतस
ृ त्तात्मक‍संस्कृतत‍ऐततहालसक‍
संघर्ष‍से‍तनकली‍है ।‍ललंग‍औि‍इसे‍कैसे‍एकीकृत‍ककया‍जाता‍है , के‍बीच‍के‍इस‍अध्ययन‍ने‍
तल
ु नात्मक‍िाजनीतत‍औि‍ललंग‍में ‍एक‍नए‍अध्ययन‍का‍मागष‍प्रशस्त‍ककया‍है ।

लोकतंत्रीकिण‍ पि‍ अध्ययन‍ मानककये‍ अध्ययन‍ पि‍ तनर्षि‍ किता‍ है ‍ कक‍ यह‍ अन्द्य‍
शासन‍ हैं‍ जहां‍ लोकतंत्र‍ सफल‍ हो‍ सकता‍ है ।‍ जब‍ मदहलाओं‍ की‍ बात‍ आती‍ है ‍ तो‍ यह‍ सच‍
नहीं‍हो‍सकता‍क्योंकक‍कर्ी-कर्ी‍लोकतांत्रत्रक‍िाज्य‍में ‍लैंधगक‍समानता‍र्ी‍त्रबगड़‍सकती‍है ।‍
अध्ययनों‍से‍पता‍चलता‍है ‍कक‍लोकतांत्रत्रक‍व्यवस्था‍ने‍मदहलाओं‍को‍िाजनीततक‍शष्क्तयों‍से‍
बाहि‍किने‍का‍मागष‍प्रशस्त‍ककया‍है‍जहााँ‍मदहलाओं‍औि‍उनकी‍र्ूलमकाओं‍को‍कई‍संदर्ों‍में ‍
दे खा‍जा‍सकता‍है ।‍र्ाित‍में , उदाहिण‍के‍ललए, सामाष्जक‍सुिाि‍आंदोलनों‍औि‍नैततकता,
समानता‍ औि‍ उत्थान‍ के‍ नाम‍ पि‍ कुछ‍ संस्थानों‍ के‍ उन्द्मूलन‍ ने‍ मदहलाओं‍ को‍ औि‍ हालशए‍
पि‍डाल‍ददया‍है ‍ (उदाहिण‍के‍ललए, दे वदासी‍प्रथा‍जहााँ‍ मदहलाओं‍ की‍एजेंसी‍को‍अिीन‍कि‍
ददया‍ गया‍ था)।vi‍ लोकतंत्र‍ समानता‍ औि‍ स्वतंत्रता‍ के‍ ललए‍ मागष‍ प्रशस्त‍ किता‍ है , लेककन‍
साथ‍ही‍कोई‍इस‍बात‍की‍अनदे खी‍नहीं‍ कि‍सकता‍है ‍ कक‍कैसे‍ लोकतांत्रत्रक‍शासन‍के‍नाम‍
पि‍मदहलाओं‍को‍अिीन‍ककया‍गया‍है , बलदे ज़‍का‍तकष‍है ।

मुख्यिािा‍के‍ववद्वान‍मदहला‍आंदोलनों‍को‍केवल‍एक‍घिना‍के‍रूप‍में ‍दे खते‍हैं‍औि‍


इसललए‍ इसे‍ कम‍ महत्त्व‍ दे ते‍ हैं।‍ ललंग‍ पि‍ ववद्वान‍ समझते‍ हैं‍ कक‍ मदहला‍ आंदोलनों‍ में ‍
अध्ययन‍ की‍ अनूठी‍ ववशेर्ताएाँ‍ हैं‍ ष्जन्द्हें ‍ अन्द्य‍ गैि-ललंग‍ अनुसंिानों‍ की‍ तुलना‍ में ‍ समझाया‍
नहीं‍ जा‍सकता‍है ।‍िाजनीततक‍व्यवस्था‍में ‍ मदहलाओं‍ की‍अद्ववतीय‍ष्स्थतत‍को‍समझाने‍ की‍
आवश्यकता‍हो‍सकती‍है ।‍बाल्डेज़‍का‍तकष‍है ‍ कक‍मदहलाओं‍ के‍ललए‍यह‍आवश्यक‍नहीं‍ हो‍
सकता‍है ‍ कक‍एक‍मदहला‍के‍आंदोलन‍को‍हमेशा‍ललंग‍ववश्लेर्ण‍में ‍ समझाया‍जाना‍चादहए,
वह‍इसे‍गैि-ललंग‍तिीके‍से‍र्ी‍दे ख‍सकती‍है ।

133 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

िततववगध

किल्म दे खें मैडम चीि भमतनस्टर (2021)

यह‍कफल्म‍र्ाित‍में ‍ एक‍दललत‍मदहला‍का‍संघर्ष‍ है ‍ औि‍उसके‍जमीनी‍स्ति‍से‍


िाज्य‍के‍मुख्यमंत्री‍तक‍पहुंाँचने‍ का‍संघर्ष‍ है।‍यह‍कफल्म‍र्ाित‍में‍ अंतिवविोिी‍
वास्तववकताओं‍ औि‍वपतस
ृ त्तात्मक‍संिचनाओं‍ में ‍ भ्रष्िाचाि, सत्ता‍औि‍अिीनता‍से‍
लड़ने‍के‍ललए‍एक‍दललत‍मदहला‍के‍संघर्ष‍पि‍प्रकाश‍डालती‍है ।

1.5 भलंि अंतराल : उपलक्ब्लधयााँ और चुनौततयााँ

वपछले‍ दशक‍ में ‍ कई‍ िाजनीततक‍ वैज्ञातनकों‍ ने‍ खुद‍ को‍ तुलनात्मकतावाददयों‍ के‍ रूप‍ में ‍
स्थावपत‍किने‍का‍प्रयास‍ककया‍है ।‍कई‍िाजनीततक‍औि‍मदहला‍ववद्वान‍खुद‍को‍इस‍उपक्षेत्र‍
से‍जोड़ते‍िहे ‍ हैं।‍इसका‍कािण‍यह‍हो‍सकता‍है ‍ कक‍इस‍क्षेत्र‍में ‍ वचषस्ववादी‍एजेंड‍े का‍अर्ाव‍
है ‍जहां‍तुलनात्मक‍िाजनीततक‍ववश्लेर्ण‍में ‍ललंग‍प्रमुख‍है अनुसंिान‍के‍नए‍क्षेत्रों‍में ‍रुधच‍है
पद्िततगत‍बहुलवाद‍का‍गहिाई‍से‍ ववश्लेर्ण‍ककया‍जाता‍है औि‍अनस
ु ंिान‍को‍समझने‍ का‍
vii
एक‍महत्त्वपूण‍ष क्षेत्र‍ददया‍जाता‍है ।

हालााँकक‍हाल‍ही‍में यह‍दे खा‍गया‍है ‍ कक‍तल


ु नात्मक‍िाजनीतत‍सादहत्य‍में ‍ जेंडि‍शोि‍
को‍ कम‍ आत्मसात‍ ककया‍ गया‍ है ।‍ कुछ‍ ववद्वान‍ तकष‍ दे ते‍ हैं‍ कक‍ तल
ु नात्मक‍ अध्ययनों‍ की‍
तल
ु ना‍में‍ ललंग‍पि‍अधिक‍ध्यान‍ददया‍जाता‍है नािीवाददयों‍द्वािा‍शोि‍को‍उपक्षेत्र‍में ‍ कम‍
महत्त्व‍ददया‍गया‍है इस‍तथ्य‍के‍कािण‍कक‍सादहत्य‍‘मख्
ु यिािा’‍के‍ललए‍महत्त्वपण
ू ‍ष नहीं‍ है ‍
viii
औि‍इसके‍अलग-अलग‍मद्
ु दे ‍ हैं। ‍कफि‍र्ी‍यह‍समझना‍औि‍अन्द्वेर्ण‍किना‍महत्त्वपण
ू ‍ष है ‍
कक‍ जेंडि‍ कई‍ िाजनीततक‍ गततशील‍ को‍ समझने‍ में ‍ कैसे‍ मदद‍ कि‍ सकता‍ है ।‍ तल
ु नात्मक‍
िाजनीततक‍ ववश्लेर्ण‍ में ‍ इसे‍ शालमल‍ किने‍ औि‍ समझने‍ की‍ प्रकक्रया‍ में ‍ नई‍ चुनौततयों‍ को‍
दे खा‍औि‍सीखा‍जा‍सकता‍है ।

उपक्षेत्र‍ को‍ ‘उत्पन्द्न’‍ किने‍ का‍ डि‍ शायद‍ कई‍ ववद्वानों‍ द्वािा‍ दे खा‍ गया‍ है ।‍ इसमें ‍
ललंग‍ का‍ आधश्रत‍ या‍ स्वतंत्र‍ परिवतषनीय‍ के‍ रूप‍ में ‍ ववश्लेर्ण‍ किना‍ शायद‍ अध्ययन‍ को‍
अधिक‍समझ‍दे ‍ सकता‍है ।‍कई‍लोगों‍ने‍ अध्ययन‍को‍‘मदहला’‍से‍ ‘ललंग’‍तक‍ले‍ जाने‍ का‍

134 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

र्ी‍दावा‍ककया‍है , जहााँ‍ बाद‍वाले‍ पि‍जोि‍इस‍तथ्य‍के‍रूप‍में ‍ दे खा‍जाता‍है ‍ कक‍यह‍कई‍


अन्द्य‍शोि‍क्षेत्रों‍के‍ललए‍मागष‍प्रशस्त‍कि‍सकता‍है ।ix

लेस्ली‍ शववंड्ि-बायि‍ के‍ अनुसाि‍ ललंग‍ पि‍ शोिकताषओं‍ द्वािा‍ कम-से-कम‍ दो‍
िणनीततयों‍को‍ध्यान‍में‍ िखा‍जाना‍चादहए।‍सबसे‍ पहले‍ वैष्श्वक‍स्ति‍पि‍हो‍िहे ‍ घिनाक्रमों‍
में‍ उन्द्हें ‍ एक‍ववलशष्ि‍दे श‍के‍तनष्कर्ों‍को‍ध्यान‍में ‍ िखना‍चादहए‍औि‍दस
ू िा‍उन्द्हें ‍ इस‍बात‍
पि‍जोि‍दे ना‍चादहए‍कक‍कैसे‍ललंग‍अनस
ु ंिान‍अन्द्य‍क्षेत्रों‍में ‍किौती‍कि‍सकता‍है ; एक‍शोि‍
ष्जसे‍ वह‍गैि-ललंग‍अध्ययनों, नए‍लसद्िांतों‍के‍मल्
ू यांकन‍औि‍कैसे‍ वे‍ िाजनीततक‍प्रकक्रया‍में ‍
अंति‍ला‍सकते‍ हैं, पि‍आिारित‍‘वधिषत-मल्
ू य’‍अनस
ु ंिान‍के‍रूप‍में ‍ दे खते‍ हैं।‍हालााँकक‍कई‍
अंतः ववर्य‍अध्ययनों‍की‍धचंता‍की‍तिह, इस‍अध्ययन‍को‍साविान‍िहने‍की‍जरूित‍है ‍औि‍
साथ‍ही‍ यह‍ िाजनीतत‍ ववज्ञान‍में ‍ अधिक‍वैि‍ अध्ययन‍बनने‍ की‍प्रकक्रया‍में ‍ नािीवादी‍शोि‍
की‍ कुछ‍ समझ‍ को‍ नजिअंदाज‍ कि‍ सकता‍ है ।‍ इस‍ तिह‍ के‍ अध्ययन‍ को‍ संतलु लत‍ किना‍
महत्त्वपूण‍ष है।

तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ का‍ ललंग‍ के‍ नजरिए‍ से‍ ववश्लेर्ण‍ किने‍ की‍ कोलशश‍ किते‍ हुए‍
मोनाल‍लीना‍िूक‍कहती‍हैं‍ कक‍हालांकक‍तुलनात्मक‍िाजनीतत‍में ‍ कुछ‍अध्ययनों‍ने‍ बाि-बाि‍
जेंडि‍ के‍ नजरिए‍ से‍ ववश्लेर्ण‍ ककया‍ है , गैि-जेंडि‍ ववद्वानों‍ ने‍ इस‍ उप-क्षेत्र‍ औि‍ इसके‍
योगदान‍ पि‍ ज्यादा‍ ध्यान‍ नहीं‍ ददया‍ है ।‍ सामाष्जक‍ आंदोलनों, िाजनीतत‍ से‍ मदहलाओं‍ का‍
बदहष्काि, ववलर्न्द्न‍संगठनों‍में‍ मदहलाओं‍ की‍र्ूलमका‍शायद‍नािीवादी‍ववद्वानों‍के‍शोि‍का‍
प्रमख
ु ‍ केंर‍ िहा‍ है ।‍ अध्ययन‍ िाजनीततक‍ अवसि‍ मदहलाओं‍ की‍ लामबंदी‍ व‍ संिचनाओं‍ औि‍
उनकी‍ववफलताओं‍ औि‍सफलता‍को‍समझने‍ के‍ललए‍है , जो‍समाज‍में ‍ सामाष्जक‍परिवतषन‍
के‍ललए‍अग्रणी‍नई‍समझ‍को‍सामने‍लाती‍है ।

अध्ययन‍ औि‍ िणनीततयों, संिचनाओं‍ औि‍ ववचाििािाओं‍ पि‍ ध्यान‍ केंदरत‍ किके‍
नािीवाददयों‍द्वािा‍मााँगों‍का‍जवाब‍कैसे‍दे ते‍हैं‍औि‍िाजनीततक‍दलों‍में ‍मदहलाओं‍की‍र्ूलमका‍
का‍ववश्लेर्ण‍किने‍ का‍र्ी‍प्रयास‍किते‍ हैं।‍व‍साथ‍में‍ एक‍पािी‍कैसे‍ प्रततकक्रया‍दे ती‍है ‍ औि‍
एक‍मदहला‍उममीदवाि‍को‍आगे‍िखती‍है , यह‍महत्त्वपूण‍ष है।

इसके‍साथ‍चुनाव‍क्षेत्र‍की‍र्ी‍जााँच‍की‍जानी‍चादहए।‍वे‍कौन‍से‍लैंधगक‍रुझान‍हैं‍जो‍
एक‍मदहला‍को‍िाजनीततक‍रूप‍से‍ तनवाषधचत‍होने‍ दे ते‍ हैं? मदहलाओं‍ का‍मताधिकाि‍व्यापक‍
रूप‍ से‍ कानूनी‍ है , कफि‍ र्ी‍ मदहलाओं‍ के‍ मतदान‍ के‍ पैिनष‍ का‍ ववश्लेर्ण‍ पुरुर्ों‍ से‍ अलग‍

135 | पष्ृ ठ

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ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

प्रतीत‍ होता‍ है ।‍ ललंग‍ अंति‍ के‍ कािण‍ कुछ‍ दे शों‍ में ‍ मतदान‍ में ‍ अंति‍ र्ी‍ दे खा‍ गया‍ है ।‍
मदहलाओं‍की‍पहुाँच‍तनस्संदेह‍िाजनीततक, सामाष्जक, सांस्कृततक‍औि‍आधथषक‍रूप‍से‍पहचानी‍
जाती‍है ।‍

इसके‍अलावा, समझने‍ योग्य‍सबसे‍ महत्त्वपूण‍ष ववशेर्ता‍सावषजतनक‍ नीतत‍औि‍ िाज्य‍


है ।‍िाज्य‍की‍नीततयााँ‍ जेंडि‍को‍कैसे‍ प्रर्ाववत‍किती‍हैं‍ औि‍जेंडि‍मानदं ड‍कैसे‍ नीततयों‍को‍
आकाि‍दे ते‍ हैं? यह‍समझ‍मदहलाओं‍ औि‍कानन
ू ‍में ‍ महत्त्वपण
ू ‍ष र्लू मका‍तनर्ा‍सकती‍है ‍ औि‍
साथ‍ही‍कैसे‍ मदहलाओं‍ के‍मद्
ु दों‍को‍दे खा‍जाता‍है ‍ औि‍नीतत‍तनमाषण‍में ‍ महत्त्व‍ददया‍जाता‍
है ‍को‍र्ी‍महत्त्व‍ददया‍जाना‍चादहए।‍

तुलनात्मक‍िाजनीतत‍औि‍जेण्डि‍को‍समझने‍में ‍अनेक‍चुनौततयााँ‍आती‍हैं।‍सबसे‍बड़ा‍
मुद्दा‍जो‍नािीवादी‍ववद्वानों‍ने‍अब‍तक‍उठाया‍है ‍वह‍ललंग‍को‍परिर्ावर्त‍किना।‍कफि‍कैसे‍
अलग-अलग‍ पहलू‍ आख्यानों‍ औि‍ अनुर्वों‍ को‍ आकाि‍ दे ते‍ हैं? मदहलाओं‍ को‍ एक‍ समरूप‍
परिर्ार्ा‍पि‍एक‍समूह‍के‍रूप‍में‍ नहीं‍ दे खा‍जा‍सकता‍है ।‍हालााँकक‍लॉिे ल‍वाल्डेज़‍बताते‍ हैं‍
कक‍इन‍मुद्दों‍के‍बावजूद, एक‍तुलनात्मक‍अध्ययन‍प्रततच्छे दन‍अध्ययन‍को‍प्रकाश‍में ‍ ला‍
सकता‍है ; औि‍पहचान‍को‍“अप्राकृततक‍औि‍िाजनीततक‍बनाने”‍का‍प्रयाश‍ककया‍जा‍सकता‍
है ।‍एक‍औि‍मुद्दा‍यह‍है ‍ कक‍ववद्वानों‍ने‍ ज्यादाति‍ववकलसत‍िाष्रों‍को‍महत्त्व‍ददया‍है ‍ जो‍
सफल‍लोकतंत्र‍हैं‍ वह‍कर्ी‍ववश्व‍स्ति‍पि‍तुलना‍का‍ववश्लेर्ण‍किने‍ की‍जहमत‍नहीं‍ उठाई‍
है ।‍सामान्द्यता‍यह‍ववकलसत‍लोकतंत्रों‍तक‍ही‍सीलमत‍है ।‍इसललए, एक‍िाष्र‍की‍समस्याओं‍
को‍ उजागि‍ किते‍ हुए‍ तल
ु ना‍ को‍ महत्त्वपण
ू ‍ष बनाने‍ की‍ आवश्यकता‍ है , ष्जसकी‍ जााँच‍ दस
ू िे ‍
िाष्र‍की‍तल
ु ना‍में ‍पहले‍ही‍की‍जा‍चक
ु ी‍है ।‍एक‍औि‍धचंता‍यह‍है ‍कक‍‘िाजनीततक’ को‍कैसे‍
संर्ाला‍जाए।‍नािीवादी‍ववद्वानों‍ने‍ हमेशा‍िाजनीततक‍की‍परिर्ार्ा‍को‍ववस्तारित‍किने‍ की‍
मााँग‍की‍है , यहााँ‍तक‍कक‍उन‍अनौपचारिक‍संिचनाओं‍को‍र्ी‍शालमल‍ककया‍है ‍जो‍परिर्ावर्त‍
नहीं‍ हैं‍ औि‍ केवल‍ औपचारिक‍ संस्थानों‍ तक‍ सीलमत‍ िहने‍ के‍ बजाय‍ मदहलाओं‍ के‍ दै तनक‍
जीवन‍ का‍ दहस्सा‍ हैं।‍ लेककन‍ कफि‍ र्ी‍ वपछले‍ वर्ों‍ में ‍ औपचारिक‍ संिचनाएाँ‍ र्ी‍ बदली‍ हैं,
इसललए‍ सर्ी‍ चौिाहों‍ को‍ समझना‍ औि‍ जेंडि‍ लैकुना‍ में ‍ तुलनात्मक‍ ववश्लेर्ण‍ को‍ आगे‍
समझने‍के‍ललए‍बािीकी‍से‍सहयोग‍किना‍महत्त्वपूण‍ष है ।‍

136 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

िततववगध

किल्म थलाइवी (2021) दे खें

यह‍कफल्म‍तलमलनाडु‍की‍मुख्यमंत्री‍एम.‍जयलललता‍के‍जीवन‍पि‍आिारित‍है ।‍
यह‍कफल्म‍कफल्म‍स्िाि‍से‍ लेकि‍क्षेत्रीय‍पािी‍में ‍ िाज्य‍के‍एक‍िाजनेता‍तक‍की‍
उनकी‍ यात्रा‍ को‍ दशाषती‍ है ।‍ क्षेत्रीय‍ दलों‍ ने‍ कई‍ मदहला‍ मुख्यमंत्रत्रयों‍ का‍ समथषन‍
ककया‍ है , उदाहिण‍ के‍ ललए‍ उत्ति‍ प्रदे श, पष्श्चम‍ बंगाल‍ औि‍ तलमलनाडु‍ में ‍ सर्ी‍
क्षेत्रीय‍िाजनीततक‍दलों‍की‍मदहला‍मुख्यमंत्री‍हैं।

1.6 राजनीततक प्रतततनगधत्व : सरकार और राजनीतत में महहलाएाँ

िाजनीततक‍ र्ागीदािी‍ को‍ जागरूक‍ नागरिक‍ या‍ उनके‍ िाजतनततक‍ ज्ञान‍ से‍ परिर्ावर्त‍ ककया‍
जाता‍ है ।‍ अथाषत‍ जो‍ लोग‍ जनता‍ से‍ संबंधित‍ मुद्दों‍ के‍ बािे ‍ में ‍ अधिक‍ िाय‍ िखते‍ हैं, वे‍
अधिक‍सहर्ागी‍होते‍हैं।‍तथ्य‍यह‍है ‍कक‍जो‍लोग‍र्ाग‍लेते‍हैं‍उनके‍पास‍उपयुक्त‍ज्ञान‍र्ी‍
है ।‍ मदहलाओं‍ की‍ र्ागीदािी‍ िाजनीतत‍में ‍ एक‍ महत्त्वपूण‍ष उपक्षेत्र‍है ।‍ यह‍ ददखाता‍है ‍ कक‍कैसे‍
उदाि‍लोकतंत्र‍वविायक‍के‍रूप‍में ‍ मदहलाओं‍ की‍र्ागीदािी‍को‍बढ़ाते‍ हैं‍ औि‍उनका‍तनिीक्षण‍
किते‍ हैं।‍इस‍तथ्य‍के‍बावजूद‍1920‍औि‍1920‍के‍दशक‍में ‍ उदाि‍लोकतंत्रों‍में ‍ अधिकांश‍
मदहलाओं‍ को‍ वोि‍ दे ने‍ का‍ अधिकाि‍ ददया‍ गया‍ था‍ लेककन‍ अध्ययनों‍से‍ पता‍ चलता‍ है ‍ कक‍
पुरुर्ों‍की‍तल
ु ना‍में ‍मदहलाओं‍के‍वोि‍दे ने‍की‍संर्ावना‍कम‍थी।‍यह‍अमेरिका‍जैसे‍कई‍दे शों‍
में‍ उलिा‍हुआ‍है ‍ जहााँ‍ 1980‍से‍ 2012‍तक‍मदहलाओं‍ की‍र्ागीदािी‍दृढ़ता‍से‍ ददखाई‍दे ‍ िही‍
थी, हालााँकक‍इन‍लोकतंत्रों‍में ‍ पुरुर्‍मतदाता‍अर्ी‍र्ी‍अधिक‍हैं‍ औि‍बज
ु ुगों‍को‍अधिक‍र्ाग‍
लेने‍ के‍ ललए‍ दे खा‍ जाता‍ है ।‍ पुरुर्ों‍ को‍ िाजनीततक‍ संगठनों‍ पि‍ हावी‍ दे खा‍ जाता‍ है , कई‍
ववकलसत‍ औि‍ ववकासशील‍ दे शों‍ में ‍ उच्च‍ पदों‍ पि‍ आसीन‍ होते‍ हैं‍ औि‍ िाजनीतत‍ के‍ बािे ‍ में ‍
अधिक‍जानकािी‍िखते‍ हैं‍कािण‍यह‍हो‍सकता‍है ‍कक‍िाजनीततक‍रूप‍से‍ करियि‍बढ़ाने‍ वाले‍
व्यवसायों‍में‍ मदहलाएाँ‍ परु
ु र्ों‍की‍तुलना‍में ‍ कम‍ददखाई‍दे ती‍हैं; आत्मववश्वास‍र्ी‍एक‍अन्द्य‍
कािण‍हो‍सकता‍है ‍ औि‍वविातयकाओं‍ को‍अर्ी‍र्ी‍‘ललंग‍संस्थाओं’ के‍रूप‍में ‍ दे खा‍जाता‍है ‍
जहााँ‍ मदहलाओं‍ की‍तुलना‍में ‍ पुरुर्ों‍का‍हस्ताक्षेप‍अधिक‍होता‍है , औि‍तनवाषधचत‍होने‍ पि‍र्ी‍
मदहलाएाँ‍ कम‍ बोलती‍ हैं।‍ कई‍ िाष्रों‍ ने‍ िाजनीतत‍ में ‍ मदहलाओं‍ की‍ र्ागीदािी‍ बढ़ाने‍ के‍ ललए‍

137 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

x
औपचारिक‍तंत्र‍अपनाया‍है , इन्द्हें ‍इस‍प्रकाि‍ववस्तत
ृ ‍ककया‍जा‍सकता‍है —

i. आरक्षक्षत सीटें

सबसे‍ पुिाना‍तंत्र‍जहााँ‍ एक‍िाजनीततक‍दल‍अपने‍ मतों‍के‍अनुपात‍में ‍ मदहला‍उममीदवािों‍के‍


ललए‍सीिों‍का‍आिक्षण‍किता‍है , जीतने‍ वाली‍सीिों‍की‍संख्या‍सीिों‍के‍अधिक‍आिक्षण‍की‍
ओि‍ले‍जाती‍है ।‍उदाहिण‍के‍ललए‍िवांडा‍में ‍वविायक‍के‍रूप‍में ‍सबसे‍अधिक‍मदहलाएाँ‍हैं।

ii. पाटी कोटा

आमतौि‍पि‍यह‍एक‍अन्द्य‍इस्तेमाल‍ककया‍जाने‍ वाला‍तंत्र‍ज्यादाति‍यूिोप‍में ‍ है ‍ जहााँ‍ एक‍


पािी‍ मदहलाओं‍ के‍ ललए‍ कोिा‍ अपनाती‍ है ‍ औि‍ अन्द्य‍ िाजनीततक‍ दल‍ वपछड़ने‍ के‍ डि‍ से‍
प्रकक्रया‍का‍पालन‍किते‍हैं।

iii. ववधायी कोटा

यह‍ हाल‍ ही‍ में ‍ लैदिन‍ अमेरिका‍ में ‍ ववशेर्‍ रूप‍ से‍ ददखाई‍ दे ने‍ वाली‍ एक‍ ववधि‍ है ‍ औि‍ यह‍
पािी‍ कोिा‍ के‍ समान‍ है , केवल‍ यह‍ कानून‍ द्वािा‍ मान्द्यता‍ प्राप्त‍ है ‍ औि‍ सर्ी‍ िाजनीततक‍
दलों‍द्वािा‍इसका‍पालन‍ककया‍जाता‍है ।

यह‍तकष‍ददया‍जाता‍है ‍कक‍आिक्षण‍मदहलाओं‍के‍प्रतततनधित्व‍को‍बढ़ाने‍का‍उपाय‍है ।‍
लेककन‍कुछ‍ दे शों‍में‍ दे खा‍ गया‍है ‍ की‍पािी‍द्वािा‍ददया‍गया‍आिक्षण‍अन्द्य‍वविातयकों‍की‍
तुलना‍ में‍ कम‍ है ।‍ उदाहिण‍ के‍ ललए‍ फ्ांस‍ ने‍ 2000 में ‍ एक‍ कानून‍ पारित‍ ककया, लेककन‍
2012 तक‍मदहला‍वविायकों‍की‍संख्या‍बढ़कि‍केवल‍26 प्रततशत‍हुई‍तथ्य‍यह‍है ‍कक‍पुरुर्ों‍
के‍प्रर्ुत्व‍को‍शायद‍ही‍कर्ी‍चुनौती‍दी‍जाती‍है ।‍लेककन‍इन‍खालमयों‍के‍बावजूद, मदहलाओं‍
को‍बड़े‍ पैमाने‍ पि‍कायाषलय‍या‍िाज्य‍के‍प्रमुख‍के‍रूप‍में ‍ चुना‍जा‍िहा‍है ।‍यह‍तकष‍वविायी‍
कोिा‍का‍समथषन‍किता‍है , इस‍अथष‍ में ‍ कक‍यदद‍एक‍मदहला‍को‍िाज्य‍में ‍ प्रतततनधि‍के‍रूप‍
में‍ चुना‍ जाता‍ है , तो‍ कई‍ अन्द्य‍ दे श‍ ऐसी‍ प्रकक्रया‍ अपनाते‍ हैं‍ जो‍ मदहलाओं‍ को‍ िाजनीततक‍
रूप‍से‍प्रमुख‍के‍रूप‍में ‍प्रोत्सादहत‍किती‍है ।‍कैत्रबनेि‍में‍मदहलाएाँ‍दतु नया‍र्ि‍में ‍बढ़ी‍हैं‍औि‍
क्षेत्र‍में‍िाजनीतत‍औि‍परु
ु र्‍आधिपत्य‍को‍खुले‍तौि‍पि‍चुनौती‍दे ती‍हैं।‍हालांकक‍वे‍तनवाषधचत‍
होती‍हैं, लेककन‍उन्द्हें ‍ ववत्त, िक्षा‍या‍ववदे श‍नीतत‍जैसे‍ क्षेत्रों‍के‍बजाय‍निम‍क्षेत्रों‍के‍रूप‍में ‍
जाना‍जाता‍है ।

138 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

1.7 संयुक्त राज्य अमेररका और महहलाओं की राजनीततक िािीदारी

संयुक्त‍िाज्य‍अमेरिका‍लोकतंत्र‍का‍सबसे‍बड़ा‍उदाहिण‍है ।‍एक‍लोकतांत्रत्रक‍िाज्य‍के‍रूप‍में ‍
यह‍ समझा‍ जाता‍ है ‍ कक‍ िाजनीतत‍ में ‍ मदहलाओं‍ का‍ प्रतततनधित्व‍ शायद‍ इस‍ दे श‍ में ‍ सबसे‍
अधिक‍है ।‍लेककन‍इसके‍ववपिीत‍दतु नया‍के‍अन्द्य‍दे शों‍की‍तुलना‍में ‍ संयुक्त‍िाज्य‍अमेरिका‍
में‍ लगर्ग‍ 17.1‍ प्रततशत‍ मदहलाओं‍ का‍ िाजनीतत‍ में‍ प्रतततनधित्व‍ है ।‍ दे श‍ पुरुर्ों‍ औि‍
मदहलाओं‍ के‍ बीच‍ समान‍ अधिकािों‍ की‍ गािं िी‍ नहीं‍ दे ता‍ है ‍ औि‍ जब‍ मदहलाओं‍ के‍
प्रतततनधित्व‍ की‍ बात‍ आती‍ है ‍ तो‍ यह‍ अन्द्य‍ दे शों‍ की‍ तुलना‍ में ‍ 68वें ‍ स्थान‍ पि‍ है ।‍
िाजनीततक‍ व्यवहाि‍ औि‍ जनमत‍ को‍ समझने‍ के‍ दौिान, यह‍ दे खा‍ गया‍ कक‍ औपचारिक‍
कानूनों‍ औि‍ संस्कृततयों‍ के‍ बीच‍ एक‍ ललंग‍ अंति‍ है ‍ औि‍ दख
ु ‍ की‍ बात‍ है ‍ कक‍ मदहलाओं‍ ने‍
पुरुर्ों‍की‍तुलना‍में‍ अधिक‍रूदढ़वादी‍रूप‍से‍ मतदान‍ककया।‍इन‍लैंधगक‍अंतिों‍ने‍ हाल‍ही‍में‍
मीडडया‍ घिानों‍ द्वािा‍ अत्यधिक‍ ध्यान‍ आकवर्षत‍ ककया‍ है ‍ औि‍ ववद्वानों‍ ने‍ अथषशास्त्र,
समाजीकिण‍ औि‍ िाजनीतत‍ के‍ आिाि‍ पि‍ लैंधगक‍ अंतिाल‍ पि‍ अपने‍ लसद्िांतों‍ को‍ सामने‍
िखा‍ है ।‍ संिचनात्मक‍ संिचना‍ औि‍ औद्योगीकिण‍ के‍ बाद‍ मदहलाओं‍ के‍ दृष्ष्िकोण‍ में ‍
परिवतषन‍दे खा‍गया‍है ।‍मदहलाओं‍ के‍वोि‍के‍मुद्दे ‍ को‍दे ि‍से‍ महत्त्व‍लमला‍है ‍ औि‍ववद्वानों‍
का‍तकष‍है ‍ कक‍कायषकताषओं‍ औि‍नेताओं‍ द्वािा‍इसका‍उपयोग‍किने‍ के‍तिीके‍के‍आिाि‍पि‍
यह‍मायावी‍औि‍वास्तववक‍हो‍सकता‍है ।‍जब‍लैंधगक‍अंतिाल‍औि‍सावषजतनक‍नीतत‍की‍बात‍
आती‍है ‍ तो‍इसके‍औि‍उल्लेखनीय‍परिणाम‍सामने‍ आते‍ है ।‍यह‍तकष‍ददया‍जा‍िहा‍है ‍ कक‍
सावषजतनक‍ क्षेत्र‍ की‍ नौकरियों‍ में ‍ बेिोजगािी‍ की‍ बात‍ आने‍ पि‍ मदहलाएाँ‍ सिकाि‍ से‍ अधिक‍
गंर्ीि‍होने‍ की‍उममीद‍किती‍हैं‍क्योंकक‍वे‍ र्ी‍वेिोजगािी‍के‍नक
ु सान‍का‍मक
ु ाबला‍किती‍हैं।
यही‍नक
ु सान‍लोकतंत्रीकिण‍औि‍परिवाि‍की‍संिचना‍के‍तथ्य‍में ‍ र्ी‍दे खा‍जाता‍है ।‍श्रम‍का‍
लैंधगक‍ ववर्ाजन‍ परिवाि‍ की‍ संिचना‍ के‍ र्ीति‍ र्ी‍ दीखता‍ है , इसके‍ साथ‍ जब‍ एक‍ मदहला‍
वेतन‍श्रम‍नौकिी‍में ‍ शालमल‍होती‍है‍तो‍लैंधगक‍समानता‍नहीं‍होती‍है ।‍तुलनात्मक‍अध्ययन‍
में‍ मदहलाओं‍ औि‍ लोकतंत्रीकिण‍ पि‍ उन‍ के‍ द्वािा‍ र्ी‍ अंतिालों‍ को‍ दे खा‍ गया‍ है ‍ जो‍
मदहलाओं‍के‍अधिकािों‍औि‍लोकतंत्र‍का‍समथषन‍किते‍हैं।‍क्योंकक‍एक‍िनम‍यह‍है ‍कक‍पुरुर्‍
मदहलाओं‍ की‍तुलना‍में‍ बेहति‍नेता‍चुनते‍ हैं, यह‍एक‍ऐसा‍समथषन‍है ‍ ष्जसे‍ दतु नया‍र्ि‍में ‍
दे खा‍गया‍है।‍जबकी‍इसके‍ववपिीत‍जैलसंडा‍अडषन‍ष के‍मामले‍ में ‍ हाललया‍अवलोकन‍न्द्यूजीलैंड‍
िाज्य‍ के‍ प्रमुख‍ के‍ रूप‍ में ‍ चुने‍ गए‍ औि‍ कल्याणवाद‍ पि‍ उनके‍ अनुकिणीय‍ रुख‍ औि‍
आतंकवाद‍के‍र्खलाफ‍दतु नया‍र्ि‍में ‍मदहलाओं‍का‍समथषन‍है ।‍इक्कीसवीं‍सदी‍में ‍कई‍मदहला‍

139 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

नेता‍ उर्ि‍ कि‍ सामने‍ आई‍ हैं‍ ष्जन्द्होंने‍ नीततयों‍ औि‍ तनणषय‍ लेन‍े में ‍ बदलाव‍ ककया‍ है ‍ औि‍
अपने‍मजबूत‍नेतत्ृ व‍का‍दावा‍ककया‍है ।xi

केश स्टडी

उदाहिण‍ के‍ ललए‍ र्ाित‍ को‍ चुनें‍ औि‍ आजादी‍ के‍ बाद‍ से‍ संसद‍ में ‍ मदहला‍
वविायकों‍ की‍ संख्या‍ का‍ तनिीक्षण‍ किें ।‍ कफि‍ र्ाित‍ के‍ एक‍ िाज्य‍ में ‍ एक‍ गााँव‍
चुनें‍औि‍वपछले‍एक‍दशक‍में ‍मदहला‍उममीदवािों‍का‍ववश्लेर्ण‍किने‍का‍प्रयास‍
किें ।‍ क्या‍ आपने‍ मदहला‍ वविायकों‍ या‍ मदहला‍ प्रमुखों‍ के‍ उत्थान‍ या‍ पतन‍ पि‍
ध्यान‍ ददया‍ है ।‍ क्या‍ आप‍ कोलशश‍ कि‍ सकते‍ हैं‍ औि‍ कािणों‍ को‍ समझ‍ सकते‍
हैं? क्या‍यह‍मदहला‍लशक्षा, मदहलाओं‍ का‍डि, पािं परिक‍व्यवस्था‍में‍ मदहलाओं,
परिवािों‍ या‍ िाजनीततक‍ संगठनों‍ द्वािा‍ मदहलाओं‍ को‍ कम‍ या‍ उनके‍ द्वािा‍
अधिक‍प्रोत्सादहत‍ककया‍जाता‍है ? कोलशश‍किें ‍ औि‍कािणों‍को‍समझें‍ औि‍यदद‍
आप‍कोलशश‍कि‍सकते‍हैं‍औि‍ककसी‍अन्द्य‍दे श‍के‍साथ‍तुलना‍किे ।

1.8 िारत और महहलाओं की राजनीततक िािीदारी

र्ाितीय‍ सवविान‍ प्रत्येक‍ व्यष्क्त‍ के‍ िाजनीततक‍ अधिकािों‍ की‍ गािं िी‍ दे ता‍ है ।‍ तथा‍ उसके‍
कायाषत्मक‍लोकतंत्र‍को‍काफी‍हद‍तक‍इस‍तथ्य‍से‍ दे खा‍जा‍सकता‍है ‍ कक‍दे श‍जातत, वगष,
ललंग, िमष‍के‍बावजूद‍प्रत्येक‍नागरिक‍को‍वोि‍दे ने‍के‍अधिकाि‍की‍गािं िी‍दे ता‍है ।‍र्ाित‍में ‍
तनिक्षिता‍ औि‍ प्राच्यवादी‍ तकष‍ के‍ बावजूद, र्ाित‍ ने‍ लोकतंत्र‍ को‍ सहर्ागी‍ बनाकि‍ वयस्क‍
मताधिकाि‍ के‍ माध्यम‍ से‍ एक‍ बड़ा‍ कदम‍ उठाया।‍ लेककन‍ यह‍ अलग‍ प्रश्न‍ है ‍ की‍ र्ागीदािी‍
ककतनी‍दिू ‍तक‍सफल‍िही‍है ? िाजनीततक‍र्ागीदािी‍प्रत्येक‍नागरिक‍के‍मुद्दों‍को‍समझने‍
औि‍लोकतंत्रीकिण‍की‍प्रकक्रया‍को‍सफल‍बनाने‍की‍कंु जी‍है ।‍अधिकति‍यह‍दे खना‍महत्त्वपूण‍ष
है ‍कक‍र्ाित‍जैसे‍ववववि‍िाष्र‍में, लोकतंत्रीकिण‍प्रकक्रया‍में ‍प्रत्येक‍नागरिक‍को‍कैसे‍ शालमल‍
ककया‍जाता‍है ? र्ाित‍ने‍वंधचतों‍को‍कई‍अधिकािों‍की‍गािं िी‍दी‍है ‍औि‍साथ‍में ‍िाजनीततक‍
कायाषलयों‍में ‍उत्थान‍औि‍मदहलाओं‍के‍प्रतततनधित्व‍के‍ललए‍योजनाओं‍की‍गािं िी‍र्ी‍दी‍है ।

र्ाित‍में‍दो‍से‍अधिक‍कायषकाल‍के‍ललए‍एक‍मदहला‍प्रिानमंत्री‍िही‍है ।‍वतषमान‍ववत्त‍

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

मंत्री‍ एक‍ मदहला‍ हैं।‍ आाँकड़े‍ बताते‍ हैं‍ कक‍ वपछले‍ कुछ‍ सालों‍ में ‍ संसद‍ में ‍ मदहलाओं‍ का‍
प्रतततनधित्व‍बढ़ा‍है ।‍पहले‍लोकसर्ा‍चुनाव‍में‍केवल‍5‍प्रततशत‍मदहलाएाँ‍थीं, जबकक‍सोलहवीं‍
लोकसर्ा‍में ‍ मदहला‍प्रतततनधियों‍की‍संख्या‍में ‍ 11‍प्रततशत‍की‍वद्
ृ धि‍दे खी‍गई।‍वविातयका‍
में‍ मदहलाओं‍ के‍ ललए‍ सीिें ‍ आिक्षक्षत‍ किने‍ के‍ कई‍ प्रयास‍ ककए‍ गए‍ हैं।‍ मदहला‍ आिक्षण‍
वविेयक‍2008‍में ‍पेश‍ककया‍गया‍था‍औि‍2013‍में ‍ लोकसर्ा‍के‍ववघिन‍के‍कािण‍समाप्त‍
हो‍ गया‍ था।xii‍ लोकसर्ा‍ औि‍ िाज्य‍ वविानसर्ाओं‍ में ‍ मदहलाओं‍ के‍ ललए‍ कम-से-कम‍ 33‍
प्रततशत‍ सीिें ‍ आिक्षक्षत‍ किने‍ का‍ प्रयास‍ ककया‍ गया‍ था।‍ इस‍ वविेयक‍ में ‍ िाजनीतत‍ में ‍
वपतस
ृ त्तात्मक‍आधिपत्य‍को‍दे खते‍ हुए‍कई‍वविोि‍दे खे‍ गए‍हैं।‍इस‍बात‍पि‍बहस‍होती‍िही‍
है ‍कक‍चाँकू क‍र्ाित‍एक‍ववववितापूण‍ष दे श‍िहा‍है , इसललए‍जब‍मदहला‍आिक्षण‍की‍बात‍आती‍
है ‍ तो‍ कोिा‍ के‍ र्ीति‍ एक‍ कोिा‍ होना‍ चादहए।‍ अन्द्य‍ लोगों‍ ने‍ यह‍ र्ी‍ दे खा‍ है‍ कक‍ यदद‍
आिक्षण‍ददया‍जाता‍है ‍तो‍अलर्जात‍वगष‍की‍मदहलाओं‍का‍केवल‍एक‍तनष्श्चत‍वगष‍ही‍इससे‍
लार्ाष्न्द्वत‍होगा‍औि‍सीमांत‍मदहलाओं‍को‍अर्ी‍र्ी‍नुकसान‍होगा।

कफि‍र्ी, गााँव‍में‍मदहलाओं‍के‍प्रतततनधित्व‍के‍ललए‍प्राविान‍ककए‍गए‍हैं, ष्जससे‍यह‍


ववकेंरीकृत, समावेशी‍औि‍मदहलाओं‍ को‍बड़े‍ अनुपात‍में ‍ प्रतततनधित्व‍ददया‍जा‍सके‍तथा‍वह‍
तनणषय‍ लेने‍ औि‍ िाजनीततक‍ प्रकक्रया‍ का‍ दहस्सा‍ बन‍ सके।‍ 73वााँ‍ संशोिन‍ अधितनयम‍ ग्राम‍
पंचायतों‍ में ‍ मदहलाओं‍ के‍ ललए‍ एक‍ ततहाई‍ सीिों‍ को‍ आिक्षक्षत‍ किना‍ अतनवायष‍ बनाता‍ है।‍
इसके‍बावजूद, ववफलताएाँ‍र्ी‍दे खी‍गई‍हैं‍जहााँ‍कुछ‍क्षेत्रों‍में ‍मदहलाओं‍को‍सिपंच/ग्राम‍प्रिान‍
के‍रूप‍में‍ ग्राम‍स्ति‍पि‍चुना‍जाता‍है ‍ लेककन‍शासन‍पुरुर् (उनके‍परिवाि‍के‍सदस्य)‍द्वािा‍
ककया‍जाता‍है ।xiii

तल
ु नात्मक‍ िाजनीतत‍ में ‍ लैंधगक‍ अंतिाल‍ के‍ अध्ययन‍ में‍ एक‍ महत्त्वपण
ू ‍ष योगदान‍
िाजनीततक‍ दलों‍ औि‍ चन
ु ावी‍ प्रणाललयों‍ को‍ समझने‍ में ‍ है ।‍ ककसी‍ र्ी‍ अन्द्य‍ दे श‍ की‍ तिह‍
र्ाित‍में‍ िाजनीततक‍दल‍मदहला‍प्रतततनधि‍को‍नालमत‍किने‍ या‍चन
ु ने‍ में ‍ महत्त्वपण
ू ‍ष र्लू मका‍
तनर्ाते‍ हैं।‍ किे न‍ बेकववथ‍ के‍ अनस
ु ाि, पािं परिक‍ अनस
ु ंिान‍ तल
ु नात्मक‍ िाजनीतत‍ में ‍
िाजनीततक‍ परिणामों‍ औि‍ िाजनीततक‍ दलों‍ की‍ र्ूलमका‍ की‍ अनदे खी‍ किता‍ है ।‍ उममीदवाि‍
चयन‍के‍दौिान‍पािी‍की‍संिचना, वे‍ ष्जस‍क्षेत्र‍से‍ चुनाव‍लड़‍िहे ‍ हैं, जातत, िमष, सामाष्जक‍
संिचना‍सर्ी‍को‍ध्यान‍में ‍ िखा‍जाता‍है ।‍र्ाित‍में ‍ कई‍िाजनीततक‍दल‍उममीदवाि‍चयन‍के‍
ललए‍ अपने‍ परिवािों‍ के‍ कनेक्शन‍ पि‍ र्िोसा‍ किते‍ हैं।‍ एक‍ ववचाििािा‍ र्ी‍ है ‍ ष्जसे‍ शायद‍
उममीदवािों‍का‍चयन‍किते‍ समय‍ध्यान‍में ‍ िखा‍जाता‍है ।‍संिचनाएं‍ क्षेत्रीय‍िाजनीततक‍दलों‍

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

की‍ तुलना‍ में ‍ बड़े‍ िाजनीततक‍ दलों‍ को‍ सुवविा‍ प्रदान‍ किती‍ हैं।‍ क्षेत्रीय‍ िाजनीततक‍ दलों‍ में ‍
मदहलाओं‍के‍चयन‍के‍आाँकड़े‍लगर्ग‍नगण्य‍हैं।‍मोना‍लीना‍क्रूक‍द्वािा‍ददया‍गया‍समािान‍
कोिा‍है ‍ लेककन‍जैसा‍कक‍पहले‍ दे खा‍गया‍है ‍ कक‍वपतस
ृ त्तात्मक‍संिचनाओं‍ में ‍ कोिा‍लागू‍ होने‍
के‍बावजूद‍कम‍कायाषत्मक‍है ।

र्ाित‍में‍ र्ी‍िाजनीतत‍में‍ मदहलाओं‍ को‍कम‍प्रोत्सादहत‍ककया‍जाता‍है ‍ जहााँ‍ रिश्तेदािी‍


औि‍परिवाि‍एक‍महत्त्वपण
ू ‍ष र्लू मका‍तनर्ाते‍हैं।‍कुछ‍ही‍समह
ू ‍केवल‍मदहलाओं‍ को‍प्रोत्सादहत‍
किते‍ हैं‍ औि‍मदहलाओं‍ की‍र्ागीदािी‍को‍प्रोत्सादहत‍किने‍ के‍ललए‍िाजनीततक‍दलों‍के‍र्ीति‍
ववलर्न्द्न‍मदहलाओं‍के‍िाजनीततक‍संगठन‍बनाए‍हैं।

कुछ‍र्ाितीय‍िाज्यों‍में‍ मदहलाओं‍ के‍प्रतततनधित्व‍में‍ वद्


ृ धि‍दे खी‍गई‍है ‍ जबकक‍अन्द्य‍
में‍ न्द्यूनतम‍ प्रतततनधित्व‍ है ।‍ िाज्यों‍ ने‍ िाजनीतत‍ में ‍ मदहलाओं‍ की‍ र्ागीदािी‍ को‍ प्रोत्सादहत‍
किने‍ के‍ललए‍आिक्षण‍बढ़ाया‍है ।‍केिल‍की‍स्थानीय‍सिकािों‍में ‍ मदहलाओं‍ का‍प्रतततनधित्व‍
सबसे‍अधिक‍है ।‍इसने‍2010‍में ‍एक‍योजना‍लागू‍की‍ष्जसमें ‍जमीनी‍स्ति‍पि‍मदहलाओं‍को‍
पचास‍प्रततशत‍आिक्षण‍ददया‍गया।‍इससे‍ िाज्य‍में ‍ मदहलाओं‍ की‍र्ागीदािी‍बढ़ी‍है ।‍ओडडशा‍
िाज्य‍ ने‍ स्थानीय‍ सिकाि‍ में ‍ मदहलाओं‍ के‍ ललए‍ तैंतीस‍ प्रततशत‍ आिक्षण‍ लागू‍ ककया‍ है ।‍
िाजस्थान‍ने‍1994‍में ‍जमीनी‍स्ति‍पि‍मदहलाओं‍के‍ललए‍पचास‍प्रततशत‍सीिें ‍आिक्षक्षत‍कीं,
ष्जससे‍मदहलाओं‍को‍िाजनीतत‍में ‍र्ाग‍लेने‍के‍ललए‍प्रोत्साहन‍लमला।‍तलमलनाडु‍ने‍1996‍में ‍
स्थानीय‍सिकाि‍में ‍मदहलाओं‍को‍पचास‍प्रततशत‍सीिें ‍प्रदान‍कीं, इसके‍बाद‍2006‍में‍त्रबहाि‍
ने‍स्थानीय‍स्ति‍पि‍समान‍नीतत‍को‍शालमल‍ककया।

र्ाितीय‍ िाज्यो‍ ने‍ आगे‍ कुछ‍ ऐसी‍ योजनाएाँ‍ बनाई‍ हैं‍ जो‍ र्ाित‍ में ‍ मदहलाओं‍ के‍
उत्थान‍के‍ललए‍प्रर्ावशील‍िही‍है ‍जैसे—

बेटी बचाओ बेटी पढाओ‍ को‍ 2015‍ में ‍ ललंग‍ अनप


ु ात‍ को‍ संबोधित‍ किने‍ औि‍
बाललकाओं‍के‍ललए‍लशक्षा‍को‍बढ़ावा‍दे ने‍के‍ललए‍लॉन्द्च‍ककया‍गया‍था।

सुकन्या समद्
ृ गध योजना‍2015‍में ‍ शुरू‍की‍गई‍ष्जसमे‍ माता-वपता‍द्वािा‍बाललकाओं‍
के‍ललए‍लशक्षा‍औि‍बचत‍को‍बढ़ावा‍दे ने‍का‍प्राविान‍ककया‍गया‍

स्वच्छ िारत अभियान‍ 2014‍ में ‍ मदहलाओं‍ के‍ ललए‍ स्वच्छता‍ सुवविाओं‍ को‍ ववशेर्‍
ध्यान‍दे ने‍के‍साथ‍शुरू‍ककया‍गया‍यह‍एक‍िाष्रीय‍अलर्यान‍है ।

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

महहला ई-हाट‍की‍शुरुआत‍2016‍में ‍की‍गई‍थी। ष्जसमें ‍मदहला‍उद्यलमयों‍को‍बढ़ावा‍


दे ने‍औि‍उन्द्हें ‍एक‍ऑनलाइन‍माकेदिंग‍प्लेिफॉमष‍प्रदान‍किने‍के‍ललए‍प्रयास‍ककया‍गया‍है ‍

1.9 तनष्कषट

िाजनीतत‍में‍ जेंडि‍लैकुना‍सबसे‍ कम‍अशोधित‍क्षेत्र‍है ।‍जबकक‍यह‍अध्ययन‍यह‍समझने‍ में ‍


महत्त्वपण
ू ‍ष है‍ कक‍ ववलर्न्द्न‍ दे शों‍ में ‍ ककतनी‍ मदहलाओं‍ का‍ प्रतततनधित्व‍ ककया‍ गया‍ है ‍ औि‍
उन्द्होंने‍ इसे‍ कैसे‍ बनाया‍ है ? िाज्य‍ औि‍ नीतत‍ तनमाषताओं‍ से‍ उन्द्हें ‍ ककस‍ स्ति‍ का‍ समथषन‍
लमला‍ है ? पिं पिागत‍ औि‍ मानदं डों‍ ने‍ उनके‍ मतदान‍ औि‍ िाजनीततक‍ व्यवहािों‍ को‍ कैसे‍
संिधचत‍ककया‍है ? िाजनीतत‍में ‍मदहलाओं‍के‍ववश्लेर्ण‍के‍ऐसे‍प्रयास‍किने‍में ‍मदहला‍संघिन‍
की‍क्या‍र्ूलमका‍है ? ज्यादाति‍यह‍अध्ययन‍एक‍उपक्षेत्र‍के‍रूप‍में ‍सीलमत‍है ‍न‍की‍एक‍पूण‍ष
अध्ययन‍के‍रूप‍में ।‍साथ‍ही‍उन‍नािीवादी‍दृष्ष्िकोणों‍को‍समझना‍र्ी‍महत्त्वपूण‍ष है , ष्जन्द्होंने‍
लंबे‍ समय‍ से‍ मदहलाओं‍ को‍ हालशये‍ से‍ ऊपि‍ उठाने‍ औि‍ उन्द्हें ‍ मुख्यिािा‍ में ‍ लाने‍ के‍ ललए‍
संघर्ष‍ ककया‍ है ।‍ ववलर्न्द्न‍ िाष्रों‍ के‍ उदाहिणों‍ को‍ ललंग‍ तनिाषिण‍ की‍ कमी‍ में ‍ ध्यान‍ में ‍ िखा‍
जाना‍ चादहए‍ क्योंकक‍ कुछ‍ ववकलसत‍ दे श‍ लोकतांत्रत्रक‍ होने‍ के‍ बावजूद‍ मदहलाओं‍ को‍ सबसे‍
आगे‍िखने‍में ‍ववफल‍िहे ‍हैं‍औि‍अन्द्य‍ववकासशील‍िाष्र‍होने‍के‍बावजूद‍वविायक‍के‍रूप‍में ‍
अधिक‍मदहलाएाँ‍ हैं।‍उदाहिणों‍से‍ पता‍चला‍है ‍ कक‍मदहलाएाँ‍ अथषशास्त्र‍के‍मुद्दों‍पि‍अधिक‍
सवाल‍ किती‍ हैं, एक‍ ऐसा‍ क्षेत्र‍ ष्जसे‍ पुरुर्‍ प्रिान‍ माना‍ जाता‍ है ‍ औि‍ ववदे शी‍ मामलों‍ के‍
कायाषलय, ववत्त‍ औि‍ समाज‍ के‍ सामान्द्य‍ अच्छे ‍ के‍ ललए‍ कल्याणवाद‍ को‍ शालमल‍ किने‍ में ‍
अनुकिणीय‍िही‍हैं।‍जबकक‍िाज्य‍की‍संिचनाएाँ‍ मजबूत‍हैं‍ औि‍हावी‍हैं, ववकासशील‍होने‍ के‍
बावजूद‍ मदहला‍ उममीदवािों‍ ने‍ शायद‍ कुछ‍ दे शों‍ में ‍ सफलता‍ हालसल‍ की‍ है ।‍ एक‍ संपूण‍ष
तुलनात्मक‍ िाजनीततक‍ ववश्लेर्ण‍ किना‍ औि‍ यह‍ प्रकाश‍ में ‍ लाना‍ महत्त्वपूण‍ष है ‍ कक‍
प्रतततनधित्व‍कम‍क्यों‍है ‍ क्योंकक‍तर्ी‍लोकतंत्रीकिण‍की‍प्रकक्रया‍सफल‍होगी।‍एक‍समावेशी‍
दृष्ष्िकोण‍जो‍मुद्दों‍की‍र्ीड़‍को‍ध्यान‍में‍ िखता‍है ‍ औि‍अन्द्तववषर्ाजक‍वैन‍ललंग‍की‍कमी‍
को‍दिू ‍किता‍है ‍औि‍मदहलाओं‍के‍प्रतततनधित्व‍को‍बढ़ाता‍है

तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ में‍ लैंधगकता‍ अंतिाल‍ औि‍ र्ाितीय‍ िाजनीतत‍ में ‍ मदहलाओं‍ का‍
कम‍ प्रतततनधित्व‍ जदिल‍ मुद्दे ‍ हैं‍ ष्जनके‍ ललए‍ सूक्ष्म‍ औि‍ अंतःववर्य‍ ववश्लेर्ण‍ की‍
आवश्यकता‍ है ।‍ िाजनीततक‍ ववश्लेर्ण‍ इन‍ मद्
ु दों‍ को‍ समझने‍ औि‍ मदहलाओं‍ के‍ बढ़ते‍
िाजनीततक‍प्रतततनधित्व‍के‍ललए‍समािानों‍की‍पहचान‍किने‍ के‍ललए‍एक‍मूल्यवान‍रूपिे खा‍

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© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
बी.ए. (ऑनर्स) राजनीततक तिज्ञान

प्रदान‍किता‍है ।‍अधिक‍समावेशी‍औि‍अंतःववर्य‍दृष्ष्िकोण‍अपनाने‍से, िाजनीततक‍ववश्लेर्ण‍


लैंधगक‍कमी, लैंधगक‍अंति‍को‍दिू ‍किने‍औि‍समानता‍को‍बढ़ाने‍में ‍मदद‍कि‍सकता‍है ।

1.10 अभ्यास प्रश्न

1. ललंग‍अंतिाल (जेंडि‍लैकुना)‍शब्द‍से‍आप‍क्या‍समझते‍हैं?

2. तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ में ‍ मदहला‍ िाजनीततक‍ ववश्लेर्ण‍ पि‍ मुख्यिािा‍ का‍ तकष‍ औि‍
जेडि‍शोिकताषओं‍का‍तकष‍क्या‍है ?

3. तल
ु नात्मक‍अध्ययन‍सादहत्य‍में ‍ललंग‍अन्द्तिाल‍को‍समझने‍में‍क्या‍समस्याएाँ‍हैं?

4. सिकाि‍औि‍िाजनीतत‍में ‍ मदहलाओं‍ के‍िाजनीततक‍प्रतततनधित्व‍से‍ आप‍क्या‍समझते‍


हैं?

5. क्या‍ आपको‍ लगता‍ है ‍ कक‍ तुलनात्मक‍ िाजनीतत‍ में ‍ जेंडि‍ की‍ कमी‍ को‍ समझने‍ के‍
ललए‍मदहलाओं‍के‍आंदोलन‍महत्त्वपण
ू ‍ष हैं क्यों?

1.11 संदिट-सच
ू ी

• Baldez, Lisa (2010)‍ Symposium, The Gender Lacuna in Comparative


Politics. March 10, Vol. 8/No. 199-205.

• Baldez, Lisa (2008), “Political Women in Comparative Democracies A


Primer for‍ Americanist” in Political Women and American Democracy
Baldez, Lisa,‍Beckwith, Karen‍and Wolbrecht, Christina ed., Cambridge
University Press.

• Beckwith, Karen (2010)‍ Comparative Politics and the Logics in


Comparative Politics of‍ gender. American Political Science
Assosciation. Vol. 8, No. 1‍(March 2010), pp. 159-168.

• Frogee Brief, 2021, “Women in Politics: Why Are They Under-


represented?”, March 8.https://freepolicybriefs.org/2021/03/08/women-in-
politics/

144 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय
तुलनात्मक राजनीततक तिश्लेषण में तरीके और दृतिकोण

• Hague, Rod, Martin Harrop and Mc Cormick (2019), Political


Participation in Comparative‍ Government and Politics: An Introduction
(11 th Edition), Red Globe Press. Pp. 223-225.

• Krook Mona Lena (2011):‍ Gendering Comparative Politics:


Achievements and Challenges,‍Politics and Gender 7‍(1), pp. 99-105.

• Krook, Mona Lena (2009)‍Quotas for Women In Politics: Gender and


Candidate Selection‍Reform Worldwide OUP, New York.

i
Baldez, Lisa (2010) Symposium, The Gender Lacuna in Comparative Politics. March 10, Vol. 8/No. 199-205.
ii
Sue Tolleson Rinehard and Sue Carroll point out in Baldez, Lisa (2010) Symposium, The Gender Lacuna in‍
Comparative Politics. March 10, Vol. 8/No. 199-205.
iii
Georgina Waylen in ibid
iv
Baldez, Lisa (2010) Symposium, The Gender Lacuna in Comparative Politics. March 10, Vol. 8/No. 199-205.
v
Ibid
vi
Vijaisri Priyadarshni (2004), Recasting the Devadasi: Patterns of Sacred Prostitution in Colonial South India,
Kanishka Publisher, New Delhi.
vii
Karen beckwith in Krook Mona Lena (2011): Gendering Comparative Politics: Achievements and Challenges,
Politics and Gender 7 (1), pp. 99-105.
viii
Teri Caraway 2010; Schwindt-Bayer 2010 in ibid
ix
Ibid
x
As per the UN sponsored Beijing Platform for Action, 1995
xi
https://thenewsmen.co.in/photos/ten-women-prime-ministers-in-the-world-who-are-currently-
serving/31373-2156
xii
Madhavan, M.R (2017), “Parliament” in Kapur, Devesh, Mehta, Pratap Bhanu, and Vaishnav, Milan,
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xiii
Pai Sudha, 1998, “ Pradhanis in New Panchayats: Firld Notes from Meerut District”, Economic and Political
Weekly, Vol. 33, Issue No. 18, 02 May.

145 | पष्ृ ठ

© दरू स्थ एवं सतत् शिक्षा शवभाग, मक्


ु ‍त‍शिक्षा पररसर, मक्ु ‍त‍शिक्षा शवद्यालय, शदल्ली शवश्‍वशवद्यालय

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