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Department of Distance and Continuing Education

University of Delhi
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All UG Courses
Ability Enhancement Courses (AEC)
lsesLVj-II
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As per the UGCF - 2022 and National Education Policy 2020
हदी भाषा : सं ष
े ण और संचार ( हदी-क)

संपादक-मंडल
ो. भवानी दास, डॉ. राजकुमार शमा

पा य-साम ी-लेखक
डॉ. हमांशी ीवा तव
डॉ. अ नल कुमार, डॉ. सीमा रानी, डॉ. द नदयाल,
ो. भवानी दास

शै णक सम वयक
दी ा त अव थी

© दूर थ एवं सतत् िश ा-िवभाग


ISBN : 978-81-19169-56-6
थम सं करण : 2023
ई-मेल : ddceprinting@col.du.ac.in
hindi@col.du.ac.in

Published by:
Department of Distance and Continuing Education under
the aegis of Campus of Open Learning/School of Open Learning,
University of Delhi, Delhi-110 007

Printed by:
मु त िश ा िव ालय, द ली िव विव ालय

© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव ालय


हदी भाषा : सं ष
े ण और संचार ( हदी-क)

 वतमान अ ययन साम ी क इकाई 1 (पाठ-1) एवं इकाई 2 (पाठ 1) पवू सी.बी.सी.एस. सेमे टर िस टम के तहत पहले से
उपल ध अ ययन-साम ी का संशोिधत सं करण ह। इकाई 1 (पाठ 2), इकाई 2 (पाठ 2, 3 एवं 4) एन.ई.पी. के तहत नये
पाठ्य म के अनसु ार िलखी भी गई ह और िलखवाई भी गई ह।
 व-िश ण साम ी (एस.एल.एम.) म वैधािनक िनकाय, डीय/ू िहतधारक ारा तािवत सधु ार/संशोधन/ सझु ाव अगले सं करण
म शािमल िकए जाएँगे। हालाँिक, ये सधु ार/संशोधन/सझु ाव वेबसाइट https://sol.du.ac.in पर अपलोड कर िदए जाएँगे। कोई
भी िति या या सझु ाव ईमेल- feedbackslm@col.du.ac.in पर भेजे जा सकते ह।

© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव ालय


हदी भाषा : सं ष
े ण और संचार ( हदी-क)

हदी भाषा : सं ष
े ण और संचार ( हदी-क)
अ ययन-साम ी : इकाई (1-2)

िवषय-सूची
इकाई 1 सं ेषण : सामा य प रचय
पाठ 1 : सं ेषण की अवधारणा और उसकी ले खका: डॉ. िहमां शी ीवा तव 1-17
ि या
पाठ 2 : सं ेषण और संचार तथा सं ेषण के लेखक : डॉ. अिनल कुमार 18-33
िविवध आयाम
इकाई 2 सं ेषण और संचार के िविवध प
पाठ 1 : सं ेषण के कार ले खका: डॉ. सीमा रानी 34-45
पाठ 2 : सव ण आधा रत ितवे दन ( रपोट) लेखक: डॉ. दीनदयाल 46-62
तैयार करना, संभािवत िवषय:
(कोरोना और मानिसक वा य,
ि ो जाग कता अिभयान, कूड़ा
िन तारण योजना)
पाठ 3 : लेखन के िविवध प-अनु छे द- लेखक: डॉ. दीनदयाल 63-78
लेखन, संवाद-लेखन, डायरी,
लॉग-लेखन
पाठ 4 : संपादकीय लेखन ले खका : ो. भवानी दास 79-90

© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव ालय


िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

1 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

2 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

'Communication' Communication
Communies to share, to transmit, to exchange
To share, to transmit to exchange
To share
to transmit-
To Exchange–

Communis To
Share-
To Impart –
To Transmit-
To make Common
Common-
ß

3 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

"Communication is the sum


of the things one person does when he wwant
ant to create understanding in the mind of another. It
is a bridge of meaning. It involves a systematic and continuous process of telling, listening
and understanding."

“Communication
Communication is the broad field of human interchange of
facts and opinions and not the technologies of telegraph, radio and the like.
like.”

"In the most general sense we have


communication whenever one system a source influence, another the destination by
manipulation of alternative, signals which can be transmitted over the channels connecti
connecting
4
them."

4 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

Þ
(Exchange)
ß
Ü
L. Ron Hubbard has described Communication in terms of ARC triangle. A stands for
affinity, R for reality and C for Communication. Communication in ARC Triangle has been
stated to be the most important in understanding the composition of human relations and thus
human life. ARC
R C
ARC

R C

Trenhalin – “In the main, communication has its central interest those behavioral
situations in which a sourcee transmits a message to receiver (s) with conscious intent to alter
the latter’s behavior. Here, the dimension of intentionality underlying communication is the
key lecture involved in the delineation.”
‘To make common’

5 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

(i) (ii) (iii)) (iv) (v)

(i)

6 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

(ii)

(iii)

(iv)

(v)

7 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

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8 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

(communication)

9 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

10 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

11 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

(Credibility) (Context) (Content) (Clarity)


(Continuity
Continuity & Consistency
Consistency) (channnel) (capability of
audience)

12 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

(Two way flow communication)

13 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

14 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

decoding

15 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

16 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

½
½
½

17 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

2. सं ेषण और संचार तथा सं ेषण के व वध आयाम


डॉ. अ नल कुमार
धानंद कॉलेज
द ल व व व यालय
द ल

परे खा

2.1 अ धगम का उ दे य
2.2 तावना
2.3 वषय- वेश एवं ववेचन
2.4 सं ेषण और संचार
2.5 संचार के आधारभत
ू त व
2.5.1 बोध- न
2.6 सं ेषण के आयाम
2.6.1 सूचना- हण एवं सार
2.6.2 सूचना- वशलेषण
2.6.3 सामािजक ान एवं मानव मू य का ेषण
2.6.4 मनोरं जन एवं सं ेषण
2.6.5 श ा दान करना
2.6.6 घटना एवं मु द क या या करना
2.6.7 समाज म एकजुटता लाना
2.7 न कष
2.8 अ यास- न
2.9 संदभ- ंथ

18 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

2.1 अ धगम का उ दे य

इस पाठ को पढ़कर व याथ न न ल खत काय कर सकने म स म हो सकगे--


1. सं ेषण एवं संचार के वषय म जान सकगे।
2. सं ेषण एवं संचार के संबंध को समझ सकगे।
3. सं ेषण के आयाम कौन--कौन से ह उनके वषय म जान सकगे।
4. सं ेषण के व वध आयाम के भावशाल योग के वषय से अवगत हो सकगे।

2.2 तावना
वचार अ भ यि त और वचार के आदान- दान क भावना के साथ ह मानव समाज
म सं ेषण एवं संचार क या का उ भव और वकास हुआ। सं ेषण और संचार एक
सामािजक या है । इसी लए समाज क सम त सं थाओं, समूह एवं मनु य के म य
सं ेषण एवं संचार होता रहता है । सं ेषण और संचार मा संदेश के आदान-
आदान दान से संबं धत
नह ं है , बि क यह एक- दस
ू रे को पर पर संदेश े षत करने और
हण करने क बहु
आयामी या है । अतः सं ेषण और संचार तथा सं ष
े ण के व वध आयाम से प र चत
होना अ याव यक है िजससे क सं ेषण हे तु इसके आयाम को भावी ढं ग से समझा जा
सके और साथ ह इनके योग म भी द ता ा त क जा सके।

तुत अ ययन साम ी म आप सं ेषण एवं संचार तथा सं ेषण के व भ न आयाम


के वषय म पढ़गे।

2.3 वषय- वेश एवं ववेचन


मानव के ज म के साथ ह सं ेषण एवं संचार क या का ज म हुआ। यह मनु य
ह नह ं बि क पशु-प य के समाज म भी व वध प म व यमान रहता है । सं ष
े ण क
अवधारणा पर चंतन मनन का काय लगभग स र वष पूव समाजशाि य,
राजनी तशाि यो, एवं मनोवै ा नक ने शु कया। य क मानव यवहार म प र कार तथा
सामािजक प रवतन क तह म न हत याओं को समझने के न म सं षण एवं संचार से
अवगत होना नतांत आव यक है । कस कार लोग संदेश को अनुभूत करते ह? लोग तक
संदेश कस कार पहुँचता है ? समाज का येक यि त सच
ू ना को अंतवयि तक समह
ू संचार

19 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

जनसंचार मा यम क मदद से हण करता है । अतः सं ेषण एवं संचार और उसके


सामािजक भाव को जानना अ याव यक है ।

2.4 सं ेषण एवं संचार


सं ेषण और संचार दोन समानाथ ह। सं ेषण का अथ है - कसी बात या वचार को
स यक प से आगे बढ़ाना यानी कसी बात या वचार या भावना का चार सार। सं ेषण
चार-
क या इस बात पर जोर दे ती है क व ता जो कहना चाहता है वह ठ क-ठ
क क ोता तक
उसी प एवं भाव म पहुँच
चे।े संचार श द क यु प सं कृत भाषा क 'चर'
' धातु से हुई है ,
िजसका अ भ ाय है कसी बात या वचार को आगे बढ़ाना, चलाना, चार-- सार करना, ान
या वचार को फैलाना। चूं क ान का चार व
सार करना। अतः संचार का अथ हुआ ान
अथवा कसी बात को लोग म दरू -दरू तक फैलाना यानी उ ह ान क जानकार उपल ध
कराना।

हंद म संचार के लए ''सं ेषण' 'संवाद' श द भी यु त कए जाते ह।


ह संचार का अं ेजी
याय क यु नकेशन (communication
ommunication) है । अं ेजी श द क यु नकेशन लै टन भाषा के
क यूनस श द से बना है , िजसके सामा यतः अथ लए जाते ह टू शेयर,
र टू ांसलेट, टू
ए सचज अथात ् भागदार , थानांतरण एवं आदान- दान। य द हम कॉमनेस श द के इन तीन
अथ पर गंभीरता से वचार कर तो पाते ह क यहाँ भागीदार से अथ है - कसी को अपने
भाव एवं वचार से अवगत कराना। थानांतरण से अ भ ाय है भाव एवं वचार को एक
थान से दस
ू रे
थान तक पपहुँचाना। ऐसे ह आदान- दान से अथ नकलता है - भाव तथा
वचार का आदान- दान। अतः हम कह सकते ह क संचार या क यु नकेशन के मा यम से
एक यि त अपने भाव और वचार को दस
ू रे यि त या समूह तक थानांत रत करता है
और दस
ू रे यि त के वचार एवं भाव से वयं भी अवगत होता है । व तुतः संचार एक ऐसी
या है िजसम वचार एवं भाव क सहभा गता, थानांतरण, आदान-
आदान दान क या
न हत रहती है । जो दस
ू रे श द म संचार या सं ेषण वचारा भ यि त का एक ऐसा व श ट
यास है िजसके अंतगत एक यि त दस
ू रे यि त के भाव , वचार और मनोव ृ त म
सहभा गता करता है । समाज म संचार क इस या के वारा लोग म पर पर एक
समझ वक सत होती है । येक समाज क यह एक अ य धक मह वप
पूण आव यकता है ।
संचार के अभाव म यि त का संसार केवल उसी तक सी मत होकर रह जाएगा। संचार क

20 । पृ ठ
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व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

या का वकास यि त और समाज के अनभ


ु व पर आधा रत होता है । व तुतः सं ेषण
घटनाओं एवं ि थ तय का ऐसा ताल-मेल है िजसम एक संदेश न हत रहता है । संचार के
अनेक त व एवं चरण होते ह। मानव जीवन के लए िजस कार वायु का मह व होता है
उसी कार समाज के लए संचार यानी सं ेषण का भी मह व न ववाद प से है ।

अं ेजी के क यु नस श द म एक कॉमननेस यानी सहभा गता, साझापन का भाव


न हत है ।अतः इसका अथ हुआ एक कार क सहभा गता वक सत करना या फर एक
सामा यता लाना। सं ेषण क या म व ता और ोता के म य एक समानुभू त तथा
सहभा गता अ याव यक है । इस या म एक कार क संवाद दता व यमान रहती है । यह
व श ट सामािजक या एक संदभ वग से दस
ू रे संदभ वग या फर एक उप सं कृ त से
दस
ू र उप सं कृ त से भा वत होती है ।

2.5 संचार के आधारभत


ू त व
मानव जीवन म ऐसी एक भी घटना क क पना नह ं क जा सकती िजसके कोई संकेत
या वन य त न हो और वह कोई संचार न कर। मानव जीवन ऐसे ह संचार के वारा
ग तमान रहता है। मानव के ज म लेते ह उसके रोने-हं सने, मु कुराने संबंधी आ द हाव-भाव
के वारा वह संचार क या म सि म लत हो जाता है । ऐसे ह मनु य का दे खने-सुनने
या संवेदन महसूस करने संबंधी बात वत: ह हण कए गए संचार के प ह। संचार क
या म श द या श द का योग एवं हाव-भाव या या आ द संदेश क वाहक होती है ।
कसी या हे तु श द योग या फर कोई साथक काय या फर संकेत करना संचार या
का पहला प है ।

संचार के तीन आधारभूत त व ह--

1. पहला संदेश भेजने वाला या सं ेषक या ोत,


2. दस
ू रा संदेश और
3. तीसरा संदेश हण करने वाला या ाह या ल य।

इन तीन त व म य द कोई पथ
ृ कता या अलगाव होगा तो संचार यानी सं ेषण क
या पण
ू नह ं हो पाएगी। सं ेषण म अवरोध उ प न हो जाएगा। भावशाल संचार के
लए यह आव यक है क सं ेषण क ा के पास परू सच
ू ना हो। संदेश ाह को सं ेषक पर

21 । पृ ठ
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व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

भरोसा होना चा हए। सं ेषक म इतनी यो यता होनी चा हए क वह सूचना का ेषण यानी
संदेश का कोडीकरण ऐसे करे क संदेश हण करने वाला उसे ठ क ठ क उसी प म डीकोड
कर सके यानी समझ सके। संचार कता अपने संदेश को संदेश हण कता तक पहुँचाने के
लए कसी मा यम या चैनल का इ तेमाल करता है । यहाँ एक बात यह भी यान रखने क
है क संचार कता जो संदेश भेजे, वह ऐसा होना चा हए क वह संदेश हण कता क हण
मता के अनु प हो। इस संदभ म सं ेषक के लए यह अ याव यक है क वह यह यान
रख क उसका संदेश, संदेश हण करने वाले पा के लए मह वप
पणू हो। यानी वह
मनोवै ा नक प से उसके नकट हो।संदेश उपयु त एवं युि तयु त हो और वह संदेश ाह
क वयं क च का हो ता क वह संदेश के वषय म अपनी त या यानी उ र दे सके।

व तुतः सं ेषण क या म जो संदेश भेजा तथा हण कया जाता है वह संदेश


ेषक के ान एवं अनुभव स हत संदेश हण कता के ान और अनुभव को भी जोड़ता है ।
इस कार इस या म संदेश दोन के लए एक साझा ान तथा अनुभव बन जाता है इस
वषय म यह वचार सह है क ान और अनुभव एक मह वपूण कड़ी है ।िजतना अ धक
साझा ान होगा उतना ह सरल एवं भावशाल सं ेषण होगा। इस बात को रे खा च के
मा यम से इस कार प ट कया जा सकता है ।

सम त: सं ेषण क शु आत सं ेषक और संदेश हता के म य संदेश के पर पर


आदान- दान से होता है। सं ेषक का मल
ू उ दे य संदेश ेषण के मा यम से ोता के
वचार, यवहार और तौर-तर
तर क को सं का रत यानी प रव तत-प रव धत करना है । संदेश एक
सूचना का केवल संचार भर नह ं है । अ पतु इस पर एक भावी त या का होना भी
अ याव यक है , िजसे संचार या म तपिु ट के प म जाना जाता है । बना तपुि ट के
संचार साथक नह ं कहा जा सकता। संचार म सूचनाओं एवं वचार का आदान-
आदान दान य
तथा परो दोन प म होता है । यह कारण है क माशल मैकलह
ु न क मा यता है क
बहुत हद तक मा यम ह संदेश यानी संचार है । उदाहरण के लए जब से दो-तीन दशक पव

तक नव ववा हत ी को आशीवाद दया जाता था- 'दध
ु ो नहाओं पुतो फलो ' के साथ सात
पु क माँ होना सौभा य का च न माना जाता था। परं तु आज ‘हम दो हमारे दो’ क थीम
पर अनेक काय म हम च काते नह ं ह। संचार औरं सं ेषण साधन वारा आज समाज से
क टन और अंध व वास को समा त कया जा रहा है ।

22 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

सं ेषण तथा संचार य य प समानाथ श द ह परं तु फर भी इन दोन म अंतर भी है


सं ेषण म जहाँ संदेश के स यक प से ेषण पर बल रहता है वह ं संचार म बड़े पैमाने पर
सूचनाओं के सार पर बल रहता है । वह आगे कस प म सा रत होती है इसका यान
सामा यतः नह ं रखा जाता। डे नस मै वेल संचार को एक ऐसी या के प म तुत
करते ह जो कसी भी जानकार को अथवा साझेदार को सम ृ ध करती है परं तु उनके
मतानुसार साझेदार क थापना के लए साझा त व क आव यकता होती है ।
संचार के दो मुख अवयव होते ह- एक सहभा गता और दस
ू रा साझेदार । कसी भी
काय को करने या वचार को पूण करने के लए आपस म वचार व नमय क समानता
आव यक होती है । कसी भी कार के वचार व नमय के लए साझेदार क जाती है अथवा
साझेदार को था पत करने का यास कया जाता है । यहाँ यह है यान रखना ज र है क
दो यि तय के म य वचार का मतभेद हो सकता है ले कन इस मतभेद को था पत करने
के लए भी वचार क साझेदार और मतभेद क वीकृ त क ज रत होती है

2.5.1 बोध- न
न-1 न न ल खत न के उ र केवल हाँ अथवा नह ं म दो।
(क) सं ेषण तथा संचार एक असामािजक या है । (हाँ/नह ं)
(ख) सं ेषण या एक बहुआयामी या है । (हाँ/नह ं)
(ग) सं ेषण म टू शेयर से आशय है - कसी को अपने भाव से प र चत कराना।
(हाँ/नह ं)
न-2 खाल थान क पू त क िजए -
(क) ‘सं ेषण के तीन आधारभूत त व ह- सं ेषक, ल य और..........
..........। ( ोत, संदेश,
संदेश हता)
(ख) सं ेषण म मा यम से अ भ ाय है - ....................... (िजसक
िजसके वारा व ता
अपने वचार को े षत करता है, हंद , उद)ू
(ग) मानव के ज म लेते ह उसके ....................... से सं ेषण क या शु हो
जाती है । (खाने
खाने-पीने, रोने-हँसने, दध
ू पीने)
न-3 न न ल खत न के उ र सं ेप म द िजए-
(क) ‘संचार और सं ेषण एक दस
ू रे के पयाय ह’, प ट क िजए।
(ख) सं ेषण क कृ त का ववेचन सं ेप म क िजए?
23 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

(ग) ‘सं ेषण क अवधारणा


अवधारणा’ को समझाइए।

2.6 सं ेषण के आयाम


सं ेषण के आयाम से ता पय है - मानव जीवन म सं ेषण का या- या और कस प
म योगदान है । आयाम यानी कसी मत, वचार या धारणा के व वध पहलू। हम यह भल -
भाँ त जानते ह क सं ेषण का प रणाम मानव समाज क एक अंत: या है । इस अंतः या
म सं ेषण कसी न कसी प से संदेश हण करने वाले से संपक था पत करता है । इस
या म यह ोता के लए कई तरह के यास करता है । इससे सं ेषण और संदेश हण
करने वाले के म य एक अंतसबंध था पत हो जाता है । है रो ड डी.लासवे
लासवेल ने सं ेषण के
काय को तीन भाग म बांटा है ―

1. सूचना सं ह एवं सार,


2. सूचना व लेषण और
3. सामािजक ान एवं मू य का ेषण।
कुछ व वान सं ेषण के अंतगत मनोरं जन को भी सि म लत कर लेते ह। अतः सं ेषण
के मुख प से यहाँ चार पहलू माने जा सकते ह। परं तु आज सामािजक जीवन म सं ेषण
एवं संचार के व वध आयाम को दे खते हुए कुछ समाजशाि य ने बताया
या है क सं ेषण के
वारा सं कृ त का संचरण करना
करना, घटना और मु द क या या करना तथा समाज से संबंध
था पत करना, समाज म एकजुटता लाना, लोकतां क सहभा गता लाना, मनोरं जन करना और
पयावरण पर ि ट रखना आ द।
यहाँ संचार एवं सं ेषण के व वध आयाम पर चचा करने के म म पहले संचार क
कृ त के वषय म जानना आव यक है । यह मानव जीवन का एक अ भ न अंग है । मानव
के संकेत, श द एवं हाव भाव आ द सं ेषण याएँ आ द संचार के लए अवयव ह ह। यह
मानव समाज क स यता व सं कृ त के वकास क धरु है । इसी पर मानव समाज के
सामािजक, राजनी तक, आ थक
थक, एवं सां कृ तक संबंध क आधार शला रखी है । सं ेषण के
अभाव म मानव जीवन के सामािजक जीवन क कोई क पना नह ं क जा सकती है। सं ेषण
या म सूचना वाह तथा सूचना क ह ता म मानव शर र के अंग कई बार अलग-अलग
और कई बार संयु त प म अपनी भू मका का नवहन करते ह।

24 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

सामा यतः सं ेषण मानव समाज क एक सं ाना मक या है , िजसके अंतगत


उ दे यपण
ू और साथक अनभ
ु व , यवहार तथा आव यकताओं का आदान-
आदान दान होता है ,
सं ेषक का मूल उ दे य संदेश ेषण के मा यम से ोता के वचार वयवहार तथा तौर-तर क
को सं का रत, प रव तत, प रव तत करना होता है । संदेश यानी सूचना का संचार मा ह
संचार नह ं होता है । अ पतु इस पर एक भावी त या का होना भी ज र है । इसी को
सं ेषण क या म फ डबैक यानी तपुि ट कहा जाता है । सं ेषण या तभी साथक
कह जाती है जब उसम तपुि ट भी न हत हो, सं ेषण म सूचनाओं तथा वचार का य
तथा परो दोनो प मं आदान
आदान- दान होता है ।

कुछ मनोवै ा नक सं ेषण को मानवीय संबंध के उपकरण के प म मा यता दान


करते ह। संपेषण क कृ त समाज म यि त पर पर एक दस
ू रे के पास आते ह। इसके
साथ ह यि त एक दस
ू रे से दरू भी होते ह। सं ेषण क कृ त इतनी अ धक ज टल है और
उलझने वाल है क इसे कसी सीधी सरल समीकरण म नह ं समझा जा सकता। अतः
सं ेषण क त अपने आपम असी मत है । सं ेषण एवं संचार के त प का ा प चाहे
जैसा हो, वह मूलः चार कार का होता है -

(1) सूचना यानी सूचना मक


(2) ेरणा यानी ेरणा मक
(3) श ा अथात ् श ा मक
(4) मनोरं जन यानी मनोरं जना मक।

सम : सं ेषण क पकृ त सं ेषक और ह ता क कृ त पर आधा रत होता है । इस


ि ट से सं ेष क तथा ह ता जैसे चाहे उसे यु त कर सकते ह।

सं ेषण के लए उपयु त आयाम परं परागत और आधु नक दोन कार के समाज म


दे खे जा सकते ह। सं ेषण के उपयु त आयाम को हम इस कार समझ सकते ह-

2.6.1 सूचना-सं ह एवं सार

सं ेषण का सव मुख आयाम है सूचना का सं ह एवं उस सूचना का चार- सार।


व व क नई-नई घटनाओं क सच ू ना जन-जन तक संचार के वारा ह पहुँचाई जाती है ।
सामा य जनता क सम याओं को शासन- शासन तक और शासन- शासन क उपलि धय
को जनता तक पहुँचाने का काय संचार मा यम का ह है । नवीन आ व कार के वकास
25 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

संबंधी सूचनाओं वारा पाठक और ोताओं को जाग क करना भी संचार मा यम का काम


है । एक जमाने म ान को सबसे बड़ी शि त माना जाता था। ानी यि त का समाज म
सबसे मह वपूण थान होता था। परं तु आज सच
ू ना ह सबसे बड़ी शि त बन गई है । िजस
यि त के पास सूचनाओं का िजतना बड़ा भंडार होगा वह उतना ह अ धक ताकतवर होगा।
अं ेजी म एक कहावत है क 'वन हु नोज मोर ह अनस मोर'। जापान म भी एक कहावत
कह जाती है क य द सचू ना पर आपका अ धकार है तो आप द ु नया के कसी भी रा को
अपने क जे म कर सकते ह। द ु नया के अनेक दे श म यह बात यवहा रक तौर पर दे खने
को मलती है क स दय तक उ ह ं लोग ने शासन कया िजनके पास सच ू ना थी यानी
िजनके पास सूचना का अ धकार था। सूचना क इस शि त को दे खते हुए सं ेषण एवं संचार
साधन का ल य नधा रत कया गया क यह अ धक से अ धक आम आदमी को सूचना
दे कर उ ह जाग क और ताकतवर बनाए। आज संचार मा यम इस उ दे य क पू त म कोई
कमी नह ं छोड़ रहे ह। इ ह ं मा यम से ह दे श के कसी भी ह से के गाँव का खे तहर
मजदरू कम मजदरू मलने पर हड़ताल कर दे ता है । स दय से उ पी ड़त और उपे त द लत
एवं ी वग अपने शोषण के व ध एक साथ उठ खड़ा होता है ।

संचार मा यम म एक यि त िजतना थान ा त करता है , वह उसी के अनु प


अपना सामािजक तर भी बना लेता है । िजन यि तय का सामािजक तर अ धक ऊँचा
होता है वह संचार मा यम क काय णाल को भावी प से े षत करते ह। उदाहरण के
लए धानमं ी रा प त, मु यमं ीी, मु य यायाधीश, आ द से संबं धत सूचनाओं को अ धक
मह व दया जाता है । ये सूचनाएँ सामािजक मा यताओं एवं मू य के अनु प सकारा मक व
नकारा मक वृ क होती ह
ह। संचार के साधन कभी व ान क ग त को तुत करते ह,
तो कभी कृ ष े म हो रह ग त क भी सच
ू ना दे ते ह। इसी कार यह संचार मा यम
कभी ाकृ तक आपदाओं बाढ़
बाढ़, वषा, भू खलन और भूकंप आ द से संबं धत वनाश क
जानकार भी दे ते ह। तो साथ ह ऐसी आपदाओं म हम लोग क कस कार सहायता कर
सकते ह आ द संबंधी सूचना भी दान करते ह। यह संचार मा यम घर बैठे ह लोग को
संसार म होने वाल सभी ग त व धय क सूचना तुरंत दान करते ह। आज सूचना तकनीक
क ां त के कारण तो ऐसा लगता है क सारा व व हमार मु ठ म समा गया है ।

2.6.2 सूचना- व लेषण

संचार के अंतगत हम केवल सूचनाओं का सं हण एवं चार- सार ह नह ं करते, अ पतु


सूचनाओं का व लेषण भी करते ह। रे डयो, ट .वी. एवं समाचार प -प
प काओं म व भ न

26 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

वषय एवं समसाम यक घटनाओं संबंधी बहस एक तरह से सूचनाओं का व लेषण ह है ।


येक घटना या ट पणी पर समाचार प म एक व लेषणा मक लेख, संपादक य, वाता
आ द संचार मा यम वारा तुत कया जाता है । इस व लेषण का मुख उ दे य व भ न
वग एवं लोग को भा वत करना है। संचार मा यम वारा व लेषण उ ह ं घटनाओं एवं
सूचनाओं का होता है जो कसी व श ट वग के लए आव यक होता है । संचार मा यम
वारा अनेक व श ट व वान को अपना वचार या मत रखने का अवसर दान कया जाता
है । प रणाम व प इन सच
ू ना मा यम से यि त का बहुआयामी वकास होता है । इनके
वारा एक कॉमन या सामा य वचार, ि टकोण और मू य का वकास होता है । व तुतः
संचार मा यम समाजीकरण के अ भकरण के प म काम करते ह। यह वय क को कूल
श ा के प चात भी समाजीकरण क सीख दे ते रहते ह। संचार मा यम अपनी सूचना
व लेषण के वारा कसी एक वचार या घटना पर अनेक तरह के ि ट कोण का चार-
सार करते रहते ह। प रणाम व प जनसामा य को एक उ चत ि टकोण के नधारण
अथवा अनुकरण म मदद मलती है । यहाँ जनसंचार के ' चरल फं शनल स धांत' के
अनुसार इसको सहसंबंध के प म माना जाता है तथा बताया जाता है क संचार एवं सं ेषण
मा यम कसी घटना और ि थ त के अनुसार व लेषण और या या कर उस पर अपनी
ट पणी तुत करते ह।

2.6.3 सामािजक ान एवं मानव


मानव-मू य का ेषण

संचार का अगला मह वप
पूण काय है लोग क ान एवं चंतन के तर म व ृ ध करना
व भ न समाचार प प काएँ रे डयो ट वी सनेमा और अ य तमाम संचार मा यम लोग
को इ ह व श ट घटनाओं क सच
ू ना मा ह नह ं दे ते अ पतु समाज के जीवंत न उनके
प रणाम नी तय आ द का भी ान सं े षत करते ह। इससे मानव जीवन क अनेक
सम याओं का समाधान हो जाता है। संचार मा यम के वारा अनेक तरह क सच
ू नाओं और
उनके त या त सामािजक ि टकोण आ द के वारा यि त क ान के तर म व ृ ध
हो जाती है । आज तो संचार मा यम ने कूल कॉलेज एवं व व व यालय के श ा के
व प को ह प रव तत कर दया है । आज व व व यालय अनुदान आयोग और अ य
शै णक संगठन अनेक श ण संबंधी काय म का सारण कर रहे ह िजनसे लोग के ान
के तर म व ृ ध हो रह है । अतः संचार मा यम कूल श ा के अंग बनते जा रहे ह।
इसके साथ ह यह लोग को सामािजक एवं मानवीय मू य क श ा भी दे रहे ह। वतमान

27 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

युग म शै णक संचार को मानव वकास का एक अ भ न अंग माना जा रहा है । शै णक


संचार कसी नधा रत ल य के त एक शि तशाल आंदोलन क प रक पना करता है । एक
ऐसा आंदोलन जो लोग म एक समझ वक सत कर सके। और इससे लोग अपने यवहार म
अपे त प रवतन के वषय म जानकार हण कर सक। नई तकनीक के संबंध म संचार का
व तार कई गुना बढ़ता जा रहा है । संचार के े म होने वाले शोध काय ने हम सूचना
वतरण, श ण, श ण और इनसे उपल ध ेरणा संबंधी अनेक जानका रयाँ उपल ध करा
द है । संचार के वारा व भ न सामािजक, राजनी तक, आ थक एवं सां कृ तक ग त व धय
म सम वय था पत करने का काय भी कया जाता है । संचार वारा सामािजक मू य के
अनु प लोग क ाथ मकताएँ
एँ नधा रत कर उनके त एक सचेतनता वक सत क जाती
है ।

2.6.4 मनोरं जन एवं सं ेषण

संचार एवं सं ेषण मा यम का एक मह वपूण आयाम मनोरं जन भी माना गया है । एक


तरह से य द हम जनसंचार मा यम के उ भव और वकास पर गौर कर तो पाते ह क
इनका उ दे य सं कार दे ने से अ धक मनोरं जन करना रहा है। सॉप ओपेरा के मा यम से
आयोिजत व भ न काय म ने टे ल वजन पर अपना एका धकार जमा लया। ऐसे ह
व भ न समाचार प -प
प काओं ने अपनी ब बढ़ाने के लए फ मी गपशप, भा यफल
आ द का सहारा लया। टे ल वजन
वजन, समाचार प एवं प काओं म सा रत होने वाले
अ धकांश काय म म य वग को यान म रखकर सा रत कए जा रहे ह।
ह इन काय म के
सारण म बहुसं यक ले कन कुछ सी मत साधन वाले लोग क च और आव यकता का
यान ब कुल नह ं रखा जाता। कई बार कुछ मनोरं जक काय म जो क टे ल वजन सनेमा
से संबं धत होते ह, उनम से स
स, अपराध, हंसा आ द क भरमार रहती है । ऐसे ह समाचार
प -प काओं म भी ऐसी ह कहा नय एवं लेख क बाढ़ सी आई रहती है। संचार साधन के
इस कार के स ते मनोरं जन और गैर िज मेदार से तत
ु क जाने वाल साम ी से ब च
और कशोर पर बड़ा ह नकारा मक भाव पड़ता है । सनेमा और टे ल वजन पर न मत
सभी काय म पांच सतारा सं कृ त से ओत ोत रहते ह। इनक चमक-दमक
दमक, संगीत, नमाण
एवं अ भनय आ द कह ं से भी भारतीय जनजीवन से मेल नह ं खाती। ऐसे काय म दशक
को गलत ेरणा दे ते ह और अवा त वक जीवन मू य क ओर धकेलते ह। यहाँ एक
उ लेखनीय बात यह भी है क ऐसा भी नह ं है क संचार मा यम से मनोरं जन होता ह

28 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

नह ं या फर नकारा मक मनोरं जन ह होता है । बि क संचार मा यम म तुत लेख,


व ृ च , काटून, क वता, नाटक
नाटक, कहानी, ट वी सी रयल आ द सभी से मनोरं जन भी खब
ू होता
है । फ म या सनेमा के दवा वपन म यि त अपने दै नक काय के भार से मुि त पाता
है । च हार, व वध भारती, संगीत एवं फ मी गीत के कैसे स या फर अ छे उप यास या
कहानी पर आधा रत सनेमा म भी मनोरं जन के कारण अ छ लोक यता ा त क है ।
यि तगत वेष एवं सामािजक तनाव को दरू हटा कर 'सवजन हताय सवजन सख
ु ाय' के
स धांतानु प व थ मनोरं जन करना भी संचार एवं सं ेषण मा यम का एक मख
ु आयाम
है ।

2.6.5 श ा दान करना

श ा मानव जीवन का एक मख
ु आधार एवं ंग
ृ ार है । श ा का उ दे य केवल पढ़ना-
लखना और सखाना मा नह ं है बि क मनु य को एक सुयो य मनु य या नाग रक बनाना
भी है िजससे क वह दे श के संसाधन का पण
ू वकास कर सके तथा व ान व तकनीक के
े म ग त के उ च शखर पर पहुँच सके। इस ि ट से मनोरं जन के साथ-साथ
साथ श ा दे ना
भी संचार एवं सं ेषण का एक मह वपणू आयाम है । यह स य है क श ा और मनोरं जन
दे श के वकास क गाड़ी को आगे बढ़ाने म गाडी क धरू के दो प हय क भू मका का नवाह
करते ह। आज इसी उ दे य क पू त हे तु व भ न कार के चैनल और व ापन जनसामा य
को अपने-अपने ढं ग से ान का व फोटक चार- सार करके श ा दे रहे ह। जनसामा य
व थ रह तथा दष
ू ण र हत वातावरण का नमाण कर सक। व थ रहने के लए व छता
का वशेष यान रख िजससे क यि त गंदगी से होने वाल बीमा रय से बचा रहे । धन
बजल एवं पे ोल क बचत करने के बारे म चंतन कर, बाल मजदरू , बाल शोषण जैसी
सामािजक सम या से जुझने म स म हो सके, कसान खेती के नवीन तर क को सीख,
मजदरू नवीन कौशल से द ता हा सल कर, उपभो ता अपने अ धकार के त सजग हो,
नाग रक अपने कत य से अवगत हो सके आ द इसके लए ज र है क श ा का चार-
सार हो। श ा ने व ान को ज म दया और व ान ने संचार एवं जनसंचार मा यम को।
अब जनसंचार के साधन श ा के साथ-साथ व ान के चार
सार म भी अपनी मह वपण

भू मका नभा रहे ह। एक दे श के सवागीण वकास क कहानी व तुत: वहाँ क श ा और
व ान के वकास क कहानी है । यानी हम कह सकते ह क शै क एवं वै ा नक ग त
आ थक तथा सामािजक ग त क संपूरक होती है । एक के बना दस
ू रे के अि त व क
क पना नह ं क जा सकती और इन दोन क कमी म संचार मा यम क उपलि ध का
सवाल ह पैदा नह ं होता। संचार म श ा के चार सार क ि ट से आजकल 'इ नू' और

29 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

'कोटा व व व यालय' के अनेक शै णक चैनल, रे डयो तथा टे ल वजन पर श ा का चार


सार कर रहे ह। समाचार प प काओं म भी श ा एवं व ान से संबं धत साम ी
का शत होती रहती है वभ न तयो गता पर ाओं क तैयार के नम अनेक प
प काएँ नय मत प से नकलती ह।

2.6.6 घटना एवं मु द क या या करना

मानव जीवन म संचार के अंतगत केवल इतना ह ज र नह ं है क जो घटनाएँ हो रह


ह उनक हम जानकार हो, अ पतु इन घटनाओं के पीछे न हत य -अ
अ य कारण और
उनके मह व को भी समझ सके िजससे क हम संबं धत घटना एवं मु द के भावी प रणाम
के त सचेत हो सक। इस नज रए से संचार के अंतगत घटनाओं क या या तुत क
जाती है और समाज के साथ उनके संबंध था पत कए जाते ह। इन घटनाओं के साथ कुछ
मु दे भी जुड़े रहते ह, िज ह संचार एवं सं ेषण के वारा उ घा टत कया जाता है । य क
ऐसे बहुत से मु दे एवं घटनाएँ ऐसी होती ह िजनका मानव जीवन पर गहरा और द घ
काल न भाव पड़ता है । जनसामा य को जब तक इन घटनाओं क आलोचना मक जानकार
नह ं द जाएगी वे उनके वषय म अपना मत नह ं बना पाएँगे।

2.6.7 समाज म एकजुटता लाना


कसी भी समाज या दे श क शि त इस बात पर नभर करती है क वह कतना
संग ठत एवं एकजुट है । शां त के समय वकास एवं ग त के काय हेतु और आपदा के
समय पुन नमाण के लए और रा य संकट के समय दे श क सुर ा के लए लोग का
एकजुट होना अ याव यक है । संचार मा यम सच
ू नाओं के वारा लोग को एकजुट करते ह।
भारत जैसे व वध भाषा भाषी एवं मत सं दाय वाले दे श म समाज को एकजुट करने क
आव यकता वयं स ध है । अनेक अवसर पर हमारे दे श म संचार मा यम ने अपनी इस
भू मका का नवाह कया है ।
उपयु त ववेचन व लेषण के आलोक म सं ेषण के व वध आयाम के वषय हम कह
सकते ह क इसके वारा यि त और समाज को नई-नई जानका रयाँ दे कर लोग को अपने
अ धकार तथा क य के त जाग कता दान क जाती है । संचार समाज मानवीय और
आधु नक बनाने म मह वपूण तथा आधारभूत भू मका है । संचार तथा सं ष
े ण आधु नक करण
कराने के साथ-साथ वयं भी समय के साथ आधु नक बनती जाती है । यह आधु नक करण
तथा समाज यव था क अंत: याओं का प रणाम है । इसी के कारण आधु नक काल म

30 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

ान का व फोट संभव हुआ। ि ट से उ च तर से नीचे के तर तक सूचना- वाह रहता


है । शीष अ धकार से नीचे के कमचा रय तक सच
ू ना मौ खक या ल खत प म े षत क
जाती है । मौ खक सं ेषण बातचीत
बातचीत, भाषण, टे ल फोन और बैठक के वारा होता है । ल खत
प से सं ेषण प -प काओं पो टर वा षक रपोट नो टस पै फलेट , बल
ु े टन,
टन प रप आद
के वारा होता है । ऊपर से नीचे क ओर सं ेषण के ल खत प का योग सामा यतः उस
समय कया जाता है जब कसी गोपनीय मामले क रपोट क जाती है िजसके लए
डॉ यम
ू ट या द तावेजी सा य क ज रत होती है ।
सं ेषण क या म कई बार न न तर से ऊ वगामी यानी ऊपर के तर क ओर
संचार कया जाता है । इसके अंतगत संगठना मक प म कमचार अपने अ धका रय के
आदे श व नदश के उ र दे ते ह। इस कार के संचार व सं ेषण म अपील,
अपील सुझाव, शकायल,
समूह बैठक आ द हो सकते ह।
जब एक समान तर के यि तय के म य सूचना का वाह होता है तो उसे ै तज
या पा व संचार कहा जाता है । इस कार के सं ष
े ण का प सहकत समूह या वग के म य
दखाई दे ता है । उदाहरण के लए ोड शन मैनज
े र और माक टंग मैनेजर के बीच लगातार
बात चीत ै तज संचार का प है । इस कार संचार मौ खक तथा ल खत दोन प म हो
सकता है । मौ खक ै तज संचार समाजन तर के लोग के म य होता है , लंच आ द के
समय, बैठक और स मेलन म चचा, टे ल फोन पर बातचीत आ द। ै तज ल खत संचार के
अंतगत प , मेमो, रपोट आ द आते ह।
सूचना एवं संचार का एक प वकण यानी ॉस वार संचार भी है । इसम व भ न
तर एवं व भ न वभाग के म य सूचना का वाह होता है । इसम औपचा रक ख
ंृ ला के
पालन के बना ह लोग सीधे एक-दस
ू रे से बातचीत कर सकते ह। इसका सबसे बड़ा गुण यह
है क यह कमचा रय के मनोबल तथा तब धता म व ृ ध करता है य क वे सीधे बड़े
अ धका रय से बातचीत कर सकते ह, साथ ह सं ेषण ए वंसंचार का यह प कमचा रय को
काय क संतिु ट दान करता है । वभ न वभाग क ग त व धय के म य सम वय
था पत करना य क वे पर पर बातचीत या संवाद कर सकते ह।

2.7 न कष
इस कार सं ेषण के अनेक आयाम ह जो समाज व सं कृ त के वकास के साथ-साथ
व ान एवं तकनीक के वकास को ग त दान कर रहे ह। ले कन आज सूचना एवं सं ेषण

31 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

मा यम म मेहनतकश वग और ामीण जनता क उपे ा हो रह है । मनोरं जन के नाम पर


अ धन ता परोसी जा रह है । अनै तक व ापन का जोर है , नजी चेनल के काय म म
शै क काय म का ायः अभाव ह है । इसके मूल म है- बाजारवाद यव था तथा अंधी
त प धा। यहाँ यह भी त य यान रखने लायक है क एक तरफ जहाँ संचार साधने के
वारा भारतीय सं कृ त पर चौतरफा हमला हो रहा है , वह ं भारतीय सं कृ त वैि वक प भी
हण कर रह है ।यह हमारे लए हष और संतोष के साथ गव क बात है ।

2.8 अ यास- न

.1 उ चत श द वारा खाल थान क पू त क िजए-


(क) सं ेषण का प रणाम समाज म एक ................ है । ( या, त या,
अंतः या, वा त वकता
वकता)
(ख) सं ेषण या वारा ................ का संर ण एवं संव धन भी होता है ।
(सं कृ त, शर र, आ मा)
(ग) है रो ड डी. क लासवेल ने संचार तथा सं ेषण या के तीन काय मुख
माने ह- सूचना का सं ह तथा सार, सूचना का व लेषण और ................।
(सामािजक ान और मू य का ेषण, मनोरं जन, लोकतां क सहभा गता)
.2 नीचे दए गए न के उ र केवल ‘हाँ’ या फर नह ं म द िजए-
(क) जापान म एक कहावत है - वन हु नोज मोर ह अनस मोर।
(ख) सच
ू ना व लेषण म व वान वारा कसी मत का खंडन या मंडन कया जाता
है ।
(ग) संचार मा यम वारा स ते मनोरं जन एवं से स एवं अपराध संबंधी सामा ी से
ब च और कशोर पर गलत भाव पड़ता है।
(घ) श ा मानव जीवन का ग
ंृ ार और एक मुख आधार ब कु ल नह ं है ।
.3 सं ेप म उ र ल खए--
(क) सं ेषण एवं संचार के वषय म है रॉ ड डी. लारावेल के वचार पर ट पणी
ल खए।

32 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

(ख) श ा और सं कृ त के वकास म सं ेषण और संचार के मह व को प ट


क िजए।
(ग) संचार व सं ेषण का एक मह वपूण आयाम मनोरं जन भी है , प ट क िजए।
.4 ववेचना मक न-
(क) सं ेषण एवं संचार या ह- इनक कृ त प ट क िजए।
(ख) सं ेषण के मुख आयाम का ववेचन- व लेषण क िजए।
(ग) सं ेषण क कृ त को प ट क िजए।
(घ) ‘संचार एवं सं ेषण सामािजक ान और मानव मू य का पोषण करता है -
प ट क िजए।
.5 सं ेषण के आयाम से या ता पय है?
.6 है रो ड डी. लासवेल के अनुसार सं ेषण कसके मा य
यम से होता है?
.7 सं ेषण के कतने आयाम है ल खत प से सं ेषण कसके मा य
यमम से होता है?
.8 ै तज या पा व संच
चार
ार कसे कहते ह
ह?

2.9 संदभ- ंथ

 डॉ. ीकांत संह-'मानव संचार शा ', या पु तक सदन, द ल , सं. 2013


 ु ु ल- 'सं ेषण: चंतन और द ता', शवा लक
डॉ. मंजु मक काशन, द ल , सं. -2017
 दे वे इ सर- 'जनमा यम
यम: सं ेषण और वकास', इं थ काशन, द ल , सं. 1989
 डॉ. सुशील वेद - 'सोशल मी डया', एकता काशन, द ल , सं. 2012

33 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

34 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

35 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

36 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

37 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

(i)

(ii)

38 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

39 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

40 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

41 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

42 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

43 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

44 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)




45 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

2. सव ण आधा रत तवेदन ( रपोट) तैयार करना, संभा वत वषय:


वषय
(कोरोना
कोरोना और मान सक वा य
य, टो जाग कता अ भयान,
भयान कूड़ा
न तारण योजना)
डॉ. द नदयाल
कॉलेज ऑफ़ वोकेशनल टडीज
द ल व व व यालय,
यालय द ल

परे खा

2.1 अ धगम का उ दे य

2.2 तावना

2.3 तवेदन : अथ और व प

2.4 तवेदन के मुख त व

2.5 तवेदन - लेखन क या

2.5.1 बोध- न

2.6 तवेदन के कार

2.7 तवेदन क वशेषताएँ

2.7.1 बोध- न

2.8 सव ण आधा रत तवेदन के उदाहरण

2.8.2 कोरोना और मान सक वा य

2.8.2 टो जाग कता अ भयान

2.8.3 कूड़ा न तारण योजना

2.9 न कष

2.10 अ यास- न

2.11 संदभ- ंथ

46 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

2.1 अ धगम का उ दे य
औपचा रक लेखन के पा य म म संक लत इस अ ययन-साम
साम ी से व याथ —
 सज
ृ ना मक लेखन के मह व को समझ सकगे।
 औपचा रक लेखन म तवेदन के मह व, या और प का बोध ा त करगे।
 सव ण संबंधी तवेदन नमाण क मता का वकास कर सकगे।
 समसाम यक मु द , घटनाओं पर तवेदन लखने के लए वे अपने आपको े रत कर
सकगे।

2.2 तावना का उ दे य

वतमान युग म भावा भ यि त के अनेक प और मा यम ह


ह। मनु य को समय-समय
समय
पर औपचा रक और अनौपचा रक लेखन वारा अ भ यि त करनी होती है । ऐसे म औपचा रक
लेखन के व वध प - ा प को समझना
समझना, उनम द होना आज क आव यकता है । प
नमाण हो, स पादक य लेखन हो या तवेदन लेखन आ द सभी को समझना आव यक है ।
तवेदन को कसी स बि धत वषय का पूण द तावेज माना जा सकता है । यह कतने कार
का होता है , इसके नमाण क या या होती है आ द वषय पर यहाँ चचा क जाएगी
जाएगी।

2.3 तवेदन : अथ और व प
‘ तवेदन’ श द का योग अं ेजी म ‘ रपोट’ के लए कया जाता है । तवेदन को
ववरण, संवाद, सूचना, रपट, अफ़वाह
अफ़वाह, नाम आ द अ य अथ म भी लया जाता है । पर तु ह द म
इसका योग सफ तवेदन के अथ म ह कया जाता है । उदाहरणाथ, पु लस म लखाई गई रपट,
कोई मह वपण
ू समाचार, सच
ू ना
ना, संवाददाताओं वारा समाचार प , दरू दशन आ द म भेजी गई
सच
ू ना, समाचार रपोट तो ह, पर तु हम उ ह तवेदन नह ं कहते।

‘मानक ह द कोश’ के अनुसार तवेदन का अथ है - कसी काय, घटना,


घटना त य, योजना
आ द के स ब ध म छानबीन, पछ
ू ताछ आ द करने के उपरा त तैयार कया हु आ ववरण, जो कसी
बड़े अ धकार के पास भेजा जाता है । ‘वह
ृ त ् ह द कोश' के अनुसार तवेदन का अथ है - कसी
घटना, काय, योजना आ द के स ब ध म छानबीन, पूछताछ आ द करने के बाद तैयार कया गया
वह ववरण है जो कसी अ धकार या सभा आ द के सामने तुत करने हो।

47 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

उ त कोशगत अथ से तवेदन का आधा व प ह हमारे स मुख प ट होता है । व तुतः


तवेदन म काय, घटना आ द के स ब ध म छानबीन, पूछताछ, सव ण,, शोध आ द के बाद
तुत कए गए ववरण के साथ
साथ-साथ उससे स बि धत सुझाव भी तुत कए जाते ह।

तवेदन के लए ह द म आ या, अ यावेदन तथा रपोट श द का योग भी होता रहा है ,


पर तु राजभाषा ह द म अब ' तवेदन' को ह मा यता मलती जा रह है । तवेदन श द का
शाि दक अथ हुआ, 'सामने से जानना
जानना'। अत: प ट है क तवेदन म कसी भी काय अथवा घटना
आ द के स ब ध म य प से परू जानकार एक क जाती है । पर तु इस जानकार का तब
तक कोई लाभ नह ं होता जब तक क जानकार एक करनेवाला आव यक होने पर सझ
ु ाव
आद तत
ु न करे । इस ि ट से तवेदन को स बि धत वषय पर पूण द तावेज माना
जा सकता है ।

2.4 तवेदन के मख
ु त व

तवेदन को तुत करने के लए न न ल खत त व अथवा अंग का यान रखना


आव यक है । इन त व के समायोजन से तवेदन भावशाल बन जाता है ।

तवेदन का थम एवं आव यक त व है कोई वषय अथवा संग- वशेष। य द कोई


वषय ह नह ं होगा तो तवेदन का लखा जाना ह स भव नह ं है । तवेदन के वषय क
कोई सीमा नह ं है । यह कसी
सी भी कार का हो सकता है , यथा- कोई घटना,
घटना सम या, आरोप-
यारोप, दं गा-फसाद, ववाद,, कसी सं थान क नी त, आय- यय, नव नमाण क योजना,
योजना
रा य का सीमा- ववाद, जल ववाद
ववाद, सरकार क आर ण नी त, व व व यालय और कॉलेज
क शु क नी त, पु तकालय क सम याएँ, रा य क कानून- यव था,
था बजल -पानी क
सम या आ द। प ट है क ऐसा कोई भी वषय िजसके अ ययन अथवा जाँच क
आव यकता हो तवेदन का वषय हो सकता है ।

तवेदन हे तु नयु त यि त अथवा स म त तवेदन का दस


ू रा आव यक त व है
उसके लए कसी यि त अथवा स म त को नयु त कया जाना
जाना। तवेदन के लए यि त
नयु त हो अथवा स म त इसका नणय व
वषय क ग भीरता, गहनता और उसके आयाम
को ि ट म रखकर कया जाता है । यह भी स भव है क सरकार कसी तवेदन के लए
स म त नयु त करती है तो कोई अ य सं था उसके लए यि त को पया त समझे। इसके

48 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

वपर त ि थ त भी स भव है । पर तु येक ि थ त म नयु त यि त अथवा स म त के


सद य का उस वषय का जानकार होना आव यक है । वषय के अ छे जानकार कसी
यि त को स म त का अ य बनाया जाता है । एक यि त स चव तथा शेष सद य प म
काय करते ह।

तवेदन हे तु एक समय-
समय-सीमा अव य नि चत क जाती है । य द ऐसा न हो तो स भव
है क तवेदन आने के समय तक उसका मह व ह समा त हो जाए
जाए। उदाहरणाथ,
उदाहरणाथ बरसात
का मौसम बीत जाने के बाद जल नकासी क सम या के तवेदन का या लाभ
लाभ?
तवेदक को चा हए क पूण यास करके नि चत अव ध म अपना तवेदन तुत करे ।
यह अव ध कतनी हो, इस स ब ध म कोई नयम स भव नह ं है । यह एक दन से लेकर
एक वष अथवा अ धक समय भी हो सकती है । अनेक बार तवेदक समय बढ़ाने क माँग
करते भी दे खे जाते ह।

अपना काय शु करने पर तवेदक के लए यह आव यक हो जाता है क वह


त स ब धी जानकार एक करे । इसके लए उसे कुछ च , द तावेज, टे प आ द दे खने-सन
ु ने
पड़ सकते ह। यि तय क सा ी लेनी पड़ सकती है । येक ि थ त म आव यक यह है क
यह साम ी माण-प
पु ट हो। िजन यि तय को सा ी के प म तत
ु कया जा रहा वे
य दश ह औरर उनका आचरण सि द ध न हो। तवेदन चाहे कसी सामा य यि त से
स ब ध हो, चाहे उ चा धकार से, य द प - वप म तत
ु क जा रह साम ी ामा णक
नह ं है और उसक उ चत जाँच नह ं क गई है । तो वह तवेदन म अ भलेख प म तुत
नह ं क जा सकती और न ह उसके आधार पर नणय लया जा सकता है ।

पूण जाँच-पड़ताल
पड़ताल के बाद तवेदक सं त ववरण दे ता हुआ अपने नणय को
तवेदन म तत
ु करता है । पर तु मा ववरण एवं नणय तवेदन नह ं हो सकता इसके
लए तवेदक वारा सफा रश अथवा नजी अ भमत तुत करना भी आव यक होता है ।
तवेदक का अ भमत ब धक के लए बा यकार नह ं होता
होता, इस लए इसे मान-स
मान मान का
वषय नह ं बनाया जा सकता,, पर तु इसके अभाव म तवेदन का ल य ह पूण नह ं होता।
होता
उसक वशेष ता एवं जाँच-पड़ताल
पड़ताल नरथक हो जाती है । स म त वारा तत
ु तवेदन म
यह भी स भव क कसी सद य का मत शेष सद य के मत से भ न हो
हो। ऐसी ि थ त म
उस सद य क स म त भी तवेदन म ल खत प म तुत क जाती है ।

49 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

तवेदन त य एवं माण पर आधा रत होता है । ये त य और माण उसम मब ध


प म तुत कए जाते ह। इन त य - माण आ द का म या हो, यह तवेदक अपने
ववेक से तय करताहै । उदाहरणाथ
उदाहरणाथ, य द इसके लए त थ- म अपनाया जाता है तो वष,
वष
माह और दनांक क ि ट से ये उ रो र म से तुत कए जाएँगे, यथा - पहले जनवर
माह फर फरवर , माच आ द।। पर तु येक ि थ त म पहले तवेदन का वषय,
वषय फर उस
स ब ध म क गई जाँच-पड़ताल
पड़ताल, तवेदक का न कष और फर उसका अ भमत,
भमत यह म
अ नवाय है । इसम य त म स भव नह ं है । वाभा वक प से, तवेदन को ल पब ध
करना अथात ् ल खत प म तुत करना आव यक है । मौ खक प से बताई गई बात को
तवेदन नह ं कहा जाता।

तवेदन अ भधा मक,, एवं सरल भाषा म टं कत अथवा ल खत होना चा हए और


उसम याकरण क अशु धयाँ नह ं होनी चा हए
हए।

2.5 तवेदन - लेखन क या


तवेद
दनन लेखन कोई सरल काय नह ं है । वा तव म, तवेदन लेखक पर एक बड़ा
दा य व होता है । उसके नणय और सझ
ु ाव ब धक /सरकार
सरकार पर बा यकार न होते हु ए भी
ायः उ ह ं के आलोक म भ व य क कायवाह नधा रत होती है । इस दा य व क पू त के
लए तवेदक को तवेदन स ब धी पण
ू योजना बनानी पड़ती है । इस योजना के न न
चरण हो सकते ह -

तवेदक के लए आव यक है क वह वषय को भल कार समझ ले। इसके लए


वषय का गहन प से अ ययन करना व उसपर मनन करना आव यक है । इसके अभाव म
तवेदन म दए गए नणय तथा सुझाव उपयु त नह ं हो सकते।

वषय को भल भाँ त समझ लेने के प चात ् त य को एक करना चा हए


हए। इस ि ट से
सभी स बि धत कागज़, च , ऑ डयो-वी डयो, टे प, सूचनाएँ, आँकड़े आ द एक कर लेने
चा हए। इनके लए तवेदक कसी सहायक क मदद ले सकता है अथवा आव यकता पड़ने
पर वयं भी उस थल के नर ण आ द के लए जा सकता है ।

त य को एक करने के म म ह तवेदक को ऐसे यि तय क सच


ू ी भी बना
लेनी चा हए, जो इस काय म य -परो
परो प से उसक मदद कर सकते ह।
ह जो यि त

50 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

य दश ह अथवा वषय प
पर कुछ काश डाल सक, उनक सा ी लेने का काय भी इस
चरण म पूरा कर लेना चा हए।।

त य एक करने और सा ी लेने के बाद तवेदक को उसी कार के कसी अ य


वषय से स बि धत परु ाने तवेदन
न, स बि धत नयमावल , प आ द को एक कर लेना
चा हए ता क न कष तक पहुँचने म सु वधा हो और आव यकता पड़ने पर उस न कष को
पूव नणय तथा नयम आ द से पु ट कया जा सके।

इसके प चात ् सभी सं ह त त य , माण , सा य को व ले षत कर वग कृ त अथवा


सारणीब ध कर लेना चा हए। इससे
तवेदक को न कष तक पहु ँ चने म मदद मलेगी और
वह उ चत नणय ले पाने म सफल होगा
होगा। स म त वारा तवेदन क ि थ त म वग कृ त
साम ी सभी सद य के अवलोकनाथ उपल ध करानी चा हए
हए। फर पर पर वचार वमश
वचार-
करने के बाद सवस म त अथवा बहुमत के आधार पर लए गए नणय को ल पब ध कया
जाए। य द कोई सद य उस नणय से सहमत नह ं है तो उनका मत भी अ त म दे ना
चा हए। न कष अथवा नणय के बाद तवेदक को चा हए क वह उस स ब ध म अपने
सझ
ु ाव भी दे ।
समत वारा तवेदन क ि थ त म तवेदन का ा प सभी सद य म वत ररत
कया जाए और आव यकतानुसार संशोधन के प चात ् टं कत करा लया जाए
जाए। इस स ब ध
म आव यकतानुसार गोपनीयता का यान रखते हुए तवेदक अथवा स म त के कसी
सद य को वयं भी टं कक का दा य व नभाना पड़ सकता है ।

तवेदन टं कत होने के बाद तवेदक अथवा तवेदन स म त के अ य , स चव


तथा अ य सद य के ह ता र तथा ह ता र क त थ द जाए और तवेदन संबं धत
अ धकार को स पा जाए।

2.5.1 बोध न
1. तवेदन श द का हंद म अथ प ट क िजए?
2. तवेदन श द अं ेज़ी के.................श द का अनुवाद है । (लेटर/ रपोट)
रपोट
3. या तवेदन म आंकड़ क या भू मका होती है ?
4. एक तवेदन.......................
.......................द तावेज़ होता है । (धारणा मक/त
त या मक)
मक

51 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

2.6 तवेदन के कार


तवेदन के वषय असं य ह। अतः वषय क ि ट से तवेदन का वभाजन स भव नह ं
है । ायः तवेदन या तो कसी यि त वारा तैयार कया जाता या कसी स म त आयोग वारा।
महे चतुवद ने दो कार के तवेदन क चचा क है – यि त वशेष वारा तैयार कया गया
तवेदन और स म तय -उपस
उपस म तय के वारा तैयार तवेदन।

यि तय वारा तैयार होने वाला तवेदन - इस कार के तवेदन म कसी एक यि त


को तवेदन तैयार करने का दा य व स पा जाता है । इस यि त का वषय का अ छा जानकार
होना आव यक है । इस कार के तवेदन- जैसे कसी वशेष वारा अपने सेवाथ को अथवा
नयोिजत वारा नयो ता को ायः प प म होते ह। इनम उ म पु ष शैल का उपयोग कया
जाता है । तवेदक के लए आव यक है क वह तवेदन म घटना/सम या का उ लेख करने के
बाद उसक प ृ ठभू म पर वचार करे । इसके बाद वतमान प रि थ तय पर वचार करे तभी
भ व य क ओर संकेत करना स भव होगा
होगा। यहाँ दो बात पर वशेष यान दे ना आव यक
है । थम तो यह क इसम जो
जो-जो
जो बात शा मल क जाएँ उनके म पर वशेष यान दया
जाए। य द म ठ क नह ं होगा तो तवेदन अनाकषक एवं भावह न हो जाएगा
जाएगा। दस
ू र बात
यह क उसम
म गोपनीय बात का वणन न कया जाए
जाए। तवेदन एक मह वपूण द तावेज
होता है । यापा रक सं थाओं म आपसी त व वता चलती रहती है । य द एक यापा रक
सं थान अपनी यापार व ृ ध के लए तवेदन तुत करवाता है तो दस
ू रा सं थान उसे
ह थयाने क को शश कर सकता है । ऐसे म य द उसम कु छ गोपनीय सूचनाएँ ह गी तो उस
सं थान को पया त हा न हो सकती है । तवेदन को भावी बनाने के लए उसम
ामा णकता, शोध- ि ट और भाषा क सरलता
सरलता, सहजता, न ा तता का होना भी आव यक
है ।

स म तय अथवा उपस म तय वा
वारा
रा तैयार होने वाला तवेदन - इस कार के
तवेदन के वषय अपे ाकृत ग भीर कृ त के होते ह
ह। िजन वषय के स ब ध म यह
समझा जाता है क एक से अ धक यि तय के सु वचा रत मत क आव यकता है , उनके
लए कोई स म त बना द जाती है । एक से अ धक यि त होने के कारण सामा यतया इनके
वारा क गई जाँच-पड़ताल
पड़ताल अ धक सू म और गहन होती है , नणय अ धक सु वचा रत और
अ भमत अ धक उपादे य होते ह
ह। इस कार के तवेदन ‘सव ण संबंधी’’ गुण भी रखते ह।

52 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

इस कार के तवेदन म तट थता अथवा न प ता क स भा


भावना
वना भी अ धक रहती ह
य क इसम का समवेत प से दा य व अ य , स चव एवं सभी सद य का होता है । यहाँ
यह उ ले य है क य द कोई सद य अ य सद य से भ न मत रखता है तो वह भी
अपना मत दज करा सकता है । ऐसी ि थ त म सवस मत के थान पर बहु मत का नणय
नण
न कष अथवा अ भमत माना जाता है । इस कार का तवेदन पहले तवेदन क तुलना म
अ धक मह वपूण माना जाता है । इन तवेदन का व प प के समान नह ं होता
होता। इसे
नवयि तक शैल म लखा जाता है । आव यक शीषक दे ने के प चात ् सं ेप म यह बताया

जाता है क स म त के अ वेषण का उ दे य या था
था, या- या अ वेषण कए गए,
गए कौन-
कौन से सा य स म त के स मुख तुत कए गए और उनके स दभ म या या
या- माण
सामने आए। त य सु नि चत हो जाने के बाद वचार
वचार- वमश और तक- वतक का सार तत

कया जाता है । इसके बाद स म त का नणय तथा अ भमत तत
ु कया जाता है । बाद म
ायः अ य , स चव एवं सभी सद य के ह ता र होते ह
ह। कभी-कभी
कभी अ य और स चव
अथवा मा अ य के ह ता र भी पया त मान लए जाते ह
ह।

यि तय वारा तुत तवेदन और स म तय - उपस म तय वारा तुत तवेदन


को मशः अनौपचा रक तथा औपचा रक तवेदन भी कहा जाता है । अनौपचा रक तवेदन
क तुलना म औपचा रक तवेदन क भाषा अ धक औपचा रक
रक, सधी--मँजी होती है तथा
उसक श दावल म अपे ाकृत अ धक सावधानी बरती जाती है ।

2.7 तवेदन क वशेषताएँ


एक अ छे तवेदन म कुछ गुण अथवा वशेषताओं का होना आव यक माना जाता है । जैस-े
एक अ छा तवेदन ामा णक त य का सं ह होना चा हए। वह वषय न ठ होना चा हए और
उसम अनपे त साम ी के लए कोई थान नह ं होता। य क वषयेतर साम ी से वह भावह न
हो जाएगा और ल य क ाि त म असफल रहे गा। य द तवेदक को कुछ कम मह वपूण मु द का
उ लेख आव यक लगे तो उनका सार प म अथवा पाद ट प णय के प म उ लेख करना चा हए।

तवेदक को यि तगत राग- वेष से दरू रहकर वषय का व लेषण एवं न कष तुत
करना चा हए। ऐसा न होने पर यि त को यि तगत प से तो ता का लक लाभ हो सकता है ,
पर तु सं था, सरकार और परो तः तवेदक को भी अ ततः हा न ह होगी। यह नह ,ं तवेदक
क व वसनीयता समा त होने का भय भी रहे गा। तवेदन म वषय क वशेष ता और ता ककता

53 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

प ट झलकनी चा हए। तवेदक ने वषय को भल कार समझकर वचारपूवक त य एक कए


ह और तकपूवक व लेषण कया है , उसका यह यास तवेदन म प ट प से ि टगत होना
चा हए।

तवेदन म वषय, घटना


घटना, सम या क प ृ ठभू म प ट प से उि ल खत होनी चा हए। इससे
अ धका रय को सु वधा मलती है । प ृ ठभू म के प चात ् वतमान ि थ त म तवेदक के सुझाव
मानने पर उस स ब ध म ा त हो सकने वाले लाभ का भी प ट उ लेख कया जाना चा हए।
स म त के तवेदन क ि थ त म स म त के सद य वारा कए गए तक- वतक तथा बहस के
ब दओ
ु ं क ओर भी प ट संकेत करना चा हए
हए।

तवेदन ल यगामी होना चा हए


हए। इसके लए आव यक है क तवेदक को िजस
उ दे य से तवेदन तैयार करना है , वह उसी ओर अपना
ना यान केि त रखे। उस वषय से
स बि धत कुछ अ य ब द ु भी वचारणीय हो सकते ह
ह, य द तवेदक उन ब दओ
ु ं पर भी
वचार करने लगेगा तो वह ल य ट हो सकता है , इससे तवेदन भावी नह ं बन पाएगा।
पाएगा
तवेदन म नणया मकता और सुझावा मकता का होना आव यक है । तवेदक का
व लेषण यथ होगा य द वह उस स ब ध म अपना न कष अथवा नणय नह ं दे पाता
पाता।
इसी कार य द स बि धत वषय पर वह अपना अ भमत तुत नह ं करता तो तवेदन
को अधरू ा माना जाएगा।

तवेदन म पण
ू ता का गणु होना आव यक है पर तु इसके लए उसे बहु त व तत

करने क आव यकता नह ं है । सं ेप म वषय को पण
ू ता के साथ तुत करना ह अ छे
तवेदन क वशेषता है । अनाव यक व तार से तवेदन अपने ल य से भटक सकता है ।
तवेदन क भाषा न ा त,, सहज तथा सरल होनी चा हए। तवे
वेदक िजस भाव से श द
का योग करता है , उन श द से वह भाव प ट होना चा हए
हए। आलंका रकता,
रकता वयथकता
आद तवेदन म गुण के थान पर दोष माने जाते ह
ह। येक तवेदन को उपयु त शीषक
अव य दे ना चा हए, िजससे वह वषय पूणतया प ट हो सके। यि त वारा तुत
तवेदन थम पु ष शैल तथा स म त वारा तुत तवेदन अ य पु ष शैल म लखा
जाता है ।

तवेदन व तत
ृ होने क ि थ त म उसे अनु छे द म वभािजत कया जा सकता है ।
यद तवेदन बहुत अ धक बड़ा हो तो उसका सारांश भी दे ना चा हए। तवेदन म सभी

54 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

त य मव ध प म दे ने चा हए
हए। म को तवेदक अपने ववेक से नि चत कर सकता
है । सामा यतः यह दनांक के म म होना चा हए
हए। परे खा क ि ट से शीषक,
शीषक सम या,
प ृ ठभू म, वतमान ि थ त, उपल ध त य
य, सा याँ और उनका व लेषण,, बहस व सुझाव के
ब द,ु न कष, नणय, सुझाव तथा त थ स हत ह ता र का म अपनाया जाता है ।

तवेदन के टं कण के समय याकरण क अशु धयाँ न रह


रह, इस ि ट से यान रखा
जाए। तवेदन के अ त म तवेदक के ह ता र होने चा हए
हए। य द तवेदन स म त अथवा
आयोग वारा तत
ु कया जा रहा है तो अ य , स चव तथा सभी सद य के ह ता र
होने चा हए। कुछ ि थ तय म अ य और स चव अथवा मा अ य के ह ता र भी
पया त माने जाते ह। तवेदक वारा संक लत सभी आव यक माण
माण,, पा डु ल पयाँ, प ,
फाइल आ द तवेदन के साथ संल न कर दे ने चा हए
हए। साथ ह , इनका संल नक प म मूल
तवेदन म संकेत भी कर दे ना चा हए
हए।

2.7.1 बोध- न

सह श द चन
ु कर र त थान
न क पू त क िजए
िजए-
1. एक तवेदन म..................
..................अ नवाय होते ह। (त य/ ववाद)
2. तवेदन के टं कण के समय
समय.............. क अशु धयाँ न रह। ( याकरण/वाचन)
याकरण
3. तवेदन.......................
.......................लेखन के अंतगत आता है । (औपचा रक/अनौपचा
अनौपचा रक)
रक
4. तवेदन कतने कार के होते ह या हो सकते ह
ह?

2.8 सव ण आधा रत तवेदन के उदाहरण

सव ण वाले तवेद
दनन के कुछ समसाम यक नमूने दे खए –

2.8.1 कोरोना और मान सक वा य (एक रपोट)-


20 फरवर 2023

महामार ने लोग पर जो मनोवै ा नक भाव डाला है , उसने यह दशाया है क लोग कतने


नाजुक ह। ऐसे म सार द ु नया म मान सक वा य को लेकर चंताएँ ह और इसे लेकर अ धक
सहायता क ज रत महसूस क जा रह है । को वड मनोवै ा नक भाव,, मान सक तद ु ती,
मान सक वा य, वा य दे खभाल
भाल, अवसाद का 91-2020 म करवाए गए व व वा य सेवा
संगठन (ड यूएचओ) के सव के अनसार महामार ने द ु नया के 90% दे श म मान सक
स वा य

55 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

सेवाओ को बा धत कया है । 60%


% दे श म यह भी दे खा गया है क नाजुक वग के लोग िजसम ब चे,
कशोर, बज
ु ग
ु तथा म हलाओ का समावेश है और िज ह सव पव ू एवं सव प चात सु वधाओं क
ज रत होती है , उनके लए उपल ध मान सक वा य सेवाएँ भी इस वजह से बा धत हुई ह।

अनुमान-

ला सेट के अनम
ु ान (2020) के अनस
ु ार महामार के वैि वक वा य पर पड़े भाव क वजह
से अवसाद संबंधी मामल म 28% क व ृ ध दे खी गई है , जब क चंता को लेकर होने वाल
परे शा नय म 26% इजाफा हुआ है । एक अनुमान है क वैि वक अथ यव था म मनौवै ा नक
वा य पर होने वाला खच 2030 तक 6 लयन अमे रक डॉलर हो जाएगा।। अवसाद और चंता
के लए सा य-आधा रत दे खभाल म नवेश कया गया येक डॉलर बेहतर वा य और
उ पादकता म 5 अमे रक डॉलर का रटन दे ता है । इसके अलावा, मान सक वा य द घकाल न
य,
वकास ल य , वशेष प से ल य 3 (अ छे वा य और क याण) को ा त करने का अ भ न अंग
है । अतः मान सक वा य को मानवा धकार और आ थक ि टकोण से ाथ मकता दे ने क
आव यकता है ।

यापक भाव-

महामार क वजह से भय
भय, अलगाव और जीवन तथा आय क हा न होने के कारण मान सक
वा य भा वत होने के नए मामले दे खे गए ह या फर परु ाने मामल म ि थ त और भी खराब
हुई है । इसे दे खते हुए मान सक वा य सेवाओं क मांग मख
ु ता से उठने लगी है ।
व भ न समाज म महामार के प रणाम व प सामािजक अलगाव और आ थक संकट के
कारण मान सक वा य क पीड़ा बढ़ गई है । सं मण के भय, म ृ यु, प रजन को खोने,
नौकर गंवाने या जीवन-यापन
यापन का रा ता बंद होने और सामािजक तौर पर अलगाव तथा
अपन के बछड़ने या दरू जाने क वजह से लोग क चंताा, अवसाद, अलगाव और उदासी म
व ृ ध दे खी जा रह ह। इसके साथ ह िजन लोग को पहले से ह मान सक बीमार है अथवा
मादक पदाथ का सेवन करने क वजह से उनको मान सक वकार ने जकड़ लया है उनके
को वड-19 से सं मत होने क संभावनाएँ यादा है । इसी कारण ऐसे लोग पर वपर त
मान सक और मनोवै ा नक भाव पड़ने क भी आशंका है । दभ
ु ा यवश म यम से यूनतम
आय वाले दे श म मान सक बीमा रय से जूझने वाले 75% से 80% नाग रक को आव यक
सहायता कभी मल ह नह ं पाती
पाती।

56 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

मान सक वा य सेवा म नवेश-


व ड फेडरे शन फॉर मटल हे थ के अ य इं ीड डै नय स ने 2020 म कहा था क
मान सक वा य सेवाओं पर पहले से ह भार बोझ है । ऐसे म अब को वड-19
वड महामार के
कारण मान सक वा य क ज रत म असाधरण व ृ ध
ध, इससे भा वत हर महा वीप के
अनेक दे श म पहले से ह पैस और संसाधन क कमी का सामना कर रह मान सक
वा य सेवाएँ को बुर तरह भा वत कर रह ह
ह। को वड-19 ने मान सक वा य सेवाएँ
क गंभीर खा मय को भी उजागर कर दया है । अतः अब वैि वक नेताओं को चा हए क वे
इसक ज रत को ाथ मकता बनाकर यह सु नि चत कर क गण
ु व ापण
ू मान सक वा य
सहयोग येक के लए हर जगह आसानी से उपल ध करवाया जाए। 80 वष म चंता,
अवसाद और आ मह या को संबो धत करने वाले कूल
ल-आधा
आधा रत ह त ेप म नवेश कए
गए येक एक अमे रक डॉलर ने अ छा रटन दया है । दरअसल, द ु नया भर म मान सक
वा य सेवाओं पर महामार क चोट होने से पहले ह कम खच कया जा रहा था
था। अनेक
दे श अपने सावज नक वा य बजट क 2% से भी कम क रा श ह मान सक वा य पर
खच करते हुए अपने नाग रक क ज रत को पूरा करने म परे शानी का सामना कर रहे थे।
द ु नया के कुछ गर ब दे श म तो सरकार कसी यि त क मान सक ि थ त का उपचार
करने पर एक अमे रक डॉलर से भी कम पैसा खच कर रह है । यहाँ उ लेखनीय है क
मान सक बीमार के इलाज म आने वाले खच के मुकाबले नकारा मक लाभदायक प रणाम
या नि यता क क मत यादा होती है ।

भारत क ि थ त-
वकासशील दे श म म हला सशि तकरण क कमी
कमी, नणय लेने क मता से इंकार
और घरे लू हंसा के बीच खराब मान सक वा य ि थ तय म एक बड़ी भू मका नभाते ह
ह।
म हलाओं के मान सक वा य ि थ तय क यापकता म दशक से कोई प रवतन नह ं
हुआ है । को वड क महामार ने मान सक वा य य-दे
दे खभाल क आव यकता को और बढ़ा
दया है । महामार के बीच चंता क यापकता काफ बढ़ गई है । म यम आय वाले दे श को
को वड-19 महामार ने अनेक कारण क वजह से वशेष प से भा वत कया है । मान सक
वा य ि थ तय क यापकता म दशक से कोई प रवतन नह ं हुआ है । ले कन को वड-19
क महामार ने मान सक वा य दे खभाल क आव यकता को और बढ़ा दया है । वा य
बजट म मान सक वा य के बजट के लए रखी जाने वाल रा श म काफ खा मयाँ ह।

57 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

कुछ वकासशील दे श म महामार के त सरकार क त या म सुर ा को लेकर कए


गए उपाय ने चंता और अवसाद के तर को कम करने म मह वप
पूण भू मका अदा क थी।
थी

आगे बढ़ने का रा ता-


बहु वषयक
क और अंतर े ीय समाधान क माँग करने वाले एसडीजी को पूरा करने क
या म मान सक वा य एक अ भ न अंग है । महामार के बीच ड यूएचओ ने
मान सक वा य सेवाओं को बनाए रखने के लए व भ नँ दे श को अपनी रा य
त या और महामार के बाद बहाल योजनाओं म मान सक वा य दे खभाल के लए
संसाधन के सम पत आवंटन क सफा रश क थी
थी। ड यूएचओ
एचओ ने मान सक वा य के
लए एक वशेष पहल भी था पत क है जो सावभौ मक वा य कवरे ज के ह से के प
म मान सक वा य दे खभाल को बढ़ाने पर क त है । गुणव ा ह त प
े और सेवाओं को
बढ़ाकर यह सु नि चत कया गया है क मान सक वा य को लेकर ख
खराब ि थ त का
सामना करने वाले येक यि त तक इसका लाभ पहुँचाया जाए।

2.8.2 टो जाग कता अ भयान (एक रपोट)-


20 फरवर 2023
भारत सरकार ने आभासी मु वा टो को लेकर चंता जताई है िजसक मु य चंता का
वषय है - नवेशक श ा और सुर ा कोष (IEPF) टो करसी एवं ऑनलाइन गे मंग के बारे म
जाग कता बढ़ाने के लये एक आउटर च काय म लॉ च करना।

आउटर च काय म-
आउटर च काय म क आव यकता इस अवलोकन पर आधा रत है क उ योग म मौजूदा
अि थरता के बावजूद टो, िजसम जुआ और स टे बाजी शा मल है ) संप और ऑनलाइन
गे मंग- दोन को अब भी अवैध तर के से बढ़ावा दे रहा है । यह काय म संभा वत नवेशक को कोई
भी नणय लेने से पहले खद
ु को परू तरह से श त करने म मदद करे गा य क टोकरसी
नवेश एक ज टल और जो खम भरा यास है ।

नवेशक श ा और सरु ा कोष (IEPF)-

इसका बंधन ा धकरण वारा कया जाता है , िजसे वष 2016 म कंपनी अ ध नयम,
नयम
2013 क धारा 125 के ावधान के तहत था पत कया गया था
था। ा धकरण को IEPF के
शासन क िज मेदार स पी गई है जो नवेशक के बीच जाग कता को बढ़ावा दे ने के

58 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

अलावा सह दावेदार को शेयर , दावा र हत लाभांश, प रप व जमा और डबचर आ द का


रफंड तदाय करता है । मुख यान क त े म ाथ मक और वतीयक पँज
ू ी बाजार,
व भ न बचत साधन, नवेश के साधन जैसे यूचअ
ु ल फंड
ड, (इि
इि वट , अ य के बीच),
नवे
वेशक को सं द ध प जी तथा चट फंड योजनाओं एवं मौजूदा शकायत नवारण तं आद
के बारे म जाग क करना शा मल है ।

टो करसी के संदभ म चंताएँ-

टो द ु वधा कसी दे श क मौ क और राजकोषीय ि थरता पर ि थर भाव वाल


अ नय मत मु ा के बारे म चंताओं से उ प न होती है । इसके अ त र त भारत म टो
ए सचज क अवैध थाओं जैसे- मादक पदाथ क त कर , मनी लॉि ग
ं , वदे शी मु ा
कानन
ू का उ लंघन करने तथा GST (माल और सेवा कर) क चोर म उनक क थत
भागीदार के लये जाँच क जा रह है । नवेशक श ा का आशय ामीण और शहर दोन
े म घरे लू नवेशक , ग ृ ह णय एवं पेशव
े र
तक पहुँचना तथा उ ह नवेश के मल

स धांत सखाना है । दसंबर 2022 तक 907.48 करोड़ पए ज त कये गए ह, ह तीन
यि तय को गर तार कया गया है और चार अ भयोजन शकायत
शकायत, धन शोधन नवारण
अ ध नयम (PMLA) के तहत दायर क गई ह
ह। लॉकचेन क अप रवतनीय,
रवतनीय सावज नक
कृ त मनी लॉि ग
ं के लये टो को खराब वक प बनाती है य क यह कानन
ू वतन
को नकद लेन-दे
दे न क तल
ु ना म कह ं अ धक आसानी से मनी लॉि ग
ं को उजागर करने और
े स करने म स म है । भारतीय रजव बक ने इस े म कानून बनाने क सफा रश क है ।
सरकार का मानना है क टो करसी को तबं धत कया जाना चा हये।

आगे क राह-

अ य काय म पर यान दे ने के साथ ह टो े के लये एक नयामक तं होना


चा हये। अगर सरकार कठोर ख अपनाते हुए यह कहती है क आभासी मु ा जैसी चीज
भारत म वैध नह ं ह तो यह पूर तरह सच नह ं माना जाएगा
जाएगा। लोग को गलती से व वास
हो सकता है क यह न ष ध है और लोग टो संप का उपयोग करके मनी लॉि ग

जैसे आपरा धक लेन-दे ह; परं तु कानूनी ब कं ग मा यम का उपयोग
दे न म संल न हो सकते ह
कर अवैध लेन-दे
दे न का उ मूलन कया जा सकता है ।

59 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

2.8.3 कूड़ा न तारण योजना (एक रपोट)-


20 फरवर 2023

कर ब 15 साल बाद नगर म कूड़ा कचरा न तारण का काम शु हो गया।


गया करोड़ क योजना
को सट लॉक के टांड गांव म शु कया गया। नगर से त दन कर ब 300 टन कूड़ा नकल रहा
है । कूड़ा न तारण क मता 700 टन है । इस संयं पर लाि टक और कू ड़ा को अलग कया जा
रहा है ।

सरकार बदलते ह ठं डी पड़ गई थी योजना-


नगर म रोज नकलने वाले कूड़ा न तारण के लए रा य सरकार ने वष 2017 से 2022 के
म य िजले म ोजे ट को वीकृ त द थी। कंपनी ने टडर मलने पर काम शु कर दया था।
एक काम का डबल टडर-
सरकार बदलते ह ठे का भी बदलने का काम कया गया। एक काम को दो ठे केदार को दए जाने
पर मामला कोट म चला गया। इसी के साथ ोजे ट अधर म लटक गई। भाजपा क सरकार आने पर
पा लका य ने अधरू योजना को चालू कराने का यास कया। लगातार यास से शहर क
गंदगी समा त करने का काम शु हो गया है ।
ज द होगा फर से टडर-
पा लका य ने बताया,, आने वाले दन म ज द ह टडर कराया जाएगा।
जाएगा गाँव के साथ
ह वं याचल के द वान घाट और अखाड़ा घाट पर कर ब 88.3 टन कू ड़ा डंप है । िजसके
न तारण क या शु हो गई है । इससे नगर म अब कू ड़े का ढे र नजर नह ं आएगा।
आएगा
लाि टक को नकाल कर कूड़े का योग म ट म कया जायेगाा। कंपनी के अ धकार ने
बताया, कूड़ के ढे र के न तारण क िज मेदार एम
एम. जे. ीन स ा ाइवेट ल मटे ड को
मल है । टांड गाँव म कचरा के बीचसे म ट और लाि टक को अलग कया जा रहा है ।
कूड़े के ढे र से नकलने वाल लाि टक कंप नय को उनक माँग पर दे रहे ह, िजसका
उपयोग धन के प म कया जा रहा है । नकलने वाल म ट का न तारण ग ढ को
पाटने और खाद के प म कया जाएगा
जाएगा। यह नह ं नगर पंचायत म कू ड़े के न तारण क
सम या का अब ज द ह समाधान हो जाएगा
जाएगा। शासन कू ड़ा न तारण फै स लट के लए 33
लाख पया वीकृत कया है ।

60 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

ततीस लाख क लागत से शु होगा ोजे ट पर काम


काम-
इस योजना म कूड़ा न तारण तो होगा ह साथ ह कूड़े से खाद बनाने का भी ोजे ट
लगाया जाएगा िजससे आसपास के लोग को खाद भी उपल ध होगी।। नगर पंचायत से
नकलने वाले कूड़े के न तारण के लए कोई नधा रत थान नह ं था।। नगर पंचायत के
सफाई कमचार इधर उधर कूड़ा न ता रत करते थे िजससे नगर म दष
ू ण फैल रहा था
था।
नगर पंचायत अ य ने कूड़ा न तारण के लए शासन से काफ पहले धनरा श क माँग क
थी। इस योजना के लए समीपवत ाम म जमीन भी तहसील शासन वारा काफ दन
पहले उपल ध करा द गई थी
थी।
इ ह ं जमीन पर शु हुआ काम
काम-
शासन ने कूड़े के न तारण के लए तैतीस लाख वीकृत कया है । िजसक थम
क त शी ह अवमु त हो जाएगी
जाएगी। िजससे गाँव म कू ड़ा न तारण सु वधा का ोजे ट शी
ह बनना शु हो जाएगा। स बं धत अ धकार ने बताया क यह ोजे ट काफ दन से
लं बत था। शासन वारा वीकृ त मल गई है । शी ह इस पर काम शु हो जाएगा।
जाएगा
तहसील वारा उपल ध कराई जमीन पर कुछ लोग का अवैध क जा था िजसे बध
ु वार को
तहसीलदा ने हटवा दया। बध
ु वार से ह चि हत जमीन पर कू ड़े का न तारण का काम शु
कर दया गया है ।
सुझाव-
कूड़े का बंधन कारगर तर के से हो
हो, इसके लए वदे शी कंप नय से सहायता ल जाए।
जाए
भ व य म कूड़ क व ृ ध को दे खते हुए नए लड फल साइट के लए पहले से ह जगह
चि हत कया जाए। लोग जहाँ-तहाँ कूड़ा न फके, इसके लए उ ह वशेष प से जाग क
कया जाए।
आ धका रक प -
नगर- नगम कूड़ा न तारण क योजना पर लगातार काम कर रहा है । कालो नय म
कूड़ा उठाने के लए गा ड़याँ भेजी जा रह ह
ह। कूड़ा न तारण के लए बवाना इलाके म नए
लड फल साइट का नमाण
ण काय ग त पर है । यहाँ कू ड़े का रसाइ कल कया जा रहा है।
उनसे जै वक खाद तैयार करने क योजना पर काम शु हो सका है । यहाँ कूड़े से बजल
तैयार करने क योजना पर भी काम चल रहा है । इसके लए चीन क एक कंपनी से करार
हो चक
ु ा है ।
61 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

2.8 न कष
न कष प म यह कहा जा सकता है क औपचा रक लेखन म तवेदन लेखन का
अपना प और मह व होता है । येक तवेदन का योजन यह होता है क िजस यि त
अथवा यि तय का कसी वषय से स ब ध तो हो
हो, पर तु उसे उसके स ब ध म पूण
त य का ान न हो, उसे पया त आव यक साम ी उपल ध करा द जाए
जाए। तवेदन का
वषय कुछ भी हो सकता है कोई घटना
घटना, कोई समारोह-उ सव, कोई उ घाटन,
घाटन सभा-जुलूस,
बैठक, कसी क पनी क व ीय ि थ त
त, कसी सं थान के कमचा रय म या त अस तोष,
तोष
बाढ़ से बाँध का टूटना आ द।। ता पय यह क तवेदन के अनेकानेक वषय हो सकते ह।

तवेदन ( रपोट) तैयार करने का काय कसी सरकार अथवा गैर सरकार सं था वारा
कसी यि त अथवा स म त को स पा जाता है । तवेदन के लए अथक शोध और सव ण
क आव यकता होती है ।

2.10 अ यास- न

1. एक सव ण आधा रत तवेदन के लए कन बात का होना अ नवाय है ?


2. तवेदन से या अ भ ाय है , वतमान म कौन से ऐसे वषय ह िजन पर तवेदन
तैयार कया जाना चा हए
हए?
3. एक सफल और सु ढ़ तवेदन के लए या वशे ताएँ ह?
4. कसी एक समसाम यक वषय पर तवेदन तैयार क िजये?
5. तवेदन क भाषा पर वचार क िजए
िजए?

2.11 संदभ- ंथ

 'मानक हद कोश'—सं. रामचं वमा


 'वृहत ह द कोश'—सं. डॉ
डॉ. हरदे व बाहर
 औपचा रक ह द लेखन
'औपचा न'—सं. डॉ. द नदयाल, डॉ. भावना शु ल
 ' ह द लेखन द ता'— डॉ
डॉ. पूरनचंद टं डन

62 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

3. लेखन के व वध प
अनु छे द-ले
लेखन
न, संवाद-लेखन, डायर -लेखन, लॉग-ले
लेखन
डॉ. द नदयाल
कॉलेज ऑफ़ वोकेशनल टडीज
द ल व व व यालय,
यालय द ल

परे खा

3.1 अ धगम का उ दे य
3.2 तावना
3.3 अनु छे द : अथ और व प
3.4 अनु छे द लेखन का मह व
3.5 अ छे -अनु छे द-ले
लेखन क वशेषताएँ
3.6 अनु छे द-ले
लेखन के कार
3.7 प लवन और अनु छे द लेखन म अंतर
3.7.1 बोध- न
3.8 अनु छे द-ले
लेखन के उदाहरण
3.9 डायर -लेखन : अ भ ाय और व प
3.10 डायर -ले
लेखन और तत
ु ीकरण के प
3.11 डायर -ले
लेखन का मह व और या
3.11.1 बोध- न
3.12 डायर -ले
लेखन के उदाहरण
3.13 संवाद : अ भ ाय और व प
3.14 संवाद का मह व
3.15 संवाद-ले
लेखन क या
3.15.1 बोध- न
3.16 संवाद के उदाहरण
3.17 लॉग-लेखन : अ भ ाय

63 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

3.18 ह द म लॉग कैसे लख


3.19 लॉग
ग लेखन का उ दे य और या
3.19.1 बोध- न
3.20 न कष
3.21 अ यास- न
3.22 संदभ- ंथ

3.1 अ धगम का उ दे य

लेखन के व वध प नामक इस पाठ म संक लत इस अ ययन साम ी से व याथ -


1. सज
ृ ना मक लेखन के मह व को समझ सकगे।
2. लेखन के व वध प के मह व
व, या और कार से अवगत हो सकगे।
3. औपचा रक और रचना मक लेखन नमाण क मता को वक सत कर सकगे।
4. डायर , संवाद
द आ द लखने के लए वयं को े रत कर सकगे।
5. वयं को लॉग बनाने और लेख लखने के लए जाग क कर सकगे।

3.2 तावना
जानने क इ छा और अपने अंतस को बाहर नकालने क मनु य म आदम लालसा रह
है । वतमान युग म भावा
वा भ यि त के अनेक प
प, वधाएँ और मा यम ह। मनु य को समय-
समय
समय पर औपचा रक और अनौपचा रक प म मौ खक और लेखन वारा अ भ यि त करनी
होती है । ऐसे म लेखन के व वध प- ा प को समझना, उनम द होना आज क
आव यकता है । लेखन के कौशल से यु त होकर ह कोई भी सजक संवाद
ाद, डायर , अनु छे द
लखता है और लखेगा। यू मी डया के युग म अपना लॉग बनाने और लॉग लखने क
याँ क कला के लए पहले यहाँ
हाँ उ त सभी कार के लेखन को समझ ल।

3.3 अनु छे द : अथ और व प

‘अनु छे द’ अं ेजी के ‘पै


पैरा ाफ
ाफ’ का अनव
ु ाद श द है । िजसका शाि दक अथ है 'कट जाने
पर भी अलग या न ट न होना।
होना।' यह मु य प से कसी सा हि यक रचना, पु तक आ द के कसी
करण के अंतगत वह व श ट अंश होता है ; िजसम कसी एक वषय या उसके कसी अंश क
64 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

मीमांसा या ववेचना होती है । हम दे खते ह क कसी लेख, नबंध आ द अपे ाकृ त लंबी रचना को
लेखक कुछ वभाग म वभािजत करता है । ऐसा वषय के प ट ववेचन के लए कया जाता है । इस
वभाजन के समय यह यान रखा जाता है क व श ट वभाग म कोई एक व श ट भाव, वचार
अथवा बात पण
ू तः या फर अंशतः प ट हो जाए। इस कार यह वभाग अथवा अनु छे द अपने
पूववत और परवत अनु छे द से जुड़ा होने पर भी भाव, वचार आ द क ि ट से एक सीमा तक पूण
भी होता है । कसी भी अनु छे द म एक वषय वशेष, एक भाषा, एक शैल और वा य क
मब धता क अपे ा-अ
अ नवायता उसे सह प दान करती है ।

3.4 अनु छे द-ले


लेखन का मह व

अनु छे द के शाि दक अथ के आधार पर इसका कसी रचना का अंश होना अ नवाय है परं तु
आजकल वतं प से अनु छे द लेखन का अ यास भी कराया जाता है । वशेषतः व याथ म
लेखन कौशल क मता का वकास करने के लए मा य मक क ाओं म इसक उपयो गता
न ववाद है । व याथ को सी मत वषय पर अनु छे द लेखन के लए कहा जाता है और इसके
मा यम से उसके ान, क पना
पना, तक-शि त और भा षक मता आ द को परखा जाता है । वतमान
समय म हंद भाषा का उपयोग समाज जीवन के व वध े म बढ़ा है । व भ न समाचार-प ,
प का, दरू दशन के समाचार चैन
नल,
ल अनुवाद आ द म हंद का उपयोग बढ़ने से यह आव यक तीत
होने लगा है क व याथ म व भ न वषय पर सी मत श द म अ धका धक भाव कट करने क
मता का वकास हो। इस ि ट से आज सभी तर पर व या थय को अनु छे द लेखन का
अ यास कराया जाता है ।

3.5 अ छे अनु छे द लेखन क वशेषताएँ

अ छे अथवा े ठ अनु छे द लेखन क कोई नि चत प रभाषा नह ं द जा सकती। येक


व याथ अपनी यो यता और मतानुसार वषय अथवा शैल को व श ट प दे सकता है ।
एक अ छे अनु छे द के लए
ए न न ल खत बात हो सकती ह
ह-

1. य द हम अनु छे द को कसी रचना का एक अंश मान तो उससे संबं धत वषय का कोई


एक अंश अपने पूण भाव अथवा वचार के साथ आए।

65 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

2. वतं अनु छे द रचना के समय यह यान म रखना होगा क उस


उससे
से संबं धत वषय के
सभी प का समावेश हो जाए। य द कोई प छूट जाएगा तो उसे अनु छे द का दोष
माना जाएगा।

3. अनु छे द और नबंध के वषय म अंतर होता है। नबंध ऐसे वषय पर लखा जाता है ,
िजसका बहुत व तत ृ आयाम हो। अनु छे द वषय का अंश मा हो सकता है , परं तु
वतं अनु छे द का वषय सी मत आयाम वाला होना चा हए।

4. अनु छे द लखते समय वणन म संतुलन रहे , इसका यान रखना आव यक है । संभव है क
कभी यि त को च अ अथवा
थवा अ च के वषय पर अनु छे द लखना हो और वह उसे
अ त व तत
ृ अथवा अ त संकु चत कर न दे ।
5. अनु छे द के लए शीषक को यान से समझकर संतु लत प से लखा जाना चा हए।
6. अनु छे द लेखन म वचार का कट करण मब ध एवं तकसंगत व ध से होना चा हए।
य द वचार अथवा
वा भाव मब ध तर के से तुत नह ं कए जाएँगे तो पाठक के लए
वषय को समझना द ु कर हो जाएगा तथा अनु छे द भावह न हो जाएगा
जाएगा।
7. अनु छे द के लए आव यक है क वह सग
ु ठत हो तथा उसम वचार और तक का
ऐसा सु वचा रत पूवापर म हो
हो।
8. अनु छे द क भाषा वषया
वषयाननुकूल होनी चा हए। ायः अनु छे द शा वत मह व के वषय
पर लखे जाते ह। अतः उसक भाषा भी उसी के अनु प गंभीर एवं प रमािजत होनी
चा हए। सामािजक वषय पर लखे गए अनु छे द क भाषा अपे ाकृत सहज होती है।
ता पय यह है क भाषा यथासंभव सरस
सरस, सब
ु ोध और ग या मक होनी चा हए।
हए
9. अनु छे द-लेखन नबंध लेखन से भ न है । नबंध लखते समय लेखक के पास अवकाश
होता है क वह कसी अ य वषय पर चचा कर बाद म उसका संबंध मु य वषय से
जोड़ दे । अनु छे द का आकार सी मत होता है उसम वषयेतर होने का अवकाश लेखक
के पास नह ं होता। अतः अनु छे द के ारं भ से लेकर अंत तक उसका एक सू म बँधा
होना नतांत आव यक है । अनु छे द मल
ू वषय से इस कार बँधा होना चा हए क परू े
अनु छे द को पढ़ने के बाद पाठक सार प म उसके शीषक को नतांत संगत एवं
उपयु त माने।
10. अनु छे द लेखन एक कला है । इसम दए गए वषय पर सी मत श द म यथासंभव परू
बात कहने का यास कया जाता है । यह वा तव म गागर म सागर भरने के समान

66 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

है । अतः अनु छे द लेखन के पूव यह वचार कर लेना चा हए क उसम कौन


कौन-कौन से
बंद ु आयगे।
11. अनु छे द म वषय का व तार इस प म होना चा हए क उसका शीषक उसका
उ दे य बन जाए। इसके लए ारं भक पंि तय म भू मका हो भी सकती है और नह ं
भी। परं तु लेखक को चा हए क वह वषय के सू एक एक-एक कर खोलता जाए और
न कष पर पहुँच।े

3.6 अनु छे द लेखन के कार

अनु छे द ायः चार कार के होते ह -


वणना मक अनु छे द लेखन- अनु छे द क शैल कस कार क होगी, इसका नणय उसके वषय
के आधार पर कया जाता है । कुछ वषय ऐसे होते ह िजनम दए गए वषय का वणन कया
जाता है । उदाहरणाथ ‘प
पु तकालय
तकालय’ वषय को लया जा सकता है । ऐसे वषय म लेखक
‘पु तकालय’ का अथ, कार,, उपयो गता आ द का आव यकतानुसार वणन करता है ।
ववरणा मक अनु छे द लेखन- कुछ वषय ऐसे होते ह िजनम लेखक को दे खे अथवा अनुभव कए
गए वषय के अनुसार ववरण तुत करना होता है । ‘आचरण’, ‘स
स य यता’,
यता ‘एकता म बल
है ’ आ द ऐसे वषय ह िजनम वषय का तपादन करते समय लेखक को कसी घटना का
ववरण भी तुत करना पड़ सकता है ।
वचारा मक अनु छे द लेखन- अ धकांश अनु छे द इसी को ट म आते ह। ायः अनु छे द के वषय
इस कार के होते ह क लेखक को कुछ वचार अथवा चंतन कर वषय का तपादन
करना पड़ता है । यह स य है क अनु छे द के वषय गंभीर चंतन के वषय नह ं होते परं तु
इनका उ दे य यह होता है क व याथ क चंतन
नशि
शि त का वकास हो वह वषय के संबंध
उसका म सोच सके तथा तकपूण व ध से तपादन कर सके।
क पना मक अथवा भावपरक अनु छे द लेखन
न- कुछ अनु छे द क पना मक एवं भावपरक भी होते
ह। अनु छे द लेखन का एक उ दे य होता है - व याथ क मान सक मता का वकास
करना। इसके लए कभी उसे वचारपरक अनु छे द का अ यास कराया जाता है और कभी
ऐसे वषय पर अनु छे द लखवाए जाते ह
ह, िजसम उसक क पना शि त का वकास हो।
जहाँ मि त क के साथ दय को भी पूण अवकाश मले।

67 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

3.7 प लवन और अनु छे द लेखन म अंतर

प लवन और अनु छे द लेखन दोन एक से दखते ह ले कन दोन के लेखन और


भा षक योग म अंतर होता है । प लवन ायः कसी स ध लेखक क पंि त
त, लोकोि त,
मुहावरा या सुभा षत वषय संबंधी होता है । इसम अहम ् अथवा ‘म’ शैल का योग नह ं
कया जाता जब क अनु छे द कसी भी रचना अथवा कृ त का एक भाग होता है । इसम
आ मकथा मक शैल का योग कया जा सकता है । अनु छे द म कसी भी काल का योग
कया जा सकता है जब क प लवन म केवल वतमान काल का योग कया जाता है । थल

प से प लवन और अनु छे द लेखन म अंतर नह ं दखता है ले कन सू म ि ट से दखने
पर इनम पया त अंतर दखता है ।

3.7.1 बोध- न

1. अनु छे द.....................का
का एक अंश होता है । (क वता/ नबंध)
2. एक अ छे अनु छे द के दो गुण ल खए
खए?
3. अनु छे द लेखन के कतने कार हो सकते ह
ह? (दो/दो से अ धक)
4. प लवन तथा अनु छे द लेखन म शैल और काल का अंतर होता है । (हाँ/नह ं)

3.8 अनु छे द-ले


लेखन के उदाहरण

नीचे कुछ अनु छे द लेखन के उदाहरण व प नमन


ू े तत
ु कए जा रहे ह -
पटकथा-लेखन
पट का अथ है पदा अत: पटकथा का अथ है – पद पर चलने वाल कथा। पटकथा लेखन
रचना मकता क कसौट है । पटकथा लेखन म इसके वभ न प दे खने को मलते ह।

पटकथा लेखन दरू दशन तथा व ृ च के मा यम से कया गया व तत
ृ शैल का लेखन है ।
पटकथा लेखन सज ृ ना मक तकनीक लेखन है । पटकथा लेखन आम लेखन से ब कुल भ न
होता है , िजसे य के आधार पर लखा जाता है । पटकथा लेखक वह सफल लेखक होता है ,
िजसे लेखन के साथ-साथ
साथ नदशन संपादन और छा
छायाँकन
कन कु छ न कुछ अनभ
ु व होता है । एक
बेहतर पटकथाकार के लए आव यक होता है क उसक हर े म द ता हो। कहानी, य,
संवाद पटकथा के आव यक श होते ह
ह, इ ह ं के आधार पर पटकथा क नीव होती है ।
िजतनी शानदार पटकथा होगी उतनी ह दमदार फ म बनेगी। आज के इस आधु नक युग म

68 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

इले ॉ नक मी डया के संसाधन के मा यम से सनेमा म जान आ जाती है । पछले दशक


क तुलना म आधु नक युग के फ मी सफर ने कई गुना तर क क है । इसका सारा ेय
इले ॉ नक मी डया को जाता है । लेखक के तकनीक ान के साथ-साथ
साथ यवहा रक अनुभव
भी आव यक होता है । पटकथा लेखन के दौरान बहुत से ऐसे पड़ाव आते ह
ह, जो सै धां तक
ान से ब कुल अलग होते ह।

जीवन-मू य
जीवन मू य हमारे मागदशक है , आचरण के नयामक हमार स यता और सं कृ त के
तीक ह। मू य वह ि ट है , जो आपने ववेक वारा अतीत क मह ा को स ध करके उसे
नया आयाम दे ता है , उसे जीवंत करता है । मू य एक ऐसा मापदं ड है क िजसके वारा
स पण
ू सं कृ त एवं समाज मह ा को ा त करते ह। यह कारण है क जो भी त व मानव
मा के लए हतैषी है , आनंददायक है । ऐसे सारे त व जीवन मू य क ेणी म आ जाते ह।
जीवन मू य के अंतगत ेम, मानवीय क णा, ईमानदार , भात ृ व, परोपकार,
परोपकार याग, न ठा,
उ रदा य व, दया, अ छाई से सरोकार आ द समा हत ह। सा ह य म रचनाकार सभी मू य
को जन-जीवन क यावहा रकता के आधार पर च त करता है । रचनाकार यह उ मीद
करता है क उसने मानव को उ चत दशा दान क है । ऐसी उ मीद तभी कर सकता है क
जब वह वयं जीवन मू य से े रत हो। जीवन-मू य प रवतनशील होते ह। े ठ
सा ह यकार मू य का सह व लेषण करके उन मू य को नकारता है जो समाज क गत
म बाधक होते ह। तभी रचनाकार को अपनी रचना या म अनुभू त क वा त वकताओं से
गुजरने का सौभा य ा त होता ह। समाज म आदश क थापना के लए तुलसीदास ने
अपने सा ह य म इसक वशद चचा क है । उनक चचा उपदे शमूलक न होकर च र के
सहज अंग के प म कट हुई है । प रवार व समाज म शां त क थापना के लए मयादा
अ नवाय है । इसके अलावा स य
य, अ हंसा, दया, आचरण क प व ता, मूल अ धकार एवं उ म
कम सभी क अपे ा इस समाज को है । यह मू य न पण भारतीय सं कृ त म उदा मू य
एवं नै तकता के आदश से अनु ा णत है । कत य परायणता, श टाचार, सदाचरण,
सदाचरण कम यता,
न कपटता, स चाई, याय यता
यता, मा आ द नै तक मू य का े सी मत नह है, इस लए
यह का य अ थान ा त कये हुए दखाया गया है ता क समाज एवं लोक-जीवन उ नत
बने।

69 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

3.9 डायर —लेखन : अ भ ाय और व प

मनु य एक सामािजक ाणी है और वह समाज म अपनी अ


अननुभू त,
त संवेदनाएँ और
भावनाओं को व भ न कार से अ भ य त करना चाहता है । उसका अंतस बाहर अ भ यि त के
लए कुलांचे भरता है इसी लए मनु य व भ न संबंध म अपनी अनुभू तय को अ भ य त करता
है । जहाँ यि त एकाक होता है , वहाँ कृ त क ोड म जाकर पेड़ से लपटकर सख
ु या दख
ु क
अ भ यि त कर लेता है । अ भ यि त के व भ न मा यम म वह बोलकर लखकर अपनी बात
तत
ु करता है । ट
ं और इले ॉ नक व भ न मा यम अ भ यि त म सहायक दखाई दे ते ह
ले कन सा ह य क व भ न ग य वधाओं म जहाँ कहानी, नाटक, नबंध, उप यास,
यास आ मकथा,
जीवनी आते ह वह ं डायर भी एक वधा के प म उभरकर आई है । शहर वातावरण म श त
यि त डायर जैसी वधा को आधार बनाकर उससे बात करते हुए अपने दन क दल क सभी
भावनाओं को उसम उड़ेल दे ता है । डायर से हमारा अ भ ाय मोटे ग े क ज द वाल एक नोटबुक से
होता है । िजसम 365 दन के लए 365 प ृ ठ होते ह और उसम कोई भी अपने जीवन के 365 दन से
संबं धत जानकार को सच
ू ना को
को, अनभ
ु व को, राग- वराग को लखकर तत
ु करता है । सामा यतः
डायर लेखन क जब चचा होती है तो उससे हमारा अ भ ाय दनभर क घटनाओं का लेखा-जोखा
है । व तुतः दनभर हम िजन घटनाओं ग त व धय और वचार से गुजरते रहते ह,
ह उ ह ह डायर के
प ृ ठ पर श दब ध करने क कला को डायर लेखन कहा जाता है । यह लेखन मूलतः हमारे अपने
उपयोग एवं उपभोग के लए होता है अथात वांतः सुखाय के प म होता है ले कन यह भी सच है क
पछले कुछ दशक म ऐसा लेखन एक वधा के प म पाठक समाज के बीच बहु त लोक य हुआ है
और वांतः सुखाय से यह परांतः सुखाय क ओर भी प रव तत हुआ है ।

3.10 डायर —ले


लेखन और तत
ु ीकरण के प

1942 के समय ऐनी क नामक एक कशोर क पहल डायर सामने आती है , जो एक


उदाहरण है क डायर लेखन क परं परा पुरानी है । हंद म पछले कुछ दशक म कई रचनाकार ने
डाय रयाँ लखीं- जैसे मोहन राकेश क डायर , रमेशचं शाह क डायर , जो कताब के प म छप
चक
ु ह। िज ह पढ़कर हम उनक नजी िजंदगी म झांक सकते ह। यह डाय रयाँ बड़े चाव से पढ़ जाती
ह। मुि तबोध क ‘एक सा ह य क डायर ’ सबसे स ध डाय रय म गनी जाती है । समकाल न
प -प काओं म भी रचनाकार क डाय रय के अंश छपते रहते ह, िजनम पाठक को अ सर
उधेड़बुन क शैल म कट होने वाले कुछ वचार बंद,ु कसी या ा का वत
ृ ांत या कसी सा ह य जगत
70 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

क चटपट खबर पढ़ने के लए मल जाती ह; ले कन इन सब बात का मतलब यह ब कुल नह ं क


डायर सचमच
ु कहानी, उप यास
यास, क वता या नाटक क तरह पाठक के लए लखी जाने वाल कुछ
खास तरह क रचनाओं का वधागत नाम है । डायर को मूलतः डायर के प म न लखकर
अ धकांशत: उप यास, जीवनी या आ मकथा का प मलता है - जैसे एक नौकर क डायर , मा टर
मनबोध क डायर आ द।

3.11 डायर —ले


लेखन का मह व और या

शु ध लेखन के तर पर दे ख तो डायर अपना ह अंतरं ग सा ा कार है । अपने ह साथ था पत


होने वाला संवाद है । एक ऐसा सा ा कार और संवाद िजसम हम सभी तरह के बंधन से मु त होते ह,
दबाव से अछूते होते ह। िजन बात को हम द ु नया म कसी और यि त के सामने नह ं कह सकते,
उ ह ह डायर के प न पर उतार दे ते ह। उन प न को लखकर सुना दे ते ह ऐसा करके हम पहले खद

को बेहतर तर के से समझ पाते ह। दस
ू रे अपने अंदर अनजाने इक ठा होते बाहर से मु त होते ह और
व म ृ त के अंधेरे म होते अपने ह यि त व के पहलओ
ु ं को इस तरह रकॉड कर लेते ह क उ ह
पलटकर कभी भी छुआ जा सकता है ; ले कन ऐसा नह ं है क डायर सफ ऐसे ह नजी भाव को श द
दे ने का ज रया हो, िजनक कसी और प म अ भ यि त विजत है । यह एक तरह का यि तगत
द तावेज भी है । इसम हम अपने जीवन के खास थान , कसी समय वशेष के मन के अंदर क धने
वाले वचार , याद और मल
ु ाकात को लखते ह।

डायर या तो कसी नोटबक


ु म या पुराने साल क डायर म लखी जानी चा हए। पुराने
साल क डायर म पहले क पड़ी हुई त थय क जगह अपने हाथ से त थ डाल। यह सझ
ु ाव
इस लए दया जाता है य क कह ं मौजूदा साल क डायर म त थय के अनुसार बने हु ए
सी मत थान से अपने को हम बंधा हुआ महसूस न कर। हम कसी दन तो तीन पंि तयाँ
लखना चाहते ह, कभी अपनी बात पाँच प न म कहना चाहते ह। डायर लेखक को सभी कार के
दबाव से मु त रहना चा हए। इसम दनभर क घटनाओं-मुलाकात आ द को ल पब ध करना
चा हए। डायर ब कुल नजी व तु है , अतः उसम यह सोचकर लखा जाना चा हए क वह न प
भाव से अपने भाव और वचार य त कर रहा है ।

यह आव यक नह ं क डायर प र कृत और मानक भाषा शैल म लखी जाए। डायर लेखन म


समझौते के लए कोई थान नह ं होता है । उसम सहज अ भ यि त और धारा वाह शैल होनी

71 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

चा हए। डायर लखने का कोई नि चत नयम नह ं है । जो दल म आता है , वह लख, कंतु हमार


िजंदगी से जुड़ी बात होनी चा हए। डायर लखते समय ‘म’ शैल का योग कया जाता है । डायर को
संबोधन भी कया जाता है और डायर लखने के लए त दन एक खास समय का चयन करना
चा हए तभी डायर लखने क आदत बनती है और डायर लखी जाती है ।

3.11.1 बोध- न
1. या डायर लेखन एक वधा है ? (हाँ/नह ं)
2. डायर लेखन के लए दो अ नवाय बात या ह
ह?
3. डायर .................कह
कह जा सकती है । (जीवनी/आ मसा ा कार)
4. डायर ....................... प म तुत होती है । (लेख/उप यास)

3.12 डायर —लेखन के उदाहरण

20 फरवर 2023
रा 10 बजे

हे लो डायर , आज तु हया बताऊँ। आज का दन बहुत यादा य तता म बीता। सुबह ना ता


करते ह दनभर के काम क सूची आँख के आगे नाच रह थी। ज द से खाना खाकर म पहले काम
क ओर बढ़ा ह था क सड़क के जाम ने मेरे हौसले प त कर दए। इतना जाम मने कभी नह ं दे खा
था। ऐसा मेरे साथ ह य होता है क जब मुझे काम यादा होता है तो ऐसी बाधा मेरे सामने य आ
जाती है और म काम पूरा न होने के भय से पसीने-पसीने हो रहा था, गला सूखा जा रहा था और एक
अनचाहे डर से घबरा रहा था क काम होगा या नह ं होगा। खैर, जाम ह का हुआ और म अपने
थान पर पहुँचा ले कन फर भी उस जाम क घुटन बहुत दे र तक मेरे साथ बनी रह । खैर, पूरा दन
काम म उलझा रहने के कारण मुझे दम लेने क फुसत भी न थी ले कन शाम का वह सुहाना मंजर
मुझे खश
ु नुमा लगने लगा। जब म सारा काम करके एक आजाद पंछ का एहसास कर रहा था। इससे
यह समझ आया क सुख-दख
ु आते-जाते रहते ह। कल फर बात करगे, तब तक के लए शुभ रा ।

21 फरवर 2023
रा 11 बजे

हे लो डायर , आज परू ा दन सांस लेने क फुसत न थी ले कन आज काम के च कर म, म यह भल



गया क आज मेरे खास दो त का ज म दन था। शाम ढलते ह जब कई दो त के फोन आए तो मुझे

72 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

उसके ज म दन के भूलने का बड़ा मलाल हुआ ले कन सबके बुलाने पर म उसक ज म दन क पाट


म पहुँचा। आज उसक ज म दन क पाट वैसी नह ं थी जैसी पहले होती थी। आज इतनी थकान के
बावजूद उस पाट ने मुझे बहुत आनंद का एहसास कराया। व च थी पाट । अभी भी मेरे आंख के
आगे सब नाच रहे ह। यह सोचता हूं क काश ऐसे ह दो त के ज म दन मनाते रहे तो, दख
ु का कह ं
दरू -दरू तक नाम न होगा। चलो आज के लए इतना ह , शुभरा ।

3.13 संवाद : अ भ ाय और व प

हंद म संवाद के लए अनेक पयाय व यमान ह जैस–े वातालाप, कथोपकथन,


कथोपकथन बहस, वाद-
ववाद आ द। सामा यता दो या दो से अ धक यि तय के बीच बातचीत को संवाद कहते ह। इस
कार संवाद वचार क अ भ यि त का मा यम होता है । संवाद आमने-सामने बैठकर भी हो सकता
है और एक दस
ू रे से दरू रहकर भी था पत कया जा सकता है । आज के वै ा नक युग म संवाद के
कई मा यम वक सत हो चक
ु े ह जैसे– दरू भाष, इंटरनेट, प , वी डयो कॉ संग आ द। यह संवाद के
सामा य मा यम ह। सा ह य संवाद का एक व श ट मा यम है । इसम लेखक पाठक के साथ संवाद
था पत करता है । सा ह य क नाटक वधा संवाद का एक चर-प र चत मा यम है , िजसम जीवन
का चयन करके दशक को नई दशा दान क जाती है । वैसे तो संवाद का एक भेद एकालाप भी है ।
एकालाप म भी कम से कम पा के स मुख दशक तो होता ह है जो उसके कथन को सुनता भी है और
आनंद भी लेता है । समाचार प एवं दरू दशन म संवाद ेषण करने वाले यि त को संवाददाता कहा
जाता है । संवाददाता समाचार के प म संवाद तुत करते हुए संवाद क या को नभाता है ।

व तुतः संवाद का े बहुत व ततृ है । नाटक के अलावा उप यास , कहा नय , प आ द म


भी संवाद होते ह। उप यास के संवाद य क पढ़ने के लए लखे जाते ह, इस लए लंब-े लंबे होते ह।
उनम व लेषण क संभावनाएँ अ धक होती ह। उनक भाषा भी अपे ाकृत गंभीर होती है । कहा नय
म संवाद बहुत छोटे होते ह, य क कहानी का धरातल छोटा होता है इस लए संवाद छोटे और
सारग भत होते ह। समाचार प एवं दरू दशन अथवा दस
ू रे समाचार चैनल म जो संवाद लखे जाते ह,
उनम समसाम यक वषय और घटनाओं का सापे क व लेषण तुत कया जाता है । इस कार
संवाद वषय तु त का सट क मा यम है । संवाद के म म लेखक अपे ाकृ त अ धक वतं एवं
अनौपचा रक प से अपने वचार को रखते ह। साथ ह संवाद म शार रक भं गमा बहुत सी अनकह
बात को कह जाती है । अतः संवाद का फलक लेखन क अपे ा अ धक व तत ृ होता है । समाज के
इस व प को संवाद लेखक नजरअंदाज नह ं कर सकता। अतः संवाद एक ज टल या है ,

73 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

िजसम संवाद लेखक व ताओं क संपूण भाव


भाव-भं
भं गमा को खुद भी महसूस करते हु ए संवाद
लेखन का दा य व नभाता है ।

3.14 संवाद का मह व

संवाद कसी बात को एक यि त से दस


ू रे यि त तक या एक थान से दस
ू रे थान तक
पहुँचाने का मा यम है । संवाद जीवन से जुड़ा है और उसके वारा सं ेषण काय को तुत कया
जाता है । नाटक के संवाद वा त वक जीवन के संवाद क तुलना म कह ं अ धक लंबे और संतु लत
होते ह। रोजगार के जीवन म यु त संवाद अनौपचा रक होने के कारण छोटे -छोटे तथा बोलचाल क
भाषा के होते ह। वह ं उप यास
यास, कहानी और आ मकथा म यु त संवाद व लेषणा मक और
वणना मक होने के कारण लंबे-लंबे हो सकते ह। वणन के वारा पा के सू म मनोभाव ,
त याओं, संक प- वक प, वचार- वतक आ द का भावशाल च नह ं तुत कया जा
सकता। इस काम के लए संवाद का सहारा लया जाता है । यह नह ं संवाद पा को सजीव बना दे ते
ह तथा कथानक म नाटक यता का समावेश करके उसके भाव को बढ़ा दे ते ह। कभी-कभी संवाद का
कोई व श ट वा य पूर रचना का क बंद ु सा बत हो जाता है । संवाद कथाव तु के वकास और पा
के च र - च ण म सहायक स ध होते ह, अथात संवाद क भाषा पा ानुकूल होती है , य द कोई
श क पा है तो उसके संवाद म श द-चयन और वा य-गठन उसी के अनुसार शु ध और मानक
होगा और य द पा श त न हो
हो, ामीण हो, तो उसके संवाद म ामीण बोलचाल के आँच लक
श द आएँगे। य द संवाद बोलने वाला यि त गंभीर कृ त का है तो नि चत प से उसके बोलने क
शैल भी गंभीर होगी। य द वह वनोद वभाव का होगा उसके संवाद भी वनोद शैल म ह गे। संवाद
म वतमान काल का योग होता है , िजससे काय अ यंत नकट आंख के सामने जान पड़ता है ।

3.15 संवाद—ले
लेखन क या

संवाद लखते समय सबसे मह वपूण होता है- कथाव तु अथवा वषय
वषय-व तु का
व लेषण। इसके प चात उसके सह म म संवाद का संयोजन ऐसा होना चा हए क कथा
का उ चत वकास हो और म का भी भल भां त नवहन हो। संवाद
वाद पा ानुकूल और दे शकाल-
वातावरण के अनु प होने चा हए। संवाद सं त हो तो उ चारण म असु वधा नह ं होती है । कौतूहल
उ प न करने के लए संवाद को नाटक म रखा जाता है । संवाद क भाषा पा ानुकूल होनी चा हए।
साथ ह भाषा अ भ यि त को पूणता प ट करने वाल होनी चा हए। दाश नक और वैचा रक संवाद

74 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

म गंभीरता का पुट होता है । संवाद लेखन के समय लेखक को यान करना चा हए क गंभीरता को
बनाए रखते हुए सरल भाषा का योग करे । मुहावर आ द के योग से संवाद क भावशीलता बढ़ती
है । अतः इनका यथा थान योग करना चा हए। हा य- यंग भी संवाद को सजीव बनाते ह। संवाद
म प टता बहुत ज र मानी जाती है । उसे सुनने और पढ़ने से वह अथ नकलना चा हए जो अथ
लेखक य त करना चाहता है ।

3.15.1 बोध- न
1. दो या दो से अ धक यि तय के बीच बातचीत को.................. कहते ह। (संवाद/संदेश)
2. संवाद...................... क अ भ यि त का मा यम होता है । ( वचार/भाव
भाव)
3. या संवाद पा ानुकूल होते ह
ह? (हाँ/नह ं)
4. ......................से
से संवाद यादा भावी होते ह। (वाचन/लेखन)

3.16 संवाद के उदाहरण

(‘ बदे सया’ से लया गया संवाद)

बटोह के मंच पर वेश। बटोह पूछ रहल बाड़े बाजा बजव नहार सव हया से
बटोह : ढब-ए बबआ
ु ढब
समाजी : का ह बाबा?
बटोह : हम ट सन पर जाइब
जाइब, ए बबआ
ु !
समाजी : ए बाबा, इ हे रा ता सीधे ट सन र चल जाई।
बटोह : अ छा ए बबुआ, ई बताव क क कलक ा के मसूल काटना बा।
समाजी : कलक ा के मसूल एह गहर तीस पया लागी।
बटोह : ( चहा के) तीस पया लागी
लागी? सवा पया म न फ़ रआई?
समाजी : सवा पया म त टकठे न मल , महाराज!
(दो म के होने वाले संवाद)
रमेश : अरे म ! कैसे हो
हो?
व पन : भाई, सब ब ढ़या है ।
रमेश : कल कहाँ थे? दखे ह नह ं।

75 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

व पन : (मु कुराते हुए) यूं बताऊँ? कहाँ गया था। तू मझ


ु े अपनी सार बात बताता है
या?
रमेश : (खीजते हुए) अ छा ब चू, हमसे ह हो शयार ।
व पन : अरे नह ं, मज़ाक कर रहा था। वा तव म मेरे घर मेहमान आ गए थे, इस लए
नह ं आया।
रमेश : ( व पन के कंधे पर हाथ रखते हुए) कोई नह ं चल छोड़ यार,, चल मैच दे खते ह।

3.17 लॉग—लेखन : अ भ ाय

अपने वचार को डिजटल मी डया या एक वेबसाइट के मा यम से ऑनलाइन का शत करना


लो गंग कहलाता है । हम जब कसी ख़ास वषय पर कोई लेख लखते ह और इसे एक वेबसाइट पर
का शत करते ह तो इसे ह लॉग लेखन कहते है । या यूँ कह क अपने वचार को डिजटल मी डया
के वारा दस
ू र तक पहुँचाने क इस कला को लॉग लेखन कहते ह। लॉग लेखन म एक यि त
कसी भी वषय पर अपने वचार लखता ह और एक वेबसाइट या सोशल मी डया पर पो ट करता
है । लॉग का मतलब एक कार क वेबसाइट से है , िजसे लोग एक डिजटल डायर क तरह उपयोग
करते ह और इस पर वे अपना अनुभव, अपने वचार, अपनी इ छाएँ, अपनी जानका रयाँ आ द
लखते है । फोटो भी आकषक बनाने के लए लगाते ह ार भ म लॉग को वेबलॉग कहा जाता था।

अगर हम भी अपना वयं का हंद लॉग शु करना चाहते ह तो हम यह काम कुछ


ह मनट म कर सकते ह। इसके लए हमको न न ल खत क ज़ रत होती है– डोमेन नाम,
होि टं ग लान, थीम, ल ग स आ द। य द हम नया लॉग शु करना चाहते ह तो हमारे पास
इसके लए बहुत सारे वड ेस ल गंस उपल ध होते ह। हम िजस साइड का योग करते ह, उसका
नाम है ड यूपी हंद (WP
WP Hindi
Hindi) इस ल गन क सहायता से हम आसानी से हंद लॉग लख
सकते ह। हम हंद के अलावा अ य भाषाओं म भी लॉग लख सकते ह। इसके लए हम उस भाषा
क वड ेस ल गन इं टॉल करनी पड़ेगी।

3.18 हंद म लॉग कैसे लख

हंद म लॉग लेख लखने के लए हमको कसी वशेष यो यता क आव यकता नह ं है , बस


हम कसी वषय का ान होना चा हए और उस वषय को सीखने क बल इ छा होनी चा हए। सबसे
पहले हम िजस वषय पर लेख लखना चाहते ह, उस वषय पर सार जानका रयाँ
र इक ठा कर और

76 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

यह दे ख क पहले कसी दस
ू रे लॉगर ने उस वषय पर कोई लेख तो नह ं लखा है । इसके बाद हम
अपने श द म, अपनी टाइल म लॉग पो ट लख सकते ह। यह यान रखना चा हए क लॉग
कसी क कॉपी नह ं होनी चा हए। अ यथा हम लॉ गंग म सफल नह ं हो पाएँगे
गे। इसे कंटट राइ टंग
क द ु नया म ‘सा हि यक चोर ’ कहा जाता है ; इस लए खद
ु के श द म लॉग लखना चा हए। हमार
रचना मकता ह लॉग क ताकत है । हम जैसा भी लख, अपने श द म लख। इससे धीरे -धीरे
लेखन क कला म सुधार आता चला जाता है । लॉग लखने से पहले गूगल पर सबसे यादा कौन सा
‘क वड’ सच हो रहा है, यह जानना आव यक है । लॉग म यथ क चीज नह ं लखनी चा हए। य द
हम हंद म लख रहे ह तो मा ाओं, श द और याकरण का यान रखना चा हए। वतनी दोष नह ं
होना चा हए। लॉग लखने के लए कई साइ स उपल ध ह, िजनक जानकार होनी चा हए। लॉग
िजसके वारा लखा जाता है , वह लॉगर कहलाता है तथा लॉगर वारा जो कंटट या लेख लखा
जाता है , वह लॉगपो ट कहलाता है । लॉग का पेज आकषक होना चा हए, िजसके लए हम इमेज
( च ) का भी योग कर सकते ह।

3.19 लॉग—ले
लेखन का उ दे य और या

लॉग बनाने के कई उ दे य हो सकते ह


ह। उदाहरण के लए य द हमारा कोई बजनेस
है तो हम लॉ गंग के ज रए अपने बजनेस के बारे म अ धक से अ धक लोग को जानकार
दे सकते ह। वतं व ता के प म अपने वचार क अ भ यि त कर सकते ह।

मु यतः हम न न ल खत आठ कार के लॉग को हम बना सकते ह


ह-

Personal Blog ( नजी लॉग


लॉग), Group Blog (समूह लॉग), Niche Blog ( वषय आधा रत
लॉग), Multi Niche Blog (कई
कई वषय पर बना लॉग), Micro Niche Blog (स
( ू म वषय पर
आधा रत लॉग), Corporate Blog ((कॉपे रट लॉग), Affiliate Blog (ए
ए फ लएट लॉग), Media
Blog (मी डया लॉग)

3.19.1 बोध- न

1. वचार को डिजटल मी डया के वारा दस


ू र तक पहुँचाने क कला को..............लेखन
कहते ह। ( लॉग/स
स ेषण
ण)
2. लॉगर वारा जो कंटट या लेख लखा जाता है वह या कहलाता है ?
3. लॉग कसी क कॉपी नह ं होनी चा हए। इसे कंटट राइ टंग क द ु नया म
सा हि यक............कहा
कहा जाता है । (चोर /कलाकार )

77 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

4. लॉग केवल हंद म लखा जाता है । (हाँ/नह ं)

3.20 न कष

न कष प म यह कहा जा सकता है क मनु य क अ भ यि त क ललक ने लेखन


क कला को ज म दया ले कन लेखन के औपचा रक
रक-अनौपचा रक-रचना
रचना मक प क
व वधता से सा ह य, कला,, सनेमा आ द अनेक े म ाि त आयी है । लेखन क
सज
ृ ना मकता और द ता ने मनु य
य, कलाकार, रचनाकार आ द सभी को एक अलग पहचान
द है । आज डायर , प , संवाद
ाद, पटकथा, अनु छे द, नबंध, कहानी, क वता,
वता लेख आ द
सा हि यक और सा ह येतर वषय और वधाओं म लेखन के व वध रं ग बखरे हुए ह। इसी
लेखन कौशल के बल पर युवावग आजी वका साध रहा है ।

3.21 अ यास- न
1. एक अनु छे द लेखन के लए कन बात का होना अ नवाय है ?
2. संवाद से या अ भ ाय है , इसके व प और भाषा पर काश डा लए।
लए
3. एक सफल और सु ढ़ लॉग लेखन के लए या वशेषताएँ ह?
4. कसी एक समसाम यक वषय पर दो म के बीच होने वाला संवाद ल खए।
खए
5. डायर लेखन क भाषा पर वचार क िजए
िजए।
6. वतमान युग म लो गंग का मह व समझाइए।

3.22 संदभ- ंथ

 'मानक हद कोश'- सं. रामचं वमा।


 ' हंद औपचा रक लेखन
न'- सं. डॉ. द नदयाल, डॉ. भावना शु ल।
 ' हंद लेखन द ता'- डॉ
डॉ. परू नचंद टं डन।
 संचार और मी डया लेखन
'जन-सं न'- रे वती सरन शमा।
 अ भ यि त और मा यम
'अ यम'- एनसीईआरट क पु तक।
 'टे ल वजन लेखन'- असगर वजाहत और भात रं जन
न।
 'मी डया लेखन'- चं काश म ।

78 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

4. संपादक य लेखन
ो. भवानी दास
मुक्त श ा व यालय
द ल व व व यालय, द ल

परे खा

4.1 अ धगम का उ दे य
4.2 तावना
4.3 लेखन : अ भ ाय, मह व और कार
4.4 संपादक और संपादक य
4.5 संपादक य का व प
4.5.1 बोध- न
4.6 संपादक य के भेद
4.7 संपादक य के त व और गुण
4.8 संपादक य लेखन के लए अ नवाय बात
4.9 संपादक य क भाषा
4.9.1 बोध- न
4.10 संपादक य : एक उदाहरण
4.11 न कष
4.12 अ यास- न
4.13 संदभ- ंथ

4.1 अ धगम का उ दे य

भाव और वचार क अ भ यि त बोलकर या लखकर होती है । मौ खक प को


सहे जकर नह ं रखा जा सकता है ले कन लेखन से हम भ व य के लए अपने भाव और
वचार सहे जकर रख सकते ह। इस पाठ को पढकर व याथ न न ल खत काय कर सकने
म स म हो सकगे–

79 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

 संपादक य लेखन के मह व को जान सकगे।


 संपादक य लेखन क समझ अिज
अिजत कर सकगे।
 संपादक य लेखन के व प को समझ सकगे।
 संपादक य लेखन क भाषा को समझ सकगे।
 संपादक य लेखन संबंधी रचना मकता से अवगत हो सकगे।

4.2 तावना

मनु य एक सामािजक ाणी है और उसक अ भ यि त क उ याम लालसा ने व भ न


रचनाओं को ज म दया है । फर मनु य मौ खक और ल खत दोन प म अपने भाव और वचार
क अ भ यि त करने लगा है । लेखन क परं परा ने भाव और वचार को संजोकर रखने का काय
कया है । कसी भी थान क यथाि थ त का च ण हम अपनी च और ज रत के अनुसार करते
ह। लेखन के लए प रवेश, भाषा और समाज क भू मका मह वपूण है । प रवेश से अ भ ाय लेखक
के आसपास के जीवन से है । िजससे लेखक भा वत होता है और उसे आ मसात करके ल खत प
म अ भ यि त दे ता है । यहाँ इस पाठ म संपादक य लेखन के स ब ध म व तार से चचा क
गयी है । संपादक य के अथ,, व प, कार, मह व और लेखन क कला का उ लेख कया
गया है । पर इससे पहले यह जानना आव य
यकक है क लेखन से या अ भ ाय है और इसका
या मह व है ।

4.3 लेखन : अ भ ाय, मह व और कार

कोई भी संवेदनशील या वचारवान यि त अपनी सश त अ भ य


यिि त के लए लेखन
को आधार बनाता है ले कन लेखन का अ भ ाय मौ खक प को श दां कत करना नह ं है
अ पतु लेखन के लए नवीनता क आव यकता होती है । कोई भी लेखक जब अपनी संवेदना भोगे
हुए यथाथ या अनुभव आ द को सज ृ ना मक प म भाव भू म दे ता है । तो नि चत ह उसक
लेखनी अ भ यि त कर उसे मूत प दे ती है । लेखन के लए पठन क आव यकता होती है । समोन
द बोउआर लखती है क कसी भी पढ़ने से सुखद चीज कोई अगर है , तो वह लेखन है । इ तहास से
व दत है क िजसने भी अपना कोई नशान छोड़ा है , उसे लखने क महारत हा सल थी। लेखक िजस
समाज म रहता है , उस समाज क सम याएँ वडंबनाएँ, दख
ु , पीड़ा आ द उसे सज
ृ ना मकता के नए
आयाम ढूँढने म मदद करती ह। सा ह य के अलग-अलग वधाओं म लेखन के पीछे यह कारण रहा

80 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

है । जैसे ेमचंद ने अपनी रचनाओं म प रवेश के उन सभी प का च ण कया है जो आव यक थे।


ऐसा तीत होता है क हमार ह गाथा हमार ह भाषा म सरलता से कह द गई है ।

भाषा हमारे परू े यि त व को बनाती और दशाती है । भाषा ह हम दस


ू र से अलग
करती है । एक श त और एक अ श त यि त के बीच अंतर भाषा के मा यम से ह
होता है । भाषा के चारर मुख कौशल है – बोलना, पढ़ना, सुनना और लखना ले कन इन चार
कौशल म लेखन सबसे अं तम और ौढ़ कौशल है । वतमान युग का लेखन वशेष ता से
यु त है । आज लेखन के े म वशेष ता क मह ा है । आ थक, सामािजक,
सामािजक राजनी तक,
यवसाय-खेलकूद संबंधी सभी े म लेखन के वशेष क आव यकता है । लेखन के लए
श दभंडार क आव यकता होती है । श द का िजतना भंडार लेखक के पास होगा रचना उतनी ह
सरलता से व वधता के दशन हण करती है । श द नपे-तुले ेरणा उ प न करने वाले भाव को
अ भ य त करने म स म तथा
था अपने अथ को प ट करने म स म होने चा हए। श द क व न,
उनक कृ त, उनका पयाय, उनक शि त व वकास के वारा साथकता को समझने का यास कया
जाता है । लेखन के लए वा य रचना म द ता का होना अ नवाय है । लेखन म इस बात का वशेष
यान रखा जाता है क वा य अ धक से अ धक भावशाल बन जाए। वा य म उपयु त श द का
योग हो। याकरण क ि ट से उसम शु धता हो। वा य रचना सं त हो ता क पाठक को
समझने म सुगमता हो। वा य के नमाण म लेखक म तभा, ौढ़ता, अनुभव क यापकता और
अ ययन क गंभीरता अपे त है । लेखन के लए श द ान और अ ययन आव यक है । श द ान
दो कार से हो सकता है - एक सुनकर और दस
ू रा अ ययन से। संवेदनाओं का भाषा के साथ कतना
तारत य रचनाकार बना सकता है , यह लेखक क कुशलता का प रणाम है । कतनी कुशलता के साथ
अपनी बात को पाठक पर सं े षत करता है , यह उसक पहचान है । इस कार कसी भी लेखक क
पहचान उसके उ कृ ट और ौढ़ लेखन से होती है ।

लेखन के व वध े है - जैसे बाल लेखन, ी लेखन, द लत लेखन,


न सा ह य लेखन,
यावसा यक लेखन, यावहा
वहा रक लेखन, शा ीय लेखन, प का रता लेखन, कायालय लेखन आ द।
सभी लेखन का प, श दावल , वा य संरचना अलग-अलग होती है ; इसी लए सभी के लेखन के लए
अलग-अलग वशेष ता क आव यकता होती है । प का रता लेखन म समाचार प लेखन के
अ त र त व ापन लेखन, फ चर लेखन, संपादक य लेखन आ द का प दे खा जा सकता है । यहाँ
संपादक य लेखन के संबंध म व तार से चचा क जा रह है ।

81 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

4.4 संपादक और संपादक य

कसी भी संपादक य का लेखक संपादक ह होता है , जो कसी प या प का से जुड़ा होता है ।


संपादक य लेखन का काय वैसे तो मु य संपादक का होता है , ले कन मु य संपादक के साथ-साथ
सहायक संपादक, उप संपादक, समाचार संपादक भी संपादक य लेखन का काम करते ह। संपादक
कसी भी प या प का का मु खया होता है । उस प या प का म छपने वाल सभी साम ी का वह
अ धकार होता है । छपने वाल सभी साम ी के व ध- नषेध का नणय वह लेता है । वह
समसाम यक वषय को यान म रखकर जो लेख लखता है , उसे संपादक य कहा जाता है ।

संपादक य कसी भी समाचार प अथवा प का क र त


त-नी
नी त का दपण होता है । यह
एक खड़क है , िजसके उस पार से समाचार प क आवाज ह मुखर नह ं होती अ पतु युग चेतना
क अनुगँूज भी सुनाई दे ती है । इसके मा यम से समाचार प और उसके संपादक का यि त व
मुख रत होता है । एक संपादक अपने समाचार प को लोक य बनाने और अ छ तरह चलाने के
लए कतने ह य न य न कर य द वह अ छा संपादक य प ृ ठ नह ं दे ता तो उसका सारा प र म
उसके सारे य न न फल स ध हो जाते ह। सच है समाचार प म सबसे मह वप
व ूण संपादक य
प ृ ठ ह होता है । िजस पर एक संपादक अपने यि त व क छाप छोड़ सकता है । शेष तो समाचार ह,
िजनको समाचार-संपादक और रपोटर अपने प र म से तैयार करते ह। वैसे तो संपादक य प ृ ठ के
अंतगत अ लेख, वशेष साम यक लेख, फ चर, समाचार, संपादक के नाम प , राजनी तक-
सा हि यक-सां कृ तक समी ा,, ट पणी या यं य, काटून और व वध तंभ भी होते ह, ले कन
इनम से सवा धक मह वपूण होता है - अ लेख या संपादक य।

संपादक य प ृ ठ सामा यता समाचार प के बीच का प ृ ठ होता है । इसम मत-मतांतर थान


पाते ह। जो कसी भी वषय े से संबं धत हो सकते ह। इनम व वध सम याओं का तत
ु ीकरण,
व लेषण और उन पर सट क ट पणी भी क जाती है । ये सम याएँ और वषय मानव च के
यापक संदभ से जड़
ु े होते ह। समाचार प क नी त और वचारधारा का ये तंभ सजक पाठक को
दे र तक अपने से जुड़े रखते ह। समाचार को पढ़ने के बाद पाठक अपनी च के अनुसार इन तंभ
को पढ़ते ह। ाय: गंभीर पाठक सबसे पहले अ लेख या संपादक य ह पढ़ा करते ह। वतमान समय
म तो ऐसा इस लए और भी वाभा वक हो चला है क समाचार को दरू दशन पर दे ख-सुन लया जाता
है । मुख समाचार ायः वह हुआ करते ह; फर भी छपे अ र, व तत
ृ व लेषण के साथ उ ह
तुत करते ह, इस लए उ ह पढ़ा जाता है । ले कन संपादक य का थान न दरू दशन ले सकता है
और न अकाशवाणी, इस लए प और संपादक य का मह व और बढ़ जाता है ।

82 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

4.5 संपादक य का व प

संपादक य अ लेख संपादक य तंभ म नय मत लखा जाने वाला लेख है । इनक


श द सीमा कुछ भी हो सकती है , कंतु आदश संपादक य 500 से 1000 श द तक होता है।
यह ायः संपादक वारा खद ु लखा जाता है । अपनी इ छा और अ धकार से संपादक
संपादक य लखने का दा य व अपने कसी सय ु ोग व वासपा सहकम को ह स प सकता
है । यह सामू हक सम याओं, घटनाओं, वशेष समाचार पर संपादक क ट पणी होता है , जो
समाचार प क र त-नी त को सामने रखता है । इसम समाचार से संबं धत त य समाचार क
प ृ ठभू म, समाचार के दरू गामी भाव, घटनाओं के कारण क या या, आलोचना सुझाव, शंसा,
मागदशन, चेतावनी, मनोरं जन आ द पर बल दया जाता है । समाचार प और प काओं के
संपादक य म अंतर है । समाचार पका संपादक य मह वपण
ू समसाम यक घटना अथवा वशेष
समाचार पर क त होता है। जब क प का का संपादक अपने संपादक य चचा के अ त र त प का
के अंक क साम ी के वषय म प का के उ दे य आ द के वषय म भी चचा करता है । वह अपनी
प का के अंक क योजना और सम याओं आ द के वषय म भी चचा कर सकता है । सं ेप म कह
तो कह सकते ह क संपादक य अथवा अ लेख कसी समसाम यक घटना अथवा मह वपणू समाचार
पर सं ेप म त य के व लेषण का एक ऐसा आलेख है । िजसे संपादक अपनी कलम से अपने
समाचार प क र त-नी त के अनु प तुत करता है । रोचक ढं ग से तुत कया गया यह आलेख
पाठक को उसका मह व समझाता है और उसक वचारधारा को अपने अनु प मोड़ने का यास
करता है ।

4.5.1 बोध— न :-
1. संपादक य ....................
........................घटना पर आधा रत होता है । ( वगत/समसाम
समसाम यक)
यक
2. संपादक य कसी प क ....................होती है। (र त-नी त/छाया-माया
माया)
3. संपादक य कौन लखता है ?
4. आदश संपादक य कतने श द का होता है ?

4.6 संपादक य के भेद

संपादक य वषय-व तु क ि ट से कई कार के हो सकते ह। कंतु उनका वर कैसा है ?


उनका उ दे य या है ? और कह तो वह कस ि ट से मूल प से लखे गए ह? आ द बात को यान
म रखते हुए हम संपादक य के कार नधा रत कर सकते ह। कुछ संपादक य ऐसे होते ह, जो

83 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

आलोचना मक होते ह। इनम कसी समसाम यक घटना या वशेष समाचार क तु त आलोचना


के प म क जाती है । कुछ संपादक यशंसा मक हुआ करते ह। कुछ ऐसे होते ह, िजनम उस
घटना का समथन होता है । इसके अ त र त कुछ संपादक य इस कृ त के होते ह। िजनम कसी
घटना या समाचार का व लेषण होता है । उनक या या क जाती है । उसके दरू गामी भाव आ द
को रे खां कत कया जाता है । साम य प से संपादक य को न न ल खत प म वग कृत कया
जा सकता है -

 प समथक, शंसा मक संपादक य


 आलोचना मक संपादक य
 आंदोलना मक संपादक य
 या या मक संपादक य
 व वध संपादक य

4.7 संपादक य के त व और गण

एक अ छे संपादक य के लए कुछ त व एवं गण


ु नधा रत कए जा सकते ह। मह वपण

समसाम यक घटना अथवा वशेष समाचार ईमानदार एवं न प व लेषण त य से ा त
न कष एवं नजी मत, सं त ट पणी, आ मीयता व वसनीयता, रोचकता,
रोचकता आलोचना, शंसा,
सुझाव, मागदशन अथवा चेतावनी का वर मुख रत होता है । डॉ. अजन
ु तवार जैसे बड़े प कार
और संपादक ने संपादक य म भावो पादकता
पादकता, सा यता, न प ता, व वसनीयता और सं तता
आ द वशेषताओं का होना वीकार कया है । अतः यह कह सकते ह क संपूण त य का ईमानदार
से तुतीकरण, पु ट माण पर आधा रत न कष- ाि त, प पात से वर त,
त मत -मतांतर का
काशन, अपने ववादा पद नणय म संशोधन हे तु त परता, अंतरा मा के तकूल वचार न
का शत करने क ढ़ता तथा सहयो गय के त न ठा क भावना—यह संपादक क नी त है ।
इ ह ं स धांत - नदश के अनु प य द अ लेख या संपादक य तुत हो तो न चय ह वह
संतु लत, ामा णक, उ ेजनार हत और मंगलकार होता है ।

4.8 संपादक य लेखन के लए अ नवाय बात

संपादक य लखना बहुत िज मेदार का काम है । यह केवल संपादक के यि त व को ह नह ं


दशाता अ पतु समूचे रा समाचार प का त न ध व करता है , इस लए संपादक य बहुत सोच-
84 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

वचार कर भावशाल ढं ग से इस शैल म लखना चा हए क उसे साधारण पाठक से लेकर गंभीर


पाठक तक हर ेणी के लोग पढ़ सक। वे केवल पढ़-समझ ह नह ं बि क उनका ान बढ़े , वे
जाग क बने और संपादक य पढ़कर एक तिृ त का अनुभव कर। य द तिृ त का अनुभव न कर तो
उनके भीतर एक रचना मक तक- ख
ंृ ला ज म लेती है । संपादक य लेखन के संदभ म कुछ
आव यक सावधा नयाँ इस कार बरतनी चा हए। जैसे-

 समसाम यक वषय का सु वचा रत चयन।

 वषय या सम या क प ृ ठभू म का अ धका धक ान।

 सं ेप शैल म सम या को सामने रखना।

 सम या का व लेषण करना और संतु लत न कष तुत करना।

 वषय-अनु प भाषा एवं शैल का योग।

 यथाव यक उ धरण या स ध कथन का योग।

 भावशाल शीषक नमाण।

 रोचकता, सहज वाह और भाव डालने का गुण।

व तुतः समाचार प का सबसे मह वपूण आलेख संपादक य ह होता है । संपादक य


सामािजक सम याओं, घटनाओं, वचार व उपलि धय को लेकर लखा जाता है । संपादक य लेख का
आदश जन हत क भावनाओं क र ा करना तथा सामा य यि त के हत का र क एवं मागदशक
बनना होता है । संपादक य समाचार प क वह ताकत होती है िजसे पढ़कर लोग अपनी राय बनाते
ह। संपादक य के वारा संपादक समाज म हो रहे यथाथ को पाठक के सामने व लेषणा मक तर के
से रखता है । इस लए संपादक य न प सम या का तकसंगत व लेषण, सहज सं त सु वचार,
गंभीर लेख और रा के लोग का मागदशन करता है । संपादक अपनी यापक ि ट के चलते कसी
भी घटना का अ छा अथात वषय को अतीत वतमान और भ व य से जोड़कर
ड़कर तुत करता है ।
संपादक भ व य- टा के साथ--साथ वतमान का सजग हर होता है । संपादक य लेख पाठक क
िज ासा शांत करने के साथ-साथ
साथ उसे वा त वक ि थ त से अवगत कराता है । समाचार प म
संपादक क सबसे बड़ी-पहचान वशेषता यह है । क उसम कोई व ापन नह ं होता उसके लेखन के
समय भाषा-शैल वषय क गंभीरता सभी का यान रखना होता है ।

85 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

4.9 संपादक य क भाषा

संपादक य बहुत ह उ रदा य व पूण काय है । यह समाचार प क बौ धक मता


उसक तकशीलता, दरू गामी सोच और न प ता का पयाय होता है । संपादक य संपादक क
सज
ृ ना मक शि त, बौ धक कौशल और संवेदना क कसौट है । िजसपर उसे खरा उतरना
होता है । संपादक य लेख के अ भाग म वषय संबंधी घटना लखी जाती है । म य भाग म
वषय क आलोचना, उसक या या अथवा उसका व लेषण कया जाता है । और अं तम
भाग न कष का होता है । यह न कष परामश
परामश, सझ
ु ाव, चेतावनी और संघष क ेरणा के प
म होता है । अतः समाचार प म संपादक य क भाषा समाचार क भाषा से अलग और
व श ट होती है । कसी भी समाचार प म संपादक य बड़ा मह वपूण होता है । पाठक मु य
समाचार को पढ़कर संपादक य को बड़े यान से पड़ता है । अ धका रता संपादक य बु धजीवी वग के
लए होता है । इस लए उसक भाषा भी व श ट और सा हि यक होती है । संपादक य क भाषा
समाचार के आमुख क तरह भावकार या आक षत करने वाल नह ं होती बि क उसम वषय क
साथकता और ान वधन होता है । दस
ू रे श द म कह तो संपादक य लोक सेवा प का रता का े ठ
मा यम और समाचार प अथवा संपादक का अपना ि टकोण होता है । जो जन चेतना का हर
अथवा व ता भी होता है । संपादक य म भाषा और शैल वषय के अनु प होनी चा हए िजससे क
सामा य पाठक से लेकर व श ट बु धजीवी वग तक का पाठक सं हता से पढ़ सके वा तव म
संपादक य समाचार प क आ मा है ।

4.9.1 बोध- न

1. संपादक य क भाषा कैसी होती है ?


2. संपादक य का वषय....................
....................होता है । (गंभीर/सामा य)
3. संपादक य को.......................
........................भी कहते ह। (फ चर/अ लेख)
4. संपादक य लेख का आदश या होता है ?

4.10 संपादक य : एक उदाहरण

हंद समाचार प के संपादक य लेख और उस म यु त भाषा को समझने के लए एक


उदाहरण दे खए-

86 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

जासस
ू ी के आकाश म ये चंद गु बारे
( शांत झा ं टन संवाददाता, ह द ु तान टाइ स)
झा, वा शग

जासूसी क द ु नया एक अर य है । य
यहाँ सहयोगी, म और जोड़ीदार,
जोड़ीदार सभी एक-दस
ू रे
पर नजर रखते ह। जब क,, वरोधी अपने त वं वय के इराद व मताओं का पता
लगाने, एक-द
दसू रे क रा य सुर ा व राजनी तक तं को बेधने और मनोनुकूल नतीजा पाने
के वा ते खु फया ऑपरे शन करने के लए वे सब कुछ करते ह। जो वे कर सकते ह।
इसी लए अगर द ु नया का दस
ू रा सबसे मजबूत रा सबसे ताकतवर मु क पर नगाह रखने
और उसे सवशि तशाल क पदवी से बेदखल करने के लए नगरानी के लए गु बारे क
स दय पुरानी तकनीक पर भरोसा कर रहा है तो यह उन लोग के लए कोई खबर नह ं है ,
जो खु फया गर के संसार म रचे-बसे ह। यह खबर तो तब है , जब आप पकड़े जाते ह।

भौगो लक सीमा पार करके अमे रक आसमान म चीनी नगरानी रखने वाले गु बारे
के आने क घटना ने अमे रक समाज म तीखी बहस शु क है । शायद सभी समाचार
नेटवक और सोशल मी डया पर गु बारे क त वीर तैरने के कारण ऐसा हुआ है । चीनी
जासूसी से उ प न खतरे के त अमे रक खु फया एज स
सयाँ तो वष से जगी हुई थीं, अब
अमे रका के राजनेता और नाग रक भी इस बार पया त प से चं तत दख रहे ह। गु बारे
को मार गराने के नदश दे ने संबंधी रा प त जो बाइडन के फैसले क चौतरफा तार फ भी
हो रह है ।

मगर अब एक अ य पहलू सामने आ रहा है क अमे रका ने इस बात से इनकार


कया है क उसने चीन क हवाई सीमा म को
कोईई नगरानी गु बारा छोड़ रखा है , ले कन इसम
कोई संदेह नह ं है । क चीन म एक यापक अमे ररक
क नगरानी तं काम कर रहा है और
द ु नया भर म वह चीन पर नजर रख रहा है । अमे रक खु फया एज सय के पास 2022 म
89.8 अरब डॉलर का बजट था
था, िजसम कुल 18 एज सयाँ शा मल थीं। 2021 म सीआईए ने
'21वीं सद म सबसे मह वप
पणू भू-राजनी तक खतरे , यानी तकू ल चीनी सरकार'
सरकार पर अपने
काम को और सम ता दे ने के लए वशेष चीन मशन क क थापना क थी और यह भी
सच है । क रा य सुर ा व रा य र ा रणनी त दोन लहाज से चीन को मु य चन
ु ौती
बताते हुए अमे रका उस पर नगाह रखने और उसे कमजोर करने के लए अपनी ऊजा लगाए
बना नह ं रह सकता है । मगर अमे रक पकड़े नह ं गए चीन इस मामले म भा यशाल नह ं

87 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

रहा और इसी लए, बीिजंग के सं थागत खु फया तं और उसक हा लया कारवाइय को लेकर
उसे हदायत द जा रह है ।

जन
ू 1983 म चीन क क यु न ट पाट क छठ नेशनल पीपु स कां ेस ने 'रा क
सरु ा को सु नि चत करने और चीन के खलाफ होने वाल जासस
ू ी क काट को मजबत

करने के लए' म न ऑफ टे ट स यो रट (एमएसएस) क थापना को मंजूर कया था।
नवंबर 2015 म, चीन के रा प त शी िजन पंग ने पीपु स लबरे शन आम (पीएलए)के
जनरल टाफ वभाग के एक अंग को
को, िजसे 2 पीएलए भी कहा जाता है । पीएलए संयु त
टाफ वभाग का खु फया यूरो बना दया। शी ने ै टिजक सपोट फोस (एसएसएफ) का भी
गठन कया और उसे इले ॉ नक व सूचना यु ध के साथ-साथ
साथ सभी तकनीक और साम रक
टोह काम का घर दा बना दया। सावज नक सुर ा मं ालय
ालय, व भ न रा य इकाइय और
अ म मोच के संगठन के साथ मलकर एमएसएस
एमएसएस, खु फया यूरो और एसएसएफ ने चीन
के लए सुर ा कवच बनाने का काम कया है ।

चीन पछले एक दशक से अमे रका के खलाफ कह ं अ धक सफल अ भयान म लगा


हुआ है । 2010 और 2012 के बीच अमे रक ह थे, जो पकड़े गए चीन सीआईए म गु तचर
करके और उसके ढ ले संचार णाल को बेधकर उस नेटवक को बेपरदा करने म सफल रहा
रहा,
जो अमे रका चीन क सरकार के खलाफ चला रहा था। इसके बा
बादद मानो ऐसे ोत को मार
गराने का ू र सल सला ह शु हो गया साल 2017 म यय
ू ॉक टाइ स ने मारे गए लोग
क सं या कम से कम 12 आंक , जब क फॉरे न पॉ लसी प का म छपी एक खोजी रपोट ने
बाद म इस आंकड़े को बढ़ाकर 30 कर दया। चीन म अमे रक खु फया यास क कमर
तोड़ द गई थी। साल 2015 म, अमे रका ने वीकार कया क चीन ने 2.1
2 करोड़ द तावेज
तक पहुँच
चने
ने के लए अमे रक का मक बंधन कायालय क सुर ा फाइल को है क कर लया
है । इसका मतलब था क चीन के पास सै य क मय स हत हर सेवा नव ृ , वतमान और
भावी अमे रक संघीय कमचार क कंु डल मौजूद थी। उन फाइल म उनक नजी जानकार ,
पा रवा रक प ृ ठभू म, मान सक
सक-आ थक दशा, पता, वेतन, कामकाज का इ तहास
तहा जैसी
सूचनाएँ दज थी। साल 2015 म चीन के है कर ने एंथम और इससे जुड़ी वा य बीमा
कंप नय के आठ करोड़ ाहक का यि तगत डाटा चरु ाया। 2017 म उसने सबसे बड़ी
उपभो ता े डट रपो टग एज सय म से एक इि वफै स को है क कर लया और 15 करोड़
अम र कय क संवेदनशील जानका ररयाँ अपने क जे म कर ल ं।

88 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
िहदं ी भाषा : सं ेषण और सच
ं ार (िह
िहदं ीी-क)

चीन ने अमे रक नाग रक क नजी जानका ररयाँ ह नह ं चरु ा , बि क अमे रका क


बौ धक संपदा तक अपनी पहुँच बनाई। एमी जीगाट ने अपनी कताब पाइज,
पाइज लाइज ऐंड
ए गो र म म लखा है । क कैसे चीन ने खरब डॉलर क बौ धक संपदा चोर क , िजसम
एफ-35 और एफ-22 ट थ लड़ाकू जेट वमान अ भयान से जुड़ी सूचनाएँ भी शा मल थीं।
नवाचार और वा ण य म आगे रहने वाले उ योग को नशाना बनाकर चीन बौ धक संपदा
'नवाचार
क चोर से इस शि तशाल अथ यव था के दल पर चोट कर रहा है । यह कतना गंभीर
मसला है क कभी दे श के शीष साइबर यो धा जनरल क थ अ
अले
ले जडर ने इसे 'इ तहास म
पँूजी का सबसे बड़ा ह तांतरण
रण' कहा था'। साल 2020 म अपने एक भाषण म संघीय जाँच
यूरो (एफबीआई) के नदे शक टोफर रे ने वीकार कया क पछले दशक म चीन से
जुड़े आ थक जासस
ू ी के मामल म 1,300
तशत क व ृ ध हु ई है । एफबीआई हर 10 घंटे
म चीन क जासूसी के खलाफ मामला दज करता है और एफबीआई के 5,000 काउं टर-
इंटे लजस मामल म से आधे चीन से जुड़े ह। बहरहाल
बहरहाल, अभी तो गु बारा गराया गया है ,
ले कन अमे रक मेन ट अब चीनी डीप टे ट के खलाफ जाग गई है ।
(ये
ये लेखक के अपने वचार ह)

4.11 न कष

न कष प म यह कहा जा सकता है क कसी भी वषय या े म लेखन क


मह ा होती है । प का रता के े म तो इसक अहम भू मका है । प -प
प काओं म व भ न
कार का लेखन काय होता है ले कन संपादक य लेखन का वषय
वषय, व प और भाषा सामा य
लेखन से अलग, व श ट और ौढ़ होती है । एक अ छे संपादक य लेखन क बार कय को
समझते हुए कोई भी रचनाधम एक कुशल स पादक के प म एक सफल संपादक य लख
सकता है ।

4.12 अ यास- न

1. संपादक य लेखन का व प प ट करते हुए इसक भाषा पर वचार क िजए।


2. संप
पादक
ादक य लेखन के व भ न कार का उदाहरण स हत प रचय द िजये।
3. एक समाचार प म संपादक य क भू मका पर वचार क िजए।
4. समाचार और संपादक य लेखन म अंतर प ट क िजए।

89 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
ऑल य.ू जी. कोसस

4.13 संदभ- ंथ

 'आधु नक प का रता'- डॉ
डॉ. अजन
ु तवार , वाराणसी, 1991, प ृ ठ 60
 'समाचार, फ चर लेखन एवं स पादन कला
कला'- डॉ. ह रमोहन, द ल , प ृ ठ 173
 ' ह दु तान'- नई द ल , गु वार, 16 फरवर 2023, प ृ ठ 10
 ' हंद औपचा रक लेखन''- डॉ. द नदयाल, डॉ. भावना शु ल, प ृ ठ 80

90 । पृ ठ
© दरू थ एवं सतत् िश ा िवभाग
िवभाग, मु त िश ा प रसर, मु त िश ा िव ालय, िद ली िव विव
व ालय
978-81-19169-56-6

9 788119 169566

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