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Discipline Specific Elective (DSE-2)


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(Development Process and Social Movements in Contemporary India)

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नातक पा यक्रम

समकालीन भारत म िवकास प्रिक्रया


और सामािजक आंदोलन (DSE-2)
(Development Process and Social Movements in Contemporary India)

अनुक्रम
इकाई-1 : वतंत्रता के बाद िवकास प्रिक्रया
पाठ-1 : भारत म िनयोिजत िवकास की प्रिक्रया डॉ. मंगल दे व िसंह 01
पाठ-2 : उदारीकरण एवं सध
ु ार डॉ. राजेश कुमार, अनव
ु ादक : राम िकशोर 22
इकाई-2 : औ योिगक िवकास रणनीित और सामािजक संरचना पर इसका प्रभाव
पाठ-1 : िमि त अथर् यव था, िनजीकरण, संगिठत और असंगिठत म पर प्रभाव
रे वती वी मेनन, अनव
ु ादक : रजनी 46

पाठ-2 : भारत म नव म यम वगर् का उदय रे वती वी मेनन, अनव


ु ादक : काजल 70
इकाई-3 : कृिष िवकास की रणनीित और सामािजक संरचना पर इसका प्रभाव
पाठ-1 : हिरत क्रांित एवं इसके प्रभाव डॉ. सोनू कुमार 91

पाठ-2 : भारत म कृिष संकट : कृषक पर नव-उदारवादी


आिथर्क सध
ु ार का प्रभाव अंजनी कुमार, अनव
ु ादक : सिृ ट 109

इकाई-4 : सामािजक आंदोलन डॉ. संतोष कुमार िसंह, आनव


ु ादक : काजल 119

संपादक :
डॉ. मंगल दे व
डॉ. शिक्त प्रदायनी राउत

मुक्त िशक्षा िव ालय


िदल्ली िवश्विव ालय
5, के वेलरी लेन, िदल्ली-110007
इकाई-1 : वतंत्रता के बाद िवकास प्रिक्रया

पाठ-1 : भारत म िनयोिजत िवकास की प्रिक्रया


डॉ. मंगल दे व िसंह

1.1 संरचना

1.1.1 पिरचय
1.1.2 उ दे य
1.1.3 चन
ु ौितयाँ
1.1.4 िनयोजन के िवकास का इितहास
1.1.5 भारत म िनयोजन
1.1.6 योजना आयोग
1.1.7 योजना आयोग के कायर् व उ दे य
1.1.8 िनयोजन का ल य
1.1.9 िविभ न पंचवषीर्य योजनाओं की परे खा
1.1.10 पिरवतर्न का दशक और नई आिथर्क नीित
1.1.11 नीित आयोग
1.1.12 उपलि धयाँ
1.1.13 रा य की भिू मका
1.1.14 योजना का मू यांकन
1.1.15 िन कषर्
1.1.16 अ यास प्र न
1.1.17 संदभर् सच
ू ी

1.1.1 पिरचय

भारतीय अथर् य था और आिथर्क प्रणाली को म य-आय वाली बढ़ती बाजार अथर् यव था के


प म दे खा जाता है । भारत ने आिथर्क िवकास की प्रिक्रया म प्रित यिक्त आय और जीवन
तर म उ लेखनीय प्रगित की है । वतंत्रता प्राि त से लेकर 1991 तक सभी क्रिमक सरकार
ने रा य के मह वपूणर् ह तक्षेप और मौिद्रक िविनयमन के साथ संरक्षणवादी मौिद्रक नीितय
को बढ़ावा िदया। इसे लाइसस राज और रा य िनयंित्रत अथर् यव था के प म विणर्त िकया

1
गया है । शीत यु ध की समाि त व सोिवयत संघ के िवघटन के उपरांत 1991 म भग
ु तान
आपदा की ती ि थरता के कारण भारत ने यापक तर पर मौिद्रक उदारीकरण की नीित
को अपनाया। पिरणाम व प भारत की वािषर्क औसत सकल घरे लू उ पाद म लगभग 6% से
7% की व ृ िध हुई। 2013 से 2018 तक चीन को भी पीछे छोड़ते हुए भारत दिु नया की
सबसे तेजी से उभरती अथर् यव था म बदल गया। 2019 म भारत को िव व की पाँचवीं
सबसे बड़ी अथर् यव था बताया गया। पर तु कोिवड महामारी की पिरि थित म आई.एम.एफ.
ने बताया िक 2021 म 2.72 िट्रिलयन डॉलर के साथ वैि वक जी.डी.पी. म भारत का थान
7वाँ है ।

भारत की वतंत्रता के 75 वषर् म उसके नाम उपलि धय की एक लंबी सच


ू ी है । भारत
ने लोकतांित्रक प्रणाली को अपनाते हुए एक आधुिनक अथर् यव था (दिु नया म दस
ू री सबसे
तेजी से बढ़ती अथर् यव था) के िनमार्ण म अग्रसर है । वतंत्रता के समय िवकास की
रणनीित के दो प्रा प िव व म प्रचिलत थे, एक तरफ पँज
ू ीवाद और दस
ू री तरफ समाजवाद।
भारत ने इन दोन मॉडल अथार्त प्रिक्रया का सम वय कर “िमि त अथर् यव था” की नीित
का अनुसरण िकया। वत त्रता के समय, िन न प्रित यिक्त आय, गरीबी, अपयार् त
आधारभत
ू संरचना, कृिष आधािरत अथर् यव था और पँज
ू ी िनमार्ण की िन न दर का होना
औपिनवेिशक शोिषत अथर् यव था को प्रितिबि बत कर रहा था।

1.1.2 उ दे य

प्र तुत अ याय का उ दे य उन ल य और िविधय को दे खना है , िजनकी क पना वतंत्रता


के बाद की गई थी और वे कैसे िवकिसत हुए ह। उ दे य के पिरप्रे य म अथर् यव था के
प्रदशर्न की भी समीक्षा की गयी है —

• एक िनयंित्रत अथर् यव था और एक मक्


ु त बाजार अथर् यव था म आिथर्क िनयोजन की
प्रकृित के बीच भेदभाव,

• बाजारो मख
ु अथर् यव था म रा य के काय को प ट करना,

• बदलते आिथर्क पिरवेश म योजना आयोग की भिू मका तय करना,

• आिथर्क िवकास के दौरान रा य की भिू मका को बढ़ाना,

• नीित आयोग की भिू मका और उसकी उपलि धय का िव लेषण करना।

1.1.3 चन
ु ौितयाँ

एक औपिनवेिशक शोिषत अथर् य था जो उपहार व प वतंत्रता के साथ भारत को िमली।


ऐसी जजर्र अथर् य था के िलए िवकास का कौन सा प्रा प ठीक होगा इस िवषय के स दभर्
म िविभ न प्रकार की चुनौितयाँ िव यमान थी जैसे िक—

2
— सीिमत संसाधन और असीिमत आव कताएँ

— कैसे िनयोजन को लोकताि त्रक संरचना म िक्रया वयन िकया जाये

— कैसे आिथर्क द ु चक्र को तोड़कर वतः संचािलत आिथर्क व ृ िध हािसल करे ?

1.1.4 िनयोजन के िवकास का इितहास

सवर्प्रथम एम. िव वे वरै या ने ‘भारत के िलए िनयोिजत अथर् यव था’ नामक पु तक म भारत
के िनयोिजत िवकास के िलए 10 वषीर्य कायर्क्रम प्र तत
ु िकया। कांग्रेस वारा 1938 म
जवाहर लाल नेह की अ यक्षता म रा ट्रीय योजना सिमित की थापना की गयी। सिमित ने
आिथर्क िवकास के िविभ न पहलओ
ु ं पर कई पत्र प्रकािशत िकए। रा ट्रीय योजना सिमित के
अितिरक्त भारत के आठ प्रमख
ु उ योगपितय ने आिथर्क िवकास के िलए एक योजना तैयार
की, िजसे बॉ बे योजना (1944) के नाम से जाना गया। ीमन ् नारायण ने गांधीवादी
रणनीित भी बनाई थी। एम.एन. रॉय ने अप्रैल 1945 म जन योजना प्र तुत की। ये सभी
प्रा प केवल ऐितहािसक प से मह वपूणर् थे क्य िक वे केवल कागज़ की योजनाएँ थीं, िज ह
कभी आगे नहीं बढ़ाया गया। 1948 म औ योिगक नीित पर एक प्र ताव जारी करने के
अितिरक्त कुछ भी उ लेखनीय नहीं हुआ। यह प्र ताव एक रा ट्रीय योजना आयोग की
थापना के िलए सरकार की मंशा को यक्त करता है जो अथर् यव था के मह वपूणर् क्षेत्र म
रा य की भागीदारी और िवकास कायर्क्रम तैयार करे गा और उनके कायार् वयन की िनगरानी
करे गा।

1.1.5 भारत म िनयोजन

संिवधान के वारा भारत को एक गणतंत्रा मक रा य घोिषत िकया गया। आधुिनक भारत के


िनमार्ताओं ने सामािजक और आिथर्क िवकास योजना का मागर् चुना, िजसका अथर् था िक
रा य की भिू मका आिथर्क और सामािजक गितिविधय म “क्या, कैसे, िकतना, कहाँ और
िकसका” का चयन करने म सबसे आगे होगा। साथ ही रा य की मह वपूणर् भिू मका व
भागीदारी िनजी संपि और बाजार सं थान म िदखाई दे गा। य यिप हमारे संिवधान ने बाजार
की भिू मका को सीिमत रखा और रा य को बाजार के संचालन म ह तक्षेप करने के िलए भी
कहा। पिरणाम व प, म य मागर् का रा ता अपनाया गया, िमि त अथर् यव था ि टकोण,
िजसम सावर्जिनक और िनजी क्षेत्र िवकास के सामा य ल य म सिक्रय भागीदार रहते हुए
एक दस
ू रे को संतुिलत करते ह। भारत म िवकास की एक उ च और िनरं तर दर, लोग के
रहने की ि थित म प्रगितशील सध
ु ार, एक आ मिनभर्र अथर् यव था की नींव थािपत करने
के िलए गरीबी और बेरोजगारी के उ मल
ू न के िलए लोकतांित्रक योजना का िनमार्ण िकया।
य दिप 1990 के दशक म, बाजार के संबंध म रा य की भिू मका म नाटकीय प से बदलाव
आया।

3
1.1.6 योजना आयोग

वतंत्रता के उपरांत सरकार की पहली प्राथिमकता थी िक अथर् यव था की जड़ता को समा त


कर वतः संचािलत आ मिनभर्र अथर् य था की थापना करना। िवकास की इस प्रिक्रया को
सं थागत प दे ने के उ दे य से िनयोगी सिमित (1946) की सं तुित पर एक गैर
संवैधािनक एवं परामशर्दात्री सं था योजना आयोग की थापना मंित्रमंडल के प्र ताव पर 15
माचर् 1950 को की गयी। प्रधानमंत्री आयोग के पदे न अ यक्ष होते थे। उपा यक्ष आयोग का
कायर्कारी प्रमख
ु होता है , जो इसके दै िनक काय का प्रभारी होता है । कुछ मंत्री-सद य ह,
िजनम िव और योजना मंत्री प्रमुख होते थे साथ ही कई पूणक
र् ािलक सद य ह, िजनम से
प्र येक िवषय के िलए सामिू हक प से िज मेदार है । सामा य िवभाजन (जैसे दीघर्कािलक
योजना, नीित और िव ीय संसाधन), िवषय िवभाग (जैसे कृिष, उ योग, आवास, िशक्षा,
वा य, म, िवज्ञान और प्रौ योिगकी, सामािजक क याण, यापार, पिरयोजना मू यांकन,
और इसी तरह), क्षेत्र प्रभाग (रा य या क्षेत्र जैसे पहाड़ी क्षेत्र के िलए), और सेवा प्रभाग
(प्रशासन, सामा य सेवाओं और खात जैसे, प्रचार, कं यट
ू र सेवा प्रभाग, आिद से संबंिधत)
िवषय िवभाग संबंिधत मंत्रालय , रा य सरकारो साथ संपकर् बनाए रखते थे। अ य
आिधकािरक और गैर-सरकारी सं थाएँ, साथ ही साथ वयं या अ य सं थान /संगठन के
सहयोग से इस तर पर शोध अ ययन आयोिजत करती थी। वीकृत योजना कायर्क्रम के
प्रभाव का िव लेषण करने के िलए कायर्क्रम मू यांकन संगठन वारा िवशेषज्ञ मू यांकन
अ ययन आयोिजत िकए जाते ह।

भारत म केवल एक रा ट्रीय योजना थी, िजसम सभी रा य योजनाएँ शािमल थीं। रा य
के बजट आ मिनभर्र होते ह, लेिकन रा य की योजनाएँ नहीं होती ह। रा य योजना बोडर् ह।
रा य योजनाओं के समामेलन म योजना-आधािरत ह तांतरण के बजाय सत्र
ू -आधािरत
संसाधन ह तांतरण का प्रावधान है । दस
ू री ओर, योजना आयोग, कद्रीय मंत्रालय के िवकास
कायर्क्रम को रा य सरकार के िवकास कायर्क्रम को एक साथ रा ट्रीय योजना म समि वत
और एकीकृत करता था।

1.1.7 योजना आयोग के कायर् व उ दे य

िनयोिजत अथर् यव था के स दभर् म िवकास की प्रिक्रया म योजना आयोग की िन निलिखत


प्रमख
ु कायर् व उ दे य िनधार्िरत िकये गए थे—
 दे श के भौितक संसाधन व मानव शिक्त का अनुमान लगाना एवं रा ट्र की
आव यकता के अनुसार उन संसाधन की व ृ िध का पता लगाना।
 संसाधन के संतुिलत उपयोग के िलए अ य त प्रभावकारी कदम उठाना एवं योजना
का िनमार्ण करना।

4
 योजना के िक्रया वयन के चरण का िनधार्रण करना तथा उस उ दे य के िलए
संसाधन का िनयमन करना
 आिथर्क िवकास की वधाओं की ओर संकेत करना।
 योजना के प्र येक चरण के सफल िक्रया वयन के िलए आव यक तंत्र का व प
िनिमर्त करना।
 समय-समय पर योजना की चरणवार प्रगित का अवलोकन करना व आव यक उपाय
की िसफािरश करना।

1.1.8 िनयोिजत अथर् यव था का ल य

रा ट्रीय िनयोजन, रा ट्रीय ल य िनधार्िरत करने और उन ल य तक पहुँचने म मदद करने


वाले कायर्क्रम और नीितयाँ बनाने की एक िविध है । नीितय और योजनाओं को एक-दस
ू रे के
साथ िव वसनीय होना चािहए, िव ीय और भौितक दोन तरह के रा य संसाधन के इ टतम
उपयोग की रक्षा करना चािहए, और इस भागीदारी के िलए अथर् यव था की प्रितिक्रया
सहानुभिू त पर आधािरत होना चािहए। िवकास, आधुिनकीकरण, आ मिनभर्रता और सामािजक
िन पक्षता भारतीय िनयोजन के प्राथिमक ल य ह। वा तव म, ये ल य भारतीय िनयोजन के
प्रेरक िस धांत ह। त काल आव यकताओं और सीमाओं के आधार पर प्र येक िवकास योजना,
उ दे य के इस बुिनयादी ढाँचे के भीतर कुछ प्राथिमकताएँ प्रदान करती है ।

1.1.8.1 आिथर्क िवकास

भारतीय िनयोजन का प्राथिमक ल य अथर् यव था के िलए एक लोकतांित्रक ढाँचे के भीतर


िजतनी ज दी संभव हो सके िवकास को प्रा त करना था। िन न प्रित यिक्त आय और
बहुसख्
ं यक आबादी के जीवन िन न तर वाले दे श म रा ट्रीय आय बढ़ाना हमेशा िवकास
योजना का प्राथिमक ल य रहा है । पहली पंचवषीर्य योजना को छोड़कर, जहाँ पर ल य 2.1
प्रितशत पर मामल
ू ी था, अ य योजनाओं म कुछ हद तक उ च दर के साथ रा ट्रीय आय की
ल य व ृ िध दर लगातार लगभग 5% बनी रही। दस
ू री पंचवषीर्य योजना के दौरान, िवकास
की अपेिक्षत दर 4.5 प्रितशत थी, िजसे तीसरी पंचवषीर्य योजना के िलए बढ़ाकर 5.6
प्रितशत और पन
ु : संशोिधत चौथी पंचवषीर्य योजना के िलए 5.7 प्रितशत कर िदया गया था।
तथािप, संशोिधत छठी पंचवषीर्य योजना का ल य घटाकर 5.2 प्रितशत (1980-85) कर
िदया गया। सातवीं पंचवषीर्य योजना के िलए, कम से कम 5% की व ृ िध का ल य या
अपेिक्षत दर िनधार्िरत िकया गया था (1985-90)। आठवीं, नौवीं, दसवीं और ग्यारहवीं
योजनाओं के िलए क्रमशः 5.6, 6.5, 8.1 और 9.0 प्रितशत व ृ िध ल य िनधार्िरत िकए गए
थे।

5
बारहवीं योजना अविध चुनौितयाँ और अवसर दोन प्रदान करती है । इस योजना की
शु आत ऐसे समय म हुई जब दिु नया भर की अथर् यव था िव ीय संकट से गजु र रही थी,
जो यूरोजोन की सरकारी ऋण गड़बिड़य के कारण उ प न हुई थी, िजससे ग्यारहवीं योजना
के अंितम वषर् म िव फोट हो गया था। इस संकट ने भारत सिहत सभी दे श को बढ़ा-चढ़ा
कर पेश िकया। 2011-12 म हमारी व ृ िध धीमी होकर 6.2% हो गई और बारहवीं योजना
के पहले वषर् म मंदी जारी रही, जब अथर् यव था के केवल 5% बढ़ने का अनुमान लगाया
गया था। अथर् यव था के बहुत तेजी से िवकिसत होने की अ यक्तता ग्यारहवीं योजना के
अनुभव से प ट होती है , िजसने 2007-08 से 2011-12 की अविध के िलए 8% की औसत
व ृ िध दर को आकार िदया। यह ग्यारहवीं योजना के 9 प्रितशत के ल य से कम लेिकन
दसवीं योजना की 7.6 प्रितशत की सफलता से अिधक था और कुछ योजना अविध म
भारतीय अथर् यव था वारा दजर् की गई अब तक की सबसे ऊपरी िवकास दर भी थी।

1.1.8.2 आधुिनकीकरण

अथर् यव था का आधुिनकीकरण दस
ू रा प्राथिमक ल य रहा है । आधुिनकीकरण के िलए
आिथर्क संचालन म संरचना मक और सं थागत पिरवतर्न की आव यकता होती है िजसके
पिरणाम व प एक प्रगितशील, समकालीन अथर् यव था को प्रा त िकया जा सकता है । इसके
िलए तीन आिथर्क क्षेत्र , अथार्त ् कृिष, उ योग और सेवाओं म आधुिनकीकरण की
आव यकता है । सबसे मह वपूणर् ल य म से एक कृिष से लेकर उ योग और सेवाओं तक
रा ट्रीय आय म कृिष के योगदान को बदलना है । औपिनवेिशक िवरासत के पिरणाम व प,
उ पादन और रोजगार के मामले म कृिष तीन उ योग म सबसे बड़ा रहा है । आधुिनकीकरण
का एक अ य मह वपण
ू र् िह सा एक िविवध अथर् यव था का िनमार्ण है जो पँज
ू ीगत व तओ
ु ं
सिहत माल की एक िव तत
ृ ंख
ृ ला उ प न करता है ।

यह इंजीिनयिरंग, रसायन, पेट्रोिलयम और अ य संबंिधत क्षेत्र म नए उ योग के


िनमार्ण पर जोर दे ता है । आिथर्क आधुिनकीकरण के सबसे मह वपूणर् पहलओ
ु ं म से एक है ,
उ पाद की गण
ु व ा म सध
ु ार और/या लागत कम करके, साथ ही साथ म और अ य
संसाधन उ पादकता को बढ़ाकर अथर् यव था को और अिधक कुशल बनाने के िलए
प्रौ योिगकी और नवाचार की उ नित। इस प्रकार, अथर् यव था के आधुिनकीकरण और
िवकास के िलए कुछ सं थागत सध
ु ार की आव यकता है ।

1.1.8.3 वावलंबन

भारतीय आिथर्क िनयोजन का तीसरा प्राथिमक ल य कम से कम 1980 के दशक तक दे श


को आ मिनभर्र बनाना था। इसम कुछ मह वपूणर् व तुओं के िलए िवदे शी सहायता और
आयात पर िनभर्रता को कम करना और अंततः समा त करना शािमल था। इसके िलए

6
आयात प्रित थापन की आव यकता होती है , िजसम समान सामान आयात करने के बजाय
घर पर बनाना पड़ता है । इसके िलए िनयार्त म व ृ िध और िविवधता की आव यकता है तािक
हम अपने िवदे शी मद्र
ु ा लाभ के साथ भग
ु तान कर सक। कृिष के मामले म खा या न और
औ योिगक क चे माल के उ पादन म आ मिनभर्रता पर जोर िदया जाता था। जल
ु ाई 1991
के बाद वै वीकरण और भारतीय अथर् यव था के खुलने के साथ, दे श की अथर् यव था एक
बाहरी फोकस म थानांतिरत हो गई।

1.1.8.4 सामािजक याय

एक अ य प्रमख
ु उ दे य, िवशेष प से समाज के सबसे गरीब सद य के िलए सामािजक
याय की गारं टी दे ना था। इसम भिू महीन खेितहर मजदरू , िश पकार, अनुसिू चत जाित और
जनजाित के सद य, मिहलाएँ और ब चे आिद जैसे समाज के गरीब के रहने की ि थित को
ऊपर उठाना शािमल था। इसम आय और पिरसंपि िवतरण असमानताओं को कम करना भी
शािमल था िवशेष प से ग्रामीण क्षेत्र म जहाँ भिू म व आय का प्राथिमक ोत असमान प
से िवभािजत था। इसम गरीब के िलए कई क याणकारी कायर्क्रम भी शािमल थे, जैसे िवशेष
रोजगार कायर्क्रम, भिू म सध
ु ार। छोटे िकसान के संदभर् म, उ पादन और उपभोग दोन के
िलए िरयायती या िरयायती व तुओं का प्रावधान।

इस प्रकार, हमारी िवकास योजना का प्राथिमक ल य तेजी से आिथर्क िवकास,


आधुिनकीकरण, आ मिनभर्रता, आय और धन की असमानताओं का उ मल
ू न, आिथर्क और
राजनीितक समेकन की रोकथाम, और एक वतंत्र समान समाज को बढ़ावा दे ने वाले मू य
और ि टकोण को प्राथिमकता दे ना था।

वतंत्रता के बाद, भारत की पहली पंचवषीर्य योजना (FYP) 1951 म प्रधानमंत्री


जवाहरलाल नेह के समाजवादी प्रभाव के तहत शु की गई थी। माचर् 1950 म योजना
आयोग की थापना इस उ दे य के साथ िकया गया िक दे श के संसाधन के कुशल दोहन,
उ पादन म व ृ िध, और सभी के िलए अवसर प्रदान करने के मा यम से लोग के जीवन
तर म तेजी से व ृ िध को बढ़ावा दे ने के िलए सरकार के घोिषत ल य को प्रा त िकया जा
सके। योजना आयोग को दे श के सभी संसाधन का आकलन करने, जो अपयार् त थे उ ह
पूरक करने, संसाधन के सबसे कुशल और संतुिलत उपयोग के िलए योजनाएँ तैयार करने
और योजनाओं का िनधार्रण करने का काम स पा गया था।

शु आती आठ योजनाओं का जोर भारी और बुिनयादी उ योग म बड़े पैमाने पर िनवेश


के साथ बढ़ते सावर्जिनक क्षेत्र पर था, लेिकन 1991 की नई आिथर्क नीित के उपरांत
िनजीकरण, उदारीकरण और वै वीकरण को अपनाया गया। रा य की भिू मका म यापक
पिरवतर्न िदखायी िदया।

7
1.1.9 िविभ न पंचवषीर्य योजनाओं की परे खा

पहली पंचवषीर्य योजना (1951-56)

• वा तिवक व ृ िध 3.6% थी जबिक ल य 2.1% था।

• इसका िनमार्ण द है रोड-डोमर मॉडल पर िकया गया था।

• पहली पंचवषीर्य योजना की शु आत म, दे श प्रवािसय की आमद, गंभीर भोजन की कमी


और बढ़ती मद्र
ु ा फीित का सामना कर रहा था।

• योजना म कृिष, मू य ि थरता, िबजली और पिरवहन सभी को संबोिधत िकया गया था।

• योजना के िपछले दो वष म अ छी पैदावार के कारण रणनीित सफल रही। शरणाथीर्


पुनवार्स, खा य आ मिनभर्रता और मू य िनयंत्रण के उ दे य प्रा त िकए गए थे।

दस
ू री पंचवषीर्य योजना (1956-61)

• वा तिवक व ृ िध 4.3% थी जबिक ल य 4.5% था।

• सामा य अनुमान के िलए सरल समग्र है रोड डोमर ग्रोथ मॉडल का िफर से उपयोग
िकया गया था, और कृिष और उ योग जैसे यापक क्षेत्र के संसाधन आवंटन प धित
के िलए प्रो. पी.सी. महलानोिबस के दो और चार सेक्टर मॉडल पर आधािरत थी। (इस
योजना को महालनोिबस योजना के नाम से भी जाना जाता है ।)

• दस
ू री योजना एक ि थर आिथर्क वातावरण म तैयार की गई थी। इसम कृिष को कम
प्राथिमकता दी जाती थी।

• योजना म तेजी से औ योगीकरण पर जोर िदया गया, िवशेष प से भारी और मौिलक


क्षेत्र म। िवदे शी उधारी का उपयोग करके बड़े आयात की वकालत की गई।

• 1956 की औ योिगक नीित की थापना समाज के समाजवादी पैटनर् को िवकिसत करने


के िलए आिथर्क नीित के उ दे य से की गई थी।

• िवदे शी मद्र
ु ा की भारी कमी के कारण, िवकास ल य म कटौती की गई, कीमत िपछली
योजना की तुलना म (लगभग 30%) बढ़ीं, और दस
ू री FYP केवल आंिशक प से
सफल रही।

तीसरी योजना (1961-66)

• वा तिवक व ृ िध 2.8% थी जबिक ल य 5.6% था।

8
• अपनी थापना के समय, यह सोचा गया था िक भारतीय अथर् यव था “उतार-चढ़ाव के
चरण” पर पहुँच गई है । इसका ल य भारत को “आ मिनभर्र” और “ व-उ पादक”
अथर् यव था बनाना था।

• पहली दो योजनाओं के अनुभव के आधार पर िनयार्त और उ योग का समथर्न करने के


िलए कृिष को उ च प्राथिमकता दी गई थी (कृिष उ पादन को भारत के आिथर्क िवकास
म एक सीिमत त व के प म माना जाता था)।

• चीनी आक्रमण (1962), भारत-पाक यु ध (1965) और 1965-66 म भीषण सख


ू े जैसी
अप्र यािशत घटनाओं के कारण, योजना अपने उ दे य को पूरा करने म पूणत
र् या िवफल
रही। िववाद के कारण, अंितम चरण म रक्षा और िवकास पर यान किद्रत िकया गया।

तीन वािषर्क योजना (1966-69)

• तीसरी योजना की िवफलता, िजसम पये का मू य ास (िनयार्त को प्रो सािहत करने के


िलए) और मद्र
ु ा फीित म िगरावट शािमल थी, के पिरणाम व प चौथी पंचवषीर्य योजना
थिगत कर दी गई। इसके बजाय, तीन वािषर्क योजनाएँ पेश की गईं। मौजद
ू ा कृिष
संकट और एक गंभीर खा य घाटे ने वािषर्क योजनाओं के दौरान कृिष पर यान किद्रत
िकया।

• इन कायर्क्रम के कायार् वयन के दौरान, एक पूरी तरह से नया कृिष ि टकोण िवकिसत
िकया गया था। इसम उ च उपज दे ने वाली बीज के िक म का यापक िवतरण, उवर्रक
का पयार् त उपयोग, िसंचाई क्षमता का दोहन और मद
ृ ा संरक्षण शािमल था।

• अथर् यव था वािषर्क योजनाओं के दौरान तीसरी योजना के कारण हुए झटक को सहने
म सक्षम थी।

चौथी योजना (1969-74)


• वा तिवक व ृ िध 3.3% थी जबिक ल य 5.7% था।

• भारत-पाक संघषर् के दौरान मह वपण


ू र् उपकरण और क चा माल दे ने के िलए सहयोिगय
के मना करने के पिरणाम व प चौथी योजना के दोहरे उ दे य “ि थरता के साथ
िवकास” और “आ मिनभर्रता की प्रगितशील प्राि त” के प म सामने आए।

• अ य उ योग को आगे बढ़ने की अनुमित दे ने के िलए मख्


ु य यान कृिष के िव तार की
दर था। योजना के पहले दो वष म िरकॉडर् उ पादन हुआ। कमजोर मॉनसन ू की वजह से
िपछले तीन साल उ मीद पर खरे नहीं उतरे । योजना के प्रमख
ु उ दे य म पिरवार
िनयोजन कायर्क्रम का कायार् वयन शािमल था।

9
• 1971 के भारत-पाक यु ध से पहले और उसके दौरान बांग्लादे शी प्रवािसय का अवैध
घुसपैठ, साथ ही संकट के अनुपात म मू य की ि थित िवकिसत होना एक प्रमख
ु मु दा
था, और रणनीित को एक बड़ी िवफलता के प म दे खा जाता है ।

पाँचवीं योजना (1974-79)

• वा तिवक व ृ िध 4.8% थी जबिक ल य 4.4% था।

• डी.पी. धर ने पाँचवीं योजना का अंितम मसौदा तैयार िकया और एक आिथर्क संकट की


प ृ ठभिू म के िखलाफ शु िकया, िजसके पिरणाम व प तेल की कीमत म बढ़ोतरी और
थोक गेहूँ यापार को संभालने म सरकार की िवफलता के कारण िनयंत्रण से बाहर
मद्र
ु ा फीित हुई।
• इसने दो प्रमख
ु ल य को प्रा त करने का सझ
ु ाव िदया—“गरीबी उ मल
ू न” (गरीबी हटाओ)
और “आ मिनभर्रता।”

• उ च िवकास दर को बढ़ावा दे ने से आय िवतरण म सध ु ार हुआ और घरे लू बचत दर म


उ लेखनीय व ृ िध को मह वपूणर् साधन के प म दे खा गया।

• उ च मद्र
ु ा फीित के कारण योजना के िलए लागत अनुमान पूरी तरह से गलत थे, और
मल
ू सावर्जिनक क्षेत्र के खचर् को ऊपर की ओर संशोिधत करना पड़ा। 1975 म
आपातकाल की घोषणा के बाद, प्रधानमंत्री की 20-सत्र
ू ीय योजना के कायार् वयन पर
यान किद्रत िकया गया। जब 1978 म जनता पाटीर् स ा म आई, तो FYP को
प ृ ठभिू म म भेज िदया गया, और योजना को र द कर िदया गया।

रोिलंग लान (1978-80)

कुल िमलाकर दो छठी योजनाएँ थीं। नेह मॉडल के िवपरीत, िजसकी सरकार ने स ा के
कद्रीकरण, बढ़ती असमानता और बढ़ती गरीबी के िलए आलोचना की, जनता सरकार ने
1978-1983 के िलए एक रणनीित प्र तािवत की जो रोजगार पर किद्रत थी। दस
ू री ओर,
सरकार केवल दो साल तक चली। 1980 म जब कांग्रेस ने स ा हािसल की, तो उसने
आिथर्क िवकास के िलए अनुकूल पिरि थितय का िनमार्ण करके गरीबी की सम या का सीधे
सामना करने के उ दे य से एक नई रणनीित शु की।

छठी योजना (1980-85)

• वा तिवक व ृ िध 5.7% थी जबिक ल य 5.2% था।

• छठी पंचवषीर्य योजना म आिथर्क उदारीकरण की शु आत पर प्रकाश डाला गया। राशन


की दक
ु ान बंद कर दी गईं और मू य सीमा हटा दी गई। इससे खा य कीमत म व ृ िध
के साथ-साथ जीवन यापन का खचर् भी बढ़ गया।

10
• इस समय नेह वादी समाजवाद का अंत हो गया। िशवरमन सिमित ने िसफािरश की िक
12 जल
ु ाई 1982 को ग्रामीण क्षेत्र के िवकास के िलए रा ट्रीय कृिष और ग्रामीण िवकास
बक की थापना की जाए।

• अिधक जनसंख्या से बचने के िलए पिरवार िनयोजन का भी िव तार िकया गया।

• चीन के कठोर और अिनवायर् एक ब चे पर प्रितबंध के िवपरीत, भारत की नीित


जबरद ती की धमिकय पर आधािरत नहीं थी।

• रा ट्रीय राज व म व ृ िध, तकनीकी आधिु नकीकरण, कौशल ह तांतरण (TRYSEM) और


(IRDP) के िलए योजनाओं के मा यम से गरीबी और बेरोजगारी म लगातार कमी
सिु नि चत करना और सु त मौसम कायर् (NREP), जनसंख्या िनयंत्रण, आिद प्रदान
करना, ये सभी योजना के भाग थे।

• सामा य तौर पर, योजना सफल रही क्य िक अिधकांश उ दे य को पूरा िकया गया था,
इस त य के बावजद
ू िक िपछले वषर् (1984-85) के दौरान रा ट्र के कई वग ने भयंकर
अकाल का अनुभव िकया था और कृिष उ पादन िपछले वषर् के िरकॉडर् उ पादन से कम
था।

सातवीं योजना (1985-90)

• ‘भोजन, काम और उ पादकता’ पर यान दे ने के साथ, योजना म खा या न उ पादन


बढ़ाने, रोजगार के अवसर बढ़ाने और उ पादकता बढ़ाने का प्रयास िकया गया।

• रणनीित एक बड़ी सफलता थी, क्य िक अथर् यव था म लिक्षत 5% की बजाय 6% की


दर से व ृ िध हुई, इस त य के बावजद ू िक अथर् यव था अभी भी 1980 के दशक म
‘िहंद ू िवकास दर’ से बाहर िनकलने की कोिशश कर रही थी।

आठवीं योजना (1992-97)

कद्र म राजनीितक अिनि चतता के कारण आठवीं योजना को दो साल के िलए थिगत कर
िदया गया था।

• िवकास का ल य 5.6 प्रितशत था लेिकन ल य 6.8% से अिधक हािसल िकया।

• सदी के अंत तक लगभग पूणर् रोजगार के िलए पयार् त रोजगार का सज


ृ न

• लोग के सहयोग और प्रो साहन और प्रो साहन की योजना के मा यम से जनसंख्या


व ृ िध को रोकना

11
• प्रारं िभक िशक्षा का सावर्भौमीकरण और 15-35 आयु वगर् के लोग म िनरक्षरता का
उ मल
ू न।

• सरु िक्षत पेयजल और प्राथिमक वा य दे खभाल सिु वधाओं का प्रावधान, मैला ढोने की
प्रथा का उ मल
ू न

• खा य म आ मिनभर्रता प्रा त करने और िनयार्त के िलए अिधशेष उ प न करने के िलए


कृिष का िवकास और िविवधीकरण

• सतत आधार पर िवकास प्रिक्रया का समथर्न करने के िलए बिु नयादी ढाँचे को मजबूत
करना

1.1.10 पिरवतर्न का दशक और नई आिथर्क नीित

िजस प्रकार लोक लभ ु ावनी नीित, पैकेज पॉिलिटक्स की शु वात हुई उससे सरकारी खचर् म
व ृ िध हुई और भ्र टाचार को बढावा िमला। फ्रंकेल ने अपनी पु तक इंिडयन पोिलिटकल
इकॉनमी म इसका िव तत
ृ उ लेख िकया है । 1990 तक आते–आते न केवल भारतीय
अथर् यव था म अंतिवर्रोध िदखायी िदया, अिपतु वैि वक यव था म भी अमल
ू -चल
ू पिरवतर्न
हुआ। भारत म असंतिु लत िवकास की रणनीित का पिरणाम यह रहा िक भारत म कई भारत
नजर आने लगे। आिथर्क संकट के साथ ही राजनीितक अि थरता के कारण सोना िगरवी
रखना पड़ा।

इस प्रकार उ प न आंतिरक और बा य पिरि थित के पिरणाम व प नई आिथर्क नीित


की घोषणा हुई। िजसके अंतगर्त यापक तर पर नीितगत व सं थागत पिरवतर्न िकये गए।
उदारीकरण, िनजीकरण और वैि वकरण की नीित के मा यम से बंद अथर् यव था से उदार
अथर् य था के िदशा म आगे बढ़। िजसका प्रभाव िनयोजन पर भी पड़ा और रा य की
भिू मका म बदलाव आया। जैसे—अब रा य प्र यक्ष िनयंत्रण नहीं करता, िनयंत्रण के थान पर
िनयामक की भिू मका म आ गया। उ पादन के थान पर रा य अब सिु वधा प्रदाता की
भिू मका म आ गया। ह तक्षेप के थान पर प्रो साहन दे ने की भिू मका म आ गया। िनजी
िनवेश और िनजी क्षेत्र को प्रो साहन दे ना, संरचना मक समायोजन, िव ीय अनुसाशन, कर
ढाँचे म सध
ु ार और संरचना के िवकास के मा यम से गरीबी िनवारण और रोजगार प्रो साहन
की नीित का अनस
ु रण िकया गया। कद्रीकृत िनयोजन के थान पर िवकद्रीकृत िनयोजन को
बढ़ावा िदया गया। डो फ एंड डो फ ने िजसे कमांड पॉिलिटक्स और िडमांड पॉिलिटक्स
कहा है । नई आिथर्क नीित का पिरणाम रा य की भिू मका सीिमत हो गयी, िवदे शी िनवेश म
व ृ िध हुई और भारतीय अथर् यव था िवकास के पथ पर अग्रसर हुई।

12
नौवीं योजना (1997-2002)

 नई आिथर्क नीित की घोषणा के उपरांत प्रथम पंचवषीर्य योजना

• ल य 6.5 था लेिकन वा तिवक व ृ िध 5.4 थी।

• पयार् त उ पादक रोजगार पैदा करने और गरीबी उ मल


ू न के िलए कृिष और ग्रामीण
िवकास को प्राथिमकता

• ि थर कीमत के साथ िवकास दर म तेजी

• सभी के िलए खा य और पोषण सरु क्षा, िवशेष प से कमजोर वग के िलए

• समयब ध तरीके से सभी के िलए सरु िक्षत पेयजल, पी.एच.सी. सिु वधाएँ, यू.पी.ई.,
आ य और कनेिक्टिवटी का प्रावधान

• जनसंख्या व ृ िध पर रोक

• सामािजक लामबंदी और सभी वग के लोग की भागीदारी के मा यम से िवकास प्रिक्रया


की पयार्वरणीय ि थरता

• पिरवतर्न और िवकास के एजट के प म मिहलाओं और सामािजक प से वंिचत समह



(एससी, एसटी, ओबीसी, अ पसंख्यक ) का सशिक्तकरण

• पंचायती राज सं थाओं, सहकारी सिमितय और वयं सहायता समह


ू जैसे लोग की
सहभागी सं थाओं का संवधर्न और िवकास

• आ मिनभर्रता के िनमार्ण के प्रयास को सु ढ़ बनाना

दसवीं योजना (2002-2007)


• 8.0 प्रित वषर् की सांकेितक ल य व ृ िध दर वा तिवक व ृ िध 7.6 थी।

• क याण म व ृ िध

• भोजन और अ य उपभोग की व तओ
ु ं की उपल धता
• वा य, िशक्षा, व छता और पीने के पानी की बिु नयादी सामािजक सेवाओं तक पहुँच

• सभी यिक्तय और समह


ू के िलए सामािजक और आिथर्क अवसर का िव तार
असमानताओं म कमी

• िनणर्य लेने म भागीदारी

• सामािजक क्षेत्र के िलए संसाधन का मह वपण


ू र् आवंटन और संसाधन के प्रभावी उपयोग
के िलए शासन म सबसे मह वपूणर् सध
ु ार

13
• धीरे -धीरे बढ़ते रा य की िवकास दर म तेजी

• 2007 तक गरीबी को घटाकर 15 प्रितशत और 2012 तक 5 प्रितशत िकया जाएगा

• योजना के दौरान अितिरक्त म बल को उ च गण


ु व ा वाला रोजगार
• 2003 तक सभी ब चे कूल म ह गे और सभी ब च को 2007 तक कक्षा V पूरी
करनी होगी

• साक्षरता और मजदरू ी दर म लिगक अंतर को 2007 तक घटाकर 50 प्रितशत िकया


जाएगा

• 2001-2011 के दौरान जनसंख्या व ृ िध को 16.2 प्रितशत तक कम िकया जाएगा

• साक्षरता दर को 2007 तक बढ़ाकर 75 प्रितशत िकया जाएगा

• िशशु म ृ यु दर को 2007 तक 45 और 2012 तक 28 तक कम िकया जाएगा

• मात ृ म ृ यु दर को 2007 तक घटाकर 2 और 2012 तक 1 कर िदया जाएगा

• वनावरण 2007 तक 25 प्रितशत और 2012 तक 33 प्रितशत िकया जाएगा

• 2007 तक सभी गाँव को पीने के पानी की िनरं तर पहुँच प्रदान की जाएगी

• 2007 तक प्रमख
ु प्रदिू षत निदय और 2012 तक अ य अिधसिू चत िह स की सफाई।
ग्यारहवीं योजना (2007-2012)

• आम आदमी की मदद करने के मु दे पर यूपीए के स ा म वापस आने के बाद ग्यारहवीं


योजना का उ दे य “तेज़ और अिधक समावेशी िवकास की ओर” था।

• दसवीं योजना के उपरांत, भारत दिु नया की सबसे तेजी से बढ़ती अथर् यव थाओं म से
एक बन गया था। बचत और िनवेश दर म व ृ िध हुई थी, वैि वक प्रित पधार् के सामने
औ योिगक क्षेत्र ने सराहनीय प्रदशर्न िकया था, और िवदे शी िनवेशक भारत म िनवेश
करने के िलए उ सक
ु थे। कई समह
ू िवशेष प से एससी, एसटी और अ पसंख्यक ने
िवकास को पयार् त प से समावेशी नहीं माना, जैसा िक गरीबी, कुपोषण, म ृ यु दर,
वतर्मान रोजगार और अ य कारक के आंकड़ से पता चलता है ।

• पहले वषर् म 9.3% की व ृ िध के साथ ग्यारहवीं योजना की शु आत अ छी रही, लेिकन


वैि वक िव ीय संकट के साथ, 2008-09 म िवकास दर धीमी होकर 6.7 प्रितशत हो
गई। 2009-10 और 2010-11 म, अथर् यव था म उ लेखनीय सध
ु ार हुआ, क्रमशः 8.6
प्रितशत और 9.3 प्रितशत की व ृ िध दर के साथ।

य दिप 2011 म यूरोपीय संप्रभु ऋण संकट के कारण वैि वक मंदी का दस


ू रा सत्र, तंग
मौिद्रक नीित और आपिू तर्-पक्ष बाधाओं जैसे आंतिरक कारक के पिरणाम व प 2011-12 म

14
6.2 प्रितशत की व ृ िध दर हुई। नतीजतन, ग्यारहवीं योजना के दौरान, सकल घरे लू उ पाद
(जीडीपी) की औसत वािषर्क व ृ िध दर 8% थी, जो ल य से कम लेिकन दसवीं योजना की
उपलि ध से अिधक थी। इस समयाविध के दौरान हुए दो िव व यापी संकट को दे खते हुए—
एक 2008 म और दसू रा 2011 म - 8% की व ृ िध दर को संतोषजनक माना जा सकता है ।
11वीं योजना अविध के दौरान कृिष, उ योग और सेवा क्षेत्र के 4 प्रितशत, 10-11 प्रितशत
और 9-11 प्रितशत के िवकास ल य की तुलना म क्रमशः 3.7 प्रितशत, 7.2 प्रितशत और
9.7 प्रितशत की दर से बढ़ने की उ मीद थी।

बारहवीं पंचवषीर्य योजना (2012-17)


बारहवीं योजना ऐसे समय म शु हुई जब िव व अथर् यव था एक दसू रे िव ीय संकट का
सामना कर रही थी, जो यूरोजोन के संप्रभु ऋण मु द से उ प न हुई थी, जो ग्यारहवीं
योजना के अंितम वषर् म उभरी थी। भारत समेत सभी दे श इस संकट से प्रभािवत थे। 2011-
12 म, हमारी व ृ िध 6.2 प्रितशत तक िगर गई, और यह प्रविृ बारहवीं योजना के पहले
वषर् म बनी रही, जब अथर् यव था म केवल 5% की व ृ िध की उ मीद थी।

• बारहवीं योजना इस बात पर जोर दे ती है िक अथर् यव था का शीषर् उ दे य यह


सिु नि चत करते हुए ती िवकास को बहाल करना चािहए िक यह समावेशी और िटकाऊ
दोन है । उपशीषर्क उन यापक ल य और आकांक्षाओं को दशार्ता है िज ह बारहवीं
योजना प्रा त करने का इरादा रखती है :

• तेज, िटकाऊ और अिधक समावेशी िवकास।

• समावेिशता गरीबी म कमी, समह


ू समानता और क्षेत्रीय संतुलन को बढ़ावा दे ने, गरीबी
को कम करने और लोग को सशक्त बनाने के मा यम से प्रा त की जाती है , जबिक
पयार्वरणीय ि थरता, बेहतर वा य, िशक्षा, कौशल िवकास, पौि टक भोजन, सच
ू ना
प्रौ योिगकी के मा यम से मानव पँज
ू ी के संचय के मा यम से प्रा त की जाती है ।
सं थागत क्षमताओं का िवकास, जैसे िक िबजली, दरू संचार, सड़क और पिरवहन पर बल
इ यािद।

वैि वक मंदी के अितिरक्त, कई आंतिरक मु द के कारण से घरे लू अथर् यव था म बाधाए


उ प न हुई है । अथर् यव था को राजकोषीय प्रो साहन प्रदान करने के िलए 2008 के बाद
िकए गए िव ीय िव तार के बाद, मैक्रो-आिथर्क असंतुलन सामने आया है । मद्र
ु ा फीित का
दबाव बढ़ रहा था। कई िन पादन मु द के कारण प्रमख
ु ऊजार् और पिरवहन िनवेश
पिरयोजनाएँ िपछड़ गई थी। िव ीय वषर् 2012-13 के दौरान, कर यवहार म कुछ बदलाव ने
िनवेशक के बीच िचंता पैदा कर दी। इन घटनाओं के पिरणाम व प, िनवेश की दर धीमी हो

15
गई है और आिथर्क िवकास धीमा हो गया था। इस योजना के म य म, भारत सरकार ने
नीित आयोग की घोसना कर योजना पर िवराम लगा िदया।

1.1.11 नीित आयोग

सं कृत श द म NITI का अथर् है नैितकता, प्रशासन और आचरण। लेिकन वतर्मान पिरवेश


म, इसका अथर् है नीित! इस प्रकार NITI का अथर् है नेशनल इं टी यश
ू न फॉर ट्रांसफॉिमर्ंग
इंिडया। 2014 म प्रधानमंत्री नरद्र मोदी की सरकार वारा योजना आयोग को समा त करने
की घोषणा कर िदया गया। योजना आयोग के थान पर नीित आयोग बना िदया गया, जो
भारत की वतर्मान ज रत और आकांक्षाओं का बेहतर प्रितिनिध व करता है । एक ओर, नीित
ं टक है िजसे ल य के साथ
आयोग एक सावर्जिनक नीित िथक थािपत िकया गया है ।
िजसका उ दे य रा य सरकार को बॉटम-अप ि टकोण का उपयोग करके आिथर्क नीित-
िनमार्ण प्रिक्रया म भाग लेने के िलए प्रो सािहत करना साथ ही सहकारी संघवाद के मा यम
से सतत िवकास ल य को प्रा त करना ह। दस
ू री ओर, योजना आयोग के पास रा य के
साथ-साथ उन पिरयोजनाओं पर नीितय को लागू करने का अिधकार था िज ह उसने
अनुमोिदत िकया था। नीित आयोग को धन आवंिटत करने का अिधकार नहीं िदया गया है ।
प्रधानमंत्री नीित आयोग के सीईओ की िनयुिक्त करते ह।

यह आयोग भारत के प्रधानमंत्री को वतंत्र मू यांकन कायार्लय वारा एक मू यांकन


िरपोटर् प्र तत
ु करने के बाद अि त व म आया, िजसम जनवरी 2015 म योजना आयोग को
“िनयंत्रण आयोग” से बदलने की िसफािरश की गई थी। सभी रा य के मख्
ु यमंत्री, साथ ही
िद ली और पुडुचेरी के मख्
ु यमंत्री, सभी कद्र शािसत प्रदे श के उपरा यपाल, और प्रधानमंत्री
वारा िनयक्
ु त एक उपा यक्ष, नीित आयोग पिरषद बनाते ह। अ थाई सद य भी शीषर्
िव विव यालय और शोध सं थान से चुने जाते ह। एक मख्
ु य कायर्कारी अिधकारी, चार
पदे न सद य और दो अंशकािलक सद य इस समह
ू को बनाते ह।
नीित आयोग का िनमार्ण ऑपरे िटव गवनस के 7 तंभ पर िकया गया है —(1) जनकिद्रत
(2) िवकेि द्रत (3) भागीदारी (4) सशक्त बनाना (5) सिक्रयता (6) पारदिशर्ता और (7)
समानता।

1.1.11.1 नीित आयोग के उ दे य


• संगिठत समथर्न पहल और प्रिक्रयाओं के मा यम से रा य के साथ सहकारी संघवाद
को िनरं तर आधार पर प्रो सािहत करना और यह समझना की मजबूत रा य एक मजबूत
रा ट्र के िलए बनते ह।

• ग्राम तर पर यवहायर् योजनाओं को िवकिसत करने और उस समय सरकार के उ च


तर पर उ ह एकित्रत करने के िलए प्रणाली िवकिसत करना।

16
• यह सिु नि चत करने के िलए िक रा ट्रीय सरु क्षा के उ दे य उन क्षेत्र म आिथर्क
रणनीित और नीित म एकीकृत ह जो इसे मख्
ु य प से संबोिधत कर रहे ह।

• हमारे समाज म उन लोग पर िवशेष यान दे ना जो आिथर्क प्रगित से पयार् त प से


लाभाि वत न होने के जोिखम म हो सकते ह।

• शैिक्षक और नीित अनुसध


ं ान संगठन के साथ-साथ रा ट्रीय और िव व तर पर
ं टक के बीच मागर्दशर्न प्रदान
मह वपूणर् िहतधारक और समान िवचारधारा वाले िथक
करना और सहयोग को प्रो सािहत करना।

• िवकास एजडा के कायार् वयन म तेजी लाने के िलए अंतर-िवभागीय और अंतर-क्षेत्रीय


मु द को हल करने के िलए एक मंच प्रदान करना।

• एक अ याधुिनक संसाधन कद्र का प्रबंधन करने के िलए, यायसंगत और सतत िवकास


म सश
ु ासन और सव म प्रथाओं पर अनुसध
ं ान के िलए एक भंडार के प म सहायता,
और उनके प्रसार म सहायता करना।

1.1.12 उपलि धयाँ

नवीनतम िरपोटर् 2019-20 म नीित आयोग की उपलि धय का उ लेख है —भारत म खा य


और कृिष नीितय की िनगरानी और िव लेषण (MAFAP) कायर्क्रम—यह नीित आयोग और
संयुक्त रा ट्र के खा य और कृिष संगठन के बीच एक सहयोगी अनुसध
ं ान पिरयोजना है —

• इसका उ दे य खा य और कृिष नीितय को दे खना, उनका िव लेषण और सध


ु ार करना
है ।

• एमएएफएपी कायर्क्रम का पहला चरण 23 िसतंबर से 31 िदसंबर, 2019 के बीच चला।

• एमएएफएपी कायर्क्रम का दस
ू रा चरण 1 जनवरी, 2020 और 31 िदसंबर, 2021 के
बीच िनधार्िरत है ।

• नीित आयोग की संचालन पिरषद ने शू य बजट प्राकृितक खेती को बढ़ावा िदया।

इसके अितिरक्त, पर परागत कृिष िवकास योजना (पीकेवीवाई) के तहत प्राकृितक खेती को
‘भारतीय प्राकृितक कृिष प धित’ कायर्क्रम के प म बढ़ावा िदया जा रहा है ।

ग्राम भंडारण योजना की पिरक पना की गई है । इसी तरह, कद्रीय बजट 2021 म धन
ल मी ग्राम भंडारण योजना का प्र ताव िकया गया है , िजसे अभी लागू िकया जाना है ।

1.1.13 रा य की भिू मका

भारत की िवकास रणनीित के प्रयोग और अनुभव का अ ययन करते समय, उस


राजनीितक-सं थागत संरचना को यान म रखना आव यक है जो वतंत्रता के बाद नेत ृ व

17
की पहली पीढ़ी वारा बनाई गई थी। इस संबंध म सबसे मह वपण
ू र् सं थागत मानदं ड
संसदीय लोकतंत्र की परे खा और भारतीय संघीय प्रणाली का व प और चिरत्र ह। इन सभी
मापदं ड को भारत के संवैधािनक तंत्र म औपचािरक प िदया गया था, िजसने 26 जनवरी,
1950 को भारत गणरा य म पिरचालन प्रभाव के साथ अपनी यात्रा शु की थी।

वतंत्रता के समय, भारत को िवरासत म एक कमजोर, ख ताहाल अथर् यव था िमली;


अपने “भाग्य के साथ प्रयास” की खोज म, भारत ने सामािजक संतुलन बनाए रखते हुए तेजी
से आिथर्क िवकास हािसल करने का प्रयास िकया। रा य की सिक्रय भागीदारी के िबना ल य
प्रा त करना असंभव होगा। इस प्रकार, उ योग और यापार जैसे आिथर्क गितिविधय के
िविभ न क्षेत्र म रा य को सिक्रय भिू मका िनभाने की आव यकता थी। सरकार को िव तत

िवकास योजनाओं के साथ आना होगा और िफर यह पता लगाना होगा िक उ ह कैसे
िक्रयाि वत िकया जाए। सरकार को उ यिमता के क्षेत्र म भी किमय को भरना था।

िवकास के साधन के प म पंचवषीर्य योजनाओं को अपनाया गया। यह आशा की गई


थी िक कमांिडंग हाइ स को सावर्जिनक क्षेत्र म थानांतिरत कर िदया जाएगा। िनजी पँूजी
और गितिविध को उिचत िदशा म िनदिशत करने के िलए, िनयम और िविनयम की एक
संपूणर् प्रणाली थािपत की गई थी। आवक-उ मख
ु िवकास के िलए एक रणनीित तैयार की
गई थी। इस आिथर्क रणनीित के िह से के प म िनयार्त प्रो साहन के बजाय आयात
प्रित थापन, यान का प्राथिमक िबंद ु बन गया। मजबूत सरु क्षा मक बाधाओं की दीवार के
पीछे , घरे लू उ योग थािपत िकए जाने थे। िवदे शी पँज
ू ी अंतवार्ह को उधार लेने और भारतीय
पँज
ू ी के साथ सहयोग करने वाली कंपिनय म अ पांश वािम व िनवेश की एक छोटी रािश
तक सीिमत कर िदया गया था।

इस िवकास प्रितमान म रा य को एक िवकास मशीन के पायलट के प म दे खा गया


था। इसे अंितम िनणर्य लेने वाला माना जाता था। सरकार ने दध
ू और ब्रेड जैसी िविवध
व तुओं के उ पादन के साथ-साथ भारी िबजली के उपकरण और रसायन के उ पादन के
िलए आयोजन करके अथर् यव था पर अपनी छाप छोड़ी।

जब रा य अपने घरे लू और अंतरार् ट्रीय दािय व को परू ा करने के िलए पयार् त संसाधन
उ प न नहीं कर सका, तो उसे सम याओं का सामना करना पड़ा। घरे लू मोच पर, इसने
अपनी वतर्मान खपत की ज रत को पूरा करने के िलए उधार लेना शु कर िदया, और
इसका चालू खाता घाटा खतरनाक प से बढ़ गया। घरे लू उ पादन संरचना, िजसे
सावधानीपूवक
र् संरिक्षत वातावरण म िडजाइन िकया गया था, हवाओं का सामना करने म
असमथर् थी।

18
1.1.14 योजना का मू यांकन

1989 म सोिवयत संघ के पतन के बाद, कई दे श ने साख के प म योजना बनाने म िच


खो दी है । ‘योजना’ शीषर्क वाली कुछ ही पु तक जारी की गई ह। आिथर्क क्षेत्र म, रा ट्रीय
िवकास योजना की जिटलता तेजी से “रा य वारा करना” से “रा य वारा दे खना” म बदल
रही है । भौितक अवसंरचना और सामािजक सेवाएँ दो ऐसे मह वपूणर् क्षेत्र ह, जहाँ सरकार को
अभी भी एक मह वपूणर् भिू मका िनभानी है । पूवर् म, सावर्जिनक-िनजी भागीदारी को अक्सर
प्राथिमक तंत्र के प म सलाह दी जाती है , जबिक बाद म, गैर सरकारी संगठन को भाग
लेने के िलए प्रो सािहत िकया जाता है । इसे आिथर्क और िव ीय क्षेत्र म िखलािड़य के बीच
एक िनयामक के प म कायर् करना चािहए। इस त य के बावजद
ू िक सावर्जिनक क्षेत्र
आिथर्क गितिविधय के एक मह वपूणर् िह से के िलए िज मेदार है ।

दस
ू री ओर, योजना एक दरू संचार अ यास के प म मह वपूणर् बनी रहे गी। िमि त
अथर् यव था ढाँचे के तहत, हमने पूरे दे श के िलए योजना बनाना शु कर िदया। 1980
दशक के अंत म और 1990 दशक की शु आत म हमारी रणनीित के प्रमख
ु तख्त म
पिरवतर्न के बावजद
ू , हम योजना प्रिक्रया से िचपके रहे ह। जैसा िक श द से पता चलता है ,
रणनीित पर यान समय की वा तिवकताओं पर आधािरत होनी चािहए। पिरणाम व प,
हमारे ल य समान रहने पर भी यह िभ न होना चािहए। इस ि टकोण से, हम य की
जाँच कर सकते ह। इसके अितिरक्त, केवल रा य की योजना के वारा ही हम औपिनवेिशक
अतीत से िनणार्यक प से टूटने म सक्षम ह गे। इस प्रकार, हम भी आधुिनक क्षेत्र म
आिथर्क गितिविधय के िविवधीकरण, पयार् त खा या न उ पादन और तकनीकी क्षमता के
साथ एक ठोस नींव रखने म सक्षम ह।

1.1.15 िन कषर्

एक िमि त अथर् यव था के प म, भारत अ प िवकास से िवकास, गरीबी से सम ृ िध और


अभाव से प्रचुरता की ओर संक्रमण की प्रिक्रया म है । हम आिथर्क संक्रमण (पारं पिरक प से
वंिचत और भेदभाव के िलए) के अितिरक्त दो अ य बुिनयादी बदलाव भी चाहते ह, अथार्त ्
राजनीितक िवकद्रीकरण (यानी, कद्र से रा य और रा य से थानीय व-सरकारी िनकाय
को स ा का ह तांतरण) और सामािजक सशिक्तकरण समह
ू । भारत िजस गित से लंबी यात्रा
कर रहा ह, वह कई कारक वारा िनधार्िरत िकया जाएगा, िजसम संसाधन की उपल धता,
रा य की आिथर्क रणनीित आिद शािमल ह। हालाँिक, रा य और बाजार के बीच बातचीत के
एक नए पैटनर् को साहसपूवक
र् आगे बढ़ाने के िलए की स को “यथाि थित का अ याचार” कहा
जाता है , भारत को अ वीकार करना अिधक मह वपूणर् है ।

19
हमने िव तत
ृ योजना के साथ िमि त अथर् यव था नीित ढाँचा को अपनाया। िमि त
अथर् यव था सावर्जिनक और िनजी क्षेत्र के सह-अि त व और पार पिरक समथर्न को
संदिभर्त करती है , यापक योजना का अथर् है िक हमारी योजना-प्रिक्रया आिथर्क और
सामािजक दोन क्षेत्र के साथ-साथ सावर्जिनक और िनजी क्षेत्र को भी यान म रखेगी।

हमने उ दे य और योजना के बीच अंतर के बारे म चचार् की। िवकास, रोजगार और


असमानता उपशमन को दीघर्कािलक िनयोजन उ दे य के प म पहचाना गया, िजसम
अंतर-क्षेत्रीय असंतल
ु न को कम करने के ल य को जोड़ा जा सकता है ।

िनयोजन रणनीित को दो चरण म िवभािजत िकया गया है , िजसे हम िनयंत्रण और


िनयामक चरण के प म संदिभर्त करते ह। जबिक हमारी प्रारं िभक रणनीित कई मह वपूणर्
प्रवाह के िनयंत्रण पर किद्रत थी, रा य िनयामक ढाँचे का िनमार्ण करते हुए, कुछ डोमेन को
छोड़कर, बंधन करने से पीछे हट रहा है । इस प्रकार, ह तक्षेपवादी रा य, सावर्जिनक क्षेत्र का
िव तार, भारी उ योग का िवकास, आ मिनभर्रता और आयात प्रित थापन प्रारं िभक चरण की
मख्
ु य िवशेषताएँ थीं। उदारीकरण, िनजीकरण और वै वीकरण को बाद के चरण के प्रमख

पहलओ
ु ं के प म पहचाना गया, िजसम गरीबी पर सीधे हमला करने के उ दे य से कायर्क्रम
जोड़े गए।

अंत म, हमने िपछले पचास से अिधक वष के दौरान योजना की सफलताओं और


िवफलताओं को संबोिधत िकया। हमने यह प ट कर िदया िक सभी क्षेत्र म मह वपूणर्
प्रगित की है । बाद की अविध म हमारी िवकास दर म तेजी आई, इस त य के बावजद
ू िक
हम अपने ल य से कम प्रा त िकए। आजादी से पहले जो चल रहा था, उसकी तुलना म,
हमारी उपलि धयाँ वा तव म उ लेखनीय ह। यह हमारी सामािजक और आिथर्क िवकास
योजना के कारण है । य दिप गरीबी और बेरोजगारी को ख म करने म केवल आंिशक प से
सफल रहे । औ योिगक क्षेत्र म धन या आिथर्क शिक्त की एकाग्रता को कम करने म पूरी
तरह िवफल रहने के उपरांत भी लोगो के जीवन तर म गुणा मक सध
ु ार भी िदखायी दे रहा
है ।

1.1.16 अ यास प्र न

1. िनयोजन से क्या आशय है ? भारत म िनयोजन प्रणाली की सफलताओं और


असफलताओं की िववेचना कीिजये।

2. योजना आयोग की बदलती भिू मका का परीक्षण कीिजये।

3. िनयोजन के िविभ न चरण का उ लेख कीिजये। योजना आयोग के थान पर नीित


आयोग के गठन के क्या कारण है ?

20
4. योजना आयोग का गठन कब हुआ?

अ. माचर् 1950, ब. अप्रैल 1950, स. माचर् 1951, द. मई 1950

1.1.17 संदभर् सच
ू ी
 बस,ु कौिशक (सं.) (2010): द ऑक्सफोडर् क पेिनयन टू इकोनॉिमक्स इन इंिडया,
ऑक्सफोडर्।
 ढींगरा, ई वर सी. (2012): भारतीय अथर् यव था : पयार्वरण और नीित, (27वाँ
सं करण)। सु तान चंद एंड संस, नई िद ली।
 ीिनवासन, टी.एन. (2004): आठ याख्यान एक भारतीय अथर् यव था, ऑक्सफोडर्।
 चक्रवतीर्, सुखमय (1987); िवकास योजना : भारतीय अनुभव, ऑक्सफोडर् यूिनविसर्टी
प्रेस, नई िद ली।
 द , द्र और सद
ंु रम, के.पी.एम. (2005); भारतीय अथर् यव था, एस. चंद एंड कंपनी,
नई िद ली।
 गु ता, एस.पी. (1989); भारत म योजना और िवकास : ए िक्रिटक, एलाइड पि लशसर्
प्राइवेट िलिमटे ड, नई िद ली।
 कृ णमाचारी, वी.टी. (1962); फंडामटल ऑफ लािनंग इन इंिडया, ओिरएंट लॉ गमै स,
बॉ बे।
 योजना आयोग (2012); दसवीं पंचवषीर्य योजना, नई िद ली।
 नीित आयोग : एक वािषर्क िरपोटर् 2020-21, नई िद ली।
http://www.niti.gov.in/

21
इकाई-1

पाठ-2 : उदारीकरण एवं सध


ु ार
लेखक : डॉ. राजेश कुमार
अनव
ु ादक : राम िकशोर

1.2 संरचना
1.2.1 पिरचय
1.2.2 अ ययन के उ दे य
1.2.3 1990 म अथर् यव था के स मख
ु आने वाली सम याएँ एवं चुनौितयाँ
1.2.4 आिथर्क सध
ु ार का सार-संग्रह
1.2.5 आिथर्क सध
ु ार की प्रगित
1.2.6 आिथर्क सध
ु ार की मह वपण
ू र् िवशेषताएँ
1.2.7 सध
ु ार के 30 वष के म य संकट
1.2.8 िन कषर्
1.2.9 अ यास प्र न
1.2.10 संदभर् सच
ू ी

1.2.1 पिरचय

वतंत्रता के प चात ्, भारत ने एक उभरते हुए भारत की शिक्तशाली ि ट के साथ आिथर्क


िनयोजन का शासन धारण िकया। इसका उ दे य रा ट्र के धन का यायसंगत िवतरण
सिु नि चत करते हुए प्रगित के पथ पर सु ढ़ता के साथ चलना एवं आगे बढ़ना था। सामा य
सावर्जिनक क्षेत्र पर किद्रत लाइसिसंग से संबंिधत नीितयाँ, आयात-प्रित थापन नीितय एवं
यापारबाधाओं आिद को साथर्क बनाने के िलए उदीयमान उ योग का तकर् दे ना। नीितय की
इस सीमा के कारण अक्षम संसाधन उपयोग, अित-संरक्षण, फम एवं अथर् यव था का
कुप्रबंधन, उ च राज व घाटा हुआ। िविनमय का अभाव एवं दोषयुक्त तकनीकी िवकास एवं
पिरणामी दबाव ने सरकार को नीितगत ढाँचे पर पुनः िवचार करने के िलए िववश िकया।
पिरणाम आिथर्क नीितय म पिरवतर्न का एक समह
ू बन गया, िजसे यापक अथ म आिथर्क
सध
ु ार के प म पहचाना जाने लगा। आिथर्क सध
ु ार का मख्
ु य उ दे य वै वीकरण के युग
म प्रवेश करना था िजसका अथर् था—(1) उ पाद एवं सेवाओं का मक्
ु त प्रवाह, (2) प्रौ योिगकी
का मक्
ु त प्रवाह, (3) पँज
ू ी का मक्
ु त प्रवाह, एवं (4) नागिरक की मुक्त आवाजाही, िवशेष
प से एक दे श से दस
ू रे दे श म म। इसिलए, आिथर्क सध
ु ार के िलए भारतीय अथर् यव था

22
को ग्रह अथर् यव था के साथ एकीकृत करने की आव यकता थी और इसिलए आिथर्क सध
ु ार
पर बल आयात प्रित थापन रणनीित से िनयार्त-आधािरत िवकास रणनीित पर थानांतिरत
कर िदया गया।

भारत सरकार ने 1991 म एक गंभीर एवं िवचारशील आिथर्क सध


ु ार कायर्क्रम शु िकया,
िजसका ल य भारतीय अथर् यव था को एक िनयोिजत ढाँचे से बाजार-उ मख
ु की ओर ले
जाना था। इसे आगे बढ़ाने के िलए सरकार ने राजकोषीय अनुशासन, सावर्जिनक क्षेत्र के
उ यम (पी.एस.ई.) के िनजीकरण को प्रो सािहत करने, घरे लू िव ीय बाजार के उदारीकरण
और िविनयमन को बढ़ावा दे ने और िवदे शी िनवेश को प्रो सािहत करने के िलए कई नीितगत
िनणर्य िलए। ये आिथर्क सध
ु ार मख्
ु यतः उदारीकरण, िनजीकरण एवं वै वीकरण नामक तीन
सामा य श द के अंतगर्त आते ह।

ऐसा लगता है िक नेह वादी िवकास मॉडल गलत था। समाजवाद इस तकर् के िलए
िवफल रहा है िक वह िनरं तर आधार पर धन उ प न नहीं कर सका। िफर भी, असमानताओं
और गरीबी के बारे म प्रारं िभक समाजवादी सरोकार अभी भी गायब नहीं हुए ह। भारत के
मल
ू उ दे य नहीं बदले ह, लेिकन िवकास की रणनीित म पिरवतर्न की आव यकता को
शीघ्रता से वीकार िकया गया है । िवकास रणनीित के अंतगर्त रणनीितक पिरवतर्न के पक्ष म
एक िनि क्रय सहमित है । इसिलए, पयार्वरण सध
ु ार की प्रिक्रया के भीतर मह वपूणर् प्र न
“रा य एवं एक शु ध बाजार” के म य “अनुवरर् िवचार-िवमशर्” नहीं है , बि क यह सवाल है
िक ‘‘संक्रमण का प्रबंधन कैसे कर (1) अ यिधक से कम रा य के ह तक्षेप के िलए, (2)
पहले से उपेिक्षत मह वपूणर् क्षेत्र म गलत क्षेत्र म ह तक्षेप से; और (3) मात्रा िनयंत्रण पर
एक तरह के भरोसे से लेकर नीित के दस
ू रे प (कीमत पर भरोसा) तक”।

सध
ु ार के संदभर् म यिक्तगत िनवेश-घरे लू और िवदे शी—के
यवहार पर बहुत िवचार-
िवमशर् हुआ है । आिथर्क सध
ु ार बाजार के संबंध म रा य, या रा य की अिधक सामा य
भिू मका के आकलन को दोहराते ह। सबसे पहले ‘न बे के दशक’ तक, यिद सभी नहीं, तो
अथर् यव थाओं ने रा य की समग्र भिू मका को पन
ु ः पिरभािषत करने और कम करने की
नीित शु की है । यह घटना प ट प से ‘रा य की िवफलताओं’ और ‘बाजार की
िवफलताओं’ के बीच नए यापार-बंद को दशार्ती है या िजसे रा य और बाजार के म य
संबंध के अंतगर्त नई वा तिवकताओं के कारण भी कहा जा सकता है ।

1.2.2 अ ययन के उ दे य

यह इकाई आपको िन निलिखत का उ र दे ने म सक्षम बनाएगी—

 उदारीकरण, िनजीकरण एवंवै वीकरण जैसे िविवध श द के अथर् को समझने म


सहायक

23
 भारतीय अथर् यव था के संदभर् म उदारीकरण की आव यकता एवं मह व

 आिथर्क सध
ु ार के पीछे तकर्
 1990 के प्रारं भ के प चात ् से भारतीय अथर् यव था के स मख
ु सबसे प्रमख
ु गंभीर
सम याएँ क्या थीं?

 1991 म आिथर्क सध
ु ार अपनाने के कारण
 सध
ु ार के पक्ष एवं िवपक्ष म तकर्-िवतकर्

ु आने वाली सम याएँ एवं चुनौितयाँ


1.2.3 1990 म अथर् यव था के स मख

अथर् यव था के पुनगर्ठन के िविभ न चरण पर िवचार करने से पूव,र् 1990 म भारतीय


अथर् यव था के सामने आने वाली सबसे गंभीर सम याओं को प ट करना मह वपूणर् है ।
आइये िन निलिखत पर िवचार कर—
 बजट घाटा बड़ा है , मख्
ु य बात यह है िक खचर् राज व से अिधक है ।
 उ च ऋण सेवा दर एवं त्रिु ट िरपोिटर्ं ग दर के साथ भारी िवदे शी ऋण ने दे श की
क्रेिडट रे िटंग म िगरावट और गंभीर चुकौती सम याओं को ज म िदया है ।
 पूरी अथर् यव था म दक्षता का तर कम, िजसके पिरणाम व प संसाधन की बड़ी
बबार्दी होती है ।
 इसके साथ ही, औ योिगक क्षेत्र म मंदी, कृिष उ पादन का ठहराव और परू ी
अथर् यव था म खराब िवकास की संभावनाएँ गंभीर मद्र
ु ा फीित सम याओं के साथ
संयक्
ु त ह।
1991 के म य म दे श एवं अथर् यव था के स मख
ु ि थित गंभीर थी। भग
ु तान संतल
ु न की
ि थित बहुत तेजी से खराब हुई है और िवदे शी मद्र
ु ा भंडार िन न तर तक िगर गया है ,
िजससे पतन की संभावना संभव है । जबिक घरे लू तर पर भारतीय अथर् यव था ने 1985
एवं 1990 के म य बहुत अ छी व ृ िध का अनुभव िकया। राजकोषीय ि थित म भी काफी
िगरावट आई। बजट घाटा, सामा य प से बजट घाटे की तरह, तेजी से बढ़ा, एक तरफ पैसे
की आपूितर् म व ृ िध हुई और दस
ू री ओर तेजी से याज भुगतान म व ृ िध हुई। संयुक्त कद्र
सरकार और रा य का बजट घाटा, 1970 के दशक के अंत तक सकल घरे लू उ पाद का
लगभग 7.5 प्रितशत, 1991 तक लगभग 11 प्रितशत हो गया था। 1970 के दशक के अंत
म केवल कद्र सरकार का बजट घाटा 6.0 प्रितशत से कम था और 1991 म िगरकर 8.5
प्रितशत हो गया। इस प्रकार, कद्र सरकार के बजट म याज भग
ु तान ल य बन गया। सबसे
बड़ा यय, 1980-81 म सकल घरे लू उ पाद के 2 प्रितशत से बढ़कर 1990-91 म सकल

24
घरे लू उ पाद का लगभग प्रितशत हो गया। पिरणाम व प, दे श ने 1990 के दशक म एक
बजट घाटे के साथ प्रवेश िकया जो िक केवल अि थर था।

आिथर्क सध
ु ार के िलए पूवार्पेक्षाएँ
िन निलिखत कारण से सध
ु ार की त काल आव यकता—
 भारत की क्रेिडट रे िटंग म िगरावट ने वािणि यक उधार दे ना मिु कल बना िदया।
 कुवैत संकट के प चात ् पि चम एिशया से नकदी प्रवाह कम हो गया, 1991 की
शु आत म एन.आर.आई. जमाओं को बड़े तर पर वापस ले िलया गया, एवं प्र यक्ष
िवदे शी िनवेश कम था।
 पव
ू र् सोिवयत रा य की अिधक माँग और संयक्
ु त रा य अमेिरका वारा घरे लू खचर्
म व ृ िध के कारण सबसे गरीब दे श को सहायता कम होती जा रही है । सहायता के
प्रभावी और लागू उपयोग ने सध
ु ार के मामले को सु ढ़ िकया।
 िव व म पुराने ि टकोण के पतन और वैि वक बाजार के उदय के बाद, भारत के
पास आिथर्क नीित सध
ु ार को शु करने के अलावा कोई िवक प नहीं।

हालाँिक, इन आिथर्क बाधाओं के िलए सध


ु ार को पूरी तरह से उ रदायी नहीं ठहराया जा
सकता है । 1980 के दशक म वह
ृ द आिथर्क सध
ु ार की आव यकता को धीरे -धीरे पहचाना
गया। “लाइसस राज” िनयंत्रण प्रणाली दल
ु भ
र् हो गई। इसिलए यव था म सध
ु ार का समय
आ गया है और राहत की भावना के साथ इसका वागत िकया जाना चािहए। यह सवर्िविदत
है िक संरचना मक समायोजन म किठन िवक प सि मिलत होते ह। िवक प को कठोरता के
प म विणर्त िकया गया है क्य िक कम-से-कम अ पाविध म सामा य जनसंख्या पर उनका
अक्सर अलोकिप्रय प्रभाव पड़ता है ।

आिथर्क सध
ु ार के उ दे य

भारतीय अथर् यव था के िलए 1991 एक ऐितहािसक वषर् था। िव ीय और भग


ु तान संतुलन
संकट के कगार पर खड़ी भारतीय अथर् यव था को पुनजीर्िवत करने के िलए साहिसक कदम
उठाए गए ह। उ योग, िवदे शी यापार और िनवेश म बाजार-उ मख
ु सध
ु ार अथर् यव था को
उन बंधन से मक्
ु त करने के िलए पेश िकए गए, िज ह ने दशक से इसे बािधत िकया था।
इसकी सफलता की मख्
ु य परीक्षा है —क्या यह सतत िवकास को सग
ु म बनाता है ? यह संकट
वािणि यक, औ योिगक और िव ीय क्षेत्र म संरचना मक पिरवतर्न की एक ंख
ृ ला की
आव यकता को रे खांिकत करता है तािक िवकासशील अथर् यव था को अपने वयं के िवकास
का समथर्न करने के िलए आव यक ि प्रंगबोडर् प्रदान िकया जा सके।

25
आिथर्क सध
ु ार के िलए िवचार

जबरा ट्रीय सभा की सरकार ी पी.वी. नरिस हा राव ने जन


ू 1991 म कायर्भार संभाला, इसे
दोगन
ु ा करने से पहले िनदश—

1. राजकोषीय घाटे एवं भग


ु तान संतुलन को कम करके यापक आिथर्क ि थरता बहाल
करना।

2. आिथर्क सध
ु ार की प्रिक्रया को पूरा कर, अथार्त ् संरचना मक समायोजन िजससे दस वषर्
पव
ू र् इसे आंिशक, प्रगितशील और क- क कर िकया जा सके।

आज के आिथर्क सध
ु ार के घोिषत उ दे य एक क्रांितकारी संकेत ह। सध
ु ार का उ दे य
िन निलिखत उ दे य को प्रा त करना है —

1. राजकोषीय, मौिद्रक एवं िविनमय दर नीितय के मा यम से यापक आिथर्क ि थरता


और संतल
ु न।

2. अ य औ योिगक िवकासशील दे श की तुलना म िबना िकसी आयात अनुज्ञा-पत्र अथवा


कर दर के उदारीकृत यापार यव था।

3. एक िविनमय दर प्रणाली जो पये को पिरवतर्नीय बनाती है , कम-से-कम भग


ु तान
संतुलन के चालू खाता लेन-दे न के िलए।

4. सु ढ़ िविनयमन के साथ एक प्रित पधीर् िव ीय प्रणाली।

5. यूनतम िनयंत्रण वाला एक औ योिगक क्षेत्र।

6. एक ु ल
वाय , प्रित पधीर् और दब र् सावर्जिनक उ यम क्षेत्र।

इन सभी उपाय के मा यम से एक सामा य सत्र


ू चल रहा है । ल य सरल है और वह है
प्रणाली की दक्षता म सध
ु ार करना। िनयामक तंत्र म सावर्जिनक क्षेत्र म भी प्रित पधार् को
िततर-िबतर करने और कम करने म सक्षम िनयंत्रण उपाय की भीड़ सि मिलत है । आिथर्क
सध
ु ार या नई आिथर्क नीित (एन.ई.पी.) का उ दे य प्रणाली की उ पादकता और दक्षता म
सध
ु ार के साधन के प म अथर् यव था म अिधक प्रित पधीर् वातावरण बनाना है , जोिक
प्रवेश की बाधाओं को दरू करके और यवसाय के िवकास पर प्रितबंध लगाकर प्रा त िकया
जाता है ।

1.2.4 आिथर्क सध
ु ार का सार-संग्रह

यह प ट प से जानना मह वपण
ू र् है िक आिथर्क सध
ु ार पैकेज क्या था और उतना ही
मह वपूणर् यह क्या नहीं था। आिथर्क सध
ु ार को अक्सर एक पैकेज के प म संक्षेप म

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प्र तुत िकया जाता है , िजसम नीितय के तीन अलग-अलग सेट होते ह— (अ ण घोष,
1992)।

1. अथर् यव था का ि थरीकरण, िजसका अथर् है , िम ण की माँग को संतुिलत करना एवं


प्रदान करना, असंतुलन मख्
ु य प से 80 के दशक के समय कद्र सरकार के बजट के
भीतर बड़े और थािनक घाटे के कारण हुआ, जो मद्र
ु ा फीित के वागत और घाटे के
सिपर्ल के भीतर पिरलिक्षत हुआ। इस संदभर् म अपनाई गई नीितयाँ बजटीय और ऋण
नीितय से संबंिधत ह।

2. भारतीय उ योग को अंतरार् ट्रीय तर पर प्रित पधीर् बनाने की ि ट से भारतीय


अथर् यव था का पुनगर्ठन। इस संदभर् म अपनाई गई नीितयाँ औ योिगक और िवदे श
यापार नीितय से लेकर मौिद्रक सं थान (बक सिहत) की उधार नीितय जैसे िवषय
तक, रा य के खचर् और सावर्जिनक िनवेश का व प, िजसम आम सावर्जिनक क्षेत्र से
संबंिधत नीित सि मिलत है । इकाइय एवं सामा य प से सि सडी के संदभर् म और
िवशेष प से छोटे यवसाय और खेत की सि सडी के संदभर् म।

3. भारतीय अथर् यव था का वै वीकरण, अव थाओं म, व तुओं सिहत सभी व तुओं का


आयात, सीमा शु क टै िरफ को कम करना, िवदे शी पँज
ू ी (अ पकािलक पँज
ू ी सिहत) के
मक्
ु त प्रवाह की अनुमित दे ना, सेवा क्षेत्र को िवदे शी पँज
ू ी के िलए खोलना िवशेष प से
बिकंग, बीमा और िशिपंग और पये की पूणर् पिरवतर्नीयता के िवषय म।

सध
ु ार के पिरणाम

डॉ. अ ण घोष के अनुसार, ित्र-आयामी ि टकोण का अथर् यव था के काम-काज और इसकी


भिव य की िदशा के िलए प्रमख
ु िनिहताथर् ह। वे अतीत से एक संपूणर् और अचानक िवराम
का संकेत दे ते ह, और कई अ य मु दे सामने आते ह—

1. माँगे गए िवकास के पैटनर् की वांछनीयता।

2. िविभ न नीितय का समय और, अिधक मह वपूणर् बात, उनकी अनुक्रमण (और वा तव
म नीित म बार-बार होने वाले पिरवतर्न का ज्ञान िजसका भारतीय अथर् यव था के
भीतर अिनि चतताओं को बनाने का प्रभाव है )

3. िशक्षा, वा य और रोजगार की आपूितर्, अथर् यव था के वै वीकरण से संबंिधत घरे लू


प्राथिमकताओं के प म नीित के िविभ न पहलओ
ु ं से जड़
ु े सापेक्ष मह व; तथा

4. नीितय के पैकेज का संभािवत प्रभाव। यह यान िदया जाना चािहए िक जबिक


ि थरीकरण नीितय का उ दे य किमय को ठीक करना और घर को अ पाविध के

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भीतर रखना है , संरचना मक सध
ु ार का उ दे य म यम अविध म आिथर्क प्रिक्रया को
तेज करना था।

संरचना मक सध
ु ार नीितयाँ तब तक सफल नहीं हो सकतीं, जब तक िक एक ि थित तक
ि थरीकरण नहीं िकया गया हो। लेिकन जब तक हाल की अविध म सामने आए मु द की
पुनराविृ से बचने के िलए संरचना मक सध
ु ार नहीं िकए जाते, तब तक अपने आप म
ि थरीकरण पयार् त नहीं होगा। संरचना मक सध
ु ार मोटे तौर पर वािणि यक लाइसिसंग और
िविनयमन, िवदे शी यापार, एवं िनवेश, इसिलए िव ीय क्षेत्र के क्षेत्र म थे। िवदे शी रा ट्रीय
यापार नीित के संदभर् म, उ दे य आयात के संदभर् म शासन को उदार बनाना और िनयार्त
और आयात के बीच बेहतर संबंध बनाने के िलए जाँच करना था। अभी तक एक और
उ दे य टै िरफ दर को कम करना है । जहाँ तक आयात शु क का संबंध है , नीित क्रिमक रही
है और इसिलए भारत म टै िरफ दर को उ रो र कम िकया गया है तािक उ च लागत वाली
अथर् यव था से बचा जा सके। जहाँ तक िवदे शी िनवेश का संबंध है , नए नीितगत उपाय
िनि चत प से अतीत से एक अवसर प्रदान करते ह। पये के िविनमय अवमू यन की दर
के संबंध म, एिक्ज़म ि क्रप योजना, आंिशक पिरवतर्नीयता योजना, िविनमय की एकीकृत
दर, और इसिलए वतर्मान खाते पर बाद म पूणर् पिरवतर्नीयता अिनवायर् प से यह
सिु नि चत करने के िलए है िक िनयार्त आयात व ृ िध के अनु प नहीं है ।

1.2.5 आिथर्क सध
ु ार की प्रगित

आिथर्क सध
ु ार की सामग्री क्या रही है ? हम कायर्क्रम शु होने के बाद से अब तक घोिषत
प्रमख
ु नीितगत िनणर्य की सच
ू ी नीचे प्र तत
ु कर रहे ह।

 पये का अवमू यन : दो विरत चरण म लगभग 19 प्रितशत

 यापार नीित म सध
ु ार : िनयार्त सि सडी समा त कर दी गई। दस
ू री ओर एिक्ज़म
ि क्रप को अग त 1994 से यापार खाते पर पये की तथाकिथत आंिशक
पिरवतर्नीयता (40 : 60 सत्र
ू ), िविनमय की एकीकृत दर और वतर्मान खाते पर पये
की पूणर् पिरवतर्नीयता के साथ बदल िदया गया था।

 मख्
ु य प से रणनीितक मह व वाले या खतरनाक सामान बनाने वाले 6 उ योग से
अलग औ योिगक लाइसिसंग को समा त कर िदया गया।

 पिरवतर्नीयता खंड को समा त कर िदया गया था। इस खंड ने अब तक साविध ऋण


दे ने वाले िव ीय सं थान को ऋण दे ने वाली सं थाओं वारा चुने गए मू य और
समय पर औ योिगक ऋण को इिक्वटी म बदलने म सक्षम बनाया है ।

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 िवदे शी िनजी िनवेश के िलए िनयम और प्रिक्रयाओं का पयार् त उदारीकरण। अिधकांश
उ योग म 50 प्रितशत इिक्वटी भागीदारी की अनुमित दे ने के िलए िविनमय
िविनयम अिधिनयम (FERA) को उदार बनाया गया; (FERA)को अब एक्सचज
मैनेजमट एक्ट (FEMA) से बदल िदया गया है ।

 सामा य सावर्जिनक क्षेत्र िवषेष क्षेत्र को काट िदया गया है । सामा य सावर्जिनक क्षेत्र
के िलए अब केवल पाँच उ योग आरिक्षत ह (अथार्त ्, रक्षा संबंधी उ योग, परमाणु
ऊजार्, खिनज, तेल एवं खनन)। लेिकन िनजी क्षेत्र का उनके संबंध म भी उपयोग
करने के िलए वागत है । इसके अलावा, लाभ कमाने वाले कई सावर्जिनक उ यम
का आंिशक िनजीकरण शु िकया गया है । इस प्रकार, सावर्जिनक क्षेत्र के उपक्रम के
संबंध म उठाए गए कदम संबंिधत ह—

o सावर्जिनक क्षेत्र को रणनीितक, उ च तकनीक और आव यक बुिनयादी ढाँचे तक


सीिमत करना।

o बीमार पी.एस.यू. को रे फर करना।

o बीमार सावर्जिनक उपक्रम को वािणि यक और िव ीय पुनिनर्मार्ण बोडर्


(बी.आई.एफ.आर.) के पास भेजना।

o सावर्जिनक क्षेत्र के उपक्रम की शेयरधािरता के पड़ोस का िविनवेश करना।

o समझौता ज्ञापन (एम.ओ.य.ू ) के मा यम से सावर्जिनक क्षेत्र के उपक्रम को


अिधक वाय ता प्रदान करना।

o बीमार इकाइय को बंद करने या सावर्जिनक क्षेत्र के उपक्रम के टािफं ग पैटनर् को


यिु क्तसंगत बनाने के उपाय के पिरणाम व प छं टनी िकए जाने वाले कामगार
के िलए एक सरु क्षा जाल िवकिसत करना।

 काले धन की सम या की जड़ पर हमला होने लगा। कुछ उपाय को नवीनतम काले


धन (प्रवाह) की पीढ़ी को रोकने के िलए अपनाया गया था, कुछ अ य उ पादक
उ दे य के िलए उ प न काले धन ( टॉक) को हटाने के िलए अपनाए गए थे।

राजकोषीय नीित सध
ु ार—
o सरकारी खचर् म कटौती करने का संक प।

o यूनतम दर एवं यिक्तगत कर, कॉप रे ट कर, उ पाद शु क एवं सीमा शु क का


सरलीकरण।

अब तक शु िकए गए िव ीय क्षेत्र के सध
ु ार इस प्रकार ह—

 िनजी क्षेत्र के अंतगर्त पार पिरक िनिध की अनुमित।

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 पशन िनिध जैसी िवदे शी सं थाओं ने भारतीय कंपिनय म पोटर् फोिलयो िनवेश की
अनुमित दी।

 जमा याज दर को उदार बनाया गया।

 पहली बार एस.एल.आर. (सांिविधक तरलता अनुपात) कम िकया गया है , जो बहुत


अिधक है । बिकंग क्षेत्र को मेहमाननवाज िनजी उ यम की अग्रसर कर िदया गया।
बीमा क्षेत्र को भी गैर-सावर्जिनक उ यम के िलए खोल िदया गया है ।

 इ पात उ योग को िविनयंित्रत िकया गया।

 छोटे और छोटे क्षेत्र के संबंध म नीितगत घोषणा की गई।

 वणर् नीित म सध
ु ार पेश िकए गए। सामान िनयम के तहत सोने के आयात की
अनम
ु ित दी गई थी।

 आयात का पयार् त डी-संपीड़न, केवल एक संिक्ष त नकारा मक सच


ू ी को छोटा करने
के िलए।

य यिप, यह यान िदया जाना चािहए िक िविध िकसी भी प्रकार से पूणर् नहीं है । अधूरे कायर्
असंख्य ह और इ ह तीन यापक ेिणय म िवभािजत िकया जा सकता है । जैसे—

 जो कुछ भी िकया गया है वह केवल शु आत है । िविध को आगे बढ़ाया जाना चािहए


और उपरोक्त प्र येक क्षेत्र म समेिकत िकया जाना चािहए।

 ऐसे कई क्षेत्र ह, िज ह अभी तक छुआ नहीं गया है ।

 सध
ु ार की शु आत ने कुछ अपेक्षाकृत अप्र यािशत सम याओं को सामने लाया है ,
िजन पर िवचार करने और उ ह संबोिधत करने की आव यकता है ।

कुल िमलाकर, उपरोक्त पैकेज 1960 और 1970 के दशक के म य बनाए गए लाइसस


परिमट राज की तुलना म नीितगत सोच म एक मह वपण
ू र् पिरवतर्न को दशार्ता है । 1970
और 1980 के दशक के अंत के दौरान िनयंत्रण को िशिथल करने के िलए कुछ उपाय िकए
गए थे, लेिकन ये कदम अभी जो चल रहा है उसकी एक धुंधली छाया थी। भारतीय पिर य
के पयर्वेक्षक उस प्रेषण से बहुत प्रभािवत हुए, िजसके साथ सरकार ने एक के बाद एक नीित
वक्त य जारी िकए। िनणर्य लेने की यह गित वा तव म उ लेखनीय थी। हालांिक, यिद
सध
ु ार के मल
ू उ दे य के अंतगर्त प्रा त करने के िलए आव यक नीितगत कदम का
मू यांकन िकया जाता है , तो नीितगत िनणर्य का िरकॉडर् इतना शानदार नहीं लगता है । अब
तक जो कुछ भी हुआ, वह िनिवर्वाद प से एक ईमानदार शु आत है लेिकन यह भरने के

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िलए कई अंतराल छोड़ दे ता है । िजन िवषय से िनपटने की आव यकता है , उनका एजडा
वा तव म बहुत िव तुत है ।

आिथर्क सध
ु ार के घटक
प्रमख
ु नीितगत पिरवतर्न िज ह संक्षेप म आिथर्क सध
ु ार या उदारीकरण कहा जाता है , वे ह—
1. मैक्रो-आिथर्क ि थरीकरण उपाय म सि मिलत ह—

 भग
ु तान संतुलन संकट का प्रबंधन,
 राजकोषीय घाटा प्रबंधन, और

 मौिद्रक नीित सध
ु ार।
2. ु क्षेत्रीय संरचना मक समायोजन सध
प्रमख ु ार, िजसम शािमल ह—
 रा ट्रीय यापार नीित (और संब ध नीित)

 औ योिगक नीित सध
ु ार,
 सामा य सावर्जिनक क्षेत्र से संबंिधत नीितगत सध
ु ार,
 प्र यक्ष िवदे शी िनवेश, प्रौ योिगकी और इिक्वटी भागीदारी को आकिषर्त करने के
िलए नीितयाँ

 शीघ्रता से िनवेश अनुमोदन के िलए प्रशासिनक सध


ु ार,
 कर संरचना सध
ु ार,
 पँज
ू ीगत व तुओं और कमोिडटी दोन के िलए टै िरफ सध
ु ार,
 िव ीय क्षेत्र म सध
ु ार,
 कृिष और संबंिधत क्षेत्र म सध
ु ार।
3. सध
ु ार की सामािजक लागत को साझा करने के उपाय, िजसम सामा य सावर्जिनक
िवतरण योजना (पी.डी.एस.) म सध
ु ार, रा ट्रीय अक्षय कोष (एन.आर.एफ.) की थापना
सि मिलत है ।

जलु ाई 1991 की नई औ योिगक नीित (एन.आई.पी.) ने कुछ बहुत ही मौिलक नीितगत


पिरवतर्न को प्रभािवत िकया जैसे लाइसिसंग को लगभग समा त करना, एम.आर.टी.पी. एवं
FERA। के परीक्षण म ढील दे ना, सामा य सावर्जिनक क्षेत्र के िलए आरिक्षत िकए जाने
वाले उ योग की सच
ू ी को कम करना, िवदे शी प्रौ योिगकी समझौत का वतः अनुमोदन
और 51 प्रितशत िवदे शी इिक्वटी, रा य िबजली बोड की प्रित थापन भिू मका को पिरभािषत
करते हुए, बुिनयादी ढाँचे म िनजी िनवेश, उपभोक्ताओं के िहत की सरु क्षा, उ योग के िलए
नई उदार थान नीित, पँज ू ीगत व तुओं का मक्
ु त आयात, कमोिडटी के िलए कम टै िरफ,

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िपछड़े क्षेत्र के िलए पिरवहन सि सडी, रा ट्रीय नवीकरण िनिध, लघु उ योग इकाइय म िव-
िविनयमन, और प्र यक्ष िवदे शी िनवेश, नई प्रौ योिगकी और एन.आर.आई. िनवेश को
आकिषर्त करने के िलए मौिलक उदार नीितगत उपाय। उन अ यिधक उदार नीितगत उपाय
का एकमात्र उ दे य प्रित पधीर् माहौल बनाकर भारतीय उ योग म उ पादकता एवं दक्षता को
सु ढ़ करना था।

1.2.6 आिथर्क सध
ु ार की मह वपूणर् िवशेषताएँ

आिथर्क सध
ु ार की प्रिक्रया के दौरान नई नीित (एन.ई.पी.) ने नव-उदारवाद को प्रितिबंिबत
िकया। आिथर्क सध
ु ार का औिच य 1991 म सरकार वारा घोिषत आिथर्क नीित वारा
प्रदान िकया गया था। इसके मल
ू दशर्न को “पिरवतर्न के साथ िनरं तरता” के प म
अिभ यक्त िकया गया था। मख्
ु य उ दे य को अक्सर संक्षेप म प्र तुत िकया जाता है —
 भारतीय औ योिगक अथर् यव था को अनाव यक नौकरशाही िनयंत्रण के झंझट से
मक्
ु त करने के िलए।

 भारतीय अथर् यव था को ग्रह अथर् यव था के साथ एकीकृत करने के िलए उदारीकरण


की शु आत करना।

 प्र यक्ष िवदे शी िनवेश (एफ.डी.आई.) पर प्रितबंध हटाने और घरे लू उ यमी के िलए
एकािधकार और प्रितबंधा मक यापार यवहार (एम.आर.टी.पी.) अिधिनयम के
प्रितबंध को कम करने के िलए।

 सावर्जिनक क्षेत्र के उ यम के एकािधकार को कम करना और नए िनजी उ यम से


प्रित पधार् को प्रो सािहत करना।

 आिथर्क सध
ु ार चार प्रमुख कदम अथार्त ् उदारीकरण, िनजीकरण, वै वीकरण एवं
सावर्जिनक-िनजी भागीदारी के मा यम से आगे बढ़े ह।

1. उदारीकरण
उदारीकरण नीित म पिरवतर्न की एक प्रिक्रया हो सकती है । िपछले एक दशक के दौरान,
उदारीकरण पूरे ग्रह म नीित की पहचान रहा है । व तुतः सभी सरकार ने आिथर्क
गितिविधय म यिक्तगत उ यम की भिू मका को यापक बनाने के िलए मह वपूणर् कदम
उठाए ह।

यापक प्रकार की िविश ट प्रकार की प्रिक्रयाओं ने उदारीकरण नीितय को प्रभािवत िकया


है । जैसा िक दे खा गया है , वहाँ ह— (1) पूवीर् यूरोप की पूवर् कद्रीय िनयंित्रत अथर् यव थाओं के
प म शासन का एक वा तिवक पिरवतर्न, (2) लैिटन अमेिरकी अथर् यव थाओं के प म
िवकास को बढ़ावा दे ने के िलए दशर्न और ि टकोण के भीतर एक गंभीर बदलाव, या

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(3) सरकार की भिू मका के भीतर एक समायोजन, जैसा िक यूरोप की उ नत अथर् यव थाओं
के भीतर है । शासन के पिरवतर्न के िलए लगभग पूरी अथर् यव था म उ पाद और सेवाओं के
संयोजन से रा य के िवघटन की आव यकता है , और इसिलए एक मक्
ु त उ यम के
कामकाज के िलए उपयक्
ु त सं थागत और कानूनी ढाँचे की थापना। उन अथर् यव थाओं म
जो उ पादन की यव था के िलए मख्
ु य प से िनजी उ यम पर िनभर्र ह, रा य की
भिू मका को कम कर िदया गया है और सध
ु ार िकया गया है । िनयंित्रत संक्रमण और बाजार
अथर् यव था दोन म, इन कदम के पिरणाम व प रा य के उ यम का िनजीकरण हुआ है ।
बाजार अथर् यव थाओं म, िनजी क्षेत्र की गितिविध पर सरकारी िनयम म भी गहराई से
कमी आई है , और उभरती आव कताओं को पूरा करने के िलए िविनयम म कुछ सध
ु ार िकया
गया है , जैसे िक िव और पयार्वरण संरक्षण के क्षेत्र म।

उदारीकरण के लाभ
कुल िमलाकर दे श म, बाहरी लेन-दे न उदारीकरण रणनीितय का एक प्रमख
ु घटक है । यह
अक्सर इसिलए होता है क्य िक अंतरार् ट्रीय यापार, िनवेश और पँज
ू ी आंदोलन के उदारीकरण
से आवंटन दक्षता म सध
ु ार हो सकता है और अथर् यव था म अिधक गितशीलता पैदा हो
सकती है , इस प्रकार तेज आिथर्क प्रिक्रया प्रदान की जा सकती है । यापार के िलए खुलेपन
म व ृ िध के अपेिक्षत लाभ म से िन निलिखत ह—

 बाहरी प्रित पधार् के कारण घरे लू यवसाय प्रित ठान की नवीनता और उ पादकता म
सध
ु ार।

 उपभोक्ताओं को उ पाद और सेवाओं की यापक पसंद और बढ़ी हुई अंतरार् ट्रीय


प्रित पधार् और िवशेषज्ञता के पिरणाम व प कम कीमत से लाभ िमलता है । िवदे श
से अथर् यव थाओं की मेहमाननवाज प्रित पधार् को भी दक्षता म सध
ु ार माना जाता
है ।

 उ पादक प्रितकूल बाहरी झटक को िनयंित्रत करने के िलए ताकत हािसल करते ह
और बेकार िकराए की माँग के प्रित कम संवेदनशील होते ह।

 उ पादन की चीज की बढ़ी हुई गितशीलता—िवशेष प से पँज ू ी और, इसके साथ,


प्रौ योिगकी—एक दे हाती को ि थर तुलना मक लाभ से फँसने के जोिखम को दरू
करने म मदद कर सकती है और िनरं तर आिथर्क प्रिक्रया और उ पादकता लाभ के
िलए आव यक अपने संसाधन बंदोब ती म िनरं तर पिरवतर्न प्रा त कर सकती है ।

 पँज
ू ी आंदोलन के उदारीकरण का अथर् है िक घरे लू बचत और घरे लू िनवेश के म य
की कड़ी को अक्सर िशिथल िकया जाता है , अथार्त ् घरे लू िनवेश को कमजोर घरे लू

33
बचत यवहार से बािधत नहीं होना चािहए और इसके िवपरीत, उ च घरे लू बचत
िवदे श म प्रवािहत होनी चािहए जहाँ उनकी माँग की जाती है ।

उदारीकरण की प्रगित

य यिप, उदारीकरण अलग-अलग गित से और कई मायन म जहाँ तक यापार, िनवेश और


िव का संबंध है , आगे बढ़ा है । जबिक अभी भी ऐसे कई क्षेत्र ह जहाँ उदारीकरण आंिशक
रहा है —िजसम कृिष और व त्र और कपड़े सि मिलत ह, जो िवकासशील दे श के िलए िवशेष
मह व रखते ह, अंतरार् ट्रीय यापार का उदारीकरण एक शिक्तशाली सीमा तक आगे बढ़ा है ।

िनवेश उदारीकरण कहीं अिधक असमान तरीके से आगे बढ़ा है । एक िनयम के प म,


पिरवतर्न म िवदे शी िनवेशक के िलए बाधाओं को दरू करना या हटाना, उनके यवहार के
िलए मानक की थापना, और बढ़े हुए प्र यक्ष िवदे शी िनवेश (FDI) म आकिषर्त करने के
िलए प्रो साहन सि मिलत ह, कुछ कदम यह सिु नि चत करने के िलए भी उठाए गए ह।
बाजार का कामकाज, इसके अलावा, ये उदारीकरण के उपाय आमतौर पर लेन-दे न िनगम
(TNCs) के िलए िनवेश के वातावरण म सध
ु ार लाने के उ दे य से िकए गए अ य उपाय के
बीच थे, िवशेष प से िवदे शी िनवेशक को बेहतर सरु क्षा प्रदान करके। यापार और
एफ.डी.आई. यव था का उदारीकरण मौिद्रक लेन-दे न के उदारीकरण के बीच हुआ है ।
िवकासशील दे श म िव ीय उदारीकरण आमतौर पर कम उ नत होता है , लेिकन पिरवतर्न की
गित कहीं अिधक ती रही है । कई िवकासशील दे श म अिनवासी िनवेशक वारा आवक
िनवेश व तत
ु ः मक्
ु त है । बाहरी लेनदे न के िलए िवकासशील दे श की बढ़ती संख्या ने हाल के
वष म पँज
ू ी खाता पिरवतर्नीयता को अपनाया है । िनवािसय के बीच िवदे शी मद्र
ु ा म लेनदे न
का उदारीकरण बहुत आगे बढ़ गया है । वा तव म, बक के िरसे शन के साथ िविनमय जमा
ले जाने के िलए िनवािसय को प्रो सािहत करने के िलए एक झकु ाव रहा है । यापार और
िनवेश का उदारीकरण क्षेत्रीय एकीकरण प्रयास के िव तार और गहनता से प्रभािवत हुआ है ।

2. िनजीकरण

िनजीकरण का अथर् अलग-अलग लोग के िलए अलग-अलग ह। संकीणर् अथर् म, इसका अथर्
है वािम व का आम जनता (गम
ु नाम नौकरशाह और राजनेताओं) से िनजी (ज्ञात यिक्त)
हाथ म ह तांतरण। यापक अथ म, इसका अथर् है प्रित पधार् को बढ़ावा दे ना, अथार्त ्
बाजारीकरण या उदारीकरण, जहाँ माँग और आपूितर् को िकसी भी कद्रीकृत प्रािधकरण वारा
िनयंित्रत या िनदिशत होने के बजाय अपनी वतंत्र भिू मका िनभाने की अनुमित है । इन दो
चरम िवचार के बीच एक सं करण िनिहत है , जहाँ सावर्जिनक क्षेत्र के उपक्रम की इिक्वटी
का एक गंभीर या थोड़ा सा भाग सरकार वारा िनजी क्षेत्र को बेचा जाता है , कई सावर्जिनक
उपक्रम की गितिविधय का एक पड़ोस िनजी क्षेत्र को झक
ु ा हुआ है , िनजी क्षेत्र के काम

34
करने के िलए एक अब तक आरिक्षत क्षेत्र या उ योग खोला गया है , एक पूवर् सावर्जिनक
सेवा वापस ले ली गई है , सरकार एवं सावर्जिनक उपक्रम के प्रबंधन के बीच समझौता ज्ञापन
(एम.ओ.यू.) पर ह ताक्षर िकए गए ह। सं करण के इन िवक प की ताल को िविभ न
पिरणाम के साथ अ यास िकया गया है । इसके अलावा, िनजीकरण को संपूणर् िव व म
अलग-अलग नाम से समझा जाता है । उदाहरण के िलए, इसे यू.के. के भीतर “डी—
नेशनलाइजेशन” कहा जाता है , मेिक्सको म “िड—इनकॉप रे शन”, ऑ ट्रे िलया म “प्राथिमकता”,
यूज़ीलड म “एसेट से स प्रोग्राम” थाईलड म “ट्रांसफ़ॉमशन”, ीलंका म “पीपुल—आइजेशन”,
एवं पािक तान म “िविनवेश” कहा जाता है । 1983 म, पगइ
ु न िडक्शनरी ऑफ इकोनॉिमक्स
ने िनजीकरण को पिरभािषत िकया— (ए) “रा ट्रीयकृत उ योग या अ य वािणि यक उ यम
म गैर-सावर्जिनक िनवेशक को रा य के वािम व वाली इिक्वटी की िबक्री या संगठन के
सरकारी िनयंत्रण के नक
ु सान के िबना”, (बी) एक िवचार के प म िनजीकरण िजसम गैर-
रा ट्रीयकरण सि मिलत है (जहाँ सरकार ने अपनी भागीदारी बेची है ), (सी) िविनयमन (जहाँ
िनजी उ यम को प्रित पधार् करने के िलए सक्षम करने के साथ कानूनी बाधाओं को दरू कर
िदया गया था) और (डी) चाइिजंग (जहाँ एक उि लिखत अविध के िलए अनुबंध िदए गए
थे—यहाँ िनजी क्षेत्र का उ पादन िकया गया था और इसिलए सावर्जिनक क्षेत्र ने उ ह
उपभोक्ताओं को प्रदान िकया था)।
“अथर्शा त्र के श दकोश” के प चात ् के सं करण म, िनजीकरण को पुनः पिरभािषत
िकया गया, संगठन के भीतर सरकारी वािम व वाली भागीदारी की िबक्री को सि मिलत
करने के अलावा, अ य प्रकार के िनजीकरण एक रा य-समिथर्त काटल या उप-ठे केदार के
िविनयमन का आकार ले सकते ह। मख्
ु य प से रा य कमर्चािरय वारा प्रशािसत कायर् के
िनजी क्षेत्र के िलए। मख्
ु य चन
ु ौती वै वीकरण के तहत िवकास को सु ढ़ करने के िलए रा य
को बाजार के पहलओ
ु ं के साथ जोड़ना है । इस प्रिक्रया को आकार दे ने म गरीब को एक
अिभ न भिू मका िनभानी चािहए। इस प्रकार, िनजीकरण म संभावनाओं की एक अ छी
िनरं तरता सि मिलत है , एक भाग पर रा ट्रीयकरण और दस
ू रे पर बाजार अनश
ु ासन के बीच—

1. गैर-सावर्जिनक यिक्तय को सावर्जिनक संपि य ( यवसाय प्रित ठान, प्रित ठान के


भाग—‘आंिशक िनजीकरण’) या यिक्तगत संपि य का थानांतरण (िबक्री)।

2. यिक्तगत सावर्जिनक आपूितर् काय का गैर-सावर्जिनक यिक्तय को थानांतरण


(उदाहरण के िलए, अनुबंध करना); इसके अलावा, कायार् मक िनजीकरण।

3. लाभो मख
ु ी प्रबंधन के अथर् म गैर-सावर्जिनक यवसाय प्रबंधन म संक्रमण।

4. सावर्जिनक उ यम के प्रबंधन के िलए वाय ता के मािजर्न का िव तार।

5. औपचािरक प्रावधान और प्रशासिनक िनदश से मक्


ु त होने के अथर् म, नौकरशाहीकरण।

35
6. िवकद्रीकरण, िनणर्य लेने, योजना बनाने और कायर् करने के िलए प्रािधकरण के
प्रितिनिधमंडल के अथर् म।

7. उन शत को संरेिखत करना िजनके अंतगर्त सावर्जिनक उ यम उन पर कायर् करते ह


जो गैर-सावर्जिनक यवसाय प्रित ठान पर लागू होते ह।

8. बाजार प्रिक्रयाओं (या प्रो साहन की बाजार जैसी प्रणाली) वारा प्रित पधार् को बढ़ावा
दे ना।

9. प्राकृितक एकािधकार के सामा य तकर् से संबंिधत रा य के एकािधकार को समा त


करना जो उिचत है ।

10. िनजी क्षेत्र के िलए लागू मजदरू ी, यवहार और रोजगार की शत को अपनाना—


नौकिरय का िनजीकरण।

11. सावर्जिनक सेवाओं के चिरत्र और दायरे म एक तरफा कमी।

12. सावर्जिनक संसाधन का िनजीकरण।

13. सावर्जिनक राज व का िनजीकरण—सावर्जिनक िनवेश से राज व का िनजी लाभ म


पांतरण, या सावर्जिनक पँूजी और उसके राज व तक िनजी पहुँच।

14. रा ट्रीयकरण—अंतरार् ट्रीय प्रित पधार् का दबाव, िवदे शी बाजार म गितिविध म व ृ िध,
पँूजी शेयर का अिधग्रहण एवं िवदे िशय वारा िनपटान के अिधकार।

3. वै वीकरण

वै वीकरण को अक्सर कई वैकि पक तरीक से पिरभािषत िकया जाता है , िजसम हम


िवशेषज्ञता के िलए चुने गए सीमा पर भरोसा करते ह। हम पूरी दिु नया के वै वीकरण, एक
दे श, एक चयिनत कंपनी, या शायद एक िनगम के भीतर यवसाय या कायर् की एक िविश ट
लाइन के बारे म बात करगे। िव व तर पर, वै वीकरण दे श के बीच बढ़ती आिथर्क
अ यो या यता को संदिभर्त करता है जैसा िक उ पाद , सेवाओं, पँज
ू ी और जानकारी के सीमा
पार प्रवाह म व ृ िध म पिरलिक्षत होता है । इसका प ट प्रमाण अक्सर बाद की प्रविृ य
वारा िदया जाता है —

1989 और 1999 के म य सीमा पार यापार व तुओं और सेवाओं म प्रितशत की


औसत वािषर्क दर से लगभग दोगन ु ी तेजी से व ृ िध हुई, क्य िक एक समान अविध के दौरान
दिु नया के सकल घरे लू उ पाद के भीतर 3.1 प्रितशत की औसत वािषर्क व ृ िध दर 1980 से
1999 तक प्र यक्ष िवदे शी िनवेश 4.8 प्रितशत से बढ़कर सकल घरे लू उ पाद का 9.4
प्रितशत हो गया।

36
1970 म, अमेिरका, जमर्नी और जापान म सीमा-पार लेन-दे न पर प्रितबंध लगा िदया
गया और सकल घरे लू उ पाद के अनुपात के प म इिक्वटी 5 प्रितशत से कम थी। 1999
तक इन दे श के संबंिधत आँकड़े बढ़कर 149 प्रितशत, 202 प्रितशत और 87 प्रितशत हो
गए थे। एक चयिनत दे श की सीमा पर, वै वीकरण िकसी दे श की अथर् यव था और इसिलए
शेष ग्रह के बीच अंतसर्ंबंध की सीमा को संदिभर्त करता है । एक तेजी से वैि वक दिु नया के
ू , सभी दे श िव व यापी अथर् यव था म समान
बावजद प से एकीकृत नहीं ह। िकसी भी दे श
की अथर् यव था के िव व यापी एकीकरण को जीने के िलए कुछ प्रमख
ु संकेतक जी.डी.पी. के
अनुपात के प म िनयार्त और आयात, प्र यक्ष िवदे शी िनवेश और पोटर् फोिलयो िनवेश के
आयात और िनयार्त प्रवाह, और प्रौ योिगकी ह तांतरण से संबंिधत रॉय टी भग
ु तान के
आवक और जावक प्रवाह ह। एक चयिनत उ योग की सीमा पर, वै वीकरण उस िडग्री को
संदिभर्त करता है , िजस पर एक दे श म उस उ योग के भीतर एक कंपनी की प्रित पधीर्
ि थित दस
ू रे दे श म अ यो याि त होती है । एक उ योग िजतना अिधक वैि वक होता है ,
उतना ही अिधक लाभ होता है िक एक िनगम िविभ न दे श म प्रौ योिगकी, िविनमार्ण
प्रगित, ब्रांड नाम और/या पँूजी का लाभ उठा सकता है ।

वै वीकरण क्या िनधार्िरत करता है ?


वै वीकरण इसिलए होता है क्य िक िविश ट कंपिनय म िविश ट प्रबंधक ऐसे िनणर्य लेते ह,
जो पँज
ू ी, माल और/या जानकारी के सीमा पार प्रवाह म व ृ िध करते ह। प्रबंधक इस प्रकार
के िनणर्य बढ़ती दर से कर रहे ह, क्य िक वै वीकरण अिधक यवहायर् और अिधक वांछनीय
होता जा रहा है । उन िवकास के मूल म चार प्रविृ याँ िनिहत ह। (आई.सी. ढींगरा, 2012)

1. िनरं तर बढ़ती संख्या म रा ट्र मक्


ु त बाजार की िवचारधारा को अपना रहे ह औ योिगक
और औ योगीकरण वाले दे श म अथर् यव था नीित िनमार्ताओं वारा एक ‘िनयोजन’
मानिसकता से ‘बाजार’ मानिसकता म पिरवतर्न अ छी तरह से जाना जाता है और
अ छी तरह से प्रलेिखत िकया गया है ।

2. गु वाकषर्ण का आिथर्क कद्र िवकिसत दे श से िवकासशील दे श म थानांतिरत हो रहा


है आिथर्क उदारीकरण प्रित पधार्, दक्षता, नवाचार, नए पँज
ू ी िनवेश और तेज आिथर्क
प्रिक्रया को बढ़ावा दे ता है । आ चयर् नहीं िक बाजार तंत्र के आिलंगन ने ग्रह की
िवकासशील अथर् यव थाओं को उ नत अथर् यव थाओं के साथ पकड़ने की शु आत
करने की अनुमित दी है । दिु नया का आिथर्क गु वाकषर्ण कद्र बदल रहा है । व तत
ु ः
आज कोई भी कंपनी जो िवकास करना चाहती है , उसके पास यात्रा करने के अलावा
बहुत कम िवक प ह, जहाँ िव तार है । दिु नया के शीषर् 500 औ योिगक िनगम के
भारी बहुमत के िलए, ऐसी व ृ िध घरे लू बाजार के भीतर कभी नहीं होती है ।

37
3. तकनीकी िवकास लगातार संचार म सध
ु ार कर रहे ह—हवाई पिरवहन, दरू संचार और
कं यूटर की लागत म 1980 के बाद से तेजी से िगरावट आई है । पिरवहन लागत म
िगरावट ने िशिपंग माल के मू य को कम कर िदया है । कं यूटर और दरू संचार के
मामले म, लागत म तेज िगरावट और इसिलए हाल ही म वीिडयो-कांफ्रिसंग और ई-
मेल जैसी प्रौ योिगिकय के यापक प से अपनाने ने दरू -दराज के काय के सम वय
को न केवल अिधक यवहायर् बि क अिधक िव वसनीय और कुशल बना िदया है ।

4. यापार, िनवेश और प्रौ योिगकी ह तांतरण के िलए सीमाओं के खल


ु ने से न केवल
कंपिनय के िलए नए बाजार के अवसर पैदा होते ह, बि क िवदे श से प्रितयोिगय को
अपने घरे लू बाजार म प्रवेश करने म भी सहायता िमलती है । जैसे-जैसे प्रित पधार् तेज
होती है , यह वै वीकरण ग्राहक की सेवा करने के िलए, पैमाने की अथर् यव थाओं पर
क जा करने के िलए, इ टतम थान की लागत-घटाने या गण
ु व ा-बढ़ाने की क्षमता का
लाभ उठाने के िलए, और जहाँ कहीं भी तकनीकी प्रगित को टै प करने के िलए
प्रितयोिगय की बीच दौड़ को बढ़ावा दे ता है । पिरणाम यह हुआ िक वै वीकरण अब एक
व- वरण प्रिक्रया बन गया है ।

वै वीकरण की वापसी

प्रो. दीपक नै यर ने इस त य पर बल िदया है िक वै वीकरण के मा यम से ग्रह


अथर् यव था के साथ एकीकरण का लाभ केवल उन दे श को िमलेगा, िज ह ने औ योगीकरण
और िवकास के िलए आव यक नींव रखी है । यह मानव संसाधन के िवकास और इसिलए
भौितक बुिनयादी ढाँचे के िनमार्ण के भीतर िनवेश करने का सझ
ु ाव दे ता है । यह कृिष क्षेत्र के
भीतर उ पादकता बढ़ाने का सुझाव दे ता है । यह सू म तर पर तकनीकी और प्रबंधकीय
क्षमताओं के अिधग्रहण का सझ
ु ाव दे ता है । यह उन सं थान के िनमार्ण का सझ
ु ाव दे ता है ,
जो बाजार के काम-काज को िविनयिमत, िनयंित्रत और सिु वधाजनक बना सकते ह। इनम से
प्र येक कायर् म, सामिरक प्रकार के रा य ह तक्षेप आव यक ह। िजन दे श ने इन पूव-र् शत
को नहीं बनाया है , वे आय को वै वीकरण िकए िबना कीमत का वै वीकरण कर सकते ह।
इस प्रिक्रया के भीतर, उनकी आबादी के एक संकीणर् िह से को खपत पैटनर् या जीवन शैली
के संदभर् म ग्रह अथर् यव था के साथ एकीकृत िकया जा सकता है , लेिकन उनकी जनसंख्या
का एक बह
ृ त भाग आगे भी हािशए पर जा सकता है ।

वै वीकरण उ पाद और सेवाओं, प्रौ योिगकी, पँज


ू ी, और म/मानव पँूजी के प्रवाह के
अंतगर्त कोई अवरोध उ प न िकए िबना ग्रह की िविभ न अथर् यव थाओं को एकीकृत करने
की प्रिक्रया है । इसम चार घटक सि मिलत ह—

38
1. कई अथर् यव थाओं म उ पाद और सेवाओं के मक्
ु त प्रवाह की अनुमित दे ने के िलए
सीमा शु क/कोटा/मात्रा मक प्रितबंध के प्रकार के भीतर यापार बाधाओं को कम
करना।

2. ऐसे वातावरण का िनमार्ण िजसके दौरान रा ट्र-रा य के बीच पँूजी (या िनवेश) का
मक्
ु त प्रवाह हो सकता है ।

3. प्रौ योिगकी के मक्


ु त प्रवाह के िलए एक सक्षम वातावरण का िनमार्ण।

4. िवकासशील दे श के ि टकोण से, एक ऐसे वातावरण का िनमार्ण, िजसके दौरान ग्रह


के िविभ न दे श के बीच म या मानव संसाधन का मक्
ु त प्रवाह हो सके।

अिनवायर् प से, वै वीकरण अंतरार् ट्रीय कायर्क्षेत्र के अंतगर्त उदारीकरण की प धित का


िव तार है । इसिलए, यह अंतरार् ट्रीयकरण और उदारीकरण का प्रतीक है । भारत म, 1990 के
दशक के भीतर आिथर्क सध
ु ार के दौरान एल.पी.जी. मॉडल को अपनाने के साथ वै वीकरण
की प धित शु हुई। इस संदभर् म कई प्रमख
ु िवशेषताएँ ह—

 इसका मख्
ु य प्रभाव भारत के सेवा क्षेत्र म दे खा गया, िवशेष प से सच
ू ना
प्रौ योिगकी (आई.टी.), सच
ू ना प्रौ योिगकी-सक्षम सेवाओं (आई.टी.ई.एस.),
आउटसोिसर्ंग, दरू संचार, पयर्टन, भिू म, पिरवहन, बिकंग, बीमा, मनोरं जन जैसे उ योग
के तेज गित से िवकास के भीतर।

 िवदे शी िनवेश प्रवाह (एफ.डी.आई.एवं एफ.आई.आई.) को प्रेिरत करने से आिथर्क


व तुओं की उ पादकता और गण
ु व ा म दक्षता, प्रित पधार्, लाभप्रदता और वैि वक
मानक का कारण बना है । िवलय, संयुक्त उ यम, पी.पी.पी. और िवदे शी िखलािड़य
के साथ अनब
ु ंध ने भारतीय अथर् यव था के भीतर घटना प्रिक्रया को तेज कर िदया
है ।

 20 वष के आिथर्क सध
ु ार ने िनयार्त, प्रवासन (घरे लू एवं अंतरार् ट्रीय) आिद की दर
म व ृ िध दे खी है ।

4. सावर्जिनक-िनजी भागीदारी (PPP)

भारत पी.पी.पी. पिरयोजनाओं का एक सफल उदाहरण शु कर रहा है और प्रमख


ु िवकास
पिरयोजनाओं म िनजी भागीदारी को प्रेिरत कर रहा है । सावर्जिनक-िनजी भागीदारी के सबसे
अिधक लाभ पिरयोजनाओं की कुशल और विरत िडलीवरी, अथर् यव था के भीतर क्षमता की
कमी और बाधाओं को दरू करना, िव व तरीय सिु वधाओं के प्रावधान के भीतर नवाचार और
िविवधता, इ टतम जोिखम ह तांतरण के मा यम से करदाता के पैसे का मू य है । और

39
जोिखम प्रबंधन, आिद। पी.पी.पी. के िविभ न मॉडल ह और इसिलए भारत म मख्
ु य प से
अनुसरण िकए जाने वाले ह—

 िब ड-ऑपरे ट-ट्रांसफर (बी.ओ.टी.), उदाहरण—अिनल अंबानी समह


ू वारा शु की गई
मब
ुं ई मेट्रो रे ल

 िब ड-ओन-ऑपरे ट-ट्रांसफर (बी.ओ.ओ.टी.), उदाहरण—राजीव गांधी अंतरार् ट्रीय हवाई


अ डा, है दराबाद।

 िरयायत

 िडजाइन-िब ड-फाइनस ऑपरे ट

 प्रबंधन अनब
ु ंध

 संपि की िबक्री

1.2.7 सध
ु ार के 30 वष के म य संकट

वषर् 1991 को भारत के आिथर्क इितहास म एक मह वपूणर् मोड़ माना जाता है । डॉ.
मनमोहन िसंह और नरिस हा राव ने उदारीकरण, िनजीकरण एवं वै वीकरण के िस धांत को
लागू करके एक डूबती अथर् यव था को बचाया। 2008 से अमेिरका म शु हुआ वैि वक
संकट, भारत को दे र से प्रभािवत करता है , 2013 म चीज, कई िव लेषक के अनु प, 1991
से भी बदतर ह। मक्
ु त िगरते पये ने 70 पये/1 $ की दर और 85 िबिलयन डॉलर के बड़े
लेखांकन घाटे को छूने की कोिशश की। भारत के सकल घरे लू उ पाद का 4 प्रितशत भारतीय
अथर् यव था को एक क्षेत्र के कगार पर खड़ा करता है । इसिलए, सध
ु ार की माँग पर बहुत
यान िदया जा रहा है ।

लेिकन बहुत से लोग नहीं ह जो मानते ह िक वतर्मान ि थित 1991 से भी बदतर है ।


और 1991 के बराबर का ‘‘िबग बग िरफॉ सर्’’ भारत के पास एकमात्र समाधान नहीं है ।

सबसे पहले, िकसी को यह समझना होगा िक 2 ि थितयाँ—एक 1991 म और दस


ू री
2013 म—पूरी तरह से अलग ह। आर.बी.आई. के पूवर् गवनर्र डी. सु बाराव के अनु प, समय
के साथ अथर् यव था की मल
ू बात पिरवितर्त हो गई ह। 1991 म, भारत ‘‘लालफीताशाही
मािफयाओं’’ के साथ एक बंद अथर् यव था थी। अब भारतीय अथर् यव था एल.पी.जी. के
िस धांत का पालन करती है । 1991 म, भारत के पास िविनमय भंडार था जो केवल 2
महीने के िलए आयात को कवर करे गा जबिक अब हम आठ महीने का आयात कवर प्रदान
करगे।

40
1991 म, पये म 20 प्रितशत की िगरावट आई थी, लेिकन आज िविनमय की दर
अिनवायर् प से बाजार से जड़ ु ी हुई है और इस प्रकारझटके सहने के िलए तैयार है । 1991
के बाहरी क्षेत्र की भे यता संकेतक 2013 की तुलना म कहीं अिधक खराब हो गए थे।

सबसे मह वपूणर् कारक जो सध


ु ार की आव यकता की अवहे लना करता है , वह है
पि चमी अथर् यव थाओं की ि थित। 1991 म, पि चमी अथर् यव थाएँ िव तार खोजने की
कोिशश कर रही थीं। वे अफ्रीका और एिशया क्षेत्र से नए बाजार को पकड़ने के िलए
प्रयासरत थे। उनकी अथर् यव था व थ थी। लेिकन आज, पि चमी अथर् यव थाएँ अंदर की
ओर दे ख रही ह। 2008 का सबप्राइम संकट िवकिसत अथर् यव थाओं पर एक गंभीर
आक्रमण रहा है । अिधकांश िवकिसत अथर् यव थाएँ 2008 के प चात ् लड़खड़ा गई ह। वे
अ य दे श म िनवेश करने के आदी नहीं ह जैसा िक वे 1991 म थे। यरू ोपीय संघ, अमेिरका
और जापान वयं को ऊपर उठाने का प्रयास करते ह।

भारत को यह समझना होगा िक भले ही भारत को िव व यापी अथर् यव थाओं से िव ीय


सहायता िमलती है , लेिकन उसे दोधारी तलवार बनना है । जब तक घरे लू उ पादन और
िनयार्त को बढ़ाने के िलए इसका प्रभावी ढं ग से उपयोग नहीं िकया जाता है , तब तक िवदे शी
िव ीय सहायता एक दरू का जाल होगी। सरकार को सीखना चािहए िक समय के साथ यह
जाल और जिटल होता जाएगा। स ते वैि वक िव और पेक्ट्रम, कोयला, जमीन, लोहे जैसे
दल
ु भ
र् संसाधन का उपयोग करने वाले उ योगपितय को भी राजनीितक वगर् की सहायता से
जाल म पड़ना और टॉक गेम खेलना बंद करने का प्रयास करना चािहए।

भारत को िव व भर म िव ीय उतार-चढ़ाव से अलगाव नहीं, बि क अलगाव की िदशा म


काम करना चािहए। यह घरे लू ोत की सहायता से आसानी से हो सकता है । उ च कोयला
और लोहे के िन कषर्ण की अनुमित दे कर भारत के कोयले और लोहे के िन कषर्ण को
आसानी से 20 डॉलर िबिलयन तक बढ़ाया जा सकता है । िपछले पाँच वष म, भारत के
कोयले के आयात म 10 अरब डॉलर की व ृ िध हुई है । डॉलर के इस अनाव यक बिहवार्ह से
अक्सर आसानी से बचा जा सकता है , क्य िक भारत के पास एिशया का सबसे मह वपूणर्
कोयला भंडार है । सरकार को गोवा और कनार्टक म कोयला िनकालने की अनुमित दे ने के
लाभ के बारे म सव च यायालय को समझाना चािहए। सव च यायालय की दे ख-रे ख म,
कोयले के िनयार्त से भारत को कुछ मह वपूणर् िवदे शी मद्र
ु ाएँ आसानी से िमल सकती ह।

भारत को खा य सरु क्षा िवधेयक को एवं गोल बनाने पर िवचार करना चािहए। खा य
सरु क्षा िवधेयक गरीब को बढ़ती खा य मद्र
ु ा फीित से अलग कर दे गा। यह आर.बी.आई. के
काम को आसान और कम जिटल बनाने म सक्षम है , क्य िक आर.बी.आई. को मद्र
ु ा फीित के
िनमार्ण म िवशेषज्ञता के िलए अिधक जगह िमलेगी। तब आर.बी.आई. िविनमार्ण मद्र
ु ा फीित

41
को मौिद्रक नीितय की संरचना के आधार के प म लेगा और उ योग के िलए याज दर
को कम करे गा।

व डर् इकोनॉिमक आउटलक


ु िरपोटर् 2021 म कहा गया है िक भारतीय अथर् यव था के
2021 म 12.5 प्रितशत और 2022 म 6.9 प्रितशत बढ़ने का अनुमान है । य यिप, महामारी
म अनौपचािरक क्षेत्र म बड़े पैमाने पर बेरोजगारी है और दशक की िगरावट के बाद गरीबी
बढ़ रही है । वा य और िशक्षा के सामािजक क्षेत्र िपछड़ गए ह और हमारी आिथर्क प्रगित
के साथ तालमेल नहीं िबठा पाए ह। महामारी के म य बहुत से लोग की जान और
आजीिवका चली जाती है जो नहीं होनी चािहए थी।

ई-कॉमसर् सं थाओं के िलए नीित के मा यम से इं पेक्टर राज वापसी करने वाले ह।


भारत राजकोषीय घाटे को िव पोिषत करने के िलए आर.बी.आई. से अ यिधक उधार लेने
या धन (लाभांश के प म) िनकालने की पुरानी आदत म वापस आ गया है । प्रवासी म
संकट ने िवकास मॉडल के भीतर की किमय को दरू कर िदया है । भारत की िवदे शी रा ट्रीय
यापार नीित िफर से यापार उदारीकरण पर संदेह कर रही है , क्य िक भारत ने पहले ही
16-रा ट्र क्षेत्रीय यापक आिथर्क भागीदारी (आर.सी.ई.पी.) यापार सौदे से बाहर िनकलने का
िनणर्य कर िलया है ।

1991 के सध
ु ार पैकेज को अंतरार् ट्रीय िनिध (आई.एम.एफ.) और इंटरनेशनल बक फॉर
िरकं ट्रक्शन एंड डेवलपमट वारा िनधार्िरत िकए जाने के कारण भारी आलोचना का सामना
करना पड़ा। इसके अलावा, पँज
ू ीपितय को बेचने के प म कई सध
ु ार की आलोचना की
गई। 2021 सध
ु ार, सध
ु ार के िलए ऐसा कद्रीकृत ि टकोण अब काम नहीं कर सकता है ।
इसे अक्सर तीन कृिष कानून से उपजे िवरोध म दे खा जाता है ।

1.2.8 िन कषर्

सध
ु ार के पीछे मख्
ु य प से उदारीकरण, नौकरशाही िनयंत्रण को प्रितबंिधत करना, प्र यक्ष
िवदे शी िनवेश पर प्रितबंध हटाना एवं सावर्जिनक क्षेत्र के उ यम पर भार कम करने की
ि ट से िनजीकरण को प्रो सािहत करना था। आिथर्क सध
ु ार की प्रमुख िवशेषता भारतीय
अथर् यव था को िव व यापी अथर् यव था के साथ एकीकृत करने की ि ट से सरकार वारा
प्र तुत एल.पी.जी. मॉडल था। जी.डी.पी. व ृ िध के संदभर् म आिथर्क सध
ु ार का प्रभाव
सकारा मक रहा है और िवदे शी िनवेश म व ृ िध भी संतोषजनक रही है । हालाँिक, हमारे दे श
की यापक सम याओं जैसे गरीबी एवं बेरोजगारी को इन सध
ु ार से प्रो साहन नहीं िमला है ।
कृिष िवकास की भी उपेक्षा की गई है , जैसा िक सामा य सावर्जिनक क्षेत्र वारा इसम पँज
ू ी
िनवेश के लगभग ठहराव के प म दे खा गया है । आिथर्क सध
ु ार भी औ योिगक िवकास को
गित दे ने म सफल नहीं रहे ह।

42
आिथर्क सध
ु ार ने भारतीय को िवदे शी बाजार म प्रवेश करने के िलए भारतीय की
तुलना म अिधक हद तक भारतीय बाजार म प्रवेश करने म सहायता की है । घाटे का िनरं तर
संतुलन इसका प्रमाण है । आिथर्क सध
ु ार भी क्षेत्रीय िवषमताओं को कम करने म िवफल रहे
ह। बड़े और छोटे रा य के बीच की खाई समय के साथ बढ़ती जा रही है ।

उदारीकरण नीित म पिरवतर्न की वह प्रिक्रया है , जो आिथर्क प्रिक्रया के संचालन के िलए


ू ी, प्रौ योिगकी और
उपयुक्त हो। वै वीकरण का अथर् है िव व भर म उ पाद , पँज म की
आवाजाही। जहाँ तक भारत का संबंध है , वै वीकरण के संभािवत लाभ को अिधकतम करने
के िलए प्राथिमकताओं के अनु प उदारीकरण नीितय म सध
ु ार करने की आव यकता है ।
िनजीकरण को अक्सर दो अथ म िलया जाता है —संकीणर् अथर् एवं यापक अथर्। संकीणर् अथर्
म, इसका अथर् है वािम व का आम जनता से िनजी हाथ म ह तांतरण। यापक अथ म,
इसका अथर् है प्रित पधार् को बढ़ावा दे ना अथार्त ्, बाजारीकरण, जहाँ माँग और आपिू तर् को
िकसी भी प्रािधकरण वारा िनयंित्रत या िनदिशत होने के बजाय मक्
ु त भिू मका िनभाने की
अनुमित है ।

लंबी अविध की रणनीित के िलए, हम सात िवषय पर रा ट्रीय यान किद्रत करने की
आव यकता है —(1) बचत दर, िवशेष प से आम जनता और यिक्तगत कॉप रे ट क्षेत्र की
बचत दर के भीतर तेजी से व ृ िध, (2) तेजी से िनयार्त व ृ िध को ‘रा ट्रीय आिथर्क प्रयास’
बनाना, (3) िनयार्त पर अिधक यान दे ना, यावसाियक प्रित ठान वारा अनुसध
ं ान एवं एवं
िवकास पर अिधक यान दे कर भारतीय उ योग की तकनीकी क्षमता म सध
ु ार करना,
(4) बेहतर कर अनुपालन, (5) सामािजक याय के िलए अिधक सिक्रय, (6) पयार्वरण के
िलए अिधक सिक्रय, आधिु नकीकरण का पािरि थितक लागत को सन
ु े िबना आिथर्क प्रिक्रया
जारी नहीं रह सकती है , एवं (7) ग्रामीण िवकास जो कृिष और औ योिगक दोन क्षेत्र म
रोजगार के अवसर को ग्रामीण क्षेत्र म ले जा सकता है , तािक ग्रामीण सम ृ िध हो और
शहरी भीड़ और क्षय का अंत हो।

1.2.9 अ यास प्र न

1. भारत म आिथर्क सध
ु ार कायर्क्रम के उ दे य क्या ह?

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43
2. वै वीकरण को ती करने के िलए उ रदायी चार कारक का उ लेख कीिजए।

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3. 1990 के बाद से भारतीय अथर् यव था के समक्ष सबसे ग भीर सम या क्या है ?

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………………………………..………………………………………………..………………………………………………..………………………
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1.2.10 संदभर् सच
ू ी

 Baru, Sanjay (1993): “NEP: The Equity Dimension”, The Economic


Times, March 25.

 Datt, Ruddar (1993): “Impact of New Economic Policy”, Financial


Express, January 27 (2000): Indian Economy (Chapter-13), S. Chand &
Co. Ltd., New Delhi.

 Datta, Bhabatosh (1992): “Alternative Strategy: The Basic issues”,


Business Standard, August 26.

 Dhingra, I.C. (2012): The Indian Economy: Environment and Policy (27th
edition.2012).

 Ghosh, Arun (1992): “Self-reliance, Recent Economic Policies and Neo-


Colonialism”, Economic and Political Weekly, April 25.

 Government of India (1993): Economic Reforms: Two Years After and


the Task Ahead.

 Gupta, Anand P (1996) “Political Economy of Privatisation in India”,


Economic and Political Weekly, September, 28.

 Kalirajan, K.P. and R.T. Shand (1996), “Public Sector Enterprises in


India: Is Privatisation the only answer?”, Economic and Political Weekly,
Sept. 28.

44
 Nayyar, Deepak (1992): “Perceptions (interview column)”, The Economic
Times, February 18 and 25. — (1994): Fiscal adjustment: Why and For
Whom?” Times of India, February 27.

 Nayyar, Deepak (1995), “Globalisation, The Past in our Present”


(Presidential address at the 78th Annual Conference of Indian Economic
Association, Chandigarh, December 28-30).

 Oman, Charles (1995), “Globalisation and Regionalisation: The


Challenge for Developing Countries”, OECD, Paris.

 Patel, I.G. (1991): “New Economic Policies: A Historical Perspective”,


IIM-B Foundation Day Lecture 1991, Bangalore, October 21.

 Roy, Sumit (1997), “Globalisation, Structural Change, and Poverty:


Some Conceptional and Policy Issues”. Economic and Political Weekly,
Aug. 16-30.

 Singh, Ajit Kumar (1993): “Social Consequences of New Economics


Policies”, Economic and Political Weekly, February 13.

 United Nations (1996), UNCTAD’s Secretary General’s Report on


Globalisation and Liberalisation, UN, USA, New York.

 Vyas V.S. (1993): “New Economic Policy and Vulnerable Sections–


Rationale for Public Intervention”, Economic and Political Weekly, March
6.

45
इकाई-2 : औ योिगक िवकास रणनीित और सामािजक संरचना पर इसका प्रभाव

पाठ-1 : िमि त अथर् यव था, िनजीकरण, संगिठत और


असंगिठत म पर प्रभाव
रे वती वी मेनन1
अनुवादक : रजनी2

2.1 संरचना

2.1.1 पिरचय
2.1.2 भारत म औ योिगक िवकास
2.1.3 िमि त अथर् यव था
2.1.4 िनजीकरण और भारतीय अथर् यव था
2.1.5 संगिठत और असंगिठत म पर प्रभाव
2.1.6 िन कषर्
2.1.7 अ यास प्र न
2.1.8 संदभर् सच
ू ी

2.1.1 पिरचय

वतंत्र भारत का िवकास कायर्क्रम आंतिरक प से िमि त अथर् यव था को वीकारने के


प्रशासिनक िनणर्य पर आधािरत था। िमि त अथर् यव था को वीकारने के िव ध
असंिदग्धता बनी रही और अभी भी यह इस आधार पर बनी हुई है िक सरकार की भागीदारी
और िनयंत्रण को उ च तर पर दे खा जा सकता है क्य िक भारतीय अथर् यव था को
अपयार् त संसाधन आवंटन और वैि वक संदभर् म हमारे गैर-प्रित पधीर् व प का भी सामना
करना पड़ेगा। हमारी अथर् यव था औ योिगक िवकास पर अ यिधक िनभर्र है । इसके
अितिरक्त, समाज के एक वगर् ने िमि त अथर् यव था के ढाँचे को रा य के साथ घिन ठ
साझेदारी म पँज
ू ीवादी स ा को वैध बनाने के उपाय के प म मानते हुए इस कदम का
िवरोध िकया।

य यिप, यह वीकार िकया जाना चािहए िक वतंत्र प से छोड़ी गई बाजार की शिक्त


गरीबी की सम या को हल नहीं कर सकती ह, क्य िक लाख लोग (बहुसख्
ं यक) मात्र िनवार्ह

1
Guest Faculty, Department of Political Science, School of Open Learning, University of Delhi
2
Guest Faculty, Department of Political Science, School of Open Learning, University of Delhi

46
पर िनभर्र रहते ह और अिधक अनुपात गरीबी रे खा से िन न तर पर रहते ह। इसके
अितिरक्त, भारतीय सं कृित के िवकास को दे खते हुए, सामािजक और आिथर्क पिरवतर्न को
िनदिशत करने वाले रा य के साथ एक कद्रीय िनयोिजत अथर् यव था का होना दे श के िलए
असंभव है । पिरणाम व प, िमि त अथर् यव था की खोज ही एकमात्र यवहायर् िवक प रहा
है । 1950 और वतर्मान की ि थित का िव लेषण करते हुए, अिधक कुछ नहीं बदला है ,
गरीबी की गंभीरता, क याण कायर्क्रम के िलए सरकार पर िनभर्रता, यूनतम रा य के प
म बाजार पर रा य का िनयंत्रण दे श की िविवधता को दे खते हुए भारत का समाधान नहीं हो
सकता है । िफर भी हम सावर्जिनक क्षेत्र के अपयार् त प्रदशर्न को दे ख सकते ह, ऐसा प्रतीत
होता है िक म रा य की यापकता और ह तक्षेप करने वाली भिू मका म इसकी प्रासंिगकता
भी खो गई है ।

2.1.2 भारत म औ योिगक िवकास

भारत तीसरी दिु नया के दे श के म य औ योगीकरण का अग्रदत


ू था, िजसने िब्रिटश शासन
के उपरांत से संचार नेटवकर् फैलाने, बेहतर पिरवहन प्रणाली, िसंचाई प्रणाली आिद जैसे
आधुिनक बिु नयादी ढाँचे का िवकास िकया। भारत म औपिनवेिशक शासन से पूवर् भी, हमने
उ च िविनमार्ण, िनयार्त प्रदशर्न और औ योिगक प्रदशर्न को दशार्ने वाले अ यिधक प्रित पधीर्
बाजार को दशार्या था, िजसे िव व म बेहतरीन माना जाता था। वतंत्रता के उपरांत, शोषण
के िशकार के प म, हमारी अथर् यव था और सभी प्रमख
ु क्षेत्र को पण
ू र् प से न ट कर
िदया गया था। इसिलए भारत ने औ योिगक आ मिनभर्रता के अपने ल य की खोज म एक
खुली अथर् यव था को छोड़ िदया। पिरणाम व प, औ योिगक संरचना बहुत अिधक िविवध
हो गई है ।

िवकास के िलए भारत की रणनीित की मख्


ु य िवशेषताएँ

भारत की िवकास रणनीित की िवशेषताएँ िन निलिखत ह—

योजना बनाना : भारत ने िनयोजन को एक िवकास रणनीित के प म चुना है । िनयोजन


की वीकृित का सबसे आव यक कारण यह था िक इसे आिथर्क िवकास का एक बेहतर
तरीका माना जाता था।

िमि त अथर् यव था : िमि त अथर् यव था की धारणा िनजी और रा य उ यम की सह-


अि त व की संभावनाओं को वीकार करती है । भारत को िमि त अथर् यव था के उ कृ ट
उदाहरण के प म दे खा जाता है । भारत म, सरकार ने सावर्जिनक और िनजी दोन क्षेत्र की
कंपिनय के िवकास के िलए क्षेत्र को अलग रखा।

47
सावर्जिनक क्षेत्र की भिू मका : िवकास और रणनीित म सावर्जिनक क्षेत्र को एक प्रमख

भिू मका दी गई थी। क्य िक भारी उ योग िनवेश बड़ा था, गभर् धारण का समय अ यिधक
लंबा था, और लाभप्रदता कम थी।

भारी उ योग रणनीित : दस


ू री योजना के िलए भारतीय योजनाकार की रणनीित की नींव,
और अगली तीन योजनाओं के िलए मामल
ू ी बदलाव के साथ, भारी, बुिनयादी और मशीन
िनमार्ण उ योग म भारी िनवेश वारा तेजी से औ योगीकरण था।

भारत की योजना के मूल उ दे य ह : िवकास, आधुिनकीकरण, आ मिनभर्रता, रोजगार और


सामािजक याय। आइए हम भारत म औ योिगक िवकास के िविभ न आयाम को दो प्रमख

ेिणय के अंतगर्त समझते ह— पूव-र् सध
ु ार अविध और सध
ु ार के उपरांत की अविध।

औ योिगक िवकास के आयाम

(ए) पूव-र् सध
ु ार अविध

1951 के बाद से, लोकिप्रय ‘पंचवषीर्य योजनाओं’ के प्रारं भ के साथ भारतीय अथर् यव था ने
िवकास के सकारा मक संकेत िदखाना शु कर िदया। पहले दो दशक के दौरान, िवशेष प
से दस
ू री (1956-61) और तीसरी योजना (1961-66) के दौरान, औ योिगक िव तार
मह वपूणर् था। दस
ू री योजना (1956-61) भारतीय औ योिगक इितहास म िनणार्यक क्षण थी,
क्य िक इसने रा ट्र म एक औ योिगक क्रांित का प्रारं भ िकया, िवशेष प से मौिलक
औ योिगक शिक्त िवकिसत करने के िवशय म। अगली तीसरी योजना के दौरान भी गित को
बनाए रखा गया था। िवकास की इस अविध को ‘िविनयमन के साथ औ योिगक िवकास’ की
अविध के प म जोड़ा जा सकता है । संपूणर् समय म दे खी गई औ योिगक िवकास की उ च
दर िन न कारण से थी—

 बड़े पैमाने पर औ योगीकरण पर आधािरत आिथर्क नीितय को अपनाना,

 औ योगीकरण के भीतर, एक भारी उ योग-उ मख


ु रणनीित अपनाना और औ योिगक
नीित और योजना म सव च उ दे य के प म औ योिगक िवकास की आव यकता
को अनुभव करना,

 भारी िनवेश और इस तरह औ योिगक क्षेत्र की क्षमता के िवकास पर यान किद्रत


करना, तथा अ य क्षेत्र के पूरक िवकास म योगदान करना,

 िवशेष प से शहरी और अपेक्षाकृत बेहतर क्षेत्र आिद म िविभ न प्रकार के नए उ पाद


के िलए उपभोक्ता माँग का िवकास और रणनीित बनाना।

48
तीसरी पंचवषीर्य योजना के बाद, िविनमार्ण क्षेत्र म ठहराव के साथ औ योिगक िवकास धीमा
हो गया, प्रमख
ु मजदरू ी व तुओं की प्रित यिक्त घरे लू उपल धता म िनरं तर िगरावट, गरीबी
म रहने वाले लोग की संख्या म व ृ िध, और एक ‘कुलीन-उ मख
ु उ पादन-उपभोग संरचना’
िदखाई दे रही थी। मानव िनिमर्त फाइबर और महीन व त्र, पेय पदाथर्, सग
ु ध
ं और स दयर्
प्रसाधन, समाज के कुलीन वगर् पर यान किद्रत करने वाले अ य उ पाद ने उ पादन म
तुलना मक प से बड़ी व ृ िध दे खी। यह ि थित बड़े तर पर बाजार की व तुओं के िलए
िनवेश ग्रेड पँूजी के आवंटन के पिरणाम व प उ प न हुई। नतीजतन, 1980 के दशक तक
औ योिगक संरचना म असंतुलन दे खा गया था।

1980 के दशक के दौरान, छठी पंचवषीर्य योजना (1980-85) वारा आिथर्क उदारीकरण
की शु आत पर प्रकाश डाला गया था। राशन की दक
ु ान बंद कर दी गईं और मू य सीमा
हटा दी गई। इससे भोजन की लागत के साथ-साथ रहने की लागत म व ृ िध हुई। इस समय
के दौरान, औ योिगक िव तार की दर म व ृ िध हुई, और िपछली अविध के ठहराव को भंग
कर िदया गया। इस िबंद ु पर नेह वादी समाजवाद का अंत हो गया। अिधक जनसंख्या से
बचने के िलए, पिरवार िनयोजन भी शु िकया गया था।

भारत का आिथर्क उदारीकरण अथर् यव था को अ यिधक बाजार और सेवा-उ मख


ु बनाने
के साथ-साथ िनजी और िवदे शी िनवेश की भिू मका को बढ़ाने के उ दे य से दे श की आिथर्क
नीितय के उदारीकरण को संदिभर्त करता है । आवंिटत अनुभाग म उदारीकरण के बारे म
िव तार से चचार् की जाएगी। औ योिगक नीित के उदारीकरण के साथ, एक चरण जो 1980
के दशक की शु आत म शु हुआ और 1985 तक पूरा हुआ, के कई अ य कारक ने वापसी
म योगदान िदया जैसे—

 1980 के दशक के दौरान, सावर्जिनक िनवेश ने भारतीय उ योग के िव तार को


प्रभािवत करने म मह वपूणर् भिू मका िनभाई जो 1970 के दशक की तुलना म अिधक
था।

 िनजी कॉप रे ट िविनमार्ण क्षेत्र ने अपने िनवेश म उ लेखनीय सध


ु ार िकया है ।

 1980 के दशक म, बढ़े हुए औ योिगक िनवेश को पँज


ू ीगत व तुओं के आयात म
ती व ृ िध वारा समिथर्त िकया गया था।

 ‘उदार राजकोषीय प्रणाली’—जो एक ऐसी प्रणाली को संदिभर्त करती है , िजसम


सावर्जिनक िव के कई मल
ू भत
ू िस धांत को छोड़ िदया गया है —उ योग म तेजी से
िनवेश की सहायता की।

49
 सामा य प से सकल घरे लू पँूजी िनमार्ण और िवशेष प से सावर्जिनक िनवेश की
उ च दर और प्रितमान के पिरणाम व प बेहतर बुिनयादी ढाँचा प्रदशर्न।

 गैर-कृिष क्षेत्र के पक्ष म अंतर-क्षेत्रीय यापार शत म होने वाला पिरवतर्न।

 1980 के दशक के दौरान, आिथर्क सध


ु ार को बढ़ावा दे ने म रा य की भागीदारी
अप्र यक्ष थी, अथार्त ् एक बड़े प्रशासिनक साम्रा य के िनमार्ण के मा यम से बढ़ते
म यम वगर् को रोजगार और आय प्रदान करना।

1950-1970 और 1980 की अविध के दौरान हुए िनयोिजत िवकास के म य मह वपण ू र्


अंतर यह है िक रा य वारा प्र यक्ष प से उ प न आय उन व तओ
ु ं की माँग के आय के
तर को थोड़ा कम कर दे ती है , जो पहले जनसंख्या के आय वगर् वारा मात्र सवार्िधक खपत
की जाती थी।

(बी) सध
ु ार के उपरांत की अविध

1991-2000 के दौरान भारतीय औ योिगक उ पादन को गंभीर हािन हुई। 1991-94 के


आसपास औ योिगक उ पादन म िगरावट म मख् ु य प से आयात म कमी, आयात की
लागत म व ृ िध, पये के िविनमय मू य म िगरावट और प्रितबंधा मक मौिद्रक नीित—आपूितर्
पक्ष पर और माँग पक्ष पर, मद्र
ु ा फीित दबाव, सरकारी खचर् म कमी, और कड़े बजटीय
अनुशासन, आिद दे खे गये। य यिप, आयात संपीड़न कभी भी उतना गंभीर नहीं रहा, िजतना
1991-92 म था, जब िवदे शी भंडार सवर्कािलक उ च तर पर था। प्र यक्ष िवदे शी िनवेश
प्रवाह से जड़
ु ी अिनि चतताओं ने थानीय उ पादक म अपनी िनवेश योजनाओं को थिगत
करने और अपनी िवकास आकांक्षाओं को भी ठं डे ब ते म डालने का कायर् िकया। यह िगरावट
केवल अ थायी थी, अथर् यव था के वह
ृ द-आिथर्क समायोजन के िलए सरकार के ि थरीकरण
उपाय के पिरणाम व प 1994 के अंत तक औ योिगक िवकास की दर को सकारा मक प
से बढ़ा िदया। िवकास दर को बदलाव के पिरणाम के प म दे खा जाने लगा, जो सरकारी
खचर् और सावर्जिनक िनवेश म व ृ िध से बाजार की आपूितर् और माँग दोन पक्ष पर िवकास
को प्रो सािहत करता है । इसके अलावा उ पाद शु क और सीमा शु क म कटौती, िनयार्त की
मात्रा म व ृ िध, कृिष उ पादन की व ृ िध म िनरं तर ि थरता, बिकंग प्रणाली से जारी धन
आिद भी इसम सि मिलत िकए गए।

दस
ू रा मह वपूणर् संरचना मक पिरवतर्न िनयार्त प्रित पधार् मकता म व ृ िध का होना था,
जो उ च िनयार्त अनुपात म पिरलिक्षत होता था। कुल िनयार्त ( यापार और िछपी हुई प्राि त
या जी.डी.पी.) का अनुपात 2000-01 म 16.9 फीसदी से बढ़कर 2007-08 म 33.2 फीसदी
हो गया। िव ीय गहनता तीसरा िवकास है , जो हाल के वष म हुआ है । बक ऋण म व ृ िध
की प ृ ठभिू म म, बक संपि /जी.डी.पी. अनुपात 2000-01 म 48 से बढ़कर 2005-06 म 80

50
हो गया। सभी तीन संरचना मक िवकास म याज की दर कम होना एक सामा य घटक रही
ह। याज दर म कटौती से राजकोषीय सु ढ़ीकरण म सहायता िमली, कंपनी की प्रित पधार्
म व ृ िध हुई और इसके पिरणाम व प खुदरे ऋण म भारी उछाल आया। चालू और पँज
ू ी
दोन खात म अंतवार्ह म व ृ िध ने कम याज दर की अनुमित दी। दस
ू रे श द म, यह
प ट है िक औ योिगक क्षेत्र ने अपने पँज
ू ी टॉक को बढ़ाकर मजबूत अथर् यव था की माँग
का उ र िदया।

ु ार, बड़ा एफ.डी.आई. अंतवार्ह, प्रित पधार् मक दबाव म


अथर् यव था की पारदिषर्ता म सध
व ृ िध, सच
ू ना और संचार प्रौ योिगकी के िनवेश म व ृ िध, और अिधक िव ीय ने सभी
उ योग म उ पादकता को आगे बढ़ाया। पिरणाम व प, उ योग सेवा क्षेत्र के साथ िमलकर
एक प्रमख
ु िवकास इंजन बन गया है । कई सेवाएँ, जैसे वािण य, पिरवहन, संचार और
िनमार्ण, िविनमार्ण क्षेत्र से अटूट प से संबंिधत ह।

2008-09 तक बाद के वष म क चे तेल और अ य व तुओं की कीमत म व ृ िध,


याज दर म व ृ िध, भारतीय कॉप रे ट क्षेत्र का समथर्न करने के िलए बाहरी पँूजी जट
ु ाने का
प्रयास, अंतरार् ट्रीय सं थान की मह वपूणर् भिू मका के साथ, अथर् यव था को खोलना, िनमार्ण
और िरयल ए टे ट क्षेत्र म तेजी से िगरावट ने िवकास दर को धीमा कर िदया। 2009 के
बाद, िटकाऊ उपभोक्ता व तुओं और म यवतीर् उ पाद म तेजी से व ृ िध हुई—बुिनयादी और
पँूजीगत व तुओं म धीरे -धीरे व ृ िध हुई और उपभोक्ता गैर-िटकाऊ व तुएँ नाटकीय प से
धीमी हो गईं। उदाहरण के िलए, ऑटोमोबाइल, रसायन, ऊन और रे शमी व त्र, रबर और
लाि टक उ पाद, लकड़ी के उ पाद और िविभ न िविनमार्ण उ पाद म 2009-10 म मजबूत
व ृ िध दे खी गई। जबिक अधाि वक खिनज उ पाद म मामल
ू ी व ृ िध, कागज, चमड़ा, भोजन
और जट
ू के व त्र म कोई व ृ िध नहीं दे खी गई, पेय और तंबाकू उ पाद म भी िगरावट दे खी
गई।

संयुक्त प्रगितशील गठबंधन सरकार (2004-2009) के पास लोकसभा म वाम दल के


समथर्न के कारण सावर्जिनक क्षेत्र के उ यम के िनजीकरण के बहुत कम अवसर है । वहाँ
पुनः सरकार ने धन जट ु ाने के िलए अ य िवक प की कमी और लगातार बढ़ते सामािजक
क्षेत्र के बजट के कारण सावर्जिनक पेशकश या मा यिमक तरीक से रा य वारा संचािलत
फम म 5 से 20 प्रितशत िह सेदारी बेचने का िनणर्य िलया। शेयर बाजार म खुदरे भागीदारी
को बढ़ावा दे ते हुए, सरकार अपनी कंपिनय म एक िनयंित्रत वािम व को बेचे िबना नकदी
जट
ु ाने म सक्षम थी। भारतीय दस साल के आिथर्क उदारीकरण के बाद अछूते थे, और
इक्कीसवीं सदी के पहले दशक ने इसे प्रितिबंिबत िकया।

51
2014 म योजना आयोग को नीित आयोग से बदल िदया गया था (नीित आयोग का
अथर् नेशनल इं टी यूट फॉर ट्रांसफॉिमर्ंग इंिडया था)। योजना आयोग एक सोिवयत शैली की
एजसी थी, िजसने दे श के िलए पंचवषीर्य योजनाएँ तैयार कीं और सलाह दी िक प्र येक रा य
को कद्रीय धन कैसे आवंिटत िकया जाए। रा य के साथ परामशर् करने के बाद, नीित आयोग
ं टक के
वतर्मान म सरकार के िथक प म काम करता है , म यम और दीघर्कािलक नीितयाँ
थािपत करता है और उ ह साल-दर-साल योजनाओं म िवभािजत करता है ।
भारत सरकार ने 8 नवंबर, 2016 को 500 और 1,000 के नोट के िवमद्र
ु ीकरण की
घोषणा की। िवमद्र
ु ीकृत बक नोट के मआ
ु वजे म, यह 500 और 2,000 के नए नोट भी
लाए। प्रधान मंत्री नरद्र मोदी ने जोर दे कर कहा िक यह कदम अवैध और नकली मद्र
ु ा के
उपयोग को प्रितबंिधत करे गा, िजसने गैर-कानूनी गितिविधय और आतंकवाद को बढ़ावा
िदया, साथ ही छाया अथर् यव था पर भी अंकुश लगाया। बदलाव के पिरणाम व प दे श के
औ योिगक उ पादन और जी.डी.पी. िवकास दर दोन कम हो गए। भारत सरकार ने दोन
मामल म औपचािरक मौिद्रक प्रणाली के बाहर संग्रहीत ‘काले धन’ के मा यम से कर
धोखाधड़ी का मक
ु ाबला करने के उ दे य से, 1946 और 1978 म दो बार पहले बकनोट का
िवमद्र
ु ीकरण िकया था।
नरद्र मोदी सरकार ने कारोबार करने म आसानी को बढ़ाने की प्राथिमकता दी है । इसके
िह से के प म, व तु और सेवा कर (जी.एस.टी.) को जल
ु ाई 2017 म अपनाया गया था।
भारत वतर्मान म अप्र यक्ष कर कोड वाले कुछ दे श म से एक है , जो संघीय और रा य कर
िनयम को जोड़ता है । कुछ तकनीकी किठनाइय और यवसाय , िवशेष प से छोटे और
म यम यवसाय के िलए बढ़ते अनप
ु ालन बोझ के बावजद
ू , नई प्रणाली ने रा य के बीच
कर बाधाओं को हटा िदया है और एक एकल सामा य बाजार बनाया है , िजससे अंतरार् यीय
लेवी के भग
ु तान के िलए ट्रक को सीमाओं पर िबना के वतंत्र प से चलने की अनुमित
िमलती है ।
युवा उ यिमय ने िपछले दशक के दौरान भारत म िडिजटल भग
ु तान, ऑनलाइन
शॉिपंग, ऑन-िडमांड िडलीवरी, िशक्षा, सॉ टवेयर और अ य क्षेत्र म अवधारणाओं के साथ
प्रयोग िकया है , िजसके पिरणाम व प कई यवसाय संघ बने ह। इसके उदय के
पिरणाम व प एंजेल और वचर कैिपटल, इ क्यूबेटसर् और एक्सेलेरेटसर् के साथ-साथ नए
सामािजक उपभोग प्रितमान के एक नए पािरि थितकी तंत्र का उदय हुआ है ।
औ योगीकरण का प्रितमान
वतंत्रता के बाद से अपनाए गए औ योगीकरण का प्रितमान भारत म औ योिगक िव तार
की दस
ू री प्रमख
ु िवशेषता है । औ योगीकरण को दो ेिणय म िवभािजत िकया जा सकता
है —(ए) उ योग के कायार् मक प्रितमान और (बी) उ योग के वािम व प्रितमान।

52
(ए) उ योग का कायार् मक प्रितमान
उपयोग-आधािरत या कायार् मक वगीर्करण मानदं ड के आधार पर िविभ न उ योग को चार
प्रभाग म बाँटा जा सकता है —

ए) बुिनयादी उ योग,

बी) पँज
ू ीगत सामान उ योग,
सी) म यवतीर् माल उ योग, और

डी) उपभोक्ता व तु उ योग

िविभ न उ योग म िवकास की चक्रव ृ िध दर से संबंिधत पाँच अलग-अलग चरण ह।

पहला चरण 1960 के दशक के म य तक चला। पहले चरण म, उ योग के िव तार की


दर म नाटकीय प से व ृ िध आई थी। बुिनयादी और पँज
ू ीगत सामान क्षेत्र ने एक मह वपूणर्
योगदान िदया, िजसके बाद बुिनयादी और पँजू ीगत सामान क्षेत्र का त काल िव तार हुआ,
और उपभोक्ता व तु उ योग का अपेक्षाकृत म यम िव तार हुआ। यह प्रितमान दस ू री योजना
के दौरान िवकिसत िवकास योजना के अनु प था और पूरी योजना के दौरान यह लागू िकया
गया था।

दस
ू रा चरण 1965 से 1975 तक था। जैसा िक पहले कहा गया था, औ योिगक िवकास
की दर िन निलिखत चरण म व ृ िध होने लगी, जो 1960 के दशक के म य म शु हुई,
जहाँ िवकास कुछ हद तक अिधक था, अिधकांश उ योग या तो सीधे थे या परोक्ष प से
‘कुलीन-उ मख
ु उपभोग के सामान’ क्षेत्र के िलए, जैसे उपभोक्ता िटकाऊ व तुएँ, िजसे
‘भारतीय औ योगीकरण का िसंड्रल
े ा’ करार िदया गया है ।

1975-1990 तीसरा चरण था। इस समय के दौरान, औ योिगक िवकास बहुत िविवध
था, सभी मख्
ु य क्षेत्र म िवकास दर म व ृ िध हुई थी। बिु नयादी सामान उ योग, साथ ही
पँज
ू ीगत सामान और म यवतीर् माल क्षेत्र, काफी ि थर दर से बढ़े ।
1990 से 2008 तक चौथा चरण है । जबिक 1990 के दशक म यापार उदारीकरण के
प्रभाव के प म बिु नयादी और पँज
ू ीगत व तुओं के क्षेत्र के आनप
ु ाितक योगदान म कमी
आई, म यवतीर् और उपभोक्ता व तओ ु ं के क्षेत्र म व ृ िध हुई। अंतरार् ट्रीय यापार, िव ीय
और वा तिवक क्षेत्र को आिथर्क िवकास म अपनी उिचत भिू मका िनभाने के िलए प्रो सािहत
करने की भावना, अंितम त व के बारे म िनणर्य वयं उ योग वारा िकए जाने चािहए।
िटकाऊ उपभोक्ता व तुओं के प्रितशत म भी उ लेखनीय व ृ िध हुई है ।

2008-09 से, का पाँचवाँ चरण या मंदी का चरण था। 2007-08 की दस


ू री ितमाही म
उपभोक्ता िटकाऊ के साथ मंदी की शु आत हुई, हालाँिक अ य उपयोग-आधािरत ेिणयाँ,

53
जैसे िक म यवतीर् और यहाँ तक िक उपभोक्ता गैर-िटकाऊ, ने धीमी दर पर, कुल व ृ िध म
सहायता की। पँूजीगत व तुओं के उ पादन म ती गित से व ृ िध जारी रही, जो संभवत,
उ च िनवेश दर को दशार्ती है । हालाँिक, 2008-09 की पहली ितमाही से म यवतीर् व तुओं
की व ृ िध म कमी के पिरणाम व प कुल व ृ िध म भारी िगरावट आई, िजसे 2008-09 की
तीसरी ितमाही म बढ़ाया गया जब शेष ेिणय की व ृ िध म तेज िगरावट दे खी गई। छठे
वेतन आयोग की िसफािरश को अपनाने के बाद, एक िव तारवादी मौिद्रक नीित और बकाया
भग
ु तान के साथ वेतन व ृ िध के पिरणाम व प कम याज दर ने उपभोक्ता िटकाऊ व तुओं
की माँग को प्रो सािहत िकया। दस
ू री ओर, उपभोक्ता गैर-िटकाऊ व तुएँ प्रदशर्न के मामले म
िपछड़ती जा रही ह। इस क्षेत्र म व ृ िध की प्रविृ काफी अि थर रही है । अ य उपयोग-
आधािरत ेिणय के बीच बुिनयादी उ पाद और म यवतीर्, 2009-10 म तेजी से लगातार
िवकिसत हुए।

(बी) उ योग का वािम व प्रितमान

औ योिगक योजना के िनमार्ता, जो मख्


ु य प से बुिनयादी और पँूजीगत व तुओं के क्षेत्र पर
िनभर्र थे, जो जानते थे िक इसके सफल होने के िलए, सरकार को उ यमी भिू मका िनभानी
होगी। भारत म सावर्जिनक क्षेत्र ने प्रथम योजना के उपरांत के वष म ती ता से िवकास
िकया जो अथर् यव था के शु ध घरे लू पँज
ू ी िनमार्ण का लगभग दो-ितहाई िह सा था।
हालाँिक, तीसरी योजना के बाद, सावर्जिनक क्षेत्र म शु ध घरे लू पँज
ू ी िनमार्ण ि थर होना शु
हो गया, तब से यह आमतौर पर 45 से 48 प्रितशत के बीच रहा है । इन िवकास को
वािम व और संगठना मक संरचना म प्रितिबंिबत िकया जाता है , जो परू े समय िवकिसत
हुआ है । इस प्रकार, 1990 के दशक के म य म एक साफ लेट के साथ, सावर्जिनक क्षेत्र
(कद्रीय, रा य और थानीय) ने अपनी भागीदारी म कुल कारखाना क्षमता का 4.7 प्रितशत,
रोजगार का 27.4 प्रितशत, उ पादक पँज
ू ी का 55.0 प्रितशत, पिरलि धय का 34.3 प्रितशत
व ृ िध दे खी। उ पादन मू य का 25.5 प्रितशत और मू य विधर्त मू य का 30.1 प्रितशत था।
दस
ू री ओर, उ पादन मू य विधर्त और रोजगार म सरकार का अनप
ु ात बहुत कम है ।

2.1.3 िमि त अथर् यव था

वतंत्रता प्रा त करने के बाद भारत एक गणतंत्र रा य बन गया और उसने ‘सामािजक और


आिथर्क िवकास योजना’ को चन
ु ा, िजसका अथर् था िक रा य यव था की आिथर्क और
सामािजक गितिविधय म ‘क्या, कैसे, िकतना, कहाँ और िकसे’ तय करने म अग्रणी होगा।
जबिक आम तौर पर िनजी संपि और बाजार सं थान का स मान करते ह। इस त य के
बावजद
ू िक हमारे संिवधान ने बाजार को संचािलत करने की अनम
ु ित दी थी, इसने रा य से
बाजार के संचालन म ह तक्षेप करने का भी आग्रह िकया। नतीजतन, हमने म यम सड़क,

54
िमि त अथर् यव था मॉडल चुना, िजसम सावर्जिनक और िनजी क्षेत्र एक दस
ू रे के पूरक ह,
जबिक सामा य िज मेदािरय या प्रगित म सिक्रय भागीदार रहते ह। हमने एक आ मिनभर्र
अथर् यव था के िलए आधार तैयार करने के िलए िवकास की एक उ च और िनरं तर दर,
लोग के रहने की ि थित म क्रिमक सध
ु ार, और गरीबी और बेरोजगारी के उ मल
ू न के ल य
के साथ लोकतांित्रक योजना को लागू िकया। 1990 के दशक म, योजना रणनीित और बाजार
के संबंध म रा य की भिू मका की क पना बाजार के पक्ष म नाटकीय प से बदल गई।

संक पना

िमि त अथर् यव था सावर्जिनक और िनजी क्षेत्र के अलगाव और सामंज य को दशार्ती है ।


यह बाजार तंत्र के मक्
ु त संचालन की मनाही करता है , और सरकार िनजी क्षेत्र म इस तरह
से ह तक्षेप या िनयंत्रण करती है िक दोन क्षेत्र पर पर मजबूत हो जाएँ। िमि त
अथर् यव था यिक्तगत पहल और सामािजक उ दे य के बीच एक यवहायर् संतल
ु न प्रदान
करती है । योजना और बाजार की प्रिक्रयाएँ इस तरह से तैयार की जाती ह िक प्र येक को
उन आिथर्क ल य को प्रा त करने के िलए िनयोिजत िकया जाता है , िजनके िलए यह सबसे
उपयुक्त है । दोन क्षेत्र ने रा ट्रीय उ दे य और प्राथिमकताओं के प्रित प्रितब धता जताई है ।

क्षेत्र के वािम व के आधार पर िमि त अथर् यव था को इस प्रकार वगीर्कृत िकया जा


सकता है —

 सहकारी रा ट्रमंडल सहकारी संगठन से बनी एक प्रणाली है ।

 संयुक्त क्षेत्र के संगठन की एक प्रणाली के मा यम से एक अ य प्रकार की िमि त


अथर् यव था बनाई जाती है ।

 ठे ठ िमि त अथर् यव था एक ऐसी प्रणाली है , िजसम सावर्जिनक और िनजी दोन


क्षेत्र को शािमल िकया जाता है ।

अथर् यव था के मख्
ु य क्षेत्र के सावर्जिनक क्षेत्र वारा यि त के तर के आधार पर, यह
िमि त अथर् यव था तदथर् या यवि थत हो सकती है । िकस सीमा तक दोन क्षेत्र को िमला
िदया गया है और अथर् यव था के समग्र नीितगत उ दे य के साथ सामंज य थािपत िकया
गया है , यह जाँच करने के िलए एक अ य कारक है । यह एक ऐसी अथर् यव था होगी, जो
सावर्जिनक िवतरण प्रणाली, गरीबी उ मल
ू न कायर्क्रम और बाजार अथर् यव था िस धांत के
आधार पर उ पादन प्राथिमकताओं के संयोजन के मा यम से गरीब िह स के क याण ल य
को प्राथिमकता दे ती है । यह एक ऐसी अथर् यव था भी हो सकती है , जो िन पक्षता, रोजगार
और आ मिनभर्रता जैसे सामािजक ल य को प्राथिमकता दे ती है । िमि त अथर् यव था के
प्र येक प म योजना और बाजार अथर् यव था एकीकरण की एक अलग िडग्री होगी।

55
यह दावा िकया जाता है िक प्र येक अथर् यव था एक िमि त अथर् यव था है और इस
प्रकार ‘िमि त अथर् यव था’ श द न तो सटीक है और न ही यावहािरक। हालाँिक, यह
पहचानना मह वपूणर् है िक िनयोिजत और बाजार अथर् यव थाओं के िवचार म अलग-अलग
वैचािरक और यावहािरक िवशेषताएँ ह। िमि त अथर् यव था की धारणा इन दो चरम
सीमाओं के बीच एक समझौता है । आिथर्क, राजनीितक और सामािजक चुनौितय से िनपटने
के िलए उपकरण और रणनीितय के साथ यह धारणा अनुकूलनीय है ।

एक िमि त आिथर्क प्रणाली म पँज


ू ीवाद और समाजवाद दोन त व होते ह। एक िमि त
आिथर्क प्रणाली िनजी संपि ू ी आवंटन म कुछ आिथर्क
की रक्षा करती है और पँज वतंत्रता
की अनम
ु ित दे ती है , लेिकन यह सरकार को सामािजक ल य को प्रा त करने के िलए
आिथर्क गितिविधय म ह तक्षेप करने की भी अनम
ु ित दे ती है । िमि त अथर् यव थाएँ,
नवशा त्रीय िस धांत के अनस
ु ार, शु ध मक्
ु त बाजार की तल
ु ना म कम कुशल ह, लेिकन
सरकारी ह तक्षेप के समथर्क का तकर् है िक मक्
ु त बाजार म दक्षता के िलए मल
ू भत
ू शत,
जैसे समान जानकारी और तकर्संगत बाजार सहभािगय को यवहार म हािसल करना असंभव
है । आइए हम िमि त अथर् यव था की धारणा को बेहतर ढं ग से समझने के िलए पँूजीवाद
और समाजवाद की पिरभाषा और िवशेषताओं का िव लेषण कर।

पँज
ू ीवाद : पँज
ू ीवाद को एक आिथर्क प्रणाली के प म विणर्त िकया गया है जो एक
बाजार अथर् यव था, लाभ के उ दे य और उ पादन के साधन के िनजी यिक्त और कॉप रे ट
वािम व के िलए एक मह वपूणर् भिू मका के साथ यिक्तगत पहल पर जोर दे ती है । उ पादन
के सभी साधन, िजसम खेत, कारखाने, खदान और पिरवहन शािमल ह, पँज
ू ीवाद के िनयंत्रण
म िनजी लोग के यवसाय का वािम व ह। इन औ योिगक संपि य के मािलक िनजी लाभ
उ प न करने के िलए उनका उपयोग करने के िलए वतंत्र ह, क्य िक वे उिचत समझते ह।
रा य या सरकार लोग की आिथर्क गितिविधय म सबसे कम भिू मका िनभाती है । क्य िक
िनजी यिक्तय को इस तरह की गितिविधय को करना आकषर्क नहीं लग सकता है ,
सरकार केवल रक्षा, िवदे शी मामल , धन और िसक्के, और कुछ मह वपण
ू र् नागिरक काय
जैसे सड़क और पल
ु के िनमार्ण को संभालती है । एडम ि मथ के अनस
ु ार यिक्तगत और
सामािजक िहत अटूट प से जड़ु े हुए ह। नतीजतन, आिथर्क काय म सरकार की कोई
भिू मका नहीं होती है । रा य के िलए ऐसी कारर् वाइयाँ अिनवायर् प से असंभव थीं। यिद
सरकार इस कायर् को करती है तो यह समाज के संसाधन की बबार्दी होगी। चीज को उनके
अपने पा यक्रम का पालन करने के िलए छोड़ िदया जाना चािहए, इसिलए लोग की आिथर्क
गितिविधय को िनदिशत करने के िलए िकसी योजना या पूव-र् िनधार्िरत ढाँचे की कोई
आव यकता नहीं थी।

56
पँज
ू ीवाद की अिनवायर्ता

िनजी संपि का अिधकार : यिक्तय के पास उ पादन के िविवध साधन का िनजी


वािम व होता है । यिक्त उ ह अपनी इ छानस
ु ार रख सकते ह, उपयोग कर सकते ह या
बेच सकते ह। इस अिधकार म बेटे और बेिटय के साथ-साथ अ य कानूनी उ रािधकािरय के
िलए िवरासत का अिधकार शािमल है ।

यवसाय की यिक्तगत वतंत्रता : िकसी भी यवसाय या उ यम म भाग लेने का यिक्त


का अिधकार िजसके िलए उसके पास उपयुक्त संसाधन ह, अप्रितबंिधत है ।

लाभ प्रेरणा : एक पँज


ू ीवादी समाज लाभ के उ दे य पर आधािरत होता है । लाभ एक उ यमी
को िकसी भी आिथर्क गितिविध म िनवेश करने के िलए प्रेिरत करता है , न िक मानवीय
आवेग के िलए।

प्रित पधा : िनमार्ताओं, िवक्रेताओं, ग्राहक , नौकरी चाहने वाल , िनयोक्ताओं और िनवेशक के
बीच प्रित पधार् है । यह लागत प्रबंधन, मू य म कटौती, िवपणन और अ य तरीक से पूरा
िकया जाता है ।

उपभोक्ता संप्रभत
ु ा : एक मक्
ु त बाजार अथर् यव था म, उपभोक्ताओं के िहत और िचयाँ
आिथर्क गितिविधय का मागर्दशर्न करती ह। उपभोक्ता प्रणाली म एक मह वपण
ू र् भिू मका
िनभाता है ।

मू य प्रणाली : यह मू य प्रणाली है , जो पँूजीवादी अथर् यव था को िबना िकसी कद्रीय िदशा


या उ पादन, खपत या िवतरण पर िनयंत्रण के चलाने की अनुमित दे ती है ।

आय असमानताएँ : लोग के बीच असमान संपि आवंटन से असमान आय िवतरण होता है ।


अमीर और गरीब बहुत अलग-अलग मात्रा म पैसा कमाते ह।

बिु नयादी आिथर्क िवक प बनाने के िलए एक कद्रीय िनयोजन िनकाय की अनप
ु ि थित
होती है , इसिलए प्रित पधीर् उ दे य के बीच उ पादक संसाधन को आवंिटत करने के िलए,
बाजार अथर् यव था मू य िनधार्रण तंत्र पर िनभर्र करती है , जो प्रणाली के काम-काज के
िलए मह वपण
ू र् है । िकसी भी असंतल
ु न को मू य िनधार्रण प्रणाली और माँग-आपिू तर् पर पर
िक्रया वारा वाभािवक
प से हल िकया जाता है । उ च पािर िमक बढ़ी हुई दक्षता और
किठन प्रयास के िलए उपयुक्त पुर कार प्रदान करता है । वतर्मान और भिव य की पीिढ़य
को अिधक आय प्रदान करने के िलए बचत और िनवेश करने के िलए एक प्रो साहन भी है ।

िमि त अथर् यव था के सभी लक्षण म उिचत मू य िनधार्िरत करने के िलए आपूितर् और


माँग की अनुमित दे ना, िनजी संपि की सरु क्षा, नवाचार को बढ़ावा दे ना, रोजगार मानक ,

57
सरकार को समग्र क याण प्रदान करने की अनम
ु ित दे ते हुए यापार म सरकार की सीमा,
और इसम शािमल िखलािड़य के वाथर् से बाजार की सिु वधा होती है ।

 िमि त अथर् यव थाएँ नागिरक की भलाई सिहत अ य सभी पर लाभ को प्राथिमकता


दे ती ह।

 कई तर पर कुप्रबंधन की उ च संभावना है , धन समान प से िवतिरत नहीं िकया


जाता है ।

 सरकार की य तता के पिरणाम व प अक्षमता िवकिसत होती है ।

 मजदरू वगर् का शोषण िकया जा सकता है ।

िमि त अथर् यव था की मख्


ु य िवशेषताएँ

पँज
ू ीवाद और समाजवाद की दो चरम सीमाओं का वणर्न करने के बाद, िमि त अथर् यव था
को अब कायार् मक श द म पिरभािषत िकया जा सकता है । िन निलिखत िवशेषताएँ िमि त
अथर् यव था को पिरभािषत करती ह—

 एक जो कुछ मक्
ु त बाजार की िवशेषताओं और कुछ समाजवादी घटक के साथ
संगिठत है , और शु ध पँज
ू ीवाद और शु ध समाजवाद के बीच म कहीं पड़ता है ।

 एक िजसम उ पादन के अिधकांश साधन का िनजी वािम व और िनयंत्रण सामा य


है , हालाँिक वे अक्सर सरकार वारा िविनयिमत होते ह।

 उन यवसाय का सामािजककरण कर, िज ह आव यक समझा जाता है या


सावर्जिनक व तुओं का िनमार्ण करते ह।

 सभी ज्ञात ऐितहािसक और वतर्मान अथर् यव थाओं म पाए जाते ह, जबिक कुछ
अथर्शाि त्रय ने िविभ न प्रकार की िमि त अथर् यव थाओं के आिथर्क प्रभाव की
आलोचना की है ।

 बाजार अथर् यव था और योजना तंत्र के बीच संतुलन होना।

 सावर्जिनक क्षेत्र और िनजी क्षेत्र की सीमाओं का एक प ट सीमांकन, जैसे िक मख्


ु य
क्षेत्र और रणनीितक क्षेत्र सावर्जिनक क्षेत्र म अिनवायर् प से ह।

 जबिक लाभ का उ दे य िनजी क्षेत्र म िनणर्य लेने को प्रभािवत करता है , सावर्जिनक


क्षेत्र म िनवेश िनणर्य के िलए आिथर्क यवहायर्ता मानदं ड सामािजक लागत-लाभ
िव लेषण पर आधािरत होते ह।

 सावर्जिनक और िनजी क्षेत्र के बीच उ पादन के साधन का वािम व होना।

58
 यावसाियक वतंत्रता और उपभोक्ता पसंद होना।

 सरकार आिथर्क शिक्त के अनुिचत संकद्रण के साथ-साथ एकािधकार और


प्रितबंधा मक यापार प्रथाओं को रोकने के िलए ह तक्षेप करती है ।

 सरकार सावर्जिनक िवतरण प्रणाली, गरीबी उ मल


ू न कायर्क्रम और अ य मा यम से
समाज के गरीब वग के उपभोग तर और उ दे य को पूरा करने का प्रयास करती
है ।

 समानता, रोजगार और संतिु लत क्षेत्रीय िवकास के सामािजक उ दे य, दस


ू र के बीच
म है ।

 समाजवाद की सै धांितक कठोरता से बचा जाता है , और आिथर्क प्रगित को बढ़ावा


दे ने और िनणर्य लेने के िलए एक यावहािरक ि टकोण का उपयोग िकया जाता है ।
तथा

 एक िमि त अथर् यव था मात्र एक आिथर्क धारणा से अिधक है , केवल सावर्जिनक


कानून और यव था और नैितकता के अधीन यिक्तगत अिधकार को वीकार िकया
जाता है और बनाए रखा जाता है ।

अिधकांश आधुिनक अथर् यव थाएँ दो या दो से अिधक आिथर्क प्रणािलय का एक संकर ह,


प्र येक अथर् यव था एक पेक्ट्रम के साथ कहीं-न-कहीं ि थत है । सावर्जिनक और िनजी क्षेत्र
सहयोग करते ह, िफर भी वे समान सीिमत संसाधन के िलए लड़ सकते ह। िमि त आिथर्क
प्रणािलयाँ िनजी क्षेत्र वारा लाभ प्रा त करने पर रोक नहीं लगाती ह, लेिकन वे इसे िनयंित्रत
करती ह और सावर्जिनक भलाई की सेवा करने वाले उ यम का रा ट्रीयकरण कर सकती ह।
वा तव म, सभी ज्ञात ऐितहािसक और वतर्मान अथर् यव थाएँ िमि त अथर् यव था सात य
का िह सा ह। शु ध समाजवाद और शु ध मक्
ु त बाजार दोन ही िवशु ध प से सै धांितक
अवधारणाएँ ह। क्य िक सरकार कुछ संसाधन के उपयोग की योजना बनाने म शािमल है
और िनजी क्षेत्र म उ यम पर िनयंत्रण लगा सकती है , िमि त आिथर्क यव था अह तक्षेप
नहीं है । सरकार िनजी क्षेत्र पर कर लगाकर और सामािजक ल य का समथर्न करने के िलए
कर राज व का उपयोग करके धन का पन
ु िवर्तरण करने का प्रयास कर सकती ह। िमि त
अथर् यव थाओं म, सरकार की भागीदारी यापार संरक्षण, सि सडी, लिक्षत कर क्रेिडट,
राजकोषीय प्रो साहन और सावर्जिनक-िनजी भागीदारी का प ले सकती है । ये अनजाने म
आिथर्क िवकृितय का कारण बनते ह, लेिकन वे कुछ ऐसे उ दे य को प्रा त करने के िलए
उपकरण ह, जो िवकृितय के बावजद
ू सफल हो सकते ह।

59
तुलना मक लाभ प्रा त करने के िलए, दे श अक्सर बाजार म ह तक्षेप करते ह, तािक
िविश ट उ योग का समथर्न करने के िलए समह
ू बनाकर और प्रवेश बाधाओं को कम िकया
जा सके। यह 20वीं सदी के पूरे आिथर्क मॉडल म पूवीर् एिशयाई दे श म यापक था िजसे
िनयार्त-नेत ृ व िवकास के प म जाना जाता है , और यह क्षेत्र तब से क्षेत्र की एक िव तत

ंख
ृ ला के िलए दिु नया भर म िविनमार्ण कद्र के
प म िवकिसत हुआ है । कुछ दे श व त्र के
िलए पहचाने गए ह, जबिक अ य िविनमार्ण के िलए जाने जाते ह, और िफर भी अ य
इलेक्ट्रॉिनक घटक कद्र ह। इन उ योग का मह व तब बढ़ गया, जब सरकार ने आकार म
बढ़ने के साथ-साथ नवेली उ यम की रक्षा की और िशिपंग जैसी पूरक सेवाओं का समथर्न
िकया।

उ पादन के साधन का वािम व समाजवाद म साझा या कद्रीकृत है । समाजवािदय का


मानना है िक िनयोजन को कद्रीकृत करके, अिधक से अिधक लोग के िलए अिधक अ छा
हािसल िकया जा सकता है । समाजवादी सभी उ योग के रा ट्रीयकरण और िनजी तौर पर
आयोिजत पँूजीगत व तुओं, भिू म और प्राकृितक संसाधन के वािम व का समथर्न करते ह
क्य िक उनका मानना है िक मक्
ु त बाजार के पिरणाम शा त्रीय अथर्शा त्र वारा भिव यवाणी
की गई दक्षता और अनक
ु ू लन को पूरा नहीं करगे। िमि त अथर् यव थाएँ शायद ही कभी इस
हद तक जाती ह, इसके बजाय केवल कुछ मामल की पहचान करती ह, जब ह तक्षेप ऐसे
पिरणाम उ प न कर सकता है , जो मक्
ु त बाजार म प्रा त करना असंभव होगा।

इसके िवपरीत, भारत ने िमि त अथर् यव था मॉडल का अनुसरण िकया, िजसम


सावर्जिनक और िनजी क्षेत्र सह-अि त व म थे। भारत की िपछली औ योगीकरण नीित चिरत्र
म संरक्षणवादी थी, जो आयात प्रित थापन और लाइसस-आधािरत उ योग िविनयमन पर
किद्रत थी। इसने भारी उ योग के िवकास पर जोर िदया और भिव यवाणी की िक
सावर्जिनक क्षेत्र अथर् यव था म एक प्रमख
ु भिू मका िनभाएगा। हालाँिक, यह ज दी से प ट
हो गया था िक रणनीित के वा तिवक पिरणाम उ मीद से काफी कम थे। भारत 1980 के
दशक के उ राधर् से रा य-िनयंित्रत यापार से दरू और बाजार-उ मख
ु संरचना की ओर बढ़
रहा है । भारत की अथर् यव था िविवध है । कृिष भारत की लगभग आधी कामकाजी आबादी
को रोजगार दे ती है , जो एक पारं पिरक अथर् यव था का संकेत दे ती है । सेवा उ योग भारत के
एक-ितहाई कायर्बल को रोजगार दे ता है और दे श के उ पादन का दो-ितहाई िह सा है । भारत
म बाजार अथर् यव था म बदलाव ने इस खंड की उ पादकता को सक्षम बनाया है । 1990 के
दशक के दौरान भारत म कई उ योग को िनयंत्रणमक्
ु त कर िदया गया है । कई रा य के
वािम व वाली फम का िनजीकरण िकया गया है , और प्र यक्ष िवदे शी िनवेश का वागत
िकया गया है ।

60
1991 म आिथर्क उदारीकरण के बाद, अब तक िनजी क्षेत्र के िलए िवशेष सावर्जिनक
क्षेत्र के उ योग को पेश िकया गया था। नतीजतन, भारतीय उ यिमता को एक मह वपूणर्
बढ़ावा िमला। हालाँिक सावर्जिनक क्षेत्र िनवेश के मामले म मह वपूणर् भिू मका िनभा रहा है ,
लेिकन यह प्रविृ िगरावट पर है । कोयला, पेट्रोिलयम, दरू संचार, िबजली उ पादन और उवर्रक
कुछ ऐसे उ योग ह, जहाँ सावर्जिनक क्षेत्र का दबदबा बना हुआ है । कद्रीय सावर्जिनक क्षेत्र के
उ यम (सी.पी.एस.ई.) वारा परमाणु ऊजार् उ पादन पर पूरी तरह से एकािधकार है ।

उदारीकरण की प्रिक्रया शु होने के 20 साल बाद भारत म कंपनी की संरचना को दे खते


हुए, यह प ट है िक रा य के वािम व वाली फम और परु ाने समह ू भारतीय अथर् यव था
का एक बड़ा िह सा उन यवसाय की तल ु ना म रखते ह, जो सध
ु ार के बाद उभरे ह। दस
ू री
ओर, सू म, लघु और म यम कंपिनयाँ (डैडम ्), िविवध उ योग म 29.8 िमिलयन यवसाय
के साथ 69 िमिलयन लोग को रोजगार दे ती ह, जो हर साल भारत के सकल घरे लू उ पाद
का केवल 11.5 प्रितशत योगदान करने म सक्षम ह। यह इस त य के कारण है िक भारतीय
कॉप रे ट वातावरण अभी भी िवकिसत हो रहा है और इसम कई सं थागत अंतराल ह। बड़े
िनगम नवउदारवादी नीितय को जीतने और सं थागत किमय को दरू करने के िलए रणनीित
तैयार करने के िलए अपनी आिथर्क शिक्त का उपयोग करके अपने धन को बढ़ाने म सक्षम
रहे ह। बड़े पािरवािरक यवसाय जो 1991 के उदारीकरण से पहले सरकारी संपक ,
नौकरशाही यव था की समझ, पािरवािरक मू य को बढ़ावा दे ने वाले घिन ठ संयुक्त पिरवार
संरचना, टीम वकर्, तप और िनरं तरता के कारण सम ृ ध हुए, उ ह नए, वैि वक, प्रित पधीर्
माहौल म खुद को िफर से उ मखु करना पड़ा। िजन प्रमखु पािरवािरक फम ने िफर से यान
किद्रत िकया, वे सफल रहीं, जबिक अ य िवफल रहीं। उदाहरण के िलए, टाटा मोटसर्, एक
सफल ऑटोमोबाइल कंपनी, जो एक बड़े भारतीय समह
ू का िह सा है , को बाजार अनुसध
ं ान
प्रदाताओं, डीलर नेटवकर्, उपभोक्ता सच
ू ना प्रदाताओं, लिक्षत ग्राहक के िलए पँूजी के ोत,
और एक सिहत अिवकिसत क्षमताओं के कारण कई चुनौितय का सामना करना पड़ा। वाहन
सेवा नेटवकर् िज ह उ ह सं थागत ढाँचे म खािमय को भरने के िलए आंतिरक प्रिक्रयाएँ
बनानी पड़ीं, लेिकन वे अंततः सफल रहे । हालाँिक, छोटे यवसाय के मािलक, जैसा िक
एम.एस.एम.ई. क्षेत्र वारा पिरभािषत िकया गया है , इस तरह के तेजी से िव तार को सीिमत
मानते ह।

भारत ने िमि त अथर् यव था को कई कारण से अपनाया, क्य िक यह सिु नि चत करता


है िक सावर्जिनक और िनजी क्षेत्र ु न म ह। यह गारं टी दे ता है िक वे एक साथ
व थ संतल
काम करते ह और प्रित पधार् करते ह, जो उ च िवकास उ दे य को प्रा त करने के िलए
फायदे मद
ं है । यह अपने मू य तंत्र के साथ-साथ उ पादन, उपभोग, यवसाय की वतंत्रता
और लाभ के मकसद की उपि थित के मा यम से अथर् यव था म संसाधन के प्रभावी

61
आवंटन को सक्षम बनाता है । आय, धन और अ य असमानताओं को कम करने और गरीबी
और बेरोजगारी से छुटकारा पाने की कोिशश करके, िमि त अथर् यव था भारत म एक
मह वपूणर् भिू मका िनभाती है । िमि त अथर् यव था म सामािजक क याण को अिधकतम
िकया जाता है । इसम क याणकारी रा य के सभी लक्षण ह।

िनजीकरण

िनजीकरण िकसी भी अ यास को संदिभर्त करता है , जो िकसी दे श की आिथर्क गितिविधय


म सरकार—सावर्जिनक क्षेत्र की भागीदारी को कम करता है । 1991 के आिथर्क सध
ु ार ने
वतंत्रता के बाद की सरकारी िव तार की इ छा के िवपरीत, िनजी क्षेत्र को िवकास के इंजन
के प म मा यता दी। नीितय के मा यम से िवकास प्रिक्रया म िनजी क्षेत्र की भिू मका को
बढ़ाया गया है । भारत जैसी िमि त अथर् यव था म िनजीकरण कई प ले सकता है , िजनम
शािमल ह—

ए) कुल िवरा ट्रीयकरण, िजसम सभी रा य के वािम व वाली आिथर्क संपि िनजी हाथ
म थानांतिरत कर दी जाती है । भारत म, ऑलिवन िनसान, मगलोर केिमकल एंड
फिटर् लाइजसर् और महारा ट्र कूटर जैसी फम को िनजी िनवेशक को बेचा गया था।

बी) इस संबंध म संगठन की प्रकृित और रा य के कानून के आधार पर, एक संयुक्त


उ यम म सावर्जिनक क्षेत्र के िनगम म 25 से 50 प्रितशत या उससे भी अिधक के
िनजी वािम व का आंिशक सि मलन शािमल है । मौिलक उ दे य िकसी संगठन की
दक्षता, उ पादकता और लाभप्रदता म सध
ु ार करना है । प्र ताव की तीन ेिणयाँ ह—
फमर् का वािम व िनजी क्षेत्र के पास 26 प्रितशत है । (बक, यूचुअल फंड, िनगम,
यिक्त)। कंपनी म 5 प्रितशत िह सेदारी के साथ िमक को भी शािमल िकया
जाएगा। सरकार 51 प्रितशत टॉक बनाए रखेगी और अ य 49 प्रितशत िनजी क्षेत्र को
बेचेगी। िनजी क्षेत्र को 74 प्रितशत इिक्वटी प्रा त होती है , जबिक सरकार 26 प्रितशत
रखती है ।

सी) एक िमक सहकारी एक प्रकार का िनजीकरण है , िजसम एक िवफल सावर्जिनक क्षेत्र


की फमर् को िमक को िदया जाता है । भारतीय कॉफी हाउस, जो कायर्कतार् सहकारी
समह
ू के एक नेटवकर् वारा चलाए जाते ह और वतंत्रता के बाद िब्रिटश सरकार से
बाहर रखे गए थे, भारतीय ि थित का एक अ छा उदाहरण ह। हालाँिक, फमर् के
िव तार के िलए धन की आव यकता के कारण आिथर्क िवकास म मह वपूणर् भिू मका
नहीं िनभाई।

डी) टोकन िनजीकरण, िजसे घाटे का िनजीकरण या िविनवेश भी कहा जाता है , राज व
उ प न करने और बजट घाटे को कम करने के िलए एक लाभदायक सावर्जिनक क्षेत्र के

62
उ यम के 5-10 प्रितशत की िबक्री बाजार म होती है । सरकार पये जट
ु ा सकती है ।
1991-92 और 2011-12 के बीच िविनवेश वारा 60,000 करोड़। 1992 और 2012
के बीच, िविनवेश प्राि तयाँ आय की कमी के औसतन 7 प्रितशत और राजकोषीय घाटे
के 4 प्रितशत को कवर करने म सफल रहीं।

िनजीकरण, या रा य के वािम व वाले उ यम (एस.ओ.ई.) का िनजी मािलक को


ह तांतरण, दिु नया भर म एक लोकिप्रय आिथर्क नीित साधन बन गया है । िनजीकरण की
ओर बढ़ना एक िववादा पद िवषय है । वा तव म, िनजी या सावर्जिनक क्षेत्र बेहतर ह या
नहीं, इस पर िपछले चार से पाँच दशक से बहस चल रही है । चचार् का प्रारं िभक फोकस इस
बात पर था िक सरकारी खपत वारा मापे गए सावर्जिनक क्षेत्र के आकार ने आिथर्क िवकास
को कैसे प्रभािवत िकया।

कई अ ययन म पाया गया िक िनजीकरण ने िवकास को नहीं जोड़ा, लेिकन आय


असमानता को कम करने म मदद की। दस
ू री ओर, मद्र
ु ा फीित का आिथर्क िवकास और आय
समानता दोन पर नकारा मक प्रभाव पड़ा। दस
ू री ओर, कई अथर्शा त्री मानते ह िक
िनजीकरण, या संपि और सेवाओं का सावर्जिनक से िनजी क्षेत्र म थानांतरण, आिथर्क
िवकास के िलए मह वपूणर् है । िनजीकरण हाल ही म राजनीितक प्रणािलय की एक िव तत

ंख
ृ ला वारा लागू िकया गया है और दिु नया के हर कोने म फैल गया है । िनजीकरण की
प्रिक्रया औपचािरक प से और संपि के अिधकार का िनमार्ण करके मौिलक संरचना मक
पिरवतर्न लाने का एक प्रभावी साधन हो सकता है , जो तुरंत मजबूत यिक्तगत संपि
अिधकार पैदा करता है । एक मक्
ु त बाजार अथर् यव था अ छी तरह से पिरभािषत संपि
अिधकार पर आधािरत होती है , जो यिक्तय को अपने वयं के सव म िहत म अपने
िनणर्य लेने की अनम
ु ित दे ती है ।

सरकार को भार से मक्


ु त करने के िलए िनजीकरण को अपनाने के कारण िन निलिखत ह—

 प्रितयोिगता म सध
ु ार करने के िलए।

 रा य के िव को बढ़ाने के िलए।

 बिु नयादी ढाँचे के िवकास का समथर्न करने के िलए।

 शेयरधारक जवाबदे ही।

 अनाव यक प से दखल दे ने वाले यवहार को कम करना।

 एक अिधक अनुशािसत कायर्बल एक लस है ।

63
यिक्तगत िहत से प्रेिरत लागतहीन सौदे बाजी के मा यम से, िनजी क्षेत्र के पास बाहरीताओं
की सम या को दरू करने म सफल रणनीितयाँ ह। िनजीकरण को तीन ेिणय म िवभािजत
िकया जा सकता है ।

प्रितिनिधमंडल : जब िनजी उ यम उ पाद और सेवा िवतरण के सभी या िह से को संभालता


है तो सरकार िनयंत्रण रखती है ।

िविनवेश : सरकार िनयंत्रण छोड़ दे ती है ।

िव थापन : जैसे-जैसे एक िनजी कंपनी बढ़ती है , यह उ रो र सरकारी संगठन की जगह


लेती है ।

िनजीकरण िन संदेह रा य के वािम व वाले यवसाय की प्रगित और दीघर्कािलक


यवहायर्ता के िलए फायदे मद
ं है ।

2.1.4 िनजीकरण और भारतीय अथर् यव था

भारत सरकार ने िमि त अथर् यव था को अपनाया, िजसम सावर्जिनक और िनजी दोन क्षेत्र
को कायर् करने की अनुमित है । िनजी क्षेत्र को 1951 के उ योग (िवकास और िविनयमन)
अिधिनयम, साथ ही अ य संबंिधत कानून का पालन करना पड़ा। इस संदभर् म, 1956 के
औ योिगक नीित संक प ने घोिषत िकया िक िनजी क्षेत्र के औ योिगक उ यम को रा य
की सामािजक और आिथर्क नीितय के अनु प होना चािहए और उ योग (िवकास और
िविनयमन) अिधिनयम और अ य संबंिधत कानून के तहत िविनयमन और िनयंत्रण के
अधीन ह गे। भारत सरकार समझती है िक इस तरह के उपक्रम को रा ट्रीय योजना की
मह वाकांक्षाओं और उ दे य के अनुसार िवकिसत करने के िलए िजतना संभव हो उतना
लचीलापन प्रदान करना बेहतर होगा।

िनजीकरण िन संदेह रा य के वािम व वाले यवसाय की प्रगित और दीघर्कािलक


यवहायर्ता के िलए फायदे मद
ं है । कई दशक म िनजी क्षेत्र म कई समकालीन उ योग का
गठन िकया गया है । मह वपूणर् उपभोक्ता व तुओं के यवसाय वतंत्रता की ओर अग्रसर
होने वाले वष म उभरे । सत
ू ी कपड़ा क्षेत्र, चीनी उ योग, कागज उ योग और खा य तेल
उ योग इसके कुछ उदाहरण ह। ये उ योग बाजार शिक्तय वारा प्र तुत अवसर के
पिरणाम व प उ प न हुए। वे िनजी क्षेत्र के िलए आदशर् थे क्य िक वे मजबूत लाभ प्रदान
करते थे और थािपत करने के िलए कम नकदी की आव यकता होती थी। इस त य के
बावजद
ू िक वतंत्रता से पहले इंजीिनयिरंग उ योग नहीं बने थे, टाटा ने जमशेदपुर म लोहा
और इ पात उ योग शु िकया।

64
वतंत्रता के बाद, िनजी क्षेत्र ने िविभ न उपभोक्ता उ पाद क्षेत्र की थापना की।
उपभोक्ता उ पाद के मामले म भारत इस समय लगभग आ मिनभर्र है । 1956 के िनणर्य के
अनुसार, ‘म यवतीर् उ पाद और मशीनरी बनाने वाले उ योग िनजी क्षेत्र म थािपत िकए जा
सकते ह’। रासायिनक उ योग जैसे पट, वािनर्श और लाि टक, साथ ही मशीन टू स,
मशीनरी और लांट, लौह और अलौह धातु, रबर, कागज और अ य सामग्री बनाने वाली
कंपिनयाँ इसके पिरणाम व प उभरी ह।

भारत की आिथर्क ि थित म सध


ु ार के िलए उ यम का िनजीकरण िकया जाना चािहए
था। हालाँिक सावर्जिनक क्षेत्र के उपक्रम ने दे श के औ योिगक आधार के िवकास म
मह वपण
ू र् योगदान िदया है , िफर भी वे कई किमय से पीिड़त ह, जैसे—

 कई पी.एस.यू. िनयिमत आधार पर नुकसान झेल रहे ह और घाटे की घोषणा कर रहे


ह। पिरणाम व प, घाटे म चल रही इकाइय के िलए बड़ी संख्या म सावर्जिनक क्षेत्र
के उपक्रम को पहले ही भेजा जा चुका है ।

 सावर्जिनक क्षेत्र के उपक्रम िविभ न एजिसय के प्रित जवाबदे ह होते ह। पिरयोजना के


कायार् वयन म दे री, िजसके पिरणाम व प लागत म व ृ िध और अ य प्रभाव पड़ते
ह।

 प्रबंधन काफी हद तक अप्रभावी और अक्षम है ।

 कई सावर्जिनक क्षेत्र के संगठन अ यिधक कमर्चारी ह, िजसके पिरणाम व प म


उ पादकता म कमी आई है और िमक संबंध तनावपूणर् ह।

भारतीय अथर् यव था पर िनजीकरण के प्रमख


ु प्रभाव िन निलिखत ह—

 यह अिधक उ पादक उपयोग के िलए संसाधन को मक्


ु त करता है ।

 िनजी उ यम अपने संचालन म अिधक लाभ-संचािलत और पारदशीर् होते ह, क्य िक


िनजी मािलक हमेशा पैसा कमाने और पिवत्र गाय को ख म करने और पारं पिरक
नौकरशाही प्रशासन म ठोकर खाने की तलाश म रहते ह।

 जैसे-जैसे िस टम अिधक पारदशीर् होता जाता है , सभी बुिनयादी भ्र टाचार कम हो


जाते ह, और मािलक को अिधक-से-अिधक लाभ प्रा त करने की वतंत्रता और प्रेरणा
िमलती है , इसिलए वे सरकारी कतर् य म िनिहत सभी फ्रीलायसर् और दोष को ख म
करने के िलए प्रव ृ होते ह।

 रोजगार संबंधी िवसंगितय को समा त करता है जैसे िक फ्रीलायसर् या अिधक काम


करने वाले िवभाग, संसाधन दबाव को कम करते ह।

65
 सरकार पर िव ीय और प्रशासिनक बोझ को कम करना।

 भ्र टाचार को कम करता है और उ पादन और कायर्क्षमता को अनुकूिलत करता है ।

 सरकार के िलए िनजी कंपिनयाँ सरकारी िवभाग म समपर्ण और उपांग के प्रित कम


सिह णु ह, और पिरणाम व प, वे संगठन की ज रत को पूरा करने के िलए मानव
संसाधन क्षमता को सही आकार दे ते ह, िजससे प्रितरोध और असंतु ट कमर्चारी हो
सकते ह जो काम करने के लाभ के आदी ह।

 िनजी क्षेत्र को आिथर्क िवकास म भाग लेने की अनम


ु ित द।

 सामा य बजट संसाधन म व ृ िध करना और राज व धाराओं म िविवधता लाना।

2.1.5 संगिठत और असंगिठत क्षेत्र पर प्रभाव

जब भारतीय अथर् यव था की संरचना की बात आती है , तो औपचािरक या संगिठत क्षेत्र और


अनौपचािरक या असंगिठत क्षेत्र दोन मौजद
ू होते ह। संगिठत क्षेत्र के सभी यवसाय ने काम
के घंटे और िनयिमत वेतन िनधार्िरत िकया है , और कायर्कतार् की नौकरी की गारं टी है ।
कमर्चािरय को सरकार, रा य या िनजी यवसाय वारा िनयोिजत िकया जाता है । यह एक
पंजीकृत यवसाय है , िजसे कर का भग
ु तान करना आव यक है । बड़े पैमाने की गितिविधयाँ,
जैसे बक और अ य िनगम शािमल ह। दस
ू री ओर, अनौपचािरक या असंगिठत क्षेत्र वे ह,
िजनम कमर्चािरय या िमक के पास िनयिमत काम के घंटे या वेतन नहीं होते ह और वे
कर के अधीन नहीं होते ह। यह मख्
ु य प से छोटे पैमाने पर रोजगार और आय प्रदान करने
के प्राथिमक ल य के साथ बुिनयादी व तुओं और सेवाओं के उ पादन पर किद्रत है । एक
असंगिठत अथर् यव था का उदाहरण एक रे हड़ी-पटरी बेचने वाले वारा िदया जाता है जो
अपनी दै िनक रोटी का उ पादन करने और कमाने के िलए अपनी कृिष व तुओं को सड़क पर
बेचता है । असंगिठत अथर् यव था के एक िह से म कचरा बीनने वाले, साहूकार और दलाल
शािमल ह। इसे ‘ग्रे अथर् यव था’ के प म भी जाना जाता है ।

असंगिठत क्षेत्र भारतीय आबादी के एक बड़े िह से को रोजगार दे ता है । 2000 से 2010


तक रोजगार के नए आंकड़ के अनुसार, पंजीकृत 6.4 िमिलयन नई रोजगार संभावनाओं म
असंगिठत क्षेत्र का िह सा लगभग 76 प्रितशत था। इसके अलावा, आिधकािरक क्षेत्र म
िनयुक्त िकए गए 24 प्रितशत नए लोग म से 81 प्रितशत अनौपचािरक प से कायर्रत थे।
इसके अलावा, आिधकािरक क्षेत्र म िनयुक्त िकए गए 24 प्रितशत नए लोग म से 81
प्रितशत अनौपचािरक प से कायर्रत थे। कम मू य विधर्त असंगिठत क्षेत्र को कम मू य
विधर्त माना जाता है । भारत म कृिष, डेयरी, बागवानी और संबंिधत यवसाय म 52 प्रितशत
कायर्बल कायर्रत ह। यह संगिठत क्षेत्र की तुलना म कम भग
ु तान करती है । पूवर् म, बोनस,

66
सवैतिनक अवकाश, और काम के घंटे िनधार्िरत करने सिहत प्रो साहन प्रदान िकए जाते ह,
मात ृ व अवकाश का उ लेख नहीं करने के िलए, जो असंगिठत क्षेत्र म उपल ध नहीं है ।

इसके अलावा, इसम कानूनी और आिथर्क सरु क्षा का अभाव है । पिरणाम व प, जो


कमर्चारी म िनयम के दायरे से बाहर ह, वे एक कायर्कतार् की सामािजक सरु क्षा और
कायर्कतार् के अिधकार की कमी के कारण अिधक असरु िक्षत ह। मिहलाएँ, िवशेष प से,
पु ष की तुलना म अिधक कमजोर होती ह। िमक को अनुपि थित के प म आिथर्क और
सामािजक सरु क्षा का आनंद िमलता है क्य िक संगठन और असंगिठत क्षेत्र को वैध कर
िदया गया है और सरकार वारा िनयंित्रत िकया जाता है । भारत म, असंगिठत क्षेत्र का
शहरी रोजगार का 25 प्रितशत िह सा है । इनम घरे लू कामगार, घर म रहने वाले मजदरू ,
रे हड़ी-पटरी बेचने वाले और कचरा बीनने वाले शािमल ह। भारत म, असंगिठत क्षेत्र का शहरी
रोजगार का 25 प्रितशत िह सा है । इनम घरे लू कामगार, घर म रहने वाले मजदरू , रे हड़ी-
पटरी बेचने वाले और कचरा बीनने वाले शािमल ह।

असंगिठत क्षेत्र भारत के अिधकांश लोग को रोजगार दे ता है । इसके पीछे मल


ू कारण यह
हो सकता है िक अिधकांश भारतीय आिथर्क प से वंिचत ह। वे टै क्स नहीं भर पा रहे ह। वे
दै िनक आधार पर अपनी ज रत को पूरा करने के िलए संघषर् करते ह। नतीजतन, वे उन
नौकिरय म काम करना पसंद करते ह जो उ ह आसानी से उपल ध होती ह, जैसे खेती
करना या िबना कर चुकाए सड़क पर सामान बेचना। सरकार को असंगिठत क्षेत्र को लाइसस
दे ने और कर एकत्र करने की आव यकता है । ये आम तौर पर बड़ी िनजी कंपिनयाँ और
संगठन होते ह।

संक्षेप म, भारतीय आिथर्क क्षेत्र संगिठत और असंगिठत क्षेत्र से बना है । मख्


ु य अंतर
यह है िक असंगिठत क्षेत्र कर मक्
ु त है , और यह भारत के अिधकांश लोग को रोजगार दे ता
है । संगिठत क्षेत्र के लोग सामािजक सरु क्षा, आिथर्क सरु क्षा और िविश ट प्रो साहन का
आनंद लेते ह, लेिकन असंगिठत उ योग के िमक को ये लाभ नहीं िमलते ह।

2.1.6 िन कषर्

हमारी आजादी के बाद से, आिथर्क िवकास और प्रगित के हमारे ि टकोण की नींव म से
एक योजना बना रहा है । आज, हालाँिक वै वीकरण, उदारीकरण, आिथर्क िनणर्य लेने म
बाजार की ताकत के बढ़ते मह व, िनजी क्षेत्र के िनवेश के बढ़ते प्रितशत और दे श की आम
तौर पर बदलती आिथर्क ि थितय के संदभर् म िनयोजन की प्रासंिगकता और आव यकता पर
सवाल उठाया जा रहा है । मक्
ु त बाजार के क टरपंिथय के अनुसार बाजार सध
ु ार योजना के
साथ असंगत ह। उनका मानना है िक बाजार प्रणाली सभी िवकास और अ य आिथर्क काय

67
के सम वय के िलए पयार् त है । उनका यह भी मानना है िक अगर बाजार कई एजिसय के
संचालन को िविनयिमत करने म असमथर् है , तो सरकार ऐसा कभी नहीं कर पाएगी।

हालाँिक, भारत जैसे दे श म, जहाँ कई थान और वष म भारी िवकास यय की


आव यकता होती है , इन यय को िवतिरत और यवि थत करने के िलए योजनाओं की
आव यकता होती है । एक भावना यह भी है िक िवशेष प से रा य तर पर, राजकोषीय
प्राथिमकताएँ तेजी से िनवेश तय कर रही ह। योजना िवभाग के बजाय िव िवभाग, िवकास
प्राथिमकताओं के चयन के प्रभारी ह। नतीजतन, फंड, रणनीितय के बजाय, िवकास की
प्राथिमकताएँ तय करते ह। इससे यह सवाल उठता है िक क्या िवकास के िलए आिधकािरक
तौर पर योजना बनाना वा तव म आव यक या प्रासंिगक है । दस
ू री ओर, एक समारोह के
प म योजना बनाना कभी भी शैली से बाहर नहीं जाएगा। केवल सरकार को ही योजना नहीं
बनानी चािहए, सभी को, छोटी या बड़ी सीमा तक, योजना बनानी चािहए। िनजी क्षेत्र म,
कॉरपोरे ट िनयोजन उतना ही मह वपण
ू र् है , िजतना िक सावर्जिनक क्षेत्र म।

2.17 अ यास प्र न

1. क्या आप इस िवचार से सहमत ह िक वै वीकरण के बाद की अविध म अपनाई गई


िवकास नीितय से भारत म गरीब के जीवन पर कोई िवशेष प्रभाव नहीं पड़ा है ? अपने
उ र के िलए कारण बताएँ।
……………………………………………………………………………………………………………………………………..………………………
……………………………………………………………………………………………………..………………………………………………………
……………………………………………………………………………..………………………………………………………………………………
……………………………………………………..………………………………………………………………………………………………………

2. िमि त अथर् यव था म िनयोजन रणनीित की चचार् कीिजए।

……………………………………………………………………………………………………………………………………..………………………
……………………………………………………………………………………………………..………………………………………………………
……………………………………………………………………………..………………………………………………………………………………
……………………………………………………..………………………………………………………………………………………………………

3. िवकास के िलए भारत की रणनीित की िवशेषताओं की चचार् कीिजए।

……………………………………………………………………………………………………………………………………..………………………
……………………………………………………………………………………………………..………………………………………………………
……………………………………………………………………………..………………………………………………………………………………
……………………………………………………..………………………………………………………………………………………………………

68
2.1.8 संदभर् सच
ू ी

1. “A short history of Indian economy 1947-2019: Tryst with destiny &


other stories”, https://www.livemint.com/news/india/a-short-history-of-indian-
economy-1947-2019-tryst-with-destiny-other-stories-1565801528109.html

2. T.J. Byres (ed.) State, Plan, Development and liberalist in India, OUP,
Delhi, 2000.

3. K. Rajaram (ed.) Indian Economy, Spectrums India Private, Ltd., New


Delhi, 2004.

4. B.L. Fadia, Indian Government and Politics, Sahitya Bhawan Publication,


Agra, 2007.

69
इकाई-2

पाठ-2 : भारत म नव म यम वगर् का उदय


रे वती वी मेनन
अनव
ु ादक : काजल

2.2 संरचना

2.2.1 पिरचय

2.2.2 म यम वगर् का अथर्

2.2.3 भारत म म यम वगर् का उदय : 1947-1980

2.2.4 नए मा यम वगर् का िवकास : 1981–2015

2.2.5 भारत म म यम वगर् : 2015 से पूवर्

2.2.6 भारतीय म यम वगर् का वगीर्करण

2.2.7 भारतीय म यम वगर् के िलए वतर्मान भारत सरकार के प्रावधान

2.2.8 भारतीय म यम वगर् और कोिवड-19 महामारी

2.2.9 सू म मू यांकन

2.2.10 िन कषर्

2.2.11 अ यास प्र न

2.2.1 पिरचय

“म यम वगर्” श द उन सभी यिक्तय व पिरवार को संदिभर्त करता है , जो सामािजक-


आिथर्क संरचना म, उ च वगर् और िमक वगर् के म य आते ह। म यम वगर् के यिक्तय
के पास िमक वगर् की तल
ु ना म अिधक शैिक्षक योग्यता, खचर् करने योग्य धन और अिधक
संपि हो सकती है परं तु उ च वगर् की तुलना म अपेक्षाकृत कम है । म यम वगर् के लोग
को अक्सर पेशेवर, प्रबंधक और लोक सेवक के प म िनयोिजत िकया जाता है । श द
“म यम” भ्रामक हो सकता है , इसका अथर् है िक म यम वगर् के यिक्त आय िवतरण के
कद्र म कमाते ह, जो िक मामला नहीं हो सकता है । म यम वगर् के पिरवार के पास
आमतौर पर अपना घर होता है , वह एक कार के मािलक होते ह (य यिप ऋण या प टे के
साथ), अपने ब च को कॉलेज भेजते ह (य यिप छात्र ऋण या छात्रविृ के साथ),

70
सेवािनविृ के िलए बचत करते ह और पयार् त िड पोजेबल होते ह कुछ िवलािसता जैसे िक
बाहर खाने और छु िटय को वहन करने के िलए बचत।

2.2.2 म यम वगर् का अथर्

“म यम वगर्” को आमतौर पर “...अिभजात वगर् और िमक वगर् के म य पारं पिरक प से


म यवतीर् वगर् या उ च और िन न सामािजक रक या वग के बीच म यवतीर् लोग के वगर् के
प म पिरभािषत िकया जाता है । सामािजक, आिथर्क, सां कृितक वगर्, लगभग औसत
ि थित, आय, िशक्षा, िच और इसी प्रकार के “सरल श द म, “म यम वगर्” श द उन
यिक्तय को संदिभर्त करता है जो सामािजक संरचना के कद्र म ह। काम, आय, िशक्षा या
सामािजक प्रित ठा के संदभर् म पिरभािषत करने के बाद भी इसका आवेदन अक्सर अ प ट
रहा है । आधुिनक सामािजक िस धांतकार , िवशेष प से अथर्शाि त्रय ने अपने वयं के
सामािजक या राजनीितक उ दे य को प्रा त करने के िलए “म यम वगर्” श द को पिरभािषत
और पुन: पिरभािषत िकया है । पँूजीवाद के भीतर, वाक्यांश “म यम वगर्” मूल प से
अिभजात वगर् के िवरोध म पँज
ू ीपित वगर् को संदिभर्त करता है , लेिकन जब पँज
ू ीवादी दे श उस
िबंद ु तक बढ़ गए जहाँ “पँज
ू ीवादी” नया शासी वगर् बन गया, यह श द “छोटा पँज
ू ीपित” का
पयार्य बन गया।” पँज
ू ीवाद कैसे काम करता है , इसका वणर्न करते हुए, कालर् माक्सर् ने
म यम वगर् को बुजआ
ुर् वगर् के िह से के प म संदिभर्त िकया (यानी, “पेिटट बुजआ
ुर् ,” या
छोटी कंपनी के मािलक), मजदरू वगर् के िवपरीत, िजसे उ ह ने “सवर्हारा” कहा। श द “म यम
वगर्” समय के साथ िवकिसत हुआ है , जो संसाधन के साथ अमीर के साथ प्रित पधार् करने
के िलए अपने वतर्मान अथर् म है , जो िक मजदरू वगर् के ऊपरी छोर के समान है ।1

एक वेतन अिजर्त करने वाला यिक्त जो ग्रामीण या शहरी यव था म उपनगरीय या


तुलनीय पड़ोस म एक घर के वािम व प्रा त िकए हुए है , साथ ही िववेकाधीन आय प्रा त
िकए हुए है जो उसे मनोरं जन और अ य लचीले खच जैसे यात्रा या खाने के िलए अनुमित
दे ता है , यह मा यम वगर् का एक भाग है । जबिक म यमवगीर्य पिरवार से अपेक्षा की जाती
है िक वे अपने जीवन-यापन के खच को पूरा करने और सेवािनविृ के िलए बचत करने के
िलए पयार् त आय अिजर्त करगे। म यम वगर् के बीच एक सामा य िवचार यह है िक पेशेवर
उ नित और वेतन व ृ िध के मा यम से वे अपनी आय को उ च आिथर्क तर तक बढ़ाने म
सक्षम ह गे। कुछ पिरि थितय म वेतन व ृ िध से अिधक माल और सेवाओं की लागत के
साथ ऊ वर्गामी गितशीलता के िलए ये आकांक्षाएँ दशक से बदली ह।

1
Marx, K. (2005). Marxists Internet Archive, 2002.

71
िपछली सदी म वैि वक अथर् यव था मख्
ु य प से सभी दे श के म यम वग वारा
संचािलत थी। बीत कई दशक के दौरान वैि वक आिथर्क िवकास हुआ है , िजसका ेय
अिधकतम संयक्
ु त रा य अमेिरका, यरू ोप और अ य उ नत दे श म म यम वग के बीच बढ़े
हुए खचर् को िदया जाता है । इस समह
ू को लंबे समय से एक संप न और ऊजार्वान आिथर्क
शिक्त के प म दे खा गया है ।2 वे उ पादक िनवेश के िलए एक मजबत
ू आधार प्रदान करते
ह और अ य सामािजक प्रिक्रयाओं को प्रो सािहत करने म एक मह वपूणर् घटक ह जो एक
व थ समाज के िवकास म योगदान करने वाले कारक के िवकास और प्रसार को प्रो सािहत
करते ह। अिधकांश उ पाद और सेवाओं के िलए म यम वगर् एक मह वपूणर् बाजार है । यह
समह
ू प्र यक्ष या अप्र यक्ष प से दे श के कर धन का एक मह वपूणर् भाग एकत्र करता है ,
और वे दे श की राजनीितक ि थरता म भी मह वपण
ू र् योगदान दे ते ह। थरु ो के अनुसार, एक
व थ लोकतांित्रक समाज के िलए पयार् त म यम वगर् की आव यकता होती है और संप न
व गरीब यिक्तय से बने समाज म कोई राजनीितक या आिथर्क म यम आधार नहीं होता
है ।3

जैसा िक श द से पता चलता है , म यम वगर् सामािजक यव था के कद्र म, सामािजक-


आिथर्क ि थित के संदभर् म कामकाजी और उ च वग के म य ि थत है । रा ट्र के बीच
सां कृितक और आिथर्क मतभेद के कारण, इस वगर् के सद य म सि मिलत होने की
पिरभाषा बहुत िभ न होती है । क्रय शिक्त, शैिक्षक तर, सम ृ ध लोग की राय, और
सामािजक सेवाओं के तर, अ य बात के अितिरक्त, सभी िकसी िदए गए दे श म “म यम
वगर्” का गठन करते ह। िवकासशील दिु नया के म यम वगर् को उन लोग के प म
पिरभािषत िकया जाता है िज ह िवकासशील दे श के मानक से “गरीब” नहीं माना जाता है ,
लेिकन वे अभी भी अमीर दे श के मानक से गरीब ह। िव व बक और आिथर्क सहयोग और
िवकास संगठन (ओईसीडी) जैसे संगठन वारा प्रित िदन $ 2 से कम पर जीने वाले
यिक्तय को गरीब माना जाता है , जबिक 2015 की क्रय शिक्त समानता के अनुसार,
म यम वगर् की आय यूएस $ 10 से $ 100 प्रित िदन है ।4 द इकोनॉिम ट ने फरवरी 2009
म िरपोटर् प्रकािशत की िक उभरती अथर् यव थाओं म तेजी से िवकास के कारण िव व की

2
Brosius, C. (2012). India’s middle class: New forms of urban leisure, consumption and prosperity. Routledge.
3
Thurow, Lester C. (1984, February 5). Business Forum; The Disappearance Of The Middle Class. The New
York Times. nytimes.com/1984/02/05/business/business-forum-the-disappearance-of-the-middle-class.html.
4
Blackburn, McKinley & Bloom, David, (1985). What Is Happening to the Middle Class?, American
Demographics 7, no. 1:19–25.

72
आधी से अिधक जनसंख्या म यम वगर् तक पहुँच गई है ।5 यह अिधकतर अनुमेय अंतरार् ट्रीय
यापार िनयम के कारण था जो िवदे शी िनगम को इन दे श म स ते म तक पहुँच की
अनम
ु ित दे ता था। िनवार्ह करने वाले िकसान ने िनि चत वेतन के िलए उ योग म काम
करने के िलए अपने खेत को छोड़ िदया, िजसके पिरणाम व प कई दे श म तेजी से
शहरीकरण हुआ।

भारत म, यह माना जाता है िक 2015 म 50 प्रितशत आबादी इस ि थित तक पहुँच


गई थी। म यम वगर् के भारतीय की संख्या का अनुमान काफी िभ न होता है । 2017 तक
अथर्शा त्री का अनुमान है िक म यम वगर् के तहत 78 िमिलयन भारतीय ह, क्य िक वे एक
िदन म $ 10 से अिधक कमा रहे थे।6 कई शोध म सच
ू ी म प्रित िदन $ 2–10 कमाने वाले
यिक्त सि मिलत ह और यह आँकड़ा बढ़कर 604 िमिलयन हो गया, िजसे बाद म “नया
म यम वगर्” कहा गया। िजन प्रमख
ु कारक की जाँच की गई उनम जनसांिख्यकी, जीवन
शैली, संपि या धन और िशक्षा सि मिलत ह। िव व असमानता िरपोटर् 2018 के अनुसार,
कुलीन वगर् (आबादी का शीषर् 10 प्रितशत) म यम वगर् की तल
ु ना म तेजी से धन एकत्र कर
रहा है और भारत का म यम वगर् बढ़ने के बजाय गायब हो रहा है ।7

2.2.3 भारत म म यम वगर् का उदय : 1947-1980

भारत म म यम वगर् की अवधारणा और वगीर्करण कोई नया िवषय नहीं है । उ नीसवीं


शता दी के प्रारं भ म िब्रिटश औपिनवेिशक काल के दौरान, कलक ा, बॉ बे और मद्रास,
औपिनवेिशक शासक वारा बनाए गए तीन शहरी कद्र म लोग के एक नए उभरते समह
ू के
िलए वाक्यांश का प्रयोग िकया जाने लगा। इस म यम वगर् ने धीरे -धीरे पड़ोसी भारतीय शहरी
कद्र म अपना प्रभाव बढ़ाया। वतंत्रता के प चात ् भारतीय अथर् यव था के िवकास और
िव तार के साथ, भारतीय म यम वगर् के आकार म नाटकीय प से व ृ िध हुई। 1990 के
दशक के प्रारं भ म, भारतीय म यम वगर् के प्रक्षेपवक्र म एक मह वपूणर् पिरवतर्न दे खा गया।
आिथर्क सध
ु ार के कायार् वयन के साथ, इसके िवकास की गित और पैटनर् पिरवितर्त हुए।
‘नवउदारवादी’ पिरवतर्न ने िनजी पँूजी को प्रेिरत करके और भारत म अंतरार् ट्रीय िनवेश को
आकिषर्त करके भारत को अपनी अथर् यव था म तेजी लाने म सहायता की।

5
Special Reporter. (2009, February 14). Who's in the middle? The Economist.
https://www.economist.com/special-report/2009/02/14/whos-in-the-middle
6
Special Reporter. (2018, January 11). India’s missing middle class. The Economist.
https://www.economist.com/briefing/2018/01/11/indias-missing-middle-class
7
Ibid.

73
भारतीय म यम वगर्, “... यिक्तय का वगर्, जो लगभग अठारहवीं शता दी के म य से
समकालीन समय तक िब्रिटश सामािजक नीित म पिरवतर्न और नई आिथर्क प्रणाली, उ योग
के प्रारं भ और साथ ही, नए यवसाय के िन निलिखत उ भव के पिरणाम व प उ प न
हुआ व इसी के प म पिरभािषत िकया गया है ।” भारतीय म य वगर् के िनमार्ण म योगदान
दे ने वाले चर उन लोग से िभ न थे, िज ह ने पि चम म म य वगर् के उदय म योगदान
िदया। बाद के उदाहरण म, म यम वगर् मख्
ु य प से अठारहवीं शता दी की औ योिगक
क्रांित के पिरणाम व प उ प न हुआ, िजसके कारण आिथर्क और तकनीकी प्रगित हुई और
बड़े पैमाने पर यांित्रक िनमार्ण हुआ। िब्रिटश भिू म और कानूनी नीित म पिरवतर्न के
पिरणाम व प भारतीय म य वगर् का उदय हुआ, िजसके प चात ् पि चमी िशक्षा और
प्रौ योिगकी, आधिु नक पँज
ू ीवादी उ यम, संचार म व ृ िध और िब्रिटश शासन के लगभग 200
वष के दौरान आिथर्क िवकास हुआ।

नई अथर् यव था म उ ह ने जो भिू मका िनभाई, उसके अनुसार उभरता हुआ म यवगर् चार
भाग म िवभािजत था।

1. अठारहवीं शता दी के उ राधर् म, िवदे शी उ यम और थानीय यापािरक व बिकंग


सं थान के साथ िबचौिलय और दलाल के वािणि यक म यम वगर् की खोज की गई
थी। दरू -दराज के थान म, नील के बागान ने लोग के एक िलिपक और प्रबंधकीय
समह
ू के साथ-साथ ठे केदार के एक नेटवकर् को ज म िदया, िज ह ने अिग्रम का
िवतरण िकया और पौध की आपूितर् की। 1833 म वािण य, बक और प्रबंध एजसी
प्रणाली के खल
ु ने के साथ, यवसाय प्रशासन पेशेवर का एक नया वगर् उभरा।

2. साहूकार , दलाल , बिनय , एजट और लेनदार , यानी नए अमीर और शिक्तशाली वगर्


ने अपना पैसा उस भिू म म डाल िदया जो िब्रिटश नीित के पिरणाम व प
ह तांतरणीय हो गई। ऐसे लोग भी थे जो नील के िनमार्ण की ओर से प टे पर भिू म
िनयंित्रत करते थे (1830 से पहले बागान मािलक को अपनी जमीन खरीदने की
अनुमित नहीं थी)। 1765 म, अंडर-टे नर के अिधकार की पुि ट ने एक म यम वगर्
के उदय का प्रारं भ िकया।

3. उ योग के धीमे िव तार के कारण, औ योिगक म यम वगर् मामल


ू ी था। अंग्रेजी
िसिवल सेवक ने सबसे पहले उ योग म पैसा लगाया, उसके प चात ् अ य यूरोपीय,
िफर कलक ा म बंगाली और बॉ बे म पारसी थे।

74
4. िशिक्षत म यम वगर्, जो पि चमी िशक्षा और प्रौ योिगकी के आगमन के साथ बना
था और पेशव
े र से उ प न िकया गया था। डॉक्टर , इंजीिनयर , प्रकाशक आिद वारा
अपनाई गई कानन
ू ी यव था म पिरवतर्न के पिरणाम व प वकील का एक नया वगर्
उभरा।

यूरोपीय और एंग्लो-इंिडयन सभी ऊपरी तकनीकी और प्रशासिनक पद पर िवरािजत थे।


भारतीय म य वगर् को बनाने वाले चार खंड म एक बात समान थी— उ ह ने सामािजक
ि थित के मा यम से नहीं बि क िशक्षा, आय और शिक्त से प्रित ठा प्रा त की। िशिक्षत
म यम वगर्, वगर् चेतना के पिरणाम व प अपने िहत के प्रित जाग क हुआ है । वे ऐसे
िकसी भी उपाय के िवरोध म थे, िजससे िकसान या मजदरू वगर् को लाभ हो और िवशेष प
से वािण य और उ योग का समथर्न िकया। उ च म यम वगर् ने पि चमी आदश और
जीवन के तरीक का प्रसार िकया, ब्र म समाज और प्राथर्ना समाज जैसे सध
ु ारवादी संगठन
को लॉ च िकया। दस
ू री ओर, िन न म यम वगर्, मख्
ु य प से सीिमत आय वाले पारं पिरक
प से िशिक्षत यिक्तय से बना था, िज ह ने िशक्षा और धमर् म िवदे शी प्रभु व के प्रितरोध
म पारं पिरक धमर् और आदश को पुनजीर्िवत करने के िलए आयर् समाज पुन थानवादी
आंदोलन की थापना की। उ ह ने िवलु त हुई वतंत्रता को पुनः प्रा त करने के िलए भारत
म वतंत्रता आंदोलन प्रारं भ िकया। कांग्रेस मख्
ु य प से िन न म यम वगर् से जड़
ु ी रही है ,
इस त य के बाद भी िक उसे उ च म यम वगर् का समथर्न प्रा त था।

वतंत्रता के प चात ् के दशक म म यम वगर् की प्रकृित अक्सर यापार, वािण य,


उ योग म सीधे जड़
ु ाव के साथ, लेिकन सीिमत िव ीय संसाधन और प्रचरु सं थागत लाभ
के साथ एक भग
ु तान और पेशेवर वगर् की थी। इस अविध के दौरान इसने रा य की सापेक्ष
वाय ता से बड़े पैमाने पर अपना अिधकार प्रा त िकया। नौकरशाही यव था पर अपनी
शिक्त के कारण म यम वगर् ने अक्सर अपने लाभ के िलए रा य मशीनरी और कायर्क्रम
का अपहरण कर िलया।

प्रारं िभक समय के दौरान, भारतीय म य वगर् ने जाित, भाषा क्षेत्र या धमर् जैसे जातीय
और सामािजक-आिथर्क पद के पिरणाम व प अपनी िविश ट िवशेषताओं के आधार पर एक
आंतिरक िविवधता का िचत्रण िकया, िजसने अपनी पहचान, राजनीित और रा य व
अथर् यव था के साथ बातचीत को आकार िदया। रा य वारा संचािलत शैक्षिणक सं थान ,
नौकिरय और िवधायी िनकाय म अनुसिू चत जाितय और अनुसिू चत जनजाितय के िलए
सकारा मक कारर् वाई (आरक्षण) नीितय ने चन
ु ावी लोकतंत्र, आिथर्क िवकास (औ योिगक और

75
ग्रामीण) के सं थागतकरण के साथ म यम वगर् के सामािजक आधार को यापक बनाया।
भारतीय लोग के पारं पिरक प से हािशए पर पड़े समह
ू को म य वगर् के इन िवकासशील
त व वारा नेत ृ व और आवाज दी गई।

भारत ने 1947 म िब्रिटश िनयंत्रण से वतंत्रता प्रा त की। उस समय दे श की जनसंख्या


लगभग 30 करोड़ थी। 1977 और 1980 की एक संिक्ष त अविध को छोड़कर दे श म एक ही
पाटीर् (भारतीय रा ट्रीय कांग्रेस) और नेह -गांधी पिरवार का प्रभु व था। िनजी यवसाय को
हतो सािहत िकया गया और पूवर् सोिवयत संघ की आिथर्क नीितय को अपनाया गया।
अिधकांश िवकासशील उ योग, जैसे ऑटोमोबाइल और टील, उ च आयात शु क िनधार्िरत
करके िवदे शी प्रित पधार् से सरु िक्षत थे। जबिक दे श की सामा य िवकास दर ि थर रही, कुछ
उ योग , िवशेषकर बिकंग और कोयले का रा ट्रीयकरण िकया गया। आिथर्क सवक्षण के
अनस
ु ार, 1950 के दशक म भारत का म यम वगर् मामल
ू ी रहा, िजसम रा ट्रीय, रा य और
थानीय सरकारी िवभाग म लगभग पाँच िमिलयन कमर्चारी सि मिलत थे, अगले दो दशक
के दौरान छह िमिलयन और जोड़े गए, िजससे कुल िमलाकर 1971 म यह 11.2 िमिलयन
हो गए।8

1970 और 1980 के दशक म एक िमि त अथर् यव था की ओर झान था, िजसम


िनजी क्षेत्र मह वपूणर् मात्रा म नई नौकिरयाँ प्रदान करता था। बाजार के नेत ृ व वाली
पँज
ू ीवादी अथर् यव था की ओर दे श के ि थर कदम के साथ, 1947 से पहले की अविध का
“औपिनवेिशक” म यम वगर् धीरे -धीरे एक “नए” म यम वगर् म बदल गया, िजसे क्रय
यवहार वारा तेजी से पिरभािषत िकया गया था। भारत ने अंग्रेज से वतंत्रता प्रा त करने
के प चात ् पहले चार दशक तक लोकतांित्रक समाजवाद के साथ प्रयास िकया, िक तु यह
मजबत
ू िवकास उ प न करने म िवफल रहा। 1990 के दशक म मक्
ु त बाजार के िवचार को
अपनाने के प चात ् दे श का िवकास शु हुआ।

कई आधुिनक भारतीय पयर्वेक्षक म यम वगर् के उदय को सामािजक संबंध और आम


आदमी की मानिसकता म एक बुिनयादी पिरवतर्न के प्रमाण के प म दे खते ह। म यम वगर्
के इस उदय को इक्कीसवीं सदी म भारत की सभी किठनाइय और चुनौितय के समाधान के
प म भी दे खा जाता है । एक बार संगिठत होने के बाद, म यम वगर् के पास दे श के भ्र ट
राजनीितक अिभजात वगर् और अयोग्य नौकरशाही को उखाड़ फकने की शिक्त होती है , जो

8
Bhattacharya, P. C., & Sivasubramanian, M. N. (2003). Financial development and economic growth in India:
1970–1971 to 1998–1999. Applied Financial Economics, 13(12), 925-929.

76
इसे एक कुशल और समकालीन रा ट्र-रा य म पिरवितर्त कर दे ता है । उनका दावा है िक इस
वगर् के अलग-अलग सद य पहले ही अ य दे श म अपनी योग्यता का प्रदशर्न कर चुके ह
और यिद िस टम उ ह अनम
ु ित दे ता है , तो वह भारत म भी ऐसा ही कर सकते ह।

2.2.4 नए म यम वगर् का िवकास : 1981–2015

नेह वादी रा य का पतन, सामािजक और राजनीितक मंथन, अिधकार व पहचान के प्र न


के आस-पास नए सामािजक आंदोलन का उदय, तेजी से बदलती वैि वक राजनीितक
अथर् यव था और आिथर्क सध
ु ार ने 1980 के दशक म भारतीय म यम वगर् के एक नए
चरण का प्रारं भ िकया। इस समय के दौरान, भारतीय म यम वगर् के िवषय म प्रवचन एक
प्रितमान पिरवतर्न से गज
ु रता है । “नया” म यम वगर्, जो बाजार के नेत ृ व वाली पँज
ू ीवादी
अथर् यव था की सामािजक नींव बनाता है , अपने उपभोक्ता यवहार के संदभर् म तेजी से
िवशेषता और िव लेषण िकया जाता है । दस
ू री ओर, म यम वगर् की पिरभािषत िवशेषता के
प म आय की खपत का लस इसे एक आय वगर् म संकुिचत कर दे ता है । श द “म यम
वगर्” म “आय समह
ू ” श द की तुलना म लोग की एक बड़ी ेणी शािमल है ।

1991 म बाजार म मंदी के प चात ्, भारतीय कांग्रेस पाटीर् के नेत ृ व म भारत सरकार ने
बाजार खोलना शु िकया और एक आिथर्क उदारीकरण कायर्क्रम को लागू िकया।9 इस वगर्
का तेजी से उदय अिधकतर िनजी पँज
ू ी िनवेश के प्रो साहन और अंतरार् ट्रीय िनवेशक के
िलए अथर् यव था के खुलने के कारण हुआ। 1990 के दशक म, म यम वगर् म लगभग तीस
िमिलयन लोग थे, या आबादी का एक प्रितशत से भी कम था। म यम वगर् म यिक्तय का
प्रितशत 2004 म लगातार बढ़ता गया, जो जनसंख्या के लगभग 5 प्रितशत तक पहुँच
गया।10

आिथर्क उदारीकरण के पिरणाम व प भारत के म यम वगर् के आकार और चिरत्र म


मह वपण
ू र् पिरवतर्न आया। पहले, यह अिनवायर् प से एक रा य-िनिमर्त इकाई थी, िजसके
अिधकांश सद य सरकारी कमर्चारी थे। हालाँिक, तब से सरकारी रोजगार अिनवायर् प से
ि थर है , िनजी क्षेत्र की व ृ िध इसके िव तार का प्रमख
ु इंजन रही है और, आिथर्क िव तार
से ग्र त होने के कारण, िन न-म यम वगर् का बड़ा बहुमत इस ेणी से संबंिधत अपने
पिरवार की पहली पीढ़ी है । हालाँिक, भारत की आिथर्क उथल-पुथल के पिरणाम व प कई

9
Pedersen, J. D. (2000). Explaining economic liberalization in India: state and society perspectives. World
Development, 28(2), 265-282.
10
Varma, P. K. (2007). The great Indian middle class. Penguin Books India.

77
लोग पीछे हट रहे ह। एक ओर, एक म यम वगर् के उदय से अथर् यव था पर पिरवतर्नकारी
प्रभाव पड़ने वाला था, जबिक दस
ू री ओर, भारतीय समाज और राजनीित के आधुिनकीकरण
की उ मीद की जा रही थी। पव
ू र् वाले यिक्त को इसकी खपत क्षमता के मा यम से परू ा
िकया जाएगा, जो घरे लू माँग को बढ़ावा दे गा, जबिक बाद वाले को भ्र टाचार का सामना
करने और पहचान की राजनीित को पार करने के िलए राजनीित पर दबाव डालकर परू ा
िकया जाएगा।

भारत की वािषर्क जी.डी.पी. िवकास दर 1990 तक लगातार 4 प्रितशत से नीचे थी, जब


1991 के आिथर्क सध
ु ार के बाद इसे प्रित वषर् 6 से 7 प्रितशत की अिधक मजबूत गित से
ि थर िकया गया था।11 2004 और 2012 के बीच, म यम वगर् का िव तार 300 िमिलयन
से 600 िमिलयन यिक्तय तक हुआ। 2015 म, यूश बक िरसचर् वारा भारत के म यम
वगर् का अनुमान 300 से 600 िमिलयन के बीच लगाया गया था। 2015 म, 19 प्रितशत से
भी कम भारतीय का अनुमान लगाया गया था जो गरीबी म जीवन यतीत करते ह, जबिक
2011 म यह 22 प्रितशत था। भारत की घरे लू बचत दर 2005 और 2015 के बीच दोगन
ु ी
हो गई, जो यह दशार्ता है िक कई और भारतीय पिरवार के पास अब मह वपूणर् िड पोजेबल
आय है ।

2010 के प चात ्, अथर्शाि त्रय ने वगर् से िनपटने के बाद ‘नई म यम वगर्’ की पिरभाषा
पर पूणत
र् ः भरोसा करना शु कर िदया। उदाहरण के िलए, 2017 म भारतीय म यम वगर् म
वे सभी ग्राहक सि मिलत थे जो प्रित यिक्त प्रित िदन $ 2 और $ 10 के बीच खचर् करते
ह।12 अ ययन िन न म यम वग की संख्या म भारी व ृ िध को भी दशार्ता है , जो प्रित िदन
$ 2 और $ 6 के बीच अलग-अलग खचर् करते ह और वगर् िजसम सड़क िवक्रेता, ड्राइवर,
िश पकार, िनमार्ण िमक, स जाकार और िचत्रकार, चमड़ा और कपड़ा उ योग के िमक
आिद सि मिलत ह। जो मख्
ु य प से असंगिठत क्षेत्र म लगे हुए ह। अिधकांश क्षेत्र म इस
समह
ू म प्रवेश करने म आसानी महसस
ू की गई क्य िक केवल कोई प्रितबंध था और
अिधकांश वग के िलए आय लैब तुलना मक प से स ती थी। उनम से कई ने भोजन
और आ य पर खचर् करने के बाद अपनी आय का एक भाग िववेकाधीन खचर् के िलए बचा

11
Neog, Y. (2017). Structural shift in components of Indian GDP: An empirical analysis. ZENITH International
Journal of Business Economics & Management Research (ZIJBEMR) Vol, 7(9), 77-83.
12
Krishnan, S., & Hatekar, N. (2017). Rise of the new middle class in India and its changing
structure. Economic and Political Weekly, 52(22), 40-48.

78
िलया, िजससे वे िशक्षा, िचिक सा उपचार और संबंिधत जैसी अ य आव यक व तुओं और
सेवाओं को खरीदने म सक्षम हो गए।

2.2.5 भारत म म यम वगर् : 2015 से पव


ू र्

संयुक्त रा ट्र के एक अनुमान के अनुसार, 2022 तक भारत की जनसंख्या चीन से आगे


िनकल जाने का अनुमान है । इसके अितिरक्त, भारतीय म यम वगर् की आबादी म अगले
दशक म चीन से ज द ही तेजी से बढ़ने और 2027 तक संयक्
ु त रा य अमेिरका और यरू ोप
को पार करने की भिव यवाणी की गई है । इनके साथ ही, वैि वक जी.डी.पी. के हमारे
अनप
ु ात म 7.6 प्रितशत से काफी व ृ िध होने की उ मीद है । वतर्मान भिव यवािणय के
अनुसार, 2017 2022 म अनुमािनत 8.5 प्रितशत है । ऐसा माना जाता है िक एक ऐसी
ि थित म पिरणाम होता है जब दे श म अिधक यिक्त सफल हो सकते ह या अगले दशक
म गरीबी की ि थितय से िनपट सकते ह। अनुमान 2030 तक वैि वक म यम वगर् के
िव तार का भी दावा करते ह, िजसम बड़ी संख्या म भारतीय और प्रवासी एक ही ेणी म
शािमल होते ह। इससे ब्रांिडंग और उ पाद भेदभाव म व ृ िध के कारण िविभ न व तुओं और
सेवाओं की माँग म भारी व ृ िध हो सकती है ।

म यम वगर् और आिथर्क िव तार से संबंिधत िविभ न क्षेत्र के वतर्मान अ ययन म यह


िवचार िकया गया है िक आने वाले दशक म भारतीय म यम वगर्-िन न और उ च-दोन
घरे लू खचर् को बढ़ावा दे गा और साथ ही साथ घरे लू और अंतरार् ट्रीय यात्रा म योगदान दे गा।
यह भिव यवाणी की गई है िक कोिवड़ के प चात ् की ि थित म यह 2022 तक $45
िबिलयन के समीप भी काफी बढ़ सकता है , हालाँिक 2020 के िलए अनुमािनत मू य $40
िबिलयन था और लोकिप्रय गंत य िसंगापुर, थाईलड, संयुक्त रा य अमेिरका आिद ह गे।13
रे नब िरसचर् वारा यह भी दावा िकया गया है िक भारतीय अपनी छु िटय पर संयुक्त रा य
अमेिरका म सबसे अिधक खचर् करते ह, जो उ च म यम वगर् के िव तार से संबंिधत है और
अ ययन म भारत के िविभ न िह स म िविभ न पयर्टन कायार्लय की उपि थित पर भी
प्रकाश डाला गया है जो पूणत
र् ः िवशेष क्षेत्र के िलए समिपर्त ह। इसके अितिरक्त, एक
वैि वक सवक्षण से संकेत िमलता है िक वैि वक म यम वगर् के उपभोक्ताओं की वतर्मान
प्रविृ वतर्मान म यूरोपीय संघ (ई.य.ू ) और संयक्
ु त रा य अमेिरका म रहती है , लेिकन अगले
दशक म, बहुमत भारत, चीन और अ य एिशयाई दे श म थानांतिरत हो जाएगा। जापान

13
Renub Research. (2017, September 13). India Outbound Tourism Market: Outbound Tourists, Purpose of
Visit, Tourist Spending and Forecasts, 3rd ed.

79
को छोड़कर। इसके अलावा, यिद वतर्मान प्रविृ जारी रहती है , तो 2035 तक, भारत म हर
चार म यम वगर् के उपभोक्ताओं म से एक होने की उ मीद है ।

हाल के सवक्षण म यह भी अनुमान लगाया गया है िक भारतीय म यम वगर् की


आबादी म 2005 म कुल आबादी के पाँच से 10 प्रितशत से 2039 तक समह
ू म दे श की
कुल आबादी का 90 प्रितशत या अ य श द म एक अरब यिक्तय सिहत वगर् म नाटकीय
व ृ िध हुई है । इसे जारी रखते हुए, फैरे ल एंड बेइनहॉकर (2007) ने उ लेख िकया िक हम
दे ख सकते ह िक 2005 म एक भारतीय पिरवार का औसत प्रित यिक्त पिरवार खचर्
लगभग $ 3.20 प्रित िदन था और एक अ प आबादी का दै िनक राज व $ 5 प्रित िदन से
अिधक था। वैि वक बाजार म आिथर्क ठहराव और अ य बोिझल घटनाओं के बावजद
ू , 2015
तक आधी आबादी बढ़कर 5 डॉलर प्रित िदन से अिधक खचर् करने की ि थित म पहुँच गई
है । 2025 तक, भारतीय आबादी के कम-से-कम आधे के 10 डॉलर से अिधक कमाने की
उ मीद है ।14 वतर्मान म, भारत दिु नया का तीसरा सबसे बड़ा म यम वगर् का बाजार है , चीन
और संयक्
ु त रा य अमेिरका क्रमशः पहले दो पद पर सफल रहा, िजसके बारे म माना जाता
है िक अगले बारह वष म आगे िनकल जाएगा, क्य िक कई अ ययन ने भिव यवाणी म
योगदान िदया है 15 िक 2016 और 2050 के बीच, भारत अिधक गित से िव तार करना जारी
रखेगा, संभवत: वैि वक म यम वगर् म एक अरब अिधक उपभोक्ता जोड़ेगा।

2.2.6 भारतीय म यम वगर् का वगीर्करण

म यम वगर् चार कारक वारा प्रिति ठत होते ह— थान (ग्रामीण या शहरी); रोज़गार; िशक्षा
(हाई कूल या कॉलेज); और वाहन का वािम व (2- हीलर या कार)।16 थान और रोजगार
के मानदं ड व- याख्या मक ह, जैसा िक िशक्षा के िलए मानदं ड है , एक प टीकरण के
साथ—उभरते हुए म यम वगर् को हाई कूल या कॉलेज की िडग्री के प म पिरभािषत िकया
गया है । चौथा त व वाहन के वािम व से संबंिधत है क्य िक ऑटोमोिटव संपि एक
िव वसनीय संकेत होने की अिधक संभावना है । इस िवक प के िलए उनके तकर् तीन गन
ु ा
ह—आय और यय के िवपरीत संपि , मौसमी उतार-चढ़ाव के प्रित कम संवेदनशील होती है ;
लोग व ृ िधशील संपि य के क जे को ऊ वार्धर गितशीलता के आंतिरक माकर्र के प म

14
Farrell, D., & Beinhocker, E. (2007). Next big spenders: India’s middle class. Business Week, 28.
15
Kharas, H. (2010). The Emerging Middle Class in Developing, Development Center Working Papers No 285.

16
Krishna, A., & Bajpai, D. (2015). Layers in globalizing society and the new middle class in India: Trends,
distribution and prospects. Economic and Political Weekly, 69-77.

80
पहचानते ह जो िवशेष प से कुछ प्रकार की संपि से जड़
ु ी सामािजक ि थित है । िकसी भी
मामले म, पिरसंपि डेटा और आय/ यय डेटा के बीच एक मजबूत संबंध है ।

इन मानदं ड के अनुसार, भारत म पाँच म यम वगर् ह— ग्रामीण म य वगर्, सावर्जिनक


क्षेत्र का म य वगर्, शहरी िनजी क्षेत्र का म यम वगर्, यापारी म य वगर् और उभरता म यम
वगर्। उ मीद के िवपरीत, भारत का ग्रामीण म यम वगर् सबसे बड़ा एकल वगर् है , जो कुल
का 13.7 प्रितशत है । जब ग्रामीण यापारी म यम वगर् और ग्रामीण उभरते म यम वगर् को
सि मिलत िकया जाता है , तो भारत म ग्रामीण म यम वगर् का कुल आकार पूरे म यम वगर्
का दो-ितहाई होता है । शहरी िनजी म य वगर् 0.4 प्रितशत से 2.7 प्रितशत तक सात गन
ु ा
बढ़ गया है , जबिक यह अभी भी एक मामल
ू ी अंश है , इस वगर् के पास एक असमान प से
उ च एजडा- यव था शिक्त है । उभरता हुआ मा यम वगर् एक बड़ा और तेजी से िव तार
करने वाला जनसांिख्यकीय है । अगले दशक म, यह कई म यम वग म सबसे बड़ी एकल
ेणी बन सकती है ।

2.2.7 भारतीय म यम वगर् के िलए वतर्मान भारत सरकार के प्रावधान

भारतीय म यम वगर् अपने तप, कड़ी पिर म और आकांक्षा के िलए जाना जाता है । वा तव
म, रा ट्रीय प्रगित म उनका योगदान भारत को अगली पीढ़ी के िवकास की ओर ले जाने के
िलए पव
ू ार्पेक्षाओं म से एक है । आज के राजनेताओं के पिरप्रे य म, उनका समथर्न करना
और उ ह बढ़ावा दे ना फल व प एक आव यकता है । म यम वगर् के बीच प्रचिलत तकर् यह
था िक िजन िवषय ने उ ह प्रभािवत िकया, उ ह प्राथिमकता नहीं दी गई। उस समय
सरकार के िलए वा य, िशक्षा, उ यम, बुिनयादी ढाँचा, सावर्जिनक पिरवहन और खुलापन
प्राथिमकताएँ नहीं थे। हालाँिक इस संबंध म कुछ प्रयास िकए गए, िक तु गहरे सध
ु ार शायद
ही कभी दे खे गए। लगातार प्रशासन ने उ ह छोड़ िदया और वे चुनावी प से हािशए पर रहे ,
इस त य के बावजद
ू िक बढ़ते उपभोक्तावाद ने उ ह आिथर्क प से वयं को मख
ु र करने
का एक अवसर िदया। वतर्मान म, वे प टता से दिु नया भर म अपनी रा ट्रीय पहचान
थािपत कर रहे ह, बड़े पैमाने पर नेत ृ व से संरचना मक प्रो साहन जो िक भिू म के
लोकाचार और मू य म मजबत
ू ी से िटके हुए ह।

सबसे पहले, म यम वगर् को कई तर पर सरु क्षा की गारं टी दी गई है , चाहे वह घर का


वामी होने के प म हो, अपने धन का िव तार करने के प म हो, या यहाँ तक िक
द ु यर्वहार करने वाल को दं िडत करके उनके िहत की रक्षा करने के प म हो। कई सरकारी
पहल का म यम वगीर्य पिरवार के जीवन पर पिरवतर्नकारी प्रभाव पड़ा है । प्रधानमंत्री जन

81
औषिध कद्र के मा यम से मह वपूणर् दवाओं, दय टट और घुटने के प्र यारोपण पर
कीमत म कमी के साथ-साथ कम कीमत पर दवाओं की उपल धता से लाख म यम वगर् के
लोग पहले ही लाभाि वत हो चक
ु े ह।

हालाँिक आिथर्क प से गरीब और दै िनक जीवन म मह वपण


ू र् अिनि चतता से पीिड़त,
“आकांक्षी म यम वगर्” जीवन की उ च गण
ु व ा की इ छा रखता है और मख्
ु यधारा व सोशल
मीिडया के साथ-साथ उ च आय समह
ू की खचर् करने की आदत से बहुत प्रभािवत होता है ।
सरकारी योजनाएँ जैसे प्र यक्ष लाभ ह तांतरण (उदाहरण के िलए, प्रधानमंत्री िकसान योजना),
िव ीय समावेशन एजडा (जन धन योजना), एलपीजी सि सडी, िकफायती आवास, बड़े पैमाने
पर शौचालय िनमार्ण, सू म वा य बीमा और सू म पशन योजनाएँ, दस
ू र के बीच, शहरी
और ग्रामीण दोन क्षेत्र म इस ेणी को लाभाि वत िकया है । िवशेष प से महानगरीय क्षेत्र
म सेवा क्षेत्र म आकि मक या अनुबंध कायर् के िवकास ने इस खंड को भी सहायता की है ।
रा ट्रीय, क्षेत्रीय और नगरपािलका चुनाव म स ा ढ़ दल की िनरं तर सफलता इस वगर् की
मह वाकांक्षाओं को परू ा करने की क्षमता के कारण हो सकती है ।

म यम और उ च-प्रबंधन पद पर वेतनभोगी कमर्चारी, पेशेवर (जैसे लेखाकार, िचिक सक


और वकील), और छोटी कंपनी के मािलक “सम ृ ध म यम वगर्” बनाते ह, जो आमतौर पर
िव ीय संपि , बक खाते और अचल संपि रखता है । पव
ू -र् कोिवड अविध म सकल घरे लू
उ पाद की व ृ िध म िगरावट के बाद भी और इस िनरं तर महामारी के दौरान, इस वगर् को
यापक प से बढ़ती अचल संपि और टॉक मू य से लाभ हुआ है । जी.एस.टी.
कायार् वयन िचंताओं और बड़े उ यम से प्रित पधार् के पिरणाम व प छोटी कंपनी के
मािलक को कुछ किठनाइय का सामना करना पड़ा है , लेिकन उ ह ने िडिजटल लेटफॉमर् के
मा यम से बढ़ते बाजार तक पहुँच और हाल ही म, कोिवड-19 संकट के दौरान सरकार
वारा गारं टीकृत बक ऋण से लाभ उठाया है । धनी म यम वगर् के िव तार के साथ-साथ
िवदे शी और घरे लू यात्रा म व ृ िध हुई है , साथ ही संयुक्त रा य अमेिरका, यूरोप, कनाडा और
ऑ ट्रे िलया म िवदे शी सं थान म पढ़ने वाले भारतीय छात्र की संख्या म व ृ िध हुई है , साथ
ही साथ यह संख्या बढ़ती जा रही है ।

“म यम-म यम वगर्”, िजसके पास यथोिचत प से सरु िक्षत लेिकन कम वेतन वाला
यवसाय है , जो महीने के वेतन पर आि त रहता है और यन
ू तम बचत करता है , शायद
कम-से-कम लाभाि वत हुआ हो। बहरहाल, म यम अविध म इसकी आय म अिधक िगरावट
नहीं आई है । थायी पद के थान पर संिवदा मक और िगग इकॉनमी लेबर का िवकास इस

82
वगर् के िलए सम याएँ उ प न करता है । इस वगर् ने लंबे समय से िशक्षा को सम ृ ध म यम
वगर् को बनाए रखने या आगे बढ़ाने के साधन के प म दे खा है , लेिकन सावर्जिनक और
िनजी िशक्षा दोन के बढ़ते खचर् से इसके जीवन के तरीके पर अिनि चत पकड़ का खतरा है ।

स यापन और द तावेज़ प्र तत


ु करने के िलए एक सरकारी कायार्लय से दस
ू रे कायार्लय
म भाग लेने के दै िनक बोझ से म यम वगर् को बहुत राहत िमली। अिधकांश सरकारी संपकर्
और प्रिक्रयाएँ अब ऑनलाइन संचािलत की जाती ह। िडजी-लॉकर जैसी सिु वधाएँ, जो िविभ न
इंटरफेस पर द तावेज की प्रितयाँ जमा करने की अनुमित दे ती ह, या ऑनलाइन आई.टी.
िरटनर् की सिु वधा जो सरल और विरत ह, मानक सरकारी काय के सरलीकरण और
िडिजटलीकरण की िदशा म ड्राइव के उदाहरण ह।

म यम वगर् को शैिक्षक और उ यमशीलता िवक प के िव तार के मा यम से प्रयास


करने के िलए प्रो सािहत िकया जा रहा है । उ च िशक्षा सं थान की कुल क्षमता म व ृ िध की
गई है , जबिक अिधक उ वल िदमाग को समायोिजत करने के िलए नए सं थान खोले गए
ह।17 इन सं थान के िलए अिधक वाय ता की गारं टी है िक वे सव म प्रथाओं को अपना
सकते ह और िव व तरीय िशक्षा म िवकिसत हो सकते ह।

कोिवड-19 के प चात ् की अविध म आिथर्क िवकास की बहाली से म यम वगर् के उ च


और िन न दोन तर को अिधक सहायता िमलेगी। टीकाकरण के यापक िवतरण और
कोिवड के प चात ् की अपेिक्षत तेजी से आिथर्क वापसी से सम ृ ध म यम वगर् को सबसे
अिधक लाभ होगा, लेिकन एक बढ़ती वार िनि चत प से सभी नाव को ऊपर उठाएगी।
यापार करने म आसानी, प्र यक्ष कर सध
ु ार, कौशल उ नयन, और बुिनयादी ढाँचे के खचर् म
ु ार के िलए मह वपूणर् होगा: (ए) बढ़ते मह वाकांक्षी म यम वगर् के िलए आव यक
और सध
लाख नौकिरयाँ उ प न करना, और (बी) सामािजक िनिध के िलए पयार् त कर राज व
उ प न करना क याण और थानांतरण कायर्क्रम और इस वगर् के बीच सामािजक असंतोष
को रोकना। म यम वगर् के दै िनक जीवन म सध
ु ार के िलए िनरं तर प्रयास वारा यापार
करने म आसानी म सध
ु ार के िलए सध
ु ार का समथर्न िकया जाना चािहए।

2.2.8 भारतीय म यम वगर् और कोिवड-19 महामारी

संयुक्त रा य अमेिरका के यू िरसचर् सटर वारा भारत और चीन सिहत प्रमुख


अथर् यव थाओं पर 2020-2021 के दौरान महामारी के प्रभाव के िवषय म िव लेषण िकया

17
Refer https://www.startupindia.gov.in/

83
गया।18 अ ययन ने िन कषर् िनकाला िक अ िवतीय कोरोनवायरस के कारण आिथर्क मंदी
वैि वक जीवन तर पर कहर बरपा रही है , िजससे लाख लोग म यम वगर् से बाहर और
गरीबी म ह। ये िवकास क्रमशः भारत और चीन, दिु नया की तीसरी और सबसे बड़ी
अथर् यव थाओं म प्रभािवत ह। हालाँिक, भारत और चीन पर महामारी का आिथर्क प्रभाव
काफी अलग रहा है । 1.4 िबिलयन लोग के साथ, भारत और चीन दिु नया की एक ितहाई से
अिधक आबादी के िलए उ रदायी ह और इन दोन दे श म महामारी का मागर्—और प्र येक
दे श कैसे ठीक होता है —वैि वक आिथर्क िवतरण म बदलाव पर मह वपण
ू र् प्रभाव पड़ेगा। जहाँ
भारत को 2020 म एक बड़ी मंदी म प्रवेश करने के िलए िववश होना पड़ा, वहीं चीन इससे
बचने म सफल रहा है । जनवरी 2020 म िव व बक के आिथर्क अनुमान ने भिव यवाणी की
िक भारत (5.8%) और चीन (5.9%) 2020 म वा तिवक सकल घरे लू उ पाद (जी.डी.पी.) म
लगभग समान दर से बढ़गे। िव व बक ने इन िवकास पूवार्नुमान को नीचे की ओर संशोिधत
िकया—महामारी शु होने के एक वषर् पव
ू र् जनवरी 2021 म भारत के िलए 9.6%, लेिकन
चीन के िलए 2% की व ृ िध का अनुमान लगाया।

पी.आर.सी. के शोध के अनुसार, भारत का म यम वगर् अब 2020 म िगरावट के


पिरणाम व प 32 िमिलयन तक िगर गया होगा, जो िक महामारी के िबना हो सकता था।
यह म य-आय वगर् म यिक्तय की संख्या म वैि वक िगरावट के 60% के िलए िज मेदार
है ($ 10.01- $ 20 की दै िनक आय वाले लोग के प म पिरभािषत)। इस बीच, माना
जाता है िक कोिवड-19 मंदी ने भारत म गरीब लोग की संख्या म 75 िमिलयन (2 डॉलर
या उससे कम की दै िनक कमाई वाले) की संख्या म व ृ िध की है । यह गरीबी म वैि वक
व ृ िध के लगभग 60% के िलए भी िज मेदार है । संयोग से, भारत से मीिडया िरपोटर् दे श के
ग्रामीण रोजगार कायर्क्रम म भागीदारी म व ृ िध का संकेत दे ती है —िजसे कृिष क्षेत्र म गरीबी
से िनपटने के िलए िडज़ाइन िकया गया था—संकट के कारण नौकरी खो चुके कई लोग काम
की खोज म ह। प्रितभािगय की वतर्मान संख्या कायर्क्रम के 14 साल के अि त व म सबसे
अिधक है ।

महामारी से पहले, यह भिव यवाणी की गई थी िक भारत म 2020 तक वैि वक म यम


वगर् म 99 िमिलयन यिक्त ह गे। यह संख्या महामारी म एक वषर् म एक ितहाई कम होने

18
Kochhar, R. (2021). The Pandemic Stalls Growth in the Global Middle Class, Pushes Poverty Up Sharply:
Advanced Economies Also See a Decrease in Living Standards, by Rakesh Kochhar. Pew Research Center.

84
का अनुमान लगाया गया था। इस बीच, भारत के गरीब की संख्या 134 िमिलयन होने का
अनुमान है , जो मंदी से पहले की भिव यवाणी की गई 59 िमिलयन से दोगन
ु े से अिधक है ।

कई आकलन और सवक्षण ने िन कषर् िनकाला है िक महामारी के जवाब म भारत


सरकार के िनवेश ने 2019 के बाद से कमजोर लोग को महामारी के सबसे कठोर प्रभाव से
बचाने म सहायता की है । यहाँ तक िक लॉकडाउन के उ रािधकार से अथर् यव था को काफी
हािन हुई थी, सरकार ने दस
ू री लहर के दौरान अिधकृत यय से अिधक अितिरक्त खचर् के
िलए कोिवड-19 को नहीं चुना। सटर फॉर मॉिनटिरंग इंिडयन इकोनॉमी िरसचर् के अनुसार,
जबिक सरकार ने चालू िव वषर् की पहली ितमाही म िरकॉडर् कर एकत्र िकया, मह वपूणर्
आिथर्क िवकास यय के िलए िज मेदार लगभग एक ितहाई मंत्रालय ने जन
ू 2021 म खचर्
म साल-दर-साल कमी दजर् की।19 संकट के दौरान खचर् को सीिमत करने और िमत यियता
के उपाय को लागू करने म सरकार की कारर् वाई समझ म आती है ।

महामारी के प्रकोप के बाद से, भारतीय िरजवर् बक सबसे आगे रहा है , याज दर को
कम रखते हुए और मात्रा मक सहजता का उपयोग करके सरकारी बांड और प्रितभिू तय को
खरीदकर िव ीय प्रणाली म पैसा लगा रहा है । हालाँिक, वा तिवक अथर् यव था और उ पादक
क्षेत्र म ऋण के प म प्रवािहत होने के बजाय, आर.बी.आई. वारा अथर् यव था म धकेला
गया धन शेयर बाजार म समा त हो गया है ।20 गरीब , छोटी कंपिनय और िन न म यम
वगर् पर लिक्षत राजकोषीय िनवेश म व ृ िध ने घरे लू माँग म सध
ु ार करने म सहायता की,
लेिकन भारत की तेजी से आिथर्क सध
ु ार म भी सहायता की। इसके अितिरक्त, एक आिथर्क
मॉडल म बदलाव जो उपभोक्ता व तओ
ु ं की बड़े पैमाने पर खरीद, साथ ही िशक्षा, वा य
दे खभाल और स ते आवास को बढ़ावा दे ता है , का अथर् यव था पर मह वपूणर् प्रभाव पड़ेगा।

2.2.9 सू म मू यांकन

वतंत्रता से पव
ू ,र् भारतीय म यम वगर् उ नीसवीं सदी के यरू ोप की भाँित संख्या मे अिधक
था। वगर् शहरीकरण और वकील, डॉक्टर, िशक्षक और इंजीिनयर जैसे यवसाय पर आधािरत
थे। वे जमींदार अिभजात वगर्, िकसान या औ योिगक िमक के सद य नहीं थे। इस
म यम वगर् की जड़ यवसाय और उ च िशक्षा वारा रखी गई थीं, जो दोन शहर म

19
Chandra, A. (2021). Covid-19: Rebooting the Indian Economy?. International Journal of Research Publication
and Reviews, 2(4), 569-572.
20
जब हम बचत और ऋण पर याज दर म कटौती के िलए बांड खरीदते ह, तो हम इसे मात्रा मक सहजता
कहते ह। इससे हम मुद्रा फीित को कम और ि थर रखने म सहायता िमलती है ।

85
आधािरत थीं। वतंत्रता के समय भारत का म यम वगर् नग य था। इसकी िन निलिखत
व ृ िध मख्
ु य प से सावर्जिनक क्षेत्र म थी। 1950 के दशक से 1980 के दशक तक,
सावर्जिनक क्षेत्र का िवकास म यम वगर् के िवकास के बहुमत के िलए िज मेदार था।
नौकरशाही और रक्षा क्षेत्र सरकारी नौकरी के िवकास के अ य ोत थे। यह व ृ िध सरकारी
कॉलेज म उ च िशक्षा के प्रसार और भारत के बढ़ते शहरीकरण के कारण हुई। 1990 के
दशक के प्रारं भ से, सावर्जिनक क्षेत्र म रोजगार ि थर रहा है । तब से, म यम वगर् के िवकास
को मख्
ु य प से जनसंख्या आय म बड़ी व ृ िध के िलए िज मेदार ठहराया गया है , िजसम
िनजी क्षेत्र का अिधक योगदान है । इनम से अिधकांश लोग िन न म यम वगर् से आते ह,
और उनके माता-िपता सबसे अिधक गरीब थे। यह खंड अिधक िचंितत है , क्य िक उनकी कम
वेतन और उनकी नौकरी अक्सर औपचािरक क्षेत्र म नहीं होती है , जो वा य दे खभाल और
पशन जैसे अितिरक्त लाभ प्रदान करता है । वे समझते ह िक उनकी कड़ी मेहनत से जीती
गई जीत कमजोर होती है और वे आसानी से वापस लौट सकते ह।

ू िक समकालीन भारत म म यम वगर् होने के नाते कई मायन म


इस त य के बावजद
ि थित का मामला है , म यम वगर् के लोग वयं को सरु क्षा की नाजुक भावना वाले लोग म
से एक के प म दे खते ह। वे गरीब की तरह, अक्सर अमीर और शिक्तशाली, धोखेबाज
अिभजात वगर् के बारे म िच लाते ह, आिथर्क और राजनीितक यव था म हे र-फेर और
“भ्र ट” करते ह। औपिनवेिशक काल से लेकर वतर्मान तक, समकालीन भारत म म यवगीर्य
राजनीितक भागीदारी मह वपण
ू र् रही है । जो नेता थािपत स ा संरचनाओं पर सवाल उठाते ह
और सभी प्रकार के सामािजक आंदोलन को नई िदशा दे ते ह, वे अक्सर म यम वगर् से होते
ह।

भारतीय म यम वगर् की भी एक वाथीर्, आ म-अवशोिषत समह


ू होने की आलोचना की
गई है जो िक गरीब और दिलत के बारे म िचंितत नहीं है । गरीब को उसके लाभ के दायरे
से बाहर रखने के िलए, म यम वगर् बाधाओं और सीमाओं का िनमार्ण करता है । दस
ू री ओर,
गरीब म यम वगर् तक पहुँचने का प्रयास करते ह और ऐसा करने के िलए कड़ी मेहनत करते
ह। यहाँ तक िक यिद माता-िपता अपने ब च को पौि टक भोजन िखलाने का खचर् नहीं उठा
सकते ह, तो वे उ ह इस उ मीद म िनजी अंग्रेजी मा यम के कूल म भेजते ह िक िशक्षा
उ ह गरीबी से बाहर िनकलने और म यम वगर् के पड़ोस म लाने म मदद करे गी।

सामािजक संरचनाओं और असमानता और शिक्त के क्षेत्र का वणर्न करने के िलए


प्रयोग होने के अितिरक्त, “म यम वगर्” श द का उपयोग उभरते हुए भारतीय का वणर्न करने

86
के िलए भी िकया जाता है , जो िशक्षा और कड़ी मेहनत के मा यम से अपने वयं के
संसाधन के साथ ऊपर की ओर बढ़ने का प्रयास कर रहा है । दे श को आधुिनक और
िवकिसत रा ट्र बनाना। नव-उदारवादी समय म, यह म यम वगर् के भारतीय ह िज ह ने
अवसर के सबसे मू यवान और मह वपूणर् रा ते पर वयं को बढ़ाया है , इसिलए भारतीय
और वैि वक अथर् यव थाओं म व ृ िध हुई है । उदाहरण के िलए, सॉ टवेयर डेवलपसर्, प्रबंधन
के िवशेषज्ञ और इसी प्रकार, जो आज दिु नया भर म यावहािरक प से हर जगह प्रमख
ु ता
से उभरे ह, सभी म यम वगर् की प ृ ठभिू म से ह।

म यम वगर् की तीसरी लोकिप्रय अिभ यिक्त बाजार के संबंध म है । म यवगीर्य यिक्त


आिथर्क एजट के प म सव कृ ट उपभोक्ता है । म यम वगर् की क्रय शिक्त ही आधुिनक
बुजआ
ुर् अथर् यव था को बचाए रखती है । कहा जाता है िक म यम वगर् अपनी ि थित के
कारण उपभोग से मोिहत है । म यम वगर् के िलए, उपभोग आिथर्क कारण और पहचान का
ोत दोन है । शॉिपंग मॉल, मोबाइल फोन और मीिडया की बढ़ती पहुँच भारत म म यम वगर्
के बढ़ते मह व के लक्षण ह। म यम वगर् के ग्राहक अिधकांश िवज्ञापन यवसाय का ल य
होते ह।

म यम वगर् से संबंध रखने वाले की पहचान करना काफी सरल प्रतीत होता है — वे लोग
जो गरीब और अमीर के कद्र म कहीं आते ह। आ चयर्जनक यह है िक अथर्शाि त्रय और
नीित िनमार्ताओं वारा आज की बहस को िकतना गढ़ा, बनाया और चचार् िकया गया है । कद्र
के दो िसर पर सीमाओं को पिरभािषत करने के िलए आय, खपत, या कुछ और जैसे
उ दे य मानदं ड का उपयोग शायद मख्
ु यधारा के अथर्शाि त्रय के बीच िववाद का एकमात्र
िवषय रहा है ।

हालाँिक, ऐसा सांिख्यकीय पिरप्रे य प्रितबंिधत और गलत है क्य िक यह वा तिवक


सामािजक प्रिक्रयाओं के बारे म कुछ भी नहीं बताता है जो म य-वगर् के सामािजक गठन
िवकिसत होने पर उ प न होते ह, और म य-वगर् के सामािजक गठन भारत जैसे दे श म
सामािजक, सां कृितक और राजनीितक जीवन को कैसे प्रभािवत करते ह। पिरणाम व प,
“म यम वगर्” श द को एक ऐितहािसक और सामािजक िनमार्ण के प म दे खा जाना चािहए।
यह बाजार और शहर के साथ, समकालीन पँज
ू ीवादी समाज के प म िवकिसत होता है ।
इसकी व ृ िध एक नए प्रकार की सामािजक यव था के िनमार्ण की शु आत करती है — जो
एक रिकंग और वगीर्करण प्रणाली है । यह समद
ु ाय और घर के साथ-साथ पु ष और
मिहलाओं और यव
ु ा और बज
ु ग
ु के बीच सामािजक संबंध की प्रकृित को बदल दे ता है ।

87
यह आव यक प से सामािजक असमानता के पहले से उपि थत सामािजक ढाँचे म सब
कुछ संशोिधत नहीं करता है क्य िक यह ऐितहािसक प से एक िनि चत सामािजक
वातावरण के भीतर उ प न होता है । भले ही म यम वगर् के उ भव ने लोग के सोचने,
आचरण और एक दस
ू रे के साथ बातचीत करने के तरीके को बदल िदया हो, िक तु जाित
और सांप्रदाियक असमानताएँ बनी रहती ह। नई सामािजक और आिथर्क यव था म उठने
का प्रयास करने वाले अपने उपल ध संसाधन और नेटवकर् का उपयोग करते ह, िजसम
जाित और पािरवािरक नेटवकर् सि मिलत ह, नई सामािजक यव था म अपनी ि थित को
ि थर और मजबत
ू करने के िलए, जो असमानता के एक नए ढाँचे पर आधािरत है ।

म यम वगर् आय और धन के साथ-साथ ि थित और िवशेषािधकार के मामले म भी


िविवध है । आय, िशक्षा, यवसाय, आवास और जीवन शैली के आधार पर, म यम वगर् को
कभी-कभी “ऊपरी,” “िन न,” और “बीच म” समह
ू म िवभािजत िकया जाता है । जैसा िक
पहले कहा गया है , जो लोग ‘म यम वगर्’ के प म पहचान करते ह या इस तरह वगीर्कृत
ु यतः पर वे िज ह ने ऐितहािसक
होते ह, वे अपनी अ य पहचान बनाए रखते ह, मख् प से
जाित, समद
ु ाय/धमर्, और क्षेत्र/जातीयता जैसे िवशेषािधकार के ोत के प म कायर् िकया है ।
एक “जातीय” या सां कृितक समह
ू के भीतर एक म यम वगर् की व ृ िध और समेकन उन
पहचान को िमटाने या समा त करने के बजाय ती करने का काम कर सकता है ।

2.2.10 िन कषर्

एड फुलर (2015) ने ठीक ही नोट िकया है िक भारतीय म यम वगर् न केवल भारत म


बि क दिु नया के अ य भाग म भी मह वपूणर् भिू मका िनभा रहा है ।21 उदाहरण के िलए,
वैि वक सॉ टवेयर क्षेत्र की अभत
ू पूवर् व ृ िध, िजसम भारतीय फलते-फूलते ह और माँग म बने
रहते ह, एक नया, आधुिनक, मोबाइल म यम वगर् पैदा कर रहा है । इसके अितिरक्त, यिक्त
लगातार िसिलकॉन वैली और बगलोर, भारत के बीच घूम रहे ह, िजससे एक नए वैि वक
उपभोक्ता का उदय हो रहा है ।22 दब ू ाइटे ड िकंगडम या संयक्
ु ई या यन ु त रा य अमेिरका जैसे
म य पूवीर् क्षेत्र म प्रमख
ु प से दे श के बाहर भारतीय डाय पोरा की उपि थित काफी अिधक
हो सकती है और इनम प्रमख
ु प से म यम वगर् शािमल है ।

भारत के उ कृ ट िवकास और म यम वगर् की क्षमता के बावजद


ू , कई चुनौितय का
समाधान िकया जाना चािहए। संयुक्त रा ट्र के अनुसार, 2022 तक, दे श लगभग 1.8

21
Fuller, E. (2015). India: Asia’s next economic dynamo. Forbes, forbes.com, 10.
22
Radhakrishnan, S. (2008). Examining the “global” Indian middle class: Gender and culture in the Silicon
Valley/Bangalore circuit. Journal of Intercultural Studies, 29(1), 7-20.

88
िबिलयन की आबादी वाला दिु नया का सबसे अिधक आबादी वाला दे श होगा और भारत के
लगभग 1.3 िबिलयन लोग वाला दे श 29 वषर् से कम आयु का है , जो इसे दिु नया की सबसे
कम उम्र की आबादी म से एक बनाता है ।23 यिद सरकार “जनसांिख्यकीय लाभांश” का ठीक
से उपयोग करने म सक्षम है और 2030 तक दे श म काम की तलाश करने वाले 250
िमिलयन लोग के िलए उपयक्
ु त अवसर पैदा कर सकती है , तो यह जनसंख्या व ृ िध िनरं तर
म यम वगर् के िव तार को बनाए रख सकती है ।

जनसंख्या को बनाए रखने के िलए, यह सोचा गया है िक हम बहुत अिधक प्र यक्ष
िवदे शी िनवेश आकिषर्त करने की आव यकता होगी, और यावसाियक प्रिक्रयाओं को और भी
अिधक बढ़ाने की आव यकता होगी। बुिनयादी ढाँचा, नौकरशाही, किठन िनयामक
आव यकताएँ, और िव ीय िचंताएँ सभी िवकास के िलए प्रमख
ु बाधाएँ बनी हुई ह, और दे श
को अपनी परू ी क्षमता तक पहुँचने के िलए सभी को काफी हद तक संबोिधत िकया जाना
चािहए।24 अथर्शा त्री ने भारतीय बाजार म प्रवेश करने म अित-आशावाद के िव ध
िसफािरश की है , भले ही बहुरा ट्रीय कंपिनयाँ ऐसा करना जारी रख। अंत म, सकल घरे लू
उ पाद म िविनमार्ण का िह सा (अब सकल घरे लू उ पाद का 2 प्रितशत) तेज दर से बढ़ना
चािहए। वतर्मान सरकार की “मेक इन इंिडया” योजना के अनुसार, यह अनुपात 2022 तक
लगभग 3.5 प्रितशत तक बढ़ने की उ मीद है । िव व बक की “ईज ऑफ डूइंग िबजनेस”
रे िटंग म हमारी 100वीं रक बढ़ती आबादी के िलए नौकिरय के सज
ृ न म मदद कर सकती
है । जैसे-जैसे उनकी िववेकाधीन आय बढ़ती है , भारत का म यम वगर् वैि वक अथर् यव था म
एक बड़ी भिू मका िनभाएगा, िजससे वे अिधक उपभोक्ता सामान खरीद सकगे, बेहतर
वा य दे खभाल कर सकगे और अपने ब च की िशक्षा म अिधक खचर् कर सकगे।

2.2.11 अ यास प्र न

1. वतंत्रता के प चात ् से भारतीय म यम वगर् कैसे िवकिसत हुआ है ? आज के भारतीय


समाज और राजनीित म इसकी बदलती भिू मका का समालोचना मक िव लेषण कर।
……………………………………………………………………………………………………………………………………..……………………
………………………………………………………………………………………………………………..…………………………………………
…………………………………………………………………………………………..………………………………………………………………
……………………………………………………………………..……………………………………………………………………………………

23
“India’s Demographic Dividend,” Thomson Reuters. https://tinyurl.com/yb4t4jvl.
24
Ease of doing business rankings, The World Bank. https://www.doingbusiness.org/en/rankings

89
2. भारत म म यम वगर् और नए म यम वगर् के बीच अंतर कर। भारत म नए म यम
वगर् के िवकास और संरचना की चचार् कीिजए।
……………………………………………………………………………………………………………………………………..……………………
………………………………………………………………………………………………………………..…………………………………………
…………………………………………………………………………………………..………………………………………………………………
……………………………………………………………………..……………………………………………………………………………….….

3. बीसवीं सदी के प्रारं भ रा ट्रीय आंदोलन म म यवगीर्य बु िधजीिवय से जनता तक के


संक्रमण का प्रितिनिध व करती है । िट पणी कर।
……………………………………………………………………………………………………………………………………..……………………
………………………………………………………………………………………………………………..…………………………………………
…………………………………………………………………………………………..………………………………………………………………
……………………………………………………………………..…………………………………………………………………………………..

90
इकाई-3 : कृिष िवकास की रणनीित और सामािजक संरचना पर इसका प्रभाव

पाठ-1 : हिरत क्रांित एवं इसके प्रभाव


डॉ. सोनू कुमार

3.1 संरचना

3.1.1 पिरचय
3.1.2 भारत म कृिष का ऐितहािसक िवरासत
3.1.3 हिरत क्रांित
3.1.4 हिरत क्रांित की प्रमख
ु िवशेषताएँ
3.1.5 हिरत क्रांित प्रभाव संबंधी िवमशर्
3.1.6 सतत ् हिरत क्रांित या िवतीय हिरत क्रांित
3.1.7 अ यास प्र न
3.1.8 संदभर् सच
ू ी

3.1.1 पिरचय

वतंत्रता के प चात ् खा या न की कमी को दरू करने के िलए, कृिष क्षेत्र म नवीन तकनीक
के मा यम से कृिष के उ पादन म उ लेखनीय व ृ िध हुई िजसे ‘हिरत क्रांित’ की संज्ञा दी
गई। इसके बहुआयामी पिरणाम हुए। इस क्रांित ने जहाँ एक ओर भारत की सामािजक
आिथर्क और राजनीितक यव था को प्रभािवत िकया, वहीं दस
ू री ओर इस आंदोलन ने
वैयिक्तक असंतोष, क्षेत्रीय असमानता एवं पािरि थितकीय असंतल
ु न को भी ज म िदया।

3.1.2 भारत म कृिष का ऐितहािसक िवरासत

1947 से पहले भारत िब्रटे न का उपिनवेश था। औपिनवेिशक शासन के द ु पिरणाम से भारत
का शायद ही कोई वगर् अछूता रहा होगा। औपिनवेिशक भारत म कृषक की दशा अ य वग
की तल
ु ना म यादा बदतर थी। इसका मल
ू कारण लगान था। सरकार ने भ-ू राज व की
रकम बढ़ाने के िलए कई प्रकार के भ-ू राज व प्रणाली का प्रयोग िकया। थायी बंदोब त,
महालबाड़ी एवं रै यतवाड़ी। इन सभी का एक उ दे य था कृषक से अिधक-से-अिधक लगान
वसल ू करना। हालाँिक बहुत सारे इितहासकार इन यव थाओं को कृिष िवकास से जोड़कर
दे खते ह। इस प्रकार की शोषणकारी यव था ने आ मिनभर्र भारतीय ग्रामीण अथर् यव था को
बुरी तरीके से प्रभािवत िकया। इसके साथ ही कृिष क्षेत्र म िनजी संपि के धारणा की भी

91
शु आत हुई तथा क्षेत्र म नए वग जैसे— जमींदार, सद ू खोर, कृषक मजदरू ...आिद का
1
आिवर्भाव हुआ। पिरणामत: कृिष िवकास अव द होता गया।

िवदे शी शासन ने भारतीय कृिष यव था को हर तरीके से प्रभािवत िकया। खा या न


फसल की उ पादकता म कमी आयी तथा कृिष का वािण यीकरण तथा वािणि यक कृिष पर
िकसान की बढ़ती िनभर्रता आिद के प म दे खा जा सकता है । 1901 से लेकर 1941 म
प्रित यिक्त कृिष उ पादन म 10-15% की कमी आयी।2 ऐसा दे खा गया िक इ हीं वष म
खा या न उ पादन म कमी लगातार होते चली गयी है । ठीक इसी प्रकार 1894 से लेकर
1946 के दौरान भी लगभग सभी फसल की उ पादकता म कमी आयी।3

कृिष के वािण यीकरण का प्रभाव यह हुआ िक कृिष उ पादन म खा या न फसल की


जगह नकदी फसल को बढ़ावा िदया जाने लगा। कृिष उ पादन ग्रामीण जनमानस के िलए न
होकर रा ट्रीय एवं अंतरार् ट्रीय बाजार के िलए होने लगा। चाय, कॉफी तथा रबड़ जैसी नकदी
फसल के उ पादन म आशातीत बढ़ोतरी हुई। इसके साथ-साथ िकसान की ि थित िदन-
प्रितिदन खराब होती चली गई। उनम अकाल तथा भख
ु मरी जैसी प्राकृितक आपदाओं का
सामना करने की क्षमता नहीं रह गई। इस कारण दिक्षण भारत म कई िकसान आंदोलन भी
हुए।4 नानावती एवं अंजिरया (Nanavati and Anjaria) ने बताया है िक 1800 से 1950 के
बीच म भारत म 60 से अिधक बार िविभ न क्षेत्र म अकाल पड़े। ये अकाल कई करोड़
लोग की असामियक म ृ यु का कारण बने। 1943 म बंगाल म भीषण अकाल पड़ा एवं डेढ़
करोड़ लोग की म ृ यु केवल बंगाल म हुई।5

उपरोक्त विणर्त कृिषगत सम याओं से यह अनुमान लगाया जा सकता है िक वतंत्र


भारत को िकस प्रकार की कृिष प्रणाली िवरासत म िमली। िजस प्रकार का अकाल िब्रिटश
शासन काल म पड़ा, वह इस बात का प्रमाण है िक कृिषगत सिु वधाओं का समिु चत िवकास
नहीं हो पाया था। िब्रिटश शासन काल म िसंचाई यव था को लाभकारी बनाने का प्रयास भी
नहीं िकया गया था।6

1947 म भारत को वतंत्रता के साथ कई सम याएँ भी िवरासत म िमलीं। एक ओर,


िवभाजनज य सम याएँ थीं, तो दस
ू री ओर, इतनी बड़ी जनसंख्या की आजीिवका का प्र न
भी था। हालाँिक 1951-52 म जब योजनागत िवकास की नींव रखी गई तो कृिष को उसम
मह वपूणर् थान िदया गया। प्रथम पंचवषीर्य योजना (1951-56) म िसंचाई और िबजली के
साथ-साथ कृिष संबंधी पिरयोजनाओं को सव च प्राथिमकता दी गई।7 इसी प्रकार, आगे की
योजनाओं म भी कृिष िवकास हे तु समिु चत प्रावधान िकए गए। इस तरह के प्रयास के
बावजद
ू खा या न की इतनी िवकट सम या थी िक 10 जल
ु ाई, 1954 को भारत के प्रयास
के साथ एक समझौता िकया िजसका नाम पि लक लॉ-480 कायर्क्रम (PL 480

92
Programme) िदया गया।8 इस समझौते के तहत 1956 से खा या न आयात शु हुआ।
पहले वषर् 30 लाख टन खा या न का आयात िकया गया। प्रितवषर् आयात की मात्रा बढ़ती
गई तथा 1963 म यह 45 लाख टन तक पहुँच गई। वहीं दो पंचवषीर्य योजनाओं म अनाज
के उ पादन म व ृ िध होने के बावजद
ू ती गित से बढ़ती जनसंख्या के िलए यह व ृ िध
प्रभावी िस ध नहीं हुई। सख
ू ा, अकाल एवं यु ध ने भी कृिष उ पादन को प्रभािवत िकया।

3.1.3 हिरत क्रांित

हिरत क्रांित श द का प्रयोग सवर्प्रथम िविलयम गाडर् वारा 1968 म िकया गया था। गॉड
मल
ू तः अमेिरकी एजसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमट के िनदे शक थे। कालांतर म इस श द का
प्रयोग भारत, पािक तान एवं अ य िवकासशील दे श म िकया गया।9

भारत म हिरत क्रांित की शु आत करने म मल


ू भत
ू से त कालीन कृिष मंत्री सी.
सब्र
ु म यम का उ लेखनीय योगदान रहा है । एम.एम. वामीनाथन एवं विर ठ कृिष वैज्ञािनक
नॉरमन बारे लॉग को भी हिरत क्रांित के प्रणेता के प म जाना जाता है । इसके अितिरक्त
कृिष क्षेत्र एवं िकसान की सम याओं को समझने वाले प्रधानमंत्री लाल बहादरु शा त्री एवं
इंिदरा गांधी की भिू मका को भी मह वपण
ू र् माना जाता है ।

भारत की िविभ न पंचवषीर्य योजनाओं म भी कृिष िवकास को प्राथिमकता दी जाती रही


है । इस प्रकार संपूणत
र् ः कृिष िवकास का अवलोकन िकया जाये तो 1960 का भारतीय कृिष
इितहास का सबसे मह वपूणर् दशक रहा है । 1961-1966 तीसरी पंचवषीर्य का काल था, इसी
काल म भारत म कृिष क्षेत्र म नई तकनीक का प्रयोग शु हुआ। शु आती दौर म इस
प्रयोग को ‘पायलट प्रोजेक्ट’ के प म कुछ चुिनंदा िजल म शु आत हुई। इसका नाम ‘गहन
कृिष िजला कायर्क्रम’ (Intensive Agriculture District Programme—IADD) रखा गय।
िजन िजल म इसकी शु आत हुई, वे इस प्रकार ह— 1. तंजापुर (तिमलनाडू), 2. पि चमी
गोदावरी (आंध्र प्रदे श), 3. शाहाबाद (िबहार), 4. अलीगढ़ (उ र प्रदे श), 5. रायपरु (म य
प्रदे श), 6. लिु धयाना (पंजाब), 7. पाली (राज थान)।10

मल
ू प से इस कायर्क्रम म उ च गण
ु व ा वाले बीज, रसायिनक उवर्रक का प्रयोग,
कीटनाशक का प्रयोग, समिु चत िसंचाई यव था इ यािद के मा यम से कृिष यव था म
एक ग या मक पिरवतर्न लाने का प्रयास िकया गया। कृिष क्षेत्र म इस प्रकार से प्रौ योिगकी
का अ प समय म बेहतर पिरणाम दे खने को िमले। यही कारण है िक राजनीितक िव लेषक
तथा कृिष वैज्ञािनक ने इस प्रकार के प्रगित को ‘हिरत क्रांित’ का नाम िदया।

भारत मल
ू प से कृिष प्रधान दे श है । इसका पिरणाम यह है िक यहाँ की कुल जनसंख्या
दर 60-70 प्रितशत जनसंख्या आज भी अपनी आजीिवका के िलए कृिष पर िनभर्र है । यहाँ

93
के िकसान की मल
ू सम या अपनी आजीिवका के िलए अनाज की पूितर् करना है । भारत म
70 प्रितशत से अिधक कृिष भिू म का प्रयोग खा या न फसल के िलए ही िकया जाता है ।
गेहूँ, चावल, जौ, बाजरा तथा अनेक प्रकार की दाल का खा या न फसल के प म लगभग
11
70 से 90 प्रितशत का योगदान है । हिरत क्रांित म सामा यतः इ हीं फसल का उ पादन
बढ़ाने पर बल िदया गया। इसके तहत कृिष क्षेत्र म संरचना मक, सं थागत एवं तकनीकी
सध
ु ार को बढ़ावा िदया गया। हिरत क्रांित के िवशेषताओं को िन न िब दओ
ु ं के मा यम से
समझा जा सकता है ।

3.1.4 हिरत क्रांित की िवशेषताएँ

कृिष प्रधान दे श होने के कारण कुल जनसंख्या का 60-70 प्रितशत भाग आज भी अपनी
आजीिवका के िलए कृिष पर िनभर्र है । भारतीय िकसान की सबसे बड़ी सम या अपने
पिरवार के िलए अनाज की पूितर् करना है । भारत म 75 प्रितशत कृिष भिू म का प्रयोग
खा या न फसल के िलए ही िकया जाता है । चावल, गेहूँ, बाजरा, जौ तथा िविभ न प्रकार के
दाल का खा या न फसल के प म योगदान लगभग 70 से 90 प्रितशत तक है । हिरत
क्रांित के तहत इ हीं फसल के उ पादन बढ़ाने पर बल िदया गया। िजसके तहत
संरचना मक सं थागत एवं तकनीकी सध
ु ार को बढ़ावा िदया गया। इसकी िवशेषताओं को
समझने के िलए िन न िब दओ
ु ं का अवलोकन िकया जाना आव यक है —

उ नत उ पादकता बीज कायर्क्रम (High Yielding Variety Seed Programme)

भारत म इस प्रकार के बीज का प्रयोग 1960 के बाद शु हुआ। इस प्रकार के बीज के


प्रयोग का मख्
ु य उ दे य यह नहीं था िक खा या न फसल के उ पादन को बढ़ाना है बि क
मख्
ु य जोर इस बात पर िदया जा रहा था िक खा या न के मामले म भारत को आ मिनभर्र
बनाना है । फसल की उपज को, कृिष योग्य भिू म का क्षेत्रफल बढ़ाकर तथा उ नत प्रजाित के
बीज का प्रयोग करके बढ़ाया जा सकता था। परं तु भारत म कृिष योग्य भिू म सीिमत थी
तथा जो थी वह भी लगभग प्रयोग म थी। यही कारण है िक खा या न उ पादन को बढ़ाने
12
का मख्
ु य समाधान उपज को ही बढ़ाना था। हालाँिक भारत म इस प्रकार की नवीन
तकनीक का प्रयोग बहुत यादा उ साहवधर्क नहीं रहा। इसके कई कारण ह; यहाँ लोग
परं परागत कृिष के आिद रहे ह तथा कुछ संसाधनगत सम याएँ भी जड़
ु ी रहीं। यहाँ उ नत
प्रजाित के बीज का प्रयोग मख्
ु य प से पाँच फसल —गेहूँ, चावल, जौ, वार और बाजरा के
13
िलए शु िकया गया। इस प्रकार के फसल की मख्
ु य िवशेषता िन न है —

(i) ये फसल उवर्रक के िलए अपेक्षाकृत अिधक उपयक्


ु त सािबत होती ह।

(ii) ये फसल दे शी फसल की तल


ु ना म दो गन
ु ा से चार गन
ु ा तक उपजाऊ होती ह।

94
(iii) इन फसल की खास िवशेषता यह होती है िक ये दे सी फसल की तुलना म कम समय
लेती ह, िजससे भिू म का उपयोग दस
ू री मख्
ु य फसल के िलए िकया जा सकता है ।

(iv) कुछ खास फसल को छोड़ िदया जाए तो ये फसल सख


ू े का सामना करने म भी सक्षम
होती ह।

1966-69 के दौरान इन फसल का यावसाियक उपयोग काफी ती गित से हुआ।14 1966-


67 के दौरान जहाँ केवल 4-66 िमिलयन एकड़ भिू म म इन बीज का प्रयोग िकया गया वहीं
1968-69 म इसका िव तार 22-97 िमिलयन एकड़ तक हो गया। चौथी पंचवषीर्य योजना
तक इसके िव तार क्षेत्र को बढ़ाकर 60 एकड़ तक करने का ल य रखा गया था।15 िविभ न
फसल के प्रमािणत बीज के उ पादन तथा िवतरण को प्रो सािहत करने के िलए भारत
सरकार ने 1963 म ‘रा ट्रीय बीज िनगम’ (National Seed Corporation NSC) की
थापना की।16 इस प्रकार के सं थागत प्रयास का ही पिरणाम था िक 1950-51 की तुलना
1969-70 म कुल खा या न उ पादन लगभग दोगन
ु ा हो गया। वतर्मान म खा य उ पादन
210 मीिट्रक टन था, िजसे सदाबहार क्रांित के वारा 420 मीिट्रक टन िकया जाने का ल य
रखा गया था।

उवर्रक उपयोग (Use of Fertilizer)

नयी कृिष तकनीक म उवर्रक का उिचत प्रयोग भी मह वपूणर् है । क्य िक उवर्रक प्रयोग के
बगैर उ नत बीज वाली फसल यादा प्रभावी सािबत नहीं हो पाती। उवर्रक को सामा यतः दो
वग म बाँटा गया है । काबर्िनक उवर्रक तथा अकाबर्िनक उवर्रक। अकाबर्िनक उवर्रक को
रसायिनक उवर्रक भी कहा जाता है । इनके तीन प है — नाइट्रोजन (N), फासफोरस (P) तथा
पोटे िशयम (K) उवर्रक (NPK)। काबर्िनक उवर्रक प्राकृितक उवर्रक होता है िजसे
बायोफिटर् लाइजर भी कहा जाता है । ये उवर्रक, स ते एवं पयार्वरण-मैत्री होते ह। सरकार वारा
इनके प्रयोग को बढ़ावा िदए जाने के िलए पहल की जा रहा है । इसी क्रम म छठी पंचवषीर्य
योजना म एक प्रोजेक्ट शु िकया गया था िजसके तहत गािजयाबाद (उ र प्रदे श) म नेशनल
बायोफिटर् लाइजर डेवलपमे ट से टर (NBDC) की थापना की गयी। 2004 म इसका नाम
बदलकर नेशनल से टर फॉर आगिनक फािमर्ंग (NCOF) कर िदया गया। वतर्मान म सरकार
वारा जैिवक उवर्रक के उपयोग को बढ़ावा दे ने के िलए िकसान को अनुदान उपल ध कराया
जा रहा है । जैसे वमीर् क पो ट के उ पादन के िलए सरकार वारा कुल लागत का 50
प्रितशत रािश अनुदान के प म दी जा रही है ।

िसंचाई का िव तार (Extension of Irrigation)

हिरत क्रांित की िवशेषता के प म िसंचाई का िव तारण भी एक मह वपूणर् उपलि ध है ।


एच.वी.वाई.एस.पी. (H.V.Y.S.P.) के तहत संकिरत बीज की फसल के समिु चत िवकास के

95
िलए िसंचाई की उपल धता प्राथिमक शतर् है । इन फसल के िलए िकसान अिनयिमत मानसन

पर िनभर्र नहीं रह सकता। इन बीज /फसल पर उवर्रक या कीटनाशक का प्रयोग तभी प्रभावी
सािबत होता है जब इ ह समय पर उिचत मात्र म िसंचाई की जाए।17 परं तु आज भी भारत
म बहुत सारे क्षेत्र ऐसे ह जहाँ के िकसान िसंचाई के िलए मानसन
ू पर िनभर्र ह। लगभग 40
प्रितशत क्षेत्र म ही िसंचाई की सही यव था हो पायी है । एच.वी.वाई.एस.पी. (H.V.Y.S.P.)
उन क्षेत्र म ही प्रभावी सािबत हुआ है जहाँ िसंचाई की अ छी यव था है ।18 हालाँिक बाद म
भारत सरकार वारा िसंचाई यव था म सध ु ार करने हे तु कई प्रकार के प्रयास िकए गए।
जैसे— 1974-75 म कमा ड एिरया डेवलपमे ट कायर्क्रम की शु आत की गयी। इसका प्रमख

उ दे य चुने हुए वहृ द तथा म यम िसंचाई पिरयाजनाओं की िसंचाई क्षमता का ती तथा
उ म प्रयोग प्रा त करना है । इसी क्रम म आगे 1996-97 म विरत िसंचाई लाभ कायर्क्रम
(Accelerated Irrigation Benefits Programme — AIBP) की शु आत की गयी। इसका
मख्
ु य उ दे य के द्रीय ऋण सहायता के वारा अपूणर् िसंचाई पिरयोजनाओं तथा कायर्क्रम को
पूरा करने के िलए रा य को प्रो सािहत करना था।19

िसंचाई की उपरोक्त यव थाओं के अितिरक्त िसंिचत भिू म का क्षेत्रफल बढ़ाने के िलए


सरकार वारा िनरं तर प्रयास िकया जा रहा है । इस िदशा म िड्रप िसंचाई प्रणाली एवं िछड़काव
वारा िसंचाई को प्रो सािहत करने हे तु ‘माइक्रो इरीगेशन’ योजना की शु आत के द्र सरकार
वारा 2006 म शु की गयी है । इसी क्रम म इजरायल, अमेिरका आिद दे श से िड्रप िसंचाई
तकनीक को बढ़ावा दे ने के िलए समझौता िकया गया है । नदी जोड़ पिरयोजना का मल

ू ा क्षेत्र म िसंचाई का िवकास करना है । इसकी शु आत ‘केन-वेतवा िलंक’ के साथ
उ दे य सख
हो चुकी है । ‘अमत
ृ क्रांित’ के नाम से शु की गयी यह पिरयोजना निदय के जोड़ने के संदभर्
म एक सफल प्रयास कहा जा सकता है । वहीं कमान क्षेत्र िवकास कायर्क्रम की किमय को
दरू करने के िलए नदी-बेिसन िवकास कायर्क्रम, ‘जल संभरण प्रबंधन कायर्क्रम’ तथा ‘रे न-
वाटर-हावि टं ग’ आिद को बढ़ावा िदया जा रहा है । अप्रैल 2011 को सरकार वारा रा ट्रीय
जल िमशन की शु आत की गयी, िजसका मुख्य उ दे य, जल संरक्षण, जल प्रबंधन तथा
रा य के बीच जल का समान िवतरण सिु नि चत कराना है ।

कीटनाशक का प्रयोग (Use of Pesticides)

उ नत प्रजाित के बीज के पौध म संक्रमण का खतरा भी दे शी फसल की तुलना म यादा


होता है । क्य िक इस प्रकार के संकरण पौध म िवनाशकारी कीट एवं बीमािरय का सामना
करने के िलए समिु चत प्रितरोधक क्षमता का िवकास नहीं हो पाता है । इस कारण इनके
संरक्षण के िलए सही और उिचत मात्रा म कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करना अपिरहायर् हो
जाता है । कीटनाशक के प्रयोग से फसल उ पादन म कई गन
ु ा व ृ िध हो जाती है । इस व ृ िध

96
का ही पिरणाम है िक 1955-56 म जहाँ 5.9 िमिलयन एकड़ क्षेत्र पर इन कीटनाशक का
प्रयोग होता था वहीं 1968-69 इनका प्रयोग बढ़कर 98.8 िमिलयन एकड़ हो गया।20
सदाबहार क्रांित के अंतगर्त भी कीटनाशक के उपयोग पर बल िदया गया है । साथ-ही-साथ
जैिवक कीटनाशक के उपयोग को भी प्रो साहन दे ने का प्रयास िकया जा रहा है ।

कृिष ऋण (Agriculture Loan)

कृिष िवकास तथा कृिष ऋण म गहरा संबंध है । उिचत समय पर तथा सही याज दर पर
ऋण उपल धता कृिष उ पादन म व ृ िध लाती है । भारतीय कृषक को कई ोत से ऋण
प्रा त होता है । सामा यतः इन ोत को दो वग म बाँटा जा सकता है — गैर सं थागत ोत
तथा सं थागत ोत। गैर सं थागत ोत (Non-Institutional Source) म थानीय ग्रामीण
साहूकार, जमींदार, दे शी बकर तथा कमीशन एजट आिद को रखा जा सकता है । जबिक
सं थागत ोत म सहकारी सिमितयाँ, यापािरक बक, क्षेत्रीय ग्रामीण बक, भिू म िवकास बक
आिद को शािमल िकया जा सकता है । गैर सं थागत ोत वाले ऋण िकसान के िलए
उपुयक्त नहीं होते। क्य िक इसके
वारा िकसान को बहुत ऊँची याज दर पर ऋण उपल ध
कराया जाता है तथा उनकी गरीबी का लाभ उठाकर उनका शोषण िकया जाता है । इसके साथ
ही उ ह इस बात के िलए िववश िकया जाता है िक वे अपनी फसल कम कीमत पर ही बेच
द। इस प्रकार की सम या से िनजात पाने के िलए सरकार वारा िकया गया प्रयास
सराहनीय है ।

1969 म बक के रा ट्रीयकरण के साथ ही कृिष ऋण यव था म एक नया मोड़ आया।


इस संबंध म बहुसं था ि टकोण (Multi Agency Approach) िवकिसत हुआ। िजसके
वारा कृिष ऋण को बढ़ावा दे ने हे तु अनेक सं थाएँ उभरकर सामने आयी। इनम सहकारी
सिमितयाँ, यापािरक बक, क्षेत्रीय ग्रामीण बक तथा कृषक सेवा सिमितयाँ ह जो गाँव तर
21
पर काम करने वाली सं थाएँ थीं। कृिष ऋण के संबंध म सबसे मह वपूणर् कदम 1982 म
कृिष तथा ग्रामीण िवकास के िलए रा ट्रीय बक (National Bank for Agriculture and
Rural Development-NABARD) की थापना को माना जाता है । यह ग्रामीण ऋण
यव था की शीषर् सं था है । इसके वारा कृिष ऋण को सुलभ बनाने के िलए कई सराहनीय
काम िकए जा रहे ह। इनम िकसान क्रेिडट काडर् का प्रारं भ करना, एक पटल ि टकोण
(Single Window approach) जहाँ एक िखड़की पर बहुउ दे शीय ऋण की यव था हो तथा
वयं सहायता समह
ू को बक के साथ जोड़ना प्रमख
ु रहा है ।

उपरोक्त प्रकार के सं थागत प्रयास के अितिरक्त कृिष ऋण को सुगम बनाने के िलए


सरकार वारा िनरं तर प्रयास जारी है । इनम 2 अक्टूबर, 1975 को 5 क्षेत्रीय ग्रामीण बक की
थापना हुई िजनकी वतर्मान शाखाओं की संख्या बढ़कर 17588 तक पहुँच गयी है ।22 इसी

97
प्रकार कृिष क्षेत्र म दीघर्कालीन आव यकताओं की पूितर् करने के िलए भिू म िवकास बक की
थापना की गयी है ।

कृिष बीमा (Agriculture Insurance)

1999-2000 म आपदा, कीट बीमारी के पिरणाम व प होने वाले फसल के नुकसान की


ि थित म िकसान को िव ीय सहायता प्रदान करने के िलए रा ट्रीय कृिष बीमा योजना
(National Agricultural Insurance Scheme) की शु आत की गयी। भारतीय कृिष बीमा
कंपनी िलिमटे ड, योजना को िक्रयाि वत करने वाली एजसी है । के द्र और रा य सरकार वै य
िप्रिमयम सि सडी का 50:50 प्रितशत वहन करते ह।

कृिष िवपणन (Agricultural Marketing)

कृिष से उ पािदत व तुओं का उिचत तथा संतोषजनक िवपणन कृिष िवकास की आव यक


तथा मह वपूणर् शतर् है । क्य िक िकसान उ नत तकनीक अपनाने एवं कृिष पँज
ू ी िनवेश के
िलए तभी प्रेिरत ह गे, जब उनके उ पाद का उिचत मू य िमले। हमारे यहाँ कृिष िवपणन
दोषरिहत नहीं है इस कारण िकसान को उनके उ पाद का उिचत मू य नहीं िमलता। कृषक
के िहत को संरिक्षत करने के िलए तथा उनके उ पाद का मू य सिु नि चत करने के िलए
सरकार ने अनेक कदम उठाए ह। कुछ प्रमख
ु कदम िन न ह—

(i) सहकारी िवपणन सिमितयाँ— 10 या उससे अिधक िकसान अपने उ पाद को बेचने के
उ दे य से सहकारी िवपणन सिमितयाँ या बहुउ दे शीय सरकारी सिमितय का िनमार्ण
कर सकते ह।

(ii) िनयिमत बाजार— इस प्रकार के बाजार रा य या थानीय सरकार वारा बनाए गए


कानन
ू के तहत थािपत िकए जाते ह। इनका प्रमख
ु उ दे य बाजार म प्रचिलत
अ व थ, कपटपण
ू र् तथा अवांिछत यवहार को समा त करना है ।

(iii) रा ट्रीय कृिष सहकारी िवपणन भारतीय संघ (National Agriculture Cooperative
Marketing Federation NAFED)— कृिष िवपणन की यह शीषर् सं था है िजसकी
थापना 2 अक्टूबर, 1958 को की गयी थी। इसका प्रमख
ु कायर् कुछ खास कृिष
व तुओं को प्रा त करना, उनका िवतरण, िनयार्त एवं आयात करना है । यह सं था कृिष
व तुओं के अंतरार् यीय यापार तथा िनयार्त को प्रवितर्त करता है । नैफेड (NAFED) ने
मू य तर के ि थरीकरण तथा बाजार म उ पादक एवं उपभोक्ताओं दोन के िहत की
रक्षा करने म मह वपूणर् भिू मका अदा की है ।

उपरोक्त प्रकार के सं थाओं के अितिरक्त िकसान के िहत की रक्षा के िलए भारतीय


जनजातीय सहकारी िवपणन पिरषद (TRIFED) की थापना 1987 म की गयी। इसके साथ

98
ही माँग के अनुसार पूितर् को िनयंित्रत करने, मू य के ि थरीकरण तथा बफर टॉक कायम
रखने के िलए भ डारण तथा गोदाम (Warehousing) सिु वधा भी उपल ध करायी जा रही है ।

3.1.5 हिरत क्रांित : प्रभाव संबंधी िवमशर्

भारत म हिरत क्रांित का क्या प्रभाव पड़ा। इस िवषय पर काफी िवमशर् हो चक


ु ा है तथा
वतर्मान म भी जारी है । कुछ िव वान ने अपने िवमशर् म इसके, सामािजक, आिथर्क एवं
राजनीितक सभी आयाम की चचार् की है जबिक कुछ िव वान ने केवल इसके उ पादनकारी
प्रभाव तक ही अपने िवचार सीिमत रखे है ।

डो फ एवं डो फ ने बताया है िक हिरत क्रांित के पिरणाम व प एक ऐसे नवसंगिठत


दबाव समह
ू का उभार हुआ िजसम मख्
ु य प से अमीर िकसान एवं कृषक पँज
ू ीपित शािमल
थे। इस दबाव समह
ू ने आगे चलकर भारतीय राजनीित के िनधार्रण म प्रभावी भिू मका
िनभायी। डो फ एवं डो फ ने कृषक के एक समह
ू को ‘बैलगाड़ी पँज
ू ीवाद’ की संज्ञा दी है ।
यह ऐसा समह
ू था िजनके पास 2-5 से 15 एकड़ तक जमीन थी, ये खुद खेती करते थे,
तथा कृिषगत सिु वधाओं से वंिचत थे। इनके पास एक जोड़े से अिधक बैल रहते थे िजससे वे
खेत जोतते थे। िकसान के इस वगर् को हिरत क्रांित का कोई लाभ नहीं िमल पाया।23

नारमन बोरलॉग इसके प्रभाव की चचार् करते हुए बताते ह िक इसका सबसे बड़ा फायदा
यह हुआ िक तत ृ ीय िव व के दे श म कृिष संबंधी आधारभत ू संरचना का िवकास हुआ। बहुत
सारी प्रयोगशाला, कृिष वैज्ञािनक, प्रिशिक्षत म शिक्त का भी िवकास हुआ। इसके साथ ही
कृिष क्षेत्र म नई शोध को भी बढ़ावा िदया जाने लगा।24

सद
ु ी ता किवराज ने हिरत क्रांित को ग्रामशी के वजात क्रांित (Passive Revolution)
का एक उदाहरण माना है । इनके अनुसार संपूणर् भारतीय क्षेत्र इस क्रांित से प्रभािवत नहीं
हुए। सीिमत लोग ही इस क्रांित से लाभाि वत हुए।25

प्रभाव
इस क्रांित के पिरणाम व प दे श म कृिष क्षेत्र म मह वपणू र् प्रगित हुई। कृिष क्षेत्र म नई
तकनीक को अपनाने के कारण इस क्षेत्र म गुणा मक सध ु ार हुआ। खा या न उ पादन बढ़ा
तथा आ मिनभर्रता आयी। इसके साथ हीं यावसाियक कृिष को बढ़ावा िमला। इस क्रांित के
पिरणाम व प कृिष उ पादन म सामा य तथा गेहूँ एवं चावल के उ पादन म िविश ट प से
व ृ िध हुई। चावल का उ पादन 1960 म 35 िमिलयन टन था, 1997-98 म बढ़कर यह 83
िमिलयन टन तक पहुँच गया। इसी समयाविध म गेहूँ का उ पादन 11 िमिलयन टन से
बढ़कर 66 िमिलयन टन हो गया जबिक ग ने का उ पादन 110 िमिलयन टन से बढ़कर
260 िमिलयन टन हो गया।26 इसका प्रभाव आरं िभक दौर म गेहूँ, वार, बाजरा तक ही
सीिमत रहा। परं तु धीरे -धीरे इसका प्रभाव अ य फसल जैसे चावल, कपास, जट
ू तथा ग ना

99
आिद पर भी पिरलिक्षत हुआ। वतर्मान म भारत चावल, गेहूँ आिद खा या न फसल म
आ मिनभर्र होने के साथ-साथ इनका िनयार्त करने म भी सक्षम है ।

खा या न उ पादन म व ृ िध के साथ ही इस आंदोलन के कई अ य सकारा मक प्रभाव


पड़े। िकसान की सम या को यान म रखकर सरकार ने िविभ न प्रकार की सं थाओं का
िवकास िकया। इनम प्रमख
ु ह—रा ट्रीय सहकारी िकसान िनगम (1963), कृिष पुनिवर्त िनगम
(1963), कृिष मू य आयोग (1965), भारतीय खा य िनगम (1965), भारतीय रा य फामर्
िनगम (1969), आिद इसके साथ िकसान को प्रो साहन दे ने हे तु पूरे दे श म खा या न के
संबंध म यूनतम समथर्न मू य नीित (Minimum Support Price Policy) की शु आत भी
1964 म की गयी। यह वह मू य है जो िकसान को अपनी फसल के िलए आव यक प से
प्रा त होगा। यूनतम मू य की घोषणा सरकार वारा फसल बोने से पूवर् कर दी जाती है ।
यह एक प्रकार का बीमा है िजसे सरकार िकसान को उस ि थित म संरिक्षत करने के िलए
दे ती है जब अ छी फसल तथा अिधक पूितर् के बाद मू य म िगरावट हो। जबिक अिधप्राि त
मू य (procurement price) िजसकी घोषणा सरकार वारा फसल बोने के बाद की जाती है ।
सरकार इसी मू य पर अनाज का क्रय करती है जो िक यूनतम समथर्न मू य के बराबर या
उससे यादा ही होता है । वसल
ू ी मू य का मख्
ु य उ दे य िकसान को अिधक उ पाद के िलए
प्रेिरत करना है । इसी प्रकार कृिष नीित के तहत कृिष िशक्षा का िव तार करने के िलए
सरकार ने प तनगर म 1960 म पहला कृिष िव विव यालय तथा इ फाल (िमजोरम) म एक
के द्रीय िव विव यालय की थापना की है । कृिष अनुसध
ं ान हे तु भारतीय कृिष अनुसध
ं ान
पिरषद का गठन िकया गया है िजसके अंतगर्त 53 के द्रीय सं थान, 32 रा ट्रीय अनस
ु ध
ं ान
के द्र तथा 12 पिरयोजना िनदे शालय कायर्रत ह।27

हिरत क्रांित ने रा ट्रीय राजनीित को भी कई संदभ म प्रभािवत िकया। हिरत क्रांित के


पिरणाम व प एक छोटा एवं स प न वगर् नये संगिठत दबाव समह
ू के प म उभरा िजसम
मख्
ु य प से अमीर िकसान एवं कृषक पँज
ू ीपित शािमल थे। इसके फल व प माँग की
राजनीित का उभार दे खा गया। इस समह
ू की ओर से कृिष संप नता के िलए अनेक माँग
उठायी गयी; जैसे— कृिष उ पाद के उ च मू य, बेहतर कृिष तकनीक का िन न मू य पर
उपल धता तथा अ य संरचना मक तथा सं था मक सिु वधाएँ।28

इस संगिठत दबाव समह


ू ने वतंत्रता के प चात ् िकसान आंदोलन को एक नया व प
प्रदान िकया। वतंत्रता पूवर् के िकसान आंदोलन प्र यक्ष प से रा य के िव ध हुआ करते
थे तथा अपेक्षाकृत कम संगिठत थे। हिरत क्रांित के बाद इनके वारा शु िकया गया
आंदोलन िवचारधारा पर आधािरत न होकर मु दे पर आधािरत तथा आिथर्क मजबूती संगठन
को मजबूत बनाने म सहायक रही। इनके वारा उठाए गए मु द ने कई सं थाओं के उदभव
29
म के द्रीय भिू मका िनभायी।

100
1967 म िकसान के नेता के प म चौधरी चरण िसंह ने भारतीय क्रांित दल (BKD)
का गठन िकया। उ ह ने उ र-प्रदे श एवं आस-पास के क्षेत्र म जाट, गज
ु रर् , यागी आिद को
संगिठत िकया जो मल
ू तः िकसान एवं िपछड़ी जाित के थे। 1986 म महे द्र िसंह िटकैत
वारा भारतीय िकसान यूिनयन (BKU) का गठन िकया गया। 1980 के दशक के उ रा र्ध
म इसने प्रितिनिधक चुनाव म भी भाग िलया, िकंतु अपेिक्षत सफलता नहीं िमल पायी। परं तु
इस प्रिक्रया म कई रा य से िकसान नेता उभकर सामने आए। जैसे— हिरयाणा म दे वी लाल,
उ र प्रदे श म च द्र शेखर, कनार्टक म ननजन
ु दा वामी, तिमलनाडु म सी. नारायण वामी
नायडु, महारा ट्र म शरद जोशी आिद प्रमख
ु रहे । इसके साथ िकसान से संबंिधत कई संगठन
भी उभरे । जैसे— कनार्टक रा य रै यत संघ (KRRS) कनार्टक म, सेतकारी संगठन महारा ट्र
म, आिद।30

इस प्रकार इन क्षेत्रीय नेताओं के उभार तथा इनके बढ़ते हुए राजनीितक जनाधार ने
भारतीय दलीय यव था को प्रभािवत िकया। कई क्षेत्रीय दल की थापना को इसके परोक्ष
प्रभाव के प म दे खा जा सकता है । जैसे— उ र प्रदे श म रा ट्रीय लोक दल (RLB),
पी.एस.पी. (P.S.P.) आिद। अब भारतीय राजनीित म कमा ड की राजनीित की जगह
िडमा ड की राजनीित का लक्षण प्रितिबि बत होने लगा। हिरत क्रांित के फल व प िपछड़े
एवं म यवगीर्य जाितय का उभार एक शिक्तशाली राजनीितक वगर् के प म दे खा जा रहा
है ।

उपरोक्त प्रकार के सकारा मक प्रभाव के अलावा हिरत क्रांित के कुछ नकारा मक प्रभाव
भी ह। यह सही है िक उ पादन म व ृ िध के साथ सरकार समिथर्त मू य नीित के फल व प
कृिष क्षेत्र की आय म व ृ िध हुई है , पर इसके पिरणाम व प ग्रामीण क्षेत्र म अ तवयिक्तक
एवं अंतक्षत्रीय िवषमता बढ़ी है । ऐसा पाया गया है िक यह क्रांित धनी िकसान के िलए ही
31
है , सामा य या सीमा त िकसान के िलए यह उपयक्
ु त नहीं है । कारण यह है िक नयी
नीित के तहत कृिष करना काफी खचीर्ली होती है । जैसे— उ नत बीज, उवर्रक, िसंचाई,
कीटनाशक आिद सामा य िकसान की पहुँच से बाहर की चीज है । दस ू रा कारण यह है िक
प्रौ योिगकी के प्रयोग के िलए िविश ट ज्ञान की आव यकता होती है । तीसरा प्रमख
ु कारण
यह है िक भारतीय िकसान अनुदार प्रविृ के होते ह तथा नयी तकनीक को अपनाने म उ ह
संशय होती है एवं वे जोिखम उठाने से घबराते ह। यही सब कारण ह िक बड़े तथा धनी
िकसान इस नयी कृिष रणनीित का लाभ उठा पाए, छोटे िकसान इस नीित का लाभ उठाने
से वंिचत रह गए। पिरणामतः अंतवयिक्तक िवषमता बढ़ी।

नयी कृिष रणनीित के कारण अंतःक्षेत्रीय िवषमता को भी बढ़ावा िमला क्य िक इस प्रकार
की तकनीक को केवल उ हीं क्षेत्र म प्रयोग म लाया जा सका जहाँ िसंचाई की समिु चत

101
यव था थी तथा िकसान मानिसक एवं आिथर्क प से इतने सशक्त थे िक जोिखम उठाने
के िलए तैयार थे। यही कारण था िक इस क्रांित का प्रसार वैसा नहीं हो पाया जैसी इसकी
आव यकता थी। हिरत क्रांित गेहूँ और चावल की उ पादकता बढ़ाने म तो सहायक रही,
लेिकन दलहन, ितलहन एवं नकदी फसल के उ पादन म पयार् त व ृ िध नहीं कर पायी।

उवर्रक एवं कीटनाशक के अ यिधक प्रयोग के कारण पािरि थितकी सम या उ प न हुई


है । िम टी म लवणता, क्षारीयता, भिू म का अपरदन, जलीय पिरि थितकी तंत्र म ास आिद
जैसी सम याएँ उ प न हुई ह।

इस क्रांित का प्रसार पंजाब, हिरयाणा, पि चमी उ र प्रदे श, गज


ु रात, महारा ट्र तथा
कनार्टक के कुछ क्षेत्र तक ही सीिमत रहा। सबसे अिधक लाभाि वत रा य पंजाब तथा
हिरयाणा थे। इन दोन रा य के सबसे अिधक लाभाि वत होने का कारण यह है िक ये
रा य यूनतम मानसन
ू ी क्षेत्र म आते ह, इस कारण यहाँ िसंचाई का िवकास पहले ही हो
चुका था। दस
ू रा कारण यह था िक यहाँ के िकसान पँूजी लगाने एवं जोिखम उठाने को तैयार
थे। इसके अितिरक्त राजनीितक-प्रशासिनक इ छा शिक्त के कारण इसके प्रयोग एवं िवतरण
को इस क्षेत्र म बढ़ावा िमला एवं िकसान बड़े पैमाने पर हिरत क्रांित के चर को अपना सक।
अ य कारण म इन क्षेत्र म बड़ा जोत का आकार तथा सं थागत एवं संरचना मक सम या
की यूनता को माना जा सकता है ।

उपरोक्त प्रकार की सीमाओं के अितिरक्त और कई सम याएँ ह िजसने हिरत क्रांित के


प्रसार को अवरोिधत िकया है । ग्रामीण क्षेत्र म मल
ू भत
ू सिु वधा के अभाव म ग्रामीण युवक
का शहर म पलायन कृिष िवकास की सबसे बड़ी बाधा है ।32 2004 म िकसान के िलए
गिठत रा ट्रीय आयोग (National Commission on Farmers) ने भी इस बात की
िसफािरश की थी िक कृिष हे तु रा ट्रीय नीित को आकषर्क एवं कृषक के िहत को यान म
33
रखकर बनाया जाये तभी िशिक्षत यव
ु क को कृिष करने हे तु प्रो सािहत िकया जा सकता है ।

हिरत क्रांित प्रमख


ु त य

हिरत क्रांित का प्रारं भ 1960 का दशक

संबंिधत कृिष वैज्ञािनक एम.एस. वामीनाथन एवं नारमन ् बोरलॉग

कृिष मंत्री सी. सुब्रम यम

प्रधानमंत्री लाल बहादरु शा त्री एवं इि द्ररा गाँधी

प्रमख
ु फसल गेहूँ, चावल, वार, बाजरा, कपास, जट
ू एवं ग ना आिद।

लाभाि वत रा य हिरयाणा, पंजाब, पि चमी उ र प्रदे श, कनार्टक, तिमलनाडु एवं महारा ट्र

102
3.1.6 सतत ् हिरत क्रांित या िवतीय हिरत क्रांित (Sustainable Green Revolution or
Second Green Revolution)
उपरोक्त याख्याओं से हिरत क्रांित की सीमाओं से हम अवगत हो चक
ु े ह। वतर्मान समय म
हिरत क्रांित के कई द ु प्रभाव भी प्रितिबि बत होने लगे ह। ऐसी ि थित म आज कृिष के क्षेत्र
म िवतीय हिरत क्रांित की आव यकता है । वतर्मान संदभर् म कृिष के समक्ष परं परागत
चुनौितय के अितिरक्त कुछ नयी चुनौितयाँ उभरकर सामने आयी क्य िक पयार्वरण संरक्षण
को नजरअंदाज िकए िबना कृिष क्षेत्र की उ पादकता बढ़ाना है । कृिष उ पादन म बहुत अिधक
व ृ िध के बावजद
ू भी आज हम खा या न की कमी से जझ ू रहे ह। इसका प्रमखु कारण है
कृिष क्षेत्र के िनराशाजनक िन पादन, कृिष क्षेत्र की ि थर उ पादकता, कृिष क्षेत्र म िगरते हुए
सावर्जिनक िविनयोग आिद ने खा या न उ पादन के पक्ष को अ यंत कमजोर कर िदया है ।
ऐसी पिरि थित म हिरत क्रांित जैसी ही एक अ य क्रांित की आव यकता है ।

यह सही है िक हिरत क्रांित ऐसे समय म आयी जब इसकी काफी आव यकता थी और


इसने खा या न उ पादन म व ृ िध की भी। परं तु यह क्रांित सीिमत फसल, सीिमत िकसान
तथा सीिमत क्षेत्र के िलए ही थी। आव यकता इस बात की है िवतीय हिरत क्रांित म
उपरोक्त सीमाओं को दरू िकया जाय। इसिलए िवतीय हिरत क्रांित म पोषणीय िवकास
(Sustainable Development) को यान म रखा गया है । दस
ू री हिरत क्रांित कृिष क्षेत्र की
संपण
ू र् क्रांित है । िवतीय हिरत क्रांित की अवधारणा ए.पी.जे. अ दल
ु कलाम वारा दी गयी,
िजसे एम.एस. वामीनाथन ने सदाबहार क्रांित की संज्ञा दी है । यह संपण
ू र् कृिष िक्रयाओं से
संबंिधत ह जैसे खा या न के अलावा नकद फसल, पशुपालन, सअ
ु र पालन, मि यकी, रे शम
आिद।

िवतीय हिरत क्रांित की सफलता एवं कृिष क्षेत्र को लोकिप्रय तथा लाभदायक बनाने हे तु
34
विर ठ कृिष वैज्ञािनक एम.एस. वामीनाथन ने िन नांिकत सझ
ु ाव िदए ह —

 उ पादन एवं मन
ु ाफा को बढ़ाने के िलए 4C की संक पना (Conservation,
Cultivation, Consumption, Commerce)।

 मिहलाओं के िलए अवसर को बढ़ावा िदया जाए तािक वे वयं रोजगार के प म


कृिष क्षेत्र को अपनाए। इस िदशा म सरकार वारा चे नई म मिहला जैव प्रौ योिगकी
पाकर् की थापना की जा चक
ु ी है । इसके साथ ही 2010-11 के बजट म ता कािलक
िव मंत्री प्रणव मख
ु जीर् वारा ग्रामीण िवकास मंत्रालय के त वाधान म मिहला
िकसान सशक्तीकरण पिरयोजना की शु आत भी की जा चक
ु ी है ।

103
 भारतीय कृिष अनुसध
ं ान पिरषद वारा, दे श के िविभ न भाग म कृिष प्रणाली एवं
मौसम पैटनर् के आधार पर, 127 कृिष जलवायु उपक्षेत्र म क्लाइमेट िर क मैनेजमट
िरसचर् एवं एक्सटशन सटर की थापना।

 भारतीय अंतिरक्ष एवं अनुसध


ं ान पिरषद की सहायता से ग्राम संसाधन के द्र (Village
Resource Centre) की थापना जो सैटेलाइट कनेक्शन वारा 127 कृिष जलवायु
उपक्षेत्र से जड़
ु ा हो।

 इन 127 कृिष जलवायु उपक्षेत्र को रा ट्रीय मानसन


ू िमशन से जोड़ना।

 िविभ न मौसम संभावनाओं को यान म रखकर क यट


ू र अनक
ु रणीय बीज एवं
अनाज बक की थापना।

 प स िवलेज : माँग एवं पूितर् के अंतर को कम करने के िलए एम.एस. वामीनाथन


िरसचर् फाउ डेशन वारा तिमलनाडु के पुडुकोटाई एवं रामनाथपूरम ् िजले म प स
िवलेज की थापना की गयी है । 2011-12 के के द्रीय बजट म 60 हजार प स
िवलेज थापना करने के िलए 380 करोड़ का बजटीय आबंटन िकया गया है ।

 मद
ृ ा वा य उ नयन के िलए जैिवक व भौितक सू म त व को उपल ध कराना
ज री है । अतः रासायिनक उवर्रक के साथ-साथ जैिवक व क पो ट खाद के उपयोग
िकए जाने की भी आव यकता है ।

 वषार् आधािरत क्षेत्र म जहाँ भी िसंचाई यव था का अभाव है , वहाँ िटकाऊ जल


संरक्षण प्रणाली िवकिसत िकए जाने की आव यकता है , तािक वहाँ शु क कृिष के
वारा बेहतर उ पादन प्रा त िकया जा सके।

 रे न वाटर हावि टं ग (Rain Water Harvesting) को अिनवायर् बनाने की आव यकता


है , साथ ही जल के कुशल उपयोग के िलए ग्राम सभाओं को ‘जल पंचायत ’ के प म
सशक्त बनाना होगा।

 भारतीय कृिष म सं थागत सम याओं मख्


ु यतः भिू म सध
ु ार की िदशा म िवशेष प्रयास
िकए जाने की आव यकता है तािक कृिष िनवेश को प्रो साहन िमल सके।

 ऋण सध
ु ार की िदशा म पहल करने पड़गे, साथ ही छोटे व सीमांत िकसान को कृिष
िवकास हे तु आव यक सहायता भी उपल ध करानी होगी। भारत म लघु व सीमांत
िकसान 80 प्रितशत से भी अिधक ह, जो हिरत क्रांित के लाभ से वंिचत ह। अतः
उ ह िरयायती दर पर ऋण उपल ध कराना तथा उ ह सहकारी कृिष हे तु प्रो सािहत
करना ज री है । इस हे तु उनम सशक्त नेत ृ व को प्रो साहन िदए जाने की भी
आव यकता है ।

104
 लघु व सीमांत िकसान के िलए कृिष उ पादकता बढ़ाने के साथ-साथ खेत म तथा
खेत से बाहर वैकि पक रोजगार को भी प्रो साहन दे ना आव यक है ; िजनम काम के
बदले अनाज, ‘मनरे गा’ (MGNREGA) जैसे रोजगार कायर्क्रम शािमल ह।

 कृिष प्रसं करण के वारा ग्रामीण क्षेत्र म िविभ न रोजगार उपल ध कराने के प्रयास
आव यक है । इसके साथ ही कृिष आधािरत उ योग को बढ़ावा दे ने की आव यकता
है ।

 कृिष को भी वे सिु वधाएँ िमले जो उ योग को िमलती है । उ ह बाजार से संब ध


िकया जाए। इस संबंध म संिवदा कृिष (Contract Farming) तथा कृिष आिथर्क क्षेत्र
(A.E.Z.) इस िदशा म मह वपूणर् प्रयास हो सकते ह।

 कृिष म वैज्ञािनक ज्ञान एवं जमीनी तर पर उसके कायार् वयन के बीच के अंतर को
कम करना होगा। कृिष िवज्ञान के द्र को मजबत
ू बनाना होगा, साथ ही यह भी ज री
है िक प्र येक पंचायत म एक मिहला व एक पु ष को कृिष िवज्ञान प्रबंधक िनयक्
ु त
िकया जाए तथा िकसान के अिधकार के बारे म संपूणर् जानकारी िदया जाए।

उपरोक्त प्रकार के सझ
ु ाव को अपनाकर िवतीय हिरत क्रांित को सफल बनाया जा सकता है
तथा खा या न एवं उ योग के िलए कृिषगत क चे माल की सम या को हल िकया जा
सकता है । डॉ. वामीनाथन ने साथ ही साथ ‘लैब टू लै ड प्रदशर्न’ कायर्क्रम पर भी बल िदया
है तािक िस धांत को यवहार म बदला जा सके और िम टी म उपयोिगता के आधार पर ही
खाद का प्रयोग िकया जा सके। संयुक्त रा ट्र जनसंख्या एजसी के एक आंकलन के अनुसार
2025 तक िव व की जनसंख्या 8 अरब तक पहुँचने का अनुमान है । ऐसी ि थित म नारमन
बोरलॉग के अनस
ु ार हिरत क्रांित की सफलता अ पकािलक सािबत हो सकती है यिद भयानक
प से बढ़ती हुई जनसंख्या को नहीं रोका गया, क्य िक भारत जैसे िवकासशील दे श म ही
जनसंख्या व ृ िध दर यादा है ।

3.1.7 अ यास प्र न

1. हिरत क्रांित क्या है ? इसके प्रमख


ु िवशेषताओं का वणर्न कर।

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..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................

105
2. हिरत क्रांित के आिवर्भाव के उ रदायी ता कािलक एवं ऐितहािसक कारक को िचि नत
कर।

..........................................................................................................................
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..........................................................................................................................

3. हिरत क्रांित के प्रभाव पर िवचार कर।

..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................

4. क्या हिरत क्रांित ने भारतीय राजनीित को नया आयाम प्रदान िकया? अपने श द म
मू यांकन कर।

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..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................

5. हिरत क्रांित की सीमाएँ क्या ह? क्या िवतीय हिरत क्रांित या सतत ् हिरत क्रांित के
वारा इसे दरू िकया जा सकता है ?

..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................
..........................................................................................................................

3.1.8 संदभर् सच
ू ी

िवपन च द्र, मद ु ा मुखजीर् एवं आिद य मुखजीर् (2009), आजादी के बाद का भारत, िद ली
ृ ल
1

िह दी मा यम कायार् वयन िनदे शालय, िद ली िव विव यालय, िद ली, प.ृ 12


2
िवनीत कुमार िस हा (2014), ‘अथर् यव था एवं समाज’ अभय प्रसाद िसंह (सं.) भारत म
उपिनवेशवाद, नई िद ली, ओिरयंट लैक वान, प.ृ 53
3
वही, प.ृ 55

106
4
Nanavati, B. Motilal and J.J. Anjaria, (1970), Indian Rural Problem, Table 1,
p.39
5
िम एवं पुरी, (2011), ‘भारतीय अथर् यव था’ (तेरहवाँ सं करण), मुंबई, िहमालय प्रकाशन, प.ृ
48-49
6
भारत (2012), सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार, प.ृ 915
7
www.Swapsushias.blogspot.in/2009/08 down/dated on 16/10.2014
8
Norman E. Borlaug, (2011), 'The Green Revolution : Past Success and Future
Challenges', in Think India Quarterly, Volume 14, No. 3, New Delhi, p. 53
9
www.agropedia.iitk.ac.in/content/....downloadedon 16/10.2014
10
Result of Diet Surveys in India, 1935-48, (1951), Special Report Series No. 20,
New Delhi, Indian Council of Medical Research, , p. 13
11
A.K. Chakarvarti, (1970), 'Foodgrain Sufficiency patterns in India', Geographical
Review, Vol. 60, p. 209
12
S.P. Sinha, (1965), Indian Agriculture: Its fluctuating fortunes, Allahabad : Kitab
Mahal, p. 64.
13
A.K. Chakravarti, Sep. (1973), Green Revolution in India' in 'Annals of the
Association of American Geographers', Vol. 63, No. 3, Pp. 320
14
W.C. Hendix, J.J. Naive, and W.E. Adams, (1967-68 to 1970-71), 'Accelerating
India food Grain production', Foreign Agricultural Economic Report No. 40
(Washington : Department of Agriculture, Economic Research Service, 1968),
p.7.
15
Government of India, Directorate of Economics and Statistics, Area under High
yielding varieties programme (H.V.P.) All India (1966-67 and 1968-69, New
Delhi, India : Ministry of Food and Agriculture, mimeographed 1969, Statesman I
and II.
16
R.W. Comings, (1970), 'Seed production in India' in A.H. Banting, (ed.), Change
in Agriculture, New York : Praeger pp. 137-145.
17
A.K. Chakravarti, (1970), op.cit, p. 324
18
Government of India (1970), Census Atlas, Census of India 1961, Vol. I part 9,
Delhi, India : The Manager of publications, p. 153
19
एस.एन. लाल एवं एस.के. लाल, (2014), भारतीय अथर् यव था: सवक्षण तथा िव लेषण,
इलाहाबाद : िशवम ् पि लशसर्, प.ृ 4: 12

107
20
James H. Bowlware, (1970), Brief on Indian Agriculture, (New Delhi, India: Office
of the Agriculture Attache, American Embassy), p. 28.
21
. लाल एवं लाल, (2014), उपरोक्त, प.ृ 4:13
22
www.banks-India.com/banking news...downloaded on 17/10/2014
23
John Harris, (2014), 'Class and Politics' in Niraja Gopal Jayal and Pratap Bhanu
Mehta (eds.), The Oxford Companion to Politics in India, New Delhi : Oxford
University Press, p. 145
24
Norman, E. Brolaug, (2011), op.cit., p. 56
25
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Bhanu Mehta (eds.), The Oxford Companion to Politics in India, New Delhi:
Oxford University Press, p. 145\
26
लाल एवं लाल, (2014), उपरोक्त, प.ृ 4:24
27
www://hi.wikipedia.org/s/77kg...downloaded on 20/9/14
28
Partha Chatterjee, (2014), 'The State' in Niraja Gopal Jayal and Pratap Bhanu
Mehta (eds.), The Oxford Companion To Politics in India, New Delhi: Oxford
University Press, pp. 4-5
29
Sudha Pai, (2014), 'Farmers Movement' in Niraja Gopal Jayal and Pratap Bhanu
Mehta (eds.), The Oxford Companion to Politics in India, New Delhi: Oxford
University Press, p. 394.
30
Ebid., p. 395
31
D.N. Dhanagare (1987), Green Revolution in India in Economic and political
weekly, Vol. XXII, Nos. 19, 20 and 21, p. 138
32
M.S. Swaminathan, (2011), 'Rio+20: Green Econmic with Inclusive Growth' in
Think Idia Quarterly, No. 14, Vol. 3, p. 7
33
Ebid, p. 7
34
Ebid., pp. 8-33

108
इकाई-3

पाठ 2 — भारत म कृिष संकट : कृषक पर नव-उदारवादी आिथर्क


सुधार का प्रभाव
अंजनी कुमार
अनुवादक : सिृ ट

3.2 संरचना

3.2.1 पिरचय

3.2.2 वतंत्रता के उपरांत का य

3.2.3 ब्रेटन वु स एवं गहन आिथर्क िवसजर्न

3.2.4 सामािजक-सां कृितक पिर य

3.2.5 िन कषर्

3.2.6 अ यास प्र न

3.2.7 स दभर् सच
ू ी

3.2.1 पिरचय

भारत म नव-उदारवादी सध
ु ार का अ ययन आज के पिर य म आव यक हो गया है क्य िक
दे श भर म कृषक आ मह याओं को लेकर यापक संत्रा त है । अिधकांश अ ययन पिरवितर्त
राजनीितक अथर् यव था के आलोक म इन आ मह याओं पर िवचार-िवमशर् करते ह। वे
आ मह या के मख्
ु य कारण के प म ऋण पर यान किद्रत करते ह। य यिप, एक यापक
िव लेषण म यापक सामािजक-सां कृितक एवं राजनीितक प्रथाओं की सू म भेद को यान
म रखा जाना चािहए। भारतीय अथर् यव था के नव-उदारीकरण के साथ, 1990 के दशक के
प्रारं भ से, एकजट
ु ता एवं सामद
ु ाियक जड़
ु ाव के िलए थान समा त हो गए ह। अलगाव के
कई प प्रचलन म आ गए ह, िजसके पिरणाम व प यापक तर पर वैयिक्तकरण हुआ है ।

यहाँ हम यान दे ना चािहए िक आ मह या करने म सि मिलत कृषक ऐितहािसक प से


हािशए के समद
ु ाय से रहे ह, जहाँ उनके जीवन म ऋण एक सामा य घटना रही है ।
औपिनवेिशक काल और वतंत्रता के प चात ् के दोन चरण म कृषक की अिनि चतता को
इस अंतिनर्िहत धारणा के साथ पढ़ा जाना चािहए िक तथािप पूवर् के समय म भी
अिनि चतता उपि थत थी, प्राय: समद
ु ाय वयं भौितक एवं मानिसक वा य की

109
आव यकताओं के िलए सरु क्षा कवच के प म कायर् करता था। नव-उदारवाद ने उसी आधार
पर आघात िकया है , िजसके पिरणाम व प यापक िनराशा और िवसजर्न हुआ है ।

कृिष क्षेत्र सदै व भारतीय अथर् यव था की रीढ़ की ह डी रहा है । औपिनवेिशक शासन के


समय से पूव-र् सध
ु ार यग
ु तक, इस क्षेत्र ने मह वपूणर् उपाय से योगदान िदया है । िब्रिटश
शासन के समय म जब अथर् यव था के अ य सभी क्षेत्र संकट म थे, समाज के प्र येक वगर्
के िलए यह अंितम उपाय था। तथािप, िब्रिटश शासन ने इस क्षेत्र म बमिु कल कोई बड़े तर
पर सध
ु ार दे खा था। वा तव म कृिष की ि थित अथर् यव था के िकसी भी अ य क्षेत्र की
तल
ु ना म अिधक गंभीर थी। न केवल शोषण और िन कषर्ण अपनी पराका ठा पर था, जाित,
धमर् और िलंग के आधार पर भेदभाव ने इस क्षेत्र को िकसी भी अ य की तल
ु ना म अिधक
कमजोर बना िदया। अंग्रेज ने पण
ू र् प से एक िभ न भिू म प्रणाली की शु आत की िजसके
बोझ के अंतगर्त कृषक को न केवल भारी कराधान के िवषय म कुचल िदया गया था, िजसे
उ ह प्र येक फसल के प चात ् भग
ु तान करने के िलए मजबरू िकया गया था, अिपतु कई
अ य िवशेषािधकार भी थे जो जमींदार और साहूकार ने उनसे िनकाले थे।

औपिनवेिशक सरकार का समय के दौरान, कृिष क्षेत्र म िकसी भी प्रकार के सध


ु ार के
प्रित औपिनवेिशक रा य की पूणर् उदासीनता, कठोर और समय-समय पर जमींदार वारा
लगान की जबरन वसल
ू ी, िसंचाई के िलए प्रकृित पर कृषक की पूणर् िनभर्रता, फसल की
िवफलता, ऋण कृिष क्षेत्र म सामा य िवशेषता थी। लोग भख
ू , भख
ु मरी, बीमािरय से मरे ,
िफर भी इतनी बड़ी संख्या म कृषक की आ मह या का िवषय मिु कल से ही सामने आया।

3.2.2 वतंत्रता के उपरांत का य

वतंत्रता के प चात ् के दौर म भी, िवकास एवं आधुिनकीकरण के अपने सभी वाद के
बावजद
ू , कृिष क्षेत्र को संकट से मक्
ु त नहीं िकया गया था। तथािप भारतीय रा य-भिू म सीमा
पर कानून बनाकर; जमींदारी प्रथा को समा त करना; धन उधार और िबचौिलय पर अंकुश
लगाना; कृिष के िवकास की िनगरानी के िलए योजना आयोग की शु आत-कृषक की ि थित
म सध
ु ार करने का प्रयास, अभाव और असमानताएँ बनी रहीं। कृषक के जीवन म आने वाला
दै िनक संकट केवल िवशेषताओं को पिरवितर्त करता है , िवषय-सच
ू ी को नहीं। यह प ट है
िक भिू म सध
ु ार भारतीय रा य के िलए एक बड़ी िवफलता रही। भिू म सध
ु ार का पण
ू र् उ दे य
जो िक उ नत कृिष उ पादन के मागर् से बाधाओं को दरू करना और कृिष यव था के भीतर
शोषण और सामािजक अ याय के सभी त व को समा त करना था, एक दरू का सपना बना
रहा। सध
ु ार भिू म जोतने वाले के िलए सरु क्षा प्रदान करने और ग्रामीण जनसंख्या के सभी
वग को ि थित और अवसर की समानता सिु नि चत करने के िलए थे, तथािप हिरत क्रांित,
एक प्रभाव तक, कृिष उ पादकता की ि थित म उ लेखनीय पिरवतर्न और Bullock

110
Capitalism के िवकास का कारण बनी। कुछ क्षेत्र म, कृषक की समग्र िचत्रण अभी भी
दब
ु ल
र् था।

वतंत्रता से 1990 के दशक तक रा य ने कृिष क्षेत्र के साथ िकस प्रकार िवचार-िवमशर्


की, यह समझकर ि थित को उ म ढं ग से समझा जा सकता है । तथािप, वतंत्रता के
प चात ्, भारतीय रा य ने सामािजक याय और आिथर्क पुनिवर्तरण पर िवचार-िवमशर् के
िलए कुछ समाजवादी प्रविृ य को आ मसात िकया, िक तु वा तव म िनजी पँज
ू ी के प्रित
इसकी प्रितब धता बरकरार रही। रा य समाजवादी वेश म पँज
ू ीपितय के िहत को बढ़ावा दे
रहा था। चँ िू क दे श म बज
ु आ
ुर् रा य पर हावी होने की ि थित म नहीं थे और कई अ य
प्रमख
ु वगर् थे िजनके िहत पँज
ू ीपित वगर् से टकराते थे, भारतीय रा य ने समाजवादी चिरत्र
का मख
ु ौटा पहनने और िनजी पँज
ू ी के िहत को बढ़ावा दे ने की माँग की। पाथार् चटजीर् जैसे
िव वान इसे पँज
ू ी के प्राचीन संचयन को सिु नि चत करने के िलए भारतीय रा य वारा
आ मसात की गई िनि क्रय क्रांित की पिरयोजना के प म मानते ह। चटजीर् के अनस
ु ार,
िनयोिजत िवकास भारतीय रा य वारा पँूजीवादी िवकास को बढ़ावा दे ने और पोिषत करने के
िलए अपनाई गई एक सू म रणनीित थी। भारतीय रा य ने ‘रा ट्र के िवकास’ के एक
आिधप यपण
ू र् िवचार का िनमार्ण करके असंख्य तरीक से पँज
ू ी के प्राचीन संचयन का कायर्
िकया। बड़े कारखान और उ योग के साथ-साथ बांध बनाने के उ दे य से भिू म के बड़े भाग
का अिधग्रहण िकया गया था। िनजी पँूजी म प्रारं िभक िनवेश पँज
ू ी और तकनीकी जानकारी
दोन का अभाव था, इसिलए रा य ने वयं ही कायर्भार संभाला। योजना आयोग जैसी
सं थाओं, िज ह संिवधान के दायरे से बाहर रखा गया था, ने इस उ दे य को पूरा करने म
मह वपूणर् भिू मका िनभाई। इस सं था के मा यम से भारी और पँूजी प्रधान सावर्जिनक
उ योग के िनमार्ण के िलए भारी मात्रा म धन खचर् िकया गया था, िज ह बाद म िनजी
पँूजी म थानांतिरत कर िदया गया था। योजना आयोग ने यह भी िकया िक समाज के
िविभ न वग से उभरी िविश ट माँग को, रा य पर, अथर् यव था के क्षेत्र म आरोिपत िकया
जाए और इस प्रकार कृिष क्षेत्र के ढाँचागत िवकास की उपेक्षा की जाए।

रा य ने अपनी सापेक्ष वाय ता के मा यम से िजस क याणवाद का प्रचार िकया, वह


एक ओर प्रभावशाली बल के म य और दस
ू री ओर प्रभावशाली बल एवं िनधर्न और कमजोर
वग के म य एक समझौता था। मख्
ु य उ दे य पँूजीवादी िवकास को बढ़ावा दे ना ही रहा।
उस ि थित को दे खते हुए, कुछ संशोधन के साथ कृषक की ि थित अपिरवितर्त रही। पहली
दो योजनाओं के प चात ्, योजना आयोग का यान बड़े और भारी उ योग के िवकास की ओर
चला गया। हिरत क्रांित की शु आत तक उ पादकता बढ़ाने का व न साथर्क नहीं हुआ था।

111
1960 के दशक के म य तक भारत खा या न के िलए गहन संकट म था। संयुक्त
रा य अमेिरका वारा समिथर्त पी एल 480 कायर्क्रम ने िकसी तरह भारत को कुछ वष तक
बनाए रखा, िक तु भारत िजस ि थित म फंस गया वह गंभीर खा य कमी की थी िजसके
िलए गहन संकट समाधान की आव यकता थी। इंिदरा गाँधी के शासन के दौरान ही हिरत
क्रांित की शु आत हुई थी और भारत को पयार् त भोजन बनाने का प्रयास िकया गया था।
तथािप, हिरत क्रांित के िव ध आलोचना यह है िक हिरत क्रांित का बड़ा लाभ िनधर्न के
बजाय धना य कृषक को िमला। उपयोग के िवषय म भेदभाव; प्रौ योिगकी और संसाधन
की पहुँच; और हिरत क्रांित के फल की क्षेत्रीय एकाग्रता, भारतीय कृिष के इस आनंदमय
चरण की सीमाओं को दशार्ती है । य यिप भारतीय खा य िनगम भंडारण सिु वधाओं म खा य
भंडार की मात्रा बढ़ गई, और सावर्जिनक िवतरण प्रणाली जैसी सं थाओं ने खा या न और
अ य आव यक व तुओं के िवतरण का दावा िकया िक तु भोजन, भिू म के िलए संघषर् जारी
रहा। नक्सलबाड़ी आंदोलन जो पि चम बंगाल म उभरा, और बाद म आंध्र प्रदे श और िबहार
तक िव तत
ृ हो गया, छोटे तर पर और भिू महीन कृषक की ि थित की याख्या करता है ।
वे दमनकारी रा य और यव था के िव ध िवद्रोह म उठे , िजसने उ ह जीवन की आधािरक
सिु वधाओं से भी वंिचत कर िदया। परं तु नक्सलबाड़ी आंदोलन के अितिरक्त, कई कृषक और
कृषक आंदोलन भी सामने आए, िज ह ने रा य पर क याणकारी नीितय म व ृ िध और
उनके उ म कायार् वयन के संबंध म सु श प से माँग की। रा य पर ये मांग सदै व कृषक
के जीवन तर म व ृ िध के अवसर को बढ़ाने, उनके जीवन तर को बढ़ाने की माँग के
अनु प होती ह।

राजीव गाँधी के वष के दौरान, िनधर्नता उ मल


ू न कायर्क्रम , कायर् के िलए रा ट्रीय
भोजन आिद के िवषय म अिधकतम क याण था। तथािप, कृषक की ि थित एक िनि चत
िबंद ु से आगे नहीं सध
ु री। वतंत्रता के प चात ् उनके जीवन म कुछ गितशीलता आई, जैसे ही
रा य ने कृिष म कराधान को समा त कर िदया, कृषक के म य भोजन की प्रित यिक्त
खपत म व ृ िध हुई, परं तु इन सभी नीितय के प्रमख
ु लाभाथीर् धना य और म यम कृषक
थे।

उनके जीवन के िव व म नग्न अि त व का प्र न अभी भी प्रासंिगक था। सध


ु ा पाई जैसे
िव वान का तकर् है िक शोषण और अिधक शीघ्र हो गया और उ र- वतंत्र भारत म एक क्रूर
पूंछ बन गई, िवशेषकर जब दिलत ने भिू म पर दावा करना और उस पर अिधग्रहण करना
शु कर िदया। शोषक अब ऊँची जाित म नहीं रह गया अिपतु म य जाितय म भी रहा
िज ह ने दिलत के िव ध हिथयार उठाए। इस प्रकार, यह क पना िक वतंत्र प चात ् के
बाद कृषक का क याण हुआ, एक खोखली बयानबाजी थी। चौधरी चरण िसंह और महद्र िसंह
िटकैत जैसे कृिष नेताओं के नेत ृ व म कई कृषक आंदोलन के उपरांत, कृषक की ि थित

112
अपिरवितर्त रही, िजसे भारत ने 1970 और 1980 के दशक के अंत म दे खा। रा य ने
अपनी क याणकारी नीितय के अंतगर्त जो टुकड़ा-टुकड़ा लाभ िदया, वह कृषक तक अिधक
नग य मात्रा और गण
ु व ा म पहुँचा।
इस प्रकार, औपिनवेिशक और उ र-औपिनवेिशक चरण के दौरान भी कृषक की ि थित
िनधर्न, ऋण, उ च जाितय और वग और म यम कृषक वारा शोषण म बरकरार रही।
हाल के िदन म जो पिरवितर्त हो गया है , वह कृषक की वह
ृ त तर पर आ मह याओं का
कारण बना। ऐसे म आ मह याओं को कैसे पढ़ना चािहए? क्या आ मह या के िवषय िकसी
सचेत एजसी वारा िवरोध का कायर् करते ह या आ मह या के दौरान वयं एजसी ही प्र न
के घेरे म है ? सध
ु ार के प चात ् भारत म आ मह याओं का पता लगाना आज भारत म
कृषक की अिनि चतता को समझने का एक यवहायर् तरीका है ।

इन आ मह याओं के राजनीितक आिथर्क प टीकरण के अितिरक्त, आ मह याओं के


िवषय का मू यांकन करते समय सां कृितक पहलू का भी पता लगाने की आव यकता है ।

ऐितहािसक प से कृषक के म य आ मह या एक सामा य घटना नहीं रही है । य यिप


संकट और किठनाई पूरे इितहास म बनी रही, हाल ही म एक सामिू हक घटना के प म
आ मह याएँ सामने आईं। नव-उदारवादी िवचारधारा और स पूणर् भारत म इसके वह
ृ त तर
पर संचालन, सध
ु ार और नवाचार के मा यम से, सामद
ु ाियक मू य और सामािजक सरु क्षा
म कमी आई है , जो संघष और एकजट
ु ता के साझा थान
से उ प न हुई है , जहाँ
आजीिवका और नग्न अि त व को सिु नि चत करने के िलए दै िनक लड़ाई का आधार है ।
सहानुभिू त और सामिू हक िचंताओं पर अिधग्रहण कर िलया है । नव-उदारवादी िवचारधारा न
केवल आिथर्क सीमाओं म या त है , अिपतु यह सामािजक और सां कृितक पहलू पर भी
आक्रमण करती है और वह
ृ त तर पर अि त व संबंधी संकट उ प न करती है । भारत म
कृषक इस महामारी का िशकार हो चुके ह। आिथर्क शोषण सदै व कृषक के जीवन की दिु नया
म एक कहावत रही है , िवशेषकर वे जो इन िदन आ मह या कर रहे ह, िक तु जो बात उ ह
इस कृ य को करने के िलए मजबूर कर रही है , वह है सामािजक और सां कृितक ि थरता
की लट
ू । भले ही िनधर्न कृषक सदै व उपि थत थे, एक सामंती यव था के साथ-साथ
बहुप्रतीिक्षत अधर्-सामंती समीकरण के अंतगर्त, संरक्षण के िलए प्रदान िकया गया, जो
सामा यत: कृषक को उनकी आधािरक यन ू तम आव यकताओं को पूणर् करने म सहायता
करता था। इसिलए ग्राम समाज म भोजन, आ य और व त्र, कभी भी गंभीर प से
यिक्तवादी िवषय नहीं था। सामंती यव थाओं के राज व सज
ृ न पर हमला करने वाले
आिथर्क सध
ु ार के अंतगर्त यह समीकरण समा त हो गया। जबिक रा य केवल दमन की एक
पारं पिरक प्रणाली को सही ढं ग से संबोिधत कर रहा था, इसने शायद ही सामािजक सरु क्षा के
िलए प्रदान िकया जो इस संक्रमण के िलए अ यंत आव यक थी। इस प्रकार, पुरानी बुराई ने

113
अिधक वैि वक तर पर ि थत और गंभीर संकट का मागर् प्रश त िकया। कृषक के म य
आ मह याओं को पढ़ते हुए इन सभी पहलओ
ु ं का मू यांकन करने की आव यकता है ।

3.2.3 ब्रेटन वु स और गहन आिथर्क िवसजर्न

राजधानी को िवकिसत करने के िलए भारतीय रा य की प्रितब धता सदै व अपने प्राथिमक
एजडे म रही है , िक तु रा य वारा पँज
ू ी को दी जाने वाली सहायता 1990 के दशक से
पहले नहीं की गई है । यह मख्
ु य प से उस सामािजक अनुबंध के कारण था िजसके मा यम
से रा य की वतंत्रता प्रा त की गई थी। 1990 का दशक एक वाटरशेड बन गया क्य िक
उस समय सामािजक अनुबंध म एक नया गठन हुआ था...पँज ू ी ने पिरपक्वता प्रा त की और
भारतीय रा य ने खुले तौर पर इसे अपनाया। ब्रेटन वु स समझौते के प चात ्, समाजवाद की
बेिड़य को फक िदया गया और नव-उदारवादी नीितय ने रा य के चिरत्र को पिरभािषत
करना शु कर िदया। बाढ़ के वार खुले थे िजसने एक बार िफर नव औपिनवेिशक शिक्तय
को रा ट्र के संसाधन और उसके लोग का शोषण और लट
ू करने की अनुमित दी।
बाजार के खुलने के साथ, न केवल एक बार कृषक को दी जाने वाली आिथर्क सहायता
समा त हो गई, अिपतु भारत के कृषक, िजनकी पिरपक्वता अभी शेष थी, वैि वक प्रित पधार्
म आ गए। फसल प धित म मह वपूणर् पिरवतर्न हुआ। नकदी फसल के उ पादन की ओर
यान अ यिधक बढ़ा, िक तु इसके साथ भारी मात्रा म जोिखम जड़
ु ा हुआ था। रा य के
समथर्न के अभाव और आगत की उ च लागत के साथ-साथ मानसन
ू की कमी के कारण
फसल की िवफलता, रोग, संिदग्ध बीज, कीटनाशक और अ य उवर्रक के उपयोग के बारे म
जानकारी की कमी ने कृषक की ि थित को अिनि चत बना िदया। ऋण की औपचािरक
सं थाएँ चरमराने लगीं और आगत की बढ़ती लागत के साथ, कृषक को अनौपचािरक ोत
से उ च याज दर पर ऋण लेने के िलए मजबूर होना पड़ा, िजससे ऋण जाल म फंस गया।
महारा ट्र, पंजाब, केरल और आंध्र प्रदे श जैसे रा य म आ मह या का मू यांकन करने वाले
कई िव वान भारत म कृषक की आ मह या का कद्रीय कारण ऋणग्र तता को बताते ह।

य यिप भारत म कृषक आ मह या के िलए एक मह वपूणर् कारक के प म ऋणग्र तता


को िज मेदार ठहराया जा सकता है , जो कागज़ के िवपरीत यह है िक आ मह या करने वाले
अिधकांश कृषक समाज के िन न तबके से आते ह। ऋण-माफी उनके िलए कोई नई बात
नहीं है । उनम से अिधकांश अनािद काल से भारी ऋण म डूबे हुए ह। आ मह याओं को पढ़ते
समय िनि चत प से कुछ अ य कारक भी ह िजनका पता लगाने की आव यकता है ।

3.2.4 सामािजक-सां कृितक पिर य

नव उदारवाद के उदय के साथ भारतीय समाज म सामािजक और सां कृितक प्रथाओं म कुछ
मह वपूणर् पिरवतर्न हुए ह। ऐसा लगता है िक परं परा एवं आधुिनकता के म य वं वा मक

114
संबंध अ य हो गए ह और आधुिनकीकरण ने पँज
ू ीवादी िवकास के िवचार के साथ एक
यापक पा यक्रम ले िलया है । इससे एक आयामी यिक्त का िवकास हुआ है जो असं कृत
आिथर्क िहत और प्रथाओं म फंस गया है । समुदाय की अवधारणा टूट रही है तथा ज्ञान और
प्रथाओं के सामा य ोत जो पािरि थितकी के अनु प थे, लु त हो रहे ह। इसकी अिभ यिक्त
कृषक वगर् म अिधक प ट प से दे खी जा सकती है । जबिक पहले जाित और वगर् सीमा से
परे कृिष प्रथाओं का सामा य ज्ञान हुआ करता था, इस तरह की समझ काम करना बंद कर
दे ती है । कृषक पूणर् प से बाजार आधािरत जानकारी पर िनभर्र ह। रा य की संगिठत
जानकारी के अभाव म, कृषक ने अपने खेत को प्रयोगशाला म पिरवितर्त िदया है । गण
ु व ा
तथा मात्रा दोन के संदभर् म इसके उपयोग की उिचत समझ के िबना बीज, उवर्रक,
कीटनाशक से जड़
ु े सभी प्रकार के प्रयोग के पिरणाम व प केवल इनपुट की लागत बढ़ रही
है , अिपतु कृषक को उनकी भिू म से प्रथक कर िदया गया है ।

अिधक िवशेषज्ञता और मशीनीकरण जो अिधक उ पादन करने के िलए कृषक के म य


प्रित पधार् के सु ढ़ त व के साथ उभरा है , कृिष समाज के सामिू हक पहलू को तोड़ रहा है
और इसे वैयिक्तकरण की ओर ले जा रहा है जहाँ स पण
ू र् लाभ पर एकािधकार करने का
प्रयास है । िजन क्षेत्र म आ मह या हुई है , वहाँ सामिू हक बंधन एवं एकजट ु ता म िनरं तर
िगरावट दे खी जा सकती है । कई िव वान अपने नव ृ ंशिवज्ञान वणर्न के मा यम से दे खते ह
िक कृषक आ मह या का भी अपमान के साथ संबंध है जो िपता, पुत्र, पित के प म अपनी
िज मेदारी िनभाने म असमथर्ता से उभरता है और उदाहरण के िलए, बेटी का िववाह, मत
ृ क
का अंितम सं कार करना। पहले समग्र प से समाज इन िज मेदािरय के िलए संसाधन म
व ृ िध करता था। सामािजक िव व म बढ़ते परमाणक
ु रण के साथ यिक्त को ऐसे कृ य को
करने की अपनी क्षमता पर छोड़ िदया जाता है । यह कृिष समाज म वह
ृ त तर पर उभरने
वाला गंभीर संकट िस ध होता है , िजसका कृषक के जीवन जगत पर गहन प्रभाव पड़ता है ।

चँ िू क आ मह या करने वाले अिधकांश कृषक िन न तर से आते ह, पार पिरक संचार


के इन थान को अव ध पाते हुए, इस सांझे अनभ ु व/ ज्ञान को एक िव वास के प म
पाते हुए, बाजार और उ च जाितय दोन से भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है , संरक्षण
का अभाव जो पूवर् म उपि थत था, गहरी प्रित पधार् अपने ही लोग के म य, जो ऋण की
पेशकश करते समय याज म भारी मात्रा म धन लेते ह और भग
ु तान करने म िवफल रहने
से अपमान होता है , भिू म से गहरा अलगाव होता है , ये सभी भी कृषक के म य एनोमी के
िवकास के िलए यापक तर पर आ मह या की ओर ले जाते ह।

115
3.2.5 िन कषर्

आिथर्क सध
ु ार ने िन संदेह कृषक वगर् के आिथर्क द:ु ख को बढ़ाया है , िक तु इसने
सामािजक-सां कृितक गितशीलता को भी पिरवितर्त कर िदया है िजससे गंभीर कृिष संकट
उ प न हो गया है । उस संकट का प्रमख
ु पहलू कृषक की आ मह या के प म प्रकट होता
है । अ ययन से पता चलता है िक कैसे नव-उदारवादी सध
ु ार के पहले चरण ने महारा ट्र,
तिमलनाडु, आंध्र प्रदे श, गज
ु रात के कृषक पर प्रितकूल प्रभाव डाला है । तथािप, ऐसा नहीं है
िक अ य रा य के कृषक कृिष संकट से अछूते ह। वे भी इसके िशकार ह। ये सामािजक-
सां कृितक और आिथर्क संरचना मक पिरवतर्न अ य रा य म शीघ्रता से हो रहे ह और उन
रा य के कृषक भी उतने ही अिनि चत ह। अिधक से अिधक लोग कृिष को अपने िवक प
के प म छोड़कर शहरी कद्र की ओर पलायन कर रहे ह। इससे अनौपचािरक क्षेत्र के आकार
म भारी व ृ िध हुई है । अिधकांश िमक जो समकालीन समय म आव यकता अथर् यव था
का भाग बनते ह, वे िकसी न िकसी तरह कृिष क्षेत्र से संबंिधत थे। खेती छोड़कर शहर म
जाने का उनका िनणर्य उनकी इ छा से नहीं, अिपतु मजबरू ी से आया है । यह एक गंभीर
िचंता का िवषय है िजसे रा य व समाज को सामिू हक प से उठाने और संबोिधत करने की
आव यकता है । कृिष क्षेत्र के आधािरक संरचना म सध
ु ार की त काल आव यकता है , िजसके
िलए सिक्रय रा य ह तक्षेप की आव यकता है । थानीय सरकार को सशक्त बनाने और
कृिष क्षेत्र म त या मक और यावहािरक पिरवतर्न करने की िज मेदारी स पी जानी चािहए,
जबिक रा य को रा ट्रीय तर की क याणकारी योजनाओं को सिु वधाजनक बनाने की
आव यकता है ।

3.2.6 अ यास प्र न

1. वतंत्रता के प चात ् कृिष की दशा का उ लेख कीिजए।

………………………………………………..………………………………………………..………………………………………………..………
………………………………………..………………………………………………..………………………………………………..………………
………………………………..………………………………………………..………………………………………………..………………………
………………………..………………………………………………..………………………………………………..………………………………

2. भारत म कृिष संकट के कारक का उ लेख कीिजए।

………………………………………………..………………………………………………..………………………………………………..………
………………………………………..………………………………………………..………………………………………………..………………
………………………………..………………………………………………..………………………………………………..………………………
………………………..………………………………………………..………………………………………………..………………………………

116
3. नव-उदारवादी नीित का कृिष पर क्या प्रभाव पड़ा?

………………………………………………..………………………………………………..………………………………………………..………
………………………………………..………………………………………………..………………………………………………..………………
………………………………..………………………………………………..………………………………………………..………………………
………………………..………………………………………………..………………………………………………..………………………………

3.2.7 संदभर् सच
ू ी

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118
इकाई-4

सामािजक आंदोलन
डॉ. संतोष कुमार िसंह
आनुवादक : काजल

4. संरचना

4.1 पिरचय
4.2 सामािजक आंदोलन क्या है ?
4.2.1 पुराना सामािजक आंदोलन
4.2.2 नया सामािजक आंदोलन
4.3 सामािजक आंदोलन पर िस धांत
4.4 भारत म सामािजक आंदोलन
4.4.1 आिदवासी, िकसान और िमक आंदोलन
4.4.2 दिलत और मिहला आंदोलन
4.4.3 पयार्वरण आंदोलन
4.5 िन कषर्
4.6 अ यास प्र न
4.7 बहु-िवक पीय प्र न
4.8 संदभर् सच
ू ी

4.1 पिरचय

सामािजक आंदोलन को सामािजक पिरवतर्न के प्रमख


ु घटक म से एक माना जाता है ।
सामािजक आंदोलन लोकतंत्र म मह वपूणर् भिू मका िनभाता है । यह जनता और सरकार के
म य एक कड़ी का काम करते है । समकालीन युग म, लोकिप्रय आंदोलन और राजनीितक
सिक्रयता ने स पूणर् िव व म एक िनणार्यक प ले िलया है । सामािजक आंदोलन थानीय
और रा ट्रीय सरकार पर दबाव बनाने के उपकरण के साथ-साथ जनता की एक उपकरण
आवाज के प म प्रितिनिध व करता है । िवकिसत दे श म अिधकांश सामािजक आंदोलन ने
नागिरक और राजनीितक अिधकार के प म दे खा है , जहाँ लोग ने समानता, वतंत्रता और
भेदभाव के िविभ न प से संबंिधत अिधकार को उठाया है ।

119
यूरोप म 18वीं और 19वीं शता दी के दौरान सामािजक आंदोलन श द ने गित पकड़ी है ।
यह वह दौर था जब यूरोप ने कई क्रांितयाँ और सामािजक उथल-पुथल दे खी है । यही वह दौर
था जब वैन के लोग अपने राजनीितक और लोकतांित्रक अिधकार की माँग करने लगे थे।
भारत ने 18वीं और 19वीं शता दी के दौरान सामािजक और राजनीितक सध
ु ार भी दे खे ह।
वतंत्रता के प चात ् के अितिरक्त भारत ने कई नागिरक, राजनीितक, पयार्वरण आंदोलन को
भी दे खा है ।

4.2 सामािजक आंदोलन क्या है ?

मव
ू मट श द की उ पि फ्रांसीसी श द ‘मोवॉइर’ से हुई है िजसका अथर् है ि थित पिरवतर्न।
ऑक्सफोडर् िडक्शनरी के अनुसार आंदोलन श द का अथर् है —“िकसी िवशेष व तु के िलए
यिक्तय के एक िनकाय के काय और प्रयास की एक ंख
ृ ला”। कालर् माक्सर् ने ऐितहािसक
आंदोलन के संदभर् म आंदोलन श द को गितिविध की एक ंख
ृ ला के प म िनयोिजत
िकया है और एक िवशेष व तु के िलए यिक्तय के एक िनकाय से प्रयास करता है
(िवलिकसन, 1972: 12)। यह एक सामिू हक अिभनेता के प म भी मानता है , जो उन
लोग के मा यम से बनता है जो वयं को सामा य िहत के िवषय के आधार पर मानते ह
और अपने सामािजक अि त व का मह वपूणर् भाग एक सामा य पहचान ( कॉट, 1992)
िनभाते ह। यह श द वाय ता, कानून या अनश
ु ािसत िस धांत के अनुसार लोग के समह

वारा वतंत्र कारर् वाई का भी प्रितिनिध व करता है ।

सामािजक आंदोलन एक प्रकार की सामिू हक िक्रया का प्रितिनिध व करता है । यह


मख्
ु यतः यिक्तय और संगठन के अनौपचािरक समह
ू के प म होता है । यह अिधकतर
िविश ट राजनीितक या सामािजक मु द पर आधािरत है । जैसा िक िसडनी टै रो (1994)
वारा उ लेख िकया गया है िक सामािजक आंदोलन सामा य उ दे य वाले लोग वारा
सामिू हक चन
ु ौती है और अिभजात वगर्, िवरोिधय और अिधकािरय के साथ िनरं तर बातचीत
म एकजट
ु ता है । सामािजक आंदोलन सामिू हक कारर् वाई का एक प है िजसका उ दे य
समाज के िवषय को उठाना और हल करना है ।

कैम न (1966: 788) के अनुसार सामािजक आंदोलन तब प्रारं भ होता है , जब एक


समह
ू के लोग बड़ी संख्या म एकित्रत होते ह और उपि थत सं कृित या सामािजक यव था
की िकसी ि थित को बदलने या समथर्न करने या िकसी समाज के भीतर िनयंत्रण की शिक्त
को पन
ु िवर्तिरत करने के िलए माँग करते ह। दस
ू री ओर, टी.के. ओमेन ने सामािजक आंदोलन
की कुछ िवशेषताओं को पिरभािषत िकया; एक आंदोलन अपने अभाव को कम करने और
याय सरु िक्षत करने के िलए एक समह
ू की ओर से सचेत प्रयास के साथ िवकिसत होता है ;
एक आंदोलन सामािजक संरचना म कारक वारा वातानक
ु ू िलत है ; एक आंदोलन शायद मख्
ु य

120
तंत्र है , िजसके मा यम से वंिचत वगर् एक िवचारधारा के अनु प अपनी शिक्त का प्रदशर्न
करता है या िशकायत की बुराइय को दरू करता है (पॉल 1990: 17-18)।

सभी क्रांितकारी या सध
ु ारवादी सामािजक आंदोलन नागिरक समाज के रक्षा मक,
आकि मक और लामबंदी चरण म मह वपूणर् िनमार्ण खंड प्रदान करते ह। रक्षा मक चरण
म, आंदोलन एक संभािवत नागिरक समाज की नींव के प म काम करते ह क्य िक उनके
सामिू हक कारर् वाई अिभयान के मा यम से, वे एक सहयोगी क्षेत्र की रक्षा करने का प्रयास
करते ह, िजसम घटक वतंत्र प से अपने मू य और िहत को अिधकािरय के सामने
यक्त कर सकते ह। उदीयमान चरण म, आंदोलन रा य वारा वीकृत वाय सावर्जिनक
बहस के दायरे का पोषण और िव तार करते ह और इस प्रकार नागिरक समाज की एक और
कद्रीय नींव की रक्षा करते ह। अंत म, लामबंदी के चरण म, अिधकािरय के साथ संवाद म
घटक के मू य और मानदं ड की अिभ यिक्त के प म, सामािजक आंदोलन शासन के
मानदं ड के िनमार्ण म भाग लेते ह। अंत म, नागिरक समाज के चार िनमार्ण खंड, सहयोगी
जीवन, सावर्जिनक बहस क्षेत्र, आिधप य मानदं ड, और एक वैध रा य, इसके अितिरक्त
नागिरक समाज के सं थागत चरण म जगह म ह। जैसा िक माकर् ि विलंग ने कहा है —

नागिरक समाज म िनिहत सामािजक आंदोलन तब उपि थत होते ह जब समाज के आधार


पर संघ , संगठन और सं थान का एक सामािजक प से मह वपण
ू र् नेटवकर् उपि थत होता
है — रा य और राजनीितक दल से वतंत्र; संसाधन और समथर्न के िलए लाभकारी क्षेत्र पर
िनभर्र नहीं होता है ; गरीब को संगिठत करने और उनकी िशकायत को यक्त करने म
सक्षम होता है ; रा य, पािटर् य , यापार, िवकास एजिसय और दाताओं के साथ अपने
िनवार्चन क्षेत्र की ओर से जनादे श के साथ बातचीत करने म सक्षम होता है ; और अपने
सद य और समथर्क को एक बातचीत के सौदे या कायर्क्रम म पहुँचाने की ि थित म सक्षम
होता है (ि विलंग 1990: 156)।

एक सामािजक आंदोलन म संगठन की यूनतम िडग्री, पिरवतर्न के प्रित प्रितब धता,


प्रकृित म सामिू हक और वतः फूतर् होना चािहए। समकालीन युग म, सामािजक आंदोलन का
िवकास औ योगीकरण और शहरीकरण के कारण िशक्षा और म की गितशीलता म व ृ िध के
िलए हुआ है । लोकतंत्रीकरण की प्रिक्रया के बढ़ने और दिु नया भर म लोकतंत्र के बढ़ने के
कारण सामािजक आंदोलन की संख्या म भी व ृ िध हुई है । सामािजक आंदोलन को दो
मह वपूणर् प्रकार म िवभािजत िकया जा सकता है । ये पुराने सामािजक आंदोलन और नए
सामािजक आंदोलन ह।

121
4.2.1 पुराना सामािजक आंदोलन

‘पुराना सामािजक आंदोलन’ श द आंदोलन के पारं पिरक प का प्रितिनिध व करता है । इनम


से अिधकांश पारं पिरक आंदोलन संसाधन और राजनीितक अिधकार के संघषर् से जड़
ु े थे।
औ योिगक क्रांित के दौरान, यूरोपीय दे श ने मजदरू वगर् के आंदोलन को दे खा है जबिक
उपिनवेश ने रा ट्रवादी आंदोलन दे खा है । दोन आंदोलन भेदभाव और शोषण से छुटकारा पाने
के मॉडल पर आधािरत थे। इस दौरान समाजवादी आंदोलन भी िवकिसत हुआ है , जो
समाजवादी रा य की थापना की कोिशश कर रहे थे।

रजनी कोठारी ने उ लेख िकया है िक भारत ने सामािजक आंदोलन और संसदीय


लोकतंत्र के िवषय पर लोग के बढ़ते असंतोष को दे खा है । उ ह ने कहा है िक रा य पर
अिभजात वगर् का वािम व हो रहा है और गरीब वगर् के िवषय को हल नहीं िकया जा रहा
है । इस कारण से भारत के अतीत की लोकतांित्रक यव था अब प्रभावी नहीं रह गई है और
गरीब लोग की आवाज सन
ु ी जा रही है । इस प्रकार, यह कहा जा सकता है िक पुराने
सामािजक आंदोलन अिधकतर वगर् और आिथर्क कारक पर आधािरत होते ह। यह औ योिगक
समाज का भी उ पाद है , िजसने दो वग —अमीर और गरीब का िनमार्ण िकया है । इसने
यापार और िमक संघ के गठन को भी दे खा है जो आज समाज म मजदरू और यिक्तय
के वर है । 19वीं शता दी के दौरान यूरोप और दिु नया के अ य भाग म यह दे खा गया है
िक लोग अिधकार की माँग कर रहे थे और सामािजक व आिथर्क भेदभाव के िव ध वर
को म अिधकार आिद के प म खोज रहे थे।

4.2.2 नया सामािजक आंदोलन

20वीं सदी के प्रारं भ म सामािजक आंदोलन की प्रकृित बदल गई है । नया श द नया


सामािजक आंदोलन िवकिसत हुआ है , जो 1960 और 1970 के दशक के प चात ् से िविभ न
यरू ोपीय और पि चमी समाज म िवकिसत हुए सामािजक आंदोलन के िविभ न प का
प्रितिनिध व करता है । ये आंदोलन आंदोलन के पारं पिरक तरीकसे बहुत िभ न ह,
अिधकांश पारं पिरक आंदोलन आिथर्क किद्रत जैसे िमक आंदोलन, हािलया आंदोलन आिद
पर आधािरत थे। क्लॉस ऑफे, एलेन टौरे न और जग
ु न
र् है बरमास जैसे िवचारक पारं पिरक
आंदोलन से संबंिधत थे। पो ट भौितकवादी क्षेत्र के साथ। नया सामािजक आंदोलन मल
ू प
से जीवन शैली, सं कृित, पयार्वरण और आिथर्क पिरवतर्न के िलए सावर्जिनक नीित म
िविश ट पिरवतर्न का प्रयास है । कुछ िस धांतकार के अनुसार नया सामािजक आंदोलन नए
म यम वगर् या सेवा क्षेत्र के पेशेवर के ऊतक पर आधािरत है । यह बौ िधक और ज्ञान
आधािरत आंदोलन से भी जड़
ु ा है ।

122
हालाँिक, पॉल बगल
ु े और ने सन िपचाड जैसे कुछ िवचारक ने नए सामािजक आंदोलन
के मॉडल पर सवाल उठाया। उनके अनुसार समकालीन युग म पारं पिरक आंदोलन अभी भी
मौजद
ू ह, जैसे िकसान आंदोलन, िमक आंदोलन आिद। अनुभवज य सा य की कमी के
कारण उ ह खरीदने की भी आलोचना की गई है । इसकी आलोचना इस िबंद ु पर भी की जाती
है िक नए सामािजक आंदोलन का संबंध वामपंथी आंदोलन से अिधक है । दस
ू री ओर, पॉल
बनर् ने ‘अपेक्षाकृत अ यवि थत’ के प म नए सामािजक आंदोलन की आलोचना की है ।
इसके अितिरक्त, नया सामािजक आंदोलन पयार्वरण आंदोलन और समलिगक अिधकार
आिद जैसे यापक पिरवतर्न को प्रा त करने के िलए िवरोध अिभयान की एक रणनीित
अपनाने की कोिशश करता है ।

4.3 सामािजक आंदोलन पर िस धांत

सामािजक आंदोलन को तीन अलग-अलग सै धांितक परं पराओं से दे खा जा सकता है , ये


माक्सर्वादी, उदारवादी और परं परावादी ह। सामािजक आंदोलन के िस धांत को औ योिगक
क्रांित और प्रबु धता के युग जैसे जॉन लोके थॉमस हॉ स और एडम ि मथ से पहचाना जा
सकता है । दख
ु ीर्म ने 19वीं शता दी से सामािजक आंदोलन को बौ िधक वातावरण की उपज
बताया है । हे गेल के िवचार सामािजक आंदोलन म तीन चरण होते ह—(ए) आव यकताओं की
एक प्रणाली (बी) याय का प्रशासन (सी) सावर्जिनक प्रािधकरण और प्रित पधार्। उनके
अनुसार सामािजक आंदोलन एक ऐसा क्षेत्र है , जहाँ यिक्त िवरोध और आवाज उठाकर एक-
दस
ू रे की माँग को पूरा करना चाहते ह।

माक्सर्वादी िवचारक ने सामािजक आ दोलन की चचार् िवशेष प से सामािजक संघष के


स दभर् म की है । इन सामािजक संघष को वगर् संघषर् के मा यम से समझाया गया है ।
क युिन ट घोषणापत्र (1848) म कालर् माक्सर् ने उ लेख िकया है िक “सभी उपि थत समाज
का इितहास वगर् संघष का इितहास है ।” कालर् माक्सर् के िलए इितहास यिक्त के वग के
म य क्रांितकारी संघष का गवाह है । ये वगर् आिथर्क और राजनीितक शिक्त के मॉडल पर
आधािरत थे। माक्सर्वादी िवचारक के अनुसार आिथर्क, राजनीितक और सामािजक तर पर
इसे हमेशा दो समह
ू म िवभािजत िकया गया है , िजनके पास है और नहीं। सामािजक
आंदोलन ने आिथर्क, सामािजक और राजनीितक ि थित को बदल िदया है , इससे बज
ु आ
ुर् वगर्
पर सवर्हारा की जीत का अंितम एहसास हुआ। माक्सर्वादी िवचारक ने सोिवयत संघ, क्यूबा
और दिु नया के अ य दे श म म आंदोलन के िवकास के बारे म भी बात की है । माक्सर्वादी
दशर्न के अनुसार रा य एक आव यक द ु ट रा य एक पँज
ू ीवादी संगठन था, िजसका उपयोग
पँूजीपितय वारा िमक और िकसान को कुचलने के िलए िकया जाता था। चँ िू क पँज
ू ीपित
िवधाियकाओं म िवशाल बहुमत प्रा त करने म सक्षम थे, इसिलए उनसे यह उ मीद नहीं की

123
जा सकती थी िक वे आम लोग को याय दगे। उ पादन और िवतरण के साधन को
िनयंित्रत करने और एकािधकार की ि थित उ प न करने के िलए पँूजीपितय वारा रा य का
शोषण िकया गया तािक वे िमक का शोषण करने म सक्षम हो सक। िकसान क्रांित लाने
की क्षमता रखते ह, िवशेषकर कृिष प्रधान समाज म। उ ह ने 1917 म स म एक सफल
क्रांित का आयोजन करके इस िस धांत को वा तिवक यवहार म लाया। उ ह ने उ लेख
िकया है िक इितहास से लेकर समकालीन दिु नया तक अमीर वगर् वारा गरीब वगर् के प्रित
भेदभाव और अधीनता के िव ध आंदोलन दे खा गया है । उपेक्षा म भारत ने िकसान
आंदोलन, मजदरू आंदोलन और मजदरू आंदोलन को भी दे खा है ।

4.4 भारत म सामािजक आंदोलन

सामािजक आंदोलन िवचार के इदर्-िगदर् संगिठत होते ह, जो आंदोलन का पालन करने वाले
यिक्तय को सामािजक और राजनीितक पहचान के नए प दे ते ह। भारत ने कुछ
सामािजक आंदोलन को दे खा है जैसे आिदवासी आंदोलन, दिलत आंदोलन, िकसान आंदोलन,
िपछड़ी जाित/वगर् आंदोलन, छात्र आंदोलन, औ योिगक मजदरू वगर् आंदोलन और म यम वगर्
आंदोलन। कुछ वतर्मान और मह वपण
ू र् आंदोलन इस प्रकार ह—

4.4.1 आिदवासी, िकसान और िमक आंदोलन

िकसान आंदोलन श द को पार पिरक और सामिू हक कारर् वाई तथा िवरोध व अिभयान के
मा यम से अपने मु द और सम याओं को उठाने के िलए िकसान की गितिविध के प म
पिरभािषत िकया जा सकता है । भारत ने वतंत्रता के प चात ् और वतंत्रता पव
ू र् दोन
अविधय के दौरान वतर्मान आंदोलन दे खा है । अिधकांश िकसान आंदोलन सामािजक-आिथर्क
प्रकृित पर आधािरत थे। वतंत्रता के दौरान 70% से अिधक जनसंख्या श द अपनी
आजीिवका के िलए कृिष पर िनभर्र है । समय और समय के बाद, िकसान की प्रकृित म
काफी बदलाव आया है ।

भारत म मख्
ु य प से तीन िकसान आंदोलन दे खे गए ह— तेभागा, तेलग
ं ाना और
नक्सलबाड़ी आंदोलन। वतर्मान का अिधकांश समय कराधान प्रणाली के िव ध, नकदी फसल
उगाने, जमींदार की इ छा के अनुसार फसल उगाने और िकसान की दयनीय ि थित पर
आधािरत था।

तेभागा श द का शाि दक अथर् है फसल का िह सा। यह आंदोलन 1946 के दौरान शु


हुआ था। यह आंदोलन मलू प से कराधान के मॉडल पर आधािरत था। इस अविध के
दौरान िकसान को अपनी फसल का 50 प्रितशत भू वािमय को दे ने के िलए मजबरू िकया
गया था। भेदभावपण
ू र् कर प्रणाली के िवरोध म िकसान काम करते ह। िकसान कह रहे थे िक

124
वे पूरे साल कड़ी मेहनत करते ह— अनाज की बुवाई, कटाई जबिक जमींदार कृिष उ पाद के
उ पादन म प्र यक्ष या अप्र यक्ष प से कोई गितिविध नहीं करते ह। यह आंदोलन बंगाल के
भीषण अकाल के कारण भी शु हुआ है । उस समय की इस अविध को जोड़, अिधकांश
िकसान तीन समय के भोजन के िलए संघषर् कर रहे थे। िकसान की माँग जहाँ जमींदार को
कृिष उ पादन का केवल एक ितहाई (लगभग 30 प्रितशत) ही एकत्र करना चािहए। अिधकांश
समय उपहार शांितपूणर् तरीके से अपने मु द की माँग कर रहे थे जैसे शांितपूणर् माचर् और
पाठ प्रणाली के िव ध आवाज उठाना। इस आंदोलन के कारण ही पि चम बंगाल सरकार ने
िकसान की सभी माँग को सि मिलत करने के िलए बरगरदारी अिधिनयम 1950 पािरत
िकया।

तेलग
ं ाना आंदोलन है दराबाद म िनजाम के िव ध शु होता है । यह सामंती यव था पर
आधािरत कृिष ढाँचे के िव ध था। दो प्रकार की भिू म कराधान प्रणाली प्रचिलत थी, अथार्त ्
रै यतवारी और जागीरदारी। यह आधिु नक भारत के सबसे मह वपण
ू र् सामािजक आंदोलन म से
एक था। लेिकन बाद म, तेलग
ं ाना आंदोलन के प्रारं िभक चरण म गंभीर सामंती दमन और
िकसान के शोषण पर आधािरत था। यह आंदोलन कृिष सश त्र क्रांित के साधन म बदल
गया है । इस क्रांित के तहत 3 हजार से अिधक गाँव को दमनकारी और भेदभावपूणर् शासन
यव था से मक्
ु त कराया गया। इसके साथ ही लगभग 10,00,000 एकड़ कृिष भिू म िकसान
के बीच पुनिवर्तिरत की गई।

िजन उदार िवचारक का मने उ लेख िकया है िक सामािजक आंदोलन यूरोपीय ज्ञान की
उपज है । थॉमस हॉ स और जॉन लॉक जैसे दाशर्िनक ने प्राकृितक अिधकार के बारे म
उ लेख िकया है — अ छी सरकार, सामािजक यव था, प्राकृितक कानन
ू , िवज्ञान और तकर् के
संदभर् म। इन उदार िवचारक ने यिक्तय को िवशेष प से उनकी माँग और प्राकृितक
अिधकार के संरक्षण के संदभर् म जीवन, वतंत्रता और संपि का अिधकार िदया है , लेिकन
सबसे मह वपण
ू र् है । प्रारं िभक उदारवादी िवचारक सामािजक यव था प्राकृितक कानन
ू , िवज्ञान
और कारण से संबंिधत थे।

4.4.2 दिलत और मिहला आंदोलन

भारत दिलत और मिहलाओं के आंदोलन का गवाह रहा है । दिलत और मिहलाओं को समाज


के हािशए के वग की िवशेषता थी। भारत म जाित यव था के कारण दिलत श द म
भेदभाव हुआ जबिक भारतीय समाज की िपतस ृ ा मक संरचना के कारण मिहला श द म
भेदभाव हुआ। उ ह भी समाज की मख्
ु य धारा से बाहर रखा गया था और हम केवल सीमांत
यवसाय करने की अनुमित है । 1972 के दौरान मब
ुं ई म नामदे व ढसाल ने दिलत के
िव ध भेदभाव और अ याचार को रोकने के िलए सामािजक संगठन ‘दिलत पथर’ की

125
थापना की। यह आंदोलन अमेिरका की लैक पथर पाटीर् से प्रेिरत था। इस आंदोलन ने पूरे
महारा ट्र म कई शाखाएँ खोली ह। इस आंदोलन ने कांशीराम जैसे कई लोग को प्रेरणा दी
है —िज ह ने कमर्चािरय के उ पीड़न की सम या को दे खने और प्रभावी समाधान िनकालने की
कोिशश की थी। 1980 के दशक म, कांशीराम ने रोड शो शु िकया िजसे ‘आंबेडकर मेला’
नाम िदया गया। इस मेले ने डॉ. भीमराव अ बेडकर के जीवन और दशर्नशा त्र म उनके
िवचार का प्रसारण िकया है । उ ह ने दिलत सोिषत समाज संघषर् सिमित (1981) की भी
थापना की है । इसके मा यम से उ ह ने भेदभावपूणर् प्रथाओं और भारत म जाित यव था
पर जाग कता प्रचार वाले िमक पर हमले के िव ध लड़ने की कोिशश की है ।

भारत म मिहला आंदोलन की शु आत उ नीसवीं सदी म हुई थी जब पहली बार आयर्


समाज और ब्र म समाज ने मिहलाओं की ि थित म सध
ु ार लाने के िलए कानन
ू म सध
ु ार
करके और उ ह िशक्षा प्रदान करने के िलए मिहला मंडल का आयोजन िकया था। राजा राम
मोहन राय, ई वरचंद्र िव यासागर, योितराव फुले, वामी दयानंद, केशब
ु चंद्र सेन, हिर
दे शमख
ु आिद जैसे कई समाज सुधारक ने वतंत्रता के बाद से कई मिहला आंदोलन को
दे खा है ।

तिमलनाडु मिहला मंच (टी.एन.ड ल.ू एफ.)

इसकी प्रारं भ 1991 म हुआ था। इसकी थापना मिहलाओं को अिधक नेत ृ व के िलए
प्रिशिक्षत करने, मिहला आंदोलन को मजबूत करने और एक मजबत
ू मिहला आंदोलन का
िनमार्ण करने के िलए की गई थी। टी.एन.ड ल.ू एफ. दिलत मिहलाओं के िव ध भेदभाव के
बारे म जाग कता फैलाता है , छुआछूत की बुराई को िमटाने, जाित यव था को समा त
करने और दिलत के मानवािधकार को मानवािधकार के प म बनाए रखने के िलए रा ट्रीय
और अंतरार् ट्रीय तर पर आंदोलन और लॉबी को संगिठत करता है । यह मिहलाओं के
आरक्षण के िलए अिभयान चला रहा था, मिहलाओं पर िहंसा, बाल शोषण, क या भ्रण
ू ह या
और भ्रण
ू ह या, िबना जहर के भोजन, खा य सरु क्षा, सांप्रदाियकता और वै वीकरण का
मक
ु ाबला करने और बहुरा ट्रीय कंपिनय वारा अवैध पेटट के िव ध अिभयान चला रहा
था।

टी.एन.ड ल.ू एफ. का प्रमख


ु उ दे य दिलत मिहलाओं को दिलत मिहलाओं के िलए भिू म
प्रा त करने के प्रावधान और प्रिक्रयाओं के बारे म बताना है , दिलत मिहलाओं को भिू म
अिधकार प्रा त करने के िलए लॉबी करने के िलए प्रेिरत करना, दिलत मिहलाओं को 73व म
पिरकि पत राजनीितक शिक्त प्रा त करने के िलए राजनीितक जाग कता सरु िक्षत करने की
सिु वधा प्रदान करना है । भारतीय संिवधान म 74वाँ संशोधन और मिहलाओं के िलए भिू म
अिधकार प्रा त करने के िलए एक सामिू हक साझा रणनीित िवकिसत करना।

126
टी.एन.ड ल.ू एफ. ने 27 अग त से 28 अग त, 2006 को पलावॉय, अरक्कोनम म
स मेलन का भी आयोजन िकया। इस वषर् के स मेलन का मख्
ु य आकषर्ण “दिलत मिहलाओं
के िलए भिू म और राजनीितक अिधकार” था। रा य तर पर दिलत मिहलाओं के अिधकार
का दावा करने के िलए आंदोलन मौजद
ू है । यह आंदोलन हर वषर् प्रासंिगकता के अनुसार
िविभ न िवषय पर किद्रत स मेलन का आयोजन करता है । स मेलन दिलत और अ य
जाित के लोग के बीच यापक तर पर जाग कता उ प न करता है । प्र येक स मेलन के
प चात ् दिलत मिहलाओं ने वयं कई थानीय िवषय को उठाया है ।

नमर्दा बचाओ आंदोलन

नमर्दा बचाओ आंदोलन भारत के इितहास म एक मह वपूणर् और ऐितहािसक सामािजक


आंदोलन है । इस सामािजक आंदोलन की शु आत िकसान , आिदवािसय और पयार्वरणिवद
ने की है । यह आंदोलन नमर्दा नदी पर सरदार सरोवर बाँध के मु दे पर आधािरत था...लोग
नमर्दा नदी पर सरदार सरोवर बाँध के िनमार्ण के िवषय पर िवरोध कर रहे थे।

नमर्दा नदी महारा ट्र म म य प्रदे श गज


ु रात से होकर गज
ु रती है । 1947 के दौरान भारत
सरकार ने म य प्रदे श महारा ट्र और गज
ु रात के लोग के िलए नमर्दा नदी के पानी का
उपयोग करने के िलए बात रखी। ये रा य नमर्दा नदी के बराबर िह से की माँग कर रहे थे।
अंतररा यीय मु द के समाधान के िलए सरकार ने नमर्दा जल िववाद यायािधकरण का
गठन िकया है । िट्र यन
ू ल ने नदी पर 30 बड़े, 135 छोटे और 3000 से अिधक बांध बनाने
का िनणर्य िकया है । इसने यह भी सझ
ु ाव िदया है िक बाँध की ऊँचाई बढ़ाई जाएगी। 1985
म िट्र यूनल के इस िनणर्य को सन
ु ने के बाद, सामािजक कायर्कतार् मेधा पाठक ने थानीय
लोग के साथ सरदार सरोवर बाँध के िव ध अिभयान शु िकया। इस संबंध म उ ह ने
पयार्वरण एवं वन मंत्रालय, भारत सरकार से मल
ु ाकात की। थानीय मल
ू िनवासी इस
पिरयोजना म बुिनयादी पयार्वरणीय िनयम और शत को पूरा नहीं करने का मु दा उठा रहे
थे। गाँव के लोग इस िवषय पर िवरोध कर रहे थे िक सरकार ने भू वािमय से अनुमित नहीं
ली है । मेधा पाठक ने िव व बक से भी संपकर् िकया, जो पिरयोजना के िलए एक िव पोषण
एजसी है ।

नमर्दा बचाओ आंदोलन म कई समह


ू सि मिलत ह जैसे नमर्दा असग्र थ सिमित,
गज
ु रात ि थत आकर्-वािहनी, म य प्रदे श ि थत नमर्दा घाटी नव िनमार्ण सिमित, आिद
1989 म ये समह
ू पयार्वरण और मानवािधकार गितिविधय के रा ट्रीय गठबंधन के प म
सि मिलत हुए। इस रा ट्रीय गठबंधन ने सरदार सरोवर बाँध के िव ध अिभयान शु कर
िदया है । इस संबंध म सप्र
ु ीम कोटर् ने भी िनणर्य सन
ु ाया है , सख्त सप्र
ु ीम कोटर् ने कहा है िक
बांध के िनमार्ण कायर् को त काल रोक द। कोट म कहा गया है िक पहले िरहै िबिलटे शन और

127
िर लेसमट की प्रिक्रया को पूरा कर। कॉटज़ ने इस मु दे पर और िवचार िकया और अंत म
बाँध के िनमार्ण की अनुमित दी।

िनभर्या आंदोलन

17 िदसंबर, 2012 को, नई िद ली ने मिहलाओं के िव ध भीषण अपराध दे खा है - चलती


बस म लोग के समह
ू वारा एक मिहला के साथ सामिू हक बला कार िकया गया, उ ह ने
मिहला को राजमागर् पर फक िदया और वयं बच गए। मिहलाओं के िव ध इस भीषण
अपराध म मिहलाओं की सरु क्षा और तलाशी आपरािधक गितिविधय के िव ध कानून से
ु े कई सवाल खड़े हुए ह। इस घटना के प चात ् पूरे भारत म लोग से इस तरह के जघ य
जड़
अपराध के िलए कड़े कानून और सजा की माँग की गई।

घटना के प चात ् परू े भारत म लोग वारा बड़े पैमाने पर प्रदशर्न और िवरोध प्रदशर्न िकए
गए ह। लोग सख्त कानन
ू और दोिषय को सजा िदलाने की माँग कर रहे थे। इसके कारण
सरकार ने आपरािधक कानन
ू अिधिनयम 2013 के साथ नया िकशोर याय िवधेयक पािरत
िकया है । इस अिधिनयम ने अपराधी के िलए बला कार और सजा की पिरभाषा को िव तत

िकया है । िवरोध और प्रदशर्न के चलते सरकार ने 2013 के बजट म िनभर्या फंड बनाया है ।
इस पिरयोजना म सुरक्षा सरु क्षा और मिहला सशिक्तकरण के िलए हजार करोड़ पये
आवंिटत िकए गए ह।

4.4.3 पयार्वरण आंदोलन

वतंत्रता के प चात ् से भारत ने कई पयार्वरण आंदोलन को दे खा है िजनम से कुछ क्षेत्रीय


तर तक सीिमत थे जबिक उनम से कुछ रा ट्रीय और थानीय तर पर भाई थे, िजनम से
कुछ िचपको आंदोलन, िच का आंदोलन, भागीरथी बचाओ आंदोलन आिद थे।

िचपको आंदोलन (ि टक टू ट्री): भारत ने कुछ पयार्वरण संबंधी आंदोलन का अनभ


ु व
िकया है जैसे िचपको आंदोलन (िहंदी म “ि टक टू ि टक”)। इस आंदोलन म ग्रामीण ने
बचाने के िलए वयं को पेड़ से बांध िलया। उ राखंड म धम
ू िसंह नेगी के नेत ृ व म बचनी
दे वी और कई ग्रामीण के साथ िमलकर पेड़ को गले से लगाकर बचाने की कोिशश की। इस
आंदोलन ने एक नारा भी बनाया है ‘िम टी, पानी और शु ध हवा’। लोग पेड़ को काटने से
बचाने की कोिशश कर रहे थे। लोग अपने पारं पिरक वन अिधकार का भी दावा कर रहे थे,
िज ह उ राखंड रा य की ठे केदार प्रणाली से खतरा था।

यह आंदोलन 1 अप्रैल, 1973 को चमोली िजले म शु हुआ था। बाद म, यह िहमाचल


प्रदे श और उ र प्रदे श के कई िजल म फैल गया, इस आंदोलन ने वन की कटाई के िव ध
लड़ाई और पािरि थितकी और समाज की रक्षा के िलए दिु नया भर का यान आकिषर्त

128
िकया। इस आंदोलन म मिहला ने उस पेड़ को कटने से बचाने म अहम भिू मका िनभाई है ।
हाल के वष म, यह दे खा जा सकता है िक पेड़ न केवल पयार्वरण की रक्षा कर रहे ह बि क
भू खलन को रोकने म भी सहायता कर रहे ह।

इस ि ट से दे खा जा सकता है िक िचपको आंदोलन ने लोग म पयार्वरण के प्रित


जाग कता पैदा करने के साथ-साथ पेड़ को काटने से लड़ने म सफलता प्रा त की है । इस
िवरोध के चलते उसे तब जीत हािसल हुई है जब सरकार ने भारत के प्रधानमंत्री वारा
िहमालय के जंगल म पेड़ को काटने पर प्रितबंध लगाने की घोषणा की है । इस आंदोलन ने
पेड़ और पयार्वरण की रक्षा के बारे म परू े भारत म संदेश दो को भी फैला िदया है । म य
भारत, दिक्षण राज थान, उ री कनार्टक ने पयार्वरण और पेड़ की रक्षा के बारे म लोग म
जाग कता दे खी है । इस प्रकार, यह कहा जा सकता है िक िचपको आंदोलन ने न केवल पेड़
काटने का मु दा उठाया है बि क पयार्वरण और पािरि थितकी के बारे म लोग म जाग कता
भी उ प न की है ।

भागीरथी बचाओ आंदोलन (बी.बी.एस.) : गंगा इज इंिडया सबसे मह वपूणर् जीवन रे खा


म से एक है । यह कहा जा सकता है िक यह भारत की जीवनदाियनी है । गंगा का पानी
भारत के लोग के िलए न केवल फसल की खेती के िलए बि क पीने के उ दे य के िलए
भी बहुत मह वपूणर् है । यह 11 मई, 2008 को था, जब थानीय लोग ने िकसान के साथ
गंगा नदी को बचाने के िलए एक अिभयान शु िकया था। अिभयान था “गंगा के गायब होने
को रोक”। गंगा नदी िहमालय के गंगोतारी ग्लेिशयर से िनकलती है और पि चम बंगाल तक
बहती है । यह पाया जा सकता है िक नदी उ र भारत के अिधकांश उ च घन व वाले क्षेत्र पर
क जा कर लेती है । यह कहा जा सकता है िक भारत की लगभग 1/3 जनसंख्या गंगा नदी
पर िनभर्र है ।

नदी न केवल गंगा नदी और भारत की वन पित प्रिक्रया के िलए बहुत मह व रखती है ।
भागीरथी बचाओ संक प (बी.बी.एस.) लेिकन भारत और दिु नया के िलए िवशाल सां कृितक,
पािरि थितक और आिथर्क मू य का भी प्रितिनिध व करता है । दभ
ु ार्ग्य से, गंगा का वा य
कई तर पर न ट हो रहा है । न केवल मानव और औ योिगक प्रदष
ू ण से, बि क अब इसे
बड़े पैमाने पर बाँध के िनमार्ण से भी खतरा है । जलिव युत उ पादन के िलए गंगोत्री
ग्लेिशयर और उ रकाशी के बीच गंगा नदी पर छह बाँध बनाए जा रहे ह।

हालात को और अिधक बुरा बनाने के िलए, 2007 म, संयुक्त रा ट्र की जलवायु िरपोटर्
बताती है िक 2030 तक गंगा को िखलाने वाले ग्लेिशयर गायब हो सकते ह। गंगा के प्रवाह
को प्रभािवत करने के अलावा, बाँध के िनमार्ण की प्रिक्रया म लाि टं ग के मा यम से
थानीय पािरि थितक तंत्र को िड्रिलंग, वन की कटाई और जलमग्नब जैसा हुत नक
ु सान

129
होता है । यह िनमार्ण व यजीव और थानीय आबादी दोन को िव थािपत करने की धमकी
दे ता है ।

जी.डी. अग्रवाल के नेत ृ व म पयार्वरणिवद और सामािजक कायर्कतार् गंगोत्री और


उ रकाशी के बीच िबजली पिरयोजनाओं के िनमार्ण के िव ध अपने अिभयान को जारी
रखने के िलए िद ली गए। अिभयान से पहले बड़े पैमाने पर इसे प्रदशर्न िकया गया था।
उ राखंड म सरकार को 480 मेगावाट की पाला मनेरी और 381 मेगावाट की भैर घाटी
जलिव यत
ु पिरयोजनाओं पर काम थिगत करने के िलए मजबरू िकया।

4.5 िन कषर्

अंत म यह कहा जा सकता है िक लोग की आवाज उठाने के िलए सामािजक आंदोलन


मह वपूणर् साधन म से एक है । समकालीन युग म, यह दे खा गया है िक अिधकांश
सामािजक आंदोलन केवल वयं तक ही सीिमत नहीं थे, बि क यह वैि वक या दस
ू र पर
प्रभाव के िवषय पर भी शुहुए ह। इस संबंध म, यह कहा जा सकता है िक भारत ने कई
सामािजक आंदोलन -िकसान , मिहलाओं, पयार्वरण और अ य अिधकार आधािरत आंदोलन
का अनभ
ु व िकया है । इन सामािजक आंदोलन ने न केवल लोग की आवाज उठाने म
सहायता की है , बि क उनकी सम याओं के समाधान का मागर् भी प्रश त िकया है ।

4.6 अ यास प्र न

1. सामािजक आंदोलन श द से आप क्या समझते ह?

2. भारत म सामािजक आंदोलन की भिू मका और प्रकृित का समालोचना मक परीक्षण


कीिजए।

3. भारतीय लोकतंत्र म सामािजक आंदोलन के योगदान की चचार् कीिजए।

4. ‘क्या आपको लगता है िक सामािजक आंदोलन भारतीय लोकतंत्र के िलए मह वपण


ू र्
उपकरण म से एक है ’ िट पणी कीिजए।

5. भारत म िकसान और पयार्वरण आंदोलन की प्रकृित का वणर्न कर।

अ प िट पिणयाँ

(क) िनभर्या आंदोलन

(ख) नमर्दा बचाओ आंदोलन

(ग) िकसान आंदोलन

(घ) मिहला आंदोलन

130
4.7 बहु िवक पीय प्र न

1. भारत म िविभ न प्रकार के दबाव समह


ू मौजद
ू ह। िन निलिखत म से िकस ेणी के
दबाव समह
ू को गलत तरीके से सूचीब ध िकया गया है ?

(ए) िकसान संगठन

(बी) छात्र समह


(सी) म और ट्रे ड यिू नयन

(डी) उपरोक्त म से कोई नहीं

2. िन निलिखत म से िकसे िकसान की ेणी म गलत तरीके से सच


ू ीब ध िकया गया है ?

(ए) छोटे और सीमांत िकसान

(बी) शेयरधारक

(सी) िकरायेदार

(डी) उपरोक्त म से कोई नहीं

3. वतंत्रता-पव
ू र् अविध के दौरान अिधकांश भिू म िकसके िनयंत्रण म थी?

(ए) जमींदार

(बी) बटाईदार

(सी) छोटे और सीमांत िकसान

(डी) िकरायेदार

4. िकसान आंदोलन की िन निलिखत म से कौन-सी िवशेषता को गलत तरीके से


सच
ू ीब ध िकया गया है ?

(ए) यह कृिष आव यकताओं पर आधािरत एक आंदोलन है ।

(बी) यह राजनीितक प्रभओ


ु ं वारा दमन से मिु क्त चाहता है ।

(सी) यह स ा के एक िह से को साझा करना चाहता है या परू े स ा पदानुक्रम से


मिु क्त चाहता है ।

(डी) उपरोक्त म से कोई नहीं

5. तेलग
ं ाना आंदोलन िकसान वारा शु िकया गया था—

(ए) है दराबाद के त कालीन रा य

131
(बी) जन
ू ागढ़ के पूवर् रा य

(सी) बॉ बे रा य

(डी) आंध्र प्रदे श रा य

6. िन निलिखत म से कौन-सा आंदोलन जमींदार से जमीन की ज ती के बाद क यून


िस टम की थापना के िलए खड़ा था?

(ए) तेभागा आंदोलन

(बी) तेलग
ं ाना आंदोलन

(सी) तंजावुरी म िकसान आंदोलन

(डी) उपरोक्त सभी

7. िन निलिखत म से िकस िकसान आंदोलन ने िकसान को जमींदार की भिू म पर


र् आिधप य करने के िलए प्रो सािहत िकया?
बलपूवक

(ए) तेभागा आंदोलन

(बी) तंजावुर आंदोलन

(सी) नक्सलबाड़ी आंदोलन

(डी) उपरोक्त सभी आंदोलन

8. 1970 के दशक म भारत म िकसान क्षण ने एक अलग आकार िलया और िविभ न


िवशेषताओं की िवशेषता थी। िन निलिखत म से कौन-सी िवशेषता को गलत तरीके से
सच
ू ीब ध िकया गया है ?

(ए) िविभ न राजनीितक दल और संगठन ने िकसान का मु दा उठाया।

(बी) िकसान को उनकी उपज के िलए बेहतर मू य प्रदान करने के िलए सरकार पर
दबाव बनाने के िलए संवैधािनक तरीक का प्रयोग िकया गया था।

(सी) खेत मजदरू को पयार् त मजदरू ी के भग


ु तान पर बल िदया गया।

(डी) उपरोक्त म से कोई नहीं

9. िन निलिखत म से कौन सा कथन सही है ?

(ए) वतंत्रता के बाद के भारत म िकसान आंदोलन का नेत ृ व गैर-िकसान नेताओं ने


िकया है ।

132
(बी) वतंत्रता के बाद के भारत म िकसान आंदोलन का नेत ृ व अमीर जमींदार ने
िकया है ।

(सी) वतंत्र भारत म िकसान आंदोलन का नेत ृ व अकेले क युिन ट पाटीर् ने िकया है
और अ य राजनीितक दल ने इससे दरू रखा है ।

(डी) उपरोक्त म से कोई नहीं

10. तेभागा आंदोलन िकस रा य म शु िकया गया था?

(ए) पि चम बंगाल

(बी) आंध्र प्रदे श

(सी) बॉ बे

(डी) उपरोक्त म से कोई नहीं

4.8 संदभर् सच
ू ी

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