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अनुक्रम
इकाई-1 : वतंत्रता के बाद िवकास प्रिक्रया
पाठ-1 : भारत म िनयोिजत िवकास की प्रिक्रया डॉ. मंगल दे व िसंह 01
पाठ-2 : उदारीकरण एवं सध
ु ार डॉ. राजेश कुमार, अनव
ु ादक : राम िकशोर 22
इकाई-2 : औ योिगक िवकास रणनीित और सामािजक संरचना पर इसका प्रभाव
पाठ-1 : िमि त अथर् यव था, िनजीकरण, संगिठत और असंगिठत म पर प्रभाव
रे वती वी मेनन, अनव
ु ादक : रजनी 46
संपादक :
डॉ. मंगल दे व
डॉ. शिक्त प्रदायनी राउत
1.1 संरचना
1.1.1 पिरचय
1.1.2 उ दे य
1.1.3 चन
ु ौितयाँ
1.1.4 िनयोजन के िवकास का इितहास
1.1.5 भारत म िनयोजन
1.1.6 योजना आयोग
1.1.7 योजना आयोग के कायर् व उ दे य
1.1.8 िनयोजन का ल य
1.1.9 िविभ न पंचवषीर्य योजनाओं की परे खा
1.1.10 पिरवतर्न का दशक और नई आिथर्क नीित
1.1.11 नीित आयोग
1.1.12 उपलि धयाँ
1.1.13 रा य की भिू मका
1.1.14 योजना का मू यांकन
1.1.15 िन कषर्
1.1.16 अ यास प्र न
1.1.17 संदभर् सच
ू ी
1.1.1 पिरचय
1
गया है । शीत यु ध की समाि त व सोिवयत संघ के िवघटन के उपरांत 1991 म भग
ु तान
आपदा की ती ि थरता के कारण भारत ने यापक तर पर मौिद्रक उदारीकरण की नीित
को अपनाया। पिरणाम व प भारत की वािषर्क औसत सकल घरे लू उ पाद म लगभग 6% से
7% की व ृ िध हुई। 2013 से 2018 तक चीन को भी पीछे छोड़ते हुए भारत दिु नया की
सबसे तेजी से उभरती अथर् यव था म बदल गया। 2019 म भारत को िव व की पाँचवीं
सबसे बड़ी अथर् यव था बताया गया। पर तु कोिवड महामारी की पिरि थित म आई.एम.एफ.
ने बताया िक 2021 म 2.72 िट्रिलयन डॉलर के साथ वैि वक जी.डी.पी. म भारत का थान
7वाँ है ।
1.1.2 उ दे य
• बाजारो मख
ु अथर् यव था म रा य के काय को प ट करना,
1.1.3 चन
ु ौितयाँ
2
— सीिमत संसाधन और असीिमत आव कताएँ
सवर्प्रथम एम. िव वे वरै या ने ‘भारत के िलए िनयोिजत अथर् यव था’ नामक पु तक म भारत
के िनयोिजत िवकास के िलए 10 वषीर्य कायर्क्रम प्र तत
ु िकया। कांग्रेस वारा 1938 म
जवाहर लाल नेह की अ यक्षता म रा ट्रीय योजना सिमित की थापना की गयी। सिमित ने
आिथर्क िवकास के िविभ न पहलओ
ु ं पर कई पत्र प्रकािशत िकए। रा ट्रीय योजना सिमित के
अितिरक्त भारत के आठ प्रमख
ु उ योगपितय ने आिथर्क िवकास के िलए एक योजना तैयार
की, िजसे बॉ बे योजना (1944) के नाम से जाना गया। ीमन ् नारायण ने गांधीवादी
रणनीित भी बनाई थी। एम.एन. रॉय ने अप्रैल 1945 म जन योजना प्र तुत की। ये सभी
प्रा प केवल ऐितहािसक प से मह वपूणर् थे क्य िक वे केवल कागज़ की योजनाएँ थीं, िज ह
कभी आगे नहीं बढ़ाया गया। 1948 म औ योिगक नीित पर एक प्र ताव जारी करने के
अितिरक्त कुछ भी उ लेखनीय नहीं हुआ। यह प्र ताव एक रा ट्रीय योजना आयोग की
थापना के िलए सरकार की मंशा को यक्त करता है जो अथर् यव था के मह वपूणर् क्षेत्र म
रा य की भागीदारी और िवकास कायर्क्रम तैयार करे गा और उनके कायार् वयन की िनगरानी
करे गा।
3
1.1.6 योजना आयोग
भारत म केवल एक रा ट्रीय योजना थी, िजसम सभी रा य योजनाएँ शािमल थीं। रा य
के बजट आ मिनभर्र होते ह, लेिकन रा य की योजनाएँ नहीं होती ह। रा य योजना बोडर् ह।
रा य योजनाओं के समामेलन म योजना-आधािरत ह तांतरण के बजाय सत्र
ू -आधािरत
संसाधन ह तांतरण का प्रावधान है । दस
ू री ओर, योजना आयोग, कद्रीय मंत्रालय के िवकास
कायर्क्रम को रा य सरकार के िवकास कायर्क्रम को एक साथ रा ट्रीय योजना म समि वत
और एकीकृत करता था।
4
योजना के िक्रया वयन के चरण का िनधार्रण करना तथा उस उ दे य के िलए
संसाधन का िनयमन करना
आिथर्क िवकास की वधाओं की ओर संकेत करना।
योजना के प्र येक चरण के सफल िक्रया वयन के िलए आव यक तंत्र का व प
िनिमर्त करना।
समय-समय पर योजना की चरणवार प्रगित का अवलोकन करना व आव यक उपाय
की िसफािरश करना।
5
बारहवीं योजना अविध चुनौितयाँ और अवसर दोन प्रदान करती है । इस योजना की
शु आत ऐसे समय म हुई जब दिु नया भर की अथर् यव था िव ीय संकट से गजु र रही थी,
जो यूरोजोन की सरकारी ऋण गड़बिड़य के कारण उ प न हुई थी, िजससे ग्यारहवीं योजना
के अंितम वषर् म िव फोट हो गया था। इस संकट ने भारत सिहत सभी दे श को बढ़ा-चढ़ा
कर पेश िकया। 2011-12 म हमारी व ृ िध धीमी होकर 6.2% हो गई और बारहवीं योजना
के पहले वषर् म मंदी जारी रही, जब अथर् यव था के केवल 5% बढ़ने का अनुमान लगाया
गया था। अथर् यव था के बहुत तेजी से िवकिसत होने की अ यक्तता ग्यारहवीं योजना के
अनुभव से प ट होती है , िजसने 2007-08 से 2011-12 की अविध के िलए 8% की औसत
व ृ िध दर को आकार िदया। यह ग्यारहवीं योजना के 9 प्रितशत के ल य से कम लेिकन
दसवीं योजना की 7.6 प्रितशत की सफलता से अिधक था और कुछ योजना अविध म
भारतीय अथर् यव था वारा दजर् की गई अब तक की सबसे ऊपरी िवकास दर भी थी।
1.1.8.2 आधुिनकीकरण
अथर् यव था का आधुिनकीकरण दस
ू रा प्राथिमक ल य रहा है । आधुिनकीकरण के िलए
आिथर्क संचालन म संरचना मक और सं थागत पिरवतर्न की आव यकता होती है िजसके
पिरणाम व प एक प्रगितशील, समकालीन अथर् यव था को प्रा त िकया जा सकता है । इसके
िलए तीन आिथर्क क्षेत्र , अथार्त ् कृिष, उ योग और सेवाओं म आधुिनकीकरण की
आव यकता है । सबसे मह वपूणर् ल य म से एक कृिष से लेकर उ योग और सेवाओं तक
रा ट्रीय आय म कृिष के योगदान को बदलना है । औपिनवेिशक िवरासत के पिरणाम व प,
उ पादन और रोजगार के मामले म कृिष तीन उ योग म सबसे बड़ा रहा है । आधुिनकीकरण
का एक अ य मह वपण
ू र् िह सा एक िविवध अथर् यव था का िनमार्ण है जो पँज
ू ीगत व तओ
ु ं
सिहत माल की एक िव तत
ृ ंख
ृ ला उ प न करता है ।
1.1.8.3 वावलंबन
6
आयात प्रित थापन की आव यकता होती है , िजसम समान सामान आयात करने के बजाय
घर पर बनाना पड़ता है । इसके िलए िनयार्त म व ृ िध और िविवधता की आव यकता है तािक
हम अपने िवदे शी मद्र
ु ा लाभ के साथ भग
ु तान कर सक। कृिष के मामले म खा या न और
औ योिगक क चे माल के उ पादन म आ मिनभर्रता पर जोर िदया जाता था। जल
ु ाई 1991
के बाद वै वीकरण और भारतीय अथर् यव था के खुलने के साथ, दे श की अथर् यव था एक
बाहरी फोकस म थानांतिरत हो गई।
एक अ य प्रमख
ु उ दे य, िवशेष प से समाज के सबसे गरीब सद य के िलए सामािजक
याय की गारं टी दे ना था। इसम भिू महीन खेितहर मजदरू , िश पकार, अनुसिू चत जाित और
जनजाित के सद य, मिहलाएँ और ब चे आिद जैसे समाज के गरीब के रहने की ि थित को
ऊपर उठाना शािमल था। इसम आय और पिरसंपि िवतरण असमानताओं को कम करना भी
शािमल था िवशेष प से ग्रामीण क्षेत्र म जहाँ भिू म व आय का प्राथिमक ोत असमान प
से िवभािजत था। इसम गरीब के िलए कई क याणकारी कायर्क्रम भी शािमल थे, जैसे िवशेष
रोजगार कायर्क्रम, भिू म सध
ु ार। छोटे िकसान के संदभर् म, उ पादन और उपभोग दोन के
िलए िरयायती या िरयायती व तुओं का प्रावधान।
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1.1.9 िविभ न पंचवषीर्य योजनाओं की परे खा
• योजना म कृिष, मू य ि थरता, िबजली और पिरवहन सभी को संबोिधत िकया गया था।
दस
ू री पंचवषीर्य योजना (1956-61)
• सामा य अनुमान के िलए सरल समग्र है रोड डोमर ग्रोथ मॉडल का िफर से उपयोग
िकया गया था, और कृिष और उ योग जैसे यापक क्षेत्र के संसाधन आवंटन प धित
के िलए प्रो. पी.सी. महलानोिबस के दो और चार सेक्टर मॉडल पर आधािरत थी। (इस
योजना को महालनोिबस योजना के नाम से भी जाना जाता है ।)
• दस
ू री योजना एक ि थर आिथर्क वातावरण म तैयार की गई थी। इसम कृिष को कम
प्राथिमकता दी जाती थी।
• िवदे शी मद्र
ु ा की भारी कमी के कारण, िवकास ल य म कटौती की गई, कीमत िपछली
योजना की तुलना म (लगभग 30%) बढ़ीं, और दस
ू री FYP केवल आंिशक प से
सफल रही।
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• अपनी थापना के समय, यह सोचा गया था िक भारतीय अथर् यव था “उतार-चढ़ाव के
चरण” पर पहुँच गई है । इसका ल य भारत को “आ मिनभर्र” और “ व-उ पादक”
अथर् यव था बनाना था।
• इन कायर्क्रम के कायार् वयन के दौरान, एक पूरी तरह से नया कृिष ि टकोण िवकिसत
िकया गया था। इसम उ च उपज दे ने वाली बीज के िक म का यापक िवतरण, उवर्रक
का पयार् त उपयोग, िसंचाई क्षमता का दोहन और मद
ृ ा संरक्षण शािमल था।
• अथर् यव था वािषर्क योजनाओं के दौरान तीसरी योजना के कारण हुए झटक को सहने
म सक्षम थी।
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• 1971 के भारत-पाक यु ध से पहले और उसके दौरान बांग्लादे शी प्रवािसय का अवैध
घुसपैठ, साथ ही संकट के अनुपात म मू य की ि थित िवकिसत होना एक प्रमख
ु मु दा
था, और रणनीित को एक बड़ी िवफलता के प म दे खा जाता है ।
• उ च मद्र
ु ा फीित के कारण योजना के िलए लागत अनुमान पूरी तरह से गलत थे, और
मल
ू सावर्जिनक क्षेत्र के खचर् को ऊपर की ओर संशोिधत करना पड़ा। 1975 म
आपातकाल की घोषणा के बाद, प्रधानमंत्री की 20-सत्र
ू ीय योजना के कायार् वयन पर
यान किद्रत िकया गया। जब 1978 म जनता पाटीर् स ा म आई, तो FYP को
प ृ ठभिू म म भेज िदया गया, और योजना को र द कर िदया गया।
कुल िमलाकर दो छठी योजनाएँ थीं। नेह मॉडल के िवपरीत, िजसकी सरकार ने स ा के
कद्रीकरण, बढ़ती असमानता और बढ़ती गरीबी के िलए आलोचना की, जनता सरकार ने
1978-1983 के िलए एक रणनीित प्र तािवत की जो रोजगार पर किद्रत थी। दस
ू री ओर,
सरकार केवल दो साल तक चली। 1980 म जब कांग्रेस ने स ा हािसल की, तो उसने
आिथर्क िवकास के िलए अनुकूल पिरि थितय का िनमार्ण करके गरीबी की सम या का सीधे
सामना करने के उ दे य से एक नई रणनीित शु की।
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• इस समय नेह वादी समाजवाद का अंत हो गया। िशवरमन सिमित ने िसफािरश की िक
12 जल
ु ाई 1982 को ग्रामीण क्षेत्र के िवकास के िलए रा ट्रीय कृिष और ग्रामीण िवकास
बक की थापना की जाए।
• सामा य तौर पर, योजना सफल रही क्य िक अिधकांश उ दे य को पूरा िकया गया था,
इस त य के बावजद
ू िक िपछले वषर् (1984-85) के दौरान रा ट्र के कई वग ने भयंकर
अकाल का अनुभव िकया था और कृिष उ पादन िपछले वषर् के िरकॉडर् उ पादन से कम
था।
कद्र म राजनीितक अिनि चतता के कारण आठवीं योजना को दो साल के िलए थिगत कर
िदया गया था।
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• प्रारं िभक िशक्षा का सावर्भौमीकरण और 15-35 आयु वगर् के लोग म िनरक्षरता का
उ मल
ू न।
• सरु िक्षत पेयजल और प्राथिमक वा य दे खभाल सिु वधाओं का प्रावधान, मैला ढोने की
प्रथा का उ मल
ू न
• सतत आधार पर िवकास प्रिक्रया का समथर्न करने के िलए बिु नयादी ढाँचे को मजबूत
करना
िजस प्रकार लोक लभ ु ावनी नीित, पैकेज पॉिलिटक्स की शु वात हुई उससे सरकारी खचर् म
व ृ िध हुई और भ्र टाचार को बढावा िमला। फ्रंकेल ने अपनी पु तक इंिडयन पोिलिटकल
इकॉनमी म इसका िव तत
ृ उ लेख िकया है । 1990 तक आते–आते न केवल भारतीय
अथर् यव था म अंतिवर्रोध िदखायी िदया, अिपतु वैि वक यव था म भी अमल
ू -चल
ू पिरवतर्न
हुआ। भारत म असंतिु लत िवकास की रणनीित का पिरणाम यह रहा िक भारत म कई भारत
नजर आने लगे। आिथर्क संकट के साथ ही राजनीितक अि थरता के कारण सोना िगरवी
रखना पड़ा।
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नौवीं योजना (1997-2002)
• समयब ध तरीके से सभी के िलए सरु िक्षत पेयजल, पी.एच.सी. सिु वधाएँ, यू.पी.ई.,
आ य और कनेिक्टिवटी का प्रावधान
• जनसंख्या व ृ िध पर रोक
• क याण म व ृ िध
• भोजन और अ य उपभोग की व तओ
ु ं की उपल धता
• वा य, िशक्षा, व छता और पीने के पानी की बिु नयादी सामािजक सेवाओं तक पहुँच
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• धीरे -धीरे बढ़ते रा य की िवकास दर म तेजी
• 2007 तक प्रमख
ु प्रदिू षत निदय और 2012 तक अ य अिधसिू चत िह स की सफाई।
ग्यारहवीं योजना (2007-2012)
• दसवीं योजना के उपरांत, भारत दिु नया की सबसे तेजी से बढ़ती अथर् यव थाओं म से
एक बन गया था। बचत और िनवेश दर म व ृ िध हुई थी, वैि वक प्रित पधार् के सामने
औ योिगक क्षेत्र ने सराहनीय प्रदशर्न िकया था, और िवदे शी िनवेशक भारत म िनवेश
करने के िलए उ सक
ु थे। कई समह
ू िवशेष प से एससी, एसटी और अ पसंख्यक ने
िवकास को पयार् त प से समावेशी नहीं माना, जैसा िक गरीबी, कुपोषण, म ृ यु दर,
वतर्मान रोजगार और अ य कारक के आंकड़ से पता चलता है ।
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6.2 प्रितशत की व ृ िध दर हुई। नतीजतन, ग्यारहवीं योजना के दौरान, सकल घरे लू उ पाद
(जीडीपी) की औसत वािषर्क व ृ िध दर 8% थी, जो ल य से कम लेिकन दसवीं योजना की
उपलि ध से अिधक थी। इस समयाविध के दौरान हुए दो िव व यापी संकट को दे खते हुए—
एक 2008 म और दसू रा 2011 म - 8% की व ृ िध दर को संतोषजनक माना जा सकता है ।
11वीं योजना अविध के दौरान कृिष, उ योग और सेवा क्षेत्र के 4 प्रितशत, 10-11 प्रितशत
और 9-11 प्रितशत के िवकास ल य की तुलना म क्रमशः 3.7 प्रितशत, 7.2 प्रितशत और
9.7 प्रितशत की दर से बढ़ने की उ मीद थी।
15
गई है और आिथर्क िवकास धीमा हो गया था। इस योजना के म य म, भारत सरकार ने
नीित आयोग की घोसना कर योजना पर िवराम लगा िदया।
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• यह सिु नि चत करने के िलए िक रा ट्रीय सरु क्षा के उ दे य उन क्षेत्र म आिथर्क
रणनीित और नीित म एकीकृत ह जो इसे मख्
ु य प से संबोिधत कर रहे ह।
• एमएएफएपी कायर्क्रम का दस
ू रा चरण 1 जनवरी, 2020 और 31 िदसंबर, 2021 के
बीच िनधार्िरत है ।
इसके अितिरक्त, पर परागत कृिष िवकास योजना (पीकेवीवाई) के तहत प्राकृितक खेती को
‘भारतीय प्राकृितक कृिष प धित’ कायर्क्रम के प म बढ़ावा िदया जा रहा है ।
ग्राम भंडारण योजना की पिरक पना की गई है । इसी तरह, कद्रीय बजट 2021 म धन
ल मी ग्राम भंडारण योजना का प्र ताव िकया गया है , िजसे अभी लागू िकया जाना है ।
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की पहली पीढ़ी वारा बनाई गई थी। इस संबंध म सबसे मह वपण
ू र् सं थागत मानदं ड
संसदीय लोकतंत्र की परे खा और भारतीय संघीय प्रणाली का व प और चिरत्र ह। इन सभी
मापदं ड को भारत के संवैधािनक तंत्र म औपचािरक प िदया गया था, िजसने 26 जनवरी,
1950 को भारत गणरा य म पिरचालन प्रभाव के साथ अपनी यात्रा शु की थी।
जब रा य अपने घरे लू और अंतरार् ट्रीय दािय व को परू ा करने के िलए पयार् त संसाधन
उ प न नहीं कर सका, तो उसे सम याओं का सामना करना पड़ा। घरे लू मोच पर, इसने
अपनी वतर्मान खपत की ज रत को पूरा करने के िलए उधार लेना शु कर िदया, और
इसका चालू खाता घाटा खतरनाक प से बढ़ गया। घरे लू उ पादन संरचना, िजसे
सावधानीपूवक
र् संरिक्षत वातावरण म िडजाइन िकया गया था, हवाओं का सामना करने म
असमथर् थी।
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1.1.14 योजना का मू यांकन
दस
ू री ओर, योजना एक दरू संचार अ यास के प म मह वपूणर् बनी रहे गी। िमि त
अथर् यव था ढाँचे के तहत, हमने पूरे दे श के िलए योजना बनाना शु कर िदया। 1980
दशक के अंत म और 1990 दशक की शु आत म हमारी रणनीित के प्रमख
ु तख्त म
पिरवतर्न के बावजद
ू , हम योजना प्रिक्रया से िचपके रहे ह। जैसा िक श द से पता चलता है ,
रणनीित पर यान समय की वा तिवकताओं पर आधािरत होनी चािहए। पिरणाम व प,
हमारे ल य समान रहने पर भी यह िभ न होना चािहए। इस ि टकोण से, हम य की
जाँच कर सकते ह। इसके अितिरक्त, केवल रा य की योजना के वारा ही हम औपिनवेिशक
अतीत से िनणार्यक प से टूटने म सक्षम ह गे। इस प्रकार, हम भी आधुिनक क्षेत्र म
आिथर्क गितिविधय के िविवधीकरण, पयार् त खा या न उ पादन और तकनीकी क्षमता के
साथ एक ठोस नींव रखने म सक्षम ह।
1.1.15 िन कषर्
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हमने िव तत
ृ योजना के साथ िमि त अथर् यव था नीित ढाँचा को अपनाया। िमि त
अथर् यव था सावर्जिनक और िनजी क्षेत्र के सह-अि त व और पार पिरक समथर्न को
संदिभर्त करती है , यापक योजना का अथर् है िक हमारी योजना-प्रिक्रया आिथर्क और
सामािजक दोन क्षेत्र के साथ-साथ सावर्जिनक और िनजी क्षेत्र को भी यान म रखेगी।
20
4. योजना आयोग का गठन कब हुआ?
1.1.17 संदभर् सच
ू ी
बस,ु कौिशक (सं.) (2010): द ऑक्सफोडर् क पेिनयन टू इकोनॉिमक्स इन इंिडया,
ऑक्सफोडर्।
ढींगरा, ई वर सी. (2012): भारतीय अथर् यव था : पयार्वरण और नीित, (27वाँ
सं करण)। सु तान चंद एंड संस, नई िद ली।
ीिनवासन, टी.एन. (2004): आठ याख्यान एक भारतीय अथर् यव था, ऑक्सफोडर्।
चक्रवतीर्, सुखमय (1987); िवकास योजना : भारतीय अनुभव, ऑक्सफोडर् यूिनविसर्टी
प्रेस, नई िद ली।
द , द्र और सद
ंु रम, के.पी.एम. (2005); भारतीय अथर् यव था, एस. चंद एंड कंपनी,
नई िद ली।
गु ता, एस.पी. (1989); भारत म योजना और िवकास : ए िक्रिटक, एलाइड पि लशसर्
प्राइवेट िलिमटे ड, नई िद ली।
कृ णमाचारी, वी.टी. (1962); फंडामटल ऑफ लािनंग इन इंिडया, ओिरएंट लॉ गमै स,
बॉ बे।
योजना आयोग (2012); दसवीं पंचवषीर्य योजना, नई िद ली।
नीित आयोग : एक वािषर्क िरपोटर् 2020-21, नई िद ली।
http://www.niti.gov.in/
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इकाई-1
1.2 संरचना
1.2.1 पिरचय
1.2.2 अ ययन के उ दे य
1.2.3 1990 म अथर् यव था के स मख
ु आने वाली सम याएँ एवं चुनौितयाँ
1.2.4 आिथर्क सध
ु ार का सार-संग्रह
1.2.5 आिथर्क सध
ु ार की प्रगित
1.2.6 आिथर्क सध
ु ार की मह वपण
ू र् िवशेषताएँ
1.2.7 सध
ु ार के 30 वष के म य संकट
1.2.8 िन कषर्
1.2.9 अ यास प्र न
1.2.10 संदभर् सच
ू ी
1.2.1 पिरचय
22
को ग्रह अथर् यव था के साथ एकीकृत करने की आव यकता थी और इसिलए आिथर्क सध
ु ार
पर बल आयात प्रित थापन रणनीित से िनयार्त-आधािरत िवकास रणनीित पर थानांतिरत
कर िदया गया।
ऐसा लगता है िक नेह वादी िवकास मॉडल गलत था। समाजवाद इस तकर् के िलए
िवफल रहा है िक वह िनरं तर आधार पर धन उ प न नहीं कर सका। िफर भी, असमानताओं
और गरीबी के बारे म प्रारं िभक समाजवादी सरोकार अभी भी गायब नहीं हुए ह। भारत के
मल
ू उ दे य नहीं बदले ह, लेिकन िवकास की रणनीित म पिरवतर्न की आव यकता को
शीघ्रता से वीकार िकया गया है । िवकास रणनीित के अंतगर्त रणनीितक पिरवतर्न के पक्ष म
एक िनि क्रय सहमित है । इसिलए, पयार्वरण सध
ु ार की प्रिक्रया के भीतर मह वपूणर् प्र न
“रा य एवं एक शु ध बाजार” के म य “अनुवरर् िवचार-िवमशर्” नहीं है , बि क यह सवाल है
िक ‘‘संक्रमण का प्रबंधन कैसे कर (1) अ यिधक से कम रा य के ह तक्षेप के िलए, (2)
पहले से उपेिक्षत मह वपूणर् क्षेत्र म गलत क्षेत्र म ह तक्षेप से; और (3) मात्रा िनयंत्रण पर
एक तरह के भरोसे से लेकर नीित के दस
ू रे प (कीमत पर भरोसा) तक”।
सध
ु ार के संदभर् म यिक्तगत िनवेश-घरे लू और िवदे शी—के
यवहार पर बहुत िवचार-
िवमशर् हुआ है । आिथर्क सध
ु ार बाजार के संबंध म रा य, या रा य की अिधक सामा य
भिू मका के आकलन को दोहराते ह। सबसे पहले ‘न बे के दशक’ तक, यिद सभी नहीं, तो
अथर् यव थाओं ने रा य की समग्र भिू मका को पन
ु ः पिरभािषत करने और कम करने की
नीित शु की है । यह घटना प ट प से ‘रा य की िवफलताओं’ और ‘बाजार की
िवफलताओं’ के बीच नए यापार-बंद को दशार्ती है या िजसे रा य और बाजार के म य
संबंध के अंतगर्त नई वा तिवकताओं के कारण भी कहा जा सकता है ।
1.2.2 अ ययन के उ दे य
23
भारतीय अथर् यव था के संदभर् म उदारीकरण की आव यकता एवं मह व
आिथर्क सध
ु ार के पीछे तकर्
1990 के प्रारं भ के प चात ् से भारतीय अथर् यव था के स मख
ु सबसे प्रमख
ु गंभीर
सम याएँ क्या थीं?
1991 म आिथर्क सध
ु ार अपनाने के कारण
सध
ु ार के पक्ष एवं िवपक्ष म तकर्-िवतकर्
24
घरे लू उ पाद का लगभग प्रितशत हो गया। पिरणाम व प, दे श ने 1990 के दशक म एक
बजट घाटे के साथ प्रवेश िकया जो िक केवल अि थर था।
आिथर्क सध
ु ार के िलए पूवार्पेक्षाएँ
िन निलिखत कारण से सध
ु ार की त काल आव यकता—
भारत की क्रेिडट रे िटंग म िगरावट ने वािणि यक उधार दे ना मिु कल बना िदया।
कुवैत संकट के प चात ् पि चम एिशया से नकदी प्रवाह कम हो गया, 1991 की
शु आत म एन.आर.आई. जमाओं को बड़े तर पर वापस ले िलया गया, एवं प्र यक्ष
िवदे शी िनवेश कम था।
पव
ू र् सोिवयत रा य की अिधक माँग और संयक्
ु त रा य अमेिरका वारा घरे लू खचर्
म व ृ िध के कारण सबसे गरीब दे श को सहायता कम होती जा रही है । सहायता के
प्रभावी और लागू उपयोग ने सध
ु ार के मामले को सु ढ़ िकया।
िव व म पुराने ि टकोण के पतन और वैि वक बाजार के उदय के बाद, भारत के
पास आिथर्क नीित सध
ु ार को शु करने के अलावा कोई िवक प नहीं।
आिथर्क सध
ु ार के उ दे य
25
आिथर्क सध
ु ार के िलए िवचार
2. आिथर्क सध
ु ार की प्रिक्रया को पूरा कर, अथार्त ् संरचना मक समायोजन िजससे दस वषर्
पव
ू र् इसे आंिशक, प्रगितशील और क- क कर िकया जा सके।
आज के आिथर्क सध
ु ार के घोिषत उ दे य एक क्रांितकारी संकेत ह। सध
ु ार का उ दे य
िन निलिखत उ दे य को प्रा त करना है —
6. एक ु ल
वाय , प्रित पधीर् और दब र् सावर्जिनक उ यम क्षेत्र।
1.2.4 आिथर्क सध
ु ार का सार-संग्रह
यह प ट प से जानना मह वपण
ू र् है िक आिथर्क सध
ु ार पैकेज क्या था और उतना ही
मह वपूणर् यह क्या नहीं था। आिथर्क सध
ु ार को अक्सर एक पैकेज के प म संक्षेप म
26
प्र तुत िकया जाता है , िजसम नीितय के तीन अलग-अलग सेट होते ह— (अ ण घोष,
1992)।
सध
ु ार के पिरणाम
2. िविभ न नीितय का समय और, अिधक मह वपूणर् बात, उनकी अनुक्रमण (और वा तव
म नीित म बार-बार होने वाले पिरवतर्न का ज्ञान िजसका भारतीय अथर् यव था के
भीतर अिनि चतताओं को बनाने का प्रभाव है )
27
भीतर रखना है , संरचना मक सध
ु ार का उ दे य म यम अविध म आिथर्क प्रिक्रया को
तेज करना था।
संरचना मक सध
ु ार नीितयाँ तब तक सफल नहीं हो सकतीं, जब तक िक एक ि थित तक
ि थरीकरण नहीं िकया गया हो। लेिकन जब तक हाल की अविध म सामने आए मु द की
पुनराविृ से बचने के िलए संरचना मक सध
ु ार नहीं िकए जाते, तब तक अपने आप म
ि थरीकरण पयार् त नहीं होगा। संरचना मक सध
ु ार मोटे तौर पर वािणि यक लाइसिसंग और
िविनयमन, िवदे शी यापार, एवं िनवेश, इसिलए िव ीय क्षेत्र के क्षेत्र म थे। िवदे शी रा ट्रीय
यापार नीित के संदभर् म, उ दे य आयात के संदभर् म शासन को उदार बनाना और िनयार्त
और आयात के बीच बेहतर संबंध बनाने के िलए जाँच करना था। अभी तक एक और
उ दे य टै िरफ दर को कम करना है । जहाँ तक आयात शु क का संबंध है , नीित क्रिमक रही
है और इसिलए भारत म टै िरफ दर को उ रो र कम िकया गया है तािक उ च लागत वाली
अथर् यव था से बचा जा सके। जहाँ तक िवदे शी िनवेश का संबंध है , नए नीितगत उपाय
िनि चत प से अतीत से एक अवसर प्रदान करते ह। पये के िविनमय अवमू यन की दर
के संबंध म, एिक्ज़म ि क्रप योजना, आंिशक पिरवतर्नीयता योजना, िविनमय की एकीकृत
दर, और इसिलए वतर्मान खाते पर बाद म पूणर् पिरवतर्नीयता अिनवायर् प से यह
सिु नि चत करने के िलए है िक िनयार्त आयात व ृ िध के अनु प नहीं है ।
1.2.5 आिथर्क सध
ु ार की प्रगित
आिथर्क सध
ु ार की सामग्री क्या रही है ? हम कायर्क्रम शु होने के बाद से अब तक घोिषत
प्रमख
ु नीितगत िनणर्य की सच
ू ी नीचे प्र तत
ु कर रहे ह।
यापार नीित म सध
ु ार : िनयार्त सि सडी समा त कर दी गई। दस
ू री ओर एिक्ज़म
ि क्रप को अग त 1994 से यापार खाते पर पये की तथाकिथत आंिशक
पिरवतर्नीयता (40 : 60 सत्र
ू ), िविनमय की एकीकृत दर और वतर्मान खाते पर पये
की पूणर् पिरवतर्नीयता के साथ बदल िदया गया था।
मख्
ु य प से रणनीितक मह व वाले या खतरनाक सामान बनाने वाले 6 उ योग से
अलग औ योिगक लाइसिसंग को समा त कर िदया गया।
28
िवदे शी िनजी िनवेश के िलए िनयम और प्रिक्रयाओं का पयार् त उदारीकरण। अिधकांश
उ योग म 50 प्रितशत इिक्वटी भागीदारी की अनुमित दे ने के िलए िविनमय
िविनयम अिधिनयम (FERA) को उदार बनाया गया; (FERA)को अब एक्सचज
मैनेजमट एक्ट (FEMA) से बदल िदया गया है ।
सामा य सावर्जिनक क्षेत्र िवषेष क्षेत्र को काट िदया गया है । सामा य सावर्जिनक क्षेत्र
के िलए अब केवल पाँच उ योग आरिक्षत ह (अथार्त ्, रक्षा संबंधी उ योग, परमाणु
ऊजार्, खिनज, तेल एवं खनन)। लेिकन िनजी क्षेत्र का उनके संबंध म भी उपयोग
करने के िलए वागत है । इसके अलावा, लाभ कमाने वाले कई सावर्जिनक उ यम
का आंिशक िनजीकरण शु िकया गया है । इस प्रकार, सावर्जिनक क्षेत्र के उपक्रम के
संबंध म उठाए गए कदम संबंिधत ह—
राजकोषीय नीित सध
ु ार—
o सरकारी खचर् म कटौती करने का संक प।
अब तक शु िकए गए िव ीय क्षेत्र के सध
ु ार इस प्रकार ह—
29
पशन िनिध जैसी िवदे शी सं थाओं ने भारतीय कंपिनय म पोटर् फोिलयो िनवेश की
अनुमित दी।
वणर् नीित म सध
ु ार पेश िकए गए। सामान िनयम के तहत सोने के आयात की
अनम
ु ित दी गई थी।
य यिप, यह यान िदया जाना चािहए िक िविध िकसी भी प्रकार से पूणर् नहीं है । अधूरे कायर्
असंख्य ह और इ ह तीन यापक ेिणय म िवभािजत िकया जा सकता है । जैसे—
सध
ु ार की शु आत ने कुछ अपेक्षाकृत अप्र यािशत सम याओं को सामने लाया है ,
िजन पर िवचार करने और उ ह संबोिधत करने की आव यकता है ।
30
िलए कई अंतराल छोड़ दे ता है । िजन िवषय से िनपटने की आव यकता है , उनका एजडा
वा तव म बहुत िव तुत है ।
आिथर्क सध
ु ार के घटक
प्रमख
ु नीितगत पिरवतर्न िज ह संक्षेप म आिथर्क सध
ु ार या उदारीकरण कहा जाता है , वे ह—
1. मैक्रो-आिथर्क ि थरीकरण उपाय म सि मिलत ह—
भग
ु तान संतुलन संकट का प्रबंधन,
राजकोषीय घाटा प्रबंधन, और
मौिद्रक नीित सध
ु ार।
2. ु क्षेत्रीय संरचना मक समायोजन सध
प्रमख ु ार, िजसम शािमल ह—
रा ट्रीय यापार नीित (और संब ध नीित)
औ योिगक नीित सध
ु ार,
सामा य सावर्जिनक क्षेत्र से संबंिधत नीितगत सध
ु ार,
प्र यक्ष िवदे शी िनवेश, प्रौ योिगकी और इिक्वटी भागीदारी को आकिषर्त करने के
िलए नीितयाँ
31
िपछड़े क्षेत्र के िलए पिरवहन सि सडी, रा ट्रीय नवीकरण िनिध, लघु उ योग इकाइय म िव-
िविनयमन, और प्र यक्ष िवदे शी िनवेश, नई प्रौ योिगकी और एन.आर.आई. िनवेश को
आकिषर्त करने के िलए मौिलक उदार नीितगत उपाय। उन अ यिधक उदार नीितगत उपाय
का एकमात्र उ दे य प्रित पधीर् माहौल बनाकर भारतीय उ योग म उ पादकता एवं दक्षता को
सु ढ़ करना था।
1.2.6 आिथर्क सध
ु ार की मह वपूणर् िवशेषताएँ
आिथर्क सध
ु ार की प्रिक्रया के दौरान नई नीित (एन.ई.पी.) ने नव-उदारवाद को प्रितिबंिबत
िकया। आिथर्क सध
ु ार का औिच य 1991 म सरकार वारा घोिषत आिथर्क नीित वारा
प्रदान िकया गया था। इसके मल
ू दशर्न को “पिरवतर्न के साथ िनरं तरता” के प म
अिभ यक्त िकया गया था। मख्
ु य उ दे य को अक्सर संक्षेप म प्र तुत िकया जाता है —
भारतीय औ योिगक अथर् यव था को अनाव यक नौकरशाही िनयंत्रण के झंझट से
मक्
ु त करने के िलए।
प्र यक्ष िवदे शी िनवेश (एफ.डी.आई.) पर प्रितबंध हटाने और घरे लू उ यमी के िलए
एकािधकार और प्रितबंधा मक यापार यवहार (एम.आर.टी.पी.) अिधिनयम के
प्रितबंध को कम करने के िलए।
आिथर्क सध
ु ार चार प्रमुख कदम अथार्त ् उदारीकरण, िनजीकरण, वै वीकरण एवं
सावर्जिनक-िनजी भागीदारी के मा यम से आगे बढ़े ह।
1. उदारीकरण
उदारीकरण नीित म पिरवतर्न की एक प्रिक्रया हो सकती है । िपछले एक दशक के दौरान,
उदारीकरण पूरे ग्रह म नीित की पहचान रहा है । व तुतः सभी सरकार ने आिथर्क
गितिविधय म यिक्तगत उ यम की भिू मका को यापक बनाने के िलए मह वपूणर् कदम
उठाए ह।
32
(3) सरकार की भिू मका के भीतर एक समायोजन, जैसा िक यूरोप की उ नत अथर् यव थाओं
के भीतर है । शासन के पिरवतर्न के िलए लगभग पूरी अथर् यव था म उ पाद और सेवाओं के
संयोजन से रा य के िवघटन की आव यकता है , और इसिलए एक मक्
ु त उ यम के
कामकाज के िलए उपयक्
ु त सं थागत और कानूनी ढाँचे की थापना। उन अथर् यव थाओं म
जो उ पादन की यव था के िलए मख्
ु य प से िनजी उ यम पर िनभर्र ह, रा य की
भिू मका को कम कर िदया गया है और सध
ु ार िकया गया है । िनयंित्रत संक्रमण और बाजार
अथर् यव था दोन म, इन कदम के पिरणाम व प रा य के उ यम का िनजीकरण हुआ है ।
बाजार अथर् यव थाओं म, िनजी क्षेत्र की गितिविध पर सरकारी िनयम म भी गहराई से
कमी आई है , और उभरती आव कताओं को पूरा करने के िलए िविनयम म कुछ सध
ु ार िकया
गया है , जैसे िक िव और पयार्वरण संरक्षण के क्षेत्र म।
उदारीकरण के लाभ
कुल िमलाकर दे श म, बाहरी लेन-दे न उदारीकरण रणनीितय का एक प्रमख
ु घटक है । यह
अक्सर इसिलए होता है क्य िक अंतरार् ट्रीय यापार, िनवेश और पँज
ू ी आंदोलन के उदारीकरण
से आवंटन दक्षता म सध
ु ार हो सकता है और अथर् यव था म अिधक गितशीलता पैदा हो
सकती है , इस प्रकार तेज आिथर्क प्रिक्रया प्रदान की जा सकती है । यापार के िलए खुलेपन
म व ृ िध के अपेिक्षत लाभ म से िन निलिखत ह—
बाहरी प्रित पधार् के कारण घरे लू यवसाय प्रित ठान की नवीनता और उ पादकता म
सध
ु ार।
उ पादक प्रितकूल बाहरी झटक को िनयंित्रत करने के िलए ताकत हािसल करते ह
और बेकार िकराए की माँग के प्रित कम संवेदनशील होते ह।
पँज
ू ी आंदोलन के उदारीकरण का अथर् है िक घरे लू बचत और घरे लू िनवेश के म य
की कड़ी को अक्सर िशिथल िकया जाता है , अथार्त ् घरे लू िनवेश को कमजोर घरे लू
33
बचत यवहार से बािधत नहीं होना चािहए और इसके िवपरीत, उ च घरे लू बचत
िवदे श म प्रवािहत होनी चािहए जहाँ उनकी माँग की जाती है ।
उदारीकरण की प्रगित
2. िनजीकरण
िनजीकरण का अथर् अलग-अलग लोग के िलए अलग-अलग ह। संकीणर् अथर् म, इसका अथर्
है वािम व का आम जनता (गम
ु नाम नौकरशाह और राजनेताओं) से िनजी (ज्ञात यिक्त)
हाथ म ह तांतरण। यापक अथ म, इसका अथर् है प्रित पधार् को बढ़ावा दे ना, अथार्त ्
बाजारीकरण या उदारीकरण, जहाँ माँग और आपूितर् को िकसी भी कद्रीकृत प्रािधकरण वारा
िनयंित्रत या िनदिशत होने के बजाय अपनी वतंत्र भिू मका िनभाने की अनुमित है । इन दो
चरम िवचार के बीच एक सं करण िनिहत है , जहाँ सावर्जिनक क्षेत्र के उपक्रम की इिक्वटी
का एक गंभीर या थोड़ा सा भाग सरकार वारा िनजी क्षेत्र को बेचा जाता है , कई सावर्जिनक
उपक्रम की गितिविधय का एक पड़ोस िनजी क्षेत्र को झक
ु ा हुआ है , िनजी क्षेत्र के काम
34
करने के िलए एक अब तक आरिक्षत क्षेत्र या उ योग खोला गया है , एक पूवर् सावर्जिनक
सेवा वापस ले ली गई है , सरकार एवं सावर्जिनक उपक्रम के प्रबंधन के बीच समझौता ज्ञापन
(एम.ओ.यू.) पर ह ताक्षर िकए गए ह। सं करण के इन िवक प की ताल को िविभ न
पिरणाम के साथ अ यास िकया गया है । इसके अलावा, िनजीकरण को संपूणर् िव व म
अलग-अलग नाम से समझा जाता है । उदाहरण के िलए, इसे यू.के. के भीतर “डी—
नेशनलाइजेशन” कहा जाता है , मेिक्सको म “िड—इनकॉप रे शन”, ऑ ट्रे िलया म “प्राथिमकता”,
यूज़ीलड म “एसेट से स प्रोग्राम” थाईलड म “ट्रांसफ़ॉमशन”, ीलंका म “पीपुल—आइजेशन”,
एवं पािक तान म “िविनवेश” कहा जाता है । 1983 म, पगइ
ु न िडक्शनरी ऑफ इकोनॉिमक्स
ने िनजीकरण को पिरभािषत िकया— (ए) “रा ट्रीयकृत उ योग या अ य वािणि यक उ यम
म गैर-सावर्जिनक िनवेशक को रा य के वािम व वाली इिक्वटी की िबक्री या संगठन के
सरकारी िनयंत्रण के नक
ु सान के िबना”, (बी) एक िवचार के प म िनजीकरण िजसम गैर-
रा ट्रीयकरण सि मिलत है (जहाँ सरकार ने अपनी भागीदारी बेची है ), (सी) िविनयमन (जहाँ
िनजी उ यम को प्रित पधार् करने के िलए सक्षम करने के साथ कानूनी बाधाओं को दरू कर
िदया गया था) और (डी) चाइिजंग (जहाँ एक उि लिखत अविध के िलए अनुबंध िदए गए
थे—यहाँ िनजी क्षेत्र का उ पादन िकया गया था और इसिलए सावर्जिनक क्षेत्र ने उ ह
उपभोक्ताओं को प्रदान िकया था)।
“अथर्शा त्र के श दकोश” के प चात ् के सं करण म, िनजीकरण को पुनः पिरभािषत
िकया गया, संगठन के भीतर सरकारी वािम व वाली भागीदारी की िबक्री को सि मिलत
करने के अलावा, अ य प्रकार के िनजीकरण एक रा य-समिथर्त काटल या उप-ठे केदार के
िविनयमन का आकार ले सकते ह। मख्
ु य प से रा य कमर्चािरय वारा प्रशािसत कायर् के
िनजी क्षेत्र के िलए। मख्
ु य चन
ु ौती वै वीकरण के तहत िवकास को सु ढ़ करने के िलए रा य
को बाजार के पहलओ
ु ं के साथ जोड़ना है । इस प्रिक्रया को आकार दे ने म गरीब को एक
अिभ न भिू मका िनभानी चािहए। इस प्रकार, िनजीकरण म संभावनाओं की एक अ छी
िनरं तरता सि मिलत है , एक भाग पर रा ट्रीयकरण और दस
ू रे पर बाजार अनश
ु ासन के बीच—
3. लाभो मख
ु ी प्रबंधन के अथर् म गैर-सावर्जिनक यवसाय प्रबंधन म संक्रमण।
35
6. िवकद्रीकरण, िनणर्य लेने, योजना बनाने और कायर् करने के िलए प्रािधकरण के
प्रितिनिधमंडल के अथर् म।
8. बाजार प्रिक्रयाओं (या प्रो साहन की बाजार जैसी प्रणाली) वारा प्रित पधार् को बढ़ावा
दे ना।
14. रा ट्रीयकरण—अंतरार् ट्रीय प्रित पधार् का दबाव, िवदे शी बाजार म गितिविध म व ृ िध,
पँूजी शेयर का अिधग्रहण एवं िवदे िशय वारा िनपटान के अिधकार।
3. वै वीकरण
36
1970 म, अमेिरका, जमर्नी और जापान म सीमा-पार लेन-दे न पर प्रितबंध लगा िदया
गया और सकल घरे लू उ पाद के अनुपात के प म इिक्वटी 5 प्रितशत से कम थी। 1999
तक इन दे श के संबंिधत आँकड़े बढ़कर 149 प्रितशत, 202 प्रितशत और 87 प्रितशत हो
गए थे। एक चयिनत दे श की सीमा पर, वै वीकरण िकसी दे श की अथर् यव था और इसिलए
शेष ग्रह के बीच अंतसर्ंबंध की सीमा को संदिभर्त करता है । एक तेजी से वैि वक दिु नया के
ू , सभी दे श िव व यापी अथर् यव था म समान
बावजद प से एकीकृत नहीं ह। िकसी भी दे श
की अथर् यव था के िव व यापी एकीकरण को जीने के िलए कुछ प्रमख
ु संकेतक जी.डी.पी. के
अनुपात के प म िनयार्त और आयात, प्र यक्ष िवदे शी िनवेश और पोटर् फोिलयो िनवेश के
आयात और िनयार्त प्रवाह, और प्रौ योिगकी ह तांतरण से संबंिधत रॉय टी भग
ु तान के
आवक और जावक प्रवाह ह। एक चयिनत उ योग की सीमा पर, वै वीकरण उस िडग्री को
संदिभर्त करता है , िजस पर एक दे श म उस उ योग के भीतर एक कंपनी की प्रित पधीर्
ि थित दस
ू रे दे श म अ यो याि त होती है । एक उ योग िजतना अिधक वैि वक होता है ,
उतना ही अिधक लाभ होता है िक एक िनगम िविभ न दे श म प्रौ योिगकी, िविनमार्ण
प्रगित, ब्रांड नाम और/या पँूजी का लाभ उठा सकता है ।
37
3. तकनीकी िवकास लगातार संचार म सध
ु ार कर रहे ह—हवाई पिरवहन, दरू संचार और
कं यूटर की लागत म 1980 के बाद से तेजी से िगरावट आई है । पिरवहन लागत म
िगरावट ने िशिपंग माल के मू य को कम कर िदया है । कं यूटर और दरू संचार के
मामले म, लागत म तेज िगरावट और इसिलए हाल ही म वीिडयो-कांफ्रिसंग और ई-
मेल जैसी प्रौ योिगिकय के यापक प से अपनाने ने दरू -दराज के काय के सम वय
को न केवल अिधक यवहायर् बि क अिधक िव वसनीय और कुशल बना िदया है ।
वै वीकरण की वापसी
38
1. कई अथर् यव थाओं म उ पाद और सेवाओं के मक्
ु त प्रवाह की अनुमित दे ने के िलए
सीमा शु क/कोटा/मात्रा मक प्रितबंध के प्रकार के भीतर यापार बाधाओं को कम
करना।
2. ऐसे वातावरण का िनमार्ण िजसके दौरान रा ट्र-रा य के बीच पँूजी (या िनवेश) का
मक्
ु त प्रवाह हो सकता है ।
इसका मख्
ु य प्रभाव भारत के सेवा क्षेत्र म दे खा गया, िवशेष प से सच
ू ना
प्रौ योिगकी (आई.टी.), सच
ू ना प्रौ योिगकी-सक्षम सेवाओं (आई.टी.ई.एस.),
आउटसोिसर्ंग, दरू संचार, पयर्टन, भिू म, पिरवहन, बिकंग, बीमा, मनोरं जन जैसे उ योग
के तेज गित से िवकास के भीतर।
20 वष के आिथर्क सध
ु ार ने िनयार्त, प्रवासन (घरे लू एवं अंतरार् ट्रीय) आिद की दर
म व ृ िध दे खी है ।
39
जोिखम प्रबंधन, आिद। पी.पी.पी. के िविभ न मॉडल ह और इसिलए भारत म मख्
ु य प से
अनुसरण िकए जाने वाले ह—
िरयायत
प्रबंधन अनब
ु ंध
संपि की िबक्री
1.2.7 सध
ु ार के 30 वष के म य संकट
वषर् 1991 को भारत के आिथर्क इितहास म एक मह वपूणर् मोड़ माना जाता है । डॉ.
मनमोहन िसंह और नरिस हा राव ने उदारीकरण, िनजीकरण एवं वै वीकरण के िस धांत को
लागू करके एक डूबती अथर् यव था को बचाया। 2008 से अमेिरका म शु हुआ वैि वक
संकट, भारत को दे र से प्रभािवत करता है , 2013 म चीज, कई िव लेषक के अनु प, 1991
से भी बदतर ह। मक्
ु त िगरते पये ने 70 पये/1 $ की दर और 85 िबिलयन डॉलर के बड़े
लेखांकन घाटे को छूने की कोिशश की। भारत के सकल घरे लू उ पाद का 4 प्रितशत भारतीय
अथर् यव था को एक क्षेत्र के कगार पर खड़ा करता है । इसिलए, सध
ु ार की माँग पर बहुत
यान िदया जा रहा है ।
40
1991 म, पये म 20 प्रितशत की िगरावट आई थी, लेिकन आज िविनमय की दर
अिनवायर् प से बाजार से जड़ ु ी हुई है और इस प्रकारझटके सहने के िलए तैयार है । 1991
के बाहरी क्षेत्र की भे यता संकेतक 2013 की तुलना म कहीं अिधक खराब हो गए थे।
भारत को खा य सरु क्षा िवधेयक को एवं गोल बनाने पर िवचार करना चािहए। खा य
सरु क्षा िवधेयक गरीब को बढ़ती खा य मद्र
ु ा फीित से अलग कर दे गा। यह आर.बी.आई. के
काम को आसान और कम जिटल बनाने म सक्षम है , क्य िक आर.बी.आई. को मद्र
ु ा फीित के
िनमार्ण म िवशेषज्ञता के िलए अिधक जगह िमलेगी। तब आर.बी.आई. िविनमार्ण मद्र
ु ा फीित
41
को मौिद्रक नीितय की संरचना के आधार के प म लेगा और उ योग के िलए याज दर
को कम करे गा।
1991 के सध
ु ार पैकेज को अंतरार् ट्रीय िनिध (आई.एम.एफ.) और इंटरनेशनल बक फॉर
िरकं ट्रक्शन एंड डेवलपमट वारा िनधार्िरत िकए जाने के कारण भारी आलोचना का सामना
करना पड़ा। इसके अलावा, पँज
ू ीपितय को बेचने के प म कई सध
ु ार की आलोचना की
गई। 2021 सध
ु ार, सध
ु ार के िलए ऐसा कद्रीकृत ि टकोण अब काम नहीं कर सकता है ।
इसे अक्सर तीन कृिष कानून से उपजे िवरोध म दे खा जाता है ।
1.2.8 िन कषर्
सध
ु ार के पीछे मख्
ु य प से उदारीकरण, नौकरशाही िनयंत्रण को प्रितबंिधत करना, प्र यक्ष
िवदे शी िनवेश पर प्रितबंध हटाना एवं सावर्जिनक क्षेत्र के उ यम पर भार कम करने की
ि ट से िनजीकरण को प्रो सािहत करना था। आिथर्क सध
ु ार की प्रमुख िवशेषता भारतीय
अथर् यव था को िव व यापी अथर् यव था के साथ एकीकृत करने की ि ट से सरकार वारा
प्र तुत एल.पी.जी. मॉडल था। जी.डी.पी. व ृ िध के संदभर् म आिथर्क सध
ु ार का प्रभाव
सकारा मक रहा है और िवदे शी िनवेश म व ृ िध भी संतोषजनक रही है । हालाँिक, हमारे दे श
की यापक सम याओं जैसे गरीबी एवं बेरोजगारी को इन सध
ु ार से प्रो साहन नहीं िमला है ।
कृिष िवकास की भी उपेक्षा की गई है , जैसा िक सामा य सावर्जिनक क्षेत्र वारा इसम पँज
ू ी
िनवेश के लगभग ठहराव के प म दे खा गया है । आिथर्क सध
ु ार भी औ योिगक िवकास को
गित दे ने म सफल नहीं रहे ह।
42
आिथर्क सध
ु ार ने भारतीय को िवदे शी बाजार म प्रवेश करने के िलए भारतीय की
तुलना म अिधक हद तक भारतीय बाजार म प्रवेश करने म सहायता की है । घाटे का िनरं तर
संतुलन इसका प्रमाण है । आिथर्क सध
ु ार भी क्षेत्रीय िवषमताओं को कम करने म िवफल रहे
ह। बड़े और छोटे रा य के बीच की खाई समय के साथ बढ़ती जा रही है ।
लंबी अविध की रणनीित के िलए, हम सात िवषय पर रा ट्रीय यान किद्रत करने की
आव यकता है —(1) बचत दर, िवशेष प से आम जनता और यिक्तगत कॉप रे ट क्षेत्र की
बचत दर के भीतर तेजी से व ृ िध, (2) तेजी से िनयार्त व ृ िध को ‘रा ट्रीय आिथर्क प्रयास’
बनाना, (3) िनयार्त पर अिधक यान दे ना, यावसाियक प्रित ठान वारा अनुसध
ं ान एवं एवं
िवकास पर अिधक यान दे कर भारतीय उ योग की तकनीकी क्षमता म सध
ु ार करना,
(4) बेहतर कर अनुपालन, (5) सामािजक याय के िलए अिधक सिक्रय, (6) पयार्वरण के
िलए अिधक सिक्रय, आधिु नकीकरण का पािरि थितक लागत को सन
ु े िबना आिथर्क प्रिक्रया
जारी नहीं रह सकती है , एवं (7) ग्रामीण िवकास जो कृिष और औ योिगक दोन क्षेत्र म
रोजगार के अवसर को ग्रामीण क्षेत्र म ले जा सकता है , तािक ग्रामीण सम ृ िध हो और
शहरी भीड़ और क्षय का अंत हो।
1. भारत म आिथर्क सध
ु ार कायर्क्रम के उ दे य क्या ह?
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2. वै वीकरण को ती करने के िलए उ रदायी चार कारक का उ लेख कीिजए।
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………………………………………..………………………………………………..………………………………………………..………………
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………………………..………………………………………………..………………………………………………..………………………………
1.2.10 संदभर् सच
ू ी
Dhingra, I.C. (2012): The Indian Economy: Environment and Policy (27th
edition.2012).
44
Nayyar, Deepak (1992): “Perceptions (interview column)”, The Economic
Times, February 18 and 25. — (1994): Fiscal adjustment: Why and For
Whom?” Times of India, February 27.
45
इकाई-2 : औ योिगक िवकास रणनीित और सामािजक संरचना पर इसका प्रभाव
2.1 संरचना
2.1.1 पिरचय
2.1.2 भारत म औ योिगक िवकास
2.1.3 िमि त अथर् यव था
2.1.4 िनजीकरण और भारतीय अथर् यव था
2.1.5 संगिठत और असंगिठत म पर प्रभाव
2.1.6 िन कषर्
2.1.7 अ यास प्र न
2.1.8 संदभर् सच
ू ी
2.1.1 पिरचय
1
Guest Faculty, Department of Political Science, School of Open Learning, University of Delhi
2
Guest Faculty, Department of Political Science, School of Open Learning, University of Delhi
46
पर िनभर्र रहते ह और अिधक अनुपात गरीबी रे खा से िन न तर पर रहते ह। इसके
अितिरक्त, भारतीय सं कृित के िवकास को दे खते हुए, सामािजक और आिथर्क पिरवतर्न को
िनदिशत करने वाले रा य के साथ एक कद्रीय िनयोिजत अथर् यव था का होना दे श के िलए
असंभव है । पिरणाम व प, िमि त अथर् यव था की खोज ही एकमात्र यवहायर् िवक प रहा
है । 1950 और वतर्मान की ि थित का िव लेषण करते हुए, अिधक कुछ नहीं बदला है ,
गरीबी की गंभीरता, क याण कायर्क्रम के िलए सरकार पर िनभर्रता, यूनतम रा य के प
म बाजार पर रा य का िनयंत्रण दे श की िविवधता को दे खते हुए भारत का समाधान नहीं हो
सकता है । िफर भी हम सावर्जिनक क्षेत्र के अपयार् त प्रदशर्न को दे ख सकते ह, ऐसा प्रतीत
होता है िक म रा य की यापकता और ह तक्षेप करने वाली भिू मका म इसकी प्रासंिगकता
भी खो गई है ।
47
सावर्जिनक क्षेत्र की भिू मका : िवकास और रणनीित म सावर्जिनक क्षेत्र को एक प्रमख
ु
भिू मका दी गई थी। क्य िक भारी उ योग िनवेश बड़ा था, गभर् धारण का समय अ यिधक
लंबा था, और लाभप्रदता कम थी।
(ए) पूव-र् सध
ु ार अविध
1951 के बाद से, लोकिप्रय ‘पंचवषीर्य योजनाओं’ के प्रारं भ के साथ भारतीय अथर् यव था ने
िवकास के सकारा मक संकेत िदखाना शु कर िदया। पहले दो दशक के दौरान, िवशेष प
से दस
ू री (1956-61) और तीसरी योजना (1961-66) के दौरान, औ योिगक िव तार
मह वपूणर् था। दस
ू री योजना (1956-61) भारतीय औ योिगक इितहास म िनणार्यक क्षण थी,
क्य िक इसने रा ट्र म एक औ योिगक क्रांित का प्रारं भ िकया, िवशेष प से मौिलक
औ योिगक शिक्त िवकिसत करने के िवशय म। अगली तीसरी योजना के दौरान भी गित को
बनाए रखा गया था। िवकास की इस अविध को ‘िविनयमन के साथ औ योिगक िवकास’ की
अविध के प म जोड़ा जा सकता है । संपूणर् समय म दे खी गई औ योिगक िवकास की उ च
दर िन न कारण से थी—
48
तीसरी पंचवषीर्य योजना के बाद, िविनमार्ण क्षेत्र म ठहराव के साथ औ योिगक िवकास धीमा
हो गया, प्रमख
ु मजदरू ी व तुओं की प्रित यिक्त घरे लू उपल धता म िनरं तर िगरावट, गरीबी
म रहने वाले लोग की संख्या म व ृ िध, और एक ‘कुलीन-उ मख
ु उ पादन-उपभोग संरचना’
िदखाई दे रही थी। मानव िनिमर्त फाइबर और महीन व त्र, पेय पदाथर्, सग
ु ध
ं और स दयर्
प्रसाधन, समाज के कुलीन वगर् पर यान किद्रत करने वाले अ य उ पाद ने उ पादन म
तुलना मक प से बड़ी व ृ िध दे खी। यह ि थित बड़े तर पर बाजार की व तुओं के िलए
िनवेश ग्रेड पँूजी के आवंटन के पिरणाम व प उ प न हुई। नतीजतन, 1980 के दशक तक
औ योिगक संरचना म असंतुलन दे खा गया था।
1980 के दशक के दौरान, छठी पंचवषीर्य योजना (1980-85) वारा आिथर्क उदारीकरण
की शु आत पर प्रकाश डाला गया था। राशन की दक
ु ान बंद कर दी गईं और मू य सीमा
हटा दी गई। इससे भोजन की लागत के साथ-साथ रहने की लागत म व ृ िध हुई। इस समय
के दौरान, औ योिगक िव तार की दर म व ृ िध हुई, और िपछली अविध के ठहराव को भंग
कर िदया गया। इस िबंद ु पर नेह वादी समाजवाद का अंत हो गया। अिधक जनसंख्या से
बचने के िलए, पिरवार िनयोजन भी शु िकया गया था।
49
सामा य प से सकल घरे लू पँूजी िनमार्ण और िवशेष प से सावर्जिनक िनवेश की
उ च दर और प्रितमान के पिरणाम व प बेहतर बुिनयादी ढाँचा प्रदशर्न।
(बी) सध
ु ार के उपरांत की अविध
दस
ू रा मह वपूणर् संरचना मक पिरवतर्न िनयार्त प्रित पधार् मकता म व ृ िध का होना था,
जो उ च िनयार्त अनुपात म पिरलिक्षत होता था। कुल िनयार्त ( यापार और िछपी हुई प्राि त
या जी.डी.पी.) का अनुपात 2000-01 म 16.9 फीसदी से बढ़कर 2007-08 म 33.2 फीसदी
हो गया। िव ीय गहनता तीसरा िवकास है , जो हाल के वष म हुआ है । बक ऋण म व ृ िध
की प ृ ठभिू म म, बक संपि /जी.डी.पी. अनुपात 2000-01 म 48 से बढ़कर 2005-06 म 80
50
हो गया। सभी तीन संरचना मक िवकास म याज की दर कम होना एक सामा य घटक रही
ह। याज दर म कटौती से राजकोषीय सु ढ़ीकरण म सहायता िमली, कंपनी की प्रित पधार्
म व ृ िध हुई और इसके पिरणाम व प खुदरे ऋण म भारी उछाल आया। चालू और पँज
ू ी
दोन खात म अंतवार्ह म व ृ िध ने कम याज दर की अनुमित दी। दस
ू रे श द म, यह
प ट है िक औ योिगक क्षेत्र ने अपने पँज
ू ी टॉक को बढ़ाकर मजबूत अथर् यव था की माँग
का उ र िदया।
51
2014 म योजना आयोग को नीित आयोग से बदल िदया गया था (नीित आयोग का
अथर् नेशनल इं टी यूट फॉर ट्रांसफॉिमर्ंग इंिडया था)। योजना आयोग एक सोिवयत शैली की
एजसी थी, िजसने दे श के िलए पंचवषीर्य योजनाएँ तैयार कीं और सलाह दी िक प्र येक रा य
को कद्रीय धन कैसे आवंिटत िकया जाए। रा य के साथ परामशर् करने के बाद, नीित आयोग
ं टक के
वतर्मान म सरकार के िथक प म काम करता है , म यम और दीघर्कािलक नीितयाँ
थािपत करता है और उ ह साल-दर-साल योजनाओं म िवभािजत करता है ।
भारत सरकार ने 8 नवंबर, 2016 को 500 और 1,000 के नोट के िवमद्र
ु ीकरण की
घोषणा की। िवमद्र
ु ीकृत बक नोट के मआ
ु वजे म, यह 500 और 2,000 के नए नोट भी
लाए। प्रधान मंत्री नरद्र मोदी ने जोर दे कर कहा िक यह कदम अवैध और नकली मद्र
ु ा के
उपयोग को प्रितबंिधत करे गा, िजसने गैर-कानूनी गितिविधय और आतंकवाद को बढ़ावा
िदया, साथ ही छाया अथर् यव था पर भी अंकुश लगाया। बदलाव के पिरणाम व प दे श के
औ योिगक उ पादन और जी.डी.पी. िवकास दर दोन कम हो गए। भारत सरकार ने दोन
मामल म औपचािरक मौिद्रक प्रणाली के बाहर संग्रहीत ‘काले धन’ के मा यम से कर
धोखाधड़ी का मक
ु ाबला करने के उ दे य से, 1946 और 1978 म दो बार पहले बकनोट का
िवमद्र
ु ीकरण िकया था।
नरद्र मोदी सरकार ने कारोबार करने म आसानी को बढ़ाने की प्राथिमकता दी है । इसके
िह से के प म, व तु और सेवा कर (जी.एस.टी.) को जल
ु ाई 2017 म अपनाया गया था।
भारत वतर्मान म अप्र यक्ष कर कोड वाले कुछ दे श म से एक है , जो संघीय और रा य कर
िनयम को जोड़ता है । कुछ तकनीकी किठनाइय और यवसाय , िवशेष प से छोटे और
म यम यवसाय के िलए बढ़ते अनप
ु ालन बोझ के बावजद
ू , नई प्रणाली ने रा य के बीच
कर बाधाओं को हटा िदया है और एक एकल सामा य बाजार बनाया है , िजससे अंतरार् यीय
लेवी के भग
ु तान के िलए ट्रक को सीमाओं पर िबना के वतंत्र प से चलने की अनुमित
िमलती है ।
युवा उ यिमय ने िपछले दशक के दौरान भारत म िडिजटल भग
ु तान, ऑनलाइन
शॉिपंग, ऑन-िडमांड िडलीवरी, िशक्षा, सॉ टवेयर और अ य क्षेत्र म अवधारणाओं के साथ
प्रयोग िकया है , िजसके पिरणाम व प कई यवसाय संघ बने ह। इसके उदय के
पिरणाम व प एंजेल और वचर कैिपटल, इ क्यूबेटसर् और एक्सेलेरेटसर् के साथ-साथ नए
सामािजक उपभोग प्रितमान के एक नए पािरि थितकी तंत्र का उदय हुआ है ।
औ योगीकरण का प्रितमान
वतंत्रता के बाद से अपनाए गए औ योगीकरण का प्रितमान भारत म औ योिगक िव तार
की दस
ू री प्रमख
ु िवशेषता है । औ योगीकरण को दो ेिणय म िवभािजत िकया जा सकता
है —(ए) उ योग के कायार् मक प्रितमान और (बी) उ योग के वािम व प्रितमान।
52
(ए) उ योग का कायार् मक प्रितमान
उपयोग-आधािरत या कायार् मक वगीर्करण मानदं ड के आधार पर िविभ न उ योग को चार
प्रभाग म बाँटा जा सकता है —
ए) बुिनयादी उ योग,
बी) पँज
ू ीगत सामान उ योग,
सी) म यवतीर् माल उ योग, और
दस
ू रा चरण 1965 से 1975 तक था। जैसा िक पहले कहा गया था, औ योिगक िवकास
की दर िन निलिखत चरण म व ृ िध होने लगी, जो 1960 के दशक के म य म शु हुई,
जहाँ िवकास कुछ हद तक अिधक था, अिधकांश उ योग या तो सीधे थे या परोक्ष प से
‘कुलीन-उ मख
ु उपभोग के सामान’ क्षेत्र के िलए, जैसे उपभोक्ता िटकाऊ व तुएँ, िजसे
‘भारतीय औ योगीकरण का िसंड्रल
े ा’ करार िदया गया है ।
1975-1990 तीसरा चरण था। इस समय के दौरान, औ योिगक िवकास बहुत िविवध
था, सभी मख्
ु य क्षेत्र म िवकास दर म व ृ िध हुई थी। बिु नयादी सामान उ योग, साथ ही
पँज
ू ीगत सामान और म यवतीर् माल क्षेत्र, काफी ि थर दर से बढ़े ।
1990 से 2008 तक चौथा चरण है । जबिक 1990 के दशक म यापार उदारीकरण के
प्रभाव के प म बिु नयादी और पँज
ू ीगत व तुओं के क्षेत्र के आनप
ु ाितक योगदान म कमी
आई, म यवतीर् और उपभोक्ता व तओ ु ं के क्षेत्र म व ृ िध हुई। अंतरार् ट्रीय यापार, िव ीय
और वा तिवक क्षेत्र को आिथर्क िवकास म अपनी उिचत भिू मका िनभाने के िलए प्रो सािहत
करने की भावना, अंितम त व के बारे म िनणर्य वयं उ योग वारा िकए जाने चािहए।
िटकाऊ उपभोक्ता व तुओं के प्रितशत म भी उ लेखनीय व ृ िध हुई है ।
53
जैसे िक म यवतीर् और यहाँ तक िक उपभोक्ता गैर-िटकाऊ, ने धीमी दर पर, कुल व ृ िध म
सहायता की। पँूजीगत व तुओं के उ पादन म ती गित से व ृ िध जारी रही, जो संभवत,
उ च िनवेश दर को दशार्ती है । हालाँिक, 2008-09 की पहली ितमाही से म यवतीर् व तुओं
की व ृ िध म कमी के पिरणाम व प कुल व ृ िध म भारी िगरावट आई, िजसे 2008-09 की
तीसरी ितमाही म बढ़ाया गया जब शेष ेिणय की व ृ िध म तेज िगरावट दे खी गई। छठे
वेतन आयोग की िसफािरश को अपनाने के बाद, एक िव तारवादी मौिद्रक नीित और बकाया
भग
ु तान के साथ वेतन व ृ िध के पिरणाम व प कम याज दर ने उपभोक्ता िटकाऊ व तुओं
की माँग को प्रो सािहत िकया। दस
ू री ओर, उपभोक्ता गैर-िटकाऊ व तुएँ प्रदशर्न के मामले म
िपछड़ती जा रही ह। इस क्षेत्र म व ृ िध की प्रविृ काफी अि थर रही है । अ य उपयोग-
आधािरत ेिणय के बीच बुिनयादी उ पाद और म यवतीर्, 2009-10 म तेजी से लगातार
िवकिसत हुए।
54
िमि त अथर् यव था मॉडल चुना, िजसम सावर्जिनक और िनजी क्षेत्र एक दस
ू रे के पूरक ह,
जबिक सामा य िज मेदािरय या प्रगित म सिक्रय भागीदार रहते ह। हमने एक आ मिनभर्र
अथर् यव था के िलए आधार तैयार करने के िलए िवकास की एक उ च और िनरं तर दर,
लोग के रहने की ि थित म क्रिमक सध
ु ार, और गरीबी और बेरोजगारी के उ मल
ू न के ल य
के साथ लोकतांित्रक योजना को लागू िकया। 1990 के दशक म, योजना रणनीित और बाजार
के संबंध म रा य की भिू मका की क पना बाजार के पक्ष म नाटकीय प से बदल गई।
संक पना
अथर् यव था के मख्
ु य क्षेत्र के सावर्जिनक क्षेत्र वारा यि त के तर के आधार पर, यह
िमि त अथर् यव था तदथर् या यवि थत हो सकती है । िकस सीमा तक दोन क्षेत्र को िमला
िदया गया है और अथर् यव था के समग्र नीितगत उ दे य के साथ सामंज य थािपत िकया
गया है , यह जाँच करने के िलए एक अ य कारक है । यह एक ऐसी अथर् यव था होगी, जो
सावर्जिनक िवतरण प्रणाली, गरीबी उ मल
ू न कायर्क्रम और बाजार अथर् यव था िस धांत के
आधार पर उ पादन प्राथिमकताओं के संयोजन के मा यम से गरीब िह स के क याण ल य
को प्राथिमकता दे ती है । यह एक ऐसी अथर् यव था भी हो सकती है , जो िन पक्षता, रोजगार
और आ मिनभर्रता जैसे सामािजक ल य को प्राथिमकता दे ती है । िमि त अथर् यव था के
प्र येक प म योजना और बाजार अथर् यव था एकीकरण की एक अलग िडग्री होगी।
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यह दावा िकया जाता है िक प्र येक अथर् यव था एक िमि त अथर् यव था है और इस
प्रकार ‘िमि त अथर् यव था’ श द न तो सटीक है और न ही यावहािरक। हालाँिक, यह
पहचानना मह वपूणर् है िक िनयोिजत और बाजार अथर् यव थाओं के िवचार म अलग-अलग
वैचािरक और यावहािरक िवशेषताएँ ह। िमि त अथर् यव था की धारणा इन दो चरम
सीमाओं के बीच एक समझौता है । आिथर्क, राजनीितक और सामािजक चुनौितय से िनपटने
के िलए उपकरण और रणनीितय के साथ यह धारणा अनुकूलनीय है ।
पँज
ू ीवाद : पँज
ू ीवाद को एक आिथर्क प्रणाली के प म विणर्त िकया गया है जो एक
बाजार अथर् यव था, लाभ के उ दे य और उ पादन के साधन के िनजी यिक्त और कॉप रे ट
वािम व के िलए एक मह वपूणर् भिू मका के साथ यिक्तगत पहल पर जोर दे ती है । उ पादन
के सभी साधन, िजसम खेत, कारखाने, खदान और पिरवहन शािमल ह, पँज
ू ीवाद के िनयंत्रण
म िनजी लोग के यवसाय का वािम व ह। इन औ योिगक संपि य के मािलक िनजी लाभ
उ प न करने के िलए उनका उपयोग करने के िलए वतंत्र ह, क्य िक वे उिचत समझते ह।
रा य या सरकार लोग की आिथर्क गितिविधय म सबसे कम भिू मका िनभाती है । क्य िक
िनजी यिक्तय को इस तरह की गितिविधय को करना आकषर्क नहीं लग सकता है ,
सरकार केवल रक्षा, िवदे शी मामल , धन और िसक्के, और कुछ मह वपण
ू र् नागिरक काय
जैसे सड़क और पल
ु के िनमार्ण को संभालती है । एडम ि मथ के अनस
ु ार यिक्तगत और
सामािजक िहत अटूट प से जड़ु े हुए ह। नतीजतन, आिथर्क काय म सरकार की कोई
भिू मका नहीं होती है । रा य के िलए ऐसी कारर् वाइयाँ अिनवायर् प से असंभव थीं। यिद
सरकार इस कायर् को करती है तो यह समाज के संसाधन की बबार्दी होगी। चीज को उनके
अपने पा यक्रम का पालन करने के िलए छोड़ िदया जाना चािहए, इसिलए लोग की आिथर्क
गितिविधय को िनदिशत करने के िलए िकसी योजना या पूव-र् िनधार्िरत ढाँचे की कोई
आव यकता नहीं थी।
56
पँज
ू ीवाद की अिनवायर्ता
प्रित पधा : िनमार्ताओं, िवक्रेताओं, ग्राहक , नौकरी चाहने वाल , िनयोक्ताओं और िनवेशक के
बीच प्रित पधार् है । यह लागत प्रबंधन, मू य म कटौती, िवपणन और अ य तरीक से पूरा
िकया जाता है ।
उपभोक्ता संप्रभत
ु ा : एक मक्
ु त बाजार अथर् यव था म, उपभोक्ताओं के िहत और िचयाँ
आिथर्क गितिविधय का मागर्दशर्न करती ह। उपभोक्ता प्रणाली म एक मह वपण
ू र् भिू मका
िनभाता है ।
बिु नयादी आिथर्क िवक प बनाने के िलए एक कद्रीय िनयोजन िनकाय की अनप
ु ि थित
होती है , इसिलए प्रित पधीर् उ दे य के बीच उ पादक संसाधन को आवंिटत करने के िलए,
बाजार अथर् यव था मू य िनधार्रण तंत्र पर िनभर्र करती है , जो प्रणाली के काम-काज के
िलए मह वपण
ू र् है । िकसी भी असंतल
ु न को मू य िनधार्रण प्रणाली और माँग-आपिू तर् पर पर
िक्रया वारा वाभािवक
प से हल िकया जाता है । उ च पािर िमक बढ़ी हुई दक्षता और
किठन प्रयास के िलए उपयुक्त पुर कार प्रदान करता है । वतर्मान और भिव य की पीिढ़य
को अिधक आय प्रदान करने के िलए बचत और िनवेश करने के िलए एक प्रो साहन भी है ।
57
सरकार को समग्र क याण प्रदान करने की अनम
ु ित दे ते हुए यापार म सरकार की सीमा,
और इसम शािमल िखलािड़य के वाथर् से बाजार की सिु वधा होती है ।
पँज
ू ीवाद और समाजवाद की दो चरम सीमाओं का वणर्न करने के बाद, िमि त अथर् यव था
को अब कायार् मक श द म पिरभािषत िकया जा सकता है । िन निलिखत िवशेषताएँ िमि त
अथर् यव था को पिरभािषत करती ह—
एक जो कुछ मक्
ु त बाजार की िवशेषताओं और कुछ समाजवादी घटक के साथ
संगिठत है , और शु ध पँज
ू ीवाद और शु ध समाजवाद के बीच म कहीं पड़ता है ।
सभी ज्ञात ऐितहािसक और वतर्मान अथर् यव थाओं म पाए जाते ह, जबिक कुछ
अथर्शाि त्रय ने िविभ न प्रकार की िमि त अथर् यव थाओं के आिथर्क प्रभाव की
आलोचना की है ।
58
यावसाियक वतंत्रता और उपभोक्ता पसंद होना।
59
तुलना मक लाभ प्रा त करने के िलए, दे श अक्सर बाजार म ह तक्षेप करते ह, तािक
िविश ट उ योग का समथर्न करने के िलए समह
ू बनाकर और प्रवेश बाधाओं को कम िकया
जा सके। यह 20वीं सदी के पूरे आिथर्क मॉडल म पूवीर् एिशयाई दे श म यापक था िजसे
िनयार्त-नेत ृ व िवकास के प म जाना जाता है , और यह क्षेत्र तब से क्षेत्र की एक िव तत
ृ
ंख
ृ ला के िलए दिु नया भर म िविनमार्ण कद्र के
प म िवकिसत हुआ है । कुछ दे श व त्र के
िलए पहचाने गए ह, जबिक अ य िविनमार्ण के िलए जाने जाते ह, और िफर भी अ य
इलेक्ट्रॉिनक घटक कद्र ह। इन उ योग का मह व तब बढ़ गया, जब सरकार ने आकार म
बढ़ने के साथ-साथ नवेली उ यम की रक्षा की और िशिपंग जैसी पूरक सेवाओं का समथर्न
िकया।
60
1991 म आिथर्क उदारीकरण के बाद, अब तक िनजी क्षेत्र के िलए िवशेष सावर्जिनक
क्षेत्र के उ योग को पेश िकया गया था। नतीजतन, भारतीय उ यिमता को एक मह वपूणर्
बढ़ावा िमला। हालाँिक सावर्जिनक क्षेत्र िनवेश के मामले म मह वपूणर् भिू मका िनभा रहा है ,
लेिकन यह प्रविृ िगरावट पर है । कोयला, पेट्रोिलयम, दरू संचार, िबजली उ पादन और उवर्रक
कुछ ऐसे उ योग ह, जहाँ सावर्जिनक क्षेत्र का दबदबा बना हुआ है । कद्रीय सावर्जिनक क्षेत्र के
उ यम (सी.पी.एस.ई.) वारा परमाणु ऊजार् उ पादन पर पूरी तरह से एकािधकार है ।
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आवंटन को सक्षम बनाता है । आय, धन और अ य असमानताओं को कम करने और गरीबी
और बेरोजगारी से छुटकारा पाने की कोिशश करके, िमि त अथर् यव था भारत म एक
मह वपूणर् भिू मका िनभाती है । िमि त अथर् यव था म सामािजक क याण को अिधकतम
िकया जाता है । इसम क याणकारी रा य के सभी लक्षण ह।
िनजीकरण
ए) कुल िवरा ट्रीयकरण, िजसम सभी रा य के वािम व वाली आिथर्क संपि िनजी हाथ
म थानांतिरत कर दी जाती है । भारत म, ऑलिवन िनसान, मगलोर केिमकल एंड
फिटर् लाइजसर् और महारा ट्र कूटर जैसी फम को िनजी िनवेशक को बेचा गया था।
डी) टोकन िनजीकरण, िजसे घाटे का िनजीकरण या िविनवेश भी कहा जाता है , राज व
उ प न करने और बजट घाटे को कम करने के िलए एक लाभदायक सावर्जिनक क्षेत्र के
62
उ यम के 5-10 प्रितशत की िबक्री बाजार म होती है । सरकार पये जट
ु ा सकती है ।
1991-92 और 2011-12 के बीच िविनवेश वारा 60,000 करोड़। 1992 और 2012
के बीच, िविनवेश प्राि तयाँ आय की कमी के औसतन 7 प्रितशत और राजकोषीय घाटे
के 4 प्रितशत को कवर करने म सफल रहीं।
प्रितयोिगता म सध
ु ार करने के िलए।
रा य के िव को बढ़ाने के िलए।
63
यिक्तगत िहत से प्रेिरत लागतहीन सौदे बाजी के मा यम से, िनजी क्षेत्र के पास बाहरीताओं
की सम या को दरू करने म सफल रणनीितयाँ ह। िनजीकरण को तीन ेिणय म िवभािजत
िकया जा सकता है ।
भारत सरकार ने िमि त अथर् यव था को अपनाया, िजसम सावर्जिनक और िनजी दोन क्षेत्र
को कायर् करने की अनुमित है । िनजी क्षेत्र को 1951 के उ योग (िवकास और िविनयमन)
अिधिनयम, साथ ही अ य संबंिधत कानून का पालन करना पड़ा। इस संदभर् म, 1956 के
औ योिगक नीित संक प ने घोिषत िकया िक िनजी क्षेत्र के औ योिगक उ यम को रा य
की सामािजक और आिथर्क नीितय के अनु प होना चािहए और उ योग (िवकास और
िविनयमन) अिधिनयम और अ य संबंिधत कानून के तहत िविनयमन और िनयंत्रण के
अधीन ह गे। भारत सरकार समझती है िक इस तरह के उपक्रम को रा ट्रीय योजना की
मह वाकांक्षाओं और उ दे य के अनुसार िवकिसत करने के िलए िजतना संभव हो उतना
लचीलापन प्रदान करना बेहतर होगा।
64
वतंत्रता के बाद, िनजी क्षेत्र ने िविभ न उपभोक्ता उ पाद क्षेत्र की थापना की।
उपभोक्ता उ पाद के मामले म भारत इस समय लगभग आ मिनभर्र है । 1956 के िनणर्य के
अनुसार, ‘म यवतीर् उ पाद और मशीनरी बनाने वाले उ योग िनजी क्षेत्र म थािपत िकए जा
सकते ह’। रासायिनक उ योग जैसे पट, वािनर्श और लाि टक, साथ ही मशीन टू स,
मशीनरी और लांट, लौह और अलौह धातु, रबर, कागज और अ य सामग्री बनाने वाली
कंपिनयाँ इसके पिरणाम व प उभरी ह।
65
सरकार पर िव ीय और प्रशासिनक बोझ को कम करना।
66
सवैतिनक अवकाश, और काम के घंटे िनधार्िरत करने सिहत प्रो साहन प्रदान िकए जाते ह,
मात ृ व अवकाश का उ लेख नहीं करने के िलए, जो असंगिठत क्षेत्र म उपल ध नहीं है ।
2.1.6 िन कषर्
हमारी आजादी के बाद से, आिथर्क िवकास और प्रगित के हमारे ि टकोण की नींव म से
एक योजना बना रहा है । आज, हालाँिक वै वीकरण, उदारीकरण, आिथर्क िनणर्य लेने म
बाजार की ताकत के बढ़ते मह व, िनजी क्षेत्र के िनवेश के बढ़ते प्रितशत और दे श की आम
तौर पर बदलती आिथर्क ि थितय के संदभर् म िनयोजन की प्रासंिगकता और आव यकता पर
सवाल उठाया जा रहा है । मक्
ु त बाजार के क टरपंिथय के अनुसार बाजार सध
ु ार योजना के
साथ असंगत ह। उनका मानना है िक बाजार प्रणाली सभी िवकास और अ य आिथर्क काय
67
के सम वय के िलए पयार् त है । उनका यह भी मानना है िक अगर बाजार कई एजिसय के
संचालन को िविनयिमत करने म असमथर् है , तो सरकार ऐसा कभी नहीं कर पाएगी।
……………………………………………………………………………………………………………………………………..………………………
……………………………………………………………………………………………………..………………………………………………………
……………………………………………………………………………..………………………………………………………………………………
……………………………………………………..………………………………………………………………………………………………………
……………………………………………………………………………………………………………………………………..………………………
……………………………………………………………………………………………………..………………………………………………………
……………………………………………………………………………..………………………………………………………………………………
……………………………………………………..………………………………………………………………………………………………………
68
2.1.8 संदभर् सच
ू ी
2. T.J. Byres (ed.) State, Plan, Development and liberalist in India, OUP,
Delhi, 2000.
69
इकाई-2
2.2 संरचना
2.2.1 पिरचय
2.2.9 सू म मू यांकन
2.2.10 िन कषर्
2.2.1 पिरचय
70
सेवािनविृ के िलए बचत करते ह और पयार् त िड पोजेबल होते ह कुछ िवलािसता जैसे िक
बाहर खाने और छु िटय को वहन करने के िलए बचत।
1
Marx, K. (2005). Marxists Internet Archive, 2002.
71
िपछली सदी म वैि वक अथर् यव था मख्
ु य प से सभी दे श के म यम वग वारा
संचािलत थी। बीत कई दशक के दौरान वैि वक आिथर्क िवकास हुआ है , िजसका ेय
अिधकतम संयक्
ु त रा य अमेिरका, यरू ोप और अ य उ नत दे श म म यम वग के बीच बढ़े
हुए खचर् को िदया जाता है । इस समह
ू को लंबे समय से एक संप न और ऊजार्वान आिथर्क
शिक्त के प म दे खा गया है ।2 वे उ पादक िनवेश के िलए एक मजबत
ू आधार प्रदान करते
ह और अ य सामािजक प्रिक्रयाओं को प्रो सािहत करने म एक मह वपूणर् घटक ह जो एक
व थ समाज के िवकास म योगदान करने वाले कारक के िवकास और प्रसार को प्रो सािहत
करते ह। अिधकांश उ पाद और सेवाओं के िलए म यम वगर् एक मह वपूणर् बाजार है । यह
समह
ू प्र यक्ष या अप्र यक्ष प से दे श के कर धन का एक मह वपूणर् भाग एकत्र करता है ,
और वे दे श की राजनीितक ि थरता म भी मह वपण
ू र् योगदान दे ते ह। थरु ो के अनुसार, एक
व थ लोकतांित्रक समाज के िलए पयार् त म यम वगर् की आव यकता होती है और संप न
व गरीब यिक्तय से बने समाज म कोई राजनीितक या आिथर्क म यम आधार नहीं होता
है ।3
2
Brosius, C. (2012). India’s middle class: New forms of urban leisure, consumption and prosperity. Routledge.
3
Thurow, Lester C. (1984, February 5). Business Forum; The Disappearance Of The Middle Class. The New
York Times. nytimes.com/1984/02/05/business/business-forum-the-disappearance-of-the-middle-class.html.
4
Blackburn, McKinley & Bloom, David, (1985). What Is Happening to the Middle Class?, American
Demographics 7, no. 1:19–25.
72
आधी से अिधक जनसंख्या म यम वगर् तक पहुँच गई है ।5 यह अिधकतर अनुमेय अंतरार् ट्रीय
यापार िनयम के कारण था जो िवदे शी िनगम को इन दे श म स ते म तक पहुँच की
अनम
ु ित दे ता था। िनवार्ह करने वाले िकसान ने िनि चत वेतन के िलए उ योग म काम
करने के िलए अपने खेत को छोड़ िदया, िजसके पिरणाम व प कई दे श म तेजी से
शहरीकरण हुआ।
5
Special Reporter. (2009, February 14). Who's in the middle? The Economist.
https://www.economist.com/special-report/2009/02/14/whos-in-the-middle
6
Special Reporter. (2018, January 11). India’s missing middle class. The Economist.
https://www.economist.com/briefing/2018/01/11/indias-missing-middle-class
7
Ibid.
73
भारतीय म यम वगर्, “... यिक्तय का वगर्, जो लगभग अठारहवीं शता दी के म य से
समकालीन समय तक िब्रिटश सामािजक नीित म पिरवतर्न और नई आिथर्क प्रणाली, उ योग
के प्रारं भ और साथ ही, नए यवसाय के िन निलिखत उ भव के पिरणाम व प उ प न
हुआ व इसी के प म पिरभािषत िकया गया है ।” भारतीय म य वगर् के िनमार्ण म योगदान
दे ने वाले चर उन लोग से िभ न थे, िज ह ने पि चम म म य वगर् के उदय म योगदान
िदया। बाद के उदाहरण म, म यम वगर् मख्
ु य प से अठारहवीं शता दी की औ योिगक
क्रांित के पिरणाम व प उ प न हुआ, िजसके कारण आिथर्क और तकनीकी प्रगित हुई और
बड़े पैमाने पर यांित्रक िनमार्ण हुआ। िब्रिटश भिू म और कानूनी नीित म पिरवतर्न के
पिरणाम व प भारतीय म य वगर् का उदय हुआ, िजसके प चात ् पि चमी िशक्षा और
प्रौ योिगकी, आधिु नक पँज
ू ीवादी उ यम, संचार म व ृ िध और िब्रिटश शासन के लगभग 200
वष के दौरान आिथर्क िवकास हुआ।
नई अथर् यव था म उ ह ने जो भिू मका िनभाई, उसके अनुसार उभरता हुआ म यवगर् चार
भाग म िवभािजत था।
74
4. िशिक्षत म यम वगर्, जो पि चमी िशक्षा और प्रौ योिगकी के आगमन के साथ बना
था और पेशव
े र से उ प न िकया गया था। डॉक्टर , इंजीिनयर , प्रकाशक आिद वारा
अपनाई गई कानन
ू ी यव था म पिरवतर्न के पिरणाम व प वकील का एक नया वगर्
उभरा।
प्रारं िभक समय के दौरान, भारतीय म य वगर् ने जाित, भाषा क्षेत्र या धमर् जैसे जातीय
और सामािजक-आिथर्क पद के पिरणाम व प अपनी िविश ट िवशेषताओं के आधार पर एक
आंतिरक िविवधता का िचत्रण िकया, िजसने अपनी पहचान, राजनीित और रा य व
अथर् यव था के साथ बातचीत को आकार िदया। रा य वारा संचािलत शैक्षिणक सं थान ,
नौकिरय और िवधायी िनकाय म अनुसिू चत जाितय और अनुसिू चत जनजाितय के िलए
सकारा मक कारर् वाई (आरक्षण) नीितय ने चन
ु ावी लोकतंत्र, आिथर्क िवकास (औ योिगक और
75
ग्रामीण) के सं थागतकरण के साथ म यम वगर् के सामािजक आधार को यापक बनाया।
भारतीय लोग के पारं पिरक प से हािशए पर पड़े समह
ू को म य वगर् के इन िवकासशील
त व वारा नेत ृ व और आवाज दी गई।
8
Bhattacharya, P. C., & Sivasubramanian, M. N. (2003). Financial development and economic growth in India:
1970–1971 to 1998–1999. Applied Financial Economics, 13(12), 925-929.
76
इसे एक कुशल और समकालीन रा ट्र-रा य म पिरवितर्त कर दे ता है । उनका दावा है िक इस
वगर् के अलग-अलग सद य पहले ही अ य दे श म अपनी योग्यता का प्रदशर्न कर चुके ह
और यिद िस टम उ ह अनम
ु ित दे ता है , तो वह भारत म भी ऐसा ही कर सकते ह।
1991 म बाजार म मंदी के प चात ्, भारतीय कांग्रेस पाटीर् के नेत ृ व म भारत सरकार ने
बाजार खोलना शु िकया और एक आिथर्क उदारीकरण कायर्क्रम को लागू िकया।9 इस वगर्
का तेजी से उदय अिधकतर िनजी पँज
ू ी िनवेश के प्रो साहन और अंतरार् ट्रीय िनवेशक के
िलए अथर् यव था के खुलने के कारण हुआ। 1990 के दशक म, म यम वगर् म लगभग तीस
िमिलयन लोग थे, या आबादी का एक प्रितशत से भी कम था। म यम वगर् म यिक्तय का
प्रितशत 2004 म लगातार बढ़ता गया, जो जनसंख्या के लगभग 5 प्रितशत तक पहुँच
गया।10
9
Pedersen, J. D. (2000). Explaining economic liberalization in India: state and society perspectives. World
Development, 28(2), 265-282.
10
Varma, P. K. (2007). The great Indian middle class. Penguin Books India.
77
लोग पीछे हट रहे ह। एक ओर, एक म यम वगर् के उदय से अथर् यव था पर पिरवतर्नकारी
प्रभाव पड़ने वाला था, जबिक दस
ू री ओर, भारतीय समाज और राजनीित के आधुिनकीकरण
की उ मीद की जा रही थी। पव
ू र् वाले यिक्त को इसकी खपत क्षमता के मा यम से परू ा
िकया जाएगा, जो घरे लू माँग को बढ़ावा दे गा, जबिक बाद वाले को भ्र टाचार का सामना
करने और पहचान की राजनीित को पार करने के िलए राजनीित पर दबाव डालकर परू ा
िकया जाएगा।
2010 के प चात ्, अथर्शाि त्रय ने वगर् से िनपटने के बाद ‘नई म यम वगर्’ की पिरभाषा
पर पूणत
र् ः भरोसा करना शु कर िदया। उदाहरण के िलए, 2017 म भारतीय म यम वगर् म
वे सभी ग्राहक सि मिलत थे जो प्रित यिक्त प्रित िदन $ 2 और $ 10 के बीच खचर् करते
ह।12 अ ययन िन न म यम वग की संख्या म भारी व ृ िध को भी दशार्ता है , जो प्रित िदन
$ 2 और $ 6 के बीच अलग-अलग खचर् करते ह और वगर् िजसम सड़क िवक्रेता, ड्राइवर,
िश पकार, िनमार्ण िमक, स जाकार और िचत्रकार, चमड़ा और कपड़ा उ योग के िमक
आिद सि मिलत ह। जो मख्
ु य प से असंगिठत क्षेत्र म लगे हुए ह। अिधकांश क्षेत्र म इस
समह
ू म प्रवेश करने म आसानी महसस
ू की गई क्य िक केवल कोई प्रितबंध था और
अिधकांश वग के िलए आय लैब तुलना मक प से स ती थी। उनम से कई ने भोजन
और आ य पर खचर् करने के बाद अपनी आय का एक भाग िववेकाधीन खचर् के िलए बचा
11
Neog, Y. (2017). Structural shift in components of Indian GDP: An empirical analysis. ZENITH International
Journal of Business Economics & Management Research (ZIJBEMR) Vol, 7(9), 77-83.
12
Krishnan, S., & Hatekar, N. (2017). Rise of the new middle class in India and its changing
structure. Economic and Political Weekly, 52(22), 40-48.
78
िलया, िजससे वे िशक्षा, िचिक सा उपचार और संबंिधत जैसी अ य आव यक व तुओं और
सेवाओं को खरीदने म सक्षम हो गए।
13
Renub Research. (2017, September 13). India Outbound Tourism Market: Outbound Tourists, Purpose of
Visit, Tourist Spending and Forecasts, 3rd ed.
79
को छोड़कर। इसके अलावा, यिद वतर्मान प्रविृ जारी रहती है , तो 2035 तक, भारत म हर
चार म यम वगर् के उपभोक्ताओं म से एक होने की उ मीद है ।
म यम वगर् चार कारक वारा प्रिति ठत होते ह— थान (ग्रामीण या शहरी); रोज़गार; िशक्षा
(हाई कूल या कॉलेज); और वाहन का वािम व (2- हीलर या कार)।16 थान और रोजगार
के मानदं ड व- याख्या मक ह, जैसा िक िशक्षा के िलए मानदं ड है , एक प टीकरण के
साथ—उभरते हुए म यम वगर् को हाई कूल या कॉलेज की िडग्री के प म पिरभािषत िकया
गया है । चौथा त व वाहन के वािम व से संबंिधत है क्य िक ऑटोमोिटव संपि एक
िव वसनीय संकेत होने की अिधक संभावना है । इस िवक प के िलए उनके तकर् तीन गन
ु ा
ह—आय और यय के िवपरीत संपि , मौसमी उतार-चढ़ाव के प्रित कम संवेदनशील होती है ;
लोग व ृ िधशील संपि य के क जे को ऊ वार्धर गितशीलता के आंतिरक माकर्र के प म
14
Farrell, D., & Beinhocker, E. (2007). Next big spenders: India’s middle class. Business Week, 28.
15
Kharas, H. (2010). The Emerging Middle Class in Developing, Development Center Working Papers No 285.
16
Krishna, A., & Bajpai, D. (2015). Layers in globalizing society and the new middle class in India: Trends,
distribution and prospects. Economic and Political Weekly, 69-77.
80
पहचानते ह जो िवशेष प से कुछ प्रकार की संपि से जड़
ु ी सामािजक ि थित है । िकसी भी
मामले म, पिरसंपि डेटा और आय/ यय डेटा के बीच एक मजबूत संबंध है ।
भारतीय म यम वगर् अपने तप, कड़ी पिर म और आकांक्षा के िलए जाना जाता है । वा तव
म, रा ट्रीय प्रगित म उनका योगदान भारत को अगली पीढ़ी के िवकास की ओर ले जाने के
िलए पव
ू ार्पेक्षाओं म से एक है । आज के राजनेताओं के पिरप्रे य म, उनका समथर्न करना
और उ ह बढ़ावा दे ना फल व प एक आव यकता है । म यम वगर् के बीच प्रचिलत तकर् यह
था िक िजन िवषय ने उ ह प्रभािवत िकया, उ ह प्राथिमकता नहीं दी गई। उस समय
सरकार के िलए वा य, िशक्षा, उ यम, बुिनयादी ढाँचा, सावर्जिनक पिरवहन और खुलापन
प्राथिमकताएँ नहीं थे। हालाँिक इस संबंध म कुछ प्रयास िकए गए, िक तु गहरे सध
ु ार शायद
ही कभी दे खे गए। लगातार प्रशासन ने उ ह छोड़ िदया और वे चुनावी प से हािशए पर रहे ,
इस त य के बावजद
ू िक बढ़ते उपभोक्तावाद ने उ ह आिथर्क प से वयं को मख
ु र करने
का एक अवसर िदया। वतर्मान म, वे प टता से दिु नया भर म अपनी रा ट्रीय पहचान
थािपत कर रहे ह, बड़े पैमाने पर नेत ृ व से संरचना मक प्रो साहन जो िक भिू म के
लोकाचार और मू य म मजबत
ू ी से िटके हुए ह।
81
औषिध कद्र के मा यम से मह वपूणर् दवाओं, दय टट और घुटने के प्र यारोपण पर
कीमत म कमी के साथ-साथ कम कीमत पर दवाओं की उपल धता से लाख म यम वगर् के
लोग पहले ही लाभाि वत हो चक
ु े ह।
“म यम-म यम वगर्”, िजसके पास यथोिचत प से सरु िक्षत लेिकन कम वेतन वाला
यवसाय है , जो महीने के वेतन पर आि त रहता है और यन
ू तम बचत करता है , शायद
कम-से-कम लाभाि वत हुआ हो। बहरहाल, म यम अविध म इसकी आय म अिधक िगरावट
नहीं आई है । थायी पद के थान पर संिवदा मक और िगग इकॉनमी लेबर का िवकास इस
82
वगर् के िलए सम याएँ उ प न करता है । इस वगर् ने लंबे समय से िशक्षा को सम ृ ध म यम
वगर् को बनाए रखने या आगे बढ़ाने के साधन के प म दे खा है , लेिकन सावर्जिनक और
िनजी िशक्षा दोन के बढ़ते खचर् से इसके जीवन के तरीके पर अिनि चत पकड़ का खतरा है ।
17
Refer https://www.startupindia.gov.in/
83
गया।18 अ ययन ने िन कषर् िनकाला िक अ िवतीय कोरोनवायरस के कारण आिथर्क मंदी
वैि वक जीवन तर पर कहर बरपा रही है , िजससे लाख लोग म यम वगर् से बाहर और
गरीबी म ह। ये िवकास क्रमशः भारत और चीन, दिु नया की तीसरी और सबसे बड़ी
अथर् यव थाओं म प्रभािवत ह। हालाँिक, भारत और चीन पर महामारी का आिथर्क प्रभाव
काफी अलग रहा है । 1.4 िबिलयन लोग के साथ, भारत और चीन दिु नया की एक ितहाई से
अिधक आबादी के िलए उ रदायी ह और इन दोन दे श म महामारी का मागर्—और प्र येक
दे श कैसे ठीक होता है —वैि वक आिथर्क िवतरण म बदलाव पर मह वपण
ू र् प्रभाव पड़ेगा। जहाँ
भारत को 2020 म एक बड़ी मंदी म प्रवेश करने के िलए िववश होना पड़ा, वहीं चीन इससे
बचने म सफल रहा है । जनवरी 2020 म िव व बक के आिथर्क अनुमान ने भिव यवाणी की
िक भारत (5.8%) और चीन (5.9%) 2020 म वा तिवक सकल घरे लू उ पाद (जी.डी.पी.) म
लगभग समान दर से बढ़गे। िव व बक ने इन िवकास पूवार्नुमान को नीचे की ओर संशोिधत
िकया—महामारी शु होने के एक वषर् पव
ू र् जनवरी 2021 म भारत के िलए 9.6%, लेिकन
चीन के िलए 2% की व ृ िध का अनुमान लगाया।
18
Kochhar, R. (2021). The Pandemic Stalls Growth in the Global Middle Class, Pushes Poverty Up Sharply:
Advanced Economies Also See a Decrease in Living Standards, by Rakesh Kochhar. Pew Research Center.
84
का अनुमान लगाया गया था। इस बीच, भारत के गरीब की संख्या 134 िमिलयन होने का
अनुमान है , जो मंदी से पहले की भिव यवाणी की गई 59 िमिलयन से दोगन
ु े से अिधक है ।
महामारी के प्रकोप के बाद से, भारतीय िरजवर् बक सबसे आगे रहा है , याज दर को
कम रखते हुए और मात्रा मक सहजता का उपयोग करके सरकारी बांड और प्रितभिू तय को
खरीदकर िव ीय प्रणाली म पैसा लगा रहा है । हालाँिक, वा तिवक अथर् यव था और उ पादक
क्षेत्र म ऋण के प म प्रवािहत होने के बजाय, आर.बी.आई. वारा अथर् यव था म धकेला
गया धन शेयर बाजार म समा त हो गया है ।20 गरीब , छोटी कंपिनय और िन न म यम
वगर् पर लिक्षत राजकोषीय िनवेश म व ृ िध ने घरे लू माँग म सध
ु ार करने म सहायता की,
लेिकन भारत की तेजी से आिथर्क सध
ु ार म भी सहायता की। इसके अितिरक्त, एक आिथर्क
मॉडल म बदलाव जो उपभोक्ता व तओ
ु ं की बड़े पैमाने पर खरीद, साथ ही िशक्षा, वा य
दे खभाल और स ते आवास को बढ़ावा दे ता है , का अथर् यव था पर मह वपूणर् प्रभाव पड़ेगा।
2.2.9 सू म मू यांकन
वतंत्रता से पव
ू ,र् भारतीय म यम वगर् उ नीसवीं सदी के यरू ोप की भाँित संख्या मे अिधक
था। वगर् शहरीकरण और वकील, डॉक्टर, िशक्षक और इंजीिनयर जैसे यवसाय पर आधािरत
थे। वे जमींदार अिभजात वगर्, िकसान या औ योिगक िमक के सद य नहीं थे। इस
म यम वगर् की जड़ यवसाय और उ च िशक्षा वारा रखी गई थीं, जो दोन शहर म
19
Chandra, A. (2021). Covid-19: Rebooting the Indian Economy?. International Journal of Research Publication
and Reviews, 2(4), 569-572.
20
जब हम बचत और ऋण पर याज दर म कटौती के िलए बांड खरीदते ह, तो हम इसे मात्रा मक सहजता
कहते ह। इससे हम मुद्रा फीित को कम और ि थर रखने म सहायता िमलती है ।
85
आधािरत थीं। वतंत्रता के समय भारत का म यम वगर् नग य था। इसकी िन निलिखत
व ृ िध मख्
ु य प से सावर्जिनक क्षेत्र म थी। 1950 के दशक से 1980 के दशक तक,
सावर्जिनक क्षेत्र का िवकास म यम वगर् के िवकास के बहुमत के िलए िज मेदार था।
नौकरशाही और रक्षा क्षेत्र सरकारी नौकरी के िवकास के अ य ोत थे। यह व ृ िध सरकारी
कॉलेज म उ च िशक्षा के प्रसार और भारत के बढ़ते शहरीकरण के कारण हुई। 1990 के
दशक के प्रारं भ से, सावर्जिनक क्षेत्र म रोजगार ि थर रहा है । तब से, म यम वगर् के िवकास
को मख्
ु य प से जनसंख्या आय म बड़ी व ृ िध के िलए िज मेदार ठहराया गया है , िजसम
िनजी क्षेत्र का अिधक योगदान है । इनम से अिधकांश लोग िन न म यम वगर् से आते ह,
और उनके माता-िपता सबसे अिधक गरीब थे। यह खंड अिधक िचंितत है , क्य िक उनकी कम
वेतन और उनकी नौकरी अक्सर औपचािरक क्षेत्र म नहीं होती है , जो वा य दे खभाल और
पशन जैसे अितिरक्त लाभ प्रदान करता है । वे समझते ह िक उनकी कड़ी मेहनत से जीती
गई जीत कमजोर होती है और वे आसानी से वापस लौट सकते ह।
86
के िलए भी िकया जाता है , जो िशक्षा और कड़ी मेहनत के मा यम से अपने वयं के
संसाधन के साथ ऊपर की ओर बढ़ने का प्रयास कर रहा है । दे श को आधुिनक और
िवकिसत रा ट्र बनाना। नव-उदारवादी समय म, यह म यम वगर् के भारतीय ह िज ह ने
अवसर के सबसे मू यवान और मह वपूणर् रा ते पर वयं को बढ़ाया है , इसिलए भारतीय
और वैि वक अथर् यव थाओं म व ृ िध हुई है । उदाहरण के िलए, सॉ टवेयर डेवलपसर्, प्रबंधन
के िवशेषज्ञ और इसी प्रकार, जो आज दिु नया भर म यावहािरक प से हर जगह प्रमख
ु ता
से उभरे ह, सभी म यम वगर् की प ृ ठभिू म से ह।
म यम वगर् से संबंध रखने वाले की पहचान करना काफी सरल प्रतीत होता है — वे लोग
जो गरीब और अमीर के कद्र म कहीं आते ह। आ चयर्जनक यह है िक अथर्शाि त्रय और
नीित िनमार्ताओं वारा आज की बहस को िकतना गढ़ा, बनाया और चचार् िकया गया है । कद्र
के दो िसर पर सीमाओं को पिरभािषत करने के िलए आय, खपत, या कुछ और जैसे
उ दे य मानदं ड का उपयोग शायद मख्
ु यधारा के अथर्शाि त्रय के बीच िववाद का एकमात्र
िवषय रहा है ।
87
यह आव यक प से सामािजक असमानता के पहले से उपि थत सामािजक ढाँचे म सब
कुछ संशोिधत नहीं करता है क्य िक यह ऐितहािसक प से एक िनि चत सामािजक
वातावरण के भीतर उ प न होता है । भले ही म यम वगर् के उ भव ने लोग के सोचने,
आचरण और एक दस
ू रे के साथ बातचीत करने के तरीके को बदल िदया हो, िक तु जाित
और सांप्रदाियक असमानताएँ बनी रहती ह। नई सामािजक और आिथर्क यव था म उठने
का प्रयास करने वाले अपने उपल ध संसाधन और नेटवकर् का उपयोग करते ह, िजसम
जाित और पािरवािरक नेटवकर् सि मिलत ह, नई सामािजक यव था म अपनी ि थित को
ि थर और मजबत
ू करने के िलए, जो असमानता के एक नए ढाँचे पर आधािरत है ।
2.2.10 िन कषर्
21
Fuller, E. (2015). India: Asia’s next economic dynamo. Forbes, forbes.com, 10.
22
Radhakrishnan, S. (2008). Examining the “global” Indian middle class: Gender and culture in the Silicon
Valley/Bangalore circuit. Journal of Intercultural Studies, 29(1), 7-20.
88
िबिलयन की आबादी वाला दिु नया का सबसे अिधक आबादी वाला दे श होगा और भारत के
लगभग 1.3 िबिलयन लोग वाला दे श 29 वषर् से कम आयु का है , जो इसे दिु नया की सबसे
कम उम्र की आबादी म से एक बनाता है ।23 यिद सरकार “जनसांिख्यकीय लाभांश” का ठीक
से उपयोग करने म सक्षम है और 2030 तक दे श म काम की तलाश करने वाले 250
िमिलयन लोग के िलए उपयक्
ु त अवसर पैदा कर सकती है , तो यह जनसंख्या व ृ िध िनरं तर
म यम वगर् के िव तार को बनाए रख सकती है ।
जनसंख्या को बनाए रखने के िलए, यह सोचा गया है िक हम बहुत अिधक प्र यक्ष
िवदे शी िनवेश आकिषर्त करने की आव यकता होगी, और यावसाियक प्रिक्रयाओं को और भी
अिधक बढ़ाने की आव यकता होगी। बुिनयादी ढाँचा, नौकरशाही, किठन िनयामक
आव यकताएँ, और िव ीय िचंताएँ सभी िवकास के िलए प्रमख
ु बाधाएँ बनी हुई ह, और दे श
को अपनी परू ी क्षमता तक पहुँचने के िलए सभी को काफी हद तक संबोिधत िकया जाना
चािहए।24 अथर्शा त्री ने भारतीय बाजार म प्रवेश करने म अित-आशावाद के िव ध
िसफािरश की है , भले ही बहुरा ट्रीय कंपिनयाँ ऐसा करना जारी रख। अंत म, सकल घरे लू
उ पाद म िविनमार्ण का िह सा (अब सकल घरे लू उ पाद का 2 प्रितशत) तेज दर से बढ़ना
चािहए। वतर्मान सरकार की “मेक इन इंिडया” योजना के अनुसार, यह अनुपात 2022 तक
लगभग 3.5 प्रितशत तक बढ़ने की उ मीद है । िव व बक की “ईज ऑफ डूइंग िबजनेस”
रे िटंग म हमारी 100वीं रक बढ़ती आबादी के िलए नौकिरय के सज
ृ न म मदद कर सकती
है । जैसे-जैसे उनकी िववेकाधीन आय बढ़ती है , भारत का म यम वगर् वैि वक अथर् यव था म
एक बड़ी भिू मका िनभाएगा, िजससे वे अिधक उपभोक्ता सामान खरीद सकगे, बेहतर
वा य दे खभाल कर सकगे और अपने ब च की िशक्षा म अिधक खचर् कर सकगे।
23
“India’s Demographic Dividend,” Thomson Reuters. https://tinyurl.com/yb4t4jvl.
24
Ease of doing business rankings, The World Bank. https://www.doingbusiness.org/en/rankings
89
2. भारत म म यम वगर् और नए म यम वगर् के बीच अंतर कर। भारत म नए म यम
वगर् के िवकास और संरचना की चचार् कीिजए।
……………………………………………………………………………………………………………………………………..……………………
………………………………………………………………………………………………………………..…………………………………………
…………………………………………………………………………………………..………………………………………………………………
……………………………………………………………………..……………………………………………………………………………….….
90
इकाई-3 : कृिष िवकास की रणनीित और सामािजक संरचना पर इसका प्रभाव
3.1 संरचना
3.1.1 पिरचय
3.1.2 भारत म कृिष का ऐितहािसक िवरासत
3.1.3 हिरत क्रांित
3.1.4 हिरत क्रांित की प्रमख
ु िवशेषताएँ
3.1.5 हिरत क्रांित प्रभाव संबंधी िवमशर्
3.1.6 सतत ् हिरत क्रांित या िवतीय हिरत क्रांित
3.1.7 अ यास प्र न
3.1.8 संदभर् सच
ू ी
3.1.1 पिरचय
वतंत्रता के प चात ् खा या न की कमी को दरू करने के िलए, कृिष क्षेत्र म नवीन तकनीक
के मा यम से कृिष के उ पादन म उ लेखनीय व ृ िध हुई िजसे ‘हिरत क्रांित’ की संज्ञा दी
गई। इसके बहुआयामी पिरणाम हुए। इस क्रांित ने जहाँ एक ओर भारत की सामािजक
आिथर्क और राजनीितक यव था को प्रभािवत िकया, वहीं दस
ू री ओर इस आंदोलन ने
वैयिक्तक असंतोष, क्षेत्रीय असमानता एवं पािरि थितकीय असंतल
ु न को भी ज म िदया।
1947 से पहले भारत िब्रटे न का उपिनवेश था। औपिनवेिशक शासन के द ु पिरणाम से भारत
का शायद ही कोई वगर् अछूता रहा होगा। औपिनवेिशक भारत म कृषक की दशा अ य वग
की तल
ु ना म यादा बदतर थी। इसका मल
ू कारण लगान था। सरकार ने भ-ू राज व की
रकम बढ़ाने के िलए कई प्रकार के भ-ू राज व प्रणाली का प्रयोग िकया। थायी बंदोब त,
महालबाड़ी एवं रै यतवाड़ी। इन सभी का एक उ दे य था कृषक से अिधक-से-अिधक लगान
वसल ू करना। हालाँिक बहुत सारे इितहासकार इन यव थाओं को कृिष िवकास से जोड़कर
दे खते ह। इस प्रकार की शोषणकारी यव था ने आ मिनभर्र भारतीय ग्रामीण अथर् यव था को
बुरी तरीके से प्रभािवत िकया। इसके साथ ही कृिष क्षेत्र म िनजी संपि के धारणा की भी
91
शु आत हुई तथा क्षेत्र म नए वग जैसे— जमींदार, सद ू खोर, कृषक मजदरू ...आिद का
1
आिवर्भाव हुआ। पिरणामत: कृिष िवकास अव द होता गया।
92
Programme) िदया गया।8 इस समझौते के तहत 1956 से खा या न आयात शु हुआ।
पहले वषर् 30 लाख टन खा या न का आयात िकया गया। प्रितवषर् आयात की मात्रा बढ़ती
गई तथा 1963 म यह 45 लाख टन तक पहुँच गई। वहीं दो पंचवषीर्य योजनाओं म अनाज
के उ पादन म व ृ िध होने के बावजद
ू ती गित से बढ़ती जनसंख्या के िलए यह व ृ िध
प्रभावी िस ध नहीं हुई। सख
ू ा, अकाल एवं यु ध ने भी कृिष उ पादन को प्रभािवत िकया।
हिरत क्रांित श द का प्रयोग सवर्प्रथम िविलयम गाडर् वारा 1968 म िकया गया था। गॉड
मल
ू तः अमेिरकी एजसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमट के िनदे शक थे। कालांतर म इस श द का
प्रयोग भारत, पािक तान एवं अ य िवकासशील दे श म िकया गया।9
मल
ू प से इस कायर्क्रम म उ च गण
ु व ा वाले बीज, रसायिनक उवर्रक का प्रयोग,
कीटनाशक का प्रयोग, समिु चत िसंचाई यव था इ यािद के मा यम से कृिष यव था म
एक ग या मक पिरवतर्न लाने का प्रयास िकया गया। कृिष क्षेत्र म इस प्रकार से प्रौ योिगकी
का अ प समय म बेहतर पिरणाम दे खने को िमले। यही कारण है िक राजनीितक िव लेषक
तथा कृिष वैज्ञािनक ने इस प्रकार के प्रगित को ‘हिरत क्रांित’ का नाम िदया।
भारत मल
ू प से कृिष प्रधान दे श है । इसका पिरणाम यह है िक यहाँ की कुल जनसंख्या
दर 60-70 प्रितशत जनसंख्या आज भी अपनी आजीिवका के िलए कृिष पर िनभर्र है । यहाँ
93
के िकसान की मल
ू सम या अपनी आजीिवका के िलए अनाज की पूितर् करना है । भारत म
70 प्रितशत से अिधक कृिष भिू म का प्रयोग खा या न फसल के िलए ही िकया जाता है ।
गेहूँ, चावल, जौ, बाजरा तथा अनेक प्रकार की दाल का खा या न फसल के प म लगभग
11
70 से 90 प्रितशत का योगदान है । हिरत क्रांित म सामा यतः इ हीं फसल का उ पादन
बढ़ाने पर बल िदया गया। इसके तहत कृिष क्षेत्र म संरचना मक, सं थागत एवं तकनीकी
सध
ु ार को बढ़ावा िदया गया। हिरत क्रांित के िवशेषताओं को िन न िब दओ
ु ं के मा यम से
समझा जा सकता है ।
कृिष प्रधान दे श होने के कारण कुल जनसंख्या का 60-70 प्रितशत भाग आज भी अपनी
आजीिवका के िलए कृिष पर िनभर्र है । भारतीय िकसान की सबसे बड़ी सम या अपने
पिरवार के िलए अनाज की पूितर् करना है । भारत म 75 प्रितशत कृिष भिू म का प्रयोग
खा या न फसल के िलए ही िकया जाता है । चावल, गेहूँ, बाजरा, जौ तथा िविभ न प्रकार के
दाल का खा या न फसल के प म योगदान लगभग 70 से 90 प्रितशत तक है । हिरत
क्रांित के तहत इ हीं फसल के उ पादन बढ़ाने पर बल िदया गया। िजसके तहत
संरचना मक सं थागत एवं तकनीकी सध
ु ार को बढ़ावा िदया गया। इसकी िवशेषताओं को
समझने के िलए िन न िब दओ
ु ं का अवलोकन िकया जाना आव यक है —
94
(iii) इन फसल की खास िवशेषता यह होती है िक ये दे सी फसल की तुलना म कम समय
लेती ह, िजससे भिू म का उपयोग दस
ू री मख्
ु य फसल के िलए िकया जा सकता है ।
नयी कृिष तकनीक म उवर्रक का उिचत प्रयोग भी मह वपूणर् है । क्य िक उवर्रक प्रयोग के
बगैर उ नत बीज वाली फसल यादा प्रभावी सािबत नहीं हो पाती। उवर्रक को सामा यतः दो
वग म बाँटा गया है । काबर्िनक उवर्रक तथा अकाबर्िनक उवर्रक। अकाबर्िनक उवर्रक को
रसायिनक उवर्रक भी कहा जाता है । इनके तीन प है — नाइट्रोजन (N), फासफोरस (P) तथा
पोटे िशयम (K) उवर्रक (NPK)। काबर्िनक उवर्रक प्राकृितक उवर्रक होता है िजसे
बायोफिटर् लाइजर भी कहा जाता है । ये उवर्रक, स ते एवं पयार्वरण-मैत्री होते ह। सरकार वारा
इनके प्रयोग को बढ़ावा िदए जाने के िलए पहल की जा रहा है । इसी क्रम म छठी पंचवषीर्य
योजना म एक प्रोजेक्ट शु िकया गया था िजसके तहत गािजयाबाद (उ र प्रदे श) म नेशनल
बायोफिटर् लाइजर डेवलपमे ट से टर (NBDC) की थापना की गयी। 2004 म इसका नाम
बदलकर नेशनल से टर फॉर आगिनक फािमर्ंग (NCOF) कर िदया गया। वतर्मान म सरकार
वारा जैिवक उवर्रक के उपयोग को बढ़ावा दे ने के िलए िकसान को अनुदान उपल ध कराया
जा रहा है । जैसे वमीर् क पो ट के उ पादन के िलए सरकार वारा कुल लागत का 50
प्रितशत रािश अनुदान के प म दी जा रही है ।
95
िलए िसंचाई की उपल धता प्राथिमक शतर् है । इन फसल के िलए िकसान अिनयिमत मानसन
ू
पर िनभर्र नहीं रह सकता। इन बीज /फसल पर उवर्रक या कीटनाशक का प्रयोग तभी प्रभावी
सािबत होता है जब इ ह समय पर उिचत मात्र म िसंचाई की जाए।17 परं तु आज भी भारत
म बहुत सारे क्षेत्र ऐसे ह जहाँ के िकसान िसंचाई के िलए मानसन
ू पर िनभर्र ह। लगभग 40
प्रितशत क्षेत्र म ही िसंचाई की सही यव था हो पायी है । एच.वी.वाई.एस.पी. (H.V.Y.S.P.)
उन क्षेत्र म ही प्रभावी सािबत हुआ है जहाँ िसंचाई की अ छी यव था है ।18 हालाँिक बाद म
भारत सरकार वारा िसंचाई यव था म सध ु ार करने हे तु कई प्रकार के प्रयास िकए गए।
जैसे— 1974-75 म कमा ड एिरया डेवलपमे ट कायर्क्रम की शु आत की गयी। इसका प्रमख
ु
उ दे य चुने हुए वहृ द तथा म यम िसंचाई पिरयाजनाओं की िसंचाई क्षमता का ती तथा
उ म प्रयोग प्रा त करना है । इसी क्रम म आगे 1996-97 म विरत िसंचाई लाभ कायर्क्रम
(Accelerated Irrigation Benefits Programme — AIBP) की शु आत की गयी। इसका
मख्
ु य उ दे य के द्रीय ऋण सहायता के वारा अपूणर् िसंचाई पिरयोजनाओं तथा कायर्क्रम को
पूरा करने के िलए रा य को प्रो सािहत करना था।19
96
का ही पिरणाम है िक 1955-56 म जहाँ 5.9 िमिलयन एकड़ क्षेत्र पर इन कीटनाशक का
प्रयोग होता था वहीं 1968-69 इनका प्रयोग बढ़कर 98.8 िमिलयन एकड़ हो गया।20
सदाबहार क्रांित के अंतगर्त भी कीटनाशक के उपयोग पर बल िदया गया है । साथ-ही-साथ
जैिवक कीटनाशक के उपयोग को भी प्रो साहन दे ने का प्रयास िकया जा रहा है ।
कृिष िवकास तथा कृिष ऋण म गहरा संबंध है । उिचत समय पर तथा सही याज दर पर
ऋण उपल धता कृिष उ पादन म व ृ िध लाती है । भारतीय कृषक को कई ोत से ऋण
प्रा त होता है । सामा यतः इन ोत को दो वग म बाँटा जा सकता है — गैर सं थागत ोत
तथा सं थागत ोत। गैर सं थागत ोत (Non-Institutional Source) म थानीय ग्रामीण
साहूकार, जमींदार, दे शी बकर तथा कमीशन एजट आिद को रखा जा सकता है । जबिक
सं थागत ोत म सहकारी सिमितयाँ, यापािरक बक, क्षेत्रीय ग्रामीण बक, भिू म िवकास बक
आिद को शािमल िकया जा सकता है । गैर सं थागत ोत वाले ऋण िकसान के िलए
उपुयक्त नहीं होते। क्य िक इसके
वारा िकसान को बहुत ऊँची याज दर पर ऋण उपल ध
कराया जाता है तथा उनकी गरीबी का लाभ उठाकर उनका शोषण िकया जाता है । इसके साथ
ही उ ह इस बात के िलए िववश िकया जाता है िक वे अपनी फसल कम कीमत पर ही बेच
द। इस प्रकार की सम या से िनजात पाने के िलए सरकार वारा िकया गया प्रयास
सराहनीय है ।
97
प्रकार कृिष क्षेत्र म दीघर्कालीन आव यकताओं की पूितर् करने के िलए भिू म िवकास बक की
थापना की गयी है ।
(i) सहकारी िवपणन सिमितयाँ— 10 या उससे अिधक िकसान अपने उ पाद को बेचने के
उ दे य से सहकारी िवपणन सिमितयाँ या बहुउ दे शीय सरकारी सिमितय का िनमार्ण
कर सकते ह।
(iii) रा ट्रीय कृिष सहकारी िवपणन भारतीय संघ (National Agriculture Cooperative
Marketing Federation NAFED)— कृिष िवपणन की यह शीषर् सं था है िजसकी
थापना 2 अक्टूबर, 1958 को की गयी थी। इसका प्रमख
ु कायर् कुछ खास कृिष
व तुओं को प्रा त करना, उनका िवतरण, िनयार्त एवं आयात करना है । यह सं था कृिष
व तुओं के अंतरार् यीय यापार तथा िनयार्त को प्रवितर्त करता है । नैफेड (NAFED) ने
मू य तर के ि थरीकरण तथा बाजार म उ पादक एवं उपभोक्ताओं दोन के िहत की
रक्षा करने म मह वपूणर् भिू मका अदा की है ।
98
ही माँग के अनुसार पूितर् को िनयंित्रत करने, मू य के ि थरीकरण तथा बफर टॉक कायम
रखने के िलए भ डारण तथा गोदाम (Warehousing) सिु वधा भी उपल ध करायी जा रही है ।
नारमन बोरलॉग इसके प्रभाव की चचार् करते हुए बताते ह िक इसका सबसे बड़ा फायदा
यह हुआ िक तत ृ ीय िव व के दे श म कृिष संबंधी आधारभत ू संरचना का िवकास हुआ। बहुत
सारी प्रयोगशाला, कृिष वैज्ञािनक, प्रिशिक्षत म शिक्त का भी िवकास हुआ। इसके साथ ही
कृिष क्षेत्र म नई शोध को भी बढ़ावा िदया जाने लगा।24
सद
ु ी ता किवराज ने हिरत क्रांित को ग्रामशी के वजात क्रांित (Passive Revolution)
का एक उदाहरण माना है । इनके अनुसार संपूणर् भारतीय क्षेत्र इस क्रांित से प्रभािवत नहीं
हुए। सीिमत लोग ही इस क्रांित से लाभाि वत हुए।25
प्रभाव
इस क्रांित के पिरणाम व प दे श म कृिष क्षेत्र म मह वपणू र् प्रगित हुई। कृिष क्षेत्र म नई
तकनीक को अपनाने के कारण इस क्षेत्र म गुणा मक सध ु ार हुआ। खा या न उ पादन बढ़ा
तथा आ मिनभर्रता आयी। इसके साथ हीं यावसाियक कृिष को बढ़ावा िमला। इस क्रांित के
पिरणाम व प कृिष उ पादन म सामा य तथा गेहूँ एवं चावल के उ पादन म िविश ट प से
व ृ िध हुई। चावल का उ पादन 1960 म 35 िमिलयन टन था, 1997-98 म बढ़कर यह 83
िमिलयन टन तक पहुँच गया। इसी समयाविध म गेहूँ का उ पादन 11 िमिलयन टन से
बढ़कर 66 िमिलयन टन हो गया जबिक ग ने का उ पादन 110 िमिलयन टन से बढ़कर
260 िमिलयन टन हो गया।26 इसका प्रभाव आरं िभक दौर म गेहूँ, वार, बाजरा तक ही
सीिमत रहा। परं तु धीरे -धीरे इसका प्रभाव अ य फसल जैसे चावल, कपास, जट
ू तथा ग ना
99
आिद पर भी पिरलिक्षत हुआ। वतर्मान म भारत चावल, गेहूँ आिद खा या न फसल म
आ मिनभर्र होने के साथ-साथ इनका िनयार्त करने म भी सक्षम है ।
100
1967 म िकसान के नेता के प म चौधरी चरण िसंह ने भारतीय क्रांित दल (BKD)
का गठन िकया। उ ह ने उ र-प्रदे श एवं आस-पास के क्षेत्र म जाट, गज
ु रर् , यागी आिद को
संगिठत िकया जो मल
ू तः िकसान एवं िपछड़ी जाित के थे। 1986 म महे द्र िसंह िटकैत
वारा भारतीय िकसान यूिनयन (BKU) का गठन िकया गया। 1980 के दशक के उ रा र्ध
म इसने प्रितिनिधक चुनाव म भी भाग िलया, िकंतु अपेिक्षत सफलता नहीं िमल पायी। परं तु
इस प्रिक्रया म कई रा य से िकसान नेता उभकर सामने आए। जैसे— हिरयाणा म दे वी लाल,
उ र प्रदे श म च द्र शेखर, कनार्टक म ननजन
ु दा वामी, तिमलनाडु म सी. नारायण वामी
नायडु, महारा ट्र म शरद जोशी आिद प्रमख
ु रहे । इसके साथ िकसान से संबंिधत कई संगठन
भी उभरे । जैसे— कनार्टक रा य रै यत संघ (KRRS) कनार्टक म, सेतकारी संगठन महारा ट्र
म, आिद।30
इस प्रकार इन क्षेत्रीय नेताओं के उभार तथा इनके बढ़ते हुए राजनीितक जनाधार ने
भारतीय दलीय यव था को प्रभािवत िकया। कई क्षेत्रीय दल की थापना को इसके परोक्ष
प्रभाव के प म दे खा जा सकता है । जैसे— उ र प्रदे श म रा ट्रीय लोक दल (RLB),
पी.एस.पी. (P.S.P.) आिद। अब भारतीय राजनीित म कमा ड की राजनीित की जगह
िडमा ड की राजनीित का लक्षण प्रितिबि बत होने लगा। हिरत क्रांित के फल व प िपछड़े
एवं म यवगीर्य जाितय का उभार एक शिक्तशाली राजनीितक वगर् के प म दे खा जा रहा
है ।
उपरोक्त प्रकार के सकारा मक प्रभाव के अलावा हिरत क्रांित के कुछ नकारा मक प्रभाव
भी ह। यह सही है िक उ पादन म व ृ िध के साथ सरकार समिथर्त मू य नीित के फल व प
कृिष क्षेत्र की आय म व ृ िध हुई है , पर इसके पिरणाम व प ग्रामीण क्षेत्र म अ तवयिक्तक
एवं अंतक्षत्रीय िवषमता बढ़ी है । ऐसा पाया गया है िक यह क्रांित धनी िकसान के िलए ही
31
है , सामा य या सीमा त िकसान के िलए यह उपयक्
ु त नहीं है । कारण यह है िक नयी
नीित के तहत कृिष करना काफी खचीर्ली होती है । जैसे— उ नत बीज, उवर्रक, िसंचाई,
कीटनाशक आिद सामा य िकसान की पहुँच से बाहर की चीज है । दस ू रा कारण यह है िक
प्रौ योिगकी के प्रयोग के िलए िविश ट ज्ञान की आव यकता होती है । तीसरा प्रमख
ु कारण
यह है िक भारतीय िकसान अनुदार प्रविृ के होते ह तथा नयी तकनीक को अपनाने म उ ह
संशय होती है एवं वे जोिखम उठाने से घबराते ह। यही सब कारण ह िक बड़े तथा धनी
िकसान इस नयी कृिष रणनीित का लाभ उठा पाए, छोटे िकसान इस नीित का लाभ उठाने
से वंिचत रह गए। पिरणामतः अंतवयिक्तक िवषमता बढ़ी।
नयी कृिष रणनीित के कारण अंतःक्षेत्रीय िवषमता को भी बढ़ावा िमला क्य िक इस प्रकार
की तकनीक को केवल उ हीं क्षेत्र म प्रयोग म लाया जा सका जहाँ िसंचाई की समिु चत
101
यव था थी तथा िकसान मानिसक एवं आिथर्क प से इतने सशक्त थे िक जोिखम उठाने
के िलए तैयार थे। यही कारण था िक इस क्रांित का प्रसार वैसा नहीं हो पाया जैसी इसकी
आव यकता थी। हिरत क्रांित गेहूँ और चावल की उ पादकता बढ़ाने म तो सहायक रही,
लेिकन दलहन, ितलहन एवं नकदी फसल के उ पादन म पयार् त व ृ िध नहीं कर पायी।
प्रमख
ु फसल गेहूँ, चावल, वार, बाजरा, कपास, जट
ू एवं ग ना आिद।
लाभाि वत रा य हिरयाणा, पंजाब, पि चमी उ र प्रदे श, कनार्टक, तिमलनाडु एवं महारा ट्र
102
3.1.6 सतत ् हिरत क्रांित या िवतीय हिरत क्रांित (Sustainable Green Revolution or
Second Green Revolution)
उपरोक्त याख्याओं से हिरत क्रांित की सीमाओं से हम अवगत हो चक
ु े ह। वतर्मान समय म
हिरत क्रांित के कई द ु प्रभाव भी प्रितिबि बत होने लगे ह। ऐसी ि थित म आज कृिष के क्षेत्र
म िवतीय हिरत क्रांित की आव यकता है । वतर्मान संदभर् म कृिष के समक्ष परं परागत
चुनौितय के अितिरक्त कुछ नयी चुनौितयाँ उभरकर सामने आयी क्य िक पयार्वरण संरक्षण
को नजरअंदाज िकए िबना कृिष क्षेत्र की उ पादकता बढ़ाना है । कृिष उ पादन म बहुत अिधक
व ृ िध के बावजद
ू भी आज हम खा या न की कमी से जझ ू रहे ह। इसका प्रमखु कारण है
कृिष क्षेत्र के िनराशाजनक िन पादन, कृिष क्षेत्र की ि थर उ पादकता, कृिष क्षेत्र म िगरते हुए
सावर्जिनक िविनयोग आिद ने खा या न उ पादन के पक्ष को अ यंत कमजोर कर िदया है ।
ऐसी पिरि थित म हिरत क्रांित जैसी ही एक अ य क्रांित की आव यकता है ।
िवतीय हिरत क्रांित की सफलता एवं कृिष क्षेत्र को लोकिप्रय तथा लाभदायक बनाने हे तु
34
विर ठ कृिष वैज्ञािनक एम.एस. वामीनाथन ने िन नांिकत सझ
ु ाव िदए ह —
उ पादन एवं मन
ु ाफा को बढ़ाने के िलए 4C की संक पना (Conservation,
Cultivation, Consumption, Commerce)।
103
भारतीय कृिष अनुसध
ं ान पिरषद वारा, दे श के िविभ न भाग म कृिष प्रणाली एवं
मौसम पैटनर् के आधार पर, 127 कृिष जलवायु उपक्षेत्र म क्लाइमेट िर क मैनेजमट
िरसचर् एवं एक्सटशन सटर की थापना।
मद
ृ ा वा य उ नयन के िलए जैिवक व भौितक सू म त व को उपल ध कराना
ज री है । अतः रासायिनक उवर्रक के साथ-साथ जैिवक व क पो ट खाद के उपयोग
िकए जाने की भी आव यकता है ।
ऋण सध
ु ार की िदशा म पहल करने पड़गे, साथ ही छोटे व सीमांत िकसान को कृिष
िवकास हे तु आव यक सहायता भी उपल ध करानी होगी। भारत म लघु व सीमांत
िकसान 80 प्रितशत से भी अिधक ह, जो हिरत क्रांित के लाभ से वंिचत ह। अतः
उ ह िरयायती दर पर ऋण उपल ध कराना तथा उ ह सहकारी कृिष हे तु प्रो सािहत
करना ज री है । इस हे तु उनम सशक्त नेत ृ व को प्रो साहन िदए जाने की भी
आव यकता है ।
104
लघु व सीमांत िकसान के िलए कृिष उ पादकता बढ़ाने के साथ-साथ खेत म तथा
खेत से बाहर वैकि पक रोजगार को भी प्रो साहन दे ना आव यक है ; िजनम काम के
बदले अनाज, ‘मनरे गा’ (MGNREGA) जैसे रोजगार कायर्क्रम शािमल ह।
कृिष प्रसं करण के वारा ग्रामीण क्षेत्र म िविभ न रोजगार उपल ध कराने के प्रयास
आव यक है । इसके साथ ही कृिष आधािरत उ योग को बढ़ावा दे ने की आव यकता
है ।
कृिष म वैज्ञािनक ज्ञान एवं जमीनी तर पर उसके कायार् वयन के बीच के अंतर को
कम करना होगा। कृिष िवज्ञान के द्र को मजबत
ू बनाना होगा, साथ ही यह भी ज री
है िक प्र येक पंचायत म एक मिहला व एक पु ष को कृिष िवज्ञान प्रबंधक िनयक्
ु त
िकया जाए तथा िकसान के अिधकार के बारे म संपूणर् जानकारी िदया जाए।
उपरोक्त प्रकार के सझ
ु ाव को अपनाकर िवतीय हिरत क्रांित को सफल बनाया जा सकता है
तथा खा या न एवं उ योग के िलए कृिषगत क चे माल की सम या को हल िकया जा
सकता है । डॉ. वामीनाथन ने साथ ही साथ ‘लैब टू लै ड प्रदशर्न’ कायर्क्रम पर भी बल िदया
है तािक िस धांत को यवहार म बदला जा सके और िम टी म उपयोिगता के आधार पर ही
खाद का प्रयोग िकया जा सके। संयुक्त रा ट्र जनसंख्या एजसी के एक आंकलन के अनुसार
2025 तक िव व की जनसंख्या 8 अरब तक पहुँचने का अनुमान है । ऐसी ि थित म नारमन
बोरलॉग के अनस
ु ार हिरत क्रांित की सफलता अ पकािलक सािबत हो सकती है यिद भयानक
प से बढ़ती हुई जनसंख्या को नहीं रोका गया, क्य िक भारत जैसे िवकासशील दे श म ही
जनसंख्या व ृ िध दर यादा है ।
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105
2. हिरत क्रांित के आिवर्भाव के उ रदायी ता कािलक एवं ऐितहािसक कारक को िचि नत
कर।
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4. क्या हिरत क्रांित ने भारतीय राजनीित को नया आयाम प्रदान िकया? अपने श द म
मू यांकन कर।
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5. हिरत क्रांित की सीमाएँ क्या ह? क्या िवतीय हिरत क्रांित या सतत ् हिरत क्रांित के
वारा इसे दरू िकया जा सकता है ?
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..........................................................................................................................
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3.1.8 संदभर् सच
ू ी
िवपन च द्र, मद ु ा मुखजीर् एवं आिद य मुखजीर् (2009), आजादी के बाद का भारत, िद ली
ृ ल
1
106
4
Nanavati, B. Motilal and J.J. Anjaria, (1970), Indian Rural Problem, Table 1,
p.39
5
िम एवं पुरी, (2011), ‘भारतीय अथर् यव था’ (तेरहवाँ सं करण), मुंबई, िहमालय प्रकाशन, प.ृ
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6
भारत (2012), सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार, प.ृ 915
7
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8
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Challenges', in Think India Quarterly, Volume 14, No. 3, New Delhi, p. 53
9
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10
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New Delhi, Indian Council of Medical Research, , p. 13
11
A.K. Chakarvarti, (1970), 'Foodgrain Sufficiency patterns in India', Geographical
Review, Vol. 60, p. 209
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S.P. Sinha, (1965), Indian Agriculture: Its fluctuating fortunes, Allahabad : Kitab
Mahal, p. 64.
13
A.K. Chakravarti, Sep. (1973), Green Revolution in India' in 'Annals of the
Association of American Geographers', Vol. 63, No. 3, Pp. 320
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15
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16
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18
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एस.एन. लाल एवं एस.के. लाल, (2014), भारतीय अथर् यव था: सवक्षण तथा िव लेषण,
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Bhanu Mehta (eds.), The Oxford Companion to Politics in India, New Delhi:
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लाल एवं लाल, (2014), उपरोक्त, प.ृ 4:24
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28
Partha Chatterjee, (2014), 'The State' in Niraja Gopal Jayal and Pratap Bhanu
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29
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University Press, p. 394.
30
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31
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weekly, Vol. XXII, Nos. 19, 20 and 21, p. 138
32
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Think Idia Quarterly, No. 14, Vol. 3, p. 7
33
Ebid, p. 7
34
Ebid., pp. 8-33
108
इकाई-3
3.2 संरचना
3.2.1 पिरचय
3.2.5 िन कषर्
3.2.7 स दभर् सच
ू ी
3.2.1 पिरचय
भारत म नव-उदारवादी सध
ु ार का अ ययन आज के पिर य म आव यक हो गया है क्य िक
दे श भर म कृषक आ मह याओं को लेकर यापक संत्रा त है । अिधकांश अ ययन पिरवितर्त
राजनीितक अथर् यव था के आलोक म इन आ मह याओं पर िवचार-िवमशर् करते ह। वे
आ मह या के मख्
ु य कारण के प म ऋण पर यान किद्रत करते ह। य यिप, एक यापक
िव लेषण म यापक सामािजक-सां कृितक एवं राजनीितक प्रथाओं की सू म भेद को यान
म रखा जाना चािहए। भारतीय अथर् यव था के नव-उदारीकरण के साथ, 1990 के दशक के
प्रारं भ से, एकजट
ु ता एवं सामद
ु ाियक जड़
ु ाव के िलए थान समा त हो गए ह। अलगाव के
कई प प्रचलन म आ गए ह, िजसके पिरणाम व प यापक तर पर वैयिक्तकरण हुआ है ।
109
आव यकताओं के िलए सरु क्षा कवच के प म कायर् करता था। नव-उदारवाद ने उसी आधार
पर आघात िकया है , िजसके पिरणाम व प यापक िनराशा और िवसजर्न हुआ है ।
वतंत्रता के प चात ् के दौर म भी, िवकास एवं आधुिनकीकरण के अपने सभी वाद के
बावजद
ू , कृिष क्षेत्र को संकट से मक्
ु त नहीं िकया गया था। तथािप भारतीय रा य-भिू म सीमा
पर कानून बनाकर; जमींदारी प्रथा को समा त करना; धन उधार और िबचौिलय पर अंकुश
लगाना; कृिष के िवकास की िनगरानी के िलए योजना आयोग की शु आत-कृषक की ि थित
म सध
ु ार करने का प्रयास, अभाव और असमानताएँ बनी रहीं। कृषक के जीवन म आने वाला
दै िनक संकट केवल िवशेषताओं को पिरवितर्त करता है , िवषय-सच
ू ी को नहीं। यह प ट है
िक भिू म सध
ु ार भारतीय रा य के िलए एक बड़ी िवफलता रही। भिू म सध
ु ार का पण
ू र् उ दे य
जो िक उ नत कृिष उ पादन के मागर् से बाधाओं को दरू करना और कृिष यव था के भीतर
शोषण और सामािजक अ याय के सभी त व को समा त करना था, एक दरू का सपना बना
रहा। सध
ु ार भिू म जोतने वाले के िलए सरु क्षा प्रदान करने और ग्रामीण जनसंख्या के सभी
वग को ि थित और अवसर की समानता सिु नि चत करने के िलए थे, तथािप हिरत क्रांित,
एक प्रभाव तक, कृिष उ पादकता की ि थित म उ लेखनीय पिरवतर्न और Bullock
110
Capitalism के िवकास का कारण बनी। कुछ क्षेत्र म, कृषक की समग्र िचत्रण अभी भी
दब
ु ल
र् था।
111
1960 के दशक के म य तक भारत खा या न के िलए गहन संकट म था। संयुक्त
रा य अमेिरका वारा समिथर्त पी एल 480 कायर्क्रम ने िकसी तरह भारत को कुछ वष तक
बनाए रखा, िक तु भारत िजस ि थित म फंस गया वह गंभीर खा य कमी की थी िजसके
िलए गहन संकट समाधान की आव यकता थी। इंिदरा गाँधी के शासन के दौरान ही हिरत
क्रांित की शु आत हुई थी और भारत को पयार् त भोजन बनाने का प्रयास िकया गया था।
तथािप, हिरत क्रांित के िव ध आलोचना यह है िक हिरत क्रांित का बड़ा लाभ िनधर्न के
बजाय धना य कृषक को िमला। उपयोग के िवषय म भेदभाव; प्रौ योिगकी और संसाधन
की पहुँच; और हिरत क्रांित के फल की क्षेत्रीय एकाग्रता, भारतीय कृिष के इस आनंदमय
चरण की सीमाओं को दशार्ती है । य यिप भारतीय खा य िनगम भंडारण सिु वधाओं म खा य
भंडार की मात्रा बढ़ गई, और सावर्जिनक िवतरण प्रणाली जैसी सं थाओं ने खा या न और
अ य आव यक व तुओं के िवतरण का दावा िकया िक तु भोजन, भिू म के िलए संघषर् जारी
रहा। नक्सलबाड़ी आंदोलन जो पि चम बंगाल म उभरा, और बाद म आंध्र प्रदे श और िबहार
तक िव तत
ृ हो गया, छोटे तर पर और भिू महीन कृषक की ि थित की याख्या करता है ।
वे दमनकारी रा य और यव था के िव ध िवद्रोह म उठे , िजसने उ ह जीवन की आधािरक
सिु वधाओं से भी वंिचत कर िदया। परं तु नक्सलबाड़ी आंदोलन के अितिरक्त, कई कृषक और
कृषक आंदोलन भी सामने आए, िज ह ने रा य पर क याणकारी नीितय म व ृ िध और
उनके उ म कायार् वयन के संबंध म सु श प से माँग की। रा य पर ये मांग सदै व कृषक
के जीवन तर म व ृ िध के अवसर को बढ़ाने, उनके जीवन तर को बढ़ाने की माँग के
अनु प होती ह।
112
अपिरवितर्त रही, िजसे भारत ने 1970 और 1980 के दशक के अंत म दे खा। रा य ने
अपनी क याणकारी नीितय के अंतगर्त जो टुकड़ा-टुकड़ा लाभ िदया, वह कृषक तक अिधक
नग य मात्रा और गण
ु व ा म पहुँचा।
इस प्रकार, औपिनवेिशक और उ र-औपिनवेिशक चरण के दौरान भी कृषक की ि थित
िनधर्न, ऋण, उ च जाितय और वग और म यम कृषक वारा शोषण म बरकरार रही।
हाल के िदन म जो पिरवितर्त हो गया है , वह कृषक की वह
ृ त तर पर आ मह याओं का
कारण बना। ऐसे म आ मह याओं को कैसे पढ़ना चािहए? क्या आ मह या के िवषय िकसी
सचेत एजसी वारा िवरोध का कायर् करते ह या आ मह या के दौरान वयं एजसी ही प्र न
के घेरे म है ? सध
ु ार के प चात ् भारत म आ मह याओं का पता लगाना आज भारत म
कृषक की अिनि चतता को समझने का एक यवहायर् तरीका है ।
113
अिधक वैि वक तर पर ि थत और गंभीर संकट का मागर् प्रश त िकया। कृषक के म य
आ मह याओं को पढ़ते हुए इन सभी पहलओ
ु ं का मू यांकन करने की आव यकता है ।
राजधानी को िवकिसत करने के िलए भारतीय रा य की प्रितब धता सदै व अपने प्राथिमक
एजडे म रही है , िक तु रा य वारा पँज
ू ी को दी जाने वाली सहायता 1990 के दशक से
पहले नहीं की गई है । यह मख्
ु य प से उस सामािजक अनुबंध के कारण था िजसके मा यम
से रा य की वतंत्रता प्रा त की गई थी। 1990 का दशक एक वाटरशेड बन गया क्य िक
उस समय सामािजक अनुबंध म एक नया गठन हुआ था...पँज ू ी ने पिरपक्वता प्रा त की और
भारतीय रा य ने खुले तौर पर इसे अपनाया। ब्रेटन वु स समझौते के प चात ्, समाजवाद की
बेिड़य को फक िदया गया और नव-उदारवादी नीितय ने रा य के चिरत्र को पिरभािषत
करना शु कर िदया। बाढ़ के वार खुले थे िजसने एक बार िफर नव औपिनवेिशक शिक्तय
को रा ट्र के संसाधन और उसके लोग का शोषण और लट
ू करने की अनुमित दी।
बाजार के खुलने के साथ, न केवल एक बार कृषक को दी जाने वाली आिथर्क सहायता
समा त हो गई, अिपतु भारत के कृषक, िजनकी पिरपक्वता अभी शेष थी, वैि वक प्रित पधार्
म आ गए। फसल प धित म मह वपूणर् पिरवतर्न हुआ। नकदी फसल के उ पादन की ओर
यान अ यिधक बढ़ा, िक तु इसके साथ भारी मात्रा म जोिखम जड़
ु ा हुआ था। रा य के
समथर्न के अभाव और आगत की उ च लागत के साथ-साथ मानसन
ू की कमी के कारण
फसल की िवफलता, रोग, संिदग्ध बीज, कीटनाशक और अ य उवर्रक के उपयोग के बारे म
जानकारी की कमी ने कृषक की ि थित को अिनि चत बना िदया। ऋण की औपचािरक
सं थाएँ चरमराने लगीं और आगत की बढ़ती लागत के साथ, कृषक को अनौपचािरक ोत
से उ च याज दर पर ऋण लेने के िलए मजबूर होना पड़ा, िजससे ऋण जाल म फंस गया।
महारा ट्र, पंजाब, केरल और आंध्र प्रदे श जैसे रा य म आ मह या का मू यांकन करने वाले
कई िव वान भारत म कृषक की आ मह या का कद्रीय कारण ऋणग्र तता को बताते ह।
नव उदारवाद के उदय के साथ भारतीय समाज म सामािजक और सां कृितक प्रथाओं म कुछ
मह वपूणर् पिरवतर्न हुए ह। ऐसा लगता है िक परं परा एवं आधुिनकता के म य वं वा मक
114
संबंध अ य हो गए ह और आधुिनकीकरण ने पँज
ू ीवादी िवकास के िवचार के साथ एक
यापक पा यक्रम ले िलया है । इससे एक आयामी यिक्त का िवकास हुआ है जो असं कृत
आिथर्क िहत और प्रथाओं म फंस गया है । समुदाय की अवधारणा टूट रही है तथा ज्ञान और
प्रथाओं के सामा य ोत जो पािरि थितकी के अनु प थे, लु त हो रहे ह। इसकी अिभ यिक्त
कृषक वगर् म अिधक प ट प से दे खी जा सकती है । जबिक पहले जाित और वगर् सीमा से
परे कृिष प्रथाओं का सामा य ज्ञान हुआ करता था, इस तरह की समझ काम करना बंद कर
दे ती है । कृषक पूणर् प से बाजार आधािरत जानकारी पर िनभर्र ह। रा य की संगिठत
जानकारी के अभाव म, कृषक ने अपने खेत को प्रयोगशाला म पिरवितर्त िदया है । गण
ु व ा
तथा मात्रा दोन के संदभर् म इसके उपयोग की उिचत समझ के िबना बीज, उवर्रक,
कीटनाशक से जड़
ु े सभी प्रकार के प्रयोग के पिरणाम व प केवल इनपुट की लागत बढ़ रही
है , अिपतु कृषक को उनकी भिू म से प्रथक कर िदया गया है ।
115
3.2.5 िन कषर्
आिथर्क सध
ु ार ने िन संदेह कृषक वगर् के आिथर्क द:ु ख को बढ़ाया है , िक तु इसने
सामािजक-सां कृितक गितशीलता को भी पिरवितर्त कर िदया है िजससे गंभीर कृिष संकट
उ प न हो गया है । उस संकट का प्रमख
ु पहलू कृषक की आ मह या के प म प्रकट होता
है । अ ययन से पता चलता है िक कैसे नव-उदारवादी सध
ु ार के पहले चरण ने महारा ट्र,
तिमलनाडु, आंध्र प्रदे श, गज
ु रात के कृषक पर प्रितकूल प्रभाव डाला है । तथािप, ऐसा नहीं है
िक अ य रा य के कृषक कृिष संकट से अछूते ह। वे भी इसके िशकार ह। ये सामािजक-
सां कृितक और आिथर्क संरचना मक पिरवतर्न अ य रा य म शीघ्रता से हो रहे ह और उन
रा य के कृषक भी उतने ही अिनि चत ह। अिधक से अिधक लोग कृिष को अपने िवक प
के प म छोड़कर शहरी कद्र की ओर पलायन कर रहे ह। इससे अनौपचािरक क्षेत्र के आकार
म भारी व ृ िध हुई है । अिधकांश िमक जो समकालीन समय म आव यकता अथर् यव था
का भाग बनते ह, वे िकसी न िकसी तरह कृिष क्षेत्र से संबंिधत थे। खेती छोड़कर शहर म
जाने का उनका िनणर्य उनकी इ छा से नहीं, अिपतु मजबरू ी से आया है । यह एक गंभीर
िचंता का िवषय है िजसे रा य व समाज को सामिू हक प से उठाने और संबोिधत करने की
आव यकता है । कृिष क्षेत्र के आधािरक संरचना म सध
ु ार की त काल आव यकता है , िजसके
िलए सिक्रय रा य ह तक्षेप की आव यकता है । थानीय सरकार को सशक्त बनाने और
कृिष क्षेत्र म त या मक और यावहािरक पिरवतर्न करने की िज मेदारी स पी जानी चािहए,
जबिक रा य को रा ट्रीय तर की क याणकारी योजनाओं को सिु वधाजनक बनाने की
आव यकता है ।
………………………………………………..………………………………………………..………………………………………………..………
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116
3. नव-उदारवादी नीित का कृिष पर क्या प्रभाव पड़ा?
………………………………………………..………………………………………………..………………………………………………..………
………………………………………..………………………………………………..………………………………………………..………………
………………………………..………………………………………………..………………………………………………..………………………
………………………..………………………………………………..………………………………………………..………………………………
3.2.7 संदभर् सच
ू ी
Agamben, Giorgio. “Homo Sacer: Sovereign Power and Bare Life.” Trans.
Daniel Heller-Roazen. Palo Alto: Stanford up (1998): 3-18.
Gruère, Guillaume, and Debdatta Sengupta. “Bt cotton and farmer suicides in
India: an evidence-based assessment.” The journal of development studies
47.2 (2011): 316-337.
117
Mishra, Srijit. “Farmers’ suicides in Maharashtra.” Economic and Political
Weekly (2006): 1538-1545.
Pai, Sudha. Dalit assertion and the unfinished democratic revolution: The
Bahujan Samaj Party in Uttar Pradesh. SAGE Publications India, 2002.
118
इकाई-4
सामािजक आंदोलन
डॉ. संतोष कुमार िसंह
आनुवादक : काजल
4. संरचना
4.1 पिरचय
4.2 सामािजक आंदोलन क्या है ?
4.2.1 पुराना सामािजक आंदोलन
4.2.2 नया सामािजक आंदोलन
4.3 सामािजक आंदोलन पर िस धांत
4.4 भारत म सामािजक आंदोलन
4.4.1 आिदवासी, िकसान और िमक आंदोलन
4.4.2 दिलत और मिहला आंदोलन
4.4.3 पयार्वरण आंदोलन
4.5 िन कषर्
4.6 अ यास प्र न
4.7 बहु-िवक पीय प्र न
4.8 संदभर् सच
ू ी
4.1 पिरचय
119
यूरोप म 18वीं और 19वीं शता दी के दौरान सामािजक आंदोलन श द ने गित पकड़ी है ।
यह वह दौर था जब यूरोप ने कई क्रांितयाँ और सामािजक उथल-पुथल दे खी है । यही वह दौर
था जब वैन के लोग अपने राजनीितक और लोकतांित्रक अिधकार की माँग करने लगे थे।
भारत ने 18वीं और 19वीं शता दी के दौरान सामािजक और राजनीितक सध
ु ार भी दे खे ह।
वतंत्रता के प चात ् के अितिरक्त भारत ने कई नागिरक, राजनीितक, पयार्वरण आंदोलन को
भी दे खा है ।
मव
ू मट श द की उ पि फ्रांसीसी श द ‘मोवॉइर’ से हुई है िजसका अथर् है ि थित पिरवतर्न।
ऑक्सफोडर् िडक्शनरी के अनुसार आंदोलन श द का अथर् है —“िकसी िवशेष व तु के िलए
यिक्तय के एक िनकाय के काय और प्रयास की एक ंख
ृ ला”। कालर् माक्सर् ने ऐितहािसक
आंदोलन के संदभर् म आंदोलन श द को गितिविध की एक ंख
ृ ला के प म िनयोिजत
िकया है और एक िवशेष व तु के िलए यिक्तय के एक िनकाय से प्रयास करता है
(िवलिकसन, 1972: 12)। यह एक सामिू हक अिभनेता के प म भी मानता है , जो उन
लोग के मा यम से बनता है जो वयं को सामा य िहत के िवषय के आधार पर मानते ह
और अपने सामािजक अि त व का मह वपूणर् भाग एक सामा य पहचान ( कॉट, 1992)
िनभाते ह। यह श द वाय ता, कानून या अनश
ु ािसत िस धांत के अनुसार लोग के समह
ू
वारा वतंत्र कारर् वाई का भी प्रितिनिध व करता है ।
120
तंत्र है , िजसके मा यम से वंिचत वगर् एक िवचारधारा के अनु प अपनी शिक्त का प्रदशर्न
करता है या िशकायत की बुराइय को दरू करता है (पॉल 1990: 17-18)।
सभी क्रांितकारी या सध
ु ारवादी सामािजक आंदोलन नागिरक समाज के रक्षा मक,
आकि मक और लामबंदी चरण म मह वपूणर् िनमार्ण खंड प्रदान करते ह। रक्षा मक चरण
म, आंदोलन एक संभािवत नागिरक समाज की नींव के प म काम करते ह क्य िक उनके
सामिू हक कारर् वाई अिभयान के मा यम से, वे एक सहयोगी क्षेत्र की रक्षा करने का प्रयास
करते ह, िजसम घटक वतंत्र प से अपने मू य और िहत को अिधकािरय के सामने
यक्त कर सकते ह। उदीयमान चरण म, आंदोलन रा य वारा वीकृत वाय सावर्जिनक
बहस के दायरे का पोषण और िव तार करते ह और इस प्रकार नागिरक समाज की एक और
कद्रीय नींव की रक्षा करते ह। अंत म, लामबंदी के चरण म, अिधकािरय के साथ संवाद म
घटक के मू य और मानदं ड की अिभ यिक्त के प म, सामािजक आंदोलन शासन के
मानदं ड के िनमार्ण म भाग लेते ह। अंत म, नागिरक समाज के चार िनमार्ण खंड, सहयोगी
जीवन, सावर्जिनक बहस क्षेत्र, आिधप य मानदं ड, और एक वैध रा य, इसके अितिरक्त
नागिरक समाज के सं थागत चरण म जगह म ह। जैसा िक माकर् ि विलंग ने कहा है —
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4.2.1 पुराना सामािजक आंदोलन
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हालाँिक, पॉल बगल
ु े और ने सन िपचाड जैसे कुछ िवचारक ने नए सामािजक आंदोलन
के मॉडल पर सवाल उठाया। उनके अनुसार समकालीन युग म पारं पिरक आंदोलन अभी भी
मौजद
ू ह, जैसे िकसान आंदोलन, िमक आंदोलन आिद। अनुभवज य सा य की कमी के
कारण उ ह खरीदने की भी आलोचना की गई है । इसकी आलोचना इस िबंद ु पर भी की जाती
है िक नए सामािजक आंदोलन का संबंध वामपंथी आंदोलन से अिधक है । दस
ू री ओर, पॉल
बनर् ने ‘अपेक्षाकृत अ यवि थत’ के प म नए सामािजक आंदोलन की आलोचना की है ।
इसके अितिरक्त, नया सामािजक आंदोलन पयार्वरण आंदोलन और समलिगक अिधकार
आिद जैसे यापक पिरवतर्न को प्रा त करने के िलए िवरोध अिभयान की एक रणनीित
अपनाने की कोिशश करता है ।
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जा सकती थी िक वे आम लोग को याय दगे। उ पादन और िवतरण के साधन को
िनयंित्रत करने और एकािधकार की ि थित उ प न करने के िलए पँूजीपितय वारा रा य का
शोषण िकया गया तािक वे िमक का शोषण करने म सक्षम हो सक। िकसान क्रांित लाने
की क्षमता रखते ह, िवशेषकर कृिष प्रधान समाज म। उ ह ने 1917 म स म एक सफल
क्रांित का आयोजन करके इस िस धांत को वा तिवक यवहार म लाया। उ ह ने उ लेख
िकया है िक इितहास से लेकर समकालीन दिु नया तक अमीर वगर् वारा गरीब वगर् के प्रित
भेदभाव और अधीनता के िव ध आंदोलन दे खा गया है । उपेक्षा म भारत ने िकसान
आंदोलन, मजदरू आंदोलन और मजदरू आंदोलन को भी दे खा है ।
सामािजक आंदोलन िवचार के इदर्-िगदर् संगिठत होते ह, जो आंदोलन का पालन करने वाले
यिक्तय को सामािजक और राजनीितक पहचान के नए प दे ते ह। भारत ने कुछ
सामािजक आंदोलन को दे खा है जैसे आिदवासी आंदोलन, दिलत आंदोलन, िकसान आंदोलन,
िपछड़ी जाित/वगर् आंदोलन, छात्र आंदोलन, औ योिगक मजदरू वगर् आंदोलन और म यम वगर्
आंदोलन। कुछ वतर्मान और मह वपण
ू र् आंदोलन इस प्रकार ह—
िकसान आंदोलन श द को पार पिरक और सामिू हक कारर् वाई तथा िवरोध व अिभयान के
मा यम से अपने मु द और सम याओं को उठाने के िलए िकसान की गितिविध के प म
पिरभािषत िकया जा सकता है । भारत ने वतंत्रता के प चात ् और वतंत्रता पव
ू र् दोन
अविधय के दौरान वतर्मान आंदोलन दे खा है । अिधकांश िकसान आंदोलन सामािजक-आिथर्क
प्रकृित पर आधािरत थे। वतंत्रता के दौरान 70% से अिधक जनसंख्या श द अपनी
आजीिवका के िलए कृिष पर िनभर्र है । समय और समय के बाद, िकसान की प्रकृित म
काफी बदलाव आया है ।
भारत म मख्
ु य प से तीन िकसान आंदोलन दे खे गए ह— तेभागा, तेलग
ं ाना और
नक्सलबाड़ी आंदोलन। वतर्मान का अिधकांश समय कराधान प्रणाली के िव ध, नकदी फसल
उगाने, जमींदार की इ छा के अनुसार फसल उगाने और िकसान की दयनीय ि थित पर
आधािरत था।
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वे पूरे साल कड़ी मेहनत करते ह— अनाज की बुवाई, कटाई जबिक जमींदार कृिष उ पाद के
उ पादन म प्र यक्ष या अप्र यक्ष प से कोई गितिविध नहीं करते ह। यह आंदोलन बंगाल के
भीषण अकाल के कारण भी शु हुआ है । उस समय की इस अविध को जोड़, अिधकांश
िकसान तीन समय के भोजन के िलए संघषर् कर रहे थे। िकसान की माँग जहाँ जमींदार को
कृिष उ पादन का केवल एक ितहाई (लगभग 30 प्रितशत) ही एकत्र करना चािहए। अिधकांश
समय उपहार शांितपूणर् तरीके से अपने मु द की माँग कर रहे थे जैसे शांितपूणर् माचर् और
पाठ प्रणाली के िव ध आवाज उठाना। इस आंदोलन के कारण ही पि चम बंगाल सरकार ने
िकसान की सभी माँग को सि मिलत करने के िलए बरगरदारी अिधिनयम 1950 पािरत
िकया।
तेलग
ं ाना आंदोलन है दराबाद म िनजाम के िव ध शु होता है । यह सामंती यव था पर
आधािरत कृिष ढाँचे के िव ध था। दो प्रकार की भिू म कराधान प्रणाली प्रचिलत थी, अथार्त ्
रै यतवारी और जागीरदारी। यह आधिु नक भारत के सबसे मह वपण
ू र् सामािजक आंदोलन म से
एक था। लेिकन बाद म, तेलग
ं ाना आंदोलन के प्रारं िभक चरण म गंभीर सामंती दमन और
िकसान के शोषण पर आधािरत था। यह आंदोलन कृिष सश त्र क्रांित के साधन म बदल
गया है । इस क्रांित के तहत 3 हजार से अिधक गाँव को दमनकारी और भेदभावपूणर् शासन
यव था से मक्
ु त कराया गया। इसके साथ ही लगभग 10,00,000 एकड़ कृिष भिू म िकसान
के बीच पुनिवर्तिरत की गई।
िजन उदार िवचारक का मने उ लेख िकया है िक सामािजक आंदोलन यूरोपीय ज्ञान की
उपज है । थॉमस हॉ स और जॉन लॉक जैसे दाशर्िनक ने प्राकृितक अिधकार के बारे म
उ लेख िकया है — अ छी सरकार, सामािजक यव था, प्राकृितक कानन
ू , िवज्ञान और तकर् के
संदभर् म। इन उदार िवचारक ने यिक्तय को िवशेष प से उनकी माँग और प्राकृितक
अिधकार के संरक्षण के संदभर् म जीवन, वतंत्रता और संपि का अिधकार िदया है , लेिकन
सबसे मह वपण
ू र् है । प्रारं िभक उदारवादी िवचारक सामािजक यव था प्राकृितक कानन
ू , िवज्ञान
और कारण से संबंिधत थे।
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थापना की। यह आंदोलन अमेिरका की लैक पथर पाटीर् से प्रेिरत था। इस आंदोलन ने पूरे
महारा ट्र म कई शाखाएँ खोली ह। इस आंदोलन ने कांशीराम जैसे कई लोग को प्रेरणा दी
है —िज ह ने कमर्चािरय के उ पीड़न की सम या को दे खने और प्रभावी समाधान िनकालने की
कोिशश की थी। 1980 के दशक म, कांशीराम ने रोड शो शु िकया िजसे ‘आंबेडकर मेला’
नाम िदया गया। इस मेले ने डॉ. भीमराव अ बेडकर के जीवन और दशर्नशा त्र म उनके
िवचार का प्रसारण िकया है । उ ह ने दिलत सोिषत समाज संघषर् सिमित (1981) की भी
थापना की है । इसके मा यम से उ ह ने भेदभावपूणर् प्रथाओं और भारत म जाित यव था
पर जाग कता प्रचार वाले िमक पर हमले के िव ध लड़ने की कोिशश की है ।
इसकी प्रारं भ 1991 म हुआ था। इसकी थापना मिहलाओं को अिधक नेत ृ व के िलए
प्रिशिक्षत करने, मिहला आंदोलन को मजबूत करने और एक मजबत
ू मिहला आंदोलन का
िनमार्ण करने के िलए की गई थी। टी.एन.ड ल.ू एफ. दिलत मिहलाओं के िव ध भेदभाव के
बारे म जाग कता फैलाता है , छुआछूत की बुराई को िमटाने, जाित यव था को समा त
करने और दिलत के मानवािधकार को मानवािधकार के प म बनाए रखने के िलए रा ट्रीय
और अंतरार् ट्रीय तर पर आंदोलन और लॉबी को संगिठत करता है । यह मिहलाओं के
आरक्षण के िलए अिभयान चला रहा था, मिहलाओं पर िहंसा, बाल शोषण, क या भ्रण
ू ह या
और भ्रण
ू ह या, िबना जहर के भोजन, खा य सरु क्षा, सांप्रदाियकता और वै वीकरण का
मक
ु ाबला करने और बहुरा ट्रीय कंपिनय वारा अवैध पेटट के िव ध अिभयान चला रहा
था।
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टी.एन.ड ल.ू एफ. ने 27 अग त से 28 अग त, 2006 को पलावॉय, अरक्कोनम म
स मेलन का भी आयोजन िकया। इस वषर् के स मेलन का मख्
ु य आकषर्ण “दिलत मिहलाओं
के िलए भिू म और राजनीितक अिधकार” था। रा य तर पर दिलत मिहलाओं के अिधकार
का दावा करने के िलए आंदोलन मौजद
ू है । यह आंदोलन हर वषर् प्रासंिगकता के अनुसार
िविभ न िवषय पर किद्रत स मेलन का आयोजन करता है । स मेलन दिलत और अ य
जाित के लोग के बीच यापक तर पर जाग कता उ प न करता है । प्र येक स मेलन के
प चात ् दिलत मिहलाओं ने वयं कई थानीय िवषय को उठाया है ।
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िर लेसमट की प्रिक्रया को पूरा कर। कॉटज़ ने इस मु दे पर और िवचार िकया और अंत म
बाँध के िनमार्ण की अनुमित दी।
िनभर्या आंदोलन
घटना के प चात ् परू े भारत म लोग वारा बड़े पैमाने पर प्रदशर्न और िवरोध प्रदशर्न िकए
गए ह। लोग सख्त कानन
ू और दोिषय को सजा िदलाने की माँग कर रहे थे। इसके कारण
सरकार ने आपरािधक कानन
ू अिधिनयम 2013 के साथ नया िकशोर याय िवधेयक पािरत
िकया है । इस अिधिनयम ने अपराधी के िलए बला कार और सजा की पिरभाषा को िव तत
ृ
िकया है । िवरोध और प्रदशर्न के चलते सरकार ने 2013 के बजट म िनभर्या फंड बनाया है ।
इस पिरयोजना म सुरक्षा सरु क्षा और मिहला सशिक्तकरण के िलए हजार करोड़ पये
आवंिटत िकए गए ह।
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िकया। इस आंदोलन म मिहला ने उस पेड़ को कटने से बचाने म अहम भिू मका िनभाई है ।
हाल के वष म, यह दे खा जा सकता है िक पेड़ न केवल पयार्वरण की रक्षा कर रहे ह बि क
भू खलन को रोकने म भी सहायता कर रहे ह।
नदी न केवल गंगा नदी और भारत की वन पित प्रिक्रया के िलए बहुत मह व रखती है ।
भागीरथी बचाओ संक प (बी.बी.एस.) लेिकन भारत और दिु नया के िलए िवशाल सां कृितक,
पािरि थितक और आिथर्क मू य का भी प्रितिनिध व करता है । दभ
ु ार्ग्य से, गंगा का वा य
कई तर पर न ट हो रहा है । न केवल मानव और औ योिगक प्रदष
ू ण से, बि क अब इसे
बड़े पैमाने पर बाँध के िनमार्ण से भी खतरा है । जलिव युत उ पादन के िलए गंगोत्री
ग्लेिशयर और उ रकाशी के बीच गंगा नदी पर छह बाँध बनाए जा रहे ह।
हालात को और अिधक बुरा बनाने के िलए, 2007 म, संयुक्त रा ट्र की जलवायु िरपोटर्
बताती है िक 2030 तक गंगा को िखलाने वाले ग्लेिशयर गायब हो सकते ह। गंगा के प्रवाह
को प्रभािवत करने के अलावा, बाँध के िनमार्ण की प्रिक्रया म लाि टं ग के मा यम से
थानीय पािरि थितक तंत्र को िड्रिलंग, वन की कटाई और जलमग्नब जैसा हुत नक
ु सान
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होता है । यह िनमार्ण व यजीव और थानीय आबादी दोन को िव थािपत करने की धमकी
दे ता है ।
4.5 िन कषर्
अ प िट पिणयाँ
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4.7 बहु िवक पीय प्र न
(बी) शेयरधारक
(सी) िकरायेदार
3. वतंत्रता-पव
ू र् अविध के दौरान अिधकांश भिू म िकसके िनयंत्रण म थी?
(ए) जमींदार
(बी) बटाईदार
(डी) िकरायेदार
5. तेलग
ं ाना आंदोलन िकसान वारा शु िकया गया था—
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(बी) जन
ू ागढ़ के पूवर् रा य
(सी) बॉ बे रा य
(बी) तेलग
ं ाना आंदोलन
(बी) िकसान को उनकी उपज के िलए बेहतर मू य प्रदान करने के िलए सरकार पर
दबाव बनाने के िलए संवैधािनक तरीक का प्रयोग िकया गया था।
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(बी) वतंत्रता के बाद के भारत म िकसान आंदोलन का नेत ृ व अमीर जमींदार ने
िकया है ।
(सी) वतंत्र भारत म िकसान आंदोलन का नेत ृ व अकेले क युिन ट पाटीर् ने िकया है
और अ य राजनीितक दल ने इससे दरू रखा है ।
(ए) पि चम बंगाल
(सी) बॉ बे
4.8 संदभर् सच
ू ी
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