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Unit 1 - 2
Unit 1 - 2
University of Delhi
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fnYyh fo'ofo|ky;
All UG Courses
Ability Enhancement Courses (AEC)
lsesLVj-II
dkslZ ØsfMV-2
संपादक-मंडल
ो. भवानी दास, डॉ. राजकुमार शमा
पा य-साम ी-लेखक
डॉ. हमांशी ीवा तव
डॉ. अ नल कुमार, डॉ. सीमा रानी, डॉ. द नदयाल,
ो. भवानी दास
शै णक सम वयक
दी ा त अव थी
Published by:
Department of Distance and Continuing Education under
the aegis of Campus of Open Learning/School of Open Learning,
University of Delhi, Delhi-110 007
Printed by:
मु त िश ा िव ालय, द ली िव विव ालय
वतमान अ ययन साम ी क इकाई 1 (पाठ-1) एवं इकाई 2 (पाठ 1) पवू सी.बी.सी.एस. सेमे टर िस टम के तहत पहले से
उपल ध अ ययन-साम ी का संशोिधत सं करण ह। इकाई 1 (पाठ 2), इकाई 2 (पाठ 2, 3 एवं 4) एन.ई.पी. के तहत नये
पाठ्य म के अनसु ार िलखी भी गई ह और िलखवाई भी गई ह।
व-िश ण साम ी (एस.एल.एम.) म वैधािनक िनकाय, डीय/ू िहतधारक ारा तािवत सधु ार/संशोधन/ सझु ाव अगले सं करण
म शािमल िकए जाएँगे। हालाँिक, ये सधु ार/संशोधन/सझु ाव वेबसाइट https://sol.du.ac.in पर अपलोड कर िदए जाएँगे। कोई
भी िति या या सझु ाव ईमेल- feedbackslm@col.du.ac.in पर भेजे जा सकते ह।
हदी भाषा : सं ष
े ण और संचार ( हदी-क)
अ ययन-साम ी : इकाई (1-2)
िवषय-सूची
इकाई 1 सं ेषण : सामा य प रचय
पाठ 1 : सं ेषण की अवधारणा और उसकी ले खका: डॉ. िहमां शी ीवा तव 1-17
ि या
पाठ 2 : सं ेषण और संचार तथा सं ेषण के लेखक : डॉ. अिनल कुमार 18-33
िविवध आयाम
इकाई 2 सं ेषण और संचार के िविवध प
पाठ 1 : सं ेषण के कार ले खका: डॉ. सीमा रानी 34-45
पाठ 2 : सव ण आधा रत ितवे दन ( रपोट) लेखक: डॉ. दीनदयाल 46-62
तैयार करना, संभािवत िवषय:
(कोरोना और मानिसक वा य,
ि ो जाग कता अिभयान, कूड़ा
िन तारण योजना)
पाठ 3 : लेखन के िविवध प-अनु छे द- लेखक: डॉ. दीनदयाल 63-78
लेखन, संवाद-लेखन, डायरी,
लॉग-लेखन
पाठ 4 : संपादकीय लेखन ले खका : ो. भवानी दास 79-90
1 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
2 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
'Communication' Communication
Communies to share, to transmit, to exchange
To share, to transmit to exchange
To share
to transmit-
To Exchange–
Communis To
Share-
To Impart –
To Transmit-
To make Common
Common-
ß
3 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
“Communication
Communication is the broad field of human interchange of
facts and opinions and not the technologies of telegraph, radio and the like.
like.”
4 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
Þ
(Exchange)
ß
Ü
L. Ron Hubbard has described Communication in terms of ARC triangle. A stands for
affinity, R for reality and C for Communication. Communication in ARC Triangle has been
stated to be the most important in understanding the composition of human relations and thus
human life. ARC
R C
ARC
R C
Trenhalin – “In the main, communication has its central interest those behavioral
situations in which a sourcee transmits a message to receiver (s) with conscious intent to alter
the latter’s behavior. Here, the dimension of intentionality underlying communication is the
key lecture involved in the delineation.”
‘To make common’
5 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
(i)
6 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
(ii)
(iii)
(iv)
(v)
7 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
8 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
(communication)
9 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
10 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
11 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
12 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
13 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
14 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
decoding
15 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
16 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
½
½
½
17 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
परे खा
2.1 अ धगम का उ दे य
2.2 तावना
2.3 वषय- वेश एवं ववेचन
2.4 सं ेषण और संचार
2.5 संचार के आधारभत
ू त व
2.5.1 बोध- न
2.6 सं ेषण के आयाम
2.6.1 सूचना- हण एवं सार
2.6.2 सूचना- वशलेषण
2.6.3 सामािजक ान एवं मानव मू य का ेषण
2.6.4 मनोरं जन एवं सं ेषण
2.6.5 श ा दान करना
2.6.6 घटना एवं मु द क या या करना
2.6.7 समाज म एकजुटता लाना
2.7 न कष
2.8 अ यास- न
2.9 संदभ- ंथ
18 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
2.1 अ धगम का उ दे य
2.2 तावना
वचार अ भ यि त और वचार के आदान- दान क भावना के साथ ह मानव समाज
म सं ेषण एवं संचार क या का उ भव और वकास हुआ। सं ेषण और संचार एक
सामािजक या है । इसी लए समाज क सम त सं थाओं, समूह एवं मनु य के म य
सं ेषण एवं संचार होता रहता है । सं ेषण और संचार मा संदेश के आदान-
आदान दान से संबं धत
नह ं है , बि क यह एक- दस
ू रे को पर पर संदेश े षत करने और
हण करने क बहु
आयामी या है । अतः सं ेषण और संचार तथा सं ष
े ण के व वध आयाम से प र चत
होना अ याव यक है िजससे क सं ेषण हे तु इसके आयाम को भावी ढं ग से समझा जा
सके और साथ ह इनके योग म भी द ता ा त क जा सके।
19 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
20 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
इन तीन त व म य द कोई पथ
ृ कता या अलगाव होगा तो संचार यानी सं ेषण क
या पण
ू नह ं हो पाएगी। सं ेषण म अवरोध उ प न हो जाएगा। भावशाल संचार के
लए यह आव यक है क सं ेषण क ा के पास परू सच
ू ना हो। संदेश ाह को सं ेषक पर
21 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
भरोसा होना चा हए। सं ेषक म इतनी यो यता होनी चा हए क वह सूचना का ेषण यानी
संदेश का कोडीकरण ऐसे करे क संदेश हण करने वाला उसे ठ क ठ क उसी प म डीकोड
कर सके यानी समझ सके। संचार कता अपने संदेश को संदेश हण कता तक पहुँचाने के
लए कसी मा यम या चैनल का इ तेमाल करता है । यहाँ एक बात यह भी यान रखने क
है क संचार कता जो संदेश भेजे, वह ऐसा होना चा हए क वह संदेश हण कता क हण
मता के अनु प हो। इस संदभ म सं ेषक के लए यह अ याव यक है क वह यह यान
रख क उसका संदेश, संदेश हण करने वाले पा के लए मह वप
पणू हो। यानी वह
मनोवै ा नक प से उसके नकट हो।संदेश उपयु त एवं युि तयु त हो और वह संदेश ाह
क वयं क च का हो ता क वह संदेश के वषय म अपनी त या यानी उ र दे सके।
22 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
2.5.1 बोध- न
न-1 न न ल खत न के उ र केवल हाँ अथवा नह ं म दो।
(क) सं ेषण तथा संचार एक असामािजक या है । (हाँ/नह ं)
(ख) सं ेषण या एक बहुआयामी या है । (हाँ/नह ं)
(ग) सं ेषण म टू शेयर से आशय है - कसी को अपने भाव से प र चत कराना।
(हाँ/नह ं)
न-2 खाल थान क पू त क िजए -
(क) ‘सं ेषण के तीन आधारभूत त व ह- सं ेषक, ल य और..........
..........। ( ोत, संदेश,
संदेश हता)
(ख) सं ेषण म मा यम से अ भ ाय है - ....................... (िजसक
िजसके वारा व ता
अपने वचार को े षत करता है, हंद , उद)ू
(ग) मानव के ज म लेते ह उसके ....................... से सं ेषण क या शु हो
जाती है । (खाने
खाने-पीने, रोने-हँसने, दध
ू पीने)
न-3 न न ल खत न के उ र सं ेप म द िजए-
(क) ‘संचार और सं ेषण एक दस
ू रे के पयाय ह’, प ट क िजए।
(ख) सं ेषण क कृ त का ववेचन सं ेप म क िजए?
23 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
24 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
26 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
संचार का अगला मह वप
पूण काय है लोग क ान एवं चंतन के तर म व ृ ध करना
व भ न समाचार प प काएँ रे डयो ट वी सनेमा और अ य तमाम संचार मा यम लोग
को इ ह व श ट घटनाओं क सच
ू ना मा ह नह ं दे ते अ पतु समाज के जीवंत न उनके
प रणाम नी तय आ द का भी ान सं े षत करते ह। इससे मानव जीवन क अनेक
सम याओं का समाधान हो जाता है। संचार मा यम के वारा अनेक तरह क सच
ू नाओं और
उनके त या त सामािजक ि टकोण आ द के वारा यि त क ान के तर म व ृ ध
हो जाती है । आज तो संचार मा यम ने कूल कॉलेज एवं व व व यालय के श ा के
व प को ह प रव तत कर दया है । आज व व व यालय अनुदान आयोग और अ य
शै णक संगठन अनेक श ण संबंधी काय म का सारण कर रहे ह िजनसे लोग के ान
के तर म व ृ ध हो रह है । अतः संचार मा यम कूल श ा के अंग बनते जा रहे ह।
इसके साथ ह यह लोग को सामािजक एवं मानवीय मू य क श ा भी दे रहे ह। वतमान
27 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
28 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
श ा मानव जीवन का एक मख
ु आधार एवं ंग
ृ ार है । श ा का उ दे य केवल पढ़ना-
लखना और सखाना मा नह ं है बि क मनु य को एक सुयो य मनु य या नाग रक बनाना
भी है िजससे क वह दे श के संसाधन का पण
ू वकास कर सके तथा व ान व तकनीक के
े म ग त के उ च शखर पर पहुँच सके। इस ि ट से मनोरं जन के साथ-साथ
साथ श ा दे ना
भी संचार एवं सं ेषण का एक मह वपणू आयाम है । यह स य है क श ा और मनोरं जन
दे श के वकास क गाड़ी को आगे बढ़ाने म गाडी क धरू के दो प हय क भू मका का नवाह
करते ह। आज इसी उ दे य क पू त हे तु व भ न कार के चैनल और व ापन जनसामा य
को अपने-अपने ढं ग से ान का व फोटक चार- सार करके श ा दे रहे ह। जनसामा य
व थ रह तथा दष
ू ण र हत वातावरण का नमाण कर सक। व थ रहने के लए व छता
का वशेष यान रख िजससे क यि त गंदगी से होने वाल बीमा रय से बचा रहे । धन
बजल एवं पे ोल क बचत करने के बारे म चंतन कर, बाल मजदरू , बाल शोषण जैसी
सामािजक सम या से जुझने म स म हो सके, कसान खेती के नवीन तर क को सीख,
मजदरू नवीन कौशल से द ता हा सल कर, उपभो ता अपने अ धकार के त सजग हो,
नाग रक अपने कत य से अवगत हो सके आ द इसके लए ज र है क श ा का चार-
सार हो। श ा ने व ान को ज म दया और व ान ने संचार एवं जनसंचार मा यम को।
अब जनसंचार के साधन श ा के साथ-साथ व ान के चार
सार म भी अपनी मह वपण
ू
भू मका नभा रहे ह। एक दे श के सवागीण वकास क कहानी व तुत: वहाँ क श ा और
व ान के वकास क कहानी है । यानी हम कह सकते ह क शै क एवं वै ा नक ग त
आ थक तथा सामािजक ग त क संपूरक होती है । एक के बना दस
ू रे के अि त व क
क पना नह ं क जा सकती और इन दोन क कमी म संचार मा यम क उपलि ध का
सवाल ह पैदा नह ं होता। संचार म श ा के चार सार क ि ट से आजकल 'इ नू' और
29 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
30 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
2.7 न कष
इस कार सं ेषण के अनेक आयाम ह जो समाज व सं कृ त के वकास के साथ-साथ
व ान एवं तकनीक के वकास को ग त दान कर रहे ह। ले कन आज सूचना एवं सं ेषण
31 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
2.8 अ यास- न
32 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
2.9 संदभ- ंथ
33 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
34 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
35 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
36 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
37 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
(i)
(ii)
38 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
39 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
40 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
41 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
42 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
43 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
44 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
45 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
परे खा
2.1 अ धगम का उ दे य
2.2 तावना
2.3 तवेदन : अथ और व प
2.5.1 बोध- न
2.7.1 बोध- न
2.9 न कष
2.10 अ यास- न
2.11 संदभ- ंथ
46 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
2.1 अ धगम का उ दे य
औपचा रक लेखन के पा य म म संक लत इस अ ययन-साम
साम ी से व याथ —
सज
ृ ना मक लेखन के मह व को समझ सकगे।
औपचा रक लेखन म तवेदन के मह व, या और प का बोध ा त करगे।
सव ण संबंधी तवेदन नमाण क मता का वकास कर सकगे।
समसाम यक मु द , घटनाओं पर तवेदन लखने के लए वे अपने आपको े रत कर
सकगे।
2.2 तावना का उ दे य
2.3 तवेदन : अथ और व प
‘ तवेदन’ श द का योग अं ेजी म ‘ रपोट’ के लए कया जाता है । तवेदन को
ववरण, संवाद, सूचना, रपट, अफ़वाह
अफ़वाह, नाम आ द अ य अथ म भी लया जाता है । पर तु ह द म
इसका योग सफ तवेदन के अथ म ह कया जाता है । उदाहरणाथ, पु लस म लखाई गई रपट,
कोई मह वपण
ू समाचार, सच
ू ना
ना, संवाददाताओं वारा समाचार प , दरू दशन आ द म भेजी गई
सच
ू ना, समाचार रपोट तो ह, पर तु हम उ ह तवेदन नह ं कहते।
47 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
2.4 तवेदन के मख
ु त व
48 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
तवेदन हे तु एक समय-
समय-सीमा अव य नि चत क जाती है । य द ऐसा न हो तो स भव
है क तवेदन आने के समय तक उसका मह व ह समा त हो जाए
जाए। उदाहरणाथ,
उदाहरणाथ बरसात
का मौसम बीत जाने के बाद जल नकासी क सम या के तवेदन का या लाभ
लाभ?
तवेदक को चा हए क पूण यास करके नि चत अव ध म अपना तवेदन तुत करे ।
यह अव ध कतनी हो, इस स ब ध म कोई नयम स भव नह ं है । यह एक दन से लेकर
एक वष अथवा अ धक समय भी हो सकती है । अनेक बार तवेदक समय बढ़ाने क माँग
करते भी दे खे जाते ह।
पूण जाँच-पड़ताल
पड़ताल के बाद तवेदक सं त ववरण दे ता हुआ अपने नणय को
तवेदन म तत
ु करता है । पर तु मा ववरण एवं नणय तवेदन नह ं हो सकता इसके
लए तवेदक वारा सफा रश अथवा नजी अ भमत तुत करना भी आव यक होता है ।
तवेदक का अ भमत ब धक के लए बा यकार नह ं होता
होता, इस लए इसे मान-स
मान मान का
वषय नह ं बनाया जा सकता,, पर तु इसके अभाव म तवेदन का ल य ह पूण नह ं होता।
होता
उसक वशेष ता एवं जाँच-पड़ताल
पड़ताल नरथक हो जाती है । स म त वारा तत
ु तवेदन म
यह भी स भव क कसी सद य का मत शेष सद य के मत से भ न हो
हो। ऐसी ि थ त म
उस सद य क स म त भी तवेदन म ल खत प म तुत क जाती है ।
49 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
50 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
य दश ह अथवा वषय प
पर कुछ काश डाल सक, उनक सा ी लेने का काय भी इस
चरण म पूरा कर लेना चा हए।।
2.5.1 बोध न
1. तवेदन श द का हंद म अथ प ट क िजए?
2. तवेदन श द अं ेज़ी के.................श द का अनुवाद है । (लेटर/ रपोट)
रपोट
3. या तवेदन म आंकड़ क या भू मका होती है ?
4. एक तवेदन.......................
.......................द तावेज़ होता है । (धारणा मक/त
त या मक)
मक
51 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
स म तय अथवा उपस म तय वा
वारा
रा तैयार होने वाला तवेदन - इस कार के
तवेदन के वषय अपे ाकृत ग भीर कृ त के होते ह
ह। िजन वषय के स ब ध म यह
समझा जाता है क एक से अ धक यि तय के सु वचा रत मत क आव यकता है , उनके
लए कोई स म त बना द जाती है । एक से अ धक यि त होने के कारण सामा यतया इनके
वारा क गई जाँच-पड़ताल
पड़ताल अ धक सू म और गहन होती है , नणय अ धक सु वचा रत और
अ भमत अ धक उपादे य होते ह
ह। इस कार के तवेदन ‘सव ण संबंधी’’ गुण भी रखते ह।
52 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
तवेदक को यि तगत राग- वेष से दरू रहकर वषय का व लेषण एवं न कष तुत
करना चा हए। ऐसा न होने पर यि त को यि तगत प से तो ता का लक लाभ हो सकता है ,
पर तु सं था, सरकार और परो तः तवेदक को भी अ ततः हा न ह होगी। यह नह ,ं तवेदक
क व वसनीयता समा त होने का भय भी रहे गा। तवेदन म वषय क वशेष ता और ता ककता
53 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
तवेदन म पण
ू ता का गणु होना आव यक है पर तु इसके लए उसे बहु त व तत
ृ
करने क आव यकता नह ं है । सं ेप म वषय को पण
ू ता के साथ तुत करना ह अ छे
तवेदन क वशेषता है । अनाव यक व तार से तवेदन अपने ल य से भटक सकता है ।
तवेदन क भाषा न ा त,, सहज तथा सरल होनी चा हए। तवे
वेदक िजस भाव से श द
का योग करता है , उन श द से वह भाव प ट होना चा हए
हए। आलंका रकता,
रकता वयथकता
आद तवेदन म गुण के थान पर दोष माने जाते ह
ह। येक तवेदन को उपयु त शीषक
अव य दे ना चा हए, िजससे वह वषय पूणतया प ट हो सके। यि त वारा तुत
तवेदन थम पु ष शैल तथा स म त वारा तुत तवेदन अ य पु ष शैल म लखा
जाता है ।
तवेदन व तत
ृ होने क ि थ त म उसे अनु छे द म वभािजत कया जा सकता है ।
यद तवेदन बहुत अ धक बड़ा हो तो उसका सारांश भी दे ना चा हए। तवेदन म सभी
54 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
त य मव ध प म दे ने चा हए
हए। म को तवेदक अपने ववेक से नि चत कर सकता
है । सामा यतः यह दनांक के म म होना चा हए
हए। परे खा क ि ट से शीषक,
शीषक सम या,
प ृ ठभू म, वतमान ि थ त, उपल ध त य
य, सा याँ और उनका व लेषण,, बहस व सुझाव के
ब द,ु न कष, नणय, सुझाव तथा त थ स हत ह ता र का म अपनाया जाता है ।
2.7.1 बोध- न
सह श द चन
ु कर र त थान
न क पू त क िजए
िजए-
1. एक तवेदन म..................
..................अ नवाय होते ह। (त य/ ववाद)
2. तवेदन के टं कण के समय
समय.............. क अशु धयाँ न रह। ( याकरण/वाचन)
याकरण
3. तवेदन.......................
.......................लेखन के अंतगत आता है । (औपचा रक/अनौपचा
अनौपचा रक)
रक
4. तवेदन कतने कार के होते ह या हो सकते ह
ह?
सव ण वाले तवेद
दनन के कुछ समसाम यक नमूने दे खए –
55 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
अनुमान-
ला सेट के अनम
ु ान (2020) के अनस
ु ार महामार के वैि वक वा य पर पड़े भाव क वजह
से अवसाद संबंधी मामल म 28% क व ृ ध दे खी गई है , जब क चंता को लेकर होने वाल
परे शा नय म 26% इजाफा हुआ है । एक अनुमान है क वैि वक अथ यव था म मनौवै ा नक
वा य पर होने वाला खच 2030 तक 6 लयन अमे रक डॉलर हो जाएगा।। अवसाद और चंता
के लए सा य-आधा रत दे खभाल म नवेश कया गया येक डॉलर बेहतर वा य और
उ पादकता म 5 अमे रक डॉलर का रटन दे ता है । इसके अलावा, मान सक वा य द घकाल न
य,
वकास ल य , वशेष प से ल य 3 (अ छे वा य और क याण) को ा त करने का अ भ न अंग
है । अतः मान सक वा य को मानवा धकार और आ थक ि टकोण से ाथ मकता दे ने क
आव यकता है ।
यापक भाव-
महामार क वजह से भय
भय, अलगाव और जीवन तथा आय क हा न होने के कारण मान सक
वा य भा वत होने के नए मामले दे खे गए ह या फर परु ाने मामल म ि थ त और भी खराब
हुई है । इसे दे खते हुए मान सक वा य सेवाओं क मांग मख
ु ता से उठने लगी है ।
व भ न समाज म महामार के प रणाम व प सामािजक अलगाव और आ थक संकट के
कारण मान सक वा य क पीड़ा बढ़ गई है । सं मण के भय, म ृ यु, प रजन को खोने,
नौकर गंवाने या जीवन-यापन
यापन का रा ता बंद होने और सामािजक तौर पर अलगाव तथा
अपन के बछड़ने या दरू जाने क वजह से लोग क चंताा, अवसाद, अलगाव और उदासी म
व ृ ध दे खी जा रह ह। इसके साथ ह िजन लोग को पहले से ह मान सक बीमार है अथवा
मादक पदाथ का सेवन करने क वजह से उनको मान सक वकार ने जकड़ लया है उनके
को वड-19 से सं मत होने क संभावनाएँ यादा है । इसी कारण ऐसे लोग पर वपर त
मान सक और मनोवै ा नक भाव पड़ने क भी आशंका है । दभ
ु ा यवश म यम से यूनतम
आय वाले दे श म मान सक बीमा रय से जूझने वाले 75% से 80% नाग रक को आव यक
सहायता कभी मल ह नह ं पाती
पाती।
56 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
भारत क ि थ त-
वकासशील दे श म म हला सशि तकरण क कमी
कमी, नणय लेने क मता से इंकार
और घरे लू हंसा के बीच खराब मान सक वा य ि थ तय म एक बड़ी भू मका नभाते ह
ह।
म हलाओं के मान सक वा य ि थ तय क यापकता म दशक से कोई प रवतन नह ं
हुआ है । को वड क महामार ने मान सक वा य य-दे
दे खभाल क आव यकता को और बढ़ा
दया है । महामार के बीच चंता क यापकता काफ बढ़ गई है । म यम आय वाले दे श को
को वड-19 महामार ने अनेक कारण क वजह से वशेष प से भा वत कया है । मान सक
वा य ि थ तय क यापकता म दशक से कोई प रवतन नह ं हुआ है । ले कन को वड-19
क महामार ने मान सक वा य दे खभाल क आव यकता को और बढ़ा दया है । वा य
बजट म मान सक वा य के बजट के लए रखी जाने वाल रा श म काफ खा मयाँ ह।
57 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
आउटर च काय म-
आउटर च काय म क आव यकता इस अवलोकन पर आधा रत है क उ योग म मौजूदा
अि थरता के बावजूद टो, िजसम जुआ और स टे बाजी शा मल है ) संप और ऑनलाइन
गे मंग- दोन को अब भी अवैध तर के से बढ़ावा दे रहा है । यह काय म संभा वत नवेशक को कोई
भी नणय लेने से पहले खद
ु को परू तरह से श त करने म मदद करे गा य क टोकरसी
नवेश एक ज टल और जो खम भरा यास है ।
इसका बंधन ा धकरण वारा कया जाता है , िजसे वष 2016 म कंपनी अ ध नयम,
नयम
2013 क धारा 125 के ावधान के तहत था पत कया गया था
था। ा धकरण को IEPF के
शासन क िज मेदार स पी गई है जो नवेशक के बीच जाग कता को बढ़ावा दे ने के
58 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
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िहदं ीी-क)
आगे क राह-
59 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
60 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
2.8 न कष
न कष प म यह कहा जा सकता है क औपचा रक लेखन म तवेदन लेखन का
अपना प और मह व होता है । येक तवेदन का योजन यह होता है क िजस यि त
अथवा यि तय का कसी वषय से स ब ध तो हो
हो, पर तु उसे उसके स ब ध म पूण
त य का ान न हो, उसे पया त आव यक साम ी उपल ध करा द जाए
जाए। तवेदन का
वषय कुछ भी हो सकता है कोई घटना
घटना, कोई समारोह-उ सव, कोई उ घाटन,
घाटन सभा-जुलूस,
बैठक, कसी क पनी क व ीय ि थ त
त, कसी सं थान के कमचा रय म या त अस तोष,
तोष
बाढ़ से बाँध का टूटना आ द।। ता पय यह क तवेदन के अनेकानेक वषय हो सकते ह।
ह
तवेदन ( रपोट) तैयार करने का काय कसी सरकार अथवा गैर सरकार सं था वारा
कसी यि त अथवा स म त को स पा जाता है । तवेदन के लए अथक शोध और सव ण
क आव यकता होती है ।
2.10 अ यास- न
2.11 संदभ- ंथ
62 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
3. लेखन के व वध प
अनु छे द-ले
लेखन
न, संवाद-लेखन, डायर -लेखन, लॉग-ले
लेखन
डॉ. द नदयाल
कॉलेज ऑफ़ वोकेशनल टडीज
द ल व व व यालय,
यालय द ल
परे खा
3.1 अ धगम का उ दे य
3.2 तावना
3.3 अनु छे द : अथ और व प
3.4 अनु छे द लेखन का मह व
3.5 अ छे -अनु छे द-ले
लेखन क वशेषताएँ
3.6 अनु छे द-ले
लेखन के कार
3.7 प लवन और अनु छे द लेखन म अंतर
3.7.1 बोध- न
3.8 अनु छे द-ले
लेखन के उदाहरण
3.9 डायर -लेखन : अ भ ाय और व प
3.10 डायर -ले
लेखन और तत
ु ीकरण के प
3.11 डायर -ले
लेखन का मह व और या
3.11.1 बोध- न
3.12 डायर -ले
लेखन के उदाहरण
3.13 संवाद : अ भ ाय और व प
3.14 संवाद का मह व
3.15 संवाद-ले
लेखन क या
3.15.1 बोध- न
3.16 संवाद के उदाहरण
3.17 लॉग-लेखन : अ भ ाय
63 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
3.1 अ धगम का उ दे य
3.2 तावना
जानने क इ छा और अपने अंतस को बाहर नकालने क मनु य म आदम लालसा रह
है । वतमान युग म भावा
वा भ यि त के अनेक प
प, वधाएँ और मा यम ह। मनु य को समय-
समय
समय पर औपचा रक और अनौपचा रक प म मौ खक और लेखन वारा अ भ यि त करनी
होती है । ऐसे म लेखन के व वध प- ा प को समझना, उनम द होना आज क
आव यकता है । लेखन के कौशल से यु त होकर ह कोई भी सजक संवाद
ाद, डायर , अनु छे द
लखता है और लखेगा। यू मी डया के युग म अपना लॉग बनाने और लॉग लखने क
याँ क कला के लए पहले यहाँ
हाँ उ त सभी कार के लेखन को समझ ल।
3.3 अनु छे द : अथ और व प
मीमांसा या ववेचना होती है । हम दे खते ह क कसी लेख, नबंध आ द अपे ाकृ त लंबी रचना को
लेखक कुछ वभाग म वभािजत करता है । ऐसा वषय के प ट ववेचन के लए कया जाता है । इस
वभाजन के समय यह यान रखा जाता है क व श ट वभाग म कोई एक व श ट भाव, वचार
अथवा बात पण
ू तः या फर अंशतः प ट हो जाए। इस कार यह वभाग अथवा अनु छे द अपने
पूववत और परवत अनु छे द से जुड़ा होने पर भी भाव, वचार आ द क ि ट से एक सीमा तक पूण
भी होता है । कसी भी अनु छे द म एक वषय वशेष, एक भाषा, एक शैल और वा य क
मब धता क अपे ा-अ
अ नवायता उसे सह प दान करती है ।
अनु छे द के शाि दक अथ के आधार पर इसका कसी रचना का अंश होना अ नवाय है परं तु
आजकल वतं प से अनु छे द लेखन का अ यास भी कराया जाता है । वशेषतः व याथ म
लेखन कौशल क मता का वकास करने के लए मा य मक क ाओं म इसक उपयो गता
न ववाद है । व याथ को सी मत वषय पर अनु छे द लेखन के लए कहा जाता है और इसके
मा यम से उसके ान, क पना
पना, तक-शि त और भा षक मता आ द को परखा जाता है । वतमान
समय म हंद भाषा का उपयोग समाज जीवन के व वध े म बढ़ा है । व भ न समाचार-प ,
प का, दरू दशन के समाचार चैन
नल,
ल अनुवाद आ द म हंद का उपयोग बढ़ने से यह आव यक तीत
होने लगा है क व याथ म व भ न वषय पर सी मत श द म अ धका धक भाव कट करने क
मता का वकास हो। इस ि ट से आज सभी तर पर व या थय को अनु छे द लेखन का
अ यास कराया जाता है ।
65 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
3. अनु छे द और नबंध के वषय म अंतर होता है। नबंध ऐसे वषय पर लखा जाता है ,
िजसका बहुत व तत ृ आयाम हो। अनु छे द वषय का अंश मा हो सकता है , परं तु
वतं अनु छे द का वषय सी मत आयाम वाला होना चा हए।
4. अनु छे द लखते समय वणन म संतुलन रहे , इसका यान रखना आव यक है । संभव है क
कभी यि त को च अ अथवा
थवा अ च के वषय पर अनु छे द लखना हो और वह उसे
अ त व तत
ृ अथवा अ त संकु चत कर न दे ।
5. अनु छे द के लए शीषक को यान से समझकर संतु लत प से लखा जाना चा हए।
6. अनु छे द लेखन म वचार का कट करण मब ध एवं तकसंगत व ध से होना चा हए।
य द वचार अथवा
वा भाव मब ध तर के से तुत नह ं कए जाएँगे तो पाठक के लए
वषय को समझना द ु कर हो जाएगा तथा अनु छे द भावह न हो जाएगा
जाएगा।
7. अनु छे द के लए आव यक है क वह सग
ु ठत हो तथा उसम वचार और तक का
ऐसा सु वचा रत पूवापर म हो
हो।
8. अनु छे द क भाषा वषया
वषयाननुकूल होनी चा हए। ायः अनु छे द शा वत मह व के वषय
पर लखे जाते ह। अतः उसक भाषा भी उसी के अनु प गंभीर एवं प रमािजत होनी
चा हए। सामािजक वषय पर लखे गए अनु छे द क भाषा अपे ाकृत सहज होती है।
ता पय यह है क भाषा यथासंभव सरस
सरस, सब
ु ोध और ग या मक होनी चा हए।
हए
9. अनु छे द-लेखन नबंध लेखन से भ न है । नबंध लखते समय लेखक के पास अवकाश
होता है क वह कसी अ य वषय पर चचा कर बाद म उसका संबंध मु य वषय से
जोड़ दे । अनु छे द का आकार सी मत होता है उसम वषयेतर होने का अवकाश लेखक
के पास नह ं होता। अतः अनु छे द के ारं भ से लेकर अंत तक उसका एक सू म बँधा
होना नतांत आव यक है । अनु छे द मल
ू वषय से इस कार बँधा होना चा हए क परू े
अनु छे द को पढ़ने के बाद पाठक सार प म उसके शीषक को नतांत संगत एवं
उपयु त माने।
10. अनु छे द लेखन एक कला है । इसम दए गए वषय पर सी मत श द म यथासंभव परू
बात कहने का यास कया जाता है । यह वा तव म गागर म सागर भरने के समान
66 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
67 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
3.7.1 बोध- न
1. अनु छे द.....................का
का एक अंश होता है । (क वता/ नबंध)
2. एक अ छे अनु छे द के दो गुण ल खए
खए?
3. अनु छे द लेखन के कतने कार हो सकते ह
ह? (दो/दो से अ धक)
4. प लवन तथा अनु छे द लेखन म शैल और काल का अंतर होता है । (हाँ/नह ं)
68 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
जीवन-मू य
जीवन मू य हमारे मागदशक है , आचरण के नयामक हमार स यता और सं कृ त के
तीक ह। मू य वह ि ट है , जो आपने ववेक वारा अतीत क मह ा को स ध करके उसे
नया आयाम दे ता है , उसे जीवंत करता है । मू य एक ऐसा मापदं ड है क िजसके वारा
स पण
ू सं कृ त एवं समाज मह ा को ा त करते ह। यह कारण है क जो भी त व मानव
मा के लए हतैषी है , आनंददायक है । ऐसे सारे त व जीवन मू य क ेणी म आ जाते ह।
जीवन मू य के अंतगत ेम, मानवीय क णा, ईमानदार , भात ृ व, परोपकार,
परोपकार याग, न ठा,
उ रदा य व, दया, अ छाई से सरोकार आ द समा हत ह। सा ह य म रचनाकार सभी मू य
को जन-जीवन क यावहा रकता के आधार पर च त करता है । रचनाकार यह उ मीद
करता है क उसने मानव को उ चत दशा दान क है । ऐसी उ मीद तभी कर सकता है क
जब वह वयं जीवन मू य से े रत हो। जीवन-मू य प रवतनशील होते ह। े ठ
सा ह यकार मू य का सह व लेषण करके उन मू य को नकारता है जो समाज क गत
म बाधक होते ह। तभी रचनाकार को अपनी रचना या म अनुभू त क वा त वकताओं से
गुजरने का सौभा य ा त होता ह। समाज म आदश क थापना के लए तुलसीदास ने
अपने सा ह य म इसक वशद चचा क है । उनक चचा उपदे शमूलक न होकर च र के
सहज अंग के प म कट हुई है । प रवार व समाज म शां त क थापना के लए मयादा
अ नवाय है । इसके अलावा स य
य, अ हंसा, दया, आचरण क प व ता, मूल अ धकार एवं उ म
कम सभी क अपे ा इस समाज को है । यह मू य न पण भारतीय सं कृ त म उदा मू य
एवं नै तकता के आदश से अनु ा णत है । कत य परायणता, श टाचार, सदाचरण,
सदाचरण कम यता,
न कपटता, स चाई, याय यता
यता, मा आ द नै तक मू य का े सी मत नह है, इस लए
यह का य अ थान ा त कये हुए दखाया गया है ता क समाज एवं लोक-जीवन उ नत
बने।
69 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
71 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
3.11.1 बोध- न
1. या डायर लेखन एक वधा है ? (हाँ/नह ं)
2. डायर लेखन के लए दो अ नवाय बात या ह
ह?
3. डायर .................कह
कह जा सकती है । (जीवनी/आ मसा ा कार)
4. डायर ....................... प म तुत होती है । (लेख/उप यास)
20 फरवर 2023
रा 10 बजे
21 फरवर 2023
रा 11 बजे
72 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
3.13 संवाद : अ भ ाय और व प
73 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
3.14 संवाद का मह व
3.15 संवाद—ले
लेखन क या
संवाद लखते समय सबसे मह वपूण होता है- कथाव तु अथवा वषय
वषय-व तु का
व लेषण। इसके प चात उसके सह म म संवाद का संयोजन ऐसा होना चा हए क कथा
का उ चत वकास हो और म का भी भल भां त नवहन हो। संवाद
वाद पा ानुकूल और दे शकाल-
वातावरण के अनु प होने चा हए। संवाद सं त हो तो उ चारण म असु वधा नह ं होती है । कौतूहल
उ प न करने के लए संवाद को नाटक म रखा जाता है । संवाद क भाषा पा ानुकूल होनी चा हए।
साथ ह भाषा अ भ यि त को पूणता प ट करने वाल होनी चा हए। दाश नक और वैचा रक संवाद
74 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
म गंभीरता का पुट होता है । संवाद लेखन के समय लेखक को यान करना चा हए क गंभीरता को
बनाए रखते हुए सरल भाषा का योग करे । मुहावर आ द के योग से संवाद क भावशीलता बढ़ती
है । अतः इनका यथा थान योग करना चा हए। हा य- यंग भी संवाद को सजीव बनाते ह। संवाद
म प टता बहुत ज र मानी जाती है । उसे सुनने और पढ़ने से वह अथ नकलना चा हए जो अथ
लेखक य त करना चाहता है ।
3.15.1 बोध- न
1. दो या दो से अ धक यि तय के बीच बातचीत को.................. कहते ह। (संवाद/संदेश)
2. संवाद...................... क अ भ यि त का मा यम होता है । ( वचार/भाव
भाव)
3. या संवाद पा ानुकूल होते ह
ह? (हाँ/नह ं)
4. ......................से
से संवाद यादा भावी होते ह। (वाचन/लेखन)
बटोह के मंच पर वेश। बटोह पूछ रहल बाड़े बाजा बजव नहार सव हया से
बटोह : ढब-ए बबआ
ु ढब
समाजी : का ह बाबा?
बटोह : हम ट सन पर जाइब
जाइब, ए बबआ
ु !
समाजी : ए बाबा, इ हे रा ता सीधे ट सन र चल जाई।
बटोह : अ छा ए बबुआ, ई बताव क क कलक ा के मसूल काटना बा।
समाजी : कलक ा के मसूल एह गहर तीस पया लागी।
बटोह : ( चहा के) तीस पया लागी
लागी? सवा पया म न फ़ रआई?
समाजी : सवा पया म त टकठे न मल , महाराज!
(दो म के होने वाले संवाद)
रमेश : अरे म ! कैसे हो
हो?
व पन : भाई, सब ब ढ़या है ।
रमेश : कल कहाँ थे? दखे ह नह ं।
75 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
3.17 लॉग—लेखन : अ भ ाय
76 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
यह दे ख क पहले कसी दस
ू रे लॉगर ने उस वषय पर कोई लेख तो नह ं लखा है । इसके बाद हम
अपने श द म, अपनी टाइल म लॉग पो ट लख सकते ह। यह यान रखना चा हए क लॉग
कसी क कॉपी नह ं होनी चा हए। अ यथा हम लॉ गंग म सफल नह ं हो पाएँगे
गे। इसे कंटट राइ टंग
क द ु नया म ‘सा हि यक चोर ’ कहा जाता है ; इस लए खद
ु के श द म लॉग लखना चा हए। हमार
रचना मकता ह लॉग क ताकत है । हम जैसा भी लख, अपने श द म लख। इससे धीरे -धीरे
लेखन क कला म सुधार आता चला जाता है । लॉग लखने से पहले गूगल पर सबसे यादा कौन सा
‘क वड’ सच हो रहा है, यह जानना आव यक है । लॉग म यथ क चीज नह ं लखनी चा हए। य द
हम हंद म लख रहे ह तो मा ाओं, श द और याकरण का यान रखना चा हए। वतनी दोष नह ं
होना चा हए। लॉग लखने के लए कई साइ स उपल ध ह, िजनक जानकार होनी चा हए। लॉग
िजसके वारा लखा जाता है , वह लॉगर कहलाता है तथा लॉगर वारा जो कंटट या लेख लखा
जाता है , वह लॉगपो ट कहलाता है । लॉग का पेज आकषक होना चा हए, िजसके लए हम इमेज
( च ) का भी योग कर सकते ह।
3.19 लॉग—ले
लेखन का उ दे य और या
3.19.1 बोध- न
77 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
3.20 न कष
3.21 अ यास- न
1. एक अनु छे द लेखन के लए कन बात का होना अ नवाय है ?
2. संवाद से या अ भ ाय है , इसके व प और भाषा पर काश डा लए।
लए
3. एक सफल और सु ढ़ लॉग लेखन के लए या वशेषताएँ ह?
4. कसी एक समसाम यक वषय पर दो म के बीच होने वाला संवाद ल खए।
खए
5. डायर लेखन क भाषा पर वचार क िजए
िजए।
6. वतमान युग म लो गंग का मह व समझाइए।
3.22 संदभ- ंथ
78 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
4. संपादक य लेखन
ो. भवानी दास
मुक्त श ा व यालय
द ल व व व यालय, द ल
परे खा
4.1 अ धगम का उ दे य
4.2 तावना
4.3 लेखन : अ भ ाय, मह व और कार
4.4 संपादक और संपादक य
4.5 संपादक य का व प
4.5.1 बोध- न
4.6 संपादक य के भेद
4.7 संपादक य के त व और गुण
4.8 संपादक य लेखन के लए अ नवाय बात
4.9 संपादक य क भाषा
4.9.1 बोध- न
4.10 संपादक य : एक उदाहरण
4.11 न कष
4.12 अ यास- न
4.13 संदभ- ंथ
4.1 अ धगम का उ दे य
79 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
4.2 तावना
80 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
81 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
82 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
4.5 संपादक य का व प
4.5.1 बोध— न :-
1. संपादक य ....................
........................घटना पर आधा रत होता है । ( वगत/समसाम
समसाम यक)
यक
2. संपादक य कसी प क ....................होती है। (र त-नी त/छाया-माया
माया)
3. संपादक य कौन लखता है ?
4. आदश संपादक य कतने श द का होता है ?
83 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
4.7 संपादक य के त व और गण
ु
85 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
4.9.1 बोध- न
86 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
जासस
ू ी के आकाश म ये चंद गु बारे
( शांत झा ं टन संवाददाता, ह द ु तान टाइ स)
झा, वा शग
जासूसी क द ु नया एक अर य है । य
यहाँ सहयोगी, म और जोड़ीदार,
जोड़ीदार सभी एक-दस
ू रे
पर नजर रखते ह। जब क,, वरोधी अपने त वं वय के इराद व मताओं का पता
लगाने, एक-द
दसू रे क रा य सुर ा व राजनी तक तं को बेधने और मनोनुकूल नतीजा पाने
के वा ते खु फया ऑपरे शन करने के लए वे सब कुछ करते ह। जो वे कर सकते ह।
इसी लए अगर द ु नया का दस
ू रा सबसे मजबूत रा सबसे ताकतवर मु क पर नगाह रखने
और उसे सवशि तशाल क पदवी से बेदखल करने के लए नगरानी के लए गु बारे क
स दय पुरानी तकनीक पर भरोसा कर रहा है तो यह उन लोग के लए कोई खबर नह ं है ,
जो खु फया गर के संसार म रचे-बसे ह। यह खबर तो तब है , जब आप पकड़े जाते ह।
भौगो लक सीमा पार करके अमे रक आसमान म चीनी नगरानी रखने वाले गु बारे
के आने क घटना ने अमे रक समाज म तीखी बहस शु क है । शायद सभी समाचार
नेटवक और सोशल मी डया पर गु बारे क त वीर तैरने के कारण ऐसा हुआ है । चीनी
जासूसी से उ प न खतरे के त अमे रक खु फया एज स
सयाँ तो वष से जगी हुई थीं, अब
अमे रका के राजनेता और नाग रक भी इस बार पया त प से चं तत दख रहे ह। गु बारे
को मार गराने के नदश दे ने संबंधी रा प त जो बाइडन के फैसले क चौतरफा तार फ भी
हो रह है ।
87 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
रहा और इसी लए, बीिजंग के सं थागत खु फया तं और उसक हा लया कारवाइय को लेकर
उसे हदायत द जा रह है ।
जन
ू 1983 म चीन क क यु न ट पाट क छठ नेशनल पीपु स कां ेस ने 'रा क
सरु ा को सु नि चत करने और चीन के खलाफ होने वाल जासस
ू ी क काट को मजबत
ू
करने के लए' म न ऑफ टे ट स यो रट (एमएसएस) क थापना को मंजूर कया था।
नवंबर 2015 म, चीन के रा प त शी िजन पंग ने पीपु स लबरे शन आम (पीएलए)के
जनरल टाफ वभाग के एक अंग को
को, िजसे 2 पीएलए भी कहा जाता है । पीएलए संयु त
टाफ वभाग का खु फया यूरो बना दया। शी ने ै टिजक सपोट फोस (एसएसएफ) का भी
गठन कया और उसे इले ॉ नक व सूचना यु ध के साथ-साथ
साथ सभी तकनीक और साम रक
टोह काम का घर दा बना दया। सावज नक सुर ा मं ालय
ालय, व भ न रा य इकाइय और
अ म मोच के संगठन के साथ मलकर एमएसएस
एमएसएस, खु फया यूरो और एसएसएफ ने चीन
के लए सुर ा कवच बनाने का काम कया है ।
88 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)
4.11 न कष
4.12 अ यास- न
89 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस
4.13 संदभ- ंथ
'आधु नक प का रता'- डॉ
डॉ. अजन
ु तवार , वाराणसी, 1991, प ृ ठ 60
'समाचार, फ चर लेखन एवं स पादन कला
कला'- डॉ. ह रमोहन, द ल , प ृ ठ 173
' ह दु तान'- नई द ल , गु वार, 16 फरवर 2023, प ृ ठ 10
' हंद औपचा रक लेखन''- डॉ. द नदयाल, डॉ. भावना शु ल, प ृ ठ 80
90 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
978-81-19169-56-6
9 788119 169566