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Hindi Sahitya Ka Itihaas
Hindi Sahitya Ka Itihaas
बी. ए.
(प्रथम सेमेस्टर के हिए)
प्रोफे सर ऊर्भदेव िमाू, पूवू ऄध्ययक्ष, ईच्च हिक्षा और िोध संस्थान आकाइ 1-18
दहक्षण भारि हिंदी प्रचार सभा, िंैदराबाद
परामिी (हिंदी), दूरस्थ हिक्षा हनदेिािय, मानू
डॉ. वाजदा आिरि, ऄहिहथ प्राध्ययापक, दूरस्थ हिक्षा हनदेिािय, मानू आकाइ 19-24
प्रूफ रीडर:
प्रथम : डॉ. वजदा आिरि, ऄहिहथ प्राध्ययापक, दू. हि. हन.
हििीय : डॉ. मो. ऄकमि ख़ान, ऄहिहथ प्राध्ययापक, दू. हि. हन.
ऄंहिम : डॉ. अफिाब अिम बेग, सिंायक कु ि सहचव, दू. हि. हन.
संदि
े : कु िपहि 7
संदि
े : हनदेिक 8
भूहमका : पाठ्यक्रम-समन्वयक 10
खंड 1 : अददकाि
खंड 2 : भहिकाि
खंड 3 : रीहिकाि
प्रो.एस.एम. रिंमिुल्िािं
कायूवािंक कु िपहि,
मौिाना अज़ाद नेिनि ईदूू यूहनवर्ससटी
संदि
े
अप सभी आस बाि से बखूबी वादकफ िंैं दक मौिाना अज़ाद नेिनि ईदूू यूहनवर्ससटी का
बाकायदा अगाज़ 1998 में दूरस्थ हिक्षा प्रणािी और रांसिेिन हडहवजन से हअ था। 2004
में बाकायदा पारं पररक हिक्षा का अगाज़ हअ। पारं पररक हिक्षा के हवहभन्न हवभाग स्थाहपि
दकए गए। नए स्थाहपि हवभागों और रांसिेिन हडहवजन में हनयुहियाँ हईं। ईस वक़्ि के हिक्षा
प्रेहमयों के भरपूर सिंयोग से स्व-ऄहधगम सामग्री को ऄनुवाद व िेखन के जररये िैयार कराया
गया। हपछिे कइ वर्ों से यूजीसी-डीइबी (UGC-DEB) आस बाि पर ज़ोर देिा रिंा िंै दक
दूरस्थ हिक्षा प्रणािी के पाठ्यक्रम व व्यवस्था को पारं पररक हिक्षा प्रणािी के पाठ्यक्रम व
व्यवस्था से िगभग जोड़कर दूरस्थ हिक्षा प्रणािी के मयार को बुिंद दकया जाय। चूंदक मौिाना
अज़ाद नेिनि ईदूू यूहनवर्ससटी दूरस्थ हिक्षा और पारं पररक हिक्षा का हवश्वहवद्यािय िंै,
हििंाज़ा आस ईद्देश्य की पूर्सि के हिए यूजीसी-डीइबी (UGC-DEB) के ददिा हनदेिों के
मुिाहबक दूरस्थ हिक्षा प्रणािी और पारं पररक हिक्षा प्रणािी के पाठ्यक्रम को जोड़कर और
मयारबंद करके स्व-ऄहधगम सामग्री को पुनः क्रमवार यू.जी. और पी.जी. के हवद्यार्सथयों के
हिए क्रमिः 6 खंड- 24 आकाआयों और 4 खंड – 16 आकाआयों पर अधाररि नए िज़ू की रूपरे खा
पर िैयार कराया जा रिंा िंै।
दूरस्थ हिक्षा प्रणािी को पूरी दुहनया में ऄत्यहधक कारगर और िाभप्रद हिक्षा प्रणािी
की िंैहसयि से स्वीकार दकया जा चुका िंै और आस हिक्षा प्रणािी से बड़ी संख्या में िोग
िाभाहन्वि िंो रिंे िंैं। मौिाना अज़ाद नेिनि ईदूू यूहनवर्ससटी ने भी ऄपनी स्थापना के
अरं हभक ददनों से िंी ईदूू िबके की हिक्षा की हस्थहि को मिंसूस करिे हए आस हिक्षा प्रणािी
को ऄपनाया िंै। आस िरिं हवश्वहवद्यािय ने पारं पररक हिक्षा प्रणािी के पिंिे दूरस्थ हिक्षा
प्रणािी के िारा ईदूू अबादी िक हिक्षा पहँचाने का हसिहसिा िुरू दकया। िुरुअिी दौर में
यिंाँ के िैहक्षक कायूक्रमों के हिए ऄंबेडकर हवश्वहवद्यािय और आं ददरा गांधी राष्ट्रीय मुि
हवश्वहवद्यािय के पाठ्यक्रमों की सामग्री को ज्यों का त्यों या ऄनुवाद के ज़ररये ईपयोग कर िाभ
प्राप्त दकया गया। आरादा ये था दक बहि िेज़ी से ऄपनी पाठ्य सामग्री िैयार करा िी जाएगी
िेदकन आरादा और कोहिि दोनों एक दूसरे के साथ निंीं चि पाये, हजसकी वजिं से ऄपनी स्व-
ऄहधगम सामग्री की िैयारी में काफी देर हइ। ऄंििः एक व्यवहस्थि िरीके से युद्धस्िर पर काम
िुरू हअ, हजसके दौरान कदम-कदम पर परे िाहनयाँ भी अईं मगर कोहििें जारी रिंीं।
पररणामस्वरूप बहि िेज़ी से हवश्वहवद्यािय ने ऄपनी पाठ्य सामग्री का प्रकािन िुरू दकया।
ईम्मीद िंै दक देि में िैहक्षक और अर्सथक रूप से हपछड़ी हइ ईदूू अबादी को मुख्यधारा
में िाहमि करने में दूरस्थ हिक्षा हनदेिािय की भी मुख्य भूहमका िंोगी।
‘हिंदी साहिंत्य का आहििंास’ िीर्ूक यिं पुस्िक मौिाना अजाद नेिनि ईदूू यूहनवर्ससटी,
िंैदराबाद, के बी.ए. (हिंदी) के दूरस्थ माध्ययम के छात्रों के हिए िैयार की गइ िंै। आसकी संपण
ू ू
योजना हवश्वहवद्यािय ऄनुदान अयोग (यू जी सी) के हनदेिों के ऄनुसार हनयहमि माध्ययम के
पाठ्यक्रम के ऄनुरूप रखी गइ िंै।
आस समस्ि पाठ सामग्री को िैयार करने में िंमें हजन ग्रंथों और िेखकों से सिंायिा हमिी
िंै, ईन सबके प्रहि िंम कृ िज्ञ िंैं।
आकाइ की रूपरे खा
1.0 प्रस्तािना
1.1 ईद्देश्य
1.2 मूल पाठ :हहदी साहहत्य का आहतहास : काल हिभाजन एिं नामकरण
1.2.1 काल हिभाजन के अधार
1.2.2 प्रमुख आहतहास लेखकों द्वारा प्रस्तुत काल हिभाजन
1.2.2.1 डॉ .जाजज हियसजन द्वारा प्रस्तुत काल हिभाजन
1.2.2.2 हमश्र बंधुओं द्वारा प्रस्तुत काल हिभाजन
1.2.2.3 अचायज रामचंद्र शुक्ल द्वारा प्रस्तुत काल हिभाजन
1.2.2.4 डॉ .रामकु मार िमाज द्वारा प्रस्तुत काल हिभाजन
1.2.2.5 अचायज हजारी प्रसाद हद्विेदी द्वारा प्रस्तुत काल हिभाजन
1.2.2.6 डॉ .गणपहतचंद्र गुप्त द्वारा प्रस्तुत काल हिभाजन
1.2.2.7 अदशज और सिजप्रचहलत काल हिभाजन
1.3 पाठ-सार
1.4 पाठ की ईपलहधधयााँ
1.5 शधद संपदा
1.6 परीक्षाथज प्रश्न
1.7 पठनीय पुस्तकें
1.0 प्रस्तािना
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हििरण शाहमल होता है। ऄध्ययन की सुहिधा के हलए आहतहास को कु छ हसलहसलेिार कालों में
बााँटा जाता है। दकसी काल हिशेष का िणजन, ईसमें शाहमल प्रिृहियों अदद के अधार पर दकया
जाता है। यह काल हिभाजन प्रायः तत्कालीन सामाहजक, धार्ममक, अर्मथक, सांस्कृ हतक,
राजनैहतक पररहस्थहतयों के अधार पर दकया जाता है। काल हिभाजन में आहतहास-लेखक के
ऄपने दृहिकोण का भी हिहशि महत्ि है। आस आकाइ में अप हहदी साहहत्य के आहतहास के
हिहभन्न कालों में हिभाजन का ऄध्ययन करें गे।
1.1 ईद्देश्य
1.2 मूल पाठ :हहदी साहहत्य का आहतहास :काल हिभाजन एिं नामकरण
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होता है। हहदी साहहत्य के आहतहास के काल-हिभाजन को हम देखते हैं तो ईसमें प्राचीन काल
को अददकाल, मध्यकाल को भहिकाल और रीहतकाल नामक दो काल खंडों तथा ईसके बाद
अधुहनक काल के रूप में यह हिभाजन हमलता है। आन कालों के नाम दकसी ऐहतहाहसक
कालक्रम के अधार पर (अददकाल( , दकसी अंदोलन के अधार पर (भहिकाल(तथा दकसी
साहहहत्यक प्रिृहि के अधार पर (रीहतकाल और अधुहनक काल(रखे गए हैं। आनके ऄलािा
अधुहनक काल के ऄंतगजत छायािाद,प्रगहतिाद और प्रयोगिाद जैसे नाम हिचारधारा के अधार
पर तथा भारतेंदु युग और हद्विेदी युग जैसे नाम प्रभािशाली व्यहि(साहहत्यकार(के नाम पर रखे
गए हैं।
बोधप्रश्न
हहदी साहहत्य के आहतहास का काल हिभाजन दकन-दकन अधारों पर दकया जाता है?
हहदी साहहत्य के आहतहास में प्रिृहियों के साथ-साथ हिहभन्न कहियों और साहहत्यकारों
के जीिन में घटनाओं का िणजन क्यों हमलता है?
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)4( ब्रज का कृ ष्ण-संप्रदाय, (5( मुगल दरबार, (6( तुलसीदास, (7( रीहत-काव्य, (8(
तुलसीदास के ऄन्य परिती, (9( ऄठारहिीं शताधदी, (10( कं पनी के शासन में हहदुस्तान, (11(
महारानी हिक्टोररया के शासन में हहदुस्तान।
डॉ .हियसजन के आस काल हिभाजन को देखते ही लगता है दक यह बहुत ऄस्त-व्यस्त सा
है। आसमें चारण काल को बाद में रामकु मार िमाज ने भी स्िीकार दकया, परं तु 1300इ .के बाद
सीधे पंद्रहिीं शती पर पहुाँचने से बीच में कइ िषों का क्या हुअ, आस बात का पता नहीं चलता।
ितजमान में पंद्रहिीं शती के धार्ममक पुनजाजगरण को भहिकाल के ऄंतगजत स्िीकार दकया जाता
है। ईस समय काल हिभाजन का कोइ हिशेष अधार नहीं था। आसहलए कहीं काल, कहीं प्रिृहि,
कहीं कहि हिशेष, कहीं धार्ममक संप्रदाय अदद को मुख्य अधार मानकर यह काल हिभाजन
दकया गया है। राजनीहतक पररहस्थहतयों को दृहि में रखते हुए ‘कं पनी के शासन में हहदुस्तान’
तथा ‘हिक्टोररया के शासन में हहदुस्तान’ जैसे नाम भी हमलते हैं। यह प्रयास अज पूरी तरह
स्िीकार नहीं दकया जा सकता। परं तु आस प्रयास की सराहना दकए हबना नहीं रहा जा सकता।
बोध प्रश्न
हियसजन द्वारा प्रस्तुत काल हिभाजन को अज क्यों स्िीकार नहीं दकया जाता?
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हमश्रबंधुओं द्वारा दकए गए काल हिभाजन के बारे में डॉ.गणपहतचंद्र गुप्त का कथन है दक
‘जहााँ तक पद्धहत की बात है, यह िगीकरण बहुत सम्यक एिं स्पि है। ककतु तथ्यों की दृहि से
आसमें भी ऄनेक हिसंगहतयााँ हिद्यमान हैं। हिहभन्न कालखंडों के नामकरण में भी एक जैसी
पद्धहत नहीं ऄपनाइ गइ है, जहााँ ऄन्य नामकरण हिकासिाददता के सूचक हैं िहााँ ‘ऄलंकृत काल’
अंतररक प्रिृहि पर अधाररत है। ऄस्तु, आन दोषों के होते हुए भी, हमश्र बंधुओं का प्रयास पयाजप्त
महत्िपूणज एिं प्रौढ़ है, आसमें कोइ संदह
े नहीं।’ अज हिहभन्न शोधों के अलोक में हमश्र बंधुओं का
यह प्रयास ऄमान्य हो चुका है, परं तु तत्कालीन पररहस्थहतयों को दृहि में रखते हुए यह कहा जा
सकता है दक यह एक महत्िपूणज प्रयास था।
अचायज शुक्ल ने कु ल 900िषों के आहतहास को ईपयुजि चार कालों में हिभाहजत दकया
है। ईन्होंने ऄपने िंथ ‘हहदी साहहत्य का आहतहास(1929इ.) के अरं भ में ‘प्रथम संस्करण का
ििव्य’ के ऄंतगजत आस िंथ की पद्धहत पर ऄपने हिचार प्रकट दकए हैं। आस पद्धहत में नामकरण
के दो अधार हैं 5.प्रचुरता और 2. प्रहसहद्ध। िे हलखते हैं –‘आस पुस्तक में हजस पद्धहत का
ऄनुसरण दकया गया है, ईसका थोड़े में ईल्लेख कर देना अिश्यक जान पड़ता है। पहले काल
हिभाग को लीहजए। हजस काल हिभाग के भीतर दकसी हिशेष ढंग की रचनाओं की प्रचुरता
ददखाइ पड़ती है, िह एक ऄलग काल माना गया है और ईसका नामकरण ईन्हीं रचनाओं के
स्िरूप के ऄनुसार दकया गया है। आसी प्रकार काल का एक हनर्कदि सामान्य लक्षण बनाया जा
सकता है। दकसी एक ढंग की रचना की प्रचुरता से ऄहभप्राय यह है दक दूसरे ढंग की रचनाओं में
से चाहे दकसी एक ढंग की रचना को लें िह पररमाण में प्रथम के बराबर न होगी, यह नहीं दक
और सब ढंगों की रचनाएाँ हमलकर भी ईसके बराबर न होंगी।’
शुक्ल जी ने अगे यह भी स्पि दकया है दक दूसरी बात है, िंथों की प्रहसहद्ध। ‘दकसी काल
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के भीतर हजस एक ही ढंग के बहुत ऄहधक िंथ प्रहसद्ध चले अते हैं, ईस ढंग की रचना ईस काल
के लक्षण के ऄंतगजत मानी जाएगी, चाहे और दूसरे ढंग की ऄप्रहसद्ध और ऄसाधारण कोरट की
बहुत-सी पुस्तकें भी आधर-ईधर कोनों में पड़ी हमल जाया करें । प्रहसहद्ध भी दकसी काल की
लोकप्रिृहि की प्रहतहनहध है। सारांश यह दक आन दोनों बातों की ओर ध्यान रखकर काल
हिभागों का नामकरण दकया गया है।’
अचायज शुक्ल का काल हिभाजन आतना सटीक है दक हिहभन्न तकों द्वारा अलोचना करने
िाले भी कोइ हिहशि नामकरण या सीमा प्रस्तुत नहीं कर सके । थोड़ा-बहुत नामकरण में ऄंतर
करते हुए घूम-दिरकर दिर िहीं अ गए। आसीहलए अचायज शुक्ल के ‘हहदी साहहत्य का
आहतहास’ ( 1929इ.)के संदभज में रटप्पणी करते हुए डॉ.बच्चन हसह ने हलखा है दक ‘अरं भ में ही
कह दूाँ दक न तो अचायज रामचंद्र शुक्ल के ‘हहदी साहहत्य का आहतहास’ को लेकर दूसरा नया
आहतहास हलखा जा सकता है और न ईसे छोड़कर। नए आहतहास के हलए शुक्ल जी का आहतहास
एक चुनौती है।’ आस कथन से ही अचायज शुक्ल के आहतहास के महत्ि का ज्ञान हो जाता है।
छात्रो !अपने देखा होगा दक हियसजन ने ऄपने काल हनधाजरण में ‘इस्िी सन’(इ.( का
प्रयोग दकया था जबदक ईनके बाद के आहतहासकारों ने ‘हिक्रमी संित’ का प्रयोग दकया है।
हिक्रमी संित में से 57 िषज घटाकर अप इस्िी सन प्राप्त कर सकते हैं।
बोध प्रश्न
अचायज रामचंद्र शुक्ल द्वारा प्रस्तुत हिभाजन क्यों सटीक है?
आस काल हिभाजन को देखने से साि पता चलता है दक आसमें ‘संहधकाल’ एक नया काल
है। संहधकाल के ऄंतगजत हसद्ध साहहत्य शाहमल है हजसे अचायज शुक्ल ने सांप्रदाहयक हशक्षा मात्र
कहकर तिज्जो नहीं दी थी। बाद की खोजबीन से पता चला दक हसद्धों के साहहत्य की भी
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प्रासंहगकता है। अचायज शुक्ल के ‘िीरगाथाकाल’ की जगह यहााँ ‘चारण काल’ कहा गया है। शेष
काल हिभाजन अचायज शुक्ल की ही भााँहत है। चारण काल का समय भी लगभग अचायज शुक्ल
के ही समान है। डॉ.रामकु मार िमाज का कथन है –‘साहहत्य का आहतहास अलोचनात्मक शैली से
ऄहधक स्पि दकया जा सकता है। ऄतः ऐहतहाहसक सामिी के साथ कहियों एिं साहहहत्यक
प्रिृहियों की अलोचना करना मेरा दृहिकोण है।’ आस कथन से पता चलता है दक डॉ. रामकु मार
िमाज के काल हिभाजन का अधार मुख्य रूप से साहहहत्यक प्रिृहियााँ रही हैं।
बोध प्रश्न
रामकु मार िमाज के काल हिभाजन का अधार क्या है?
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1.2.2.6 डॉ.गणपहतचंद्र गुप्त द्वारा प्रस्तुत काल हिभाजन
डॉ .गणपहतचंद्र गुप्त ने हिहभन्न तकों के माध्यम से ऄपने काल हिभाजन को प्रस्तुत करते
हुए ईसे सही कहा है। ईनके द्वारा प्रस्तुत काल हिभाजन आस प्रकार है –
1. अददकाल : सन 1184-1350इ .
2. पूिज मध्यकाल : सन 1350-1600इ.
3. ईिर मध्यकाल : सन 1600-1857इ.
4. अधुहनक काल : सन 1857से ऄब तक
ईन्होंने ऄपने प्रस्ताहित नामकरण के हलए तकज भी ददए हैं। जहााँ तक अददकाल का प्रश्न
है तो िे आसे प्रारं हभक काल कहना चाहते थे परं तु,‘अददकाल’ नाम ऄत्यहधक प्रहसद्ध होने के
कारण ईसे ‘अददकाल’ कहना ही ईहचत समझा। िे (गणपहतचंद्र गुप्त( हलखते हैं,‘िैसे प्राचीन
काल, प्रारं हभक काल, अददकाल में ताहत्िक दृहि से हिशेष ऄंतर भी नहीं पड़ता, ऄतः हम भी
यदद आनमें से ‘अददकाल’ को ही स्िीकार कर लें तो आससे पाठकों को सुहिधा रहेगी।’
साहहत्येहतहास जैसे महत्िपूणज हिषय पर लेखन करते समय पाठकों की सुहिधा-
ऄसुहिधा पर ध्यान देना ईहचत नहीं जान पड़ता। यदद आस प्रकार देखा जाए तो ‘पूिज मध्यकाल’
के हलए ‘भहि काल’ तथा ‘ईिर मध्यकाल’ के हलए ‘रीहत काल’ जैसे नामों का प्रयोग स्िीकृ त
है। तो दिर यहााँ भी पाठकों की सुहिधा को देखा जाना चाहहए था और ‘पूिज मध्यकाल’ के हलए
‘भहि काल’ तथा ‘ईिर मध्यकाल’ के हलए ‘रीहत काल’ शधद का प्रयोग दकया जाना चाहहए
था, परं तु ऐसा नहीं दकया गया है। आस संदभज में गणपहतचंद्र गुप्त हलखते हैं दक ‘जहााँ तक
पूिजमध्यकाल एिं ईिर मध्यकाल की बात है, आनके हलए भी क्रमशः भहि काल एिं रीहत काल
नाम रूढ़ हो गए हैं। ककतु आनसे आन काल खंडों की एक-एक प्रिृहि को ही प्रमुखता हमल जाती
है, शेष तथ्य को ध्यान में रखते हुए हम आन्हें भहि काल और रीहत काल नाम से संबोहधत करने
का ऄनुमोदन नहीं कर सकते, भले ही आससे पाठकों को थोड़ी ऄसुहिधा ही क्यों न हो।’ जहााँ
तक अधुहनक काल के प्रारं भ का प्रश्न है तो ईसे में 1857इ .से मानना न्यायोहचत है। आसका
कारण यह है दक 1857इ .का िषज भारतीय आहतहास बहुत ही महत्िपूणज है। यहीं से भारतेंदु
युग की शुरूअत भी मानी जाती है। भारतेंदु का जन्मकाल 1850है और लगभग 7-8 िषज की
ऄिस्था में ईन्होंने ऄपनी प्रथम कहिता भी हलखी थी। आसहलए अधुहनक काल (भारतेंदु युग( को
1857इ .से मानने में कोइ समस्या नहीं होनी चाहहए।
जहााँ तक डॉ .गणपहतचंद्र गुप्त द्वारा प्रस्तुत काल हिभाजन के अधार का प्रश्न है, तो
आन्होंने भी प्रिृहियों को ही ऄपने काल हिभाजन का अधार बनाया है। िे हलखते हैं –‘िस्तुतः
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हमारा लक्ष्य सांस्कृ हतक परं पराओं एिं बाह्य पररहस्थहतयों के प्रकाश में साहहत्य की प्रिृहियों
का ऄनुशीलन करना है, ऄतः काल हिभाजन में भी आसी तथ्य को ध्यान में रखना ईहचत होगा।’
हप्रय छात्रो !हमें यह भी ध्यान में रखना चाहहए दक ऄब अधुहनक काल में भी कइ
हिभाग बन गए हैं। आसीहलए अज एक अदशज और सिजप्रचहलत काल हिभाजन की अिश्यकता
है।
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पद्य भारतेंद ु युग(1857-1900 इ.(
अधुहनक काल हद्विेदी युग (1900-1918इ.(
छायािाद युग(1918-1936इ.(
प्रगहतिाद (1936-1943इ.(
प्रयोगिाद (1943-1951इ.(
नइ कहिता (1951-1960इ.(
साठोिरी/समकालीन कहिता (1960- ितजमान(
गद्य
1.3 पाठ-सार
हहदी साहहत्य के आहतहास को हिहभन्न कालों में हिभाहजत दकया जाता है। आन ऄलग-
ऄलग कालों के ऄपने हिशेष नाम हैं। आहतहास के आस तरह ऄध्ययन को ‘काल हिभाजन’ तथा
‘नामकरण ’कहा जाता है। काल हिभाजन के अम तौर पर दो अधार होते हैं। एक, साहहहत्यक
प्रिृहियााँ और दो, सामाहजक पररहस्थहतयााँ। िास्ति में ये दोनों परस्पर जुड़े हुए होते हैं।
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पररहस्थहतयों के बदलने से जनता की मानहसकता बदलती है और मानहसकता के बदलने से
साहहत्य की प्रिृहियााँ बदलती हैं। हहदी साहहत्य के काल हिभाजन और नामकरण में ये दोनों ही
अधार ऄपनाए गए हैं। ऄलग-ऄलग आहतहासकारों ने ऄलग-ऄलग प्रकार से िगीकरण दकया है।
हहदी साहहत्य के अरं हभक आहतहासकार गासाां द तासी, मौलिी करीमुद्दीन तथा हशिहसह सेंगर
ने आस ददशा में कोइ प्रयास नहीं दकया। लेदकन जॉजज हियसजन, हमश्र बंधुओं, अचायज रामचंद्र
शुक्ल, डॉ .रामकु मार िमाज, अचायज हजारी प्रसाद हद्विेदी और डॉ .गणपहत चंद्र गुप्त जैसे लेखकों
ने ऄलग-ऄलग कालों का सीमा हनधाजरण और नामकरण दकया है। अचायज रामचंद्र शुक्ल के
काल हिभाजन को ईनके बाद के आहतहासकारों ने भी थोड़े बहुत पररितजन के साथ स्िीकार कर
हलया। हहदी साहहत्य के अरं हभक काल को शुक्ल जी ने ‘िीरगाथा काल’ कहा था हजसके स्थान
पर ऄब व्यापक रूप में ‘अददकाल’ नाम का प्रयोग होता है। पूिज मध्यकाल और ईिर मध्यकाल
को ईन्होंने क्रमशः ‘भहिकाल’ और ‘रीहतकाल’ का नाम ददया था जो आसी रूप में बाद के
आहतहासकारों द्वारा स्िीकृ त हुअ। अधुहनक काल को अचायज रामचंद्र शुक्ल ने ‘गद्य काल ’भी
कहा था क्योंदक आसी काल में हहदी गद्य का ईदय और हिकास हुअ। लेदकन बाद के
आहतहासकार आसे ‘अधुहनक काल’ कहना ही ऄहधक व्यािहाररक समझते हैं।
आसी प्रकार आन कालों के कु छ ईप-खंड भी हैं। भहिकाल को हनगुजण भहिकाव्य और
सगुण भहिकाव्य के रूप में हिभाहजत दकया जाता है। आनमें भी हनगुजण काव्य के ऄंतगजत संत मत
और प्रेमाख्यानक काव्य परं परा जैसे दो भाग हैं। सगुण भहिकाव्य के ऄंतगजत भी कृ ष्ण भहि
और राम भहि नाम की दो शाखाएाँ हैं। रीहतकाल का हिभाजन भी प्रिृहियों के अधार पर
दकया जाता है – रीहतहसद्ध, रीहतबद्ध और रीहतमुि काव्य।
अधुहनक काल में जहााँ एक ओर गद्य तथा पद्य का हिभाजन है िहीं दूसरी ओर आसके
कालखंडों को प्रमुख साहहत्यकारों ऄथिा प्रमुख प्रिृहियों के अधार पर ऄलग-ऄलग नाम ददए
गए हैं। जैसे – भारतेंदु युग, हद्विेदी युग, छायािाद युग, छायािादोिर युग, प्रगहत-प्रयोग काल,
निलेखन काल, समकालीन लेखन काल अदद।
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2. काल हिभाजन के हिहभन्न अधार हैं। जैसे -ऐहतहाहसक कालक्रम, प्रिृहि,
प्रभािशालीव्यहित्ि और मुख्य हिधा।
3. हिहभन्न साहहत्येहतहास लेखकों ने ऄपने-ऄपने हहसाब से काल हिभाजन प्रस्तुत दकया है।
आनमें डॉ .जॉजज हियसजन, हमश्र बंध,ु अचायज रामचंद्र शुक्ल, डॉ .रामकु मार िमाज, अचायज
हजारी प्रसाद हद्विेदी, डॉ .गणपहतचंद्र गुप्त अदद आहतहास लेखक प्रमुख हैं।
4. हहदी साहहत्य के आहतहास के हिहभन्न कालों के ितजमान में सिाजहधक स्िीकृ त नाम आस प्रकार
हैं :अददकाल, भहिकाल (पूिज मध्यकाल(, रीहतकाल (ईिर मध्यकाल( और अधुहनक काल।
5. अधुहनक काल के तहत ईप-हिभाग आस प्रकार हैं –भारतेंदु युग, हद्विेदी युग, छायािाद युग,
प्रगहतिाद युग, प्रयोगिाद युग, निलेखन काल, साठोिरी (समकालीन( साहहत्य।
6. 1990इ .के बाद अधुहनक हहदी साहहत्य में हिहभन्न हिमशज ज़ोर शोर से ईभरे हैं। जैसे -स्त्री
हिमशज, दहलत हिमशज, अददिासी (जनजाहत( हिमशज, दकन्नर हिमशज, हररत हिमशज, दकसान
हिमशज अदद।
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3. अचायज रामचंद्र शुक्ल का काल हिभाजन प्रस्तुत करते हुए ऄपने हिचार प्रकट कीहजए।
खंड (ब(
खंड (स(
I सही हिकल्प चुहनए
1. ‘अधुहनक काल’ को अचायज रामचंद्र शुक्ल ने क्या कहा? ( )
(ऄ(पद्य काल (अ(गद्य काल (आ(ऄलंकृत काल (इ( हसद्ध काल
2. दकसके काल हिभाजन में ‘मुगल दरबार’ शीषजक से एक काल बनाया गया है?( )
(ऄ(रामचंद्र शुक्ल (अ(हजारी प्रसाद हद्विेदी (आ(रामकु मार िमाज (इ(हियसजन
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III सुमल
े कीहजए
i) मुगल दरबार काल (ऄ(रामचंद्र शुक्ल
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आकाइ 2 : अददकालीन साहहत्य : पृष्ठभूहम और सामान्य हिशेषताएाँ
आकाइ की रूपरे खा
2.0 प्रस्तािना
2.1 ईद्देश्य
2.2 मूल पाठ :अददकालीन साहहत्य :पृष्ठभूहम और सामान्य हिशेषताएाँ
2.2.1 अददकालीन साहहत्य की पूिज पीरठका
2.2.1.1 हहदी साहहत्य का अरं भ
2.2.1.2 हहदी साहहत्य का प्रथम कहि
2.2.1.3 अददकाल का स्िरूप
2.2.2 अददकाल की पृष्ठभूहम
2.2.2.1 राजनीहतक पररहस्थहत
2.2.2.2 सामाहजक पररहस्थहत
2.2.2.3 धार्ममक पररहस्थहत
2.2.2.4 अर्मथक पररहस्थहत
2.2.2.5 हमहश्रत-सांस्कृ हतक प्रदक्रया
2.2.3 अददकाल :नामकरण की समस्या
2.2.4 अददकाल की सामान्य हिशेषताएाँ
2.3 पाठ-सार
2.4 पाठ की ईपलहधधयााँ
2.5 शधद संपदा
2.6 परीक्षाथज प्रश्न
2.7 पठनीय पुस्तकें
2.0 प्रस्तािना
साहहत्यकार समाज में रहता है। आसहलए समाज में घरटत होने िाली घटनाओं का ईसके
साहहत्य पर सीधा ऄसर पड़ता है। कहि या लेखक समाज में जो कु छ देखता है, ईसे ही ऄपनी
रचनाओं में ऄहभव्यि करता है। हहदी साहहत्य का अददकाल भी आसका ऄपिाद नहीं है। यह
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िह समय था जब हहदी साहहत्य का आहतहास धीरे -धीरे बन रहा था। यदद हम आसे ‘हहदी
साहहत्य का हनमाजण काल’ कहें तो कोइ ऄहतशयोहि न होगी।
अप जानते ही हैं दक हहदी भाषा और साहहत्य का ईदय ईिर ऄपभ्रंश के गभज से हुअ।
ऄपभ्रंश में दो प्रकार की रचनाएाँ प्राप्त होती हैं। एक तो हिशुद्ध ऄपभ्रंश की रचनाएाँ, तथा दूसरी
लोक प्रचहलत देशी भाषा की रचनाएाँ। ऄपभ्रंश के आस लोक प्रचहलत देशी रूप को ही ईिर
ऄपभ्रंश कहा जाता है। हिद्वानों ने आसी को हहदी का प्राचीन रूप भी कहा है। आस अधार पर आस
लोक प्रचहलत ऄपभ्रंश या देशी भाषा के रचनाकारों को हहदी साहहत्य के िास्तहिक अरं भ की
पृष्ठभूहम तैयार करने िाले रचनाकार कहा जा सकता है। यही कारण है दक अचायज रामचंद्र
शुक्ल ने अददकाल को दो भागों में बांटा है। पहले के ऄंतगजत िे ऄपभ्रंश की रचनाओं का ईल्लेख
करते हैं, तथा दूसरे को िीरगाथा काल कहते हुए मुख्य रूप से रासो काव्यों पर हिचार करते हैं।
अगे चल कर यह स्पि हुअ दक अददकाल एक प्रकार से भाषा और साहहहत्यक प्रिृहियों दोनों
ही के बदलाि का समय था। आसहलए आस काल के साहहत्य में कोइ एक मुख्य प्रिृहि कें द्रीय
प्रतीत नहीं होती। बहल्क एक साथ लगभग समानांतर रूप में कइ सारी प्रिृहियााँ ददखाइ देती
हैं। आस काल के साहहत्य में एक बड़ा भाग ऐसी रचनाओं का है हजन्हें अचायज रामचन्द्र शुक्ल ने
धार्ममक प्रचार से जुड़ा होने के कारण साहहहत्यक कोरट में नहीं रखा। लेदकन आस सच्चाइ को
नकारा नहीं जा सकता दक बाद के कालों में हजन प्रिृहियों का हिकास हुअ ईन सबके बीज बड़ी
हद तक दकसी न दकसी रूप में आसी धार्ममक साहहत्य में हमलते हैं। हसद्ध साहहत्य, जैन साहहत्य
और नाथ साहहत्य आस दृहि से अददकाल की ऄत्यंत महत्िपूणज हिचारणीय सामिी है, हजसकी
ईपेक्षा नहीं की जा सकती। आसके ऄलािा आस काल में रासो साहहत्य का ऄपना महत्ि है। यहााँ
भी ध्यान रखने की बात यह है दक अददकालीन रासो काव्य के िल िीरगाथा के रूप में ही नहीं
है, बहल्क भहि और शृग ं ार भी ईनकी प्रबल हिशेषताएाँ हैं। साथ ही,आस काल में लौदकक
साहहत्य और गद्य साहहत्य भी ऄपनी ईपहस्थहत दजज कराता है।
2.1 ईद्देश्य
हप्रय छात्रो !आस आकाइ को पढ़ने के बाद अप –
अददकाल के स्िरूप से पररहचत हो सकें गे।
अददकाल के रचनाकारों को प्रभाहित करने िाली पृष्ठभूहम तथा पररहस्थहतयों को जान
सकें गे।
अददकाल के नामकरण के अधार एिं ईसके औहचत्य को समझ सकें गे।
अददकाल के सीमा हनधाजरण पर हिचार कर सकें गे।
अददकाल की प्रिृहियों से पररहचत हो सकें गे।
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2.2 मूल पाठ :अददकालीन साहहत्य :पृष्ठभूहम और सामान्य हिशेषताएाँ
2.2.1 अददकालीन साहहत्य की पूिज पीरठका
हहदी साहहत्य का अरं भ स्िाभाहिक रूप से हहदी भाषा के ईदय (1000इ.( के पश्चात
माना जा सकता है,लेदकन हिद्वान आस हिषय पर एकमत नहीं हैं। भाषािैज्ञाहनक मान्यता के
ऄनुसार संस्कृ त की भाषाधारा में पाहल और प्राकृ त के बाद 500इ .से 1000इ .का काल
ऄपभ्रंश का काल है। ऄपभ्रंश के ऄनेक साहहहत्यक और सामान्य बोलचाल में प्रचहलत रूप थे
हजनसे हिहभन्न अधुहनक अयज भाषाओं का जन्म 1000इ .के अस-पास हुअ। हहदी से यहााँ
ऄहभप्राय पााँच ईपभाषाओं (पहश्चमी हहदी, पूिी हहदी, राजस्थानी, पहाड़ी और हबहारी (के
सहम्महलत भाषामंडल से है। अज आसके तहत लगभग 20बोहलयााँ शाहमल हैं। सामाहजक और
साहहहत्यक शैली के रूप में ईदूज को भी आसमें शाहमल दकया जाना चाहहए तथा दहक्खनी हहदी के
नाम से जाना जाने िाला एक ऄन्य भाषा रूप भी हहदी का ही व्यिहृत रूप है, परं तु ईदूज और
दहक्खनी जैसे पृथक भाषाओं के साहहत्य के आहतहास का ऄध्ययन प्रायः ऄलग से दकया जाता है।
बोध प्रश्न
हहदी भाषा का ईदय कब से माना जाता है?
पुरानी हहदी से क्या ऄहभप्राय है?
‘संक्रमण काल’ का साहहत्य दकसे कहा जाता है?
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2.2.1.2 हहदी साहहत्य का प्रथम कहि
हहदी के प्रथम साहहत्यकार के रूप में हजन नामों का ईल्लेख दकया जाता है ईनमें
सिजप्रथम कोइ ऄज्ञात कहि पुष्य (पुंड( हैं। आन्हें सातिीं-अठिीं शताधदी के लगभग हिद्यमान
माना गया है। परं तु आनकी कोइ प्रामाहणक रचना ईपलधध नहीं होती है। संभितः पुष्य या पुंड
ऄपभ्रंश के कहि पुष्यदंत का ही नाम हैं। अचायज रामचंद्र शुक्ल के आहतहास के ऄनुसार
अददकाल के ऄपभ्रंश हिषयक खंड का ऄिलोकन करने से जैन अचायज देिसेन प्रथम कहि प्रतीत
होते हैं, परं तु िे ऄपभ्रंश के कहि हैं, हहदी के नहीं। िीरगाथा काल की प्रथम रचना के रूप में
1123इ .में तथाकहथत रूप से रहचत ‘खुमाण रासो’ का ईल्लेख दकया गया है हजसके रचनाकार
दलपहत हिजय है। परं तु यह मत भी स्िीकार नहीं दकया जा सकता, क्योंदक बाद के
आहतहासकारों ने यह हसद्ध दकया है दक ‘खुमाण रासो’ का रचनाकाल िास्ति में 18िीं शताधदी
है।
डॉ.रामकु मार िमाज और डॉ.रामगोपाल शमाज ‘ददनेश’ ने हहदी साहहत्य का अरं भ 8िीं
शताधदी के हसद्ध कहि सरहपा (769इ.( माना है और राहुल सांकृत्यायन द्वारा संपाददत
’दोहाकोश’ से ईद्धरण देकर यह हसद्ध दकया है दक सरहपा की रचनाओं में ऄपभ्रंश व्याकरण के
बािजूद तत्समता की प्रिृहि तथा हहदी के रूप की झलक है और यह परं परा चौरासी हसद्धों की
रचनाओं में हिकहसत हुइ है। लेदकन डॉ.गणपहतचंद्र गुप्त ने आस तथ्य की ओर ध्यान ददलाया है
दक सराहपा की रचनाएाँ ऄपने मूलरूप में कहीं ईपलधध नहीं हैं। ‘दोहाकोश’ में प्रस्तुत पाठ ईनके
हतधबत में हमले हतधबती ऄनुिाद का राहुल सांकृत्यायन द्वारा दकया गया ऄनुिाद मात्र है। ऄतः
सरहपा को हहदी का प्रथम कहि नहीं माना जा सकता।
डॉ.हजारी प्रसाद हद्विेदी ने पृथ्िीराज चौहान के समकालीन कहि चंदबरदाइ को हहदी
भाषा का अददकहि कहा है और साथ ही यह भी माना है दक चंदबरदाइ ऄपभ्रंश का ऄंहतम
कहि ऄहधक है और हहदी का अददकहि कम। ईनके ‘पृथ्िीराज रासो’( 1200 इ.( को ‘हहदी का
प्रथम महाकाव्य’ होने का गौरि प्राप्त है। डॉ.गणपहतचंद्र गुप्त ने जैन कहि शाहलभद्र सूरर द्वारा
रहचत ‘भरतेश्वर बाहुबली रास’ (1184इ.( को हहदी साहहत्य की प्रथम ईपलधध कृ हत माना है
जो ‘पृथ्िीराज रासो’ से पूिजिती है। आस कृ हत का पाठ ऄहिकृ त रूप में ईपलधध है तथा गुजराती,
राजस्थानी और हहदी तीनों में मान्य है। आसे हहदी जैन साहहत्य की रास परं परा का पहला काव्य
माना गया है हजसमें हहदी की ईदयकालीन भाहषक प्रिृहियााँ देखीं जा सकती हैं।
आस अधार पर शाहलभद्र सूरर को हहदी का प्रथम साहहत्यकार और ईनकी 1184इ .में
रहचत कृ हत ‘भरतेश्वर बाहुबली रास’ को हहदी का प्रथम काव्य माना जा सकता है, जबदक हहदी
के ‘अदद महाकहि’ होने का गौरि चंदबरदाइ को प्राप्त है तथा 1200इ .के अस-पास रहचत
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ईनकी रचना ‘पृथ्िीराज रासो’‘हहदी का प्रथम महाकाव्य’ है। आसके बािजूद यह भी स्मरणीय है
दक 1184इ .से पूिज हिद्यमान कु छ काव्य प्रिृहियों( ऄपभ्रंश साहहत्य और हसद्ध साहहत्य (का भी
ईल्लेख हहदी साहहत्य के आहतहास में दकया जाता है जो अददकाल की प्रिृहियों को समझने में
सहायक हैं।
बोध प्रश्न
हहदी के प्रथम साहहत्यकार के रूप में दकन हिद्वानों का ईल्लेख दकया जाता है?
‘भरतेश्वर बाहुबली रास’ की रचना दकसने और कब की?
हहदी का पहला महाकाव्य कौन सा है और ईसके रचनाकार कौन हैं?
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के पतन से अरं भ होती है। सम्राट हषजिधजन के समय से ही ईिरी भारत पर अक्रमण शुरू हो
गए थे। अठिीं शताधदी से पंद्रहिीं शताधदी इस्िी तक के भारतीय आहतहास की राजनीहतक
पररहस्थहत में भारत में धीरे -धीरे आस्लाहमक सिा के ईदय की कथा शाहमल है।
अददकाल का भारत देशी और हिदेशी शहियों के युद्धों में िाँ सा हुअ था। यही समय
अददकाल का भी है। आस युद्ध प्रभाहित जीिन में कहीं भी संतल
ु न नहीं था। बाहरी अक्रमण हो
रहे थे। दुभाजग्य यह रहा दक हहदू राजा अपस में ही लड़ रहे थे। पृथ्िीराज चौहान, जयचंद,
परमर्कददेि अदद की पारस्पररक लड़ाआयााँ ऄंतहीन कथाएाँ बनती चली गईं। ऄराजकता,
गृहकलह, हिद्रोह, अक्रमण तथा युद्ध के िातािरण में कु छ कहियों ने अध्याहत्मक जीिन की
बातें कीं, तो कु छ ऄन्य ने मरते-मरते भी जीिन का रस लेने पर ज़ोर ददया। एक िगज ऐसे
कहियों का भी ईभरा हजन्होंने ‘तलिार’ के गीत गाकर गौरि के साथ जीने की प्रेरणा दी।
डॉ.रामगोपाल शमाज ‘ददनेश’ ने माना है दक मुहस्लम अक्रमण का प्रभाि “मुख्यतः पहश्चम एिं
मध्यप्रदेश पर ही पड़ा था। आन्हीं क्षेत्रों की जनता युद्धों और ऄत्याचारों से हिशेषतः अक्रांत हुइ
थी। यही िह क्षेत्र था, जहााँ भाषा का हिकास हो रहा था। ऄतः आस काल का समस्त हहदी
साहहत्य अक्रमण और युद्ध के प्रभािों की मनःहस्थहतयों का प्रहतिलन है।" (हहदी साहहत्य का
आहतहास .सं .नगेंद्र(। आसी के कारण आस काल के साहहत्य में कोइ एक प्रिृहि आतनी प्रमुख नहीं
रह सकी दक दूसरी सब प्रिृहियााँ ईसके अगे गौण हो जातीं।
बोध प्रश्न
राजनैहतक दृहि से अददकाल की अरं हभक और ऄंहतम सीमाएाँ क्या हैं?
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2.2.2.3 धार्ममक पररहस्थहत
धार्ममक दृहि से हहदी साहहत्य के अददकाल से पहले छठी शताधदी तक भारत में िैददक
धमज, मूर्मतपूजक ,पौराहणक धमज, जैन धमज और बौद्ध धमज के बीच ऄच्छा समन्िय था। सातिीं
शताधदी में एक ओर तो बौद्ध धमज कमजोर पड़ा और दूसरी ओर जैन तथा शैि मत के प्रहत
जनता का रुझान बढ़ा। आसी काल में दहक्षण भारत के अलिार-नायन्मार संतों ने भहि अंदोलन
की शुरूअत की; जो धीरे -धीरे ईिर भारत में भी व्याप्त होता गया। िलस्िरूप िैष्णि और शैि
अंदोलन नइ गहत के साथ समाज में िलने लगे। कु ल हमलाकर यह समय भारतीय समाज में
ऄनेक धार्ममक हिश्वासों के अपसी टकराि का समय था। अददकाल के साहहत्य में आसीहलए
हसद्ध मत, नाथ संप्रदाय और जैन के साथ-साथ भागित धमज के भी प्रभाि में रचे गए काव्य
ईपलधध होते हैं। आन काव्यों में धमज और भहि के ऄलािा सामाहजक भेदभाि तथा अडंबर पर
चोट करने के ईदाहरण भी हमलते हैं; क्योंदक िह समय देशव्यापी धार्ममक ऄशांहत का समय था।
आस काल में जबदक भारतिषज कइ तरह के ऄलग-ऄलग मत-मतांतरों और धार्ममक
मतभेद से हघरा हुअ था, तभी यहााँ आस्लाम का अगमन हुअ। भारतीय धमज-संप्रदायों और
आस्लाम के बीच कािी टकराि हुअ; लेदकन धीरे -धीरे दोनों ने एक-दूसरे से प्रभाि भी िहण
दकए। यह काल हहदू और मुहस्लम समाज के आन बदलते धार्ममक ररश्तों का भी गिाह बना तथा
एक साझा हिरासत (गंगा-जमुनी तहजीब( की नींि आसी काल में पड़ी। आसके बािजूद
“अददकाल की धार्ममक पररहस्थहतयााँ ऄत्यंत हिषम तथा ऄसुंतुहलत थीं। जन-मानस पर गहरा
ऄसंतोष, क्षोभ तथा भ्रम छाया हुअ था। कहियों ने आसी मानहसक हस्थहत के ऄनुरूप खंडन-
मंडन, हठयोग, िीरता एिं शृंगार का साहहत्य हलखा।" (डॉ.रामगोपाल शमाज ‘ददनेश’(।
बोध प्रश्न
आस्लाम के अगमन का क्या प्रभाि पड़ा?
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बोध प्रश्न
अददकाल में दकसानों की हस्थहत कै सी थी?
बोध प्रश्न
ऄलबरूनी ने भारत के बारे में क्या हलखा है?
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नामकरण हो सकता है। आनमें से ऄंहतम दो तथा बीसलदेि रासो को छोड़कर शेष सब िंथ
िीरगाथात्मक ही हैं। ऄतः अददकाल का नाम ‘िीरगाथाकाल’ ही रखा जा सकता है।’
अगे चलकर यह पता चला दक शुक्ल जी द्वारा हगनाइ गइ िीरगाथाओं में से कइ का
ऄहस्तत्ि प्रमाहणत नहीं होता। आसके ऄलािा शुक्ल जी ने हसद्धों, नाथों और जैनों के प्रचुर
साहहत्य को हिशेष संप्रदाय तक सीहमत मानकर ‘साहहत्य’ की कोरट में ही नहीं रखा था। बाद के
हिद्वानों ने ईनके आस मत को स्िीकार नहीं दकया। ऄतः ये तीनों प्रिृहियााँ भी आस काल की
ईतनी ही मुख्य प्रिृहि हसद्ध होती हैं, हजतनी िीरगाथाओं की रचना की प्रिृहि। आस कारण
‘िीरगाथा काल’ नाम सारी प्रिृहियों को समेटने में ऄसमथज है।
हमश्र बंधुओं ने ‘हमश्रबंधु हिनोद’ में अददकाल के हलए अरं हभक काल नाम रखना ईहचत
समझा है। ईन्होंने आसके दो भाग दकए हैं –पूिज अरं हभक काल (700-1343हि.(तथा ईिर
अरं हभक काल (1344-1444हि.) ज़ाहहर सी बात है दक यह हहदी साहहत्य के अरं भ का काल
है। आसहलए आसे ‘अरं हभक काल’ कहा गया।
डॉ.रामकु मार िमाज ने आसे संहधकाल तथा चारण काल कहा है। ईनका कथन है दक ‘हहदी
साहहत्य के हिकास-काल को संहधकाल कहना ऄहधक ईपयुि है ,क्योंदक आस काल में दो
भाषाओं या दो शैहलयों में संहध होती है। ईन्होंने आस काल के हलए सुझाए गए एक और नाम
‘चारण काल’ के बारे में भी यह कहा दक,‘राजनीहतक क्षेत्र में हिप्लि होने के कारण साहहहत्यक
क्षेत्र में भी शांहत नहीं रही। राजस्थान राजनीहत का प्रधान क्षेत्र होने के कारण ऄपने यहााँ के
चारणों और भाटों को मौन नहीं रख सका।’ ऄतः चारणों या भाटों द्वारा रहचत काव्यों की
प्रधानता के कारण ईन्होंने आस काल को चारण काल कहा।
हिश्वनाथ प्रसाद हमश्र ने आस काल को ‘िीरकाल’ कहा है। ‘िीरकाल’ कहने का अधार है
दक आस काल में िीरों की चचाज हिहभन्न रचनाओं में की गइ है।
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बोध प्रश्न
अददकाल को िीरगाथा काल क्यों कहा गया है?
अददकाल को िीरगाथा काल कहना क्यों ऄपयाजप्त है?
रामकु मार िमाज ने अददकाल को चारण काल या संहध काल क्यों कहा?
1.धार्ममक कमजकांड का हिरोध –अददकाल में हसद्धों ने धार्ममक कमजकांडों का हिरोध दकया। स्त्री
को ऄपनी साधना में योहगनी का दजाज ददया। नाथों ने सामाहजक जागरण का काम दकया। आस
प्रकार हसद्ध और नाथ कहि ‘सामाहजक हिद्रोही’प्रतीत होते हैं।
3.धार्ममक काव्य – अददकाल के हसद्ध, नाथ और जैन साहहत्य का मुख्य ईद्देश्य ऄपने-ऄपने मत
याधमज का प्रचार करना था। हसद्धों ने सहजयानी बौद्ध धमज का तथा नाथों ने हठयोग का प्रचार
दकया। जैन कहियों ने हिहभन्न कथाओं के सहारे महािीर की धार्ममक हशक्षाओं का प्रचार दकया।
ईदाहरण के हलए,‘चंदनबाला रास’ नामक रचना असगु कहि की है। आस रचना में कहि का
दृहिकोण मूलतः धार्ममक है। अचायज देिसेन की रचना ‘श्रािकाचार’ में श्रािक धमज का
प्रहतपादन दकया गया है। ईन्होंने कहा भी दक ‘मैं ईन संदश
े ों का सार रूप में िणजन कर रहा हाँ,
जो जैन मत के प्रितजक ने ददए हैं।’
4.अश्रयदाताओं की प्रशंसा –अददकाल के कु छ कहि बौद्ध और जैन धमज के अश्रय में काव्य
रचना कर रहे थे, तो कु छ ने राज्यश्रय में रहकर यह कायज दकया। राज्याश्रय प्राप्त कहियों ने
अश्रयदाता कहियों की प्रशंसा में कइ रासो काव्यों की रचना की हैं। आनमें पृथ्िीराज रासो और
परमाल रासो जैसे प्रमुख िीर-काव्य सहम्महलत हैं। आन दोनों में क्रमशः पृथ्िीराज चौहान और
परमर्कद देि के पराक्रम की प्रशंसा की गइ है।
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5.युद्ध िणजन – िीरगाथात्मक रचनाओं ऄथाजत रासो काव्यों की एक प्रमुख हिशेषता युद्धों का
ऄहतशयोहि पूणज िणजन की है। आसका कारण यह है दक िह काल युद्धों से भरा पड़ा था और
क्षहत्रय जीिन की साथजकता िीरगहत में मानी जाती थी। जैसे –
बारह बररस लै कू कर जीए, औ तेरह लै हजए हसयार।
बररस ऄठारह छत्री जीए, अगे जीिन को हधक्कार॥
6.आहतहास की ऄपेक्षा काव्यत्ि पर बल – अददकाल के ऄंतगजत बहुत सी ऐसी रचनाएाँ हैं
हजनकी घटनाएाँ आहतहास से मेल नहीं खातीं। काव्य के स्तर पर ईनका ऄिश्य ही महत्ि है।
ईदाहरण स्िरूप यह कहा जा सकता है दक, पृथ्िीराज रासो में चालुक्य, चौहान तथा परमार
क्षहत्रयों को ऄहििंशी माना गया है जबदक ये सूयि ज ंशी ठहरते हैं। संयोहगता स्ियंिर सहहत कइ
घटनाएाँ आहतहास से मेल नहीं खातीं। परं तु काव्य के दृहिकोण से देखें तो आनके महत्ि को नकारा
नहीं जा सकता। आनकी ऐहतहाहसकता आसहलए भी हिशेष ऄथज नहीं रखती दक अश्रयदाता
कहियों ने ऄपने राजाओं के बारे में ऄहतशयोहि पूणज ‘काव्यों’ की रचना की है; न दक आहतहास।
8.हिहिध रसों का समािेश – आस काल की काव्यकृ हतयों में हिहिध रसों का समािेश ददखाइ
देता है। रासो काव्यों में तो िीर, शांत, शृंगार, भहि, करुणा अदद सभी रसों का पररपाक
हमलता है। पृथ्िीराज रासो में शृंगार रस के संदभज में नारी सौंदयज का िणजन द्रिव्य –
मनहुं कला सहसभान कला सोलह सो बहन्नय।
बाल बैस सहस ता समीप ऄमररत रस हपहन्नय॥
आसी प्रकार जगहनक के अल्ह खंड की िीर रस से युि ईहियााँ द्रिव्य हैं –
ऄररर गोला छू टन लागे, सर सर तीर रहे सन्नाय।
गोला लागै जेहह हाथी के , मानो चोर सेंध ह्िे जाय।।
गोला लागै जौन उाँट के , सो हगरर परै चकिा खाय।
खट खट खट खट तेगा बोलै, बोलै छपक छपक तलिार।।
चलै जुनधबी औ गुजराती, उना छलैं हिलायत क्यार।
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तेगा चमकै बदजिान कै , करट करट हगरे सुधरिा ज्िान॥
10.हिहिध छंदों का समािेश – अददकालीन साहहत्य में हिहिध छंदों जैसे –कहिि, दोहा,
रास, चतुष्पदी, ढाल, तोमर, पद्िरी, तोटक, नाराच, रोला, हद्वपदी, सोरठा, चौपाइ, छप्पय
अदद का प्रचुर मात्रा में प्रयोग हुअ है। छंद के हिषय में आस काल में ऄत्यहधक हिहिधता ददखाइ
देती है। अगे भहिकाल में ऄत्यंत लोकहप्रय बने ‘दोहा’ छंद के हहदी में ईदय को अददकाल में
स्पितः देखा जा सकता है।
बोध प्रश्न
पृथ्िीराज रासो और परमाल रासो में दकन राजाओं के प्रशंसा की गइ है?
धार्ममक कमजकांड का हिरोध अददकाल में दकसने दकया?
2.3 पाठ-सार
हहदी साहहत्य के आहतहास को मुख्य रूप से चार कालों में बााँटा गया है। आनमें से पहले
काल को अददकाल कहा जाता है। हहदी साहहत्य का अददकाल ऄप्रभंश के बाद लोक भाषा
हहदी के ईदय के बाद माना जा सकता है। आस अधार पर जैन कहि शाहलभद्र सूरर हहदी के
पहले साहहत्यकार ठहरते हैं। ईनकी 1184इ .में रहचत भरतेश्वर बाहुबली रास को हहदी का
पहला काव्य माना जाता है। अगे चलकर 1200इ .के अस-पास कहि चंदबरदाइ ने हहदी के
प्रथम महाकाव्य पृथ्िीराज रासो की रचना की। अददकाल की पृष्ठभूहम बहुत ऄहधक
पररितजनशील थी। धार्ममक, राजनैहतक, सामाहजक, अर्मथक और सांस्कृ हतक दृहि से ऄनेक
प्रकार के प्रभाि जनता की चेतना पर पड़ रहे थे। आसहलए आस काल में कोइ एक प्रिृहि प्रमुख
बनकर नहीं ईभर सकी। आस काल को कहिता में एक ओर तो धार्ममक कमजकांड का हिरोध तथा
तार्कककता पर ज़ोर ददखाइ देता है। दूसरी तरि आसमें िीर राजाओं की स्तुहत, युद्धों का िणजन
और नाहयकाओं के सौंदयज का हनरूपण भी हमलता है।
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नहीं है।
3. अददकाल के कइ नाम हमलते हैं। हिहभन्न हिद्वान अलोचकों ने ऄपने-ऄपने दृहिकोण से
ऄलग-ऄलग नामकरण दकया है। आनमें अददकाल ही ऄहधक सटीक प्रतीत होता है।
4. अददकाल की पररहस्थहतयों पर हिचार करें तो िह राजनीहतक रूप से लड़ाइ-हभड़ाइ का
समय था। बराबर हिदेशी अक्रमण हो रहे थे।
5. अम जनता राजाओं और धमजगुरुओं दोनों से हनराश तथा ददग्भ्रहमत थे। जाहतभेद और िगज
भेद के कारण समाज में उाँच-नीच तथा छु अछू त जैसे भेदभाि प्रचहलत थे। सिणों के िचजस्ि
के कारण हनम्निगज शोषण का हशकार था।
6. हस्त्रयों की दशा बहुत दयनीय थी। ईन्हें भोग्य िस्तु माना जाता था। हनम्न िगज और हस्त्रयों को
हशक्षा से िंहचत रखा जाता था। आससे भाग्यिाद और ऄंधहिश्वास का बोलबाला था।
7. समाज मुख्यतः कृ हष प्रधान था। दकसान ऄन्न पैदा करते थे। राजा ि सामंतों को देते थे
हजससे ईनका पेट पलता था। समाज ईत्पादक तथा ईपभोिा में बाँटा हुअ था।
8. भारत में मुसलमानों के अने से अरं भ में मुहस्लम संस्कृ हत और हहदू संस्कृ हत का टकराि
हुअ। लेदकन धीरे-धीरे आनका हमहश्रत रूप भी ईभर रहा था।
9. भाषािैज्ञाहनक दृहि से हहदी साहहत्य का अरं भ हहदी भाषा के अरं भ (1000 इ. के
असपास( बाद ही मानना संगत प्रतीत होता है।
10. हहदी के प्रथम कहि शाहलभद्र सूरर के 1184इ .में रहचत कृ हत ‘भरतेश्वर बाहुबली रास’
हहदी की प्रथम ईपलधध रचना हसद्ध होती है।
11. अददकाल की सामान्य हिशेषताओं में धार्ममक कमजकांड का हिरोध, तार्कककता पर बल,
अश्रयदाताओं की प्रशंसा, युद्ध िणजन, आहतहास की ऄपेक्षा काव्यत्ि पर बल, हिषयानुकूल
भाषा, हिहिध रसों का समािेश तथा हिहिध छंदों का प्रयोग शाहमल हैं।
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5. संक्रमण = एक हस्थहत से दूसरी हस्थहत में जाने की दशा, बदलाि की
ऄिस्था
6. संयोगात्मकता =भाषा की एक प्रिृहि हजसके ऄंतगजत मूल शधद और
हिभहि हचह्न परस्पर जुड़े होते हैं। संस्कृ त ऐसी ही भाषा है।
7. समहन्ित संस्कृ हत =हमली जुली संस्कृ हत ,हमहश्रत संस्कृ हत
1. हहदी साहहत्य के ‘अरं भ’ तथा ‘प्रथम कहि’ के बारे में हिहभन्न मतों का हििेचन कीहजए।
2. अददकालीन हिहभन्न पररहस्थहतयों पर प्रकाश डाहलए।
3. अददकाल की सामान्य हिशेषताओं पर प्रकाश डाहलए।
खंड (ब(
खंड (स(
2. ‘धार्ममक साहहत्य होने मात्र से कोइ रचना साहहहत्यक कोरट से ऄलग नहीं की जा सकती।’
यह कथन दकस अलोचक का है? ( (
(ऄ(नामिर हसह (अ(हजारीप्रसाद हद्विेदी (आ(रामकु मार िमाज (इ(रामचंद्र शुक्ल
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3. हहदी जैन साहहत्य की राम परं परा का पहला काव्य दकसे माना जाता है? ( (
(ऄ(भरतेश्वर बाहुबली रास (अ(पृथ्िीराज रासो (आ(खुमाण रासो (इ(दोहा कोश
4. हहदी के अदद महाकहि कौन हैं? ( (
(ऄ(शाहलभद्र सूरर (अ(चंदबरदाइ (आ(दलपहत हिजय (इ(सरहपा
III सुमल
े कीहजए
i) गंगा जमुनी (ऄ(िीरगाथा काल
iii) अलिार (अ(पदािली
iv) अददकाल (आ(तहजीब
v) हिद्यापहत (इ(नायन्मार
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आकाइ 3 : अददकालीन काव्यधाराएाँ – हसद्ध, जैन और नाथ साहहत्य
आकाइ की रूपरे खा
3.0 प्रस्तािना
3.1 ईद्देश्य
3.2 मूल पाठ :अददकालीन काव्यधाराएाँ –हसद्ध, जैन और नाथ साहहत्य
3.2.1 हसद्ध साहहत्य
3.2.2 जैन साहहत्य
3.2.2.1 ऄपभ्रंश जैन कहि
3.2.2.2 हहदी जैन कहि
3.2.3 नाथ साहहत्य
3.3 पाठ-सार
3.4 पाठ की ईपलहधधयााँ
3.5 शधद संपदा
3.6 परीक्षाथज प्रश्न
3.7 पठनीय पुस्तकें
3.0 प्रस्तािना
अददकाल के ईपलधध साहहत्य का ऄनुशीलन करने से यह तथ्य सामने अता है दक आस
काल में कोइ एक प्रिृहि या धारा प्रमुख नहीं रही। “अददकालीन साहहत्य में िैहिध्य भरपूर है –
हिषयों का, काव्य रूपों का, काव्यभाषा के अधार रूपों का। पर समरसता की प्रदक्रया ईिरोिर
सूक्ष्म स्तरों में पाइ गइ है –हिचारों, बोहलयों और बाहनयों से अरं भ होकर िह रचनात्मक
पररकल्पना तक ईतरी है।“ (डॉ.रामस्िरूप चतुिेदी(। आस हिहिधता के कारणों को ईस काल
की जनता की हचििृहि और कहियों की मानहसकता में खोजा जा सकता है। देश ईस समय
राजनैहतक दृहि से ऄराजक, धार्ममक दृहि से ददग्भ्रहमत, अर्मथक दृहि से ऄिरुद्ध, सामाहजक दृहि
से तनाििस्त और सांस्कृ हतक दृहि से संक्रमण के दौर से गुजर रहा था। आसहलए जनता में
ईदासीनता, धमजभीरुता और ऄहस्मता की खाहतर लड़ मरने की परस्पर हिरोधी प्रिृहियााँ ईभर
रही थीं। आसके पररणामस्िरूप ईस समय के साहहत्य में भी भोग, त्याग और संघषज की परस्पर
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हिरोधी प्रिृहियााँ पनपीं। आन्हें हसद्धों, जैनों और नाथों के साहहत्य में साि तौर पर देखा जा
सकता है।
3.1 ईद्देश्य
हप्रय छात्रो !आस आकाइ में अप हहदी साहहत्य के अददकाल की तीन प्रमुख काव्यधाराओं
–हसद्ध साहहत्य, जैन साहहत्य और नाथ साहहत्य –के बारे में पढ़ेंगे। आस आकाइ के ऄध्ययन के
ईपरांत अप -
हसद्ध साहहत्य की हिशेषताओं को समझ सकें गे।
प्रमुख हसद्ध साहहत्यकारों के बारे में जान सकें गे।
जैन साहहत्य की प्रमुख रचनाओं के बारे में जान सकें गे।
जैन साहहत्य की देन के बारे में जान सकें गे।
नाथ साहहत्यकारों और ईनकी रचनाओं के बारे में जान सकें गे।
ध्यान देने की बात यह है दक हहदी भाषीक्षेत्र के पूिी भाग में बौद्ध धमज के ‘िज्रयान’ का
ज़ोरों से प्रचार हुअ। आन िज्रयाहनयों को ‘हसद्ध’ भी कहा गया। आनमें से ऄहधकतर हसद्धों की
रचनाएाँ ऄपने मूल रूप में ईपलधध नहीं हैं बहल्क हतधबती भाषा में ईपलधध ऄनुिादों के राहुल
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सांकृत्यायन द्वारा तैयार दकए गए हहदी ऄनुिादों से ही संतोष करना पड़ता है। िास्ति में हसद्ध
साहहत्य को हहदी के अददकाल की ऄपेक्षा ऄपभ्रंश साहहत्य के ऄंतगजत ही हगना जाना चाहहए।
यहााँ आनका ईल्लेख के िल हहदी साहहत्य के आहतहास की परं परा का हनिाजह करने के हलए ही
अददकाल की एक प्रिृहि के रूप में दकया जा रहा है। चौरासी हसद्धों में सरहपा, शबरपा,
लुइपा, डोंहभपा, कण्हपा और कु क्कु ररपा का हिशेष महत्ि है। याद रखें दक हसद्ध के नाम के साथ
जुड़ा हुअ ‘पा’ अदर का सूचक है। यह ‘पाद’ का लघु रूप है हजसका ऄथज है दक आनके चरण
पूजनीय माने गए हैं।
हसद्ध साहहत्य ऄपनी अध्याहत्मक साधना के ईपदेशों के ऄलािा सामाहजक चेतना के
कारण हिशेष महत्ि रखता है। अपको पता होगा दक बौद्ध धमज ने िणज व्यिस्था और जाहतभेद
का हिरोध दकया था। बौद्ध मत के ऄनुयायी होने के कारण हसद्धों ने भी जाहतप्रथा का हिरोध
दकया। आनमें समाज के प्रत्येक िगज तथा िणज के लोग शाहमल थे। डॉ.बच्चन हसह का कथन है दक
‘आन हसद्धों में सभी जाहत के लोग थे। ब्राह्मण भी थे, क्षहत्रय भी थे, िैश्य भी थे और शूद्र भी।’
ध्यान रखा जाना चाहहए दक ये जन्मतः ब्राह्मण, क्षहत्रय, िैश्य तथा शूद्र भले ही रहे हों, परं तु
हसद्ध बनने के बाद िे मात्र हसद्ध ही थे। आस प्रकार हसद्ध संप्रदाय जाहत-पााँहत के खंडन का जीता-
जागता प्रमाण था।
हसद्धों के बारे में दूसरी जानने योग्य बात यह है दक आस संप्रदाय पर तंत्र का बड़ा प्रभाि
था। तांहत्रक साधना के हलए लोग ‘भैरिी’ या ‘योहगक’ के रूप में साधना में भागीदार बनते थे।
आसके और अगे चलकर यह मत भोगिादी बनकर हिकृ त भी हो गया। आसकी प्रहतदक्रया के रूप
में नाथ पंथ का ईदय हुअ।
अगे प्रमुख हसद्ध साहहत्यकारों पर चचाज की जा रही है।
बोध प्रश्न
हसद्ध दकसे कहा जाता है?
हसद्धों में कौन-कौन प्रमुख हैं?
1. सरहपा : चौरासी हसद्धों की परं परा में सिजप्रथम ईल्लेखनीय है –सरह। ईन्हें सरहपा,
सरहप्पा, सरहपाद, सरोरूहपाद, सरोज िज्र और राहुल िज्र जैसे कइ नामों से जाना जाता है।
आनका समय हनहश्चत नहीं है। दिर भी कु छ प्रमाणों के अधार पर राहुल सांकृत्यायन ने आनका
जन्म 769इ .में माना है। ये जाहत से ब्राह्मण थे परं तु छु अछू त, उाँच-नीच, जाहतभेद अदद के
हखलाि थे। आन्होंने जाहतभेद की दीिार को तोड़ते हुए एक शर (तीर( बनाने िाली कन्या को
ऄपनी योहगनी बनाया। आसीहलए आन्हें ‘सरहपा’ (शर हस्त पाद( कहा जाने लगा। आनके द्वारा
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रहचत 32 िंथ बताए जाते हैं हजसमें ‘दोहाकोश’ हिशेष रूप से प्रहसद्ध है। आनके साहहत्य की
प्रमुख हिशेषताएाँ हैं –पाखंड और अडंबर का हिरोध, गुरु सेिा का समथजन, सहज भोग मागज से
महासुख की प्राहप्त का िणजन, भािों का सहज प्रिाह। आनकी रचनाएाँ मूल रूप में प्राप्त नहीं हैं।
ईनका हतधबती ऄनुिाद खोजकर राहुल सांकृत्यायन ने ऄपभ्रंश हमहश्रत हहदी में काव्य-ऄनुिाद
प्रस्तुत दकया है। जैसे –
जहााँ मन पिन न संचरआ, रहि सहस नाह पिेस।
तहाँ बह हचि हबराम करू, सरहे कहहय ईिेस॥
2. शबरपा : सरहपा के प्रमुख हशष्य शबरपा का जन्मिषज 780इ .माना जाता है। ये क्षहत्रय
थे, लेदकन शबरों के समान जीिन हबताने के कारण आन्हें ‘शबरपा’ कहा जाने लगा। आनकी
रचनाएाँ ‘चयाजपद’ में संकहलत हैं। आनकी रचनाओं की मुख्य हिशेषताएाँ हैं –माया मोह का
हिरोध और सहज मागज से महासुख की प्राहप्त पर बल।
3. लुआपा : शबरपा के प्रमुख हशष्य थे –लुआपा। चौरासी हसद्धों में आनका स्थान सबसे उाँचा
माना जाता है। आनकी साधना से प्रभाहित होकर ईड़ीसा के राजा और मंत्री भी आनके हशष्य बन
गए थे। आनकी कहिता में रहस्य भािना का िणजन ईत्यंत महत्िपूणज है।
4. डोंहबपा : डोंहबपा का जन्म मगध में हुअ। आनका जन्मिषज 840इ .के असपास माना
जाता है। आनके गुरु का नाम हिरूपा था। आन्होंने 21िंथों की रचना की थी। आनमें
डोंहबगीहतका, योगाचायज और ऄक्षरहद्वकोपदेश के नाम प्रमुख हैं। अध्याहत्मकता और रहस्य
भािना आनके साहहत्य की प्रमुख हिशेषताएाँ हैं।
5. कमररपा : ये ईड़ीसा के राजिंशी थे। आन्होंने ईड़ीसा में िज्रघण्टा के साथ हमलकर बौद्ध
धमज का प्रचार-प्रसार दकया था। तंत्रों पर ये हिशेष रूप से हिश्वास रखते थे।
6. कण्हपा :कण्हपा का जन्म 820इ .में कनाजटक में हुअ था। आनके बारे में डॉ.रामकु मार
िमाज ने बताया है दक ‘कनाजटक में जन्म लेने के कारण आन्हें ‘कणजपा’ भी कहा गया है। यों ऄपने
श्याम िणज के कारण आन्हें कृ ष्णपा या कण्हपा नाम ददया गया। ये बहुत बड़े हिद्वान थे, साथ ही
हसद्धों में सिजश्रेष्ठ कहि भी थे।’ ये सोमपुरी (हबहार( में रहते थे। जालंधरपा आनके गुरु थे।
‘चौरासी हसद्धों में ऄनेक हसद्ध आनके हशष्य थे। आनकी कहिता की मुख्य हिशेषताएाँ हैं -
दाशजहनकता, रहस्य भािना, गीतात्मकता, शास्त्रीय रूदढ़यों का खंडन। आनकी भाषा सरल सहज
है। आन्होंने 74िंथों की रचना की। कण्हपा की एक प्रहसद्ध ईहि का भाि यह है दक “पंहडत लोग
अगम, िेद और पुराण के व्यथज ही चक्कर लगाया करते हैं, यह िैसा ही है जैसे दक पक्के श्रीिल की
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पररक्रमा करता हुए भाँिरे का ऄज्ञान। ऄथाजत न तो भाँिरा श्रीिल के रस को जानता है, और न
पंहडत अत्मतत्ि को जानता है। “
7. कु क्कु ररपा : कु क्कु ररपा का जन्म कहपलिस्तु में हुअ था। आनका जन्मकाल ऄज्ञात है। ये
चपजरीपा नामक हसद्ध के हशष्य थे। आन्होंने भी ऄन्य हसद्धों की भााँहत सहज जीिन का समथजन
ऄपनी रचनाओं में दकया तथा 16िंथों की रचना की।
हप्रय छात्रो !आन प्रमुख हसद्ध साहहत्यकारों पर आस चचाज से अप यह समझ गए होंगे दक,
हसद्ध साहहत्य जनभाषा में रहचत काव्य है हजसमें संभितः हहदी के प्रारं हभक रूप के संकेत रहे
होंगे। यह काव्य हसद्ध मत के प्रचार की दृहि से रहचत है। दिर भी दाशजहनक और अध्याहत्मक
प्रतीकों तथा रहस्यभािना के कारण आसमें कहित्ि का समािेश हुअ है। आस काव्य में धार्ममक-
सामाहजक रूदढ़यों पर प्रहार करने िाली ऄक्खड़ काव्यभाषा का गठन दकया और योग साधना
जैसे गोपनीय हिषयों पर लोकचचाज का माहौल बनाया। यह काव्य प्रिृहि हभक्खु िृहि के स्थान
पर सहज जीिन का समथजन करती है।
हसद्ध साहहत्य का महत्ि यह है दक –
1. हसद्ध साहहत्य ने जो प्रिृहियााँ अरं भ कीं, ईनका हिस्तार अगे भहिकाल में हुअ।
2. आस साहहत्य ने रूदढ़िाद का खंडन हजस ऄक्खड़पन के साथ दकया, ईसने कबीर जैसे
संतों की बाहनयों को प्रभाहित दकया।
3. भहिकाल की सामाहजक चेतना के बीज आस साहहत्य में ईपलधध हैं।
4. कृ ष्ण काव्य पर भी हसद्ध साहहत्य के प्रिृहिमागज का प्रभाि देखा जा सकता है।
बोध प्रश्न
सरहपा के साहहत्य की क्या हिशेषताएाँ हैं?
हसद्ध साहहत्य का क्या महत्ि है?
1. स्ियंभू देि : स्ियंभू देि को ऄपभ्रंश के िाल्मीदक माना जाता है। आनका िंथ ‘पईम
चररई’ राम कथा पर अधाररत है। आसीहलए ईसे ‘जैन रामायण’ भी कहा जाता है। ये 783 इ .
के असपास हिद्यमान थे। आनकी प्रमुख कृ हतयााँ हैं –‘पईम चररई’,‘रे रट्ठनेहम चररई’ और ‘स्ियंभू
छंद’। आनमें ‘पईम चररई’ (पद्म चररत्र( हिशेष ईल्लेखीय है। यह राम के जीिन की कथा पर
अधाररत ऄपूणज महाकाव्य है। जैन धमज के ऄनुरूप कहि ने राम की िाहल्मकीय कथा में कइ नइ
काल्पहनक घटनाएाँ जोड़ी है। आसमें 12 हजार श्लोक और 5 कांड हैं। कहि ने ऄंत में यह दशाजया
है दक राम मुनींद के आस ईपदेश के साथ हनिाजण प्राप्त करते हैं दक राग से दूर रहकर ही मोक्ष
प्राप्त दकया जा सकता है।
2. देिसेन :देिसेन को जैन अचायज के रूप में प्रहसहद्ध प्राप्त है। िे दसिीं शताधदी में हुए।
ईन्होंने 933 इ .में रहचत ऄपनी रचना ‘श्रािकाचार’ में जैन गृहस्थों के अचरण के हनयमों का
प्रहतपादन दकया, हजन्हें श्रािक कहा जाता है। श्रािकाचार में कु ल 250 दोहे हैं। कहि ने कहा है
दक –
जो हजण सासण भाषयई, सो मआ कहहयई सारू।
ओ पालआ सआ भाई करर, सो सरर पािआ पारू॥
ऄथाजत, मैं भगिान महािीर की िाणी का सार प्रस्तुत कर रहा हाँ। जो कोइ हनष्ठापूिजक आसका
पालन करे गा, िह भिसागर के पार ईतर जाएगा।
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3. पुष्पदंत :जैन साहहत्य परं परा में दसिीं शताधदी के ऄपभ्रंश भाषा के कहि पुष्पदंत का
नाम भी बहुत अदर से हलया जाता है। ये पहले शैि थे, परं तु बाद में जैन हो गए। आनकी प्रमुख
कृ हतयााँ हैं –महापुराण, णय कु मार चररई, जसहर चररई। ये तीनों ही काव्य जैन धमज और ‘हजन
भहि’ पर कें दद्रत हैं। आनमें भी ‘महापुराण’ हिशेष ईल्लेखनीय है। आसमें 63 महापुरुषों के चररत्र
का िणजन है। आन महापुरुषों में राम भी शाहमल है। धमज प्रधान रचना होने पर भी आसमें सरस
काव्यात्मकता और भािप्रिणता पाइ जाती है। आसकी भाषा ऄपभ्रंश से हहदी की ओर बढ़ती हुइ
पररितजनशील भाषा है।
1. शाहलभद्र सूरर : शाहलभद्र सूरर को सही ऄथज में ‘हहदी का पहला कहि’ माना जा सकता
है। आनकी रचना ‘भरतेश्वर बाहुबली रास’ है हजसका रचना काल 1184 इ .है। ‘भरतेश्वर
बाहुबली रास’ की कथा पुष्पदंत के महापुराण में 16-18 संहधयों तक िर्मणत एक आहतिृि पर
अधाररत है। आसमें बताया गया है दक प्रथम जैन तीथांकर भगिान ऊषभदेि के पुत्र चक्रिती
सम्राट बनकर कइ राजाओं को जीत लेते हैं। शासन की महत्िाकांक्षा आतनी बढ़ जाती है दक िे
ऄपने ही भाइ बाहुबली पर अक्रमण कर देते हैं। बाहुबली भी भरतेश्वर से पूरी शहि से युद्ध
करते हैं। भरतेश्वर दैिीय शहि से युि हिशेष चक्र की सहायता से बाहुबली को जीतने का
प्रयास करते हैं। परं तु िह ददव्यचक्र ऄपने ही पररिार के लोगों पर िार नहीं करता। आधर
बाहुबली हिजय प्राहप्त के हनकट होते हैं परं तु ईनके मन में िैराग्य ईत्पन्न हो जाता है। दोनों भाइ
युद्ध में हुइ हहसा अदद से ग्लाहनयुि हो जाते हैं। बाहुबली घोर तप करते हैं और भरतेश्वर
बाहुबली के चरणों में हगरकर क्षमा याचना करते हैं। आस प्रकार कथा िीर रस से अरं भ होते हुए
भी ऄंततः शांत रस में पररणत हो जाती है।
आस काल में ओज गुण के कु छ बेहद मार्ममक प्रसंग हमलते हैं। जैसे –
कहहरे भरहेसर कु ण कहीआ।
मआ हसईं रहण सुरर न रहीआ।
चक्र धरआ चक्रिती हिचार।
तई ऄह्या पुरर कुं भार ऄपार।
जब भरतेश्वर का दूत बार-बार भरतेश्वर के चक्रिती राजा होने पर डींग हााँकता है और
बाहुबली को अत्मसमपजण करने के हलए प्रेररत करता है तब ईपयुजि ईहि के द्वारा ही ईपेक्षा से
बाहुबली ईिर देते हैं दक ‘भरतेश्वर के हिषय में क्या बताते हो, मेरे सामने तो युद्ध में सुर-ऄसुर
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भी नहीं ठहरते। यदद ईस चक्रिती को चक्र-धारण का ही ऄहधक घमंड है तो जाकर ईनसे कहो
दक हमारे यहााँ एक नहीं, कइ चक्र-धारी (कु म्हार( हैं।’ यहााँ व्यंग्य और ईपहास ईड़ाया जा रहा
है। आस रचना के हिषय में डॉ.गणपहतचंद्र गुप्त हलखते हैं,‘पात्रों के संिाद, िस्तु-िणजन,
ऄहभव्यंजना-शैली एिं छंद-योजना की दृहि से भी रचना रोचक, अकषजक एिं िैहिध्यपूणज है।
दूत और बाहुबली के संिादों में नाटकीयता के साथ-साथ व्यंजना का िैभि भी हिद्यमान है।
हिहभन्न प्रकार के ऄलंकारों –ऄनुप्रास, यमक, ईपमा, रूपक, ईत्प्रेक्षा, ऄहतशयोहि अदद का
हनरूपण अकषजक रूप में हुअ है। सोरठा, चौपाइ, त्रोटक, धिल अदद छंदों का आसमें प्रयोग हुअ
है।’ जहााँ तक भाषा का प्रश्न है तो यह राजस्थानी का िह रूप है जब गुजराती आससे पृथक नहीं
हुइ थी।
2. असगु कहि : कहि असगु तेरहिी शताधदी के ईिराधज में हिद्यमान थे। आनकी रचनाओं
में ‘चंदनबाला रास’ एिं ‘जीिदया रास’ हिशेष ईल्लेखनीय हैं। चंदनबाला रास का रचनाकाल
1200 इ .है। यह पैंतीस छंदों का एक लघु खंडकाव्य है। आसमें नाहयका चंदनबाला की
चाररहत्रक पहित्रता का हचत्रण है। चंदनबाला ऄत्यंत कि सहती है। ऄंततः ईसे स्ियं महािीर
भोजन कराते हैं। आस रचना में कहि का दृहिकोण मूलतः धार्ममक है। आसमें नारी सौंदयज, नाहयका
की चेिाओं, शृंगार, करुणा, ईत्साह अदद की ऄहभव्यहि व्यंजनापूणज सरस्ता से की है।
असगु कहि की दूसरी रचना ‘जीिदया रास’ है। आसमें जैन धमज के ईपदेशों को पद्य-बद्ध
दकया गया है। आसका साहहहत्यक दृहि से कोइ हिशेष महत्ि नहीं है। यत्र-तत्र रूपकों का सुंदर
प्रयोग ऄिश्य हुअ है।
3. हिजयसेन सूरर :अददकालीन जैन कहि हिजयसेन सूरर का जन्मिषज 1231 इ .के
असपास माना गया है। आनकी रचना ‘रे िंतहगरर रास’ प्रहसद्ध है। आसमें तीथांकर नेहमनाथ की
प्रहतमा तथा रे िंतहगरर तीथज का िणजन दकया गया है। भािपूणज प्रकृ हत हचत्रण आस काव्य की
हिशेषता है। जैसे –
कोयल कलयलो मोर के कारओ
सम्मए महुयए महुर गुंजारिो॥
49
पयाजप्त भािपूणज है। आसी प्रकार सुमहतगहण की रचना नेमीनाथ रास (1213 इ.(के 58 छंदों में
जैन तीथांकर नेमीनाथ के चररत्र का सरस शैली में िणजन दकया गया है।
आन जैन रास काव्यों के ऄहतररि एक परं परा जैन िागु काव्यों की भी हमलती है।
अददकालीन जैन िागु काव्यों के ऄंतगजत हजनचंद सूरर िागु (रचनाकार ऄज्ञात( हसररभूलीभद्र
िागु (रचनाकार हजणपद्मसूरर( श्री नेमीनाथ िागु (रचनाकार राजेश्वर सूरर( तथा िसंत
हिलास िागु (रचनाकार ऄज्ञात सहम्महलत( हैं। आनमें लोक परं परा से प्राप्त शैली में िागु गीतों
के माध्यम से तीथांकरों के चररत का िणजन और धमज प्रचार दकया गया है। प्रसंगिश नाहयकाओं
के रूप सौंदयज, यौिन और प्रेमोन्माद का भी आन काव्यों में सुंदर हचत्रण हुअ है।
(2( जैन साहहत्य में िीर, शृंगार और करुण रसों का समािेश है। लेदकन मुख्य रस शांत ही है।
बोध प्रश्न
भरतेश्वर बाहुबली रास में दकस की कथा है?
चंदनबाला रास के रचनाकार कौन हैं?
जैन साहहत्य में दकन रसों का समािेश है?
नाथ संप्रदाय को कइ ऄन्य नामों से भी जाना जाता है। जैसे –हसद्धमत, हसद्धमागज,
योगमागज, ऄिधूत मत। नाथों की संख्या 9 मानी गइ है। आन्हें ही ‘निनाथ’ कहा जाता है। आनके
नाम हैं – अददनाथ, मत्स्येंद्रनाथ, गोरखनाथ, गाहहणीनाथ, चपजटनाथ, चौरं गीनाथ,
ज्िालेंद्रनाथ, भतृजनाथ और गोपीचंद नाथ।
50
1. अददनाथ : अददनाथ आस संप्रदाय के प्रथम अचायज माने जाते हैं। आन्हें ही ‘हशि’ माना
गया है। ये नाथों के नाथ भी कहे जाते हैं।
2. मत्स्येंद्रनाथ : मत्स्येंद्रनाथ गोरखनाथ के गुरु माने जाते हैं। आन्हें मीननाथ तथा
मछंदरनाथ भी कहा जाता है। माना जाता है दक आन्होंने योग की हशक्षा हशि से प्राप्त की थी। ये
योग के ज्ञाता थे परं तु रूप-सौंदयज पर मुग्ध होकर एक स्त्री के प्रेम पाश में बंध गए थे। आस प्रेम
पाश से मुि कराने का प्रयास आनके हशष्य गोरखनाथ ने दकया था। आस घटना के बारे में यह
ईहि प्रचहलत है –‘जाग मछन्दर गोरख अया।’
मत्स्येंद्रनाथ ने तंत्र हिद्या संबंधी कइ िंथ रचे। जैसे –कौलज्ञान हनणजय, कु ल िीर तंत्र।
कु लानंद, ज्ञानकाररका। आनकी देन के बारे में डॉ.गणपहतचंद्र गुप्त का कथन है,‘मत्स्येंद्रनाथ ने नए
पंथ का प्रितजन भले ही न दकया हो, ककतु (हसद्धों की( सहज साधना के स्थान पर तंत्र एिं योग
को प्रहतहष्ठत करने का कायज ऄिश्य अरं भ कर ददया था, हजसे ईनके हशष्य गोरखनाथ ने पूरा
दकया।’
3. गोरखनाथ : गोरखनाथ का एक नाम गोरक्षपा भी हमलता है। प्रारं भ में ये हसद्ध संप्रदाय
से जुड़े थे। बाद में ऄपना स्ितंत्र संप्रदाय ‘नाथ संप्रदाय’ के नाम से चलाया। आनके जन्मकाल के
संबंध में हििाद की हस्थहत है। निीन खोजों में आनका समय इसा की तेरहिीं शती माना गया है।
गोरखनाथ ने हठयोग का ईपदेश ददया था। यहााँ ‘ह’ का ऄथज सूयज तथा ‘ठ’ का ऄथज चंद्र है। आन
दोनों का योग ‘हठयोग’ कहलाता है। ‘हठयोग’ दाशजहनकता की दृहि से शैिमत के ऄंतगजत है
जबदक व्यािहाररकता की दृहि से पतंजहल के योग से संबंहधत। डॉ.हजारी प्रसाद हद्विेदी ने आन्हें
ऄपने युग का सबसे बड़ा नेता कहा है। गोरखनाथ के जन्म तथा ईनके कायों की प्रशंसा करते हुए
हजारीप्रसाद हद्विेदी ने कहा है दक ‘हिक्रम संित की दसिीं शताधदी में भारतिषज के महान गुरु
गोरक्षनाथ का अहिभाजि हुअ। शंकराचायज के बाद आतना प्रभािशाली और आतना महहमाहन्ित
महापुरुष भारतिषज में दूसरा नहीं हुअ। भारतिषज के कोने-कोने में ईनके ऄनुयायी अज भी पाए
जाते हैं। भहि-अंदोलन के पूिज सबसे शहिशाली धार्ममक अंदोलन गोरखनाथ का योग मागज ही
था। भारतिषज की ऐसी कोइ भाषा नहीं है हजसमें गोरक्षनाथ संबंधी कहाहनयााँ न पाइ जाती हों।
आन कहाहनयों में परस्पर ऐहतहाहसक हिरोध बहुत ऄहधक है परं तु दिर भी आनसे एक बात
ऄत्यंत स्पि हो जाती है –गोरक्षनाथ ऄपने युग के सबसे बड़े नेता थे।’ डॉ.पीतांबरदि बड़थ्िाल
ने ईनकी 14 रचनाओं को प्रामाहणक माना है – सबदी, पद, प्राण संकली,हशष्यादशजन, नरिै
बोध, ऄभयमात्र जोग,अत्म-बोध, पंद्रह हतहथ, सप्तिार, मछींद्र-गोरख बोध, रोमािली, ग्यान
हतलक, ग्यान चौंतीसा एिं पंचमात्रा। डॉ .बड़थ्िाल ने ईनकी रचनाओं को ‘गोरखबानी’ नाम से
संकहलत दकया है।
51
गोरखनाथ ने ऄपने हसद्धांतों की मीमांसा जनभाषा में ‘सबददयों’ और ‘पदों’ में प्रस्तुत की
है। गुरु की महहमा बताते हुए िे कहते हैं –
गुर कीजै गहहला हनगुरा न रहहला, गुर हबन ग्यान न पायला रे भाइला।
दूधै धोया कोआला ईजला न होआला, कागा कं ठे पहुप माल हंसला न भआला॥
आं दद्रय हनिह पर बल देते हुए कहा गया है –
भोहगया सूते ऄजहाँ न जागे। भोग नहीं रे रोग ऄभागे॥
भोहगया कहै भल भोग हमारा। मनसआ नारर दकया तन छारा॥
सहजता पर बल देते हुए गोरखनाथ हलखते हैं–
सहज गोरखनाथ िहणज कराइ।
पञ्च बलद नौ गाइ॥
सहज सुभािै बाषर लाइ।
मोरे मन ईड़यांनी अइ॥
52
आनके नाम से भी कइ सारी कथाएाँ और ककिदंहतयााँ प्रचहलत हैं।
बोध प्रश्न
गोरखनाथ ने गुरु महहमा के बारे में क्या कहा है?
हठयोग दकसे कहा जाता है?
3.3 पाठ-सार
हसद्ध साहहत्य के ऄंतगजत 84 हसद्धों की रचनाएाँ सहम्महलत हैं। आनकी भाषा मुख्यतः
ऄपभ्रंश है, हजसमें हहदी के बहुत कम लक्षण हमलते हैं। आन्हें संक्रमण काल की हहदी कहिता का
ईदाहरण माना जा सकता है। हसद्ध साहहत्य में अध्याहत्मक हशक्षा के ऄलािा कमजकांड के
हिरोध के स्िर भी सुनाइ पड़ते हैं। प्रमुख हसद्ध साहहत्यकार हैं –सरहपा, शबरपा,कमररपा,
लुआपा, डोंहबपा, कण्हपा, कु क्कु ररपा अदद।
जैन साहहत्य के ऄंतगजत जैन मुहनयों द्वारा रहचत रासो और िागु काव्य शाहमल है।
अरं हभक जैन साहहत्य ऄपभ्रंश में रहचत है। स्ियंभू, देिसेन और पुष्पदंत आस िगज के प्रमुख कहि
हैं। हहदी के प्रथम कहि के रूप में शाहलभद्र सूरर का नाम स्िीकृ हत प्राप्त कर चुका है। आन्होंने
1184 इ. में ‘भरतेश्वर बाहुबली रास’ की रचना की, जो हहदी की पहली काव्यकृ हत मानी
जाती है। अददकालीन हहदी जैन कहियों में शाहलभद्र सूरर के बाद हिजयसेन सूरर, हजनभद्र
सूरर, सुमहतगहण, हजन चंद सूरर अदद के नाम ईल्लेखनीय हैं।
अददकालीन हहदी साहहत्य के आहतहास में नाथ साहहत्य का योगदान भी बहुत महत्िपूणज
है। कु ल नौ नाथों में सबसे प्रमुख हैं –गुरु गोरखनाथ। गोरखनाथ ने शंकराचायज के समान
तत्कालीन समाज को जागरण का संदश े ददया।
53
है।
5. ऄपभ्रंश के प्रभाि से मुि होने की कोहशश की गिाही देने िाली पहली रचना ‘भरतेश्वर
बाहुबली रास’ हैं। 1184 इ .में शाहलभद्र सूरर द्वारा रहचत यह छोटी सी रचना मूलतः जैन
साहहत्य के तहत अती है।
6. नाथ साहहत्य में सबसे ऄहधक महत्ि गुरु गोरखनाथ का है। आन्होंने हठयोग का ईपदेश ददया
और आन्हें ऄपने युग का सबसे बड़ा सामाहजक-धार्ममक नेता माना जाता है।
7. हसद्ध साहहत्य, जैन साहहत्य और नाथ साहहत्य का प्रभाि अगे हहदी साहहत्य के भहिकाल
और रीहतकाल की प्रिृहियों पर भी पड़ा।
खंड (ऄ(
हनम्नहलहखत प्रश्नों के ईिर लगभग 500 शधदों में दीहजए।
1. हसद्ध संप्रदाय पर चचाज कीहजए।
2. प्रमुख जैन हहदी कहियों का पररचय दीहजए।
3. गुरु गोरखनाथ के देन पर प्रकाश डाहलए।
4. नाथ संप्रदाय के कहियों का पररचय दीहजए।
खंड (ब(
हनम्नहलहखत प्रश्नों के ईिर लगभग 200 शधदों में दीहजए।
1. हसद्ध सरहपा ि ईनकी कहिताओं के हिषय में संक्षेप में बताआए।
2. ‘भरतेश्वर बाहुबली रास’ का पररचय दीहजए।
3. नाथ संप्रदाय पर ऄपने हिचार प्रकट कीहजए।
54
खंड (स(
II सुमल
े कीहजए
i) शाहलभद्र सूरर (ऄ(ऄक्षरहद्वकोपदेश
55
3. हहदी साहहत्य :ईद्भि और हिकास, हजारीप्रसाद हद्विेदी
4. हहदी साहहत्य का अलोचनात्मक आहतहास, रामकु मार िमाज
5. हहदी साहहत्य का िैज्ञाहनक आहतहास (प्रथम खंड( गणपहतचंद्र गुप्त
6. हहदी साहहत्य का आहतहास, सं .राम सजन पांडय
े
56
आकाइ 4 : प्रमुख रासो काव्य
आकाइ की रूपरे खा
4.0 प्रस्तािना
4.1 ईद्देश्य
4.2 मूल पाठ :प्रमुख रासो काव्य
4.2.1 रासो काव्य :एक पररचय
4.2.2 रासो साहहत्य
4.2.3 रासो साहहत्य की प्रासंहगकता
4.2.4 रासो साहहत्य की भाषा
4.3 पाठ-सार
4.4 पाठ की ईपलहधधयााँ
4.5 शधद संपदा
4.6 परीक्षाथज प्रश्न
4.7 पठनीय पुस्तकें
4.0 प्रस्तािना
हहदी साहहत्य का ईदय एक ऐसे बदलािों से भरे काल में हुअ, जब भारत के समाज और
राजनीहत में भारी ईथल-पुथल मची हुइ थी। साधारण जनता कइ ऄलग-ऄलग मान्यताओं िाले
धार्ममक संप्रदायों के एक साथ ईभार के कारण बड़ी हद तक भ्रहमत सी थी। आसीहलए हिशेष रूप
से नाथ संप्रदाय से जुड़े योहगयों ने ऄपने साहहत्य द्वारा मनुष्य को चररत्र की दुबजलताओं पर
हिजय प्राप्त करने की प्रेरणा दी।
बौद्ध और जैन मत के हसद्धांतों से प्रभाहित हसद्धों और जैन कहियों ने भी क्रमशः जाहत-
पााँहत के भेदभाि और मानिीय दुबजलताओं से बचने का ईपदेश ददया। आस धार्ममक िातािरण के
समानांतर ईस काल का राजनैहतक िातािरण बेहद ऄहस्थर था। देशी राजागण या तो भोग-
हिलास में डू बे रहते थे, या परस्पर ऄहंकार की टकराहट के कारण ऄनािश्यक युद्धों में हलप्त
रहते थे। यही िह समय था, जब भारत पर हिदेशी शहियों के हमले शुरू हुए। हमलािार
हिदेशी राजाओं ने भारत के ऄलग-ऄलग हहस्सों में भारी लूटपाट मचाइ। ईनके भारतीय देशी
राजाओं से घनघोर युद्ध हुए। आन पररहस्थहतयों में ईन राजाओं के अहश्रत कहियों ने िीरतापूणज
57
महाकाव्यों की रचना की। आन िीर-काव्यों को ‘रासो’ कहा जाता है। आन्हीं िंथों के अधार पर
अचायज रामचंद्र शुक्ल ने आस काल को ‘िीरगाथाकाल’ नाम ददया था।
4.1 ईद्देश्य
आस आकाइ में हम अददकाल की प्रमुख काव्यधारा ‘रासो साहहत्य’ पर हिचार करें ग।े आस
आकाइ को पढ़ने के बाद अप -
रासो शधद के क्रहमक हिकास के हिषय में जान सकें गे।
रासो साहहत्य की जानकारी प्राप्त कर सकें गे।
रासो साहहत्य की प्रासंहगकता पर हिचार कर सकें गे।
रासो साहहत्य की भाषा के हिषय में जान सकें गे।
स्मरणीय है दक जन सामान्य में ‘रास’ शधद का प्रयोग सारस नाच-गान के ऄथज में दकया
जाता है। कृ ष्ण और गोहपयों के सामूहहक नृत्य को ‘रास लीला’ तथा कृ ष्णलीला के लोकगीतों को
‘रहसया’ कहा जाता है। ऄतः शास्त्र और लोक दोनों में रास ‘सारस साहहत्य’ का िाचक है। यह
अिश्यक नहीं दक िह के िल िीरगाथा ही हो।
‘रासो’ के ऄथज में पररितजन और हिकास धीरे -धीरे हुअ है। डॉ.गणपहतचंद्र गुप्त हलखते
58
हैं,‘जन-साधारण के द्वारा नृत्य-गान के साथ ‘रासक पदों’ – अगे चलकर रासक काव्यों –के
प्रयोग की परं परा सातिीं से लेकर चौदहिीं-पंद्रहिीं शती तक बराबर रही है। प्रारं भ में आसका
स्तर ऄत्यंत हनम्न था, ककतु अगे चलकर आसके स्तर का ईत्थान क्रमशः होता रहा। लगभग 12
िीं शती में कदाहचत आनकी लोकहप्रयता को देखकर जैन कहियों का ध्यान भी आनकी ओर गया
और ईन्होंने आन्हीं को ऄपने तीथांकरों के चररत-गान एिं धार्ममक ईपदेशों का माध्यम बनाया।’
ध्यान ददया जाए तो रासो काव्य परं परा के दो प्रकार साि तौर पर ददखाइ देते हैं- (1( धार्ममक
रासो काव्य तथा (2( ऐहतहाहसक रासो काव्य। ‘धार्ममक रासो काव्य’ मुख्यतः जैन साहहत्य का
ऄंग है।
बोध प्रश्न
‘रासो’ काव्य का सामान्य ऄथज क्या है?
‘ऐहतहाहसक रासो काव्य’ से क्या ऄहभप्राय है?
हप्रय छात्रो !जैसा दक अपको पहले बताया जा चुका है, धमज, राजनीहत, समाज अदद का
प्रभाि साहहत्य पर ऄहनिायज रूप से पड़ता है। रासो साहहत्य के लेखन के समय ही राजनीहतक,
59
सामाहजक और धार्ममक पररहस्थहतयााँ जरटल थीं। “हजस समय से हमारे हहदी साहहत्य का
ऄभ्युदय होता है, िह लड़ाइ-हभड़ाइ का समय था, िीरता के गौरि का समय था।“ ( अचायज
रामचंद्र शुक्ल( आसका प्रभाि यह पड़ा दक काव्य से यश और ऄथज की प्राहप्त की आच्छा रखने िाले
कहि राजाओं के अश्रय में रहकर िीर रस और शृंगार रस से पररपूणज काव्यों की रचना करने
लगे। आन राजकहियों ने ऄपने अश्रयदाता राजाओं की िीरता का खूब बखान दकया।
प्रायः ये बखान ऄहतशयोहिपूणज प्रतीत होते हैं। काव्य में यह स्िाभाहिक है क्योंदक आससे
ओज गुण तथा ईदाि तत्ि का समािेश होता है। िीरों की गाथाएाँ होने के कारण ये रचनाएाँ
‘िीरगाथाएाँ’ कहलाती हैं। अचायज रामचंद्र शुक्ल ने माना है दक हहदी साहहत्य में िीरगाथाएाँ दो
रूपों में हमलती हैं –प्रबंध काव्य के साहहहत्यक रूप में और िीर गीतों के रूप में। साहहहत्यक
प्रबंध के रूप में जो प्राचीन िंथ ईपलधध है, िह है ‘पृथ्िीराज रासो।’ िीर गीत के रूप में हमें
सबसे पुरानी पुस्तक ‘बीसलदेि रासो’ हमलती है, यद्यहप ईसमें समयानुसार भाषा के पररितजन
का अभास हमलता है। िस्तुतः ‘पृथ्िीराज रासो’ और ‘बीसलदेि रासो’ – ये ही रासो काव्य
अददकाल की सीमा में रहचत होने के कारण आस काल के प्रामाहणक रासो साहहत्य के रूप में
स्िीकार दकए जाने चाहहए। अचायज रामचंद्र शुक्ल के बाद ऄन्य आहतहासकारों और शोधकताजओं
के ऄध्ययन से पता चलता है दक शुक्ल जी द्वारा हगनिा गए ‘हम्मीर रासो’ का तो ऄहस्तत्ि ही
नहीं है। आसी प्रकार,‘खुमाण रासो’ और ‘परमाल रासो’ अददकाल के बाद की रचनाएाँ हसद्ध हुइ
हैं। जानकारी के हलए यहााँ आन सभी पर हिचार दकया जा रहा है।
बोध प्रश्न
िीरगाथा दकसे कहा जाता है और हहदी में दकतनी प्रकार की िीरगाथाएाँ हैं?
60
बोध प्रश्न
‘हम्मीर रासो’ क्यों प्रामाहणक नहीं है?
यह िंथ पााँच हजार छंदों में रहचत है। आसमें युद्धों के िणजन के साथ नाहयका भेद,
षड् ऊतु िणजन अदद का हचत्रण है। आसका मुख्य हिषय राजाओं की प्रशंसा करना है। आसमें िीर
के साथ-साथ शृंगार रस भी है। भाषा राजस्थानी है तथा दोहा, सिैया, कहिि अदद छंद हैं।
ईदाहरण द्रिव्य है –
हपई हचिौड़ न अहिउ, सािण पहहली तीज।
जोिै बाट हबरहहणी हखण-हखण ऄणिै खीज॥
संदस
े ो हपण साहहबा, पाछो दिररय न देह।
पंछी घाल्या हपजरे , छू टण रो संदह
े ॥
बोध प्रश्न
‘खुमाण रासो’ को नौिीं शताधदी की रचना क्यों माना जाता है?
3. बीसलदेि रासो ( नरपहत नाल्ह(
आसके रचनाकार नरपहत नाल्ह हैं। ऄंतःसाक्ष्य के अधार पर आसका रचनाकाल संित
1272 ऄथाजत सन 1215 इ .माना जाता है। आसमें ऄजमेर ि सााँभर के राजा बीसलदेि तथा
रानी राजमती के प्रेम, हििाह तथा हििाहोिर जीिन का िणजन है। हििाह के बाद एक ददन
राजा बीसलदेि ऄपनी रानी राजमती से गिजपूिजक कहते हैं,‘हमारे यहााँ नमक की खान
है,आसहलए मेरे समान और कोइ नरे श नहीं।’ बस क्या था, रानी ने भी पलटकर कह ददया दक
61
‘अपसे बढ़कर भी नरे श हैं, हजनके यहााँ हीरों की खान हैं; जैसे –ईड़ीसापहत।’ रानी के आस
कथन से राजा बीसलदेि क्रुद्ध हो गए। स्िाहभमान को ठे स लगने से ईन्हें ऄपमान महसूस हुअ।
िे ऄपना राज्य छोड़कर ईड़ीसा चले गए। 12 िषज बाद रानी के ऄनुनय-हिनय के संदश े के बाद
िे लौट कर अए। आस काव्य में स्िाहभमान के साथ-साथ नारी सौंदयज, हिरह अदद का भी
मार्ममक िणजन है। ध्यान रखा जाना चाहहए, यह रासो प्रचहलत ऄथज में िीरगाथा नहीं है। यहााँ
कहि का ईद्देश्य न तो आहतहास को बताना है और न ही दकसी राजा की प्रशंसा करना। यहााँ
ईद्देश्य स्िाहभमान के साथ नारी चररत्र का िणजन करना है। स्ियं कहि कहता है –
बागिाणी मो िर ददयो
ऄस्त्री रसायण करूाँ बखाण। ××
हंस बाहहण हमगलोचहन नारर,
सीस समारआ ददन हगणआ,
हजण ददहाडाई झूररतां॥
ऄथाजत, हे सरस्िती !मुझे िर दीहजए दक मैं ‘स्त्री रसायण’ का िणजन करूाँ। ××हंसगमनी
मृगलोचनी नारी हसर को सुलझाती हुइ ददन हगनती है। हाय !दकसी को परदेशिासी की पत्नी न
बनाए। ईसके सारे ददन हिलाप करते ही व्यतीत होते हैं।
आस काव्य को ‘संदश
े -काव्य’ की परं परा में भी पररगहणत दकया जाता है। दकसी भी दृहि
से यह ‘िीरगाथा’ नहीं, बहल्क ‘हिरहगाथा’ है। नारी जाहत के प्रहत कहि की गहरी सहानुभूहत
आस काव्य की हिशेषता है। हिरहहणी का कथन है दक ‘हे इश्वर! तुमने मुझे नारी जन्म क्यों
ददया? आसकी ऄपेक्षा यदद दकसी बनखंड की कोयल बना ददया होता, तो ऄपनी आच्छा से मैं
दकसी चंपा की डाल पर तो बैठ सकती थी!’ नरपहत नाल्ह द्वारा रहचत आस काव्य में मार्ममक
ऄनुभूहतयों की स्िाभाहिक ऄहभव्यहि द्रिव्य है। आसकी भाषा तेरहिीं शती की राजस्थानी
भाषा है।
बोध प्रश्न
‘बीसलदेि रासो’ को ‘संदश
े -काव्य’ की परं परा में क्यों पररगहणत दकया जाता है?
4. परमाल रासो या अल्हा खंड ( जगहनक(
जगहनक द्वारा रहचत ‘परमाल रासो’ या ‘अल्हा खंड’( अल्हा( एक लोक गेय काव्य है।
आसमें महोबा (ईिर प्रदेश( के राजा परमर्कददेि (परमाल( तथा ईनके यहााँ रहने िाले दो िीर
भाआयों अल्हा और उदल के िीरतापूणज युद्धों का िणजन है। अल्हा ईिर भारत में बहुत ही
प्रहसद्ध है और िषाज काल में गाइ जाती है। आसका शधद संयोजन और छंद प्रिाह ऄत्यंत ओजपूणज
62
है। गाते समय अिाज में उाँचाइ अ जाती है, हजससे श्रोता के तन-मन में स्िू र्मत सी छा जाती है।
एक ईदाहरण देखें –
बारह बररस लै कू कर जीिै, औ तेरह लै हजये हसयार।
बररस ऄठारह छत्री जीिै, अगे जीिन को हधक्कार॥
चाल्सज आहलयट ने सन 1865 इ .में आसे ‘अल्हाखंड’ नाम से प्रकाहशत कराया तो था,
परं तु यह मौहखक परं परा पर ही अधाररत है। चाल्सज िाली प्रहत के अधार पर ही डॉ.श्यामसुंदर
दास ने पाठ का हनधाजरण कर आसे ‘परमाल रासो’ के नाम से नागरी प्रचाररणी सभा, काशी से
प्रकाहशत करिाया। आसका रचनाकाल 13िीं शती का अरं भ माना जाता है, परं तु आसका मूल
रूप सुरहक्षत न होने के कारण आसे प्रामाहणक नहीं कहा जा सकता। जो प्रहतयााँ ईपलधध हैं, िे
कािी बाद की हैं। ऄतः आसे अददकाल की समय सीमा के बाद की रचना मानना पड़ेगा।
आसहलए ‘परमाल रासो’ के हिषय में डॉ.रामगोपाल शमाज ‘ददनेश’ ने यह हनष्कषज ददया है दक
‘भाषा की दृहि से आस काव्य का मूल्यांकन कर पाना संभि नहीं, क्योंदक मूल रूप का कोइ भी
ऄंश ऄब शुद्ध रूप में सुरहक्षत नहीं है। ×××छंद-हिधान की दृहि से आस काव्य की एक हिशेष
शैली है, हजसे ‘अल्हा-शैली’ कहना ही ईहचत होगा।’
बोध प्रश्न
‘अल्हाखंड’ दकसे कहते हैं?
5. पृथ्िीराज रासो ( चंद बरदाइ(
पृथ्िीराज रासो हहदी साहहत्य का ‘अदद महाकाव्य’ है। यह एक महत्िपूणज रचना होने
के साथ-साथ ऄत्यहधक हििादास्पद भी है। पृथ्िीराज रासो के रचहयता चंद बरदाइ माने जाते
हैं, जो पृथ्िीराज चौहान के सखा, मंत्री तथा राजकहि थे। अचायज रामचंद्र शुक्ल ने चंद बरदाइ
के हिषय में हलखा है दक,‘ये हहदी के प्रथम महाकहि माने जाते हैं और आनका ‘पृथ्िीराज रासो’
हहदी का प्रथम महाकाव्य है। चंद ददल्ली के ऄंहतम हहदू सम्राट महाराज पृथ्िीराज के सामंत
63
और प्रहसद्ध राजकहि हैं। ××आनके पूिजजों की भूहम पंजाब थी, जहााँ लाहौर में आनका जन्म हुअ
था। आनका और महाराज पृथ्िीराज का जन्म एक ही ददन हुअ था और दोनों ने एक ही ददन यह
संसार भी छोड़ा था। ये महाराज के राजकहि ही नहीं, ईनके सखा और सामंत भी थे तथा
षड्भाषा, व्याकरण, काव्य, साहहत्य, छंदशास्त्र, ज्योहतष, पुराण, नाटक अदद ऄनेक हिद्याओं में
पारं गत थे।’
पृथ्िीराज रासो के चार संस्करण हमलते हैं –बृहत, मध्यम, लघु और लघुतम। बृहत
संस्करण में 16 हजार छंद हैं और कु ल 69 समय (सगज(। यह काव्य आहतहास और लोक प्रहसद्ध
गाथाओं का ऄनोखा हमश्रण है। ईदाहरण के हलए, आसमें एक सगज प्रहसद्ध लोक चररत्र पद्मािती
पर कें दद्रत है हजसमें आहतहास-नायक पृथ्िीराज चौहान और अक्रमणकारी मुहम्मद गोरी के युद्ध
का िणजन तो है ही, पद्मािती के शृंगार का िणजन भी है। ईदाहरण देखें –
(1(शृग
ं ार िणजन
मनहुाँ कला ससभान, कला सोलह सो बहन्नय।
बाल बैस, सहस ता समीप, ऄहम्रत रस हपहन्नय॥
हिगहस कमल, हिग, भ्रमर, बेन,ु खंजन, मृग लुरिय।
हीर, कीर ऄरु हबब मोहत, नखहसख ऄहह घुरिय॥
(2(युद्ध िणजन
बहज्जय घोर हनसााँन रान चौहान चहौं ददस।
सकल सूर सामंत समरर बल जंत्र मंत्र हतस॥
ईरट्ठ राज हप्रहथराज बाग मनो लग्ग िीर नट।
कढ़त तेग मनिेग लगत मनो बीजु झि घर॥
षुरासान सुलतान खंधार मीरं । बलष स्यो बलं तेग ऄच्चूक तीरं ॥
रुहंगी दिरं गी हलधबी सुमानी। ठटी ठि बल्लोच ढालं हनसानी॥
बोध प्रश्न
‘पृथ्िीराज रासो’ काव्य में दकस प्रकार का हमश्रण पाया जाता है?
‘पृथ्िीराज रासो’ में यह स्पि रूप से ददखाइ देता है दक पृथ्िीराज का पतन ईनकी
ऄपनी ही तीन महत्िपूणज गलहतयों के कारण होता है –एक कै मास जैसे साथी को छोटी सी
बात पर मार देना, दूसरे जयचंद जैसे शहिशाली नरे श के राजसूय यज्ञ का हिरोध करना और
तीसरे संयोहगता के साथ हिलास में आस प्रकार लीन हो जाना दक राज-काज की सुध भी भूल
जाना।’ आस काव्य से यह भी ज्ञात होता है दक चंद बरदाइ ने पृथ्िीराज को हिहभन्न ऄिसरों पर
सािधान भी दकया था। ऄहभप्राय यह है दक चंद बरदाइ कोइ स्तुहतिाचक दरबारी नहीं, कलम
और तलिार दोनों के धनी राजकहि थे, जो अिश्यकता पड़ने पर राजा को हझड़क भी सकते थे।
बोध प्रश्न
पृथ्िीराज के पतन का कारण क्या था?
65
काम का है।’ लेदकन कु छ अलोचक ऐसे भी हैं जो आसे प्रामाहणक मानते हैं। कु छ ऐसे भी हैं जो
आसे ऄधज प्रामाहणक मानते हैं।
आस रचना को ‘प्रामाहणक’ मानने िालों में मोहनलाल हिष्णुलाल पंड्या, हमश्र बंध,ु
डॉ.श्यामसुंदर दास, महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री, ऄगरचंद नाहटा, मोहन हसह राि और
डॉ .दरशरथ शमाज प्रमुख हैं।
‘ऄधज प्रामाहणक’ मानने िालों में सुनीहत कु मार चाटु ज्याज और अचायज हजारी प्रसाद
हद्विेदी प्रमुख हैं। हद्विेदी जी मानते हैं दक आसकी रचना शुक-शुकी संिाद के रूप में हुइ थी। हजस
सगज में यह पद्धहत ददखे िह प्रामाहणक है और जहााँ यह पद्धहत न ददखे िहााँ आसे ऄप्रामाहणक
मानना चाहहए। डॉ .गणपहतचंद्र गुप्त बताते हैं,‘डॉ .हद्विेदी के िल ईन्हीं सगों को प्रामाहणक
मानते हैं हजनका अरं भ शुक-शुकी संिाद से हुअ है। आसी अधार पर ईन्होंने ऄपने संपाददत
‘संहक्षप्त पृथ्िीराज रासो’ में आन सात सगों को स्थान ददया है- (1( अरं हभक सगज, (2( आं हछनी का
हििाह, (3( शहशव्रता का हििाह, (4( तोमर पाहार का शहाबुद्दीन को पकड़ना, (5( संयोहगता
का हििाह, (6( कै मास िध और (7( गौरी िध।
बोध प्रश्न
‘पृथ्िीराज रासो’की प्रामाहणकता के संबंध में हजारी प्रसाद हद्विेदी क्या कहते हैं?
66
(7( पृथ्िीराज की बहन पृथा का हििाह मेिाड़ के राणा समरहसह के साथ बताया गया है जो
ऐहतहाहसक नहीं है।
(8( मोहम्मद शहाबुद्दीन गोरी की मृत्यु पृथ्िीराज चौहान के हाथों ददखाइ गइ है, जो आहतहास
से मेल नहीं खाती।
(9( सोमेश्वर का िध पृथ्िीराज के हाथों ददखाया गया, यह भी आहतहास सम्मत नहीं है।
(10( आसमें अइ हुइ हतहथयों में लगभग 90-100 िषों का ऄंतर है।
बोध प्रश्न
‘पृथ्िीराज रासो’ की ऄप्रामाहणकता के संबंध में तीन तकज बताआए।
67
थे। ईस समय तक िहााँ मुसलमानों का प्रभाि अ चुका था। मुसलमानों के पास ऄरबी-
िारसी शधदािली थी। ईस शधदािली का प्रयोग चंद बरदाइ द्वारा दकया जाना स्िाभाहिक
है।
बोध प्रश्न
‘पृथ्िीराज रासो’को ऄप्रामाहणक मानना क्यों न्यायोहचत नहीं है?
68
दकया गया है। ‘पृथ्िीराज रासो’ में लगभग ऄड़सठ प्रकार के छंदों का प्रयोग हमलता है।
‘पृथ्िीराज रासो’ में महाकाव्य के लक्षणों के ऄनुरूप निों रसों का पररपाक है। ऄन्य रासो िंथों
में शृंगार, िीर, ऄद्भुत, करुण, रौद्र और शांत रस हिशेष रूप से हमलते हैं।
बोध प्रश्न
‘पृथ्िीराज रासो’ की भाषा कै सी थी?
4.3 पाठ-सार
‘रास’ शधद का तात्पयज सामान्य नाचने-गाने से भी हलया जाता है और हिहशि नाट्यरूप
से भी। प्राकृ त ऄपभ्रंश के हनयमानुसार ‘रासक’ के ‘रासऄ’,‘रासई’,‘रास’ अदद रूप हिकहसत हो
जाते हैं जबदक राजस्थानी में प्रायः संज्ञाएाँ ऄकारात्मक से ओकारात्मक हो जाती हैं, ऄतः ‘रासो’
का प्रयोग होना स्िाभाहिक है। अददकालीन रासो काव्य मुख्यतः दो प्रकार के हैं –धार्ममक रासो
काव्य और ऐहतहाहसक रासो काव्य। धार्ममक रासो काव्य में जैन साहहत्य अता है। ऐहतहाहसक
रासो काव्य में बीसलदेि रासो, परमाल रासो और पृथ्िीराज रासो अदद स्िीकार दकए जाते हैं।
‘पृथ्िीराज रासो’ की प्रामाहणकता तथा ऄप्रामाहणकता पर बराबर हििाद बना रहा है। तथाहप
आसके साहहहत्यक महत्ि को नकारा नहीं जा सकता। यह ‘हहदी का प्रथम महाकाव्य’ है। रासो
साहहत्य से देशभहि, राज भहि, सामंती समाज, अपसी युद्ध, इष्याज, द्वेष अदद की जानकारी
हमलती है। तत्कालीन राजनीहतक, धार्ममक, सामाहजक, सांस्कृ हतक हस्थहत का ज्ञान प्राप्त होता
है। आनमें भाषा तथा शैली की हिहिधता भी द्रिव्य है।
खंड (ब(
हनम्नहलहखत प्रश्नों के ईिर लगभग 200 शधदों में दीहजए।
1. ‘रासो ’शधद पर ऄपने हिचार प्रकट कीहजए।
2. ‘परमाल रासो’ पर चचाज कीहजए।
3. रासो साहहत्य पर ऄपने हिचार प्रकट कीहजए।
4. रासो साहहत्य की भाषा पर रटप्पणी हलहखए।
70
खंड (स(
71
खंड - II : भहिकाल
आकाइ की रूपरे खा
5.0 प्रस्तािना
5.1 ईद्देश्य
5.2 मूल पाठ :भहि अंदोलन :सामाहजक-सांस्कृ हतक पृष्ठभूहम
5.2.1 भहि अंदोलन :सामान्य पररचय
5.2.1.1 ‘भहि’ का ऄथज और हिस्तार
5.2.1.2 भहि साहहत्य की प्रेरणा
5.2.1.3 राजनैहतक पररिेश का प्रभाि
5.2.2 भहि अंदोलन की सामाहजक पृष्ठभूहम
5.2.3 भहि अंदोलन की सांस्कृ हतक पृष्ठभूहम
5.3 पाठ-सार
5.4 पाठ की ईपलहधधयााँ
5.5 शधद संपदा
5.6 परीक्षाथज प्रश्न
5.7 पठनीय पुस्तकें
5.0 प्रस्तािना
हहदी साहहत्य का भहिकाल पयाजप्त हिस्तार िाला काल है। ईसे ऄहखल भारतीय
मध्यकालीन भहि अंदोलन का ऄंग माना जाता है। भहि तथा भहि अंदोलन के ईदय को
लेकर भारतीय एिं पाश्चात्य हिद्वानों में मतभेद रहा है। कु छ हिद्वानों के ऄनुसार भहि अंदोलन
इसाइयत की देन है, तो कु छ के ऄनुसार यह ऄरब संस्कृ हत और आस्लाम के प्रभाि का पररणाम
है। कु छ हिद्वानों ने तात्काहलकता को महत्ि ददया तो कु छ ने आसे भारतीय हचतनधारा का
स्िाभाहिक हिकास माना। आस आकाइ में भहि अंदोलन की सामाहजक और राजनैहतक पृष्ठभूहम
72
पर चचाज की जा रही है, हजससे हहदी साहहत्य के पूिज मध्यकाल का हनमाजण हुअ। िास्ति में
हहदी साहहत्य के मध्यकाल को दो भागों में बांटा जाता है – पूिज मध्यकाल और ईिर मध्यकाल।
आन दोनों को ही क्रमशः भहिकाल और रीहतकाल कहा गया है। पूिज मध्यकाल को भहिकाल
कहने का कारण यह है दक आस युग के साहहत्य में भहि की प्रधानता है। हप्रय छात्रो! ‘भहि’ शधद
के मूल में ‘भज्’ धातु हनहहत है। संस्कृ त में ‘भज्’ धातु के ऄनेक ऄथज हैं। जैसे – भजन, सेिा,
हिभाजन, ऄनुराग, हिश्वास, अराध्यदेि का नाम जपना, स्मरण, ध्यान अदद। अम भाषा में
दकसी व्यहि के ऄपने अराध्य के प्रहत स्नेह को भहि कहा जाता है। आसी प्रकार दकसी पूज्य
व्यहि के प्रहत अदर और समपजण के भाि को भी भहि कहते हैं। लेदकन यहााँ हिशेष रूप में
भहि का ऄथज इश्वर प्रेम है। भारतीय परं परा में ऄपने अराध्य के प्रहत ‘परम प्रेम’ को भहि कहा
गया है। आसके सूत्र ईपहनषदों से लेकर गीता और श्रीमद्भागित तक में हमलते हैं। गीता पर हलखे
रामानुज भाष्य में ‘स्नेहपूिजक परमेश्वर के ध्यान’ को ही भहि का नाम ददया गया है। आसमें
समपजण का भाि हिशेष महत्ि रखता है। अचायज रामचंद्र शुक्ल के ऄनुसार – श्रद्धा और प्रेम के
योग का नाम भहि है। भारतीय आहतहास के आस हिशेष कालखंड की पहचान भारत में आस्लाम
के अगमन और ईसके बाद हहदू और मुहस्लम समाजों के एक दूसरे के प्रहत बदलते भािों के
आहतहास के साथ जुड़ी हुइ है। आसीहलए एक धारणा यह बन गइ है दक आस्लाम के अगमन की
प्रहतदक्रया के रूप में भारत में भहि अंदोलन का ईदय हुअ। लेदकन आसमें के िल अंहशक सच्चाइ
है। क्योंदक भहि की परं परा दकसी न दकसी रूप में भारतीय समाज और संस्कृ हत में कइ शताधदी
पहले से चली अ रही थी। ईसी ने बदली हुइ पररहस्थहतयों के ऄनूरूप आस युग में अंदोलन का
रूप धारण कर हलया।
5.1 ईद्देश्य
73
भारत िषज में भहि अंदोलन का िै लाि हुअ। आसका ऄथज है दक ‘भहि’ को व्यहिगत
अध्याहत्मक साधना से अगे बढ़कर सामाहजक-सांस्कृ हतक ऄहभयान का रूप ददया गया। भहि
का प्रारं भ कै से हुअ, आस प्रश्न का ईिर हिद्वानों ने ऄपनी-ऄपनी तरह से ऄलग-ऄलग ददया है।
जाजज हियसजन ने भहि-भािना को इसाइ धमज का प्रभाि माना ककतु ईनकी आस बात को दकसी ने
स्िीकार नहीं दकया। अचायज रामचंद्र शुक्ल ने भहि के प्रारं भ को तत्कालीन राजनैहतक,
सामाहजक औरसांस्कृ हतक पररहस्थहतयों की देन माना। लेदकन अचायज हजारी प्रसाद हद्विेदी ने
पररहस्थहतयों से ऄहधक महत्ि परं परा को ददया। ऄहधक संतुहलत मतभेद हो सकते हैं दक भहि
अंदोलन के ईदय के हलए पररहस्थहतयों और परं पराओं दोनों का ही महत्ि रहा।
ईल्लेखनीय है दक भहि अंदोलन का अरं भ दहक्षण भारत में अलिार और नायनार संतों
के माध्यम से हुअ। बाद में 800 इ .से 1700 इ .के बीच यह ईिर भारत सहहत समूचे दहक्षण
एहशया में िै ल गया। माना जाता है दक बौद्धमत की प्रहतदक्रया के रूप में शंकराचायज ने आस
अंदोलन को नेतृत्ि प्रदान दकया। संत बसिेश्वर, चैतन्य महाप्रभु, नामदेि, तुकाराम, जय देि,
शंकर देि, गुरु नानक, कबीर, सूर, तुलसी, जायसी, रै दास, मीरााँबाइ अदद के माध्यम से आसने
व्यापक जनजागरण के अंदोलन का रूप हलया और सारे समाज को गहराइ तक प्रभाहित
दकया।
भारत में साधना की तीन पद्धहतयााँ ऄहत प्राचीन काल से चली अ रही हैं –ज्ञान, कमज
और ईपासना। आनमें ईपासना ही ‘भहि’ का मूल है। अचायज परशुराम चतुिेदी के शधदों में
“भहि के हलए यह स्िाभाहिक हो गया दक िह हबखरी हुइ शहियों में सामंजस्य लाकर ऄपनी
दृहि दकसी एक में हनहिि करें । िलस्िरूप बहुदेिों की कल्पना हसमटकर धीरे -धीरे एक में ही
समाहहत होने लगी और कहा जाने लगा दक हिद्वान लोग ईसी (सत्( को आं द्र, हमत्र, िरुण या
ऄहि के नाम से पुकारते हैं, आस एके श्वरिाद की प्रहतष्ठा होने के बाद भहि के रूप में धीरे -धीरे
पररितजन होने लगा। पहले जहााँ प्रकृ हत का दैिीकरण दकया गया िहीं ऄब देिों का मानिीकरण
होने लगा हजसे अगे चलकर ऄितारिाद कहा गया। ”अगे चलकर हिष्णु के दस ऄितारों की
पररकल्पना सामने अइ और भहि पर कें दद्रत आस मत को भागित धमज भी कहा जाने लगा।
लेदकन याद रहखए दक भहि अंदोलन के िल ऄितारिाद तक सीहमत नहीं है, ईसमें हनगुजण और
हनराकार ब्रह्म की साधना भी सहम्महलत है।
बोध प्रश्न
भहि का मूल क्या है?
ऄितारिाद दकसे कहते हैं?
74
5.2.1.1 ‘भहि’ का ऄथज और हिस्तार
अम बोलचाल में ‘भहि’ शधद का प्रचहलत ऄथज है –‘इश्वरीय प्रेम में लीन होना।’ ऄथाजत
भहि अत्मा के परमात्मा से हमलन का माध्यम है। मोहनयर हिहलयम्स के ऄनुसार ‘भहि’ की
व्युत्पहि ‘भज्’ से हुइ है। ‘भज्’ का तात्पयज है –भाग लेना, सहम्महलत होना। ऄथाजत ‘इश्वरीय
ऄनुभूहत में श्रद्धा पूिजक भाग लेना।’ कहा जाता है दक भहि-भािना अयों के दाशजहनक एिं
अध्याहत्मक हिचारों के िलस्िरूप क्रमशः श्रद्धा और ईपासना से हिकहसत होकर भगिान के
ऐश्वयज में भाग लेने के ऄथज तक हिस्तृत है। (हहदी साहहत्य का आहतहास, सं .नगेंद्र, पृ 88.( ।
यह भी ईल्लेखनीय है दक मध्यकाल में जो भहि अंदोलन पूरे भारत में िै ला, ईसकी
दाशजहनक िोत िैददक भहि परं परा रही ,तो ईसे सामाहजक दृहि दहक्षण भारत से प्राप्त हुइ।
“िैददक भहि परं परा के समानांतर दहक्षण भारत में द्रहिड़-संस्कृ हत गर्मभत पृथक परं परा का
सूत्रपात हो चुका था। यह परं परा इसा पूिज कइ शताहधदयों से चली अ रही थी। आसमें
शरणागहत और समपजण की भािना प्रबल रूप में पाइ जाती थी और जो कालांतर में दाहक्षणात्य
अचायों द्वारा ईिर भारत में भी लोकहप्रय बनी।“(अचायज परशुराम चतुिद े ी(।
आस प्रकार स्पि है दक मध्यकालीन भहि अंदोलन के जीिन और साहहत्य दोनों में क्रांहत
की भािना पैदा की। आससे पहले गौतम बुद्ध, महािीर अदद ने धार्ममक क्रांहत तथा समाज सुधार
का काम दकया था। आसी प्रकार दहक्षण के अलिार भिों ने भहिपूणज ईपासना-पद्धहत का प्रचार
दकया। ये िैष्णि धमज के ऄनुयायी थे। दहक्षण का यह िैष्णि मतिाद ही भहि के प्रचार का मूल
प्रेरक है। दहक्षण के रामानुजाचायज ने िैष्णि भहि का प्रचार ईिर भारत में दकया। भहि
अंदोलन की सबसे बड़ी हिशेषता यह है दक आसमें शास्त्राथज से मुि भहि का प्रचार हनहहत है
तथा जाहत-भेद के हलए आसमें कोइ स्थान नहीं है क्योंदक अलिारों में हनम्न िगज के भि भी थे।
स्ियं रामानुज का प्रादुभाजि भी आन्हीं लोगों की परं परा से हुअ है। रामानुजाचायज के हिचारों को
ईिर भारत में रामानंद ने िै लाया। रामानंद ने भी िणाजश्रम धमज का ईपदेश नहीं ददया तथा कइ
हनम्न जाहत के भिों को ऄपना हशष्य बनाया। आनमें कबीरदास प्रमुख हैं। आस प्रकार भहि के
रूप में एक नया अंदोलन स्थाहपत हुअ हजसके प्रचार-प्रसार का माध्यम बना साहहत्य। हिहभन्न
अंदोलनों और संप्रदायों (यथा हनगुजण भहि और सगुण भहि(के बािजूद भहि साहहत्य का
लक्ष्य एक ही था –‘अंतररक प्रेम हनष्ठा के अधार पर जीिन का ईन्नयन और पररष्कार।’ आस
साहहत्य में भहि-भािना को ही सिोिम पुरुषाथज माना गया। भहि को धमज, ऄथज, काम और
मोक्ष से भी बढ़कर परम पुरुषाथज के रूप में ऄपनाया गया। ऄतः भहि अंदोलन लोकरक्षक,
लोकरं जक और सामूहहक चेतना के जागरण का अंदोलन हसद्ध होता है।
75
बोध प्रश्न
भहि अंदोलन की हिशेषता क्या है?
हभन्न भहि अंदोलनों का लक्ष्य क्या था?
76
ने भहिपरक काव्य की रचना की। िे यह मानते हैं दक भहि का मूल िोत दहक्षण भारत था,
हजसे राजनैहतक पररितजन के कारण शून्य पड़ते हुए ईिर भारत की जनता के हृदय क्षेत्र में
िै लाने के हलए पूरा स्थान हमला। लुटी-हपटी जनता की हचििृहि का झुकाि स्िाभाहिक रूप से
इश्वर भहि की ओर हुअ और ईसी के ऄनुरूप साहहत्य के स्िरूप में भी पररितजन हुअ।
(2( दूसरी मान्यता के ऄनुसार भहि अंदोलन हहदी साहहत्य में के िल तात्काहलक प्रहतदक्रया के
रूप में नहीं ईभरा, बहल्क अददकाल के बाद भहि भािना का ईदय कोइ अकहस्मक घटना न
होकर ईस हचतनधारा का सहज हिकास है, जो भारतीय लोकमानस में हपछली कइ शताहधदयों
से प्रिाहहत होती हुइ ऄपने पूणज हिकास के हलए ऄनुकूल भहि की तलाश कर रही थी। जयशंकर
प्रसाद ने आसके हलए दाशजहनक संदभज को रे खांदकत करते हुए कहा है दक “दुखिाद हजस मनन
शैली का िल था, िह बुहद्ध या हििेक के अधार पर तकों के अश्रय में बढ़ती रही। ऄनात्मिाद
की प्रहतदक्रया होनी ही चाहहए। िलतः हपछले काल में भारत के दाशजहनक ऄनात्मिादी ही
भहििादी बने और बुहद्धिाद का हिकास भहि के रूप में हुअ। ”आस अधार पर हसद्धों और
नाथों की परं परा में भहि अंदोलन के सूत्र खोजे जा सकते हैं।
अचायज हजारी प्रसाद हद्विेदी ने आसी प्रकार भहि अंदोलन को भारतीय परं परा का
ऄपना स्ितःस्िू तज हिकास माना है। िे हहदी के भहि साहहत्य के मूल में बौद्ध तत्ििाद को
हनहहत मानते हैं और ज़ोर देकर कहते हैं दक लोक के स्तर पर पहुाँचकर बौद्ध-धमज लोक-धमज बना
और धीरे-धीरे हनगुजण तथा सगुण भहि धाराओं का प्रेरक तत्ि बन गया। िे मानते हैं दक यदद
भारत में आस्लाम न भी अता तो भी भहि साहहत्य का 75 प्रहतशत िैसा ही होता जैसा अज
है। ऄथाजत िे मुहस्लम अक्रमण की तत्कालीन पररहस्थहत को भहि अंदोलन का के िल एक गौण
कारण मानते हैं। साथ ही, ईनकी यह भी मान्यता है दक मध्यकाल में प्राकृ त और ऄपभ्रंश की
शृंगाररकता की प्रहतदक्रया ने भी लोक हचता के साथ जुड़ी हहदी कहिता में भहिपरक रचनाओं
को बढ़ािा ददया। िे भहि अंदोलन के ईदय के संदभज में हिचार करने के क्रम में हियसजन की आस
मान्यता को भी खाररज करते हैं दक भहि अंदोलन हबजली की चमक के समान ऄचानक पैदा
हुअ था। अचायज हजारी प्रसाद हद्विेदी भहि साहहत्य की लंबी परं परा से जोड़कर भहि
अंदोलन के ईदय को देखते हैं। ईनका स्पि मानना है दक भहि अंदोलन ‘हबजली की चमक’
नहीं, बहल्क ईसके हलए ‘मेघखंड’ बहुत पहले से आकट्ठे हो रहे थे।
(3( भहि साहहत्य के ईदय के संबंध में शुक्ल जी के मुहस्लम अक्रमण को प्रधानता देने तथा
हद्विेदी जी के परं परा तत्ि को महिा देने के हसद्धांतों के समन्िय पर अधाररत एक तीसरी
मान्यता भी है। िह यह है दक यदद आस्लाम के प्रचार और प्रहतदक्रया की व्याख्या सहज भाि और
कुं ठाहीन मन से की जाए, तो भहि साहहत्य के ईदय की मूल प्रेरणा के रूप में ईि दोनों ही
हसद्धांतों को स्िीकार दकया जा सकता है। डॉ .रामस्िरूप चतुिेदी के ऄनुसार “भहि काव्य के
हिकास के पीछे बौद्ध धमज का लोकमूलक रूप और प्राकृ तों के शृंगार काव्य की प्रहतदक्रया है तो
77
आस्लाम के सांस्कृ हतक अतंक से बचाि की सजग चेिा भी है। ”
बोध प्रश्न
पूिज मध्यकाल को ‘भहिकाल’ कहना ईहचत क्यों है?
भहि की प्रधानता का क्या कारण है?
‘मध्यकालीन चेतना’ से क्या ऄहभप्राय है?
78
शानदार आमारतें, राजमहल और महस्जदें बनाईं। भारत की दशा दीन-हीन हो चुकी थी। 1414
से 1451 तक सैयद िंशीय स्थानीय शासकों ने ददल्ली पर ऄहधकार रखा। आसके बाद लोदी िंश
के ऄिगान सरदार ने ददल्ली के राज्य पर जबरदस्ती कधजा कर हलया। आस िंश का ऄंहतम
सुल्तान आब्राहहम लोदी हुअ, हजसे मुगलों का सामना करना पड़ा और लोदी िंश का शासन
समाप्त हो गया। आस काल में ईिर भारत के मालिा, ग्िाहलयर, कन्नौज, हबहार, बंगाल और
गुजरात जैसे राज्यों से ददल्ली की कें द्रीय सिा को ऄनेक बार युद्ध करना पड़ा। लोदी िंश के
शासन काल में प्रांतों पर ददल्ली की पकड़ ढीली हो चुकी थी और मालिा अदद अजाद होने लगे
थे। 1526 में आब्राहहम लोदी और सूबेदारों के मध्य गृहयुद्ध की हस्थहत का लाभ ईठाकर पानीपत
के युद्ध में बाबर ने आब्राहहम लोदी को पराहजत कर ददया। बाबर ने ऄिगान सरदार ददलािर
खान का अमंत्रण पाकर यह अक्रमण दकया था।
बाबर के अगमन के साथ ददल्ली में मुगल शासन की स्थापना हुइ। राणा सांगा सहहत
कइ हहदू-मुहस्लम शासकों-सूबेदारों को जीतकर िह शीघ्र ही ईिर भारत का एकछत्र शासक बन
गया। ईसके बाद हुमायूाँ सुलतान बना। ईसकी ऄसामहयक मृत्यु के कारण ईसके पुत्र ऄकबर को
तेरह िषज की ईम्र में ही ददल्ली की सिा हमल गइ। ऄकबर ने ऄनेक चुनौहतयों का सामना करते
हुए ऄपनी शहि, दूरदर्मशता, बुहद्धमिा और दृढ़ता से शासन को सुदढ़ृ बनाया। युद्ध और हििाह
की दुहरी राजनीहत के सहारे ऄनेक प्रांतीय शासकों को पराहजत भी दकया और ऄपने ऄनुकूल
भी बनाया। महाराणा प्रताप जैसे कु छ स्िाहभमानी राजपूतों को छोड़कर ऄहधकतर शासकों ने
मुगल साम्राज्य की सिोपररता को स्िीकार कर हलया और बदले में मान-मयाजदा तथा उाँचे पद
प्राप्त दकए।
ऄकबर के बाद जहााँगीर और ईसके बाद कू टनैहतक चालों से शाहजहााँ गद्दीनशीन हुए।
शाहजहााँ के पुत्र औरं गजेब ने ऄपने भाइ दाराहशकोह के युिराज बनने का खुलकर हिरोध
दकया। हहसा और कू टनीहत के बल पर ऄपने सब प्रहतद्वंहद्वयों को रास्ते से हटाकर और शाहजहााँ
को बंदी बनाकर औरं गजेब ने 1658 में सिा हाहसल कर ली। यही समय भहिकाल की ऄंहतम
सीमा (1650 के असपास) को भी व्यि करता है।
आस प्रकार कहा जा सकता है दक राजनैहतक दृहि से समस्त ईिर भारत आस काल में
हिदेशी अक्रांताओं के द्वारा स्थाहपत सिा के ऄधीन अ चुका था। परं परागत भारतीय
राजनैहतक शहियााँ और संस्थाएाँ ऄंततः मुगल सिा के समक्ष अत्म समपजण कर चुकी थीं। साथ
ही प्रहतशोध, हिरोध और हिद्रोह की हचगाररयााँ भी ठं डी राख़ के भीतर से समय-समय पर
ऄपने ऄहस्तत्ि का संकेत देती रहती थीं। हनश्चय ही, सामान्य जनता आन तमाम युद्धों और
कू टनैहतक चालों में सिाजहधक हाहन ईठाती थी और आन सबसे उब चुकी थी। कहना न होगा दक
आस उब ने सामान्य जनता को भहि अंदोलन से जुड़ने के हलए ऄनुकूल िातािरण प्रदान दकया।
79
बोध प्रश्न
भहिकालीन राजनैहतक पररहस्थहत कै सी थी?
आस काल में हहदू समाज ऄनेक जाहतयों और ईपजाहतयों में बाँट चुका था, हजसके कारण
अपसी सद्भाि में कमी अ गइ थी। दास प्रथा भी प्रचहलत थी। हस्त्रयों का सम्मान नहीं रह गया
था। ऄमीरों और मुहस्लम शासकों के यहााँ ऄपहरण करके लाइ गईं कु लीन हस्त्रयााँ भोग की िस्तु
समझी जाती थीं और दाहसयों के रूप में ईन्हें ईपहार में ददया-हलया जा सकता था। हहदू राजा
भी हिलाहसता में पीछे न थे। िे सैयद मुहस्लम महहलाओं को नतजकी और दासी के रूप में रखते
थे। बहुहििाह, हस्त्रयों के पुनर्मििाह पर प्रहतबंध और सती जैसी प्रथाओं के कारण हस्त्रयों का
जीिन नारकीय हो गया था। हहदुओं में बढ़ते ऄसुरक्षा भाि के कारण आस काल में पदाज प्रथा का
80
भी प्रचलन बढ़ा।
भहिकालीन भारतीय समाज में मुसलमान भी ऄनेक िगों में बाँट चुके थे। ये िगज सिा में
स्थान, मूल हनिास स्थान, सांसाररक पृष्ठभूहम और जाहतगत प्रभाि के अधार पर ईत्पन्न हुए थे।
आन हिपरीत पररहस्थहतयों के बीच भी ऄच्छी बात यह हुइ दक मुहस्लम समाज में अक्रमण की
िृहि स्थान पर सहनशीलता का भाि भी धीरे -धीरे पनपा, हजसका हिकास सूिी साधकों के
माध्यम से हुअ। तलिार से अतंक पैदा करके प्रेम की पिी बााँधना आस काल में आस्लाम प्रचार
की नीहत बन गया। हहदुओं की भााँहत ही मुहस्लम समाज में भी हनम्न िगज और महहलाओं की
हस्थहत शोचनीय थी। हरम प्रथा के कारण मुहस्लम औरतें नारकीय जीिन जी रही थीं।
कु ल हमलाकर यह कहा जा सकता है दक यह समय सामाहजक बदलाि और संघषज का
समय था। अम जनता ददग्भ्रम की हशकार हो रही थी। भौहतक अश्रय के ऄभाि में िह धार्ममक
अश्रय की ओर अशा की दृहि से देख रही थी। आस ऄभाि की पूर्मत के हलए भहि अंदोलन ने
ईसे तेजस्िी नेतृत्ि प्रदान दकया। िलस्िरूप एक प्रकार का सामाहजक पुनजाजगरण ही भहि
अंदोलन के माध्यम से पूरे समाज में अरं भ हो गया।
बोध प्रश्न
भहि अंदोलन की पृष्ठभूहम में कै सा समाज हिद्यमान था?
81
खूब िलने-िू लने का ऄिसर हमला।
हप्रय छात्रो! ऄब तक की चचाज से यह तो अप समझ ही चुके होंगे दक मध्यकालीन भहि
अंदोलन भारतीय आहतहास की ऄहद्वतीय और हिहशि घटना है। आसने पूरे भारतीय जनमानस
को कइ शताहधदयों तक प्रभाहित दकया। आसकी दाशजहनक और सांस्कृ हतक पृष्ठभूहम के रूप में
भारतीय हचताधारा की पूरी परं परा हिद्यमान है। आसे समझने के हलए आहतहास में और पीछे
जाना पड़ेगा। भारत िषज में 8 िीं शताधदी में िेदमत और लोकमत का जमकर समन्िय हुअ।
ईसके कारण सारा का सारा धार्ममक अंदोलन व्यापक समाज और जनता की ओर मुड़ गया।
यही िह दौर था जब मठों और हिहारों में पला-पुसा बौद्धधमज धीरे-धीरे क्षीण हुअ। आसी समय
शंकराचायज ने ज्ञानप्रधान ऄध्यात्म और ईपहनषद की परं परा का पुनः ईत्थान दकया। ब्रह्म के
साक्षात्कार के आस ज्ञानप्रधान मागज के ऄहतररि अलिार भिों द्वारा समपजणप्रधान भहि मागज
का प्रचार दकया गया। दहक्षण के कइ अचायों ने गीता, ईपहनषद और ब्रह्मसूत्र के अधार पर
भहि के हसद्धांत की स्थापना की। 9 िीं शताधदी के ऄंत में पुंडरीकाक्ष, पुलकनाथ, लक्ष्मीनाथ
और यामुनाचायज ने अलिार भिों की िाणी का प्रचार प्रसार दकया।
82
दास्य, सख्य और अत्महनिेदन- में माधुयज भाि को जोड़कर दशधा भहि का प्रचार दकया।
माधुयज भाि की भहि में भि ऄपने अराध्य से कांताभाि से प्रेम करता है। गोहपयों तथा मीरा
का कृ ष्ण के प्रहत प्रेम आसी कोरट का है। आसमें भि और भगिान का संबंध गोपी और कृ ष्ण के
समान होता है। ध्यान रहे दक माधुयज भहि सूिी प्रेम मागज से हभन्न है। सूिी प्रेम मागज में इश्वर
स्त्री और भि पुरुष है, ऄतः कांताभाि न होने से िह माधुयज भहि नहीं है।
आन सबके साथ-साथ भहि अंदोलन की सांस्कृ हतक पृष्ठभूहम के हनमाजण में आस्लाम के
एके श्वरिाद और सूदियों के ‘ऄनलहक’ का भी प्रभाि माना गया है।
बोध प्रश्न
शुद्धाद्वैतिाद को ब्रह्मिाद क्यों कहा जाता है?
ऄद्वैतिाद को मायािाद क्यों कहा जाता है ?
द्वैताद्वैतिाद का क्या ऄथज है ?
5.3 पाठ-सार
हहदी साहहत्य के पूिज मध्यकाल को ‘भहि काल’ के नाम से जाना जाता है। आसका
हिस्तार लगभग 1350 इ .से लगभग 1650 इ .तक ऄथाजत कु ल तीन शताहधदयों तक माना
जाता है। िास्ति में यह समय पूरे भारतिषज में ‘भहि अंदोलन’ के जन्म और प्रचार-प्रसार का
समय था। आसहलए यह कहना ऄहधक ईहचत है दक हहदी का भहि साहहत्य िास्ति में देशव्यापी
भहि अंदोलन का हहस्सा था।
यों तो भारत में िैददक काल से ही इश्वर की अराधना के तीन मागों ज्ञान, कमज और
ईपासना के भीतर भहि का भी समािेश रहा है। लेदकन मध्यकाल में बौद्ध और जैन मतों के
ईभार के बाद शंकराचायज ने ब्रह्म, जीि और माया के संबध
ं का जो हसद्धांत ददया, ईसकी ऄलग-
ऄलग व्याख्याओं ने भहि के ऄलग-ऄलग संप्रदायों को जन्म ददया। आसी क्रम में रामानुजाचायज
ने हिहशिाद्वैत का प्रहतपादन करते हुए दास्य भाि की भहि पर बल ददया। आनके हशष्य
रामानंद ने भहि के आस अंदोलन को दहक्षण भारत से ईिर भारत तक ले जाने का महान कायज
दकया। आनके ऄलािा माध्िाचायज ने माधुयज भाि, हनबाकाजचायज ने द्वैताद्वैत और िल्लभाचायज ने
दशधा भहि का प्रचार दकया।
भहि के आन हिहिध संप्रदायों ने इश्वर को समपजण भाि द्वारा प्राप्त करने की साधना पर
बल ददया तथा सब प्रकार के सामाहजक भेदभाि और उाँच-नीच के हिचार का खंडन दकया।
तत्कालीन समाज के सामने एक बड़ा द्वंद्व आस्लाम के अगमन से ईत्पन्न हो गया था। ऄपने
समतामूलक सामाहजक स्िरूप के कारण आस्लाम ने िणजव्यिस्था और जाहतप्रथा के सताए हुए
83
लोगों को ऄपनी ओर अकर्मषत भी दकया। ईसी समय भहि अंदोलन ने भारतीय समाज की
रूदढ़यों का खंडन दकया तथा इश्वर की प्राहप्त के हलए समपजण और शरणागहत का सरल रास्ता
प्रस्तुत दकया। दहक्षण के संत कइ शताधदी पहले ही यह घोहषत कर चुके थे दक इश्वर के समक्ष
सब बराबर हैं –चाहे िे दकसी भी जाहत या िणज के हों। आस घोषणा ने भी भहि अंदोलन की
मूल प्रेरणा का काम दकया।
कु ल हमलकर चौदहिीं शती से सत्रहिीं शती के बीच के लगातार बदलते सामाहजक और
सांस्कृ हतक पररिेश ने भहि अंदोलन को पनपने और िै लने का ऄिसर प्रदान दकया।
84
5.6 परीक्षाथज प्रश्न
खंड (ऄ(
85
3. ..................ने पुहिमागीय भहि का हिकास दकया।
III सुमल
े कीहजए
i) ऄद्वैतिाद (ऄ( शंकराचायज
v) शुद्धाद्वैतिाद (ई(िल्लभाचायज
86
आकाइ 6 : भहिकाल की सामान्य हिशेषताएाँ
आकाइ की रूपरे खा
6.0 प्रस्तािना
6.1 ईद्देश्य
6.2 मूल पाठ :भहिकाल की सामान्य हिशेषताएाँ
6.2.1 भहिकाल का नामकरण
6.2.2 भहिकाल की प्रिृहियााँ
(1) हनगुजण-भहि धारा
(क( ज्ञानाश्रयी शाखा या संत काव्य की सामान्य हिशेषताएाँ
(ख( प्रेममागी सूिी-काव्य की सामान्य हिशेषताएाँ
(2) सगुण-भहि धारा
(क( कृ ष्णभहि शाखा की सामान्य हिशेषताएाँ
(ख( रामभहि शाखा की सामान्य हिशेषताएाँ
6.3 पाठ-सार
6.4 पाठ की ईपलहधधयााँ
6.5 शधद संपदा
6.6 परीक्षाथज प्रश्न
6.7 पठनीय पुस्तकें
6.0 प्रस्तािना
साहहत्य के आहतहासकारों के हलए साहहत्य के आहतहास का कालहिभाजन हजतना दुष्कर
कायज था शायद ईतना सरल ईनका नामकरण हो गया था। आन आहतहासकारों के सामने पयाजप्त
मात्रा में सामहियााँ थीं तथा हजनके अधार पर आन्होंने काल-नामकरण दकया। आसमें दो राय
नहीं दक अददकाल को छोड़कर मध्यकालीन तथा अधुहनक काल का नामकरण सरल जान पड़ा
होगा। चूाँदक मध्यकाल तक अते-अते जो राजनैहतक, सामाहजक, धार्ममक, सांस्कृ हतक
पररहस्थहतयााँ देखने को हमलती हैं, ईनसे यह ऄनुमान लगाना कािी सरल हो जाता है दक
तत्कालीन जनता की मनोदशा कै सी थी। आसके ऄनुरूप कहियों का रचनाकमज ईसी मनोदशा के
ऄनुसार तानेबाने में बुना जाने लगा। भले ही मागज सबके ऄलग थे, लेदकन लक्ष्य एक था –
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भहि। ऄपने अराध्य को खुश करना, ईसमें तल्लीन हो जाना।
कौन दकतना बड़ा भि था यह ददखाने या साहबत करने की अिश्यकता नहीं थी। ईनके
हलए यह कािी था दक ईन्हें ऄपनी शांहत ि अत्मसंतुहि का माध्यम हमल गया था। दूसरी ओर
ईनकी सामाहजक चेतना ईन्हें समाज की जड़-रूढ़ कु प्रथाओं को ईखाड़ िें कने की प्रेरणा दे रही
थी। आसी खोज के िलस्िरूप सगुण और हनगुजण भहि की दो धाराएाँ बहीं हजन्होंने सामान्य
जनता को ऄपना लक्ष्य प्रदान दकया।
6.1 ईद्देश्य
आस आकाइ के ऄध्ययन के द्वारा अप –
भहिकाल के नामकरण के औहचत्य को जान सकें गे।
भहिकाल की हनगुजण और सगुण भहि काव्यधाराओं के बारे में जान सकें गे।
हनगुजण भहि धारा की शाखाओं - संत काव्य और सूिी काव्य - की सामान्य हिशेषताओं
की जानकारी प्राप्त कर सकें गे।
सगुण भहि धारा की शाखाओं - कृ ष्ण काव्य और राम काव्य - की सामान्य हिशेषताओं
को समझ सकें गे।
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हमश्रबंधुओं द्वारा ददए गए नाम की तुलना में अचायज रामचंद्र शुक्ल ने ऄहधक पररष्कृ त
नामकरण प्रस्तुत दकया। ईन्होंने मध्यकाल को पूिजमध्यकाल (संित 1375-1700( और ईिर
मध्यकाल (संित 1700- 1900( में हिभाहजत दकया। जैसा दक अप जानते हैं, पूिजमध्यकाल को
भहिकाल (संित 1375-1700 हि. ऄथाजत 1318 इ. – 1643 इ.( तथा ईिरमध्यकाल को
रीहतकाल (संित1700- 1900 हि. ऄथाजत 1643 इ. – 1843 इ.( के नाम से सिजमान्यता
हमली।
भहिकाल की चार मुख्य प्रिृहियााँ हैं, हजन्हें भहिधाराओं और शाखाओं के नाम से जाना
जाता है। आसका िगीकरण आस प्रकार दकया जाता है –
बोध प्रश्न
हमश्रबंधुओं ने भहिकाल को क्या कहा?
‘ भहि साहहत्य ’दकसे कहा जाता है?
भहिकाल की प्रमुख प्रिृहियााँ क्या हैं?
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(1) हनगुण
ज -भहि धारा
हनगुजण-भहिधारा के ऄंतगजत दो प्रिृहियााँ या शाखाएाँ हिकहसत हुईं (1( ज्ञानाश्रयी
शाखा तथा (2( प्रेमाश्रयी शाखा। चूाँदक ज्ञानाश्रयी शाखा नामदेि एिं कबीर जैसे संतों द्वारा
प्रिर्मतत थी आसहलए आस ज्ञानाश्रयी शाखा को ‘संत काव्य-परं परा’ के नाम से भी पुकारा जाता
है। स्मरण रहे दक समस्त भहिकाव्य में शरणागहत ऄथिा संपूणज समपजण द्वारा अराधना की
प्राहप्त का मागज बताया गया है। यहााँ आसकी हिशेषताओं का ईल्लेख दकया जा रहा है।
(2(इश्वर के हनगुण
ज रूप में हिश्वास : भारत में इश्वर के दो रूपों में ईपासना की जाती रही है –
हनगुजण ब्रह्म और सगुण ब्रह्म। संतों ने हनगुजण इश्वर की भहि का मागज ऄपनाया। आसके पीछे
आस्लाम का प्रभाि भी देखा जा सकता है। सभी िणों और तमाम जाहतयों के हलए िह हनगुण ज
इश्वर एकमात्र ज्ञानमय है। िह ऄहिगत है। िेद, पुराण तथा स्मृहतयााँ ईस तक नहीं पहुाँच सकते–
हनगुजण राम जपहु रे भाइ, ऄहिगत की गहत लखी न जाइ।
(3( बहुदेििाद तथा ऄितारिाद का हिरोध : संत कहियों ने हहदू-मुहस्लम दोनों जाहतयों में द्वेष
को शांत करने के हलए आस्लाम धमज से प्रेररत एके श्वरिाद का संदश
े सुनाया और बहुदेििाद का
घोर हिरोध दकया –
यह हसर निे न राम कूाँ , नाहीं हगररयो टू ट।
अन देि नहह परहसए, यह तन जाए छू ट॥
(4(जाहत-पााँहत का हिरोध : हहदू धमज में िणज व्यिस्था एिं जाहत-पााँहत के हनयम कड़े थे। ईच्च
कु ल के लोगों के पास से गुजरना तक हनम्न जाहत के लोगों के हलए दंडनीय ऄपराध था। आस
सौतेली व्यिस्था को देख संत कहियों ने एक सािजभौम मानि धमज की स्थापना करनी चाही।
आसका हिशेष कारण यह है दक एक तो ऄहधकांश संत हनम्न जाहत से संबंध रखते थे –कबीर
जुलाहे थे, रै दास चमजकार थे। आसके ऄहतररि भहि अंदोलन भी जाहत-भेद एिं िगज-भेद को
तुच्छ ठहरा रहा था। आसहलए आनके ऄनुसार व्यहि की पहचान ईसके ज्ञान से होना चाहहए –
‘जाहत पााँहत पूछे नहह कोइ, हरर को भजे सो हरे का होइ।’
‘जाहत न पूछो साधु की पूछ लीहजयो ज्ञान।’
90
(5(रूदढ़यों और अडंबरों का हिरोध : संत समाज-सुधारक थे। आस कारण आन्होंने रूदढ़यों,
हमथ्या अडंबरों तथा ऄंधहिश्वासों का डटकर हिरोध दकया। आन्होंने मूर्मतपूजा, छु अछू त, तीथज,
व्रत अदद हिहध-हिधानों, बाह्य अडंबरों और जाहत-पााँहत के भेद -दृढ़ शधदों में खंडन दकया।
ईदाहरणाथज, कबीर ने एक ओर मूर्मतपूजकों पर व्यंग्य दकया –पाहन पूजे हरर हमले, तो मैं पूजूाँ
पहाड़ –तथा दूसरी ओर मुसलमानों को भी िटकार लगाइ –यह तो खून िह बंदगी, कै से खुशी
खुदाय !
(6(रहस्यिाद : हनगुजण संत काव्य के प्रमुख रचनाकार कबीर रहस्यिादी हैं। रहस्यिाद के मूल में
ऄज्ञात शहि की हजज्ञासा काम करती है। आनके काव्य में मुख्यतः ऄलौदकक प्रेम की ऄहभव्यंजना
हुइ हजसे रहस्यिाद की संज्ञा दी गइ है। हजज्ञासु जब ज्ञानी की कोरट पर पहुाँचकर कहि भी होना
चाहता है, तब तो ऄिश्य ही िह रहस्यिाद की ओर झुकता है। हचतन के क्षेत्र का ब्रह्मिाद
कहिता के क्षेत्र में जाकर कल्पना और भािुकता का अधार पाकर आस रहस्यिाद का रूप धारण
करता है। साहहत्य के क्षेत्र में यही रहस्यिाद है। कबीर के शधदों में –
मो को कहााँ ढू ाँढ़े बन्दे मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देिल, ना मैं मसहजद, ना काबे कै लास में॥
(7(भजन एिं नाम-स्मरण की महहमा : संतों ने इश्वर प्राहप्त के हलए प्रेम और नाम-स्मरण को
परम अिश्यक माना है। िेद-शास्त्र आस संबंध में हनरथजक हैं –
पोथी पदढ़ पदढ़ जग मुअ, पंहडत भया न कोइ।
ढाइ अखर प्रेम के , पढ़ै सो पंहडत होआ॥ (कबीर(
(8(लोक-संिह की भािना : आस िगज के सभी कहि पाररिाररक जीिन व्यतीत करने िाले थे।
यही कारण है दक आनकी िाणी में जीिन के हिहभन्न ऄनुभिों की धारा बहती है तथा साधना में
िैयहिकता की ऄपेक्षा सामाहजकता ऄहधक है। आन्होंने समाज को दृहि में रखकर अत्म-शुहद्ध
पर बल ददया है।
(9(नारी के प्रहत दृहिकोण : संत कहियों ने नारी को माया का प्रतीक माना है तो दूसरी ओर
सती और पहतव्रता के अदशज की प्रशंसा भी की है। ईदाहरण के तौर पर –
नारी की झाईं परत, ऄन्धा होत भुजंग।
कहबरा हतनकी कहा गहत, हनत नारी के संग॥ (कबीर(
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संत कहि पाररिाररक जीिन हबताते थे, शायद यही कारण है दक ईन्होंने पहतव्रता नारी
की तारीि भी की है –
पहतव्रता मैली भली, कानी कु हचत कु रूप।
पहतव्रता के रूप पर, िारों कोरट सरूप॥ (कबीर(
(11(भाषा एिं काव्य-शैली : संत काव्य की भाषा जनसामान्य की भाषा है। तत्कालीन पररिेश
के ऄनुरूप संतों की िाणी मुख्यतः जनता के ऄहशहक्षत, ईपेहक्षत और हपछड़े हुए िगों के हलए
थी। संत घुमक्कड़ जीिन हबताते थे, ऄतः ईनकी रचनाओं में ईन हिहभन्न प्रदेशों की बोहलयों के
शधद भी प्रयुि हुए हैं, जहााँ ईन्होंने भ्रमण दकया था। िलतः आनके काव्य में ब्रजभाषा, ऄिधी,
भोजपुरी, पंजाबी तथा राजस्थानी का ऄहधक प्रयोग हमलता है। आस कारण आनकी भाषा को
सधुक्कड़ी भाषा भी कहा जाता है।
संत कहियों ने ऄपने हिचारों की ऄहभव्यहि मुख्यतः ‘साखी’ और ‘सबद’ के माध्यम सेकी
है। साहखयों की रचना दोहा, छंद में हुइ है और सबद से तात्पयज गेय पदों से है। आनके काव्य
में मुख्यतः गेय मुिक शैली का प्रयोग हुअ है। गीहत काव्य के सभी तत्ि –भािात्मकता,
संगीतात्मकता, सूक्ष्मता, िैयहिकता और भाषा की कोमलता, आनकी िाणी में हमलते हैं।
ईपदेशात्मक पदों में गीहत-माधुयज के स्थान पर बौहद्धकता अ गइ है।
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न होगा। बहल्क ये काव्य हहदू और मुहस्लम दोनों के ऄनुयाहययों द्वारा रहचत गंगा-जमुनी
सभ्यता के श्रेष्ठ ईदाहरण हैं। आन्होंने इश्वर प्राहप्त का मुख्य साधन प्रेम को माना। आसहलए
हनगुजणधारा की यह शाखा प्रेममागी शाखा कहलाइ। आसकी मुख्य प्रिृहियााँ हनम्नित हैं –
(i) प्रेमभािना- प्रेमाख्यानकों का मुख्य ईद्देश्य प्रेम का प्रहतपादन करना है। प्रेम के
हियोगपक्ष को आन्होंने ऄत्यहधक महत्ि ददया है। आनके ऄनुसार प्रेम का ऄसली रूप हिरह में ही
हनखरता है, हमलन में नहीं। हिरह ऄिस्था का िणजन करते हुए ईन्होंने बारहमासा के िणजन को
भी बहुत महत्ि ददया है और आस संबंध में भारतीय पद्धहत का ही व्यिहार दकया है। हहदी
प्रेमाख्यानकों ऄथिा सूिी काव्यकृ हतयों की एक बड़ी हिशेषता है –प्रेम को जीिन का सिोपरर
तत्ि मानना। आसीहलए यहााँ प्रेम के प्रहत एक ईच्च दृहि का पररचय हमलता है। यह प्रेम सभी
सामाहजक, नैहतक, धार्ममक, अध्याहत्मक बाधाओं और कुं ठाओं से परे है। सूिी काव्य में ब्रह्म
परम सौंदयजमय है और साधक परम प्रेममय।
(ii) प्रबंधात्मकता- आस परं परा के काव्य प्रबंधात्मक शैली में रहचत हैं, ऄतः ईनमें कथात्मक
तत्िों की प्रमुखता का होना स्िाभाहिक है। आन कहियों ने पौराहणक अख्यानों के रोमांरटक
तत्िों को हिस्तार देते हुए ईनकी अधारभूत भािना एिं धार्ममक मयाजदा को सुरहक्षत रखा है।
काव्यतत्ि की दृहि से आनकी कथािस्तु में स्िाभाहिकता की ऄपेक्षा िैहचत्र्य की ही प्रमुखता है।
ऄपने ईद्देश्य की पूर्मत के हलए यहााँ आन्हें नए-नए दृश्य, पात्र, प्रसंग, िातािरण तथा घटनाओं की
निीन सृहि करनी पड़ी है, िहीं ऄंतकज थाओं का हनयोजन भी दकया है। डॉ.गणपहतचंद्र गुप्त के
शधदों में “िस्तुतः जो कायज अज के सामान्य पाठक के हलए रोमानी ि जासूसी ईपन्यास करते हैं,
िही कायज मध्ययुगीन पाठक के हलए ये अख्यान करते थे –ऄतः आनकी कथािस्तु में ऄसाधारण,
हिहचत्र एिं रोमांचक घटनाओं की ऄहधकता का होना स्िाभाहिक ही है।" (हहदी साहहत्य का
आहतहास, सं .नगेंद्र, पृ. 152(।
(iii) चररत्र-हचत्रण- सूिी प्रेमाख्यानकों की कथाएाँ दकसी न दकसी दंतकथा या लोक प्रचहलत
गाथा पर अधाररत हैं। आनमें मानि पात्रों के साथ ही मानिेतर पात्र भी हमलते हैं। मानि पात्रों
में प्रायः राजकु मार (नायक(, राजकु मारी (नाहयका( एिं ईनसे संबंहधत हिहभन्न व्यहि अते हैं।
मानिेतर पात्रों में नाहयका के संरक्षक के रूप में ऄसुर या राक्षस, नायक के सहयोगी के रूप में
बैताल, हंस, तोता अदद या नायक को सोते हुए ईठा ले जानेिाली ऄप्सराएाँ, पररयााँ अदद अती
हैं। मानिेतर पात्र हस्थहत के ऄनुसार कथानक को अगे बढ़ाने में ऄपना योगदान देते हैं तथा
ईसी के ऄनुरूप आनमें प्रिृहि-हिशेष का हिकास ददखाया गया है, लेदकन आनके पूरे व्यहित्ि का
हनरूपण नहीं हुअ है। मुख्य बल नायक-नाहयका के चररत्र हिकास पर रहता है। आन काव्यों में
प्रेम का कें द्र नारी पात्र है। िह परमात्मा का प्रतीक है। परशुराम चतुिद
े ी के शधदों में- “सूिी
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कहियों ने नारी को यहााँ ऄपनी प्रेम साधना के साध्य रूप में स्िीकार दकया है, हजसके कारण
िह आनके दकसी प्रेमी के लौदकक जीिन की हनरी भोग्य िस्तु मात्र नहीं रह जाती। िह ईन
साधकों की दृहि में स्ियं एक हसहद्ध बनकर अती है और आसी कारण आन प्रेमाख्यानों में ईसे
प्रायः ऄलौदकक गुणों से युि भी बतलाया जाता है। “
(iv) लोक-पक्ष एिं संस्कृ हत समन्िय की भािना - सूदियों ने भारतीय परं परा में हिद्यमान
प्रेम-कहाहनयााँ लेकर ईनका ऄपने प्रयोजन के ऄनुरूप िणजन दकया है। संस्कृ हत समन्िय की
भािना से आन्होंने हहदू धमज के हसद्धांतों, रहन-सहन और अचार-हिचार का सुंदर िणजन दकया
है। आनके प्रेमकाव्यों में लोक जीिन का भी हचत्रण है, जैसे ऄंधहिश्वास, मनौहतयााँ, तंत्र-मंत्र,
जादू-टोना, हिहभन्न लोकोत्सि, तीथज, व्रत, सांस्कृ हतक िातािरण बड़ी सिलता से ऄंदकत दकए
गए हैं हजनसे तत्कालीन जीिन को समझने में सहायता हमलती है।
(v) शैतान ि माया - सूिी प्रेमकाव्यों में साधक को ऄपने मागज से भ्रहमत करने िाले व्यिधान
को शैतान ऄथिा माया बताया गया है। साधक ऄपने पीर या गुरु की कृ पा से ही शैतान के पंजे
से मुि हो सकता है। शैतान के द्वारा ईपहस्थत रुकािटों ि संकटों से साधक की ऄहिपरीक्षा
होती है और ईसके प्रेम में दृढ़ता तथा ईज्ज्िलता अती है। ईदाहरण के हलए जायसी के पद्माित
में राघि चेतन शैतान, नागमती माया और हीरामन तोता गुरु के प्रतीक माने जाते हैं।
(vi) मंडनात्मक शैली - संतों के स्िर में खंडनात्मकता की चुभने िाली ककज शता थी जबदक
सूदियों ने दकसी संप्रदाय हिशेष का खंडन नहीं दकया। ईन्होंने ऄपने कोमल स्िभाि से दोनों
जाहतयों की एकता स्थाहपत करने में ऄहधक सिलता प्राप्त की। आसके पीछे थी ईनकी
मनोिैज्ञाहनक पद्धहत। आस नीहत के कारण ऄनेक हहदू सहज ही सूिी मत की ओर अकर्मषत हुए।
(vii) भाि एिं रस-व्यंजना-प्रेमाख्यान काव्यों में प्रेम के सामने सामाहजक मयाजदाओं और
परं पराओं का कोइ मूल्य नहीं है। आस कारण आनकी प्रेम-भािना साहस एिं संघषज की भािना से
ऄनुप्राहणत है। आसे स्िच्छ रोमांरटक प्रेम कहा जा सकता है। ईद्दीपन हिभाि के ऄंतगजत सूदियों
ने सखा-सखी, िन, ईपिन, ऊतु पररितजन अदद ऄन्य ईपकरणों का सहारा हलया है। संयोग
शृंगार में आन्होंने आतनी रुहच नहीं ददखाइ। सौंदयज-हनरूपण में नाहयका के नख-हशख, रूप-रं ग,
हाि-भाि, सूक्ष्म गुणों जैसे कला-कौशल, हिदग्धता अदद का भी समािेश दकया है। आनका काव्य
कल्पना-शहि की सबलता और ऄनुभूहत की सजीिता से ऄनुप्राहणत है। सूिी कहियों का ईद्देश्य
लौदकक प्रेम कहाहनयों द्वारा ऄलौदकक प्रेम की ऄहभव्यंजना कर ऄव्यि सिा का अभास देना
था। आस कारण रहस्यात्मकता की ऄहभव्यहि के हलए सांकेहतक हिधान या प्रतीकों का ईपयोग
दकया गया है।
(viii) काव्य का स्िरूप- ये प्रेमपरक रचनाएाँ महाकाव्य की कोरट में तो अती हैं लेदकन आनमें
भारतीय महाकाव्यों जैसी सगजबद्धता नहीं है। चूाँदक कहि का ईद्देश्य दकसी महान चररत्र का
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हचत्रण न होकर प्रेम-तत्ि का प्रहतपादन करना है। आसहलए आनमें नायक के ईच्च कु ल का ध्यान
नहीं रखा गया है। हहदी के ऄहधकांश हिद्वानों ने आनकी शैली को ‘मसनिी’ कहा है। मसनिी
पद्धहत के अधार पर कथा-अरं भ के पहले इश्वर की िंदना, मुहम्मद साहब की स्तुहत, तत्कालीन
बादशाह की प्रशंसा तथा अत्म-पररचय अदद ददया जाता है। गणपहतचंद्र गुप्त ने आनके काव्य
रूप को ‘कथा काव्य’ माना है। ईसे ही प्रेमाख्यानक कहा गया है क्योंदक आनमें महाकाव्य
अदशजिादी प्रयोजन के स्थान पर स्िच्छ प्रेम की कथात्मक ऄहभव्यहि हमलती है।
(ix) भाषा एिं शैली - आनकी भाषा ऄिधी है। कु छ सूिी कहियों पर भोजपुरी का तो कु छ
ब्रजभाषा का भी प्रभाि है। ऄिधी भाषा में तद्भि शधदों के ऄलािा मुहािरों तथा लोकोहियों
का भी ऄच्छा प्रयोग हमलता है। शैली की दृहि से ऄन्योहि ि समासोहि के साथ ऄहतशयोहि
पर प्रायः आनका ऄहधक बल रहा है। समासोहि के सबसे सिल प्रयोिा जायसी हैं। यों तो
प्रेमाख्यानकों में सभी ऄलंकारों के ईदाहरण ईपलधध हो जाते हैं, दिर भी ईपमा, ईत्प्रेक्षा,
रूपक और ऄहतशयोहि के हिहभन्न भेद ि ईपभेदों की आनमें प्रमुखता देखी जा सकती है।
कु ल हमलाकर, मध्ययुग में रहचत सूिी एिं ऄसूिी प्रेमगाथाओं में हिस्मय, दैिी और
ऄलौदकक तत्ि समान रूप में हमलते हैं। रोमांस प्रधानता के कारण साहहसकता और शौयज का
भी सहम्मश्रण है।
बोध प्रश्न
रहस्यिाद दकसे कहते हैं?
रहस्यात्मकता की ऄहभव्यहि के हलए प्रतीकों का प्रयोग क्यों दकया जाता है?
मसनिी शैली दकसे कहते हैं?
(2) सगुण-भहि धारा
छात्रो !अप जान चुके हैं दक सगुण भहि धारा में इश्वर के ऄितार रूप का गुणगान
दकया गयाहै। आसकी 2 शाखाएाँ हैं – (i) रामभहि शाखा एिं (ii) कृ ष्णभहि शाखा। कृ ष्णभहि
शाखा के प्रितजक कहि सूरदास तथा रामभहि शाखा के प्रितजक कहि तुलसीदास हैं।
(i) कृ ष्ण की लीलाएाँ - हहदी में कृ ष्णभि कहियों की दृहि कृ ष्ण की लीलाओं में हिशेष रूप
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से कृ ष्ण के बाल और दकशोर जीिन की ओर गइ है। िस्तुतः आस शाखा में िात्सल्य, सख्य एिं
माधुयज भाि की भहि का प्राधान्य है। िात्सल्य भाि के ऄंतगजत कृ ष्ण की बाल-क्रीड़ाएाँ, चेिाओं
एिं यशोदा के मााँ हृदय की मधुररम भािनाओं का स्िरूप दशजनीय है। सख्य भाि में कृ ष्ण और
ग्िालों के जीिन की रमणीय अकषजक एिं मनोरं जक घटनाएाँ ईपलधध होती हैं और माधुयज भाि
के ऄंतगजत गोपी-लीला की प्रस्तुहत है।
(ii) भहि-भािना- कृ ष्ण-काव्य में मुख्यतः चार भाि हमलते हैं –रहत-भाि, भहि-भाि,
िात्सल्य-भाि एिं हनिेद। हनिेदजन्य भाि की ऄहभव्यहि अत्मग्लाहन एिं दैन्य की ऄहभव्यहि
करने िाले पदों में हुइ है। सूरदास िात्सल्य रस के एकमात्र सम्राट हैं। रहत-भाि के संयोग और
हियोग दोनों ही रूपों में कृ ष्ण-भि कहियों की कला-कु शलता दशजनीय है। यहााँ आन सभी भािों
का हिलय भहि के महाभाि में होता है। कृ ष्ण भि कहियों ने कृ ष्ण की अराधना दास्य भाि के
स्थान पर माधुयज भाि से की। साथ ही, सख्य भाि और िात्सल्य भाि को भी स्िीकार दकया।
(iii) प्रेम-िणजन - सूरदास और ऄन्य कृ ष्ण-कहियों ने प्रेम के स्िच्छ तथा पररमार्मजत रूप का
िणजन मार्ममक शधदों में दकया है। ईनकी अत्मानुभूहत आसमें हमली हुइ है। प्रेम में अत्म-समपजण
का भाि िात्सल्य-रूप, सखा-रूप और कांत-रूप में हमलता है। कहीं-कहीं दास रूप भी ददखाइ
देता है।
(iv) प्रकृ हत-हचत्रण- बाह्य-प्रकृ हत का हचत्रण भाि की पृष्ठभूहम, ईद्दीपन भाि तथा ऄलंकारों
के हिधान के हलए हुअ है। आन कहियों ने मानि-प्रकृ हत हचत्रण में भी ऄपनी सूक्ष्म पयजिक्षे ण
शहि का पररचय ददया है। हिशेष रूप से सूरदास ने ‘भ्रमर गीत’ में प्रकृ हत और गोहपयों में हबब-
प्रहतहबब संबंध दशाजया है।
हनष्कषज रूप से यह कहा जा सकता है दक कृ ष्ण-भि कहियों ने हहदी साहहत्य के भंडार
को सुसमृद्ध और सुसमुन्नत करने में ऄभूतपूिज योग ददया, हजससे कृ ष्ण-काव्य का हिकास परिती
साहहत्य में भी बहुत हिशाल रूप में हुअ।
(i) समन्िय की भािना- राम काव्य में राम के साथ कृ ष्ण, हशि, गणेश अदद देिताओं की
भी स्तुहत की गइ है। ईदाहरण के तौर पर ‘रामचररतमानस’ में तुलसी ने सेतुबंध के ऄिसर पर
राम द्वारा हशि की पूजा करिाइ है। स्मरण रहे दक समूचा भहि अंदोलन ऄपने अप में समन्िय
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की हिराट चेिा ही थी हजसका नेतृत्ि स्िामी रामानंद ने दकया। आस समन्िय भािना के कारण
ही तुलसी को महात्मा बुद्ध के बाद सबसे बड़ा लोक नायक माना जाता है।
(ii) राम ऄितार रूप में - रामभिों के हलए राम हिष्णु के ऄितार और ब्रह्म के रूप हैं। िे
पाप के हिनाश और धमोद्धार के हलए हभन्न-हभन्न युगों में ऄितार लेते हैं। आनके राम में शील,
शहि, सौंदयज का समन्िय है। ईन्हें प्रेम से पाया जा सकता है।
(iii) लोक-संिह की भािना- राम-भि कहियों ने गृहस्थ जीिन की ईपेक्षा नहीं की। लोक-
सेिा की भािना से आन्होंने अदशज गृहस्थ राम-सीता का ईदाहरण ईपस्थत कर जीिन-स्तर को
उाँचा ईठाने का प्रयत्न दकया है। राम अदशज पुत्र और अदशज राजा हैं। सीता अदशज पत्नी,
कौशल्या अदशज माता, लक्ष्मण और भरत अदशज भाइ हैं, तो हनुमान अदशज सेिक है। सुिीि
अदशज सखा है। राम काव्यों में जीिन का मूल्यांकन अचार की कसौटी पर दकया गया है। सारे
मानिीय संबंधों पर खड़ा समाज अचार के बल पर ही जी सकता है। तुलसी ने राम को मयाजदा
पुरुषोिम के रूप में िर्मणत करके ऄपने युग को एक अदशज चररत नायक प्रदान दकया।
(iv) भहि का स्िरूप - राम भहि के कें द्र में भी शराणागहत का भाि सबसे उपर है। राम-
भि कहियों ने दास्य भाि की भहि के ऄनुरूप ऄपने और अराध्य के बीच सेिक-सेव्य भाि को
स्िीकार दकया है। तुलसीदास का कहना है –
‘सेिक सेव्य भाि हबनु, भि न तररय, ईरगारर।’
आन कहियों ने ‘ज्ञान’ तथा ‘कमज’ दोनों की ऄलग-ऄलग महिा स्िीकार करते हुए भी
‘भहि’ को श्रेष्ठ माना है। आनकी भहि पद्धहत िैधी (शास्त्र-हिहध द्वारा सेिा-पूजा, ईपासना
करना( कोरट में अती है। आसमें निधा भहि (भहि के नौ प्रकार( के प्रायः सभी ऄंगों का हिधान
है। ये भि ‘हिहशिाद्वैतिाद’से प्रभाहित हैं। ऄथाजत, आनके हलए ब्रह्म की भााँहत जीि भी सत्य है
जो ब्रह्म का ऄंश है। जीि और ब्रह्म में ऄंश-ऄंशी का भाि है :‘इश्वर ऄंश जीि ऄहिनाशी।’
(तुलसी(
(v) पात्रों का चररत्र-हचत्रण - राम साहहत्य के कें द्र में राम का ‘लोकरक्षक’ रूप प्रहतहष्ठत है।
आसहलए राम-काव्य के पात्रों द्वारा अचार एिं लोक मयाजदा की स्थापना करने की कोहशश की
गइ है। आनमें रजोगुणी (ऐश्वयज, ठाठ-बाठ की लालसा िाला(, तमोगुणी (अलस, प्रमाद, द्वेष
अदद नकारात्मक भािनाओं िाला( एिं सत्िगुणी (सीधा और सच्चा( सभी पात्रों की ऄहभव्यहि
है और ऄंत में सत्य की ऄसत्य पर हिजय ददखलाइ गइ है।
(vi) रस - ऄपनी व्यापकता के कारण आसमें सभी रसों का समािेश है ककतु सेिक-सेव्य भाि
की भहि के कारण शांत रस की प्रधानता है। ‘रामचररतमानस’ के युद्ध-िणजन में िीर और रौद्र
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रस हैं। नारद-मोह में हास्य रस हिद्यमान है तो राम के हिलाप में तथा लक्ष्मण की मूच्छाज प्रसंगों
में करुण रस की धारा प्रिाहहत हो रही है। सीता-राम के हमलन और हिरह के प्रसंगों में क्रमशः
संयोग और हियोग शृंगार का सुंदर पररपाक हुअ है।
(vii) भाषा एिं शैली- रामकाव्य की मुख्य भाषा ऄिधी है। हालांदक तुलसी ने ब्रजभाषा का
भी सिल प्रयोग दकया है। तुलसीदास को लोक और शास्त्र दोनों का बहुत व्यापक ज्ञान था।
ईनके काव्य िंथों में जहााँ लोक-हिहधयों के सूक्ष्म ऄध्ययन का प्रमाण हमलता है, िहीं शास्त्र के
गंभीर ऄध्ययन का भी पररचय हमलता है। ईपमा और रूपक ऄलंकार के प्रयोग में िे हसद्धहस्त
हैं। दोहा, चौपाइ, सिैया अदद छंदों का प्रयोग राम काव्य में प्रचुरता से हमलता है।
हनष्कषज के रूप में कहा जा सकता है दकसंत कहियों की साहखयााँ और पद, जायसी का
‘पद्माित’, सूरदास का ‘सूरसागर’ और गोस्िामी तुलसीदास की ऄसाधारण कृ हत
‘रामचररतमानस’ हहदी साहहत्य को भहिकाल की ऄनुपम देन हैं। आस काव्य नेज्ञान और
भहि के संदश
े द्वारा मध्यकालीन समाज के मनोबल का हनमाजण दकया। भारतीय ऄहस्मता
को नइ पररभाषा से महहमा मंहडत दकया। मनुष्य और मनुष्य की समानता ि इश्वर की
सिोपररता का अदशज रचा। पाखंड का खंडन दकया। अध्याहत्मक प्रेम में संपूणज समपजण भाि
का प्रहतपादन दकया। पाररिाररक और सामाहजक अदशों की स्थापना, लोक मयाजदा की
स्थापना तथा मनुष्य की रागात्मक िृहि का पररष्कार दकया। हिहभन्न काव्यहिधाओं और
काव्यभाषा का हनरं तर हिकास दकया। ऄतः भहि काल की ईपलहधधयााँ ऄनेकहिध और
बहुअयामी हैं। आसे ईहचत ही ‘हहदी साहहत्य का स्िणज युग’ माना गया है।
बोध प्रश्न
तुलसी को लोक नायक क्यों माना जाता है?
भहिकाल को हहदी साहहत्य का स्िणज युग कहना क्यों ईहचत है?
6.3 पाठ-सार
14 िीं- 15 िीं शताधदी के अते-अते साहहत्य में एक सामन्य प्रिृहि ददखाइ देने लगी
थी। यह साहहत्य इश्वर-भहि की भािना से लबालब था जो तत्कालीन व्यापक ऄहखल भारतीय
भहि अंदोलन का पररणाम था। चाहे िह भहि हबना अकार िाले हनगुण ज इश्वर के प्रहत हो या
अकार िाले सगुण इश्वर प्रहत। भहि करना एिं तत्कालीन समाज को इश्वर की ओर ईन्मुख
करना आस साहहत्य का मुख्य लक्ष्य रहा। आस कारण हिद्वानों ने चाहे दकतने नाम आस काल के
हलए सुझाए हों लेदकन सिजसम्महत से भहि का नामकरण माना गया। हनगुजणभहि के दो हसतारे
कबीर और जायसी ने आन भहि साधना को चमकाया तो सूर और तुलसी ने सगुण साकार ब्रह्म
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की साधना द्वारा ऄपने भहि साहहत्य को चरमोत्कषज पर पहुाँचाया। ऄगर देखा जाए तो संपूणज
भहि साहहत्य के दो पक्ष ईभरते हैं। एक, लोकपक्ष और दूसरा, अत्मानुभूहत पक्ष। कबीर,
जायसी और तुलसी का साहहत्य लोकपक्ष को लेकर चला, जबदक कृ ष्णभि कहियों ने ऄपनी
अत्मानुभूहत के तहत ऄपने अराध्य के लोकरं जक रूप का हचत्रण दकया।
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2. सूिीकाव्य और सूरकाव्य की भाषा एिं काव्य शैहलयों पर चचाज कीहजए।
3. रामभहि शाखा की सामान्य प्रिृहियों पर प्रकाश डाहलए।
4. संतकाव्य की सामान्य हिशेषताएाँ स्पि कीहजए।
5. सूिीकाव्य की सामान्य हिशेषताओं पर प्रकाश डाहलए।
खंड (ब(
3. ‘जाहत न पूछो साधु की, पूछ लीहजये ज्ञान’ – पंहि संतकाव्य की दकस प्रिृहि को दशाजती
है? ( (
(ऄ(जाहत-पााँहत का समथजन (अ(भेदभाि का समथजन
(आ(जाहत-पााँहत का हिरोध (इ(भेदभाि का हिरोध
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III सही जोड़े हमलाएाँ:
i) भ्रमरगीत (ऄ(जायसी
101
आकाइ 7 : प्रमुख हनगुण
ज कहि
आकाइ की रूपरे खा
7.0 प्रस्तािना
7.1 ईद्देश्य
7.2 मूल पाठ :प्रमुख हनगुजण कहि
7.2.1 हनगुजण भहि काव्य :संत मत
7.2.1.1 संत कबीरदास
7.2.1.2 कबीर की काव्यागत हिशेषताएाँ
7.2.1.3 ऄन्य संत कहि
7.2.1.4 हनगुजण भहि काव्य :सूिी मत
7.2.1.4.1 महलक मुहमद जायसी
7.2.1.4.2 जायसी की काव्यगत हिशेषताएाँ
7.2.1.5 सूिी परं परा के ऄन्य प्रमुख कहि
7.3 पाठ-सार
7.4 पाठ की ईपलहधधयााँ
7.5 शधद संपदा
7.6 परीक्षाथज प्रश्न
7.7 पठनीय पुस्तकें
7.0 प्रस्तािना
हप्रय छात्रो! भहिकालीन हहदी कहिता को ऄध्ययन की सुहिधा के हलए दो िगों में बााँटा
जाता है। एक को हनगुजण काव्यधारा तथा दूसरे को सगुण काव्यधारा कहा जाता है। आस आकाइ में
अप हनगुजण काव्यधारा के प्रमुख रचनाकारों के योगदान और महत्ि से पररहचत होंगे। जैसा दक
अप जानते हैं, हनगुजण धारा की दो शाखाएाँ हैं (1( संत मत या ज्ञानमागी शाखा तथा (2) सूिी
मत या प्रेममागी शाखा। दोनों ही शाखाएाँ हनगुजण-हनराकार ब्रह्म की भहि (परम प्रेम( पर ज़ोर
देती हैं। लेदकन दोनों की साधना पद्धहत में कु छ ऄंतर भी है। संत मत के प्रमुख कहि हैं कबीर।
आसी प्रकार सूिी मत के प्रमुख कहि हैं जायसी।
102
7.1 ईद्देश्य
बोध प्रश्न
कबीर और नानक की साधना प्रणाली में क्या ऄंतर है?
103
7.2.1.1 संत कबीरदास
कबीर (1398-1518 इ.(भहिकाल की हनगुजण भहि की ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रहतहनहध
कहि हैं।जनश्रुहतयों के ऄनुसार कबीर का लालन-पालन एक जुलाहा दंपहत ने दकया था। ईनके
हहदू या मुसलमान होने पर भी हििाद रहा है। स्ियं कबीर के ही शधदों में –‘हहदू कहो तो मैं
नाहह, मुसलमान भी नाहह।"कबीर िणाजश्रम व्यिस्था को नकारते हैं और कमज करने का संदश
े देते
हैं। ईन्होंने हहदुओं और मुसलमानों, दोनों के बाह्य अडंबरों का अजीिन हिरोध दकया और
दोनों को िटकार लगाइ। जहााँ िे ब्राह्मणों को िटकारते हैं –‘पांडे कौन कु महत तोहे लागी’, िे
मुसलमानों को भी िटकारने में पीछे नहीं रहते –‘कस रे मुल्ला बांग नेिाजा!’कबीर की कमजभूहम
काशी रही। ईनके जीिन का ऄहधकांश समय काशी में बीता था। ईन्होंने दूर-दूर की यात्राएाँ कीं।
ईनके हशष्य भी दूर-दूर तक िै ले हुए थे। कबीर स्ियं हनरक्षर थे। कबीर कहते हैं दक –‘महस
कागद छु यो नहह, कलम गह्यो नहह हाथ।’ ऄतः ईनकी िाहणयों ि ईपदेशों को ईनके हशष्य हलख
लेते थे।
कु छ जनश्रुहतयों के ऄनुसार, रामानुजाचायज की हशष्य-परं परा के गुरु रामानंद ने कबीर
को दीक्षा दी थी, तो कु छ जनश्रुहतयााँ सूिी संत शेख तकी को ईनका गुरु बताती हैं। ऄहधकांश
अलोचक रामानंद को कबीर के गुरु के रूप में मान्यता देते हैं हजन्होंने कबीर को राम नाम की
दीक्षा दी थी। लेदकन कबीर के राम, राजा दशरथ के पुत्र राम नहीं हैं, बहल्क िे हनगुजण और
हनराकार ब्रह्म हैं। कबीर के साहहत्य पर हसद्ध-नाथों का प्रभाि भी देखा जा सकता है। कबीर में
ऄपने अराध्य ‘राम’ के प्रहत पूणज समपजण भाि देखा जा सकता है। यह समपजण भाि ही ‘भहि’
की ऄहनिायज शतज है। िे ऄपने अराध्य की ‘बहुररया’ ही नहीं,‘कु िा’ तक बनने को तैयार हैं –
‘हरर मेरा पीई मैं हरर की बहुररया’ और ‘कबीर कू ता राम का।’ कबीर शास्त्रों से ज्यादा महत्ि
ऄनुभि को देते हैं। िे अध्याहत्मक दुहनया के साथ ही, भौहतक दुहनया के सरोकार और संघषज से
भी जुड़े हुए हैं। ईनकी कहिता में गज़ब की तार्कककता, प्रश्नाकु लता और अत्महिश्वास है। कबीर
ऄपनी कहिता के माध्यम से बड़े सहज प्रश्न पूछते हैं और ये प्रश्न बड़े-बड़े शास्त्र-पुराण,
मान्यताएाँ, रीहत-ररिाज अदद को ऄसहज कर देते हैं। सामाहजक अचार-हिचार, मान-मयाजदा,
लोक-व्यिहार, ऄंधहिश्वास, धार्ममक कठमुल्लापन की तकज हीनता ददखाने में कबीर की कहिता
व्यंग्यात्मक हो गइ है।
व्यंग्य की तीक्ष्णता और प्रभािोत्पादकता कबीर के काव्य की एक ऄलग दुहनया
ददखलाती है। अचायज हजारी प्रसाद हद्विेदी ने कबीर की व्यंग्य-शैली के संबंध में हलखा है –
“सच पूछा जाए तो अज तक हहदी में ऐसा जबरदस्त व्यंग्य लेखक पैदा ही नहीं हुअ। ईनकी
104
साि चोट करने िाली भाषा, हबना कहे भी सब कु छ कह देने िाली शैली और ऄत्यंत सादी ककतु
ऄत्यंत तेज प्रकाशन-भंगी ऄनन्य साधारण है। हमने देखा है दक बाह्याचार पर अक्रमण करने
िाले संतों और योहगयों की कमी नहीं है, पर आस कदर सहज और सरस ढंग से चकनाचूर करने
िाली भाषा कबीर के पहले बहुत कम ददखाइ दी है।“( हजारी प्रसाद हद्विेदी, कबीर (
कबीर की िाणी का संिह ‘बीजक’ नाम से प्रहसद्ध है हजसके तीन भाग हैं –साखी, सबद
और रमैनी। कबीर की ‘साखी’ दोहों के रूप में अम जनमानस के बीच ऄत्यंत लोकहप्रय है। यह
अम बोलचाल की भाषा में है। ‘रमैनी’ और ‘सबद’ कबीर के गेय पदों का संकलन है जो प्रायः
ब्रजभाषा में है लेदकन आन पदों में भी अम बोलचाल के शधद भरे पड़े हैं। कबीर की भाषा अम
बोलचाल की ठे ठ भाषा है। ईनकी भाषा में शास्त्रीयता का दबाि कम है। हजारी प्रसाद हद्विेदी
ने कबीर को ‘िाणी का हडक्टेटर’ कहा है क्योंदक िे ऄपने हिचारों और भािों के ऄनुकूल बनाने
के हलए भाषा को आच्छानुसार तोड़-िोड़ लेने में कु शल हैं।
बोध प्रश्न
कबीर की कहिता व्यंग्यात्मक क्यों हुइ?
105
(ii) साधना पद्धहत :रहस्य भािना
कबीर की साधना पद्धहत को समझने के हलए ब्रह्म, जीि, जगत तथा माया अदद के
संबंध में ईनके हिचारों को जानना अिश्यक है। कबीर ने हजस परमतत्ि को ऄपना अराध्य
बनाया, ईसके हलए ईन्होंने ‘राम’ शधद का प्रयोग दकया है, ककतु ईनके राम हनगुजण-हनराकार हैं।
कबीर की भहि में एकहनष्ठता का महत्ि है। ईसमें कमजकांड के हिहध-हिधान और बाह्य-अचार
के हलए स्थान नहीं है। कबीर का मानना है दक बाहरी माला िे रते रहने से मन का िे र नहीं
बदल जाता या पूजापाठ करने से कु छ नहीं हो सकता। मन की भहि तन को स्ियं ही ऄपने
ऄनुकूल बना लेती है। भहि के मागज में माया कनक सोना, दौलत (और काहमनी (स्त्री के रूप में
बाधा ईत्पन्न करती है, आसहलए कबीर आनकी कटु अलोचना करते हैं। काम, क्रोध,लोभ, मोह,
मद, मत्सर (इष्याज( अदद माया के सहचर (साथी( हैं हजनका नि होना ‘इश्वर भजन’ के हलए
अिश्यक है। कबीर का कहना है दक माया का दूसरा नाम ऄज्ञान है। दपजण पर हजस प्रकार काइ
लग जाती है, ईसी प्रकार अत्मा पर ऄज्ञान का अिरण पड़ जाता है हजससे अत्म-ज्ञान दुलजभ
हो जाता है। ऄतः अत्मा रूपी दपजण को हनमजल रखना चाहहए।
कबीर की भहि एक ऐसा राजमागज है हजस पर सभी सुगमता से चल सकते हैं। ईसमें
उाँच-नीच, ब्राह्मण-शूद्र का कोइ भेदभाि नहीं है। ईन्होंने योगमागज को ऄपनाया था। ईनके
ऄनुसार सच्चा योगी िह है जो सुरहत (मन-बुहद्ध-हचि-ऄहं को योगदक्रया द्वारा एक कर देने पर
सुरहत बन जाती है( से हनरहत (लीन होने का भाि, शून्य की हस्थहत( तक पहुाँच जाए। ऐसा होने
पर परमतत्ि का साक्षात्कार हो जाता है। यही हमलन दशा है। आसे ही कबीर का रहस्यिाद कहा
जाता है। रहस्यिाद की ऄहभव्यहि सदा हप्रयतम और हिरहहणी के अश्रय में होती है। यही
सहज हस्थहत है और कबीर की साधना का यही लक्ष्य है। आस हस्थहत के संबंध में कबीर कहते हैं–
लाली मेरे लाल की, हजत देखूाँ हतत लाल।
लाली देखन मैं चली, मैं भी हो गइ लाल॥
107
हिद्वानों ने आनकी भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ या ‘हखचड़ी’ भाषा कहा है। लेदकन स्मरण रखना होगा
दक ईनकी भाषा में ऄहभव्यहि के सारे ईपकरण मौजूद हैं। आसीहलए ईनकी भाषा के संबंध में
डॉ .हजारी प्रसाद हद्विेदी ने कहा है दक“ भाषा पर कबीर का जबरदस्त ऄहधकार था। िे िाणी
के हडक्टेटर थे। ”
बोध प्रश्न
कबीर की साधना का क्या लक्ष्य है?
108
ने ईन्हें कबीर का ऄनुयायी माना है। दादू दयाल की रचनाएाँ पदों के रूप में हमलती हैं हजनका
संिह संतदास एिं जगनदास नामक ईनके दो हशष्यों ने ‘हरदै िाणी’ नाम से दकया। बाद में
रज्जब ने आन रचनाओं का संपादन ‘ऄंगिधू’ नाम से दकया। संत दादू की समस्त रचनाएाँ ऄब डॉ .
बलदेि िंशी द्वारा संपाददत ‘दादू िंथािली’( प्रकाशन संस्थान, नइ ददल्ली( में ईपलधध हैं। दादू
भी कबीर और रै दास जैसे ऄन्य हनगुजण संत कहियों की भााँहत जीिन के ऄनुभिों को प्रामाहणक
मानते हैं। िे हनगुजण एिं हनराकार ब्रह्म के ईपासक थे। ईनकी रचनाओं में सरलता एिं सहजता
ददखाइ देती है। ईनकी भाषा पहश्चमी राजस्थानी से प्रभाहित हहदी है और िे ऄरबी-िारसी के
शधदों को प्रयोग करने में भी संकोच नहीं करते।
बोध प्रश्न
रहिदास का क्या हसद्धांत है?
7.2.1.4 हनगुण
ज भहि काव्य :सूिी मत
हहदी साहहत्य के मध्यकाल के अरं भ से पूिज ही एक ऐसी काव्य-परं परा का सूत्रपात हो
चुका था, हजसे हिद्वानों ने ऄलग-ऄलग नामों से पुकारा है, यथा –प्रेममागी (सूिी( शाखा, प्रेम-
काव्य, प्रेमकथानक-काव्य, प्रेमाख्यानक काव्य, सूिी-काव्य अदद। आन नामों से आस तथ्य का
संकेत हमलता है दक आस परं परा के काव्य िंथों में प्रेम-तत्ि की प्रमुखता है तथा ये कथात्मक हैं।
दरऄसल हनगुजण काव्यधारा के “हजन कहियों ने प्रेम द्वारा इश्वर की प्राहप्त पर बल ददया, िे
प्रेममागी ऄथिा सूिी कहि कहलाए।“
हहदी प्रेमाख्यानक काव्य परं परा में सिाजहधक महत्िपूणज काव्यआस प्रकार हैं –
1. हंसािली – (1370( ऄसाआत 2. चंदायन – (1379( मुल्ला दाउद
3.मृगािती 1503() – कु तुबन 4.पद्माित – (1540( महलक मुहम्मद जायसी
5.मधुमालती – (1545( मंझन 6.प्रेमहिलास – (1556( जैनश्रािक जटमल
7.रूपमंजरी – (1568( नंददास 8.माधिानल कामकं दला – (1584( अलम कहि
9.हचत्रािली – (1613( ईस्मान 10.रसरतन – (1618(पुहकर कहि
आनके कथािोत मुख्यतः चार हैं –
1. महाभारत, हररिंशपुराण, हिष्णुपुराण अदद पौराहणक िंथ ,
2. संस्कृ त और प्राकृ त की परं परागत कथानक रूदढ़यााँ ,
3. ईदयन, हिक्रम, रत्नसेन अदद ऐहतहाहसक, ऄधज ऐहतहाहसक पात्रों की गाथाएाँ ,
4. हिहभन्न प्रेमी-प्रेहमकाओं की लोक प्रचहलत कथाएाँ।
109
आन चारों िोतों के साथ रचनाकार की कल्पना शहि का सुंदर समन्िय हुअ है। साथ ही, आनमें
हनम्नहलहखत भारतीय कथानक रूदढ़यााँ भी प्रचुरता से आस्तेमाल की गइ हैं –
1. नायक या नाहयका का जन्म देिी-देिता की अराधना से होना।
2. नायक-नाहयका का परस्पर पररचय स्िप्न दशजन, हचत्र दशजन या तोते अदद द्वारा गुण
कथन से ऄप्रत्यक्ष रूप से होना।
3. हशिमंददर या िु लिारी में नायक-नाहयका की गुप्त भेंट होना।
4. नायक का दकसी ऄन्य सुद
ं री को राक्षस से बचाकर हििाह कर लेना अदद।
ये कथानक रूदढ़यााँ िारसी प्रेमाख्यानक में ईपलधध नहीं होतीं, ऄतः आनका अधार
भारतीय साहहत्य को ही मानना चाहहए।
बोध प्रश्न
प्रेमाख्यानकों के कथा िोत क्या है?
हहदी प्रेमाख्यानकों में कौन सी कथानक रूदढ़यााँ हमलती हैं?
110
सुल्तान की ताकत, दूसरी तरि रत्नसेन का प्रेम के प्रहत समपजण। आस कथा में उपर से ताकत
जीतती हुइ ददखती है, पर जीत की आससे बड़ी हिडंबना क्या होगी दक जीतने के हलए कु छ बचा
ही न हो। ऄंततः सुलतान ऄलाईद्दीन को ऄपने कु कृ त्य की व्यथजता का बोध होता है क्योंदक युद्ध
में हचिौड़ के सारे पुरुष मारे जाते हैं, पहद्मनी (पद्मािती( सहहत सब हस्त्रयााँ जौहर की अग में
प्राण त्याग देती हैं। बस, श्मसान बने हचिौड़ के दकले पर ही आस्लाम का ध्िज िहर सका।
‘पद्माित’ का नाम नाहयका पहद्मनी ऄथिा पद्मािती के नाम पर रखा गया है। पद्मािती
नाम भारतीय साहहत्य में बहुत प्रचहलत है। संस्कृ त के कइ काव्यों में नाहयका का नाम पद्मािती
है। डॉ .हजारीप्रसाद हद्विेदी का कहना है दक जायसी ने गजपहत, नरपहत और ऄहधपहत राजाओं
का ईल्लेख दकया है। बारहिीं शताधदी तक के हशलालेखों में आन शधदों का पता चलता है। बाद
में ये शधद भुला ददए गए हैं। जायसी की कहानी में आन शधदों के अने का ऄथज है दक यह कहानी
कम-से-कम बारहिीं शताधदी में ऄिश्य प्रचहलत थी। परं तु कहानी का ईिराधज परिती है”।
(हहदी साहहत्य :ईद्भि और हिकास, पृ. (149( । आसका ऄथज है दक ‘पद्माित’ की कथािस्तु
पूिजप्रचहलत लोकगाथाओं और आहतहास का हमहश्रत रूप है।
बोध प्रश्न
हहदी साहहत्य में ‘पद्माित’ को क्या कहा जाता है?
(iii) रहस्यिाद
जायसी के काव्य में ईपलधध रहस्य-भािना ऄद्वैतिाद की पृष्ठभूहम पर अधाररत है। कहि
आस ऄद्वैतिादी रहस्यिाद में पूणज सिल रहा है। आसी कारण के िल प्रेममागी सूिी कहियों में ही
नहीं, िरन हहदी साहहत्य के सुप्रहसद्ध रहस्यिादी कहियों में भी जायसी का प्रमुख स्थान है।
जायसी ने भारतीय पद्धहत के ऄनुरूप ही प्रकृ हत के रूपों एिं व्यापारों को देखा और ईनमें बड़े
सुंदर और स्िाभाहिक ढंग से ऄज्ञात और रहस्यमयी सिा का ज्ञान कराया। िे संसार के कण-
कण में ऄपने प्रेममय प्रभु की सिा का ऄनुभि करते हैं। पहक्षयों के गुंजन में, झरनों की झर-झर
ध्िहन और सररताओं की कल-कल ध्िहन में ईन्हें प्रभु की मनमोहक मूर्मत का ही गुणगान सुनाइ
पड़ता है। आसके हलए ईन्होंने हिहभन्न रूपकों का सहारा हलया है। यह भािात्मक सूिी
रहस्यिाद का पूणज ईत्कषज है दक परमात्मा सकल हिश्व में आस तरह व्याप्त ददखाइ देने लगे दक
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सिजत्र के िल ईसी का बोध हो –“परगट गुपुत सकल माँह, पूरर रहा सो नााँि।/ जहाँ देखौं तहाँ
ओही, दूसर नहह जहाँ जााँि॥“सूिी साधक परमात्मा को परम हप्रयतम और परम सौंदयज से संपन्न
मानते हैं हजसे पाने के हलए अत्मा व्याकु ल रहती है। ऄपने काव्य के माध्यम से कहि ईस परम
हप्रयतम के प्रहत प्रणय हनिेदन करता है।
(iv) प्रतीकात्मकता
जायसी ने ‘पद्माित’ के ऄंत में आस पूरे काव्य को ‘ऄन्योहि’ कहा है। आस प्रकार ईनके
सभी पात्र प्रतीक रूप में हैं। हचिौड़गढ़ शरीर है। रत्नसेन मन और हसहलद्वीप हृदय है। पहद्मनी
ब्रह्म का रूप है। ऄलाईद्दीन माया है। नागमती आस दुहनया का धंधा है तथा राघि चेतन शैतान
है। हीरामन सुअ गुरु है। आस प्रकार पद्माित काव्य ऄन्योहि है। यथा –
तन हचतईर, मन राजा कीन्हा। हहय हसघल, बुहद्ध पदहमनी चीन्हा॥
गुरु सुअ जेहह पंथ देखािा। हबनु गुरु जगत को हनरगुण पािा॥
नागमती यह दुहनया धंधा। बााँचा सोइ न एहह हचत बंधा॥
बोध प्रश्न
नागमती का हिरह िणजन हहदी साहहत्य में क्यों ऄनुपम है ?
113
है। यह रचना ऄिधी भाषा में रहचत हैं। ‘चंदायन’ की कथा पूिी भारत में प्रचहलत लोररक,
ईसकी पत्नी मैना और ईसकी हििाहहता प्रेहमका चंदा की कहानी पर अधाररत है। आसकी भाषा
में सहज प्रिाह ददखाइ देता है।
(ii) कु तुबन
कु तुबन भहिकाल की हनगुजण भहि की प्रेमाश्रयी शाखा के प्रमुख कहियों में से एक हैं। िे
भी सूिी परं परा के कहि थे। 1503 इ .में रहचत ‘मृगािती’ ईनकी प्रहसद्ध रचना है। ‘मृगािती’
की कहानी में नायक मृगी-रूपी नाहयका पर मोहहत होकर ईसकी खोज में हनकल जाता है और
ऄंत में हशकार खेलते समय हसह के द्वारा मारा जाता है। मृत्यु के बाद नाहयकाओं के सती होने
का भी िणजन है। भाषा ऄिधी और शैली सरल ि सरस है।
(iii) मंझन
मंझन भी भहिकाल की हनगुजण भहि की प्रेमाश्रयी शाखा के प्रमुख कहियों में से एक हैं।
आनकी प्रहसद्ध रचना ‘मधुमालती’ को 1545 इ .में रहचत माना जाता है। आस काव्य में मनोहर
और मधुमालती की प्रेम-कथा ददखाइ गइ है। साथ ही आसमें ताराचंद और प्रेमा की प्रेम-कथा भी
समानांतर चलती है। आस्लाम में पुनजजन्म की मान्यता नहीं है ककतु मंझन की आस प्रहसद्ध रचना
में पुनजजन्म की घटना भी ददखाइ गइ है। ऄन्य प्रेमाख्यानकों की तुलना में यह काव्य आस दृहि से
हिहशि है दक आसमें नायक बहुपत्नीिादी नहीं है। आसमें भी ऄन्य प्रेमाख्यानकों की तरह ही प्रेम
का ईच्च और महान स्िरूप ददखाइ देता है। भाषा ऄिधी और शैली सहज, सरस है।
7.3 पाठ-सार
हहदी साहहत्य के भहिकाल को ‘स्िणज युग’ कहा जाता है। ईसे यह सम्मान ददलाने में
हनगुजण और सगुण दोनों ही धाराओं के कहियों का ऄपना-ऄपना महत्िपूणज योगदान है। ईनमें
हनगुजण काव्यधारा को दो शाखाओं में बााँटा गया है- 1. संत मत 2. सूिी मत। संत मत के प्रमुख
रचनाकार कबीर हैं, तो सूिी मत में जायसी को प्रधानता हमली है। हनगुजण भहिधारा के ऄन्य
संत कहियों में नानक, दादू, मलूकदास और सुंदरदास के नाम ईल्लेखनीय हैं, तो सूिी कहियों में
जायसी के ऄहतररि दाउद, कु तुबन और मंझन का स्थान भी ऄहत महत्िपूणज है।
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–संत कबीरदास। ऄन्य संत कहियों में रहिदास, गुरु नानक और दादु दयाल ईल्लेखनीय हैं।
2. हनगुजण भहि काव्य की प्रेममागी धारा को सूिी मत भी कहा जाता है। आसके प्रमुख कहि हैं –
महलक मोहम्म्द जायसी। सूिी परं परा के ऄन्य कहियों में मुल्ला दाउद, कु तुबन और मंझन
के नाम ईल्लेखनीय हैं।
3. संतों और सूदियों दोनों की साधना में रहस्य भािना का महत्िपूणज स्थान है।
4. संतों ने परमात्मा को हप्रयतम के रूप में हचहत्रत दकया है हजसे पाने के हलए अत्मज्ञान की
साधना अिश्यक है।
5. सूिी काव्यों में परमात्मा को प्रेयसी के रूप में िर्मणत दकया जाता है हजसे पाने के हलए काव्य
नायक ऄनेक सांसाररक बाधाओं को पार करता हुअ साधनारत रहता है।
6. संत काव्य मुिक काव्य है जो दोहों और पदों में रहचत है। सूिी काव्य प्रेमाख्यानक प्रबंध
काव्य के रूप में रचे गए हैं हजनमें दकसी लोक प्रहसद्ध प्रेम कथा के माध्यम से प्रतीकात्मक
ढंग से भहि मागज का प्रहतपादन दकया गया है।
खंड (ब(
हनम्नहलहखत प्रश्नों के ईिर लगभग 200 शधदों में दीहजए।
1. कबीर के कहि कमज पर प्रकाश डाहलए।
115
2. हहदी साहहत्य के आहतहास में ‘प्रेम के पीर’ दकसे कहा जाता है और क्यों?
3. ‘कबीर िाणी के हडक्टेटर थे’। आस कथन को हसद्ध कीहजए।
4. सूिी काव्य परं परा के ऄन्य प्रमुख कहियों पर प्रकाश डाहलए।
खंड (स(
I सही हिकल्प चुहनए
1. ‘कबीर भाषा के हडक्टेटर थे’ – दकसका कथन है? ( (
(ऄ(रामचंद्र शुक्ल (अ(मुल्ला दाउद (आ(हजारीप्रसाद हद्विेदी (इ(कु तुबन
2. कबीर की भाषा को हिद्वानों ने दकस नाम से पुकारा है? ( (
(ऄ(घुमक्कड़ी (अ(सधुक्कड़ी (आ(ककड़ी (इ(लकड़ी
3. जायसी ने दकस भाषा में ऄपनी काव्य-रचना की है? ( (
(ऄ(पंजाबी (अ(भोजपुरी (आ(बघेली (इ(ऄिधी
116
आकाइ : 8 प्रमुख सगुण कहि
आकाइ की रूपरे खा
8.0प्रस्तािना
8.1 ईद्देश्य
8.2 मूल पाठ :प्रमुख सगुण कहि
8.2.1 कृ ष्ण भहि काव्य परं परा
8.2.1.1 ऄिछाप
8.2.1.2 कृ ष्ण भहि शाखा के प्रमुख कहि :सूरदास
8.2.2 राम भहि काव्य परं परा
8.2.2.1 राम भहि शाखा के प्रमुख कहि :गोस्िामी तुलसीदास
8.3 पाठ-सार
8.4 पाठ की ईपलहधधयााँ
8.5 शधद संपदा
8.6 परीक्षाथज प्रश्न
8.7 पठनीय पुस्तकें
8.0 प्रस्तािना
हहदी साहहत्य के भहिकाल की दो प्रमुख प्रिृहियााँ हैं -हनगुजण भहि धारा तथा सगुण
भहि धारा। आनमें सगुण भहि धारा का संबंध भहि अंदोलन के दौरान ‘िैष्णि भहि’ के ईदय
से जोड़ा जाता है। परं परा की दृहि से आसके बीज िैददक साहहत्य में हमलते हैं। आस धारा के भिों
की मान्यता है दक ब्रह्म हनगुजण और हनराकार होते हुए भी, सभी गुणों से संपन्न तथा साकार रूप
में भी रहता है। साधना की दृहि से हनगुजण और हनराकार ब्रह्म की ईपासना करठन होने के कारण
आन भिों ने सगुण-साकार के गुणों और लीलाओं के साथ तन्मयता प्राप्त करने के मागज को
ऄपनाया। अगे हम आसकी दो शाखाओं (कृ ष्ण भहि और राम भहि( के प्रमुख कहियों के
योगदान पर चचाज करें गे।
8.1 ईद्देश्य
छात्रो !आस आकाइ का ऄध्ययन करके अप –
117
भहिकाल की सगुण भहि धारा के स्िरूप के बारे में जान सकें गे।
सगुण भहि धारा की दो धाराओं – कृ ष्ण भहि और रामभहि – के ईन्नायक कहियों के
बारे में जान सकें गे।
कृ ष्ण भहि शाखा के प्रमुख कहि सूरदास के जीिन और काव्य की हिशेषताओं को समझ
सकें गे।
राम भहि शाखा के प्रमुख कहि तुलसीदास के योगदान और महत्ि को समझ सकें गे।
बोध प्रश्न
कृ ष्ण के तीन रूप कौन से हैं?
हिद्यापहत के कृ ष्ण काव्य की क्या हिशेषता है?
118
8.2.1.1 ऄिछाप
महाप्रभु िल्लभाचायज द्वारा प्रिर्मतत पुहिमागज में सूरदास सहहत अठ कृ ष्ण भि कहियों
का महत्िपूणज स्थान है हजन्हें ‘ऄिछाप’ के नाम से जाना जाता है। ये हैं –सूरदास, कुं भनदास,
परमानंद दास, कृ ष्णदास, नंददास, गोहिद स्िामी, छीतस्िामी और चतुभुजजदास। आन समस्त
कृ ष्ण भि कहियों में सूरदास का स्थान हनःसंदह
े सिोपरर है। ईन्होंने श्रीमद् भागित को अधार
बनाकर पुहिमागज की मान्यताओं के ऄनुरूप कृ ष्ण के गोकु ल, िृंदािन और मथुरा के जीिन से
संबंहधत संपूणज कथा को ‘सूरसागर’ नामक गीहत-प्रबंध के रूप में प्रस्तुत दकया। सूरदास ने
ब्रजभाषा को हचत्रात्मकता, अलंकाररकता, भािात्मकता, सजीिता, प्रतीकात्मकता और
हबबात्माकता से युि करके जनभाषा से अगे ऄपने युग की काव्यभाषा के हसहासन पर प्रहतहष्ठत
दकया।
बोध प्रश्न
सूरदास ने ब्रजभाषा को काव्यभाषा के रूप में कै से प्रहतहष्ठत दकया?
119
स्ियं महाप्रभु िल्लभाचायज ने आन्हें ‘पुहिमागज का जहाज’ कहा था।
बोध प्रश्न
िल्लभाचायज के संप्रदाय में दीहक्षत होने से पहले सूर पर दकसका प्रभाि था?
120
सूर के काव्य में बालसुलभ भािों ि चेिाओं की सरसता को देखते हुए डॉ.हजारी प्रसाद
हद्विेदी कहते हैं दक “बालकृ ष्ण की एक-एक चेिाओं के हचत्रण में कहि कमाल की होहशयारी और
सूक्ष्म हनरीक्षण का पररचय देता है। न ईसे शधदों की कमी होती है, न ऄलंकार की, न भािों की,
न भाषा की। ऄपने अपको हमटाकर ऄपना सिजस्ि हनछािर करके जो तन्मयता प्राप्त होती है,
िही श्रीकृ ष्ण की आस बाललीला को संसार का ऄहद्वतीय काव्य बनाए हुए हैं”।
( हहदी साहहत्य : ईद्भि और हिकास, पृ 105.(
िस्तुतः िात्सल्य रस के सभी ऄंगों का हिस्तार सूर के काव्य में ईपलधध होता है। अचायज
शुक्ल के ऄनुसार “शृंगार और िात्सल्य के क्षेत्र में जहााँ तक आनकी दृहि पहुाँची िहााँ तक और
दकसी कहि की नहीं”।( हहदी साहहत्य का आहतहास, पृ 92.(। कहि ने ‘भ्रमरगीत’ में शृंगार के
हियोग पक्ष का चरम ईत्कषज प्रस्तुत दकया है। आसमें हिरह की समस्त दशाओं का सजीि िणजन
दकया गया है। कृ ष्ण की ईपहस्थहत में जो िस्तुएाँ गोहपयों को हप्रय एिं सुखदायक लगती थीं,
ईनके मथुरा चले जाने पर िे सबकी-सब दुखदायी एिं ऄहप्रय लगाने लगती हैं –िे ईन्हें
काटखाने को दौड़ती हुइ ददखाइ देती हैं –चंदन चंद हुते तब सीतल, कोदकल सधद रसाल।/ ऄब
समीर पािक सम लागत, सब व्रज ईलटी चाल॥
भ्रमरगीत में गोहपयों की ईहियााँ ईनके हृदय की पहित्रता, हनश्छलता, ऄनन्यता और
ईदारता का पररचय देती हैं –
ऄाँहखयााँ हरर दरसन की भूखीं।
कै सैं रहहत रूप-रस रााँची, ये बहतयााँ सुहन रूखी॥
ध्यान रखने की बात यह है दक,‘भ्रमरगीत’के प्रसंगों में कहि सूरदास ने दाशजहनकता और
अध्याहत्मकता को भािात्मकता के साथ जोड़कर हनगुजण की तुलना में सगुण भहि की हिजय
ददखाइ है। ईनकी गोहपयों के आस प्रश्न के समक्ष ईद्धि हनरुिर हो जाते हैं दक –‘हनगुजण कौन देस
कौ बासी?’
सूरदास ने कृ ष्ण की लीलाओं के प्रसंग में प्रकृ हत सौंदयज, जीिन के हिहिध पक्षों, बाल
क्रीड़ाओं, गोचारण, रासलीला, ईपालंभ, दानलीला, चीरहरणलीला अदद का भी िणजन खुलकर
दकया है क्योंदक परब्रह्म श्रीकृ ष्ण की आन लीलाओं का हनरं तर िणजन और कीतजन ही ईनके ऄनुिह
को प्राप्त करने का मागज है। परं तु यह सब िणजन करते हुए िे ईपदेशक या सुधारक की मुद्रा धारण
नहीं करते, बहल्क सरल हृदय को भािपूिजक खोल कर रख देते हैं। ईनकी भहि में दास्य, सख्य
और माधुयज भाि की हत्रिेणी का प्रिाह है। आसका अधार श्रीकृ ष्ण में जो साक्षात परब्रह्म ऄद्वैत
और परमेश्वर है। ईनकी लीलाएाँ भि के भी लौदकक जीिन का ऄहभन्न ऄंग हैं। हर समय आन
121
लीलाओं के कीतजन और श्रिण में लीन भि एक ईदाि भािभूहम पर पहुाँच जाता है तथा
सांसाररक राग-द्वेष के धरातल से उाँचा ईठ जाता है।
बोध प्रश्न
पुहिमागज की क्या हिशेषता है?
भाषा
सूरदास के काव्य की भाषा का अधार लोक प्रचहलत ब्रज भाषा है। गीहत-काव्य होने के
कारण यहााँ ब्रजभाषा और भी माधुयजपूणज हो गइ है। ईसमें सब जगह संगीतात्मकता हिद्यमान है
जो श्रोता को बााँध लेती है। सूर की काव्यभाषा में हचत्रात्मकता, अलंकाररकता, भािात्मकता,
सजीिता, प्रतीकात्मकता तथा हबबात्मकता पूणज रूप से हिद्यमान है। संस्कृ त के तत्सम और
तद्भि शधदों का यथास्थान सुंदर प्रयोग दकया गया है। कहीं-कहीं ऄरबी-िारसी के तद्भि शधदों
का भी प्रयोग ददखाइ देता है। दरऄसल, तत्कालीन राजकीय भाषा िारसी थी आसहलए आन
शधदों का प्रचलन अम बोलचाल की भाषा में हो गया था। साथ ही, सूरदास की भाषा में
मुहािरों और लोकोहियों का पुट भी ईसे सजीिता प्रदान करता है।
बोध प्रश्न
सूर की काव्यभाषा की क्या हिशेषताएाँ हैं?
122
स्िीकृ हत हमलनी शुरू हुइ, परं तु भहि के क्षेत्र में राम की प्रहतष्ठा हिशेष रूप से ग्यारहिीं
शताधदी इस्िी के असपास मानी जाती है। तहमल अलिारों की भहि रचनाओं में राम का
हनरं तर ईल्लेख प्राप्त होता है। नौिीं शताधदी के कु लशेखर अलिार के पदों में प्रौढ़ रामभहि
ऄंदकत है। ग्यारहिीं शताधदी से लेकर रामभहि संबंधी काव्य रचनाओं की संख्या बढ़ने लगी।
पंद्रहिीं शताधदी से लेकर राष्ट्रीय, सामाहजक और राजनैहतक पररहस्थहतयों में राम का
लोकरक्षक रूप आतना ऄहधक प्रासंहगक हसद्ध हुअ दक तब से समस्त राम काव्य भहिभाि से
ओतप्रोत होने लगा। यहााँ तक दक रामकथा की लोकहप्रयता के कारण हनगुजण संत कहियों को भी
‘राम-नाम’ का सहारा लेना पड़ा।
िादर काहमल बुल्के का मत है दक “हहदी साहहत्य के अददकाल में रामानंद ने ईिर
भारत में जनसाधारण की भाषा में राम-भहि का प्रचार दकया था। आसके िलस्िरूप हहदी राम
साहहत्य, अधुहनक काल को छोड़कर, प्रायः भहि भािना से ओतप्रोत है। ”हहदी में राम साहहत्य
की चार प्रमुख हिशेषताएाँ मानी गइ हैं –
1. तुलसीदास का एकाहधपत्य
2. लोकसंिही दास्य भहि का प्राधान्य
3. कृ ष्ण काव्य का प्रभाि और
4. हिहिध रचना शैहलयों, छंदों और साहहहत्यक भाषाओं का प्रयोग।
बोध प्रश्न
हहदी राम काव्य की तीन हिशेषताएाँ बताआए।
123
8.2.2.1 राम भहि शाखा के प्रमुख कहि : गोस्िामी तुलसीदास (1532 इ.-1623 इ.(
तुलसीदास के जन्म समय को लेकर हिद्वानों में कािी मतभेद रहा है। ऄहधकतर हिद्वानों ने
ईनका जन्म 1532 इ .तथा हनधन 1623 इ .में माना है। ईनके जन्मस्थान को लेकर भी कािी
ऄटकलें लगीं हैं। अचायज रामचंद्र शुक्ल ने ईनका जन्मस्थान राजापुर माना है। (हहदी साहहत्य
का आहतहास, पृ. 72(। लेदकन निीन शोधों से ऄब यह हसद्ध हो गया है दक ईनका जन्म-स्थान
सोरों था। आस संबध
ं में डॉ .रामकु मार िमाज कहते हैं दक “हजतनी सामिी आस संबंध में ईपलधध
हुइ है ईसकी परीक्षा करने से तुलसीदास की जन्मभूहम का हनधाजरण सोरों के पक्ष में ऄहधक
युहिसंगत ज्ञात होता है”।( हहदी साहहत्य का अलोचनात्मक आहतहास, पृ.346 (।
जनश्रुहत के ऄनुसार आनके हपता का नाम अत्माराम दूबे तथा माता का नाम हुलसी था।
कहा जाता है दक जन्म लेते ही रोने के स्थान पर ‘राम’ शधद बोलने के कारण ईनका नाम
‘रामबोला’ रखा गया। परं तु माता-हपता ने ऄशुभकारी समझकर ईन्हें त्याग ददया था। आस बात
की पुहि स्ियं तुलसी ने की है – “मातु हपता जग जाय तज्यों हिहधह न हलखी कु छ भाल भलाइ”।
आस पररत्यि बालक का लालन-पालन दासी मुहनया ने दकया। पााँच िषज बाद मुहनया की मृत्यु
हो जाने पर बाबा नरहररदास ने ईन्हें ऄपने पास रखा और हशक्षा-दीक्षा दी। ईन्होंने ही आन्हें
‘तुलसीदास’ नाम ददया। बाल्यकाल में ईन्हीं से सिजप्रथम तुलसी ने रामकथा सुनी और आन्हीं के
साथ ये काशी गए।
जनश्रुहत के अधार पर तुलसी की पत्नी का नाम रत्नािली माना जाता है। ये ऄपनी पत्नी
से बहुत प्रेम करते थे। कहा जाता है दक एक बार रत्नािली तुलसी को हबना बताए ईनकी
ऄनुपहस्थहत में ऄपने मायके चली गइ। तुलसी को पता चला तो िे ईनके हिरह में न रह सके
और रात को ही नदी पार कर ससुराल जा पहुाँच।े ईन्हें ईस ऄिस्था में अया देखकर पत्नी को
लज्जा अइ और ईन्होंने तुलसी से कहा –
लाज न लागत अपको दौरे अयहु साथ।
हधक् -हधक् ऐसे प्रेम को कहा कहौं मैं नाथ॥
कहा जाता है दक पत्नी की आन बातों को सुनकर ईनका मोह भंग हो गया और ईनका
नारी-प्रेम नारायण-प्रेम में पररिर्मतत हो गया। िैराग्य िहण करने के बाद कु छ ददन काशी में
रहकर ऄयोध्या चले गए। ऄयोध्या में ही आन्होंने ‘रामचररतमानस’ की रचना अरं भ की और
आसे दो िषज सात माह में समाप्त दकया। तुलसीदास का व्यहित्ि ईनके िंथों में बहुत स्पि होकर
प्रकट हुअ है। ऄत्यंत हिनम्र भाि और सच्ची ऄनुभूहत के साथ ऄपने अराध्य पर ऄटूट हिश्वास
ईनके व्यहित्ि के प्रधान तत्ि हैं।
बोध प्रश्न
तुलसी का नारी-प्रेम नारायण-प्रेम में कै से पररिर्मतत हो गया?
124
कृ हतत्ि
सन 1923 इ .में नागरी प्रचाररणी सभा (काशी( ने ‘तुलसी िंथािली’ का प्रकाशन खंड
1 और 2 के रूप में दकया। आसमें तुलसीदास की ये 12 रचनाएाँ शाहमल हैं - 1 रामचररतमान,
2 रामलला नहछू , 3 िैराग्य संदीहपनी, 4 बरिै रामायण, 5 पािजती मंगल, 6 जानकी मंगल,
7 रामाज्ञा प्रश्न, 8 दोहािली, 9 कहितािली, 10 गीतािली, 11 श्रीकृ ष्ण गीतािली और 12
हिनयपहत्रका।
बोध प्रश्न
तुलसी के काव्य की क्या हिशेषताएाँ हैं?
125
मुहखअ मुखु सो चाहहऐ खान पान कहुाँ एक।
पालआ पोहष सकल ऄाँग तुलसी सहहत हबबेक॥
(रामचररतमानस, ऄयोध्या कांड, पृ. 556(
आनके ऄलािा राजा को सत्यहनष्ठ, हनभीक, स्िािलंबी, स्िदेश-प्रेमी अदद गुणों से समृद्ध
होना चाहहए। राजा को साम-दाम-दंड-भेद ये चारों नीहतयों को ऄपनाने को कहते हैं।
बोध प्रश्न
तुलसी की राजनैहतक दृहि कै सी थी?
तुलसीदास की भहि
तुलसीदास पहले भि हैं बाद में कहि। ऄपनी भहि-भािना को ही प्रकट होने तथा
समाज में संप्रेहषत करने के हलए ईन्होंने रामचररतमानस के अरं भ में ही हलखा है –भगहत हेतु
हबहध भिन हबहाइ। सुहमरत सारद अिहत धाइ॥ (रामचररतमानस, बालकांड, पृ 15(। ऄथाजत
कहि के स्मरण करते ही ईसकी भहि के कारण सरस्िती ब्रह्मलोक को छोड़कर दौड़ी अती
हैं।तुलसीदास का सारा काव्य आस भहि भािना से ऄनुप्राहणत है। ईनके श्रोता और ििा
रामभि हैं। रामचररतमानस के बालकांड और ईिरकांड में भहि की ऄबाध धारा प्रिाहहत है।
ऄपने अराध्य के प्रहत चरम हिश्वास और प्रेम ही तुलसी की भहि भािना के अधारभूत तत्ि हैं।
िे ऄपने राम पर पूरा भरोसा रखते हैं और यह मानते हैं दक राम को परम प्रेम से ही पाया जा
सकता है। यथा :‘रामहह के िल प्रेम हपयारा।’
तुलसीदास की भहि भािना अचायज रामानुज के हिहशिाद्वैतिाद से प्रभाहित है।
रामानुज संप्रदाय िैष्णि संप्रदाय कहलाता है। रामानुजाचायज के हशष्य रामानंद ने सीता-राम
को ऄपना आिदेि स्िीकार दकया। तुलसी ईन्हीं के ऄनुयायी हैं। तुलसी के आिदेि राम हैं जो
परात्पर (हजससे बढ़कर कोइ दूसरा न हो( ब्रह्म हैं परं त,ु लोक के कल्याण के हलए िे सगुण
साकार रूप में प्रकट होते हैं। यथा :‘मंगल भिन, ऄमंगल हारी /द्रिहु सो दशरथ ऄहजर
हिहारी।’
डॉ .हिजेंद्र स्नातक के ऄनुसार- “गोस्िामी जी की भहिभािना मूलतः लोकसंिह की
भािना से ऄहभप्रेररत है। हजस समय समसामहयक हनगुजण भि संसार की ऄसारता का अराधना
कर रहे थे और कृ ष्ण भि कहि ऄपने अराध्य के मधुर रूप का अलंबन िहण कर जीिन और
जगत में व्याप्त नैराश्य को दूर करने का प्रयत्न कर रहे थे, ईस समय गोस्िामी जी ने मयाजदा
पुरुषोिम राम के शील, शहि और सौंदयज से संकहलत ऄद्भुत रूप का गुणगान करते हुए
लोकमंगल की साधनािस्था के पथ को प्रशस्त दकया”। (हहदी साहहत्य का आहतहास, सं .नगेंद्र(।
बोध प्रश्न
126
तुलसी की भहि कै सी थी?
पाररिाररक जीिन में हपता, पुत्र, माता, पहत, भाइ, सखा, सेिक, पुरजन अदद का क्या
पारस्पररक व्यिहार होना चाहहए,‘मानस’ में कु शलता के साथ बताया गया है। तुलसी िणाजश्रम
व्यिस्था के समथजक हैं। ईनके ऄनुसार जब समाज में िणाजश्रम धमज का पालन दकया जाएगा तभी
सुख-समृहद्ध होगी एिं िह ‘राम-राज्य’ के समान हो जाएगा –
बरनाश्रम हनज हनज धरम, हनरत बेद पथ लोग।
चलहह सदा पािहह सुखहह, नहह भय सोक न रोग॥
127
(श्रीरामचररतमानस, ईिरकांड, पृ 853.(
बोध प्रश्न
तुलसी ने ऄपनी समन्िय दृहि का पररचय कै से ददया?
भाषा और शैली
तुलसीदास ने संस्कृ त के प्रकांड पंहडत होते हुए भी लोक-भाषा को ऄपने काव्य के हलए
चुना। ऄिधी और ब्रज दोनों भाषाओं पर ईनका समान और पूणज ऄहधकार था।
‘रामचररतमानस’ ईन्होंने ऄिधी में हलखा है हजसमें पूिी और पहश्चमी ऄिधी दोनों का मेल है।
कहितािली, हिनयपहत्रका और गीतािली तीनों की भाषा ब्रज है। कहितािली ब्रज की लोक
प्रचहलत शैली का सुंदर नमूना है। पािजतीमंगल, जानकीमंगल और रामलला नहछू ये तीनों पूिी
ऄिधी में हैं। तुलसी की भाषा की सबसे बड़ी हिशेषता यह है दक आसमें संस्कृ त की कोमलकांत
पदािली तथा हिदेशी भाषा के शधदों का हहदी की प्रकृ हत के ऄनुसार प्रयोग दकया है। “ईनकी
भाषा में भी एक समन्िय की चेिा है। तुलसीदास की भाषा हजतनी ही लौदकक है ईतनी ही
शास्त्रीय। तुलसीदास के पहले दकसी ने आतनी पररमार्मजत भाषा का ईपयोग नहीं दकया था।
काव्योपयोगी भाषा हलखने में तुलसीदास कमाल करते हैं। ईनकी ‘हिनय पहत्रका’ में भाषा का
जैसा जोरदार प्रिाह है िैसा ऄन्यत्र दुलजभ है। जहााँ भाषा साधारण और लौदकक होती है िहााँ
तुलसीदास की ईहियााँ तीर की तरह चुभ जाती हैं और जहााँ शास्त्रीय और गंभीर होती िहााँ
पाठक का मन चील की तरह मंडरा कर प्रहतपाद्य हसद्धांत को िहण कर ईड़ जाता है”।
(डॉ.हजारी प्रसाद हद्विेदी(
िस्तुतः ‘मानस’ में महाकाव्यत्ि के सारे गुण हिद्यमान हैं। तुलसीदास ने महाकाव्य,
खंडकाव्य और मुिक तीनों प्रणाहलयों को ऄपानाया और तीनों क्षेत्रों में श्रेष्ठ रचनाएाँ हलखकर
हहदी साहहत्य को समृद्ध दकया। कहने का ऄथज है दक राम सदृश लोकनायक का चररत्र चुन लेने
मात्र से तुलसी आतने लोकहप्रय नहीं हुए। राम का चररत्र भले ही स्ियं काव्य हो, ककतु प्रत्येक
128
राम-कथाकार तुलसी नहीं बन सकता। तुलसी बनने के हलए व्यापक प्रहतभा और काव्य दृहि
चाहहए। अचायों ने शहि, हनपुणता और ऄभ्यास को काव्यहेतु माना है। तुलसी में तीनों का
सुंदर समन्िय है। काव्य हृदय की िस्तु है, बौहद्धक व्यायाम से कोइ श्रेष्ठ कहि नहीं बन सकता है।
आस संबंध में यह ईहि प्रहसद्ध है –
“कहिता करके तुलसी न लसे, कहिता लसी पा तुलसी की कला। ”
8.3 पाठ-सार
129
3. हहदी के सगुण भहि साहहत्य में हिष्णु के दस ऄितारों में से प्रमुख दो ऄितारों –कृ ष्ण
और राम की अराधना का हिधान है।
4. सगुण भहि में अराध्य देि की लीलाओं का िणजन प्रमुख स्थान रखता है।
5. कृ ष्ण भहि शाखा के प्रमुख कहि सूरदास हैं। ईन्होंने िात्सल्य, सख्य और माधुयज भाि से
युि कृ ष्णकाव्य की रचना की है।
6. राम भहि शाखा के प्रमुख कहि हैं –तुलसीदास। ईन्होंने ऄपने अराध्य राम के चररत्र
और लीलाओं का दास्य भाि के साथ हिनयपूिजक िणजन दकया है।
7. सूरदास द्वारा रहचत ‘सूरसागर’ और तुलसीदास द्वारा रहचत ‘रामचररतमानस’ सगुण
भहि काव्य के हसरमौर िंथ हैं।
8. सूरदास ने कृ ष्ण के लोकरं जक रूप का िणजन दकया है तो तुलसीदास ने राम के मयाजदा
पुरुषोिम और लोकरक्षक रूप का िणजन दकया है।
9. तुलसी ने मध्यकाल में हबखरते हुए जीिन मूल्यों के संकट काल में राम के रूप
मेंभारतीयों को एक अदशज चररत्र प्रदान दकया। आसहलए तुलसी को लोकनायक कहा
जाता है।
130
2. सूरदास की भाषा पर चचाज कीहजए।
3. तुलसी की भाषा शैली पर प्रकाश डाहलए।
4. तुलसी की भहि भािना को स्पि कीहजए।
खंड (स(
III सुमल
े कीहजए
i) रामराय (ऄ(राधािल्लभ संप्रदाय
ii) स्िामी हररदास (अ(चैतन्य संप्रदाय
iii) चतुभुजज दास (आ(सखी संप्रदाय
131
खंड - III : रीहतकाल
आकाइ की रूपरे खा
9.0 प्रस्तािना
9.1 ईद्देश्य
9.2 मूल पाठ :रीहतकाल की ऐहतहाहसक पृष्ठभूहम
9.2.1 रीहतकाल :समयसीमा और नामकरण
9.2.2 रीहतकाल की ऐहतहाहसक पृष्ठभूहम
9.2.2.1 राजनीहतक पररहस्थहत
9.2.2.2 सामाहजक पररहस्थहत
9.2.2.3 धार्ममक पररहस्थहत
9.2.2.4 सांस्कृ हतक पररहस्थहत
9.2.2.5 साहहहत्यक पररहस्थहत
9.3 पाठ-सार
9.4 पाठ की ईपलहधधयााँ
9.5 शधद संपदा
9.6 परीक्षाथज प्रश्न
9.7 पठनीय पुस्तकें
9.0 प्रस्तािना
9.1 ईद्देश्य
133
रीहतकाल में आन दोनों िगों से ऄलग हटकर स्िच्छंद काव्य रचना करने िाले कहियों को
‘रीहतमुि’ कहि कहा गया है। आस प्रकार रीहत ऄथाजत शास्त्रीय पररपाटी के पालन पर ज़ोर देने
के कारण ही आस काल को ‘रीहतकाल’ का नाम हमला है।
बोध प्रश्न
रीहतकाल से क्या ऄहभप्रायहै?
लक्षण िंथ दकसे कहते हैं?
रीहतबद्ध कहि कौन हैं?
रीहतहसद्ध कहि कौन हैं?
134
है। आस प्रकार यह स्िर, सुर और रं ग तीनों के हिलक्षण संयोग का युग था। आसीहलए
रीहतकालीन कहिता में लयात्मकता और हचत्रात्मकता के गुणों की प्रधानता ददखाइ देती है।
संगीत के आस प्रभाि को िहााँ भी देखा जा सकता है जहााँ रीहतकालीन कहि ऄपने कहििों और
सिैयों को लयबद्ध करने के हलए छंद के हर चरण में यहत, गहत और तुक-ताल का सुंदर संयोजन
करते हैं। डॉ .रामस्िरूप चतुिेदी ने ध्यान ददलाया है दक हबहारी ने छोटे से छंद दोहे में और
सेनापहत, महतराम, पद्माकर तथा ठाकु र ने कहिि-सिैयों में बराबर आस लय को ऄपने हिधान
के कें द्र में रखा है, हजससे रीहतकालीन कहिता में तन्मयता के हिशेष गुण का अगमन हुअ है। िे
मानते हैं दक रीहतकालीन कहिि-सिैये की बनािट में यह सांगीहतक लय शास्त्रीय संगीत के
समतुल्य अरं भ से ऄंत की ओर जाते हुए क्रमशः सघन होती जाती है। कहना न होगा दक
रीहतकालीन काव्य में संगीत के आस गुण के कारण ईसमें तन्मयता और ऄनुभूहत की गहराइ बढ़
गइ है। यह प्रभाि कु छ ईसी प्रकार का है जैसा हहदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में होता है जहााँ
हिचार महत्ि नहीं रखता बहल्क ऄनुभूहत की गहराइ ऄहधक महत्िपूणज होती है। दरऄसल,
रीहतकाल की साहहहत्यक-सांस्कृ हतक पररहस्थहतयों का ऄिलोकन करने से यह पता चलता है दक
ईस काल की सामंती हचििृहि के हनमाजण में संस्कृ त के काव्यशास्त्र, कामसूत्र, प्राकृ त और
ऄपभ्रंश की शृंगाररक कहिता, मध्यकालीन हहदी कृ ष्ण भहि काव्य और ईिर भारत के मंददरों
से लेकर दरबारों तक में हिकहसत शास्त्रीय संगीत के रचनात्मक संपकज का बड़ा योगदान था।
आसी सामंती ऄहभरुहच के ऄनुरूप रीहतकालीन कहियों ने कहिता को संगीत और हचत्रकला के
ढााँचे ढालने का भी सुंदर प्रयत्न दकया।
बोध प्रश्न
ब्रज भाषा के हिकास में रीहतकालीन काव्य कला ने क्या योगदान ददया?
रीहतकालीन कहिता को संगीत और हचत्रकला ने दकस प्रकार प्रभाहित दकया?
135
9.2.2.1 राजनीहतक पररहस्थहत
राजनीहतक दृहि से रीहतकाल को भारत में मुगल साम्राज्य के ईत्थान और पतन का काल
कहा जा सकता है। आसके पूिज ऄकबर (1556-1605 इ.( तथा जहााँगीर (1605-1627 इ.( के
शासन काल में भहिकालीन साहहत्य का पूणज हिकास हो चुका था। सन 1627 इ .से 1658 इ .
तक मुगल साम्राज्य के हसहासन पर शाहजहााँ असीन रहा। ऄपने शासन काल में जहााँगीर ने
मुगल शासन का जो हिस्तार दकया था ईसे शाहजहााँ ने चरम ईत्कषज तक पहुाँचाया। शाहजहााँ
कला, साहहत्य और संस्कृ हत का पोषक सम्राट था। लेदकन ईसमें राजनीहतक दूरदृहि और
पररपक्वता की कमी थी। तब भी आसके शासन के अरं हभक कु छ िषज शांहत और सुव्यिस्था के
हलए जाने जाते हैं। ऄपनी राजनीहतक कमजोरी को ईसने शान-शौकत और अडंबरपूणज प्रदशजनों
से पूरा करने की कोहशश की। सन 1658 इ .में शाहजहााँ के बीमार पड़ने पर ईसकी मृत्यु की
ऄििाह िै लाने के कारण ईसके जीिन काल में ईसके पुत्रों के बीच सिा के हलए संघषज शुरू हो
गया। सिा के हलए यह संघषज ही रीहतकाल के अरं भ की सबसे महत्िपूणज राजनीहतक घटना है।
शाहजहााँ के बेटे औरं गजेब ने ऄपने बड़े भाइ दाराहशकोह की हत्या कर जबरन सिा हहथया ली।
लेदकन औरं गजेब की धमाांधता, पक्षपातपूणज नीहत, साम्राज्य हिस्तार की भूख ने देश की शांहत
को भंग कर कइ तरह के हिद्रोहों और हनरं तर चलने िाले युद्धों को जन्म ददया। हसक्खों, मराठों,
जाटों अदद ने ईसके प्रहत हिद्रोह शुरू कर ददया।
औरं गजेब के शासन काल में मुगल साम्राज्य के पतन की भूहमका तैयार हुइ। “औरं गजेब
ऄपनी ऄनुदार नीहत, ऄत्याचार एिं परधमज के प्रहत ऄसहहष्णुता के हलए आहतहास में कु प्रहसद्ध
हैं”। (कें हब्रज हहस्ट्री ऑि आं हडया( । िह ऄसाधारण बहादुर सम्राट था। लेदकन ऄपनी धार्ममक
किरता के कारण ईसे ऄनेक शहिशाली हिरोहधयों का सामना करना पड़ा। आसी काल में
मराठों, राजपूतों, जाटों और हसक्खों ने मुगल सल्तनत के हखलाि हिद्रोह का डंका बजाया।
हिशेष रूप से छत्रपहत हशिाजी की चचाज यहााँ अिश्यक है। ईन्होंने 1674इ .में पहश्चम भारत
में मराठा साम्राज्य की नींि रखी तथा छापामार युद्ध की नइ शैली हिकहसत की।
औरं गजेब के पश्चात 1707 इ .में देश की कें द्रीय सिा मुगल साम्राज्य का प्रभाि धीरे -
धीरे कम होने लगा। चारों ओर छोटे-छोटे जागीरदार ऄपने को स्ितंत्र करने लगे। जगह-जगह
सामंत ऄपनी शहि को बढ़ाने लगे, साथ ही िे मुगल दरबार की िैभिपूणज जीिन-पद्धहत का भी
ऄनुकरण करने लगे। आस प्रकार सिा के हिकें द्रीकरण के साथ ईन जीिन दृहियों का भी
हिकें द्रीकरण हुअ, हजस जीिन दृहि को सामंतिाद ने ऄपना हलया था। कें द्रीय शासन व्यिस्था
के हशहथल होने और अंतररक प्रदेशों के कलह की पररहस्थहतयों में 1734 इ .में नाददरशाह तथा
1761 इ .में ऄहमदशाह ऄधदाली जैसे हिदेहशयों के अक्रमण हुए। आनसे मुगल साम्राज्य की
नींि हहल गइ। ऄंिेजों ने आस हस्थहत का पूरा-पूरा लाभ ईठाया और धीरे -धीरे समूचे ईिर
भारत पर इस्ट आं हडया कं पनी के माध्यम से कधजा ही जमा हलया। बाद में िास्तहिक सिा
136
ऄंिेजों के हाथ में चली गइ। आस तमाम राजनीहतक ऄहस्थरता ने देश में हिकृ त सामंतिाद को
जन्म ददया। ऄंततः मुगल साम्राज्य के समान ही हहदू रजिाड़ों और निाबों को भी ऄंिेजों के
प्रभाि के सामने घुटने टेकने पड़े।
बोध प्रश्न
हिकृ त सामंतिाद के जन्म के पीछे क्या पररहस्थहतयााँ थीं ?
हजारी प्रसाद हद्विेदी ऄपनी पुस्तक ‘हहदी साहहत्य :ईद्भि और हिकास’ में रीहतकालीन
सामाहजक व्यिस्था पर चचाज करते हुए हलखते हैं – “आस समय अर्मथक दृहि से समाज में स्पि
रूप से दो श्रेहणयााँ हो गईं -एक ईत्पादक िगज, हजसमें प्रधान रूप से दकसान और दकसान से
संबंध रखने िाली जाहतयााँ बढ़इ, लोहार, कहार, जुलाहा आत्यादद थीं, और दूसरा दल भोिा
(राजा, रइस, निाब अदद( भोिृ त्ि का मददगार था। मुगल शासन के ऄंहतम ददनों में भारतीय
समाज के ये दो िगज अर्मथक िगज थे -राजा, सामंत, मनसबदार अदद भोिा िगज, और कृ षकों
और श्रहमकों का ईत्पादक िगज। दोनों का परस्पर संबंध क्रमशः क्षीण होता गया,और मुगल के
ऄंहतम ददनों में आन दोनों की दुहनया लगभग ऄलग हो गइ”। (पृ. 161(
रीहतकालीन समाज में ईत्पादक और ईपभोिा िगज के मध्य एक और िगज था कहियों
और कलाकारों का िगज जो प्रायः ईत्पादक िगज से जन्म लेता था ककतु भोिा िगज का मनोरं जन
कर ऄपनी अजीहिका चलाता था। कहि-कलाकारों का यह िगज ऄपने अश्रयदाताओं की जीिन-
शैली के ऄनुकूल मनोरं जन करने के हलए तत्कालीन समाज में प्रचहलत काव्यशास्त्रीय िंथों
हिशेषकर नाहयका-भेद ि ऄलंकारशास्त्र जैसे िंथों का सहारा हलया करता था। मुगल साम्राज्य
137
के पतन से कहि-कलाकारों के जीिन पर भी प्रभाि पड़ा। ये कहि-कलाकार स्थानीय निाबों
और सामंतों के यहााँ अश्रय लेने को बाध्य हुए और ईनकी मनोिृहतयों पर ध्यान देना कहि-
कलाकारों का एकमात्र लक्ष्य बन गया।
मुगल दरबार ऄपने िैभि के हलए प्रहसद्ध था। आसकी कें द्रीय सिा कमजोर होते ही
स्थानीय राजाओं, निाबों, सामंतों ने आस दरबार के िैभि का ऄनुकरण करना चाहा। तब िैभि
का स्थान िैभि-प्रदशजन ने ले हलया और आस िैभि-प्रदशजन ने दरबारी संस्कृ हत में हिलाहसता को
खासतौर से हिकहसत दकया। दरबारी हशक्षा अहशक़ाना गज़लों, िारस की कामुकतापूणज प्रेम
कथाओं, लहलत क्रीड़ाओं और चौसर के खेल तक ही सीहमत रह गइ। दरबारी जीिन शैली का
ऄसर अम जन पर भी कािी पड़ा। रीहतकालीन कहि पद्माकर की हनम्नहलहखत रचना में
रीहतकालीन समाज के हिलाहसतापूणज जीिन का सटीक हचत्र ईके रा गया है -
गुलगुली हगल में गलीचा है, गुनीजन हैं,
चााँदनी है, हचक है, हचरागन की माला हैं।
कहैं पद्माकर त्यों गजक हगजा है सजी,
सेज है, सुराही है, सुरा है और प्याला हैं।
हशहशर के पाला को न व्यापत व्याप्त कसाला हतन्हैं,
हजनके ऄधीन एते ईददत मसाला हैं।
तान तुक ताला है, हिनोद के रसाला हैं,
सुबाला है, दुशाला है, हिशाल हचत्रशाला हैं।
दरबारी भोिा िगज के ठीक हिपरीत हस्थहत कृ षक-श्रमजीहियों जैसे हनम्निगज की थी। यह
िगज सभी ओर से शोहषत था, ऄतः दयनीय जीिन गुजारने को बाध्य था। दरबार का िैभि,
सेना, युद्ध, प्रकृ हत प्रकोप, सेठ-साहकारों के कजज अदद ऄनेक प्रकार के अर्मथक बोझ से िह दबा
रहता था।
138
लोक-जीिन से कटा हुअ नजर अता है। ऄपिादस्िरूप गृहस्थ जीिन की कु छ छहियााँ ऄिश्य
आस काल की कहिता में आधर-ईधर हमल जाती हैं।
बोध प्रश्न
ईत्पादक िगज दकसे कहते हैं?
ईपभोिा िगज दकसे कहते हैं?
रीहतकालीन काव्य में जनता का सामाहजक जीिन क्यों प्रहतहबहबत नहीं हुअ?
139
भहिकाल में मध्िाचायज,हनबाकाजचायज, चैतन्य तथा िल्लभ जैसे अचायों द्वारा चलाए
गए संप्रदायों में राधा भाि से भहि की प्रधानता थी। लेदकन रीहतकाल में राधा भहि की अड़
में परकीया भाि की नाहयका के रूप में हसमट कर रह गइ। दरऄसल रीहतकालीन कहि शृंगार-
साधना के मानहसक हिलास में ही डू बे रहते थे। ईनके हलए राधा एिं कृ ष्ण महज भहि ि
िैराग्य के बहाना भर थे -
अगे के सुकहि रीहझहैं तौ कहिताइ
न तो राहधका कन्हाइ सुहमरन को बहानो है”। (हभखारीदास(
दूसरी ओर आस्लाम धमज पर रीहतकालीन िैभि-हिलास का सीधा प्रभाि तो नहीं था
ककतु रूदढ़ पालन के कारण यह भी तत्कालीन जीिन को प्रभाहित करने में समथज न था। आस
प्रकार हहदू और मुहस्लम धमज ऄपने-ऄपने मूल तत्ि-हचतन से दूर होकर बाह्याचरण तक ही
हसमट कर रह गए थे। ऐसी हस्थहत में धमज के साथ मूल्यहीनता की हस्थहत अ जाने से जन
सामान्य धमज के बाहरी हिधान में ही जकड़ गया और ईसके जीिन में ऄंधहिश्वासों ने घर कर
हलया। ऄंध परं पराओं का पालन ऄब सामान्य धमज के रूप में स्िीकृ त हो चुका था। हर धमज के
हबचौहलए पुजारी या मुल्ला जनता के ऄंधहिश्वास का अए ददन लाभ ईठाते थे। आस रूप में
रीहतकाल में धमज-स्थल व्यहभचार के कें द्र बन गए। आसमें शक नहीं दक आस युग में भहिकालीन
परं परा के संत और सूिी मौजूद थे, ककतु ईनमें पूिजिती संतों-सूदियों जैसी प्रहतभा नहीं थी जो
दकसी के जीिन को प्रभाहित कर सके । आसहलए रीहतकाल में धमज मनोहिनोद के एक साधन के
रूप में बदल गया। आस ऄथज में आस काल की धार्ममक पृष्ठभूहम में जनता के मानहसक पररष्कार
की संभािना लगभग खत्म हो गइ थी।
बोध प्रश्न
रीहतकाल में धमज मनोहिनोद के साधन के रूप में कै से बदला?
140
हचत्रकला का ईत्थान-पतन
जहााँगीर का समय हचत्रकला की दृहि से स्िणजकाल माना जाता है। ईसके बाद भी आस
कला की समृहद्ध में कमी नहीं अइ। शाहजहााँ के काल में हचत्रकला में ऄलंकरण की प्रिृहि
ऄपेक्षाकृ त ज्यादा नजर अती है। औरं गजेब के बाद परिती शासकों के पराश्रय में हचत्रकला
महज ऄनुकरण मात्र होने के कारण ईसमें समय के साथ जड़ता अने लगी। अरं भ में हचत्रकला
पर मुगल दरबार की इरानी शैली का दबदबा रहा लेदकन बाद में आस पर भारतीय परं पराओं
का भी ऄसर देखा जा सकता है। हहदू रजिाड़ों हिशेषतः राजस्थान और पिजतीय क्षेत्रों में
हचत्रकला की एक हभन्न शैली हिकहसत हुइ हजस पर लोक जीिन का प्रभाि था। राजस्थान और
पिजतीय क्षेत्रों में यह क्रमशः राजस्थानी और कााँगड़ा हचत्र शैली नाम से प्रहसद्ध है। रागमाला
राजस्थानी हचत्र शैली का मुख्य हिषय था जो ऊतुओं से संबंहधत था। आसके ऄलािा आस शैली
के हचत्रों का हिषय कृ ष्णलीला, नाहयका भेद और बारहमासा भी रहा है। जबदक कााँगड़ा शैली
के हचत्रों का हिषय धमज, पुराण, आहतहास, लोकगाथा एिं दैहनक जीिन रहा है। आन हचत्रों में
प्रभािमयता के साथ रहस्यात्मकता का भी पुट है। आस माने में रीहतकाल में दरबारी िैभि एिं
लोकजीिन दोनों के हचत्र हमलते हैं।
बोध प्रश्न
राजस्थानी शैली का मुख्य हिषय क्या है?
कााँगड़ा शैली का मुख्य हिषय क्या है?
141
ग्िाहलयर का महत्िपूणज योगदान रहा है। ग्िाहलयर में शुद्ध शास्त्रीय संगीत का हिकास हुअ।
साथ ही, राजस्थान ने शास्त्रीय संगीत के भीतर स्थानीय लोक प्रभािों में हिहशिता ईत्पन्न की।
ग्िाहलयर के दरबार में संगीत की ‘ध्रुपद’ जैसी गंभीर शास्त्रीय शैली का हिकास हुअ। आसके
बािजूद कलाओं की भााँहत रीहतकाल के संगीत में भी हिलाहसता िृहि का प्रभाि ददखाइ देता
है। संगीत में मौहलकता का ऄभाि होने के कारण यह रहसकता का पयाजय बन गया। आसके
बािजूद आस युग में संगीतशास्त्र के कु छ प्रामाहणक िंथों का हनमाजण हुअ, आससे आनकार नहीं
दकया जा सकता।
बोध प्रश्न
संगीत रहसकता का पयाजय क्यों बना?
142
आस प्रकार ऄपने अश्रयदाताओं के संरक्षण में पलने िाले रीहतकालीन कहियों की कहिता
हिलासपूण,ज ऄहतशय ऄलंकरण-प्रधान, चमत्कार और बाह्य प्रदशजन की दरबारी-भािना से
प्रभाहित थी। लेदकन रीहतकाल में राज्याश्रय से दूर लोकाहश्रत में रहकर भी कु छ कहि
रचनाशील थे। ऐसे कहियों की कहिता ऄलंकरण से सिजथा ऄछू ती और मार्ममक है।
बोध प्रश्न
रीहतकालीन कहिता दकससे प्रभाहित थी?
9.3 पाठ-सार
रीहतकाल की ऐहतहाहसक पृष्ठभूहम के हनमाजण में दरबारी पररिेश की भूहमका ऄहम
रही। दरबारी संस्कृ हत से ही ईस काल की राजनीहतक, सामाहजक, धार्ममक, सांस्कृ हतक और
साहहहत्यक पररहस्थहतयों ने ऄपना स्िरूप िहण दकया। राजनीहतक दृहि से यह काल भारत में
मुगल साम्राज्य के ईत्थान और पतन का काल था। आसके पूिज ऄकबर और जहााँगीर के शासन
काल में भहि साहहत्य का पूणज हिकास हो चुका था। सन 1627 इ .से 1658 इ .तक मुगल
साम्राज्य के हसहासन पर शाहजहााँ असीन रहा। शाहजहााँ कला, साहहत्य और संस्कृ हत का
पोषक सम्राट था। ऄपनी राजनीहतक कमजोरी को ईसने शान-शौकत और अडंबरपूणज प्रदशजनों
से पूरा करने की कोहशश की। ईसके जीिन काल में ईसके पुत्रों के बीच सिा के हलए संघषज शुरू
हो गया था।
सिा के हलए यह संघषज ही रीहतकाल के अरं भ की सबसे महत्िपूणज राजनीहतक घटना
है। शाहजहााँ के बेटे औरं गजेब ने ऄपने बड़े भाइ दाराहशकोह की हत्या कर जबरन सिा हहथया
ली। लेदकन औरं गजेब की धमाांधता, पक्षपातपूणज नीहत, साम्राज्य हिस्तार की भूख ने देश की
शांहत को भंग कर कइ तरह के हिद्रोहों और हनरं तर चलने िाले युद्धों को जन्म ददया। हसक्खों,
मराठों, जाटों अदद ने ईसके प्रहत हिद्रोह शुरू कर ददया। कें द्रीय शासन के हिघटन का ऄसर
तत्कालीन सभी पररहस्थहतयों पर पड़ा। लोक जीिन की व्यापकता का ऄभाि, सामंती पररिेश
और दरबारी मानहसकता ने रीहतकालीन पररिेश को मूल्यहीनता, रूदढ़िाददता, मौहलकता के
ह्रास अदद से ढक ददया। माना जाता है दक राजनीहतक ऄहस्थरता ने ईस युग के सामाहजक
जीिन को भी ऄपने चंगुल में ले हलया था।
143
समाज, संस्कृ हत और कलाओं में हिलाहसता, प्रदशजनहप्रयता, ऄलंकरण अदद को जन्म ददया।
तत्कालीन दरबारी पररिेश ने ही रीहतकाव्य के हिकास में ईल्लेखनीय भूहमका ऄदा की। लेदकन
रीहतकालीन सामाहजक हस्थहत के संबंध में यह तथ्य महत्िपूणज है दक आस युग के काव्य में
सामान्य जनता का सामाहजक जीिन प्रायः प्रहतहबहबत नहीं हुअ है। आसका कारण दरबारी
संस्कृ हत के ऄनुरूप कहियों की काव्य रचना थी। आस ऄथज में रीहतकालीन काव्य लोक-जीिन से
कटा हुअ नजर अता है। ऄपिादस्िरूप गृहस्थ जीिन की कु छ छहियााँ ऄिश्य आस काल की
कहिता में आधर-ईधर हमल जाती हैं।
आस काल के ज़्यादातर कहि राज्याहश्रत थे। ऄपने अश्रयदाताओं के संरक्षण में पलने िाले आन
कहियों की कहिता हिलासपूण,ज ऄहतशय ऄलंकरण-प्रधान, चमत्कार और बाह्य प्रदशजन की
दरबारी-भािना से प्रभाहित थी। ऄपिाद के रूप में कु छ कहि राज्याश्रय से दूर लोकाहश्रत
रहकर भी रचनाशील थे। ऐसे कहियों की कहिता प्रायः स्िाभाहिक और मार्ममक है।
144
1 .धमाांधता = धमज का ऄंधे की तरह ऄनुकरण करने का भाि
2 .हनरं कुशता = मनमाना अचरण, तानाशाही
3 .रीहत = कोइ कायज करने का प्रकार, ढंग, हनयम
4 .हिकें द्रीकरण = दकसी सिा या ऄहधकार को कें द्र से हटाकर दूर करना
खंड (ब(
हनम्नहलहखत प्रश्नों के ईिर लगभग 200 शधदों में दीहजए।
1. रीहतकाल की समयसीमा और नामकरण पर संक्षेप में प्रकाश डाहलए।
2. रीहतकाल को प्रभाहित करने िाली पररहस्थहतयों को समझाआए।
3. ‘रीहतकाल को धार्ममक पररहस्थहत की दृहि से पतन का काल माना जाता है।’ आस कथन को
स्पि करें ।
खंड (स(
3. स्िच्छंद काव्य रचना करने िाले कहियों को क्या कहा जाता है? ( (
145
(ऄ( रीहतबद्ध (अ( रीहतहसद्ध (आ( रीहतमुि (इ(अचायज कहि
III सुमल
े कीहजए
146
आकाइ 10 : रीहतबद्ध काव्य
आकाइ की रूपरे खा
10.0 प्रस्तािना
10.1 ईद्देश्य
10.2 मूल पाठ :रीहतबद्ध काव्य
10.2.1 रीहतकाल की प्रमुख काव्यधाराएाँ
10.2.2 रीहतबद्ध काव्यधारा का हिकास
10.2.3 प्रमुख रीहतबद्ध कहि :के शिदास
10.2.3.1 कहि पररचय
10.2.3.2 काव्यागत हिशेषताएाँ
10.2.4 ऄन्य रीहतबद्ध कहि
10.2.4.1 हचतामहण
10.2.4.2 पद्माकर
10.2.4.3 महतराम
10.2.4.4 देि
10.2.4.5 हभखारीदास
10.3 पाठ-सार
10.4 पाठ की ईपलहधधयााँ
10.5 शधद संपदा
10.6 परीक्षाथज प्रश्न
10.7 पठनीय पुस्तकें
10.0 प्रस्तािना
छात्रो !अप जानते ही हैं दक हहदी साहहत्य के आहतहास के ईिर मध्यकाल को ‘रीहतकाल’
कहा जाता है। यह नामकरण आस मान्यता से प्रेररत है दक आस काल में काव्यरीहत ऄथिा काव्य-
पररपाटी में रचना करना साहहत्यकारों के प्रधान प्रिृहि हो गइ थी। काव्यरीहत ऄथिा काव्य-
पररपाटी से रचना करने का ऄथज है, संस्कृ त काव्यशास्त्र के अचायों द्वारा स्थाहपत हसद्धांतों का
147
ऄनुकरण करते हुए रचनाएाँ करना। यह ऄनुसरण भी रीहतकाल में कइ तरीकों से हुअ। कु छ
कहियों ने संस्कृ त काव्यशास्त्र के हिहभन्न अचायों के काव्यांग-हििेचन का सरल ब्रज भाषा में
बताकर ईदाहरण प्रस्तुत करने के हलए ऄपनी रचनाएाँ रचीं तो कु छ कहियों ने काव्यशास्त्र के
हनयमों का पालन करते हुए ऄपनी रचनाएाँ रचीं। कु छ कहियों ने आस तरह की पररपाटी से स्ियं
को मुि रखते हुए भी रचनाएाँ कीं। अप आस तथ्य से भी पररहचत हैं दक आन तीनों प्रकार के
रचनाकारों को क्रमशः रीहतबद्ध, रीहतहसद्ध और रीहतमुि कहि माना जाता है। आस आकाइ में
आनमें से पहली प्रिृहि ऄथाजत रीहतबद्ध काव्यधारा पर चचाज की जा रही है।
10.1 ईद्देश्य
हप्रय छात्रो ! आस आकाइ के ऄध्ययन के ईपरांत अप –
रीहतबद्ध काव्य की हिहभन्न काव्य प्रिृहियों के बारे में जान सकें गे।
रीहतबद्ध काव्य का ऄहभप्राय समझ सकें गे।
रीहतबद्ध काव्य की हिशेषताओं से पररहचत हो सकें गे।
प्रमुख रीहतबद्ध कहियों और ईनकी रचनाओं के बारे में जान सकें गे।
रीहतबद्ध कहि के रूप में के शिदास की देन को समझ सकें गे।
148
को स्िीकार दकया है। ये तीन मुख्य काव्यधाराएाँ हनम्नहलहखत हैं -
1. रीहतबद्ध काव्यधारा
2. रीहतहसद्ध काव्यधारा
3. रीहतमुि काव्यधारा
बोध प्रश्न
रीहतकाल की मुख्य काव्यधाराओं का नामकरण दकस अधार पर दकया गया है?
149
की प्रधान नतजकी प्रिीण राय को कहिता की हशक्षा देने के ईद्देश्य से की थी। यह कहा जा सकता
है दक काव्यांग हनरूपण का एक ईद्देश्य सरल लोक भाषा में संस्कृ त काव्यशास्त्र की पररपाटी
ऄथिा कहिता रचने की रीहत की हशक्षा देना भी था। आसीहलए आन िंथों में हिहभन्न रसों, छंदों,
ऄलंकारों अदद के हिषय में संस्कृ त के काव्यशास्त्रीय हिद्वानों के मतों को पहले कहिि में बताया
जाता था और दिर ईसके ईदाहरण ददए जाते थे। ईदाहरण के हलए आस तरह का एक पद
के शिदास की कृ हत ‘छंदमाला’ से ईद्धृत दकया जा सकता है, हजसमें सुहप्रय छंद का लक्षण
ईन्होंने आस तरह बताया है –“चौदह लघु गुरु एक ऄरु सुहप्रय छंदप्रकास। /ऄक्षर प्रहतपद पंचदस
अनहु के सािदास”॥
लक्षण हनरूपण की प्रदक्रया को समझने के हलए महाराज जसिंत हसह की कृ हत
‘भाषाभूषण’ का यह एक दोहा देखें – “ऄलंकार ऄत्युहि यह, बरनत ऄहतसाय रूप। /जाचक तेरे
दान ते, भए कल्पतरु भूप”। आस दोहे में ऄत्युहि ऄलंकार को ईदाहरण सहहत समझाया गया है।
पहली पंहि में लक्षण और दूसरी पंहि में ईदाहरण अया है। पहली पंहि में यह बताया गया है
दक ऄत्युहि ऄलंकार िहााँ होता है जहााँ दकसी बात को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर कहा जाए।दूसरी
पंहि में आसका ईदाहरण आस तरह ददया गया है दक दानी राजा के दान को पाकर याचक स्ियं
कल्पिृक्ष के समान दानी बन गए हैं। कल्पिृक्ष का अशय एक ऐसे िृक्ष से है हजससे जो भी
कामना की जाए िह तत्काल पूरी हो जाती है। याचक का कल्पतरु होना दशाजता है दक दाता
राजा तो कल्पिृक्ष से भी महान रहा होगा। आस बढ़ा-चढ़ाकर की गइ प्रशंसा के कारण आस दोहे
में ऄत्युहि ऄलंकार है। एक ही पंहि में लक्षण ईदाहरण का यह ऄनोखा संयोजन कु छ ही
कहियों की रचनाओं में हमलता है। प्रायः लक्षण िंथकार कहियों ने पहले स्ितंत्र रूप से लक्षण
कहे हैं, और दिर ईदाहरणके ऄलग से पद रचना की है।
आस प्रिृहि को ध्यान में रखते हुए अचायज रामचंद्र शुक्ल ने हलखा है दक रीहत िंथकार
कहियों ने कहिता हलखने की एक प्रणाली ही बना ली दक पहले दोहे में ऄलंकार या रस का
लक्षण हलखना दिर ईसके ईदाहरण के रूप में कहिि या सिैया हलखना। शुक्ल जी ने आसे
‘ऄनूठा दृश्य’कहा है। ईन्होंने हलखा है दक संस्कृ त साहहत्य में कहि और अचायज दो हभन्न-हभन्न
श्रेहणयों के लोग रहे जबदक हहदी काव्य क्षेत्र में यह भेद लुप्त सा हो गया। आसीहलए आन कहियों
को ‘अचायज कहि’ भी कहने की परं परा है। साथ ही यह भी ध्यान में रखने िाली बात है दक
काव्यांग हनरूपण के ईदाहरण के हलए मौहलक रचनाएाँ रचने के कारण ये रचनाकार मूलतः
कहि ही थे, हजन्होंने काव्यांग हनरूपण को ऄपनी काव्य रचना के माध्यम के रूप में ईपयोग
दकया। आस पद्धहत से रीहतकाल में भारी मात्रा में रचनाएाँ हुईं। यह कहा जा सकता है दक आस
धारा के कहियों में जो अचायजत्ि था, िह एक तरह से ईनकी मौहलक काव्यप्रहतभा की
ऄहभव्यहि में सहायक ही हसद्ध हुअ। आन कहियों ने ऄपने अचायजत्ि के बल पर कोइ निीन
स्थापना की हो ऄथिा पूिज के ईपलधध ज्ञान में कोइ हिस्तार दकया हो,आसके प्रमाण नहीं हमलते।
150
लेदकन रस, ऄलंकार, छंद अदद के लक्षण हनरूपण के क्रम में आन कहियों ने ऄनेक ऐसी रचनाएाँ
कीं हजन्हें पयाजप्त लोकहप्रयता और सराहना हमली।
आस धारा के कु छ प्रमुख कहि और ईनकी कु छ कृ हतयों के नाम हनम्नहलहखत हैं -
151
(2(रस और नायक-नाहयका भेद के हनरूपक अचायों की दो कोरटयााँ हैं -कु छ ने मूल रूप से
नाहयका भेद और स्थूल रूप से शृंगार रस का हनरूपण दकया है। कु छ अचायज ऐसे भी रहें
हजन्होंने सभी रसों पर हिचार दकया। ककतु सभी की दृहि शृंगार रस की ओर ऄहधक कें दद्रत
रही। आस िगज के अचायों में तोषकहि, महतराम, देि, कृ ष्णभि, श्रीपहत, ईदयनाथ,
सोमनाथ, बेनी और पद्माकर अदद सहम्महलत हैं।
(3(सिाांग हनरूपक अचायों ने काव्य के सभी ऄंगों का हििेचन दकया। ईन्होंने काव्य के लक्षण,
रस, छंद, ऄलंकार, ध्िहन, शधद-शहि, रीहत, गुण-दोष, काव्य प्रयोजन, नायक-नाहयका
भेद अदद प्रसंगों का हचत्रण करने का यथोहचत प्रयास दकया। अचायज हचतामहण, कु लपहत
हमश्र, देि, सुरहत हमश्र, कु मारमहण शास्त्री, सोमनाथ, श्रीपहत, हभखारीदास, प्रतापहसह
अदद अचायज आस क्षेत्र के प्रमुख कहि हैं।
अचायज रामचंद्र शुक्ल ने हहदी में रीहतिंथ रचना की परं परा का प्रारं भकताज अचायज
हचतामहण को माना है। लेदकन नए शोधों ि ऄध्ययनों के बाद ऄहधकतर हिद्वानों ने के शिदास
को रीहतिंथ रचना का प्रितजक माना है। ईनके द्वारा रहचत ‘कहिहप्रया’ और ‘रहसकहप्रया’ दोनों
ही ईिम कोरट के िंथ माने जाते हैं हजनसे के शिदास के बाद के कहियों ने ऄपनी रचना के हलए
अधार िहण दकया।
हहदी में रीहतिंथ रचने की परं परा संस्कृ त से अइ। रीहतकाल का ऄलंकारशास्त्र हहदी में
प्रहतहष्ठत हो रहा था तथा संस्कृ त ऄलंकारशास्त्र का ऄंत। यह एक सुंदर संयोग है। के शि,
श्रीपहत, देि, हभखारीदास जैसे कु छ अचायों ने ऄपनी मौहलकता ददखाइ ककतु ऄहधकांश ने
संस्कृ त का ही ऄनुकरण दकया।
हप्रय छात्रो !भारत में काव्यशास्त्र की लंबी परं परा रही है। आसके तहत छह हिचारधाराएाँ
अती हैं -रस, ऄलंकार, ध्िहन, रीहत, िक्रोहि और औहचत्य। आन्हें ‘संप्रदाय’ कहा जाता है। हहदी
में रीहतकाल के लक्षण-िंथों पर आनमें से तीन प्रमुख संप्रदायों का प्रभाि पड़ा है। िे हैं -ऄलंकार,
रस और ध्िहन। के शि जैसे कु छ कहि शास्त्र रचना कर अचायज के रूप में प्रहतहष्ठत हुए तो, ऄन्य
कहियों में भी अचायजत्ि की होड़-सी लग गइ। यहााँ तक दक भूषण जैसे िीररस के कहि ने भी
अचायजत्ि पाने के हलए ‘हशिराज भूषण’ की रचना की।
देि द्वारा दकया गया रस-हििेचन ऄपेक्षाकृ त ऄहधक हिस्तृत और मौहलक है। महतराम का
कहि रूप अचायज की तुलना में कहीं ऄहधक प्रबल है। ईनके तथा पद्माकर के लक्षण-ईदाहरण न
के िल सटीक हैं, ऄहपतु सरस भी हैं। शृंगारी अचायों में हभखारीदास सिोच्च स्थान रखते हैं।
ध्िहन, रस, ऄलंकार, गुण-दोष अदद सभी हिषयों पर हभखारीदास ने लक्षण-ईदाहरण प्रस्तुत
152
दकए हैं। जसिंत हसह ने ‘भाषा-भूषण’ की रचना कर ऄपने अचायजत्ि का पररचय ददया। आस
प्रकार ईन अचायज कहियों ने रीहतकाल की रहसकता और सरसता के िास्तहिक स्िरूप को
प्रस्तुत दकया।
बोध प्रश्न
काव्यांग-हनरूपण से क्या अशय है?
रीहतबद्ध कहियों को लक्षण िंथकार क्यों कहा जाता है?
सुहप्रय छंद के क्या लक्षण हैं?
ऄहतयुहि ऄलंकार कहााँ होता है?
ऄलंकार हनरूपक अचायज दकसे कहते हैं?
रस और नायक-नाहयका भेद के हनरूपक अचायज कौन हैं?
सिाांग हनरूपक अचायज दकसे कहते हैं?
रीहतिंथ रचना के प्रितजक कौन हैं?
153
के शिदास रहचत प्रामाहणक िंथ नौ हैं -रहसकहप्रया, कहिहप्रया, नखहशख, छंदमाला,
रामचंदद्रका, िीरहसह-देि-चररत, रतनबािनी, हिज्ञानगीता और जहााँगीर जस-चंदद्रका। आनमें
प्रथम चार िंथ काव्यशास्त्र से संबंहधत हैं। ईल्लेखनीय है दक रहसकहप्रया और कहिहप्रया में
आन्होंने संस्कृ त के लक्षण िंथों का ऄनुिाद दकया और ईदाहरण के रूप में ऄपनी कहिताएाँ दी हैं।
रहसकहप्रया में रस, िृहि (मन के व्यापार( और काव्यदोषों के लक्षण ईदाहरण ददए गए
हैं। यह मुख्यतः रस-हििेचन से संबंहधत िंथ है, हजसमें प्रमुखतः शृंगार रस का िणजन है। ऄन्य
रसों का आन्होंने गौण रूप से िणजन दकया है। शृग
ं ार रस हनरूपण में नायक-नाहयका भेद का ही
हनरूपण दकया गया है।
कहिहप्रया काव्यहशक्षा संबंधी िंथ है। आसकी रचना ईन्होंने ऄपनी हशष्य प्रिीणराय को
हशक्षा देने के हलए रचा था। ऄतः आसमें कहि-हशक्षा, ऄलंकार-हनरूपण और काव्य के दोषों का
िणजन है। यह कहिकल्पलता-िृहि और काव्यादशज पर अधाररत है।
रामचंदद्रका के शिदास का सिाजहधक प्रहसद्ध महाकाव्य है। आसकी रचना प्रसन्नराघि,
हनुमन्नाटक, कादंबरी अदद कइ िंथों से सामिी िहण करके की गइ है। आसमें रामचररत का गान
िाल्मीदक की रामायण के अधार पर दकया गया है। लेदकन ईनमें भहि-भािना की ऄपेक्षा
काव्य-चमत्कार के प्रदशजन की भािना ऄहधक है। ऄतः यह कहा जाता है दक रामचंदद्रका का
हिषय राम-भहि है; ककतु के शि कहि पहले थे, भि बाद में।
छंदमाला छंद-संबंधी िंथ है। यह एक छोटी-सी पुहस्तका है हजसमें साधारण रूप से छंद-
संबंधी हशक्षा दी गइ है। आस िंथ का ऐहतहाहसक दृहि से महत्ि है।
के शि ने भहिकाल के कहियों की तरह धमाजश्रय या लोकाश्रय में रचना नहीं की। ईन्हें
राज्याश्रय प्राप्त था। ऄथाजत के शि दरबारी कहि थे। ऄन्य दरबारी कहियों की भााँहत ईन्होंने भी
ऄपने अश्रयदाता राजाओं का यशोगान दकया है। रतनबािनी, िीरहसह-देि-चररत तथा
जहााँगीर जस-चंदद्रका ईनकी ऐसी ही रचनाएाँ हैं।
हिज्ञानगीता अध्याहत्मक िंथ है जो संस्कृ त नाटक प्रबोधचंद्रोदय के अधार पर रहचत
काव्य है। आसमें के शि ने िैराग्य से संबंहधत भािनाओं को व्यि दकया है।
के शि की हिहभन्न रचनाओं में िर्मणत कहियों के आस संहक्षप्त पररचय के अधार पर कहा
जा सकता है दक के शिदास में काव्य-सृजन की हिहिध शैहलयों की क्षमता थी।
बोध प्रश्न
.के शिदास द्वारा रहचत प्रामाहणक िंथों का नाम बताआए।
10.2.3.2 काव्यागत हिशेषताएाँ
अचायजत्ि या कहित्ि
के शि ने काव्यशास्त्र की परं परा का हनिाजह करते हुए रीहतबद्ध काव्य की रचना की।
154
ईनकी आस प्रिृहि के अधार पर यह कहा जा सकता है दक हहदी साहहत्य में के शि का अचायज के
रूप में हजतना महत्ि है, ईतना कहि के रूप में नहीं। प्रबंधकाव्य रामचंदद्रका में परं परा पालन
तथा ऄहधकाहधक ऄलंकारों को समाहिि करने के कारण िणजनों की भरमार है। चहल-पहल,
नगरशोभा, साजसज्जा अदद के िणजन में आनका मन ऄहधक रमा है। प्रबंधों की ऄपेक्षा मुिकों में
आनकी सरलता ऄहधक स्थलों पर व्यि हुइ है। ऄन्यथा आनके काव्य में चमत्कार पैदा करने की
प्रिृहि ने ईसे दुरूह बना ददया है। आसीहलए ईन्हें प्रायः ‘करठन काव्य के प्रेत’ कहा जाता है।
प्रकृ हत िणजन
राजदरबारों की साज-सज्जा के बीच रहने के कारण के शि की प्रिृहि प्रकृ हत में नहीं
रमती थी। ईनका प्रकृ हत-हचत्रण दोष-पूणज है। ईसमें परं परा का हनिाजह ऄहधक है, मौहलकता
और निीनता कम। िणजन करने में कहीं-कहीं के शि ने काल और स्थान का भी ध्यान नहीं रखा
है। ऄलंकारों के बोझ से दबी प्रकृ हत ऄपना सौंदयज खो बैठी है। प्रकृ हत के संबंध में के शि की
कल्पनाएाँ कहीं-कहीं पर बड़ी ऄसंगत और ऄरुहचकर हो गइ हैं।
संिाद योजना
के शि राजदरबारों के हलए ईपयुि िाक्पटु ता के गुण से संपन्न थे। आसहलए ईनके काव्य
में संिाद योजना ऄत्यंत अकषजक, नाटकीय और प्रिाहपूणज बन पड़ी है। ईनमें राजदरबारों जैसी
हाहजर-जिाबी और हशिता है। ईनके द्वारा चररत्रों का ईद्घाटन सुंदर ढंग से हुअ है। जनक-
हिश्वाहमत्र संिाद, लि-कु श संिाद, सीता-हनुमान संिाद आसी प्रकार के संिाद हैं।
पांहडत्य-प्रदशजन
रीहतकाल की एक प्रमुख प्रिृहि पांहडत्य प्रदशजन भी है। के शि भी आसके ऄपिाद नहीं है।
आस प्रिृहि का कारण दरबारी िातािरण में हनहहत है। डॉ .हिजयपाल हसह ने आस प्रिृहि के
तीन संदभज बताए हैं- “पहला, दरबार के पररिेश में काव्य पाठ्य कम, श्रव्य ऄहधक था। के िल
काव्य सुनना नहीं, प्रहतयोहगताओं में हिजयी होना और सम्माहनत होना भी अिश्यक था।
दूसरा, िैभि के प्रदशजनाथज और ऄहभजातीय तत्ि की गूाँज के हलए ऄलंकरण का िाक् चातुयज
जरूरी था। ऄलंकरण की यह ऄहधकता मुगल शैली की हचत्रकला में भी देखी जा सकती है।
तीसरा, िारसी काव्य की प्रहतद्वंहद्वता थी। िारसी काव्य आश्कहमजाजी की हजस चमत्काररक
‘िाह-िाह’ शैली से संपन्न था हहदी कहियों के हलए असान नहीं था। ऄतः रीहतकाल के कहि
अचायों द्वारा हनर्ममत हहदी काव्यशास्त्र का स्िरूप भी आन्हीं िगजगत युगीन अिश्यकताओं के
ऄनुरूप ढला”। (हहदी साहहत्य का समीक्षात्मक आहतहास, पृ 178(
आन कारणों के चलते के शिदास का ध्यान हजतना पांहडत्य-प्रदशजन की ओर था, ईतना
155
भाि-प्रदशजन की ओर नहीं। अप जानते हैं दक पांहडत्य-प्रदशजन की प्रिृहि के कारण ही के शि को
हृदय हीन कहि या करठन काव्य का प्रेत कहा जाता है। ककतु यह अरोप पूणजतः सत्य नहीं,
क्योंदक पांहडत्य प्रदशजन के साथ-साथ के शि के काव्य में ऐसे भी ऄनेक स्थल हैं, जहााँ ईनकी
भािुकता और सहृदयता पूणज साकार हो ईठी है। ईनके काव्य में कल्पना और महस्तष्क का योग
ऄहधक है। जैस,े ऄशोक िारटका में हनुमान जब सीता को राम की मुदद्रका देते हैं, तो मुदद्रका के
प्रहत सीता का यह कथन ऄत्यंत भािपूणज है -
श्री पुर में बन मध्य मैं, तू मग करे ऄनीहत।
कहह मुाँदरी ऄब हतयन की, को करर हैं परतीहत॥
भाषा
के शि ने ऄपने काव्य के हलए ब्रजभाषा को ऄपनाया, परं तु ब्रजभाषा का जो ढला हुअ
रूप सूर अदद ऄिछाप के कहियों में हमलता है िह के शि की कहिता में ईपलधध नहीं होता। िे
संस्कृ त के प्रकांड पंहडत थे, ऄतः ईनकी भाषा संस्कृ त से ऄत्यहधक प्रभाहित है। कहा जाता है दक
आनके पररिार के नौकर भी संस्कृ त बोलते थे और आनके हपता स्ियं संस्कृ त के बड़े हिद्वान थे।
आसी कारण, के शि ने संस्कृ त के तत्सम शधदों को ही नहीं, संस्कृ त की हिभहियों को भी
ऄपनाया है, कहीं-कहीं तो ईनके छंदों की भाषा संस्कृ त ही जान पड़ती है। के शि की भाषा में
बुंदल
े खंडी और ऄिधी भाषा के शधदों का भी प्रयोग हमलता है।
काव्य-सौंदयज
के शि ने छंदों और ऄलंकारों के समािेश द्वारा ऄपने काव्य को सौंदयज संपन्न बनाया है।
संस्कृ त साहहत्य से हलए गए छंदों के साथ-साथ ईन्होंने कहिि, सिैया, दोहा अदद छंदों का भी
सिलतापूिजक ईपयोग दकया है। छंदमाला िंथ आसका ईदाहरण है। के शि की शैली प्रौढ़ और
गंभीर है। ईनकी शैली पर व्यहित्ि की छाप स्पि ददखाइ देती है। के शि को ऄलंकारों से हिशेष
मोह था। ईनके ऄनुसार -
जदहप सुजाहत सुलच्छनी, सुबरन सारस सुिृि
भूपन हबनु न हबराजइ, कहिता िहनता हमि॥
ऄतः ईनकी कहिता में हिहभन्न ऄलंकारों का प्रयोग सिजत्र ददखाइ देता है। ऄलंकारों के
बोझ से कहिता के भाि दब से गए हैं और पाठक को के िल चमत्कार हाथ लगता है।
के शिदास हहदी साहहत्य के प्रथम ऐसे अचायज हैं हजन्होंने भहिकाल में होते हुए भी
भहिकाल से ऄलग परं परा चलाइ।
हहदी में सिजप्रथम के शि ने ही काव्य के हिहभन्न ऄंगों का शास्त्रीय पद्धहत से हििेचन
दकया। यह ठीक है दक ईनके काव्य में भाि पक्ष की ऄपेक्षा कला पक्ष की प्रधानता है और
156
पांहडत्य प्रदशजन के कारण ईन्हें ‘करठन काव्य का प्रेत’ कह कर पुकारा जाता है। ककतु आससे
ईनका महत्ि समाप्त नहीं हो जाता। जहााँ के शि का हृदय रमा है िहााँ ईनका कहि-रूप ईभरा
है। अचायज रामचंद्र शुक्ल के शधदों में “के शि की रचना में सूर, तुलसी अदद की सी सरलता और
तन्मयता चाहे न हो, पर काव्यंगों का हिस्तृत पररचय करा कर ईन्होंने अगे के हलए मागज
खोला। ”के शिदास िस्तुतः एक श्रेष्ठ कहि थे। सूर और तुलसी के पश्चात हहदी काव्य-जगत में
ईन्हीं की ही गणना की जाती है -‘सूर सूर तुलसी ससी ईडु गन के शिदास।’
बोध प्रश्न
के शिदास को ‘करठन काव्य का प्रेत’ क्यों कहा जाता है?
के शिदास के काव्य की चार प्रमुख हिशेषताएाँ बताआए।
के शिदास का प्रकृ हत-हचत्रण दोषपूणज क्यों है?
158
में भारत की हिहभन्न जाहतयों की हस्त्रयों का शृग
ं ाररक िणजन है। शृंगार-रस हनरूपण में आन्हें
हिशेष सिलता हमली। ईदाहरण देखें -
माखन सो तन, दूध सों जोबन, है दहध ते ऄहध कै ईर इठी।
जा छहब अगे छपाकर छाछ, समेत सुधा िसुधा सब सीठी॥
नैनन नेह चुबै कहह देि बुझाित बैन हियोग ऄंगीठी।
ऐसी रसीली ऄहीरी ऄहै, ऄहो क्यों न लगै मनमोहन मीठी।
10.3 पाठ-सार
रीहतकाल के साहहत्य की मुख्य प्रिृहि रीहत हनरूपण है। ‘रीहत’ का ऄथज हैं िे हसद्धांत
ऄथिा ईपकरण हजनके सहारे कहिता की रचना की जा सकती है। आन कहियों की तीन शैहलयााँ
हैं -रीहतबद्ध, रीहतहसद्ध और रीहतमुि। रीहतबद्ध कहि िे हैं हजन्होंने ऐसे िंथ रचे हजनमें
हसद्धांत बताते हुए ईसके ऄनुसार ईदाहरण ददए गए हैं। आन िंथों को ‘लक्षण िंथ’ कहा जाता है
और आन कहियों को ‘अचायज’ कहकर पुकारा जाता है। आस धारा के प्रमुख कहियों में
के शि,हचतामहण, पद्माकर, देि, महतराम, जसिंत हसह, हभखारी दास, दूलह, भूषण, ग्िाल
और प्रतापसाही अदद कहि शाहमल हैं। खासतौर पर रीहत काव्य के प्रितजन का श्रेय अचायज
159
के शिदास को है। आनकी रचनाओं में रहसकहप्रया, कहिहप्रया और रामचंदद्रका प्रमुख हैं।
रामचंदद्रका का हिषय राम भहि है। ककतु के शि कहि पहले थे और भि बाद में। ऄन्य रीहतबद्ध
कहियों में देि का स्थान ऄत्यंत महत्िपूणज है। आन्होंने 72 िंथों की रचना की, हजनमें
भािहिलास, प्रेमचंदद्रका, जाहतहिलास और रसहिलास प्रमुख हैं। भािहिलास में काव्य के
हिहिध ऄंगों का िणजन है और जाहतहिलास में हिहभन्न जाहत की हस्त्रयों के शृंगाररक िणजन है।
10.5 शधदाथज
1. ऄहभजात = कु लीन, ईच्च िगीय
2. हपगल = एक भाषा शैली
3. मुिक = स्ितंत्र छंद युि रचना
4. संप्रदाय = पंथ, धारा
खंड (ब(
हनम्नहलहखत प्रश्नों के ईिर लगभग 200 शधदों में दीहजए।
160
1. रीहतबद्ध कहियों को दकतने िगों में हिभाहजत दकया जाता है? संक्षेप में प्रकाश डालें।
2. रीहतबद्ध कहि हभखारीदास पर रटप्पणी हलहखए।
खंड (स(
III सुमल
े कीहजए
i) जयदेि (ऄ( काव्यप्रकाश
ii) हिश्वनाथ (अ( अचंद्रालोक
iii) मम्मट (आ( साहहत्य दपजण
161
आकाइ 11 : रीहतहसद्ध काव्य
आकाइ की रूपरे खा
11.0 प्रस्तािना
11.1 ईद्देश्य
11.2 मूल पाठ :रीहतहसद्ध काव्य
11.2.1 रीहतहसद्ध काव्य का ऄथज
11.2.2 रीहतहसद्ध काव्यधारा का िैहशष्ट्य
11.2.3 प्रमुख रीहतहसद्ध कहि :हबहारी
11.3 पाठ-सार
11.4 पाठ की ईपलहधधयााँ
11.5 शधद संपदा
11.6 परीक्षाथज प्रश्न
10.7 पठनीय पुस्तकें
11.0 प्रस्तािना
हप्रय छात्रो !अप जानते हैं दक हहदी साहहत्य के आहतहास के रीहतकाल का समय 1650
इ .से 1850 इ .तक माना जाता है। रीहतकालीन साहहत्य की रचना दरबारी और सामंहत
िातािरण में हुइ। प्रदशजन की प्रिृहि की प्रधानता के कारण आस काल में ऄनेक कहियों ने ऄपने
अश्रेयदाता राजाओं की प्रशंसा के हलए शृंगारी काव्य की रचना बड़ी मात्रा में की। दरबारी
संस्कृ हत के प्रभाि से आस काल के कहियों का रुझान सूरा, स्िणज और सुंदरी की ओर ऄहधक रहा।
आसमें शक नहीं की आस काल में कु छ कहियों ने नीहत, भहि और ओज प्रधान काव्य की भी
रचना की। लेदकन आस काल के साहहत्य के कें द्र में ‘रीहत’ ही ददखाइ देती है। रीहत के अधार पर
आस काल की तीन मुख्य प्रिृहियााँ हैं -रीहतबद्ध काव्य, रीहतहसद्ध काव्य और रीहतमुि काव्य।
ऄभी तक अपने रीहतबद्ध काव्य और ईसके रचहयता, मुख्य कहियों के बारे में जानकारी प्राप्त
की। आस आकाइ में अप दूसरी प्रिृहि ऄथाजत रीहतहसद्ध काव्य तथा ईसके प्रमुख रचनाकारों का
पररचय प्राप्त कर सकें गे।
162
11.1 ईद्देश्य
आस आकाइ के ऄध्ययन से अप –
रीहतहसद्ध काव्य का ऄहभप्राय जान सकें गे।
रीहतहसद्ध काव्य की हिशेषताओं से पररहचत हो सकें गे।
हहदी के रीहतहसद्ध कहियों का पररचय प्राप्त कर सकें गे।
प्रमुख रीहतहसद्ध कहि हबहारी के जीिन और व्यहित्ि के बारे में जान सकें गे।
प्रमुख रीहतहसद्ध कहि हबहारी के काव्य की हिशेषताओं को समझ सकें गे तथा रीहतहसद्ध
काव्य के महत्ि को समझ सकें गे।
बोध प्रश्न
रीहतबद्ध और रीहतहसद्ध से क्या ऄहभप्राय है?
163
के सैद्धांहतक हििेचन को लक्ष्य नहीं बनाया, ऄहपतु काव्यशास्त्र द्वारा हनधाजररत मागज के ऄनुरूप
काव्य-रचना की। दूसरे शधदों में कहें तो ईन कहियों ने रस, ऄलंकार अदद के न तो
लक्षण(पररभाषाएाँ( ददये और न ही आनका सैद्धांहतक हििेचन दकया, ऄहपतु आन काव्यांगों को
दृहिगत रखते हुए काव्य-रचना की। ईदाहरणाथज अचायज कहियों ने जहां ईपमा, ऄनुप्रास ऄथिा
श्लेष ऄलंकारों के लक्षण ददये, िहााँ आस िगज के कहियों ने ईपमा, ऄनुप्रास ऄथिा श्लेष ऄलंकारों
से युि कहिताएं हलखीं।”(हहदी भाषा और साहहत्य का आहतहास, पृष्ठ 202(
अचायज हमश्र ने आस काव्यधारा को रीहतहसद्ध कहने का अशय आस तरह स्पि दकया है
दक आस धारा के कहियों ने रीहत परं परा हसद्ध कर ली थी। आसका ऄथज यह हुअ दक िे रीहत के
ममजज्ञ थे; ईसके ऄनुसरण को भी ऄपना दाहयत्ि समझते थे, लेदकन ऄपनी कहिताओं के
ऄहतररि ऄलग से आनका प्रदशजन करना ईनका ध्येय नहीं था। अचायज हमश्र ने आस धारा के
एकमात्र कहि के रूप में हबहारी (हबहारी सतसइ( का ईल्लेख दकया है। कु छ साहहत्य
आहतहासकार आस धारा में सेनापहत (कहिि रत्नाकर, काव्य कल्पद्रुम( और हद्वजदेि (शृंगार
बिीसी, शृंगार लहतका ( सहहत कु छ ऄन्य कहियों को भी सहम्महलत करते हैं। आन कहियों को
आस धारा में रखने के हिषय में साहहत्य आहतहासकारों में पयाजप्त मतभेद है, लेदकन हबहारी आस
धारा के हनर्मििाद कहि माने जाते हैं।
रीहतहसद्ध कहियों की यह हिशेषता मानी जाती है दक आनकी रचनाओं में भािपक्ष और
कलापक्ष में एक ऐसा संतुलन ददखाइ देता है, जो रीहतबद्ध कहियों के यहााँ नहीं हमलता।
रीहतहसद्ध कहियों का मुख्य ईद्देश्य अचायज कहियों की भााँहत काव्य के तत्िों का हनरूपण करना
नहीं था, बहल्क ईनकी प्रथम लक्ष्य भािों की सिल ऄहभव्यहि करना था। आसके ऄहतररि आन
कहियों ने शास्त्रीय परं परा का भी पयाजप्त ध्यान रखा है। आसहलए स्िाभाहिक रूप से आनकी
कहिताओं में भाि और पारं पररक काव्यशास्त्रीय हशल्प का सुंदर संतल ु न ददखाइ देता है।
ईदाहरण के हलए हबहारी की रचनाओं में से एक दोहा देखा जा सकता है- “कनक-कनक ते सौ
गुनी मादकता ऄहधकाय। /िा खाए बौराय जग या पाए बौराय॥ ”आस दोहे में यमक ऄलंकार का
बहुत ही प्रभािी प्रयोग दकया गया है। आसमें ‘कनक’ शधद दो बार प्रयुि हुअ है। यहााँ पहले
कनक का ऄथज है धतूरा और दूसरे कनक का ऄथज है सोना। आस दोहे का अशय यह है दक सोने की
मादकता धतूरे से सौ गुना ऄहधक है। धतूरे को तो खाने के बाद लोग बौराते हैं, लेदकन सोना तो
के िल प्राप्त कर लेने भर से दुहनया बौरा जाती है।
िस्तुतः रीहतहसद्ध कहियों ने लक्षण िंथों की रचना न करके ऄपने स्ितंत्र िंथों द्वारा
ऄपनी कहि-प्रहतभा का पररचय ददया तथा स्िानुभूहत के अधार पर मौहलक काव्य की रचना
की। रीहतकहियों की तुलना में आन कहियों की िैयहिकता ऄपेक्षाकृ त ऄहधक ईभरी है। आन्होंने
164
भािपक्ष और कलापक्ष दोनों को समान महत्ि ददया। भािाहभव्यहि के हलए आन्होंने भी
अलंकाररक शैली का सहारा हलया। आन कहियों ने नीहत, भहि जैसे हिषयों पर भी रचनाएाँ की।
आनमें हबहारी का नाम सिोपरर है। ईनकी ‘हबहारी सतसइ’ रीहतहसद्ध काव्य की प्रमुख रचना है।
आनके ऄलािा रीहतहसद्ध काव्यधारा के ऄन्य प्रमुख कहि और ईनकी रचनाएाँ हैं -
भूपहत :भूपहत सतसइ
हठीजी :श्री राधासुधा शतक
बेनी :नि रस तरं ग, शृंगार भूषण
कृ ष्ण कहि :हबहारी सतसइ की टीका
रसहनहध :रतन हजारा
सेनापहत :काव्य कल्पद्रुम, कहिि रत्नाकर
बोध प्रश्न
रीहतहसद्ध कहियों की क्या हिशेषताएाँ हैं?
ऄथाजत आस समय कली का पूणज हिकास नहीं हुअ है। तब भी, हे भ्रमर, तू कली ही से
हबद्ध हो गया है, तो अगे तेरी क्या दशा होगी। यह दोहा हलखकर हबहारी ने यह हसद्ध दकया है
दक कहिता के िल धन के हलए ही नहीं, बहल्क पथ-प्रदशजन करने के हलए भी हलखी जा सकती है।
कहा जाता है दक हबहारी के आस दोहे पर राजा आतने रीझ गए दक ईन्होंने प्रत्येक दोहे की रचना
के हलए हबहारी को एक-एक स्िणज मुद्रा देने की घोषणा कर दी। ईसी ऄिहध में हलखे गए दोहों
का संिह है ‘हबहारी सतसइ’। ‘हबहारी सतसइ’ मुिक काव्य का सिजश्रेष्ठ ईदाहरण है। यह
165
िास्ति में सप्तशती, ऄमरुक शतक, गाथा सप्तशती अदद िंथों की प्रेरणा से रहचत काव्य है। दिर
भी आसकी श्रेष्ठता ऄतुलनीय है। यह रचना शृंगार, भहि एिं नीहत की हत्रिेणी का संगम है। डॉ .
हियसजन के ऄनुसार, यूरोप में ‘हबहारी सतसइ’ के समकक्ष कोइ रचना नहीं है। ‘हबहारी सतसइ’
में भाि और कला दोनों का सुंदर समािेश हुअ है। हबहारी संहक्षप्त एिं नपे तुले शधदों में दकसी
भी िस्तु या भाि की ऄहभव्यंजना में हसद्धहस्त थे। ईदाहरण के हलए,
तंहत्रनाद कहिि रस, सरस राग रहत रं ग।
ऄनबूड़े बूड़े हतरे , जे बूड़े सब ऄंग॥
ऄथाजत िाद्य संगीत, कहिता और रहत आन तीनों का संपूणज अनंद ईनमें पूरी तरह डू बने
िाले ही पा सकते हैं।
हबहारी का ब्रजभाषा पर ऄसाधारण ऄहधकार था। ईन्होंने िारसी भाषा का भी गहरा
ऄध्ययन दकया था। भाषा को मााँजने, चमकाने, मोड़ने और साँिारने में िे हसद्धहस्त थे। ईनकी
रचनाओं में व्रजभाषा की प्रौढ़ता एिं भािसंपन्नता हनखर अइ है। हबहारी की प्रांजल भाषा की
सरसता एिं मधुरता के प्रमाण के रूप में कु छ ईदाहरण देखे जा सकते हैं।
कहि ने नाहयका के रूप की प्रशंसा करते हुए ईसकी देह को दीपहशखा के समान िर्मणत
दकया है। कहि कहते हैं दक नाहयका के ऄंग-ऄंग में जहड़त अभूषणों के प्रकाश से ददये बुझा देने
पर भी घर में प्रकाश िै ला रहता है -
ऄंग-ऄंग नग जगमगाहत, दीप हसखा-सी देह।
ददया बुझाए हाँ रहै, बड़ो ईजेरो गेह॥
हबहारी ने नाहयका के नेत्रों की सुंदरता का िणजन करते हुए कहा है दक ईसके नैनों की
चंचलता खंजन पक्षी की अाँखों की सुंदरता को भी पराहजत करती है। यथा -
रस हसगार मंजन दकये, कं जन भंजन दैन।
ऄंजन रं जन ह हबना, खंजन गंजन नैन॥
आसी प्रकार, नाहयका की रूप-छहि का िणजन करते हुए कहि ऄन्यत्र कहते हैं दक के सर
ईसकी बराबरी कै से कर सकता है, चंपा की सुंदरता भी ईसके समक्ष कु छ नहीं, ईसके शरीर की
रूप-छटा से सोना भी लहज्जत हो जाता है -
के सरर कै सरर क्यों सके , चम्पक दकतक ऄनूप।
गात रूप लहख जात दूरर, जातरूप को रूप॥
‘हबहारी सतसइ’ में रस, भाि, नाहयका भेद, ध्िहन, रीहत, िक्रोहि अदद को अकषजक
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ढंग से प्रस्तुत दकया गया है। अचायज हिश्वनाथ प्रसाद हमश्र मानते हैं दक “हबहारी ने अचायज कमज
से दूर रहकर जो सतसइ रची ईसमें रीहतयााँ स्ितः ही हसद्ध होती चली गइ हैं, आसहलए ईन्हें
रीहतहसद्ध कहि कहा जा सकता है। ”मुिक शैली में रहचत सतसइ में रसात्मकता की प्रधानता
है। हबहारी की कीर्मत का अधार यही एकमात्र िंथ है। आस संबंध में अचायज शुक्ल का कहना है -
“यह बात साहहत्य क्षेत्र के आस तथ्य की स्पि घोषणा कर रही है दक दकसी कहि या ईसकी
रचनाओं के पररणाम से नहीं होता, गुण के हहसाब से होता है”। (हहदी साहहत्य का आहतहास,
पृ 136.। मुिक काव्य के कहि में कल्पना की समाहार शहि और भाषा की समास-शहि का
होना ऄहनिायज होता है। मुिक का यह गुण ऄपने भव्य रूप में हबहारी में हिद्यमान है। ईनका
प्रत्येक दोहा एक ईज्ज्िल रत्न है। यथा -
कहत, नटत, रीझत, खीझत, हमलत, हखलत, लहजयात।
भरे भौन में करत हैं, नयनन हीं सों बात॥
हबहारी ने गागर में सागर भर ददया है। आसीहलए कहा जाता है दक
सतसैया के दोहरे , ज्यों नािक के तीर।
देखन में छोटे लगैं, घाि करैं गंभीर॥
‘हबहारी सतसइ’ में प्रकृ हत और नारी सौंदयज के हिहभन्न रूप हमलते हैं। प्रेम, हिरह,
भहिभाि, दशजन अदद का प्रहतपादन भी आसमें हमलता है। सौंदयज और प्रेम के हनरूपण में
हबहारी को ऄहद्वतीय सिलता हमली। ककतु हियोग िणजन में ऄनेक स्थलों पर बढ़ा-चढ़ाकर िणजन
(उहा) करने के कारण ज्यादती भी हो गइ। ऐसे िणजन प्रायः ऄस्िाभाहिक और हास्यास्पद
प्रतीत होते हैं। ईदाहरणाथज, एक दोहे के ऄनुसार, हिरह-दुख के कारण नाहयका आतनी दुबली हो
गइ है दक सााँस लेने और छोड़ने के साथ-साथ छह-सात हाथ आधर से ईधर चली जाती है -ऐसा
लगता है मानो िह झूले पर झूल रही हो। आसी प्रकार ऄन्यत्र कहते हैं दक हिरह-िेदना के कारण
नाहयका के शरीर से ऐसी लपटें ईठ रही हैं दक सहखयााँ जाड़े में भी गीले कपड़े लपेटकर बड़ी
करठनाइ से ईसके पास जा पाती हैं -
आत अित चहल जात ईत, चली छ-सातक हाथ।
चढ़ी हहडोरे सी रहै, लगी ईसासन साथ।
अड़े दै अले बसन, जाड़े हाँ की राहत।
साहसु ककै सनेह बस, सखी सबै दढग जाहत॥
पर ऐसे ईदाहरण ‘हबहारी सतसइ’ में ऄहधक नहीं हैं। राजनीहत, दशजन, नीहत अदद के
हिचारों का भी प्रहतपादन हबहारी ने प्रभािशाली रूप में दकया है। जैसे -आसी प्रकार भहि की
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व्यंजना भी ईन्होंने की है तथा राधा और कृ ष्ण के जीिन के शृंगारी हचत्र ईतारे हैं। यथा -
राधा की िंदना
मेरी भि बाधा हरो, राधा नागरी सोय।
जा तन की झााँइ परै , श्याम हररत दुहत होय॥
‘हबहारी सतसइ’ में के िल दो छंदों का प्रयोग हमलता है -दोहा तथा सोरठा। आनकी
भाषा लोकप्रचहलत ब्रजभाषा का साहहहत्यक रूप है। आसके ऄलािा बुंदले ी और पूिी भाषा का
प्रभाि भी पररलहक्षत होता है। आनका शधद-गठन और िाक्य-हिन्यास आतना सुव्यिहस्थत है दक
एक शधद भी आधर से ईधर नहीं दकया जा सकता। मुहािरे ि लोकोहियों के प्रयोग में भी िे
हसद्धहस्त हैं। यमक, ऄनुप्रास, िीप्सा अदद शधदालंकार हबहारी को बहुत हप्रय हैं। ईल्लेखनीय है
दक रीहतकाल में तीन संप्रदाय प्रचहलत थे -ऄलंकार, रस और ध्िहन। आनमें हबहारी ध्िहनिादी
कहि हैं। अचायज शुक्ल के शधदों में हबहारी के दोहे में ऄलंकार और रस हाथी-दााँत पर खुदे बेल-
बूटों के समान सबको अकर्मषत करने िाले नाजुक रूप में प्रयोग हुए हैं।
(हहदी साहहत्य का आहतहास, पृ 173)
बोध प्रश्न
‘हबहारी सतसइ’कै सी रचना है?
मुिक काव्य की क्या हिशेषताएाँ हैं?
रीहतकाल में दकतने संप्रदाय प्रचहलत थे?
168
हबहारी की भाषा
हबहारी ने ऄपने काव्य की रचना ब्रज भाषा में की है। ईनसे पहले काव्य-भाषा के रूप में
ब्रज भाषा भहि काल के कृ ष्ण भि कहियों में हिशेषकर सूरदास और नंददास के काव्य में
साहहहत्यक पररष्कार और संगीतात्मकता की शहि पा चुकी थी। ईस काल में काव्य-भाषा के
रूप में ब्रज भाषा का प्रसार आतना ऄहधक हो चुका था दक िह समूचे मध्य देश की भाषा बन गइ
थी। ईसे ऄपने दोहों में ऄपनाकर हबहारी ने रीहतकालीन ऄलंकरण तथा चमत्कारपरक
भंहगमाओं में ऄच्छी तरह ढाल ददया। ईन्होंने शधद चयन की सतकज ता के साथ ईसकी ऄनगढ़ता
को तराशकर नया रूप प्रदान दकया। ईनका पूरा बल शधदों की तराश पर कें दद्रत रहा। यह
तराश दो रूपों में देखी जा सकती हैं- (1( शधदों का ऄनुकूलन करके -जैसे, परछाइ की जगह
‘झांइ’ का हिशेष रूप से प्रयोग, जा तन की झांइ परै स्याम हररत दुहत होय। (2(कु छ शधदों में
प्रत्यय लगाकर -जैस,े सतरौहैं या सिाहडल जैसे हिशेषण। कहना न होगा दक हबहारी ने आन
शधदों को नया संस्कार ददया। “ध्िन्यात्मिा और व्याकरहणक दोनों स्तरों पर कहि की यह
भाहषक तराश रीहतकालीन मनोिृहि और मुगलकालीन कला की बारीक-पसंदी के समानांतर
चलती है। आस संदभज में हबहारी को रीहतकालीन काव्य-भाषा का प्रहतहनहध कहा जा सकता है। “
(डॉ .रामस्िरूप चतुिेदी, मध्यकालीन हहदी भाषा, पृ . 130। (
ईल्लेखनीय है दक हबहारी के यहााँ काव्य-भाषा और ब्रज संस्कृ हत का ऄहिहछन्न संबंध
दृहिगत होता है। आसहलए यह स्िाभाहिक ही है दक ईनके काव्य भािों ,हचत्रों ,िणजनों अदद में
ब्रज संस्कृ हत के शृंगाररक हचत्र मूतज रूप में प्रस्तुत हों। राधा-कृ ष्ण की भहि और शृंगार हमहश्रत
परं परा हबहारी को संस्कार रूप में हमली थी। यों ईनकी ब्रज भाषा में एक ओर तो भीतर से
शास्त्रीयता है तथा दूसरी ओर ब्रजभूहम की मुि जीिन पद्धहत का चटक रं ग ददखाइ देता है।
आतना ही नहीं ,ब्रज भाषा के स्थानीय प्रयोग करके हबहारी ने ऄपने दोहों में ऄहभव्यहि का
पैनापन भर ददया है। आससे साहहहत्यक ब्रज भाषा की हिश्वसनीयता को भी लोकिाह्य अधार
हमल सका है। ईनके दोहों में यह भी देखने िाली चीज है दक छोटे और हनर्मिकार ददखाइ पड़ने
िाले ऄव्यय शधद पूरे िाक्य के ऄथज को कै से हिकहसत करते हैं।
आसमें संदह
े नहीं दक हबहारी ने ब्रज भाषा की ऄहभव्यंजना शहि को नइ उाँचाइ प्रदान
की। ईन्होंने भाषा की लाक्षहणक िक्रता और माधुयज व्यंजना को बढ़ाने के हलए भाषा में
लोकोहि और मुहािरों का सजीि तथा साथजक प्रयोग दकया। जैसे -सूधो पांि न धरर परत
सोभा ही के भार। ×××मूड़ चढ़ाएंउ रहै परयो पीरठ कच भार। ×××परत गांठ बुरजन हहये
ददइ नइ यह रीहत।
ब्रज भाषा की सजजनात्मक शहि के हिस्तार में हबहारी के योगदान के बारे में अचायज
हिश्वनाथ प्रसाद हमश्र का यह कथन ऄत्यंत सटीक है दक “हबहारी का भाषा पर सच्चा ऄहधकार
था। ईनके बाद भाषा पर ऄच्छा ऄहधकार रखने िाले महतराम ,पद्माकर अदद कु छ ही प्रिीन
कहि हुए। अधुहनक युग में रत्नाकर का भी िैसा ही ऄहधकार था। घनानंद और दो एक के
169
ऄहतररि भाषा की दृहि से हबहारी की समता करने िाला ,भाषा पर िैसा ऄहधकार रखने
िाला कोइ मुिक रचनाकार नहीं ददखाइ देता” (हबहारी की िाहग्िभूहत ,पृ . 149।
बोध प्रश्न
हबहारी ने भाषा की लाक्षहणक िक्रता और माधुयज व्यंजना को बढ़ाने के हलए क्या दकया?
दकस हिद्वान ने हबहारी को ‘रीहतकालीन काव्य-भाषा का प्रहतहनहध’ कहा?
कहि ने यहााँ यह दशाजया है दक नायक से नाक मोड़कर, अाँखें नचाकर नाहयका ने हपता
की कसम खाइ और चली गइ। ईसकी कटीली भौंह नायक के हृदय में कांटे सी कसकती रह गइ।
नर नारी शृंगार के ऐसे अददम-हबबों की हबहारी की कहिता में भरमार है। आसी अददमता के
प्रभाि से राधा (नारी) का ध्यान करते ही कृ ष्ण (नर) का हचि हरा भरा हो जाता है “जा तन
की झांइ परे स्याम हररत दुहत होय। “
हबहारी की आस समास शैली की हिशेषता को रे खांदकत करते हुए अचायज रामचंद्र शुक्ल
170
ने हलखा है दक “हबहारी की भाषा चलती होने पर भी व्यिहस्थत है। िाक्य रचना व्यिहस्थत है
और शधदों के रूपों का व्यिहार एक हनहश्चत प्रणाली पर है। यह बात बहुत कम कहियों में पाइ
जाती है। भूषण और देि ने शधदों का बहुत ऄंग भंग दकया है और कहीं-कहीं गढ़ंत शधदों का
व्यिहार दकया है। हबहारी की भाषा आस दोष से भी बहुत कु छ युि है। दो एक स्थल पर ही
‘समर’ के हलए ‘स्मर’,‘ककै ’ ऐसे कु छ हिकृ त रूप हमलेंगे”।
(हहदी साहहत्य का आहतहास ,पृ 173 )।
बोध प्रश्न
हबब का प्रधान कायजक्या है?
हबब की कसौटी क्या है?
हबहारी ने ऄहभव्यहि के हलए दकस रूप को चुना?
सुमन शधद का प्रयोग सुद ं र मन िाली तथा पुष्प दोनों ऄथों में हुअ है। पर यदद सुमन की
जगह पुष्प शधद रख दें तो पूरे दोहे का चमत्कार नि हो जाता है।
हबहारी में ऄलंकारों का चमत्कार बहुत ज्यादा है। ऄनुप्रास और यमक के चमत्कार िाला
171
एक दोहा देखें -
रहनत भृंग घंटािली, झररत दान मधुनीर।
मंद-मंद अित चल्यो, कुं जर-कुं ज समीर॥
यहााँ शधद झंकृहत ने ध्िहन का हिस्तार दकया है। गले में घंटा बााँधे हाथी की मस्तानी
चाल से अने और कुं ज समीर के बहने में एक मोहक ऄथज झंकार है। यहााँ ऄलंकार ने के िल िसंत
िणजन के भाि हिस्तार की ही िृहद्ध नहीं की है बहल्क हबब के माध्यम से ऄनुभि को मूतज कर
ददया है। अलंकाररक चमत्कार प्रकृ त प्रसंग में भाि-सौंदयज का ईत्कषज करता है। आसी प्रकार -
ऄधर धरत हरर कै परत ओठ-डीरठ पट जोहत।
हररत बााँस की बााँसरु ी आन्द्र-धनुष राँ ग होहत॥
आस दोहे में तद्गुण ऄलंकार है। ककतु हबहारी ने रं गों का ऐसा कु शल मेल दकया है दक
चमत्कार सुंदरता में बदल गया है। तद्गुण ऄलंकार िहााँ होता है जहााँ एक िस्तु प्रधान होती है
और दूसरी गौण। गौण िस्तु प्रधान िस्तु का गुण िहण कर लेती है और ऄपना खो देती है। पर
यहााँ बांसुरी ओठ, दृहि और पट के रं गों को िहण करने पर भी ऄपना रं ग खोती नहीं है। चार
रं गों में सात रं गों के आं द्रधनुष की छहि हनखर ईठती है। कु ल हमलाकर शधदालंकार और
ऄथाजलंकार दोनों में हबहारी की ऄद्भुत गहत है।
हिशेष रूप से ऄन्योहि ऄलंकार के बेहद चमत्कारी प्रभाि के हलए हबहारी को हिशेष
यश प्राप्त हुअ है। ऄपने अश्रयदाता को कतजव्यबोध कराने के हलए ऄलग-ऄलग ऄिसरों पर रचे
गए ईनके हनम्नहलहखत दो दोहों के ऄन्योहि की छटा देखते ही बनती है -
नहह पराग, नहह मधुर मधु, नहह हिकास आहह काल।
ऄली कली ही सौं हबध्यौ, अगे कौन हिाल॥
×××
हनष्कषजतः अचायज भगीरथ हमश्र के शधदों में यह कहा जा सकता है दक – “हबहारी लाल
रीहतकाव्य के सिजश्रेष्ठ कहि हैं और ईनकी यह ख्याहत ईनके ऄन्यतम िंथ ‘सतसइ’ पर अधाररत
है, हजसे ईन्होंने जयपुर के महाराज जयशाह के अदेश पर हलखा था। मुिक रचना होते हुए भी
‘सतसइ’ में सतसइकार का ध्यान ऄलंकार, रस, भाि, नाहयकाभेद, ध्िहन, िक्रोहि, रीहत, गुण
अदद सब पर है और सभी के सुंदर ईदाहरण आसमें हैं।”
172
(हहन्दी साहहत्य कोश, भाग 1, पृष्ठ 722(
बोध प्रश्न
शधद-श्लेष ऄलंकार दकसे कहते हैं?
तद्गुण ऄलंकार दकसे कहते हैं?
हबहारी ने ऄपने अश्रयदाता को कतजव्यबोध कै से कराया?
11.3 पाठ-सार
रीहतबद्ध और रीहतहसद्ध कहियों में स्पि रूप में हिभाजक-रे खा खींची जा सकती है,
क्योंदक दोनों के ईद्देश्यों में मौहलक ऄंतर है। जो कहिता रीहत के बंधनों में बंध कर चली है
ऄथाजत काव्यांगों -रस, ऄलंकार, शधद-शहि, युग, दोष अदद -के लक्षण ईदाहरणों को प्रस्तुत
करती चली है, ईसे रीहतबद्ध काव्य कहा जाता है। आसके हिपरीत, रीहतहसद्ध कहियों ने लक्षण
िंथ न हलखकर लक्ष्य िंथ हलखे हैं। लक्ष्य िंथ से ऄहभप्राय है दक आन्होंने संस्कृ त के काव्यशास्त्रों
के ऄनुसार रीहत (पररपाटी( का प्रहतपादन नहीं दकया, बहल्क ईनके अधार पर ऐसी रचनाएाँ की
हजनमें पररपाटी का पूरा हनिाजह ददखाइ देता है। आनके काव्य का ईद्देश्य के िल ऄलंकारों, नायक-
नाहयका भेद का हििेचन करना नहीं था, ऄहपतु ऄन्य हिशेषताओं का ईल्लेख करना भी था।
रीहतहसद्ध कहियों की यह हिशेषता मानी जाती है दक आनकी रचनाओं में भािपक्ष और कलापक्ष
में एक ऐसा संतुलन ददखाइ देता है, जो रीहतबद्ध कहियों के यहााँ नहीं हमलता। रीहतहसद्ध
कहियों का मुख्य ईद्देश्य अचायज कहियों की भााँहत काव्य के तत्िों का हनरूपण करना नहीं था,
बहल्क ईनकी प्रथम लक्ष्य भािों की सिल ऄहभव्यहि करना था। आसके ऄहतररि आन कहियों ने
शास्त्रीय परं परा का भी पयाजप्त ध्यान रखा है। आसहलए स्िाभाहिक रूप से आनकी कहिताओं में
भाि और पारं पररक काव्यशास्त्रीय हशल्प का सुद ं र संतुलन ददखाइ देता है।िस्तुतः रीहतहसद्ध
कहियों ने लक्षण िंथों की रचना न करके ऄपने स्ितंत्र िंथों द्वारा ऄपनी कहि-प्रहतभा का
पररचय ददया तथा स्िानुभूहत के अधार पर मौहलक काव्य की रचना की। रीहतबद्ध कहियों की
तुलना में आन कहियों की िैयहिकता ऄपेक्षाकृ त ऄहधक ईभरी है। आन्होंने भािपक्ष और कलापक्ष
दोनों को समान महत्ि ददया। भािाहभव्यहि के हलए आन्होंने भी अलंकाररक शैली का सहारा
हलया। आन कहियों ने नीहत, भहि जैसे हिषयों पर भी रचनाएाँ की। हबहारी हहदी के सिजश्रष्ठ
े
रीहतहसद्ध कहि हैं और ईनकी कृ हत ‘हबहारी सतसइ’ आसका सिोत्कृ ि ईदाहरण है हजसमें शृंगार,
नीहत, भहि, ज्ञान, अध्याहत्मकता, सूहिपरकता सबका सहम्मश्रण है। जीिन के प्रहत
यथाथजिादी भौहतक दृहिकोण ने सतसइ को हिशेष लोकहप्रय बना ददया है। रीहतकाव्य की एक
173
मूलभूत हिशेषता ऄलंकारों का प्रयोग है। आसहलए हबहारी के काव्य में ऄलंकारों का प्रयोग भी
हिशेष रूप से ध्यान खींचता है। आसमें संदह
े नहीं दक कु छ स्थलों पर ईन्होंने के िल चमत्कार
ईत्पन्न करने के हलए ऄलंकार का प्रयोग दकया है। आसके हलए हिहभन्न आहतहासकारों और
अलोचकों ने ईनकी खूब हखचाइ भी की है। आसके बािजूद आस तथ्य से आनकार नहीं दकया जा
सकता दक अम तौर पर ईपमा, रूपक और ईत्प्रेक्षा से लेकर हिरोधाभास और ऄन्योहि तक
ऄत्यंत समथज ऄलंकार हिधान में हबहारी ऄतुलनीय है। हबहारी यमक, श्लेष अदद शधदालंकारों
के प्रयोग में बड़े हसद्धहस्त हैं।
आस आकाइ के ऄध्ययन से हनम्नहलहखत महत्िपूणज हबदु हनष्कषज के रूप में प्राप्त हुए हैं -
1. रीहतहसद्ध कहि िे हैं हजन्होंने काव्यशास्त्र की पररपाटी का पूरी तरह पालन दकया है।
लेदकन दकसी लक्षण िंथ की रचना नहीं की।
2. रीहतहसद्ध रचनाओं में भािपक्ष और कलापक्ष का जो ऄद्भुत संतुलन हमलता है िह
रीहतहसद्ध कहियों में नहीं हमलता।
3. हबहारी को प्रमुख रीहतहसद्ध कहि माना जाता है।
4. हबहारी कम शधदों में ऄहधक गहरी बात कहने में ऄपना सानी नहीं रखते।
5. आस धारा के ऄन्य कहियों में भूपहत ,हठीजी ,बेनी कृ ष्ण कहि ,रसहनहध और सेनापहत के
नाम शाहमल हैं।
174
11. ऄंगभंग = तोड़िोड़
12. हसद्धहस्त = कु शल
खंड (स(
175
III सुमल
े कीहजए
i) ग्िाल कहि (ऄ( नि रस तरं ग
176
आकाइ 12 : रीहतमुि काव्य
आकाइ की रूपरे खा
12.0 प्रस्तािना
12.1 ईद्देश्य
12.2 मूल पाठ :रीहतमुि काव्य
12.2.1 रीहतमुि काव्यधारा :ऄथज और स्िरूप
12.2.2रीहतमुि कहि और ईनकी देन
12.2.2.1घनानंद
12.2.2.2 ठाकु र
12.2.2.3 अलम
12.2.2.4 बोधा
12.2.3 रीहतकाल की ऄन्य काव्यधाराएाँ
12.2.3.1 प्रशहस्त या िीर काव्य
12.2.3.2 नीहतकाव्य
12.2.3.3 भहिकाव्य
12.3पाठ-सार
12.4पाठ की ईपलहधधयााँ
12.5 शधद संपदा
12.6 परीक्षाथज प्रश्न
12.7पठनीय पुस्तकें
12.0 प्रस्तािना
177
12.1 ईद्देश्य
छात्रो !आस आकाइ का ऄध्ययन करके अप –
रीहतमुि काव्यधारा के ऄथज को समझ सकें गे।
रीहतमुि काव्यधारा के स्िरूप की हिशेषताओं से पररहचत हो सकें गे।
रीहतमुि काव्यधारा के प्रमुख कहियों के योगदान से ऄिगत हो सकें गे।
घनानंद, अलम और बोधा के रीहतमुि काव्य का पररचय प्राप्त कर सकें गे।
रीहतकाल की ‘रीहत’ से ऄलग प्रिृहियों की जानकारी प्राप्त कर सकें गे।
आस धारा के प्रमुख कहियों में अलम (अलमके हल(, ठाकु र (ठाकु रशतक, ठाकु र ठसक(,
घनानंद (सुजानसार, हिरहलीला, रसके हलिल्ली(, बोधा (हिरहिारीश, आश्कनामा( अदद के
नाम हलए जाते हैं। आस धारा के कहियों में घनानंद सिाजहधक सजग और सचेत कहि माने जाते
हैं। ईनकी घोषणा है दक ‘लोग तो लाहग कहिि बनाित, मोहह तौ मेरे कहिि बनाित।’ ऄथाजत
लोग कहििों की रचना करते हैं लेदकन मुझे तो मेरे कहििों ने रचा है। आसका ऄथज है दक ईनकी
दृहि में सायास कहिता रचना का कोइ महत्ि नहीं था।
आसी तरह आस धारा के एक ऄन्य कहि ठाकु र ने एक पंहि में कहिता को बनािट भर और
सभा में सुनाकर िाहिाही लूटने का हिषय समझने पर तीखा व्यंग्य करते हुए हलखा है दक ऐसे
178
लोगों ने कहिता को खेल समझ रखा है -‘ढेले सो बनाय अय मेलत सभा के बीच /लोगन कहिि
कीन्हीं खेल करर जान्यो है।’ ऄथाजत रीहतमुि कहियों के हलए कहिता की रचना कलात्मकता या
हखलिाड़ नहीं, बहल्क योजनाओं की सहज सिल ऄहभव्यहि है।
भािपक्ष पर कें दद्रत होने के कारण रीहतमुि कहियों को आस बात का ऄहधक ऄिसर
हमला दक िे कहिताओं में मानिता और जीिन के कोमल पक्षों के प्रहत ऄपनी हनष्ठा व्यि कर
सकें । आसीहलए आन कहियों की रचनाओं में एक तरह की ईदािता ददखाइ पड़ती है। यह
ईदािता भी मानिीय है, आसे ऄलौदकक नहीं कहा जा सकता। आस धारा के कहियों ने रीहतहसद्ध
और रीहतबद्ध कहियों की तरह स्त्री-देह का िस्तुकरण नहीं दकया, लेदकन आन्होंने प्रेम में देह-पक्ष
का हनषेध भी नहीं दकया है। आसी प्रिृहि के कारण आनकी कहिताओं में स्त्री के िल ईपभोग की
िस्तु या देह बनकर नहीं रह जाती है, बहल्क ऄपनी संपूणज गररमा के साथ ईपहस्थत होती है।
आन कहियों में प्रेम और ऄन्य मानिीय मूल्यों के प्रहत ऄनन्य हनष्ठा ददखाइ देती है।
ईदाहरण के हलए, घनानंद कहते हैं दक प्रेम का मागज बहुत ही सीधा है हजस पर के िल सच्चे लोग
ऄपना ऄहंकार त्याग कर चलते हैं, लेदकन आस मागज पर कपटी और शंकालु लोगों को चलने में
बहुत ही हझझक होती है -
ऄहत सूधो सनेह को मारम है, जहााँ नेकु सयानप बााँक नहीं।
तहााँ सााँचे चलैं तहज अपनपौ हझझकैं कपटी जे हनसााँक नहीं॥
रीहत परं परा के शास्त्रीय बंधनों से मुि ऄथाजत स्िच्छंद काव्य के रूप में ईपलधध
रीहतमुि काव्य की मुख्य हिशेषताएाँ हनम्नहलहखत हैं -
1. रीहतमुि काव्य में हृदय के भािािेगों को मुि भाि से ऄथिा स्िच्छंद रूप से प्रकट करने
की प्रिृहि सबसे प्रमुख है। ऄथाजत यह काव्य भािािेग प्रधान है।
2. आसमें प्रेम की ऄनुभूहत को प्रकट करने के हलए रीहतबद्ध और रीहतहसद्ध कहियों की तरह
नायक-नाहयका का बहाना नहीं हलया गया है। यह प्रायः अत्माहभव्यहि के रूप में है।
3. आसमें ऐंद्रीय िासना से भरे प्रेम का नहीं िरन ईदाि प्रेम का हचत्रण हमलता है। यहााँ
प्रेमी हियोग की व्यथा सहकर भी हप्रय की कु शलता की कामना करता है। ईिेजक
नखहशख िणजन ऄपेक्षाकृ त कम है।
4. संयोग की तुलना में यह काव्य हियोग शृंगार प्रधान है। प्रेमपात्र के प्रहत प्रेमी का समपजण
प्रायः ऄध्यात्म की कोटी का प्रतीत होता है।
5. आस काल में सहज भाषा हिशेष अकषजक बन पड़ी है। रीहतबद्ध काव्य में भाषा ने
ऄलंकारों एिं चमत्कारों के प्रदशजन में जकड़कर ऄपनी सहजता को खो ददया था।
रीहतमुि काव्य में लोकोहियों ि मुहािरों के खुले प्रयोग से काव्य भाषा सजीि हो ईठी
179
है।
6. रीहतमुि काव्य में ऄलंकारों का प्रयत्नपूिक
ज प्रयोग करने की प्रिृहि नहीं ददखाइ देती है।
7. यह काव्यधारा कु छ सीमा तक िारसी की काव्य-प्रिृहियों से भी प्रभाहित है।
बोध प्रश्न
रीहतमुि काव्य की तीन हिशेषताएाँ बताआए।
घनानंद का आतना हिशाल साहहत्य सृजन ईपलधध कै से हो पाया आसके पीछे भी आहतहास
हछपा हुअ है। सिजप्रथम घनानंद की हिलुप्त, हबखरी हुइ रचनाओं का ईद्धार भारतेंदु हररश्चंद्र ने
दकया। ईन्होंने घनानंद की कु छ रचनाओं का प्रकाशन ‘सुंदरी हतलक’ नाम से दकया। आसके बाद
सन 1870 इ .में ‘सुजान शतक’ नाम से 119 कहिि सामने अए। 1897 इ .में जगन्नाथदास
रत्नाकर ने ‘सुजान सागर’ हनकाला। सन 1907में काशी प्रसाद जायसिाल ने ‘हियोग
बेहल’,‘हिरह लीला’ का प्रकाशन दकया। आसी क्रम में ‘घनानंद रत्नािली’ का प्रयाग से प्रकाशन
हुअ। 1943 में शंभुप्रसाद बहुगुणा ने ‘घनअनंद’ नाम से पुस्तक प्रकाहशत की। ककतु आन
रचनाओं का कठोर श्रम साधना के बाद िैज्ञाहनक दृहि से अचायज हिश्वनाथ प्रसाद हमश्र ने
संपादन दकया। आनका पहला संिह ‘घनानंद कहिि’ ( 505 पद्य( नाम से अया। आनका दूसरा
संिह ‘सुजानहहत प्रबंध’ (701 कहिि, सिैया छंदों का( अया। ऄंततः हमश्र जी ने ‘घनअनंद
िंथािली’ को 1952 में संपूणज रूप से प्रस्तुत दकया। आसमें प्रेम सरोिर, प्रेम पहेली, ब्रज िणजन
तथा सुजानहहत को समाहहत दकया गया। ऄब आस िंथािली में 1068 पद हैं। आधर िृंदािन
मुद्रा, प्रेम पहत्रका तथा प्रकीणज और अए हैं। ऄन्य रचनाओं के हलए ऄनुसंधान कायज जारी है।
काव्य छंद 4108 तक ईपलधध हो गए हैं।
ईल्लेखनीय है दक आन 39 िंथों में से सुजानहहत, हियोग बेहल, आश्क लता, प्रेम पहत्रका,
दानघटा तथा िृषभानुपूर सुषमा प्रमुख हैं। आनकी रचनाओं में भािात्मकता, िक्रता,
लाक्षहणकता, रहस्यात्मकता, भािों की िैयहिकता तथा स्िच्छंदता अदद गुण हमलते हैं।
घनानंद की रचनाओं को दे भागों में बााँटा जा सकता है। पहले भाग में आनकी प्रेम हनरूपण से
संबंहधत रचनाएाँ हैं जो प्रायः कहिि और सिैयों में रहचत हैं और दूसरे िगज की रचनाएाँ
भहिपरक रचनाएाँ जो प्रायः दोहे और चौपाआयों में रहचत हैं।
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बोध प्रश्न
घनानंद की हिलुप्त और हबखरी हुइ रचनाओं का ईद्धार सिजप्रथम दकसने ने दकया?
घनानंद की रचनाओं में कौन से गुण हमलते हैं?
घननांद प्रेम और सौंदयज के ऄहद्वतीय और समथज कहि हैं। ईनका प्रेम शास्त्रीय पद्धहतयों से
बंधा हुअ नहीं, ईन्मुि है। ईसमें स्िछंद रूदढ़यों के प्रहत खुला हिद्रोह ददखाइ देता है। यह प्रेम
मौहलक रीहत से शुरू होकर राधा-कृ ष्ण के भहि रस तक हिस्तार पाए हुए हैं। प्रेम में हिरह
पीड़ा की शहि ने आस कहि को नया भाि लोक प्रदान दकया है। अचायज रामचंद्र शुक्ल ने हलखा
है दक “हिशुद्धता के साथ प्रौढ़ता और माधुयज भी ऄपूिज ही है। ये हियोग शृंगार के प्रधान मुिक
कहि हैं। प्रेम का पीर, लेकर ही आनकी िाणी का प्रादुभाजि हुअ। प्रेम मागज का ऐसा प्रिीण और
धीर पहथक तथा जबााँदानी का ऐसा दािा रखने िाला ब्रज भाषा का दूसरा कहि नहीं हुअ। “
प्रेमी घनानंद सुजान (प्रेहमका( तथा सुजान (राधा-कृ ष्ण( को बराबर पुकारते हमलते हैं। लौदकक
ऄथज में सुजान प्रेहमका के हलए और भहि भाि में सुजान राधा-कृ ष्ण के हलए प्रतीक रूप में
मानने चाहहए।
यहााँ यह भी हिचारणीय है दक रीहतकाव्य हजसे शृंगार काव्य भी कहा जाता है -िास्ति
में प्रेम काव्य ही है। ऄहपतु यह के िल भोग-हिलास का काव्य है हजससे नारी को ईपभोग की
िस्तु ही समझा गया। ककतु घनानंद तथा ऄन्य रीहतमुि कहियों ने आस भोग हिलास को ऄपना
लक्ष्य न बनाकर स्िच्छंद प्रेम को ऄपने काव्य की हिषय िस्तु बनाया है। यह प्रेम ऄनुभूहत
प्रधान है, भािना प्रधान है, मांसल है, शरीरी है और मानहसक है। यह बात कही जा चुकी है दक
घनानंद एक रूपिती िेश्या सुजान के प्रेम में बंधे हुए थे। सुजान के प्रेम ने ही ईन्हें प्रेम की
समस्त ऄिस्थाओं में से गुजरने का ऄिसर प्रदान दकया। िैसे मुख्य रूप से घनानंद का प्रेम हिरह
प्रधान है। सुजान ने घनानंद के साथ जब मथुरा जाने से आनकार कर ददया तब िे सारी ईम्र
ऄके ले ही रहे और ऄपने प्रेमानुभिों और प्रेमानुभूहतयों को ऄहभव्यि करते रहे। प्रेयसी सुजान
का नाम ही आस कहिता में प्रेम-रसायन का सार प्रतीक है। यह नाम ईनके चेतन-ऄिचेतन मन
में बस गया है दक दकसी भी हस्थहत में छू टने का नाम नहीं लेता है।
प्रेम का ईदाि हबब ही घनानंद की कहिता में हझलहमलाता रहता है। और यह हबब ही
राधा, कृ ष्ण, सुजान के रूप में भाि लोक की स्िछंद सृहि करता है। प्रेम में नारी रहत के प्रहत
खुला अकषजण रहने के कारण यह काव्य ऄहधकांशतः शृंगार की कोरट में अता है, भहि की
कोरट में नहीं। हालांदक यह सच है दक हिरि घनानंद सखी भाि के भि और ब्रजरस में मि
होकर कीतजन, रासलीला तथा भ्रमण गायन करते थे। घनानंद में प्रेम का भाि पक्ष पूरी तरह
मौजूद है पर हिभाि पक्ष का हचत्रण कम है। आसका कारण है दक िे प्रेम के रूप सौंदयज पक्ष की
ऄनेकता पर ध्यान कें दद्रत दकए रहे हैं। जहााँ प्रेम हृदय का िणजन ईन्होंने दकया है िहााँ ईसके
प्रभाि का िणजन ही मुख्य है। आनकी िाणी की प्रिृहि ऄंतिृजहि हनरूपण की ओर ही ऄहधक रहने
182
के कारण बाह्याथज हनरूपक रचना कम हमलती है। होली, ईत्सि, मागज में नायक-नाहयका की
भेंट, ईनकी रमणीय चेिाएाँ अदद के िणजन के रूप में ही िह पाइ जाती है। संयोग का भी कहीं-
कहीं बाह्य िणजन हमलता है, पर ईसमें प्रधानता बाहरी व्यापारों या चेिाओं की नहीं है, हृदय के
ईल्लास और लीनता की ही है। प्रेम दशा की व्यंजना ही आनका प्रधान क्षेत्र है। प्रेम की ऄंतदजशा
का ईद्घाटन जैसा आनमें है िैसा हहदी के ऄन्य दकसी शृंगारी कहि में नहीं है।
बोध प्रश्न
घनानंद का प्रेम कै सा प्रेम है?
घनानंद के काव्य का प्रधान क्षेत्र क्या है?
दरऄसल, घनानंद का प्रेम रीहतकालीन िासनात्मक प्रेम से भी हभन्न है। आस प्रेम की
प्रगाढ़ता, साधना भाि आन्हें भि की कोरट में ले जाता है। प्रेम के हिषय में घनानंद ने जो
धारणा ऄहभव्यि की है ईसके ऄनुसार प्रेम का मागज बहुत सीधा और सरल होता है, आसमें
चालाकी, चतुराइ या लोभ की जगह नहीं होती। अचायज रामचंद्र शुक्ल ‘हचतामणी’ में कहते हैं
दक “प्रीहत में लोभ हुअ नहीं करता।“ घनानंद आसी लोभ के हिरोधी हैं। िे प्रेम की सरलता और
साहत्िकता में हिश्वास करते हैं। ईनके प्रेम में प्रहतपादन की चाह नहीं है ककतु हप्रयाहभलाषा
ऄिश्य है। जहााँ कहीं भी सुजान के रूप का हििेचन हैं िहााँ के सारे स्थल आसी ऄहभलाषा नामक
गुण से जुड़े हैं -
मोहन के बढ़त हमठास भरी ताने हमदद।
मारठए लगहत जब हमलै सब डारटए लौ॥
घनानंद की हिरह व्यथा में हृदयानुभूहत का िेग बहुत है। हस्थहत यहााँ तक पहुाँचती है दक
हप्रय मारकर हजलाता है और हजलाकर मारता है। हप्रय के अते ही महारस छा जाता है और
हियोग में प्राण चातक तड़प कर चीखता है पर यहााँ भोग का हिलास नहीं है। साधना की प्रेम
शहि है। आसी में हृदय की मार्ममक पीड़ाओं का ऄनुभािात्मक संश्लेषण-हिश्लेषण होता रहता है।
आस भािनात्मक प्रेम का रूप देहखए -
नेह सो मोय सजीि घरी हहय दीप दस्स जु मरी ऄहत अरहत।
भािना धार दुलास के हाहथन यों हहत मूरहत हेरर ईतराती॥
हप्रय के रूप की ऄनेक रं गों से यह प्रेम जीहित है। आसमें सनिेदनात्मक ज्ञान के पक्ष
सदक्रय हैं। आस प्रेम में हृदय व्यापार सीधा है, कु रटलता तक छू नहीं गइ है। िैष्णि अचायों की
शधदािली में कहें तो -ऄहभलाषा ही प्रेम बन गइ है।
रीहतमुि काव्यधारा को ईच्च हशखर तक पहुाँचाने िाले कहि घनानंद प्रेम के मुि गायक
हैं। ईन्होंने प्रेम के संयोग एिं हियोग दोनों पक्षों का सुंदर िणजन दकया है। हिरह की मधुर
183
ऄनुभूहत पूरी तीव्रता के साथ आनके काव्य में व्यि हुइ है। आनके काव्य की प्रमुख िस्तु है -सौंदयज
और प्रेम। लौदकक और ऄलौदकक दोनों प्रकार के प्रेम ईनके काव्य की ईपलहधध है। लौदकक स्तर
पर सुजान ईनकी प्रेहमका है हजसकी हिरह की पीड़ा से कहि को काव्य रचना की प्रेरणा हमली
तो ऄलौदकक स्तर पर िह सुजान ऄथाजत कृ ष्ण या परमेश्वर है। हप्रय के रूप पर रीझने से मन की
दशा का कहि ने आस प्रकार िणजन दकया -
184
शतक। आन्होंने शृंगार भाि की ऄहभव्यंजना के हलए स्िच्छंद शैली को ऄपनाया और राधा को
अराध्य मानते हुए ऄपने काव्य का अलंबन बनाया। आसहलए आनका काव्य प्रेम और भहि की
भािनाओं से ओतप्रोत है। आन्होंने ऄपने काव्य में सच्ची ऄनुभूहत के ऄनुरूप ही भािों का ईत्कषज
दकया है। आन्होंने ऄपने काव्य में भािों को सहज भाषा में ईतारा है। ठाकु र ने भहि, नीहत,
प्रकृ हत, पिोत्सि, होली तथा हहडोल अदद हिषयक सुंदर छंद रचे हैं। ऄन्य रीहतमुि कहियों से
ऄलग आनकी शृंगाररक ऄहभव्यहि में मांसलता का ऄभाि है।
बोध प्रश्न
ठाकु र का काव्य प्रेम और भहि की भािनाओं से क्यों ओतप्रोत है?
12.2.2.3 अलम
बादशाह औरं गजेब के दूसरे बेटे मुऄज्जम के अहश्रत कहि अलम और ईनकी पत्नी शेख
रं गरे हजन दोनों ही प्रहतभाशाली कहि माने जाते हैं। स्िच्छंद (रीहतमुि (काव्यरचना की दृहि से
अलम कृ त ‘अलम के हल’ का ऄपना महत्ि है। ‘अलम के हल’ शृंगार प्रधान महाकाव्य है, हजसमें
निोढ़ा-प्रौढ़ा-माहननी-खंहडता अदद हिहभन्न प्रकार की नाहयकाओं की हिहभन्न हस्थहतयों के
मनोरम हचत्रों के ऄहतररि कृ ष्ण और गोहपकाओं के प्रेम का भी िणजन है। आन नाहयकाओं के
माध्यम से संयोग और हियोग शृंगार की हिहभन्न पररहस्थहतयों, दशाओं एिं ऄनुभूहतयों का
हचत्रण हुअ है। नाहयका भेद अदद काव्यरूदढ़यों के पालन के कारण यह माना जाता है दक
अलम घनानंद की भााँहत सिजथा स्िच्छंद नहीं है। आनके कहिि सिैयों में रीहत-परं परा के गुण
भी कु छ-कु छ हमल जाते हैं। लेदकन मार्ममकता की दृहि से ये घनानंद के समान ही स्िच्छंद
ऄहभव्यहि के धनी भी हैं। आनकी भाषा के संबंध में हिचार करते हुए अचायज शुक्ल का कहना है
दक “शधदिैहचत्र्य, ऄनुप्रास अदद की प्रिृहि आनमें हिशेष रूप से कहीं नहीं पाइ जाती। शृंगार
रस की ऐसी ईन्मादमयी ईहियााँ आनकी रचना में हमलती हैं दक पढ़ने और सुननेिाले लीन हो
जाते हैं। रे ख़ता या ईदूज भाषा में भी आन्होंने कहिि कहे हैं। भाषा भी आस कहि की पररमार्मजत
और सुव्यिहस्थत है पर ईसमें कहीं-कहीं ‘कीन, दीन, जीन’ अदद ऄिधी या पूरबी हहदी के
प्रयोग भी हमलते हैं। प्रेम की तन्मयता की दृहि से अलम की गणना रसखान और घनानंद की
कोरट में ही होनी चाहहए”। (हहदी साहहत्य का आहतहास, पृ 182 (हिरह की मार्ममक ऄहभव्यहि
की दृहि से अलम कृ त यह सिैया द्रिव्य है -
“जा थल कीने हबहार ऄनेकन, ता थल कांकरी बैठी चुन्यौ करैं ।
जा रसना सौं करी बहुबात, सु ता रसना सौं चररत्र गुन्यौ करैं ॥
‘अलम ’चैन से कुं जन में करी के हल, िहााँ ऄब सीस धुन्यौ करैं ।
नैनन में जो सदा रहते, हतनकी ऄब कान कहानी सुन्यौ करैं ॥
185
बोध प्रश्न
‘अलम के हल’ में दकसका िणजन है?
अलम की भाषा कै सी थी?
12.2.2.4 बोधा
बोधा का मूल नाम बुहद्धसेन था। आन्होंने भी रीहतमुि काव्यधारा को कािी समृद्ध
दकया। आनकी काव्य कृ हतयााँ हैं हिरहिारीश तथा आश्कनामा। ‘हिरहिारीश’ माधिनाल
प्रेमकं दला की प्रहसद्ध प्रेमकथा पर अधाररत प्रबंध काव्य है। ‘आश्कनामा’ प्रेम संबध
ं ी मुिकों का
संिह है। बोधा ऄपने अश्रयदाता पन्नानरे श खेहहसह की राजनतजकी सुभान से प्रेम करते थे। आस
प्रेम के कारण घनानंद की भााँहत आन्हें भी देश हनकाला दे ददया गया था। िास्ति में हिरहिारीश
बोधा के िैयहिक हिरहानुभूहत का हचत्रण करने िाला प्रबंध काव्य है।
घनानंद की भााँहत ही बोधा भी प्रेम को एक हिकट पंथ मानते हैं। बहलदान और त्याग के
हबना आस मागज पर चलकर लक्ष्य साधना बहुत दुष्कर है। यथा,
यह प्रेम को पंथ हलाहल है सुनौ बेद पुरानउ गाित हैं।
पुहन अाँहखन देखौ सरोजन लै नर संभु के सीस-चढ़ाित हैं॥
नरही पर माथे चढ़ै हरर के िल जोग ते ऐते पाित हैं।
तुम्हैं नीकी लगै न लगै तो भले हम जान ऄजान-जनाित हैं॥
बोधा की भाषा-शैली में कृ हत्रमता नहीं है। आनके काव्य में तत्सम-तद्भि शधदािली के
साथ ऄरबी, िारसी, बंगाली एिं पंजाबी के भी शधद हमलते हैं। डॉ .मनोहर लाल गौड़ के
ऄनुसार “भाषा की स्िाभाहिक स्िच्छंदमागी सभी कहियों की ऄपेक्षा बोधा में ऄहधक है। ठाकु र
ने लोकोहियों द्वारा, घनानंद ने लक्षणाओं के बल से तथा अलम ने ऄलंकारों के प्रयोग से
चमत्कार का अश्रय हलया है। के िल बोधा ही ऐसे हैं, जो भाषा के स्िाभाहिक रूप को लेकर
चले हैं”। ( हहदी साहहत्य का आहतहास, सं .नगेंद्र, पृ 764 )
बोध प्रश्न
186
12.2.3.1 प्रशहस्त या िीर काव्य
रीहतकाल के कु छ दरबारी ऄथिा राज्याहश्रत कहियों ने प्रशस्ती काव्य और िीर काव्य
की रचना की। भूषण, श्रीधर, लाल, सूदन और पद्माकर ऐसे ही कहि हैं। भूषण ने ऄपने
अश्रयदाता हशिाजी और छत्रसाल को ऄपने प्रशहस्त काव्यों का नायक बनाया। ईन्होंने
‘हशिराजभूषण’ नामक काव्य हशिाजी की प्रशहस्त में हलखा। आसमें छत्रपहत हशिाजी की प्रशंसा
और बादशाह औरं गजेब की हनदा की गइ है। आसी तरह श्रीधर ने ऄपने िंथ ‘जंगनामा’ में
िरूजखहशयर और जहााँदार शाह के युद्ध का िणजन दकया है, यह एक युद्धकाव्य है। लाल कहि ने
महाराज छत्रसाल की िीरता का बखान करने के हलए दोहा-चौपाइ शैली में ‘छत्रप्रकाश’ नामक
काव्य रचा। सूदन ने ऄपने िंथ ‘सुजानचररत’ में भरतपुर के महाराजा बदनहसह के पुत्र सुजान
हसह (सूरजमल) के द्वारा लड़े गए युद्धों का हिस्तृत िणजन दकया है। पद्माकर ने हहम्मतबहादुर-
हिरुदािली में बांदा के निाब सरदार हहम्मतबहादुर के िीरतापूणज कारनामों का िणजन दकया है।
आस काव्य परं परा के ऄन्य कहियों में घनश्याम शुक्ल, मोहनलाल भि, हररके श, भगिंत राय,
शंभुनाथ, मल्ल, भूधरनाथ, भानकहि, थानकहि, पंहडत प्रिीण, लहछराम अदद के नाम
सहम्महलत हैं।
रामचंद्र शुक्ल के ऄनुसार आन कहिताओं में युद्धिीरता और दानिीरता दोनों की बड़ी
ऄत्युहिपूणज प्रशंसा भरी रहती थी। अगे ईन्होंने हलखा है दक आस तरह की कहिताओं में िही
कहिताएाँ बच सकीं जो ईन अश्रयदाता राजाओं की प्रशंसा में हलखी गईं जो िास्ति में प्रजा की
श्रद्धा के पात्र थे। भूषण का काव्य आसका ज्िलंत प्रमाण है।
12.2.3.2 नीहतकाव्य
रीहतकाल में नीहत के पद्य हलखने िाले कहि भी हुए हैं। अचायज रामचंद्र शुक्ल आन्हें कहि
की ऄपेक्षा ‘सूहिकार’ कहना ऄहधक ईहचत मानते हैं। रीहतकाल के आस नीहतकाव्य की जड़ें
तुलसी और रहीम जैसे भहिकालीन कहियों की नीहतपरक रचनाओं में हैं। आस प्रिृहि को संस्कृ त
के नीहत काव्य ऄथिा सुभाहषत रचना की परं परा से कािी बल हमला। नीहत के पद्य सामान्यतः
जीिन के ऄनुभिों से जुड़े हुए होते हैं और िे सांसाररक व्यिहार को लेकर हसद्धांत स्थाहपत
करने िाले होते हैं। ईल्लेखनीय है दक, रामचंद्र शुक्ल ने रहीम के ऐसे दोहों पर बात करते हुए
हलखा है दक रहीम के दोहे कोरी नीहत के पद्य नहीं हैं, ईनमें मार्ममकता है, ईनके भीतर से एक
सच्चा हृदय झााँकता है। लेदकन आसी प्रसंग में ईन्होंने रीहतकाल के नीहतकहियों िृंद और हगररधर
के नीहतपद्यों को कोरी नीहत के पद्य कहा है। आसका ऄथज यह हुअ दक रीहतकाल में सामान्यतः
नीहत के पद्य औपचाररकता के हनिाजह के हलए हलखे गए ,न दक जीिन के ममज को पयाजप्त
संिेदनशीलता के साथ स्थाहपत करने के हलए। यह बात सही है दक रीहतकाल के नीहतकहियों
187
की कहिताओं की कोरट बहुत ईच्च नहीं मानी जा सकती, लेदकन ऐसा भी नहीं कहा जा सकता
दक ये कहिताएाँ पूरी तरह से महत्िहीन हैं। कहीं-कहीं आन रचनाओं में भी जीिनानुभि का
हनचोड़ ददखाइ पड़ता है। हगररधर कहिराय की रचनाएाँ आस दृहि से कािी प्रभािशाली बन पड़ी
हैं। जैसे –“पानी बाढो नाि में, घर में बाढो दाम। /दोनों हाथ ईलीहचए, यही सयानो काम॥”
रीहतकाल के ऄहधकांश नीहतकहियों पर सामंती मूल्यबोध हािी है। आन कहियों का
दरबारी कहि होने के कारण भी यह स्िाभाहिक है। ईदाहरण के हलए बैताल कहि का एक
छप्पय द्रिव्य है – “राजा चंचल होय, मुलुक को सर करर लािै। /पंहडत चंचल होय, सभा ईिर
दै अिै॥ /हाथी चंचल होय, समर में सााँड ईठािै। /घोड़ा चंचल होय, झपट मैदान देखािै। /ये
चारों चंचल भले, राजा पंहडत गज तुरी। बैताल कहै हिक्रम सुनो, हतररया चंचल ऄहत बुरी। ”
स्त्री स्िभाि पर यह रटप्पणी तत्कालीन सामंती संस्कार की देन है।
बोध प्रश्न
रीहतकाल में नीहतकाव्य क्यों हलखे गए?
12.2.3.3 भहिकाव्य
रीहतकाल में एक क्षीण-सी धारा भहि काव्य की भी हमलती है। कु छ कहियों ने हिशुद्ध
रूप से भहि रचनाएाँ भी कीं। यहााँ यह स्पि करना बहुत जरूरी है दक राधा और कृ ष्ण को
ऄिलंब बनाकर जो शृंगार काव्य रीहतकालीन कहियों ने हलखे ईन्हें भहिकाव्य की श्रेणी में नहीं
रखा जाता, क्योंदक ऐसी मान्यता रही है दक ऄहधकांश कहियों ने ऄपने अश्रयदाता के जीिन
चररत को दशाजने ऄथिा ऄपनी शृंगार भािना को ऄहभव्यि करने के हलए कृ ष्ण-राधा के
ऄिलंब का ईपयोग भर दकया। रीहतकाल में जो भहिकाव्य की परं परा रही ईसे पृथक रूप में
देखना जरूरी है। रामचंद्र शुक्ल के ऄनुसार आन कहियों ने भहि और प्रेमपूणज हिनय के पद पुराने
भिों के ढंग पर गाए हैं। भहिकालीन परं परा आस काल में भी संतकाव्य, सूिीकाव्य, रामकाव्य
और कृ ष्णकाव्य के रूप में सुरहक्षत रही। आस धारा के प्रमुख कहियों में यारी साहब, दररया
साहब, पलटू साहब, गुरु तेजबहादुर, संत चरनदास, प्राणनाथ, काहसमशाह, नूरमोहम्मद,
शेखहनसार, गुरु गोहिद हसह, जानकी रहसकशरण, भगिंत राय खीची, निल हसह, हिश्वनाथ
हसह, रामहप्रया शरण, रहसकऄली, गुमान हमश्र, ब्रजिासी दास, मंहचत, नागरी दास, ऄलबेली,
हहतिृंदािन दास, िृंदािन देि, सुंदरी कुाँ िरबाइ, बक्षी हंसराज श्रीिास्ति ‘प्रेमसखी’, कृ ष्णदास,
रत्नकुं िरी अदद का ईल्लेख दकया जाता है।
बोध प्रश्न
रीहतकाल के कहियों की राधा और कृ ष्ण हिषयक कहिताओं को भहि काव्य में क्यों नहीं
188
रखा जाता?
12.3 पाठ-सार
रीहतकालीन काव्य के कें द्र में ‘रीहत’ ऄथाजत शास्त्रीय पररपाटी के पालन की प्रिृहि रही
है। हजन कहियों ने हसद्धांत के िंथ हलखे िे रीहतबद्ध कहलाए। हजन्होंने हसद्धांत हनरूपण न करते
हुए भी शास्त्रीय पररपाटी का पूरी तरह पालन दकया ईन्हें रीहतहसद्ध कहि कहा गया है। आन
दोनों से ऄलग ईस काल के कु छ कहि ऐसे भी हैं हजन्होंने काव्यशास्त्रीय पररपाटी ऄथिा रीहत
की कोइ परिाह नहीं की। आन्हें रीहतमुि ऄथिा स्िच्छंद कहि कहा जाता है। आस रीहतमुि
काव्यधारा के प्रमुख कहि हैं -अलम ,ठाकु र ,घनानंद और बोधा। आन कहियों ने कलापक्ष की
तुलना में भािपक्ष पर ऄहधक ध्यान ददया। घनानंद आस काव्यधारा के प्रमुख कहि हैं। ईन्होंने प्रेम
के संयोग-हियोग दोनों पक्षों का सुंदर िणजन दकया है। आस काव्यधारा के ऄन्य कहियों ने भी प्रेम
और सौंदयज के हचत्रण पर ही सबसे ऄहधक बल ददया है। रीहतकाल में ‘रीहत ’के ऄलािा तीन
गौण प्रिृहियााँ भी हमलती हैं। ये हैं िीरकाव्य, नीहतकाव्य और भहि काव्य।
189
6. सामंती संस्कार = सामंत होने की ऄिस्था या भाि
खंड (ऄ(
खंड (स(
I सही हिकल्प चुहनए
1. मुिक काव्य के रचनाकारों का हसरमौर दकसे माना जाता है? ( (
(ऄ(घनानंद (अ( ठाकु र (आ(अलम (इ(बोधा
190
III सुमल
े कीहजए
i) अलम (ऄ( ठाकु र शतक
191
खंड - IV : अधुहनक काल : ईदय
आकाइ की रूपरे खा
13.0 प्रस्तािना
13.1 ईद्देश्य
13.2 मूल पाठ 1857 : का स्िाधीनता संघषज और हहदी निजागरण
13.2.1 अधुहनकता का ईदय
13.2.2 पररितजन का सूत्रपात
13.2.3 निजागरण और प्रथम राष्ट्रीय स्िाधीनता संघषज
13.2.4 भारतेंदु युग की निजागरण चेतना
13.3 पाठ-सार
13.4 पाठ की ईपलहधधयााँ
13.5 शधद संपदा
13.6 परीक्षाथज प्रश्न
13.7 पठनीय पुस्तकें
13.0 प्रस्तािना
हप्रय छात्रो !जैसा दक अपको मालूम है, हहदी साहहत्य का अधुहनक काल ईन्नीसिीं
शताधदी के मध्य से अरं भ होता है। ध्यान दीहजए दक यह समय भारतीय आहतहास में
निजागरण अंदोलन के अरं भ का समय है। आसी समय हमारे देश को इस्ट आं हडया कं पनी के
शासन से मुि कराने के हलए पहला स्िाधीनता संिाम भी लड़ा गया। भारत का आहतहास पढ़ते
समय अपने यह ऄिश्य पढ़ा होगा दक मध्यकाल के ऄंहतम ददनों में भारत में ऄंिेज़ी राज
स्थाहपत हो गया था। इस्ट आं हडया कं पनी के माध्यम से ऄंिेज़ एक ओर तो भारत की संपहि को
लूटने में लगे हुए थे, तथा दूरी ओर यहााँ की सामाहजक-सांस्कृ हतक परं पराओं को नि करने पर
अमादा थे। आन हालात में भारतीय मनीषा ने हिदेशी गुलामी के हखलाि हिद्रोह का हबगुल
बजा ददया। 1857 को आसीहलए भारतीय स्ितन्त्रता संिाम की नीि रखने िाला िषज माना
192
जाता है। आसकी पृष्ठभूहम का हनमाजण 19 िीं शताधदी के अरं भ में ईभरे निजागरण अंदोलन ने
दकया। निजागरण अंदोलन और स्ितंत्रता संिाम दोनों ही की सिलता के हलए आस हिशाल
देश की जनता के मन में एकता के संस्कार को जगाने की ज़रूरत थी। साथ ही हिद्रोह की
चेतना को नेतृत्ि देने के हलए धार्ममक, सामाहजक, राजनैहतक, सामररक और सांस्कृ हतक क्षेत्र के
ऐसे प्रभािशाली नेतृत्ि की ज़रूरत थी जो भारहतयों के मन से गुलामी की भािना को हनकाल
िें कता और अज़ादी के हलए प्राणपण से जूझने की प्रेरणा दे सकता। निजागरण अंदोलन ने देश
को ऐसा ही प्रभािशाली नेतृत्ि प्रदान दकया। आसने जन-मन को प्रभाहित दकया और जन-चेतना
भी बदली। हमारे स्ितन्त्रता सेनाहनयों ने आसी के बल पर ऄंततः 1947 में देश को ऄंिेजों से
अज़ाद कराया और साथ ही नए दशजन, नइ चेतना, संस्कृ हत और नए मूल्यों को भी प्रस्तुत
दकया। आस समस्त िातािरण ने हहदी सहहत सभी भारतीय भाषाओं के साहहत्य पर गहरा ऄसर
डाला। प्रस्तुत आकाइ में अप निजागरण अंदोलन और 1857 के प्रथम स्िाधीनता संिाम के
स्िरूप और प्रभाि के बारे में जानकारी प्राप्त करें गे।
13.1 ईद्देश्य
193
भारतीय आहतहास में अधुहनक काल का अरं भ ऄंिेजी राज की स्थापना से होता है।
ऄंिेजों ने यहााँ नइ ऄथज व्यिस्था, ईद्योग धंध,े रे ल, तार तथा प्रेस की ऄपने स्िाथों के हलए
स्थाहपत की लेदकन आससे भारत को अधुहनक युग में प्रिेश करने में सुहिधा हुइ। आस काल में
देश को मध्यकालीन रूदढ़िाद से मुि करने में राजा राममोहन राय और स्िामी दयानंद
सरस्िती जैसे महापुरुषों ने हििेक का सहारा हलया। आन्होंने ही ईन्नीसिीं शताधदी के
निजागरण का नेतृत्ि दकया। आनके प्रभाि में भारतीय समाज ने ऄपनी कइ सड़ी-गली
परं पराओं (जैसे सती प्रथा( से मुहि प्राप्त की। िणाजश्रम व्यिस्था, छु अछू त अदद का हिरोध तथा
सामाहजक जीिन में स्ितंत्रता, समानता और भाइचारे अदद का समथजन आस बात का प्रमाण है
दक भारतीय निजागरण निीन मानितािाद पर अधाररत था। यहााँ यह भी समझ लेना जरूरी
है दक हहदी के भहि काव्य में भी मानिता पर ज़ोर था लेदकन िह मानितािाद इश्वरिाद से
जुड़ा हुअ है। मध्यकाल के भिकहियों ने हहदू और मुसलमान के भेद पर यह कहकर प्रहार
दकया दक िे सभी इश्वर की संतान हैं। ईन्होंने कमजकांड का हिरोध दकया क्योंदक इश्वर तक
पहुाँचने में बाधक था। पर अधुहनक काल में मनुष्य और मनुष्य की समता और स्ितंत्रता को
सामाहजक न्याय के अधार पर स्थाहपत दकया गया है। मनुष्य और मनुष्यता की सिोपररता ही
आस अधुहनक युगीन निजागरण की मूल चेतना है।
बोध प्रश्न
भारतीय निजागरण दकस पर अधाररत था?
194
ईनकी प्रहतदक्रया का पररणाम भी था। कहना न होगा दक राष्ट्रीय अन्दोलन ने हजन महापुरुषों
को चररत नायकों के रूप में देश की जनता के सामने रखा, िे अज भी राष्ट्रीय एकता और
सांस्कृ हतक गौरि के प्रेरणापुंज हैं।
बोध प्रश्न
लॉडज हार्मडन की योजना के कारण भारत में क्या हुअ?
195
हजन्हें इश्वर का प्रहतहनहध माना जाता था। राजा हो या हपता ऄथिा पहत या दक गुरु -सब
भगिान बन बैठे। आन भगिानों के पैरों तले साधारण मनुष्य की ऄहस्मता कु चली जाने लगी।
िलतः समाज में ऐसी ऄनेक रूदढ़यों ने जड़ जमा ली हजनकी कीमत सड़ीगली परं पराओं से
ऄहधक कु छ नहीं थी। सती प्रथा से लेकर ऄस्पृश्यता तक तथा मूर्मत पूजा से लेकर बहल प्रथा तक
-आन सड़ीगली परं पराओं ने भारत की प्रगहत में हर प्रकार की बाधाएाँ पैदा की। पररणाम यह
हुअ दक कभी ज्ञान संपदा में हिश्वगुरु और धन संपदा में सोने की हचहड़या रह चुका भारत एक
के बाद एक गुलामी की जंजीरों में जकड़ता गया। ईन्नीसिीं शताधदी के मध्य में राजा राममोहन
राय जैसे ऄनेक हिचारकों ने भारतीय संस्कृ हत की आस हिडंबना को हनकट से देखा और समझा।
आस समझ ने ईन्हें जड़ता में जकड़ी पड़ी भारतीय जनता को जगाने और ऄपनी खुद की बेहड़यों
से मुि करने की चेतना प्रदान की। यही पररितजन चेतना ऄथिा अधुहनक चेतना निजागरण
अंदोलन का अधार बनी। यदद राष्ट्रीयता की दृहि से आसका प्रहतिलन 1857 की क्रांहत के रूप
में हुअ, तो हहदी साहहत्य में आसने भारतेंदु युग को ऄितररत करने का काम दकया। ऄहखल
भारतीय स्तर पर जो जागृहत कोलकता जैसे कें द्रों से ईभर रही थी हहदी में भारतेंदु हररश्चंद्र
ईसके पुरोधा हैं।
यहााँ यह भी ईल्लेखनीय है दक मनुष्य की ऄिधारणा बदलने का यह घटना भारत के
समाज और हहदी साहहत्य में ईन्नीसिीं शताधदी में ही पहली बार घरटत नहीं हुइ। पहले भी
बहुत बार मनुष्य और परम तत्ि के संबंध को पाररभाहषत करते हुए ऐसे बदलाि के मोड़ अए
हैं। ऄगर ईपहनषद काल या ईसके बाद के आहतहास को छोड़ भी दें तो भी चौदहिीं पंद्रहिीं
शताधदी के भहि अंदोलन को भला कै से भुलाया जा सकता है !जैसा दक डॉ .रामस्िरूप
चतुिेदी हलखते हैं दक “अदद काल के प्रसंग में हमने पररलहक्षत दकया था दक यहााँ मनुष्य का
इश्वर की महहमा से युि रूप में िणजन हुअ है, जब दक भहि काल में यह हचत्रण इश्वर का
मनुष्य के रूप में हुअ है, अगे दिर रीहतकाल में इश्वर और मनुष्य दोनों का मनुष्य-रूप में
हचत्रण होता है। अधुहनक काल में अकर मनुष्य सारे हचतन का कें द्र बनता है, और इश्वर की
धारणा व्यहिगत अस्था के रूप में स्िीकृ त होती है, साहहत्य या दक कलाओं में ईसका हचत्रण
प्रासंहगक नहीं रह जाता। आसी का पररणाम यह देखा जा सकता है दक प्रेम और भहि, लौदकक
और ऄलौदकक संबध
ं , जो ऄभी तक या तो ऄलग-ऄलग ऄनुभि थे या कभी-कभी एक दूसरे का
संस्पशज करते थे, ऄब ईनका ऄंतर अधुहनक काल में अकार हिलीन हो गया है” । (हहदी साहहत्य
और संिेदना का हिकास, रामस्िरूप चतुिेदी, पृ. 78-79) यहााँ यह प्रश्न हिचारणीय है दक
मनुष्य की ऄिधारणा में पररितजन होने की प्रदक्रया क्या है? ितजमान संदभज में आसका संबध ं
अधुहनक युग की ईस मानहसकता से है हजसे आहतहास और संस्कृ हत के हलकों में पुनजाजगरण या
निजागरण कहा जाता है। ऐसे मोड़ प्रायः सभी देशों के आहतहास में अते हैं हजन्हें पुनजाजगरण
या निजागरण की सांस्कृ हतक प्रदक्रया के रूप में देखा जा सकता है। ितजमान भारत के संदभज में
196
यह निजागरण ईन्नीसिीं शती के मध्य से अरं भ होता है। आसके मूल में नइ यूरोपीय िैज्ञाहनक
संस्कृ हत और पुरानी भारतीय धार्ममक संस्कृ हत की टकराहट को देखा जा सकता है। ईल्लेखनीय
है दक निजागरण की पहचान जहााँ एक ओर दो जातीय संस्कृ हतयों की टकराहट से होती है िहीं
आसका दूसरा पहलू यह भी है दक निजागरण ‘मनुष्य के संपूणज तथा संहश्लि रूप की खोज और
ईसकी पररष्कार’ करने की भी प्रदक्रया है। आस प्रकार यह कहा जा सकता है दक यूरोपीय और
भारतीय संस्कृ हतयों की टकराहट तथा समि और संपूणज मनुष्य की खोज की प्रेरणा भारतीय
निजागरण चेतना की कें द्रीय शहियााँ हैं। आसके एक हसरे पर राजा राममोहन राय हैं तो दूसरे
हसरे पर महात्मा गांधी। साथ ही आसे गहत प्रदान करने में एक ओर 1857 के प्रथम स्िाधीनता
संघषज ने तथा दूसरी ओर बीसिीं शताधदी के ऄहखल भारतीय स्ितंत्रता अंदोलन ने हनणाजयक
भूहमका हनभाइ।
निजागरण अंदोलन की एक बड़ी हिशेषता आसका समाज कें दद्रत और समन्ियमूलक
होना है। भारतीय हहदू हिचारधारा और पाश्चात्य इसाइ संगठन का सामंजस्य निजागरण के
ऄधीनस्थ सभी सामाहजक अंदोलनों का मूल मंत्र है। “राजा राममोहन राय से लेकर महात्मा
गांधी तक की यह हिचार और कमज-यात्रा है, हजसे बनाने और बढ़ाने में रामकृ ष्ण परमहंस,
स्िामी हििेकानंद, लोकमान्य हतलक, श्री ऄरहिद जैसे कइ मनीहषयों का हिहशि योगदान रहा
है। (रामस्िरूप चतुिेदी(।
बोध प्रश्न
निजागरण अंदोलन की जड़ में क्या मौहलक सच्चाइ हनहहत है?
निजागरण के ऄधीनस्थ सभी सामाहजक अंदोलनों का मूल क्या मंत्र है?
निजागरण अंदोलन के मूल में दकस की टकराहट को देखा जा सकता है?
मनुष्य की ऄिधारणा में पररितजन होने की प्रदक्रया क्या है?
भारतीय निजागरण चेतना की कें द्रीय शहियााँ क्या हैं?
197
हुकू मत के हाथों शोषण के कारण भारतीय समाज में ईत्पन्न हो गइ थीं। संयोगिश आसे नइ
हशक्षा पद्धहत का सहयोग हमल गया। िरना मैकाले ने भारत की सददयों से चली अ रही पुरानी
हशक्षा व्यिस्था नि कर नए ढंग की समाजिादी ऄंिेजी हशक्षा की शुरूअत भारत की जनता में
राष्ट्रीय भािना पैदा करने के हलए तो नहीं की थी। रजनी पाम दि के शधदों में,“ यह
साम्राज्यिाद की पूरी व्यिस्था में हनहहत ऄंतर्मिरोधों का पररणाम था दक हशक्षा की जो पद्धहत
साम्राज्यिाद के हहतों की रक्षा करने के हलए जारी की गइ थी, ईसी ने भारत के लोगों के हलए
आं ग्लैंड के जनिादी जन अंदोलनों और जन संघषों से, हमल्टन, शैली तथा बायरन जैसे कहियों
से प्रेरणा प्राप्त करने का भी रास्ता खोल ददया। ”आसने हब्ररटश हुकू मत की हनरं कुशता से टकराने
के जज़्बे को हिा जरूर दी। आसीहलए डॉ.रामहिलास शमाज ने भारतेंदु कालीन निजागरण की
व्याख्या करते हुए यह समझाने का प्रयास दकया है दक “हहदुस्तान की राष्ट्रीय चेतना सीधे ऄंिेज़
डाकु ओं के कारनामों का हिरोध करके बढ़ी। आसहलए हहदुस्तान की राष्ट्रीय भािनाओं का तमाम
नया साहहत्य ऄंिेजी राज का हिरोधी साहहत्य है। ऄंिेज़ साम्राज्यिाददयों ने भारतीय जनता को
गुलामी की हशक्षा दी, सरकार ने ईसके प्रहतरोध भािना को कु चलने की कोहशश की। आसके
बािजूद जनता के समथजक लेखक देश की संस्कृ हत की रक्षा और हिकास के हलए अगे बढ़े। ”
भारतेंदु कालीन हहदी निजागरण सन 1857 के प्रथम स्िाधीनता संघषज की ईदय है, न दक
के िल ऄंिेजी हशक्षा की। आस हहदी निजागरण के मूल तत्ि हैं -सामंत हिरोध और साम्राज्य
हिरोध, जन-संस्कृ हत से लगाि, प्रेम-भहि और ईदारतािाद, स्िदेश-प्रेम और स्िदेशी अंदोलन,
साहहत्य को सामाहजक पररितजन का ऄस्त्र समझकर जन-जीिन से जुड़ा साहहत्य-रचना, हिज्ञान,
हशल्प और ईद्योग-धंधों के हिकास से देश की प्रगहत का स्िप्न, ऄध्यात्म और रहस्यिाद का
हिरोध। यह भी ध्यान रखने की बात है दक हहदी निजागरण दकसी भी प्रकार हहदू
पुनरुत्थानिाद तक सीहमत नहीं था। आसीहलए स्ियं भारतेंदु ने अयज समाज की हिज्ञान हिरोधी
मान्यताओं का खंडन भी दकया।
मध्यकाल में हजस प्रकार भहि अंदोलन ने देशव्यापी सािजजहनक धार्ममक, सामाहजक
और साहहहत्यक अंदोलन का रूप हलया था ईसी प्रकार समि देश की चेतना को प्रभाहित करने
का काम 1857 के प्रथम स्िाधीनता संघषज ने दकया। आसने भारतिाहसयों की स्िाधीनता की
चेतना को जगाने और ईकसाने का काम दकया। भारतेंदु युग में राष्ट्रीय भािना ऄंिेजों द्वारा
भारत के अर्मथक शोषण के हिरोध के रूप में देखी जा सकती है -ऄंिेज़ राज सुख साज सजे सब
भारी। /पै धन हिदेश चहल जात आहै ऄहत ख़्िारी॥ (भारतेंदु हररश्चंद्र(
198
अराधना शैली की परं परागत एकांहतक पद्धहत को छोड़कर यूरोपीय चचज का संगठन स्िीकार
दकया हजसमें पूजन की सामूहहक पद्धहत प्रचहलत थी। ‘ब्रह्म समाज’ की स्थापना ईन्होंने 1828
में की, हजसकी प्रेरणा से बाद में महाराष्ट्र में ‘प्राथजना समाज’ का जन्म हुअ। हहदी क्षेत्र में स्िामी
दयानंद ने ‘अयज समाज’ की नींि डाली। डॉ .रामस्िरूप चतुिेदी ने ठीक ही हलखा है दक “यह
हसिज संयोग नहीं हैं दक आन संस्थाओं के नामकरण के ईिर-पक्ष में समाज पर हिशेष बल ददया
गया है। हहदू समाज को एकांहतक जीिन पद्धहत के हिरुद्ध ईठे समाज के रूप में गरठत करने का
यह प्रयास बड़े सजग रूप में निजागरण के मनीहषयों ने दकया। ”आन तीनों मुख्य समाजों -ब्रह्म
समाज, प्राथजना समाज और अयज समाज -में कािी समानता थी। ये हनगुजण ब्रह्म के ईपासक हैं,
अराधना की सामूहहक शैली पर बल देते हैं, हहदू समाज के दो हपछड़े समूहों नारी और शूद्र को
शेष ईच्च िगीय समूहों के साथ समानता का दजाज देते हैं। िेद, ईपहनषद और गीता आनके हचतन
के कें द्र में हैं। संगठन का ढााँचा इसाइ चचज के समान है। भारतीय हहदू हिचारधारा और पाश्चात्य
इसाइ संगठन का सामंजस्य -यह आनके अंदोलन का मूलमंत्र है। याद रहे दक ऄध्यात्म का
निजागरण पहले लोकसेिा से जोड़ता है और दिर लोक सेिा को क्रमशः राष्ट्रीय भािना से।
राममोहन राय से लेकर महात्मा गांधी तक की यह हिचारधारा और कमज-यात्रा को बनाने और
बढ़ाने में रामकृ ष्ण परमहंस, स्िामी हििेकानंद, लोकमान्य हतलक और ऄरहिद जैसे संतों और
हिचारकों का योगदान रहा है।
छात्रो !हहदी में अधुहनकता के जनक कहे जाने िाले भारतेंदु हररश्चंद्र (1850-1885)
जहााँ एक ओर ऄपने समय की यूरोप या पहश्चम-प्रेररत गहतशीलता से जुड़ना चाहते थे, िहीं
दूसरी ओर िे भारतीयता के स्ित्ि को दकसी कीमत पर खोना नहीं चाहते थे। ‘स्ित्ि हनज
भारत गहै’ की गुहार लगाने िाले भारतेंदु अलोचनात्मक यथाथजिाद के पहले हहदी कहि हैं।
परं परा से ऄहिनाशी हिश्वनाथ हशि की नगरी ‘काशी ’का एक िणजन भारतेंदु ने ‘सत्य हररश्चंद्र ’
नाटक की ‘नि ईज्ज्िल जलधार ’कहिता में दकया है। ईनकी ‘प्रेम जोहगनी’ (1894( नारटका में
भी काशी को लेकर एक कहिता है, जो हहदी निजागरण की चेतना की पररचायक है। ‘देखी
तुमरी कासी’ शीषजक आस कहिता में हिस्तार से िणजन दकया गया है दक काशी की अधी अबादी
ब्राह्मण औरसंन्याहसयों की है और अधी िेश्याओं और ईनके दलालों की -
देखी तुमरी कासी लोगों देखी तुमरी कासी
****
मैली लगी भरी कतिारन खड़ी चमाररन पासी।
नीचे नल से बदबू ईबलै मानो नरक चौरासी॥
काशी का यह पतन भारतीय समाज के मूल्यों के पतन का प्रतीक है। यही नहीं, भारतेंदु
199
ने ऄपने नाटक ‘ऄंधरे नगरी (1881( ’में ईपभोिािाद और बाजारिाद की हिसंगहतयों को
बेनकाब करते हुए हलखा दक यह ‘कलयुग’ के बाद का ‘छलयुग’ है -
सााँच कहै तो पनही खािै, झूठे बहुहिहध पदिी पािै।
छहलयन के एका के अगै, लाख कहौं एकहुं नहीं लागै॥
बोध प्रश्न
हहदी निजागरण के मूल तत्ि क्या हैं?
ब्रह्म समाज, प्राथजना समाज और अयज समाज में क्या समानताएाँ पाइ जाती हैं?
निजागरण अंदोलन का मूलमंत्र क्या है?
200
आसमें कोइ संदह
े नहीं दक भारतेंदु हररश्चंद्र की रचनाओं में 1857 के स्िाधीनता संघषज का
ईल्लेख ‘हसपाही हिद्रोह’ के रूप में हमलता है लेदकन आसका ऄथज यह नहीं दक िे ईसकी कें द्रीय
चेतना से ऄछू ते थे। भारतेंदु और ईनके साथी लेखक (भारतेंदु मंडल( का 1857 की चेतना से
जुड़ाि दो अधारों पर देखा जा सकता है। ये हैं- (1( स्िाधीनता संघषज का ईद्देश्य, तथा (2(रटश
राज के स्िरूप की पहचान। ऄगर 1857 के संघषज के ईद्देश्य की बात करें , तो िह था -भारत
िषज से ऄंिेजों को हनकालना। जुलाइ 1857 में ऄिध में जारी एक आश्तहार में हसपाहहयों का
अह्िान आन शधदों में दकया गया था – “तुम्हें कानपुर जैसी जगहों की तरि बढ़ना चाहहए।
कानपुर चलने में कौन सी करठनाइ है ? ऄगर तुम्हें कानपुर के दकले से डर लगता है, तो
आलाहाबाद और कलकिे के दकले जीतने का भार तुमने दकसे सौंपा है?” यही नहीं, अगे कहा
गया दक ऄंिेजों की हनगाह ददल्ली और लखनउ पर है, आन्हें बचाने के हलए हसपाहहयों को सबसे
पहले ईपाय करना चाहहए। तात्पयज यह है दक यह स्ितंत्रता संघषज दकसी एक राजे-राजिाड़े को
बचाने के हलए नहीं, बहल्क देश के सभी हहस्सों को ऄंिेजों से अजाद कराने के हलए था। यह
कहना ईहचत होगा दक भारतेंदु युग के रचनाकारों को जो युग हिरासत में हमला था, ईसके एक
हसरे पर 1857 का हिद्रोह था तो दूसरे हसरे पर भारतीय राष्ट्रीय कांिेस (1885( के गठन जैसी
राजनीहतक घटना थी। 1857 का संघषज ऄगर ‘औपहनिेहशक शहि के हिरुद्ध भारतीय जनता
का संिाम’ था तो कांिेस का गठन ईस शहि के साथ सामंजस्य का एक राजनीहतक प्रयास था
जो बाद में राष्ट्रीय स्िाधीनता संघषज का मंच बन गया।
स्मरणीय है दक 1857 के संघषज में भारत के हिहभन्न िगों की जनता के तरह-तरह के
ऄसंतोषों को ऄहभव्यहि हमली थी। ऄंिेजों की भूहम सुधार योजना ने एक हिहचत्र प्रकार की
सामाहजक ऄव्यिस्था खड़ी कर दी थी। ररयासतों को दकसी न दकसी बहाने हड़पने की ऄंिेज़
नीहत के हिरोध ने आस संघषज को जनता तथा राजे-रजिाड़े का साझा संघषज बना ददया। यही
िजह है दक बाद में अम जनता का जबदजस्त दमन दकया गया तथा कठोर ऄहधहनयम लागू दकए
गए। यह तथ्य भी महत्िपूणज है दक “ऄंिेजों ने भारत पर ऄपना राज कायम करने के हलए और
ईस राज को बनाए रखने के हलए जो देशी िौज खड़ी की थी, िह हिद्रोह कर रही थी। हजन
हहदू और मुसलमान सामंतों की जायदाद छीन ली गइ थी, िे ऄंिेजों का हिरोध कर रहे थे। ”डॉ .
रामहिलास शमाज । आससे आस संघषज का राष्ट्रीय स्िरूप स्ियं हसद्ध हो जाता है। ऄथाजत 1857 की
यह संघषज हिदेशी शासन से मुहि का ऄहखल भारतीय स्तर पर प्रथम संगरठत प्रयास था।
यह चेतना हहदी क्षेत्र में प्रचहलत सभी लोक भाषाओं में िै ल रही थी। आस पूरे क्षे त्र को
संबोहधत करने के हलए भारतेंदु युग के लेखकों ने समय की नधज पहचानकर खड़ी बोली को
ऄपनाया। आन लेखकों ने ऄपनी-ऄपनी पहत्रकाओं के माध्यम से खड़ी बोली में पूरे हहदी भाषी
201
समुदाय को संबोहधत दकया। ईनके आस प्रयास ने ही क्षेत्र को निजागरण की चेतना से जोड़ने
और जगाने का महान कायज दकया। ऄंिेज़ शासक तो आस क्षेत्र को संस्कृ त साहहत्य, धमज, दशजन
और हहदू हिहधयों के हशक्षण तक सीहमत रखना चाहते थे, तादक यहााँ अधुहनक ज्ञान-हिज्ञान की
हशक्षा का प्रसार न हो सके । लेदकन हहदी के साहहत्यकारों ने ऄंिेजों की मंशा को पहचान कर
ऄपने लेखन और पत्र-पहत्रकाओं के माध्यम से हहदी क्षेत्र को नए िैज्ञाहनक हचतन से जोड़ने का
भरपूर प्रयास दकया। भारतेंदु हररश्चंद्र, बालकृ ष्ण भि, प्रतापनारायण हमश्र अदद लेखक आस
दृहि से हहदी निजागरण के ऄिणी साहहत्यकार हैं। आस काल में हहदी साम्राज्यिाद हिरोधी
तेिर से युि हो चली थी। आस ‘नये चाल में ढली’ हहदी में राजनीहतक व्यंग्य खूब हलखा गया।
गद्य ही नहीं, पद्य भी। यथा,“ चूरन साहेब लोग जो खाता। /सारा हहदी हजम कर जाता। ”
(भारतेंदु हररश्चंद्र(। ऄहभप्राय यह है दक 1857 के प्रथम स्िाधीनता संघषज ने हहदी साहहत्य के
माध्यम से घरटत होने िाले हहदी क्षेत्र के निजागरण को एक सुहनहश्चत ददशा दी थी। आस काल
के कहियों और लेखकों को ऄंिेज़ राज के चररत्र की पहचान थी और साथ ही राष्ट्रीय संघषज के
ईद्देश्य की समक्ष भी थी।
डॉ .रामस्िरूप चतुिेदी के ऄनुसार,“ यहााँ समझा जा सकता है दक बंगाल में अरं भ हुइ
पुनजाजगरण चेतना मध्य देश में पहुाँच कर ऄहधक प्रखर रूप में राष्ट्रीय हो जाती है; और ईसके
िाहक बनते हैं भारतेंदु हररश्चंद्र। ”यहााँ तक दक भारतेंदु ने ‘कहि िचन सुधा’ जैसी साहहहत्यक
पहत्रका का भी ईपयोग ‘स्िदेशी िस्तुओं के व्यिहार का प्रहतज्ञापथ’ ( 23 माचज 1874(
प्रकाहशत करने के हलए दकया। भारतेंदु ने 1884 इ .में बहलया में ददए गए ऄपने व्याख्यान में
यह अह्िान दकया था दक “बंगाली, मराठा, पंजाबी, मद्रासी, िैददक, जैन, ब्रह्मो, मुसलमान सब
एक का हाथ एक पकड़ो। ”आस प्रकार ‘स्िदेशी की भािना और राष्ट्र की धमजहनरपेक्ष पररकल्पना’
में भारतेंदु का हचतन अगे के स्ितंत्रता अंदोलन और भारतीय संहिधान की रचना तक के हलए
मागजदशजक हसद्ध होता है।
202
बोध प्रश्न
भारतेंदु युग की मूल चेतना क्या है?
जन-जागरण का क्या लक्षण है?
1857 का स्िाधीनता संिाम दकस ऄथज में ऄलग है?
भारतीय राष्ट्रीय कांिेस का गठन क्यों दकया गया था ?
13.3 पाठ-सार
हहदी साहहत्य का अधुहनक काल भारतीय समाज में अधुहनकता के अगमन के साथ
जुड़ा हुअ है। अधुहनकता का ऄथज है -पररपाटी का बदलना। ईन्नीसिीं शताधदी के मध्य में
हमारे देश में मध्यकालीन पररपारटयााँ बदलने लगीं। आसके पररणामस्िरूप सामाहजक क्षेत्र में
निजागरण ने अंदोलन का रूप ले हलया। बंगाल में आसका नेतृत्ि राजा राममोहन राय ने दकया
और हहदी क्षेत्र में यह भूहमका साहहत्य के माध्यम से भारतेंदु हररश्चंद्र ने हनभाइ।
204
6. हिसंगहत = संगहत का ऄभाि
7. संघषज = अगे बढ़ने के हलए होने िाला प्रयत्न
खंड (स(
I सही हिकल्प चुहनए
1. ब्रह्म समाज की स्थापना कब हुइ? ( (
(ऄ(1820 (अ(1825 (आ(1828 1823(इ(
205
III सही हिकल्प चुहनए
i) राजा राममोहन राय (ऄ( निजागरण
206
आकाइ 14 : हहदी गद्य का ईद्भि और अरं हभक हिकास
आकाइ की रूपरे खा
14.0 प्रस्तािना
14.1 ईद्देश्य
14.2 मूल पाठ :हहदी गद्य का ईद्भि और अरं हभक हिकास
14.2.1 हहदी गद्य का ईद्भि
14.2.1.1 अधुहनक काल के पूिज गद्य की हस्थहत
14.2.1.2 अरं हभक गद्य लेखक
14.2.2 अधुहनक काल में गद्य का हिकास
14.2.3 भारतेंदु हररश्चंद्र का गद्यलेखन
14.2.4 भारतेंदु युग के प्रमुख गद्यकार
14.3 पाठ सार
14.4 पाठ की ईपलहधधयााँ
14.5 शधद संपदा
14.6 परीक्षाथज प्रश्न
14.7 पठनीय पुस्तकें
14.0 प्रस्तािना
हहदी साहहत्य के आहतहास में अधुहनक काल को गद्य काल भी कहा जाता है। आससे पहले
मुद्रण की सुहिधा न होने के कारण पद्य ऄथिा कहिता ही मुख्य रूप से रची जाती थी। छंदबद्ध
होने के कारण कहिता को याद रखना सरल था। आसीहलए नाटक के संिाद भी पद के रूप में ही
होते थे। हप्रटटग प्रेस के अहिष्कार के बाद यह मुहश्कल असान हो गइ। पुस्तकों और पत्र-
पहत्रकाओं की छपाइ की सुहिधा ने पद के स्थान पर गद्य को बढ़ािा ददया। यह घटना ईन्नीसिीं
शताधदी के लगभग मध्य की है। ईस समय की राष्ट्रीय पररहस्थहतयों ने भी समाज सुधार और
जन जागरण के हलए गद्य को बढ़ािा ददया। आस आकाइ में हहदी गद्य के जन्म और अरं हभक
हिकास पर चचाज की जा रही है।
14.1 ईद्देश्य
छात्रो! आस आकाइ के ऄध्ययन से अप –
207
अधुहनक काल से पूिज हहदी गद्य की हस्थहत को समझ सकें गे।
अरं हभक गद्य लेखकों के योगदान के बारे में जान सकें गे।
अधुहनक काल में गद्य के हिकास से पररहचत हो सकें गे।
अधुहनक गद्य के हिकास में िोटज हिहलयम कॉलेज के योगदान को समझ सकें गे।
भारतेंदु हररश्चंद्र के गद्यलेखन पर प्रकाश डाल सकें गे।
भारतेंदु युग के प्रमुख गद्यकारों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकें गे।
गद्य को ‘कहियों के हलए कसौटी’ माना जाता है। आसका कारण यह है दक जहााँ कहिता के
कें द्र में भाि और रस की ईपहस्थहत होती है, िहीं गद्य के कें द्र में हिचार और हचतन ईपहस्थत
रहते हैं। यदद यह कहा जाए तो गलत नहीं होगा दक हचतन तो व्यिहस्थत गद्य में ही दकया जा
सकता है और व्यिहस्थत हचतन कहि के हलए करठन कमज रहा है। आसहलए गद्य हलखना कहियों
के हलए कसौटी भी है और चुनौती भी। “यहााँ आस समूची व्याख्या में ऄंतर्मनहहत है दक गद्य
मुख्यतः बोलने के हलए है, और ईसे हलखना ऄपनी कु छ हनजी समस्याएाँ खड़ी करना है। यह भी
संकेत है दक भाि-प्रिणता कहिता की हिशेषता है तो हचतनशीलता गद्य की। और कहिता के
ऄनुभि का अस्िाद जन-समुदाय के हलए है जबदक गद्य के िणजन का संबध ं जन-समाज से। कु ल
हमलाकर ये हिशेषताएाँ गद्य के मूल जनतांहत्रक स्िरूप की ओर संकेत करती हैं।”
(डॉ. रामस्िरूप चतुिेदी, हहदी गद्य : हिन्यास और हिकास, पृष्ठ 11(
बोध प्रश्न
अचायज रामचंद्र शुक्ल ने अधुहनक काल को ‘गद्य काल’ क्यों कहा?
208
14.2.1.1 अधुहनक काल के पूिज गद्य की हस्थहत
छात्रो !हहदी साहहत्य में अधुहनक काल से पूिज भी गद्य लेखन के प्रमाण प्राप्त होते हैं।
लेदकन ईसका स्िरूप ऄहिकहसत था। अप जान चुके हैं दक अधुहनक काल से पहले तक साहहत्य
की भाषा मुख्यतः ऄिधी और ब्रजभाषा ही रहीं। आसीहलए ईस समय की जो गद्य की रचनाएाँ
प्राप्त हैं ईनकी भाषा ब्रजभाषा ही हैं। अचायज रामचंद्र शुक्ल ने ‘हहदी साहहत्य का आहतहास’ में
यह स्पि दकया है दक अददकाल में हठयोग और ब्रह्मज्ञान से संबंध रखने िाले कइ गोरखपंथी
िंथ प्राप्त होते हैं हजनका रचना काल 1300 इ .के असपास माना जाता है। आस प्रकार हहदी
गद्य का प्रारं हभक रूप गोरखपंथी साधुओं की रचनाओं में हमलता है। यह गद्य राजस्थानी और
ब्रजभाषा का हमहश्रत रूप है। अगे चलकर गोसाईं हिट्ठलनाथ कृ त ‘शृंगार रस मंडन’ नामक िंथ
में भी ब्रजभाषा गद्य का प्रयोग हमलता है। शुक्ल जी के ऄनुसार यह गद्य ऄपररमार्मजत और
ऄव्यिहस्थत है। मध्यकाल की गोस्िामी गोकु लनाथ कृ त ‘चौरासी िैष्णिन की िाताज’ और ‘दो
सौ बािन िैष्णिन की िाताज’ तथा हररराय की ‘सूरदास की िाताज’ भी गद्य रचनाएाँ हैं। आनका
रचनाकाल इसा की 17िीं शताधदी का पूिाजधज माना जाता है।
नाभादास ने भी 1660 इ .के असपास ‘ऄियाम ’नामक िंथ ब्रजभाषा गद्य में हलखा
था। आसमें भगिान राम की ददनचयाज का िणजन है। “ऄियाम की रचना शृंगार-भहि ऄथिा
रहसक-भहि को लेकर की गइ है”।(हहदी साहहत्य का आहतहास ,सं. नगेंद्र ,पृ.190(। 1623 इ .के
असपास िैकुंठमहण शुक्ल ने ‘ऄगहन माहात्म्य ’और ‘िैशाख माहात्म्य ’नामक दो छोटी-छोटी
पुस्तकें हलखी। 1686 इ .में संस्कृ त से कथा लेकर सूरहत हमश्र ने ‘बैताल पच्चीसी’ हलखी। अगे
चलकर लल्लूलाल ने आसका रूपांतरण खड़ी बोली में दकया। आसके बाद 1703 इ .में ब्रजभाषा
में रहचत ‘नाहसके तोपाख्यान’ हमलता है। रामचंद्र शुक्ल के ऄनुसार आसकी भाषा व्यिहस्थत थी।
लाला हीरालाल ने 1795 इ .में ‘अइने ऄकबरी की भाषा िचहनका’ नाम की एक बड़ी पुस्तक
हलखी। आसकी भाषा बोलचाल की हहदी है। ऄथाजत आसमें ऄरबी-िारसी हमहश्रत हहदी प्रयोग
हमलता है।
आस तरह अददकाल से लेकर 18 िीं शती तक ब्रजभाषा गद्य की कु छ पुस्तकें पाइ जाती
हैं। लेदकन आनसे गद्य का हिकास स्पि नहीं होता। रामचंद्र शुक्ल के ऄनुसार “गद्य हलखने की
पररपाटी का सम्यक प्रचार न होने के कारण ब्रजभाषा गद्य जहााँ का तहााँ रह गया। िैष्णि
िाताजओं में ईसका जैसा पररष्कृ त और सुव्यिहस्थत रूप ददखाइ पड़ा िैसा अगे चलकर नहीं। ”
(हहदी साहहत्य का आहतहास ,रामचंद्र शुक्ल ,पृ 278(। ऄतः हजस समय से गद्य के हलए
खड़ीबोली का प्रयोग दकया गया ,ईस समय से ही िास्तहिक रूप से गद्य का हिकास माना
जाता है। ईससे पहले तक हहदी गद्य का हिकास नहीं हुअ था।
ईल्लेखनीय है दक देश के हिहभन्न भागों में ददल्ली के दरबारी हशिाचार के प्रचार के
209
सहारे ददल्ली की खड़ी बोली हशि समुदाय के परस्पर व्यिहार की भाषा बन गइ। ऄमीर खुसरो
ने अददकाल में खड़ी बोली में कु छ मुकररयों और पहेहलयों की रचना की थीं। ऄमीर खुसरो के
बाद खड़ी बोली का हिकास दहक्षणी राज्यों के रचनाकारों ने दकया। दहक्खनी हहदी के रूप में
14 िीं से 18 िीं शताधदी तक ऄनेक िंथों की रचनाएाँ हुईं। 1635 इ .में मुल्ला िजही ने ऄपने
प्रहसद्ध िंथ ‘सबरस’ की रचना की। औरं गजेब के समय में खड़ी बोली या रे ख्ता में शायरी भी
अरं भ हुइ। आसका प्रचार िारसी पढ़े-हलखे लोगों में बढ़ता गया। आस खड़ी बोली में ऄरबी-
िारसी के शधदों की बहुलता के कारण यह ईदूज कहलाने लगी। दूसरी तरि हहदुओं के हशि
समुदाय में तत्सम और तद्भि की प्रधानता के कारण यह हहदी कहलाइ। भहिकाल के अरं भ में
हनगुजणधारा के संत कहियों ने खड़ी बोली का व्यिहार ऄपनी ‘सधुक्कड़ी’ भाषा में दकया। ऄकबर
के समय गंग कहि ने ‘चंद छंद बरनन की महहमा’ नामक एक पुस्तक खड़ी बोली में हलखी थी।
1741 इ .में रामप्रसाद हनरं जनी ने ‘भाषा योगिाहशष्ठ’ नाम का गद्य िंथ खड़ी बोली में
हलखा था। रामचंद्र शुक्ल का मत है दक ‘भाषा योगिाहशष्ठ’ को पररमार्मजत गद्य की प्रथम
पुस्तक और रामप्रसाद हनरं जनी को प्रथम प्रौढ़ गद्य लेखक मान सकते हैं। 1761 इ .में
बसिा(मध्य प्रदेश( हनिासी पं.दौलतराम ने ‘जैन पद्मपुराण’ का भाषानुिाद दकया।
रीहतकाल समाप्त होते-होते देश में ऄंिेजों का राज्य स्थाहपत हो गया था। ईन्हें भारत की
भाषा सीखने की अिश्यकता हुइ और िे गद्य की खोज करने लगे। ईन्हें ईदूज और हहदी दोनों
प्रकार की पुस्तकों की अिश्यकता हुइ। आसहलए िोटज हिहलयम कॉलेज की ओर से ईदूज और हहदी
गद्य पुस्तकें हलखने की व्यिस्था की गइ। लेदकन ईसके पहले भी हहदी खड़ी बोली में गद्य की कइ
पुस्तकें हलखी जा चुकी थीं। ऄंिेजों की ओर से पुस्तकें हलखने की व्यिस्था के एक-दो िषज पहले
ही मुंशी सदासुखलाल की ‘ज्ञानोपदेशािली’ और आं शा ऄल्ला खााँ की ‘रानी के तकी की कहानी’
हलखी जा चुकी थीं। आसहलए यद्यहप यह तो नहीं कहा जा सकता दक ऄंिेजों की प्रेरणा से ही
हहदी खड़ी बोली गद्य का प्रारं भ हुअ, लेदकन यह ऄिश्य सत्य है दक ईनके माध्यम से आसे गहत
और हिस्तार हमला।
210
हगल क्राआस्ट की ऄध्यक्षता में लाडज िेलेजली ने ‘ओररयंटल सेहमनरी’ की स्थापना की, जो बाद में
‘िोटज हिहलयम कॉलेज’ के रूप में पररिर्मतत हुइ।
1803 इ .में कोलकाता के िोटज हिहलयम कॉलेज के ‘हहदुस्तानी हिभाग’ के ऄध्यक्ष जॉन
हगल क्राआस्ट ने देशी भाषा की गद्य पुस्तकें तैयार करने की व्यिस्था की। ईन्होंने हहदी और ईदूज
दोनों के हलए ऄलग-ऄलग प्रबंध दकया। प्रेस के अगमन से पुस्तकों के मुद्रण में सुहिधा होने
लगी। लेखन में मुद्रण की सुहिधा के हलए हिराम हचह्नों का प्रचलन आसी समय से प्रारं भ हुअ।
िोटज हिहलयम कॉलेज के माध्यम से पहली बार हहदी भाषा में अधुहनक प्रणाली के शधदकोश
की रचना हुइ। आसी हिद्यालय के प्राध्यापकों द्वारा ब्रजभाषा के व्याकरण के हसद्धांतों का पहली
बार हििेचन हुअ। हहदी गद्य में छोटी-छोटी कहाहनयााँ भी सबसे पहले यहीं प्रस्तुत की गईं।
जॉन हगल क्राआस्ट द्वारा हलहखत ऄनेक िंथ भारतीय साहहत्य के हलए महत्िपूणज हसद्ध हुए ,जो
आस प्रकार हैं -ए हडक्शनरी ऑि आं गहलश एंड हहदुस्तानी (दो भाग(,द हहदी ऄरे हबक टेबल,
कं पेरेरटि अल्फ़ाबेट-रोमन, नागरी एंड पर्मशयन तथा द हहदी डाआरे क्टरी ऑर स्टू डट्ें स
डाआरे क्टरी टु द हहदुस्तानी लैंग्िेज़।
िोटज हिहलयम कॉलेज के अश्रय में लल्लूलाल ने खड़ी बोली के गद्य में ‘प्रेमसागर’ और
सदल हमश्र ने ‘नाहसके तोपाख्यान’ हलखा। भारतेंदु के पूिज खड़ी बोली गद्य को अगे बढ़ाने में
सदासुखलाल, आं शा ऄल्ला खााँ, लल्लूलाल और सदल हमश्र की भूहमका महत्िपूणज है। आसी
कॉलेज में हहदी के ऄन्य हिद्वान थे -गंगा प्रसाद शुक्ल, नरहसह, इश्वरचंद्र हिद्यासागर, दीन बंधु
और शेष शास्त्री।
यह भी याद रखना चाहहए दक िोटज हिहलयम कॉलेज से ही भारत में हप्रटटग प्रेस का
तेजी से हिकास हुअ क्योंदक कॉलेज में हनत नइ पुस्तकें तैयार होती थीं। हप्रटटग प्रेस के अगमन
के प्रभाि से अधुहनक भारतीय भाषाओं में टाआप और हिराम हचह्नों का प्रयोग भी शुरू हुअ।
कॉलेज ऄपने जीिन काल में स्थानीय शोध और ऄध्ययन का सांस्कृ हतक कें द्र बना रहा। आसने
महत्िपूणज पांडुहलहपयों को जन्म ददया। कॉलेज का हिशेष योगदान अम जनता के हलए
पुस्तकालय खोलना भी था।
बोध प्रश्न
अधुहनक काल से पहले तक साहहत्य की भाषा क्या थी?
ब्रजभाषा गद्य का प्रारं हभक रूप दकन की रचनाओं में हमलता है?
गद्य का िास्तहिक हिकास कब से माना जा सकता है?
रामचंद्र शुक्ल ने दकस पुस्तक को पररमार्मजत गद्य की प्रथम पुस्तक माना?
211
रामचंद्र शुक्ल ने दकस रचनाकार को प्रथम प्रौढ़ गद्य लेखक माना?
हहदी के अरं हभक गद्य लेखक कौन हैं?
िोटज हिहलयम कॉलेज की स्थापना कब हुइ?
िोटज हिहलयम कॉलेज का क्या योगदान रहा ?
आसके ऄलािा, ऄंिेजों ने ऄपनी हस्थहत को सुदढ़ृ करने के हलए मुद्रण, यातायात और
जनसंचार के साधनों का हिकास तथा प्रयोग दकया। मुद्रण की सुहिधा से पत्र-पहत्रकाओं का
प्रकाशन हुअ। 1826 इ .में कोलकाता से पंहडत जुगल दकशोर शुक्ल ने हहदी के प्रथम पत्र ‘ईदंत
मातांड’ का प्रकाशन प्रारं भ दकया। यह साप्ताहहक पत्र था। लेदकन 1827 इ .में यह बंद हो गया।
5283 इ .में कोलकाता से ‘बंगदूत’ का प्रकाशन प्रारं भ हुअ। आसी तरह 1845 इ .में कोलकाता
से ‘प्रजाहमत्र’, बनारस से ‘बनारस ऄखबार’ तथा 1846 इ .में ‘मातांड’ का प्रकाशन हुअ। आन
पत्र-पहत्रकाओं ने हहदी गद्य को खूब हिकहसत और पररमार्मजत दकया।
1835 इ .में मैकाले ने भारत में हशक्षा प्रसार के हलए ऄंिेजी हशक्षा पद्धहत की नींि
रखी। आस देश में आससे पूिज हशक्षा िारसी और संस्कृ त के माध्यम से दी जाती थी। 1800 इ .में
स्थाहपत िोटज हिहलयम कॉलेज में हहदी पढ़ाने का हिशेष प्रबंध 1824 इ .में हुअ। 1823 इ .में
अगरा कॉलेज की स्थापना हुइ हजसमें हहदी हशक्षण का हिशेष प्रबंध हुअ। हशक्षा हिस्तार से भी
हहदी गद्य का हिकास हुअ। 1825 इ .से लेकर 1862 इ .के बीच हशक्षा संबंधी ऄनेक पुस्तकें
हहदी में हनकलीं। ईनमें से प्रमुख हैं पं .िंशीधर की पुष्पिारटका, भारत िषीय आहतहास और
जीहिका पररपाटी। पं .श्रीलाल ने 1852 इ .में पत्रमाहलका बनाइ। हबहारीलाल ने गुहलस्तााँ के
अठिें ऄध्याय का हहदी ऄनुिाद 1862 इ .में दकया। पं .बद्रीलाल ने 1862 इ .में ‘हहतोपदेश’
का ऄनुिाद दकया। राजा लक्ष्मण हसह ने 1851 इ .में ‘प्रजा हहतैषी’ पत्र हनकाला और 1862
इ .में ‘ऄहभज्ञान शाकुं तलम्’ का ऄनुिाद हहदी में दकया। दयानंद सरस्िती ने 1863 इ .में हहदी
212
में ‘सत्याथज प्रकाश’ हलखा। ईनके द्वारा स्थाहपत अयज समाज के प्रभाि से हहदी गद्य का प्रचार
तेजी से हुअ। पं .श्रद्धाराम िु ल्लौरी ने ‘अत्म हचदकत्सा ’नाम की एक ऄध्यात्म संबंधी पुस्तक
1871 इ .में हलखी। साथ ही ,भारतेंदु हररश्चंद्र तथा भारतेंदु मंडल के गद्य लेखकों ने हहदी गद्य
को सुव्यिहस्थत रूप से हिकहसत दकया।
अधुहनक हहदी गद्य के हिकास में भारतेंदु से पहले दो राजाओं, राजा हशिप्रसाद
‘हसतारे हहद ’और राजा लक्ष्मण हसह का योगदान ऄहिस्मरणीय है।
बोध प्रश्न
हहदी के प्रथम समाचार पत्र का प्रकाशन कब और कहााँ हुअ और ईसके संपादक कौन हैं?
हहदी गद्य के हिकास में राजा हशिप्रसाद ‘हसतारे हहद’ का क्या योगदान है?
213
‘प्रजा हहतैषी’ के संपादक कौन थे?
हहदी भाषा के बारे में राजा लक्ष्मण हसह की मान्यता क्या थी?
हहदी को ‘पाठ्यक्रम की भाषा’ बनाने के प्रबल पक्षधर कौन थे?
श्रद्धाराम िु ल्लौरी ने दकन पुस्तकों की रचना की?
214
और हिनोदहप्रय थे। िे ऄपने देश-प्रेम, भाषा और साहहत्य-प्रेम और इश्वर-प्रेम के हलए प्रहसद्ध
थे”।( सं .धीरें द्र िमाज, हहदी साहहत्य कोश,भाग 2, पृ 408(
भारतेंदु ने 1873 इ .में हलखा है दक -‘हहदी नए चाल में ढली।’ ऄथाजत ईनके ऄनुसार हहदी
गद्य को एक सुहनहश्चत रूप 1873 इ .से हमला। डॉ .श्यामसुंदर दास के ऄनुसार, लल्लूलाल ने
हजस भाषा को नया रूप ददया, लक्ष्मण हसह ने हजसे सुधारा, ईसको पररमार्मजत करने का श्रेय
भारतेंदु हररश्चंद्र को जाता है। अचायज रामचंद्र शुक्ल ने अधुहनक काल के प्रथम ईत्थान को
भारतेंदु युग कहा है। अधुहनक हहदी साहहत्य के युग प्रितजक की ख्याहत भारतेंदु हररश्चंद्र को प्राप्त
हुइ। डॉ .गणपहतचंद्र गुप्त की मान्यता है दक “युग पररितजन, युग प्रितजन एिं युग का नेतृत्ि करने
के हलए के िल युग का ज्ञान या बोध पयाजप्त नहीं है, ईस ज्ञान को या बोध को सच्ची ऄनुभूहत एिं
सहज ऄहभव्यहि के माध्यम से जन साधारण के हृदय तक पहुाँचा देने की क्षमता भी ऄपेहक्षत है।
हनःसंदह
े भारतेंदु हररश्चंद्र में यह क्षमता थी और आसी बल पर िे ऄपने युग को सच्चा एिं सिल
नेतृत्ि प्रदान कर सके ।“( गणपहतचंद्र गुप्त, हहदी साहहत्य का िैज्ञाहनक आहतहास, पृ 614(।
भारतेंदु के गद्य लेखन में हिहिध अयामों को देखा जा सकता है। ईनके गद्य लेखन को
तत्कालीन पररिेश से जोड़ कर ही समझा जा सकता है। ईनके साहहत्य में तत्कालीन समाज को
भलीभााँहत देखा जा सकता है। ईन्होंने सामाहजक हिसंगहतयों पर खुलकर प्रहार दकया था।
भारतेंदु की प्रहतभा के संदभज में डॉ .रामहिलास शमाज का यह कथन ईल्लेखनीय है –“ईनकी
प्रहतभा आस बात में प्रकट हुइ दक ईन्होंने ऄपने युग की अिश्यकताओं को पहचाना और पहचान
कर तुरंत ही कमर कसकर कमजक्षेत्र में कू द पड़े” । (रामहिलास शमाज, भारतेंदु हररश्चंद्र,( पृ. 118।
भारतेंदु युग में ऄनेक निीन गद्य रूपों का हिकास हुअ हजनका माध्यम खड़ी बोली थी।
ये नए रूप हैं -पत्रकाररता, ईपन्यास, कहानी, नाटक, अलोचना और हनबंध। आस काल में
ऄनेक पत्र-पहत्रकाओं का खूब प्रचलन हुअ। भारतेंदु स्ियं कहििचन सुधा, भारतेंदु मैगज़ीन और
हररश्चंद्र चंदद्रका का संपादन करते थे।
बोध प्रश्न
अधुहनक हहदी साहहत्य के युग प्रितजक की ख्याहत दकस को प्राप्त हुइ?
अचायज रामचंद्र शुक्ल ने अधुहनक काल के प्रथम ईत्थान को क्या कहा है?
‘कहििचन सुधा’ का प्रारं भ कब हुअ?
भारतेंदु हररश्चंद्र दकन-दकन पत्रों के संपादक थे?
215
14.2.4 भारतेंदु युग के प्रमुख गद्यकार
भारतेंदु के जीिन काल में लेखकों और कहियों का एक मंडल तैयार हो गया था। आसे
भारतेंदु मंडल के नाम से जाना जाता है। आस मंडल के लेखकों ने साहहत्य और जीिन के संबंधों
को पहचाना तथा निजागरण की भूहमका को पहचानकर ईससे साहहत्य को समृद्ध दकया।
भारतेंदु मंडल के कु छ प्रमुख साहहत्यकार हैं -
216
मीरजापुर से ईन्होंने ‘अनंद कादंहबनी’ हनकाला था। ‘नागरी नीरद’ नाम से साप्ताहहक पहत्रका
भी हनकाली थी। “ईन्होंने हहदी में सम्यक अलोचना का सूत्रपात दकया”।
(सं. धीरें द्र िमाज ,हहदी साहहत्य कोश .भाग2, पृ 368 )।
बोध प्रश्न
मनोिैज्ञाहनक हिषयों पर गंभीर हचतन का कायज प्रारं भ करने का श्रेय दकसको जाता है?
‘ब्राह्मण’ पहत्रका का प्रकाशन कब हुअ?
‘नागरी नीरद’ पहत्रका के संपादक कौन हैं?
हहदी के प्रथम ईपन्यास का नाम बताआए।
217
14.3 पाठ-सार
अधुहनक काल से पहले भी हहदी में गद्य लेखन के कु छ ईदाहरण हमलते हैं। लेदकन िे
दकसी परं परा का हनमाजण नहीं कर सके । आसहलए हहदी गद्य का ईद्भि िही से मानना होगा जहााँ
से िह लगातार चलने िाली धारा के रूप में हमलता है। आस दृहि से 1741 इ .में रहचत
‘रामप्रसाद हनरं जनी’ का िंथ ‘भाषायोगिहशष्ठ’ खड़ी बोली गद्य का प्रथम िंथ माना जाता है।
अगे िोटज हिहलयम कॉलेज के कायम होने पर चार अरं हभक गद्य लेखकों ने हहदी गद्य को समृद्ध
करने का कायज दकया। आनके नाम हैं -सदासुखलाल, आं शा ऄल्ला खााँ, लल्लूलाल और सदल
हमश्र। आसी काल में हहदी गद्य के स्िरूप को लेकर एक बहस भी हछड़ी। आस बहस में दो राजाओं
का बड़ा योगदान रहा। राजा हशिप्रसाद ‘हसतारे हहद’ जहााँ हहदी में ऄरबी-िारसी शधदों को
स्िीकार करने के पक्षधर थे िहीं राजा लक्ष्मण हसह आन्हें हहदी में स्िीकार करने के पक्ष में नहीं
थे। भारतेंदु हररश्चंद्र ने आन दोनों के बीच का रास्ता ऄपनाया और जन प्रचहलत खड़ी बोली को
हहदी गद्य के हलए स्िीकार दकया। ईनके आसी अदशज का भारतेंदु मंडल के ऄन्य गद्य लेखकों ने
भी ऄनुसरण दकया।हहदी गद्य के अरं हभक हिकास में भारतेंदु हररश्चंद्र के महत्ि को रे खांदकत
करते हुए प्रोिे सर रामस्िरूप चतुिेदी ने सही हलखा है दक “आस संदभज में भली भांहत समझा जा
सकता है दक ‘गद्यकार-चतुिय’ और ‘राजा-द्वय’ के बाद भारतेंदु हहदी गद्य के हिकास में कइ
सीदढ़यााँ एक साथ चढ़ते ददखाइ देते हैं। यों ईन्होंने ऄपने आहतहास-जनजल में नोट दकया ‘हहदी
नए में ढली, 1873 इ.’ िह आस प्रसंग में कोइ साहहहत्यक गिोहि नहीं, ऐहतहाहसक घटना-चक्र
का सही ऄंकन है। 1870 के असपास भारतेंदु की अरं हभक गद्य रचनाएाँ प्रकाहशत होने लगती
हैं, और यहााँ से हहदी गद्य का ऄपना रूपाकार बनता है।”
218
भारतेंदु हररश्चंद्र ने हहदी गद्य के हलए अदशज माना।
5. बालकृ ष्ण भि, प्रतापनारायण हमश्र, बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’, बालमुकुंद गुप्त,
लालाश्रीहनिास दास और राधाकृ ष्ण दास जैसे लेखकों ने भारतेंदु के साथ हहदी के
अरं हभक गद्य का हिकास दकया। आन लेखकों को सामूहहक रूप से ‘भारतेंदु मंडल’ के नाम
से जाना जाता है।
खंड (ब(
हनम्नहलहखत प्रश्नों के ईिर लगभग 200 शधदों में दीहजए।
1. अरं हभक हहदी गद्य के हिकास में सदासुखलाल के योगदान पर प्रकाश डाहलए।
2. अरं हभक हहदी गद्य के हिकास में आं शा ऄल्ला खााँ के योगदान पर प्रकाश डाहलए।
3. अरं हभक हहदी गद्य के हिकास में सदल हमश्र के योगदान को हनरूहपत कीहजए।
4. अरं हभक हहदी गद्य के हिकास में लल्लूलाल के योगदान पर प्रकाश डाहलए।
5. हहदी गद्य के हिकास में राजा हशिप्रसाद ‘हसतारे हहद’ और राजा लक्ष्मण हसह के योगदान को
स्पि कीहजए।
219
खंड (स(
I सही हिकल्प चुहनए
1. नाभादास कृ त‘ऄियाम’ की रचना कब हुइ? ( (
(ऄ(1400संित (अ(1560संित (आ(1660संित (इ(1700
2. हहदी गद्य के हिकास के क्या कारण थे? ( (
(ऄ(समाज सुधार (अ(मुद्रण का हिकास (आ(इसाइ धमज प्रचारक (इ(सभी
3. ‘सत्याथज प्रकाश’ के रचनाकार कौन हैं? ( (
(ऄ(संत गंगादास (अ(दयानंद सरस्िती (आ(श्रद्धाराम िु ल्लौरी (इ(निीनचंद्र राय
III. सुमल
े कीहजए
i) गोसाईं हिट्ठलनाथ (ऄ(हहदी प्रदीप
220
4. भारतेंदु और हहदी भाषा की हिकास-परं परा, रामहिलास शमाज
5. िोटज हिहलयम कॉलेज :एक आहतहास, नीरज गोयल
6. जाने-ऄनजाने, क्षेमचंद्र सुमन
7. हहदी साहहत्य कोश, भाग 1, .2 सं .धीरें द्र िमाज
221
आकाइ 15 : भारतेंद ु युगीन काव्य की हिशेषताएाँ
आकाइ की रूपरे खा
15.0 प्रस्तािना
15.1 ईद्देश्य
15.2 मूल पाठ :भारतेंदु युगीन काव्य की हिशेषताएाँ
15.2.1 भारतेंदु युग (1857 इ.- 1900 इ.(
15.2.2 भारतेंदु युगीन काव्य की प्रिृहियााँ
15.2.2.1 राष्ट्रीय चेतना :देशभहि बनाम राजभहि
15.2.2.2 सामाहजक चेतना की ऄहभव्यहि
15.2.2.3 भहि भािना
15.2.2.4 शृंगार िणजन
15.2.2.5 प्रकृ हत हचत्रण
15.2.2.6 हास्य-व्यंग्य
15.2.2.7 समस्यापूर्मत
15.2.2.8 रीहत हनरूपण
15.2.2.9 काव्यानुिाद
15.2.2.10 काव्य हशल्प
15.3 पाठ-सार
15.4 पाठ की ईपलहधधयााँ
15.5 शधद संपदा
15.6 परीक्षाथज प्रश्न
15.7 पठनीय पुस्तकें
15.0 प्रस्तािना
हप्रय छात्रो !ऄब तक अप यह जान चुके हैं दक 19 िीं शताधदी के दौरान भारत में
अधुहनक हचतन और ज्ञान-हिज्ञान का अगमन हुअ। आसके िलस्िरूप लोगों में सामाहजक और
222
राजनैहतक चेतना पनपने लगी। राष्ट्रीयता का भाि जागने लगा। संस्कृ हत और आहतहास पर नए
हसरे से हचतन अरं भ हुअ। यह समय भारत में इस्ट आं हडया कं पनी के शासन का समय था।
भारतीय समाज हबखरा हुअ और रूदढ़यों में जकड़ा हुअ था। ऐसे समय दोहरे संघषज की
शुरूअत हुइ। सामाहजक स्तर पर आस संघषज ने निजागरण अंदोलन का रूप हलया। राष्ट्रीय
राजनीहत के क्षेत्र में आससे स्ितंत्रता अंदोलन का जन्म हुअ। अप जान चुके हैं दक 1857का
प्रथम भारतीय स्िाधीनता संघषज व्यापक जन-जागरण का प्रतीक था। हालांदक आस संघषज को
ऄंिेजों ने क्रूरतापूिजक कु चल ददया ,लेदकन आसके कारण देश के कोने-कोने में अजादी की लौ
जाग गइ। यह समय हहदी साहहत्य में अधुहनक काल के ईदय का समय था हजसे भारतेंदु
हररश्चंद्र ( 9 हसतंबर, 6 - 1850 जनिरी, 1885( ने नेतृत्ि प्रदान दकया। आसीहलए आसे भारतेंदु
युग कहा जाता है। आस आकाइ में हम भारतेंदु युग की प्रिृहियों पर हिस्तार से चचाज करें गे।
15.1 ईद्देश्य
आसमें कोइ संदह े नहीं है दक प्रत्येक युग ऄपने पूिजिती युग से प्रेरणा लेकर ईस युग के
ऄनुभि को ध्यान में रखते हुए निीन युग का सूत्रपात करता है। भारतेंदु युग के पूिज का काल
रीहतकाल था जहााँ नाहयका की सुंदरता का िणजन प्रधान हिषय था। भारतेंदु युगीन कहिता में
यह प्रभाि साि तौर पर देखा जा सकता है। लेदकन यह ईसकी मुख्य प्रिृहि नहीं है। भारतेंदु
युग की मुख्य प्रिृहियों को ईस युग की जन-चेतना से ददशा हमली। निजागरण के प्रभाि से आस
काल के रचनाकारों ने हिषय चयन में व्यापकता और हिहिधता ऄपनाइ। “भारतेंदु हररश्चंद्र ने
जनता को ईद्बोधन प्रदान करने के ईद्देश्य से ‘जातीय संगीत’ ऄथाजत लोक गीत की शैली पर
सामाहजक कहियों की रचनाओं पर बल ददया है। मातृभूहम प्रेम, स्िदेशी िस्तुओं का व्यिहार,
गोरक्षा, बाल हििाह हनषेध, हशक्षा प्रसार का महत्ि, मद्यहनषेध, भ्रूणहत्या की हनदा अदद
हिषयों को कहिगण ऄहधकाहधक ऄपनाने लगे थे। राष्ट्रीय भािना का ईदय भी आस काल की
ऄनन्य हिशेषता है”।(हहदी साहहत्य का आहतहास, सं .नगेंद्र, पृ. 440(। आस प्रकार भारतेंदु की
साहहत्य चेतना मध्यकाल की रचना प्रिृहियों से अगे बढ़कर निीन ददशाओं का संधान करती
ददखाइ देती है। आस युग के मुख्य कहि हैं भारतेंदु हररश्चंद्र, बद्रीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’,
प्रतापनारायण हमश्र, जगन्मोहन हसह, ऄंहबकादि व्यास और राधाकृ ष्ण दास।
भारतेंदु हररश्चंद्र की ये पंहियााँ देश के प्रहत ईनके प्रेम को साि तौर पर ईजागर करती
224
हैं। ऄब िे हलखते हैं -
रोऄहु सब हमहलकै अिहु भारत भाइ।
हा हा !भारत दुदश
ज ा न देखी जाइ !
राधाकृ ष्ण दास ने ऄपनी रचना (हिजहयनी हिलाप( में भारत की प्राचीन कालीन सुख-
समृहद्ध को याद कर दुख प्रकट करते हुअ हलखा है -
कहााँ पररहक्षत कहाँ जनमेजय कहाँ हिक्रम कहाँ भोज।
नन्दिंश कहाँ चन्द्रगुप्त कहाँ हाय कहााँ िह ओज।
हा कबहुाँ िह ददन दिर ह्िै हैं िह समृहद्ध िह शोभा।
कै ऄब तरहस-तरहस मसूहस कै ददन जैहैं सब छोभा।
आसी प्रकार ऄन्य कहियों ने भी ऄपने हृदय की पीड़ा को ऄहभव्यहि दी है। सुरेशचंद्र गुप्त
की मान्यता है दक “भारतेंदु युगीन कहियों ने भारतीय आहतहास के गौरिशाली पृष्ठों की स्मृहत
तो ऄनेक बार ददलाइ। पर ईसकी राष्ट्रीय भािना के िल यहीं तक सीहमत नहीं रही। ऄंिेजों की
हिचारधारा और ईनकी देशभहिपूणज कहिताओं से भी ईन्होंने यथेि प्रेरणा ली, हजसका िल यह
हुअ दक क्षेत्रीयता से उपर ईठाकर िे संपूणज राष्ट्र की नधज़ को टटोलने लगे। ‘हमारो ईिम भारत
देस’(राधाचरण गोस्िामी( और ‘धन्यभूहम भारत सब रतनहन की ईपजािहन’ (प्रेमघन( अदद
काव्य-पंहियााँ आसी तथ्य को प्रकट करती हैं। देश के ईत्कषज-ऄपकषज के हलए ईिरदायी
पररहस्थहतयों पर प्रकाश डालकर आस युग के कहियों ने जन-मानस में राष्ट्रीय भािना के बीज-
िपन का महत्िपूणज कायज दकया”।(हहदी साहहत्य का आहतहास, सं .नगेंद्र ,पृ. 450(।
बोध प्रश्न
भारतेंदु युग की राष्ट्रीय हचतनधारा के दो पक्ष क्यों ददखाइ देती हैं?
भारतेंदु युग के कहियों की राजभहिपरक रचनाएाँ दकसके प्रतीक हैं?
225
15.2.2.2 सामाहजक चेतना की ऄहभव्यहि
अधुहनक काल का साहहत्य आस ऄथज में ‘अधुहनक’ है दक ईसने परलोक और पुनजजन्म की
मध्यकालीन जड़ता से मुि होकर आस लोक तथा समाज की गहतशील चेतना से ऄपने अपको
जोड़ा। आसे यों कहा जा सकता है दक भारतेंदु युग में हहदी कहिता भारतीय जनता के व्यापक
सुख-दुख के साथ जुड़ी। ईसकी आस सामाहजक चेतना ने अगे के समूचे काव्य पररदृश्य को गहरे
प्रभाहित दकया। आन कहियों ने यह माना दक सामाहजक समस्याओं की ऄहभव्यहि साहहत्यकार
का पहला कतजव्य है। आस प्रकार भारतेंदु युगीन कहियों ने ऄपनी रचनाओं में सामाहजक चेतना
का बखूबी प्रदशजन दकया है। ईदाहरणाथज, प्रतापनारायण हमश्र बाल हिधिाओं के नारकीय
जीिन का कारुहणक हचत्र प्रस्तुत करते हुए कहते हैं दक ‘कौन करे जो नहह कसकत, सुहन हिपहत
बाल हिधिन की।’
‘भारत दुदश
ज ा’ जैसी रचनाओं में भारतेंदु की प्रखर सामाहजक चेतना ददखाइ देती है,
जहााँ िे समस्त भारतीयों का अह्िान करते हैं दक अओ, ऄपनी दुदश
ज ा पर सब हमलकर रोएाँ।
यह िस्तुतः ईस काल के भारतीय समाज की ईपाय हीनता का ही काव्यात्मक प्रहतिलन है।
प्रतापनारायण हमश्र ने भी तत्कालीन भारतीय समाज की पीड़ा का हचत्र आस प्रकार खींचा हैं -
तबहह लख्यो जहाँ रह्या, एक ददन कं चन बरसत।
तहाँ चौथाइ जन, रूखी रोरटहुाँ को तरसत॥
बोध प्रश्न
भारतेंदु युगीन कहियों के ऄनुसार साहहत्यकार का क्या कतजव्य है?
226
सकती है दक आन कहियों ने जहााँ एक ओर िैराग्य भहि और हनगुजण भहि की भािना से प्रेररत
कहिताएाँ रचीं, िहीं देशभहि को भी इश्वर भहि की उाँचाइ तक पहुाँचा ददया। िस्तुतः आसी
काल में राष्ट्र को देिी या देिता के रूप प्रतीक प्राप्त हुइ। भहि भािना को पुि करते हुए भारतेंदु
युगीन कहियों ने संसार की नश्वरता, माया मोह की व्यथजता और हिषम असहि की हनदा को
कहिता का हिषय बनाया। भारतेंदु और प्रेमघन जैसे कहियों ने िैराग्य भहि का प्रहतपादन
दकया। भारतेंदु हररश्चंद्र हलखते हैं -
ब्रज के लता-पता मोहह कीजै।
गोपी-पद-पंकज पािन की रज जाने हसर भींजै॥
भारतेंदु की भहिपरक रचनाओं पर रटप्पणी करते हुए बच्चन हसह ने हलखा है ‘भहिपरक
रचनाओं में कहतपय स्थलों को छोड़ जीिन का स्पंदन ऄत्यंत क्षीण है।’ भारतेंदु मंडल के कहि
बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ ने भी भहि भािना से ओतप्रोत होकर रचना प्रस्तुत की है -
छहरे मुख पै घनश्याम से के श आतै हसर मोर पखा िहरैं ।
हनहत ऐसे सनेह सों राहधका श्याम हमारे हहये में सदा हबहरैं ॥
आसके ऄहतररि ‘देशानुराग व्यंजक भहिभािना’ भारतेंदु युग के कहियों की मौहलक देन
है। आसका प्रहतपादन करते हुए ईन्होंने धार्ममक सहहष्णुता, समन्िय भािना, जातीयता और
देशहहत की भािना का रुहचपूिजक हचत्रण दकया। राष्ट्रीयभािना और भहिभािना को एक
समरे खा प्रदान करने िाली ऐसी रचनाओं में भारतेंदु की ‘कहााँ करुणाहनहध के सि सोये’,
प्रतापनारायण हमश्र की ‘हम अरत भारत िाहसन पै, ऄब दीनदयाल दया कररपै’ और
राधाकृ ष्ण दास की ‘ऄपने या प्यारे भारत के पुहन दुख दररद्र हररये’ जैसी कहिताएाँ हिशेष रूप
से ईल्लेखनीय हैं।
बोध प्रश्न
भारतेंदु युगीन कहिता का मुख्य स्िर क्या है?
15.2.2.4 शृग
ं ार िणजन
भारतेंदु युगीन काव्य शृंगाररकता के मामले में भी पीछे नहीं है। भारतेंदु की कइ ऐसी
रचनाएाँ हैं हजनके नाम में ‘प्रेम’ शधद जुड़ा हुअ है। यथा -प्रेम सरोिर, प्रेमाश्रम, प्रेम तरं ग,
प्रेममाधुरी अदद। कु छ में प्रेम शधद भले ही नहीं जुड़ा है परं तु ईनका प्रधान हिषय प्रेम है।
भारतेंदु ने भहि और प्रेम का बड़ी हद तक एक जैसी तन्मयता के साथ हचत्रण दकया है। ईनके
प्रेमिणजन में कहीं भी ओछापन नहीं है। भारतेंदु के प्रेम के संबंध में डॉ .गणपहतचंद्र गुप्त ने हलखा
227
है -‘ईन्होंने प्रेमालंबन नाहयका के सौंदयज का अख्यान दकया है, ककतु ईसमें स्थूल शारीररकता
एिं ऄश्लीलता को प्रायः स्थान नहीं ददया गया है।’ हप्रय दशजन की अकु लता का भारतेंदु हररश्चंद्र
का यह िणजन बेहद प्रभािशाली बन पड़ा है, दक -
यह संग में लहगये डोले सदा हबन देखे न धीरज अनती हैं।
हछनह जो हियोग परै हररचन्द तो चाल प्रलै की सु ठानती हैं।
बरुनी में हथरैं न झपैं ईझपैं पल में न समाआबो जानती हैं।
हपय हपयारे हतहारे हनहारे हबना ऄाँहखया दुहखयााँ नहीं मानती हैं।
आसी प्रकार ठाकु र जगन्मोहन हसह की कहिता में हनश्छल प्रेम के साथ भािुकता भी
हिद्यमान है। यथा -
ऄब यों ईर अित है सजनी, हमहल जाउाँ गरे लहग के छहतयााँ।
मन की करे भााँहत ऄनेकन और हमहल कीहजय री रस की बहतयााँ॥
हम हारर ऄरी करर कोरट ईपाय, हलखी बहु नेह भारी पहतयााँ।
जगमोहन मोहहनी मूरहत के हबना कै से कटें दुख की रहतयााँ॥
बोध प्रश्न
भारतेंदु युगीन कहिता में शृंगार िणजन दकस प्रकार का है?
228
कै प्रनित जल जाहन परम पािन िल लोभा॥
आस काल के काव्यों में ठाकु र जगन्मोहन हसह के हिध्याचल हिषयक सिैया ऄपने सूक्ष्म
हनरीक्षण और स्िाभाहिक हचत्रण के कारण खास तौर पर ईल्लेखनीय है।
बोध प्रश्न
‘सत्य हररश्चंद्र’ नाटक में गंगा नदी का िणजन दकस दृहि से ईल्लेखनीय है?
15.2.2.6 हास्य-व्यंग्य
भारतेंदु तथा भारतेंदु युगीन कहियों के यहााँ हास्य-व्यंग्य भी भरपूर ईपलधध है।
तत्कालीन पररहस्थहतयों पर भारतेंदु ने हास्य-व्यंग्य के माध्यम से प्रहार दकया है। भारतेंदु के
हास्य-व्यंग्य के संबध
ं में रटप्पणी करते हुए डॉ.गणपहतचंद्र गुप्त ने हलखा है दक भारतेंदु के हास्य-
व्यंग्य की प्रिृहि का पूणज हिकास ईनके नाटकों -‘पाखंड हिडंबन’,‘िैददकी हहसा हहसा न
भिहत’,‘ऄंधेर नगरी’ अदद में हुअ है। भारतेंदु ने ईदूज नाटक ‘आं दर सभा’ की पैरोडी के रूप में
‘बंदर सभा’ की रचना की। ईन्होंने हलखा है -
बोध प्रश्न
भारतेंदु हररश्चंद्र ने हास्य-व्यंग्य का सहारा क्यों हलया?
229
15.2.2.7 समस्यापूर्मत
भारतेंदु के समय में काव्य क्रीड़ा के रूप में समस्यापूर्मत का कािी प्रचलन था। आस क्रीड़ा
में एक पंहि दे दी जाती है और ईसी के अधार पर पूरी कहिता बनाने का प्रयास दकया जाता
है। समस्यापूर्मत के माध्यम से कहियों की प्रहतभा पहचानी जाती थी। भारतेंदु हररश्चंद्र ने
‘कहितािर्मद्धनी सभा’ नामक एक संस्था बनाइ थी। आस सभा की बैठकें ईनके घर या बाग में
हुअ करती थीं। आसी सभा में पं.ऄंहबकादि व्यास ने ‘पूरी ऄमी की कटोररया सी हचरजीिो सदा
हिक्टोररया रानी’ समस्या की पूर्मत आस प्रकार की थी -
अनन्द से प्रजा हबकसे सब कौंल में कोस हसरी हरखानी।
सेिदकनी हचररया सम बोहल रहीं हनज स्िाहमनी को सममानी॥
भोर परकास सों जाको प्रताप लखै आहम ऄहम्बकादि बखानी।
पूरी ऄमी की कटोररया सी हचरजीिो सदा हिक्टोररया रानी॥
बोध प्रश्न
समस्यापूर्मत क्या है?
230
15.2.2.8 रीहत हनरूपण
भारतेंदु युग के रचनाकार काव्य रूदढ़यों की दृहि से संक्रमण काल के रचनाकार हैं। आस
काल में रीहत कालीन काव्य रूदढ़यााँ टू ट रहीं थी और अधुहनक काल के हलए नइ काव्य रूदढ़यों
की खोज चल रही थी। स्िाभाहिक है दक ऐसे में रीहतकाल की ऄत्यंत लोकहप्रय रूदढ़ रीहत
हनरूपण ने दकसी न दकसी रूप में भारतेंदु युग के कहियों को भी ऄपनी ओर अकर्मषत दकया।
यही कारण है दक लहछराम ब्रह्मभि ,कहिराजा मुराररदान और बालगोहिद हमश्र ने हिहधित
रीहत हनरूपण में रुहच दशाजयी है। आनमें से लहछराम ब्रह्मभि ऄयोध्या नरे श मानहसह ‘हद्वजदेि ’
तथा कु छ ऄन्य राजाओं तथा तालुकेदारों के राज्याहश्रत कहि थे। अश्रयदाता की प्रसन्नता के
हलए आन्होंने रीहत िंथों की रचना की। जैसे -आन्होंने ‘माहेश्वर हिलास’ में नाहयका भेद और
निरस का हनरूपण दकया। जबदक ‘रामचंद्र भूषण’ में ऄलंकार शास्त्र तथा ‘रािणेश्वर कल्पतरु’
में समस्त काव्यागों का हनरूपण दकया गया है। कहिराजा मुराररदान ने ऄपने अश्रयदाता
मारिाड़ नरे श जसिंत हसह के सम्मान में ‘जसिंत जसोभूषण’ की रचना की। आसमें मुख्य रूप से
ऄलंकार तथा गौण रूप से काव्य संबंधी ऄन्य हिषयों का हििेचन दकया गया है। काव्य लक्षण
कहिता में देने के साथ-साथ आन्होंने गद्य में ईनकी व्याख्या भी की है। आसी प्राकर बालगोहिद
हमश्र ने भाषा छंद प्रकाश की रचना की। आसमें कु ल 48 छंदों के लक्षण और ईदाहरण ददए गए
हैं। ईल्लेखनीय है दक ये सभी कृ हतयााँ परं परा के हनिाजह पर अधाररत हैं और आनमें कोइ नयापन
नहीं है। आसहलए अलोचक आन रीहतकार कहियों को ‘अचायज कहि ’नहीं मानते।
बोध प्रश्न
जसिंत जसोभूषण के रचनाकार कौन हैं?
माहेश्वर हिलास में दकस का हनरूपण है?
15.2.2.9 काव्यानुिाद
भारतेंदु युग में बहुत बड़ी मात्रा में हिहभन्न भारतीय और हिदेशी भाषाओं के काव्यों का
हहदी में ऄनुिाद एक ऐसी नइ प्रिृहि है हजसने हहदी के सामान्य पाठक को आन भाषाओं के
साहहत्य से पररहचत कराते हुए सेतुबंध की भूहमका हनभाइ है। राजा लक्ष्मण हसह ने रघुिंश और
मेघदूत का ऄनुिाद दकया। ईनके ऄनुिाद में सरसता ,लाहलत्य और प्रांजल ब्रज भाषा के साथ
हिशेष रूप से सिैया छंद के प्रयोग द्रिव्य है। स्ियं भारतेंदु ने नारद भहि सूत्र और शांहडल्य के
भहि सूत्र का ऄनुिाद क्रमशः ‘तदीय सिजस्ि’ और ‘भहि सूत्र िैजयंती’ के नाम से दकया। भारतेंदु
के आन ऄनुिादों की एक बड़ी सीमा यह मानी जाती है दक मूल हिषय के संप्रेषण पर ऄहधक
ध्यान होने के कारण आनमें भाषा लाहलत्य कु छ खास नहीं पाया जाता। आनकी तुलना में “ठाकु र
जगन्मोहन हसह द्वारा ऄनूददत ऊतुसंहार (1876( और मेघदूत (1883( आस काल की हिहशि
कृ हतयााँ हैं। आनमें शधदानुिाद के स्थान पर भाि सौंदयज के संरक्षण पर बल रहा है और कहीं-कहीं
231
भाि संक्षेपण तथा भाि हिस्तार की पद्धहतयााँ भी ऄपनाइ गइ हैं। तत्सम पदािली ,भाषा
लाहलत्य और कहिि-सिैयों की रमणीय छटा आन दोनों कृ हतयों की ऄन्यतम हिशेषताएाँ हैं।”
(हहदी साहहत्य का आहतहास ,सं .नगेंद्र(।
संस्कृ त से ऄनुिादों की आस कड़ी में सीताराम भूप ने मेघदूत, कु मार संभि, रघुिंश और
ऊतुसंहार के काव्यानुिाद प्रस्तुत दकए। संस्कृ त के ऄलािा आस काल के कहियों ने ऄंिेजी कृ हतयों
के ऄनुिाद में रुहच दशाजयी। “ऄंिेजी की लहलत काव्य कृ हतयों के रूपांतरण की ओर ध्यान अकृ ि
करने का श्रेय श्रीधर पाठक को है। गोल्ड हस्मथ कृ त हर्ममट और डेज़टे जड हिलेज को ईन्होंने
एकांतिासी योगी (1886( तथा उजड़ िाम (1889( के रूप में ऄनूददत दकया है। आनकी
रचना क्रमशः खड़ी बोली और ब्रज भाषा में हुइ है तथा मूल कृ हतयों के भाि सौरस्य को
भाषांतरण में हाहन नहीं पहुाँचने दी गइ है। श्रीधर पाठक की कहि प्रहतभा और ऄहभव्यंजन-
सौष्ठि को आन कृ हतयों में ऄनेकशः लहक्षत दकया जा सकता है”। (िही(
बोध प्रश्न
ऄंिेजी की लहलत काव्य कृ हतयों के रूपांतरण की ओर ध्यान अकृ ि करने का श्रेय
दकसको जाता है?
232
छद्मलीला, देिी छद्मलीला और तन्मय लीला( तथा हनबंध काव्य (हिजहयनी हिजय
िैजयंती,हहदी भाषा) की भी रचना की। यही नहीं, आस काल में सतसइ परं परा में भी कइ
रचनाएाँ सामने अईं। जैसे कृ ष्ण शतक (हररऔध( और सुकहि सतसइ (ऄंहबकादि व्यास(।
बोध प्रश्न
भारतेंदु युग में सामंती पररिेश के स्थान पर दकस को प्राथहमकता ददया जाने लगा?
लोक शैहलयों को काव्य शैली का रूप दकसने प्रदान दकया?
बोध प्रश्न
भाषायी शुद्धतािाद को पूरी तरह नकारने के कारण दकस प्रिृहि को बल हमला?
15.3 पाठ-सार
भारतेन्दु युग हहदी साहहत्य के अधुहनक काल का पहला ईपखंड है। आस कालखंड से
पहले हिशेष रूप से भहिकाल और रीहतकाल में बहुत बड़ी मात्रा में साहहत्य की रचना हो चुकी
थी। लेदकन भहिकाल और रीहतकाल के साहहत्य की दो सीमाओं को नकारा नहीं जा सकता।
एक तो यह दक आन दोनों कालों में काव्य रचनाएाँ ही मुख्य रूप से रचीं गइ। आसका कारण भी
साि है। ईन कालों में मुद्रण और प्रकाशन की सुहिधा नहीं थी। आसीहलए स्मृहत और संगीत की
सहायता से सुरहक्षत रखने के हलए काव्य की ही रचना होती थी। भारतेंदु युग में यह प्रहतबंध टूट
गया, आसहलए कहिता के साथ साथ गद्य की हिहभन्न हिधाओं में भी साहहत्य सृजन की
संभािनाएं सामने अइ। मध्यकालीन हहदी साहहत्य की दूसरी सीमा का संबंध हिषय-िस्तु के
दोहराि से है। भहिकाल में भहि की प्रधानता रही तो रीहतकाल में शृग ं ार काव्य की प्रमुखता
ददखाइ देती है। भारतेंदु युग में कहिता की हिषय िस्तु में बड़ा बदलाि अया।
233
भारतेंदु युग मध्यकाल से अधुहनक काल की ओर बढ़ते हुए भारतीय समाज का दपजण है।
आसीहलए आसमें कु छ सीमा तक मध्यकालीन प्रिृहियााँ ददखाइ देती हैं। भारतेंदु युग के कहियों की
भहि भािना और शृंगाररक ि अलंकाररक काव्य के प्रहत रुहच ईनकी मध्यकालीन प्रिृहियों की
प्रतीक है। लेदकन ध्यान देने की बात यह है दक भारतेंदु युग के कहियों ने ऄपनी भहि भािना
को सामाहजक चेतना के साथ जोड़ने का प्रयास दकया। यह ईनकी अधुहनकता का प्रतीक है। आस
काव्य में राष्ट्रीय चेतना के स्िरूप का हिकास देशभहि और राजभहि के टकराि के बीच से
हुअ। हास्य-व्यंग्य की प्रिृहि ने जहााँ सामाहजक और धार्ममक रूदढ़िाद पर प्रहार का काम दकया
िहीं प्रकृ हत प्रेम के माध्यम से देशप्रेम भी व्यि हुअ।मध्यकाल में जहां काव्य रूपों की दृहि से
भी प्रधानतः मुिक और प्रबंधकाव्य की रचना होती थी, िहीं भारतेंदु युग में साहहत्य की
हिषय िस्तु, भाषा, हशल्प सभी में व्यापक पररितजन हुए।
15.5 शधदाथज
1. अत्मसात = ऄपने में लीन या समाहहत दकया हुअ
2. ईद्बोधन = दकसी बात का ज्ञान कराने की दक्रया या भाि
3. कारुहणक = करुणा से भरा हुअ, दयािान
4. क्रीड़ा = खेलकू द
5. चाटु काररता = चापलूसी
234
15.6 परीक्षाथज प्रश्न
खंड (ऄ(
हनम्नहलहखत प्रश्नों के ईिर लगभग 500 शधदों में दीहजए।
1. भारतेंदु युगीन काव्य की प्रमुख प्रिृहियों पर प्रकाश डाहलए।
2. भारतेंदु युगीन काव्य की राष्ट्रीय चेतना की चचाज कीहजए।
3. भारतेंदु युग की कहिता की भाषा और हशल्प की चचाज कीहजए।
खंड (ब(
हनम्नहलहखत प्रश्नों के ईिर लगभग 200 शधदों में दीहजए।
1. भारतेंदु युगीन काव्य में हनहहत सामाहजक चेतना को स्पि कीहजए।
2. भारतेंदु युगीन कहिता की हास्य-व्यंग्य प्रिृहि पर प्रकाश डाहलए।
3. भारतेंदु युग के कहियों में देशभहि और राजभहि की हद्वहिधा कोसमझाआए।
खंड (स(
I सही हिकल्प चुहनए
1. ‘तरहन-तनूजा-तट-तमाल तरुिर बहु चाहे।’ दकस कहि की काव्य पंहि है? ( )
(ऄ(भारतेंदु (अ(प्रतापनारायण हमश्र (आ(प्रेमघन (इ(राधाकृ ष्ण दास
2. ‘धन्यभूहम भारत सब रतनहन की ईपजािहन।’ दकस कहि की काव्य पंहि है?( )
(ऄ(भारतेंदु (अ(प्रतापनारायण हमश्र (आ(प्रेमघन (इ(राधाकृ ष्ण दास
3. ‘पूरी ऄमी की कटोररया सी हचरजीिो सदा हिक्टोररया रानी।’ दकस कहि की पंहि है?
(ऄ(ऄंहबकादि व्यास (अ(प्रतापनारायण हमश्र (आ(प्रेमघन (इ(राधाकृ ष्ण दास
235
III सुमल
े कीहजए
i) भारतेंदु हररश्चंद्र (ऄ(िषाज हबदु
236
आकाइ 16 : भारतेंद ु युग के प्रमुख कहि
आकाइ की रूपरे खा
16.0प्रस्तािना
16.1 ईद्देश्य
16.2 मूल पाठ :भारतेंदु युग के प्रमुख कहि
16.2.1 भारतेंदु युग का पररचय
16.2.2 भारतेंदु मंडल
16.2.2.1 भारतेंदु हररश्चंद्र
16.2.2.2 बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’
16.2.2.3 प्रतापनारायण हमश्र
16.2.2.4 ठाकु र जगन्मोहन हसह
16.2.2.5 ऄंहबकादि व्यास
16.2.2.6 राधाकृ ष्ण दास
16.2.3 भारतेंदु युग की देन
16.3 पाठ-सार
16.4 पाठ की ईपलहधधयााँ
16.5 शधद संपदा
16.6 परीक्षाथज प्रश्न
16.6 पठनीय पुस्तकें
16.0 प्रस्तािना
छात्रो !हहदी साहहत्य के अधुहनक काल के प्रथम ईत्थान को ‘भारतेंदु युग’ कहा जाता है।
आस युग की रचनाशीलता का नेतृत्ि भारतेंदु हररश्चंद्र ने दकया। ईन्होंने तथा ईनके समकालीन
लेखकों ने हहदी साहहत्य को मध्यकालीन और सामंतिादी रूदढ़यों से अज़ाद दकया। आन
साहहत्यकारों को ही यह श्रेय जाता है दक ईन्होंने साहहत्य को देश की साधारण जनता के सुख-
दुख और हषज-हिषाद से जोड़ा। आस काल के रचनाकारों ने जहााँ गद्य लेखन के हलए खड़ी बोली
को ऄपनाया, िहीं पद्य लेखन ऄथिा काव्य के हलए ब्रजभाषा के प्रयोग को ही ईहचत समझा।
237
आसी काल में साहहत्य की नइ नइ हिधाओं में लेखन अरं भ हुअ। आहतहासकार आस काल को
अधुहनक नाटक, ईपन्यास, हनबंध, समालोचना, समीक्षा, जीिनी, साहहहत्यक आहतहास अदद
हिधाओं का तथा खड़ी बोली कहिता का िपन-काल मानते हैं। आस काल में हहदी गद्य पुि होकर
ऄपना स्िरूप हस्थर करने लगा। खास बात यह भी है दक आस काल में साहहहत्यक हिषयों के
ऄलािा ज्ञान हिज्ञान तथा ईपयोगी हिषयों पर भी लेखन अरं भ हुअ। जैसा दक अपको मालूम
है, भारतेंदु काल का सूत्रपात होने के समय हहदी कहिता की भाषा ब्रजभाषा थी। अगे चलकर
ब्रजभाषा और खड़ी बोली दोनों ही की कहिता ने परं परागत हिषयों को छोडकर तत्कालीन
जीिन की पररहस्थहतयों का ऄनुसरण दकया। तो भी ब्रजभाषा की प्राचीन काव्य शैली ही आसका
काल में प्रधान रही। प्राचीन परं परा के ऄंतगजत भारतेंद,ु हद्वजदेि, सरदार, हनुमान, मन्नालाल,
सेिक, रघुराज हसह, भुिनेश, लहलत दकशोरी तथा ऄनेक ऄन्य कहियों ने शृंगार रस, ऄलंकार,
नायक नाहयका भेद, रामभहि, कृ ष्णभहि, िीररस, प्रेम अदद से संबहन्धत रचनाएाँ प्रस्तुत कीं।
लेदकन धीरे धीरे कहियों ने यह ऄनुभि दकया दक कहिता का यह प्राचीन अदशज ऄब ऄप्रासंहगक
हो चुका है। आसहलए क्रमशः हहदी कहिता की नइ धारा का जन्म हुअ। आस नइ धारा ने
यथाथजिाद को ऄपनाया। अधुहनक हशक्षा प्राप्त आस काव्य के रचनाकारों को देश का पतन, देश
की रूदढ़हप्रयता, पहश्चम के ऄंध-ऄनुकरण की प्रिृहि, पुहलस और ऄदालती लोगों की लूट खसोट,
भारत की हनधजनता, पारस्पररक कलह अदद को देख कर जो पीड़ा होती थी, ईसने ईनकी
कहिता को व्यापक जन गण के दुख ददज से जोड़ा। भारतेंदु हररश्चंद्र, प्रताप नारायण हमश्र,
बद्रीनारायण चौधरी प्रेमघन, राधाकृ ष्ण दास और बालमुकुन्द गुप्त जैसे कहियों ने ऄपनी कहिता
द्वारा देश की मानहसक प्रगहत और ईसके भािी जीिन की अधारहशला का हनमाजण दकया। आस
आकाइ में आस युग के प्रमुख कहियों और ईनके योगदान पर प्रकाश डाला जा रहा है।
16.1 ईद्देश्य
238
16.2 मूल पाठ : भारतेंद ु युग के प्रमुख कहि
16.2.1 भारतेंदु युग का पररचय
भारतेंदु युग की ऄिहध मोटे तौर पर ईन्नीसिीं शताधदी के ईिराधज की ऄिहध है। यह
समय भारत में इस्ट आं हडया कं पनी के हाथ से राजकाज सीधे हब्रटेन की महारानी के हाथ में
जाने का समय था। आस समय देश पूरी तरह हब्ररटश ईपहनिेश बन चुका था। निजागरण और
स्िाधीनता की चेतना भारतीयों के मन में कसमसा रही थी। पहले स्िाधीनता संघषज के दमन की
यादें आस ऄिहध में ताजा थीं। आस काल के कहियों में देशभहि और राजभहि का द्वंद्व था क्योंदक
एक ओर तो ईन्हें ऄपने देश और ईसकी परं पराओं पर गिज था, लेदकन दूसरी ओर ईन्हें पहले के
शासकों और कं पनी राज की तुलना में हब्ररटश राज सुहिधाजनक प्रतीत होता था। दिर भी
स्िदेश के प्रहत ऄनुराग और पराधीनता से मुहि की छटपटाहट आन कहियों की रचनाओं में
कािी मुखर ददखाइ पड़ती है। आन्होंने प्राचीन और अधुहनक का समन्िय करते हुए भहि और
शृंगार के साथ-साथ सामाहजक चेतना से संपन्न अधुहनकता बोध के काव्य का सूत्रपात दकया।
आसके साथ ही यह भी ध्यान में रखने की जरूरत है दक ईस काल में ऄंिेज़ शासक भारत का
अर्मथक शोषण तो कर ही रहे थे। ईन्हीं के हशहक्षत िगज को ऄपने तंत्र का पुजाज बनाने का
ऄहभयान भी चला रखा था। आस हशहक्षत िगज में ऐसे ऄनेक लोग शाहमल थे जो आस
औपहनिेहशक तंत्र का हहस्सा होने के बािजूद ऄपने देश की अज़ादी और खुशहाली के हलए
बेचैन थे। भारतेंदु और ईनके युग के हिहभन्न कहियों की रचनाओं में भारत के आन्हीं लोगों की
भािनाओं को ऄहभव्यहि प्राप्त हुइ है।
239
दुख दाररद्र्य पर संताप प्रकट करती है। शासन संबध
ं ी सुधारों और जनसिात्मक प्रणाली की मांग
करती है। ऄंत में पारस्पररक भेदभाि भूल कर भारतिाहसयों को स्ितंत्रता प्राप्त करने के हलए
संगरठत होने की प्रेरणा प्रदान करती है।”(हहदी साहहत्य कोश, भाग 1, पृष्ठ 456(।
भारतेंदु युग के सूत्रधार भारतेंदु हररश्चंद्र का जन्म सन 1850 में बनारस के एक ऄमीर
घराने में हुअ। आनकी हशक्षा-दीक्षा क्वींस कॉलेज से संबद्ध ऄंिेजी माध्यम के एक जाने माने स्कू ल
में हुइ। ऄंिेजी हशक्षा के बािजूद िे मानते थे दक ‘हनज भाषा’ की ईन्नहत के हबना दकसी भी
समाज या देश की ईन्नहत ऄधूरी रहती है। यथा,
हनज भाषा ईन्नहत ऄहै, सब ईन्नहत को मूल।
हबनु हनज भाषा ज्ञान के , हमटै न हहय को शूल॥
भारतेंदु का हनधन मात्र 34 िषज की अयु में हो गया। लेदकन आतने कम समय में ही
ईन्होंने ऄनेक िंथों की रचना करके हहदी साहहत्य को समृद्ध बनाने में कोइ कोर कसर नहीं
छोड़ी। ‘अत्मचररत’ मानी जानेिाली एक ऄधूरी रचना ‘एक कहानी :कु छ अप बीती, कु छ जग
बीती’ ईन्होंने हलखी है: “मैं भी जिानी की ईमंगों में चूर, जमाने के उाँच-नीच से बेखबर ऄपनी
रहसकाइ के नशे में मस्त, दुहनया के मुफ्तखोर हसफ़ारहशयों से हघरा हुअ ऄपनी तारीि सुन रहा
था, पर आस छोटी ऄिस्था में भी प्रेम को भलीभााँहत पहचानता था। ”अश्चयज नहीं दक ईनकी
रचनाओं के साथ-साथ जीिन-कमज में भी आस ऄनमोल प्रेम की प्रहतध्िहन एिं हिस्तार है। ऄपनी
‘प्रेममाहलका’ (1871( नामक कृ हत में ईन्होंने प्रेम की महहमा का बखान करते हुए इश्वर के
जगत को हमथ्या बताया है -‘प्रेम सत्य तुमरो जग हमथ्या या मैं कछु न साँदह
े ।’
भारतेंदु ने हहदी जगत को नेतृत्ि और ददशा देने का काम ऄपनी पहत्रका ‘कहििचन सुधा’
के माध्यम से अरं भ दकया और पहत्रका 1868 इ .में शुरू हुइ। आसीहलए ‘भारतेंदु युग ’की
िास्तहिक शुरूअत भी 1868 इ .से मानी जा सकती है। आसीहलए यह युग भारतेंदु के हनधन
(1885 इ.(के बािजूद सन 1900 तक िै ला माना जाता है। आस युग में भारतेंदु हररश्चंद्र के
ऄलािा हजन कहियों ने योगदान ददया ईनमें प्रतापनारायण हमश्र ,ऄंहबकादि व्यास ,राधाकृ ष्ण
दास ,बदरी नारायण चौधरी ‘प्रेमघन ’तथा ठाकु र जगन्मोहन हसह अदद प्रमुख हैं।
बोध प्रश्न
भारतेंदु युग के कहियों में दकस तरह का द्वंद्व पाया जाता है?
‘हनज भाषा’ के संबंध में भारतेंदु का क्या हिचार है?
भारतेंदु ने हहदी जगत को नेतृत्ि और ददशा देने का काम ऄपनी दकस पहत्रका के माध्यम
240
से दकया?
भारतेंदु युग का समय अश्चयजजनक रूप से भारतीय निजागरण अंदोलन का भी समय
है। आस समय का एक मुख्य द्वंद्व यह था दक एक ओर तो पहश्चमी हशक्षा ,अधुहनक ज्ञान-हिज्ञान
और ढााँचागत सुहिधाओं जैसे रे ल ,सड़क और कल-कारखानों के हिकास से प्रभाहित तत्कालीन
सामान्य नागररक ही नहीं बुहद्धजीिी और समाज सुधारक भी भारत में हब्ररटश राज के बड़ी हद
तक समथजक थे। दूसरी ओर ईनकी समझ में यह भी अ रहा था दक ये सारे साजो-सामान ऄंिेजों
ने भारतीयों के भले के हलए हिकहसत नहीं दकए थे। िे तो भारत को ऄंिज े ी पढ़े-हलखे क्लकों की
भीड़ में बदल देना चाहते थे हजससे ईन्हें जनता के शोषण में सहयोग हमलता रहे। आस तरह िे
भारत की कृ हष व्यिस्था से लेकर ईद्योग धंधों तक को चौपट कर रहे थे तथा भारत से तमाम
तरह का कच्चा माल हब्रटेन भेजकर हमें ही ईसे िापस हब्ररटश ईत्पाद के रूप में खरीदने के हलए
हििश कर रहे थे। आस तरह िे भारत की ऄथज व्यिस्था को पंगु बनाने में काहमयाब होते गए।
निजागरण कालीन भारतीय बुहद्धजीहियों ,समाज सुधारकों और राजनेताओं सभी को आस
चाल का पता था। आसीहलए धीरे -धीरे ईनके मन में अजादी की चाह भी जन्म ले रही थी। आस
हस्थहत ने राज-भहि और राष्ट्र-भहि के बीच एक हिहचत्र द्वंद्व पैदा कर ददया था। भारतेंदु
हररश्चंद्र सहहत ईस काल के बहुत से हहदी रचनाकारों की रचनाओं में यह द्वंद्व साि ददखाइ देता
है। कहीं तो िे महारानी हिक्टोररया की जय-जयकार करते हैं और कहीं ऄंिेजों को भीतर-भीतर
सब धन चूसने िाला चूहा कहते ददखाइ देते हैं। ऄहभप्राय यह है दक आन कहियों का यह द्वंद्व कोइ
हनजी द्वंद्व नहीं है बहल्क ईस निजागरण काल का ऄहनिायज ऄंतर्मिरोध है हजसके एक हसरे पर
हब्ररटश राज की न्याय प्रणाली में हिश्वास ददखाइ देता है तो दूसरी ओर ईसकी हिघटनकारी
नीहतयों के प्रहत ऄसंतोष भी झलकता है। ऄंिज े ों के प्रहत भारतेंदु युग के लेखकों के आस दोहरे
रिैये का प्रहतहबब भारतेंदु हररश्चंद्र की कहिता में आन शधदों में प्रकट हुअ है -
ऄंगरे ज राज सुख साज सजै सब भारी।
पै धन हबदेस चहल जात आहै ऄहत ख़्िारी॥
241
करठन हसपाही द्रोह ऄनल जा जल बल नासी।
हजन भय हसर न हहलाय सकत कहुं भारतिासी॥
बोध प्रश्न
भारतीय निजागरण अंदोलन के समय का मुख्य द्वंद्व क्या था?
ऄंिेज़ भारत की ऄथज व्यिस्था को पंगु बनाने में काहमयाबकै सेहुए?
ऄहभप्राय यह है दक भारतेंदु युग के रचनाकारों में हमलने िाला राज-भहि और राष्ट्र-
भहि का द्वंद्व पुनजाजगरण प्रदक्रया की ही देन है। आसके हलए आन कहियों पर दकसी भी प्रकार का
अक्षेप करना ऄनुहचत होगा। सच्ची बात तो यह है दक आन दोनों भािनाओं में से ऄंहतम रूप में
कसी एक का चुनाि करना न तो ईस काल के रचनाकार की प्राथहमकता थी, न जरूरत और न
संभािना। िह समय तो देश के प्राचीन गौरि को जगाने और अधुहनक बोध के साथ ईसे जोड़ने
के था। यही कारण है दक यह द्वंद्व एक तरि रिींद्रनाथ टैगोर से लेकर दूसरी तरि मैहथलीशरण
गुप्त तक में ददखाइ देता है। आसहलए यह कहना सही होगा दक आस ऄंतर्मिरोध का समाधान
भारतेंदु युग में संभि ही नहीं था। स्ितंत्रता अंदोलन काल में हतलक और गांधी ने आस
ऄंतर्मिरोध का समाधान प्रस्तुत दकया और आस तरह पुनजाजगरण अंदोलन राष्ट्रीयता अंदोलन में
समा गया। यह देखना और भी रोचक है दक आसके बाद दिर से सांस्कृ हतक गौरि की खोज का
नया ऄध्याय शुरू हुअ। “पुनजाजगरण ने ऄध्यात्म को लोक-सेिा से जोड़ा, और दिर लोक-सेिा
को राष्ट्रीयता से। कु छ समय तक तो राष्ट्रीयता का सांस्कृ हतक अधार पुि रहा। पर ज्यों-ज्यों
ईसके स्िरूप में राजनीहत प्रेिेश करती गइ त्यों-त्यों न्यस्त स्िाथज प्रबल होते गए। संस्कृ हत
एकीकरण करती है, राजनीहत हिभाजन, यह भारतीय पुनजाजगरण और ईसके बाद के काल में
ऄच्छी तरह देखा जा सकता है। भारतीय प्रदक्रया संस्कृ हत से राजनीहत की ओर ईन्मुख हुइ, जब
दक ऄमरीकी मनीषी ऐडम्स की नीहत थी दक पहले राजनीहत और रणनीहत को पढ़ हलया जाए,
तब धीरे -धीर संस्कृ हत की ओर ऄिसर होना ईहचत है। पुनजाजगरण प्रदक्रया के दोनों ईदाहरण
हमारे सामने हैं। दकसके पररणाम आहतहास में ऄहधक स्थायी होंगे, आसकी भहिष्यिाणी आतनी
जल्दी मुनाहसब नहीं”।(हहदी साहहत्य और संिेदना का आहतहास, रामस्िरूप चतुिेदी,पृ. 87(।
बोध प्रश्न
राज-भहि और राष्ट्र-भहि का द्वंद्व दकसकी देन है?
पुनजाजगरण ने लोक-सेिा को दकससे जोड़ा?
स्ितंत्रता अंदोलन काल में दकसने ऄंतर्मिरोध का समाधान प्रस्तुत दकया?
भारतेंदु हररश्चंद्र का एक हनजी द्वंद्व भी है। िह यह दक िे हिचारों से तो ऄिश्य अधुहनक
थे लेदकन ईनके संस्कार ईन्हें हिरासत में हमली मध्यकालीनता क साथ जोड़ते थे। आसका ऄथज
242
यह है दक भारतेंदु के व्यहित्ि में मध्यकालीनता बोध और अधुहनकता बोध का द्वंद्व हिद्यमान
था। दकसी भी रचनाकार के साहहत्य में बड़ी सीमा तक ईसका हनजी व्यहित्ि भी प्रहतिहलत
होता है। आसहलए भारतेंदु हररश्चंद्र के साहहत्य में हमें जहााँ एक ओर भहि और शृंगार की गहन
ऄनुभूहतयों के हचत्र हमलते हैं िहीं दूसरी ओर समाज सुधार, राष्ट्र भहि, व्यंग्य और हिसंगहतयों
का भी ममजस्पशी ऄंकन ददखाइ देता है। ईनकी मध्यकालीनता और प्रगहतशीलता दकसी व्यहि
के दो पैरों की तरह है। मध्यकालीनता िाला पैर जमीन पर रटका है और प्रगहतशीलता िाला
पैर अगे बढ़ने के हलए हिा में ईठा हुअ है। यही कारण है दक िे एक तरि तो खड़ी बोली को
पद्य के ऄनुकूल नहीं मानते और ब्रज भाषा को ही काव्य भाषा बनाए रखने पर ज़ोर देते हैं।
जबदक दूसरी ओर तमाम पत्रकाररता और गद्य लेखन के हलए ईन्होंने खड़ी बोली का पक्ष हलया
हजसके पररणामस्िरूप ईस जमाने में हहदी 'नए चाल'में ढल सकी।कमोबेश यह बात ईस काल
के दूसरे रचनाकारों पर भी लागी होती है। क्योंदक संिेदनात्मक स्तर पर िे भी भारतेंदु के अभा
मंडल से गहरे जुड़ाि रखते थे।
बोध प्रश्न
भारतेंदु हररश्चंद्र का हनजी द्वंद्व क्या था?
भारतेंदु हररश्चंद्र खड़ी बोली को पद्य के ऄनुकूल क्यों नहीं मानते थे?
पत्रकाररता और गद्य लेखन के हलए भारतेंदु हररश्चंद्र ने दकसका पक्ष हलया?
16.2.2 भारतेंदु मंडल
भारतेंदु हररश्चंद्र ने तन-मन-धन से हजस प्रकार हहदी भाषा और साहहत्य की ऄनन्य सेिा
की ईसके प्रभाि से ईनके जीिन काल में ऄनेक कहियों और लेखकों का एक ऄनौपचाररक
संगठन जैसा ईनके आदज-हगदज बन गया था। आस साहहहत्यक समूह को हहदी साहहत्य के आहतहास में
‘भारतेंदु मंडल’ के नाम से पुकारा जाता है। भारतेंदु मंडल के सभी सदस्य साहहत्यकारों ने हहदी
गद्य, पद्य और पत्रकाररता का जमकर हिकास दकया। साथ ही, आनकी िैचाररक मान्यताएाँ भी
लगभग एक समान थीं। ये सभी राष्ट्रीय चेतना से युि और सामाहजक सरोकारों से प्रेररत
साहहत्यकार थे। भारतेंदु के हनधन के बाद भी आनकी साहहत्य साधना ऄबाध गहत से चलती
रही। भारतेंदु मंडल में सहम्महलत प्रमुख साहहत्यकारों में प्रतापनारायण हमश्र, बालकृ ष्ण भि,
बदरी नारायण चौधरी ‘प्रेमघन’, ठाकु र जगन्मोहन हसह तथा राधाचरण गोस्िामी के नाम
सहम्महलत हैं।
बोध प्रश्न
भारतेंदु मंडल के प्रमुख साहहत्यकार कौन हैं?
भारतेंदु मंडल से क्या ऄहभप्राय है?
243
16.2.2.1 भारतेंदु हररश्चंद्र (1850 -1885 इ.(
भारतेंदु हररश्चंद्र का जन्म 1850इ .में हुअ। साहहत्य सृजन की प्रेरणा ईन्हें ऄपने पररिार
से हिरासत में हमली। ईनके हपता बाबू गोपाल चंद्र ‘हगररधरदास’ ऄपने समय के प्रहसद्ध कहि
थे। ईनकी देखा-देखी ईन्होंने भी बाल्यािस्था से ही कहिताएाँ रचनी शुरू कर दी थीं। आनकी
प्रहतभा से प्रभाहित होकर ईस समय के पत्रकारों और साहहत्यकारों ने आन्हें सन 1880 में
‘भारतेंद’ु की ईपाहध से हिभूहषत दकया था। ‘नीलदेिी’,‘भारत दुदशज ा’ एिं ‘ऄंधेर नगरी’ जैसे
सुप्रहसद्ध नाटकों के रचहयता तथा ऄनेक हनबंधों के लेखक भारतेंदु हररश्चंद्र की लगभग सिर
छोटी-बड़ी काव्य कृ हतयााँ हैं, जो ‘भारतेंदु िंथािली’ में सहम्महलत हैं। ईन्होंने पद्य रचना में
परं परा का पालन दकया लेदकन गद्य रचना में ऄनेक नइ हिधाओं का सूत्रपात दकया। आसीहलए
ईनके बारे में रामचंद्र शुक्ल ने ऄपने ‘हहदी साहहत्य का आहतहास’ में हलखा है दक भारतेंदु जी ने
हहदी काव्य को के िल नए-नए हिषयों की ओर ही ईन्मुख दकया, ईसके भीतर दकसी निीन
हिधान या प्रणाली का सूत्रपात नहीं दकया। िास्ति में गद्य की हजस पररणाम में भारतेंदु ने नए-
नए हिषयों और मागों की ओर लगाया, ईस िरमान में पद्य को नहीं। शुक्ल जी ने ईनकी
शृंगाररक कहिताओं तथा कृ ष्ण भि कहियों के ऄनुकरण पर रहचत गेय पदों के साथ-साथ
हिहभन्न नाटकों में संदभाजनुसार रखने के हलए रहचत कहिताओं को ध्यान में रखते हुए हिचार
प्रकट दकया है और ईनमें ‘राजभहि तथा देशभहि के मेल’ को भी ईजागर दकया है। दरऄसल
भारतेंदु एक ओर तो पाश्चात्य ज्ञान-हिज्ञान की ईपलहधधयों से भारतिाहसयों को समृद्ध करने के
पक्ष में थे तथा दूसरी ओर िे ऄंिेजी साम्राज्यिाद और शोषण को लेकर सतकज भी थे। 3 ददसंबर,
1884 की ‘निोददत हररश्चंद्र चंदद्रका’ में पहली बार प्रकाहशत सुप्रहसद्ध ‘बहलया िाले व्याख्यान’
में ईन्होंने कहा था “ :ऄंिेजों के राज्य में सब प्रकार का सामान पाकर, ऄिसर पाकर भी हम
लोग जो आस समय पर ईन्नहत न करें तो हमारा के िल ऄभाग्य और परमेश्वर का कोप ही है। ”
ईनका यह कथन राजभहि के ऄंदश े ा जगजागृहत के ईद्देश्य से प्रेररत है। िे आससे पहले 1874इ .
की ‘कहििचन सुधा’ में हलख चुके थे “ -देशिाहसयो, तुम आस हनद्रा से चौंको, आन (ऄंिेजों( के
न्याय के भरोसे मत िू ले रहो। रोग और दुष्काल आन दोनों के मुख्य कारण ऄंिेज़ ही हैं। ”आससे
यह भी पता चलता है दक भारतेंदु हररश्चंद्र ऄपने समय की अर्मथक और राजनीहतक पररहस्थहत
की गहरी समझ रखते थे। िस्तुतः निजागरण काल की ऄन्य हिभूहतयों की भााँहत भारतेंदु
हररश्चंद्र भी पहश्चमी ज्ञान-हिज्ञान के पक्ष में होने के बािजूद ऄपनी जातीय संस्कृ हत और
हिरासत को हर कीमत पर बचाए रखने के पक्षधर थे। आसीहलए ईन्होंने कहा है दक -
जो भारत जग में रह्यो सबसे ईिम देस।
ताही भारत में रह्यो ऄब नहह सुख को लेस॥
यही नहीं, एक स्थान पर ईन्होंने स्पि रूप से महारानी हिक्टोररया के राज की हनदा
244
करते हुए यह भी कहा दक -
दीन भये बलहीन भये धन छीन भये सब बुहद्ध हहरानी।
ऐसी न चाहहए अपुके राज प्रजागन ज्यों मछरी हबन पानी॥
आसके ऄलािा, ईनकी भहिपरक रचनाओं में भी व्यहिगत मुहि की कामना नहीं बहल्क
देशानुराग का स्िर सुनाइ पड़ता है। ‘नीलदेिी’ नाटक के एक पद में यह बात देखी जा सकती है-
कहााँ करुणाहनहध के शि सोए?
जगत नाहह ऄनेक जतन करर भारतिासी रोए॥
बोध प्रश्न
बहलया व्याख्यान में भारतेंदु ने क्या कहा था?
भारतेंदु हररश्चंद्र को ‘भारतेंद’ु की ईपाहध से दकसने हिभूहषत दकया और क्यों?
.भारतेंदु हररश्चंद्र दकसके पक्षधर थे?
245
के हलए भी जाने जाते हैं। अचायज रामचंद्र शुक्ल के ऄनुसार “देश की राजनैहतक या धमज संबंधी
अंदोलन चलते रहे, ईन्हें ये बड़ी ईत्कं ठा से परखा करते थे। जब कहीं कु छ सिलता ददखाइ
पड़ती, तब लेखों और कहिताओं द्वारा हषज प्रकट करते, और जब बुरे लक्षण ददखाइ देते तब क्षोभ
और हखन्नता। कांिेस के ऄहधिेशन में ये प्रायः जाते थे। ”आन्होंने राजभहिपरक कहिताएाँ भी
हलखीं, लेदकन नइ लहर से िे प्रायः राष्ट्रीयता, समाज की दशा और देशभहि से भरपूर प्रेरक
कहिताएाँ हलखने के हलए जाने जाते हैं। राजभहिपरक कहिताओं में भी िे मार्ममकता के साथ
देश की दशा का हसहािलोकन करते थे। ईदाहरण स्िरूप, ऄंिेजों द्वारा दादाभाइ नौरोजी को
‘काला’ कहकर ऄपमाहनत दकए जाने पर ईन्होंने ऄपने क्षोभ को आस प्रकार प्रकट दकया था :
ऄचरज होत तुमहुाँ सम गोरे बाजत कारे ।
तासों कारे ‘कारे ’ शधदहु पर है िारे ॥
कारे श्याम, राम, जलधर जल बरसनिारे ।
कारे लागत ताही सन कारन को प्यारे ॥
यातें नीकों हैं तुम ‘कारे ’ जाहु पुकारे ।
यहैं ऄसीस देत तुमको हमहल हम सब कारे -
सिल होहह मन के सभी संकल्य तुम्हारे ॥
बोध प्रश्न
प्रेमघन की कहिताओं का हिषय क्या था?
बोध प्रश्न
प्रतापनारायण हमश्र का रचना संसार कै सा था?
246
16.2.2.4 ठाकु र जगन्मोहन हसह (1857-1899 इ.(
मध्यप्रदेश की एक ररयासत के राजकु मार ठाकु र जगन्मोहन हसह ने काशी में हशक्षा प्राप्त
की। तभी िे भारतेंदु हररश्चंद्र से पररहचत और प्रभाहित हुए। यह बात ऄलग है दक ईनकी रचना
शैली भारतेंदु की रचना शैली से ऄलग है। भारतेंदु मंडल के कहियों में िे स्िच्छंदतािादी प्रिृहि
और सजीि प्रकृ हत हचत्रण के हलए खास तौर से जाने जाते हैं। ईनकी काव्य कृ हतयों में
‘प्रेमसंपहिलता’(1885( ,‘श्यामलता’(1885( ,‘श्यामा-सरोहजनी’ (1886( और ‘देियानी’
(1886) सहम्महलत हैं। रामचंद्र शुक्ल का मत है दक “यद्यहप जगन्मोहन हसह जी ऄपनी कहिता
को नए हिषयों की ओर नहीं ले गए, पर प्राचीन संस्कृ त काव्यों के प्राकृ हतक िणजनों का संस्कार
मन में हलए हुए, ऄपनी प्रेमचचाज की मधुर स्मृहत से समहन्ित हिध्य प्रदेश के रमणीय स्थलों को
हजस सच्चे ऄनुराग की दृहि से ईन्होंने देखा है, िह ध्यान देने योग्य है। ईसके द्वारा ईन्होंने हहदी
काव्य में एक नूतन हिधान का अभास ददया था। संस्कृ त के प्राचीन कहियों की प्रणाली पर हहदी
काव्य के संस्कार का जो संकेत ठाकु र साहब ने ददया, खेद हैं दक ईसकी ओर दकसी ने ध्यान न
ददया।
बोध प्रश्न
ठाकु र जगन्मोहन हसह की रचना शैली कै सी थी?
247
16.2.2.6 राधाकृ ष्ण दास (1865-1907(
राधाकृ ष्ण दास भारतेंदु हररश्चंद्र के िु िे रे भाइ थे। ये बहुमुखी प्रहतभा के धनी थे।
तत्कालीन समाज की हस्थहत को लेकर रहचत आनकी कहिताएाँ ‘भारत बारहमासा’ एिं ‘देश-
दशा’ बहुत प्रहसद्ध हुईं। आन्होंने नाटक, ईपन्यास एिं अलोचना के क्षेत्र में भी ईल्लेखनीय
योगदान ददया है। आनकी कु छ कहिताएाँ ‘राधाकृ ष्ण-िंथािली’ में संकहलत हैं। राधाकृ ष्ण दास ने
ब्रजभाषा और खड़ीबोली दोनों में ऄपनी कहि प्रहतभा का प्रमाण ददया। राधा और कृ ष्ण के प्रेम
का हनरूपण करने िाली ईनकी रचनाएाँ माधुयज से भरपूर हैं।
काव्यभाषा की दृहि से भारतेंदु युग धीरे -धीरे बदलाि को अत्मसात करता ददखाइ देता
है। भारतेंदु हररश्चंद्र मानते थे दक गद्य के हलए खड़ी बोली ईपयुि होने के बािजूद िह पद्य के
हलए ऄनुकूल नहीं है। आसीहलए ईन्होंने स्ियं ब्रजभाषा में ही कहिता रची। परं तु अगे चलकर
धीरे -धीरे ब्रजभाषा का स्थान खड़ीबोली ने ले हलया।
बोध प्रश्न
भारतेंदु युग की रचनाकारों ने कहिता को दकससे जोड़ा?
248
16.3 पाठ-सार
भारतेंदु युग का नेतृत्ि भातेंदु हररश्चंद्र ने दकया। ईन्होंने हहदी में सामाहजक चेतना से
संबंध अधुहनकता बोध के काव्य का सूत्रपात दकया। ईपहनिेशिादी तंत्र का हहस्सा होते हुए भी
िे स्ितंत्रता के पक्षधर थे। िे चाहते थे दक सब प्रकार का अधुहनक ज्ञान-हिज्ञान ऄर्मजत करते
हुए भारतीय लोग ऄपनी भाषा और ऄपनी राष्ट्रीयता की रक्षा करें । ईन्होंने गद्य के हलए खड़ी
बोली को ऄपनाया लेदकन पद्य के हलए िे ब्रजभाषा को ही ईहचत समझते थे। ईन्होंने
भारतिाहसयों को ऄपनी दीनहीन दशा से बाहर हनकालने की प्रेरणा दी। साथ ही भहि, प्रेम,
प्रकृ हत और हास्य-व्यंग्य से युि कहिताएाँ भी रची। ईनके ऄलािा आस काल में बदरी नारायण
चौधरी प्रेमघन, प्रतापनारायण हमश्र, ठाकु र जगन्मोहन हसह, ऄंहबकादि व्यास, राधाकृ ष्ण दास
ने भी ऄपने काव्य द्वारा हहदी साहहत्य की श्रीिृहद्ध की।
249
16.6 परीक्षाथज प्रश्न
खंड (ऄ(
हनम्नहलहखत प्रश्नों के ईिर लगभग 500 शधदों में दीहजए।
1. भारतेंदु हररश्चंद्र के व्यहित्ि और कृ हतत्ि पर प्रकाश डाहलए।
खंड (ब(
हनम्नहलहखत प्रश्नों के ईिर लगभग 200 शधदों में दीहजए।
1. भारतेंदु युग का संहक्षप्त पररचय दीहजए।
खंड (स(
I सही हिकल्प चुहनए
1. ‘भारत बारहमासा’ के रचनाकार कौन हैं? ( (
(ऄ( प्रतापनारायण हमश्र (अ( राधाकृ ष्ण दास (आ( ऄंहबकादि व्यास (इ( भारतेंदु
2. ‘तृप्यंताम’ के रचनाकार कौन हैं? ( (
(ऄ( प्रतापनारायण हमश्र (अ( राधाकृ ष्ण दास (आ( ऄंहबकादि व्यास (इ( भारतेंदु
250
III सुमल
े कीहजए
(i) भारतेंदु हररश्चंद्र (ऄ(नागरी नीरद
(ii) प्रतापनारायण हमश्र (अ(कहििचन सुधा
(iii) प्रेमघन (आ(पीयूष प्रिाह
(iv) ऄंहबकादि व्यास (इ(ब्राह्मण
251
खंड - V : अधुहनक काल : हिकास
आकाइ की रूपरे खा
17.0 प्रस्तािना
17.1 ईद्देश्य
17.2 मूल पाठ : महािीर प्रसाद हद्विेदी और ईनका युग
17.2.1 हद्विेदी युग का नामकरण
17.2.2 हद्विेदी युग की पररहस्थहतयााँ
17.2.3 महािीर प्रसाद हद्विेदी :व्यहित्ि और कृ हतत्ि
17.2.4 हहदी भाषा के पररष्कार में महािीर प्रसाद हद्विेदी का योगदान
17.3 पाठ-सार
17.4 पाठ की ईपलहधधयााँ
17.5 शधद संपदा
17.6 परीक्षाथज प्रश्न
17.7 पठनीय पुस्तकें
17.0 प्रस्तािना
हहदी साहहत्य के अधुहनक काल के दूसरे ईत्थान को हद्विेदी युग के नाम से जाना जाता
है। आस युग का नेतृत्ि ‘सरस्िती’ पहत्रका के संपादक अचायज महािीर प्रसाद हद्विेदी ने दकया।
अपको याद होगा दक भारतेंदु हररश्चंद्र ने गद्य के हलए तो खड़ी बोली को ऄपनाने पर ज़ोर ददया
था लेदकन पद्य के हलए ईन्हें ब्रज भाषा ही बेहतर प्रतीत होती थी। ईनसे अगे बढ़कर महािीर
प्रसाद हद्विेदी ने हहदी कहियों को खड़ी बोली में कहिता रचने की प्रेरणा दी। ईन्होंने खड़ी बोली
को साहहत्य की सब हिधाओं में योग्य बनाने के हलए ईसे मााँजने और साँिारने का काम दकया।
आस आकाइ में अप हद्विेदी जी और ईनके युग के बारे में हिस्तार से पढ़ेंग।े
252
17.1 ईद्देश्य
बोध प्रश्न
अधुहनक हहदी साहहत्य के हद्वतीय ईत्थान को क्या कहा जाता है और क्यों?
सरस्िती ’पहत्रका का प्रकाशन दकसने और कब दकया?
महािीर प्रसाद हद्विेदी ‘सरस्िती’ के संपादक कब बने ?
253
िह क्रांहत हििल हुइ। 1857 के बाद जहााँ हब्ररटश सरकार ने दमन चक्र चलाया,िहीं जनता में
ऄसंतोष और अक्रोश की भािना भी प्रबल हुइ। अत्मसम्मान की भािना ने जनता में राष्ट्रीय
भािना को जागृत दकया। हहदी साहहत्य में भी आस पररहस्थहत के ऄनुरूप राष्ट्रीय चेतना और
समाज सुधार के स्िर सुनाइ ददए। भारतेंदु युग के बाद हहदी साहहत्य के आस दूसरे ईत्थान
ऄथाजत 1900 इ .से 1918 इ .तक के समय को ‘हद्विेदी युग ’कहा जाता है। आसे ‘जागरण सुधार
काल’ भी कहते हैं, क्योंदक हद्विेदी जी और ऄन्य साहहत्यकारों ने सांस्कृ हतक पुनरुत्थान ,राष्ट्रीय
भािना ,समाज सुधार और ईच्च अदशों को साहहत्य के माध्यम से ऄहभव्यि करके जनता को
राष्ट्रीय अंदोलन में भाग लेने के हलए प्रेररत दकया था।
आस युग के नामकरण के औहचत्य पर हिचार करते हुए सुधाकर पांडय े ने स्पि दकया है
दक “काल के प्रिाह को देखने पर ऐसा लगता है दक एक से एक ऄनूठी प्रहतभाएाँ आस क्षेत्र में
ईद्भूत हुईं। व्यहि के उपर युग का नामकरण ऄच्छा न माना जाए, तो भाि या धारा के उपर
युग का नाम रखना िैज्ञाहनक माना जाता है। लेदकन आस युग में एक धारा नहीं थी, ऄनेक
धाराएाँ थीं और सब की सब रसहसि थीं, लेदकन सबके ईत्स में पं .महािीर प्रसाद हद्विेदी का
हाथ था। जो ईनके ऄनुगामी थे ईन्होंने ईनसे प्रेरणा और अशीिाजद हलया। जो ईनके हिरोधी थे
ईनमें भी हिरोध की प्रेरणा का ईत्स पं .महािीर प्रसाद हद्विेदी की रीहत-नीहत और व्यिहार के
कारण ही ईत्पन्न हुअ”। (हहदी साहहत्य का बृहत आहतहास, निम भाग पृ. 29) । आसहलए आस
युग को ‘हद्विेदी युग’ कहना ईहचत ही है।
बोध प्रश्न
हहदी साहहत्य के दूसरे ईत्थान को क्या कहा जाता है और क्यों?
‘हद्विेदी युग’ को ‘जागरण सुधार काल’ कहने का क्या कारण है?
254
दादा भाइ नौरोजी ने ‘स्िराज्य’ की मााँग की थी।1907 इ .में कांिेस गरमदल और नरमदल के
रूप में बाँट गइ। लोकमान्य बालगंगाधर हतलक, लाला लाजपत राय और हबहपन चंद्र पाल
(बाल-लाल-पाल( अदद गरमदल के पक्षधर थे तो नौरोजी, गोपाल कृ ष्ण गोखले अदद नरमदल
के समथजक। दहक्षण ऄफ्रीका से लौटने के बाद महात्मा गांधी भी आसी दल में शाहमल हो गए।
हब्ररटश सरकार का शासन ऄसह्य हो चुका था। क्रांहतकारी युिकों में ऄंिेजी शासन के
हिरुद्ध ऄसंतोष और अक्रोश की भािनाएाँ प्रबल होती जा रही थीं। अर्मथक रूप से शोषण के
कारण भारत सूखे और ऄकाल का हशकार हो रहा था। ऐसे में देश के नेताओं ने ‘पूणज स्िराज’
की मााँग ईठाइ। तुकी, हमि अदद देशों में स्ितंत्रता के हलए हुए अंदोलन तथा 1904 इ .में रूस
पर जापान की हिजय जैसे ईदाहरणों से भारतीयों का ईत्साह बढ़ा। आतना ही नहीं, दहक्षण
ऄफ्रीका में हहदुस्ताहनयों के साथ दकए गए दुव्यि
ज हार से भी जनता में अक्रोश बढ़ने लगा। आन
सभी घटनाओं से प्रेररत होकर क्रांहतकारी संगठन हब्ररटश शासन के हिरुद्ध बगाित की योजनाएाँ
बनाने लगे, तो ईन्हें दबाने के हलए ‘िंदम
े ातरम’ गीत गाने तक पर प्रहतबंध लगाया गया।
युगांतर, िंदम
े ातरम और संध्या अदद पहत्रकाओं के संपादकों को बंदी बनाया गया। 1907 इ .में
‘सेड़ीशस मीटटग एक्ट’ के द्वारा सािजजहनक अयोजनों पर रोक लगा दी गइ तादक जनता
संगरठत न हो सके । ऄंिज़
े सरकार के क्रूर व्यिहारों के कारण जनता का अक्रोश बढ़ रहा था।
ईधर 1914 इ .में प्रथम हिश्वयुद्ध प्रारं भ हुअ, जो 1918 तक चला। 1916 में हतलक ने
एनीबेसंट से हमलकर ‘होमरूल लीग’ बनाइ तथा जनता में निीन स्िू र्मत भरने लगे। एक ओर
हब्ररटश सरकार क्रांहतकारी योजनाओं और अंदोलनों को दबाने के हलए कड़ी-से-कड़ी सजाओं
का प्रयोग कर रही थी, तो दूसरी ओर भारतीय जनता में राष्ट्रीय भािना ऄहधकाहधक हिकहसत
हो रही थी।
‘बंग-भंग’ (1905( अंदोलन का प्रभाि संपूणज देश पर पड़ा क्योंदक यह जन अंदोलन था।
साहहत्यकारों और पत्रकारों ने आस अंदोलन के संदशे को जनता तक पहुाँचाया। सभी देशिासी
गुलामी को हमटाने के हलए करटबद्ध होने लगे। साथ ही, महात्मा गांधी का प्रभाि जनता पर
पड़ने लगा। ईनके हिचारों से साहहत्यकार भी प्रभाहित हुए और राष्ट्र का हहत ध्यान में रखकर
साहहत्य सृजन करने लगे।
बोध प्रश्न
‘स्िदेशी अंदोलन’ का लक्ष्य क्या था?
गरमदल और नरमदल के पक्षधर कौन-कौन थे?
255
क्रांहतकारी संगठनों को दबाने के हलए हब्ररटश सरकार ने क्या दकया?
‘सेड़ीशस मीटटग एक्ट’ का क्या ईद्देश्य था?
हहदी साहहत्य के आहतहास में महािीर प्रसाद हद्विेदी को ‘अचायज’ की ईपाहध से संबोहधत
दकया जाता है। 1933 में ईनकी सिरिीं िषजगााँठ पर नागरी प्रचाररणी सभा की ओर से
साहहहत्यक सभा का अयोजन करके ईनके सम्मान में ‘हद्विेदी ऄहभनंदन िंथ’ समर्मपत दकया
गया था। आस ऄिसर पर हद्विेदी जी ने ‘अत्म-हनिेदन’ प्रस्तुत करते हुए कहा -“ मुझे अचायज की
पदिी हमली है। क्यों हमली है, मालूम नहीं। कब, दकसने दी है, यह भी मुझे मालूम नहीं। मालूम
हसिज आतना ही है दक मैं बहुधा -आस पदिी से हिभूहषत दकया जाता हाँ। शंकराचायज, मध्िाचायज
और सांख्याचायज अदद के सदृश दकसी अचायज के चरणरज कण की बराबरी मैं नहीं कर सकता।
बनारस के संस्कृ त कॉलेज या दकसी हिश्वहिद्यालय में भी मैंने कदम नहीं रखा। दिर आस पदिी
का मुस्तहक मैं कै से हो गया? (भारत यायािर, पुरखों का पठार, पृ 8 से ईद्धृत ) ।
महािीर प्रसाद हद्विेदी ने मैरट्रक की पढ़ाइ की थी। बाद में िे रे लिे में नौकरी करने लगे
थे। ईसी समय ईन्होंने ऄपने हलए चार हसद्धांत गढ़े हजनका पालन अजीिन करते रहे -िि की
पाबंदी करना, ररश्वत न लेना, ऄपना काम इमानदारी से करना और ज्ञान-िृहद्ध के हलए सतत
प्रयत्नशील रहना। आस संबंध में स्ियं महािीर प्रसाद हद्विेदी का कथन द्रिव्य है – “पहले तीन
हसद्धांतों के ऄनुकूल अचरण करना तो सहज था; पर चौथे के ऄनुकूल सचेत रहना करठन था।“
(पुरखों का पठार, पृ 8 .से ईद्धृत( लेदकन िे सदा स्िाध्याय द्वारा ज्ञानिृहद्ध में लगे रहे। ईन्होंने
यह प्रमाहणत दकया दक हनरं तर ऄभ्यास से ज्ञान के ईच्च हशखर को भी प्राप्त दकया जा सकता है।
महािीर प्रसाद हद्विेदी के व्यहित्ि के संबंध में अचायज दकशोरीदास िाजपेयी का कहना
है दक “ईनके सुदढ़ृ हिशाल और भव्य कलेिर को देखकर दशजक पर सहसा अतंक छा जाता था
और प्रतीत होने लगता था दक मैं एक महान ज्ञानराहश के नीचे अ गया हैं।“ (पुरखों का पठार,पृ
256
10 से ईद्धृत।( प्रेमचंद भी ईनके व्यहित्ि के बारे में कहते हैं दक “हद्विेदी जी का व्यहित्ि बड़ा
ही प्रभािशाली है। मुखमंडल पर दृहि डालते ही यह बात स्पि मालूम हो जाती है दक ईनमें
रचनात्मकता कू ट-कू ट कर भरी हुइ है, िे सच्चे युग प्रितजक हैं,ईनमें क्रांहत ले अने की हिलक्षण
क्षमता है। ईन्नत ललाट, घनी भौंहें, रोबदार मूाँछें, रसभरी गंभीर अाँखें और जलद-गंभीर िाणी -
ईनकी हिहशिता ज्ञाहपत करती हैं और देखने से ऐसा मालूम पड़ता है मानो दकसी ऐसे व्यहि के
पास हैं जो हमारे हलए हमारे पास भेजा गया है -जो सब तरह से हमारे हैं।िे हहदी के सरल
सुंदर रूप के हिधायक बने, हहदी साहहत्य में हिश्व साहहत्य के ईिमोिम ईपकरणों का समािेश
दकया, दजजनों कहि, लेखक और संपादक बनाए।” ( पुरखों का पठार, पृ 14 .से ईद्धृत(।
बाबूराि हिष्णु पराड़कर हद्विेदी जी के व्यहित्ि में हिशेष रूप से दो बातों को रे खांदकत
करते हैं। एक, ईनका संपादन कौशल और दूसरा, होनहार की पहचान करके ईसको प्रोत्साहन
प्रदान करने का गुण (महािीर प्रसाद हद्विेदी का महत्ि, भारत यायािर, पृ. 80 से ईद्धृत(।
ईन्होंने ऄपने आन्हीं गुणों के कारण न जाने दकतने कहियों, लेखकों, हनबंधकारों और समालोचकों
को तैयार दकया। 1885 इ .से महािीर प्रसाद हद्विेदी ने लेखन कायज शुरू दकया। ईनके संबध ं में
भारत यायािर का कहना है दक “िे हहदी के पहले व्यिहस्थत समालोचक थे हजन्होंने
समालोचना की कइ पुस्तकें हलखी थीं। िे खड़ी बोली हहदी कहिता के प्रारं हभक और महत्िपूणज
कहि थे। अधुहनक हहदी कहानी ईन्हीं के प्रयत्नों से एक साहहहत्यक हिधा के रूप में मान्यता प्राप्त
कर सकी थी। िे भाषाशास्त्री थे, ऄनुिादक थे, िैयाकरहणक थे, आहतहासज्ञ थे, ऄथजशास्त्री थे तथा
हिज्ञान में गहरी रुहच रखने िाले थे। िे युग प्रितजक थे।”( पुरखों का पठार, पृ.7( ईन्होंने ऄपने
हचतन और लेखन के द्वारा ‘हहदी प्रदेश’ में ‘निजागरण’ पैदा दकया था।
अचायज महािीर प्रसाद हद्विेदी कइ भाषाओं और ऄनेक हिषयों के ज्ञाता थे। िे तत्कालीन
भारतीय साहहत्य की हलचलों पर भी पूरा ध्यान रखते थे। आसी क्रम में ईन्होंने गुरु रिीन्द्रनाथ
ठाकु र का बांग्ला में हलहखत लेख ‘काव्य की ईपेहक्षताएाँ’ देखा। आस लेख से प्रभाहित होकर
1908 इ. में ईन्होंने भुजग
ं भूषण भिाचायज के छद्मनाम से ‘सरस्िती’ पहत्रका में एक लेख हलखा
‘कहियों की ईर्ममला हिषयक ईदासीनता’। आस लेख को पढ़ कर मैहथलीशरण गुप्त को ‘साके त’
महाकाव्य रचने की प्रेरणा हमली। िास्ति में ‘सरस्िती’ पहत्रका के माध्यम से हद्विेदी जी ने
ऄपने युग का नेतृत्ि दकया। 1914 इ. में ‘सरस्िती’ पहत्रका में हीरा डोम की कहिता ‘ऄछू त की
हशकायत’ प्रकाहशत हुइ। अज हीरा डोम हहदी के पहले दहलत कहि और ईनकी यह रचना हहदी
की पहली कहिता मानी जाती है। यहााँ यह भी ईल्लेखनीय है दक हद्विेदी जी भले ही एक ओर
यह मानते थे दक प्रत्यक्ष जगत में जो कु छ भी हिद्यमान है, िह सभी कहिता का हिषय हो
257
सकता है। लेदकन दूसरी तरि िे रीहतकालीन शृग
ं ाररक काव्य को ऄपने युग के हलए ईहचत नहीं
समझते थे। यही कारण है दक ईन्होंने 1916 में हनराला की कहिता ‘जूही की कली’ को ऄपने
काव्यादशज के ऄनुरूप न मानते हुए ‘सरस्िती’ में छापने से माना कर ददया था। ईन्होंने ऄपने
प्रहसद्ध हनबंध ‘कहि और कहिता’ में हलखा है दक, “हिशेषकर के हशहक्षत और सभ्य देशों में कहि
का काम प्रभािोत्पादक रीहत से यथाथज घटनाओं का िणजन करना है, अकाश कु सूमों के गुलदस्ते
तैयार करना नहीं।” आस प्रकार ईन्होंने भारतीय स्िाधीनता संिाम के ईन अरं हभक ददनों में
हहदी कहियों को शृंगार परक रचनाओं के स्थान पर सामाहजक, राष्ट्रीय और सांस्कृ हतक हिषयों
पर हलखने की प्रेरणा दी।
महािीर प्रसाद हद्विेदी के लेखन में हिहिधता है। ईनकी प्रमुख मौहलक पद्य रचनाएाँ हैं -
देिी स्तुहत-शतक (1892(, कान्यकु धजािलीव्रतम् (1898(, समाचार पत्र संपादन स्तिः
(1898(, नागरी (1900(, कान्यकु धज-ऄबला-हिलाप (1907(, काव्य मंजूषा (1903(, सुमन
(1923(, हद्विेदी काव्य-माला (1940( और कहिता कलाप (1909(।
महािीर प्रसाद हद्विेदी की मौहलक गद्य रचनाएाँ हैं -नैषध चररत्र चचाज (1899(,
तरुणोपदेश (ऄप्रकाहशत(, हहदी हशक्षािली तृतीय भाग की समालोचना (1901(, िैज्ञाहनक
कोश (1906(, हिक्रमांकदेिचररतचचाज (1907(, हहदी भाषा की ईत्पहि (1907(, संपहि-शास्त्र
258
(1907(, कौरटल्य कु ठार (1907(, नाट्यशास्त्र (1912(,काहलदास की हनरकुं शता (1912(,
िहनता-हिलाप (1918(, औद्योहगकी (1920(, रसज्ञ रं जन (1920(, काहलदास और ईनकी
कहिता (1920(, सुकहि संकीतजन (1924(, ऄतीत स्मृहत (1924(, ऄद्भुत अलाप (1924(,
महहलामोद (1925(,िैहचत्र्य हचत्रण (1926(, साहहत्यालाप (1926(, हिज्ञ हिनोद
(1926(,साहहत्य संदभज (1928(, अध्याहत्मकी (1928(, कोहिद कीतजन (1928(, हिदेशी
हिद्वान (1928(, दृश्य दशजन (1928(, अलोचनांजहल (1928(, चररत्र हचत्रण (1929(,
पुरातत्ि प्रसंग (1929(,प्राचीन हचह्न (1929(, चररत चयाज (1930(, साहहत्य सीकर (1930(,
हिज्ञान िाताज (1930(, िाहग्िलास (1930(, संकलन (1931(, हिचार-हिमशज ,(1931(
पुरािृि (1933(।
ईनके द्वारा ऄनूददत गद्य रचनाएाँ हैं -भाहमनी-हिलास (1891(, पंहडतराज जगन्नाथ के
'यमुना स्तोत्र' का भािानुिाद ऄमृत लहरी (1896(, बेकन-हिचार-रत्नािली (1901(, हबजटज
स्पेंसर के 'एजुकेशन' का ऄनुिाद ‘हशक्षा’(1906( , जॉन स्टु ऄटज हमल के 'ऑन हलबटी' का
ऄनुिाद ‘स्िाधीनता’(1907( , जल हचदकत्सा (1907(, हहदी महाभारत (1908(, रघुिंश
(1912(, िेणी-संहार (1913(, कु मार सम्भि (1915(, मेघदूत (1917(, दकराताजुजनीय
(1917(, प्राचीन पंहडत और कहि (1918(, अख्याहयका सप्तक (1927(।
अचायज रामचंद्र शुक्ल ने ‘हहदी साहहत्य का आहतहास’ में महािीर प्रसाद हद्विेदी के संबंध
में हलखा है दक “हद्विेदी जी ने सन 1903में ‘सरस्िती’ के संपादन का भार हलया। तब से ऄपना
सारा समय ईन्होंने हलखने में ही लगाया। हलखने की सिलता िे आस बात में मानते थे दक करठन
से करठन हिषय भी ऐसे सरल रूप में रख ददया जाए दक साधारण समझ िाले पाठक भी ईसे
बहुत कु छ समझ जाएाँ ।“ (हहदी साहहत्य का आहतहास, पृ . 346(।
बोध प्रश्न
महािीर प्रसाद हद्विेदी का जन्म कब और कहााँ हुअ था?
महािीर प्रसाद हद्विेदी ने ऄपने हलए दकन हसद्धांतों को गढ़ा था?
महािीर प्रसाद हद्विेदी के व्यहित्ि के संबंध में प्रेमचंद की क्या मान्यता है?
259
दकया। अप जानते ही हैं दक 1900 इ .में हचतामहण घोष ने आं हडयन प्रेस ,आलाहाबाद से
‘सरस्िती ’पहत्रका का प्रकाशन प्रारं भ दकया था। 1903 में महािीर प्रसाद हद्विेदी आसके संपादक
बने और 1920 तक ईन्होंने संपादक का दाहयत्ि हनभाया। ‘सरस्िती’ पहत्रका के माध्यम से
ईन्होंने हहदी व्याकरण का पररष्कार दकया, खड़ी बोली हहदी का प्रचार दकया और ऄनेक
प्रहतभाओं को प्रोत्साहहत दकया। आस संबंध में प्रेमचंद का कथन ईल्लेखनीय है। ऄप्रैल 1933 के
‘हंस’ के हद्विेदी हिशेषांक के संपादकीय में प्रेमचंद ने यह बात स्पि की दक “अज हम जो कु छ
भी हैं, ईन्हीं के बनाए हुए हैं। यदद पं .महािीर प्रसाद हद्विेदी न होते तो बेचारी हहदी कोसों
पीछे होती -समुन्नहत की आस सीमा तक अने का ईसे ऄिसर ही नहीं हमलता। ईन्होंने हमारे
हलए पथ भी बनाया और पथ-प्रदशजक का काम भी दकया।“ (पुरखों का पठार, पृ. (14(
रामहिलास शमाज ने ‘महािीर प्रसाद हद्विेदी और हहदी निजागरण’ में ‘सरस्िती’ पहत्रका
के संबध
ं में स्िामी सत्यदेि पररव्राजक की राय ईद्धृत की है,“ जनता को अिश्यकता थी निीन
ज्ञान की, स्िाधीनता की पहचान की और अधुहनक ज्ञान-स्नान की। सरस्िती द्वारा िे ईस पुनीत
कायज को भली प्रकार कर सकते थे। िे थे कु शल संपादक और कतजव्यपरायाण। ईन्हें पता था दक
माहसक पहत्रका ज्ञान-प्रचार के हलए ऄत्यंत ईपयोगी ऄध्याहपका बन सकती है और िे ईसके
द्वारा दूर िामों में बैठे हुए देहाहतयों तक ज्ञान का दीपक जला सकते हैं। ईन्होंने ‘सरस्िती’ को
उाँचे दजे की ज्ञान-पहत्रका बनाने का दृढ़ संकल्प दकया और िे थे धुन के पूरे।“( रामहिलास शमाज,
महािीर प्रसाद हद्विेदी और हहदी निजागरण, पृ. 373( आसी दृढ़ संकल्प एिं साधना के साथ
हद्विेदी जी ने ‘सरस्िती’ पहत्रका को हहदी निजागरण की प्रहतहनहध पहत्रका बनाया।
‘सरस्िती’ के संपादक के रूप में अचायज हद्विेदी ने सही ऄथज में हहदी भाषा और ईसके
लेखकों को ठोक-पीट कर गढ़ने का गुरुतर कायज संपाददत दकया। आसीहलए मैनेजर पांडय े हलखते
हैं दक “पहत्रका ‘सरस्िती’ में प्रकाहशत प्रत्येक हनबंध और कहिता की भाषा को सुधारने और
पररष्कृ त करने का करठन काम ईन्होंने पूरे मनोयोग और पररश्रम से दकया”। (मैनेजर पांडये ,
शधद और साधना, पृ.13( हहदी साहहत्य और भाषा के आहतहासकार एक मत से हद्विेदी जी को
युगििा मनाते हैं क्योंदक ईन्होंने खड़ी बोली हहदी का नया सुव्यिहस्थत स्िरूप हनर्ममत दकया,
खड़ी बोली हहदी को गद्य और पद्य की भाषा बनाने का ऄथक प्रयत्न दकया, हहदी कहिता को
एक नइ ददशा ददखाइ।
260
करके ईसे व्यिहस्थत दकया। आस पहत्रका का ईद्देश्य “हहदी भाषा क्षेत्र में सांस्कृ हतक जागरण
करना था ,ऄतः राष्ट्रीयता तथा भाषा के पररष्कार पर ऄहधक बल ददया गया।“ (हर प्रकाश
गौड़, सरस्िती और राष्ट्रीय जागरण, पृ. 8(
अचायज महािीर प्रसाद हद्विेदी ने भाषा की ऄराजकता पर ‘सरस्िती ’के माध्यम से ऄंकुश
लगाया था। आस संदभज में अचायज रामचंद्र शुक्ल का कथन द्रिव्य है -“व्याकरण की शुद्धता और
भाषा की सिाइ के प्रितजक हद्विेदी जी ही थे। ‘सरस्िती’ के संपादक के रूप में ईन्होंने अइ हुइ
पुस्तकों के भीतर व्याकरण और भाषा की ऄशुहद्धयााँ ददखाकर लेखकों को बहुत कु छ सािधान
कर ददया। यद्यहप कु छ हठी और ऄनाड़ी लेखक ऄपनी भूलों और गलहतयों का समथजन तरह-
तरह की बातें बनाकर करते रहे, पर ऄहधकतर लेखकों ने लाभ ईठाया और हलखते समय
व्याकरण अदद का पूरा ध्यान रखने लगे। गद्य की भाषा पर हद्विेदी जी के आस शुभ प्रभाि का
स्मरण जब तक भाषा के हलए शुद्धता अिश्यक समझी जाएगी तब तक बना रहेगा”।( रामचंद्र
शुक्ल, हहदी साहहत्य का आहतहास, पृ. 334(।
हप्रय छात्रो! अचायज महािीर प्रसाद हद्विेदी ने एक बड़ा काम यह दकया दक हहदी की
ईत्पहि हिषयक भ्रम को दूर कर ददया। ईन्होंने हलखा है दक, “ऄब तक बहुत लोगों का ख्याल था
261
दक हहदी की जननी संस्कृ त है। यह ठीक नहीं है। हहदी की ईत्पहि ऄपभ्रंश भाषाओं से है और
ऄपभ्रंश भाषाओं की ईत्पहि प्राकृ त से है। प्राकृ त ऄपने पहले की पुरानी बोल-चाल की संस्कृ त से
हनकली है और पररमार्मजत संस्कृ त भी (हजसे हम अजकल के िल ‘संस्कृ त’ कहते हैं( दकसी पुरानी
बोल-चाल की संस्कृ त से हनकली है। अज तक की जााँच से यही हसद्ध हुअ है दक ितजमान हहदी
की ईत्पहि ठे ठ संस्कृ त से नहीं हुइ।”(हहदी भाषा की ईत्पहि(।
बोध प्रश्न
महािीर प्रसाद हद्विेदी ने हहदी भाषा का पररष्कार कै से दकया?
जनता में राष्ट्रीय चेतना को ईभारने में ‘सरस्िती’ पहत्रका की क्या भूहमका थी?
‘ऄनहस्थरता’ हििाद का क्या महत्ि है?
17.3 पाठ-सार
हहदी साहहत्य के अधुहनक काल के दूसरे कालखंड को हद्विेदी युग कहा जाता है। पहले
खंड ऄथाजत भारतेन्दु युग के काव्य में जहााँ एक ओर देशभहि की नइ अिाज़ें ईभरने लगी थीं,
िहीं दूसरी ओर भहि और शृंगार की पुरानी अिाज़ें भी खूब सुनाइ देती थीं। आन परं परागत
हिषयों की ऄहभव्यहि की दृहि से भारतेन्दु को ब्रजभाषा ऄहधक ईपयोगी प्रतीत होती थी।
लेदकन जैसे जैसे कहिता के िण्यज हिषय में बदलाि अया, िैसे िैसे ब्रजभाषा की सीमाएाँ भी
प्रकट होने लगीं और हद्विेदी युग में खड़ी बोली पूणजतः काव्यभाषा के रूप में प्रहतहष्ठत हो गइ।
गद्य की भाषा के रूप में तो स्ियं भारतेंदु ही खड़ी बोली को स्थाहपत कर चुके थे। कहना गलत
न होगा दक भारतेन्दु युग की पररहस्थहतयााँ 19 िीं शताधदी के ऄंत तक अते अते कािी हद तक
बदल चुकी थीं। आस बदलाि ने ही हद्विेदी युग के हलए नइ ज़मीन तैयार की। यहााँ तक अते अते
262
समाज की अिश्यकताओं और कहियों की रुहचयों में भी बदलाि अ गया। जनता की हचििृहि
के आस बदलाि ने काव्य की प्रिृहि के बदलाि को प्रोत्साहहत दकया। समाज समस्यापूर्मतयों,
शृंगाररक कहिताओं और तुकबंददयों से उबने लगा था। ब्रजभाषा का माधुयज भी ऄब जनता की
रुहचयों को संतुि करने के ऄसमथज हो चला था। “ऐसे समय में जनता की अकांक्षाओं के पारखी,
हिचारों से अदशजिादी और सुधारिादी, तथा कहियों का नेतृत्ि करने िाले युगपुरुष महािीर
प्रसाद हद्विेदी का हहदी में प्रादुभाजि हुअ। आसी समय सन् 1900 इ. में ‘सरस्िती’ पहत्रका का
अरं भ हुअ। आसे सुयोग ही कहा जाएगा दक सन् 1903 इ. में महािीर प्रसाद हद्विेदी को
‘सरस्िती’ के संपादक का कायजभार हमला। ‘सरस्िती’ के प्रकाशन का नेतृत्ि हद्विेदी जी को
हमलने से जागरण और सुधार का एक नया युग प्रारम्भ हो गया।”(डॉ. लक्ष्मीलाल िैरागी, हहदी
भाषा और साहहत्य का आहतहास, पृष्ठ 270(। कहना न होगा दक आससे हहदी साहहत्यकारों को
एक साथ दो लाभ हुए। एक तो ईन्हें हद्विेदी जी जैसा मागजदशजक हमल गया और दूसरे , प्रकाशन
के हलए ‘सरस्िती’ पहत्रका जैसा ईत्कृ ि मंच प्राप्त हो गया। यही कारण है दक आस कालखंड को
आहतहासकारों ने ‘जागरण सुधारकाल’की तुलना में ‘हद्विेदी युग’ कहना ज़्यादा पसंद दकया है।
‘सरस्िती’ पहत्रका के संपादक के रूप में महािीर प्रसाद हद्विेदी ने हहदी भाषा और
साहहत्य का लगभग 20 िषज नेतृत्ि दकया। आसहलए हहदी साहहत्य के आहतहास में 20 िीं
शताधदी के अरं भ के दो दशक की ऄिहध को ‘हद्विेदी युग’ के नाम से जाना जाता है। यह समय
भारत में हब्ररटश राज्य के हिरुद्ध अजादी की चेतना के जागने का समय था। खास तौर पर
लोकमान्य बालगंगाधर हतलक का यह अह्िान जनता में नइ चेतना जगा रहा था दक ‘स्ितंत्रता
मेरा जन्महसद्ध ऄहधकार है।’ हहदी साहहत्य में आस राष्ट्रीय भािना की ऄहभव्यहि को ददशा देने
का काम महािीर प्रसाद हद्विेदी ने दकया।
अचायज महािीर प्रसाद हद्विेदी ने हहदी भाषा और साहहत्य को हजस नइ राह पर चलने
के हलए प्रेररत दकया ईसने अचायज रामचन्द्र शुक्ल, हिश्वंभरनाथ शमाज कौहशक,पदुमलाल
पुन्नालाल बख्शी और मैहथलीशरण गुप्त जैसे ऄनेक चमकते हसतारे हहदी साहहत्य को प्रदान
दकए। राष्ट्रकहि मैहथलीशरण गुप्त ने गद्गद कं ठ से स्िीकार दकया है, “हद्विेदी जी ने मेरी ईल्टी-
सीधी रचनाओं का पूणज शोधन दकया। ईन्हें ‘सरस्िती’ में छापा और पत्रों द्वारा भी मेरा ईत्साह
बढ़ाया।” आसी प्रकार पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ने हलखा है दक “मुझसे ऄगर कोइ पूछे दक
हद्विेदी जी ने क्या दकया, तो मैं समि अधुहनक हहदी साहहत्य ददखाकर कह सकता हाँ, यह सब
ईन्हीं की सेिा का िल है।”
263
17.4 पाठ की ईपलहधधयााँ
17.5 शधद-संपदा
1. कतजव्यपरायण = कतजव्य के प्रहत अदर भाि
2. जागरण = रूदढ़यों या हपछड़ेपन से मुि होने के हलए दकया गया प्रयास
3. ज्ञानराहश = ज्ञान का भंडार
4. प्रितजक = दकसी काम या बात का अरं भ या प्रचलन करने िाला
5. संघषज = अगे बढ़ने के हलए होने िाला प्रयत्न, प्रयास
6. समालोचना = सम्यक प्रकार से देखना, साहहहत्यक रचना के गुण-दोषों का
हििेचन करने की कला
7. हसद्धांत = पयाजप्त तकज -हितकज के पश्चात हनहश्चत दकया गया मत
8. स्िराज्य = ऄपना राज्य, स्िाधीन राज्य
9. स्िाधीनता = स्ितंत्रता, अजादी
264
3. हहदी भाषा के पररष्कार में महािीर प्रसाद हद्विेदी के महत्ि को रे खांदकत कीहजए।
खंड (ब(
हनम्नहलहखत प्रश्नों के ईिर लगभग 200 शधदों में दीहजए।
1. हहदी साहहत्य के दूसरे ईत्थान को ‘हद्विेदी युग’ क्यों कहा जाता है? स्पि कीहजए।
2. हहदी भाषा के हिकास में ‘सरस्िती’ पहत्रका के योगदान पर चचाज कीहजए।
खंड (स(
265
III. सुमल
े कीहजए
i) 1894 (ऄ(सेड़ीशस मीटटग एक्ट
266
आकाइ 18 : हद्विेदी युग के प्रमुख गद्य लेखक
आकाइ की रूपरे खा
18.0 प्रस्तािना
18.1 ईद्देश्य
18.2 मूल पाठ :हद्विेदी युग के प्रमुख गद्य लेखक
18.2.1 हद्विेदी युग का पररिेश
18.2.2 हद्विेदी युग का गद्य साहहत्य :हिशेषताएाँ
18.2.3 हद्विेदी युगीन प्रमुख गद्य लेखक
18.2.3.1 देिकीनंदन खत्री
18.2.3.2 बालमुकुंद गुप्त
18.2.3.3 दकशोरीलाल गोस्िामी
18.2.3.4 माधि प्रसाद हमश्र
18.2.3.5 पद्महसह शमाज
18.2.3.6 प्रेमचंद
18.2.3.7 ऄध्यापक पूणहज सह
18.2.3.8 चंद्रधरशमाज गुलेरी
18.2.3.9 अचायज रामचंद्र शुक्ल
18.2.3.10 गोपालराम गहमरी
18.2.3.11 गुलाबराय
18.2.3.12 िृंदािनलाल िमाज
18.3 पाठ-सार
18.4 पाठ की ईपलहधधयााँ
18.5 शधद संपदा
18.6 परीक्षाथज प्रश्न
18.7 पठनीय पुस्तकें
267
18.0 प्रस्तािना
हप्रय छात्रो !हहदी में गद्य लेखन का अरं भ भारतेंदु युग से हुअ। ईन्नीसिीं शताधदी के
समाप्त होने के साथ ही देश में राष्ट्रीय चेतना का अंदोलन तेज होना शुरू हो गया था। यही िह
समय था जब बीसिीं शताधदी के अरं हभक दो दशकों तक आस अंदोलन के चेतना को जन-जन
तक पहुाँचाने के हलए पत्रकारों और साहहत्यकारों ने समाज सुधारकों और राजनेताओं के साथ
कं धे से कं धा हमलाकर काम दकया। हहदी साहहत्य में आस दो दशक के काल को ‘हद्विेदी युग ’कहते
हैं। प्रस्तुत आकाइ में हद्विेदी युग के प्रमुख गद्य लेखकों की देन पर प्रकाश डाला जा रहा है।
18.1 ईद्देश्य
आस आकाइ के ऄध्ययन से अप –
हद्विेदी युग के पररिेश को जान सकें गे।
हद्विेदी युग के गद्य साहहत्य की हिशेषताओं की जानकारी प्राप्त कर सकें गे।
हद्विेदी युग के गद्य लेखकों के व्यहित्ि एिं कृ हतत्ि से पररहचत हो सकें गे।
खड़ी बोली के हिकास में हद्विेदी युगीन गद्यकारों के योगदान को समझ सकें गे।
बोध प्रश्न
ऄंिेजी शासन दकस तरह का शासन था?
हद्विेदी युग के प्रमुख गद्य लेखक कौन थे?
269
का साहहत्य भी आस युग में प्रस्तुत हुअ। पुरातत्ि और शोध का कायज भी गंभीर धरातल पर
ऄिहस्थत हुअ। प्रामाहणक शधदकोश और व्याकरण भी अए। आस दृहि से देखा जाए तो हद्विेदी
युग हहदी साहहत्य का एक ऐसा हनयामक युग है हजसने भािी साहहहत्यक रचना को नइ ददशा
दी।“( हहदी साहहत्य का बृहत आहतहास .निम भाग. पृ . 29(
बोध प्रश्न
हद्विेदी युग के साहहत्य की हिशेषताएाँ क्या-क्या हैं?
खत्री जी बचपन से ही सैर-सपाटे के शौकीन थे। काशी नरे श इश्वरी नारायण हसह की
कृ पा से ईन्हें चदकया और नौगढ़ के जंगलों के ठे के हमल गए थे। आसी हसलहसले में ईन्हें चुनार,
हिजयगढ़, नौगढ़ अदद के पुराने दकलों, खंडहरों, सुरंगों को देखने तथा ईनसे संबंहधत
ककिदंहतयों को सुनने का भरपूर ऄिसर हमलता था। ठे केदारी का काम हाथ से हनकल जाने के
बाद िे रहस्य और रोमांच को ऄपनी कल्पना से जोड़कर कथा गढ़ने लगे।
देिकीनंदन खत्री की रचनाओं में चंद्रकांता (चार भाग( चंद्रकांता संतहत (चौबीस
भाग(,भूतनाथ (छह भाग( कु सुम कु मारी, िीरें द्र िीर ईिज कटोरा भर खून, काजर की कोठरी,
नरें द्र मोहहनी और गुप्त गोदना अदद ईपन्यास ईल्लेखनीय हैं। ईनकी गद्य भाषा के संबध
ं में
270
रामचंद्र शुक्ल ने कहा है दक “बाबू देिकीनंदन के संबंध में आतना और कह देना जरूरी है दक
ईन्होंने ऐसी भाषा का व्यिहार दकया है हजसे थोड़ी हहदी और थोड़ी ईदूज पढ़े लोग भी समझ लें।
कु छ लोगों का यह समझना, दक ईन्होंने राजा हशिप्रसाद िाली ईस हपछली ‘अमिहम’ भाषा
का हबलकु ल ऄनुसरण दकया जो एकदम ईदूज की ओर झुक गइ थी, ठीक नहीं। कहना चाहें तो यों
कह सकते हैं दक ईन्होंने साहहहत्यक हहदी न हलखकर ‘हहदुस्तानी’ हलखी, जो के िल आसी प्रकार
की हलकी रचनाओं में काम दे सकती है” (हहदी साहहत्य का आहतहास, रामचंद्र शुक्ल, पृ 341 .(
जगन्नाथ प्रसाद हमश्र कहते हैं दक “आनकी भाषा शैली में हहदी ईदूज के ऄत्यंत व्यािहाररक रूप का
ऄपूिज सम्मेलन हुअ है। आनकी भाषा ईपन्यास लेखन की परं परा में रामचररतमानस का कायज
करती है” ( भारतीय प्रहतभाएाँ, जगन्नाथ हमश्र, पृ 88(
देिकीनंदन खत्री का लेखन यों तो भारतेंदु युग में शुरू हो गया था लेदकन ईसका हिस्तार
हद्विेदी युग में ही हुअ। ईन्होंने ‘चंद्राकांता’ ईपन्यास को प्रकाहशत करने के हलए मइ 1894 में
‘ईपन्यास लहरी’ नामक पहत्रका हनकाली। कहा जाता है दक आस हतहलस्मी ईपन्यास को पढ़ने के
हलए बहुत लोगों ने हहदी सीखी। ऄतः कहा जा सकता है दक हहदी के प्रचार-प्रसार में आस
ईपन्यास ने महती भूहमका हनभाइ। आस संबंध में रामचंद्र शुक्ल का यह कथन ईल्लेखनीय है -
“हहदी साहहत्य में बाबू देिकीनंदन का स्मरण आस बात के हलए सदा बना रहेगा दक हजतने
पाठक ईन्होंने ईत्पन्न दकए ईतने और दकसी िंथकार ने नहीं। चंद्रकांता पढ़ने के हलए ही न जाने
दकतने ईदूज जीिी लोगों ने हहदी सीखी। शुरू शुरू में ‘चंद्रकांता’ और ‘चंद्रकांता संतती’ पढ़कर न
जाने दकतने नियुिक हहदी के लेखक हो गए।”
(हहदी साहहत्य का आहतहास, रामचंद्र शुक्ल, पृ 341(
बोध प्रश्न
देिकीनंदन खत्री रहस्य और रोमांच भारी कथाएाँ हलखने की ओर कै से मुड़ें?
हहदी के प्रचार-प्रसार में ‘चंद्रकांता’ की क्या भूहमका थी?
271
साहहहत्यक जीिन प्रारं भ दकया था। ईन्होंने ईदूज माहसक ‘ररिाहे अम’ ऄखबार और ‘मथुरा
समाचार’ में पंहडत दीनदयाल शमाज के सहयोगी के रूप में काम दकया था। 1886 में ईदूज
ऄखबार ‘ऄखबारे चुनार’ के संपादक बने। 1889 में ‘कोहेनूर’( ईदूज पहत्रका( का संपादन दकया।
1889 में हहदी दैहनक ‘हहदोस्थान’ से जुड़।े 1893-1898 तक ‘हहदी बंगिासी’ का संपादन
दकया 1899-1907 तक ‘भारत हमत्र’के संपादक रहे।
बालमुकुंद गुप्त ने पत्रकार, संपादक, हनबंधकार और व्यंग्यकार के रूप में हहदी गद्य को
कािी उाँचाइ तक पहुाँचाया। ईनकी प्रमुख रचनाएाँ हैं हररदास, हखलौना, खेलतमाशा, स्िु ट
कहिता, हशिशंभु के हचट्ठे, सहन्नपात हचदकत्सा। ईनकी रचनाएाँ ‘बालमुकुंद गुप्त रचनािली’ में
संिहीत हैं। ईन्होंने “राज राममोहन राय की जीिनी तथा योगेशचंद्र बसु के बांग्ला ईपन्यास
‘मडेल भहगनी’, हषजिद्धजन के संस्कृ त नाटक ‘रत्नािली’ का हहदी रूपांतर दकया दिर रं गलाल
मुखोपाध्याय द्वारा हलहखत पुहस्तका ‘हररदास’ का पहले ईदूज में दिर हहदी में रूपांतर दकया। ”
(हनबंधों की दुहनया : बालमुकुंद गुप्त, सं .रे खा सेठी, पृ.6(
बालमुकुंद गुप्त के व्यहित्ि के दो पक्ष थे। एक, देशभहि और दूसरा, मानि कल्याण। िे
राष्ट्र हहत के हलए हहदू-मुहस्लम एकता को ऄहनिायज मानते थे। गुप्त जी के संबंध में रामहिलास
शमाज का यह कथन ईल्लेखनीय है - “हहदुओं-मुसलमानों को नजदीक लाने में, राष्ट्रीयता और
जनतंत्र के भाि िै लाने में और जनता को लड़ाने िाली ऄंिेज़ी कू टनीहत का भंडािोड़ करने में
हजतना काम ईन्होंने दकया, ईतना प्रेमचंद के ऄलािा दकसी ने नहीं दकया”।
( रामहिलास शमाज, कथाहििेचना और गद्य हशल्प, पृ 131 .(
बालमुकुंद गुप्त अरं भ में ईदूज पत्रों में लेख हलखते थे। बाद में महामना मालिीय जी के
ऄनुरोध पर ईन्होंने हहदी दैहनक ‘हहदोस्थान’ के सहकारी संपादक का कायजभार संभाला। आस
दौरान ईन्होंने प्रतापनारायण हमश्र की प्रेरणा से हहदी के प्राचीन साहहत्य का ऄध्ययन दकया।
ऄपने हब्ररटश सरकार हिरोधी लेखन के कारण ईन्हें ‘हहदोस्थान’ से हटना पड़ा। बाद में ईन्होंने
‘हहदी बंगिासी’ के सहायक संपादक और ‘भारत हमत्र’ के संपादक के रूप में हहदी गद्य को समृद्ध
बनाने में ऄहिस्मरणीय कायज दकया। िे भाषा, साहहत्य और राजनीहत के सजग प्रहरी थे। भाषा
के प्रश्न पर ईनकी अचायज महािीर प्रसाद हद्विेदी से कािी लंबी बहस चली थी। ईन्होंने हहदी
गद्य को देशभहि की भािना और व्यंग्यात्मक शैली से संपन्न दकया। लाडज कज़जन की शासन नीहत
पर चुटीला व्यंग्य करने िाली ईनकी रचना ‘हशिशंभु के हचट्ठे’ हिशेष रूप से ईल्लेखनीय है।
272
बालमुकुंद गुप्त के गद्य साहहत्य के ऄध्ययन से ईनकी पैनी राजनीहतक सूझ-बूझ,
हनभीकता और तेजहस्िता का पता चलता है। आन्हें सरल, व्यंग्यपूण,ज मुहािरे दार गद्य शैली के
हलए खास-तौर पर जाना जाता है।
बोध प्रश्न
बालमुकुंद गुप्त के व्यहित्ि की क्या हिशेषता थी?
बालमुकुंद गुप्त की गद्य शैली की क्या हिशेषता है?
दकशोरीलाल गोस्िामी द्वारा रहचत ईपन्यास हैं -हत्रिेणी ि सौभाग्य श्रेणी, प्रणहयनी-
पररणय, हृदयहाररणी ि अदशज रमणी, लिंगलता ि अदशज बाला (हृदयहाररणी ईपन्यास का
ईपसंहार( सुल्ताना रहज़या बेगम ि रं गमहल में हलाहल, मालती माधि, मदनमोहहनी,
गुलबहार, हीराबाइ ि बेहयाइ का बुरक़ा ( ऐहतहाहसक ईपन्यास( लािण्यमयी (बंगभाषा के
273
अश्रय से ( सुख शिजरी (बंगभाषा के अश्रय से( प्रेममयी ( बंगभाषा के अश्रय से(, आं दम
ु ती ि
िनहिहंहगनी (ऐहतहाहसक ईपन्यास (,गुलबहार ि अदशज भ्रातृस्नह
े , तारा ि क्षात्र-कु ल-कमहलनी
(ऐहतहाहसक ईपन्यास( तरुण तपहस्िनी ि कु टीर िाहसनी, चंद्रािली ि कु लटा कु तूहल, हजदे की
लाश (जासूसी ईपन्यास ( माधिी-माधि ि मदन-मोहहनी (दो भागों में ( लीलािती ि अदशज
सती, तारा ि क्षात्र कु ल कमहलनी, राजकु मारी, चपला ि नव्य समाज हचत्र, कनक कु सुम ि
मस्तानी, महल्लका देिी ि बंग सरोहजनी, पुनजजन्म ि सौहतया डाह, सोना और सुगंध ि
पन्नाबाइ, लखनउ की कब्र ि शाही महल सरा, ऄाँगूठी का नगीना, लाल कुाँ िर ि शाही रं गमहल।
बोध प्रश्न
हहदी के प्रथममौहलककहानीदकसेमानाजाताहै ?
बोध प्रश्न
सुदशजन पहत्रका का ईद्देश्य क्या था ?
274
‘भारतोदय’,‘परोपकारी’ और ‘ऄनाथ रक्षणम्’ जैसी पहत्रकाओं का संपादन भी दकया था। ईनके
संबंध में रामस्िरूप चतुिेदी का यह कथन ईल्लेखनीय है “ -पद्महसह शमाज के अलोचकीय
व्यहित्ि में कइ तत्िों का बड़ा हिलक्षण संयोग हुअ था। िे अयज समाज के ईपदेशक थे, संस्कृ त
साहहत्य के पंहडत, िारसी-ईदूज काव्य के ऄच्छे ममजज्ञ और मध्यकालीन हहदी साहहत्य के सहृदय
ऄध्येता। अलोचक का पहला गुण सहृदयता ईनमें प्रचुर मात्रा में था और स्िभाि से हिद्या-
व्यसनी होने के नाते ईनका ऄध्ययन ऄत्यंत व्यापक था”।(रामस्िरूप चतुिेदी .हहदी साहहत्य
और संिेदना का हिकास .पृ. 174 (
हहदी में संस्मरण-लेखन का अरं भ पद्महसह शमाज के ‘पद्म पराग’ से माना जाता है। डॉ .
हरिंश लाल शमाज ने पं .पद्महसह शमाज को ही संस्मरणों और रे खाहचत्रों का जन्मदाता माना है।
तुलनात्मक समालोचना की प्रहतष्ठा का श्रेय पद्महसह शमाज को ही जाता है। ‘हबहारी सतसइ की
भूहमका’, ‘हबहारी सतसइ संजीिन भाष्य’, ‘पद्मपुराण’ और ‘हहदी ईदूज हहदुस्तानी’ अदद ईनकी
प्रहसद्ध रचनाएाँ हैं।
बोध प्रश्न
पद्महसह शमाज ने दकन पहत्रकाओं का संपादन दकया था ?
हहदी में संस्मरण लेखन और तुलनात्मक समालोचना का प्रारं भ दकसने दकया था ?
275
बाल साहहत्य : कु िे की कहानी, जंगल की कहाहनयााँ और राम चचाज
प्रेमचंद को हहदी साहहत्य में ‘अदशोन्मुख यथाथजिाद’ के प्रितजक के रूप में जाना जाता
है। ईन्होंने खोखले अदशजिाद और िोटोिादिक यथाथजिाद दोनों ही को ऄधूरा माना तथा ऐसे
यथाथजिादी लेखन की अिश्यकता बताइ जो पाठक को दकसी अदशज की ओर ईन्मुख करे ।
हद्विेदी युग के बाद के ईनके लेखन पर महात्मा गांधी का प्रभाि भी ददखाइ देता है। ईनकी
मान्यता है दक साहहत्य को समाज का दपजण नहीं बहल्क मशाल होना चाहहए।
बोध प्रश्न
ऄंिेज सरकार ने ‘सोजे ितन’ को क्यों जधत दकया था ?
‘अदशोन्मुख यथाथजिाद’ क्या है.?
पूणजहसह को रामस्िरूप चतुिेदी हद्विेदी युग के तेजस्िी गद्य शैलीकार मानते हुए हलखते
हैं दक “सीधे-सादे मजदूर जीिन की महहमा का बखान और प्रकृ हत का सहज-सरल सौंदयज
पूणजहसह के लेखन की मुख्य िस्तु हैं”।(रामस्िरूप चतुिेदी .हहदी साहहत्य और संिेदना का
हिकास .पृ. 105 (। रामचंद्र शुक्ल ने ईनके मात्र तीन-चार हनबंधों के अधार पर ईन्हें सम्मान
देते हुए हलखा है दक “सरस्िती के पुराने पाठकों में से बहुतों को ऄध्यापक पूणजहसह के लेखों का
स्मरण होगा। ईनके तीन चार हनबंध ही ईि पहत्रका में हनकले। ईनमें हिचारों और भािों को
एक ऄनूठे ढंग से हमहश्रत करने िाली एक नइ शैली हमलती है। ईनकी लाक्षहणकता हहदी गद्य
साहहत्य में एक नइ चीज है”।(रामचंद्र शुक्ल, हहदी साहहत्य का आहतहास .पृ. 357(।
बोध प्रश्न
पूणजहसह के लेखनकीमुख्यिस्तुक्याहै ?
276
18.2.3.8 चंद्रधरशमाज गुलरे ी (1883-1922(
चंद्रधर शमाज गुलेरी का जन्म 7 जुलाइ, 1883 को तथा हनधन 12 हसतंबर, 1922 को
हुअ। 1902 में िे ‘समालोचक’ (माहसक( के संपादक बने। कालजयी कहानी ‘ईसने कहा था’ के
लेखक के रूप में गुलेरी जी को हिशेष ख्याहत हमली। आनके लेखों के बारे में रामचंद्र शुक्ल ने
हलखा है दक “यह बेधड़क कहा जा सकता है दक शैली की जो हिहशिता और ऄथजगर्मभत िक्रता
गुलेरी जी में हमलती है, िह और दकसी लेखक में नहीं। आनके हस्मत हास की सामिी ज्ञान के
हिहिध क्षेत्रों से ली गइ है। ऄतः आनके लेखों का पूरा अनंद ईन्हीं को हमल सकता है जो बहुज्ञ या
कम से कम बहुश्रुत हैं”।(रामचंद्र शुक्ल .हहदी साहहत्य का आहतहास .पृ. 354(।
कछु अ धमज, मारे हस मोहह कु ठाउाँ, होली की रठठोली का एहप्रल िू ल चंद्रधरशमाज गुलेरी
के प्रहसद्ध हनबंध हैं। सुखमय जीिन, बुद्धू का कााँटा और ईसने कहा था ईनकी प्रहसद्ध कहाहनयााँ
हैं। एहशया की हिजयदशमी, ऄहहताहिका, झुकी कमान, स्िागत, रहि, कु सुमांजहल अदद ईनकी
कहिताएाँ हैं। ‘पुरानी हहदी’ लेखमाला के ऄंतगजत ईनके द्वारा स्थाहपत भाषा हिषयक मान्यताएाँ
दस्तािेजी महत्ि रखती हैं।
बोध प्रश्न
गुलेरी जी के लेखोंके बारे मेंअचायजरामचंद्रशुक्लनेक्याकहाहै ?
277
कहानी : ग्यारह िषज का समय।
हनबंध : हचतामहण।
शुक्ल जी द्वारा रहचत ‘हहदी साहहत्य का आहतहास’ ईनकी कालजयी कीर्मत का अधार है।
हहदी साहहत्य पर दकसी प्रकार की चचाज आसके संदभज के हबना ऄधूरी समझी जाती है। पाठ
अधाररत िैज्ञाहनक अलोचना के सूत्रपात का श्रेय भी शुक्ल जी को ही है। साथ ही,‘हचतामहण’
के ऄपने हनबंधों में ईन्होंने मनोिैज्ञाहनक एिं काव्यशास्त्रीय हिषयों पर लेखन की मौहलक शैली
का गठन दकया। आस गद्य शैली में बौहद्धकता और भािुकता का ऄद्भुत हमश्रण हमलता है।
बोध प्रश्न
शुक्ल जी की कालजयी कीर्मत का अधार क्या है ?
‘हचतामहण’ की शैली में दकसका हमश्रण है ?
बोध प्रश्न
हहदी मेंजासूसीकथासाहहत्यके जन्मदाताकौनहैं?
278
क्लब,हहदी साहहत्य का संहक्षप्त आहतहास अदद। ईनकी रचनाएाँ दो प्रकार की हैं -दाशजहनक और
साहहहत्यक। ईन्होंने सामाहजक, सांस्कृ हतक और मनोिैज्ञाहनक हिषयों पर भी कलम चलाइ।
18.2.3.12 िृद
ं ािनलाल िमाज (1889-1969(
िृंदािनलाल िमाज का जन्म 9 जनिरी, 1889 को और हनधन 23 िरिरी, 1969 को
हुअ। िे मूलतः ऐहतहाहसक कथाकार हैं। ईनके साहहत्य में बुंदल े खंड के राष्ट्रीय जीिन को देखा
जा सकता है। ईनके हिषय में िासुदि े हसह हलखते हैं दक “ईन्होंने ऄपनी कहाहनयों द्वारा
भारतीय आहतहास के संबध ं में प्रचहलत भ्रांत धारणाओं का हनरसन और सत्य का शोध भी दकया
है”।(सं .सुधाकर पांडय
े .हहदी साहहत्य का बृहत आहतहास .निम भाग .पृ. 83 (। ईनके प्रमुख
ईपन्यास हैं -झााँसी की रानी, गढ़ कुं डार, टू टे कााँटे, कचनार अदद। राखी की लाज, नीलकं ठ,
बीरबल, के िट अदद ईनके नाटक हैं और दबे पााँि, मेंढकी का धयाह, ऄंबरपुर के ऄमरिीर,
ऄंगूठी का दान, तोषी अदद कहानी संिह हैं।
18.3 पाठ-सार
‘सरस्िती’ के संपादक महािीर प्रसाद हद्विेदी के नेतृत्ि में बीसिीं शताधदी के अरं हभक
18िषों में ऄनेक गद्य लेखक ईभरें । आनमें कु छ प्रमुख नाम हैं -देिकीनंदन खत्री, बालमुकुंद गुप्त,
दकशोरीलाल गोस्िामी, माधि प्रसाद हमश्र, पद्महसह शमाज, प्रेमचंद, ऄध्यापक पूणजहसह,
चंद्रधरशमाज गुलेरी, रामचंद्र शुक्ल, गोपालराम गहमरी, गुलाब राय और िृंदािनलाल िमाज। आन
लेखकों ने हहदी में ईपन्यास, हनबंध, पत्रकाररता, कहानी, अलोचना अदद गद्य की हिहिध
हिधाओं का जमकर हिकास दकया। ऄपने लेखन द्वारा आन्होंने हहदी भाषा को भी पररमार्मजत
करने का महत्कायज दकया।
279
5. हद्विेदी युग में ही खड़ी बोली को पूणज प्रहतष्ठा प्राप्त हुइ।
खंड (ब(
हनम्नहलहखत प्रश्नों के ईिर लगभग 200 शधदों में दीहजए।
1. हद्विेदी युग के पररिेश पर रटप्पणी हलहखए।
2. हद्विेदी युग के गद्य साहहत्य की हिशेषताओं के बारे में बताआए।
3. पद्महसह शमाज के व्यहित्ि पर प्रकाश डाहलए।
खंड (स(
280
(ऄ(देिकीनंदन खत्री (अ(गोपालराम गहमरी (आ(िृंदािनलाल िमाज (इ(गुलाबराय
2. ‘गढ़ कुं डार’ के रचनाकार कौन हैं? ( (
(ऄ(देिकीनंदन खत्री (अ(गोपालराम गहमरी (आ(िृंदािनलाल िमाज (इ(गुलाबराय
3. ‘हबहारी सतसइ की भूहमका’ के रचनाकार कौन हैं? ( (
(ऄ(देिकीनंदन खत्री (अ(पद्महसह शमाज (आ(िृंदािनलाल िमाज (इ(गुलाबराय
III सुमल
े कीहजए
i) ग्यारह िषज का समय (ऄ(रे िरें ड जे न्यूटन .
281
आकाइ 19 : हद्विेदी युग के प्रमुख कहि
आकाइ की रूपरे खा
19.0 प्रस्तािना
19.1 ईद्देश्य
19.2 मूल पाठ :हद्विेदी युग के प्रमुख कहि
19.2.1 हद्विेदी युगीन काव्यधारा
19.2.2 हद्विेदी युगीन काव्य की प्रमुख प्रिृहियााँ
19.2.3 हद्विेदी युग के प्रमुख कहि
19.2.3.1 श्रीधर पाठक
19.2.3.2 महािीर प्रसाद हद्विेदी
19.2.3.3 ऄयोध्या हसह ईपाध्याय ‘हररऔध’
19.2.3.4 मैहथलीशरण गुप्त
19.2.3.5 रामनरे श हत्रपाठी
19.3 पाठ-सार
19.4 पाठ की ईपलहधधयााँ
19.5 शधद संपदा
19.6 परीक्षाथज प्रश्न
19.7 पठनीय पुस्तकें
19.0 प्रस्तािना
हहदी साहहत्य के आहतहास में अधुहनक काल एक तरह से जागरण का संदश े लेकर अया।
सन 1857 इ .में प्रथम स्ितंत्रता संिाम ने निजागरण का हबगुल बजा ददया और भारतीयों में
देशभहि, स्ितंत्रता एिं राष्ट्रीय ईत्थान की भािनाएाँ जागृत होने लगीं। भारतेंदु युग के काव्य में
आन प्रिृहियों का सूत्रपात हुअ, िहीं हद्विेदी युग में आन्हें बढ़ने का मौका हमला। आस निजागरण
को जन-जन तक पहुाँचाने में ‘सरस्िती’ पहत्रका का बहुत योगदान रहा है। ‘सरस्िती’ का
प्रकाशन 1900 इ .से प्रारं भ हुअ तथा 1903 में महािीर प्रसाद हद्विेदी ने आसका संपादन भार
संभाला। आस पहत्रका ने भाषा और साहहत्य दोनों ही क्षेत्रों में पररष्कार दकया। हद्विेदी जी के
282
‘सरस्िती’ के संपादन का कायज संभालने से लेकर 1918 तक के समय को ‘हद्विेदी युग’ की संज्ञा
दी जाती है। हद्विेदी युग का यह नामकरण अचायज महािीर प्रसाद हद्विेदी के गररमा मंहडत
व्यहित्ि को कें द्र में रखकर दकया गया है।
19.1 ईद्देश्य
284
बोध प्रश्न
महािीर प्रसाद हद्विेदी काव्यभाषा के रूप में खड़ी बोली का प्रयोग क्यों करना चाहते
थे?
खड़ी बोली को पररमार्मजत करने में ‘सरस्िती’ पहत्रका का क्या योगदान रहा?
देशप्रेम की भािना
हद्विेदी युग के कहियों ने अम जनता के बीच राष्ट्रप्रेम की लहर चलाइ। कहियों ने
स्ितंत्रता के प्रहत जनमानस को जागरूक दकया। आस युग के रचनाकारों का राष्ट्रप्रेम समस्याओं
के कारणों पर हिचार करने के साथ-साथ ईनके समाधान ढू ाँढ़ने का भी प्रयास करता है।
मैहथलीशरण गुप्त की रचना ‘भारत-भारती ’को राष्ट्रप्रेम का ईत्कृ ि ईदाहरण कहा जा सकता है।
‘भारत भारती’ के कारण ही मैहथलीशरण गुप्त को ‘राष्ट्रकहि’ कहा गया। अचायज रामचंद्र शुक्ल
के शधदों में पहले पहल हहदी प्रेहमयों का सबसे ऄहधक ध्यान खींचने िाली पुस्तक भी यही है।
आसकी लोकहप्रयता का अलम यह रहा है दक आसकी प्रहतयााँ रातोंरात खरीदी गईं। प्रभात
िे ररयों, राष्ट्रीय अंदलनों, हशक्षा संस्थानों, प्रातःकालीन प्राथजनाओं में ‘भारत भारती’ के पद
गााँिों-नगरों में गाए जाने लगे।
285
नैहतकता एिं अदशजिाद
अचायज महािीर प्रसाद हद्विेदी नैहतकता एिं अदशज के पुजारी माने जाते हैं। हद्विेदी
युगीन काव्य अदशजिादी एिं नीहत पर अधाररत काव्य है। आस युग के साहहत्य में शृंगाररकता
ददखाइ नहीं पड़ती। हररऔध कृ त ‘हप्रयप्रिास’ ,मैहथलीशरण गुप्त कृ त ‘साके त’ ,‘रं ग में भंग’,
‘जयद्रथ िध’ अदद अदशजिादी कृ हतयााँ हैं। रीहतकाल में राधा-कृ ष्ण शृंगार के अलंबन हैं ,जबदक
हद्विेदी युग की राधा जगत से सरोकार रखने िाली तथा समाज सेहिका के रूप में ददखाइ देती
है।
सामान्य मानिता
हद्विेदी युग में सामान्यतः मानि-मात्र के सुख-दुख का बहुत ही सहज एिं सजीि हचत्रण
दकया गया है। पहले के काव्य में इश्वर ,ऄितार ,राजा ,सामंत ,योद्धा तथा नाहयकाओं को कें द्रीय
स्थान हमलता था। हद्विेदी युग में सामान्य मानि को यह स्थान हमला। आस काल की कहिताओं
में दीन हीन कृ षक तथा हिधिा के दुख का हचत्रण दकया गया है। ऄहशहक्षत नाररयों की दशा का
भी िणजन आस युग के काव्य में हमलता है। साथ ही, ईच्च जाहतयों द्वारा हनम्न जाहतयों के प्रहत
दकए गए ऄन्याय को कहिताओं का हिषय बनाया गया।
हास्य-व्यंग्य
हद्विेदी युग में हास्य-व्यंग्य से पररपूणज काव्य बहुत कम हलखे गए। भारतेंदु युग जैसी
हज़दाददली ,चुहलबाजी और िक्कड़पन आस युग के कहिता में नहीं पाइ जाती। हजतना भी
286
साहहत्य आस समय रचा गया िह ईच्च कोरट का और मयाजददत है। आस युग के साहहत्य में
सामाहजक कु रीहतयााँ ,धमाजडब
ं र ,राजनीहतक हगरािट तथा व्यहभचार अदद को हास्य-व्यंग्य का
लक्ष्य बनाया गया। अचायज महािीर प्रसाद हद्विेदी ने ‘सरगौ नरक ठे काना नाहह’ में गााँि को
छोड़कर शहर जाने िाले और हिदेशी सभ्यता का अाँख मूाँदकर ऄनुकरण करने िाले लोगों पर
व्यंग्य दकया। आस युग के सबसे सशि व्यंग्यकार बालमुकुंद गुप्त माने जाते हैं। आन्होंने लाडज कज़जन
को अलंबन बनाकर हास्य-व्यंग्य कहिताएाँ रचीं। नाथुराम शमाज शंकर, इश्वरी प्रसाद शमाज तथा
जगन्नाथ प्रसाद चतुिेदी की कहिताओं में भी हास्य-व्यंग्य ददखाइ देता है।
भाषा पररितजन
आस युग में काव्य की मुख्य भाषा ब्रजभाषा का स्थान खड़ी बोली ने ले हलया। यद्यहप
अरं भ में खड़ी बोली कहिता नीरस तुकबंदी के ऄहतररि और कु छ भी नहीं थी ,लेदकन बाद में
आसमें हनखार अता गया तथा पाठक को यह सरलतापूिजक समझ में अने लगी। ‘जयद्रथ िध’ की
प्रहसहद्ध ने ब्रजभाषा के मोह का िध कर ददया तो ‘भारत भारती ’की लोकहप्रयता खड़ी बोली
की हिजय भारती हसद्ध हुइ। अचायज महािीर प्रसाद हद्विेदी के मागजदशजन में आस युग की काव्य
भाषा सरल ,सुबोध ,शुद्ध एिं रसों के ऄनुरूप ढलती गइ।
बोध प्रश्न
हद्विेदी युग ‘सुधारिादी युग’ क्यों कहलाता है?
हद्विेदी युगीन कहिताओं में नारी के प्रहत दकस प्रकार की दृहि ददखाइ देती है?
श्रीधर पाठक ने छंदों को नए ढााँचे में ढाला। ‘एकांतिासी योगी’ की रचना खड़ी बोली में
लािणी या ख्याल के ढंग पर की गइ है। आसमें खड़ी बोली कहिता के हलए रोला छंद की
ईपयुिता ददखाइ गइ है। यही नहीं ईन्होंने सिैया छंद में भी खड़ी बोली का मधुरता के साथ
प्रयोग करके ददखाया।
288
बोध प्रश्न
श्रीधर पाठक की कहिताओं का मुख्य हिषय क्या था?
यद्यहप हद्विेदी जी ने ऄनेक स्थानों पर तत्सम प्रधान भाषा का प्रयोग दकया है, लेदकन िे
अम एिं सरल शधदािली के प्रयोग में भी हसद्धहस्त थे। जैसे -
तुम्हीं ऄन्नदाता भारत के सचमुच बैलराज महाराज।
हबना तुम्हारे हो जाते हम दाना-दाना को मोहताज॥
तुम्हें षंड कर देते हैं जो महा हनदजयी जन हसरताज।
हधक ईनको, ईन पर हाँसता है, बुरी तरह, यह सकल समाज॥
िस्तुतः अचायज महािीर प्रसाद हद्विेदी का हहदी साहहत्य में योगदान एक हिचारक तथा
ददशा हनदेशक के रूप में जाना जाता है। ईनकी हिचारधारा को अगे बढ़ाते हुए आस युग के
289
कहियों ने एक निीन काव्यधारा का श्रीगणेश दकया तथा खड़ी बोली को काव्य की भाषा
बनाया। भाषा के आस नए रूप के प्रयोग के हलए हद्विेदी का नाम हमेशा हहदी साहहत्य में याद
दकया जाएगा।
बोध प्रश्न
कहिता की भाषा के बारे में महािीर प्रसाद हद्विेदी की क्या धारणा थी?
कहिता की हिषयिस्तु के बारे में महािीर प्रसाद हद्विेदी ने क्या कहा?
हररऔध जी ने ब्रजभाषा और खड़ी बोली दोनों में रचनाएाँ की हैं। ईन्होंने ‘रसकलश’ की
रचना ब्रजभाषा में की, जबदक ईनके द्वारा रहचत ‘हप्रयप्रिास’ खड़ी बोली का ‘पहला महाकाव्य’
है। यह ईनकी स्िायि रचना है। ‘हप्रयप्रिास’ में राधा और कृ ष्ण को सामान्य नायक-नाहयका के
स्तर से उपर ईठा कर हिश्वसेिी तथा हिश्वप्रेमी के रूप में हचहत्रत दकया है। हररऔध जी ने
आसमें ऄपनी मौहलकता का पररचय ददया है। ‘हप्रयप्रिास’ की राधा को के िल एक हिरहहणी के
जैसा ही नहीं ददखाया गया है बहल्क िह लोक ि समाज सेहिका की भूहमका भी हनभाती है।
आसमें कृ ष्ण को जननायक के रूप में ददखाया गया है। ‘िैदह
े ी िनिास’ भी ईनका एक श्रेष्ठ
महाकाव्य है। आसका कथानक ऄपेक्षाकृ त छोटा है, आस कारण आसमें राम का शहि ,सौंदयज और
शील समहन्ित चररत्र नहीं ईभर सका है ,दिर भी आसका ऐहतहाहसक महत्ि है।
हररऔध के काव्य में एक ओर सरल तथा प्रांजल हहदी का ऄलंकार रहहत सौंदयज है ,तो
दूसरी ओर संस्कृ त के ऄलंकारों से युि पदािली भी पाइ जाती है। आनकी रचनाओं में कही-कही
मुहािरों और बोलचाल के शधदों का बहुत ऄहधक प्रयोग हुअ है, तो दूसरी जगह िैसे शधदों को
छोड़ ददया गया है। हद्विेदी युग की भाषा में जो ककज शता थी, ईसमें हररऔध जी ने सरसता
ददखाइ। ऄतः कहा जा सकता है दक खड़ी बोली को काव्य के ईपयुि बनाने में हररऔध जी का
290
मुख्य हाथ है। आन्होंने दोहा ,कहिि ,सिैया अदद के साथ ही संस्कृ त के िणजिृिों में काव्य रचना
की है और आनको सभी में समान रूप से सिलता हमली है। आन्हें ‘कहि सम्राट’ के रूप में भी
जाना जाता है। ‘हप्रयप्रिास’ पर आन्हें हहदी का ईस काल का सिोिम पुरस्कार ‘मंगलप्रसाद
पाररतोहषक’ प्रदान दकया गया था। आनकी काव्यशैली बड़ी ही भािपूणज है। जैसे -
हप्रय पहत ,िह मेरा प्राणप्यारा कहााँ है?
दुख-जलहनहध डू बी का सहारा कहााँ है?
लख मुख हजसका मैं अज लौ जी सकी हाँ,
िह हृदय हमारा नैन-तारा कहााँ है?
बोध प्रश्न
ऄयोध्याहसह ईपाध्याय ‘हररऔध’ की सिोिम रचना कौन सी है?
‘हप्रयप्रिास’ की क्या हिशेषताएाँ हैं?
291
मैहथलीशरण गुप्त रामभि कहि थे। मैहथलीशरण गुप्त कृ त ‘साके त’ को ‘मानस’ के पश्चात
हहदी में रामकाव्य का दूसरा स्तंभ माना जाता है। अधुहनक युग में प्रबंध काव्य की परं परा को
कायम रखने िालों में मैहथलीशरण गुप्त का नाम हलया जाता है। आन्होंने दो महाकाव्यों और
ईन्नीस खंडकाव्यों की रचना की। कहिता और हनजी जीिन में ईन्होंने ऄंिेजी और संस्कृ त को
कभी ऄपने उपर हािी होने नहीं ददया और न ही ईसका कभी हिरोध दकया। साधारण
बोलचाल की खड़ी बोली का आन्होंने प्रयोग दकया। गुप्त जी ने ‘हतलोिमा’,‘ चंद्रहास ’और ‘ऄनघ ’
नामक तीन नाटक, प्रायः सभी प्रकार के प्रगीत और मुिक भी हलखे हैं। ककतु नाटकों, प्रगीतों
और मुिकों में ये िैसी भाि सृहि नहीं कर पाए जैसी दक प्रबंधकाव्यों में। ऄतः कहा जा सकता है
दक गुप्त जी मूलतः प्रबंधकार थे, ऄन्य साहहत्य रूपों में आनकी पकड़ नहीं थी। गुप्तजी के प्रमुख
काव्यिंथ हैं -जयद्रथ िध (1910(, भारत भारती (1912(, पंचिटी (1925(, झंकार (1929(,
साके त (1931(, यशोधरा (1932(, द्वापर (1936(, जयभारत (1952(, हिष्णुहप्रया (1957(
अदद।
गुप्त जी के काव्य के संबंध में यह स्मरणीय है दक ईन्होंने ऄपने सभी काव्यों में
मानितािाद को दशाजया है। िे हनष्काम कमज, हिश्वबंधुत्ि, सामाहजक समता, राष्ट्रीय चेतना एिं
हहदू-मुहस्लम एकता पर हिशेष बल देते थे। ईनकी कहिता ऄपने युग का स्िच्छ दपजण है।
बोध प्रश्न
‘भारत भारती’ का प्रकाशन कब हुअ था?
मैहथलीशरण गुप्त की कहिता ऄपने युग का स्िच्छ दपजण क्यों है?
हत्रपाठी जी के चार काव्यिंथ प्रहसद्ध हैं -हमलन (1977(, पहथक (1920(, मानसी (1927)
और स्िप्न (1929(। आनमें से मानसी आनकी िु टकर कहिताओं का संिह है, हजसमें मुख्यतः
देशभहि, प्रकृ हत और नीहत का हचत्रण है। हमलन, पहथक तथा स्िप्न काल्पहनक कथा पर
अधाररत प्रेमाख्यानक खंड काव्य हैं। आन तीनों में व्यहिगत सुख और स्िाथज को छोड़कर देश के
हलए सब कु छ न्यौछािर करने की प्रेरणा दी गइ है। हत्रपाठी जी ने ऄपनी कथािस्तु की कल्पना
292
देश के राजनैहतक िातािरण के ऄनुसार की है। आस तरह की कथा की कल्पना स्िच्छंदता को
दशाजती है। आन काव्यों में नर-नारी का मनोहिज्ञान, ईस युग का भािबोध एिं प्रकृ हत की सुंदरता
का िणजन प्रभािशाली ढंग से हमलता है। अचायज रामचंद्र शुक्ल के शधदों में “देशभहि को
रसात्मक रूप हत्रपाठी जी द्वारा प्राप्त हुअ। ”िस्तुतः िे एक साहहत्यकार के साथ-साथ स्ितंत्रता
सेनानी भी थे। ईन्होंने देश के प्रायः सभी भागों में भ्रमण दकया था। िे िाम गीतों (लोक गीतों(
संकलन करने िाले हहदी के प्रथम कहि थे। ईनकी रचनाओं में भी आसका प्रभाि देखा जा सकता
है। ईनके काव्य ‘पहथक’ और ‘स्िप्न’ में दहक्षण एिं ईिर भारत की प्रकृ हत का सुंदर िणजन हमलता
है। साथ ही िहााँ की स्थानीय हिशेषताओं को भी ईभारा गया है। आनके तीनों प्रबंध काव्य
भारतीयों की नैहतकता, त्याग एिं बहलदान भािना को प्रदर्मशत करने िाले काव्य हैं।
रामनरे श हत्रपाठी ने सरल सुबोध खड़ी बोली में काव्यरचना की। आससे ईन्हें ऄपार
लोकहप्रयता हमली। ईनकी एक प्रहसद्ध रचना का ऄंश देहखए –
हे प्रभो !अनंददाता !ज्ञान हमको दीहजए। /शीघ्र सारे दुगुजणों को दूर हमसे कीहजए॥
लीहजए हमको शरण में, हम सदाचारी बनें /ब्रह्मचारी, धमजरक्षक िीर व्रतधारी बनें॥
बोध प्रश्न
रामनरे श हत्रपाठी के खंड काव्यों की क्या हिशेषता है?
19.3 पाठ-सार
हहदी निजागरण को तीन चरणों में बााँटा गया है-(1( 1857 का स्ितंत्रता संिाम, (2(
हहदी साहहत्य में भारतेंदु का अगमन और (3( महािीर प्रसाद हद्विेदी द्वारा हहदी भाषा के हलए
दकया गया कायज। कहा जा सकता है दक हहदी निजागरण की जो परं परा भारतेंदु युग से प्रारं भ
हुइ, ईसे अचायज महािीर प्रसाद हद्विेदी ने दृढ़ता प्रदान की। महािीर प्रसाद हद्विेदी ने
‘सरस्िती’ पहत्रका के माध्यम से हहदी भाषा के हिकास के हलए बहुत ऄहधक कायज दकया। ईन्होंने
कहियों को हभन्न-हभन्न हिषयों पर हलखने की प्रेरणा दी और लेखकों को ईनकी कहमयों से
ऄिगत कराया। ईन्होंने भाषा की व्याकरहणक भूलों पर ध्यान ददया तथा ईसमें सुधार दकया।
काव्यभाषा में ब्रजभाषा के स्थान पर खड़ी बोली को ऄपनाने का सुझाि ददया हजससे गद्य और
पद्य की भाषा एक हो।
हद्विेदी युग का नामकरण अचायज महािीर प्रसाद हद्विेदी के व्यहित्ि को कें द्र में रखकर
दकया गया। आन्होंने ‘सरस्िती’ पहत्रका के संपादक के रूप में हहदी जगत की महान सेिा की।
ईनसे प्रेरणा लेकर तथा ईनके अदशों को लेकर अगे बढ़ने िाले ऄनेक कहि सामने अए। बहुत
से ऐसे कहि भी हुए जो पहले ब्रजभाषा में कहिता हलख रहे थे, िे ददिेदी जी तथा ‘सरस्िती’
293
पहत्रका से प्रेररत होकर नए हिषयों पर खड़ी बोली में कहिता हलखने लगे। ऐसे कहियों में
ऄयोध्याहसह ईपाध्याय ‘हररऔध’, श्रीधर पाठक और रामनरे श हत्रपाठी प्रमुख हैं। आन कहियों
की कहिताएाँ निजागरण, राष्ट्रीयता, स्िदेशानुराग एिं स्िदेशी भािना से पररपूणज हैं। अगे
चलकर हद्विेदी जी के प्रभाि से मैहथलीशरण गुप्त ने ‘भारत भारती’ तथा ‘साके त’ जैसी ईत्कृ ि
रचनाओं का प्रणयन दकया।
आस प्रकार हद्विेदी युग में भाषा और साहहत्य दोनों ही क्षेत्रों में बहुत ईन्नहत हुइ। बहुत से
नए कहि प्रकाश में अए। कहिताओं के माध्यम से समाज सुधार, देशप्रेम, चररत्र हनमाजण अदद
भािनाओं का प्रचार-प्रसार हुअ।
294
4. पल्लहित = जो हरा भरा एिं लहराता हुअ हो या हिकहसत
5. प्रेरणा = मन में ईत्पन्न होने िाला प्रोत्साहन परक भाि-हिचार
6. योगदान = सहयोग देना
7. िण्यज हिषय = हजस हिषय का िणजन हो रहा हो
8. सूत्रपात = दकसी कायज का अरं भ
9. देशानुराग = ऄपने देश से प्रेम करना
295
II ररि स्थान की पूर्मत कीहजए
1. मैहथलीशरण गुप्त को ...................कहा जाता है।
2. ‘साके त’ में ..............के दुख-ददज को ऄहभव्यि दकया गया है।
3. खड़ी बोली हहदी का पहला महाकाव्य ............है।
III सुमल
े कीहजए
i)मैहथलीशरण गुप्त (ऄ(पहथक
296
आकाइ 20 : मैहथलीशरण गुप्त और राष्ट्रीय-सांस्कृ हतक काव्यधारा
आकाइ की रूपरे खा
20.0 प्रस्तािना
20.1 ईद्देश्य
20.2 मूल पाठ :मैहथलीशरण गुप्त और राष्ट्रीय-सांस्कृ हतक काव्यधारा
20.2.1 मैहथलीशरण गुप्त :व्यहित्ि एिं कृ हतत्ि
20.2.2 राष्ट्रीय-सांस्कृ हतक काव्यधारा
20.2.3 राष्ट्रीय-सांस्कृ हतक काव्यधारा के प्रमुख कहि
20.2.3.1 माखनलाल चतुिेदी
20.2.3.2 हसयारामशरण गुप्त
20.2.3.3 बालकृ ष्ण शमाज ‘निीन’
20.2.3.4 सुभद्राकु मारी चौहान
20.2.3.5 ऄन्य
20.3 पाठ-सार
20.4 पाठ की ईपलहधधयााँ
20.5 शधद संपदा
20.6 परीक्षाथज प्रश्न
20.7 पठनीय पुस्तकें
20.0 प्रस्तािना
हप्रय छात्रो !अधुहनक हशक्षा प्रणाली, हब्ररटश सरकार का हनरं कुश शासन, पराधीनता से
ईत्पन्न दयनीय हस्थहत अदद के कारण भारतीय जनता में राजनैहतक चेतना का हिकास हुअ।
ईनके मन में ‘स्िराज्य’ की भािना प्रबल होती गइ। सहृदय साहहत्यकार ऄपने साहहत्य के
माध्यम से जनता को जागृत करने लगे। राजनैहतक, सामाहजक और अर्मथक दृहि से ईपेहक्षत
हिषयों पर काव्य रचना करने लगे। राष्ट्रीय गौरि ईनके काव्य में प्रबल रूप से ददखाइ देने लगा।
मैहथलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुिेदी, हसयारामशरण गुप्त, बालकृ ष्ण शमाज ‘निीन’,
सुभद्राकु मारी चौहान अदद साहहत्यकारों ने भारतीय जनता को चेताने का काम दकया हजससे
297
ईस युग में राष्ट्रीय-सांस्कृ हतक चेतना की काव्यधारा बह हनकली। आस आकाइ में मैहथलीशरण गुप्त
और राष्ट्रीय-सांस्कृ हतक काव्यधारा पर चचाज की जा रही है।
20.1 ईद्देश्य
आस आकाइ के ऄध्ययन से अप –
मैहथलीशरण गुप्त के व्यहित्ि और कृ हतत्ि के बारे में जान सकें गे।
मैहथलीशरण गुप्त की प्रमुख रचनाओं की हिशेषताओं को समझ सकें गे।
हहदी की राष्ट्रीय-सांस्कृ हतक काव्यधारा की प्रमुख प्रिृहियों से पररहचत हो सकें गे।
राष्ट्रीय-सांस्कृ हतक काव्यधारा के प्रमुख कहियों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकें गे।
298
पालीिाल. हनिेदन .मैहथलीशरण गुप्त रचनािली .खंड 11 .पृ. 71( गुप्त जी की काव्य साधना
का मुख्य ईद्देश्य लोक कल्याण है। ईन्हीं के शधदों में कहें तो ‘ऄर्मपत हो मेरा मनुज काय /बहुजन
हहताय बहुजन हहताय’। देश प्रेम, भारतीय संस्कृ हत, आहतहास का महत्ि, राष्ट्रीयता,
हररजनोद्धार, गांधीिादी हिचारधारा का प्रचार, नारी जागरण अदद ईनके काव्यों के मुख्य
हिषय हैं। ईनका हनधन 12 ददसंबर, 1965 को हुअ था।
जयद्रथ िध (1910(
यह‘ महाभारत ’पर अधाररत खंड काव्य है। यह सात सगों में हिभि है। चक्रव्यूह में
ऄहभमन्यु को छल से मारा जाता है। ऄजुजन जयद्रथ को ईसकी मृत्यु का ईिरदायी मानकर ईसे
मृत्यु-शैया पर हलटाने की प्रहतज्ञा करता है। आसी हिषय को गुप्त जी ने आस खंड काव्य का अधार
बनाया। आसमें जयद्रथ हिदेशी शत्रु का प्रतीक है ,ऄहभमन्यु युिा िीरता का और कृ ष्ण सत्य का
पक्ष लेने िाली भारतीय राजनीहत का।
‘ऄतीत खंड’ में भारत की श्रेष्ठता के बारे में बताते हुए गुप्त जी कहते हैं दक -
संपूणज देशों से ऄहधक दकस देश का ईत्कषज है?
ईसका दक जो ऊहषभूहम है, िह कौन? भारतिषज है।(भारत भारती पृ. 10(
गुप्त जी भारत को संसार का हसरमौर मानते हुए कहते हैं दक
हााँ, िृद्ध भारतिषज ही संसार का हसरमौर है,
ऐसा पुरातन देश कोइ हिश्व में क्या और है? (भारत भारती पृ.10(
299
दकया है। ईस समय पराधीन भारत की अर्मथक हस्थहत दयनीय एिं सोचनीय थी। आसीहलए
कहि भारत से प्रश्न करते हैं दक ‘कहााँ गइ है िह तुम्हारी श्री कहो?’(भारत भारती पृ. 91 (
‘ितजमान खंड’ में हशक्षा की ऄव्यिस्था, ऄंधहिश्वास, िर-कन्या हिक्रय, नशेबाजी अदद कु प्रथाओं
का भी हचत्रण दकया गया है। भारत की दररद्रता पर प्रकाश डालते हुए िे कहते हैं दक
जो ‘स्िणज-भारत’ नाम से संसार में सम्मान्य था;
दाररद्रय दुधजर ऄब िहााँ करता हनरं तर नृत्य है;(भारत भारत पृ. 93(
‘भारत भारती’ की प्रस्तािना में स्ियं गुप्त जी ने हलखा है दक “यह बात मानी हुइ है दक
भारत की पूिज और ितजमान दशा में बड़ा भारी ऄंतर है। ऄंतर न कहकर आसे िैपरीत्य कहना
चाहहए। एक िह समय था दक यह देश हिद्या, कला-कौशल और सभ्यता में संसार का हशरोमहण
था और एक यह समय है दक आन्हीं बातों का आसमें शोचनीय ऄभाि हो गया है। जो अयजजाहत
कभी सारे संसार को हशक्षा देती थी, िही अज पग-पग पर पराया मुाँह ताक रही है। ठीक है
हजसका जैसा ईत्थान, ईसका िैसा ही पतन!”( प्रस्तािना, भारत भारत पृ.4(। गुप्त जी ने आस
काव्य में सामाहजक जीिन और तत्संबंधी अचरण को भी दशाजया है तथा समाज में व्याप्त
कु रीहतयों को दूर करने पर बल ददया है। िे भारतीय जनता को जागृत करते हैं, भहिष्य के हलए
प्रोत्साहहत करते हैं। यथा -‘ऄंतःकरण में गूाँजता राष्ट्रीयता का राग हो’,‘अत्मािलंबन ही हमारी
मनुजता का ममज हो’,‘ईपलक्ष के पीछे कभी हिगहलत न जीिन लक्ष्य हो’। ईनके ऄनुसार
देशभहि के िल ‘भूहम’ तक सीहमत नहीं है। आसीहलए िे कहते हैं -
समझो न भारत-भहि के िल भूहम के ही प्रेम को,
चाहो सदा हनज देशिासी बंधुओं के क्षेम को (भारत भारती पृ.170(
पंचिटी (1925(
गुप्त जी का काव्य ‘पंचिटी’ शूपण ज खा प्रसंग पर अधाररत है। ‘पंचिटी’ के लक्ष्मण को गुप्त
जी ने मात्र कतजव्यहनष्ठ यंत्र के रूप में न ददखाकर ईन्हें आस तरह हचहत्रत दकया है हजनके ऄपने
हनजी सुख-दुख, कोमल और कठोर भाि हैं, जो एकांत में ईनके मानस को झकझोरते हैं। प्रकृ हत
300
के रमणीय दृश्य को देखकर िे ऄपनी हप्रयतमा की स्मृहत में डू ब जाते हैं -
बेचारी ईर्ममला हमारे
हलए व्यथज रोती होगी,
क्या जाने िह, हम सब िन में
होंगे आतने सुख-भोगी! (पद: 30(
लक्ष्मण ऄपने ही हिचारों में डू बे थे। ईसकी तंद्रा को शूपजणखा तोड़ती है। ईससे लक्ष्मण
कहते हैं -
कहाँ मानिी यदद मैं तुमको तो िैसा संकोच कहााँ?
कहाँ दानिी तो ईसमें है यह लािण्य की लोच कहााँ?
िनदेिी समझूाँ तो िह तो होती है भोली-भाली,
तुम्हीं बताओ तो दक कौन हो, हे रं हजत रहस्यिाली। (पद:41(
साके त (1931(
‘साके त’ (1931( रामकथा से संबंहधत अधुहनक महाकाव्य है। आसमें गुप्त जी ने मुख्य रूप
से ईर्ममला के चररत्र को ईभारा है। साथ ही ईन्होंने कै के यी के दोष का हनिारण भी दकया है
तथासुहमत्रा, मांडिी अदद ईपेहक्षत स्त्री पात्रों पर दृहि कें दद्रत की है। यह 12 सगों का महाकाव्य
है। आस कृ हत में राष्ट्रीयता का संकल्प है। साके त (ऄयोध्या( से िन की ओर प्रस्थान करते हुए राम
मातृभूहम को प्रणाम करते हैं। िहााँ राष्ट्रीयता का ही अिह है -‘जन्मभूहम का भाि न ऄब भीतर
रुका।’
मैहथलीशरण गुप्त ने ऄनेक प्रसंगों में समसामहयक राष्ट्रीय अंदोलन को प्रोत्साहहत दकया
है-
हिध्य-हहमाचल-भाल भला झुक जाय न, धीरो,
चंद्र-सूयज कु ल-कीर्मत कला रुक जाय न, िीरो।
चढ़कर ईतर न जाय, सुनो कु ल मौहिक मानी।
गंगा-यमुना-हसधु और सरयू का पानी॥
गुप्त जी भारतीय जनता को ललकारते हैं। िे राष्ट्रीय स्िाहभमान को जगाते हुए कहते हैं -
301
‘भारत लक्ष्मी पड़ी राक्षसों के बंधन में।’
बोध प्रश्न
मैहथलीशरण गुप्त के काव्य का मुख्य संदश
े क्या है?
‘भारत भारती’ के माध्यम से गुप्त जी क्या संदश
े देते हैं?
‘साके त’ को ‘ऄहभनि रामकाव्य’ क्यों कहा जाता है?
302
सांस्कृ हतक जागरूकता जगाइ। हहदी में आससे एक पूरी काव्यधारा ही प्रिाहहत हो गइ हजसे
राष्ट्रीय-सांस्कृ हतक काव्यधारा कहा जाता है। राष्ट्रीय-सांस्कृ हतक काव्यधारा के कहियों ने जनता
को जागृत करने में महत्िपूणज भूहमका हनभाइ। मैहथलीशरण गुप्त ,माखनलाल चतुिेदी ,
सोहनलाल हद्विेदी ,सुभद्रा कु मारी चौहान ,रामनरे श हत्रपाठी ,बालकृ ष्ण शमाज ‘निीन’ ,
हसयारामशरण गुप्त अदद आस धारा के प्रमुख कहि हैं। आस धारा की कु छ प्रमुख प्रिृहियााँ हैं
ऄनुभूहत की सच्चाइ ,ऄतीत का गौरिगान ,मातृभूहम का िणजन, पराधीनता का हचत्रण ,देश की
दुदश
ज ा के प्रहत अक्रोश ,रूदढ़िाद पर प्रहार ,ऄसहयोग की प्रेरणा ,महात्मा गांधी का गुणगान ,
बहलदान की भािना अदद।
1. ऄनुभहू त की सच्चाइ
आस काव्यधारा के कहि मानते थे दक भारतीय समाज में व्याप्त हिषमताओं को दूर करके
ही देश की दुदश ज ा को दूर ददया जा सकता था। आसके हलए सशि जन अंदोलन की अिश्यकता
थी। आस राष्ट्रीय यथाथज की व्यापक ऄनुभूहत आस काव्यधारा की हिशेषता है। यथा -माखनलाल
चतुिेदी कोदकला के बहाने जनता कोईद्बोहधत करते हुए कहते हैं -
क्या ?देख न सकती जंजीरों का गहना?
हथकहड़यााँ क्यों ?यह हब्ररटश राज्य का गहन,
कोल्ह का चरज क चूाँ ?जीिन की तान,
हगिी पर ऄंगुहलयों ने हलक्खे गान ?
(माखनलाल चतुिेदी, कै दी और कोदकला(
2. ऄतीत का गौरिगान
मातृभूहम का गुणगान आस काव्यधारा की कहिता का प्राण है। राष्ट्रीय-सांस्कृ हतक कहियों
ने मातृभूहम का िणजन ऄनेक रूपों में दकया है। ईसके भौहतक संसाधन, प्राकृ हतक सौंदयज,
सांस्कृ हतक गररमा अदद को आस युग की कहिता में देखा जा सकता है। जैसे, मैहथलीशरण गुप्त
कहते हैं -
नीलांबर पररधान हररत तट पर सुंदर है।
सूय-ज चंद्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है॥
नददयााँ प्रेम प्रिाह, िू ल तारे मंडन हैं।
बंदीजन खग-िृंद, शेषिन हसहासन है॥
करते ऄहभषेक पयोद हैं, बहलहारी आस िेष की।
हे मातृभूहम !तू सत्य ही, सगुण मूर्मत सिेश की॥
303
(मैहथलीशरण गुप्त, मातृभूहम(
मातृभूहम के गुणों का िणजन करते हुए मैहथलीशरण गुप्त कहते हैं -
हे मातृभूहम !िसुधा, धरा, तेरे नाम यथाथज हैं॥
क्षमामयी, तू दयामयी है, क्षेममयी है।
सुधामयी, िात्सल्यमयी, तू प्रेममयी है॥
हिभिशाहलनी, हिश्वपाहलनी, दुःखहत्री है।
भय हनिाररणी, शांहतकाररणी, सुखकत्री है॥
हे शरणदाहयनी देहि, तू करती सब का त्राण है।
हे मातृभूहम !संतान हम, तू जननी, तू प्राण है॥
(मैहथलीशरण गुप्त, मातृभूहम(
भारत गौरिशाली राष्ट्र रहा है। यहााँ ऄनेक सभ्यताओं के साथ-साथ हिहिध ज्ञान-
हिज्ञान ,दशजन अदद का ईदय हुअ। ऄपना ऄतीत हनःसंदह े प्रेरणा और प्रोत्साहन का िोत होता
है। आसहलए गुप्त जी ने मातृभूहम का गौरि गान आस प्रकार दकया है -
भू-लोक का गौरि, प्रकृ हत का पुण्य लीला-स्थल कहााँ?
िै ला मनोहर हगरर हहमालय और गंगाजल जहााँ।
संपूणज देशों से ऄहधक दकस देश का ईत्कषज है?
ईसका दक जो ऊहषभूहम है, िह कौन? भारत्िषज है !
(मैहथलीशरण गुप्त, भारत भारती(
3. पराधीनता का हचत्रण
भारत का ऄतीत समृद्ध था। लेदकन 19 िीं शताधदी तक अते-अते ईसकी हस्थहत हबगड़
चुकी थी। पराधीनता के कारण जनता शोषण का हशकार बन रही थी। ऄतीत का स्िगज जैसा
भारत गुलामी के ददनों में नरक समान बन चुका था। समाज में चारों ओर ऄंधहिश्वास और
षड्यंत्र पनप रहे थे। राष्ट्रीय-सांस्कृ हतक काव्यधारा के कहियों ने पराधीन भारत का भी यथाथज
हचत्र प्रस्तुत दकया है। मैहथलीशरण गुप्त ‘साके त’ में ऄंिेज़ शासन की राक्षसों से तुलना करते हुए
सीता के लंका में बंददनी होने की घटना को ऄंिेजों के हाथों भारतमाता के बंददनी होने की
घटना के साथ जोड़ते हुए हलखते हैं -
भारत लक्ष्मी पड़ी राक्षसों के बंधन में
हसधु पार िह हबलख रही? व्याकु ल मन में। (मैहथलीशरण गुप्त, साके त(
ऄंधहिश्वास और संकुहचत मनोिृहि के कारण भारत पतन की ओर ऄिसर हो रहा था।
304
आसीहलए गुप्त जी कहते हैं -
सब ऄंग दूहषत हो चुके हैं, ऄब समाज-शरीर के ,
संसार में कहला रहे हैं हम िकीर लकीर के ।
(मैहथलीशरण गुप्त, भारत भारती(
पराधीन व्यहि की अत्मा कहती है -
तुझे हमली हररयाली डाली
मुझे नसीब कोठरी काली।
तेरा नभ भर में संचार
मेरा दस िु ट का संसार
(माखनलाल चतुिेदी, कै दी और कोदकला(
सुभद्रा कु मारी चौहान पराधीनता से होने िाले किों की ओर भारतिाहसयों की दृहि
अकृ ि करती हैं। िे कहती हैं दक जहलयााँिाला बाग में जो नरसंहार हुअ िह पराधीन देश में ही
हो सकता है -
कोमल बालक मरे यहााँ गोली खा कर,
कहलयााँ ईनके हलए हगराना थोड़ी ला कर।
(सुभद्रा कु मारी चौहान, जहलयााँिाला बाग में बसंत(
5. ऄसहयोग की प्रेरणा
भारतीय स्िाधीनता संिाम में गांधी जी के ऄसहयोग अंदोलन का महत्िपूणज स्थान है।
गांधी जी ऄहहसा पर अधाररत शस्त्रहीन अंदोलन के पक्षधर थे। आसके हलए अत्मशहि की
अिश्यकता होती है। सुभद्रा कु मारी चौहान आसी ऄसहयोग और बहलदान की प्रेरणा देते हुए
कहती है -
हिजहयनी मााँ के िीर सुपत्रु पाप से ऄसहयोग ले ठान।
गुाँजा डालें स्िराज्य की तान और सब हो जािें बहलदान।
305
6. बहलदान की भािना
स्ितंत्रता प्राहप्त हनःस्िाथज बहलदान के हबना संभि नहीं है। जब तक हम मातृभूहम के
हलए मर हमटने के हलए तैयार नहीं होंगे, तब तक पराधीनता की जंजीरों को तोड़ना ऄसंभि है।
बालकृ ष्ण शमाज ‘निीन’ देश के युिकों को यही प्रेरणा देते हुए कहते हैं -
है बहलिेदी ,सखे प्रज्िहलत मााँग रही ईंधन क्षण-क्षण ,
अओ युिक ,लगा दो तो तुम ऄपने यौिन का ईंधन।
भस्मसात हो जाने दो ये प्रबल ईमंगें जीिन की,
ऄरे सुलगने दो बहलिेदी, चढ़ने दो बहल जीिन की।
िस्तुतः राष्ट्रीय-सांस्कृ हतक काव्यधारा के कहियों ने देश की स्िाधीनता के हलए संघषज
दकया और जनता को प्रेररत दकया। ईन्हें ऄटू ट हिश्वास था दक एक ददन देश पराधीनता और
ऄत्याचार के दमन चक्र से ऄिश्य ही मुि होगा।
बोध प्रश्न
राष्ट्रीय-सांस्कृ हतक काव्यधारा की मुख्य हिशेषताएाँ क्या हैं?
आनके प्रमुख कहिता संिह हैं ‘हहमदकरीरटनी’ और ‘हहमतरं हगनी’। आनकी रचनाओं में देश
306
भहि को भलीभााँहत देखा जा सकता है। 1943 में ‘हहमदकरीरटनी’ काव्य संिह पर आन्हें देि
पुरस्कार प्राप्त हुअ। 1954 में ‘हहमतरं हगनी’ के हलए साहहत्य ऄकादमी पुरस्कार से सम्माहनत
दकया गया। ईल्लेखनीय बात है दक यह पुरस्कार प्राप्त करने िाले िे हहदी के प्रथम रचनाकार थे।
बोध प्रश्न
‘िृद्ध’ शीषजक कहिता में हसयारामशरण गुप्त ने क्या संदश
े ददया है?
307
20.2.3.3 बालकृ ष्ण शमाज ‘निीन’
बालकृ ष्ण शमाज ‘निीन ’का जन्म 1897 में ग्िाहलयर के मयाना गााँि में हुअ तथा हनधन
1960 में हुअ था। 1920 में गांधी जी के अह्िान पर पढ़ाइ छोड़कर सदक्रय राजनीहत में
ईतार गए। देश के स्िाधीन होने पर ये पहले लोकसभा और दिर राज्यसभा के सदस्य रहे। कु छ
समय तक ईन्होंने ‘प्रभा’ और ‘प्रताप’ का संपादन भी दकया था। ईनका पहला काव्य संिह है -
‘कुं कु म’(1939( । ईन्होंने ‘ईर्ममला’ महाकाव्य 1934 में पूरा कर हलया था लेदकन आसका 1957
में प्रकाशन हुअ। आसमें ईन्होंने ईर्ममला के माध्यम से भारतीय संस्कृ हत और हब्ररटश
साम्राज्यिाद के हिरुद्ध संघषज ददखाया है। ईनके ऄन्य काव्य संिह हैं -ऄपलक (1951(,
रहश्मरे खा (1951(, क्वाहस (1952(, हिनोबा स्तिन और हम हिषपायी जनम के । हिद्याहनिास
हमश्र ने बालकृ ष्ण शमाज ‘निीन’ को ऄपने ढंग का ऄके ला कहि माना है जो जीिन भर ऄपने
िक्कड़पन और ऄपने स्िाहभमान के हलए सब कु छ न्यौछािर करता रहा। देश की स्ितंत्रता और
स्िस्थ समाज के हनमाजण के हलए ईन्होंने सतत प्रयास दकया।
बोध प्रश्न
बालकृ ष्ण शमाज ‘निीन’ ने ‘ईर्ममला’ महाकाव्य में क्या ददखाया है?
308
देशिाहसयों को प्रेररत करता है “ –अ रही हहमालय से पुकार /है ईदहध गरजता बार-बार /
प्राची पहश्चम भू नभ ऄपार /सब पूछ रहे हैं ददग-ददगंत /-िीरों का कै सा हो िसंत?”
20.2.3.5 ऄन्य
राष्ट्रीय-सांस्कृ हतक काव्याधारा के ऄन्य कहियों में रामनरे श हत्रपाठी, ईदय शंकर भि,
जगन्नाथ प्रसाद हमहलद और रामधारी हसह ‘ददनकर’ भी ईल्लेखनीय हैं। रामनरे श हत्रपाठी
(1889-1960) की रचनाओं में मानसी ,पहथक ,स्िप्न अदद खंडकाव्य शाहमल हैं। ‘पहथक’ का
नायक जनजीिन के िैषम्य को दूर करने के ईद्देश्य से राजतंत्र का हिरोध करता है। आस काव्य में
कहि ने राष्ट्रसेिा का अदशज स्थाहपत दकया है। ईन्होंने ‘स्िप्न’ के माध्यम से समाज हिरोधी
शहियों के हिरुद्ध संघषज करने की प्रेरणा दी। भारत की सांस्कृ हतक गुण-गाथा की ऄहभव्यहि
‘तक्षहशला’ (ईदय शंकर भि) का मुख्य ईद्देश्य है। ‘जीिन संगीत’ (जगन्नाथ प्रसाद हमहलद( में
सांस्कृ हतक गौरि, राष्ट्रीय चेतना और बहलदान की भािना को ऄहभव्यि करने िाली कहिताएाँ
संकहलत हैं। रूदढ़यों के प्रहत हिद्रोह, नियुग की स्िू र्मत और ओजहस्िता की दृहि से ‘रे णुका’
(रामधारी हसह ‘ददनकर’( की कहिताएाँ ईल्लेखनीय हैं। राष्ट्रीय-सांस्कृ हतक काव्याधारा को गहत
प्रदान करने में ‘राष्ट्रीय मंत्र’ (गयाप्रसाद शुक्ल सनेही,( ‘ज्िाला’ (के दारनाथ हमश्र
प्रभात(,‘कांिेस शतक’ (महेशचंद्र प्रताप( अदद कृ हतयों का भी महत्िपूणज स्थान है।
बोध प्रश्न
रामनरे श हत्रपाठी के काव्यों की हिषय िस्तु दकस बारे में है?
20.3 पाठ-सार
मैहथलीशरण गुप्त को ‘राष्ट्रकहि’ का सम्मान प्राप्त है। ईन्होंने काव्य क्षेत्र में हद्विेदी युग
और ईसके बाद लंबे समय तक सामाहजक और राष्ट्रीय चेतना से संपन्न कृ हतयों की रचना की।
ईनकी काव्य कृ हतयों में जयद्रथ िध, भारत भारती, पंचिटी और साके त जैसी ऄनेक कालजयी
रचनाएाँ शाहमल हैं। हद्विेदी युग में हहदी में राष्ट्रीय-सांस्कृ हतक काव्यधारा का ईदय हुअ, हजसका
प्रिाह अगे छायािाद और प्रगहतिाद युग तक ऄबाध रूप से चलता रहा। गुप्त जी के ऄहतररि
आस काव्यधारा को पुि बनाने में माखनलाल चतुिेदी, हसयारामशरण गुप्त, बालकृ ष्ण शमाज
निीन और सुभद्रा कु मारी चौहान जैसे रचनाकारों का योगदान हिशेष स्मरणीय है।
309
20.4 पाठ की ईपलहधधयााँ
खंड (ब(
310
2. ‘साके त’ को ‘ऄहभनि रामकाव्य’ क्यों कहा जाता है? स्पि कीहजए।
3. ‘भारत भारती’ के मूल चेतना पर प्रकाश डाहलए।
4. माखनलाल चतुिेदी पर रटप्पणी हलहखए।
खंड (स(
I सही हिकल्प चुहनए
1. ‘हबखरे मोती’ के रचनाकार कौन हैं? ( (
(ऄ(माखनलाल चतुिेदी (अ(सुभद्राकु मारी चौहान
(आ(मैहथलीशरण गुप्त (इ(सोहनलाल हद्विेदी
2. साहहत्य ऄकादमी पुरस्कार प्राप्त करने िाले हहदी के प्रथम रचनाकार कौन हैं? ( (
(ऄ(माखनलाल चतुिेदी (अ(सुभद्राकु मारी चौहान
(आ(मैहथलीशरण गुप्त (इ(सोहनलाल हद्विेदी
3. ‘पहथक’ के रचनाकार कौन हैं? ( (
(ऄ(के दारनाथ हमश्र प्रभात (अ(ददनकर
(आ(रामनरे श हत्रपाठी (इ(गयाप्रसाद शुक्ल सनेही
311
खंड-VI : अधुहनक काल : गद्य हिधाएाँ
आकाइ की रूपरे खा
21.0 प्रस्तािना
21.1 ईद्देश्य
21.2 मूल पाठ : हहदी नाटक :ईद्भि और हिकास
21.2.1 नाटक :ऄथज और पररभाषा
21.2.2 हहदी नाटक का हिकास क्रम
21.2.2.1भारतेंदु युगीन हहदी नाटक
21.2.2.2 प्रसाद युगीन हहदी नाटक
21.2.2.3 प्रसादोिर हहदी नाटक
21.3 पाठ-सार
21.4 पाठ की ईपलहधधयााँ
21.5 शधद संपदा
21.6 परीक्षाथज प्रश्न
21.7 पठनीय पुस्तकें
21.0 प्रस्तािना
हप्रय छात्रो !अप जानते हैं दक हहदी साहहत्य के अधुहनक काल में गद्य का चहुाँमुखी
हिकास हुअ। गद्य की हिधाओं में नाटक बहुत पुरानी हिधा है। भरतमुहन के नाट्यशास्त्र से पता
चलता है दक भारत में नाटक साहहत्य और ईसके रं गमंच पर ऄहभनय की परं परा इसा से कइ सौ
िषज पहले से हमलती है। नाटक मुख्यतः देखे जाने के हलए रचे जाते थे, ऄतः आन्हें ‘दृश्य काव्य’
कहा जाता है। भारतेंदु युग में यह हिधा सामाहजक हिषयों से जुड़कर लोकहप्रय बनी।
21.1 ईद्देश्य
हप्रय छात्रो !आस आकाइ के ऄध्ययन के पश्चात अप –
312
नाटक के ऄथज और पररभाषा से पररहचत हो सकें गे।
हहदी नाटक के ईद्भि के बारे में जान सकें गे।
हहदी नाटक के हिकास क्रम से पररहचत हो सकें गे।
हहदी नाटककारों के योगदान के बारे में जान सकें गे।
313
आसके सभी तत्ि कहिता, कहानी, ईपन्यास, हनबंध अदद के तत्िों से ऄहधक महत्िपूणज तथा
प्रभािशाली हसद्ध होते हैं। नाटकों में कथािस्तु का क्रहमक हिकास बहुत ही स्पिता से ददखाया
जाता है। िैसा ऄन्य हिधाओं में नहीं पाया जाता। आसका कारण यह है दक नाटकीय कथा को
ऄनेक दृश्यों में ददखाया जाता है। आन हिशेषताओं के अधार पर अचायज हिश्वनाथ ने हलखा है
दक -‘नाटक िह कृ हत है - (1( हजसकी कथािस्तु आहतहास-पुराण प्रहसद्ध हो, (2( हजसमें ऄनेक
प्रकार के ऐश्वयों का िणजन हो, (3( हजसमें ऄंक संख्या 5 से 10 तक हो, (4( हजसका नायक ईच्च
िगज में ईत्पन्न धीर, िीर, साहसी और प्रतापी हो, (5( हजसमें प्रधान रस िीर ऄथिा शृंगार हो
तथा ऄन्य रस सहायक हों, (6( हजसमें संिाद अदद का ईहचत समािेश हो। ’
ितजमान समय में आस पररभाषा में कािी बदलाि अ चुका है, तो भी आसे शास्त्रीय दृहि
से नाटक की पररपूणज पररभाषा कहा जा सकता है। कु ल हमलाकर, नाटक साहहत्य ईस हिधा का
नाम है हजसमें दकसी लोकिृि के पात्रों को ऄहभनय तथा संिादों के माध्यम से रं गमंच पर
प्रस्तुत दकया जाता है। डॉ .दशरथ ओझा के शधदों में “जब लोगों की दक्रयाओं का ऄनुकरण ऄनेक
भािों और ऄिस्थाओं से पररपूणज होकर दकया जाए तो िह नाटक कहलाता है। ”स्पि है दक
नाटक का मूल तत्ि ईनकी मंचीयता है, क्योंदक नाटक एक दृश्यकाव्य है। ऄतः नाटक का रं गमंच
पर खेला जाना अिश्यक होता है।
संस्कृ त नाट्यशास्त्र में नाटक के तीन तत्िों की चचाज हमलेगी
1. कथािस्तु,
2. नायक तथा
3. रस।
लेदकन ितजमान काल में नाटक के सात प्रमुख तत्ि स्िीकृ त हैं -
1. कथानक या कथािस्तु
2. पात्र और चररत्र हचत्रण
3. संिाद या कथोपकथन
4. देशकाल िातािरण
5. भाषा-शैली
6. ईद्देश्य या संदश
े
7. ऄहभनेयता या रं गमंच
बोध प्रश्न
भरतमुहन द्वारा बताए गए नाटक के तीन लक्षण क्या हैं?
314
ितजमान में नाटक के स्िीकृ त तत्ि क्या हैं?
नाटक की प्रासंहगकता का क्या अधार है ?
इस्ट आं हडया कं पनी के समय ऄंिेजों ने बंबइ, मद्रास, कोलकाता जैसे बड़े-बड़े शहरों में
मनोरं जन के हलए नाटक कें द्रों की स्थापना की थी। तथा भारत के हशहक्षत िगज का ध्यान नाटक
की ओर अकृ ि दकया गया। िोटज हिहलयम कालेज में शकुं तला नाटक के कइ ऄनुिाद दकए गए
तथा शेक्सपीयर के नाटकों का भी प्रचार होने लगा।
हहदी नाटक के आहतहास को ऄध्ययन की सुहिधा के हलए हिहभन्न िगों में िगीकृ त दकया
गया है। अगे ईनका हििेचन दकया जा रहा है।
बोध प्रश्न
हहदी नाटक की हिकास यात्रा भारतेंदु युग से क्यों माना जाता है?
315
भारतेंदु हररश्चंद्र ने भी बहुत सारे नाटकों का ऄनुिाद दकया जैसे -‘हिद्यासुंदर’। यह संस्कृ त के
‘चौर पंचाहशका’ के बंगला संस्करण का ऄनुिाद है। ‘रत्नािली’ नाटक का 1868 में संस्कृ त से
ऄनुिाद दकया गया है। ‘धनंजय हिजय’ नाटक का 1873 में संस्कृ त से ऄनुिाद दकया गया है।
‘कपूजर मंजरी’ भी संस्कृ त से ऄनूददत नाटक है। 1872 इ. में प्रकाहशत पाखंड हिडंबन तथा
1878 इ .में प्रकाहशत मुद्राराक्षस भी संस्कृ त नाटकों के ऄनुिाद हैं। 1880 में प्रकाहशत ‘दुलजभ
बंध’ु ऄंिेजी से ऄनूददत नाटक है।
ऄनूददत नाटकों के ऄहतररि भारतेंदु ने बहुत से मौहलक नाटकों की भी रचना की। जैसे
िैददकी हहसा हहसा न भिहत (1875(, सत्य हररश्चंद्र (1875(, श्री चंद्रािली (1876(, हिषस्य
हिषमौषधम् (1876(, भारत दुदश
ज ा (1880(, नील देिी (1881(, ऄंधरे नगरी (1881(, सती
प्रताप (1883(, प्रेम जोहगनी (1875( और भारत जननी (1977( अदद।
भारतेंदु के मौहलक नाटकों की हिषयिस्तु में बहुत हिहिधता पाइ जाती है। ईन्होंने
हभन्न-हभन्न हिषयों को लेकर नाटकों की रचना की। दकसी नाटक में पशुबहल का हिरोध है ,तो
दकसी में देसी राजाओं की दुदश
ज ा का हचत्रण दकया गया है। ईनके नाटक ‘भारत दुदश
ज ा’ में ऄंिेजी
राज्य में भारत की दुदश
ज ा का िणजन दकया गया है तथा ‘नील देिी’ में भारतीय नारी के अदशज
को प्रहतपाददत दकया गया है। ‘ऄाँधेर नगरी’ में भ्रि शासन व्यिस्था का िणजन दकया गया है।
भारतेंदु के नाटकों में समाज को सुधारने पर बल ददया गया है तथा लोगों में राष्ट्र के प्रहत
प्रेम जागृत करने का प्रयास दकया गया है। ऄहधकतर नाटकों में देश प्रेम की बात कही गइ है।
भारतेंदु ने ऄपने नाटकों के माध्यम से ईस युग की समस्याओं को लोगों तक पहुाँचाने का काम
दकया है। ईनके नाटक जनकल्याण की भािना से भरे हुए हैं। ईनमें एक सीमा तक
ईपदेशात्मकता भी है। िे ऄपने ऐहतहाहसक नाटकों द्वारा भारत की सभ्यता और संस्कृ हत को
प्रदर्मशत करना चाहते थे। ईन्होंने ऄपने समय के दशजकों की रुहच को बदलना चाहा और नाटक
साहहत्य का शुद्ध रूप दशजकों को ददखाना चाहा। दरऄसल ,िे िारसी हथयेटर की व्यािसाहयक
मनोिृहि से ईत्पन्न हीन रुहचयों, दृश्यों एिं गीतों के प्रबल हिरोधी थे। ईन्होंने हहदी नाटक को
संस्कृ त और पाश्चात्य नाट्यकला की प्रमुख हिशेषताओं के पथ पर चलाने का प्रयास दकया।
भारतेंदु युग में बहुत से नाटककार हुए। ईनमें कु छ प्रमुख नाम हैं -लाला श्रीहनिासदास,
राधाकृ ष्ण दास, बालकृ ष्ण भि, राधाचरण गोस्िामी, गोपालराम गहमरी, दकशोरीलाल
गोस्िामी, प्रतापनारायण हमश्र एिं जी.पी.श्रीिास्ति अदद।
लाला श्रीहनिासदास भारतेंदु युग के प्रमुख नाटककारों में माने जाते हैं। आन्होंने चार
नाटकों की रचना की ,हजनके नाम हैं - श्री प्रह्लाद चररत, तप्ता संिरण, रणधीर प्रेममोहहनी
316
और संयोहगता स्ियंिर।
राधाकृ ष्णदास आस युग के ऄन्य लोकहप्रय नाटककार हैं। ईनके मुख्य नाटक हैं -महारानी
पद्मािती, धमाजलाप, महाराणा प्रताप तथा दुःहखनीबाला। ‘महाराणा प्रताप’ को ईनका सिजश्रेष्ठ
नाटक माना जाता है।
बालकृ ष्ण भि सामाहजक कु रीहतयों पर व्यंग्य करने िाले आस युग के प्रमुख नाटककार
माने जाते हैं। आनके प्रहसद्ध नाटकों के नाम हैं -दमयंती स्ियंिर, बृहन्नला, िेणीसंहार, कहलराज
की सभा, हशक्षा दान, रे ल का हिकट खेल, बाल हििाह अदद।
राधाचरण गोस्िामी आस युग के प्रहसन हलखने िाले प्रमुख नाटककार हैं। आनके मुख्य
प्रहसनों के नाम हैं -तन मन धन गोसाइ जी के ऄपजण, बूढ़े मुाँह मुहााँस-े लोग देखें तमाशे। आनमें
प्रथम नाटक में धमजगुरुओं की पोल खोली गइ है। आन्होंने ऐहतहाहसक नाटकों की भी रचना की
है।
गोपाल राम गहमरी सामाहजक हिषयों को लेकर नाटक हलखने िाले प्रमुख नाटककार
हैं। ईनके प्रमुख नाटकों में ‘जैसे को तैसा’ तथा ‘हिद्या हिनोद’ व्यंग्यात्मक नाटक हैं।
जे .पी .श्रीिास्ति भी भारतेंदु युग के प्रमुख नाटककार हैं। ईन्होंने बहुत सारे प्रहसनों की
रचना की है। जैस,े ईलटिे र, दुमदार अदमी, गड़बड़झाला अदद। आनके नाटकों में समाज में
व्याप्त कु रीहतयों तथा गलत परं पराओं को ददखाने का प्रयास दकया गया है।
बोध प्रश्न
भारतेंदु के मौहलक नाटकों की हिषयिस्तु क्या है?
‘भारत दुदश
ज ा’ और ‘नील देिी’ में भारतेंदु ने क्या प्रहतपाददत दकया है?
317
भारतेंदु युगीन नाटकों में हनहहत व्यंग्य का क्या ईद्देश्य था?
318
शास्त्री,पांडय
े बेचन शमाज ‘ईि’ अदद।
हररकृ ष्ण प्रेमी (1908-1974) प्रसाद युग के प्रमुख नाटककार माने जाते हैं। आन्होंने
ऄपने नाटकों में हहदु-मुहस्लम एकता को ददखाने का प्रयास दकया। आन्होंने बहुत सारे ऐहतहाहसक
नाटकों की भी रचना की। प्रेमी जी के नाटक राष्ट्रीयता तथा देशभहि की भिाना से ओतप्रोत हैं।
आनके मुख्य नाटक हैं -रक्षाबंधन, िाहशिसाधना, प्रहतशोध, स्िप्नभंग अदद।
सेठ गोहिददास (1896-1974) ने ऄपने नाटकों में समकालीन समस्याओं -छु अछू त ,
भ्रिाचार ,पाखंड ,नेताओं की स्िाथजपरता -अदद का िणजन दकया है। आनका अदशजिादी नाटकों
की रचना करने िालों में महत्िपूणज स्थान है। सेठ गोहिददास ने कु छ ऐहतहाहसक नाटकों की भी
रचना की। आनके मुख्य नाटक हैं -प्रकाश ,स्िातंत्र्य ,हसद्धांत ,सेिापथ ,संतोष कहााँ ,त्याग और
िहण ,हषज कु लीनता ,ऄशोक ,शेरशाह अदद।
गोहिदिल्लभ पंत (1887-1961( प्रसाद युग के श्रेष्ठ नाटककार माने जाते हैं। ईनके कु छ
मुख्य नाटक हैं ऄंगरू की बेटी तथा हसदूर की हबदी। ईन्होंने ऐहतहाहसक नाटकों की भी रचना
की है।
प्रसाद युगीन नाटककारों में ईपेंद्रनाथ ऄश्क (1910-1996) का नाम सम्मान के साथ
हलया जाता है। ईनके नाटकों में नारी मन का हचत्रण दकया गया है। ईनके मुख्य नाटक हैं -स्िगज
की झलक, छठा बेटा, ऄलग-ऄलग रास्ते, ऄंजो दीदी, ऄंधी गली, कै द, ईड़ान एिं जय-पराजय
अदद। ईन्होंने कु छ ऐहतहाहसक नाटकों की भी रचना की। जय-पराजय ऄश्क जी का ऐहतहाहसक
नाटक है।
ईदयशंकर भि (1898-1966) प्रसाद युग के प्रहसद्ध नाटककार माने जाते हैं। ईन्होंने
समस्यामूलक एिं ऐहतहाहसक दोनों प्रकार के नाटकों की रचना की है। आनके मुख्य नाटक हैं -
ऄम्बा, सागर हिजय, शक हिजय, मुहिपथ अदद।
319
हनरूपण दकया गया है। आनके मुख्य नाटक हैं -राखी की लाज, सगुन, नीलकं ठ, के िट अदद।
िमाज जी ने कु छ ऐहतहाहसक नाटकों की भी रचना की है।
प्रसाद युग में नाटकों का मुख्य हिषय समाज सुधार होता था। बाल हििाह, ऄनमेल
हििाह, छु अछू त, नारी स्ितंत्रता, धार्ममक ऄंधहिश्वास अदद समस्याओं का हचत्रण आस समय के
नाटकों में दकया गया है। सामाहजक चेतना और आहतहास बोध की दृहि से प्रसाद युग में हहदी
नाटक ऄत्यंत ईच्च हशखर पर पहुाँच गया था।
बोध प्रश्न
जयशंकर प्रसाद के संबंध में गोपाल राय ने क्या कहा?
जयशंकर प्रसाद के नाटकों की क्या हिशेषता है?
प्रसाद युग में नाटकों का मुख्य हिषय क्या था?
प्रसादोिर नाटककारों में हिष्णु प्रभाकर, जगदीश चंद्र गुप्त, धमजिीर भारती,
लक्ष्मीनारायण लाल, रामकु मार िमाज, मोहन राके श, नरे श मेहता, हिनोद रस्तोगी, सुरेंद्र िमाज,
मुद्राराक्षस, नरें द्र कोहली, हगररराज दकशोर, डॉ .हशिप्रसाद हसह अदद नाम मुख्य हैं।
आस युग के प्रमुख नाटककारों में हिष्णु प्रभाकर (1912-2009) का नाम ऄिणी है।
320
आन्होंने ऄपने नाटकों में अधुहनक युग में जीिन में व्याप्त तनाि के कारण जो समस्याएाँ अती हैं
ईनका िणजन दकया है। आनके नाटकों में मनोिैज्ञाहनकता का पुट पाया जाता है। आनके प्रहसद्ध
नाटक हैं -डॉक्टर, युग-े युगे क्रांहत, टूटते पररिेश अदद।
जगदीश चंद्र माथुर (1917-1978) भी आस युग के प्रमुख नाटककार हैं। ईन्होंने ऄपने
नाटकों को नइ ददशा देने का प्रयास दकया। आनके नाटक अधुहनक बोध के नाटक हैं। आनके मुख्य
नाटक कोणाकज , शारदीया, पहला राजा तथा दशरथ नंदन हैं।
अधुहनक काल के युग प्रितजक नाटककारों में भारतेंदु हररश्चंद्र और जयशंकर प्रसाद के
बाद मोहन राके श का नाम सिाजहधक महत्िपूणज है। आनके नाटक हशल्प की दृहि से बेजोड़ हैं तथा
रं गमंच पर ये बहुत ऄहधक सिल हुए हैं। मोहन राके श (1925-1972) का नाम अधुहनक काल
के बहुचर्मचत नाटककारों में हलया जाता है। िैसे तो ईन्होंने के िल तीन नाटकों की ही रचना की
थी तथाहप संख्या में कम होने पर भी ईनके नाटक हहदी साहहत्य में ऄपना महत्िपूणज स्थान
रखते हैं। आनके प्रहसद्ध नाटक हैं -अषाढ़ के एक ददन (1958(, लहरों के राजहंस (1963(तथा
अधे-ऄधूरे (1969(। रं गमंच की दृहि से मोहन राके श के नाटक बहुत ही सिल हैं। आनके नाटकों
का हशल्प हिधान भी बहुत सुंदर है। सभी दृहियों से आनके नाटक रं गमंच पर सिलतापूिजक
ऄहभनीत करने योग्य हैं।
आस युग में और भी बहुत से नाटककार हैं जैसे सुरेंद्र िमाज, शंकर शेष, मुद्राराक्षस, सिेश्वर
दयाल सक्सेना, मन्नू भंडारी, भीष्म साहनी अदद। ऄतः हहदी नाटक की हिकास यात्रा को
देखकर यह कहा जा सकता है दक समय के हिकास के साथ-साथ नाटक की हिषयिस्तु और
रं गमंचीयता में बदलाि अ रहा है।
अरं भ में ऄहधकतर ऐहतहाहसक नाटकों की रचना हुइ ,ककतु अज ईनका हिषय बदल गया है।
321
अज समसामहयक हिषयों को लेकर नाटकों की रचना की जाती है। यह भी ईल्लेखनीय है दक
ऄन्य माध्यमों के हिस्तार और प्रखर के कारण अज नाटकों का प्रचलन कु छ कम हुअ है। अज
आनके दशजक कम हमलते हैं। आसके बािजूद यह कहा जा सकता है दक अज का हहदी नाटक ऄपनी
भारतीय परं परा से जुड़ा हुअ है और अज की समस्याओं को ईजागर करने की एक सशि हिधा
के रूप में हिकास कर रहा है।
बोध प्रश्न
प्रसादोिर हहदी नाटकों की तीन हिशेषताएाँ बताआए?
21.3 पाठ-सार
नाटक, साहहत्य की सबसे महत्िपूणज हिधा मानी जाती है। आसे पंचमिेद के नाम से जाना
जाता है। रं गमंच नाटक के हलए बहुत महत्िपूणज होता है। श्रव्य एिं दृश्य काव्यों में नाटक को
श्रेष्ठ समझा जाता है।संस्कृ त साहहत्य में नाटक का मुख्य ईद्देश्य अनंदप्राहप्त बताया गया है। भरत
मुहन ने कहा है दक नाटक की कथािस्तु देिता, मनुष्य, राजा और महात्माओं के पूिजिि ृ का
ऄनुकरण होती है। अचायज रामचन्द्र गुणचन्द्र ने नाटक के लक्षण बताते हुए कहा है दक प्रहसद्ध
अद्य-चररत्र का ऐसा िणजन जो धमज, काम एिं ऄथज का प्रदाता हो तथा ऄंकों और ऄिस्थाओं में
बंटा हो, नाटक है। अरं भ में नाटक को दृश्य काव्य माना जाता था। लेदकन अज िह दृश्य, श्रव्य
और पाठ्य तीनों स्िरूपों में साहहत्य में सहम्महलत है।
हहदी साहहत्य के आहतहास पर हनगाह डालने से पता चलता है दक नाटक अधुहनक काल
की निीन हिधा है, जो बड़ी हद तक ऄंिेज़ी नाट्य साहहत्य के मानदंडों पर अधाररत है। यह
ऄलग बात है दक हहदी के प्रारहम्भक नाटकों में संस्कृ त अचायों के नाट्य संबंधी मतों का यदा
कदा पालन ददखाइ देता है। ऄंिेज़ी साहहत्य में नाट्य रचना का प्रारम्भ रहस्य कथाओं से हुअ।
आसके बाद ईपदेशात्मक नाटक रचे गए। अगे चलकर मानिीय यथाथज पर अधाररत शुद्ध नाटक
का ईदय हुअ। अधुहनक हहदी नाटक मानि समुदाय के कल्याण की भािना और यथाथज के
हिहिध रूपों पर ही अधाररत हैं।
यहााँ यह भी कहना ज़रूरी है दक हहदी नाटक के ईदय और हिकास में एक से ऄहधक
प्रिृहियों का योगदान है। जैसे पारसी हथएटर और कठपुतहलयों के नाच ने हहदी नाटक के ईदय
को प्रेररत दकया। तो भारतीय नाट्य परं परा और तत्कालीन राष्ट्रीय चेतना ने भी ईस पर गहरा
ऄसर डाला। स्ियं भारतेन्दु हररश्चंद्र और ईनके समकालीन नाटककार कहीं कहीं पारसी
कं पहनयों के हिरोध में भी खड़े ददखाइ देते हैं। कहना ईहचत होगा दक हहदी नाटक का अरं हभक
हिकास भारत की समस्याओं को कें द्र में रखकर स्ितंत्र रूप से हुअ। संरचना की दृहि से ऄंिेज़ी
नाटकों का प्रभाि भी साि ददखाइ देता है। आसी के िलस्िरूप भारतेन्दु के ‘नीलदेिी’ से हहदी में
322
दुखांत नाटक(ट्रेजेडी( का भी सूत्रपात हुअ।
हहदी में अधुहनक नाटक हलखने की शुरूअत भारतेंदु हररश्चंद्र से ही मानी जाती है।
ईनसे पहले जो भी नाटक हलखे गए ईनमें नाटक के तत्िों की दृहि से कु छ-न-कु छ ऄधूरापन
पाया जाता है। हहदी नाटक के हिकास को तीन युगों में बााँट सकते हैं -भारतेंदु युग, प्रसाद युग
और प्रसादोिर युग।
भारतेंदु युग में मौहलक और ऄनूददत दोनों प्रकार के नाटकों की रचना की गइ। भारतेंदु
ने स्ियं बहुत से नाटकों का ऄनुिाद दकया। आस समय मुख्यतः बंगला, संस्कृ त तथा ऄंिेजी
भाषाओं के नाटकों का ऄनुिाद हहदी में भारतेंदु ने दकया। आस समय के नाटकों में भारतेंदु ने
सुधारिादी दृहिकोण के साथ-साथ राष्ट्रीय चेतना की बात भी कही तथा आस युग की समस्याओं
को भी नाटकों के माध्यम से जनता तक पहुाँचाने का प्रयास दकया। भारतेंदु युग हहदी नाटकों के
हिकास का प्रथम सोपान कहा जा सकता है तथा भारतेंदु आस युग के प्रमुख नाटककार माने जाते
हैं। भारतेंदु काल के ऄन्य नाटककारों में प्रमुख हैं -लाला श्रीहनिास दास, राधाकृ ष्ण दास,
बालकृ ष्ण भि, राधाचरण गोस्िामी, गोपालराम गहमरी, प्रतापनारायण हमश्र अदद।
भारतेंदु जी ने हहदी नाट्य साहहत्य को साहहत्य की प्रमुख हिधा का दजाज ददया और बाद
में ईसे जयशंकर प्रसाद ने पल्लहित दकया। प्रसाद जी ऐहतहाहसक नाटकों की रचना करने िाले
हहदी के प्रमुख नाटककार हैं। ईन्होंने ऄपने नाटकों में राष्ट्रीयता की भािना ईत्पन्न करने का
प्रयास दकया है। प्रसाद के ऐहतहाहसक नाटकों में मुख्य हैं -हिशाख ,ऄजातशत्रु ,राज्यश्री ,
स्कं दगुप्त ,ध्रुिस्िाहमनी ,जनमेजय का नागयज्ञ अदद। प्रसाद के नाटक नाट्य हशल्प की दृहि से
बहुत बेजोड़ है। तत्कालीन रं गमंच पर प्रसाद जी के नाटक बहुत सिल नहीं हो सकें ,ककतु
अधुहनक तकनीक अने पर ऄब ईनकी रं गमंच के हलए ईपयुिता भी स्थहगत हो चुकी है। ऄतः
हम कह सकते हैं दक प्रसाद आस युग के श्रेष्ठतम ऐहतहाहसक नाटककार है। प्रसाद युग के ऄन्य
नाटककार हैं -हररकृ ष्ण प्रेमी ,लक्ष्मीनारायण हमश्र ,सेठ गोहिददास ,गोहिद बल्लभ पंत ,
ईपेंद्रनाथ ऄश्क ,िृंदािनलाल िमाज ,दकशोरीलाल िाजपेयी ,पांडय
े बेचन शमाज ‘ईि’ अदद।
प्रसाद युग के नाटकों में समाज सुधार की प्रिृहि प्रमुख है। आन नाटकों में बाल हििाह ,
ऄनमेल हििाह ,नारी स्ितंत्रता ,छु अछू त जैसी ऄनेक समस्याओं को दशाजया गया है। साथ ही,
आस समय ऐहतहाहसक नाटकों पर भी हिशेष ध्यान ददया जाता था।
प्रसादोिर नाटकों में नए भािबोध का प्रारं भ 1950 इ .से माना जाता है। आस समय के
नाटकों में समकालीन जीिन के यथाथज का हचत्रण दकया गया है। प्रसादोिर युग के नाटकों में
अधुहनक समाज में व्याप्त जो बुराआयों को नाटकों की हिषयिस्तु बनाया गया। देश में स्ितंत्रता
के ईपरांत एक नइ चेतना का हिकास हुअ। आसके ऄलािा अजादी से अम जनता की जो
323
ऄपेक्षाएाँ थीं, िे भी पूरी नहीं हुईं। ऄतः लोगों के बीच अक्रोश पनपने लगा। आन सभी हिषयों
को लेकर आस समय नाटकों की रचना की गइ। आस समय के मुख्य नाटककारों में हिष्णु प्रभाकर ,
जगदीशचंद्र माथुर ,धमजिीर भारती ,रामकु मार िमाज ,मोहन राके श ,नरे श मेहता ,हिनोद
रस्तोगी ,सुरेंद्र िमाज ,शंकर शेष अदद प्रमुख हैं।
स्िातंत्र्योिर काल में हहदी नाटक का हिकास ऄन्य हिधाओं की तुलना में कम गहत से
होता ददखाइ देता है। आसका कारण है दक हहदी रं गमंच के हलए ऄभी भी दशजक का ऄभाि है।
नाटक का स्थान हसनेमा तथा टीिी ने ले हलया है।
324
2. ईन्नायक = ईन्नहत की ओर ले जाने िाला
3. दृश्य काव्य = ऄहभनेय काव्य
4. प्रासंहगकता = ईपयुिता, साथजकता
5. युग प्रितजक = युग को गहत देने िाला
खंड (ब(
हनम्नहलहखत प्रश्नों के ईिर लगभग 200 शधदों में दीहजए।
1. नाटक के ऄथज एिं पररभाषा को समझाते हुए ईनका संहक्षप्त पररचय दीहजए।
2. भारतेंदु के नाट्य कला पर प्रकाश डाहलए।
3. प्रसादोिर युग का संहक्षप्त पररचय दीहजए।
खंड (स(
I सही हिकल्प चुहनए
1. ‘जानकी मंगल’ के रचनाकार कौन हैं? ( (
(ऄ(िृंदािनलाल िमाज (अ(शीतलाप्रसाद हत्रपाठी(आ(धमजिीर भारती(इ(हरीशंकर प्रेमी
2. ‘नीलकं ठ’ के रचनाकार कौन हैं? ( (
(ऄ( िृंदािनलाल िमाज (अ( शीतलाप्रसाद हत्रपाठी (आ(धमजिीर भारती (इ( हरीशंकर प्रेमी
III सुमल
े कीहजए
i) नाट्यशास्त्र (ऄ(जयशंकर प्रसाद
ii) नहुष (अ( धमजिीर भारती
iii) ऄंधा युग (आ(गोपालचंद हगररधर दास
326
आकाइ 22 : हहदी हनबंध :ईद्भि और हिकास
आकाइ की रूपरे खा
22.0 प्रस्तािना
22.1 ईद्देश्य
22.2 मूल पाठ :हहदी हनबंध :ईद्भि और हिकास
22.2.1 हनबंध :ऄथज और पररभाषा
22.2.2 हहदी हनबंध का हिकास क्रम
22.2.2.1 भारतेंदु युग
22.2.2.2 हद्विेदी युग
22.2.2.3 शुक्ल युग
22.2.2.4 शुक्लोिर युग
22.3 पाठ-सार
22.4 पाठ की ईपलहधधयााँ
22.5 शधद संपदा
22.6 परीक्षाथज प्रश्न
22.7 पठनीय पुस्तकें
22.0 प्रस्तािना
हनबंध गद्य की अधुहनक हिधा है। आसमें लेखक दकसी भी हिषय पर ऄपने हिचारों को
स्िच्छंद रूप में व्यि कर सकता है। आसमें सारी रचना एक सूत्र में बंधी हुइ प्रतीत होती है।
हनबंध का अरं भ भी भारतेंदु युग से ही हुअ था। आस काल में भारतीय समाज में एक नइ चेतना
का हिकास हो रहा था। पढ़े-हलखे लोग ऄपने हिचारों को स्िच्छंदतापूिजक व्यि करने लगे थे।
आस समय तक हहदी की ऄनेक पत्र-पहत्रकाएाँ प्रकाहशत होने लगी थीं। आनमें हिहिध हिषयों पर
जो हिचार व्यि दकए जाते थे। ईन्हें हहदी हनबंध का प्रारं हभक रूप कहा जा सकता है। भारतेंदु
युग के हनबंधकारों ने सामान्य ही नहीं बहल्क गंभीर हिषयों पर भी कलम चलाइ। सामाहजक
एिं राजनीहतक गहतहिहधयों पर स्िच्छंद रूप से हिचार व्यि करते हुए आन लेखकों ने हहदी
हनबंध हिधा को हिकास के पथ पर ऄिसर दकया।
327
22.1 ईद्देश्य
‘हनबंध ’शधद संस्कृ त साहहत्य से हहदी में हलया गया है। आसका ऄथज है एकत्र करना ,
जोड़ना ,बााँधना ,संगठन करना ,रोकना अदद। प्राचीन काल में प्रेस ऄथिा मुद्रणालय नहीं थे।
ईस समय ऊहष मुहन ऄपने हिचार भोज पत्रों पर हलखते थे। आन भोज पत्रों को संिह कर बााँधने
और कसने की दक्रया को हनबंध कहा जाता था। बाद में ऄथज संकोच के कारण आसका प्रयोग
साहहहत्यक रचना के हलए होने लगा।
ऄंिेजी के ‘एसे’ के पयाजयिाची रूप में ही हनबंध का प्रयोग होता है। हनबंध रचना में पृष्ठों
की सीमा नहीं होती। यह हिषय पर अधाररत होता है। यह भी अिश्यक नहीं है दक हनबंध
लेखक साहहत्यकार हो।
हहदी में हनबंध साहहत्य का हिकास पाश्चात्य साहहत्य की प्रेरणा से हुअ है। भारतीय और
पाश्चात्य अचायों और समीक्षकों ने हनबंध की ऄनेक पररभाषाएाँ दी हैं ,हजनसे हनबंध के स्िरूप
के ऄध्ययन में सहायता हमलती है।
अधुहनक ‘एसे’ ऄथाजत हनबंध के जन्मदाता फ्रांसीसी लेखक मानतेन के ऄनुसार ‘हनबंध
हिचारों ,ईद्देश्यों और कथाओं का हमश्रण है।’
ऄंिेजी हनबंध साहहत्य में बेकन का स्थान सबसे उपर है। ईनके ऄहधकतर हनबंध
दाशजहनक हिचारों और जीिन के यथाथज ऄनुभिों से ओतप्रोत हैं। ईनके ऄनुसार ‘हनबंध रचना
328
कु छ आने-हगने पृष्ठों में होनी चाहहए तथा ईसमें हिचारों का ऄनािश्यक हिस्तार न होकर ,ईसका
सारगर्मभत संहक्षप्त रूप होना चाहहए।’
पाश्चात्य हिद्वान मरे ने हलखा है दक ‘हनबंध दकसी हिषय हिशेष ऄथिा हिषय की शाखा
हिशेष पर हलखी गइ ऄसाधारण लंबी रचना होती है ,हजसमें मूलतः हिरोध रहता है।‘ ईनके
ऄनुसार हनबंध ऄहनयहमत ,ऄपररपक्व रचना होती है। ऄब आसे ऐसी रचना माना जाता है जो
ऄपनी शैली में न्यूनाहधक व्यापक होती है ,यद्यहप ऄपने हिस्तार में सीहमत रहती है।’
हनबंध को लेकर भारतीय हिद्वानों ने भी ऄपने हिचार व्यि दकए हैं। अचायज रामचंद्र
शुक्ल भारतीय तथा पाश्चात्य साहहत्य दोनों के जानकार थे। आसहलए हनबंध को लेकर हिचार
व्यि करते समय दोनों साहहत्य दृहियों को सामने रखकर ईन्होंने हलखा है ,“अधुहनक पाश्चात्य
लक्षणों के ऄनुसार हनबंध ईसी को कहना चाहहए हजसमें व्यहित्ि ऄथाजत व्यहिगत हिशेषता
हो। बात तो ठीक है यदद ठीक तरह से समझी जाए। व्यहिगत हिशेषता का यह मतलब नहीं दक
ईसके प्रदशजन के हलए हिचार की शृख ं ला रखी ही न जाए या जान बूझकर जगह-जगह से तोड़
दी जाए ,भािों की हिहचत्रता ददखाने के हलए ऐसी ऄथज-योजना की जाए जो ईनकी ऄनुभूहत के
प्रकृ त या लोकसामान्य स्िरूप से कोइ संबध
ं ही न रखे ऄथिा भाषा से सरकस िालों की सी
कसरतें या हठयोहगयों के से असन कराए जाएाँ हजनका लक्ष्य तमाशा ददखाने के हसिाय और
कु छ न हो। ”शुक्ल जी ने हनबंध को गंभीर हिचार प्रकाशन का माध्यम माना। ईनके ऄनुसार
यदद गद्य कहियों या लेखकों की कसौटी है तो हनबंध गद्य की कसौटी है। भाषा की पूणज शहि का
हिकास हनबंधों में ही सबसे ऄहधक संभि है। आसहलए गद्य शैली के हििेचक ईदाहरणों के हलए
ऄहधकतर हनबंध ही चुना करते हैं। शुक्ल जी स्ियं एक श्रेष्ठ हनबंधकार थे। आसहलए यह
पररभाषा कािी सारगर्मभत है।
डॉ. रामचन्द्र हतिारी ने हनबंध को हहदी गद्य की एक अधुहनक हिधा मानते हुए कहा है
दक आसमें लेखक की रुहच और मनोिृहि के ऄनुसार हिचारों की शृंखला ऄव्यिहस्थत और
हशहथल ऄथिा व्यिहस्थत और सुगरठत दोनों ही प्रकार की हो सकती है। िे मानते हैं दक
अत्मव्यंजना हनबंध की मूलभूत हिशेषता है। आसकी ईपेक्षा दकसी भी हस्थहत में नहीं की जा
सकती। यह भी माना जाता है दक ऄच्छे हनबंध लेखक में सूक्ष्म हनरीक्षण की क्षमता के साथ ही
हास्य व्यंग्य एिं हिनोद की प्रिृहि भी होनी चाहहए। हनबंध में पांहडत्य, गंभीर ऄध्ययन एिं
तार्कककता थोपी नहीं जानी चाहहए। बहल्क ये हिशेषताएाँ हनबंधकार के व्यहित्ि का सहज ऄंग
बन कर अनी चाहहए। हनबंध में सजीिता, सरसता तथा स्िच्छंदता जैसी हिशेषताएाँ अमतौर
पर व्यहित्ि-व्यंजना के साथ खुद-ब-खुद अ जाती हैं। हनबंध दकसी भी हिषय पर हलखा जा
सकता है। आसमें हिषय के स्थान पर लेखक का व्यहित्ि ही पाठक के मन पर छा जाता है।
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सीहमत पृष्ठिाली रचना है, हजसमें लेखक ऄपने व्यहिगत हिचार कसी हुइ भाषा में कलात्मक
ढंग से ऄहभव्यि करता है।
बोध प्रश्न
हनबंध दकसे कहा जाता है?
हहदी साहहत्य में हनबंधों का ईदय अधुहनक काल में ऄथाजत भारतेंदु युग में हुअ। यही
हनबंध का जन्मकाल है। आस कारण काल हिभाजन में हहदी हनबंध का प्रारं हभक काल भारतेंदु
युग माना जा सकता है। हहदी हनबंध के हिकास को चार कालों में बााँटा जा सकता है -
(क) भारतेंदु युग
(ख) हद्विेदी युग
(ग) शुक्ल युग
(घ) शुक्लोिर युग
(क) भारतेंदु युग
भारतेंदु युग हहदी हनबंध का अरं हभक काल है। हहदी साहहत्य में हनबंधों की ईपलधध
परं परा का प्रितजन भारतेंदु हररश्चंद्र से प्रारं भ हुअ। भारतेंदु युग में नइ चेतना जाग रही थी। यह
काल निीन और पुरातन परं पराओं और हिचारों के संघषज का काल था। भारतेंदु और ईनके
सहयोगी लेखकों ने पत्र पहत्रकाओं के माध्यम से हहदी हनबंध हिधा के हिकास में भरपूर योगदान
ददया।
हहदी के पहले हनबंध और हनबंधकार को लेकर हिद्वानों में कािी मतभेद है। कु छ
बालकृ ष्ण भि को तो कु छ भारतेंदु को प्रथम हनबंधकार मानते हैं। आससे पूिज के गद्य लेखकों का
रचनाओं में हनबंध के गुण ईपलधध नहीं थे। ऄतः भारतेंदु के हनबंध ही हहदी के प्राथहमक हनबंध
हैं। आनमें हनबंध कला की सभी हिशेषताएाँ ईपलधध हैं। भारतेंदु ने हहदी गद्य की ऄनेक हिधाओं
का सूत्रपात दकया। भारतेंदु ने हभन्न-हभन्न हिषयों को लेकर हनबंधों की रचना की। ईन्होंने
आहतहास, समाज, धमज, राजनीहत, यात्रा, प्रकृ हत िणजन एिं व्यंग्य-हिनोद जैसे हिषयों पर हनबंधों
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की रचना की। सामाहजक कु रीहतयों का खंडन ईन्होंने ऄपने सामाहजक हनबंधों के ऄंतगजत दकया
है। भारतेंदु ने ऄपने हनबंधों में ऄंिेजी सरकार के उपर भी तीखा व्यंग्य दकया है। ईन्होंने सरल
भाषा शैली मैं ऄपने अलोचनात्मक हनबंधों की रचना की है। भारतेंदु हररश्चंद्र के हनबंध
‘भारतेंदु िंथािली’ के तीसरे खंड में संकहलत हैं। ईनके प्रमुख हनबंधों में शाहमल हैं -नाटक,
कालचक्र (जनजल लेिी प्राण लेिी, भारतिषोन्नहत कै से हो सकती है?, कश्मीर कु सुम, जातीय
संगीत, संगीत सार, हहदी भाषा और स्िगज में हिचार सभा। भारतेंदु युग के हनबंध मुख्य रूप से
पत्र-पहत्रकाओं में प्रकाहशत होते थे। ईनका मुख्य ईद्देश्य जनता को हशहक्षत करना था।
भारतेंदु युग के प्रमुख हनबंधकारों में बालकृ ष्ण भि, बदरी नारायण चौधरी ‘प्रेमघन’,
प्रतापनारायण हमश्र, बालमुकुंद गुप्त, राधाचरण गोस्िामी, ऄंहबकादि व्यास। आन सभी
हनबंधकारों ने हहदी हनबंध के हिकास में बहुत योगदान ददया है।
बलकृ ष्ण भि भारतेंदु युग के सिाजहधक महत्िपूणज हनबंधकार थे। ये ‘हहदी प्रदीप’ के
संपादक थे। और ऄपनी पहत्रका के माध्यम से ऄपने हनबंधों का संदश
े जनता तक पहुाँचाते थे।
ईन्होंने समकालीन समस्याओं पर जम कर हलखा है। बाल हििाह, हस्त्रयााँ और ईनकी हशक्षा,
राजा और प्रजा, कृ षकों की दयनीय हस्थहत, देश सेिा का महत्ि, महहला स्ितंत्रता अदद ईनके
हनबंधों के मुख्य हिषय हैं। बालकृ ष्ण भि ने साहहहत्यक, राजनीहतक, सामाहजक अदद हिषयों
पर ऄत्यंत रोचक हनबंध हलखे।
बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ की हनबंध शैली को कािी हिलक्षण माना जाता है।
ईन्होंने हिचारात्मक और िणजनात्मक हनबंध हलखे। आनके हनबंधों में समसामहयक हिषयों और
समस्याओं को देखा जा सकता है। आनके हनबंधों की भाषा में अलंकाररकता एिं कृ हत्रमता देखने
को हमलती है।
पं. प्रतापनारायण हमश्र भारतेंदु युग के प्रहतहनहध हनबंधकार माने जाते हैं। ये हिख्यात
पहत्रका ‘ब्राह्मण’ के संपादक थे। ये मनोरं जक एिं व्यंग्य प्रधान हनबंधों को हलखने में बहुत कु शल
थे। भौं, पेठ, दााँत, नाक अदद पर आन्होंने हनबंध हलखे हैं। ये ऄपने हनबंध को हिनोदपूणज बनाने
का प्रयास करते थे। आनकी भाषा मुहािरे दार होती थी। भाषा पर आनकी बहुत जबरदस्त पकड़
थी।
बालमुकुंद गुप्त भी भारतेंदु युग के प्रमुख हनबंधकारों में प्रमुख स्थान के ऄहधकारी हैं।
आन्होंने भारतिाहसयों की राजनीहतक हििशता को नज़र में रखकर ‘हशिशंभु के हचट्ठे’ नाम का
हनबंध हलखा जो लॉडज कज़जन को संबोहधत है। आस युग के महत्िपूणज हनबंधकारों में राधाचरण
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गोस्िामी का नाम भी ईल्लेखनीय है। आन्होंने ऄपने हनबंधों में सामाहजक कु रीहतयों पर प्रहार
दकया।
बोध प्रश्न
भारतेंदु युगीन हनबंधों का हिषय क्या था?
बालमुकुंद गुप्त ने ‘हशिशंभु के हचट्ठे’ क्यों हलखे थे?
(ख) हद्विेदी युग
भारतेंदु युग में पत्र-पहत्रकाओं के माध्यम से हनबंध साहहत्य की पूणज प्रहतष्ठा हो चुकी थी।
आसे अगे बढ़ाने का कायज हद्विेदी युग में हुअ। यह युग हद्विेदी जी की भाषाइ शुद्धता, नैहतकता
एिं बौहद्धकता से कािी प्रभाहित रहा। आस युग को अचायज महािीर प्रसाद हद्विेदी के नाम पर
हद्विेदी युग कहा गया है। आस युग के प्रमुख हनबंधकारों में अचायज महािीर प्रसाद हद्विेदी,
गोहिदनारायण हमश्र, बालमुकुंद गुप्त, माधि प्रसाद हमश्र, हमश्रबंधु, सरदार पूणजहसह,
चंद्रधरशमाज गुलरे ी, जगन्नाथ प्रसाद चतुिेदी, श्यामसुंदर दास, पद्महसह शमाज, रामचंद्र शुक्ल,
हशिपूजन सहाय और ऄयोध्याहसह ईपाध्याय ‘हररऔध’ अदद प्रमुख हैं।
आस युग की समस्त साहहत्य चेतना महािीर प्रसाद हद्विेदी से अइ है। ईन्होंने सबसे पहले
भाषा के शुद्ध रूप पर बल ददया। भाषा में व्याकरण एिं हिराम हचह्नों के ईपयोग पर बल
ददया। आन सबका प्रभाि ईस समय के हनबंधों पर भी देखा जा सकता है। अचायज हद्विेदी ने
बेकन के हनबंधों को बहुत ही अदशज माना और ईनका हहदी ऄनुिाद ‘बेकन हिचार रत्नािली’ के
नाम से दकया। हद्विेदी जी के हनबंधों का संिह है ‘रसज्ञ रं जन’। आनके कु छ प्रमुख हनबंध हैं कहि
और कहिता, प्रहतभा, साहहत्य की महिा, कहि कतजव्य, लोभ, मेघदूत अदद। आनके हनबंधों में
भारतेंदु युग की हास्य-व्यंग्य शैली का ऄभाि पाया जाता है। हद्विेदी जी के हनबंधों की भाषा
शुद्ध एिं सरल ददखाइ पड़ती है हजसके कारण ईनको समझना असान होता है। आनके हनबंध
व्यास शैली में हलखे गए हैं। व्यास शैली में हनबंधकार दकसी हिषय को कथािाचक की भााँहत
हिस्तार से समझाते हुए चलता है।
हद्विेदी युग की हनबंध परं परा भारतेंदु युग की हनबंध परं परा से हभन्न पाइ जाती है।
332
कहने का ऄथज है दक दोनों में एक प्रकार का ऄलगाि पाया जाता है। गोहिदनारायण हमश्र
हद्विेदी युग के मुख्य हनबंधकार माने जाते हैं। ईनके हनबंधों के हिषय साहहहत्यक एिं सांस्कृ हतक
होते थे। आनके हनबंध ‘गोहिद हनबंधािली’ में संिहीत हैं। हमश्र जी के हनबंधों में संस्कृ त शधद
ऄहधक हमलते हैं। ऄतः ईनके हनबंधों की भाषा तत्सम प्रधान है। ईनके हनबंध ‘सार सुधा हनहध’
में प्रकाहशत हुअ करते थे। अलंकाररक गद्य शैली के कारण अचायज रामचंद्र शुक्ल ने ईनके
हनबंधों को ‘सायास ऄनुप्रास में गुाँथे शधद-गुच्छों का ऄटारा’ कहा है।
हद्विेदी युग में अलोचनात्मक हनबंध हलखने का श्रेय श्यामसुंदर दास को प्राप्त है। आनके
हनबंधों में हिचारों की ऄहभव्यहि पर बल ददया जाता था। आनके मुख्य हनबंध हैं भारतीय
साहहत्य की हिशेषता, कतजव्य और सभ्यता, समाज और साहहत्य अदद।
सरदार पूणजहसह के हनबंधों के हिषय ऄहधकतर नैहतक और सामाहजक होते हैं। संख्या में
आनके हनबंध बहुत ऄहधक नहीं हैं ककतु हजतना भी हैं ईनमें गुणििा पाइ जाती है। आसी कारण
आन्हें हद्विेदी युग के श्रेष्ठ हनबंधकार माना जाता है। आनके हनबंध हहदी की ऄमूल्य हनहध है। आनके
प्रहसद्ध हनबंधों में स्िाधीन हचतन के साथ-साथ लाक्षहणक एिं व्यंग्य प्रधान शैली का प्रभाि
देखा जा सकता है। आनके हनबंध हनम्नहलहखत हैं - अचरण की सभ्यता, मज़दूरी और प्रेम, सच्ची
िीरता, पहित्रता, कन्यादान और ऄमेररका का मस्त योगी बाल्ट हहहटमैन अदद।
चंद्रधरशमाज गुलेरी के हनबंध भी संख्या में कम हैं ककतु ईन्होंने कम ही रचनाओं के सहारे
बहुत उाँचा स्थान बना हलया। आनकी साहहत्य क्षमता ऄप्रहतम थी। िे पुरातत्ि के जाने माने
हिद्वान थे। कहानी और हनबंध के क्षेत्र में ईनका बहुत उाँचा स्थान है। गुलेरी जी के हनबंधों में
ईच्च कोटी का पांहडत्य एिं व्यंग्य पाया जाता है। ईनकी भाषा हिषय के ऄनुकूल होती है तथा
ईसमें प्रौढ़ता का पुट पाया जाता है। ईनके हनबंध संिहों के नाम हैं -गोबर गणेश संहहता,
कछु अ धमज और मारे हस मोहह कु ठााँि।
हनष्कषज के तौर पर हम कह सकते हैं दक हद्विेदी युग में ऄहधकतर हिचार प्रधान हनबंधों
की रचना हुइ। आस युग में भारतेंदु युग की ऄपेक्षा ऄहधक प्रौढ़ भाषा का प्रयोग हनबंधों में दकया
गया है। आन हनबंधकारों ने युगीन समस्याओं की ऄपेक्षा साहहहत्यक एिं िैचाररक समस्याओं पर
ऄपना ध्यान कें दद्रत दकया है। आस समय के हनबंधकारों की भाषा व्याकरणसम्मत एिं प्रौढ़ है।
बोध प्रश्न
‘व्यास शैली’ दकसे कहते हैं?
गोहिदनारायण हमश्र के हनबंधों के संबध
ं में शुक्ल जी का क्या हिचार है?
333
(ग) शुक्ल युग
हहदी हनबंध के तृतीय चरण को शुक्ल युग के नाम से जाना जाता है। अचायज रामचंद्र
शुक्ल ने हद्विेदी युग से ही हलखना शुरू कर ददया था, ककतु ईनके हिचारों में प्रौढ़ता तथा
गंभीरता ईनके बाद के हनबंधों में नज़र अती है। शुक्ल जी हहदी के सिाजहधक हचतनशील
हनबंधकार के रूप में अए और ऄपनी ईच्च कोटी के लेखन से सब को प्रभाहित दकया। आसहलए
आस ऄिहध को हहदी हनबंध का‘ईत्कषज काल’ ऄथिा ‘स्िणज युग’ कहा जाता है। आस युग के प्रमुख
हनबंधकारों में अचायज रामचंद्र शुक्ल, जयशंकर प्रसाद, गुलाब राय, बेचन शमाज ईि, पदुमलाल
पुन्नालाल बख्शी, माखनलाल चतुिेदी, हियोगी हरर, रायकृ ष्ण दास, िासुदि
े शरण ऄििाल,
शांहतहप्रय हद्विेदी,रघुिीर हसह अदद अते हैं।
आस युग के हनबंध साहहत्य को अचायज रामचंद्र शुक्ल ने ऄपने गहन ऄध्ययन और हचतन
से पररष्कृ त दकया है। हचतामहण भाग 1 और 2 में संकहलत हनबंधों में महस्तष्क और हृदय का
सुंदर संयोग पाया जाता है। हचतामहण में संकहलत हनबंधों ने हहदी हनबंध को बहुत उाँचाइ पर
पहुाँचा ददया। हनबंध के सभी गुण आनके हनबंधों में पाए जाते हैं। आनके हनबंध दो प्रकार के हैं-
साहहहत्यक समीक्षा संबध
ं ी हनबंध तथा मनोहिकार संबंधी हनबंध। तुलसी का भहि मागज,
कहिता क्या है, साधारणीकरण और व्यहि िैहचत्र्यिाद साहहहत्यक समीक्षा के ऄंतगजत अने
िाले हनबंध हैं। ईत्साह, लज्जा और ग्लाहन, श्रद्धा-भहि, क्रोध अदद मनोहिकार संबंधी हनबंध
हैं।
शुक्ल जी के हनबंध हिषय प्रधान या व्यहि प्रधान होते हैं। भाषा की दृहि से ईनके
हनबंधों को हहदी हनबंध का अदशज कहा जा सकता है। ईनके हनबंधों में सभी प्रकार की शैहलयों
का प्रयोग पाया जाता है। गणपहतचंद्र गुप्त ने शुक्ल जी के हिषय में ऄपना मत व्यि करते हुए
हलखा है “ -िस्तुतः शुक्ल जी के हनबंधों में िे सभी गुण हमलते हैं जो गंभीर हिषयों के हनबंधों के
हलए ऄपेहक्षत हैं। शुक्ल जी की शैली में भी हनजी हिहशिता हमलती है। भारतेंदु युग की सी
मौहलकता ईसमें है, ककतु िे ईनके हछछलेपन से दूर है, हद्विेदी युग की सी हिचारात्मकता ईसमें
है ककतु िैसी शुष्कता का ईनमें ऄभाि है। ”शुक्ल जी के हनबंधों में साहहहत्यक भाषा का प्रयोग
पाया जाता है।
शुक्ल युग के महत्िपूणज साहहत्यकार हैं बाबू गुलाबराय। लहलत हनबंध की दृहि से आनकी
कु छ रचनाएाँ ईल्लेखनीय हैं। ठलुअ-क्लब, दिर हनराशा क्यों, मेरी ऄसिलताएाँ अदद संिहों में
आनके व्यहिगत हनबंध संकहलत हैं। मेरा मकान, मेरी दैहनकी का एक पृष्ठ, प्रीहतभोज अदद ईनके
ईल्लेखनीय लहलत हनबंध हैं।
334
पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी के मुख्य हनबंध हैं ऄतीत स्मृहत, ईत्सि, रामलाल पंहडत,
श्रद्धांजहल के दो िू ल। आनके हनबंधों में लेखक की भािुकता, अत्मीयता और व्यंग्य का हमला
जुला रूप देखा जा सकता है। आनके हनबंध ‘पंचपात्र ’में संिहीत हैं।
कु ल हमलाकर यह कहा जा सकता है दक शुक्ल युग में हनबंधों का हिषय बहुत ही गंभीर
तथा ठोस हुअ करता था। सभी प्रकार की समस्याओं पर हलखा जाता था।
बोध प्रश्न
शुक्ल युग में हनबंधों का हिषय क्या रहा?
(घ) शुक्लोिर युग
शुक्लोिर युग का अरं भ 1940इ. से माना जाता है। आस युग की सबसे बड़ी हिशेषता
यह थी दक आस समय देश की राजनीहत और सामाहजक समस्याओं में कािी बदलाि अया।
शुक्लोिर युग परतंत्रता और स्ितंत्रता दोनों का हमला-जुला समय था। आस युग के
साहहहत्यकारों पर ऄनेक हिचारधाराओं का प्रभाि पड़ा। आस युग के सभी हनबंधकारों ने हनबंध
की नइ ददशाएाँ खोजीं। आस काल में समीक्षात्मक, हिचारात्मक तथा लहलत हनबंधों की रचना
हुईं। क्योंदक आस युग के हनबंधकार भारत-पाक युद्ध, भारत-चीन युद्ध, अपातकाल अदद से भी
प्रभाहित थे।
आस युग के प्रमुख हनबंधकार हैं अचायज हजारी प्रसाद हद्विेदी, अचायज नंददुलारे
िाजपेयी, डॉ .नगेंद्र, रामधारी हसह ददनकर, जयशंकर प्रसाद, आलाचंद्र जोशी, जैनेंद्र, प्रभाकर
माचिे, डॉ .भगीरथ हमश्र, डॉ .रामहिलास शमाज, डॉ .हिद्याहनिास हमश्र, कु बेरनाथ राय, देिेंद्र
सत्याथी, कन्हैलाल हमश्र अदद।
शुक्ल जी की परं परा को अगे बढ़ाने िालों में प्रमुख हैं नंददुलारे िाजपेयी। आनके हनबंधों
में िैयहिकता एिं व्यंग्य की प्रधानता पाइ जाती है। ईनके मुख्य हनबंध हैं हहदी साहहत्य :
बीसिीं शताधदी, अधुहनक साहहत्य, नया साहहत्य :नए प्रश्न अदद।
अचायज हजारी प्रसाद हद्विेदी शुक्लोिर युग के प्रमुख हनबंधकार के रूप में जाने जाते हैं।
आनके प्रहसद्ध हनबंध संिह हैं ऄशोक के िू ल, हिचार और हितकज , कल्पलता, हिचार प्रिाह,कु टज,
335
हमारी साहहहत्यक समस्याएाँ, गहतशील हचतन, नाखून क्यों बढ़ते हैं, अम दिर बौरा गए अदद।
हद्विेदी जी के हनबंधों में सामाहजक समस्याओं का हचत्रण, भारतीय परं परा का प्रदशजन तथा
मानि मूल्यों का हिश्लेषण पाया जाता है। हद्विेदी जी के हनबंधों का हिषय बहुत व्यापक है।
आनकी शैली हिषय के ऄनुरूप बदलती है। अधुहनक युग की बुराआयों का हचत्रण करने के हलए िे
हास्य-व्यंग्य शैली का प्रयोग करते हैं। कालीदास के युग का िणजन करते समय ईनके शधद संस्कृ त
के हो जाते हैं। ईन्होंने शोधपरक हनबंधों की भी रचना की है। कहने का ऄहभप्राय है दक भाषा
की लय ,गुदाँ ित पदािली ,हिषय िैहिध्य ,हबबात्मक हचत्रण अदद के कारण हद्विेदी जी के हनबंध
श्रेष्ठ हैं।शुक्लोिर युग के प्रमुख हनबंधकारों में शांहतहप्रय हद्विेदी जी का नाम भी अता है। ये एक
समीक्षात्मक हनबंध लेखक है। आनके प्रमुख हनबंध संिह हैं - संचाररणी, युग और साहहत्य,
धरातल, साकल्य, िृंत और हिकास। हहदी में शांहतहप्रय हद्विेदी को प्रभाििादी समीक्षा के
ऄिदूत के रूप में जाना जाता है। आनके समीक्षात्मक हनबंधों का हिषय ऄहधकतर साहहत्येतर हैं।
रामधारी हसह ‘ददनकर’ ने भी हनबंधों की रचना की। ऄधजनारीश्वर, हमारी सांस्कृ हतक
एकता, प्रसाद, पंत और मैहथलीशरण, राष्ट्रभाषा और राष्ट्रीय साहहत्य ईनके हनबंध संिह हैं।
ईनके हनबंधों में मानिीय अस्था को देखा जा सकता है।
रामहिलास शमाज प्रगहतशील हनबंधकार माने जाते हैं। ईन्होंने ऄपने हनबंधों के माध्यम
से प्रगहतशील दृहिकोण ददखाने का प्रयास दकया है। ईन्होंने व्यंग्यपूणज शैली में गंभीर हिचारों को
प्रस्तुत दकया। आनके मुख्य हनबंध हैं प्रगहत और परं परा, संस्कृ हत और साहहत्य अदद।
हछतिन की छााँह, तुम चंदन हम पानी, अाँगन का पंछी और बनजारा मन, मेरे राम का
मुकुट भीग रहा है अदद पं .हिद्याहनिास हमश्र के प्रहसद्ध हनबंध संिह हैं। आनमें संकहलत हनबंधों
में भारतीय साहहत्य, संस्कृ हत और लोक जीिन को भलीभााँहत देखा जा सकता है। हनष्कषज के
तौर पर कह सकते हैं दक हहदी हनबंध साहहत्य बहुत कम समय में उाँचाआयों तक पहुाँचा।
22.3 पाठ-सार
हनबंध ईस गद्य रचना को कहते हैं हजसमें लेखक दकसी हिषय पर ऄपने हिचारों को
स्िच्छंद रूप में व्यि करता है।‘हनबंध’ शधद ‘हन’+‘बंध’ से बना है, हजसका ऄथज है – ऄच्छी तरह
336
से गठा या बंधा हुअ। मानक हहदी कोश के ऄनुसार हनबंध का अशय है – “िह हिचारपूण,ज
हििरणात्मक और हिस्तृत लेख हजसमें दकसी हिषय के सब ऄंगों का मौहलक और स्ितंत्र रूप से
हििेचन दकया गया हो।” हजस प्रकार खड़ी बोली गद्य का ईदय 19 िीं शताधदी में हुअ, ईसी
प्रकार अधुहनक हहदी हनबंध का जन्म भी 19 िीं शताधदी के ईिराधज में ही हुअ। लक्ष्मी सागर
िाष्णेय ने भारतेन्दु युग के लेखक बालकृ ष्ण भि को हहदी का पहला हनबंधकार माना है। हजस
प्रकार ऄंिेज़ी में मोंतेन और बेकन ने िस्तुहनष्ठ और अत्महनष्ठ हनबंधों की शुररूअत की, ईसी
प्रकार हहदी में अगे चल कर अचायज रामचन्द्र शुक्ल और अचायज हजारी प्रसाद हद्विेदी क्रमशः
आन दोनों प्रकार के हनबंधों के सिजश्रेष्ठ रचनाकार हुए।
रामचन्द्र शुक्ल के ऄनुसार, “हनबंध ईसी को कहना चाहहए हजसमें व्यहित्ि ऄथाजत
व्यहिगत हिशेषता हो। भािों की हिहचत्रता ददखाने के हलए ऐसी ऄथज योजना न की जाए जो
ईनकी ऄनुभूहत की प्रकृ हत या लोकसामान्य स्िरूप से कोइ संबंध ही न रखे।” बाबू गुलाबराय ने
भी हनबंध में व्यहित्ि और हिचारतत्ि दोनों को ज़रूरी माना है। ईनके ऄनुसार, “हनबंध ईस
गद्य रचना को कहते हैं हजसमें एक सीहमत अकार के भीतर दकसी हिषय का िणजन या
प्रहतपादन, एक हिशेष हनजीपन, स्िच्छंदता,सौष्ठि और सजीिता तथा अिश्यक संगहत और
संबद्धता के साथ दकया गया हो।”
हहदी हनबंध के हिकास को चार कालों में हिभि दकया जा सकता है। जैसे भारतेंदु युग,
हद्विेदी युग, शुक्ल युग और शुक्लोिर युग।
भारतेंदु युग हहदी हनबंध की हिकास यात्रा का प्रांरहभक चरण है। भारतेंदु के हनबंध ही
हहदी के प्राथहमक हनबंध हैं हजनमें हनबंध कला की मूलभूत हिशेषताएाँ ईपलधध हैं। भारतेंदु के
हनबंध हिषय एिं शैली की दृहि से बहुत ही ईच्च कोटी के हैं। ईन्होंने आहतहास, समाज, धमज,
राजनीहत, प्रकृ हत जैसे हिषयों पर हनबंधों की रचना की। आस युग के प्रमुख हनबंधकारों में
भारतेंदु के ऄहतररि बालकृ ष्ण भि, बालमुकुंद गुप्त, राधाकृ ष्ण गोस्िामी, ऄंहबकादि व्यास
अदद प्रमुख हैं। भारतेंदु युग के हनबंधकारों के हिषय बहुत व्यापक थे। आस युग के हनबंधकारों के
हनबंध में हास्य-व्यंग्य एिं मनोरं जन का पुट पाया जाता है।
337
हहदी हनबंध के हिकास के दूसरे चरण को अचायज महािीर प्रसाद हद्विेदी के नाम पर
‘हद्विेदी युग’ कहा जाता है। आस काल के हनबंधों में गंभीरता है तथा भारतेंदु युग की हास्य-व्यंग्य
शैली का ऄभाि। आस युग में भाषा की शुद्धता पर ऄहधक बल देने के कारण आनकी भाषा में
प्रौढ़ता पाइ जाती है। आनकी भाषा व्याकरण सम्मत थी। आस समय के हनबंधकारों ने साहहहत्यक
एिं िैचाररक समस्याओं को ऄपने हनबंधों का हिषय बनाया।
हहदी हनबंध के तृतीय चरण को ‘शुक्ल युग ’कहा जाता है। अचायज रामचंद्र शुक्ल के नाम
पर आस युग का नाम शुक्ल युग रखा गया। आनके हनबंध हचतामहण में संकहलत हैं। हचतामहण में
संकहलत हनबंधों में हनबंध कला के सभी गुण मौजूद हैं। शुक्ल युग को हहदी हनबंध का स्िणज युग
कहा जाता है। आस युग में हनबंधों का हिषय बहुत व्यापक था तथा ईसमें गंभीरता भी पाइ
जाती थी। भाषा शैली की दृहि से यह युग हद्विेदी युग की तुलना में ऄहधक हिकहसत एिं प्रौढ़
है। अचायज रामचंद्र शुक्ल आस युग की महानतम ईपलहधध है और िे हहदी के सिजश्रेष्ठ हनबंधकार
कहें जाते हैं।
‘शुक्लोिर युग’ हहदी हनबंध का चौथा चरण है। आसका अरं भ 1940 इ .से माना जाता
है। आस समय देश की राजनीहतक और सामाहजक समस्याओं में कािी बदलाि अया। आनका
प्रभाि ईस समय के हनबंधों पर स्पि रूप से देखा जा सकता है। आस समय में ज़्यादातर
समीक्षात्मक, हिचारात्मक तथा लहलत हनबंधों की रचना हुइ। अचायज हजारी प्रसाद हद्विेदी,
नंददुलारे िाजपेयी और पं .हिद्याहनिास हमश्र आस युग के प्रमुख हनबंधकार हैं।
छात्रो !आस प्रकार हम देख सकते हैं दक हहदी हनबंध साहहत्य ने बहुत कम समय में प्रगहत
की है। भारतेंदु युग से लेकर ितजमान युग तक हहदी हनबंध ने क्रमशः प्रौढ़ता प्राप्त की है। अज भी
हहदी हनबंध निीनता की खोज में है।
338
5. छायािाद युग को हनबंध साहहत्य के युग में ‘शुक्ल युग’ कहा जाता है। क्योंदक अचायज
रामचंद्र शुक्ल ने ‘हचतामहण’ के ऄपने हनबंधों द्वारा आस हिधा को ईच्च हशखर तक
पहुाँचाया।
6. शुक्लोिर युग में अचायज हजारी प्रसाद हद्विेदी ने ‘लहलत हनबंध’ को हहदी में प्रहतहष्ठत
दकया। अगे आसकी एक लंबी परं परा चली।
22.5 शधदाथज
1. ऄिसर = अगे बढ़ता हुअ
2. ऄप्रत्यक्ष = जो ददखाइ न दें
3. कु रीहत = बुरी रीहतयााँ, हजसमें समाज या व्यहि को हाहन हो
4. हचतन = गहराइ से सोचना
5. पररष्कृ त = सुधारा हुअ, शुद्ध दकया हुअ
6. प्रारं हभक रूप = शुरूअती रूप से
7. प्रौढ़ता = पररकल्पना
8. मुद्रणालय = छापाखाना, प्रेस
9. मौहलकता = ऄसली, िास्तहिक
10. हिधा = साहहत्य का एक रूप
11. व्यापक = हिस्तृत रूप से
12. शैली = तरीका, ढंग
13. समस्या = परे शानी
14. सारगर्मभत = हजसमें कु छ महत्ि की बात हो, सार पूणज
15. स्िच्छंद रूप = ऄपने आच्छानुसार
16. हास्य-व्यंग्य = दकसी पर व्यंग्य से हाँसा जाए या ईपहास
339
2. हहदी हनबंध के हिकास क्रम में हद्विेदी युग के योगदान का िणजन कीहजए।
3. ‘शुक्ल युग हहदी हनबंध का ईत्कषज काल है।’ आस कथन को स्पि कीहजए।
खंड (ब(
खंड (स(
III सुमल
े कीहजए
i(अस्था के चरण (ऄ(सरदार पूणजहसह
340
22.7 पठनीय पुस्तकें
1. हहदी साहहत्य का आहतहास, सं .नगेंद्र और हरदयाल
2. हहदी साहहत्य का गद्य साहहत्य, रामचंद्र हतिारी
3. अधुहनक हहदी साहहत्य का आहतहास ,बच्चन हसह
4. गद्य की नइ हिधाओं का हिकास, माजीद ऄसद
5. हहदी साहहत्य का निीन आहतहास, लाल साहब हसह
341
आकाइ 23 : हहदी ईपन्यास :ईद्भि और हिकास
आकाइ की रूपरे खा
23.0 प्रस्तािना
23.1 ईद्देश्य
23.2 मूल पाठ : हहदी ईपन्यास: ईद्भि और हिकास
23.2.1 ईपन्यास: ऄथज और पररभाषा
23.2.2 हहदी का पहला ईपन्यास
23.2.3 हहदी ईपन्यास का हिकास क्रम
23.2.3.1 प्रेमचंद पूिज युग
23.2.3.2 प्रेमचंद का ईपन्यास साहहत्य
23.2.3.3 प्रेमचंद युगीन ईपन्यास
23.2.3.4 प्रेमचंदोिर ईपन्यास
23.3 पाठ-सार
23.4 पाठ की ईपलहधधयााँ
23.5 परीक्षाथज प्रश्न
23.6 शधद संपदा
23.7 पठनीय पुस्तकें
23.0 प्रस्तािना
अधुहनक काल में हहदी की गद्य हिधाओं का हिकास हुअ। आस युग के रचनाकारों ने
कहानी, ईपन्यास, अलोचना, नाटक अदद के क्षेत्रों में प्रगहत करने के साथ-साथ ऄपने मन की
बातों को व्यि करने के हलए ररपोताजज और आं टरव्यू जैसी हिधाओं का भी सहारा हलया।
ईपन्यास समकालीन साहहहत्यक हिधाओं में ऄपनी लोकहप्रयता के कारण सबसे ऄहधक
महत्िपूणज है। आसमें साधारण लोगों के जीिन का हचत्रण पाया जाता है। यह कहा जा सकता है
दक ईपन्यास में मानि-जीिन के सत्य का िास्तहिक हचत्रण प्रस्तुत दकया जाता है।
23.1ईद्देश्य
हप्रय छात्रो !आस आकाइ के ऄध्ययन के पश्चात अप –
342
ईपन्यास के ऄथज और पररभाषा से पररहचत हो सकें गे।
हहदी के प्रारं हभक ईपन्यासों के बारे में जान सकें गे।
हहदी ईपन्यास साहहत्य के ईद्भि और हिकास क्रम से पररहचत हो सकें गे।
हहदी के ईपन्यासकारों के योगदान के बारे में जान सकें गे।
छात्रो !हहदी में ईपन्यास लेखन की परं परा भारतेंदु युग से प्रारं भ हुइ ककतु प्रेमचंद के
ईपन्यासों से आस हिधा में बहुत व्यापकता और गंभीरता अइ। ईपन्यास हिधा के ईत्कषज के हलए
सहज भाषा शैली की अिश्यकता होती है।
ईपन्यास को अधुहनक युग का महाकाव्य कहा जाता है। महाकाव्य में जैसे जीिन जगत
का हिस्तृत हचत्रण होता है िैसा ही हचत्रण ईपन्यास में होता है। ककतु महाकाव्य पद्य की हिधा
है और ईपन्यास गद्य की। महाकाव्य सामंती युग की देन है और ईपन्यास पूाँजीिादी युग की
ईत्पहि।
ईपन्यास एक ऐसी साहहहत्यक हिधा है हजसमें जीिन का सच्चा रूप देखने को हमलता है
और साथ ही हमारा मनोरं जन भी करता है। यथाथज हचत्रण और मनोरं जन ये दो परस्पर
हिपरीत ईद्देश्य नहीं हैं। िैसे भी िही रचना हमारे हलए रोचक और ईपयोगी होती है हजसमें
जीिन का िास्तहिक रूप देखने को हमलता हो तथा हमारे संघषों ,समस्याओं और सुख-दुख के
ऄनुभिों का हचत्रण दकया गया हो और जो जीिन की एक बेहतर तस्िीर हमारे सामने रखता
हो। आसहलए ईपन्यास अज एक लोकहप्रय हिधा बन चुका है। अचायज हजारी प्रसाद हद्विेदी का
कहना है दक “ईपन्यास अधुहनक युग की देन है। नए गद्य के प्रचार के साथ-साथ ईपन्यास का
प्रचार हुअ। ”आसी प्रकार ईपन्यास के बारे में प्रेमचंद ने कहा है,“ मैं ईपन्यास को मानि चररत्र
का हचत्र मात्र समझता हाँ। ”
343
का तत्ि है। आसमें मानि-जीिन के सत्य का िास्तहिक हचत्रण प्रस्तुत दकया जाता है। ‘ऄथाजत
ईपन्यास में मानिीय जीिन के यथाथज हचत्र को ददखा जा सकता है।प्रहसद्ध माक्सजिादी अलोचक
राल्ि िाक्स के ऄनुसार ‘ईपन्यास गद्य में हलखी गइ कथा मात्र नहीं है। िह मनुष्य के जीिन का
गद्य है। िह प्रथम कला रूप है जो समस्त मनुष्य को समझाने और ऄहभव्यहि करने का प्रयास
करता है।‘
बोध प्रश्न
ईपन्यास का जन्म दकस पररिेशमें हुअ ?
ऄंिेजी एिं बंगला के प्रभाि से हहदी में जो ईपन्यास रचे गए ईनमें ऄनुिादों की संख्या
ऄहधक थी। बंगला के बंदकमचंद्र, शरतचंद्र, रिींद्रनाथ अदद के ऄनेक ईपन्यास ऄनूददत होकर
पाठकों के सामने अए। आससे एक तो पाठकों में ईपन्यास पढ़ने की रुहच बढ़ी और दूसरा,
ऄनुिाद कायज से लेखकों की मौहलक ईपन्यासों को रचने की प्रेरणा भी हमली।
हहदी का प्रथम मौहलक ईपन्यास कौन सा है, आस पर कु छ हििाद रहा है। ‘हहदी
ईपन्यास कोश’ के संपादक गोपाल राय का मानना है दक गौरीदि द्वारा हलहखत ‘देिरानी
जेठानी की कहानी’ को प्रथम ईपन्यास का दजाज हमलना चाहहए हजसका प्रकाशन 1870 में
344
हुअ। ‘देिरानी जेठानी की कहानी’ की कथा िस्तु को लेकर यह हििाद बना हुअ दक ईसे
ईपन्यास कहा जाए या एक लंबी कहानी।कु छ अलोचक श्रद्धाराम िु ल्लौरी द्वारा रहचत
ईपन्यास ‘भाग्यिती’ को हहदी का प्रथम ईपन्यास मानते हैं हजसकी रचना तो 1877 में हुइ पर
आसका प्रकाशन दस िषज बाद 1887 में हुअ। रामचंद्र शुक्ल ने ऄपने आहतहास िंथ में लाला
श्रीहनिासदास कृ त ‘परीक्षा गुरु’ को हहदी का पहला मौहलक ईपन्यास माना है जो 1882 में
प्रकाहशत हुअ। ‘परीक्षा गुरु’ को रामचंद्र शुक्ल ने ऄंिेज़ी ढंग का पहला मौहलक ईपन्यास कहा
जो पहले पहल हहदी में हनकला।
हहदी के भारतेंदु युगीन मौहलक ईपन्यासों पर संस्कृ त के कथा साहहत्य एिं नाटक
साहहत्य के प्रभाि के साथ ही बंगला ईपन्यासों का प्रभाि भी देखा जा सकता है। आस युग के
ईपन्यासकारों में लाला श्रीहनिासदास, दकशोरीलाल गोस्िामी, बालकृ ष्ण भि, ठाकु र
जगन्मोहन हसह, राधाकृ ष्णदास, लज्जाराम शमाज, देिकीनंदन खत्री और गोपालराम गहमरी
अदद हिशेष ईल्लेखनीय हैं।
बोध प्रश्न
हहदी के प्रथम मौहलक ईपन्यास के संबंध में क्या मतभेद हैं?
345
आनके ईपन्यासों का मूल स्िर सुधारिादी एिं ईपदेशात्मकता है।
प्रेमचंद पूिज हहदी ईपन्यासकारों में हजस ईपन्यासकार का नाम सिाजहधक अदर से हलया
जाता है िे है बाबू देिकीनंदन खत्री। आन्होंने हतहलस्मी एिं ऐयारी ईपन्यासों की रचना करके
पाठकों का पयाजप्त मनोरं जन दकया। ऐसा कहा जाता है दक देिकीनंदन खत्री के ईपन्यासों को
पढ़ने के हलए बहुत से हहदीतर भाहषयों ने हहदी सीखी। आनके प्रहसद्ध ईपन्यास हैं -चंद्रकांता,
चंद्रकांता संतहत, काजर की कोठरी, भूतनाथ, कु सुम कु मारी अदद। खत्री जी के ईपन्यासों ने
पाठकों का भरपूर मनोरं जन दकया।
हहदी में जासूसी ईपन्यासों को प्रारं भ करने का श्रेय गोपालराम गहमरी को जाता है। ये
ऄंिेजी के जासूसी ईपन्यास लेखक ऄथजर कानन डायल से बेहद प्रभाहित थे। गहमरी जी के
ईपन्यासों में प्रमुख हैं सरकटी लाश, जासूस की भूल, जासूस पर जासूसी अदद। दकशोरीलाल
गोस्िामी का नाम भी महत्िपूणज माना जाता है। आनके ईपन्यासों में हत्रिेणी ि सौभाग्यश्रेणी
ईल्लेखनीय हैं।
हद्विेदी युगीन ईपन्यासकारों में ऄयोध्याहसह ईपाध्याय ‘हररऔध’ का नाम भी अदर से
हलया जाता है। आनके हलखे दो ईपन्यास हैं -ठे ठ हहदी का ठाठ तथा ऄधहखला िू ल। आन दोनों
ही ईपन्यासों में सुधारिादी प्रिृहि को दशाजया गया है। आस काल के कु छ मुख्य ईपन्यासकार हैं
लज्जाराम शमाज, राहधकारमण प्रसाद हसह अदद।
हहदी ईपन्यासों का प्रथम चरण ईपन्यास कला की दृहि से बहुत ईल्लेखनीय नहीं
रहा।ककतु ईस समय ईपन्यास हिधा को एक ददशा देने का प्रयास ऄिश्य हुअ। ईस समय के
ईपन्यासकारों का मुख्य ईद्देश्य मनोरं जन एिं समाज सुधार ही रहा है। ईस समय के ईपन्यासों
में ऄस्िाभाहिकता एिं ऄहत मानिीयता जैसे दोष हिद्यमान होने पर भी प्रेमचंदयुगीन
ईपन्यासों के हलए एक पृष्ठभूहम तैयार हुइ। संक्षेप में यह कहा जा सकता है दक आस काल में हहदी
ईपन्यास ने ऄपना मागज तलाश कर हलया। आस समय के ऄहधकतर ईपन्यास सुधारिादी एिं
ईपदेशात्मक प्रिृहि को लेकर अगे बढ़े। ईपन्यास का हिषय, हशल्प एिं भाषा का जो हिकास
आस काल में हुअ ईसका संशोहधत रूप अगे के ईपन्यासों में ददखाइ पड़ता है।
बोध प्रश्न
बालकृ ष्ण भि के ईपन्यासों का मूल स्िर क्या था?
प्रेमचंद ने 1918 इ .के पूिज ईदूज में कइ ईपन्यासों की रचना की थी। ईनके प्रमुख
ईपन्यासों में सेिासदन (1918(, प्रेमाश्रम (1922(, रं गभूहम (1925(, कायाकल्प (1926(,
हनमजला (1927(, गबन (1931(, कमजभूहम (1933(, गोदान (1936(और मंगलसूत्र (ऄपूणज)
ईल्लेखनीय हैं।
प्रेमचंद ने हहदी कथा साहहत्य को मनोरं जन के स्तर से ईठाकर जीिन के साथ जोड़ने का
महत्िपूणज काम दकया है। ‘सेिासदन’ के प्रकाशन के साथ ही हहदी ईपन्यास नइ ददशा में अगे
बढ़ने लगा। आसमें हििाह से जुड़ी समस्याओं -दहेज प्रथा, कु लीनता का प्रश्न, पत्नी का स्थान
अदद को दशाजया गया है। आसी प्रकार ईन्होंने ऄपने ईपन्यास ‘हनमजला’ में ऄनमेल हििाह और
दहेज प्रथा जैसी समस्याओं को प्रस्तुत दकया है। ‘गोदान’ में कृ षक जीिन से जुड़ी समस्याओं को
दशाजया गया है। प्रेमचंद ने ऄपने ईपन्यासों के माध्यम से समाज में व्याप्त छु अछू त एिं
सांप्रदाहयकता जैसी हिकराल समस्याओं को भी बखूबी दशाजया है।
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बोध प्रश्न
प्रेमचंद ने ऄपने ईपन्यासों के माध्यम से क्या दशाजया है?
जयशंकर प्रसाद ने काव्य, नाटक अदद में सिलता पाने के साथ-साथ ईपन्यासों की
रचना करके भी ख्याहत ऄर्मजत की। आन्होंने कं काल (1929( तथा हततली (1934( नामक दो
ईपन्यासों की रचना की है। आरािती नामक एक ऄधूरा ईपन्यास भी आन्होंने हलखा है हजसे िे
ऄपनी ऄकाल मृत्यु के कारण पूरा नहीं कर सके । कं काल में प्रसाद जी ने व्यहि की स्ितंत्रता का
समथजन दकया तथा हततली के द्वारा ईन्होंने प्रेम के अदशज स्िरूप की व्याख्या की। आन ईपन्यासों
में चररत्रांकन ईतना सूक्ष्म नहीं है हजतना प्रेमचंद के ईपन्यासों में पाया जाता है।
अचायज चतुरसेन शास्त्री एक प्रहतभा संपन्न ईपन्यासकार थे। आनके ईपन्यास आहतहास-
पुराण के कथानक पर अधाररत हैं। चतुरसेन शास्त्री काल्पहनक पात्रों के माध्यम से सामाहजक
समस्याओं को दशाजते हैं। आनके प्रमुख ईपन्यास हैं िैशाली की नगर िधु ,ियंरक्षाम ,सोमनाथ
और अलमगीर मंददर की नतजकी अदद।
पांडये बेचन शमाज ‘ईि’ने ऄपने ईपन्यासों में सामाहजक बुराआयों का पदाजिाश दकया है।
िे हहदी के प्रथम हििादास्पद ईपन्यासकार कहे जाते हैं। ईनके ईपन्यासों में समाज के ईस िगज
का िणजन है जो पहतत िेश्या िगज है। यह िगज समाज की दृहि में बहुत तुच्छ समझा जाता है। ईि
जी के प्रमुख ईपन्यास हैं -चंद हसीनों के खतूत ,ददल्ली का दलाल ,बुधअ ु की बेटी ,शराबी ,
सरकार तुम्हारी अाँखों में अदद। ऊषभचरण जैन आस युग के प्रमुख ईपन्यासकारों में हगने जाते
हैं। आनके ईपन्यासों की हिषय िस्तु भी ईि जी के ईपन्याओं की हिषय िस्तु से हमलती-जुलती
है। आनके प्रमुख ईपन्यास हैं -ददल्ली का व्यहभचार ,दुराचार के ऄड्डे ,चंपाकली ,िेश्यापुत्र
मयखाना अदद।
प्रतापनारायण श्रीिास्ति का नाम अदशजिादी ईपन्यासकारों की श्रेणी में अता है। आनके
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हलखे ईपन्यास अदशजिाद पर अधाररत होते हैं। हिदा ,हिजय ,हिकास हिसजजन ,बेकसी का
मज़ार अदद ईनके प्रहसद्ध ईपन्यास हैं।
हहदी के ऐहतहाहसक ईपन्यासकारों में िृंदािनलाल िमाज का नाम बहुत ही महत्िपूणज है।
गढ़ कुं डार ,हिराट की पहद्मनी ,झांसी की रानी ,मृगनयनी अदद आनके प्रमुख ईपन्यास हैं।
िृंदािनलाल िमाज के सामाहजक ईपन्यासों में संगम ,लगन ,प्रत्यागत अदद महत्िपूणज हैं।
आस प्रकार हम देखते हैं दक प्रेमचंद युगीन ईपन्यास में हिषय िैहिध्य पाया जाता है। आन
ईपन्यासकारों ने एक ओर सामाहजक समस्याओं को हिषय बनाया तो दूसरी ओर ऐहतहाहसक
कथानकों पर निीन दृहि से हिचार करते हुए मनोरं जनपूणज ईपन्यासों की रचना की।
राजनीहतक ,सामाहजक ,ऐहतहाहसक और मनोिैज्ञाहनक ईपन्यासों की रचना से ईपन्यास का
क्षेत्र आस काल में ऄत्यंत हिस्तृत हो गया।
बोध प्रश्न
प्रेमचंद युगीन ईपन्यासों का मुख्य हिषय क्या रहा?
यदद काल क्रम के ऄनुसार प्रेमचंदोिर ईपन्यासों का िगीकरण करें तो ईसे तीन काल
खंडों में बााँट सकते हैं -
1. 1936 से 1950 तक के ईपन्यास
349
2. 1950 से 1960 तक के ईपन्यास
3. 1960 के बाद के ईपन्यास
हहदी के ईपन्यास साहहत्य में सन 1936 के बाद एक नया मोड़ ददखाइ देता है। एक ओर
फ्रायड के मनोहिज्ञान और दूसरी ओर कालज माक्सज की हिचारधारा का प्रभाि।
मनोहिश्लेषणिादी ईपन्यासकारों में जैनेंद्र, आलाचंद्र जोशी एिं ऄज्ञेय ईल्लेखनीय हैं। जैनेंद्र ने
परख, सुनीता और त्यागपत्र के द्वारा हहदी ईपन्यास को एक नइ ददशा प्रदान की। ईनके कु छ
और ईपन्यास हैं -कल्याणी, सुखदा, हिितज। ये सभी ईपन्यास मनोहिश्लेषणिाद पर अधाररत
हैं। आन ईपन्यासों में हिहभन्न पात्रों के मन की ईलझनों, गुहत्थयों एिं शंकाओं का हनरूपण कथा
के माध्यम से दकया गया है। साथ ही ऄनमेल हििाह के दुष्पररणामों का हचत्रण भी दकया गया
है।
आलाचंद्र जोशी के प्रमुख ईपन्यास हैं संन्यासी, पदे की रानी, प्रेत और छाया, हजप्सी और
जहाज का पंछी। आन ईपन्यासों में जोशी जी ने मानि मन की कुं ठाओं का हचत्रण दकया है।
मनोहिश्लेषणपरक ईपन्यासों में ऄज्ञेय द्वारा रहचत शेखर :एक जीिनी, नदी के द्वीप तथा
ऄपने ऄपने ऄजनबी का महत्िपूणज स्थान है। शेखर :एक जीिनी िैयहिक मनोहिज्ञान के क्षेत्र
में एक बहुत बड़ी ईपलहधध मानी जा सकती है।
माक्सजिाद को अधार बनाकर हजन ईपन्यासों में कथानक का ताना-बाना बुना गया, िे
हहदी के साम्यिादी ईपन्यासों के ऄंतगजत अते हैं। यशपाल, रांगेय राघि, भैरिप्रसाद गुप्त और
ऄमृतराय आसी कोरट के ईपन्यासकार हैं। यशपाल ने पाटी कामरे ड, दादा कामरे ड, मनुष्य के
रूप, ऄहमता अदद ईपन्यासों में माक्सजिादी हिचारों को ऄहभव्यि दकया है। भैरिप्रसाद गुप्त ने
मशाल, सती मैया का चौरा अदद ईपन्यासों में माक्सजिादी चेतना का हनरूपण दकया है। आस
युग के दो और महत्िपूणज ईपन्यासकार हैं भगितीचरण िमाज और ऄमृतलाल नागर। िमाज जी के
कइ ईपन्यास प्रहसद्ध हुए हैं। जैसे हचत्रलेखा, भूल-े हबसरे हचत्र, टेढ़-े मेढ़े रास्ते अदद। आन
ईपन्यासों में पाप-पुण्य पर हिचार,संयुि पररिार की समस्या, शोषण, सत्यािह, हमलमाहलकों
की दोहरी नीहत, पुहलस की धांधली अदद का हचत्रण दकया गया है। ऄमृतलाल नागर के
ईपन्यासों में ऄमृत और हिष, बूंद और समुद्र, सुहाग के नूपुर, मानस का हंस प्रहसद्ध हैं। ‘बूंद और
समुद्र’ ईनका श्रेष्ठतम ईपन्यास है। ‘मानस का हंस ’गोस्िामी तुलसीदास की जीिनी पर
अधाररत ईपन्यास है।
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हहदी के ऐहतहाहसक ईपन्यासकारों में बाबू िृद
ं ािनलाल िमाज का नाम प्रमुख रूप से
अता है। आनके ऄहतररि चतुरसेन शास्त्री एिं हजारी प्रसाद हद्विेदी का नाम ईल्लेखनीय है।
अचायज हजारी प्रसाद हद्विेदीने ‘बाणभि की अत्मकथा’ तथा ‘चारुचंद्रलेखा’ में आहतहास और
कल्पना का समन्िय दकया था। राहुल सांकृत्यायन और रांगेय राघि भी ऐहतहाहसक
ईपन्यासकारों की श्रेणी में अते हैं।
स्ितंत्रता के बाद हहदी ईपन्यासों में अंचहलक ईपन्यास एक महत्िपूणज ईपलहधध मानी
जाती है। अंचहलक ईपन्यासों में दकसी हिशेष ऄंचल का हचत्रण कथानक के द्वारा दकया जाता
है। हहदी के अंचहलक ईपन्यासकारों में िणीश्वरनाथ रे णु का नाम प्रमुख है। आनके मुख्य
ईपन्यास हैं मैला अंचल तथा परती पररकथा। ऄन्य अंचहलक ईपन्यासकार हैं नागाजुजन,
ईदयशंकर भि अदद।
िामीण पररिेश को अधार बनाकर कु छ ईपन्यासों की रचना की गइ। आनमें प्रमुख हैं
राही मासूम रज़ा का अधा गााँि तथा जंगल के िू ल। आन सभी ईपन्यासों में अधुहनकीकरण के
कारण बदलते िामीण समाज का हचत्रण है।
अधुहनक ईपन्यासों में हिषय की हिहिधता के साथ-साथ ईपन्यास हलखने की शैहलयों में
भी हभन्नता पाइ जाती है। जैसे अत्मकथात्मक शैली, डायरी शैली, पत्र शैली, िणजनात्मक शैली
अदद। अज के ईपन्यास का कथ्य हमारे जीिन से बहुत नजदीक है। आसमें यथाथज का ऄंश ऄहधक
है। मनुष्य के संबध
ं में जो बदलाि अ रहे हैं ईन्हें ईपन्यासों के माध्यम से ददखाने का प्रयास
दकया जा रहा है। ऄके लापन, ऄजनबीपन, हिद्रोह, कुं ठा, मूल्यों का ह्रास,संघषज, हजजीहिषा,
ऄहस्तत्ि की लड़ाइ अदद अज के ईपन्यास के हिषय हैं।
351
ऄत्यहधक प्रगहत की है। नए-नए ईपन्यासकार नए-नए हिषयों को लेकर ईपन्यासों की रचना
कर रहे हैं। ऄतः यह अशा की जाती है दक हनकट भहिष्य में ईपन्यास के क्षेत्र में ऄत्यहधक प्रगहत
होगी।
बोध प्रश्न
प्रयोगिादी ईपन्यास का क्या ऄहभप्राय है?
23.3 पाठ-सार
ईपन्यास अधुहनक काल का जीिंत साहहहत्यक रूप है। यह गद्य साहहत्य की एक निीन
हिधा है। ईपन्यास के माध्यम से हम बाह्य जीिन की िास्तहिकताओं को हचहत्रत कर सकते हैं।
हहदी ईपन्यास के हिकास का श्रेय ऄंिेज़ी एिं बंगला ईपन्यासों को ददया जा सकता है क्योंदक
हहदी में आस हिधा का अरं भ ऄंिेज़ी एिं बंगला ईपन्यासों की लोकहप्रयता से ही हुअ था। हहदी
में ईपन्यास हलखने की परं परा भारतेंदु युग से प्रारं भ हुइ ककतु प्रेमचंद के ईपन्यासों से आस हिधा
में बहुत व्यापकता एिं गंभीरता अइ।
प्रेमचंद को कसौटी के रूप में मानकर हहदी ईपन्यासों के हिकास क्रम का ऄध्ययन दकया
जाता है। हहदी ईपन्यासों के प्रथम चरण में हलखे गए ईपन्यासों का प्रधान ईद्देश्य मनोरं जन एिं
समाज सुधार रहा। ईस समय के ईपन्यास, ईपन्यास कला की दृहि से भले ही ईल्लेखनीय नहीं
थे ककतु िे ईपन्यास हिधा को एक ददशा देने में सिल हुए। आस काल में सामाहजक, ऐहतहाहसक,
हतहलस्मी, जासूसी ईपन्यासों की रचना ऄहधक हुइ हैं। ऄतः यह कहा जा सकता है दक आस काल
में हहदी ईपन्यास ने ऄपना मागज तलाश कर हलया था जहााँ से अगे का रास्ता स्पि एिं सीधा
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था।
प्रेमचंद ने हहदी कथा साहहत्य को मनोरं जन के स्तर से उपर ईठाकर जीिन के साथ
जोड़ने का काम दकया। प्रेमचंद के ईपन्यास जीिन के हिहिध पहलुओं से जुड़े हुए हैं। हिषयिस्तु
एिं हशल्प दोनों ही दृहियों से प्रेमचंद के समक्ष हहदी का कोइ ऄन्य ईपन्यासकार को खड़ा नहीं
दकया जा सकता। ईनके ईपन्यासों की प्रमुख हिशेषता है -अदशोन्मुख यथाथजिाद हजसके
कारण िे पाठकों में ऄहधक लोकहप्रय हुए।
तीसरे चरण के ईपन्यासों में हिषय िैहिध्य एिं हशल्पगत निीनता ददखाइ पड़ती है। आस
समय के ईपन्यासकारों ने सामाहजक समस्याओं को हिषय िस्तु बनाया तथा दूसरी ओर
ऐहतहाहसक कथानकों पर निीन दृहि से हिचार करते हुए मनोरं जन एिं सुरुहचपूणज ईपन्यासों
की रचना की। राजनीहतक, सामाहजक, ऐहतहाहसक और मनोिैज्ञाहनक ईपन्यासों की रचना के
कारण आस काल में ईपन्यास का हक्षहतज बहुत हिशाल हो गया।
हहदी के ईपन्यास साहहत्य में सन 1936 के बाद एक नया मोड़ अया। प्रेमचंद के पश्चात
हहदी ईपन्यास का व्यापक हिकास हुअ। एक ओर फ्रायड के मनोहिज्ञान और दूसरी ओर
माक्सजिादी हिचारधारा के प्रभाि के कारण हहदी में दो प्रकार के ईपन्यासों का लेखन शुरू हुअ
-एक मनोिैज्ञाहनक और दूसरा सामाहजक। सन 1936 के बाद देश की बुहद्धजीहियों में
माक्सजिादी हिचारधारा का प्रभाि गहरा हुअ और हहदी ईपन्यासों में यह प्रगहतिादी अंदोलन
के रूप में ईभरा। आस हिचारधारा के ऄंतगजत जो सामाहजक ईपन्यासकार हुए ईनमें प्रमुख हैं -
यशपाल, नागाजुजन, रांगेय राघि, राहुल सांकृत्यायन अदद। प्रेमचंदोिर ईपन्यासों में तीसरी
धारा अंचहलक ईपन्यासों की थी हजसमें दकसी ऄंचल हिशेष का िणजन होता है। चौथी धारा
ऐहतहाहसक ईपन्यासकारों की रही। आस प्रकार प्रेमचंद के बाद भी हहदी ईपन्यास का बहुत
ऄहधक हिकास हुअ और अज भी हो रहा है।
353
4. श्रद्धाराम िु ल्लौरी के ईपन्यास ‘भाग्यिती (1877( ’और लाला श्रीहनिासदास के
ईपन्यास ‘परीक्षा गुरु (1882( ’को भी हहदी के अरं हभक ईपन्यास होने का गौरि प्राप्त
है।
5. हहदी ईपन्यास को जमीन से असमान तक पहुाँचाने का श्रेय प्रेमचंद को जाता है।
आसीहलए ईन्हें ‘ईपन्यास सम्राट ’और ईनके युग को ‘प्रेमचंद युग ’कहा जाता है।
6. प्रेमचंद युग और ईनके बाद के समय में हहदी ईपन्यास का बहुमुखी हिकास हुअ। आस
ऄिहध में हहदी ईपन्यास में ऄनेक प्रिृहियााँ हिकहसत हुईं।
7. संपूणज जीिन युगबोध ,अदशज ,यथाथज ,मनोहिज्ञान और हिमशों को समेटने के कारण
ईपन्यास हिधा को अधुहनक साहहत्य में िही स्थान प्राप्त है जो प्राचीन और मध्यकालीन
साहहत्य में महाकाव्य को प्राप्त था।
5. महाकाव्य = बहुत बड़ा िंथ हजसमें प्रायः सभी रसों, ऊतुओं और प्राकृ हतक
दृश्यों अदद का िणजन होता है।
6. मौहलक = ऄसली
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खंड (ब(
हनम्नहलहखत प्रश्नों के ईिर लगभग 200 शधदों में दीहजए।
1. ईपन्यास के ऄथज और पररभाषा पर हिचार कीहजए।
2. हहदी ईपन्यासों के हिकास क्रम में प्रेमचंद पूिज युग के योगदान के बारे में बताआए।
3. प्रेमचंद के ईपन्यास कला पर प्रकाश डाहलए।
4. प्रेमचंदोिर हहदी ईपन्यास के ऄंतगजत अने िाले अधुहनकता बोध के ईपन्यासों की चचाज
कीहजए।
खंड (स(
1. ‘मैं ईपन्यास को मानि चररत्र का हचत्र मात्र मानता हाँ।’ यह दकसकी ईहि है?( (
(ऄ(जयशंकर प्रसाद (अ(प्रेमचंद (आ(पं .गौरीदि (इ(राही मासूम रज़ा
2. जयशंकर प्रसाद का ऄधूरा ईपन्यास कौन-सा है? ( (
(ऄ(आरािती (अ(कं काल (आ(हततली (इ(हभखाररणी
3. ‘अधा गााँि’ दकसकी रचना है? ( (
(ऄ(जयशंकर प्रसाद (अ(प्रेमचंद (आ(पं .गौरीदि (इ(राही मासूम रज़ा
III सुमल
े कीहजए
i) नूतन ब्रह्मचारी (ऄ(श्रद्धाराम िु ल्लौरी
355
23.7 पठनीय पुस्तकें
1. हहदी साहहत्य का आहतहास, सं .नगेंद्र और हरदयाल
2. हहदी का गद्य साहहत्य ,रामचंद्र हतिारी
3. हहदी साहहत्य और संिेदना का हिकास, रामस्िरूप चतुिेदी
4. हहदी साहहत्य का निीन आहतहास ,लाल साहब हसह
5. अधुहनक हहदी साहहत्य का आहतहास ,बच्चन हसह
356
आकाइ 24 : हहदी कहानी :ईद्भि और हिकास
आकाइ की रूपरे खा
24.0 प्रस्तािना
24.1 ईद्देश्य
24.2 मूल पाठ : हहदी कहानी :ईद्भि और हिकास
24.2.1 कहानी :ऄथज और पररभाषा
24.2.2 हहदी की पहली कहानी
24.2.3 हहदी कहानी का हिकास क्रम
24.2.3.1 प्रेमचंद पूिज युग
24.2.3.2 प्रेमचंद का कहानी साहहत्य
24.2.3.3 प्रेमचंद युगीन कहानी
24.2.3.4 प्रेमचंदोिर कहानी
24.2.3.5 नइ कहानी
24.3 पाठ-सार
24.4 पाठ की ईपलहधधयााँ
24.5 शधद संपदा
24.6 परीक्षाथज प्रश्न
24.7 पठनीय पुस्तकें
24.0 प्रस्तािना
अधुहनक साहहत्य के समस्त हिधाओं में कहानी सिाजहधक लोकहप्रय हिधा है। आसका
आहतहास मानि-जाहत के आहतहास के साथ-साथ अरं भ होता है। कहने का ऄथज है दक कहानी
कहने और सुनने की प्रिृहि मानि में अददकाल से चली अ रही है। हमारे प्राचीन िेद, पुराण,
ईपहनषद, महाभारत, रामायण अदद में ऄनेक कथाएाँ पाइ जाती हैं। हिगत सौ िषों में हहदी
कहानी ने जो अशातीत प्रगहत की है, िह ईत्साहिद्धजक है। ऄन्य सभी गद्य हिधाओं की ऄपेक्षा
अज की हहदी कहानी में युगबोध की क्षमता सबसे ऄहधक ददखाइ पड़ती है। कहानी का मुख्य
ईद्देश्य होता है कम से कम शधदों में ऄपनी संिेदना को व्यि करना। कहानी में कहने की
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हिशेषता हमेशा महत्िपूणज रही है। लोक और हशि दोनों रूपों में ईसका संबंध िाहचक परं परा
से ऄहधक रहा है।
24.1 ईद्देश्य
ईपन्यास और कहानी दोनों में ही कथा तत्ि होता है। ऄतः लोगों की यह धारणा रही दक
ईपन्यास और कहानी में के िल अकार का ही भेद है ,ककतु ऄब यह धारणा बदल गइ। कहानी में
जीिन के दकसी एक ऄंग या संिेदना को ददखाया जाता है जबदक ईपन्यास में समि जीिन को
ददखलाया जाता है। कहानी पाठक के साथ पूणज तादात्म्य स्थाहपत करती चलती है। पाठक
कहानी को पढ़ कर कु छ ऐसा ऄनुभि करता है दक जैसे कहानी का पात्र िह स्ियं हो ,कहानी की
घटनाएाँ ईसकी ऄपनी घटनाएाँ हों ,जो ईसके ऄंतःकरण को स्पशज करती चलती हों।
कहानी में पररितजनशीलता का हिशेष गुण पाया जाता है। जैस-े जसे मानि का रूप
बदला ,िैस-े िैसे ईसकी हिचारधाराएाँ बदलीं और ईसकी भािनाओं और ऄहभव्यहियों में समय
के ऄनुसार पररितजन होता चला गया। आसके साथ ही कहानी के रूप और हशल्प में भी बदलाि
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होरहा है। पहले तोता मैना ,राजा रानी आत्यादद हिषयों पर कहाहनयााँ हलखी जाती थीं। लेदकन
अज पररिार ,समाज ,राष्ट्र और यहााँ तक दकपूरे हिश्व के हिषयों को लेकर कहाहनयााँ हलखी जा
रही हैं। अज कहानी के माध्यम से जीिन-यथाथज को स्िाभाहिक ढंग से ईजागर दकया जा रहा
है।
हहदी कहानी के ईद्भि और हिकास में बांगला साहहत्य का हिशेष योगदान रहा है।
ऄंिेज़ी का साहहत्य ऄनुिाद के रूप में बंगला में अया और बंगला से हहदी में। हहदी कहानी के
ईद्भि की शुरूअत यहीं से मानी जा सकती है। प्रेमचंद के ऄनुसार “कहानी िह ध्रुपद की तान
है, हजसमें गायक महदिल शुरू होते ही ऄपनी संपूणज प्रहतभा ददखा देता है, एक क्षण में हचि को
आतने माधुयज से पररपूणज कर देता है, हजतना रात भर गाना सुनने से भी नहीं हो सकता। ”
हहदी के प्रहसद्ध कहि एिं कथाकार ऄज्ञेय के ऄनुसार “कहानी एक सूक्ष्मदशी यंत्र है
हजसके नीचे मानिीय ऄहस्तत्ि के दृश्य खुलते हैं। ”आस प्रकार कहा जा सकता है दक अज की
हहदी कहानी ऄपनी सामाहजक हज़म्मेदारी को हनभाते हुए जीिन के ऄनेक पक्षों का समि और
सटीक हचत्रण कर रही है।
बोध प्रश्न
युगबोध दकसे कहते हैं?
कहानी पढ़ने के बाद पाठक क्या ऄनुभि करता है?
प्रेमचंद के ऄनुसार कहानी क्या है?
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िास्तहिक घटनाओं को अधार बनाकर कहाहनयााँ हलखी गईं। शुरूअती कहानीकारों में
दकशोरीलाल गोस्िामी, माधिप्रसाद हमश्र, बंगमहहला, रामचंद्र शुक्ल, जयशंकर प्रसाद,
िृंदािनलाल िमाज अदद ईल्लेखनीय हैं। दकशोरीलाल गोस्िामी की कहानी ‘आं दम
ु ती’ 1900 इ .
में ‘सरस्िती’ में प्रकाहशत हुइ। यह कहानी शेक्स्पीयर के नाटक ‘टेम्पेस्ट’ के अधार पर हलखी
गइ है। 1902 इ .में समाज की िास्तहिक पररहस्थहत का हचत्र प्रस्तुत करने िाली रचना
भगिानदीन बी.ए .कृ त ‘प्लेग की चुड़ल
ै ’ प्रकाहशत हुइ। ‘सरस्िती’ में ही रामचंद्र शुक्ल की
‘ग्यारह िषज का समय’ (1903 इ.( और बंगमहहला (राजेंद्र बाला घोष( की ‘दुलाइिाली’ (1907
इ.( कहाहनयााँ प्रकाहशत हुईं। 1909 इ .में ही ‘आं द’ु माहसक का प्रकाशन काशी से हुअ और
आसमें जयशंकर प्रसाद की भािात्मक कहाहनयााँ प्रकाहशत हुईं। ईनकी पहली कहानी है ‘िाम’
(1911(। 1913-14 के असपास प्रेमचंद की भी कु छ कहाहनयााँ ‘ज़माना’ पहत्रका में प्रकाहशत
होने लगी थीं और सौत (1915(, पंच परमेश्वर (1916(, सज्जनता का दंड (1916( अदद
कहाहनयााँ ‘सरस्िती’ में प्रकाहशत हुईं। 1915 में ही चंद्रधरशमाज गुलरे ी की प्रहसद्ध कहानी ‘ईसने
कहा था’‘सरस्िती’ पहत्रका में प्रकाहशत हुइ। आस कहानी में भारतीय संस्कृ हत में त्यागमय प्रेम के
महत्ि को ददखाया गया है। यह कहानी रचनाशीलता की दृहि से ऄपने समय से बहुत अगे की
रचना है। ऐसा कहा जाता है दक अधुहनक हहदी कहानी का अरं भ यहीं से मान्य होना चाहहए।
आस कहानी के संदभज में गोपाल राय ने कहा है दक “यह प्रेम-संिेदना की ऐसी कहानी है, हजसकी
टक्कर की बहुत कम कहाहनयााँ हहदी में हलखी गइ हैं। बचपन की प्रेम-संिेदना प्राणों का मूल्य
चुकाकर दकतनी महाघज हो जाती है,‘ईसने कहा था’ आसका बेजोड़ ईदाहरण है। छोटे-छोटे पााँच
प्रसंगों में प्रस्तुत यह प्रेम-संिेदना, ऄपनी प्रभाि-हनर्ममहत में, ऄद्भुत है। ”
हहदी कहानी की हिकास यात्रा का प्रारं भ 1900 इ .के असपास ही माना जा सकता है,
क्योंदक आससे पूिज हहदी में कहानी जैसी दकसी हिधा का सूत्रपात नहीं हुअ था। हहदी की प्रथम
कहानी कौन-सी है यह एक हििाद का हिषय है। आस संबंध में हजन कहाहनयों का नाम हलया
जाता है, िे हैं आं शा ऄल्ला खााँ कृ त ‘रानी के तकी की कहानी’(1803( , हशिप्रसाद हसतारे हहद
कृ त ‘राजा भोज का सपना’(1888( , दकशोरीलाल गोस्िामी कृ त ‘आं दम
ु हत’(1900( , बंगमहहला
कृ त ‘दुलाइिाली’(1907(, अचायज रामचंद्र शुक्ल कृ त ‘ग्यारह िषज का समय’(1903( ,
मधािराि सप्रे कृ त ‘एक टोकरी भर हमिी’(1901( । आनमें से प्रथम दो में कहानी कला के तत्ि
नहीं हैं। ऄतः ईन्हें हहदी कहानी की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। अचायज रामचंद्र शुक्ल ने
‘आं दम
ु हत’ को ही हहदी की प्रथम मौहलक कहानी माना है ककतु हशिदान हसह चौहान के ऄनुसार
360
यह कहानी शेक्स्पीयर के ‘टेम्पेस्ट’ का ऄनुिाद है। ऄतः यह मौहलक रचना नहीं कही जा सकती।
‘सरस्िती’ पहत्रका में ही 1903 इ .में रामचंद्र शुक्ल की कहानी ‘ग्यारह िषज का समय’
प्रकाहशत हुइ तथा 1907 इ. में बंगमहहला की ‘दुलाइिाली’। आधर निीन खोजों के अधार पर
यह हसद्ध हुअ दक सन 1901 में ‘एक टोकरी भर हमिी’ हजसके लेखक माधिराि सप्रे थे ईसे ही
हहदी की सिजप्रथम मौहलक कहानी कही जा सकती है। 1861 में रे िरें ड जे .न्यूटन रहचत
लगभाग 2400 शधदों की कथा ‘जमींदार का दृिांत’ प्रकाहशत हुइ थी। ऄजय हतिारी और
राजेंद्र गढ़िाहलया ने आसे ‘हहदी की प्रथम कहानी’ मानने की हसफ़ाररश की है। ”
बोध प्रश्न
‘ईसने कहा था’ के संदभज में गोपाल राय का क्या मत है?
हहदी की पहली कहानी दकसे माना जा सकता है और क्यों?
361
प्रसाद जी की कहाहनयााँ छपती थीं। बाद में आस पहत्रका में आलाचंद्र जोशी एिं गंगाप्रसाद
श्रीिास्ति की कहाहनयााँ भी छपने लगीं। आस समय की हलखी गइ कहाहनयों पर भारतीय एिं
हिदेशी भाषाओं की झलक देखी जा सकती है। आन कहाहनयों का मुख्य हिषय प्रेम, समाज
सुधार, नीहत हनयम तथा ईपदेश से जुड़ा हुअ है।
चंद्रधरशमाज गुलरे ी आस काल के सिजश्रेष्ठ कहानीकार कहे जा सकते हैं। ईन्होंने के िल तीन
कहाहनयााँ हलखी ‘ -ईसने कहा था’‘ ,ऄसमय जीिन ’और ‘बुद्धु का कााँटा’। आनमें से ‘ईसने कहा
था ’का प्रकाशन सन 1915 इ .में ‘सरस्िती’ पहत्रका में हुअ था। आसमें कहानी के सभी गुण
मौजूद थे। आसीहलए यह ऄपने युग की सिजश्रेष्ठ कहानी मानी जाती है। आस काल की ज़्यादातर
कहाहनयााँ अदशजिाद पर अधाररत थीं। साथ ही सामाहजक, ऐहतहाहसक, पौराहणक, जासूसी
तथा हास्य-व्यंग्य और िें टसी के रूप में भी कहाहनयों का हिकास हुअ। ककतु अदशजिाद ईस
समय सिजत्र प्रहतहष्ठत रहा।
कहानी के क्षेत्र में प्रेमचंद के अने से पहले हहदी कहानी का कोइ ठोस रूप नहीं ईभर
पाया था, ककतु चंद्रधरशमाज गुलरे ी और जयशंकर प्रसाद की कहाहनयााँ ऄपिाद हैं। आन दोनों
साहहत्यकारों की कहाहनयों में कहानी के तत्ि पाए जाते हैं। आन सभी तथ्यों पर हिचार करने के
बाद यह कहा जा सकता है दक हहदी कहानी का हिकास लगभग 1900 इ .से प्रारं भ हुअ और
धीरे -धीरे ईसका मौहलक रूप ददखाइ पड़ने लगा। ‘ईसने कहा था’ कहानी को हहदी के हिकास
की प्रथम सीढ़ी कहा जा सकता है।
बोध प्रश्न
‘ईसने कहा था’ ऄपने युग की सिजश्रेष्ठ कहानी क्यों मानी जाती है?
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प्रेमचंद हभन्न-हभन्न हिषयों पर कहाहनयााँ हलखते थे। ईनकी कहाहनयााँ ऄपने असपास के
पररिेश तथा जीिन से जुड़ी हुइ होती थीं। प्रेमचंद युगीन कहाहनयों में कु तूहलता, रोमांचकता
और मनोरं जकता का ऄभाि था। समय के साथ-साथ कहानी कला में सुधार अया और पहली
बार हहदी कहानी मनुष्य के यथाथज से जुड़ी। प्रेमचंद की ऄहधकांश कहाहनयों का हिषय िामीण
जीिन से संबद्ध है। ककतु कु छ कहाहनयााँ कस्बे की हज़दगी तथा स्कू ल-कॉलेज से भी जुड़ी हुइ हैं।
ईनकी कहाहनयों के पात्र हर िगज, धमज और जाहत के हैं। ईन्होंने ऄपनी कहाहनयों में हिहिध
समस्याओं को भी ईठाया है। जैसे जमींदारी हनरं कुशता, दकसानों का शोषण, ऊणिस्त िामीण
जनता, छु अछू त, ऄंधहिश्वास, पररिाररक हिघटन, भ्रिाचार एिं व्यहिगत जीिन की समस्याएाँ
अदद।
प्रेमचंद की प्रारं हभक कहाहनयों में अदशजिाद को देखा जा सकता है। ईनकी कहाहनयों में
पंच परमेश्वर, अत्माराम, प्रेरणा, इदगाह, नमक का दारोगा अदद ईल्लेखनीय हैं। आन कहाहनयों
के बाद प्रेमचंद के कहानी हलखने के दृहिकोण में बदलाि अने लगा। पूस की रात और किन तक
अते-अते ईनका दृहिकोण बदल गया। िे जीिन के यथाथज से जुड़ गए। ऄतः यह कहा जा सकता
है दक पहले िाली ईनकी कहाहनयााँ अदशजिादी हैं और बाद में हलखी गइ कहाहनयााँ यथाथजिादी
हैं।
समय के ऄनुसार प्रेमचंद की कहानी हलखने की कला में हिकास को देखा जा सकता है।
ईनकी प्रारं हभक कहाहनयों में व्यहि के अचरण का हचत्रण पाया जाता है। प्रेमचंद ने ऄपनी
कहाहनयों में स्िाभाहिक रूप से जीिन का यथाथज हचत्रण प्रस्तुत दकया।
सन 1930 से लेकर 1936 इ .तक का समय प्रेमचंद की कहानी कला की ईन्नहत का
समय था। आस समय की कहाहनयों में जीिन की कटु सच्चाइ का हचत्रण ऄंदकत है। आन कहाहनयों
में कथा तथा घटनाओं को ईतना महत्ि नहीं ददया गया। प्रेमचंद ने कहानी की मूल संिेदना को
पाठकों तक पहुाँचाने की ओर ही ध्यान ददया था। ‘किन’ और ‘पूस की रात’ आस िगज की
कहाहनयााँ हैं। आन कहाहनयों में यथाथज का हचत्रण है। प्रेमचंद की कहानी कला में भाषा का हिशेष
योगदान है। आनकी कहाहनयााँ भाषा की दृहि से बेजोड़ हैं। आनकी भाषा पात्रों के ऄनुकूल है तथा
ईसमें लोकोहि, मुहािरों का सहज प्रयोग देखा जा सकता है।
बोध प्रश्न
प्रेमचंद की कहानी कला की तीन प्रमुख हिशेषताएाँ बताआए।
364
24.2.3.4 प्रेमचंदोिर कहानी
1936 से लेकर 1950 तक या कहहए हद्वतीय हिश्वयुद्ध के ऄंत तक का समय हहदी कथा
संसार में प्रेमचंदोिर कहानी के रूप में जाना जाता है। प्रेमचंदोिर कहानी की यह हिशेषता था
दक िह दकसी एक ददशा की ओर नहीं बढ़ी, ऄलग-ऄलग ददशाओं में ईसका हिकास हुअ।
कहानी आस समय की मुख्य हिधा रही है ऄतः ईसने जीिन और जगत के सभी पक्षों को ऄपने में
समेटने का कायज दकया। एक ओर प्रगहतिादी हिचारधारा पर अधाररत कहाहनयााँ हलखी गईं तो
दूसरी ओर मनोहिश्लेषणिाद पर अधाररत कहाहनयााँ हलखी गईं। मनोहिश्लेषण पर अधाररत
कहाहनयों के माध्यम से व्यहि मन की अंतररक हस्थहत को जाना जा सकता है।
प्रगहतिादी कथाकारों में सिजप्रथम हैं यशपाल। आन्होंने माक्सजिाद से प्रभाहित होकर
बहुत सी कहाहनयााँ हलखीं। यशपाल की हलखी कहाहनयों का मुख्य हिषय है संघषज, शोषण,
सामाहजक एिं नैहतक रूदढ़यों पर अक्रोश। यशपाल की कहानी कला पर रटप्पणी करते हुए डॉ .
भगित स्िरूप हमश्र ने हलखा है दक “कथा हशल्प और कथ्य की दृहि से यशपाल जी प्रेमचंद के
बहुत नजदीक हैं, पर िे ऄपनी कहानी को प्रेमचंद की तरह समस्या का समाधान देने िाली
अदशज हबदु पर नहीं पहुाँचाते, ऄहपतु यथाथज की कठोरता के तीखे व्यंग्य का बोध भर करा देते
हैं। ”यशपाल के प्रमुख कहानी संिह हैं - िो दुहनया, हपजड़े की ईड़ान, िू लो का कु ताज एिं चक्कर
क्लब अदद।
ऄज्ञेय, आलाचंद्र जोशी तथा जैनेंद्र मनोहिश्लेषणिादी कहानी लेखकों की श्रेणी में अते हैं।
ऄज्ञेय की कहाहनयों में मनोहिश्लेषण के साथ-साथ प्रतीकों का प्रयोग भी ददखाइ देता है। ऄज्ञेय
की प्रमुख कहाहनयों के नाम हैं -रोज़, पुहलस की सीटी, हजामत का साबुन, गैंिीन, पठार का
धीरज, पत्नी, मास्टर साहब, परख, एक रात, िामिोन का ररकाडज, पानिाला अदद। जैनेंद्र की
कहाहनयों में मानिीय दुबजलताओं का हचत्रण प्रमुखता से हुअ है।
आलाचंद्र जोशी की कहाहनयों में मनुष्य के ऄंदर दबी हुइ काम िासना, कुं ठा अदद का
हचत्रण ददखाइ देता है। ईनकी प्रमुख कहाहनयााँ हैं रोगी, दुष्कमी, पररत्यिा अदद। आनकी
कहाहनयााँ फ्रायड के हसद्धांत का ऄनुसरण करती हुइ प्रतीत होती हैं। खंडहर की अत्माएाँ,डायरी
के नीरस पृष्ठ ईनके कहानी संिह हैं।
प्रेमचंदोिर कहानीकारों में एक िगज ईन कहानीकारों का था जो जीिन के यथाथज को
लेकर कहाहनयों की रचना करते थे। आन कहाहनयों में समाज के ऄलग-ऄलग पररहस्थहतयों एिं
समस्याओं का हचत्रण दकया गया है। आस िगज के कहानीकारों में भगिती चरण िमाज, रामिृक्ष
बेनीपुरी, हिष्णु प्रभाकर अदद का नाम प्रमुख रूप से हलया जा सकता है। आस युग में कु छ ऄन्य
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कहानीकारों ने युद्ध, क्रांहत, हशकार अदद साहहसक हिषयों को ऄपनी कहानीयों का हिषय
बनाया है। कु छ कथाकारों ने कामिासना, सौंदयजहलप्सा एिं यौन समस्याओं का हचत्रण भी
ऄपनी कहानीयों में दकया है। आस युग में हास्य-व्यंग्य से भरपूर कहाहनयााँ भी हलखी गईं।
बोध प्रश्न
प्रेमचंदोिर कहाहनयों की क्या हिशेषताएाँ हैं?
24.2.3.5 नइ कहानी
नइ कहानी की हिकास यात्रा बीसिीं शताधदी के छठे दशक में प्रारं भ हुइ। सन 1955 में
‘कहानी’ पहत्रका का प्रकाशन प्रारं भ हुअ हजसमें प्रकाहशत होने िाली कहाहनयााँ परं परागत
कहानीयों से कु छ ऄलग थीं। स्ितंत्रता के बाद जनता की मानहसकता में बदलाि अया। जीिन
के कठोर यथाथज से ईनका पररचय हुअ। भूख, गरीबी, बेरोजगारी, ऄहशक्षा जैसी समस्याओं ने
जन जीिन को पूरी तरह प्रभाहित दकया। आसहलए ‘नइ कहानी’ िास्तहिक समस्याओं से पूरी
तरह जुड़ चुकी थी।
कहानी की हिषयिस्तु और कहानी हलखने की कला दोनों सन 1950 के बाद बदलने
लगे। पुराने कहानीकारों ने समाजिादी, नैहतकिादी, रूमानी या मनोहिश्लेषणिादी चश्मा
ऄपनी अाँखों पर लगाकर जीिन को देखा, ककतु नए कहानीकारों ने सभी पुरानी बातों को
छोड़कर जीिन को यथाथज रूप से देखने-समझने का प्रयास दकया। हहदी के प्रहसद्ध कथाकार
कमलेश्वर ने नइ कहानी के हिषय में ऄपना मत व्यि करते हुए हलखा है “ -पुरानी और नइ
कहानी के बीच बदलाि का हबदु है नइ िैचाररक दृहि। ”
अज का कहानीकार पहले से ऄहधक संिेदनशील बन चुके। िह ऄपनी बात को ऄपनी
रचना के माध्यम से हबना घुमाि दिराि के असानी से कह देता है। छठे दशक के अरं भ में हहदी
कहानी में िामीण ऄंचल की कहाहनयााँ हलखी जाने लगीं। आन कहाहनयों में गााँि की तस्िीर
साि सुथरे रूप में ईभरी है। अंचहलक कहानीकारों में हशिप्रसाद हसह, माकां डेय, िणीश्वनाथ
रे णु के नाम प्रमुख हैं।
नइ कहानी में नगरों में रहने िाले लोगों की प्रिृहि को दशाजने का प्रयास दकया गया है।
आन कहाहनयों में अधुहनकता के कारण ईत्पन्न ऄके लापन, तनाि अदद को दशाजया गया है।
मोहन राके श, राजेंद्र यादि, ऄमरकांत, कमलेश्वर, हनमजल िमाज की कहाहनयों में ये हस्थहतयााँ
देखी जा सकती हैं। नइ कहानी को समृद्ध करने में हहदी कथा लेहखकाओं का भी महत्िपूणज स्थान
है। ईषा हप्रयंिदा, मन्नू भंडारी, कृ ष्णा सोबती, हशिानी, मेहरुहन्नसा परिेज़ अदद का नाम हलया
366
जा सकता है। ‘नइ कहानी’ में व्यहि की प्रहतष्ठा हनर्मििाद रूप से हुइ। मध्यिगीय चेतना और
अधुहनकता बोध ‘नइ कहानी’ की मुख्य प्रिृहियााँ हैं। सांकेहतकता ‘नइ कहानी’ की प्रमुख
हिशेषता है। सााँप (ऄज्ञेय(, राजा हनरं बहसया (कमलेश्वर(, खेल-हखलौने (राजेंद्र यादि(, सपजदश
ं
(ठाकु र प्रसाद हसह(, ऄंधकू प (हशिप्रसाद हसह( अदद कहाहनयों में सांकेहतकता को देखा जा
सकता है। नामिर हसह ने हनमजल िमाज की कहानी ‘पटरदे’ को हहदी की पहली ‘नइ कहानी’
माना है तो कु छ अलोचकों ने हशिप्रसाद हसह की कहानी ‘दादी मााँ’ को माना है।
बोध प्रश्न
‘नइ कहानी’की क्या हिशेषताएाँ हैं?
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महत्िपूणज स्थान है। अज हहदी कहानी लोकहप्रयता के चरम हशखर पर है। अधुहनक काल के
अरं भ से लेकर हहदी कहानी ने ऄपनी हिकास यात्रा में ऄनेक सोपान पार दकए हैं। नइ कहानी,
ऄकहानी, सचेतन कहानी, समांतर कहानी अदद ऄनेक कहानी अंदोलनों से गुजरते हुए कहानी
साहहत्य हिकास के ऄनेक मोड़ पार कर चुका है।
बोध प्रश्न
‘सचेतन कहानी’ अंदोलन में दकस पर बल ददया गया है?
24.3 पाठ-सार
हहदी कहानी का हिकास 1900 इ .के असपास से माना जाता है। ऄलग-ऄलग
साहहत्यकारों ने ऄलग-ऄलग कहाहनयों को हहदी की प्रथम मौहलक कहानी माना है। कथा सम्राट
प्रेमचंद को अधार मानकर हहदी कहानी साहहत्य कोहिहभन्न कालखंडों में बााँटा जाता
है।‘सरस्िती’ पहत्रका में प्रकाहशत कहाहनयों ने अरं हभक हहदी कहानी को एक ददशा प्रदान की।
जयशंकर प्रसाद की पहत्रका‘आं द’ु का भी आसमें योगदान रहा।
प्रेमचंद के अगमन से पूिज हहदी कहानी का कोइ सही रूप नहीं ईभर पाया था। ककतु
ऄपिाद के रूप में चंद्रधरशमाज गुलेरी और जयशंकर प्रसाद की कहाहनयों को हलया जा सकता
है। आस काल में हलखी गइ प्रहसद्ध कहाहनयााँ हैं -माधिप्रसाद हमश्र की ‘मन की चंचलता’,
िृंदािनलाल िमाज की ‘राखीबंद भाइ’, लाला भगिानदीन की ‘प्लेग की चुड़ल
ै ’ अदद। प्रेमचंद
हहदी के कथा सम्राट हैं। आसीहलए 1916 से लेकर 1936 के काल खंड को प्रेमचंद युग कहा
जाता है। प्रेमचंद की प्रमुख कहाहनयााँ हैं पंच परमेश्वर, बूढ़ी काकी, नशा, ठाकु र का कु अाँ, माता
का हृदय, पूस की रात, किन अदद। प्रेमचंद के समकालीन कहानीकारों में पं.हिश्वंभरनाथ शमाज
कौहशक, सुदशजन, जयशंकर प्रसाद, पांडय
े बेचन शमाज ईि, भगिती प्रसाद िाजपेयी, जैनेंद्र,
ऄज्ञेय, आलाचंद्र जोशी, यशपाल अदद ईल्लेखनीय हैं।
प्रेमचंदोिर कहाहनयों का समय मोटे तौर पर 1936 से लेकर 1950 इ .तक माना जाता
है। आस काल में प्रगहतिाद एिं मनोहिश्लेषणिाद पर अधाररत कहाहनयााँ हलखी जाती थीं।
प्रगहतिादी कथाकारों में प्रमुख हैं यशपाल हजन्होंने िगज संघषज, शोषण, सामाहजक एिं नैहतक
रूदढ़यों पर खुलकर हलखा। मनोहिश्लेषणिादी कहानी लेखकों में ऄज्ञेय, आलाचंद्र जोशी एिं
जैनेंद्र प्रमुख हैं।
आस काल में यथाथजिाद पर अधाररत कहाहनयााँ भी हलखी जा रही थीं। आस समय के
कथाकारों ने अधुहनक समाज की हिहभन्न पररहस्थहतयों एिं समस्याओं को नजर में रखकर
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कहाहनयों की रचना की है। आस िगज के मुख्य कहानीकार हैं भगितीचरण िमाज, जानकीिल्लभ
शास्त्री, रामिृक्ष बेनीपुरी, हिष्णु प्रभाकर अदद।
नइ कहानी की हिकास यात्रा बीसिीं शताधदी के छठे दशक के अरं भ में शुरू हुइ।
स्ितंत्रता के बाद जनता की मानहसकता में बदलाि अया। भूख, गरीबी, बेरोजगारी, ऄहशक्षा
जैसी समस्याओं ने हमारे जन-जीिन को पूरी तरह से प्रभाहित दकया है। आस समय का
कहानीकार पहले से ऄहधक संिेदनशील थे। िह ऄपनी बात को ऄपनी रचना के माध्यम से
हबना घुमाि-दिराि के असानी से कह देतेथे। छठे दशक के अरं भ में हहदी कहानी में िामीण
ऄंचल की कहाहनयााँ हलखी जाने लगीं। ‘नइ कहानी’ में नगरों में रहने िाले लोगों की प्रिृहि को
ददखाने का प्रयास दकया गया है। मोहन राके श, राजेंद्र यादि, ऄमरकांत, कमलेश्वर, हनमजल िमाज
अदद ‘नइ कहानी’ अंदोलन के मुख्य कहानीकार थे। ‘नइ कहानी’ को समृद्ध करने में हहदी कथा
लेहखकाओं का भी महत्िपूणज योगदान रहा।
स्िातंत्र्योिर कहानी लेखन में कइ कहानी अंदोलनों की शुरूअत हुइ। जैसे नइ कहानी,
ऄकहानी, सचेतन कहानी और समांतर कहानी। आन अंदोलनों के माध्यम से ऄनेक प्रहसद्ध
कहानीकार सामने अए हजन्होंने कहानी की हशल्प एिं कथ्य में बदलाि लाया।
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परमेश्वर’ 1916 में छपी। ईन्होंने लगभग 300 कहाहनयों की रचना की। 1936 में
प्रकाहशत ‘किन’ को ईनकी अहखरी कहानी माना जाता है।
5. प्रेमचंद ने हहदी कहानी में अदशोन्मुख यथाथजिाद की नींि रखी।
6. प्रेमचंद युग और ईसके बाद के समय में हहदी कहानी का देश-देशांतर में बहुमुखी हिस्तार
और हिकास हुअ। और िह अधुहनक जीिन का दपजण बनती चली गइ।
7. ऄपनी लोकहप्रयता के कारण कहानी अधुहनक युग के साहहत्य की कें द्रीय हिधा बन चुकी
है।
24.5 शधदाथज
1. ऄहभव्यहि = प्रकट करना या जाहहर करना
2. ऄहस्तत्ि = िजूद, हमारे होने का भाि
3. ईत्साहिधजक = जोश से भरा हुअ, ईत्साह में िृहद्ध करना
4. चरम ईत्कषज = अहखरी हद, सबसे उाँचा
5. िें टसी = रम्य कल्पना
6. मनोहिश्लेषण = अधुहनक मनोहिज्ञान की एक शाखा हजसमें हिकारों काईपचार
संबंधी हििेचन दकया जाता है
7. युगबोध = दकसी समय या काल के हिषय में जानकारी
8. योगदान = सहायता देना
खंड (ब(
हनम्नहलहखत प्रश्नों के ईिर लगभग 200 शधदों में दीहजए।
1. हहदी कहानी के हिकास क्रम में प्रेमचंद पूिज युग के योगदान के बारे में स्पि कीहजए।
2. हहदी कहानी के ऄथज एिं पररभाषा पर प्रकाश डाहलए।
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3. हिहभन्न प्रकारों के कहानी अंदोलनों की चचाज कीहजए।
खंड (स(
III सुमल
े कीहजए
i)जमींदार का दृिांत (ऄ( भगिानदीन
iv)प्लेग की चुड़ल
ै (इ( रे िरें ड जे .न्यूटन
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परीक्षा प्रश्न पत्र का नमूना
यह प्रश्नपत्र तीन भागों में हिभाहजत है- भाग 1,भाग 2 और भाग 3। प्रत्येक प्रश्न के ईिर
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भाग-2
हनम्नहलहखत अठ प्रश्नों में से दकन्ही पााँचप्रश्नों के ईिर दीहजए। प्रत्येक प्रश्न का ईिर दो सौ
शधदों में देना ऄहनिायज है। 5x6 =30
हनम्नहलहखत पााँच प्रश्नों में से दकन्हीं तीन प्रश्नों के ईिर दीहजए। प्रत्येक प्रश्न का ईिर 500 शधदों
में देना ऄहनिायज है। 3x10 =30
10.अचायज रामचंद्र शुक्ल काकाल हिभाजन प्रस्तुत करते हुएऄपने हिचार प्रकट कीहजए।
11.अददकाल की सामान्य हिशेषताओं पर प्रकाश डाहलए।
12. अधुहनक काल के पूिज गद्य की हस्थहत पर प्रकाश डाहलए।
13.सूरदास की भहि भािना की हिशेषताएाँ बताआए।
14.प्रेमचंद की ईपन्यास कला पर चचाज कीहजए।
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महत्त्िपूणज हबन्दु
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महत्त्िपूणज हबन्दु
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