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भारतीय संविधान एिं शासन


1. भारतीय संविधान : विशेषताएं एिं स्त्रोत

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विषय सूची
1. पररचय ____________________________________________________________________________________ 3

1.1. संविधान क्या है?__________________________________________________________________________ 3

1.2. संविधान के कायय __________________________________________________________________________ 3

1.3. संविधानिाद (Constitutionalism) क्या है? ______________________________________________________ 3


1.3.1 भारत में संविधानिाद ___________________________________________________________________ 4

2. भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं______________________________________________________________ 4

2.1. विवखत एिं सबसे विस्तृत संविधान _____________________________________________________________ 4

2.2. नम्यता एिं ऄनम्यता का समन्िय _______________________________________________________________ 5

2.3. िोकतांविक गणराज्य _______________________________________________________________________ 6

2.4. सरकार का संसदीय स्िरूप ___________________________________________________________________ 6


2.4.1. संसदीय संप्रभुता एिं भारतीय संसद की वस्थवत _________________________________________________ 6

2.5. संघीय और एकात्मक विशेषताओं का वमश्रण _______________________________________________________ 7

2.6. ऄसमवमतीय संघिाद _______________________________________________________________________ 9

2.7. मौविक ऄवधकार __________________________________________________________________________ 9

2.8. राज्य के नीवत वनदेशक वसद्ांत_________________________________________________________________ 9

2.9. मूि कतयव्य _____________________________________________________________________________ 10

2.10. पंथवनरपेक्ष राज्य ________________________________________________________________________ 10

2.11. स्ितंि, वनष्पक्ष और एकीकृ त न्यायपाविका ______________________________________________________ 10

2.12. एकि नागररकता _______________________________________________________________________ 10

2.13. साियभौवमक ियस्क मतावधकार ______________________________________________________________ 10

2.14. अपातकािीन शवियां ____________________________________________________________________ 11

2.15. शवियों का पृथक्करण _____________________________________________________________________ 11

2.16. स्ितंि ऄवभकरणों की व्यिस्था ______________________________________________________________ 12

3. भारतीय संविधान के स्रोत ______________________________________________________________________ 12

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1. पररचय
1.1. सं विधान क्या है ?
 संविधान विवशष्ट कानूनी िैधता िािा एक विवधक दस्तािेज़ है। आसमें राज्य के मूिभूत संस्थानों
की स्थापना का ढांचा (framework) वनवहत होता है। यह विवभन्न संस्थानों की कायय प्रणािी को
वनयंवित करने िािे मूि वसद्ांतों को वनर्ददष्ट करता है। आसके साथ ही यह विवभन्न संस्थानों की
संरचना, संघटन, ऄवधकार क्षेि एिं ईनके प्रमुख जनादेश को भी वनधायररत करता है।
 िस्तुतः यह विवभन्न संस्थानों के मध्य ऄन्तसयम्बन्धों को पररभावषत करता है तथा जीिन के सभी
क्षेिों में नागररकों और राज्य के मध्य संबंधों का संचािन करता है। संक्षेप में यह ककसी राष्ट्र की
वनयम पुवस्तका है जो ईस समाज और ईसके कानूनों को वनयंवित करती है।
 संविधान, राज्य के शासकीय वनकायों द्वारा ऄनुसरण की जाने िािी नीवतयों को भी दशायता है।
चूंकक भारत एक िोकतंि है, ऄत: आसका संविधान नागररकों को मूि ऄवधकारों की गारं टी प्रदान
करता है। राज्य के नीवत वनदेशक वसद्ांतों के माध्यम से मूिभूत सामावजक-राजनीवतक मूल्यों को
प्राप्त करने का मागय प्रशस्त करता है।

1.2. सं विधान के कायय

संविधान (विवखत या ऄविवखत) की महत्िपूणय राजनीवतक महत्ता होती है। आसके ऄनेक प्रकायय होते हैं
वजनमें से कु छ वनम्नविवखत हैं:
 विचारधारा की ऄवभव्यवि: यह ककसी राष्ट्र-राज्य के दशयन एिं विचारधारा को दशायता है।
 मूिभूत कानून की ऄवभव्यवि: संविधान मूिभूत कानूनों को प्रदर्शशत करता है। आन कानूनों को एक
प्रकिया के माध्यम से सामान्यतया संशोवधत या पररिर्शतत ककया जा सकता है, वजसे संविधान
संशोधन कहा जाता है। कु छ विशेष कानून भी होते है, जो नागररकों के ऄवधकारों पर कें कित होते
हैं; ईदाहरणस्िरुप ऄवभव्यवि, धमय, सम्मेिन, प्रेस अकद की स्ितंिता से सम्बंवधत ऄवधकार।
 संगठनात्मक ढांचा: यह सरकार के विए एक संगठनात्मक ढांचा प्रदान करता है। यह विधावयका,
काययपाविका और न्यायपाविका के कायों, ईनके ऄन्तसयम्बन्धों, ईनके ऄवधकारों पर प्रवतबंधों अकद
को पररभावषत करता है।
 सरकार के स्तर: संविधान सामान्यत: सरकार के विवभन्न घटकों के स्तरों को प्रदर्शशत करता हैं।
अम तौर पर यह संविधान द्वारा वनरुवपत ककया जाता है कक िह संघीय है, पररसंघीय है या
एकात्मक है। यह राष्ट्रीय और प्रांतीय सरकारों की शवियों को भी वनरुवपत करता है। भारत में तो
यह स्थानीय सरकार की शवियों को भी वनरुवपत करता है।
ईदाहरण:
सोवियत संविधान में मुख्यतः विचारधारा की ऄवभव्यवि थी। ईसमें संगठनात्मक ढांचे की ऄवभव्यवि
कम थी। आसके विपरीत ऄमेररकी संविधान, तत्कािीन सरकार के दशयन की ऄवभव्यवि की तुिना में
सरकारी संगठन एिं शासन पद्वत ऄवभव्यवि ऄवधक है।

1.3. सं विधानिाद (Constitutionalism) क्या है ?

सियप्रथम हमें संविधान और संविधानिाद के मध्य ऄंतर समझने की अिश्यकता है।


 राज्य सत्ता में वनवहत बाध्यकारी शवि का शासकों द्वारा मनमाने ढंग से प्रयोग ककया जा सकता है।
संविधान का वनमायण राज्य सत्ता के विरुद् एक सुरक्षा तंि के रूप में ककया जाता है। आस व्यिस्था
को जो विवखत (सामान्यत:) या ऄविवखत संविधान के माध्यम से सरकारों या शासकों को
क्षेिावधकार के भीतर रहने के विए बाध्य करती है, ईसे संविधानिाद कहा जाता है।

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 संविधानिाद का तात्पयय है कक राजनीवतक शवि का प्रयोग, सीमाओं, वनबंधनों, वनयंिण और


वनयमों के ऄंतगयत ककया जाएगा। संविधानिाद की ऄिधारणा में शवि के वनरं कुश एिं
ऄवधनायकिादी प्रयोग के विरुद् 'सीवमत सरकार' और 'विवध के शासन' के वसद्ांतों को
सवम्मवित ककया गया है।
के .सी.व्हेयर एिं डब्लल्यू जी एंड्रयूज के ऄनुसार संविधानिाद का ऄथय है:
 शवियों का विभाजन, न की शवियों का के न्िीकरण
 समाज में बहुमत वहतों की स्िीकृ वत
 ऄवधनायकिादी या तानाशाही नेतृत्ि की ऄनुपवस्थवत
 व्यविगत स्ितंिता पर न्यूनतम प्रवतबंधों का अरोपण
कािय जे फ्रेडररक के ऄनुसार, शवियों का विभाजन संविधानिाद का सबसे महत्िपूणय अधार है।

संविधानिाद राजशाही या गणराज्य, ऄवभजात्य िगीय राज्य या िोकतंि में विद्यमान हो सकता है
यकद िहााँ शवियों का विभाजन व्याप्त है।

1.3.1 भारत में सं विधानिाद


संविधानिाद भारतीय संविधान में भी विद्यमान है। वनम्नविवखत विशेषताएं आसका साक्ष्य है:
 विवखत संविधान
 संसदीय िोकतंि
 विवध का शासन
 मूि ऄवधकार
 शवियों का पृथक्करण तथा वनयंिण एिं संतुिन
 िचीिा संविधान तथा ऄपररितयनीय अधारभूत ढांचा
 सरकार का संघीय स्िरुप
 स्ितंि न्यायपाविका और न्यावयक समीक्षा

2. भारतीय सं विधान की प्रमु ख विशे ष ताएं


 संविधान की प्रमुख विशेषताएं स्पष्ट रूप से दृवष्टगोचर होने िािे िक्षण या विशेष बातें होती हैं।
भारतीय संविधान आन्हीं विवशष्ट िक्षणों के माध्यम से विवभन्न िैचाररक वनयम और मूल्यों के मध्य
समन्िय स्थावपत करता है। ये सब विवशष्ट िक्षण भारतीय स्ितंिता संग्राम के ऐवतहावसक मूल्यों
से प्रेररत रहे हैं, जो भारतीय संविधान की सफिता को अगे बढाने में महत्त्िपूणय भूवमका वनभा रहे
हैं।

2.1. विवखत एिं सबसे विस्तृ त सं विधान

 भारतीय संविधान एक विवखत संविधान है। आसके साथ ही साथ यह विश्व के सभी देशों के

संविधान की तुिना में सबसे ऄवधक विस्तृत है। मूि संविधान में 395 ऄनुच्छेद एिं 8 ऄनुसूवचयां

सवम्मवित थी, वजनमें संिैधावनक संशोधनों के माध्यम से कइ पररितयन ककये गए हैं। ऄप्रैि 2017

तक आसमें 25 भाग, 12 ऄनुसूवचयों और 5 पररवशष्टों सवहत 448 ऄनुच्छेद हैं। 1950 में

ऄवधवनयवमत होने के पश्चात् संविधान संशोधन हेतु 123 संविधान संशोधन विधेयक प्रस्तुत ककये

गए हैं तथा 101 संविधान संशोधन कानून पाररत ककये गए हैं।

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हािांकक ऄनुच्छेद 395, संविधान का ऄंवतम ऄनुच्छेद है, परन्तु ऄप्रैि 2017 तक ऄनुच्छेदों की

कु ि संख्या 448 है। संशोधन के माध्यम से जोड़े गए नए ऄनुच्छेद, मूि संविधान में सम्बंवधत भाग

में सवम्मवित कर कदए गए हैं। ऄनुच्छेदों के मूि िम को ईिट-पुिट नहीं करने के ईद्देश्य से नए

ऄनुच्छेद ऄल्फान्यूमेररक सूची के ऄनुसार सवम्मवित ककये गए हैं। ईदाहरण के विए, वशक्षा के

ऄवधकार से संबंवधत ऄनुच्छेद 21A, 86 िें संशोधन ऄवधवनयम द्वारा संविधान में सवम्मवित ककया

गया था।

संविधान के विस्तृत होने के पीछे विवभन्न कारक वजम्मेदार हैं:


 सबसे प्रमुख कारकों में से एक यह है कक संविधान वनमायताओं ने विवभन्न स्रोतों और विश्व के बहुत
से ऄन्य संविधानों से कइ ईपबंध ग्रहण ककये थे। जैसे संविधान वनमायताओं ने प्रशासवनक वििरण से

संबंवधत विषयों पर प्रािधान वनमायण हेतु भारत सरकार ऄवधवनयम,1935 का ऄनुसरण ककया

गया तथा ईसकी कइ विशेषताओं को बनाए रखा गया।

 दूसरा, भारत से सम्बंवधत विवशष्ट मुद्दों के विए प्रािधान वनर्शमत करना अिश्यक था, जैसे

ऄनुसूवचत जावत, ऄनुसूवचत जनजावत और वपछड़े क्षेिों हेतु विवभन्न प्रािधानों का होना।

 तीसरा, कें ि-राज्य संबंधों में ईनके प्रशासवनक, विधायी एिं वित्तीय संबंधों तथा ऄन्य गवतविवधयों

के सभी महत्िपूणय पहिुओं के विए विस्तृत प्रािधान ककए गए हैं।


 चौथा, चूंकक भारतीय राज्यों के विए पृथक संविधान नहीं है, ऄतः राज्य प्रशासन से सम्बंवधत

प्रािधान भी भारतीय संविधान में सवम्मवित ककये गए हैं।

 पााँचिां,स्थानीय स्िशासी संस्थाओं से सम्बवन्धत प्रािधान भी भारतीय संविधान में सवम्मवित

ककये गए हैं।

 आसके ऄवतररि, संविधान को अम नागररकों के विए सुस्पष्ट बनाने हेतु व्यविगत ऄवधकारों,

राज्य के नीवत वनदेशक वसद्ांतों की एक विस्तृत सूची एिं प्रशासकीय प्रकिया की जानकारी
संविधान में समाविष्ट की गयी है।

2.2. नम्यता एिं ऄनम्यता का समन्िय

 भारतीय संविधान विशुद् रूप से न तो कठोर या ऄनम्य है और न ही नम्य या िचीिा है। आसमें
कठोरता और िचीिेपन का समन्िय है। संविधान के कु छ भागों को संसद के साधारण कानून
बनाने की प्रकिया द्वारा संशोवधत ककया जा सकता है। हािांकक कु छ प्रािधानों में संशोधन तभी

ककया जा सकता है, जब आस ईद्देश्य के विए एक विधेयक संसद के प्रत्येक सदन के कु ि सदस्यों के

बहुमत तथा सदन में ईपवस्थत एिं मतदान में भाग िेने िािे सदस्यों के कम से कम दो-वतहाइ
बहुमत से संसद के प्रत्येक सदन में पाररत हो जाता है।
 साथ ही कु छ ऄन्य ऐसे प्रािधान भी हैं जो ईपरोि विवध द्वारा संशोवधत ककये जा सकते हैं परन्तु
ईन्हें राष्ट्रपवत के समक्ष ऄनुमवत हेतु प्रस्तुत करने से पूिय कम से कम अधे राज्यों का ऄनुसमथयन
अिश्यक है। यह भी ध्यान कदया जाना चावहए कक संविधान संशोधन विधेयक िाने की शवि

के िि संसद में वनवहत है, राज्य विधानसभाओं में नहीं।

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 संविधान सभा में पंवडत नेहरू के शब्लद: "यद्यवप हम संविधान को आतना दृढ़ और स्थायी बनाना

चाहते हैं वजतना हम बना सकते हैं, कफर भी संविधान में कोइ स्थावयत्ि नहीं है। संविधान में कु छ

िचीिापन होना चावहए। यकद अप कु छ भी कठोर और स्थायी बनाते हैं, तो अप राष्ट्र के विकास,

जीिन के विकास... अकद को रोक देते हैं। ककसी भी वस्थवत में, हम आस संविधान को आतना कठोर
नहीं बना सकते थे कक बदिती पररवस्थवतयों के ऄनुसार आसका पािन नहीं ककया जा सके । जब
विश्व में ऄशांवत है और हम ऄत्यंत तीव्र संिमण काि से गुजर रहे हैं, तब हम जो अज करते है

संभितः िह भविष्य में पूणत


य या िागू नहीं हो सकता है।"

2.3. िोकतां विक गणराज्य

 भारत एक िोकतांविक गणराज्य है। आसका तात्पयय यह है कक भारत की संप्रभुता भारत के िोगों में
वनवहत है। िे साियभौवमक ियस्क मतावधकार के अधार पर वनिायवचत प्रवतवनवधयों के माध्यम से
स्ियं को प्रशावसत करते हैं। भारत का राष्ट्रपवत जो देश का सिोच्च ऄवधकारी है, एक वनवश्चत
समयािवध के विए चुना जाता है।
 हािांकक भारत एक संप्रभु गणराज्य है, कफर भी आसकी राष्ट्रमंडि (कॉमनिेल्थ) की सदस्यता जारी

है, वजसकी प्रमुख विरटश सम्राज्ञी हैं। राष्ट्रमंडि में भारत की सदस्यता एक संप्रभु गणराज्य के रूप

में ईसकी वस्थवत से समझौता नहीं करती है क्योंकक राष्ट्रमंडि, मुि और स्ितंि राष्ट्रों की एक
संस्था है। विरटश सम्राज्ञी आस संस्था की माि प्रतीकात्मक प्रमुख हैं।

2.4. सरकार का सं स दीय स्िरूप

 भारत ने विटेन द्वारा ऄपनाइ गयी िेस्टममस्टर प्रणािी को ऄपनाया गया है। यह सरकार की एक
िोकतांविक संसदीय प्रणािी है। आस प्रणािी में काययकाररणी, विधावयका के प्रवत ईत्तरदायी होती
है । यह सत्ता में के िि तब तक बनी रहती है जब तक आसे विधावयका का विश्वास प्राप्त है।
 भारत का राष्ट्रपवत नाममाि का संिैधावनक प्रमुख होता है। कें िीय मंविपररषद का गठन
विधावयका से ही ककया जाता है। आसका प्रमुख प्रधानमंिी होता है। कें िीय मंविपररषद सामूवहक
रूप से िोकसभा के प्रवत ईत्तरदायी होती है। यकद कें िीय मंविपररषद सदन में विश्वास खो देती है
तो यह आस्तीफा देने के विए बाध्य होती है।

 राष्ट्रपवत जो नाममाि का काययकारी होता है, कें िीय मंविपररषद ऄथायत् िास्तविक काययकाररणी
की सिाह के ऄनुसार ऄपनी शवियों का प्रयोग करता है। राज्यों में भी सरकार संसदीय प्रकृ वत की
होती है।

2.4.1. सं स दीय सं प्र भु ता एिं भारतीय सं स द की वस्थवत

 संसदीय संप्रभुता को संसदीय सिोच्चता या विधायी सिोच्चता के रूप में भी जाना जाता है। यह
संसद को सिोच्च कानूनी प्रावधकरण बनाती है, जो ककसी भी कानून को समाप्त कर सकती है या

नया कानून बना सकती है। तात्पयय यह है कक संसद ऐसा कोइ कानून पाररत नहीं कर सकती है

वजसे भविष्य में स्ियं ससंद द्वारा संशोवधत न ककया जा सके । आसके ऄवतररि, न्यायपाविका
कानून को ख़ाररज नहीं कर सकती है ऄथायत् संसद द्वारा पाररत ककसी कानून की न्यावयक समीक्षा
नहीं हो सकती है।

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वनम्नविवखत वसद्ांत संसदीय संप्रभुता के विपरीत है:


 संिैधावनक सिोच्चता का वसद्ांत
 शवियों के पृथक्करण का वसद्ांत (यह ऄवधकांशत: सामान्य कानून बनाने के विए विधावयका के
कायय क्षेि को सीवमत करता है)
 न्यावयक समीक्षा का वसद्ांत (विधावयका द्वारा पाररत कानूनों को कु छ वनवश्चत पररवस्थवतयों में
ऄमान्य घोवषत ककया जा सकता है)
संसदीय संप्रभुता, विरटश संविधान का वसद्ांत है। यह विटेन में संसद को सिोच्च कानूनी ऄवधकार
प्रदान करता है।
क्या भारतीय संसद संप्रभु है?

 भारतीय संसद की संप्रभु वस्थवत विटेन के समान वनरपेक्ष या वनरकुं श नहीं है, क्योंकक यह संविधान
के ईपबंधों के ऄधीन है। संविधान ही भारतीय संसद को ऄवधकार और शवियां प्रदान करता है।
आसकी कु छ पूि-य वनधायररत सीमायें है, जो वनम्नविवखत है:
o संसद के िि ईन विषयों के संबध
ं में कानून बना सकती हैं जो या तो संघ सूची में ऄथिा
समिती सूची में वनर्ददष्ट हैं।
o संसद द्वारा बनाए गए कानून, ईच्चतम न्यायािय की न्यावयक समीक्षा की शवि के ऄधीन

होते हैं। आसका तात्पयय है कक यकद संसद द्वारा वनर्शमत कोइ कानून, संविधान के अधारभूत

प्रािधानों के विरुद् है,तो ईसे सम्बंवधत न्यायािय द्वारा ऄमान्य घोवषत ककया जा सकता है।

 वनष्कषय: आस प्रकार, विटेन के संसदीय सिोच्चता के वसद्ांत के विपरीत भारत में संविधान की
सिोच्चता का वसद्ांत ऄपनाया गया है।

2.5. सं घीय और एकात्मक विशे ष ताओं का वमश्रण

भारतीय संविधान के ऄनुच्छेद 1 के ऄनुसार: ‘भारत, ऄथायत् आं वडया, राज्यों का संघ’ होगा। हािांकक

संविधान में कही भी 'संघीय' शब्लद का प्रयोग नहीं ककया गया है, तथावप भारत एक संघीय गणतंि है।

कोइ राज्य संघीय होता है, यकद:

 सरकार दो स्तरों में विभि होती है तथा दोनों के मध्य शवियों का वितरण होता है;

 विवखत संविधान होता है, जो देश का सिोच्च कानून होता है; तथा
 संविधान की व्याख्या और कें ि एिं राज्यों के मध्य वििादों के समाधान के विए एक स्ितंि
न्यायपाविका का प्रािधान होता है।
भारतीय संविधान में संघात्मकता के िक्षण वनम्नविवखत हैं:
 ईपरोि सभी संघात्मक विशेषताएं भारतीय संविधान में वनवहत हैं। सरकार के दो स्तर विद्यमान
हैं, एक कें ि स्तर पर एिं दूसरा राज्य स्तर पर। आन दोनों के मध्य शवियों के वितरण का विस्तृत

वििरण हमारे संविधान में ककया गया है (73िें एिं 74िें संविधान संशोधनों के पश्चात शवियों
को स्थानीय स्तर तक विकें िीकृ त ककया गया है)।
 भारत का संविधान विवखत है एिं संविधान ही देश का सिोच्च कानून है।
 एकि एकीकृ त न्यावयक प्रणािी के शीषय पर, ईच्चतम न्यायािय भी विद्यमान है, जो काययपाविका
और विधावयका के वनयंिण से स्ितंि है।

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भारतीय संविधान में एकात्मकता के िक्षण वनम्नविवखत हैं:


 संघीय राज्य की आन सभी अिश्यक विशेषताओं के बािजूद, भारतीय संविधान में कु छ एकात्मक
प्रिृवत्तयां भी विद्यमान हैं। ऄन्य संघ जैसे संयुि राज्य ऄमेररका दोहरी नागररकता का प्रािधान
करती हैं जबकक भारत के संविधान में एकि नागररकता का प्रािधान है।
 सम्पूणय देश के विए एक ही एकीकृ त न्यायपाविका है।
 ऄवखि भारतीय सेिाओं जैसे भारतीय प्रशासवनक सेिा, भारतीय पुविस सेिा एिं भारतीय िन

सेिा के प्रािधान, एक ऄन्य एकात्मक विशेषता प्रदर्शशत करते हैं। आन सेिाओं के सदस्य, संघ िोक
सेिा अयोग द्वारा ऄवखि भारतीय अधार पर वनयुि ककये जाते हैं। चूंकक ये सेिायें कें ि सरकार
द्वारा वनयंवित होती हैं, ऄत: कु छ हद तक ये राज्यों की स्िायत्तता में बाधा ईत्पन्न करती हैं।
 भारतीय संविधान की एक महत्िपूणय एकात्मक विशेषता अपातकाि का प्रािधान है। अपातकाि
के दौरान कें ि सरकार और ऄवधक शविशािी हो जाती है तथा संघीय संसद को राज्यों हेतु कानून
बनाने की शवि प्राप्त हो जाती है।
 राज्यपाि राज्य का संिैधावनक प्रमुख होता है। यह कें ि सरकार के एजेंट के रूप में कायय करता है
और कें ि सरकार के वहतों की रक्षा करने के वनवमत्त होता है। ईपरोि प्रािधान, हमारे संघ की
एकात्मक प्रिृवत्त को प्रकट करते हैं।
वनष्कषय:
 प्रोफे सर के .सी. व्हेयर के ऄनुसार, भारतीय संविधान, "सरकार की एक ऄद्य संघीय प्रणािी है एिं

ऄवतररि एकात्मक विशेषताओं के साथ एक एकात्मक राज्य" का प्रािधान करता है।


 संविधान वनमायताओं ने स्पष्ट रूप से व्यि ककया था कक संघिाद और एकात्मकता के मध्य
सामंजस्य विद्यमान है। डॉ. ऄम्बेडकर के ऄनुसार, “संविधान में ऄपनायी गयी राजनीवतक

प्रणािी, समय एिं पररवस्थवतयों की अिश्यकता के ऄनुसार एकात्मक के साथ ही संघीय हो

सकती है"। यह कहा जा सकता है कक भारत में कें िीय मागयदशयन एिं राज्य ऄनुपािन के साथ एक
सहकारी संघिाद विद्यमान है।
 संयुि राज्य ऄमेररका िास्तविक संघीय संविधान ऄपनाने िािा पहिा देश था। आसकी संघीय
संरचना ऄभी भी संदभय के रूप में यह वनधायररत करने हेतु प्रयुि की जाती है कक कोइ संविधान
संघीय है या नहीं।
 भारतीय संविधान का वनमायण वजन पररवस्थवतयों में ककया गया था िे 1787 में वनर्शमत ऄमेररकी
संविधान की पररवस्थवतयों से वबिकु ि वभन्न थी। अजादी के समय भारत दुखद विभाजन तथा देश
के कोने-कोने में विद्यमान विभावजत प्रिृवत्तयों का साक्षी था। आसविए राज्य को एक आकाइ के रूप
में बनाए रखने तथा ऄंत में ऄपने िोगों को एक राष्ट्र के रूप में एक साथ बनाये रखने के विए एक
मजबूत कें ि का वनमायण करना तात्काविक अिश्यकता थी।
 हािांकक संविधान में कु छ कें िीय प्रिृवत्तयां पायी जाती हैं, परन्तु भारतीय राज्यों में भी शवि और

स्िायत्तता का एक ईवचत स्तर वनवहत है। भारतीय विवध अयोग के ऄनुसार, एक मजबूत संघ और
मजबूत राज्यों के मध्य कोइ विरोधाभास नहीं होता है।
 ईपरोि विचार-विमशय को संभितः प्रोफे सर ऄिेक्सेंडरोंविज़ (Alexanderowicz) के शब्लदों में

सियश्रेष्ठ रूप से संक्षेवपत ककया जा सकता है, वजसमें ईन्होंने कहा है कक "भारत एक संघ है परन्तु

एक सुइ जेनेररस (sui generis) संघ है, ऄथायत् ऄपने ही प्रकार का संघ या एक ऄवद्वतीय संघ है।"

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2.6. ऄसमवमतीय सं घ िाद

(Asymmetric federalism)
 भारत के संविधान में कु छ राज्यों के विये विशेष प्रािधान ककये गये हैं। जम्मू-कश्मीर राज्य को
ऄनुच्छेद 370 के ऄंतगयत विशेष ऄवधकार प्रदान ककये गये हैं। साथ ही भारतीय संविधान के सभी
ईपबन्ध जम्मू-कश्मीर राज्य पर िागू नहीं होते हैं। आसके ऄवतररि महाराष्ट्र एिं गुजरात (ऄनुच्छेद
371), नागािैंड (ऄनुच्छेद 371-A), ऄसम (ऄनुच्छेद 371-B), मवणपुर (ऄनुच्छेद 371-C),
अन्र प्रदेश (ऄनुच्छेद 371-D एिं 371-E), वसकक्कम (ऄनुच्छेद 371-F), वमजोरम (ऄनुच्छेद
371-G),ऄरुणाचि प्रदेश (ऄनुच्छेद 371-H) और गोिा (ऄनुच्छेद 371-I) के विए भी विशेष
ईपबन्ध विवभन्न राज्यों की प्रादेवशक समस्याओं और मांगो के कारण बनाये गए हैं। आन सब
विशेषताओं के कारण ही भारतीय संघिाद को ऄसमवमतीय संघिाद के नाम से जाना जाता है |

2.7. मौविक ऄवधकार

 भारतीय संविधान का अधारभूत ढांचा यह पुवष्ट करता है कक प्रत्येक व्यवि को कु छ अधारभूत


ऄवधकार प्राप्त हैं। आन ऄवधकारों की चचाय संविधान के भाग III में की गयी है आन्हें मूि ऄवधकारों
के रूप में जाना जाता है। मूि रूप से संविधान में सात मूि ऄवधकारों की श्रेवणयां थीं, परन्तु ऄब
यह संख्या छह रह गयी है। ये हैं: (i) समानता का ऄवधकार, (ii) स्ितंिता का ऄवधकार, (iii)
शोषण के विरुद् ऄवधकार, (iv) धार्शमक स्ितंिता का ऄवधकार, (v) सांस्कृ वतक और वशक्षा संबंधी
ऄवधकार और (vi) संिैधावनक ईपचारों का ऄवधकार। संपवत्त का ऄवधकार (ऄनुच्छेद 31), मूितः,
एक मूि ऄवधकार था, वजसे 44 िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1978 द्वारा हटा कदया गया।
ितयमान में यह के िि एक कानूनी ऄवधकार है।
 मूि ऄवधकार राज्य के नकारात्मक दावयत्िों के रूप में िर्शणत हैं और ये राज्य की सत्ता के विरुद्
सीमाओं के रूप में कायय करते हैं।
 मूि ऄवधकार न्यायोवचत हैं। आन ऄवधकारों में से ककसी एक का भी ऄवतिमण होता है तो कोइ भी
व्यवि ईच्चत्तर न्यायपविका, ऄथायत ईच्चतम न्यायािय और ईच्च न्यायािय में ऄपीि दायर कर
सकता है। मूि ऄवधकारों के प्रितयन के विए ऄनुच्छेद 32 (संिैधावनक ईपचारों का ऄवधकार) के
तहत सीधे ईच्चतम न्यायािय में जाने के ऄवधकार की गारं टी दी गइ है। हािांकक, भारत में मूि
ऄवधकार ऄसीवमत नहीं हैं। राज्य और समाज की सुरक्षा और ऄन्य अिश्यकताओं को ध्यान में
रखते हुए आन पर ईवचत प्रवतबंध िगाया जा सकता है।

2.8. राज्य के नीवत वनदे श क वसद्ां त

 संविधान की एक ऄनूठी विशेषता आसमें सवम्मवित राज्य के नीवत वनदेशक वसद्ांत हैं। ये वसद्ांत
सरकार के विए वनदेशात्मक प्रकृ वत के हैं, वजन्हें सरकार सामावजक और अर्शथक िोकतंि की
स्थापना के विए िागू कर सकती है।
 आसमें सवम्मवित महत्िपूणय वसद्ांत जीविका के विए पयायप्त साधन, पुरुषों और मवहिाओं को
समान कायय के विये समान िेतन, िोकवहत के विए धन का वितरण, वन:शुल्क और ऄवनिायय
प्राथवमक वशक्षा, काम का ऄवधकार, िृद्ािस्था, बेरोजगारी, बीमारी और विकिांगता की वस्थवत
में साियजवनक सहायता, ग्राम पंचायतों का गठन, अर्शथक रूप से वपछड़े िगों के विए विशेष
प्रािधान अकद हैं।
 आन वसद्ांतों में से ऄवधकांश भारत को एक कल्याणकारी राज्य बनाने में मदद करते हैं। हािांकक ये
न्यायोवचत नहीं हैं, कफर भी आन वसद्ांतों को “देश के शासन के विए अधारभूत” कहा गया है।

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2.9. मू ि कतय व्य

 42िें संशोधन ऄवधवनयम, 1976 द्वारा संविधान में राज्य के नीवत वनदेशक वसद्ांत के पश्चात् मूि
कतयव्यों के विए एक नया भाग IV(A) जोड़ा गया। संविधान में मूि कतयव्यों को सवम्मवित करने
का ईद्देश्य नागररकों को यह स्मरण कराना है कक वजस प्रकार नागररक ऄपने ऄवधकार का अनंद
िेते हैं, ईसी प्रकार ईन्हें ऄपने कतयव्यों का पािन करना चावहए क्योंकक ऄवधकार और कतयव्य
सहसंबद् होते हैं।

2.10. पं थ वनरपे क्ष राज्य

 एक पंथवनरपेक्ष राज्य न तो धार्शमक और न ही ऄधार्शमक या धमय विरोधी होता है। बवल्क यह धमय
के मामिों में तटस्थ होता है। भारत का कइ धमों का देश होने के कारण से संविधान के संस्थापकों
ने आसे पंथवनरपेक्ष राज्य बनाना ईवचत समझा।
 भारत एक पंथवनरपेक्ष राज्य है क्योंकक यह धमय के अधार पर िोगों के मध्य ककसी भी प्रकार का
भेदभाि नहीं करता है। यह न तो ककसी धमय को प्रोत्सावहत करता है और न ही ककसी धमय को
हतोत्सावहत। आसके विपरीत, संविधान में धमय की स्ितंिता का ऄवधकार सुवनवश्चत ककया गया है
और ककसी भी धार्शमक समूह से संबंवधत िोगों को ईनकी पसंद के धमय को मानने, अचरण करने
या प्रसार करने का ऄवधकार देता है।

2.11. स्ितं ि , वनष्पक्ष और एकीकृ त न्यायपाविका

 हमारे संविधान में न्यायपाविका को एक महत्िपूणय स्थान प्राप्त है और आसे विधावयका और


काययपाविका से स्ितंि भी रखा गया है। भारत का ईच्चतम न्यायािय एकि एकीकृ त न्यावयक
प्रणािी के शीषय पर है।
 यह भारतीय नागररकों के मूि ऄवधकारों की रक्षा की गारं टी देता है। संविधान के संरक्षक के रूप
में कायय करता है।
 यकद विधावयका द्वारा पाररत कोइ कानून या काययपाविका द्वारा की गयी कोइ भी काययिाही
संविधान के प्रािधानों का ईल्िंघन करती है तो ईसे ईच्चतम न्यायािय द्वारा शून्य घोवषत ककया
जा सकता है।

2.12. एकि नागररकता

 भारत का संविधान एकि नागररकता को मान्यता देता है। संयुि राज्य ऄमेररका में, दोहरी
नागररकता का प्रािधान है। भारत में हम के िि भारत के नागररक है, न कक ईस संबंवधत राज्य के
वजससे हम वनिास करते हैं। यह प्रािधान राष्ट्र की एकता और ऄखंडता को बढ़ािा देने में मदद
करता है और ऄिग-ऄिग क्षेिों के िोगों के बीच बंधत
ु ा को बढ़ािा देता है।

2.13. सािय भौवमक ियस्क मतावधकार

 भारत के संविधान में साियभौवमक ियस्क मतावधकार का ईल्िेख ककया गया है। साियभौवमक
ियस्क मतावधकार के तहत सभी व्यस्क नागररकों को ईनके धमय, जावत, नस्ि, रं ग और मिग के
अधार पर कोइ विभेद ककए वबना चुनाि प्रकिया में भाग िेने का ऄवधकार प्रदान ककया गया है।
 साियभौवमक ियस्क मतावधकार प्रदान करने का मुख्य ईद्देश्य भारतीय संविधान वनमायताओं का
ईदारिादी विचारों से ऄत्यावधक प्रभावित होना था। सभी नागररकों को समान राजनीवतक
ऄवधकार प्रदान करना वजससे राष्ट्रीय भािना का विकास ककया जा सके ।
 मूि संविधान में ियस्कता की अयु 21 िषय वनधायररत की गयी थी। वजसे 61िें संविधान संशोधन
ऄवधवनयम, 1989 द्वारा घटाकर 18 िषय कर ककया गया।

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2.14. अपातकािीन शवियां

 भारतीय संविधान में अपातकािीन शवियों का प्रािधान ककया गया है। यह प्रािधान देश को
आसके समक्ष ईपवस्थत ककसी भी अपात वस्थवत से वनपटने के विये सक्षम बनाती है।
 अपातकािीन शवियां भारत के राष्ट्रपवत में वनवहत हैं। संविधान में तीन प्रकार के अपातकाि का
ईल्िेख ककया गया है: राष्ट्रीय अपातकाि (ऄनुच्छेद 352); संिैधावनक तंि की विफिता

(ऄनुच्छेद 356) और वित्तीय अपातकाि (ऄनुच्छेद 360)।

2.15. शवियों का पृ थ क्करण

 शवियों के पृथक्करण की संकल्पना के पीछे की मूि धारणा यह है कक शवियों का के न्िीकरण जब


एक व्यवि या व्यवियों के समूह में हो जाता है तो िे सरकारी मशीनरी का ईपयोग जनवहत के
स्थान पर व्यविगत वहत में करने िगते हैं। शवियों का पृथक्करण ककसी भी व्यवि या समूह के हाथ
में सत्ता के संकेन्िण को रोकने का एक तरीका है। आससे सत्ता का दुरूपयोग करठन हो जाता है।
 आसके ऄनुसार, राज्य सत्ता एकि आकाइ नहीं बवल्क विवभन्न राज्य वनकायों द्वारा एक-दूसरे से

स्ितंि रहकर ककए जाने िािे विवभन्न सरकारी कायों (ऄथायत् विधायी, काययकारी और न्यावयक)

का सवमश्रण है। विधावयका कानून का वनमायण करती है; काययपाविका कानून को िागू करती है;
और न्यायपाविका ईन कानूनों की व्याख्या करती है।
 शवि पृथक्करण का परं परागत विचार मोंटेस्क्यू द्वारा 1748 में प्रकावशत ऄपनी पुस्तक द वस्पररट

ऑफ द िॉज (The Spirit of the Laws) में कदया गया है। आन्होंने सरकार के तीनों ऄंगों ऄथायत्

काययपाविका, विधावयका और न्यायपाविका के मध्य शवि और कायों के सख्त एिं वनरपेक्ष


पृथक्करण की िकाित की है। आन तीनों पृथक वनकायों के मध्य शवियों का वितरण आस प्रकार
होगा कक ईनके प्रकायय पूणत
य या पृथक हों और आनके प्रकायों में कोइ ऄवतव्यापन (ओिरिेमपग) न
हो।
 हािांकक भारत का संविधान शवियों के विभाजन के वसद्ांत के संदभय में एक समकािीन दृवष्टकोण
प्रस्तुत करता है। हमारे संविधान के तहत शवियों का कठोर पृथक्करण, वसद्ांत और व्यिहार दोनों
में व्याप्त नहीं है। चूंकक संसदीय िोकतंिों में काययपाविका या मंिी पररषद् जैसे कक भारत या विटेन
में, विधावयका का भी भाग होते हैं, आसविए, यहााँ शवि का कठोर पृथक्करण मौजूद नहीं हो सकता
है।
 िस्तुतः भारत के संविधान ने शवि पृथक्करण के वसद्ांत के साथ वनयंिण और संति
ु न के वसद्ांत
को ऄपनाया है। आस वसद्ांत के तहत सरकार के ऄिग-ऄिग ऄंग जैसे विधावयका, काययपाविका,
न्यायपाविका एक-दूसरे को वनयंिण में रखते हैं। आसविए भारत में सरकार का प्रत्येक ऄंग ऄपने
कियाकिापों के दौरान दूसरे ऄंगों के काययक्षेि में हस्तक्षेप नहीं करते हैं। िेककन ठीक ईसी समय
यह सुवनवश्चत करना भी अिश्यक होता है कक सरकार के दूसरे ऄंग शवियों का दुरूपयोग न करें
या ऄपने ऄवधदेश (मैंडटे ) की सीमा का ऄवतिमण न करें ।
 आस सम्बन्ध में एक महत्िपूणय प्रश्न राज्य के आन तीनों ऄंगों के बीच संबंध का है ऄथायत क्या आन
तीन ऄंगों के बीच शवियााँ पूरी तरह पृथक होनी चावहए या ईनके बीच समन्िय होना चावहए।
डॉ. दुगाय दास बसु के शब्लदों में,

 “जहााँ तक न्यायपाविका का संबध


ं है, आस वसद्ांत के ऄनुप्रयोग (शवियों का पृथक्करण का वसद्ांत)
में दो प्रस्ताि वनवहत हो सकते हैं:

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o सरकार के तीनों ऄंगों विधावयका, काययपाविका और न्यायपाविका में से कोइ भी एक


ऄंग समुवचत रूप से ऄन्य दोनों ऄंगों में से ककसी के भी ऄंतगयत अने िािी शवियों का
ईपयोग नहीं कर सकता है।
o विधावयका ऄपनी शवियों का प्रत्यायोजन (Delegation) नहीं कर सकती है। (ककसी ईच्च
ऄवधकारी द्वारा ऄधीनस्थ ऄवधकारी को विवशष्ट सत्ता एिं प्रावधकार प्रदान करना प्रत्यायोजन
कहिाता है।)

 यहााँ महत्िपूणय तथ्य ‘समुवचत’ शब्लद है जो शवियों के एक व्यापक पृथक्करण को ध्यान में िाता है।
जहााँ सरकार के ककसी ऄंग को प्रदत्त मुख्य (कोर) प्रकायय एक ही है। हािााँकक कु छ विषयों के
सीमािती क्षेिों को िेकर कु छ व्यावप्त हो सकती है। आन कानूनी पहिुओं पर न्यायािय की राय यह
है कक भारतीय संविधान में शवियों का व्यापक पृथक्करण वनवहत है।

2.16. स्ितं ि ऄवभकरणों की व्यिस्था

संविधान में कदए गए कु छ विवशष्ट कायों को संपाकदत करने के विए स्ितंि ऄवभकरणों की भी व्यिस्था
की गयी है। हािााँकक भारतीय शासन ऄवधवनयम, 1935 में भी ऐसे ऄवभकरणों की व्यिस्था थी। ईनमें
से कु छ ऄवभकरण वनम्नविवखत हैं:
 वनिायचन अयोग: यह संसद, राज्य विधान मंडिों, राष्ट्रपवत तथा ईप राष्ट्रपवत के वनिायचन की
व्यिस्था करता है आस संस्था को काययपाविका के वनयंिण से मुि रखने के विए संविधान में कु छ
प्रािधान ककये गए हैं।
 वनयंिक तथा महािेखा परीक्षक: यह संघ तथा राज्यों के वित्त एिं िेखा परीक्षण करता है तथा
ईनको वनयंवित करता है। आसे भी संघीय और राज्यों की काययपाविका के वनयंिण से मुि रखने के
विए संविधान में व्यिस्था की गइ है।
 संघीय और राज्य िोक सेिा अयोग: ये िमशः कें िीय और राज्य सरकारों की ईच्चतर सेिाओं के
विए ऄभ्यर्शथयों की भती हेतु परीक्षाओं का संचािन एिं ईनकी वनयुवि की संस्तुवतयााँ करते हैं।

3. भारतीय सं विधान के स्रोत


 भारतीय संविधान आस सन्दभय में भी ऄवद्वतीय है कक आसके वनमायण में विश्व के कइ देशों के
संविधानों का सहारा विया गया। हमारे संविधान वनमायता सभी ज्ञात शासन-विधानों के काययकरण
से प्राप्त ऄनुभिों को ऄपने संविधान में संजोना चाहते थे। यहााँ यह ईल्िेखनीय है कक ऄन्य देशों के
संविधानों से विवभन्न प्रािधानों को ग्रहण करना ककसी नकिची मानवसकता का पररचायक नहीं है।
बवल्क आसका ईद्देश्य भारतीय पररप्रेक्ष्य, समस्याओं और अकांक्षाओं की पूर्शत करने िािे विश्व के
सिोत्तम संिैधावनक प्रािधानों को ग्रहण करना था।
 हमारे संविधान के मूि ऄवधकार और सिोच्च न्यायािय संबध
ं ी व्यिस्थाओं पर संयुि राज्य
ऄमेररका का, राज्य की नीवत वनदेशक तत्िों पर अयरिैण्ड का, अपातकािीन व्यिस्थाओं पर
जमयनी का, विधायी शवियों के वितरण पर कनाडा का तथा संसदीय संस्थाओं पर विटेन का स्पष्ट
प्रभाि दृवष्टगोचर होता है।
 आनके ऄवतररि, हमारे संविधान वनमायताओं ने भारतीय शासन ऄवधवनयम, 1935 के बहुत से
प्रािधानों को शब्लदश: िे विया गया था। 1935 के ऄवधवनयम के प्रमुख प्रािधानों में संघ तथा

राज्यों के मध्य शवियोाँ का विभाजन, राष्ट्रपवत की अपातकािीन शवियां, ऄल्पसंख्यक िगों के


वहतों की रक्षा, ईच्चतम न्यायािय का ऄधीनस्थ न्यायाियों पर वनयंिण, संघ का राज्य के शासन
में हस्तक्षेप, वद्वसदनी विधावयका अकद सवम्मवित हैं।

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भारतीय संविधान के विदेशी स्रोतों को संक्षप


े में वनम्नविवखत ताविका में दशायया गया है:
देश ग्रहण ककये गए प्रािधान

 सांकेवतक प्रमुख - राष्ट्रपवत (जैसा कक विटेन में सम्राज्ञी की वस्थवत)


 विवध के शासन का विचार
 कानून वनमायण की विवध
 मंवियों की कै वबनेट प्रणािी
 प्रधानमंिी का पद
यूनाआटेड ककगडम  सरकार का संसदीय स्िरुप
 वद्वसदनीय विधावयका
 एकि नागररकता
 वनम्न सदन ऄवधक शविशािी
 मंविपररषद् वनम्न सदन के प्रवत ईत्तरदायी
 िोकसभा ऄध्यक्ष की शवियां और ईसकी भूवमका
 सिायवधक मत के अधार पर चुनािों में जीत का वनणयय (फस्टय पास्ट द
पोस्ट वसस्टम)

 विवखत संविधान
 प्रस्तािना
 मूि ऄवधकार
 राष्ट्रपवत की वस्थवत राज्य के काययकारी प्रमुख और सशस्त्र बिों के सिोच्च
सेनापवत के रूप में
 राज्यसभा के पदेन ऄध्यक्ष के रूप में ईप राष्ट्रपवत
 राज्यों से संबंवधत प्रािधान
संयुि राज्य ऄमेररका
 राष्ट्रपवत पर महावभयोग
(USA)  ईच्चतम न्यायािय
 न्यायपाविका की स्ितंिता और न्यावयक समीक्षा की शवि
 ईच्चतम न्यायािय और ईच्च न्यायािय के न्यायाधीशों की पदच्युवत

USSR  मूि कतयव्य


 प्रस्तािना में न्याय (सामवजक,अर्शथक एिं राजवनवतक) का अदशय

 समिती सूची का प्रािधान


ऑस्रेविया  प्रस्तािना की भाषा
 व्यापार, िावणज्य और समागम सम्बन्धी प्रािधान

जापान  विवध द्वारा स्थावपत प्रकिया


 िह विवध वजसके अधार पर ईच्चतम न्यायािय कायय करता है

जमयनी का िाइमर गणराज्य  अपात काि के दौरान मूि ऄवधकारों का वनिंबन

कनाडा  एक मजबूत कें ि के साथ संघीय योजना


 कें ि और राज्यों के बीच शवियों का वितरण
 ऄिवशष्ट शवियााँ कें ि में वनवहत

अयरिैंड  राज्यों के नीवत वनदेशक तत्िों की ऄिधारणा (अयरिैंड ने यह


ऄिधारणा स्पेन से ग्रहण की)
 राष्ट्रपवत के वनिायचन की विवध
 राष्ट्रपवत द्वारा राज्यसभा में सदस्यों का नामांकन

फ्रांस  गणतंिात्मक शासन प्रणािी

दवक्षण ऄफ्रीका  संविधान संशोधन की प्रकिया

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भारतीय संविधान एिं शासन


2. संविधान की प्रस्तािना

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विषय सूची
1. संविधान की प्रस्तािना: एक पररचय________________________________________________________________ 3

1.1. प्रस्तािना की विषय-िस्तु ____________________________________________________________________ 4

1.2. संविधान की प्रस्तािना में वनवहत मूल तत्ि_________________________________________________________ 4

1.3. क्या प्रस्तािना संविधान का ऄंग है? _____________________________________________________________ 4

1.4. प्रस्तािना के वनिवचन एिं संशोधन से जुड़े विवभन्न िाद (Cases) _________________________________________ 5
1.4.1. बेरूबारी संघ िाद (1960) _______________________________________________________________ 5
1.4.2. गोलकनाथ िाद (1967) _________________________________________________________________ 5
1.4.3. के शिानंद भारती िाद (1973) ____________________________________________________________ 5
1.4.4. रघुनाथ राि बनाम भारत संघ िाद (1993) ___________________________________________________ 5
1.4.5. एस. अर. बोम्मइ िाद (1994) ____________________________________________________________ 5
1.4.6. एल अइ सी ऑफ़ आं वडया िाद (1995) _______________________________________________________ 5

1.5. प्रस्तािना में ईवललवखत प्रमुख शब्दों की व्याख्या _____________________________________________________ 5


1.5.1. संपूर्व प्रभुत्ि-संपन्न _____________________________________________________________________ 5
1.5.2. समाजिादी __________________________________________________________________________ 6
1.5.3. पंथवनरपेक्ष __________________________________________________________________________ 6
1.5.4. लोकतंत्रात्मक ________________________________________________________________________ 6
1.5.5. गर्राज्य ____________________________________________________________________________ 7
1.5.6. न्याय ______________________________________________________________________________ 7
1.5.7. स्ितंत्रता ____________________________________________________________________________ 8
1.5.8. समता ______________________________________________________________________________ 9
1.5.9. बंधुता _____________________________________________________________________________ 10

2. प्रस्तािना, मूल ऄवधकार तथा नीवत-वनदेशक तत्िों के मध्य पारस्पररक संबध


ं ___________________________________ 10

3. प्रस्तािना से संबवं धत हावलया वििाद ______________________________________________________________ 10

4. ईपसंहार __________________________________________________________________________________ 12

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1. सं विधान की प्रस्तािना: एक पररचय

 प्रस्तािना का शावब्दक ऄथव होता है, भूवमका ऄथिा प्रारं वभक पररचय। संयुक्त राज्य ऄमेररका

द्वारा सिवप्रथम ऄपने संविधान में प्रस्तािना को सवम्मवलत ककया गया ।

 भारतीय संविधान की प्रस्तािना का संबंध ईसके ईद्देश्यों, लक्ष्यों, अदशों तथा ईसके अधारभूत

वसद्धान्तों से है।

 संविधान की प्रस्तािना संविधान सभा द्वारा 22 जनिरी 1947 को पाररत ईद्देश्य प्रस्ताि पर

अधाररत है।

 ध्यातव्य है कक जब ऄन्य सभी ईपबंध ऄवधवनयवमत ककए जा चुके थे, ईसके पश्चात् प्रस्तािना को

ऄलग से पाररत ककया गया था

 संविधान सभा के संिैधावनक सलाहकार बी. एन. राि ने ईपयुक्त


व प्रस्ताि के अधार पर प्रस्तािना

का प्रारूप तैयार ककया। संविधान की प्रारूप सवमवत ने आस प्रारूप पर विचार ककया तथा आसमें

अिश्यक संशोधन करके संविधान सभा के कायों के अवखरी चरर् में आसे पाररत ककया ताकक यह

संविधान के विवभन्न प्रािधानों के ऄनुरूप हो।

 भारतीय संविधान की प्रस्तािना की विवशष्ट भाषा अस्रेवलया के संविधान से ग्रहर् की गयी है।

प्रख्यात न्यायविद संिैधावनक विशेषज्ञ एन. ए. पालकीिाला ने प्रस्तािना को ‘संविधान का

पररचय पत्र’ कहा है।

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1.1. प्रस्तािना की विषय-िस्तु

‘हम भारत के लोग, भारत को एक संपर्


ू व प्रभुत्ि-संपन्न, समाजिादी, पंथवनरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक
गर्राज्य बनाने के वलए तथा ईसके समस्त नागररकों को:
सामावजक, अर्थथक और राजनैवतक न्याय,

विचार, ऄवभव्यवक्त, विश्वास, धमव और ईपासना की स्ितंत्रता,


प्रवतष्ठा और ऄिसर की समता
प्राप्त कराने के वलए,
तथा ईन सब में व्यवक्त की गररमा और
राष्ट्र की एकता और ऄखंडता
सुवनवश्चत करने िाली बंधत
ु ा बढ़ाने के वलए
दृढ़संकलप होकर ऄपनी आस संविधान सभा में अज तारीख 26 निंबर, 1949 इ. (वमवत मागवशीषव

शुक्ला सप्तमी, संित् दो हजार छह विक्रमी) को एतद् द्वारा आस संविधान को ऄंगीकृ त, ऄवधवनयवमत

और अत्मार्थपत करते हैं।’

कु छ ऄवत महत्त्िपूर्व तथ्य


 प्रस्तािना की प्रकृ वत न्यायोवचत नहीं है ऄथावत आसकी व्यिस्थाओं को न्यायालय में चुनौती नहीं दी
जा सकती।
 प्रस्तािना में कोइ भी संशोधन के िल ऄनुच्छेद 368 के ऄधीन ही हो सकता है।

 ऄब तक प्रस्तािना को के िल एक बार 42िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1976 द्वारा 03-01-

1977 को संशोवधत कर, आसके पहले पैरा में दो शब्द समाजिादी और पंथवनरपेक्ष एिं छठे पैरा में
और ऄखंडता शब्द सवम्मवलत ककया गया।

1.2. सं विधान की प्रस्तािना में वनवहत मू ल तत्ि

संविधान की प्रस्तािना में वनवहत चार मूल तत्ि वनम्नवलवखत हैं :


 संविधान के शवक्त का स्रोतः प्रस्तािना में ईललेख है कक संविधान भारत के लोगों से शवक्त
ऄवधगृहीत करता है।
 भारत की प्रकृ वतः प्रस्तािना में ईललेख है कक भारत एक संप्रभु, समाजिादी, धमववनरपेक्ष,
लोकतांवत्रक ि गर्तांवत्रक राजव्यिस्था िाला देश है।
 संविधान के ईद्देश्य: न्याय, स्ितंत्रता, समता ि बंधत
ु ा।

 संविधान लागू होने की वतवथः 26 निंबर, 1949

1.3. क्या प्रस्तािना सं विधान का ऄं ग है ?

प्रस्तािना संविधान का ऄंग है या नहीं यह वििाद का विषय रहा है। बेरुबारी िाद (1960) में ईच्चतम
न्यायालय ने प्रस्तािना को संविधान का ऄंग नहीं माना था। हालााँकक के शिानंद भारती बनाम के रल
राज्य (1973) िाद में सिोच्च न्यायालय ने ऄपने पूिव के संिैधावनक रुख में संशोधन करते हुए कहा कक
प्रस्तािना संविधान का ऄवभन्न ऄंग है।

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1.4. प्रस्तािना के वनिव च न एिं सं शोधन से जु ड़े विवभन्न िाद (Cases)

बेरूबारी संघ, गोलकनाथ, के शिानंद भारती, रघुनाथ राि अकद िाद आससे जुड़े हुए हैं।

1.4.1. बे रू बारी सं घ िाद (1960)

ईच्चतम न्यायालय ने कहा कक प्रस्तािना संविधान में वनवहत सामान्य प्रयोजनों को दशावता है ऄत: "यह
संविधान वनमावताओं के मवस्तष्क को समझने की कुं जी है।" ईच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कक
प्रस्तािना संविधान का भाग नहीं है।

1.4.2. गोलकनाथ िाद (1967)

ईच्चतम न्यायालय ने कहा कक जहााँ संविधान की भाषा ऄस्पष्ट या संकदग्ध हो, िहां ईसके ऄथव को स्पष्ट
करने के वलए प्रस्तािना का सहारा वलया जा सकता है।

1.4.3. के शिानं द भारती िाद (1973)

ईच्चतम न्यायालय ने बेरूबारी संघ िाद में कदए गए स्ियं के वनर्वय को ऄस्िीकार कर कदया और यह
व्यिस्था दी कक प्रस्तािना संविधान का एक भाग है। यहां न्यायालय ने यह भी कहा कक संसद ऄनुच्छेद
368 के तहत आसका संशोधन भी कर सकती है, लेककन प्रस्तािना में वनवहत मूल ढ़ांचे को संशोवधत नहीं
ककया जा सकता है।

1.4.4. रघु नाथ राि बनाम भारत सं घ िाद (1993)

ईच्चतम न्यायालय ने वनम्नवलवखत बातें कहीं:


 प्रस्तािना शवक्त का स्रोत नहीं है, विवध की शवक्त का स्रोत विवनर्ददष्ट ऄनुच्छेद ही हो सकता है।
 प्रस्तािना विधानमंडल की शवक्तयों पर प्रवतबंध अरोवपत करने का स्रोत नहीं है।
 संविधान के संकदग्ध तथा वद्वऄथी ईपबंधो का ऄथव स्पष्ट करने के वलए प्रस्तािना ईपयोगी है।

1.4.5. एस. अर. बोम्मइ िाद (1994)

“प्रस्तािना संविधान का ऄवभन्न ऄंग है। सरकार का प्रजातांवत्रक स्िरुप, संघीय संरचना, राष्ट्रीय एकता

और ऄखंडता, पंथवनरपेक्षता, समाजिादी स्िरूप, सामावजक न्याय एिं न्यावयक पुनर्थिलोकन भी

आसकी मौवलक संरचना में सवम्मवलत हैं।”

1.4.6. एल अइ सी ऑफ़ आं वडया िाद (1995)

ईच्चतम न्यायालय ने पुनः व्यिस्था दी कक प्रस्तािना संविधान का अंतररक वहस्सा है।

1.5. प्रस्तािना में ईवललवखत प्रमु ख शब्दों की व्याख्या

प्रस्तािना में कु छ प्रमुख शब्दों का ईललेख ककया गया है, जो आसमें वनवहत मूलयों एिं दशवन के द्योतक हैं।

ये हैं: संप्रभु, समाजिादी, पंथवनरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक, गर्राज्य, न्याय, स्ितंत्रता, समता ि बंधत
ु ा।
अआये आन्हें संक्षेप में समझते हैं:

1.5.1. सं पू र्व प्रभु त्ि-सं प न्न

 संप्रभु शब्द का अशय है कक भारत ऄपने अंतररक तथा बाह्य मामलों का वनधावरर् करने के वलए
स्ितंत्र है। यद्यवप िषव 1949 में भारत ने राष्ट्रमंडल की सदस्यता स्िीकार करते हुए विटेन को
आसका प्रमुख माना तथावप राष्ट्रमंडल एिं संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता ककसी भी तरह भारतीय
संप्रभुता को प्रभावित नहीं करती।

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 एक संप्रभु राज्य होने के नाते भारत ककसी विदेशी सीमा का ऄवधग्रहर् ऄथिा ककसी ऄन्य देश के
पक्ष में ऄपनी सीमा के ककसी वहस्से से दािा छोड़ सकता है।
 िस्तुतः यह पद वबना ककसी बाह्य दबाि या प्रभाि के अत्मवनर्वय की शवक्त का द्योतक है।

1.5.2. समाजिादी

 मूल प्रस्तािना में, समाजिादी शब्द का ईललेख नहीं था, क्योंकक संविधान हमारे देश को ककसी

विवशष्ट अर्थथक संरचना के साथ नहीं जोड़ता है। लेककन िषव 1976 में 42िें संविधान संशोधन के

द्वारा संविधान में समाजिादी शब्द जोड़ा गया।


 यह बात ध्यान देने योग्य है कक भारतीय समाजिाद ‘लोकतांवत्रक समाजिाद’ है न कक ‘साम्यिादी

समाजिाद’ वजसे ‘राज्यावित समाजिाद’ भी कहा जाता है, वजसमें ईत्पादन और वितरर् के सभी

साधनों का राष्ट्रीयकरर् और वनजी संपवि का ईन्मूलन सवम्मवलत है।


 लोकतांवत्रक समाजिाद िस्तुतः वमवित ऄथवव्यिस्था में अस्था रखता है, जहां सािवजवनक ि वनजी

क्षेत्र साथ-साथ मौजूद रहते हैं। भारतीय समाजिाद माक्सविाद और गांधीिाद का वमला-जुला रूप
है, वजसमें ‘गांधीिादी समाजिाद’ की ओर ज्यादा झुकाि है।

1.5.3. पं थ वनरपे क्ष

 भारत के सन्दभव में पंथवनरपेक्ष का ऄवभप्राय है कक भारत ककसी एक धमव या धार्थमक विचारधारा
से वनदेवशत नहीं होता है, ककन्तु आसका ऄथव यह नहीं है कक राज्य (देश) ककसी धमव विशेष के विरुद्ध

है। यह ऄपने सभी नागररकों को ककसी भी धमव को मानने, अचरर् करने और प्रचार करने की

स्ितंत्रता प्रदान करता है। साथ ही संविधान धार्थमक अधार पर ककसी भी प्रकार के भेद-भाि पर
भी रोक लगाता है। ऄथावत पंथवनरपेक्षता से अशय धमव के अधार पर भेद-भाि का वनषेध और
सभी धमों के प्रवत समान भाि है।
 पंथवनरपेक्षता की पवश्चमी ऄिधारर्ा के ऄनुसार धमव और राज्य दोनों ऄलग-ऄलग हैं। आसके
ऄनुसार धार्थमक संस्थानों एिं पदावधकाररयों का, राज्य के प्रावधकाररयों से पृथक्करर् होना

चावहए।
 1974 में ईच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट ककया कक यद्यवप ‘पंथवनरपेक्ष राज्य’ शब्द का स्पष्ट रूप से

संविधान में ईललेख नहीं ककया गया है तथावप आसमें कोइ संदह
े नहीं है कक, संविधान के वनमावता

ऐसे ही राज्य की स्थापना करना चाहते थे। आसवलए संविधान में ऄनुच्छेद 25 से 28 तक धार्थमक

स्ितंत्रता से संबंवधत ऄवधकारों को जोड़ा गया।


 कालान्तर में पंथवनरपेक्ष शब्द को 42िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1976 द्वारा प्रस्तािना में

जोड़ा गया।

1.5.4. लोकतं त्रात्मक

 संविधान की प्रस्तािना में एक लोकतांवत्रक राजव्यिस्था की पररकलपना की गइ है, जहााँ सिोच्च

शवक्त जनता में वनवहत है। लोकतंत्र में प्रत्येक नागररक को ऄपने देश के शासन में भाग लेने का
ऄवधकार है। लोकतंत्र जनता द्वारा, जनता के वलए, जनता का शासन है।

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 लोकतंत्र के दो प्रमुख प्रकार हैं- प्रत्यक्ष ि ऄप्रत्यक्ष। प्रत्यक्ष लोकतंत्र में लोग ऄपनी राजनीवतक एिं
प्रशासवनक शवक्तयों का प्रयोग प्रत्यक्ष रूप से करते हैं, जैस-े वस्िटजरलैंड में। प्रत्यक्ष लोकतंत्र को

पररपृच्छा (Referendum), पहल (Initiative), प्रत्याितवन या प्रत्याशी को िापस बुलाना

(Recall) तथा जनमत संग्रह (Plebiscite) के माध्यम से सुवनवश्चत ककया जा सकता है। दूसरी

ओर ऄप्रत्यक्ष लोकतंत्र में लोगों द्वारा चुने गए प्रवतवनवध जनता की ओर से सिोच्च शवक्त का प्रयोग
करते हैं और सरकार चलाते हुए कानूनों का वनमावर् करते हैं। आस प्रकार के लोकतंत्र को प्रवतवनवध
लोकतंत्र भी कहा जाता है। यह दो प्रकार का होता है: संसदीय और ऄध्यक्षीय।
 भारतीय संविधान में प्रवतवनवधक संसदीय लोकतंत्र (Representative Parliamentary

Democracy) की व्यिस्था है, वजसमें कायवपावलका ऄपनी सभी नीवतयों और कायों के वलए

विधावयका के प्रवत जिाबदेह होती है। ियस्क मतावधकार, सामवयक चुनाि, विवध की सिोच्चता,

न्यायपावलका की स्ितंत्रता ि भेदभाि का ऄभाि भारतीय राजव्यिस्था में वनवहत लोकतांवत्रक


लक्षर् हैं।
 संविधान की प्रस्तािना में लोकतांवत्रक शब्द का प्रयोग व्यापक ऄथव में ककया है, वजसमें न के िल

राजनीवतक लोकतंत्र बवलक सामावजक ि अर्थथक लोकतंत्र को भी शावमल ककया गया है। लोकतंत्र
के तहत लोकतांवत्रक सरकार की ही कलपना नहीं है बवलक ऐसे समाज की कलपना है वजसमें
विचारों का मुक्त अदान-प्रदान हो और प्रत्येक व्यवक्त की समाज में समान प्रवतष्ठा हो।

1.5.5. गर्राज्य

 गर्राज्य से ऄवभप्राय ऐसी व्यिस्था से है जहााँ राजनैवतक संप्रभुता ककसी एक व्यवक्त जैसे राजा में
के वन्ित होने के स्थान पर जनता में वनवहत होती है और कोइ भी विशेषावधकार प्राप्त िगव विद्यमान
नहीं होता है।
 प्रत्येक सािवजवनक कायावलय वबना ककसी भेदभाि के प्रत्येक नागररक के वलए खुला होता है।
 गर्तंत्र में राज्य प्रमुख सदैि प्रत्यक्ष ऄथिा ऄप्रत्यक्ष रूप से एक वनवश्चत समय के वलए चुनकर
अता है, जैसे: ऄमेररका ऄथिा भारत में। भारत में राज्य के प्रमुख (राष्ट्रपवत) को वनिावचन द्वारा

पद प्राप्त होता है, ऄनुिांवशकता के अधार पर नहीं। ईसका चुनाि पांच िषव के वलए ऄप्रत्यक्ष रूप
से ककया जाता है।

1.5.6. न्याय

 न्याय का सामान्य ऄथव एक ऐसी वस्थवत से है जहााँ ककसी भी प्रकार का भेदभाि नहीं हो और
सबको ईनके ईवचत ऄवधकार प्राप्त हों। प्रस्तािना में तीन प्रकार के न्याय की संकलपना की गयी है:
सामावजक, अर्थथक ि राजनैवतक। सामावजक, अर्थथक ि राजनैवतक न्याय के तत्िों को 1917 की
रूसी क्रांवत से ग्रहर् ककया गया है। आनकी सुरक्षा मौवलक ऄवधकार ि नीवत वनदेशक वसद्धांतो के
विवभन्न ईपबंधों के द्वारा की जाती है।
 सामावजक न्याय से ऄवभप्राय ऐसी व्यिस्था से है जहााँ जावत, मूलिंश, ललग, जन्म स्थान, धमव या

भाषा अकद में से ककसी भी अधार पर ककसी के साथ भेद-भाि न ककया जाए तथा समाज में
सबको समान ऄिसर/स्थान प्राप्त हो। आसका ऄथव है समाज में ककसी िगव विशेष के वलए
विशेषावधकारों की ऄनुपवस्थवत और ऄनुसूवचत जावत, जनजावत, ऄन्य वपछड़े िगों तथा मवहलाओं
की वस्थवत में सुधार ककया जाना।

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 अर्थथक न्याय का ऄथव है कक अर्थथक कारर्ों के अधार पर ककसी भी व्यवक्त से भेदभाि नहीं ककया
जाएगा। आसमें संपदा, अय ि संपवत की ऄसमानता को दूर करना भी शावमल है।

 राजनीवतक न्याय का ऄथव है कक प्रत्येक व्यवक्त को समान राजनीवतक ऄवधकार प्राप्त होंगे। सभी
नागररकों को समान रूप से मतदान का, चुनाि लड़ने का तथा सािवजवनक पद प्राप्त करने का

ऄवधकार प्राप्त हो।

प्रस्तािना में वनवहत न्याय शब्द के भाि से संबंवधत कु छ मूल ऄवधकार/ नीवत वनदेशक तत्त्ि/ ऄन्य
ऄनुच्छेद:
सामावजक न्याय
ऄनुच्छेद 17: ऄस्पृश्यता/छु अछू त का ऄन्त; भारतीय संसद ने ऄस्पृश्यता वनषेध ऄवधवनयम 1955

बनाकर आसे दण्डनीय ऄपराध घोवषत ककया है।


ऄनुच्छेद 18: ईपावधयों का ऄन्त ककया गया है, राज्य सैन्य और शैवक्षक क्षेत्र के ऄवतररक्त कोइ ईपावध

प्रदान नहीं करे गा (बाद में भारत रत्न एिं पद्म पुरस्कारों के ऄनुच्छेद 18 से ऄसंगत होने के मुद्दे पर ईठे

वििाद के अलोक में ईच्चतम न्यायालय के वनर्वय के बाद, समाज सेिा सवहत ऐसे ऄन्य क्षेत्रों में भी

ईपावध प्रदान की जा सकती है)।


ऄनुच्छेद 46: ऄनुसूवचत जावत, ऄनुसूवचत जनजावत तथा ऄन्य दुबवल िगों के वशक्षा और ऄथव संबध
ं ी

वहतों की ऄवभिृवद्ध।
राजनीवतक न्याय
ऄनुच्छेद 14 से 18 में कदए गए समता के ऄवधकार राजनीवतक न्याय के अधार हैं। आसके ऄवतररक्त,

ऄनुच्छेद 38: राज्य लोक कलयार् की ऄवभिृवद्ध के वलए सामावजक ‍यिस्था बनाएगा

ऄनुच्छेद 39: राज्य द्वारा ऄनुसरर्ीय कु छ नीवत वनदेशक तत्ि

ऄनुच्छेद 39क: समान न्याय और वन:शुलक विवधक सहायता

ऄनुच्छेद 41: कु छ दशाओं में काम, वशक्षा और लोक सहायता पाने का ऄवधकार

1.5.7. स्ितं त्र ता

 प्रस्तािना में विचार, ऄवभव्यवक्त, विश्वास, धमव ि ईपासना की स्ितंत्रता ईवललवखत है। आसका

ऄवभप्राय यह है कक सभी नागररकों को समान रूप से आच्छानुसार धमव पालन करने और ऄपने
विचारों को व्यक्त करने की स्ितंत्रता हो और राज्य आन विषयों में तब तक हस्तक्षेप न करे जब तक
दूसरों की स्ितंत्रता ऄथिा ऄवधकार बावधत न हों।
 हालांकक स्ितंत्रता का ऄवभप्राय यह नहीं है कक प्रत्येक व्यवक्त को कु छ भी करने का ऄवधकार वमल
गया है। स्ितंत्रता के ऄवधकार का प्रयोग संविधान में ईवललवखत सीमाओं के ऄंतगवत ही ककया जा
सकता है। संक्षेप में कहा जाए तो प्रस्तािना में प्रदि स्ितंत्रता एिं मौवलक ऄवधकार वनरपेक्ष नहीं
हैं। हमारी प्रस्तािना में स्ितंत्रता, समता और बंधत
ु ा के अदशों को फ्ांस की क्रांवत (1789-1799

इ.) से वलया गया है।

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प्रस्तािना में वनवहत स्ितंत्रता शब्द के भाि से संबंवधत कु छ मूल ऄवधकार/ नीवत वनदेशक तत्त्ि/ ऄन्य
ऄनुच्छेद:
ऄनुच्छेद 19: िाक् एिं ऄवभव्यवक्त की स्ितंत्रता, शांवतपूिक
व और वनरायुध सम्मलेन की स्ितंत्रता,

संगम या संघ बनाने की स्ितंत्रता, भारत के राज्यक्षेत्र में कहीं भी ऄबाध संचरर् की स्ितंत्रता, भारत

के ककसी भी भाग में बसने एिं वनिास करने की स्ितंत्रता तथा कोइ भी िृवि, ईपजीविका,व्यापार या
कारोबार करने की स्ितंत्रता
ऄनुच्छेद 25: ऄंत:करर् एिं धमव के ऄबाध रूप से मानने, अचरर् और प्रचार करने की स्ितंत्रता

ऄनुच्छेद 26: धार्थमक कायों के प्रबंध की स्ितंत्रता

ऄनुच्छेद 27: ककसी विवशष्ट धमव की ऄवभिृवद्ध के वलए करों के संदाय के बारे में स्ितंत्रता

ऄनुच्छेद 28: कु छ वशक्षा संस्थाओं में धार्थमक वशक्षा या धार्थमक ईपासना में ईपवस्थत होने के बारे में
स्ितंत्रता

1.5.8. समता

 समता का ऄवभप्राय है कक न्याय, कराधान, लोक पद और वनयोजन के संबंध में सभी के साथ एक
समान व्यिहार ककया जाना। आसके ऄंतगवत समाज के ककसी भी िगव के वलए विशेषावधकार का न
होना भी शावमल है। हमारे संविधान में मूल ऄवधकारों से संबंवधत ऄनु. 14 - 18 के ऄंतगवत आस
वसद्धांत को प्रभािी बनाया गया है।
 भारतीय संविधान की प्रस्तािना प्रत्येक नागररक को वस्थवत और ऄिसर की समता प्रदान करती
है। आस ईपबंध में समता के तीन अयाम शावमल हैं: नागररक, राजनीवतक ि अर्थथक।

मौवलक ऄवधकारों के तहत वनम्न प्रािधान नागररक समता को सुवनवश्चत करते हैं-

ऄनुच्छेद 14 से 18

 विवध के समक्ष समता (ऄनुच्छेद-14)

 धमव, मूलिंश, जावत, ललग या जन्म स्थान के अधार पर विभेद का प्रवतषेध (ऄनुच्छेद-15)

 लोक वनयोजन के विषय में ऄिसर की समता (ऄनुच्छेद-16)

 ऄस्पृश्यता का ऄंत (ऄनुच्छेद-17)

 ईपावधयों का ऄंत (ऄनुच्छेद-18)


संविधान में दो ऄन्य ईपबंध हैं जो राजनीवतक समता को सुवनवश्चत करते प्रतीत होते हैं:
 प्रथम; धमव, जावत, ललग ऄथिा िगव के अधार पर ककसी व्यवक्त को मतदाता सूची में शावमल होने

से ऄयोग्य न ठहराना (ऄनुच्छेद-325) तथा

 दूसरा; लोकसभा और विधानसभाओं के वलए ियस्क मतदान का प्रािधान (ऄनुच्छेद-326)।


 अर्थथक समता के तहत राज्य के नीवत-वनदेशक वसद्धांत मवहला तथा पुरुष को जीिन यापन के
वलए पयावप्त साधन और समान काम के वलए समान िेतन के ऄवधकार को सुरवक्षत करते हैं
(ऄनुछेद-39)।

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1.5.9. बं धु ता

 बंधुता का ऄथव है: भाइचारे की भािना। मूल कतवव्य (ऄनुच्छेद-51क) में भी यह ईललेख है कक

“प्रत्येक भारतीय नागररक का यह कतवव्य होगा कक िह धार्थमक, भाषायी, क्षेत्रीय ऄथिा िगव पर
अधाररत सभी भेदभाि से परे होकर सौहािव और अपसी भाइचारे की भािना को प्रोत्सावहत
करे गा”।

 प्रस्तािना में बंधत


ु ा के संबंध में दो बातों का ईललेख है:- (a) व्यवक्त की गररमा सुवनवश्चत करना

एिं (b) देश की एकता और ऄखंडता सुवनवश्चत करना। आन्हीं कारर्ों से संविधान में ऄस्पृश्यता का

वनषेध (ऄनु. 17) ककया गया है और आसका व्यिहार ऄपराध बना कदया गया है।

2. प्रस्तािना, मू ल ऄवधकार तथा नीवत-वनदे श क तत्िों के मध्य


पारस्पररक सं बं ध
प्रस्तािना, मूल ऄवधकार तथा नीवत-वनदेशक तत्ि, भारत के संविधान के ऄवभन्न ऄंग हैं।
 प्रस्तािना संविधान का भाग है और आसवलए संशोधनीय भी है ककन्तु आसमें ईवललवखत संविधान के
अधारभूत लक्षर्ों में कोइ संशोधन नहीं ककया जा सकता (के शिानंद भारती िाद, 1973)।

 संविधान के भाग-3 (ऄनुच्छेद 12-35) में कदए गए मूल ऄवधकार ‘स्ितंत्रता तथा समानता’ के
संकलप की व्यािहाररक प्रावप्त सुवनवश्चत करने िाले साधन हैं। ये न्यायालयों द्वारा प्रितवनीय
ऄवधकार हैं। ये प्रवतषेधकारी हैं तथा राज्य पर नकारात्मक दावयत्ि अरोवपत करते हैं।
 संविधान के भाग-4 में कदए गए नीवत-वनदेशक तत्ि, ‘सामावजक तथा अर्थथक न्याय’ के लक्ष्य की
प्रावप्त हेतु राज्य के सकारात्मक कतवव्य हैं। आनमें ऄन्तर्थनवहत वसद्धांत राष्ट्र के शासन के मूलभूत
वसद्धांत हैं। ये न्यायालय द्वारा ऄप्रितवनीय हैं। ये शासन, प्रशासन ि विधावयका द्वारा संतुष्ट ककए
जाने योग्य संिैधावनक ऄपेक्षाएं हैं।
 ऄतः प्रस्तािना, मूल ऄवधकार तथा नीवत वनदेशक तत्त्ि एक ही संिैधावनक ढ़ांचे के ऄवभन्न ऄंग हैं
और समान रूप से महत्िपूर्व हैं।

3. प्रस्तािना से सं बं वधत हावलया वििाद


पृष्टभूवम
 26 निम्बर, 2015 एिं 26 जनिरी, 2016 (क्रमशः संविधान के ऄंगीकृ त एिं लागू होने की 66िीं
िषवगाठ) को दो ऄलग-ऄलग सरकारी विज्ञापनों में मूल प्रस्तािना का विज्ञापन प्रकावशत ककया
गया था।
 आस प्रकार ईक्त विज्ञापन में 42िें संविधान संशोधन द्वारा प्रस्तािना में जोड़े गए तीन शब्दों -

समाजिादी, पंथवनरपेक्ष एिं ऄखंडता को स्थान नहीं कदया गया।


 आसके बाद विवभन्न विपक्षी दलों एिं नागररक समाज के कु छ कायवकतावओं द्वारा सरकार के आस
कदम की अलोचना की गयी।
 आसी दौरान कें ि सरकार के एक मंत्री के आस बयान पर कक, “आस बात पर ऄब बहस होनी चावहए

कक, क्या ‘समाजिाद’ एिं ‘पंथवनरपेक्ष’ जैसे शब्दों का प्रस्तािना में स्थान कदया जाना चावहए
ऄथिा नहीं। यह वििाद सुर्थियों में रहा था।

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समाजिादी एिं पंथवनरपेक्ष शब्दों को हटाने में पक्ष तकव


 समाजिाद शब्द का अशय है: “पूज
ं ी, सम्पवि, भूवम अकद ईत्पादन के साधनों पर राज्य का

स्िावमत्ि एिं आनके वितरर् में समानता”। यही कारर् है कक संविधान वनमावताओं ने जान-बूझकर
समाजिादी शब्द का प्रयोग प्रस्तािना में नहीं ककया था। क्योंकक िे देश को ककसी विवशष्ट अर्थथक
संरचना से संबद्ध नहीं करना चाहते थे।
 सेक्युलर (पंथवनरपेक्ष) का अशय है: “धार्थमक ऄथिा अध्यावत्मक मामलों से राज्य का जुड़ा न
होना एिं राज्य का संचालन ककसी धार्थमक वनयम से न होकर संविधान द्वारा होना। प्रस्तािना के
लहदी रूपांतरर् में ऄंग्रज
े ी के सेक्युलर शब्द के वलए काफी सोच समझ कर धमववनरपेक्ष के बजाय
पंथवनरपेक्ष शब्द कर प्रयोग ककया गया है, क्योंकक हमारा संविधान एिं देश के विवभन्न कानून
राज्य को धमव से वनरपेक्ष न होकर पंथ से वनरपेक्ष होने की ऄपेक्षा करते हैं।
 मूल प्रस्तािना में ‘भारत के समस्त नागररकों को सामावजक, अर्थथक एिं राजनीवतक न्याय

सुवनवश्चत कराने की बात की गयी है। आस प्रकार, सामावजक एिं अर्थथक न्याय िस्तुतः एक

समाजिादी राज्य को ही वनरुवपत करते हैं। राज्य के नीवत-वनदेशक तत्िों (DPSP) के ऄंतगवत आन्हें

(सामावजक एिं अर्थथक न्याय) विवशष्ट स्थान कदया गया है, ऄतः ऐसे में प्रस्तािना में ऄलग से
समाजिादी एिं पंथवनरपेक्ष शब्द राजनीवतक ईद्देश्यों की ओर आशारा करते हैं।
 मूल प्रस्तािना में “विचार, ऄवभव्यवक्त, विश्वास, धमव और ईपासना की स्ितंत्रता” की भी बात कही
गयी है। हम जानते हैं कक एक धमववनरपेक्ष राज्य में ही आन स्ितंत्रताओं की प्रावप्त संभि है। मूल
ऄवधकार (FR) एिं DPSP के विवभन्न ईपबंध आसकी रक्षा करते हैं।

 आन शब्दों को हटाये जाने के पीछे यह तकव भी कदया जाता है कक, “03-01-1977 को 42िें
संविधान संशोधन द्वारा समाजिादी एिं पंथवनरपेक्ष शब्दों को प्रस्तािना में समाविष्ट करने से पूिव
क्या भारत एक समाजिादी एिं पंथवनरपेक्ष राज्य नहीं था।”

 1991 के अर्थथक सुधारों एिं िैश्वीकरर् के पश्चात् सैद्धांवतक तौर पर ऄब समाजिाद शब्द लगभग

ऄप्रासंवगक हो गया है और 1991 के पश्चात् यह व्यिहार में कम ही रहा है।


समाजिादी एिं पंथवनरपेक्ष शब्दों को हटाने के विपक्ष में तकव
 समाजिादी एिं पंथवनरपेक्ष जैसे शब्द हमारे संविधान के अदशव हैं, सम्पूर्व संविधान आससे ओत-
प्रोत है। आन्हें धूवमल करने से राष्ट्रीय एकता एिं बंधुता नकारात्मक रूप से प्रभावित होगी।
 पंथवनरपेक्ष शब्द को हटाने से देश में सांप्रदावयक विभाजन को बढ़ािा वमल सकता है।
 FR, DPSP, अरक्षर्, विशेष िगों के वलए विशेष प्रािधान, 5िीं एिं 6ठी ऄनुसूवचयां अकद एक
लोकतांवत्रक समाजिादी राज्य की पररकलपना करती हैं। ऄतः प्रस्तािना में समाजिादी शब्द आन्हें
स्पष्टता प्रदान करता है। सिोच्च न्यायालय ने भी कहा है कक प्रस्तािना संविधान के वनिवचन में
सहायक है।
 42िें संविधान संशोधन द्वारा समाजिादी एिं पंथवनरपेक्ष के ऄवतररक्त “ऄखंडता” शब्द को भी

आसमें समाविष्ट ककया गया था। तो कफर क्या ऄखंडता शब्द को भी हटा कदया जाना चावहए?

आसका जिाब है, नहीं, ऄवपतु हमें आन्हें बनाए रखने पर फोकस करना चावहए, न कक आनका
राजनीवतकरर् करना चावहए।

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अगे की राह

 प्रस्तािना में ईवललवखत समाजिादी एिं पंथवनरपेक्ष शब्दों पर बहस के बजाए गुर्ििापूर्व वशक्षा,

स्िास्थ्य, गरीबी ईन्मूलन, अिास, गररमापूर्व जीिन, रोजगार अकद पर बहस होनी चावहए।

 समाजिादी शब्द को हटाने के बजाए आस पर बहस होनी चावहए कक “सभी को िास्तविक समता

की वस्थवत” प्राप्त हो एिं समाज के शोवषतों को गररमापूर्व जीिन एिं ऄवधकारविहीन िगव को

ऄवधकार प्राप्त हों।

 प्रस्तािना में ईवललवखत न्याय (सामावजक, अर्थथक एिं राजनीवतक) शब्द पर बहस होनी चावहए।

 ऄंततः यह कहा जा सकता है कक प्रस्तािना में ईवललवखत ये शब्द संकीर्व न होकर व्यापक ऄथव की

ओर हमारा ध्यान अकृ ष्ट करते हैं। ऄतः हमें आनका सम्मान करना चावहए एिं आन अदशों को प्राप्त

करने की ओर ऄग्रसर होना चावहए।

4. ईपसं हार

 प्रस्तािना का लक्ष्य एक ऐसी सामावजक व्यिस्था स्थावपत करना है जहां जनता संप्रभु हो, शासन

वनिाववचत हो और जनता के प्रवत ईिरदायी हो, शासन की सिा जनता के मौवलक ऄवधकारों से

सीवमत हो तथा जनता को ऄपने विकास का समुवचत ऄिसर प्राप्त हो।


 यद्यवप िैधावनक रूप से प्रस्तािना न्यायालयों द्वारा लागू नहीं की जा सकती तथावप यह संविधान
के विवभन्न प्रािधानों की व्याख्या करने में ईपयोगी वसद्ध हो सकती है तथा कककतवव्यविमूढ़ता की

वस्थवत में यह पथ प्रदशवक के रूप में कायव करती है।

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भारतीय संविधान एिं शासन


3. संघ एिं राज्यक्षेत्र

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विषय सूची
1. पररचय ____________________________________________________________________________________ 3

1.1. पररसंघ बनाम संघ _________________________________________________________________________ 3

1.2. भारत का राज्यक्षेत्र ________________________________________________________________________ 3

1.3. ऄनुच्छेद 2 - नए राज्यों का प्रिेश या स्थापना_______________________________________________________ 4

1.4. ऄनुच्छेद 3 - नये राज्यों का वनमााण और ितामान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में पररितान _____________________ 4

1.5. भारतीय क्षेत्र के ऄध्यपाण संबंधी प्रािधान _________________________________________________________ 6

1.6. राज्यों एिं संघशावसत प्रदेशों का ईद्भि ___________________________________________________________ 7

1.7. राज्यों के पुनगाठन की मांग का आवतहास ___________________________________________________________ 7

1.7.1. राज्य पुनगाठन हेतु गरठत विवभन्न अयोग______________________________________________________ 8

1.7.2. भारत में नए राज्यों का ईद्भि: कालानुक्रम ____________________________________________________ 9

1.7.3. भारतीय संघ में सवममवलत संघ शावसत प्रदेश__________________________________________________ 11

1.8. राज्यों के पुनगाठन से संबंवधत मुद्दें ______________________________________________________________ 12

1.9. राज्यों के नाम पररितान से जुड़े मुद्दे _____________________________________________________________ 15

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1. पररचय
भारतीय संविधान के भाग 1 के ऄंतगात ऄनुच्छेद 1 से 4 तक संघ एिं राज्यक्षेत्र से संबंवधत प्रािधानों

की चचाा की गयी है।


ऄनुच्छेद - 1 संघ का नाम और राज्यक्षेत्र

 ऄनुच्छेद 1(1) - भारत, ऄथाात् आंवडया, राज्यों का संघ होगा।

 ऄनुच्छेद 1(2) - राज्य और ईनके राज्यक्षेत्र िे होंगे जो पहली ऄनुसूची में विवनर्ददष्ट हैं।

 ऄनुच्छेद 1(3) - भारत के राज्यक्षेत्र में समाविष्ट होंगे:

(क) राज्यों के राज्यक्षेत्र

(ख) पहली ऄनुसच


ू ी में विवनर्ददष्ट संघ राज्यक्षेत्र

(ग) ऐसे ऄन्य राज्यक्षेत्र जो ऄर्जजत ककये जाएं।

1.1. पररसं घ बनाम सं घ

(Federation Vs Union)

 प्रारूप सवमवत द्वारा ‘पररसंघ’ शब्द के स्थान पर ‘संघ’ शब्द को िरीयता देने के पीछे एक विशेष

ईद्देश्य वनवहत था। ईनका मानना था कक ‘संघ’ शब्द आस तथ्य को बेहतर तरीके से ऄवभव्यक्त कर

सकता है कक (a) भारतीय संघ, प्रांतों के मध्य समझौते का पररणाम नहीं है (b) कोइ भी राज्य या

राज्यों का समूह संघ से ऄलग होने के वलए स्ितंत्र नहीं है । आसके साथ ही कोइ भी राज्य स्िेच्छा
से, ऄपने राज्य की सीमा में पररितान भी नहीं कर सकता है।

 आस प्रकार भारत एक संघ है तथा यह विभक्त नहीं हो सकता। हालांकक प्रशासवनक सुविधा के वलए
देश को विवभन्न राज्यों में बााँटा जा सकता है, ककन्तु देश एक ऄखंड आकाइ है, जहााँ लोग एक ही

स्रोत से व्युत्पन्न, एक ही सत्ता के ऄंतागत रह रहे हैं।

 राज्यों एिं संघ शावसत प्रदेशों के नाम एिं ईनके क्षेत्र विस्तार को संविधान की पहली ऄनुसच
ू ी में
दशााया गया है। ितामान में, भारत में 29 राज्य एिं 7 के न्रशावसत प्रदेश शावमल हैं।

1.2. भारत का राज्यक्षे त्र

(Territory of India)

 ईल्लेखनीय है कक भारत का राज्यक्षेत्र (Territory of India), भारत के संघ (Union of India)

से ऄवधक व्यापक ऄथा समेटे है। ‘भारत के संघ’ में के िल राज्य सवममवलत हैं, जबकक ‘भारत के

राज्यक्षेत्र’ में न के िल राज्य बवल्क संघशावसत प्रदेश एिं िे क्षेत्र, वजन्हें कें र सरकार द्वारा भविष्य

में कभी भी ऄवधगृहीत ककया जा सकता है, भी सवममवलत हैं।

 संघीय व्यिस्था में राज्य आसके सदस्य हैं और कें र के साथ शवक्तयों के विभाजन में वहस्सेदार हैं।
दूसरी तरफ, संघ शावसत प्रदेश एिं कें र द्वारा ऄवधगृहीत क्षेत्र सीधे कें र सरकार द्वारा प्रशावसत

होते हैं।

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ऄवधगृहीत क्षेत्र (Acquired Territory)


ककसी क्षेत्र को तब ऄवधगृहीत क्षेत्र कहा जाता है जब भारतीय संघ ऄंतरााष्ट्रीय कानूनों के तहत ईस क्षेत्र
पर संप्रभुता प्राप्त कर ले। ऄजान द्वारा, युद्ध में जीत कर, ककसी संवध के ऄनुसरण में, ऄध्यपाण

(Cession) द्वारा या स्िामीविहीन क्षेत्र पर कब्ज़ा करके ऐसा ककया जा सकता है।

यकद ककसी सािाजवनक ऄवधसूचना, दािे या घोषणा के द्वारा भारत सरकार ककसी क्षेत्र को भारत का

ऄवभन्न ऄंग घोवषत करती या मानती है, तो न्यायालय को आस ‘ऄवधग्रहण’ को मान्यता प्रदान करना

ऄवनिाया हो जाएगा, वजसके पररणामस्िरूप यह क्षेत्र ऄनुच्छेद 1(3)(C) के तहत संघ के राज्यक्षेत्र का
वहस्सा होगा।

1.3. ऄनु च्छे द 2 - नए राज्यों का प्रिे श या स्थापना

संसद, विवध द्वारा, ऐसे वनबंधनों और शतों पर, जो िह ठीक समझे, संघ में नए राज्यों का प्रिेश या
ईनकी स्थापना कर सके गी।
आस प्रकार ऄनुच्छेद 2 संसद को दो शवक्तयां प्रदान करता है जो वनम्न हैं :

i. नये राज्य को भारत के संघ में सवममवलत करने; और

ii. नये राज्यों की स्थापना करने की शवक्त।


 पहली शवक्त ईन राज्यों के प्रिेश से समबंवधत है जो पहले से ऄवस्तत्ि में हैं, जबकक दूसरी शवक्त नये

राज्य, जो ऄवस्तत्ि में नहीं हैं, की स्थापना से समबंवधत है, ऄथाात् ऄनुच्छेद 2 ईन राज्यों, जो

भारतीय संघ का वहस्सा नहीं हैं, के प्रिेश और स्थापना से संबंवधत है।

 आसके ऄवतररक्त, यह ध्यान रखा जाना चावहए कक ऄनुच्छेद 2 संसद को पूणा शवक्त देता है कक ऐसे

वनबंधनों और शतों पर, जो “िह ठीक समझे” (it thinks fit), संघ में नये राज्यों का प्रिेश या

स्थापना करे । परन्तु, ये वनबंधन और शतें, ऄवनिायात: संविधान के अधारभूत वसद्धांत या मूल

ढााँचे के ऄनुरूप होने चावहए। संविधान में ऐसा कोइ प्रािधान नहीं है जो ‘एक नए राज्य को’ संघ

में प्रिेश या स्थापना के पश्चात्, पहले से विद्यमान राज्य के समान दजे का ऄवधकार प्रदान करे ।

1.4. ऄनु च्छे द 3 - नये राज्यों का वनमाा ण और िता मान राज्यों के क्षे त्रों, सीमाओं या नामों में
पररिता न

संसद, विवध, द्वारा -

(a) ककसी राज्य में से ईसका राज्य क्षेत्र ऄलग करके ऄथिा दो या ऄवधक राज्यों को या राज्यों के
भागों को वमलाकर ऄथिा ककसी राज्यक्षेत्र को ककसी राज्य के भाग के साथ वमलाकर नये राज्य का
वनमााण कर सके गी;

(b) ककसी राज्य के क्षेत्र को बढ़ा सके गी;

(c) ककसी राज्य का क्षेत्र घटा सके गी;

(d) ककसी राज्य की सीमाओं में पररितान कर सके गी;

(e) ककसी राज्य के नाम में पररितान कर सके गी।

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ऄनुच्छेद 3 के ऄंतगात प्रस्तुत ककसी विधेयक को दो शतों का पालन करना ऄवनिाया है:

i. विधेयक को राष्ट्रपवत की पूिाानुमवत से ही, दोनों में से ककसी भी सदन में, प्रस्तुत ककया जा सकता
है।
ii. राष्ट्रपवत विधेयक को, प्रभावित राज्य के विधानमंडल के विचार जानने के वलए विवनर्ददष्ट करे गा।
 राष्ट्रपवत िह ऄिवध तय कर सकता है वजसके भीतर राज्य विधानमंडल को ऄपना विचार व्यक्त
करना है। आस विवनर्ददष्ट ऄिवध या ऄन्य ककसी ऄिवध (वजसकी राष्ट्रपवत द्वारा ऄनुमवत प्रदान की
गइ हो) के भीतर राज्य विधानमंडल के विचार प्राप्त न होने की वस्थवत में भी विधेयक को
पुरःस्थावपत ककया जा सकता है।
 संसद (या राष्ट्रपवत), राज्य विधानमंडल के विचार को स्िीकार करने या ईनके ऄनुसार काया करने

के वलए बाध्य नहीं है और आसे स्िीकार या ऄस्िीकार कर सकता है, भले ही यह विचार तय समय-
सीमा के भीतर प्राप्त हो गया हो। यकद पूिा में प्रस्तुत विधेयक में संसद द्वारा संशोधन ककया जाता है
तो प्रत्येक बार राज्य विधानमंडल के वलए नया सन्दभा बनाना (ऄथाात् राज्य विधानमंडल को आसे
पुन: िापस भेजना) अिश्यक नहीं है।
 ऄनुच्छेद 3, संसद को यह ऄवधकार प्रदान करता है कक िह नये राज्य बनाने, ईनमें पररितान

करने, नाम बदलने या सीमा में पररितान के समबन्ध में वबना राज्यों की ऄनुमवत से कदम ईठा

सकती है। दूसरे शब्दों में, संसद ऄपने ऄनुसार भारत के राजनीवतक मानवचत्र का पुनर्जनधाारण कर
सकती है। आस प्रकार संविधान द्वारा क्षेत्रीय ऄखंडता या राज्य के ऄविभाज्य ऄवस्तत्ि की गारं टी
नहीं दी गयी है। ऄतः भारत को ‘विनाशी राज्यों का ऄविनाशी संघ’ (an indestructible Union

of destructible states) कहना सही है।

 ईल्लेखनीय है कक ऄमेररका की संघीय प्रणाली स्ितंत्र राज्यों के मध्य समझौते का पररणाम है,
संघीय सरकार नए राज्यों का वनमााण या ईनकी सीमाओं में पररितान संबंवधत राज्यों की ऄनुमवत
के वबना नहीं कर सकती। आसवलए ऄमेररका को ‘ऄविनाशी राज्यों का ऄविनाशी संघ’ (an

indestructible Union of indestructible States) कहा गया है।


 भारतीय संदभा में डी. डी. बसु के ऄनुसार भारतीय संसद को आस तरह की ईदार शवक्तयां कदए
जाने के पीछे प्रमुख तका यह है कक भारत सरकार ऄवधवनयम के ऄधीन प्रांतों का समूहीकरण
ऐवतहावसक और राजनीवतक कारकों के अधार पर था, न कक स्ियं लोगों के सामावजक, सांस्कृ वतक
और भाषायी विभाजन के अधार पर। संविधान के वनमााण के समय प्रान्तों के प्राकृ वतक संरेखण के
ऄनुसार ईनके पुनगाठन का प्रश्न ईत्पन्न हुअ था लेककन ईस समय समस्या की जरटलता को देखते
हुए आस विशाल काया का ईत्तरदावयत्ि नहीं वलया जा सका।
 ऐसे कइ ईदाहरण हैं जहां राज्य विधानमंडलों ने नए राज्यों के गठन के वलए प्रस्ताि पाररत ककए
हैं। लेककन संिैधावनक रूप से कोइ राज्य, नए राज्य के वनमााण आत्याकद की प्रकक्रया की शुरुअत
नहीं कर सकता है। आसकी शुरूअत कें रीय मंवत्रपररषद की सलाह से राष्ट्रपवत की पूिाानम
ु वत द्वारा
ऐसे विधेयक को संसद में पेश करने से होती है। निंबर, 2011 में ईत्तर प्रदेश विधानसभा द्वारा

राज्य को चार भागों पूिाांचल, पवश्चम प्रदेश, ऄिध प्रदेश और बुंदल


े खंड में विभावजत करने का
प्रस्ताि पाररत ककया गया वजसका के िल सांकेवतक मूल्य था जबकक संिैधावनक रूप से आसका कोइ
महत्ि नहीं था।

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 पहली और चौथी ऄनुसच


ू ी के संशोधन तथा आस सन्दभा में ऄनुपूरक, अनुषंवगक, और पाररणावमक

विषयों का ईपबंध करने के वलए ऄनुच्छेद 2 और ऄनुच्छेद 3 के ऄधीन बनायी गयी विवधयों को

ऄनुच्छेद 368 के ऄंतगात संविधान संशोधन नहीं माना जाएगा। आसका ऄथा यह है कक ऐसी

विवधयााँ साधारण बहुमत एिं साधारण विधायी प्रकक्रया के माध्यम से पाररत की जा सकती हैं।

1.5. भारतीय क्षे त्र के ऄध्यपा ण सं बं धी प्रािधान

 क्या ककसी भारतीय क्षेत्र के ऄध्यपाण (ककसी भारतीय क्षेत्र को ककसी ऄन्य देश को देना) के वलए

संविधान संशोधन की अिश्यकता है? यह प्रश्न 1960 में, राष्ट्रपवत द्वारा एक परामशा के रूप में

ईच्चतम न्यायलय के समक्ष प्रस्तुत ककया। कें र सरकार द्वारा 1958 के नेहरु-नून समझौते के

कक्रयान्ियन हेतु बेरुबारी संघ (पवश्चम बंगाल) पाककस्तान को हस्तांतररत कर कदया गया वजसने

राजनीवतक विरोह और वििाद को जन्म कदया। आसी अलोक में राष्ट्रपवत को सिोच्च न्यायालय से
यह परामशा लेना पड़ा।
 ईच्चतम न्यायालय ने कहा कक भारतीय क्षेत्र को ककसी ऄन्य देश को ऄध्यर्जपत करने (सौंपने) की

शवक्त संसद के पास नहीं है। यह काया के िल ऄनुच्छेद 368 में संशोधन के ज़ररये ही ककया जा

सकता है। आस प्रकार ककसी ऄन्य देश को कोइ भारतीय क्षेत्र के िल ऄनुच्छेद 368 के तहत

संविधान संशोधन के माध्यम से ही ऄध्यर्जपत ककया जा सकता है। पररणामस्िरूप, ईक्त क्षेत्र को

पाककस्तान को हस्तांतररत करने के वलए 9िााँ संविधान संशोधन ऄवधवनयम पाररत ककया गया।

 भारत एिं बांग्लादेश के मध्य 1974 के भूवम सीमा समझौते के तहत एन्क्लेिों (विदेशी ऄंतः

क्षेत्रों) के परस्पर विवनमय के वलए एक प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर ककये गए। हालांकक आसकी पुवष्ट

संसद द्वारा होनी अिश्यक थी। आसी अिश्यकता को ध्यान में रखते हुए 119िां संविधान संशोधन

विधेयक-2013 प्रस्तुत ककया गया था। विधेयक को दोनों सदनों एिं राष्ट्रपवत द्वारा स्िीकृ वत वमलने

के पश्चात् 100िां संविधान संशोधन के रूप में ईवल्लवखत ककया गया है।

 दूसरी ओर, 1969 में सिोच्च न्यायालय ने कहा कक भारत और ककसी ऄन्य देश के मध्य सीमा-

वििाद के वनपटारे के वलए संिध


ै ावनक संशोधन की अिश्यकता नहीं है। यह कायापावलका द्वारा
कारा िाइ के माध्यम से ककया जा सकता है क्योंकक यह मामला ऄन्य ककसी देश के वलए भारतीय
क्षेत्र के ऄध्यपाण की श्रेणी में नहीं अता।

 कच्चावतिु द्वीप: भारत और श्रीलंका के मध्य 1974 और 1976 में हुइ संवधयों के माध्यम से भारत

ने कच्चावतिु द्वीप श्रीलंका को ऄध्यर्जपत कर कदया। बेरुबारी मामले में कदए गए वनदेश के ऄनुसार
भारतीय भू-भाग का ककसी ऄन्य देश को हस्तान्तरण के िल संिैधावनक संशोधन के माध्यम से

ककया जा सकता है। हाल ही में, तवमलनाडु सरकार द्वारा श्रीलंका को कच्चावतिु द्वीप के हस्तांतरण

को सिोच्च न्यायालय द्वारा स्थावपत प्रकक्रया और वनदेश का ईल्लंघन मानते हुए सिोच्च न्यायालय
में चुनौती दी गयी थी।

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1.6. राज्यों एिं सं घ शावसत प्रदे शों का ईद्भि

(Evolution of states and union territories)

 स्ितंत्रता के पश्चात्, भाषा के अधार पर राज्यों का पुनगाठन राष्ट्रीय समेकन और एकीकरण का

एक मुख्य पक्ष बन गया। देसी ररयासतों के एकीकरण की प्रकक्रया के साथ ईन प्रांतों, वजनकी

सीमाओं का वनधाारण ऄंग्रेजों द्वारा ऄतार्दकक रूप से ककया गया था, को एकीकृ त करने का काया
ऄत्यंत श्रमसाध्य था। हालांकक आस प्रकक्रया ने ऄंततः स्िातंत्रोत्तर भारत की विविधता को बढ़ाया।
विरटश भारत में प्रान्त दो प्रकार के थे:
o गिनार-जनरल के प्रवत ईत्तरदायी विरटश ऄवधकाररयों द्वारा प्रत्यक्षतः शावसत प्रांत, एिं

o स्थानीय िंशानुगत शासकों के ऄधीन देसी ररयासतें, वजनके सन्दभा में विरटश सरकार संप्रभु
तो थी ककन्तु संवध के अधार पर ईन्हें स्िायत्तता प्रदान की गयी थी।
 भारत ने 15 ऄगस्त, 1947 को जब स्ितंत्रता प्राप्त की तो विरटश सरकार ने ईन 600 से ऄवधक
ररयासतों के साथ ऄपने संवध अधाररत संबंधो को समाप्त कर कदया वजनके पास भारत या
पाककस्तान में से ककसी एक में विलय का विकल्प था। ररयासतों में से ऄवधकांश भारत में या तो
स्िेच्छा से या सशस्त्र हस्तक्षेप के माध्यम से सवममवलत हुईं।
 1947-1950 की ऄिवध के दौरान, आन राज्यों को राजनीवतक रूप से भारतीय संघ में या तो

संलग्न प्रांतों के साथ विलय द्वारा या नए प्रांतों के रूप में आनके गठन द्वारा एकीकृ त ककया गया। 26

जनिरी 1950 को जब नया संविधान ऄवस्तत्ि में अया तो ईस समय भारतीय संघ की घटक
आकाआयों को चार िगों में विभावजत ककया गया था:
 श्रेणी-A के राज्यों में तत्कालीन गिनार के ऄधीन शावसत प्रांत सवममवलत थे। आस श्रेणी में ऄसम,

वबहार, मुंबइ, मध्य प्रदेश, मरास, ईड़ीसा, पंजाब, ईत्तर प्रदेश और पवश्चम बंगाल सवममवलत थे।

 श्रेणी-B के राज्यों में पूिा ररयासतें या ईनका समूह शावमल था जो राजप्रमुख द्वारा शावसत थे। यह
राजप्रमुख ऄक्सर वनिाावचत विधावयका से युक्त कोइ पूिा राजकु मार होता था। आन्हें भारत के
राष्ट्रपवत द्वारा वनयुक्त ककया जाता था। आस श्रेणी के शावमल राज्य थे - हैदराबाद, जममू-कश्मीर,

मध्य भारत, मैसरू , परटयाला और पूिी पंजाब राज्य संघ (PEPSU), राजस्थान, सौराष्ट्र,
त्रािणकोर-कोचीन और विध्य प्रदेश।
 श्रेणी-C के 10 राज्यों में पूिा मुख्य अयुक्त के शासनाधीन प्रान्त थे और ऄंडमान एिं वनकोबार द्वीप

समूह को छोड़कर कु छ ररयासतें शावमल थीं। आसमें सवममवलत राज्यों में ऄजमेर, भोपाल,

वबलासपुर, कू च वबहार, कु गा, कदल्ली, वहमाचल प्रदेश, कच्छ, मवणपुर और वत्रपुरा थे ।

 श्रेणी-D में ऄंडमान और वनकोबार द्वीप समूह शावमल था वजसे लेवटटनेंट गिनार द्वारा प्रशावसत
ककया जाता था।

1.7. राज्यों के पु न गा ठ न की मां ग का आवतहास

 भारत में ऄंग्रज


े ों का विजय ऄवभयान लगभग 100 िषों से ऄवधक समय तक चला वजसके
पररणामस्िरूप राज्यों की अतंररक सीमाएाँ ऄव्यिवस्थत एिं ऄतार्दकक ढंग से वनर्जमत हुईं। आन
राज्यों के गठन में भाषाइ और सांस्कृ वतक एकजुटता का ध्यान नहीं रखा गया वजसके चलते ये
बहुभावषक और बहुसांस्कृ वतक चररत्र िाले बने।

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 भाषाइ अधार पर राज्यों के गठन की मांग बहुत पुरानी है। यह स्ितंत्रता प्रावप्त से बहुत पहले से
ईठती रही है। लगभग एक सदी के प्रयासों के बाद विरटश शासन में ही सिाप्रथम भाषाइ अधार
पर 1936 में ईड़ीसा प्रान्त का गठन हुअ। आसमें मधुसद
ू न दास की प्रमुख भूवमका थी।
 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रस
े ने भी स्िंतंत्रता पूिा आस अधार पर राज्यों के पुनगाठन की मांग को ईवचत
माना। 1917 में ही कांग्रेस की राज्य आकाआयों को भाषायी अधार पर संरवचत करने का वनणाय
वलया गया। 1946 के चुनाि में कांग्रेस के चुनािी घोषणापत्र में भी आसे स्थान कदया गया।

 ककन्तु स्ितंत्रता प्रावप्त के ईपरांत विभाजन के कटु ऄनुभि के कारण, भाषाइ जैसे ककसी भी अधार
पर राज्यों के गठन को विभाजनकारी तत्िों के आरादों को बढ़ािा देने िाला माना गया और आसे
संदह
े ात्मक दृवष्ट से देखा जाने लगा।

1.7.1. राज्य पु न गा ठ न हे तु गरठत विवभन्न अयोग

 नए राज्यों के गठन हेतु सभी िगों की ओर से वनरं तर ईठने िाली मांगों के चलते, 1948 में
भारतीय संविधान सभा के ऄध्यक्ष द्वारा भारत में राज्यों के पुनगाठन के प्रश्न पर विचार करने के
वलए एस. के . धर की ऄध्यक्षता में एक भाषाइ प्रांत अयोग (धर अयोग) का गठन ककया गया।
ऄपनी ररपोटा में अयोग ने वसफाररश ककया कक राज्यों का पुनगाठन भाषाइ अधार के स्थान पर
प्रशासवनक सुविधा के अधार पर ही होना चावहए। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रस
े ने 1949 के ऄपने
जयपुर ऄवधिेशन में धर अयोग की वसफाररशों पर विचार करने के वलए एक ईच्चस्तरीय भाषायी
राज्य सवमवत का गठन ककया, वजसमें जिाहरलाल नेहरू, िल्लभभाइ पटेल तथा पट्टावभ
सीतारमैया शावमल थे। आसे जेिीपी सवमवत कहा गया। आस सवमवत ने भी ऄपनी ररपोटा में राज्यों
के भाषायी पुनगाठन के प्रस्ताि के साथ अगे बढ़ने में ऄत्यंत सािधानी बरतने की सलाह दी।
 हालााँकक 1952 तक भाषाइ अधार पर राज्यों के पुनगाठन की मांग काफ़ी मज़बूत हो चुकी थी।

ऄक्टू बर 1953 में भारत सरकार को भाषा के अधार पर प्रथम राज्य का गठन करने के वलए

मजबूर होना पड़ा और मरास से 16 तेलगू भाषी वजलों को पृथक कर तटीय अंध्र एिं रायलसीमा

क्षेत्रों को सवममवलत कर एक नया राज्य अंध्र प्रदेश वनर्जमत ककया गया। आस दौरान 56 कदनों की
भूख हड़ताल के बाद कांग्रस
े कायाकताा पोट्टी श्रीरामुलू की मृत्यु हो गयी थी। (श्रीरामुलू गााँधीिादी
स्ितंत्रता सेनानी थे, वजन्होंने दवलत ईत्थान के वलए ईल्लेखनीय काया ककया था और नमक
सत्याग्रह में भी भाग वलया था)।
 आसके पश्चात, जिाहर लाल नेहरू ने पूरे मामले की जांच करने के वलए, फजल ऄली की ऄध्यक्षता

में तीन सदस्यीय राज्य पुनगाठन अयोग (1953) की वनयुवक्त की। अयोग के ऄन्य दो सदस्य के .

एम. पवणक्कर और एच. एन. कुं जरू थे। 1955 में अयोग ने ऄपनी ररपोटा प्रस्तुत की। अयोग ने
राज्यों के पुनगाठन हेतु प्रशासवनक तथा अर्जथक कारकों को ध्यान में रखा पर साथ ही भाषाइ
वसद्धांत के ऄवधकांश भाग को स्िीकार करते हुए भाषा को एक प्रमुख अधार के रूप में माना।
 राज्य पुनगाठन अयोग द्वारा ककसी राज्य के गठन के वलए ककसी क्षेत्र की मांग स्िीकार करने के
वलए चार मापदंड वनधााररत ककये गए:
o राज्य, भाषाइ और सांस्कृ वतक एकता के अधार पर बनाए जायें
o राज्यों का गठन राष्ट्रीय एकता की रक्षा तथा ईसे मजबूत बनाने के वलए हो
o नए राज्यों का गठन वित्तीय, प्रशासवनक और अर्जथक व्यिहायाता के द्वारा भी वनयंवत्रत होना
चावहए
o यह पंचिषीय योजनाओं के कक्रयान्ियन की प्रकक्रया में सहायता करे ।

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 राज्य पुनगाठन ऄवधवनयम, निंबर 1956 में संसद द्वारा पाररत ककया गया। आसके द्वारा चौदह
राज्यों और छह के न्र प्रशावसत प्रदेशों का वनमााण ककया गया। साथ ही सातिें संिध
ै ावनक संशोधन
ऄवधवनयम द्वारा राज्यों के चार श्रेवणयों (A, B, C और D) में हुए िगीकरण को समाप्त कर कदया
गया।
 1950 में भारतीय संघ के समेकन के बाद से मौजूदा राज्य की सीमाओं के पुनगाठन के वलए मोटे
तौर पर पुनगाठन को तीन व्यापक चरणों के ऄंतगात िगीकृ त ककया जा सकता है।
 पहला प्रमुख पुनगाठन, सुगरठत भाषायी प्रांतों के वनमााण के वलए एक राष्ट्रव्यापी अंदोलन के बाद

1956 में हुअ। कश्मीर को पहले से ही भारतीय संविधान के ऄनुच्छेद 370 के द्वारा, आसे दी गइ

विशेष वस्थवत के अधार पर, संघ में शावमल कर वलया गया था।

 दूसरी बड़ी पहल 1970 के दशक में हुइ जब पूिोत्तर में नए राज्यों का गठन ककया गया। 1963 में
नागालैंड की स्थापना के बाद कु छ नए राज्यों का गठन हुअ।
 तीसरे चरण में भारत के ईत्तरी प्रांतों में झारखंड, ईत्तरांचल और छत्तीसगढ़ की स्थापना की गयी।

2014 में तेलंगाना, अन्ध्र प्रदेश राज्य से ऄलग होकर बना भारत का निीनतम राज्य है।

1950 के दशक के दौरान हुए भाषाइ पुनगाठन ने राजनीवतक और प्रशासवनक आकाआयों में सांस्कृ वतक
पहचान को सवममवलत करने में प्रमुख योगदान कदया। भारतीय लोकतंत्र द्वारा प्रारं भ से ही जनता के
एक बड़े िगा की अकांक्षाओं का सममान ककया गया और भाषाइ अधार पर राज्यों का पुनगाठन करके ,
राष्ट्रीय नेतृत्ि ने एक ऐसी प्रमुख वशकायत का समाधान ककया जो विभाजनकारी प्रिृवत्तयों को ईकसाने
में समथा थी।
पुनगाठन का प्रत्येक चरण कें र तथा संघीय आकाआयों के मध्य राजनीवतक शवक्त के संतुलन पर अधाररत
था। पुनगाठन ने गंभीरता से राष्ट्र की एकता को कमजोर ककये वबना भारत के राजनीवतक मानवचत्र को
युवक्तसंगत बनाया। आसवलए राज्यों के पुनगाठन को 'सिाश्रष्ठ
े तरीके से प्राप्य राष्ट्रीय एकता’ के वलए

अधार तैयार करने िाला कारक माना जाता है।'

1.7.2. भारत में नए राज्यों का ईद्भि: कालानु क्र म

मरास राज्य से कु छ क्षेत्रों को पृथक कर, अंध्र राज्य ऄवधवनयम (1953) द्वारा, आस
अन्ध्र प्रदेश राज्य का गठन ककया गया। आसकी राजधानी कु नुल
ा थी और ईच्च न्यायालय गुंटूर में
स्थावपत ककया गया था।

के रल
राज्य पुनगाठन ऄवधवनयम, 1956 द्वारा के रल राज्य का गठन ककया गया। आसमें
त्रािणकोर और कोचीन क्षेत्र सवममवलत ककये गए।

कनााटक
राज्य पुनगाठन ऄवधवनयम, 1956 द्वारा मैसूर ररयासत से विभावजत करके बनाया

गया। 1973 में मैसूर का नया नाम कनााटक रखा गया।

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गुजरात और मुंबइ (पुनगाठन) ऄवधवनयम 1960 द्वारा मुब


ं इ राज्य को दो राज्यों ऄथाात् महाराष्ट्र
महाराष्ट्र और गुजरात में विभक्त ककया गया।

नागालैंड
आसका गठन नागालैंड राज्य ऄवधवनयम, 1962 द्वारा ऄसम राज्य से पृथक कर
ककया गया था।

हररयाणा पंजाब (पुनगाठन) ऄवधवनयम, 1966 द्वारा पंजाब राज्य से पृथक कर गठन ककया
गया।

वहमाचल प्रदेश
कें र शावसत प्रदेश वहमाचल प्रदेश को वहमाचल प्रदेश राज्य ऄवधवनयम, 1970
द्वारा राज्य का दजाा प्रदान ककया गया।

आसे सिाप्रथम 22िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1969 द्वारा ऄसम राज्य के
मेघालय,
भीतर एक 'ईप-राज्य' या 'स्िायत्त राज्य' के रूप में पृथक ककया गया। तत्पश्चात्
मवणपुर और
वत्रपुरा 1971 में, ईत्तर पूिी क्षेत्र (पुनगाठन) ऄवधवनयम 1971 द्वारा मेघालय को एक पूणा
राज्य का दजाा प्राप्त हुअ।

पूिोत्तर क्षेत्र (पुनगाठन) ऄवधवनयम 1971 द्वारा दोनों कें र शावसत प्रदेशों मवणपुर
एिं वत्रपुरा को राज्य का दजाा वमला। वमज़ोरम और ऄरुणाचल प्रदेश नामक दो कें र
शावसत प्रदेश (मूलत: वजसे नाथा इस्ट फ्रंरटयर एजेंसी-NEFA के नाम से जाना
जाता है) भी ऄवस्तत्ि में अए।

वसकक्कम पहले वसकक्कम को 35 िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1974 द्वारा समबद्ध राज्य

(Associate State) का दजाा कदया गया था, जब यह 'चोग्याल' शासन के ऄधीन

था। 1975 में 36 िें संशोधन ऄवधवनयम, 1975 द्वारा आसे एक पूणा राज्य का दजाा
प्राप्त हुअ।

वमज़ोरम
वमज़ोरम राज्य ऄवधवनयम, 1986 द्वारा आसे एक पूणा राज्य का दजाा कदया गया।

ऄरुणाचल
प्रदेश आसे ऄरुणाचल प्रदेश ऄवधवनयम, 1986 द्वारा एक पूणा राज्य का दजाा प्राप्त हुअ।

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गोिा
यह गोिा, दमन और दीि कें र शावसत प्रदेश से ऄलग कर कदया गया और गोिा को
पूणा राज्य बना कदया गया था। दमन और दीि पुनगाठन ऄवधवनयम, 1987 में गोिा
को पूणा राज्य बना कदया गया परन्तु दमन और दीि को कें र शावसत प्रदेश ही रखा
गया।

1 निंबर, 2000 को मध्य प्रदेश को विभक्त कर आसका गठन ककया गया।


छत्तीसगढ़

ईत्तराखंड 9 निंबर, 2000 को ईत्तर प्रदेश को विभक्त कर आसका गठन ककया गया।

झारखंड 15 निमबर, 2000 को वबहार को विभक्त कर आसका गठन ककया गया।

तेलग
ं ाना 2 जून, 2014 को अंध्र प्रदेश को विभक्त कर आसका गठन ककया गया।

वसकक्कम का भारत संघ के साथ एकीकरण


 वसकक्कम मूलत: भारत का एक संरवक्षत राज्य था। 1974 में आसे संविधान में संशोधन (35िां
संशोधन ऄवधवनयम) द्वारा भारतीय संघ के एक 'समबद्ध राज्य' (Associate state) का दजाा
कदया गया था। 1975 में वसकक्कम विधानसभा में चोग्याल (शाही) शासन को समाप्त करने और
वसकक्कम को भारत के एक संघटक क्षेत्र के रूप में घोवषत करने के प्रस्ताि को स्िीकृ त ककया गया।

संरवक्षत राज्य (Protectorate)


ऄन्तरााष्टीय कानून के तहत संरवक्षत राज्य िह राजनीवतक आकाइ है जो औपचाररक रूप से संवध द्वारा
ककसी ऄन्य सुदढ़ृ राज्य वजसे संरक्षक राज्य कहा जाता है, से समबन्ध स्थावपत करता है। यह सुदढ़ृ
संरक्षक राज्य ककसी तीसरे पक्ष के विरुद्ध संरवक्षत राज्य की रक्षा (कू टनीवतक या सैन्य) करने के वलए
सहमत होता है। आसके बदले में संरवक्षत राज्य सामान्यत: वनर्ददष्ट दावयत्िों को स्िीकार करता है।

एक सामान्य जनमत संग्रह द्वारा आस राज्य के भारतीय संघ के साथ एकीकरण का मागा प्रशस्त ककया
गया। पररणामस्िरूप संसद द्वारा 1975 में 36िां संविधान संशोधन ऄवधवनयम पाररत ककया गया और
वसकक्कम, भारतीय संघ का 22िां राज्य बन गया।

1.7.3. भारतीय सं घ में सवममवलत सं घ शावसत प्रदे श

 1987 के बाद से सात कें र शावसत प्रदेश कदल्ली, ऄंडमान और वनकोबार द्वीप समूह, दादरा और
नगर हिेली, लक्षद्वीप, दमन और दीि, पांवडचेरी और चंडीगढ़ है।

 पांवडचेरी कें र शावसत प्रदेश के वलए संसद ने ऄनुच्छेद 239A के तहत एक कानून बनाकर ऄथाात्
पांवडचेरी (प्रशासन) ऄवधवनयम, 1962 द्वारा विधावयका अकद के वलए प्रािधान ककया।

 कदल्ली में विधावयका और मंत्रालय की स्थापना के वलए 1992 में संविधान संशोधन द्वारा दो नए
ऄनुच्छेद ऄथाात् ऄनुच्छेद 239AA एिं 239AB जोड़े गए। ऄनुच्छेद 239AA द्वारा आसे कदल्ली
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) के रूप में नावमत ककया गया।

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 शेष कें र शावसत प्रदेश, के न्र द्वारा प्रशावसत क्षेत्र हैं तथा राष्ट्रपवत, ऄपने द्वारा वनयुक्त 'प्रशासक' के
माध्यम से और आन प्रदेशों में सुशासन के वलए विवनयम के अदेश जारी कर प्रशासन करते हैं।
(ऄनुच्छेद 239-240)।

पुदच
ु रे ी (पांवडचेरी) का ऄवधग्रहण एिं भारत संघ में प्रिेश

 यह क्षेत्र पूिा फ्रांसीसी ईपवनिेश था । 1956 में भारत और फ्रांस द्वारा सत्तान्तरण संवध (Treaty

of Cession) पर हस्ताक्षर ककए गए। 1962 तक, जब फ्रांसीसी संसद ने समझौते की पुवष्ट की,

तब तक आसे ‘ऄवधगृहीत क्षेत्र' का दजाा कदया गया था। ऄंतत: 1962 में भारत और फ्रांस के द्वारा
ऄनुसमथान प्रपत्रों का अदान-प्रदान ककया गया। आसके तहत फ्रांस ने ईसके द्वारा ऄवधकृ त क्षेत्रों की
पूणा संप्रभुता भारत को सौंप दी। तत्पश्चात् आसे कें र शावसत प्रदेश का दजाा प्रदान ककया गया।
 आसके ऄवतररक्त 2006 में, संसद ने आस कें र शावसत प्रदेश के लोगों की अकांक्षाओं के ऄनुरूप
पांवडचेरी कें र शावसत प्रदेश का नाम पररिर्जतत कर पुदच
ु ेरी करने के वलए एक विधेयक पाररत
ककया। पुदच
ु ेरी में चार क्षेत्र ऄथाात् पुदच
ु रे ी, कराइकल, माहे और यनम सवममवलत हैं।

1.8. राज्यों के पु न गा ठ न से सं बं वधत मु द्दें

क्या नए राज्यों की मांगे राष्ट्रीय एकता के वलए चुनौती प्रस्तुत करती हैं ?
 रामचंर गुहा का तका है कक भाषाइ राज्यों के गठन ने भारत की एकता की रक्षा की है। पाककस्तान
विभावजत हो गया और श्रीलंका में दीघाकालीन गृह-युद्ध हुअ क्योंकक पाककस्तान के मामले में
बंगाली भावषयों और श्रीलंका के मामले में तवमल भावषयों को ईस स्िायत्तता और गररमा से
िंवचत रखा गया वजसके िे हक़दार थे।
 दूसरी ओर, भारत में नागररकों को ईनकी ही भाषा में वशवक्षत होने और खुद को प्रशावसत करने

की स्िंत्रतता ने ईनमें अश्वासन, ईत्तरदावयत्ि और सुरक्षा की भािना पैदा की है तथा ‘पहचान के

संकट’ (Identity Crisis) को ईत्पन्न होने से रोका।

 प्रख्यात विद्वानों और कइ ऄन्य का मानना है कक भाषाइ राज्य, भारतीय स्ितंत्रता के प्रारं वभक दौर

में अिश्यक थे, लेककन ऄब राज्यों के ‘एक और पुनगाठन’ का समय अ गया है। हाल ही में तेलंगाना
का वनमााण आसका एक ईदाहरण है। विदभा और गोरखालैंड अकद के समथाकों के पास भी मजबूत
मुद्दे हैं। ये क्षेत्र पयाािरणीय और सांस्कृ वतक ऄथा में बेहतर रूप से पररभावषत हैं और ऐवतहावसक
रूप से राज्यों के ऄवधक शवक्तशाली या समृद्ध वहस्से द्वारा ईपेवक्षत रहे हैं।

 अजादी के 70 िषों बाद, भारत की एकता के बारे में ककसी भय की अिश्यकता नहीं रह गइ है।
भारतिषा ऄखंड रहेगा। अज भारत की िास्तविक समस्या शासन की गुणित्ता है तथा छोटे राज्य
आस समस्या का एक समाधान प्रस्तुत कर सकते हैं।

क्या वद्वतीय राज्य पुनगाठन अयोग की अिश्यकता है?

 नए राज्यों की बढ़ती मांग द्वारा भारत की संघीय लोकतांवत्रक व्यिस्था को सुदढ़ृ बनाने के संबंध में
कु छ प्रश्न ईत्पन्न ककये गए है। संघीय पुनगाठन के मुद्दे का समाधान करने के वलए ककसी भी ढांचे को
तैयार करते समय चार ईपायों पर विचार ककया जाना चावहए।

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o एक स्थायी राज्य पुनगाठन अयोग का गठन

o नए राज्य की मांग राज्य विधावयका द्वारा ईत्पन्न हो, कें र से नहीं, यह सुवनवश्चत करने के वलए
संविधान में संशोधन

o राजनीवतक विचार के स्थान पर अर्जथक और सामावजक व्यिहायाता परीक्षण अधाररत मांग

o धमा, जावत और भाषा को नए राज्य के गठन का िैध अधार बनाने के बजाय विकास और
शासन जैसे लोकतांवत्रक मुद्दों को प्रोत्सावहत करने के स्पष्ट सुरक्षा ईपाय

 भारत के राज्यों के अकार और ढांचे का एक ऄवधक व्यापक ऄिलोकन करने के वलए लंबे समय से
वद्वतीय राज्य पुनगाठन अयोग (SRC) की स्थापना की मांग की जा रही है। यकद एक नये SRC
का गठन ककया जाये तो ईसे प्रश्नों की वनम्नवलवखत श्रेवणयों का समाधान करना होगा:

1. क्या भारत को और राज्यों की अिश्यकता है?


 भारत प्रवत राज्य जनसंख्या के ऄनुसार राज्यों की संख्या के मामले में संघीय देशों की तावलका में
सबसे नीचे अता है। आसका प्रवत राज्य जनसंख्या का औसत 35 वमवलयन है। जोकक तुलनात्मक

रूप से िाज़ील में 7 वमवलयन, ऄमेररका में 6 वमवलयन, नाआजीररया में 4 वमवलयन है।
 हालांकक भौगोवलक दृवष्ट से आसके राज्यों का अकार ऄवधक बड़ा नहीं है। ऄमेररका के लगभग
200,000 िगा ककलोमीटर और िाजील के 300,000 िगा ककलोमीटर की तुलना में भारत के

राज्यों का अकार औसतन 110,000 िगा ककलोमीटर है। जमान राज्यों (Länderare) का औसत

क्षेत्रफल लगभग 22,000 िगा ककलोमीटर, जबकक वस्िस कें टन का औसत के िल 1,588 िगा
ककलोमीटर हैं।
 ऄतः प्रवत राज्य जनसंख्या के ऄनुसार राज्यों की संख्या की दृवष्ट से, यह ऄन्य संघीय देशों से पीछे

है, लेककन भौगोवलक क्षेत्र की दृवष्ट से यह ईनके लगभग बराबर या कम ही है।

2. क्या छोटे राज्य का ऄथा बेहतर शासन प्रदान करना है?

 दूसरे , नए अयोग को आस पर अिश्यक रूप से विचार करना होगा कक क्या राज्यों का अकर कम
करने से प्रशासन में सुधार की संभािना है। नए राज्यों के गठन से राज्यों की संख्या में िृवद्ध होगी
तथा नए राज्यों को नइ राजधावनयों, प्रशासवनक संरचना, ऄदालतों और कर्जमयों की अिश्यकता
होती है।
 जबकक “ग्रेिी ट्रेन” (पैसे एिं संसाधनों तक सुलभ पहुाँच) की ऄिधारणा के कारण अलोचक कभी-
कभी नए राज्यों के गठन के खचा और ऄक्षमता के विचार की वनदा करते हैं। ईनका तका है कक
राज्यों की प्रशासन एिं संसाधनों तक पहुाँच में िृवद्ध कर ईनकी क्षमता में सुधार ककया जा सकता
है।

 भारत की G-20 देशों के मध्य सािाजवनक क्षेत्र के रोजगार की दर सबसे कम है। सािाजवनक

कमाचाररयों की संख्या में कमी, कराधान, न्याय, सुरक्षा और बुवनयादी सुविधाओं जैसे वशक्षा और
स्िास्थ्य में भारतीय राज्यों की क्षमता को कमजोर करती है। कफर भी ररक्त पदों को भरना कौशल
सुधार और ईच्च वशक्षा पर वनभार करता है, लेककन नए राज्यों की आस संबंध में कोइ गारं टी नहीं है।

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 राज्यों के अकार को कम करने और शासन में सुधार के मध्य कोइ ऄवनिाया संबंध नहीं है। राज्य के
अकार और शासन के मध्य समबन्ध िाले ऄक्सर आस पूिााग्रह से ग्रवसत होते हैं कक छोटे राज्य
भौगोवलक दृवष्ट से ऄवधक सुसग
ं रठत और सामावजक रूप से ऄवधक एकजुट होगें और आससे
सािाजवनक खचा की दक्षता में सुधार करने में मदद वमलेगी।

 यह भी माना जाता है कक छोटे राज्य वनिाावचत प्रवतवनवधयों और मतदाताओं के बीच की दूरी को


कम करके जिाबदेही में सुधार कर सकते हैं। कफर भी यकद , गरीबी में कमी या अर्जथक विकास के

के संदभा में बेहतर प्रदशान को देखें, तो हमें राज्य के अकार और प्रदशान के मध्य कोइ स्पष्ट

सहसंबंध दृष्टीगोचर नहीं होता है। भारत के नए राज्यों तेलग


ं ाना, छत्तीसगढ़, झारखंड और
ईत्तराखंड का वमवश्रत ऄनुभि यह दशााता है कक राज्य के नयेपन में विकास को बढ़ािा देने की
संभािना ऄंतर्जनवहत होना अिश्यक नहीं है।

3. नए राज्यों के वनमााण के ऄवतररक्त ऄन्य ईपलब्ध विकल्प क्या हैं ?

 नए SRC के समक्ष तीसरा प्रश्न यह है कक ऄगर नए राज्यों के वनमााण का अधार प्रशासवनक


दक्षता है तो क्या नए राज्यों के वनमााण के कोइ ऄन्य विकल्प भी हैं जोकक संबंवधत मुद्दों का
वनिारण कर सकें ?

 कु छ मामलों में कें रीय संसाधनों का बेहतर वितरण या राज्य स्तर पर पंचायती राज संस्थाओं को
सत्ता का बेहतर हस्तांतरण, नया राज्य बनाने से ऄवधक िांवछत पररणाम दे सकता है। यहााँ यह

ईल्लेख ककया जा सकता है कक नगर वनगमों, स्िायत्त क्षेत्रीय पररषदों या पंचायती राज संस्थाओं
के रूप में ईप-राज्य संस्थाओं को ऄवधकार देने में राज्यों का बहुत हद तक वमवश्रत प्रदशान रहा है।
4. नए राज्यों को बनाए जाने का वनधाारण कौन करे गा ?

 नइ SRC को वनवश्चत रूप से आस प्रश्न का जिाब देना चावहए कक यकद नए राज्य बनाए जाने हैं तो
आसका वनधाारण कौन करे गा। यह भारत की संिैधावनक व्यिस्था की एक कदलचस्प विशेषता है कक
ऄनुच्छेद 3 (जो प्रभािी रूप से कें र सरकार को नये राज्यों के वनमााण की शवक्त देता है) की

कें रीकृ त प्रकृ वत के बािजूद, राज्य विभाजन पर िास्तविक संघषा राज्य स्तर के पररदृश्य में ककये

जाते हैं। नए SRC को आस पर विचार करना चावहए कक क्या विभाजन का समथान करने के वलए

राज्य विधानसभा के संकल्प को ऄवनिाया बनाया जाना चावहए।


5. राज्य के दजे की मौजूदा मांग के वनणाय

 ऄंत में, भविष्य में गरठत होने िाले SRC को गोरखालैंड, विदभा, बोडोलैंड, बुंदल
े खंड, हररत प्रदेश
और ऄन्य जगहों में राज्य के दजे की ितामान मांगों पर वनणाय करने की अिश्यकता होगी। भविष्य
में ककसी भी SRC के वलए एक ऄनुत्तररत प्रश्न, राज्य के 'सही' अकार, का ईत्तर खोजना असान

नहीं होगा। ककस क्षेत्र को राज्य बनाया जाना चावहए आसका सािाभौम या सबके वलए स्िीकाया
ईत्तर नहीं है। राज्य के िल क्षेत्रीय, राजनीवतक, संस्कृ वतयों, समरूपता एिं पहचान की मांग,

भौगोवलक और अर्जथक कारकों के बीच समझौते या संतुलन के रूप में ईभर सकते हैं।

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1.9. राज्यों के नाम पररिता न से जु ड़े मु द्दे

ऄगस्त 2016 में, पवश्चम बंगाल विधानसभा ने एक प्रस्ताि पाररत ककया, वजसमें पवश्चम बंगाल राज्य

का नाम बदलकर बंगाली (भाषा) में “बंग्ला” और ऄंग्रेजी में “बंगाल” ककए जाने के संबंध में प्रािधान है।

राज्यों के नाम पररितान से संबवं धत संिध


ै ावनक प्रािधान:

 ऄनुच्छेद 3 संसद को ककसी भी राज्य के नाम में पररितान करने की शवक्त प्रदान करता है।

 ऄनुच्छेद 3 के ऄधीन विवध बनाने की जो प्रकक्रया विवहत की गयी है, ईसका यहााँ पालन ककया

जाता है। ऄथाात,् संसद विवध बनाकर ही यह काया करती है।

 ऄनुच्छेद 3 के ऄधीन संविधान संशोधन के वबना ऐसा ककया जा सकता है। लेककन, यकद ईक्त राज्य

की भाषा में पररितान (जैसे: ईवड़या के स्थान पर ओवडया; 96िां संविधान संशोधन) के संबंध में

प्रािधान हो तथा जो संविधान की अठिीं ऄनुसच


ू ी में पररितान से संबंवधत हो तो आस हेतु
संविधान संशोधन विधेयक की अिश्यकता होती है।

राज्यों के नाम पररितान की अिश्यकता क्यों ?

 विरटश शासन के दौरान ऄंग्रज


े ों ने ऄपनी प्रशासवनक सुविधा के दृवष्टकोण से कइ भारतीय प्रांतो,

क्षेत्रों एिं शहरों का नाम पररिर्जतत ककया था।

 आनके नामकरण में विरटश प्रभाि भी झलकता है, जहां ईनके ऐवतहावसक नामकरण को ऄनदेखा

ककया गया है।

 ऐसे प्रांतों, शहरों अकद की स्थानीय भाषा एिं ऄंग्रज


े ी भाषा में ईच्चारण एिं ध्िन्यात्मक

(Phonetic) समस्या भी आनके नाम में पररितान के कारक रहे हैं। जैस-े यूनाआटेड प्रोविस, वमवडल

प्रोविस अकद।

ऄनुच्छेद 3 के ऄधीन जो ऄनेक विधान बनाए गए है ईनमें से कु छ ईदाहरणस्िरूप नीचे कदए गए है :

(i) नए राज्यों का वनमााण :

 अंध्र राज्य ऄवधवनयम, 1953 (अंध्र प्रदेश)।

 राज्य पुनगाठन ऄवधवनयम, 1956 (के रल, मध्य प्रदेश अकद)।

 मुंबइ पुनगाठन ऄवधवनयम, 1960 (महाराष्ट्र और गुजरात)।

(ii) विलय

 वहमाचल प्रदेश और वबलासपुर (नया राज्य) ऄवधवनयम, 1954 (वबलासपुर का वहमाचल प्रदेश में

विलय)।

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 ऄर्जजत राज्यक्षेत्र (विलय) ऄवधवनयम, 1960 (कु छ राज्यक्षेत्रों का ऄसम, पंजाब और पवश्चमी

बंगाल में विलय)।

(iii) विभाजन

 पंजाब पुनगाठन ऄवधवनयम, 1966 (पंजाब को, पंजाब और हररयाणा में विभावजत ककया गया

और चंडीगढ़ संघ शावसत प्रदेश का वनमााण ककया गया)।

 पूिोत्तर क्षेत्र (पुनगाठन) ऄवधवनयम, 1971 (आसके द्वारा मवणपुर, वत्रपुरा, मेघालय, वमजोरम और

ऄरूणाचल प्रदेश का वनमााण हुअ)।

(iv) ऄध्यपाण

 भारत और पाककस्तान के मध्य हुए करार के ऄनुसरण में 9िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1960

द्वारा कु छ राज्यक्षेत्र पाककस्तान को ऄध्यर्जपत ककए गए।

(v) ऄजान (नए क्षेत्रों का प्रिेश)

 36िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1975 द्वारा वसकक्कम भारत संघ में प्रविष्ट।

(vi) नाम पररितान

 मरास राज्य (नाम पररितान) ऄवधवनयम, 1968 (मरास का नाम तवमलनाडु ककया गया)।

 मैसरू राज्य (नाम पररितान) ऄवधवनयम 1973 मैसूर राज्य का नाम कनााटक कर कदया गया।

 ईड़ीसा (नाम पररितान) ऄवधवनयम, 2011; ईड़ीसा का नाम बदलकर ओवडशा ककया गया।

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Classroom Study Material

भारतीय संविधान एिं शासन


4. मूल ऄवधकार

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विषय सूची
1. ऄवधकार की संकल्पना _________________________________________________________________________ 4

2. भारतीय संविधान में मूल ऄवधकारों की संकल्पना_______________________________________________________ 4

3. मूल ऄवधकारों का क्रवमक विकास __________________________________________________________________ 5

4. मूल ऄवधकारों की कु छ विशेषताएँ _________________________________________________________________ 5

5. मूल ऄवधकारों का वििरण _______________________________________________________________________ 6

5.1 ऄनुच्छेद 12 - राज्य की पररभाषा _______________________________________________________________ 6

5.2. ऄनुच्छेद 13 - मूल ऄवधकारों से ऄसंगत या ईनका ऄल्पीकरण करने िाली विवधयां: ____________________________ 7
5.2.1. मूल ऄवधकारों से संबंवधत संिैधावनक वसद्धान्त__________________________________________________ 8
5.2.2. मूल ऄवधकारों में संशोधन और अधारभूत ढांचे का वसद्धांत _________________________________________ 9

5.3. ऄनुच्छेद 14 - विवध के समक्ष समता ____________________________________________________________ 10

5.4. ऄनुच्छेद 15 - भेदभाि के विरुद्ध ऄवधकार ________________________________________________________ 11


5.4.1. संबंवधत न्यावयक िाद _________________________________________________________________ 12
5.4.2. ऄनुच्छेद 15 एिं संिैधावनक संशोधन ______________________________________________________ 12
5.4.3. ऄनुच्छेद 15 और सामावजक प्रगवत_________________________________________________________ 13

5.5. ऄनुच्छेद 16 - लोक वनयोजन के विषय में ऄिसर की समता का ऄवधकार ___________________________________ 14
5.5.1. मंडल अयोग और ईसके बाद _____________________________________________________________ 15

5.6. ऄनुच्छेद 17 - ऄस्पृश्यता का ऄंत ______________________________________________________________ 16


5.6.1. ऄस्पृश्यता की समावि के वलये विवभन्न ऄवधवनयम ______________________________________________ 16

5.7. ऄनुच्छेद 18 - ईपावधयों का ऄंत ______________________________________________________________ 18

5.8. ऄनुच्छेद 19 - स्ितंत्रता का ऄवधकार ___________________________________________________________ 18

5.9. ऄनुच्छेद 20- ऄपराधों के वलए दोषवसवद्ध के संबंध में संरक्षण ___________________________________________ 22

5.10. ऄनुच्छेद 21- प्राण और दैवहक स्ितंत्रता का ऄवधकार _______________________________________________ 23


5.10.1 न्यावयक व्याख्या द्वारा ऄनुच्छेद 21 के क्षेत्र का विस्तार __________________________________________ 24
5.10.2 वनजता का ऄवधकार __________________________________________________________________ 25
5.10.3 जीिन का ऄवधकार और अत्महत्या (IPC की धारा 309) ________________________________________ 26
5.10.4 जीिन का ऄवधकार एिं मृत्युदड
ं __________________________________________________________ 27

5.11. ऄनुच्छेद 21-A : वशक्षा का ऄवधकार __________________________________________________________ 28

5.12. ऄनुच्छेद 22– कु छ दशाओं में वगरफ्तारी और वनरोध से संरक्षण ________________________________________ 28

5.13. ऄनुच्छेद 23 – मानि दुव्याापार एिं बलात् श्रम का वनषेध ____________________________________________ 30

5.14 ऄनुच्छेद 24 – कारखानों अदद में बालकों के वनयोजन का प्रवतषेध _______________________________________ 31


5.14.1. बाल श्रम से संबंवधत विधेयक ___________________________________________________________ 31

5.15. ऄनुच्छेद 25: ऄंतःकरण की और धमा को ऄबाध रूप से मानने, अचरण करने और प्रचार करने
की स्ितंत्रता ________________________________________________________________________________ 32

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5.16. ऄनुच्छेद 26: धार्ममक कायों के प्रबंध की स्ितंत्रता __________________________________________________ 34

5.17. ऄनुच्छेद 27: दकसी भी विवशष्ट धमा की ऄवभिृवद्ध के वलए करों के संदाय के बारे में स्ितंत्रता _____________________ 34

5.18. ऄनुच्छेद 28: कु छ वशक्षा संस्थाओं में धार्ममक वशक्षा या धार्ममक ईपासना में ईपवस्थत होने के
बारे में स्ितंत्रता _____________________________________________________________________________ 35

5.19. ऄनुच्छेद 29: ऄल्पसंख्यक िगों के वहतों का संरक्षण _________________________________________________ 35

5.20. ऄनुच्छेद 30: वशक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का ऄल्पसंख्यक िगों का
ऄवधकार __________________________________________________________________________________ 36
5.20.1. ऄनुच्छेद 29 तथा 30 के मध्य सम्बन्ध _____________________________________________________ 37

5.21. ऄनुच्छेद 31: संपवि का ऄवनिाया ऄवधग्रहण (वनरस्त)_______________________________________________ 37

5.22. ऄनुच्छेद 32 : संिैधावनक ईपचारों का ऄवधकार __________________________________________________ 39

5.23. ऄनुच्छेद 33 - मूल ऄवधकारों के , सुरक्षा बलों अदद पर लागू होने में, ईपांतरण करने की संसद
की शवि __________________________________________________________________________________ 42

5.24. ऄनुच्छेद 34 - क्षेत्र में सेना विवध प्रिृि है तब आस भाग द्वारा प्रदि ऄवधकारों पर वनबान्धन ______________________ 42

5.25. ऄनुच्छेद 35: भाग III के ईपबंधों को प्रभािी करने के वलये विधान_______________________________________ 43

5.26. क्या मूल ऄवधकार अत्यंवतक हैं? _____________________________________________________________ 45

5.27. मूल ऄवधकारों की अलोचना ________________________________________________________________ 45

5.28. मूल ऄवधकारों का महत्ि ___________________________________________________________________ 46

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1. ऄवधकार की सं क ल्पना
 ऄवधकार, कानून सम्मत दािा, सुविधा या विशेषावधकार है। विवध द्वारा प्रदि सुविधाएँ ऄवधकारों
की रक्षा करती हैं। दोनों का ऄवस्तत्ि एक-दूसरे के वबना संभि नहीं है। जहाँ कानून एक ओर
ऄवधकारों को मान्यता देता है, िही ँ दूसरी ओर आन्हें लागू करने या आनकी ऄिहेलना पर वनयंत्रण
स्थावपत करने की व्यिस्था भी करता है।
 ऄवधकार, लोकतंत्र का सार हैं। ये व्यवि को स्ियं का विकास करने के वलए सक्षम और सशि
बनाते हैं। ऄवधकारों की धारणा समय-समय पर तथा एक समाज से दूसरे समाज में पररिर्मतत
होती रहती है।
 जब कु छ दािे कानून द्वारा मान्यता प्राि करते हैं तो िे प्रितानीय हो जाते हैं। तब हम ईन्हें लागू
करने की मांग कर सकते हैं। ईल्लंघन होने की वस्थवत में नागररक ऄपने ऄवधकारों की रक्षा के वलए
न्यायालय में ऄपील कर सकते हैं। आस प्रकार, ऄवधकारों को समाज द्वारा मान्यता प्राि और राज्य
द्वारा स्िीकृ त, तका संगत दािों के रूप में पररभावषत दकया जा सकता है। ऄवधकारों के विवभन्न
प्रकार वनम्नवलवखत हैं:
प्राकृ वतक ऄवधकार: ये ऄवधकार प्रत्येक व्यवि को ईनके मनुष्य होने के कारण जन्म से ईपलब्ध होते हैं।
ये ऄहस्तांतरणीय नैसर्मगक ऄवधकार हैं। ये कानून द्वारा प्रदि नहीं हैं बवल्क कानून द्वारा के िल प्रितानीय
होते हैं, जैसे:- जीिन का ऄवधकार।
मानिावधकार: आन ऄवधकारों को प्राकृ वतक ऄवधकारों का व्यािहाररक संस्करण माना जाता है। ये
मानि के रूप में जन्म के साथ ही सभी मनुष्यों के वलए ईपलब्ध होते हैं। आस संदभा में, ये राष्ट्रीयता,
जावत, धमा, ललग अदद के अधार पर भेदभाि दकए वबना सािाभौम प्रकृ वत के होते हैं। आन ऄवधकारों को
सुवनवित करने के वलए संयुि राष्ट्र संघ द्वारा 1948 में मानिावधकारों की सािाभौम घोषणा की गयी।
नागररक ऄवधकार: ये ऄवधकार दकसी देश के कानून या संविधान द्वारा िहाँ के के िल नागररकों को
प्रदान दकये जाते हैं। ईदाहरण के वलए, स्ितंत्रता का ऄवधकार।
विवधक ऄवधकार: ये िे नागररक ऄवधकार होते हैं जो विधावयका द्वारा पाररत विवधयों के माध्यम से
प्रदान दकये जाते हैं। ईदाहरण के वलए, संपवि का ऄवधकार पहले मूल ऄवधकार के रूप में शावमल था।
परन्तु, ऄब आसे ऄनुच्छेद 300(A) के ऄंतगात विवधक ऄवधकार के रूप में मान्यता प्राि हैं।
संिध
ै ावनक ऄवधकार: ये ऄवधकार संविधान में ईवल्लवखत होते हैं। कु छ ऄवधकारों को विशेष दजाा प्रदान
दकया जाता है, जैस-े मूल ऄवधकार; जबदक ऄन्य ऄवधकारों को के िल साधारण दजाा ददया जाता है।
मूल ऄवधकार: यह संिैधावनक ऄवधकारों की एक शाखा हैं तथा आनके महत्ि के अधार पर आन
ऄवधकारों को विशेष दजाा ददया जाता है और ये सीधे ईच्चतम एिं ईच्च न्यायालय द्वारा प्रितानीय होते
हैं।

2. भारतीय सं विधान में मू ल ऄवधकारों की सं क ल्पना


 आन्हें मूल आसवलए कहा जाता है क्योंदक:
o ये एक व्यवि के सिाांगीण विकास के वलए अिश्यक होते हैं; तथा
o ईनको दकसी देश के मूल कानून ऄथाात संविधान के द्वारा गारं टी प्रदान की जाती है।
 मूल ऄवधकार, भारतीय संविधान में भाग III के ऄंतगात ऄनुच्छेद 12 से 35 तक समाविष्ट दकये
गए हैं। ये न के िल देश में राजनीवतक स्ितंत्रता की गारं टी प्रदान करते हैं, बवल्क राज्य की
मनमानी कारा िाइ के विरूद्ध वनयंत्रक की भूवमका का वनिाहन भी करते हैं। आसके ऄवतररि, ये
‘व्यवि के शासन’ के स्थान पर ‘विवध का शासन’ स्थावपत करने में सहायता करते हैं, वजसका
ऄवभप्राय है दक राज्य मनमाने तरीके से काया नहीं कर सकता है।

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 आसके ऄवतररि, न्यावयक पुनर्मिलोकन की शवि के साथ एक स्ितंत्र न्यायपावलका, मूल ऄवधकारों
के संरक्षक की भूवमका वनभाने के साथ ही, विवध के शासन की स्थापना हेतु ‘ऄवभभािक’ एिं
‘गारं टर’ के रूप में काया करती है।

3. मू ल ऄवधकारों का क्रवमक विकास


संविधान में मूल ऄवधकारों को सवम्मवलत करने की प्रेरणा, स्ितंत्रता के वलए एक लंबे संघषा और विश्व
के प्रमुख लोकतंत्रों के ऄनुभिों से प्राि हुइ।
 1928 में मोतीलाल नेहरू की ऄध्यक्षता में वनर्ममत नेहरू ररपोटा के ऄंतगात भारत में संसदीय
लोकतंत्र की स्थापना और ऄल्पसंख्यकों को संरक्षण देने का अह्िान दकया गया था।
 1931 के कराची ऄवधिेशन के प्रस्ताि में व्यविगत ऄवधकारों और स्ितंत्रताओं के मुद्दों के प्रवत
प्रवतबद्धता व्यि की गयी। आसमें मूल नागररक ऄवधकार तथा न्यूनतम मजदूरी सुवनवित करने
और ऄस्पृश्यता एिं दासता के ईन्मूलन जैसे सामावजक-अर्मथक ऄवधकार भी सवम्मवलत थे।
 नेहरू ररपोटा के बाद से, राष्ट्रिादी मत, वबल ऑफ़ राआट्स के पक्ष में था वजसका कारण विरटश

शासन से प्राि ऄनुभि था दक एक पराधीन विधानमंडल, व्यविगत स्ितंत्रता का ऄवतक्रमण करने


में कायापावलका के ऄधीनस्थ के रूप में काया कर सकता है।
 विरटश मत पर ध्यान ददए वबना, संविधान वनमााताओं ने व्यविगत स्ितंत्रता के संरक्षण तथा
समुदाय के प्रत्येक सदस्य हेतु सामावजक, अर्मथक और राजनीवतक न्याय (वनदेशक वसद्धांतों के
साथ) सुवनवित करने के वलए मूल ऄवधकारों को ऄपनाया। संविधान सभा, संयुि राज्य ऄमेररका
और विटेन के वबल ऑफ़ राआट्स के साथ ही फ्ांस के मानिावधकार की घोषणा से भी प्रेररत थी।

4. मू ल ऄवधकारों की कु छ विशे ष ताएँ


मूल ऄवधकारों की कु छ महत्िपूणा विशेषताएँ वनम्नांदकत हैं:
 मूल ऄवधकारों के दो िगा हैं। कु छ ऄवधकार के िल नागररकों को प्राि हैं, जबदक कु छ ऄवधकार
नागररकों तथा विदेशी व्यवियों, दोनों को समान रूप से प्राि हैं। ऄनुच्छेद 15, 16, 19, 29 और

30 द्वारा प्रदि ऄवधकार के िल भारतीय नागररकों के वलए ही ईपलब्ध हैं। जबदक शेष सभी,
विदेशी नागररकों (शत्रु राष्ट्र के नागररकों के ऄवतररि) के वलए भी ईपलब्ध हैं।
 ये ऄवधकार ऄसीवमत नहीं होते, बवल्क आन पर कु छ युवियुि प्रवतबंध अरोवपत होते हैं।
"युवियुिता" का ऄथा न्यायपावलका द्वारा ‘समाज के समग्र कल्याण एिं व्यवि के ऄवधकारों के
मध्य संतल
ु न की ईवचत ऄिस्था’ के रूप में वनधााररत दकया गया है।
 संसद को विवध द्वारा यह वनधााररत करने का ऄवधकार है दक सैन्य बलों तथा खुदफ़या विभागों में ये
ऄवधकार दकस सीमा तक प्राि होंगे।
 ये स्थायी नहीं हैं। संसद, संिैधावनक संशोधन के माध्यम से आनमें कटौती या कमी कर सकती है।

ककतु ये संशोधन, संविधान के मूल ढांचे को वबना प्रवतकू ल रूप से प्रभावित दकये हुए होने चावहए।
 आन ऄवधकारों के विषय-क्षेत्र ऄनुच्छेद 31A, 31B, 31C, 33, 34, और 35 द्वारा सीवमत होते हैं।
 ऄनुच्छेद 20 एिं 21 के ऄवतररि, ये सभी ऄवधकार राष्ट्रीय अपातकाल के दौरान वनलंवबत दकए
जा सकते हैं। ऄनुच्छेद 19 के तहत प्रदि 6 स्ितंत्रताओं को के िल तभी वनलंवबत दकया जा सकता
है जब अपातकाल युद्ध और बाह्य अक्रमण के अधार पर घोवषत दकया गया हो, न दक सशस्त्र
विद्रोह के अधार पर।

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 मूल ऄवधकारों के ऄंतगात, कु छ ऄवधकार राज्य को यह वनदेश देते हैं दक िह कु छ विवशष्ट काया न

करे । आनका स्िरुप नकारात्मक होता है। ईदाहरण के वलए ऄनुच्छेद 14, 15(1), 16(2), 18(1),

20, 21, 22(1), 27 तथा 28(1)।

 कु छ ऄनुच्छेद ऄवभव्यि रूप से, एक या ऄवधक ऄवधकारों का सृजन करते हैं तथा ईन्हें प्रदान करते

हैं। आनका स्िरुप सकारात्मक होता है। ईदाहरण के वलए ऄनुच्छेद 19(1), 21क, 29, 30 तथा

32।

मूल ऄवधकारों का िगीकरण


संविधान के भाग III में ईवल्लवखत मूल ऄवधकार वनम्नवलवखत छह श्रेवणयों में िगीकृ त दकए जाते हैं:

i. समानता का ऄवधकार (ऄनुच्छेद 14-18)

ii. स्ितंत्रता सम्बन्धी ऄवधकार (ऄनुच्छेद 19-22)

iii. शोषण के विरुद्ध ऄवधकार (ऄनुच्छेद 23-24)

iv. धार्ममक स्ितंत्रता सम्बन्धी ऄवधकार (ऄनुच्छेद 25-28)

v. संस्कृ वत एिं वशक्षा सम्बन्धी ऄवधकार (ऄनुच्छेद 29-30)

vi. संिैधावनक ईपचारों का ऄवधकार (ऄनुच्छेद 32)

5. मू ल ऄवधकारों का वििरण

5.1. ऄनु च्छे द 12 - राज्य की पररभाषा

मूलपाठ
आस भाग में, जब तक दक संदभा से ऄन्यथा ऄपेवक्षत न हो, "राज्य” के ऄंतगात भारत की संसद और
सरकार तथा राज्यों में से प्रत्येक राज्य की सरकार और विधान-मंडल तथा भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर
या भारत सरकार के वनयंत्रण के ऄधीन सभी स्थानीय या ऄन्य प्रावधकारी सवम्मवलत हैं।
वििरण
ऄनुच्छेद 12, संविधान के भाग III के प्रयोजन के वलए "राज्य" को पररभावषत करने का प्रयास करता

है। कोइ नागररक, राज्य की पररभाषा में सवम्मवलत दकसी भी वनकाय द्वारा मूल ऄवधकारों के ईल्लंघन

दकये जाने पर सीधे ईच्चतम एिं ईच्च न्यायालय में ऄपील कर सकता है। न्यावयक घोषणाओं में "ऄन्य

प्रावधकाररयों" को विस्तृत रूप से िर्मणत दकया गया है। राज्य की यह पररभाषा वन:शेषकारी नहीं है,

यह समािेशक है तथा आसका समय-समय पर विस्तार दकया जाता रहा है। आसके ऄंतगात संसद, के न्द्र

सरकार, राज्य विधावयका, राज्य कायापावलका, स्थानीय ऄवधकारी अदद सवम्मवलत हैं।

"ऄन्य प्रावधकाररयों" के ऄंतगात वनम्नवलवखत वनकायों को सवम्मवलत दकया गया है:

 विवध के तहत गरठत िैधावनक शवियों का प्रयोग करने िाले वनकाय;

 सरकार द्वारा पयााि वििीय सहायता प्राि करने िाले वनकाय;

 सरकारी कायों का वनष्पादन करने िाले वनकाय;


 सरकार के वनयंत्रण के ऄधीन वनकाय।

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वनम्नवलवखत को न्यायालय के वनणायों द्वारा राज्य ऄवभवनधााररत दकया गया है:


1. राज्य ऄवधवनयम के ऄधीन रवजस्टडा सोसाआटी द्वारा स्थावपत प्रादेवशक आंजीवनयररग
महाविद्यालय,

2. भारतीय सांवख्यकी संस्थान,

3. भारतीय कृ वष ऄनुसंधान पररषद,

4. भारतीय आस्पात प्रावधकरण,

5. राजस्थान विद्युत बोडा,

6. ऄंतरााष्ट्रीय विमानपिन प्रावधकरण,

7. तेल और प्राकृ वतक गैस अयोग,

8. सभी राष्ट्रीयकृ त बैंक….अदद।

ककतु, भारतीय दक्रके ट कं ट्रोल बोडा (BCCI) एिं राज्य शैवक्षक ऄनुसंधान और प्रवशक्षण पररषद्

(NCERT) राज्य की पररभाषा में सवम्मवलत नहीं है।

5.2. ऄनु च्छे द 13 - मू ल ऄवधकारों से ऄसं ग त या ईनका ऄल्पीकरण करने िाली


विवधयां :

मूल पाठ
1. आस संविधान के प्रारं भ से ठीक पहले, भारत के राज्यक्षेत्र में प्रिृि सभी विवधयां ईस मात्रा तक
शून्य होंगी, जहाँ तक िे आस भाग के ईपबंधों से ऄसंगत हैं।
2. राज्य ऐसी कोइ विवध नहीं बनाएगा जो आस भाग द्वारा प्रदि ऄवधकारों का हनन करती है या
न्यून करती है तथा आस खंड के ईल्लंघन में बनायी गयी प्रत्येक विवध, ईल्लंघन की मात्रा तक शून्य
होगी।
3. आस ऄनुच्छेद में, जब तक दक संदभा से ऄन्यथा ऄपेवक्षत न हो,
(a) "विवध" के ऄंतगात भारत के राज्यक्षेत्र में विवध का बल रखने िाला कोइ ऄध्यादेश, अदेश,
ईपविवध, वनयम, विवनयम, ऄवधसूचना, रूदढ़ या प्रथा सवम्मवलत है;
(b) "प्रिृि विवध" के ऄंतगात भारत के राज्यक्षेत्र में दकसी विधानमंडल या ऄन्य सक्षम प्रावधकारी
द्वारा आस संविधान के प्रारं भ से पहले पाररत या बनाइ गइ विवध है जो पहले ही वनरवसत नहीं
कर दी गयी है, चाहे ऐसी कोइ विवध या ईसका कोइ भाग ईस समय पूणत
ा या या विवशष्ट
क्षेत्रों में प्रितान में नहीं है।
4. आस ऄनुच्छेद की कोइ बात ऄनुच्छेद 368 के ऄधीन दकए गए संविधान संशोधन पर लागू नहीं
होगी।
वििरण
ऄनुच्छेद 13, न्यावयक पुनर्मिलोकन की शवि से संबंवधत है। यह देश में न्यायपावलका को मूल
ऄवधकारों के संरक्षक के रूप में स्थावपत करता है। आसका ईद्देश्य मूल ऄवधकारों के विषय में संविधान
की सिोपरर वस्थवत को सुरवक्षत करना है। न्यावयक पुनर्मिलोकन दकसी भी ऐसी विवध को शवि बाह्य
(विधावयका द्वारा क्षेत्रावधकार से परे विवध का वनमााण करना) या शून्य घोवषत करने की न्यायपावलका
की शवि है जो मूल ऄवधकारों से ऄसंगत हो या ईल्लंघन करती हो।

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5.2.1. मू ल ऄवधकारों से सं बं वधत सं िै धावनक वसद्धान्त

संविधान के ऄनुच्छेद 13 में मूल ऄवधकारों से संबंवधत वनम्नवलवखत वसद्धान्तों को सवम्मवलत दकया गया
है। ये वनम्नानुसार हैं:
i. न्यावयक पुनर्मिलोकन (Judicial Review)
 न्यावयक पुनर्मिलोकन का तात्पया न्यायपावलका की ईस शवि से है वजसके ऄंतगात िह विधावयका
द्वारा बनाए गए दकसी भी कानून या कायापावलका द्वारा जारी दकए गए दकसी भी अदेश को
संविधान के प्रािधानों के प्रवतकू ल होने पर वनरस्त कर सकता है तथा साथ ही, पूिा में सुनाए गए
ऄपने वनणायों की भी समीक्षा कर सकता है। यह वसद्धांत संयि
ु राज्य ऄमेररका की न्यावयक
व्यिस्था की देन है, जहाँ माबारी बनाम मेवडसन िाद (1803) में न्यायपावलका की ऄन्तर्मनवहत
शवि के रूप में न्यावयक पुनर्मिलोकन की स्थापना की गयी।
 भारतीय संविधान में न्यायपावलका को प्रत्यक्षतः पुनर्मिलोकन की शवि नहीं दी गइ है।
पुनर्मिलोकन शब्द का प्रयोग के िल ऄनुच्छेद 137 के ऄंतगात दकया गया है, वजसमें ईच्चतम
न्यायालय को ऄपने द्वारा सुनाए गए वनणायों या अदेशों की न्यावयक पुनर्मिलोकन की शवि दी
गयी है। लेदकन, संविधान के ऄंतगात कु छ विशेष प्रािधान है वजससे न्यायालय को पुनर्मिलोकन की
शवि प्राि होती है।
 ऄनुच्छेद 13, 32, 131-136, 143, 226, 245, 246, 251, 254 एिं 372 के ऄंतगात
न्यायपावलका को कु छ ऐसी शवियाँ एिं ईिरदावयत्ि ददया गया है, वजससे न्यायालय को
पुनर्मिलोकन की शवि प्राि होती है।
ii. पृथक्करण का वसद्धांत (Doctrine of Separability)
 यदद विधावयका द्वारा ऐसी विवध पाररत की जाती है जो मूल ऄवधकारों के दकसी प्रािधान का
ईल्लंघन करती है तो िह विवध न्यायालय द्वारा ऄसंगतता की सीमा तक शून्य घोवषत कर दी
जाती है। सम्पूणा विवध को ऄमान्य घोवषत करने के स्थान पर विवध के के िल ईस भाग को हटाया
जा सकता है, जो मूल ऄवधकारों से ऄसंगत है। यह पृथक्करण का वसद्धांत है।
iii. अच्छादन का वसद्धान्त (Doctrine of Eclipse)
 ऄनुच्छेद 13 (1) के ऄनुसार संविधान के लागू होने से पूिा प्रिृि विवधयां ईस सीमा तक शून्य
होगी, वजस सीमा तक िे दकसी मूल ऄवधकार का ईल्लंघन करती हैं या मूल ऄवधकारों से ऄसंगत
हैं ऄथाात् मूल ऄवधकारों से ऄसंगत विवधयां मूल ऄवधकारों द्वारा अच्छाददत हो जाती हैं।
iv. ऄवधत्यजन का वसद्धांत (Doctrine of Waiver)
 यह संयुि राज्य ऄमेररका में लागू है। परन्तु, भारतीय पररवस्थवतयों पर विचार करते हुए भारतीय
संदभा में आसे वनरस्त कर ददया गया। आसके ऄनुसार कोइ व्यवि ऄपने ऄवधकारों का स्िेच्छा से
त्याग नहीं कर सकता। यह राज्य को ईसके ऄवधकारों का ईल्लंघन करने की ऄनुमवत नहीं दे
सकता है।
v. भािी प्रितान का वसद्धांत (Doctrine of Prospective Overruling)
 मूल ऄवधकार का प्रभाि भूतलक्षी (Retrospective) नहीं है बवल्क आसका भािी प्रभाि है।
भारतीय संविधान के प्रितान के पूिा प्रिृि विवधयों पर मौवलक ऄवधकारों का प्रभाि ईस वतवथ से
होगा, वजस वतवथ से आन्हें लागू दकया गया है। संविधान के लागू होने के पूिा दकये गये कायों के
सम्बन्ध में संविधान पूिा विवधयाँ लागू होंगी। आसवलए, संविधान पूिा प्रिृि विवधयों के ऄधीन
संविधान के प्रितान के पूिा ईत्पन्न ऄवधकार एिं दावयत्ि का प्रितान मूल ऄवधकारों के ईल्लंघन के
बािजूद भी कराया जा सकता है।

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5.2.2. मू ल ऄवधकारों में सं शोधन और अधारभू त ढां चे का वसद्धां त

 ऄनुच्छेद 13 (2) में कहा गया है दक राज्य, ऐसी कोइ भी विवध ऄवधवनयवमत नहीं करे गा, जो मूल
ऄवधकारों में कटौती या कमी करती है। संविधान के लागू होने के बाद से ही यह प्रश्न सामने अया
दक “क्या ऄनुच्छेद-368 के तहत संसद की संविधान संशोधन की शवि मूल ऄवधकारों में भी
पररितान कर सकती है?”
 संविधान के भाग IV में ईवल्लवखत नीवत-वनदेशक तत्ि वजनका ईद्देश्य देश में सामावजक-अर्मथक
लोकतंत्र की स्थापना करना है। आनको राज्य की नीवतयों द्वारा लागू करने के वलए संसद ने प्रारं भ
से ही संपवि के ऄवधकार को सीवमत करने के वलए संविधान संशोधन की नीवत ऄपनाइ, वजसे मूल
ऄवधकार में हस्तक्षेप के अधार पर चुनौती दी गयी। संसद द्वारा मूल ऄवधकारों में संशोधन और
ईस पर ददए गये न्यावयक वनणायों में कु छ प्रमुख वनम्नवलवखत हैं :
 शंकरी प्रसाद िाद (1951): आसमें ईच्चतम न्यायालय ने वनणाय ददया दक संविधान संशोधन
ऄवधवनयम, सामान्य विवध नहीं है। ऄत: ऄनुच्छेद 13 को ऄनुच्छेद 368 के ऄधीन स्िीकार करते
हुए न्यायालय ने संसद का मूल ऄवधकारों में संशोधन करने के ऄवधकार को स्िीकार कर वलया।
आस प्रकार मूल ऄवधकार, संसद की संशोधन करने की शवि के ऄधीन है।
 गोलकनाथ िाद (1967): ईच्चतम न्यायालय ने ऄपने पूिि
ा ती विवनियों को ईलट ददया और
वनणाय ददया दक संविधान में मूल ऄवधकारों को एक सिोच्च वस्थवत प्रदान की गयी है। ऄत: िे
संशोवधत नहीं दकये जा सकते हैं।
 24िां संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1971: आस ऄवधवनयम द्वारा ऄनुच्छेद 13 में एक नया खण्ड
जोड़कर यह स्पष्ट कर ददया गया दक ऄनुच्छेद 13 के ऄथाांतगात ऄनुच्छेद 368 के ऄधीन पाररत
संिैधावनक संशोधन, सामान्य विवध नहीं है। आस प्रकार ऄनु. 13, संविधान का संशोधन करने िाले
ऄवधवनयमों पर लागू नहीं होगा। आस प्रकार, राज्य के पास एक बार दिर मूल ऄवधकार में
संशोधन करने की शवि वनवहत हो गयी।
 के शिानंद भारती िाद (1973): न्यायपावलका ने संविधान के मूल ढांचे की ऄिधारणा दी, वजसके
ऄनुसार संविधान की कु छ ऐसी मूल विशेषताएँ हैं, वजनका संशोधन नहीं दकया जा सकता है। मूल
ऄवधकारों का संशोधन के िल ईस सीमा तक दकया जा सकता है वजस सीमा तक िे मूल ढांचे का
वहस्सा नहीं हैं।
 42िां संविधान संशोधन ऄवधवनयम (1976): आस ऄवधवनयम द्वारा मूल ढांचे के वसद्धान्त को शून्य
घोवषत करने हेतु ऄनुच्छेद 368(4) और 368(5) जोड़े गये। आस ऄवधवनयम ने संसद को संविधान
में संशोधन करने की ऄसीवमत शवियां प्रदान की, वजन्हें न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती
थी।
 वमनिाा वमल्स िाद (1980): आस वनणाय में ईच्चतम न्यायालय ने ऄनुच्छे द 368(4) एिं 368(5)
को वनरस्त कर ददया, क्योंदक आनके द्वारा न्यावयक पुनर्मिलोकन सम्बन्धी शवियों में कटौती की
गइ थी, जो संविधान का मूल ढांचा है। ऄत: ितामान में मूल ऄवधकारों में ईस सीमा तक संशोधन
दकया जा सकता है, जहाँ तक दक िह संशोधन के मूल ढांचे को प्रवतकू ल रूप से प्रभावित नही
करता हैं।
 अइ. अर. कोवहलो िाद (2007): यह 9िीं ऄनुसच
ू ी में सवम्मवलत ऄवधवनयमों की िैधता से
सम्बंवधत है। आस िाद में ईच्चतम न्यायालय ने यह वनणाय ददया दक नौिीं ऄनुसच
ू ी में ईवल्लवखत
विषयों सवहत कोइ भी ऐसा कानून जो संविधान के मूल ढांचे को प्रवतकू ल रूप से प्रभावित करता
है, की न्यावयक पुनर्मिलोकन का ईच्चतम न्यायालय को ऄनन्य प्रावधकार है।

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5.3. ऄनु च्छे द 14 - विवध के समक्ष समता

मूलपाठ
राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में दकसी व्यवि को विवध के समक्ष समता से या विवधयों के समान संरक्षण से
िंवचत नहीं करे गा।
वििरण

विवध का शासन (Rule of Law)


विवध के समक्ष समता का विचार ए.िी.डायसी द्वारा प्रदि विवध का शासन वसद्धांत का मूल तत्ि है।
आसमें वनम्नवलवखत तीन तत्ि सवम्मवलत हैं:
 वनरं कुश शवि की ऄनुपवस्थवत, ऄथाात दकसी भी व्यवि को विवध के ईल्लंघन के ऄवतररि दवण्डत
नहीं दकया जा सकता है।
 विवध के समक्ष समता, ऄथाात सभी नागररक समान रूप से विवध के ऄधीन हैं।
 संविधान स्रोत नहीं बवल्क व्यवि के ऄवधकारों का पररणाम है, क्योंदक संविधान के ईद्भि के पूिा भी
व्यविगत ऄवधकार ऄवस्तत्ि में थे।
भारत में आसके प्रथम एिं वद्वतीय तत्ि ही लागू होते है। चूँदक भारतीय प्रणाली में, संविधान व्यविगत
ऄवधकारों का स्रोत है, ऄत: तृतीय तत्ि लागू नहीं होता है।
ईच्चतम न्यायालय ने ऄपने विवभन्न वनणायों में ऄनुच्छेद 14 के ऄंतगात विवध के शासन को संविधान के
मूल ढांचे का एक ऄंग माना है।

विवध के समक्ष समता


 आसका ऄथा यह है दक सभी नागररकों को विवध के समक्ष समानता का दजाा प्राि है। यह विरटश
परं परा से ग्रहण दकया गया है। आसकी प्रिृवि नकारात्मक है क्योंदक आसके तहत दकसी भी
विशेषावधकार को स्िीकार नहीं दकया गया है।
विवधयों का समान संरक्षण
 आसे संयि
ु राज्य ऄमेररका के संविधान से ग्रहण दकया गया है। आसका ऄथा है दक राज्य को यह
सुवनवित करना चावहए दक समान के साथ समान और ऄसमान के साथ ऄसमान व्यिहार दकया
जाये। समान संरक्षण का वसद्धांत ऄसमान व्यवियों को विशेष सुविधाएं एिं ऄिसर प्रदान करके
राज्य द्वारा सकारात्मक काया दकये जाने की ऄपेक्षा करता है। ऄतः यह एक सकारात्मक ऄिधारणा
है।
 पविम बंगाल राज्य बनाम ऄनिर ऄली सरकार िाद (1951) में ईच्चतम न्यायालय ने यह बताया
की ‘विवध के समक्ष समता’ तथा ‘विवधयों का समान संरक्षण’ दोनों िाक्यांशों का ऄथा एक ही है।
सैद्धावन्तक रूप से आसमें ऄंतर हो सकता है दकन्तु, व्यािहाररक स्तर पर दोनों में कोइ विभेद नहीं
है।
विवध के समक्ष समता के ऄपिाद
भारतीय संविधान में वनवहत विवध के समक्ष समता का वसद्धांत पूणत
ा या वनरपेक्ष नहीं हैं। आसके कु छ
ऄपिाद वनम्नवलवखत हैं:
 राष्ट्रपवत और राज्यपाल को भारतीय संविधान के ऄनुच्छेद 361 और 361A के ऄंतगात
ऄवभयोजन के विरुद्ध ईन्मुवि प्रदान की गयी है।
 सांसदों और विधायकों को विधावयका में विशेषावधकार (ऄनुच्छेद 105 और 194) प्रदान दकये
गए हैं।
 विदेशी राजनवयकों को भी ऄवभयोजन के विरुद्ध ईन्मुवि प्रदान की गयी है।

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प्रयोजनीयता
 ऄनुच्छेद 14, चाहे िह भारतीय नागररक, विदेशी या यहां तक दक कं पनी जैसी कोइ विवधक
आकाइ ही क्यों न हो, सभी को समानता का ऄवधकार प्रदान करता है। साथ ही, यह के िल राज्य
की कायािाइ के विरुद्ध ही ईपलब्ध है।

5.4. ऄनु च्छे द 15 - भे द भाि के विरुद्ध ऄवधकार

मूलपाठ
धमा, मूलिंश, जावत, ललग या जन्म स्थान के अधार पर भेदभाि का वनषेध।
1. राज्य के िल धमा, मूलिंश, जावत, ललग, जन्मस्थान या आनमें से दकसी के अधार पर दकसी भी
नागररक के विरुद्ध भेदभाि नहीं करे गा।
2. कोइ नागररक, के िल धमा, मूलिंश, जावत, ललग, जन्म स्थान या आनमें से दकसी के अधार पर –
(क) दुकानों, सािाजवनक भोजनालयों, होटलों और सािाजवनक मनोरं जन के स्थानों में प्रिेश; या
(ख) पूणातः या ऄंशतः राज्य-वनवध से पोवषत या साधारण जनता के प्रयोग के वलए समर्मपत कु ओं,
तालाबों, स्नान घाटों, सड़कों और सािाजवनक समागम के स्थानों के ईपयोग के सम्बन्ध में; दकसी
भी वनयोग्यता, दावयत्ि, वनबान्धन या शता के ऄधीन नहीं होगा।
3. आस ऄनुच्छेद की कोइ बात राज्य को वस्त्रयों एिं बच्चो के वलए विशेष ईपबंध करने से वनिाररत
नहीं करे गी।
4. आस ऄनुच्छेद की या ऄनुच्छेद 29 के खंड (2) की कोइ बात राज्य को सामावजक ि शैवक्षक दृवष्ट से
वपछड़े हुए नागररकों के दकन्ही िगों की ईन्नवत के वलए या ऄनुसूवचत जावतयों और ऄनुसूवचत
जनजावतयों के वलए कोइ विशेष ईपबंध करने से वनिाररत नहीं करे गी।
5. आस ऄनुच्छेद या ऄनुच्छेद 19 के खंड (1) के ईपखंड (g) की कोइ बात राज्य को, सामावजक और
शैवक्षक रूप से वपछड़े हुए नागररकों के दकन्हीं िगों की ईन्नवत के वलए या ऄनुसूवचत जावतयों या
ऄनुसूवचत जनजावतयों के वलए, विवध द्वारा, कोइ विशेष ईपबंध करने से वनिाररत नहीं करे गी,
जहाँ तक ऐसे विशेष ईपबंध, ऄनुच्छेद 30 के खंड (1) में वनर्ददष्ट ऄल्पसंख्यक वशक्षा संस्थाओं से
वभन्न, वशक्षा संस्थाओं में, वजनके ऄंतगात प्राआिेट वशक्षा संस्थाएँ भी हैं, चाहे िे राज्य से सहायता
प्राि हों या नहीं, प्रिेश से सम्बंवधत हैं।
वििरण
 ऄनुच्छेद 15(1) के िल धमा, मूलिंश, ललग, जावत और जन्म स्थान के अधार पर राज्य द्वारा
भेदभाि पर प्रवतबंध लगाता है। यह प्रवतषेध राज्य के विरुद्ध है, ग़ैर सरकारी (Private) व्यवियों
के विरुद्ध नहीं। भेदभाि के िल ईपरोि अधारों पर वनवषद्ध है।
 आस संदभा में ‘के िल’ का ऄथा - आसका ऄथा है दक के िल ईपयुाि अधार पर भेदभाि की ऄनुमवत
नहीं दी गयी है। राज्य ईपयुाि में से दकसी भी अधार के साथ संयोवजत कु छ ऄन्य अधारों पर
भेदभाि कर सकता है।
 ईदाहरणाथा, के िल जावत के अधार पर कोइ भेदभाि नहीं दकया जा सकता। लेदकन, जावत और
वपछड़ेपन के अधार पर सकारात्मक भेदभाि या सकारात्मक कारा िाइ की ऄनुमवत दी गयी है।
 जहाँ ऄनुच्छेद 15(1) राज्य के भेदभाि के कायों पर प्रवतबंध अरोवपत करता है, िहीं ऄनुच्छेद
15(2) ‘राज्य’ एिं ‘गैर-सरकारी व्यवियों’ दोनों को भेदभाि नहीं करने का अदेश देता है। आनमें से
कोइ भी सािाजवनक स्थानों यथा - कु ओं, तालाबों,अदद के ईपयोग में भेदभाि की नीवत नहीं
ऄपनाएगा।

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 ऄनुच्छेद 15(3) मवहलाओं एिं बच्चों के वलए सकारात्मक करिाइ का प्रािधान करता है। यह राज्य
को सामावजक समानता की स्थापना के वलए सकारात्मक एिं तका पूणा भेदभाि करने की ऄनुमवत
प्रदान करता है। ईदाहरण के वलए, स्थानीय वनकायों में मवहलाओं के वलए अरक्षण की व्यिस्था
एिं बच्चों के वलए वनःशुल्क वशक्षा की व्यिस्था।
5.4.1. सं बं वधत न्यावयक िाद

 वपछड़े जावतयों के वलए अरक्षण के मुद्दे पर कायापावलका एिं न्यायपावलका के मध्य टकराि की
वस्थवत ईत्पन्न हो गयी। ईच्चतम न्यायालय ने चम्पकम दोराइराजन बनाम मद्रास राज्य िाद
(1951) में राज्य सरकार के ईस िै सले को रद्द कर ददया वजसके द्वारा मेवडकल एिं आंजीवनयररग
कालेजों में गैर िाह्मण छात्रों के वलए सीटें अरवक्षत की गइ थी। यह ऄनुच्छेद 15(1) के तहत धमा,
जावत या ललग के अधार पर भेदभाि का वनषेध के अधार पर दकया गया था।
 लेदकन, आस िै सले को बाद में संसद के द्वारा एक संविधान संशोधन के माध्यम से वनरस्त कर ददया
गया एिं एक नये प्रािधान ऄनुच्छेद 15(4) को जोड़ा गया वजसने कायापावलका को यह शवि
प्रदान की, दक सामावजक एिं शैक्षवणक रूप से वपछड़े िगों के नागररकों के वलए सकारात्मक
कारा िाइ (affirmative action) के प्रािधान करने में सरकार सक्षम है।
 लेदकन, संशोवधत प्रािधानों के ऄंतगात राज्य द्वारा ईठाए गए कदमों को भी चुनौती प्रदान की गइ
एिं पुन: ईच्चतम न्यायालय ने एम. अर. बालाजी बनाम मैसरू राज्य िाद (1963) में यह वनणाय
ददया दक एक विशेष िगा वपछड़ा है या नहीं आसका पता लगाने के वलए लोगों का एक समूह या
ईसकी जावत एकमात्र या प्रमुख कारण नहीं हो सकता है। साथ ही, ईच्चतम न्यायालय ने अरक्षण
के मामले मे एक दूसरा वनदेश यह ददया दक अरक्षण एक ईवचत सीमा से ऄवधक नहीं हो सकता हैं।
 ईच्चतम न्यायालय ने मण्डल न्यावयक वनणाय (1993) में जावत अधाररत अरक्षण को िैध माना
और क्रीमी लेयर की ऄिधारणा प्रदान की। आसके ऄनुसार, वपछड़े िगों में संपन्न लोगों को समाज
के ऄगड़े/ऄग्रणी समुदायों के समकक्ष मानकर दकसी भी प्रकार का अरक्षण नहीं ददया जाता है।
5.4.2. ऄनु च्छे द 15 एिं सं िै धावनक सं शोधन

 ऄनुच्छेद 15(4) को प्रथम संविधान संशोधन ऄवधवनयम द्वारा जोड़ा गया था। यह सामावजक और
शैक्षवणक रूप से वपछड़े िगों या ऄनुसूवचत जावत/ऄनुसूवचत जनजावतयों के वलए सकारात्मक
कारा िाइ (अरक्षण) का प्रािधान करता है।
 ऄनुच्छेद 15(5) वशक्षण संस्थानों में, चाहे िो सहायता प्राि हों या गैर-सहायता प्राि, में समाज के
सामावजक और शैक्षवणक रूप से कमजोर िगों के वलए सकारात्मक कारा िाइ (अरक्षण) का
प्रािधान करता है।
 ऄनुच्छेद 15(4) जहाँ प्रकृ वत में सामान्य है, िहीं ऄनुच्छेद 15(5) विवशष्ट रूप से वशक्षा से संबंवधत
है। ऄनुच्छेद 15(5) को 93िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम (2005) द्वारा जोड़ा गया है।
ऄल्पसंख्यक वशक्षण संस्थान, आस प्रािधान का ऄपिाद हैं। आस संशोधन के द्वारा SC,ST एिं
OBC िगा के छात्रों के वलये वशक्षण संस्थाओं में अरक्षण की सुविधा प्रदान की गयी है।
वनजी वशक्षण संस्थानों में अरक्षण से संबवं धत वििाद
 TMA पाइ िाईं डेशन बनाम कनााटक राज्य (2002) और आनामदार बनाम महाराष्ट्र राज्य
(2005) िाद में ईच्चतम न्यायालय ने कहा है दक सरकार वनजी गैर-सहायता प्राि वशक्षण संस्थानों
में कोटा (अरक्षण) प्रणाली लागू नहीं कर सकती, क्योंदक यह ऄनुच्छेद 19(1)(g) के तहत प्रदि
मूल ऄवधकारों का ईल्लंघन है। आसके माध्यम से कोइ भी िृवि (पेशा) चुनने की स्ितंत्रता प्रदान की
गयी है।

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 93िाँ संविधान संशोधन, आसी वनणाय को प्रवतस्थावपत करने के वलए ऄवधवनयवमत दकया गया था।

 ईच्चतम न्यायालय ने ईपयुाि संिैधावनक संशोधन की िैधता को बनाए रखा। तदुपरांत, कें द्र

सरकार द्वारा संविधान के ईपबंधों को प्रभािी बनाने के वलए कें द्रीय शैवक्षक संस्थान ऄवधवनयम,

2006 पाररत दकया गया वजससे IIT, IIM एिं ऄन्य शैक्षवणक संस्थानों में आन कमजोर िगो

(OBC) के वलए 27 % सीटें अरवक्षत की गइ।

 ए. के . ठाकु र बनाम भारतीय संघ (2008) िाद में न्यायालय ने यहाँ तक वनणाय दे ददया दक राज्य

एिं वनजी वशक्षण संस्थाओं में ऄनुच्छेद 15(5) के तहत अरक्षण मान्य हैं।

 राजस्थान के गैर-सहायता प्राि वनजी स्कू लों की सोसाआटी बनाम भारत संघ िाद, 2013: वनजी

गैर-सहायता प्राि संस्थानों में भी वशक्षा के ऄवधकार ऄवधवनयम, 2009 के तहत 25 % सीटों पर

अरक्षण अरम्भ करने की िैधता को ईच्चतम न्यायालय द्वारा बनाये रखा गया। आस वनणाय में
ईच्चतम न्यायालय द्वारा वनम्नवलवखत तका ददये गए:
o वशक्षा को विशुद्ध रूप से व्यािसावयक ईद्यम के रूप में नहीं माना जा सकता।
o ऄनुच्छेद 21A राज्य पर एक दावयत्ि है।

o वशक्षा का ऄवधकार, संस्था के वन्द्रत ऄवधवनयम के ऄपेक्षा एक बाल कें दद्रत ऄवधवनयम है।

5.4.3. ऄनु च्छे द 15 और सामावजक प्रगवत

 ऄनुच्छेद 14 विवध के समक्ष समता को स्थावपत करता है, दकन्तु ऄसमानता के ऐवतहावसक तथ्य

िंवचत समूहों के वलए विशेष ईपचार की अिश्यकता पर बल देते हैं। ऄतः ऄनुच्छेद 15 में समाज

में हावशये पर रहने िाले िगों के पक्ष में प्रािधान पहले से ही मौजूद हैं।
 शैवक्षक और ऄन्य सुविधाओं के सन्दभा में ऄनुसूवचत जावत/ऄनुसवू चत जनजावत और ऄन्य वपछड़ा
िगा के ईम्मीदिारों के पक्ष में ऄवधमानी (Preferantial) व्यिहार, ऄनुच्छेद 15 पर अधाररत

सामावजक सुधार का ही एक रूप है। दूसरी ओर, ईच्चतम न्यायालय ने सामान्य सामावजक कल्याण

को ध्यान में रखते हुए, मंडल िाद में, अरक्षण को 50% तक सीवमत करते हुए संतुलन स्थावपत

दकया है। आसके ऄवतररि, सामावजक-अर्मथक रूप से वपछड़े िगों से संबंवधत िाद में, ईच्चतम

न्यायालय ने क्रीमी लेयर का प्रािधान प्रस्तुत दकया है।


 ऄनुच्छेद 15 के अधार पर मवहलाओं और ईनकी सामावजक प्रगवत के सन्दभा में, वनम्नवलवखत

अिश्यकताओं पर ध्यान ददया जाना चावहए:


o न्यायालय ने अपरावधक कानून (Criminal Law) और प्रदक्रयात्मक कानून (Procedural

Law) में मवहलाओं के पक्ष में दकये गए प्रािधानों को ईनकी सामावजक वनबालता को देखते

हुए स्िीकार कर वलया है।


o विशाखा बनाम राजस्थान राज्य िाद (1997) में ईच्चतम न्यायालय ने कायास्थल पर यौन

ईत्पीड़न को समाि करने के वलए ईपाय सुझाए क्योंदक ऐसा ईत्पीड़न ऄनुच्छेद 14, 15, और

21 का ईल्लंघन करता है।

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5.5. ऄनु च्छे द 16 - लोक वनयोजन के विषय में ऄिसर की समता का ऄवधकार

मूल पाठ
लोक वनयोजन के विषय में ऄिसर की समता-
1. राज्य के ऄधीन दकसी पद पर वनयोजन या वनयुवि से सम्बंवधत विषयों में सभी नागररकों के वलए
ऄिसर की समता होगी।
2. राज्य के ऄधीन दकसी वनयोजन या पद के सम्बन्ध में के िल धमा, मूलिंश, जावत, ललग, ईद्भि,

जन्मस्थान, वनिास या आनमें से दकसी के अधार पर न तो कोइ नागररक ऄपात्र होगा और न ही


ईससे विभेद दकया जाएगा।
3. आस ऄनुच्छेद की कोइ बात संसद को कोइ ऐसी विवध बनाने से वनिाररत नहीं करे गी, जो दकसी
राज्य या संघ राज्य क्षेत्र की सरकार के या ईसमें के दकसी स्थानीय या ऄन्य प्रावधकारी के ऄधीन
िाले, दकसी िगा या िगों के पद पर वनयोजन या वनयुवि के सम्बन्ध में, ऐसे वनयोजन या वनयुवि

से पहले, ईस राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के भीतर वनिास विषयक कोइ ऄपेक्षा विवहत करती है।

4. आस ऄनुच्छेद की कोइ बात राज्य को वपछड़े हुए नागररकों के दकसी िगा के पक्ष में, वजनका

प्रवतवनवधत्ि राज्य की राय में राज्य के ऄधीन सेिाओं में पयााि नहीं है, वनयुवियों या पदों के
अरक्षण के वलए ईपबंध करने से वनिाररत नहीं करे गी।
(4-A) आस ऄनुच्छेद की कोइ बात राज्य को ऄनुसूवचत जावतयों और जनजावतयों के पक्ष में,

वजनका प्रवतवनवधत्ि राज्य की राय में राज्य के ऄधीन सेिाओं में पयााि नहीं है, राज्य के ऄधीन

सेिाओं में, दकसी िगा के ऄनुिती िररष्ठता के साथ प्रोन्नवत के मामलों में, अरक्षण के वलए ईपबंध
करने से वनिाररत नहीं करे गी।
(4-B) आस ऄनुच्छेद की कोइ बात राज्य को दकसी िषा में दकन्हीं न भरी गयी ऐसी ररवियों को,

जो खंड 4 या खंड 4(A) के ऄधीन दकये गए अरक्षण के वलए दकसी ईपबंध के ऄनुसार ईस िषा में

भरी जाने के वलए अरवक्षत हैं, दकसी ईिरिती िषा या िषों में भरे जाने के वलए पृथक िगा की
ररवियों के रूप में विचार करने से वनिाररत नहीं करे गी और ऐसे िगा की ररवियों पर ईस िषा की
ररवियों के साथ, वजसमें िे भरी जा रही हैं, ईस िषा की ररवियों की कु ल संख्या के सम्बन्ध में
पचास प्रवतशत अरक्षण की ऄवधकतम सीमा का ऄिधारण करने के वलए विचार नहीं दकया
जायेगा।
5. आस ऄनुच्छेद की कोइ बात दकसी ऐसी विवध के प्रितान पर प्रभाि नहीं डालेगी जो यह ईपबंध
करती है दक दकसी धार्ममक या साम्प्रदावयक संस्था के कायाकलाप से सम्बंवधत कोइ पदधारी या
ईसके शासी वनकाय का कोइ सदस्य दकसी विवशष्ट धमा का मानने िाला या विवशष्ट सम्प्रदाय का
ही हो।
वििरण
 ऄनुच्छेद 16(2) में ईवल्लवखत है दक राज्य धमा, मूलिंश, जावत, ललग, ईद्भि, जन्मस्थान और

वनिास स्थान के अधार पर लोक वनयोजन के विषय में भेदभाि नहीं कर सकता है। दकन्तु, राज्य

ऄन्य अधारों पर भेदभाि करने के वलए स्ितंत्र है। ध्यान देने योग्य है दक यह ईपखण्ड, ऄनुच्छेद

15 में वनर्ददष्ट अधारों में दो और अधारों को जोड़ता है- ईद्भि और वनिास।

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 वनिास अरक्षण का अधार नहीं हो सकता है। हालांदक, ऄनुच्छेद 16(3) एक ऄपिाद है। राज्य या

के न्द्र शावसत प्रदेश के िल ऄपने वनिावसयों के वलए कु छ पदों को अरवक्षत कर सकते है, हालांदक
के िल संसद आस सम्बन्ध में कानून बनाने में सक्षम है।
 ऄनुच्छेद 16(4) राज्य को दकन्हीं वपछड़े िगों के पक्ष में लोक वनयोजन में अरक्षण प्रदान करने के
वलए सक्षम बनाता है। वपछड़ा िगा में ऄनुसूवचत जावत/ऄनुसूवचत जनजावतयों और सामावजक और
शैवक्षक रूप से वपछड़े िगा या ऐसा कोइ भी िगा शावमल दकया जा सकता है, वजसे राज्य वपछड़ा

हुअ मानता हो। आस प्रकार, सकारात्मक कारा िाइ की संभािना ऄनुच्छेद 15 की ऄपेक्षा ऄनुच्छेद

16 में व्यापक है।

 ऄनुच्छेद 16(5) दकसी धार्ममक व्यिस्था के कु छ पदों के सम्बन्ध में धमा के अधार पर भेदभाि का
प्रािधान करता है।

5.5.1. मं ड ल अयोग और ईसके बाद

मंडल अयोग को 1979 में जनसंख्या के सामावजक एिं शैवक्षक रूप से वपछड़े िगों की जांच करने और

ईनकी ईन्नवत के वलए ईपाय सुझाने हेतु ऄनुच्छेद 340 के तहत गरठत दकया गया था। अयोग ने

जनसंख्या के लगभग 52% भाग को वपछड़ा हुअ माना। 1990 में िी.पी. लसह सरकार ने ‘ऄन्य वपछड़े

िगों (OBC)’ के वलए सरकारी नौकररयों में 27% अरक्षण प्रदान दकया।

आं ददरा साहनी बनाम भारत संघ िाद (1992) में ईच्चतम न्यायालय द्वारा ऄन्य वपछड़े िगों के वलए
अरक्षण देने की सरकार की नीवत को सही ठहराया गया। यह मंडल िाद के रूप में प्रवसद्ध है। आस
वनणाय के तहत:
 न्यायालय ने वनणाय ददया दक ऄनु. 16(4), ऄनु. 16(1) का विरोधी नहीं है। दोनों एक ही क्षेत्र में

कायारत है। आसी अधार पर न्यायालय ने 27 प्रवतशत अरक्षण को िैध माना।

 अरक्षण के िल प्रिेश के स्तर पर ददया जायेगा, पदोन्नवत पर नहीं।

 एक िषा में अरक्षण 50% से ऄवधक नहीं होगा।


 आसमें क्रीमीलेयर से सम्बंवधत लोगो को अरक्षण से बाहर रखने का वसद्धांत ददया गया।
 आसने अरक्षण में दकसी जावत को शावमल करने या ईसे बाहर करने के मापदंडों के विषय में वनणाय
लेने के वलए सरकार को एक सांविवधक वनकाय (राष्ट्रीय वपछड़ा िगा अयोग) के गठन का वनदेश
ददया।
प्रोन्नवत में अरक्षण का मुद्दा
 77िां संविधान संशोधन के द्वारा ऄनु. 16 में एक नया खण्ड 4(a) ऄंतःस्थावपत दकया गया। आसके
द्वारा पदोन्नवत में अरक्षण को िैध बनाया गया
 िीरपाल लसह बनाम भारत संघ िाद (1995) में न्यायालय ने कहा था दक ऄनुसूवचत जावत एिं
जनजावत को प्रोन्नवत में अरक्षण नहीं ददया जाएगा।
 85िां संविधान संशोधन द्वारा न्यायालय के आस वनणाय को वनष्प्रभािी बनाया गया।

 नागराज िाद में, 85िें संविधान संशोधन की िैधता पर प्रश्न दकया गया। ईच्चतम न्यायालय द्वारा
कहा गया दक संशोधन ने संविधान के मूल ढांचे का ईल्लंघन नहीं दकया। ईच्चतम न्यायालय ने तीन
और ददशा वनदेश ददए:

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o यह ध्यान रखना होगा दक वजस िगा के वलए पदोन्नवत में अरक्षण की मांग की है, ईस िगा का
पयााि प्रवतवनवधत्ि नहीं हो।
o सरकार द्वारा सत्यापनीय अंकड़े प्रदान दकए जाने चावहए।
o ऄनुच्छेद 335 के ऄंतगात, आससे प्रशासन की दक्षता प्रभावित नहीं होनी चावहए।
 ऄवखल भारतीय अयुर्मिज्ञान संस्थान िै कल्टी एसोवसएशन बनाम भारत संघ (2013) िाद में
ईच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ ने िै सला सुनाया दक कु छ ऐसे काया हैं वजसके वलए
के िल योग्यता एकमात्र मापदंड (सुपर स्पेशवलटी पदों हेतु) होनी चावहए। कें द्र सरकार ने आस
वनणाय के विरुद्ध यावचका दायर की और समीक्षा यावचका की सुनिाइ के दौरान एक पांच
सदस्यीय पीठ ने यह वनणाय ददया दक सरकार, संकाय के सुपर स्पेशवलटी पदों में अरक्षण हेतु
संविधान में संशोधन के वलए स्ितंत्र है। आस सन्दभा में न्यायालय का पूिा वनणाय, ऐसे पदों पर
अरक्षण के वलए सरकार के वनणाय लेने की स्ितंत्रता पर कोइ प्रवतबन्ध नहीं लगाता।
 न्यायमूर्मत टीएस ठाकु र एिं न्यायमूर्मत अर भानुमवत की खंडपीठ ने एस. पन्नीरसेल्िम एिं ऄन्य
बनाम तवमलनाडु (वसविल ऄपील) तथा ऄन्य यावचकाओं को स्िीकार करते हुए एससी/एसटी को
प्रोन्नवत में अरक्षण और पररणामी िररष्ठता के मामले में मद्रास हाइकोटा का अदेश वनरस्त कर
ददया। खंडपीठ ने कहा दक वनयमों में पररणामी िररष्ठता का कोइ प्रािधान न होने के कारण ‘कै च
ऄप रूल्स’ लागू होगा।
प्रयोजनीयता
 लोक वनयोजन के विषय में ऄिसर की समानता का ऄवधकार के िल भारतीय नागररकों के वलए
ईपलब्ध है।
5.6. ऄनु च्छे द 17 - ऄस्पृ श्यता का ऄं त

मूल पाठ
ऄस्पृश्यता का ऄंत .- "ऄस्पृश्यता" का ऄंत दकया जाता है और ईसका दकसी भी रूप में अचरण वनवषद्ध
दकया जाता है। "ऄस्पृश्यता" से ईपजी दकसी वनयोग्यता को लागू करना ऄपराध होगा जो विवध के
ऄनुसार दंडनीय होगा।
वििरण
ऄस्पृश्यता हमारे देश में सभी रूपो में वनवषद्ध है। ईल्लेखनीय है दक संविधान ने 'ऄस्पृश्यता' शब्द को
पररभावषत नहीं दकया है। ऄनुच्छेद 35 के तहत, संसद द्वारा आस ईपबंध को लागू करने के वलए वनम्न
ऄवधवनयम बनाये गए हैं:
5.6.1. ऄस्पृ श्यता की समावि के वलये विवभन्न ऄवधवनयम

नागररक ऄवधकार संरक्षण ऄवधवनयम, 1955


ऄस्पृश्यता (ऄपराध) ऄवधवनयम, 1955 को 1976 में संशोवधत करते हुए आसे नागररक ऄवधकार
संरक्षण ऄवधवनयम का नाम ददया गया। यह ऄस्पृश्यता विरोधी प्रािधानों को और सशि करता है।
ऄस्पृश्यता एक संज्ञय
े (ऄथाात पुवलस ऄवधकारी, मवजस्ट्रेट िारं ट के वबना अरोपी को वगरफ्तार कर
सकते हैं) तथा गैर-ऄप्रशम्य/समाधेय (non-compoundable) (ऄथाात ऐसे िाद वजन्हें िापस नहीं
वलया जा सकता भले ही दोनों पक्षों में समझौता हो चुका हो; आन मामलों में राज्य एक पक्ष बन जाता
है) ऄपराध है। यह क़ानून त्िररत सुनिाइ के वलए एक विशेष ऄदालत का प्रािधान करता है।
ऄनुसूवचत जावत और ऄनुसूवचत जनजावत समुदाय को न्याय प्रदान करने एिं ईत्पीड़न के वशकार लोगों
को राहत, पुनिाास ईपलब्ध कराने के साथ ही, ईनको गररमा के साथ जीने का ऄवधकार प्रदान करने के
वलये ऄनुसवू चत जावत और ऄनुसवू चत जनजावत (ऄत्याचार वनिारण) ऄवधवनयम, 1989 पाररत दकया
गया।

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ऄनुसवू चत जावत और ऄनुसवू चत जनजावत (ऄत्याचार वनिारण) संशोधन ऄवधवनयम, 2015 का


ईद्द्द्देश्य ऄनुसूवचत जावत और ऄनुसूवचत जनजावत के वखलाि ऄत्याचार की रोकथाम तथा आसके
वलए और ऄवधक कठोर प्रािधानों को सुवनवित करना है। यह ऄवधवनयम प्रधान ऄवधवनयम में एक
संशोधन है और ऄनुसूवचत जावत और ऄनुसूवचत जनजावत (ऄत्याचार वनिारण) ऄवधवनयम,1989 के
साथ संशोधन प्रभािों के साथ लागू दकया गया है। आसके ऄंतगात वनम्नवलवखत प्रािधान दकये गए है:
1. ऄपराधों की विस्तृत सीमा: ऄनुसूवचत जावतयों और ऄनुसूवचत जनजावतयों के विरुद्ध दकए जाने
िाले नए ऄपराधों में ऄनुसवू चत जावत तथा ऄनुसूवचत जनजावत के लोगों के वसर और मूछ ं की
बालों का मुंडन कराने और आसी तरह ऄनुसूवचत जावतयों और जनजावतयों के लोगों के सम्मान के
विरुद्ध दकए गए कृ त हैं। ऄत्याचारों में समुदाय के लोगों को जूते की माला पहनाना, ईन्हें लसचाइ
सुविधाओं तक जाने से रोकना या िन ऄवधकारों से िंवचत करके रखना, मानि और पशु कं काल
को वनपटाने और लाने-ले जाने के वलए बाध्य करना, कि खोदने के वलए बाध्य करना, वसर पर
मैला ढोने की प्रथा का ईपयोग और ऄनुमवत देना, ऄनुसूवचत जावतयों और ऄनुसूवचत जनजावतयों
की मवहलाओं को देिदासी के रूप में समर्मपत करना, जावत सूचक गाली देना, जादू-टोना
ऄत्याचार को बढ़ािा देना, सामावजक और अर्मथक बवहष्कार करना, चुनाि लड़ने में ऄनुसूवचत
जावतयों और ऄनुसूवचत जनजावतयों के ईम्मीदिारों को नामांकन दावखल करने से रोकना,
ऄनुसूवचत जावतयों और ऄनुसूवचत जनजावतयों की मवहलाओं का िस्त्र हरण कर अहत करना,
ऄनुसूवचत जावतयों और ऄनुसवू चत जनजावतयों के दकसी सदस्य को घर, गांि और अिास छोड़ने
के वलए बाध्य करना, ऄनुसूवचत जावतयों और ऄनुसूवचत जनजावतयों के पूज्नीय िस्तुओं को
विरुवपत करना, ऄनुसूवचत जावतयों और ऄनुसवू चत जनजावतयों के सदस्य के विरुद्ध यौन
दुव्यािहार करना, यौन दुव्यािहार भाि से ईन्हें छू ना और भाषा का ईपयोग करना है।
2. अहत करना और धमकाना: ऄनुसूवचत जावतयों और ऄनुसूवचत जनजावतयों के सदस्य को अहत
करने, ईन्हें दुखद रूप से अहत करने, धमकाने और ईपहरण करने जैसे ऄपराधों को, वजनमें 10
िषा के कम की सजा का प्रािधान है, ईन्हें ऄत्याचार वनिारण ऄवधवनयम में ऄपराध के रूप में
शावमल करना। ऄभी ऄत्याचार वनिारण ऄवधवनयम के तहत ऄनुसूवचत जावत और जनजावत के
लोगों पर दकए गए ऄत्याचार मामलों में 10 िषा और ईससे ऄवधक की सजा िाले ऄपराधों को ही
ऄपराध माना जाता है ।
3. मामलों का तेजी से वनपटान: मामलों को तेजी से वनपटाने के वलए ऄत्याचार वनिारण ऄवधवनयम
के ऄंतगात अने िाले ऄपराधों में विशेष रूप से मुकदमा चलाने के वलए विशेष ऄदालतें बनाना
और विशेष लोक ऄवभयोजक को वनर्ददष्ट करना।
4. प्रत्यक्ष संज्ञान लेने की शवि: विशेष ऄदालतों को ऄपराध का प्रत्यक्ष संज्ञान लेने की शवि प्रदान
करना और जहां तक संभि हो, अरोप पत्र दावखल करने की वतवथ से दो महीने के ऄंदर सुनिाइ
पूरी करना।
5. ऄवतररि ऄध्याय: पीवड़तों तथा गिाहों के ऄवधकारों पर ऄवतररि ऄध्याय शावमल करना अदद।
6. जानबूझकर कर की गइ दढलाइ की स्पष्ट पररभाषा: वशकायत दजा होने से लेकर एिं ऄवधवनयम के
ऄंतगात काया की ईपेक्षा के अयामों को लेते हुए हर स्तर के सरकारी कमाचाररयों के वलए
'जानबूझकर कर की गइ दढलाइ' पद की स्पष्ट पररभाषा तय करना।
7. ऄपराध की ऄन्य प्रकल्पनाएं: ऄपराधों में प्रकल्पनाओं का शावमल दकया जाना—यदद ऄवभयुि
पीवड़त या ईसके पररिार से पररवचत है, तो जब तक आसके विपरीत वसद्ध न दकया जाए ऄदालतें
यह मानेंगी दक ऄवभयुि पीवड़त की जावत ऄथिा जनजातीय पहचान के बारे में जानता था।

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5.7. ऄनु च्छे द 18 - ईपावधयों का ऄं त

मूल पाठ
1. राज्य सेना या विद्या सम्बन्धी सम्मान के वसिाय और कोइ ईपावध प्रदान नहीं करे गा।
2. भारत का कोइ नागररक दकसी विदेशी राज्य से कोइ ईपावध स्िीकार नहीं करे गा।
3. कोइ व्यवि जो भारत का नागररक नहीं है, राज्य के ऄधीन लाभ या विश्वास के दकसी पद को
धारण करते हुए दकसी विदेशी राज्य से कोइ ईपावध राष्ट्रपवत की सहमवत के वबना स्िीकार नहीं
करे गा ।
4. राज्य के ऄधीन लाभ या विश्वास का पद धारण करने िाला कोइ व्यवि दकसी विदेशी राज्य से या
ईसके ऄधीन दकसी रूप में कोइ भेंट, ईपलवब्ध या पद राष्ट्रपवत की सहमवत के वबना स्िीकार नहीं
करे गा।
वििरण
 यह राज्य, नागररकों और गैर-नागररकों के ऄवधकारों पर एक प्रवतबन्ध अरोवपत करता है। राज्य
सैन्य या शैक्षवणक ईपावध को छोड़कर कोइ ऄन्य ईपावध प्रदान नहीं करे गा। भारत के दकसी
नागररक को दकसी विदेशी राज्य से कोइ ईपावध स्िीकार करने की ऄनुमवत नहीं है। भारतीय
राज्य के ऄधीन लाभ या विश्वास का पद धारण करने िाले विदेशी नागररक को राष्ट्रपवत की
ऄनुमवत के वबना दकसी विदेशी राज्य से दकसी भी प्रकार की ईपावध, भेंट, ईपलवब्ध या पद
स्िीकार करने की ऄनुमवत नहीं है।
भारत रत्न और पद्म पुरस्कारों से सम्बंवधत िाद
 बालाजी राघिन िाद में, ईच्चतम न्यायालय ने राज्य को भारत रत्न और पद्म पुरस्कार देने की
ऄनुमवत प्रदान की है, दकन्तु साथ ही यह स्पष्ट दकया है दक आन्हें नाम के प्रत्यय या ईपसगा के तौर
पर आस्तेमाल नहीं दकया जा सकता।
5.8. ऄनु च्छे द 19 - स्ितं त्र ता का ऄवधकार

मूल पाठ

वाक् ‌-स्वातंत्र्य‌आदि‌ववषयक‌कुछ‌अधिकारों‌का‌संरक्षण-

1. सभी नागररकों को--


(a) िाक् एिं ऄवभव्यवि स्ितंत्रता का,
(b) शांवतपूिाक और वनरायुध सम्मेलन का,
(c) संगठन या संघ बनाने का,
(d) भारत के राज्यक्षेत्र में सिात्र ऄबाध संचरण का,
(e) भारत के राज्यक्षेत्र के दकसी भाग में वनिास करने और बस जाने का,
(f) *44िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1978 की धारा 2 द्वारा लोप दकया गया द्वारा
(g) कोइ िृवि, ईपजीविका, व्यापार या कारोबार करने का…..ऄवधकार होगा।
2. खंड (1) के ईपखंड (a) की कोइ बात ईि ईपखंड द्वारा ददए गए ऄवधकार के प्रयोग पर भारत की
प्रभुता और ऄखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूणा संबंधों, लोक व्यिस्था,
वशष्टाचार या सदाचार के वहतों में ऄथिा न्यायालय-ऄिमान, मानहावन या ऄपराध-ईद्दीपन के संबंध
में युवियुि वनबांधन जहाँ तक कोइ विद्यमान विवध ऄवधरोवपत करती है िहाँ तक ईसके प्रितान पर
प्रभाि नहीं डालेगी या िैसे वनबांधन ऄवधरोवपत करने िाली कोइ विवध बनाने से राज्य को वनिाररत
नहीं करे गी।

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3. ईि खंड के ईपखंड (b) की कोइ बात ईि ईपखंड द्वारा ददए गए ऄवधकार के प्रयोग पर, भारत की
प्रभुता और ऄखंडता या लोक व्यिस्था के वहतों में युवियुि वनबान्धन जहाँ तक कोइ विद्यमान विवध
ऄवधरोवपत करती है िहाँ तक ईसके प्रितान पर प्रभाि नहीं डालेगी या िैसे वनबान्धन ऄवधरोवपत करने
िाली कोइ विवध बनाने से राज्य को वनिाररत नहीं करे गी।
4. ईि खंड के ईपखंड (c) की कोइ बात ईि ईपखंड द्वारा ददए गए ऄवधकार के प्रयोग पर भारत की
प्रभुता और ऄखंडता या लोक व्यिस्था या सदाचार के वहतों में युवियुि वनबान्धन, जहाँ तक कोइ
विद्यमान विवध ऄवधरोवपत करती है, िहाँ तक ईसके प्रितान पर प्रभाि नहीं डालेगी या िैसे वनबान्धन
ऄवधरोवपत करने िाली कोइ विवध बनाने से राज्य को वनिाररत नहीं करे गी।
5.ईि खंड के ईपखंड (d) और (e) की कोइ बात ईि ईपखंडों द्वारा ददए गए ऄवधकारों के प्रयोग पर
साधारण जनता के वहतों में या दकसी ऄनुसूवचत जनजावत के वहतों के संरक्षण के वलए युवियुि
वनबान्धन जहाँ तक कोइ विद्यमान विवध ऄवधरोवपत करती है िहाँ तक ईसके प्रितान पर प्रभाि नहीं
डालेगी या िैसे वनबान्धन ऄवधरोवपत करने िाली कोइ विवध बनाने से राज्य को वनिाररत नहीं करे गी।
6. ईि खंड के ईपखंड (g) की कोइ बात ईि ईपखंड द्वारा ददए गए ऄवधकार के प्रयोग पर साधारण
जनता के वहतों में युवियुि वनबान्धन जहाँ तक कोइ विद्यमान विवध ऄवधरोवपत करती है िहाँ तक
ईसके प्रितान पर प्रभाि नहीं डालेगी या िैसे वनबान्धन ऄवधरोवपत करने िाली कोइ विवध बनाने से
राज्य को वनिाररत नहीं करे गी और विवशष्टतया ईि ईपखंड की कोइ बात--
(i) कोइ िृवि, ईपजीविका, व्यापार या कारोबार करने के वलए अिश्यक िृविक या तकनीकी ऄहाताओं
से, या

(ii) राज्य द्वारा या राज्य के स्िावमत्ि या वनयंत्रण में दकसी वनगम द्वारा कोइ व्यापार, कारोबार, ईद्योग
या सेिा, नागररकों का पूणत
ा ः या भागतः ऄपिजान करके या ऄन्यथा, चलाए जाने से,

जहाँ तक कोइ विद्यमान विवध संबंध रखती है िहाँ तक ईसके प्रितान पर प्रभाि नहीं डालेगी या आस
प्रकार संबंध रखने िाली कोइ विवध बनाने से राज्य को वनिाररत नहीं करे गी।
वििरण
 संविधान के ऄनुच्छेद 19 के तहत प्रदत ऄवधकारों की प्रकृ वत सकारात्मक हैं तथा यह के िल भारत
के नागररक को प्राि हैं। प्रारं भ में आस ऄनुच्छे द के ऄंतगात नागररकों को सात स्ितंत्रताएँ प्राि थीं।
लेदकन, 44िाँ संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1978 द्वारा ऄनुच्छेद 19(1)(f) (सम्पवि के ऄजान,
धारण और व्ययन का ऄवधकार) समाि कर ददया गया है। ितामान में यह ऄनुच्छेद नागररकों को
छः प्रकार की स्ितंत्रताएं प्रदान करता हैं।
 ऄनुच्छेद 19 को भारतीय लोकतांवत्रक शासन की नींि कहा जाता है। हालांदक, कोइ भी स्ितंत्रता
संपूणा (अत्यंवतक) नहीं है और आन पर ‘युवियुि’ प्रवतबंध लगाकर कटौती की जा सकती है।
 युवियुि प्रवतबंध के िल कानून के प्रावधकार द्वारा लगाया जा सकता है, न दक कायापावलका की
कारा िाइ से (युवियुिता के वनणाय का ऄवधकार शासन को नहीं, िरन न्यायपावलका का होना
चावहए)। यह न्यावयक पुनर्मिलोकन के ऄधीन है। प्रवतबंध के िल संविधान में ईवल्लवखत अधारों
पर लगाया जा सकता है।
ऄनुच्छेद 19(1) के द्वारा वनम्नवलवखत स्ितंत्रताएं प्रदान की गयी गयी हैं:
ऄनुच्छेद 19(1)(a) - िाक् एिं ऄवभव्यवि की स्ितंत्रता
 िाक् एिं ऄवभव्यवि की स्ितंत्रता का ऄथा है प्रत्येक नागररक ऄपने विचारों और विश्वासों को
वनबााध रूप से मौवखक, वलवखत ऄथिा मुद्रण और वचत्रण के द्वारा ऄवभव्यि करने के वलए स्ितंत्र
है। सिोच्च न्यायालय ने एक मामले की सुनिाइ के दौरान ‘मौन’ (Silence) को भी ऄवभव्यवि का
रूप माना है।

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िाक् एिं ऄवभव्यवि की स्ितंत्रता

प्रवतबंध के अधार व्युत्पन्न महत्िपूणा ऄवधकार

 भारत की संप्रभुता और ऄखंडता  सूचना का ऄवधकार


 राज्य की सुरक्षा,  प्रेस की स्ितंत्रता
 एकान्तता का ऄवधकार
 विदेशी राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूणा संबंध,
 राष्ट्रीय ध्िज िहराने का ऄवधकार
 लोक व्यिस्था,
 प्रदशान एिं विरोध का ऄवधकार, लेदकन हड़ताल का
 वशष्टाचार या सदाचार
ऄवधकार नहीं
 न्यायालय की ऄिमानना,
 मौन रहने का ऄवधकार
 मानहावन; तथा
 ऄपराध-ईद्दीपन।

प्रेस की स्ितंत्रता की वस्थवत


 संयुि राज्य ऄमेररका जैसे कइ देशों के विपरीत, जहां प्रेस की स्ितंत्रता की गारं टी का ऄलग से
कोइ प्रािधान नहीं है,
 भारत में साकल पेपर वमल्स बनाम भारत संघ िाद (1962) में ईच्चतम न्यायालय ने कहा दक प्रेस

की स्ितंत्रता, ऄनुच्छेद 19(1)(a) के तहत ‘ऄवभव्यवि की स्ितंत्रता’ में सवम्मवलत है।ककतु आस


स्ितंत्रता पर भी ऄनुच्छेद 19(2) के तहत युवियुि वनबांधन लगाए जा सकते हैं।
 बृज भूषण िाद में ईच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट दकया दक मीवडया पर कोइ पूिा सेंसरवशप नहीं है,
ऄथाात,् दकसी पूिाानम
ु वत की अिश्यकता नहीं है।

 44िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1976 द्वारा ऄनुच्छेद 361A को जोड़ा गया है; जो एक
व्यवि को संसद और राज्य विधानमंडलों की कायािावहयों को प्रकावशत करने के संबंध में संरक्षण
प्रदान करता है।
 आं वडयन एक्सप्रेस िाद (1985) में, यह स्पष्ट दकया गया दक प्रेस की स्ितंत्रता में वनम्नवलवखत
सवम्मवलत हैं:
o सूचना का ऄवधकार
o प्रकावशत करने का ऄवधकार
o प्रसाररत करने का ऄवधकार
संविधान की कायाप्रणाली की समीक्षा हेतु गरठत राष्ट्रीय अयोग (NCRWC) ने वसिाररश की है दक
प्रेस की स्ितंत्रता को स्पष्ट स्िरूप प्रदान दकया जाना चावहए तथा आसे ऄवभव्यवि की स्ितंत्रता में
वनवहत मानकर, आसकी ऄिहेलना नहीं करनी चावहए।

ऄनुच्छेद: 19(1)(b) शांवतपूणा सम्मेलन की स्ितंत्रता

 ऄनुच्छेद 19(1)(b) के ऄंतगात नागररकों को शांवतपूणा और वनरायुध (without arms) सम्मेलन

करने का ऄवधकार प्रदत है। आस ऄवधकार के कारण नागररकों को सािाजवनक सभा करने, प्रदशान
करने एिं जुलस
ू वनकालने से प्रवतबंवधत नहीं दकया जा सकता है।
 आस पर भारत की प्रभुता और ऄखंडता या लोक व्यिस्था के वहत में युवियुि प्रवतबंध अरोवपत
दकये जा सकते है।

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ऄनुच्छेद: 19(1)(c) संघ या संगठन बनाने का ऄवधकार

 आसके तहत भारत के सभी नागररकों को संगम या संघ बनाने का ऄवधकार ददया गया है। यह संघ
सांस्कृ वतक, राजनीवतक, अर्मथक एिं शैक्षवणक हो सकता है। आस ऄवधकार के तहत राजनीवतक

दल, कं पवनयाँ, सहकारी संघ, मजदूर संघ, क्लब अदद बनाने की शवि प्राि होती है।

 सशस्त्र सेनाओं, पुवलस, अदद को भी संघ बनाने का ऄवधकार है, हालाँदक आन्हे के िल सांस्कृ वतक

संघ बनाने की ऄनुमवत है न की राजनीवतक संघ बनाने की।

 सरकारी ऄवधकाररयों के िाद में हड़ताल का ऄवधकार: औद्योवगक वििाद ऄवधवनयम के तहत ट्रेड

यूवनयनों को कु छ वनवित पररवस्थवतयों में, हड़ताल करने का ऄवधकार प्राि है। हालांदक, ईच्चतम

न्यायालय ने सरकारी ऄवधकाररयों के वलए कहा है दक, जब संचार के ऄन्य सभी चैनल ऄसिल हो

जाएं, के िल तभी हड़ताल का ऄवधकार एक ऄंवतम ईपाय के रूप में ईपलब्ध है। हालांदक, आसे मूल

ऄवधकारों के ऄंतगात सवम्मवलत नहीं समझा जा सकता है। ऄत: सरकार ऐसी पररवस्थवतयों में
अिश्यक सेिा रखरखाि ऄवधवनयम या एस्मा (Essential Services Maintenance Act)

लागू कर हड़ताल िापस लेने के वलए मजबूर कर सकती है।

 ईच्चतम न्यायालय ने टी.के . रं गराजन बनाम तवमलनाडु राज्य िाद (2003) में कहा है दक सरकारी

ऄवधकाररयों को हड़ताल का मूल ऄवधकार प्राि नहीं है।

ऄनुच्छेद 19(1)(d) भारत के राज्यक्षेत्र में सिात्र ऄबाध संचरण का ऄवधकार

ऄनुच्छेद 19(1)(d) के द्वारा भारत के नागररक को भारत के राज्यक्षेत्र में सिात्र ऄबाध संचरण (Free

movement) का ऄवधकार प्राि है। हालाँदक, जन-साधारण के वहत में या ऄनुसूवचत जनजावत के वहत

में ऄबाध भ्रमण (संचरण) पर युवियुि प्रवतबंध अरोवपत दकये जा सकते हैं। यह प्रवतबंध ऄनुसवू चत
जनजावत की संस्कृ वत, भाषा, रीवत-ररिाज अदद को सुरवक्षत रखने के ईद्देश्य से लगाया गया है।

ऄनुच्छेद: 19(1)(e) भारत के राज्यक्षेत्र के दकसी भाग में वनिास करने और बस जाने का ऄवधकार

 यह भारतीय नागररकों को भारत के राज्यक्षेत्र के दकसी भाग में वनिास करने और बस जाने का
ऄवधकार प्रदान करता है। विवशष्ट पररवस्थवतयों में, जन-साधारण या ऄनुसूवचत जावत के वहत मे,

आस पर युवियुि प्रवतबंध अरोवपत दकये जा सकते हैं। यह देश के अंतररक ऄिरोधों को समाि

कर राष्ट्रिाद को प्रोत्सावहत करता है।


 जम्मू-कश्मीर राज्य में भारत के दूसरे प्रांत के लोगों को ऄचल संपवि खरीदने ऄथिा स्थायी रूप से
बसने की छू ट नहीं है।
19(1)(d) और 19(1)(e) पर अरोवपत प्रवतबन्ध

 19(1)(d) भारतीय नागररकों को देश के राज्यक्षेत्र में ऄबाध संचरण का और 19(1)(e) भारत के

राज्यक्षेत्र के दकसी भाग में वनिास करने और बसने का ऄवधकार प्रदान करता है। आन ऄवधकारों के
प्रदान करने का अधार भारत का ‘एकल क्षेत्र’ होने की संकल्पना पर अधाररत है।

 दोनों ऄनुच्छेद परस्पर संबद्ध हैं तथा िास्ति में एक-दूसरे का ऄनुसरण करते हैं। वनम्नवलवखत कु छ
प्रवतबन्ध हैं, जो आन पर अरोवपत हैं:

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o लोक व्यिस्था बनाए रखने के वलए: यदद ऄवधकाररयों को संदह


े है दक दकसी व्यवि के संचरण
से एक क्षेत्र में लोक व्यिस्था में खतरा ईत्पन्न होने की संभािना है, तो ईसके आस ऄवधकार पर

प्रवतबंध लगाया जा सकता है। हालांदक, यह प्रवतबंध दमनकारी या मनमाना नहीं हो सकता।
o सुरक्षा कारणों के वलए: दो पवहया िाहन सिारों के वलए हेलमेट वनधााररत दकया जा सकता
है।
o दकसी राज्यक्षेत्र से नागररक के विरुद्ध वनष्कासन का अदेश, यदद ईसे एक ऄसामावजक तत्ि

माना जाता है। ईदाहरण के वलए, एक व्यवि को राज्य से वनष्कावसत दकया जा सकता है यदद
िह दकसी िाद में गिाह को डरा-धमका/भयभीत कर रहा हो।
o ऄनुसूवचत जनजावतयों के वहतों के संरक्षण हेतु।

ऄनुच्छेद 19(1)(f) के तहत भारत के नागररक को संपवि के ऄजान, धारण और व्ययन का ऄवधकार

प्राि था। सामावजक और अर्मथक समानता लाने के ईद्देश्य से आस ऄनुच्छेद को 44िाँ संविधान

ऄवधवनयम, 1978 द्वारा मूल ऄवधकार से हटा ददया गया है। आसे ऄनुच्छेद 300A में सामान्य कानूनी
ऄवधकार के तहत रखा गया है।
ऄनुच्छेद: 19(1)(g) कोइ िृवि, ईपजीविका, व्यापार या कारोबार करने का ऄवधकार

 ऄनुच्छेद 19(1)(g) भारत के सभी नागररकों को कोइ भी िृवि (Profession), ईपजीविका

(Occupation), व्यापार या कारोबार (Business) करने का ऄवधकार प्रदत करता है। हालाँदक

राज्य जनवहत में आस ऄवधकार पर युवियुि प्रवतबंध लगा सकती है, जैस-े नशीली दिाओं या

शराब जैसे ऄवहतकर, जोवखमभरी और खतरनाक चीजों का व्यापार करने पर कु छ प्रवतबंध है।

 राज्य दकसी िृवि या कारोबार के वलए अिश्यक िृविक (Professional) या तकनीकी ऄहाता

(Technical qualifications) वनधााररत कर सकता है।

राष्ट्रीय अपातकाल का ऄनुच्छेद 19 के तहत प्रदि ऄवधकारों पर प्रभाि

 यदद अपातकाल की घोषणा बाह्य अक्रमण के अधार पर की गइ हो तो ऄनुच्छेद 19 स्ितः

वनलंवबत हो जाता है और अपातकाल जारी रहने तक वनलंवबत रहता है। हालांदक, 44िें संविधान

संशोधन के पिात्, यदद अपातकाल सशस्त्र विद्रोह के अधार पर घोवषत दकया गया है, तो आसे
वनलंवबत नहीं दकया जा सकता है।
नोट: ऄनुच्छेद 19 के तहत प्रदि ऄवधकार के िल भारतीय नागररकों को ईपलब्ध हैं।

5.9. ऄनु च्छे द 20- ऄपराधों के वलए दोषवसवद्ध के सं बं ध में सं र क्षण

मूल पाठ
1. कोइ व्यवि दकसी ऄपराध के वलए तब तक दोषवसद्ध नहीं ठहराया जाएगा, जब तक दक ईसने
ऐसा कोइ काया करने के समय, जो ऄपराध के रूप में अरोवपत है, दकसी प्रिृि विवध का
ऄवतक्रमण नहीं दकया है या ईससे ऄवधक शावस्त का भागी नहीं होगा जो ईस ऄपराध के दकए
जाने के समय प्रिृि विवध के ऄधीन ऄवधरोवपत की जा सकती थी।
2. दकसी व्यवि को एक ही ऄपराध के वलए एक बार से ऄवधक ऄवभयोवजत और दंवडत नहीं दकया
जाएगा।
3. दकसी ऄपराध के वलए ऄवभयुि दकसी व्यवि को स्ियं ऄपने विरुद्ध साक्षी होने के वलए बाध्य नहीं
दकया जाएगा।

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वििरण
 ऄनुच्छेद 20(1) यह प्रािधान करता है दक कोइ भी अपरावधक विवध भूतलक्षी प्रभाि से
ऄवधवनयवमत नहीं की जा सकती। दकसी ऄपराधी को के िल ऄपराध दकए जाने के समय में
ऄवधरोवपत कानून द्वारा ही दंवडत दकया जा सकता है। के दारनाथ बनाम पविम बंगाल िाद
(1954) में ईच्चतम न्यायालय ने वनणाय ददया दक जब विधानमंडल दकसी काया को ऄपराध घोवषत
करता है या दकसी ऄपराध के दण्ड का ईपबंध करता है तो िह विवध को भूतलक्षी बनाकर ईन
व्यवियों पर प्रवतकू ल प्रभाि नहीं डाल सकता वजन्होंने ईस विवध के ऄवधवनयवमत होने के पूिा
ऄपराध दकये थे। हालांदक, आस तरह के संरक्षण के िल अपरावधक कानूनों के सन्दभा में ददए गए हैं,
नागररक कानूनों के सन्दभा में नहीं।
 ऄनुच्छेद 20(2) दोहरे जोवखम से सुरक्षा प्रदान करता है। आसके ऄनुसार एक व्यवि को एक ही
ऄपराध के वलए एक बार से ऄवधक ऄवभयोवजत और दंवडत नहीं दकया जाएगा। हालांदक, यह
वसद्धांत के िल तब लागू होता है जब कायािावहयाँ न्यायालय ऄथिा न्यावयक ऄवधकरण के समक्ष
हों। विभागीय जाँच ऄथिा ऄनुशासनात्मक कायािावहयाँ आस वसद्धांत का ईल्लंघन नहीं मानी
जाती। ईल्लेखनीय है दक संविधान के िल एक ही ऄपराध के वलए दोहरा दंड िर्मजत करता है। एक
ऄपराध के वलए दोषवसद्ध ठहराए जाने के बाद भी दकसी ऄन्य ऄपराध के सम्बन्ध में दंड ददया जा
सकता है। यदद एक ही ऄवधवनयम की विवभन्न धाराओं के तहत विवभन्न ऄपराध दकये गए हों तो
संविधान ईनके वलए पृथक विचारण पर रोक नहीं लगाता।
 ऄनुच्छेद 20(3), दकसी ऄपराध के सम्बन्ध में ऄवभयुि को स्ियं ऄपने विरुद्ध गिाही देने के
विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता है। प्रत्येक व्यवि को स्ियं का बचाि करने का ऄवधकार है। यह
ऄवधकार प्राकृ वतक व्यवियों को भी है और वनगमों को भी। यह संरक्षण दकसी न्यायालय या
न्यावयक प्रावधकरण के समक्ष दांवडक कायािावहयों तक सीवमत है तथा वसविल कायािावहयों एिं
ऐसी कायािावहयों पर लागू नहीं होता जो दांवडक प्रकृ वत की नहीं है। सेल्िी बनाम कनााटक राज्य
िाद में ईच्चतम न्यायालय ने नाको एनावलवसस और िेन मैलपग पर प्रवतबंध लगा ददया। हालांदक,
डीएनए परीक्षण और ऄन्य सैंपल एकत्र दकये जा सकते हैं।
 यह ऄनुच्छेद सभी व्यवियों पर लागू होता है चाहे िह भारतीय नागररक हो या विदेशी।

5.10. ऄनु च्छे द 21- प्राण और दै वहक स्ितं त्र ता का ऄवधकार

मूल पाठ
दकसी व्यवि को ईसके प्राण या दैवहक स्ितंत्रता से विवध द्वारा स्थावपत प्रदक्रया के ऄनुसार ही िंवचत
दकया जाएगा, ऄन्यथा नहीं।
वििरण:
 आसके ऄंतगात प्रत्येक भारतीय को न वसिा जीिन बवल्क गररमापूिाक जीिन का ऄवधकार प्रदान
दकया गया है। ऄतः जीिन के ऄवधकार में िे सभी अयाम सवम्मवलत हैं वजनसे मनुष्य का जीिन
साथाक, सम्पूणा और जीने योग्य बनता है।
 ऄनुच्छेद 21 के ऄंतगात व्यवि को ईसके प्राण या दैवहक स्ितंत्रता से विवध द्वारा स्थावपत प्रदक्रया
के ऄनुसार ही िंवचत दकया जायेगा ऄन्यथा नहीं ऄथाात यह ऄनुच्छेद राज्य की मनमानी शवियों
पर एक प्रवतबंध अरोवपत करता है। राज्य एक सुवनवित प्रदक्रया के ऄनुसार ही दकसी व्यवि को
ईसके जीिन की स्ितंत्रता से िंवचत कर सकता है।
 विवध द्वारा स्थावपत प्रदक्रया (Procedure established by law) विरटश परं परा से ली गइ है।
आसके ऄंतगात यह जाँच दकया जाता है दक क्या कानून प्रदक्रयागत रूप से सही है। हालांदक,
न्यायपावलका को आस कानून के ईद्देश्यों को चुनौती देने की ऄनुमवत नहीं है। िहीं दूसरी ओर विवध
की सम्यक प्रदक्रया (Due process of law) ऄमेररकी न्यायपावलका की एक ऄवभव्यवि है।
वजसके ऄंतगात न्यायपावलका कानून को न के िल प्रदक्रयात्मक अधार पर बवल्क आसके औवचत्य के
अधार पर भी चुनौती दे सकती है।

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ए.के . गोपालन िाद (1950) एिं मेनका गांधी िाद (1978)


 गोपालन िाद में ईच्चतम न्यायालय ने यह मत व्यि दकया था दक विवध द्वारा स्थावपत प्रदक्रया के
प्रािधान को ऄपनाकर हमारे संविधान के ऄनुच्छेद 21 ने व्यविगत स्ितंत्रता की विरटश संकल्पना
को ऄपनाया है तथा ऄमेररका की सम्यक प्रदक्रया की संकल्पना को नहीं ऄपनाया गया है।
 ईच्चतम न्यायालय ने संविधान में विवध द्वारा स्थावपत प्रदक्रया की, गोपालन िाद (1950) में सूक्ष्म
व्याख्या की तथा घोवषत दकया दक आस ऄवधकार के तहत वसिा मनमानी कायाकारी प्रदक्रया के
विरुद्ध सुरक्षा प्राि है, न दक विधानमंडलीय प्रदक्रया के विरुद्ध। आसका ऄथा यह है दक राज्य प्राण
एिं दैवहक स्ितंत्रता के ऄवधकार को कानूनी अधार पर रोक सकता है।
 मेनका गांधी िाद (1978) में ईच्चतम न्यायालय ने स्िीकार दकया है दक, विवध द्वारा स्थावपत
प्रदक्रया विवध की सम्यक प्रदक्रया में ही वनवहत है। ईच्चतम न्यायालय ने आस िाद में पहली बार
ऄमेररका की विवध की सम्यक प्रदक्रया की संकल्पना को लागू दकया। यह वनम्नवलवखत तकों को
लागू करता है:-
o ऄनुच्छेद 19 और 21 को ऄकाट्य ऄंश नहीं समझा जा सकता और युवियुिता का समान
मापदंड ऄनुच्छेद 21 के वलए भी लागू दकया जाना चावहए। ईच्चतम न्यायालय ने संविधान के
ऄनुच्छेद 21 को ऄनुच्छेद 19 के साथ जोड़कर व्याख्या की तथा पहली बार प्रदक्रया की
युवियुिता (ऄथाात् प्रदक्रया मनमानीपूणा या ऄनौवचत्यपूणा न हो) पर बल देते हुए नैसर्मगक
न्याय के वसद्धांत को ऄपनाया। साथ ही, यह भी स्पष्ट दकया दक ऄनुच्छेद 19 और 21 परस्पर
ऄपिजानकारी नहीं हैं, बवल्क िे एक-दूसरे को बल प्रदान करते हैं।
o के िल विवध द्वारा स्थावपत प्रदक्रया का पालन करना ही पयााि नहीं है। न्यायालय को समीक्षा
करने और कानून की युवियुिता पर सिाल ईठाने का ऄवधकार भी प्राि होता है।
 प्रवतबंध ईवचत, न्यायसंगत और वनष्पक्ष होने चावहए, मनमाने ढंग का नहीं।
 भारत में परं परागत रूप से विटेन में प्रचवलत विवध द्वारा स्थावपत प्रदक्रया के वसद्धांत का
ऄनुपालन दकया जाता रहा है। हालांदक 1978 के बाद से, भारत में हम दोनों का ऄनुपालन करते
हैं।
5.10.1. न्यावयक व्याख्या द्वारा ऄनु च्छे द 21 के क्षे त्र का विस्तार
 मेनका गांधी िाद में ईच्चतम न्यायालय ने वनणाय ददया दक ऄनुच्छेद 21 के तहत प्राण का ऄथा
के िल ‘पशुित ऄवस्तत्ि’ या जीवित रहना मात्र नहीं है। आसके ऄंतगात मानिीय गररमा के साथ
जीने का ऄवधकार भी सवम्मवलत है।
 आसमें जीिन के िे सभी अयाम सवम्मवलत हैं वजनसे मनुष्य का जीिन साथाक, संपूणा और जीने
योग्य बनता है। मेनका गांधी िाद के पिात् भी कइ न्यावयक व्याख्याओं ने ऄनुच्छेद 21 की पररवध
को बढ़ाते हुए आसके ऄंतगात कइ ऄवधकारों को समावहत दकया है।
 ईन्नीकृ ष्णन बनाम अँध्रप्रदेश राज्य िाद (1993) में वनधााररत दकया गया दक जीिन के ऄवधकार
में वशक्षा का ऄवधकार सवम्मवलत है। ऄनुच्छेद 21 का विस्तृत क्षेत्रावधकार ईच्चतम न्यायालय द्वारा
िर्मणत दकया गया है और ईच्चतम न्यायालय ने स्ियं ही पूिान्यायवनणायों के अधार पर ऄनुच्छेद
21 के तहत अने िाले ऄवधकारों की सूची ईपलब्ध करायी है। आनमें से कु छ वनम्नवलवखत हैं:
o विदेश यात्रा का ऄवधकार;
o वनजता का ऄवधकार;
o अश्रय का ऄवधकार;
o सामावजक न्याय और अर्मथक सशविकरण का ऄवधकार;
o एकांत कारािास के विरुद्ध ऄवधकार;
o हथकड़ी लगाने के विरुद्ध ऄवधकार;
o मृत्युदड
ं में देरी के विरुद्ध ऄवधकार;

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o बंदीगृह में मृत्यु के विरुद्ध ऄवधकार;


o सािाजवनक रूप से िांसी के विरुद्ध ऄवधकार;
o वचदकत्सकीय सहायता का ऄवधकार;
o सांस्कृ वतक विरासत की सुरक्षा का ऄवधकार;
o प्रत्येक वशशु के पूणा विकास का ऄवधकार;
o प्रदूषणमुि िायु एिं जल का ऄवधकार अदद।
आस प्रकार यह स्पष्ट है दक प्रारं भ में ऄनुच्छेद 21 के प्रािधानों की संकीणा व्याख्या की गइ परन्तु धीरे -
धीरे दैवहक एिं व्यविगत स्ितंत्रता के संदभा में कानून का विस्तार हुअ और आसकी ईदार व्याख्या की
गइ। ऄनुच्छेद 21 के क्षेत्रावधकार में समय के साथ नये अयाम जोड़े गये। आसने दकसी व्यवि को प्राण
तथा दैवहक स्ितंत्रता से िंवचत दकये जाने की प्रदक्रया पर यह कहते हुए सीमाएँ अरोवपत की, दक
प्रदक्रया को न्यायोवचत तथा वििेकपूणा होना चावहए तथा कानून को मनमाना, सनकपूणा ऄथिा
काल्पवनक नहीं होना चावहए।
{नोट: हुसैन अरा खातून िाद (1979) वजसे भारत में जनवहत यावचका (PIL) के ईद्भि के रूप में देखा
जाता है; में वनधााररत दकया गया दक त्िररत सुनिाइ का ऄवधकार न्याय प्रावि का सार है। आस िाद में
ईच्चतम न्यायालय ने पहली बार िंवचतों को मुफ्त कानूनी सहायता की अिश्यकता पर बल ददया तादक
ईनके ऄवधकारों को साथाक संरक्षण प्रदान करने िाली न्याय प्रणाली को स्थावपत दकया जा सके । साथ
ही आस िाद में ईच्चतम न्यायालय ने ऄनुच्छेद 21 में प्रदि विवध द्वारा स्थावपत प्रदक्रया में संतवु लत,
ईवचत एिं न्याय पर अधाररत प्रयोजनों को लागू करने पर जोर ददया।)}

5.10.2. वनजता का ऄवधकार

(Right to Privacy)
हाल ही में, ईच्चतम न्यायालय की नौ सदस्यीय संिैधावनक खंडपीठ ने के . एस. पुट्टास्िामी बनाम भारत
संघ िाद में सिासम्मवत से वनणाय देते हुए ‘वनजता के ऄवधकार’ को ऄनुच्छेद-21 के जीिन और
स्ितंत्रता के ऄवधकार के तहत मूल ऄवधकार का ऄवभन्न वहस्सा माना है। यह वनणाय विवभन्न जन-
कल्याण कायाक्रमों का लाभ ईठाने के वलए कें द्र सरकार द्वारा अधार काडा को ऄवनिाया करने को चुनौती
देने िाली यावचकाओं से संबंवधत है।
 मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978) िाद में न्यायालय ने यह माना दक व्यविगत स्ितंत्रता
और वनजता के ऄवधकार में ऄल्पीकरण या दखल देने िाला कोइ भी कानून ऄवनयंवत्रत या
मनमाना नहीं होना चावहए।
 वनजता संबंधी कानूनों का ऄध्ययन करने के वलए न्यायमूर्मत ए.पी.शाह की ऄध्यक्षता में विशेषज्ञों
की एक सवमवत गरठत की गइ थी। आस सवमवत को वनजता पर प्रस्तावित मसौदा विधेयक, 2011
से संबंवधत सुझाि देना था। आसके द्वारा कें द्र और राज्यों में वनजता अयुिों (privacy
commissioners) की वनयुवि, डेटा संग्रहकतााओं द्वारा पालन दकए जाने िाले वनजता सम्बन्धी
नौ वसद्धांत तथा ईद्योगों द्वारा स्ि-विवनयामक संगठन की स्थापना, अदद ऄनुशस
ं ाएँ की गईं।

डेटा (गोपनीयता और संरक्षण) विधेयक, 2017


 हाल ही में, डेटा (गोपनीयता और संरक्षण) विधेयक, 2017 को लोकसभा में पेश दकया गया।
 आसमें डेटा के संकलन, प्रसंस्करण, भंडारण और हटाने के वलए व्यविगत सहमवत तथा आस प्रदक्रया
में मामलों की विवशष्टता के अधार पर बहुत सीवमत ऄपिादों की स्िीकृ वत को ऄवनिाया बनाने का
प्रािधान है।
 आसके साथ ही आसमें डेटा गोपनीयता और संरक्षण प्रावधकरण को ऄपील के प्रािधान के साथ
ऄंवतम ईपयोगकतााओं के वशकायत वनिारण हेतु डेटा संरक्षण ऄवधकारी के पद का सृजन करना,
जैसे प्रािधान दकये गए हैं।

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वनजता के ऄवधकार से संबवं धत ऄंतरााष्ट्रीय कानून


 1981 में यूरोपीय कॉईवन्सल द्वारा हस्ताक्षररत कन्िेंशन िॉर दद आं वडविजुऄल विद ररगाडा टू
ऑटोमेरटक प्रोसेलसग ऑफ़ पसानल डेटा (कन्िेंशन 108) वनजता के ऄवधकार का संरक्षण प्रदान
करने िाली प्रथम कानूनी रूप से बाध्यकारी ऄंतरााष्ट्रीय संवध है।
 मानिावधकारों की सािाभौम घोषणा, 1948 का ऄनुच्छेद 12 और आं टरनेशनल कोिेनेंट ऑन
वसविल एंड पोवलरटकल राआट (ICCPR) 1966 का ऄनुच्छेद 17, व्यवियों की वनजता, पररिार,
घर, पत्राचार, सम्मान और प्रवतष्ठा के साथ "मनमाने ढंग से हस्तक्षेप" के वखलाि कानूनी संरक्षण
प्रदान करता है।
वनजता के ऄवधकार का महत्ि
 आस वनणाय के पररणामस्िरूप व्यवि के मूल ऄवधकारों का विस्तार तथा ईनकी गररमा सुवनवित
होगी। आसके ऄनुसार, राष्ट्रीय डेटा संग्रह में वनवहत दकसी भी व्यविगत अंकड़ों के दुरुपयोग की
वस्थवत में राज्य को क्षवतपूर्मत प्रदान करनी होगी। ऄब नागररक ईच्चतम न्यायालय या ईच्च
न्यायालयों में ऄनुच्छेद 32 और 226 के तहत ऄपनी वनजता के ऄवधकार के ईल्लंघन के वलए सीधे
ऄपील दायर कर सकते हैं। आस प्रकार यह सुवनवित दकया गया है दक ऄवधकार सािाजवनक
स्िास्थ्य, नैवतकता और व्यिस्था के ईवचत प्रवतबंधों के ऄधीन है। ध्यातव्य है दक वनजता को
ऄंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक सुदढ़ृ कानूनी ढाँचे का समथान प्राि है। 1979 में भारत ने ICCPR पर
हस्ताक्षर तथा ऄवभपुवष्ट भी की है।
 परन्तु आस वनणाय से कइ लचताएँ भी ईत्पन्न हुइ हैं। यथा सरकार की कल्याणकारी योजनाओं और
ऄन्य मामलों जैसे दक अधार, धारा 377, व्हाट्सएप प्राआिेसी पावलसी, खानपान की अदतों पर
प्रवतबंध अदद पर प्रभाि पड़ेगा। वनजता की रूपरे खा को पररभावषत नहीं दकया जा सकता क्योंदक
यह ऄन्य सभी मूल ऄवधकारों में भी समावहत है। यह वनगरानी, खोज और जब्ती, कॉल टैलपग,
ट्रांसजेंडर के ऄवधकार अदद सवहत विवभन्न ऄवधकारों का एक क्लस्टर (समूह) है।
 आस ऄवधकार के सिल कायाान्ियन के वलए अिश्यक है दक भारत में वनजता के संरक्षण की भािना
को बढ़ािा ददया जाय। यह पविमी देशों की तुलना में भारत में कम है। आस हेतु एक राष्ट्रीय डेटा
संरक्षण प्रारूप का विकास दकया जाना चावहए जो व्यवियों के वलए के िल डेटा संरक्षण से परे एक
व्यापक संदभा में व्यविगत वनजता की रूपरे खा को पररभावषत करे । एक विवधक ढांचे के वनमााण के
माध्यम से डेटा माआलनग और वबग डेटा के लाभों के साथ दकसी व्यवि के वनजता के ऄवधकार को
संतुवलत करना चावहए।
5.10.3. जीिन का ऄवधकार और अत्महत्या (IPC की धारा 309)

 भारत में अत्महत्या संबध


ं ी कानून: मानवसक स्िास्थ्य देखभाल विधेयक - 2016 के पाररत होने से
पहले अत्महत्या, या अत्महत्या का प्रयास करना भारतीय दंड संवहता की धारा 309 के ऄंतगात
ऄपराध था। आस नये कानून के ऄंतगात भारतीय दंड संवहता की धारा 309 का वनरपराधीकरण
कर ददया गया है तथा मानवसक रूप से बीमार व्यवि के अत्महत्या के प्रयासों को दण्डनीय नहीं
माना गया है।
 पी. रत्नम िाद में ईच्चतम न्यायालय ने िषा 1994 में धारा 309 को यह कह कर ऄसंिैधावनक
करार ददया था दक ‘न जीने का ऄवधकार’ संविधान के ऄनुच्छेद 21 में प्रदि ‘जीने के ऄवधकार’ में
ही वनवहत है।
 साथ ही आस िाद में कहा गया दक सभी मूल ऄवधकारों के सकारात्मक के साथ नकारात्मक
वनवहताथा भी हैं। जैसे दक भाषण एिं ऄवभव्यवि की स्ितंत्रता के मूल ऄवधकार में ‘नहीं बोलने के
ऄवधकार’ भी समाविष्ट है। आस व्याख्या से धारा 309 का ऄवस्तत्ि समाि हो गया था और िषा
1996 तक यही वस्थवत रही।

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 हालाँदक, ईच्चतम न्यायालय ने ज्ञान कौर िाद (1996) में 1994 के वनणाय को ईलट ददया वजसके

कारण धारा 309 पुनः ऄवस्तत्ि में अ गयी और ‘न जीने का ऄवधकार’ ऄसंिैधावनक बन गया।

 2008 में विवध अयोग ने ऄपनी दो सौ दसिीं ररपोटा में अत्महत्या के प्रयास को ऄपराध की श्रेणी
से बाहर वनकालने की वसिाररश की।
 माचा 2017 में लोकसभा द्वारा सिासम्मवत से मानवसक स्िास्थ्य देखभाल विधेयक को पाररत
दकया गया वजसके ऄनुसार अत्महत्या का प्रयास मानवसक तनाि की वस्थवत को दशााता है तथा
आसे ऄपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। अत्महत्या का प्रयास करने िाले व्यवि को दंड की
नहीं िरन देखभाल और ईपचार की अिश्यकता है।

5.10.4. जीिन का ऄवधकार एिं मृ त्यु दं ड

 ितामान में िैवश्वक रुख मृत्युदड


ं को समाि करने के पक्ष में है, भारत ने ऄपने को ऐसे देशों की श्रेणी

में बनाए रखा है जहां मृत्युदड


ं को पूणातया समाि नहीं दकया गया है, जैस-े चीन, इरान,

पादकस्तान, ऄमेररका।

 मृत्युदड
ं के समथाकों ने आसको वनिारक क्षमता के वलए ऄपनाया है। आसके ऄलािा, कु छ ऄपराध
आतने जघन्य होते हैं वजनकी सजा ऄगर मृत्युदड
ं से कम हो तो िे न्याय के लक्ष्य को पूरा नहीं कर
पाती हैं। अतंकिाद जैसे मामलों में, यदद अतंकिाददयों को मौत की सजा नहीं दी जाए तो िे
राष्ट्रीय सुरक्षा के वलए एक गंभीर खतरा बने रह सकते हैं।
हालांदक मृत्युदड
ं को समाि करने के पक्ष में वनम्नवलवखत तका ददए जाते हैं: -
 वनिारक तका (deterrent logic) का समथान करने के वलए कोइ पयााि अंकड़े नहीं हैं।
 संयुि राज्य ऄमेररका में दकए गए एक ऄध्ययन से पता चलता है दक वजन राज्यों ने मौत की सजा
को समाि कर ददया है िहाँ पर हत्या की घटना में वगरािट देखने को वमली।
 दकसी भी सभ्य समाज में प्रवतशोध का वसद्धांत (The principle of revenge) (जैस-े अंख के
बदले अंख) न्याय का अधार नहीं हो सकता।
सजा का ईद्देश्य दंड के बजाय सुधार होना चावहए। मृत्युदड
ं की सजा वसिा ऄन्यान्यतम (रे यरे स्ट ऑि
दद रे यर) मामलों में दी जाती है।
बच्चन लसह िाद (1980) में ईच्चतम न्यायालय ने अजीिन कारािास को वनयम और मृत्युदड
ं का
ऄपिाद मानते हुए मृत्युदड
ं की गुंजाआश को बरकरार रखा और आसे न्यायसंगत बनाने के वलए
ऄनन्यतम (रे यरे स्ट ऑि दद रे यर) का वसद्धांत वनष्पाददत दकया।
मच्छी लसह बनाम पंजाब सरकार (1983) िाद में ईच्चतम न्यायालय के तीन सदस्यीय खंडपीठ ने
मृत्युदड
ं देने के वलए वनम्नवलवखत मापदंडों को रखा।
 ऄत्यन्त क्रूर, कठोर और भयानक तरीके से हत्या के मामले में;

 हत्या का ईद्देश्य धन होने पर;

 ऄनुसूवचत जावत या ऄल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की हत्या करने पर;

 दकसी वनदोष बच्चे, ऄसहाय मवहला या गणमान्य व्यवि की हत्या करने पर।
प्रयोजनीयता
ऄनुच्छेद 20 और 21 के तहत प्रदि ऄवधकारों को कभी भी वनलंवबत नहीं दकया जा सकता और ये

दोनों ऄवधकार सभी व्यवियों, चाहे िह भारतीय नागररक हो या विदेशी सभी को ईपलब्ध हैं।

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5.11. ऄनु च्छे द 21-A : वशक्षा का ऄवधकार

मूल पाठ
राज्य छह से चौदह िषा की अयु के सभी बच्चों को वनःशुल्क और ऄवनिाया वशक्षा आस प्रकार प्रदान
करे गा वजस प्रकार से राज्य विवध के ऄधीन वनधााररत करे ।
वििरण एिं ऐवतहावसक विकास
 1992 में मोवहनी जैन िाद में ईच्चतम न्यायालय ने कहा दक वशक्षा का ऄवधकार जीिन के
ऄवधकार का वहस्सा है और आसवलए यह संविधान के भाग III के तहत एक मूल ऄवधकार है।

 ईन्नीकृ ष्णन िाद (1993) में ईच्चतम न्यायालय के वनणाय ने आसको और सुदढ़ृ दकया वजसमें यह
पुवष्ट की गयी दक वशक्षा का ऄवधकार ऄनुच्छेद 21 के तहत प्रत्याभूत जीिन के ऄवधकार से
संबंवधत है।
 ईल्लेखनीय है दक ईच्चतम न्यायालय ने कहा दक यह एक वनरपेक्ष एिं ऄनन्य ऄवधकार नहीं है। यह
ऄवधकार दकस तरह लागू दकया जाय आसका वनधाारण राज्य पर वनभार करे गा।
 86िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 2002 द्वारा संविधान के भाग III में ऄनुच्छेद 21(A) को
जोड़कर 6-14 िषा तक की ईम्र के सभी बच्चों के वलए वनःशुल्क एिं ऄवनिाया प्रारवम्भक/प्राथवमक
वशक्षा की संिैधावनक गारं टी दी गयी है। 86िें संशोधन ऄवधवनयम द्वारा संविधान में वनम्नवलवखत
पररितान दकये गए:
 राज्य की नीवत के वनदेशक तत्ि के रूप में संविधान के ऄनुच्छेद 45 में कहा गया है दक, राज्य सभी
बच्चों को (0-6) िषा की अयु पूरी हो जाने तक वनःशुल्क और ऄवनिाया वशक्षा देने के वलए ईपबंध
करने का प्रयास करे गा।
 ऄनुच्छेद 51(A) के तहत एक नया मूल कताव्य जोड़ा गया वजसके ऄनुसार - यह प्रत्येक भारतीय
नागररक का कताव्य होगा दक िह ऄपने बच्चे को चाहे िह ईसके माता-वपता हो या ऄवभभािक 6 से

14 िषा की ईम्र तक वशक्षा की सुविधा ईपलब्ध कराएं।


 यह ईपयुाि अयु समूह के सभी बच्चों के वलए लागू होता है चाहे िह भारतीय नागररक हों या नहीं।

5.12. ऄनु च्छे द 22– कु छ दशाओं में वगरफ्तारी और वनरोध से सं र क्षण

मूल पाठ
कु छ दशाओं में वगरफ्तारी और वनरोध से संरक्षण।
1. दकसी व्यवि को जो वगरफ्तार दकया गया है, ऐसी वगरफ़्तारी के कारणों से यथा शीघ्र ऄिगत
कराये वबना ऄवभरक्षा में वनरुद्ध नहीं रखा जाएगा या ऄपनी रूवच के विवध व्यिसायी से परामशा
करने और प्रवतरक्षा कराने के ऄवधकार से ईसे िंवचत नहीं रखा जाएगा।
2. प्रत्येक व्यवि को, जो वगरफ्तार दकया गया है और ऄवभरक्षा में वनरुद्ध रखा गया है, वगरफ्तारी के
स्थान से मवजस्ट्रेट के न्यायालय तक यात्रा के वलए अिश्यक समय को छोड़कर ऐसी वगरफ्तारी से
चौबीस घंटे की ऄिवध में वनकटतम मवजस्ट्रेट के समक्ष पेश दकया जायेगा और ऐसे दकसी व्यवि को
मवजस्ट्रेट के प्रावधकार के वबना ईि ऄिवध से ऄवधक ऄिवध के वलए ऄवभरक्षा में वनरुद्ध नहीं रखा
जाएगा।
3. खण्ड (1) और खण्ड (2) की कोइ बात दकसी ऐसे व्यवि को लागू नहीं होगी जो-
(क) तत्समय शत्रु ऄन्यदेशीय है; या
(ख) वनिारक वनरोध का ईपबंध करने िाली दकसी विवध के ऄधीन वगरफ्तार या वनरुद्ध दकया
गया है।

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4. वनिारक वनरोध का ईपबंध करने िाली कोइ विवध दकसी व्यवि को तीन मास से ऄवधक ऄिवध के
वलए तब तक वनरुद्ध दकया जाना प्रावधकृ त नहीं करे गी जब तक दक-
(क) ऐसे व्यवियों से, जो ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश हैं या न्यायाधीश रहे हैं या न्यायाधीश
वनयुि होने के वलए ऄर्महत हैं, वमलकर बने सलाहकार बोडा ने तीन मास की ईि ऄिवध की
समावि से पहले यह प्रवतिेदन नहीं ददया है दक ईसकी राय में ऐसे वनरोध के वलए पयााि कारण है:
परन्तु आस ईपबंध की कोइ भी बात दकसी व्यवि का ईस ऄवधकतम ऄिवध से ऄवधक ऄिवध के
वलए वनरुद्ध दकया जाना प्रावधकृ त नहीं करे गी जो खण्ड (7) के ईपखण्ड (ख) के ऄधीन संसद द्वारा
बनाइ गइ विवध द्वारा विवहत की गइ है; या
(ख) ऐसे व्यवि को खण्ड (7) ईपखण्ड (क) और ईपखण्ड (ख) के ऄधीन संसद द्वारा बनाइ गइ
विवध के ईपबंधों के ऄनुसार वनरुद्ध नहीं दकया जाता है।
5. वनिारक वनरोध का ईपबंध करने िाली दकसी विवध के ऄधीन दकये गए अदेश के ऄनुसरण में जब
दकसी व्यवि को वनरुद्ध दकया जाता है तब अदेश करने िाला प्रावधकारी यथाशीघ्र ईस व्यवि को
यह संसूवचत करे गा दक िह अदेश दकन अधारों पर दकया गया है और ईस अदेश के विरुद्ध
ऄभ्यािेदन करने के वलए ईसे शीघ्रावतशीघ्र ऄिसर देगा।
6. खण्ड (5) की दकसी बात से ऐसा अदेश, जो ईस खण्ड में वनर्ददष्ट है, करने िाले प्रावधकारी के वलए
ऐसे तथ्यों को प्रकट करना अिश्यक नहीं होगा वजन्हें प्रकट करना ऐसा प्रावधकारी लोकवहत के
विरुद्ध समझता है।
7. संसद विवध द्वारा यह विवहत कर सके गी दक-
(क) दकन पररवस्थवतयों के ऄधीन और दकस िगा या िगों के िाद में दकसी व्यवि को वनिारक
वनरोध का ईपबंध करने िाली दकसी विवध के ऄधीन तीन मास से ऄवधक ऄिवध के वलए खण्ड (4)
के ईपबंध (क) के ईपबंधों के ऄनुसार सलाहकार बोडा की राय प्राि दकए वबना वनरुद्ध दकया जा
सके गा;
(ख) दकसी िगा या िगों के िाद में दकतनी ऄवधकतम ऄिवध के वलए दकसी व्यवि को वनिारक
वनरोध का ईपबंध करने िाली दकसी विवध के ऄधीन वनरुद्ध दकया जा सके गा; और
(ग) खण्ड (4) के ईपखण्ड (क) के ऄधीन की जाने िाली जांच में सलाहकार बोडा द्वारा ऄनुसरण
की जाने िाली प्रदक्रया क्या होगी।
वििरण
ऄनुच्छेद 22 में दो प्रकार की वगरफ्तारी या वनरोध का वििरण है:
 दंडात्मक वनरोध (Punitive detention); तथा
 वनिारक वनरोध (Preventive detention)
दंडात्मक वगरफ्तारी से सुरक्षा नागररकों और गैर-नागररकों के वलए ईपलब्ध है, परन्तु शत्रु देश के
वनिावसयों के वलए नहीं। एक व्यवि को ईसकी वगरफ्तारी के अधार के बारे में ऄिश्य सूवचत दकया
जाना चावहए तादक िह ऄपने बचाि की तैयारी कर सके । व्यवि को ऄपनी पसंद के विवधिेिा से
परामशा करने और ईसके द्वारा बचाि करने का भी ऄवधकार है। आस तरह के दकसी व्यवि को 24 घंटे के
भीतर दकसी मवजस्ट्रेट के समक्ष ऄिश्य प्रस्तुत दकया जाना चावहए तादक कायापावलका की दकसी भी
गलत कारा िाइ को सुधारा जा सके ।
वनिारक वनरोध का ईद्देश्य दकसी व्यवि को ऄपराध करने से रोकना है। ऐसे व्यवि के वलए भी कु छ
ऄवधकार ईपलब्ध हैं। ईसे, ईसकी वगरफ्तारी के अधार के बारे में सूवचत दकया जाना चावहए। पुवलस
दकसी व्यवि को तीन माह से ज्यादा समय के वलए वनरुद्ध नहीं कर सकती जब तक दक पुवलस के पास
सलाहकार बोडा की ऄनुमवत न हो। आस तरह के सलाहकार बोडा में तीन न्यायाधीश शावमल होंगे (आस
तरह का सलाहकार बोडा ऐसे तीन व्यवियों से वमलकर बनेगा, जो ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश हैं या
न्यायाधीश रहे हैं या न्यायाधीश वनयुि होने के वलए ऄर्महत हैं)। संसद, 3 माह से ऄवधक वनरोध हेतु
कानून बना सकती है।

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44िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1978 द्वारा वनरोध की ऄिवध को वबना सलाहकार बोडा की राय

के तीन से दो माह कर ददया गया। हालांदक यह व्यिस्था ऄब तक प्रयोग में नहीं अइ, जबदक वनरोध की

मूल ऄिवध तीन माह की ऄब भी जारी है।


वनिारक वनरोध की अलोचना
भारत में, आस तरह के कानूनों का दुरुपयोग दकया गया है और आसीवलए यह मानिावधकारों से
सम्बंवधत लचता का विषय बन गया है। यह राज्य की पुवलस शवि का प्रवतवनवधत्ि करता है। दकसी
ऄन्य लोकतांवत्रक देश ने ऄपने संविधान में वनिारक वनरोध का ईल्लेख नहीं दकया है और िहाँ आस
तरह के कानून के िल अपात वस्थवत के तहत प्रभाि में अते हैं।
वनिारक वनरोध के पक्ष में ददए गए तका
रक्षा, विदेश और देश की सुरक्षा से सम्बंवधत संघ सूची की प्रविवष्ट 9, और सािाजवनक व्यिस्था बनाए

रखने, राज्य की सुरक्षा और अिश्यक अपूर्मत और सेिायें बनाए रखने से संबंवधत समिती सूची की

प्रविवष्ट 3 में ऐसे विषय संविधान में पहले से ही दजा हैं वजन पर वनिारक कानून बनाया जा सकता है।

आस प्रकार, यह राज्य द्वारा मनमाने ढंग से की गइ कारा िाइ को रोकता है।


विधायन/कानून
वनम्नवलवखत कानूनों में दकसी व्यवि को तीन महीने से ऄवधक समय तक वनरोध दकए जाने के संबंध में
प्रािधान हैं:
 राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (National Security Act),

 विदेशी मुद्रा दक्रयाएँ और तस्करी की रोकथाम के संरक्षण ऄवधवनयम,1974 तथा

 अतंकिाद वनरोधक कानून (Prevention of Terrorism Act: POTA)

आसी प्रकार, कइ राज्यों ने भी आसी तरह के कानून बनाए हैं। कें द्रीय और राज्य स्तर के कानूनों को वमला
दें तो वनिारक वनरोध से संबंवधत ऐसे लगभग चालीस कानून ऄवस्तत्ि मे हैं।

5.13. ऄनु च्छे द 23 – मानि दु व्याा पार एिं बलात् श्रम का वनषे ध

मूल पाठ
मानि दुव्याापार और बलात् श्रम का वनषेध।
1. मानि का दुव्याापार और बेगार तथा आसी प्रकार का ऄन्य बलात् श्रम प्रवतवषद्ध दकया जाता है और
आस ईपबंध का कोइ भी ईल्लंघन ऄपराध होगा जो विवध के ऄनुसार दंडनीय होगा।
2. आस ऄनुच्छेद की कोइ बात राज्य को सािाजवनक प्रयोजनों के वलए ऄवनिाया सेिा ऄवधरोवपत करने
से वनिाररत नहीं करे गी। ऐसी सेिा ऄवधरोवपत करने में राज्य के िल धमा, मूलिंश, जावत या िगा
या आनमें से दकसी के अधार पर कोइ विभेद नहीं करे गा।
वििरण
 ऄनुच्छेद 23 (1) मानि के दुव्याापार, बेगार और सभी प्रकार के बलात् श्रम को प्रवतवषद्ध करता है।

आसका ऄनुसूवचत जावत/ऄनुसूवचत जनजावत और मवहलाओं के वलए विशेष महत्ि है। "बेगार"

ऐसी श्रम या सेिा के रूप में िर्मणत है, वजसमे एक व्यवि को आसके वलए कोइ पाररश्रवमक ददए
वबना आसे करने को मजबूर दकया जाता है।
 ऄनुच्छेद 23 (2) में कहा गया है दक राज्य ऄवनिाया सेिा लागू कर सकता है, ऄगर आसकी जरूरत

है। विशेषतः, देिदासी प्रथा को ईपयुाि ऄनुच्छेद के वनषेध के कारण समाि कर ददया गया है।

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विधान
मानि दुव्याापार को रोकने के वलए पाररत दकये गए कु छ ऄवधवनयम वनम्नवलवखत है:
 ऄनैवतक दुव्याापार (वनिारण) ऄवधवनयम, 1956 (Immoral Traffic Prevention Act: ITPA,
1956)
 बंधुअ मजदूरी व्यिस्था (वनरसन) ऄवधवनयम, 1976 {Bonded Labor System (Abolition)
Act, 1976}
 दकशोर न्याय (देखभाल और संरक्षण) ऄवधवनयम, 2000 {Juvenile Justice (Care and
Protection) Act, 2000} को वनरस्त करके दकशोर न्याय (देखभाल एिं संरक्षण) ऄवधवनयम,
2015 पाररत दकया गया है, आसके कु छ प्रमुख प्रािधान वनम्न हैं:
o ऄवधवनयम में 'दकशोर' शब्द से जुड़े कइ नकारात्मक संकेताथा को खत्म करने के वलए 'दकशोर'
शब्द से 'बच्चे' शब्द की नामािली में पररितान। ऄनाथ, पररत्यि और अत्मसमर्मपत बच्चों की
नइ पररभाषाओं को सवम्मवलत दकया गया है।
o बच्चों के छोटे, गंभीर और जघन्य ऄपराध, दकशोर न्याय बोडा (JJB) ि बाल कल्याण सवमवत
(CWC) के ऄवधकारों, कायों और वजम्मेदाररयों में स्पष्टीकरण, दकशोर न्याय बोडा द्वारा जांच
में स्पष्ट ऄिवध, 16 िषा से उपर के बच्चों द्वारा दकए गए जघन्य ऄपराध की वस्थवत में विशेष
प्रािधान, ऄनाथ, पररत्यि और अत्मसमर्मपत बच्चों को गोद लेने संबंधी वनयमों पर ऄलग
नया ऄध्याय, बच्चों के विरुद्ध दकए गए नए ऄपराधों को शावमल दकया गया, बाल कल्याण ि
देखभाल संस्थानों के पंजीकरण को ऄवनिाया बनाया गया है।
o धारा 15 के ऄंतगात 16-18 िषा की ईम्र के बाल ऄपरावधयों द्वारा दकए गए जघन्य ऄपराधों
को लेकर विशेष प्रािधान दकए गए हैं। दकशोर न्याय बोडा के पास बच्चों द्वारा दकए गए जघन्य
ऄपराधों के मामलों को प्रारं वभक अकलन के बाद ईन्हें बाल न्यायालय (कोटा ऑि सेशन) को
स्थानांतररत करने का विकल्प होगा।
 यह नागररकों और गैर-नागररकों दोनों के वलए ईपलब्ध है।
5.14. ऄनु च्छे द 24 – कारखानों अदद में बालकों के वनयोजन का प्रवतषे ध

मूल पाठ
कारखानों अदद में बालकों के वनयोजन का प्रवतषेध - चौदह िषा से कम अयु के दकसी बालक को दकसी
कारखाने या खान में काम करने के वलए वनयोवजत नहीं दकया जाएगा या दकसी ऄन्य पररसंकटमय
वनयोजन में नहीं लगाया जाएगा।
वििरण
 ऄनुच्छेद 24 खतरनाक व्यिसायों में बच्चों के वनयोजन का प्रवतषेध करता है। हालांदक, यह
हावनरवहत कायों में ईनके वनयोजन का प्रवतषेध नहीं करता है।
नोट: ऄनुच्छेद 23 और 24 ऄनुच्छेद 39 (a) और 39 (f) द्वारा पूररत होते हैं।

5.14.1. बाल श्रम से सं बं वधत विधे य क

 बाल श्रम (प्रवतषेध एिं विवनयमन) ऄवधवनयम, 1986 बाल श्रम को रोकने के वलए विधान है।
आसको बाल श्रम (वनषेध एिं विवनयमन) संशोधन विधेयक, 2016 के द्वारा संशोवधत दकया गया
है। आसमें दकये गए प्रमुख संशोधन वनम्नवलवखत है:
o विधेयक में 14 िषा से कम ईम्र के बालकों के रोजगार में वनयोजन पर लगे हुए प्रवतबंध का
सभी क्षेत्रों में विस्तार दकया गया है।
o 14-18 िषा के दकशोरों के खतरनाक व्यिसायों में वनयोजन पर प्रवतबंध लगाया गया है और

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o आन प्रािधानों के ईल्लंघन पर ऄवधक कठोर सजा; छह महीने से दो िषा तक की कै द और


50,000 रुपए तक जुमााने का प्रािधान।
o विधेयक पहले वनधााररत दकये गए 83 खतरनाक व्यिसायों की सूची को वसिा तीन तक
सीवमत करता है। आनके तहत खनन, ज्िलनशील पदाथा तथा कारखाना ऄवधवनयम के ऄंतगात
वनधााररत खतरनाक प्रदक्रयाएँ शावमल होंगी वजन्हें कें द्र द्वारा वचवन्हत दकया जायेगा।
o विधेयक में बच्चों के पुनिाास के वलए पुनिाास कोष वनर्ममत दकए जाने का प्रस्ताि है, वजसे
पहले ही स्थावपत दकया जा चुका है।
 यह भी नागररकों और गैर-नागररकों दोनों के वलए ईपलब्ध है।

5.15. ऄनु च्छे द 25: ऄं तःकरण की और धमा को ऄबाध रूप से मानने , अचरण करने
और प्रचार करने की स्ितं त्र ता
मूलपाठ
1. लोक व्यिस्था, सदाचार और स्िास्थ्य तथा आस भाग के ऄन्य ईपबंधों के ऄधीन रहते हुए, सभी
व्यवियों को ऄंतःकरण की स्ितंत्रता का और धमा के ऄबाध रूप से मानने, अचरण करने और
प्रचार करने का समान ऄवधकार होगा।
2. आस ऄनुच्छेद की कोइ बात दकसी ऐसी विद्यमान विवध के प्रितान पर प्रभाि नहीं डालेगी या राज्य
को कोइ ऐसी विवध बनाने से वनिाररत नहीं करे गी जो-
(a) धार्ममक अचरण से सम्बद्ध दकसी अर्मथक, वििीय, राजनैवतक या ऄन्य लौदकक दक्रयाकलाप
का विवनयमन या वनबान्धन करती है;
(b) सामावजक कल्याण और सुधार के वलए या सािाजवनक प्रकार की वहन्दुओं की धार्ममक संस्थाओं
को वहन्दुओं के सभी िगों और ऄनुभागों के वलए खोलने का ईपबंध करती है।
स्पष्टीकरण 1 – कृ पाण धारण करना और लेकर चलना वसख धमा के ऄनुकरण का ऄंग समझा जाएगा।
स्पष्टीकरण 2- खंड(2) के ईपखंड (b) में वहन्दुओं के प्रवत वनदेश का यह ऄथा लगाया जाएगा दक ईसके
ऄंतगात वसख, जैन या बौद्ध धमा के मानने िाले व्यवियों के प्रवत वनदेश है और वहन्दुओं की धार्ममक
संस्थाओं के प्रवत वनदेश का ऄथा तदनुसार लगाया जायेगा।
वििरण
ऄनुच्छेद 25 के ऄनुसार लोगों को,
 ऄंतःकरण की;
 धमा को मानने (ऄपने धार्ममक विश्वासों को खुले तौर पर घोवषत करने) की;
 धमा के अचरण (धार्ममक पूजा का प्रदशान) की; और
 धमा के प्रसार (ऄपनी धार्ममक मान्यताओं के प्रचार-प्रसार) की स्ितंत्रता है।
यह ऄनुच्छेद भारत में पंथवनरपेक्षता का अधार है।
 ऄंतःकरण की स्ितंत्रता से अशय दकसी व्यवि के ऄपने धार्ममक विश्वास और अस्था को अकार
देने की अतंररक स्ितंत्रता से है। राज्य व्यवि की आस अंतररक स्ितंत्रता में हस्तक्षेप नहीं कर
सकता। सािाजवनक ऄवभव्यवि में यह अतंररक स्ितंत्रता; धार्ममक पूजा, परं परा एिं धार्ममक
प्रदशान की स्ितंत्रता का रूप धारण कर लेती है। धमा को मानने के ऄवधकार से अशय दकसी व्यवि
के ईसके धार्ममक विश्वास और अस्था को खुले तौर पर व्यि करने के ऄवधकार से है। ईदाहरण के
वलए, वसक्खों के कृ पाण रखने के ऄवधकार को ईनके धमा को ऄबाध रूप से मानने के ऄवधकार के
ऄंतगात माना गया है।
 अचरण करने के ऄवधकार का ऄथा धार्ममक पूजा, परम्परा, समारोह अयोवजत करने और ऄपनी
अस्था और विचारों के प्रदशान की स्ितंत्रता है।

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 ‘प्रसार’ से तात्पया, ऄपने धार्ममक विश्वास का ऄन्य लोगो के जीिन को ईवचत ददशा प्रदान करने के
दृवष्टकोण से, धमा के पररष्कृ त रूप का प्रसार करना है वजसकी तार्दकक पररणवत दकसी ऄन्य को
ऄपने धमा में धमाान्तररत करने में होती है।
 ऄत: प्रसार का ऄथा ऄनुनय और वबना दकसी धोखाधड़ी, ज़बरदस्ती ऄथिा धमाान्तरण के वलए
प्रलोभन के वबना विचारों का प्रसार। ध्यातव्य है दक, दकसी व्यवि को ऄपने धमा में धमाान्तररत
करने का ऄवधकार, ईसके ऄपनी पसंद के मत में धमाान्तररत होने के व्यविगत ऄवधकार से वभन्न
है।
 जहाँ स्िेच्छा से, ऄपने ऄंतःकरण के ऄनुसार दकसी भी मत या संप्रदाय में धमाान्तररत होना,
वनवित रूप से संविधान प्रदि धार्ममक तथा ऄंतःकरण की स्ितंत्रता के ऄवधकार के ऄनुरूप है,
िहीं ऄपने द्वारा प्रसाररत धमा में दकसी व्यवि को धमाान्तररत करना राजनीवतक और सामावजक
क्षेत्र में वििाद का कें द्र बन रहा है|
 आस प्रकार, ऄनुच्छेद 25 के िल धार्ममक विश्वास को ही नहीं, ऄवपतु धार्ममक अचरण को भी
समावहत करता है।
 हालाँदक भारतीय संविधान में धार्ममक स्ितंत्रता का ऄवधकार वनरपेक्ष ऄवधकार नही है। आसे
सदाचार, स्िास्थ्य और लोक व्यिस्था बनाये रखने के वलए प्रवतबंवधत दकया जा सकता है। धार्ममक
मुद्दे से जुड़े लौदकक विषयों के प्रबंध में भी राज्य का हस्तक्षेप हो सकता है, जैसे मंददरों एिं
मवस्जदों को सभी लोगों के वलए खोलने के वलए विवध का वनमााण दकया जा सकता है। यह धार्ममक
स्ितंत्रता के ऄंतगात सवम्मवलत नही होगा। ऄतः भारतीय संविधान वनमााताओं ने एक ओर
ऄन्तःकरण और धमा की स्ितंत्रता का पूणा समथान दकया, तो दूसरी ओर सामावजक सुधार और
लोक व्यिस्था पर भी पयााि बल ददया है।
महत्त्िपूणा िाद
रवतलाल पानाचंद गाँधी बनाम बॉम्बे राज्य, 1954
 आस िाद में ईच्चतम न्यायालय ने घोवषत दकया दक, “ऄन्तःकरण की स्ितंत्रता (ऄपने धमां में
विश्वास की स्ितंत्रता) दकसी एक धमा के ऄनुयावययों के वलए नहीं है िरन् सभी के वलए समान रूप
से ईपलब्ध होती है”।
स्टैवनस्लास बनाम मध्य प्रदेश राज्य, 1977
 ईच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने वनणाय ददया दक, ऄनुच्छेद 25 (1) धमाांतरण का ऄवधकार
नहीं देता है बवल्क, के िल ऄपने धमा के वसद्धांतों के प्रसार का ऄवधकार देता है।
 आस प्रकार, भारत में के िल स्िैवच्छक धमाांतरण ही मान्य है। कु छ राज्यों ने बलात् धमाांतरण पर
रोक लगाने के वलए धमाांतरण विरोधी कानून भी पाररत दकये हैं।
जगदीश्वरानन्द िाद, 1984
 आस िाद में ईच्चतम न्यायालय द्वारा ददए गए वनणाय में यह कहा गया दक अनंदमार्मगयों द्वारा
कपाल लेकर नृत्य करते हुए जुलसू वनकालना धमा का मूलभूत तत्ि नहीं है तथा आसे यथोवचत रूप
से प्रवतबंवधत दकया जा सकता है।
 आसी तरह, बकरीद के ऄिसर पर गोहत्या आस्लाम के वलए अिश्यक तत्ि नहीं माना जा सकता है।
आस प्रकार, राज्य यह विवनयवमत कर सकता है दक अिश्यक धार्ममक प्रथायें क्या हैं और क्या नहीं
तथा जो नहीं हैं ईन्हें, ऄसामावजक होने की वस्थवत में गैरकानूनी घोवषत कर सकता है।
व्यिहायाता
 यह ऄवधकार नागररकों और गैर-नागररकों दोनों को प्रदान दकया गया है।
 धमावनरपेक्षता के ऄथा से सम्बंवधत विविध व्याख्याओं और आससे सम्बंवधत विरोधाभाषों को दूर
करने के वलए ईच्चतम न्यायालय के नौ जजों की बेंच ने एस.अर.बोम्मइ िाद (1994) में ऄपने एक
वनणाय में आससे सम्बंवधत शंकाओं के वनराकरण का प्रयास दकया। न्यायालय के ऄनुसार
पंथवनरपेक्षता से सम्बंवधत वनम्नवलवखत तथ्य हैं, जो भारतीय सन्दभा में प्रासंवगक हैं:

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o धमावनरपेक्षता का यह ऄथा नही है दक राज्य का धमा के प्रवत शत्रुभाि है। आसका ऄथा यह है दक
राज्य को विवभन्न धमों के बीच तटस्थ रहना चावहए।
o प्रत्येक व्यवि को ऄपना धमा मानने और ईस पर अचरण करने की स्ितंत्रता है। यह तका मान्य
नही है दक यदद कोइ व्यवि वनष्ठािान वहन्दू या वनष्ठािान मुवस्लम है तो िह धमावनरपेक्ष नही
रह जाता।
o यदद धमा का ईपयोग राजनीवतक प्रयोजनों के वलए दकया जाता है और राजनीवतक दल ऄपने
राजनीवतक प्रयोजनों के वलए ईसका अश्रय लेते हैं तो आससे राज्य की तटस्थता का ईल्लंघन
होगा। धमा के अधार पर वनिााचकों से ऄपील करना धमावनरपेक्षीय लोकतंत्र के विरुद्ध है।
राजनीवत और धमा को वमलाया नही जाना चावहए। यदद कोइ राज्य सरकार ऐसा करती है तो
ईसके विरुद्ध संविधान के ऄनुच्छेद 356 के ऄधीन कारा िाइ ईवचत होगी। ऄतः आस ऄथा में
धमावनरपेक्षता संविधान की मूलभूत लक्षण होगी।

5.16. ऄनु च्छे द 26: धार्ममक कायों के प्रबं ध की स्ितं त्र ता


मूलपाठ
लोक व्यिस्था, सदाचार और स्िास्थ्य के ऄधीन रहते हुए, प्रत्येक धार्ममक संप्रदाय या ईसके दकसी
ऄनुभाग को
(a) धार्ममक और धमााथा प्रयोजनों के वलए संस्थाओं की स्थापना और पोषण का;
(b) ऄपने धमा विषयक कायों का प्रबंध करने का;
(c) जंगम और स्थािर संपवि के ऄजान और स्िावमत्ि का; और
(d) ऐसी संपवि का विवध के ऄनुसार प्रशासन करने का ऄवधकार होगा।
वििरण
ऄनुच्छेद 26 के ऄनुसार प्रत्येक धार्ममक संप्रदाय को ऄवधकार है:
 धार्ममक एिं धमााथा प्रयोजनों के वलए संस्थाओं की स्थापना और वनिााह करने का,
 ऄपने स्ियं के मामलों का प्रबंधन और
 आसके वलए संपवि का ऄवधग्रहण।
नोट: यद्यवप ऄब एक व्यवि के वलए संपवि का ऄवधकार मूल ऄवधकार नहीं है, तथावप धार्ममक संप्रदाय
के सम्बन्ध में यह ईनका मूल ऄवधकार है।
 राज्य ऐसी संपवि के प्रशासन को विवनयवमत करने के वलए कानून बना सकता है, लेदकन प्रशावसत
करने के ऄवधकार को समग्र रूप से समाि नहीं कर सकता है।
हालांदक, यह स्ितंत्रता सािाजवनक व्यिस्था, नैवतकता और स्िास्थ्य के ऄधीन है।
ऄनुच्छेद 25 के साथ संबध

 ऄनुच्छेद 25, जहाँ दकसी व्यवि को धार्ममक स्ितंत्रता प्रदान करता है, िहीं ऄनुच्छेद 26 एक
धार्ममक संप्रदाय या ईसके दकसी ऄनुभाग से सम्बंवधत है।
ऄनुच्छेद 26 के ऄंतगात, प्रदि ऄवधकार नागररकों एिं विदेशी व्यवियों दोनों को ईपलब्ध हैं।

5.17. ऄनु च्छे द 27: दकसी भी विवशष्ट धमा की ऄवभिृ वद्ध के वलए करों के सं दाय के बारे
में स्ितं त्र ता
मूल पाठ
दकसी भी विवशष्ट धमा की ऄवभिृवद्ध के वलए करों के संदाय के बारे में स्ितंत्रता - दकसी भी व्यवि को
ऐसे करों का संदाय करने के वलए बाध्य नहीं दकया जायेगा वजनके अगम दकसी विवशष्ट धमा या धार्ममक
सम्प्रदाय की ऄवभिृवद्ध या पोषण में व्यय करने के वलए विवनर्ददष्ट रूप से विवनयोवजत दकये जाते हैं।
वििरण
 ऄनुच्छेद 27, राज्य द्वारा करों के माध्यम से एकत्र सािाजवनक धन को दकसी भी धमा की ऄवभिृवद्ध
के वलए खचा करने पर प्रवतबंध लगाता है। यह पंथवनरपेक्षता की मूल ऄिधारणा के ऄनुरूप है।

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राज्य दकसी भी विशेष धमा या धार्ममक संप्रदाय का संरक्षण नहीं कर सकता है। दूसरे शब्दों में, कर
के माध्यम से एकत्र जनता के धन को राज्य द्वारा दकसी विशेष धमा के रखरखाि या प्रसार पर खचा
नहीं दकया जाना चावहए। यह प्रािधान, राज्य द्वारा ऄन्य धमों की तुलना में दकसी एक धमा के पक्ष
में संरक्षण और समथान दकये जाने पर प्रवतबंध लगाता है। आसका ऄथा यह है दक करों का ईपयोग
सभी धमों के समान ऄनुरक्षण या प्रसार के वलए दकया जा सकता है, दकसी धमा विशेष के वलए
नहीं।
 यह प्रािधान के िल कर िसूलने पर प्रवतबन्ध लगाता है; शुल्क िसूलने पर नहीं। आसका कारण यह
है दक शुल्क का ईद्देश्य धार्ममक संस्थाओं के प्रशासन का पंथवनरपेक्ष स्िरूप को बनाए रखना है, न
दक धमा का ऄनुरक्षण या प्रसार करना। आस प्रकार, कु छ विशेष सेिा या सुरक्षा ईपाय प्रदान करने
के वलए तीथायावत्रयों से शुल्क िसूला जा सकता है तथा विवनयमन व्यय को पूरा करने के वलए
धार्ममक वनवध पर शुल्क लगाया जा सकता है।
ऄनुच्छेद 26 के ऄंतगात, प्रदि ऄवधकार नागररकों एिं विदेशी व्यवियों दोनों को ईपलब्ध हैं।

5.18. ऄनु च्छे द 28: कु छ वशक्षा सं स्थाओं में धार्ममक वशक्षा या धार्ममक ईपासना में
ईपवस्थत होने के बारे में स्ितं त्र ता
मूल पाठ
1. राज्य-वनवध से पूणत
ा ः पोवषत दकसी वशक्षा संस्था में कोइ धार्ममक वशक्षा नहीं दी जाएगी।
2. खंड (1) की कोइ बात ऐसी वशक्षा संस्था को लागू नहीं होगी वजसका प्रशासन राज्य करता है दकन्तु
जो दकसी ऐसे विन्यास या न्यास के ऄधीन स्थावपत हुइ है वजसके ऄनुसार ईस संस्था में धार्ममक वशक्षा
देना अिश्यक है।
3.राज्य से मान्यता प्राि या राज्य-वनवध से सहायता पाने िाली संस्था में ईपवस्थत होने िाले दकसी
व्यवि को ऐसी संस्था में दी जाने िाली धार्ममक वशक्षा में भाग लेने के वलए या ऐसी संस्था में या ईससे
संलग्न स्थान में की जाने िाली धार्ममक ईपासना में ईपवस्थत होने के वलए तब तक बाध्य नहीं दकया
जाएगा जब तक दक ईस व्यवि ने, या यदद िह ऄियस्क है तो ईसके संरक्षक ने, आसके वलए ऄपनी
सहमवत नहीं दे दी है।
वििरण
ऄनुच्छेद 28 के ऄनुसार,
 राज्य वनवध से पूणत
ा ः पोवषत दकसी वशक्षा संस्था में कोइ धार्ममक वशक्षा नहीं दी जाएगी।
 हालांदक, यह प्रािधान दकसी धमास्थ संस्था या ट्रस्ट द्वारा स्थावपत एिं राज्य द्वारा प्रशावसत
संस्थानों पर लागू नहीं होगा।
 आसके ऄवतररि, राज्य द्वारा मान्यता प्राि या अर्मथक सहायता प्राि वशक्षण संस्था में दकसी व्यवि
को दकसी धमा विशेष की वशक्षा ग्रहण करने के वलए बाध्य नहीं दकया जा सके गा। हालाँदक, दकसी
व्यवि को ईसकी सहमवत पर धार्ममक वनदेश प्रदान दकया जा सकता है। ध्यातव्य है दक व्यवि के
ऄल्पियस्क होने की वस्थवत में ईसके ऄवभभािक की सहमवत अिश्यक है।
5.19. ऄनु च्छे द 29: ऄल्पसं ख्यक िगों के वहतों का सं र क्षण

मूल पाठ
(1) भारत के राज्यक्षेत्र या ईसके दकसी भाग के वनिासी नागररकों के दकसी ऄनुभाग को, वजसकी
ऄपनी विशेष भाषा, वलवप या संस्कृ वत है, ईसे बनाए रखने का ऄवधकार होगा।
(2) राज्य द्वारा पोवषत या राज्य-वनवध से सहायता पाने िाली दकसी वशक्षा संस्था में प्रिेश से दकसी भी
नागररक को के िल धमा, मूलिंश, जावत, भाषा या आनमें से दकसी के अधार पर िंवचत नहीं दकया
जाएगा।

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वििरण
 ऄनुच्छेद 29(1) दकसी नागररक को ईसकी भाषा, वलवप एिं संस्कृ वत के संरक्षण का ऄवधकार
प्रदान करता है। ऄनुच्छेद 29(2) राज्य द्वारा शैक्षवणक संस्थाओं में प्रिेश की ऄनुमवत देने में दकये
जाने िाले विभेद का प्रवतषेध करता है।
 विशेष: ऄनुच्छेद 15 भाषा को विभेद के अधार के रूप में ईवल्लवखत नहीं करता है, जबदक
ऄनुच्छेद 29 में भाषा को शावमल दकया गया है।
 ऄनुच्छेद 29 भाषायी तथा धार्ममक ऄल्पसंख्यकों, दोनों को संरक्षण प्रदान करता है। परं तु, ईच्चतम
न्यायालय ने स्पष्ट दकया है दक आस ऄनुच्छेद का कायाक्षेत्र वसिा ऄल्पसंख्यकों तक सीवमत नहीं है।
ऄवपतु, यह जनसंख्या के “सभी िगों’’ को सवम्मवलत करता है वजसमें बहुसंख्यक भी शावमल हैं।
 चम्पकम दोराइराजन के िाद (1951) में वपछड़े िगों को प्रदान दकये गए अरक्षण को आस अधार
पर चुनौती दी गयी थी दक यह ऄनुच्छेद 29(2) का ईल्लंघन करता है। आसकी प्रवतदक्रया में
संविधान का प्रथम संशोधन ऄवधवनयम पाररत दकया गया, वजसके तहत अरक्षण के प्रािधान
सुवनवित करने के वलए ऄनुच्छेद 15 (4) को प्रविष्ट दकया गया।
 ऄनुच्छेद 29 और 30 दोनों के िल भारतीय नागररकों पर लागू होते हैं।

5.20. ऄनु च्छे द 30: वशक्षा सं स्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का ऄल्पसं ख्यक
िगों का ऄवधकार
मूलपाठ
1. धमा या भाषा पर अधाररत सभी ऄल्पसंख्यक-िगों को ऄपनी रुवच की वशक्षा संस्थाओं की स्थापना
और प्रशासन का ऄवधकार होगा।
(क) खंड (1) में वनर्ददष्ट दकसी ऄल्पसंख्यक-िगा द्वारा स्थावपत और प्रशावसत वशक्षा संस्था की संपवि के
ऄवनिाया ऄजान के वलए ईपबंध करने िाली विवध बनाते समय, राज्य यह सुवनवित करे गा दक ऐसी
संपवि के ऄजान के वलए ऐसी विवध द्वारा वनयत या ईसके ऄधीन ऄिधाररत रकम आतनी हो दक ईस
खंड के ऄधीन प्रत्याभूत ऄवधकार वनबावन्धत या वनराकृ त न हो जाए।
2. वशक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य दकसी वशक्षा संस्था के विरुद्ध आस अधार पर विभेद नहीं
करे गा दक िह धमा या भाषा पर अधाररत दकसी ऄल्पसंख्यक-िगा के प्रबंध में है।
वििरण
 ऄनुच्छेद 30 के ऄंतगात ऄल्पसंख्यकों (भाषायी या धार्ममक) को ऄपनी रूवच के शैवक्षक संस्थानों
की स्थापना एिं प्रशासन का ऄवधकार प्रदान दकया गया है। राज्य वशक्षा के क्षेत्र में ईत्कृ ष्टता को
बढ़ािा देने िाले वनयमों के वनमााण के ऄवतररि, ऄल्पसंख्यकों के आस ऄवधकार पर कोइ प्रवतबन्ध
नहीं लगा सकता।
 दकसी ऄल्पसंख्यक संस्था की संपवि का राज्य द्वारा ऄवधग्रहण कर वलए जाने की वस्थवत में यह
ईसके वलए पयााि क्षवतपूर्मत का प्रािधान करता है।
 आस तरह के संस्थानों को सहायता ईपलब्ध कराने में राज्य कोइ भेदभाि नहीं करे गा।
 हालाँदक, संविधान में ‘ऄल्पसंख्यक’ शब्द का ऄथा व्याख्यावयत नहीं दकया गया है। िस्तुतः आसका
अशय ‘गैर-प्रभािी’ समूह (non-dominant group) से है।
 के रल वशक्षा विधेयक तथा तत्पिात गुरु नानक देि विश्वविद्यालय के िाद में राष्ट्रपवत को दी गयी
ऄपनी सलाह में न्यायालय ने ऄल्पसंख्यकों की वस्थवत के वनधाारण हेतु कु छ मानक तय दकये हैं।
कें द्रीय स्तर पर, आसका अशय ईन समूहों से है वजनकी जनसंख्या, ऄवखल भारतीय स्तर पर 50
प्रवतशत से कम है। आसी प्रकार, राज्य स्तर पर भी राज्य की जनसंख्या के 50 प्रवतशत से कम
जनसंख्या िाले समूह ऄल्पसंख्यक समूह माने जाते हैं।

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5.20.1. ऄनु च्छे द 29 तथा 30 के मध्य सम्बन्ध

ऄनुच्छेद 29 जनसंख्या के सभी िगों के वलए ईपलब्ध एक सामान्य संरक्षण प्रािधान है। जबदक,
ऄनुच्छेद 30 के तहत के िल भाषाइ या धार्ममक ऄल्पसंख्यकों के वलए संरक्षण ईपलब्ध है।
ऄनुच्छेद 29 और 30 दोनों, के िल भारतीय नागररकों के वलए ईपलब्ध हैं।
महत्त्िपूणा िाद
सेंट स्टीिें स बनाम ददल्ली विश्वविद्यालय, 1992
 आस िाद में ईच्चतम न्यायालय ने अदेश ददया दक ऄल्पसंख्यक संस्थानों को ऄपनी िार्मषक प्रिेश
प्रदक्रया के दौरान कम से कम 50 प्रवतशत स्थान ऄन्य िगों के वलए ईपलब्ध कराने चावहए तथा
ऄन्य िगों के प्रिेश के वलए वसिा योग्यता को ही अधार माना जाना चावहए।
TMA पाइ िाईं डेशन और ऄन्य बनाम कनााटक राज्य, 2002
आस ऐवतहावसक वनणाय की प्रमुख विशेषताएँ वनम्नवलवखत हैं:
 सभी नागररकों को शैवक्षक संस्थान स्थावपत करने और ईनके प्रशासन का ऄवधकार है।
 ऄल्पसंख्यक वशक्षा संस्थानों के प्रशासन का ऄवधकार अत्यंवतक नहीं है।
 राज्य द्वारा गैर-सहायता प्राि ऄल्पसंख्यक वशक्षा संस्थानों की शैवक्षक ईत्कृ ष्टता सुवनवित करने के
वलए वनयम बनाया जा सकता है।
 वििपोवषत ऄल्पसंख्यक वशक्षा संस्थानों में प्रिेश हेतु ऄहा गैर-ऄल्पसंख्यक छात्रों का प्रवतशत राज्य
ऄथिा विश्वविद्यालय द्वारा वनधााररत दकया जाएगा।
 गैर सहायता प्राि ऄल्पसंख्यक वशक्षा संस्थानों के शुल्क को विवनयवमत नहीं दकया जाएगा, परं तु
कोइ भी संस्थान कै वपटेशन िीस नहीं िसूल सकता।
आस्लावमक एके डमी ऑफ़ एजुकेशन बनाम कनााटक राज्य, 2003
 आस िाद में, ईच्चतम न्यायालय ने TMA पाइ िाद में ददए गए ऄपने वनणाय को और ऄवधक स्पष्ट
दकया। वनणाय के ऄनुसार, ऄनुच्छेद 30 भाषायी एिं धार्ममक ऄल्पसंख्यकों को शैवक्षक संस्थानों की
स्थापना के वलए सम्पूणा ऄवधकार प्रदान करता है, परं तु सरकार ईच्च मानकों को सुवनवित करने के
वलए वनयम बना सकती है तथा ईन्हें वनयंवत्रत कर सकती है।

5.21. ऄनु च्छे द 31: सं प वि का ऄवनिाया ऄवधग्रहण (वनरस्त)

 आस ऄनुच्छेद के तहत संपवि का ऄवधकार प्रदान दकया गया था। परं तु, 1978 में 44िें संविधान
संशोधन ऄवधवनयम द्वारा आसे हटा ददया गया तथा ऄब यह एक मूल ऄवधकार नहीं िरन् ऄनुच्छेद
300A के तहत एक साधारण विवधक ऄवधकार है।
 19(1)(f) के द्वारा प्रदि आस मूल ऄवधकार को ऄनुच्छेद 31 द्वारा पूणत
ा ा प्रदान की गयी थी।
1978 में 44िें संविधान संशोधन के माध्यम से आन दोनों प्रािधानों को वनरवसत कर संविधान में
ऄनुच्छेद 300A प्रविष्ट दकया गया। आसके ऄनुसार “दकसी भी व्यवि को वबना ईवचत विवधक
प्रावधकरण के ईसकी वनजी संपवि से िंवचत नहीं दकया जा सके गा।” आसका ऄथा है-
 आस प्रकार, संपवि का ऄवधकार ऄब मूल ऄवधकार नहीं है ऄवपतु यह एक संिैधावनक एिं विवधक
ऄवधकार है। आसके ईल्लंघन के वलए कोइ सीधे ईच्च या ईच्चतम न्यायालय नहीं जा सकता।
 आसके ऄवतररि, यह व्यवि को वसिा एकपक्षीय कायापावलकीय कायािाही से सुरक्षा प्रदान करता
है, एकपक्षीय विधायी प्रदक्रयाओं से नहीं।
 ऄवधग्रहण की वस्थवत में राज्य ऄवनिाया रूप से क्षवतपूर्मत देने के वलए बाध्य नहीं है।

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ऄनुच्छेद 31A: संपदाओं अदद के ऄजान के वलये ईपबंध करने िाली विवधयों की व्यािृवत

 ऄनुच्छेद 31A को मूलत: संपवि का ऄवधकार (ऄनुच्छेद 31), ऄनुच्छेद 14 और ऄनुच्छेद

19(1)(f) के ऄपिाद के रूप में ऄवधवनयवमत दकया गया था, संपवि के ऄवधकार के ईत्सादन के

पिात् भी आस ऄनुच्छेद को बनाये रखा गया है।

 यह कानूनों की 5 श्रेवणयों को ऄनुच्छेद 14 और ऄनुच्छेद 19 द्वारा प्रदि मूल ऄवधकारों के


ईल्लंघन के अधार पर चुनौती ददए जाने और ऄिैध ठहराए जाने से सुरवक्षत करता है। ये श्रेवणयाँ
कृ वष, भूवम सुधार, ईद्योग और िावणज्य अदद से संबंवधत हैं।
 यह ऄनुच्छेद प्रथम संविधान संशोधन ऄवधवनयम द्वारा जोड़ा गया था। यह राज्य को व्यविगत
संपवियों के ऄजान की ऄनुमवत प्रदान करता है। संसद और राज्य विधानमंडल दोनों आस अशय के
कानूनों का वनमााण कर सकते हैं। हालाँदक यह ऄनुच्छेद राज्य द्वारा वनर्ममत दकसी कानून को तब
तक ईन्मुवि नहीं प्रदान करता, जब तक दक ईसे राष्ट्रपवत के विचार के वलए सुरवक्षत न कर वलया
जाये और राष्ट्रपवत द्वारा आस अशय की सहमवत प्राि न हो जाए।
 यदद राज्य दकसी ऐसे व्यवि की भूवम का ऄवधग्रहण करे , जो ईसकी ऄपनी जोत में है तथा यह
भूवम कानूनी रूप से लागू ऄवधकतम सीमा के भीतर है तो यह ऄनुच्छेद ईसे आसके बदले बाजार
कीमतों पर मुअिजे का प्रािधान करता है।
ऄनुच्छेद 31B: कु छ ऄवधवनयमों और विवनयमों का विवधमान्यीकरण

ऄनुच्छेद 31B, निीं ऄनुसच


ू ी में सवम्मवलत कानूनों को ऄनुच्छेद 14 और 19 के ईल्लंघन के अधार पर
ऄिैध ठहराए जाने से सुरक्षा प्रदान करता है।
निीं ऄनुसच
ू ी से संबवं धत वििाद
 भूवम सुधारों को बढ़ािा देने के वलए संविधान संशोधन के माध्यम से 1951 में संविधान में निीं
ऄनुसूची शावमल की गयी। आस ऄनुसूची का मूलभूत ईद्देश्य जमींदारी प्रथा को समाि करना था।
हालाँदक बाद में, आसका दुरूपयोग भी दकया जाने लगा और ितामान में निीं ऄनुसच
ू ी में भूवम
सुधार वनयमों के ऄलािा ऄन्य बहुत से वििाददत वनयम भी सवम्मवलत कर वलए गए हैं यथा:
तवमलनाडु का 69 प्रवतशत अरक्षण का वनयम जो अरक्षण हेतु ईच्चतम न्यायालय द्वारा तय 50
प्रवतशत की ईच्चतम सीमा का ईल्लंघन करता है।
 निीं ऄनुसच
ू ी में सवम्मवलत सभी विषयों को पूणा सुरक्षा प्रदान करने िाला ऄनुच्छेद 31B,
भूतलक्षी प्रभाि भी रखता है। ऄतः यदद दकसी विधान को दकसी न्यायालय द्वारा ऄसंिैधावनक भी
घोवषत कर ददया गया हो तो आस ऄनुसच
ू ी में शावमल होने की वस्थवत में आसे लागू होने की वतवथ से
संिैधावनक मान वलया जाएगा।
 हालाँदक 2007 के अइ.अर.कोवहलो िाद में ईच्चतम न्यायालय ने वनणाय ददया दक 24 ऄप्रैल

1973 (के शिानंद भारती िाद के वनणाय की वतवथ) के बाद निीं ऄनुसूची में शावमल दकसी भी

कानून को ऄनुच्छेद 14, 19, 20 और 21 द्वारा प्रदि मूल ऄवधकारों के ईल्लंघन के अधार पर
चुनौती दी जा सकती है। ईच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा है दक यदद निीं ऄनुसच
ू ी में सवम्मवलत
कोइ कानून संविधान द्वारा प्रदि मूल ऄवधकारों को आस प्रकार संवक्षि या वनषेवधत करते हैं दक
संविधान के मूल ढांचे को नुकसान पहुँचता है तो ऐसे कानून न्यावयक पुनर्मिलोकन के दायरे में
अयेंगे तथा शून्य माने जायेंगे।

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ऄनुच्छेद 31C: नीवत वनदेशक तत्िों को प्रभािी करने िाले कानूनों का संरक्षण

 ऄनुच्छेद 31C को 25िें संविधान संशोधन द्वारा 1971 में शावमल दकया गया था। यह ऄनुच्छेद

39(b) और 39(c) में वनवहत नीवत वनदेशक तत्िों के दक्रयान्ियन हेतु वनर्ममत दकसी कानून को

ऄनुच्छेद 14, 19 तथा 31 के ईल्लंघन के अधार पर ऄिैध ठहराए जाने से सुरक्षा प्रदान करता है।

 मूलतः ऄनुच्छेद 31C के दो भाग थे। प्रथम भाग ऄनुच्छेद 39(b) और 39(c) में ईवल्लवखत

वसद्धांतों पर वनर्ममत राज्य की दकसी नीवत को ऄनुच्छेद 14, 19 तथा 31 द्वारा प्रदि मूल
ऄवधकारों के ईल्लंघन के अधार पर शून्य घोवषत न दकये जाने का प्रािधान करता है।
 जबदक, आसका दूसरा भाग ऄनुच्छेद 39(b) और 39(c) को प्रभािी बनाने के ईद्देश्य से बनायी
गयी विवधयों को न्यावयक पुनर्मिलोकन के दायरे से बाहर करता है और यह प्रािधान करता है दक
ऐसी विवध न्यायालय में आस अधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी दक ईसने ऄनुच्छेद 39(b) और

39(c) को प्रभािी बनाया है या नहीं।


 हालाँदक के शिानंद भारती िाद में ईच्चतम न्यायालय ने आसके दूसरे भाग को ऄसंिैधावनक एिं
शून्य घोवषत कर ददया क्योंदक यह न्यायालय द्वारा न्यावयक पुनर्मिलोकन की शवि को सीवमत
करता था, जो दक संविधान के मूल ढांचे का वहस्सा है।

 बाद में, 42िें संविधान संशोधन के माध्यम से आस ऄनुच्छेद का कायाक्षेत्र और बढ़ा कर सभी नीवत
वनदेशक तत्िों को दकसी भी मूल ऄवधकार के उपर प्राथवमकता प्रदान कर दी गयी। आसके ऄनुसार
कोइ भी ऐसा कानून जो दकसी भी नीवत वनदेशक तत्ि {न दक वसिा ऄनुच्छेद 39(b) और 39(c)}

को प्रभािी बनाता है, ईसे ऄनुच्छेद 14 तथा 19 के ईल्लंघन के अधार पर शून्य घोवषत नहीं
दकया जा सकता।
 हालाँदक, 1980 में वमनिाा वमल िाद में ईच्चतम न्यायालय द्वारा ईपरोि प्रािधान को रद्द कर
ददया गया एिं मूल ऄवधकारों एिं नीवत वनदेशक तत्िों के मध्य संतल
ु न पुनस्थाावपत कर ददया
गया।

5.22. ऄनु च्छे द 32 : सं िै धावनक ईपचारों का ऄवधकार

मूल पाठ
भाग III द्वारा प्रदि ऄवधकारों को प्रिर्मतत कराने के वलए ईपचार -
 आस भाग द्वारा प्रदि ऄवधकारों को प्रिर्मतत कराने के वलए समुवचत कायािावहयों द्वारा ईच्चतम
न्यायालय में समािेदन करने का ऄवधकार प्रत्याभूत दकया जाता है।
 आस भाग द्वारा प्रदि ऄवधकारों में से दकसी को प्रिर्मतत कराने के वलए ईच्चतम न्यायालय को ऐसे
वनदेश या अदेश या ररट, वजनके ऄंतगात बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रवतषेध, ऄवधकार-पृच्छा

और ईत्प्रेषण ररट हैं, जो भी समुवचत हो, वनकालने की शवि होगी।

 ईच्चतम न्यायालय को खंड (1) और खंड (2) द्वारा प्रदि शवियों पर प्रवतकू ल प्रभाि डाले वबना,

संसद, ईच्चतम न्यायालय द्वारा खंड (2) के ऄधीन प्रयोिव्य दकन्हीं या सभी शवियों का दकसी
ऄन्य न्यायालय को ऄपनी ऄवधकाररता की स्थानीय सीमाओं के भीतर प्रयोग करने के वलए विवध
द्वारा सशि कर सके गी ऄथाात् संसद को यह शवि प्राि है दक िह दकसी ऄन्य न्यायलय को सभी
प्रकार के वनदेश, अदेश और ररट जारी करने की शवि प्रदान करे ।

 आस संविधान द्वारा ऄन्यथा ईपबंवधत के वसिाय, आस ऄनुच्छेद द्वारा प्रत्याभूत ऄवधकार वनलंवबत
नहीं दकया जाएगा।

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वििरण
 ऄनुच्छेद 32 (1) मूल ऄवधकारों के प्रितान के वलए ईच्चतम न्यायालय में समािेदन एिं ईपचार का
ऄवधकार प्रदान करता है। हालांदक, आसमें समुवचत कायािाही के माध्यम से ही ईच्चतम न्यायालय
जाने का ईल्लेख है। यह ईच्चतम न्यायालय का किाव्य और व्यवियों का ऄवधकार है।
 ईच्चतम न्यायलय समुवचत कायािाही को वनधााररत कर सकता है। परं परागत दृवष्टकोण यह है दक
न्यायालय में समािेदन करने िाले व्यवि द्वारा िाद ईवचत प्रदक्रया द्वारा दायर (locus standi)
दकया जाना चावहए। हालांदक, ईच्चतम न्यायालय ने आस दृवष्टकोण को जनवहत यावचका, स्ितः
संज्ञान (Suo Moto), पत्र व्यिहार अदद प्रदक्रयाओं के द्वारा ईदार बनाया है।
ऄनुच्छेद 32 का महत्ि
 सभी मूल ऄवधकारों की श्रृंखला में संिैधावनक ईपचारों का ऄवधकार ऄत्यंत महत्िपूणा ऄवधकार
है। साथ ही, मूल ऄवधकारों के प्रितान के वलए एक प्रभािी तंत्र का विद्यमान होना ऄवनिाया हैं एिं
ईपचारों के वबना ऄवधकारों की घोषणा मूल्यहीन है।
 ऄनुच्छेद 32 की ऄनुपवस्थवत में ऄन्य मूल ऄवधकारों की ईपादेयता संददग्ध हो जाती है, क्योंदक
यह मूल ऄवधकार ही नागररकों को दकसी ऄन्य मूल ऄवधकारों की ईल्लंघन की दशा में न्यायालय
जाने का ऄवधकार प्रदान करता है और विधावयका या कायापावलका द्वारा दकसी भी मूल ऄवधकारों
के ईल्लंघन करने िाली विवध को शून्य घोवषत करता है ऄथाात यह ईच्चतम न्यायालय की न्यावयक
पुनर्मिलोकन शवियों को भी दशााता है। ईच्चतम न्यायालय ने अइ.अर.कोहेलो बनाम तवमलनाडु
राज्य (2007) िाद में कहा है दक ऄनुच्छेद 32 संविधान के मूल ढाँचे का ऄवभन्न ऄंग है। आस
ऄनुच्छेद ने ही मूल ऄवधकारों के संरक्षक के रूप में ईच्चतम न्यायालय की स्थापना की है। मूल
ऄवधकार के महत्ि को देखते हुए ही शायद भीमराि ऄम्बेडकर ने आसे भारतीय संविधान की
अत्मा कहकर संबोवधत दकया था।
 आस ऄनुच्छेद के ऄंतगात ईच्चतम न्यायालय को संविधान द्वारा प्रदि मूल ऄवधकारों के लागू करने के
वलए अिश्यक वनदेश, अदेश, लेख या ररट जारी करने का ऄवधकार प्राि है। यह ऄनुच्छेद विशेष
रूप से वनम्न वलवखत लेखों का ईल्लेख करता है :
i. बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus): बंदी प्रत्यक्षीकरण ररट ईच्चतम न्यायालय या ईच्च
न्यायालय द्वारा ईस व्यवि के संबंध में जारी एक अदेश है, वजसे वहरासत में वलया गया है या
वनरुद्ध दकया गया हो (आसका ऄथा ईसके स्ितंत्रता के मूल ऄवधकार का ईल्लंघन है)। आसके तहत
न्यायलय, वहरासत में वलए गए व्यवि को सशरीर ऄदालत के सामने प्रस्तुत करने का अदेश जारी
करता है। तत्पिात, ऄदालत ईसकी वहरासत में वलए जाने के कारण की जाँच करती है और ऄगर
ईसकी वहरासत का कोइ कानूनी औवचत्य नहीं है, तो ईसे मुि दकया जा सकता है।
ii. परमादेश (Mandamus): मैंडमस का ऄथा है ‘हम अदेश देते हैं’। ईच्चतम न्यायालय या ईच्च
न्यायालय दकसी व्यवि, कॉपोरे शन, वनचली ऄदालत, सािाजवनक प्रावधकरण या राज्य प्रावधकरण
को, जब िह ऄपने विवधक कताव्यों का वनिाहन न कर रहा हो एिं ईससे दकसी व्यवि का मूल
ऄवधकार प्रभावित हो रहा हो तो ईसको ऄपना कताव्य वनभाने के वलए अदेश देता है।
iii. ईत्प्रेषण (Certiorari): शावब्दक रूप से certiorari का ऄथा है: प्रमावणत होना। ईत्प्रेषण ररट पहले
से ही एक ऄिर न्यायालय, ऄवधकरण या ऄधा-न्यावयक प्रावधकारी द्वारा पाररत अदेश को वनरस्त
करने के वलए ईच्चतम न्यायालय या दकसी ईच्च न्यायालय द्वारा जारी की जा सकती हैं। ईत्प्रेषण की
ररट जारी करने के वलए कइ पररवस्थवतयों का होना अिश्यक है। जब भी कोइ विवधक वनकाय
वजसे जनता के ऄवधकार को प्रभावित करने िाले दकसी प्रश्न को ऄिधाररत करने का विवधक
प्रावधकार है और वजसका किाव्य है दक िह न्यावयक रीवत से काया करे , ऄपने विवधक प्रावधकार से
बाहर जाकर काया करता है तो ईस विवनिय को विखंवडत करने के वलए जो ईसकी ऄवधकाररता
से बाहर है, ईत्प्रेषण की ररट जारी की जाती है।

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iv. प्रवतषेध (Prohibition): प्रवतषेध ररट का ऄथा रोकना या मना करना होता है और यह स्थगन
अदेश (स्टे अडार) के रूप में लोकवप्रय है। यह ररट तब जारी की जाती है जब कोइ वनचली ऄदालत
या वनकाय ऄपने प्रावधकार के ऄवतक्रमण का प्रयास करता है। प्रवतषेध की ररट दकसी वनचली
ऄदालत या ऄधा-न्यावयक वनकाय को दकसी विशेष िाद में, जहाँ आन वनकायों को कारा िाइ का

ऄवधकार न हो, कायािाही करने से रोकने के वलए ईच्च न्यायालय या ईच्चतम न्यायालय द्वारा जारी
की जाती है। आस ररट के जारी दकये जाने के बाद वनचली ऄदालत में होने िाली कायािाही रुक
जाती है।
प्रवतषेध और ईत्प्रेषण में ऄंतर :
 जहां प्रवतषेध ररट प्रदक्रया या कायािाही के वनलंबन के दौरान ईपलब्ध होती हैं, िही ईत्प्रेषण ररट
के िल अदेश या वनणाय की ईद्घोषणा के बाद ही जारी की जा सकती है। दोनों ही ररट विवधक
वनकायों के विरुद्ध जारी की जा सकती हैं।
v. ऄवधकार पृच्छा (Quo warranto)

ऄवधकार पृच्छा का ऄथा है "दकस िारं ट द्वारा?" या "अपका प्रावधकार क्या है?" यह दकसी व्यवि
को दकसी ऐसे सािाजवनक पद को धारण करने से रोकने की दृवष्ट से जारी दकया गया ररट है वजसे
धारण करने के िह योग्य नहीं है। ररट जारी करने के बाद यह अिश्यक हो जाता है दक सम्बद्ध
व्यवि ऄदालत के समक्ष आस बात की व्याख्या करे दक िह दकस प्रावधकार से ईि पद धारण करता
है।
ऄवधकार पृच्छा जारी करने के वलए शतें:
 कायाालय सािाजवनक होना चावहए और यह दकसी विवध या स्ियं संविधान द्वारा स्थावपत होना
अिश्यक है।
 आसके वलए एक मूल कायाालय का होना अिश्यक है और आसके प्रकाया के िल ऄधीनस्थ के रूप में
दकसी और के प्रसाद पयांत नहीं होने चावहए ।
 ऐसे दकसी व्यवि की ईस पद पर वनयुवि में संविधान या विवध ऄथिा िैधावनक ईपकरण का
ईल्लंघन न हुअ हो।
ऄनुच्छेद 32 (3)
संसद मूल ऄवधकारों को लागू करने के वलए दकसी भी ऄन्य ऄदालत को ऄवधकृ त कर सकती है।
शते:ँ
 ऐसा करने के ईपरांत ईच्चतम न्यायालय की शवियां नकारात्मक रूप से प्रभावित न हों।
 ऄन्य ऄदालत वजसे ररट जारी करने के वलए प्रावधकृ त दकया गया है; ईसकी शवियां ईसके
ऄवधकार क्षेत्र की स्थानीय सीमाओं के भीतर सीवमत हों।
ऄनुच्छेद 32 (4)

यह ऄनुच्छेद 359 के तहत वनधााररत विशेष तरीके से ऄनुच्छेद 32 के वनलंबन का प्रािधान करता है।
ऄनुच्छेद 359- राष्ट्रीय अपातकाल की घोषणा के दौरान मौवलक ऄवधकारों का वनलंबन

 ऄनुच्छेद 19, जो बाह्य अक्रमण या युद्ध के अधार पर स्ितः वनलंवबत हो जाता है; को छोड़कर
ऄन्य ऄवधकारों का वनलंबन स्ितः नहीं होता।
 ऄनुच्छेद 20 और 21 के तहत प्रदि ऄवधकार कभी वनलंवबत नहीं दकये जाते। शेष ऄवधकारों को

तभी वनलंवबत दकया जा सकता है, जब राष्ट्रपवत दकसी ऄवधकार को वनलंवबत करने के वलए अदेश

जारी करे । ऄपने अदेश में राष्ट्रपवत को वनलंवबत दकये जाने िाले ऄवधकार, ईसकी वनलंबन की
ऄिवध तथा ईसकी भौगोवलक सीमा का स्पष्ट वििरण देना होता है।

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5.23. ऄनु च्छे द 33 - मू ल ऄवधकारों के , सु र क्षा बलों अदद पर लागू होने में , ईपां त रण
करने की सं स द की शवि
मूल पाठ
आस भाग द्वारा प्रदि ऄवधकारों का, सुरक्षा बलों अदद पर लागू होने में, ईपांतरण करने की संसद की
शवि- संसद, विवध द्वारा ऄिधारण कर सके गी दक आस भाग द्वारा प्रदि ऄवधकारों में से कोइ-
(क) सशस्त्र बलों के सदस्यों को, या
(ख) लोक व्यिस्था बनाए रखने का भारसाधन करने िाले बलों के सदस्यों को, या
(ग) असूचना या प्रवत असूचना के प्रयोजनों के वलए राज्य द्वारा स्थावपत दकसी ब्यूरो या ऄन्य संगठन
में वनयोवजत व्यवियों को, या
(घ) खंड (क) से खंड (ग) में वनर्ददष्ट दकसी बल, ब्यूरो या संगठन के प्रयोजनों के वलए स्थावपत दूरसंचार
प्रणाली में या ईसके संबंध में वनयोवजत व्यवियों को,
लागू होने में, दकस विस्तार तक वनबावन्धत या वनराकृ त दकया जाए वजससे ईनके कताव्यों का ईवचत
पालन और ईनमें ऄनुशासन बना रहना सुवनवित रहे।
वििरण
 ऄनुच्छेद 33 संसद को यह ऄवधकार देता है दक िह सशस्त्र बलों, ऄद्धासैवनक बलों, पुवलस बलों
आत्यादद के मूल ऄवधकारों को सीवमत या कु छ स्तर तक युवियुि रूप से प्रवतबंवधत कर सके ।
परं त,ु आसका ऄथा यह नहीं दक यह ऄनुच्छेद स्ियं दकसी ऄवधकार का प्रवतषेध करे गा।
 आस ऄनुच्छेद का काया संसदीय विधानों की प्रकृ वत पर वनभार करे गा, भले ही िे आस ऄनुच्छेद को
संदर्मभत न करें । संसद द्वारा वनर्ममत आस प्रकार का विधान समानता, ऄवभव्यवि की स्ितंत्रता, संघ
वनमााण की स्ितंत्रता, व्यविगत स्ितंत्रता अदद के रूप में दकसी भी मूल ऄवधकार के संचालन को
प्रवतबंवधत कर सकता है। पुवलस बल (विशेषावधकार के प्रवतबंध) ऄवधवनयम, 1966 संसद द्वारा
पाररत एक ऐसा ही ऄवधवनयम है। आसे ईच्चतम न्यायालय में चुनौती भी दी गयी थी, परं तु आसे िैध
घोवषत दकया गया।
5.24. ऄनु च्छे द 34 - क्षे त्र में से ना विवध प्रिृ ि है तब आस भाग द्वारा प्रदि ऄवधकारों
पर वनबा न्धन
मूल पाठ
जब दकसी क्षेत्र में सेना विवध प्रिृि है तब आस भाग द्वारा प्रदि ऄवधकारों पर वनबान्धन-
आस भाग के पूिागामी ईपबंधों में दकसी बात के होते हुए भी, संसद विवध द्वारा संघ या दकसी राज्य की
सेिा में दकसी व्यवि की या दकसी ऄन्य व्यवि की दकसी ऐसे काया के संबध में क्षवतपूर्मत कर सके गी जो
ईसने भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर दकसी ऐसे क्षेत्र में, जहाँ सेना विवध प्रिृि थी, व्यिस्था के बनाए
रखने या पुनःस्थापन के संबंध में दकया है या ऐसे क्षेत्र में सेना विवध के ऄधीन पाररत दंडादेश, ददए गए
दंड, अददष्ट समपहरण या दकए गए ऄन्य काया को विवधमान्य कर सके गी।
वििरण
 यह ऄनुच्छेद ‘माशाल लॉ’ के लागू होने की वस्थवत में मूल ऄवधकारों को सीवमत या प्रवतबंवधत
करने से संबंवधत है।
 माशाल लॉ की पररभाषा संविधान में नहीं दी गइ है। ककतु, आसका सामान्य ऄथा ऐसे सैन्य कानूनों
से है जो दकसी ऄशांत क्षेत्र में सामान्य प्रशासन के संचालन हेतु साधारण कानून को वनलंवबत करके
सेना को प्रशासन चलाने हेतु प्रावधकृ त करने से हैं।
 माशाल लॉ को लागू करने हेतु ऄसाधारण पररवस्थवतयाँ जैसे युद्ध, ऄशांवत, दंगे या कानून का
ईल्लंघन अदद होनी चावहए।

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 आसके कायाान्ियन के दौरान एिं कानून व्यिस्था बनाए रखने हेतु दकए गए कृ त्यों हेतु सरकारी
कमाचारी को सुरक्षा प्रदान की गइ है।
 आसके दक्रयान्ियन के दौरान मूल ऄवधकारो पर प्रवतबन्ध को आस अधार पर चुनौती नहीं दी जा
सकती दक यह मूल ऄवधकार का ईल्लंघन करता है।
 ऄनुच्छेद 34 के तहत घोवषत माशाल लॉ एिं ऄनुच्छेद 352 के घोवषत राष्ट्रीय अपातकाल में वनम्न
ऄंतर हैः

माशाल लॉ राष्ट्रीय अपातकाल

यह के िल मूल ऄवधकारों को प्रभावित आससे वसिा मूल ऄवधकार ही प्रभावित नहीं होते ऄवपतु
करता है। यह कें द्र-राज्य सम्बन्ध, राजस्ि वितरण एिं कें द्र तथा
राज्य की विधायी शवियों पर भी प्रभाि डालता है और
सरकार का कायाकाल भी बढ़ सकता है।

यह सरकार और अम कानूनी ऄदालतों को आसमें सरकार और अम कानूनी ऄदालतें काया करती हैं।
वनलंवबत कर देता है।

यह दकसी भी कारण की िजह से कानून यह वसिा तीन अधारों पर लगाया जा सकता है - युद्ध,
एिं व्यिस्था में अए व्यिधान को समाि बाह्य अक्रमण ऄथिा सशस्त्र विद्रोह।
करता है।

यह देश के कु छ विवशष्ट स्थानों पर ही लागू यह या तो पूरे देश में या आसके दकसी भी वहस्से में लगाया
दकया जाता है। जा सकता है।

आसके सन्दभा में संविधान में कोइ विवशष्ट आसके सन्दभा में संविधान में विवशष्ट एिं विस्तृत प्रािधान
प्रािधान नहीं दकया गया है। यह एक दकये गए हैं। यह स्पष्ट है।
ईपलवक्षत (ऄंतर्मनवहत) प्रािधान है।

5.25. ऄनु च्छे द 35: भाग III के ईपबं धों को प्रभािी करने के वलये विधान

मूल पाठ
आस भाग के ईपबंधों को प्रभािी करने के वलए विधान- आस संविधान में दकसी बात के होते हुए भी,-
(क) संसद को शवि होगी और दकसी राज्य के विधान-मंडल को शवि नहीं होगी दक िह-
(i) वजन विषयों के वलए ऄनुच्छेद 16 के खंड (3), ऄनुच्छेद 32 के खंड (3), ऄनुच्छेद 33 और ऄनुच्छेद
34 के ऄधीन संसद विवध द्वारा ईपबंध कर सके गी ईनमें से दकसी के वलए, और
(ii) ऐसे कायों के वलए, जो आस भाग के ऄधीन ऄपराध घोवषत दकए गए हैं, दंड विवहत करने के वलए,
विवध बनाए और संसद आस संविधान के प्रारं भ के पिात् यथाशक्य शीघ्र ऐसे कायों के वलए, जो ईपखंड
(iii) में वनर्ददष्ट हैं, दंड विवहत करने के वलए विवध बनाएगी;
(ख) खंड (क) के ईपखंड (i) में वनर्ददष्ट विषयों में से दकसी से संबंवधत या ईस खंड के ईपखंड (ii) में
वनर्ददष्ट दकसी काया के वलए दंड का ईपबंध करने िाली कोइ प्रिृि विवध, जो भारत के राज्यक्षेत्र में आस
संविधान के प्रारं भ से ठीक पहले प्रिृि थी, ईसके वनबंधनों के और ऄनुच्छेद 372 के ऄधीन ईसमें दकए
गए दकन्हीं ऄनुकूलनों और ईपांतरणों के ऄधीन रहते हुए तब तक प्रिृि रहेगी जब तक ईसका संसद
द्वारा पररितान या वनरसन या संशोधन नहीं कर ददया जाता है।
स्पष्टीकरण -आस ऄनुच्छेद में, ''प्रिृि विवध'' पद का िही ऄथा है जो ऄनुच्छेद 372 में है।

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वििरण
 आसका ईद्देश्य कु छ विशेष मूल ऄवधकारों को प्रभािी बनाने एिं ईनके ईल्लंघन की दशा में दंवडत
करने हेतु पूरे देश में कानूनों के संमरूपता हेतु संसद को शविसंपन्न करना है।
 आस प्रकार के विवध वनमााण की शवि मात्र संसद के पास है, राज्य विधानमंडल के पास नहीं।
 कु छ विशेष मूल ऄवधकारों को प्रभािी बनाने संबंधी संसद की शवि यथाः
o ऄनुच्छेद 16 - दकसी राज्य, कें द्रशावसत या स्थानीय प्रावधकरणों में रोजगार हेतु वनिास
संबंधी ऄवनिायाता।
o ऄनुच्छेद 32 - मूल ऄवधकारों के दक्रयान्ियन हेतु ईच्चतम या ईच्च न्यायालय के ऄवतररि ऄन्य
न्यायालयों को प्रावधकृ त करना।
o ऄनुच्छेद 33 - विवभन्न सशस्त्र बलो, ऄधासैवनक बलों, खुदिया एजेंवसयों के समुवचत
दक्रयाकलाप एिं ऄनुशासन को बनाए रखने हेतु मूल ऄवधकारों पर प्रवतबंध हेतु।
o ऄनुच्छेद 34 - माशाल लॉ के कायाान्ियन के दौरान वनष्पाददत कृ त्यों के क्षवतपूर्मत हेतु।
 मूल ऄवधकारों के ईल्लंघन की ददशा में दंवडत करने हेतु संसद की शवि यथा :
o ऄनुच्छेद 17 - ऄस्पृश्यता की समावि एिं छु अछू त के अचरण को दंवडत करने हेतु विवध
वनमााण संबंधी शवि। ईदाहरण के वलए, नागररक ऄवधकार संरक्षण ऄवधवनयम, 1955 एिं
ऄनुसूवचत जावत एिं जनजावत (ऄत्याचार वनिारण) संशोधन ऄवधवनयम, 2015 बनाया
गया है।
o ऄनुच्छेद 23 - मानिीय दुव्यापार एिं बलात् श्रम को रोकने हेतु ऄवधवनयम। ईदाहरण के
वलए, ऄनैवतक दुव्याापार (वनिारण) ऄवधवनयम,1956 एिं बंधअ
ु मजदूरी व्यिस्था (वनरसन)
ऄवधवनयम, 1976।
ऄनुच्छेद 35 A एिं संबवं धत वििाद
 संविधान के ऄनुच्छेद 370(1)(D) के तहत जारी राष्ट्रपवत के अदेश द्वारा 1954 में ऄनुच्छेद 35A
को संविधान के पररवशष्ट में शावमल दकया गया था। संविधान का ऄनुच्छेद 35A राज्य के "स्थायी
वनिावसयों" और ईनके विशेष ऄवधकारों को पररभावषत करने के वलए जम्मू-कश्मीर विधानमंडल
को शवि प्रदान करता है।
 आसके तहत राज्य के बाहर वििाह करने िाली मवहलाओं को संपवि के ऄवधकारों से िंवचत कर कर
ददया जाता है। आन ऄवधकारों से ईनके बच्चे भी िंवचत रहेंग।े ऄनुच्छेद 35A बाहरी व्यवि को जम्मू
और कश्मीर राज्य में संपवि खरीदने से प्रवतबंवधत करता है।
 हाल ही में, ईच्चतम न्यायालय में दायर ऄनुच्छेद 35A की संिैधावनकता पर वनणाय संबंधी
यावचका पर 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा सुनिाइ की जाएगी।
वििाद:
 संविधान में आसे ऄनुच्छेद-368 के तहत वनधााररत संशोधन प्रदक्रया के माध्यम से शावमल नहीं
दकया गया था। आसे शावमल करने हेतु संसद के कानून बनाने के िैधावनक मागा का ऄनुसरण नहीं
दकया गया था। यह दलील है दक जहां तक सरकारी नौकरी और भूवम खरीद का संबंध है, गैर-

वनिावसयों के वखलाि यह भेदभािपूणा कदम है। आस प्रकार यह ऄनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत


मूल ऄवधकारों का ईल्लंघन है।
 पविमी पादकस्तान से अए कु छ शरणार्मथयों (जो विभाजन के दौरान भारत में अये थे) ने जम्मू
और कश्मीर के स्थायी वनिावसयों के विशेष ऄवधकारों और विशेषावधकारों को संरक्षण प्रदान
करने िाले संविधान के ऄनुच्छेद 35A को चुनौती देने िाली यावचका को ईच्चतम न्यायालय में
दावखल दकया है।

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5.26. क्या मू ल ऄवधकार अत्यं वतक हैं ?

मूल ऄवधकार दकसी व्यवि को अत्यंवतक शवियां नहीं प्रदान करते। ये युवियुि रूप से सीवमत
(restricted) ऄवधकार हैं। गोपालन िाद (1950) में ईच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट कहा था दक अत्यंवतक

स्ितंत्रता जैसी कोइ भी संकल्पना ऄवस्तत्ि नहीं रखती क्योंदक ऐसी वस्थवत ऄराजकता की वस्थवत बना
सकती है। िहीं दूसरी ओर, यदद राज्य को अत्यंवतक ऄवधकार प्राि हो जाएँ तो तानाशाही का ईदय

होगा। मूल ऄवधकारों का ईद्देश्य विवध के शासन की स्थापना है और आसीवलए व्यवि के ऄवधकारों एिं
सामावजक ऄपेक्षाओं के मध्य संतुलन का होना ऄत्यवधक अिश्यक है। यही कारण है दक संविधान

संसद को यह शवि प्रदान करता है दक िह व्यवि के मूल ऄवधकारों पर युवियुि एिं तका संगत
प्रवतबन्ध लगा सके ।
युवियुि प्रवतबंधों के प्रमुख अधार वनम्नांदकत हैं:
 ऄनुच्छेद 19(2) में िर्मणत अधार

 मवहलाओं और बच्चों सवहत ऄनुसूवचत जावत, ऄनुसूवचत जनजावत, ऄन्य वपछड़ा िगा और समाज

के ऄन्य कमजोर िगों की ईन्नवत

 अम जनता, सािाजवनक व्यिस्था, शालीनता और नैवतकता के वहत में

 भारत की संप्रभुता और ऄखंडता


 राज्य की सुरक्षा
 विदेशी राज्यो के साथ वमत्रतापूणा संबंध

मूल ऄवधकारों पर अपातकाल का प्रभाि


 ऄनुच्छेद 358 एिं 359 राष्ट्रीय अपातकाल में मूल ऄवधकार पर प्रभाि का िणान करते है।

ऄनुच्छेद 358, ऄनुच्छेद 19 द्वारा प्रदि मूल ऄवधकारों के वनलंबन से संबंवधत है, जबदक ऄनुच्छेद

359 ऄन्य मूल ऄवधकारों के वनलंबन (ऄनुच्छेद 20 और 21 द्वारा प्रदि मूल ऄवधकारों के

ऄवतररि) से संबंवधत है।


 जब कभी संविधान के ऄनुच्छेद 352 के ऄंतगात युद्ध ऄथिा बाह्य अक्रमण के कारण (ककतु सशस्त्र

विद्रोह के अधार पर नहीं) अपातकाल की ईद्घोषणा की जाती है तो संविधान के ऄनुच्छेद 19 में

ईल्लेवखत स्ितंत्रता संबधी ऄवधकार का दक्रयान्ियन वनलंवबत रहता है। ईपरोि अधार पर
अपातकाल की ईद्घोषणा के ईपरांत राष्ट्रपवत संविधान के ऄनुच्छेद 359 के ऄंतगात एक दूसरा

अदेश जारी कर ऄन्य मूल ऄवधकारों के दक्रयान्ियन को भी स्थवगत कर सकता है।

5.27. मू ल ऄवधकारों की अलोचना

 यद्यवप ये मूल ऄवधकारों कहे जाते हैं, परन्तु आन पर ऄसंख्य प्रवतबंध हैं। आसके ऄवतररि

‘युवियुिता’ में क्या शावमल है, यह न्यायालयों की बदलती व्याख्याओं पर वनभार करता है।

 ये ऄवधकार के िल राजनीवतक ऄवधकार प्रदान करते हैं। हालांदक राजनीवतक स्ितंत्रता तब तक


व्यथा है, जब तक दक सामावजक और अर्मथक स्ितंत्रता न प्राि हो।

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 ये ऄवधकार ऄपररितानीय नहीं हैं। संसद द्वारा आसमें कटौती की जा सकती है। आनमें से ऄवधकांश
राष्ट्रीय अपातकाल के दौरान वनलंवबत हो जाते हैं।

 मूल ऄवधकारों के ईल्लंघन के सन्दभा में, ईपचार कािी महंगा, ऄवधक समय लेने िाला और

व्यिहार में ऄवधकांश जनसंख्या की पहुँच से बाहर है।

5.28. मू ल ऄवधकारों का महत्ि

 ईपयुाि अलोचनाओं के बािजूद, मूल ऄवधकार हमारे देश की ईदार लोकतांवत्रक ढांचे की

अधारवशला का वनमााण करते हैं। स्ितंत्रता के बाद के ऄनुभि से पता चलता है दक न के िल आसने

लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत बनाने में मदद की है; ऄवपतु न्यायालयों की ईदार व्याख्या ने

व्यविगत ऄवधकारों के दायरे का ऄत्यंत विस्तार भी दकया है। ितामान में ये कायाकारी वनरं कुशता
और विधायी मनमानेपन के विरुद्ध एक महत्िपूणा संरक्षण प्रदान करते हैं।

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Classroom Study Material

भारतीय संविधान एिं शासन


5. राज्य के नीवत वनदेशक तत्ि

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विषय सूची
1. राज्य के नीवत वनदेशक तत्ि (DPSP): एक पररचय ____________________________________________________ 4

2. नीवत-वनदेशक वसद्धान्तों का ऐवतहावसक विकास_______________________________________________________ 4

3. नीवत-वनदेशक वसद्धान्तों के प्रेरक तत्ि ______________________________________________________________ 5

4. नीवत वनदेशक तत्िों की विशेषताएं _______________________________________________________________ 5

5. मूल ऄवधकारों एिं नीवत-वनदेशक तत्िों के मध्य परस्पर सम्बन्ध: प्रमुख िाद ____________________________________ 6

6. नीवत वनदेशक तत्िों का िगीकरण और वििरण _______________________________________________________ 8

6.1. ऄनुच्छेद 36 : पररभाषा _____________________________________________________________________ 9

6.2. ऄनुच्छेद 37 : आस भाग में ऄंतर्विष्ट तत्िों का लागू होना ________________________________________________ 9

6.3. ऄनुच्छेद 38 (समाजिादी) : राज्य, लोक कल्याण की ऄवभिृवद्ध हेतु सामावजक व्यिस्था बनाएगा ___________________ 9

6.4. ऄनुच्छेद 39 (समाजिादी) : राज्य द्वारा ऄनुसरणीय कु छ नीवत तत्ि _______________________________________ 9

6.5. ऄनुच्छेद 39(a) (समाजिादी) : समान न्याय और वन:शुल्क विवधक सहायता ________________________________ 10

6.6. ऄनुच्छेद 40 (गांधीिादी): ग्राम पंचायतों का संगठन _________________________________________________ 11

6.7. ऄनुच्छेद 41 (समाजिादी) : कु छ दशाओं में काम, वशक्षा और लोक सहायता प्राप्त करने का
ऄवधकार __________________________________________________________________________________ 11

6.8. ऄनुच्छेद 42 (समाजिादी) : काम की न्यायसंगत और मानिोवचत दशाओं का तथा प्रसूवत


सहायता का ईपबंध ___________________________________________________________________________ 12

6.9. ऄनुच्छेद 43 (समाजिादी और गांधीिादी) : कममकारों के वलए वनिामह मजदूरी अदद ___________________________ 12

6.10. ऄनुच्छेद 43(a) (समाजिादी) : ईद्योगों के प्रबंध में कममकारों का भाग लेना ________________________________ 12

6.11. ऄनुच्छेद 43(b) (समाजिादी एिं गांधीिादी): सहकारी सवमवतयों का ईन्नयन ______________________________ 13

6.12. ऄनुच्छेद 44 (ईदार बौवद्धक) : नागररकों के वलए एक समान वसविल संवहता: _______________________________ 13

6.13. ऄनुच्छेद 45 (ईदार बौवद्धक): प्रारवम्भक शैशिािस्था की देखरे ख तथा छह िषम से कम अयु के
बालकों के वलए वशक्षा का प्रािधान_________________________________________________________________ 14

6.14. ऄनुच्छेद 46 (समाजिादी और ईदार बौवद्धक):ऄनुसूवचत जावतयों, ऄनुसूवचत जनजावतयों और


ऄन्य दुबल
म िगों के वशक्षा और ऄथम सम्बन्धी वहतों की ऄवभिृवद्ध _____________________________________________ 14

6.15. ऄनुच्छेद 47 (ईदार बौवद्धक और गांधीिादी): पोषहार स्तर और जीिन स्तर को उँचा करने
तथा लोक स्िास््य का सुधार करने का राज्य का कतमव्य ___________________________________________________ 14

6.16. ऄनुच्छेद 48 (ईदार बौवद्धक एिं गांधीिादी): कृ वष और पशुपालन का संगठन _______________________________ 15

6.17. ऄनुच्छेद 48(a) (ईदार बौवद्धक): पयामिरण का संरक्षण तथा संिधमन और िन तथा िन्य जीिों
की रक्षा ___________________________________________________________________________________ 15

6.18. ऄनुच्छेद 49 (ईदार बौवद्धक): राष्ट्रीय महत्ि के संस्मारकों, स्थानों और िस्तुओं का संरक्षण ______________________ 15

6.19. ऄनुच्छेद 50 (ईदार बौवद्धक): कायमपावलका से न्यायपावलका का पृथक्करण _________________________________ 16

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6.20. ऄनुच्छेद 51 (ईदार बौवद्धक): ऄंतरराष्ट्रीय शांवत और सुरक्षा की ऄवभिृवद्ध _________________________________ 16

7. संविधान के ऄन्य भागों में िर्वणत वनदेशक तत्ि _______________________________________________________ 16

8. वनदेशक तत्ि एिं मूल ऄवधकारों में ऄंतर____________________________________________________________ 17

9. संविधान वनमामण के पश्चात् सवम्मवलत दकये गए नीवत वनदेशक तत्ि _________________________________________ 18

9.1. वनदेशक वसद्धांतों को गैर-न्यायोवचत एिं कानूनी तौर पर गैर-प्रितमनीय बनाया जाने के प्रमुख
कारण ____________________________________________________________________________________ 18

10. नीवत-वनदेशक तत्िों की अलोचनायें _____________________________________________________________ 19

11. वनदेशक तत्िों की ईपयोवगता __________________________________________________________________ 19

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“नीवत वनदेशक तत्ि भारतीय संविधान की ऄनोखी विशेषता हैं, आनमें एक कल्याणकारी राज्य का लक्ष्य
वनवहत है।”
-डॉ. बी. अर. ऄम्बेडकर
“नीवत वनदेशक तत्ि राष्ट्रीय चेतना के अधारभूत स्तर का वनमामण करते हैं।”
-एम. िी. पायली
“नीवत वनदेशक तत्ि संविधान सभा के ईद्देश्यों और अकांक्षाओं का घोषणा पत्र है।”
-के . सी. व्हेयर

1. राज्य के नीवत वनदे श क तत्ि (DPSP): एक पररचय


 संविधान के भाग IV (ऄनुच्छेद 36-51) में राज्य के नीवत वनदेशक तत्िों को प्रवतष्ठावपत दकया
गया है। ये वनदेशक तत्ि देश में सामावजक एिं अर्वथक लोकतंत्र की स्थापना की एक व्यापक
योजना का प्रवतवनवधत्ि करते हैं। यद्यवप वनदेशक तत्िों की प्रकृ वत गैर-न्यायोवचत है, तथावप ये
देश की शासन व्यिस्था के मौवलक वसद्धांत है। ये वसद्धांत देश के प्रशासकों के वलए एक अचार
संवहता है। वनदेशक तत्ि, राज्य की नीवत-वनमामण में सहायता हेतु संघीय एिं राज्य, दोनों सरकारों
के वलए ददशावनदेशक एिं मागमदशमक वसद्धांत हैं। यह सरकार का ईत्तरदावयत्ि है दक िह कानून
बनाते समय आन वसद्धांतों को ऄपनाएं।
 राज्य के नीवत वनदेशक तत्ि भारत में कल्याणकारी राज्य की स्थापना का सिमप्रमुख अधार है। एक
कल्याणकारी राज्य की स्थापना का ईद्देश्य रखने िाली नीवतयों द्वारा सामावजक-अर्वथक अधारों
को मजबूत दकये वबना राजनीवतक लोकतंत्र की प्रावप्त ऄसंभि है।
 कल्याणकारी राज्य, शासन की िह संकल्पना है वजसमें राज्य नागररकों के , विशेषत: कमजोर,
िंवचत एिं ऄवतसंिेदनशील िगों के कल्याण का ईत्तरदावयत्ि प्राथवमक रूप से ग्रहण करता है।
 राज्य के द्वारा सामावजक-अर्वथक ऄसमानताओं को कम करने तथा सतत एिं समािेशी विकास
सुवनवश्चत करने का प्रयास दकया जाता है। सामावजक सुरक्षा और अर्वथक कल्याण सुवनवश्चत दकये
जाने के पश्चात् ही व्यविगत ऄवधकारों का ऄथमपण
ू म ढंग से ईपभोग दकया जा सकता है। संविधान
की प्रस्तािना में वजन अदशों की प्रावप्त का लक्ष्य रखा गया है, ये ईन अदशों की ओर बढ़ने के वलए
मागम-प्रशस्त करते हैं।
 ऄनेक महत्िपूणम ऄवधकारों जैसे: अजीविका का ऄवधकार, सामावजक सुरक्षा अदद को मूल
ऄवधकारों के रूप में सवम्मवलत नहीं दकया गया है। आन ऄवधकारों को वनदेशक तत्िों के रूप में
स्थान ददया गया है वजससे समतापूणम समाज की स्थापना की जा सके ।

2. नीवत-वनदे श क वसद्धान्तों का ऐवतहावसक विकास


 1944 में सिमदलीय सम्मलेन द्वारा गरठत सप्रू सवमवत ने 1945 में ऄपनी ररपोर्म प्रस्तुत की।
संविधान सभा ने भारतीय संविधान में मूल ऄवधकारों एिं ऄन्य ऄवधकारों की व्यिस्था करने हेतु
आस सवमवत द्वारा की गयी ऄनुशस
ं ाओं को स्िीकार दकया।
 आस सवमवत ने न्यायोवचत एिं गैर-न्यायोवचत ऄवधकारों के दो िगों का सुझाि ददया। भारतीय
संविधान में मूल ऄवधकार एिं ऄन्य ऄवधकार, न्यायोवचत ऄवधकार के रूप में सवम्मवलत दकये गए
हैं। जबदक संविधान के भाग IV में राज्य के नीवत-वनदेशक तत्िों के रूप में गैर-न्यायोवचत
ऄवधकारों का ईल्लेख दकया गया है।
 ये वनदेशक तत्ि मुख्य रूप से सामावजक-अर्वथक विकास के वलए ईवचत नीवत-वनमामण हेतु सरकार
के वलए ‘ऄनुदश
े प्रपत्र’ की प्रकृ वत के होते हैं।

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3. नीवत-वनदे श क वसद्धान्तों के प्रे र क तत्ि


भारतीय संविधान में िर्वणत नीवत-वनदेशक तत्ि, विवभन्न कारकों द्वारा प्रभावित हैं, वजनमें :

 वनदेशक तत्िों की संकल्पना (Idea) अयरलैंड के संविधान से ग्रहण की गइ थी।

 भारत शासन ऄवधवनयम, 1935 में ‘ऄनुदश


े ों का दस्तािेज़’ (Instrument of Instructions)

सवम्मवलत था। वनदेशक तत्ि, भारत शासन ऄवधवनयम, 1935 में ईल्लेवखत ईन्हीं ऄनुदश
े ों के
समान हैं।
 भारतीय स्ितंत्रता संग्राम को प्रभावित करने िाले पवश्चमी ईदार लोकतांवत्रक विचारों को
भारतीय पररवस्थवतयों के ऄनुसार पररिर्वतत कर सवम्मवलत दकया गया। आन्हें कल्याणकारी राज्य
की लोक नीवतयों के वलए नैवतक ददशा-वनदेशों के रूप में भारतीय संविधान में ऄंगीकृ त दकया गया
है।
 समकालीन समाजिादी विचारों ने भी संविधान वनमामताओं को प्रभावित दकया। ईदाहरणाथम, कु छ
वनदेशक तत्ि श्रवमक कल्याण से संबंवधत हैं।
 संविधान सभा, महात्मा गांधी के दाशमवनक विचारों से भी प्रभावित थी। ईदाहरणाथम: पंचायत,

ग्रामोद्योग को प्रोत्साहन प्रदान करने अदद से संबंवधत वनदेशक वसद्धांतों का भाग IV में समािेश

दकया गया।

4. नीवत वनदे श क तत्िों की विशे ष ताएं


 नीवत वनमामण के वलये वनदेश: ये संघीय एिं राज्य स्तरीय सरकारों के वलए सािमजवनक नीवत-
वनमामण में आन वसद्धांतों को यथासंभि लागू करने हेतु वनदेश हैं।
 राजनीवतक बहुमत को वनयंवत्रत एिं संतवु लत करना: डॉ. भीमराि ऄम्बेडकर के ऄनुसार, वनदेशक
तत्ि सत्ता में अने िाले दकसी भी दल के वलए सीमा वनधामररत करते हैं। यह राजनीवतक बहुमत
द्वारा भविष्य के भारतीय राज्य से सम्बंवधत संविधान सभा की पररकल्पना एिं मूल्यों को खंवडत
करने हेतु दकये गए प्रयासो के विरूद्ध सुरक्षा प्रदान करते है।
 गैर-प्रितमनीय (Non-enforceable) प्रकृ वत: ऄनुच्छेद 37 के ऄनुसार नीवत वनदेशक तत्ि,

न्यायालय में स्ित: प्रितमनीय नहीं होते हैं। ये तब ही लागू होते हैं, यदद कोइ कानून कु छ वनदेशक
वसद्धांतों को प्रभािी बनाने के वलये वनर्वमत दकया जाता है जैस:े - अजीविका के ऄवधकार हेतु
मनरे गा का लाया जाना। डॉ. ऄम्बेडकर के ऄनुसार, आन्हें मात्र नैवतक अदेश नहीं माना जा सकता

है। यद्यवप आन्हें दियावन्ित करिाने हेतु कानूनी शवि विद्यमान नहीं है, परन्तु आनकी पृष्ठभूवम में
राजनीवतक शवि ऄथामत् जनमत वनवहत है । ऄत: कोइ भी सरकार आन वनदेशों की ऄिेलहना नहीं
कर सकती हैं।
 प्रस्तािना का विस्तार: नीवत वनदेशक तत्ि, प्रस्तािना में वनवहत मूल्यों का विस्तार है।
ईदाहरणाथम:
o यह प्रस्तािना में वनवहत "समाजिादी लोकतंत्र" की स्थापना का मागम प्रशस्त करते हैं। 42िें

संशोधन ऄवधवनयम के द्वारा जोड़े गए "समाजिादी" शब्द को ऄनुच्छेद 38 एिं 39 द्वारा


ऄथमपूणम बनाने का प्रयास दकया गया है।
o ऄनुच्छेद 40 में िर्वणत स्थानीय स्िशासन के सन्दभम में 73िें एिं 74िें संशोधन द्वारा

"लोकतंत्र" शब्द को ऄवधक साथमक एिं समािेशी रूप देने का प्रयास दकया गया है।

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5. मू ल ऄवधकारों एिं नीवत-वनदे श क तत्िों के मध्य परस्पर


सम्बन्ध: प्रमु ख िाद
मूल ऄवधकारों का ईद्देश्य व्यवियों को ईनके विकास हेतु अिश्यक एिं ऄनुवचत वनयंत्रण से मुि ईवचत
ऄिसर प्रदान करना है। एक कल्याणकारी समाज के वलए नीवत-वनदेशक तत्ि अिश्यक हैं।
 मूल ऄवधकारों एिं नीवत-वनदेशक तत्िों के मध्य र्कराि, संविधान के अरम्भ से ही स्पष्टत:

विद्यमान है। प्रारं भ में, मूल ऄवधकार एिं नीवत-वनदेशक तत्ि की तुलनात्मक वस्थवत स्पष्ट नहीं थी।

यह माना जाता था दक िे प्रकृ वत में विरोधाभासी हैं। सिमप्रथम 1952 में चम्पाकम दोराआराजन

िाद में आस विषय पर चचाम हुइ। संविधान के प्रारं भ के बाद से, न्यावयक घोषणाओं एिं संिैधावनक
संशोधनों की एक श्रृंखला ने दोनों के मध्य संतल
ु न को पररिर्वतत दकया।
 मद्रास राज्य बनाम चम्पाकम दोराआराजन िाद (1951) में ईच्चतम न्यायालय ने वनणमय ददया दक

राज्य के वनदेशक वसद्धांतों को वजन्हें स्पष्टत: ऄनुच्छेद 37 के ऄनुसार न्यायोवचत नहीं बनाया गया
है। साथ ही ईच्चतम न्यायालय ने अदेश ददया दक संविधान में मूल ऄवधकार का ऄध्याय
ऄनुल्लंघनीय (Sacrosanct) है तथा आसे कायमपावलका ऄथिा विधावयका के दकसी कृ त्य या

अदेश द्वारा भाग III में वनधामररत दकसी सीमाओं के ऄवतररि सीवमत नहीं दकया जा सकता। राज्य
के नीवत वनदेशक वसद्धांतों को आसके ऄनुरूप चलना होगा। वनदेशक तत्िों को मूल ऄवधकार के
ऄध्याय के ऄनुरूप और ईनके सहायक के रूप में कायम करना होगा। आसका तात्पयम यह है दक मूल
ऄवधकारों एिं वनदेशक तत्िों के मध्य दकसी भी तरह के र्कराि की वस्थवत में मूल ऄवधकार
प्रभािी होंगे।
 गोलकनाथ िाद (1967) में ईच्चतम न्यायालय ने मूल ऄवधकारों को वनदेशक तत्िों की तुलना में
िरीयता देते हुए कहा दक संसद को मूल ऄवधकारों को संशोवधत करने की शवि प्राप्त नहीं है।
वनदेशक तत्िों को लागू करने के वलए मूल ऄवधकारों में संशोधन नहीं दकया जा सकता। गोलकनाथ
िाद में भािी प्रत्यादेश (Prospective Overruling) के वसद्धांत को लागू दकया गया, वजसके
तहत ईच्चतम न्यायालय ऄपने स्ियं के वनणमय में सुधार कर सकती है।
 गोलकनाथ िाद में ददए गए वनणमय को वनष्प्रभािी बनाने के वलए 1971 में 25िां संशोधन

ऄवधवनयम पाररत दकया गया था। आसके द्वारा मूल ऄवधकारों के ऄंतगमत ऄनुच्छेद 31(c) जोड़ा

गया वजसके ऄनुसार ऄनुच्छेद 39(b) एिं 39(c) को लागू कराने िाली विवध को आस अधार पर

ऄिैध घोवषत नहीं दकया जा सकता है दक िह ऄनुच्छेद 14 और 19 में िर्वणत मूल ऄवधकारों का
ईल्लंघन करती है।
 के शिानंद भारती िाद (1973) में ईच्चतम न्यायालय ने ‘मूल ढांच’े का वसद्धांत प्रवतपाददत दकया,

वजसके तहत संसद मूल ऄवधकारों में संशोधन कर सकती है। दकन्तु, संसद द्वारा मूल ऄवधकारों में

ऐसा कोइ संशोधन विवधमान्य नहीं होगा जो संविधान के ‘मूल ढांच’े को प्रवतकू ल रूप से प्रभावित
करता है।
 42िां संशोधन ऄवधवनयम,1976 द्वारा नीवत वनदेशक तत्िों की सिोच्चता एिं प्राथवमकता को मूल

ऄवधकारों पर प्रभािी बनाया गया। आसके तहत ऄनुच्छेद 31(c) का और ऄवधक विस्तार करते हुए

आसके दायरे में ऄनुच्छेद 39(b) एिं 39(c) के स्थान पर भाग IV में िर्वणत सभी वनदेशक तत्िों को
सम्मवलत कर वलया गया।

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 वमनिाम वमल्स िाद (1980) में ईच्चतम न्यायालय के द्वारा संविधान में संशोधन करने की संसद की

शवियां मूल ढांचे के वसद्धांत द्वारा सीवमत कर दी गयी हैं। ईच्चतम न्यायालय ने यह व्यिस्था भी

दी दक संविधान का ऄवस्तत्ि, भाग III एिं भाग IV के संतुलन में वनवहत है। आन्हें एक दूसरे पर

थोपने से संविधान की मूल भािना बावधत होती है।

 ईन्नीकृ ष्णन बनाम अंध्रप्रदेश िाद (1993) में भी ईच्चतम न्यायालय द्वारा यह स्पष्ट दकया गया की

भाग III और भाग IV परस्पर पूरक है। साथ ही, मूल ऄवधकार भाग IV में वनवहत नीवत वनदेशक

तत्िों के लक्ष्यों को प्राप्त करने के साधन है।

 आस प्रकार, मूल ऄवधकारों एिं नीवत वनदेशक तत्िों की एक-दूसरे के सन्दभम में ऄंवतम वस्थवत

वनम्नवलवखत है:

o मूल ऄवधकार और वनदेशक तत्ि एक-दूसरे के ऄनुपरू क हैं और एक-दूसरे को पूणत


म ा प्रदान करते हैं।

o दोनों एक साथ वमलकर भारत में समािेशी लोकतंत्र हेतु अधार प्रदान करते हैं।

o तुलनात्मक रूप से मूल ऄवधकारों की कानूनी वस्थवत ऄवधक बेहतर है, परन्तु यह नीवत वनदेशक

तत्िों के महत्ि को कमजोर नहीं करता है।

o वनवश्चत समयािवध के दौरान 'ईदार व्याख्या’ के वसद्धांत के प्रयोग से ईच्चतम न्यायालय द्वारा

ऄनुच्छेद 21 के तहत् कइ वनदेशक तत्िों को सवम्मवलत दकया गया।

o वनदेशक तत्िों को प्रभािी बनाने िाले दकसी विशेष कानून की िैधता की जांच करने के वलए, जो

मूल ऄवधकारों में कर्ौती करता है, ईच्चतम न्यायालय द्वारा वनम्नवलवखत वसद्धांत लागू दकये जाते

हैं:

 मूल ढांचे का वसद्धांत, और

 ऄवधकारों का स्िर्वणम वत्रभुज (The Golden Triangle of rights) ऄनुच्छेद 14, 19 एिं 21।

o ईच्चतम न्यायालय ने सामंजस्यपूणम संरचना (Harmonious Construction) के वसद्धांत को स्पष्ट

दकया है। आस वसद्धांत का गूढ़ ऄथम है दक भारत के संविधान में ईवल्लवखत मूल ऄवधकार एिं नीवत

वनदेशक तत्ि िास्ति में एक ही व्यिस्था के ऄंग हैं तथा आन दोनों का लक्ष्य भी एक ही है: व्यवित्ि

का विकास तथा लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना।

o साथ ही वमनिाम वमल्स प्रकरण में ईच्चतम न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश चंद्र चूड़ ने

कहा दक भारतीय संविधान, ऄपने भाग III और भाग IV के संतल


ु न पर दृढ़ता पूिम अधाररत है।

आसमें दकसी एक को प्रधानता देने का ऄथम संविधान की समरसता में विघ्न डालना है। मूल

ऄवधकारों और राज्य की नीवत के वनदेशक तत्िों के मध्य जो समरसता एिं संतुलन है, िह

संविधान की मूल ढांचें का एक परमािश्यक तत्ि है।

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6. नीवत वनदे श क तत्िों का िगीकरण और वििरण


हालांदक संविधान में आनका िगीकरण नहीं दकया गया है। दकन्तु, आनमें वनवहत विषय-िस्तु के अधार

पर, पारं पररक रूप से वनदेशक तत्िों को वनम्नवलवखत श्रेवणयों में िगीकृ त दकया जा सकता है।

वनवहत विषय-िस्तु एिं अधार कु छ ईदाहरण

समाजिादी  राज्य अय की ऄसमानताओं को कम करने का


ये वसद्धांत समाजिादी विचारधारा को प्रवतबबवबत प्रयास करे गा [ऄनुच्छेद-38(2)]
करते हैं। ये लोकतांवत्रक समाजिादी राज्य के ढांचे
 काम की न्यायसंगत और मानिोवचत दशाओं
को स्थावपत करते हैं। आनका ईद्देश्य सामावजक एिं
का तथा प्रसूवत सहायता (ऄनुच्छेद-42)
अर्वथक न्याय प्रदान करने के साथ ही कल्याणकारी
 कममकारों के वलए वनिामह मजदूरी आत्यादद
राज्य की स्थापना का मागम प्रशस्त करना है।
(ऄनुच्छेद-43)

गांधीिादी  ग्राम पंचायतों का संगठन (ऄनुच्छेद-40)


ये वसद्धांत गांधीिादी विचारधारा पर अधाररत हैं।  मादक पेयों एिं स्िास््य के वलए हावनकर
ये राष्ट्रीय अंदोलन के दौरान गांधी द्वारा प्रदत्त
औषवधयों के ईपभोग का प्रवतषेध (ऄनुच्छेद-
संकल्पनाओं एिं वसद्धाँतों का प्रवतवनवधत्ि करते हैं।
47)
गांधीजी के सपनों को साकार करने के वलए, ईनके
 गायों और बछड़ों तथा ऄन्य दुधारू एिं िाहक
कु छ विचारों को नीवत वनदेशक तत्िों के रूप में
पशुओं की नस्लों के परररक्षण एिं ईनके िध
सवम्मवलत दकया गया है।
का प्रवतषेध (ऄनुच्छेद-48)

 समान न्याय और वन:शुल्क विवधक सहायता

[ऄनुच्छेद-39(a)]

 कु छ दशाओं में काम, वशक्षा एिं लोक

सहायता पाने का ऄवधकार (ऄनुच्छेद-41)


ईदार-बौवद्धक  ईद्योगों के प्रबंध में कामगारों का भाग लेना
[ऄनुच्छेद-43(a)]
आस श्रेणी में ईन वसद्धांतों को सवम्मवलत दकया गया
है जो ईदारिाद की विचारधारा का प्रवतवनवधत्ि  बालकों को वन:शुल्क वशक्षा पाने का ऄवधकार
करते हैं। (ऄनुच्छेद-45)

 राष्ट्रीय महत्त्ि के स्मारकों, स्थानों और िस्तुओं

का संरक्षण (ऄनुच्छेद-49)
 कायमपावलका से न्यायपावलका का पृथक्करण
(ऄनुच्छेद-50)

नोर् : ईपरोि तावलका में संबंवधत श्रेवणयों के समक्ष ईवल्लवखत नीवत वनदेशक तत्ि के िल कु छ
ईदाहरण हैं, आनके ऄवतररि संबंवधत श्रेवणयों में ऄन्य ऄनुच्छेद भी सवम्मवलत दकये जा सकते हैं।

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6.1. ऄनु च्छे द 36 : पररभाषा

आस भाग में, जब तक दक संदभम से ऄन्यथा ऄपेवक्षत न हो, "राज्य" का िही ऄथम है जो भाग III में है।

6.2. ऄनु च्छे द 37 : आस भाग में ऄं त र्विष्ट तत्िों का लागू होना

आस भाग में ऄंतर्विष्ट ईपबंध दकसी न्यायालय द्वारा प्रितमनीय नहीं होंगे, दकन्तु दिर भी आनमें
ऄवधकवथत तत्ि देश के शासन में मूलभूत हैं और विवध बनाने में आन तत्िों को लागू करना, राज्य का
कतमव्य होगा।
वििरण
ऄनुच्छेद 37 के ऄनुसार वनदेशक तत्ि, गैर-न्यायोवचत प्रकृ वत के होंगे। हालांदक, लोक नीवत की प्रकृ वत
और ददशा के संबंध में राज्य को वनदेश देने में वनदेशक तत्ि ऄत्यवधक महत्िपूणम है। लेदकन, वनदेशक
तत्िों के ईल्लंघन को दकसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
6.3. ऄनु च्छे द 38 (समाजिादी) : राज्य, लोक कल्याण की ऄवभिृ वद्ध हे तु सामावजक
व्यिस्था बनाएगा
(1) राज्य, ऐसी सामावजक व्यिस्था की, वजसमें सामावजक,अर्वथक और राजनैवतक न्याय राष्ट्रीय जीिन
की सभी संस्थाओं को ऄनुप्रमावणत करे , भरसक प्रभािी रूप में स्थापना और संरक्षण करके लोक
कल्याण की ऄवभिृवद्ध का प्रयास करे गा।
(2) राज्य, विवशष्टतया, अय की ऄसमानताओं को कम करने का प्रयास करे गा, तथा न के िल व्यवष्टयों
के बीच बवल्क विवभन्न क्षेत्रों में रहने िाले या विवभन्न व्यिसायों में लगे हुए लोगों के समूहों के बीच भी
प्रवतष्ठा, सुविधाओं और ऄिसरों की ऄसमानता को समाप्त करने का प्रयास करे गा।
वििरण
ऄनुच्छेद 38, समाजिादी विचारधारा से सम्बंवधत वसद्धांत है। यह देश में लोगों के साथ-साथ विवभन्न
क्षेत्रों के मध्य विद्यमान ऄसमानता को कम करने का प्रयास करता है। यह राज्य के अर्वथक, सामावजक
और राजनैवतक न्याय जैसे लक्ष्यों को भी दशामता है। यह ऄनुच्छेद जावत व्यिस्था के कारण भारतीय
समाज में पारम्पररक रूप से विद्यमान प्रवस्थवत के ऄंतर को समाप्त करने का प्रयास करता है। साथ ही,
यह राज्य को ऄवनिायम रूप से वशक्षा के ऄिसर में समानता के साथ ही रोजगार सुवनश्चत करने हेतु
प्रयास करने के वलए भी ददशा वनदेवशत करता है।
6.4. ऄनु च्छे द 39 (समाजिादी) : राज्य द्वारा ऄनु स रणीय कु छ नीवत तत्ि

राज्य, ऄपनी नीवत का, विवशष्टतया , आस प्रकार संचालन करे गा दक सुवनवश्चत रूप से:
(a) पुरुष और स्त्री सभी नागररकों को समान रूप से जीविका के पयामप्त साधन प्राप्त करने का ऄवधकार
हो;
(b) समुदाय के भौवतक संसाधनों का स्िावमत्ि और वनयंत्रण आस प्रकार बंर्ा हो वजससे सामूवहक वहत
का सिोत्तम रूप से साधन हो;
(c) अर्वथक व्यिस्था आस प्रकार चले वजससे धन और ईत्पादन-साधनों का सिमसाधारण के वलए
ऄवहतकारी संकेन्द्रण न हो;
(d) पुरुषों और वस्त्रयों दोनों का समान कायम के वलए समान िेतन हो;
(e) पुरुष और स्त्री कममकारों के स्िास््य और शवि का तथा बालकों की सुकुमार ऄिस्था का दुरुपयोग
न हो तथा अर्वथक अिश्यकता से वििश होकर नागररकों को ऐसे रोजगारों में न जाना पड़े जो
ईनकी अयु या शवि के ऄनुकूल न हो;
(f) बालकों को स्ितंत्र और गररमामय िातािरण में स्िस्थ विकास के ऄिसर और सुविधाएं दी जायें
और बालकों एिं ऄल्पिय व्यवियों की शोषण से तथा नैवतक एिं अर्वथक पररत्याग से रक्षा की
जाए।

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वििरण एिं दियान्ियन


ऄनुच्छेद 39 भी समाजिादी विचारधारा से सम्बंवधत वसद्धांत है। यह राज्य को ईसकी नीवतयों के
वनमामण हेतु विवशष्ट ददशा-वनदेश प्रदान करता है। आसके द्वारा ऄनुच्छेद 31C को व्यापक ऄथम प्रदान
दकया गया है। आसके ऄंतगमत वनम्न प्रािधान दकये गए हैं:
 राज्य द्वारा पुरुषों और वस्त्रयों के बीच, जब िे समान कायम कर रहे हैं, ईनके िेतन के विषय में
समानता सुवनवश्चत करना अिश्यक है।
 बच्चों को सभी प्रकार के शोषण से मुि रखते हुए ईनके सिाांगीण विकास हेतु ईपबंध एिं प्रबंध
करने हेतु राज्य को वनदेवशत दकया गया है।
 संसाधनों का ईपयोग लोक वहत में होना चावहए और ऄनािश्यक रूप से दकसी वनजी नागररक के
लाभ हेतु नहीं होना चावहए।
 प्रथम संिैधावनक संशोधन, भूवम सुधारों को लागू करने के वलए था। आस हेतु बाद में चौथा, 17िां,
25िां, 42िां और 44िां संिैधावनक संशोधन ऄवधवनयम पाररत दकये गए।
 मवहला सशविकरण एिं ईनकी रोजगार सम्बन्धी लक्ष्यों को प्राप्त करने के वलए भारत सरकार ने
हाल ही में ‘सपोर्म र्ू ट्रेबनग एंड एम््लॉयमेंर् प्रोग्राम’ (STEP) को प्रारं भ दकया है।
 गरीब मवहलाओं के सामावजक-अर्वथक ईत्थान एिं ईन्हें ‘सूक्ष्म वित्तीय सेिाएँ’ (Micro Finance
Services) प्रदान करने के वलए ‘राष्ट्रीय मवहला कोष’ प्रारं भ दकया गया है।
 कु छ लोगों तक ही धन का संकेंद्रण न हो एिं आसका लाभ समाज के सभी िगो तक पहुंचे आसके
वलए सरकार ने कॉरपोरे र् सोशल ररस्पॉवसविवलर्ी (CSR) को लागू दकया हैं।

6.5. ऄनु च्छे द 39(a) (समाजिादी) : समान न्याय और वन:शु ल्क विवधक सहायता

राज्य यह सुवनवश्चत करे गा दक विवधक तंत्र आस प्रकार काम करे दक समान ऄिसर के अधार पर न्याय
सुलभ हो तथा िह, विवशष्या, यह सुवनवश्चत करने के वलए दक अर्वथक या दकसी ऄन्य वनयोग्यता के
कारण कोइ नागररक न्याय प्राप्त करने के ऄिसर से िंवचत न रह जाए, ईपयुि विधान या स्कीम द्वारा
या दकसी ऄन्य रीवत से वन:शुल्क विवधक सहायता की व्यिस्था करे गा।
वििरण एिं दियान्ियन
 ऄनुच्छेद 39(a) भी समाजिादी विचारधारा से सम्बंवधत वसद्धांत है। यह ऄनुच्छेद राज्य को यह
सुवनवश्चत करने का वनदेश देता है दक देश की न्यावयक प्रणाली सभी के वलए समान रूप से ईपलब्ध
हो। राज्य को आस हेतु ‘वन:शुल्क विवधक सहायता’ प्रदान करनी चावहए। ईल्लेखनीय है दक के न्द्र
सरकार द्वारा ईपरोि ईद्देश्य की प्रावप्त हेतु राष्ट्रीय विवधक सेिा प्रावधकरण ऄवधवनयम, 1987
पाररत दकया गया।
 यह ऄनुच्छेद संविधान में 42िें संशोधन ऄवधवनयम, 1976 द्वारा जोड़ा गया।
आस ऄनुच्छेद के तहत पररकवल्पत नीवत-वनदेशक ईद्देश्यों की प्रावप्त के वलए ऄप्रैल, 2017 में सरकार ने
तीन विवध सेिा संबंधी पहल दकया है:
 प्रो-बोनो लीगल सर्विसेज (Pro bono legal Service) यह एक िेब अधाररत ्लेर्िामम है जो
िकीलों को स्िैवच्छक रूप से आस माध्यम के साथ जुड़कर िंवचत िगो को वनःशुल्क विवधक
सहायता प्रदान करने का ईपबंध करता है।
 र्ेली लॉ सर्विसेज (Tele law Services) सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्र में रहने िाले गरीब और
कमजोर लोगों को सरल एिं मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान कराने के वलए 'र्ेली लॉ सर्विसेज’
प्रारम्भ की गइ है। आस योजना में कामन सर्विस सेंर्र (सीएससी) से िीवडयो कान्रें बसग के माध्यम
से जरूरतमंदों को िकीलों द्वारा मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान की जाएगी।
 न्यायवमत्र आसका ईद्देश्य लंवबत पड़े िादों का शीघ्रता से वनपर्ान करना है।

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6.6. ऄनु च्छे द 40 (गां धीिादी): ग्राम पं चायतों का सं ग ठन

राज्य, ग्राम पंचायतों का संगठन करने के वलए कदम ईठाएगा और ईनको ऐसी शवियां एिं प्रावधकार
प्रदान करे गा जो ईन्हें स्िायत्त शासन की आकाआयों के रूप में कायम करने योग्य बनाने के वलए अिश्यक
हो।
वििरण एिं दियान्ियन
 यह एक गांधीिादी वनदेशक वसद्धांत है। यह राज्य को स्िशासन की संस्थाओं के रूप में स्थानीय
वनकायों की स्थापना करने का वनदेश देता है। साथ ही, राज्य को यह वनदेश भी देता है दक आन

स्थानीय वनकायों को स्िािलंबी बनाने के वलए पयामप्त शवियां प्रदान की जानी चावहए।
 ईल्लेखनीय है दक भारत सरकार द्वारा 73िें एिं 74िें संशोधन ऄवधवनयम पाररत दकये गए, जो

सरकार के तृतीय स्तर के रूप में स्थानीय वनकायों की स्थापना की व्यिस्था करते हैं।
 सरकार द्वारा स्िशासी संस्थाओं के सुदढ़ृ ीकरण और प्रशासवनक व्यिस्था में आनकी पयामप्त
भागीदारी सुवनवश्चत करने के वलए वनम्नवलवखत ईपाय दकये गये है :
 राष्ट्रीय ग्राम स्िराज योजना आसके माध्यम से ग्राम-सभाओं को सशि करके एिं स्थानीय वनकायों
को और ऄवधक शवियों का हस्तानांतरण करके आन्हे मजबूत करने का प्रयास दकया गया है।
 म्युवनवसपल बांड आसके द्वारा शासन की आन आकाआयों को स्िायत रूप देने एिं वित्तीय रूप से
स्ितंत्रता प्रदान करने में सहायता वमलेगी।

6.7. ऄनु च्छे द 41 (समाजिादी) : कु छ दशाओं में काम, वशक्षा और लोक सहायता पाने

का ऄवधकार

राज्य, ऄपनी अर्वथक साम्यम और विकास की सीमाओं के भीतर, काम पाने के , वशक्षा पाने के और

बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और वन:शिता तथा ऄन्य ऄनहम (Undeserved) ऄभाि की दशाओं में लोक
सहायता पाने के ऄवधकार को प्राप्त कराने का प्रभािी ईपबंध करे गा।
वििरण एिं दियान्ियन
 यह एक समाजिादी वसद्धांत है। राज्य ऄपनी अर्वथक साम्यमता एिं ईपलब्ध संसाधनों के ऄंतगमत
विवभन्न कल्याणकारी कायमिमों को अरम्भ करे गा, विशेष रूप से ईन लोगों के वलए जो स्ियं के

वलए प्रबंध करने में ऄसमथम होते हैं जैसे: िृद्ध एिं वन:शिजन अदद। राज्य द्वारा ऐसे व्यवियों के
वलए राष्ट्रीय सामावजक सहायता कायमिम अरम्भ दकया गया है। आसके तहत ईन्हें मावसक पेंशन
प्रदान की जा रही है।
 काम करने के ऄवधकार को मनरे गा के तहत एक विवधक ऄवधकार के रूप में स्थावपत कर ददया
गया है तथा यह अंवशक रूप से आस वनदेशक वसद्धांत को कायामवन्ित करता है।
 आस ऄनुच्छेद में वनदेवशत लक्ष्यों की प्रावप्त के वलए सरकार ने ऄर्ल पेंशन योजना, िररष्ठ पेंशन

बीमा योजना अदद के माध्यम से िृद्धों की अय की सुरक्षा सुवनवश्चत करने का प्रयास दकया है।
 राष्ट्रीय ियोश्री योजना के माध्यम से िृद्ध व्यवियों से संबंधी अिश्यक सहायक ईपकरणों को
ईपलब्ध कराने का प्रयास दकया गया है।
 आस ऄनुच्छेद में वनःशि एिं ददव्यांगजनों से संबंधी लक्ष्यों की प्रावप्त, ईनके सशविकरण, ईनके

वलए ऄनुकूल स्थानों के वनमामण एिं ईनके अिागमन को असान बनाने हेतु सुगम्य भारत कायमिम
प्रारं भ दकया गया है।

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6.8. ऄनु च्छे द 42 (समाजिादी) : काम की न्यायसं ग त और मानिोवचत दशाओं का तथा


प्रसू वत सहायता का ईपबं ध
राज्य, काम की न्यायसंगत और मानिोवचत दशाओं को सुवनवश्चत करने के वलए और प्रसूवत सहायता के
वलए ईपबंध करे गा।
वििरण एिं दियान्ियन
 आसमें राज्य को वनदेश ददया गया हैं की िह काम की न्याय-संगत और मानिोवचत दशाओं को
सुवनवश्चत करने के वलए कायम करे गा। साथ ही, प्रसूवत सहायता की व्यिस्था करे गा।

 न्यूनतम मजदूरी ऄवधवनयम (1948), बाल श्रम (प्रवतषेध एिं विवनयमन) ऄवधवनयम (1986)
अदद को श्रवमक िगों के वहतों के संरक्षण के वलए लागू दकया गया हैं।
 सरकार द्वारा प्रसूवत सहायता संबंधी ईद्देश्यों की पूर्वत हेतु हाल ही में मातृत्ि लाभ (संशोधन)
ऄवधवनयम, 2017 लागू दकया गया है। आसके ऄंतगमत मवहलाओं को सिेतन ऄिकाश, िे च सुविधा
अदद ऄनेक लाभों से सम्बन्धी प्रािधानों को सम्मवलत दकया गया है।
 िहीं दूसरी ओर, प्रधानमंत्री सुरवक्षत मातृत्ि ऄवभयान, जननी सुरक्षा योजना, दकलकारी योजना
अदद के माध्यम से संस्थागत प्रसि एिं वचदकत्सीय सुविधाााओं को सािमभौवमक बनाने का प्रयास
दकया जा रहा है।
 श्रवमकों की वस्थवत में सुधार हेतु दीनदयाल ईपाध्याय श्रमेि जयते कायमिम प्रारम्भ दकया गया है।

6.9. ऄनु च्छे द 43 (समाजिादी और गां धीिादी) : कमम कारों के वलए वनिाम ह मजदू री
अदद

राज्य, ईपयुि विधान या अर्वथक संगठन द्वारा या दकसी ऄन्य रीवत से कृ वष के , ईद्योग के या ऄन्य

प्रकार के सभी कममकारों को काम, वनिामह मजदूरी, वशष्ट जीिन स्तर और ऄिकाश का सम्पूणम ईपभोग
सुवनवश्चत करने िाली काम की दशाएं तथा सामावजक एिं सांस्कृ वतक ऄिसर प्राप्त कराने का प्रयास
करे गा तथा विवशष्टतया ग्रामों में कु र्ीर ईद्योगों को िैयविक या सहकारी अधार पर बढ़ाने का प्रयास
करे गा।
वििरण एिं दियान्ियन
 यह ऄनुच्छेद गाँधी जी के ग्रामोदय के वसद्धांत से भी संबंवधत है। गािों में लघु और कु र्ीर ईद्योगों
का विकास, राज्य सूची का विषय है। राज्य द्वारा ग्राम विकास एिं जीिन स्तर में सुधार करने के

वलए ऄनेक बोडम , वनगम और अयोगों की स्थापना की गइ है।


 राज्य द्वारा गांिों में लघु एिं कु र्ीर ईद्योगों की स्थापना को प्रोत्सावहत करने के वलए ऄनेक कदम
ईठाये जा रहे है। हैंडलूम बोडम, हस्तवशल्प बोडम, जूर् बोडम, वसल्क बोडम अदद की ग्रामीण क्षेत्रों में
कु र्ीर ईद्योगों के विकास हेतु स्थापना की गयी है।
 आस ऄनुच्छेद के वनवहत ईद्देश्यों की प्रावप्त और वित्त, तकनीक, कौशल अदद सम्बन्धी समस्याओं के

समाधान हेतु मुद्रा योजना, ज़ीरो आिे क्र्-ज़ीरो वडिे क्र् योजना अदद प्रारम्भ की गयी है।

6.10. ऄनु च्छे द 43(a) (समाजिादी) : ईद्योगों के प्रबं ध में कमम कारों का भाग ले ना

राज्य, दकसी ईद्योग में लगे हुए ईपिमों, स्थापनों या ऄन्य संगठनों के प्रबंध में कममकारों का भाग लेना

सुवनवश्चत करने के वलए ईपयुि विधान द्वारा या दकसी ऄन्य रीवत से कदम ईठाएगा।

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वििरण
 ऄनुच्छेद 43(a) संविधान में 42िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1976 द्वारा जोड़ा गया था। यह

समाजिादी संकल्पना पर अधाररत तत्ि है।

 श्रवमकों के जीिन स्तर में सुधार, ईनकी गररमा एिं प्रवतष्ठा की सुरक्षा और औद्योवगक आकाइ के

प्रशासन में ईनकी पयामप्त भागीदारी सुवनवश्चत कराने के वलए यह प्रािधान ईपबंवधत दकया गया।

6.11. ऄनु च्छे द 43(b) (समाजिादी एिं गां धीिादी): सहकारी सवमवतयों का ईन्नयन

राज्य सहकारी सवमवतयों के स्िैवच्छक वनमामण, स्िायत्त कायमकरण, लोकतावन्त्रक वनयंत्रण और


व्यािसावयक प्रबंध के ईन्नयन का प्रयास करे गा।
97िां संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 2011 द्वारा भाग IV में, ऄनुच्छेद 43(b) जोड़ा गया है जो

प्रािधान करता है दक राज्य सहकारी सवमवतयों के स्िैवच्छक संगठन, स्िायत्त कायमकरण, लोकतांवत्रक
वनयंत्रण तथा पेशेिर प्रबंधन को बढ़ाने का प्रयास करे गा।

97िां संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 2011

आस संविधान संशोधन के पररणामस्िरूप संविधान में दो ऄन्य महत्िपूणम खंड जोड़ें गए, जो वनम्न है :-

 ऄवधवनयम द्वारा भारतीय संविधान के भाग III का संशोधन दकया है वजससे ऄनुच्छेद 19(1)(c )में,
'या संघ' शब्द के बाद 'या सहकारी सवमवतयां' शब्द जोड़ा गया है।ऄवधवनयम ने सहकारी सवमवतयों
के गठन के ऄवधकार को मूल ऄवधकार बना ददया है। ऄवधवनयम सहकारी सवमवतयों के प्रबंधन की
वजम्मेदारी सुवनवश्चत करता है एिं कानून के ईल्लंघन के वलए वनरोध प्रदान करता है।
 संविधान के भाग 9(a) के बाद एक नया भाग वजसे भाग 9(b) (ऄनुच्छेद 243 ZH - 243 ZT)

जोड़ा गया है जो सहकारी सवमवतयों संबंधी पररभाषाएं; सहकारी सवमवतयों का समािेशन; बोडम के

सदस्यों एिं आसके पदावधकाररयों की संख्या एिं पदािवध; बोडम के सदस्यों का चुनाि; बोडम एिं

ऄंतररम प्रबंधन का वनलम्बन; सहकारी सवमवतयों के लेखाओं का ऄंकेक्षण; जनरल बॉडी बैठक का

अयोजन; सूचना प्राप्त करने का ऄवधकार, ररर्नम िाआल करने; ऄपराध एिं दंड; बहु-राज्य सहकारी

सवमवतयों पर ऄनुप्रयोग; संघ शावसत प्रदेशों पर ऄनुप्रयोग एिं ितममान विवध की वनरं तरता का
प्रािधान करता है।

6.12. ऄनु च्छे द 44 (ईदार बौवद्धक) : नागररकों के वलए एक समान वसविल सं वहता:

राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागररकों के वलए एक समान वसविल संवहता प्राप्त कराने का प्रयास
करे गा।
वििरण एिं दियान्ियन
 वनजी कानून (पसमनल लॉ), वििाह, तलाक, भरण-पोषण, ईत्तरावधकार एिं गोद लेने से संबंवधत
होते हैं। भारत में विवभन्न धमों के वभन्न-वभन्न वनजी कानून है। समान वसविल संवहता के तहत एक
ही वनजी कानून होगा, वजसका देश के सभी नागररकों द्वारा ऄनुसरण दकया जाएगा।
 ईच्चतम न्यायालय ने कें द्र को समान वसविल संवहता लागू करने का वलए वनदेश देने हेतु की गयी
यावचकाओं को बार-बार खाररज दकया और कहा दक यह नीवत-वनमामण का विषय है तथा
न्यायालय यह कायम करने में सक्षम नहीं है।

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6.13. ऄनु च्छे द 45 (ईदार बौवद्धक): प्रारवम्भक शै श िािस्था की दे ख रे ख तथा छह िषम


से कम अयु के बालकों के वलए वशक्षा का प्रािधान
राज्य, प्रारवम्भक शैशिािस्था की देखरे ख और सभी बालकों को ईस समय तक जब तक दक िे छह िषम
की अयु पूणम न कर लें, वशक्षा प्रदान करने के वलए प्रयास करे गा।
वििरण एिं दियान्ियन
 ऄनुच्छेद 45 (प्राथवमक वशक्षा) के तहत िर्वणत आस नीवत वनदेशक तत्ि को 86िें संशोधन, 2002
द्वारा ऄनुच्छेद 21(a) के ऄंतगमत मूल ऄवधकार के रूप में सवम्मवलत कर वलया गया है।
 साथ ही, प्राथवमक स्तर पर वशक्षा के दावयत्ि के वनिमहन हेतु सरकार ने सिमवशक्षा ऄवभयान
चलाकर ऄपने नीवत वनदेशक संबध
ं ी ईवल्लवखत ईद्देश्यों को पूरा करने की ददशा में महत्िपूणम कदम
ईठाया है।

6.14. ऄनु च्छे द 46 (समाजिादी और ईदार बौवद्धक):ऄनु सू वचत जावतयों, ऄनु सू वचत
जनजावतयों और ऄन्य दु बम ल िगों के वशक्षा और ऄथम सम्बन्धी वहतों की ऄवभिृ वद्ध

राज्य, जनता के दुबल


म िगों के , विवशष्टतया, ऄनुसूवचत जावतयों और ऄनुसूवचत जनजावतयों के वशक्षा
और ऄथम सम्बन्धी वहतों की विशेष सािधानी से ऄवभिृवद्ध करे गा और सामावजक ऄन्याय एिं सभी
प्रकार के शोषण से ईनकी संरक्षा करे गा।
वििरण एिं दियान्ियन
 सरकार ने हमारे समाज के सामावजक और शैवक्षक रूप से वपछड़े िगों, विशेष रूप से ऄनुसूवचत
जावत/ऄनुसूवचत जनजावत को अरक्षण प्रदान कर आस वनदेशक तत्ि को लागू करने का प्रयास
दकया है।
 ऄनुसूवचत जावत एंि जनजावत के शैक्षवणक विकास के वलए सरकार ने ईनके वलए छात्रिृवत्त,
वनःशुल्क पुस्तके , छात्रािास अदद की व्यिस्था की है।
 िहीं, ऄनुसूवचत जावतयों एिं जनजावतयों के अवथक वहतों के संिद्धमन हेत एिं ईनमें ईद्यवमता के
विकास के वलए ‘स्र्ैंड-ऄप-आं वडया’ एिं 'SC/ST हब' को प्रारम्भ दकया गया है।

6.15. ऄनु च्छे द 47 (ईदार बौवद्धक और गां धीिादी): पोषहार स्तर और जीिन स्तर को
उँ चा करने तथा लोक स्िास््य का सु धार करने का राज्य का कतम व्य

राज्य, ऄपने लोगों के पोषहार स्तर और जीिन स्तर को उँचा करने तथा लोक स्िास््य के सुधार को
ऄपने प्राथवमक कतमव्यों में मानेगा और राज्य, विवशष्टतया, मादक पेयों एिं स्िास््य के वलए
हावनकारक औषवधयों के , औषधीय प्रयोजनों से वभन्न, ईपभोग का प्रवतषेध करने का प्रयास करे गा।
वििरण एिं दियान्ियन
 यह एक गांधीिादी वसद्धांत है। वमड डे मील योजना को आस वनदेशक तत्ि के दियान्ियन हेतु
अरम्भ दकया गया तादक पोषाहार में सुधार दकया जा सके ।
 2013 में पाररत खाद्य सुरक्षा ऄवधवनयम, आस वनदेशक तत्ि को कायामवन्ित करने की ददशा में एक
महत्िपूणम कदम हो सकता है।
o एकीकृ त ग्रामीण विकास कायमिम (1978), जिाहर रोजगार योजना (1989), स्िणम जयंती
ग्राम स्िरोजगार योजना (1999), संपूणम ग्राम रोजगार योजना (2001), महात्मा गांधी
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारं र्ी कायमिम (2006) अदद योजनाओं को लोगों के जीिन स्तर में
सुधार करने के वलए लागू दकया गया।

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o आस ऄनुच्छेद में वनवहत गांधीिादी ईद्देश्यों को पूरा करने के वलए हाल ही में वबहार में
मद्यवनषेध (पूणम शराब बंदी) लागू कर ददया गया।

6.16. ऄनु च्छे द 48 (ईदार बौवद्धक एिं गां धीिादी): कृ वष और पशु पालन का सं ग ठन

राज्य, कृ वष और पशुपालन को अधुवनक और िैज्ञावनक प्रणावलयों से संगरठत करने का प्रयास करे गा

तथा विवशष्टतया, गायों एिं बछड़ों और ऄन्य दुधारू एिं िाहक पशुओं की नस्लों के परररक्षण और
सुधार के वलए और ईनके िध का प्रवतषेध करने के वलए कदम ईठाएगा।
वििरण एिं दियान्ियन
 हररत िांवत एिं जैि प्रौद्योवगकी के क्षेत्र में ऄनुसंधान कृ वष और पशुपालन के अधुवनकीकरण के
लक्ष्य हैं।
 कृ वष में िैज्ञावनक तकनीकों को बढ़ािा देने के वलए सरकार ने ‘मृदा स्िास््य काडम’ एिं कृ वष विज्ञान

कें द्र’ जैसे पहलों को प्रारं भ दकया है। कृ वष क्षेत्र को मजबूत करने के वलए सरकार ने प्रधानमंत्री
िसल बीमा योजना एिं प्रधानमंत्री बसचाइ योजना को प्रांरभ दकया है।
 िहीं, आस ऄनुच्छेद में ईवल्लवखत नीवतगत ईद्देश्य की प्रावप्त एिं पशुपालन में अधुवनक िैज्ञावनक
तरीकों एिं दुधारू पशुओं के नस्ल सुधार हेतु राष्ट्रीय गोकु ल वमशन प्रारं भ दकया गया है।
 साथ ही, ईनके िध/हत्या पर रोक लगाने के वलए विवभन्न राज्यों ने भी कानून वनर्वमत दकए है।

6.17. ऄनु च्छे द 48(a) (ईदार बौवद्धक): पयाम ि रण का सं र क्षण तथा सं ि धम न और िन


तथा िन्य जीिों की रक्षा

राज्य, देश के पयामिरण के संरक्षण तथा संिधमन का और िन तथा िन्य जीिों की रक्षा करने का प्रयास
करे गा।
वििरण
 ऄनुच्छेद 48A संविधान में 42िें संशोधन ऄवधवनयम, 1976 द्वारा जोड़ा गया है।

 जीिन के बेहतर मानदंड एिं प्रदूषण रवहत िातािरण के वनमामण हेतु संविधान में आस प्रािधान को
शावमल दकया गया।
 राष्ट्रीय िन नीवत (1988) का लक्ष्य िनों का विकास, संरक्षण और सुरक्षा करना है। पयामिरण

संरक्षण ऄवधवनयम, 1986; िन्यजीि (संरक्षण) ऄवधवनयम, 1972; भी ऄनुच्छेद 48(a) के तहत
वनदेशों को पूरा करने की ददशा में कु छ महत्िपूणम कदम हैं।

6.18. ऄनु च्छे द 49 (ईदार बौवद्धक): राष्ट्रीय महत्ि के सं स्मारकों, स्थानों और िस्तु ओं

का सं र क्षण

(संसद द्वारा बनाइ गइ विवध द्वारा या ईसके ऄधीन) राष्ट्रीय महत्ि िाले घोवषत दकये गए कलात्मक या

ऐवतहावसक ऄवभरूवच िाले प्रत्येक संस्मारक या स्थान या िस्तु का, यथावस्थवत, लुंठन, विरूपण,

विनाश, ऄपसारण, व्ययन या वनयामत अदद से संरक्षण करना राज्य की बाध्यता होगी।
वििरण एिं दियान्ियन
 यह राज्य से राष्ट्रीय महत्ि के स्मारकों के संरक्षण की ऄपेक्षा रखने िाला एक ईदार-बौवद्धक
वसद्धांत है। भारतीय पुरातत्ि सिेक्षण को आसके दियान्ियन का प्रभार सौंपा गया है।

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 विश्व धरोहर स्थलों, प्राचीन स्मारकों और पुरातावत्िक स्थलों का संरक्षण राष्ट्रीय महत्ि का है।

पयमर्न गवतविवधयों के सन्दभम में आन स्थलों का अर्वथक महत्ि भी हैं।

6.19. ऄनु च्छे द 50 (ईदार बौवद्धक): कायम पावलका से न्यायपावलका का पृ थ क्करण

राज्य की लोक सेिाओं में, न्यायपावलका को कायमपावलका से पृथक करने के वलए राज्य कदम ईठाएगा।
वििरण एिं दियान्ियन
 वनयंत्रण एिं संतुलन की व्यिस्था के वलए शवियों का पृथक्करण अिश्यक है। यह न्यायपावलका की
स्ितंत्रता भी सुवनवश्चत करता है।
 यह एक ईदार-बौवद्धक वसद्धांत भी है। यह 1973 में CrPC में संशोधन द्वारा कायामवन्ित दकया

गया।

6.20. ऄनु च्छे द 51 (ईदार बौवद्धक): ऄं त रराष्ट्रीय शां वत और सु र क्षा की ऄवभिृ वद्ध

राज्य
 ऄंतरराष्ट्रीय शांवत और सुरक्षा की ऄवभिृवद्ध का,

 राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूणम संबंधों को बनाए रखने का;


 संगरठत लोगों के एक दूसरे से व्यिहारों में ऄंतरराष्ट्रीय विवध और संवध-बाध्यताओं के प्रवत अदर
बढ़ाने का; तथा

 ऄंतरराष्ट्रीय वििादों का मध्यस्थता द्वारा वनपर्ारे के वलए प्रोत्साहन देने का, प्रयास करे गा।
वििरण एिं दियान्ियन
 भारत सरकार ने आस ऄनुच्छेद के तहत ईवल्लवखत ईद्देश्यों के प्रवत ऄपनी प्रवतबद्धता दशामते हुए
ऄपने विदेश नीवत में गुर्वनरपेक्षता, पंचशील, संयुि राष्ट्र चार्मर के प्रवत वनष्ठा एिं शांवत वमशनों

में भागीदारी एिं पूणम वनःशस्त्रीकरण जैसे प्रमुख वसद्धांतों को शावमल दकया है। हाल ही में, साकम
ईपग्रह द्वारा वनःशुल्क सेिा का पड़ोवसयों तक विस्तार आसी शांवत एिं मैत्री के ददशा में बढ़ते
कदमों को दशामता है।

7. सं विधान के ऄन्य भागों में िर्वणत वनदे श क तत्ि


संविधान में भाग IV के ऄवतररि भी कु छ वनदेशक तत्िों को ईल्लेवखत दकया गया है वजनमें से प्रमुख
तत्ि वनम्नवलवखत हैं:
 ऄनुच्छेद 335 के तहत राज्य के दियाकलाप से सम्बन्धी सेिाओं और पदों के वलए वनयुविओं में

ऄनुसूवचत जावतयों एिं जनजावतयों के सदस्यों के दािों के साथ-साथ प्रशासन की दक्षता बनाये
रखने की संगवत को ध्यान में रखने का वनदेश ददया गया है।

 ऄनुच्छेद 350(a) आसके ऄनुसार प्रत्येक राज्य एिं राज्य के प्रावधकाररयों का यह कतमव्य होगा दक
भाषाइ ऄल्पसंख्यक िगम के बच्चों को प्राथवमक स्तर तक मातृभाषा में वशक्षा प्रदान करने की
व्यिस्था की जाये।
 ऄनुच्छेद 351 के ऄनुसार संघ का यह कतमव्य होगा दक िह वहन्दी भाषा के प्रयोग को प्रोत्साहन दे
एिं आसका विकास करे वजससे िह भारत की संस्कृ वत के सभी तत्िों की ऄवभव्यवि का साधन बन
सके ।

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8. वनदे श क तत्ि एिं मू ल ऄवधकारों में ऄं त र

मूल ऄवधकार नीवत वनदेशक तत्ि

 यह ईदारिादी दशमन पर अधाररत हैं, जो  यह ऄलग-ऄलग विचारधाराओं जैसे

व्यवि एिं ईनके ऄवधकारों को संरक्षण प्रदान कल्याणकारी राज्य, िै वबयन समाजिाद,
करता है। गांधीिाद, पयामिरणिाद, ऄंतरामष्ट्रीयता अदद
को प्रवतबबवबत करते हैं।

 यह सामान्य रूप से राज्य तथा कु छ मामलों  संघ, राज्य सरकारों के साथ ही ऄन्य
में वनजी व्यवियों पर भी पर वनषेधाज्ञा होते ऄवधकाररयों से नीवत-वनमामण में वनदेशक
हैं।
तत्िों का मूल ददशावनदेशों के रूप में ऄनुसरण
दकये जाने की ऄपेक्षा की जाती हैं।

 आनकी प्रकृ वत नकारात्मक है क्योंदक ये राज्य  वनदेशक तत्ि की प्रकृ वत सकारात्मक होती है।
को कु छ नीवतयों के वनमामण से प्रवतबंवधत ये, राज्य पर सकारात्मक दावयत्ि होते हैं।
करते है।

 मूल ऄवधकार न्यायालय में प्रितमनीय हैं।  ऄनुच्छेद 37 के ऄनुसार, नीवत वनदेशक तत्ि
संिैधावनक ईपचार (ऄनुच्छेद-32) का न्यायालय में प्रितमनीय नहीं हैं। ऄत: वनदेशक
ऄवधकार स्ियं एक मूल ऄवधकार है। तत्िों हेतु संिैधावनक ईपचार की व्यिस्था
न्यायपावलका को, मूल ऄवधकारों में कर्ौती ईपलब्ध नहीं हैं।

करने िाले दकसी कानून को ऄमान्य घोवषत


करने की शवि प्रदान की गयी है।

 संविधान के भाग III में ईवल्लवखत मूल  वनदेशक तत्ि देश में सामावजक-अर्वथक
लोकतंत्र की स्थापना वनधामररत करते हैं।
ऄवधकार (FR) राजनीवतक लोकतंत्र का
अधार हैं।

 मूल ऄवधकार व्यवि कें दद्रत होते हैं, जबदक  वनदेशक तत्ि, भारत को एक कल्याणकारी
वनदेशक तत्ि समूह कें दद्रत होते हैं। राज्य के रूप में स्थावपत करते हैं।

 ईच्चतम न्यायालय ने मूल ऄवधकार और वनदेशक तत्ि के बीच संबंध स्थावपत करने के वलए
सामंजस्यपूणम संरचना का वसद्धांत ददया है।
 संविधान सभा के विवधक सलाहकार, बी.एन. राि के ऄनुसार, मूल ऄवधकार और वनदेशक तत्ि
योजना में एकीकृ त होते हैं। िे संविधान सभा में एक ही योजना के रूप में प्रस्तुत दकए गए थे। यहाँ
तक दक नेहरू ररपोर्म में िे एक ही आकाइ के भाग थे। संसाधनों की कमी के कारण वनदेशक तत्िों को
लागू दकये जाने की ऄसमथमता से संिैधावनक संकर् ईत्पन्न हो सकता है, आस संकर् से बचने के वलए
मूल ऄवधकारों एिं वनदेशक तत्िों की पृथक व्यिस्था की गयी है।

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9. सं विधान वनमाम ण के पश्चात् सवम्मवलत दकये गए नीवत


वनदे श क तत्ि
भारतीय संविधान के अरम्भ के पश्चात् संविधान के भाग IV में समय-समय पर कु छ संशोधन दकये गए
तथा ऄनेक ऄनुच्छेद जोड़े गए। ये वनम्नानुसार हैं:

प्रभावित ऄनुच्छेद पररितमन स्त्रोत

38 (2) जोड़ा गया 42िां संविधान संशोधन


ऄवधवनयम,1976

39 (a) जोड़ा गया 42िां संविधान संशोधन


ऄवधवनयम,1976

39 (f) जोड़ा गया 42िां संविधान संशोधन


ऄवधवनयम,1976

43 (a) जोड़ा गया 42िां संविधान संशोधन


ऄवधवनयम,1976

43 (b) जोड़ा गया 97िां संविधान संशोधन ऄवधवनयम,


2011

45 संशोवधत मूलपाठ 86िां संविधान संशोधन ऄवधवनयम,


2002

48 (a) जोड़ा गया 42 िां संविधान संशोधन


ऄवधवनयम,1976

9.1. वनदे श क वसद्धां तों को गै र -न्यायोवचत एिं कानू नी तौर पर गै र -प्रितम नीय बनाया
जाने के प्रमु ख कारण
संविधान वनमामताओं ने वनदेशक वसद्धांतों को गैर न्यायोवचत और कानूनी तौर पर गैर-प्रितमनीय
बनाया, क्योंदक:
 ईन्हें लागू करने के वलए देश में पयामप्त वित्तीय संसाधन ईपलब्ध नहीं थे।
 देश की विविधता और वपछड़ापन ईनके दियान्ियन में बाधक होगी।
 वनदेशक वसद्धांतों को न्यायोवचत बनाने से हाल ही में विरर्श दासता से मुि राज्य पर आनके
दियान्ियन हेतु दबाि पड़ सकता था। ऄत: यह अशा की गयी दक देश ऄपनी प्राथवमकताओं के
अधार पर कायम करें तथा राज्य को वनदेशक वसद्धांतों को प्राप्त करने के वलए पयामप्त स्ितंत्रता प्रदान
की गयी।
ऄतः संविधान वनमामताओं द्वारा एक व्यािहाररक वनणमय वलया गया तथा आन वसद्धांतों को न्यावयक एिं
बाध्यकारी शवियां प्रदान करने से परहेज दकया गया। िे आन वसद्धांतों की पूर्वत के वलए ऄंवतम मंजूरी के
रूप में न्यायालय की प्रदियाओं के बजाय जागरूक जनता की राय पर ऄवधक विश्वास करते थे।

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10. नीवत-वनदे श क तत्िों की अलोचनायें


 अलोचक, वनदेशक तत्िों में वनरं तरता एिं तारतम्यता की कमी की ओर संकेत करते हैं। स्पष्ट है दक
ऄत्यवधक महत्िपूणम वनदेशक तत्िों एिं कम महत्िपूणम वनदेशक तत्िों को वमवश्रत कर ददया गया है।
साथ ही, सम्बंवधत दशमन पर अधाररत आनकी पद्धवत से तार्ककक व्यिस्था नहीं की गयी है।

 एन श्रीवनिासन के ऄनुसार, “वनदेशक तत्िों को न तो ईवचत तरीके से िगीकृ त दकया गया है और


न ही तकम संगत तरीके से व्यिवस्थत दकया गया हैं। आसमें ऄत्यल्प महत्ि िाले नीवत वनदेशक तत्िों
को सामावजक और अर्वथक विकास के वलए ऄत्यािश्यक ऄवत महत्िपूणम तत्िों के साथ वमवश्रत कर
ददया गया है । आस व्यिस्था के वलए िैज्ञावनक अधार सुझाया जाता है, जबदक ये भािनाओं एिं

वबना पयामप्त जानकारी के अधार पर अधाररत है।”

 आसके ऄवतररि, आनकी गैर-प्रितमनीय प्रकृ वत आनके दियान्ियन को तत्कालीन सरकार के वििेक पर
छोड़ देती है।
 प्रो. के .र्ी.शाह द्वारा आनकी ऐसे चैक, वजसका भुकतान बैंक की आच्छा पर वनभमर है, के रूप में और
बी.एन.राि द्वारा आनकी नैवतक ईपदेश के रूप में िर्वणत करते हुए अलोचना की गइ है।
 यह तकम ददया गया है दक चूंदक संविधान देश का बुवनयादी कानून है, आसमें कु छ भी ऐसा

सवम्मवलत नहीं होना चावहए, जो गैर-न्यायोवचत है।

 आसके ऄवतररि, ईनकी आस अधार पर अलोचना की गइ है दक िे संघीय ढांचे में बाधा ईत्पन्न
करते हैं- वनदेशक तत्ि संघ एिं राज्य दोनों सरकारों हेतु वनदेश होते हैं। ऄवधकांश वनदेशक तत्ि
राज्य सूची के विषयों से सम्बंवधत हैं। के . संथानम द्वारा विशेष रूप से ईल्लेवखत दकया गया दक
वनदेशक तत्ि
o कें द्र और राज्यों के बीच
o राष्ट्रपवत और प्रधानमंत्री के बीच, तथा
o राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच संिैधावनक संघषम ईत्पन्न करते हैं।
 ईनके ऄनुसार, कें द्र सरकार आन वसद्धांतों के कायामन्ियन के संबंध में राज्यों को वनदेश दे सकती हैं
तथा गैर-ऄनुपालन की वस्थवत में राज्य सरकार को बर्ामस्त कर सकती हैं। वनदेशक वसद्धांतों का
ईल्लंघन करने िाले दकसी विधेयक को राष्ट्रपवत आस अधार पर ऄस्िीकार कर सकता हैं दक ये
वसद्धांत, देश के शासन के मूल वसद्धांत हैं, तथा आस प्रकार, सरकार के पास आन वसद्धांतों की

ऄिहेलना का कोइ ऄवधकार नहीं है। यही समान संिैधावनक संघषम, राज्य स्तर पर राज्यपाल और
मुख्यमंत्री के मध्य हो सकता है।

11. वनदे श क तत्िों की ईपयोवगता


 वनदेशक तत्िों का लक्ष्य भारत में राजनीवतक लोकतंत्र के अदशों के साथ-साथ सामावजक और
अर्वथक लोकतंत्र भी स्थावपत करना है। िे सत्तारूढ़ शासन को, ईनके राजनीवतक स्िभाि की
परिाह दकए वबना एक व्यापक ददशा प्रदान करते हैं तथा आस प्रकार ये सरकारों में पररितमन के
बािजूद नीवतयों में कु छ हद तक वस्थरता को बनाए रखने में मदद करते हैं। वनदेशक तत्ि,

न्यायपावलका के वलए प्रकाशस्तंभ के रूप में भी कायम करते है। आन सबसे उपर, ये वशक्षाप्रद मूल्य
हैं।

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 भारत के पूिम महान्यायिादी एम.सी. सीतलिाड़ के ऄनुसार, हालांदक वनदेशक तत्ि, कोइ विवधक

ऄवधकार प्रदान नहीं करते हैं और न कोइ विवधक ईपचारों का सृजन करते हैं, दिर भी ये

वनम्नवलवखत तरीके से महत्िपूणम और ईपयोगी होते हैं:

o ये ‘ऄनुदश
े ों’ के समान हैं या ये भारतीय संघ के प्रावधकरणों को संबोवधत सामान्य ऄनुसंशायें

हैं। ये ईन्हें ईन सामावजक एिं अर्वथक मूल वसद्धांतों की याद ददलाते हैं, जो संविधान के लक्ष्यों

की प्रावप्त से जुड़े हैं।


o ये न्यायालयों के वलए ईपयोगी मागमदशमक वसद्धांत हैं। ये न्यायालयों को न्यावयक पुनर्विलोकन

की शवि के प्रयोग में सहायता करते हैं, जो दक विवध की संिध


ै ावनक िैधता का वनधामरण

करती है।
o ये सभी ऄनुदश
े विधावयका एिं कायमपावलका को नीवत वनमामण के वलये प्रेररत करते हैं साथ ही

न्यायालयों को कु छ मामलों में ददशा-वनदेवशत भी करते हैं।

o ये प्रस्तािना को विस्तृत रूप देते हैं, वजनसे भारत के नागररकों को न्याय, स्ितंत्रता, समानता

एिं बंधुत्ि अदद मूल्यों को बल वमलता है।

o ये राजनीवतक, अर्वथक और सामावजक क्षेत्रों की घरे लू और विदेश नीवतयों में स्थावयत्ि और

वनरं तरता बनाये रखते हैं, भले ही सत्ता में पररितमन हो जाए।

o ये नागररकों के मूल ऄवधकारों के पूरक होते हैं। आनके द्वारा सामावजक और अर्वथक ऄवधकारों

की व्यिस्था करते हुए आस ररिता को पूरा करने का प्रयास दकया गया हैं। भाग III एिं भाग

IV राजनीवतक लोकतंत्र के साथ अर्वथक लोकतंत्र को भी संभि बनाते है।

o ये विपक्ष द्वारा सरकार पर वनयंत्रण को संभि बनाते हैं। विपक्ष, सत्तारूढ़ दल पर वनदेशक

तत्िों का विरोध एिं आसके कायमकलापों के अधार पर अरोप लगा सकता हैं तथा आन्हें लागू
करने के वलए दबाि बना सकता है।
o ये सरकार के कायों के प्रदशमन का करठन परीक्षण करते हैं। लोग सरकार की नीवतयों और
कायमिमों का परीक्षण आन संिैधावनक घोषणाओं के अलोक में कर सकते हैं।
o ये अम राजनीवतक घोषणा पत्र की तरह होते हैं। एक सत्तारूढ़ दल ऄपनी राजनीवतक
विचारधारा के बािजूद विधावयका एिं कायमपावलकीय कृ त्यों में आस त्य को स्िीकार करता

है दक ये तत्ि आसके प्रदशमक, दाशमवनक और वमत्र हैं।

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Classroom Study Material

भारतीय संविधान एिं शासन


6. मूल कर्त्तव्य

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विषय सूची
1. मूल कर्त्तव्य: एक विचार ________________________________________________________________________ 3

1.1. स्िर्त ससह सवमवत _________________________________________________________________________ 3

1.2. मूल कर्त्तव्यों का संविप्त वििरर् ________________________________________________________________ 3

1.3. मूल कर्त्तव्यों को सवममवलत करने के ईद्देश्य _________________________________________________________ 7

1.4. मूल कर्त्तव्यों की विशेषताएँ ___________________________________________________________________ 7

1.5. मूल कर्त्तव्यों, नीवत वनदेशक तत्िों और मूल ऄवधकारों में समबन्ध __________________________________________ 8

1.6. विवभन्न सवमवतयाँ और न्यावयक वनितचन __________________________________________________________ 8

1.7. मूल कर्त्तव्य हेतु निीन संदभत___________________________________________________________________ 9

1.8. अलोचना _______________________________________________________________________________ 9

1.9. प्रासंवगकता ____________________________________________________________________________ 10

1.10. मूल कर्त्तव्यों को प्रभािी बनाने हेतु कु छ सुझाि ____________________________________________________ 10

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1. मू ल कर्त्त व्य : एक विचार


 मूल भारतीय संविधान में नागररकों के कर्त्तव्यों से समबंवधत भाग को सवममवलत नहीं ककया गया
था। 42िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1976 द्वारा संविधान में एक नए भाग IVA और आसके
ऄंतगतत एक नया ऄनुच्छेद 51(a) जोड़ा गया। आसके द्वारा आस भाग में 10 मूल कर्त्तव्यों को
सवममवलत ककया गया। 11िें मूल कर्त्तव्य को 86िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 2002 द्वारा
जोड़ा गया। आन्हें नागररकों के नैवतक दावयत्िों के रूप में पररभावषत ककया गया है।
 आनकी प्रेरर्ा भूतपूित सोवियत संघ के संविधान से ग्रहर् की गयी। मूल कर्त्तव्यों से संबंवधत
प्रािधानों को विश्व के ऄन्य प्रमुख लोकतावन्िक देशों जैसे ऄमेररका, कनाडा, फ्ांस, जमतनी,
अस्रेवलया अकद में नहीं ऄपनाया गया है। हालाँकक, भारतीय संविधान में आनके ऄपनाये जाने के
वलए, भारतीय सांस्कृ वतक एिं भौगोवलक विविधता, देश की एकता एिं ऄखंडता की सुरिा के
वलए सकिय नागररक सहभावगता की अिश्यकता, युद्ध से ईभरी पररवस्थवतयों में भारतीय सुरिा
व्यिस्था की सुदढ़ृ ता प्रमुख रूप से ईर्त्रदायी थे।

1.1. स्िर्त ससह सवमवत

 देश में अपातकाल लागू ककये जाने के तुरंत पश्चात् आं कदरा गांधी द्वारा सरदार स्िर्त ससह सवमवत
गरित की गयी। आस सवमवत का ईद्देश्य ऄतीत के ऄनुभिों के अलोक में संविधान संशोधन से
समबंवधत प्रश्नों का ऄध्ययन करना और संशोधनों की वसफाररश करना था।
 सरदार स्िर्त ससह सवमवत की वसफाररशों के अधार पर ही 42िें संशोधन ऄवधवनयम,1976 वजसे
"वमनी कॉन्सटीट्यूशन" भी कहा जाता है, को पाररत ककया गया। आसके तहत, विवभन्न ऄनुच्छेदों
और यहाँ तक कक प्रस्तािना में भी संशोधन ककया गया।
 सरदार स्िर्त ससह सवमवत द्वारा 8 मूल कर्त्तव्यों को जोड़े जाने और आनका ऄनुपालन न ककये जाने
पर दंड के प्रािधान की वसफाररश की गयी थी।
1.2. मू ल कर्त्त व्यों का सं विप्त वििरर्

ऄनुच्छेद 51(a)(1): भारत के प्रत्येक नागररक का यह कर्त्तव्य होगा कक िह -


संविधान का पालन करे और ईसके अदशों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्िज और राष्ट्रगान का अदर करे ।
वििरर्
(i) संविधान के प्रस्तािना में वनम्नवलवखत अदशों की बात की गइ है वजनका पालन करने एिं जीिन में
ऄपनाने की नागररकों से ऄपेिा की गइ है:
 सामावजक, अर्थथक और राजनीवतक न्याय,
 विचार, ऄवभव्यवि, विश्वास, धमत और ईपासना की स्ितंिता,
 प्रवतष्ठा और ऄिसर की समता
 सभी व्यवियों की गररमा और राष्ट्र की एकता और ऄखंडता सुवनवश्चत करने िाली बंधत
ु ा का
विकास करना।

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(ii) संविधान की संस्थाओं के ऄंतगतत, मुख्यतः कायतपावलका, विधावयका एिं न्यायपावलका सवममवलत
हैं।
(iii) यकद ककसी नागररक की समस्या की सुनिाइ ये संस्थाएँ नहीं करती है तो आसके वलए िह ‘हुल्लड़,
हड़ताल एिं सहसा’ का सहारा लेने के बजाय कानूनी एिं संिैधावनक मागत को ऄपनाए तथा आन
संस्थाओं का सममान करे ।

ऄनुच्छेद 51(a)(2): भारत के प्रत्येक नागररक का यह कर्त्तव्य होगा कक िह-


स्ितंिता के वलए हमारे राष्ट्रीय अंदोलन को प्रेररत करने िाले ईच्च अदशों को हृदय में संजोए रखे और
ईनका पालन करे ।
वििरर्ः
(i) भारतीय राष्ट्रीय अंदोलन को प्रेररत करने िाले कु छ ईच्च अदशत वनम्नवलवखत हैं:
 विदेशी शासन से मुवि एिं एक ऐसी स्िशासन व्यिस्था की स्थापना करना जो ऐसे समाज का
वनमातर् कर सके जहाँ व्यवि, व्यवि का शोषर् न करे तथा जहाँ गरीबी, भुखमरी, ऄवशिा के वलए
कोइ स्थान न हो।
 ईपरोि ईद्देश्यों की पूर्थत तभी संभि है जब सभी नागररकों को ऄपने व्यवित्ि के विकास का पूर्त
ऄिसर वमल सके ।
 आस प्रकार के पूर्त विकास हेतु व्यवित्ि-वनमातर् करने िाली वशिा की जरूरत होगी।
 आसके वलए, प्रत्येक व्यवि को राष्ट्रवहत को व्यविगत वहतों से उपर रखना होगा।
 कु छ ऄन्य अदशों में समतापूर्त समाज का वनमातर्, ऄसहसा, भाइचारा, विश्व शांवत एिं स्ियं
ऄनुच्छेद 51(a) में ईवल्लवखत बातें यथा मवहलाओं का सममान करना, भारत की सामावसक
संस्कृ वत की रिा करना, लोगों में िैज्ञावनक सोच एिं मानििाद का विकास करना अकद शावमल
हैं।

ऄनुच्छेद 51(a)(3): भारत के प्रत्येक नागररक का यह कर्त्तव्य होगा कक िह-


भारत की प्रभुता, एकता और ऄखंडता की रिा करे तथा ईसे ऄिुण्र् बनाए रखे।
वििरर्ः
(i) एक लोकतांविक व्यिस्था में संप्रभुता, जनता में ही वनवहत होती है। ऄतः नागररकों का यह परम
कर्त्तव्य है कक िे भारत की संप्रभुता, एकता एिं ऄखंडता की ककसी भी वस्थवत में रिा करें ।
(ii) व्यिहाररक रूप में, भारत की संप्रभुता एिं एकता-ऄखंडता की रिा हेतु भारतीय दंड संवहता
(IPC) में संबंवधत ऄपराधों एिं ईन्हें रोकने के वलए दंड की व्यिस्था की गइ है।

ऄनुच्छेद 51(a)(4): भारत के प्रत्येक नागररक का यह कर्त्तव्य होगा कक िह-


देश की रिा करे और अह्िान ककये जाने पर राष्ट्र की सेिा करे ।
वििरर्
(i) अधुवनक राष्ट्र-राज्य की संकल्पना में यह वनवहत है कक प्रत्येक नागररक युद्ध या बाह्य अिमर् की
वस्थवत में ऄपने देश की रिा करने के कर्त्तव्य से बंधा है।
(ii) यहाँ ‘अह्िान ककये जाने’ का ऄथत तीनों सेनाओं के ऄवतररि अम नागररकों से है वजनकी
अिश्यकता ‘राष्ट्रीय सेिाओं’ के वलए पड़ सकती है।
(iii) आसी को ध्यान में रखते हुए ऄनुच्छेद 23(2) में राज्य को यह ऄवधकार कदया गया है कक धमत, नस्ल,
जावत, िगत या आनमें से ककसी भी अधार पर भेदभाि ककए बगैर िह नागररकों से ‘साितजवनक लोक
ईद्देश्यों की पूर्थत हेतु ऄवनिायत सेिा’ ले सकती है।

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ऄनुच्छेद 51(a)(5): भारत के प्रत्येक नागररक का यह कर्त्तव्य होगा कक िह-

भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्ि की भािना का वनमातर् करे जो धमत, भाषा और
प्रदेश या िगत पर अधाररत सभी भेदभाि से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो वियों के सममान के
विरुद्ध हैं।
वििरर्ः
 यहाँ धमत, भाषा, प्रदेश या िगत अधाररत भेदभाि से परे होने का ऄथत आस विविधता को सीवमत या

समाप्त करना नहीं है, बवल्क आनमें वनवहत सामूवहक एिं समान तत्िों के अधार पर समरूपता की
भािना का लोगों में वनमातर् करना है।
 ईपरोि विवभन्न अधारों पर विविधता के बािजूद सभी भारतीय एक संविधान, एक ध्िज एिं
एक नागररकता के अधार पर अपस में जुड़े हैं तथा यही हमारे भ्रातृत्ि की भािना के वनमातर् का
प्रमुख अधार है।
 आस ऄनुच्छेद का दूसरा भाग, लैंवगक अधार पर भेदभाि एिं पूिातग्रह का वनषेध करता है। आसमें
मवहलाओं की गररमा के विरुद्ध व्यिहार में लाइ जाने िाली ककसी भी प्रकार की प्रथाओं का विरोध
ककया गया है।
 मवहला की गररमा एिं सममान को व्यिहाररक रूप देने के वलए वनम्न प्रािधान ककये गए हैं-
o सरकार द्वारा पाररत सती प्रथा (वनषेध) ऄवधवनयम, 1987 एिं सिोच्च न्यायालय द्वारा

1997 में कायतस्थल पर यौन शोषर् रोकने के वलए कदए गए ‘विशाखा कदशावनदेश’ आस कदशा
में मील का पत्थर सावबत हुए हैं।
o ऄक्टू बर 2017 में सिोच्च न्यायालय ने वनर्तय कदया कक 18 िषत से कम ईम्र की िी से

शारीररक संबंध बनाना दुष्कमत की श्रेर्ी में अता है, चाहे िह िी वििावहत (चाहे िह पवत
द्वारा ही क्यों न हो) हो या ऄवििावहत। यह िी के सममान की रिा हेतु एक सराहनीय एिं
प्रगवतशील कदम है।

ऄनुच्छेद 51(a)(6) : भारत के प्रत्येक नागररक का यह कर्त्तव्य होगा कक िह -


हमारी सामावसक संस्कृ वत की गौरिशाली परं परा का महत्त्ि समझे और ईसका परररिर् करें ।
वििरर्:
 हमारी सामावसक संस्कृ वत एिं गौरिशाली परं परा के ऄंतगतत शावमल हैं-
o वपछले पांच हजार िषों से भी ऄवधक पुरानी सभ्यता एिं संस्कृ वत।
o मूर्थत कला, िास्तु कला, गवर्त, विज्ञान, वचककत्सा, वचिकला में विश्व को कदए गए भारतीयों
के योगदान।
o धरोहर के रूप में प्राचीन स्मारक, ककले, मंकदर, मवस्जद, चचत जैसे ऐवतहावसक एिं
पुरातावत्त्िक महत्त्ि के स्थल।
o विवभन्न धमों यथा सहदू, बौद्ध, जैन, वसख अकद की जन्मस्थली होने का गौरि।

o सत्य, ऄसहसा एिं िैवश्वक शांवत एिं बंधुत्ि के प्रवत हमारी दृढ़ वनष्ठा।

 ऄतः जो कु छ हमने ऄपने पूिज


त ों से प्राप्त ककया है, ईसे ऄगली पीढ़ी तक ऄवधक सुरवित एिं समृद्ध
रूप में पहुँचाना हमारा कर्त्तव्य है।
 आसके वलए, नीवत-वनदेशक तत्िों के ऄनुच्छेद 49 के ऄंतगतत राष्ट्रीय महत्त्ि के स्मारकों,
कलाकृ वतयों एिं स्थानों और िस्तुओं का संरिर् करने का कर्त्तव्य राज्य को भी सौंपा गया है।

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 नागररक का बौवद्धक, शारीररक एिं अध्यावत्मक- सभी िेिों में विकास हमारी सामावसक संस्कृ वत
का ऄवभन्न ऄंग है। ऄतः, ऄपने व्यवित्ि के विकास हेतु प्रयास करना, प्रत्येक नागररक का कर्त्तव्य
है।
 हमारी सामावसक संस्कृ वत सत्य, ऄसहसा जैसे नैवतक मूल्यों पर विशेष बल देती है।
 आसी सामावसक संस्कृ वत को परररवित करने हेतु भारत सरकार ने 21 जून को ‘ऄंतराष्ट्रीय योग
कदिस’ मनाने का वनर्तय वलया ताकक नागररक ऄपनी संस्कृ वत की पांच हजार िषों से भी ऄवधक
पुरानी गौरिशाली परं परा के महत्त्ि को समझ सकें ।

ऄनुच्छेद 51(a)(7): भारत के प्रत्येक नागररक का यह कर्त्तव्य होगा कक िह-


प्राकृ वतक पयातिरर् की, वजसके ऄंतगतत िन, झील, नदी और िन्य जीि हैं, रिा करे और ईसका संिधतन
करे तथा प्रावर्माि के प्रवत दयाभाि रखे।
वििरर्ः
 वपछले कु छ िषों से लगातार बढ़ रहे पयातिरर् िरर्, प्रदूषर्, िनों की कटाइ, ग्लोबल िार्ममग,
जलिायु पररिततन और िन्य जीिों के ऄिैध व्यापार एिं तस्करी ने समस्त मानि प्रजावत के साथ-
साथ ऄन्य प्रावर्यों के समि ऄवस्तत्ि पर संकट ईत्पन्न कर कदया है।
 ऄतः, यह प्रत्येक नागररक का कर्त्तव्य है कक िह ऄपने स्तर पर िनों की सुरिा कर, नए पौधों को
लगाकर, नकदयों को साफ कर, जल संरिर् कर, साितजवनक स्थलों पर गंदगी फै लने से रोककर आस
कदशा में प्रयास करे ।
 आसके ऄवतररि, संविधान के ऄनुच्छेद 48(a) के तहत, नीवत-वनदेशक तत्िों के रूप में पयातिरर्,
िन एिं िन्य जीिों के संरिर् का दावयत्ि राज्य के उपर भी सौंपा गया है वजसको व्यिहाररक रूप
देने के वलए राज्य ने पयातिरर् (संरिर्) ऄवधवनयम, 1986; िन्य जीि ऄवधवनयम, 1972 अकद
पाररत ककया है।
 हाल ही में, सिोच्च न्यायालय ने कदल्ली में दीपािली के ऄिसर पर पटाखों की वबिी पर प्रवतबंध
लगाकर आस कर्त्तव्य की ओर पुनः ध्यान अकर्थषत ककया है।

ऄनुच्छेद 51(a)(8): भारत के प्रत्येक नागररक का यह कर्त्तव्य होगा कक िह-


िैज्ञावनक दृविकोर्, मानििाद और ज्ञानाजतन तथा सुधार की भािना का विकास करे ।
वििरर्:
 आसमें तेजी से बदलती िैवश्वक पररवस्थवतयों में मानि जीिन की गुर्िर्त्ा में िृवद्ध एिं संपर्
ू त
विकास हेतु प्रत्येक नागररक से मानििाद की भािना से ओतप्रोत िैज्ञावनक दृविकोर् के विकास
की ऄपेिा की गइ है।
 िैज्ञावनक दृविकोर् का ऄथत है- सभी प्रकार के ऄंधविश्वासों से दूर रहना एिं ज्ञान की खोज एिं
तथ्यों के ऄनुसंधान के अधार पर व्यिवस्थत ज्ञान एिं ऄनुभि का विकास करना।
 ज्ञानाजतन एिं सुधार की भािना, सभी प्रकार के विकास हेतु पूितशतत हैं।

ऄनुच्छेद 51(a)(9) : भारत के प्रत्येक नागररक का यह कर्त्तव्य होगा कक िह-


साितजवनक संपवर्त् को सुरवित रखे और सहसा से दूर रहे।
वििरर्ः
 वपछले कु छ िषों में देखा गया है कक जब भी रै ली, बंद, हड़ताल अकद होती है तो आस दौरान
साितजवनक संपवर्त्यों यथा बस, रेन, भिनों अकद की तोड़फोड़ एिं अगजनी प्रारं भ हो जाती है जो
कक आस मूल कर्त्तव्य का प्रत्यि ईल्लंघन है।
 आसे रोकने के वलए सबसे सशि ईपाय यही है कक विद्यालय के प्रारं वभक िषों में ही बच्चों में आसके
प्रवत जागरूकता पैदा की जाए ताकक बाद के िषों में साितजवनक संपवत की रिा करना एिं सहसा
से दूर रहना, ईनके चररि का वहस्सा बन जाए।

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ऄनुच्छेद 51(a)(10): भारत के प्रत्येक नागररक का यह कर्त्तव्य होगा कक िह-


व्यविगत और सामूवहक गवतविवधयों के सभी िेिों में ईत्कषत की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे वजससे
राष्ट्र वनरं तर बढ़ते हुए प्रयत्न और ईपलवधध की नइ उंचाआयों को छू ले।
वििरर्ः
 जीिन के सभी िेिों में ऄवत प्रवतस्पद्धात के िततमान दौर में ‘ईत्कृ िता’ ही सभी प्रकार की सफलता

एिं विकास का रहस्य है, चाहे िह व्यविगत स्तर पर हो या सामूवहक स्तर पर।

 डा. दशरथी बनाम अंध्रप्रदेश िाद (1985) में न्यायालय ने कहा कक प्रत्येक नागररक का यह
कर्त्तव्य है कक व्यविगत तथा सामूवहक सभी स्तरों पर ईत्कृ िता को प्राप्त करने का प्रयास करे ताकक
ईपलवधधयों एिं प्रगवत के नए मानदंडों को स्थावपत ककया जा सके ।

ऄनुच्छेद 51(a)(11): भारत के प्रत्येक नागररक का यह कर्त्तव्य होगा कक िह-

जो माता-वपता या संरिक हो िह, 6 से 14 िषत के बीच की अयु के , यथावस्थवत, ऄपने बच्चे ऄथिा
प्रवतपाल्य को वशिा प्राप्त करने के ऄिसर प्रदान करे ।
वििरर्ः
 आस मूल कर्त्तव्य को 86िें संविधान संशोधन, 2002 द्वारा ऄनुच्छेद 51(a) में जोड़ा गया।
 आसमें माता-वपता या ऄवभभािक पर ऄपने बच्चों को वशवित करने का कर्त्तव्य सौंपा गया ताकक
बच्चे ऄपने व्यवित्ि का सिाांगीर् विकास कर सके ।
 आसी संविधान संशोधन के द्वारा वशिा के ऄवधकार को ऄनुच्छेद 21(a) में मूल ऄवधकार के रूप में

तथा ऄनुच्छेद 45 में राज्य के दावयत्ि के रूप में सवममवलत ककया गया है।

मूल कर्त्तव्य, न के िल नागररकों पर बवल्क राज्य पर भी लागू होते हैं। आस प्रकार, राज्य द्वारा पयातिरर्
की सुरिा करना अिश्यक है।

1.3. मू ल कर्त्त व्यों को सवममवलत करने के ईद्दे श्य

42िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1976 द्वारा संविधान में मूल कर्त्तव्य वनम्नवलवखत ईद्देश्यों हेतु
सवममवलत ककये गए:
 नागररकों में देशभवि को बढ़ािा देने के वलए;

 अचरर् संवहता, जो राष्ट्र को मजबूत बनाएगी, का पालन करने हेतु नागररकों की सहायता करने

के वलए;

 देश की संप्रभुता और ऄखंडता की रिा करने के वलए;

 राज्य के विविध कर्त्तव्यों के वनष्पादन में सहायता करने के वलए;

 सद्भािना के विचारों को बढ़ािा देने के वलए;

 राज्य के प्रवत नागररकों की प्रवतबद्धताओं को सुवनवश्चत करने के वलए;

 साथ ही, व्याप्त ऄनुशासनहीनता को समाप्त करने के वलए।

1.4. मू ल कर्त्त व्यों की विशे ष ताएँ

 ये नागररकों के नैवतक दावयत्ि है;

 ये के िल नागररकों के वलए है न कक विदेवशयों के वलए;


 आनकी प्रकृ वत गैर-न्यायोवचत होती है ऄथातत् ये न्यायालय में िाद योग्य नहीं हैं।

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1.5. मू ल कर्त्त व्यों, नीवत वनदे श क तत्िों और मू ल ऄवधकारों में समबन्ध

 मूल कर्त्तव्य, नागररकों के ईर्त्रदावयत्ि हैं जबकक वनदेशक तत्ि, राज्य की नीवतयों के प्रमुख अधार
हैं। हालाँकक, दोनों के पालन समबन्धी कोइ क़ानूनी बाध्यकाररता वनधातररत नहीं की गयी है।
 मूल ऄवधकारों का ईपयोग करने िाले नागररकों को संविधान के अदशों का सममान करना चावहए
तथा सद्भाि और भाइचारे की भािना को बढ़ािा देना चावहए।
 ऄवधकार एिं कर्त्तव्य एक ही वस्े के दो पहलू हैं। तत्कालीन प्रधानमंिी श्रीमती आं कदरा गाँधी द्वारा
कर्त्तव्यों के पि में तकत कदया गया कक “मूल कर्त्तव्य, मूल ऄवधकारों को सीवमत नहीं करें गे बवल्क
लोकतावन्िक संतुलन स्थावपत करें गे”। सिोच्च न्यायालय द्वारा 1992 में व्यिस्था की गयी कक मूल
कर्त्तव्यों को कायातवन्ित करने के वलए बनायी गयी ककसी विवध को ऄनुच्छेद 14 एिं 19 के
ईल्लंघन के अधार पर ऄमान्य वसद्ध नहीं ककया जायेगा।
 मूल कर्त्तव्य न्यायालय के माध्यम से प्रिृर्त् नहीं करिाए जा सकते। आसका तात्पयत है कक नागररकों
को आनका पालन करने के वलए बाध्य नहीं ककया जा सकता। तथावप, ईनमें से कु छ, प्रिततनीय
कानून के भाग हैं। ईदाहरर्ाथत– राष्ट्र गौरि ऄपमान वनिारर् ऄवधवनयम, 1971 (Prevention
of Insults to National Honor Act, 1971) अकद।

1.6. विवभन्न सवमवतयाँ और न्यावयक वनित च न

 एम. सी. मेहता बनाम भारत संघ िाद (1991) में सिोच्च न्यायालय ने मूल कर्त्तव्यों से संबंवधत
वनम्न कदशावनदेश कदएः
o शैिवर्क संस्थाओं में सप्ताह में कम-से-कम एक घंटे के वलए पयातिरर् एिं िन्यजीिों के
संरिर् संबंधी प्रािधानों के बारे में पढ़ाने हेतु कें द्र सरकार व्यिस्था करे गी।
o आस ईद्देश्य की पूर्थत हेतु कें द्र सरकार, शैिवर्क संस्थाओं में वनःशुल्क पुस्तक वितरर् करे गी।

o आस ईद्देश्य की पूर्थत हेतु कें द्र सरकार, वशिकों के प्रवशिर् की व्यिस्था करे गी।

o कें द्र, राज्य एिं संघशावसत सरकारें ‘स्िच्छता सप्ताह’ का अयोजन करें गी।
o पयातिरर् की गुर्िर्त्ा में अ रही वगरािट के प्रवत लोगों को सचेत करने हेतु जागरूकता
ऄवभयान चलाया जाएगा।

 नागररकों के मूल कर्त्तव्यों के वशिर् के विषय पर जवस्टस िमात सवमवत का गिन 1999 में ककया
गया था। आसने विद्यालयों के पाठ्यिम और वशिकों के वशिा कायतिम तथा ईच्चतर एिं
व्यिसावयक वशिा के िेि में मूल कर्त्तव्यों को सवममवलत करने की वसफाररश की थी।
 2003 में सिोच्च न्यायालय ने कें द्र को जवस्टस िमात सवमवत के सुझािों के ऄनुसार, नागररकों द्वारा
मूल कर्त्तव्यों के पालन हेतु कानून बनाने के वलए वनदेश कदया।
 भारत के पूित मुख्य न्यायाधीश, रं गनाथ वमश्रा ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को एक पि में सिोच्च
न्यायालय से मूल कर्त्तव्यों के विषय में ऄपने नागररकों को वशवित करने हेतु राज्य के वलए
अिश्यक वनदेश जारी करने का ऄनुरोध ककया था ताकक ऄवधकारों और कर्त्तव्यों के मध्य ईवचत
संतलु न स्थावपत हो सके । ईस पि को एक ररट यावचका के समान माना गया।
 2002 में संविधान की कायतप्रर्ाली की समीिा करने के वलए राष्ट्रीय अयोग (National
Commission to Review the Working of the Constitution: NCRWC) की ररपोटत में
जवस्टस िमात सवमवत की ऄनुसश
ं ाओं के कायातन्ियन की वसफाररश की गयी। आसमें ऄनुशंसा की
गयी कक पहला और सबसे महत्त्िपूर्त कदम वजसे संघ और राज्य सरकारों द्वारा ईिाए जाने की
अिश्यकता है, िह है- जनता को संिेदनशील बनाना और नागररकों के बीच मूल कर्त्तव्यों के
प्रािधानों के ऄनुपालन हेतु एक सामान्य जागरूकता पैदा करना।

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1.7. मू ल कर्त्त व्य हे तु निीन सं द भत

 1976 से ऄब तक मूल कर्त्तव्यों में वशिा प्रदान करने संबंधी माता-वपता (ऄवभभािकों) के दावयत्िों
को शावमल करने के ऄवतररि कोइ बड़ा बदलाि नहीं हो पाया है। हाल के कु छ िषों में यह विषय
संविधानिेर्त्ाओं, प्रबुद्ध नागररकों एिं समाज के विवभन्न िगों के मध्य गंभीर सचतन और चचात का
विषय बना हुअ है।

 जबकक, आसी दौरान भारत की सामावजक-राजनीवतक व्यिस्था में काफी पररिततन अया है। साथ

ही, ईदार न्यावयक व्याख्याओं के द्वारा मूल ऄवधकारों के विवतज का विस्तार हुअ है। आससे
ऄवधकार एिं कर्त्तव्य के मध्य ऄसंतल
ु न ईत्पन्न हो गया है। ऄतः आस पर तत्काल पुनर्थिचार करने
की अिश्यकता है।
 सिोच्च न्यायालय के िततमान न्यायाधीश कु ररयन जोसेफ ने ऄपने विवभन्न ििव्यों एिं लेखों के
द्वारा मूल कर्त्तव्यों में कु छ नये अयामों को जोड़ने पर बल कदया है जो वनम्न हैं-

(i) मतदान करने का कर्त्तव्य (Duty to vote)

(ii) कर देने का कर्त्तव्य (Duty to pay tax)

(iii) दुघतटना पीवड़त की मदद करने का कर्त्तव्य (Duty to help accident victim)

(iv) अस-पड़ोस को स्िच्छ रखने का कर्त्तव्य (Duty to keep the premise clean)

(v) गलत कायों से स्ियं को एिं दूसरों को दूर रखने का नागररक कर्त्तव्य (Duty to prevent

civil wrong)

(vi) ऄन्याय के विरुद्ध अिाज ईिाने का कर्त्तव्य (Duty to raise voice against injustice)

(vii) वहहसल धलोऄर की सुरिा का कर्त्तव्य (Duty to protect whistleblower)

(viii) औवचत्यपूर्त वसविल सोसाआटी अंदोलन को समथतन देने का कर्त्तव्य (Duty to support

bona fide civil society movements)

1.8. अलोचना

 संविधान में प्रवतष्ठावपत कर्त्तव्य, ककसी सुसंगत मूलभूत विषय-िस्तु को प्रदर्थशत नही करते हैं। मूल

कर्त्तव्यों की गैर-प्रिततनीय प्रकृ वत के कारर् तथा आनके ऄवनवश्चत, ऄस्पि और ऄल्प व्यिहाररक
मूल्यों िाले एक नैवतक विचार भर होने के कारर् आनकी अलोचना की गइ है। आनमें से ऄवधकांश
कर्त्तव्यों का ईल्लंघन पहले से ही विवभन्न कानूनों के तहत दंडनीय है। कु छ अलोचकों का मानना है
कक मूल ऄवधकारों के साथ-साथ मूल कर्त्तव्यों को न्यायोवचत दजात प्रदान करना ऄवधक ईपयुि
होता क्योंकक ऄवधकार एिं कर्त्तव्य एक ही वस्े के दो पहलू हैं।
 भारत के पूित महान्यायिादी, सी.के . दफ्तरी, द्वारा मूल कर्त्तव्यों का विरोध ककया गया। ईन्होंने
तकत कदया कक ऄवधकांश नागररक कानून का पालन करते है। ऄतः ईन्हें ईनके कर्त्तव्यों के बारे में
बताने की अिश्यकता नहीं हैं। “जब तक लोग खुश एिं संतुि होते हैं तब तक िे स्ियं ऄपने

कर्त्तव्यों का पालन करते रहते हैं।”

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1.9. प्रासं वगकता

 कर्त्तव्य, कइ देशभि नागररकों को ऄनुशासन एिं प्रवतबद्धता की समझ प्रदान करते हैं। ऄवधकारों
का ईपभोग करने के साथ-साथ नागररकों के कु छ कर्त्तव्य भी होते हैं। मूल कर्त्तव्यों से न्यायालयों में
कानूनों की संिैधावनक िैधता की जांच करने में सहायता वमली है। आस प्रकार, ये कर्त्तव्य होने से
पहले एक महान वशिाप्रद मूल्य भी हैं। ये देश की एकता एिं ऄखंडता के साथ-साथ भूमण्डलीकृ त
एिं भौवतकिादी िैवश्वक व्यिस्था में गौरिशाली भारतीय सांस्कृ वतक परमपरा, मानििाद जैसे
मूल्यों को भी सुरिा प्रदान करते है। िततमान िैवश्वक समस्याओं जैसे पयातिरर्ीय िरर् अकद के
समाधान के वलए भी प्रासंवगक है।

1.10. मू ल कर्त्त व्यों को प्रभािी बनाने हे तु कु छ सु झाि

 मूल कर्त्तव्यों एिं संिैधावनक मूल्यों के प्रवत अम जनता को जागरुक करने के वलए राष्ट्रव्यापी
ऄवभयान चलाये जाने चावहए। मूल कर्त्तव्यों को प्रभािी एिं लोगों को जागरुक बनाने हेतु जवस्टस
िमात सवमवत ने वनम्न सुझाि कदए हैं-
o भारत की संविधान की प्रस्तािना सवहत सभी मूल कर्त्तव्य को सरकारी प्रकाशनों, कै लेंडर एिं
ऄन्य साितजवनक स्थानों पर कदखाया जाना चावहए ताकक लोग आन्हें देखकर जागरुक हो सकें ।

o 3 जनिरी को 'मूल कर्त्तव्य कदिस' मनाया जाना चावहए।


o मूल कर्त्तव्यों को प्रभािी बनाने हेतु लोकपाल/ऄमबुडसमैन जैसी स्िायर्त् संस्थाओं का गिन
ककया जाना चावहए।
o मीवडया, रे वडयो, समाचार पिों अकद के माध्यम से लोगों को आन मूल कर्त्तव्यों के प्रवत
जागरुक करना चावहए।
o आनको प्रभािी रूप प्रदान करने में गैर-सरकारी संगिनों (NGO) की भूवमका ऄत्यंत
महत्त्िपूर्त है।
o आन्हें हमेशा के वलए मूतत रूप देना तभी संभि होगा जब प्राथवमक, माध्यवमक एिं ईच्च
शैिवर्क स्तर पर सामूवहक पररचचात, भाषर्, िकत शॉप, वनबंध अकद के माध्यम से आन
कर्त्तव्यों के प्रवत विद्यार्थथयों को जीिन के प्रारवमभक चरर् में ही जागरुक ककया जाये।

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भारतीय संविधान एिं शासन


7. संघ काययपाविका

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विषय सूची
1. राष्ट्रपवत ___________________________________________________________________________________ 4

1.1 काययपाविका प्रमुख _________________________________________________________________________ 4

1.2 स्थायी काययपाविका एिं ऄस्थायी काययपाविका _____________________________________________________ 5

1.3 राष्ट्रपवत पद के विए ऄहयताएँ __________________________________________________________________ 6

1.4 राष्ट्रपवत की पदािवध (Term of Office) _________________________________________________________ 6

1.5 वनिायचन प्रणािी __________________________________________________________________________ 7


1.5.1 वनिायचक मंडि (Electoral College) _______________________________________________________ 7
1.5.2 वनिायचन प्रक्रिया _______________________________________________________________________ 8
1.5.3 वनिायचन से संबंवधत वििाद _______________________________________________________________ 9
1.5.4 समािोचनात्मक विश्लेषण _________________________________________________________________ 9

1.6 राष्ट्रपवत के पद के विए ऄन्य शतें_______________________________________________________________ 10

1.7 राष्ट्रपवत पर महावभयोग (ऄनु. 61) _____________________________________________________________ 11

1.8 राष्ट्रपवत की शवियाँ एिं कतयव्य _______________________________________________________________ 12


1.8.1 काययकारी शवियाँ _____________________________________________________________________ 13
1.8.2 विधायी शवियाँ ______________________________________________________________________ 15
1.8.3 अपातकािीन शवियाँ __________________________________________________________________ 16
1.8.4 वित्तीय शवियाँ ______________________________________________________________________ 17
1.8.5 राजनवयक शवियाँ ____________________________________________________________________ 17
1.8.6 सैन्य शवियाँ ________________________________________________________________________ 17
1.8.7 न्यावयक शवियाँ ______________________________________________________________________ 17
1.8.8 क्षमादान की शवि _____________________________________________________________________ 17
1.8.9 िीटो पॉिर: विधेयकों पर ऄनुमवत देना या ऄनुमवत रोकना ________________________________________ 20
1.8.9.1. ऄत्यांवतक िीटो (Absolute Veto) ____________________________________________________ 20
1.8.9.2. वनिंबनकारी िीटो (Suspensive Veto)________________________________________________ 20
1.8.9.3. पॉके ट िीटो (Pocket Veto) _________________________________________________________ 21
1.8.10 ऄध्यादेश जारी करने की शवि ___________________________________________________________ 21
1.8.11 प्रकीणय शवियाँ ______________________________________________________________________ 24

1.9. राष्ट्रपवत हेतु ईपिब्ध पररवस्थवतजन्य वििेकावधकार _________________________________________________ 24

1.10 राष्ट्रपवत की संिैधावनक वस्थवत _______________________________________________________________ 26

2. ईपराष्ट्रपवत ________________________________________________________________________________ 28

2.1 भूवमका ________________________________________________________________________________ 28

2.2 ऄहयताएँ ________________________________________________________________________________ 28

2.3 वनिायचन _______________________________________________________________________________ 29

2.4 पदािवध _______________________________________________________________________________ 29

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2.5 पद ररविता _____________________________________________________________________________ 29

2.6 शवियाँ और कायय _________________________________________________________________________ 30

2.7 भारत एिं ऄमेररकी ईपराष्ट्रपवतयों की तुिना ______________________________________________________ 30

3. प्रधानमंत्री _________________________________________________________________________________ 31

3.1 प्रधानमंत्री की वनयुवि ______________________________________________________________________ 31

3.2 प्रधानमंत्री की शवियाँ और कायय _______________________________________________________________ 32


3.2.1 मंवत्रपररषद के संबंध में _________________________________________________________________ 32
3.2.2 राष्ट्रपवत के संबंध में ____________________________________________________________________ 32
3.2.3 संसद के संबंध में ______________________________________________________________________ 32
3.2.4 ऄन्य शवियाँ और कायय _________________________________________________________________ 32

3.3 प्रधानमंत्री का राज्यसभा का सदस्य होना _________________________________________________________ 33

3.4 सरकार की प्रधानमंत्री प्रणािी ________________________________________________________________ 33

3.5 प्रधानमंत्री पद पर गठबंधन की राजनीवत का प्रभाि __________________________________________________ 33

4. कें द्रीय मंवत्रपररषद ___________________________________________________________________________ 34

4.1 मंवत्रपररषद की वनयुवि और काययकाि ___________________________________________________________ 34

4.2 मंवत्रपररषद की संरचना _____________________________________________________________________ 34

4.3 मंवत्रपररषद के कायय ________________________________________________________________________ 35

5. मंवत्रमंडि (Cabinet) ________________________________________________________________________ 35

5.1 मंवत्रमंडि के कायय _________________________________________________________________________ 35

5.2. मंवत्रमंडिीय सवमवतयाँ (Cabinet Committees) _________________________________________________ 36

5.3. सरकार की संसदीय प्रणािी के काययकारी वसद्ांत ___________________________________________________ 37


5.3.1 सामूवहक ईत्तरदावयत्ि का वसद्ांत (Principle of Collective Responsibility) ________________________ 37
5.3.2 मंवत्रयों का व्यविगत ईत्तरदावयत्ि __________________________________________________________ 37
5.3.3 प्रधानमंत्री की भूवमका __________________________________________________________________ 37

6. महान्यायिादी (Attorney General) _____________________________________________________________ 38

6.1 महान्यायिादी के कतयव्य ____________________________________________________________________ 38

6.2 ऄवधकार एिं मयायदाएँ ______________________________________________________________________ 38

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भारत संसदीय प्रणािी पर अधाररत एक गणतांवत्रक देश है। यहाँ विटेन की तर्य पर िोकतंत्र की
िेस्टममस्टर प्रणािी को ऄपनाया गया है वजसमें संसद विवध वनमायण की सिोच्च आकाइ है। हािाँक्रक, देश

के दैवनक प्रशासन हेतु एकमात्र प्रावधकारी एिं जिाबदेह, काययपाविका ही है। यह सरकार की िह
शाखा है जो संसद द्वारा बनाए गए कानूनों का क्रियान्ियन सुवनवित करती है।
संघीय काययपाविका में राष्ट्रपवत, ईपराष्ट्रपवत, प्रधानमंत्री, मंवत्रपररषद, महान्यायिादी अक्रद सवममवित

होते हैं। आसी तरह का ढांचा राज्यों के स्तर पर भी कायय करता है जहाँ राज्य काययपाविका में राज्यपाि,

मुख्यमंत्री, मंवत्रपररषद, महावधििा अक्रद सवममवित होते हैं।

1. राष्ट्रपवत
 भारत में ‘राष्ट्रप्रमुख’ के रूप में राष्ट्रपवत के पद की व्यिस्था को ऄपनाया गया है। विरटश िाईन

और ऄमेररकी राष्ट्रपवत से वभन्न, संविधान वनमायताओं ने भारतीय व्यिस्था के ऄनुरूप आस पद के

एक संतवु ित स्िरूप को ऄपनाया। गणतांवत्रक प्रणािी होने के कारण संविधान में ‘वनिायवचत

राष्ट्रपवत’ के प्रािधान को शावमि क्रकया गया।

1.1. कायय पाविका प्रमु ख

 मंवत्रमंडिीय काययपाविका में सामान्यतः दो प्रमुख होते हैं: एक ‘िास्तविक प्रमुख’ एिं दूसरा

‘नाममात्र या औपचाररक प्रमुख’। भारत में राष्ट्रपवत नाममात्र प्रमुख है तथा राष्ट्रपवत कायायिय की
प्रकृ वत काफी सीमा तक औपचाररक है।
शासन व्यिस्था में औपचाररक प्रमुख की अिश्यकता वनम्नविवखत कारणों से होती है :
 राष्ट्र प्रमुख के रूप में: राष्ट्रपवत देश की एकता, ऄखंडता एिं एकजुटता का प्रतीक है। ऄतः
व्यिहाररक रूप से राजप्रमुख न होते हुए भी भारतीय राष्ट्रपवत को राष्ट्रप्रमुख की भूवमका प्रदान की
गयी है।
 दिगत राजनीवत से मुि रखने हेत:ु राष्ट्रपवत कायायिय को दिगत राजनीवत से उपर माना जा
सकता है।
 प्रशासन की वनरं तरता हेत:ु मंवत्रपररषद का काययकाि ऄवनवित होता है और यह िोकसभा में
बहुमत पर वनभयर करता है। ऐसे में प्रशासन में वनरं त रता सुवनवित करने के विए एक वनवित
काययकाि िािे कायायिय का होना अिश्यक है।
 संघिादी स्िरूप को बनाए रखने हेत:ु भारत के संदभय में एक ऄवतररि कारण, संघिाद भी है।

राज्य विधानसभाओं के सदस्य भी राष्ट्रपवत के चुनाि में भाग िेते हैं। आसविए, यह कहा जा सकता
है क्रक राष्ट्रपवत संघ के ऄवतररि राज्यों का भी प्रवतवनवधत्ि करता है।
संविधान के भाग 5 के ऄनुच्छेद 52 से 78 तक में संघ की काययपाविका का िणयन है।

 ऄनुच्छेद 52 के ऄनुसार, भारत का एक राष्ट्रपवत होगा। यहाँ “होगा” शब्द के विए “shall” का

प्रयोग क्रकया गया है, वजसका ऄथय है क्रक भारत का राष्ट्रपवत ऄपने पद पर सदैि विद्यमान होगा।
यह पद न तो कभी ररि रखा जा सकता है और न ही आसे कभी समाप्त क्रकया जा सकता है।
राष्ट्रपवत का चुनाि, आसके काययकाि की समावप्त से पहिे ही संपन्न करिाए जाने का प्रािधान

क्रकया गया है। ऄस्िस्थता के कारण ऄस्थायी ऄनुपवस्थवत अक्रद के मामिे में ईपराष्ट्रपवत, राष्ट्रपवत
का पद धारण करे गा जब तक क्रक राष्ट्रपवत ऄपना पदभार पुनर्ग्यहण न करें ।

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1.2. स्थायी कायय पाविका एिं ऄस्थायी कायय पाविका

ऄनुच्छेद 53 (1) के ऄनुसार संघ की काययपाविका शवि राष्ट्रपवत में वनवहत होगी और िह आसका
प्रयोग आस संविधान के ऄनुसार स्ियं या ऄपने ऄधीनस्थ ऄवधकाररयों के द्वारा करे गा।
वििरण
 राष्ट्रपवत, ऄपनी आस काययपाविकीय शवि का प्रयोग मुख्यतः दो प्रकार के ऄधीनस्थ ऄवधकाररयों
के माध्यम से करता हैः
o स्थायी काययपाविका या नौकरशाही
o ऄस्थायी या राजनीवतक काययपाविका
स्थायी काययपाविका या नौकरशाही
 स्थायी काययपाविका के ऄंतगयत ऄवखि भारतीय सेिाएँ (IAS, IPS, IFoS), प्रांतीय सेिाएँ,
स्थानीय सरकार के कमयचारी और िोक ईपिमों के तकनीकी एिं प्रबंधकीय ऄवधकारी सवममवित
होते हैं।
नौकरशाही ऄथिा स्थायी काययपाविका की अिश्यकता क्यों?
 संविधान वनमायता विरटश शासन के दौरान ऄपने ऄनुभि से गैर-राजनीवतक एिं व्यािसावयक रूप
से दक्ष प्रशासवनक मशीनरी के महत्ि को जानते थे।
 नौकरशाही, िह माध्यम है वजसके द्वारा सरकार की िोकवहतकारी नीवतयाँ जनता तक पहुँचती हैं।

 सरकार के स्थायी कमयचारी के रूप में कायय करनेिािे ये प्रवशवक्षत एिं प्रिीण ऄवधकारी, नीवतयों
को बनाने ि ईसे िागू करने में मंवत्रयों का सहयोग करते हैं।
 ितयमान िैविक पररवस्थवतयों में नीवत-वनमायण एक ऄत्यंत ही जरटि कायय बन गया है वजसके विए
विशेषज्ञता एिं गहन ज्ञान की अिश्यकता है। आसके विए दक्ष एिं स्थायी काययपाविका की
अिश्यकता है।
 राजनीवतक या ऄस्थायी काययपाविका का ध्यान सामान्यत: नीवत-वनमायण एिं क्रियान्ियन में
ऄल्पकािीन राजनीवतक िाभ पर कें क्रद्रत होता है। जबक्रक, स्थायी काययपाविका दीघयकािीन
सामावजक-अर्थथक अिश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए ही नीवत-वनमायण एिं क्रियान्ियन में
मंवत्रयों को परामशय देती है।
 सरकारों के बदिने के बािजूद भी स्थायी काययपाविका, नीवतयों में वनरं तरता एिं िोकप्रशासन में
एकरूपता बनाए रखने में ऄपना महत्िपूणय योगदान देती है।
स्थायी काययपाविका एिं राजनीवतक काययपाविका के मध्य संबध

 संसदीय शासन प्रणािी में, राजनीवतक काययपाविका (मंत्रीपररषद, प्रधानमंत्री सवहत) सरकार के
प्रभारी होते हैं एिं स्थायी काययपाविका या प्रशासन आनके वनयंत्रण एिं देखरे ख में होता है।
 यह मंत्री की वजममेदारी है क्रक िह प्रशासन पर राजनीवतक वनयंत्रण रखे।
 राजनीवतक काययपाविका, जहाँ सामूवहक रूप से िोकसभा या विधावयका के प्रवत ईत्तरदायी होती

है, िहीं स्थायी काययपाविका या नौकरशाही ऄपने संबंवधत विभागों के मंवत्रयों के प्रवत ईत्तरदायी
होती है।
 नौकरशाही से यह ऄपेक्षा की जाती है क्रक यह राजनीवतक रूप से तटस्थ हो, ऄथायत् नौकरशाही,
नीवतयों पर विचार करते समय क्रकसी राजनीवतक दृविकोण या विचारधारा का समथयन नहीं
करे गी।
 िोकतंत्र में सरकारों के बदिने पर नौकरशाही की वजममेदारी है क्रक िह नइ सरकार को ऄपनी
नीवत बनाने एिं िागू करने में मदद करे ।

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शासन की राष्ट्रपतीय प्रणािी


हमारा संविधान राष्ट्रपवत के पद का सृजन करता है ककतु शासन की प्रणािी राष्ट्रपतीय नहीं है। शासन की
राष्ट्रपतीय और संसदीय प्रणािी को समझना एिं ईनके भेद जानना अिश्यक है। राष्ट्रपवत प्रणािी के
मुख्य िक्षण आस प्रकार हैं:
 राष्ट्रपवत राज्य का ऄध्यक्ष होता है और साथ ही शासनाध्यक्ष भी। िह राज्य व्यिस्था में शीषयस्थ
होता है। िह िास्ति में काययपािक होता है, नाममात्र का नहीं। ईसमें जो शवियाँ वनवहत हैं ईनका
िह व्यिहार में और िास्ति में ईपयोग करता है।
 सभी काययपाविका शवियाँ राष्ट्रपवत में वनवहत होती हैं। राष्ट्रपवत द्वारा वनयुि मंवत्रमंडि ईसे के िि
सिाह देता है। यह अिश्यक नहीं है क्रक िह ईनकी सिाह माने। िह ईनकी सिाह िेकर ऄपने
वििेक के ऄनुसार कायय कर सकता है।
 राष्ट्रपवत जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से वनिायवचत होता है। राष्ट्रपवत के पद की ऄिवध विधान-मंडि की
आच्छा पर अवित नहीं है। विधान-मंडि न तो राष्ट्रपवत का वनिायचन करता है और न ईसे ईसके पद
से हटा सकता है।
 राष्ट्रपवत और मंवत्रमंडि के सदस्य, विधान मंडि के सदस्य नहीं होते हैं। राष्ट्रपवत विधान-मंडि की
ऄिवध के ऄिसान के पूिय ईसका विघटन नहीं कर सकता। विधान-मंडि राष्ट्रपवत की पदािवध को
महावभयोग द्वारा ही समाप्त कर सकता है ऄन्यथा नहीं। आस प्रकार राष्ट्रपवत और विधान-मंडि
वनयत ऄिवध के विए वनिायवचत होते हैं और एक दूसरे से स्ितंत्र होते हैं। एक का दूसरे में हस्तक्षेप
नहीं होता।

1.3 राष्ट्रपवत पद के विए ऄहय ताएँ

ऄनु. 58 के ऄनुसार राष्ट्रपवत पद के चुनाि के विए एक व्यवि को वनम्नविवखत ऄहयताओं को पूणय करना
अिश्यक है:
 िह भारत का नागररक हो।
 िह 35 िषय की अयु पूणय कर चुका हो।
 िह िोकसभा का सदस्य वनिायवचत होने के योग्य हो।
 िह संघ सरकार ऄथिा क्रकसी राज्य सरकार ऄथिा क्रकसी स्थानीय प्रावधकरण ऄथिा क्रकसी
साियजवनक प्रावधकरण में िाभ के पद पर न हो।

1.4 राष्ट्रपवत की पदािवध (Term of Office)

 ऄनु. 56 के ऄनुसार, राष्ट्रपवत की पदािवध, ईसके पद धारण करने की वतवथ से पांच िषय तक होती
है। हािाँक्रक िह वनम्नविवखत रीवतयों से ऄपने काययकाि के दौरान ही पदमुि हो सकता है:
o भारत के ईपराष्ट्रपवत को विवखत में त्यागपत्र सौंपकर।
o संविधान का ऄवतिमण करने पर ऄनुच्छेद 61 में िर्थणत महावभयोग की प्रक्रिया द्वारा ईसे
पदमुि क्रकया जा सकता है। ऄनु. 61(1) के तहत, महावभयोग हेतु एकमात्र अधार ‘संविधान
का ऄवतिमण’ ईवल्िवखत है।
 यक्रद राष्ट्रपवत का पद ईसकी मृत्यु, त्यागपत्र, वनष्कासन ऄथिा क्रकन्हीं ऄन्य कारणों से ररि हो तो
ईपराष्ट्रपवत, नये राष्ट्रपवत के वनिायवचत होने तक काययिाहक राष्ट्रपवत के रूप में कायय करे गा। यक्रद
ईपराष्ट्रपवत का पद ररि हो, तो भारत का मुख्य न्यायाधीश (और यक्रद यह भी पद ररि हो तो
ईच्चतम न्यायािय का िररष्ठतम न्यायाधीश) काययिाहक राष्ट्रपवत के रूप में कायय करे गा।
 पद ररि होने की वतवथ से छह महीने के भीतर नए राष्ट्रपवत का चुनाि करिाया जाना अिश्यक
है। ितयमान या भूतपूिय राष्ट्रपवत, संविधान के ऄन्य ईपबंधों के ऄधीन रहते हुए आस पद के विए
पुनर्थनिायचन का पात्र होगा।

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1.5 वनिाय च न प्रणािी

 भारत के राष्ट्रपवत के वनिायचन (ऄनु. 55) के विए अनुपावतक प्रवतवनवधत्ि प्रणािी के ऄनुसार
एकि संिमणीय मत पद्वत को ऄपनाया गया है। आस पद्वत के तहत वनिायचन, गुप्त मतदान के
माध्यम से एक वनिायचक मंडि द्वारा क्रकया जाता है।
 भारत के राष्ट्रपवत के वनिायचन के विए सैद्ांवतक एिं व्यािहाररक रूप से ऄप्रत्यक्ष चुनाि प्रक्रि या
को ऄपनाया गया है। (ऄमेररकी राष्ट्रपवत की वनिायचन प्रक्रिया सैद्ांवतक रूप से ऄप्रत्यक्ष जबक्रक
व्यािहाररक रूप से प्रत्यक्ष है।)
1.5.1 वनिाय च क मं ड ि (Electoral College)

वनिायचक मंडि में सवममवित होते हैं:


 संसद के दोनों सदनों के वनिायवचत सदस्य।
 राज्यों की विधानसभाओं के वनिायवचत सदस्य।
 क्रदल्िी और पुदच
ु रे ी संघ शावसत प्रदेशों की विधानसभाओं के वनिायवचत सदस्य (70िें संविधान
संशोधन ऄवधवनयम, 1992 द्वारा शावमि)।
आसका ऄथय है क्रक वनम्नविवखत सदस्यों को राष्ट्रपवत चुनाि में मतदान करने की ऄनुमवत नहीं है:
o िोकसभा के मनोनीत सदस्यों को
o राज्यसभा के मनोनीत सदस्यों को
o राज्य विधानसभा के मनोनीत सदस्यों को
o राज्यों की विधानपररषदें के वनिायवचत एिं मनोनीत सदस्यों को
 राष्ट्रपवत और ईपराष्ट्रपवत के चुनाि से संबंवधत मामिों को विवध द्वारा विवनयवमत करने का
ऄवधकार संसद को प्राप्त है। राष्ट्रपवत और ईपराष्ट्रपवत वनिायचन ऄवधवनयम के तहत राष्ट्रपवत के पद
के विए नामांकन हेतु एक ईममीदिार के पास कम से कम 50 प्रस्तािक (electors as
proposers) एिं 50 ऄनुमोदक (electors as seconders) {वनिायचक (electors) से यहाँ
तात्पयय राष्ट्रपवत के वनिायचक मंडि (electoral college) के सदस्यों से है} होने चावहए।
 जहाँ तक संभि हो, प्रत्येक राज्य की जनसंख्या एिं विधानसभा के कु ि वनिायवचत सदस्यों की
संख्या के ऄनुसार राष्ट्रपवत के चुनाि में विवभन्न राज्यों के प्रवतवनवधत्ि में एकरूपता होनी चावहए।
साथ ही, सभी राज्यों एिं संघ के मध्य भी समानता होनी चावहए (ऄनु-55)। दूसरी शतय यह
सुवनवित करती है क्रक राष्ट्रपवत चुनाि के वनिायचक मंडि में राज्यों के विधानसभा के वनिायवचत
सदस्यों का समर्ग् मत मूल्य, संसद के दोनों सदनों के वनिायवचत सदस्यों के मत मूल्यो के िगभग
बराबर हो। आस प्रकार, राष्ट्रपवत राष्ट्र का प्रवतवनवध होने के साथ-साथ विवभन्न राज्यों के िोगों का
भी प्रवतवनवध होगा।
 विवभन्न राज्यों के प्रवतवनवधत्ि में एकरूपता सुवनवित करने के िम में यह प्रािधान क्रकया गया है
क्रक एक राज्य की विधान सभा के प्रत्येक वनिायवचत सदस्य के मत का मूल्य ईस राज्य की जनसंख्या
को, ईस राज्य की विधानसभा के वनिायवचत सदस्यों एिं 1000 के गुणनफि से प्राप्त संख्या द्वारा
भाग देने पर प्राप्त संख्या के समान होता है। सरि शब्दों में वनिायचक मंडि के प्रत्येक सदस्य, जो
क्रकसी राज्य विधान सभा का एक सदस्य है, के मतों के मूल्य की गणना वनम्नविवखत सूत्र से की
जाती है:

एक विधायक के मत का मूल्य = राज्य की कु ि जनसंख्या / (राज्य विधानसभा के वनिायवचत कु ि सदस्य


* 1000)
(0.5 से बड़ी वभन्न संख्या को 01 एिं ऄन्य वभन्नों को शून्य माना जाएगा।)

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वनम्नविवखत ईदाहरण के माध्यम से आस मतगणना विवध को और ऄवधक स्पि रूप से समझा जा सकता
है:
 मान िीवजए, ऄविभावजत अंध्रप्रदेश राज्य की जनसंख्या 37,129,852 और विधानसभा में

वनिायवचत सदस्यों की संख्या 276 है। राष्ट्रपवत के चुनाि में प्रत्येक वनिायवचत सदस्य द्वारा डािे

जाने िािे मतों का मूल्य ज्ञात करने के विए हम पहिे 37,129,852 (राज्य की जनसंख्या) को

276 (कु ि वनिायवचत सदस्यों की संख्या) से विभावजत करते है और आस से प्राप्त भागफि को

1/1000 से गुणन करते हैं। आससे यह 134,528.449/1000 भागफि प्राप्त होता है। आस प्रकार

प्रत्येक वनिायवचत सदस्य के मतों का मूल्य 134,528.449/1000 ऄथायत् 135 (यहाँ दशमिि

संख्या 0.528 जो 0.5 से ऄवधक है, आसविए 01 मानी जाएगी) होगा।

 संसद के प्रत्येक सदन के वनिायवचत सदस्य (MP) के मतों का मूल्य, सभी राज्यों के विधायकों के

मतों के मूल्य को संसद के कु ि वनिायवचत सदस्यों की संख्या से भाग देने पर प्राप्त होती है।

एक संसद सदस्य के मतों का मूल्य = (सभी राज्यों के विधायकों के मतों का कु ि मूल्य) / (संसद के
वनिायवचत सदस्यों की कु ि संख्या)
(0.5 से बड़ी वभन्न संख्या को 01 एिं ऄन्य वभन्नों को शून्य माना जाएगा।)

 राष्ट्रपवत का चुनाि अनुपावतक प्रवतवनवधत्ि के ऄनुसार एकि संिमणीय मत एिं गुप्त मतदान
द्वारा होता है जो सफि ईममीदिार की पूणय बहुमत से जीत सुवनवित करता है। क्रकसी ईममीदिार
को, राष्ट्रपवत के चुनाि में वनिायवचत होने के विए, मतों का एक वनवित कोटा प्राप्त करना

अिश्यक है। मतों का यह वनवित कोटा, कु ि िैध मतों की संख्या में, वनिायवचत होने िािे कु ि

ईममीदिारों (यहाँ के िि एक ही ईममीदिार राष्ट्रपवत के रूप में वनिायवचत होता है) की संख्या में
एक जोड़कर प्राप्त संख्या द्वारा, भाग देने पर भागफि में एक जोड़कर प्राप्त होता है। आस सूत्र को

वनम्नविवखत तरीके से दशायया जा सकता है:


वनवित मतों का कोटा = [कु ि िैध मत / (1+1=2)] + 1

1.5.2 वनिाय च न प्रक्रिया

 वनिायचक मंडि के प्रत्येक सदस्य को के िि एक मतपत्र क्रदया जाता है। मतदाता को मतदान करते
समय ईममीदिारों के नाम के अगे ऄपनी िरीयता 1, 2, 3, 4 अक्रद ऄंक्रकत करनी होती है। आस

प्रकार मतदाता ईममीदिारों की ईतनी िरीयता दे सकता है, वजतने ईममीदिार होते हैं।

 प्रथम चरण में, प्रथम िरीयता के मतों की गणना होती है। यक्रद ईममीदिार वनधायररत मत प्राप्त कर

िेता है तो िह वनिायवचत घोवषत हो जाता है ऄन्यथा मतों के स्थानान्तरण (transfer) की प्रक्रिया

ऄपनाइ जाती है। प्रथम िरीयता के न्यूनतम मत प्राप्त करने िािे ईममीदिार के मतों को रद्द कर
क्रदया जाता है तथा आसके वद्वतीय िरीयता के मत ऄन्य ईममीदिारों के प्रथम िरीयता के मतों में
स्थानांतररत कर क्रदए जाते हैं, यह प्रक्रिया तब तक चिती है जब तक कोइ ईममीदिार वनधायररत

मत प्राप्त नहीं कर िेता।

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1.5.3 वनिाय च न से सं बं वधत वििाद

 ऄनुच्छेद 71 के ऄनुसार, राष्ट्रपवत चुनाि से संबंवधत सभी वििादों की जांच ि वनणयय भारत के

ईच्चतम न्यायािय (ऄन्य न्यायाियों का आस पर कोइ ऄवधकार क्षेत्र नहीं है) द्वारा क्रकए जायेंगे,
वजसका ऄवधकार क्षेत्र विवशि और ऄंवतम होगा। राष्ट्रपवत पद के चुनाि से संबंवधत क्रकसी चुनाि
यावचका को चुनाि पररणाम की घोषणा के प्रकाशन की वतवथ से 30 क्रदनों के भीतर सुप्रीम कोटय के
समक्ष प्रस्तुत क्रकया जा सकता है। आसे चुनाि में भाग िेने िािे क्रकसी भी ईममीदिार द्वारा प्रस्तुत
क्रकया जा सकता है या यावचकाकताय के रूप में क्रकन्हीं बीस या ईससे ऄवधक मतदाताओं को एक
साथ शावमि कर भी यावचका प्रस्तुत की जा सकती है। यावचका के िि दो अधारों पर दी जा
सकती है:
o ईममीदिार का नामांकन गित तरीके से खाररज क्रकया गया है, या
o वनिायवचत ईममीदिार को गित तरीके से विजयी घोवषत क्रकया गया है।
 चुनाि को आस अधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती क्रक वनिायचक मंडि ऄपूणय (वनिायचक मंडि के
क्रकसी सदस्य का पद ररि होने पर) है।
 ईच्चतम न्यायािय द्वारा वनिायचन को ऄिैध घोवषत क्रकये जाने की वस्थवत में, ईच्चतम न्यायािय के
वनणयय से पूिय राष्ट्रपवत द्वारा क्रकये गए कायय ऄिैध नहीं माने जायेंगे तथा प्रभािी बने रहेंगे।

1.5.4 समािोचनात्मक विश्ले ष ण

 आस ऄप्रत्यक्ष चुनाि प्रणािी की कु छ विद्वानों द्वारा अिोचना की गइ क्योंक्रक यह िोकतंत्र के


ऄन्तर्थनवहत अदशय साियभौवमक मतावधकार का पािन नहीं करती है। िेक्रकन संविधान वनमायताओं
द्वारा, वनम्नविवखत अधारों पर ऄप्रत्यक्ष चुनाि का समथयन क्रकया गया:

o भारत जैसे देश में विस्तृत वनिायचक मंडि द्वारा प्रत्यक्ष चुनाि से समय, उजाय और धन का
ऄत्यवधक ऄपव्यय होगा।
o संविधान द्वारा प्रदत्त ईत्तरदायी सरकार की प्रणािी के तहत िास्तविक शवि मंवत्रमंडि में
वनवहत होगी। ऄतः प्रत्यक्ष रूप से वनिायवचत राष्ट्रपवत को िास्तविक शवियाँ न देना, एक
ऄव्यिस्था होगी।
 संविधान सभा के कु छ सदस्यों ने सुझाि क्रदया था क्रक राष्ट्रपवत का चुनाि के िि संसद के दोनों
सदनों के वनिायवचत सदस्यों द्वारा होना चावहए। संविधान वनमायताओं ने आसे प्राथवमकता नहीं दी
क्योंक्रक संसद में एक दि का बहुमत होता है, जो वनवित तौर पर ईसी दि के ईममीदिार को
चुनेगा और ऐसा राष्ट्रपवत भारत के सभी राज्यों का प्रवतवनवधत्ि नहीं कर सकता। िहीं दूसरी
तरफ, ितयमान व्यिस्था में राष्ट्रपवत संघ तथा सभी राज्यों का समान प्रवतवनवधत्ि करता है।

 आसके ऄवतररि, संविधान सभा में यह कहा गया क्रक राष्ट्रपवत के चुनाि में 'अनुपावतक

प्रवतवनवधत्ि' शब्द का प्रयोग गित है। अनुपावतक प्रवतवनवधत्ि का प्रयोग दो ऄथिा ऄवधक

व्यवियों के वनिायचन (बहुसदस्यीय वनिायचन) हेतु होता है। राष्ट्रपवत के मामिे में, पद के िि एक

ही है। बेहतर होता क्रक आसे प्राथवमक ऄथिा िैकवल्पक व्यिस्था कहा जाता। आसी प्रकार 'एकि

संिमणीय मत' के ऄथय की आस अधार पर अिोचना की गइ क्रक क्रकसी भी मतदाता का मत एकि


न होकर बहुसंख्यक होता है।

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1.6 राष्ट्रपवत के पद के विए ऄन्य शतें

 राष्ट्रपवत को संसद के क्रकसी भी सदन ऄथिा राज्य विधावयका का सदस्य नहीं होना चावहए।
आसका तात्पयय यह है क्रक यक्रद ऐसा कोइ सदस्य राष्ट्रपवत वनिायवचत होता है तो यह समझा जाएगा
क्रक ईसने ईस सदन में ऄपना स्थान राष्ट्रपवत के रूप में ऄपने पद र्ग्हण की तारीख से ररि कर
क्रदया है।
 राष्ट्रपवत कोइ ऄन्य िाभ का पद धारण नहीं करे गा।
 राष्ट्रपवत, वबना क्रकराया क्रदए ऄपने शासकीय वनिासों के ईपयोग का हक़दार होगा।
 राष्ट्रपवत की पररिवब्धयाँ और भत्ते ईसकी पदािवध के दौरान कम नहीं क्रकये जायेंगे।

ररिता की वस्थवत राष्ट्रपवत के पद पर कौन कायय करे गा

पाँच िषीय काययकाि की काययकाि समाप्त होने से पूिय चुनाि करिा िेना अिश्यक है। यक्रद
समावप्त चुनाि में क्रकसी कारण कोइ देरी हो तो ितयमान राष्ट्रपवत ऄपने पद पर
बना रहेगा, जब तक क्रक ईसका ईत्तरावधकारी काययभार र्ग्हण ना कर
िे।

ईसकी मृत्यु द्वारा ईपराष्ट्रपवत, नए राष्ट्रपवत के वनिायवचत होने तक काययिाहक राष्ट्रपवत के

रूप में कायय करे गा। चुनाि, पद ररि होने की वतवथ से छह महीने के
भीतर हो जाना चावहए।

ईसके त्याग पत्र द्वारा ईपराष्ट्रपवत, नए राष्ट्रपवत के वनिायवचत होने तक काययिाहक राष्ट्रपवत के

रूप में कायय करे गा। चुनाि, पद ररि होने की वतवथ से छह महीने के
भीतर हो जाना चावहए।

महावभयोग द्वारा ईसे पद से ईपराष्ट्रपवत, नए राष्ट्रपवत के वनिायवचत होने तक काययिाहक राष्ट्रपवत के


हटाने पर
रूप में कायय करे गा। चुनाि, पद ररि होने की वतवथ से छह महीने के
भीतर हो जाना चावहए।

ऄन्यथा, जैसे यक्रद िह पद ईपराष्ट्रपवत, नए राष्ट्रपवत के वनिायवचत होने तक काययिाहक राष्ट्रपवत के


धारण करने के विए ऄयोग्य रूप में कायय करे गा। चुनाि, पद ररि होने की वतवथ से छह महीने के
हो गया हो भीतर हो जाना चावहए।

ऄस्िस्थता या भारत में ईपराष्ट्रपवत ईसके पुनः पद र्ग्हण करने तक राष्ट्रपवत के रूप में कायय
ऄनुपवस्थवत पर करे गा।

नोट: यक्रद ईपराष्ट्रपवत का पद ररि हो तो भारत का मुख्य न्यायाधीश (ऄथिा ईसका भी पद ररि होने
पर ईच्चतम न्यायािय का िररष्ठतम न्यायाधीश) काययिाहक राष्ट्रपवत के रूप में कायय करे गा।
राष्ट्रपवत डा. जाक्रकर हुसैन की मृत्यु की िजह से पद ररि होने के कारण राष्ट्रपवत के रूप में कायय कर रहे
ईप राष्ट्रपवत िी िी.िी. वगरर ने जब 1969 में ईप राष्ट्रपवत के पद से आस्तीफा दे क्रदया, तब भारत के
मुख्य न्यायाधीश िी एम. वहदायतुल्िा ने राष्ट्रपवत के रूप में कायय क्रकया।

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1.7 राष्ट्रपवत पर महावभयोग (ऄनु . 61)

 महावभयोग संसद में संपन्न होने िािी एक ऄद्य-न्यावयक प्रक्रिया है। राष्ट्रपवत को ‘संविधान का
ऄवतिमण' करने पर ईसके पद से महावभयोग प्रक्रिया द्वारा हटाया जा सकता है। हािाँक्रक

संविधान, 'संविधान का ऄवतिमण' िाक्यांश के ऄथय को पररभावषत नहींंं करता।


 राष्ट्रपवत के विरुद् संविधान के ऄवतिमण का अरोप संसद के क्रकसी भी सदन में प्रारं भ क्रकया जा
सकता है। एक सदन द्वारा आस प्रकार का अरोप िगाए जाने पर दूसरा सदन ईस अरोप का
ऄन्िेषण करे गा या करिाएगा।
 राष्ट्रपवत के विरूद् अरोप संसद के क्रकसी भी सदन में प्रारं भ क्रकए जा सकते हैं। अरोप एक
प्रस्थापना के रूप में होगा और प्रस्थापना संकल्प में होगी। संकल्प को प्रस्तावित करने की सूचना
पर सदन की कु ि सदस्य संख्या के कम से कम एक चौथाइ सदस्यों के हस्ताक्षर होंगे। आस हेतु 14
क्रदनों की ऄवर्ग्म सूचना देना अिश्यक है। संकल्प ईस सदन की कु ि सदस्य संख्या के कम से कम
दो वतहाइ बहुमत से पाररत क्रकया जाना चावहए।
 जब एक सदन द्वारा आस प्रकार अरोप िगाया जाता है तो दूसरे सदन द्वारा ईसका ऄन्िेषण होगा।
राष्ट्रपवत को ऐसे ऄन्िेषण में ईपवस्थत होने का तथा ऄपना प्रवतवनवधत्ि करिाने का ऄवधकार
होगा, ऄथायत् राष्ट्रपवत के प्रवतवनवध के रूप में कोइ ऄवधििा या ऄन्य व्यवि ईपवस्थत हो सकता
है। सदन ऄन्िेषण का काम क्रकसी न्यायािय या ऄवधकरण को प्रत्यायोवजत कर सकता है। यक्रद
ऄन्िेषण के पिात् सदन दो वतहाइ बहुमत से संकल्प पाररत करके यह घोवषत कर देता है क्रक
अरोप वसद् हो गया है तो ऐसे संकल्प का प्रभाि ईसके पाररत क्रकए जाने की तारीख से राष्ट्रपवत
को ईसके पद से हटाना होगा।

ऄमरीका में सीनेट को महावभयोग के विचारण का ऄवधकार है, कांर्ग्ेस को नहीं। विचारण की ऄध्यक्षता
ईच्चतम न्यायािय का मुख्य न्यायमूर्थत करता है। हटाए जाने का संकल्प विचारण में ईपवस्थत सदस्यों के
दो वतहाइ बहुमत से पाररत होता है।

 चूँक्रक संविधान राष्ट्रपवत को हटाने का अधार और तरीका प्रदान करता है, ऄतः ऄनुच्छेद 56 और
61 की शतों के ऄनुरूप महावभयोग के ऄवतररि ईसे और क्रकसी भी तरीके से नहीं हटाया जा
सकता है।
स्पिीकरण
 ‘महावभयोग’ आतना ऄसाधारण शब्द है क्रक आसको गित समझा जा सकता है। एक सामान्य गित
ऄिधारणा यह है क्रक आसे ‘पद से जबरन हटाना’ समझा जाता है।
 'महावभयोग' शब्द विरटश परमपरा से ईत्पन्न हुअ है, वजसका ऄथय क्रकसी सरकारी ऄवधकारी को
वबना क्रकसी सरकारी ऄनुबंध के तथा महावभयोग द्वारा दोषवसद् हो जाने पर ईसके पद से हटाना
है। भारत में, यह एक ऄद्य-न्यावयक प्रक्रिया है और के िि राष्ट्रपवत को संविधान के ऄवतिमण के
अधार पर महावभयोग द्वारा हटाया जा सकता है।
o संसद के दोनों सदनों के नामांक्रकत सदस्य वजन्होंने राष्ट्रपवत के चुनाि में भाग नहीं विया था,
महावभयोग में भाग िे सकते हैं।
o राज्य विधानसभाओं के वनिायवचत सदस्य तथा क्रदल्िी और पुदच
ु रे ी के न्द्रशावसत प्रदेश के
विधानसभाओं के सदस्य महावभयोग प्रस्ताि में भाग नहीं िेते हैं, भिे ही ईन्होंने राष्ट्रपवत के
चुनाि में भाग विया था।
 ऄभी तक भारत में क्रकसी भी राष्ट्रपवत पर महावभयोग नहीं चिाया गया है।

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1.8 राष्ट्रपवत की शवियाँ एिं कतय व्य

 संविधान के ऄनुसार, संघ की समस्त काययपाविका शवि राष्ट्रपवत में वनवहत है। ‘काययपाविका
शवि’ मुख्य रूप से विधानमंडि द्वारा पाररत कानूनों के क्रियान्ियन को दशायता है। राज्य के कायों
में ऄत्यवधक विस्तार होने के कारण, सभी ऄिवशि कायों को व्यािहाररक रूप से काययपाविका के
हाथों में सौंप क्रदया गया है। काययपाविका शवि को संवक्षप्त रूप में, ईन मामिों को छोड़कर वजसके
विए संविधान ने क्रकसी और को ऄवधकृ त क्रकया है, शेष सभी के विए, ‘सरकार के कायों को पािन
करने की शवि’ या ‘राज्य के मामिों का प्रशासन’ के रूप में पररभावषत क्रकया जा सकता है। आस
प्रकार, काययपाविका शवियों में प्रमुख रूप से नीवतवनमायण, नीवत क्रियान्ियन, व्यिस्था को बनाए
रखना, सामावजक और अर्थथक कल्याण को बढ़ािा देना, विदेश नीवत की रूप रे खा तैयार करना,
राज्य के सामान्य प्रशासन की देखरे ख करना अक्रद शावमि हैं।
राष्ट्रपवत की शवियों पर संिध ै ावनक सीमाएँ
 ऄनुच्छेद 74(1) के ऄनुसार, भारत का राष्ट्रपवत ऄपनी काययपाविका शवियों का प्रयोग
मंवत्रपररषद की सिाह पर करे गा।
 ऄनुच्छेद 75(1) स्पि रूप से यह प्रािधान करता है क्रक मंवत्रयों (प्रधानमंत्री को छोड़कर) की
वनयुवि प्रधानमंत्री की सिाह पर की जाती है। यक्रद राष्ट्रपवत प्रधानमन्त्री द्वारा ईपिब्ध करिायी
गयी सूची से ऄिग क्रकसी ऄन्य व्यवि को मंत्री वनयुि करता है तो यह आस प्रािधान का ईल्िंघन
होगा। यक्रद राष्ट्रपवत संविधान के ऄवनिायय प्रािधानों का ईल्िंघन करता है तो िह महावभयोग की
प्रक्रिया के तहत पद से हटाये जाने के विए ईत्तरदायी होगा।
42िाँ संविधान संशोधन
 1976 के पहिे, राष्ट्रपवत संिैधावनक प्रािधानों के तहत मंवत्रपररषद की सिाह पर काम करने के
विए बाध्य नहीं था। यद्यवप न्यावयक रूप से यह स्पि कर क्रदया गया था क्रक राष्ट्रपवत संिैधावनक
प्रमुख है न क्रक िास्तविक प्रमुख तथा िह मंवत्रपररषद की सिाह को मानने के विए बाध्य है, बशते
ईन्हें िोकसभा में वििासमत प्राप्त हो। 42िें संविधान संशोधन, 1976 के तहत ऄनु. 74(1) में
संशोधन करके आस वस्थवत को स्पि क्रकया गया है।
ऄनु. 74(1) संशोधन के बाद ऄब आस रूप में है:
“राष्ट्रपवत को सहायता और सिाह देने के विए एक मंवत्रपररषद होगी वजसका प्रधान प्रधानमंत्री होगा
और राष्ट्रपवत ऄपने कृ त्यों का प्रयोग करने में ऐसी सिाह के ऄनुसार कायय करे गा।”
 यह ऄनुच्छेद राष्ट्रपवत को मंवत्रपररषद की सिाह पर कायय करने हेतु बाध्य करता है।
 जनता दि की सरकार ने 42िें संविधान संशोधन द्वारा ऄनु. 74(1) के संशोवधत स्िरूप को बनाए
रखा। िेक्रकन, 44िें संशोधन ऄवधवनयम, द्वारा एक ऄन्य प्रािधान जोड़ा गया जो आस प्रकार है:
“राष्ट्रपवत ऐसी सिाह पर पुनर्थिचार के विए ऄपेक्षा कर सके गा और पुनर्थिचार के पिात् दी गयी
सिाह के ऄनुसार कायय करे गा।”
 44िें संविधान संशोधन के बाद ितयमान वस्थवत यह है क्रक राष्ट्रपवत को प्रधानमन्त्री की ऄध्यक्षता में
गरठत मंवत्रपररषद की सिाह के ऄनुसार ही कायय करना होगा। आसविए, आस तरह की सिाह को
आं कार करने की वस्थवत में ईसपर संविधान के ऄवतिमण के मामिे में महावभयोग चिाया जा
सके गा। िेक्रकन, यह राष्ट्रपवत की शवियों के ऄधीन है क्रक िह कु छ विशेष मामिों में मंवत्रपररषद के
द्वारा प्राप्त सिाह को पुनर्थिचार के विए िापस भेज सके गा।
 हािाँक्रक, यक्रद मंवत्रपररषद राष्ट्रपवत को वबना संशोधन के ही परामशय को िापस भेज दे तो राष्ट्रपवत
के पास आसे मानने के ऄिािा कोइ विकल्प नहीं होगा। क्रकसी एक मामिे में पुनर्थिचार के विए
िापस करने की शवि का प्रयोग एक बार ही क्रकया जा सकता है। राष्ट्रपवत द्वारा प्रयोग की जाने
िािी शवियों ि कायों को वनम्नविवखत शीषयकों के ऄंतगयत रखा जा सकता है:

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1.8.1 कायय कारी शवियाँ

 ऄनु. 53 राष्ट्रपवत को संघ की समस्त काययकारी शवियाँ प्रदान करता है। औपचाररक रूप से सभी
कायय ईसी के नाम पर क्रकए जाते हैं। आन शवियों का प्रयोग ईसके द्वारा प्रत्यक्ष रूप से या संविधान
द्वारा प्रदत्त ईसके ऄधीनस्थ ऄवधकाररयों के माध्यम से क्रकया जाता है।
 राष्ट्रपवत ऄपने नाम से वनर्थमत क्रकये जाने िािे तथा िागू क्रकये जाने िािे अदेशों के विए ऐसे
वनयम बना सकता है, वजनकी पूर्थत की वस्थवत में िे अदेश िैध एिं प्रमावणत हों।
 िह प्रधानमन्त्री एिं ऄन्य मंवत्रयों की वनयुवि करता है तथा सभी मंत्री ईसके प्रसादपयंत कायय
करते हैं।
 िह भारत के महान्यायिादी की वनयुवि करता है तथा ईसके िेतन अक्रद का वनधायरण करता है।
महान्यायिादी भी राष्ट्रपवत के प्रसादपयंत कायय करता है।
 राष्ट्रपवत वनम्नविवखत पदावधकाररयों को वनयुि करता है:
o भारत का प्रधानमंत्री और संघ के ऄन्य मंत्री
o भारत का महान्यायिादी
o भारत के वनयंत्रक एिं महािेखा परीक्षक
o मुख्य वनिायचन अयुि और ऄन्य वनिायचन अयुि
o संघ िोक सेिा अयोग के ऄध्यक्ष और सदस्य
o वित्त अयोग के ऄध्यक्ष और सदस्य
o ईच्च न्यायािय और ईच्चतम न्यायािय के न्यायाधीश
o राज्यपाि, ईपराज्यपाि और प्रशासक
o ऄनुसूवचत जावतयों और जनजावतयों के विए विशेष ऄवधकारी
o भाषाइ ऄल्पसंख्यकों के विए विशेष ऄवधकारी
 कु छ वनयुवियों में, राष्ट्रपवत मंवत्रपररषद के ऄवतररि कु छ ऄन्य व्यवियों से सिाह िेता है।
ईदाहरण के विए, ईच्चतम न्यायािय के न्यायाधीशों की वनयुवि में राष्ट्रपवत भारत के मुख्य
न्यायाधीश की सिाह िेगा और ईच्चतम न्यायािय और ईच्च न्यायािय के ऐसे ऄन्य न्यायाधीशों,
वजनसे िह अिश्यक समझे, सिाह िेगा। [ऄनु. 124(2)]
 उपर वनर्ददि ऄवधकाररयों की वनयुवि की शवि के ऄवतररि, भारतीय संविधान के ऄनुसार
राष्ट्रपवत को ऄिर ऄवधकाररयों की वनयुवि की शवि नहीं है जैसा क्रक ऄमेररकी संविधान में पाया
जाता है। आस प्रकार, भारतीय संविधान ऄमेररका की तरह ऄिांछनीय ‘िूट प्रणािी (Spoil
system)’ से बचाि करता है। बवल्क यह ईच्च ऄवधकाररयों की वनयुवि को संसद के विए एक
विधायी विषय बना देता है तथा आसके तहत राष्ट्रपवत के विए वनयुवि से संबंवधत मामिों में (कु छ
वनर्ददि मामिों को छोड़कर) िोक सेिा अयोग से सिाह िेना ऄवनिायय है।
 राष्ट्रपवत, संघ के प्रशासन के मामिों से संबंवधत और विधावयका से संबंवधत क्रकसी भी प्रस्ताि की
जानकारी मांग सकता है।
 िह क्रकसी ऐसे मामिे, वजसमें क्रकसी मंत्री द्वारा वनणयय विया गया है िेक्रकन मंवत्रपररषद ने ईस पर
विचार नहीं क्रकया है, के संबंध में प्रधानमंत्री को मंवत्रपररषद की राय प्रस्तुत करने को कह सकता
है।
 िह ऄनुसूवचत जावतयों, ऄनुसूवचत जनजावतयों और ऄन्य वपछड़े िगों की वस्थवत की जांच के विए
एक अयोग वनयुि कर सकता है।
 िह कें द्र-राज्य और ऄंतर राज्यीय सहयोग को बढ़ािा देने के विए एक ऄंतर राज्यीय पररषद् का
गठन कर सकता है।
 िह स्ियं द्वारा वनयुि प्रशासकों के माध्यम से के न्द्रशावसत प्रदेशों का प्रशासन प्रत्यक्ष रूप से
समभािता है।
 िह क्रकसी क्षेत्र को ऄनुसवू चत क्षेत्र घोवषत कर सकता है। राष्ट्रपवत को ऄनुसूवचत क्षेत्रों और
जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन की शवियाँ प्राप्त हैं।

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ऄनुसवू चत/जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के संबध ं में राष्ट्रपवत की शवियाँ:


 क्रकसी क्षेत्र को ऄनुसूवचत क्षेत्र के रूप में घोवषत करने की शवि।
 क्रकसी क्षेत्र के ऄनुसूवचत क्षेत्र न रहने की घोषणा करने की शवि।
 जनजातीय सिाहकार सवमवत के गठन की शवि।
 क्रकसी राज्य के ऄनुसूवचत क्षेत्र में शांवत और सुशासन के विए, राज्यपाि क़ानून बना सकता है।
ऐसे कानून तब तक प्रभािी नहीं होंगें जब तक क्रक राष्ट्रपवत के समक्ष ईसे विचार के विए प्रस्तुत न
क्रकया गया हो और िह ईस पर ऄपनी सहमवत न दे दे।
 राष्ट्रपवत, क्षेत्र के प्रशासन पर राज्यपाि से ररपोटय तैयार करने की मांग कर सकता है।
 राष्ट्रपवत ऐसे क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में वनदेश जारी कर सकता है।
संघ की काययपाविका शवि का विस्तार
ऄनुच्छेद 73 प्रािधान करता है:
1. ईन सभी विषयों पर, वजन पर संसद को क़ानून बनाने का ऄवधकार है, संघीय काययपाविका को भी
ऐसी ही शवियाँ प्राप्त होंगी।
2. क्रकसी संवध या करार के अधार पर भारत सरकार द्वारा प्रयोिव्य ऄवधकारों, प्रावधकार और
अवधकाररता के प्रयोग तक।
3. समिती सूची के संबंध में, सामान्यतया काययकारी शवियाँ राज्यों को ही प्राप्त हैं। िेक्रकन, यक्रद
संसद विशेष रूप से संघ काययकारी को आस पर क़ानून बनाने का ऄवधकार दे दे तो संघ ऄपने आस
ऄवधकार का प्रयोग कर सके गा।
आसके ऄवतररि, ऄनुच्छेद 53(3) प्रािधान करता है क्रक:
यक्रद संसद द्वारा कोइ क़ानून पाररत कर ईसके तहत क्रकसी राज्य या ऄन्य क्रकसी प्रावधकारी को कायय
करने का ऄवधकार क्रदया जाए तो आसे राष्ट्रपवत के पास स्थानांतररत हुअ नहीं समझा जाएगा। विशेष
रूप से, ऄनु. 53 के द्वारा संसद, राष्ट्रपवत के ऄवतररि क्रकसी भी प्रावधकारी को क़ानून के द्वारा कोइ भी
काययकारी कायय करने के विए वनदेवशत कर सकती है।
राष्ट्रपवत द्वारा काययकारी शवियों के प्रयोग का तरीका
 ऄनु. 53(1) के तहत प्रािधान क्रकया गया है क्रक काययकारी शवियों का प्रयोग राष्ट्रपवत द्वारा प्रत्यक्ष
रूप से या ऄपने ऄधीनस्थ ऄवधकाररयों के द्वारा क्रकया जाएगा।
 यहाँ, ऄधीनस्थ ऄवधकाररयों में मंवत्रपररषद भी शावमि है।
 विशेष रूप से, आस ऄनुच्छेद को ऄनुच्छेद 74 के साथ समझा जाना चावहए वजसके ऄनुसार
राष्ट्रपवत को सहायता और सिाह देने के विए एक मंवत्रपररषद होगी वजसका प्रधान प्रधानमंत्री
होगा।
 आस ऄनुच्छेद के ऄनुसार शब्द “होगी” का अशय है क्रक संविधान ऐसी वस्थवत का प्रािधान नहीं
करता है क्रक राष्ट्रपवत, मंवत्रपररषद की सहायता और सिाह के वबना कायय करे । आस मामिे में, यक्रद
सरकार ने बहुमत खो क्रदया हो तो राष्ट्रपवत एक काययिाहक सरकार का गठन कर सकता है। आससे
यह स्पि है क्रक िह मौजूदा सरकार को ऄगिी सरकार के गठन होने तक पद पर बने रहने के विए
कह सकता है।
कायों के अिंटन और समपादन के संबध ं में राष्ट्रपवत की शवियाँ
ऄनु.77 प्रािधान करता है क्रक:
1. भारत सरकार के सभी काययकारी कायय राष्ट्रपवत के नाम से क्रकये जाएँगे।
2. राष्ट्रपवत के नाम से क्रकए गए एिं वनष्पाक्रदत अदेशों और ऄन्य विखतों को ऐसी रीवत से प्रमावणत
क्रकया जायेगा जो राष्ट्रपवत द्वारा बनाए जाने िािे वनयमों में विवनर्ददि क्रकया जाए और आस प्रकार
प्रमावणत अदेश की विवधमान्यता को प्रश्नगत नहीं क्रकया जायेगा क्रक िह राष्ट्रपवत द्वारा वनष्पाक्रदत
अदेश या विखत नहीं है।
3. राष्ट्रपवत, भारत सरकार का कायय ऄवधक सुविधाजनक क्रकए जाने के विए और मंवत्रयों में ईि कायय
के अिंटन के विए वनयम बनाएगा।
हािाँक्रक, राष्ट्रपवत की काययकारी शवियाँ ईसकी ऄन्य शवियों की तरह ही मंवत्रपररषद, वजसकी

ऄध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं, की सिाह के ऄधीन हैं।

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1.8.2 विधायी शवियाँ

राष्ट्रपवत, भारतीय संसद का ऄवभन्न ऄंग है। ईसे वनम्नविवखत विधायी शवियाँ प्राप्त है:
 राष्ट्रपवत, संसद के सत्र को अहूत या सत्रािसान कर सकता है और िोकसभा को विघरटत कर
सकता है। िह संसद के संयुि ऄवधिेशन का अह्िान कर सकता है (साधारण विधेयक के मामिे
में) वजसकी ऄध्यक्षता िोकसभा ऄध्यक्ष द्वारा की जाती है।
 िह प्रत्येक नए अम चुनाि के बाद तथा प्रवत िषय संसद के प्रथम ऄवधिेशन को संबोवधत करता है।
आसके ऄवतररि, िह संसद के क्रकसी भी सदन को िंवबत विधेयक, राष्ट्रीय, संिैधावनक या
साियजवनक वहत अक्रद से संबंवधत क्रकसी महत्िपूणय मुद्दे पर सन्देश भेज सकता है।
 भारत के राष्ट्रपवत को अंवशक रूप से संसद का गठन करने की शवि प्राप्त है क्योंक्रक िह संसद के
दोनों सदनों के कु छ सदस्यों को मनोनीत कर सकता है। यक्रद ईसे प्रतीत हो क्रक अंग्ि भारतीय
समुदाय का िोकसभा में पयायप्त प्रवतवनवधत्ि नहीं है तो िह आस समुदाय के दो व्यवियों को
मनोनीत कर सकता है। आसके ऄवतररि, िह राज्यसभा में सावहत्य, विज्ञान, किा ि समाज सेिा
में विशेष ज्ञान रखने िािे 12 व्यवियों को मनोनीत कर सकता है।
 जब कोइ विधेयक संसद से पाररत होने के बाद राष्ट्रपवत के पास भेजा जाता है तो राष्ट्रपवत ईसे:
o ऄपनी स्िीकृ वत देता है, या
o ऄपनी स्िीकृ वत सुरवक्षत रखता है, या
o विधेयक को (यक्रद िह धन विधेयक नहीं हो) संसद को पुनर्थिचार के विए िौटा देता है।
 हािाँक्रक यक्रद विधेयक को संशोवधत करके या वबना संशोधन के राष्ट्रपवत के पास पुनः िापस भेजा
जाता है तो ईसे आस पर ऄिश्य ही ऄपनी सहमवत देनी होगी।
 राष्ट्रपवत द्वारा क्रकसी धन विधेयक को पुनर्थिचार हेतु सदन में िापस नहीं भेजा जा सकता।
राष्ट्रपवत संविधान संशोधन विधेयक को स्िीकृ वत देने के विए बाध्य है क्योंक्रक यह संसद द्वारा
वनधायररत विशेष बहुमत से पाररत होकर अता है और जहाँ अिश्यक हो, राज्य विधानमंडि के
ऄपेवक्षत संख्या द्वारा आसकी पुवि की जाती है।
 जब राज्यपाि, राज्य विधानमंडि द्वारा पाररत विधेयक को राष्ट्रपवत के विचाराथय सुरवक्षत रखता
है तो राष्ट्रपवत ईसे:
o ऄपनी स्िीकृ वत देता है, या
o ऄपनी स्िीकृ वत सुरवक्षत रखता है, या
o राज्यपाि को वनदेश देता है क्रक विधेयक को (यक्रद िह धन विधेयक नहीं हो) पुनर्थिचार के
विए राज्य विधानमंडि को िौटा दे। यहाँ यह ध्यान देने योग्य है क्रक राष्ट्रपवत के विए यह
अिश्यक नहीं है क्रक िह राज्य विधानमंडि द्वारा पुनः पाररत विधेयक को ऄपनी स्िीकृ वत
प्रदान करे । ईसे पुनः पुनर्थिचार के विए िापस भेज सकता है।
 राष्ट्रपवत संसद के सत्रािसान की ऄिवध में ऄध्यादेश जारी कर सकता है (जब संसद के दोनों सदनों
का सत्र नहीं चि रहा हो या संसद के क्रकसी भी एक सदन का सत्र नहीं चि रहा हो)। ऄध्यादेश
एक अकवस्मक विधान की तरह है। जब कोइ क़ानून ऐसे समय में अिश्यक हो जब विधावयका का
सत्र न चि रह हो तो काययपाविका के ऄनुरोध पर राष्ट्रपवत ऄध्यादेश जारी कर सकता है वजसका
प्रभाि एक ऄवधवनयम की भाँवत होगा। हािाँक्रक, ऐसे प्रत्येक ऄध्यादेश को संसद की अगामी बैठक
के छह हफ्ते के भीतर संसद द्वारा ऄनुमोक्रदत करना अिश्यक है। संसद की बैठक के छह हफ्ते के
बाद यक्रद आसे संसद द्वारा पाररत न क्रकया गया (दोनों सदनों के बैठक की तारीख में यक्रद ऄंतर हो
तो दोनों वतवथयों में से ऄंवतम वतवथ से से छह हफ़्तों की गणना होगी) तो यह समाप्त हो जायेगा।
ऄध्यादेश स्ितः समाप्त हो जाता है, यक्रद आसे छह हफ्तों की समावप्त के पहिे एक संकल्प द्वारा
िापस िे विया जाए। राष्ट्रपवत क्रकसी भी समय ऄध्यादेश को िापस िे सकता है। राष्ट्रपवत के
ऄध्यादेश जारी करने के वनणयय को न्यायािय में प्रश्नगत क्रकया जा सकता है, यक्रद िह क्रकसी
दुभायिना के अधार पर जारी क्रकया गया हो।

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 राष्ट्रपवत वित्त अयोग, संघ िोक सेिा अयोग, ऄनुसूवचत जावतयों और ऄनुसूवचत जनजावतयों के
राष्ट्रीय अयोग, के न्द्रीय सतकय ता अयोग, के न्द्रीय सूचना अयोग और वनयंत्रक एिं महािेखा
परीक्षक की ररपोटय को संसद के समक्ष रखिाता है।
 ऄनु. 103 के ऄनुसार, क्रकसी संसद सदस्य की ऄयोग्यता से संबंवधत मामिा यक्रद ऄनु.102 के
ऄधीन है तो आसे राष्ट्रपवत के समक्ष प्रस्तुत क्रकया जायेगा, वजसका वनणयय ऄंवतम होगा। हािाँक्रक,
आसकी पूिय शतय यह है क्रक ऐसे मामिों में वनणयय से पहिे राष्ट्रपवत वनिायचन अयोग की राय िे
सके गा और ईि राय के ऄनुसार ही कायय करे गा।
 िह ऄंडमान एिं वनकोबार द्वीप समूह, िक्षद्वीप, दादरा एिं नागर हिेिी तथा दमन एिं दीि में
शांवत, विकास ि सुशासन के विए विवनयम बना सकता है। पुदच
ु रे ी के मामिे में भी, यक्रद िहाँ की
विधानसभा वनिंवबत ऄथिा विघरटत ऄिस्था में हो तो िह वनयम बना सकता है।

पूिय मंजरू ी: संविधान में यह ऄपेक्षा है क्रक कु छ विषयों से संबंवधत विधान राष्ट्रपवत की पूिय मंजूरी या
वसफाररश के वबना पुनःस्थावपत नहीं क्रकया जाएगा। ये विषय हैं: नए राज्य की रचना के विए या
विद्यमान राज्य की सीमा में पररितयन के विए विधेयक (ऄनु. 3)। ऐसे विधेयक जो धन विधेयक हैं [ऄनु.
117(1)]। ऐसा विधेयक वजसके ऄवधवनयवमत क्रकए जाने पर भारत की संवचत वनवध में से व्यय करना
पड़ेगा [ऄनु. 117(3)]। ऐसा विधेयक जो ईन करों के बारे में है वजनमें राज्य वहतबद् है या जो ईन
वसद्ांतों को प्रभावित करता है वजनसे राज्यों को धन वितररत क्रकया जाता है या जो कृ वष-अय की
पररभाषा में पररितयन करता है [ऄनु. 274(1)]। राज्यों के ऐसे विधेयक जो व्यापार और िावणज्य की
स्ितंत्रता को प्रभावित करते हैं (ऄनु. 304)।

1.8.3 अपातकािीन शवियाँ

भारतीय संविधान के वनमायता भारत शासन ऄवधवनयम, 1935 और जमयनी के िाइमर संविधान से
प्रभावित थे जहाँ से अपातकािीन प्रािधानों को भारतीय संविधान में शावमि क्रकया गया। भारत के
संविधान में तीन प्रकार की अपात वस्थवत की पररकल्पना की गयी है:
 राष्ट्रीय अपातकाि
 राज्य अपातकाि या राष्ट्रपवत शासन और
 वित्तीय अपातकाि।
क्रकसी भी अपातकािीन वस्थवत से वनपटने के विए राष्ट्रपवत को भारत के संविधान द्वारा कु छ
ऄसाधारण शवियाँ प्रदान की गयी है:
राष्ट्रीय अपातकाि (ऄनु. 352)
 जब भारत या आसके क्रकसी भूभाग पर युद्, बाह्य अिमण या सशस्त्र विद्रोह का खतरा हो तो
ऄनु.352 के तहत राष्ट्रपवत, राष्ट्रीय अपातकाि की ईदघोषणा कर सकते हैं । 44िें संविधान
संशोधन, 1978 के द्वारा ‘अंतररक ऄशांवत’ के स्थान पर ‘सशस्त्र विद्रोह’ को जोड़ा गया। आस
प्रकार ‘अंतररक ऄशांवत’ के अधार पर राष्ट्रीय अपातकाि की ईद्घोषणा नहीं की जा सकती है।
राज्य अपातकाि या राष्ट्रपवत शासन (ऄनु. 356 और 365)
 राष्ट्रपवत शासन, राज्य अपातकाि या संिैधावनक अपातकाि के रूप में जाना जाता है।
 यह ऄनु. 356 के तहत दो अधारों पर िगाया जा सकता है - पहिा ऄनु. 356 में िर्थणत
प्रािधानों के अधार पर जोक्रक राज्यों में संिध
ै ावनक तंत्र की विफिता के रूप में ईल्िेख क्रकया गया
है। दूसरा ऄनु. 365 के ऄनुसार, संघ द्वारा क्रदए गए वनदेशों को प्रभािी करने की विफिता के
अधार पर। यह राष्ट्रपवत की राष्ट्रपवत शासन के घोषणा की शवि के ऄधीन है। ऄनु. 356 यह
प्रािधान करता है क्रक यक्रद भारत के राष्ट्रपवत को राज्य के राज्यपाि से ररपोटय प्राप्त होने पर पता
चिे क्रक ऐसी वस्थवत ईत्पन्न हो गयी है क्रक संबंवधत राज्य का प्रशासन संिैधावनक प्रािधानों के
ऄनुसार नहीं चिाया जा रहा है तो िह (राष्ट्रपवत), राज्य अपातकाि की घोषणा कर सकता है।

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जहाँ राज्य के न्द्रीय वनदेशों को िागू करने में ऄसफि रहा है, िहाँ भी राष्ट्रपवत के द्वारा आस प्रकार
की ईद्घोषणा की जा सकती है। चूँक्रक राज्य प्रशासन में कोइ भी ऄव्यिस्था राष्ट्रीय ऄखंडता को
प्रभावित कर सकती है, ऄतः राष्ट्रपवत शासन का प्रािधान ऐसी वस्थवत के विरुद् रक्षा के विए
प्रदान क्रकया गया है।
वित्तीय अपातकाि (ऄनु.360)
 यक्रद राष्ट्रपवत संतुि हो क्रक ऐसी वस्थवत ईत्पन्न हो गयी है वजसमें भारत या ईसके क्रकसी क्षेत्र की
वित्तीय वस्थवत खतरे में हो तो िह (राष्ट्रपवत) ऄनु. 360 के तहत वित्तीय अपातकाि की घोषणा
कर सकता है।
1.8.4 वित्तीय शवियाँ

 धन विधेयक, राष्ट्रपवत की पूिायनम


ु वत से ही संसद में प्रस्तुत क्रकया जा सकता है।
 ऄनुदान की कोइ भी मांग ईसकी वसफाररश के वबना नहीं की जा सकती है।
 राष्ट्रपवत िार्थषक वित्तीय वििरण ऄथायत् के न्द्रीय बजट को संसद के पटि पर रखिाता है।
 राष्ट्रपवत भारत की अकवस्मक वनवध से, क्रकसी ऄदृश्य व्यय हेतु ऄवर्ग्म भुगतान की व्यिस्था कर
सकता है।
 राष्ट्रपवत राज्य ि कें द्र के मध्य राजस्ि के बँटिारे के विए प्रत्येक पांच िषय में एक वित्त अयोग
(ऄनुच्छेद 280 के ऄधीन) का गठन करता है।

1.8.5 राजनवयक शवियाँ

राष्ट्रपवत को बाह्य या विदेशी मामिों में व्यापक राजनवयक शवियाँ प्राप्त है। ऄन्य देशों के साथ संबंधों
को बनाए रखने के ईद्देश्य से ईन देशों के विए िह राजदूतों ि ईच्चायुिों की वनयुवि करता है। विदेशी
राष्ट्रों के राजनवयक प्रवतवनवधयों को भी ऄपनी पहचान राष्ट्रपवत के पास प्रस्तुत करनी होती है। राष्ट्रपवत
ही ऄंतरायष्ट्रीय मामिों ि मंचों पर भारत का प्रवतवनवधत्ि करता है। आसके ऄवतररि, सभी ऄंतरायष्ट्रीय
संवधयाँ ि समझौते राष्ट्रपवत के नाम पर क्रकए जाते हैं। हािाँक्रक, िे संसद के ऄनुमोदन के ऄधीन हैं।

1.8.6 सै न्य शवियाँ

 राष्ट्रपवत, भारत के सैन्य बिों का सिोच्च सेनापवत होता है। आस क्षमता में िह थि सेना, िायु सेना
और नौसेना के प्रमुखों की वनयुवि करता है। िह युद् के प्रारमभ या समावप्त की घोषणा कर सकता
है। हािाँक्रक, यह संसद की ऄनुमवत के ऄधीन है।

1.8.7 न्यावयक शवियाँ

 राष्ट्रपवत, ईच्चतम न्यायािय के मुख्य न्यायाधीश सवहत ऄन्य न्यायाधीशों और ईच्च न्यायािय के
न्यायाधीशों की वनयुवि करता है। ईच्च न्यायािय के न्यायाधीशों के स्थानान्तरण का ऄवधकार भी
राष्ट्रपवत को प्राप्त है।
 ऄनु.143 के ऄनुसार, राष्ट्रपवत, ईच्चतम न्यायािय से क़ानून या तथ्य के क्रकसी ऐसे प्रश्न, वजसमें
राष्ट्रवहत या िोकवहत से संबंधी व्यापक महत्ि का प्रश्न वनवहत हो, पर सिाह प्राप्त कर सकता है।
हािाँक्रक, यह ईच्चतम न्यायािय पर वनभयर करता है क्रक िह सिाह दे या न दे तथा दूसरी ओर
राष्ट्रपवत भी, क्रदए गए परामशय को मानने के विए बाध्य नहीं है।

1.8.8 क्षमादान की शवि

संविधान के ऄनुच्छेद 72 के ऄंतगयत वनवहत क्षमादान आत्याक्रद की शवि राष्ट्रपवत का, देश की जनता
द्वारा ईनमें वििास के रूप में वनवहत क्रकया गया, एक संिैधावनक कत्तयव्य है।
1. राष्ट्रपवत वनम्नविवखत मामिों में क्रकसी भी दोषी व्यवि के दंड को क्षमा, ईसका प्रवििंबन, विराम
या पररहार करने की शवि रखता है-

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(क) ऐसे सभी मामिों में जहाँ दंड कोटय माशयि (सैन्य न्यायािय) द्वारा क्रदया गया हो।
(ख) ऐसे सभी मामिों में जहाँ संघ की काययपाविका शवि के विस्तार से संबंवधत क्रकसी भी क़ानून
के ईल्िंघन के विरुद् क्रकसी ऄपराध के विए दंड क्रदया गया हो।
(ग) ऐसे सभी मामिों में जहाँ मृत्युदड
ं क्रदया गया हो।
2. खंड 1 के ईपखंड (क) की कोइ बात, संघ के सशस्त्र बिों के क्रकसी ऄवधकारी की, सैन्य न्यायािय
द्वारा पाररत दंडादेश के वनिंबन, पररहार या िघुकरण की, विवध द्वारा प्रदत्त शवि पर प्रभाि नहीं
डािेगी।
आन शब्दों के ऄथय को वनम्नविवखत रूप में समझा जा सकता है:
1. क्षमा (Pardon): आसमें दण्ड और बंदीकरण दोनों को हटा क्रदया जाता है और दोषी को सभी दण्ड,
दंडादेशों और वनरहतायओं से मुि कर क्रदया जाता है।
2. प्रवििंबन (Reprieve): आसका ऄथय है, क्रकसी दंड (विशेष रूप से मृत्युदड ं ) पर ऄस्थायी रोक
िगाना। आसका ईद्देश्य दोषी व्यवि को राष्ट्रपवत से क्षमायाचना ऄथिा दंड के स्िरूप में पररितयन
की याचना के विए ऄवतररि समय ईपिब्ध करिाना है।
3. पररहार (Remission): आसका ऄथय है, दंड की प्रकृ वत में पररितयन क्रकए वबना ईसकी ऄिवध को
कम करना। ईदाहरण के विए, दो िषय के कठोर कारािास की सजा को कम करके एक िषय के कठोर
कारािास में बदिना।
4. िघुकरण (Commutation): आसका ऄथय है, दंड के स्िरूप को बदिकर कम करना। ईदाहरण के
विए, मृत्यु दंड को कठोर कारािास या साधारण कारािास में बदिा जा सकता है।
5. विराम (Respite): आसका ऄथय है क्रकसी दोषी को मूि रूप में क्रदए गए दंड को क्रकन्हीं विशेष
पररवस्थवतयों में कम करना जैसे: शारीररक ऄपंगता ऄथिा मवहिाओं के गभायिस्था की ऄिवध के
कारण।
यहाँ यह ईल्िेखनीय है क्रक राष्ट्रपवत की क्षमादान की शवि न्यायपाविका से स्ितंत्र है और यह एक
काययकारी शवि है। आस शवि के प्रयोग के दौरान राष्ट्रपवत क्रकसी ऄपीिीय ऄदाित के रूप में नहीं बैठते
हैं।
राष्ट्रपवत को यह शवि दो रूपों में प्रदान की गइ है:
 क़ानून के संचािन में क्रकसी भी न्यावयक त्रुरट को ठीक करने के विए ऄपने द्वार सदैि खोिे रखना।
 क्रकसी ऐसे दंड से राहत के विए वजसे राष्ट्रपवत ऄनािश्यक रूप से कठोर समझे।
न्यावयक समीक्षा के दायरे
 मारू राम िाद (1980) में ईच्चतम न्यायािय ने यह घोषणा की है क्रक ऄनु. 72 के तहत राष्ट्रपवत
की शवि न्यावयक समीक्षा के ऄधीन है। आस शवि का प्रयोग मनमाने ढंग से नहीं क्रकया जा सकता
है।
 के हर मसह िाद (1988) में, ईच्चतम न्यायािय ने वनम्नविवखत पहिुओं पर प्रकाश डािा:
1. यावचकाकताय को सुने जाने का कोइ ऄवधकार नहीं है।
2. राष्ट्रपवत न्यायपाविका द्वारा विए गए वनणयय की जांच कर सकता है।
3. राष्ट्रपवत का कायय प्रकृ वत में न्यावयक नहीं माना जा सकता है। िह न्यायािय से वभन्न एिं स्ितंत्र
वनणयय देते हुए भी न्यायािय के वनणयय को रद्द या गित वसद् नहीं करे गा।
4. आस शवि का प्रयोग राष्ट्रपवत द्वारा कें द्रीय मंवत्रमंडि की सिाह पर क्रकया जाता है।
5. न्यायािय आस शवि के प्रयोग के विए कोइ क्रदशा वनदेश नहीं जारी कर सकता है।
6. राष्ट्रपवत को ऄपने अदेश का कारण देने के विए नहीं कहा जा सकता है।
7. आस शवि के व्यापक अयाम हैं। आसका तात्पयय यह है क्रक आस प्रकार के कइ मामिे राष्ट्रपवत की
शवियों के ऄधीन अते हैं।
8. न्यावयक समीक्षा के दायरे वनम्नविवखत सन्दभों तक सीवमत है:
 अदेश वबना वििेक के प्रयोग के पाररत कर क्रदया गया हो।
 राष्ट्रपवत ने प्रासंवगक तथ्यों को विचार में न विया हो।
 अदेश दुभायिनापूणय हो।
 अदेश मनमाने ढंग से क्रदया गया हो।

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ईपयुयि दो मामिों के ऄवतररि, िाठी सिारण िाद 1983 और वत्रिेणी बेन िाद 1989 के मतानुसार
(वनणयय न होकर एक सुझाि) मृत्युदड
ं में ऄनािश्यक देरी की वस्थवत में ईसे ईम्रकै द में बदिा जा सकता
है।
शत्रुघन चौहान बनाम भारत संघ िाद (2014) में ईच्चतम न्यायािय ने वनणयय क्रदया है क्रक:
 ऄत्यवधक वििंब, मृत्युदड
ं को ईम्रकै द में बदिने के विए एक ईवचत अधार हो सकता है।
 कै द के दौरान विकवसत मनोरोग की वस्थवत क्षमादान का अधार हो सकती है।
 यह वनणयय मृत्युदड
ं प्राप्त कै क्रदयों के एकांत कारािास के विरुद् सुनाया गया है।
 कम से कम 14 क्रदन पहिे पररिार के सदस्यों को सूचना देनी होगी।
 यह राष्ट्रपवत का एकमात्र विशेषावधकार नहीं है और न्यावयक समीक्षा के ऄधीन है।
 दोवषयों की दया यावचकाओं को वनपटाना राष्ट्रपवत और राज्यपाि का संिैधावनक दावयत्ि है।
 क्षमादान प्राप्त करने का ऄवधकार एक संिैधावनक ऄवधकार है, वजसे काययपाविका की आच्छा के
ऄधीन प्रयोग नहीं क्रकया जा सकता है।
 हािाँक्रक, कोइ समय सीमा वनधायररत नहीं की गयी है। िेक्रकन, यह काययपाविका का कतयव्य है क्रक
िह हर स्तर पर मामिे में तेजी िाए।
 ऄनु. 21 व्यवि की ऄंवतम सांस तक ईपिब्ध है, यहाँ तक क्रक दया यावचका खाररज हो जाने के
बाद भी, ऄपराधी कभी भी अकवस्मक घटनाओं के अधार पर रूपांतरण के विए न्यायािय की
शरण िे सकता है।
 सभी स्तरों पर कानूनी सहायता ईपिब्ध करिाइ जाएगी।
 ऄस्िीकृ वत को ऄवतशीघ्र सूवचत क्रकया जायेगा। दोषी को नजदीकी कानूनी सहायता कें द्र से सूवचत
क्रकया जाना चावहए।
 व्यवि को न्यावयक समीक्षा को प्राप्त करने का ऄवधकार है। दया यावचका खाररज होने के बाद
न्यायपाविका के पास राष्ट्रपवत के वनणयय को रद्द करने का ऄवधकार है, ऄगर िहाँ पूिायर्ग्ह से र्ग्वसत
होने का साक्ष्य हो।
राज्यपाि के क्षमादान की शवि से तुिना
 ऄनु. 161 के ऄनुसार, क्रकसी राज्य का राज्यपाि भी क्रकसी दोषी व्यवि को राज्य की काययपाविका
शवि के विस्तार तक संबंवधत मामिे के विए ईसे क्षमादान, ईसका प्रवििंबन, विराम या पररहार
करने की शवि रखता है। आसका तात्पयय यह है क्रक राज्यपाि के पास भी क्षमादान की शवि है, ऐसे
मामिों में जहाँ दोषी व्यवि राज्य के कानून के ऄधीन है।
 ऄनु. 72 के तहत राष्ट्रपवत की क्षमादान की शवि ऄनु. 161 के तहत राज्यपाि की तुिना में
ज्यादा व्यापक है। ये शवियाँ वनम्नविवखत दो मामिों में व्यापक है:
o जहाँ राष्ट्रपवत को कोटय माशयि के द्वारा सजा प्राप्त व्यवि को क्षमादान का ऄवधकार है, िहीं
ऄनु. 161 के तहत राज्यपाि के पास ऐसा कोइ ऄवधकार नहीं है।
o राष्ट्रपवत सभी मामिों में यहाँ तक क्रक मृत्युदड
ं प्राप्त व्यवि को भी क्षमा कर सकता है। क्रकन्तु,
राज्यपाि को मृत्युदड
ं को क्षमा करने की शवि नहीं प्राप्त है। यक्रद राज्य विवध में मृत्युदड

विवहत क्रकया जाता है तो भी क्षमादान की शवि राष्ट्रपवत में ही होगी राज्यपाि में नहीं। ककतु
यक्रद मृत्युदड
ं के वनिंबन, पररहार या िघुकरण की शवि क्रकसी विवध द्वारा राज्यपाि को
प्रदान की गयी है तो राज्यपाि मृत्युदड
ं का वनिंबन, पररहार या िघुकरण कर सकता है।
ऐसी शवियाँ दंड प्रक्रिया संवहता, 1973 की धारा 432 और 433 द्वारा प्रदान की गयी है।
o हाि ही में, तवमिनाडु सरकार ने राजीि गांधी के हत्या के मामिे में दोषी सात कै क्रदयों को
ररहा करने का फै सिा क्रकया। ईच्चतम न्यायािय ने ईनके मृत्युदड
ं को पहिे ही ईम्रकै द में बदि
क्रदया था। कें द्र सरकार ने राज्य सरकार के फै सिे पर प्रश्न ईठाते हुए एक ररट दायर की है। कें द्र
का तकय है क्रक चूँक्रक आन कै क्रदयों को के न्द्रीय ऄवधवनयम जैसे टाडा, के तहत दोषी ठहराया गया
है। ऄतः राज्य सरकार के वनणयय को कानूनी रूप से तकय संगत नहीं माना जा सकता है।

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1.8.9 िीटो पॉिर: विधे य कों पर ऄनु म वत दे ना या ऄनु म वत रोकना

 कोइ विधेयक जो संसद के दोनों सदनों द्वारा पाररत कर क्रदया जाता है तब तक ऄवधवनयम नहीं
बनता जब तक क्रक ईसे राष्ट्रपवत की ऄनुमवत नहीं वमिती। प्रत्येक विधेयक जो दोनों सदनों द्वारा
पाररत क्रकया गया है राष्ट्रपवत को प्रस्तुत क्रकया जाता है। राष्ट्रपवत,
o यह घोवषत कर सकता है क्रक ईसने विधेयक को ऄनुमवत दे दी है, या
o विधेयक को ऄनुमवत विधाररत (मनाही) कर िी है, या
o िह विधेयक को सदनों द्वारा पुनर्थिचारण के विए िौटा सकता है।
 यह बात ध्यान में रखनी चावहए क्रक धन विधेयक पुनर्थिचार के विए नहीं िौटाया जा सकता। यक्रद
कोइ विधेयक वजसे राष्ट्रपवत ने पुनर्थिचार के विए िौटाया है दोनों सदनों द्वारा पुनःपाररत क्रकया
जाता है और राष्ट्रपवत को प्रस्तुत क्रकया जाता है तो राष्ट्रपवत विधेयक पर ऄनुमवत रोक नहीं
सकता।
 विधान को ऄनुमवत न देने या ऄनुमवत देने से आं कार करने की काययपाविका की शवि को िीटो कहा
जाता है, ककतु आस शब्द का प्रयोग ईस पररवस्थवत में भी क्रकया जाता है, जहाँ ऄनुमवत तुरंत नहीं दी
जाती है।
 िीटो का प्रयोजन ऐसे विधान को रोकना है वजस पर भिी-भाँवत विचार नहीं क्रकया गया है या जो
शवि बाह्य या ऄसंिैधावनक है।

भारत के राष्ट्रपवत के पास वनम्नविवखत तीन प्रकार की िीटो शवि है:


1.8.9.1. ऄत्यां वतक िीटो (Absolute Veto)
आसका संबंध राष्ट्रपवत की ईस शवि से है वजसमे िह संसद द्वारा पाररत क्रकसी विधेयक को ऄपने पास
सुरवक्षत रखता है। आस प्रकार ईि विधेयक समाप्त हो जाता है और ऄवधवनयम नहीं बन पाता।
सामान्यतः यह िीटो वनम्न दो मामिों में प्रयोग क्रकया जाता है:
 गैर-सरकारी सदस्यों के विधेयक के संबंध में (ऄथायत् संसद का िह सदस्य जो मंत्री न हो, द्वारा
प्रस्तुत विधेयक); और
 सरकारी विधेयक के संबंध में जब मंवत्रमंडि त्यागपत्र दे दे (जब विधेयक पाररत हो गया हो तथा
राष्ट्रपवत की ऄनुमवत वमिना शेष हो) और नया मंवत्रमंडि, राष्ट्रपवत को ऐसे विधेयक पर ऄपनी
सहमवत न देने की सिाह दे।
1954 में, राष्ट्रपवत डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने PEPSU विवनयोग विधेयक पर ऄपना वनणयय रोककर रखा।
यह विधेयक संसद द्वारा ईस समय पाररत क्रकया गया जब आन राज्यों में राष्ट्रपवत शासन िागू था।
िेक्रकन, जब विधेयक स्िीकृ वत के विए राष्ट्रपवत के पास भेजा गया तो राष्ट्रपवत शासन हटा विया गया
था।
1.8.9.2. वनिं ब नकारी िीटो (Suspensive Veto)
 राष्ट्रपवत आस िीटो का प्रयोग तब करता है, जब िह क्रकसी विधेयक को संसद के पुनर्थिचार हेतु
िौटाता है। हािाँक्रक, यक्रद संसद ईस विधेयक को पुनः क्रकसी संशोधन के वबना ऄथिा संशोधन के
साथ पाररत कर राष्ट्रपवत के पास भेजती है तो ईस पर राष्ट्रपवत को ऄपनी स्िीकृ वत देना
बाध्यकारी है। आसका ऄथय है क्रक राष्ट्रपवत के आस िीटो को, ईस विधेयक को साधारण बहुमत से
पुनः पाररत करिाकर वनरस्त क्रकया जा सकता है (ईच्च बहुमत द्वारा नही जैसा क्रक ऄमेररका में
प्रचवित है)।
 राष्ट्रपवत धन विधेयकों के मामिे में आस िीटो का प्रयोग नहीं कर सकता है। साधारणतः राष्ट्रपवत,
धन विधेयक पर ऄपनी स्िीकृ वत ईस समय दे देता है, जब यह संसद में ईसकी पूिायनम
ु वत से प्रस्तुत
क्रकया जाता है।
 राष्ट्रपवत ए. पी. जे. ऄब्दुि किाम ने 2006 में िाभ का पद विधेयक संसद को पुनर्थिचार हेतु
िौटा क्रदया था। यह वनिंबनकारी िीटो का प्रयोग था।

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1.8.9.3. पॉके ट िीटो (Pocket Veto)

 आस मामिे में राष्ट्रपवत विधेयक पर न तो कोइ सहमवत देता है, न ही ईसे ऄस्िीकृ त करता है और
न ही िौटाता है। परन्तु, एक ऄवनवित काि के विए विधेयक को िंवबत कर देता है। राष्ट्रपवत की
विधेयक पर क्रकसी भी प्रकार का वनणयय न देने की (सकारात्मक ऄथिा नकारात्मक) शवि, पॉके ट
िीटो के नाम से जानी जाती है। राष्ट्रपवत आस िीटो शवि का प्रयोग आस अधार पर करता है क्रक
संविधान में ईसके समक्ष अए क्रकसी विधेयक पर वनणयय देने के विए कोइ तय समय सीमा नहीं है।
 दूसरी ओर, ऄमेररका में यह व्यिस्था है क्रक राष्ट्रपवत को 10 क्रदनों के भीतर िह विधेयक पुनर्थिचार
के विए िौटाना होता है। आस प्रकार यह कहा जा सकता है क्रक भारत के राष्ट्रपवत की शवि आस
संबंध में ऄमेररका के राष्ट्रपवत की तुिना में ऄवधक है।
 1986 में राष्ट्रपवत ज्ञानी जैिमसह द्वारा भारतीय डाक (संशोधन) ऄवधवनयम के संदभय में आस िीटो
का प्रयोग क्रकया गया। राजीि गाँधी सरकार द्वारा पाररत विधेयक ने प्रेस की स्ितंत्रता पर
प्रवतबन्ध िगाए थे।
 यह तथ्य ध्यान देने योग्य है क्रक संविधान संशोधन से संबंवधत ऄवधवनयमों में राष्ट्रपवत के पास कोइ
िीटो शवि नहीं है। 24िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम 1971 ने संविधान संशोधन विधेयकों पर
राष्ट्रपवत को ऄपनी स्िीकृ वत देने के विए बाध्यकारी बना क्रदया।
1.8.10 ऄध्यादे श जारी करने की शवि

 संविधान के ऄनुच्छेद 123 के तहत राष्ट्रपवत को संसद के सत्रािसान की ऄिवध में ऄध्यादेश जारी
करने की शवि प्रदान की गइ है। आन ऄध्यादेशों के प्रभाि ि शवियाँ, संसद द्वारा बनाए गए क़ानून
की तरह ही होते हैं, परं तु ये प्रकृ वत में ऄल्पकािीन होते हैं।
 ऐसे क्रकसी भी विषय पर ऄध्यादेश जारी क्रकया जा सकता है वजस पर संसद के पास क़ानून बनाने
की शवि होती है। संघ, राज्य एिं समिती सूची में शवियों के विभाजन के ऄनुसार संसद की
विधान वनमायण संबंधी सीमाओं के समान ही आसकी भी सीमाएँ होती है। आसविए, काययपाविका
की ऄध्यादेश जारी करने की शवि पर वनम्नविवखत सीमाएँ अरोवपत हैं:
I. संसद का सत्र न चि रहा हो: राष्ट्रपवत ऄध्यादेश के िि तभी जारी कर सकता है जब संसद के
दोनों ऄथिा दोनों में से क्रकसी एक सदन का सत्र न चि रहा हो।
II. तत्काि कारय िाइ की अश्यकता हो: राष्ट्रपवत ऄध्यादेश के िि तभी जारी कर सकता है, जब
िह आस बात से संतुि हो क्रक मौजूदा पररवस्थवत ऐसी है क्रक तत्काि कारय िाइ करना अिश्यक
है। अर. सी. कू पर बनाम भारत संघ िाद (1970) में सुप्रीम कोटय ने कहा- “राष्ट्रपवत की
संतुवि पर ऄसद्भाि के अधार पर प्रश्नवचन्ह िगाया जा सकता है।” आसका ऄथय है क्रक राष्ट्रपवत
द्वारा ऄध्यादेश जारी करने के वनणयय पर न्यायािय में आस अधार पर प्रश्न ईठाया जा सकता
है क्रक राष्ट्रपवत ने विचारपूियक संसद के एक सदन ऄथिा दोनों सदनों को कु छ समय के विए
स्थवगत कर एक वििादास्पद विषय पर ऄध्यादेश प्रख्यावपत क्रकया है और संसद को
नर्रऄंदार् क्रकया है वजससे संसद के प्रावधकार की पररिंचना हुइ है।
III. सत्र के दौरान संसद द्वारा स्िीकृ वत: संसद की पुनः बैठक से छह सप्ताह के भीतर ऄध्यादेश को
पाररत क्रकया जाना चावहए ऄन्यथा िह समाप्त हो जाएगा। यक्रद दोनों सदन आसका
वनरनुमोदन कर दें तो यह वनधायररत छह सप्ताह की ऄिवध से पहिे भी समाप्त हो सकता है।
 राष्ट्रपवत क्रकसी भी समय क्रकसी ऄध्यादेश को िापस िे सकता है। हािाँक्रक, राष्ट्रपवत की ऄध्यादेश
जारी करने की शवि ईसकी कायय स्ितंत्रता का ऄंग नही है और िह क्रकसी भी ऄध्यादेश को
प्रधानमंत्री के नेतृत्ि िािे मंवत्रमंडि की सिाह पर ही जारी करता है ऄथिा िापस िेता है।

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 एक विधेयक की भाँवत एक ऄध्यादेश भी भूतिक्षी हो सकता है ऄथायत् आसे वपछिी वतवथ से


प्रभािी क्रकया जा सकता है। यह संसद के क्रकसी भी कायय या ऄन्य ऄध्यादेश को संशोवधत ऄथिा
वनरवसत कर सकता है। यह क्रकसी कर विवध को भी पररिर्थतत ऄथिा संशोवधत कर सकता है।
हािाँक्रक संविधान संशोधन हेतु ऄध्यादेश जारी नही क्रकया जा सकता है।
 भारत शासन ऄवधवनयम, 1935 में गिनयर जनरि को ऄध्यादेश जारी करने की शवि दी गयी थी।
हमारे संविधान में ईस ईपबंध को ऄपना विया गया है। हािाँक्रक, भारत के राष्ट्रपवत की ऄध्यादेश
जारी करने की शवि ऄनोखी है तथा ऄवधकांश िोकतांवत्रक देशों जैसे: ऄमेररका और विटेन में यह
प्रयोग नही की जाती है। यह शवि राष्ट्रपवत को ईस पररवस्थवत से वनपटने में योग्य बनाती है जो
अकवस्मक ईत्पन्न होती है जबक्रक संसद का सत्र काययरत नहीं होता।
 हाि ही में कइ ऄध्यादेश प्रख्यावपत क्रकये गए जो विवभन्न ऄिग-ऄिग कारणों से वििाद एिं चचाय
के कें द्र में रहे। जैसे क्रक:
o शत्रु संपवत्त (संशोधन एिं मान्यकरण) ऄध्यादेश, 2016 [Enemy property
(Amendment and Validation) ordinance, 2016]
o बैंककग विवनयमन (संशोधन) ऄध्यादेश, 2017 [Banking Regulation (Amendment)
ordinance, 2017]
 आन ऄध्यादेशों में से प्रथम ऄध्यादेश को पाँच बार प्रख्यावपत क्रकया गया है (हािाँक्रक ऄब यह संसद
से पाररत होकर ऄवधवनयम बन चुका है), ऄथायत् एक मौजूदा ऄध्यादेश को प्रवतस्थावपत करने के
विए एक दूसरे ऄध्यादेश को प्रख्यावपत क्रकया गया। यह डी.सी. िाधिा बनाम वबहार राज्य िाद
में सुप्रीम कोटय के फै सिे का ईल्िंघन है।
 डी.सी. िाधिा बनाम वबहार राज्य िाद, 1987
o आस िाद में ईच्चतम न्यायािय के ध्यान में यह बात िाइ गइ क्रक 1967 से 1981 के बीच
वबहार के राज्यपाि ने 256 ऄध्यादेश प्रख्यावपत क्रकए। आन ऄध्यादेशों को एक िषय से िेकर
14 िषय तक की ऄिवध तक प्रिृत्त रखा गया। ईच्चतम न्यायािय ने यह ऄवभमत प्रकट क्रकया
क्रक ऐसा प्रख्यापन ऄध्यादेश की शवि का दुरुपयोग और संविधान के साथ कपट है। आससे
िोकतांवत्रक वसद्ांत का विध्िंस होता है।
o आस मामिे में कहा गया क्रक काययपाविका को ऄध्यादेश द्वारा विधान वनर्थमत करने की शवि
का प्रयोग ऄसाधारण पररवस्थवतयों में ही करना चावहए और आसे विधावयका की विधायी
शवि का विकल्प नहीं बनाना चावहए।
o सुप्रीम कोटय ने कहा क्रक यक्रद ऄध्यादेश को विवध वनमायण की एक सामान्य प्रक्रिया बना दी
जाती है ऄथायत् ‘ऄध्यादेश राज’ वनर्थमत क्रकया जाता है तो कोटय पुनप्रयख्यावपत ऄध्यादेशों को
वनरस्त कर सकता है।
 हाि ही में कृ ष्ण कु मार मसह बनाम वबहार राज्य िाद, 2017 में ईच्चतम न्यायािय के सात
न्यायधीशों की पीठ ने वनणयय क्रदया है क्रक ऄध्यादेश को विधावयका के समक्ष पेश नहीं करना, शवि
का दुरूपयोग और संविधान के साथ धोखाधड़ी है। यह िाद वबहार सरकार द्वारा 1989 के एक
ऄध्यादेश को िगातार सात बार पुनप्रयख्यावपत करने के बाद दायर क्रकया गया वजसके द्वारा राज्य
सरकार ने विधेयक को एक बार भी विधानसभा में पेश क्रकये वबना वबहार में 429 से ऄवधक
संस्कृ त विद्याियों का ऄवधर्ग्हण क्रकया।
न्यावयक समीक्षा का दायरा
न्यायपाविका ऄध्यादेश की िैधता की जांच वनम्नविवखत अधारों पर करती है:
 दोनों सदनों के सत्र जारी नहीं हैं
 यह जनवहत में िाया गया है
 तकय संगतता का परीक्षण
 क्या ऄध्यादेश मनमाने ढंग से जारी क्रकया गया है ऄथिा ऄस्पि है?

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संसद के वपछिे सत्र के पिात् ऄध्यादेश से संबवं धत वििाद


हाि ही में सरकार द्वारा चुनाि से ठीक पहिे और संसद के ऄंवतम सत्र के समाप्त होने पर भ्रिाचार
विरोधी कानूनों को िागू करने के विए ऄध्यादेश का मागय ऄपनाने का प्रयास क्रकया गया। यह वििाद
का विषय बन गया। नैवतक ऄनौवचत्य के ऄवतररि आस प्रयास में कु छ कानूनी कवमयाँ भी थीं।
 ऄनुच्छेद 123 की धारा 2(a) के तहत एक ऄध्यादेश संसद के सत्र के पुनः समिेत होने के छह
हफ्ते पिात् (यक्रद ऄनुमोदन नहीं क्रकया गया हो) समाप्त हो जाता है। यहाँ “पुनः समिेत” शब्द से
तात्पयय ऄगिे सत्र से है। 15 िीं िोकसभा का ऄंवतम सत्र समाप्त हो चुका था एिं ऄब आसकी पुनः
बैठक नही बुिाइ जा सकती थी। 16 िीं िोकसभा का पहिा सत्र पुनः समिेत सत्र नही था, बवल्क
एक नइ िोकसभा थी। संिैधावनक रूप से, प्रत्येक िोकसभा स्ितंत्र है और विघटन एक िोकसभा
के काययकाि को समाप्त करता है और अम चुनाि नइ िोकसभा का गठन करता है।
 िोकसभा के समक्ष िाए गये और िंवबत विधेयक सवहत, सब कु छ विघटन के साथ समाप्त हो जाते
हैं। आसका ऄथय है क्रक ऄनुच्छेद 123 के तहत एक ऄध्यादेश को तभी प्रख्यावपत क्रकया जा सकता है,
जब िोकसभा ऄगिे सत्र में दोबारा बैठक करने में सक्षम हो। दूसरे शब्दों में, एक ऄध्यादेश को एक
ही सदन के दो सत्रों के मध्य ही जारी क्रकया जा सकता है। चूँक्रक 16िीं िोकसभा, 15िीं िोकसभा
का “पुनःसमिेत सत्र” नही था, आसविए 15िीं िोकसभा के ऄंवतम सत्र के ऄंत के पिात् पहिे का
कोइ भी ऄध्यादेश प्रख्यावपत नही क्रकया जा सकता था।
 आसके ऄिािा, ऄनुच्छेद 123 यह स्पि करता है क्रक एक ऄध्यादेश तभी जारी क्रकया जा सकता है
जब संसद में ऄिकाश हो। ऄिकाश से तात्पयय ईस समयािवध से है वजसमे संसद, सवमवत, विवध
न्यायािय अक्रद की काययिाही ऄस्थायी रूप से वनिंवबत कर दी जाती है। संसद के संदभय में
ऄिकाश का तात्पयय एक सदन के एक सत्र के सत्रािसान और ऄगिे सत्र की बैठक के बीच के समय
से है। आसका ऄथय एक सदन को भंग करने और नए सदन के गठन के बीच की ऄिवध से नहीं है। आस
प्रकार, राष्ट्रपवत के िि एक ही िोकसभा के दो सत्रों के बीच, ऄनुच्छेद 123 के तहत ऄध्यादेश
जारी करने की ऄपनी शवि का प्रयोग कर सकता है।
 भारत का राष्ट्रपवत ईवल्िवखत शवियों का प्रयोग संिैधावनक सीमाओं के भीतर रहकर ही कर
सकता है। राष्ट्रपवत, मंवत्रपररषद की सिाह के ऄनुसार ही आन शवियों का प्रयोग करता है। 44िें
संविधान संशोधन से यह स्पि है क्रक कु छ चुमनदा मामिों को छोड़कर, राष्ट्रपवत के पास कोइ
वििेकावधकार शवि नहीं है। ईसके द्वारा मंवत्रपररषद की सिाह की ऄिमानना को संविधान का
ऄवतिमण माना जाएगा वजसके अधार पर ईस पर महावभयोग चिाया जा सकता है। संसदीय
िोकतंत्र की परं परा में राष्ट्रपवत की शवियों का प्रयोग िास्ति में मंवत्रपररषद द्वारा ही क्रकया जाता
है। सरकार की ऐसी प्रणािी में, संविधान के ऄंतगयत राष्ट्रपवत की बहुत ही औपचाररक वस्थवत होती
है और िह नाममात्र की भूवमका वनभाता है। हािाँक्रक, ऄगर ईसके पास वनष्पक्ष छवि, िैचाररक
स्पिता, सत्यवनष्ठ चररत्र और सबसे महत्िपूणय एक कररश्माइ व्यवित्ि हो तो िह हमेशा ऄपनी
सिाह से मंवत्रपररषद के वनणययों को प्रभावित और ऄपने भाषणों एिं संदश
े ों के माध्यम से संसद
का मागयदशयन कर सकता है।

सरकार बार-बार ऄध्यादेश के मागय का सहारा क्यों िेती है?


 विशेष मुद्दों पर विधावयका का सामना करने की ऄवनच्छा।
 ईच्च सदन में बहुमत का ऄभाि।
 विपक्षी दिों द्वारा बार-बार तथा जानबूझकर व्यिधान डािना।
ऄध्यादेश के विरुद् क्रदए जाने िािे तकय :
 ऄध्यादेश मागय शवि के पृथक्करण वसद्ांत के विरुद् है, क्योंक्रक क़ानून बनाने की शवि विधावयका के
क्षेत्र में अती है।
 यह काययपाविका के हाथों में मनमानी शवियाँ प्रदान करता है।
 आसके द्वारा वबना क्रकसी चचाय और बहस के कानून पाररत क्रकये जाते हैं।

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1.8.11 प्रकीणय शवियाँ

राष्ट्रपवत काययपाविका का ऄध्यक्ष होता है और आस नाते ईसे संविधान या संसद के ऄवधवनयमों द्वारा
प्रदत्त शवियों का प्रयोग और कतयव्यों का वनिायहन करना होता है। हम यहाँ के िि ईन शवियों पर
विचार करें गे जो महत्िपूणय हैं।
 वनयम बनाने की शवि - ऄनुच्छेद 309 का परं तुक राष्ट्रपवत को कें द्रीय सरकार के ऄधीन िोक
सेिाओं और पदों के विए भती का और वनयुि व्यवि की सेिा की शतों का विवनयमन करने िािे
वनयम बनाने के विए सशि करता है। राष्ट्रपवत को संसद के सदनों की संयुि बैठक के संबंध में
प्रक्रिया के वनयम बनाने की शवि है। राष्ट्रपवत ईच्चतम न्यायािय के अदेशों को प्रिृत्त करने के विए
भी वनयम बनाता है। राष्ट्रपवत वनयम बनाकर यह विवनर्ददि करता है क्रक कौन से मामिों में भारत
सरकार को संघ िोक सेिा अयोग से परामशय करना अिश्यक नहीं होगा।
 ऄनुच्छेद 143 के ऄधीन राष्ट्रपवत को विवध या तथ्य के क्रकसी प्रश्न पर ईच्चतम न्यायािय की राय
प्राप्त करने की शवि है।
 ऄनुच्छेद 213 के ऄधीन राष्ट्रपवत को ऄध्यादेश प्रख्यावपत करने के बारे में राज्यपाि को ऄनुदश

देने की शवि है।
 राष्ट्रपवत कु छ अयोग वनयुि करता है जैसे, वनिायचन अयोग, वित्त अयोग, राष्ट्रीय ऄनुसवू चत
जावत और जनजावत अयोग तथा ऄंतराज्यीय पररषद।
 संघ राज्य क्षेत्रों का प्रशासन राष्ट्रपवत के नाम से चिाया जाता है। ऄनु. 240 के तहत राष्ट्रपवत को
आन राज्यक्षेत्रों के विए विवनयम बनाने की शवि है। विवनयम वनम्नविवखत के विए बनाए जा
सकते हैं :
o ऄंडमान और वनकोबार द्वीप
o िक्षद्वीप
o दादरा और नागर हिेिी
o दमन और दीि
 राष्ट्रपवत को ऄनुसूवचत क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में प्रवतिेदन देने के विए और वपछड़े िगों की
दशाओं के ऄन्िेषण और ईनको सुधारने के विए ईपाय के बारे में प्रवतिेदन करने के विए एक
अयोग वनयुि करने की शवि है। (ऄनु. 339 और 340)।
 राष्ट्रपवत को यह शवि है क्रक िह ऐसी जावतयाँ और मूििंश या जनजावतयाँ विवनर्ददि करे वजन्हें
ऄनुसूवचत जावत या ऄनुसूवचत जनजावत समझा जाएगा। (ऄनु. 341 और 342)।

1.9. राष्ट्रपवत हे तु ईपिब्ध पररवस्थवतजन्य वििे कावधकार

ऐवतहावसक अधार
 भारतीय संविधान द्वारा राष्ट्रपवत को प्रदान की गयी शवियों की प्रकृ वत प्रारमभ से ही वििादास्पद
रही है। यह स्पि नहीं रहा है क्रक राष्ट्रपवत का कायायिय, क्या िास्ति में विरटश सम्राट के समान
स्तर पर है ऄथिा नहीं।
 प्रथम राष्ट्रपवत डॉ. राजेंद्र प्रसाद के ऄनुसार, भारतीय राष्ट्रपवत और विरटश सम्राट की वस्थवतयों में
वनम्नविवखत कारणों से विभेद हैं:
o ऄनुच्छेद 74(1) का मूि शब्द ‘shall’ के बजाय ‘will’ है।
o राष्ट्रपवत चुनाि में राज्य विधानसभाओं के सदस्य भी भाग िेते हैं।
o राष्ट्रपवत संविधान की रक्षा तथा भारत के िोगों की सेिा एिं कल्याण के विए स्ियं को
समर्थपत करने की शपथ र्ग्हण करता है।
o विटेन में ‘सम्राट कभी गित नहीं कर सकता (King can do no wrong)’ का वसद्ांत
प्रचवित है जबक्रक भारत के राष्ट्रपवत को संविधान के ऄनुच्छेद 61 के ऄधीन ईवल्िवखत
प्रक्रिया के तहत संविधान के ऄवतिमण की वस्थवत में महावभयोग का सामना करना पड़
सकता है।

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 पंवडत जिाहरिाि नेहरू ने राष्ट्रपवत की वििेकाधीन शवियों के प्रश्न को विचार के विए भारत के
महान्यायिादी के समक्ष रखा वजसके प्रत्युत्तर में महान्यायिादी ने विचार क्रदया क्रक ‘भारत का
राष्ट्रपवत वििेकाधीन शवियाँ नहीं धारण करता’। सरकार के संसदीय स्िरूप के वसद्ांतों के
ऄनुसार, राष्ट्रपवत को मंवत्रपररषद की सहायता से और ईसकी सिाह पर कायय करना होगा।
 हािाँक्रक, ऄपने विवभन्न वनणययों के माध्यम से ईच्चतम न्यायािय ने स्पि क्रकया है क्रक संविधान एक
ऄवतसक्रिय राष्ट्रपवत की कल्पना नहीं करता।
 24िें संविधान संशोधन के माध्यम से ऄनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन विधेयक को
राष्ट्रपवत के समक्ष पेश क्रकए जाने पर ईसे ऄपनी सहमवत देने हेतु बाध्य कर क्रदया गया।
 42िें संविधान संशोधन के माध्यम से ऄनुच्छेद 74(1) में will को shall से प्रवतस्थावपत कर क्रदया
गया। आसके द्वारा राष्ट्रपवत, मंवत्रपररषद द्वारा दी गयी सिाह के ऄनुसार ही कायय करने के विए
बाध्य हो गया।
 44िें संविधान संशोधन के माध्यम से राष्ट्रपवत को आस सिाह को एक बार पुनर्थिचार के विए
भेजने का वििेकावधकार प्राप्त हो गया।
पररवस्थवतजन्य वििेकावधकार
यद्यवप ऄनुच्छेद 74 के ऄनुसार राष्ट्रपवत मंवत्रपररषद की सिाह और सहायता के ऄनुसार कायय करने के
विए बाध्य है तथावप यह समझना क्रक राष्ट्रपवत पूरी तरह से प्रभािहीन या गैर ऄवधकृ त है, गित होगा।
यह पहिे भी देखा जा चुका है क्रक ऄपिादस्िरूप तथा ऄसामान्य पररवस्थवतयों में ईसके पास कु छ मुद्दों
पर सीवमत वििेकावधकार होता है। ईदाहरण के विए:
o तत्कािीन सरकार के बहुमत खो देने की वस्थवत में राष्ट्रपवत िोकसभा के विघटन का वनणयय िे
सकता है।
o यक्रद कोइ भी एक पाटी या नेता बहुमत सावबत करने में सफि नहीं होता तो ऐसी वस्थवत में
राष्ट्रपवत ऄपने वििेकानुसार प्रधानमंत्री को वनयुि कर सकता है। यह ऄत्यवधक महत्िपूणय है,
विशेषकर ऐसी वस्थवतयों में जब चुनाि में क्रकसी को स्पि बहुमत प्राप्त न हुअ हो।
 संकट की वस्थवत में ऐसा कोइ भी मुद्दा ऄत्यवधक महत्िपूणय हो जाता है तथा देश के भविष्य के
विए राष्ट्रपवत का वनणयय ऄत्यवधक प्रभािशािी बन जाता है।
ऄनुच्छेद 78 यह प्रािधान करता है क्रक प्रधानमंत्री का कतयव्य होगा:
a) संघ के मामिों के प्रशासन और कानून के विए प्रस्तािों से संबवं धत मंवत्रपररषद के सभी वनणययों को
राष्ट्रपवत की जानकारी में िाना;
b) संघ के मामिों के प्रशासन और कानून के विए प्रस्तािों से संबंवधत ऐसी जानकारी प्रस्तुत करना,
वजसकी ऄपेक्षा राष्ट्रपवत द्वारा की गयी हो तथा;
c) यक्रद राष्ट्रपवत द्वारा आस अशय की ऄपेक्षा की जाए तो क्रकसी ऐसे मुद्दे को वजस पर क्रकसी मंत्री द्वारा
वनणयय विया गया हो परं तु मंत्रीपररषद द्वारा नहीं, मंवत्रपररषद के विचार के विए भेजना।
विरटश सम्राट के समान राष्ट्रपवत का कायय मंवत्रयों को ईनके द्वारा क्रदए गए सुझािों के विए ‘सिाह
देना, प्रोत्साहन देना तथा चेतािनी देने’ का है।
ऄनुच्छेद 111 के तहत, राष्ट्रपवत को साधारण विधेयकों के मामिे में वििेकावधकार प्राप्त है। िह
विधेयक को ऄपने क्रकसी संदश े (यक्रद कोइ है) के साथ पुनर्थिचार के विए भेज सकता है। हािाँक्रक यक्रद
विधेयक कु छ संशोधनों के साथ या ईनके वबना पुनः पाररत होकर ईसके पास अता है तो ईसे ऄपनी
सहमवत देनी ही होगी।
राष्ट्रपवत के .अर. नारायणन कै वबनेट की सिाह को पुनर्थिचार के विए भेजने िािे पहिे राष्ट्रपवत थे।
कै वबनेट द्वारा ईत्तर प्रदेश में कल्याण मसह सरकार के विरुद् राष्ट्रपवत शासन िगाए जाने की सिाह दी
गइ थी। ईसके बाद से आस प्रकार की एक प्रथा विकवसत हो गइ है क्रक यक्रद राष्ट्रपवत कोइ सिाह कै वबनेट
को पुनर्थिचार के विए भेज दे तो आसे सामान्यतः राष्ट्रपवत के पास पुनः नहीं भेजा जाता।

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पूिय राष्ट्रपवत िेंकटरमण ने भी संविधान के तहत राष्ट्रपवत को प्राप्त वििेकाधीन शवियों के चररत्र को
व्याख्यावयत क्रकया था। भारतीय संदभय में राष्ट्रपवत ‘आमरजेंसी िाआट’ के समान है जो सामान्य विद्युत
अपूर्थत में कोइ ऄिरोध ईत्पन्न होने पर, तब तक के विए स्ियं प्रकावशत हो जाता है जब तक सामान्य
विद्युत अपूर्थत पुनः रोशनी देने में समथय न हो जाये।

ईन्मुवियाँ
 ऄनुच्छेद 361, राष्ट्रपवत और राज्यपािों को विवधक कारय िाइ से व्यविगत ईन्मुवि प्रदान करता है।
कोइ न्यायािय राज्य के प्रमुख को क्रकसी शवि का प्रयोग करने या कतयव्य का पािन करने के विए
बाध्य नहीं कर सकता या करने से विरत नहीं कर सकता। यह संरक्षण बहुत विस्तृत है। यह किच
शासकीय कायय और िोप के विए तो है ही साथ ही यह संविधान के बाहर के कायों के विए भी है।
प्रत्येक कायय, जो संविधान के ऄनुसरण में क्रकया जाना तात्पर्थयत है, पूणत
य या संरवक्षत है। ऄनुच्छेद
361 राष्ट्रपवत या राजयपाि को पक्षकार बनाने या ईन्हें सूचना जारी करने के विरूद् रक्षा प्रदान
करता है। िे ऄपनी शवि के प्रयोग के विए क्रकसी न्यायािय में ईत्तरदायी नहीं है।
 ककतु ऄनु. 361 द्वारा प्रदत्त व्यविगत ईन्मुिता का यह ऄथय नहीं है क्रक ईनके कायों पर अक्षेप नहीं
क्रकया जा सकता। चुनौती का अधार ऄसद्भाि हो सकता है। जब अक्षेप क्रकया जाए तो ईसका
प्रवतिाद/संघ या राज्य को करना होगा। यक्रद व्यविगत ऄसद्भाि का ऄवभकथन है और िह सावबत
क्रकया जा रहा है तो ईसका प्रवतिाद होना चावहए। राज्यपाि चाहे तो शपथ पत्र फाआि कर सकता
है। आस पर कोइ प्रवतबंध नहीं है। ईन्मुवि का यह पररणाम नहीं है क्रक न्यायािय को कायय की
विवधमान्यता पर और ऄसद्भाि के अधार पर विचार करने की शवि नहीं है।
 जब राज्यपाि को कृ त्य पदेन सौंपे जाते हैं, जैस-े वििविद्यािय के कु िावधपवत का पद, तो िह यह
कायय राज्यपाि होने के नाते नहीं करता, बवल्क िह कु िावधपवत की हैवसयत से कायय करता है। िह
मंवत्र-पररषद की सिाह से कायय नहीं करता और राज्य ईसके कायों के विए ईत्तरदायी नहीं है।
कु िावधपवत के रूप में ईसे िह ईन्मुवि नहीं वमिती जो राज्यपाि को वमिती है।

1.10 राष्ट्रपवत की सं िै धावनक वस्थवत


 संविधान में सरकार का स्िरूप संसदीय है। पररणामतः राष्ट्रपवत के िि नाममात्र का काययकारी
प्रमुख होता है; मुख्य शवियाँ प्रधानमन्त्री के नेतृत्ि िािे मंवत्रमंडि में वनवहत होती हैं। ऄन्य शब्दों
में, राष्ट्रपवत ऄपनी काययकारी शवियों का प्रयोग प्रधानमंत्री के नेतृत्ि िािे मंवत्रमंडि की सहायता
ि सिाह से करता है।
o भारत के राष्ट्रपवत की संिैधावनक वस्थवत को समझने के विए विशेष रूप से ऄनुच्छेद 53, 74
और 75 के प्रािधानों का सन्दभय प्रासंवगक है।
o ऄनुच्छेद 53 के ऄनुसार संघ की काययपाविका शवि राष्ट्रपवत में वनवहत होगी और िह आसका
प्रयोग संविधान के ऄनुसार स्ियं या ऄपने ऄधीनस्थ ऄवधकाररयों के माध्यम से करे गा।
o ऄनुच्छेद 74 के ऄनुसार राष्ट्रपवत की सहायता तथा सिाह के विए प्रधानमंत्री के नेतृत्ि में
एक मंवत्रपररषद होगी। राष्ट्रपवत संविधान के ऄनुसार ऄपने कायय ि कत्तयव्य का वनियहन ईनकी
सिाह पर करे गा।
o ऄनुच्छेद 75 के ऄनुसार मंवत्रपररषद सामूवहक रूप से िोकसभा के प्रवत ईत्तरदायी होगी। यह
प्रािधान संसदीय व्यिस्था का अधार है।
 संविधान वनमायताओं के मवस्तष्क में कोइ संशय नहीं था क्रक िे र्ग्ेट विटेन के मॉडि पर ही सरकार
के संसदीय स्िरूप की स्थापना कर रहे हैं। डॉ. ऄमबेडकर ने संविधान सभा में स्पि रूप से कहा
था,"राष्ट्रपवत के िि नाममात्र का प्रमुख है" एिं "ईसके पास कोइ प्रशासवनक शवि नहीं है" तथा
भारत के राष्ट्रपवत की वस्थवत आंग्िैंड के राजा की तरह ही है। िह राज्य का प्रमुख तो है, क्रकन्तु
सरकार का नहीं। िह राष्ट्र का प्रवतवनवधत्ि तो करता है, क्रकन्तु ईस पर शासन नहीं। िह राष्ट्र का
प्रतीक है। प्रशासन में ईसका स्थान एक औपचाररक वडिाआस (ईपकरण) या एक मुहर के समान है
वजसके द्वारा राष्ट्र के वनणययों को साियजवनक क्रकया जाता है।

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 यद्यवप काययपाविका शवि राष्ट्रपवत में वनवहत है। ककतु, िह के िि काययपाविका का एक

औपचाररक या संिैधावनक प्रमुख है। िास्तविक शवि, मंवत्रपररषद में वनवहत है, वजसकी सहायता
और सिाह के अधार पर राष्ट्रपवत ऄपनी काययपाविका शवि का प्रयोग करता है। काययपाविका की
प्राथवमक वर्ममेदारी सरकारी नीवत का वनमायण तथा विवध में ईसका रूपांतरण करना है। यह
ऄपने सभी कायों के विए विधावयका के प्रवत ईत्तरदायी है वजसका वििास प्राप्त करना आसके विए
ऄत्यािश्यक है। आस ईत्तरदावयत्ि का अधार ऄनुच्छेद 75(3) में सवन्नवहत है।
 राष्ट्रपवत सामान्यतः मंवत्रमंडि की सिाह मानने हेतु बाध्य है। िह मंवत्रयों की सिाह के विपरीत
कु छ नहीं कर सकता और न ही ईनकी सिाह के वबना ही कु छ कर सकता है।
 नाममात्र के प्रमुख के रूप में राष्ट्रपवत की भूवमका ईसके ऄप्रत्यक्ष चुनाि में प्रदर्थशत होती है। यक्रद
ईसे ियस्क मतावधकार के द्वारा वनिायवचत क्रकया जाता तो ईसे कोइ िास्तविक शवि न क्रदया
जाना ऄसंगत होता और साथ ही, यह अशंका भी विद्यमान रहती क्रक राष्ट्रपवत ऄपने आस ऄवधकार
के कारण ऄंततः शवि के कें द्र के रूप में ईभर सकता है। चूँक्रक शवि को िास्तविक रूप से
मंवत्रपररषद और विधावयका में वनवहत होना था न क्रक राष्ट्रपवत में, ऄतः ईसे (राष्ट्रपवत को)
ऄप्रत्यक्ष चुना जाना अिश्यक समझा गया।
42िाँ संविधान संशोधन,1976
 आस संशोधन ने भारतीय संविधान के तहत राष्ट्रपवत पद के विषय में सभी संदह
े ों को दूर कर क्रदया।
संशोवधत रूप में ऄनुच्छेद 74 में यह स्पि रूप से कहा गया है क्रक "राष्ट्रपवत को सिाह देने ि

ईसकी सहायता करने के विए एक मंवत्रपररषद होगी वजसका प्रमुख, प्रधानमंत्री होगा और

राष्ट्रपवत ऄपने कृ त्यों का प्रयोग करने में सिाह के ऄनुसार ही कायय करे गा”। यहाँ तक क्रक आस

संशोधन के ऄंतगयत, राष्ट्रपवत एक सिाहकार या एक गाआड की भूवमका भी नहीं वनभा सकता।

44िाँ संविधान संशोधन,1978

 ऄनुच्छेद 74 में एक परं तु आस प्रभाि के विए जोड़ा गया क्रक,"राष्ट्रपवत मंवत्रपररषद से ऐसी सिाह
पर साधारणतः या ऄन्यथा पुनर्थिचार की ऄपेक्षा कर सके गा और राष्ट्रपवत ऐसे पुनर्थिचार के
पिात् दी गयी सिाह के ऄनुसार कायय करे गा। पररणामतः राष्ट्रपवत को मंवत्रपररषद के परामशय के
अधार पर ही कायय करना पड़ता है, क्रकन्तु राष्ट्रपवत ईनको परामशय पर पुनर्थिचार करने को कह
सकता है और यक्रद पुनर्थिचार के बाद मंवत्रपररषद राष्ट्रपवत की सिाह के विपरीत कायय करने के
वनणयय िेती है तो राष्ट्रपवत के पास ईनके वनणयय को मानने के ऄवतररि कोइ विकल्प नहीं है।
 हािाँक्रक, यह मानना गित होगा क्रक राष्ट्रपवत का पद पूणत
य ः प्रभािहीन है। यह पहिे ही देखा जा
चुका है क्रक ऄसाधारण और ऄसामान्य पररवस्थवतयों के कु छ मामिों में राष्ट्रपवत को सीवमत
वििेकावधकार प्राप्त हैं, ईदाहरणाथय- िोकसभा के विघटन में, मंवत्रमंडि की बखायस्तगी में,
िोकसभा में क्रकसी भी दि को बहुमत न वमिने की वस्थवत में या वबना क्रकसी ईत्तरावधकारी के
प्रधानमन्त्री की काययकाि के दौरान ही मृत्यु हो जाने की वस्थवत आत्याक्रद में। संकट के समय आनमें से
कोइ भी विषय देश के विए ऄत्यवधक महत्ि का हो सकता है और दीघयकाि में राष्ट्र की वनयवत पर
गहरा प्रभाि डाि सकता है। आसके ऄवतररि, ईसे राष्ट्रवहत के मामिों की जानकारी प्राप्त करने के

विए पयायप्त रूप से सशि क्रकया गया है। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपवत को संघ के मामिों में प्रशासन से
संबंवधत और कानून के विए प्रस्तािों के विषय में मंवत्रपररषद के सभी वनणययों के विषय में
जानकारी देने के विए बाध्य है।

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 संघ काययपाविका के सांकेवतक प्रमुख के रूप में राष्ट्रपवत को क्रकसी भी आवच्छत जानकारी को मंगाने
का ऄवधकार है। राष्ट्रपवत, प्रधानमंत्री से क्रकसी ऐसे वनणयय का प्रवतिेदन भेजने के विए कह सकता
है, जो क्रकसी मंत्री द्वारा विया गया हो क्रकन्तु पूरी मंवत्रपररषद ने आसका ऄनुमोदन नहीं क्रकया हो।
यह प्रािधान मंवत्रयों के मध्य सामूवहक ईत्तरदावयत्ि के वसद्ांत को क्रियावन्ित करने के विए
बनाया गया है। आन सभी मामिों में, स्पि है क्रक राष्ट्रपवत, मंवत्रयों की सिाह के वबना स्ियं ऄपनी
वर्ममेदारी पर कायय करता है। िेक्रकन आन सब से ऄवधक, राष्ट्रपवत मंवत्रयों पर एक प्रेरक प्रभाि
डाि सकता है और ऄपने परामशय तथा ऄनुभि के द्वारा ईनकी सहायता कर सकता है। विरटश
राजा की तरह, राष्ट्रपवत की भूवमका "मंवत्रयों को ईनके क्रदए गए परामशय के संदभय में परामशय देना,
प्रोत्सावहत करना तथा चेतािनी देना है।"
वनष्कषय
 हािाँक्रक, राष्ट्रपवत का प्रभाि ईसके व्यवित्ि पर वनभयर करता है तथा एक सच्चररत्र एिं योग्य
व्यवि सरकार के कामकाज पर सकारात्मक प्रभाि डाि सकता है। राष्ट्रपवत ऄपनी सिाह एिं
सहायता द्वारा, ऄपने ज्ञान, ऄनुभि के प्रसार द्वारा तथा अम जनता के वहतों को प्रभावित करने
िािे वनणययों पर ऄरुवचपूणय दृविकोण ऄपनाकर ऄपना प्रभाि स्थावपत कर सकता है। िेक्रकन, ईसे
ऄपने मंवत्रयों को क्रकसी विशेष काययिाही के विए बाध्य करने का प्रयास नहीं करना चावहए।
 ऄंततः समपूणय विश्लेषण के ईपरांत हम यह कह सकते हैं क्रक राष्ट्रपवत नहीं, ऄवपतु मंवत्रपररषद िह
प्रावधकारी है जो व्यिहाररक रूप में प्रभािशािी है। ऄपने सियिेष्ठ रूप में राष्ट्रपवत का कायय
सिाहकारी प्रिृवत्त का होगा। िह एक वशक्षक, दाशयवनक तथा मंवत्रयों के वमत्र के रूप में सिाह दे
सकता है, परं तु स्ियं को ईनके स्िामी के रूप में स्थावपत नहीं कर सकता- यह कायय प्रधानमंत्री को
सौंपा गया है। ऄतः राष्ट्रपवत को राष्ट्रप्रमुख की और प्रधानमंत्री को राजप्रमुख की भूवमकायें प्रदान
की गयी है। संविधान के वनमायताओं का ऄवभप्राय, राष्ट्रपवत को एक ऐसे कें द्र के रूप में स्थावपत
क्रकए जाने का था जहाँ से संपूणय प्रशासन में िाभकारी प्रभाि का प्रसार हो। स्पितः ईनका ईद्देश्य
ईसे शवि का कें द्र बनाना नहीं था।
2. ईपराष्ट्रपवत
2.1 भू वमका

 भारतीय संविधान का ऄनुच्छेद 63 वनधायररत करता है क्रक ‘भारत का एक ईपराष्ट्रपवत होगा’। यह


पद देश का वद्वतीय सिोच्च पद है। अवधकाररक िम में ईसका पद राष्ट्रपवत के पिात् है।
ईपराष्ट्रपवत का पद, ऄमेररकी ईपराष्ट्रपवत की तजय पर ऄपनाया गया है। िेंकैया नायडू भारत के
13िें ईपराष्ट्रपवत के रूप में 5 ऄगस्त 2017 को वनिायवचत हुए।

2.2 ऄहय ताएँ

ईपराष्ट्रपवत पद पर वनिायवचत होने के विए वनम्नविवखत ऄहयताएँ वनधायररत की गयी हैं:


o िह भारत का नागररक हो।
o िह 35 िषय की अयु पूणय कर चुका हो।
o िह राज्यसभा का सदस्य वनिायवचत होने के विए ऄर्थहत हो।
o िह, कें द्र सरकार या क्रकसी राज्य सरकार या क्रकसी स्थानीय प्रावधकरण या ऄन्य क्रकसी
साियजवनक प्रावधकरण के ऄंतगयत कोइ िाभ का पद धारण नहीं करता हो।
 क्रकन्तु, एक ितयमान राष्ट्रपवत, ईपराष्ट्रपवत, क्रकसी राज्य के राज्यपाि और संघ ऄथिा राज्य के मंत्री
के पद ‘िाभ के पद’ नहीं माने जाते हैं। संसद या क्रकसी राज्य विधानसभा का सदस्य राष्ट्रपवत या
ईपराष्ट्रपवत के पद के विए प्रत्याशी हो सकता है।

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 यक्रद िह ईपराष्ट्रपवत के रूप में वनिायवचत हो जाता है, तो यह समझा जाएगा क्रक ईसने,
यथावस्थवत, ऄपना स्थान, वजस तारीख से ईसने ईपराष्ट्रपवत का पद धारण क्रकया, ईस तारीख को
ररि कर क्रदया है; आस हेतु ऄिग से आस्तीफे की कोइ अिश्यकता नहीं होती है।
 आसके ऄवतररि, ईपराष्ट्रपवत चुनाि के नामांकन हेतु ईममीदिार को, कम से कम 20 प्रस्तािकों
तथा 20 ऄनुमोदकों द्वारा ऄनुमोक्रदत क्रकया जाना चावहए।

2.3 वनिाय च न

 राष्ट्रपवत की भाँवत, ईपराष्ट्रपवत को भी जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से वनिायवचत नहीं क्रकया जाता
बवल्क ऄप्रत्यक्ष वनिायचन विवध ऄपनायी जाती है। िह संसद के दोनों सदनों के सदस्यों के वनिायचक
मंडि द्वारा चुना जाता है। यह वनिायचक मंडि, राष्ट्रपवत के वनिायचक मंडि से दो मामिों में वभन्न
है:
o आसमें संसद के वनिायवचत और मनोनीत दोनों सदस्य (राष्ट्रपवत के चुनाि के मामिे में के िि
वनिायवचत सदस्य) शावमि होते हैं।
o आसमें राज्य विधानसभाओं के सदस्य शावमि नहीं होते हैं (राष्ट्रपवत के चुनाि में राज्य
विधानसभाओं के वनिायवचत सदस्य शावमि होते हैं)।
 क्रकन्तु, दोनों मामिों में चुनाि प्रक्रिया समान होती है ऄथायत् राष्ट्रपवत के चुनाि की तरह
ईपराष्ट्रपवत का चुनाि भी अनुपावतक प्रवतवनवधत्ि प्रणािी के ऄनुसार एकि संिमणीय मत के
माध्यम से और गुप्त मतदान प्रक्रिया द्वारा होता है।
2.4 पदािवध

 ईपराष्ट्रपवत की पदािवध, ईसके पद र्ग्हण करने की वतवथ से िेकर 5 िषय तक होती है। हािाँक्रक,
िह ऄपनी पदािवध में क्रकसी भी समय ऄपना त्यागपत्र राष्ट्रपवत को दे सकता है। ईसे ऄपने पद से
पदािवध पूणय होने के पूिय भी हटाया जा सकता है। ईसे हटाने के विए महावभयोग की अिश्यकता
नहीं है। ईसे राज्य सभा द्वारा संकल्प पाररत कर प्रभािी बहुमत (Effective Majority) द्वारा
हटाया जा सकता है (ऄथायत् सदन के कु ि सदस्यों का बहुमत) तथा आसमें िोकसभा की सहमवत
अिश्यक है। परं त,ु ऐसा कोइ प्रस्ताि पेश नहीं क्रकया जा सकता, जब तक 14 क्रदन की ऄवर्ग्म
सूचना न दी गइ हो। ध्यान देने योग्य बात यह है क्रक संविधान में ईसे हटाने हेतु क्रकसी विशेष
अधार का ईल्िेख नहीं क्रकया गया है।
 ईपराष्ट्रपवत 5 िषय की पदािवध के ईपरांत भी ऄपने पद पर बना रह सकता है, जब तक ईसका
ईत्तरावधकारी पदर्ग्हण न कर िे। िह पद पर पुनर्थनिायचन के योग्य होता है।
2.5 पद ररविता

ईपराष्ट्रपवत का पद वनम्नविवखत कारणों से ररि हो सकता है:


 5 िषीय पदािवध की समावप्त होने पर।
 ईसके द्वारा त्यागपत्र देने पर।
 ईसे बखायस्त करने पर।
 ईसकी मृत्यु पर।
 यक्रद िह पद र्ग्हण करने के ऄयोग्य हो ऄथिा ईसका वनिायचन ऄिैध घोवषत हो जाए।
जब पद ररवि का कारण ईसके काययकाि का समाप्त होना हो, तब ईस पद को भरने हेतु ईसका
काययकाि पूणय होने से पूिय नया चुनाि अयोवजत क्रकये जाने का प्रािधान है।
यक्रद ईसका पद ईसकी मृत्यु, त्यागपत्र, वनष्कासन ऄथिा ऄन्य क्रकसी कारण से ररि होता है, ईस
वस्थवत में शीघ्रावतशीघ्र चुनाि करिाने चावहए। नि वनिायवचत ईपराष्ट्रपवत पद र्ग्हण करने की तारीख
से 5 िषय की ऄिवध तक ऄपने पद पर बना रहता है।

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2.6 शवियाँ और कायय

ईपराष्ट्रपवत के कायय दोहरी प्रकृ वत के होते हैं:


 िह राज्यसभा के पदेन सभापवत के रूप में कायय करता है। आस संदभय में, ईसकी शवियाँ ि कायय
िोकसभा ऄध्यक्ष की भाँवत ही होते हैं। आस संबंध में िह ऄमेररकी ईपराष्ट्रपवत के समान ही कायय
करता है, जो सीनेट (ऄमेररका के ईच्च सदन) के चेयरमैन के रूप में कायय करता है।

 जब राष्ट्रपवत का पद ईसके त्यागपत्र, वनष्कासन, मृत्यु तथा ऄन्य कारणों से ररि होता है तो िह

काययिाहक राष्ट्रपवत के रूप में भी कायय करता है। काययिाहक राष्ट्रपवत के रूप में ऄवधकतम 6

महीने की ऄिवध तक कायय कर सकता है। आसके ऄवतररि, ितयमान राष्ट्रपवत की ऄनुपवस्थवत,

बीमारी या क्रकसी ऄन्य कारण से ऄपने कायों का वनियहन करने में ऄसमथय हो, तो िह राष्ट्रपवत के

पुनः कायय करने तक, ईसके कतयव्यों का वनिायह करता है।

 काययिाहक राष्ट्रपवत के रूप में कायय करने के दौरान, ईपराष्ट्रपवत राज्यसभा के सभापवत के रूप में

कायय नहीं करता है। आस ऄिवध में ईसके कायों का वनिायह, ईपसभापवत द्वारा क्रकया जाता है।

2.7 भारत एिं ऄमे ररकी ईपराष्ट्रपवतयों की तु ि ना

 यद्यवप भारत के ईपराष्ट्रपवत का पद, ऄमेररकी ईपराष्ट्रपवत मॉडि पर अधाररत है, परं तु आसमें

काफी वभन्नता है। ऄमेररका का ईपराष्ट्रपवत, राष्ट्रपवत का पद ररि होने पर पूिय राष्ट्रपवत के

काययकाि की शेष ऄिवध तक ईस पद पर बना रहता है। दूसरी ओर, भारत का ईपराष्ट्रपवत,

राष्ट्रपवत का पद ररि होने पर, पूिय राष्ट्रपवत के शेष काययकाि तक ईस पद पर नहीं रहता है। िह

एक काययिाहक राष्ट्रपवत के रूप में तब तक कायय करता है, जब तक क्रक नया राष्ट्रपवत काययभार
र्ग्हण न कर िे।
 आस प्रकार यह स्पि है क्रक संविधान में ईपराष्ट्रपवत हेतु कोइ विशेष कायय नहीं सौंपा गया है तथा
यह पद भारत में मुख्य रूप से राजनीवतक वनरं तरता को बनाए रखने हेतु सृवजत क्रकया गया है।
राष्ट्रपवत और ईपराष्ट्रपवत के पदों की तुिना
 वनिायचन
राष्ट्रपवत ईपराष्ट्रपवत
राष्ट्रपवत का वनिायचन एक वनिायचक मंडि द्वारा होता है वनिायचक मंडि संसद के दोनों सदनों तक
जो संसद के दोनों सदनों के और राज्यों की विधान ही सीवमत है। राज्य विधान सभाओं के
सभाओं के वनिायवचत सदस्यों से वमिकर बनता है। सदस्य आसमें भाग नहीं िेते।
दोनों दशाओं में वनिायचन गुप्त मतदान द्वारा अनुपावतक प्रवतवनवधत्ि पद्वत के ऄनुसार एकि
संिमणीय मत द्वारा होगा।
 ऄहयताएँ
भारत का नागररक हो। भारत का नागररक हो।
35 िषय की अयु पूरी कर चुका हो। 35 िषय की अयु पूरी कर चुका हो।
िोक सभा के विए वनिायवचत होने के विए ऄर्थहत राज्य सभा के विए वनिायवचत होने के विए ऄर्थहत
हो। हो।
दोनों दशाओं में कोइ िाभ का पद धारण नहीं करना चावहए।
 पदािवध
पद र्ग्हण करने की तारीख से 5 िषय। पद र्ग्हण करने की तारीख से 5 िषय।

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 पद त्याग
ईपराष्ट्रपवत को संबोवधत ऄपने हस्ताक्षर सवहत राष्ट्रपवत को संबोवधत ऄपने हस्ताक्षर सवहत
िेख द्वारा पद त्याग सकता है। िेख द्वारा पद त्याग सकता है।
 हटाया जाना
महावभयोग द्वारा हटाया महावभयोग नहीं होता ककतु राज्य सभा के समस्त सदस्यों के बहुमत से
जा सकता है। पाररत संकल्प द्वारा, वजसमें िोक सभा सहमत हो, हटाया जा सकता है।
 पुनर्थनिायचन

चाहे वजतनी बार वनिायवचत हो सकता है। चाहे वजतनी बार वनिायवचत हो सकता है।

 कृ त्य

संविधान के के िि एक ही कृ त्य है, राज्य सभा के सभापवत के रूप में कृ त्य करना। जब राष्ट्रपवत
ऄधीन ऄनेक का पद ररि हो तब िह राष्ट्रपवत के रूप में कायय करता है या राष्ट्रपवत के कृ त्यों का
कृ त्य वनिायहन करता है।

3. प्रधानमं त्री
 संविधान द्वारा प्रदत्त सरकार की संसदीय प्रणािी में, राष्ट्रपवत, नाममात्र काययपाविका प्रधान की
जबक्रक प्रधानमंत्री िास्तविक राजप्रमुख की भूवमका में होता है। आसका तात्पयय यह है क्रक राष्ट्रपवत
राज्य का प्रमुख होता है जबक्रक प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है। प्रधानमंत्री नीवत अयोग,

राष्ट्रीय एकता पररषद और ऄंतरायज्यीय पररषद का पदेन ऄध्यक्ष होता है। परमपरागत रूप से, कु छ

विवशि मंत्राियों/विभागों वजन्हें प्रधानमंत्री क्रकसी ऄन्य को अिंरटत नहीं करते हैं, ईन विभागों
की वजममेदारी स्ियं प्रधानमंत्री पर होती है।
सामान्यतया प्रधानमंत्री वनम्नविवखत विभागों की वजममेदारी िेता है:
 मंवत्रमंडि की वनयुवि सवमवत
 कार्थमक िोक वशकायत और पेंशन मंत्रािय
 परमाणु उजाय विभाग तथा
 ऄंतररक्ष विभाग अक्रद।

3.1 प्रधानमं त्री की वनयु वि

 संविधान द्वारा प्रधानमंत्री की वनयुवि के विए कोइ विशेष प्रक्रिया सुवनवित नहीं की गइ है।
ऄनुच्छेद 75 के ऄनुसार, के िि आस बात का प्रािधान क्रकया गया है क्रक प्रधानमंत्री की वनयुवि

राष्ट्रपवत द्वारा की जाएगी। हािाँक्रक, राष्ट्रपवत प्रधानमंत्री के रूप में क्रकसी को भी वनयुि करने के

विए स्ितंत्र नहीं है। सरकार की संसदीय प्रणािी की परं पराओं के ऄनुसार राष्ट्रपवत, प्रधानमंत्री के
रूप में िोकसभा में बहुमत दि के नेता को वनयुि करने के विए स्ितंत्र है।
 िेक्रकन, जब क्रकसी भी दि को िोकसभा में स्पि बहुमत प्राप्त न हो तो राष्ट्रपवत ऄपने व्यविगत
वििेक के अधार पर प्रधानमंत्री का चयन और ईसकी वनयुवि कर सकता है। ऐसी वस्थवत में
सामान्यतः िह सबसे बड़ी पाटी के नेता या िोकसभा में सबसे बड़े गठबंधन के नेता को प्रधानमंत्री
के रूप में वनयुि करता है और ईसे एक वनवित समय सीमा के ऄंदर सदन में वििास मत हावसि
करने के विए कहता है।

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3.2 प्रधानमं त्री की शवियाँ और कायय

प्रधानमंत्री की शवियों और कायों का ऄध्ययन वनम्नविवखत शीषयकों के तहत क्रकया जा सकता है:

3.2.1 मं वत्रपररषद के सं बं ध में

 प्रधानमंत्री द्वारा वजन व्यवियों की वसफाररश की जाती है, राष्ट्रपवत (वसफय ) ईन्हीं को मंत्री के रूप
में वनयुि करता है।
 प्रधानमंत्री ऄपनी आच्छानुसार मंवत्रयों को ईनके विभाग अिंरटत करता है और ईनमें बदिाि भी
कर सकता है।
 यक्रद प्रधानमंत्री और ईसके क्रकसी ऄधीनस्थ मंत्री के मध्य क्रकसी मुद्दे पर मतभेद ईत्पन्न होता है तो
िह ईस मंत्री को आस्तीफा देने के विए कह सकता है या राष्ट्रपवत को ईसे बखायस्त करने के विए कह
सकता है।
 प्रधानमंत्री, मंवत्रपररषद की बैठक की ऄध्यक्षता करता है और बैठक के वनणयय को विशेष रूप से
प्रभावित भी करता है।
 िह सभी मंवत्रयों का मागयदशयन, वनदेशन एिं वनयंत्रण करता है और ईनकी गवतविवधयों में समन्िय
स्थावपत करता है।
 प्रधानमंत्री ऄपने पद से त्यागपत्र देकर मंवत्रपररषद को समाप्त कर सकता है।
3.2.2 राष्ट्रपवत के सं बं ध में

 प्रधानमंत्री, राष्ट्रपवत और मंवत्रपररषद के मध्य संचार का प्रमुख माध्यम होता है। िह राष्ट्रपवत को
संघ के प्रशासवनक मामिों और विधायी प्रस्तािों से संबवं धत मंवत्रपररषद के सभी वनणययों के बारे
में सूवचत करता है।
 िह राष्ट्रपवत की आच्छानुसार, संघ के प्रशासवनक मामिों और विधायी प्रस्तािों को ईसके समक्ष
प्रस्तुत करता है। यक्रद राष्ट्रपवत अिश्यक समझे तो क्रकसी ऐसे मामिे, वजस पर क्रकसी मंत्री द्वारा
वनणयय िे विया गया हो िेक्रकन मंवत्रपररषद द्वारा ईस पर विचार नहीं क्रकया गया हो, के संबंध में
प्रधानमंत्री ईसे ररपोटय प्रस्तुत करता है।
 प्रधानमंत्री, राष्ट्रपवत को महत्िपूणय ऄवधकाररयों जैसे: महान्यायिादी, वनयंत्रक एिं महािेखा
परीक्षक, संघ िोक सेिा अयोग के ऄध्यक्ष, वनिायचन अयुिों, वित्त अयोग के ऄध्यक्ष और सदस्यों
की वनयुवि में सिाह देता है।
3.2.3 सं स द के सं बं ध में

 प्रधानमंत्री वनचिे सदन ऄथायत् िोकसभा का नेता होता है। िह राष्ट्रपवत को संसद के सत्र को
बुिाने के विए सिाह देता है।
 िह राष्ट्रपवत को क्रकसी भी समय िोकसभा को भंग करने के विए कह सकता है।
 िह सदन में सरकार की नीवतयों की घोषणा करता है।
3.2.4 ऄन्य शवियाँ और कायय

 प्रधानमंत्री नीवत अयोग, राष्ट्रीय एकता पररषद, ऄंतरायज्यीय पररषद और राष्ट्रीय जि संसाधन
पररषद का ऄध्यक्ष होता है।
 िह देश की विदेश नीवत को अकार देने में एक महत्िपूणय भूवमका वनभाता है।
 िह कें द्र सरकार का मुख्य प्रििा होता है।
 िह अपात वस्थवत के दौरान राजनीवतक स्तर पर मुख्य प्रबंधक होता है।
 राष्ट्र के नेता के रूप में िह ऄिग-ऄिग राज्यों के विवभन्न िगों के िोगों से वमिता है और ईनकी
समस्याओं के बारे में ईनसे ज्ञापन प्राप्त करता है। िह सत्ता में स्थावपत दि का नेता होता है।
 िह प्रशासवनक सेिाओं का राजनीवतक प्रमुख होता है।

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3.3 प्रधानमं त्री का राज्यसभा का सदस्य होना

 संविधान प्रधानमंत्री को राज्यसभा का सदस्य होने से वनषेध नहीं करता है। हािाँक्रक, संसदीय

िोकतंत्र की मांग के ऄनुसार प्रधानमंत्री को िोकसभा, जो प्रत्यक्षतः जनता द्वारा चुनी जाती है,
की सदस्यता प्राप्त कर सिोत्कृ ि परं पराओं का वनियहन करना चावहए।
 ऐसा आसविए क्योंक्रक राज्यसभा में सदस्य ऄप्रत्यक्ष रूप से वनिायवचत होते हैं। यहाँ यह तकय भी
क्रदया जाता है क्रक संघ के प्रधानमंत्री को िोकसभा के वनिायवचत सदस्य के रूप में होना चावहए।
 ईदाहरण के विए, विटेन में प्रधानमंत्री का हाईस ऑफ कॉमंस का सदस्य होना ऄवनिायय कर क्रदया
गया है। िेक्रकन भारत में क्रकसी ऐसे व्यवि को भी प्रधानमंत्री वनयुि क्रकया जा सकता है जो संसद
सभा का सदस्य न हो। ऐसी वस्थवत में वनयुि व्यवि को 6 माह के भीतर संसद के क्रकसी एक सदन

की सदस्यता प्राप्त करनी पड़ती है। ईदाहरणस्िरूप िीमती आं क्रदरा गाँधी, पी. िी. नरमसह राि,

एच. डी. देिगौड़ा, डॉ. मनमोहन मसह अक्रद वनयुवि के समय संसद के सदस्य नहीं थे।

3.4 सरकार की प्रधानमं त्री प्रणािी

 सरकार के प्रधानमंत्री प्रणािी के स्िरूप में प्रधानमंत्री, काययपाविका में ऄवधक प्रभािी रहता है।
अमतौर पर यह मामिा तब नजर अता है जब सत्ता में एक दि का प्रभुत्ि हो और प्रधानमंत्री ईस
दि का वनर्थििाद नेता हो। ऐसे पररदृश्य में प्रधानमंत्री के फै सिे को अमतौर पर मंवत्रमंडि मंजरू ी
दे देता है। आस प्रकार िास्तविक ऄथों में ये वनणयय सामूवहक वनणयय नहीं होते आस प्रणािी के िाभ-
हावन वनम्नविवखत हैं :

िाभ हावन

समय पर वनणयय। वनणयय जल्दबाजी में और राजनीवतक रूप से प्रेररत हो


सकते हैं।

सरकार मजबूती से वनणयय िेती है। वििेचना के बाद भी प्रायः वनणयय नहीं विए जाते।

प्रशासन को स्पि क्रदशा वनदेश प्राप्त होते हैं। ऄवतररि संिैधावनक प्रावधकारी, प्रभाि का आस्तेमाि
कर सकते हैं।

3.5 प्रधानमं त्री पद पर गठबं ध न की राजनीवत का प्रभाि

 सामान्यतः, यह देखा जाता है क्रक गठबंधन सरकार के प्रमुख होने की वस्थवत में प्रधानमंत्री के
ऄवधकार कम हो जाते हैं। आसका कारण एक खंवडत जनादेश की वस्थवत में गठबंधन सरकार का
गठन है। कइ बार, घटक दिों के सदस्य िास्तविक प्रधानमंत्री के बजाय, ऄपने दि के नेता को

प्रधानमंत्री मानने िगते हैं। हािाँक्रक, यह प्रिृवत्त प्रधानमंत्री के व्यवित्ि एिं गठबंधन की राजनीवत
की प्रकृ वत के साथ बदिती रहती है तथा यह मनोिृवत्त ईस शैिी पर भी महत्िपूणय रूप से वनभयर
होती है, वजसके द्वारा गठबंधन का प्रबंधन क्रकया जाता है। ऐसे मामिों में, प्रधानमंत्री की भूवमका,

बहुमत दि के एक नेता के बजाय, गठबंधन सरकार के प्रबंधक जैसी हो जाती है।

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4. कें द्रीय मं वत्रपररषद


ऄनुच्छेद 74 और 75, के न्द्रीय मंवत्रपररषद के प्रािधानों से संबंवधत है। ये विस्तृत रूप से नीचे क्रदए गए
हैं:
4.1 मं वत्रपररषद की वनयु वि और कायय काि

 राष्ट्रपवत को सहायता एिं सिाह देने हेतु एक मंवत्रपररषद होगी, वजसका प्रमुख प्रधानमंत्री होगा।
राष्ट्रपवत, मंवत्रपररषद के परामशय के ऄनुसार ही कायय करे गा। तथावप, यक्रद राष्ट्रपवत चाहे तो िह
एक बार मंवत्रपररषद से पुनर्थिचार के विए कह सकता है। क्रकन्तु, मंवत्रपररषद द्वारा पुनर्थिचार के
बाद प्रस्तुत सिाह के ऄनुसार ही राष्ट्रपवत कायय करे गा।
 मंवत्रयों द्वारा राष्ट्रपवत को दी गइ सिाह की जांच क्रकसी न्यायािय द्वारा नहीं की जा सकती।
 राष्ट्रपवत, प्रधानमंत्री की वनयुवि करे गा तथा ऄन्य मंवत्रयों की वनयुवि में राष्ट्रपवत, प्रधानमंत्री की
सिाह पर कायय करे गा। प्रधानमंत्री मंवत्रपररषद के मंवत्रयों की सूची राष्ट्रपवत को प्रस्तुत करता है
एिं सामान्यतः राष्ट्रपवत आसका समथयन करता है। एक व्यवि को मंत्री के रूप में वनयुि क्रकए जाने
के समय यह अिश्यक नहीं है क्रक िह संसद के क्रकसी भी सदन का सदस्य हो। संविधान में कहा
गया है क्रक एक व्यवि जो संसद के क्रकसी भी सदन का सदस्य नहीं है, ऄवधकतम 6 महीने की
ऄिवध तक मंत्री बना रह सकता है। आस प्रकार, कोइ व्यवि जब संसद की सदस्यता के वबना मंत्री
पद प्राप्त करता है तो ईसे 6 माह के ऄंतगयत संसद के क्रकसी भी सदन की सदस्यता िेनी होती है।
 प्रधानमंत्री सवहत मंवत्रपररषद के सदस्यों की कु ि संख्या, िोकसभा की कु ि सदस्य संख्या के 15%
से ऄवधक नहीं होगी। आस ईपबंध का समािेश 91िें संशोधन ऄवधवनयम, 2003 द्वारा क्रकया गया
है।
 संसद के क्रकसी भी सदन का, क्रकसी भी राजनीवतक दि का सदस्य, यक्रद दिबदि के अधार पर
संसद की सदस्यता हेतु ऄयोग्य घोवषत कर क्रदया जाता है, तो ऐसा सदस्य मंत्री पद हेतु भी
ऄयोग्य होगा। आस प्रािधान को भी, 91िें संशोधन ऄवधवनयम, 2003 द्वारा जोड़ा गया है।
 मंत्री, राष्ट्रपवत के प्रसादपययन्त पद धारण करें गे।
 मंवत्रपररषद, िोकसभा के प्रवत सामूवहक रूप से ईत्तरदायी होगी।
 राष्ट्रपवत द्वारा मंवत्रयों को पद एिं गोपनीयता की शपथ क्रदिाइ जाएगी।
 मंवत्रयों के िेतन एिं भत्ते, संसद द्वारा वनधायररत क्रकए जाएंगे तथा जब तक संसद भत्ते का वनधायरण
नहीं करती, तब तक िे भत्ते ईसी प्रकार वनधायररत होंगे जैसा क्रक दूसरी ऄनुसच
ू ी में विवनर्ददि हैं।
 एक मंत्री को जो संसद के क्रकसी एक सदन का सदस्य है, दूसरे सदन की काययिाही में भाग िेने और
बोिने का ऄवधकार है। परं त,ु िह ईस सदन में मत नहीं दे सकता है वजसका िह सदस्य नहीं है।

4.2 मं वत्रपररषद की सं र चना

मंवत्रपररषद में सामान्यतः वनम्नविवखत िेवणयों के मंत्री शावमि होते हैं:


 कै वबनेट मंत्री: कै वबनेट मंत्री िे हैं वजनके पास कें द्र सरकार के महत्िपूणय मंत्रािय जैसे: रक्षा, गृह,
वित्त, विदेश अक्रद मंत्रािय होते हैं। िे पद, िेतन और शवियों में सिोच्च होते हैं। आन्हीं मंवत्रयों से
मंवत्रमंडि का गठन होता है। आन्हें धुरी (मंवत्रपररषद) के भीतर एक धुरी के रूप में िर्थणत क्रकया
गया है। ईनकी संख्या समय-समय पर बदिती रहती है, िेक्रकन शायद ही कभी बीस से ऄवधक
होती है। कै वबनेट मंत्री सामूवहक रूप से सरकार की नीवतयों के वनमायण और मंवत्रमंडि की सभी
बैठकों में भाग िेने के हक़दार हैं। कभी कभी, िररष्ठ नेताओं को वबना क्रकसी पोटयफोवियो के मंत्री के
रूप में मंवत्रमंडि में शावमि क्रकया जाता है।

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 राज्यमंत्री (स्ितंत्र प्रभार): यह एक राज्य मंत्री है जो क्रकसी कै वबनेट मंत्री के ऄधीन काम नहीं
करता है। आन्हें मंत्रािय / विभागों के स्ितंत्र प्रभार सौंपे जाते हैं। जब ईसके विभाग से संबंवधत
कोइ विषय मंवत्रमंडि की काययसूची में होता है तो ईसे बैठक में ईपवस्थत होने के विए अमंवत्रत
क्रकया जाता है।
 राज्य मंत्री: आस मंत्री के पास क्रकसी विभाग का स्ितंत्र प्रभार नहीं होता और िह कै वबनेट मंत्री के
ऄधीन कायय करता है। वजस मंत्री के ऄधीन िह कायय करता है, िही ईसे कायय अिंरटत करता है।
 ईपमंत्री: ऐसा मंत्री क्रकसी कै वबनेट मंत्री या स्ितंत्र प्रभार िािे राज्य मंत्री के ऄधीन कायय करता है।
वजस मंत्री के ऄधीन िह कायय करता है िही ईसे कायय अिंरटत करता है।
4.3 मं वत्रपररषद के कायय
 मंवत्रपररषद मुख्य रूप से राष्ट्रपवत को ईनके कायों में सहायता और सिाह देता है। मंवत्रपररषद
िास्ति में के न्द्र सरकार से जुड़े मामिों के प्रशासवनक कतयव्य से अबद् है। चूँक्रक मंत्रािय भारत
सरकार का सिोच्च ऄंग है, ऄतः यह देश के प्रशासन से संबंवधत सभी नीवतयों का वनधायरण करता
है। आस पर अंतररक और विदेश नीवतयों के वनमायण का ईत्तरदावयत्ि होता है। देश की शांवत और
समृवद् काफी हद तक मंत्रािय द्वारा वनर्थमत नीवत पर वनभयर करती है। मंत्री न के िि ऄपने
काययकारी विभागों के प्रमुख होते हैं, बवल्क ये विधावयका में बहुमत दि के महत्िपूणय सदस्य होते हैं
या ईन्हें विधावयका में कम से कम बहुमत का समथयन प्राप्त होता है।
 मंत्रािय, राज्य की अर्थथक गवतविवधयों को वनधायररत करने में महत्िपूणय भूवमका वनभाता है।
मुद्रा, बैंककग, िावणज्य, व्यापार, बीमा और ऄन्य योजनाओं के वनमायण एिं क्रियान्ियन मंत्रािय
द्वारा विवनयवमत तथा वनयंवत्रत क्रकए जाते हैं। संक्षेप में, मंवत्रपररषद कें द्र सरकार के प्रशासवनक
तंत्र में एक महत्िपूणय भूवमका वनभाती है।
5. मं वत्रमं ड ि (Cabinet)
 मंवत्रमंडि राजनीवतक एकरूपता के वसद्ांत पर कायय करता है। कु छ ऄपिादों को छोड़ दें तो
सामान्यतः प्रधानमंत्री तथा मंवत्रमंडि के सदस्य एक ही पाटी के होते हैं। सामूवहक ईत्तरदावयत्ि
मंत्री को एक समान विचार रखने तथा एक नीवत का प्रयोग करने हेतु बाध्य करता है। यक्रद मंवत्रयों
के मध्य मतभेद हो तो ईसे मंवत्रमंडि की गोपनीय बैठकों में दूर कर विया जाता है। िस्तुतः अम
जनता के बीच िे संपण ू य एकता प्रदर्थशत करते हैं।
5.1 मं वत्रमं ड ि के कायय
 नीवत वनमायण: मंवत्रमंडि (कै वबनेट) राष्ट्रीय तथा ऄंतरायष्ट्रीय विषयों से संबंवधत नीवतयों के वनमायण
के विए ईत्तरदायी होता है। सभी नीवतगत वनणयय अम सहमवत से विए जाते हैं तथा प्रधानमंत्री
ईन वनणययों के बारे में राष्ट्रपवत को सूवचत करता है।
 विधायी शवियाँ: सभी मंत्री संसद के सदस्य होते हैं, ऄतः विवध वनमायण की प्रक्रिया में भाग िेते
हैं। संसद में िगभग सभी विधेयक मंवत्रयों के द्वारा प्रस्तुत क्रकए जाते हैं तथा ईन्हें प्राप्त बहुमत के
कारण असानी से पाररत भी हो जाते हैं। हािाँक्रक मंवत्रयों के द्वारा प्रस्तुत क्रकए जाने िािे विधेयकों
पर पहिे मंवत्रमंडि द्वारा विचार करके ईन पर सहमवत दी जाती है। मंवत्रमंडि विधेयक में ऐसे
पररितयनों को शावमि कर सकता है जो ईसे अिश्यक िगते हैं।
 वित्तीय शवियाँ: कै वबनेट, सरकार के सभी व्ययों और आन व्ययों की पूर्थत के विए अिश्यक राजस्ि
के स्रोतों के व्यिस्था करने के विए वजममेदार है। वित्तमंत्री के द्वारा प्रस्तुत क्रकया जाने िािा
िार्थषक बजट मंवत्रमंडि के वनयंत्रण में होता है। यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य है क्रक बजट के
प्रस्ताि ऄत्यवधक गोपनीय रखे जाते हैं तथा संसद में बजट की प्रस्तुवत से के िि एक घंटे पूिय ही
वित्तमंत्री द्वारा मंवत्रमंडि को वििास में विया जाता है। कै वबनेट बजट में कोइ भी पररितयन नहीं
कर सकती। परं त,ु संसद में बजट प्रस्तािों पर चचाय के दौरान िह पररितयन करने में समथय है।
तत्पिात्, आस प्रकार क्रकये गए पररितयनों की घोषणा वित्तमंत्री के द्वारा की जाती है। कै वबनेट
अर्थथक और वित्तीय नीवतयों का ऄनुमोदन तथा वित्त अयोग और भारत के वनयंत्रक एिं महािेखा
परीक्षक द्वारा प्रस्तुत ररपोटों पर वनणयय िेने के विए ईत्तरदायी होती है।

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 वनयुवियाँ करने की शवि: यद्यवप राष्ट्रपवत राज्य के ईच्च पदावधकाररयों की वनयुवि की विस्तृत
शवि धारण करता है, परं तु िास्ति में राष्ट्रपवत द्वारा ये वनयुवियाँ मंवत्रमंडि की सिाह के अधार
पर की जाती हैं। मंवत्रपररषद की सिाह राष्ट्रपवत पर बाध्यकारी होती है और िस्तुतः राष्ट्रपवत के
सभी कायय आसके ही द्वारा संपन्न क्रकये जाते हैं। हािाँक्रक, राष्ट्रपवत वसफय एक बार मंवत्रपररषद से
आसकी सिाह पर पुनर्थिचार का अर्ग्ह कर सकता है। पुनर्थिचार के ईपरांत दी गयी सिाह को
मानने के विए राष्ट्रपवत बाध्य है। (44िाँ संविधान संशोधन ऄवधवनयम)
 मंवत्रमंडि एक वनगवमत वनकाय है। यह न वसफय विवभन्न विभागों के कायों का समन्िय करता है
ऄवपतु, साथ ही ऄंतर-विभागीय वििादों का वनराकरण भी करता है। एम. िी. पाइिी ने
मंवत्रमंडि को “राष्ट्रीय नीवतयों का वनमायता, ईच्चतम वनयुवि प्रावधकारी, ऄंतर-विभागीय वििादों
का मध्यस्थ और सरकार में समन्िय का सिोच्च ऄंग” कहा है।

5.2. मं वत्रमं ड िीय सवमवतयाँ (Cabinet Committees)

 मंवत्रमंडि पर ऄवतररि कायय के बोझ को कम करने के विए मंवत्रमंडिीय सवमवतयों का गठन


क्रकया गया। सरकार की काययप्रणािी के पुनगयठन पर एन. गोपािस्िामी ऄयंगर की ररपोटय (1949)
में कु छ सुवनवित कायों हेतु सवचिािय एिं यथोवचत ऄंगों से युि स्थायी सवमवतयों (स्थायी
चररत्र से युि) के वनमायण की ऄनुशस
ं ा की गयी थी। ये ‘विके न्द्रीकृ त अधार पर समन्िय के
अयोजन’ के ईपकरण थे।
 कै वबनेट सवमवतयों को सरकार के कामकाज के सभी महत्िपूणय क्षेत्रों को अपस में समावहत कर
िेना चावहए। यह भी अिश्यक है क्रक िे वनयवमत रूप से बैठक करती रहें ताक्रक जरटि समस्याओं
पर वनरं तर ध्यान क्रदया जाता रहे तथा महत्िपूणय नीवतयों और काययिमों को िागू करने िािे
काययिमों की प्रगवत की वनरं तर समीक्षा होती रहे।
 मंवत्रमंडिीय सवमवतयों की संख्या और नाम सदैि ऄपररिर्थतत नहीं रहते क्योंक्रक समय समय पर
कु छ विशेष समस्याओं के समाधान के विए तदथय सवमवतयों का गठन कर ईन्हें कायय समपन्न होने के
ईपरांत भंग कर क्रदया जाता है। क्रकन्तु, चार ऐसी सवमवतयाँ हैं वजनका कें द्र की प्रत्येक सरकार के
दौरान ऄवस्तत्ि रहा है। ये वनम्नविवखत हैं:
1. राजनीवतक मामिों पर मंवत्रमंडिीय सवमवत (Cabinet Committee on Political Affairs):
आसकी ऄध्यक्षता प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है। आसके ऄन्य सदस्यों में गृह मंत्री, रक्षा मंत्री और
विदेश मंत्री शावमि होते हैं। यह सवमवत अंतररक विकास तथा ऄंतरराष्ट्रीय संबंधों से समबद्
महत्िपूणय मामिों से संबंवधत है। सभी मंवत्रमंडिीय सवमवतयों में यह सिायवधक शविशािी होती
है। आसे प्रायः ‘सुपर कै वबनेट' भी कहा जाता है।
2. अर्थथक मामिों पर मंवत्रमंडिीय सवमवत (Cabinet Committee on Economic Affairs):
आसके सदस्यों में प्रधानमंत्री (ऄध्यक्ष), वित्त मंत्री, र्ग्ामीण विकास मंत्री और ईद्योग मंत्री शावमि
होते हैं। आसका मुख्य कायय अर्थथक क्षेत्र में सरकारी गवतविवधयों का वनयंत्रण एिं समन्िय तथा
सामान्यतः देश की ऄथयव्यिस्था की काययप्रणािी का वनयमन करना है।
3. संसदीय कायय सवमवत (Committee on Parliamentary Affairs): आसके सदस्यों में सूचना एिं
प्रसारण मंत्री, िम मंत्री, संसदीय काययमत्र
ं ी, विवध मंत्री तथा आसके ऄध्यक्ष के रूप में गृह मंत्री
शावमि हैं। यह सवमवत संसद में क्रकसी विवध के असानी से पाररत हो जाने के विए सरकार के
कामकाज की प्रगवत को ध्यान में रखती है तथा संसद के समक्ष गैर-सरकारी विधेयकों तथा संकल्पों
के अने पर सरकार के रिैये का वनधायरण करती है।
4. वनयुवि संबध
ं ी मंवत्रमंडिीय सवमवत (Appointment Committee of the Cabinet): वनयुवि
सवमवत के सदस्यों में प्रधानमंत्री (जो आसके ऄध्यक्ष भी हैं), गृह मंत्री और संबंवधत मंत्री शावमि
होते हैं।

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5.3. सरकार की सं स दीय प्रणािी के कायय कारी वसद्ां त

5.3.1 सामू वहक ईत्तरदावयत्ि का वसद्ां त (Principle of Collective Responsibility)

 सरकार का संसदीय स्िरूप सामूवहक ईत्तरदावयत्ि के वसद्ांत पर अधाररत है। संविधान के


ऄनुच्छेद 75(3) के ऄनुसार मंवत्रपररषद सामूवहक रूप से िोकसभा के प्रवत ईत्तरदायी होती है,
राज्यसभा के प्रवत नहीं। आसका ऄथय यह है क्रक सभी मंत्री सामूवहक रूप से सरकार की नीवतयों और
वनणययों के विए िोकसभा के प्रवत जिाबदेह हैं, भिे ही िह वनणयय क्रकसी भी मंत्रािय से संबंवधत
हो।
 वनणयय विए जाने तक कोइ मंत्री वनणयय के संबंध में विवभन्न मुद्दों से संबंवधत ऄपने मतभेद जावहर
कर सकता है, परं तु यक्रद मंवत्रमंडि द्वारा वनणयय िे विया जाए तो िह सभी मंवत्रयों का सामूवहक
वनणयय हो जाता है। यह प्रत्येक मंत्री का कतयव्य है क्रक मंवत्रमंडि के वनणययों का संसद के बाहर और
भीतर समथयन करे । यक्रद कोइ मंत्री मंवत्रमंडि के वनणयय से सहमत नहीं है तो ईसके पास त्यागपत्र
देने के ऄवतररि कोइ विकल्प नहीं है। आस प्रकार मंवत्रपररषद एक टीम की तरह कायय करती है।
सरि शब्दों में कहा जाए तो ‘िे साथ ही तैरते हैं और साथ ही डू बते हैं’ ऄथायत् सामूवहक रूप से
ईत्तरदायी होते हैं।
 आसी प्रकार यक्रद िोकसभा मंवत्रपररषद के विरुद् ऄवििास प्रस्ताि पाररत कर दे तो राज्यसभा के
मंवत्रयों समेत सभी मंवत्रयों को त्यागपत्र देना पड़ता है। िैकवल्पक रूप से मंवत्रपररषद राष्ट्रपवत को
आस अधार पर िोकसभा का विघटन कर नए चुनाि करिाने की सिाह दे सकती है क्रक सदन
मतदाताओं के दृविकोण का प्रवतवनवधत्ि नहीं करता।
5.3.2 मं वत्रयों का व्यविगत ईत्तरदावयत्ि

 ऄनुच्छेद 75 में व्यविगत ईत्तरदावयत्ि का वसद्ांत भी वनवहत है। ऄनुच्छेद 75(2) के ऄनुसार
मंत्री, राष्ट्रपवत के प्रसादपययन्त ऄपने पद को धारण करते हैं। आसका ऄथय यह है क्रक मंवत्रपररषद के
िोकसभा में वििास में रहने के बाद भी राष्ट्रपवत क्रकसी मंत्री को ईसके पद से हटा सकता है।
हािाँक्रक, राष्ट्रपवत क्रकसी भी मंत्री को के िि प्रधानमंत्री की सिाह पर ही पदमुि कर सकता है।
5.3.3 प्रधानमं त्री की भू वमका

 प्रधानमंत्री मंवत्रपररषद रूपी मेहराब की सिायवधक महत्िपूणय वशिा है। मंवत्रपररषद के गठन, आसके
ऄवस्तत्ि एिं ऄंत में प्रधानमंत्री की कें द्रीय भूवमका है। यक्रद प्रधानमंत्री त्यागपत्र दे दे या ईसकी
मृत्यु हो जाये तो समपूणय मंवत्रपररषद ईसके साथ ही समाप्त हो जाती है। प्रधानमंत्री ऄपने समकक्षों
में प्रथम (primus inter pares) होता है। िह मंवत्रमंडि की बैठक अहूत करता है तथा ईसकी
ऄध्यक्षता करता है। साथ ही, िह क्रकसी भी मंत्री से त्यागपत्र मांग सकता है या राष्ट्रपवत के माध्यम
से ईसे पद से हटा सकता है।
 संविधान के ऄनुच्छेद 78 के ऄनुसार, यह प्रधानमंत्री का कतयव्य है क्रक िो राष्ट्रपवत को मंवत्रपररषद
के सभी वनणययों से ऄिगत करिाये तथा संघ के मामिों के प्रशासन से संबंवधत जानकारी ईसके
समक्ष प्रस्तुत करे । आसी प्रकार प्रधानमंत्री, मंवत्रपररषद तथा संसद के बीच की मुख्य कड़ी है।

क्रकचन कै वबनेट (Kitchen Cabinet)


 यह कै वबनेट कु छ महत्िपूणय मंवत्रयों को वमिाकर बनती है वजसका प्रमुख प्रधानमंत्री होता है। यह
औपचाररक रूप से वनणयय िेने िािी ईच्चतम संस्था होती है। ‘अंतररक कै वबनेट’ या क्रकचन कै वबनेट
कहिाने िािा यह छोटा वनकाय सत्ता का प्रमुख कें द्र बन गया है।
 आस ऄनौपचाररक वनकाय में प्रधानमंत्री ऄपने दो से चार प्रभािशािी, पूणय वििासी सहयोगी रखता
है वजनसे िह हर समस्या की चचाय करता है। यह प्रधानमंत्री को महत्िपूणय राजनैवतक तथा
प्रशासवनक मुद्दों पर सिाह देती है और महत्िपूणय वनणयय िेने में सहायता करती है। आसमें न के िि
कै वबनेट मंत्री शावमि होते हैं ऄवपतु आसके बाहर के , जैसे प्रधानमंत्री के वमत्र ि पाररिाररक सदस्य
भी शावमि होते हैं।

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6. महान्यायिादी (Attorney General)


 महान्यायिादी, देश का सिोच्च विवध ऄवधकारी होता है। िह राष्ट्रपवत द्वारा वनयुि क्रकया जाता है।
ईसमें ईन योग्यताओं का होना अिश्यक है जो ईच्चतम न्यायािय के क्रकसी न्यायाधीश की वनयुवि
के विए अिश्यक होती है। दूसरे शब्दों में, िह भारत का नागररक हो और िह क्रकसी ईच्च
न्यायािय में 5 िषों तक न्यायाधीश रह चुका हो ऄथिा क्रकसी ईच्च न्यायािय में ही 10 िषों तक
िकाित कर चुका हो या राष्ट्रपवत के मतानुसार, िह न्यावयक मामिों का प्रख्यात विवधिेत्ता हो।
 महान्यायिादी का काययकाि वनवित नहीं है। िह ऄपने पद पर राष्ट्रपवत के प्रसादपयंत बना रहता
है। आसका तात्पयय यह क्रक राष्ट्रपवत के द्वारा िह क्रकसी भी समय हटाया जा सकता है। िह राष्ट्रपवत
को ऄपना त्यागपत्र सौंप कर कभी भी ऄपने पद को ररि कर सकता है। पारमपररक रूप में,
सरकार (मंवत्रपररषद) त्यागपत्र दे दे या बदि जाए तो ईसे त्यागपत्र देना होता है क्योंक्रक आसकी
वनयुवि सरकार की वसफाररश पर होती है।
6.1 महान्यायिादी के कतय व्य
भारत सरकार के सिोच्च कानूनी ऄवधकारी के रूप में महान्यायिादी के वनम्नविवखत कतयव्य हैं:
 भारत सरकार को विवध संबंधी क्रकसी ऐसे विषय पर सिाह देना जो राष्ट्रपवत द्वारा सौंपे गए हों।
 राष्ट्रपवत द्वारा सौंपे गए ऄन्य विवधक कतयव्यों का पािन करना।
 संविधान या क्रकसी ऄन्य विवध द्वारा प्रदान क्रकए गये कृ त्यों का वनियहन करना।
राष्ट्रपवत द्वारा महान्यायिादी को वनम्नविवखत कायय सौंपे जाते हैं:
 भारत सरकार से संबंवधत सभी मामिों में ईच्चतम न्यायािय में भारत सरकार का प्रवतवनवधत्ि
करना।
 संविधान के ऄनुच्छेद 143 के तहत, राष्ट्रपवत के द्वारा ईच्चतम न्यायािय में संदर्थभत मामिों के
संदभय में भारत सरकार का प्रवतवनवधत्ि करना (ईच्चतम न्यायािय से राष्ट्रपवत की परामशय िेने की
शवि)।
 भारत सरकार से संबंवधत क्रकसी भी मामिे में क्रकसी ईच्च न्यायािय में सुनिाइ के विए ईपवस्थत
रहना।
6.2 ऄवधकार एिं मयाय दाएँ

 ऄपने सरकारी कतयव्यों के वनियहन में, महान्यायिादी को भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर क्रकसी भी
न्यायािय में सुनिाइ का ऄवधकार है। ईसे संसद के दोनों सदनों में बोिने या काययिाही में भाग
िेने का या दोनों सदनों की संयि ु बैठक में मतावधकार के बगैर भाग िेने का ऄवधकार है। िह
क्रकसी संसदीय सवमवत का सदस्य (मतावधकार बगैर) बन सकता है। िह एक सं सद सदस्य की तरह
सभी भत्ते एिं विशेषावधकार प्राप्त करता है। महान्यायिादी की वनम्नविवखत सीमाएँ आस प्रकार हैं:
o िह भारत सरकार के विरुद् कोइ सिाह नहीं दे सकता तथा ईसके विरुद् िाद नहीं िे
सकता।
o वजस मामिे में ईसे भारत सरकार की ओर से पेश होना है, ईस पर िह कोइ रटप्पणी नहीं कर
सकता है।
o िह भारत सरकार की ऄनुमवत के वबना अपरावधक मामिों में क्रकसी व्यवि का बचाि नहीं
कर सकता है।
o िह क्रकसी पररषद या कं पनी में भारत सरकार की ऄनुमवत के वबना वनदेशक का पद र्ग्हण
नहीं कर सकता है।

आं ग्िैंड में ऄटॉनी जनरि का पद राजनीवतक और विवधक दोनों का वमिण है। ऄटॉनी जनरि मंवत्रमंडि
का सदस्य होता है। भारत में महान्यायिादी मंवत्रपररषद् का सदस्य नहीं होता है।

 हािाँक्रक, िह सरकारी कमयचारी की िेणी में नहीं अता है और ईसे वनजी विवधक काययिाही से
रोका नहीं जा सकता है। भारत के महान्यायिादी की कायायियी वजममेदाररयों के वनियहन में ईसकी
सहायता के विये सॉविवसटर जनरि और ऄवतररि सॉविवसटर जनरि के पदों का प्रािधान भी
क्रकया गया है।

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Classroom Study Material

भारतीय संविधान एिं शासन


8. राज्य काययपाविका

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विषय सूची
1. राज्यपाि __________________________________________________________________________________ 3
1.1 वनयुवि _________________________________________________________________________________ 3
1.1.1. वनिायचन के स्थान पर राज्यपाि की वनयुवि की पद्धवत को ऄपनाने के कारण ____________________________ 4
1.1.2. के न्द्र में सत्ता पररितयन के कारण राज्यपाि की पदमुवि से संबंवधत ईत्पन्न वििाद__________________________ 4
1.2 राज्यपाि पद हेतु वनधायररत ऄहयताएं एिं शतें _______________________________________________________ 5
1.3 राज्यपाि की शवियां एिं कायय ________________________________________________________________ 6
1.3.1 काययकारी शवियां ______________________________________________________________________ 6
1.3.2 विधायी शवियां _______________________________________________________________________ 6
1.3.3 वित्तीय शवियां _______________________________________________________________________ 8
1.3.4 न्द्यावयक शवियां _______________________________________________________________________ 8
1.3.5 क्षमादान की शवियां ____________________________________________________________________ 8
1.4 राज्यपाि का वििेकावधकार __________________________________________________________________ 9
1.5 राज्यपाि का विशेष ईत्तरदावयत्ि ______________________________________________________________ 9
1.6 पररवस्थवतजन्द्य वििेकावधकार ________________________________________________________________ 10
1.7 राष्ट्रपवत और राज्यपाि की शवियों का तुिनात्मक ऄध्ययन ____________________________________________ 10
1.8 राज्यपाि के संबंध में गरित विवभन्न अयोग एिं न्द्यावयक वनणयय _________________________________________ 11
1.8.1 प्रशासवनक सुधार अयोग ________________________________________________________________ 11
1.8.2 भगिान सहाय सवमवत __________________________________________________________________ 12
1.8.3 राजमन्नार सवमवत _____________________________________________________________________ 12
1.8.4 सरकाररया अयोग_____________________________________________________________________ 13
1.8.5 संविधान की समीक्षा हेतु राष्ट्रीय अयोग _____________________________________________________ 14
1.8.6 पुंछी अयोग ________________________________________________________________________ 14
1.9 राष्ट्रपवत शासन से संबंधी कु छ निीनतम वििाद ____________________________________________________ 15
1.9.1 ऄरुणाचि प्रदेश वििाद _________________________________________________________________ 15
1.9.2 ईत्तराखंड वििाद _____________________________________________________________________ 15
1.10 राज्यपाि की वस्थवत _____________________________________________________________________ 16
1.11 ितयमान में राज्यपाि पद की प्रासंवगकता ________________________________________________________ 17
2. मुख्यमंत्री _________________________________________________________________________________ 17
2.1 मुख्यमंत्री के कायय एिं शवियां ________________________________________________________________ 17
2.1.1 मंवत्रपररषद के सन्द्दभय में _________________________________________________________________ 17
2.1.2 राज्यपाि के सन्द्दभय में __________________________________________________________________ 18
2.1.3 राज्य विधानमंडि के सन्द्दभय में ____________________________________________________________ 18
3. मंवत्रपररषद ________________________________________________________________________________ 19
3.1 मंवत्रयों से संबंवधत ऄन्द्य ईपबंध ________________________________________________________________ 19
4. राज्य में मुख्य सवचि का पद ____________________________________________________________________ 19
5. महावधििा (Advocate general) ______________________________________________________________ 20

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भारत में प्रशासन की विके न्द्रीकृ त व्यिस्था को ऄपनाया गया है। राज्य काययपाविका का गिन
संघीय काययपाविका की तजय पर ककया गया है। आसके ऄंतगयत राज्य का राज्यपाि, मुख्यमंत्री,

मंवत्रपररषद, महावधििा (एडिोके ट जनरि) अकद सवममवित होते हैं। संविधान के छिे भाग के
ऄनुच्छेद 153 से 167 तक राज्य काययपाविका का िणयन ककया गया है।

1. राज्यपाि
 राज्यपाि राज्य का काययकारी प्रमुख होता है तथा ईसकी वस्थवत कें र में राष्ट्रपवत के ऄनुरूप
होती है। नाममात्र का काययकारी प्रमुख (संिैधावनक मुवखया) होने के बािजूद राज्यपाि के
पास राज्य सरकार को सिाह देने, सािधान करने और प्रोत्सावहत करने के ऄवधकार प्राप्त
होते हैं। राज्यपाि की भूवमका मंवत्रपररषद के एक वमत्र, दाशयवनक और मागयदशयक की होती
है। आस भूवमका के ऄंतगयत िह संविधान के एक प्रहरी और कें र और राज्य के बीच एक जीिंत
कड़ी के रूप में कायय करता है।
 संविधान में ऄनुच्छेद 153 के तहत प्रत्येक राज्य के विए एक राज्यपाि का प्रािधान ककया
गया है। हािांकक, सातिें संविधान संशोधन ऄवधवनयम (1956) द्वारा आसमें संशोधन करते
हुए यह प्रािधान जोड़ा गया कक ‘एक ही व्यवि को दो या ऄवधक राज्यों का राज्यपाि
वनयुि ककया जा सकता है’।

1.1 वनयु वि

 ऄनुच्छेद 155 के ऄनुसार, राज्यपाि की वनयुवि राष्ट्रपवत के मुहर िगे अज्ञापत्र के माध्यम
से होती है और िह राष्ट्रपवत के प्रसादपयंत पद धारण करता है। व्यािहाररक रूप से,

राज्यपाि कें र सरकार द्वारा वनयुि होता है। सामान्द्यतः राज्यपाि का काययकाि 5 िषय का
होता है, परन्द्तु ईसे राष्ट्रपवत के द्वारा कभी भी पद से हटाया जा सकता है।
 प्रथम प्रशासवनक सुधार अयोग ने आस पद को ऄवधक सशि बनाने के विए ऄनुशस
ं ाएं की।
पुंछी अयोग ने आस संबंध में ऄनुशंसा की कक राज्यपाि के पद के साथ “राजनीवतक फु टबॉि”
की तरह होने िािे व्यिहार को रोका जाना चावहए तथा आस पद के काययकाि को वनयत
ककया जाना चावहए ताकक आसके राजनीवतकरण को रोका जा सके ।
 संविधान वनमायताओं ने राज्यपाि के पद की एक गैर-राजनीवतक पद के रूप में पररकल्पना
की थी, जो कें र और राज्य के बीच समन्द्िय के विए कड़ी का कायय करे । परन्द्तु व्यिहार में यह
प्रयोग में नहीं िाया गया है तथा आसके विपरीत आसका प्रयोग ऄपने चहेते िोगों यथा:- पूिय
नौकरशाहों एिं राजनीवतज्ञों को संरक्षण देने के रूप में ककया गया। आस सन्द्दभय में यह तकय
कदया जाता है कक राज्यपाि के पद का प्रयोग राजनेताओं और नौकरशाहों की सेिावनिृवत के
पश्चात् पुरस्कार के रूप में ककया जाता है।
 तवमिनाडु सरकार द्वारा गरित राजमन्नार सवमवत ने राज्यपाि की वनयुवि के संबंध में
वनम्नविवखत सुझाि कदए:
o राज्यपाि के रूप में ककसी व्यवि की वनयुवि के विए समबंवधत राज्य के मुख्यमंत्री से
परामशय ऄिश्य ककया जाना चावहए।
o यकद मुख्यमंत्री आस वनयुवि से ऄसहमत हो तो ईस व्यवि को वनयुि नहीं ककया जाना
चावहए।
 आन दोनों सुझािों को कें र-राज्य समबन्द्धों पर गरित सरकाररया अयोग और पुछ
ं ी अयोग का
भी समथयन प्राप्त हुअ। हािांकक, व्यिहार में आनका ऄनुसरण शायद ही कभी ककया गया हो।

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1.1.1. वनिाय च न के स्थान पर राज्यपाि की वनयु वि की पद्धवत को ऄपनाने के कारण

 संविधान के मसौदे में, संविधान वनमायताओं ने प्रत्येक राज्य के राज्यपाि के विए वनिायचन का
प्रािधान ककया था। यह वनणयय संघ की एक आकाइ के रूप में राज्यों को ऄवधकतम स्िायत्तता देने
हेतु ककया गया था। हािांकक संविधान सभा ने वनिायवचत राज्यपाि के विचार को त्याग कदया तथा
संविधान में राज्यपाि की वनयुवि की पद्धवत को ऄपनाने का प्रािधान ककया गया। आस तकय के
पीछे वनम्नविवखत सुझाि प्रस्तुत ककये गये:
o सरकार की संसदीय प्रणािी में िोकवप्रय वनिायवचत राज्यपाि प्रवतकू ि भूवमका वनभा सकता
है। यकद राज्यपाि का वनिायचन प्रत्यक्ष चुनाि द्वारा होता है तो िह जनता का प्रत्यक्ष
प्रवतवनवध बन जायेगा और ऄपनी शवियों का प्रयोग िास्तविक प्रमुख की तरह करे गा न कक
नाममात्र प्रमुख की तरह।ऐसी वस्थवत में राज्यपाि और प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा वनिायवचत
मंवत्रपररषद में प्रवतद्वंकदता की वस्थवत ईत्पन्न हो सकती है।
o दूसरी तरफ, यकद राज्यपाि को जनता द्वारा प्रत्यक्ष वनिायचन के स्थान पर राज्य विधानमंडि
द्वारा ऄप्रत्यक्ष रूप से वनिायवचत ककया जाये तो आस वस्थवत में राज्यपाि और मंवत्रपररषद के
बीच प्रवतद्वंकदता की संभािना के ऄवधक ऄिसर ईत्पन्न नहीं होंगे। आसका कारण, ईसी

विधानमंडि के मंवत्रपररषद द्वारा राज्यपाि की वनयुवि ककया जाना है। िेककन, आससे
राज्यपाि के ईन राजनीवतक दिों की किपुतिी बन जाने का खतरा ईत्पन्न हो जायेगा
वजन्द्होंने ईसके वनिायचन का समथयन ककया है।
o वनिायवचत राज्यपाि, चाहे िह प्रत्यक्ष रूप से वनिायवचत हो या कफर ऄप्रत्यक्ष रूप से, दोनों ही
पररवस्थवतयों में ईसका कें र के प्रवतवनवध के रूप में कायय करना संभि नहीं होता क्योंकक दोनों
ही मामिों में राज्यपाि जनता का एक प्रवतवनवध है जोकक राज्य की जनता से ऄपने
ऄवधकार प्राप्त करता है। राज्य और संघ के बीच मतभेद की वस्थवत में, वनिायवचत राज्यपाि
की वस्थवत में कें र सरकार के एक ईपयुि साधन के रूप में कायय करने की संभािना नहीं है।
दूसरी ओर, राज्यपाि राज्य के क्षेत्र में कें र के ककसी भी रूप में विस्तार के ऄवधकार के
कियान्द्ियन में व्यिधान ईत्पन्न कर सकता है। यह अपातकािीन शवियों के विचार से भी
सुसंगत नहीं है, वजसके तहत कें र ऄत्यवधक प्रभािशािी हो जाता है और संघीय प्रणािी
ऄस्थायी रूप से बावधत हो जाती है।

1.1.2. के न्द्र में सत्ता पररितय न के कारण राज्यपाि की पदमु वि से सं बं वधत ईत्पन्न वििाद

संिध
ै ावनक प्रािधान
 ऄनु. 156 के ऄंतगयत राज्यपाि का काययकाि 5 िषय वनधायररत ककया गया है एिं िह राष्ट्रपवत के
प्रसादपययन्द्त पद धारणा करता है।
 यहााँ ‘प्रसादपयंत’ का ऄथय है- िह ऄपने पद पर राष्ट्रपवत की आच्छा के ऄनुरूप ही रह सकता है

ऄथायत् राष्ट्रपवत, जब चाहें ईसे, ईसके पद से हटा सकता है।


वििाद का कारण
 राष्ट्रपवत द्वारा ‘प्रसादपयंत’ वसद्धांत का िास्तविक प्रयोग के न्द्रीय मंवत्रमंडि के परामशय के अधार
पर ही ककया जाता है जो राज्यपाि की पदमुवि से संबंधी वििाद के विए ईत्तरदायी प्रमुख कारण
है।

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 के न्द्र में गरित नइ सरकार ऄपनी पूियिती सरकार द्वारा वनयुि राज्यपािों पर या तो आस्तीफा देने
के विए दबाि बनाती है या ईन्द्हें राष्ट्रपवत के माध्यम से बखायस्त कर देती है। आस काययिाही के विए
वनम्नविवखत स्िाथय ईत्तरदायी होते हैं:
o ऄपने दि के या कृ पापात्र िोगों को विशेषकर पूिय नौकरशाहों एिं राजनीवतज्ञों को,
राज्यपाि के पद के रूप में पुरस्कार कदया जा सके ।
o साथ ही, जब राज्य में के न्द्र के विपरीत ऄथायत विपक्षी दिों की सरकार हो तो ईन्द्हें ऄवस्थर
ककया जा सके ।
 संिैधावनक रूप से ईवल्िवखत नहीं होने के बािजूद यह मान्द्य वसद्धांत है कक राज्यपाि को
भ्रष्टाचार या संविधान के ऄवतिमण के अधार पर ही हटाया जाना चावहए। ककतु, व्यिहार में के न्द्र
की कोइ भी सरकार शायद ही आसका ऄनुसरण करती हो।
2010 में सिोच्च न्द्यायािय का वनणयय
 पूिय मुख्य न्द्यायाधीश के .जी. बािाकृ ष्णन की ऄध्यक्षता में पांच सदस्यीय खंडपीि ने वनणयय कदया
कक राज्यपाि को के िि आस अधार पर आस्तीफा देने के विए बाध्य नहीं ककया जा सकता है या
हटाया जा सकता है ककः
o राज्यपाि की विचारधारा एिं नीवतयााँ, के न्द्र में सत्तारूढ़ दि की विचारधारा के साथ
समानता नहीं रखती।
o साथ ही, आस अधार पर भी नहीं हटाया जा सकता कक कें र सरकार का ऄब संबंवधत
राज्यपाि में विश्वास नही रह गया है।
o आसमें सिोच्च न्द्यायािय ने कहा कक राज्यपाि को हटाने के पूिय ईसको हटाने से संबंवधत तययों
एिं कारणों को स्पष्ट रूप से राष्ट्रपवत को बताना होगा।
विश्लेषण एिं वनष्कषय
 2010 के सिोच्च न्द्यायािय के वनणयय के बािजूद, यह देखा गया है कक कें र में गरित ितयमान
सरकार एिं आसकी पूियिती सरकारों ने भी ऄपने राजनीवतक ईद्देश्यों एिं महत्िाकांक्षाओं को पूणय
करने के विए आस संिैधावनक पद का दुरूपयोग ककया है।

1.2 राज्यपाि पद हे तु वनधाय ररत ऄहय ताएं एिं शतें

ऄनुच्छेद 157 प्रािधान करता है कक ककसी व्यवि को राज्यपाि के रूप में वनयुि होने के विए
वनम्नविवखत दो ऄहयताएं धारण करना अिश्यक है:
 ईसे भारत का नागररक होना चावहए।
 िह 35 िषय की अयु पूणय कर चुका हो।

राज्यपाि के पद हेतु संविधान में वनम्नविवखत ऄवनिायय शतें (ऄनु. 158) वनधायररत की गयी हैं:
 राज्यपाि को संसद और राज्य विधानमंडि का सदस्य नहीं होना चावहए।
 राज्यपाि को ककसी िाभ के पद पर नहीं होना चावहए।
 राज्यपाि वबना ककराया कदए, ऄपने शासकीय वनिासों के ईपयोग का हक़दार होगा और

ऐसी ईपिवधधयों और भत्तों और विशेषावधकारों का भी, जो संसद, विवध द्वारा ऄिधाररत

करे , को प्राप्त करने का हक़दार होगा।


 ईसके काययकाि के दौरान ईसके िेतन और भत्ते में कटौती नहीं की जा सकती है।
 यकद एक ही व्यवि को दो या ऄवधक राज्यों के राज्यपाि के रूप में वनयुि होता है, तो ईसे
देय पररिवधधयााँ और भत्ते भारत के राष्ट्रपवत द्वारा तय मानकों के ऄनुसार िे राज्य वमिकर
प्रदान करें गे।

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संबंवधत राज्य के ईच्च न्द्यायािय का मुख्य न्द्यायाधीश, राज्यपाि को पद की शपथ कदिाता है।
 समबवन्द्धत ईच्च न्द्यायािय के मुख्य न्द्यायाधीश की ऄनुपवस्थवत में, ईच्च न्द्यायािय के सबसे
िररष्ठ न्द्यायाधीश द्वारा शपथ की प्रकिया पूरी की जाती है।
 राष्ट्रपवत द्वारा राज्यपाि को एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानांतररत ककया जा सकता है। िह
कभी भी राष्ट्रपवत को संबोवधत करते हुए ऄपना त्यागपत्र सौंप सकता है। राज्यपाि को
हटाने की प्रकिया में राज्य विधानमंडि की कोइ भूवमका नहीं होती है।
1.3 राज्यपाि की शवियां एिं कायय
राज्यपाि की शवियों एिं ईसके कायों को हम वनम्नविवखत शीषयकों के ऄंतगयत समझ सकते हैं:
1. काययकारी शवियां
2. विधायी शवियां
3. वित्तीय शवियां
4. न्द्यावयक शवियां
5. क्षमादान की शवियां
1.3.1 कायय कारी शवियां

 ऄनुच्छेद 154 में िर्णणत ककया गया है कक राज्य की समस्त काययपाविका शवि राज्यपाि में
वनवहत होती है और िह आनका प्रयोग संिैधावनक प्रािधानों के तहत स्ियं ऄथिा ऄपने
ऄधीनस्थ ऄवधकाररयों के माध्यम से करे गा।
 ककसी राज्य के सभी औपचाररक काययकारी कायय राज्यपाि के नाम पर ककये जाते हैं। िह,
ईसके नाम से जारी ककये गए अदेश और ऄन्द्य प्रपत्र के प्रमावणत होने, के समबन्द्ध में वनयम
बना सकता है।
 राज्यपाि, राज्य के मुख्यमंत्री, ऄन्द्य ऄधीनस्थ मंवत्रयों और राज्य के महावधििा की वनयुवि
करता है। मंत्री तथा महावधििा राज्यपाि के प्रसादपयंत पद धारण करते हैं।
 राज्यपाि, राज्य वनिायचन अयुि को वनयुि करता है और ईसकी सेिा शतें और कायायिवध
तय करता है। हािांकक, राज्य वनिायचन अयुि को हटाने की प्रकिया ईच्च न्द्यायािय के
न्द्यायाधीश को हटाने की प्रकिया के समान है।
 िह राज्य िोक सेिा अयोग के ऄध्यक्ष और सदस्यों को वनयुि करता है। हािांकक, ईन्द्हें
हटाने का ऄवधकार भारत के राष्ट्रपवत को प्राप्त है न कक राज्यपाि को।
 िह मुख्यमंत्री से राज्य के ककसी भी प्रशासवनक मामिे या ककसी विधायी प्रस्ताि की
जानकारी प्राप्त कर सकता है।
 िह ऄनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपवत से राज्य में संिध
ै ावनक अपातकाि या राष्ट्रपवत शासन
के विए वसफाररश कर सकता है।
 िह राज्य के विश्वविद्याियों का कु िावधपवत होता है तथा िह राज्य के विश्वविद्याियों के
कु िपवतयों की वनयुवि करता है।
1.3.2 विधायी शवियां

 राज्य का राज्यपाि विधानसभा के सत्र को अहूत, सत्रािसान या विधानसभा को विघरटत


कर सकता है।
 राज्य विधानमंडि में ककसी विधेयक के पाररत होने के पश्चात िह राज्यपाि के समक्ष िाया
जाता है। राज्यपाि के पास विधेयक के संबंध में वनम्नविवखत विकल्प होते हैं - िह
o विधेयक को स्िीकार कर सकता है, या
o ऄनुमवत रोक सकता है, या
o विधयेक को (धन विधेयक को छोड़कर) विधानमंडि के पास पुनर्णिचार के विए िौटा
सकता है, या
o विधेयक को राष्ट्रपवत के विचार के विए सुरवक्षत रख सकता है।

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 यकद ककसी विधेयक में राज्य के ईच्च न्द्यायािय को प्रदत्त शवियों को कम करने संबंधी
प्रािधान शावमि हों तो राज्यपाि ईसे राष्ट्रपवत के विचार के विए सुरवक्षत रखने के विए
बाध्य होगा। आसके ऄवतररि, यकद विधेयक ऄवधकारातीत ऄथायत् संिैधावनक ईपबन्द्धों के
विरुद्ध हो, राज्य के नीवत वनदेशक तत्िों के विरुद्ध हो, देश के व्यापक वहत के विरुद्ध हो,
राष्ट्रीय महत्ि का हो या संविधान के ऄनुच्छेद 31(a) के तहत ककसी समपवत्त के ऄवनिायय
ऄवधग्रहण से संबंवधत हो, तो ऐसे मामिों में भी राज्यपाि विधेयक को सुरवक्षत रख सकता
है।
 राज्यपाि की राष्ट्रपवत के विचार हेतु विधेयक को अरवक्षत रखने की शवि को ककसी
न्द्यायािय में प्रश्नगत नहीं ककया जा सकता।
 राज्यपाि, अंग्ि-भारतीय समुदाय के एक व्यवि को राज्य विधानसभा का सदस्य वनयुि
कर सकता है।
 वद्वसदनीय विधानमंडि िािे राज्यों में विधानपररषद के कु ि सदस्यों के छिे भाग को िह
नावमत कर सकता है। राज्यपाि आस शवि का प्रयोग ऐसे व्यवियों के समबन्द्ध में करे गा वजन्द्हें
सावहत्य, विज्ञान, किा, सहकारी अन्द्दोिन और सामावजक सेिा के संबंध में विशेष ज्ञान या
व्यािहाररक ऄनुभि है ।
 ऄनुच्छेद 213 के तहत जब राज्य विधानमंडि का सत्र नहीं चि रहा हो तो िह औपचाररक
रूप से ऄध्यादेश जारी कर सकता है। राज्य विधानमंडि के पुनः सत्र में अने के छह हफ्ते के
भीतर आन्द्हें स्िीकृ वत वमिना अिश्यक है। आस ऄिवध के बाद स्िीकृ वत न वमिने की वस्थवत में
िह प्रभाि में नहीं रहेगा।
 राज्यपाि ककसी भी समय ककसी ऄध्यादेश को िापस िे सकता है।
 विधानमंडि के सदस्यों की वनरहयता के मुद्दे पर वनिायचन अयोग से विमशय करने के पश्चात्
िह आसका वनणयय करता है।
 राज्यपाि, राज्य वित्त अयोग, राज्य िोक सेिा अयोग और वनयंत्रक एिं महािेखा परीक्षक
की ररपोटय को राज्य विधानमंडि के समक्ष प्रस्तुत करता है।

ऄनुच्छेद 213: विधान मण्डि के सत्र में ना होने की वस्थवत में ऄध्यादेश प्रख्यावपत करने की राज्यपाि
की शवि -
(1) राज्य विधानमंडि के सत्र में ना होने या विधान पररषद् िािे राज्य में विधान-मण्डि के दोनों सदनों
के सत्र में ना होने की वस्थवत में, यकद ककसी समय राज्यपाि को यह समाधान हो जाता है कक ऐसी
पररवस्थवतयां विद्यमान हैं वजनके कारण तत्काि कारय िाइ करना ईसके विए अिश्यक हो गया है तो िह
ऐसे ऄध्यादेश प्रख्यावपत कर सके गा जो ईसे ईन पररवस्थवतयों में ऄपेवक्षत प्रतीत हों। ऄतः जब राज्य
विधावयका विवध वनमायण की वस्थवत में नहीं हो तो राज्यपाि को ऄध्यादेश जारी करने की शवि प्रदान
की गयी है।
परन्द्तु राज्यपाि, राष्ट्रपवत के ऄनुदश
े ों के वबना, कोइ ऐसा ऄध्यादेश प्रख्यावपत नहीं करे गा। यकद-
(क) िैसे ईपबन्द्ध ऄन्द्तर्णिष्ट करने िािे विधेयक को विधान-मण्डि मे पुरःस्थावपत ककए जाने के विए
राष्ट्रपवत की पूिय मंजूरी की ऄपेक्षा आस संविधान के ऄधीन है, या
(ख) िह िैसे ईपबन्द्ध ऄन्द्तर्णिष्ट करने िािे विधेयक को राष्ट्रपवत के विचार के विए अरवक्षत रखना
अिश्यक समझता है, या
(ग) िैसे ईपबन्द्ध ऄन्द्तर्णिष्ट करने िािा राज्य के विधान-मण्डि का ऄवधवनयम आस संविधान के ऄधीन
तब तक ऄविवधमान्द्य होता है जब तक राष्ट्रपवत के विचार के विए अरवक्षत रखे जाने पर ईसे राष्ट्रपवत
की ऄनुमवत प्राप्त नहीं हो गयी होती।
(2) आस ऄनुच्छेद के ऄधीन प्रख्यावपत ऄध्यादेश की शवि और प्रभाि राज्य के विधान-मण्डि के ऐसे
ऄवधवनयम के समान होता है वजसे राज्यपाि ने ऄनुमवत दे दी है,

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ककन्द्तु प्रत्येक ऐसा ऄध्यादेश-


(क) राज्य की विधान सभा के समक्ष और विधान पररषद िािे राज्य में दोनों सदनों के समक्ष रखा
जाएगा। विधान-मण्डि के पुनः समिेत होने से छह सप्ताह की समावप्त पर या यकद ईस ऄिवध की समावप्त
से पहिे विधान सभा ईसको ऄस्िीकृ त करने का संकल्प पाररत कर देती है और यकद विधान पररषद है तो
िह ईससे सहमत हो जाती है तो, यथावस्थवत, संकल्प के पाररत होने पर या विधान पररषद द्वारा संकल्प
से सहमत होने पर प्रितयन में नहीं रहेगा, और
(ख) राज्यपाि द्वारा ककसी भी समय िापस विया जा सके गा।
स्पष्टीकरण - यकद विधान पररषद िािे राज्यों में विधानमण्डि के सदन, वभन्न-वभन्न वतवथयों को पुनः
समिेत ककए जाते हैं तो िहां छह सप्ताह की ऄिवध की गणना पश्चात्िती वतवथ से की जाएगी।
(3) यकद और जहां तक आस ऄनुच्छेद के ऄधीन ऄध्यादेश कोइ ऐसा ईपबन्द्ध करता है जो राज्य के
विधान-मण्डि के ऐसे ऄवधवनयम में वजसे राज्यपाि ने ऄनुमवत दे दी है, ऄवधवनयवमत ककए जाने पर
विवधमान्द्य नहीं होता तो और िहां तक िह ऄध्यादेश शून्द्य होगा।

1.3.3 वित्तीय शवियां

 राज्यपाि यह सुवनवश्चत करता है कक राज्य-बजट या िार्णषक वित्तीय वििरण को राज्य


विधानमंडि के समक्ष प्रस्तुत ककया जाए।
 कोइ धन विधेयक राज्य विधानमंडि में राज्यपाि की पूिय सहमवत के बाद ही प्रस्तुत ककया
जा सकता है।
 ककसी तरह के ऄनुदान की मांग राज्यपाि की सहमवत के वबना नहीं की जा सकती है।
 िह ककसी ऄप्रत्यावशत व्यय के िहन के विए राज्य की अकवस्मकता वनवध से ऄवग्रम िे सकता
है।
 पंचायतों और नगरपाविकाओं की वित्तीय वस्थवत की समीक्षा करने के विए राज्यपाि प्रत्येक
5 िषय के पश्चात् एक राज्य वित्त अयोग का गिन करता है।

1.3.4 न्द्यावयक शवियां

 समबंवधत राज्य के ईच्च न्द्यायािय के न्द्यायाधीशों की वनयुवि के समबन्द्ध में राष्ट्रपवत द्वारा
राज्यपाि से परामशय विया जाता है।
 िह राज्य ईच्च न्द्यायािय के मुख्य न्द्यायाधीश के साथ विचार करके वजिा न्द्यायाधीशों की
वनयुवि, स्थानान्द्तरण और प्रोन्नवत कर सकता है।
 िह राज्य न्द्यावयक अयोग से जुड़े व्यवियों (वजिा न्द्यायाधीशों के ऄवतररि) की वनयुवि भी
करता है। आन वनयुवियों में िह राज्य ईच्च न्द्यायािय और राज्य िोक सेिा अयोग के साथ
विचार करता है।
1.3.5 क्षमादान की शवियां

 ऄनुच्छेद 161, राज्यपाि को ईस विषय संबंधी, वजस विषय पर राज्य की काययपाविका


शवि का विस्तार है, ककसी विवध के विरुद्ध ककसी ऄपराध के विए दोषवसद्ध िहराए गये
ककसी व्यवि के दंड को क्षमा, ईसका प्रवििंबन, विराम या पररहार करने की ऄथिा दंडादेश
के वनिंबन, पररहार या िघुकरण की शवि, प्रदान करता है।
हािांकक राज्यपाि की क्षमादान की शवियां वनम्नविवखत मामिे में राष्ट्रपवत की शवियों से वभन्न
हैं -
 मृत्युदण्ड के विषय में राष्ट्रपवत के पास मृत्युदड
ं की सजा को क्षमा करने का ऄनन्द्य ऄवधकार
हैं जबकक राज्यपाि को यह शवि प्राप्त नहीं है। हािााँकक मृत्युदण्ड को वनिंवबत करने,
पररहार करने एिं िघुकरण करने की शवि राज्यपाि को प्राप्त है।

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 सैन्द्य न्द्यायािय के विषय में राज्यपाि और राष्ट्रपवत की क्षमादान की शवियां सैन्द्य


न्द्यायािय द्वारा प्रदत्त सजा के मामिे में भी वभन्न हैं, जहााँ राष्ट्रपवत को क्षमा करने, िघुकरण,
पररहार, वनिंवबत करने का ऄवधकार है, िहीं राज्यपाि के पास ऐसा कोइ ऄवधकार नहीं है।

1.4 राज्यपाि का वििे कावधकार

राज्यपाि के वििेकाधीन कृ त्य:


 ऄनुच्छेद 163 के तहत दो प्रकार की पररवस्थवतयों में राज्यपाि से मंवत्रपररषद की सिाह के वबना
ऄथायत् ऄपने वििेक से कायय करने की ऄपेक्षा की गयी है:
o जो संविधान और संसदीय िोकतंत्र की प्रकृ वत से प्रत्यक्ष रूप से प्रदत्त हैं।
o जहां संविधान ने राज्यपाि पर ऄवभव्यि रूप से विशेष ईत्तरदावयत्ि डािा है।
नोट: आसके ऄवतररि राज्यपाि कु छ ऄन्द्य विशेष पररवस्थवतयों में भी ऄपने वििेकावधकार से कायय
करता है। आस बारे में अगे चचाय की गयी है।
संविधान द्वारा प्रदत्त
प्रथम प्रकार के वििेकावधकार के तहत वनम्नविवखत पररवस्थवतयों को सममवित ककया जा सकता है:
 मुख्यमंत्री को चुनना,
 सरकार को विधान सभा में ऄपने बहुमत को वसद्ध करने के विए कहना,
 मुख्यमंत्री को पदच्युत करना,
 विधान सभा का विघटन करना,
 राष्ट्रपवत शासन की वसफाररश करना (ऄनु. 356),
 राष्ट्रपवत के विचार के विए विधेयक अरवक्षत करना (ऄनु. 200),
 पुनर्णिचार के विए विधेयक िौटाना (ऄनु. 200)
 िह प्रशासवनक और विधायी मामिों पर राज्य के मुख्यमंत्री से जानकारी प्राप्त कर सकता है।
 ऄसम, मेघािय, वत्रपुरा और वमजोरम के राज्यपाि द्वारा खवनज ईत्खनन की रॉयल्टी के रूप में
जनजातीय वजिा पररषद को देय रावश का वनधायरण।
राज्यपाि द्वारा ऄपने वििेकावधकार का प्रयोग न्द्यायपूणय और पक्षपात रवहत रीवत से ककया जाना
चावहए। ईसका ईद्देश्य संविधान और ईसके अदशय एिं संस्थाओं का संरक्षण होना चावहए। राज्यपाि
को राजनीवत से प्रेररत होकर ककसी दि, समूह या व्यवि के वहत में काम नहीं करना चावहए। यह
वििेकावधकार राज्य के संिैधावनक प्रमुख में वनवहत ककया गया है और आसके साथ यह ऄपेक्षा की गयी है
कक िह शवि का प्रयोग समझबूझ से और ईत्तरदावयत्िपूणय रीवत से करे गा। आस शवि के साथ कतयव्य भी
जुड़ा हुअ है। यह ककसी ऄवधनायक या वनरं कुश शासक की बंधनहीन शवि नहीं है वजसका िह ऄपनी
आच्छानुसार प्रयोग करे । यह शवि संविधान की और ईत्तरदायी सरकार की विरासत की रक्षा के विए
दी गइ शवि है।

1.5 राज्यपाि का विशे ष ईत्तरदावयत्ि

ऄनुच्छेद 371 से 371 (j) के तहत राष्ट्रपवत के वनदेश पर राज्यपाि को कु छ विशेष ईत्तरदावयत्ि
सौंपे गए हैं। ऐसे मामिों में राज्यपाि, मुख्यमंत्री के नेतृत्ि िािी मंवत्रपररषद से परामशय िेने
ऄथिा ककन्द्हीं विशेष पररवस्थवतयों में विए गए परामशय को मानने के विए बाध्य नहीं है। िह
ऄंततः स्िवििेक के अधार पर कायय करता है। ये विशेष मामिे आस प्रकार हैं:
 ऄनुच्छेद-371(2) के ऄनुसार, राष्ट्रपवत महाराष्ट्र और गुजरात के राज्यपाि को िमशः विदभय,
मराििाड़ा एिं शेष महाराष्ट्र तथा सौराष्ट्र, कच्छ एिं शेष गुजरात के विकास के विए पृथक
विकास बोडय की स्थापना हेतु विवशष्ट ईत्तरदावयत्ि।

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 ऄनुच्छेद 371-A के तहत नागािैंड के राज्यपाि का त्िेनसांग नागा पहावड़यों पर अतंररक


ऄशांवत के चिते :-
o कानून एिं व्यिस्था के समबन्द्ध में,
o त्िेनसांग वजिे के विए एक पररषद की स्थापना एिं
o आस वजिे और शेष नागािैंड के मध्य वित के ईवचत एिं समतापूणय अबंटन के समबन्द्ध में
विवशष्ट ईत्तरदावयत्ि।
 ऄनुच्छेद 37I-C के ऄनुसार, मवणपुर के राज्यपाि को भी पहाड़ी क्षेत्रों से वनिायवचत राज्य
व्यिस्थावपका की सभाओं की समुवचत काययिाही सुवनवश्चत करने हेतु विशेष ईत्तरदावयत्ि सौंपे गये
हैं।
 ऄनुच्छेद 371-F, वसकिम की जनता के विवभन्न िगों के बीच सामावजक और अर्णथक विकास
के साथ शांवत सुवनवश्चत करना।
 ऄनुच्छेद 371-H, ऄरुणाचि प्रदेश में क़ानून और व्यिस्था के संबध
ं में।

 ऄनुच्छेद 371-J, कनायटक - हैदराबाद-कनायटक क्षेत्र के विए एक पृथक विकास बोडय की


स्थापना।

1.6 पररवस्थवतजन्द्य वििे कावधकार

राज्यपाि भी राष्ट्रपवत की तरह पररवस्थवतजन्द्य वनणयय में वििेकावधकार का प्रयोग करता है।
वनम्नविवखत राजनीवतक पररवस्थवतयों में िह ऄपने वििेकावधकार का प्रयोग करता है:
 जब ककसी भी दि को पूणय बहुमत प्राप्त नहीं हो, तो राज्यपाि ईस वस्थवत में नया मुख्यमंत्री

वनयुि कर सकता है। सदन में सरकार द्वारा बहुमत खो देने, विधानसभा चुनाि में ककसी भी
दि को पूणय बहुमत न वमिने की वस्थवत में या काययकाि के दौरान ऄचानक मुख्यमंत्री का
वनधन हो जाने एिं ईसके वनवश्चत ईत्तरावधकारी न होने पर मुख्यमंत्री की वनयुवि के मामिे
में राज्यपाि ऄपने वििेक का प्रयोग करे गा।
 सदन में बहुमत खोने के बाद भी त्यागपत्र नहीं देने िािी मंवत्रपररषद या ऄविश्वास प्रस्ताि
के अधार पर परावजत मंवत्रपररषद को िह बखायस्त कर सकता है।

राज्यपाि को वनम्नविवखत पररवस्थवतयों में मंवत्रपररषद की सिाह के वबना ऄपने वििेक से कायय करना
चावहए,

 जहां सिाह में पक्षपात ऄंतर्णनवहत है,

 जहां विवनश्चय ऄयुविसंगत और ऄनुवचत है,

 जहां मंवत्रपररषद सिाह देने की हकदार नहीं है,


 जहां औवचत्य की मांग है कक राज्यपाि ऄपने वििेक के ऄनुसार कायय करें ।

1.7 राष्ट्रपवत और राज्यपाि की शवियों का तु ि नात्मक ऄध्ययन

समानता
 जहां राष्ट्रपवत कें र में संिैधावनक प्रमुख की भूवमका का वनियहन करता हैं। िहीं राज्यपाि, राज्य में
संिैधावनक प्रमुख की हैवसयत से कायय करता है।
 काययपाविका संबंधी सभी वनणयय कें र एिं राज्य में िमशः राष्ट्रपवत एिं राज्यपाि के नाम पर विए
जाते हैं। ककतु, आसका िास्तविक प्रयोग मंवत्रपररषद के द्वारा ककया जाता है।

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 राष्ट्रपवत, ऄनुच्छेद 123 के तहत ऄध्यादेश को प्रख्यावपत कर सकता है वजसका प्रभाि संसद के

द्वारा वनर्णमत विवध के समान होता है। िहीं राज्यपाि, ऄनुच्छेद 213 के तहत ऄध्यादेश को
प्रख्यावपत कर सकता है वजसका प्रभाि राज्य विधानमंडि द्वारा वनर्णमत विधान के समान होता है।
 सभी विधेयक (चाहे धन विधेयक हो या साधारण विधेयक) राष्ट्रपवत एिं राज्यपाि की सहमवत से
ही कानून का रूप िेते हैं।
 सभी प्रकार के धन विधेयक िोकसभा में राष्ट्रपवत की पूिय सहमवत से जबकक विधानसभा में
राज्यपाि की पूिय सहमवत से ही प्रस्तुत ककये जाते हैं।
ऄसमानता
 राज्य में राज्यपाि की वििेकाधीन शवियां राष्ट्रपवत की ऄपेक्षा ऄवधक व्यापक है।
 क्षमादान संबंधी शवियों में ऄसमानताः
o राष्ट्रपवत की क्षमादान शवि (दंड का प्रवििंबन, विराम, पररहार, क्षमा) कें करय विवध तक

विस्ताररत है। जबकक, राज्यपाि की क्षमादान शवि, राज्य विवध तक विस्ताररत है।

o राष्ट्रपवत, मृत्युदड
ं की सजा को क्षमा कर सकता है। जबकक, राज्यपाि मृत्युदड
ं की सजा को
क्षमा नहीं कर सकता है।
o राष्ट्रपवत को ‘कोटय माशयि’ के तहत सजा पाए व्यवि के दंड को कम करने, पररितयन करने या

माफ करने का ऄवधकार है। जबकक, राज्यपाि को आस प्रकार की कोइ शवि प्राप्त (कोटय माशयि
के मामिे में) नहीं है।
 राष्ट्रपवत को जहां िोकसभा में अंग्ि-भारतीय समुदाय के दो सदस्यों को मनोवनत करने का
ऄवधकार है। िहीं, राज्यपाि को राज्य विधानसभा में अंग्ि-भारतीय समुदाय के एक सदस्य के
मनोनयन का ऄवधकार है।
 राष्ट्रपवत जहां राज्यसभा में 12 गणमान्द्य िोगों को मनोवनत करता है। िहीं, राज्यपाि को राज्य

विधानपररषद (जहां वद्वसदनीय विधानमंडि हो) के 1/6 सदस्यों को नामवनर्ददष्ट करने की शवि
है।

1.8 राज्यपाि के सं बं ध में गरित विवभन्न अयोग एिं न्द्यावयक वनणय य

1.8.1 प्रशासवनक सु धार अयोग

राज्यपाि की वनयुवि तथा भूवमका के समबन्द्ध में प्रशासवनक सुधार अयोग द्वारा वनम्नविवखत प्रमुख
वसफ़ाररशें की गयी:
 ऐसे व्यवि को राज्यपाि वनयुि ककया जाना चावहए, जो दिीय पूिायग्रहों से मुि हो और वजसका
साियजवनक जीिन एिं प्रशासन के विषय में िमबा ऄनुभि हो।
 काययकाि की समावप्त पर िह पुनः राज्यपाि वनयुि ककये जाने के योग्य नहीं होना चावहए।
 सेिावनिृवत के बाद न्द्यायाधीशों को राज्यपाि के रूप में वनयुि नहीं ककया जाना चावहए। िेककन
एक न्द्यायाधीश, जो सेिावनिृत्त होने के बाद साियजवनक जीिन में प्रिेश करते हुये राजनीवतक पद

प्राप्त करता है ऄथिा वनिायवचत पद पर है, तो ईसे राज्यपाि की वनयुवि के विए ऄयोग्य नहीं

माना जाना चावहए।


 राज्यपाि की वनयुवि के सन्द्दभय में मुख्यमंत्री से परामशय की स्िस्थ परमपरा को सुदढ़ृ ता के साथ
विकवसत ककया जाये।
 राज्यपाि द्वारा स्िवििेक की शवियों के प्रयोग के विषय में कदशा-वनदेश को के न्द्र की स्िीकृ वत पर
राष्ट्रपवत के नाम से जारी ककया जाना चावहए।

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 राज्यपाि द्वारा राष्ट्रपवत के समक्ष पावक्षक ररपोटय के साथ-साथ अिश्यकता होने पर तदथय ररपोटय
भी प्रस्तुत की जानी चावहए। ऐसी ररपोटय बनाते समय राज्यपाि को स्िवििेक और स्िवनणयय के
अधार पर कायय करना चावहए। राष्ट्रपवत के विचाराथय विधेयकों को सुरवक्षत रखने के विषय में भी
स्िवनणयय का प्रयोग करना चावहए।
 मंवत्रपररषद के बहुमत खो देने की वस्थवत में राज्यपाि को मंवत्रपररषद को विघरटत करने से पूिय
विशेष सािधानी ऄपनानी चावहए।
 ककसी बड़े नीवत वनमायण समबन्द्धी विषय पर मंवत्रमण्डि के सदन में परावजत होने की वस्थवत में
यकद हारने िािा मुख्यमंत्री विधानसभा भंग करने की सिाह देता है, ताकक िह मतदाताओं से
वनणयय िे सके , तो राज्यपाि को ईसकी सिाह मान िेनी चावहए।
 ऄपने संिैधावनक ईत्तरदावयत्िों को प्रभािी तौर पर पूरा करने के विए राज्यपाि को ऄनुच्छेद
167 के प्रािधान के ऄनुकूि सूचना प्राप्त करनी चावहए।
1.8.2 भगिान सहाय सवमवत

प्रथम प्रशासवनक सुधार अयोग द्वारा ऄपने प्रवतिेदन में राष्ट्रपवत के नाम से ईन वनदेशों को जारी करने
की वसफ़ाररश की गयी थी, वजनके ऄनुसार राज्यपाि स्िवििेक शवियों का प्रयोग करें । 1970 में
राज्यपाि सममेिन में आस वसफ़ाररश को स्िीकार करते हुए आन वनदेशों को वनधायररत करने हेतु जममू
कश्मीर के तत्कािीन राज्यपाि भगिान सहाय की ऄध्यक्षता में 5 सदस्यों की सवमवत गरित की गयी।
सवमवत के ऄन्द्य सदस्य थे: बी. गोपाि रे ड्डी, ऄिीयािर जंग, विश्वनाथन तथा एम. एम. धिन। आस
सवमवत ने वनम्नविवखत प्रमुख वसफ़ाररशें दी:
 ककसी मुख्यमंत्री द्वारा विधानसभा का विश्वास मत हावसि करने के विषय में विधानसभा का
ऄवधिेशन बुिाने से आन्द्कार करने की वस्थवत में राज्यपाि, मंवत्रपररषद को बर्ायस्त कर सकता है।
 मंवत्रपररषद को विधानसभा में बहुमत प्राप्त है या नहीं, आसका वनधायरण विधानसभा के द्वारा ककया
जाना चावहए। यकद कोइ मुख्यमंत्री विधानसभा द्वारा बहुमत के प्रश्न को वनधायररत करने से आन्द्कार
करता है तो यह माना जाना चावहए कक मंवत्रपररषद को बहुमत प्राप्त नहीं है।
 मुख्यमंत्री के त्यागपत्र या बर्ायस्तगी के बाद राज्य में िैकवल्पक सरकार बनाने की समभािना न
होने की वस्थवत में राज्यपाि द्वारा राष्ट्रपवत को विधानसभा भंग करने की ररपोटय दी जानी चावहए।
 विधानसभा के मनोनीत सदस्य ऄथिा ककसी ऐसे व्यवि को जो राज्य विधानसभा का सदस्य न
हो, तो ईसे मुख्यमंत्री पद की शपथ नहीं कदिाना चावहए।
 राष्ट्रपवत सवचिािय में एक विशेष कक्ष की स्थापना की जानी चावहए और आस कक्ष द्वारा विवभन्न
राज्यों में समय-समय पर घरटत होने िािी राजनीवतक और संिैधावनक घटनाओं के समबन्द्ध में
अवधकावधक सूचनाएाँ एकत्र की जानी चावहए। आस कक्ष को विशेष मामिों के समबन्द्ध में राष्ट्रपवत
की ऄनुमवत से समस्त जानकारी राज्यपाि को दी जानी चावहए, वजससे राज्यपाि को ककसी
वनणयय में असानी हो।
 राज्यपाि ऄपने राज्य का संिैधावनक ऄध्यक्ष होता है, न कक राष्ट्रपवत का ऄवभकताय और संविधान
द्वारा राज्यपाि के कतयव्य को वनधायररत ककया गया है।
1.8.3 राजमन्नार सवमवत

तवमिनाडु सरकार द्वारा 1970 में कें र-राज्य संबंधों में सुधार करने एिं ईत्पन्न वििादों के
सफितापूिक
य समाधान के विए राजमन्नार सवमवत का गिन ककया।
आस सवमवत की प्रमुख वसफ़ाररशें वनम्नविवखत हैं:
 ऄंतरायज्यीय पररषद का गिन ककया जाये।
 राज्यपाि पद पर रह चुके व्यवियों को आसी पद पर दूसरे काययकाि हेतु पुनर्णनयुवि के ऄथिा
सरकार के ऄधीन ककसी ऄन्द्य पद के , विए ऄयोग्य घोवषत कर कदया जाना चावहए। राज्यपाि को

ऄपने काययकाि में पद से तब तक नहीं हटाया जाना चावहए, जब तक ईच्चतम न्द्यायािय द्वारा
जााँच के बाद ईसके द्वारा दुव्ययिहार या ईसकी ऄक्षमता वसद्ध नहीं हो जाए।

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 राज्यपाि की वनयुवि राज्य मंवत्रपररषद के परामशय के अधार पर ही की जानी चावहए तथा आसके
विए एक िैकवल्पक व्यिस्था यह हो सकती है कक राज्यपाि की वनयुवि आस प्रयोजन के विए
गरित एक ईच्च ऄवधकार प्राप्त वनकाय की सिाह के अधार पर की जाए।
 संविधान में राष्ट्रपवत को राज्यपािों के विए वनदेश देने का ऄवधकार प्रदान करने संबंधी विशेष
प्रािधान शावमि ककया जाना चावहए। ये विवखत वनदेश, के न्द्र सरकार द्वारा राज्यपाि को वनदेश
देने के विषय में ऄथिा ईसे के न्द्र सरकार से परामशय करने के विषय में वनर्ददष्ट करें । आन वनदेशों के
द्वारा ईन वसद्धान्द्तों को भी स्पष्ट ककया जाना चावहए, वजनके सन्द्दभय में राज्यपाि से कायय करने की
ऄपेक्षा की गयी है। आन कायों में राज्य के प्रमुख के रूप में राज्यपाि की संिैधावनक शवियों के
कियान्द्ियन का ऄिसर शावमि है।
 संविधान में िर्णणत यह प्रािधान कक ‘मंवत्रपररषद का ऄवस्तत्ि, राज्यपाि के प्रसादपययन्द्त होगा’ को
समाप्त ककया जाना चावहए।
 मुख्यमंत्री के सन्द्दभय में राज्यपाि के विए वनम्नविवखत वनदेश वनधायररत ककये जाने चावहए:
o राज्यपाि बहुमत दि के नेता को ही मुख्यमंत्री वनयुि करे ।
o ककसी एक दि को बहुमत प्राप्त न होने की वस्थवत में, राज्यपाि विधानसभा का ऄवधिेशन
अहूत करे और ऄवधिेशन में चुने गए व्यवि को मुख्यमंत्री वनयुि करे ।
o मुख्यमंत्री द्वारा ककसी मंत्री को पदमुि करने की सिाह को राज्यपाि द्वारा मानना चावहए।
o यकद राज्यपाि को यह प्रतीत होता है कक मुख्यमंत्री ने विधानसभा में बहुमत खो कदया है, तो
ऐसी वस्थवत में राज्यपाि को तत्काि विधानसभा का ऄवधिेशन बुिाकर मुख्यमंत्री को
बहुमत सावबत करने का वनदेश देना चावहए। मुख्यमंत्री के बहुमत सावबत करने में ऄसफि
होने पर ही राज्यपाि को ईसे बर्ायस्त करना चावहए।
1.8.4 सरकाररया अयोग

बदिे हुए सामावजक-अर्णथक पररदृश्य में, के न्द्र और राज्यों के बीच मौजूद व्यिस्थाओं की काययप्रणािी
की समीक्षा की दृवष्ट से, कें र सरकार द्वारा गृह मंत्रािय की ऄवधसूचना के तहत न्द्यायमूर्णत अर. एस.
सरकाररया की ऄध्यक्षता (सदस्य- श्री बी. वशिरमन और डॉ. एस. अर. सेन) में 1983 में एक अयोग
गरित ककया गया। सवमवत ने ऄनेक ऄध्ययन, विचार-विमशय और विस्तृत िाताय के बाद जनिरी, 1988
में ऄपनी ररपोटय प्रस्तुत की वजसमें राज्यपाि से संबंवधत कु छ प्रमुख वसफाररशें की गयी। सवमवत ने कहा
कक राज्यपाि की वनयुवि के समय कु छ विशेष पहिुओं को ध्यान में रखना चावहए, जैसे :
 िह राज्य से बाहर का व्यवि हो;
 िह विगत कु छ िषों से सकिय राजनीवत से जुड़ा हुअ नहीं हो;
 िह राज्य की स्थानीय राजनीवत एिं दिीय राजनीवत में संिग्न न हो;
 संबंवधत तययों और वििरणों के साथ राज्यपाि द्वारा राष्रपवत को सौंपे गए प्रवतिेदन के अधार
पर ही ऄनुच्छेद 356 का प्रयोग ककया जाना चावहए।
 ऄनुच्छेद 356 का ऄत्यंत चरम वस्थवतयों में बहुत संयम से और के िि ऄंवतम ईपाय के रूप में ही
प्रयोग ककया जाना चावहए।
 जब तक संसद द्वारा घोषणा का ऄनुमोदन न कर कदया जाए, विधानसभा का विघटन नहीं होना
चावहए।
 राज्यपाि की वनयुवि के समय राज्य के मुख्यमंत्री से प्रभािी सिाह िेने की प्रकिया को संविधान
में शावमि ककया जाना चावहए।
 राज्यपाि के चयन में ऄल्पसंख्यक िगय के व्यवियों को समुवचत ऄिसर कदया जाना चावहए।

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1.8.5 सं विधान की समीक्षा हे तु राष्ट्रीय अयोग

 आस अयोग द्वारा 31 माचय, 2002 को ऄपनी ररपोटय सरकार के समक्ष प्रस्तुत की गयी।
 संिैधावनक प्रािधानों का पािन न करने िािे राज्यों को ‘राज्य का शासन संिैधावनक प्रािधानों के
ऄनुरूप नहीं चिाया जा रहा है’ के रूप में चेतािनी दी जानी चावहए। ऄनुच्छेद 356 के ऄंतगयत
कारय िाइ करने से पहिे, राज्य से प्राप्त ककसी भी स्पष्टीकरण को ध्यान में रखा जाना चावहए।
 राज्यपाि के ईस प्रवतिेदन के संबंध में जानकारी को मीवडया में पूणय और विस्तृत रूप में प्रसाररत
ककया जाना चावहए वजसके अधार पर ऄनुच्छेद 356 (1) के ऄंतगयत ईद्घोषणा की गयी है।
 संसद समय-समय पर ईद्घोषणा को बनाये रखने की अिश्यकता की समीक्षा कर सके , ऄतः
ऄनुच्छेद 352 के ऄंतगयत की गइ अपात की ईद्घोषणा से संबंवधत रक्षोपायों को ऄनुच्छेद 356 में
भी सवममवित ककया जाना चावहए।
1.8.6 पुं छी अयोग

 भारत सरकार ने दो दशक पूिय सरकाररया अयोग द्वारा ऄंवतम बार के न्द्र-राज्य संबंधों से संबंवधत
मुद्दे पर विचार के बाद भारत की राजनीवत और ऄथयव्यिस्था में अए पररितयनों को ध्यान में रखते
हुए के न्द्र-राज्य संबंधों से संबंवधत नए मुद्दों पर विचार करने के विए 27 ऄप्रैि, 2007 को भारत
के पूिय मुख्य न्द्यायाधीश न्द्यायमूर्णत मदन मोहन पुंछी की ऄध्यक्षता में एक अयोग का गिन ककया
था।
 अयोग ने के न्द्र और राज्यों के बीच मौजूद व्यिस्थाओं के प्रकायय, विधायी संबंधों, प्रशासवनक
संबंधों, राज्यपािों की भूवमका, अपातकािीन प्रािधानों, वित्तीय संबंधों, अर्णथक और सामावजक
वनयोजन, पंचायती राज संस्थानों, ऄंतरायज्य नदी जि सवहत संसाधनों को साझा करना आत्याकद
शावमि करके सभी क्षेत्रों में ऄवधकारों, प्रकायों और वजममेदाररयों के संबंध में न्द्यायाियों द्वारा की
गआय विवभन्न ईद्घोषणाओं की जांच और समीक्षा की। 30 माचय, 2010 को सरकार को प्रस्तुत की गआय
सात खंडों की ररपोटय में अयोग ने 273 वसफाररशों की थीं।
 पुंछी अयोग ने स्थानीय स्तर पर के िि प्रभावित वहस्से में अपात वस्थवत िागू करने की ऄनुशंसा
की ऄथायत् के िि एक वजिे में या ईसके कु छ भागों में। आस प्रकार का अपात भी तीन महीने से
ऄवधक ऄिवध तक जारी नहीं रहना चावहए।
 पुंछी अयोग ने आस ऄनुच्छेद का ईपयोग करने के संबंध में एस.अर. बोममइ िाद (1994) में
सिोच्च न्द्यायािय द्वारा कदए गए कदशावनदेशों का समािेश करने के विए ऄनुच्छेद 356 में
ईपयुि संशोधनों की भी ऄनुशस
ं ा की।

ऄनुच्छेद 356 से संबवं धत सिोच्च न्द्यायािय के वनणयय


एस. अर. बोममइ बनाम भारत संघ
 ऄनुच्छेद 356 का प्रयोग ऄत्यंत ऄवनिायय पररवस्थवतयों तथा बहुत कम मामिों में ककया जाना
चावहए। राजनीवतक िाभ के विए आसका प्रयोग नहीं ककया जाना चावहए।
 सरकार की बहुमत का परीक्षण सदन में ककया जाना चावहए। यह राज्यपाि की स्िेच्छा पर
अधाररत नहीं होना चावहए ।
 न्द्यायािय मंवत्रपररषद द्वारा दी गइ सिाह पर प्रश्न नहीं ईिा सकता है, ककन्द्तु िह राष्ट्रपवत शासन
िागू करने के विए दी गयी सिाह के अधार का परीक्षण कर सकता है और दुभायिनापूणय अशय पाए
जाने पर सुधारात्मक कदम ईिा सकता है।
 ऄनुच्छेद 356 का प्रयोग प्रशासकीय तंत्र की विफिता के अधार पर नहीं ककया जाना चावहए बवल्क
संिैधावनक मशीनरी के विफि हो जाने की वस्थवत में ही आसका प्रयोग ककया जाना चावहए।

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बूटा ससह िाद


 आस िाद में अरोप यह था कक 2005 में वबहार के राज्यपाि बूटा ससह ने ऄपनी व्यविगत संतवु ष्ट के
अधार पर विधानसभा के विघटन की ऄनुशंसा की थी। ईनके ऄनुसार कु छ दि ऄनैवतक साधनों के
माध्यम से बहुमत प्राप्त करने का प्रयास कर रहे थे।
 आसमें वनणयय कदया गया की राज्यपाि का प्रवतिेदन यथारूप ग्रहण नहीं ककया जा सकता है और
राष्ट्रपवत शासन िागू करने के अधार के रूप में ईपयोग ककए जाने से पहिे मंवत्रपररषद द्वारा आसे
सत्यावपत ककया जाना चावहए।
 सिोच्च न्द्यायािय ने वनणयय कदया कक यकद ऄन्द्य दिों या विधायकों के समथयन से ककसी राजनीवतक
दि ने सरकार बनाने का दािा ककया है और राज्यपाि के समक्ष संबंवधत दि ने बहुमत का प्रमाण
प्रस्तुत ककया है तो िह ऄपने व्यविगत अकिन के कारण आस अधार पर दािे की ईपेक्षा नहीं कर
सकता है कक भ्रष्ट साधनों के माध्यम से बहुमत जुटाया गया है।

1.9 राष्ट्रपवत शासन से सं बं धी कु छ निीनतम वििाद

1.9.1 ऄरुणाचि प्रदे श वििाद

 ऄरुणाचि प्रदेश में जारी राजनीवतक ऄवस्थरता के िातािरण में, जनिरी 2016 में के न्द्रीय
मंवत्रमंडि ने राज्य में राष्ट्रपवत शासन िगाने की वसफाररश की थी वजसे राष्ट्रपवत द्वारा भी
स्िीकृ वत प्रदान कर दी गयी। ऄरुणाचि प्रदेश के तत्कािीन राज्यपाि ज्योवत प्रसाद राजखोिा ने
राष्ट्रपवत शासन िगाने के विए 15 जनिरी को राष्ट्रपवत को भेजे गए ऄपने ररपोटय में राजभिन के
बाहर ‘वमथुन’ (एक बाइसन) की बवि और पूिय मुख्यमंत्री नबाम तुकी के एक ईग्रिादी संगिन
NSCN-K से संपकय को आसका कारण बताया था।
 कांग्रेस पाटी द्वारा आसके विरुद्ध सिोच्च न्द्यायािय में यावचका दायर करते हुए पूियिती सरकार को
पुनः बहाि करने की मांग की। ईच्चतम न्द्यायािय ने आस मामिे को संविधान पीि को सौंपते हुए
राज्यपाि के स्िवनणयय के ऄवधकारों के संिैधावनक दायरे में होने के संबंध में समीक्षा शुरू की।
 ऄरूणाचि प्रदेश मामिे में सिोच्च न्द्यायािय ने तत्कािीन राज्यपाि की भूवमका पर प्रश्नवचन्द्ह
ईिाते हुए एिं ईनके वनणययों को वनरस्त करते हुए पहिी बार ककसी राज्य के पूियिती सरकार को
पुनः बहाि कर कदया एिं राज्यपाि के संबंध में वनम्नविवखत महत्िपूणय वनणयय कदएः-
o जब तक राज्य की वनितयमान सरकार राज्यपाि के विचार में बहुमत या सदन का विश्वास ना
खो दे तब तक ईसे विधानसभा की सत्र को एकतरफा ढंग से बुिाने एिं ककसी मुद्दे पर संदश े
भेजने का ऄवधकार नहीं है ऄथायत् ईसका यह एकतरफ विया गया वनणयय या वििेकावधकार
शवि ऄसंिैधावनक है।
o िह, विधानसभा ऄध्यक्ष को हटाने संबंधी वनणयय नहीं िे सकता।
o राज्यपाि, राज्य मंवत्रपररषद के ‘परामशय’ के ऄनुसार कायय करने हेतु बाध्य हैं। जहां तक ईसके
वििेकाधीन शवि का प्रश्न है, िह ‘संिध
ै ावनक दायरे ’ के ऄधीन होनी चावहए।

1.9.2 ईत्तराखं ड वििाद

 माचय, 2016 को तत्कािीन राष्ट्रपवत प्रणब मुखजी ने संविधान के ऄनुच्छेद 356 के तहत
प्रदत्त ऄवधकार का ईपयोग कर ईत्तराखंड में राष्ट्रपवत शासन िगाये जाने संबंधी प्रस्ताि को
स्िीकृ वत प्रदान कर दी। राज्य के ऄवस्थर राजनीवतक घटनािम को ध्यान में रखते हुए
राज्यपाि द्वारा राष्ट्रपवत शासन िगाए जाने की वसफाररश की गयी थी।
 तत्कािीन मुख्यमंत्री हरीश राित को सदन में बहुमत सावबत करने के विए 28 माचय तक का
समय कदया गया था िेककन आससे एक कदन पहिे ही राज्यपाि द्वारा प्रस्तुत ररपोटय के अधार
राष्ट्रपवत ने राज्य में राष्ट्रपवत शासन िगाने की ऄनुवमत दे दी थी।
 बजट सत्र के दौरान वििाद तब ईत्पन्न हुअ जब भाजपा ने अरोप िगाया कक बजट एिं
विवनयोग विधेयक पाररत ही नहीं हुअ है क्योंकक कांग्रेस के पास बहुमत ही नहीं थी।

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 मुख्यमंत्री पर विधायकों की खरीद-फरोख्त का अरोप भी िगाया गया।


 ईत्तराखंड में राष्ट्रपवत शासन िगाए जाने के बाद कांग्रेस ने नैनीताि हाइ कोटय में आसे चुनौती देते
हुए एक यावचका दायर की, वजसे न्द्यायाधीश यू.सी. ध्यानी की पीि द्वारा सुनिाइ के विए स्िीकार
कर विया।
सिोच्च न्द्यायािय का वनणयय
ईत्तराखंड में राष्ट्रपवत शासन िागू ककए जाने की औवचत्य की जांच करने हेतु गरित संिैधावनक पीि ने
वनम्न वनणयय कदया:
 राज्यपाि को यह ऄिश्य ध्यान में रखना चावहए कक िह राज्य का िोकतांवत्रक रूप से वनिायवचत
प्रवतवनवध नहीं है।
 राज्यपाि ईत्तरदायी शासन की शवियों को ग्रहण नहीं कर सकता है एिं िह मुख्यमंत्री तथा
मंवत्रपररषद के परामशय के विरुद्ध कायय नहीं कर सकता है।
 यकद राज्यपाि को िगता है कक राज्य सरकार बहुमत खो चुकी है तो ईसे सदन में बहुमत का
परीक्षण करने का प्रस्ताि देना चावहए। आसके पश्चात ही, राष्ट्रपवत को ररपोटय भेजना चावहए।
 आस बात से सहमत होने के बािजूद कक िोकतंत्र में सदन में बहुमत वसद्ध करना सिायवधक
औवचत्यपूणय तरीका है, राज्यपाि सवहत कोइ भी ऄन्द्य ऄवधकारी सदन के ऄध्यक्ष को यह वनदेश
नहीं दे सकता कक सदन की प्रकिया का संचािन कै से हो।
 सिोच्च न्द्यायािय ने तत्कािीन हरीश राित की सरकार को सदन में बहुमत परीक्षण का मौका
कदया वजसमें िह सफि रहें एिं राष्ट्रपवत शासन को िापस िेना पड़ा।
 ईत्तराखंड मामिे में सिोच्च न्द्यायािय का वनणयय एस. अर. बोममइ बनाम भारत संघ िाद 1994
में कदए गए फै सिे पर ही मुहर है वजसमें सदन में ही बहुमत वसद्ध करने की ऄनुशस
ं ा की गइ है।
1.10 राज्यपाि की वस्थवत
 भारतीय संविधान में कें र के समान राज्यों को भी सरकार का संसदीय स्िरुप प्रदान ककया
गया है। राष्ट्रपवत के समान, राज्य स्तर पर राज्यपाि ऄपनी शवियों और कायों का वनियहन
मुख्यमंत्री की ऄध्यक्षता िािी मंवत्रपररषद के परामशय पर करता है, वसफय ईन मामिों को
छोड़कर वजसमें िह ऄपने वििेक का प्रयोग कर सकता है।
 42िें संविधान संशोधन के पश्चात्, मंवत्रपररषद की सिाह राष्ट्रपवत के विए बाध्यकारी है,
िेककन आस तरह का कोइ प्रािधान राज्यपाि के संबंध में नहीं है। राज्यपाि नाममात्र का
काययकारी प्रमुख है, िास्तविक काययकारी शवि मुख्यमंत्री के नेतृत्ि िािी मंवत्रपररषद में
वनवहत होती है। हािांकक राज्यपाि को वििेकाधीन शवियों एिं पररवस्थवतजन्द्य वििेकाधीन
शवियों के रूप में ऄनेक विशेष शवियां प्राप्त है।
 संिैधावनक रूप से राज्यपाि राज्य का प्रमुख होता है, िेककन व्यािहाररक रूप में िह कें र के
एजेंट के रूप में कायय करता है। आस दृवष्टकोण से, राज्य प्रशासन के सन्द्दभय में राज्यपाि की
भूवमका िास्तविक प्रमुख से कम और नाममात्र प्रमुख से ऄवधक दृवष्टगत होती है।
 अदशय रूप में, राज्यपाि के पद की पररकल्पना कें र और राज्य के बीच में ‘सहकारी संघिाद’
की एक कड़ी के रूप में की गयी थी। िह राज्य स्तर पर राष्ट्रीय पररप्रेक्ष्य प्रस्तुत कर सकता है
तथा राज्य से समबंवधत मुद्दों को कें र के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है।
 परन्द्तु व्यिहार में, यह ‘सौदेबाजी संघिाद’ का पद बन गया - एक ऐसा तंत्र वजसके माध्यम
से कें र द्वारा राज्यों से सौदेबाजी/मोि-भाि की जाती है।
 राज्यपाि कायायिय द्वारा 1967 तक ऄथायत् कें र और राज्य में एक ही दि की सरकार होने

की वस्थवत में सहयोगात्मक संघिाद को बढ़ािा कदया गया। हािांकक, बाद में आस पद का
प्रयोग बार-बार राजनीवत से प्रेररत हो कर ककया जाने िगा। कु छ विशेषज्ञ आसे संविधान के
सबसे ज्यादा दुरूपयोग ककये गये पद के रूप में देखते हैं।

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1.11 ितय मान में राज्यपाि पद की प्रासं वगकता

 यद्यवप आस पद को समाप्त करने का सुझाि कदया गया है, परन्द्तु राज्यपाि का पद हमारी
संघीय व्यिस्था में प्रासंवगक बना हुअ है। राज्यों में संिैधावनक शासन बनाए रखने में
राज्यपाि ने महत्िपूणय भूवमका वनभाइ है। आस संिैधावनक पद की गररमा और स्ितंत्रता को
बनाए रखने हेतु राष्ट्रपवत पद के समान राज्यपाि के विए भी काययकाि की वनवश्चत ऄिवध
तथा ईसे पदमुि करने के संबंध में महावभयोग की प्रकिया वनधायररत करने की अिश्यकता
है।
 राज्यपाि राज्यस्तरीय कायों और गवतविवधयों में एक राष्ट्रीय पररप्रेक्ष्य प्रस्तुत करता है।
प्राकृ वतक अपदाओं के प्रकोप, सांप्रदावयक दंगों की वस्थवत अकद में राज्यपाि का महत्ि और
बढ़ जाता है। पुछ
ं ी अयोग ने भी विशेष रूप से अंतररक सुरक्षा के सन्द्दभय में आसके महत्ि पर
बि कदया है।

2. मु ख्यमं त्री
 राज्य का मुख्यमंत्री सरकार का प्रमुख होता है तथा िह िास्तविक काययपाविकीय ऄवधकारी
भी होता है। राज्य में मुख्यमंत्री का पद, कें र में प्रधानमंत्री के पद के समान होता है।

 ऄनुच्छेद 164 के ऄनुसार, मुख्यमंत्री की वनयुवि राज्यपाि करे गा। परन्द्तु, आसका तात्पयय यह

नहीं है कक राज्यपाि ककसी को भी मुख्यमंत्री वनयुि करने के विए स्ितंत्र है। साधारणतया,
राज्य विधानसभा में बहुमत दि के नेता को ही राज्यपाि ईस राज्य का मुख्यमंत्री वनयुि
करता है।
 राज्यपाि ही मुख्यमंत्री को पद एिं गोपनीयता की शपथ कदिाता है। ककसी मामिे में, यकद
ककसी भी दि को विधानसभा में बहुमत प्राप्त नहीं हो तो ऐसी पररवस्थवत में राज्यपाि सबसे
बड़े दि या गिबंधन के नेता को मुख्यमंत्री वनयुि करता है और ईसे एक वनवश्चत ऄिवध में
सदन में ऄपना बहुमत वसद्ध (विश्वास मत प्राप्त) करने को कहता है।

2.1 मु ख्यमं त्री के कायय एिं शवियां

मुख्यमंत्री के कायों एिं शवियों का वििेचन वनम्नविवखत वबन्द्दओं


ु के तहत ककया जा सकता है:

2.1.1 मं वत्रपररषद के सन्द्द भय में

राज्य मंवत्रपररषद के मुवखया के रूप में मुख्यमंत्री वनम्नविवखत शवियों का प्रयोग करता है:
 राज्यपाि के िि ईन व्यवियों को ही मंत्री वनयुि करता है वजनकी वसफाररश मुख्यमंत्री ने
की हो।
 िह मंवत्रयों के विभागों का वितरण और फे रबदि करता है।
 मतभेद होने पर िह ककसी भी मंत्री को त्यागपत्र देने के विए कह सकता है या राज्यपाि को
ईसे बखायस्त करने का परामशय दे सकता है।
 मुख्यमंत्री, मंवत्रपररषद की बैिक की ऄध्यक्षता कर आसके वनणययों को प्रभावित करता है।

 िह सभी मंवत्रयों को ईनके कायों में सहयोग, वनयंत्रण, वनदेश और मागयदशयन देता है।

 चूंकक मुख्यमंत्री, मंवत्रपररषद का प्रमुख होता है, ऄत: ईसके त्यागपत्र या मृत्यु से मंवत्रपररषद

स्ितः ही विघरटत हो जाती है। आस प्रकार, िह ऄपने पद से त्यागपत्र देकर समपूणय


मंवत्रपररषद् को समाप्त कर सकता है।

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2.1.2 राज्यपाि के सन्द्द भय में

मुख्यमंत्री, राज्यपाि और मंवत्रपररषद के मध्य संिाद के एक कड़ी के रूप में कायय करता है। ऄतः

मुख्यमंत्री का यह कतयव्य है कक िह:


 राज्य के कायों के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक मामिों समबन्द्धी मंवत्रपररषद के सभी
वनणययों के विषय में राज्यपाि को सूवचत करे ।
 राज्य के कायों के प्रशासन संबध
ं ी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी जो जानकारी
राज्यपाि मांग,े िह प्रदान करे ।

 यकद ककसी मुद्दे पर मंत्री द्वारा वनणयय िे विया हो ककन्द्तु मंवत्रपररषद ने ईस पर विचार नहीं
ककया है तो राज्यपाि द्वारा ऄपेक्षा ककये जाने पर ईस मुद्दे को मंवत्रपररषद के समक्ष विचार
के विए रखे।
 िह राज्य के महत्िपूणय ऄवधकाररयों, जैस-े महावधििा, राज्य िोक सेिा अयोग के ऄध्यक्ष

एिं सदस्यों, राज्य वनिायचन अयुि अकद की वनयुवि के संबंध में राज्यपाि को परामशय देता

है।

2.1.3 राज्य विधानमं ड ि के सन्द्द भय में

 राज्यपाि को, विधानमंडि का सत्र अहूत करने एिं सत्रािसान के समबन्द्ध में सिाह देता है।

 िह राज्यपाि को ककसी भी समय विधानसभा विघरटत करने की वसफाररश कर सकता है।


 राज्य का मुख्यमंत्री ही राज्य विधानसभा के पटि पर सरकार की नीवतयों की घोषणा करता
है।
ईपयुयि िर्णणत कायों एिं शवियों के ऄवतररि, मुख्यमंत्री के कु छ ऄन्द्य कायय और शवियां भी हैं

जो वनम्नविवखत हैं:
 िह राज्य योजना बोडय का ऄध्यक्ष होता है।
 िह समबंवधत क्षेत्रीय पररषद के िमिार ईपाध्यक्ष के रूप में कायय करता है। प्रत्येक क्षेत्रीय
पररषद में शावमि ककए गए राज्यों के मुख्यमंत्री, रोटेशन से एक समय में एक िषय की ऄिवध

के विए ईस के ईपाध्यक्ष के रूप में कायय करते हैं। क्षेत्रीय पररषदों की ऄध्यक्षता के न्द्रीय गृह
मंत्री द्वारा की जाती है।
 मुख्यमंत्री ऄंतरायज्यीय पररषद, राष्ट्रीय विकास पररषद और नीवत अयोग के गिर्ननग

काईं वसि का सदस्य होता है। आन वनकायों की ऄध्यक्षता प्रधानमन्द्त्री द्वारा की जाती है।
 िह राज्य सरकार का मुख्य प्रििा होता है।
 राज्य के नेता के रूप में, िह जनता के विवभन्न िगों से वमिता है और ईनसे ईनकी समस्याओं

अकद के समबन्द्ध में ज्ञापन प्राप्त करता है।


 अपातकाि के दौरान राजनीवतक स्तर पर िह मुख्य प्रबन्द्धक होता है।
यद्यवप राज्य प्रशासन में मुख्यमंत्री एक महत्िपूणय भूवमका वनभाता है, परं तु राज्यपाि की

वििेकाधीन शवियां राज्य प्रशासन में मुख्यमंत्री की कु छ शवियों, प्रावधकार, प्रभाि, प्रवतष्ठा,

भूवमका अकद में कटौती कर सकती हैं।

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3. मं वत्रपररषद
ऄनुच्छेद 163 िर्णणत करता है कक राज्यपाि को सहायता और सिाह देने के विए मंवत्रपररषद
होगी।
 राज्यपाि की वििेकाधीन शवियों एिं विशेष ईत्तरदावयत्िों को छोड़कर ऄन्द्य विषयों में
सहायता और सिाह देने के विए एक मंवत्रपररषद होगी, वजसका प्रधान, मुख्यमंत्री होगा।
 वििेकाधीन शवियों के समबन्द्ध में राज्यपाि का विवनश्चय ऄंवतम होगा और राज्यपाि द्वारा
की गइ ककसी बात की विवधमान्द्यता आस अधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कक ईसे ऄपने
वििेकानुसार कायय करना चावहए था या नहीं।
 आस प्रश्न की ककसी न्द्यायािय में जांच नहीं की जाएगी कक क्या मंवत्रयों ने राज्यपाि को कोइ
सिाह दी, और यकद दी तो क्या दी।

3.1 मं वत्रयों से सं बं वधत ऄन्द्य ईपबं ध

 मुख्यमंत्री की वनयुवि राज्यपाि द्वारा की जाएगी तथा ऄन्द्य मंवत्रयों की वनयुवि राज्यपाि,
मुख्यमंत्री की सिाह पर करे गा। मंत्री, राज्यपाि के प्रसाद पयंत ऄपना पद धारण करें गे।
 मंवत्रपररषद के अकार के विषय में वनधायररत ककया गया है कक ककसी राज्य की मंवत्रपररषद में
मुख्यमंत्री सवहत मंवत्रयों की कु ि संख्या ईस राज्य की विधान सभा के सदस्यों की कु ि संख्या
के पंरह प्रवतशत से ऄवधक नहीं होगी, परं तु ककसी राज्य में मुख्यमंत्री सवहत मंवत्रयों की
संख्या बारह से कम नहीं होगी। आस प्रािधान को 91िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 2003
द्वारा जोड़ा गया है।
 मंवत्रपररषद राज्य की विधान सभा के प्रवत सामूवहक रूप से ईत्तरदायी होगी।
 ककसी मंत्री द्वारा ऄपना पद ग्रहण करने से पहिे, राज्यपाि तीसरी ऄनुसच
ू ी में आस प्रयोजन
के विए कदए गए प्रारुप के ऄनुसार ईसको पद की और गोपनीयता की शपथ कदिाएगा।
 कोइ मंत्री, जो वनरं तर छह मास की ककसी ऄिवध तक राज्य के विधान-मंडि का सदस्य नहीं
है, ईस ऄिवध की समावप्त पर मंत्री नहीं रहेगा।
 मंवत्रयों के िेतन और भत्ते ऐसे होंगे, जो ईस राज्य का विधानमंडि, विवध द्वारा, समय-समय
पर ऄिधाररत करे और जब तक ईस राज्य का विधानमंडि आस प्रकार ऄिधाररत नहीं करता
है, तब तक ऐसे होंगे, जो दूसरी ऄनुसूची में विवनर्ददष्ट हैं।

4. राज्य में मु ख्य सवचि का पद


 राज्य में मुख्य सवचि का पद, राज्य की प्रशासवनक सेिा में सिायवधक िररष्ठ प्रशासवनक पद
है। आस पद पर सामान्द्यतः ऄवखि भारतीय सेिा के ऄवधकारी वनयुि ककये जाते है।
 आसका चयन मुख्यमंत्री द्वारा ककया जाता है जबकक वनयुवि राज्यपाि के द्वारा की जाती है।
आसका वनवश्चत काययकाि नहीं होता।
 मुख्य सवचि, राज्य की प्रशासवनक काययपाविका का प्रमुख होता है तथा राज्य सरकार के
प्रमुख काययकारी के रूप में आन्द्हे स्िीकार ककया जाता है। आसका कायय विवभन्न विभागों के मध्य
समन्द्िय स्थावपत करना है। यह मुख्यमंत्री के सिाहकार तथा मंवत्रमंडि के सवचि के रूप में
कायय करता है।
 मुख्य सवचि, राज्य वसविि सेिा बोडय के पदेन ऄध्यक्ष के रूप में कायय करता है। यह बोडय
राज्य में काययरत ऄवखि भारतीय सेिाओं और राज्य वसविि सेिा के ऄवधकाररयों की
पोसस्टग एिं स्थानांतरण संबंधी ऄनुशस
ं ा करता है।

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5. महावधििा (Advocate general)


ऄनुच्छेद 165 के तहत िर्णणत ककया गया है कक प्रत्येक राज्य का महावधििा होगा वजसकी
वनयुवि राज्यपाि द्वारा की जाएगी।
 महावधििा के पद पर वनयुि व्यवि के विए ईच्च न्द्यायािय का न्द्यायाधीश वनयुि होने की
ऄहयता धारण करना ऄवनिायय है।
 महावधििा राज्य का सिोच्च विवध ऄवधकारी होता है। ईसका कतयव्य होगा कक िह ईस राज्य
की सरकार को विवध संबंधी ऐसे विषयों पर सिाह दे और विवधक स्िरूप के ऐसे ऄन्द्य
कतयव्यों का पािन करे , जो राज्यपाि ईसको समय-समय पर वनदेवशत करे या सौंपे और ईन

कृ त्यों का वनियहन करे , जो ईसको आस संविधान ऄथिा तत्समय प्रिृत्त ककसी ऄन्द्य विवध द्वारा
या ईसके ऄधीन प्रदान ककए गए हों।
 महावधििा, राज्यपाि के प्रसादपयंत पद धारण करे गा और ऐसा पाररश्रवमक प्राप्त करे गा,
जो राज्यपाि ऄिधाररत करे ।
 महावधििा को ईस राज्य की विधान सभा की काययिाही में भाग िेने ऄथिा बोिने का
ऄवधकार है हािांकक ईसे मतदान का ऄवधकार नहीं होगा। आसकी सहायता हेतु कइ राज्यों में
ऄपर महावधििा भी वनयुि ककये गए है।

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Classroom Study Material

भारतीय संविधान एिं शासन


9. मंत्रालयों का संघटनात्मक ढांचा एिं कायय अबंटन

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विषय सूची
1. के न्द्रीय मंत्रालयों की संरचना _____________________________________________________________________ 3

2. विभागों की अतंररक संरचना ____________________________________________________________________ 4

2.1 डेस्क ऄवधकारी प्रणाली (Desk Officer System) __________________________________________________ 4

2.2 संबद्ध (संलग्न) या ऄधीनस्थ कायायलय (Subordinate Offices) _________________________________________ 4

3. भारत सरकार के प्रमुख मंत्रालय ___________________________________________________________________ 5

3.1 संसदीय कायय मंत्रालय (Ministry of Parlimentary Affairs) __________________________________________ 5

3.2 गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) ______________________________________________________ 6

3.3 रक्षा मंत्रालय (Ministry of Defence) __________________________________________________________ 7

3.4 वित्त मंत्रालय (Ministry of Finance) __________________________________________________________ 7

3.5 मानि संसाधन विकास मंत्रालय (Ministry of Human Resource Development) _________________________ 7

4. मंवत्रमंडल सवचिालय (Cabinet Secretariat) _______________________________________________________ 8

5. मौजूदा संरचना के सकारात्मक एिं नकारात्मक पक्ष (Strengths and Weaknesses of the
Existing Structure) ___________________________________________________________________________ 8

5.1 सकारात्मक पक्ष (Strengths) _________________________________________________________________ 9

5.2 नकारात्मक पक्ष (Weaknesses) ______________________________________________________________ 9

6. सरकार की संरचना में सुधार के वलये ऄनुशस


ं ाएँ _______________________________________________________ 10

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मंत्रालय एिं कायय अबंटन: एक पररचय

 संविधान के ऄनुच्छेद 77 के खंड (3) द्वारा प्रदत्त शवियों का प्रय ग करते ए ए राट्रपतपवत ने ‘भारत

सरकार (कायय अबंटन) वनयम’ {The Government of India (Allocation of Business)

Rules} बनाए हैं। आस खंड में प्रािधान है कक राट्रपतपवत भारत सरकार के कायय क ऄवधक

सुविधाजनक बनाने और कायों का विवभन्न मंवत्रयों के मध्य अबंटन के वलए वनयम बनायेंगे। ये
वनयम वनधायररत करते हैं कक भारत सरकार का कायय आन वनयमों की पहली ऄनुसच
ू ी में विवहत

मंत्रालयों, विभागों, सवचिालयों और कायायलयों द्वारा संपाकदत ककया जाएगा।

 आस प्रकार, कायय अबंटन वनयम िस्तुतः भारत सरकार के कायों क विभागों के मध्य ऐसे कायों के

कायायत्मक विभाजन (बंटिारे ) क वनर्ददष्ट करते ए ए भारत सरकार के संरचनात्मक अधार क


वनर्ममत करते हैं। आस प्रकार आन वनयमों के ऄंतगयत भारत सरकार के विवभन्न विभागों के
काययकलापों और विषयों की एक विस्तृत सूची बनाइ गइ है। यह सूची संलग्न एिं ऄधीनस्थ
कायायलयों और साियजवनक क्षेत्र के ईपक्रमों सवहत ऄन्द्य संगठनों, क भी सूचीबद्ध करती है।

 आस विस्तृत सूची का लाभ यह है कक यह ऄलग-ऄलग विभागों के कायय क्षेत्रों का स्पष्टत: विभाजन

करती है, वजससे ईनके ईत्तरदावयत्ि के संबंध में क इ ऄस्पष्टता नहीं रहती है। कायय अबंटन सूची

क विवभन्न संश धनों द्वारा ऄद्यवतत रखा गया है।

1. के न्द्रीय मं त्रालयों की सं र चना


के न्द्र सरकार के मंत्रालयों की संरचना वत्र-स्तरीय है:
 राजनीवतक स्तर: प्रत्येक विभाग का राजनीवतक ऄध्यक्ष एक मंत्री ह ता है। विभागीय कायों में

ईसकी सहायता हेतु राज्य मंत्री, ईप-मंत्री एिं संसदीय सवचि ह ते हैं। ये सभी, संसद के सदस्य भी

ह ते हैं। मंत्री के प्रमुख कायों में, ऄपने विभाग से संबवं धत नीवतयों के वनमायण, कक्रयान्द्ियन तथा

वनष्पादन पर वनगरानी रखना अकद सवममवलत हैं। आसके ऄवतररि एक मंत्री ऄपने विभाग द्वारा
ककए गए समस्त कायों के प्रवत ईत्तरदायी ह ता है।
 सवचिालय: सवचिालय संपूणय प्रशासवनक कक्रयाकलापों का संचालन एिं वनयंत्रण करता है।

सवचि, सवचिालय का प्रमुख ह ता है। आसका प्रमुख कायय मंत्री क विभाग से संबंवधत समस्त

कक्रयाकलापों तथा नीवतयों पर परामशय देना है। ऄतः िह मंत्री के प्रमुख परामशयदाता के रूप में भी
कायय करता है। सवचि भारतीय प्रशासवनक सेिा का िररष्ठ सदस्य ह ता है। ऄवधकारी िगय के

ऄंतगयत सवचि, ईप-सवचि तथा ऄिर सवचि ह ते हैं। विभाग का अकार बडा ह ने की वस्थवत में

संयुि सवचि ऄथिा ऄवतररि सवचि भी ह ते हैं। ऄधीनस्थ कमयचाररयों के ऄंतगयत ऄनुभाग

ऄवधकारी, सहायक तथा वलवपक िगय के कार्ममक सवममवलत ह ते हैं।

 विभाग ऄथिा काययकारी संगठन: नीवत-वनमायण के संबंध में सवचिालय का कायय जहां के िल
परामशय देना है िहीं वनर्ममत नीवतयों के कायायन्द्ियन का दावयत्ि विवभन्न संगठनों का ह ता है। आसे

विभाग ऄथिा मंत्रालय का काययकारी संगठन कहा जाता है। विभाग, मंत्रालय का कायायत्मक तंत्र

ह ता है।

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2. विभागों की अतं ररक सं र चना


प्रत्येक विभाग अबंरटत विषयों के संबंध में सरकार की नीवतयों क तैयार करने तथा ईन नीवतयों के
कायायन्द्ियन और समीक्षा करने हेतु भी ईत्तरदायी है।
 अबंरटत कायों के कु शल वनपटान के वलए, प्रत्येक विभाग क विग (Wings), प्रभागों
(Divisions), शाखाओं (Branches) और ऄनुभागों (Sections) में बांटा गया है।
 सामान्द्यतया प्रत्येक विभाग का नेतृत्ि भारत सरकार के एक सवचि (Secretary) द्वारा ककया
जाता है, ज कक ईि विभाग का प्रशासवनक प्रमुख ह ता है और विभाग के नीवत और प्रशासन
संबंधी सभी मामलों पर संबंवधत मन्द्त्री का मुख्य सलाहकार ह ता है।
 विग: सामान्द्यत: प्रत्येक विभाग में कायों क विग में बांटा जाता है और प्रत्येक विग का प्रभारी
विशेष सवचि (Special Secretary) / ऄपर सवचि (Additional Secretary) / संयुि सवचि
(Joint Secretary) ह ता है। आस स्तर के पदावधकारी क ऄपने विग के ऄधीन अने िाले कायों
के संबंध में स्ितंत्र काययपद्धवत और वजममेदारी के ऄवधकतम ऄिसर प्राप्त ह ते हैं और विभाग के
समग्र प्रशासन के वलए सवचि का संपूणय ईत्तरदावयत्ि ह ता है।
 प्रभाग: एक विग सामान्द्यतः कइ प्रभागों में बंटा ह ता है और प्रत्येक प्रभाग का प्रभारी ऄवधकारी,
वनदेशक (Director) /संयुि वनदेशक (Joint Director) /ईप-सवचि (Deputy Secretary)
स्तर का ऄवधकारी ह ता है।
 शाखायें: एक प्रभाग कइ शाखाओं में बंटा ह सकता है और ऄिर सवचि (Under Secretary) या
समकक्ष ऄवधकारी आसका प्रभारी ह ता है।
 ऄनुभाग: ऄनुभाग पूणत य ः स्पष्ट कायय क्षेत्रों के साथ विभाग की सबसे छ टी संगठनात्मक आकाइ
ह ती है। सामान्द्यतया आसमें एक ऄनुभाग ऄवधकारी की देखरे ख में कु छ सहायक और क्लकय कायय
करते हैं। अम तौर पर, विवभन्न मामलों का प्रारवमभक प्रबंधन (न टटग और ड्रावटटग सवहत)
सहायकों और क्लकों द्वारा ह ता है, वजन्द्हें संबंवधत सहायक (dealing hands) कहा जाता है।

2.1 डे स्क ऄवधकारी प्रणाली (Desk Officer System)

जहाँ ईपयुयि प्रणाली एक विभाग के संगठन में ऄपनायी जाने िाली सामान्द्य प्रणाली है, िहीं आसके कु छ
ऄपिाद भी हैं वजनमें, डेस्क ऄवधकारी प्रणाली सबसे ऄवधक ईल्लेखनीय है। आस प्रणाली में एक विभाग
के सबसे वनचले स्तर पर कायय का विभाजन विवशष्ट कायायत्मक डेस्कों में ककया जाता है और प्रत्येक डेस्क
पर ईवचत रैं क के द पदावधकाररयों की वनयुवि ह ती है, जैस-े ऄिर सवचि (Under Secretary) या
ऄनुभाग ऄवधकारी (Section Officer)। प्रत्येक डेस्क पदावधकारी ऄपने ऄधीन अने िाले मामलों क
स्ियं वनपटाता है और ईन्द्हें पयायप्त अशुवलवपकीय (stenographic) और वलवपकीय (clerical)
सहायता प्रदान की जाती है।
2.2 सं ब द्ध (सं ल ग्न) या ऄधीनस्थ कायाय ल य (Subordinate Offices)

प्रत्येक विभाग में एक या ऄवधक संलग्न या ऄधीनस्थ कायायलय ह सकते हैं। आन कायायलयों की
वनम्नवलवखत भूवमका ह ती है:
 संलग्न कायायलय वजस विभाग से संबद्ध ह ते हैं, िे ईससे जुडी नीवतयों के कायायन्द्ियन में ऄपेवक्षत
व्यापक काययकारी वनदेश देने के वलए ईत्तरदायी ह ते हैं। िे तकनीकी सूचना के संग्रह कें र के रूप में
भी कायय करते हैं तथा संबंवधत मामलों के तकनीकी पहलुओं के संबंध में विभाग क सलाह भी देते
हैं।
 ऄधीनस्थ कायायलय अम तौर पर विशेष ऄध्ययन िाले दटतरों (field establishments) ऄथिा
ऐसी एजेंवसयों के रूप में कायय करते हैं ज सरकारी नीवतयों क व्यापक रूप से लागू करने के वलए
वजममेदार ह ते हैं। ये समबद्ध कायायलयों के वनदेशन में कायय करते हैं ऄथिा यकद ऄपेवक्षत काययकारी
वनदेशन पयायप्त न ह त ये कायायलय सीधे ही विभाग के ऄधीन भी कायय करते हैं।

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3. भारत सरकार के प्रमु ख मं त्रालय


3.1 सं स दीय कायय मं त्रालय (Ministry of Parlimentary Affairs)

 सरकार की संसदीय प्रणाली में संसद के समय एिं संसाधनों का एक विस्तृत भाग दैवनक कायों पर
व्यय ह ता है। आन संसदीय कायों के कु शलतापूिक
य वनियहन की वजममेदारी संसदीय कायय मंत्रालय

क सौंपी गयी है। संसदीय कायय मंत्रालय, के न्द्रीय सरकार का एक महत्िपूणय मंत्रालय है। यह

संसद में सरकारी कायय के संबध


ं में सरकार एिं संसद के द नों सदनों के मध्य एक महत्िपूणय

समन्द्िय कडी के रूप में कायय करता है। मइ, 1949 में एक विभाग के रूप में आसकी स्थापना की

गइ थी परन्द्तु ितयमान में यह एक पूणय मंत्रालय है।

 भारत के संविधान के ऄनुच्छेद 77(3) के ऄधीन बनाए गए भारत सरकार (कायय अबंटन)

वनयम, 1961 के ऄधीन आस मंत्रालय क सौंपे गए कायय वनम्नवलवखत हैं:

o यह मंत्रालय, संसदीय कायय से संबंवधत मंवत्रमंडल की सवमवत क सवचिालय समबन्द्धी

सहायता प्रदान करता है ज कक ऄन्द्य बातों के साथ-साथ संसद के द नों सदनों के सत्रािसान
तथा गैर-सरकारी सदस्यों के विधेयकों और संकल्पों पर सरकार के ऄवभमत की वसफाररश
करती है।

o यह मंत्रालय सरकार के मंत्रालयों/विभागों से, संसद में लवमबत विधेयकों, पुर:स्थावपत ककए

जाने िाले नए विधेयकों और ऄध्यादेशों के प्रवतस्थापक विधेयकों के संबंध में, वनकट समपकय

बनाए रखता है।


o यह मंत्रालय विधेयकों की प्रगवत पर वनरं तर वनगरानी रखता है। यह वनगरानी विधेयकों के
मंवत्रमंडल द्वारा ऄनुम दन की ऄिस्था से लेकर विधेयक के संसद के द नों सदनों द्वारा पाररत
ह ने तक रखी जाती है। संसद में विधेयकों के पाररत ह ने संबंधी कारय िाइ के सुचारू रूप से
पूरा ह ने क सुवनवित करने के वलए आस मंत्रालय के ऄवधकारी विधेयक प्रस्तुत करने िाले

मंत्रालयों/विभागों तथा विवध और न्द्याय मंत्रालय, ज कक विधेयकों का प्रारूपण तैयार करता

है, के ऄवधकाररयों से सतत समपकय बनाए रखते हैं।

o यह मंत्रालय संसद सदस्यों की परामशयदात्री सवमवतयाँ गरठत करता है तथा सत्रािवध और


ऄन्द्त:सत्रािवध- द नों ही के दौरान आनकी बैठकें अय वजत करने के वलए व्यिस्था करता है।
o यह मंत्रालय संसद में मंवत्रयों द्वारा कदए गए अश्वासनों के शीघ्र और ईपयुि कायायन्द्ियन के
वलए ऄन्द्य मंत्रालयों के साथ कारय िाइ करता है।
o प्रजातंत्र की जडों क मजबूत करने तथा विद्याथी समुदाय में ऄनुशासन और सहनशीलता जैसी
स्िस्थ अदतों क विकवसत करने और संसद के कायय संचालन की पूणय जानकारी देने के वलए

यह मंत्रालय राट्रपतीय राजधानी क्षेत्र कदल्ली सरकार के विद्यालयों; पूरे देश के के न्द्रीय

विद्यालयों; जिाहर नि दय विद्यालयों और विश्वविद्यालयों/कॉलेजों में युिा संसद

प्रवतय वगताओं का अय जन करता है।

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3.2 गृ ह मं त्रालय (Ministry of Home Affairs)

गृह मंत्रालय (MHA) क ऄनेक महत्िपूणय ईत्तरदावयत्ि सौंपे गये हैं, ईनमें से प्रमुख हैं:

 अंतररक सुरक्षा,

 ऄधय-सैवनक बलों का प्रबंधन,

 सीमा प्रबंधन,

 के न्द्र-राज्य संबंध,

 संघ शावसत प्रदेशों का प्रशासन,


 अपदा प्रबंधन।
हालांकक भारत के संविधान की सातिीं ऄनुसच
ू ी के सूची II (राज्य-सूची) की प्रविवष्टयों 1 और 2 के

तहत, 'ल क व्यिस्था' और 'पुवलस' के संबंध में राज्यों का ईत्तरदावयत्ि वनधायररत ककया गया हैं, परन्द्तु

संविधान का ऄनुच्छेद 355 संघ क यह वनदेश देता है, कक िह बाह्य अक्रमण और अंतररक ऄशांवत से
प्रत्येक राज्य की संरक्षा करे और प्रत्येक राज्य की सरकार का संविधान के ईपबंधों के ऄनुसार चलाया
जाना सुवनवित करें ।
भारत सरकार (कायय अबंटन) वनयम, 1961 के तहत गृह मंत्रालय के वनम्नवलवखत विभाग हैं: -

 अंतररक सुरक्षा विभाग (Department of Internal Security): यह विभाग भारतीय पुवलस

सेिा, कें रीय पुवलस बल, अंतररक सुरक्षा और कानून-व्यिस्था, ईग्रिाद, अतंकिाद, नक्सलिाद,

विदेशी एजेंवसयों की प्रवतकू ल गवतविवधयों, पुनिायस, िीजा देना और ऄन्द्य अप्रिासी मामलों,

सुरक्षा मंजरू ी, अकद से संबवं धत कायों क संभालता है।

 राज्य विभाग (Department of States): के न्द्र-राज्य संबंध, ऄंतरायज्यीय संबंध, संघ शावसत

प्रदेशों का प्रशासन, स्ितंत्रता सेनावनयों की पेंशन, मानिावधकार, जेल सुधार, पुवलस सुधार, अकद
से संबंवधत कायय आसी के ऄधीन अते हैं।
 गृह विभाग (Department of Home): यह विभाग राट्रपतपवत और ईपराट्रपतपवत द्वारा काययभार

ग्रहण करने की ऄवधसूचना, प्रधानमंत्री, मंत्री, राज्यपाल की वनयुवि/पदत्याग की ऄवधसूचनाएँ,

राज्य सभा और ल कसभा के वलए नाम-वनदेशन,जनगणना, जन्द्म और मृत्यु का पंजीकरण अकद से


संबंवधत मामलों की देख-रे ख करता है।
 जममू-कश्मीर कायय विभाग (Department of Jammu and Kashmir (J&K) Affairs) जममू-

कश्मीर राज्य की सन्द्दभय में संिध


ै ावनक ईपबंधों, विदेश मंत्रालय से संबंवधत मामलों क छ ड कर
जममू-कश्मीर से संबंवधत सभी विषय आस विभाग के ऄंतगयत अते हैं।
 सीमा प्रबंधन विभाग (Department of Border Management): तटीय सीमाओं सवहत

ऄंतरायट्रपतीय सीमाओं का प्रबंधन, सीमा सुरक्षा क सुदढ़ृ करना और संबंवधत ऄिसंरचनाओं का

सृजन, सीमा क्षेत्र विकास अकद मामले आसके तहत अते हैं; तथा

 राजभाषा विभाग (Department of Official Language), यह विभाग संविधान के राजभाषा

से संबंवधत ईपबंधों और राजभाषा ऄवधवनयम,1963 के ईपबंधों के कायायन्द्ियन से संबंवधत


मामलों क संभालता है।

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3.3 रक्षा मं त्रालय (Ministry of Defence)

रक्षा मंत्रालय (सवचिालय) में 4 विभाग शावमल हैं यथा:


1. रक्षा विभाग (Department of Defence: DoD),
2. रक्षा ईत्पादन विभाग (Department of Defence Production: DDP),
3. पूिय सेनानी कल्याण विभाग (Department of Ex-Servicemen Welfare: DESW), और
4. रक्षा ऄनुसंधान एिं विकास विभाग (Department of Defence Research &
Development: DDR&D) एिं
5. वित्तीय प्रभाग (Finance Division)।
 ईपर ि प्रथम 4 विभागों में से प्रत्येक का प्रमुख एक सवचि ह ता है। रक्षा मंत्रालय के वित्तीय
प्रभाग (फाआनेंस वडिीज़न) का प्रमुख सवचि (वडफें स फाआनेंस) / वित्तीय सलाहकार (रक्षा सेिा)
ह ता है। फाआनेंस वडिीज़न का प्रमुख रक्षा बजट से जुडे व्ययों के प्रस्तािों पर वित्तीय वनयंत्रण
रखने, और रक्षा व्यय के लेखांकन (accounting) एिं अंतररक लेखा परीक्षा के वलए वजममेदार
ह ता है।
3.4 वित्त मं त्रालय (Ministry of Finance)

वित्त मंत्रालय में पाँच विभाग शावमल हैं, यथा:


1. अर्मथक कायय विभाग (Department of Economic Affairs)
2. व्यय विभाग (Department of Expenditure)
3. राजस्ि विभाग (Department of Revenue)
4. वनिेश और ल क पररसंपवत्त प्रबंधन विभाग; (Department of Investment and Public
Asset Management (DIPAM;दीपम)* और
5. वित्तीय सेिा विभाग (Department of Financial Services)
*विवनिेश विभाग की स्थापना 10 कदसमबर, 1999 क एक ऄलग विभाग के रूप में की गइ थी और
बाद में 06 वसतमबर, 2001 क आसे विवनिेश मंत्रालय बना कदया गया था। 27 मइ, 2004 से विवनिेश
विभाग वित्त मंत्रालय के ऄधीन एक विभाग था। 14 ऄप्रैल, 2016 से विवनिेश विभाग का नाम
बदलकर वनिेश और ल क पररसंपवत्त प्रबंधन विभाग (दीपम) कर कदया गया है।

3.5 मानि सं साधन विकास मं त्रालय (Ministry of Human Resource


Development)

 भारत में वशक्षा राज्य और के न्द्र द नों का सवममवलत दावयत्ि है। आसके वलए हर राज्य में एक वशक्षा
विभाग है और देश के सभी राज्यों के वशक्षा विभागों के समन्द्िय से वशक्षा नीवतयाँ और वशक्षा
व्यिस्थाएँ लागू करने के वलए के न्द्र सरकार का मानि संसाधन विकास मंत्रालय है।
 यह मंत्रालय मुख्यत: द स्तरों पर काम करता है, पहला है स्कू ली वशक्षा औ दूसरा है ईच्चतर
वशक्षा। आसके माध्यम से यह देश के सामावजक-अर्मथक ढांचे के संतल
ु न में एक महत्िपूणय और
ईपचारात्मक भूवमका वनभाता है। मानि संसाधन विकास मंत्रालय द विभागों के माध्यम से कायय
करता है:
o स्कू ली वशक्षा और साक्षरता विभाग (Department of School Education and
Literacy)
o ईच्चतर वशक्षा विभाग (Department of Higher Education)

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4. मं वत्रमं ड ल सवचिालय (Cabinet Secretariat)


 भारतीय संविधान के ऄंतगयत मंवत्रमंडल क िास्तविक काययपावलका के रूप में स्थावपत ककया गया
है। कें र सरकार के समस्त प्रशासन का ईत्तरदावयत्ि मंवत्रमंडल का है। मंवत्रमंडल सवचिालय संघीय
मंवत्रमंडल की स्टाफ एजेंसी के रूप में कायय करता है। आसका राजनीवतक प्रमुख प्रधानमंत्री तथा

प्रशासवनक प्रमुख मंवत्रमंडल सवचि ह ता है। आसे ‘भारत सरकार (कायय अबंटन) वनयम, 1961’ के

ऄंतगयत एक विभाग का दजाय प्रदान ककया गया है।


 मंवत्रमंडल सवचिालय के कायों एिं ईत्तरदावयत्िों के सफलता पूियक संचालन के वलए सवचि से
ऄिर सवचि स्तर के ऄनेक ऄवधकारी काययरत हैं। आसके ऄवतररि प्रधानमंत्री क सलाह देने हेतु
विवभन्न विषयों से संबंवधत विवशष्ट ऄवधकारी भी ह ते हैं। मंवत्रमंडल सवचिालय के प्रमुख कायय
वनम्नवलवखत हैं -
o मंवत्रमंडल की बैठक की काययसच
ू ी बनाना एिं आसके वलए अिश्यक सूचना और सामग्री
ईपलब्ध करना।
o विवभन्न मंत्रालयों के मध्य समन्द्िय स्थावपत करते ए ए और मंत्रालयों के बीच मतभेदों क दूर
करते ए ए सरकार की वनणयय वनमायण प्रकक्रया में सहायता करना।
o सवचिालय की स्थाइ/तदथय सवमवतयों के माध्यम से परस्पर सहमवत बनाना।

o सभी मंत्रालयों/विभागों की गवतविवधयों के मावसक सारांश के माध्यम से राष्रपवत,

ईपराष्रपवत और मंवत्रयों क सूवचत करना।


o मंवत्रमंडलीय सवमवतयों क सवचिालय सहायता प्रदान करना।
o सरकार के कायों से संबंवधत वनयम तैयार करना एिं राट्रपतपवत के ऄनुम दन से कें र सरकार के
मंत्रालयों के कायों का बँटिारा करना।

o विवभन्न मंवत्रयों की वनयुवि एिं त्यागपत्र, मंवत्रयों क विभागों के बंटिारे , मंत्रालयों के गठन

एिं पुनगयठन से संबंधी विषयों का वनपटारा करना।


 मंवत्रमंडलीय सवचिालय क ऄंतर मंत्रालयी समन्द्िय क प्र त्साहन देने के वलए एक ईपय गी तंत्र

के रूप में देखा जाता है, क्योंकक मंवत्रमंडलीय सवचि नागररक सेिाओं के प्रमुख भी ह ते हैं। विवभन्न

विभागों के सवचि मंवत्रमंडलीय सवचि क समय-समय पर विकास संबंधी जानकारी देना


अिश्यक समझते हैं। ईनके वलए काययकरण वनयमािली के ऄनुसार भी मंवत्रमंडल सवचि क नइ
गवतविवधयों के संबंध में जानकारी देना अिश्यक है।

5. मौजू दा सं र चना के सकारात्मक एिं नकारात्मक पक्ष


(Strengths and Weaknesses of the Existing
Structure)
भारत सरकार की मौजूदा संरचना एक लंबी समयािवध में विकवसत ए इ है। आसमें कु छ वनवहत शवियाँ

हैं, वजसने आसे समय की कसौटी पर बनाये रखने में मदद की है। हालांकक, आसमें कमज ररयाँ भी हैं,

वजसने व्यिस्था क धीमा, ब वझल और ऄनुत्तरदायी बनाया है।

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5.1 सकारात्मक पक्ष (Strengths)

 जाँची-परखी पद्धवत: आन संरचनात्मक आकाइयों ने ईन वनयमों और स्थावपत मानदंडों का, वजनसे


राट्रपत वनमायण में और एक समािेशी राज्य के वनमायण में सहय ग वमला है, ऄनुपालन ककया है। आनसे
संकट काल के साथ-साथ सामान्द्य समय के दौरान भी वस्थरता सुवनवित ए इ है। आन्द्ह ने ऄवधकार-
प्राप्त अय गों, सांविवधक ब डों, स्िायत्त स सायरटयों और संस्थानों के माध्यम से, विशेष रूप से
ऄनुसंधान, विज्ञान और प्रौद्य वगकी से संबंद्ध क्षेत्रों में, नूतन पद्धवतयाँ कायम की हैं।
 वस्थरता: स्थायी वसविल सेिकों के रूप में सरकारी स्टाफ़ प्रणाली के कारण एक वनिायवचत सरकार
से दूसरी सरकार क शवि के हस्तांतरण के दौरान वनरं तरता और वस्थरता स्थावपत ए इ है, वजससे
भारतीय ल कतंत्र क पररपक्व बनाने में य गदान वमला है।
 संविधान के प्रवत प्रवतबद्धता - राजनीवतक वनष्पक्षता: सुस्पष्ट रूप से वनधायररत वनयमों और
प्रकक्रयाओं ने वसविल सेिकों की वनष्पक्षता कायम रखी है, वजससे सरकारी काययक्रमों ि सेिाओं के
राजनीवतकरण पर ऄंकुश लगा है। आससे, संविधान में ऄन्द्तर्मनवहत वसद्धांतों के अधार पर संस्थानों
का विकास करने में मदद वमली है।
 नीवत वनमायण और आसके कायायन्द्ियन में संय जन: भारत सरकार के ढाँचे से एक ऐसी स्टाफ पद्धवत
स्थावपत करने में मदद वमली है वजससे नीवत वनमायण और कायायन्द्ियन के मध्य संय जन प्र त्सावहत
ह ता है। आससे भारत सरकार और राज्य सरकारों द नों की प्रणाली क मदद वमली है और
सहकारी संघिाद की ऄिधारणा सुदढ़ृ ए इ है।
 राट्रपतीय दृवष्टक ण: भारत सरकार और साथ ही संलग्न ि ऄधीनस्थ कायायलयों में काययरत सरकारी
सेिकों के मध्य संकीणय सीमाओं क पार करके एक राट्रपतीय दृवष्टक ण का विकास ए अ है। आससे
राट्रपतीय एकीकरण क मजबूत करने में सहय ग वमला है।
5.2 नकारात्मक पक्ष (Weaknesses)

 दैवनक कायों पर ऄनुवचत ज र: भारत सरकार के विवभन्न मंत्रालय प्रायः ईन पर लादे गए नेमी
कायों (routine work) की मात्रा के बए त ऄवधक ह ने के कारण ऄपने नीवत विश्लेषण और नीवत
वनमायण कायों पर विशेष ध्यान के वन्द्रत करने में ऄसमथय रहते हैं। आसके फलस्िरूप राट्रपतीय
प्राथवमकताओं पर ईवचत ध्यान नहीं कदया जाता। पुनः आससे के न्द्रीकरण की भी एक प्रणाली
विकवसत ए इ है। प्रायः राज्य और स्थानीय शासनों द्वारा ककये जा सकने ऄथिा अईटस सय ककये जा
सकने िाले कायों क भी संघ सरकार द्वारा ऄपने पास बनाए रखा गया है।
 मंत्रालयों/विभागों का ऄवत विस्तार: कभी-कभी गठबंधन राजनीवत की ऄवनिाययताओं के कारण
बडी संख्या में मंत्रालयों/विभागों के सृजन से कायय का तकय संगत नहीं विभाजन ए अ है तथा
वनकटत: संबंद्ध विषयों के प्रवत भी एकीकृ त दृवष्टक ण में कमी अइ है।
 ऄत्यवधक स्तरों के साथ एक विस्ताररत पदानुक्रम: भारत सरकार की एक विस्ताररत उध्िायधर
संरचना है, वजसकी िजह से विवभन्न मुद्दों की बए त से स्तरों पर जाँच की जाती है, वजससे प्रायः
एक ओर वनणयय वनमायण में देरी ह ती है और त दूसरी ओर जिाबदेही में कमी अती है।
 ज वखम से सुरक्षा: बए स्तरीय संरचना का एक नकारात्मक पररणाम यह है कक विपरीत प्रत्यायन
और वनणयय-वनमायण में ज वखम से बचने की प्रिृवत्त देखी गइ है। विद्यमान संरचना वनणयय लेने के
स्थान पर के िल एक सलाहकार के रूप में फाआलों क संचालन के माध्यम से परामशों पर
ऄवधकावधक बल देती है। आससे कायों में ऄनािश्यक बए लता ह ती है, देरी और ऄकु शलता पैदा
ह ती है।
 टीम िकय का ऄभाि: ितयमान कठ र पदानुक्रम संरचना, एक टीम िकय की भािना के विकवसत ह ने
की वस्थवत क क्षीण करती है ज ितयमान संदभय में ऄत्यािश्यक है। ितयमान में ऄंतर-विषयक
दृवष्टक ण ईभरती चुनौवतयों पर प्रभािी ढंग से प्रवतकक्रया करने के वलए जरूरी है।

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 कायों का वबखराि: प्रचालन स्तर पर भी, कायों क विभावजत और ईपविभावजत करने की एक

सामान्द्य प्रिृवत्त है, वजससे सेिाएँ प्रदान करने में देरी ह ती है, ऄकु शलता अती है और समय
ऄवधक लगता है।
 पररकवल्पत स्िायत्तता में कमी; कु छ सवमवतयों और ब डों के मामलों क छ डकर, ईनके गठन के
समय पररकवल्पत स्िायत्तता में पयायप्त कमी अइ है।

6. सरकार की सं र चना में सु धार के वलये ऄनु शं साएँ


वद्वतीय प्रशासवनक सुधार अय ग का स्पष्ट मत है, कक भारत सरकार का पुनगयठन वनम्नवलवखत क र

वसद्धांतों पर अधाररत ह ना चावहए तथा आनके ऄनुसार ही आसके कायय संचावलत ह ने चावहए:
 कें र सरकार क प्रमुख रूप से वनम्नवलवखत क र क्षेत्रों पर ध्यान देना चावहए:
o रक्षा, ऄंतरायट्रपतीय संबंध, राट्रपतीय सुरक्षा, न्द्याय और कानून का शासन
o प्रत्येक नागररक के वलए ईत्तम क रट की वशक्षा और स्िास््य देखभाल की सुलभता के जररए
मानि विकास
o ऄिस्थापना तथा संधारणीय प्राकृ वतक संसाधन विकास
o सामावजक सुरक्षा और सामावजक न्द्याय
o अर्मथक प्रबंधन तथा राट्रपतीय अर्मथक वनय जन
o ऄन्द्य क्षेत्रकों के संबंध में राट्रपतीय नीवतयाँ
 कायों क राज्य और स्थानीय शासन पर विकें रीकृ त करने के वलए सहावयकता के वसद्धांत
(principle of subsidiarity) का पालन ककया जाना चावहए।

सहावयकता का वसद्धांत (principle of subsidiarity)


 आसकी कल्पना एक ऐसे वसद्धांत के रूप में की गयी कक एक कें रीय प्रावधकारी का कायय सहायक ह ना
चावहए ज के िल ऐसे कायों का वनष्पादन करे वजन्द्हें मात्र स्थानीय स्तर पर वनष्पाकदत नहीं ककया
जा सकता।
 आसके ऄंतगयत सभी कायय संभि ऄवधशासन के लघुतम यूवनट पर नागररकों के वनकटतम अय वजत
ककये जाने चावहए और उपर की ओर के िल तभी प्रत्यावयत ककये जाने चावहए जबकक स्थानीय यूवनट
कायय वनष्पाकदत नहीं कर सकता ह ।

 परस्पर जुडे ए ए विषयों पर एक साथ विचार ककया जाना चावहए। सरकार में मंत्रालयों और
विभागों की पुनसंरचना करते समय, कायायत्मक विशेषज्ञता और एकीकृ त दृवष्टक ण ऄपनाने के
साथ-साथ एक सियमान्द्य समन्द्िय अिश्यक है। आसके ऄंतगयत सभी सरकारी कायों का एक गहन
विश्लेषण करना और ईसके बाद मंत्रालय से जुडे कवतपय प्रमुख िगों का सामूहीकरण ककया जाना
सवममवलत है।
 नीवत वनमायण कायय एिं कायायन्द्ियन कायय का पृथक्करण : मंत्रालयों द्वारा नीवत वनमायण कायों पर
ऄवधक बल कदए जाने की अिश्यकता है तथा कायायन्द्ियन कायों का प्रत्याय जन प्रचालन आकाइयों
और स्ितंत्र संगठनों/एजेंवसयों क कर कदया जाए। यह आसवलए भी जरूरी है क्योंकक ितयमान में
नीवत वनमायण एक विशेषज्ञतापूणय कायय है वजसके वलए व्यापक पररप्रेक्ष्य, काययक्षेत्र की िैचाररक
समझ और बाह्य पररिेश की ईवचत समझ अिश्यक है। दूसरी ओर नीवतयों के कायायन्द्ियन के वलए
विषय के गहन ज्ञान और प्रबंधकीय दक्षताओं की अिश्यकता ह ती है।

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 समवन्द्ित कायायन्द्ियन: नीवत वनमायण की तरह कायायन्द्ियन के स्तर पर भी बेहतर समन्द्िय जरुरी

है। उध्िायधर विभागों के विस्तार से यह एक ऄसंभि कायय ह जाता है, वसिाय ईन मामलों के जहाँ

ऄवधकार प्राप्त अय गों, सांविवधक वनकायों, स्िायत्त स साआटी अकद की स्थापना की गइ है।
महत्िपूणय क्षेत्रकों में ऐसे और ऄवधक ऄंतर-विषयक वनकायों की काफी संभािना है।
 संरचनाओं क सरल बनाना - स्तरों की संख्या में कमी लाना और ईन्द्हें टीम कायय के वलए

प्र त्सावहत करना: ककसी संगठन की संरचना, सरकारी संगठनों सवहत, ईन विवशष्ट ईद्देश्यों हेतु

ईपयुि बनाने के वलए तैयार की जानी चावहए, वजसकी प्रावप्त की जानी है। भारत सरकार में

पारस्पररक दृवष्टक ण एकसमान उध्िायधर पदानुक्रम ऄपनाने का रहा है (जैसा कक कायायलय


प्रकक्रया वनयमािली में वनधायररत है)। टीम-िकय पर बल देते ए ए सरल एिं क्षैवतज संगठनों का
वनमायण करने की अिश्यकता है।
 सुपररभावषत ईत्तरदावयत्ि: ितयमान बए स्तरीय संगठनात्मक संरचना के कारण ऄलग-थलग वनणयय
वनमायण के साथ गैर वनष्पादन की प्रिृवत में िृवद्ध ए इ है। बडी संख्या में फाआलों पर परामशय प्राप्त
करने की प्रकृ वत से प्रसाररत ईत्तरदावयत्ि की वस्थवत देखने क वमलती है। संगठनात्मक
वजममेदाररयों के स्पष्ट सीमांकन से, एक बेहतर वनष्पादन प्रबंधन पद्धवत विकवसत करने में भी
सहायता वमल सकती है।
 समुवचत प्रत्याय जन (Appropriate delegation): समुवचत प्रत्याय जन के ऄभाि से

ऄनािश्यक विलमब ह ता है, काययकुशलता में कमी अती है और ऄधीनस्थ कमयचाररयों के मन बल


में ह्रास ह ता है।
 प्रचालन आकाइयों का महत्ि: सरकारी संगठनों की प्रिृवत्त िस्तुतः प्रचालन स्तरों पर ऄंशों और
प्रावधकारों, जनशवि और संसाधनों के साथ शीषय पर हािी ह ने की है, वजनका नागररकों के
जीिन पर सीधा प्रभाि पडता है। नागररकों की जरूरतों के ऄनुरुप सरकारी स्टाफ ढाँचे का
युविकरण ऄवत अिश्यक है।

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भारतीय संविधान एिं शासन


10. केंद्रीय विधाययका

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विषय सूची
1. संसद का गठन _______________________________________________________________________________ 5

1.1. राष्ट्रपवत: संसद के एक ऄंग के रूप में _____________________________________________________________ 5

1.2. राज्यसभा _______________________________________________________________________________ 5

1.3. लोकसभा _______________________________________________________________________________ 8

2. वनिााचन व्यिस्था _____________________________________________________________________________ 8

2.1. लोकसभा _______________________________________________________________________________ 8

2.2. राज्यसभा के सदस्यों का वनिााचन ______________________________________________________________ 9

3. काया संचालन________________________________________________________________________________ 9

3.1. दोनों सदनों की ऄिवध ______________________________________________________________________ 9

3.2. संसद के सत्र ____________________________________________________________________________ 10

3.3. गणपूर्तत या कोरम ________________________________________________________________________ 11

4. संसद की सदस्यता ___________________________________________________________________________ 11

4.1. ऄहाताएं _______________________________________________________________________________ 11

4.2. वनरहाताएं ______________________________________________________________________________ 11

5. संसद के पीठासीन ऄवधकारी ____________________________________________________________________ 15

5.1. लोक सभा ऄध्यक्ष ________________________________________________________________________ 15

5.2. प्रोटेम स्पीकर (सामवयक ऄध्यक्ष) ______________________________________________________________ 17

5.3. ईपाध्यक्ष ______________________________________________________________________________ 17

5.4.राज्य सभा का सभापवत _____________________________________________________________________ 17

6. संसदीय सवचि______________________________________________________________________________ 18

7. लोकसभा महासवचि _________________________________________________________________________ 19

8. संसद में नेता _______________________________________________________________________________ 20

8.1. सदन का नेता ___________________________________________________________________________ 20

8.2. विपक्ष का नेता __________________________________________________________________________ 20

8.3. वहहप (WHIP) ___________________________________________________________________________ 20

9. संसदीय कायािाही के साधन_____________________________________________________________________ 22

9.1. प्रश्न काल ______________________________________________________________________________ 22

9.2. शून्य काल ______________________________________________________________________________ 23

9.3. प्रस्ताि ________________________________________________________________________________ 23

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9.4. संकल्प (Resolution) _____________________________________________________________________ 25


9.4.1 प्रस्ताि और संकल्प के बीच ऄंतर __________________________________________________________ 25

9.5. औवचत्य प्रश्न ____________________________________________________________________________ 26

10. संसद में विधायी प्रक्रिया ______________________________________________________________________ 26

10.1. साधारण विधेयक _______________________________________________________________________ 26


10.1.1 प्रथम पाठन ________________________________________________________________________ 26
10.1.2 वितीय पाठन _______________________________________________________________________ 27
10.1.3 तृतीय पाठन ________________________________________________________________________ 27
10.1.4 दूसरे सदन में विधेयक _________________________________________________________________ 27
10.1.5 राष्ट्रपवत की स्िीकृ वत __________________________________________________________________ 28
10.1.6 दोनों सदनों की संयुक्त बैठक _____________________________________________________________ 28
10.1.6 दोनों सदनों की संयुक्त बैठक के संबंध में सीमाएं _______________________________________________ 28
10.1.7 संयुक्त बैठक के संबंध में ऄन्य प्रािधान ______________________________________________________ 28

10.2. धन विधेयक ___________________________________________________________________________ 29

10.3. बजट ________________________________________________________________________________ 31

10.4. वित्त विधेयक __________________________________________________________________________ 32

10.5. भारत सरकार के खाते ____________________________________________________________________ 32


10.5.1 भारत की संवचत वनवध ________________________________________________________________ 32
10.5.2 भारत की अकवस्मकता वनवध ____________________________________________________________ 33
10.5.3 लोक लेखा _________________________________________________________________________ 33
10.5.4 भाररत व्यय ________________________________________________________________________ 33

10.6. संविधान संशोधन विधेयक _________________________________________________________________ 33

11. संसद की सवमवतयां _________________________________________________________________________ 36

11.1. कायापावलका पर संसदीय िाचडॉग की तरह काया करने िाली कु छ स्थायी सवमवतयां __________________________ 37

12. संसदीय विशेषावधकार _______________________________________________________________________ 40

12.1. सामूवहक विशेषावधकार ___________________________________________________________________ 40

12.2. व्यवक्तगत विशेषावधकार ___________________________________________________________________ 41

12.3. विशेषावधकारों का हनन एिं सदन की ऄिमानना __________________________________________________ 41

12.4. सदन की ऄिमानना या विशेषावधकार के ईल्लंघन के मामले में सजा _____________________________________ 41

13. राज्यसभा की भूवमका ________________________________________________________________________ 42

13.1. राज्यसभा में राज्यों के प्रवतवनवधत्ि की समानता __________________________________________________ 43

13.2. राज्यसभा की लोकसभा से तुलना_____________________________________________________________ 44


13.2.1 लोकसभा के संबंध में समान शवक्तयााँ _______________________________________________________ 44

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13.2.2 लोकसभा के साथ ऄसमान वस्थवत _________________________________________________________ 44


13.2.3 राज्य सभा की विशेष शवक्तयां ___________________________________________________________ 45

14. संसद की संप्रभुता ___________________________________________________________________________ 47

15. संसद के काया तथा आसकी भूवमका _______________________________________________________________ 47

16. संसद की दक्षता को बढ़ाना ____________________________________________________________________ 48

16.1. भारतीय संसद से संबंवधत विवभन्न मुद्दे _________________________________________________________ 48

16.2. सांसदों की भूवमका को प्रभावित करने िाले कारक _________________________________________________ 49

16.3. संसद के खराब कामकाज का प्रभाि ___________________________________________________________ 49

16.4. सुझाि _______________________________________________________________________________ 49

17. संसदीय गररमा का ह्रास ______________________________________________________________________ 49

18. दलबदल विरोधी कानून की समीक्षा ______________________________________________________________ 50

18.1. दलबदल विरोधी कानून के लाभ एिं हावन _______________________________________________________ 51

18.2. दलबदल विरोधी कानून में सुधार हेतु विवभन्न वनकायों/सवमवतयों की वसफाररशें _____________________________ 51

19. संसद में विपक्ष की भूवमका ____________________________________________________________________ 52

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संसद कें द्र सरकार का विधायी ऄंग है। संसदीय प्रणाली (वजसे सरकार का ‘िेस्टममस्टर मॉडल’ भी कहते
हैं) ऄपनाने के कारण भारतीय लोकतांवत्रक व्यिस्था में संसद एक विवशष्ट ि कें द्रीय स्थान रखती है।
संविधान के भाग V में संसद के गठन, संरचना, ऄिवध, ऄवधकाररयों, प्रक्रिया, विशेषावधकार ि शवक्त
अक्रद के बारे में विस्तृत िणान क्रकया गया है।

1. सं स द का गठन
भारत की संसद के तीन ऄंग हैं:
 भारत के राष्ट्रपवत
 ईच्च सदन या काईं वसल ऑफ़ स्टेट्स या राज्यसभा (वितीय सदन)
 वनम्न सदन या हाईस ऑफ़ द पीपल या लोकसभा (प्रथम सदन या लोकवप्रय सदन)
नोट: हाईस ऑफ़ द पीपल और काईं वसल ऑफ़ स्टेट के वलए महदी नामों िमशः लोकसभा और
राज्यसभा को ऄपनाया गया है।

1.1. राष्ट्रपवत: सं स द के एक ऄं ग के रूप में

 भारतीय संविधान में ऄमेररकी प्रणाली के स्थान पर विरटश प्रणाली को ऄपनाया गया है। विरटश
संसद, हाईस ऑफ़ लॉर्डसा (ईच्च सदन), हाईस ऑफ़ कॉमन्स (वनम्न सदन) और िाईन (राजा या
रानी) से वमलकर बनी है। विरटश िाईन के समान भारत का राष्ट्रपवत भी दोनों में से क्रकसी भी
सदन का सदस्य नहीं होता है। हालााँक्रक, िह संसद का ऄवभन्न ऄंग होता है और वनम्नवलवखत काया
संपन्न करता है:
o दोनों सदनों से पाररत कोइ भी विधेयक वबना राष्ट्रपवत की सहमवत के क़ानून नहीं बन सकता
है।
o िह दोनों सदनों के सत्र को अहूत या सत्रािसान करता है।
o समय-समय पर िह दोनों सदनों को संबोवधत करता है।
o ऄध्यादेश जारी करता है, अक्रद।
 सरकार की संसदीय पद्धवत में विधायी ि कायाकारी ऄंगों में परस्पर वनभारता पर जोर क्रदया जाता
है। िहीं दूसरी ओर ऄमेररका में राष्ट्रपवत प्रणाली को ऄपनाया गया है, जहााँ विधायी और
कायाकारी ऄंगों के विभाजन पर जोर क्रदया गया है।

1.2. राज्यसभा

 क्रकसी भी संघीय शासन में संघीय विधावयका के ईच्च सदन को संिैधावनक बाध्यता के चलते राज्य
वहतों की संघीय स्तर पर रक्षा करने के वलए बनाया जाता है। आसी वसद्धांत के चलते राज्य सभा
का गठन हुअ है। भारत में वितीय सदन का प्रारम्भ 1918 के मोन्टेग्यू-चेम्सफोडा प्रवतिेदन से हुअ।
 संरचना: राज्यसभा में ऄवधकतम 250 सदस्य होते हैं वजनमें से 12 सदस्य राष्ट्रपवत िारा मनोनीत
क्रकये जाते हैं। शेष (238 सदस्य) राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों से परोक्ष वनिााचन के माध्यम से चुने
जाते हैं। वनिाावचत सदस्य विवभन्न राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों से, ईन राज्यों की जनसंख्या के
ऄनुपात में चुने जाते हैं। प्रत्येक राज्य के प्रवतवनवधत्ि हेतु कम से कम एक सदस्य ऄिश्य वनिाावचत
होता है। ितामान में, राज्यसभा में राष्ट्रपवत िारा नामांक्रकत 12 सदस्यों सवहत कु ल 245 सदस्य हैं
वजसमें से राज्यों से 229 तथा संघ शावसत क्षेत्रों से 4 सदस्य शावमल हैं।
 सदस्यों का मनोनयन: राष्ट्रपवत, राज्यसभा में 12 ऐसे सदस्यों को मनोनीत करता है, वजन्हें कला,

सावहत्य, विज्ञान और समाज सेिा विषयों के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यािहाररक ऄनुभि हो। ऐसे
को मनोनीत करने का ईद्देश्य है क्रक प्रख्यात व्यवक्त चुनािी प्रक्रिया का सामना क्रकए वबना
राज्यसभा की सदस्यता प्राप्त कर सकें ।

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 राज्यों का प्रवतवनवधत्ि : संविधान के ऄनुसार विवभन्न राज्यों और संघ शावसत क्षेत्रों के वलए
ईनकी जनसंख्या के ऄनुपात के अधार पर 238 स्थानों का प्रािधान क्रकया गया है। राज्यों के
प्रवतवनवध राज्य की विधानसभाओं के वनिाावचत सदस्यों िारा अनुपावतक प्रवतवनवधत्ि प्रणाली के
ऄनुसार एकल संिमणीय मत िारा चुने जाते हैं।
 संघ राज्य क्षेत्रों का प्रवतवनवधत्ि: संसद िारा वनधााररत रीवत से संघ शावसत क्षेत्रों के प्रवतवनवधयों
को चुना जाता है। आसके तहत संघ राज्य क्षेत्र का प्रत्येक प्रवतवनवध एक वनिााचक मंडल िारा चुना
जाता है। यह चुनाि भी अनुपावतक प्रवतवनवधत्ि प्रणाली के ऄनुसार एकल संिमणीय मत िारा
होता है। सात संघ शावसत प्रदेशों में से वसफा क्रदल्ली और पुदच ु रे ी को ही राज्यसभा में प्रवतवनवधत्ि
प्रदान क्रकया गया है। ऄन्य पांच संघ शावसत प्रदेशों की जनसंख्या काफी कम होने के कारण ईन्हें
प्रवतवनवधत्ि नहीं क्रदया गया है।
 आस प्रकार राज्यसभा संघ की आकाइ के रूप में देश के संघीय चररत्र को दशााती है। राज्यसभा के
वलए सीटों का वितरण संविधान की चौथी ऄनुसच
ू ी में िर्तणत है। हालााँक्रक, यह ऄमेररका के वितीय
सदन में ऄपनाये गये राज्यों की समानता के वसद्धांत के ऄनुरूप नहीं है। जहााँ नागालैंड के वलए 1
सीट है िहीं ईत्तर प्रदेश को 31 सीटें दी गयी हैं। ऄमेररका में, सीनेट में प्रत्येक राज्य के दो
प्रवतवनवध होते हैं चाहे ईनका क्षेत्रफल या जनसंख्या कु छ भी हो। ऄमेररका की सीनेट के 100
सदस्य हैं। ऑस्रेवलया में सीनेट के 60 सदस्य हैं, िहााँ प्रत्येक राज्य से 10 सदस्य चुने जाते हैं। “कें द्र-
राज्य संबंधों पर पूछ
ं ी अयोग” सवहत विवभन्न सवमवतयों/अयोगों ने ऄमेररकी सीनेट के समान
सभी राज्यों को समान प्रवतवनवधत्ि देने की वसफाररश की है।
 ऄिवध: राज्य सभा एक स्थायी सदन है और भारत के संविधान के ऄनुच्छेद 83(1) के ऄनुसार
राज्य सभा का विघटन नहीं होगा। परन्तु ईसके सदस्यों में से यथा संभि वनकटतम एक-वतहाइ
सदस्य, प्रत्येक वितीय िषा सेिावनिृत्त हो जाएंगे और ईन्हें प्रवतस्थावपत करने के वलए ईतने ही
सदस्य वनिाावचत क्रकए जाएंगे।

राज्य सीटों की संख्या

अंध्र प्रदेश 11

ऄरुणाचल प्रदेश 1

ऄसम 7

वबहार 16

छत्तीसगढ़ 5

गोिा 1

गुजरात 11

हररयाणा 5

वहमाचल प्रदेश 3

जम्मू और कश्मीर 4

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झारखंड 6

कनााटक 12

के रल 9

मध्य प्रदेश 11

महाराष्ट्र 19

मवणपुर 1

मेघालय 1

वमजोरम 1

नागालैंड 1

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र क्रदल्ली 3

ओवडशा 10

पुदच
ु ेरी 1

पंजाब 7

राजस्थान 10

वसक्रिम 1

तवमलनाडु 18

तेलंगाना 7

वत्रपुरा 1

ईत्तराखंड 3

ईत्तर प्रदेश 31

पविम बंगाल 16

तावलका: 1 राज्य सभा का संघटन

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1.3. लोकसभा

 लोकसभा भारतीय संसद का वनम्न सदन तथा लोकवप्रय सदन है। संविधान के ऄनुच्छेद 81 में
आसकी संरचना का िणान है। आसके सदस्यों का वनिााचन सािाभौवमक व्यस्क मतावधकार िारा
प्रत्यक्ष रूप से क्रकया जाता है।
 संरचना: संविधान िारा लोकसभा की ऄवधकतम सदस्य संख्या 552 तय की गयी है। आसमें राज्यों

से ऄवधकतम 530 प्रवतवनवध तथा संघ शावसत क्षेत्रों से ऄवधकतम 20 प्रवतवनवध हो सकते हैं।

आसके ऄवतररक्त अंग्ल-भारतीय समुदाय से 2 सदस्यों को राष्ट्रपवत िारा मनोनीत क्रकया जा सकता

है, यक्रद आस समुदाय का पयााप्त प्रवतवनवधत्ि लोकसभा में न हो।


 राज्यों का प्रवतवनवधत्ि : राज्यों के प्रवतवनवधयों का वनिााचन जनता िारा प्रादेवशक वनिााचन क्षेत्रों
से प्रत्यक्ष रूप से सािाभौवमक व्यस्क मतावधकार के वसद्धांत के अधार पर होता है। 18 िषा से

ऄवधक अयु का प्रत्येक भारतीय नागररक, जो क्रकसी ऄन्य कारण से ऄयोग्य घोवषत ना हो, आस
तरह के चुनाि में मतदान करने योग्य है।
 संघ राज्य क्षेत्रों का प्रवतवनवधत्ि: संघ शावसत क्षेत्रों के प्रवतवनवधयों का वनिााचन संसद िारा
वनर्तमत विवध के अधार पर वनधााररत होता है। तदनुसार, संसद ने संघ राज्य क्षेत्र (लोकसभा के

वलए प्रत्यक्ष वनिााचन) ऄवधवनयम, 1965 पाररत क्रकया है वजसके तहत प्रत्यक्ष वनिााचन िारा आन
सदस्यों का चयन होता है।
 मनोनीत सदस्य: राष्ट्रपवत अंग्ल-भारतीय समुदाय से 2 सदस्यों को मनोनीत कर सकते हैं; यक्रद
ईन्हें ऐसा प्रतीत होता है क्रक आस समुदाय का लोकसभा में पयााप्त प्रवतवनवधत्ि नहीं है।

2. वनिाा च न व्यिस्था
2.1. लोकसभा

प्रादेवशक वनिााचन : लोकसभा के प्रत्यक्ष चुनाि के ईद्देश्य से भारत के राज्यक्षेत्र को ईपयुक्त प्रादेवशक
वनिााचन क्षेत्रों में विभावजत क्रकया जाना चावहए। संविधान में दो मामलों में प्रवतवनवधत्ि की एकरूपता
प्रदान की गयी है:
 विवभन्न राज्यों के बीच: प्रत्येक राज्य के वलए लोकसभा के सीटों का अिंटन ऐसी रीवत से क्रकया
जाएगा क्रक सीटों की संख्या से ईस राज्य की जनसंख्या के बीच का ऄनुपात यथासंभि एक समान
हो। (यह प्रािधान 60 लाख से कम जनसंख्या िाले राज्यों पर लागू नहीं होगा)।
 एक ही राज्य में विवभन्न वनिााचन क्षेत्रों के बीच: प्रत्येक राज्य को प्रादेवशक वनिााचन क्षेत्रों में ऐसी
रीवत से विभावजत क्रकया जाएगा क्रक प्रत्येक वनिााचन क्षेत्र की जनसंख्या का ईसको अिंरटत
स्थानों की संख्या से ऄनुपात समस्त राज्य में यथासंभि एक समान हो।
प्रत्येक जनगणना के पिात् पुनः समायोजन: प्रत्येक जनगणना के पिात्, लोकसभा में प्रत्येक राज्य की
सीटों को पुनःअबंरटत तथा राज्य के प्रत्येक प्रादेवशक वनिााचन क्षेत्र को पुनः समायोवजत क्रकया जाएगा।
आसके संबंध में प्रावधकारी की वनयुवक्त और वनयम बनाने की शवक्त संसद को प्रदान की गयी है।
संविधान के ऄनु. 82 के तहत, संसद प्रत्येक जनगणना के पिात् एक पररसीमन ऄवधवनयम

ऄवधवनयवमत कर सकती है। ऄवधवनयम के ऄवस्तत्ि में अने के बाद, कें द्र सरकार एक पररसीमन अयोग

का गठन करती है। यह पररसीमन अयोग, पररसीमन ऄवधवनयम के प्रािधानों के ऄनुसार संसदीय
वनिााचन क्षेत्रों का वनधाारण करता है।

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 42िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1976 के िारा 1971 की जनगणना के अधार पर प्रत्येक
राज्य के वलए अिंरटत स्थानों की संख्या को 2000 इ. तक के वलए वनवित कर क्रदया गया था।
आसे 84िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 2001 िारा 2026 तक के वलए बढ़ा क्रदया गया है।
 आसके ऄलािा लोकसभा में प्रत्येक राज्य को अिंरटत स्थानों की संख्या को वबना पररिर्ततत क्रकये
प्रादेवशक वनिााचन क्षेत्र के युवक्तकरण का ऄवधकार भी क्रदया गया है।
 87िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 2003 के ऄनुसार 2001 की जनगणना के अधार पर
प्रादेवशक वनिााचन क्षेत्रों को युवक्तयुक्त बनाने की ऄनुमवत प्रदान की गयी है।
पररसीमन अयोग के अदेश बाध्यकारी प्रकृ वत के होते हैं तथा आसे क्रकसी भी न्यायालय के समक्ष प्रश्नगत
नहीं क्रकया जा सकता है। भारत के राष्ट्रपवत िारा यह अदेश एक वनवित वतवथ से वनर्ददष्ट क्रकया जाता
है। आसके अदेश की प्रवतयााँ लोकसभा और संबंवधत विधानसभा में प्रस्तुत की जाती हैं, लेक्रकन आसमें
क्रकसी भी तरह के पररितान की संभािना नहीं होती है। ऄब तक पररसीमन अयोग को 4 बार 1952,
1963, 1973 और 2002 में गरठत क्रकया गया है।

ऄनुसवू चत जावतयों और ऄनुसवू चत जनजावतयों के वलए सीटों का अरक्षण: प्रत्येक राज्य में ऄनुसूवचत
जावतयों और ऄनुसूवचत जनजावतयों के वलए सीटों के अरक्षण का प्रािधान क्रकया गया है। आस प्रकार,
ऄनुसूवचत जावतयों और जनजावतयों के वलए ईस राज्य में अरवक्षत सीटों की संख्या ईनके जनसंख्या के
ऄनुपात में रखी गयी है। ितामान में लोकसभा में ऄनुसूवचत जावतयों के वलए 84 और ऄनुसूवचत
जनजावतयों के वलए 47 सीटों को अरवक्षत क्रकया गया है।

2.2. राज्यसभा के सदस्यों का वनिाा च न


 राज्यों के प्रवतवनवध राज्य की विधानसभाओं के वनिाावचत सदस्यों िारा अनुपावतक प्रवतवनवधत्ि
प्रणाली के ऄनुसार एकल संिमणीय मत िारा चुने जाते हैं। यह पद्धवत छोटे दलों को भी
प्रवतवनवधत्ि प्रदान करने के वलए ऄपनायी गयी है। राज्यसभा चुनाि के वलए खुले मतदान का
प्रयोग क्रकया जाता है। आस सन्दभा में राज्य का वनिासी होना ऄवनिाया नहीं है।
 ईच्चतम न्यायालय के ऄनुसार, ऄमेररकी सीनेट के समान राज्यसभा एक संघीय सदन नहीं है।
आसके सदस्य राज्य वसद्धांत के बजाय पाटी वसद्धांत के अधार पर मतदान करते हैं।
लोकसभा में अनुपावतक प्रवतवनवधत्ि प्रणाली नहीं ऄपनाने के कारण
 देश में कम साक्षरता दर होने के कारण आस प्रणाली को समझने में मतदाताओं को होने िाली
समस्या (आसकी गूढ़ प्रकृ वत के कारण) के कारण आसे नहीं ऄपनाया गया।
 सरकार की संसदीय प्रणाली में अनुपावतक प्रवतवनवधत्ि प्रणाली ईपयुक्त नहीं प्रतीत होती है,
क्योंक्रक यह विधावयका को कइ छोटे-छोटे टु कड़ों में बााँट देती है। आसी तरह से आसके िारा संसद भी
कइ छोटे समूहों में बंट जायेगी, वजससे सरकार के ऄस्थायी होने की संभािना बढ़ जाएगी।

3. काया सं चालन
3.1. दोनों सदनों की ऄिवध
 राज्यसभा एक स्थायी सदन है और आसका विघटन नहीं होता है। आसके एक वतहाइ सदस्य संसद
िारा बनाए गए प्रािधानों के ऄनुसार प्रत्येक दूसरे िषा की समावप्त पर सेिावनिृत्त हो जाते हैं।
संसद ने लोक प्रवतवनवधत्ि ऄवधवनयम 1951 के ऄनुसार राज्यसभा के सदस्यों का कायाकाल 6 िषा
वनवित क्रकया है। सदस्यों के सेिावनिृवत्त का अदेश राज्यसभा अदेश, 1952 के माध्यम से
राष्ट्रपवत िारा क्रदया जाता है। पहले बैच के सदस्यों के सेिावनिृवत्त का वनधाारण लॉटरी के माध्यम
से क्रकया गया था।
 लोकसभा का सामान्य कायाकाल 5 िषा है, लेक्रकन राष्ट्रपवत पहले भी आसका विघटन कर सकते हैं।
आसके ऄलािा लोकसभा के सामान्य कायाकाल को अपातकाल के दौरान संसद िारा बनायी गयी
विवध के तहत एक बार में एक िषा के वलए बढ़ाया जा सकता है। हालााँक्रक, अपातकाल की घोषणा
की समावप्त के बाद आस विस्तार को छह महीने की ऄिवध के बाद जारी नहीं रखा जा सकता हैं।

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3.2. सं स द के सत्र

 अहूत करना: संसद के प्रत्येक सदन को राष्ट्रपवत िारा समय-समय पर अहूत क्रकया जाता है।
लेक्रकन संसद के दोनों सत्रों के बीच ऄवधकतम ऄंतराल 6 माह से ज्यादा नहीं होना चावहए। दूसरे
शब्दों में, दो ऄवधिेशनों (दोनों सत्रों) का ऄंतराल 6 माह से ऄवधक नहीं होना चावहए। सामान्यतः
िषा में तीन सत्र होते हैं:
o बजट सत्र (फरिरी से मइ तक),
o मानसून सत्र (जुलाइ से वसतम्बर तक) और
o शीतकालीन सत्र (निम्बर से क्रदसम्बर तक)
संसद के एक सत्र की ऄिवध सदन की पहली बैठक से सत्रािसान तक होती है। सत्र के दौरान सदन
प्रत्येक क्रदन ऄपना काया करता है। सदन के सत्रािसान और दूसरे सत्र के प्रारम्भ होने की मध्यािवध
को ‘ऄिकाश’ कहते हैं। सदन के सत्र को विघटन या सत्रािसान के माध्यम से समाप्त क्रकया जा
सकता है।
 स्थगन: सत्र के दौरान कइ बैठकें होती हैं। प्रत्येक बैठक के दो वहस्से होते हैं: सुबह की बैठक (11
बजे से 1 बजे तक) और दोपहर के भोजन के बाद बैठक (2 बजे से 6 बजे तक)। स्थगन के िारा
सदन को एक वनवित समय के वलए - कु छ घंटे, कु छ क्रदन या कु छ सप्ताह के वलए वनलंवबत क्रकया
जा सकता है।
 ऄवनवित काल के वलए स्थगन (Adjournment Sine Die) का तात्पया है क्रक ऄवनवित ऄिवध के
वलए सदन को स्थवगत कर क्रदया जाना। ऄवनवित काल के वलए सदन को स्थवगत करने का
ऄवधकार सदन के पीठासीन ऄवधकारी के पास होता है।
 सत्रािसान: सत्रािसान (राष्ट्रपवत िारा क्रकया जाता है) िारा सदन के सत्र को समाप्त कर क्रदया
जाता है। यद्यवप, आं ग्लैंड में सत्रािसान की तारीख से सभी लंवबत काया समाप्त हो जाते हैं, परं तु
भारत में, ऄनु. 107(3) के तहत सभी लंवबत विधेयक स्ितः समाप्त होने से बच जाते हैं। परं तु
सत्रािसान के प्रभाि से सभी लंवबत नोरटसों, प्रस्तािों और संकल्पों की समावप्त हो जाती है।
 लेम-डक सत्र: यह नइ लोकसभा के चुनाि के ईपरांत वनितामान लोकसभा के ऄंवतम सत्र को
दशााता है। लोकसभा के वनितामान सदस्य जो नइ लोकसभा में वनिाावचत होकर नहीं अ पाते हैं,
ईन्हें लेम-डक के नाम से जाना जाता है।
 विघटन: जैसा क्रक पहले बताया गया है, के िल लोकसभा का ही विघटन होता है। लोकसभा का
विघटन िस्तुतः लोकसभा के जीिनकाल की समावप्त है। लोकसभा का विघटन दो विवधयों से हो
सकता है:
o प्रत्येक 5 िषा की ऄिवध की समावप्त पर या अपातकाल के दौरान बढ़ाइ गयी ऄिवध की
समावप्त पर स्ितः विघटन।
o राष्ट्रपवत के िारा ऄनु. 85 (2) के तहत शवक्त का प्रयोग कर।
ऄपनी शवक्तयों के प्रयोग के तहत राष्ट्रपवत िारा मंवत्रपररषद् की सलाह पर विघटन और सत्रािसान
क्रकया जाता है। जबक्रक, लोकसभा और राज्यसभा की दैवनक बैठकों को स्थवगत करने का ऄवधकार
िमशः ऄध्यक्ष और सभापवत को प्राप्त है।
लोकसभा के विघटन से आस सदन के समक्ष ईपवस्थत सभी मामले (विधेयक, प्रस्ताि, संकल्प, नोरटस,
यावचकाएाँ अक्रद) समाप्त हो जाते हैं। आन मामलों को क्रफर से लाने के वलए नइ गरठत लोकसभा में पुनः
प्रस्तुत करना होता है। हालााँक्रक, कु छ लवम्बत विधेयकों और सभी लवम्बत अश्वासनों की सरकार िारा
बनायी गयी एक सवमवत के माध्यम से जांच कर ईन्हें समाप्त नहीं होने क्रदया जाता है। विधेयकों की
समावप्त (व्यपगत) के संबंध में वस्थवत कु छ आस प्रकार है:

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 लोकसभा में लंवबत कोइ विधेयक (लोकसभा में अरं भ या राज्यसभा से प्रेवषत) समाप्त हो जाता है।
 लोकसभा िारा पाररत और राज्यसभा में विचाराधीन विधेयक समाप्त हो जाता है।
 कोइ विधेयक दोनों सदनों की ऄसहमवत के कारण यक्रद पाररत नहीं हो पाया हो और यक्रद राष्ट्रपवत
िारा लोकसभा के विघटन से पूिा संयुक्त बैठक की ऄवधसूचना जारी नहीं की गयी हो तो िह
समाप्त हो जाता है।
 राज्यसभा में लंवबत कोइ ऐसा विधेयक जो लोकसभा िारा पाररत न हो, समाप्त नहीं होता है।
 दोनों सदनों से पाररत कोइ विधेयक राष्ट्रपवत के पास विचाराधीन हो, तो समाप्त नहीं होता है।
 ऐसा विधेयक जो दोनों सदनों से पाररत हो लेक्रकन राष्ट्रपवत िारा पुनर्तिचार के वलए लौटा क्रदया
गया हो, समाप्त नहीं होता है।

3.3. गणपू र्तत या कोरम

यह सदस्यों की िह न्यूनतम संख्या है वजनकी ईपवस्थवत के बाद ही सदन का काया संपाक्रदत होता है।
यह कु ल सदस्यों (पीठासीन ऄवधकारी सवहत) का दसिां वहस्सा होता है। तात्पया यह क्रक क्रकसी काया को
संपाक्रदत करने के वलए लोकसभा में कम से कम 55 और राज्यसभा में कम से कम 25 सदस्य ऄिश्य
ईपवस्थत होने चावहए।
4. सं स द की सदस्यता
4.1. ऄहा ताएं

क्रकसी भी व्यवक्त को संसद सदस्य चुने जाने के वलए, ईसे:


(a) भारत का नागररक होना चावहए;
(b) राज्यसभा के वलए न्यूनतम अयु 30 िषा और लोकसभा के वलए न्यूनतम अयु 25 िषा होनी
चावहए;
(c) संविधान की तीसरी ऄनुसूची के तहत वनिााचन अयोग िारा वनधााररत क्रकसी प्रावधकारी के सामने
शपथ या प्रवतज्ञान लेना चावहए।
संसद विवध िारा कु छ ऄन्य ऄवतररक्त योग्यताओं का वनधाारण कर सकती है (ऄनु. 84)। फलस्िरूप,
जन प्रवतवनवधत्ि ऄवधवनयम 1951 के तहत संसद ने वनम्नवलवखत ऄवतररक्त योग्यताओं का वनधाारण
क्रकया है:
(a) ईसे क्रकसी संसदीय वनिााचन क्षेत्र के वलए एक वनिााचक के रूप में पंजीकृ त होना चावहए।
(b) ईसे क्रकसी राज्य या संघ शावसत प्रदेश में ऄनुसूवचत जावत या ऄनुसूवचत जनजावत का सदस्य होना
चावहए, यक्रद िह ईनके वलए अरवक्षत सीट से चुनाि लड़ना चाहता है।
राज्यसभा की सदस्यता हेतु क्रकसी व्यवक्त को ईस राज्य विशेष का वनिासी होना अिश्यक नहीं है।
4.2. वनरहा ताएं

संविधान के ऄनु. 102 के तहत कोइ व्यवक्त संसद सदस्य नहीं बन सकता यक्रद:
 िह भारत सरकार के या क्रकसी राज्य की सरकार के ऄधीन, ऐसे पद को छोड़कर, वजसको धारण
करने िाले का वनरर्तहत न होना संसद ने विवध िारा घोवषत क्रकया है, कोइ लाभ का पद धारण
करता है।
 िह विकृ त वचत्त हो और सक्षम न्यायालय िारा ऐसी घोषणा की गयी हो।
 िह घोवषत क्रदिावलया हो।
 िह भारत का नागररक न हो, या ईसने स्िेच्छापूिक
ा क्रकसी विदेशी राष्ट्र की नागररकता ऄर्तजत कर
ली हो, या िह क्रकसी विदेशी राष्ट्र के प्रवत वनष्ठा स्िीकार करता हो;
 िह संसद िारा बनाइ क्रकसी विवध िारा ऄयोग्य घोवषत क्रकया गया हो।

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संसद ने लोक प्रवतवनवधत्ि ऄवधवनयम, 1951 के तहत वनम्नवलवखत वनरहाताएं वनधााररत की हैं:
 िह चुनािी ऄपराध या चुनाि में भ्रष्ट अचरण के तहत दोषी करार न क्रदया गया हो।
 ईसे क्रकसी ऄपराध में दो िषा या ईससे ऄवधक की सजा न हुइ हो। परन्तु, प्रवतबंधात्मक वनषेध
विवध के ऄंतगात क्रकसी व्यवक्त का बंदीकरण वनरहाता नहीं है।
 िह वनधााररत समय के ऄंदर चुनािी खचा का ब्यौरा देने में ऄसफल न रहा हो।
 िह ऐसे वनगम में लाभ के पद या वनदेशक या प्रबंध वनदेशक के पद पर न हो, वजसमें सरकार का
25 प्रवतशत वहस्सा हो।
 ईसे भ्रष्टाचार या वनष्ठाहीन होने के कारण सरकारी सेिाओं से बखाास्त न क्रकया गया हो।
 ईसे विवभन्न समूहों में शत्रुता बढ़ाने या ररश्वतखोरी के वलए दंवडत न क्रकया गया हो।
 ईसे छू अछू त, दहेज ि सती प्रथा जैसे सामावजक ऄपराधों का प्रसार और आनमें संवलप्त न पाया
गया हो।
क्रकसी सदस्य में ईपरोक्त वनरहाताओं संबंधी प्रश्न पर राष्ट्रपवत का फै सला ऄंवतम होगा, यद्यवप राष्ट्रपवत
को वनिााचन अयोग से राय लेकर ईसी के तहत काया करना चावहए।

 ऄनु. 102 (1) के तहत, कोइ व्यवक्त, संसद के क्रकसी भी सदन के सदस्य होने या चुने जाने के वलए
ऄयोग्य घोवषत कर क्रदया जाएगा यक्रद िह संसद िारा बनाए गए क्रकसी क़ानून के तहत ऄयोग्य
घोवषत कर क्रदया जाता है।
 ऄनु. 191 के तहत ऐसा ही प्रािधान राज्य विधानपररषद/विधानसभा के वलए भी क्रकया गया है।
 हालााँक्रक, न्यायालय ने यह स्पष्ट क्रकया है क्रक कोइ व्यवक्त चाहे िह सदस्य हो या गैर-सदस्य तब तक
ऄयोग्य नहीं हो सकता जब तक ईसे सजा ना वमली हो।

दल पररितान के अधार पर वनरहाता


 संविधान यह ईल्लेख करता है क्रक 10िीं ऄनुसच
ू ी के प्रािधानों के तहत दल पररितान के अधार
पर क्रकसी भी व्यवक्त को संसद की सदस्यता से वनरहा (ऄयोग्य) घोवषत क्रकया जाएगा। क्रकसी सदस्य
को 10िीं ऄनुसूची के तहत वनम्नवलवखत कारणों से ऄयोग्य घोवषत क्रकया जाता है:
(a) यक्रद िह स्िेच्छा से ईस राजनीवतक दल की सदस्यता को छोड़ देता है वजसके रटकट पर ईसने
संसद सदस्यता प्राप्त की है।
(b) यक्रद िह राजनीवतक दल के वनदेशों के विपरीत मत देता है या मतदान में ऄनुपवस्थत रहता
है।
(c) यक्रद कोइ व्यवक्त क्रकसी राजनीवतक दल से वनष्कावसत कर क्रदया जाता है और पीठासीन
ऄवधकारी आसकी पुवष्ट करते हुए ईसे वनरहा घोवषत करता है।
(d) यक्रद कोइ वनदालीय सदस्य क्रकसी राजनीवतक दल की सदस्यता ग्रहण करता है।
(e) यक्रद क्रकसी सदन का मनोनीत सदस्य स्थान ग्रहण के छह माह के पिात् क्रकसी राजनीवतक
दल की सदस्यता धारण करे ।

लोक सभा ने दल पररितान से संबंवधत मुद्दों पर विचार करने के वलए एक सवमवत गरठत की थी। ककतु
ईसके प्रवतिेदन को भुला क्रदया गया। 1984 में जब कांग्रेस को ऄभूतपूिा विजय प्राप्त हुइ तब राजीि गांधी
ने विपक्ष से परामशा करके दल पररितान की समस्या को रोकने के वलए विवध बनाने पर विचार क्रकया।
आसके पररणामस्िरूप् िह विधेयक अया जो पाररत होकर संविधान 52िां संशोधन ऄवधवनयम बना। आस
ऄवधवनयम िारा ऄनु. 101, 102 और 191 में पररितान क्रकए गए और 10िीं ऄनुसच
ू ी जोड़ी गइ। ये
संशोधन 1 माचा 1985 से लागू हुए।

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ऄपिाद (दल बदल विरोधी क़ानून के तहत)


 यक्रद एक राजनीवतक दल का क्रकसी ऄन्य दल में विलय हो जाता है और कोइ सदस्य नए
राजनीवतक दल का सदस्य बन जाता है या कोइ सदस्य विलय को स्िीकार नहीं करके पृथक् गुट के
रूप में काया करने का विवनिय करता है, तो आन दोनों दशाओं में वनरहाता लागू नहीं होगी।
हालांक्रक विलय के वलए विधान-दल के दो वतहाइ सदस्यों की सहमवत अिश्यक है।
 दल पररितान की विवध लोक सभा या विधान सभा के ऄध्यक्ष या ईपाध्यक्ष को या राज्य सभा के
ईपसभापवत को या विधान पररषद् के सभापवत या ईप सभापवत पर लागू नहीं होगी, यक्रद िह
ईस पद पर वनिाावचत होने के पिात् ऄपने राजनीवतक दल की सदस्यता छोड़ देता है और पद पर
न रह जाने के पिात् ऄपने राजनीवतक दल में पुनः लौट अता है।
हालांक्रक विभाजन ऄपिाद नहीं है:
 संविधान के 52िें संशोधन से यह ईपबंध क्रकया गया था क्रक यक्रद कोइ व्यवक्त ऄपने मूल
राजनीवतक दल को, ऄन्य सदस्यों के साथ छोड़ देता है और ऐसे सदस्यों की संख्या ईस विधायी
दल की संख्या के एक वतहाइ से कम नहीं है तब यह माना जाएगा क्रक मूल राजनीवतक दल का
विभाजन हो गया है। ऐसा विभाजन िैध माना जाएगा। विभाजन करके दल से जो समूह बाहर
अएगा ईसके सदस्य वनरर्तहत नहीं होंगे।
 आस प्रकार विवध थोक में दल पवितान की ऄनुमवत देती थी ककतु, फु टकर दलबदल पर रोक लगाती
थी। कु छ छोटे राज्यों में जहां सदस्यों की संख्या कम थी िहां विभाजन को ऄपिाद मानने के
कारण एक बाजार बन गया जहां सदस्यों की वनष्ठा पद या नकदी के बदले िय की जाने लगी।
 वनिााचन सुधार सवमवत ने 1990 में क्रदए गए ऄपने प्रवतिेदन में, भारत के विवध अयोग ने ऄपने
170िें प्रवतिेदन में (1999) और संविधान के कायाकरण का पुनर्तिलोकन करने के वलए वनयुक्त
राष्ट्रीय अयोग ने 2002 में ऄपने प्रवतिेदन में यह वसफाररश की थी क्रक दसिीं ऄनुसूची का पैरा 3
वजसमें दल विभाजन को छू ट दी गइ है, वनरवसत कर क्रदया जाए।
 91िें संशोधन ने 2003 से विभाजन को ऄमान्य घोवषत कर क्रदया। पैरा 3 वनरवसत कर क्रदया गया
है। दल का विभाजन करके बाहर जाने िाला सदस्य वनरर्तहत हो जाएगा।
आस संबध
ं में वनणाय कौन करे गा?
 कोइ सदस्य वनरर्तहत हो गया है या नहीं आस प्रश्न का वनणाय ईस सदन का सभापवत या ऄध्यक्ष
करे गा। यह विवनिय ऄंवतम होगा।
न्यायालयों की भूवमका
 न्यायालय आस बात की परीक्षा कर सकते हैं क्रक क्या प्रावधकारी का काया शवक्त बाह्य है। कोइ भी
काया वनम्नवलवखत कारणों से शवक्त बाह्य हो सकता हैः
(i) िह विवध के क्रकसी अज्ञापक ईपबंध (mandatory Provision) का ईल्लंघन करता है।
(ii) िह ऄसद्भािपूिक
ा क्रकया गया है और आसवलए दूवषत है।
(iii) िह शवक्त का अभासी प्रयोग है।
(iv) िह बाहरी या ऄसंगत कारणों पर अधाररत है।
(v) िह नैगर्तसक न्याय के वनयमों का ईल्लघंन करता है।
ऄध्यक्ष/सभापवत ऄवधकरण है
 क्रकहोतो होलोहन मामले में न्यायालय ने यह संप्रेक्षण क्रकया क्रक 10िीं ऄनुसच
ू ी के ऄधीन ऄध्यक्ष
या सभापवत ऄवधकरण के रूप में काया करता है। आस हैवसयत में िह ईच्च न्यायालय और ईच्चतम
न्यायालय की ऄवधकाररता के ऄधीन है। आस ईपबंध का एक मुख्य दोष यह है क्रक सामान्यतः
प्रत्येक ऄध्यक्ष राजनीवतक पूिाग्रह से ग्रस्त होता है। ऄध्यक्ष की पदािवध सदन के बहुमत पर
अवित होती है आसवलए पूिाग्रह का संदह े वनराधार नहीं कहा जा सकता।

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वनयम बनाने की शवक्त


 ऄध्यक्ष और सभापवत को 10िीं ऄनुसूची को प्रभािी करने के वलए वनयम बनाने की शवक्त दी गइ
है।
दल-बदल क़ानून के लाभ
 राजनीवतक वस्थरता लाता है।
 दल में ऄनुशासन को बढ़ािा देता है।
 मतदाताओं के साथ विश्वास के सेतु को सुदढ़ ृ करता है।
अलोचना
 यह सांसदों की ऄवभव्यवक्त की स्ितंत्रता को कम कर देता है ।
 यह पाटी वहहप के िारा जनता के प्रवत सांसदों की जिाबदेवहता को कम कर देता है।
 भारतीय कानूनों में ऄभी भी कइ ऐसी खावमयां हैं वजसके कारण ऄभी तक दल बदल पर पूरी तरह
से रोक नहीं लग पायी है।
सुधार के वलए सुझाि
 बांग्लादेश में, आस तरह के मामले को ऄध्यक्ष िारा तटस्थ वनकाय के सम्मुख भेज क्रदया जाता है।
 के न्या में, ईच्च न्यायालय में ऄपील के माध्यम से ऄध्यक्ष के वनणाय को बदला जा सकता है।
 मसगापुर में, ऄंवतम वनणाय पूरी संसद िारा वलया जाता है।
 क्रदनेश गोस्िामी सवमवत के ऄनुसार, वनिााचन अयोग की सलाह पर मामले का वनणाय राष्ट्रपवत या
राज्यपाल के िारा क्रकया जाना चावहए।
 दल के भीतर ऄसंतोष को दल बदल के रूप में नहीं वलया जाना चावहए।
 ऄध्यक्ष पद की व्यिस्था विटेन के तजा पर की जानी चावहए।
 ऄंततः यह एक साधारण विवध का मामला नहीं है जहााँ मनुष्य आसके प्रािधानों का वनणाय करे । यह
नैवतकता का विषय ऄवधक है।
सदन के ऄवधकाररयों (ऄध्यक्ष, ईपाध्यक्ष, और ईपसभापवत) के संबध
ं में आस संबध
ं में प्रािधान
 यक्रद िे स्िेच्छा से ऄपनी पाटी की सदस्यता का त्याग करते हैं, तो ईन्हें ऄयोग्य घोवषत नहीं क्रकया
जाएगा। यक्रद ऄध्यक्ष ऄपने पद के दौरान ऄपनी पाटी को छोड़ क्रकसी ऄन्य पाटी की सदस्यता
स्िीकार करता है, तो यह ऄयोग्यता के ऄधीन होगा। ऄध्यक्ष ऄपने पद से त्यागपत्र के बाद एक
सामान्य सदस्य बन जाता है और के िल ऄपने मूल दल में ही शावमल हो सकता है न क्रक क्रकसी
ऄन्य दल में।
 साधारण सदस्यों की ऄयोग्यता से सम्बंवधत मामलों में, ऄध्यक्ष या सभापवत का वनणाय ऄंवतम
होता है। ऄध्यक्ष, ईपाध्यक्ष या ईपसभापवत की ऄयोग्यता से संबंवधत मामले में, सदन आस ईद्देश्य
के वलए क्रकसी व्यवक्त को चुन सकता है। आस व्यवक्त के िारा वलया गया वनणाय ऄंवतम होगा।
स्थानों का ररक्त होना
संसद का कोइ सदस्य वनम्नवलवखत मामलों में ऄपने स्थान को ररक्त करे गा:
a) दोहरी सदस्यता:
 यक्रद कोइ व्यवक्त दोनों सदनों का सदस्य चुन वलया जाता है तो ईसे पररणाम घोवषत क्रकए जाने के
10 क्रदन के भीतर यह संसवू चत करना होगा क्रक िह क्रकस सदन में काया करना चाहता है। यक्रद िह
ऐसा नहीं करता है तो दोनों में से एक सदन में ईसका स्थान ररक्त हो जाएगा। आसी तरह,
 कोइ व्यवक्त यक्रद संसद और राज्य विधानमंडल का सदस्य चुन वलया जाता है तो ईसे 14 क्रदनों के
भीतर राज्य विधानमंडल से ऄिश्य त्यागपत्र देना होगा; ऄन्यथा संसद में ईसका स्थान ररक्त माना
जाएगा।
b) वनरहाता: यक्रद कोइ व्यवक्त संविधान के ऄनु. 102 में िर्तणत प्रािधानों के तहत ऄयोग्य पाया जाता है
तो ईसका स्थान तुरंत ररक्त हो जाएगा।

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c) त्यागपत्र : कोइ सदस्य ऄध्यक्ष या सभापवत (सदन के ऄनुसार) को वलवखत रूप में ऄपना त्यागपत्र
सौंप सकता है। त्यागपत्र स्िीकार होते ही ईसका स्थान ररक्त हो जाता है। हालााँक्रक, ऄध्यक्ष/सभापवत
यक्रद त्यागपत्र को स्िैवच्छक या िास्तविक नहीं पाता है तो िह त्यागपत्र ऄस्िीकृ त भी कर सकता है।
d) वबना ऄनुमवत के ऄनुपवस्थत: ऄध्यक्ष क्रकसी स्थान को ररक्त घोवषत कर सकता है, यक्रद सदस्य वबना

ऄनुमवत के सदन की सभी बैठकों से लगातार 60 क्रदनों तक ऄनुपवस्थत रहा हो। आन 60 क्रदनों की
ऄिवध की गणना में, सदन के स्थगन या सत्रािसान की लगातार चार क्रदनों से ऄवधक ऄिवध, को
शावमल नहीं क्रकया जाता है।
vi) िेतन और भत्ते: संसद के सदस्यों को संसद िारा वनधााररत िेतन ि भत्ते प्राप्त करने का ऄवधकार है।
यद्यवप संविधान में पेंशन का कोइ प्रािधान नहीं क्रकया गया है, लेक्रकन संसद ने सदस्यों के वलए पेंशन
का प्रािधान क्रकया है। लोकसभा ऄध्यक्ष और राज्यसभा सभापवत के िेतन और भत्तों का वनधाारण भी
संसद िारा क्रकया जाता है। ये भारत की संवचत वनवध पर भाररत होते हैं और संसद में मतदान योग्य
नहीं होते हैं।

5. सं स द के पीठासीन ऄवधकारी
5.1. लोक सभा ऄध्यक्ष

 लोकसभा ऄध्यक्ष का पद संसदीय लोकतंत्र में एक अधारभूत पद होता है। आस पद के विषय में यह
कहा जाता है क्रक संसद के सदस्य ऄपने संसदीय वनिााचन क्षेत्रों का प्रवतवनवधत्ि करते हैं जबक्रक
ऄध्यक्ष सदन के पूणा प्रावधकार का प्रवतवनवधत्ि करता है।
 ऄध्यक्ष को संसदीय लोकतंत्र की परं पराओं के सच्चे ऄवभभािक के रूप में देखा जाता है। ईसकी
ऄनोखी वस्थवत आस तथ्य से स्पष्ट होती है क्रक ईसे देश के िरीयता िम में ऄत्यंत ईच्च स्थान क्रदया
गया है। ईसे भारत के मुख्य न्यायधीश के साथ सातिें स्थान पर रखा गया है। भारत में, संसदीय
कायािावहयों एिं पद की स्ितंत्रता ि वनष्पक्षता की रक्षा करने हेतु देश के संविधान के माध्यम से,
लोकसभा के प्रक्रिया एिं काया संचालन वनयमों के माध्यम से तथा संसदीय परम्पराओं ि प्रथाओं के
माध्यम से लोकसभा ऄध्यक्ष को पयााप्त शवक्तयां दी गयी हैं।
चुनाि
 संसद के प्रत्येक सदन के ऄपने ऄवधकारी होते हैं जो ईसके ऄवधिेशनों की ऄध्यक्षता करते हैं। लोक
सभा की दशा में ऄनु. 93 में दो ऄवधकाररयों (ऄध्यक्ष और ईपाध्यक्ष) का ईल्लेख हैं। लोक सभा के
सदस्य ऄपने में एक को ऄध्यक्ष और एक को ईपाध्यक्ष चुनते हैं। जब कभी ऄध्यक्ष या ईपाध्यक्ष का
पद ररक्त होता है तब सदन ईस स्थान को भरने के वलए ऄपने सदस्यों में से क्रकसी एक को
पीठासीन अवधकारी के रूप में चुनता है।
 प्रत्येक साधारण वनिााचन के पिात् राष्ट्रपवत िारा वनयत क्रदन को लोक सभा ऄध्यक्ष का वनिााचन
करती है (वनयम 7)। ईपाध्यक्ष का वनिााचन ऄध्यक्ष िारा वनयत तारीख को होता है। लोक सभा के
विघटन पर ऄध्यक्ष ऄपना पद ररक्त नहीं करता है। िह विघटन के पिात् होने िाले लोक सभा के
प्रथम ऄवधिेशन के ठीक पूिा तक ऄध्यक्ष बना रहता है। ऄध्यक्ष और ईपाध्यक्ष का पद वनम्नवलवखत
पररवस्थवतयों में ररक्त हो जाता हैः
o जब िह लोक सभा का सदस्य न रहे।
o ऄध्यक्ष, ईपाध्यक्ष को संबोवधत ऄपने हस्ताक्षर सवहत लेख िारा पद त्याग सकता है। आसी
प्रकार ईपाध्यक्ष, ऄध्यक्ष को संबोवधत त्यागपत्र देकर ऄपना पद त्याग सकता है।
o ऄपने पद से लोक सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पाररत संकल्प िारा हटाया
जा सकता है।

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ऄध्यक्ष को हटाया जाना


 ऄध्यक्ष को हटाने का संकल्प प्रस्तावित करने के 14 क्रदन पहले संकल्प प्रस्तावित करने के अशय
की सूचना दी जानी चावहए। जब ऄध्यक्ष को हटाने के संकल्प पर विचार चल रहा हो तब ऄध्यक्ष
पीठासीन नहीं होगा ककतु ईसे सभा में बोलने और कायािावहयों में ऄन्यथा भाग लेने का ऄवधकार
होगा। ईसे संकल्प पर प्रथमतः मत देने का ऄवधकार होगा। यक्रद मत बराबर हों तो ईसे वनणाायक
मत देने का ऄवधकार नहीं होगा (ऄनु. 96)।
 ऄध्यक्ष को तभी हटाया जा सकता है जब लोक सभा सदन के समस्त सदस्यों को बहुमत से हटाने
का संकल्प पाररत करे , सामान्य बहुमत से नहीं।
 ऄध्यक्ष के रूप में वनिाावचत होने के वलए कोइ विशेष योग्यता वनधााररत नहीं की गयी है। संविधान
के ऄनुसार लोकसभा ऄध्यक्ष का के िल सदन का सदस्य होना अिश्यक है।
 एक नि गरठत सदन का पहला काया ऄध्यक्ष का चुनाि करना है। सामान्यतः सत्ताधारी दल से
जुड़ा सदस्य ऄध्यक्ष के रूप में चुना जाता है।
 हालांक्रक गत िषों में एक स्िस्थ परं परा विकवसत हुइ है वजसके तहत सत्तारूढ़ दल सदन में ऄन्य
दलों तथा समूहों के साथ ऄनौपचाररक विचार- विमशा के पिात् ऄपने ईम्मीदिार को मनोनीत
करता है। यह परं परा सुवनवित करती है क्रक एक बार वनिाावचत होने के पिात् ऄध्यक्ष को सदन के
सभी िगों का सम्मान प्राप्त हो। ऐसे ईदाहरण भी मौजूद हैं जब ऄध्यक्ष सत्तारूढ़ दल या गठबंधन
का सदस्य नहीं था।
 क्रकसी निगरठत सदन में प्रोटेम स्पीकर (तात्कावलक/सामवयक ऄध्यक्ष) ईस बैठक की ऄध्यक्षता
करता है वजसमें लोकसभा ऄध्यक्ष का चुनाि क्रकया जाता है।
भूवमका और काया
 ऄध्यक्ष का मुख्य काया सदन की ऄध्यक्षता करना तथा व्यिवस्थत तरीके से सदन की बैठकें
संचावलत करना है। कोइ भी सदस्य वबना ईसकी ऄनुमवत के सदन में भाषण नहीं दे सकता है।
ऄध्यक्ष क्रकसी सदस्य से ईसके भाषण को समाप्त करने के वलए कह सकता है और यक्रद सदस्य
ईसकी बात नहीं मानता तो िह भाषण को ररकॉडा न करने का अदेश दे सकता है।
 सभी विधेयक, प्रवतिेदन, प्रस्ताि और संकल्प ऄध्यक्ष की ऄनुमवत से ही सदन में पेश क्रकये जाते हैं।
िह प्रस्ताि या विधेयक को मतदान के वलए सदन के समक्ष रखता है।
 िह प्रथमतः मतदान में भाग नहीं लेता है, क्रकन्तु दोनों पक्षों के बीच मतों की बराबरी (टाइ) की
वस्थवत ईत्पन्न होने पर िह ऄपने वनणाायक मत का प्रयोग कर सकता है।
 सभी संसदीय मामले में ईसका वनणाय ऄंवतम हैं। िह सदस्यों िारा ईठाये गए पॉआं ट्स ऑफ़ ऑडार
(औवचत्य प्रश्न) पर भी ऄपना वनणाय देता है और ईसका वनणाय ऄंवतम होता है।
 िह सदस्यों के ऄवधकारों तथा विशेषावधकारों का संरक्षक है।
 िह सदन को स्थवगत करता है या गणपूर्तत के ऄभाि में बैठक को वनलंवबत करता है।
 िह 10िीं ऄनुसच
ू ी के प्रािधानों के तहत दलबदल के मामले में क्रकसी सदस्य को ईसकी सदस्यता
के वलए ऄयोग्य ठहरा सकता है। आस सन्दभा में ऄध्यक्ष का वनणाय न्यावयक समीक्षा के ऄधीन है।
 िह सदस्यों के त्यागपत्र को स्िीकार करता है और त्यागपत्र की यथाथाता के बारे में वनणाय करता
है।
 लोक सभा और राज्य सभा के संयुक्त ऄवधिेशन के मामले में लोकसभा ऄध्यक्ष ही बैठक की
ऄध्यक्षता करता है।
 जब धन विधेयक वनम्न सदन से ईच्च सदन के वलए प्रेवषत क्रकया जाता है, तो लोकसभा ऄध्यक्ष
विधेयक को प्रमावणत करता है क्रक यह धन विधेयक है। कोइ विधेयक धन विधेयक है या नहीं आस
सन्दभा में लोकसभा ऄध्यक्ष का वनणाय ऄंवतम है।
 िह ऄंतर संसदीय संघ के भारतीय संसदीय समूह के पदेन ऄध्यक्ष के रूप में काया करता है। िह देश
में विधायी वनकायों के पीठासीन ऄवधकाररयों के सम्मेलन के पदेन ऄध्यक्ष के रूप में भी काया
करता है।
 िह लोकसभा की सभी संसदीय सवमवतयों के ऄध्यक्षों की वनयुवक्त और ईनके कामकाज की देख
रे ख करता है।
 िह काया मंत्रणा सवमवत, वनयम सवमवत और सामान्य प्रयोजन सवमवत का ऄध्यक्ष होता है।

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5.2. प्रोटे म स्पीकर (सामवयक ऄध्यक्ष)

 ऄंवतम लोकसभा का ऄध्यक्ष निगरठत लोकसभा की पहली बैठक से ठीक पूिा ऄपना पद त्याग देता
है। ऄतः राष्ट्रपवत िारा अमतौर पर लोकसभा के िररष्ठतम सदस्य को प्रोटेम स्पीकर के तौर पर
वनयुक्त क्रकया जाता है। राष्ट्रपवत िारा ईसे शपथ क्रदलिाइ जाती है।
 प्रोटेम स्पीकर के पास लोकसभा ऄध्यक्ष की सभी शवक्तयां होती हैं। िह नि वनिाावचत लोकसभा
की पहली बैठक की ऄध्यक्षता करता है। िह नए ऄध्यक्ष का चुनाि करने के वलए सदन को सक्षम
बनाता है। सामान्यतः प्रोटेम स्पीकर का के िल एक ही काया होता है और िह है निवनिाावचत
सदस्यों को शपथ क्रदलाना।
5.3. ईपाध्यक्ष
 ईपाध्यक्ष लोकसभा का सदस्य होता है वजसे सदन ईपाध्यक्ष के रूप् में वनिाावचत करता है।
ईपाध्यक्ष का वनिााचन ऄध्यक्ष के वनिााचन के पिात् होता है। 11िीं लोक सभा (1996) के बाद
से सभी दल आस बात पर सहमत हुए क्रक ईपाध्यक्ष का पद विपक्षी दल के सदस्य को क्रदया जाना
चावहए। आसके पहले ऄध्यक्ष और ईपाध्यक्ष दोनों ही सत्ताधारी दल के सदस्य होते थे। ईपाध्यक्ष,
ऄध्यक्ष को संबांवधत त्याग-पत्र देकर ऄपना पद त्याग सकता है। यक्रद िह लोक सभा का सदस्य
नहीं रहता तो ईसका पद ररक्त हो जाएगा।
 ईपाध्यक्ष को, लोक सभा के समस्त सदस्यों के बहुमत से पाररत संकल्प िारा ऄपने पद से हटाया
जा सकता है। जब ऄध्यक्ष का पद ररक्त होता है या ऄध्यक्ष बैठक में ऄनुपवस्थत होता है तो
ईपाध्यक्ष सदन में पीठासीन होता है। जब ऄध्यक्ष का पद ररक्त होता है तो ईपाध्यक्ष ऄध्यक्ष के पद
से जुड़े हुए सभी कृ त्यों का वनिाहन करता है और कताव्यों का पालन करता है। जब ईपाध्यक्ष सदन
में पीठासीन होता है तो प्रथमतः मत देने का हकदार नहीं होता। ककतु बराबर मत होने की दशा में
वनणाायक मत दे सकता है।
 सदन के पीठ पर रहते हुए ईपाध्यक्ष को व्यिस्था बनाए रखना होता है और वनयमों का वनिाचन
करना पड़ता है। जब भी िह क्रकसी संसदीय सवमवत के सदस्य के रूप में वनयुक्त क्रकया जाता है, तो
िह स्ितः आसका ऄध्यक्ष बन जाता है।
ऄध्यक्ष और ईपाध्यक्ष दोनों की ऄनुपवस्थवत में लोक सभा की ऄध्यक्षता
लोकसभा के प्रक्रिया तथा कायासंचालन वनयम में ईपबंध क्रकया गया है क्रक सभा के अरं भ में ऄथिा
समय-समय पर जैसा मामला हो, ऄध्यक्ष सदस्यों के बीच से दस सभापवतयों से ऄनवधक एक तावलका
नामवनर्ददष्ट करे गा वजसमें से कोइ एक ऄध्यक्ष और ईपाध्यक्ष दोनों की ऄनुपवस्थवत में ऄध्यक्ष ऄथिा
ईसकी ऄनुपवस्थवत में ईपाध्यक्ष िारा ऄनुरोध क्रकए जाने पर सभा की ऄध्यक्षता करे गा।

5.4.राज्य सभा का सभापवत


 भारत का ईप-राष्ट्रपवत राज्यसभा का पदेन सभापवत होता है। िह राज्यसभा की बैठकों की
ऄध्यक्षता करता है। ईसकी ऄनुपवस्थवत में ईपसभापवत सदन की बैठक की ऄध्यक्षता करता है।
ईपसभापवत को सदन के सदस्यों िारा स्ियं में से ही चुना जाता है। ईपसभापवत को राज्य सभा के
सदस्यों के बहुमत िारा हटाया जा सकता है।
 क्रकन्तु सभापवत (ईपराष्ट्रपवत) को ईसके पद से, के िल राज्य सभा के सदस्यों के बहुमत िारा पाररत
तथा लोकसभा की सहमवत प्राप्त संकल्प िारा ही हटाया जा सकता है। दोनों मामलों में, पदधारक
को 14 क्रदनों की पूिा सुचना दी जानी अिश्यक है।
 िह तब तक राज्य सभा का सभापवत बना रहता है जब तक ईसे राष्ट्रपवत पद की अकवस्मक ररवक्त
के दौरान राष्ट्रपवत के रूप में पद ग्रहण न करना पड़े। ऐसी दशा में राज्य सभा का ईपसभापवत
राज्य सभा के सभापवत के कताव्यों का वनिाहन करता है।
 यक्रद संविधान िारा लोक सभा ऄध्यक्ष को प्रदत्त कु छ विशेष ऄवधकारों (जैसे एक विधेयक को धन
विधेयक के रूप में प्रमावणत करना, दोनों सदनों के संयुक्त ऄवधिेशन की ऄध्यक्षता करना) को छोड़
क्रदया जाए तो राज्य सभा के सभापवत के काया लोकसभा ऄध्यक्ष के कायों के लगभग समान ही
होते हैं।

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सभापवत और ईप-सभापवत, दोनों की ऄनुपवस्थवत में राज्य सभा की कायािाही के दौरान पीठासीन
ऄवधकारी
राज्य सभा के प्रक्रिया तथा काया संचालन विषयक वनयम के वनयम 8 के ऄधीन राज्य सभा के सभापवत,
ईपसभाध्यक्ष के पैनल के वलए छ: सदस्यों को नामवनदेवशत करते हैं, वजनमें से एक सदस्य सभापवत और
ईपसभापवत दोनों की ऄनुपवस्थवत में सभा की ऄध्यक्षता करता है। जब सभापवत, ईपसभापवत और
ईपसभाध्यक्ष में से कोइ भी ऄध्यक्षता करने के वलए ईपवस्थत नहीं होता है तब सभा क्रकसी ऄन्य ईपवस्थत
सदस्य के ऄध्यक्षता करने के बारे में वनणाय कर सकती है।

6. सं स दीय सवचि
िेस्टममस्टर प्रणाली में संसदीय सवचि संसद का एक सदस्य होता है जो ऄपने कायों िारा ऄपने से
िररष्ठ मंवत्रयों की सहायता करता है। मूल रूप से आस पद का ईपयोग भािी मंवत्रयों के प्रवशक्षण के वलये
क्रकया जाता था।
 आस पद का सृजन समय-समय पर ऄनेक राज्यों जैसे पंजाब, हररयाणा, क्रदल्ली, राजस्थान अक्रद में
क्रकया गया है।
 हालााँक्रक ईच्च न्यायालय में विवभन्न यावचकाओं िारा संसदीय सवचिों की वनयुवक्तयों को चुनौती दी
गइ है।
 जून 2015 में कलकत्ता ईच्च न्यायालय ने पविम बंगाल में 24 संसदीय सवचिों की वनयुवक्त को
ऄसंिैधावनक ठहराते हुए रद्द कर क्रदया था।
 आसी प्रकार के कदम बंबइ ईच्च न्यायालय, वहमाचल प्रदेश ईच्च न्यायालय, क्रदल्ली ईच्च न्यायालय
अक्रद िारा भी ईठाए गए थे।
आस पद के साथ समस्या क्या है?
 संसदीय सवचि, मूल रूप से कायापावलका और विधावयका के बीच शवक्त-पृथिरण के वसद्धांत का
ईल्लंघन करता है।
 सैद्धांवतक रूप से विधावयका सरकार को वनयंवत्रत करती है क्रकन्तु िास्तविकता में प्रायः यह देखा
गया है क्रक सरकार जब तक सदन में बहुमत में होती है तब तक िह विधावयका को वनयंवत्रत करती
है। विधायकों को खुश करने एिं लाभ पहुाँचाने के वलए ईन्हें वनगमों के ऄध्यक्ष के पद, विवभन्न
मंत्रालयों के संसदीय सवचिों के पद तथा लाभ के ऄन्य पद प्रदान कर क्रदये जाते हैं ताक्रक िे सरकार
से सहयोगात्मक रुख बनाये रखें।
 संसदीय सवचिों की वनयुवक्त, शवक्त-पृथिरण के वसद्धांत से संबंवधत दो महत्िपूणा संिध
ै ावनक
प्रािधानों के विपरीत है:
o लाभ के पद की धारा: संविधान के ऄनुच्छेद 102(1)(क) और ऄनुच्छेद 191(1)(क) के
ऄधीन, क्रकसी व्यवक्त को संसद या क्रकसी विधानसभा/पररषद के सदस्य के रूप में ऄयोग्य
घोवषत क्रकया जाएगा यक्रद िह कें द्रीय या क्रकसी राज्य सरकार के तहत ‘लाभ का पद’ धारण
करता है (ऐसा तब नहीं होगा यक्रद संसद या राज्य विधावयका क़ानून बनाकर ईक्त पद को
धारण करने िाले को ऄयोग्य घोवषत न क्रकए जाने का ईपबंध कर दे)।
o आसके पीछे मूलभूत विचार विधायकों के विधायी कायों और ईन्हें वमले पद के कताव्यों के बीच
वहतों के टकराि को टालना था।
 मंवत्रयों की संख्या बल की सीमाओं की धारा: संसदीय सवचि का पद संविधान के ऄनुच्छेद 164
(1A) से ऄसंगत है। आसके ऄनुसार राज्य मंवत्रमंडल में मंवत्रयों की संख्या राज्य विधानसभा के
सदस्यों की कु ल संख्या का ऄवधकतम 15 प्रवतशत होनी चावहए। क्योंक्रक संसदीय सवचि भी राज्य
मंत्री का पद होता है, ऄतः आस पद के सृजन से आस सीमा का ईल्लंघन हो सकता है।

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पदों के समथान में तका


 संविधान विधावयका को लाभ के क्रकसी भी पद को धारण करने िाले को छू ट प्रदान करने हेतु
कानून पाररत करने की ऄनुमवत प्रदान करता है। पहले भी राज्यों और संसद िारा ऐसा क्रकया जा
चुका है। यू.सी. रमण मामले में सुप्रीम कोटा ने आसे बरकरार रखा है।
 मंवत्रयों की वनयुवक्त राष्ट्रपवत/राज्यपाल िारा की जाती है। िे ईन्हें पद और गोपनीयता की शपथ
क्रदलाते हैं। आन संिैधावनक अिश्यकताओं को पूरा क्रकए वबना क्रकसी व्यवक्त को मंत्री नहीं माना जा
सकता। ऄनुच्छेद 239AA(4) के तहत संसदीय सवचि मंत्री नहीं माने जाते हैं, क्योंक्रक ईन्हें
राष्ट्रपवत िारा वनयुक्त नहीं क्रकया जाता और ईनके िारा ईन्हें पद और गोपनीयता की शपथ भी
नहीं क्रदलाइ जाती।

7. लोकसभा महासवचि
 लोकसभा महासवचि सदन का महत्िपूणा ऄवधकारी होता है। िह सभी संसदीय क्रिया-कलापों,
प्रक्रियाओं तथा प्रथाओं के सन्दभा में ऄध्यक्ष का, सदन का तथा सदस्यों का सलाहकार होता है। एक
स्थायी ऄवधकारी के रूप में िह सभापटल का प्रमुख ऄवधकारी होता है। िह संसदीय परं पराओं
और प्रथाओं का रक्षक होता है।
 महासवचि का राजनीवतक मामलों से कोइ संबंध नहीं होता है। आससे ऄपेक्षा की जाती है क्रक
ईसका दृवष्टकोण दलगत राजनीवत से रवहत तथा वनष्पक्ष हो, क्योंक्रक सदन संबंधी क्रियाकलापों में
ईसकी भूवमका बहुत ही व्यापक होती है। आसे ईन ऄवधकाररयों में से चुना जाता है वजसने सदन के
सवचिालय में विवभन्न पदों पर काया करते हुए सराहनीय काया क्रकया हो। महासवचि के रूप में
आसकी वनयुवक्त ऄध्यक्ष िारा होती है।
 आसके पद की स्ितंत्रता को बनाए रखने के वलए कइ रक्षोपाय क्रकए गए हैं वजससे क्रक िह ऄपना
काया वनष्पक्ष एिं वनभीक होकर कर सके । सदन में ईसकी अलोचना नहीं की जा सकती है तथा
सदन के बाहर ईसके सदन संबंधी क्रिया-कलापों पर चचाा नहीं की जा सकती है। िह सीधे ऄध्यक्ष
के प्रवत ईत्तरदायी होता है।
 महासवचि राष्ट्रपवत की ओर से सदन के ऄवधिेशन में ईपवस्थवत होने के वलए सदस्यों को अमंत्रण
जारी करता है। िह ऄध्यक्ष की ऄनुपवस्थवत में विधेयकों को प्रमावणत करता हैं, सदन की ओर से
संदश
े भेजता है तथा प्राप्त करता है। िह ऄध्यक्ष की ओर से सदस्यों, मंवत्रयों तथा ऄन्य के साथ पत्र
व्यिहार करता है।
 िह सदन और आसके सवचिालय के वित्त एिं लेखाओं पर वनयंत्रण रखता है। िह सदन का
कायािाही िृतांत तैयार करिाता है।
 महासवचि का यह कताव्य है क्रक िह सवचिालय के सांगठवनक स्िरूप् को हमेशा आस प्रकार बनाए
रखे वजससे क्रक संसदीय काया कु शलतापूिक
ा क्रकया जा सके ।
 िह संसदीय कायों के वलए राष्ट्रीय और ऄंतरााष्ट्रीय घटनाओं की जानकारी रखता है।
 महासवचि ऄपने ऄवधकार से कइ सारे विधायी, प्रशासवनक एिं कायापावलका कृ त्यों का वनिाहन
करता है। िह सदस्यों को सेिाएं एिं सुविधाएं ईपलब्ध कराता हैं। िह सदन के पररसर में सुरक्षा
को भी सुवनवित करता है।
 संसदीय संग्रहालय और ऄवभलेखागार के सिोच्च ऄवधकारी के रूप में िह संसद की विरासत का
रक्षक होता है।
 िह लोकसभा के ऄध्यक्ष के नाम से बहुत से ऐसे काया करता है जो ऄध्यक्ष का कायाक्षेत्र है। आस
प्रकार का काया िह ऄध्यक्ष की ओर से ईसकी सहमवत से ही करता है।
 चूंक्रक महासवचि को संसदीय क्रियाकलापों एिं प्रथाओं के बारे में बहुत ऄनुभि होता है, ऄतः िह
कइ विधेयकों के वनमााण के संदभा में तकनीकी जानकारी प्राप्त करने एिं संसदीय गवतविवधयों के
बारे में जानकारी प्राप्त करने के एक स्रोत के रूप में भी होता है।

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लोक सभा सवचिालय के कायाकरण का संवक्षप्त वििरण


 लोक सभा सवचिालय एक स्ितंत्र वनकाय है जो लोक सभा ऄध्यक्ष के पूणा वनयंत्रण और मागावनदेशन
में काया करता है। लोक सभा ऄध्यक्ष को ईनके संिैधावनक और सांविवधक ईत्तरदावयत्िों के वनिाहन
में लोक सभा के महासवचि (वजनका िेतन, पद और दजाा अक्रद भारत सरकार के सिोच्च रैं क के
ऄवधकारी ऄथाात् मंवत्रमंडल सवचि के बराबर होता है), ऄपर सवचि, संयुक्त सवचि स्तर के
ऄवधकाररयों और सवचिालय के विवभन्न स्तर के ऄन्य ऄवधकारी तथा कमाचारी सहयोग प्रदान करते
हैं।
 ऄपर सवचि/संयुक्त सवचि स्तर के ऄवधकारी को वनदेशक ऄथिा ईप-सवचि और समकक्ष रैं क के
ऄवधकारी सहयोग प्रदान करते हैं। बीच के स्तर पर ऄिर सवचि या सहायक वनदेशक और समकक्ष
रैं क के ऄवधकारी होते हैं और सबसे वनचले स्तर पर कायाकारी ऄवधकारी/िररष्ठ कायाकारी
सहायक/कायाकारी सहायक और समकक्ष ऄवधकारी होते हैं। आसके ऄवतररक्त, पररचारक सेिा के
साथ-साथ वलवपकीय और सवचिालयीय सहायता भी ईपलब्ध कराइ जाती है।
 ितामान में, कु ल दस सेिाएं हैं वजनका िगीकरण कायों के अधार पर क्रकया गया है और जो सदन
और ईसके सवचिालय की विवशष्ट अिश्यकताओं को पूरा करती हैं। प्रत्येक सेिा के काया एक-दूसरे के
पूरक हैं और प्रत्येक सेिा की विवशष्ट और वभन्न प्रकृ वत के कारण ईनके ऄवधकाररयों तथा कमाचाररयों
की ऄदला-बदली सामान्यतः नहीं की जाती है।

8. सं स द में ने ता
8.1. सदन का ने ता

 लोकसभा के वनयमों के ऄनुसार ‘सदन के नेता’ से अशय प्रधानमंत्री से है, यक्रद िह लोकसभा का
सदस्य हो। प्रधानमंत्री के लोकसभा का सदस्य न होने की वस्थवत में प्रधानमंत्री िारा नावमत कोइ
मंत्री जो लोकसभा का सदस्य हो, सदन के नेता के रूप में काया करता है। आसी प्रकार राज्यसभा में
सदन का नेता प्रधानमंत्री िारा नावमत कोइ ऐसा मंत्री होता है जो राज्यसभा का सदस्य हो।
ऄमेररका में भी यही पद्धवत प्रचवलत है और िहां आसे ‘बहुमत का नेता (Majority Leader) कहा
जाता है।
8.2. विपक्ष का ने ता

 संसद के क्रकसी सदन में ईसकी कु ल सदस्य संख्या से कम से कम 10 प्रवतशत सीटें हावसल करने
िाली सबसे बड़ी विपक्षी पाटी का नेता, सदन में विपक्ष का नेता कहा जाता है। आसका मुख्य काया
सरकार की नीवतयों की रचनात्मक अलोचना करना तथा िैकवल्पक सरकार का गठन करना है।
 लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष के नेता को िषा 1977 में िैधावनक दजाा प्रदान क्रकया गया।
विपक्ष के नेता को कै वबनेट मंत्री के समकक्ष िेतन, भत्ते तथा सुविधाएाँ ईपलब्ध हैं। ऄमेररका में भी
यह प्रणाली प्रचवलत है और िहां आसे ‘ऄल्पमत के नेता (minority leader)’ के नाम से जाना
जाता है।
8.3. वहहप (whip)

 प्रत्येक राजनीवतक पाटी का ऄपना वहहप (सचेतक) होता है, वजसे पाटी िारा सहायक नेता के रूप
में वनयुक्त क्रकया जाता है।
 ऄपनी पाटी के सदस्यों की ऄवधक संख्या में ईपवस्थवत सुवनवित करना एिं क्रकसी विशेष मुद्दे के
पक्ष या विपक्ष में ईनका समथान प्राप्त करना, ईसका ईत्तरदावयत्ि होता है।
 िह संसद में ईनके व्यिहार का विवनयमन एिं वनगरानी करता है।
 िह पाटी के नेता का वनणाय सदस्यों को एिं पाटी के सदस्यों की राय पाटी के नेता तक पहुंचाता
है।

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 सदस्यों से वहहप िारा क्रदए गए वनदेशों का पालन करने की ऄपेक्षा की जाती है। ऐसा करने में
विफल रहने में पाटी की सदस्यता से ऄयोग्यता या दल-बदल विरोधी कानून के ऄंतगात पाटी से
वनष्कासन जैसी ऄनुशासनात्मक कारा िाइयााँ की जा सकती हैं।
 भारत में वहहप के पद का ईल्लेख संविधान में नहीं है। क्रफर भी, सदन के वनयमों और संसदीय
कानून में िमशः आसका ईल्लेख है।
 यह संसदीय सरकार के कन्िेंशनों पर अधाररत है। भारत में, वहहप की ऄिधारणा औपवनिेवशक
विरटश शासन से ली गइ थी।
हाल ही में, राजनीवतक पार्टटयों िारा ऄनेक मुद्दों पर वहहप जारी क्रकए जाने पर प्रश्न वचन्ह लगाया
गया है।

संयक्त
ु राज्य ऄमेररका और विटेन में वहहप
 संयुक्त राज्य ऄमेररका में, पाटी के वहहप का काया, यह पता लगाना है क्रक विधेयक के पक्ष में क्रकतने

विधायक है और क्रकतने आसके विपक्ष में [एिं जहााँ तक संभि हो, ईन्हें आस मुद्दे पर पाटी की
विचारधारा के ऄनुसार मतदान करने के वलए सहमत करना।
विटेन में, सामान्यतया वहहप के ईल्लंघन को गंभीरतापूिक
ा वलया जाता है। कभी-कभी आसके
पररणामस्िरूप सदस्य को पाटी से वनष्कावसत कर क्रदया जाता है। आस प्रकार का सदस्य पाटी िारा पुन:
स्िीकार क्रकए जाने तक संसद में स्ितंत्र सदस्य के रूप में बना रह सकता है।

समस्या
 अलोचकों का मानना है क्रक वहहप संबंधी वििादों में िृवद्ध के कारण, राजनीवतक दलों ने पाटी के
अंतररक लोकतंत्र को सीवमत कर क्रदया हैं। आस प्रकार व्यवक्तगत सदस्यों को ऄपने व्यवक्तगत
दृवष्टकोणों का प्रवतवनवधत्ि करने की ऄनुमवत नहीं होती है। यह पाटी के सदस्यों की भाषण और
ऄवभहयवक्त की स्ितंत्रता को प्रभावित करता है।
 यह विवभन्न मुद्दों पर 'वििशतापूणा सिासम्मवत' वनर्तमत करता है और लोकतंत्र के ईद्देश्य को

वनरथाक बना देता है, क्योंक्रक वहहप िारा पाटी सदस्यों के वलए पाटी के वनणाय का पालन करना
ऄवनिाया बना क्रदया जाता है। यह पाटी के सदस्यों को ऄपने व्यवक्तगत दृवष्टकोण या ऄपने
वनिााचन क्षेत्र की जनता के दृवष्टकोण प्रस्तुत करने की क्षमता को प्रवतबंवधत करता है।
 आस विषय पर राजनीवतक अम सहमवत वनर्तमत करने की अिश्यकता है, ताक्रक संसद में व्यवक्तगत
सदस्य के वलए राजनीवतक और नीवतगत ऄवभव्यवक्त के ऄिसरों का विस्तार क्रकया जा सके । यह
काया कइ रूपों में क्रकया जा सकता है। ईदाहरण के वलए, वहहप जारी क्रकया जाना के िल ऐसे

विधेयकों तक सीवमत क्रकया जा सकता है जो सरकार के ऄवस्तत्ि के वलए खतरा बन सकते हैं, जैसे
क्रक धन विधेयक या ऄविश्िास प्रस्ताि।
 सरकार िारा देश में ऐसे मुद्दों पर व्यापक बहस करिाइ जानी चावहए, जो लंबे समय में
लाभदायक जन भागीदारी को प्रोत्सावहत करे गी।

वहहप का महत्ि
संभि है क्रक संसद के सभी सदस्यों के दृवष्टकोण वभन्न हों, चाहे ईनकी क्रकसी भी पाटी से संबद्धता हो

(यहााँ तक क्रक ये दृवष्टकोण संबंवधत पाटी के नेतृत्ि के दृवष्टकोण से भी वभन्न हो सकते हैं)। ऐसे मामले में,
िह मतदान के समय पाटी के दृवष्टकोण का ईल्लंघन कर सकता/सकती है।

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9. सं स दीय काया िाही के साधन


9.1. प्रश्न काल

प्रश्नकाल क्रकसी संसदीय बैठक के पहले घंटे में संसद सदस्यों िारा क्रकसी प्रशासवनक क्रियाकलाप के
सन्दभा में प्रश्न पूछे जाने के वलए वनयत समय होता है। आस दौरान सम्बंवधत मंत्री पूछे गए प्रश्नों की
प्रकृ वत के ऄनुसार वलवखत या मौवखक रूप में ईत्तर देने के वलए बाध्य होते हैं। ये प्रश्न कायापावलका की
जिाबदेवहता के वलए अिश्यक ईपकरण हैं। ये प्रश्न वनम्नवलवखत प्रकार के हो सकते हैं:
 तारांक्रकत प्रश्न: तारांक्रकत प्रश्न िह होता है, वजसका मौवखक ईत्तर सदस्य सभा में चाहता है और
ईसे तारे के वचन्ह िारा विशेषांक्रकत क्रकया जाता है। ऐसे प्रश्न के ईत्तर के पिात् सदस्यों िारा
पूरक प्रश्न पूछे जा सकते हैं वजनका ईत्तर मंत्री सभा में देता है।
 ऄतारांक्रकत प्रश्न: ऄतारांक्रकत प्रश्न िह होता है वजसका सदस्य वलवखत ईत्तर चाहता है और आसका
ईत्तर मंत्री िारा सभा पटल पर रखा गया माना जाता है। आस पर पूरक प्रश्न नहीं पूछे जा सकते हैं।
 ऄल्पसूचना के प्रश्न: ऄल्प सूचना प्रश्न का संबंध क्रकसी सदस्य िारा लोक महत्ि के मामले पर
मौवखक ईत्तर के वलए दस क्रदनों से कम समय में दी गयी सूचना से है। यक्रद ऄध्यक्ष/सभापवत की
राय में प्रश्न ऄविलंबनीय महत्ि का है तो संबंवधत मंत्री से यह पूछा जाता है क्रक क्या िह ईसका
ईत्तर कम समय में देने की वस्थवत में है और यक्रद हां तो क्रकस तारीख को। यक्रद संबंवधत मत्री ईत्तर
देने को सहमत हो जाता है तो ऐसे प्रश्न का ईत्तर ईसके िारा बताए गए क्रदन को ईस क्रदन की
सूची के मौवखक ईत्तर हेतु प्रश्नों के वनपट जाने के तुरंत बाद क्रकया जाता है।
 गैर सरकारी सदस्यों से प्रश्न: कोइ प्रश्न क्रकसी गैर-सरकारी सदस्य को भी संबोवधत क्रकया जा
सकता है परं तु यह तब होता है जब ईस प्रश्न की विषय-िस्तु क्रकसी विधेयक, संकल्प ऄथिा सभा
के काया से संबंवधत क्रकसी ऄन्य मामले, वजसके वलए िह सदस्य ईत्तरदायी है, से संबंध रखती है।
ऐसे प्रश्नों के मामले में प्रक्रिया िही है जो क्रकसी मंत्री को ऐसे पररितानों के साथ, जैसा क्रक
ऄध्यक्ष/सभापवत अिश्यक समझे, संबोवधत प्रश्नों के मामले में ऄपनायी जाती है। ऐसे प्रश्न पर
ऄनुपूरक प्रश्न नहीं पूछा जा सकता।

एक क्रदन विशेष के वलए ग्राह्य प्रश्नों की ऄवधकतम सीमा:


 एक क्रदन की तारांक्रकत प्रश्न सूची में प्रश्नों की कु ल संख्या 20 होती है। ईन सभी गृहीत तारांक्रकत
प्रश्नों को, जो तारांक्रकत प्रश्न सूची में सवम्मवलत होने से रह जाते हैं, ईस क्रदन की ऄतारांक्रकत प्रश्न
सूची में रखने पर विचार क्रकया जा सकता है।
 क्रकसी एक क्रदन की ऄतारांक्रकत प्रश्न सूची में सामान्यतया 230 से ऄवधक प्रश्न नहीं होते हैं।
तथावप, आनमें ऄवधक से ऄवधक 25 प्रश्न और जोड़े जा सकते हैं, जो राष्रपवत शासन िाले
राज्य/राज्यों से संबंवधत हों।
क्रकसी सदस्य िारा दी जाने िाली प्रश्नों की सूचनाओं की संख्या पर वनबनधन:
 तारांक्रकत और ऄतारांक्रकत प्रश्नों की सूचनाओं, जो कोइ सदस्य वनयमों के ऄधीन दे सकता है, की
संख्या पर कोइ वनबनधन नहीं है। परं तु क्रकसी क्रदन की तारांक्रकत प्रश्न सूची में एक सदस्य का एक से
ऄवधक प्रश्न शावमल नहीं क्रकया जा सकता है। एक सदस्य के गृहीत क्रकए गए एक से ऄवधक
तारांक्रकत प्रश्नों को ऄतारांक्रकत प्रश्न-सूची में शावमल क्रकया जाता है, लेक्रकन साथ ही क्रकसी भी
सदस्य के नाम से क्रकसी एक क्रदन तारांक्रकत तथा ऄतारांक्रकत दोनों सूवचयों में पााँच से ऄवधक प्रश्न
गृहीत न करने की सीमा भी है। तथावप यक्रद क्रकसी सदस्य के तारांक्रकत प्रश्न-सूची में शावमल क्रकए
गए प्रश्न को ऄंतररत करने के बाद क्रकसी क्रदन की तारांक्रकत प्रश्न-सूची में शावमल क्रकया जाता है,
तो ईस ऄंतररत प्रश्न के ऄवतररक्त ईसी सदस्य का एक और प्रश्न ईसी क्रदन की तारांक्रकत प्रश्न-
सूची में शावमल क्रकया जा सकता है।

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9.2. शू न्य काल

 प्रश्नकाल की तरह प्रक्रिया के वनयमों में आसका ईल्लेख नहीं है। प्रश्नकाल के ठीक बाद के समय को
शून्यकाल के नाम से जाना जाता है। यह करीब दोपहर 12:00 बजे (नाम के ऄनुसार) प्रारं भ होता
है और आसके दौरान सदस्य पीठासीन ऄवधकारी को पूिा सूचना क्रदए वबना लोकवहत के महत्िपूणा
मुद्दों को ईठा सकते हैं। िस्तुतः यह भारतीय संसदीय व्यिस्था िारा विकवसत क्रकया गया एक
निाचार है तथा यह 1962 से जारी है।

9.3. प्रस्ताि

 सदन में क्रकसी भी मुद्दे पर चचाा के वलए पीठासीन ऄवधकारी की पूिा सहमवत से एक प्रस्ताि लाना
अिश्यक है। सदन मंवत्रयों या वनजी सदस्यों िारा लाये गए प्रस्तािों को स्िीकृ त या ऄस्िीकृ त कर
विवभन्न मुद्दों पर ऄपने वनणायों या ऄपनी राय को सामने रखता है। प्रस्ताि तीन मुख्य िेवणयों में
बांटे जा सकते हैं:
o मूल प्रस्ताि (Substantive Motion): यह ऄपने अप में पूणा स्ितंत्र प्रस्ताि है वजसके
माध्यम से ऄत्यवधक महत्िपूणा मामले यथा राष्ट्रपवत के महावभयोग या मुख्य चुनाि अयुक्त
को हटाने पर विचार क्रकया जाता है।
o स्थानापन्न प्रस्ताि (Substitute Motion): जो प्रस्ताि मूल प्रस्ताि के स्थान पर और ईसके
विकल्प के रूप में प्रस्तुत क्रकये जाएं, ईन्हें स्थानापन्न प्रस्ताि कहते हैं। यक्रद यह सदन िारा
स्िीकार कर वलया जाए तो यह मूल प्रस्ताि को प्रवतस्थावपत कर देता है।
o सहायक प्रस्ताि (Subsidiary Motion): यह एक ऐसा प्रस्ताि है, वजसका स्ियं में कोइ
महत्ि नहीं होता है। मूल प्रस्ताि या सदन की कायािाही के सन्दभा के बगैर आसपर सदन के
िारा कोइ वनणाय नहीं क्रदया जाता। यह तीन ईप-िेवणयों में विभावजत है:
 ऄनुषग
ं ी प्रस्ताि (Ancillary Motion): यह विवभन्न कायािावहयों के वनयवमत रूप से चलते रहने
के तरीके के रूप में प्रयोग में लाये जाते हैं।
 प्रवतस्थापक प्रस्ताि (superseading Motion): यह क्रकसी ऄन्य महत्त्िपूणा मुद्दे पर िाद-वििाद
के वलए लाया जाता है तथा ितामान चचाा के मुद्दे को ऄन्य मुद्दे से प्रवतस्थावपत करने का प्रयास
करता है।
 संशोधन (Amendment): यह मूल प्रस्ताि का के िल एक वहस्सा संशोवधत या स्थानापन्न करना
चाहता है।
समापन प्रस्ताि
 सदन के क्रकसी सदस्य िारा लाए गए समापन प्रस्ताि का ईद्देश्य सदन में चल रही चचाा को बीच
में ही रोकना होता है। यक्रद यह प्रस्ताि पाररत हो जाता है तो चचाा को बीच में ही रोक कर
संबंवधत विषय पर मतदान करा वलया जाता है।
विशेषावधकार प्रस्ताि
 यह प्रस्ताि क्रकसी सदस्य िारा सदन में तब प्रस्तुत क्रकया जाता है जब ईसे लगता है क्रक क्रकसी मंत्री
या मंवत्रयों ने संसद सदस्यों के विशेषावधकारों का ईल्लंघन क्रकया है। यक्रद मंत्री ने सही तथ्यों को
वछपाया हो या सदन को गलत सूचना दी हो तो मंत्री के आस व्यिहार की मनदा करने के ईद्देश्य से
यह प्रस्ताि लाया जाता है।
ध्यानाकषाण प्रस्ताि
 ध्यानाकषाण प्रस्ताि के माध्यम से सदन का कोइ सदस्य ऄध्यक्ष या सभापवत की ऄनुमवत से क्रकसी
मंत्री का ध्यान एक ऐसे विषय की ओर अकर्तषत करता है जो ऄविलंबनीय लोक महत्ि का है। आस
प्रस्ताि के माध्यम से संबंवधत मंत्री से ऄपेक्षा की जाती है क्रक िह आस मुद्दे पर संवक्षप्त िक्तव्य दे।
शून्यकाल की तरह संसदीय प्रक्रिया में यह भारतीय निाचार है, जो 1954 से ऄवस्तत्ि में है।
शून्यकाल के विपरीत प्रक्रिया वनयमों में आसका ईल्लेख है।

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स्थगन प्रस्ताि
 यह क्रकसी ऄविलंबनीय लोक महत्ि के मामले पर सदन में चचाा करने के वलए, सदन की कायािाही

को स्थवगत करने का प्रस्ताि है। आसके वलए 50 सदस्यों का समथान अिश्यक है। यह प्रस्ताि,
के िल लोकसभा में पेश क्रकया जा सकता है। सदन का कोइ भी सदस्य आस प्रस्ताि को पेश कर
सकता है। स्थगन प्रस्ताि पर चचाा ढाइ घंटे से कम की नहीं होती है। सदन की कायािाही के वलए
स्थगन प्रस्ताि की वनम्नवलवखत सीमायें भी हैं:
o आसके माध्यम से ऐसे मुद्दों को ही ईठाया जा सकता है, जो क्रक वनवित, तथ्यात्मक, ऄत्यंत
जरूरी एिं लोक महत्ि के हों।
o आसमें एक से ऄवधक मुद्दों को शावमल नहीं क्रकया जाता है।
o आसके माध्यम से ितामान घटनाओं के क्रकसी महत्िपूणा विषय को ही ईठाया जा सकता है न
क्रक साधारण महत्ि के विषय को।
o आसके माध्यम से विशेषावधकार के प्रश्न को नहीं ईठाया जा सकता है।
o आसके माध्यम से ऐसे क्रकसी भी विषय पर चचाा नहीं क्रक जा सकती है, वजस पर ईसी सत्र में
चचाा हो चुकी है।
o आसके माध्यम से क्रकसी ऐसे विषय पर चचाा नहीं क्रक जा सकती है, जो न्यायालय में
विचाराधीन हो।
o आसे क्रकसी पृथक प्रस्ताि के माध्यम से ईठाये गये विषयों को पुनः ईठाने की ऄनुमवत नहीं
होती है।
 स्थगन प्रस्ताि का ईद्देश्य क्रकसी गंभीर चूक या कृ त्य की वस्थवत में सरकार को कायािाही के वलए
बाध्य करना है। आसका क्रियान्ियन एक प्रकार से सरकार की मनदा मानी जाती है, ऄतः राज्यसभा
को आस प्रस्ताि का ईपयोग करने की ऄनुमवत नहीं है।
ऄविश्वास प्रस्ताि
 भारत में ऄविश्वास प्रस्ताि के िल लोकसभा (लोकसभा के वनयम 198 के ऄंतगात) में लाया जा

सकता है। आस प्रस्ताि पर तभी चचाा की जा सकती है जब कम से कम लोकसभा के 50 सदस्यों


िारा आसे समथान क्रदया गया हो। यक्रद प्रस्ताि अगे बढ़ता है तो लोकसभा आस पर िाद-वििाद एिं
मतदान करती है। यक्रद लोक सभा के सदस्यों का बहुमत प्रस्ताि के समथान में होता है तो प्रस्ताि
पाररत हो जाता है तब सरकार को ऄवनिाया तौर पर आस्तीफा देना पड़ता है।
मनदा प्रस्ताि
 यह प्रस्ताि वसफा लोकसभा में विपक्ष के िारा लाया जा सकता है। यह मंवत्रपररषद् ऄथिा क्रकसी
मंत्री विशेष ऄथिा मंवत्रयों के समूह के वखलाफ ईनके क्रकसी कृ त्य के करने, क्रकसी कृ त्य के न करने,

ईनकी क्रकसी नीवत ऄथिा मंत्री या मंवत्रयों के समूह की विफलता पर सदन की ओर से ऄफसोस,
अिोश या अिया व्यक्त करने के वलए लाया जाता है।
 आसमें यह बताना जरुरी होता है क्रक सरकार की क्रकन नीवतयों या कायों के विरुद्ध आसे लाया जा
रहा है। (ऄविश्वास प्रस्ताि में ऐसे क्रकसी कारण को बताने की अिश्यकता नहीं होती)। मनदा
प्रस्ताि के वलए सदन की कायािाही स्थवगत करने की कोइ अिश्यकता नहीं है। यक्रद प्रस्ताि
लोकसभा में पाररत हो जाता है तो मंवत्रपररषद् के वलए आस्तीफा देना जरूरी नहीं होता ककतु ईस
पर यह दबाि अ जाता है क्रक िह जल्दी से जल्दी विश्वास प्रस्ताि या क्रकसी ऄन्य माध्यम से
लोकसभा में ऄपना बहुमत वसद्ध करे ।

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धन्यिाद प्रस्ताि
 प्रत्येक अम चुनाि के पहले सत्र एिं वित्तीय िषा के पहले सत्र में राष्ट्रपवत सदन को संबोवधत करता
है। ऄपने संबोधन में राष्ट्रपवत पूिािती िषा और अने िाले िषा में सरकार की नीवतयों एिं
योजनाओं का खाका खींचता है। राष्ट्रपवत के आस संबोधन को ‘विटेन के राजा का भाषण’ से वलया
गया है। दोनों सदनों में आस पर चचाा होती है। आसी को धन्यिाद प्रस्ताि कहा जाता है। बहस के
बाद प्रस्ताि को मत विभाजन के वलए रखा जाता है। आस प्रस्ताि का सदन में पाररत होना
अिश्यक है, नहीं तो आसका तात्पया सरकार का परावजत होना माना जाता है। राष्ट्रपवत का यह
प्रारं वभक भाषण सदस्यों को चचाा तथा िाद-वििाद के मुद्दे ईठाने और त्रुरटयों एिं कवमयों हेतु
सरकार और प्रशासन की अलोचना का ऄिसर ईपलब्ध कराता है।

अधे घंटे की बहस


 यह पयााप्त लोक महत्ि के मामलों अक्रद पर चचाा के वलए है। ऄध्यक्ष ऐसी बहस के वलए सप्ताह में
तीन क्रदन वनधााररत कर सकता है। आसके वलए सदन में कोइ औपचाररक प्रस्ताि या मतदान नहीं
होता।
ऄल्पकावलक चचाा
 आसे दो घंटे का चचाा भी कहते हैं क्योंक्रक आस तरह की चचाा के वलए दो घंटे से ऄवधक का समय नहीं
लगता। संसद सदस्य क्रकसी जरूरी सािाजवनक महत्ि के मामले को बहस के वलए रख सकते हैं।
ऄध्यक्ष एक सप्ताह में आस पर बहस के वलए तीन क्रदन ईपलब्ध करा सकता है।
विशेष ईल्लेख
 ऐसा मामला जो औवचत्य प्रश्न नहीं है, ईसे प्रश्नकाल के दौरान नहीं ईठाया जाता। अधे घंटे की बहस

वजसमें कइ सारे मामले शावमल हैं, आसे विशेष ईल्लेख के तहत राज्यसभा में ईठाया जाता है। आसे

लोकसभा में वनयम 377 के ऄधीन ‘नोरटस’ कहा जाता है।

9.4. सं क ल्प (Resolution)

 संकल्प, साधारण लोक महत्ि के विषय पर सदन में चचाा अरम्भ करने के वलए प्रक्रियात्मक
साधनों में से एक है। वनयमों के ईपबंधों के ऄधीन कोइ मंत्री या सदस्य संकल्प ला सकता है। क्रकसी
सदस्य िारा प्रस्तावित संकल्प या संकल्प के संशोधन को सभा की ऄनुमवत के वबना िापस नहीं
क्रकया जा सकता। संकल्पों को तीन िेवणयों में िगीकृ त क्रकया जा सकता है:
o गैर सरकारी सदस्यों का संकल्प: यह संकल्प गैर सरकारी सदस्य िारा लाया जा सकता है।
o सरकारी संकल्प: यह एक मंत्री िारा प्रस्तुत क्रकया जा सकता है।
o सांविवधक संकल्प: यह एक गैर सरकारी सदस्य या एक मंत्री िारा लाया जा सकता है। आसे
ऐसा आसवलए कहा जाता है क्योंक्रक आसे संविधान के ईपबंध या ऄवधवनयम के तहत लाया जा
सकता है।
9.4.1 प्रस्ताि और सं क ल्प के बीच ऄं त र

 सभी संकल्प महत्िपूणा प्रस्ताि होते हैं क्रकन्तु यह ऄवनिाया नहीं क्रक सभी प्रस्ताि महत्िपूणा हो।
 यह अिश्यक नहीं क्रक सभी प्रस्तािों को सदन में मतदान के वलए रखा जाए जबक्रक सभी संकल्पों
पर मतदान अिश्यक है।
 स्थानापन्न प्रस्ताि, मूल प्रस्ताि को स्थानांतररत नहीं कर सकता है। ईसी प्रकार स्थानापन्न प्रस्ताि
को संकल्प के रूप में प्रस्तुत नहीं क्रकया जा सकता है। दूसरी ओर, स्थानापन्न प्रस्ताि को एक
प्रस्ताि के रूप में लाया जा सकता है, जो मूल प्रस्ताि न हो।

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9.5. औवचत्य प्रश्न

 औवचत्य प्रश्न िस्तुतः संचालन वनयमों या संविधान के कु छ ऄनुच्छेदों जो सदन की कायािाही का


विवनयमन करते हैं, अक्रद की व्याख्या या प्रितान से संबंवधत प्रश्न होते हैं। ऐसे प्रश्न वनणाय हेतु
पीठासीन ऄवधकारी के समक्ष प्रस्तुत क्रकए जाते हैं।
 यक्रद सदन संचालन के सामान्य वनयमों का पालन नहीं करता है तों एक सदस्य सदन में औवचत्य
प्रश्न के माध्यम से ध्यान अकर्तषत कर सकता है। यह एक ऄसाधारण युवक्त है क्योंक्रक यह सदन की
कायािावहयों को समाप्त कर सकती है। औवचत्य प्रश्न में यद्यवप क्रकसी तरह की बहस की ऄनुमवत
नहीं होती है।
10. सं स द में विधायी प्रक्रिया
संसद में प्रस्तुत विधेयकों को वनम्नवलवखत चार िेवणयों में िगीकृ त क्रकया जा सकता है:
1. साधारण विधेयक, जो वित्तीय विषयों के ऄलािा ऄन्य विषयों से सम्बद्ध होते हैं।
2. धन विधेयक, जो वित्तीय विषयों (ऄनु. 110) से सम्बंवधत होते हैं।
3. वित्तीय विधेयक, जो वित्तीय विषयों से सम्बंवधत होते हैं (क्रकन्तु धन विधेयकों से ऄलग होते हैं)।
4. संविधान संशोधन विधेयक, जो संविधान के विवभन्न ईपबंधों में संशोधन से सम्बंवधत होते हैं।

10.1. साधारण विधे य क

संसद में साधारण विधेयकों के संबंध में विधायी प्रक्रिया के विवभन्न चरण वनम्नवलवखत हैं:
10.1.1 प्रथम पाठन

 साधारण विधेयकों के संबंध में विधायी प्रक्रिया संसद के क्रकसी भी सदन लोकसभा या राज्यसभा
में विधेयक की प्रस्तुवत के साथ अरम्भ होती है। यह विधेयक मंत्री या गैर सरकारी सदस्य क्रकसी के
भी िारा प्रस्तुत क्रकया जा सकता है।
 मंत्री िारा प्रस्तुत क्रकये जाने पर यह एक सरकारी विधेयक जबक्रक गैर सरकारी सदस्य िारा
प्रस्तुवत पर यह गैर सरकारी सदस्य विधेयक के रूप में जाना जाता है। जब कोइ सदस्य सदन में
विधेयक प्रस्तुत करना चाहता है तो पहले ईस सदस्य को सदन की ऄनुमवत लेनी अिश्यक होती
है। ऄनुमवत के बाद ही आसे प्रस्तुत क्रकया जा सकता है। यह चरण विधेयक के प्रथम पाठन के रूप में
जाना जाता है।
 यक्रद विधेयक को ऄनुमवत देने के प्रस्ताि का विरोध क्रकया जाता है तो ईस दशा में पीठासीन
ऄवधकारी ऄपने वििेकावधकार का प्रयोग कर विधेयक को प्रस्तुत करने िाले सदस्य और ईसका
विरोध करने िाले सदस्य दोनों को संवक्षप्त व्याख्यात्मक वििरण देने की ऄनुमवत दे सकता है। यक्रद
विधेयक प्रस्तुत करने की ऄनुमवत मांगने िाले प्रस्ताि का विरोध आस अधार पर हो क्रक विधेयक
ऐसे विधायन का सूत्रपात करता है जो सदन के विधायी सामथ्या के ऄंतगात नहीं है, तो पीठासीन
ऄवधकारी ईस पर पूणा चचाा की ऄनुमवत दे सकता है। तत्पिात् प्रश्न सदन के समक्ष मतदान हेतु
प्रस्तुत क्रकया जाता है।
 राजपत्र में प्रकाशन: विधेयक की प्रस्तुवत के बाद आसे भारत के राजपत्र में प्रकावशत क्रकया जाता है।
यक्रद विधेयक सदन में प्रस्तुत करने से पहले ही राजपत्र में प्रकावशत हो जाये तो विधेयक के संबंध
में सदन की ऄनुमवत की अिश्यकता नहीं होती है।
विधेयक को स्थायी सवमवत को भेजना:
 विधेयक की प्रस्तुवत के बाद सम्बंवधत सदन का ऄध्यक्ष ईस विधेयक के मूल्यांकन तथा ईस पर
प्रवतिेदन तैयार करने हेतु सम्बद्ध स्थायी सवमवत को प्रेवषत कर सकता है। यक्रद कोइ विधेयक
स्थायी सवमवत के समक्ष प्रस्तुत क्रकया जाता है तो सवमवत विधेयक के सामान्य वसद्धांतों तथा
प्रािधानों पर विचार करे गी और ईस पर प्रवतिेदन (ररपोटा) तैयार करे गी। सवमवत, विशेषज्ञों या
जनता की राय भी ले सकती है। विधेयक पर विचार करने के पिात् सवमवत प्रवतिेदन सदन को
सौंप देती है। आस प्रवतिेदन को सवमवत िारा क्रदए गए सुविचाररत परामशा के रूप में देखा जाता है।

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10.1.2 वितीय पाठन

आस चरण में विधेयक की विस्तृत समीक्षा की जाती है जो दो चरणों में होती है:
 प्रथम चरण: प्रथम चरण में सम्पूणा विधेयक पर चचाा की जाती है। आसमें विधेयक में ऄन्तर्तनवहत
ईद्देश्यों पर चचाा की जाती है। आस चरण में आसे सदन िारा प्रिर सवमवत या दोनों सदनों की संयक्त

सवमवत को भेजा जा सकता है ऄथिा जनता के विचार जानने के वलए आसे सािाजवनक क्रकया जा
सकता है या आस पर तुरंत चचाा की जा सकती है।
o कोइ विधेयक प्रिर/संयुक्त सवमवत के पास भेजा जाता है तो सवमवत सदन की ही भांवत
विधेयक पर खंडिार चचाा करती है। सवमवत के सदस्य विधेयक की विवभन्न धाराओं में
संशोधन भी कर सकते हैं। सवमवत विवभन्न संघों, सािाजवनक वनकायों या विशेषज्ञों से, वजनकी

आसमें रूवच हो, राय ले सकती है। विधेयक पर आस प्रकार विचार करने के पिात् सवमवत
ऄपनी ररपोटा सदन को सौंपती है जो विधेयक पर पुनर्तिचार करता है।
 दूसरा चरण: वितीय पाठन के दूसरे चरण में विधेयक पर प्रिर/संयुक्त सवमवत के प्रवतिेदन के
अधार पर खंडिार विचार-विमशा क्रकया जाता है। विधेयक के प्रत्येक खंड पर चचाा होती है। आस
चरण में विवभन्न प्रािधानों में संशोधन भी क्रकया जा सकता है। क्रकसी प्रािधान में प्रस्तावित
संशोधन को सदन के समक्ष मतदान के वलए रखा जाता है। ईपवस्थत और मतदान करने िाले
सदस्यों के बहुमत िारा स्िीकार कर वलए जाने पर िे संशोधन विधेयक का भाग बन जाते हैं।

10.1.3 तृ तीय पाठन

 ईपयुाक्त प्रक्रिया के पिात्, सदस्य विधेयक को पाररत कराने के वलए ईसे सदन में ला सकते हैं। यह
चरण विधेयक के तृतीय पाठन के रूप में जाना जाता है। आस चरण में के िल विधेयक को स्िीकार
या ऄस्िीकार करने के संबंध में चचाा होती है तथा विधेयक में कोइ संशोधन नहीं क्रकया जा सकता
है। एक साधारण विधेयक को पाररत करने के वलए ईपवस्थत एिं मतदान करने िाले सदस्यों का
साधारण बहुमत ऄवनिाया है। यक्रद सदन का बहुमत आसे पाररत कर देता है तो विधेयक को दूसरे
सदन में भेजा जाता है।

10.1.4 दू स रे सदन में विधे य क

एक सदन से पाररत होने के ईपरान्त दूसरे सदन में भी विधेयक का प्रथम-वितीय एिं तृतीय पाठन
होता है। आस संबंध में दूसरे सदन के पास वनम्नवलवखत विकल्प होते हैं:
 यह विधेयक को पूरी तरह ऄस्िीकार कर सकता है। ऐसी वस्थवत में ऄनुच्छेद 108(1) के तहत
राष्ट्रपवत दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है।
 यह विधेयक को संशोधनों के साथ पाररत करके प्रथम सदन को पुनः विचाराथा भेज सकता है। यक्रद
प्रथम सदन, जहााँ विधेयक सिाप्रथम प्रस्तुत क्रकया गया था, ईसे संशोवधत रूप में स्िीकार कर लेता

है तो ईसे राष्ट्रपवत की सहमवत (ऄनुच्छेद 111) के वलए भेजा जाएगा।


 यक्रद प्रारं वभक सदन दूसरे सदन िारा क्रकए गए संशोधनों पर सहमत नहीं है और आस सन्दभा में
दोनों के बीच ऄंवतम रूप से ऄसहमवत है तो राष्ट्रपवत आस गवतरोध को दूर करने के वलए संयक्त

बैठक अहूत कर सकता है।
 यह विधेयक पर क्रकसी भी प्रकार की कायािाही न करके ईसे लंवबत कर सकता है। ऐसे मामले में
यक्रद विधेयक पर दूसरा सदन विधेयक की प्राप्त करने की वतवथ से 6 माह तक कोइ कायािाही नहीं
करता है तो राष्ट्रपवत संयुक्त बैठक का अह्िान कर सकता है।

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10.1.5 राष्ट्रपवत की स्िीकृ वत

 जब विधेयक संसद के दोनों सदनों िारा पृथक रूप से पाररत या संयुक्त बैठक (ऄनुच्छेद 108 के
प्रािधान के तहत) में पाररत कर क्रदया गया हो तो ईसे राष्ट्रपवत की स्िीकृ वत के वलए भेजा जाता
है। यक्रद राष्ट्रपवत ऄपनी सहमवत नहीं देता है, तो विधेयक वनरस्त या समाप्त हो जाता है। यक्रद िह
सहमवत दे देता है तो ईस वतवथ से िह विधेयक ऄवधवनयम बन जाता है।
 विधेयक को स्िीकार या ऄस्िीकार करने के बजाय राष्ट्रपवत ईसे पुनर्तिचार हेतु सदन को िापस
लौटा सकता है। हालांक्रक यक्रद सदन संशोधन के साथ या वबना संशोधन क्रकये ईसे राष्ट्रपवत को
दोबारा भेजता है तो राष्ट्रपवत आस पर सहमवत देने हेतु बाध्य होता है।
10.1.6 दोनों सदनों की सं यु क्त बै ठ क

क्रकसी विधेयक को पाररत करने के संदभा में गवतरोध की वस्थवत तब ईत्पन्न होती है जब:
 दूसरे सदन िारा विधेयक को ऄस्िीकार कर क्रदया गया हो, या
 यक्रद विधेयक में क्रकये जाने िाले संशोधनों के संबंध में दोनों सदन ऄंवतम रूप से ऄसहमत हो गए
हों, या
 यक्रद दूसरे सदन ने विधेयक प्राप्त होने की तारीख से 6 महीने पूरे होने तक विधेयक को पाररत न
क्रकया हो।
10.1.6 दोनों सदनों की सं यु क्त बै ठ क के सं बं ध में सीमाएं

 धन विधेयकों के मामले में संयक्त


ु बैठक का अयोजन नहीं हो सकता है, क्योंक्रक लोकसभा में आसे
पाररत करने की ऄंवतम शवक्त है। यक्रद धन विधेयकों के मामले में कोइ ऄसहमवत होती भी है तो
लोकसभा के पास राज्यसभा के संशोधनों को नकार कर विधेयक ईसी रूप में पाररत कर देने की
शवक्त होती है।
 संविधान संशोधन विधेयक के मामले में, संयुक्त बैठक का कोइ प्रािधान नहीं है। यह दोनों सदनों
में ऄलग ऄलग पाररत होना चावहए। {ऄन्य सभी विधेयकों (वित्तीय विधेयक भी शावमल) की
वस्थवत में यक्रद कोइ गवतरोध ईत्पन्न हो जाता है तो संविधान के ऄनुच्छेद 108 के तहत संयक्त

बैठक अहूत क्रकये जाने का प्रािधान है।}

10.1.7 सं यु क्त बै ठ क के सं बं ध में ऄन्य प्रािधान

 संिैधावनक प्रािधानों के ऄनुसार राष्ट्रपवत दोनों सदनों के बीच ऄसहमवत होने पर ईसकी संयुक्त
बैठक अहूत करने के ऄपने अशय की ऄवधसूचना दे सकता है। यक्रद विधेयक लोकसभा का विघटन
होने के कारण व्यपगत हो गया है, तो राष्ट्रपवत िारा ऐसी ऄवधसूचना नहीं वनकाली जाएगी। क्रकन्तु
यक्रद राष्ट्रपवत ने संयुक्त बैठक करने के ऄपने अशय की ऄवधसूचना जारी कर दी है तो लोकसभा के
पिात्िती विघटन से संयुक्त बैठक में कोइ बाधा नहीं अएगी।
 ऐसी संयुक्त बैठक की ऄध्यक्षता लोकसभा ऄध्यक्ष करता है। यक्रद िह ऄनुपवस्थत हो तो बैठक की
ऄध्यक्षता लोकसभा का ईपाध्यक्ष करता है। ईसके भी ऄनुपवस्थत होने की वस्थवत में राज्यसभा का
ईपसभापवत बैठक की ऄध्यक्षता करता है। यक्रद िह भी ईपवस्थत न हो तो ईपवस्थत सदस्यों िारा
चुना गया कोइ ऄन्य सदस्य आस बैठक की ऄध्यक्षता करता है। यह स्पष्ट है क्रक क्रकसी भी वस्थवत में
राज्यसभा का सभापवत संयुक्त बैठक की ऄध्यक्षता नहीं करता, क्योंक्रक िह सदन का सदस्य नहीं
होता।
 संसद के संयुक्त ऄवधिेशन के वलए गणपूर्तत दोनों सदनों के सदस्यों की कु ल संख्या का 1/10 भाग
होती है।
 संयुक्त बैठक की कायािावहयां लोकसभा की प्रक्रिया की वनयमािली के ऄनुसार होती हैं, न क्रक
राज्यसभा के । सामान्यतः ऄवधक सदस्य संख्या होने के कारण संयक्त
ु बैठक की वस्थवत में लोकसभा
ऄपनी मांगों को मनिाने में सफल रहती है।

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 संयुक्त बैठक के दौरान प्रस्तुत क्रकए जा सकने िाले संशोधनों पर कु छ प्रवतबन्ध भी लगाए गए हैं,
यथा:
o यक्रद विधेयक के एक सदन से पाररत होने के बाद िह दूसरे सदन िारा ऄस्िीकृ त कर क्रदया
गया हो या िापस न क्रकया गया हो, तो संयुक्त बैठक में के िल िे ही संशोधन प्रस्तुत क्रकये
जायेंगे वजनके कारण विधेयक के पाररत होने में देरी हुइ है।
o ऄन्य संशोधन जो ईन विषयों से संबंवधत हैं वजनपर सदन में ऄसहमवत है, संयुक्त बैठक के
दौरान प्रस्तावित क्रकये जायेंगे।
 देश के संसदीय आवतहास में ऄब तक के िल तीन बार क्रकसी वििाक्रदत विधेयक को पाररत करिाने
के वलए संसद का संयुक्त ऄवधिेशन अहूत क्रकया गया है। संयुक्त बैठक में पाररत क्रकये गए विधेयक
वनम्नवलवखत हैं:
o दहेज प्रवतषेध विधेयक, 1960
o बैंककग सेिा अयोग (वनरसन) विधेयक, 1978
o अतंकिाद वनिारण विधेयक, 2002

10.2. धन विधे य क

ऄनुच्छेद 110 (1) में धन विधेयक की पररभाषा दी गयी है, आसके ऄनुसार कोइ विधेयक धन विधेयक
समझा जाएगा यक्रद ईसमें वनम्नवलवखत सभी या क्रकन्हीं विषयों से संबंवधत ईपबंध होंगे:
(a) क्रकसी कर का ऄवधरोपण, ईत्सादन, पररहार, पररितान या विवनयमन।
(b) भारत सरकार िारा धन ईधार लेने का या कोइ प्रत्याभूवत देने का विवनयमन ऄथिा भारत
सरकार िारा ऄपने उपर ली गइ या ली जाने िाली क्रकन्हीं वित्तीय बाध्यताओं से संबंवधत विवध
का संशोधन।
(c) भारत की संवचत वनवध या अकवस्मकता वनवध की ऄवभरक्षा, ऐसी क्रकसी वनवध में धन जमा करना
या ईसमें से धन वनकालना।
(d) भारत की संवचत वनवध में से धन का विवनयोग; क्रकसी व्यय को भारत की संवचत वनवध पर भाररत
व्यय घोवषत करना या ऐसे क्रकसी व्यय की रकम को बढ़ाना।
(e) भारत की संवचत वनवध या भारत की लोक लेखा में क्रकसी प्रकार के धन की प्रावप्त या ऐसे धन की
ऄवभरक्षा या ईसका व्यय ऄथिा संघ या राज्य के लेखाओं की संपररक्षा; या
(f) ईपखंड (a) से ईपखंड (e) में वनर्ददष्ट क्रकसी विषय का अनुषंवगक कोइ विषय।
 कोइ भी विधेयक के िल आस कारण धन विधेयक नहीं माना जाएगा क्रक ईसमें:
o जुमााना या ऄन्य अर्तथक दण्ड (शावस्तयों) के ऄवधरोपण का, या,
o ऄनुज्ञवप्तयों या की गइ सेिाओं के वलए फीसों का, या,
o क्रकसी स्थानीय प्रावधकारी या वनकाय िारा स्थानीय प्रयोजनों के वलए क्रकसी कर के
ऄवधरोपण, ईत्सादन, पररहार, पररितान या विवनयमन का ईपबंध है।
धन विधेयक: कु छ महत्िपूणा तथ्य
 धन विधेयक के िल लोकसभा में पुरःस्थावपत क्रकया जा सकता है।
 यह के िल राष्ट्रपवत की संस्तुवत/ऄनुसंशा से ही पुरःस्थावपत क्रकया जा सकता है।
 यह के िल मंत्री िारा पुरः स्थावपत क्रकया जा सकता है।
 आसमें राज्यसभा कोइ संशोधन नहीं कर सकती लेक्रकन संशोधन की वसफाररश कर सकती है।
 राज्यसभा के वलए यह अिश्यक है क्रक विधेयक को प्रावप्त की वतवथ से 14 क्रदन की ऄिवध के भीतर
वसफाररश के साथ या वसफाररश के वबना लोकसभा को लौटा दे।
 राष्ट्रपवत धन विधेयक को पुनर्तिचार के वलए लौटा नहीं सकता है।
 धन विधेयक के लोकसभा में ऄस्िीकृ त होने पर सरकार को त्यागपत्र देना पड़ता है।

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धन विधेयकों का प्रमाणन
 यक्रद यह प्रश्न ईठता है क्रक कोइ विधेयक धन विधेयक है या नहीं, तो ईस पर लोकसभा ऄध्यक्ष का
वनणाय ऄंवतम होता है। ऄध्यक्ष को क्रकसी विधेयक को धन विधेयक का प्रमाण-पत्र प्रदान करने के
ऄपने वनणाय में क्रकसी से परामशा लेने की बाध्यता नहीं है।
 धन विधेयक पर ऄध्यक्ष िारा प्रमाण-पत्र प्रदान करने का अशय यह है क्रक ऄध्यक्ष को पृष्ठांक्रकत
करना होता है क्रक विधेयक, धन विधेयक है। जब विधेयक राज्यसभा को प्रेवषत क्रकया जाता है तथा
राष्ट्रपवत के समक्ष सहमवत हेतु प्रस्तुत क्रकया जाता है, तब ऄध्यक्ष िारा आसे धन विधेयक के रूप में
समर्तथत (पृष्ठांकन) और हस्ताक्षररत करना होता है।
 धन विधेयक पर ऄध्यक्ष िारा प्रदत्त प्रमाण-पत्र का विवनिय ऄंवतम होता है और ईसे चुनौती नहीं
दी जा सकती है।
 धन विधेयक हेतु संयुक्त बैठक का प्रािधान नहीं है।
धन विधेयक बनाम वित्तीय विधेयक
 यद्यवप धन विधेयक सम्पूणा रूप से संविधान के ऄनुच्छेद 110(1)(a) से (f) में वनर्ददष्ट विषयों के
साथ संबंवधत है, िहीं वित्तीय विधेयक विशेष रूप से वनर्ददष्ट आन सभी विषयों ऄथिा िर्तणत
ऄनुच्छेद के क्रकसी भी एक विषय या आसमें कु छ ऄन्य प्रािधानों से संबंवधत है।
 वित्तीय विधेयकों को दो िेवणयों में विभावजत क्रकया जा सकता है। पहली िेणी में िह विधेयक जो
ऄन्य विषयों के साथ संविधान के ऄनुच्छेद 110(1)(a) से (f) के प्रािधानों को भी शावमल करता
है। ये संविधान के ऄनुच्छेद 117(1) के तहत वित्तीय विधेयकों के रूप में िगीकृ त क्रकए गए हैं। धन
विधेयकों की तरह, िे राष्ट्रपवत की संस्तुवत पर के िल लोकसभा में ही पुरःस्थावपत क्रकए जा सकते
हैं। हालांक्रक, धन विधेयकों से सम्बंवधत ऄन्य प्रवतबंध आस िेणी के विधेयकों पर लागू नहीं होते है।
संविधान के ऄनुच्छेद 117(1) के तहत अने िाले वित्त विधेयक को गवतरोध की वस्थवत में दोनों
सदनों की संयुक्त बैठक के समक्ष प्रस्तुत करने का ईपबंध है।
 दूसरी िेणी में, भारत की संवचत वनवध पर भाररत व्यय से संबंवधत ईपबंध होते हैं लेक्रकन ईसमें
िह कोइ मामला नहीं होता, वजसका ईल्लेख ऄनुच्छेद 110 में होता है। आस प्रकार के विधेयक
संविधान के ऄनुच्छेद 117(3) के तहत वित्त विधेयकों के रूप में िगीकृ त क्रकए जाते हैं। आन वित्त
विधेयकों को क्रकसी ऄन्य साधारण विधेयक की तरह संसद के क्रकसी भी सदन में पुर:स्थावपत क्रकया
जा सकता है। ककतु विधेयक तभी पाररत क्रकया जाएगा जब राष्ट्रपवत संबद्ध सदन को ईस विधेयक
पर विचार करने की वसफाररश करे , हालांक्रक आसके पुरःस्थापन के वलए ईसकी वसफाररश की
अिश्यकता नहीं है।
विधेयकों को कइ बार वनम्नवलवखत भागों में भी विभावजत क्रकया जाता है:
मंवत्रयों िारा लाए गए विधेयक सरकारी विधेयक कहलाते हैं और ऐसे सदस्यों िारा, जो मंत्री नहीं हैं,
पुर:स्थावपत विधेयक गैर-सरकारी विधेयक कहलाते हैं। विधेयकों की विषय-िस्तु के अधार पर विधेयकों
को मोटे तौर पर वनवम्नवलवखत िगों में भी विभावजत क्रकया जा सकता है:
 मूल विधेयक, जो नये प्रस्तािों से संबंवधत होते हैं,
 संशोधनकारी विधेयक, वजनका अशय मौजूदा ऄवधवनयमों का संशोधन करना होता है,
 समेकन विधेयक, वजनका अशय क्रकसी खास विषय पर विद्यमान कानूनों का समेकन करना होता है,
 क्रकसी वनर्ददष्ट वतवथ को समाप्त हो रहे कानूनों को जारी रखने के वलए विधेयक
 वनरसनकारी विधेयक
 ऄध्यादेशों को प्रवतस्थावपत करने के वलए विधेयक
 धन और वित्त विधेयक तथा
 संविधान संशोधन विधेयक।

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10.3. बजट

 संविधान में ‘बजट’ शब्द का प्रयोग नहीं क्रकया गया है। आसके स्थान पर संविधान में "िार्तषक
वित्तीय वििरण" का प्रयोग क्रकया गया है।
 यह राष्ट्रपवत का संिैधावनक ईत्तरदावयत्ि है क्रक िह बजट को दोनों सदनों के समक्ष प्रस्तुत
करिाएगा।
 बजट के िल एक िषा की ऄिवध के वलए होता है, ऄतः कायापावलका एक िषा से ऄवधक ऄिवध के
वलए संसद को नजरऄंदाज नहीं कर सकती है।
 बजट की प्रस्तुवत विपक्ष के वलए सरकार की नीवतयों की अलोचना करने का एक ऄिसर होता है।
 एक बार जब सरकार ऄनुमान प्रस्तुत करती है, विचार-विमशा शुरू हो जाता है।
कटौती प्रस्ताि
ये प्रस्ताि के िल लोकसभा में प्रस्तुत क्रकये जा सकते हैं। ये बजटीय प्रक्रिया का वहस्सा हैं।
कटौती प्रस्ताि को तीन िेवणयों में बांटा जा सकता है:
 नीवत ऄनुमोदन कटौती (Disapproval of Policy Cut): यह प्रस्ताि करता है क्रक “मांग की
रावश घटा कर 1 रुपया कर दी जाए”। आसके िारा प्रस्तािक मांग की मूल नीवत के प्रवत ऄसहमवत
व्यक्त करता है। सदस्य को आस तरह के प्रस्ताि में, सटीक शब्दों में नीवत के विशेष मबदु, वजस पर
चचाा प्रस्तावित है, का संकेत देना होता है। चचाा, प्रस्ताि में ईवल्लवखत विवशष्ट मबदु तक या
प्रस्ताि में िर्तणत क्रकसी मबदु तक सीवमत होनी चावहए एिं सदस्य कोइ िैकवल्पक नीवत का सुझाि
भी प्रस्तुत कर सकते हैं।
 वमतव्यवयता कटौती (Economy Cut): आस प्रस्ताि का ईद्देश्य व्यय में वमतव्यवयता लाना होता
है और यह प्रस्ताि आस रूप में होता है क्रक “मांग की रावश में …….रुपये की कमी की जाए
(ईवल्लवखत रावश)”। आस तरह ईवल्लवखत रावश या मांग में एकमुश्त कटौती हो सकती है या क्रफर
पूणा समावप्त या मांग की क्रकसी मद में कटौती हो सकती है।
 सांकेवतक कटौती (Token Cut): आस प्रस्ताि का ईद्देश्य यह होता है क्रक ऐसी विवशष्ट वशकायत
व्यक्त की जाए वजसके वलए भारत सरकार ईत्तरदायी हो और आसमें कहा जाता है क्रक "मांग की
रावश में 100 रुपये की कमी की जाए" ।
लेखानुदान (Vote on Account)
 बजट पाररत करने की सम्पूणा प्रक्रिया बजट पेश क्रकए जाने से लेकर आस पर चचाा करने , ऄनुदानों
की मांगें स्िीकृ त होने तथा विवनयोग एिं वित्त विधेयक के पाररत होने तक सामान्यतया चालू
वित्त िषा के अरं भ होने के बाद तक चलती रहती है। ऄतः संविधान में लोकसभा को सशक्त बनाने
के वलए एक प्रािधान क्रकया गया है, वजससे सरकार लेखानुदान के माध्यम से ऄनुमावनत व्यय में से
ऄवग्रम ऄनुदान प्राप्त कर सके एिं विवनयोग विधेयक और वित्त विधेयक के पाररत होने तक देश का
शासन व्यिस्था बनाये रखने में सक्षम बनी रहे।
 साधारणतया, ऄनुदानों की विवभन्न मांगों के ऄंतगात सम्पूणा िषा के वलए ऄनुमावनत व्यय के 1/6िें
भाग के बराबर, दो माह हेतु रावश का लेखानुदान प्राप्त क्रकया जाता है। क्रकसी चुनािी िषा के
दौरान, यक्रद ऐसी प्रत्याशा हो क्रक सदन िारा मुख्य मांगों और विवनयोग विधेयक को पास क्रकए
जाने में दो माह से ऄवधक का समय लगेगा तो लेखानुदान लंबी ऄिवध के वलए, ऄथाात तीन या
चार माह के वलए प्राप्त क्रकया जा सकता है।
 परम्परा के ऄनुसार, लेखानुदान को एक औपचाररकता माना जाता है एिं लोकसभा िारा चचाा के
वबना पाररत कर क्रदया जाता है।

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ऄंतररम बजट
 एक ऄंतररम बजट 'लेखानुदान' के समान नहीं होता है। हालांक्रक 'लेखानुदान' के िल सरकारी बजट
के व्यय पक्ष से जुड़ा है, परन्तु एक ऄंतररम बजट सम्पूणा लेखों का संग्रह होता है, वजसमें व्यय और
प्रावप्तयां दोनों शावमल होती हैं।
 ऄंतररम बजट सम्पूणा वित्तीय वििरण प्रदान करता है एिं पूणा बजट के समान ही होता है,
हालांक्रक यह एक िषा से भी कम ऄिवध के वलए होता है।
 हालांक्रक सामान्यतया चुनािी िषा के दौरान, यह कानून कें द्र सरकार को कर पररितान करने से
िंवचत नहीं करता है, क्रफर भी ईत्तरोतर सरकारों िारा ऄंतररम बजट के दौरान, अयकर कानून में
क्रकसी भी बड़े पररितान से परहेज क्रकया जाता रहा है।
विवनयोग विधेयक
 बजट प्रस्तािों पर अम बहस और ऄनुदानों की मांगों पर मतदान प्रक्रिया पूणा होने के ईपरांत ,
सरकार विवनयोग विधेयक प्रस्तुत करती है। विवनयोग विधेयक का प्रयोजन भारत सरकार को
संवचत वनवध में से व्यय के विवनयोग हेतु ऄवधकार प्रदान करना है।
 आस विधेयक को पाररत करने की प्रक्रिया िही है जो ऄन्य धन विधेयकों के मामले में ऄपनायी
जाती है।

10.4. वित्त विधे य क

 वित्त विधेयक सरकार के कराधान प्रस्तािों को प्रभािी बनाने के वलए लाया जाता है और यह अम
बजट की प्रस्तुवत के तुरंत बाद लोकसभा में प्रस्तुत क्रकया जाता है।
 विवनयोग विधेयक के पाररत होने के पिात् वित्त विधेयक को विचार करने और पाररत करने हेतु
प्रस्तुत क्रकया जाता है। हालांक्रक, ऄनंवतम कर संग्रह ऄवधवनयम (Provisional Collection of
Taxes Act), 1931 के तहत की गइ एक घोषणा के प्रभािस्िरूप, विधेयक में ईल्लवखत
करारोपण और नए करों के संग्रह या मौजूदा करों में पररितान से संबंवधत कु छ प्रािधान वित्त
विधेयक को प्रस्तुत करने की वतवथ से संबद्ध क्रदन की समावप्त से ही लागू हो जाते हैं।
 वित्त विधेयक के प्रस्तुत क्रकये जाने के पिात् संसद को 75 क्रदनों के भीतर आसे पाररत करना होता
है।

10.5. भारत सरकार के खाते

सरकार के खातों को तीन भागों में विभावजत क्रकया जाता है: -


 भारत की संवचत वनवध
 भारत की अकवस्मकता वनवध
 लोक लेखा

10.5.1 भारत की सं वचत वनवध

 यह ऄनुच्छेद 266(1) के तहत िर्तणत भारत सरकार की मुख्य वनवध है। आस वनवध के वलए धन का
प्रिाह अयकर, कें द्रीय ईत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क आत्याक्रद से प्राप्त कर राजस्ि और सरकार के काया-
व्यापार के संचालन के पररणामस्िरूप प्राप्त गैर-कर राजस्ि से होता है। रेजरी वबलों के प्रयोग
िारा एकवत्रत ऊण भी आसी वनवध में संवचत होता है। सरकार आस कोष से ऊण के भुगतान सवहत
ऄपने सभी व्ययों को पूरा करती है।
 आस वनवध में से कोइ भी धन के िल तभी वनकाला जा सकता है जब संसद में विवनयोग ऄवधवनयम
या ऄनुपूरक ऄनुदान संबंधी ऄवधवनयम पाररत क्रकया गया हो।

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10.5.2 भारत की अकवस्मकता वनवध

 भारत की अकवस्मकता वनवध का गठन संविधान के ऄनुच्छेद 267(1) के तहत एक ऄवग्रम खाते के
रूप में क्रकया गया है। आस वनवध में 500 करोड़ की धनरावश ईपलब्ध होती है।
 आस वनवध का ईद्देश्य यह है क्रक जब तक क्रकसी अकवस्मक खचा के वलए संसद ने सरकार को
प्रावधकृ त न क्रकया हो तब तक राष्ट्रपवत आसमें से अिश्यक धनरावश सरकार को ऄवग्रम के तौर पर
दे सकते हैं। संसद िारा जैसे ही आस व्यय को प्रावधकृ त कर क्रदया जाता है, यह धन पुनः वनवध में
जमा कर क्रदया जाता है। राष्ट्रपवत की ओर से भारत सरकार का वित्त सवचि आस वनवध का
संचालन करता है।
10.5.3 लोक ले खा

 लोक लेखा संविधान के ऄनुच्छेद 266(2) के तहत गरठत क्रकया गया है। संवचत वनवध में शावमल
धन के ऄवतररक्त सरकार िारा या भारत सरकार की ओर से प्राप्त क्रकया गया समस्त सािाजवनक
धन भारत सरकार के लोक लेखा में जमा क्रकए जाते हैं।
 आस भाग के तहत ऊण, जमा और ऄवग्रमों से संबद्ध िे लेनदेन हैं वजनके संबंध में सरकार प्राप्त क्रकये
गए धन को िापस करने का दावयत्ि या जमा क्रकये गए धन को ईगाहने की शवक्त रखती है। लोक
लेखा की प्रावप्तयां सरकार की वनयवमत प्रावप्तयों से वभन्न हैं। आसीवलए लोक लेखा से धन वनकालने
के वलए संसद िारा कोइ विधेयक पाररत क्रकये जाने की अिश्यकता नहीं है। यह वनवध वसफा
कायापावलका के िारा संचावलत की जाती है।
10.5.4 भाररत व्यय

 कु छ महत्त्िपूणा संस्थानों की स्िायत्तता सुवनवित करने के वलए संविधान में ईनके खचों को भारत
की संवचत वनवध में शावमल करने का प्रािधान क्रकया गया है। आसका ऄथा यह है क्रक भले ही संसद
आन व्ययों पर चचाा कर सकती है, क्रकन्तु आनपर बजट के दौरान मतदान नहीं क्रकया जाता। ऄतः
सरकार का आन संस्थानों पर प्रत्यक्ष वित्तीय वनयंत्रण नहीं है।
ये भाररत व्यय वनम्नवलवखत हैं:
 राष्ट्रपवत के िेतन एिं भत्ते तथा ईनके कायाालय के व्यय
 लोकसभा के ऄध्यक्ष तथा ईपाध्यक्ष एिं राज्यसभा के सभापवत तथा ईपसभापवत के िेतन एिं भत्ते
 ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के िेतन, भत्ते तथा पेंशन
 ईच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की पेंशन
 भारत के वनयन्त्रक एिं महालेखापरीक्षक के िेतन, भत्ते तथा पेंशन
 संघ लोक सेिा अयोग के ऄध्यक्ष तथा सदस्यों के िेतन, भत्ते तथा पेंशन
 भारत के वनयन्त्रक एिं महालेखापरीक्षक, संघ लोक सेिा अयोग तथा ईच्चतम न्यायालय के
प्रशासवनक व्यय
 ऊण, वजनके वलए भारत सरकार ईत्तरदायी है
 क्रकसी वनणाय, वडिी आत्याक्रद के प्रितान के वलए अिश्यक धन
 संसद के क्रकसी ऄवधवनयम िारा पररभावषत भारत की संवचत वनवध पर अरोवपत ऄन्य व्यय
10.6. सं विधान सं शोधन विधे य क

 भारतीय संविधान एक प्रगवतशील प्रलेख है। समय और देश की पररितानशील पररवस्थवतयों के


ऄनुसार संविधान में भी पररितान लाना अिश्यक होता है। ऄतः देश में समय समय पर ईत्पन्न
विवभन्न सामावजक और अर्तथक पररवस्थवतयों के ऄनुसार संविधान में पररितान क्रकया जाता रहा
है। संविधान संशोधन की प्रक्रिया का संविधान के भाग 20 के ऄनुच्छेद 368 में विस्तृत िणान
क्रकया गया है।

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 संविधान संशोधन के वलए नम्य एिं कठोर दोनों प्रक्रियाओं को ऄपनाया गया है। संविधान
संशोधन प्रक्रिया की दृवष्ट से भारतीय संविधान के विवभन्न ईपबंधों को वनम्नवलवखत तीन िगों में
विभावजत क्रकया जा सकता है:
1. ऐसे ईपबंध, वजन्हें संसद में साधारण बहुमत से संशोवधत क्रकया जा सकता है।
2. ऐसे ईपबंध, वजन्हें संसद में विशेष बहुमत से संशोवधत क्रकया जा सकता है।
3. ऐसे ईपबंध, वजन्हें संसद में विशेष बहुमत के साथ भारत के अधे राज्यों के विधानमंडलों के
संकल्पों की स्िीकृ वत िारा संशोवधत क्रकया जा सकता है।
साधारण बहुमत िारा संशोधन
संविधान के ऄनेक ऐसे ईपबंध हैं, वजनके संशोधन हेतु संसद के दोनों सदनों में के िल साधारण बहुमत
की अिश्यकता होती है। आन्हें दो िगों में बांट सकते हैं:
 जहााँ संविधान का पाठ नहीं बदलता ककतु विवध में पररितान हो जाता है:
o ऄनुच्छेद 11 संसद को नागररकता के बारे में विवध ऄवधवनयवमत करने की शवक्त देता है। आस
शवक्त के ऄनुसरण में जो ऄवधवनयम बनाया जाएगा िह नागररकता से संबंवधत विवध को
पररिर्ततत कर देगा ककतु ऄनु. 5 से 10 तक के ऄनुच्छेद जैसे हैं िैसे ही बने रहेंगे। ऄनुच्छेद
124 में वलवखत है क्रक ईच्चतम न्यायालय मुख्य न्यायमूर्तत और सात से ऄनवधक न्यायाधीशों
से वमलकर बनेगा। ककतु संसद ने न्यायाधीशों की संख्या 7 से बढ़ाकर 31 कर दी है।
 जहां संविधान का पाठ पररिर्ततत हो जाता है:
o नए राज्यों की रचना, ऄनुसच
ू ी 1 और 4 का संशोधन अक्रद सामान्य विवध िारा क्रकए जा
सकते हैं। संसद विवध बनाकर पांचिीं और छठी ऄनुसच
ू ी को संशोवधत कर सकती है।
o जो ईपबंध सामान्य विवध िारा बदले जा सकते हैं ईनमें (जो उपर वगनाए गए हैं ईनके
ऄवतररक्त) शावमल हैंःः विधान पररषदों का सृजन और ईत्सादन; संघ राज्यक्षेत्रों के वलए
मंवत्रपररषद् का सृजन; ऄनुच्छेद 343 में ऄंग्रज
े ी के प्रयोग के वलए 15 िषा की ऄिवध का
विस्तार; संसदीय विशेषावधकारों को पररवनित करना; राष्ट्रपवत, ईपराष्ट्रपवत, न्यायाधीशों
अक्रद के िेतन और भत्ते।
विशेष बहुमत िारा संशोधन
 आस संशोधन प्रक्रिया में प्रत्येक सदन के सदस्यों की कु ल संख्या का बहुमत तथा ईस सदन में
ईपवस्थत और मतदान करने िाले सदस्यों के कम से कम दो-वतहाइ बहुमत की अिश्यकता होती
है। प्रथम िेणी (साधारण बहुमत से संशोवधत होने िाले ईपबंधों) और तृतीय िेणी (विशेष बहुमत
के साथ भारत के अधे राज्यों के विधानमंडलों िारा संशोवधत होने िाले ईपबंधों) में शावमल
ऄनुच्छेदों के ऄवतररक्त ऄन्य सभी ऄनुच्छेद ऐसे हैं, वजन्हें संसद विशेष बहुमत िारा ही संशोवधत
कर सकती है।
विशेष बहुमत तथा कम से कम अधे राज्य विधान मंडलों की स्िीकृ वत िारा संशोधन
 आस प्रक्रिया के तहत संविधान के कु छ विवशष्ट ऄनुच्छेद शावमल हैं, वजन्हें संशोवधत करने हेतु करठन
प्रक्रिया ऄपनायी जाती है। आन ऄनुच्छेदों में संशोधन करने के वलए संसद के विशेष बहुमत के साथ-
साथ भारत के कम से कम अधे राज्यों के विधानमंडलों की स्िीकृ वत अिश्यक होती है। आस िेणी
में वनम्नवलवखत ऄनुच्छेद सवम्मवलत हैं:
o ऄनुच्छेद 54- राष्ट्रपवत का वनिााचन
o ऄनुच्छेद 55- राष्ट्रपवत के वनिााचन की विवध
o ऄनुच्छेद 73–संघ की कायापावलका शवक्त का विस्तार
o ऄनुच्छेद 162- राज्यों की कायापावलका शवक्त का विस्तार
o ऄनुच्छेद 241- संघ राज्य क्षेत्रों के वलए ईच्च न्यायालय
o संघीय न्यायपावलका (भाग-5 ऄध्याय-4)

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o राज्यों के वलए ईच्च न्यायालय (भाग-VI ऄध्याय-V)


o संघ-राज्य-संबंध (विधायी) (भाग-XI ऄध्याय-I)
o सातिीं ऄनुसच ू ी का कोइ भी विषय
o संसद में राज्यों का प्रवतवनवधत्ि
o संविधान-संशोधन से संबंवधत ऄनुच्छेद-368
संविधान संशोधन विधेयक से संबवं धत विशेष प्रािधान
 के िल संसद में प्रारं भ: ऐसे विधेयक के िल संसद में ही प्रारं भ (प्रस्तुत) क्रकये जा सकते हैं, राज्य
विधानसभाओं में नहीं। हालााँक्रक आन्हें संसद के क्रकसी भी सदन में प्रारं भ क्रकया जा सकता है।
 संयक्तु ऄवधिेशन नहीं: ऐसे विधयक पर दोनों सदनों में गवतरोध ईत्पन्न होने की वस्थवत में राष्ट्रपवत
िारा संयुक्त ऄवधिेशन नहीं बुलाया जा सकता है।
 राष्ट्रपवत ऄनुमवत देने के वलए बाध्य: राष्ट्रपवत संविधान संशोधन विधेयक पर सहमवत देने हेतु
बाध्य है। आस हेतु 24िें संविधान (संशोधन) ऄवधवनयम, 1971 के पिात् ऄनुच्छेद 368(2) के
ऄंतगात ‘ऄनुमवत देगा’ िाक्यांश जोड़े गए हैं।
 संसद की संविधान संशोधन की शवक्त ऄसीम नहीं है : के शिानंद भारती िाद में संसद की आस
शवक्त पर संविधान के अधारभूत ढांचे से संबंधी सीवमततायें अरोवपत की गयी है।
लोक सभा में मतदान की प्रणावलयां
लोक सभा में मतदान और मत-विभाजन संबंधी प्रक्रिया संविधान के ऄनुच्छेद 100(1) और लोक सभा
के प्रक्रिया और काया-संचालन वनयमों के वनयम 367, 367क, 367कक और 367ख िारा संचावलत
होती है। लोक सभा में मतदान हेतु ऄपनायी गयी विवभन्न प्रणावलयां वनम्न हैं:
 ध्िवनमत: यह क्रकसी सदस्य िारा क्रकए गए प्रस्ताि पर पीठ िारा रखे गए प्रश्न पर वनणाय लेने की
एक सरल प्रणाली है। आस प्रणाली के ऄंतगात सभा के समक्ष रखे गए प्रश्न का वनधाारण 'हां' या
'नहीं', जैसी भी वस्थवत हो, िारा क्रकया जाता है।
 मत-विभाजन: मत-विभाजन कराने की तीन प्रणावलयां हैं, ऄथाात (एक) स्िचावलत मत ऄवभलेख
यंत्र िारा (दो) सभा में 'हां' और 'न' पर्तचयां वितररत करके और (तीन) सदस्य िारा लॉबी में
जाकर। तथावप, जबसे स्िचावलत मत ऄवभलेख यंत्र लगा क्रदया गया है तबसे लॉबी में जाकर
मतदान करने की प्रणाली ऄप्रचवलत हो गयी है।
 गुप्त मतदान: गुप्त मतदान, यक्रद कोइ हो, ईसी प्रकार क्रकया जाता है, वसिाय आसके क्रक लैम्प-
फील्ड तथा मशीन रूप में बोडा पर लगा बल्ब के िल सफे द प्रकाश फें कता है, वजससे यह प्रकट होता
है क्रक मत ऄवभवलवखत कर वलया गया है।
o 'प्रकट' मतदान ऄिवध के दौरान हयवक्तगत पररणाम को, हयवक्तगत पररणाम वडसप्ले पैनल पर
'A', 'N' और 'O' तीन विशेषताओं िारा दशााया जाता है, ककतु गुप्त मतदान के दौरान के िल डाले
गए मतों को सफे द प्रकाश में 'P' वचह्न िारा दशााया जाता है।
 पर्तचयों के वितरण िारा मतों का ऄवभलेखन: 'हां' या 'नहीं' पर्तचयों पर सदस्यों के मतों का
ऄवभलेखन का तरीका सामान्यतया वनम्नवलवखत पररस्थवतयों में ऄपनाया जाता है:- (एक)
स्िचावलत मत ऄवभलेखन यंत्र का संचालन ऄकस्मात बंद हो जाने के कारण, तथा (दो) नइ लोक
सभा के अरं भ होने पर, सदस्यों को स्थानों/विभाजन संख्याओ का अिंटन क्रकए जाने से पूिा।
 औपचाररक विभाजन की बजाय सदस्यों की ईनके स्थानों पर िास्तविक गणना: यक्रद पीठासीन
ऄवधकारी की राय में, विभाजन की ऄनािश्यक मांग की गयी है, तो िह 'हां' तथा 'नहीं' पक्ष िाले
सदस्यों से िमश: ऄपने स्थानों पर खड़े होने के वलए कह सकते हैं और वगनती होने के बाद िह
सभा के वनश्चय की घोषणा कर सकते हैं। ऐसे मामले में सदस्यों के मतदान के वििरण का
ऄवभलेखन नहीं क्रकया जाता है।

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 वनणाायक मत: यक्रद क्रकसी विभाजन में 'हां' तथा 'नहीं' पक्षों के मतों की संख्या समान हो, तो ईस
का वनणाय पीठासीन ऄवधकारी के वनणाायक मत िारा क्रकया जाता है। संविधान के ऄंतगात, ऄध्यक्ष
ऄथिा ईसके रूप में काम करने िाला हयवक्त क्रकसी विभाजन में मतदान नहीं कर सकता, ईसका
के िल वनणाायक मत होता है, वजसका प्रयोग ईसे मतों के समान होने पर ऄवनिायात: करना
चावहए।

11. सं स द की सवमवतयां
 अधुवनक समय में संसद के काया न के िल विविध और जरटल प्रकृ वत के हैं, बवल्क यह ऄत्यवधक
विस्तृत भी हैं। संसद के पास समय काफी सीवमत होता है। ऄतः यह स्ियं समस्त विधायी ईपायों
और ऄन्य मामलों की गहन छानबीन नहीं कर सकती है। आसवलए सदन की सवमवतयों को ऄवधक
मात्रा में काया हस्तांतररत क्रकए जाते हैं, वजन्हें संसदीय सवमवतयों के रूप में जाना जाता है। आस
प्रकार संसदीय सवमवतयों से तात्पया ईन सवमवतयों से हैं:
o वजसकी वनयुवक्त या चुनाि सदन िारा क्रकया गया हो ऄथिा ऄध्यक्ष/सभापवत िारा आसको
नामवनर्ददष्ट क्रकया गया हो।
o जो ऄध्यक्ष/सभापवत के वनदेशानुसार काया करती है।
o जो ऄपनी ररपोटा सदन को या ऄध्यक्ष/सभापवत को प्रस्तुत करती है।
o वजसे लोक सभा/राज्य सभा सवचिालय िारा सवचिालय की सुविधा प्रदान की गयी हो।

हाल ही में संसदीय सवमवतयां चचाा का विषय बनी रहीं वजसके वनम्नवलवखत कारण थे:
 16िीं लोकसभा के गठन के बाद से संसदीय सवमवतयों िारा ऄब तक के िल 29% विधेयकों की जांच

की गइ है, जबक्रक 14िीं ि 15िीं लोकसभा िारा आसी ऄिवध में िमशः 60% और 70% विधेयकों
की जांच की गइ थी।
 आससे संसदीय सवमवतयों के घटते महत्ि के संबंध में मचता ईत्पन्न होती है। साथ ही, यह मचता भी

रहती है क्रक विवभन्न विधेयकों के पाररत होने से पहले ईवचत विचार-विमशा क्रकया जा रहा है या
नहीं।

 प्रकृ वत के अधार पर संसदीय सवमवतयां दो प्रकार की होती हैं: स्थायी सवमवतयां और तदथा
सवमवतयां।
 स्थायी सवमवतयां, स्थायी और वनयवमत होती हैं, जो समय-समय पर संसद के क्रकसी ऄवधवनयम
या प्रक्रिया एिं काया संचालन वनयम के प्रािधानों के ऄनुसार गरठत की जाती हैं। आन सवमवतयों के
काया वनरं तर प्रकृ वत के होते हैं।
 तदथा सवमवतयां एक विवशष्ट प्रयोजन के वलए गरठत की जाती हैं और यह प्रयोजन समाप्त होते ही
तथा ररपोटा प्रस्तुत करने के साथ ही समाप्त हो जाता है। तदथा सवमवतयों को िमशः दो िेवणयों में
बांटा जा सकता है:
o जांच सवमवतयां: विवनर्ददष्ट विषयों की जांच करने एिं प्रवतिेदन तैयार करने हेतु। ईदाहरणतः
2G घोटाले, शेयर बाजार घोटाले पर गरठत सवमवत अक्रद।

o सलाहकार सवमवतयां: विधेयकों के वलए गरठत प्रिर या संयक्त


ु सवमवतयां, वजनका गठन
क्रकसी विवशष्ट विधेयकों पर विचार करने तथा प्रवतिेदन देने हेतु क्रकया जाता है।

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संयक्त
ु संसदीय सवमवत (Joint Parliamentary Committee: JPC)
 यह एक तदथा सवमवत होती है जो क्रकसी विशेष ईद्देश्य एिं सीवमत ऄिवध हेतु गरठत होती है। यह
मुख्य रूप से राष्ट्रीय स्तर पर सुर्तियों में रहने िाले वििाक्रदत मुद्दों/विषयों ऄथिा सरकार पर लगे
भ्रष्टाचार के अरोपों की जांच करने हेतु गरठत की जाती है। आसके सदस्यों के बारे में वििरण,
शवक्तयां, जांच के दायरे अक्रद का वनधाारण संसद िारा क्रकया जाता है।
 ये एक सदन में पाररत प्रस्ताि एिं आस पर दूसरे सदन के सहमत होने के पिात् ही गरठत क्रकए जाते
हैं। आसके सदस्यों की संख्या का वनधाारण संसद करती है। सामान्यतया आसमें लोकसभा के सदस्यों की
संख्या राज्यसभा के सदस्यों की संख्या की दोगुनी होती है। अजादी के बाद से कइ संयुक्त सवमवतयां
बनाइ गइ हैं, आनमें से कु छ वनम्नवलवखत हैं:
o बोफोसा संविदा पर संयुक्त सवमवत;
o प्रवतभूवतयों और बैंककग लेनदेन में ऄवनयवमतताओं की जांच करने के वलए संयुक्त सवमवत;
o शेयर बाजार घोटाले पर संयुक्त सवमवत;
o शीतल पेय पदाथों में कीटनाशक ऄिशेषों और सुरक्षा मानकों पर संयुक्त सवमवत;
o 2G स्कै म पर संयुक्त सवमवत अक्रद।

11.1. काया पावलका पर सं स दीय िाचडॉग की तरह काया करने िाली कु छ स्थायी सवमवतयां :

 लोक लेखा सवमवत,


 प्रािलन सवमवत,
 सरकारी ईपिमों संबंधी सवमवत,
 विभाग से संबद्ध स्थायी सवमवतयां अक्रद।
लोक लेखा सवमवत
 आस सवमवत की स्थापना 1921 में भारत सरकार ऄवधवनयम, 1919 के तहत की गइ और यह
ऄभी भी विद्यमान है।
 आसमें 22 सदस्य (15 लोकसभा से एिं 7 राज्यसभा से) होते हैं। संसद, प्रत्येक िषा ऄपने सदस्यों के
बीच से एकल संिमणीय वसद्धांत के अधार पर हस्तांतरणीय मत के माध्यम से आनका चयन करती
है। आस तरह आसमें सभी दलों का प्रवतवनवधत्ि रहता है।
 आसके सदस्यों का कायाकाल एक िषा होता है। क्रकसी मंत्री को आसका सदस्य नहीं चुना जा सकता।
 मुख्य रूप से वनयंत्रक एिं महालेखा परीक्षक िारा प्रस्तुत विवनयोग लेखों से संबंवधत लेखा परीक्षा
ररपोटा की जांच करना सवमवत का प्रमुख काया है। सवमवत का मुख्य कताव्य यह सुवनवित करना भी
है क्रक क्या व्यय क्रकया गया धन सरकार िारा "मांग के दायरे के भीतर" संसद िारा प्रावधकृ त रूप
में खचा क्रकया गया है।
 घाटा, ऄपव्यय और वित्तीय ऄवनयवमतताओं से जुड़े मामलों को प्रकाश में लाने में यह सवमवत
रूवच रखती हैं। हालांक्रक आस सवमवत का नीवत के प्रश्न से कोइ सरोकार नहीं होता। आसका संबंध
के िल संसद िारा वनष्पाक्रदत नीवत और ईसके पररणामों से है। 1966-67 तक सवमवत का ऄध्यक्ष
सत्तारूढ़ दल से होता था, हालांक्रक 1967 से यह परं परा प्रारं भ हो गयी क्रक सवमवत का ऄध्यक्ष
विपक्षी दल से चुना जाये।
प्रािलन सवमवत
 तत्कालीन सरकार अर्तथक नीवतयां बनाती है और नीवतयों को क्रियावन्ित करने के वलए संसद के
समक्ष मांग प्रस्तुत करती है। सरकार िारा प्रस्तावित व्यय की समीक्षा करने के वलए एक प्रािलन
सवमवत गरठत की जाती है। आसका गठन लोक सभा में बजट प्रस्तुत क्रकए जाने के पिात् होता है।

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सवमवत में दल की भािना की छोड़कर ऄनौपचाररक िातािरण में काम क्रकया जाता है। लोक सभा
की यह सवमवत प्रकरणों की जांच करके वनम्नवलवखत के बारे में सुझाि देती है:
o क्रकस प्रकार वमतव्यवयता की जा सकती है और संगठन में दक्षता लाने के वलए कौन से सुधार
या प्रशासवनक सुधार क्रकए जा सकते हैं जो प्रािलनों से संबंवधत नीवत से संगत हों।
o प्रशासन में दक्षता और वमतव्यवयता लाने के वलए िैकवल्पक नीवतयों का सुझाि।
o यह जांच करना क्रक प्रािलन में जो नीवत वनधााररत की गइ है, ईसकी सीमाओं में रहते हुए
धन ठीक से लगाया गया है।
o प्रािलन संसद को क्रकस रूप में प्रस्तुत क्रकए जाएंगे।
 सवमवत के कृ त्यों में सरकारी ईपिम सवम्मवलत नहीं है क्योंक्रक सरकारी ईपिमों के वलए एक पृथक
सवमवत है।
 आस सवमवत का ईद्भि 1921 में स्थायी वित्तीय सवमवत के गठन से देखा जा सकता है। स्ितंत्रता
प्रावप्त के बाद तत्कालीन वित्त मंत्री जॉन मथाइ की वसफाररश पर 1950 में ऐसी पहली सवमवत
गरठत की गइ थी।
 सवमवत में 30 से ऄवधक सदस्य नहीं होंगे। सदस्यों का वनिााचन अनुपावतक प्रवतवनवधत्ि पद्धवत से
एकल संिमणीय मत िारा क्रकया जाता है। कोइ मंत्री सवमवत का सदस्य वनिाावचत नहीं हो सकता।
यक्रद वनिााचन के पिात् कोइ सदस्य मंत्री वनयुक्त हो जाता है तो िह सवमवत का सदस्य नहीं
रहेगा।
 सदस्य ऄवधक से ऄवधक एक िषा के वलए वनयुक्त क्रकए जा सकते हैं। सवमवत के प्रवतिेदन पर सदन
में बहस नहीं होगी। सवमवत िषा भर काया करती है और ऄपने विचार सदन के समक्ष रखती है।
सरकार की ऄनुदान की मांगें प्रािलन सवमवत के प्रवतिेदन की प्रतीक्षा नहीं करती। प्रािलन
सवमवत ईपयोगी सुझाि देती है और अगामी वित्तीय िषा में सरकार को बढ़ी-चढ़ी मांग करने से
रोकती है।
सरकारी ईपिमों संबधं ी सवमवत
 लोक सभा के वनयमों में विवनर्ददष्ट सरकारी ईपिमों (जैसे- दामोदर घाटी वनगम, औद्योवगक वित्त
वनगम, एयर आं वडया, जीिन बीमा वनगम, भारतीय खाद्य वनगम अक्रद) के प्रवतिेदन और लेखाओं
की जांच करना, आस सवमवत के प्रमुख कृ त्य हैं।
o सवमवत ऐसी सरकारी कं पनी के लेखाओं की भी जांच करती है वजसके लेखा कं पनी ऄवधवनयम
के ऄधीन सदन के पटल पर रखे जाते हैं।
 आस सवमवत के ऄन्य कृ त्य वनम्नवलवखत हैं:
o सरकारी ईपिमों के संबंध में वनयंत्रक एिं महालेखा परीक्षक के प्रवतिेदनों की जांच करना।
o यह देखना क्रक क्या सरकारी ईपिम समुवचत व्यापाररक वसद्धांतों और वििेकपूणा िावणवज्यक
प्रादशों के ऄनुरूप चल रहे हैं या नहीं।
o ऐसे विषयों की जांच करना जो ऄध्यक्ष िारा सवमवत को वनर्ददष्ट क्रकए जाएं।
 सवमवत में 22 से ऄवधक सदस्य नहीं होते। आनमें से 15 सदस्य लोक सभा से (ऄनुपावतक
प्रवतवनवधत्ि पद्धवत के ऄनुसार एकल संिमणीय मत िारा) और 7 सदस्य राज्य सभा से चुने जाते
हैं।
 सवमवत का कायाकाल एक िषा का होता है।
 ऄन्य सवमवतयों के समान आस सवमवत में भी मंत्री सदस्य नहीं हो सकता। यक्रद कोइ सदस्य मंत्री
बन जाता है तो िह सदस्य नहीं रह जाता।
काया मंत्रणा सवमवत
 यह सवमवत सदन के कायािम तथा सदन की समय सारणी को वनयवमत रखती है। यह सदन के
समक्ष सरकार िारा लाए गए विधायी तथा ऄन्य कायों पर चचाा हेतु समय अिंरटत करती है।
 लोकसभा में सवमवत में ऄध्यक्ष सवहत 15 सदस्य होते हैं। लोकसभा ऄध्यक्ष आसके पदेन सभापवत
होते हैं। राज्यसभा में 11 सदस्य होते हैं तथा राज्यसभा सभापवत आसके पदेन ऄध्यक्ष होते हैं।

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विभागों से संबद्ध संसदीय स्थायी सवमवतयां (Department-related Parliamentary Standing


Committees)
 ऄप्रैल 1993 में, विभागों से संबद्ध
ं संसदीय स्थायी सवमवतयों की एक पूणानग प्रणाली ऄवस्तत्ि में
अइ।
 विभागों से संबद्ध संसदीय स्थायी सवमवतयों की संख्या 24 है वजनके क्षेत्रावधकार में भारत सरकार
के सभी मंत्रालय/विभाग अते हैं।
 प्रत्येक सवमवत में 31 सदस्य होते हैं। आसमें 21 सदस्यों को लोक सभा से तथा 10 सदस्यों को राज्य
सभा से (वजन्हें िमश: लोक सभा के ऄध्यक्ष तथा राज्य सभा के सभापवत िारा नाम-वनर्ददष्ट
क्रकया जाता है) चुना जाता है। आन सवमवतयों का कायाकाल एक िषा से ऄनवधक होता है। आन 24
सवमवतयों के नाम वनम्नवलवखत हैं:

राज्यसभा के ऄंतगात अने िाली सवमवतयां लोकसभा के ऄंतगात अने िाली सवमवतयां

1. िावणज्य संबंधी सवमवत 9. कृ वष संबंधी सवमवत


2. गृह काया संबंधी सवमवत 10. सूचना प्रौद्योवगकी संबंधी सवमवत
3. मानि संसाधन विकास संबंधी सवमवत 11. रक्षा संबंधी सवमवत
4. ईद्योग संबंधी सवमवत
12.उजाा संबंधी सवमवत
5. विज्ञान तथा प्रौद्योवगकी, पयाािरण और
13.विदेशी मामलों संबंधी सवमवत
िन संबंधी सवमवत
14.वित्त संबंधी सवमवत
6. पररिहन, पयाटन और संस्कृ वत संबंधी
सवमवत 15.खाद्य, नागररक पूर्तत और सािाजवनक वितरण
7. स्िास्थ्य और पररिार कल्याण संबंधी संबंधी सवमवत
सवमवत 16.िम संबंधी सवमवत
8. कार्तमक, लोक वशकायत, विवध और 17.पेरोवलयम और प्राकृ वतक गैस संबंधी सवमवत
न्याय संबंधी सवमवत 18.रे ल संबंधी सवमवत
19.शहरी विकास संबंधी सवमवत
20.जल संसाधन संबंधी सवमवत
21.रसायन और ईिारक संबंधी सवमवत
22.ग्रामीण विकास संबंधी सवमवत
23.कोयला और आस्पात संबंधी सवमवत
24.सामावजक न्याय और ऄवधकाररता संबंधी सवमवत

 आन 24 सवमवतयों में से 8 सवमवतयां (िम सं. 1 से 8) राज्य सभा के ऄंतगात काया करती हैं तथा
ईन्हें राज्य सभा सवचिालय िारा सेिा प्रदान क्रकया जाता है तथा 16 सवमवतयां (िम सं. 9 से
24) लोक सभा के ऄंतगात काया करती हैं तथा ईन्हें लोक सभा सवचिालय िारा सेिा प्रदान क्रकया
जाता है। एक मंत्री, सवमवत का सदस्य नामांक्रकत क्रकए जाने के पात्र नहीं होता है।
 आन सवमवतयों के सदस्यों का कायाकाल एक िषा होता है। आन सवमवतयों के वनम्नवलवखत काया हैं:
o संबद्ध मंत्रालय या विभाग के ऄनुदान मांगों पर विचार करना।
o राज्य सभा के सभापवत या लोकसभा ऄध्यक्ष िारा भेजे गए विधेयकों का वनरीक्षण करना,
जैसा भी मामला हो।
o संबद्ध मंत्रालय या विभाग के िार्तषक प्रवतिेदन पर विचार करना।
o दोनों सदनों में प्रस्तुत राष्ट्रीय मूलभूत दीघाकालीन नीवतगत दस्तािेजों पर विचार करना और
ईनपर प्रवतिेदन देना।

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 ये सवमवतयां मंत्रालयों/विभागों के क्रदन-प्रवतक्रदन के प्रशासन से जुड़े मामलों पर विचार नहीं करती


हैं।
 ये सवमवतयां कायापावलका को दीघाकावलक राष्ट्रीय पररप्रेक्ष्य में ऄपने लक्ष्यों को प्राप्त करने एिं
व्यापक नीवत वनमााण हेतु अिश्यक क्रदशा-वनदेश, मागादशान और जानकारी प्रदान करने के मामले
में विशेष स्थान रखती हैं।

नोट: राज्य सभा का सभापवत काया मंत्रणा सवमवत, सामान्य प्रयोजन सवमवत और वनयम सवमवत के
ऄध्यक्ष होता है। ईपसभापवत विशेषावधकार सवमवत का ऄध्यक्ष होता है।

12. सं स दीय विशे षावधकार


 ऄनुच्छेद 105 संसद और ईसके सदस्यों की शवक्तयां, विशेषावधकार और ईन्मुवक्तयों के बारे में हैं।
आसी प्रकार ऄनु. 194 राज्य विधान मंडलों और ईनके सदस्यों की शवक्तयों, विशेषावधकार और
ईन्मुवक्तयों के बारे में है। मूलतः आन ऄनुच्छेदों के ईपऄनुच्छेद (3) में आं ग्लैंड के हाईस ऑफ़ कॉमन्स
के और ईसके सदस्यों एिं सवमवतयों के संविधान के प्रारं भ पर विद्यमान विशेषावधकारों के प्रवत
वनदेश था। संसद और राज्य विधान मंडलों को िहीं विशेषावधकार और शवक्तयां दी गइ थीं जो
विरटश संसद और ईसके सदस्यों की थीं। संविधान के 44िें संशोधन ऄवधवनयम िारा विरटश संसद
के प्रवत वनदेश हटा क्रदया गया। आन्हीं ऄनुच्छेदों िारा ऄथाात् ऄनु. 105(3) और 194(3) िारा
संसद और राज्य विधान मंडलों को यह शवक्त दी गइ क्रक िे ऄपनी शवक्तयां, विशेषावधकार और
ईन्मुवक्तयां पररवनवित करें ।
 ऐवतहावसक दृवष्ट से यक्रद कोइ व्यवक्त यह जानना चाहता है क्रक 26 जनिरी 1950 के तुरंत पिात्
संसद की क्या शवक्तयां और विशेषावधकार थे तो ईसे यह पता करना होगा क्रक ईस तारीख को
विरटश संसद की क्या शवक्तयां और विशेषावधकार थे। ऄनुच्छेद 105(3) में संसद को यह सुझाि
क्रदया गया है क्रक िह सदनों की शवक्तयों, विशेषावधकारों और ईन्मुवक्तयों को पररवनवित करने
िाली विवध बनाए। यक्रद ऐसी विवध वनर्तमत की जाती है तो शवक्तयां और विशेषावधकार क्या हैं,
यह ईस ऄवधवनयम को पढ़कर सरलता से ज्ञात हो सके गा। ऄभी तक न तो संसद ने और न 28
राज्य विधान मंडलों में से क्रकसी ने ऄपनी शवक्तयां, विशेषावधकार और ईन्मुवक्तयों को संवहताबद्ध
क्रकया है।
विशेषावधकारों का िगीकरण
संसद के दोनों सदनों की शवक्तयों और विशेषावधकारों का िगीकरण को दो िगों मे विभावजत क्रकया जा
सकता है:
 िे जो सामूवहक रूप से सदनों के हैं।
 िे जो व्यवक्तगत रूप से सदस्यों के हैं।

12.1. सामू वहक विशे षावधकार

संसद के दोनों सदनों के सामूवहक विशेषावधकार वनम्नवलवखत हैं:


 आसे सदन में होने िाली सभी बहस और कायािाही के प्रकाशन पर वनयंत्रण का ऄवधकार का है।
44िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1978 ने सदन की पूिा ऄनुमवत के वबना संसद की कायािाही
की सही ररपोटा के प्रकाशन की प्रेस की स्ितंत्रता को पुनस्थाावपत क्रकया। क्रकन्तु यह सदन की गुप्त
बैठकों के मामले में लागू नहीं होता है।
 आसे सदन की कायािाही से दूसरों को बाहर करने का ऄवधकार है। कायािाही के वनयमों के तहत,
लोकसभा ऄध्यक्ष और सभापवत को सदन से क्रकसी ऄन्य को बाहर करने का ऄवधकार है।

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 आसे सदन के अंतररक मामलों को विवनयवमत करने का और सदन के भीतर ईत्पन्न होने िाले
मामलों के वनणायन का ऄवधकार है। संसद के भीतर क्या कहा गया और क्या क्रकया गया, आस पर
क्रकसी भी न्यायालय में प्रश्न नहीं ईठाया जा सकता है।
 सदस्यों के साथ-साथ बाहरी लोगों को भी आसके विशेषावधकार के हनन के मामले में दवण्डत करने
का ऄवधकार है।
 सदन के पररसर के भीतर पीठासीन ऄवधकारी के वबना ऄनुमवत के क्रकसी व्यवक्त को न ही
वगरफ्तार क्रकया जा सकता है और न ही कोइ कानूनी कायािाही की जा सकती है।

12.2. व्यवक्तगत विशे षावधकार

आन विशेषावधकारों को संसद सदस्यों िारा व्यवक्तगत रूप से प्रयोग क्रकया जाता है। ये वनम्नवलवखत हैं:
 वसविल वगरफ्तारी से मुवक्त: संसद सदस्यों को संसद की कायािाही के दौरान, कायािाही चलने से

40 क्रदन पूिा तथा 40 क्रदन बाद तक वगरफ्तार नहीं क्रकया जा सकता है। यह ऄवधकार के िल
दीिानी मामलों में ईपलब्ध हैं तथा अपरावधक तथा प्रवतबंधात्मक वनषेध मामलों में नहीं।
 गिाह के रूप में ईपवस्थवत से स्ितंत्रता: संसद सदस्यों को संसद के सत्र के दौरान क्रकसी न्यायालय
में लंवबत मुकदमे में प्रमाण प्रस्तुत करने या ईपवस्थवत होने से मना करने का ऄवधकार प्राप्त है।
 ऄवभव्यवक्त की स्ितंत्रता: कोइ सदस्य संसद या आसकी सवमवत में क्रदए गए िक्तव्य या मत के वलए
क्रकसी भी न्यायालय की क्रकसी भी कायािाही के वलए वजम्मेदार नहीं है। यह स्ितंत्रता हालांक्रक,
सदन के िारा बनाये गए क़ानून एिं स्थायी अदेश के संचालन से संबंवधत है। आसके ऄलािा
संविधान एक और प्रवतबंध अरोवपत करता है ऄथाात् संसद में ईच्चतम न्यायालय या ईच्च
न्यायालय के क्रकसी भी न्यायाधीश (जब क्रकसी न्यायाधीश को हटाने का प्रस्ताि विचाराधीन हो,
को छोड़कर) के कताव्यों के वनिाहन में अचरण के संबंध में कोइ चचाा नहीं की जाएगी।

12.3. विशे षावधकारों का हनन एिं सदन की ऄिमानना

 सांसदों / संसद की ऄिमानना ही विशेषावधकार का ईल्लंघन है। ऄन्य बातों के ऄलािा, सांसदों,
संसद या आसकी सवमवतयों पर कोइ भी ऄसद्भािपूणा कारिाइ को विशेषावधकारों का ईल्लंघन
समझा जाएगा। आसमें समाचार, सम्पादकीय, या ऄखबार / पवत्रका / टीिी साक्षात्कार अक्रद के
माध्यम से क्रकए गए ऄवििेकपूणा प्रकाशन शावमल हो सकते हैं।
 सदन की ऄिमानना को सामान्यतया आस प्रकार पररभावषत क्रकया जा सकता है, “संसद के क्रकसी
भी सदन की कायािाही में या आसके क्रकसी सदस्य या ऄवधकारी के ऄपने कताव्यों के वनिाहन के
दौरान प्रत्यक्ष या ऄप्रत्यक्ष रूप में बाधा ईत्पन्न करना ही सदन की ऄिमानना कहलाता है।
 विशेषावधकार के सभी ईल्लंघन सदन की ऄिमानना के तहत अते हैं। कोइ व्यवक्त सदन की
ऄिमानना का दोषी हो सकता है यद्यवप ईसने सदन के क्रकसी भी विशेषावधकार का ईल्लंघन न
क्रकया हो; ईदाहरण के वलए जब िह सदन के क्रकसी सवमवत के सामने ईपवस्थत होने के वनणाय की
ऄिहेलना करता हो या सदन के क्रकसी सदस्य के अचरण पर कोइ लेख प्रकावशत करता हो।

12.4. सदन की ऄिमानना या विशे षावधकार के ईल्लं घ न के मामले में सजा

सदन दोषी व्यवक्त को ईपवस्थत होने का अदेश दे सकता है। सजा के रूप में चेतािनी, फटकार या
कारािास क्रदया जा सकता है।

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संसदीय मंच
संसदीय मंच ऐसे संसद सदस्यों का एक समूह होता है जो संबंवधत विषय में विशेष जानकारी/गहरी
रूवच रखने िाले विवभन्न राजनीवतक दलों/समूहों के नेताओं ऄथिा ईनके िारा नावमत व्यवक्तयों के
बीच से लोक सभा के ऄध्यक्ष और राज्य सभा के सभापवत, जैसा भी मामला हो, िारा नाम-वनदेवशत
क्रकए जाते हैं। प्रत्येक मंच में 31 से ऄनवधक सदस्य होते हैं (ऄध्यक्ष और पदेन ईपाध्यक्षों को छोड़कर)
वजनमें से 21 से ऄनवधक सदस्य लोक सभा से और 10 से ऄनवधक सदस्य राज्य सभा से होते हैं।
ितामान में, लोक सभा के अठ संसदीय मंच है, ऄथाात्
 जल संरक्षण और प्रबंधन संबंधी संसदीय मंच;
 बच्चों संबंधी संसदीय मंच;
 युिाओं संबंधी संसदीय मंच;
 जनसंख्या और जन-स्िास्थ्य संबध
ं ी संसदीय मंच;
 िैवश्वक तापिधान और जलिायु पररितान संबंधी संसदीय मंच;
 अपदा प्रंबधन संबंधी संसदीय मंच;
 वशल्पकारों और कारीगरों संबंधी संसदीय मंच और
 सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों (ऄब सतत विकास लक्ष्य) संबंधी संसदीय मंच।

13. राज्यसभा की भू वमका


 पुनरीक्षण सदन के रूप में: पुनरीक्षण सदन के रूप में राज्यसभा की विशेष भूवमका होती है।
हालांक्रक पुनरीक्षण बहुत कम बार क्रकये गए हैं, तथावप पुनरीक्षण की संभािना सदैि बनी रहती है।
हमारी संसदीय प्रणाली में, राज्यसभा को विधान पर विचार विमशा करने तथा ईसे स्थवगत करने
का ऄवधकार प्राप्त है परन्तु ऄनुवचत ढंग से ऄिरोध ईत्पन्न करने या समाप्त करने का नहीं। वितीय
सदन के रूप में, यह जल्दबाजी में बनाए गए विधान पर गंभीरतापूिक
ा विचार करने के वलए
ऄवधकृ त है।
 संघीय सदन के रूप में: राज्यसभा की एक ऄन्य महत्िपूणा भूवमका, संघीय विधानमंडल में राज्यों
को प्रवतवनवधत्ि देने की अिश्यकता से वनदेवशत थी। राज्यसभा एक संघीय सदन है, जहां प्रत्येक
राज्य के प्रवतवनवध, राज्य विधानसभा के वनिाावचत सदस्यों िारा चुने जाते हैं। संघीय सदन के रूप
में, राज्यसभा को संघीय वहतों को प्रभावित करने िाली कु छ विशेष शवक्तयां सौंपी गयी हैं।
राज्यसभा, राज्यों की अकांक्षाओं के प्रवत सदैि संिेदनशील और वहतबद्ध रहती है। आस प्रक्रिया में,
यह देश के संघीय ढांचे को मजबूत बनाती है और राष्ट्रीय एकता को बढ़ािा देती है।
 विचारशील सदन के रूप में: एक विचारशील सदन के रूप में राज्यसभा की प्रमुख भूवमका,
राज्यसभा के 12 सदस्यों का सावहत्य, विज्ञान, कला और सामावजक सेिा में ईनके योगदान के
अधार पर नामांकन के प्रािधान से सुदढ़ृ होती है। सदन में विचार-विमशा और चचाा की प्रमुख
परं पराओं ने राज्य सभा के सदस्यों को न के िल जनता के मुद्दों पर प्रभािशाली विचार-विमशा
अयोवजत करने के वलए, बवल्क कायािाही को जनता के कल्याण के वलए प्रासंवगक बनाने का प्रयास
करने के वलए भी पथप्रदशान क्रकया है।
 वनरं तर चलने िाले सदन के रूप में: राज्यसभा एक स्थायी सदन है, आसका विघटन नहीं होता है
तथा आसके सदस्यों में से एक-वतहाइ सदस्य प्रत्येक दूसरे िषा सेिावनिृत होते है। राज्यसभा एक
ऄनिरत सदन के रूप में वनरं तरता के वसद्धांत का ऄनुपालन करती है। चूंक्रक राज्य सभा एक
स्थायी सदन है, ऄत: लोकसभा का विघटन होने पर राज्यसभा िारा अरं भ एिं ईसके समक्ष
लंवबत विधेयकों पर कोइ प्रभाि नहीं पड़ता है। आस प्रकार, राज्यसभा की वनरं तरता, विधायी
वनरं तरता का एक महत्िपूणा ईपाय सुवनवित करती है।

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 सरकार के गठन से ऄसंबद्ध सदन: मंवत्रपररषद् सामूवहक रूप से लोकसभा के प्रवत ईत्तरदायी होती
है। एक परोक्ष रूप से वनिाावचत सदन होने के कारण राज्यसभा की सरकार के गठन या विघटन में
कोइ भूवमका नहीं होती है। चूंक्रक आस सदन की सरकारों के गठन में कोइ भूवमका नहीं होती है तथा
सरकार, राज्य सभा की संख्यात्मक ताकत के अधार पर विघरटत भी नहीं होती हैं, ऄत: यह सदन
प्रवतस्पधी दलगत राजनीवत की बाध्यताओं से ऄपेक्षाकृ त मुक्त होता है। कु छ विशेषज्ञों का तका है
क्रक यक्रद राज्यसभा सरकार नहीं वगरा सकती है, तो राजनीवतक पररप्रेक्ष्य में ईसकी भूवमका
सीवमत है। परन्तु, कइ वििान यह मानते हैं क्रक संसद के क्रकसी सदन की भूवमका सरकार वगराने
मात्र में ही सीवमत नहीं है, आसकी सिाावधक महत्िपूणा भूवमका राष्ट्रीय मुद्दों पर बहस के वलए एक
जीिंत योगदानकताा के रूप में है। राज्यसभा ने राष्ट्रीय बहस में योगदान करने में एक महत्िपूणा
भूवमका वनभाइ है।
 प्रभािी लघु सदन के रूप में: संख्याबल के मामले में राज्यसभा, लोकसभा की तुलना में ऄपेक्षाकृ त
लघु सदन है। लघु सदन होने के कारण, यह सदस्यों के मध्य घवनष्ट सौहादा और ऄवधक से ऄवधक
अम सहमवत के वनमााण हेतु ऄिसर प्रदान करता है। सभी दलों के सदस्यों के बीच सामंजस्य और
समायोजन की भािना, आस सदन की प्रभािशीलता में योगदान करती है।
 कायाकारी जिाबदेवहता प्राप्त करने िाले सदन के रूप में: संसद के एक मूल ऄंग के रूप राज्यसभा
ने आसकी विवभन्न सवमवतयों के माध्यम से कायाकारी जिाबदेही प्राप्त की है। ितामान में, संसद में
विभाग से संबंवधत 24 संसदीय स्थायी सवमवतयां हैं, वजसमें से 8 राज्यसभा के सभापवत के
क्रदशावनदेश और वनयंत्रण के ऄधीन काया करते हैं। ऐसी सवमवतयों िारा की गइ रचनात्मक
अलोचना एिं सुविचाररत ऄनुसंशाओं ि वसफाररशों को मंत्रालयों एिं विभागों को ईनकी
कायापद्धवत को बेहतर बनाने और लोगों के कल्याण हेतु यथाथािादी बजट, योजनाओं और
कायािमों को तैयार करने के संबध
ं में ईपयोगी पाया गया है।
 लोक वशकायतों को प्रस्तुत करने िाले सदन के रूप में: राज्यसभा, विवभन्न राज्यों िारा सामना की
जा रही समस्याओं का दशााने िाला एक मंच है। राज्यों के प्रवतवनवधयों के रूप में आसके सदस्य,
ऄपने से संबद्ध राज्यों और िहां की जनता की समस्याओं को प्रस्तुत करते हैं। पूणातया स्थावपत
प्रक्रियात्मक ईपायों यथा प्रश्नों, ध्यानाकषाण, विशेष ईल्लेख, ऄल्पकावलक चचाा, अधे घंटे की
चचाा, प्रस्तािों, संकल्पों, अक्रद के माध्यम से यह सािाजवनक महत्ि के विषयों एिं सरकार की
नीवतयों को प्रभावित करने िाले मामलों पर ध्यान कें क्रद्रत करने िाले मुद्दे ईठाती है तथा जनता की
वशकायतों को प्रस्तुत करने के वलए एक मंच प्रदान करती है।

13.1. राज्यसभा में राज्यों के प्रवतवनवधत्ि की समानता

ऄमेररकी सीनेट में, जहां प्रत्येक राज्य को 2 सीटें अिंरटत हैं, के विपरीत भारतीय संसद के ईच्च सदन
(राज्यसभा) में विवभन्न राज्यों का प्रवतवनवधत्ि ऄसमान है। सभी राज्यों को समान प्रवतवनवधत्ि देकर
राज्यसभा में सुधार का सुझाि क्रदया गया है। आस सुझाि के सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष
वनम्नवलवखत हैं:
सकारात्मक पक्ष
 यक्रद सभी राज्यों का समान प्रवतवनवधत्ि होगा, तो सभी राज्यों के वहतों को संसद में समान रूप से
प्रवतवनवधत्ि प्राप्त होगा। आस प्रकार, यह हमारी राजव्यिस्था को और ऄवधक संघीय स्िरुप प्रदान
करे गा। िास्ति में संविधान सभा के कु छ सदस्यों (के .टी. शाह, लक्ष्मी नारायण साहू और लोकनाथ
वमिा) ने आसका सुझाि क्रदया था।
 छोटे राज्य तब आस बात का अरोप नहीं लगायेंगे क्रक बड़े राज्य राज्यसभा में हािी रहते हैं।

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नकारात्मक पक्ष
 राज्य सभा के सदस्य क्रकसी राज्य के वहत के ऄनुसार मतदान नहीं करते, ऄवपतु पाटी लाआन के
ऄनुसार मतदान करते हैं। आस प्रकार यह अरोप िास्ति में सच नहीं है क्रक राज्यसभा में एक राज्य,
ऄन्य राज्य पर हािी होता है।
 क्रफर भी यक्रद सभी राज्यों को समान प्रवतवनवधत्ि दे भी क्रदया जाता है, तो यह संक्रदग्ध ही है क्रक
राज्यसभा के सदस्य राज्यों के वहतों का ही प्रवतवनवधत्ि करें गे, पाटी के वहतों का नहीं।
 भारत के राज्यों में ईनके अकार और अबादी में काफी वभन्नता है। यह बहस का मुद्दा है क्रक ईन
सभी को बराबर प्रवतवनवधत्ि देना, क्या एक सही कदम होगा।

13.2. राज्यसभा की लोकसभा से तु ल ना

13.2.1 लोकसभा के सं बं ध में समान शवक्तयााँ

संविधान ने कु छ महत्त्िपूणा विषयों के सन्दभा में संसद के दोनों सदनों को समान ऄवधकार प्रदान क्रकये
हैं। ये विषय वनम्नवलवखत हैं:
 आसे राष्ट्रपवत के चुनाि एिं ईसके महावभयोग के सन्दभा में लोकसभा के समान ऄवधकार (ऄनुच्छेद
54 और 61) प्राप्त हैं।
 ईपराष्ट्रपवत के चुनाि के मामले में भी आसे लोकसभा के समान ऄवधकार (ऄनुच्छेद 66) प्राप्त हैं।
 संसदीय विशेषावधकारों को पररभावषत करने िाले तथा ऄिमानना के वलए दवण्डत करने िाले
क़ानून बनाने के सन्दभा में आसे लोक सभा के समान ऄवधकार (ऄनुच्छेद 105) प्राप्त हैं।
 अपातकाल की ईद्घोषणा की स्िीकृ वत (ऄनुच्छेद 352) तथा राज्यों में संिैधावनक तंत्र की
विफलता की ईद्घोषणा के सन्दभा में (ऄनुच्छेद 356) भी आसे लोकसभा के समान ऄवधकार प्राप्त हैं।
 ईच्चतम न्यायालय और संघ लोक सेिा अयोग के ऄवधकार क्षेत्र में विस्तार के संबंध में।
 राष्ट्रपवत िारा जारी क्रकए गए ऄध्यादेश की स्िीकृ वत।
 वनम्नवलवखत विवभन्न प्रावधकरणों से ररपोटा और दस्तािेज़ प्राप्त करने के मामले में आसे लोकसभा के
समान ऄवधकार प्राप्त हैं:
o भारत के वनयंत्रक एिं महालेखा परीक्षक की ररपोटा;
o संघ लोक सेिा अयोग की ररपोटा;
o ऄनुसूवचत जावत और ऄनुसवू चत जनजावत के वलए वनयुक्त विशेष ऄवधकारी की ररपोटा;
o वपछड़े िगों की दशा की जांच के वलए गरठत अयोग की ररपोटा;
o भाषाइ ऄल्पसंख्यकों के वलए वनयुक्त विशेष ऄवधकारी की ररपोटा, अक्रद।

13.2.2 लोकसभा के साथ ऄसमान वस्थवत

 धन विधेयक को के िल लोकसभा में पुरःस्थावपत क्रकया जा सकता है, राज्य सभा में नहीं।
 राज्यसभा, धन विधेयक को ऄस्िीकृ त या संशोवधत नहीं कर सकती। ईसे आस विधेयक को ऄपनी
वसफाररशों के साथ या वसफाररशों के वबना ही 14 क्रदन के भीतर लोकसभा को लौटाना ऄवनिाया
होता है। लोकसभा, राज्यसभा की वसफाररशों को स्िीकार या ऄस्िीकार कर सकती है। दोनों
मामलों में आसे दोनों सदनों िारा पाररत माना जाएगा।
 वित्त विधेयक (1) को वसफा लोकसभा में पुरःस्थावपत क्रकया जा सकता है, हालांक्रक आसे पाररत
करने के मामलों में दोनों की शवक्तयां समान हैं।

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 कोइ विधेयक धन विधेयक है या नहीं, यह प्रमावणत करने की ऄंवतम शवक्त लोकसभा ऄध्यक्ष के
पास है।
 दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की ऄध्यक्षता लोक सभा का ऄध्यक्ष करता है।
 सामान्य वस्थवतयों में संयुक्त बैठक में ज्यादा सदस्य संख्या होने के कारण लोकसभा को विजय
प्राप्त होती है। बशते सत्तारूढ़ पाटी के सदस्यों की संयुक्त संख्या दोनों सदनों में विपक्ष की
संयुक्त संख्या से कम न हो।
 राज्यसभा के िल बजट पर चचाा कर सकती है, ईसके ऄनुदानों की मांगों पर मतदान नहीं
करती।
 राष्ट्रीय अपातकाल की समावप्त के वलए संकल्प को लोकसभा िारा ही पाररत कराया जा
सकता है, राज्यसभा िारा नहीं।
 राज्यसभा ऄविश्वास प्रस्ताि पाररत कर मंवत्रपररषद् को नहीं हटा सकती। आसका कारण यह
है क्रक मंवत्रपररषद् सामूवहक रूप से के िल लोकसभा के प्रवत ईत्तरदायी होता है। हालााँक्रक
राज्य सभा सरकार की नीवतयों एिं कायों पर चचाा और अलोचना कर सकती है।
13.2.3 राज्य सभा की विशे ष शवक्तयां

संविधान में भारत के संघीय ढााँचे को ध्यान में रखते हुए राज्य सभा को कु छ विवशष्ट शवक्तयां सौंपी
गयी हैं। आस तरह की शवक्तयां लोकसभा के समक्ष ईच्च सदन के रूप में आसकी प्रवस्थवत को बल प्रदान
करती हैं।
 राज्य के मामलों पर कानून: संविधान का ऄनुच्छेद 249 यह प्रािधान करता है क्रक यक्रद राज्य
सभा ने ईपवस्थत और मत देने िाले सदस्यों में से कम से कम दो वतहाइ सदस्यों िारा समर्तथत
संकल्प िारा घोवषत क्रकया है क्रक राष्ट्रीय वहत में यह अिश्यक या समीचीन है क्रक संसद राज्य सूची
में प्रगवणत ऐसे विषय के संबंध में ,जो ईस संकल्प में विवनर्ददष्ट है, विवध बनाए तो जब तक िह
संकल्प प्रिृत्त है संसद के वलए ईस विषय के संबंध में भारत के सम्पूणा राज्यक्षेत्र या ईसके क्रकसी
भाग के वलए विवध बनाना विवधपूणा होगा।
o ऄगर आस तरह का कोइ प्रस्ताि स्िीकृ त होता है तो संसद पूरे या भारत के राज्यक्षेत्र के क्रकसी
भाग के वलए आस संकल्प में विवनर्ददष्ट विषय पर कानून बनाने के वलए ऄवधकृ त होगी।
o आस तरह से पाररत संकल्प एक िषा से ऄनवधक ऐसी ऄिवध के वलए प्रिृत्त रहेगा जो ईसमें
विवनर्ददष्ट की जाए। क्रकन्तु, आसके अगे प्रस्ताि पाररत करके एक समय में एक िषा के वलए आस
ऄिवध को बढ़ाया जा सकता है।
 ऄवखल भारतीय सेिाओं का सृजन: ऄनुच्छेद 312 में राज्य सभा को एक और विवशष्ट शवक्त दी
गयी है क्रक यक्रद राज्य सभा ने ईपवस्थत और मत देने िाले सदस्यों में से कम से कम दो-वतहाइ
सदस्यों िारा समर्तथत संकल्प िारा यह घोवषत क्रकया है क्रक राष्ट्रीय वहत में ऐसा करना अिश्यक
या समीचीन है तो संसद, विवध िारा संघ और राज्यों के वलए सवम्मवलत एक या ऄवधक ऄवखल
भारतीय सेिाओं के सृजन के वलए ईपबंध कर सके गी।
 ईद्घोषणा का ऄनुमोदन: राज्यसभा की एक और विशेष शवक्त अपातकाल की घोषणा से संबंवधत
है। ऄनुच्छेद 352 के खंड(4) के वनयम/परं तक
ु के ऄनुसार, ऄन्य बातों के साथ-साथ, यक्रद
अपातकाल की ईद्घोषणा ईस समय जारी की जाती है जब लोकसभा का विघटन हो गया हो और
ईद्घोषणा का ऄनुमोदन करने िाला संकल्प राज्य सभा िारा पाररत कर क्रदया गया है तो ईद्घोषणा
ईस वतवथ से, जब लोकसभा ऄपने पुनगाठन के पिात् प्रथम बार बैठती है, ऄवधकतम 30 क्रदनों की
ऄिवध तक ही प्रभािी रहेगी। ऄतः यह प्रािधान यह परामशा देता हुअ प्रतीत होता है क्रक ऐसा
ऄिसर अ सकता है जब राज्य सभा का सत्र अहूत क्रकया गया हो क्रकन्तु लोकसभा का विघटन हो
चुका हो। संविधान के ऄनुच्छेद 356(3), जो राष्ट्रपवत िारा राज्य में संिैधावनक तंत्र की विफलता
की दशा में राज्य अपातकाल की ईद्घोषणा से सम्बंवधत है, में भी कु छ ऐसी ही शता रखी गयी है।

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राज्यसभा एिं लोकसभा : एक तुलना

राज्यसभा लोकसभा
राज्यसभा संसद का ईच्च सदन ऄथिा वितीय सदन है। लोकसभा संसद का वनम्न सदन ऄथिा प्रथम
आसे िररष्ठ सदन भी कहा जाता है। सदन है। आसे लोकवप्रय सदन भी कहा जाता
है।
राज्यसभा में ऄवधकतम 250 सदस्य हो सकते हैं, परं तु लोकसभा में ऄवधकतम 552 सदस्य हो सकते
ितामान में सदस्यों की संख्या 245 (233 सदस्य हैं, परन्तु ितामान में सदस्यों की संख्या 545
ऄप्रत्यक्ष रूप से वनिाावचत एिं 12 मनोनीत सदस्य) है। (543 सदस्य प्रत्यक्ष रूप से वनिाावचत एिं 2
मनोनीत सदस्य) है।
राज्यसभा में सभी राज्यों को समान प्रवतवनवधत्ि
प्रदान नहीं क्रकया गया है। यह राज्यों एिं संघीय क्षेत्रों यह समस्त जनता का प्रवतवनवधत्ि करती है।
का प्रवतवनवधत्ि करती है।
राष्ट्रपवत िारा 12 सदस्यों को मनोनीत क्रकया जाता है। राष्ट्रपवत िारा अंग्ल-भारतीय समुदाय के 2
सदस्यों को मनोनीत क्रकया जाता है।
राज्यसभा एक स्थायी सदन है, वजसका विघटन नहीं लोकसभा स्थायी सदन नहीं है तथा आसका

क्रकया जा सकता। आसके सदस्यों का कायाकाल 6 िषों कायाकाल पांच िषों का होता है; कायाकाल

का होता है। प्रत्येक दो िषा बाद एक-वतहाइ सदस्य पूणा होने के पहले भी राष्ट्रपवत िारा
ऄिकाश ग्रहण कर लेते हैं तथा ईतने ही निवनिाावचत प्रधानमंत्री की सलाह पर आसे भंग क्रकया जा
भी हो जाते हैं। सकता है।
राज्यों के प्रवतवनवध राज्य की विधानसभाओं के लोकसभा के सदस्यों का चुनाि व्यस्क
वनिाावचत सदस्यों िारा अनुपावतक प्रवतवनवधत्ि मतावधकार के अधार पर प्रत्यक्ष रूप से गुप्त
प्रणाली के ऄनुसार एकल संिमणीय मत िारा चुने मतदान प्रक्रिया िारा होता है।
जाते हैं।
धन विधेयक राज्यसभा में पुरःस्थावपत नहीं क्रकए जा धन विधेयक के िल लोकसभा में पुरःस्थावपत
सकते। क्रकए जा सकते हैं।
मंवत्रपररषद् राज्य सभा के प्रवत ईत्तरदायी नहीं होती मंवत्रपररषद् के िल लोकसभा के प्रवत
है। ईत्तरदायी होती है।
राज्यसभा िारा राज्य सूची के क्रकसी विषय को
राज्यसभा में ईपवस्थत एिं मतदान करने िाले सदस्यों लोकसभा को यह ऄवधकार प्राप्त नहीं है।
के कम-से कम दो-वतहाइ सदस्यों िारा समर्तथत संकल्प
िारा राष्ट्रीय महत्ि का घोवषत क्रकया जा सकता है।
राज्यसभा को ऄवखल भारतीय सेिाओं का सृजन करने लोकसभा को यह ऄवधकार प्राप्त नहीं है।
का ऄवधकार प्रदान क्रकया गया है।
ईपराष्ट्रपवत को हटाने हेतु प्रस्ताि का अरम्भ लोकसभा, राज्यसभा िारा पाररत प्रस्ताि
राज्यसभा में ही क्रकया जाता है। का ऄनुमोदन कर सकती है।
लोकसभा के भंग होने की वस्थवत में अपातकाल की लोकसभा को आस प्रकार के विशेषावधकार की
ईद्घोषणा का ऄनुमोदन राज्यसभा िारा क्रकया जा अिश्यकता नहीं है, क्योंक्रक राज्यसभा
सकता है। विघरटत नहीं होती है।
राज्यसभा का सभापवत आसका सदस्य नहीं होता। लोकसभा के ऄध्यक्ष एिं ईपाध्यक्ष, आसके
भारत का ईपराष्ट्रपवत ही आसका पदेन सभापवत होता सदस्य होते हैं तथा आनका वनिााचन सदस्यों
है। ईपसभापवत राज्यसभा का सदस्य होता है, वजसका िारा क्रकया जाता है।
वनिााचन सदस्यों िारा क्रकया जाता है।

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14. सं स द की सं प्र भु ता
 संसद की संप्रभुता का वसद्धांत विरटश संसद के साथ संबद्ध है। संसदीय संप्रभुता (आसे संसदीय
सिोच्चता या विधायी सिोच्चता भी कहा जाता है) िस्तुतः कु छ संसदीय लोकतांवत्रक देशों के
संविधान में वनवहत एक ऄिधारणा है। आसके ऄनुसार विधायी वनकाय को पूणा संप्रभुता प्राप्त है
तथा यह कायापावलका एिं न्यायपावलका समेत सरकार के ऄन्य संस्थानों की तुलना में यह सिोच्च
होता है। विरटश संसद की ऄवधकाररता एिं न्यायावधकार क्षेत्र पर कोइ विवधक प्रवतबन्ध नहीं है।
िहीं दूसरी ओर भारतीय संसद को आन प्रवतमानों के अधार पर एक संप्रभु वनकाय नहीं कहा जा
सकता है, क्योंक्रक आसकी ऄवधकाररता एिं न्यायावधकार क्षेत्र पर कइ विवधक प्रवतबन्ध लगाए गए
हैं। भारतीय संसद की सिोच्चता को सीवमत करने िाले कु छ प्रमुख कारक वनम्नवलवखत हैं:
o वलवखत संविधान: संविधान हमारे देश का सिोच्च मौवलक कानून है। संसद संविधान में
वनधााररत सीमा के भीतर काम करने हेतु बाध्य है।
o सरकार का संघीय ढााँचा: भारत में सरकार का संघीय ढांचा प्रचवलत है, वजसके तहत
संिैधावनक रूप से कें द्र और राज्यों के मध्य शवक्तयों का विभाजन क्रकया गया है। कें द्र एिं राज्य
दोनों को ऄपने-ऄपने कायाक्षत्रे के भीतर रहकर काया करना होता है। ऄतः संसद की विवध
वनमााण की शवक्त संघीय सूची एिं समिती सूची में िर्तणत विषयों तक सीवमत रहती है तथा
राज्य सूची में िर्तणत विषयों तक विस्ताररत नहीं होती। आसका ऄपिाद के िल कु छ विवशष्ट
पररवस्थवतयां हैं।
o न्यावयक समीक्षा का तंत्र: एक स्ितंत्र न्यायपावलका के गठन तथा न्यावयक समीक्षा की
प्रणाली ने भी संसद की सिोच्चता को सीवमत क्रकया है। संसद िारा पाररत कोइ भी ऐसा
कानून जो संविधान के क्रकसी प्रािधान का विशेष रूप से मूल ढांचे का ईल्लंघन करता है, ईसे
ईच्च न्यायालय एिं ईच्चतम न्यायालय िारा शून्य ऄथिा ऄसंिध
ै ावनक घोवषत क्रकया जा
सकता है।
o मूल ऄवधकार : संविधान के भाग 3 के तहत प्रदत्त न्यायोवचत मूल ऄवधकारों की व्यिस्था भी
संसद के प्रावधकार पर वनबनधन अरोवपत करती है। ऄनुच्छेद 13 संसद को कोइ भी ऐसा
कानून बनाने से रोकता है जो क्रकसी मूल ऄवधकार के क्रकसी ऄंश या सम्पूणा ऄवधकार को
छीनने का प्रािधान करता हो। ऄतः मूल ऄवधकारों का ईल्लंघन करने िाला कोइ भी संसदीय
कानून शून्य घोवषत क्रकया जा सकता है।

15. सं स द के काया तथा आसकी भू वमका


हमारे संविधान में सरकार की संसदीय प्रणाली को ऄपनाया गया है। यह प्रणाली राज्य के विधायी एिं
कायापालक ऄंगों का विवशष्ट सवम्मिण है। ऄतः संसद के कायों पर चचाा करते हुए आस अयाम पर ध्यान
देना अिश्यक है। संसद के कु छ प्रमुख काया वनम्नवलवखत हैं:
 कायापावलका पर वनयंत्रण: संसद का एक महत्त्िपूणा काया मंवत्रपररषद् को आसके कायों के करने या
न करने के वलए ईत्तरदायी ठहराकर ईसपर वनयंत्रण बनाये रखना है। ऄनुच्छेद 75(3) स्पष्ट रूप से
कहता है क्रक मंवत्रपररषद् के िल तबतक ऄवस्तत्ि में होगी जबतक ईसे लोकसभा का विश्वास प्राप्त
है। संसद के सदस्य मंवत्रयों से प्रश्न पूछकर, स्थगन प्रस्ताि, कटौती प्रस्ताि तथा मनदा प्रस्ताि
लाकर ऄथिा िाद-वििाद िारा मंवत्रपररषद् पर संसद का वनयंत्रण सुवनवित करते हैं। यहााँ यह भी
महत्त्िपूणा है क्रक लोकसभा, मंवत्रपररषद् के विरुद्ध ऄविश्वास प्रस्ताि ला सकती है वजसके पाररत
हो जाने की वस्थवत में आसे ऄवनिायातः त्यागपत्र देना होता ह। ऄतः संसद मंवत्रयों पर व्यवक्तगत
एिं सामूवहक रूप से वनयंत्रण रखती है तथा आसका एक महत्िपूणा काया जिाबदेह एिं ईत्तरदायी
सरकार सुवनवित करना है।
 विवध वनमााण: विवध बनाना क्रकसी भी विधावयका का मुख्य काया है। भारतीय संसद संघ सूची तथा
समिती सूची में शावमल समस्त विषयों पर कानून बनाती है। आसके साथ ही, कु छ विशेष
वस्थवतयों में यह राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बना सकती है।

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 वित्त पर वनयंत्रण: भारतीय संविधान ने संसद (मुख्यतः लोकसभा) को राष्ट्रीय वित्त के वनयंत्रण हेतु
विवशष्ट शवक्तयां सौंपी है।
o देश की कायापावलका या सरकार के पास वबना संसद की मंजरू ी के धन व्यय करने का
ऄवधकार नहीं है। आस हेतु प्रत्येक िषा वित्त मंत्री िारा लोकसभा में आसकी मंजूरी के वलए
बजट प्रस्तुत क्रकया जाता है।
o आसके साथ ही, संसद की दो ऄवतमहत्त्िपूणा सवमवतयां लोक लेखा सवमवत एिं प्रािलन
सवमवत तथा वनयंत्रक एिं महालेखा परीक्षक, व्यय की िैधता की जांच करते हैं और संसद में
चचाा के वलए ररपोटा प्रस्तुत करते हैं।
o हालााँक्रक यह ध्यान देने योग्य है क्रक राष्ट्रीय वित्त के वनयंत्रण की शवक्त विवशष्टतः लोकसभा को
सौंपी गयी हैं। राज्यसभा की आसमें कोइ विशेष भूवमका नहीं रहती। एक धन विधेयक वसफा
लोकसभा में पुरःस्थावपत क्रकया जा सकता है। लोकसभा में पाररत होने के बाद आसे राज्यसभा
में भेज क्रदया जाता है वजसके वलए 14 क्रदनों के भीतर ऄपनी सलाहों के साथ या ईनके वबना
आसे िापस करना ऄवनिाया है।
 विचार-विमशा: सभी महत्त्िपूणा प्रशासवनक नीवतयों पर संसद में चचाा की जाती है। यह वनसंदह

लोगों के मध्य राजनीवतक जागरूकता बढ़ाने में सहायक है। .
 संिध
ै ावनक काया: संसद संविधान में वनवहत एकमात्र वनकाय है जो संविधान में संशोधन के वलए
प्रक्रिया प्रारं भ कर सकती है। संविधान में संशोधन का कोइ भी प्रस्ताि संसद के क्रकसी भी सदन में
लाया जा सकता है।
 वनिााचन काया: संसद विवभन्न वनिााचनों को भी संपाक्रदत करती है। यह भारत के राष्ट्रपवत और
ईपराष्ट्रपवत के चुनाि में भाग लेती है तथा ऄपने विवभन्न सवमवतयों के सदस्यों, पीठासीन
ऄवधकाररयों अक्रद का चुनाि करती है।
 न्यावयक काया: संसद िारा कु छ न्यावयक प्रकृ वत्त के कायों को भी संपाक्रदत क्रकया जाता है। आसे
राष्ट्रपवत, ईपराष्ट्रपवत, ईच्चतम न्यायालय तथा ईच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, संघ लोक सेिा
अयोग तथा राज्य लोक सेिा अयोग के ऄध्यक्ष एिं सदस्यों तथा वनयंत्रण एिं महालेखा परीक्षक
को पद से हटाने की शवक्त प्राप्त है। यह ऄपनी ऄिमानना के वलए ऄपने सदस्यों और ऄवधकाररयों
को दंवडत कर सकती है। यह शवक्त न्यावयक समीक्षा के ऄधीन नहीं है।

16. सं स द की दक्षता को बढ़ाना


16.1. भारतीय सं स द से सं बं वधत विवभन्न मु द्दे

 बैठकों की कम संख्या: 1950 के दशक में संसदीय बैठकों की संख्या एक िषा में लगभग 140 क्रदन
थी, जो वपछले पांच िषों में घटकर प्रवतिषा औसतन 65 क्रदन हो गयी है।
 ऄनुशासन और वशष्टाचार: रुकािट और व्यिधान के कारण कभी-कभी सदन की कायािाही को
स्थवगत करना पड़ता है। आससे न के िल सदन के समय की बबाादी होती है, बवल्क संसद के
महत्िपूणा ईद्देश्य भी प्रभावित होते हैं। यह प्रिृवत्त ऄब पहले से ऄवधक देखी जा रही है।
 गुणित्ताविहीन संसदीय बहस : पूिा में संसदीय बहस सामान्यतया राष्ट्रीय और महत्िपूणा मुद्दों पर
कें क्रद्रत हुअ करती थी। ऄब बहसें स्थानीय समस्याओं के बारे में ऄवधक होती हैं एिं ऄक्सर संकीणा
दृवष्टकोण से प्रेररत होती हैं।
 मवहलाओं की वनम्न भागीदारी: लोकसभा और राज्यसभा में मवहला सांसदों की भागीदारी ऄत्यल्प
रही है (सामान्यतया 12% से ऄवधक नहीं)।
 विधेयक को चचाा के वबना या न्यूनतम चचाा के और ध्िवन मत िारा पाररत करने की परं परा में
िृवद्ध हुइ है। साथ ही, वनजी सदस्यों के िारा प्रस्तुत विधेयकों के पाररत न होने की प्रिृवत्त में भी
सुधार नहीं हुअ है।

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16.2. सां स दों की भू वमका को प्रभावित करने िाले कारक

 1985 में दल-बदल कानून के पाररत होने के बाद से सांसदों के वलए संसद में जाने से पहले ऄपने
कायों की तैयारी करना कम महत्त्िपूणा हो गया है। आसका कारण यह है क्रक मतदान की वस्थवत में
ईनके वलए पाटी वहहप का पालन करना ऄवनिाया सा हो गया है।
 गठबंधन की राजनीवत के कारण विवभन्न दलों के मध्य संबंध ऄवधक जरटल हो गए हैं।

16.3. सं स द के खराब कामकाज का प्रभाि

 सरकार की जिाबदेवहता का ऄभाि: यक्रद संसद ठीक से काम नहीं करती है, तो सरकार ऄपने
कायों के वलए जिाबदेह नहीं रह जाती।
 वनम्न ईत्पादकता: 2016 के शीतकालीन सत्र में लोकसभा की ईत्पादकता के िल 14% तथा राज्य
सभा की ईत्पादकता के िल 20% थी।
 संसदीय सत्र के संचालन में सािाजवनक धन की ईच्च लागत के कारण, आनके ठीक से न चलने से
करदाताओं के पैसे की बबाादी होती है।

16.4. सु झाि

 न्यूनतम काया क्रदिस: संविधान समीक्षा हेतु गरठत राष्ट्रीय अयोग ने वसफाररश की है क्रक राज्यसभा
और लोक सभा की बैठकों के वलए न्यूनतम काया क्रदिसों की ऄिवध िमश: 100 और 120 क्रदन तय
की जानी चावहए। ओवडशा राज्य विधानसभा की बैठक के वलए न्यूनतम 60 क्रदन ऄवनिाया करने
िाला पहला राज्य बना है।
 क्षवतपूर्तत: यक्रद ऄिरोधों के कारण समय िराब हो जाता है तो ईसकी क्षवतपूर्तत ईसी क्रदन बैठक
की समयािवध बढ़ाकर की जानी चावहए।
 मवहला अरक्षण विधेयक (108िां संविधान संशोधन विधेयक) को पाररत कर मवहलाओं के वलए
संसद के दोनों सदनों और राज्य विधानसभाओं में 33% अरक्षण सुवनवित करना चावहए।
 विधायी प्रक्रिया को व्यिवस्थत करना: संसदीय सवमवतयां आस प्रक्रिया में संस्थागत महत्ि ग्रहण कर
सकती हैं। ये सवमवतयां विधायी आं जीवनयररग के साथ-साथ अम जनता के वहत में मुद्दों को ईठाने
और ईनका पक्ष प्रस्तुत करने के वलए ऄिसर प्रदान करती हैं।
 दल-बदल विरोधी कानून में बदलाि: दल-बदल विरोधी कानून को पुनगारठत क्रकये जाने की
अिश्यकता है। आसे के िल ऄसाधारण पररवस्थवतयों में ईपयोग क्रकया जाना चावहए, वजससे सांसद
स्ि-ऄवभव्यवक्त के ऄनुसार वनयन्त्रण मुक्त होकर वनणाय ले सकें । ईदाहरण के वलए, UK में एक
स्ितंत्र िोट की ऄिधारणा है, वजसके ऄनुसार सांसद ऄपनी आच्छा से क्रकसी विशेष विधायी विषय
पर स्ितंत्र िोट दे सकता है।
 बजट जांच प्रक्रिया में सुधार: ऄमेररकी संसदीय बजट कायाालय के समान ही भारत को भी एक
संसदीय बजट कायाालय की जरूरत है। यह एक स्ितंत्र संस्था होगी और व्यय या राजस्ि जुटाने की
अिश्यकताओं के साथ क्रकसी भी ऄवधवनयम का तकनीकी और ईद्देश्यपूणा विश्लेषण करने के वलए
समर्तपत होगी।

17. सं स दीय गररमा का ह्रास


 ितामान पररप्रेक्ष्य में संसद का काम के िल विवध वनमााण ही नहीं है। आसकी ऄनेक प्रकार की
भूवमकाएं है जो परस्पर संबद्ध हैं। एक स्िस्थ लोकतंत्रात्मक व्यिस्था में संसद की भूवमका कइ रूपों
में महत्िपूणा होती है, जैसे कायापावलका को वनरं कुश होने से रोकना, राष्ट्रीय एकीकरण के माध्यम
से राष्ट्र की एकता एिं ऄखण्डता को सुवनवित करना तथा ऐसी नीवतयों का वनमााण करना जो
लोक कल्याणकारी राज्य के अदशों को स्थावपत करें ।

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 संसद एक सिोच्च विधावयका के रूप में विद्यमान है जो लोक अकांक्षाओं का प्रवतवनवधत्ि करती है।
ऄतः संसद से ऄपेक्षा होती है क्रक िह लोकमत का प्रवतवनवधत्ि करे । जनतांवत्रक शासन प्रणाली की
नींि आसी वसद्धांत को प्रदर्तशत करता है। लेक्रकन, हाल के क्रदनों में संसद की भूवमका में विपथगमन
दृवष्टगोचर होता है। दूसरे ऄथों में यह संसद की गररमा में हुए ह्रास को दशााता है। आसे वनम्नवलवखत
वबन्दुओं के ऄन्तगात समझा जा सकता हैः
o एकल दलीय व्यिस्था के ऄन्तगात, संसद की भूवमका प्रवतकू ल रूप से प्रभावित होती है। चूंक्रक
संसद से एक स्िस्थ नीवत के वनमााण की ऄपेक्षा होती है। एकदलीय सरकार व्यिस्था में
बहुमत दल की ही कायापावलका होती है। ऄतः संसदीय वनयंत्रण की सीमाएं स्थावपत होती हैं।
आसमें कायापावलका की भूवमका ही ऄवधक महत्िपूणा होती है।
o लोकतांवत्रक व्यिस्था के ऄंतगात सांसदों की स्ितंत्र वस्थवत होती है जो लोगों के वहतों का
प्रवतवनवधत्ि करते हैं। परं तु, दलीय ऄनुशासन व्यिस्था के विकास से स्ितंत्रता की आस
संकल्पना का हनन हुअ है। सदस्यों को ऄपने दल के प्रवत वनष्ठािान होना पड़ता है। जबक्रक
संसद में स्िस्थ नीवतयों के ऄंतगात कइ ऐसे मुद्दे होते हैं वजसे दलगत राजनीवत से उपर ईठकर
समझे जाने की अिश्यकता होती है।
o संसद का एक प्रमुख काया है- विवध का वनमााण करना। विवध वनमााण में कइ चरण होते हैं
वजसमें ईस विवध के प्रमुख पक्षों पर चचााएं होती है। आससे विवध को सम्यक् लोक अकांक्षाओं
के ऄनुरूप भी बनाया जा सकता है। लेक्रकन, ऄधीनस्थ विधान की प्रिृवत्तयों से संसद की ईस
भूवमका का ह्रास हुअ है। ईसके ऄंतगात कायापावलका की शवक्त में िृवद्ध हुइ है। सरकारी कायों
का स्िरूप ऄत्यवधक जरटल हो गया है। विधेयकों के वनमााण में तकनीकी ज्ञान एिं विशेषज्ञता
की अिश्यकता होती है वजसे सरकारी सदस्य ही ऄवधकांशतः पूरे कर पाते हैं।
o प्रधानमंत्री के नेतृत्ि में कै वबनट व्यिस्था का विकास हुअ है। शासन व्यिस्था में वनणाय लेने
एिं विवध के वनमााण में कै वबनेट की भूवमका महत्िपूणा हो गयी है। िास्ति में जो काया
विधावयका का है, ईसे कु छ ऄथों में कै वबनेट करने लगी है। आससे भी संसद की भूवमका में कमी
अइ है।
o राजनीवत के ऄपराधीकरण की प्रक्रिया से भी संसदीय गररमा का ह्रास हुअ है।
o हाल के क्रदनों में मीवडया के मस्टग अःपरे शन के माध्यम से संसद सदस्यों िारा ररश्वत लेकर
प्रश्न पूछने के तथ्य प्रकाश में अए है। यह लोकतंत्र की भािना एिं संसदीय मयाादा के विरूद्ध
है।
o विगत कु छ िषों में सदन की बैठकें भी कम होती जा रही है।

18. दलबदल विरोधी कानू न की समीक्षा


मुद्दे
 क्रकसी सदस्य की ऄयोग्यता से संबंवधत मामले में ऄध्यक्ष के वलए कोइ समय सीमा तय नहीं की
गयी है जोक्रक आस क़ानून से बचाि का मुख्य रास्ता है।
 आस क़ानून के ऄनुसार पीठासीन ऄवधकारी का वनणाय ऄंवतम है और न्यावयक समीक्षा के ऄधीन
नहीं है। बाद में, ईच्चतम न्यायालय ने यह वनणाय क्रदया क्रक पीठासीन ऄवधकारी िारा ऄंवतम वनणाय
वलए जाने तक न्यायालय कोइ हस्तक्षेप नहीं करे गा। हालााँक्रक, ऄंवतम वनणाय के विरुद्ध ईच्च
न्यायालय और ईच्चतम न्यायालय में ऄपील की जा सकती है।
 यद्यवप आस संबंध में न्यावयक समीक्षा का प्रािधान है (क्रकहोतो होलोहन िाद, 1992), क्रफर भी
न्यायपावलका वनणाय-पूिा ऄिस्था में ऄसहाय है।
समाधान
 पारदर्तशता सुवनवित करने के वलए पूरी प्रक्रिया को स्पष्ट रूप से पररभावषत करने और प्रक्रिया के
प्रत्येक चरण के वलए एक वनवित और ईवचत समय सीमा वनधााररत करने की जरुरत है।
 सदस्यों की वनरहाता से संबंवधत प्रश्न को सुलझाने की शवक्त ऄध्यक्ष से लेकर क्रकसी ऄन्य संिैधावनक
वनकाय जैसे भारत के वनिााचन अयोग को सौंपी जा सकती है।

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 सिोच्च न्यायलय ने 1992 के क्रकहोतो होलोहन मामले में यह अदेश क्रदया क्रक पाटी को के िल
सरकार की वस्थरता जैसे महत्िपूणा वस्थवत में ही मत हेतु वनदेश जारी करना चावहए।
 आस कानून में संशोधन की अिश्यकता है ताक्रक यह प्रवतवनवधमूलक लोकतंत्र के साथ समन्िय रख
सके और पाटी नेतृत्ि के वनदेशों का ऄंधानुकरण करने की परं परा विकवसत न हो। आससे विधायकों
के ऄसहमवत के ऄवधकार और स्ितंत्र सोच को प्रोत्साहन वमलेगा जैसा क्रक ऄमेररका, विटेन,
ऑस्रेवलया अक्रद जैसे विश्व के ऄन्य लोकतांवत्रक देशों मे प्रािधान है।

18.1. दलबदल विरोधी कानू न के लाभ एिं हावन

लाभ
 यह सदस्यों को पाटी के प्रवत वनष्ठािान बनाते हुए सरकार को वस्थरता प्रदान करता है।
 यह सुवनवित करता है क्रक पाटी के समथान और पाटी के घोषणापत्रों के अधार पर वनिाावचत
ईम्मीदिार पाटी की नीवतयों के प्रवत िफादार रहें। आसके ऄलािा पाटी के ऄनुशासन को बढ़ािा
देता है।
हावन
 सांसदों को पाटी बदलने से रोककर, यह संसद और जनता के प्रवत सांसदों की जिाबदेही को कम
कर देता है।
 यह पाटी की नीवतयों के वखलाफ ऄसहमवत को दबाकर सदस्यों की िाक् एिं ऄवभव्यवक्त की
स्ितंत्रता में हस्तक्षेप करता है।

18.2. दलबदल विरोधी कानू न में सु धार हे तु विवभन्न वनकायों/सवमवतयों की वसफाररशें

चुनाि सुधारों पर क्रदनेश गोस्िामी सवमवत (1990)


 वनरहाता को ऐसे मुद्दों तक सीवमत क्रकया जाना चावहए जहां (क) कोइ सदस्य स्िेच्छा से ऄपनी
राजनीवतक पाटी की सदस्यता त्याग देता है, (ख) कोइ सदस्य मतदान से ऄनुपवस्थत है, या
विश्वास प्रस्ताि ऄथिा ऄविश्वास प्रस्ताि पर पाटी वहहप के विपरीत िोट करता है।
दलबदल विरोधी कानून पर हलीम सवमवत (1998)
 िाक्यांश ‘स्िेच्छा से क्रकसी राजनीवतक पाटी की सदस्यता त्यागना’ को व्यापक रूप से पररभावषत
क्रकया जाना चावहए।
 सरकारी कायाालयों का ऄवधकारी बनने या क्रकसी ऄन्य पाटी में शावमल होने पर वनषेध जैसे
प्रवतबंध वनष्कावसत सदस्यों पर लगाया जाना चावहए।
 राजनीवतक दल जैसे शब्द को स्पष्ट रूप से पररभावषत क्रकया जाना चावहए।
विवध अयोग (170 िीं ररपोटा, 1999)
 विभाजन और विलय के मामलों में वनहारता से छू ट देने िाले प्रािधानों को हटाया जाना चावहए।
 दलबदल विरोधी कानून के तहत, चुनाि पूिा गठबंधनों से राजनीवतक दलों की तरह व्यिहार
क्रकया जाना चावहए।
 सरकार के संकट में होने की वस्थवत में राजनीवतक दलों िारा वहहप जारी करने पर एक सीमा होनी
चावहए।
चुनाि अयोग
 चुनाि अयोग की बाध्यकारी सलाह पर राष्ट्रपवत / राज्यपाल िारा दसिीं ऄनुसच ू ी के तहत वनणाय
लेना चावहए।
संविधान समीक्षा अयोग (2002)
 दलबदल करने िाले को शेष ऄिवध के दौरान क्रकसी भी सािाजवनक पद या लाभप्रद राजनीवतक
पद धारण करने से रोक क्रदया जाना चावहए।
 क्रकसी सरकार को वगराने के वलए दलबदल करने िाले व्यवक्त के िारा क्रदए गए िोट को ऄमान्य
माना जाना चावहए।

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19. सं स द में विपक्ष की भू वमका


 संसदीय लोकतंत्र की पररकल्पना एकदलीय व्यिस्था में संभि नहीं है। यक्रद क्रकसी संस द या
विधानमण्डल में एक ही दल हो और िहीं सरकार का संचालन करे तो आस तथ्य से आंकार नहीं
क्रकया जा सकता है क्रक िह सरकार तानाशाही स्िरूप ऄपना लेगी। ऄतः एक लोकतांवत्रक व्यिस्था
में विपक्ष का होना अिश्यक शता है। सुदढ़ृ और संगरठत विपक्ष पररपक्व लोकतंत्र का प्रतीक होता है
और ऐसा विपक्ष सदैि िैकवल्पक सरकार देने के वलए तत्पर रहता है। लोकतंत्र की मान्यता है क्रक
एक संगरठत तथा वनवित विपक्ष सरकार के विरूद्ध हो।
 सत्तारूढ़ दल विपक्ष िारा क्रकए जाने िाले अलोचना के भय से प्रत्येक क्षण भयभीत रहता है। यह
सराहनीय विषय है क्रक भारत में विपक्ष को सरकारी मान्यता ही नहीं दी गइ ऄवपतु विपक्ष के नेता
को कै वबनेट स्तर का दजाा देकर िेतन, भत्ते एिं ऄन्य सुविधाएं भी प्रदान की जाती है। यह
राजनीवतक व्यिस्था सहनशीलता और सौहाद्रा का सिोतम पक्ष है।
विपक्ष के काया एिं दावयत्ि
 चुनाि, िास्तविक ऄथों में तब तक वनष्पक्ष नहीं हो सकता, जब तक क्रक वनिााचकों के सामने कम
से कम दो या ऄवधक विकल्प मौजूद न हों। लोकतंत्र में विविध दलों का रहना अिश्यक है।
भारतीय पररप्रेक्ष्य में तो विपक्ष का दावयत्ि व्यापक है क्योंक्रक सत्तारूढ़ दल की तुलना में सभी
विपक्षी दलों को सामान्यतया मतदान का बड़ा प्रवतशत प्राप्त होता रहा है। भारत में विपक्ष की
भूवमका को वनम्नवलवखत वबन्दुओं के ऄंतगात प्रदर्तशत क्रकया जा सकता है:
 लोकतंत्र को लोकपथ की ओर ऄग्रसररत करना: लोकतंत्र में लोकमत सरकार का अधार स्तम्भ
होता है। आस संदभा में चुनाि िह मानदण्ड है जो यह प्रकट कर देता है क्रक लोकमत क्रकस
राजनीवतक दल के साथ है। चुनाि में विजयी होने िाला दल सरकार का गठन करता है। आसके
पिात् सत्ताधारी दल ऄपनी नीवतयों और कायािमों को जन सामान्य तक पहुंचाने का प्रयास
करता है। विपक्ष का लक्ष्य सदैि अगामी चुनािों में सत्ता प्राप्त करना होता है। ऄतः स्पष्ट है क्रक
लोकतंत्र को लोकपथ पर लाने के वलए विपक्ष की महत्िपूणा भूवमका होती है।
 जनता में राजनीवतक जागरूकता लाने का प्रयास करना: लोकतंत्र में शासन क्रकसी का जन्मवसद्ध
ऄवधकार नहीं होता। वनवित समय पर स्ितंत्र और वनष्पक्ष चुनाि करिाना अिश्यक होता है।
सत्तारूढ़ दल ऄपनी ईपलवब्धयों पर तथा विपक्ष सत्तारूढ़ दल की गलवतयों पर जन समथान
जुटाकर सत्ता प्राप्त करना चाहते हैं। विपक्ष सत्तारूढ़ दल की खावमयों को प्रचार, भाषण, पोस्टर,
दृश्य और िव्य साधनों िारा प्रकट कर जनता को संदश े देता है क्रक सत्तारूढ़ दल की नीवतयां और
वनयत में भारी खोट रहा है िरना अमुक काया कभी का हो गया होता।
 सत्तारूढ़ दल की वनरं कुश प्रिृवत्त पर रोक: सत्ता के नशे में सरकार पर यक्रद कोइ वनयंत्रण न हो तो
संभि है, लोकतंत्र से ‘लोक’ शब्द का विलोप हो जाए। सरकार की वनरं कुश प्रिृवत्त पर रोक लगाने
के वलए विपक्ष की अिश्यकता होती है। यह सरकार से प्रश्न एिं पूरक प्रश्न पूछ सकती है, वजसका
सत्तापक्ष को संतोषजनक ईत्तर देना होता है। ितामान में तो सदन की कायािाही का सीधा प्रसारण
होने से जनता को प्रत्यक्ष वििरण प्राप्त हो जाता है।
 जनता एिं सरकार के मध्य सेत:ु विपक्ष वनरं तर जनता के वनकट सम्पका में रहकर शासन तथा
जनता के बीच एक कड़ी का काम करता है। राजनीवतक दलों के व्यापक फै लाि के पररणामस्िरूप
विरोध के िल संसदीय दीघााओं तक ही सीवमत नहीं रहा है, गांि-गांि तक विरोधी दलों का
विकास हो चुका है।
 सत्तारूढ़ दल की ऄकमाण्यता पर प्रहार: लोकतांवत्रक प्रणाली में लगभग सभी राजनीवतक दल
चुनाि के समय ऄपना चुनािी घोषणा पत्र जारी कर ईन्हें देश ि प्रदेश की जनता के समक्ष रखते
हैं। विपक्षी दलों का यह कताव्य है क्रक यक्रद सरकार ऄपने घोषणा पत्र के ऄनुसार अचरण नहीं
करती है या ईसके कदम ईस ओर नही बढ़ते हैं तो ऐसी वस्थवत में विपक्षी दल जनता के सम्मुख
आन्हें प्रमुखता से प्रदर्तशत करते हैं।

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भारतीय संविधान एिं शासन


11. राज्य विधावयका

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विषय सूची
1. राज्यों के विधान-मंडलों का गठन __________________________________________________________________ 4

1.1 विसदनीय और एक सदनीय विधान मंडल__________________________________________________________ 4

1.2 राज्यों में दूसरे सदन का सृजन और ईत्सादन ________________________________________________________ 4

1.3. विधानसभा _____________________________________________________________________________ 5

1.4. विधानपररषद ____________________________________________________________________________ 5

2. राज्य विधानमंडल की सदस्यता ___________________________________________________________________ 6

2.1 ऄहहताएँ _________________________________________________________________________________ 6

2.2 वनरहहताएँ _______________________________________________________________________________ 6

2.3 स्थानों का ररक्त होना________________________________________________________________________ 6

3. राज्य विधानमंडल के पीठासीन ऄवधकारी ____________________________________________________________ 7

3.1 विधानसभा ऄध्यक्ष _________________________________________________________________________ 7


3.1.1 सदस्यों को ऄयोग्य घोवषत करने की ऄध्यक्ष की शवक्त पर सुप्रीम कोर्ह का वनणहय ___________________________ 7
3.1.2 ऄध्यक्ष की भूवमका से संबध
ं ी निीनतम मुद्दे _____________________________________________________ 7

3.2 विधानसभा ईपाध्यक्ष _______________________________________________________________________ 7

3.3 विधानपररषद का सभापवत ___________________________________________________________________ 8

3.4 विधानपररषद का ईपसभापवत _________________________________________________________________ 8

4. ऄिवध _____________________________________________________________________________________ 8

4.1 विधानसभा की ऄिवध _______________________________________________________________________ 8

4.2. विधानपररषद की ऄिवध ____________________________________________________________________ 8

5. राज्य विधानमंडल का सत्र_______________________________________________________________________ 9

5.1 सत्र ____________________________________________________________________________________ 9

5.2 राज्यपाल का ऄवभभाषण_____________________________________________________________________ 9

6. राज्य विधान-मंडल में विधायी प्रक्रिया ______________________________________________________________ 9

6.1 साधारण विधेयक के मामले में संसद और राज्य विधानमंडल में विधायी प्रक्रिया की तुलना _________________________ 9

6.2 धन विधेयक के मामले में संसद और राज्य विधानमंडल के विधायी प्रक्रिया की तुलना ___________________________ 10

6.3 विधेयक पर राज्यपाल की स्िीकृ वत _____________________________________________________________ 11

6.4 राज्यपाल और राष्ट्रपवत के िीर्ो शवक्त की तुलना ____________________________________________________ 12

7. राज्य विधानमंडल का विशेषावधकार ______________________________________________________________ 13

7.1 निीनतम मुद्दा ___________________________________________________________________________ 14

8. विधानसभा बनाम विधानपररषद _________________________________________________________________ 15

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9. राज्यसभा तथा विधानपररषद ___________________________________________________________________ 16

10. विधानपररषद की ईपयोवगता __________________________________________________________________ 17

11. राज्य-राजनीवत का महत्ि एिं प्रकृ वत _____________________________________________________________ 17

12. राज्य विधानमंडल से संबवं धत ऄन्य निीनतम मुद्दे ____________________________________________________ 18

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हमारे संविधान में कें द्र और राज्य दोनों के शासन के वलए संसदीय प्रणाली ऄपनाइ गइ है। कें द्रीय
विधान-मंडल में दो सदन हैं। संविधान में मूलतः यह ईपबंध था क्रक ऄवधक जनसंख्या िाले राज्यों में
विधान-मंडल विसदनीय होगा। अंध्र प्रदेश, वबहार, मध्य प्रदेश, तवमलनाडु , महाराष्ट्र, कनाहर्क, पंजाब,
ईत्तर प्रदेश और पविमी बंगाल में दो सदन तथा शेष राज्यों में एक ही सदन का ईपबंध क्रकया गया था।
कु छ राज्यों ने विधानपररषद को ऄनािश्यक सदन माना तथा ऐसे राज्यों के ऄनुरोध पर बाद में संसद
ने विवध बनाकर विधानपररषद का ईत्सादन कर क्रदया।

1. राज्य के विधान-मं ड लों का गठन


 भारतीय संविधान के भाग VI में ऄनुच्छेद 168 के ऄंतगहत राज्यों के विधान-मंडलों के गठन की
व्यिस्था की गइ है। आसी ऄनुच्छेद के ऄंतगहत यह ईल्लेख है क्रक राज्य विधान-मंडल राज्यपाल और
विधानसभा से वमलकर बनेगा तथा वजन राज्यों में विसदनीय व्यिस्था है िहाँ की विधानपररषद
भी आसमें सवममवलत होगी।

1.1 विसदनीय और एक सदनीय विधान मं ड ल

 विसदनीय व्यिस्था का प्रारं भ कें द्र में पहली बार मोंर्ेग्यू-चेमसफोडह सुधारों (भारत शासन
ऄवधवनयम, 1919) िारा क्रकया गया था। भारत शासन ऄवधवनयम, 1935 िारा 11 में से 6
प्रान्तों ऄथाहत् बंगाल, बॉमबे, मद्रास, वबहार, ऄसम और संयुक्त प्रान्त के वलए विसदनीय विधान
मंडल की व्यिस्था की गयी।
 ऄवधकांश राज्यों में एक सदनीय व्यिस्था है, जबक्रक कु छ राज्यों में विसदनीय व्यिस्था है। ितहमान
में सात राज्यों में विसदनीय विधानमंडल है। (विसदनीय विधानमंडल का ऄथह है िैसा
विधानमंडल वजसमें दो सदन हैं: एक ईच्च सदन और दूसरा वनम्न सदन)।
 िैसे राज्य जहाँ दो सदन हैं िे हैं- अंध्र प्रदेश, तेलग
ं ाना, वबहार, महाराष्ट्र, कनाहर्क, ईत्तर प्रदेश
और जममू-कश्मीर (जममू कश्मीर ने विसदनीय विधानमंडल को स्ियं के संविधान िारा ऄपनाया
है)।
 मध्य प्रदेश के वलए भी विधानपररषद की व्यिस्था की गयी है। लेक्रकन राष्ट्रपवत िारा आसके प्रभािी
होने की ऄवधसूचना जारी नहीं की गयी है। तवमलनाडु विधानसभा िारा पाररत एक संकल्प के
अधार पर, संसद ने तवमलनाडु विधानपररषद ऄवधवनयम, 2010 पाररत क्रकया है। लेक्रकन आससे
पहले क्रक यह लागू हो सके तवमलनाडु विधानसभा ने विधानपररषद के ईत्सादन का प्रस्ताि पाररत
कर क्रदया।
 शेष राज्यों में एक सदनीय व्यिस्था है। यहाँ राज्य विधावयका का गठन राज्यपाल और
विधानसभा से वमलकर होता है। विसदनीय व्यिस्था िाले राज्यों में राज्य विधावयका का गठन
राज्यपाल, विधानपररषद और विधानसभा से वमलकर होता है। जहाँ विधानपररषद ईच्च सदन है
तथा िहीं विधानसभा वनम्न सदन है।

1.2 राज्यों में दू स रे सदन का सृ ज न और ईत्सादन

 संविधान संसद को राज्यों में विधानपररषदों के सृजन (जहाँ यह मौजूद नहीं है) और ईत्सादन
(जहाँ यह मौजूद है) की शवक्त प्रदान करता है। विधानपररषद के ईत्सादन (ईन्मूलन) और सृजन
का जो तंत्र है िह साधारण है तथा पाररभावषक ऄथह में यह संविधान का संशोधन नहीं होता।
संसद का आस ईद्देश्य से बनाया गया ऄवधवनयम ऄनु. 368 के प्रयोजन के वलए संविधान का
संशोधन नहीं समझा जाता और संसद में आसे साधारण बहुमत से पाररत कर क्रदया जाता है।
 यह प्रक्रिया संबंवधत राज्य के विधानसभा के एक संकल्प िारा विशेष बहुमत (सभा के कु ल सदस्यों
का बहुमत एिं ईपवस्थत और मतदान करने िाले सदस्यों का कम-से-कम दो वतहाइ का बहुमत) से
पाररत प्रस्ताि िारा एिं तत्पिात् संसद के एक ऄवधवनयम िारा क्रकया जाता है।

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 आसी िम में आसकी अलोचना करते हुए कहा गया क्रक अर्थथक रूप से कमजोर राज्य दो सदनों के
ऄपव्यय का खचह िहन नहीं कर सकते हैं। आस प्रकार, आस व्यिस्था को प्रत्येक राज्य की आच्छा पर
छोड़ क्रदया गया क्रक िे विसदनीय व्यिस्था को ऄपनाते हैं या नहीं। आस प्रािधान के तहत, अंध्र
प्रदेश ने 1957 में ऄपने यहाँ विधानपररषद का गठन क्रकया तथा आसी प्रक्रिया के तहत 1985 में

आसे समाप्त कर क्रदया। 1986 में तवमलनाडु में और 1969 में पंजाब तथा पविम बंगाल में
विधानपररषद को समाप्त कर क्रदया गया।

1.3. विधानसभा

 प्रत्येक राज्य की विधानसभा प्रादेवशक वनिाहचन क्षेत्रों से व्यस्क मतावधकार के अधार पर प्रत्यक्ष
चुनाि िारा वनिाहवचत सदस्यों से वनर्थमत होती है। विधानसभा के सदस्यों की संख्या ईनकी
जनसंख्या के अधार पर 500 से ज्यादा और 60 से कम नहीं हो सकती।
 हालाँक्रक, ऄरुणाचल प्रदेश, वसक्रिम और गोिा के मामले में न्यूनतम संख्या 30 तय है और
वमजोरम के मामले में यह 40 है। आसके ऄवतररक्त वसक्रिम और नागालैंड के कु छ सदस्यों का
वनिाहचन परोक्ष रीवत से भी क्रकया जाता है।
 राज्यपाल अंग्ल-भारतीय समुदाय से एक सदस्य को मनोनीत कर सकते हैं, यक्रद ईनका पयाहप्त
प्रवतवनवधत्ि विधानसभा में नहीं हो। संविधान िारा प्रत्येक राज्य में जनसंख्या ऄनुपात के अधार
पर ऄनुसूवचत जावतयों और ऄनुसूवचत जनजावतयों के वलए सीर्ों के अरक्षण का प्रािधान क्रकया
गया है। प्रत्येक जनगणना के बाद पुनः समायोजन भी क्रकया जाता है।

1.4. विधानपररषद

 विधानपररषद के सदस्य परोक्ष रूप से वनिाहवचत होते हैं। विधानपररषद की सदस्य संख्या
विधानसभा की सदस्य संख्या के ऄनुरूप बदलती रहती है। पररषद की सदस्य संख्या सभा के एक
वतहाइ से ऄवधक नहीं हो सकती है और 40 (जममू-कश्मीर एक ऄपिाद है जहाँ विधानपररषद में
36 सदस्य हैं) से कम नहीं हो सकती है। आस प्रािधान को आसवलए ऄपनाया गया है ताक्रक ईच्च
सदन विधानमंडल में ज्यादा प्रभािशाली ना हो जाए।
हालांक्रक संविधान िारा ऄवधकतम और न्यूनतम सदस्य संख्या तय कर दी गयी है, लेक्रकन पररषद की
िास्तविक संख्या संसद िारा तय की जाती है। विधानपररषद का गठन वनम्नवलवखत रीवत से होता है:
 1/3 सदस्य स्थानीय वनकायों जैसे नगर पावलकाओं, वजला बोडों, अक्रद के सदस्यों िारा चुने जाते
हैं।
 1/3 सदस्यों का वनिाहचन राज्य विधानसभा के सदस्यों िारा क्रकया जाता है।
 1/12 सदस्यों का वनिाहचन राज्य में रहने िाले ऐसे व्यवक्तयों िारा होता है जो क्रकसी
विश्वविद्यालय के कम-से-कम तीन िषह से स्नातक हैं।
 1/12 सदस्यों का वनिाहचन 3 िषह से ऄध्यापन कर रहे लोग करते हैं, लेक्रकन ये ऄध्यापक
माध्यवमक विद्यालयों से कम के नहीं होने चावहए।
 बाकी बचे हुए सदस्यों (1/6) का मनोनयन राज्यपाल िारा ईन लोगों के बीच से क्रकया जाता है जो

सावहत्य, विज्ञान, कला, सहकाररता अन्दोलन और समाज सेिा का विशेष ज्ञान ि व्यािहाररक
ऄनुभि रखते हों।
आस प्रकार, मोर्े तौर पर ऄगर कहा जाए तो 5/6 सदस्यों का वनिाहचन परोक्ष चुनाि के िारा होता है
और 1/6 सदस्य राज्यपाल िारा मनोनीत क्रकए जाते हैं।

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2. राज्य विधानमं ड ल की सदस्यता


2.1 ऄहह ताएँ
संविधान के ऄनुसार राज्य विधावयका के सदस्यों के रूप में चुने जाने के वलए वनम्नवलवखत ऄहहताएँ
होनी चावहए:
 ईसे भारत का नागररक होना चावहए।
 ईसे चुनाि अयोग िारा ऄवधकृ त क्रकसी व्यवक्त के समक्ष संविधान की तीसरी ऄनुसूची में वनधाहररत
प्रािधानों के तहत शपथ या संकल्प लेनी होती है।
 ईसकी अयु विधानसभा के वलए कम से कम 25 िषह और विधानपररषद के वलए कम से कम 30
िषह होनी चावहए।
 ईसमें संसद िारा वनधाहररत योग्यताएं भी होनी चावहए।
संसद िारा लोक प्रवतवनवधत्ि ऄवधवनयम, 1951 िारा कु छ वनम्नवलवखत ऄवतररक्त ऄहहताएं भी
वनधाहररत की गयी है:
 विधानपररषद में वनिाहचन के वलए क्रकसी व्यवक्त को समबवन्धत राज्य के क्रकसी विधानसभा
वनिाहचन क्षेत्र का वनिाहचक होना चावहए और राज्यपाल िारा नावमत होने के वलए ईसे समबंवधत
राज्य का वनिासी होना चावहए।
 विधानसभा सदस्य बनने िाला व्यवक्त समबंवधत राज्य के क्रकसी वनिाहचन क्षेत्र में मतदाता भी होना
चावहए।
 यक्रद कोइ व्यवक्त ऄनुसूवचत जावत या जनजावत के वलए अरवक्षत सीर् से चुनाि लड़ता है तो ईसे
ऄिश्य ही िमशः ऄनुसूवचत जावत या जनजावत का सदस्य होना चावहए।
2.2 वनरहह ताएँ

 राज्य विधानमंडल के सदस्यों के सदस्यता के वलए वनरहहताएँ (ऄनु. 191) संसद के सदस्यों (ऄनु.
102) के ऄनुरूप है। (सन्दभह के वलए कें द्रीय विधावयका के नो्स देखें)। वनरहहता की कु छ शततें लोक
प्रवतवनवधत्ि ऄवधवनयम, 1951 में और दल-बदल कानून में भी िर्थणत हैं। ऄनु. 191 के तहत या
लोक प्रवतवनवधत्ि ऄवधवनयम, 1951 के अधार पर राज्य विधानमंडल के क्रकसी सदस्य के वनरहहता
संबंधी प्रश्न पर राज्यपाल चुनाि अयोग की राय के ऄनुसार फै सला करे गा। अयोग की राय
राज्यपाल पर अबद्धकर है। आस समबन्ध में राज्यपाल का वनणहय ऄंवतम होगा।
नोर्: दल-बदल विरोधी क़ानून से समबवन्धत प्रािधानों का िणहन कें द्रीय विधावयका िाले ऄध्याय में
क्रकया गया है।
2.3 स्थानों का ररक्त होना
राज्य विधानसभा का कोइ सदस्य वनम्नवलवखत मामलों में ऄपने स्थान को ररक्त करता है:
 दोहरी सदस्यता: कोइ व्यवक्त एक साथ राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों का सदस्य नहीं रह
सकता है। यक्रद कोइ व्यवक्त दोनों सदनों के वलए वनिाहवचत हो जाता है तो राज्य विधानमंडल िारा
बनायी गयी विवध के तहत एक सदन से ईसका स्थान ररक्त हो जाएगा।
 वनरहहता: राज्य विधानमंडल का कोइ सदस्य यक्रद वनरहह या ऄयोग्य पाया जाता है तो ईसका स्थान
ररक्त हो जायेगा।
 त्यागपत्र: कोइ सदस्य ऄपना वलवखत त्यागपत्र विधानपररषद के सभापवत या विधानसभा के
ऄध्यक्ष को सौंप सकता है। त्यागपत्र स्िीकार हो जाने के बाद ईसका स्थान ररक्त हो जायेगा।
 ऄनुपवस्थवत: राज्य विधानमंडल क्रकसी सीर् को ररक्त घोवषत कर सकती है यक्रद कोइ सदस्य वबना
क्रकसी पूिह ऄनुमवत के 60 क्रदनों तक ऄनुपवस्थत रहता है।
 ऄन्य मामले: राज्य विधानमंडल के क्रकसी भी सदन से क्रकसी सदस्य का पद ररक्त हो सकता है-
o यक्रद न्यायालय िारा ईसके वनिाहचन को ऄमान्य ठहरा क्रदया जाए,
o यक्रद ईसे सदन से बखाहस्त कर क्रदया जाए,
o यक्रद िह राष्ट्रपवत और ईपराष्ट्रपवत के पद पर वनिाहवचत हो जाए और
o यक्रद िह क्रकसी राज्य का राज्यपाल वनयुक्त हो जाए।

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3. राज्य विधानमं ड ल के पीठासीन ऄवधकारी


3.1 विधानसभा ऄध्यक्ष
 विधानसभा सदस्य ऄपने सदस्यों में से ही ऄध्यक्ष का वनिाहचन करते हैं। सामान्यतः ऄध्यक्ष का पद
विधानसभा के कायहकाल तक होता है। हालाँक्रक, वनम्नवलवखत मामलों में विधानसभा ऄध्यक्ष का
पद ररक्त हो सकता है:
o यक्रद ईसकी विधानसभा की सदस्यता समाप्त हो जाए।
o यक्रद िह ईपाध्यक्ष को वलवखत में ऄपना त्यागपत्र सौंप दे।
o यक्रद ईसे हर्ाने संबंधी प्रस्ताि सदन के कु ल सदस्यों के बहुमत से पाररत संकल्प िारा पास हो
जाए। आस तरह का कोइ प्रस्ताि 14 क्रदन की पूिह सूचना के पिात् ही प्रस्तुत क्रकया जा सकता
है।
 विधानसभा ऄध्यक्ष की शवक्तयां लोकसभा ऄध्यक्ष के ही समान है।
3.1.1 सदस्यों को ऄयोग्य घोवषत करने की ऄध्यक्ष की शवक्त पर सु प्रीम कोर्ह का वनणह य

 हाल ही में में ईत्पन्न ऄरुणाचल प्रदेश संकर् पर सुप्रीम कोर्ह ने ऄपना फै सला सुनाते हुए कहा क्रक
ऄध्यक्ष को संविधान की दसिीं ऄनुसूची के तहत दलबदल के वलए विधायकों को ऄयोग्य ठहराए
जाने का वनणहय लेने से ईस वस्थवत में बचना चावहए जबक्रक स्ियं ईसके विरुद्ध पद से हर्ाए जाने
के वलए संकल्प का नोरर्स लंवबत है।
 दसिीं ऄनुसच
ू ी के ऄनुसार दल पररितहन के अधार पर वनरहहता के प्रश्नों पर ऄध्यक्ष या सभापवत
का विवनिय ऄंवतम होता है।
हालांक्रक आस संबंध में ऄध्यक्ष या सभापवत के वनणहय के ईपरांत न्यावयक हस्तक्षेप संभि है।

3.1.2 ऄध्यक्ष की भू वमका से सं बं धी निीनतम मु द्दे

 सदन के ऄध्यक्ष की वनष्पक्ष भूवमका पर संदह


े पैदा करने िाले दृष्टान्तों में िृवद्ध हुइ है यह भारतीय
लोकतंत्र के वलए चचता की बात है। ईदाहरण के वलए,
o गुजरात और तवमलनाडु की विधानसभा में सभी प्रमुख विपक्षी दलों का वनलंबन।
o ऄरुणाचल प्रदेश विधानसभा के प्रकरण में सदन के ऄध्यक्ष को हर्ाया जाना।
 यह हाल ही में, ईच्चतम न्यायालय ने ऄरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपवत शासन लगाए जाने के मुद्दे पर
वनणहय लेते समय सदन के ऄध्यक्ष की भूवमका पर सविस्तार चचाह की।
 आस प्रकरण में सदन के ऄध्यक्ष को हर्ाने के वलए प्रस्ताि सदन में लाया गया था। जब यह प्रस्ताि
लंवबत था, तब ऄध्यक्ष ने कु छ विधायकों को ऄयोग्य घोवषत कर क्रदया था।
न्यायालय की प्रमुख रर्प्पणी
 आस वनणहय ने पहली बार कानूनी वसद्धांत के रूप में यह वनधाहररत क्रकया क्रक यक्रद सदन के ऄध्यक्ष
को हर्ाने का "प्रस्ताऺि" पहले से ही लाया जा चुका है तो िह सदन के सदस्यों को ऄयोग्य घोवषत
नहीं कर सकता है, ऄवपतु ईसे पहले यह वसद्ध करना होगा क्रक ईसे सदन के बहुमत का विश्वास
प्राप्त है।
3.2 विधानसभा ईपाध्यक्ष
विधानसभा ईपाध्यक्ष का चुनाि भी सदस्यों के बीच से होता है। ऄध्यक्ष की भांवत िह भी विधानसभा
के कायहकाल तक ऄपने पद पर बना रहता है। हालाँक्रक, वनम्नवलवखत मामलों में ईसका पद ररक्त हो
सकता है:
 यक्रद ईसकी विधानसभा सदस्यता समाप्त हो जाए।
 यक्रद िह ऄध्यक्ष को ऄपना आस्तीफा वलवखत में सौंप दे।
 यक्रद ईसे हर्ाने संबंधी प्रस्ताि सदन के सभी सदस्यों के बहुमत से पाररत संकल्प िारा पास हो
जाए। आस तरह का कोइ प्रस्ताि 14 क्रदन की पूिह सूचना के पिात् ही प्रस्तुत क्रकया जा सकता है।

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ईपाध्यक्ष, ऄध्यक्ष की ऄनुपवस्थवत में ईसके सभी कायों को समपाक्रदत करता है। आस वस्थवत में ईसे
ऄध्यक्ष के समान शवक्तयां प्राप्त होती है।
विधानसभा ऄध्यक्ष सदस्यों के बीच से सभापवत पैनल का गठन करता है। ईनमें से कोइ एक ऄध्यक्ष
और ईपाध्यक्ष की ऄनुपवस्थवत में विधानसभा की ऄध्यक्षता करता है। जब िह ऄध्यक्ष के रूप में कायह
करता है तो ईसके पास ऄध्यक्ष के समान शवक्तयां होती हैं।

3.3 विधानपररषद का सभापवत

विधानपररषद सदस्य ऄपने सदस्यों में से ही सभापवत का वनिाहचन करते हैं। हालाँक्रक, िह वनम्नवलवखत
मामलों में सभापवत का पद ररक्त करता है:
 यक्रद ईसकी विधानपररषद सदस्यता समाप्त हो जाए।
 यक्रद िह ईपसभापवत को वलवखत त्यागपत्र सौंप दे।
 यक्रद ईसे हर्ाने संबंधी प्रस्ताि सदन के कु ल सदस्यों के बहुमत से पाररत संकल्प िारा पास हो
जाए। आस तरह का कोइ प्रस्ताि 14 क्रदन की पूिह सूचना के बाद ही प्रस्तुत क्रकया जा सकता है।
पीठासीन ऄवधकारी के रूप में सभापवत को विधानसभा ऄध्यक्ष की तरह सारी शवक्तयां प्राप्त रहती हैं,
वसफह धन विधेयक के मामले को छोड़कर, जहाँ विधानसभा ऄध्यक्ष ही ईसके धन विधेयक होने का
वनणहय लेता है। ऄध्यक्ष की तरह सभापवत के िेतन और भत्ते का वनधाहरण राज्य विधानमंडल िारा
क्रकया जाता है जो क्रक राज्य की संवचत वनवध पर भाररत होता है और सदन में मतदान के योग्य नहीं
होता है।

3.4 विधानपररषद का ईपसभापवत

विधानपररषद सदस्य ऄपने सदस्यों में से ही ईपसभापवत का वनिाहचन करते हैं। हालाँक्रक, िह
वनम्नवलवखत मामलों में ईपसभापवत का पद ररक्त करता है:
 यक्रद ईसकी विधानपररषद सदस्यता समाप्त हो जाए।
 यक्रद िह सभापवत को वलवखत त्यागपत्र सौंप दे।
 यक्रद ईसे हर्ाने संबंधी प्रस्ताि सदन के सभी सदस्यों के बहुमत से पाररत संकल्प िारा पास हो
जाए। आस तरह का कोइ प्रस्ताि 14 क्रदन की पूिह सूचना के बाद ही प्रस्तुत क्रकया जा सकता है।
ईपसभापवत, सभापवत की ऄनुपवस्थवत में ईसके सभी कायों को करता है तथा िह सभापवत के समान
शवक्तयां धाररत करता है।

4. ऄिवध
4.1 विधानसभा की ऄिवध

विधानसभा की ऄिवध 5 िषह होती है, लेक्रकन:


 राज्यपाल आसे 5 िषह से पूिह भी विघरर्त कर सकता है।
 5 िषह के आस कायहकाल को राष्ट्रपवत िारा अपातकाल की ईद्घोषणा के दौरान बढ़ाया भी जा
सकता है। विधानसभा का जीिन काल बढ़ाने के वलए संसद को विवध बनानी होगी। विस्तार एक
बार में एक िषह का ही हो सकता है। ककतु, वजस तारीख को ईद्घोषणा प्रिृत्त नहीं रहती है ईस
तारीख से यह विस्तार 6 माह से ऄवधक नहीं हो सकता।

4.2. विधानपररषद की ऄिवध

 विधानपररषद कभी विघरर्त न होने िाला एक स्थायी सदन है। लेक्रकन आसके एक वतहाइ सदस्य
प्रत्येक दो िषह की समावप्त पर सेिावनिृत हो जाते हैं। आस प्रकार, यह राज्यसभा की तरह एक
स्थायी वनकाय है।

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5. राज्य विधानमं ड ल का सत्र


राज्य विधानमंडल का सत्र भी संघीय विधावयका के समान है। सत्र अहूत करने, स्थगन, सत्रािसान,
विघर्न, अक्रद के बारे में जानकारी के वलए कें द्रीय विधावयका के नो्स देखें।

5.1 सत्र
 राज्यपाल विधानसभा के सदन को ऐसे समय और स्थान पर ऄवधविष्ट होने के वलए अहूत करता
है जो िह ठीक समझे। सदन साधारणतः राजधानी में ईसके वलए अरवक्षत भिन में ऄवधिेशन
करता है। ककतु कु छ सभाओं का ऄवधिेशन ऄन्य भिनों में भी हुअ है। लगभग सभी विधानसभाओं
के ऄवधिेशन एक ही नगर में होते हैं। महाराष्ट्र तथा जममू-कश्मीर विधानसभा आसके ऄपिाद हैं।
महाराष्ट्र विधानसभा का शीतकालीन ऄवधिेशन, नागपुर में होता है और जममू-कश्मीर
विधानसभा का शीतकालीन सत्र जममू में होता है।
 सदन के एक सत्र की ऄंवतम बैठक और अगामी सत्र की पहली बैठक के वलए वनयत तारीख के बीच
छह माह का ऄंतर नहीं होगा। ऄन्य शब्दों में विधानसभा का ऄवधिेशन िषह में कम से कम दो बार
ऄिश्य होगा। सदन का सत्रािसान राज्यपाल िारा क्रकया जा सकता है।
5.2 राज्यपाल का ऄवभभाषण

राज्यपाल दो ऄिसरों पर विधान-मंडल में ऄवभभाषण करता है (ऄुन. 176)।


 प्रत्येक साधारण वनिाहचन के पिात् प्रथम सत्र के अरं भ पर।
 प्रत्येक िषह के प्रथम सत्र के अरं भ पर।
राज्यपाल को विधान मंडल में ऄवभभाषण करने का ऄवधकार है ऄथाहत् यक्रद दोनों सदन हैं तो एक साथ
समिेत दोनों सदनों में या के िल विधानसभा है तो एक ही सदन में। आस प्रयोजन के वलए राज्यपाल
सदस्यों की ईपवस्थवत की ऄपेक्षा कर सके गा।
राज्यपाल राज्य के विधान-मंडल में लंवबत क्रकसी विधेयक के संबध ं में संदश े या कोइ ऄन्य संदश
े भेज
सके गा। संदश े की प्रावप्त पर ईस सदन का यह कतहव्य हो जाता है क्रक िह सुविधानुसार शीघ्रता से ईस
पर विचार करे । यह शवक्तयां िैसी ही हैं जैसी संसद के संबंध में राष्ट्रपवत में वनवहत है।
6. राज्य विधान-मं ड ल में विधायी प्रक्रिया
विसदनीय व्यिस्था िाले राज्यों में विधायी प्रक्रिया कु छ मामलों को छोड़कर लगभग सभी मामलों में
संसद के समान होता है।
6.1 साधारण विधे य क के मामले में सं स द और राज्य विधानमं ड ल में विधायी प्रक्रिया की
तु ल ना

संसद राज्य विधानमंडल

1. यह संसद के क्रकसी भी सदन में प्रस्तुत यह राज्य विधानमंडल के क्रकसी भी सदन में प्रस्तुत
क्रकया जा सकता है। क्रकया जा सकता है।

2. यह क्रकसी मंत्री या क्रकसी गैर-सरकारी यह क्रकसी मंत्री या क्रकसी गैर-सरकारी सदस्य िारा
सदस्य िारा प्रस्तुत क्रकया जाता है। प्रस्तुत क्रकया जाता है।

3. वजस सदन में प्रारं भ क्रकया जाता है ईसमें वजस सदन में प्रारं भ क्रकया जाता है ईसमें यह प्रथम,
यह प्रथम, वितीय और तृतीय वितीय और तृतीय िाचन/पाठन से गुजरता है।
िाचन/पाठन से गुजरता है।

4. यह तभी पाररत माना जाता है जब संसद यह तभी पाररत माना जाता है जब राज्य
के दोनों सदनों की संशोधन या वबना विधानमंडल के दोनों सदनों की संशोधन या वबना
संशोधन के सहमवत हो। संशोधन के सहमवत हो।

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5. दोनों सदनों के बीच गवतरोध तब ईत्पन्न दोनों सदनों के बीच गवतरोध तब ईत्पन्न होता है
होता है जब दूसरे सदन िारा पहले सदन जब विधानपररषद, विधानसभा िारा पाररत
से पाररत विधेयक को ऄस्िीकार कर क्रदया विधेयक को ऄस्िीकार करे या संशोधन प्रस्तावित
जाये या दूसरे सदन िारा विधेयक को ऐसे
करे जो विधानसभा को स्िीकायह न हो या 3 माह
संशोधनों के साथ पाररत क्रकया जाये जो
तक विधेयक को पाररत न करे ।
पहले सदन को मान्य न हो या दूसरा सदन
विधेयक को 6 माह तक पाररत न करे ।

6. संविधान में क्रकसी विधेयक पर गवतरोध संविधान में क्रकसी विधेयक के मसौदे के संबंध में
की वस्थवत के वनपर्ान हेतु संसद के दोनों गवतरोध की वस्थवत में विधानमंडल के दोनों सदनों
सदनों की संयुक्त बैठक का प्रािधान है। की संयुक्त बैठक का कोइ ईपबंध नहीं है।

7. लोकसभा दूसरी बार विधेयक को पाररत विधानसभा विधेयक पास करने में विधानपररषद
कर राज्यसभा पर ऄवभभािी नहीं हो पर ऄवभभािी हो सकती है। जब एक विधेयक
सकती और आसका विलोमतः भी सही है। विधानसभा िारा दूसरी बार पाररत कर पररषद को
भेजा जाता है तब यक्रद पररषद आसे क्रफर से
ऄस्िीकार कर दे या सुधार के वलए क्रफर कहे या एक
माह तक आसे पाररत न करे तो यह ईसी रूप में
पाररत माना जायेगा वजस रूप में विधानसभा ने आसे
पाररत क्रकया था।

8. क्रकसी विधेयक पर ईत्पन्न गवतरोध को हल दूसरी बार विधेयक को पाररत करते समय वसफह आसे
करने के वलए, चाहे िह संसद के क्रकसी भी विधानसभा से स्िीकृ वत की अिश्यकता होती है।
विधान पररषद िारा अरं भ एिं पाररत तथा
सदन के वलए हो, संयुक्त बैठक का ईपबन्ध
विधानसभा को पारे वषत विधेयक को यक्रद
है।
विधानसभा ऄस्िीकार कर दे तो िह समाप्त हो
जाता है।

6.2 धन विधे य क के मामले में सं स द और राज्य विधानमं ड ल के विधायी प्रक्रिया की


तु ल ना

1. आसे के िल लोकसभा में पुरःस्थावपत आसे के िल विधानसभा में पुरःस्थावपत क्रकया जा सकता
क्रकया जा सकता है न क्रक राज्यसभा है।
में।

2. यह के िल एक मंत्री िारा ही यह के िल एक मंत्री िारा ही पुरःस्थावपत क्रकया जा


पुरःस्थावपत क्रकया जा सकता है न क्रक सकता है न क्रक क्रकसी गैर-सरकारी सदस्य िारा।
क्रकसी गैर-सरकारी सदस्य िारा।

3. आसे के िल राष्ट्रपवत की वसफाररश के आसे के िल राज्यपाल की संस्तुवत के पिात् ही


पिात् ही पुरःस्थावपत क्रकया जा पुरःस्थावपत क्रकया जा सकता है।
सकता है।

4. आसे राज्यसभा िारा संशोवधत या आसे विधानपररषद िारा संशोवधत या ऄस्िीकृ त नहीं
ऄस्िीकृ त नहीं क्रकया जा सकता है। क्रकया जा सकता है आसे विधानसभा को वसफाररशों या
आसे लोकसभा को वसफाररशों या वबना क्रकसी वसफाररश के 14 क्रदनों के भीतर लौर्ा देना
वबना क्रकसी वसफाररश के 14 क्रदनों के चावहए।
भीतर लौर्ा देना चावहए।

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5. लोकसभा, राज्यसभा की वसफाररशों विधानसभा, विधानपररषद की वसफाररशों को स्िीकार


को स्िीकार या ऄस्िीकार कर सकती या ऄस्िीकार कर सकती है।
है।

6. यक्रद लोकसभा क्रकसी वसफाररश को यक्रद विधानसभा क्रकसी वसफाररश को स्िीकार कर लेती
स्िीकार कर लेती है तो आसे दोनों है तो आसे दोनों सदनों िारा पररिर्थतत रूप में पाररत
सदनों िारा पररिर्थतत रूप में पाररत मान वलया जाता है।
मान वलया जाता है।

7. लोकसभा िारा राज्यसभा की क्रकसी विधानसभा िारा विधानपररषद की क्रकसी वसफाररश


वसफाररश को न मानने पर, विधेयक को न मानने पर विधेयक को दोनों सदनों िारा आसके
को दोनों सदनों िारा आसके मूल रूप मूल रूप में पाररत मान वलया जाता है।
में पाररत मान वलया जाता है।

8. यक्रद राज्यसभा विधेयक को 14 क्रदनों यक्रद विधानपररषद विधेयक को 14 क्रदनों के भीतर


के भीतर लोकसभा को न लौर्ाए तो विधानसभा को न लौर्ाए तो तय सीमा के ऄन्दर आसे
तय सीमा के ऄन्दर आसे पाररत मान पाररत मान वलया जाता है।
वलया जाता है।

9. धन विधेयक के समबन्ध में दोनों दोनों सदनों की संयुक्त बैठक का कोइ प्रािधान नहीं है।
सदनों की संयुक्त बैठक का कोइ
प्रािधान नहीं है।

10. संसद िारा पाररत धन विधेयक जब क्रकसी धन विधेयक को राज्यपाल के समक्ष पेश
राष्ट्रपवत के समक्ष पेश क्रकया जाता है। क्रकया जाता है, िह सहमवत दे भी सकता है या
िह आसपर सहमवत दे भी सकता है या ऄस्िीकार कर सकता है आसके ऄवतररक्त िह राष्ट्रपवत
नहीं भी, लेक्रकन आसे पुनर्थिचार के की सहमवत के वलए सुरवक्षत रख सकता है लेक्रकन
वलए लौर्ा नहीं सकता है। पुनर्थिचार के वलए राज्य विधावयका को नहीं लौर्ा
सकता है।
राष्ट्रपवत सहमवत दे भी सकता है और नहीं भी, लेक्रकन
पुनर्थिचार के वलए लौर्ा नहीं सकता है।

नोर्: संविधान संशोधन विधेयक राज्य विधानमंडल में प्रारं भ नहीं क्रकया जा सकता।

6.3 विधे य क पर राज्यपाल की स्िीकृ वत


जब कोइ विधेयक राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत क्रकया जाता है तो राज्यपाल के पास वनम्नवलवखत विकल्प
होते हैं:
o िह विधेयक को स्िीकृ वत प्रदान कर दे; आसके बाद यह कानून बन जाएगा।

o िह विधेयक को ऄपनी स्िीकृ वत देने से मना कर दे; तो विधेयक कानून बनने में विफल रहता है।

o धन विधेयक के ऄलािा क्रकसी ऄन्य विधेयक के मामले में, िह विधेयक को पुनर्थिचार के वलए
लौर्ा सकता है।
o िह राष्ट्रपवत के विचाराथह विधेयक को सुरवक्षत रख सकता है। संिैधावनक प्रािधानों के तहत ईच्च
न्यायालय की शवक्तयों को कम करने के मामले में आसे सुरवक्षत रखना ऄवनिायह है। राज्यपाल िारा
क्रकसी धन विधेयक को सुरवक्षत रखे जाने की वस्थवत में, राष्ट्रपवत ईस पर ऄपनी सहमवत दे भी
सकते हैं या ऄस्िीकार कर सकते है।

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 लेक्रकन धन विधेयक के ऄवतररक्त क्रकसी ऄन्य विधेयक के मामले में, राष्ट्रपवत आसे राज्यपाल को

वनदेवशत करते हुए विधानमंडल को पुनर्थिचार के वलए लौर्ाने को कह सकते हैं। आस मामले में,

विधानमंडल को ऐसे विधेयक पर 6 माह के भीतर ऄिश्य ही पुनर्थिचार करना होता है, ईसके

बाद यक्रद आसे पाररत क्रकया जाता है तो, आसे पुन: राष्ट्रपवत के समक्ष प्रस्तुत करना होता है। लेक्रकन

राष्ट्रपवत के वलए आस पर सहमवत देना बाध्यकारी नहीं है (ऄनु. 201)।

 यह स्पष्ट है क्रक जब कोइ विधेयक राष्ट्रपवत के विचाराथह अरवक्षत है, तब वबना राष्ट्रपवत के सहमवत

के िह कानून के रूप में प्रभािी नहीं होगा। आसके ऄवतररक्त, संविधान में राष्ट्रपवत को विधेयक पर

सहमवत देने (या ऄपनी सहमवत न देने) के वलए कोइ समय सीमा तय नहीं की गयी है। फलस्िरूप,
राष्ट्रपवत राज्य विधानमंडल के क्रकसी विधेयक को ऄवनवित काल के वलए ऄपने पास रोक सकते
है।
 आसके ऄलािा, जब कोइ विधेयक राष्ट्रपवत के विचाराथह रखा जाता है, तो िह संिैधावनकता के

क्रकसी प्रश्न पर आसे ऄनु.143 के तहत ईच्चतम न्यायालय के पास सलाह हेतु भेज सकता है।

6.4 राज्यपाल और राष्ट्रपवत के िीर्ो शवक्त की तु ल ना

राष्ट्रपवत राज्यपाल

संसद के दोनों सदनों िारा पाररत विधेयक पर सहमवत दे सकता राज्य विधावयका िारा पाररत
है। विधेयक पर सहमवत दे सकता है।

घोषणा कर सकता है क्रक िह सहमवत नहीं देगा, तो आस मामले घोषणा कर सकता है क्रक िह सहमवत
में विधेयक कानून नहीं बन पाता है। नहीं देगा, तो आस मामले में विधेयक
कानून नहीं बन पाता है।

धन विधेयक के ऄवतररक्त क्रकसी ऄन्य विधेयक के मामले में, धन विधेयक के ऄलािा क्रकसी ऄन्य
संसद िारा पाररत क्रकसी विधेयक को पुनर्थिचार के वलए लौर्ा विधेयक के मामले में, राज्य
सकता है। यक्रद विधेयक को संशोधन के साथ या संशोधन के विधानमंडल िारा पाररत क्रकसी
वबना पुनः पाररत कर क्रदया जाता है तो राष्ट्रपवत आस पर विधेयक को पुनर्थिचार के वलए लौर्ा
सहमवत देने हेतु बाध्य है। सकता है। यक्रद विधेयक को संशोधन
के साथ या संशोधन के वबना पुनः
पाररत कर क्रदया जाता है तो
राज्यपाल आस पर सहमवत देने हेतु
बाध्य है।

आसके ऄवतररक्त राज्यपाल के पास


एक और विकल्प होता है; िह
राष्ट्रपवत के विचाराथह आसे सुरवक्षत
रख सकता है।

राष्ट्रपवत के पुनर्थिचार के वलए सुरवक्षत राज्य विधेयक के मामले राज्यपाल ऄगर क्रकसी विधेयक को
में िह वनम्नवलवखत कदम ईठा सकता है : एक बार राष्ट्रपवत के पुनर्थिचाराथह

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 धन विधेयक के मामले में, िह सहमवत दे भी सकता है और रखता है तो आस विधेयक के बाद के


नहीं भी। ऄवधवनयमन की वजममेदारी राष्ट्रपवत
की होती है। आसमें राज्यपाल की कोइ
 क्रकसी ऄन्य विधेयक के मामले में,
भूवमका नहीं होती है।
o घोषणा कर सकता है क्रक िह आसे सहमवत देता है या
नहीं, या
o राज्य विधावयका को पुनर्थिचार के वलए लौर्ा सकता
है; राज्य विधावयका को आस पर 6 महीने के भीतर
ऄिश्य पुनर्थिचार करना होगा। यक्रद यह पुनः पाररत
(संशोधन के साथ या संशोधन के वबना) कर क्रदया
जाता है तो आसे सीधे राष्ट्रपवत के समक्ष पेश करना
होगा। लेक्रकन राष्ट्रपवत आस पर सहमवत देने के वलए
बाध्य नहीं है यद्यवप राज्य विधानमंडल ने आसे दुबारा
पाररत क्रकया हो।

7. राज्य विधानमं ड ल का विशे षावधकार


 संिैधावनक प्रािधानों के तहत संसद और राज्य विधानमंडलों के विशेषावधकार समान हैं (ऄनु.
105 और 194)। संविधान िारा संसद / राज्य विधान-मंडलों के दोनों सदनों, ईनकी सवमवतयों

तथा ईनके सदस्यों को कु छ विशेष ऄवधकार, ईन्मुवक्तयाँ तथा सुरक्षा प्रदान की गइ हैं।
 यह ध्यान देने योग्य है क्रक संविधान ने ईन लोगों जो राज्य विधानमंडल या आसके क्रकसी सवमवत
की कारिाइयों में बोलने और भाग लेने के वलए ऄवधकृ त हैं, के विशेषावधकारों में विस्तार क्रकया है।
आसमें महावधिक्ता और राज्य के मंत्री सवममवलत हैं। आन्हें दो व्यापक श्रेवणयों में बाँर्ा गया है:
o सामूवहक विशेषावधकार का प्रयोग प्रत्येक सदन िारा सामूवहक रूप से क्रकया जाता है। आनमें,

ररपोर्ह अक्रद प्रकावशत करने का ऄवधकार, बाहरी व्यवक्तयों को सदन की कायहिाही से बाहर

करना, विशेषावधकारों के ईल्लंघन के वलए सदस्यों/बाहरी व्यवक्तयों को दंवडत करना आत्याक्रद


सवममवलत हैं।
o व्यवक्तगत विशेषावधकार सदस्यों िारा व्यवक्तगत रूप से प्रयोग क्रकये जाते हैं। ईदाहरणाथह
सदन में ऄवभव्यवक्त की स्ितंत्रता, सत्र के दौरान न्यावयक जाँच से छू र्, सत्र से 40 क्रदन पहले

से 40 क्रदन बाद तक वसविल वगरफ्तारी से छू र् आत्याक्रद।


 विशेषावधकारों के स्रोत: मूलतः आसे विरर्श हाईस ऑफ कॉमन्स से वलया गया है। सभी
विशेषावधकारों को संवहताबद्ध करने के वलए कोइ कानून नहीं है। ये पांच विवभन्न स्रोतों
संिैधावनक प्रािधान, संसद के विवभन्न कानून, दोनों सदनों के वनयम, संसदीय सममेलन और
न्यावयक वनिहचन पर अधाररत हैं।
 विशेषावधकारों का ईल्लंघन: विशेषावधकारों के ईल्लंघन और ईसके वलए सजा के वनधाहरण
हेतु स्पष्ट वनयमों का ऄभाि है। कनाहर्क विशेषावधकार पैनल के ऄनुसार, कोइ भी ऐसी
ऄवभव्यवक्त ऄथिा कोइ भी ऐसा वनन्दा-लेख छापना या प्रकावशत करना विशेषावधकार
ईल्लंघन के ऄंतगहत अ सकता है, जो सदन, आसकी सवमवतयों या आसके सदस्यों के चररत्र या
संसद सदस्य के नाते ईनके अचरण के सन्दभह में ऄपमानजनक है।

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विशेषावधकार सवमवत
 यह एक स्थायी सवमवत है वजसका संसद / राज्य विधानसभा के प्रत्येक सदन में गठन होता है।
लोकसभा की विशेषावधकार सवमवत में 15 जबक्रक राज्यसभा की सवमवत में 10 सदस्य होते हैं

वजनको िमशः ऄध्यक्ष एिं सभापवत िारा वनयुक्त क्रकया जाता है।
 आसका प्रमुख कायह, सभा ऄथिा ईसके क्रकसी सदस्य ऄथिा क्रकसी सवमवत के सदस्य के विशेषावधकार

के भंग क्रकए जाने से संबंवधत प्रत्येक प्रश्न की जांच करना, जो ईसे सभा ऄथिा ऄध्यक्ष िारा सौंपा

जाए। प्रत्येक मामले के त‍यों को ध्यान में रखते हुए आस बात का वनश्चय करना क्रक ्‍या
विशेषावधकार को भंग क्रकया गया है और ऄपने प्रवतिेदन में आस संबंध में ईपयु्‍त वसफाररश करना।

7.1 निीनतम मु द्दा

 हाल ही में कनाहर्क विधानसभा के ऄध्यक्ष ने ऄपनी "विशेषावधकार सवमवत" की वसफाररशों के

अधार पर दो पत्रकारों को एक िषह के कारािास का अदेश क्रदया। आससे पूिह 2003 में तवमलनाडु

विधानसभा ऄध्यक्ष ने AIADMK सरकार के समबन्ध में अलोचनात्मक लेखों के प्रकाशन के वलए

पांच पत्रकारों की वगरफ्तारी का वनदेश क्रदया था।

विशेषावधकार से संबंवधत एक िाद में ईच्चतम न्यायालय के फै सले से वनम्नवलवखत पहलुओं का ईल्लेख
क्रकया जा सकता है:

 राज्य विधानमंडल के प्रत्येक सदन को ऄपने विशेषावधकारों के ईल्लंघन या ऄिमानना के वलए


दवडडत करने की शवक्त है।
 प्रत्येक सदन ऄपने विशेषावधकारों के ईल्लंघन के मामले में एकमात्र न्यायाधीश है। न्यायालयों को
आस मामले में हस्तक्षेप करने का कोइ ऄवधकार-क्षेत्र नहीं है। हालाँक्रक, यक्रद विधावयका या आसके

िारा ऄवधकृ त कोइ प्रावधकारी संसद िारा बनाए गए क्रकसी कानून के ऄवधकार क्षेत्र से बाहर
जाकर कोइ विशेषावधकार प्राप्त करना चाहता है, या कोइ नोरर्स जारी क्रकया जाता है तो ऐसे

मामले में न्यायालय हस्तक्षेप कर सकती है।


 विधानमंडल के क्रकसी भी सदन को स्ियं के वलए ऐसा कोइ कानून बनाने की कोइ विशेषावधकार
की शवक्त नहीं है, जो विवध संगत न हो। ऐसे मामलों में न्यायालय यह वनधाहररत कर सकता है क्रक

िास्ति में सदन को ऐसा कोइ विशेषावधकार प्राप्त नहीं है।


 ऄपनी ऄिमानना के वलए विधानमंडल िारा बंदी बनाये गये क्रकसी व्यवक्त के समबन्ध में ईच्च
न्यायालय ऄनु. 226 (ऄनु 32 के तहत ईच्चतम न्यायालय) के तहत बंदी प्रत्यक्षीकरण की यावचका

पर सुनिाइ कर सकता है। यह सुनिाइ आस अधार पर क्रकया जा सकता है क्रक यावचकाकताह के


मौवलक ऄवधकारों का ईल्लंघन तो नहीं हुअ है न्यायालय ईस कै दी को जमानत पर पर ररहा कर
सकता है।
 एक बार जब विशेषावधकार सदन को प्राप्त हो जाते हैं, तब सदन आसे ऄपने ऄनुसार प्रयुक्त करता

है। न्यायालय ऐसे में विशेषावधकार हनन के मामले में सदन या ईसके ऄध्यक्ष िारा वलए गये गलत
वनणहय के मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।

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महत्ि
 यह सांसदों और विधायकों की ऄवभव्यवक्त की स्ितंत्रता की रक्षा करते हैं और आन सदनों में होने
िाले मामलों पर मुकदमेबाजी के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करते हैं।
 आन विशेषावधकारों के वबना सदन ऄपने ऄवधकार, गररमा और सममान को बनाए रखने में ऄसमथह

होगा। साथ ही आनके वबना यह ऄपने सदस्यों को कतहव्यों के वनिहहन में क्रकसी ऄिरोध से सुरक्षा
प्रदान करने में भी सक्षम नहीं होगा।
अलोचना
 कभी-कभी आसका प्रयोग मीवडया िारा की गयी सांसदों/विधायकों की अलोचना का विरोध करने
तथा कानूनी कायहिाही के विकल्प के रूप में क्रकया जाता है।
 विशेषावधकार ईल्लंघन से संबंवधत कानून राजनीवतज्ञों को ईनके स्ियं के मामलों में ही न्याय
करने का ऄवधकार प्रदान करते हैं। आससे वहतों के र्कराि तथा ऄवभयुक्त को वनष्पक्ष सुनिाइ की
अधारभूत गारं र्ी से िंवचत करने की वस्थवत बन जाती है।
 िस्तुतः आस सन्दभह में एक कानून का वनमाहण क्रकया जाना अिश्यक है जो विधायी विशेषावधकारों
को संवहताबद्ध करे साथ ही, विशेषावधकार हनन की वस्थवत में पैनल के कायों की सीमाओं को

विवहत करे तथा आस हेतु एक सुवनवित प्रक्रिया का भी वनधाहरण कर सके । विधावयका को ऄपनी
शवक्त का ईपयोग ऄिमानना या विशेषावधकार के ईल्लंघन के मामले में ही करना चावहए ताक्रक
सदन की स्ितंत्रता की रक्षा भी हो सके और अलोचकों की स्ितंत्रता को भी कम नहीं क्रकया जाए।

8. विधानसभा बनाम विधानपररषद


यह स्पष्ट है क्रक विधानपररषद की वस्थवत विधानसभा की तुलना में राज्यसभा और लोकसभा के तजह पर
तुलनात्मक रूप से कमजोर है। राज्यसभा की वस्थवत सरकार पर वनयंत्रण के समबन्ध में और वित्तीय
मामलों को छोड़कर सभी मामलों में लोकसभा के बराबर है। दूसरी ओर, विधानपररषद वनम्नवलवखत

मामलों में विधानसभा के ऄधीनस्थ है:


 क्रकसी धन विधेयक को वसफह विधानसभा में ही प्रस्तुत क्रकया जाता है न क्रक विधानपररषद में।
पररषद धन विधेयक में ना ही कोइ संशोधन और ना ही ईसे ऄस्िीकार कर सकती है। आसे या तो
वसफाररशों के साथ या ईनके वबना 14 क्रदनों के ऄन्दर विधेयक को िापस करना होता है।

 ऄन्य विधेयकों के मामले में भी, पररषद विधानसभा के ऄधीनस्थ है। यह क्रकसी विधेयक को ईसके

पाररत होने के बाद ऄवधकतम 4 माह के वलए रोक सकता है। ऄसहमवत के मामले में विधानसभा

ऄपने आच्छानुसार काम करती है।


 दूसरी ओर, विधानपररषद िारा लाये गये प्रस्ताि को विधानसभा तत्काल प्रभाि से समाप्त करने

की शवक्त रखती है।


 विधानपररषद को ऄपने ऄवस्तत्ि के वलए विधानसभा की आच्छा पर वनभहर रहना पड़ता है।
विधानसभा, विधानपररषद को संसद के एक ऄवधवनयम िारा समाप्त करा सकती है।

 मंत्रीपररषद का ईत्तरदावयत्ि के िल विधानसभा के प्रवत होता है।


 विधानपररषद के सदस्य राष्ट्रपवत और ईपराष्ट्रपवत के चुनाि में तथा राज्यसभा के सदस्यों के
चुनाि में भाग नहीं लेते हैं।

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विधानसभा विधानपररषद

सदस्यों की 60 से 500 तक (जनसंख्या के न्यूनतम 40 या विधानसभा की कु ल संख्या का


स्िीकायह
अधार पर) ऄपिाद: गोिा, एक वतहाइ से ऄवधक नहीं
संख्या
ऄरुणाचल प्रदेश और वसक्रिम- 30,

वमजोरम- 40

सदस्यों का सािहभौवमक व्यस्क मतावधकार के  1/3 सदस्य स्थानीय वनकायों; जैस-े नगर
वनिाहचन अधार पर प्रत्यक्ष रूप से जनता के
पावलकाओं, वजला बोडों, अक्रद के सदस्यों
िारा
िारा चुने जाते हैं।
 1/3 सदस्यों का वनिाहचन राज्य
विधानसभा के सदस्यों िारा क्रकया जाता
है।
 1/12 सदस्यों का वनिाहचन राज्य में रहने
िाले ऐसे व्यवक्तयों िारा होता है जो क्रकसी
विश्वविद्यालय के कम-से-कम तीन िषह से
स्नातक हैं।
 1/12 सदस्यों का वनिाहचन 3 िषह से

ऄध्यापन कर रहे वशक्षक करते हैं, लेक्रकन


ये ऄध्यापक माध्यवमक स्कू लों से कम के
नहीं होने चावहए।

राज्यपाल के अंग्ल-भारतीय समुदाय के एक कु ल संख्या के 1/6


नामांकन के सदस्य को
िारा

ऄिवध सामान्य ऄिवध- 5 िषह; हालाँक्रक, विधानपररषद एक स्थायी सदन है (राज्यसभा


राज्यपाल कभी भी विधानसभा की तरह) और विघर्न के योग्य नहीं है; हर दूसरे
को भंग कर सकता है। संसद के एक िषह एक-वतहाइ सदस्य सेिावनिृत हो जाते हैं।
क़ानून के िारा अपातकाल के आसके सदस्यों का कायहकाल 6 िषों का होता है।
दौरान ऄिवध को एक बार में 1
िषह के वलए बढ़ाया जा सकता है।

9. राज्यसभा तथा विधानपररषद


विधानपररषद को राज्यसभा की तुलना में कम महत्ि प्राप्त है ्‍योंक्रक:
 राज्यसभा, संविधान के संघीय चररत्र का प्रवतवनवधत्ि करता है। आसकी वस्थवत एक नाममात्र के
वनकाय से कहीं ऄवधक है। आसवलए संविधान में लोकसभा और राज्यसभा के बीच ऄसहमवत की
वस्थवत में संयुक्त बैठक का प्रािधान है। हालाँक्रक, ऄंततः ऄपनी संख्याबल के कारण लोकसभा ईच्च
वनकाय सावबत होगा।

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 राज्य विधानमंडल के मामले में, संविधान ने आंग्लैंड की प्रणाली को ऄपनाया है। राज्य
विधानपररषद को राज्यसभा की तुलना में सीवमत शवक्तयां प्रदान की गयी हैं। राज्य विधान मंडल
में दोनों सदनों के मध्य गवतरोध ईत्पन्न होने की वस्थवत में संयुक्त बैठक का प्रािधान नहीं है। ऄतः
विधानपररषद के ऄसहमत होने पर भी विधेयक पाररत हो सकता है।
 विधानपररषद ऄलग-ऄलग क्षेत्रों जैसे स्थानीय संस्थाओं, स्नातकों, ऄध्यापकों, विधानसभाओं और

विज्ञान, कला, सावहत्य, सहकाररता अंदोलन या समाज सेिा अक्रद से संबंवधत व्यवक्तयों िारा

गरठत की जाती है। दूसरी ओर, राज्यसभा में ऄवधकांश सदस्यों को चुना जाता है (250 में से

के िल 12 नामांक्रकत होते हैं)।

10. विधानपररषद की ईपयोवगता


 यह ऄपनी विलंबकारी शवक्त के अधार पर विधानसभा िारा बनाये गये कु छ दोषपूणह, लापरिाह
और ऄवििेकशील विधानों की जांच करती है।
 ऄप्रत्यक्ष चुनािी प्रक्रिया और विशेष ज्ञान रखने िाले व्यवक्तयों के नामांकन के कारण
विधानपररषद कइ मामले में बेहतर क्षमता िाला सदन है।
 वितीय प्रशासवनक सुधार अयोग ने यह सुझाि क्रदया है क्रक विधानपररषद को पंचायती राज
संस्थाओं के प्रवतवनवध के रूप में काम करना चावहए और संविधान में ईपयुक्त संशोधनों के माध्यम
से पररषद के वलए अिश्यक शवक्तयों का प्रािधान करना चावहए ताक्रक यह स्थानीय प्रशासन को
मजबूत करने का काम करे ।

11. राज्य-राजनीवत का महत्ि एिं प्रकृ वत


 भारतीय संघ के राजनीवतक और अर्थथक ढांचे में सक्रिय रहने के कारण विवभन्न प्रदेशों की
राजनीवत में काफी समानताएं मौजूद है परं तु ईनकी सरं चना और ईपलवब्धयों में विवभन्नताएं भी
हैं। प्रत्येक राज्य में िगह, जावत, सामावजक एिं अर्थथक शवक्तयों, और सामावजक एिं अर्थथक
विकास के ऄलग-ऄलग स्तर मौजूद हैं जो ईसकी राजनीवत को प्रभावित करते हैं।
 भारत की संघात्मक व्यिस्था में राज्य राजनीवत का विशेष महत्ि है। भारतीय लोकतंत्र की
सफलता आस बात पर वनभहर करती है क्रक राज्य ऄपने विकास कायहिमों को क्रकस गवत से
क्रियावन्ित कर पाते हैं। भूवम सुधार कानून हो या वशक्षा में पररितहन लाने का कोइ कायहिम,

अर्थथक वनयोजन हो या मद्य वनषेध, कु र्ीर ईद्योगों को बढ़ािा देना हो या व्यापक चसचाइ

सुविधाओं की व्यिस्था करनी हो, व्यिहार में आन सभी का क्रियान्ियन राज्य सरकार िारा ही
क्रकया जाता है। जन साधारण की क्रदन-प्रवतक्रदन की समस्याओं का समाधान राज्य सरकारों िारा
ही क्रकया जाता है। यद्यवप सभी राज्य एक ही संविधान िारा शावसत है क्रफर भी ईसकी राजनीवत
में वभन्नता विद्यमान है।
राज्य-राजनीवत के वनधाहरक तत्ि वनम्नवलवखत है:
 संिध
ै ावनक तत्ि: संिैधावनक ढांचा, राज्य राजनीवत का संस्थानात्मक वनधाहरक तत्ि है। संविधान

में "राज्यों का संघ" िा्‍यांश का प्रयोग क्रकया गया है। राज्य की राजनीवत, कें द्रीय शासन और
राजनीवत से व्यापक रूप से प्रभावित होती है।
 राजनीवतक तत्ि: राजनीवतक तत्ि के ऄंतगहत कें द्रीय नेतृत्ि और प्रधानमंत्री का व्यवक्तत्ि राज्य
राजनीवत को प्रभावित करता है। आसके ऄवतररक्त एक ही समय में विवभन्न राज्यों की राजनीवतक
वस्थवत में भी ऄंतर देखा जा सकता है। आसका कारण है मुख्यमंत्री का राज्यों की राजनीवत में प्रमुख
भूवमका वनभाना। के न्द्र और राज्यों की दलीय वस्थवत भी राज्य राजनीवत को प्रभावित करती है।

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कें द्रीय सरकार के राज्य सरकार से संबंध िस्तुतः दलीय संरचना पर कम तथा प्रधानमंत्री और
मुख्यमंत्री के समीकरण पर ऄवधक वनभहर है। कें द्र के वलए वमली-जुली सरकार िाले राज्य की
राजनीवतक वस्थवत को प्रभावित करना सामान्यतया सरल होता है।
 सांस्कृ वतक ि सामावजक तत्ि: भारतीय संघ के कु छ राज्य काफी विकवसत और कु छ बहुत वपछड़े
हैं। राज्य विशेष में जावतयों की संख्यात्मक वस्थवत, ऄनुसूवचत जावतयों ि जनजावतयों,

ऄल्पसंख्यकों अक्रद की वस्थवत एिं संख्या विशेष की राजनीवत, दल व्यिस्था और न्यावयक प्रक्रिया
को प्रभावित करती है।
 अर्थथक तत्ि: यक्रद एक राज्य के पास पयाहप्त वित्तीय साधन है तो ईस राज्य की राजनीवत के स्ितंत्र
और स्िस्थ रूप से विकवसत होने की अशा की जा सकती है। वपछले एक दशक से अर्थथक विकास
का पहलू राज्य राजनीवत में महत्िपूणह कारक बनता जा रहा है। राज्य विशेष में संपन्न होने िाले
चुनािों में मतदाता सरकारों को आस कसौर्ी पर मापने लगे हैं क्रक िह राज्य के विकास और शासन
की गुणिता की दृवष्ट से क्रकतना काम कर पाइ।
 भौगोवलक तत्ि: भौगोवलक वस्थवत राज्य के अर्थथक विकास की और परोक्ष रूप से राज्य राजनीवत
को प्रभावित करती है। सीमा पर वस्थत राज्यों में यक्रद कभी पृथकतािादी प्रिृवत्तयों का ईदय होता
है तो आसका प्रमुख कारण ईसकी भौगोवलक वस्थवत हो सकती है। आसका ईदाहरण नागालैंड और
वमजोरम है। आसके ऄवतररक्त, कु छ राज्य जनसंख्या ि क्षेत्र की दृवष्ट से विशाल और विविधताओं से
पूणह है। ऐसे राज्यों की राजनीवतक में एक-दूसरे से भेद होना स्िाभाविक है।

12. राज्य विधानमं ड ल से सं बं वधत ऄन्य निीनतम मु द्दे


लाभ के पद एिं संसदीय सवचि से संबद्ध मुद्दा : िषह 2015 में, क्रदल्ली सरकार ने छह मंवत्रयों के वलए

21 संसदीय सवचिों की वनयुवक्त की थी।

 आस पद को "लाभ के पद” 'की पररभाषा से छू र् नहीं प्रदान की गयी थी।


 क्रदल्ली सरकार के िारा संसदीय सवचि के पद को लाभ के पद की पररभाषा से छू र् प्रदान करने
संबंधी प्रािधान करने के वलए क्रदल्ली विधानसभा सदस्य (ऄयोग्यता वनिारण) ऄवधवनयम, 1997
में संशोधन करने हेतु प्रस्ताि लाया गया।
 सवचि, ऄनुच्छेद 239 AA(4) के तहत मंत्री भी नहीं होते हैं ्‍योंक्रक ईन्हें न तो राष्ट्रपवत िारा
वनयुक्त क्रकया जाता है और न हीं ईन्हें पद एिं गोपनीयता की शपथ क्रदलाइ जाती है।
 लेक्रकन राष्ट्रपवत ने संशोधन प्रस्ताि को ऄपनी सहमवत देने से मना कर क्रदया है।

लाभ के पद की पररभाषा
संविधान में ‘लाभ के पद’ की पररभाषा नहीं दी गयी है क्रकन्तु पूिह वनणहयों के अधार पर वनिाहचन
अयोग के िारा लाभ के पद के परीक्षण हेतु वनम्नवलवखत पांच प्रमुख कसौरर्यों को अधार माना गया है:
o ्‍या पद पर वनयुवक्त सरकार के िारा की गयी है?

o ्‍या पद के धारणकताह को सरकार ऄपनी स्िेच्छा से पद से हर्ा सकती है?

o ्‍या पाररश्रवमक का भुगतान सरकार के िारा क्रकया जाता है?

o पद के धारणकताह के कायह ्‍या हैं?

o ्‍या आन कायों को संपन्न करने की प्रक्रिया पर सरकार का वनयंत्रण बना रहता है?

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 एक कें द्र शावसत प्रदेश के रूप में क्रदल्ली की विशेष वस्थवत के कारण, कोइ विधेयक विधानसभा

िारा पाररत क्रकये जाने के पिात भी तब तक "कानून" नहीं माना जाता है, जब तक आस पर
क्रदल्ली के लेवफ्र्नेंर् गिनहर और भारत के राष्ट्रपवत िारा स्िीकृ वत प्रदान नहीं कर दी जाती है।
 क्रदल्ली सरकार का तकह है क्रक संसदीय सवचि क्रकसी भी पाररश्रवमक या सरकार की ओर से भत्तों के
वलए पात्र नहीं हैं, ऄतः आस पद को “लाभ के पद” की पररभाषा से छू र् प्रदान की जानी चावहए।

 पंजाब, हररयाणा, और राजस्थान अक्रद जैसे कइ राज्यों में कभी-कभार यह पद सृवजत क्रकया गया
है।
 हालांक्रक, ईच्च न्यायालय में विवभन्न यावचकाओं में संसद सवचि की वनयुवक्त को चुनौती दी गइ है।

 जून 2015 में, कलकत्ता ईच्च न्यायालय ने पविम बंगाल में 24 संसदीय सवचिों की वनयुवक्त
ऄसंिैधावनक ठहराते हुए वनरस्त कर दी।
 आसी प्रकार की कारह िाइ बंबइ ईच्च न्यायालय, वहमाचल प्रदेश ईच्च न्यायालय अक्रद िारा भी की
गइ है।
 ितहमान में, गुजरात, पंजाब और राजस्थान जैसे विवभन्न राज्यों में आस प्रकार के पदों का ऄवस्तत्ि
है।

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भारतीय संविधान एिं शासन


12. ईच्चतम न्यायालय

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विषय सूची
1. भारतीय न्यायपावलका की सामान्य संरचना __________________________________________________________ 3

2. ईच्चतम न्यायालय _____________________________________________________________________________ 3

2.1. वनयुवि ________________________________________________________________________________ 4


2.1.1. ऄहहताएँ ____________________________________________________________________________ 4
2.1.2. वनयुवि और कॉलेवजयम _________________________________________________________________ 4
2.1.3. पदािवध ____________________________________________________________________________ 5
2.1.4. िेतन ______________________________________________________________________________ 6

2.2. न्यायाधीशों को हटाना ______________________________________________________________________ 6

2.3. कायहकारी मुख्य न्यायाधीश की वनयुवि ___________________________________________________________ 7

2.4. तदथह न्यायाधीश __________________________________________________________________________ 7

2.5. सेिावनिृत्त न्यायाधीश ______________________________________________________________________ 7

2.6. ईच्चतम न्यायालय का स्थान___________________________________________________________________ 7

2.7. ईच्चतम न्यायालय के क्षेत्रावधकार _______________________________________________________________ 7


2.7.1. मूल क्षेत्रावधकार (Original Jurisdiction) ___________________________________________________ 8
2.7.2. ऄपीलीय क्षेत्रावधकार ___________________________________________________________________ 8
2.7.3. सलाहकारी क्षेत्रावधकार _________________________________________________________________ 9
2.7.4. ईच्चतम न्यायालय का ऄवभलेख न्यायालय होना _________________________________________________ 9
2.7.5. वनणहय या अदेश का पुनर्विलोकन (संशोवधत क्षेत्रावधकार) _________________________________________ 10
2.7.6. ईच्चतम न्यायालय की ऄन्य मुख्य शवियां ____________________________________________________ 11
2.7.7. न्यावयक समीक्षा की शवि ______________________________________________________________ 12
2.7.8. कु छ ऄन्य महत्िपूणह वसद्ांत वजसका प्रयोग न्यावयक समीक्षा के मामले में ककया जाता है ____________________ 13

2.8. न्याय प्रणाली के िैचाररक अधार ______________________________________________________________ 13


2.8.1. विवध द्वारा स्थावपत प्रकिया (Procedure established by Law) बनाम विवध की
ईवचत प्रकिया (Due process of Law) _________________________________________________________ 13
2.8.2. प्राकृ वतक न्याय का वसद्ांत ______________________________________________________________ 14
2.8.3. ईच्चतम न्यायालय की स्िाधीनता सुवनवतत कने िाले ईपबंध ________________________________________ 14
2.8.4. ऄमेररकी सिोच्च न्यायालय के साथ तुलना ____________________________________________________ 15

2.9. न्यावयक ऄवतिमण और न्यावयक सकियता (Judicial Overreach and judicial activism) ___________________ 15

2.10. आं टीग्रेटेड के स मैनज


े मेंट आनफामेशन वसस्टम (ICMIS) ______________________________________________ 16
2.10.1. ईच्चतम न्यायालय कॉलेवजयम की कायहिाही पवललक डोमेन में _____________________________________ 16

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1. भारतीय न्यायपावलका की सामान्य सं र चना


 भारतीय संविधान के द्वारा एकीकृ त न्यायपावलका की स्थापना की गइ है, वजसके शीषह पर ईच्चतम

न्यायालय है ि ईसके ऄधीन ईच्च न्यायालय हैं। एक ईच्च न्यायालय के ऄधीन (और राज्य स्तर के
नीचे) ऄधीनस्थ न्यायालयों (वजला न्यायालय एिं ऄन्य ऄधीनस्थ न्यायालय) की श्रेवणयां हैं।
 यह एकीकृ त न्याय प्रणाली के न्रीय कानूनों के साथ-साथ राज्य के कानूनों को प्रिर्वतत करती है।
दूसरी तरफ, संयुि राज्य ऄमेररका में संघीय कानून का प्रितहन संघीय न्यायपावलका द्वारा जबकक

राज्यों के कानूनों का प्रितहन संबद् राज्य न्यायपावलकाओं द्वारा ककया जाता है।
 आस एकीकृ त न्याय प्रणाली को भारत शासन ऄवधवनयम, 1935 से ग्रहण ककया गया है।

2. ईच्चतम न्यायालय
 भारत के ईच्चतम न्यायालय का ईघाटाटन 28 जनिरी 1950 को ककया गया। यह भारत शासन

ऄवधवनयम, 1935 के द्वारा स्थावपत संघीय न्यायालय का ईत्तरावधकारी था।

 भारतीय संविधान के भाग V में ऄनुच्छेद 124 से 147 तक ईच्चतम न्यायालय की संरचना,

स्ितंत्रता, क्षेत्रावधकार, शवियाँ और कायहप्रणाली अकद का िणहन ककया गया है। संसद के पास

ईच्चतम न्यायालय के क्षेत्रावधकार, शवियों अकद के बारे में कानून बनाने का ऄवधकार है।

 मूलतः आस न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश और 7 ऄन्य न्यायाधीश थे। संसद को यह शवि है

कक िह विवध बनाकर न्यायाधीशों की संख्या विवहत करे । ितहमान समय में ईच्चतम न्यायालय में
न्यायाधीशों की संख्या मुख्य न्यायाधीश सवहत 31 है।

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2.1. वनयु वि

2.1.1. ऄहह ताएँ

ऄनुच्छेद 124(3) के ऄनुसार कोइ भी व्यवि ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में वनयुवि के
वलए तभी ऄहह होगा जब िह:
 भारत का नागररक हो, और
 ककसी एक ईच्च न्यायालय ऄथिा दो या दो से ऄवधक ऐसे न्यायालयों में कम-से-कम पाँच िषों तक
न्यायाधीश रहा हो, या
 ककसी ईच्च न्यायालय ऄथिा दो या दो से ऄवधक ऐसे न्यायालयों में कम-से-कम दस िषों तक
िकालत कर चुका हो, या
 राष्ट्रपवत की राय में प्रख्यात न्यायविद (पारं गत विवधिेत्ता) हो।

2.1.2. वनयु वि और कॉले वजयम

ऄनुच्छेद 124 (2) के ऄनुसार ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की वनयुवि भारत का राष्ट्रपवत ईच्चतम
न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ि ईच्च न्यायालयों के कु छ ऐसे न्यायाधीशों से परामशह करने के पश्चात्,
वजनसे राष्ट्रपवत आस प्रयोजन के वलए परामशह करना अितयक समझे, ऄपने हस्ताक्षर और मुरा सवहत
ऄवधपत्र द्वारा ईच्चतम न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को वनयुि करे गा और िह न्यायाधीश तब तक
पद धारण करे गा जब तक िह 65 िषह की अयु प्राप्त नहीं कर लेता है।
 ईच्चतम न्यायालय ने ‘परामशह’ शलद की व्याख्या तीन न्यायाधीश िादों (Three Judges
Cases) (1982, 1993, 1998) में विवभन्न तरीके से ककया है। तीसरे न्यायाधीश िाद के ईपरांत
ितहमान पररदृतय में ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की वनयुवि कॉलेवजयम, वजसमें ईच्चतम
न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा चार ऄन्य िररष्ठतम न्यायाधीश शावमल होते हैं, के सलाह पर
(प्रकृ वत में बाध्यकारी) राष्ट्रपवत द्वारा की जाती है।
 तीसरे न्यायाधीश िाद, 1998 में न्यायालय ने मत कदया कक भारत के मुख्य न्यायाधीश और चार
ज्येष्ठतम न्यायाधीशों से वमलकर बनने िाली कॉलेवजयम में जो बहुमत की राय होगी िही
वनधाहरक होगी।

ईच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की वनयुवि


 दूसरे न्यायाधीश िाद, 1993 में ईच्चतम न्यायालय ने वनणहय कदया कक सबसे िररष्ठ न्यायाधीश को
ही भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में वनयुि करना चावहए।

वनयुवि से संबवं धत ईच्चतम न्यायालय का हावलया वनणहय


हाल ही में सरकार ने ईच्चतम न्यायालय को आस संबंध में प्रकिया ञापापन (मेमोरें डम ऑफ़ प्रोसीजर)
सौंपा है।
पृष्ठभूवम
 कॉलेवजयम व्यिस्था को समाप्त करने तथा ईच्चतम न्यायालय एिं ईच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों
की वनयुवि तथा ईच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के स्थानांतरण हेतु 99िें संविधान संशोधन
ऄवधवनयम के माध्यम से ‘राष्ट्रीय न्यावयक वनयुवि अयोग’ (NJAC) के गठन की घोषणा की गयी
थी।
 आसका गठन तीन िररष्ठ न्यायाधीशों, दो प्रख्यात लोगों और कानून मंत्री (कु ल 6 सदस्य) से
वमलकर होना था।
 हालाँकक, आससे पहले कक आसे ऄवधसूवचत ककया जाता, आसे आस अधार पर चुनौती दी गइ कक
सरकार द्वारा न्यायपावलका की स्ितंत्रता में हस्तक्षेप ककया जा रहा है।

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आस संबध
ं में ईच्चतम न्यायालय का वनणहय
 ईच्चतम न्यायालय ने ईि संशोधन को ऄसंिैधावनक करार देते हुए वनरस्त कर कदया।
 ईच्चतम न्यायालय ने यह कहा कक ईि संशोधन "न्यायपावलका की स्ितंत्रता" के वसद्ांतों के साथ-
साथ "शवि के पृथक्करण" के वसद्ांतों के भी विपरीत है।
 प्रस्तावित NJAC को वनरस्त करने के बाद, ईच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने कें र से ईच्च
न्यायपावलका में न्यायाधीशों की वनयुवि के वलए एक प्रकिया ञापापन (Memorandum of
Procedure: MoP) तैयार करने के वलए मुख्य न्यायाधीश से परामशह करने हेतु कहा।
 विदेश मंत्री के नेतृत्ि में मंवत्रयों के समूह (GoM) ने ईपयुहि पर कायहिाही करते हुए न्यायाधीशों
की वनयुवि के वलए MoP को ऄंवतम रूप कदया। हालाँकक आसे लेकर ईच्चतम न्यायालय एिं कें र
सरकार के बीच ऄभी तक अम सहमवत नहीं बन पायी है। प्रस्तावित MoP के मुख्य प्रािधान
वनम्नवलवखत हैं:
MoP की मुख्य विशेषताएं
 आसमें ईच्च न्यायपावलका में न्यायाधीशों की वनयुवि के वलए, "मुख्य मापदंड" के रूप में योग्यता
और सत्यवनष्ठा (merit and integrity) को सवममवलत करने का प्रािधान है।
 वपछले पांच िषों के दौरान ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा कदए गए वनणहयों का मूलयांकन और
न्यावयक प्रशासन में सुधार के वलए की गइ पहलों को ईच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में
पदोन्नवत के वलए योग्यता का अधार होना चावहए।
 यह ईच्च न्यायालयों और ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की वनयुवि करने के वलए मानक के रूप
में कायह-वनष्पादन के मूलयांकन को प्रस्तावित करता है।
 यह प्रस्तावित करता है कक ईच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की वनयुवि के वलए "मुख्य मानदंड"
"ईच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायाधीशों की िररष्ठता" होनी चावहए।
 MoP वनर्ददष्ट करता है कक ईच्चतम न्यायालय में ऄवधकतम तीन न्यायाधीश बार कौंवसल के
प्रख्यात सदस्यों और ऄपने संबंवधत क्षेत्रों में प्रमावणत ैैक ररकॉडह िाले प्रवतवष्ठत न्यायविदों में से
वनयुि ककए जाने चावहए।
 ईच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के ररकाडह को सुरवक्षत रखने, कॉलेवजयम की बैठकों का कायहिम
वनधाहररत करने, वनयुवियों से संबंवधत ऄनुशस
ं ाओं के साथ-साथ वशकायतें प्राप्त करने के वलए
ईच्चतम न्यायालय में स्थायी सवचिालय स्थावपत ककया जाना चावहए।
 कें रीय कानून मंत्री को पदस्थ CJI के ईत्तरावधकारी की वनयुवि के संबंध में ऄनुशंसा ईसकी
सेिावनिृवत्त से कम से कम एक महीने पहले मांगनी चावहए।
 ककसी भी व्यवि की न्यायाधीश के रूप में वनयुवि को लेकर नए अपवत्त अधारों के रूप में राष्ट्रीय
सुरक्षा और सािहजवनक वहत को सवममवलत ककया गया है। यकद सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा और
सािहजवनक वहत के अधार पर अपवत्तयां हैं तो िह कॉलेवजयम को सूवचत करे गी। आसके बाद
कॉलेवजयम ऄंवतम वनणहय लेगा।
2.1.3. पदािवध

ऄनुच्छेद 124(2) में यह ईललेख है कक ईच्चतम न्यायालय में वनयुि कोइ न्यायाधीश ऄपनी वनयुवि के
पश्चात् तब तक नहीं हटाया जा सकता (मृत्यु को छोड़कर) जब तक कक िह:
 65 िषह की अयु प्राप्त नहीं कर लेता।
 राष्ट्रपवत को संबोवधत करते हुए ऄपना त्यागपत्र सौंप दे।
 सावबत कदाचार या ऄसमथहता के अधार पर भारत के संविधान के ऄनु. 124(4) में वनधाहररत
प्रकिया के तहत राष्ट्रपवत द्वारा हटा कदया जाए।

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2.1.4. िे त न

 भारतीय संविधान का ऄनु. 125 िेतन, भत्ते, पेंशन अकद के वनधाहरण की वजममेदारी संसद पर
डालता है। हालांकक संसद ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की वनयुवि के बाद न्यायाधीशों के
विशेषावधकारों और ऄवधकारों में कोइ पररितहन नहीं कर सकती है। ईच्चतम न्यायालय के
न्यायाधीशों के िेतन, भत्ते तथा पेंशन भारत की संवचत वनवध पर भाररत होते हैं और संसद में गैर-
मतदान योग्य होते हैं।
2.2. न्यायाधीशों को हटाना

ऄनुच्छेद 124(4) के ऄनुसार ईच्चतम न्यायालय के ककसी न्यायाधीश को ईनके पद से के िल सावबत


कदाचार या ऄसमथहता के अधार पर ही हटाया जा सकता है। संसद ने संविधान के ईपबंधों की ऄनुपूर्वत
के वलए ऄपनी शवि का प्रयोग करते हुए न्यायाधीश (जांच) ऄवधवनयम, 1968 ऄवधवनयवमत ककया है।
ईच्चतम न्यायालय के ककसी न्यायाधीश को ईसके पद से हटाये जाने की प्रकिया की रूपरे खा आस प्रकार
हैः
 आसके वलए राष्ट्रपवत को एक समािेदन देकर यह प्राथहना करनी होगी कक न्यायाधीश को हटाया
जाए। यकद प्रस्ताि लोक सभा में लाया जाना है, तो ईस पर लोक सभा के कम से कम 100 सदस्यों
के और यकद राज्य सभा में लाया जाना है, तो राज्य सभा से कम से कम 50 सदस्यों के हस्ताक्षर
होने चावहए।
 सभापवत या ऄध्यक्ष (यथावस्थवत) ऐसे व्यवियों से परामशह ले सकता है जो िह ठीक समझे और
ऐसी सामग्री पर विचार कर सकता है जो ईपललध हो और प्रस्ताि को ग्रहण कर सके गा या ग्रहण
करने से आंकार कर सके गा।
 यकद प्रस्ताि ग्रहण कर वलया जाता है तो 3 व्यवियों की एक सवमवत गरठत की जाएगी वजसमें से-
o एक ईच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश या न्यायाधीशों में से होगा।
o एक ईच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों में से होगा।
o एक व्यवि पारं गत विवधिेत्ता होगा।
 यकद सवमवत आस वनष्कषह पर पहुंचती है कक न्यायाधीश कदाचार का दोषी है या ऄसमथहता से ग्रस्त
है तो न्यायाधीश के हटाए जाने का प्रस्ताि और साथ ही सवमवत के प्रवतिेदन पर ईस सदन में
विचार ककया जाएगा वजसमें िह लंवबत है।
 आस प्रस्ताि को संसद के प्रत्येक सदन द्वारा ऄपनी कु ल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा ईपवस्थत
और मत देने िाले सदस्यों के कम से कम दो वतहाइ बहुमत द्वारा पाररत ककया जाना चावहए। आस
प्रकार पाररत समािेदन राष्ट्रपवत को प्रस्तुत ककया जाता है।
 राष्ट्रपवत न्यायाधीश को हटाने का अदेश जारी करता है।
नोट: ईच्चतम न्यायालय या ईच्च न्यायालय के ककसी भी न्यायाधीश को अज तक ईनके पद से हटाया
नहीं जा सका है। हालांकक संसद में न्यायमूर्वत िी. रामास्िामी, न्यायमूर्वत सौवमत्र सेन, न्यायमूर्वत पी.
डी. कदनाकरण को ईनके पद से हटाये जाने की प्रकिया प्रारं भ की गयी थी।
न्यायमूर्वत िी. रामास्िामी का मामला
1991 में 9िीं लोकसभा की ऄिवध जब समाप्त हो रही थी तब 108 सदस्यों ने ईच्चतम न्यायालय के एक
न्यायाधीश िी. रामास्िामी को हटाने के प्रस्ताि की सूचना दी। प्रस्ताि ग्रहण ककया गया और न्यायाधीश
(जांच) ऄवधवनयम, 1968 के ऄधीन एक सवमवत गरठत की गइ। 9िीं लोक सभा के विघटन के पश्चात्
ईच्चतम न्यायालय के समक्ष कु छ प्रश्न ईठाए गए वजनका ईत्तर न्यायालय ने आस प्रकार कदयाः
 न्यायाधीश को हटाने का प्रस्ताि लोक सभा के विघटन से व्यपगत नहीं होता है।
 हटाने की प्रकिया के दो प्रिम होते हैं:
o पहला प्रिम है कायहिाही का प्रारं भ, ऄन्िेषण और न्यायाधीश (जांच) ऄवधवनयम, 1968 के
ऄधीन सावबत ककया जाना। आस प्रिम का न्यावयक पुनर्विलोकन हो सकता है।
o दूसरा प्रिम अरोप सावबत कर कदए जाने के पश्चात् अरं भ होता है। िह संसदीय प्रकिया का
भाग है और ईसका न्यावयक पुनर्विलोकन नहीं हो सकता।

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2.3. कायह कारी मु ख्य न्यायाधीश की वनयु वि

 ऄनु. 126 के ऄनुसार जब भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद ररि होता है या जब मुख्य


न्यायाधीश, ऄनुपवस्थवत के कारण या ऄन्यथा ऄपने पद के कत्तहव्यों का पालन करने में ऄसमथह
होता है तब ईच्चतम न्यायालय के ऄन्य न्यायाधीशों में से एक न्यायाधीश को, वजसे राष्ट्रपवत आस
प्रयोजन के वलए वनयुि करे , कायहकारी मुख्य न्यायाधीश के रूप में ईस पद के कत्तहव्यों का पालन
करता है।

2.4. तदथह न्यायाधीश

 ऄनुच्छेद 127(1) के ऄनुसार यकद ककसी समय ईच्चतम न्यायालय के सत्र को अयोवजत करने या
जारी रखने के वलए ईस न्यायालय के न्यायाधीशों की गणपूर्वत न हो रही हो तो भारत का मुख्य
न्यायाधीश राष्ट्रपवत की पूिह सहमवत से और संबंवधत ईच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से
परामशह करने के पश्चात्, ककसी ईच्च न्यायालय के ककसी ऐसे न्यायाधीश को, जो ईच्चतम न्यायालय
का न्यायाधीश वनयुि होने के वलए समयक् रूप से ऄहह है, न्यायालय की बैठकों में ईतनी ऄिवध के
वलए, वजतनी अितयक हो, तदथह न्यायाधीश के रूप में वनयुि कर सकता है।
 तदथह न्यायाधीश का कत्तहव्य होता कक िह ईच्चतम न्यायालय की बैठकों में ईपवस्थवत हो। जब िह
आस प्रकार ईपवस्थत होता है तब ईसको ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की सभी ऄवधकाररता,
शवियाँ और विशेषावधकार प्राप्त होते हैं।

2.5. से िावनिृ त्त न्यायाधीश

 ऄनु. 128 के ऄनुसार भारत का मुख्य न्यायाधीश, ककसी भी समय, राष्ट्रपवत की पूिह सहमवत से
ककसी व्यवि से, जो ईच्चतम न्यायालय या फे डरल न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर
चुका है या जो ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर चुका है और ईच्चतम न्यायालय का
न्यायाधीश वनयुि होने के वलए समयक् रूप से ऄर्वहत है, ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप
में बैठने और कायह करने का ऄनुरोध कर सकता है।
 प्रत्येक ऐसा व्यवि, वजससे आस प्रकार ऄनुरोध ककया जाता है, आस प्रकार बैठने और कायह करने के

दौरान, ऐसे भत्तों का हकदार होगा जो राष्ट्रपवत अदेश द्वारा ऄिधाररत करे ।
 ऐसे न्यायाधीश को ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की सभी ऄवधकाररता, शवियाँ और
विशेषावधकार प्राप्त होते हैं, ककन्तु ईसे ईच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नहीं समझा जाएगा।

2.6. ईच्चतम न्यायालय का स्थान

संविधान के ऄनु. 130 के ऄनुसार, ईच्चतम न्यायालय का स्थान कदलली में घोवषत है। राष्ट्रपवत के
ऄनुमोदन से मुख्य न्यायाधीश ईच्चतम न्यायालय के स्थान स्थानों के वलए ऄन्य जगहों को ऄवधकृ त कर
सकता है।

2.7. ईच्चतम न्यायालय के क्षे त्रावधकार

ईच्चतम न्यायालय के पास मूल, ऄपीलीय तथा सलाहकारी क्षेत्रावधकार हैं (ऄनु. 131-144)।
 यह न के िल एक संघीय न्यायालय है बवलक ऄपील के वलए ऄंवतम न्यायालय भी है। साथ ही,
संविधान का ऄंवतम व्याख्याता और नागररकों को मूल ऄवधकारों की गारं टी भी प्रदान करने िाला
भी है। आसके ऄलािा आसे सलाहकारी और पयहिेक्षीय ऄवधकार भी हैं।

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2.7.1. मू ल क्षे त्रावधकार (Original Jurisdiction)

ऄनु. 131 के ऄनुसार ईच्चतम न्यायालय के पास वनम्नवलवखत विवशष्ट मूल क्षेत्रावधकार हैं:
 भारत सरकार और एक या ऄवधक राज्यों के बीच वििाद;
 एक पक्ष में भारत सरकार और ककसी भी राज्य या राज्यों का होना एिं एक या ऄवधक राज्यों का
दूसरी पक्ष में होना; और

 दो या ऄवधक राज्यों के बीच वििाद, जहां वििाद में कोइ ऐसा मुद्दा है वजसमें कानून या तथ्य का
प्रश्न हो।
ईच्चतम न्यायालय के आस क्षेत्रावधकार में वनम्नवलवखत विस्तार समावहत नहीं है:
 ऄंतराहज्यीय जल वििाद;
 वित्त अयोग से संबंवधत मामले;
 कें र और राज्यों के बीच खचह का समायोजन;
 िावणवज्यक प्रकृ वत के साधारण वििाद;

 संविधान पूिह संवध या समझौते से ईत्पन्न वििाद;


 कोइ ऐसा वििाद जो संवध, समझौते अकद के बाहर पैदा हुअ है वजसमें स्पष्ट हो कक संबंवधत
न्यायक्षेत्र ईस वििाद से संबंवधत न हो।

ररट क्षेत्रावधकार
 ऄनु. 32 के ऄधीन ईच्चतम न्यायालय के पास मूल ऄवधकारों के प्रितहन के संबंध में ररट
क्षेत्रावधकार हैं। ईच्चतम न्यायालय को ऄवधकार प्राप्त है कक िह बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas

corpus), परमादेश (Mandamas), ईत्प्रेषण (Certiorari), प्रवतषेध (Prohibition) एिं


ऄवधकार पृच्छा (Quo warranto) अकद पर वनदेश जारी कर संविधान के ऄनु. 32 के तहत
नागररकों के मूल ऄवधकारों की रक्षा करें । आस संबंध में कोइ भी व्यवि ऄपील के िवमक माध्यम से
न जाकर सीधे ईच्चतम न्यायालय में ऄपील कर सकता है।
 संसद क़ानून द्वारा ईच्चतम न्यायालय को (मूल ऄवधकारों के प्रितहन के ऄवतररि) ऄन्य मामलों के
वलए भी वनदेश या अदेश या ररट जारी करने की ऄनुमवत दे सकती है (ऄनु. 139)।

2.7.2. ऄपीलीय क्षे त्रावधकार

ईच्चतम न्यायालय ने स्ितंत्रता के बाद ऄपील की सिोच्च ऄदालत के रूप में विरटश वप्रिी काईं वसल को
प्रवतस्थावपत ककया। ऄपीलीय क्षेत्रावधकार को वनम्नवलवखत शीषहकों में विभावजत ककया गया है:
 संिध
ै ावनक मामले: संिैधावनक मामलों में ईच्चतम न्यायालय के ऄपीलीय क्षेत्रावधकार के तहत ईच्च
न्यायालय के द्वारा कदए गये फै सले के वखलाफ ऄपील की जा सकती है। यकद ईच्च न्यायालय ही आसे
प्रमावणत करे कक मामले में विवध का प्रश्न वनवहत है वजसमें संविधान की व्याख्या की अितयकता
है, तो ऄपील की जा सकती है (ऄनु. 132)।
 दीिानी मामले: दीिानी मामलों के तहत ककसी भी मामले को ईच्चतम न्यायालय में लाया जा

सकता है, यकद ईच्च न्यायालय प्रमावणत कर दे कक:


o मामला विवध के सारिान प्रश्न पर अधाररत है या
o ऐसा प्रश्न है वजसका वनणहय ईच्चतम न्यायालय के द्वारा तय ककये जाने की जरुरत है(ऄनु.
133)।

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 अपरावधक मामले: ऄनु. 134 में यह िर्वणत है कक ईच्चतम न्यायालय ईच्च न्यायालय के अपरावधक
मामलों के वनणहयों के वखलाफ सुनिाइ करता है, यकद ईच्च न्यायालय ने:
o अरोपी व्यवि के दोषमुि बरी करने के अदेश को पलट कदया हो और ईसे मृत्युदड
ं की सजा
दी हो।
o ककसी ऄधीनस्थ न्यायालय से ककसी मामले को ऄपने पास मंगिाकर अरोपी को दोषी सावबत
करते हुए मौत की सजा दी हो।
 विशेष ऄनुमवत से ऄपील (Appeal by Special Leave): ईच्चतम न्यायालय भी ककसी फै सले ि
गैर-सैन्य ऄदालत या ऄवधकरण द्वारा कदए गये फै सले के वखलाफ ऄपील के वलए विशेष ऄनुमवत
प्रदान कर सकती है {ऄनु. 136 (1)}। ऄपील की ऐसी शवि ईच्चतम न्यायालय की वििेकाधीन
शवि में अएगा और यह ककसी भी मामले से संबंवधत हो सकता है। आस प्रािधान का दायरा बहुत
व्यापक है और यह पूणत
ह या ईच्चतम न्यायालय के क्षेत्रावधकार में वनवहत है। आस शवि का प्रयोग,
ईच्चतम न्यायालय में ही ‘एक ऄसाधारण और सिोपरर शवि के रूप में’ संयम और सािधानी के
साथ के िल ऄसाधारण पररवस्थवतयों में ककया जाता है।
2.7.3. सलाहकारी क्षे त्रावधकार

ऄनु. 143 के ऄनुसार कु छ मामलों में ईच्चतम न्यायालय के पास विशेष सलाहकारी क्षेत्रावधकार है,
वजसमें विशेष रूप से राष्ट्रपवत को ईच्चतम न्यायालय से सलाह लेने का ऄवधकार है। आसे दो श्रेवणयों में
बांटा गया है:
 सािहजवनक महत्ि के ककसी मसले पर विवधक प्रश्न ईठने पर या वजसके ईत्पन्न होने की संभािना
हो।
 संविधान पूिह के ककसी संवध, समझौता, िाचा, प्रसंविदा, सनद अकद से ईत्पन्न ककसी भी वििाद
या सिाल पर।
पहले मामले में, ईच्चतम न्यायालय सलाह दे भी सकता है और मना भी कर सकता है, जबकक दूसरे
मामले में ईच्चतम न्यायालय को सलाह देना ऄवनिायह है। हालांकक, दोनों ही मामलों में राष्ट्रपवत के वलए
सलाह मानना बाध्यकारी नहीं हैं। ईच्चतम न्यायालय के सलाह को मानना या न मानना राष्ट्रपवत के
उपर है।
2.7.4. ईच्चतम न्यायालय का ऄवभले ख न्यायालय होना

ईच्चतम न्यायालय ऄवभलेख न्यायालय है (ऄनु. 129)। ऄवभलेख न्यायालय ऐसा न्यायालय होता है
वजसे विवध द्वारा ऄवभव्यि रूप से आस प्रकार घोवषत ककया जाए। ऄवभलेख न्यायालय की वनम्नवलवखत
विशेषताएं होती हैं:
(i) आसके वनणहय और कायहिावहयां शाश्वत स्मृवत और साक्ष्य के वलए रखी जाती हैं। ईसके ऄवभलेख का
साक्ष्य की दृवष्ट से महत्ि होता है। जब िह न्यायालय में प्रस्तुत ककया जाता है तो ईसे प्रश्नगत नहीं ककया
जा सकता। ऄवभलेख में जो ऄंतर्विष्ट होता है ईसका िह वनश्चायक साक्ष्य होता है। एिं
(ii) ऄवभलेख न्यायालय को ऄिमानना के वलए दंड देने की शवि होती है।
 हमारे संविधान ने ईच्चतम न्यायालय को ऄवभव्यि रूप से ऄिमानना के वलए दंड देने की शवि दी
हैं (ऄनु. 129)। िास्ति में ऄनुच्छेद 129 और 215 ने पहले से विद्यमान वस्थवत को मान्यता दी है।
ये ऄनुच्छेद कोइ नइ शवि प्रदान नहीं करते।
 न्यायालय ऄिमानना ऄवधवनयम, 1971 आन ऄनुच्छेदों के ऄवतररि है। िह आनका ऄलपीकरण
नहीं करता।
 ऄिमानना दो प्रकार का होता है: वसविल ऄिमानना और दांवडक ऄिमानना।
 वसविल ऄिमानना: जब कोइ व्यवि जानबूझकर न्यायालय के ककसी वनणहय, वडिी, अदेश या
अदेवशका की ऄिञापा करता है या न्यायालय के कदए गए ककसी िचन को भंग करता है या ईसका
सममान नहीं करता है तो ईसे वसविल ऄिमानना कहते हैं।

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 दांवडक ऄिमानना: दांवडक ऄिमानना तब होता है जब कोइ ऐसी बात प्रकावशत की जाए या कोइ
ऐसा कायह ककया जाए वजससे न्यायालय का प्रावधकार कम होता है या न्यावयक कारह िाइ पर
प्रवतकू ल प्रभाि पड़ता है या ईसके समयक् ऄनुिम में हस्तक्षेप होता है या ककसी ऄन्य रीवत से
न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप होता है।
 ईच्चतम न्यायालय की ऄिमानना के वलए दंड देने की शवि ऄपने ऄिमानना तक ही सीवमत नहीं
हैं। न्यायालय पूरे देश में ककसी भी न्यायालय या ऄवधकरण के ऄिमानना के वलए दंड दे सकता है।

न्यायालय की ऄिमानना (Contempt of Court)


संिध
ै ावनक प्रािधान
 भारतीय संविधान के ऄनु. 129 और 215 के ऄंतगहत िमशः ईच्चतम न्यायालय तथा ईच्च न्यायालयों
को ऄपनी ऄिमानना के वलए ककसी व्यवि को दवडडत करने का ऄवधकार प्रदान ककया गया है। आस
संबंध में न्यायालय ऄिमानना ऄवधवनयम, 1971 का ऄवधवनयमन ककया गया है। आस ऄवधवनयम में
न्यायपावलका की ऄिमानना की शवियों को पररभावषत ककया गया है। आसके ईद्देतय हैं:
o ककसी न्यायालय के प्रावधकार की ननदा या ईसकी प्रवतष्ठा को धूवमल करने से रोकना,
o ककसी न्यावयक कायहिाही की यथोवचत प्रकिया में ककसी भी प्रकार के ऄनाितयक हस्तक्षेप को
रोकना,
o एक विवधक प्रावधकरण के रूप में न्यायालय की भूवमका को सशि करना तथा यह सन्देश देना
कक कानून सिोपरर है और ईससे उपर कोइ नहीं है, तथा
o यह सुवनवश्चत करना कक कोइ भी ऄपनी स्ितंत्र आच्छा के ऄनुरूप न्यायालय के अदेशों का
ईललंघन न कर सके ।
ऐसी शवियों की अितयकता
 ऄिमानना संबंधी प्रािधान, न्यायाधीशों को मीवडया की अलोचना ऄथिा सामान्य जनता के
विचारों से संबंवधत ककसी प्रकार के दबाि से संरक्षण प्रदान करने के वलए ककये गये हैं, ताकक िे वबना
ककसी भय तथा पक्षपात ऄथिा वबना ककसी प्रकार के बाहरी दबाि के ऄपने कत्तहव्यों का वनिहहन कर
सकें ।
न्यायालय की ऄिमानना शवि के विपक्ष में तकह
 ऄिमानना का प्रािधान संविधान के ऄनु. 19(1)(a) के तहत सुवनवश्चत िाक् एिं ऄवभव्यवि की
स्ितंत्रता पर ऄनाितयक रोक लगाता है।
 कु छ विद्वानों का मानना है कक ऄनु. 19(2) में िाक् एिं ऄवभव्यवि की स्ितंत्रता पर युवियुि
वनबहन्धन के रूप में ‘न्यायालय की ऄिमानना’ शावमल है।
 संविधान सभा में, पंवडत ठाकु र दास भागहि ने कहा था कक ऄिमानना के वलए दवडडत करने की
शवि का संबंध के िल न्यायालय के ककसी अदेश या वनदेश की ऄिञापा से है जो कक पहले से ही
दंडनीय ऄपराध है।

2.7.5. वनणह य या अदे श का पु न र्विलोकन (सं शोवधत क्षे त्रावधकार)

 ऄनु. 137 के ऄनुसार ईच्चतम न्यायालय के पास स्ियं के द्वारा कदए गए वनणहय या अदेश की
समीक्षा का ऄवधकार है। हालांकक यह ऄनुच्छेद आसके फै सले की समीक्षा के अधार की कोइ सीमा
तय नहीं करता है, परन्तु आस शवि के प्रयोग करने के अधार को संसदीय विधान द्वारा एिं ऄनु.
145 के तहत ईच्चतम न्यायालय के द्वारा स्ियं ही प्रवतबंवधत ककया जा सकता है।
 ऄपने फै सले की समीक्षा के वलए दायर यावचका को ‘पुनर्विचार यावचका” कहते हैं। जबकक एक
दूसरे प्रकार के समीक्षा यावचका को “ईपचारात्मक यावचका” (दोषहरी यावचका Curative
Petition) कहा जाता है।

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दोषहारी यावचका (Curative Petition)


 ईच्चतम न्यायालय ने न्याय के प्रवत ऄपने लगाि को यह संप्रक्ष
े ण करके रे खांककत ककया है कक यकद
कहीं पर स्पष्ट रूप से ऄन्याय हुअ है तो यह दोष दूर ककया जाना चावहए। यकद ऄन्याय समाप्त नहीं
होगा तो न्यायालय की प्रवतष्ठा वगर जाएगी। आस हेतु एक निीन ईपबंध सृवजत ककया गया है वजसे
दोषहारी यावचका नाम कदया गया है। ऐसी यावचका ठोस और सुदढ़ृ अधार पर ही ग्रहण की
जाएगी। जैस-े जहां नैसर्वगक न्याय के वसद्ांतों का ईललंघन हुअ है या जहां न्यायाधीश पक्षपात से
ग्रस्त है। ऐसी यावचका को एक ज्येष्ठ ऄवधििा प्रमावणत करे गा। ईसके बाद ईसे तीन ज्येष्ठतम
न्यायाधीशों को और वजस वनणहय के विरुद् यावचका है िह वनणहय देने िाले न्यायाधीशों को
पररचावलत की जाएगी। िह सूचीबद् तभी की जाएगी जब न्यायाधीशों के बहुमत की यह राय है कक
िह सुनिाइ की सूची में रखे जाने योग्य है। यकद पीठ की यह राय है कक यावचका तंग करने के वलए
और वनराधार है तो िह याची को यह अदेश दे सकता है कक िह खचे के रूप में एक बड़ी रकम दे।
 दोषहारी यावचका की ऄिधारणा सबसे पहले भारत के सुप्रीम कोटह ने रूपा ऄशोक हुराह बनाम
ऄशोक हुराह एिं ऄन्य मामले में विकवसत की थी (2002)।
 जकाररया लाकरा बनाम भारत संघ में न्यायालय ने दोषहारी यावचका आस अधार पर स्िीकार
ककया था कक स्कू ल के प्रमाण पत्र से यह स्पष्ट होता था कक ऄवभयुि, वजसे मृत्युदड
ं कदया गया था,
ऄपराध ककए जाने के समय ऄियस्क था।

2.7.6. ईच्चतम न्यायालय की ऄन्य मु ख्य शवियां

 ईच्चतम न्यायालय द्वारा घोवषत सभी क़ानून भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर, सभी ऄदालतों पर
बाध्यकारी हैं। [ऄनु. 141]
 भारत के राज्यक्षेत्र के सभी वसविल और न्यावयक प्रावधकारी ईच्चतम न्यायालय की सहायता में
कायह करें गे। [ऄनु. 144]
 ईच्चतम न्यायालय के ऄवधकाररयों और सेिकों की वनयुवियाँ भारत का मुख्य न्यायाधीश करे गा या
ईस न्यायालय का ऐसा ऄन्य न्यायाधीश या ऄवधकारी करे गा वजसे िह वनर्ददष्ट करे । ईच्चतम
न्यायालय के प्रशासवनक व्यय वजनके ऄतंगत
ह ईस न्यायालय के ऄवधकाररयों और सेिकों के िेतन,
भत्ते और पेंशन शावमल हैं, भारत की संवचत वनवध पर भाररत होंगे। [ऄनु. 146]
 ऄनु. 142 के ऄनुसार ईच्चतम न्यायालय ऄपनी ऄवधकाररता का प्रयोग करते हुए ऐसी वडिी
पाररत कर सके गा या ऐसा अदेश पाररत कर सके गा जो ईसके समक्ष लंवबत ककसी िाद या विषय
में पूणह न्याय करने के वलए अितयक हो।

ऄनुच्छेद 142 और न्यावयक संयम की अितयकता (Article 142 And The Need For Judicial
Restraint)
राजमागों के ककनारे शराब की वबिी को प्रवतबंवधत करने एिं बाबरी मवस्जद विध्िंस से संबंवधत मामलों
पर संयुि ैायल का अदेश देने जैसे कइ मामलों में ईच्चतम न्यायालय के द्वारा ऄनु. 142 के लगातार
ईपयोग की अलोचना की जा रही है। आसवलए यह ऄनुच्छेद लगातार चचाह में बना हुअ है।
नचता का कारण
 ऄसीवमत शवि: ऄनु. 142 ऄसीवमत शवि का स्रोत नहीं है और आसका ईपयोग संयम के साथ करना
चावहए। आसका आस प्रकार प्रयोग ककया जाना चावहए कक यह न्यावयक ऄवतसकियता प्रतीत ना हो।
 नागररकों के ऄवधकारों को प्रभावित करता है: आन दो वनणहयों ने एक ओर जहाँ अरोपी के ऄवधकारों
को प्रभावित ककया है, िहीं दूसरी ओर आसके कारण लाखों लोगों के समक्ष बेरोजगारी की वस्थवत
ईत्पन्न हो गइ है।

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 ‘शवि के पृथक्करण' के वसद्ांत के विरुद्: ईललेखनीय है कक शवि का पृथक्करण संविधान के मूल ढाँचे
का वहस्सा है।
 चूंकक ईच्चतम न्यायालय के 31 न्यायाधीश, वनणहय करने के वलए दो या तीन न्यायाधीशों को
वमलाकर बनने िाली बेंच के रूप में तेरह वडिीजनों में बैठते हैं और प्रत्येक बेंच एक-दूसरे से स्ितंत्र
होती है। ऄत: वििेकावधकारों के बारे में ऄवनवश्चतता ईत्पन्न होती है।
हालांकक पूिह में ईच्चतम न्यायालय ने ऄनु. 142 का प्रयोग ईवचत रूप से ककया है, जैस-े यूवनयन काबाहआड
के स, ताजमहल की सफाइ, जेलों से विचाराधीन (ऄंडरैायल) कै कदयों की ररहाइ आत्याकद। कफर भी, ऄनु.
142 के प्रयोग के दौरान समाज के विवभन्न िंवचत िगों को समपूणह न्याय प्रदान करने के वलए कु छ वनयमों
के ऄनुसरण पर विचार ककया जाना चावहए, जैसे:
 ऄनु. 142 से संबंवधत मामलों को कम से कम पाँच न्यायाधीशों से वमलकर बनने िाली संविधान
पीठ को भेजा जाना चावहए ताकक ऄनु. 142 से संबंवधत ऄवनवश्चतताओं को कम ककया जा सके ।
 वजन मामलों में ऄदालत के द्वारा ऄनु. 142 का प्रयोग ककया जाता है, ईनके संबंध में सरकार को
आसके लाभकारी एिं नकारात्मक प्रभािों का ऄध्ययन करने के वलए एक श्वेतपत्र लाना चावहए।
वनणहय की वतवथ से छह माह के बाद या आससे संबंवधत वतवथ से आस प्रकिया को अरमभ ककया जा
सकता है।
 ईच्चतम न्यायालय को ऄपने बार-बार दोहराए गए ईस वसद्ांत का पालन करना चावहए वजसके
ऄनुसार ऄन्य कोइ िैधावनक ईपाय ईपललध होने पर संविधान के ऄनु. 142 का प्रयोग ऄनुवचत है।

2.7.7. न्यावयक समीक्षा की शवि

 ईच्चतम न्यायालय कें र और राज्य द्वारा बनाये गये ककसी भी ऄवधवनयम या विधान जो संविधान
का ऄवतिमण करते हैं, को शून्य घोवषत कर सकता है। न्यावयक समीक्षा संविधान की सिोच्चता को
कायम रखने, संघीय संतल
ु न को बनाये रखने और नागररकों के मूल ऄवधकारों की सुरक्षा के ईद्देतय
से अितयक हैं। ईच्चतम न्यायालय ने गोलकनाथ मामले (1967), बैंकों के राष्ट्रीयकरण के मामले
(1970), वमनिाह वमलस मामला (1980) अकद जैसे विवभन्न मामलों में आस शवि का प्रयोग ककया
है।
 ईच्चतम न्यायालय में ककसी विधायी ऄवधवनयम या ककसी कायहकारी अदेश की संिैधावनक िैधता
को तीन अधारों पर चुनौती कदया जा सकता है:
o यह मूल ऄवधकारों (भाग 3) का ईललंघन करता हो,
o यह विधावयका द्वारा ईसके ऄवधकार क्षेत्र के बाहर जाकर बनाया गया हो,
o यह संिैधावनक प्रािधानों के प्रवतकू ल हो।
 यद्यवप न्यावयक समीक्षा शलद का ईललेख संविधान में कहीं नहीं ककया गया है, लेककन कइ
ऄनुच्छेदों के प्रािधान स्पष्ट रूप से ईच्चतम न्यायालय को न्यावयक समीक्षा की शवि प्रदान करते
हैं।
 भारतीय ईच्चतम न्यायालय “विवध द्वारा स्थावपत प्रकिया” (Procedure established by
Law) जबकक ऄमेररकी ईच्चतम न्यायालय “विवध की ईवचत समयक प्रकिया” (Due process of
Law) (दोनों के बीच ऄंतर की चचाह बाद में की गयी है) को ध्यान में रखते हुए वनणहय देती है। कइ
मामलों में यह देखा गया है कक भारतीय ईच्चतम न्यायालय ने कइ वनणहयों में ‘विवध की ईवचत
प्रकिया’ का आस्तेमाल ककया है और यह शीघ्रता से वनणहयन प्रकिया में स्थान पा वलया है। न्यायमूर्वत
पी. एन. भगिती ने मेनका गांधी िाद में कहा कक जब कोइ ऄवधकार से िंवचत हो रहा है तब
संविधान न्यायालय को “वनष्पक्ष प्रकिया” के तहत ऄपना काम करने की छू ट देता है।

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2.7.8. कु छ ऄन्य महत्िपू णह वसद्ां त वजसका प्रयोग न्यावयक समी क्षा के मामले में ककया
जाता है

पृथक्करण का वसद्ांत
 ऄनु. 13 में यह कहा गया है कक विवधयां ऄसंगत होने की या ईललंघन की मात्रा तक शून्य होंगी।
ऄसंगतता या ईललंघन का प्रभाि संपण
ू ह विवध या कायह पर नहीं पड़ता। ऄनु. 13 ईसके प्रभाि को
ऄसंगतता की मात्रा तक बांधे रखता है। यकद ये शलद नहीं होते तो ऄसंगत विवध पूरी की पूरी शून्य
हो जाती। आस प्रकार स्पष्ट है कक विवध का िही भाग शून्य घोवषत ककया जाएगा जो मूल ऄवधकार
के विरूद् हो। दूसरे शलदों में पृथक्करण का वसद्ांत लागू होगा। आस प्रकार पृथक्करण का वसद्ांत यह
है कक यकद ककसी ऄवधवनयम का ऄवतितहन (ईललंघन) करने िाला ईपबंध मूल ऄवधकार के
प्रवतकू ल या ऄसंिैधावनक है तो ईस विशेष भाग को पृथक ककया जा सकता है और के िल ईललंघन
करने िाले ईपबंध को ही शून्य घोवषत ककया जाएगा, समपूणह ऄवधवनयम को नहीं।
नोट: शवि के पृथक्करण का वसद्ांत िस्तुतः कायहपावलका, विधावयका एिं न्यायपावलका के बीच
शवियों का विभाजन है।
2.8. न्याय प्रणाली के िै चाररक अधार

2.8.1. विवध द्वारा स्थावपत प्रकिया (Procedure established by Law) बनाम विवध
की ईवचत प्रकिया (Due process of Law)

 ‘विवध द्वारा स्थावपत प्रकिया’ का जन्म मूलतः आं ग्लैंड में हुअ है। आसका शावलदक ऄथह विवध द्वारा
वनधाहररत प्रकियाओं और ईनके प्रयोगों’ से है। आस वसद्ांत के तहत न्यायालय विधायी सक्षमता की
दृवष्ट से ककसी क़ानून की समीक्षा करता है और यह ऄवभवनधाहररत करती है कक विधावयका द्वारा
वनधाहररत प्रकिया का पालन ककया जा रहा है या नहीं। यकद कायहपावलका की ककसी कायहिाही को
न्यायालय में चुनौती दी जाती है तो न्यायालय कायहपावलका की कायहिाही को वनम्नवलवखत तरीके
से जांच कर सकती है:
o क्या कोइ ऐसा क़ानून ऄवस्तत्ि में है जो कायहपावलका को ऐसी विवध बनाने की ऄनुमवत देती
है;
o क्या विधावयका आस तरह के क़ानून को पाररत करने के वलए ऄवधकृ त थी;
o जब विधावयका ईस क़ानून को बना रही थी तब स्थावपत प्रकिया का पालन ककया गया या
नहीं।
 यकद ईपयुहि जांच से न्यायालय संतुष्ट है तो िह कायहपावलका के ईस कायहिाही को जारी रखेगी।
न्यायालय क़ानून की वसफह वनष्पक्ष और प्राकृ वतक औवचत्य के अधार की ही जांच नहीं करती है
ऄवपतु यह भी जांच करती है कक ईसे कानूनी प्रकियागत औपचाररकताओं के अधार पर पाररत
ककया गया है या नहींI
 दूसरी ओर, ‘विवध की ईवचत प्रकिया’ वसद्ांत का जन्म ऄमेररका में हुअ, वजसके तहत
न्यायपावलका को ज्यादा शवियां प्रदान की गयी हैं। आसके तहत न्यायालय ककसी विवध की ईपयुहि
तीन अधारों पर जांच के ऄलािा न्याय के प्राकृ वतक वसद्ांत के तहत और ऄवधक व्यापक दृवष्टकोण
से जांच करती है। विवध की ईवचत प्रकिया से तात्पयह यह है कक विधावयका द्वारा पाररत क़ानून
वनष्पक्ष, तकह पूणह और विचारपूणह हो न कक कालपवनक, दमनकारी और स्िेच्छाचारी। आस प्रकार,
यह कायहपावलका और विधावयका दोनों की स्िेच्छाचाररता के वखलाफ ककसी व्यवि को सुरक्षा
प्रदान करती है।
 ऄनु. 21 के तहत भारतीय संविधान ने के िल विवध द्वारा स्थावपत प्रकिया का प्रािधान ककया है।
हालांकक, मेनका गाँधी बनाम भारत संघ िाद, 1978 में ईच्चतम न्यायालय ने संविधान के ऄनु.
21 की व्याख्या में प्राकृ वतक न्याय के वसद्ांत को शावमल ककया।

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2.8.2. प्राकृ वतक न्याय का वसद्ां त

 प्राकृ वतक न्याय का वसद्ांत तीन वनयमों के तहत कायह करता है:
o ककसी भी व्यवि को वबना सुनिाइ के सजा नहीं दी जा सकती है।
o कोइ भी व्यवि ऄपने ही मामले का न्यायाधीश नहीं हो सकता है।
o एक प्रावधकरण वबना ककसी पूिाहग्रह के कायह करे गा।
 प्राकृ वतक न्याय के वसद्ांतों की विषय-िस्तु स्िेच्छाचाररता की संभािनाओं को ख़त्म कर देती है
और वनणहय लेने की प्रकिया में वनष्पक्षता पर जोर देती है। आनकी प्रकृ वत सािहभौवमक होती हैं।
 ईच्चतम न्यायालय ने यह वनणहय कदया है कक प्राकृ वतक न्याय का वसद्ांत सभी ऄवधकाररयों,
व्यवियों और खुद न्यायपावलका पर भी बाध्यकारी रूप से लागू है। हालांकक, िे हमारे संविधान में
स्पष्ट रूप से शावमल नहीं हैं, लेककन कफर भी न्यायालय आसे ऄन्तर्वनवहत विशेषता मानती है।
मेनका गाँधी बनाम भारत संघ िाद, 1978 में ईच्चतम न्यायालय ने कहा है कक प्राकृ वतक न्याय के
वसद्ांतों को हम संविधान के ऄनु. 21 (जीिन का ऄवधकार) में देख सकते हैं और विधावयका आस
मामले में ‘विवध की ईवचत प्रकिया’ का पालन करने हेतु बाध्य है।

2.8.3. ईच्चतम न्यायालय की स्िाधीनता सु वनवश्चत करने िाले ईपबं ध

संविधान में ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की स्िाधीनता और वनष्पक्षता सुवनवश्चत करने के वलए
वनम्नवलवखत ईपबंध हैं:
 वनयुवियां राष्ट्रपवत द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश (ईच्चतम न्यायालय और ईच्च न्यायालय के
न्यायाधीश की दशा में) से परामशह के पश्चात् की जाती है। आससे यह सुवनवश्चत हो जाता है कक
वनयुवियां राजनीवतक अधार पर या वनिाहचन में लाभ के वलए नहीं की जा रही है और
राजनीवतक तत्त्ि समाप्त हो जाता है।
 न्यायाधीशों को भयमुि होकर काम करने की छू ट है। वनणहय में चाहे वजतनी गंभीर भूल हो जाए
ईसे कदाचार नहीं माना जाता। न्यायाधीश को सावबत कदाचार या ऄसमथहता के अधार पर ही
राष्ट्रपवत द्वारा हटाया जा सकता है। राष्ट्रपवत, न्यायाधीश को अदेश तभी देगा जब संसद के दोनों
सदनों के विशेष बहुमत द्वारा समािेदन पाररत ककया जाए और राष्ट्रपवत को प्रस्तुत ककया जाए।
यह एक जरटल और कष्टसाध्य प्रकिया है।
 कायहपावलका राष्ट्रपवत के प्रसादपयंत पद धारण करती है। यह वनयम वसविल सेिकों और सैन्य
बलों के वलए लागू होता है। राज्यपालों की भी यही वस्थवत है। ककतु प्रसाद का वसद्ांत न्यायाधीशों
को लागू नहीं होता। यकद िे कदाचरण नहीं करते हैं तो ईन्हें पद से नहीं हटाया जा सकता।
 ईच्चतम न्यायालय के ऄवधकारी और सेिक मुख्य न्यायाधीश द्वारा वनयुि ककए जाते हैं और
न्यायालय का प्रशासवनक व्यय भारत की संवचत वनवध पर भाररत होता है (ऄनु. 146 और 229)।
 न्यायाधीशों के िेतन, भत्ते, पेंशन और छु ट्टी संसद् द्वारा बनाइ गइ विवध द्वारा ऄिधररत ककए जाते
हैं और ईसमें न्यायाधीशें के वलए ऄलाभकारी पररितहन नहीं ककया जा सकता। न्यायाधीश की
पदािवध के दौरान ईसका िेतन और भते घटाए नहीं जा सकते (के िल ऄनु. 360 के ऄधीन वित्तीय
अपात में कम ककए जा सकते हैं)।
 ककसी न्यायाधीश के ऄपने कत्तहव्यों के वनिहहन में ककए गए अचरण के विषय में संसद या राज्य
विधान-मंडल में कोइ चचाह नहीं हो सकती (ऄनु. 121)।
 ईच्चतम न्यायालय का सेिावनिृत्त न्यायाधीश भारत के ककसी न्यायालय या प्रावधकारी के समक्ष
ऄवभिचन या कायह नहीं कर सकता। (कोइ व्यवि जो ककसी ईच्च न्यायालय का स्थायी न्यायाधीश
रहा हो ईच्चतम न्यायालय या वजस न्यायालय में िह वनयुि ककया गया था ईससे वभन्न ककसी ईच्च
न्यायालय के समक्ष ऄवभिचन या कायह कर सकता है)।
 ईच्चतम न्यायालय और ईच्च न्यायालय को ऄपनी ऄिमानना के वलए दंड देने की शवि प्राप्त है।

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2.8.4. ऄमे ररकी सिोच्च न्यायालय के साथ तु ल ना

भारत और ऄमेररकी न्यावयक व्यिस्था में बुवनयादी ऄंतर है। जहाँ भारत में एकीकृ त न्यावयक प्रणाली है
िहीं ऄमेररकी न्यावयक प्रणाली संघीय वसद्ांत पर अधाररत है। कफर भी आनमें कइ समानतायें भी हैं।
भारतीय ईच्चतम न्यायालय को ऄमेररकी ईच्चतम न्यायालय की तुलना में वनम्नवलवखत मामलों में ज्यादा
ऄवधकार प्राप्त हैं:
 ऄमेररकी सिोच्च न्यायालय के ऄपीलीय क्षेत्रावधकार संघीय संबंध से ईत्पन्न होने िाले मामलों तक
ही सीवमत हैं, जबकक हमारा ईच्चतम न्यायालय संघीय न्यायालय होने के ऄलािा संविधान का

संरक्षक भी है तथा यह दीिानी और अपरावधक (एकीकृ त न्यायपावलका के कारण) मामलों के


ऄपील हेतु सिोच्च ऄदालत है।
 ईच्चतम न्यायालय ऄपने वििेकानुसार वबना ककसी वनबंधन के भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर न
के िल ककसी न्यायालय बवलक ककसी ऄवधकरण के फै सले की सुनिाइ कर सकता है जबकक ऄमेररकी
सिोच्च न्यायालय के पास ऐसी कोइ शवि नहीं है।
 भारतीय ईच्चतम न्यायालय ऄपने सलाहकारी क्षेत्रावधकार को स्िीकार करती है जबकक ऄमेररकी
ईच्चतम न्यायालय ने आसे ऄस्िीकार कर कदया है। ऄनु. 143 के तहत ईच्चतम न्यायालय में

सलाहकारी क्षेत्रावधकार वनवहत है।


 भारतीय ईच्चतम न्यायालय के ऄवधकारक्षेत्र और शवि को संसद द्वारा विस्तृत ककया जा सकता है,

जबकक आस मामले में ऄमेररकी सिोच्च न्यायालय को संविधान द्वारा सीवमत ककया गया है।
िहीं ऄमेररकी सिोच्च न्यायालय को वनम्नवलवखत दृवष्टकोण से ऄवधक ऄवधकार प्राप्त हैं:
 भारतीय ईच्चतम न्यायालय के मूल क्षेत्रावधकार संघीय मामलों तक ही सीवमत हैं जबकक ऄमेररकी
सिोच्च न्यायालय न के िल संघीय मामलों को बवलक नौसैवनक बलों, समुरी गवतविवधयों, राजदूतों

अकद से संबंवधत मामलों को भी देख सकती है।


 ऄमेररकी सिोच्च न्यायालय के मामले में न्यावयक समीक्षा का दायरा ‘विवध की ईवचत प्रकिया’ के

कारण व्यापक है जबकक भारतीय सन्दभह में ‘विवध द्वारा स्थावपत प्रकिया’ का आस्तेमाल ककया

जाता है।

2.9. न्यावयक ऄवतिमण और न्यावयक सकियता (Judicial Overreach and

judicial activism)

 हाल ही में ईच्चतम न्यायालय ने न्यावयक ऄवतिमण (जूवडवशयल ओिररीच) के वखलाफ

न्यायाधीशों को अगाह ककया और कहा कक न्यायाधीशों को कानून की सीमा के भीतर ही रहना


चावहए और व्यविगत धारणाओं और विचारधारा से न्याय को प्रभावित नहीं होने देना चावहए।

न्यावयक सकियता न्यावयक ऄवतिमण

राज्य के विवभन्न ऄंगों और न्यायपावलका के मध्य शासन के दो ऄन्य महत्िपूणह ऄंगों ऄथाहत्
शवियों की पुनव्याहख्या के माध्यम से कायहपावलका या विधावयका की शवियों को न्यावयक
न्यायपावलका द्वारा ऄपने ऄवधकारों का प्रयोग सकियता के नाम पर ऄवधग्रहण कर जब
ही न्यावयक सकियता कहलाता है। न्यायपावलका ईनका बेवहचक प्रयोग करती है तो आसे
न्यावयक ऄवतिमण कहा जाता है।

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2.10. आं टीग्रे टे ड के स मै ने ज में ट आनफामे श न वसस्टम (ICMIS)

(Integrated Case Management Information System:ICMIS)

 मामलों की वडवजटल फाआनलग के वलए ईच्चतम न्यायालय के ‘आं टीग्रेटेड के स मैनज


े मेंट आन्फॉमेशन

वसस्टम’ (ICMIS) का हाल ही में ऄनािरण ककया गया।

ICMIS के कायह:

 आस वसस्टम के माध्यम से के स की इ-फाआनलग का विकलप प्रदान ककया गया है, साथ ही के स

वलनस्टग की वतवथ, के स की वस्थवत, सूचना सममन की ऑनलाआन सुविधा, कायाहलय ररपोटह तथा
ईच्चतम न्यायालय के पंजीकरण कायाहलय में दावखल िादों के संबध
ं में समग्र रूप से हुइ प्रगवत की
ऑनलाआन जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
 यह न्यायालय से संबंवधत शुलकों और प्रकिया शुलक के भुगतान के वलए एक ऑनलाआन गेटिे तथा
एक ऑनलाआन कोटह फी कै लकु लेटर के रूप में कायह करे गा।
ICMIS के लाभ:
 यह ऄवधििाओं और पंजीकरण कायाहलय दोनों के वलए फाआनलग प्रकियाओं को सुव्यिवस्थत
करे गा।
 यह पारदर्वशता को सुवनवश्चत करे गा, के स से जुड़ीं जानकारी तक असान पहुंच प्रदान करे गा और
कम समय में यावचका दावखल करने में मदद करे गा।

2.10.1. ईच्चतम न्यायालय कॉले वजयम की कायह िाही पवललक डोमे न में

 हाल ही में ईच्चतम न्यायालय कॉलेवजयम ने ऄपनी सभी ऄनुशस


ं ाओं को पवललक डोमेन में रखने
का वनणहय वलया है। आन ऄनुशंसाओं के साथ ईन कारणों का भी ईललेख होगा वजनके अधार पर
कॉलेवजयम ने ईच्च न्यायालयों और ईच्चतम न्यायालय में वनयुवि, स्थानांतरण या प्रोन्नवत के वलए
नामों की संस्तुवत की या नामों को ऄस्िीकार करने का वनणहय वलया।

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भारतीय संविधान एिं शासन


13. ईच्च न्यायालय एिं ऄधीनस्थ न्यायालय

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विषय सूची
1. पररचय ___________________________________________________________________________________ 3

2. ईच्च न्यायालय का संगठन [ऄनुच्छेद 216] ____________________________________________________________ 4

2.1. ऄहहताएँ [ऄनुच्छेद 217(2)] __________________________________________________________________ 4

2.2. न्यायाधीशों का कायहकाल [ऄनुच्छेद 217(1)] ______________________________________________________ 4

2.3. अयु का ऄिधारण _________________________________________________________________________ 4

3. न्यायाधीशों की श्रेवणयां_________________________________________________________________________ 4

3.1. वनयवमत न्यायाधीश________________________________________________________________________ 4

3.2. कायहकारी मुख्य न्यायाधीश [ऄनुच्छेद 223] (Acting Chief Justice) ____________________________________ 5

3.3. ऄपर और कायहकारी न्यायाधीश [ऄनुच्छेद 224] (Additional and Acting Judges) _________________________ 5

3.4. सेिावनिृत्त न्यायाधीश [ऄनुच्छेद 224A]__________________________________________________________ 5

4. न्यायाधीशों को हटाना _________________________________________________________________________ 5

4.1. न्यायाधीशों का स्थानांतरण [ऄनुच्छेद 222] _______________________________________________________ 6

5. ईच्च न्यायालय का क्षेत्रावधकार और शवियां___________________________________________________________ 6

5.1. प्रारं वभक क्षेत्रावधकार _______________________________________________________________________ 6

5.2. ररट क्षेत्रावधकार __________________________________________________________________________ 7

5.3. ऄपीलीय क्षेत्रावधकार _______________________________________________________________________ 7


5.3.1 दीिानी मामले ______________________________________________________________________________ 7
5.3.2 अपरावधक मामले ___________________________________________________________________________ 7

5.4. पयहिेक्षीय क्षेत्रावधकार [ऄनुच्छेद 227] ___________________________________________________________ 7

5.5. ऄधीनस्थ न्यायालयों पर वनयंत्रण_______________________________________________________________ 8

5.6. ऄवभलेख न्यायालय ________________________________________________________________________ 8

5.7. न्यावयक पुनर्विलोकन की शवि (ऄनुच्छेद 13 और ऄनुच्छेद 226) _________________________________________ 8

6. ऄधीनस्थ न्यायालय ___________________________________________________________________________ 8

6.1. वजला न्यायाधीशों की वनयुवि [ऄनुच्छेद 233]______________________________________________________ 9

6.2. ऄन्य न्यायाधीशों की वनयुवि [ऄनुच्छेद 234] ______________________________________________________ 9

6.3. ऄधीनस्थ न्यायालयों पर वनयंत्रण [ऄनुच्छेद 235] ___________________________________________________ 9

6.4. संरचना और ऄवधकार क्षेत्र ___________________________________________________________________ 9

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1. पररचय
 भारत के संविधान में प्रत्येक राज्य के वलए एक ईच्च न्यायालय की व्यिस्था की गइ थी, लेककन

सातिें संशोधन ऄवधवनयम, 1956 के द्वारा संसद को ऄवधकार कदया गया कक िह दो या दो से


ऄवधक राज्यों एिं ककसी संघ राज्य क्षेत्र के वलए एक साझा ईच्च न्यायालय की स्थापना कर सकती
है। संविधान के भाग VI में ऄनुच्छेद 214 से 231 तक ईच्च न्यायालयों के गठन, स्ितंत्रता,

न्यावयक क्षेत्र, शवियां, प्रकिया और आनसे संबवं धत ऄन्य मुद्दों के बारे में बताया गया है।

 ितहमान में देश में राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों के वलए 24 ईच्च न्यायालय हैं। भारत में ईच्च

न्यायालय संस्था का सिहप्रथम गठन 1962 में तब हुअ, जब कलकत्ता, बम्बइ और मद्रास ईच्च

न्यायालयों की स्थापना हुइ। भारतीय ईच्च न्यायालय ऄवधवनयम, 1861 के ईपबंधों के तहत आन

तीन ईच्च न्यायालयों की स्थापना की गइ। 1866 में चौथे ईच्च न्यायालय की स्थापना आलाहाबाद

में हुइ। माचह 2013 तक, ईच्च न्यायालयों की संख्या 21 थी, तत्पश्चात 'पूिोत्तर क्षेत्र (पुनगहठन) एिं

ऄन्य संबंवधत कानून (संशोधन) ऄवधवनयम, 2012' द्वारा मवणपुर, वत्रपुरा और मेघालय में तीन
ईच्च न्यायालयों की स्थापना की गइ।
 कु छ ईच्च न्यायालयों के न्यावयक क्षेत्र का ऄन्य राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों तक विस्तार हैं:
o बंबइ ईच्च न्यायालय का न्यावयक क्षेत्र महाराष्ट्र, गोिा, दादरा एिं नगर हिेली और दमन एिं
दीि तक विस्तृत है।
o कलकत्ता ईच्च न्यायालय का न्यावयक क्षेत्र पवश्चम बंगाल और ऄंडमान एिं वनकोबार द्वीप
समूह तक विस्तृत है।
o गुिाहाटी ईच्च न्यायालय का न्यावयक क्षेत्र ऄरुणाचल प्रदेश, ऄसम, नागालैंड और वमजोरम
तक विस्तृत है।
o के रल ईच्च न्यायालय के न्यावयक क्षेत्र में के रल और लक्षद्वीप को सवम्मवलत ककया गया है।
o मद्रास ईच्च न्यायालय का न्यावयक क्षेत्र तवमलनाडु और पुदच
ु रे ी तक विस्तृत है।
o पंजाब एिं हररयाणा ईच्च न्यायालय का न्यावयक क्षेत्र पंजाब और हररयाणा राज्यों के साथ-
साथ संघ राज्य क्षेत्र चंडीगढ़ तक विस्तृत है।
o के िल कदल्ली एकमात्र ऐसा संघ राज्य क्षेत्र है, वजसका ऄपना एक ईच्च न्यायालय है।

संसद एक ईच्च न्यायालय के न्यावयक क्षेत्र का विस्तार, ककसी संघ राज्य क्षेत्र में कर सकती है ऄथिा

ककसी संघ राज्य क्षेत्र को, ईच्च न्यायालय के न्यावयक क्षेत्र से बाहर कर सकती है।

कायहपावलका और न्यायपावलका का पृथक्करण


 संविधान के ऄनु. 50 में यह वलखा है कक राज्य न्यायपावलका को कायहपावलका से पृथक् करने के वलए
कदम ईठाएगा। आस वनदेश के ऄनुसरण में संसद ने विवध बनाकर न्यावयक कृ त्य ऄनन्य रूप से
न्यायपावलका को सौंप कदए हैं।
 आस पृथक्करण से पहले कु छ राज्यों में कायहपावलका के ऄवधकारी भारतीय दंड सवहता के ऄधीन
मामले वनपटाते थे। िे जमानत के अिेदनों की सुनिाइ भी करते थे।
 दंड प्रकिया संवहता, 1973 के ऄवधवनयवमत ककए जाने के पश्चात् न्यावयक प्रणाली में कायहपावलका के
ऄवधकाररयों को कोइ काम नहीं सौपा गया है। न्यायपावलका को पूरी तौर से कायहपावलका से ऄलग
कर कदया गया है।

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2. ईच्च न्यायालय का सं ग ठन [ऄनु च्छे द 216]


 प्रत्येक ईच्च न्यायालय, एक मुख्य न्यायाधीश और ऐसे ऄन्य न्यायाधीशों से वमलकर बनेगा, जो
अिश्यकतानुसार राष्ट्रपवत द्वारा समय-समय पर वनयुि ककए जाएं।
2.1. ऄहह ताएँ [ऄनु च्छे द 217(2)]

ककसी व्यवि के पास ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में वनयुवि के वलए वनम्नवलवखत ऄहहताएँ
होनी चावहए:
 िह भारत का नागररक हो।
 ईसे भारत के राज्यक्षेत्र में न्यावयक कायह में 10 िषह का ऄनुभि हो (न्यावयक कायह का तात्पयह
न्यायाधीश के कायह से ही नहीं है, यह ऄन्य न्यावयक कायह भी हो सकता है), या
 िह ककसी ईच्च न्यायालय (न्यायालयों) में लगातार 10 िषह तक ऄवधििा रह चुका हो (यह ऄहहता
ईच्चतम न्यायालय के एक न्यायाधीश की ऄहहता के समान है)।
आस प्रकार, संविधान में ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में वनयुवि के वलए कोइ न्यूनतम अयु
वनधाहररत नहीं की गयी है। हालांकक, संविधान में ईच्चतम न्यायालय के विपरीत एक प्रवतवित विवधिेत्ता
को ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में वनयुि करने हेतु कोइ प्रािधान नहीं है।
2.2. न्यायाधीशों का कायह काल [ऄनु च्छे द 217(1)]

संविधान में ईच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का कायहकाल वनवश्चत नहीं ककया गया है। हालांकक,
वनम्नवलवखत प्रािधानों का ईपबंध ककया गया है:
 िह 62 िषह की अयु तक पद पर रहता है। ईसकी अयु से संबंवधत ककसी भी प्रश्न का वनणहय भारत
के मुख्य न्यायाधीश से परामशह करने के पश्चात् राष्ट्रपवत द्वारा ककया जाएगा एिं राष्ट्रपवत का
वनणहय ऄंवतम होगा।
 िह राष्ट्रपवत को त्यागपत्र दे सकता है।
 संसद की वसफाररश से राष्ट्रपवत ईसे पद से हटा सकता है।
 ईसकी वनयुवि ईच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में हो जाने पर या ककसी दूसरे ईच्च
न्यायालय में स्थानांतरण हो जाने पर पद ररि हो जाएगा।
2.3. अयु का ऄिधारण

 यकद ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश की अयु के बारे में कोइ प्रश्न ईठता है तो ईसका विवनश्चय भारत
के मुख्य न्यायमूर्वत से परामशह करने के पश्चात् राष्ट्रपवत द्वारा ककया जाएगा। राष्ट्रपवत का विवनश्चय
ऄंवतम होगा। (ऄनु. 217)।
 ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की अयु का ऄिधारण ऐसे प्रावधकरण द्वारा और ऐसी रीवत से
ककया जाएगा जो संसद विवध द्वारा ईपबंवधत करे (ऄनु. 124)। आसका कोइ तकह सम्मत कारण नहीं
कदखाइ देता कक क्यों ईच्च न्यायालय और ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के बीच ऄंतर रखा
गया है।
3. न्यायाधीशों की श्रे वणयां
ईच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की वनम्नवलवखत श्रेवणयां होती हैं:
3.1. वनयवमत न्यायाधीश

 ककसी ईच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की वनयुवि राष्ट्रपवत द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश
एिं संबंवधत राज्य के राज्यपाल से परामशह करने के पश्चात् की जाती है।
 जबकक ईच्च न्यायालय के ऄन्य न्यायाधीशों की वनयुवि राष्ट्रपवत द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश
एिं संबंवधत राज्य के राज्यपाल एिं ईच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामशह के पश्चात् की
जाती है।

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 दो या दो से ऄवधक राज्यों के साझा ईच्च न्यायालय में वनयुवि के मामले में राष्ट्रपवत सभी संबंवधत
राज्यों के राज्यपालों से भी परामशह करता है।
 तीसरे न्यायाधीश िाद (1998) के ईपरांत ईच्चतम न्यायालय ने कहा कक ईच्च न्यायालय के
न्यायधीशों की वनयुवि के मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश को ईच्चतम न्यायालय के दो
िररितम न्यायाधीशों से परामशह करना चावहए। आस प्रकार, ऄके ले भारत के मुख्य न्यायाधीश की
राय से परामशह प्रकिया पूरी नहीं होगी।

3.2. कायह कारी मु ख्य न्यायाधीश [ऄनु च्छे द 223] (Acting Chief Justice)

राष्ट्रपवत ककसी ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश को ईस ईच्च न्यायालय का कायहकारी मुख्य न्यायाधीश
वनयुि कर सकता है, जब:
 ईच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का पद ररि हो, या
 ईच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश ऄस्थायी रूप से ऄनुपवस्थत हो, या
 यकद ईच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ऄपने कायह वनिहहन में ऄक्षम हो।

3.3. ऄपर और कायह कारी न्यायाधीश [ऄनु च्छे द 224] (Additional and Acting
Judges)

राष्ट्रपवत वनम्नवलवखत पररवस्थवतयों में योग्य व्यवियों को ईच्च न्यायालय के ऄपर न्यायाधीशों के रूप में
ऄस्थायी रूप से वनयुि कर सकता है, वजसकी ऄिवध दो िषह से ऄवधक नहीं होगी:
 यकद ऄस्थायी रूप से ईच्च न्यायालय का कामकाज बढ़ गया हो, या
 ईच्च न्यायालय में बकाया कायह ऄवधक है।
आसी प्रकार राष्ट्रपवत ईस वस्थवत में भी योग्य व्यवियों को ककसी ईच्च न्यायालय का कायहकारी
न्यायाधीश वनयुि कर सकता है, जब ईच्च न्यायालय का न्यायाधीश (मुख्य न्यायाधीश के ऄलािा):
 ऄनुपवस्थवत या ऄन्य कारणों से ऄपने कायों का वनष्पादन करने में ऄसमथह हो,
 ककसी न्यायाधीश को ऄस्थायी तौर पर संबवं धत ईच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश वनयुि ककया
गया हो।
एक कायहकारी न्यायाधीश तब तक कायह करता है, जब तक कक स्थायी न्यायाधीश ऄपना पदभार न
संभाले। हालांकक, ऄपर या कायहकारी न्यायाधीश 62 िषह की अयु प्राप्त करने के पश्चात् पद धारण नहीं
कर सकते हैं।

3.4. से िावनिृ त्त न्यायाधीश [ऄनु च्छे द 224A]

 ईच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ककसी भी समय ईस ईच्च न्यायालय ऄथिा ककसी ऄन्य ईच्च
न्यायालय के सेिावनिृत्त न्यायाधीश को ऄस्थायी ऄिवध के वलए बतौर कायहकारी न्यायाधीश काम
करने के वलए कह सकते हैं। िह ऐसा राष्ट्रपवत की पूिह संस्तुवत एिं संबंवधत व्यवि की मंजूरी के
पश्चात् ही कर सकता है। ऐसा न्यायाधीश राष्ट्रपवत द्वारा तय भत्तों का ऄवधकारी होता है।
 ईसे ईस ईच्च न्यायालय के सभी न्यावयक क्षेत्र, शवियां एिं सुविधाएं और विशेषावधकार प्राप्त होते
हैं, ककतु ईसे ऄन्यथा ईस ईच्च न्यायालय का न्यायाधीश नहीं समझा जाएगा।

4. न्यायाधीशों को हटाना
 ऄनुच्छेद 217(1)(b) में प्रािधान है कक ईच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को ऄनुच्छेद 124(4) के
तहत प्रदत्त ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने की प्रकिया के समान ही हटाया जाएगा।
 आस प्रकार, ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश को भी 'सावबत कदाचार' या 'ऄसमथहता' के अधार पर
ही पद से हटाया जा सकता है।

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4.1. न्यायाधीशों का स्थानां त रण [ऄनु च्छे द 222]

 भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामशह के बाद राष्ट्रपवत ककसी न्यायाधीश का स्थानांतरण एक ईच्च
न्यायालय से दूसरे ईच्च न्यायालय में कर सकता है।
 1977 में ईच्चतम न्यायालय ने व्यिस्था दी कक ईच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का स्थानांतरण
के िल ऄपिादस्िरूप और लोक कल्याण को ध्यान में रखकर ही ककया जा सकता है न कक दंड के
रूप में। 1994 में ईच्चतम न्यायालय ने पुनः कहा कक न्यायाधीशों के स्थानांतरण में मनमानी रोकने
के वलए न्यावयक समीक्षा अिश्यक है।
 तीसरे न्यायाधीश िाद (1998) में ईच्चतम न्यायालय ने राय दी कक ईच्च न्यायालय के न्यायाधीशों
के स्थानांतरण के मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश को ईच्चतम न्यायालय के चार िररष्टतम
न्यायाधीशों तथा दो ईच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों (एक िहां के , जहाँ से न्यायाधीश का
स्थानांतरण हो रहा है; एक िहां के जहाँ िह जा रहा हो) से परामशह करना चावहए।
 स्थानांतरण के मामले में न्यायाधीश िेतन के ऄवतररि राष्ट्रपवत द्वारा वनधाहररत प्रवतपूरक भत्तों का
हकदार होता है।

5. ईच्च न्यायालय का क्षे त्रावधकार और शवियां


 ईच्च न्यायालय, नागररकों के मूल ऄवधकारों का रक्षक होने के ऄवतररि, राज्य में सिोच्च ऄपीलीय
न्यायालय भी होता है। आसके पास पयहिेक्षीय और सलाहकार की भूवमका वनभाने के ऄवतररि
संविधान की व्याख्या करने की शवि भी वनवहत है।
 हालांकक, संविधान में ईच्च न्यायालय की शवियों एिं क्षेत्रावधकार के बारे में विस्तृत ईपबंध नहीं
ककये गए हैं। आसमें के िल आतना कहा गया है कक एक ईच्च न्यायालय का क्षेत्रावधकार और शवियां
िही होंगी जो संविधान के लागू होने से तुरंत पूिह थी।
 लेककन स्ितंत्रता के पश्चात् संविधान में एक नया प्रािधान जोड़ा गया, िह है राजस्ि मामलों पर
ईच्च न्यायालय का क्षेत्रावधकार (जो संविधान पूिह काल में आसके पास नहीं था)।
ईच्च न्यायालय के पास प्रारं वभक क्षेत्रावधकार, ररट क्षेत्रावधकार, ऄपीलीय क्षेत्रावधकार, पयहिक्ष
े ीय
क्षेत्रावधकार, ऄधीनस्थ न्यायालयों पर वनयंत्रण, ऄवभलेख न्यायालय और न्यावयक समीक्षा/पुनर्विलोकन
की शवियां प्राप्त हैं।

5.1. प्रारं वभक क्षे त्रावधकार

 मूल ऄवधकारों का प्रितहन (ऄनुच्छेद 226 के तहत)


 संविधान की व्याख्या के संबंध में ऄधीनस्थ न्यायालय से स्थानांतररत मामलों में।
 ऄवधकाररता का मामला, िसीयत, वििाह, तलाक, कं पनी कानून एिं न्यायालय की ऄिमानना से
संबंवधत मामले।
 संसद सदस्यों और राज्य विधानमंडल के सदस्यों के वनिाहचन से संबंवधत वििाद।
 राजस्ि मामलें या राजस्ि संग्रह के वलए बनाये गए ककसी ऄवधवनयम या अदेश के संबंध में।
 ईच्च महल के मामलों में चार ईच्च न्यायालयों (ऄथाहत् कलकत्ता, बम्बइ, मद्रास और कदल्ली ईच्च
न्यायालय) के मूल नागररक क्षेत्रावधकार है।
1973 से पूिह कलकत्ता, बंबइ और मद्रास ईच्च न्यायालयों के पास ऄपने संबंवधत क्षेत्र के भीतर ईत्पन्न
होने िाले मामलों पर मूल क्षेत्रावधकार, दीिानी और अपरावधक दोनों, विद्यमान था। हालांकक,
अपरावधक प्रकिया संवहता (CrPC), 1973 द्वारा मूल अपरावधक न्यावयक क्षेत्र का पूरी तरह वनरसन
कर कदया गया।

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5.2. ररट क्षे त्रावधकार

 संविधान का ऄनुच्छेद 226 एक ईच्च न्यायालय को नागररकों के मूल ऄवधकारों के प्रितहन और


ककसी ऄन्य ईद्देश्य के वलए भी ररट जारी करने की ऄनुमवत देता है। ये ररट हैं- बंदी प्रत्यक्षीकरण,
परमादेश, ईत्प्रेषण, प्रवतषेध एिं ऄवधकार पृच्छा। ककसी ऄन्य ईद्देश्य के वलए पद का ऄथह है- एक
सामान्य कानूनी ऄवधकार के प्रितहन के वलए भी ररट जारी करना।
 यकद न्यायादेश देने का कारण आसके क्षेत्रावधकार राज्यक्षेत्र की सीमाओं में है तो ईच्च न्यायालय
ककसी भी व्यवि, प्रावधकरण और सरकार को ऄपने क्षेत्रावधकार के राज्यक्षेत्र की सीमाओं के भीतर
ही नहीं बवल्क आसके बाहर भी ऐसा न्यायादेश दे सकता है।
 ईच्च न्यायालय का ररट क्षेत्रावधकार, ईच्चतम न्यायालय की तुलना में ऄवधक व्यापक है। ईच्चतम
न्यायालय वसफह मूल ऄवधकारों के प्रितहन के संबंध में ररट जारी कर सकता है, िहीं ईच्च न्यायालय
आसके साथ ही ककसी भी विवधक ऄवधकार के ईल्लंघन पर भी ररट जारी कर सकता है। ईच्च
न्यायालय का ररट क्षेत्रावधकार संविधान के मूल ढांचे का ऄंग है।
5.3. ऄपीलीय क्षे त्रावधकार

5.3.1 दीिानी मामले

 ईच्च न्यायालय में दीिानी मामलों पर ऄपील, पहली ऄपील या दूसरी ऄपील होती है।
 ईच्च मूल्य (व्यापक रूप में) के मामलों में वजला न्यायाधीशों और ऄधीनस्थ न्यायाधीशों के वनणहयों
के विरुद्ध कानून एिं तथ्य के प्रश्न पर सीधे ईच्च न्यायालय में ऄपील की जा सकती है।
 जब कोइ ऄधीनस्थ न्यायालय ऄिर न्यायालय के वनणहय के विरुद्ध की गयी ऄपील पर वनणहय देता
है, तो वनचले ऄपीलीय न्यायालय के वनणहय विरुद्ध दूसरी ऄपील ईच्च न्यायालय में की जाती है,
परन्तु वसफह कानून के प्रश्नों पर, तथ्यों के प्रश्नों पर नहीं।
 कलकत्ता, बंबइ और मद्रास ईच्च न्यायालय में ऄंत:न्यायालीय ऄपील का प्रािधान है। जब ईच्च
न्यायालय का कोइ एक न्यायाधीश मामले पर वनणहय देता है तो ऄपील ईसी न्यायालय की
खंडपीठ में की जा सकती हैं।
 प्रशासवनक एिं ऄन्य ऄवधकरणों के वनणहयों के विरुद्ध ऄपील ईच्च न्यायालय की खंड पीठ के समक्ष
की जा सकती है। 1997 में ईच्चतम न्यायालय ने व्यिस्था की कक ये ऄवधकरण ईच्च न्यायालय के
ररट क्षेत्रावधकार के विषयाधीन हैं। पररणामस्िरूप, ऄवधकरण के फै सले के विरुद्ध कोइ पीवड़त
व्यवि वबना पहले ईच्च न्यायालय में गए सीधे ईच्चतम न्यायालय में नहीं जा सकता।
5.3.2 अपरावधक मामले

 सत्र न्यायाधीश या ऄवतररि सत्र न्यायाधीश के वनणहयों के विरुद्ध ईच्च न्यायालयों में तब ऄपील
की जा सकती हैं जब ककसी को सात िषह या आससे ऄवधक के वलए कारािास की सजा हुइ हो।
ऄधीनस्थ न्यायालयों द्वारा दी गयी सजा-ए-मौत (मृत्युदड
ं ) पर कायहिाही से पहले ईच्च न्यायालय
द्वारा आसकी पुवष्ट की जानी चावहए।
 कु छ विवशष्ट मामलों में सहायक सत्र न्यायाधीश, महानगर दंडावधकारी या ऄन्य दंडावधकारी के
वनणहयों के विरुद्ध ईच्च न्यायालय में ऄपील की जा सकती है।

5.4. पयह िे क्षीय क्षे त्रावधकार [ऄनु च्छे द 227]

ईच्च न्यायालय को आस बात का ऄवधकार है कक सैन्य न्यायालयों के ऄवतररि िह ऄपने ऄवधकार क्षेत्र के
सभी न्यायालयों एिं ऄवधकरणों के कियाकलापों पर नजर रखे। आस प्रकार िह:
 मामलों को ऐसे न्यायालयों से स्ियं के पास मंगिा सकता है।
 सामान्य वनयम तैयार और जारी कर सकता है, और ईनके प्रयोग तथा कायहिाही को वनयवमत
करने के वलए प्रपत्र वनधाहररत कर सकता है।

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 आन न्यायालयों के ऄवधकाररयों द्वारा रखे जाने िाले लेखा, सूची अकद के वलए प्रपत्र वनधाहररत कर
सकता है।
 शेररफ, क्लकह , ऄवधकारी एिं िकीलों के शुल्क अकद वनवश्चत करता है।
आस शवि ने राज्य के सम्पूणह न्याय प्रशासन के वलए ईच्च न्यायालय को वजम्मेदार बना कदया है।
यह प्रकृ वत में न्यावयक एिं प्रशासवनक दोनों है। संविधान में ऄधीनस्थ न्यायालयों के ऄधीक्षण की
आसकी शवि पर कोइ वनबहन्धन नहीं है तथा आस शवि का स्ित: प्रयोग ककया जा सकता है। यह
ध्यान देने योग्य है कक ईच्चतम न्यायालय के पास ईच्च न्यायालय की आस शवि के समान कोइ शवि
नहीं है।
5.5. ऄधीनस्थ न्यायालयों पर वनयं त्र ण

 ईच्च न्यायालय, वजला न्यायालय और ईनके ऄधीनस्थ न्यायालयों पर वनयंत्रण रखता है।
 वजला न्यायाधीशों की वनयुवि, तैनाती और पदोन्नवत एिं व्यवि की राज्य न्यावयक सेिा (वजला
न्यायाधीशों से ऄलग) में वनयुवि के मामलों में राज्यपाल, ईच्च न्यायालय से परामशह लेता है।
 यह राज्य न्यावयक सेिा (वजला न्यायाधीशों के ऄलािा ऄन्य) के सदस्यों की तैनाती, स्थानांतरण,
ऄनुशासन, ऄिकाश स्िीकृ वत, पदोन्नवत अकद से संबंवधत मामलों को देखता है।
 यह ऄधीनस्थ न्यायालय में लंवबत ककसी मामलें को ऄपने पास मंगिा सकता है, यकद ईसमें
महत्िपूणह कानूनी प्रश्न शावमल हो और संविधान की व्याख्या की अिश्यकता हो। यह या तो आस
मामले को वनपटा सकता है या ऄपने वनणहय के साथ मामले को संबंवधत न्यायालय को लौटा
सकता है।
 आसके कानून (वनणहय) को ईन सभी ऄधीनस्थ न्यायालयों को मानने की बाध्यता होती है, जो ईसके
न्यावयक क्षेत्र में अते है।

ऄधीनस्थ न्यायालय
वजला न्यायाधीश के न्यायालय को और सोपान िम में ईससे वनचले न्यायालयों को ऄधीनस्थ न्यायालय
कहा जाता है। दूसरे शब्दों में ईच्चतम न्यायालय और ईच्च न्यायालय को छोड़कर सभी न्यायालय
ऄधीनस्थ न्यायालय हैं।

5.6. ऄवभले ख न्यायालय

ऄवभलेख न्यायालय के रूप में ईच्च न्यायालय की शवियां, ईच्चतम न्यायालय की संबंवधत शवियों के
समान ही हैं। कृ पया आसे ईच्चतम न्यायालय िाले ऄध्याय में देखें।
5.7. न्यावयक पु न र्विलोकन की शवि (ऄनु च्छे द 13 और ऄनु च्छे द 226)

ईच्च न्यायालय कें द्र एिं राज्यों के ककसी भी ऄवधवनयम या कायहकारी अदेश को शून्य और ऄमान्य
घोवषत कर सकता है, ऄगर िह संविधान का ईल्लंघन करता हो। विधायी कानून और कायहकारी अदेश
की संिैधावनक िैधता को वनम्नवलवखत अधारों पर एक ईच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है, यकद
यह:
 मूल ऄवधकारों का हनन करता हो (भाग तीन)
 वजस प्रावधकरण द्वारा तैयार ककया गया है, ईसके कायह क्षेत्र से बाहर हो, तथा
 संिैधावनक ईपबंधों के विरुद्ध हो।
6. ऄधीनस्थ न्यायालय
संविधान के भाग VI में ऄनुच्छेद 233 से 237 तक ऄधीनस्थ न्यायालयों के संगठन एिं कायहपावलका से
आनकी स्ितंत्रता सुवनवश्चत करने िाले वनम्नवलवखत ईपबंधों का िणहन ककया गया है:

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6.1. वजला न्यायाधीशों की वनयु वि [ऄनु च्छे द 233]

वजला न्यायाधीशों की वनयुवि, पदस्थापना और पदोन्नवत राज्यपाल द्वारा राज्य के ईच्च न्यायालय के
परामशह से की जाती है। वजला न्यायाधीश के पद पर वनयुवि के वलए एक व्यवि में वनम्नवलवखत
योग्यताओं का होना अिश्यक हैं:
 ईसे कें द्र या राज्य सरकार की सेिा में कायहरत नहीं होना चावहए।
 ईसे कम-से-कम सात िषह तक ऄवधििा या प्लीडर के रूप में कायह करने का ऄनुभि होना चावहए।
 ईसकी वनयुवि के वलए ईच्च न्यायालय द्वारा वसफाररश की गयी हो।
'वजला न्यायाधीश' पद के ऄंतगहत नगर दीिानी न्यायाधीश, ऄपर वजला न्यायाधीश, संयुि वजला
न्यायाधीश, सहायक वजला न्यायाधीश, लघु न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश, मुख्य प्रेवसडेंसी मवजस्रेट,
ऄवतररि मुख्य प्रेवसडेंसी मवजस्रेट, सत्र न्यायाधीश, ऄवतररि सत्र न्यायाधीश और सहायक सत्र
न्यायाधीश शावमल हैं।
6.2. ऄन्य न्यायाधीशों की वनयु वि [ऄनु च्छे द 234]

राज्यपाल, वजला न्यायाधीश के ऄवतररि राज्य की न्यावयक सेिा के ऄन्य पदों पर भी राज्य लोक सेिा
अयोग और ईच्च न्यायालय के परामशह के बाद व्यवियों की वनयुवि कर सकता है।
6.3. ऄधीनस्थ न्यायालयों पर वनयं त्र ण [ऄनु च्छे द 235]

वजला न्यायालयों और ऄन्य ऄधीनस्थ न्यायालयों में न्यावयक सेिा से संबद्ध व्यवि की पदस्थापना,
पदोन्नवत, ऄिकाश और ऄन्य मामलों पर वनयंत्रण का ऄवधकार राज्य के ईच्च न्यायालय के पास होता
है।
6.4. सं र चना और ऄवधकार क्षे त्र

ऄधीनस्थ न्यायालयों की संरचना को नीचे प्रस्तुत रे खा-वचत्र द्वारा विस्तार से बताया गया है।

 ऄधीनस्थ न्यायपावलका की संगठनात्मक संरचना सभी राज्यों में वभन्न हैं तथा मोटे तौर पर वचत्र
में दशाहये ऄनुसार िगीकृ त हैं। ये सबसे वनचले स्तर पर, न्याय की दो शाखाओं दीिानी और
फौजदारी में विभि हैं। दीिानी और फौजदारी मामलों में विवभन्न क्षेत्रीय नामों जैसे- न्याय
पंचायत, पंचायत ऄदालत, ग्राम कचहरी अकद के तहत पंचायत न्यायालय कायहरत हैं।
 मुंवसफ न्यायाधीश के न्यायालय ऄगले स्तर के दीिानी न्यायालय होते हैं, वजनके क्षेत्रावधकार ईच्च
न्यायालयों द्वारा वनधाहररत ककये जाते हैं। मुंवसफ न्यायाधीश के उपर ऄधीनस्थ न्यायाधीश होते हैं
वजनमें ऄसीवमत धन-संबंधी क्षेत्रावधकार वनवहत होते हैं। मुंवसफ न्यायाधीश के वनणहय के विरुद्ध
पहली ऄपील आन्ही न्यायालयों में की जाती हैं।
 वजला स्तर पर, वजला एिं सत्र न्यायाधीश वजले का सिोच्च न्यावयक ऄवधकारी होता है वजसे
दीिानी एिं फौज़दारी मामलों में मूल और ऄपीलीय क्षेत्रावधकार प्राप्त है।

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 वजला न्यायाधीश, मुंवसफ न्यायाधीशों (यकद ऄधीनस्थ न्यायाधीशों द्वारा कायहिाही नही की जाती

है) के साथ ही ऄधीनस्थ न्यायाधीशों के वनणहयों के विरुद्ध प्रथम सुनिाइ करते हैं तथा दीिानी एिं
फौज़दारी मुकदमों दोनों पर ऄसीवमत क्षेत्रावधकार के ऄवधकारी होते हैं।
 वजला न्यायाधीशों में ऄधीनस्थ न्यायाधीशों से संबंवधत पयहिेक्षी शवियां भी वनवहत होती हैं। जब
िह दीिानी मामलों की सुनिाइ करता है तो ईसे वजला न्यायाधीश के रूप में जाना जाता है तथा
फौज़दारी मामलों की सुनिाइ करने पर सत्र न्यायाधीश के रूप में जाना जाता है।
 आसके अदेश के विरुद्ध ऄपील ईच्च न्यायालय में की जाती है। सत्र न्यायाधीश को ककसी ऄपराधी
को अजीिन कारािास और मृत्युदड
ं सवहत कोइ भी सजा देने का ऄवधकार होता है। हालांकक,

ईसके द्वारा कदए गए मृत्युदड


ं पर तभी ऄमल ककया जाता है, जब राज्य का ईच्च न्यायालय ईसका

ऄनुमोदन कर दे।
 कम महत्ि िाले मुकदमों की सुनिाइ प्रांतीय लघु न्यायालयों (Provincial Small causes

courts) द्वारा की जाती है। दण्ड प्रकिया संवहता (CrPC, 1973) के लागू होने के बाद से,

फौज़दारी मामलों की सुनिाइ न्यावयक मवजस्रेट द्वारा ही की जाती है।


 कायहकारी मवजस्रेट के विपरीत, जो राज्य सरकार के वनयंत्रण के ऄधीन कानून और व्यिस्था

बनाए रखने का कायह करता है, न्यावयक और मेरोपोवलटन मवजस्रेट ईच्च न्यायालयों के प्रशासवनक

वनयंत्रण में न्यावयक कायों का वनिहहन करते हैं।

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भारतीय संविधान एिं शासन


14. संघीय प्रणाली

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विषय सूची
1. संघिाद की ऄिधारणा (Concept of Federalism) ___________________________________________________ 3
1.1. भारत में संघिाद (Federalism in India) _______________________________________________________ 3
2. भारत में संघीय प्रणाली तथा कें द्र राज्य संबध
ं _________________________________________________________ 4
2.1. विधायी संबंध (ऄनुच्छेद 245-255) ____________________________________________________________ 4
2.2. प्रशासवनक संबंध (ऄनुच्छेद 256-263) __________________________________________________________ 7
2.2.1. संघ द्वारा राज्य सरकारों को वनदेश __________________________________________________________ 7
2.2.2. संघ के ऄधीन अन िाले ककसी विषय का राज्य को प्रत्यायोजन ______________________________________ 7
2.2.3. संघ को कृ त्य सौंपने की राज्यों की शवि ______________________________________________________ 8
2.2.4. ऄवखल भारतीय सेिाएं __________________________________________________________________ 8
2.2.5. दो या ऄवधक राज्यों के वलए संयुि लोक सेिा अयोग का गठन ______________________________________ 8
2.2.6. ऄंतरााज्यीय पररषद् (Inter State Council) __________________________________________________ 8
2.2.6.1. कें द्र और राज्यों के मध्य सहयोग सुवनवित करने में भूवमका______________________________________ 9
2.2.6.2. पररषद् के कामकाज से संबंवधत मुद्दे ______________________________________________________ 9
2.2.6.3. पररषद् को और मजबूत बनाने की अिश्यकता ______________________________________________ 9
2.2.6.4. पररषद् के संबंध में पुछ
ं ी अयोग की वनम्नवलवखत वसफाररशें भी विचारणीय है________________________ 10
2.2.6.5. ईभरते मुद्दे ______________________________________________________________________ 10
2.2.7. ऄंतरााज्यीय नदी जल वििाद _____________________________________________________________ 10
2.2.7.1. ऄंतरााज्यीय नदी जल वििाद: ऄद्यवतत तथ्य _______________________________________________ 10
2.2.7.2. ऄंतरााज्यीय नदी वििाद (संशोधन) विधेयक, 2017 _________________________________________ 11
2.2.8. ऄन्य प्रािधान _______________________________________________________________________ 12
2.3 वित्तीय संबंध (ऄनुच्छेद 268-293)_____________________________________________________________ 12
2.4 के न्द्र-राज्य संबंधों में की प्रिृवत्तयााँ ______________________________________________________________ 14
2.4.1. स्ितंत्रता के बाद भारतीय संघिाद का विकास _________________________________________________ 14
2.4.2. प्रथम प्रशासवनक सुधार अयोग ___________________________________________________________ 14
2.4.3. सरकाररया अयोग ____________________________________________________________________ 15
2.4.4. एम. एम. पुंछी अयोग _________________________________________________________________ 16
2.5. विविध मुद्दे _____________________________________________________________________________ 29
2.5.1. कु छ राज्यों को विशेष श्रेणी का दजाा ________________________________________________________ 29
2.5.2. नीवत अयोग (Niti Ayog) ______________________________________________________________ 31
2.5.3. के न्द्र प्रायोवजत योजनाएं ________________________________________________________________ 32
2.5.3.1 के न्द्र प्रायोवजत योजनाओं को तार्ककक बनाना _______________________________________________ 32
2.5.4. संघिाद ि विदेश नीवत _________________________________________________________________ 33
2.5.5. संघ शावसत प्रदेश से संबवं धत मामले ________________________________________________________ 34
2.6 कें द्र-राज्य संबंध के कु छ निीन पहलू _____________________________________________________________ 37
2.7. के न्द्र-राज्य संबंध को मजबूत बनाने हेतु निीन योजना ________________________________________________ 39
2.7.1. एक भारत श्रेष्ठ भारत पहल ______________________________________________________________ 39

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1. सं घ िाद की ऄिधारणा (Concept of Federalism)


 ककसी राष्ट्र में कें द्रीय शवि तथा आसके विवभन्न घटक आकाइयों के मध्य शवियों का विभाजन
सामान्यतः वनम्नवलवखत तीन विवधयों से होता है:
o संघीय (Federal),

o एकात्मक (unitary) तथा

o ऄवधसंघ (confederation)।
 संघीय प्रणाली शासन की एक ऐसी प्रणाली है वजसके ऄंतगात एक ही भू-भाग के शासन को वद्व-
स्तरीय सरकार (ऄथिा द्वैध सरकार) द्वारा वनयंवत्रत ककया जाता है। आस व्यिस्था में राष्ट्रीय
(कें द्रीय/संघीय) सरकार संपूणा देश से संबंवधत मुद्दों तथा समस्याओं पर विवध-वनमााण तथा शासन
करती है, जबकक प्रांतीय या स्थानीय स्तर की सरकारें स्थानीय मुद्दों पर ध्यान कें कद्रत करती हैं।

आस प्रकार दो सरकारों के बीच शवि विभाजन के दोहरे ईद्देश्य हैं:


o सरकार के एक स्तर पर शवियों के ऄत्यवधक संकेंद्रण को रोकना तथा
o संघ (यूवनयन) के माध्यम से राष्ट्र की शवि में िृवि करना।
संघ के लक्षण:
संघीय संविधान में साधारणतया वनम्नवलवखत लक्षण होते हैं:
 वद्व-स्तरीय सरकार (ऄथिा द्वैध सरकार): आसके ऄंतगात प्रत्येक स्तर पर सरकार की ऄपनी स्ियं
की प्रशासवनक तथा विधायी क्षमता होती है। ये दोनों सरकारें ऄपनी शवियां एक ही स्रोत
(संविधान) से प्राप्त करती हैं।
 स्ितंत्र कर अधार: प्रत्येक स्तर पर सरकार के पास एक स्ितंत्र कर अधार होता है।
 वलवखत संविधान: एक वलवखत संविधान द्वारा सरकारों के मध्य शवियों का विभाजन होता है।
 स्ितंत्र न्यायपावलका: के न्द्र ि राज्य सरकारों के मध्य ईठने िाले वििादों का समाधान करने के
वलए एक स्ितंत्र न्यायपावलका होती है।
 संविधान की सिोच्चता: ऐसी व्यिस्था में दोनों सरकारों के वलए संविधान का पालन एिं ईसका
सम्मान करना ऄवनिाया होता है।

1.1. भारत में सं घ िाद (Federalism in India)

 यद्यवप भारत एक संघीय राज्य है, परन्तु आसका संघीय स्िरूप सदैि चचाा का विषय रहा है। कु छ

विद्वानों ने आसे ‘संघीय कल्प’ (संघ जैसा या ऄिा संघ) की संज्ञा दी है, जबकक कु छ आसे
एकात्मक/ऐककक या ऄवधसंघ मानते हैं।
 आसके ऄवतररि, यद्यवप भारत में एक संघीय स्िरूप िाली सरकार है, परं तु भारतीय संविधान में
संघ या महासंघ जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं ककया गया है (ऄथाात् संविधान स्पष्ट रूप से भारत को
एक संघ के रूप में घोवषत नहीं करता है)। संविधान के ऄनुच्छेद 1 में कहा गया है कक “भारत,

ऄथाात् आं वडया, राज्यों का संघ होगा” (India, that is Bharat, shall be a Union of

States.)।
 आसका स्पष्टीकरण डा. भीमराि ऄम्बेडकर द्वारा संविधान सभा में कदये गये ििव्य से प्राप्त ककया
जा सकता है। “यूवनयन शब्द का प्रयोग जानबूझ कर ककया गया है, मैं बता सकता हाँ कक प्रारूप
सवमवत ने आसका प्रयोग क्यों ककया है। प्रारूप सवमवत यह स्पष्ट करना चाहती थी कक भारत एक
ऐसा संघ बने जो राज्यों द्वारा ककये गये ककसी समझौते का पररणाम न हो, जो संघ समझौते का
पररणाम नहीं होते ईनमें राज्यों को संघ से ऄलग होने का ऄवधकार नहीं होता।”

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 आस प्रकार भारत की वस्थवत संयुि राज्य ऄमेररका के संघीय प्रणाली से वभन्न है। संयुि राज्य
ऄमेररका की संघीय प्रणाली राज्यों के बीच हुए समझौते का पररणाम है। जबकक भारतीय संघीय
व्यिस्था ककसी संवध या करार का पररणाम नहीं है। हमारा संविधान भारत के लोगों द्वारा बनाया
गया है, राज्यों द्वारा नहीं। िस्तुत: संविधान वनमााण के समय संविधान वनमााताओं के समक्ष सबसे
ज्िलंत मुद्दा भारत की ‘एकता ि ऄखण्डता’ को सुरवक्षत रखना था। आसका पररणाम यह हुअ कक
भारतीय संविधान में कु छ प्रािधान एकात्मक/ऐककक राज्य के हैं, जबकक ऄवधकतर प्रािधान
संघीय (union) व्यिस्था के सूचक हैं।
 भारतीय संविधान में एकात्मक/ऐककक लक्षण के ईदहारण:
o ऄिवशष्ट शवियां संघ सरकार में वनवहत हैं।
o राज्यों का सृजन या विनाश/विघटन राज्यों की सहमवत के वबना हो सकता है।
o संयुि राज्य ऄमेररका के विपरीत एकल नागररकता की ऄिधारणा।
o ऄवखल भारतीय सेिाओं के ऄवधकारी राज्यों में महत्िपूणा पदों पर वनयुि होते हैं।
o राज्यों में राज्यपाल की भूवमका महत्िपूणा होती है, वजसकी वनयुवि के न्द्र सरकार द्वारा होती
है।
o लेखा परीक्षण का काया वनयंत्रक एिं महालेखा परीक्षक द्वारा होता है, वजसकी वनयुवि के न्द्र
सरकार करती है।
o ईच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की वनयुवि राष्ट्रपवत द्वारा की जाती है।
 हमारे संविधान के वनमााता एक शविशाली संघीय सरकार तथा राज्यों की स्िायत्तता संबंधी
विशेषताओं का पयााप्त वमश्रण चाहते थे। देश की एकता ि ऄखण्डता को बनाए रखने के वलए
भारतीय संविधान में संघिाद की ओर झुकाि है। एस. अर. बोम्मइ बनाम भारत संघ िाद में
सिोच्च न्यायालय ने वनणाय कदया कक धमावनपरे क्षता की तरह संघिाद भी संविधान के मूल ढांचे का
ऄंग है।
2. भारत में सं घीय प्रणाली तथा कें द्र राज्य सं बं ध
 प्रकृ वत में संघीय होने के कारण हमारे संविधान में के न्द्र ि राज्यों के मध्य विधायी, कायाकारी तथा
वित्तीय शवियों का विभाजन ककया गया है। परन्तु, न्यावयक शवियों के प्रयोग के मामले में हमारे
यहााँ एक एकीकृ त न्यावयक प्रणाली को ऄपनाया गया है, जो के न्द्र तथा राज्य दोनों के कानूनों को
प्रिर्ततत करती है। ईल्लेखनीय है कक संयुि राज्य ऄमेररका जैसे दूसरे संघ में न्यावयक शवियों का
भी बंटिारा ककया गया है।
 हमारे देश में ‘एक शविशाली के न्द्र के साथ संघ प्रणाली’ को ऄपनाया गया है, वजसमें के न्द्र के द्वारा
ऄवधक शवियों का प्रयोग ककया जाता है। यह कें द्र सरकार को कु छ विशेष पररवस्थवतयों में राज्यों
के विधायी, प्रशासवनक तथा वित्तीय मामलों पर वनयंत्रण प्रदान करने िाले प्रािधानों से भी स्पष्ट
होता है।
2.1. विधायी सं बं ध (ऄनु च्छे द 245-255)
 भारतीय संविधान के विवभन्न ईपबंधों से यह स्पष्ट होता है कक विधायी काया या विवध-वनमााण की
शवि के िल एकल स्तरीय सरकार में वनवहत नहीं है। ये शवियां के न्द्र ि राज्य के मध्य तीन
सूवचयों- संघ सूची, राज्य सूची एिं समिती सूची के माध्यम से विभावजत की गइ हैं। आन सूवचयों
का ईल्लेख संविधान की सातिीं ऄनुसूची में ककया गया है।
o संघ सूची में राष्ट्रीय महत्ि के विषय शावमल हैं (नीचे सारणी देखें)। संसद को आनसे संबंवधत
कायाकारी तथा विधायी ऄवधकार प्राप्त हैं। ितामान में आस सूची में कु ल 100 विषय हैं (मूल
रूप से 97 विषय)।
o राज्य सूची में राज्यों के प्रशासन से संबंवधत महत्िपूणा विषय सवम्मवलत हैं। आनसे संबंवधत
विधायी तथा कायाकारी ऄवधकार राज्यों को प्राप्त है। ितामान में आस सूची में 61 विषय हैं
(मूल रूप से 66 विषय)।

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o समिती सूची में के न्द्र एिं राज्य दोनों के वलए समान महत्ि िाले विषय सवम्मवलत हैं। आस
पर संसद तथा राज्य विधावयका दोनों कानून बना सकती हैं। वििाद की वस्थवत में कें द्रीय
कानून प्रभािी होगा। ितामान में आस सूची में 52 विषय हैं (मूल रूप् से 47 विषय)।
स्तर विषय क्षेत्र प्रािधान
के न्द्र रक्षा, परमाणु, उजाा, विदेश मामले, नागररकता, पररिहन, ऄनुच्छेद 246 +
अधारभूत संरचना, डाक सेिा, बैंककग, प्राकृ वतक संसाधन सातिीं ऄनुसच
ू ी
अकद। (सूची-I)

राज्य लोक व्यिस्था/पुवलस, जन स्िास्थ्य, कृ वष, जल, भूवम, ऄनुच्छेद 246 +


राज्य लोक सेिाएं अकद। सातिीं ऄनुसच
ू ी
(सूची-II)
के न्द्र+राज्य अपरावधक विवध, अर्तथक/सामावजक/पररिार वनयोजन, ऄनुच्छेद 246 +
(समिती सूची) वििाह कानून अकद। सातिीं ऄनुसच
ू ी
(सूची-III)

 ऄिवशष्ट शवियां/ऄिवशष्ट विधायी शवियां: संसद को ककसी ऐसे विषय के संबंध में जो, समिती
सूची या राज्य सूची में प्रगवणत नहीं है, विधान वनमााण की ऄनन्य शवि है (ऄनु. 248)। ऄमेररकी
संविधान के विपरीत तथा कनाडा के संविधान के समान ऄिवशष्ट विधायी शवियां कें द्र सरकार में
वनवहत हैं।
 ‘तीन सूची’ िाले आस प्रािधान को भारत शासन ऄवधवनयम, 1935 से ग्रहण ककया गया है।
 यकद समिती सूची के ककसी विषय को लेकर के न्द्र तथा राज्य के कानूनों में कोइ मतभेद ईत्पन्न
होता है तो कें द्रीय कानून राज्य कानून पर प्रभािी होगा।
राज्यों के विधान के क्षेत्र में कें द्र का प्रिेश
कें द्र सरकार कु छ विशेष पररवस्थवतयों में राज्य सूची के ककसी भी विषय पर विवध बना सकती है। ये
पररवस्थवतयााँ वनम्नवलवखत हैं:
 जहां राज्य सभा दो वतहाइ बहुमत से संकल्प पाररत करके संसद को ककसी विषय पर विवध बनाने
का प्रावधकार दे। ऐसा संकल्प एक िषा से ऄनवधक ऄिवध के वलए प्रिृत्त रहता है, ककतु ईसे अगे
एक िषा के वलए बढ़ाया जा सकता है। समय का यह विस्तार चाहे वजतनी बार ककया जा सकता है।
ऐसे संकल्प के अधार पर संसद द्वारा बनाइ गइ विवध संकल्प के प्रिृत्त न रहने के पिात् छह मास
की ऄिवध तक प्रभािी रहती है (ऄनु. 249)।
 जहां ऄनु. 352 के ऄधीन अपात की ईद्घोषणा की गइ है, िहां संसद को ईद्घोषणा के अधार पर
राज्य सूची में ककसी प्रविवष्ट की बाबत विवध बनाने की शवि वमल जाती है (ऄनु. 250)।
 जहां दो या ऄवधक राज्यों के विधानमंडल, संकल्प द्वारा, संसद् से राज्य-सूची में सवम्मवलत ककसी
विषय के संबंध में विवध पाररत करने का अग्रह करते हैं। ऐसी विवध प्रारं भ में ईन्हीं राज्यों पर
लागू होती है वजन्होंने अग्रह ककया था। ऄन्य राज्य ईसे ऄंगीकार कर सकते हैं (ऄनु. 252)।
ऄनुच्छेद 252 के ऄधीन पाररत ऄवधवनयमों के कु छ ईदाहरण हैं; पुरस्कार प्रवतयोवगता ऄवधवनयम
1955; नगर भूवम (ऄवधकतम सीमा और विवनयमन) ऄवधवनयम, 1976, िन्य जीि (संरक्षण)
ऄवधवनयम, 1972 और मानि ऄंग प्रवतरोपण ऄवधवनयम, 1994।
 संसद ऄंतरराष्ट्रीय संवधयों को प्रभावित करने के वलए विवध ऄवधवनयवमत कर सकती है, चाहे
ईनसे संबंवधत विषय राज्य-सूची में अते हों (ऄनु. 253)।

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 जब ककसी राज्य में ऄनु. 356 के ऄधीन राष्ट्रपवत शासन ऄवधरोवपत ककया जाता है तो संसद को
राज्य की विधायी शवियों का प्रयोग करने की शवि वमल जाती है। संसद या राष्ट्रपवत द्वारा (जहां
संसद ने राष्ट्रपवत को प्रावधकार प्रदान कर कदया हो) बनाइ गइ विवध तब तक प्रिृत्त रहती है जब
तक कक राज्य विधान मंडल द्वारा िह पररिर्ततत या वनरवसत न कर दी जाए (ऄनु. 257)।
कु छ ऄन्य प्रािधान जो राज्य विधान मंडल पर कें द्रीय वनयंत्रण संबध
ं ी ईपबंध करते हैं:
 संविधान, राज्यपाल को राज्य विधान-मंडल द्वारा पाररत कु छ वनवित प्रकार की विधेयकों को
राष्ट्रपवत के विचाराथा अरवक्षत करने हेतु प्रावधकृ त करता है (ऄनु.200)। यह प्रािधान राज्य
सरकारों के मध्य ऄसंतोष का एक कारण है, क्योंकक के न्द्र सरकार ऐसे विधेयकों पर वनणाय लेने में
कइ बार ऄत्यवधक समय लगाती है तथा स्पष्ट कारण बताए वबना आन्हें रोक कर रखती है।
 राज्य सूची से संबंवधत ऐसा विधेयक वजसे राज्य विधान मंडल में प्रस्तुवत के वलए राष्ट्रपवत की
पूिाानुमवत अिश्यक है (ऄनु. 304)। जैस-े व्यापार तथा िावणज्य की स्ितंत्रता पर प्रवतबंध लगाने
िाले विधेयक।
 वित्तीय अपात के दौरान राष्ट्रपवत, राज्यों के वित्त विधेयक तथा धन विधेयक को अरवक्षत करने
का वनदेश दे सकता है (ऄनु. 360)।
 आसके ऄवतररि ऄनुच्छेद 169 संसद को राज्य विधानपररषद् का ईत्सादन करने में सशि बनाता
है।
 समिती सूची कें द्र ि राज्य दोनों को समान विषय पर विवध बनाने का ऄवधकार प्रदान करती है।
हालांकक दोनों में वििाद या ऄसंगतता की वस्थवत में ऄनु. 254 में वनवहत ऄसंगवत के वनयम
(Rule of repugnancy) के ऄनुसार कें द्र की सिोच्चता के वसिांत का प्रयोग ककया जाएगा। आस
वनयम के तहत यकद समिती सूची के विषय पर राज्य सरकारों तथा के न्द्र सरकार के मध्य कोइ
विसंगवत हो तो कें द्रीय विवध, राज्य विवधयों पर प्रभािी होगी तथा राज्य विधान मंडल द्वारा
बनायी गयी विवध विरोध की मात्रा तक शून्य होगी।
o परं तु आसका एक ऄपिाद है, यकद राज्य विधान-मंडल द्वारा बनायी गयी विवध को राष्ट्रपवत के
विचाराथा अरवक्षत ककया गया है तथा राष्ट्रपवत ईस विवध को ऄनुमवत दे देता है, तो ईस राज्य में,
राज्य विधान मंडल द्वारा बनायी गयी विवध प्रभािी होगी। परन्तु, संसद आस विषय पर भी एक
विवध बनाकर राज्य विधान मंडल की विवध को वनरस्त करने में सक्षम है।
संविधान में समिती सूची को शावमल करने की अिश्यकता क्यों पड़ी?
 आसमें कोइ संदह े नहीं कक राष्ट्रीय वहत के वलए एकीकृ त विवध की अिश्यकता होती है। ऄतः आस
कारण से भी समिती सूची के विषयों पर संसद को विवध बनाने का ऄवधकार कदया गया है। परं तु
ितामान में प्रत्येक राज्य में ऄलग-ऄलग मुद्दे/समस्याएं हैं वजनके समाधान के वलए ऄलग-ऄलग
दृवष्टकोण अिश्यक है। ऐसी वस्थवत में राज्य विधान मंडल द्वारा बनायी गयी विवधयां कइ बार
ऄवधक महत्िपूणा होती हैं।
 आसके ऄवतररि के न्द्र सरकार आन्हें वनदेश दे सकती है। ऄतः सुशासन सुवनवित करने हेतु संविधान
में एक समिती सूची की अिश्यकता महसूस की गइ। समिती सूची के संबंध में सरकाररया अयोग
ने महत्िपूणा वसफाररशें प्रस्तुत की है, वजनपर अगे चचाा की गइ है।
 संविधान में विधायी शवियों की भौगोवलक सीमाओं को भी संघीय पररकल्पना के ऄनुसार
पररभावषत ककया गया है। संसद संपूणा भारत या ईसके ककसी एक क्षेत्र के वलए विवध बना सकती
है। पुनः संसद को ऄवतररि क्षेत्रीय विधायी शवियां प्राप्त हैं वजसका ऄथा है कक संसदीय विवध ईन
भारतीय नागररकों तथा ईनकी संपवत्तयों पर भी लागू होती है, जो विश्व के ककसी भी भाग में रह
रहे हैं।

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 जबकक राज्य के िल ऄपने भौगोवलक सीमाओं के वलए विवध बना सकते हैं तथा ककसी राज्य द्वारा
वनर्तमत विवधयां राज्य की सीमाओं के बाहर लागू नहीं होती हैं। हालांकक आसके कु छ ऄपिाद
विद्यमान हैं।
 राज्यपाल को ककसी संसदीय विवध को राज्य के ऄनुसूवचत क्षेत्रों में लागू करने से रोकने का वनदेश
देने या ईस विवध में वनर्कदष्ट संशोधन को ऄपिाद के साथ लागू करने हेतु सशि ककया गया है।
2.2. प्रशासवनक सं बं ध (ऄनु च्छे द 256-263)

भारतीय संविधान वनमााताओं ने के न्द्र-राज्य प्रशासवनक संबंधों के संदभा में संविधान में विस्तृत ईपबंध
ककए हैं, ताकक के न्द्र-राज्य संबंधों में वििादों को न्यूनतम ककया जा सके । आनका वििरण वनम्नवलवखत है:

2.2.1. सं घ द्वारा राज्य सरकारों को वनदे श

 ऄनुच्छेद 256 के ऄनुसार प्रत्येक राज्य की कायापावलका शवि का आस प्रकार प्रयोग ककया जाएगा
वजससे संसद द्वारा बनाइ गइ विवधयों का और ऐसी विद्यमान विवधयों का, जो ईस राज्य में लागू
हैं, ऄनुपालन सुवनवित रहे और संघ की कायापावलका शवि का विस्तार ककसी राज्य को ऐसे
वनदेश देने तक होगा जो भारत सरकार को ईस प्रयोजन के वलए अिश्यक प्रतीत हों।
 डा. भीमराि ऄम्बेडकर ने ऄनुच्छेद 256 के प्रयोजन को दो महत्िपूणा कथनों के माध्यम से
व्याख्या की है: “पहला, िह सत्ता जो कायाकारी विवधयों (समिती क्षेत्र से संबंवधत) को लागू करती
है, भले ही िह कें द्रीय विधान मण्डल द्वारा पाररत की गइ हो ऄथिा राज्य विधान मण्डल द्वारा
पाररत की गइ हो, िे राज्यों के वलए लागू होंगी। दूसरा, ककसी विशेष वस्थवत में समिती सूची के
विषयों के संदभा में संसद यकद यह विचार करती है कक ककसी कानून के ऄनुपालन के वलए
कायाकारी शवि कें द्रीय सरकार के पास होनी चावहए, िहां ऐसा करने के वलए संसद के पास शवि
होगी।”
 ईपरोि के ऄवतररि कें द्र को यह ऄवधकार है कक िह एक या ऄवधक राज्यों को वनम्नवलवखत
मामलों पर ऄपनी कायाकारी शवियों के प्रयोग के वलए वनदेश से सकता है:
o राष्ट्रीय या सैन्य महत्ि के संचार के साधनों के रख-रखाि तथा वनमााण के संदभा में वनदेश
जारी ककया जा सकता है।
o रे लिे की सुरक्षा संबंधी वनदेश दे सकता है।
o बच्चों को प्राथवमक स्तर पर मातृभाषा में वशक्षा के वलए वनदेश जारी कर सकता है।
o राज्य में ऄनुसवू चत जनजावतयों के कल्याण के वलए विवशष्ट योजनाओं को लागू करने हेतु।
नोट: संपूणा देश में संसदीय कानूनों को लागू करने के वलए ये वनदेश अिश्यक हैं।
 एक या ऄवधक राज्यों द्वारा आन वनदेशों का पालन नहीं करने पर ऄनुच्छेद 365 में िर्तणत वस्थवत
व्युत्पन्न हो जाएगी, जहााँ राष्ट्रपवत को यह अभास हो सकता है या हो जाता है कक ऐसी वस्थवत
ईत्पन्न हो गइ है, वजसमें राज्य की सरकार/सरकारें संविधान के प्रािधानों के ऄनुसार नहीं चलायी
जा रही हैं। पररणामस्िरुप ऄनुच्छेद 356 के तहत ईि राज्य/राज्यों में राष्ट्रपवत शासन लगाया जा
सकता है और राज्य के प्रशासन को कें द्रीय वनयंत्रण के तहत लाया जा सकता है।

2.2.2. सं घ के ऄधीन अन िाले ककसी विषय का राज्य को प्रत्यायोजन

 सामान्यतः कायाकारी शवियां सातिीं ऄनुसच


ू ी में िर्तणत विषयों के ऄनुसार विभावजत की गइ हैं।
लेककन, ऄनुच्छेद 258(1) के संिध
ै ावनक प्रािधान के ऄनुसार, राष्ट्रपवत संबंवधत राज्य सरकार की
सहमवत से ईसे संघ के ककसी कायापालकीय कृ त्य (सशता या वबना शता) को सौंप सकता है।
 ऄनुच्छेद 258(2) के ऄनुसार, वजन विषयों पर राज्य के विधान मंडल को विवध बनाने की शवि
नहीं है, िहााँ संसद संघीय कानूनों के प्रितान के वलए ककसी राज्य या ईसके प्रावधकाररयों को
ऄवधकृ त कर सकती है।

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2.2.3. सं घ को कृ त्य सौंपने की राज्यों की शवि

 ऄनुच्छेद 258(A) के ऄनुसार ककसी राज्य का राज्यपाल, भारत सरकार की सहमवत से ईसे या
ईसके ऄवधकाररयों को संबंवधत राज्य की कायापावलका शवि के विस्तार िाले विषय/विषयों को,
सशता या वबना शता के सौंप सकता है।

2.2.4. ऄवखल भारतीय से िाएं

 कें द्रीय तथा राज्य सेिाओं के ऄवतररि, संविधान के ऄनुच्छेद 312 में के न्द्र ि राज्य दोनों के वलए
‘ऄवखल भारतीय सेिाओं’ के सृजन के संबंध में ईपबंध है।
 राज्यों के पास यह प्रावधकार है कक िह ऄवखल भारतीय सेिाओं के ऄवधकाररयों को वनलंवबत कर
सके । लेककन, ईनकी वनयुवि तथा ऄनुशासनात्मक कायािाही का ऄवधकार के िल राष्ट्रपवत में
वनवहत है।
 देश के प्रशासन में महत्िपूणा योगदान देने तथा वनणाायक क्षेत्रों के प्रबंधन हेतु एकीकृ त तथा
सुगरठत ऄवखल भारतीय सेिाओं के सृजन का ईपबंध संविधान में ककया गया है।
 आनकी भती, प्रवशक्षण, पदोन्नवत, ऄनुशासनात्मक मामले अकद से संबंवधत ईपबंधों का वनधाारण
के न्द्र सरकार करती है। ऄवखल भारतीय सेिाओं के सदस्य वनयुवि के ईपरांत राज्यों में तैनात ककए
जाते हैं, जहां िे राज्य सरकार के ऄधीन काया करते हैं।
 हालांकक, यह तका कदया जाता है कक ऄवखल भारतीय सेिाएं संघिाद के वसिांत के विपरीत हैं।
परं त,ु भारतीय प्रसंग में ऄवखल भारतीय सेिाओं के ऄवधकारी के न्द्र तथा राज्य दोनों के प्रशासवनक
मामलों की वजम्मेदारी का वनिाहन करते हैं, प्रशासवनक मामलों में दोनों को सहयोग करते हैं तथा
सम्पूणा देश के प्रशासन में एकरूपता सुवनवित करते हैं।
 ितामान में तीन ऄवखल भारतीय सेिाएं हैं: भारतीय प्रशासवनक सेिा, भारतीय पुवलस सेिा तथा
भारतीय िन सेिा) (ऄनुच्छेद 312 के प्रािधानों के तहत तीसरे ऄवखल भारतीय सेिा के रूप में
1966 में भारतीय िन सेिा का सृजन ककया गया)।

2.2.5. दो या ऄवधक राज्यों के वलए सं यु ि लोक से िा अयोग का गठन

 दो या दो से ऄवधक राज्य, एक प्रस्ताि के माध्यम से एक संयुि अयोग के गठन की मांग कर सकते


हैं। आस हेतु संबंवधत राज्यों की विधावयकाओं की सहमवत जरूरी है। संसद एक कानून के माध्यम से
ऐसे संयुि अयोग का गठन कर सकती है।
 संविधान में यह भी प्रािधान है कक दो या दो से ऄवधक राज्यों के ऄनुरोध पर संघ लोक सेिा
अयोग ईन राज्यों में ककसी भी सेिा हेतु वजसमें विशेष योग्यता िाले ऄभ्यर्तथयों की अिश्यकता
हो, एक संयुि वनयुवि की योजना बना सकती है।

2.2.6. ऄं त राा ज्यीय पररषद् (Inter State Council)

 भारत राज्यों का संघ है, जहां के न्द्र सरकार की भूवमका महत्िपूणा है। परं तु, ऄपनी नीवतयों को
लागू करने के वलए के न्द्र सरकार राज्यों पर वनभार है।
 के न्द्र ि राज्य के मध्य प्रभािी िाताा एिं ऄंतसारकारी सहयोग के वलए भारतीय संविधान के
ऄनुच्छेद 263 के ऄंतगात ऄंतरााज्यीय पररषद् के रूप में एक ऐसा मंच ईपलब्ध कराया गया है,
जहााँ सभी महत्िपूणा नीवतयों को बहुपक्षीय संिाद, बहस तथा अमसहमवत के वलए प्रस्तुत ककया
जाता है। आस ऄनुच्छेद के तहत राष्ट्रपवत को यह ऄवधकार कदया गया है, कक िह आस पररषद् के
कताव्यों की प्रकृ वत को पररभावषत करें ।

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 ऄंतरााज्यीय पररषद् राज्यों के मध्य ईठने िाले वििादों की जांच करता है तथा आन पर सलाह देता
है। आसके ऄवतररि यह दो राज्यों या के न्द्र-राज्य के मध्य समान वहत के मुद्दों की खोज कर सकता
है तथा ईन पर संिाद कर सकता है। यह नीवत तथा कायों के समन्िय में सहयोग प्रदान करता है।
 ऄनुच्छेद 263 के तहत ऄंतरााज्यीय पररषद् की स्थापना 1990 में की गइ थी। सिाप्रथम आस

पररषद् को सरकाररया अयोग की ऄनुशंसा पर स्थावपत ककया गया थाI


 आस पररषद् का ऄध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। आस पररषद् में सभी राज्यों एिं कें द्रशावसत प्रदेशों के
मुख्यमंत्री तथा प्रधानमंत्री द्वारा नावमत कें द्र सरकार के 6 कै वबनेट मंत्री सवम्मवलत होते हैं।
 ऄब तक ऄंतरााज्यीय पररषद् की 11 बैठकें अयोवजत की जा चुकी हैं तथा कु छ महत्िपूणा वनणाय
वलए गए हैं, जो वनम्नवलवखत हैं:

o राष्ट्रपवत के विचाराथा रखे गए विधेयकों का समयबि वनराकरण,


o के न्द्र ि राज्य के मध्य करों के विभाजन में िैकवल्पक योजना की स्िीकृ वत तथा
o देश में ऄनुच्छेद 356 के दुभाािनापूणा ईपयोग पर प्रवतबंधI
ऄंतरााज्यीय पररषद् से संबवं धत ऄन्य तथ्य:

2.2.6.1. कें द्र और राज्यों के मध्य सहयोग सु वनवित करने में भू वमका
 यह कें द्र-राज्य और ऄंतरााज्यीय संबंधों को मजबूत करने और नीवतयों पर चचाा के वलए सिाावधक
प्रभािशाली मंच है।

 यह नीवत वनमााण एिं ईसके त्िररत कायाान्ियन हेतु परस्पर सहयोग, समन्िय और विकास के एक
ईपकरण के रूप में काया करता है।
 यह राज्यों के मुख्यमंवत्रयों को ऄिसर प्रदान करता है कक िे राज्यों की चचताओं और मुद्दों को
पररषद् के समक्ष विचार के वलये रखें। ऄतः यह कें द्र और राज्यों के बीच ऄविश्वास को दूर करने में
सक्षम है I

2.2.6.2. पररषद् के कामकाज से सं बं वधत मु द्दे

 आसे के िल एक िाताा मंच के रूप में देखा जाता है आसवलए आस छवि को बदलने की अिश्यकता हैI
पररषद् को ऄपने कायाकरण से यह दशााने की अिश्यकता है कक आसके मंच पर ईठाये गए मुद्दें
ऄपने वनधााररत लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम हैं।
 आसकी वसफाररशें सरकार पर बाध्यकारी नहीं होती हैं।
 आसकी बैठक वनयवमत रूप से नहीं होती है। हाल ही में , निंबर 2017 में आसकी स्थायी सवमवत की
12िीं बैठक अयोवजत की गयी थी।

2.2.6.3. पररषद् को और मजबू त बनाने की अिश्यकता

 वित्त अयोग और ऄंतरााज्यीय पररषद् को साथ वमलकर संविधान के भाग XI और XII के


प्रािधानों को कियावन्ित करना चावहए, ताकक समुवचत वित्तीय हस्तांतरण और राजनीवतक
विकें द्रीकरण सुवनवित ककया जा सके ।
 आसे ऄंतरााज्यीय वििादों की जांच करने की शवि दी जानी चावहए वजसका ईल्लेख संविधान में भी
ककया गया हैI ककन्तु, 1990 में राष्ट्रपवत के अदेश के द्वारा आसके गठन के समय आसे यह शवि
प्रदान नहीं की गयीI

 आसे कें द्र और राज्यों के बीच के िल प्रशासवनक ही नहीं ऄवपतु राजनीवतक और विधायी अदान-
प्रदान के एक सशि मंच के रूप में भी विकवसत ककया जाना चावहए I

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2.2.6.4. पररषद् के सं बं ध में पुं छी अयोग की वनम्नवलवखत वसफाररशें भी विचारणीय है


 राज्यों के साथ ईवचत परामशा के पिात् वनधााररत एजेंडे पर विचार करने के वलये ऄंतरााज्यीय
पररषद् की प्रवतिषा कम से कम तीन बैठकों का अयोजन ककया जाना चावहए।
 आस पररषद् की संगठनात्मक संरचना में ऄवखल भारतीय सेिाओं के ऄवतररि कानून, प्रबंधन और
राजनीवत विज्ञान के विशेषज्ञों को भी सवम्मवलत ककया जाना चावहए।
 पररषद् के वलए एक स्थाइ सवचिालय की स्थापना की जानी चावहए, वजसमें कें द्रीय और राज्य
लोक सेिा के ऄवधकाररयों को प्रवतवनयुवि के माध्यम से वनयुि ककया जा सकता हैं। आसके
ऄवतररि सवचिालय को प्रासंवगक क्षेत्रों के विषय विशेषज्ञों का सहयोग प्रदान करने के साथ ही
कायाात्मक स्ितंत्रता भी प्रदान की जानी चावहए।
 सरकार द्वारा राष्ट्रीय विकास के कायों को भी ऄंतरााज्यीय पररषद् को स्थानांतररत ककया जा
सकता है।

2.2.6.5. ईभरते मु द्दे


 नीवत अयोग की गिर्ननग काईं वसल की सांगठवनक संरचना ऄंतरााज्यीय पररषद् के लगभग समान
है, जो कें द्र-राज्य के मुद्दों को संबोवधत करती है,।
 ककन्तु, ऄंतरााज्यीय पररषद् की विवशष्टता आसका संविधान के प्रािधानों के ऄनुरूप स्थावपत होना
है, जबकक नीवत अयोग के संबंध में संविधान में ऐसे ककसी प्रािधान का ईल्लेख नहीं हैI आसे के िल
एक कायाकारी अदेश द्वारा स्थावपत ककया गया है।
 ऄंतरााज्यीय पररषद् का संिैधावनक अधार राज्यों को ऄवधक सशि भूवमका प्रदान करता हैI ऄत:
यह स्पष्ट है कक राज्यों को नीवत वनमााण और कियान्ियन में महत्िपूणा स्थान प्राप्त होने से कें द्र-
राज्य संबंधों के सहज संचालन के वलए सहयोगी और समन्ियपूणा िातािरण का वनमााण होगा।

2.2.7. ऄं त राा ज्यीय नदी जल वििाद

 संविधान के ऄनु. 262(1) के ऄनुसार, “संसद ककसी ऄंतरााज्यीय नदी या नदी बेवसन में जल के
ईपयोग, वितरण या वनयंत्रण के संबंध में ककसी भी प्रकार की वशकायत या वििाद की वस्थवत में
विवध बनाकर ऄवधवनणाय प्रदान कर सकती है।” आसी पररप्रेक्ष्य में संसद ने ऄंतरााज्यीय जल वििाद
ऄवधवनयम, 1956 को ऄवधवनयवमत ककया है।

ऄंतरााज्यीय जल वििाद ऄवधवनयम, 1956


प्रमुख विशेषताएाँ
 रिब्यूनल (ऄवधकरण) का गठन।
 रिब्यूनल की शवियााँ वसविल कोटा के समान होंगी।
 रिब्यूनल के वनणायों के कियान्ियन हेतु योजनाओं के वनमााण की शवि।
 रिब्यूनल के विघटन एिं वनयम बनाने की शवि।
 जल वििादों का न्यावयक वनणाय (ऄवधवनणाय)।
 डाटा बैंक एिं सूचना का रखरखाि।
 सिोच्च न्यायालय एिं ऄन्य न्यायालयों के क्षेत्रावधकार को सीवमत करना।

2.2.7.1. ऄं त राा ज्यीय नदी जल वििाद: ऄद्यवतत तथ्य


पृष्ठभूवम
 भारत की ऄवधकांश नकदयााँ ऄंतरााज्यीय स्तर पर वििादग्रस्त हैं। भारत की सबसे बड़ी 12 नकदयों
में से 9 ऄंतरााज्यीय नकदयााँ हैं। भारत की मुख्यभूवम का 85% भाग बड़ी एिं मध्यम अकार िाली
ऄंतरााज्यीय नकदयों के ऄंतगात सवम्मवलत है।

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 ऄंतरााष्ट्रीय एिं ऄंतरााज्यीय सीमाओं से होकर बहने िाली सभी नकदयों का विवनयमन एिं विकास
ही संभावित वििादों का मूल कारण है।
 तेजी से बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण एिं औद्योगीकरण अकद के कारण जल की मांग तीव्र गवत से
बढ़ी है वजससे यह समस्या और भी विकराल होती जा रही है।
नदी जल वििादों के प्रभाि
 दीघाकाल तक चलने िाले एिं बार-बार ईत्पन्न होने िाले वििादों के कारण लोगों के मध्य विवभन्न
प्रकार की ऄसुरक्षाएं बढ़ती हैं तथा ईनकी अजीविका पर विपरीत प्रभाि पड़ता है।
 साथ ही, आसका विस्तृत प्रभाि राष्ट्र-राज्य की संघीय एकता पर भी पड़ता है। ये चचताएाँ ऄकारण
नहीं हैं। 2016 में कािेरी वििाद को लेकर तवमलनाडु एिं कनााटक के बीच नृजातीय एिं नागररक
स्तर पर होने िाले संघषा एिं चहसा की घटनाएाँ आसका ज्िलंत ईदाहरण हैं।
 आसका दूसरा ईदाहरण पृथक तेलंगाना राज्य के वलए हुअ अंदोलन है। आस अंदोलन के मुख्य
कारणों में से एक क्षेत्रीय स्तर पर ककया गया जल संसाधन का ऄसमानतापूणा अबंटन था।
 जल संसाधनों के ऄसमानतापूणा अिंटन के विषय का राजनीवतकरण भारत में नीवत-वनमााताओं के
समक्ष बड़ी चुनौती के रूप में ईभर रहा है। भारत में राज्यों एिं संघीय ढााँचे के वलए आस प्रकार के
राजनीवतक अंदोलनों के गहरे वनवहताथा हैं।
ितामान प्रािधानों की अलोचना
ितामान प्रािधानों की वनम्नवलवखत अधारों पर अलोचना की जाती हैंःः
 1956 के ऄवधवनयम के तहत, प्रत्येक ऄंतरााज्यीय जल वििाद के वलए पृथक रिब्यूनल गरठत ककये
जाने का प्रािधान है।
 ये रिब्यूनल वििादों के समाधान में ऄत्यवधक समय लगाते हैं। कािेरी एिं रािी-व्यास जैसे
रटब्यूनल िमशः विगत 26 एिं 30 िषो से ऄभी तक ककसी ऄंवतम वनणाय पर नहीं पहुाँच सके हैं।
मौजूदा प्रािधानों में ऄवधवनणाय हेतु वनवित समयसीमा का प्रािधान नहीं है।
 रिब्यूनल के वनणाय को लागू करने के वलए पयााप्त तंत्र का ऄभाि है।
 ऄंवतम समाधान का मुद्दा: ककसी भी पक्ष के ऄनुरूप वनणाय नहीं होने पर िह सिोच्च न्यायालय में
चला जाता है। ऄब तक अठ में से मात्र तीन मामलों में ही रिब्यूनलों के वनणायों को राज्यों ने
स्िीकार ककये हैं।

2.2.7.2. ऄं त राा ज्यीय नदी वििाद (सं शोधन) विधे य क, 2017

हाल ही में कें द्रीय जल संसाधन, नदी विकास एिं गंगा संरक्षण मंत्री ने लोकसभा में ऄंतरााज्यीय नदी
वििाद (संशोधन) विधेयक, 2017 प्रस्तुत ककया। यह ऄंतर-राज्यीय नदी जल वििादों के सन्दभा में कदए
गए ऄवधवनणायों को लागू कराने का प्रािधान करता है एिं ितामान कानूनी एिं संस्थागत ढांचे को
मजबूत बनाने पर बल देता है।
संशोधन विधेयक के महत्िपूणा प्रािधान
 आसके तहत के न्द्र सरकार द्वारा वििाद समाधान सवमवत (Dispute Redressal Committee;
DRC) के गठन का प्रािधान है, वजसका काया रिब्यूनल में ककसी भी मामले को भेजने से पूिा
सद्भािनापूणा ढंग से समाधान का प्रयास करना होगा। आसके वलए वनधााररत ऄिवध 1 िषा होगी
वजसे 6 माह तक के वलए अगे बढ़ाया जा सकता है।
 एकल रिब्यूनलः यह विधेयक ितामान में स्थावपत विवभन्न रिब्यूनलों के स्थान पर एक चसगल
स्टैंवडग रिब्यूनल (वजसकी ऄनेक बेंच हों) का प्रस्ताि करता है, वजसमें एक ऄध्यक्ष, एक ईपाध्यक्ष
एिं ऄवधकतम 6 सदस्य होंगे।
 सदस्यों की अयु एिं कायाकाल- ऄध्यक्ष का कायाकाल 5 िषा या 70 िषा की अयु (दोनों में जो भी
पहले पूणा हो) होगा।रिब्यूनल के ईपाध्यक्ष एिं ऄन्य सदस्यों का कायाकाल, जलवििाद की समावप्त
के साथ ही खत्म हो जाएगा।

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 समयसीमाः रिब्यूनल को ककसी वििाद का समाधान साढे चार िषों में करना होगा।
 ऄंवतम रूप से वनणाय: रिब्यूनल का वनणाय ऄंवतम एिं बाध्यकारी होगा।
 डाटा संग्रहः कें द्र सरकार के द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर डाटा संग्रह एिं डाटा बैंक के रखरखाि हेतु एक
एजेंसी को वनयुि एिं प्रावधकृ त करने का प्रािधान है।
 तकनीकी सहायताः रिब्यूनल को तकनीकी सहायता देने के वलए जांचकतााओं की वनयुवि का
प्रािधान है। ऐसे विशेषज्ञों की वनयुवि सेंिल िाटर आंजीवनयररग सर्तिस से की जाएगी।
मुद्दे:
 अिश्यकता ईत्पन्न होने पर प्रस्तुत विधेयक में आन स्थायी रिब्यूनलों की बेंचों की स्थापना का
प्रस्ताि ककया गया है। आस प्रकार, यह स्पष्ट नहीं है कक ककस प्रकार ये ऄस्थायी शाखाएाँ, ितामान
व्यिस्था से वभन्न है।
 सिोच्च न्यायालय ने हाल ही में यह वनणाय कदया है कक िह ऄंतरााज्यीय जल वििाद ऄवधवनयम
(ISWDA) के ऄंतगात स्थावपत जल रिब्यूनलों के ऄवधवनणायों के विरुि ऄपील सुन सकता है। आस
प्रकार, आससे भी न्यावयक प्रकिया में देरी होगी।
क्या ककया जाना चावहए:
 नकदयों को राष्ट्रीय संपवत्त घोवषत करनाः आसके माध्यम से राज्यों की ईस प्रिृवत्त पर ऄंकुश लगाना
संभि हो सके गा वजसके ऄंतगात िे नदी जल को ऄपना ऄवधकार मानते हैं।
 जल को समिती सूची में सवम्मवलत करनाः यह वसफाररश वमवहर शाह सवमवत की ररपोटा पर
अधाररत है वजसमें जल प्रबंधन हेतु कें द्रीय जल प्रावधकरण की ऄनुशंसा की गयी है। यह जल
संसाधन पर संसदीय स्थायी सवमवत के द्वारा भी समर्तथत है।
 संस्थागत तंत्र के ऄलािा, राज्यों में जल वििाद के मानिीय पहलू के प्रवत ईत्तरदावयत्ि की भािना
भी जागृत करना अिश्यक है।
 जल वििादों को राजनीवत से दूर रखना अिश्यक है। साथ ही, यह भी अिश्यक है कक राजनीवतक
दल आन वििादों का ऄनािश्यक राजनीवतकरण करके ऄनुवचत लाभ ईठाने से बचें।

2.2.8. ऄन्य प्रािधान

 आसके ऄवतररि ऄनुच्छेद 355 के न्द्र पर यह कताव्य अरोवपत करता है कक िह ककसी बाह्य अिमण
या अंतररक ऄशांवत से प्रत्येक राज्य की रक्षा करे तथा प्रत्येक राज्य की सरकार का आस संविधान
के प्रािधानों के ऄनुसार चलाया जाना सुवनवित करे ।
 राष्ट्रीय अपात (ऄनु. 352) की वस्थवत में के न्द्र के पास यह ऄवधकार होता है कक िह राज्यों को
ककसी भी विषय पर कायाकारी वनदेश जारी कर सके ।
 राज्यों में राष्ट्रपवत शासन (ऄनु. 356) के समय राष्ट्रपवत राज्य सरकार की शवियां तथा काया स्ियं
ग्रहण कर सकता है या राज्यपाल या ऄन्य राज्य प्रावधकारी को प्रावधकृ त कर सकता है।

2.3 वित्तीय सं बं ध (ऄनु च्छे द 268-293)

भारतीय संविधान में के न्द्र ि राज्यों के मध्य राजस्ि के वितरण पर विस्तृत चचाा की गइ है। संविधान
के भाग XII में ऄनु. 268-293 तक राज्यों के मध्य वित्तीय संबंधों का ईल्लेख है। के न्द्र ि राज्यों के मध्य
वित्तीय संबंधों का वनम्नवलवखत शीषाकों के ऄंतगात ऄध्ययन ककया जा सकता है:
 संघ द्वारा ईदगृहीत (levied) ककए जाने िाले ककन्तु राज्यों द्वारा संगह
ृ ीत (collected) तथा
विवनयोवजत ककए जाने िाले शुल्क (ऄनुच्छेद 268): स्टाम्प शुल्क, औषवध तथा प्रसाधन पर
ईत्पाद शुल्क संघ द्वारा ईदगृहीत ककतु राज्य द्वारा विवनयोवजत ककए जाते हैं।राज्य के भीतर
ईदगृहीत ऐसे शुल्क भारत के संवचत वनवध के भाग नहीं होंगे ऄवपतु ईस राज्य को सौंप कदए
जाएंगे।

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 सेिा कर, वजसे संघ द्वारा ईदगृहीत ककया जाएगा और संघ तथा राज्यों द्वारा संगह
ृ ीत एिं
विवनयोवजत ककया जाएगा: सेिा कर संघ द्वारा अरोवपत ककए जाएंगे परं तु के न्द्र ि राज्य दोनों
द्वारा संगृहीत ि विवनयोवजत ककए जाएंगे। आनके संग्रहण ि विवनयोजन के वसिान्त संसद द्वारा
वनर्तमत ककए गए हैं।
 संघ द्वारा ईदगृहीत और संगह
ृ ीत ककन्तु राज्यों को सौंपे जाने िाले कर (ऄनुच्छेद 269):
o संपवत्त के संबंध में कृ वष भूवम के ऄवतररि ईत्तरावधकार शुल्क।
o संपवत्त के संबंध में कृ वष भूवम के ऄवतररि संपदा शुल्क।
o रे लिे, समुद्र तथा िायु पररिहन के संबंध में माल या यावत्रयों पर टर्तमनल टैक्स।
 संघ द्वारा ईदगृहीत तथा संगह
ृ ीत लेककन के न्द्र ि राज्यों के बीच वितररत ककए जाने िाले कर (ऄनु.
270): कु छ कर संघ द्वारा ईदगृहीत तथा संगृहीत ककए जाते है, लेककन िे संघ ि राज्यों में वनवित
ऄनुपात में वितररत कर कदए जाते हैं। यह विभाजन वित्तीय संसाधनों के न्यायपूणा वितरण पर
अधाररत है। आस श्रेणी के सभी कर तथा शुल्क संघ सूची में ईल्लेवखत हैं।
नोट: आन करों के वितरण के तरीके वित्त अयोग की वसफाररश पर राष्ट्रपवत द्वारा वनधााररत ककए जाते
हैं।
 कु छ शुल्कों और करों पर संघ के प्रयोजनों के वलए ऄवधभार (ऄनु. 271): ऄनुच्छेद 269 एिं ऄनु.
270 में ककसी बात के होते हुए भी संसद आन शुल्कों या करों में ऄवधभार द्वारा िृवि कर सकती है।
ऐसे ऄवधभार के संपूणा अगम भारत की संवचत वनवध के भाग होंगे। आसमें राज्य की ककसी भी
प्रकार की वहस्सेदारी नहीं होगी।
 राज्य द्वारा ईदगृहीत, संग्रवहत तथा ईपयोग ककए जाने िाले करः आस प्रकार के कर को राज्य सूची
की प्रविवष्ट 20 में ईल्लेवखत ककया गया हैं। ये विशेष रूप से राज्य से संबंवधत हैं।
 सहायक ऄनुदान (ऄनुच्छेद 275): संसद भारत की संवचत वनवध से राज्यों को सहायता के वलए
ऄनुदान दे सकती है (ऄनु. 275)। यह मुख्यतः जनजातीय क्षेत्रों में कल्याणकारी कायों के प्रोत्साहन
के वलए है। आसी में ऄसम राज्य को कदया जाने िाला विशेष ऄनुदान भी शावमल है। आसे िैधावनक
ऄनुदान भी कहा जाता है तथा वित्त अयोग की वसफाररश पर कदया जाता है। आसके ऄवतररि
ऄनु. 282, लोक प्रयोजनों के वलए राज्यों को ऄनुदान प्रदान करने का प्रािधान करता है, ककन्तु
यह ऄनुदान संघ सरकार के वििेक के ऄधीन होता है।
 राज्यों द्वारा ईधार लेना (ऄनुच्छेद 294): भारत सरकार ककसी राज्य को ईधार दे सकती है या
ककसी राज्य द्वारा वलए गए ईधार पर गारण्टी दे सकती है।
 राष्ट्रपवत की पूिाानम
ु वत (ऄनुच्छेद 274): ऐसा कोइ भी विधेयक या संशोधन राष्ट्रपवत के पूिा
ऄनुमवत के वबना संसद के ककसी भी सदन में प्रस्तुत नहीं ककया जा सकता है, यकदः
o कोइ विधेयक या संशोधन जो ऐसा कर या शुल्क ऄवधरोवपत करता है वजससे राज्य वहतबि
है।
o कोइ विधेयक या संशोधन जो भारतीय अयकर ऄवधवनयम में पररभावषत ‘कृ वष अय’ के ऄथा
में पररितान करता हो।
o ईन वसिान्तों को प्रभावित करता है, वजनसे राज्यों को धनरावश वितररत की जाती है।
o जो संघ के प्रयोजनों के वलए ऄवधभार अरोवपत करता हो।
 ऄनुच्छेद 301 में भारत के राज्यक्षेत्र में सिात्र व्यापार, िावणज्य और समागम की स्ितंत्रता की
गारं टी दी गइ है। लेककन, संसद के पास लोकवहत में आस पर प्रवतबंध लगाने की शवि है।
 कृ वष अय को छोड़कर अय पर कर लगाने, ईदगृहीत करने की शवि संघ के पास है, कफर भी
राज्य विधावयका िृवत्त, व्यापार अकद पर कर लगा सकती है।

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 गैर कर-राजस्ि का वितरण: गैर-कर राजस्ि जैस-े पोस्ट, रे लिे, बैंककग, प्रसारण, वसक्का और मुद्रा,

कें द्रीय सािाजवनक क्षेत्रक ईपिम, लािाररश संपवत अकद संघ सरकार के पास जाते हैं। जबकक

चसचाइ, िन, मत्स्यन, राज्य सािाजवनक क्षेत्रक ईपिम अकद से संबंवधत गैर-कर राजस्ि राज्य
सरकार के पास जाते हैं।

2.4 के न्द्र-राज्य सं बं धों में की प्रिृ वत्तयााँ

2.4.1. स्ितं त्र ता के बाद भारतीय सं घ िाद का विकास

 भारतीय संघिाद का पहला चरण स्ितंत्रता से 1960 के मध्य तक विस्तृत है। प्रधानमंत्री
जिाहरलाल नेहरू सभी राज्यों के मुख्यमंवत्रयों को समय-समय पर के न्द्र सरकार के गवतविवधयों से
ऄिगत कराते रहे। ईन्होंने प्रत्येक राज्य को पत्र वलखकर विवभन्न मामलों के संबंध में सूवचत ककया
तथा राष्ट्रीय मुद्दों पर सहमवत बनाइ। भारतीय संघिाद का यह वनबााध काल आसवलए ऄवधक
सफल रहा क्योंकक लगभग सभी राज्यों में एकदलीय सरकार थी।
 लेककन, सन् 1967 के चुनाि के बाद कांग्रेस की नौ राज्यों में हार हुइ तथा आससे के न्द्र सरकार की
वस्थवत कमजोर हुइ। पररणामतः के न्द्र-राज्य संबंधों के नये युग या दूसरे चरण की शुरूअत हुइ।
राज्यों में गैर-कांग्रेसी सरकारों ने कें द्रीयकरण की प्रिृवत्तयों तथा के न्द्र सरकार के हस्तक्षेप का
विरोध ककया। राज्यों ने स्िायत्तता की मांग ईठाइ तथा ऄवधक शवियों ि वित्तीय संसाधनों की
मांग की। आसके पररणामस्िरूप के न्द्र ि राज्य के मध्य विवभन्न मुद्दों पर तनाि ईत्पन्न हुए। आनमें से
कु छ मुद्दे वनम्नवलवखत हैं:
o राज्यपालों की वनयुवि तथा बखाास्तगी,

o राज्यपालों की भेदभाि से ग्रवसत ि पक्षपातपूणा भूवमका,

o राज्यों में राष्ट्रपवत शासन,

o राज्यों में विवध ि व्यिस्था बनाए रखने के वलए कें द्रीय बलों की तैनाती,
o राज्य विधेयकों को राष्ट्रपवत के विचाराथा अरवक्षत करना,

o वित्त का विभाजन (के न्द्र-राज्य के मध्य),


o राज्य सूची के विषयों पर संघ का ऄवतिमण अकद।
 के न्द्र में गठबंधन सरकारों की लंबी ऄिवध के साथ 1980 के दशक के ईत्तरािा में संघिाद के

तीसरे चरण की शुरूअत हुइ। क्षेत्रीय दलों जैसे- DMK या RJD ने भारतीय राजनीवत में
लगभग डेढ़ दशक तक खुले तौर पर ऄपने वहतों की मांग की। आस तरह की मुखरता से राष्ट्रीय
दलों ने के न्द्र के कायाकरण में क्षेत्रीय दलों को ऄवधक महत्ि कदया। क्षेत्रीय दलों के बढ़ते प्रभाि
के बािजूद के न्द्र ि राज्यों के मध्य कइ मुद्दों पर वििाद बना रहा। ये मुद्दे विचाराथा हैं तथा आस
कदशा में कइ प्रयास ककए गए हैं।

2.4.2. प्रथम प्रशासवनक सु धार अयोग

 कें द्र सरकार के द्वारा मोरारजी देसाइ की ऄध्यक्षता में 1966 में छह सदस्यीय प्रथम प्रशासवनक

सुधार अयोग (ए,अर.सी.) की वनयुवि की गयी। आसे ऄन्य मामलों के साथ कें द्र-राज्य संबंधों के

परीक्षण का दावयत्ि भी सौंपा गया। 1969 में, ARC ने कें द्र-राज्य संबंधों पर प्रस्तुत ऄपनी ररपोटा
में 22 वसफाररशें प्रस्तुत कीं। अयोग के द्वारा प्रस्तुत की गयी कु छ महत्िपूणा वसफाररशें
वनम्नवलवखत हैं:

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o संविधान के ऄनुच्छेद 263 के तहत एक ऄंतरााज्यीय पररषद् का गठन ककया जाए।


o राज्यपाल के रूप में पद धारण करने िाले व्यवि का सािाजवनक जीिन और प्रशासन में लंबा
ऄनुभि हो तथा ईसका गैर-पक्षपातपूणा दृवष्टकोण हो।
o राज्यों को ऄवधकतम सीमा तक शवियों का प्रत्यायोजन।
o कें द्र पर राज्यों की वनभारता कम करने के वलए राज्यों को ऄवधक वित्तीय संसाधनों का
स्थानांतरण करना।
o राज्यों के ऄनुरोध पर ऄथिा ऄन्य ककसी मामले में राज्य में कें द्रीय सशस्त्र बलों की तैनाती।
लेककन, ARC की वसफाररशों पर कें द्र सरकार ने कोइ महत्िपूणा कारा िाइ नहीं की। आस कदशा में ऄगला
महत्िपूणा विकास सरकार के द्वारा सरकाररया अयोग का गठन था।

2.4.3. सरकाररया अयोग

 कें द्र सरकार ने सिोच्च न्यायालय के सेिावनिृत्त न्यायाधीश अर. एस. सरकाररया की ऄध्यक्षता में
कें द्र-राज्य संबंधों पर 1983 में तीन सदस्यीय अयोग का गठन ककया। अयोग ने ऄपनी ररपोटा
ऄक्टू बर 1987 में 247 वसफाररशों के साथ प्रस्तुत की।
 अयोग राजव्यिस्था से संबंवधत संरचनात्मक पररितानों के पक्ष में नहीं था। अयोग ने विविध
संस्थानों से संबंवधत मौजूदा संिध
ै ावनक व्यिस्था और वसिांतों को ईवचत और पयााप्त माना।
 परन्तु, अयोग ने कायाात्मक या पररचालन संबंधी पहलूओं में बदलाि की अिश्यकता पर बल
कदया। आसने संघ की शवियों को सीवमत करने की मांग को पूणा रूप से ऄस्िीकार कर कदया तथा
यह विचार व्यि ककया कक राष्ट्रीय एकता और ऄखंडता की रक्षा के वलए एक मजबूत कें द्र अिश्यक
है।
 हालांकक अयोग की यह मान्यता थी कक ऄवत-कें द्रीकरण की प्रकिया से बचा जाना चावहए। अयोग
की कु छ महत्िपूणा वसफाररशें वनम्नवलवखत हैं:
o ऄनुच्छेद 263 के तहत एक स्थायी ऄंतरााज्यीय पररषद् का गठन ककया जाना चावहए।
o ऄनुच्छेद 356 (राष्ट्रपवत शासन) का प्रयोग सभी ईपलब्ध विकल्पों के विफल हो जाने पर ही
ऄथाात् बहुत ही कम मामलों में एिं ऄपररहाया पररस्थवतयों में, ऄंवतम विकल्प के रूप में
ककया जाना चावहए।
o ऄवखल भारतीय सेिाओं को और मजबूत बनाया जाना चावहए तथा कु छ ऄन्य ऄवखल
भारतीय सेिाओं का सृजन ककया जाना चावहए।
o कराधान की ऄिवशष्ट शवियााँ संसद में वनवहत रहनी चावहए, जबकक ऄन्य ऄिवशष्ट शवियों
को समिती सूची में शवमल ककया जाना चावहए।
o राष्ट्रपवत द्वारा राज्य सरकार के विधेयकों को ऄनुमवत प्रदान करने से ऄस्िीकार करने की
वस्थवत में, आससे संबंवधत कारणों को राज्य सरकार को स्पष्ट रूप से सूवचत ककया जाना
चावहए।
o क्षेत्रीय पररषदों को नए वसरे से गरठत ककया जाना चावहए और संघिाद की भािना को
बढ़ािा देने के वलए आन्हें पुन: सकिय ककया जाना चावहए।
o संघ को राज्यों की सहमवत के वबना राज्यों में सशस्त्र बलों को तैनात करने की शवि होनी
चावहए। हालांकक, राज्यों से परामशा ककया जाना िांछनीय है।
o समिती सूची के विषयों पर कानून बनाने से पहले कें द्र को राज्यों से परामशा करना चावहए।
o राज्यपाल की वनयुवि के संबंध में मुख्यमंत्री से परामशा करने की प्रकिया संविधान में ही
वनधााररत की जानी चावहए।
o राज्यों में राज्यपाल के पांच िषा के कायाकाल को ऄत्यंत ऄवनिाया पररवस्थवतयों के ऄलािा
बावधत नहीं ककया जाना चावहए।
o वत्रभाषा सूत्र को समान रूप से सभी क्षेत्रों में आसकी िास्तविक भािना के ऄनुरू प लागू करने
के वलए कदम ईठाए जाने चावहए।
o कें द्र द्वारा रे वडयो और टेलीविजन जैसे विभागों को स्िायत्तता प्रदान की जानी चावहए। साथ
ही, ईनके पररचालन में विकें द्रीकरण को बढ़ािा देना चावहए।

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नोट : कदसंबर 2007 तक, कें द्र सरकार सरकाररया अयोग की 179 (247 में से) वसफाररशों लागू कर
चुकी हैं। सरकाररया अयोग की वसफाररशों के अलोक में सरकार द्वारा ईठाया गया सिाावधक महत्िपूणा
कदम 1990 में ऄंतरााज्यीय पररषद का गठन था।

2.4.4. एम. एम. पुं छी अयोग

ऄप्रैल 2007 में ईच्चतम न्यायालय के भूतपूिा मुख्य न्यायाधीश मदन मोहन पुछ
ं ी की ऄध्यक्षता में 'कें द्र-
राज्य संबंधों’ की समीक्षा के वलये एक अयोग का गठन ककया गया। अयोग ने 30 माचा, 2010 को सात
खंडों िाली एक ररपोटा सरकार को प्रस्तुत की। अयोग के ररपोटा के खंड दो में कें द्र-राज्य संबध
ं ों से
संबंवधत संिैधावनक योजनाओं की पड़ताल की गयी है। आसमें कदए गए कु छ सुझाि वनम्नवलवखत हैं:
(कें द्र-राज्य संबध
ं ों पर निीनतम सवमवत होने के कारण, आसकी वसफाररशें विस्तृत रूप से दी गइ हैं।)
 समिती सूची में शावमल विषयों पर कानून वनमााण के दौरान राज्यों से परामशा करने के संबध
ं में:
o समिती सूची (सूची III) में ऐसे विषय शावमल हैं वजन पर संघ और राज्य दोनों कानून बना
सकते हैं।
o कें द्र-राज्य संबंधों को बेहतर बनाने के वलए तथा समिती सूची में शावमल विषयों से संबंवधत
कानूनों के प्रभािी कायाान्ियन हेतु यह अिश्यक है कक समिती सूची में शावमल विषयों से
संबंवधत विधेयक संसद में पुरःस्थावपत करने से पूिा कें द्र और राज्यों के मध्य संबंवधत विषय
पर व्यापक सहमवत वनर्तमत बनाइ जाये।
o सहमवत स्थावपत करने के काया को ऄंतरााज्यीय पररषद् के माध्यम से संपन्न ककया जा सकता
है। यकद अिश्यक हो तो पररषद् विधेयकों से संबंवधत वििादास्पद मुद्दों को समाप्त करने के
वलए राज्यों के मंवत्रयों की एक सवमवत का गठन कर सकती है।
o आस प्रकार विधेयक में शावमल प्रशासकीय और राजकोषीय मुद्दों पर राज्यों का सहयोग भी
प्राप्त ककया जा सके गा।
o पररषद् में संपन्न की गयी समस्त कायािाही का ररकॉडा राज्यों के विचारों सवहत सं सद को
ईपलब्ध कराया जाना चावहए।
o आस प्रकार समिती सूची के विषयों पर विधेयक पुरःस्थावपत करने की प्रकिया में आन सभी
तथ्यों का प्रयोग ककया जाना चावहए।
 सूची II से सूची III में प्रविवष्टयों के स्थानांतरण के संबध
ं में:
o ऄनुच्छेद 368(2) में िर्तणत प्रकिया के ऄनुसार संसद को संविधान के ककसी भी प्रािधान में
संशोधन करने की शवि प्रदान की गयी है (बशते ऐसा संशोधन संविधान के मूल ढााँचे के
प्रवतकू ल न हो)।
o आस सन्दभा में एक बड़ा प्रश्न यह है कक क्या संसद को आस प्रकिया के माध्यम से राज्यों की
विधायी शवियों को एकतरफा ढंग से समाप्त या सीवमत करने का ऄवधकार होना चावहए
ऄथिा आसमें राज्यों की भूवमका भी सुवनवित की जानी चावहए?
o आस पररदृश्य में यह स्पष्ट है कक राज्य सूची में शावमल तथा समिती सूची में स्थानांतररत
विषयों के संबंध में राज्यों के वलए ऄवधक स्ितंत्रता को सुवनवित करना ही कें द्र-राज्य संबंधों
को बेहतर बनाने की कुं जी हैं।
o आस संदभा में, एक संयुि संस्थागत तंत्र के माध्यम से यह जांच करना ईपयुि होगा कक क्या
कें द्रीय कानून (स्थानांतररत विषय पर) के ऄन्तगात संबंवधत विषय के प्रशासन ने ऄपने ईद्देश्य
की पूर्तत की है तथा क्या राज्यों के ऄनन्य ऄवधकार क्षेत्र को सीवमत करने िाली आस व्यिस्था
को जारी रखना िांछनीय है?
o यकद आस प्रकार की गयी जांच से सकारात्मक वनष्कषा नहीं प्राप्त होता है तो कें द्र तथा राज्यों के
बीच बेहतर संबंधों के वहत में संबंवधत विषय को पहले की भांवत राज्य सूची में स्थानांतररत
कर कदया जाना चावहए।
o कें द्र एिं राज्यों के बीच आस प्रकार विकवसत संबंधों के माध्यम से यह अशा की जा सकती है
कक राज्य भी संविधान के भाग IX और IX-A में वनधााररत विषयों और संबंवधत शवियों को
पंचायतों और नगरपावलकाओं को स्थानांतररत करने हेतु प्रोत्सावहत होंगे।

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 समिती (सूची) क्षेत्रावधकार संबध


ं ी मामलों के प्रबंधन के संबध
ं में,
o समिती सूची के विषयों पर कें द्र और राज्यों की संयुि वजम्मेदारी है। ऄतः स्िाभाविक रूप से
समिती क्षेत्रावधकार तथा राज्य सूची से समिती सूची में स्थानांतररत विषयों पर वनयवमत
परामशा के माध्यम से ही कानून वनमााण प्रकिया संपन्न की जानी चावहए।
o पुंछी अयोग के द्वारा समिती या ऄवतव्यापी क्षेत्रावधकार संबंधी विषयों के प्रबंधन में
ऄंतरााज्यीय पररषद् के वलए एक वनयवमत वनरीक्षणकताा (auditing) की भूवमका की
वसफाररश की गयी है।
 राष्ट्रपवत के विचाराथा अरवक्षत विधेयकों के संबध
ं में
o ऄनुच्छेद 201 के ऄनुसार, राष्ट्रपवत राज्यपाल द्वारा ईसके विचार के वलए अरवक्षत ककए गए
विधेयक को ऄनुमवत प्रदान कर सकता है या ऄनुमवत रोक सकता है।
o यकद राष्ट्रपवत ककसी भी संदश
े के साथ विधेयक को िापस लौटाता है, तो राज्य विधान मंडल
विधेयक को राष्ट्रपवत के विचार हेतु पुनः प्रस्तुत ककये जाने के वलए छह महीने की ऄिवध के
भीतर कफर से पुनर्तिचार करे गा।
o राज्यों ने आस तथ्य के अधार पर चचता व्यि की है कक राष्ट्रपवत के विचार हेतु अरवक्षत
विधेयक कभी-कभी ऄवनवित काल तक रोक वलए जाते हैं। यहााँ तक की कभी कभी यह
ऄिवध राज्य विधान मंडल के कायाकाल से भी ऄवधक हो जाती है। कें द्र द्वारा आस प्रकार
राज्यों के विधेयकों को रोका जाना लोकतांवत्रक पहलूओं की ऄिहेलना करने के साथ ही मूल
ढांचे का ईल्लंघन करना भी होगा (संविधान के संघीय चररत्र के संदभा में)।
o आसवलए, राष्ट्रपवत के द्वारा विधेयक पर ऄनुमवत देने या ऄनुमवत रोकने संबंधी सूचना ईवचत
समयसीमा के ऄंदर राज्य को दी जानी चावहए।
o वजस प्रकार ऄनुच्छेद 201 में राज्यों के विधान मंडलों के वलए (राष्ट्रपवत द्वारा िापस लौटाये
गए) विधेयकों पर पुनर्तिचार के वलए छह महीने की ऄिवध वनधााररत की गयी है, ईसी प्रकार
आस ऄिवध (ऄथाात् 6 माह की ऄिवध) को राष्ट्रपवत के वलए भी लागू ककया जा सकता है।
 संवध या करार करने के संबध
ं में संघीय कायापावलका की शवि तथा कें द्र-राज्य संबध

o विदेशी राष्ट्रों के साथ संवधयााँ और समझौतें करने तथा विदेशी राष्ट्रों के साथ संवधयों,
समझौतों और ऄवभसमयों के कायाान्ियन संबंधी विषय पर कें द्र सरकार (सूची I की प्रविवष्ट
14) को ऄवधकार प्राप्त हैं।
o ईल्लेखनीय है कक ऄनुच्छेद 253 के ऄनुसार संसद को ककसी ऄन्य देश या देशों के साथ की
गयी ककसी संवध, करार या ऄवभसमय ऄथिा ककसी ऄंतरााष्ट्रीय सम्मेलन, संगम या ऄन्य
वनकाय में ककये गए ककसी विवनिय के कायाान्ियन के वलए भारत के सम्पूणा राज्यक्षेत्र या
ईसके ककसी भाग के वलए विवध बनाने की शवि है।
o संवध करने की संघ की विस्तृत शवि को देखते हुए अयोग ने आस शवि के व्यिवस्थत प्रयोग
हेतु आस विषय पर कानून वनमााण की सलाह दी हैI अयोग का मानना है कक संघीय संरचना
में विधायी और कायाकारी शवियों के सन्दभा में संघ की संवध या करार संबंधी शवि का
वनरपेक्ष या मनमाना प्रयोग नहीं ककया जाना चावहए।
o कइ राज्यों ने आस विषय पर ऄपनी चचता व्यि की तथा अयोग से आस संबंध में राज्यों के
वहतों की रक्षा करने के वलए ईवचत ईपाय सुझाने की मांग की। पूंछी अयोग ने सूची I की
प्रविवष्ट 14 के विषय पर प्रस्तावित कें द्रीय कानून में वनम्नवलवखत पहलुओं को शावमल ककए
जाने की वसफाररश की:
(a) चूंकक संवध, सम्मेलन या करार का संबंध राज्यों के अंतररक या बाह्य सभी प्रकार के मुद्दों से
संबंवधत होता हैं। ऄतः आस शवि के प्रयोग के संबंध में एक समान प्रकिया का पालन नहीं
ककया जा सकता। पुनः संवध में जरटल, दीघाकाल तक चलने िाली, बहु-स्तरीय िातााएं

शावमल होती हैं, वजसके ऄंतगात समायोजन, समझौता तथा लेन-देन संबंधी प्रकियाएं शावमल
होती हैं। ऄतः समझौता िाताा में शावमल होने िाले सभी वहतधारकों से संवध की प्रकिया में
कानूनी प्रािधानों के ऄक्षरशः पालन करने की ऄपेक्षा नहीं की जा सकती। जहां संविधान में

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ईवल्लवखत कें द्र की शवियों को नजरऄंदाज नहीं ककया जा सकता, िहीं ऄलग-ऄलग क्षेत्रों में
वनिास करने िाले तथा विवभन्न व्यिसायों में शावमल व्यवियों के ऄवधकारों से भी समझौता
नहीं ककया जा सकता है। आसवलए संघ की संवध करने संबंधी शवियों को विवनयवमत करने के
वलए एक कानून की अिश्यकता है।
(b) वजन समझौतों का संबंध मूलतः रक्षा, विदेशी मामलों अकद से है तथा वजनका भारतीय संघ
के राज्यों या व्यविगत ऄवधकारों पर कोइ ऄसर नहीं पड़ता है, ईन्हें एक ऄलग श्रेणी में रखा
जा सकता है। आस प्रकार के मुद्दों पर कें द्र वबना ककसी संसदीय चचाा के ही समझौते को ऄं वतम
रूप दे सकता है। हालांकक, आस समझौते को ऄंवतम रूप कदए जाने से पूिा आसे कें द्र सरकार के
संबंवधत मंत्रालय की संसदीय सवमवत के समक्ष भेजा जाना बुविमतापूणा होगा।
(c) ऄन्य संवधयााँ जो नागररकों के ऄवधकारों और दावयत्िों को प्रभावित करने के साथ ही राज्य
सूची में शावमल विषयों पर प्रत्यक्ष प्रभाि डालती हैं, ईन्हें राज्यों और संसद के प्रवतवनवधयों
की ऄवधकावधक भागीदारी के माध्यम से ही ऄंवतम रूप प्रदान ककया जाना चावहए। आस
प्रयोजन के वलए प्रस्तावित संवध के विषय तथा संवध में शावमल राष्ट्रीय वहतों से संबंवधत मुद्दों
को समावहत करने िाला एक नोट तैयार ककया जाना चावहए। आस नोट को संवध में शावमल
संबंवधत कें द्रीय मंत्रालय द्वारा तैयार ककया जा सकता है तथा राज्यों के विचारों और सुझािों
को जानने के वलए राज्यों में भेजा जा सकता है। ईसके ईपरांत प्राप्त विचारों और सुझािों से
िाताा प्रकिया में शावमल टीम को संवक्षप्त रूप में ऄिगत कराया जा सकता है।
(d) ऐसे संवध या समझौते हो सकते हैं वजनके लागू ककए जाने पर राज्यों की वित्तीय और
प्रशासवनक क्षमता पर ऄवतररि बोझ पड़े ऄथिा यह भी संभि है कक राज्यों को कु छ विशेष
ईत्तरदावयत्िों का वनिाहन करना पड़े। ऐसी वस्थवत में कें द्र के द्वारा राज्यों पर पड़ने िाले
ऄवतररि बोझ को िहन करने में सहायता प्रदान करनी चावहए। आस संबंध में कें द्र एिं राज्य
अपसी सहमवत से ककसी सूत्र का वनधाारण कर सकते हैं। संवध और समझौतों के कारण ईत्पन्न
होने िाले वित्तीय ईत्तरदावयत्िों के कारण राज्यों पर पड़ने िाले प्रभाि को समय-समय पर
गरठत होने िाले वित्त अयोगों के वलए विचार का स्थायी संदभा होना चावहए। संवध/समझौते
के कायाान्ियन के दौरान राज्यों पर पड़ने िाले ऄवतररि वित्तीय बोझ को कम करने के वलए
अयोग को क्षवतपूर्तत फामूाले की वसफाररश करने के वलए कहा जा सकता है।
 राज्यपाल की वनयुवि और हटाने के संबध
ं में
o संविधान द्वारा प्रदत्त राज्यपाल के पद की वस्थवत और महत्ि को देखते हुए तथा राज्य में
संिैधावनक शासन बनाए रखने में ईनकी महत्िपूणा भूवमका को ध्यान में रखते हुए, यह
महत्िपूणा है कक संविधान में राज्यपाल के पद पर वनयुवि के वलए अिश्यक योग्यता या
पात्रता का स्पष्ट प्रािधान हो।
o ितामान में ऄनुच्छेद 157 में के िल यह स्पष्ट ककया गया है कक राज्यपाल के पद पर वनयुि

होने िाले व्यवि को भारत का नागररक होना चावहए तथा ईसने 35 िषा की अयु पूरी कर
ली हो।
o सरकाररया अयोग ने पात्रता मानदंडों के संबंध में जिाहरलाल नेहरू के ईिरण का हिाला
देते हुए राज्यपाल का चयन करने हेतु कु छ प्रमुख मानदंडो की वसफाररशें की थी।वजसे
राज्यपाल वनयुि ककया जान हो ईसके संबंध में अयोग द्वारा सुझाये गए मानदंड हैं:
(a) िह जीिन के ककसी विशेष क्षेत्र में प्रख्यात व्यवि होना चावहए।
(b) िह राज्य के बाहर का व्यवि होना चावहए।
(c) िह तटस्थ व्यवि होना चावहए तथा राज्यों की स्थानीय राजनीवत से वनकटता से संबि नहीं
होना चावहए।

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(d) िह ऐसा व्यवि होना चावहए वजसने सामान्य तौर पर और विशेष रूप से हाल के कदनों में
राजनीवत में सकियतापूिक
ा भागीदारी नहीं की है।
o यहााँ ईल्लेखनीय है कक "प्रख्यात", "तटस्थ व्यवि", "हाल के कदनों में राजनीवत में सकियतापूिाक
भागीदारी नहीं" जैसे पदों एिं िाक्यांशों की ऄलग-ऄलग पररस्थवतयों में ऄलग-ऄलग व्याख्या की
गयी है।
o राज्यपाल को पांच िषा का एक वनवित कायाकाल प्रदान ककया जाना चावहए तथा ईसकी
पदच्युवत कें द्र सरकार की आच्छा पर वनभार नहीं होना चावहए। ऄनुच्छेद 156 (i) में "राष्ट्रपवत के
प्रसादपयंत" िाक्यांश को “ईवचत प्रकिया” शब्दािली से प्रवतस्थावपत ककया जाना चावहए, वजसके
तहत राज्यपाल को ईसके पद से हटाये जाने से पूिा ऄपना पक्ष रखे जाने की ऄनुमवत दी जानी
चावहए।
o संविधान के ऄनुच्छेद 61 में राष्ट्रपवत के वलए वनधााररत की गयी महावभयोग की प्रकिया को
राज्यपाल के वलए भी ऄपनाया जाना चावहए। राज्यपाल के पद की गररमा को सुवनवित करने के
वलए यह प्रािधान अिश्यक है।
 राज्यपाल की वििेकाधीन शवियों के संबध
ं में
o ऄनुच्छेद 163(2) के वनिाचन से यह स्पष्ट होता है कक राज्यपाल के पास संविधान द्वारा स्पष्ट रूप
से प्रदान की गयी वििेकाधीन शवियों के ऄवतररि भी वििेकावधकारों की एक व्यापक
ऄपररभावषत शवि है।
o आस मान्यता को समाप्त ककये जाने की अिश्यकता है कक संविधान द्वारा आस ऄनुच्छेद के तहत
राज्यपाल को प्रदत्त सभी शवियां ईसकी वििेकाधीन शवियों के ऄंतगात अती हैं।
o ऄनुच्छेद 163(2) के तहत वििेकाधीन शवियों के दायरे की समुवचत व्याख्या की जानी चावहए।
यह स्पष्ट ककया जाना चावहए कक ऄनुच्छेद 163 राज्यपाल को ऄपनी मंवत्रपररषद् की सलाह के
वबना या ईसकी सलाह के विरुि काया करने के वलए वििेकाधीन शवियााँ प्रदान नहीं करता है।
o अयोग का मानना है कक राज्यपाल द्वारा प्रयोग की जाने िाली वििेकाधीन शवियों का क्षेत्र
सीवमत है और आस सीवमत क्षेत्र में ईसके द्वारा वलए गए वनणाय स्िेच्छाचारी ऄथिा मनमाने
अधार पर नहीं होने चावहए। ईसके द्वारा वलया गया कोइ भी वनणाय तका पूणा, औवचत्यपूणा तथा
सद्भािना पर अधाररत होना चावहए।
o राज्य के विधान मंडल द्वारा पाररत ककए गए विधेयकों के संबंध में राज्यपाल को यह घोवषत करने
की शवि है कक िह ककसी विधेयक को ऄनुमवत देता है या ऄनुमवत रोक लेता है ऄथिा विधेयक
को राष्ट्रपवत के विचार के वलए सुरवक्षत रखता है। ईसके पास विधान मंडल द्वारा पाररत विधेयकों
(धन विधेयक को छोड़कर) को सदन के पास पुनर्तिचार के वलए ऄपने संदश े ों के साथ लौटाने का
वििेकावधकार भी है। ऄगर आस तरह के पुनर्तिचार के पिात् विधेयक को संशोधनों के साथ या
वबना ककसी संशोधन के पाररत ककया जाता है तो राज्यपाल विधेयक पर सहमवत देने के वलए
बाध्य है।
o आसके ऄलािा, राज्यपाल के द्वारा विधेयकों को ऄनुमवत प्रदान करने या रोक लेने ऄथिा राष्ट्रपवत
के विचाराथा सुरवक्षत करने के वलए समयसीमा वनधााररत करना जरूरी है।
o अरवक्षत विधेयक पर राष्ट्रपवत के संदश
े के पिात् कायािाही करने के वलए राज्य विधान मंडल के
वलए वनधााररत 6 महीने की समय सीमा को राष्ट्रपवत को वनणाय वलए जाने के वलए भी वनधााररत
की जानी चावहए (ऄथाात् राष्ट्रपवत के वलए भी 6 माह की समय-सीमा वनधााररत की जानी
चावहए)।
o वत्रशंकु विधानसभा के मामले में मुख्यमंत्री की वनयुवि में राज्यपाल की भूवमका के प्रश्न पर पूिा में
विशेषज्ञ अयोगों के द्वारा मत और वसफाररशें प्रस्तुत की गयी हैं। आन सभी विचारों को ध्यान में
रखते हुए, आस संबंध में संिैधावनक परम्पराओं के रूप में पालन ककये जाने हेतु कु छ वनवित
कदशावनदेशों को वनधााररत ककया जाना अिश्यक है। ये कदशावनदेश वनम्नवलवखत हो सकते हैं:

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(a) विधानसभा में सबसे ज्यादा सदस्यों का समथान प्राप्त दल या दलों के गठबंधन को सरकार
बनाने के वलए अमंवत्रत ककया जाना चावहए।
(b) यकद चुनाि-पूिा गठबंधन या मोचाा है, तो आसे एक राजनीवतक दल के रूप में माना जाना
चावहए और यकद आस तरह का गठबंधन बहुमत प्राप्त कर लेता है, तो गठबंधन के नेता को
राज्यपाल द्वारा सरकार बनाने के वलए अमंवत्रत ककया जाएगा।
(c) यकद ककसी भी दल या चुनािपूिा गठबंधन के पास स्पष्ट बहुमत नहीं है, तो राज्यपाल को नीचे
दी गयी प्राथवमकता के ऄनुसार मुख्यमंत्री का चयन करना चावहए:
 दलों का ऐसा समूह वजसने चुनाि-पूिा गठबंधन ककए हैं तथा वजनके पास सिाावधक
सदस्यों का समथान प्राप्त हैं।
 सबसे बड़ी एकल पाटी वजसने ऄन्य सदस्यों के समथान से सरकार बनाने के वलए दािा
प्रस्तुत ककया हो।
 चुनाि के बाद वनर्तमत गठबंधन, वजसके सभी सहयोगी सरकार में शावमल होने पर
सहमत हों।
 चुनाि के बाद ऐसा गठबंधन जहााँ कु छ दल सरकार में शावमल होना चाहते हों तथा कु छ
बाहर से समथान करना चाहते हों।
o मुख्यमंत्री की बखाास्तगी के प्रश्न पर राज्यपाल के द्वारा प्रत्येक वस्थवत में मुख्यमंत्री को सदन में
बहुमत सावबत करने के वलए कहा जाना चावहए तथा बहुमत वसि करने के वलए अिश्यक
समयसीमा भी वनधााररत करना चावहए।
 बाह्य अिमण एिं अंतररक ऄशांवत से राज्यों की रक्षा करने के संघ के दावयत्ि के संबध ं में
o भारत की एकता और ऄखंडता को बनाये रखने हेतु संघ को अंतररक ऄशांवत जैसी वस्थवतयों
में राज्यों की रक्षा करने का दावयत्ि प्रदान ककया गया है।
o दृष्टव्य है कक ‘अतंररक ऄशांवत’ अम तौर पर राज्यों के द्वारा प्रशावसत एिं वनपटे जाने िाले
विषय हैं। हालांकक कें द्र सरकार, राज्य के वबना ककसी ऄनुरोध के भी आस दावयत्ि की पूर्तत हेतु
अिश्यक शवि का प्रयोग कर सकती है। यह प्रािधान संविधान में िर्तणत संघीय योजना से
पूणत
ा ः संगत है।
o आस प्रकार ऐसे मामले में एिं पररवस्थवतयों की प्रकृ वत, समय और अंतररक ऄशांवत की
गंभीरता के ऄनुरूप कें द्र के द्वारा विविध कारा िाइयााँ की जा सकती हैं।
o हालााँकक, कें द्र सरकार समस्या को वनयंवत्रत करने के वलए राज्य को आसके संसाधनों की सबसे
ईवचत प्रयोग की सलाह दे सकती है। ऄवधक गंभीर पररवस्थवतयों में, राज्यों के प्रयासों को
सशि करने के वलए संघ द्वारा व्यवि, सामग्री ऄथिा वित्त के रूप में सहायता प्रदान करना
अिश्यक हो सकता है।
o चहसक पररवस्थवतयों (आतनी गंभीर नहीं कक ऄनुच्छेद 352 के तहत अपातकाल घोवषत ककया
जाए) ऄथिा ऄशांवत की दीघा पररवस्थवतयों में राज्य की पुवलस को कानून व्यिस्था बनाए
रखने हेतु कें द्रीय बलों की अिश्यकता पड़ सकती है। समस्याजनक घटनाओं के दोबारा घरटत
होने से रोकने के वलए भी अिश्यक कदम ईठाये जा सकते हैं।
o ऄनुच्छेद 355 के ऄनुसार संघ का यह कताव्य होगा कक िह बाह्य अिमण और अंतररक
ऄशांवत से प्रत्येक राज्य की संरक्षा करे और प्रत्येक राज्य की सरकार का आस संविधान के
ईपबंधो के ऄनुसार चलाया जाना सुवनवित करे ।
o दृष्टव्य है कक अतंररक ऄशांवत की वस्थवत वनर्तमत हो गयी है ऄथिा नहीं, आसका वनणाय पूरी
तरह से संघ पर छोड़ कदया गया है। यद्यवप कानूनी रूप से संघ सरकार कोइ भी कदम ईठाने
में समथा है, ककन्तु ईससे यह ऄपेक्षा की जाती है कक ककसी राज्य में सशस्त्र बलों की तैनाती से
पहले यह राज्यों की सहमवत प्राप्त करने का प्रयास करे गा।

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o बाहय अिमण या अंतररक ऄशांवत के कारण राज्य प्रशासन ऄथिा संिैधावनक मशीनरी को
गंभीर क्षवत पहुंचने की वस्थवत में ऄनुच्छेद 355 के तहत ऄपने दावयत्िों के वनिाहन हेतु संघ के
समक्ष ईपलब्ध सभी िैकवल्पक साधनों के प्रयोग के पिात् ही ऄनुच्छेद 356 का प्रयोग ककया
जाना चावहए। दूसरे शब्दों में 356 का प्रयोग प्रत्येक "राज्य में संिैधावनक मशीनरी की

विफलता" की वस्थवत में ही ककया जाना चावहए।


o ऄनुच्छेद 356 के प्रयोग की कसौटी ‘राज्यों में संिैधावनक मशीनरी की विफलता’ को स्पष्ट
ककये जाने की अिश्यकता है। आस काया को संविधान संशोधन के माध्यम से अिश्यक कदशा
वनदेशों को शावमल करने के द्वारा ककया जा सकता है।
o एस. अर. बोम्मइ बनाम भारत संघ मामले (1994) में सिोच्च न्यायालय के ऐवतहावसक
वनणाय के प्रकाश में आन कदशा-वनदेशों को वनधााररत ककया जाना चावहए। आससे कें द्र-राज्य
संबंधों को सहज बनाने में मदद वमलेगी।
 ऄनुच्छेद 355 और 356 के तहत "स्थानीय अपातकाल" (local emergency) के संबध
ं में
o ितामान पररदृश्य में अपातकाल को लागू करने से संबंवधत प्रािधानों को कठोर बना कदया
गया है। ऄनुच्छेद 352 और 356 का प्रयोग के िल ऄंवतम ईपाय के रूप में ही ककया जा
सकता है।
o ऄतः ऄनुच्छेद 355 के तहत राज्यों की रक्षा करने के संघ के दावयत्ि को देखते हुए यह
अिश्यक है कक एक संिैधावनक या कानूनी ढांचे की स्थापना की जाये ताकक ऄनुच्छेद 352

और 356 के तहत वबना चरम कदमों को ईठाये ही संघ द्वारा अिश्यक हस्तक्षेप ककया जा
सके ।
o "स्थानीय अपातकाल" के वलए अिश्यक मानकों का सृजन एिं ऐसे मानकों के ईपलब्ध रहने
के कारण संघ द्वारा विशेष तथा स्थानीय पररवस्थवतयों के ऄनुरूप अिश्यक कदमों को ईठाये
जाने के दौरान राज्य सरकार काया करती रहेगी तथा विधानसभा भी ऄवस्तत्ि में बनी रहेगी।
o स्थानीय अपातकाल को लागू ककया जाना ऄनुच्छेद 355 के तहत प्राप्त ऄवधदेश के ऄंतगात
पूरी तरह से िैध है। आस सन्दभा में संघ सूची की प्रविवष्ट 2A वजसके ऄन्तगात ककसी भी राज्य
में नागररक प्रशासन की सहायता हेतु संघ के द्वारा सशस्त्र बलों की तैनाती की जाती है तथा
राज्य सूची की प्रविवष्ट 1 महत्िपूणा है जो राज्य में लोक व्यिस्था बनाये रखने से संबंवधत है।

ऄतः यह स्पष्ट है कक ऄनुच्छेद 355 न के िल संघ पर एक दावयत्ि अरोवपत करता है बवल्क


आस दावयत्ि को पूरा करने के वलए सभी अिश्यक युवियुि कदमों को ईठाने तथा साधनों के
प्रयोग हेतु भी प्रावधकृ त करता है।
o आस शवि का प्रयोग करने के वलए एक स्ितंत्र संविवध के द्वारा कानूनी ढांचे का वनमााण ककया
जाना चावहए। आस सन्दभा में अपदा प्रबंधन ऄवधवनयम 2005 तथा सांप्रदावयक चहसा और
पुनिाास विधेयक की रोकथाम, 2006 के मॉडल से प्रेरणा ली जा सकती है।
o ऄनुच्छेद 355 के ऄन्तगात ईवल्लवखत "बाहय अिमण" या "अंतररक ऄशांवत" के दायरे रहते
हुए ऄसाधारण पररवस्थवतयों को सुस्पष्ट करते हुए आसे एक विशेष क़ानून में समावहत ककया
जाना चावहए। ऐसी पररवस्थवतयों में वनम्नवलवखत विषय शावमल हो सकते हैं:
(a) ऄलगाििादी तथा चहसा की ऐसी ऄन्य घटनाएाँ जो भारत की संप्रभुता और ऄखंडता के समक्ष
खतरा ईत्पन्न करें ।
(b) सांप्रदावयक या विवभन्न धार्तमक गुटों के बीच चहसा जो देश की धमावनरपेक्षता के वलए खतरा
हो।

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(c) प्राकृ वतक या मानि वनर्तमत अपदाएं वजनकी प्रकृ वत ऐसी हो कक आनका सामना करना राज्य
की क्षमता से परे हो।
 राज्य को वनदेश देने की संघ की शवि के संबध
ं में
o यद्यवप राज्यों ने समय-समय पर ऄनुच्छेद 256 और 257 के तहत संघ द्वारा प्रयोग की जाने
िाली आन शवियों पर अपवत्त व्यि की हैं, क्योंकक ये राज्यों की स्िायत्तता के वलए न के िल
घातक हैं बवल्क एक संघीय व्यिस्था के वलए भी हावनकारक हैं। लेककन, राज्यों द्वारा की गयी
ये अपवत्तयााँ मात्र आन प्रािधानों में संशोधन का अधार नहीं हो सकती। ऄनुच्छेद 256 और
257 का सुरक्षा िाल्ि के रूप में महत्त्ि है। भले ही आनका िास्ति में कभी प्रयोग न ककया
जाये, ककन्तु कफर भी आसे बनाए रखा जाना अिश्यक है।
o हाल के ऄनुभिों से ईपयुाि प्रािधानों की साथाकता वसि होती है जहां कें द्र को कु छ क्षेत्रों में
सांप्रदावयक चहसा या विद्रोह को रोकने के वलए वनदेश देना पड़ा।
o आस सन्दभा में यह प्रश्न ऄनुत्तररत ही रह जाता है कक यकद कें द्र द्वारा कदए गए वनदेशों का
राज्यों के द्वारा गैर-ऄनुपालन ककया जाता है तो ऐसी वस्थवत में क्या ककया जाना चावहए।
हालााँकक, संविधान में आस वस्थवत के वलए कोइ स्पष्ट प्रािधान नहीं ककये गए हैं ककन्तु,
ऄनुच्छेद 356 का प्रयोग एक स्िाभाविक समाधान प्रतीत होता है।वनदेशों के गैर ऄनुपालन
की वस्थवत में ऄनुच्छेद 356 का प्रयोग िास्ति में एक चरम ईपाय है।
o मौजूदा समय एिं व्यिस्था में ऐसी घटनािम के घरटत होने की वस्थवत में यह समझना सम्भि
नहीं है कक संविधान वनमााताओं ने आन पररवस्थवतयों में ईपचारात्मक प्रािधानों का ईल्लेख
क्यों नहीं ककया।
o आस सन्दभा में राज्यों की स्िायत्तता का सम्मान करने िाली स्िस्थ परम्पराओं के पालन तथा
संघ की ओर से आस शवि का संयवमत प्रयोग, राज्यों द्वारा व्यि की गइ चचता को दूर करने
की कदशा में एक दीघाकावलक समाधान हो सकता है।
o एक ऄन्य संबंवधत मुद्दा, ऄनुच्छेद 256 में प्रयुि "विद्यमान विवधयााँ" (existing laws)
िाक्यांश के बारे में है। आसमें यह ईल्लेख है कक प्रत्येक राज्य की कायापावलका शवि का आस
प्रकार प्रयोग ककया जाएगा वजससे संसद द्वारा बनायी गइ विवधयों का और ऐसी विद्यमान
विवधयों का, जो ईस राज्य में लागू हैं, ऄनुपालन सुवनवित हो।
o विद्यमान विवधयों के ऄन्तगात राष्ट्रपवत के ऄध्यादेश और संबवं धत राज्य के वलए लागू
ऄंतरााष्ट्रीय संवधयााँ तथा परं परागत ऄंतरााष्ट्रीय कानूनों सवहत ऄन्य कानून अते हैं। विवध का
शासन सभी कानूनों के कायाकारी ऄनुपालन की मांग करता है।
o एक प्रश्न यह ईठाया गया है कक क्या ऄनुच्छेद 257(3) के दायरे का विस्तार ककया जाना
चावहए वजसके ऄन्तगात रे लिे के संरक्षण हेतु संघ की शवि का िणान ककया गया है।
o यह सुझाि भी कदया जा रहा है कक आसमें रे लिे के ऄलािा ऄन्य प्रमुख प्रवतष्ठानों जैसे कक
प्रमुख बांध, ऄंतररक्ष स्टेशन, परमाणु प्रवतष्ठान, संचार कें द्र अकद को भी आस प्रािधान के
ऄंतगात शावमल करना चावहए। फलस्िरूप राज्यों को वनदेश देने की संघ की कायाकारी शवि
का भी विस्तार हो जाएगा। आसके ऄंतगात संघ सरकार की ऐसी पररसम्पवत्तयां वजन्हें संघ के
द्वारा राष्ट्रीय महत्त्ि का घोवषत ककया गया है, का संरक्षण करना राज्यों के दावयत्ि के रूप में
िर्तणत ककया गया है। आस िम में ऄनुच्छेद 257(3) को तदनुसार संशोवधत करना होगा।
 राज्यों के बीच समन्िय, कें द्र-राज्य संबध
ं तथा ऄंतरााज्यीय पररषद् के संबध
ं में
o संघिाद िस्तुतः विविधता का प्रबंधन करने के वलए एक जीिंत ऄिधारणा है। संघिाद को
साकार करने हेतु ऄन्य संस्थागत तंत्र स्थावपत ककये जाने चावहए।तभी आसके माध्यम से
विवभन्न घटक आकाआयों के बीच तथा संघ एिं राज्यों के बीच सहयोग एिं समन्िय सुवनवित
ककया जा सके गा।

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o सैिावन्तक स्तर पर सहकारी संघिाद को स्िीकृ त करना सरल है। ककन्तु, व्यािहाररक रूप से
सरकार के सभी स्तरों पर परामशा के पयााप्त साधनों के वबना आसका कियान्ियन करठन है।
o संविधान में आस ईद्देश्य की पूर्तत हेतु के िल सीवमत संस्थागत व्यिस्थाएं प्रदान की गयी हैं। यह
एक विसंगवत है कक संविधान द्वारा प्रदत्त व्यिस्थाओं का भी पयााप्त ईपयोग नहीं ककया गया
है। आस संदभा में, अयोग ने ऄनुच्छेद 263(A) से 263(C) में िर्तणत सभी कायों के वलए
ऄंतरााज्यीय पररषद् को एक िाआब्रेंट फोरम बनाने के वलए आसके सुदढ़ृ ीकरण तथा मुख्य धारा
में लाने एिं वनयवमत बनाने की वसफाररश की है।
o हालांकक यह ऄनुच्छेद पररषद् को स्ियं वििाद वनपटाने की शवि नहीं प्रदान करता है, ऄवपतु
यह के िल वििादों की जांच के पिात् आनके वनपटारे हेतु सलाह देने के संबंध में है।
o ऄतः पररषद् को ऄनुच्छेद 263(A) में वनधााररत शवियों और कायों को प्रदान ककया जाना
चावहए। आसके माध्यम से पररषद् खंड (B) और (C) में िर्तणत कायो को प्रभािी तथा ऄथापण
ू ा
रूप से संपन्न कर सके गी।
o आसके ऄवतररि, पररषद् का स्ियं का ऄधा-न्यावयक शवियों से युि विशेषज्ञ सलाहकारी
वनकाय या प्रशासवनक न्यायावधकरण होना चावहए। जो अिश्यकता पड़ने पर तथा मांगे जाने
पर पररषद् को वसफाररशें दे सके ।
o संक्षेप में, संघीय वसिांतों और स्िस्थ संिैधावनक परम्पराओं के ऄनुरूप सभी ऄंतरााज्यीय
मामलों के समाधान हेतु ऄंतरााज्यीय पररषद् का विशेषज्ञ मंच के रूप में प्रयोग करना ितामान
पररदृश्य में ऄवनिाया हो गया है।
o यकद पररषद् को तकनीकी और प्रबंधन में विशेषज्ञ कमाचारी ईपलब्ध कराये जाये तथा एक
स्ितंत्र संिैधावनक संस्था के रूप में काया करने की स्िायत्तता प्रदान की जाये तो यह सहमवत
वनमााण एिं वििादों के स्िैवच्छक समाधान का सिोत्तम मंच वसि हो सकती है।
o आसे ऄपने प्रावधकार का ईपयोग करने हेतु पयााप्त संसाधन ईपलब्ध कराए जाने चावहए।
पररषद् को यह ऄवधकार होना चावहए कक ऄपने दावयत्िों के वनिाहन की प्रकिया में यह
सरकारों और ऄन्य सािाजवनक वनकायों के ऄलािा नागररक समाज को भी सवम्मवलत कर
सके ।
o आसकी बैठकें वनयवमत रूप से होनी चावहए। प्रत्येक बैठक हेतु पयााप्त तैयारी के साथ एजेंडे को
वनवित ककया जाना चावहए वजसमें वििाद में शावमल पक्षों के द्वारा समझौते के चबदुओं के
साथ ही ईनके द्वारा ऄपनाइ गइ वस्थवत का िणान होना चावहए।
o पररषद् के सवचिालय में संघ और राज्यों के संयुि कमाचाररयों को अत्मविश्वास और समन्िय
बढ़ाने के वलए प्रेररत ककया जा सकता है। सहमवत पर पहुाँचने ऄथिा मतभेदों को कम करने
हेतु ऄंतरााष्ट्रीय संबंधों तथा न्यावयक प्रकियाओं में प्रयोग होने िाले समझौते, मध्यस्थता तथा
वििाचन जैसी तकनीकों का प्रयोग पररषद् की सवचिालय प्रकियाओं में ककया जाना चावहए।
o आन सभी प्रयासों के माध्यम से विवभन्न राज्यों तथा ईनकी सरकारों के मध्य सामंजस्यपूणा
तथा समरसतापूणा संबंधों का विकास हो सके गा। ऄंततः, ऄंतरााज्यीय और कें द्र-राज्य मतभेदों
के प्रबंधन के वलए एक विश्वसनीय, शविशाली और वनष्पक्ष तंत्र का विकास करने हेतु अयोग
ने ऄनुच्छेद 263 में ईपयुि संशोधनों की वसफाररश की है।
 क्षेत्रीय पररषदों और मंवत्रयों के ऄवधकार प्राप्त सवमवतयों (Zonal Councils and
Empowered Committees of Ministers) के संबध
ं में
o िस्तुतः आस अयोग की वनयुवि के पूिा ही कें द्र और राज्यों के मध्य सिासम्मवत के वलए ऄवधक
वनकायों के गठन की अिश्यकता ईत्पन्न हो गयी। क्योंकक यह धारणा स्थावपत होती जा रही
थी कक शासन ऄवधकावधक कें द्रीकृ त होता जा रहा है और राज्य ऄपने वलए वनयत क्षेत्रों में
स्िायत्तता खो रहे हैं।
o जबकक विधायी शवियां स्पष्ट रूप से सीमांककत हैं तथा वित्तीय संबंधों की वित्त अयोग द्वारा
अिवधक समीक्षा की जाती है। यही कारण है कक आसी क्षेत्र में समन्िय के वलए ऄवधक मंचों
की अिश्यकता महसूस की जा रही है।

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o राज्य पुनगाठन ऄवधवनयम, 1956 के तहत पांच क्षेत्रीय पररषदों का गठन िस्तुतः ईभरते हुए
क्षेत्रीय वििादों के समाधान एिं बढ़ती क्षेत्रीय और सांप्रदावयक भािनाओं जैसी समस्याओं पर
सहयोग एिं सामंजस्य को बढ़ािा देने के वलए ककया गया। तत्पिात, ईत्तर पूिी पररषद् को
ईत्तर पूिा पररषद् ऄवधवनयम, 1971 के तहत स्थावपत ककया गया।
o आनमें से प्रत्येक क्षेत्रीय पररषद् में संबंवधत राज्यों के मुख्यमंत्री सदस्य के रूप में तथा कें द्रीय
गृह मंत्री ऄध्यक्ष के रूप में शावमल होते हैं। संबंवधत राज्यों द्वारा प्रस्तुत एजेंडे के साथ क्षेत्रीय
पररषदों की िषा में कम से कम दो बार बैठक होनी चावहए ताकक आन बैठकों के माध्यम से
ऄंतरााज्यीय संबंधों पर प्रभाि डालने िाली नीवतयों और मुद्दों के संबंध में ऄवधकतम समन्िय
सुवनवित ककया जा सके । एक सशि ऄंतरााज्यीय पररषद् का सवचिालय क्षेत्रीय पररषदों के
सवचिालय के रूप में भी काया कर सकता है।
o राजकोषीय मामलों पर ऄंतरााज्यीय समन्िय हेतु राज्यों के वित्त मंवत्रयों की ऄवधकार प्राप्त
सवमवत एक सफल प्रयोग सावबत हुइ है। ऄन्य क्षेत्रों में भी समान मॉडल को संस्थागत बनाने
की अिश्यकता है।
o आसी प्रकार उजाा, खाद्य, वशक्षा, पयाािरण और स्िास्थ्य जैसे क्षेत्रों में जहां विकास की समान
अिश्यकता तथा विभेकदत ईतरदावयत्ि की वस्थवत हैं, नीवतयों का समन्िय करने के वलए
मुख्यमंवत्रयों के एक फोरम का गठन ककया जा सकता है।वजसकी ऄध्यक्षता चिीय प्रणाली के
तहत विवभन्न राज्यों के मुख्यमंत्री द्वारा की जाएगी। वनदेशक वसिांतों का कायाान्ियन
मुख्यमंवत्रयों के फोरम के वलए एक स्थायी एजेंडा हो सकता है जो नीवत अयोग को आन
वनदेशों से संबंवधत वसफाररशें कर सकते हैं। दृष्टव्य है कक नीवत वनदेशक तत्त्ि संयुि राष्ट्र द्वारा
वनधााररत सहस्रावब्द विकास लक्ष्यों से पूणा साम्य रखते हैं।
o यह ध्यान देने योग्य है कक संयुि राज्य ऄमेररका, ऑस्िेवलया और कनाडा जैसे ऄन्य संघों में
भी सािाजवनक नीवत विकास और सुशासन संबंधी मामलों में समन्िय सुवनवित करने हेतु
आसी प्रकार के फोरमों की स्थापना की गयी है। मुख्यमंवत्रयों के आस फोरम को ऄंतरााज्यीय
पररषद् द्वारा भी सहयोग प्रदान ककया जा सकता है।
 ऄंतरााज्यीय नकदयों के जल से संबवं धत वििादों के समाधान के संबध
ं में
o ऄंतरााज्यीय जल वििादों से संबंवधत ितामान मामलों में फै सले की वस्थवत स्पष्ट रूप से
ऄसंतोषजनक है, क्योंकक आसके द्वारा शायद ही कभी परस्पर स्िीकार योग्य वनणाय प्रस्तुत
ककया गया है। आसवलए कानून में पररितान एिं प्रकिया में बदलाि की अिश्यकता है।
 बेहतर प्रशासन के वलए ऄवखल भारतीय सेिाएं और कें द्र-राज्य सहयोग के संबध
ं में
o ऄवखल भारतीय सेिाएं भारतीय संविधान की ऄनूठी विशेषता हैं। ऄवखल भारतीय सेिाओं
को स्थावपत करने के व्यापक ईद्देश्यों में संघ और राज्यों के बीच बेहतर समन्िय, प्रशासन में
एक समान मानकों को बढ़ािा देना, संघ के प्रशासवनक ऄवधकाररयों को क्षेत्रीय
िास्तविकताओं के प्रत्यक्ष ऄनुभि में सक्षम बनाना, राज्य प्रशासवनक मशीनरी को व्यापक
दृवष्टकोण से युि सिोत्तम प्रवतभाओं को ईपलब्ध कराना अकद शावमल हैं।
o आसके ऄवतररि भती में राजनीवतक प्रभाि को कम करना तथा प्रशासन में ऄनुशासन और
वनयंत्रण को बढ़ािा देना भी आन सेिाओं को ऄपनाने के ईद्देश्य हैं।
o आन ईद्देश्यों के महत्ि को ध्यान में रखते हुए अयोग ने स्िास्थ्य, वशक्षा, आं जीवनयररग और
न्यायपावलका जैसे कु छ ऄन्य क्षेत्रों में ऄवखल भारतीय सेिाओं के गठन की पुरजोर वसफाररश
की है।स्ितंत्रता से पूिा भी आनका ऄवस्तत्ि था तथा प्रशासन की गुणित्ता में िृवि हेतु आनके
द्वारा महत्िपूणा योगदान कदया गया था।
o ऄवखल भारतीय सेिाओं के प्रशासन से जुड़े कइ मुद्दे हैं वजन पर प्रशासवनक सुधार अयोग की
ररपोटा में ईवचत रूप से चचाा की गयी है तथा वजनकी ऄत्यवधक प्रासंवगकता भी है। हालांकक,
अयोग के द्वारा शासन के तीसरे स्तर (पंचायत) के प्रारं भ होने के संदभा में ऄवखल भारतीय
सेिाओं के ईपयुि एकीकरण की वसफाररश की गयी है। पुनः स्थानीय वनकायों की क्षमता को
बढ़ाने और वनयोजन प्रकिया को मजबूत करने की अिश्यकता है। ऐसे में ऄवखल भारतीय
सेिाओं के ऄवधकारी एक प्रमुख भूवमका वनभा सकते हैं।

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o एक ऄन्य महत्िपूणा विषय राज्य सरकारों और स्थानीय वनकायों के ऄवधकाररयों की ऄवखल


भारतीय सेिाओं में प्रिेश की व्यिस्था है।सभी तीन स्तरों पर संरचनात्मक एकीकरण की
अिश्यकता है, वजसके ऄन्तगात ऄवखल भारतीय सेिाओं में शावमल ककये जाने िाले पदों के
स्तर का स्पष्ट वनधाारण (demarcation), िस्तुवनष्ठ वनष्पादन मूल्यांकन प्रणाली (objective
performance appraisal system), कररयर के व्यिवस्थत विकास जैसे मुद्दे सवम्मवलत हैं।
आसके ऄवतररि, आस प्रकिया के ऄंतगात पेशेिर दृवष्टकोण का वनमााण करने संबंधी योजनाओं
का वनमााण तथा पोचस्टग और स्थानान्तरण की एक तका संगत प्रणाली का विकास ककया जाना
चावहए।
o कै वबनेट सवचि की ऄध्यक्षता में कार्तमक सवचि और राज्यों के संबंवधत मुख्य सवचिों को
शावमल कर एक सलाहकार पररषद् का गठन होना चावहए।
 राज्य सभा का राज्यों के ऄवधकारों की रक्षक की भूवमका में होने के संबध
ं में
o संघिाद का संपण ू ा सार शासन में शवि का एक ईवचत संतुलन बनाए रखने में है तथा आस
संबंध में राज्य सभा की भूवमका महत्िपूणा है। आसमें कोइ संदह े नहीं कक भारतीय संघात्मक
प्रणाली में राज्यसभा संघ के राज्यों का प्रवतवनवधत्ि करती हैं तथा संघीय नीवत-वनमााण की
प्रकिया में राज्यों के ऄवधकारों की रक्षा करना, आसका दावयत्ि है।
o अयोग का मानना है कक ईच्च सदन का राज्यों के एक प्रवतवनवध मंच के रूप में काया करने के
मागा में ऄनेक बाधक तत्ि हैं। आसकी संरचना और कायाप्रणाली को बावधत करने िाले कारकों
को दूर ककया जाना चावहए, भले ही आसके वलए संिैधावनक प्रािधानों में संशोधन करना पड़े।
o यह तब और ऄवधक महत्िपूणा हो जाता है जब कें द्रीकरण की प्रिृवत्त मजबूत तथा राजनीवत
विखंडकारी होती जा रही हो। ऐसी वस्थवत में राज्यसभा का राज्यों के प्रवतवनवध के रूप में
भूवमका वनभाना और भी ऄवधक महत्त्िपूणा है।
o जब भी एक या एक से ऄवधक राज्यों के संबंध में संघ की नीवतयां वनर्तमत की जाती हैं, तो यह
ईवचत होगा कक संबंवधत राज्यों के प्रवतवनवधयों से जुड़े राज्यसभा की सवमवतयों में शावमल
सदस्यों को राज्यों और संघ को स्िीकाया िैकवल्पक समाधानों को प्रस्तुत और चचाा करने एिं
अने की ऄनुमवत दी जानी चावहए।
o आसी प्रकार खवनज समृि राज्यों या पहाड़ी राज्यों को क्षवतपूर्तत प्रदान करने पर राज्यसभा की
सवमवतयों में बातचीत की जा सकती है। आसी तरह, यकद संघ सरकार ऄन्य देशों के साथ संवध
या समझौते करती है तो आनसे प्रभावित होने िाले राज्यों को सहायता प्रदान करने के ईद्देश्य
से राज्यसभा के मंच का ईपयोग ककया जा सकता है।
o िास्ति में, राज्यसभा, वििादास्पद और प्रशासवनक संबंधों में संघ और राज्यों के बीच ईभरने
िाले तनाि के चबदुओं के वलए स्िीकाया समाधानों पर संिाद का ऄिसर प्रदान करती है।
 राज्यसभा में राज्यों के समान प्रवतवनवधत्ि के संबध
ं में
o शासन के सभी संस्थाओं में समानता और समान प्रवतवनवधत्ि के वसिांत के साथ ही राज्यों के
वलए बहुदलीय विविधता पूणा राजनीवत, वजतना व्यविगत स्तर पर प्रासंवगक है ईतना ही
राज्यों के वलए भी।
o ठीक आसी प्रकार, समानता के विचार को स्िीकार करने का तात्पया संघ से राज्यों को होने
िाले राजकोषीय हस्तांतरण के मामले में वपछड़े राज्यों के पक्ष में सकारात्मक भेदभाि का
विचार भी महत्िपूणा है। ऄन्य संघात्मक व्यिस्थाओं में (जैसे संयुि राज्य ऄमेररका), ईच्च
सदन में संघीय आकाआयों को ऄपने क्षेत्र और जनसंख्या के अकार में वभन्नता के बािजूद एक
समान स्थान प्रदान ककया गया है।
o भारत मे लोकसभा में सीटों की संख्या पहले से ही जनसंख्या के ऄनुपात में अिंरटत की गयी
हैं। ऄतः राज्यसभा के स्तर पर आस वसिांत को दोहराने की अिश्यकता नहीं महसूस की गइ।
o राज्यों के बीच सत्ता का संतल
ु न िांछनीय है। यह राज्यसभा में प्रवतवनवधत्ि की समानता से
ही संभि है। राज्यसभा की पररकल्पना मूल रूप से राज्यों के प्रवतवनवध सदन के रूप में की
गयी है और यकद यह आस रूप काया करने में विफल रही है, तो यह गठबंधन राजनीवत की
प्रकृ वत और दलीय व्यिस्था के विकास के कवमयों के कारण हैं।

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o संघीय संतल ु न के मूल ईद्देश्य को प्राप्त करने के वलए राज्यसभा की काया प्रणाली में सुधार
ककया जाना िांछनीय है। राज्यसभा में राज्यों की जनसंख्या में वभन्नता के बािजूद समान
स्थान प्रदान करने के वलए संबंवधत प्रािधानों में संशोधन ककया जाना चावहए।
o कु लदीप नैय्यर बनाम भारत संघ (2006) िाद में राज्यसभा की संघीय व्यिस्था में राज्यों के
सदन के रूप में भूवमका को ख़ाररज करने का वनणाय दोषपूणा है और समीक्षा योग्य है।
o आस सन्दभा में, संसद को जनप्रवतवनवधत्ि ऄवधवनयम के खंड 3 को पुनस्थाावपत करना चावहए
क्योंकक यह मूल रूप से साझेदारी युि शासन में संघीय संतल
ु न को स्थावपत करता है।
o राज्यसभा की सदस्यता के वलए चुनाि लड़ने िाले प्रत्याशी की ईस राज्य की भूवम से
िास्तविक संबिता होनी चावहए जैसा कक जनप्रवतवनवधत्ि ऄवधवनयम द्वारा वनधााररत ककया
गया था (2003 में संशोधन के माध्यम से यह ऄवनिायाता समाप्त कर दी गयी)। यह प्रािधान
आसकी ऄनुभूवत कराने के वलए अिश्यक हैं, कक राज्य राष्ट्रीय नीवत वनमााण प्रकिया एिं
शासन में बराबर के भागीदार हैं।

 ऄनुच्छेद 246 और ऄनुच्छेद 162 के ऄनुच्छेद 243G एिं 243W के साथ संबध
ं ों के संदभा में

o ऄनुच्छेद 243G (पंचायतों की शवियााँ, प्रावधकार और ईत्तरदावयत्ि) और 243W


(नगरपावलकाओं की शवियााँ, प्रावधकार और ईत्तरदावयत्ि) का वनिाचन कइ बार आस प्रकार
ककया जाता है वजससे यह ऄथा वनकलता है कक स्थानीय वनकायों के शवियों और कायो का
हस्तांतरण राज्यों के वििेकावधकार का विषय है।
o आस प्रकार के वनिाचन, आस सन्दभा में ककये गए संिैधावनक संशोधन तथा सम्पूणा ईद्देश्य को
वनरथाक वसि कर देते हैं।
o यद्यवप यह राज्यों के वििेकावधकार पर छोड़ा गया है कक ककन विषयों से संबंवधत शवियों
और ईत्तरदावयत्िों को िे हस्तांतररत करना चाहते हैं। ककन्तु, ईन्हें यह वनणाय लेने का
ऄवधकार नहीं है कक िे ककसी भी विषय तथा आससे संबंवधत शवियों और कायो का स्थानीय
वनकायों को हस्तांतरण न करे । स्थानीय वनकायों को "स्ि-शासन" की संस्था का दजाा प्रदान
ककया गया है। ककन्तु, संविधान में आनके ऄवधकारक्षेत्र को स्पष्ट रूप से पररभावषत नहीं ककया
गया है।
o स्थानीय वनकायों को शवियों के हस्तांतरण का दायरा ईपयुि संशोधनों के माध्यम से
संिैधावनक रूप से पररभावषत ककया जाना चावहए। ऄन्यथा विकें द्रीकृ त शासन की ऄिधारणा
ऄवनवित काल तक िास्तविकता में रूपांतररत नहीं हो पायेगी।
o यह दृवष्टकोण "सहायक (subsidiarity) के वसिांत” पर अधाररत होनी चावहए जो िास्ति
में संिैधावनक संशोधन की योजना में वनवहत है। राज्य सरकार को स्थानीय स्िशासन से
संबंवधत नीवतगत मामलों तक ही ऄपने अप को सीवमत कर लेना चावहए।
o ऄनुच्छेद 246(3) (राज्यसूची में प्रगवणत विषय पर राज्यों की विधायी शवि) और 162
(राज्यसूची में प्रगवणत विषय पर राज्यों की कायाकारी शवि) का 73िें और 74िें संविधान
संशोधनों के अलोक में वनिाचन करना होगा।
o आसी रूप में पंचायत और नगरपावलका जैसी संस्थाओं को स्िशासन की संस्थाओं के रूप में
काया करने का ईवचत ऄथा और ऄवभव्यवि प्रदान की जा सके गी।
 न्यावयक बजट में कें द्र-राज्य वहस्सेदारी पर सुझाि देने हेतु न्यावयक पररषदों के संबध
ं में

o न्याय व्यिस्था ऄपने दावयत्िों का प्रभािी ढंग से वनिाहन कर सके , यह सुवनवित करना संघ
और राज्य सरकारों की संयुि वजम्मेदारी है।जहां सिोच्च न्यायालय और ईच्च न्यायालयों के
प्रशासवनक व्यय िमशः संघ और राज्यों की संवचत वनवध पर भाररत होते हैं, िहीं ऄधीनस्थ
न्यायालयों के वलए संविधान द्वारा ऐसी कोइ वित्तीय व्यिस्था नहीं प्रदान की गयी है।
o न्यावयक योजना तथा बजट वनमााण का काया न्यायपावलका और कायापावलका के द्वारा संयुि
रूप से ककया जाना चावहए। आस हेतु ककसी संयुि मंच की स्थापना की जा सकती है।

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o कें द्रीय विवध एिं न्याय मंत्रालय द्वारा स्थावपत एक विशेषज्ञ सवमवत ने आस ईद्देश्य के वलए
राज्य और संघीय स्तर पर एक "न्यावयक पररषद्" की स्थापना की वसफाररश की है। अयोग
ने आस वसफाररश का समथान ककया है।
o आन पररषदों को विधान मंडल द्वारा ऄनुमोकदत ककये जाने हेतु न्यावयक बजट ही तैयार नहीं
करना चावहए ऄवपतु संघ और राज्यों के बीच सूची I, II और III के ऄंतगात न्यायालयों के
कामकाज के अंकड़ों के अधार पर बजट संबंधी व्यय को अनुपावतक रूप से साझा करने हेतु
ऄनुशस ं ा भी करनी चावहए।
o यद्यवप आसका ऄथा यह कदावप नहीं है कक राज्यों को ऄधीनस्थ न्यायालयों पर खचा होने िाले
संपूणा व्यय को ईठाना पड़े। दृष्टव्य है कक पहले ही राज्यों को सूची I और सूची III के तहत
संसद द्वारा बनाए गए कानूनों को लागू करने के वलए पयााप्त संसाधनों का व्यय करना पड़ता
है
o ऄंत में अयोग का मानना है कक संघ सरकार को संघीय कानूनों से ईत्पन्न िादों के प्रभािी
वनणायन हेतु न्यायालयों की अिश्यक संख्या का अकलन करना चावहए। संविधान के
ऄनुच्छेद 247 के तहत वनधााररत ऄवतररि न्यायालयों की स्थापना करना चावहए।
 संघीय शवि संतलु न पर वनरं तर जोर देने की अिश्यकता के संदभा में
o आस प्रश्न पर कक संविधान द्वारा वनधााररत मागा पर प्रशासन को अगे बढ़ाने के वलए क्या एक
नया शवि संतुलन अिश्यक है। संविधान वनमााता देश की जनता की बहुलिादी पहचान और
राजनीवत की विविध ऐवतहावसक परं पराओं को ध्यान में रखते हुए ईवचत ही आस वनष्कषा पर
पहुंचे कक एक संघीय प्रणाली ऄके ले ही देश को संयुि, लोकतांवत्रक गणराज्य के रूप में
विकास के पथ पर ऄग्रसर कर सकती है।
o हालांकक अयोग आस तथ्य को लेकर अश्वस्त है कक देश की सुरक्षा अिश्यकताओं के ऄवतररि
ऄन्य विषयों में भी संघ के पक्ष में शवियों का कें द्रण वपछले कु छ िषों में तेजी से बढ़ा है।
o आसने विकासात्मक मामलों में भी ऄनािश्यक रूप से ईच्च-कें द्रीकरण की प्रिृवत को बढ़ाया है।
संघीय संिैधावनक परम्पराओं में ईभरते हुए आन विरोधाभासों को न के िल संघ-राज्य संबंधों
को बेहतर बनाने के वलए ऄवपतु वजस एकता और ऄखंडता को बनाए रखने के वलए संघ के
पक्ष में शवि संतुलन की पररकल्पना की गइ थी, ईसे सुरवक्षत रखने के वलए भी आन्हें दूर ककया
जाना चावहए।
o 73िें और 74िें संविधान संशोधनों के पिात् शवि संतल
ु न की यह ऄिधारणा और भी
ऄवधक महत्िपूणा हो गयी है।
o आसे वित्त अयोग द्वारा प्रदत्त वित्तीय संशाधनो के द्वारा काफी हद तक प्रशासवनक व्यिस्थाओं
के माध्यम से पूरा ककया जा सकता है।
o सुरक्षा संबंधी अिश्यकताएं संघ को ऄवधक शविशाली बनाने की ऄिधारणा पर जोर देती
हैं। िहीं विकास के मोचे (वशक्षा, स्िास्थ्य अकद) पर राज्यों और स्थानीय स्िशासी संस्थाओं
की स्िायत्तता का सम्मान करना चावहए।
o संघ को शवियों और कायों को कें द्रीकृ त करने की प्रिृवत्त से सािधान रहना चावहए। के न्द्र की
भूवमका को नीवतयों का वनमााण करने, वित्त पोषण करने एिं समन्िय को सुगम बनाने तक
सीवमत होना चावहए ताकक राज्यों और स्थानीय वनकायों के माध्यम से विकें द्रीकरण की
संकल्पना को पूणारूपेण साकार ककया जा सके ।
 प्रशासवनक संबधं ों को सरल बनाने के संबध
ं में
o संघ की राज्यों की कायापावलका शवियों से संबंवधत मामलों में राज्यों को वनदेश देने की शवि
और आसका स्िरुप ऄवधक गंभीर प्रकृ वत का मुद्दा है।
o आस सन्दभा में राज्यों के विचारों का परीक्षण करने के पिात् अयोग आस वनष्कषा पर पहुंचा
कक ऄनुच्छेद 256 और 257 के तहत संघ की राज्यों को वनदेश देने की शवि कायम रहनी
चावहए। आन शवियों के कारण ही राज्यों द्वारा संघ सरकार के विधायी और कायाकारी
शवियों को महत्ि कदया जाता है।
o पररवस्थवतयों की गंभीरता और प्रशासवनक अिश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए यह वनणाय
करने का ऄवधकार संघ के पास होना चावहए कक कौन से वनदेश कब प्रदान ककये जाने चावहए।

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 मुख्यतः वित्त अयोग द्वारा वनधााररत ककये जाने िाले राजकोषीय संबध
ं ों के बारे में
o अयोग का मानना है कक वित्त अयोगों के माध्यम से राजकोषीय हस्तांतरण की संिैधावनक
योजना को और मजबूत करने की अिश्यकता है तथा ऄन्य रूपों में ककये जाने िाले
हस्तांतरण को कम ककया जाना चावहए।
o एक व्यिस्था यह भी हो सकती है कक वित्त अयोग को एक वनयवमत सवचिालय के साथ
स्थायी वनकाय बना कदया जाये, वजसके सभी सदस्य का कायाकाल प्रत्येक पांच िषों में बदल
कदया जाए।
o संघ के द्वारा वित्त अयोग के गठन की प्रकिया को आस प्रकार वनधााररत की जानी चावहए कक
आसके गठन एिं आसके द्वारा विचार ककये जाने िाले विषयों को वनधााररत करने में राज्यों को
भी भागीदार बनाया जा सके ।
 ऄंतरााज्यीय पररषद् को मजबूत और सशि बनाने की अिश्यकता के संबध ं में
o ऄंतर-सरकारी संबंधों के समन्िय हेतु एक मंच वनमााण के मुद्दे पर पुंछी अयोग ने ऄंतरााज्यीय
पररषद् को ऄंतरााज्यीय संबंधों में महत्िपूणा भूवमका वनभाने िाली संस्था के रूप में मजबूत
बनाने और सकिय करने की अिश्यकता है।
o िषा में कम से कम तीन बार आसकी बैठक होनी चावहए।
o यकद ऄंतरााज्यीय पररषद् में अम सहमवत से वनणाय न वलए जा सके तब भी यहााँ राष्ट्रीय वहत
के मामलों में बहुमत से वनणाय वलया जा सकता है।
o ऄन्य क्षेत्रों में, मंवत्रयों की एक ऄवधकार प्राप्त सवमवत को एक वनधााररत समय-सीमा के भीतर
ऄध्ययन और ररपोटा प्रस्तुत करने के वलए कहा जा सकता है ताकक समस्या को सुलझाने का
ऄवधक स्िीकाया तरीका विकवसत ककया जा सके ।
o पररषद् को आसके फै सले का ऄनुपालन कराने में सक्षम होना चावहए वजसके वलए ईवचत
िैधावनक प्रािधान ककए जाने चावहए।
o सरकार को कें द्र-राज्य संबंधों को सुसंगत बनाने की कदशा में काया करते हुए ऄंतरााज्यीय
पररषद् की पूरी क्षमता का ईपयोग करने हेतु एक ईपयुि योजना तैयार करने पर काया करने
की अिश्यकता है।
o आनमें से कु छ सुझाि बदलती पररवस्थवतयों में ऄत्यंत अिश्यक हो गए हैं। शासन के मुद्दों को
यथासंभि राजनीवतक और प्रशासवनक प्रकियाओं के माध्यम से सुलझाया जाना चावहए न कक
लम्बी ऄिवध की न्यायालयी प्रकिया के माध्यम से।
o ऄंतरााज्यीय पररषद् आस ईद्देश्य की पूर्तत हेतु विकवसत की जा सकने िाली सबसे व्यिहाया,
समथा संिैधावनक तंत्र प्रतीत होता है, बशते आसे ईवचत रूप से पुनगारठत ककया जाये तथा
विवधित ऄवधकार प्रदान ककये जायें।
ऄंतरााज्यीय पररषद्
 1990 में राष्ट्रपवत के अदेश के माध्यम से गरठत ऄंतरााज्यीय पररषद् की ितामान वस्थवत आस प्रकार
है:
o पररषद् एक परामशादात्री वनकाय है।
o पररषद् की बैठकों को कै मरे के सामने अयोवजत ककया जाता है।
o बैठक में पररषद् के समक्ष विचार के वलए रखे जाने िाले सभी प्रश्नों का वनणाय सहमवत के
अधार पर ककया जाता हैं।
o वजस विषय पर सहमवत स्थावपत हो गयी है, ईस पर ऄंवतम वनणाय ऄध्यक्ष के द्वारा ककया
जायेगा।
ऄंतरााज्यीय पररषद् को वनम्नवलवखत काया सौंपे गये हैं:
(a) ऐसे विषयों की जांच करना और ईन पर चचाा करना जो आसके समक्ष प्रस्तुत ककये जायें ऄथिा
वजनका संबंध कु छ या सभी राज्यों ऄथिा संघ और एक या ऄवधक राज्यों के ईभयवनष्ठ वहतों
से हैं।
(b) ककसी विषय के संबंध में नीवत और कारा िाइ के बेहतर समन्ियन के वलए ईस विषय तथा
विषय से संबंवधत विशेष वसफाररशें करना।
(c) राज्यों के सामान्य वहत के ऐसे ऄन्य मामलों पर विचार करना वजसे ऄध्यक्ष द्वारा पररषद् में
भेजा जाए।

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o पररषद् को संविधान के ऄनुच्छेद 263(A) में पररकवल्पत काया ऄब तक प्रदान नहीं ककया
गया है ऄथाात् राज्यों के बीच ईत्पन्न होने िाले वििादों पर विचार-विमशा करने और सलाह
देने का काया।
o 2008 में वद्वतीय प्रशासवनक सुधार अयोग ने वसफाररश की थी कक ऄनुच्छेद 263(A) के
तहत ऄंतरााज्यीय पररषद् की संघषा समाधानकताा की भूवमका में पररकल्पना की गइ थी।
पररषद् की आस भूवमका का प्रयोग राज्यों के मध्य या सभी राज्यों या संघों के मध्य वििादों के
प्रभािी ढंग से समाधान हेतु ककया जा सकता है।
o प्रशासवनक सुधार अयोग के द्वारा यह विचार भी व्यि ककया गया कक ऄनुच्छेद 263 के तहत
ककसी मामले की गंभीरता के ऄनुरूप समाधान हेतु सक्षम बनाने के वलए पररषद् की संरचना
को लचीला स्िरुप प्रदान ककया जा सकता है।
o ईच्चतम न्यायालय ने भी संघ और राज्यों से संबंवधत कु छ विशेष प्रकार के वििादों में पररषद्
को न्यावयक भूवमका प्रदान करने का सुझाि कदया है। विशेष रूप से नीवत-वनमााण के ऐसे
मामलों पर जहां अमसहमवत के माध्यम से समाधान की अिश्यकता है। ऄंतरााज्यीय पररषद्
संिैधावनक संस्थाओं के बीच वििाद के संबंध में स्िीकाया समाधान के वलए प्रयास कर सकती
है।
o 1990 के राष्ट्रपवत के अदेश के तहत पररषद् को ऄपनी प्रकियाओं को वनधााररत करने का
ऄवधकार है। हालांकक ईसे वनधााररत प्रकिया पर सरकार की सहमवत भी प्राप्त करनी होगी।
o ऄनुच्छेद 263 के तहत ऄंतरााज्यीय पररषद् को कायाात्मक रूप से पूणा समथा बनाया जाना
चावहए। पररषद् के वलए पूणातः पेशेिर सवचिालय स्थावपत ककया जाना चावहए, वजसे
विविध क्षेत्रों के विशेषज्ञों के साथ ही प्रवतवनयुवि के माध्यम से संघ और राज्य के
ऄवधकाररयों द्वारा सहायता प्रदान की जानी चावहए।
o ऄंतरााज्यीय पररषद् के संिैधावनक और ऄधा-न्यावयक कायों को देखते हुए, पररषद् के गठन में,
ऄवखल भारतीय सेिाओं के ऄलािा कानून, प्रबंधन और राजनीवत विज्ञान से संबि विशेषज्ञों
को भी शावमल ककया जाना चावहए।
o प्रस्तावित कानून के माध्यम से ऄंतरााज्यीय पररषद् को सरकारी विभागों से ऄलग एक
संगठनात्मक और प्रबंधन संरचना प्रदान करना चावहए।
2.5. विविध मु द्दे

2.5.1. कु छ राज्यों को विशे ष श्रे णी का दजाा

 विशेष श्रेणी के राज्य की ऄिधारणा को पहली बार 5िें वित्त अयोग द्वारा 1969 में प्रस्तुत ककया
गया था।
 विशेष राज्य का दजाा प्रदान करने के पीछे वनवहत तका यह था कक कु छ राज्यों में ऄन्तर्तनवहत
विशेषताओं के कारण ईनका संसाधन अधार कम हैं और विकास के वलए संसाधन जुटाना ईनके
वलए संभि नहीं है।
 विशेष राज्य के दजे के वलए कु छ अिश्यक शतें वनधााररत की गयीं:
o पहाड़ी और दुगाम क्षेत्र;
o कम जनसंख्या घनत्ि या अकदिासी अबादी का बड़ा वहस्सा;
o पड़ोसी देशों के साथ सीमा पर सामररक स्थान;
o अर्तथक और ढांचागत वपछड़ापन तथा
o राज्य वित्त की ऄलाभकारी प्रकृ वत।
 विशेष राज्य के दजे पर वनणाय करने का ऄवधकार पहले राष्ट्रीय विकास पररषद् के पास था।
 अंध्र प्रदेश के विभाजन के पिात् से विशेष राज्य के दजे की मांग ने राज्य भर में व्यापक विरोध
प्रदशान तथा संसद में बहस को प्रेररत ककया है।
 यहां यह मांग राज्य के विभाजन के बाद से ईभरी है। जबकक वबहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओवडशा
और राजस्थान द्वारा यह मांग एक लम्बे समय से की जा रही है।

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विशेष श्रेणी िाले राज्य के लाभ


विशेष श्रेणी के राज्य का दजाा वमलने से प्राप्त होने िाले लाभों की प्रकृ वत, कइ राज्यों को आस प्रकार की
मांग करने के वलए प्रेररत करती है। आन्हें वनम्नवलवखत चबदुओं के ऄंतगात देखा जा सकता है:
 सामान्य कें द्रीय सहायता (56.25%) का एक बड़ा वहस्सा 11 विशेष श्रेणी के राज्यों के बीच तथा
शेष (43.75%) 18 सामान्य श्रेणी राज्यों के बीच वितररत ककया जाता है।
 के िल विशेष श्रेणी के राज्यों के वलए विशेष योजना सहायता और विशेष कें द्रीय सहायता ऄनुदान
प्रदान ककया जाता है।
 बाह्य सहायता प्राप्त पररयोजनाओं (EAPs) के वलए विशेष श्रेणी िाले राज्यों को 90 प्रवतशत
सहायता ऄनुदान के रूप में प्रदान की जाती है, जबकक सामान्य श्रेणी िाले राज्यों के वलए, यह
ऊण के रूप में प्रदान की जाती है।
 कें द्र प्रायोवजत योजनाओं में राज्यांश सामान्य श्रेणी के राज्यों की तुलना में विशेष श्रेणी िाले
राज्यों के वलए कम है।
 विशेष श्रेणी िाले राज्यों के वलए ईत्पाद शुल्क में महत्िपूणा ररयायतें ि ऄन्य तरह के कर से छू ट
प्राप्त होती हैं वजससे आन राज्यों की सीमा में ईद्योगों और विवनमााण आकाआयों को अकर्तषत करने में
सहायता वमलती है।
 कें द्रीय कर राजस्ि के बंटिारे के सन्दभा में विशेष राज्यों से कोइ विशेष व्यिहार नहीं ककया जाता
है।
नोट: भारत में कें द्र से राज्यों को संसाधन के अिंटन के तरीकों को नीचे कदए गए वचत्र के माध्यम से
समझा जा सकता है:

विशेष श्रेणी िाले राज्यों की कायाप्रणाली से संबवं धत मुद्दे


 विशेष राज्य का दजाा प्रदान करने का अधार बहस का विषय रहा है।
 पूिा ऄनुभिों से यह पता चलता है कक आस बात की कोइ गारं टी नहीं है कक विशेष राज्य का दजाा
प्राप्त होने के बाद भी राज्य की अर्तथक प्रगवत हो पायेगी।
 आसका तात्पया यह है कक अर्तथक विकास के वलए एक सशि अर्तथक नीवत का पालन करने की
अिश्यकता है। विशेष राज्य से संबंवधत विशेषताएं सकारात्मक प्रोत्साहन के रूप में काया कर
सकती हैं, लेककन सब कु छ प्रत्येक राज्य की नीवत पर वनभार करता है।
 14िें वित्त अयोग की वसफाररशों के बाद राज्यों को प्राप्त होने िाला वहस्सा बढ़ गया है। ऄतः
विशेष राज्य की प्रासंवगकता ऄब लगभग पूरी तरह समाप्त हो सकती है।
विशेष िगा के राज्यो की वस्थवत: सरकार के हावलया दृवष्टकोण
आस संबंध में वपछले कु छ िषो में कइ पररितान हुए हैं। आनमें से ऄवधकतर पररितान संघीय बजट 2015-
16 में सवम्मवलत ककए गए थे। आनके पररणामस्िरूप 'विशेष श्रेणी के राज्यों' को प्राप्त होने िाले लाभों
में पयााप्त कमी हुइ है।
 राज्यों को कर-ऄंतरण हेतु के न्द्रीय करों का विभाज्य पूल 32 प्रवतशत से बढ़कर 42 प्रवतशत कर
कदया गया है।
 के न्द्र प्रायोवजत योजनाओं (CSS) के विस्तार के बाद कु ल योजना सहायता में सामान्य के न्द्रीय

सहायता का ऄंश कम होकर के िल 15 प्रवतशत हो गया है। जबकक यह आन राज्यों को प्राप्त होने
िाली के न्द्रीय सहायता का प्रमुख मागा था।

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 ऄतः ऄब के िल बाह्य सहायता प्राप्त पररयोजनाओं (90 प्रवतशत ऄनुदान) के वलए सहायता प्राप्त
होने के लाभ का अकषाण ही शेष रह जाता है। 'विशेष दजे िाले राज्यों' में बाह्य सहायता प्राप्त
पररयोजनाएाँ बहुत कम हैं।
 संघीय बजट 2015-16 ने त्िररत चसचाइ लाभ कायािम (AIBP) के ऄंतगात अिंटनों को बहुत ही
कम कर कदया है।
 वित्त अयोग ऄपने अिंटनों में विशेष एिं सामान्य िगा के राज्यों के बीच भेद नहीं करता है।
ितामान में 11 राज्यों को विशेष िगा वस्थवत प्राप्त है, ये राज्य हैं - जम्मू और कश्मीर, ईत्तराखंड,
वहमाचल प्रदेश तथा सभी पूिोत्तर राज्य।

2.5.2. नीवत अयोग (NITI AYOG)

 1 जनिरी 2015 को कें द्रीय कै वबनेट द्वारा एक संकल्प पाररत कर नीवत अयोग (नेशनल आं वस्टट्यूट
फॉर िांसफोर्नमग आं वडया) की स्थापना की गयी। यह भारत सरकार का प्रमुख नीवतगत चथक टैंक
है। आसका ईद्देश्य सहकारी संघिाद की भािना को दृढ़ता प्रदान करते हुए नीवतयों तथा योजनाओं
का वनमााण करना है।

योजना अयोग से ऄसमानताएाँ:


 यद्यवप सांगठवनक संरचना की दृवष्ट से यह योजना अयोग के समान ही है, परन्तु कायाात्मक स्तर पर
दोनों में पयााप्त वभन्नता हैं। नीवत अयोग का काया के िल एक नीवतगत चथक टैंक के समान हैं तथा आसे
पूिािती योजना अयोग को प्राप्त दो ऄन्य कायों, पंचिषीय योजनाओं का वनमााण तथा राज्यों को
धन का हस्तांतरण, से मुि रखा गया है।
 नीवत अयोग तथा योजना अयोग के मध्य नीवत वनमााण के दृवष्टकोण में व्याप्त प्रमुख ऄसमानता यह
है कक जहााँ योजना अयोग टॉप-डाईन दृवष्टकोण के ऄंतगात ‘सबके वलए एक समाधान’ (one-size-
fits-all plan) के ऄनुसार काया करता था, िहीं नीवत अयोग राज्यों को ऄवधक महत्त्ि प्रदान करते
हुए योजनाओं के वनमााण में ईनकी ऄवधकावधक भागीदारी को सुवनवित करता है।

नीवत अयोग: सहकारी संघिाद के मंच के रूप में


संरचनात्मक सहयोग के माध्यम से सहकारी संघिाद को बढ़ािा देना, नीवत अयोग को प्रदान ककये गये
सिाावधक महत्त्िपूणा ऄवधदेशो में से एक है। सहकारी संघिाद के ऄंतगात सवम्मवलत हैं:
 राष्ट्रीय ईद्देश्यों के अलोक में राष्ट्रीय विकास प्राथवमकताओं, क्षेत्रकों तथा रणनीवतयों में साझे
दृवष्टकोण के साथ राज्यों की ऄग्रसकिय भागीदारी (Proactive partnership) को सुवनवित
करना।
 संरचनात्मक सहयोग तथा व्यिस्थाओं के माध्यम से राज्यों के मध्य सहकारी संघिाद की भािना
को सुदढ़ृ करना। यह आस तथ्य की पुवष्ट करता है कक सशि राज्यों (states) द्वारा ही एक सशि
राष्ट्र (State) का वनमााण संभि हैं।
सहकारी संघिाद को साकार करने के वलये वनम्नवलवखत कदम ईठाये गए हैं:
 मुख्यमंवत्रयों के तीन ईपसमूहों का गठन ककया गया है। आनका ईद्देश्य कें द्र सरकार को (i) कें द्र
प्रायोवजत योजनाओं को युविसंगत एिं तार्ककक बनाने, (ii) कौशल विकास तथा (iii) स्िच्छ भारत
ऄवभयान के सन्दभा में सलाह प्रदान करना है। तीनों ईपसमूहों ने ऄपनी ररपोटा सरकार को सौंप दी
है। आनकी कु छ ऄनुसंशाओं का कियान्ियन भी ककया जा चुका है जबकक कु छ ऄन्य पर विचार ककया
जा रहा है।

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 स्िास्थ्य, वशक्षा और जल प्रबंधन में राज्यों के प्रदशान का अकलन करने िाले सूचकांकों के माध्यम
से सामावजक क्षेत्रक में सुधार: स्िास्थ्य, वशक्षा तथा जल जैसे महत्त्िपूणा सामावजक क्षेत्रकों के
िार्तषक सुधारात्मक पररणामों के अकलन के वलए नीवत अयोग ने कु छ सूचकांकों का वनमााण
ककया है। आसके द्वारा जहााँ एक ओर राज्य बेहतर पररणामों के वलए प्रवतस्पधाा करते हैं िहीं दूसरी
ओर सिोत्तम प्रकियाओं और निाचारों के द्वारा परस्पर सहयोग भी करते हैं। यह प्रवतस्पधी तथा
सहकारी संघिाद का ईदाहरण है।
 यह राज्य तथा कें द्रीय मंत्रालयों को एक ही मंच पर एक साथ लाकर दोनों पक्षों से जुड़े मुद्दों के
समाधान की सुविधा प्रदान करता है। ईदाहरण के वलए, हाल ही में नीवत अयोग ने तेलंगाना
राज्य तथा विवभन्न कें द्रीय मंत्रालयों के मध्य लंवबत मुद्दों को सुलझाने के वलए ऐसी पहल की है।
चुनौवतयााँ
 नीवत अयोग से भारत के वलए एक दीघाकालीन दृवष्टकोण के विकास हेतु विचारों के स्रोत तथा
राज्यों एिं कें द्र के मध्य कनिजेंस के एक माध्यम के रूप में काया करने की ऄपेक्षा है। साथ ही,
आसके द्वारा विवभन्न विभागों के मध्य समन्िय का काया भी ककए जाने की ऄपेक्षा हैं।
 आन दो कदए गए कायों के कियान्ियन में नीवत अयोग तथा ऄंतरााज्यीय पररषद्, जो एक
संिैधावनक वनकाय है एिं कै वबनेट सवचिालय, जो ितामान में विवभन्न विभागों के मध्य समन्िय
का काया देखता है; के कायों में परस्पर ऄवतव्यापन (ओिरलैचपग) की समस्या ईत्पन्न हो सकती है।

2.5.3. के न्द्र प्रायोवजत योजनाएं

 ईन क्षेत्रों में जहां राष्ट्रीय प्रयासों की जरूरत है, िहां के न्द्र सरकार हस्तक्षेप कर सकती है। भारत
सरकार के न्द्र प्रायोवजत योजनाओं तथा विवभन्न कायािमों एिं नीवतयों के माध्यम से ऐसा करने की
कोवशश करती है। के न्द्र सरकार ने राष्ट्रीय प्राथवमकताओं के अधार पर स्िास्थ्य, वशक्षा, कृ वष,
कौशल विकास, रोजगार, शहरी विकास, ग्रामीण अधारभूत संरचना अकद हेतु योजनाएं शुरू की
हैं। आन क्षेत्रों में से कइ राज्यों की गवतविवधयों के ऄंतगात अते हैं।
 सकल बजटीय सहायता के प्रवतशत के रूप में सभी के न्द्र प्रायोवजत योजनाओं में सरकार की
वहस्सेदारी लगातार तीन पंचिषीय योजनाओं से बढ़ रही है। 11िीं पंचिषीय योजना में यह
41.59% थी जब कक 10िीं ि 9िीं पंचिषीय योजना में िमशः 38.64 तथा 31% रही है। राज्य
विवभन्न मंचों पर के न्द्र प्रायोवजत योजनाओं में लचीलेपन की कमी तथा राज्यों के संसाधनों पर
प्रवतकू ल दबाि से संबंवधत मुद्दे ईठाते रहे हैं, जैसे:
o अिश्यक धन प्रदान करने में राज्यों की ऄसमथाताः के न्द्र प्रायोवजत योजनाओं के तहत के न्द्र से
प्राप्त धन का ईपयोग करने के वलए राज्यों से भी एक वनवित प्रवतशत में धन का योगदान
ककया जाना अिश्यक होता है। राज्यों के वलए सहायता का पैटना वभन्न होता है, अमतौर पर
के न्द्र सरकार ईत्तरी-पूिी राज्यों के वलए 90% सहायता और ऄन्य राज्यों के वलए 75 से
100% सहायता योगदान करती है। कु छ राज्य, विशेषकर ईत्तरी-पूिी राज्य, वबहार,
झारखण्ड अकद यह वशकायत करते हैं कक ईनके पास संसाधनों की सीमा है, तथा िे के न्द्र
प्रायोवजत योजनाओं के वलए अिश्यक धन के ईपयोग हेतु राज्य द्वारा प्रदान ककए जाने िाले
धन का वनधााररत वहस्सा प्रदान करने में सक्षम नहीं है।

2.5.3.1 के न्द्र प्रायोवजत योजनाओं को तार्कक क बनाना


पृष्ठभूवम
 भारत सरकार द्वारा नीवत अयोग के माध्यम से के न्द्र प्रायोवजत योजनाओं को तार्ककक बनाने एिं
ईन्हें पुनसंरवचत करने के वलए मुख्यमंवत्रयों के एक ईपसमूह का गठन ककया गया।
 आस ईपसमूह के द्वारा यह ऄनुशस ं ा की गयी है कक कें द्र द्वारा ईन्हीं योजनाओं को प्रायोवजत ककया
जाना चावहये वजनका संबंध राष्ट्रीय विकास एजेंडे से हो।

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 यह भी वसफाररश की गयी है कक योजनाओं को कोर (core) और ऑप्शनल (optional) योजनाओं


के रूप में दो भागों में विभावजत ककया जाना चावहए। कोर योजनाओं में भी सामावजक सुरक्षा और
िंवचत िगो के समािेशन पर अधाररत योजनाओं को ‘कोर ऑफ़ द कोर’ योजनाओं’ (core of the
core) के रूप में पररभावषत जाना चावहए।
 ईपसमूह ने यह भी वसफाररश की है कक कोर योजनाओं में वनिेश के ितामान स्तर को बनाये रखना
चावहए, ताकक योजनाओं के ऄवधकतम विस्तार में कोइ कमी न हो।
बजट 2016-17 में ऄनुदान के वलए नया ढांचा
 सरकार ने मुख्यमंवत्रयों के ईपसमूह की वसफाररशों के अधार पर सरकारी ऄनुदान का पुनगाठन
ककया है।
 सरकार ने ‘कोर ऑफ़ द कोर’ के रूप में पररभावषत योजनाओं के वित्त पोषण के मौजूदा पैटना को
बरकरार रखा है।
 राष्ट्रीय विकास एजेंडे के वहस्से िाली कोर योजनाओं पर व्यय कें द्र और राज्यों के बीच 60:40 के
ऄनुपात में साझा ककया जायेगा। (8 पूिोत्तर राज्यों और 3 वहमालयी राज्यों के वलए यह ऄनुपात
90:10 होगा।)
 ऄगर, ईपरोि िगीकरण की पररभाषा में अने िाली, कु छ योजनाओं में कें द्र का ऄनुदान 60:40
से कम है, तो ऐसी योजनाओं/ईप-योजनाओं का मौजूदा वित्तपोषण पैटना जारी रहेगा।
 ऄन्य ऑप्शनल योजनाएाँ राज्यों के वलए िैकवल्पक रहेंगी और आन पर व्यय होने िाली रावश कें द्र
और राज्य सरकारों के बीच 50:50 के ऄनुपात में विभावजत की जाएगी। (8 पूिोत्तर राज्यों और
3 वहमालयी राज्यों के वलए यह ऄनुपात 80:20 होगा।) ऐसी कु छ योजनाएाँ सीमा क्षेत्र विकास
कायािम, राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना, श्यामा प्रसाद मुखजी रुबान वमशन अकद हैं।
 कें द्रीय बजट 2016-17 में कें द्र प्रायोवजत योजनाओं की कु ल संख्या को सीवमत करते हुए 28 कर
कदया गया है।

कोर ऑफ़ द कोर (6 योजनायें) कोर (18 योजनायें)


 महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारं टी  हररत िांवत (a) कृ वष ईन्नवत योजना
योजना (b) राष्ट्रीय कृ वष विकास योजना
 राष्ट्रीय सामावजक सहायता कायािम  श्वेत िांवत-राष्ट्रीय पशुधन विकास
 ऄनुसूवचत जावतयों के विकास के वलए ऄम्ब्रेला योजना (पशुधन वमशन, पशु वचककत्सा
योजना सेिा डेयरी विकास)
 ऄनुसूवचत जनजावतयों के विकास के वलए ऄम्ब्रेला  प्रधानमन्त्री कृ वष चसचाइ योजना
योजना (जनजातीय वशक्षा और िन बंधु योजना)  स्िच्छ भारत ऄवभयान
 वपछड़े िगों एिं ऄन्य सुभेद्य िगो के विकास के  राष्ट्रीय स्िास्थ्य वमशन
वलए ऄम्ब्रेला योजना  एकीकृ त बाल विकास योजना
 ऄल्पसंख्यकों के विकास के वलए ऄम्ब्रेला योजना  सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना

(a) बहुक्षेत्रीय योजना (b) मदरसा एिं


ऄल्पसंख्यकों के वलए शैक्षवणक योजना

2.5.4. सं घ िाद ि विदे श नीवत

 यद्यवप विदेश नीवत कें द्र सरकार के विवशष्ट क्षेत्रावधकार के ऄंतगात अता है और संविधान राज्यों
को आन विषयों में पहल करने की ऄनुमवत नहीं देता है, तथावप पविम बंगाल सरकार ने हाल में
बांग्लादेश के साथ वद्वपक्षीय संवध के मागा में बाधा ईत्पन्न कर एिं तीस्ता नदी जल समझौते को
रोककर/बावधत कर कें द्रीय विदेशी नीवत को चुनौती दी है।

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 कु छ राज्य तका देते रहे हैं कक विदेश नीवत वनमााण में राज्यों की भागीदारी होनी चावहए, विशेष
रूप ऄंतरााष्ट्रीय सीमा पर वस्थत राज्य ईन मुद्दों पर स्पष्ट ििा है, जो ईन्हें प्रत्यक्ष या ऄप्रत्यक्ष रूप
से प्रभावित करते हैं।
 आसी तरह जब चीन के साथ सीमा व्यापार के विषय पर चचाा हुइ तो वसकक्कम के विचार भी जानने
का प्रयास ककया गया। तवमलनाडु ने सदैि श्रीलंका में तवमलों पर होने िाले ऄत्याचार के मुद्दे पर
हस्तक्षेप की मांग की। ईत्तर-पूिा के राज्य म्यांमार, बांग्लादेश, चीन, भूटान और नेपाल के साथ
सीमाएं साझा करते हैं तथा पूिी भारत के राज्यों के आन देशों से ऄच्छे संबध है, ये राज्य मांग करते
हैं कक आनकी ऄथाव्यिस्थाओं को ‘एक्ट इस्ट पॉवलसी’ से ऄपेक्षाकृ त ऄवधक लाभ प्राप्त होना चावहए।
 पूिोत्तर के राज्यों के नेता मांग करते हैं कक अर्तथक एिं राजनीवतक विषयों पर पड़ोसी देशों से
िाताा के दौरान ईनके विचार भी वलये जाने चावहए।
 यह राज्यों के परामशा तथा भागीदारी प्रकिया को संस्थागत करने का विषय है, जो ककसी विदेशी
या सुरक्षा नीवत के ईपाय से प्रभावित होते हैं।
 हररयाणा, मध्यप्रदेश, झारखण्ड ि छत्तीसगढ़, तेलंगाना को छोड़कर सभी भारतीय राज्य ऄन्य
देशों के साथ या तो स्थल सीमा साझा करते है या ऄन्तरााष्ट्रीय समुद्री सीमा से जुड़े हैं। आस संदभा में
आन राज्यों के पास ऐसे वहत या मुद्दे होते हैं, जो देश की विदेश या सुरक्षा नीवतयों के साथ
ऄंतसंबंवधत हैं।
 विवभन्न शासन व्यिस्थाओं में, वजनमें संयुि राज्य ऄमेररका भी एक है, राज्यों के वहतों को विदेश
एिं सुरक्षा नीवतयों के वनमााण ि कियान्ियन में सवम्मवलत ककया जाता है।
 यह बड़े तथा छोटे राज्यों के मध्य संपन्न हुए समझौते का भाग है वजसके पररणामस्िरूप िहां
संविधान का वनमााण ककया गया।
 संयुि राज्य ऄमेररका का संविधान आसके ईच्च सदन सीनेट को विदेश नीवत के वनमााण में प्रमुख
सदन के रूप में सशि बनाता है, जो ऄन्तरााष्ट्रीय समझौतों को स्िीकृ वत प्रदान करता है तथा
राजदूतों की वनयुवियों पर आसकी स्िीकृ वत अिश्यक है।
 संयुि राज्य ऄमेररका के समान यह व्यिस्था भारतीय व्यिस्था में लागू करना ऄत्यंत करठन होगा
तथावप स्पष्ट रूप से ऐसी पररवस्थवत अ गयी है कक वमजोरम तथा नागालैंण्ड जैसे राज्य भारत की
म्यांमार नीवत के के िल पररणामों को भुगतने के बजाय आस नीवत के वनमााण को प्रभावित करते हैं।

2.5.5. सं घ शावसत प्रदे श से सं बं वधत मामले

संघ शावसत प्रदेश और आसका प्रशासन


 प्रत्येक संघ शावसत प्रदेश का प्रशासन राष्ट्रपवत द्वारा वनयुि "प्रशासक" के माध्यम से ककया जाता
है।
 संघ शावसत प्रदेश के "प्रशासक" के पास राज्य के राज्यपाल के समान शवियां प्राप्त होती हैं लेककन
िह राष्ट्रपवत का प्रवतवनवध है न की राज्य का संिैधावनक प्रमुख।
 प्रशासक को लेवटटनेंट गिनार, मुख्य अयुि या प्रशासक के रूप में नावमत ककया जा सकता है।
 संविधान के ऄनुच्छेद 239 और 239AA के तहत आनके प्रशासवनक शवियां और कायों को
पररभावषत ककया गया है।
राज्य और संघ शावसत प्रदेशों के मध्य शवियों का ऄंतर
 कें द्र सरकार संघ शावसत प्रदेशों के संदभा में राज्य सूची के सभी विषयों पर विधायी तथा
कायापावलका शवियों का प्रयोग कर सकती है जबकक पूणा राज्य का दजाा प्राप्त क्षेत्रों में सरकार
द्वारा आन शवियों का प्रयोग संभि नहीं है।
 ऄनुच्छेद 240 के ऄनुसार, राष्ट्रपवत को संघ शावसत प्रदेशों के वलए विवनयम बनाने की शवि प्राप्त
है, जब तक कक ईस राज्य के वलए कोइ विधावयका न हो। यहां तक कक ऄगर कोइ विधावयका है,
तो प्रशासक ईसे राष्ट्रपवत की स्िीकृ वत के वलए अरवक्षत कर सकता है, जो धन विधेयक को
छोड़कर आसे ऄस्िीकार कर सकता है।

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 राज्यों में मुख्यमंवत्रयों की वनयुवि राज्यपाल करता है लेककन कें द्र शावसत प्रदेश के वलए मुख्यमंत्री
और मंवत्रयों की वनयुवि राष्ट्रपवत करता है, जो राष्ट्रपवत के प्रसादपयंत पद धारण करता है।
 "न्यावयक अयुि" से संबंवधत कु छ विधायी प्रस्तािों के वलए प्रशासक की पूिा मंजरू ी अिश्यक है।
 संघ शावसत सरकार के वनम्नवलवखत विषयों से संबंवधत ककसी विधेयक या विधेयक में संशोधन पेश
करने हेतु प्रशासक की पूिा ऄनुमवत अिश्यक होती है:
o कर ऄवधरोपण, ईन्मूलन, छू ट, पररितान या विवनयमन से संबंवधत विषय,
o वित्तीय ईत्तरदावयत्ि से संबंवधत ककसी कानून में संशोधन के प्रस्ताि तथा
o UTs की संवचत वनवध से संबंवधत कोइ विषय।
पुडुचरे ी का मामला
ितामान में पुडुचरे ी के लेवटटनेंट गिनार और मुख्यमंत्री के बीच ऄवधकृ त शवियों को लेकर संघषा की
वस्थवत बनी हुइ है।
 मुख्यमंत्री द्वारा आस बात पर बल कदया गया है कक लेवटटनेंट गिनार को मंवत्रपररषद् की सलाह के
ऄनुसार काम करना चावहए और ईसे ककसी भी वनिााचन क्षेत्र में जाने की पूिा सूचना प्रदान करनी
चावहए।
 िहीं लेवटटनेंट गिनार ने कहा कक िह "िास्तविक प्रशासक" है। साथ ही प्रशासवनक मामलों पर
ईन्हें विशेष शवियां प्राप्त हैं। आसवलए सभी फाआलों को ईनकी मंजरू ी के वलए भेजा जाना चावहए।
गिमेंट ऑफ़ यूवनयन टेररटरी एक्ट, 1963 में ऄस्पष्टता
 यह ऄवधवनयम "संघ राज्य क्षेत्र पांवडचेरी" के शासन हेतु विधान सभा तथा एक मंवत्रपररषद् का
प्रािधान करता है। यह ऄवधवनयम विधान सभा को “विधायी सीमा" के ऄंतगात राज्य सूची या
समिती सूची में िर्तणत ककसी भी मामले के संबंध में संपूणा पुडुचेरी कें द्रशावसत प्रदेश या आसके
ककसी विशेष वहस्से के वलए कानून बनाने की शवि प्रदान करता है।
 हालांकक, आस ऄवधवनयम में कहा गया है कक राज्य का प्रशासन भारत के राष्ट्रपवत द्वारा वनयुि
लेवटटनेंट गिनार के माध्यम से ककया जाएगा। ऄवधवनयम की धारा 44 के ऄनुसार मुख्यमंत्री की
ऄध्यक्षता िाली मंवत्रपररषद्, वजन विषयों पर विधान सभा को कानून बनाने की शवि प्राप्त है,
ईन पर प्रशासक को ईसके कायों के संचालन में सहायता और सलाह देगी। यकद ककसी मुद्दे पर
ऄसहमवत हो तो यही धारा प्रशासक को ऄपने वििेकानुसार कानून बनाने की शवि भी प्रदान
करती है।
मुख्यमंत्री के पक्ष में तका :
वनिाावचत सरकार के ऄवधकारों को कम करना
 कदल्ली और पुडुचरे ी संघ शावसत प्रदेशों में विधान सभा और मंवत्रपररषद् का प्रािधान ककया गया
है। आसवलए, आन क्षेत्रों के प्रशासक से मुख्यमंत्री और ईनकी मंवत्रपररषद् की सहायता और सलाह के
ऄनुसार काया करना ऄपेवक्षत है।
 जनता के प्रवत जिाबदेही - विधान सभा में जनता के प्रवतवनवध होने के नाते, िे जनता के कल्याण
के वलए जिाबदेह हैं। लेवटटनेंट गिनार को ऄवधक शवियााँ प्राप्त होने की वस्थवत में संभि है कक िह
जनकल्याण से संबंवधत ककसी मामले में मंवत्रपररषद् द्वारा वलए गए नीवतगत वनणाय को मंजूरी न
प्रदान करे ।
 कें द्र के समानांतर शवि - प्रशासक को वनिाावचत सरकार की ऄिहेलना कर, जनता से सीधे
वमलना, वनदेश देने या वनरीक्षण अकद से संबंवधत काया नहीं करने चावहए। प्रशासक को सरकार के
साथ समन्िय के साथ काया करना चावहए।
 लेवटटनेंट गिनार और मुख्यमंत्री के बीच शवि संतल
ु न का ऄभाि - लेवटटनेंट गिनार मंत्रीमंडल के
वनणाय को प्रायः ऄस्िीकार कर देते हैं जो कक संविधान के प्रािधानों के विपरीत है क्योंकक
विधावयका और मंवत्रपररषद् का वित्तीयन लोक वनवध (पवब्लक फं ड) से होता है।

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 ऄनुच्छेद 240 (1) के ऄनुसार विधायी वनकाय के सृजन के बाद राष्ट्रपवत का प्रशासवनक वनयंत्रण
समाप्त हो जाता है आसवलए राष्ट्रपवत द्वारा वनयुि प्रशासक के पास वनिाावचत प्रवतवनवधयों की
पररषद् से ऄवधक शवि नहीं हो सकती है।
लेवटटनेंट गिनार के पक्ष में तका :
 पुडुचरे ी सरकार के कायासच
ं ालन से संबवं धत वनयम 21 (5) - आसके ऄनुसार, प्रशासक ककसी भी
मामले से संबंवधत फाआल की मांग कर सकता है। ककसी संदह
े या प्रश्न पर ऄद्यतन सूचना हेतु
मुख्यमंत्री से ऄनुरोध कर सकता है।
 ऄनुच्छेद 239AA - परं तु लेवटटनेंट गिनार और ईसके मंवत्रयों के बीच ककसी विषय पर मतभेद की
वस्थवत में, िह, ईसे राष्ट्रपवत को विवनिय के वलए वनदेवशत करे गा और राष्ट्रपवत द्वारा ईस पर
ककए गए विवनिय के ऄनुसार काया करे गा तथा ऐसा विवनिय होने तक ईप-राज्यपाल ककसी ऐसे
मामले में, जहााँ िह विषय, ईसकी राय में, आतना अिश्यक है वजसके कारण तुरंत कारा िाइ करना
ईसके वलए अिश्यक है िहां, ईस विषय में ऐसी कारा िाइ करने या ऐसा वनदेश देने के वलए, जो
िह अिश्यक समझे, सक्षम होगा।
 कदल्ली ईच्च न्यायालय के फै सले - कदल्ली के मुख्यमंत्री और प्रशासक से संबंवधत मामले में कदल्ली के
ईच्च न्यायालय ने ऄगस्त 2016 में प्रशासक की सिोच्चता को बरकरार रखा।
 वनयम 47 - आसके ऄनुसार, प्रशासक मुख्यमंत्री के परामशा से संघ शावसत प्रदेश की सरकार में
सेिा करने िाले ऄवधकाररयों की सेिा शतों को विवनयवमत करता है।
पुडुचरे ी और कदल्ली के प्रशासक के बीच शवियों मे ऄंतर :
 कदल्ली के प्रशासक को पुडुचरे ी के प्रशासक की तुलना मे ऄवधक शवि प्राप्त है। कदल्ली के प्रशासक
के पास "कायापावलका शवि” है जो ईसे सािाजवनक व्यिस्था, पुवलस और भूवम से जुड़े मामलों में
मुख्यमंत्री से परामशा लेने के पिात् कोइ भी वनदेश देने की शवि प्रदान करता है, यकद ईसे यह
शवि ऄनुच्छेद 239 के तहत राष्ट्रपवत द्वारा जारी ककसी भी अदेश के तहत प्रदान की गइ हो।
 कदल्ली का प्रशासक गिनामेंट ऑफ़ नेशनल कै वपटल टेररटरी ऑफ़ डेल्ही एक्ट, 1991 और
िांजैक्शन ऑफ़ वबज़नेस ऑफ़ गिनामेंट ऑफ़ नेशनल कै वपटल टेररटरी ऑफ़ डेल्ही रूल्स 1993
द्वारा वनदेवशत है जबकक पुडुचेरी का प्रशासक गिमेंट ऑफ़ यूवनयन टेररटरी एक्ट 1963 द्वारा
वनदेवशत होता है।
 संविधान के ऄनुच्छेद 239 एिं 239 AA और गिनामेंट ऑफ़ नेशनल कै वपटल टेररटरी
ऑफ़ डेल्ही एक्ट, 1991 में स्पष्ट रूप से ईवल्लवखत है कक पुडुचेरी की तुलना मे कें द्र को कदल्ली के
संबंध में ऄवधक ऄवधकार प्राप्त है।

कदल्ली का मामला
पृष्ठभूवम
 िषा 2015 में नइ कदल्ली में अम अदमी पाटी की सरकार के सत्ता में अने के बाद से राज्य सरकार
और कें द्र सरकार के बीच वनरं तर संघषा जारी है।
 राज्य सरकार ने कें द्र सरकार पर ऄपने कामकाज में लेवटटनेंट गिनार (ईप राज्यपाल) के माध्यम से
वनरं तर हस्तक्षेप करने एिं लोकतांवत्रक रुप से वनिाावचत राज्य सरकार से ईसके ऄवधकार छीनने
का अरोप लगाया जाता है।
 दूसरी ओर कें द्र सरकार ने राज्य सरकार को कानून के शासन का सम्मान न करने के वलए दोषी
ठहराया है। ईसका कहना है कक यह ऄनावधकृ त रूप से शवियों को ग्रहण कर सरकार को
ऄसंिैधावनक तरीके से संचावलत करने का प्रयत्न कर रही है।
मुद्दा: कदल्ली का विशेष मामला
 कदल्ली के मुख्यमंत्री एिं लेवटटनेंट गिनार के बीच जारी संघषा नया नहीं है। कदल्ली की प्रत्येक
िवमक सरकार ऄवधक शवियां देने की मांग करती रही है। ककन्तु, कदल्ली एक पूणा राज्य नहीं है
आसवलए आसकी कइ शवियां कें द्र सरकार में वनवहत है।

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 भारतीय संविधान का ऄनुच्छेद 239AA कहता है कक कदल्ली सरकार को लोक व्यिस्था, पुवलस
एिं भूवम के संबंध में कानून वनर्तमत करने की शवि प्राप्त नहीं है। हालांकक काया संचालन वनयम
(transfer of business rule) 45 कहता है कक कें द्र सरकार द्वारा अदेश जारी ककए जाने पर
कदल्ली सरकार आन तीनों विषयों के संबंध में शवियां प्राप्त कर सकती है। ऄवधक शवियों की मांग
करते समय राज्य सरकार द्वारा आस खंड को ही अधार के रूप में ककया जाता है।
 ककन्तु, कायासच
ं ालन वनयम एिं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन ऄवधवनयम भी मुख्यमंत्री एिं ईसकी
मंवत्रपररषद् पर भी प्रवतबंध अरोवपत करता है। आसके ऄनुसार, आन विधेयकों को राष्ट्रपवत की पूिा
स्िीकृ वत की अिश्यकता होती है।सवचिों की वनयुवि भी लेवटटनेंट गिनार आत्याकद की सहमवत से
होती है। कें द्र सरकार द्वारा आन प्रािधानों को यह तका देते हुए ईल्लेख ककया गया है कक लेवटटनेंट
गिनार की कारा िाआयााँ संविधान के ऄवधदेश के ऄनुसार और पूणा रूप से कानून की सीमा के ऄंतगात
है।
क्या ककया जाना चावहए:
 यह सही है कक कदल्ली सरकार लोकतांवत्रक रूप से भारी बहुमत से वनिाावचत सरकार है। ककतु
संविधान एिं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र ऄवधवनयम ने एक ढांचा वनधााररत ककया है वजसके ऄंतगात
कदल्ली का प्रशासन संचावलत ककया जाना चावहए। ये कानून वनिाावचत सरकार को प्राप्त होने
िाली शवियों एिं लेवटटनेंट गिनार को दी गइ वििेकाधीन शवियों में स्पष्ट रुप से विभेद करते हैं।
 आस प्रकार, भले ही कें द्र सरकार की कारा िाआयों की नैवतकता, िाद-वििाद का विषय हो सकती है।
ककतु, आसकी िैधता लगभग सुवनवित है।
 कदल्ली ईच्च न्यायालय ने वनणाय कदया कक राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, संघ शावसत क्षेत्र बना रहेगा और
आसके प्रशासवनक प्रमुख लेवटटनेंट गिनार है।
 वनष्कषा यह है कक लेवटटनेंट गिनार और मुख्यमंत्री के बीच सामंजस्यपूणा कामकाज होना चावहए।
पूिािती सरकारों ने भी आस प्रकार के मुद्दों का सामना ककया था ककतु ईन्होंने ऄपने मतभेदों को
अपसी बातचीत से सुलझा वलया।
 आस संघषा में ऄंवतम रुप से शासन और कदल्ली की जनता को हावन होगी। जब भारत की जनता ने
सरकार को जनादेश कदया है तो िह आसके ऄनुपालन की ऄपेक्षा करती है। ऄब यह सरकार पर
वनभार है कक िह आसका मागा ककस प्रकार वनधााररत करती है।
 चूाँकक राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT) कदल्ली की राजधानी है और आस प्रकार कें द्र सरकार का कु छ
वनयंत्रण िांवछत होगा, आसके ऄवधकतर क्षेत्र कें द्रीय राजधानी क्षेत्र से बाहर हैं। आस प्रकार, कें द्र
और राज्य सरकार को एक व्यिस्था वनर्तमत करने के वलए काया करना चावहए। आस संबंध में
िास्तविक चुनौती राजनीवतक आच्छाशवि की है।
राज्य के राज्यपाल की तुलना में संघ शावसत प्रदेश के प्रशासक को ऄवधक शवियां प्राप्त हैं। हालांकक,
प्रशासक को ऄपनी मागावनदेशन क्षमताओं द्वारा सरकार को वनदेश एिं सलाह प्रदान करना चावहए।
वनिाावचत सरकार को प्रशासन में प्राथवमकता देनी चावहए।
ितामान में, पुडुचेरी विधान सभा ने एक प्रस्ताि पाररत ककया है वजसके तहत कें द्र सरकार से गिमेंट
ऑफ़ यूवनयन टेररटरी एक्ट 1963 में अिश्यक संशोधन की मांग की गइ है। आस प्रस्ताि में वनिाावचत
सरकार की शवियों में िृवि और लेवटटनेंट गिनार की शवियों में कमी करने की ऄनुशस
ं ा की गइ है।
2.6 कें द्र-राज्य सं बं ध के कु छ निीन पहलू

प्रवतस्पधी संघिाद (Competitive Federalism)


 हाल के ऄध्ययनों से पता चलता है कक भारतीय ऄथाव्यिस्था में सफल प्रवतस्पधी संघिाद के लक्षण
कदखाइ पड़ रहे हैं, विशेष रूप से इज़ ऑफ़ डू आंग वबज़नेस के सन्दभा में। साथ ही, ऄब राज्य
सुविधाओं में सुधार कर वनिेश अकर्तषत करने हेतु प्रयासरत हैं।
प्रवतस्पधी संघिाद क्या है?

 प्रवतस्पधी संघिाद एक ऐसी संकल्पना है, जहााँ कें द्र राज्यों से तथा राज्य कें द्र से एिं राज्य परस्पर
एक-दूसरे के साथ भारत के विकास हेतु ककये गए संयुि प्रयासों में प्रवतस्पधाा करते हैं।

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 आस संकल्पना के ऄंतगात ककसी नीवत के संपण


ू ा राष्ट्र के वलए प्रयुि ककये जाने के स्थान पर, विवभन्न

राज्यों की प्राथवमकताओं के अधार पर वभन्न –वभन्न नीवतयााँ ऄपनाइ जाती हैं।


 प्रवतस्पधाात्मक संघिाद की ऄिधारणा विकास की बॉटम-ऄप ऄप्रोच पर रटकी हुइ है क्योंकक आसमें
विकास प्रकिया मूल रूप से राज्यों के द्वारा वनधााररत होती है।

श्रम सुधार के ईदाहरण

 गुजरात –िषा 2015 में श्रम सुधारों की एक पूरी श्रृंखला प्रारम्भ की गयी, वजसके कारण

औद्योवगक आकाआयों के श्रवमकों द्वारा हड़ताल करना ऄसंभि हो गया। आसके साथ ही, आसमें
कमाचाररयों के बखाास्त ककये जाने की वस्थवत में मुअिजा-भत्ता प्राप्त करने के वलए वनधााररत
समयािवध को भी कम ककया गया।
 कनााटक- िषा 2016 में सरकार ने नयी खुदरा नीवत की घोषणा की वजसके माध्यम से प्रवतष्ठानों
को देर तक खुला रखना संभि हो गया। श्रम कानूनों में सुधार के द्वारा स्टॉक की वलवमट को समाप्त
कर कदया गया तथा मवहलाओं को रावत्र में काया करने की ऄनुमवत दी गयी।
 राजस्थान – निंबर 2014 में सरकार ने, तीन श्रम सुधार कानूनों पर राष्ट्रपवत की स्िीकृ वत प्राप्त

की वजनके माध्यम से 300 तक कमाचाररयों िाली कं पवनयााँ वबना सरकार की पूिाानुमवत के ऄपने
कमाचाररयों को वनकाल सकती हैं या आकाइ को बंद कर सकती हैं।

 संकल्पना के रूप में प्रवतस्पधी संघिाद की ईत्पवत्त पविमी देशों में हुइ।
 संयुि राज्य ऄमेररका के वलबटी फाईं डेशन द्वारा प्रवतपाकदत प्रवतस्पधी संघिाद की ऄिधारणा के
ऄनुसार, ”यह एक ऐसी प्रकिया है वजसमें राज्य ऄपने नागररकों को न्यूनतम लागत पर सिोत्तम

सेिाएाँ और िस्तुएाँ प्रदान करने के विस्तृत मुद्दों पर अपस में प्रवतस्पधाा करते हैं।”
भारत में प्रवतस्पधाात्मक संघिाद
 भारत सरकार ने योजना अयोग को नीवत अयोग से प्रवतस्थावपत कर कदया है, वजसका प्रमुख
काया भारत में प्रवतस्पधी संघिाद विकवसत करना है।
 ऄब राज्य सरकारें नीवतगत मागादशान और वित्तीय संसाधनों के वलए पूरी तरह कें द्र पर वनभार नहीं
हैं।
 कें द्र सरकार ने कें द्रीय कर राजस्ि में राज्यों की वहस्सेदारी 32% से बढ़ाकर 42% कर दी है।
 सरकार ने घोषणा की है कक राज्य ऄपनी प्राथवमकताओं के अधार पर योजना वनमााण कर सकते
हैं तथा िे के न्द्र प्रायोवजत योजनाओं में बदलाि के वलए भी स्ितंत्र हैं।
 हालांकक, राज्यों को साझा राष्ट्रीय ईद्देश्यों की पररवध में रहकर ही काया करना चावहए।
प्रवतस्पधी संघिाद के मामले में प्रगवत
 प्रवतस्पधी संघिाद की संकल्पना ने राज्यों को सुधार प्रकियाओं के स्िीकरण हेतु प्रेररत ककया है
वजसके माध्यम से राज्यों में कारोबारी प्रकिया असान एिं लंवबत पररयोजनाओं को शीघ्र मंजरू ी
वमल सके ।
 राज्यों के मध्य वनिेश के वलए प्रवतस्पधाा, कोइ नइ बात नहीं है। हम अंध्र प्रदेश और कनााटक द्वारा
ईनके मुख्य प्रौद्योवगकी के न्द्रों- हैदराबाद और बेंगलुरू के वनमााण के वलए वनिेशकों को अकर्तषत
करने हेतु सकिय प्रयास करते हुए देख चुके हैं।
 प्रवतस्पधी संघिाद की प्रगवत को वपछले िषा में वनिेश में प्रवतस्पधाा के वलए राज्यों द्वारा ककये गए
विवभन्न सुधारों के सन्दभा में देखा जा सकता है।

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ईदाहरण- भूवम सुधार

 गुजरात – िषा 2016 में कु छ विकास पररयोजनाओं को संचावलत करने हेतु सामावजक प्रभाि
अकलन और सहमवत प्रािधान को समाप्त करने के वलए भूवम ऄवधग्रहण और पुनिाास ऄवधवनयम
में संशोधन ककया गया।

 महाराष्ट्र – िषा 2016 में भूवम राजस्ि संवहता में कु छ वनजी भूवम की वबिी हेतु स्िीकृ वत देने के
वलए संशोधन ककया गया। दृष्टव्य है कक पहले वनजी भूवम के िल लीज पर दी जा सकती थी। िषा
2015 में गुंथि
े ारी ऄवधवनयम में संशोधन के द्वारा मध्यम अकार के भू-खण्डों को आनकी वबिी हेतु
छोटे भू-खण्डों में विभावजत करने की स्िीकृ वत दी गयी।

 अंध्रप्रदेश –िषा 2015 में भूवम को सरकार द्वारा वनजी संस्थाओं को लीज पर कदए जाने की ऄिवध

को 33 िषा से बढ़ाकर 99 िषा कर कदया गया।

 राजस्थान –िषा 2016 में राजस्थान शहरी (हक़ प्रमाणन ) भूवम विधेयक -2016 पाररत ककया
गया वजसके माध्यम से राज्य सरकार के द्वारा भूवम के खरीदे जाने के बाद हक़ की गारं टी दी गयी।

 ईत्तर प्रदेश –िषा 2016 में व्यिसाय प्रारं भ करने िाली आकाआयों के वलए ईत्तर प्रदेश I.T. एिं

स्टाटा-ऄप नीवत 2016 को विधान सभा के द्वारा मंजूरी दी गयी।

2.7. के न्द्र-राज्य सं बं ध को मजबू त बनाने हे तु निीन योजना

2.7.1. एक भारत श्रे ष्ठ भारत पहल

पहल के सन्दभा में

भारत की एकता और ऄखंडता को मजबूत बनाने के वलए यह एक ऄवभनि पहल है वजससे विवभन्न

राज्यों एिं कें द्र शावसत प्रदेशों की संस्कृ वत, परं पराओं तथा प्रथाओं के ज्ञान के माध्यम से राज्यों के मध्य
एक बेहतर समझ एिं संबंध को बढ़ािा वमलेगा।
 आस कायािम के ऄंतगात सभी राज्यों और कें द्र शावसत प्रदेशों को सवम्मवलत ककया जाएगा।

 आस योजना के ऄनुसार, दो राज्य एक िषा के वलए एक ऄवद्वतीय साझेदारी अरम्भ करें गे।वजसमें
सांस्कृ वत और विद्यार्तथयों के अदान-प्रदान को लवक्षत ककया जाएगा। आस पहल के शुभारं भ के
ऄिसर पर राज्यों के मध्य 6 सहमवत पत्रों (MOUs) पर हस्ताक्षर भी ककए गए।

 आसमें एक विशेष राज्य का विद्याथी, एक-दूसरे की संस्कृ वत को जानने के वलए दूसरे राज्य की
यात्रा करे गा।
 वजला स्तरीय समन्िय को बढ़ािा कदया जाएगा तथा यह राज्य स्तरीय समन्िय से स्ितंत्र होगा।
 िार्तषक कायािमों में विवभन्न राज्यों और वजलों को जोड़ने में यह गवतविवध ऄत्यवधक सहायक
होगी।

 यह संस्कृ वत, पयाटन, भाषा, वशक्षा व्यापार अकद के क्षेत्रों में अदान-प्रदान के माध्यम से लोगों
को जोड़ेगी।
 नागररक कइ राज्यों/कें द्र शावसत प्रदेशों में भ्रमण कर सांस्कृ वतक विविधता का ऄनुभि करें गे और
यह महसूस करें गे कक भारत एक है।

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“एक भारत श्रेष्ठ भारत” का ईद्देश्य:

 हमारे राष्ट्र की विविधता में एकता का प्रचार करना और आसे बनाए रखना तथा देश के लोगों के
बीच पारं पररक रूप से विद्यमान भािनात्मक बंधन के ताने-बाने को मजबूत करना।
 राज्यों के बीच एक िषा की ऄिवध िाली योजनाबि भागीदारी द्वारा सभी भारतीय राज्यों और
संघ शावसत प्रदेशों के बीच एक प्रगाढ़ और समवन्ित भागीदारी के माध्यम से राष्ट्रीय एकता की
भािना को बढ़ािा देना।
 भारत की विविधता को समझने और ईसकी सराहना करने में लोगों को सक्षम बनाने के वलए
समृि विरासत एिं संस्कृ वत, रीवत-ररिाज एिं परं पराओं को प्रदर्तशत करना तथा आस प्रकार
पहचान की समान भािना को बढ़ािा देना।
 दीघाकावलक भागीदारी की स्थापना करना तथा ऐसे िातािरण का वनमााण करना जो राज्यों के
बीच सिोत्तम कायाप्रणाली और ऄनुभिों को साझा कर सीखने को बढ़ािा देता है।

महत्ि:
 एक भारत श्रेष्ठ भारत का विचार लोगों को बंधन और भाइचारे की स्िाभाविक डोर को अत्मसात
करने में सक्षम बनाकर एक बेहतर राष्ट्र के वनमााण में मदद करे गा।
 यह योजना विवभन्न सांस्कृ वतक विचारों के अदान प्रदान के माध्यम से संपण
ू ा राष्ट्र हेतु जिाबदेही
और स्िावमत्ि की भािना को संप्रवे षत करने में मदद करे गी।

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Classroom Study Material

भारतीय संविधान एिं शासन


15. पंचायतें (भाग IX) एिं नगरपाविकाएँ (भाग IX-A)

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विषय सूची
1. पंचायती राज संस्थाएँ {ऄनु. 243 से ऄनु. 243(O) तक} _________________________________________________ 5

1.1. भारत में पंचायती राज का विकास ______________________________________________________________ 5

1.2. 73िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1992 की विशेषताएँ ______________________________________________ 6

1.3. पंचायतों की संरचना _______________________________________________________________________ 7

1.4. पंचायतों का काययकाि ______________________________________________________________________ 7

1.5. पंचायतों की शवियाँ ि ईत्तरदावयत्ि ____________________________________________________________ 7

1.6 पंचायती राज की वि-स्तरीय संरचना _____________________________________________________________ 7


1.6.1. ग्राम स्तर पर पंचायतें ___________________________________________________________________ 7
1.6.1.1. ग्राम सभा _______________________________________________________________________ 8
1.6.1.2. ग्राम पंचायत _____________________________________________________________________ 8
1.6.1.3. न्याय पंचायत _____________________________________________________________________ 8
1.6.2. पंचायत सवमवत _______________________________________________________________________ 8
1.6.3. वजिा पररषद् ________________________________________________________________________ 9

1.7. पंचायती राज संस्थाओं के कायय ________________________________________________________________ 9


1.7.1. ग्राम पंचायतों के कायय ___________________________________________________________________ 9
1.7.2. पंचायत सवमवत के कायय _________________________________________________________________ 9
1.7.3. वजिा पररषद् के कायय ___________________________________________________________________ 9

1.8. वित्तीय स्रोत ____________________________________________________________________________ 10


1.8.1. पंचायतों के अय के स्रोत ________________________________________________________________ 10
1.8.1.1. ग्राम पंचायत ____________________________________________________________________ 10
1.8.1.2. पंचायत सवमवत __________________________________________________________________ 10
1.8.1.3. वजिा पररषद् ____________________________________________________________________ 10
1.8.2. पंचायतों के वित्तीय संसाधनों से संबंवधत समस्याएं ______________________________________________ 11
1.8.3. पंचायतों का वित्तीय सशविकरण ककस प्रकार ककया जाए _________________________________________ 11

1.9. पंचायती राज से संबंवधत मुद्दे (समस्याएं) ________________________________________________________ 11

1.10. पंचायती राज के विए रोडमैप (सुझाि) _________________________________________________________ 13

1.11. पंचायत ईपबंध (ऄनुसूवचत क्षेिों में विस्तार) ऄवधवनयम 1996 ________________________________________ 14
1.11.1. PESA की पृष्ठभूवम __________________________________________________________________ 14
1.11.2. PESA से संबंवधत समस्याएँ ____________________________________________________________ 15

1.12. िन ऄवधकार ऄवधवनयम (FOREST RIGHTS ACT: FRA) __________________________________________ 15


1.12.1. FRA के ऄंतगयत प्रदत्त ऄवधकार __________________________________________________________ 15
1.12.2. िन ऄवधकार ऄवधवनयम से संबंवधत चचताएँ _________________________________________________ 16
1.12.3. क्या ककया जाना चावहए _______________________________________________________________ 17

1.13. ऄर्द्य-सरकारी संस्थाएँ तथा सम्बंवधत समस्याएँ ___________________________________________________ 17

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2. शहरी स्थानीय शासन (Urban Local Governments) ________________________________________________ 18

2.1. 74िां संविधान संशोधन ऄवधवनयम ____________________________________________________________ 18


2.1.1. मुख्य प्रािधान _______________________________________________________________________ 18

2.2. संगठन ________________________________________________________________________________ 19

2.3. शहरी स्थानीय वनकायों के कायय _______________________________________________________________ 20

2.4. शहरी शासन के प्रकार _____________________________________________________________________ 20


2.4.1. नगर वनगम (Municipal Corporation) ____________________________________________________ 20
2.4.2. नगरपाविका (Municipality) ____________________________________________________________ 20
2.4.3. ऄवधसूवचत क्षेि सवमवत (Notified area committee) __________________________________________ 21
2.4.4. नगर क्षेिीय सवमवत (Town Area committee) ______________________________________________ 21
2.4.5. छािनी पररषद् (Cantonment Board) ____________________________________________________ 21
2.4.6. टाईन वशप _________________________________________________________________________ 21
2.4.7. न्यास पत्तन (Port Trust) ______________________________________________________________ 21
2.4.8. विशेष ईद्देश्य एजेंसी (Special Purpose Agency) ___________________________________________ 22

2.5. नगरीय वनकायों की सीमाएँ__________________________________________________________________ 22

2.6. वित्तीय स्रोत ____________________________________________________________________________ 22


2.6.1. वित्त से संबंवधत समस्याएं _______________________________________________________________ 23
2.6.2. वित्तीय सुधारों के संदभय में सुझाि__________________________________________________________ 23
2.6.3. म्युवनवसपि बांड _____________________________________________________________________ 24
2.6.4. 14िां वित्त अयोग और स्थानीय सरकार ____________________________________________________ 25
2.6.4.1. वित्त अयोग के प्रमुख सुझाि__________________________________________________________ 25

2.7. स्थानीय स्िशासन के विए योजनाएं ____________________________________________________________ 26


2.7.1. वजिा योजना सवमवत (DPCs) ___________________________________________________________ 26
2.7.1.1. DPCs से सम्बंवधत समस्याएं_________________________________________________________ 27
2.7.1.2. वजिा योजना सवमवतयों में सुधार ______________________________________________________ 27
2.7.2. महानगर योजना सवमवत ________________________________________________________________ 27

2.8. स्थानीय शासन की कें द्रीय पररषद् _____________________________________________________________ 28

2.9. वनिायचन संबंधी मामिों में न्यायािय के हस्तक्षेप पर प्रवतबंध ___________________________________________ 28

3. हाि के कु छ चर्चचत मुद्दे एिं निीन पहि ____________________________________________________________ 28

3.1. प्रत्यक्ष वनिायवचत महापौर/मेयर (Directly Elected Mayor) _________________________________________ 28

3.2. जनगणना नगरों का िैधावनक शहरी स्थानीय वनकायों में पररितयन _______________________________________ 29
3.2.1. िैधावनक शहरी स्थानीय वनकाय (ULBs) क्या हैं? _____________________________________________ 29
3.2.2. जनगणना नगर क्या है? ________________________________________________________________ 29
3.2.3. पररितयन की अिश्यकता क्यों? ___________________________________________________________ 30

3.3. शहरी विकास मंिािय: नए सुधार _____________________________________________________________ 30


3.3.1. सुधार हेतु सुझाये गए प्रमुख प्रािधान _______________________________________________________ 30

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3.4. ग्राम ईदय से भारत ईदय ऄवभयान _____________________________________________________________ 31


3.4.1. ऄवभयान की मुख्य विशेषताएं ____________________________________________________________ 31

3.5. राष्ट्रीय ग्राम स्िराज ऄवभयान ________________________________________________________________ 31

3.6 ऄमृत: ऄटि वमशन फॉर रे जि


ु नेशन एंड ऄबयन ट्ांसफॉमेशन_____________________________________________ 32

3.7. स्माटय वसटीज़ वमशन (Smart Cities Mission) ___________________________________________________ 33

3.8. स्िच्छ भारत वमशन _______________________________________________________________________ 35

3.9. वपछड़ा क्षेि ऄनुदान वनवध___________________________________________________________________ 36

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पंचायतें
1. पं चायती राज सं स्थाएँ {ऄनु . 243 से ऄनु . 243(O) तक}
 भारत के ऄवधकांश राज्यों में ग्रामीण स्थानीय स्िशासन की स्थापना हेतु राज्य विधावयकाओं के
ऄवधवनवयमों के तहत पंचायती राज संस्थाओं की स्थापना की गयी हैं ताकक िोकतंि का वनचिे
स्तरों पर भी विस्तार ककया जा सके ।
 आन पंचायती राज संस्थाओं को ग्रामीण विकास का दावयत्ि सौंपा गया है। ईल्िेखनीय है कक
पंचायती राज संस्थाओं को 73िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1992 के तहत संिध
ै ावनक दजाय
प्रदान ककया गया है।

1.1. भारत में पं चायती राज का विकास

 भारत में पंचायती राज निीन ऄिधारणा नहीं है। प्राचीन समय में भारतीय गांिों में पंचायतें
(पांच व्यवियों की पररषद्) होती थीं, वजन्हें काययकारी तथा न्यावयक दोनों शवियां प्राप्त थीं। भूवम
वितरण, कर संग्रहण अकद जैसे ऄनेक मुद्दें आन पंचायतों के वनयंिणाधीन थे तथा ये पंचायतें
स्थानीय वििादों का समाधान करती थीं।
 गांधी जी पंचायती राज के सशविकरण के समथयक थे। आस सन्दभय में ईनके विचारों के
पररणामस्िरूप ही हमारे संविधान के भाग IV (राज्य के नीवत के वनदेशक तत्ि) में पंचायतों के
गठन का प्रािधान शावमि है। ऄनुच्छेद 40 के ऄनुसार, पंचायतों के गठन का ईत्तरदावयत्ि राज्यों
का है तथा राज्य ईन्हें अिश्यक शवियाँ तथा ऄवधकार प्रदान करें गे ताकक िे सरकार की इकाइ के
रूप में कायय करने में सक्षम हो सकें । परं तु, यह ऄनुच्छेद पंचायतों के गठन के विए कदशा-वनदेश
नहीं देता है। ऄतः आस प्रकार यह एक औपचाररक संस्था है।
 पंचायतों की संरचना के विषय में सियप्रथम बििंतराय मेहता सवमवत (सामुदावयक विकास
काययक्रम की जांच सवमवत, 1952) ने 1957 में वसफाररश की थी। सवमवत ने निंबर 1957 में
ऄपनी ररपोटय में िोकतांविक विके न्द्रीकरण की योजना की वसफाररश की। वजसे भारत में ऄतंतः
पंचायती राज के रूप में जाना गया। बििंतराय मेहता सवमवत ने वि-स्तरीय व्यिस्था की
वसफाररश की थी वजसमें ग्राम पंचायत, क्षेि पंचायत (ब्िॉक स्तर पर पंचायत सवमवत) तथा वजिा
पंचायत (वजिा स्तर पर वजिा पररषद्) तीन स्तर थे। आसने ग्राम स्तर की पंचायतों के विए प्रत्यक्ष
चुनाि की वसफाररश की। राजस्थान, भारत में पंचायती राज स्थावपत करने िािा पहिा राज्य
था, वजसका अरम्भ 2 ऄक्टू बर 1959 को नागौर वजिे से ककया गया।
 1 कदसम्बर 1977 को पंचायती राज पर विचार हेतु ऄशोक मेहता सवमवत का गठन ककया गया।
आस सवमवत ने ऄगस्त 1978 में ऄपनी ररपोटय प्रस्तुत की। ऄशोक मेहता सवमवत ने पंचायती राज
को सशि बनाने हेतु विवभन्न वसफाररशें कीं वजसमें वनम्नविवखत प्रमुख है:
o विस्तरीय पंचायतें,
o वनयवमत सामावजक िेखा परीक्षण,
o पंचायती चुनाि में राजनीवतक दिों की भागीदारी,
o वनयवमत चुनाि,
o पंचायतों में ऄनुसूवचत जावतयों तथा ऄनुसूवचत जनजावतयों के विए अरक्षण तथा
o राज्य मंविमण्डि में पंचायती राज मंिी की व्यिस्था अकद।
 आसके ऄवतररि, 1985 में गरठत जी. िी. के . राि सवमवत ने पंचायती राज संस्थाओं को मजबूत
करने के विए कु छ वसफाररशें कीं।

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 1986 में एि. एम. चसघिी सवमवत गरठत की गइ। आस सवमवत ने पहिी बार पंचायतों के

वनयवमत, स्ितंि ि वनष्पक्ष चुनाि सुवनवित करने के विए संिध


ै ावनक प्रािधानों पर विचार

ककया। आस सवमवत की वसफाररशों के अधार पर 1989 में राजीि गांधी सरकार ने पंचायती राज

को संिैधावनक दजाय प्रदान करने के विए िोकसभा में एक विधेयक (64िां संविधान संशोधन
विधेयक) पेश ककया। यह विधेयक राज्यसभा में पाररत नहीं हो सका।
 पुनः िी.पी. चसह सरकार ने भी सदन में एक विधेयक प्रस्तुत ककया, परं तु सरकार के वगरने के
कारण यह विधेयक समाप्त हो गया।
 ऄंततः पी. िी. नरचसहा राि सरकार ने िोकसभा में वसतंबर 1991 में एक विधेयक प्रस्तुत ककया।

यह विधेयक ऄंततः 73िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1992 के रूप में पाररत हुअ तथा 24

ऄप्रैि 1993 को िागू हुअ।

1.2. 73िें सं विधान सं शोधन ऄवधवनयम, 1992 की विशे ष ताएँ

 73िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1992 िारा संविधान में एक नया भाग (भाग IX) जोड़ा
गया।
 आसके साथ ही, संविधान में 11िीं ऄनुसच
ू ी भी जोड़ी गइ। आस सूची में पंचायतों के विए 29
विषय सवम्मवित ककए गये।
 आस ऄवधवनयम िारा पंचायती राज संस्थाओं की स्थापना, सशविकरण तथा ईनके कायय संचािन
के विए संिैधावनक प्रािधान ककये गये। आस संशोधन ऄवधवनयम के कु छ प्रािधान राज्यों के विए
बाध्यकारी हैं, जबकक कु छ प्रािधान राज्य विधान मण्डि के वििेक पर छोड़ कदये गए हैं।
 नये कानून में राज्यों के विए बाध्यकारी प्रािधान वनम्नविवखत हैं:
o ग्राम सभाओं का संगठन।
o ग्राम, ब्िॉक तथा वजिा स्तर पर वि-स्तरीय पंचायती संरचना की स्थापना।
o िगभग सभी पदों पर और सभी स्तरों पर प्रत्यक्ष चुनाि का होना।
o पंचायती राज संस्थाओं में चुनाि िड़ने हेतु न्यूनतम अयु 21 िषय होनी चावहए।
o वजिा ि ब्िॉक स्तर पर ऄध्यक्ष पद का चुनाि ऄप्रत्यक्ष रूप से होना चावहए।
o ऄनुसूवचत जावतयों तथा जनजावतयों के विए सीटों का अरक्षण ईनकी जनसंख्या के ऄनुपात
में होना चावहए एिं मवहिाओं के विए पंचायतों में एक वतहाइ अरक्षण होना चावहए।
o पंचायती राज संस्थाओं में चुनाि हेतु राज्य वनिायचन अयोग का गठन।
o पंचायती राज संस्थाओं का काययकाि पांच िषय है, यकद आसे पहिे भंग ककया जाता है तो छः
माह के भीतर नया चुनाि करिाया जाएगा।
o प्रत्येक राज्य में एक राज्य वित्त अयोग की स्थापना की जाएगी।
 कु छ प्रािधान जो राज्यों पर गैर-बाध्यकारी हैं तथा आस संबंध में के िि कदशा-वनदेश प्रदान करते
हैं, ये हैं:
o आन संस्थाओं में के न्द्रीय और राज्य विधान सभाओं के सदस्यों को प्रवतवनवधत्ि देना।
o वपछड़े िगों को अरक्षण प्रदान करना।
o करारोपण, शुल्क अकद के संबंध में पंचायती राज संस्थाओं को वित्तीय शवियां प्रदान करना
तथा ईन्हें स्िायत्त वनकाय बनाने की कदशा में प्रयास करना।

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1.3. पं चायतों की सं र चना

 73िें संविधान संशोधन के ऄनुसार वि-स्तरीय पंचायती राज व्यिस्था स्थावपत की गइ। यह

व्यिस्था प्रत्यक्ष चुनाि पर अधाररत है। ये तीन स्तर- ग्राम स्तर, मध्यिती स्तर तथा वजिास्तर हैं।

 20 िाख से कम अबादी िािे छोटे राज्यों को मध्यिती स्तर से छू ट दी गइ है ऄथायत् ईन्हें


पंचायतों में मध्यिती स्तर रखने या न रखने की स्ितंिता है।
 पंचायत के सभी सदस्य प्रत्यक्ष रूप से वनिायवचत ककये जाते हैं। राज्यों को यह ऄवधकार है कक िह
राज्य विधावयका तथा संसद के सदस्यों को भी वजिा तथा मध्यिती स्तर में प्रवतवनवधत्ि प्रदान
करें ।
 मध्यिती पंचायत को सामान्यतः पंचायत सवमवत के रूप में जाना जाता है। ग्राम पंचायत का
ऄध्यक्ष मध्यिती पंचायत का सदस्य होता है। यकद ककसी राज्य में मध्यिती पंचायत नहीं है तो िह
वजिा पंचायत का सदस्य होगा।
 पंचायतों में ऄनुसूवचत जावत तथा जनजावत को अरक्षण प्रदान ककया गया है। पंचायतों में
मवहिाओं के विए एक वतहाइ सीटें अरवक्षत की गइ हैं, यह अरक्षण सभी िगों में क्षैवतज रूप में
है।
 ऄध्यक्ष पदों के विए भी अरक्षण प्रदान ककया जाता है। सीटों के अरक्षण में रोटेशन (अितयन)
पर्द्वत का प्रयोग ककया जाता है। राज्य विधानमंडि विवध िारा यह ईपबंध कर सकता है कक
ऄध्यक्ष का पद ऄनुसूवचत जावत या ऄनुसूवचत जनजावत या वपछड़ा िगय या मवहिा के विए
अरवक्षत होगा।

1.4. पं चायतों का कायय काि

 73िां संविधान संशोधन ऄवधवनयम पंचायतों में वनरं तरता प्रदान करता है। पंचायतों का सामान्य

काययकाि 5 िषय है। यकद पंचायत समय से पहिे भंग कर दी जाती है तो छह माह के भीतर चुनाि
कराया जाना अिश्यक है।
 पंचायतों के चुनाि के विए एक राज्य वनिायचन अयोग का प्रािधान है जो चुनािों का ऄधीक्षण,
वनदेशन तथा वनयंिण करता है और चुनाि संपन्न कराता है।

1.5. पं चायतों की शवियाँ ि ईत्तरदावयत्ि

 राज्य विधावयकाएँ, जमीनी स्तर पर स्िशासी संस्थाओं को सक्षम बनाने के विए ऄवधकार ि
शवियाँ प्रदान करती हैं। पंचायतों को अर्चथक विकास ि सामावजक न्याय का ईत्तरदावयत्ि भी
सौंपा जा सकता है।
 11िीं ऄनुसूची में िर्चणत 29 विषयों से संबंवधत अर्चथक ि सामावजक न्याय के विए काययक्रम जैसे-

कृ वष, प्राथवमक ि माध्यवमक वशक्षा, स्िास््य ि स्िच्छता, पेयजि, ग्रामीण अिास, कमजोर िगों

का कल्याण, सामावजक िावनकी अकद पंचायती राज संस्थाओं के ऄधीन हैं।

1.6 पं चायती राज की वि-स्तरीय सं र चना

1.6.1. ग्राम स्तर पर पं चायतें

 यह सबसे वनचिे स्तर या अधारभूत स्तर से संबंवधत है। एक या ऄवधक गाँिों के विए जो पंचायत
होती है, ईसमें ग्राम सभा (प्रत्यक्ष िोकतंि का प्रतीक), ग्राम पंचायत तथा न्याय पंचायत
सवम्मवित होती हैं।

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1.6.1.1. ग्राम सभा


 73िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम में प्रत्यक्ष िोकतंि की एक संस्था के रूप में ग्राम सभा की
पहचान की गयी है।
 ककसी ग्राम की वनिायचक नामाििी में जो नाम दजय होते हैं, ईन व्यवियों को सामूवहक रूप से
“ग्राम सभा” कहा जाता है, ऄथायत् ग्राम सभा में गाँि स्तर पर गरठत पंचायत क्षेि में वनिायचक
सूची में पंजीकृ त सभी व्यवि सवम्मवित होते हैं। ऄतः आस प्रकार यह देश में प्रत्यक्ष िोकतंि की
महत्िपूणय संस्था है।
 ग्रामसभा की प्रत्येक िषय कम से कम दो बार बैठकें होती हैं। आन बैठकों में, िोगों की अम सभा के
रूप में पंचायतों के िार्चषक िेखा वििरण या प्रशासवनक ररपोटय पर चचाय होती है।
 ग्राम सभा पंचायतों िारा अरम्भ की जाने िािी नयी विकास पररयोजनाओं की भी वसफाररश
करती है। यह गांि के गरीब िोगों की पहचान करने में मदद करती है ताकक ईनकी अर्चथक
सहायता की जा सके ।

1.6.1.2. ग्राम पं चायत


 देश में पंचायती राज व्यिस्था का वनचिा स्तर ग्राम पंचायत है। यह ऄवधकांश राज्यों में ग्राम
पंचायत के रूप में ही जानी जाती है।
 ग्राम पंचायत के सदस्यों का चुनाि प्रत्यक्ष रूप से जनता िारा ककया जाता है। ग्राम पंचायत के
सदस्यों की संख्या गांि की जनसंख्या के अधार पर वनधायररत होती है। ऄतः एक पंचायत से दूसरी
पंचायत में सदस्यों की संख्या में ऄंतर होता है।
 कु ि सीटों का 1/3 भाग मवहिाओं के विए अरवक्षत ककया गया है। ऄनुसूवचत जावतयों तथा
जनजावतयों की मवहिाओं के विए भी ऄनुसूवचत जावतयों एिं जनजावतयों हेतु अरवक्षत सीटों में
से 1/3 सीटें अरवक्षत है।
 ग्राम पंचायत का ऄध्यक्ष ऄिग-ऄिग राज्यों में ऄिग-ऄिग नाम से जाना जाता है, जैस-े सरपंच,
प्रधान या ऄध्यक्ष। ग्राम पंचायत के ऄध्यक्ष का चुनाि राज्य विधावयका िारा वनधायररत तरीके से
ककया जाता है (या तो ईन्हें प्रत्यक्ष चुना जाता है या ऄप्रत्यक्ष रूप से ग्रामपंचायत के सदस्यों
िारा)। ग्राम पंचायतों में से एक ईपाध्यक्ष भी होता है। ग्राम पंचायत की बैठक महीने में एक बार
होती है। पंचायतें सभी स्तर पर ऄपने कायों के विए सवमवत का गठन कर सकती हैं।

1.6.1.3. न्याय पं चायत

 न्याय पंचायतें, प्राचीन ग्राम पंचायतों की तरह स्थानीय वििादों के समाधान के विए हैं। यह
त्िररत तथा कम खचीिा न्याय प्रदान करने के विए स्थावपत की गइ है। न्याय पंचायतों का
ऄवधकार क्षेि ऄिग-ऄिग राज्यों में ऄिग-ऄिग है
 ऄवधकतर ग्राम पंचायतों में न्याय पंचायतों का काययकाि 5 िषय है। राज्य कानूनों के ऄनुसार
सामान्यतः आनका काययकाि 3 से 5 िषय रखा जाता है।
 ये पंचायतें अपरावधक तथा वसविि दोनों मामिे देखती हैं। न्याय पंचायतें ऄवधकतम 100 रुपये
तक जुमायना िगा सकती हैं। आनमें िकीि की भूवमका नहीं होती है। दोनों पक्ष स्ितः ही ऄपने-
ऄपने तकय देते हैं।
1.6.2. पं चायत सवमवत

 पंचायती राज की मध्यिती संरचना को पंचायत सवमवत कहते हैं। यह वजिा पररषद् एिं ग्राम
पंचायत के मध्य सम्पकय सूि का कायय करती है।
 कु छ पंचायतों में विधानसभा तथा विधान पररषदों के सदस्यों के साथ-साथ संसद के सदस्य भी
पंचायत सवमवत के सदस्य होते हैं। पंचायत सवमवत के ऄध्यक्ष का चुनाि ऄप्रत्यक्ष रूप से पंचायत
सवमवत के वनिायवचत सदस्यों िारा ककया जाता है।

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1.6.3. वजिा पररषद्

 वजिा पररषद् या वजिा पंचायत, पंचायती राज का सिोच्च स्तर है।


 पंचायत सवमवत के ऄध्यक्ष, वजिा पररषद् के पदेन सदस्य होते हैं। वजिे से संबंवधत संसद सदस्य,
विधान सभा तथा विधानपररषद् के सदस्य, वजिा पररषद् के सदस्य होते हैं।
 वजिा पररषद् के ऄध्यक्ष का चुनाि ऄप्रत्यक्ष रूप से ईसके सदस्यों िारा ईन्हीं के बीच से ककया
जाता है। ईपाध्यक्ष का चुनाि भी आसी प्रकार होता है। वजिा पररषद् की बैठक एक महीने में एक
बार अयोवजत की जाती है। विशेष मुद्दों पर चचाय हेतु विशेष सम्मेिन भी अयोवजत ककए जा
सकते हैं। ककसी विषय से संबंवधत मुद्दों पर चचाय के विए विषय संबंवधत सवमवतयाँ भी बनाइ जा
सकती हैं।
1.7. पं चायती राज सं स्थाओं के कायय

पंचायती राज संस्थायें िे कायय करती हैं वजनका राज्य के कानूनों में ईल्िेख ककया गया है। आन्हें
वनम्नविवखत शीषयकों के माध्यम से समझा जा सकता हैं:

1.7.1. ग्राम पं चायतों के कायय

 कु छ राज्य ग्राम पंचायतों के ऄवनिायय तथा िैकवल्पक कायों में ऄंतर करते हैं जबकक कु छ राज्य आस
ऄंतर को नहीं मानते हैं। साियजवनक सड़कें , छोटी चसचाइ पररयोजनाएँ, साियजवनक शौचािय,
प्राथवमक स्िास््य, टीकाकरण, पेयजि की अपूर्चत, साियजवनक कु ओं का वनमायण, ग्रामीण
विद्युतीकरण, सामावजक स्िास््य और प्राथवमक ि प्रौढ़ वशक्षा अकद से संबंवधत कायय पंचायतों के
विए ऄवनिायय हैं।
 पंचायतों के िैकवल्पक कायय ईनके संसाधनों पर वनभयर करते हैं। सड़कों के ककनारे िृक्षारोपण, पशु
प्रजनन कें द्र, बाि तथा मातृत्ि विकास, कृ वष को बढ़ािा देना अकद पंचायतों के ऐवच्छक कायय हैं।
 73िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम के बाद ग्राम पंचायतों के कायों के दायरे में िृवर्द् की गइ।
िार्चषक विकास योजनाओं का वनमायण, िार्चषक बजट, प्राकृ वतक अपदा में राहत, साियजवनक भूवम
पर ऄवतक्रमण हटाना और गरीबी ईन्मूिन काययक्रमों की वनगरानी जैसे महत्िपूणय कायय भी ऄब
पंचायतों को सौंप कदए गए हैं। साथ ही, साियजवनक वितरण प्रणािी, गैर परं परागत उजाय स्रोत,
बायोगैस संयंि, ग्राम पंचायतों के िाभार्चथयों का चयन अकद कायय भी ग्रामपंचायतों को सौंप कदये
गये हैं।
1.7.2. पं चायत सवमवत के कायय

 पंचायत सवमवत विकास गवतविवधयों के के न्द्र में होती है। कृ वष, भूवम सुधार जिसंभर का विकास,
सामावजक एिं कृ वष िावनकी, तकनीकी एिं व्यिसावयक वशक्षा अकद पंचायत सवमवतयों के कायय
हैं।
 दूसरे प्रकार के कायय कु छ विवशष्ट योजनाओं ि काययक्रमों के कक्रयान्ियन से संबंवधत हैं, वजसके विए
वनवध वनधायररत की जाती है। आसका ऄथय है कक पंचायत सवमवत के िि ईस विवशष्ट पररयोजना पर
धन खचय कर सकती है जो ईसके कायय क्षेि में है। य़द्यवप स्थान तथा िाभाथी का चयन पंचायत
सवमवत िारा तय ककया जाता है।
1.7.3. वजिा पररषद् के कायय

 वजिा पररषद्, वजिे के भीतर पंचायत सवमवतयों को एकजुट करती है। यह ईनकी गवतविवधयों में
समन्िय करती है तथा ईनके कामकाज की वनगरानी करती है।

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 यह सम्पूणय वजिे के विए योजना तैयार करती है और आन्हें राज्य सरकार के समक्ष प्रस्तुत करने से
पूिय विवभन्न योजनाओं को एकीकृ त करती है।
 वजिा पररषद्, सम्पूणय वजिे के विकासात्मक कायों की देख-रे ख करती है। कृ वष ईत्पादन में सुधार,

भूवमगत जि दोहन, ग्रामीण विद्युतीकरण, रोजगार से संबवं धत गवतविवधयों का शुभारं भ, सड़क


वनमायण अकद कायय वजिा पररषद् िारा ककये जाते हैं।
 वजिा पररषदों िारा प्राकृ वतक अपदा राहत कायय, ऄनाथाियों की स्थापना, गरीबों के विए घर,

मवहिाओं तथा बच्चों का कल्याण अकद जैसे कल्याणकारी कायय भी ककए जाते हैं।

 आसके ऄवतररि वजिा पररषदें, के न्द्र तथा राज्य सरकार िारा प्रायोवजत योजनाओं का संचािन
भी करती हैं।

1.8. वित्तीय स्रोत

1.8.1. पं चायतों के अय के स्रोत

 पंचायतें ऄपने कायों को कु शितापूियक तभी कर सकती हैं, जब ईनके पास पयायप्त वित्तीय संसाधन
ईपिब्ध हो। संसाधनों के विए पंचायतें मुख्यतः राज्य सरकार पर वनभयर होती हैं।
 ईनके पास कराधान की शवियां भी हैं तथा कु छ अय पररसंपवतयों से भी प्राप्त होती है। ईन्हें राज्य
सरकारों के कर, शुल्क, टोि टैक्स तथा फीस अकद में भी वहस्सा प्राप्त होता है। विवभन्न स्तरों पर
पंचायतों के पास वित्त के वनम्नविवखत साधन हैं:

1.8.1.1. ग्राम पं चायत

 ऄवधकांश राज्यों में करारोपण की शवि ग्राम पंचायतों में वनवहत है। गांिों में ईत्पादों की वबक्री
पर शुल्क, मिेशी कर, ऄचि संपवत्त कर, िावणवज्यक फसिों पर कर, जि वनकासी कर, स्िच्छता

शुल्क, जि अपूर्चत शुल्क, प्रकाश शुल्क अकद पंचायतों िारा िगाये गये कु छ कर और शुल्क हैं।

 पंचायतें ऄस्थायी रूप से स्थावपत वथयेटर पर कर, मिेशी कर तथा मनोरं जन शुल्क िसूि करती

हैं। ग्राम पंचायतों को ऄपने स्िावमत्ि की भूवम, जंगि, पशुचारा से भी अय के रूप में धन प्राप्त
होता है। िे गोबर वबक्री तथा जानिरों के शिों की वबक्री से अय प्राप्त करती हैं। राज्य के भू-
राजस्ि में भी ईनका वहस्सा होता है।

1.8.1.2. पं चायत सवमवत

 पंचायत सवमवतयाँ पेयजि या चसचाइ जि पर कर, टोि टैक्स िसूि सकती हैं। पंचायत ऄपनी
पररसंपवतयों से भी अय प्राप्त करती है। िे राज्य सरकार से ऄनुदान प्राप्त करती हैं।
 पंचायत सवमवतयों िारा अरम्भ की जाने िािे योजनाओं के विए वनवध, राज्य सरकार तथा वजिा
पररषदों िारा प्रदान की जाती है।

1.8.1.3. वजिा पररषद्

 वजिा पररषदें भी करारोपण के विए ऄवधकृ त हैं। िे ऐसे कारोबार पर कर िगा सकती हैं, जो

गाँिों में छः माह से ऄवधक समय से चि रहा हो। िे मध्यस्थों, कमीशन एजेंटों, िस्तुओं की वबक्री
अकद पर भी कर िगा सकती हैं।
 ईन्हें विकास योजनाओं को िागू करने के विए भी धन कदया जाता हैं। वजिा पररषदें, राज्यों िारा

ऄनुदान भी प्राप्त करती हैं।

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1.8.2. पं चायतों के वित्तीय सं साधनों से सं बं वधत समस्याएं

राज्य सरकारें सामान्यतया पंचायतों के वित्तीय सशविकरण पर ध्यान नहीं देती हैं। पंचायतों की
वित्तीय समस्याओं से संबंवधत कु छ मुद्दे वनम्नविवखत हैं:
 राज्य ि के न्द्र सरकारों पर ऄत्यवधक वनभयरता: पंचायतें, सरकारी ऄनुदानों पर ऄत्यवधक वनभयर हैं
तथा ईनके अंतररक संसाधन के स्रोत ऄत्यवधक कमजोर है। आसका एक अंवशक कारण ईनके पास
करारोपण की न्यून शवि तथा दूसरा अंवशक कारण कर संग्रहण की ऄवनच्छा है।
 प्राप्त वनवध में िचीिेपन का ऄभाि: संघ तथा राज्य सरकारों िारा कदया जाने िािा ऄनुदान
योजना अधाररत होता है तथा पंचायतों के पास आनके खचय की शवियां सीवमत होती हैं।
 ऄवधक ईत्तरदावयत्ि एिं कम वित्तीय संसाधन: ऄपनी दयनीय राजकोषीय वस्थवत के कारण राज्य
सरकारें पंचायतों को धन देने को ईत्सुक नहीं होती हैं। 11िें ऄनुसूची में ईवल्िवखत प्राथवमक

वशक्षा, स्िास््य, जि-अपूर्चत, स्िच्छता, चसचाइ अकद जैसे काययक्रम राज्य सूची के विषय हैं तथा
आनके कायायन्ियन का ईत्तरदावयत्ि भी राज्यों का है। समग्र वस्थवत यह है कक पंचायतों के पास
ईत्तरदावयत्ि ऄवधक है तथा संसाधन ऄपयायप्त हैं।

1.8.3. पं चायतों का वित्तीय सशविकरण ककस प्रकार ककया जाए

आसे हम वनम्नविवखत शीषयकों के ऄंतगयत समझ सकते हैं:


 ऄवतररि स्रोतों की खोजः पंचायतों को ईनके कर अधार को विस्तृत करने के विए राजस्ि के
ऄवतररि स्रोत खोजने चावहए। ग्राम पंचायतों को भूवम और आमारतों से संबंवधत पारं पररक करों के
ऄवतररि नए स्रोतों को खोजने की अिश्यकता है। आसके साथ ही नये ईभरते क्षेि तथा गैर कर
ईपायों से ऄपने संसाधन बढ़ाने की अिश्यकता है। पययटन िाहनों, विशेष सुविधाओं, रे स्टोरें ट,

वथयेटर, साआबर कै फे अकद पर शुल्क िगाने की अिश्यकता है।


 बेहतर प्रदशयन की अिश्यकता: पंचायती राज मंिािय ने पंचायतों के सशिीकरण तथा
जिाबदेही को प्रोत्सावहत करने के विए पंचायत सशिीकरण जिाबदेही कोष की स्थापना की है।
 खवनजों में रॉयल्टी: खवनजों से संबंवधत शुल्क और कर हेतु राज्य सरकार के ऄवधकार सीवमत ककये
जाने चावहए तथा आनमें पंचायती राज संस्थानों को पयायप्त वहस्सेदारी दी जानी चावहए। पंचायतों
के विए वित्तीय संसाधनों के हस्तांतरण पर वसफाररश करते समय राज्य वित्त अयोग को आस पहिू
पर विचार करना चावहए।
 कराधान पर प्राथवमक प्रावधकार: कर क्षेि में पंचायतों को करारोपण के संबंध में प्राथवमक
प्रावधकार प्राप्त होना चावहए। जहां ऄंतर-पंचायत कराधान की अिश्यकता है, िहां ईच्चतर स्तर
की पंचायतों (मध्यिती पंचायत ि वजिा पररषद्) को एक सीमा तक समिती शवियाँ दी जा
सकती हैं। जब भी ईच्चतर स्तर की पंचायतों िारा कर ि शुल्क िगाये जाएँ तो ईनका संग्रहण
संबंवधत ग्राम पंचायत िारा ककया जाना चावहए।

1.9. पं चायती राज से सं बं वधत मु द्दे (समस्याएं )

आसे हम वनम्नविवखत शीषयकों के ऄंतगयत समझ सकते हैं:


 कायों का ऄिैज्ञावनक वितरण: पंचायती राज व्यिस्था के तहत विवभन्न स्तरों की संरचनाओं के
बीच कायों के िैज्ञावनक वितरण के मामिे में दोषपूणय पर्द्वत को ऄपनाने के अरोप िगते रहते हैं।
विकास तथा स्थानीय स्िशासन के कायों के वमश्रण ने पंचायती राज संस्थानों की स्िायत्तता
ऄत्यंत कम कर दी है और आसे सरकारी एजेंवसयों के रूप में पररिर्चतत कर कदया गया है। पंचायत
ि पंचायत सवमवतयों के कायों में दोहराि, भ्रम की वस्थवत तथा सुवनवित जिाबदेही एिं
ईत्तरदावयत्ि का ऄभाि पाया जाता है।

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 तीनों स्तरों के बीच ऄसंगत संबध


ं : तीनों स्तर एक कायायत्मक प्रावधकरण के रूप में कायय नहीं
करते, उपरी स्तर िारा वनचिे स्तर को ऄपने ऄधीन समझने की प्रिृवत्त पररिवक्षत होती है। प्रायः
यह अरोप िगाया जाता है कक आनमें श्रेणीक्रम िचयस्ि का मुद्दा अम है जो वजिा पररषद् से
पंचायत सवमवत और तत्पिात ग्राम पंचायत तक श्रेणीबर्द् रूप में कदखती है। आस प्रकार के
पारस्पररक संबंध िोकतांविक विके न्द्रीकरण से ऄसंगतता रखते हैं।
 ऄपयायप्त वित्तः ऄपयायप्त वित्त पंचायती राज की सफिता के मागय में प्रमुख बाधा है। पंचायती राज
संस्थाओं के पास करों और ईपकरों के अरोपण की सीवमत शवियाँ हैं। राज्य सरकारें , ईन्हें ऄत्यल्प
कोष प्रदान करती हैं। ये संस्थाएँ जनता में िोकवप्रयता खोने के भय से कर िगाने तथा ईसे िसूिने
से बचती हैं।
 ऄवधकाररयों तथा प्रवतवनवधयों में सौहाद्रयपण
ू य संबध
ं ों की कमी: पंचायती राज को ऄपनाने का मुख्य
ईद्देश्य िोगों की प्रभािी सहभावगता प्राप्त करना था, परं तु यह संभि नहीं हुअ। आन संस्थाओं में
तकनीकी पदों तथा प्रशासवनक पदों पर सरकार िारा वनयुवियां की जाती है। यहाँ पर खंड
विकास ऄवधकारी, वजिावधकारी तथा जनता के मध्य सहयोग ि समन्िय का ऄभाि पाया जाता
है तथा ऄवधकारी ऄपने कतयव्यों का वनिायह ऄपेवक्षत कु शिता के साथ नहीं करते हैं।
 िैचाररक स्पष्टता का ऄभाि: पंचायती राज की ऄिधारणा तथा ईद्देश्यों में स्पष्टता का ऄभाि है।
कु छ िोग आसे के िि प्रशासवनक संस्था के रूप में मानते है, जबकक कु छ िोग आसे ज़मीनी स्तर पर
िोकतंि की स्थापना के रूप में देखते है जबकक कु छ ऄन्य आसे स्थानीय स्िशासन का एक चाटयर
मानते हैं। सिायवधक कदिचस्प त्य यह है कक ये सभी िैचाररक धारणाएँ एक साथ ऄवस्तत्ि में हैं
जो समय-समय पर परस्पर प्रभािी होने का प्रयास करती हैं।
 पंचायती राज संस्थाओं का ऄिोकतांविक संघटन: विवभन्न पंचायती राज संस्थाओं का गठन
िोकतांविक मानदण्डों ि वसर्द्ान्तों के अधार पर ककया जाता है। पंचायत सवमवत के प्रमुख का
ऄप्रत्यक्ष चुनाि भ्रष्टाचार ि ररश्वतखोरी की संभािना को बढ़ाता है। वजिा पररषद् में पदेन सदस्यों
का सवम्मवित होना (वजनमें ऄवधकांशतः सरकारी कमयचारी होते हैं) िोकतांविक वसर्द्ान्तों के
विपरीत है।
 संरचनात्मक तथा कायायत्मक मोचे पर ऄसफिताः पंचायती राज संस्थानों के कायय वनष्पादन को
जावतिाद तथा गुटबंदी ने ऄत्यवधक प्रभावित ककया है। विकास पररयोजनाओं को समय पर पूरा
करना एक स्िप्न बन गया है। भ्रष्टाचार, ऄक्षमता, प्रकक्रयात्मक वििम्ब, प्रशासन में राजनीवतक

हस्तक्षेप, सेिा भािना के बजाय शवि ऄजयन पर ध्यान देना आत्याकद पंचायती राज की सफिता में
सबसे बड़ी बाधाएँ हैं। आसके ऄवतररि राज्य सरकारों िारा पंचायतों की शवि का ऄवतक्रमण
ककया जाना, िोकतांविक विके न्द्रीकरण की भािना का ईल्िंघन है।
 प्रशासवनक समस्याएँ: पंचायती राज संस्थाओं को कइ प्रशासवनक समस्याओं का सामना करना
पड़ता है, जैस-े स्थानीय प्रशासन का राजनीवतकरण, िोकप्रवतवनवध तथा नौकरशाही तत्िों के
मध्य सहयोग का ऄभाि, प्रशासवनक कर्चमयों हेतु यथोवचत प्रोन्नवत के ऄिसर तथा पाररतोवषक का
ऄभाि और सरकारी कर्चमयों का विकासात्मक काययक्रमों के प्रवत ईदासीन दृवष्टकोण आत्याकद
पंचायती राज के सुचारू तथा कु शि कक्रयान्ियन में बाधा ईत्पन्न करते हैं।
 पंचायती राज संस्थाओं का राजनीवतकरणः यह ऄनुभि ककया जा रहा है कक पंचायती राज
संस्थाएँ, राजनीवतक दिों, विशेष रूप से राज्य में सत्तासीन दि का संगठनात्मक ऄंग बनती जा
रही हैं। कइ राज्यों में राज्य सरकारें पंचायती राज संस्थाओं को ऄपनी सुविधा के अधार पर कायय
करने की ऄनुमवत देती है, न कक िोकतांविक विके न्द्रीकरण के दशयन के अधार पर।

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1.10. पं चायती राज के विए रोडमै प (सु झाि)

 पंचायती राज मंिािय की स्थापना, 27 मइ 2004 को 73िें संविधान संशोधन के प्रािधानों के


कक्रयान्ियन की वनगरानी तथा पंचायती राज संस्थाओं को ऄवधकारों के हस्तांतरण में गवत देने के
विए की गयी थी।
 आस मंिािय िारा विवभन्न क्षमता वनमायण काययक्रमों को कक्रयावन्ित ककया गया, ऄनुसंधान एिं
मूल्यांकन को संचावित ककया गया तथा ऄवधकारों के हस्तांतरण के विए पुरस्कार योजनाओं को
बढ़ािा कदया गया।
 आस मंिािय ने मंवि-स्तरीय तथा वनम्न स्तरीय सम्मेिनों का अयोजन ककया वजससे ऄवधकारों के
हस्तांतरण को बढ़ािा वमिे। आन प्रयासों में देश में पंचायती राज संस्थाओं के कायय-वनष्पादन में
सुधार के विए रोडमैप तैयार करना शावमि था, वजसके कु छ महत्त्िपूणय पहिू आस प्रकार हैं:
(i) वित्तः राज्य सरकारों िारा पंचायतों को हस्तांतररत की जाने िािी समग्र ऄनुदान रावश बढ़ाइ जानी
चावहए तथा के न्द्र ि राज्य सरकारों पर वनभयरता कम करने के विए पंचायतों को कर िसूिने ि एकि
करने का ऄवधक स्पष्ट ऄवधकार कदया जाना चावहए।
 वनवध के आस हस्तांतरण को प्रदशयन से जोड़ा जाना चावहए। आस संदभय में पंचायत सशविकरण और
जिाबदेही प्रोत्साहन योजना (Panchayat Empowerment and Accountability
Incentive Scheme: PEAIS) महत्िपूणय है। यह योजना पंचायतों के सशविकरण के विए
तैयार की गइ है, वजससे पंचायतों में पारदर्चशता तथा ईत्तरदावयत्ि सुवनवित करने का तंि िाया
जा सके ।
 आस वस्थवत में विवभन्न राज्यों के वनष्पादन को हस्तांतरण सूचकांक (Devolution Index: DI)
िारा मापा जा सकता है। आस सूचकांक में ईच्च स्थान पर रहने िािे राज्यों को टोकन पुरस्कार
कदया जाता है। आसके ऄवतररि, PEAIS के तहत राज्यों का मूल्यांकन दो चरणों में होता है।
पहिा चरण (वजसे फ्रेमिकय मापदण्ड कहा जाता है) वनम्नविवखत चार मौविक संिैधावनक
अिश्यकताओं पर अधाररत हैं:
o राज्य वनिायचन अयोग की स्थापना,
o पंचायती राज के चुनािों का अयोजन,
o राज्य वित्त अयोग की स्थापना तथा
o वजिा योजना सवमवतयों (DPCs) का गठन।
 जो राज्य आन अिश्यकताओं को पूरा करते हैं, िे हस्तांतरण सूचकांक पर मूल्यांककत ककये जाने की
योग्यता रखते हैं। आन्हें 3Fs: कायय, कायायन्ियन ऄवधकारी और कोष (Function,
Functionaries and Fund) के ऄनुसरण में मापा जाता है। हािांकक PEAIS के विए विकवसत
DI ऄभी तक पंचायती राज व्यिस्था की जिाबदेही ि प्रदशयन को स्पष्ट करने में सक्षम नहीं हो
सका है।
(ii) सशविकरण: पंचायती राज संस्थाओं हेतु प्रगवतशीि हस्तांतरण को 3Fs के माध्यम से सुवनवित
ककया जाना चावहए। पंचायतों में मवहिाओं के विए अरक्षण बढ़ाया जाना चावहए। PESA कानून को
प्रभािी ढंग से िागू ककया जाना चावहए।
(iii) जिाबदेही: ररपोटय की ऄनुशंसा है कक ग्रामसभा को स्थानीय संस्थाओं ि ऄवधकाररयों पर प्रभािी
वनयंिण कदया जाना चावहए तथा आसे योजनाओं, कायों, िाभार्चथयों, िाभाथी प्रमाणपिों की मंजरू ी के
विए ऄवधकृ त ककया जाना चावहए। आसके ऄवतररि, ग्रामसभा की सभी योजनाओं के विए सामावजक
ऄंकेक्षण ऄवनिायय बनाया जाना चावहए। पंचायतों के खातों, योजनाओं अकद को ऑनिाआन पवब्िक
डोमेन में रखा जाना चावहए। पंचायती राज मंिािय यह ऄपेक्षा करता है कक PRIs शासन को
विकासात्मक प्रकक्रया में महत्िपूणय स्थान कदया जाएगा।

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(iv) इ-गिनेंस: इ-पंचायत का संचािन एक वमशनमोड के ऄंतगयत प्राथवमकता के अधार पर ककया

जाना चावहए। सभी ग्राम पंचायतों को ICT ऄिसंरचना तथा कु शि मानि श्रम प्रदान ककया जाना

चावहए। ईन्हें ब्रॉडबैण्ड से जोड़ा ककया जाना चावहए। साथ ही, सबसे वनचिे स्तर तक इ-गिनेस
व्यिस्था को विस्ताररत करने हेतु ऄन्य ईपाय करने चावहए।
(vi) विके न्द्रीकृ त वनयोजन: एकीकृ त बॉटम-ऄप (नीचे से उपरी स्तर की ओर) सहभागी योजना िागू

की जानी चावहए। क्षेििार योजनाओं (sectoral plans) को वजिा योजनाओं के साथ एकीकृ त ककया
जाना चावहए। विके न्द्रीकृ त योजना के विए तकनीकी तथा व्यिसावयक पेशेिर प्रदान ककये जाने
चावहए। पंचायती राज प्रवतवनवधयों तथा ऄवधकाररयों को पयायप्त प्रवशक्षण प्रदान ककया जाना चावहए।

1.11. पं चायत ईपबं ध (ऄनु सू वचत क्षे िों में विस्तार) ऄवधवनयम 1996

{Panchayat Extension to Scheduled Areas Act 1996 (PESA)}

1.11.1. PESA की पृ ष्ठ भू वम

 यह कानून भारत सरकार िारा ऄनुसूवचत क्षेिों के विए वनर्चमत ककया गया है। ये क्षेि 73िें
संविधान संशोधन में शावमि नहीं हैं।
 यह विशेष ऄवधवनयम ऄनुसूवचत क्षेिों में भाग-IX के प्रािधानों को िागू करता है। PESA आन

क्षेिों में सत्ता के विके न्द्रीकरण को ग्रामसभा स्तर तक िे जाता है।

 आस ऄवधवनयम में ग्रामसभा को भूवम ऄवधग्रहण के संबंध में परामशय प्रदान करने, िघु िन ईत्पादों
के स्िावमत्ि से िेकर खवनज के पट्टे प्रदान करने के संबंध में परामशय अकद करने तक की विस्तृत
शवियाँ प्रदान की गइ हैं।
 PESA ईस समय ऄवस्तत्ि में अया, जब भारतीय ऄथयव्यिस्था में प्रत्यक्ष विदेशी वनिेश को
अकषयक बनाने हेतु ऄनेक प्रयास ककए जा रहे थे। ऄवधकांश: खनन क्षेि ऄनुसूवचत क्षेिों में वस्थत
है, जहां यह क़ानून िागू है। यहाँ बहुराष्ट्रीय कम्पवनयों और भारतीय कापोरे ट क्षेि के अने से
खवनज संसाधनों का ऄंधाधुंध दोहन सस्ती दरों पर और तीव्र गवत से हो रहा था।
 PESA की एक महत्िपूणय विशेषता यह है कक प्रत्येक ग्राम सभा को ऄपनी परं परा, संस्कृ वत,

पहचान, तथा परं परागत प्रकार से वििाद समाधान के तरीके के संदभय में विशेष शवियां दी गइ
है।
 आसके ऄिािा ग्राम सभा या पंचायतों को वनम्नविवखत शवियां दी गइ हैं:
o भूवम ऄवधग्रहण ि पुनिायस के मामिों पर परामशय की शवि।
o िघु खवनजों के विए खनन पट्टा ि पययिेक्षण िाआसेंस हेतु ऄनुदान।
o िघु जि वनकायों हेतु योजना वनमायण एिं प्रबंधन की शवि।
o नशीिे पदाथों की वबक्री, ईपभोग को वनयंवित या प्रवतबंवधत करने की शवि।
o िघु िन ईपजों के ईत्पादन पर स्िावमत्ि।
o भूवम विखण्डन को रोकने की शवि।
o ग्राम बाजारों के प्रबंधन की शवि।
o ऄनुसूवचत जनजावतयों की ऊण संबंधी अिश्यकताओं को वनयंवित करने की शवि।
o पंचायतों को व्यापक शवियाँ प्रदान करते हुए आस कानून ने ईन्हें ऄवतररि वजम्मेदारी सौंपी
है वजससे िे स्थानीय स्िशासन के रूप में कायय करने में सक्षम हो। आसमें यह रक्षोपाय है कक
ईच्चस्तरीय पंचायतें, वनम्नस्तरीय पंचायतों के ऄवधकार ि शवियों का हरण न कर सकें ।

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1.11.2. PESA से सं बं वधत समस्याएँ

 जनजातीय सिाहकार पररषदों की भूवमका को कम करनाः PESA, संविधान की पाँचिीं ऄनुसच


ू ी
के ऄन्तगयत अता है। यह ऄनुसूची जनजातीय मामिों की देखरे ख करने के विए जनजातीय
सिाहकार पररषदों के गठन की शवि देती है तथा आसका ईद्देश्य प्रत्येक राज्य की सरकार को
ऄवतररि न्यावयक, संिैधावनक शवियाँ प्रदान करना है ताकक िे जनजातीय स्िायत्तता से संबंवधत
मुद्दों का समाधान कर सकें ।
o हािाँकक ये पररषदें राजनीवतक रूप से गैर मुखर संस्था के रूप में विकवसत हुइ हैं वजसमें
प्रवतवनवधयों ने राज्य सरकारों की नीवतयों का शायद ही कभी विरोध ककया हो।
o राज्यपाि, मुख्यमंिी से ऄच्छे संबंध बनाए रखने के प्रयास में जनजातीय मामिों में हस्तक्षेप
नहीं करता है। बहुधा जनजातीय मुद्दों से जुड़े काययकताय यह अरोप िगाते हैं कक राज्यपाि
ईनकी समस्याओं से संबंवधत यावचकाओं के मामिों में हस्तक्षेप नहीं करते हैं।
 संचािन का ऄभाि: आस ऄवधवनयम के िागू होने के अठ िषय बाद भी ऄवधकांश राज्यों ने ऄभी
तक आससे संबंवधत वनयम नहीं बनाए हैं। राज्य सरकारें , PESA के प्रािधानों को िागू करने में
ऄक्षम हैं।
 PESA की मूि भािना की ईपेक्षा: राज्य विधावयकाओं ने PESA से संबंवधत कु छ बुवनयादी

वसर्द्ान्तों को िागू नहीं ककया कदया। आन वसर्द्ान्तों के वबना PESA मूि रूप में कभी िागू नहीं हो

सकता है। जैस-े PESA के ऄनुसार राज्य कानून, जनजावतयों की प्रथाओं के ऄनुरूप होंगे तथा
प्रथाओं के ऄनुसार ही पारम्पररक संसाधनों का प्रबंधन ककया जाएगा।
 ऄस्पष्ट पररभाषाएँ: आस कानून में कु छ शब्दों की पररभाषा ऄस्पष्ट है। िघु जि वनकाय, िघु
खवनज की कोइ स्पष्ट पररभाषा नहीं दी गयी है।

1.12. िन ऄवधकार ऄवधवनयम (Forest Rights Act: FRA)

 यह ऄवधवनयम कदसम्बर, 2006 में पाररत हुअ था। आसका मुख्य ईद्देश्य िनों में वनिास करने िािे
समुदायों के भूवम सवहत ऄन्य संसाधनों पर ऄवधकार को सुवनवित करना है।
 आस ऄवधवनयम के ऄंतगयत, सकदयों पूिय से पारं पररक रूप से िनों में रहने िािे समुदायों के साथ
विवभन्न िन कानूनों के कारण हुए ऄन्याय को अंवशक रूप से ही सही समाप्त करने का बेहतर
प्रयास ककया गया है। साथ ही, आन समुदायों के पारं पररक िनावधकारों को मान्यता प्रदान की गइ
है।
 यह ऄवधवनयम कइ दशकों तक विवभन्न जनजावतयों, ईनके संगठनों, जनजातीय मुद्दों से संबंवधत
ऄसंख्य सामावजक काययकतायओं एिं बुवर्द्जीवियों के ऄथक प्रयास एिं संघषय का पररणाम हैं।

1.12.1. FRA के ऄं त गय त प्रदत्त ऄवधकार

 स्िावमत्ि संबध
ं ी ऄवधकार (Title rights): 4 हेक्टेयर तक की ईस भूवम पर जनजावतयों,
िनिावसयों या िन में रहने िािे समुदायों के स्िावमत्ि को मान्यता वजस पर िे कृ वष संबंवधत कायय
कर रहे हैं। आनके ऄंतगयत, नइ भूवम को अबंरटत नहीं ककया जाएगा। बवल्क, वजस भूवम पर संबंवधत

पररिार िारा खेती की जा रही है, के िि ईसी पर ऄवधकार के दािे को स्िीकार ककया जाएगा।

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 पुनिायस एिं विकासात्मक ऄवधकार: आसमें पारं पररक िनिावसयों को गैर कानूनी ढंग से तथा
बिपूियक कराए गए विस्थापन की वस्थवत में पुनिायस की व्यिस्था का प्रािधान है। साथ ही, िनों
की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आन िनिावसयों को मूिभूत सुविधाएँ प्रदान की जाएंगी।
 ईपयोग संबध
ं ी ऄवधकार: िन में रहने िािे आन समुदायों के िघु िन ईत्पादों, पशुचारण हेतु
विवभन्न क्षेिों एिं चारा अकद के ईपयोग से सम्बंवधत ऄवधकारों को सुवनवित ककया गया है।
 िन प्रबंधन ऄवधकार: िन एिं िन्य जीिों को सुरवक्षत करने एिं संरवक्षत करने संबंधी प्रबंधन
कायों में आन िनिावसयों की सहभावगता को स्िीकार ककया गया है।
 ऄहयता: आस ऄवधवनयम के ऄंतगयत प्रदत्त ऄवधकारों हेतु ईन्हीं को योग्य माना जाएगा:
o जो ऄपनी अजीविका के विए ‘िन’ या ‘िन भूवम’ पर अवश्रत हैं एिं ‘प्राथवमक रूप से िनों में
ही वनिास’ करते हों, ऄथिा
o जो ईस क्षेि में ऄनुसूवचत जनजावत के सदस्य हों, ऄथिा
o 75 िषों से ईस िन में ही वनिास कर रहे हों।
 ऄवधकारों को मान्यता देने की प्रकक्रया: आस ऄवधवनयम के तहत, यह प्रािधान है कक ग्रामसभा एक
प्रस्ताि पाररत करके यह ऄनुशसं ा करे गी कक ककस संसाधन पर ककसके ऄवधकारों को मान्यता दी
जाए। आस प्रस्ताि की पुनसयमीक्षा एिं ऄनुमोदन क्रवमक रूप से तािुक एिं वजिा स्तर पर होगा।
आस पुनसयमीक्षा सवमवत (screening committee) में तीन सरकारी ऄवधकारी (िन, राजस्ि एिं
जनजातीय कल्याण विभाग से) तथा तीन सदस्य स्थानीय संस्थाओं के वनिायवचत सदस्य होगें।
1.12.2. िन ऄवधकार ऄवधवनयम से सं बं वधत चचताएँ

यह अरोप िगाया जा रहा है कक कें द्र सरकार िारा ईठाए गए विवभन्न कदमों ने आस ऄवधवनयम के
प्रािधानों को कमजोर ककया है:
 कें द्र सरकार ने विवभन्न ऄन्य ऄवधवनयमों के माध्यम से आस ऄवधवनयम में प्रदत्त ऄवधकारों एिं
सुरक्षा को कमजोर ककया है वजसके ऄंतगयत ककसी सरकारी पररयोजना के कायायन्ियन के विए िनों
से जनजावतयों के विस्थापन, पुनिायस एिं बसाने हेतु ‘ग्राम सभा’ की सहमवत की ऄवनिाययता
ऄप्रभािी हो गयी है।
 मध्यम अकार िािी कोयिा ईत्खनन पररयोजनाओं हेतु िोक सुनिाइ एिं ग्राम सभा की सहमवत
संबंधी प्रािधान को समाप्त कर कदया गया है।
 खान एिं खवनज (विकास एिं विवनयमन) ऄवधवनयम, प्रवतपूरक िनीकरण कोष ऄवधवनयम एिं
िन ऄवधकार ऄवधवनयम के वनयमों में ऄनेक संशोधनों के माध्यम से आस ऄवधवनयम के प्रािधानों
को वनबयि कर कदया गया है।
 सरकार ऄपनी ‘इज ऑफ डू आंग वबजनेस’ संबंधी प्रवतबर्द्ता को सुवनवित करने के विए
जनजावतयों के वनिास िािे िन क्षेिों में वनजी क्षेि की पररयोजनाओं को तेजी से सहमवत दे रही
है।
 राष्ट्रीय िन्यजीि बोडय (वजसके ऄध्यक्ष प्रधानमंिी होते हैं) में स्ितंि सदस्यों (विशेषज्ञों) की संख्या
15 से घटाकर 3 कर दी गइ है। ऄब आसमें सरकारी ऄवधकाररयों का प्रभुत्ि हो गया है।
 आसके साथ ही, आस ऄवधवनयम के विवभन्न प्रािधानों का जानबूझकर िास्तविक कक्रयान्ियन नहीं
होने कदया जा रहा है। न तो व्यविगत स्तर पर और ना ही सामुदावयक स्तर पर िन संसाधन
संबंधी पट्टा प्रदान ककया गया है।
कु छ राज्य सरकारों ने भी ऄपने विवभन्न वनयमों एिं अदेशों िारा आस ऄवधवनयम के प्रािधानों को
कमजोर करने का प्रयास ककया है यथा :
 तेिांगना ने िनभूवम पर कृ वष के पारं पररक तरीके को गैर-कानूनी घोवषत कर कदया है, जो आस
ऄवधवनयम का स्पष्ट ईल्िंघन है।

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 झारखंड सरकार ने वबना जनजावतयों एिं ग्राम सभा की सहमवत प्राप्त ककए, विकास के नाम पर

भूवम ऄवधग्रहण की शवि को मूतय रूप देने के विए संथाि एिं छोटानागपुर काश्तकारी
ऄवधवनयमों में विवभन्न संशोधन ककए हैं।
 महाराष्ट्र सरकार ने ‘ग्राम वनयमों’ के तहत िनों के प्रबंधन का दावयत्ि ग्राम सभा के स्थान पर

सरकारी सवमवतयों को दे कदया है।

1.12.3. क्या ककया जाना चावहए

 सरकार को िन विभाग से संबंवधत प्रशासन एिं िन समुदायों को आस ऄवधवनयम के प्रािधानों के


प्रवत जागरूक करने की अिश्यकता है।
 साथ ही, आस ऄवधवनयम के प्रािधानों के कक्रयान्ियन के मागय में बाधा ईत्पन्न करने िािी िन क्षेि

से संबंवधत नौकरशाही को स्पष्ट चेतािनी दी जानी चावहए कक आस प्रकार के अचरण को स्िीकार

नहीं ककया जाएगा।


 सरकार को जनजातीय मामिों से संबंवधत विभाग को मज़बूत करने की अिश्यकता है। आसके
साथ ही वसविि सोसाआटी की सहभावगता को प्रोत्सावहत करने की अिश्यकता है।
 कोइ भी ऐसा कानून जो िन ऄवधकारों को प्रभावित करता है,ईसे िाने के पूिय व्यापक विचार-

विमशय ककया जाना चावहए।

1.13. ऄर्द्य - सरकारी सं स्थाएँ तथा सम्बं वधत समस्याएँ

 ये संस्थाएँ पूणत
य ः या ऄंशतः सरकार िारा प्रबंवधत होती हैं तथा ये या तो स्िायत्त या ऄर्द्य
सरकारी संस्थाएँ होती हैं। ये संस्थाएँ राज्य के विवशष्ट ऄवधवनयमों या सोसाआटी पंजीकरण
ऄवधवनयम िारा गरठत होती है।

 आनका गठन अमतौर पर विवशष्ट सेिाओं के वितरण, विवशष्ट योजनाओं के कायायन्ियन के विए

ककया जाता है। आस प्रकार की संस्थाओं के ईदाहरण हैं - वजिा ग्रामीण विकास एजेंसी (DRDA),

वजिा स्िास््य सोसायटी (DHS), वजिा जि एिं स्िच्छता सवमवत (DWSC), मत्स्य ककसान

विकास एजेंसी (FFDA) अकद।

 वजिा स्तर पर सिायवधक महत्िपूणय ऄर्द्य सरकारी या स्िायत्त एंजस


ें ी DRDA है। ितयमान में आं कदरा

अिास योजना जैसी विवभन्न योजनाओं को DRDA िारा धन अिंरटत ककया जाता है।

 कु छ विशेषज्ञों ने यह मत व्यि ककया है कक ऄर्द्य सरकारी या स्िायत्त संस्थाओं को पंचायती राज


के कायों ि ऄवधकारों को कमजोर करने की ऄनुमवत नहीं दी जा सकती।
 आनमें से कु छ सवमवतयों को पंचायतों में शावमि करने की अिश्यकता हो सकती है तथा कु छ को
पंचायतों के साथ जीिंत संबंध बनाने के विए पुनगयरठत ककया जा सकता है।
 संघ ि राज्य सरकारों को सामान्यतः पंचायतों के बाहर विशेष सवमवतयों का गठन नहीं करना
चावहए। यद्यवप यकद पेशि
े र या तकनीकी अिश्यकताओं के कारण आस तरह की विशेष सवमवतयों
का गठन अिश्यक हो तो ईसे 11िीं ऄनुसच
ू ी से संबंर्द् ककया जाना चावहए जो पंचायतों के

पययिेक्षण एिं मागयदशयन के तहत कायय करे ।

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नगरपाविकाएँ
2. शहरी स्थानीय शासन (Urban Local Governments)
 शहरी स्थानीय शासन से अशय, जनता िारा वनिायवचत प्रवतवनवधयों के माध्यम से शहरी क्षेि के
प्रशासन की प्रणािी से है। 74िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1992 ने स्थानीय शहरी वनकायों
को संिैधावनक दजाय प्रदान ककया।
2.1. 74िां सं विधान सं शोधन ऄवधवनयम

 74िें संविधान संशोधन के माध्यम से संविधान के भाग IX-A में ‘नगरपाविकाएँ’ (The
Municipalities) नामक एक ऄध्याय ऄंतर्चिष्ट ककया गया। आसके साथ ही ऄवधवनयम के िारा
संविधान में 12िीं ऄनुसच
ू ी जोड़ी गइ वजसमें नगरपाविकाओं के विए 18 काययकारी विषय
सवम्मवित ककये गये।
 यह ऄवधवनयम प्रत्येक राज्य में वनम्नविवखत तीन प्रकार की संरचनाओं का प्रािधान करता है:
o नगर पंचायत (या ककसी ऄन्य नाम से): ग्रामीण क्षेि से शहरी क्षेि में पररिर्चतत होते क्षेिों के
विए।
o नगरपाविका पररषद्: छोटे शहरी क्षेिों के विए।
o नगर वनगम: बड़े शहरी क्षेिों के विए।

2.1.1. मु ख्य प्रािधान

 आस ऄवधवनयम के मुख्य प्रािधानों को दो िगों में विभावजत ककया जा सकता है: ऄवनिायय
प्रािधान तथा ऐवच्छक प्रािधान।
 राज्यों के विए बाध्यकारी कु छ ऄवनिायय प्रािधान वनम्नविवखत हैं:
o संक्रमण क्षेिों (िे क्षेि जो ग्रामीण से नगरीय क्षेिों में पररिर्चतत हो रहे हैं), छोटे शहरी क्षेिों
तथा बड़े शहरी क्षेिों में क्रमशः नगर पंचायत, नगरपाविका पररषद् तथा नगर वनगम का
गठन।
o शहरी स्थानीय वनकायों में ऄनुसूवचत जावतयों/ऄनुसूवचत जनजावतयों को िगभग ईनकी
जनसंख्या के ऄनुपात में अरक्षण।
o मवहिाओं के विए एक वतहाइ सीटों का अरक्षण।
o राज्य वनिायचन अयोग, वजसका गठन पंचायती राज वनकायों के चुनािों के विए ककया गया
था (73िें संविधान संशोधन के ऄंतगयत), शहरी स्थानीय स्िशासी वनकायों के चुनािों को भी
संपन्न कराएगा।
o पंचायती राज वनकायों के वित्तीय मामिों के संबंध में गरठत राज्य वित्त अयोग िारा शहरी
स्िशासी वनकायों के वित्तीय मामिों को भी देखा जायेगा।
o शहरी स्थानीय स्िशासी वनकायों का काययकाि पांच िषय वनधायररत है। आनके पांच िषय से पूिय
भंग हो जाने की वस्थवत में छः माह के भीतर नए चुनाि कराये जाने अिश्यक हैं।
 आसके ऄिािा कु छ ऐवच्छक प्रािधान भी ककये गए हैं, जो राज्यों पर बाध्यकारी नहीं हैं। हािाँकक
राज्यों िारा आन पर ध्यान कदया जाना चावहए। ये प्रािधान आस प्रकार हैं-
o आन वनकायों में संघ तथा राज्य विधानमण्डिों के सदस्यों को प्रवतवनवधत्ि प्रदान करना।
o वपछड़े िगों के विए अरक्षण की व्यिस्था।
o कर, चुंगी, टोि टैक्स तथा शुल्क के संबंध में वित्तीय शवियां प्रदान करना।
o नगरीय वनकायों को स्िायत्तता प्रदान करना तथा आस ऄवधवनयम िारा संविधान में जोड़ी गइ
12िीं ऄनुसच
ू ी में िर्चणत विषयों के संबंध में शवियों का हस्तांतरण और/या अर्चथक विकास
की योजना तैयार करना।

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 74िें संविधान संशोधन के ऄनुसार, नगर वनगम तथा नगरपाविका (नगरपाविका बोडय या
नगरपाविका सवमवत), सभी राज्यों में ऄब िगभग एक समान ढंग से विवनयवमत हो रही हैं।
 हािांकक, स्थानीय स्िशासन राज्य सूची का विषय है तथा 73िाँ ि 74िाँ संविधान संशोधन
स्थानीय शासन के संदभय में राज्य के विए ढ़ाँचा प्रदान करता है। ऄतः, प्रत्येक राज्य में स्ियं का
ऄपना वनिायचन अयोग है, जो पांच िषय के वनयवमत ऄंतराि पर सभी स्थानीय वनकायों के चुनाि
करिाता है। आसी प्रकार स्थानीय वनकायों के वित्तीय ऄवधकारों को विवनयवमत करने के विए
प्रत्येक राज्य का ऄपना एक वित्त अयोग है।
 नगर वनगम तथा नगर पाविकाओं में ऄनुसूवचत जावतयों/ऄनुसवू चत जनजावतयों के विए सीटें
अरवक्षत की गयी हैं। आसी प्रकार सभी स्थानीय वनकायों (शहरी और ग्रामीण) में मवहिाओं के विए
एक वतहाइ सीटें अरवक्षत की गयी हैं।
 नगरीय वनकायों का गठन क्षेिीय वनिायचन क्षेिों के अधार पर प्रत्यक्ष चुनाि िारा होता है। आन
वनिायचन क्षेिों को िाडय के नाम से जाना जाता है। विधावयका को यह ऄवधकार है कक िह कानून के
िारा वनम्नविवखत व्यवियों को प्रवतवनवधत्ि प्रदान कर सकती है:
o नगरीय वनकायों में विशेष ज्ञान तथा ऄनुभि रखने िािे व्यवियों,
o ईस वनिायचन क्षेि, वजसके ऄंतगयत नगरीय क्षेि पूणयतः या ऄंशतः अता है, का प्रवतवनवधत्ि
करने िािे राज्यसभा तथा िोकसभा के सदस्यों; और
o राज्य विधानसभा तथा विधान पररषद् के सदस्यों को।
 आसके साथ ही राज्य विधावयकाओं को यह ऄवधकार है कक िे नगरपाविका के चेयरमैन के वनिायचन
के संदभय में वनयम वनधायररत करें ।
 सीटों के अरक्षण के िारा समाज के गरीब िगों तथा मवहिाओं का सशविकरण, आस संिैधावनक
संशोधन के महत्िपूणय संिैधावनक प्रािधानों में से एक है। ऄध्यक्ष का पद भी SC / ST और
मवहिाओं के विए अरवक्षत है।
 यह ऄवधवनयम नगर पाविकाओं के काययकाि की ऄिवध पांच िषय वनधायररत करता है। यकद ईनमें
से ककसी को भंग करना है तो ईसे ऄपना पक्ष रखने का ऄिसर कदया जाना चावहए।

2.2. सं ग ठन

एक वनगम या नगर पाविका के संगठन को सामान्यतः दो भागों में विभावजत ककया जा सकता है:
विचारात्मक (Deliberative), और काययकारी (Executive)।
 विचारात्मक भाग: वनगम, पररषद् या नगरपाविका बोडय ऄथिा िोगों िारा वनिायवचत
प्रवतवनवधयों से वमिकर बनी पररषद् विचारात्मक भाग का वनमायण करती है। यह विचार-विमशय
तथा संिाद करने िािी आकाइ है। यह एक विधावयका की तरह कायय करती है। यह नगरपाविका
की सामान्य नीवतयों तथा वनष्पादन पर बहस करती है, शहरी स्थानीय वनकायों का बजट पास
करती है तथा करों, संसाधन बढ़ोत्तरी, सेिाओं के मूल्य वनधायरण और नगरीय प्रशासन के ऄन्य
पहिुओं के संदभय में व्यापक नीवतयों का वनमायण करती है।
o आसके साथ ही यह नगरीय प्रशासन की वनगरानी करती है तथा ककए गए ऄथिा नहीं ककए
गए कायों के विए काययकाररणी का ईत्तरदावयत्ि तय करती है। ईदाहरण के विए, यकद जि
अपूर्चत ठीक से प्रबंवधत नहीं की जाती है तथा शहर में महामारी फै ि जाती है तो यह
विचारात्मक इकाइ, प्रशासन की भूवमका की अिोचना करती है तथा सुधार के संदभय में
सुझाि देती है।
 काययकारी भाग: नगरपाविका में प्रशासन के काययकारी भाग को नगरपाविका ऄवधकाररयों तथा
स्थाइ कमयचाररयों िारा देखा जाता है।

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नगर वनगम में, नगर वनगम अयुि काययकारी प्रमुख होता है, और ऄन्य सभी विभागीय ऄवधकारी
जैस-े आं जीवनयर, वित्त ऄवधकारी, स्िास््य ऄवधकारी अकद आसके वनयंिण और पययिेक्षण में कायय
करते हैं। कदल्िी या मुम्बइ जैसे बड़े नगर वनगमों में अयुि अम तौर पर एक िररष्ठ अइ.ए.एस.
ऄवधकारी होता है। नगरपाविकाओं में, काययकारी ऄवधकारी समकक्ष पद धारण करते हैं तथा
नगरपाविका के समग्र प्रशासन को देखते हैं।
2.3. शहरी स्थानीय वनकायों के कायय

शहरी स्थानीय वनकायों के कायों को दो भागों में विभावजत ककया जाता है: ऄवनिायय कायय तथा
वििेकाधीन कायय।
 ऄवनिायय कायय िे कायय हैं वजन्हें नगरीय वनकायों िारा संपन्न ककया जाना अिश्यक है। आसमें जि
अपूर्चत, सड़कों, गवियों, पुिों, ईप-मागों और ऄन्य िोक वनमायण से संबंवधत ऄिसंरचनाओं का
वनमायण तथा रख-रखाि, गवियों में प्रकाश की व्यिस्था; जिवनकासी तथा सीिेज;, कचरा संग्रह ि
वनपटान; महामारी रोकथाम तथा वनयंिण अकद शावमि हैं।
o कु छ ऄन्य ऄवनिायय कायों में साियजवनक टीकाकरण; प्रसूवत एिं बािकल्याण के न्द्रों सवहत
ऄस्पतािों और दिाखानों का रख-रखाि; खाद्यों में वमिािट की जांच करना; दाह-संस्कार
और श्मशान का प्रबंधन अकद हैं। कु छ राज्यों में आनमें से कु छ कायों को राज्य सरकार िारा
ऄपने हाथों िे विया गया है।
 वििेकाधीन कायय िे कायय हैं जो नगरीय वनकायों िारा पयायप्त फण्ड होने पर ही ककये जाते हैं। आस
प्रकार आन्हें कम प्राथवमकता दी जाती है। अश्रय गृहों और ऄनाथाियों का वनमायण तथा रख-
रखाि, वनम्न अय िगय के िोगों के विए भिन वनमायण, साियजवनक समारोहों का अयोजन तथा
ईपचार सुविधाओं का प्रािधान अकद कु छ वििेकाधीन कायय हैं।
2.4. शहरी शासन के प्रकार

नगर क्षेिों के शासन के विए भारत में वनम्नविवखत अठ प्रकार के स्थानीय वनकाय हैं:
2.4.1. नगर वनगम (Municipal Corporation)

 नगर वनगम कदल्िी, मुम्बइ, हैदराबाद जैसे बडेऺ शहरों के प्रशासन के विए गरठत ककया गया है।
नगर वनगम के तीन प्रमुख घटक होते हैं:
o पररषद् (वनगम की विधायी शाखा),
o स्थायी सवमवत (पररषद् के कामकाज की सुविधा के विए) तथा
o अयुि (वनगम का मुख्य काययकारी ऄवधकारी)।
 पररषद्, जनता िारा प्रत्यक्ष रूप से चुने गए पाषयदों से वमिकर बनती है। आसका प्रमुख मेयर होता
है।
 स्थायी सवमवत पररषद् के कायय को सुगम बनाने के ईद्देश्य से गरठत की जाती है। यह अकार में
बड़ी होती है तथा ऄपने वनणयय स्ियं िेती है। आसके िारा िोक कायय, वशक्षा, स्िास््य कर
वनधायरण, वित्त तथा ऄन्य कायों को सम्पाकदत ककया जाता है।
 अयुि की वनयुवि राज्य सरकार की जाती है तथा यह सामान्यतः अइ.ए.एस. ऄवधकारी होता
है। यह पररषद् तथा स्थायी सवमवत िारा विए गए वनणययों के कक्रयान्ियन हेतु ईत्तरदायी होता है।
2.4.2. नगरपाविका (Municipality)

 नगरपाविका कस्बों और छोटे शहरों के प्रशासन के विए स्थावपत की जाती है। यह कइ ऄन्य नामों
से भी जानी जाती है, जैस-े नगरपाविका पररषद्, नगरपाविका सवमवत, नगरपाविका बोडय,
ईपनगरीय नगरपाविका, शहरी नगरपाविका अकद।

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 आसकी संरचना नगर वनगमों से काफी वमिती-जुिती है, वसिाय आसके कक यहाँ पररषद् के प्रमुख
को ऄध्यक्ष या चेयरमैन कहा जाता है और अयुि के स्थान पर यहाँ मुख्य काययकारी ऄवधकारी/
मुख्य नगरपाविका ऄवधकारी होता है।

2.4.3. ऄवधसू वचत क्षे ि सवमवत (Notified area committee)

 यह वनम्नविवखत दो प्रकार के क्षेिों के प्रशासन के विए बनाइ जाती है:


o औद्योगीकरण के कारण तेजी से विकवसत होते कस्बे और
o ऐसे कस्बे जो ऄभी तक नगरपाविका के गठन के विए अिश्यक शतें पूरी नहीं करते, िेककन
वजन्हें राज्य सरकार िारा महत्िपूणय माना जाता है।
 आसे ऄवधसूवचत क्षेि सवमवत कहा जाता है क्योंकक आसे राज्य सरकार की ऄवधसूचना िारा बनाया
जाता है।
 नगरपाविका के विपरीत यह पूणत
य ः नावमत वनकाय (Nomitated body) है, ऄथायत् आसमें ऄध्यक्ष
सवहत सभी सदस्य राज्य सरकार िारा मनोनीत ककये जाते हैं। आस प्रकार, न तो यह एक िैधावनक
वनकाय है, और न ही वनिायवचत वनकाय है।

2.4.4. नगर क्षे िीय सवमवत (Town Area committee)

 यह राज्य विधान मण्डि के एक ऄिग ऄवधवनयम िारा छोटे शहरों के प्रशासन हेतु स्थावपत की
जाती है। यह ऄर्द्य नगरपाविका प्रावधकरण है, वजसे सीवमत संख्या में नागररक कायों की
वजम्मेदारी दी जाती है।
 यह राज्य सरकार िारा पूणत य ः वनिायवचत या पूणत
य ः नावमत या ऄंशतः वनिायवचत और ऄंशतः
नावमत संस्था हो सकती है।
2.4.5. छािनी पररषद् (Cantonment Board)

 आसे छािनी क्षेिों (जहां सैन्य बि और ईनकी टुकवड़यां स्थायी रूप से तैनात हैं) में नागररक
जनसंख्या के नगरीय प्रशासन के विए स्थावपत ककया जाता है। आसे के न्द्र सरकार के कै ण्टोनमेंट
एक्ट, 2006 िारा स्थावपत ककया गया है और यह कें द्र सरकार के रक्षा मंिािय के ऄंतगयत कायय
करती है।
 यह अंवशक रूप से वनिायवचत तथा अंवशक रूप से नावमत वनकाय है तथा ईस स्टेशन की कमान
सँभािने िािा सैन्य ऄवधकारी आसके पदेन ऄध्यक्ष के रूप में कायय करता है। बोडय के वनिायवचत
सदस्यों में से ईपाध्यक्ष का चुनाि ककया जाता है।
 छािनी पररषद् का काययकारी ऄवधकारी भारत के राष्ट्रपवत िारा वनयुि ककया जाता है।
2.4.6. टाईन वशप

 आसे बड़े साियजवनक ईद्यमों िारा ऄपने ईन कर्चमयों तथा श्रवमकों को नागररक सुविधाएं देने के
विए स्थावपत ककया जाता है, जो पिांट के वनकट अिासीय कॉिोवनयों में रहते हैं।
 यह वनिायवचत वनकाय नहीं है और नगर प्रशासक सवहत आसके सभी सदस्य ईद्यम िारा ही वनयुि
ककये जाते हैं।
2.4.7. न्यास पत्तन (Port Trust)

 न्यास पत्तन को मुम्बइ, कोिकाता तथा चेन्न्इ जैसे बंदरगाह क्षेिों में स्थावपत ककया जाता है। आसके
दो ईदेश्य हैं: (a) बंदरगाहों की व्यिस्था ि सुरक्षा तथा (b) नागररक सुविधाएं प्रदान करना।
 आसे संसदीय ऄवधवनयम िारा बनाया गया है तथा आसमें वनिायवचत ि नावमत दोनों सदस्य होते हैं।

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2.4.8. विशे ष ईद्दे श्य एजें सी (Special Purpose Agency)

 राज्यों ने कु छ एजेंवसयों को ईन वनर्ददष्ट गवतविवधयों या विवशष्ट कायों को करने के विए स्थावपत


ककया है, जो िैध रूप से नगर वनगमों, नगर पाविकाओं या ऄन्य स्थानीय शहरी शासन के डोमेन
से संबंवधत हैं।
 दूसरे शब्दों में, ये कायय पर अधाररत हैं, न कक क्षेि पर। आन्हें 'एकि ईद्देश्य' या 'विवशष्ट ईद्देश्य'
िािी आकाइ ऄथिा ‘कायायत्मक स्थानीय वनकायों’ के रूप में जाना जाता है। ईदाहरणतः शहरी
सुधार ट्स्ट, हाईचसग बोडय, प्रदूषण वनयंिण बोडय अकद। आन्हें राज्य विधानमंडि के एक ऄवधवनयम
िारा िैधावनक वनकायों के रूप में या एक काययकारी संकल्प िारा विभागों के रूप में स्थावपत ककया
जाता है। ये एक स्िायत्त वनकाय के रूप में कायय करती हैं और स्थानीय नगरीय वनकायों के
ऄधीनस्थ एजेंवसयां नहीं हैं।
2.5. नगरीय वनकायों की सीमाएँ

 नगर वनकाय के सदस्यों की ऄयोग्यता के संबंध में सैर्द्ांवतक रूप से ईन्हीं प्रकक्रयाओं का पािन
ककया जाता है वजनका राज्य विधानमंडि के सदस्यों की ऄयोग्यता के वनधायरण के संबंध में होता
हैं। परं त,ु ये राज्य विधावयकाओं िारा शावसत होते हैं जो आनसे संबंवधत कानून बना सकती हैं।
सभी राज्यों में आनसे संबंवधत ऄिग-ऄिग कानून हैं जो सदस्यों के मध्य ऄसमानता तथा ऄसुरक्षा
में िृवर्द् करते हैं।
 चुनाि खचय तथा अचार संवहता को और बेहतर तरीके से विवनयवमत करने की अिश्यकता है।
ऄतः आसके संबंध में राज्य चुनाि अयोग को और ऄवधक शवियां दी जानी चावहए।
 नगर वनगमों की तुिना में नगरपाविकाओं की स्िायत्तता को प्रवतबंवधत ककया गया है तथा आन पर
राज्य का ऄत्यवधक वनयंिण है। यह प्रायः चरम वस्थवतयों में नगरपाविकाओं को भंग करने के रूप
में सामने अता है।
 राज्य और कें द्रीय विधावयकाओं की ऄवनच्छा के कारण वित्त के ऄभाि की समस्या है क्योंकक िे
ऄपनी कराधान की शवियों को छोड़ना नहीं चाहते और ऄपनी शवियों को खोने के डर से नगरीय
वनकायों को ितयमान वस्थवत की तुिना में और ऄवधक शवियां नहीं प्रदान करना चाहते। िहीं
दूसरी ओर, नगर वनकाय िोगों के बीच िोकवप्रयता खोने के भय से न तो टैक्स बढ़ाना चाहते हैं, न
ही नया टैक्स िगाना चाहते हैं।
 स्थानीय वनकायों का वनमायण राज्य सरकारों िारा ककया जाता है तथा ईनके ऄनुसार नहीं चिने
की वस्थवत में राज्य सरकार िारा आन्हें भंग भी ककया जा सकता है। राज्य सरकारें आस ऄवधकार का
राजनीवतक फायदा ईठाती हैं।
 के न्द्र ि राज्यों के िारा गरठत कइ सवमवतयों िारा नगरीय वनकायों को ऄवधक वित्तीय तथा
प्रशासवनक स्िायत्तता देने की वसफाररश के बािजूद, दोनों ही स्तर की विधावयकाओं िारा आन
वसफाररशों को िागू करने का कोइ ठोस प्रयास नहीं ककया गया है।
 शहरी विकास नीवतयों में वनयवमतता तथा सुसंगता का ऄभाि है। दोषपूणय और ऄनुपयुि शहरी
वनयोजन के साथ-साथ खराब कायायन्ियन और विवनयमन नगरपाविकाओं के विए एक बड़ी
चुनौती है।
 ऄकु शि तथा ऄनुपयुि स्थानीय शहरी वनकाय ईपयुि वनगरानी प्रणािी के ऄभाि का पररणाम
हैं।
2.6. वित्तीय स्रोत

 आन वनकायों के राजस्ि स्रोत हैं: कर, फीस एिं जुमायना, भूवम, बाजार अकद से प्राप्त अय तथा
राज्य िारा प्राप्त ऄनुदान।
 भूवम और भिनों पर संपवत्त कर, स्थानीय शहरी वनकायों की अय के महत्िपूणय साधन हैं। आसके
ऄवतररि विज्ञापन कर, व्यिसाय कर अकद भी अय के साधन हैं । चुंगी कर, पविम भारत में नगर
वनकायों की अय के महत्िपूणय स्रोत हैं। ितयमान में राजमागो पर यातायात के वनबायध प्रिाह तथा
तीव्र अिागमन को सुवनवित करने के विए आस कर को समाप्त करने का प्रयास ककया जा रहा है।

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 नगरीय वनकाय, वनयमों तथा विवनयमों के ईल्िंघन पर जुमायना भी िगाते हैं। सामान्यतः राज्य,
स्थानीय वनकायों की वित्तीय वस्थवत में सुधार हेतु ऄनुदान प्रदान करते हैं। यह ऄनुदान ऄवनयवमत
होता है तथा जनसंख्या, मविन बस्ती की सघनता तथा शहर की ऄिवस्थवत के अधार पर कदया
जाता है।
 शहरी वनकायों िारा िसूिे जाने िािे कु छ कर आस प्रकार हैं: संपवत्त कर, पेयजि कर, सीिेज कर,
ऄविशमन कर, जानिरों तथा िाहनों पर कर, वथयेटर कर, संपवत्त हस्तांतरण पर शुल्क, कु छ
िस्तुओं पर चुंगी कर, वशक्षा ईपकर तथा व्यिसाय कर आत्याकद।
 आसके ऄवतररि तहबाजारी शुल्क, चबूतरा शुल्क, िाआसेंस शुल्क, नगर पाविका की दुकानों का
ककराया अकद अय के ऄन्य स्रोत हैं।
2.6.1. वित्त से सं बं वधत समस्याएं

पयायप्त वित्त का ऄभाि िस्तुतः स्थानीय शहरी वनकायों िारा सामना की जाने िािी एक प्रमुख समस्या
है। आनके कायय ि दावयत्िों को देखते हुए आन्हें ईपिब्ध अय के स्रोत ऄपयायप्त हैं। आन्हें हम वनम्नविवखत
चबदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं:
 अय के स्रोत का ऄभाि: ऄवधकांशतः आनकी अय के स्रोत के न्द्र तथा राज्य सरकारों िारा ईद्गृहीत
एिं विवनयोवजत तथा स्थानीय वनकायों िारा संगृवहत ककया जाने िािा धन होता है। परं तु ये अय
के साधन नगर वनकायों के सेिा संबंधी कायों के विए पयायप्त नहीं हैं। आसके साथ ही चुनािी कारणों
से ये वनकाय ऄवधक कर िगाने से बचते हैं।
 ऄकु शि कमयचारी: आनके कमयचारी प्रवशवक्षत नहीं होते हैं तथा िे कर संग्रहण प्रभािी रूप से नहीं
कर पाते।
 संपवत्त कर से संबवं धत समस्याएं: चुंगी कर की समावप्त के बाद ज्यादातर राज्यों में संपवत्त कर
स्थानीय वनकायों के राजस्ि का महत्िपूणय साधन है। आसमें सुधार की अिश्यकता है।
 संकुवचत कर अधार: एक ऄनुमान के ऄनुसार शहरी क्षेि में के िि 60-70% संपवत्तयों का
मूल्यांकन होता है। आस वनम्न कर अधार का कारण नगरीय वनकायों की सीमाएं वनवित होना है।
पररणामतः नगरों के विकास के कारण नगरीय संपदाएं, नगरों की िैधावनक सीमा से बाहर चिी
जाती हैं।
 प्रयोिा शुल्क: सामान्यतः वनकायों िारा ईपिब्ध सेिाओं की िास्तविक िागत ऄवधक होती है।
ईदाहरण के विए जि कर, स्िच्छता एिं सीिेज कर, ऄपवशष्ट संग्रहण शुल्क, स्ट्ीट िाआटटग शुल्क
अकद ईनकी िास्तविक िागत की तुिना में कम हैं।
 विश्वसनीय अँकड़ों का ऄभाि: नौकरी, वनिेश या कर संग्रह से संबंवधत विश्वसनीय अंकड़ों की
कमी है।

2.6.2. वित्तीय सु धारों के सं द भय में सु झाि

 राज्यों िारा आन स्थानीय वनकायों को संपवत्तयों पर स्टाम्प शुल्क और पंजीकरण शुल्क का एक


ईवचत प्रवतशत प्रदान ककया जाना चावहए।
 मनोरं जन कर और व्यिसाय कर नगर पाविकाओं को हस्तांतररत कर कदया जाना चावहए।
 नगर वनगम िारा जारी बांड में ऄवधक वनिेश को प्रोत्सावहत करने के विए कें द्र सरकार िारा ऐसे
वनिेश पर करों में छू ट प्रदान की जानी चावहए।
 कें द्र सरकार, राज्य सरकारों और नगर पाविकाओं को एक साथ वमिकर नगर की समस्त भूवम की
एक सूची बनानी चावहये। आसके ऄिािा एक ऐसी रणनीवत तैयार की जानी चावहए वजससे खािी
भूवम का ऐसा ईपयोग ककया जाये कक नगर वनगम की अय में िृवर्द् हो।
 नगर पाविकाओं की वित्तीय वस्थरता की रक्षा करने के विए नगर पाविकाओं में राजकोषीय
ईत्तरदावयत्ि और बजट प्रबंधन पर राज्य िारा एक कानून बनाया जाना चावहए।

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 खातों के कु शि और प्रभािी प्रबंधन के विए एक चाटयडय एकाईं टेंट िारा नगरपाविकाओं के खातों
का िार्चषक िेखा परीक्षण ककया जाना चावहए।
 कर संग्रह और वित्तीय प्रबंधन में सुधार करने के विए और ऄवधक कमयचाररयों की भती की जानी
चावहए।
 संविधान में संशोधन िारा स्थानीय सरकारों के विए ऄिग से कर क्षेि बनाया जाना व्यािहाररक
नहीं है। राज्यों को यह सुवनवित करना चावहए कक स्थानीय वनकायों को कर के संदभय में पयायप्त
शवियाँ दी जाएं जो स्थानीय स्तर पर व्यािहाररक ढंग से संग्रवहत ककया जा सके ।
 आसके साथ ही, सभी संपवत्तयों के कर वििरण को साियजवनक डोमेन में रखा जाना चावहए। एक
नइ, सरि तथा पारदशी कर व्यिस्था का िागू ककया जाना कर संग्रहण में ऄिश्य ही सुधार
करे गा। मुख्य काययकारी के वनयंिण में एक ऄिग विभाग होना चावहए जो समय-समय पर
संपवत्तयों का भौवतक सत्यापन करे ।
 शहर में सभी विकासात्मक गवतविवधयों के प्रभाि का ऄध्ययन ककया जाना चावहए। ईन पर एक
संकुिन (कं जेशन) शुल्क िगाया जाना चावहए। नागररक कानूनों को तोड़ने पर जुमायना िगाने का
ऄवधकार नगर वनकायों को कदया जाना चावहए तथा आससे संबंवधत कानूनों में सुधार ककया जाना
चावहए।
2.6.3. म्यु वनवसपि बां ड

 आशर जज ऄहिूिाविया (2011) की ऄध्यक्षता िािी शहरी ऄिसंरचना संबध


ं ी सवमवत के
ऄनुमान के ऄनुसार भारतीय शहरों को ऄगिे दो दशक ऄथायत् 2031 तक वस्थर कीमतों पर
िगभग 40 रट्वियन रूपए वनिेश करने की अिश्यकता होगी।
 आसी सन्दभय में सेबी िारा 2016 में म्युवनवसपि बांड संबध
ं ी विवनयम जारी ककए गए। आनके
ऄनुसार:
o यकद म्युवनवसपि बांड कु छ वनवित वनयमों के ऄनुरूप हों तथा ईनकी ब्याज दरें बाजार
अधाररत हों तो भारत में म्युवनवसपि बांड को कर-मुि कर कदया जाना चावहए।
o नगर वनगमों को आन्िेस्टमेंट ग्रेड क्रेवडट रे टटग बनाए रखने की अिश्यकता है तथा ईन्हें
पररयोजना िागत का कम से कम 20 प्रवतशत योगदान करना होगा।
o नगर वनगम वपछिे एक िषय में प्राप्त ककसी भी ऊण के संबंध में वडफाल्टर की वस्थवत में नहीं
होनी चावहए।
o नगर वनगमों को ऊण के मूिधन की िापसी सुवनवित करने हेतु ऊण को पूणय पररसंपवत्त
किर (फु ि एसेट किर) प्रदान करना होगा। आन बांड्स को वजस पररयोजना के विए जारी
ककया गया है, ईस पररयोजना के माध्यम से प्राप्त धन को एक ऄिग एस्क्रौ ऄकाईं ट में रखना
होगा। बैंक या वित्तीय संस्थान िारा आस ऄकाईं ट की वनयवमत रूप से वनगरानी की जाएगी।
o 2017 में नीवत अयोग िारा प्रस्तावित वििषीय काययिाही एजेंडा में म्युवनवसपि बांड माके ट
के ईपयोग की बात भी की गइ है।
महत्ि
 भारतीय शहरों का राजस्ि, सकि घरे िू ईत्पाद के 1% से भी कम है। आसी का पररणाम है कक
भारतीय शहर वित्तीय रूप से पयायप्त स्िायत्त नहीं हो सके हैं।
 शहरी स्थानीय वनकायों की पररयोजनाओं की वनम्न व्यिहाररकता एिं िंबी पररपक्वता ऄिवध
होती है एिं साथ ही िागत िसूि कर पाने की संभािना वनम्न से िेकर मध्यम होती है। कम िागत
पर ईधार प्रावप्त आन शहरी स्थानीय वनकायों के विए एक िाभपूणय वस्थवत होगी। वजस नगर वनगम
की रे टटग ऄवधक होगी, ईसके विए ब्याज और ईधार की िागत ईतनी ही कम होगी।
 शहरी स्थानीय वनकायों की वित्तीय स्ितंिता के विए म्युवनवसपि बांड अिश्यक हैं।

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चुनौवतयाँ
 बॉन्ड वनिेशक शहरों में धन तब तक वनिेश नहीं करें गे, जब तक कक िे नगर वनगमों की
राजकोषीय क्षमता के संबंध में अश्वस्त न हो जाए।
 ऄब तक ऄवधकांश म्युवनवसपि बांड वनजी तौर पर जारी ककये गए हैं और ये व्यापार योग्य नहीं
हैं। आससे म्युवनवसपि बांड्स में वनिेश बावधत हुअ है। िास्ति में ये बांड्स राज्य िारा गारं टी प्राप्त
होने चावहए।
 यह ऄसमानताओं का एक स्रोत भी हो सकता है क्योंकक बेहतर रे टटग प्राप्त नगर वनगम, वनिेश का
ऄवधकांश वहस्सा प्राप्त कर सकते हैं। पहिे से ही ऄिसंरचनात्मक विकास में वपछड़े शहर वनिेश के
सन्दभय में क्राईचडग अईट आफ़े क्ट का वशकार बन सकते हैं।
ऄतः आन चुनौवतयों के अिोक में हमें िैवश्वक स्तर पर ऄपनायी जा रही सियश्रेष्ठ परम्पराओं को ऄपनाने
पर विचार करना चावहए। यथा:
 डेििपमेंट बैंक ऑफ सदनय ऄफ्रीका िारा म्युवनवसपि बांड जारी करने में सहायता करने हेतु ऄपनी
बैिेंस शीट का ईपयोग ककया जाता है।
 डेनमाकय में शहरों के समूह (pool of the cities) में से ककसी एक शहर के वडफॉल्ट होने की
वस्थवत में बांड धारकों के वहतों की रक्षा के विए एक एजेंसी कायय करती है।
 जापान में जापान फाआनेंस कापोरे शन फॉर म्युवनवसपि फाआनेंस आस कायय हेतु ‘सॉिरे न गारं टी’
प्रदान करता है। भारत को ऐसी ही सिोत्तम परम्पराओं को ऄपनाना चावहए।
समग्रतः म्युवनवसपि बांड को शहर के वित्तपोषण हेतु के िि एक ऄियि के रूप में देखा जाना चावहए।
शहरों को राजस्ि के विए और ऄवधक स्रोतों की खोज करने की जरुरत है। आस कदशा में नए GST तंि
के माध्यम से एकवित फं ड एक निीन स्रोत वसर्द् हो सकता है। आन सभी प्रयासों के विए शहरी प्रशासन
को सशि बनाए जाने की अिश्यकता है।
2.6.4. 14िां वित्त अयोग और स्थानीय सरकार

 14िें वित्त अयोग ने स्थानीय वनकायों को कदए जाने िािे ऄनुदान में दोगुने से ऄवधक की िृवर्द्
करने की ऄनुशंसा की है। आसके ऄवतररि अयोग िारा ऄनुशस
ं ा की गइ है कक यह धनरावश
स्िच्छता, पेयजि, सामुदावयक पररसंपवत्तयों के रखरखाि अकद जैसी अधारभूत सुविधाओं में
सुधार करने पर व्यय की जाए।

2.6.4.1. वित्त अयोग के प्रमु ख सु झाि

 14िें वित्त अयोग ने स्थानीय स्िशासन के संगठन के रूप में स्थानीय वनकायों में विश्वास और
सम्मान बनाए रखने की अिश्यकता को स्िीकार ककया है।
 कु ि ऄनुशवं सत धनरावश में से, िगभग 2 िाख करोड़ रूपये पंचायतों को और शेष नगरपाविकाओं
को कदया जाना तय ककया गया है। यह एक वनवित रावश है।
 पंचायत और नगर पाविकाओं के विए ऄनुदान को दो श्रेवणयों में विभावजत ककया गया है:
o वनष्पादन ऄनुदान (Performance Grant): आसके तीन प्रमुख िक्ष्य हैं:
 राज्यों के ‘अय और व्यय खाते’ के रखरखाि को प्रोत्सावहत करना।
 ऄपने राजस्ि में िृवर्द् करने और प्रावप्तयों में िृवर्द् को प्रदर्चशत करने में राज्यों की
सहायता करना।
 शहरी स्थानीय वनकायों के सन्दभय में शहरी क्षेिों के विए सेिा स्तर मानदण्ड को
प्रकावशत करना।
o अधारभूत ऄनुदान (Basic Grant): यह स्थानीय वनकायों को दी जाने िािी अधारभूत
रावश है।
 अधारभूत ऄनुदान और वनष्पादन ऄनुदान का ऄनुपात ग्राम पंचायतों और नगरपाविकाओं के
विए क्रमशः 90:10 और 80:20 वनधायररत ककया गया है।

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 राज्य सरकारों िारा वनष्पादन ऄनुदान के वितरण के विए विस्तृत प्रकक्रया के वनमायण का प्रािधान
ककया गया है।
 ऄनुदान रावश को सीधे ही स्थानीय वनकायों को प्रदान ककया जायेगा।
 स्थानीय वनकायों के संसाधनों में िृवर्द् करने के विए अयोग ने राज्य सरकारों को स्थानीय
सरकारों को विज्ञापन कर अरोवपत करने की शवि देने और पंचायतों को स्थानीय ईत्पादक
पररसंपवत्तयां अिंरटत करने का सुझाि कदया है।

ऄसम, ग्राम पंचायत विकास योजना (VPDP) से सम्बंवधत कदशावनदेश तैयार करने िािा देश का पहिा
राज्य है। आन वनदेशों को ऄन्य राज्यों िारा मॉडि कदशावनदेश माना जाता है।

 अयोग के ऄनुसार, खनन से वमिने िािी कु छ रॉयल्टी स्थानीय वनकायों के साथ साझा की जानी
चावहए क्योंकक खनन का स्थानीय िातािरण और ऄिसंरचना पर व्यापक प्रभाि पड़ता है। आससे
स्थानीय वनकायों को स्थानीय अबादी पर खनन के दुष्प्रभाि को कम करने में सहायता वमिेगी।
 पूिय में प्रचवित व्यिस्था के विपरीत, फं ड हस्तांतरण पर अरोवपत शतों को कम ककया गया है।
 यह ग्राम पंचायतों और नगर पाविकाओं को ईन्हें अिंरटत मूिभूत कायय के वनष्पादन हेतु वबना
शतय समथयन प्रदान करता है।
 राज्य वित्त अयोगों की ऄनुशंसाओं के अधार पर राज्यों िारा ककया जाने िािा संसाधनों का
वितरण।
 ईत्तरदावयत्ि और कु शितापूणय तरीके से अधारभूत सेिाओं के वितरण के संबंध में ऄपना ऄवधदेश
प्रदान करने हेतु ग्राम पंचायतों को सशक्त बनाने के विए ग्राम पंचायत िारा अधारभूत सेिाओं
की प्रदायगी पर बि देने के साथ सहभागी तरीके से ग्राम पंचायत विकास योजना तैयार करने का
वनदेश कदया गया है।
महत्ि
 आन कदमों के माध्यम से राज्यों की संवचत वनवध के विए कोष में िृवर्द् की जा सकती है।
 आस योजना में स्थानीय वनकायों िारा िोगों की भागीदारी के साथ ऄपनी विकास योजनाएं तैयार
करने और विकास की प्रकक्रया को ऄवधक समािेशी बनाने की क्षमता है।
 14िें वित्त अयोग ने 73िें और 74िें संिैधावनक संशोधनों िारा अरं भ की गइ विकें द्रीकरण की
प्रकक्रया को और ऄवधक सशि ककया है।
 ये ऄनुशस
ं ाएं सरकार की नीवतयों के साथ समन्िय स्थावपत करते हुए, AMRUT की तजय पर
बेहतर, सुरवक्षत एिं स्िच्छ गांि तथा नगरों के वनमायण में महत्िपूणय भूवमका वनभा सकती हैं।
 स्थानीय सरकारों के कामकाज में धन की कमी एक बड़ी बाधा है। अयोग िारा आन पररितयनों के
माध्यम से स्थानीय वनकायों के कामकाज में सुधार की एक विस्तृत रूपरे खा प्रस्तुत की गइ है।
2.7. स्थानीय स्िशासन के विए योजनाएं

 74िें संविधान संशोधन के पूिय वजिापररषद् तथा नगरपाविका संस्थाओं को वजिा स्तर पर
वनयोजन और अिंटन की शवि प्रदान की गइ थी। 74िें संविधान संशोधन के िारा वजिा योजना
सवमवतयों को सम्पूणय वजिे के विए विकासात्मक योजना तैयार करने का कायय सौंपा गया है।
2.7.1. वजिा योजना सवमवत (DPCs)

 ऄनुच्छेद 243ZD के तहत वजिा स्तर पर योजनाओं के वनमायण हेतु वजिा योजना सवमवत का
प्रािधान ककया गया है। यह सवमवत पंचायतों तथा नगरपाविकाओं िारा तैयार की गइ योजनाओं
को एकीकृ त करती है तथा संपूणय वजिे के विए एक विकास योजना बनाती है।
 वजिा विकास योजना के वनमायण के दौरान वजिा योजना सवमवत, नगरपाविका तथा पंचायतों के
बीच साझे विषयों जैसे:- जि संचयन, प्राकृ वतक संसाधन, ऄिसंरचनाओं का विकास तथा
पयायिरण संरक्षण को ध्यान में रखती है। हािाँकक वजिा पंचायत सवमवतयों के विए यह ऄवनिायय
है कक िे संबंवधत संस्थाओं से परामशय करें ।

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2.7.1.1. DPCs से सम्बं वधत समस्याएं


 ऄवधकतर राज्यों में ये सवमवतयां महज औपचाररक रूप में कायय कर रही हैं। न तो आन्हें सुदढ़ृ ककया
गया है और न ही ये वजिा विकास योजना का कोइ मसौदा तैयार करती हैं।
 पयायप्त धन अिंटन के बाद भी बहुत कम राज्यों ने वजिा योजना तैयार की है।
 कइ राज्यों में वजिे एिं राज्य के बजट एक-दूसरे से ऄिग नहीं हैं। पंचायतों को धन का अिंटन
ईनकी विधायी शवियों के हस्तांतरण से मेि नहीं खाता है।
 पंचायतों को कदया गया धन योजनाओं से ऄवनिायय रूप से संबवं धत कर कदया गया है और आस
प्रकार, वनयोजन के ज़ररए स्थानीय प्राथवमकताओं के वनधायरण तथा ईनके विए कायय करने की
संभािना सीवमत हो जाती है। आस सन्दभय में, ऐसे धन में सिायवधक ऄंश पंचायतों को हस्तांतररत
कायों से सम्बंवधत कें द्र प्रायोवजत योजनाओं का होता है।
 राज्य बजट में ककये गए िास्तविक प्रािधान समग्र वनकासी की ऄपेक्षा वभन्न होते हैं। कु छ राज्यों ने
के न्द्र प्रायोवजत पररयोजनाओं से िाभ प्राप्त करने के विए ऄपने वहस्से का धन ईपिब्ध नहीं
करिाया वजससे स्थानीय इकाआयों के िास्तविक धन के प्रिाह में कमी अइ है।
 सामान्यतया आन सवमवतयों िारा तैयार योजनाएं खराब गुणित्ता की होती हैं। यह के िि
योजनाओं ि कायो का संग्रह माि होता है जो कक चयवनत सदस्यों िारा तदथय या ऄस्थायी अधार
पर सुझाये जाते हैं।

2.7.1.2. वजिा योजना सवमवतयों में सु धार

 वजिे के विए योजना तैयार करने तथा वजिा स्तर पर योजना प्रकक्रया में विशेषज्ञ समूहों िारा
ऄनुशंवसत वसफाररशों को नीवत अयोग के कदशा वनदेशों के साथ िागू ककया जाना चावहए।
 प्रत्येक राज्य सरकार को स्थानीय स्तर की योजनाओं की भागीदारी के विए एक पर्द्वत विकवसत
करनी चावहए तथा ऐसा सहयोग प्राप्त करना चावहए जो योजनाओं के विके न्द्रीकरण को संस्थागत
बनाए।
 राज्य एक योजना कै िेण्डर बना सकते हैं, वजसमें स्थानीय वनकायों के विए योजनाओं को पूरा
करने की समय सीमा वनधायररत हो। आससे आन्हें उपरी स्तर पर भेजा जा सके गा जहां वजिा
सवमवतयों को व्यापक योजना बनाने में मदद वमि सके गी।
 राज्य वनयोजन बोडय को यह सुवनवित करना चावहए कक वजिा योजनाएं, राज्य योजनाओं के साथ
एकीकृ त हों। यह अिश्यक ककया जाना चावहए कक स्थानीय संस्थाओं के वनयोजन के सृदढ़ृ ीकरण के
बाद ही राज्य ऄपनी विकासात्मक योजना तैयार करें ।
 शहरी वजिों के विए जहां टाईन पिाचनग के कायय विकासात्मक प्रावधकरणों िारा पूरे ककये जा रहे
हैं, िहाँ ये प्रावधकरण वजिा वनयोजन समीवतयों की योजना/तकनीक के भाग होने चावहए।

2.7.2. महानगर योजना सवमवत

 महानगरीय योजना सवमवत का कायय महानगरीय क्षेि में विकास योजना के प्रारूप को तैयार
करना है। यह सवमवत विकास हेतु प्रारूप योजना बनाते समय वनम्नविवखत बातों का ध्यान रखेगी:
o नगरपाविकाओं एिं पंचायतों के मध्य साझे वहत से संबंवधत मामिे यथा अधारभूत संरचना
का विकास, पयायिरण संरक्षण, जि तथा ऄन्य भौवतक एिं प्राकृ वतक संसाधनों की भागीदारी,
समवन्ित योजना आत्याकद।
o कें द्र सरकार तथा राज्य सरकार िारा वनधायररत प्राथवमकताएँ एिं िक्ष्य।
o महानगरीय क्षेि में पंचायतों एिं नगर पाविकाओं िारा तैयार की गयी योजनाएँ।
o महानगरीय क्षेि में कें द्र सरकार या राज्य सरकार िारा ककए जाने िािे वनिेश की प्रकृ वत एिं
मािा तथा ईपिब्ध वित्तीय एिं ऄन्य संसाधन।
o राज्यपाि िारा वनर्ददष्ट संस्थाओं एिं संगठनों से परामशय प्राप्त करना।
 संरचना: आसके दो वतहाइ सदस्यों का चुनाि नगर पाविका के वनिायवचत सदस्यों एिं पंचायतों के
ऄध्यक्षों में से ककया जाता है। सवमवत के सदस्यों की संख्या ईस महानगरीय क्षेि में नगरपाविकाओं
एिं पंचायतों की जनसंख्या के ऄनुपात में समानुपावतक रुप से होना चावहए।

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 आस संबध ं में विधानमंडि की ईपबंध बनाने की शवि: राज्य विधानमंडि को आस संबंध में
वनम्नविवखत शवियाँ प्राप्त होंगी:
o आस सवमवत में ऄध्यक्ष के वनिायचन की प्रकक्रया वनधायररत करने का ऄवधकार।
o आस सवमवत में सदस्यों के वनिायचन की प्रकक्रया वनधायररत करने का ऄवधकार।
o सवमवत की संरचना वनधायररत करने का ऄवधकार।
o कें द्र सरकार, राज्य सरकार तथा ऄन्य संस्थाओं का आन सवमवतयों में प्रवतवनवधत्ि वनधायररत
करने का ऄवधकार।
o महानगरीय क्षेिों के विए योजनाओं एिं समन्िय के संबंध में आन सवमवतयों के कायय वनधाय ररत
करने का ऄवधकार।
2.8. स्थानीय शासन की कें द्रीय पररषद्

(Central Council of Local Government)


 यह पररषद् एक परामशयदािी वनकाय है। आसकी स्थापना राष्ट्रपवत के अदेश से भारत के संविधान
के ऄनुच्छेद 263 के ऄंतगयत की गइ थी।
 1958 से पूिय तक आसका संबंध नगर वनकायों के साथ ही ग्रामीण स्थानीय वनकायों से भी था
परन्तु 1958 के बाद से यह वसफ़य शहरी स्थानीय वनकायों से सम्बंवधत मामिों को देखती है। आसमें
कें द्र सरकार के नगर विकास मंिी एिं राज्यों के स्थानीय स्िशासन के प्रभारी मंिी सदस्य होते हैं।
 स्थानीय सरकार से संबंवधत आस पररषद् के वनम्नविवखत कायय हैं:-
o कें द्र सरकार से वित्तीय सहयोग प्राप्त करने के विए ऄनुशस ं ा करना।
o कें द्र के वित्तीय सहयोग से संपन्न ककए गए कायों की समीक्षा करना।
o नीवतगत मामिों पर विचार करना एिं ऄनुशस ं ाएं देना।
o विधायन के विए प्रस्ताि तैयार करना।
o कें द्र एिं राज्यों के बीच सहयोग की संभािना को तिाश करना।
o साझा काययक्रम हेतु ढांचा तैयार करना।

2.9. वनिाय च न सं बं धी मामिों में न्यायािय के हस्तक्षे प पर प्रवतबं ध

 74िां संविधान संशोधन चुनाि संबंधी मामिों में न्यायािय के हस्तक्षेप को प्रवतबंवधत करता है।
आसके ऄनुसार, चुनाि क्षेि एिं चुनाि क्षेि में सीटों के विभाजन संबंधी मुद्दों को न्यायािय में
चुनौती नहीं दी जा सकती।

3. हाि के कु छ चर्चचत मु द्दे एिं निीन पहि


3.1. प्रत्यक्ष वनिाय वचत महापौर/मे य र (Directly Elected Mayor)

 िषय 2016 में देश में महापौर के प्रत्यक्ष वनिायचन और पद को सशि बनाने हेतु एक वनजी सदस्य
िारा संसद में विधेयक प्रस्तुत ककया गया।
ितयमान वस्थवत
 महापौर, भारत में नगर वनगमों के ऄध्यक्ष और अवधकाररक प्रभारी होते हैं।
 काययकारी ऄवधकारी महापौर और पाषयदों के साथ समन्िय रखते हुए वनगम की योजना और
विकास से संबंवधत सभी काययक्रमों के कायायन्ियन की वनगरानी करते हैं।
 ितयमान में छह राज्यों - ईत्तराखंड, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, यूपी और तवमिनाडु - में ऐसे
महापौरों का प्रािधान है जो पांच िषय के काययकाि के विए मतदाताओं िारा प्रत्यक्ष रूप से चुने
जाते हैं।
प्रस्तावित पररितयन
 विधेयक का िक्ष्य एक प्रत्यक्ष वनिायवचत और सशि महापौर का प्रािधान करके नगरों के विए
मजबूत नेतृत्ि स्थावपत करना है।

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 यह कइ सुधारों का भी सुझाि देता है जैसे कक क्षेिीय सभाओं और िाडय सवमवतयों के गठन को


ऄवनिायय बनाना तथा स्थानीय सरकारों को शवियों का हस्तांतरण करके ईन्हें मजबूत बनाना।
 विधेयक आसकी भी वसफाररश करता है कक महापौर की ऄिवध, नगरपाविका की ऄिवध के साथ
ही समाप्त होनी चावहए।
 यह महापौर को नगरपाविका का काययकारी प्रमुख बनाता है।
 यह महापौर को पररषद् के कु छ प्रस्तािों पर िीटो शवि भी देता है और साथ ही, महापौर को
मेयर-आन-काईं वसि के सदस्यों को मनोनीत करने की भी ऄनुमवत देता है।
चचताएँ
 यथावस्थवतिादी व्यिहार और वनवहत स्िाथों का होना पहिी चुनौती है। राज्य सरकारें शहरी स्तर
की संस्थाओं को ऄवधक ऄवधकार नहीं देना चाहती हैं।
 प्रत्यक्ष वनिायवचत महापौर के साथ एक मूिभूत मुद्दा यह है कक दक्षता को बढ़ाने के बजाय, यह
िास्ति में प्रशासन में ऄवस्थरता िा सकता है, विशेषकर तब जब महापौर और नगर पररषद् के
चयवनत ऄवधकांश सदस्य विवभन्न राजनीवतक दिों से जुड़े हों।
 विधेयक महापौर और ईसके िारा मनोनीत ईम्मीदिारों के हाथ में सभी ऄवधकार के न्द्रीकृ त करता
है और एक राजनीवतक काययकारी का प्रािधान करता है वजसे न तो वनिायवचत पररषद् का समथयन
प्राप्त होता है, न ही वनणयय िेने के विए ईनकी स्िीकृ वत की अिश्यकता होती है।
िाभ
 महापौरों को ऄवनयवमतताओं के विए जिाबदेह ठहराया जा सकता है क्योंकक ईन्हें सीधे िोगों
िारा वनिायवचत ककया जाएगा।
 यह हमारे नगर पाविकाओं के बेहतर वित्तीय प्रबंधन को भी प्रोत्सावहत करे गा।
 चूंकक संचार और ररपोर्टटग सीधे महापौर िारा की जायेगी आसविए ऄवधक पारदर्चशता िाने में यह
ईपयोगी होगा।
 यह महापौर कायायिय को राजनीवतक रूप से प्रासंवगक बनाने के साथ ही योग्यता, वनष्पादन और
जिाबदेही युि संस्कृ वत के सृजन में भी योगदान करे गा।
3.2. जनगणना नगरों का िै धावनक शहरी स्थानीय वनकायों में पररितय न

(Converting Census Towns to Statutory ULBs)


 शहरी विकास मंिािय ने सभी 28 राज्यों के 3784 जनगणना नगरों को िैधावनक शहरी स्थानीय
वनकायों में पररिर्चतत करने के विए वनदेश कदया है।
3.2.1. िै धावनक शहरी स्थानीय वनकाय (ULBs) क्या हैं ?

 एक िैधावनक शहरी स्थानीय वनकाय एक नगर पाविका, नगर वनगम, छािनी बोडय या ऄवधसूवचत
शहरी क्षेि हो सकता है।
 िषय 2011 की जनगणना के ऄनुसार ऐसे शहरों की संख्या 4041 है जबकक 2001 में यह संख्या
3799 थी।

3.2.2. जनगणना नगर क्या है ?

 एक जनगणना नगर शहरी विशेषताओं से युि एक क्षेि है यथा:


o न्यूनतम 5000 की जनसंख्या होना चावहए।
o गैर कृ वष गवतविवधयों में िगे हुए पुरुष मुख्य कायय-बि का कम से कम 75% वहस्सा हो।
o प्रवतिगय कक.मी. 400 का जनसंख्या घनत्ि होना चावहए।
 िषय 2011 की जनगणना के ऄनुसार, जनगणना शहरों की कु ि संख्या 3,784 थी जबकक 2001 में
यह 1,362 थी।

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3.2.3. पररितय न की अिश्यकता क्यों?

 योजनाबर्द् शहरी विकास को बढ़ािा देने के विए।


 आसके माध्यम से आन क्षेिों के राजस्ि प्रावप्त में िृवर्द् होगी। आसके ऄवतररि अर्चथक गवतविवधयों के
समग्र विकास के माध्यम से नागररकों को बेहतर सेिाएँ प्रदान करने में सहायता वमिेगी।
 14िें वित्त अयोग के कदशा-वनदेशों के ऄनुसार िैधावनक शहरी स्थानीय वनकाय कें द्रीय सहायता
पाने के हकदार हो जाते हैं।
 ऄमृत वमशन के तहत, िैधावनक शहरी स्थानीय वनकायों की संख्या के अधार पर राज्यों के बीच
50% रावश अिंरटत की जाएगी।

3.3. शहरी विकास मं िािय: नए सु धार

 शहरी शासन, योजना तथा प्रबन्धन में सुधार हेतु शहरी विकास मंिािय ने ऄगिे तीन िषों के
विए राज्य एिं शहरी सरकारों के िारा सुधारों को िागू करने एिं सक्षम बनाने हेतु सुधारों के एक
नए सेट को विकवसत ककया है।
3.3.1. सु धार हे तु सु झाये गए प्रमु ख प्रािधान

विश्वास एिं प्रमाणन की ओर बढ़ना


 ितयमान प्रणािी के ऄंतगयत पहिे प्रमाणन की अिश्यकता होती है और तत्पिात् ऄनुमवत दी
जाती है। अिश्यक यह है कक नागररकों में विश्वास स्थावपत ककया जाए तथा ऄनुमवत पहिे दे दी
जाये और प्रमाणन बाद में भी कदया जा सकता है।
 भिन वनमायण के विए ऄनुमवत देने, नगरपाविका के ऄवभिेखों में टाआटि के बदिाि (mutation)

तथा जन्म-मृत्यु पंजीकरण, शहरी सरकार तथा नागररकों के मध्य िृहद् स्तर पर भौवतक संपकय को
शावमि करने के सन्दभय में आस दृवष्टकोण की वसफाररश की गयी है।
भूवम स्ित्िावधकार (िैंड टाआटचिग) कानूनों का वनमायण
 मैकेंजी के ऄनुसार देश में िगभग 90 % भूवम ररकॉडय ऄस्पष्ट हैं। भू-बाजार विकृ वतयां और ऄस्पष्ट

भू-स्ित्िावधकार प्रवतिषय देश की GDP को 1.30 % तक नुकसान पहुँचाते हैं।


 आस कारण अिश्यकता यह है कक एक वनवित समय सीमा में भू-स्ित्िावधकार कानून बनाकर ईन्हें
कक्रयावन्ित ककया जाए।
स्थानीय शहरी वनकायों की क्रेवडट रे टटग और िैल्यू कै पचर फाआनेंचसग
 नगरपाविका क्षेि का कु ि राजस्ि समग्र सकि घरे िू ईत्पाद का के िि 0.75% है जबकक दवक्षण

ऄफ्रीका में 6 %, ब्राज़ीि में 5 % तथा पोिैंड में 4.5 % है।

 आसविए, नगर पाविकाओं को वनजी व्यवियों के विए सृवजत वनवध/मूल्य से कु छ मूल्य पुनप्रायप्त
करने की अिश्यकता है। शहरों की पूज
ं ीगत अिश्यकताओं के खचों की पूर्चत हेतु म्युवनवसपि
बांड्स जारी ककये जा सकते हैं।
ULBs के पेशि
े र रिैये में सुधार होना चावहए

 गोल्डमैन सैच के ऄनुसार, िररष्ठता की ऄपेक्षा मेधा अधाररत नौकरशाही देश की GDP िृवर्द् में

प्रवतिषय िगभग 1 प्रवतशत की िृवर्द् कर सकती है।

 साथ ही योग्य तकनीकी स्टाफ प्रबंधकीय सुपरिाआजर की कमी के कारण ULBs में निाचार रुक
जाता है।

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 शहरी प्रशासन में पेशेिरों को पार्चश्वक (िेटरि) भर्चतयों िारा शावमि ककया जाने को बढ़ािा कदया
जाना चावहए तथा शहरों में शीषय पदों को खुिी प्रवतयोवगता िारा भरा जाना चावहए।
ईपयुि
य कदमों को प्रोत्सावहत करने हेतु प्रयास
 सुधार प्रोत्साहन वनवध (Reform Incentive Fund) को 2017-18 के 500 करोड़ से
कक्रयान्ियन काि के ऄगिे तीन िषों तक प्रवतिषय 3000 करोड़ तक बढ़ाना।
 AMRUT कदशा-वनदेशों के ऄंतगयत सुधार प्रोत्साहन प्रदान करने के विए सुधार की प्रत्येक श्रेणी के
ऄंतगयत प्रदशयन के अधार पर शहरों को रैं ककग प्रदान करना।
 नयी पहिों का अरम्भ जैसे ट्ांवजट ओररएंटेड डेििपमेंट पॉविसी, मेट्ो नीवत, ग्रीन ऄबयन
मोवबविटी स्कीम, वििेवबविटी आं डक्
े स फॉर वसटीज (Livability Index for Cities), िैल्यू कै पचर
पॉविसी और मि-कीचड़ एिं ऄन्य कचरा प्रबंधन नीवत।
3.4. ग्राम ईदय से भारत ईदय ऄवभयान

(Gram Uday to Bharat Uday Abhiyan)


 राज्यों और पंचायतों के सहयोग से के न्द्र सरकार िारा 14 ऄप्रैि से 24 ऄप्रैि तक 2016 में 'ग्राम
ईदय से भारत ईदय ऄवभयान' (गांि स्िशासन ऄवभयान) शुभारं भ करने का फै सिा ककया गया।
“ग्राम ईदय से भारत ईदय ऄवभयान” (ऄथायत् गांिों के ईदय एिं विकास से भारत का ईदय एिं
विकास) डॉक्टर बी. अर. ऄम्बेडकर की जन्मवतवथ 14 ऄप्रैि 2016 से प्रारं भ होकर “राष्ट्रीय
पंचायती राज कदिस” 24 ऄप्रैि 2016 तक देश भर में अयोवजत ककया गया।

3.4.1. ऄवभयान की मु ख्य विशे ष ताएं

 ऄवभयान का ईद्देश्य गांिों में सामावजक सद्भाि बढ़ाने, पंचायती राज को मजबूत बनाने, ग्रामीण
विकास को बढ़ािा देने और ककसानों की प्रगवत हेतु देशव्यापी प्रयास करना है।
 सभी ग्राम पंचायतों में एक 'सामावजक सद्भाि काययक्रम' अयोवजत ककया जाएगा। यह पंचायती
राज मंिािय और सामावजक न्याय एिं ऄवधकाररता मंिािय के संयुि तत्त्िाधान में अयोवजत
होगा।
 आस काययक्रम में ग्रामीण, डॉ. ऄम्बेडकर के प्रवत सम्मान व्यि करें गे और सामावजक सद्भाि को
मजबूत करने के विए प्रवतबर्द्ता व्यि करें गे।
 सामावजक न्याय को बढ़ािा देने िािी विवभन्न सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी प्रदान की
जाएगी।
 'ग्राम ककसान सभाओं' का अयोजन ककया जाएगा, जहां कृ वष योजनाओं के बारे में ककसानों को
जानकारी ईपिब्ध कराइ जाएगी, जैसे फसि बीमा योजना, सामावजक स्िास््य काडय अकद।
 आसके ऄिािा समय समय पर पांचिीं ऄनुसच ू ी िािे क्षेिों के राज्यों के अकदिासी मवहिा ऄध्यक्षों
की एक राष्ट्रीय बैठक अयोवजत ककया जाता है वजसका के न्द्रीय विषयिस्तु पंचायत और अकदिासी
विकास होता है।
3.5. राष्ट्रीय ग्राम स्िराज ऄवभयान

राष्ट्रीय ग्राम स्िराज ऄवभयान पूरे देश में पंचायती राज व्यिस्था को मजबूती प्रदान कर, ईन मुख्य
कवमयों को दूर करे गा जो आसे सफि बनाने से रोकते हैं।
ईद्देश्य :
 पंचायतों और ग्राम सभाओं की क्षमता और प्रभाि बढ़ाना।
 िोकतांविक वनणयय िेने और पंचायतों में जिाबदेही स्थावपत करना तथा जन भागीदारी को
बढ़ािा देना।
 ज्ञान का सृजन एिं पंचायतों की क्षमता वनमायण हेतु संस्थागत संरचना को मजबूत करना।

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 संविधान और PESA ऄवधवनयम की भािना के ऄनुरूप पंचायतों को शवियों एिं वजम्मेदाररयों


के हस्तांतरण को बढ़ािा देना।
 पंचायती व्यिस्था के ऄंतगयत ग्राम सभाओं को जन भागीदारी, पारदर्चशता और जिाबदेही हेतु
अधारभूत मंच (basic forum) के रूप में प्रभािी ढंग से कायय करने हेतु सक्षम बनाना।
 जहां पंचायतें नहीं हैं, ईन क्षेिों में िोकतांविक स्थानीय स्ि-शासन को स्थावपत कर आसे मजबूती
प्रदान करना।
 पंचायतों की स्थापना से संबंवधत संविधान िारा ऄवधदेवशत प्रारूप को मजबूती प्रदान करना।

3.6 ऄमृ त : ऄटि वमशन फॉर रे जु ि ने श न एं ड ऄबय न ट्ां स फॉमे श न

(AMRUT: Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation)


ईद्देश्य ऄपेवक्षत िाभाथी मुख्य विशेषताएँ
 शहरी घरों को बुवनयादी  आसे एक िाख और ईससे  यह जि की अपूर्चत,
सेिाएं (जैस-े जि की ऄवधक की अबादी िािे
सीिेज, पररिहन और बच्चों
अपूर्चत, सीिेज, शहरी 500 शहरों और कस्बों में
के विए विशेष प्रािधान
िागू ककया जाएगा। युि हररत स्थिों के
पररिहन) प्रदान करना
 मुख्य नकदयों के ककनारे विकास जैसी ऄिसंरचना
 शहरों में सुविधाओं का
वस्थत कु छ शहर, कु छ सुविधाओं को सुवनवित
वनमायण करना, जो सभी
राजधानी शहर और करने हेतु एक 'पररयोजना
िोगों के जीिन की
पहाड़ी आिाकों, िीपों और दृवष्टकोण (project
गुणित्ता में सुधार िाने के
साथ ही गरीबों और पययटन क्षेिों में वस्थत कु छ
approach)' ऄपनाता है।
िंवचतों पर विशेष ध्यान महत्िपूणय शहरों को भी

के वन्द्रत करे गी। शावमि ककया गया है।

 गत िषय ककए गए सुधारों


की ईपिवब्ध के अधार पर
राज्यों/कें द्र शावसत प्रदेशों
को प्रोत्साहन के रूप में
बजट का 10 प्रवतशत कदया
जाएगा।
o आसके ऄंतगयत राज्यों को
JNNURM की तुिना में
ऄवधक िचीिापन प्रदान
ककया गया है क्योंकक आस
योजना के तहत प्रस्तुत
राज्य कायय योजना में
के िि कें द्र सरकार के साथ
‘व्यापक सहमवत’ की
अिश्यकता है
o 10 िाख तक की अबादी
िािे शहरों और कस्बों के

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विए कें द्रीय सहायता,

पररयोजना की कु ि िागत

का 50 प्रवतशत होगी। िहीं

10 िाख से उपर की
अबादी िािे शहरों के
विए यह पररयोजना
िागत का एक वतहाइ
होगी।
o स्टेट एनुऄि एक्शन पिान
में बताइ गइ ईपिवब्ध के
अधार पर 20:40:40 के
ऄनुपात में तीन ककस्तों में
कें द्रीय सहायता जारी की
जाएगी।
 ऄमृत वमशन के तहत
50% भारांश ककसी भी
राज्य/के न्द्रशावसत प्रदेश को
ईनके िैधावनक कस्बों की
संख्या के अधार पर कदया
जाता है ताकक ईनमे
वनवधयों का अिंटन हो
सके ।
 कें द्र िारा धन हस्तांतरण के
7 कदनों के भीतर ही राज्य
स्थानीय शहरी वनकायों को
धन का हस्तांतरण कर देंगे
और आस धन का ककसी भी
प्रकार का िीके ज नहीं
होगा।

3.7. स्माटय वसटीज़ वमशन (Smart Cities Mission)

ईद्देश्य ऄपेवक्षत िाभाथी मुख्य विशेषताएँ

 अर्चथक विकास को  शहरी अबादी  योजना में राज्यों को 'वसटी चैिज


ें
गवत प्रदान करने के
कम्पटीशन' हेतु शहरों का नामांकन
विए।
करने के विए कहा जाता है। चयवनत
 वनम्नविवखत हेतु कें द्र
शहरों को 5 िषय के विए प्रत्येक िषय
(साआट) बनाने के विए
o ईत्पादन 100 करोड़ रुपये के वहसाब से कें द्रीय

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o दक्षता वनवधयन प्रदान ककया जाएगा।


o ईपभोग  स्माटय वसटी पिान एक स्पेशि पपयस
 वनिास योग्य सतत व्हीकि (SPV) िारा कायायवन्ित
स्थान (ऄपवशष्ट प्रबंधन ककया जाएगा। आस SPV में राज्यों /
अकद) संघ शावसत प्रदेशों और ULBs की
 क्षेिीय ऄसमानताओं
50:50 की आकक्वटी होगी।
को दूर करने के विए।
 क्षेि अधाररत विकास
 क्षेि अधाररत विकास  प्रदान की गइ बुवनयादी सेिाएं:
में वमवश्रत भूवम
o जि की पयायप्त अपूर्चत,
ईपयोग को बढ़ािा देने
के विए। o वबजिी की सुवनवित अपूर्चत,

 अिास वनमायण और o ठोस ऄपवशष्ट प्रबंधन सवहत


समािेशन। स्िच्छता
o (सैवनटेशन) व्यिस्था
 मॉडि स्माटय शहरों की प्रवतकृ वतता
(Replicability) और स्के िेवबविटी

(Scalability)

 विवशष्ट जरूरतों के ऄनुरूप ढािते

हुए स्थानीयकृ त (localised)

बनाया गया है जैस:े रोजगार,


विवनमायण क्षेि को बढ़ािा देने के
विए DMIC के असपास विकास,

वित्तीय सेिाओं अकद के विए GIFT

वसटी, कोवच्च स्माटय वसटी - अइटी


वसटी।
 सततता : निीकरणीय उजाय, कु शि
और आं टेिीजेंट ट्ांसपोटेशन।
ईदाहरण: ऄहमदाबाद नगरपाविका
और गुजरात सरकार िारा वनर्चमत
जनमागय।
 माझा स्िप्न (Maza Swapna), पुणे
में जन भागीदारी दृवष्टकोण।
 PPP: विशेषज्ञता, प्राआिेट पिेयसय +
दक्षता
 शहरी प्रशासन में सुधार - मल्टी

चैनि नागररक सेिाएं (कॉमन सर्चिस

सेंटर, इ-गिनेंस, एम-गिनेंस अकद),

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एकीकृ त पररसंपवत्त प्रबंधन,

वनयोजन अकद,

o सुभेद्यता में कमी: जििायु पररितयन

कारय िाइ योजनाएं + ऄनुकूिन


रणनीवतयाँ

3.8. स्िच्छ भारत वमशन

ईद्देश्य ऄपेवक्षत िाभकारी मुख्य विशेषताएं

 2019 तक स्िच्छ भारत के  नागररकों के स्िास््य में वमशन के वनम्नविवखत घटक हैं: -
वनमायण के विए बड़े पैमाने सुधार और पयायिरण में  घरे िू शौचाियों का वनमायण,
पर ऄवभयान चिाकर खुिे रोगजनक तत्िों को कम  समुदाय और साियजवनक
में शौच को समाप्त करना। करना।
शौचािय,
 ऄस्िास््यकर शौचाियों  ऄवधक रोजगार मुहय
ै ा
का फ्िश शौचाियों में कराने िािे पययटन को  ठोस ऄपवशष्ट प्रबंधन,

रूपांतरण, हाथ से मैिा बढ़ाना।  सूचना, वशक्षा और संचार


ढोने की प्रथा (मैनुऄि  पयायिरण ऄनुकूि और
तथा जन जागरूकता,
स्के िेंचजग) का ईन्मूिन। पाररवस्थवतकी तंि में
 क्षमता वनमायण और
 नगर वनगम के ठोस कचरे सुधार।
प्रशासवनक और कायायिय
का 100% संग्रहण और
व्यय (A&OE)
िैज्ञावनक
कें द्र सरकार और राज्य सरकार /
प्रसंस्करण/वनपटान, पुन:
शहरी स्थानीय वनकायों के बीच
ईपयोग /पुनचयक्रण।
फं चडग पैटनय है- 75%: 25%
 स्िस्थ स्िच्छता प्रथाओं के
संबंध में िोगों में एक (ईत्तर पूिी और विशेष श्रेणी
व्यिहाररक पररितयन राज्यों के विए 90%: 10%)।
िाना।
ईि घटकों के वित्त पोषण में
 स्िच्छता तथा साियजवनक
ऄंतराि की पूर्चत िाभाथी
स्िास््य पर स्िच्छता के
प्रभािों के बारे में योगदान, वनजी वित्त पोषण,
नागररकों के बीच कॉपोरे ट सामावजक ईतरदावयत्ि
जागरूकता पैदा करना। (CSR) के तहत वनजी कं पवनयों
 वडजाआन, वनष्पादन और से प्राप्त धन और वित्त मंिािय के
व्यिस्था को संचावित स्िच्छ भारत कोष से की जा
करने हेतु शहरी स्थानीय सकती है।
वनकायों को सुदढ़ृ बनाना।
 पूंजी व्यय और संचािन
एिं रखरखाि (O&M) की
िागतों में वनजी क्षेि की
भागीदारी के विए समथय
िातािरण बनाना।

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3.9. वपछड़ा क्षे ि ऄनु दान वनवध

(Backward Region Grant Fund: BRGF)

ईद्देश्य ऄपेवक्षत िाभाथी मुख्य विशेषताएं

 वपछड़े राज्यों में पहिे से जारी  वपछड़े गाँि  आसके तहत योजना को उपर से
विकास काययक्रमों को पूरा करने  पंचायती नीचे की बजाए जमीनी स्तर से
के विए अर्चथक संसाधन मुहय
ै ा राज संस्थान उपर की ओर बढ़ने की पर्द्वत पर
कराकर क्षेिीय ऄसंति
ु न को तैयार ककया ककया गया है।
समापत करना, वजससे  आसके कदशा-वनदेश ग्रामीण क्षेिों में

वनम्नविवखत िक्ष्यों को प्राप्त पंचायतों, शहरी क्षेिों में नगर-


ककया जा सके - पाविका तथा वजिा स्तर पर वजिा
o मौजूदा विकास काययक्रमों और योजना सवमवतयों को योजना बनाने
स्थानीय संरचना के बीच जरटि और काययक्रमों के कक्रयान्ियन हेतु
ऄंतर को समापत करना। के न्द्रीय भूवमका प्रदान करते हैं।
o स्थानीय िोगों की जरूरतों को  पंचायती राज मंिािय िारा ईस
प्रवतवबवम्बत करने के विए योजना के विए नेशनि कै पेवसटी
ईपयुक्त क्षमता वनमायण के साथ
वबचल्डग फ्रेमिकय (NCBF) को
पंचायतों और नगर वनकायों को
ऄपनाया गया है वजस योजना में
सशक्त करना, सहभागी
पंचायती राज संस्थाओं के वनिायवचत
योजनाओं को असान बनाना,
प्रवतवनवधयों तथा ऄवधकाररयों के
वनणयय िेना, कक्रयान्ियन और क्षमता वनमायण के साथ ही साथ
वनगरानी करना। ज़मीनी स्तर पर िोकतंि के
सशविकरण की पररकल्पना की
जाती है।
 2015-16 के बाद वपछड़ा क्षेि
ऄनुदान वनवध को ककसी भी
ऄवतररि कें द्रीय सहयोग से पृथक
कर कदया गया है। BRGF को भी
कें द्र के बजटीय सहायता से पृथक
कर कदया गया है।

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भारतीय संविधान एिं शासन


16. अपातकालीन प्रािधान एिं संविधान का संशोधन

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विषय सूची
1. राष्ट्रीय अपातकाल (ऄनुच्छेद 352) ________________________________________________________________ 4

1.1. राष्ट्रीय अपातकाल की उद्घोषणा के अधार ________________________________________________________ 4

1.2. क्षेत्रीय विस्तार ___________________________________________________________________________ 4

1.3. प्रक्रिया और सुरक्षात्मक ईपाय _________________________________________________________________ 4

1.4. विशेष बहुमत के प्रािधान का महत्ि ____________________________________________________________ 5

1.5. राष्ट्रीय अपातकाल की समावि ________________________________________________________________ 5

1.6. राष्ट्रीय अपातकाल का प्रभाि _________________________________________________________________ 5

1.7. ऄनु. 352 और मूल ऄवधकार _________________________________________________________________ 6

1.8. ऄनुच्छेद 352 और न्यावयक समीक्षा _____________________________________________________________ 6

1.9. ऄनु. 352 के प्रयोग के ईदाहरण ________________________________________________________________ 6

2. राज्य अपातकाल या राष्ट्रपवत शासन (ऄनु. 356 और 365)_______________________________________________ 7

2.1. राष्ट्रपवत शासन का अधार____________________________________________________________________ 7

2.2. राष्ट्रपवत शासन लगाए जाने के वलए कौन से कारण िैध नहीं हैं ? __________________________________________ 7

2.3. प्रक्रिया एिं सुरक्षोपाय ______________________________________________________________________ 8

2.4. राज्य अपातकाल का प्रभाि __________________________________________________________________ 8

2.5. राष्ट्रपवत शासन एिं ऄरुणाचल प्रदेश प्रकरण, 2016 __________________________________________________ 9

2.6. ईतराखंड प्रकरण, 2016 ____________________________________________________________________ 9

2.7. क्रदल्ली प्रकरण, 2014 ______________________________________________________________________ 9

2.8. ऄनु. 356 के संबंध में प्रासंवगक सवमवतयों/अयोगों की टिप्पवणयां एिं वसफाटरशें _____________________________ 10
2.8.1. सरकाटरया अयोग, 1987 ______________________________________________________________ 10
2.8.2. संविधान की काययप्रणाली की समीक्षा के वलए राष्ट्रीय अयोग (2002) _________________________________ 10
2.8.3. पुंछी अयोग, 2008 ___________________________________________________________________ 10
2.8.4. विवध अयोग ________________________________________________________________________ 10

2.9. ऄनु. 356 और न्यावयक समीक्षा _______________________________________________________________ 10


2.9.1. राजस्थान राज्य बनाम भारत संघ िाद, 1977 ________________________________________________ 11
2.9.2. एस. अर. बोम्मइ िाद में वनणयय, 1994 _____________________________________________________ 11

2.10. राष्ट्रीय अपात एिं राष्ट्रपवत शासन का तुलनात्मक ऄध्ययन ___________________________________________ 13

3. वित्तीय अपातकाल (ऄनु. 360) _________________________________________________________________ 13

3.1. वित्तीय अपातकाल की उद्घोषणा के दो अधार हैं : _________________________________________________ 14

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3.2. प्रक्रियाएं एिं सुरक्षा ईपाय __________________________________________________________________ 14

3.3 वित्तीय अपातकाल के प्रभाि ________________________________________________________________ 14

4. संविधान का संशोधन _________________________________________________________________________ 15

4.1. संिैधावनक प्रािधानों के संशोधन की अिश्यकता ___________________________________________________ 15

4.2. संशोधन के प्रकार _________________________________________________________________________ 15


4.2.1. ऄदृश्य या ऄनौपचाटरक प्रक्रिया ___________________________________________________________ 15
4.2.2. दृश्य या औपचाटरक प्रक्रिया______________________________________________________________ 16

4.3. मूल ऄवधकारों का संशोधन __________________________________________________________________ 17


4.3.1. शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ िाद, 1951 __________________________________________________ 17
4.3.2. सज्जन ससह बनाम राजस्थान राज्य िाद, 1965 ________________________________________________ 18
4.3.3. गोलखनाथ बनाम पंजाब राज्य िाद, 1967 __________________________________________________ 18
4.3.4. के शिानंद भारती बनाम के रल राज्य िाद, 1973 _______________________________________________ 18
4.3.5. 42िां संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1976 __________________________________________________ 19
4.3.6. वमनिाय वमल्स िाद, 1980_______________________________________________________________ 19
4.3.7. िामन राि बनाम भारत संघ िाद, 1981 ____________________________________________________ 19

4.4. ईपरोक्त से प्राि वनष्कषय ____________________________________________________________________ 19

4.5. संविधान संशोधन की िमिार प्रक्रिया ___________________________________________________________ 19

4.6. संविधान संशोधन के प्रक्रिया की अलोचना _______________________________________________________ 20

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संविधान के भाग XVIII में ऄनुच्छेद 352 से 360 तक अपातकालीन ईपबंध ईवल्लवखत हैं। देश में
क्रकसी ऄसाधारण पटरवस्थवत से प्रभािी रूप से वनपिने के वलए भारतीय संविधान वनमायताओं द्वारा
संविधान में आन अपातकालीन प्रािधानों को सवम्मवलत क्रकया गया। आस संदभय में, िे भारत शासन
ऄवधवनयम, 1935 और जमयनी के िाआमर गणतंत्र के संविधान के प्रासंवगक प्रािधानों से प्रभावित थे।
भारत के संविधान में वनम्नवलवखत तीन तरह की अपात वस्थवतयों की पटरकल्पना की गइ है:
 राष्ट्रीय अपातकाल,
 राज्य अपातकाल तथा
 वित्तीय अपातकाल।

1. राष्ट्रीय अपातकाल (ऄनु च्छे द 352)


1.1. राष्ट्रीय अपातकाल की उद्घोषणा के अधार

 यक्रद युद्ध, बाह्य अिमण, या सशस्त्र विद्रोह की वस्थवत में भारत या आसके राज्यक्षेत्र के क्रकसी
भूभाग की सुरक्षा संकि में है या ऄथिा युद्ध या बाह्य अिमण अक्रद का संकि सविकि है तो
राष्ट्रपवत ऄनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय अपातकाल की उद्घोषणा जारी कर सकता है। मूल
संविधान में “सशस्त्र विद्रोह” पद का ईल्लेख नहीं था परं तु 44िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम,
1978 के द्वारा “अभ्यंतटरक ऄशांवत” पद को “सशस्त्र विद्रोह” द्वारा प्रवतस्थावपत कर क्रदया गया।
 युद्ध या बाह्य अिमण के अधार पर जारी अपातकाल की उद्घोषणा को ‘बाह्य अपातकाल’ के
रूप में जाना जाता है। िहीं दूसरी ओर, जब ‘सशस्त्र विद्रोह’ के अधार पर अपातकाल की
उद्घोषणा की जाती है तो आसे ‘अंतटरक अपातकाल’ के रूप में जाना जाता है।
 “अभ्यंतटरक ऄशांवत” पद को “सशस्त्र विद्रोह” पद से आसवलए प्रवतस्थावपत क्रकया गया ताक्रक
राजनीवतक लाभ के वलए आसकी गलत व्याख्या न हो सके ।
 यहााँ यह ईल्लेखनीय है क्रक यक्रद असि खतरा सविकि प्रतीत हो तो राष्ट्रपवत राष्ट्रीय अपातकाल
की उद्घोषणा, युद्ध या बाह्य अिमण की िास्तविक घिना से पहले भी कर सकता है। यह
प्रािधान पटरवस्थवतजन्य है, काययपावलका को यह प्रािधान असि संकि से वनपिने के वलए प्रदान
क्रकया गया है।
 राष्ट्रपवत युद्ध, बाह्य अिमण, सशस्त्र विद्रोह, या ईसके असि खतरे के अधार पर विवभि
उद्घोषणाएं कर सकता है, चाहे ऐसी उद्घोषणा पहले से ही क्यों न जारी हो। यह प्रािधान 38िें
संविधान संशोधन, 1975 द्वारा जोड़ा गया।

1.2. क्षे त्रीय विस्तार

 राष्ट्रीय अपातकाल की उद्घोषणा पूरे देश या आसके क्रकसी खास वहस्से के वलए भी लागू की जा
सकती है। 42िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1976 के द्वारा राष्ट्रपवत को राष्ट्रीय अपातकाल के
दायरे को सीवमत करने के वलए सक्षम बनाया गया।
1.3. प्रक्रिया और सु र क्षात्मक ईपाय

 राष्ट्रपवत मंवत्रमंडल की वलवखत वसफाटरश के अधार पर ही राष्ट्रीय अपातकाल की उद्घोषणा कर


सकता है। आसका तात्पयय यह है क्रक अपातकाल की उद्घोषणा के िल मंवत्रमंडल की वलवखत
सहमवत के अधार पर ही की जा सकती है न क्रक के िल प्रधानमंत्री की सलाह पर। 44िें संविधान
संशोधन ऄवधवनयम के द्वारा आस सुरक्षात्मक ईपाय को जोड़ा गया ताक्रक प्रधानमंत्री के ऄके ले
वनणयय (1975 के अपातकाल के दौरान) लेने की संभािना को समाि क्रकया जा सके ।

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 राष्ट्रीय अपातकाल की उद्घोषणा को आसके जारी करने की वतवथ से एक माह के भीतर संसद के
दोनों सदनों के द्वारा विशेष बहुमत से ऄनुमोक्रदत (पुवि) ऄिश्य क्रकया जाना चावहए। मूल रूप से ,
संसद द्वारा ऄनुमोदन की ऄिवध दो माह तय की गयी थी लेक्रकन 44 िें संशोधन ऄवधवनयम द्वारा
आसे कम कर क्रदया गया। हालााँक्रक यक्रद अपातकाल की उद्घोषणा ऐसे समय में होती है, जब
लोकसभा का विघिन हो गया है ऄथिा लोकसभा का विघिन एक माह की ऄिवध में वबना
उद्घोषणा के ऄनुमोदन के हो गया हो, तब उद्घोषणा लोकसभा के पुनगयठन के बाद पहली बैठक
से 30 क्रदनों तक जारी रहेगी, बशते आस बीच राज्यसभा द्वारा आसका ऄनुमोदन कर क्रदया गया हो।
 यक्रद राष्ट्रीय अपातकाल की उद्घोषणा के समय लोकसभा विघटित हो तो लोकसभा के पुनगयठन के
बाद आसे पहली बैठक से 30 क्रदनों के भीतर ऄिश्य ऄनुमोक्रदत क्रकया जाना चावहए, बशते आस
बीच राज्यसभा द्वारा आसे मंजरू ी दे दी गइ हो।
 संसद के दोनों सदनों से ऄनुमोदन के पश्चात्, अपातकाल छह माह तक जारी रहता है तथा प्रत्येक
छह माह में संसद के ऄनुमोदन से ऄवनवश्चत ऄिवध (प्रत्येक बार छह-छह माह के रूप में) के वलए
आसे बढ़ाया जा सकता है। प्रत्येक छह माह के पश्चात् संसदीय ऄनुमोदन की प्रक्रिया हेतु यह ईपबंध
भी 44िें संशोधन ऄवधवनयम, 1978 द्वारा जोड़ा गया। ऐसे सभी प्रस्तािों को विशेष बहुमत से
पाटरत क्रकया जाना अिश्यक हैं। वजसका अशय सदन की कु ल सदस्य संख्या के बहुमत और ईस
सदन में ईपवस्थत और मतदान करने िाले सदस्यों के कम से कम दो-वतहाइ सदस्यों के बहुमत से
है। (आस विशेष बहुमत का प्रािधान 44िें संशोधन ऄवधवनयम, 1978 द्वारा सवम्मवलत क्रकया
गया)।

1.4. विशे ष बहुमत के प्रािधान का महत्ि

 अपातकाल के दौरान राजनीवत कें द्र सरकार के पक्ष में हो जाती है, वजसके कारण कें द्र संविधान
संशोधन की शवक्त प्राि कर लेता है। ऄतः शवक्त संतल
ु न को बनाए रखने के वलए विशेष बहुमत की
व्यिस्था का प्रािधान क्रकया गया है।

1.5. राष्ट्रीय अपातकाल की समावि

 अपातकाल की उद्घोषणा को क्रकसी भी समय राष्ट्रपवत द्वारा दूसरी उद्घोषणा जारी कर िापस
वलया जा सकता है। ऐसी उद्घोषणा हेतु संसदीय ऄनुमोदन की अिश्यकता नहीं होती है।
 आसके ऄवतटरक्त अपातकाल की समावि के वलए लोकसभा को काययिाही प्रारम्भ करने की शवक्त
प्राि है। लोकसभा आस सन्दभय में एक वलवखत नोटिस जारी कर सकती है वजसमें आसे समाि करने
का संकल्प हो। आसमें कु ल सदस्य संख्या के दसिें भाग का हस्ताक्षर होना अिश्यक है। यह संकल्प
लोकसभा ऄध्यक्ष (ऄथिा राष्ट्रपवत को यक्रद सदन नहीं चल रहा हो) को संबोवधत होना चावहए।
ऐसे नोटिस के जारी होने के 14 क्रदनों के भीतर एक विशेष बैठक में उद्घोषणा के जारी रहने के
प्रस्ताि को ऄस्िीकार करने के वलए सदन की विशेष विचार विमशय बैठक बुलाइ जायेगी।
अपातकाल की समावि के वलए आस प्रस्ताि को सामान्य बहुमत से पाटरत क्रकया जाता है। आसके
ऄवतटरक्त मंवत्रपटरषद् के सलाह पर राष्ट्रपवत द्वारा आसे समाि क्रकया जा सकता है।

1.6. राष्ट्रीय अपातकाल का प्रभाि

 राष्ट्रीय अपातकाल की उद्घोषणा से देश की संिैधावनक व्यिस्था में कइ पटरितयन होते हैं। ऐसी
उद्घोषणा का तत्काल प्रभाि यह होता है क्रक देश का संघीय ढांचा प्रशासन के एकात्मक स्िरुप में
बदल जाता है। संसद के क़ानून वनमायण की शवक्त राज्य सूची के विषयों तक बढ़ जाती है। हालााँक्रक,
राज्य विधानसभाएं तब भी मौजूद रहती हैं।
 राष्ट्रपवत कु छ ऄसाधारण शवक्तयां प्राि कर लेता है। िह क्रकसी भी राज्य को काययकारी शवक्तयों से
संबंवधत मामलों में वनदेश या सलाह दे सकते हैं।

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 राष्ट्रपवत को यह शवक्त होती है क्रक िह संघ और राज्यों के बीच राजस्ि के वितरण से संबंवधत
संविधान के ईपबंधों को पटरिर्ततत और रूपांतटरत कर दे। यह ईपांतरण ईस वित्तीय िषय के ऄंत
तक चालू रहेगा वजसमें उद्घोषणा िापस ली जाती है। ऐसे प्रत्येक अदेश से संसद के प्रत्येक सदन
को संसूवचत क्रकया जाएगा।
 संसद की ऄिवध को एक बार में एक िषय के वलए बढ़ाया जा सकता है।
 कु छ मूल ऄवधकारों को वनलंवबत क्रकया जा सकता है। (विस्तृत चचाय नीचे की गइ है)
1.7. ऄनु . 352 और मू ल ऄवधकार

 ऄनु. 352 के तहत अपातकाल की उद्घोषणा के पश्चात् ऄनु.19 द्वारा प्राि मूल ऄवधकार स्ितः
वनलंवबत हो जाते हैं (ऄनु. 358)। आसका तात्पयय यह है क्रक यक्रद विधावयका या काययपावलका ऄनु.
19 द्वारा प्रदत्त ऄवधकारों से ऄसंगत कोइ कायय करती है तो नागटरक को न्यायालय से कानूनी
सहायता (ऄनु. 32 और 226 के तहत प्रदत्त प्रदत ऄवधकार) प्राि नहीं हो सकती है। यह
अपातकाल के दौरान एिं ईसके पश्चात् की ऄिवध (यक्रद िह अपातकाल के दौरान घटित हुअ हो)
के वलए भी लागू है। ऄनुच्छेद 358 तभी प्रितयन में अता है जब अपात की उद्घोषणा युद्ध या
बाह्य अिमण के अधार पर की गइ हो। सशस्त्र विद्रोह के कारण अपातकाल लागू है, तो ऄनु.
358 लागू नहीं होता है।
 ऄन्य मौवलक ऄवधकारों के वनलंबन हेतु ऄनु. 359 के तहत ऄलग से अदेश जारी क्रकए जा सकते हैं
तथा ऐसे प्रत्येक अदेश को संसद के समक्ष रखा जाना अिश्यक है और ये ऄनु. 358 की तरह
सम्पूणय अपातकाल के दौरान लागू नहीं भी हो सकते हैं। आसकी ऄिवध राष्ट्रपवत द्वारा क्रदए गए
अदेश पर वनभयर करती है।
 ऄनुच्छेद 359 के द्वारा ऄनुच्छेद 20 और 21 के तहत प्रदत्त मौवलक ऄवधकारों का वनलंबन नहीं
क्रकया जा सकता है।
1.8. ऄनु च्छे द 352 और न्यावयक समीक्षा

 38िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1975 के द्वारा राष्ट्रीय अपातकाल की उद्घोषणा को न्यावयक
समीक्षा के दायरे से बाहर कर क्रदया गया था, क्रकन्तु आस प्रािधान को 44िें संविधान संशोधन
ऄवधवनयम, 1978 के द्वारा समाि कर क्रदया गया। वमनिाय वमल्स िाद, 1980 में ईच्चतम
न्यायालय ने कहा क्रक राष्ट्रीय अपातकाल की उद्घोषणा के दुभायिनापूणय होने या ऐसी उद्घोषणा
के पूणयतः ऄसंगत और ऄप्रासंवगक तथ्यों पर अधाटरत होने के कारण न्यायालय में चुनौती दी जा
सकती है।
1.9. ऄनु . 352 के प्रयोग के ईदाहरण

 ऄनु. 352 के तहत राष्ट्रीय अपातकाल की उद्घोषणा तीन बार की जा चुकी है। सियप्रथम ऄक्िू बर
1962 में चीनी अिमण के समय अपातकाल लागू हुअ और यह 10 जनिरी 1968 तक जारी
रहा।
 दूसरी बार आसकी उद्घोषणा भारत-पाक युद्ध के समय क्रदसंबर, 1971 में की गयी थी और यह 21
माचय 1977 तक प्रभािी रहा।
 जब दूसरी उद्घोषणा जारी थी तब ईसी दौरान तीसरी उद्घोषणा भी जून 1975 में राष्ट्रपवत के
द्वारा अंतटरक राजनीवतक संकि (ईपद्रि) के अधार पर जारी की गइ, जो 21 माचय 1977 तक
जारी रहा।
 1977 के बाद, ऐसे राष्ट्रीय अपातकाल की उद्घोषणा नहीं की गइ है और 44 िे संविधान संशोधन
के द्वारा ऐसे सभी प्रािधानों को समाि कर क्रदया गया जो आसके ऄनुवचत आस्तेमाल की संभािना
को बढाते हों।

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2. राज्य अपातकाल या राष्ट्रपवत शासन (ऄनु . 356 और


365)
 संविधान सभा में सिायवधक बहस ऄनु. 356 पर हुइ थी। डॉ. ऄंबेडकर के शब्दों में, आस ऄनुच्छेद
का कभी प्रयोग नहीं क्रकया जाएगा और यह एक मृत पत्र (dead letter) की भांवत होंगे। क्रकन्तु
यह अशा संविधान की कायय प्रणाली के प्रारम्भ होने के कु छ िषों के भीतर ही समाि हो गयी।
 ईल्लेखनीय है क्रक ऄब तक ऄनु. 356 का प्रयोग 120 से ऄवधक बार क्रकया जा चुका है। सरकाटरया
अयोग की एक टरपोिय के ऄनुसार (वजसमें जून 1951 से मइ 1987 तक लगाए गए राष्ट्रपवत
शासन के 75 मामलों का विश्लेषण क्रकया गया) 75 में से 52 मामलों में ऄनु. 356 के आस्तेमाल की
कोइ अिश्यकता नहीं थी। संविधान के ऄनु. 356 के समान क्रकसी ऄन्य ऄनुच्छेद का आससे ऄवधक
दुरुपयोग नहीं हुअ है।

2.1. राष्ट्रपवत शासन का अधार

 राष्ट्रपवत शासन को ‘राज्य अपातकाल’ या ‘संिैधावनक अपातकाल’ के नाम से भी जाना जाता है।
 यक्रद राष्ट्रपवत अश्वस्त है क्रक ऐसी वस्थवत ईत्पि हो गइ है, वजसमें राज्य की सरकार संिैधावनक
प्रािधानों के तहत राज्य प्रशासन को संचावलत नहीं कर रही है ऄथिा नहीं कर सकती है तो ऄनु.
356 के तहत िह राज्यपाल द्वारा भेजी गयी टरपोिय के अधार पर राष्ट्रपवत शासन लागू करने की
उद्घोषणा जारी कर सकता है ।
 सरकाटरया अयोग के द्वारा आस तरह के अपातकाल की वस्थवत के वलए वनम्नवलवखत कारकों का
ईल्लेख क्रकया गया है:
o कानून और व्यिस्था की ऄसफलता।
o राज्य में दल-बदल के कारण राजनीवतक ऄवस्थरता।
o बहुमत में जनता का विश्वास कम होना।
o राज्य सरकार द्वारा क्रकया गया ऄत्यवधक भ्रिाचार।
o जब बहुमत प्राि दल सरकार बनाने से आंकार कर दे और राज्यपाल के समक्ष विधानसभा में
स्पि बहुमत प्राि दल/गठबंधन न हो।
o राष्ट्रीय एकता के वलए खतरा या राज्य के वलए खतरा ऄथिा राष्ट्रीय विघिन के वलए ईकसाने
या ईसमें सहायक की भूवमका होने की वस्थवत में।
o यक्रद राज्य सरकार कें द्र के काययकारी वनदेशों को मानने से आनकार कर दे।
 ऄनु. 355 को ऄनु. 356 का ऄग्रदूत कहा जाता है। ऄनु. 355 के तहत संघ का यह कतयव्य होगा क्रक
िह यह सुवनवश्चत करे क्रक प्रत्येक राज्य की सरकार संिैधावनक प्रािधानों के ऄनुसार चलाइ जा
रही है।

2.2. राष्ट्रपवत शासन लगाए जाने के वलए कौन से कारण िै ध नहीं हैं ?

 जब मंवत्रपटरषद् त्यागपत्र दे दे या सदन में ऄपना बहुमत खो दे और राज्यपाल, वबना आस बात की


जांच क्रकए क्रक राज्य में नए वसरे से चुनाि करिाने की अिश्यकता है या नहीं, राष्ट्रपवत शासन
लगाने की वसफाटरश कर दे।
 जब ऄनु. 356 का प्रयोग, ईवचत तरीके से गटठत मंत्रालय को प्रवतस्थावपत करने तथा राज्य
विधानसभा को विघटित क्रकए जाने के अशय से, आस अधार पर क्रकया जाए क्रक सत्तारूढ़ दल को
(वपछली) लोकसभा चुनाि में ऐसे राज्य/राज्यों में भारी हार का सामना करना पड़ा है (जैसाक्रक
1977 में हुअ था)।

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 आस शवक्त का प्रयोग सत्तारूढ़ दल की अंतटरक मत-वभिता या दल के भीतर की समस्याओं को


सुलझाने के वलए संिैधावनक नहीं होगा।
 राज्य में वित्तीय संकि के अधार पर आस शवक्त के प्रयोग को िैध नहीं ठहराया जा सकता है।
 यक्रद राष्ट्रपवत राज्य सरकार को ऄपनी गलती सुधारने के वलए कोइ पूिय चेतािनी न दे तो ऄनु.
356 के तहत आस शवक्त का प्रयोग ऄनुवचत है।

2.3. प्रक्रिया एिं सु र क्षोपाय

 राष्ट्रपवत शासन की उद्घोषणा को 2 महीने के भीतर संसद के दोनों सदनों द्वारा साधारण बहुमत
से ऄनुमोक्रदत क्रकया जाना चावहए। यक्रद 2 महीने तक ऄनुमोदन प्राि नहीं होता है तो यह स्ितः
समाि हो जाएगा। ऄनुमोदन के पश्चात् यह 6 महीने के वलए जारी रहता है। दोनों सदनों द्वारा
पुनः स्िीकृ वत प्राि होने के पश्चात् आसे 6 महीने के वलए और बढ़ाया जा सकता है, क्रकन्तु क्रकसी भी
दशा में यह 3 िषय से ऄवधक प्रिृत नहीं रह सकता। ईल्लेखनीय है क्रक 1 िषय से ऄवधक ऄिवध तक
ऐसी उद्घोषणा को प्रिृत रखने के वलए कोइ संकल्प संसद के क्रकसी सदन द्वारा तभी पाटरत क्रकया
जाएगा जब:
o संपूणय भारत में ऄथिा ईसके राज्यक्षेत्र के क्रकसी भूभाग में ऄनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय
अपातकाल की उद्घोषणा की गयी हो तथा
o वनिायचन अयोग यह प्रमावणत कर दे क्रक राज्य में अम चुनाि का संचालन करना संभि नहीं
हो सकता।
 यहां तक क्रक यक्रद ईपरोक्त वस्थवत बन रही हो, तब भी राष्ट्रपवत शासन को 3 िषय से ऄवधक नहीं
बढ़ाया जा सकता है।
 ऄनु. 356 में ऐसा कोइ प्रािधान नहीं है (जैसाक्रक ऄनु. 352 में है) जो क्रक लोकसभा को आस तरह
की ईद्घोषणा को ऄवनवश्चत काल तक जारी रखने के वलए संकल्प पाटरत करने हेतु सक्षम बनाता
हो।
2.4. राज्य अपातकाल का प्रभाि

 जब क्रकसी राज्य में राष्ट्रपवत शासन लगाया जाता है, तो राष्ट्रपवत राज्य मंत्रीपटरषद् को विघटित
कर देता है (हालााँक्रक आस संदभय में राष्ट्रपवत की शवक्तयां ईच्च न्यायालय की शवक्तयों को प्रभावित
नहीं कर सकते हैं)। राष्ट्रपवत के नाम पर राज्य का राज्यपाल राज्य के मुख्य सवचि या राष्ट्रपवत
द्वारा वनयुक्त विशेष सलाहकार की सहायता से राज्य प्रशासन को संभालता है।
 राज्य विधानसभा को भंग या वनलंवबत करने की प्रक्रिया ितयमान पटरवस्थवतयों पर वनभयर करती
है।
 आस प्रकार की घोषणा की जा सकती है, क्रक राज्य विधानसभा की शवक्तयों का प्रयोग संसद द्वारा
ऄथिा ईसके प्रावधकार के ऄधीन प्रयोक्तव्य होंगी। ऄनु. 357 के ऄनुसार, संसद राज्य की विधायी
शवक्तयों के प्रयोग की शवक्त राष्ट्रपवत को या क्रकसी ऄन्य प्रावधकारी को वजसे राष्ट्रपवत आस वनवमत्त
विवनर्ददि करे , प्रत्यायोवजत करने हेतु प्रावधकृ त है।
 संसद, राज्य की संवचत वनवध से व्यय की मंजूरी हेतु राष्ट्रपवत को प्रावधकृ त कर सकता है।
 आसके ऄलािा, राष्ट्रपवत राज्य विधानसभा को वनलंवबत या भंग कर सकता है। आस पटरवस्थवत में
राज्य विधावयका की शवक्तयों का प्रयोग राष्ट्रपवत द्वारा क्रकया जाता है। संसद आन शवक्तयों को भी
राष्ट्रपवत को सौंप सकता है।
 ऄनुच्छेद 356 के तहत जारी अपातकाल के दौरान संविधान में प्रदत्त मौवलक ऄवधकारों के प्रितयन
पर कोइ प्रभाि नहीं होता।
 क्रकसी राज्य में अभ्यंतटरक ऄशांवत की वस्थवत में ऄनु. 356(1) के तहत, आस तरह की कारय िाइ को
ऄनािश्यक या वनरथयक माना जाता है। ऐसी वस्थवत में कें द्र सरकार को शांवत बहाली हेतु स्िप्रेरणा
के अधार पर सैन्य बलों को तैनात करने की शवक्त प्राि है।

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2.5. राष्ट्रपवत शासन एिं ऄरुणाचल प्रदे श प्रकरण, 2016

 ऄरुणाचल प्रदेश में 16 जनिरी 2016 को ‘संिैधावनक संकि’ के अधार पर राष्ट्रपवत शासन की
वसफाटरश को स्िीकृ वत प्रदान की गयी।
ऄरुणाचल प्रदेश घिनािम और राज्य में राजनीवतक संकि की शुरुअत:
 9 क्रदसम्बर 2015 को राज्यपाल जे . पी.राजखोिा ने विधानसभा ऄध्यक्ष की ईपे क्षा करते
हुए एिं राज्य विधानसभा के सत्र की वतवथयों को अगे बढ़ा क्रदया। आससे तत्कालीन
मु ख्यमं त्री (नबाम िु की) एिं ईनके मध्य विरोध प्रारम्भ हो गया।
 16 क्रदसम्बर 2015 को कांग्रस
े के 21 बागी विधायकों द्वारा भाजपा के 11 एिं 2 वनदयलीय
विधायकों के साथ वमलकर क्रकसी ऄस्थायी स्थान पर विधानसभा का सत्र अयोवजत क्रकया गया।
आस सत्र में विधानसभा ऄध्यक्ष नबाम रे वबया पर महावभयोग चलाया गया। आन विधायकों में से
14 को ऄध्यक्ष द्वारा एक क्रदन पूिय ही ऄयोग्य घोवषत क्रकया गया था। ऄध्यक्ष ने आस सत्र को भी
ऄसंिैधावनक घोवषत क्रकया।
 हालााँक्रक राज्य की कांग्रेस सरकार ने कें द्र के आस कदम के विरुद्ध सिोच्च न्यायालय में ऄपील दायर
करते हुए आसे लोकतंत्र की हत्या के रूप में िर्तणत क्रकया।
 सुप्रीम कोिय ने ऄरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार को पुनबयहाल करते हुए राज्यपाल के द्वारा
पूिय में वलए गए सभी वनणययों को "ऄसंिैधावनक" घोवषत कर क्रदया।

2.6. ईतराखं ड प्रकरण, 2016

ईत्तराखंड में राजनीवतक संकि का अरम्भ 18 माचय 2016 को हुअ जब कांग्रेस के 9 विधायक पािी से
ऄलग होकर विपक्ष से वमल गये और राज्यपाल से भेंि कर ईत्तराखंड सरकार को बखायस्त करने की मांग
की।
 यद्यवप राज्यपाल ने विधान सभा में शवक्त परीक्षण के वलए 28 माचय की समय सीमा तय की थी,
क्रकन्तु ईसके एक क्रदन पूिय ही राज्य में “संिैधावनक संकि” का हिाला देते हुए राष्ट्रपवत शासन लागू
कर क्रदया गया।
 ऄनुच्छेद 356 के ऄनुसार, क्रकसी राज्य में राष्ट्रपवत शासन तभी लागू क्रकया जा सकता है जब ऐसी
वस्थवत ईत्पि हो गइ हो वजसमें राज्य की सरकार को संविधान के प्रािधानों के ऄनुरूप चलाना
संभि न हो।
 ईत्तराखंड के मामले में, 18 माचय को विवनयोग विधेयक विधान सभा में प्रस्तुत क्रकया गया। 71
सदस्यों की विधान सभा में 67 सदस्य ईपवस्थत थे। 35 ने विवनयोग विधेयक के विरोध में मतदान
क्रकया तथा मत विभाजन की मांग की। यद्यवप मत विभाजन न क्रकए जाने के बािज़ूद यह दािा
क्रकया गया क्रक विवनयोग विधेयक ध्िवन मत से पाटरत कर क्रदया गया, तथा विधेयक को राज्यपाल
की सहमवत के वलए प्रस्तुत नहीं क्रकया गया। आसके वनम्नवलवखत वनवहताथय हैं:
o 1 ऄप्रैल, 2016 से खचय की ऄनुमवत देने िाला विवनयोग विधेयक स्िीकृ त नहीं क्रकया गया।
o वद्वतीय, विवनयोग विधेयक के पाटरत न होने की वस्थवत में 18 माचय, 2016 से सरकार का सत्ता में
बने रहना ऄसंिैधावनक है।
o आस कारण बागी विधायक तथा विपक्ष के लोग राज्यपाल से वमलकर सरकार के बखायस्तगी की
मांग करने लगे, वजस कारण राज्यपाल ने सदन को वनलंवबत घोवषत कर क्रदया तथा मुख्यमंत्री को
सदन में बहुमत वसद्ध करने के वलए 28 माचय तक की समय-सीमा प्रदान की।

2.7. क्रदल्ली प्रकरण, 2014

 फरिरी 2014 में, क्रदल्ली में मुख्यमंत्री ऄरसिद के जरीिाल द्वारा आस्तीफा क्रदए जाने के पश्चात्
राष्ट्रपवत शासन लागू कर क्रदया गया था। ऐसे समय में विधानसभा को वनलंवबत रखा गया एिं आस
घोषणा का ऄनुमोदन संसद के बजि सत्र में क्रकया गया था। विधान सभा को ईस समय तक भंग
नहीं क्रकया गया था।

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2.8. ऄनु . 356 के सं बं ध में प्रासं वगक सवमवतयों/अयोगों की टिप्पवणयां एिं वसफाटरशें

2.8.1. सरकाटरया अयोग, 1987

 ऄनु. 356 का आस्तेमाल बहुत ही संयम के साथ के िल ऄंवतम ईपाय के रूप में क्रकया जाना चावहए।
 अयोग ने यह भी वसफाटरश की है, क्रक ऄनु. 356 के तहत राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपवत शासन लगाए
जाने के वलए प्रासंवगक तथ्यों और वििरणों के साथ एक टरपोिय संलग्न क्रकया जाना चावहए।
 संसद द्वारा उद्घोषणा के ऄनुमोदन के पूिय विधानसभा को भंग नहीं क्रकया जाना चावहए।

2.8.2. सं विधान की कायय प्र णाली की समीक्षा के वलए राष्ट्रीय अयोग (2002)

 जब राज्य सरकार संविधान के ऄनुसार कायय नहीं कर रही हो, तो ऐसे विवशि मामलों में
विपथगामी राज्य को चेतािनी जारी की जानी चावहए। ऄनु. 356 के ऄधीन कारिाइ करने से
पहले राज्य द्वारा प्राि वििरणों को भी ध्यान में रखा जाना चावहए।
 राज्य विधानसभा को राज्यपाल या राष्ट्रपवत द्वारा तब तक भंग नहीं क्रकया जाना चावहए जब तक
ऄनु. 356 के तहत संसद द्वारा राष्ट्रपवत शासन लगाए जाने का ऄनुमोदन न कर क्रदया जाए। ऄनु.
356 में आसे सुवनवश्चत करने हेतु संशोधन क्रकया जाना चावहए।
 राज्यपाल के टरपोिय, वजसके अधार पर ऄनु. 356 (1) के तहत राष्ट्रपवत शासन की उद्घोषणा की
जाती है, को पूणय रूप में मीवडया को िाद-वििाद हेतु दी जानी चावहए।
 संसद को उद्घोषणा की वनरन्तरता के समीक्षा हेतु सक्षम बनाने के वलए ऄनुच्छेद 352 के
तदनुरूपी रक्षोपाय को ऄनुच्छेद 356 में शावमल क्रकया जाना चावहए।

2.8.3. पुं छी अयोग, 2008

 आस अयोग ने स्थानीयकृ त अपातकाल की बात कही। अयोग ने यह वसफाटरश की क्रक अपातकाल


की उद्घोषणा पूरे राज्य के बजाय के िल एक वजले या वजले के क्रकसी विशेष वहस्से में लगायी जाए;
आस तरह के अपातकाल की ऄिवध तीन 3 माह से ऄवधक नहीं होनी चावहए।
 यह भी वसफाटरश की गइ क्रक ईच्चतम न्यायालय के एस. अर. बोम्मइ मामले, (1994) में प्रदत्त
क्रदशावनदेशों के तहत ऄनु. 356 में ईपयुक्त संशोधन लागू क्रकया जाए।

2.8.4. विवध अयोग

 ऄनु. 356 की तुलना में, ऄनु. 355 के प्रयोग से वस्थवत को और बेहतर तरीके से वनयंवत्रत जा
सकता है। अयोग के ऄनुसार, ऄनु. 355 के आस्तेमाल के वलए शायद ही कभी प्रयास क्रकया गया।

2.9. ऄनु . 356 और न्यावयक समीक्षा

ऄनुच्छेद 356 के तहत न्यावयक समीक्षा का प्रश्न न्यायालय के समक्ष कइ पटरवस्थवतयों में ईत्पि हुअ।
आस तरह, का पहला मामला के रल ईच्च न्यायालय में के . के . अबो बनाम भारत संघ िाद में अया। आस
मामले में न्यायालय ने ऄनुच्छेद 356 के तहत, उद्घोषणा की संिैधावनकता को जांचने से आंकार कर
क्रदया। आस तरह के मामले की विस्तृत चचाय 1974 में हुइ, जब ऄनुच्छेद 356 के तहत उद्घोषणा की
न्यावयक समीक्षा को प्रवतबंवधत करते हुए यह कहा गया क्रक राष्ट्रपवत की संतुवि सामान्यतया एक
राजनीवतक मुद्दा है एिं न्यायालय क्रकसी अंतटरक राजनीवतक प्रश्न में नहीं ईलझना चाहता। आस प्रकार,
न्यायालय दीघयकाल तक कें द्र सरकार की कारय िाइ का समथयन करता रहा। रोचक तथ्य यह है क्रक ऄन्य
कोइ भी पक्ष ईच्चतम न्यायालय के समक्ष आस मुद्दे पर विचार के वलए नहीं अया।

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राष्ट्रपवत शासन की उद्घोषणा का वसद्धांत न्यावयक समीक्षा के ऄधीन नहीं है। आस वसद्धांत को सियप्रथम
राजस्थान राज्य बनाम भारत संघ िाद में स्थावपत क्रकया गया और एस. अर. बोम्मइ बनाम भारत
संघ िाद में आसका विस्तार क्रकया गया।

2.9.1. राजस्थान राज्य बनाम भारत सं घ िाद, 1977

 न्यायालय सीवमत अधार पर न्यावयक समीक्षा कर सकता है।


 दुभायिनापूणय या ऄप्रासंवगक अधार बताए जाने के मामले में राष्ट्रपवत के कृ त्यों को ईन्मुवक्त नहीं
प्रदान की जा सकती है।
राजस्थान राज्य िाद में, ऄनु. 356 के खंड (5) को 38िें संविधान संशोधन द्वारा संविधान में जोड़ा

गया था, वजसके ऄनुसार राष्ट्रपवत का वनणयय ऄंवतम और वनणाययक माना गया था और ईसके वनणयय को

क्रकसी भी अधार पर क्रकसी भी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं क्रकया जा सकता था। 44िें संविधान संशोधन

ऄवधवनयम, 1978 द्वारा खंड (5) को हिा क्रदया गया।

2.9.2. एस. अर. बोम्मइ िाद में वनणय य , 1994

 ईच्चतम न्यायालय के ऄनुसार ऄनु. 74 (2) {वजसके ऄनुसार, मंत्रीपटरषद् द्वारा दी गइ सलाह की

न्यायपावलका द्वारा जांच नहीं की जा सकती है} राष्ट्रपवत की संतुवि के अधारों एिं तथ्यों की जांच

पर वनबयन्धन नहीं लगाता है।


 ऄनु. 356 के तहत उद्घोषणा को न्यावयक समीक्षा से ईन्मुवक्त प्राि नहीं है। यह ज्ञात होने पर क्रक

राष्ट्रपवत शासन की उद्घोषणा दुभायिनापूणय है या ऄप्रासंवगक ऄथिा ऄसंगत तथ्यों पर अधाटरत

है, तब ईच्चतम न्यायालय या ईच्च न्यायालय को आस उद्घोषणा को वनरस्त करने की शवक्त है।

 ऄनु. 356 द्वारा राष्ट्रपवत को प्रदत्त शवक्तयां, विवशि शवक्तयां हैं। हालांक्रक यह कोइ परम शवक्त नहीं

है। यह भी कहा गया है क्रक ऄनु. 356 (3), राष्ट्रपवत की आस शवक्त को सीवमत करता है वजसके

ऄनुसार राज्य अपातकाल लागू करने हेतु संसद की ऄनुमवत ऄवनिायय है। आसका तात्पयय यह है क्रक
राष्ट्रपवत, संसद द्वारा मंजरू ी प्राि नहीं होने तक विधानसभा को भंग नहीं कर सकता है।

 यह भी कहा गया है जहां तक संभि हो कें द्र को ईस राज्य को एक पूिय चेतािनी नोटिस जारी
करना चावहए।
 उद्घोषणा जारी होने के पश्चात् सरकार विघटित हो जाती है। ऐसा कोइ प्रािधान ईपलब्ध नहीं है

क्रक राष्ट्रपवत राज्य सरकार की शवक्तयों में से कु छ कायय और शवक्तयों को ऄपने हाथों में ले ले। एक
स्थान पर दो सरकारें नहीं हो सकती हैं।
 धमयवनरपेक्षता संविधान की ‘मूल विशेषता’ है और ऄनु. 356 के तहत आसका ईल्लंघन करने पर

राज्य सरकार ईसके वनलंबन हेतु स्ियं ईत्तरदायी है ऄथायत् राज्य सरकार पर काययिाही की जा
सकती है।
 न्यायालय ने यह भी ऄवभवनधायटरत क्रकया क्रक उद्घोषणा के अधार के दुभायिनापूणय एिं ऄसंगत
वसद्ध होने पर विघटित या वनलंवबत सरकार को पुन:बहाल क्रकया जा सकता है।

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ऄनुच्छेद 356 से संबवं धत सिोच्च न्यायालय के वनणयय


 एस. अर. बोम्मइ बनाम भारत संघ से संबवं धत ऄन्य तथ्य
o ऄनुच्छेद 356 का प्रयोग ऄत्यंत ऄवनिायय पटरवस्थवतयों तथा बहुत कम मामलों में क्रकया जाना
चावहए। राजनीवतक लाभ के वलए आसका प्रयोग नहीं क्रकया जाना चावहए ।
o सरकार की बहुमत का परीक्षण सदन में क्रकया जाना चावहए। यह राज्यपाल की स्िेच्छा पर
अधाटरत नहीं होना चावहए ।
o न्यायालय, मंवत्रपटरषद् द्वारा दी गइ सलाह पर प्रश्न नहीं ईठा सकता है। क्रकन्तु, िह राष्ट्रपवत
शासन लागू करने के वलए दी गयी सलाह के अधार का परीक्षण कर सकता है और दुभायिनापूणय
अशय पाए जाने पर सुधारात्मक कदम ईठा सकता है।
o ऄनुच्छेद 356 का प्रयोग प्रशासकीय तंत्र की विफलता के अधार पर नहीं क्रकया जाना चावहए
बवल्क संिैधावनक मशीनरी के विफल हो जाने की वस्थवत में ही आसका प्रयोग क्रकया जाना
चावहए।
 बूिा ससह िाद
o राज्यपाल का प्रवतिेदन यथारूप नहीं ग्रहण क्रकया जा सकता है और राष्ट्रपवत शासन लागू करने
के अधार के रूप में ईपयोग क्रकए जाने से पहले मंवत्रपटरषद् द्वारा सत्यावपत क्रकया जाना
चावहए।
o अरोप यह था क्रक 2005 में वबहार के राज्यपाल बूिा ससह ने ऄपनी व्यवक्तगत संतवु ि के अधार
पर विधानसभा के विघिन की ऄनुशस ं ा की थी। ईनके ऄनुसार कु छ दल ऄनैवतक साधनों के
माध्यम से बहुमत प्राि करने का प्रयास कर रहे थे।
o सिोच्च न्यायालय ने वनणयय क्रदया क्रक यक्रद ऄन्य दलों या विधायकों के समथयन से क्रकसी
राजनीवतक दल ने सरकार बनाने का दािा क्रकया है और राज्यपाल के समक्ष संबंवधत दल ने
बहुमत का प्रमाण प्रस्तुत क्रकया है तो िह ऄपने व्यवक्तगत अकलन के कारण आस अधार पर
दािे की ईपेक्षा नहीं कर सकता है क्रक भ्रि साधनों के माध्यम से बहुमत जुिाया गया है।

2.9.3. रामेश्वर प्रसाद और ऄन्य बनाम भारत संघ िाद, (2006) (दल बदल मामला)
 आस िाद में वबहार विधान सभा को भंग क्रकये जाने के सदभय में ईत्पि एक महत्िपूणय प्रश्न यह था
क्रक क्या भारतीय संविधान का ऄनु. 356, संसद को आस अधार पर विधानसभा को भंग करने का
ऄवधकार प्रदान करता है क्रक राजनीवतक दल ने ऄिैध साधनों और दलबदल (खरीद फरोख्त) द्वारा
बहुमत हेतु दािा क्रकया है। न्यायालय ने कहा:
o एस. अर. बोम्मइ िाद में न्यावयक समीक्षा के दायरे को और विस्तृत क्रकया गया।
o आसने राज्यपाल की टरपोिय के गुण-ऄिगुण की जांच की और आस वनष्कषय पर पहुंचा क्रक
दलबदल जैसी सामावजक बुराआयों का सामना करने के वलए ऄनु. 356 का ईपयोग नहीं
क्रकया जा सकता है। राज्यपाल द्वारा प्रस्तुत टरपोिय में राष्ट्रपवत शासन लागू क्रकये जाने की
घोषणा हेतु दलबदल के ऄवतटरक्त और कोइ ऄन्य कारण नहीं क्रदया गया था, आसवलए आस
घोषणा को ऄसंिैधावनक घोवषत क्रकया गया।
o िहीं दूसरी ओर ऄनु. 361 राज्यपाल को ईन्मुवक्त प्रदान करता है। न्यायालय ने कहा, यह
ईन्मुवक्त उद्घोषणा की तकय संगतता एिं दुभायिनापूणय अधार पर होने की जांच करने की
न्यायालय की शवक्त को समाि नहीं कर सकती है।
 ईच्चतम न्यायालय ने ऄनु. 356 के प्रयोग के संबंध में रक्षोपाय वनधायटरत क्रकए हैं। विशेषज्ञ
सवमवतयों ने आस तरह के रक्षोपायों की सराहना की है तथा आन रक्षोपायों को संिैधावनक संशोधन
द्वारा स्िीकृ त/ऄंगीकृ त करने की सलाह दी है, वजससे कें द्र-राज्य संबंध और सुदढ़ृ हो तथा
प्रभािशाली संिैधावनक शासन सुवनवश्चत हो सके ।

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 गठबंधन सरकारों के ईद्भि ने राज्य में राष्ट्रपवत शासन लागू क्रकये जाने को सीवमत क्रकया है। कें द्र में
एक दल का प्रभुत्ि भी लगभग समाि हो गया है। आन सबके कारण राष्ट्रपवत शासन लागू क्रकये
जाने के मामलों की संख्या में कमी अइ है।
नोि: राज्यपाल द्वारा पद पर रहते हुए क्रकए गए क्रकसी भी कतयव्य और शवक्त के वनष्पादन के वलए ईसे
क्रकसी न्यायालय में जिाबदेह नहीं बनाया जा सकता है।

2.10. राष्ट्रीय अपात एिं राष्ट्रपवत शासन का तु ल नात्मक ऄध्ययन

राष्ट्रीय अपात (ऄनु. 352) राष्ट्रपवत शासन (ऄनु. 356)

राष्ट्रीय अपात की उद्घोषणा तभी की जा सकती है जब राज्य में शासन संिैधावनक ईपबन्धों के
ऄनुसार नहीं चलाया जा रहा हो या संिैधावनक
जब युद्ध, बाह्य अिमण या सशस्त्र विदोह द्वारा
तंत्र की विफलता की वस्थवत में राष्ट्रपवत ऐसी
भारत के या भारत के क्रकसी राज्य क्षेत्र की सुरक्षा
उद्घोषणा करता है।
संकि में हो
अपात की उद्घोषणा की वस्थवत में राज्य की संिैधावनक तंत्र की विफलता की वस्थवत में

काययपावलका एिं विधावयका काययरत रहती है और विधानमंडल वनलंवबत हो जाता है और राज्य

ऄपनी शवक्तयां भी ईसी प्रकार बनाए रखती है। की काययपावलका शवक्त ऄशंतः या पूणत
य ः

के न्द्र सरकार को राज्य में विधायन और प्रशासन की राष्ट्रपवत द्वारा ग्रहण कर ली जाती है, आसवलए
समिती शवक्तयां प्राि हो जाती है। आसे राष्ट्रपवत शासन कहा जाता है।
राष्ट्रीय अपात में मूल ऄवधकारों को (ऄनु. 20 एिं राष्ट्रपवत शासन की वस्थवत में मूल ऄवधकार
प्रभावित नहीं होते हैं।
21 को छोड़कर) वनलंवबत क्रकया जाता है।

राष्ट्रीय अपात के दौरान राज्य सूची के क्रकसी भी आस वस्थवत में संसद राज्य की विधान बनाने की
विषय पर संसद विधान बना सकती है। शवक्त राष्ट्रपवत को या ऄन्य क्रकसी विवनर्ददि
प्रावधकारी को प्रत्योवजत कर सकती है।
राष्ट्रीय अपात की उद्घोषणा को संसद के ऄनुमोदन आसके तहत ऐसी उद्घोषणा की ऄिवध

से ऄगले 6 माह के वलए बढ़ाया जा सकता है। ऐसे ऄवधकतम 3 िषय तक सीवमत है।
ऄनुमोदन से आसे ऄवनवश्चत काल तक बढ़ाया जा
सकता है।
वबना संसद के ऄनुमोदन के ऐसी उद्घोषणा वबना संसद के ऄनुमोदन को ऐसी उद्घोषणा

ऄवधकतम 1 माह के वलए होती है। ऄवधकतम 2 माह के वलए होती है।

ऄनुमोदन के वलए दोनों सदनों में विशेष बहुमत ऐसी उद्घोषणा के वलए साधारण बहुमत
चावहए। चावहए।
राष्ट्रीय अपात की वस्थवत में के न्द्र एिं राज्य के मध्य राष्ट्रपवत शासन में ऐसे वित्तीय संबंध सामान्यतः
वित्तीय संबंध प्रभावित हो सकते हैं। प्रभावित नहीं होते।

3. वित्तीय अपातकाल (ऄनु . 360)


 राष्ट्रपवत ऄनु. 360 के तहत वित्तीय अपातकाल की उद्घोषणा करता है, यक्रद िह संतुि हो क्रक
ऐसी वस्थवत ईत्पि हो गइ है वजसमें भारत ऄथिा ईसके क्रकसी क्षेत्र की वित्तीय वस्थवत या साख
खतरे में हो।

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3.1. वित्तीय अपातकाल की उद्घोषणा के दो अधार हैं :

 वित्तीय स्थावयत्ि का संकि और


 प्रत्यय का संकि

3.2. प्रक्रियाएं एिं सु र क्षा ईपाय

 वित्तीय अपात को उद्घोषणा की वतवथ के 2 माह के भीतर संसद के दोनों सदनों द्वारा साधारण

बहुमत से पाटरत संकल्प के माध्यम से स्िीकृ वत वमलना ऄवनिायय है। यक्रद वित्तीय अपातकाल की

उद्घोषणा के दौरान लोकसभा विघटित हो जाए ऄथिा 2 माह के भीतर आसे मंजूर करने से पूिय

लोक सभा विघटित हो जाए, तो यह घोषणा पुनगयटठत लोकसभा की प्रथम बैठक के बाद 30 क्रदनों

तक प्रभािी रहेगी, परं तु आस ऄिवध में आसे राज्यसभा की स्िीकृ वत वमलना अिश्यक है। यह

घोषणा ऄवनवश्चत काल के वलए जारी रह सकती है, जब तक क्रक राष्ट्रपवत द्वारा आसे वनरस्त न

क्रकया जाए।

3.3 वित्तीय अपातकाल के प्रभाि

 वित्तीय अपातकाल की ऄिवध के दौरान राष्ट्रपवत वित्तीय औवचत्य संबंधी वसद्धांतों का पालन
करने के वलए राज्यों को वनदेश दे सकता है।
 िह राज्य सवहत कें द्र के ऄधीन सेिारत क्रकसी भी िगय के व्यवक्तयों या ईच्चतम न्यायालय और ईच्च
न्यायालय के न्यायाधीशों के िेतन और भत्ते कम करने के वलए वनदेश जारी कर सकता है।
 राज्य विधान मंडल द्वारा पाटरत सभी धन और वित्तीय विधेयकों को वित्तीय अपातकाल की
ऄिवध के दौरान राष्ट्रपवत के विचार के वलए अरवक्षत क्रकया जा सकता है।

 ऄभी तक देश में वित्तीय अपातकाल की घोषणा नहीं की गइ है, भले ही देश को िषय 1990-91 में

एक गंभीर अर्तथक संकि का सामना करना पड़ा था।


घोषणा राष्ट्रीय राज्य अपातकाल/राष्ट्रपवत वित्तीय
अपातकाल शासन अपातकाल

संिैधावनक ईपबन्ध ऄनुच्छेद 352 ऄनुच्छेद 356 ऄनुच्छेद 360

संसद की स्िीकृ वत 1 माह 2 माह 2 माह

स्िीकृ वत के वलए विशेष बहुमत साधारण बहुमत साधारण बहुमत


बहुमत
बहुमत के बाद 6 माह 6 माह ऄसीवमत

ऄवधकतम ऄिवध ऄसीवमत 3 िषय ऄसीवमत

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4. सं विधान का सं शोधन
भूवमका
 पटरितयन ही प्रकृ वत का वनयम है। समय के साथ-साथ राजनीवतक समाज में पटरितयन होता है। नइ
समस्याओं और चुनौवतयों का सामना करने के वलए राष्ट्रीय जीिन के सभी अयामों में पटरितयन
और ईपांतरण अिश्यक हो जाता है। वजस प्रकार समाज की अिश्यकताओं के ऄनुसार वशक्षा
पद्धवत बदलती है, औद्योवगक नीवत में पटरितयन होता है िैसे ही विवधयों और संविधान में भी
पटरितयन की अिश्यकता होती है।
 यक्रद कोइ संविधान, संशोधन का ऄवधकार नहीं देता है तो आस बात की संभाव्यता बढ़ जाती है क्रक
नइ पीढ़ी ईसे नि कर ईसके स्थान पर नया संविधान स्थावपत कर देगी। ऄतः यह अिश्यक हो
जाता है क्रक संविधान में पटरितयन की प्रक्रिया को संविधान में ही वनर्ददि कर क्रदया जाए। भारतीय
संविधान में ये विशेषताएं विद्यमान हैं, आसवलए यह एक जीिंत दस्तािेज कहलाती है।
 के शिानंद भारती बनाम के रल राज्य िाद में सिोच्च न्यायलय ने ‘संशोधन’ शब्द के क्षेत्र विस्तार
एिं पटरभाषा का सबसे ऄच्छा वििरण प्रदान क्रकया। न्यायालय ने 'संशोधन' शब्द की व्यापक
पटरभाषा दी है, जहााँ संशोधन शब्द में क्रकसी भी पटरितयन या बदलाि को शावमल क्रकया जाता है।
 संविधान के सन्दभय में ईवल्लवखत ‘संशोधन’ शब्द, “एक नये और स्ितंत्र विषय में क्रकसी ईपबंध के
जोड़ने, जो ऄपने अप में पूणय हो या दूसरे से वबलकु ल ऄलग हो एिं क्रकसी वनवश्चत ऄनुच्छेद या
ईपबंध में पटरिधयन, पटरितयन या वनरसन को” दशायती है।

4.1. सं िै धावनक प्रािधानों के सं शोधन की अिश्यकता

 संविधान एक जीिंत और पटरितयनशील दस्तािेज है। समकालीन पटरितयनों के ऄनुकूल संविधान


में पटरितयन ऄवतअिश्यक है। यह संविधान के मूल दशयन में भी ईवल्लवखत है। संविधान को
बदलती पटरवस्थवतयों और अिश्यकताओं के ऄनुसार समायोवजत करने के वलए संशोधन की
ऄनुमवत प्रदान करना ऄत्यािश्यक है।

4.2. सं शोधन के प्रकार

 ऄदृश्य या ऄनौपचाटरक एिं


 दृश्य या औपचाटरक
4.2.1. ऄदृ श्य या ऄनौपचाटरक प्रक्रिया

 संविधान का संशोधन करने की ऄनौपचाटरक या ऄदृश्य प्रक्रिया की भूवमका और दायरा सीवमत


होता है। आस प्रकार के पटरितयन क्रकए जाते हैं:
o न्यायालय द्वारा वनियचन के माध्यम से,
o विधायन द्वारा संविधान की ऄनुपूर्तत करके या टरक्त स्थान भर के तथा
o ऄवभसमय और संिैधावनक परं पराओं में पटरितयन कर।
 न्यावयक वनियचन द्वारा क्रकए गए पटरितयन संविधान के पाठ को वबना बदले ईसे एक नया या
पटरिर्ततत ऄथय प्रदान करते हैं। संविधान की भाषा नहीं बदलती ककतु विद्यमान पटरवस्थवतयों और
समाज की अिश्यकताओं को दृवि में रखते हुए न्यायालय नया ऄथय प्रदान करता है। न्यावयक
वनियचन की ईन संविधानों में बहुत महत्िपूणय भूवमका होती है जहां संशोधन की प्रक्रिया कठोर
और कटठन है।
 कइ बार ऄवभसमय के कारण संविधान के ईपबंध वनष्प्रभािी हो जाते हैं। ऄवभसमय का प्रितयन
संविधान की सीमा के भीतर होता है ककतु क्रफर भी िह संविधान को प्रभावित और ईपांतटरत कर
देता है।

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4.2.2. दृ श्य या औपचाटरक प्रक्रिया

 प्रत्येक संविधान में यह बताया जाता है क्रक क्रकस रीवत से ईसे पटरिर्ततत क्रकया जा सके गा। संशोधन
द्वारा संविधान के पाठ को बदला जाता है वजससे क्रक समाज में हुए पटरितयन के वलए या राष्ट्र के
विकास के वलए ऄपेवक्षत नया ऄथय संविधान में प्रवतसबवबत हो।
 ऐसे संशोधन की प्रक्रिया औपचाटरक होती है और क्रदखाइ पड़ती है। यह पटरितयन की घोवषत और
प्रकि प्रक्रिया है। संविधान को नइ समस्याओं का सामना करने के वलए ऄनुकूल बनाने हेतु यह
सिायवधक स्िीकृ त मागय है। भारत में औपचाटरक संशोधन प्रक्रिया को मुख्यतः तीन भागों में बांिा
जाता है। वजसे नीचे सविस्तार िर्तणत क्रकया गया है।
 संशोधन की प्रक्रिया ने संविधान को न ही पूणयतः कठोर न ही पूणत
य ः लचीला बनाया है, यद्यवप यह
दोनों का वमश्रण है। कु छ ईपबंधों को असानी से संशोवधत क्रकया जा सकता है और कु छ के वलए
विवशि प्रक्रिया का ऄनुकरण क्रकया जाता है। भारत के एक संघीय राज्य होने के बािजूद, संविधान
संशोधन का प्रस्ताि के िल संसद के क्रकसी एक सदन में ही लाया जा सकता है, राज्य विधानमंडल
के पास ऐसी कोइ शवक्त नहीं है।
 साधारण विधेयक के मामले में यक्रद संसद के दोनों सदनों में सहमवत नहीं होती है, तो संयुक्त बैठक
का प्रािधान है। परन्तु संविधान संशोधन विधेयक के मामले में जबतक दोनों सदनों में ऄलग-ऄलग
सहमवत नहीं बनती, तब तक विधेयक पाटरत नहीं हो सकता, क्योंक्रक आस मामले में संसद के संयुक्त
बैठक का प्रािधान नहीं है।
संविधान को वनम्नवलवखत तीन प्रकार से संशोवधत क्रकया जा सकता है:
(i) साधारण बहुमत द्वारा संशोधन
संविधान के ऄनेक ऐसे ईपबंध हैं, वजनके संशोधन हेतु संसद के दोनों सदनों में के िल साधारण बहुमत
की अिश्यकता होती है। आन्हें दो िगों में बांि सकते हैं:
 जहााँ संविधान का पाठ नहीं बदलता ककतु विवध में पटरितयन हो जाता है:
o ऄनुच्छेद 11 संसद को नागटरकता के बारे में विवध ऄवधवनयवमत करने की शवक्त देता है। आस
शवक्त के ऄनुसरण में जो ऄवधवनयम बनाया जाएगा िह नागटरकता से संबंवधत विवध को
पटरिर्ततत कर देगा ककतु ऄनु. 5 से 10 तक के ऄनुच्छेद जैसे हैं िैसे ही बने रहेंगे। ऄनुच्छेद
124 में वलवखत है क्रक ईच्चतम न्यायालय मुख्य न्यायमूर्तत और सात से ऄनवधक न्यायाधीशों
से वमलकर बनेगा। ककतु संसद ने न्यायाधीशों की संख्या 7 से बढ़ाकर 31 कर दी है।
 जहां संविधान का पाठ पटरिर्ततत हो जाता है:
o नए राज्यों की रचना, ऄनुसच
ू ी 1 और 4 का संशोधन अक्रद सामान्य विवध द्वारा क्रकए जा
सकते हैं। संसद विवध बनाकर पांचिीं और छठी ऄनुसच
ू ी को संशोवधत कर सकती है।
o जो ईपबंध सामान्य विवध द्वारा बदले जा सकते हैं ईनमें (जो उपर वगनाए गए हैं ईनके
ऄवतटरक्त) शावमल हैं: विधान पटरषदों का सृजन और ईत्सादन; संघ राज्यक्षेत्रों के वलए
मंवत्रपटरषद् का सृजन; ऄनुच्छेद 343 में ऄंग्रज
े ी के प्रयोग के वलए 15 िषय की ऄिवध का
विस्तार; संसदीय विशेषावधकारों को पटरवनश्चत करना; राष्ट्रपवत, ईपराष्ट्रपवत, न्यायाधीशों
अक्रद के िेतन और भत्ते।
(ii) विशेष बहुमत द्वारा संशोधन
 आस संशोधन प्रक्रिया में प्रत्येक सदन के सदस्यों की कु ल संख्या का बहुमत तथा ईस सदन में
ईपवस्थत और मतदान करने िाले सदस्यों के कम से कम दो-वतहाइ बहुमत की अिश्यकता होती
है। प्रथम श्रेणी (साधारण बहुमत से संशोवधत होने िाले ईपबंधों) और तृतीय श्रेणी (विशेष बहुमत
के साथ भारत के अधे राज्यों के विधानमंडलों द्वारा संशोवधत होने िाले ईपबंधों) में शावमल
ऄनुच्छेदों के ऄवतटरक्त ऄन्य सभी ऄनुच्छेद ऐसे हैं, वजन्हें संसद विशेष बहुमत द्वारा ही संशोवधत
कर सकती है।

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(iii) विशेष बहुमत तथा कम से कम अधे राज्य विधान मंडलों की स्िीकृ वत द्वारा संशोधन
 आस प्रक्रिया के तहत संविधान के कु छ विवशि ऄनुच्छेद शावमल हैं, वजन्हें संशोवधत करने हेतु कटठन
प्रक्रिया ऄपनायी जाती है। आन ऄनुच्छेदों में संशोधन करने के वलए संसद के विशेष बहुमत के साथ-
साथ भारत के कम से कम अधे राज्यों के विधानमंडलों की स्िीकृ वत अिश्यक होती है। आस श्रेणी
में वनम्नवलवखत ऄनुच्छेद सवम्मवलत हैं:
o ऄनुच्छेद 54- राष्ट्रपवत का वनिायचन
o ऄनुच्छेद 55- राष्ट्रपवत के वनिायचन की विवध
o ऄनुच्छेद 73–संघ की काययपावलका शवक्त का विस्तार
o ऄनुच्छेद 162- राज्यों की काययपावलका शवक्त का विस्तार
o ऄनुच्छेद 241- संघ राज्य क्षेत्रों के वलए ईच्च न्यायालय
o संघीय न्यायपावलका (भाग-5 ऄध्याय-4)
o राज्यों के वलए ईच्च न्यायालय (भाग-VI ऄध्याय-V)
o संघ-राज्य-संबंध (विधायी) (भाग-XI ऄध्याय-I)
o सातिीं ऄनुसच
ू ी का कोइ भी विषय
o संसद में राज्यों का प्रवतवनवधत्ि
o संविधान-संशोधन से संबंवधत ऄनुच्छेद-368

4.3. मू ल ऄवधकारों का सं शोधन

 मूल ऄवधकारों में संशोधन काफी िाद-वििाद का विषय रहा है, आसके पटरणामस्िरूप
न्यायपावलका और संसद दोनों के मत में समय-समय पर बदलाि देखा गया है। आस संबंध में कु छ
महत्िपूणय प्रश्न वनम्नवलवखत हैं:
o मूल ऄवधकार संशोधनीय हैं या नहीं, ऄथायत् क्या संसद संविधान द्वारा प्रदत्त मूल ऄवधकार
को समाि कर सकती है?
o संविधान संशोधन के सन्दभय में संसद का ऄवधकार, ईसकी सीमा और विस्तार क्या है?
 ईच्चतम न्यायालय द्वारा समय-समय पर आस सन्दभय में तकय प्रस्तुत क्रकया गया है। आसे वनम्नवलवखत
मामलों तथा पटरणामी संसदीय प्रवतक्रिया के अलोक में समझा जा सकता है:
4.3.1. शं क री प्रसाद बनाम भारत सं घ िाद, 1951

 1951 में, संविधान के प्रिृत्त होने के एक िषय के भीतर, प्रथम संविधान संशोधन ऄवधवनयम को
पाटरत क्रकया गया। आस ऄवधवनयम से ऄनु. 31 द्वारा प्रत्याभूत संपवत्त के ऄवधकार को सीवमत
क्रकया गया। आस संशोधन की संिध
ै ावनकता पर शंकरीप्रसाद िाद में प्रश्नवचन्ह लगाया गया।
 यावचकाकताय ने यह तकय प्रस्तुत क्रकया क्रक ऄनु. 13(2) राज्य को ऐसी विवध वनमायण के वलए
प्रवतवषद्ध करता है जो मूल ऄवधकार को समाि या न्यून करती है।
 ऄनुच्छेद 13(2) में प्रयुक्त शब्द ‘विवध’ के ऄधीन सभी ऄवधवनयम अते हैं ऄथायत् ईसमें संविधान
संशोधन भी सवम्मवलत है। आस तकय को ऄस्िीकार करते हुए ईच्चतम न्यायालय ने यह
ऄवभवनधायटरत क्रकया क्रक ऄनु. 368 द्वारा प्रदत्त शवक्त का प्रयोग करते हुए जो संविधान संशोधन
ऄवधवनयम पाटरत क्रकया जाता है, िह ऄनु. 13(2) के ऄंतगयत विवध नहीं है। न्यायालय ने यह
व्यिस्था दी क्रक आस ऄनुच्छेद में विवध का ऄथय है सामान्य विवध, संविधान संशोधन ऄवधवनयम
नहीं (ऄथायत् सांविधावनक विवध नहीं)।

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 मूल ऄवधकार, ऄनु. 368 के ऄधीन संसद की संशोधन करने की शवक्त के ऄधीन है। यक्रद दूसरे
शब्दों में कहा जाए तो यह कहना ईवचत होगा क्रक सामान्य विवधयों से मूल ऄवधकारों का संशोधन
नहीं क्रकया जा सकता ककतु संिैधावनक विवधयों द्वारा क्रकया जा सकता है।
4.3.2. सज्जन ससह बनाम राजस्थान राज्य िाद, 1965

 17िें संशोधन ऄवधवनयम, 1964 की िैधता, को ईसी अधार पर चुनौती दी गइ जैसे शंकरी प्रसाद
मामले में दी गइ थी।
 सज्जन ससह िाद में ईच्चतम न्यायालय ऄपने पूियिती शंकरीप्रसाद िाले वनणयय पर दृढ़ रहा।
4.3.3. गोलखनाथ बनाम पं जाब राज्य िाद, 1967

 1967 में न्यायालय ने गोलकनाथ में ऄपने पूियिती विवनश्चयों को ईलि क्रदया। बहुमत ने यह
दृविकोण ऄपनाया क्रक संविधान ने मूल ऄवधकरों को एक सिोच्च वस्थवत प्रदान की है।
 ऄनुच्छेद 368 के ऄधीन कायय करते हुए संसद् या क्रकसी ऄन्य प्रावधकारी को यह शवक्त नहीं है क्रक
िह मूल ऄवधकारों को न्यून करे या समाि कर सके । न्यायालय ने विधायी शवक्त और संविधान
संशोधन की शवक्त के बीच भेद करने से आंकार कर क्रदया।
 यह वनणयय 11 न्यायाधीशों की पीठ ने क्रदया था। 6 न्यायाधीश बहुमत में थे और 5 ऄल्पमत में।
ऄल्पमत िाले न्यायाधीशों ने यह माना क्रक मूल ऄवधकारों के संशोधन के बारे में जो मत पहले
प्रकि क्रकया गया है िह ठीक है ऄथायत् मूल ऄवधकारों का संशोधन क्रकया जा सकता है।

गोलकनाथ िाद की प्रवतक्रियािस्िरूप संसद ने 24िां संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1971 पाटरत क्रकया
गया। आस ऄवधवनयम द्वारा ऄनु. 13 में खंड (4) और ऄनु. 368 में एक नया खंड (1) ऄंतःस्थावपत क्रकया
गया। आस संशोधन द्वारा यह घोषणा की गइ क्रक ऄनु. 368 के ऄनुसार पाटरत संविधान का संशोधन ऄनु.
13 के ऄंतगयत विवध नहीं होगा। आस प्रकार, ऄनु. 13 संविधान का संशोधन करने िाले ऄवधवनयमों पर
लागू नहीं होगा।

4.3.4. के शिानं द भारती बनाम के रल राज्य िाद, 1973

 1973 में के शिानंद भारती िाद में यह विषय क्रफर से ईच्चतम न्यायालय के समक्ष अया। आस
मामले में ईठाए गए विवभि प्रश्नों में से एक, ऄनुच्छेद 368 के तहत संसद के संविधान संशोधन की
शवक्त की सीमा का प्रश्न था। ईच्चतम न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश, एस.एम. सीकरी
की ऄध्यक्षता में 13 न्यायाधीशों की एक संिैधावनक पीठ ने, आस मामले को संचावलत क्रकया।
बहुमत (7 न्यायाधीश) ने 24िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम को विवधमान्य ठहराते हुए
गोलकनाथ िाद में क्रदए वनणयय को ईलि क्रदया। ककतु, साथ ही एक नया वसद्धांत प्रवतपाक्रदत क्रकया।
 न्यायालय ने यह कहा क्रक संसद मूल ऄवधकारों िाले भाग का संशोधन करने के वलए ईतनी ही
सक्षम है वजतनी क्रक संविधान के क्रकसी ऄन्य भाग का। ककतु संविधान का संशोधन करके संसद,

संविधान के मूल ढांचे (अधाटरक संरचना/अधारभूत लक्षण) को न तो संवक्षि कर सकती है, न ही


समाि कर सकती है और न नि कर सकती है।
 गोलकनाथ िाद के पश्चात् क्रकसी भी मूल ऄवधकार को न तो छीना जा सकता था और न ही न्यून
क्रकया जा सकता था। के शिानंद के पश्चात् न्यायालय को यह विवनश्चय करना है क्रक कोइ मूल
ऄवधकार मूल ढांचा है या नहीं। यक्रद िह मूल ढांचा है तो कदावप हिाया नहीं जा सकता।
गोलकनाथ में सिोच्च न्यायालय ने शंकरी प्रसाद और सज्जन ससह िाद में क्रदए वनणयय को ईलि क्रदया। बाद
में, के शिानंद मामले में गोलकनाथ िाद में क्रदए वनणयय को पलि क्रदया गया।

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4.3.5. 42िां सं विधान सं शोधन ऄवधवनयम, 1976

 संसद ने ऄनुच्छेद 368 में संशोधन कर ईपरोक्त वनणयय पर पुनः प्रवतक्रिया व्यक्त की। यह घोषणा
की गइ क्रक संसद की संविधान संशोधन करने की संिैधावनक शवक्त पर क्रकसी प्रकार का वनबंधन
नहीं है और संविधान का कोइ भी संशोधन क्रकसी भी न्यायालय में क्रकसी भी अधार (मूल
ऄवधकारों में से क्रकसी के ईल्लंघन सवहत) पर प्रश्नगत नहीं क्रकया जा सकता है।
 आस प्रकार न्यायपावलका ने जो मूल ढांचे का वसद्धांत (के शिानंद भारती िाद) क्रदया ईसे विनि
करने के वलए 42िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 1976 द्वारा ऄनु. 368 में खंड (4) ऄंतःस्थावपत
क्रकया गया। आस खंड का ईद्देश्य न्यावयक पुनर्तिलोकन की शवक्त पर ऄंकुश लगाना था।
 आस खंड से यह ऄवधवनयवमत क्रकया गया क्रक संविधान के (वजसके ऄंतगयत भाग 3 के ईपबंध है) आस
ऄनुच्छेद के ऄधीन क्रकया गया कोइ संशोधन क्रकसी न्यायालय में क्रकसी भी अधार पर प्रश्नगत नहीं
क्रकया जाएगा।
4.3.6. वमनिाय वमल्स िाद, 1980

 ईच्चतम न्यायालय ने वमनिाय वमल्स िाद में यह ऄवभवनधायटरत क्रकया क्रक 42िें संविधान संशोधन
द्वारा ऄनुच्छेद 31(ग) में क्रकया गया संशोधन ऄविवधमान्य है, क्योंक्रक आससे संविधान के मूल ढांचे
को क्षवत पहुंचती है।
 ऄनु. 368 का खंड 4 और 5 ऄविवधमान्य हैं क्योंक्रक िे संविधान के दो मूलढांचे का ईल्लंघन करते
हैं। ये लक्षण हैं संशोधन करने की शवक्त का सीवमत होना और न्यावयक पुनर्तिलोकन। न्यायालयों
को न्यावयक पुनर्तिलोकन की शवक्त से िंवचत नहीं क्रकया जा सकता है।
4.3.7. िामन राि बनाम भारत सं घ िाद, 1981

 आस मामले में न्यायालय ने यह भी स्पि कर क्रदया क्रक मूल ढांचे का वसद्धांत 24-4-1973
(के शिानंद भारती िाद में वनणयय सुनाए जाने की तारीख) के पश्चात् पाटरत संविधान संशोधन
ऄवधवनयमों पर लागू होगा ऄथायत् भविष्यलक्षी रूप से लागू होगा। पूियिती विधान को ऄथायत्
भूतलक्षी रूप से लागू नहीं होगा।

4.4. ईपरोक्त से प्राि वनष्कषय

आन संशोधनों और विवनश्चयों का पटरणाम यह है क्रक:


 मूल ऄवधकारों का संशोधन क्रकया जा सकता है।
 प्रत्येक मामले में न्यायालय यह विचार करे गा क्रक क्या मूल ऄवधकारों के संशोधन से संविधान के
क्रकसी अधाटरक लक्षण (मूल ढांचे) का वनराकरण या विनाश या क्षय हो रहा है। यक्रद आसका ईत्तर
‘हााँ’ में है तो संशोधन ईस विस्तार तक शून्य होगा।
 हालांक्रक ईच्चतम न्यायालय द्वारा भारतीय संविधान के 'मूल ढांच'े के सभी विशेषताओं को
पटरभावषत करना और ईसकी स्पि व्याख्या करना ऄभी शेष है।
4.5. सं विधान सं शोधन की िमिार प्रक्रिया

ऄनुच्छेद 368 में संविधान संशोधन हेतु ऄनुसरण की जाने िाली प्रक्रियाओं का िणयन है। ये
वनम्नवलवखत हैं:
 संशोधन का प्रारं भ ईस प्रयोजन के वलए विधेयक पुरः स्थावपत करके क्रकया जाता है।
 विधेयक संसद के क्रकसी भी सदन में प्रस्तुत क्रकया जा सकता है।
 विधेयक को प्रत्येक सदन द्वारा अिश्यकतानुसार साधारण या विशेष बहुमत द्वारा पाटरत क्रकया
जाना चावहए।
 कु छ विशेष सुरवक्षत ईपबंधों की दशा में विधेयक का कम से कम अधे राज्य विधानमंडलों द्वारा
ऄनुसमथयन क्रकया जाना चावहए।

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 आस प्रकार सम्यक रूप से जब विधेयक पाटरत कर क्रदया जाता है और जहााँ ऄपेक्षा है िहां
ऄनुसमर्तथत कर क्रदया जाता है तब ईसे राष्ट्रपवत को प्रस्तुत क्रकया जाता है।
 राष्ट्रपवत ऄनुमवत देने के वलए बाध्य है। सामान्य विधेयक की दशा में राष्ट्रपवत पुनर्तिचार के वलए
लौिाया सकता है या ऄनुमवत रोक कर सकता है।
 यक्रद दोनों सदनों के बीच ऄसहमवत होती है तो संयुक्त बैठक के वलए कोइ ईपबंध नहीं है। विधेयक
प्रत्येक सदन द्वारा पृथक रूप से पाटरत क्रकया जाना चावहए।
 संविधान संशोधन विधेयक को प्रस्तुत करने के पूिय राष्ट्रपवत की पूिय मंजरू ी की ऄपेक्षा नहीं होती
है।

4.6. सं विधान सं शोधन के प्रक्रिया की अलोचना

 भारत में संविधान संशोधन के वलए कोइ विशेष वनकाय नहीं है।
 संयुक्त राज्य ऄमेटरका की तुलना में, जहााँ पर एक विशेष संस्था (एमेंडमेंि कन्िेंशन) है, भारत में
ऐसा कोइ प्रािधान नहीं है। ऄतः संविधान को कइ बार राजनीवतक स्िाथय और ईद्देश्य की प्रावि के
वलए भी संशोवधत क्रकया गया है।
 राज्य विधानमंडल, संविधान संशोधन विधेयक को प्रारं भ नहीं कर सकते (ऄमेटरका के विपरीत )।
यह भारत के संघीय संरचना के अधार पर की जाने िाली अलोचना है। ईपयुयक्त सबदु में भी एक
ऄपिाद है (राज्य विधानमंडल राज्य विधान पटरषद् के सृजन और ईत्सादन के वलए प्रस्ताि ला
सकते हैं), यहां भी संसद आसे या तो पाटरत कर सकती है या नहीं या आस पर कोइ काययिाही नहीं
कर सकती है।
 राज्य विधानमंडल द्वारा ऄनुसमथयन और ऄस्िीकृ वत के वलए कोइ समय सीमा नहीं वनधायटरत की
गइ है।
 क्रकसी संविधान संशोधन ऄवधवनयम के सन्दभय में गवतरोध हो तो संसद के दोनों सदनों की संयुक्त
बैठक का कोइ प्रािधान नहीं है, जो क्रक साधारण विधेयक के मामले में ईपलब्ध है।

 संशोधन प्रक्रिया से संबद्ध व्यिस्था बहुत ऄपयायि है, ऄतः आन्हें न्यायपावलका को संदर्तभत करने के

व्यापक ऄिसर प्राि हो जाते हैं, वजसे हमने उपर देखा है। आसने न्यायपावलका और संसद के मध्य

िकराि को बढ़ाया है, वजससे भारतीय राज्यव्यिस्था का संतल


ु न कमजोर हुअ है।

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भारतीय संविधान एिं शासन


17. संिैधावनक वनकाय

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विषय सूची
1. भारत वनिााचन अयोग (Election Commission of India) _____________________________________________ 4

1.1 संरचना और वनयुवि ________________________________________________________________________ 4

1.2 वनिााचन अयोग की स्ितंत्रता __________________________________________________________________ 4

1.3 शवियां और काया __________________________________________________________________________ 5

1.4 वनिााचन अयोग का प्रदशान और योगदान __________________________________________________________ 6

1.5 वनिााचन अयोग की पररिर्ततत भूवमका ___________________________________________________________ 7

2. संघ लोक सेिा अयोग __________________________________________________________________________ 8

2.1 संरचना और वनयुवि ________________________________________________________________________ 8

2.2 संघ लोक सेिा अयोग की स्ितंत्रता ______________________________________________________________ 9

2.3 काया और ईत्तरदावयत्ि_______________________________________________________________________ 9

2.4 सीमाएँ एिं कवमयाँ _______________________________________________________________________ 10

2.5 संघ लोक सेिा अयोग का प्रदशान ______________________________________________________________ 10

3. राज्य लोक सेिा अयोग _______________________________________________________________________ 11

3.1 राज्य लोक सेिा अयोग की स्ितंत्रता ____________________________________________________________ 11

3.2 काया और ईत्तरदावयत्ि______________________________________________________________________ 11

3.3 सीमाएँ और कवमयाँ _______________________________________________________________________ 12

3.4 राज्य लोक सेिा अयोग का प्रदशान _____________________________________________________________ 12

4. वित्त अयोग _______________________________________________________________________________ 12

4.1 संरचना ________________________________________________________________________________ 12

4.2 काया __________________________________________________________________________________ 13

4.3 योजना अयोग के प्रादुभााि का वित्त अयोग पर प्रभाि ________________________________________________ 13

4.4 14िें वित्त अयोग को संदर्तभत मुद्दे ______________________________________________________________ 13

5. राष्ट्रीय ऄनुसवू चत जावत अयोग __________________________________________________________________ 14

5.1. संरचना _______________________________________________________________________________ 14

5.2 अयोग के काया ___________________________________________________________________________ 14

5.3 अयोग की शवियाँ ________________________________________________________________________ 15

6. राष्ट्रीय ऄनुसवू चत जनजावत अयोग _______________________________________________________________ 15

7. भारत का वनयंत्रक एिं महालेखा परीक्षक ___________________________________________________________ 16

7.1 स्ितंत्रता _______________________________________________________________________________ 16

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7.2 शवियाँ और कत्ताव्य _______________________________________________________________________ 16

7.3 CAG द्वारा वनभाइ गइ भूवमका _______________________________________________________________ 17

7.4 वििाद एिं अलोचनाएँ _____________________________________________________________________ 18


7.4.1 CAG के पास दंडात्मक एिं वनयंत्रणात्मक शवियों का ऄभाि ______________________________________ 18
7.4.2 क्या CAG जनोपयोगी (यूरिवलिी) कं पवनयों का लेखा परीक्षण कर सकता है? ___________________________ 18
7.4.3 क्या CAG को बहु-सदस्यीय वनकाय होना चावहए? _____________________________________________ 18

8. भारत का महान्यायिादी और महावधििा __________________________________________________________ 19

8.1 काया __________________________________________________________________________________ 19

9. राज्य का महावधििा _________________________________________________________________________ 20

10. भाषायी ऄल्पसंख्यक िगों के वलए विशेष ऄवधकारी __________________________________________________ 20

10.1 काया _________________________________________________________________________________ 20

11. ऄंतरााज्यीय पररषद _________________________________________________________________________ 20

11.1 संरचना _______________________________________________________________________________ 21

11.2 काया _________________________________________________________________________________ 21

11.3 निीनतम घिनाक्रम ______________________________________________________________________ 21

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1. भारत वनिाा च न अयोग (Election Commission of


India)
भारत वनिााचन अयोग (ECI) एक स्थायी और स्ितंत्र वनकाय है। आसका गठन देश में स्ितंत्र और
वनष्पक्ष चुनाि सुवनवित कराने के ईद्देश्य से ककया गया था। भारतीय संविधान का ऄनु. 324 यह
िर्तणत करता है कक संसद, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपवत और ईपराष्ट्रपवत के चुनािों के ऄधीक्षण,
वनदेशन और वनयंत्रण की शवि ECI में वनवहत होगी। ऄतः ECI एक ऄवखल भारतीय संस्था है एिं यह
कें द्र एिं राज्य दोनों के वलए समान है।

ध्यातव्य है कक ECI राज्यों के पंचायतों और नगर पावलकाओं के चुनाि से संबवं धत नहीं है। संविधान में
ऄनु. 243K के तहत आस ईद्देश्य के वलए ऄलग से राज्य वनिााचन अयोगों की व्यिस्था की गयी है।

1.1 सं र चना और वनयु वि

ऄनु. 324 के तहत वनिााचन अयोग का गठन एक मुख्य वनिााचन अयुि और ऄन्य वनिााचन अयुिों
से वमलकर होता है। ऄन्य वनिााचन अयुिों की संख्या का वनधाारण राष्ट्रपवत द्वारा ककया जाता है।
वनिााचन अयोग की सलाह पर राष्ट्रपवत द्वारा प्रादेवशक अयुिों की वनयुवि का भी प्रािधान ककया
गया है।
 भारतीय संविधान में मूल रूप से वनिााचन अयोग में के िल मुख्य वनिााचन अयुि का प्रािधान
ककया गया था। परं तु ितामान में यह तीन सदस्यीय वनकाय है। आसमें एक मुख्य वनिााचन अयुि
और दो ऄन्य वनिााचन अयुि हैं।
 पहली बार 2 ऄवतररि वनिााचन अयुिों की वनयुवि 16 ऄक्िू बर, 1989 को हुइ थी। ईनका
कायाकाल 1 जनिरी 1990 तक के ऄल्प समय के वलए ही था। कालांतर में 1 ऄक्िू बर, 1993 को
पुनः 2 ऄवतररि वनिााचन अयुिों की वनयुवि की गयी। ईसी समय से अयोग के बहु सदस्यीय
होने की व्यिस्था प्रचलन में है। आस व्यिस्था में कोइ भी वनणायन अयोग के सदस्यों के बहुमत
द्वारा होता है।
 मुख्य वनिााचन अयुि और दो ऄन्य वनिााचन अयुिों की वनयुवि राष्ट्रपवत द्वारा की जाती है।
वनिााचन अयुिों की शवियाँ समान होती हैं। ईन्हें समान िेतन और भत्ता प्राप्त होता है। ये िेतन
एिं भत्ते ईच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के समान होते हैं।
 वनिााचन अयुिों और प्रादेवशक अयुिों के कायाकाल की शतों का वनधाारण राष्ट्रपवत द्वारा ककया
जाता है। ितामान में ये 6 िषा की ऄिवध के वलए या 65 िषा की अयु (दोनों में से जो भी पहले पूरा
हो) तक पद धारण करते हैं।

1.2 वनिाा च न अयोग की स्ितं त्र ता

ऄपने कायों के वनष्पादन के सन्दभा में, ECI कायाकारी हस्तक्षेपों से मुि होता है। अयोग ही अम
चुनाि या ईप-चुनाि के चुनाि कायाक्रम की समय सारणी को वनधााररत करता है। अयोग द्वारा
वनम्नवलवखत विषयों यथा-
(i) ककन स्थलों को मतदान कें द्र चुना जाना चावहए।
(ii) मतदाताओं के वलए मतदान कें द्र ककस प्रकार से वनधााररत हों।
(iii) मतगणना कें द्रों की ऄिवस्थवत तथा,
(iv) मतदान के न्द्रों एिं मतगणना के न्द्रों की प्रशासन व्यिस्था एिं ऄन्य सभी संबंवधत मामलों में वनणाय
वलया जाता है।

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अयोग के स्ितंत्र कामकाज को सुवनवित करने के वलए संविधान में वनम्नवलवखत प्रािधान प्रदान ककए
गए हैं:
 मुख्य वनिााचन अयुि को कायाकाल की सुरक्षा प्रदान की गइ है। ईसकी वनयुवि राष्ट्रपवत द्वारा की
जाती है ककन्तु िह राष्ट्रपवत के प्रसादपयंत पद धारण नहीं करता है। ईसे ईसके पद से ईसी रीवत ि्
ईन्हीं अधारों पर हिाया जा सकता है, वजस रीवत एिं अधारों पर ईच्चतम न्यायालय के
न्यायाधीशों को हिाया जाता है। ऄथाात ऄक्षमता या वसद्ध कदाचार के अधार पर संसद के दोनों
सदनों द्वारा विशेष बहुमत से प्रस्ताि पाररत कर राष्ट्रपवत द्वारा ईसे पद से हिाया जा सकता है
ऄन्यथा नहीं।
 मुख्य वनिााचन अयुि की वनयुवि के बाद ईसकी सेिा शतों में कोइ ऄलाभकारी पररितान नहीं
ककया जा सकता है।
 मुख्य वनिााचन अयुि की वसफाररश के वबना ककसी ऄन्य वनिााचन अयुि या क्षेत्रीय अयुि को
नहीं हिाया जा सकता है। (वसफाररश संबंधी यह वनयम तब वििादों में अया, जब श्री एन.
गोपालस्िामी ने निीन चािला को हिाने की वसफाररश की ककन्तु सरकार ने आसे स्िीकार करने से
मना कर कदया था।)
 अयोग के सवचिालय का ऄपना एक स्ितंत्र बजि होता है वजसे अयोग और संघ सरकार के वित्त
मंत्रालय के परामशा से ऄंवतम रूप कदया जाता है। ईच्चतम न्यायालय, CAG अकद जैसे ऄन्य
वनकायों के समान आसका व्यय भारत की संवचत वनवध पर भाररत नहीं है। हाल ही में अयोग ने
ऄपने समस्त व्यय को संवचत वनवध पर भाररत ककये जाने की मांग की है।
वनिााचन अयोग को स्ितंत्र और वनष्पक्ष काम करने के वलए संविधान के तहत कदशा वनदेश प्रदान ककए
गए हैं लेककन आसमें कु छ कवमयां भी व्याप्त है:
1. संविधान में ECI के सदस्यों की योग्यता वनधााररत नहीं की गइ है।

2. संविधान में ECI के सदस्यों का कायाकाल वनधााररत नहीं ककया गया है।

3. संविधान में वनिााचन अयुिों को सेिावनिृवत्त के पिात सरकार द्वारा कदए गए ककसी पद को लेने
से िंवचत नहीं ककया गया है।
4. हाल ही में यह मांग की गइ है कक मुख्य वनिााचन अयुि की वनयुवि एक वद्वपक्षीय कॉलेवजयम

(bipartisan collegium) द्वारा की जानी चावहए क्योंकक सरकार द्वारा की गयी एकपक्षीय
वनयुवि सामान्यतया आस वनकाय को सत्तारूढ़ दल की राजनीवत से प्रभावित होने के प्रवत सम्भाव्य
बना देती है।

1.3 शवियां और काया

भारत वनिााचन अयोग की शवियाँ और काया प्रशासवनक, सलाहकारी और ऄद्धा-न्यावयक प्रकृ वत के हैं:

(a) प्रशासवनक

i. संसद के पररसीमन अयोग ऄवधवनयम के अधार पर सम्पूणा देश में वनिााचन क्षेत्र के प्रादेवशक
क्षेत्रों का वनधाारण करना।
ii. मतदाता सूची में संशोधन करना एिं सभी पात्र मतदाताओं का नाम दजा करना।
iii. चुनाि की तारीख और समय-सारणी के संबंध में ऄवधसूचना जारी करना और नामांकन पत्रों
की जांच करना।
iv. राजनीवतक दलों को मान्यता प्रदान करना और ईन्हें चुनाि वचन्हों का अिंिन करना।
v. चुनािी व्यिस्था से संबंवधत वििादों की जांच के वलए ऄवधकाररयों की वनयुवि करना।

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vi. चुनाि के दौरान दलों और ईम्मीदिारों द्वारा पालन करने हेतु अदशा अचार संवहता
वनधााररत करना।
vii. चुनाि पररणामों को प्रभावित करने के ईद्देश्य से हेर-फे र करने, बूथ कै प्चररग, हहसा एिं ऄन्य
ऄवनयवमतताओं की वस्थवत में चुनाि रद्द करना।
viii. राष्ट्रपवत या राज्यपाल से चुनाि के संचालन के वलए अिश्यक कमाचाररयों की ईपलब्धता
सुवनवित कराने हेतु ऄनुरोध करना।
ix. राष्ट्रपवत को आस सम्बन्ध में सलाह देना कक राष्ट्रपवत शासन िाले राज्य में 1 िषा की समावप्त
के पिात् चुनाि का अयोजन कराया जाए ऄथिा नहीं।
x. चुनािों के प्रयोजन के वलए राजनीवतक दलों को पंजीकृ त करना और ईन्हें चुनाि में प्रदशान के
अधार पर राष्ट्रीय या राज्य दलों का दजाा देना।
xi. मतदाता जागरूकता और चुनािी भागीदारी से संबंवधत काया करना।
(b) सलाहकारी और ऄद्धान्यावयक
 संविधान द्वारा वनिााचन अयोग को, संसद और राज्य विधानमंडल के सदस्यों की ऄयोग्यता
(वनहारता) से संबंवधत सलाहकारी ऄवधकार भी प्रदान ककये गए हैं। आसके ऄवतररि ईच्चतम
न्यायालय और ईच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कइ मामले चुनाि में भ्रष्ट अचरण के दोषी पाए गए
व्यवियों से सम्बंवधत होते हैं। ऐसे मामले भी अयोग के पास आसकी राय जानने के वलए प्रेवषत
ककए जाते हैं। अयोग आस सम्बन्ध में ऄपनी राय व्यि करता है कक क्या ऐसे व्यवि को ऄयोग्य
घोवषत ककया जाए और यकद हां तो ककतनी ऄिवध के वलए। ईन सभी मामलों में राष्ट्रपवत ऄथिा
राज्यपाल (वजनके समक्ष अयोग द्वारा ऄयोग्यता और ईसकी ऄिवध के सम्बन्ध में राय प्रस्तुत की
गइ हो) अयोग की राय के ऄनुसार ही काया करते है।
 अयोग के पास ऐसे ककसी भी ईम्मीदिार को ऄयोग्य घोवषत करने का ऄवधकार है, जो समय
सीमा के भीतर और कानून द्वारा वनधााररत तरीके से ऄपने चुनािी खचा का लेखा-जोखा दजा कराने
में विफल रहा है। अयोग के पास आस प्रकार ऄयोग्य ठहराए गए व्यवि की ऄयोग्यता की ऄिवध
तय करने एिं कानून के तहत ऄन्य ऄयोग्यता संबंवधत मामले को न्यून करने या समाप्त करने का
ऄवधकार भी है।
 यह राजनीवतक दलों को मान्यता प्रदान करने और ईन्हें चुनाि वचह्न प्रदान करने से सम्बंवधत
ककसी वििाद के वनपिारे हेतु एक न्यायालय की भाँवत काया करता है।
1.4 वनिाा च न अयोग का प्रदशा न और योगदान

जब भारत में राजनीवतक समानता के वसद्धांत को ऄपनाया गया तब आस प्रयोग की सफलता को लेकर
कइ प्रश्न ईठाए गए थे। ककन्तु वनिााचन अयोग की इमानदारी और कताव्यवनष्ठा ने समय-समय पर
अलोचकों को ईवचत प्रत्युत्तर देने में एक महत्िपूणा भूवमका वनभाइ । आसके साथ ही अयोग द्वारा ईठाए
गए विवभन्न कदमों ने लोकतंत्र को मजबूत बनाने का भी काया ककया है। वनिााचन अयोग ने स्ितंत्र और
वनष्पक्ष चुनाि के अयोजन में महत्िपूणा भूवमका वनभाइ है। आस सम्बन्ध में अयोग द्वारा कु छ महत्िपूणा
कदम ईठाये गए जो वनम्नवलवखत हैं:
1. चुनािी धोखाधडी को रोकने के वलए 1993 में मतदाता फोिो पहचान पत्र (EPICs) जारी ककए
गए थे। 2004 के चुनािों से आसे ऄवनिाया कर कदया गया।
2. चुनािों की विश्वसनीयता और कायाकुशलता में सुधार के वलए आलेक्रॉवनक िोरिग मशीनों
(EVMs) का प्रयोग ककया गया।
3. ईम्मीदिारों के विरुद्ध लंवबत अपरावधक मामलों और संपवत्त की घोषणा करते हुए नामांकन फॉमा
दावखल करना ऄवनिाया कर कदया गया।
4. राज्य सरकार के स्िावमत्ि िाले आलेक्रॉवनक मीवडया को प्रसारण के सम्बन्ध में नए कदशा-वनदेश
जारी ककए गए।
5. कं प्यूिरीकृ त मतदाता सूची का अरम्भ।
6. अदशा अचार संवहता के बेहतर प्रितान के वलए विवभन्न ईपाय।

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1.5 वनिाा च न अयोग की पररिर्ततत भू वमका


बदलते भारतीय राजनीवतक पररिेश के अधार पर वनिााचन अयोग ने भी ऄपनी भूवमका में पररितान
ककया है। अयोग ने देश की लोकतावन्त्रक प्रकक्रया एिं प्रणाली के समक्ष ईत्पन्न निीनतम चुनौवतयों की
पृष्ठभूवम में ऄनेक सुधार एिं ऄनुशंसाएं की हैं । आनमें से प्रमुख वनम्नवलवखत है-
 दोषी नेताओं के चुनाि लडने पर अजीिन प्रवतबंध; वनिााचन अयोग (EC) ने सुप्रीम कोिा में
दायर की गइ एक जनवहत यावचका का समथान ककया है। आस यावचका में दोषी राजनेताओं पर
चुनाि लडने और विधावयका में प्रिेश करने पर अजीिन प्रवतबंध लगाने की मांग की गइ है। EC
का मानना है कक आस तरह के प्रवतबंध संविधान के मूल ऄवधकारों की भािना तथा ऄिसर की
समानता के वसद्धांत के ऄनुरूप हैं।
 अय का स्िैवछक प्रकिन: वनिााचन अयोग ने यह सुझाि कदया है कक नामांकन पत्र प्रस्तुत ककये
जाने के समय प्रत्याशी स्ियं, पत्नी और अवश्रतों सवहत सभी की अय के स्रोतों का प्रकिन करें । आन
सुझािों को सरकार ने भी ऄपनी स्िीकृ वत प्रदान कर दी है। आन सुझािों के ऄनुरूप जन
प्रवतवनवधत्ि ऄवधवनयम के वनयमों में संशोधन भी ककया गया है।
 मुफ्त ईपहार पर वनयंत्रण: वनिााचन अयोग ने सरकार से ऄज्ञात स्रोतों से राजनीवतक दलों को
वमलने िाली 2000 रूपये से ऄवधक की रावश को प्रवतबंवधत करने िाला संशोधन क़ानून लाने का
वनदेश कदया।
o संघीय बजि 2017-18 में राजनीवतक दलों के वित्त पोषण में पारदर्तशता लाने के वलए कु छ
सुधारों की घोषणा की गइ है।
 चुनाि व्यय: चुनाि अयोग ने मध्यप्रदेश के मंत्री नरोत्तम वमश्रा को चुनाि खचा खातों में गलत
वििरण दजा करने के कारण तीन िषा के वलए ऄयोग्य घोवषत कर कदया है। ईनकी सदस्यता जन
प्रवतवनवधत्ि ऄवधवनयम, 1951 की धारा 10A के तहत रद्द कर दी गइ ।
 पेड न्यूज: 2010 के प्रारम्भ में चुनाि अयोग ने वजला और राज्य ऄवधकाररयों को पेड न्यूज के
मामलों की जांच, पहचान और ररपोिा करने के वनदेश जारी ककये हैं।
 चुनाि अयोग ने पेड न्यूज की जाँच के वलए वजला और राज्य स्तर पर एक मीवडया प्रमाणन एिं
वनगरानी सवमवत (Media Certification & Monitoring Committee: MCMC) वनयुि की
है।
 अचार संवहता: वनिााचन अयोग द्वारा अदशा अचार संवहता (MCC) में धारा 8 को जोडते हुए
यह िर्तणत ककया गया है कक चुनाि घोषणा-पत्र में संविधान के अदशों के विरुद्ध कु छ भी नहीं
होना चावहए बवल्क घोषणा-पत्र को अदशा अचार संवहता की भािना के ऄनुरूप होना चावहए।
 पारदर्तशता, समान ऄिसर और िादों की विश्वसनीयता के साथ ही यह ऄपेक्षा भी की जाती है कक
घोषणा-पत्र का स्िरुप तार्ककक हो ऄथाात् आसमें ककये गए िादों को पूरा करने के वलए वित्तीय
साधनों और स्रोतों का भी ईल्लेख ककया गया हो।
 VVPATs: 2019 में होने िाले लोकसभा चुनाि में EVMs (आलेक्रावनक िोरिग मशीन) में
ईपयोग ककए जाने हेतु िोिर िेररफाआबल पेपर ऑवडि रेल्स (Voter Verifiable Paper Audit
Trails: VVPATs) की 16.15 लाख यूवनि की खरीद के वलए कें द्र सरकार ने चुनाि अयोग को
3,174 करोड रुपये के अिंिन की स्िीकृ वत दे दी है।
o चुनाि प्रकक्रया में VVPATs मशीन के प्रयोग से कागजी ऑवडि द्वारा EVM पररणामों का
पुनपारीक्षण (क्रॉस-चेककग) संभि हो जाता है। आसके फलस्िरूप देश में ही ईत्पाकदत EVMs
को और ऄवधक जिाबदेह बनाया जा सकता है।
 NOTA: आलेक्रॉवनक िोरिग मशीनों (EVM) पर ईपलब्ध प्रत्यावशयों की सूची में NOTA भी
एक विकल्प है। यकद कोइ मतदाता ककसी चुनाि में राजनीवतक दलों द्वारा प्रस्तुत ककए गए
प्रत्याशी से संतुष्ट नहीं है तो िह NOTA के माध्यम से ऄपना ऄसंतोष दजा करा सकता है।

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 ऄिमानना के विरुद्ध शवि: वनिााचन अयोग (EC) ने विवध मंत्रालय से वनिााचन संबंधी कानूनों

में संशोधन करने का ऄनुरोध ककया है। आस संशोधन के माध्यम से वनिााचन अयोग द्वारा,
वनराधार अरोप लगाने िाले व्यवियों के विरुद्ध कं िेम्प्ि ऑफ़ कोिा एक्ि (न्यायालय की
ऄिमानना) के प्रयोग की शवियों की भी मांग की गइ है।
 ऄन्य अयुिों की स्ितंत्रता: वनिााचन अयोग द्वारा यह मांग की गइ है कक कानून या सरकार के
ककसी ऄन्य प्रस्ताि द्वारा यह प्रािधान ककया जाए कक िररष्ठतम चुनाि अयुि को स्ित: ही मुख्य
चुनाि अयुि के पद पर पदोन्नत ककया जाए। वजसके माध्यम से ऄन्य चुनाि अयुिों में सुरक्षा की
भािना ईत्पन्न की जा सके और ईन्हें मुख्य चुनाि अयुि की भांवत ही कायाकारी हस्तक्षेप से सुरक्षा
प्रदान की जा सके ।
ऄन्य सुधार
 ECI द्वारा हप्रि मीवडया को जन प्रवतवनवधत्ि ऄवधवनयम की धारा 126 के ऄंतगात सवम्मवलत ककये

जाने की मांग की गइ है। आस धारा के ऄंतगात आलेक्रॉवनक मीवडया (िीिी, रे वडयो) पर मतदान

समाप्त होने के समय से 48 घंिे पूिा की वनधााररत ऄिवध के दौरान राजनीवतक दलों द्वारा
विज्ञापनों को प्रकावशत करने पर रोक लगायी गइ है। हाल ही में आसमें आलेक्रॉवनक मीवडया के
साथ ही सोशल मीवडया को भी शावमल ककया गया है।
 ECI ने धन-बल के प्रभाि को सीवमत करने के वलए जन प्रवतवनवधत्ि ऄवधवनयम में, चुनािों को

स्थवगत या रद्द करने की विवशष्ट शवियों को सवम्मवलत करते हुए, संशोधन की मांग की है।
ितामान समय में आस ऄवधवनयम में आस विषय से सम्बंवधत कोइ विशेष प्रािधान शावमल नहीं है।
 वनिााचन अयोग का मत है कक, अयोग को संविधान के ऄनुच्छेद-324 के ऄंतगात प्राप्त ऄसाधारण

शवियों का ईपयोग के िल कु छ ही ऄिसरों पर करना चावहए। वनिााचन अयोग ने ऄनुच्छेद-324

का ईपयोग, मुख्यमंत्री की मृत्यु के पिात् चेन्नइ के RK नगर वनिााचन क्षेत्र में वनधााररत ईप-

चुनाि को रद्द करने के वलए ककया था।

2. सं घ लोक से िा अयोग
संघ लोक सेिा अयोग भारत में के न्द्रीय भती ऄवभकरण है। यह एक स्ितंत्र संिैधावनक संस्था है।
वजसके कायों और शवियों का वििरण संविधान के 14 िें भाग में ऄनु. 315 से 323 में ककया गया है।
आसका संबंध ऄवखल भारतीय सेिाओं और के न्द्रीय सेिाओं हेतु ग्रुप ए और ग्रुप बी के ऄवधकाररयों की
भती से संबंवधत ऄनुशंसा करने से है। आसके ऄवतररि यह सरकार द्वारा मांगे जाने पर प्रोन्नवत और
ऄनुशासनात्मक मामलों में परामशा देती है।

2.1 सं र चना और वनयु वि

भारत के राष्ट्रपवत द्वारा UPSC में एक ऄध्यक्ष और ऄन्य सदस्यों की वनयुवि की जाती है। संविधान ने

अयोग के सदस्यों की संख्या को वनर्कदष्ट नहीं ककया है और आसे राष्ट्रपवत के वििेकाधीन रखा गया है।

सामान्यतया अयोग में एक ऄध्यक्ष एिं 9 से 11 सदस्य होते हैं।

अयोग के सदस्यों के वलए कोइ विवशष्ट योग्यता वनधााररत नहीं की गइ है, वसिाय आसके कक अयोग के

अधे सदस्यों ने 10 िषों तक भारत सरकार या ककसी राज्य सरकार के ऄधीन काया ककया हो। संविधान
द्वारा राष्ट्रपवत को अयोग के ऄध्यक्ष और सदस्यों की सेिा-शतों का वनधाारण करने के वलए ऄवधकृ त
ककया गया है। ऄध्यक्ष और सदस्य 6 िषा या 65 िषा की अयु (जो भी पहले पूरा हो) तक ऄपने पद पर
बने रहते हैं।

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2.2 सं घ लोक से िा अयोग की स्ितं त्र ता

विवभन्न सरकारी पदों पर भती करते समय UPSC एक प्रहरी के रूप में काया करता है। आसकी
स्ितंत्रता सुवनवित करने के वलए संविधान द्वारा वनम्नवलवखत प्रािधान ककए गए हैं:

1. अयोग के ऄध्यक्ष या ककसी सदस्य को संविधान में ईवल्लवखत तरीके से ही राष्ट्रपवत द्वारा पदमुि
ककया जा सकता है। िे पररवस्थवतयाँ वजनके तहत आन सदस्यों को पद से हिाया जा सकता है,
वनम्नवलवखत हैं:
(a) यकद ईसे कदिावलया घोवषत कर कदया जाता है,

(b) यकद िह कोइ लाभ का पद धारण करता है,

(c) यकद िह मानवसक और शारीररक ऄसक्षमता के कारण पद पर बने रहने योग्य नहीं है।
आसके ऄवतररि, राष्ट्रपवत UPSC के ऄध्यक्ष और ऄन्य सदस्यों को वसद्ध कदाचार के अधार पर भी पद

से हिा सकता है। हालाँकक, ऐसे मामलों में राष्ट्रपवत के वलए यह अिश्यक है कक िह आस मामले को
जाँच के वलए ईच्चतम न्यायालय के पास प्रेवषत करे । आस सम्बन्ध में ईच्चतम न्यायालय द्वारा कदया गया
परामशा राष्ट्रपवत के वलए बाध्यकारी होता है। आस प्रािधान के द्वारा UPSC के सदस्यों को कायाकाल
की सुरक्षा प्रदान की गयी है।
2. यद्यवप ऄध्यक्ष और सदस्यों के सेिा की शतों का वनधाारण राष्ट्रपवत द्वारा ककया जाता है ककन्तु
वनयुवि के पिात आसमें कोइ ऄलाभकारी पररितान नहीं ककया जा सकता है।
3. UPSC के ऄध्यक्ष और ऄन्य सदस्यों के िेतन, भत्ते और पेंशन सवहत सभी व्यय भारत की संवचत
वनवध पर भाररत होते हैं। आस प्रकार ईन पर संसद में मतदान नहीं ककया जा सकता।
4. संघ लोक सेिा अयोग का ऄध्यक्ष ऄपने कायाकाल के बाद भारत सरकार या राज्य सरकार के
ऄधीन ककसी और वनयोजन का पात्र नहीं होता है।
5. UPSC का कोइ सदस्य (कायाकाल के बाद) संघ लोक सेिा अयोग का ऄध्यक्ष या राज्य लोकसेिा

अयोग के ऄध्यक्ष के रूप में वनयुि होने का पात्र होगा, ककन्तु िह भारत सरकार या ककसी राज्य
सरकार के ऄधीन वनयोजन का पात्र नहीं होगा।
6. UPSC के ऄध्यक्ष या सदस्य ईसी पद पर पुनर्तनयुवि के वलए पात्र नहीं होते हैं।

2.3 काया और ईत्तरदावयत्ि

1. प्रवतयोगी परीक्षाओं के माध्यम से ऄवखल भारतीय सेिाओं और संघ के ऄधीन विवभन्न पदों के
वलए भर्ततयाँ करिाना।
2. वनयुवि के वलए ऄवधकाररयों की ईपयुिता के साथ-साथ पदोन्नवत और प्रवतवनयुवि हेतु
स्थानांतरण के संबंध में सलाह देना।
3. यह दो या ऄवधक राज्यों के ऄनुरोध पर ऐसी ककसी सेिा के वलए संयुि भती योजनाओं की
रूपरे खा का वनमााण और ईसके पररचालन में राज्यों की सहायता करता है, वजसमें ईम्मीदिारों के
वलए विशेष योग्यता रखना अिश्यक हो।
4. विवभन्न वसविल सेिाओं से संबंवधत ऄनुशासनात्मक मामले।
5. पेंशन, कानूनी खचा की प्रवतपूर्तत, अकद के दािे से संबंवधत विविध मामले।

ईच्चतम न्यायालय ने यह व्यिस्था की है कक यकद सरकार ईपयुाि मामलों में संघ लोक सेिा अयोग से
परामशा लेने में विफल रहती है, तो ऄसंतुष्ट लोक सेिक की समस्या का वनिारण न्यायालय द्वारा नहीं
ककया जा सकता है । आस प्रकार ये प्रािधान के िल वनदेश हैं न कक ऄवनिाया।

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आन कायों के ऄवतररि, संघ लोक सेिा अयोग के ऄवधकार क्षेत्र को संसद द्वारा बढ़ाया जा सकता है।
संघ लोक सेिा अयोग राष्ट्रपवत के पास ऄपने कायों से संबंवधत िार्तषक ररपोिा प्रस्तुत करता है वजसे
राष्ट्रपवत संसद के दोनों सदनों के समक्ष प्रस्तुत कराता है। आस तरह की ररपोिा के साथ-साथ सरकार को
भी अयोग के सलाह को स्िीकृ त न करने की दशा में स्पष्टीकरण देते हुए एक ज्ञापन प्रस्तुत करना होता
है। आसके ऄलािा, ऐसी ककसी गैर स्िीकृ त ररपोिा को कें द्रीय मंवत्रमंडल की वनयुवि सवमवत द्वारा

ऄनुमोकदत ककया जाना चावहए। ध्यातव्य है कक आस पररप्रेक्ष्य में ककसी मंत्रालय और विभाग को UPSC
की सलाह को ऄस्िीकार करने की शवि नहीं है।

2.4 सीमाएँ एिं कवमयाँ

UPSC के िल एक कें द्रीय भती ऄवभकरण है। सेिाओं के िगीकरण, िेतन और सेिा-शतें, कै डर प्रबंधन,

प्रवशक्षण, अरक्षण, अकद आसके कक्रयाकलाप से संबंवधत नहीं है। राष्ट्रपवत कु छ वनवित पदों, सेिाओं और
मामलों को संघ लोक सेिा अयोग के दायरे से हिा सकता है। यहां तक कक राष्ट्रपवत ऄवखल भारतीय
सेिाओं और कें द्रीय सेिाओं के संबंध में, ऐसे मामले वजसमें संघ लोक सेिा अयोग से परामशा ककया

जाना अिश्यक नहीं हो, को सूचीबद्ध करने के वलए वनयमन बना सकते हैं। हालाँकक, आस तरह के

वनयमन को संसद के प्रत्येक सदन में कम से कम 14 कदन के वलए रखा जाएगा और संसद को आसमें
संशोधन या आसे वनरस्त करने का ऄवधकार भी प्रदान ककया गया है।
संघ लोक सेिा अयोग की भूवमका न के िल सीवमत है, बवल्क आसकी वसफाररशें सलाहकारी प्रकृ वत की
है और आसवलए सरकार के वलए बाध्यकारी नहीं है। आसकी वसफाररशों को मानना या न मानना कें द्र
सरकार पर वनभार है। आस सन्दभा में एकमात्र रक्षोपाय यह है कक अयोग द्वारा संसद के समक्ष रखी गइ
वसफाररशों के प्रवत सरकार की जिाबदेही होती है।

2.5 सं घ लोक से िा अयोग का प्रदशा न

संघ लोक सेिा अयोग को देश की सिाश्रेष्ठ प्रवतभाओं को अकर्तषत करने और समाज के सभी िगों और
क्षेत्रों के लोगों को लोक सेिा में ऄवधक प्रवतवनवधत्ि देने की दोहरी चुनौती से जूझना पडता है। आस क्षेत्र
में संघ लोक सेिा अयोग ने ऄच्छा प्रदशान ककया है और कु छ वनम्नवलवखत महत्िपूणा पहलें की हैं:
1. अठिीं ऄनुसच
ू ी में ईवल्लवखत सभी भाषाओं में वसविल सेिा परीक्षा का संचालन।
2. एक प्रभािी और इमानदार सािाजवनक सेिा की मांगों के ऄनुरूप, परीक्षा पैिना में समय-समय पर
अिश्यक सुधारों पर ध्यान देना।
3. फॉमा भरने, प्रिेश पत्र जारी करने, वशकायत वनिारण, अकद के वलए सूचना प्रौद्योवगकी के प्रयोग
पर बल देना।
संघ लोक सेिा अयोग ने परीक्षा प्रकक्रया में इमानदारी, प्रवतस्पधाा और सृजनात्मकता के ईच्च मानकों
को बनाए रखा है। आसकी सफलता को िैवश्वक स्तर पर मान्यता दी गइ है और मलेवशया जैसे कइ देशों
के लोक सेिा अयोगों ने ऄपनी लोक सेिा भती प्रकक्रयाओं में सुधार करने के वलए संघ लोक सेिा
अयोग का सहयोग वलया है।
ककन्तु, संघ लोक सेिा अयोग की अलोचना आस रुप में की जाती है कक यह पारदर्तशता को बढ़ािा नहीं
देना चाहता। यह कि-ऑफ और ईम्मीदिारों के प्राप्तांकों के विषय में ऄंवतम पररणाम की पूिा सूचना
देने से मना करता है। हालाँकक, हाल ही में पारदर्तशता से संबंवधत कु छ सुधार ककए गए हैं और परीक्षा
प्रकक्रया को ऄवधक छात्र-ऄनुकूल बनाया गया है।

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3. राज्य लोक से िा अयोग


राष्ट्रीय स्तर पर संघ लोक सेिा अयोग के समान राज्य स्तर पर राज्य लोक सेिा अयोगों का प्रािधान
ककया गया है। संविधान ने “योग्यता प्रणाली का प्रहरी” बनने के वलए राज्य स्तर पर राज्य लोक सेिा
अयोग की पररकल्पना की है। यह राज्य सेिाओं के वलए भती की ऄनुशंसा करती है और सलाह मांगे
जाने पर पदोन्नवत एिं ऄनुशासवनक मामलों में सलाह देता है।
 राज्य लोक सेिा अयोग के सदस्यों की वनयुवि राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाती है। संघ लोक
सेिा अयोग के समान ही, राज्य लोक सेिा अयोग की सदस्यता के वलए भी कोइ विवशष्ट योग्यता
वनधााररत नहीं की गइ है। ककन्तु साथ ही यह प्रािधान भी ककया गया है कक अयोग के अधे सदस्य
ऐसे व्यवि होंगे वजन्हें कें द्र सरकार या राज्य सरकार के ऄधीन 10 िषों के कायाकाल का ऄनुभि
हो।
 संविधान ने अयोग के ऄध्यक्ष और सदस्यों की सेिा शतों का वनधाारण करने के वलए राज्यपाल को
ऄवधकृ त ककया है।
 अयोग के ऄध्यक्ष और सदस्य 6 िषा की ऄिवध या 62 िषा की ईम्र (दोनों में से जो भी पहले पूरा
हो) तक पद धारण करते हैं। ईल्लेखनीय है कक संघ लोक सेिा अयोग के मामले में ईम्र सीमा 65
िषा है।

3.1 राज्य लोक से िा अयोग की स्ितं त्र ता

अयोग की स्ितंत्रता सुवनवित करने के वलए विवभन्न प्रािधान ककए गए हैं:


1. यद्यवप राज्य लोक सेिा अयोग के ऄध्यक्ष और सदस्यों की वनयुवि राज्यपाल द्वारा की जाती है,
ककन्तु ईन्हें के िल राष्ट्रपवत द्वारा ही हिाया जा सकता है (न कक राज्यपाल द्वारा)। राष्ट्रपवत ईन्हें
ईसी रीवत से हिा सकता है वजस प्रकार संघ लोक सेिा अयोग के ऄध्यक्ष या सदस्य को हिाया
जाता है।
2. यद्यवप सदस्यों की सेिा-शतें राज्यपाल द्वारा वनधााररत की जाती है ककन्तु वनयुवि के पिात आसमें
कोइ ऄलाभकारी पररितान नहीं ककया जा सकता है।
3. राज्य लोक सेिा अयोग के सभी व्यय राज्य की संवचत वनवध पर भाररत होते हैं।
4. राज्य लोक सेिा अयोग का ऄध्यक्ष ऄपने पद त्याग के पिात या तो संघ लोक सेिा अयोग के
ऄध्यक्ष या सदस्य के रूप में ऄथिा ककसी ऄन्य राज्य लोक सेिा अयोग के ऄध्यक्ष के रूप में
वनयुवि के वलए योग्य है ककन्तु भारत सरकार या राज्य सरकार के ऄधीन ककसी ऄन्य वनयोजन के
वलए िह योग्य नहीं है।
5. आसी प्रकार राज्य लोक सेिा अयोग के सदस्य भी ऄपने पद त्याग के पिात संघ लोक सेिा अयोग
के ऄध्यक्ष ि सदस्य या ककसी ऄन्य राज्य लोक सेिा अयोग के ऄध्यक्ष के पद पर वनयुवि के योग्य
हैं, ककन्तु भारत सरकार या राज्य सरकार के ऄधीन ककसी ऄन्य वनयोजन के वलए नहीं।
6. राज्य लोक सेिा अयोग के ऄध्यक्ष या सदस्य ईसी पद पर पुनर्तनयुवि हेतु योग्य नहीं है।

3.2 काया और ईत्तरदावयत्ि

जो काया संघ लोक सेिा अयोग कें द्रीय सेिाओं के संबंध में करता है, िे सभी काया राज्य लोक सेिा
अयोग राज्य सेिाओं के संबंध में करता है। आन कायों के ऄवतररि, राज्य लोक सेिा अयोग के ऄवधकार
क्षेत्र को राज्य विधानसभा द्वारा बढ़ाया जा सकता है। राज्य लोक सेिा अयोग राज्यपाल के समक्ष
ऄपने कायों से संबंवधत िार्तषक ररपोिा प्रस्तुत करता है, वजसे राज्यपाल राज्य विधानमंडल में प्रस्तुत
करिाता है। आस तरह की ररपोिा के साथ-साथ सरकार द्वारा अयोग की सलाह की गैर-स्िीकृ वत की
दशा को स्पष्ट करते हुए एक ज्ञापन प्रस्तुत करना अिश्यक है।

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3.3 सीमाएँ और कवमयाँ

राज्य लोक सेिा अयोग के िल एक भती ऄवभकरण है और यह सेिाओं के िगीकरण, िेतन और सेिा

शतों, कै डर प्रबंधन, प्रवशक्षण, अरक्षण, अकद मामलों से संबंवधत नहीं है। राज्यपाल कु छ वनवित

पदों, सेिाओं और मामलों को राज्य लोक सेिा अयोग के दायरे से हिा सकते हैं। यहाँ तक कक राज्य

सेिाओं के संबंध में, ऐसे मामले वजसमें राज्य लोक सेिा अयोग से परामशा ककया जाना अिश्यक नहीं

हो ईन्हें सूचीबद्ध करने के वलए राज्यपाल वनयम बना सकते हैं। हालाँकक, आस तरह के वनयमन को राज्य

विधानमंडल में कम से कम 14 कदन के वलए रखा जाएगा और विधानमंडल आसमें संशोधन कर सकती
है या आसे वनरस्त कर सकती है।
राज्य लोक सेिा अयोग की भूवमका न के िल सीवमत है, बवल्क आसकी वसफाररशें के िल सलाहकारी

प्रकृ वत की है। आसवलए िे राज्य सरकार पर बाध्यकारी नहीं है। आसकी वसफाररशों को मानना या न
मानना राज्य सरकार पर वनभार करता है। आस सम्बन्ध में एकमात्र रक्षोपाय यह है कक अयोग द्वारा
राज्य विधानमंडल के समक्ष रखी गईं वसफाररशों के प्रवत सरकार की जिाबदेही होती है।
आसके ऄवतररि, 1964 में राज्य सतका ता अयोग (SVC) के प्रादुभााि ने ऄनुशासनात्मक मामलों में
राज्य लोक सेिा अयोग की भूवमका को प्रभावित ककया। आसका कारण यह है कक ककसी वसविल सेिक
के विरुद्ध ऄनुशासनात्मक कायािाही के दौरान राज्य सरकार द्वारा दोनों से सलाह ली जाती है।

3.4 राज्य लोक से िा अयोग का प्रदशा न


राज्य लोक सेिा अयोगों का प्रदशान वमवश्रत रहा है। कइ राज्य अयोगों ने ऄपनी परीक्षाओं में ईच्च
मानकों को स्थावपत ककया है, िहीं दूसरी ओर कइ ऄन्य राज्य अयोगों के प्रदशान काफी हद तक

भ्रष्टाचार, पारदर्तशता के ऄभाि और ऄवनयवमत परीक्षाओं अकद समस्याओं से वघरे हुए हैं। हाल ही में,
कु छ राज्य लोक सेिा अयोगों ने संघ लोक सेिा अयोग की तजा पर वनयवमत रूप से और पारदशी
तरीके से ऄपनी परीक्षाओं का संचालन अरम्भ ककया है।

4. वित्त अयोग
भारत में संघ एिं राज्यों के वित्तीय संबंधों के सफल संचालन और सुदढ़
ृ ीकरण के वलए सुझाि देने हेतु
संविधान के ऄनु. 280 में वित्त अयोग के गठन का प्रािधान ककया गया है। यह एक ऄद्धा न्यायावयक
वनकाय है। आसका गठन राष्ट्रपवत द्वारा प्रत्येक पाँच िषा में या अिश्यकतानुसार ककया जाता है।

4.1 सं र चना

वित्त अयोग में एक ऄध्यक्ष और 4 ऄन्य सदस्य होते हैं, वजनकी वनयुवि राष्ट्रपवत द्वारा की जाती है।
ईनका कायाकाल राष्ट्रपवत के अदेश के तहत तय होता है और िे पुनर्तनयुवि के वलए ऄहा भी होते हैं।
संविधान ने आन सदस्यों की योग्यता और चयन प्रकक्रया के वनधाारण का ऄवधकार संसद को प्रदान ककया
है। आसी ऄवधकार के ऄंतगात संसद ने यह वनधााररत ककया है कक अयोग के ऄध्यक्ष को सािाजवनक
मामलों में ऄनुभि के अधार पर तथा चार ऄन्य सदस्यों को वनम्नवलवखत योग्यताओं के अधार पर
वनयुि ककया जाना चावहए:
1. ककसी ईच्च न्यायालय का न्यायाधीश या आस पद के वलए योग्य व्यवि।
2. ऐसा व्यवि वजसे सरकार के लेखा एिं वित्त मामलों का विशेष ज्ञान हो।
3. ऐसा व्यवि वजसे प्रशासन और वित्तीय मामलों का व्यापक ऄनुभि हो।
4. ऐसा व्यवि जो ऄथाशास्त्र का ज्ञाता हो।

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4.2 काया
वित्त अयोग भारत के राष्ट्रपवत को वनम्नवलवखत मामलों पर वसफाररशें करता है:
1. संघ और राज्यों के मध्य करों के शुद्ध अगमों का वितरण और राज्यों के मध्य ऐसे अगमों का
अबंिन।
2. भारत की संवचत वनवध से राज्यों के राजस्ि में सहायता ऄनुदान (संविधान के ऄनु. 275 के तहत)
को ऄवभवनधााररत करने िाले वसद्धांत।
3. राज्य वित्त अयोग द्वारा की गइ वसफाररशों के अधार पर राज्य में नगरपावलकाओं और पंचायतों
के संसाधनों की ऄनुपूर्तत हेतु राज्य की संवचत वनवध के संिधान के वलए अिश्यक ईपाय ।
4. राष्ट्रपवत द्वारा सुदढ़ृ वित्त के वहत में वनर्कदष्ट कोइ ऄन्य विषय।
अयोग राष्ट्रपवत को ऄपनी ररपोिा सौंपता है। राष्ट्रपवत आस ररपोिा को आसकी वसफाररशों पर की गइ
कायािाही के व्याख्यात्मक वििरण के साथ, संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत करिाता है। वित्त अयोग की
वसफाररशें सलाहकारी प्रकृ वत की होती हैं। ऄतः आनको मानने के वलए सरकार बाध्य नहीं होती है। यह
कें द्र सरकार पर वनभार करता है कक िह राज्यों को दी जाने िाली सहायता के संबंध में अयोग की
वसफाररशों को लागू करे ।

4.3 योजना अयोग के प्रादु भाा ि का वित्त अयोग पर प्रभाि

संविधान में आस बात की पररकल्पना की गयी है कक भारत में वित्त अयोग राजकोषीय संघिाद के
संतल
ु न-कताा की भूवमका वनभाएगा। हालांकक, योजना अयोग के प्रादुभााि से आसकी भूवमका में कमी
अइ थी। आस ऄिवध के दौरान, आन दोनों संस्थाओं की कायाप्रणाली में स्पष्ट कदशा-वनदेशों की कमी के
कारण ईनके बीच संघषा ऄपेक्षाकृ त ऄवधक रहा है। योजनागत व्यय की जांच और पूज
ं ी के ऄंतरण का
मामला योजना अयोग को सौंप कदया गया था जबकक वित्त अयोग राज्य सरकारों की गैर-योजनागत
अिश्यकताओं का अंकलन और कें द्र से वनिल अय एिं ऄनुदान में वसफाररश करने के वलए ऄवधकृ त है।
आसके फलस्िरूप कइ व्यिहाररक समस्याएँ ईत्पन्न हुईं।
योजना अयोग की समावप्त
नीवत अयोग के गठन के ईपरांत योजना अयोग ऄतीत की एक विषय-िस्तु बन चुका है। ईल्लेखनीय है
कक योजना अयोग में राज्यों के प्रवतवनवधत्ि का ऄभाि था आसवलए राज्य ऄपने सभी योजनागत व्यय
में योजना अयोग से ऄनुमोदन को बाधा के रूप में देखते थे। आन दोनों वनकायों के कायों में सामंजस्य
ऄत्यवधक महत्िपूणा बन गया था और विवभन्न अयोगों यथा- पुंछी अयोग ने भी आस संबंध में सुधार की
वसफाररश की थी।

4.4 14िें वित्त अयोग को सं द र्तभत मु द्दे

ईपयुाि ईवल्लवखत कायों के ऄवतररि, 14िें वित्त अयोग को ऄत्यंत व्यापक संदभा प्रदान ककया गया
था। आनमें से कु छ प्रमुख वनम्नवलवखत हैं:
1. राजकोषीय ईत्तरदावयत्ि एिं बजि प्रबंधन (FRBM) ऄवधवनयम में अिश्यक पररितानों का
सुझाि देना।
2. राज्य सरकार के वित्त पर प्रस्तावित िस्तु एिं सेिा कर (GST) के प्रभाि का अकलन करने और
राजस्ि क्षवत की प्रवतपूर्तत के वलए के एक प्रभािी तंत्र की स्थापना के संबंध में सलाह देना।
3. पेयजल, हसचाइ, विद्युत् और सािाजवनक पररिहन जैसी जनोपयोगी सेिाओं का िैधावनक
प्रािधानों के तहत मूल्य वनधाारण करना ताकक नीवतगत ईतार-चढ़ाि के प्रभाि से आन सेिाओं को
संरक्षण प्रदान ककया जा सके ।
4. समािेशी विकास के वलए अिश्यक ऄनुदान के स्तर को ध्यान रखते हुए कें द्र और राज्यों के बीच
ऄनुदान का समान बंििारा।

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5. राष्ट्रीय ऄनु सू वचत जावत अयोग


संविधान के ऄनुच्छेद 338 के तहत राष्ट्रीय ऄनुसूवचत जावत अयोग का गठन ककया गया है। मूलतः,
ऄनुच्छेद 338 के तहत ऄनुसूवचत जावतयों और ऄनुसूवचत जनजावतयों के वलए एक विशेष ऄवधकारी
की वनयुवि का ईपबंध ककया गया है, जो ऄनुसवू चत जावतयों और ऄनुसूवचत जनजावतयों के
संिैधावनक संरक्षण से संबंवधत सभी मामलों का वनरीक्षण तथा ईनसे संबंवधत प्रवतिेदन राष्ट्रपवत के
समक्ष प्रस्तुत करे ।
 श्रृंखलाबद्ध प्रगवतशील कदमों के पिात, 1990 में, 65िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम को
ऄवधवनयवमत ककया गया। आसके फलस्िरूप ऄनुसूवचत जावतयों और ऄनुसूवचत जनजावतयों के
वलए एक ईच्च स्तरीय बहु-सदस्यीय राष्ट्रीय ऄनुसूवचत जावत एिं ऄनुसूवचत जनजावत अयोग की
स्थापना की गयी।
 पुनः, 89िें संविधान संशोधन ऄवधवनयम, 2003 के द्वारा संयि
ु राष्ट्रीय ऄनुसूवचत जावत और
ऄनुसूवचत जनजावत अयोग को दो पृथक वनकायों में विभावजत कर कदया गया तथा ऄनु. 338 के
ऄंतगात राष्ट्रीय ऄनुसूवचत जावत अयोग और ऄनुच्छेद 338 (A) के ऄंतगात राष्ट्रीय ऄनुसूवचत
जनजावत अयोग नामक दो नए अयोगों का गठन ककया गया।

5.1. सं र चना

राष्ट्रीय ऄनुसूवचत जावत अयोग में एक ऄध्यक्ष, एक ईपाध्यक्ष और तीन ऄन्य सदस्य होते हैं। िे
राष्ट्रपवत के अदेश द्वारा वनयुि होते हैं और ईनकी सेिा-शतों एिं कायाकाल का वनधाारण भी राष्ट्रपवत
द्वारा ककया जाता है। ितामान वनयमों के तहत िे 3 िषा की ऄिवध के वलए पद धारण करते हैं।

5.2 अयोग के काया

1. ऄनुसूवचत जावतयों के संिैधावनक और ऄन्य कानूनी संरक्षण से संबवं धत सभी मामलों का वनरीक्षण
एिं ऄधीक्षण करना तथा ईनके कक्रयान्ियन की समीक्षा करना।
2. ऄनुसूवचत जावतयों के ऄवधकारों के हनन और रक्षोपायों के संबंध में विवशष्ट वशकायतों की जांच-
पडताल करना।
3. ऄनुसूवचत जावत के सामावजक-अर्तथक विकास के विषय में सलाह देना तथा ईनसे संबंवधत
योजनाओं के वनमााण के समय सहभावगता वनभाना और कें द्र ि ककसी राज्य के ऄधीन ईनके
विकास से संबंवधत कायों का मूल्यांकन करना।
4. आनके संरक्षण के संबंध में ईठाए गए कदमों एिं ककए जा रहे कायों के विषय में, प्रत्येक िषा या जब
भी अिश्यक हो, राष्ट्रपवत के समक्ष प्रवतिेदन प्रस्तुत करना।
5. आन संरक्षात्मक ईपायों के संदभा में, कें द्र एिं राज्य सरकारों द्वारा ईठाए गए कदमों की समीक्षा
करना एिं आस संबंध में अिश्यक वसफाररशों तथा ऄनुसूवचत जावतयों के सामावजक-अर्तथक
विकास एिं कल्याण तथा लाभ के वलए प्रयास करना।
अयोग एक िार्तषक ररपोिा राष्ट्रपवत को प्रस्तुत करता है। िह जब भी अिश्यक समझे, ऐसा कर सकता
है। राष्ट्रपवत ऐसी सभी प्रवतिेदनों (ररपोिा) को संसद के समक्ष प्रस्तुत करिाता है। आसके साथ ही अयोग
की वसफाररशों पर की गइ कारा िाइ को स्पष्ट करने िाला एक ज्ञापन भी आनके साथ रखा जाता है। आस
ज्ञापन में अयोग की ककसी वसफाररश को ऄस्िीकृ त करने के कारणों का भी ईल्लेख होना चावहए। आसके
साथ ही, राज्यों से संबंवधत ररपोिा को राष्ट्रपवत, राज्यपाल को प्रेवषत करता हैं। आस ररपोिा को
राज्यपाल राज्य विधानमंडल के समक्ष रखता है। ररपोिा के साथ राज्य से संबंवधत वसफाररशों पर की
गयी कारा िाइ का वििरण भी रखा जाता है।

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5.3 अयोग की शवियाँ


अयोग को ऄपने कायों को सफलतापूिक
ा संपन्न करने के वलए विवभन्न शवियाँ प्रदान की गइ हैं। जब
अयोग ककसी काया की जांच-पडताल या ककसी वशकायत की जांच कर रहा होता है तो आसे दीिानी
न्यायालय की शवियां प्राप्त होती है। ऐसी दशा में अयोग में यावचका दायर की जा सकती है। यह
भारत के ककसी भी भाग से ककसी भी व्यवि को समन जारी करने एिं प्रत्यक्ष हाविर कराने तथा ईसके
शपथ का परीक्षण करने अकद शवियों का प्रयोग कर सकता है। आसके साथ ही यह ककसी न्यायालय या
कायाालय से ककसी लोक ऄवभलेख या ईसकी प्रवत की ऄपेक्षा कर सकता है। संघ और प्रत्येक राज्य
सरकार के वलए यह अिश्यक है कक िे ऄनुसूवचत जावतयों को प्रभावित करने िाले सभी महत्िपूणा
नीवतगत विषयों पर अयोग से परामशा करें ।
अयोग ऄन्य वपछडा िगा और अंग्ल भारतीय समुदाय के मामले में भी ईसी प्रकार काया करता है, वजस
प्रकार िह ऄनुसूवचत जावतयों के वलए काया करता है। दूसरे शब्दों में , अयोग वपछडे िगों एिं अंग्ल
भारतीय समुदाय को संिैधावनक संरक्षण एिं ऄन्य विवधक संरक्षण के संबंध में भी जांच करे गा और आस
संबंध में राष्ट्रपवत को ररपोिा प्रस्तुत करे गा। (आस संबंध में वपछडा िगा के वलए राष्ट्रीय अयोग के ऄवस्तत्ि
में अने के बाद भी राष्ट्रीय ऄनुसूवचत जावत अयोग को संविधान द्वारा सशि ककया गया है।)

6. राष्ट्रीय ऄनु सू वचत जनजावत अयोग


राष्ट्रीय ऄनुसवू चत जावत अयोग के समान ही राष्ट्रीय ऄनुसूवचत जनजावत अयोग भी एक संिैधावनक
वनकाय है। आसका गठन ऄनुच्छेद 338(A) के तहत ककया गया है। आसका संगठन, शवियां और काया
राष्ट्रीय ऄनुसूवचत जावत अयोग के ही समान है। एकमात्र ऄंतर यह है कक यह ऄनुसूवचत जनजावतयों से
संबंवधत मामलों के सन्दभा में काया करता है।
ऄनुसूवचत जनजावतयों के वलए एक पृथक राष्ट्रीय अयोग 2004 में ऄवस्तत्ि में अया। आसमें एक
ऄध्यक्ष, एक ईपाध्यक्ष ि तीन ऄन्य सदस्य होते हैं। िे राष्ट्रपवत द्वारा ईसकी मुहर लगे अदेश द्वारा
वनयुि ककए जाते हैं। ईनकी सेिा-शतें और कायाकाल का वनधाारण भी राष्ट्रपवत द्वारा ही ककया जाता है।
आसके ऄवतररि, राष्ट्रीय ऄनुसूवचत जावत अयोग के समान ही, राष्ट्रीय ऄनुसूवचत जनजावत अयोग को
2005 में वनम्नवलवखत काया सौंपे गए हैं:
1. िन क्षेत्रों में रहने िाले ऄनुसूवचत जनजावतयों के लोगों के वलए लघु िनोपज पर स्िावमत्ि का
ऄवधकार देने संबंधी ईपाय।
2. खवनज संसाधन, जल संसाधन अकद के मामलों में विवध के ऄनुसार जनजातीय समुदायों के
ऄवधकारों को सुरवक्षत रखने संबध
ं ी ईपाय।
3. जनजावतयों के विकास तथा ईनकी ऄवधक िहनीय अजीविका के वलए अिश्यक रणनीवतयों पर
काम करने संबंधी ईपाय।
4. जनजातीय लोगों का भूवम से विलगाि रोकने के ईपाय तथा ईन लोगों का प्रभािी पुनिाास करना
जो पहले ही भूवम से विलग हो चुके हैं।
5. विकास पररयोजनाओं के कारण विस्थावपत जनजातीय समूहों के वलए राहत और पुनिाास ईपायों
की प्रभािकाररता में सुधार संबंधी ईपाय।
6. िन सुरक्षा तथा सामावजक िावनकी में जनजातीय समुदायों का ऄवधकतम सहयोग एिं संलग्नता
प्राप्त करने संबंधी ईपाय।
7. पंचायतों के प्रािधान (ऄनुसूवचत क्षेत्रों पर विस्तार) ऄवधवनयम, 1996 (पेसा) के प्रािधानों का
पूणा कायाान्ियन सुवनवित करने संबंधी ईपाय।
8. जनजावतयों द्वारा झूम खेती के प्रचलन को कम करने तथा ऄंततः समाप्त करने संबंधी ईपाय,
वजसके कारण ईनकी वस्थवत कमजोर होने के साथ-साथ भूवम तथा पयाािरण का क्षरण होता है।

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7. भारत का वनयं त्र क एिं महाले खा परीक्षक


भारत के संविधान के ऄनुच्छेद 148 के तहत वनयंत्रक एिं महालेखा परीक्षक (CAG) के वलए स्ितंत्र
पद की व्यिस्था की गइ है। यह भारतीय लेखा परीक्षण और लेखा विभाग का प्रधान होता है। यह लोक
वित्त का संरक्षक होता है। वित्तीय प्रशासन के क्षेत्र में भारत के संविधान और संसद के क़ानून को ऄक्षुण्ण
बनाये रखना आसका कताव्य है। CAG को भारतीय लोकतांवत्रक व्यिस्था में ईच्चतम न्यायालय,
वनिााचन अयोग और संघ लोक सेिा अयोग के समान ही एक मजबूत स्तम्भ माना जाता है। वनयंत्रक
एिं महालेखा परीक्षक की वनयुवि राष्ट्रपवत द्वारा की जाती है आसका कायाकाल 6 िषा या 65 िषा की
अयु (जो भी पहले पूरा हो) तक होता है।

7.1 स्ितं त्र ता

1. CAG को कायाकाल की सुरक्षा प्रदान की गइ है। आन्हें ईसी रीवत से हिाया जा सकता है जो
ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के वलए वनधााररत की गयी है। आस प्रकार CAG को वसद्ध
कदाचार या ऄक्षमता के अधार पर, राष्ट्रपवत द्वारा संसद के दोनों सदनों के विशेष बहुमत से
पाररत संकल्प के अधार पर ही हिाया जा सकता है। राष्ट्रपवत द्वारा वनयुवि के बािजूद िह
राष्ट्रपवत के प्रसादपयंत पद धारण नहीं करता है।
2. CAG का िेतन एिं ऄन्य सेिा शतें संसद द्वारा वनधााररत होती हैं तथा वनयुवि के पिात आसमें
कोइ ऄलाभकारी पररितान नहीं ककया जा सकता है।
3. ऄपना पद छोडने के बाद िह भारत सरकार या राज्य सरकार के ऄधीन ककसी और पद के वलए
पात्र नहीं होगा।
4. CAG और ईसके कायाालय में सेिा करने िाले व्यवियों के िेतन, भत्ते और पेंशन सवहत समस्त
व्यय भारत की संवचत वनवध पर भाररत होते हैं। आसवलए, संसद में आस पर मतदान नहीं कराया
जा सकता है।
कोइ भी मंत्री, संसद में CAG का प्रवतवनवधत्ि नहीं कर सकता है। आसके ऄवतररि कोइ भी मंत्री ईसके
द्वारा ककए गए कायों की वजम्मेदारी नहीं ले सकता है।

7.2 शवियाँ और कत्ता व्य

संविधान (ऄनुच्छेद 149) संसद को यह ऄवधकार देता है कक िह कें द्र, राज्य, ककसी ऄन्य प्रावधकरण या
संस्था के महालेखा परीक्षक से जुडे लेखा मामलों के सम्बन्ध में प्रािधान वनर्तमत करे । आसी के अधार
पर, संसद ने महालेखा परीक्षक (कताव्य, शवियाँ एिं सेिा शतें) ऄवधवनयम, 1971 को प्रभािी बनाया।
आस ऄवधवनयम को 1976 में कें द्र सरकार के लेखा परीक्षा से लेखा को ऄलग करने हेतु संशोवधत ककया
गया। हालाँकक, राज्य सरकारों के वलए लेखा परीक्षा और लेखा दोनों का प्रबंधन CAG द्वारा ककया
जाता है।
वनयंत्रक एिं महालेखा परीक्षक की शवियां एिं कताव्य वनम्नवलवखत हैं:
1. िह भारत की संवचत वनवध, अकवस्मकता वनवध और भारत के लोक लेखा; प्रत्येक राज्य और कें द्र
शावसत प्रदेश (जहाँ ऐसी वनवधयां हैं) की संवचत वनवध, अकवस्मकता वनवध और लोक लेखा से
संबंवधत सभी व्ययों का लेखा परीक्षण करता है।
2. िह कें द्र और प्रत्येक राज्य की प्रावप्तयों एिं व्यय का लेखा परीक्षा स्ियं को यह संतुष्ट करने के वलए
करता है कक राजस्ि के कर वनधाारण, संग्रहण और ईवचत अिंिन पर प्रभािी वनगरानी सुवनवित
करने हेतु वनयम और प्रकक्रयाएं वनर्तमत की गइ हैं।
3. िह राष्ट्रपवत या राज्यपाल के वनिेदन पर ककसी ऄन्य प्रावधकरण के लेखाओं का भी लेखा परीक्षण
करता है।

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4. िह वनम्नवलवखत की प्रावप्तयों और व्ययों का लेखा परीक्षण करता है:


(a) कें द्र या राज्य सरकारों के राजस्ि से वित्तपोवषत सभी वनकाय एिं प्रावधकरण।
(b) सरकारी कं पवनयां; और
(c) जब संबंद्ध वनयमों के ऄंतगात अिश्यक हो तब ऄन्य वनगमों एिं वनकायों का लेखा परीक्षण ।
5. िह राष्ट्रपवत को आस संबंध में सलाह देता है कक कें द्र और राज्यों के लेखा ककस प्रारूप में रखे जाने
चावहए।
6. िह कें द्रीय लेखा से संबंवधत िार्तषक ररपोिा राष्ट्रपवत को सौंपता है। राष्ट्रपवत आस ररपोिा को संसद
के पिल पर रखिाता हैं। ठीक आसी प्रकार िह राज्य लेखा से संबवं धत ररपोिा राज्यपाल को सौंपता
है जो ईसे विधानमंडल के पिल पर रखिाते हैं।
7. िह ककसी कर या शुल्क की शुद्ध अगमों का वनधाारण और प्रमाणन करता है और आस संबंध में
ईसका प्रमाण पत्र ऄंवतम होता है। ‘शुद्ध अगम’ का ऄथा है कर या शुल्क की कु ल प्रावप्तयों में से
संग्रहण की लागत को घिाकर प्राप्त होने िाला ऄंश।
8. िह राज्य सरकार के खातों का संकलन और ऄनुरक्षण करता है। पहले CAG ही कें द्र सरकार के
लेखाओं के संकलन और ऄनुरक्षण के वलए ईत्तरदायी था, ककन्तु 1976 के पिात ईसे आस
वजम्मेदारी से मुि कर कदया गया है।
9. िह संसद की लोक लेखा सवमवत के वमत्र और मागादशाक के रुप में काया करता है, यह सवमवत संसद
की ओर से विस्तृत वित्तीय वनयंत्रण रखती है।
CAG राष्ट्रपवत को तीन लेखा परीक्षा प्रवतिेदन प्रस्तुत करता है- विवनयोग लेखाओं पर परीक्षण ररपोिा,
वित्त लेखाओं पर लेखा परीक्षण ररपोिा और सरकारी ईपक्रमों पर लेखा परीक्षण ररपोिा। राष्ट्रपवत आन
प्रवतिेदनों को संसद के दोनों सदनों के सभा पिलों पर रखता है। आसके ईपरांत, लोक लेखा सवमवत
प्रथम दो प्रवतिेदनों की जांच करती है।सािाजवनक क्षेत्र के ईपक्रमों पर प्रस्तुत ररपोिा को सािाजवनक
ईपक्रम संबंधी सवमवत के पास भेजा जाता है। जांच के बाद लोक लेखा सवमवत जांच के वनष्कषों से
संसद को ऄिगत कराती है।

7.3 CAG द्वारा वनभाइ गइ भू वमका

वित्तीय प्रशासन के क्षेत्र में भारत के संविधान एिं संसदीय विवध के ऄनुरक्षण के प्रवत महालेखा परीक्षक
की भूवमका महत्िपूणा होती है। वित्तीय प्रशासन के संबंध में कायापावलका (मंत्री पररषद) की जिाबदेही
CAG के लेखा परीक्षण के माध्यम से सुवनवित की जाती है।CAG, संसद के एजेंि के रूप में भी काया
कर सकता है और के िल आसके प्रवत ही जिाबदेह होता है।
ऄपने लेखा परीक्षण के क्रम में CAG यह जांच करता है कक विवधक रुप में वजस प्रयोजन हेतु धन
अिंरित ककया गया था, िह ईसी प्रयोजन या सेिा हेतु व्यय ककया गया है ऄथिा नहीं। आस तरह के
लेखा परीक्षण को विवधक या विवनयामक लेखा परीक्षण कहते हैं। विवधक या विवनयामक लेखा परीक्षण
के ऄवतररि, CAG औवचत्य लेखा परीक्षण भी करता है, ऄथाात िह सरकारी व्यय की प्रासंवगकता,
वनष्ठा और वमतव्यवयता की भी जांच कर सकता है और ऐसे व्यय की वनरथाकता और कफजूलखची पर
रिप्पणी भी कर सकता है।
यकद CAG के कायों पर दृवष्ट डालें तो ज्ञात होगा कक वनयंत्रक एिं महालेखा परीक्षक का नाम आसके
वलए ईपयुि नहीं है , क्योंकक व्यिहार में CAG के िल महालेखा परीक्षक की भूवमका का ही वनिााह
करता है न कक वनयंत्रक की। दूसरे शब्दों में, भारत की संवचत वनवध से धन की वनकासी पर CAG का
कोइ वनयंत्रण नहीं है और ईसकी भूवमका के िल लेखा परीक्षण के स्तर पर है। जबकक वििेन में, जहाँ
CAG की भूवमका महालेखा परीक्षक तथा वनयंत्रक दोनों की है, िहाँ कायापावलका के िल CAG की
स्िीकृ वत से ही सािाजवनक कोष से धन वनकाल सकती है।

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CAG ने संसद के प्रवत कायापावलका की वित्तीय जिाबदेही को सुवनवित करने में महत्िपूणा भूवमका

वनभाइ है। CAG की निीनतम ररपोिा में, 2-G स्पेक्रम वबक्री और कोयला ब्लॉकों के अिंिन अकद में
कइ व्यिस्थागत खावमयों और ऐसे ऄन्य तथ्यों को प्रकाश में लाया गया है वजससे सरकारों के समक्ष
और ऄवधक पारदर्तशता तथा जिाबदेही के साथ काया करने की चुनौती ईत्पन्न हुइ है। यद्यवप यह ररपोिा
कायापावलका पर बाध्यकारी नहीं हैं, ककन्तु ऐसी ररपोिा जनता के धन की बबाादी के संदभा में,
कायापावलका को ईत्तरदायी ठहराने हेतु एक तंत्र प्रदान करती हैं।

7.4 वििाद एिं अलोचनाएँ

7.4.1 CAG के पास दं डात्मक एिं वनयं त्र णात्मक शवियों का ऄभाि

वनयंत्रण शवि की कमी के कारण (ऄमेररका और वििेन के राष्ट्रीय लेखा परीक्षक की तुलना में) CAG

के िल एक परामशादाता की भूवमका वनभाता है। ककन्तु यह प्रतीकात्मक वनकाय नहीं है। आसके द्वारा
प्रस्तुत ररपोिा सािाजवनक जागरूकता ईत्पन्न करती है और सरकारों पर कारिाइ करने के वलए दबाि
बनाती है। आसकी ररपोिा कायापावलका के उपर संसदीय वनयंत्रण को मजबूत बनाती है जो संसदीय
लोकतंत्र की नींि है।
जब CAG विवभन्न विभागों से जानकारी की मांग करता है, तो ईस तक जानकारी पहुँचने में काफी

विलम्ब होता है और ऐसी कोइ व्यिस्था नहीं है वजससे CAG ऄपने अदेश को कायाावन्ित करा सके ।

ऄतः यह सुझाि भी कदया गया है कक 1971 के CAG ऄवधवनयम में संशोधन कर सरकार द्वारा

जानकारी प्रस्तुत करने में देरी के मामले में CAG को दंडात्मक शवियां प्रदान की जानी चावहए।

7.4.2 क्या CAG जनोपयोगी (यू रिवलिी) कं पवनयों का ले खा परीक्षण कर सकता है ?

आस मुद्दे पर पयााप्त बहस हो चुकी है कक क्या CAG वबजली वितरण कं पवनयों और सािाजवनक-वनजी

भागीदारी पररयोजनाओं का लेखा परीक्षण कर सकता है? CAG ऄवधवनयम में स्पष्टता के ऄभाि में,

CAG ऑवडि के वलए कोइ सीमा वनधााररत नहीं की गइ है। यह माना जाता है कक CAG ऐसे ईद्यम,

वजसमें सरकार की वहस्सेदारी 50% से ऄवधक हो, की लेखा परीक्षा की शवि रखता है।

7.4.3 क्या CAG को बहु-सदस्यीय वनकाय होना चावहए?

CAG से संबंवधत एक ऄन्य वििाद यह है कक क्या वनिााचन अयोग के समान आसे भी बहु-सदस्यीय

वनकाय होना चावहए और साथ ही क्या CAG की वनयुवि व्यापक अधार पर बने कॉलेवजयम के तहत

होनी चावहए? ऐसे विचार ऄवधकांशतः CAG द्वारा प्रकावशत विवभन्न ररपोिों पर सरकार और CAG
के मध्य ईत्पन्न गवतरोध के कारण प्रचाररत ककये गए थे। वनिााचन अयोग के मामले में बहु सदस्यीय
विकल्प को लागू करना सरल था, क्योंकक संविधान बहु-सदस्यीय अयोग का प्रािधान करता है।

हालाँकक, CAG के मामले में आस तरह के संरचनात्मक पररितान को लाने के वलए संिैधावनक संशोधन

की अिश्यकता होगी। ितामान में CAG की सहायता 6 वडप्िी CAGs द्वारा की जाती है। आस प्रकार,

आस संशोधन का ईद्देश्य CAG की वनणायन संरचना में पररितान कर ईसे बहुमत अधाररत बनाना
होगा।

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8. भारत का महान्यायिादी और महावधििा


संविधान के ऄनुच्छेद 76 में देश के सिोच्च कानूनी ऄवधकारी के रूप में महान्यायिादी के पद का
प्रािधान ककया है। महान्यायिादी की वनयुवि राष्ट्रपवत द्वारा की जाती है। ईसमें ईन योग्यताओं का
होना अिश्यक है जो ईच्चतम न्यायालय के ककसी न्यायाधीश की वनयुवि के वलए होती है। दूसरे शब्दों
में, ईसके वलए अिश्यक है कक िह भारत का एक नागररक हो, ईसे ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश के

रूप में काम करने का 5 िषा का ऄनुभि हो या ककसी ईच्च न्यायालय में िकालत का 10 िषों का
ऄनुभि हो ऄथिा राष्ट्रपवत के मतानुसार िह न्यावयक मामलों का जानकार व्यवि हो।
महान्यायिादी के कायाकाल को संविधान द्वारा वनवित नहीं ककया गया है। िह राष्ट्रपवत के प्रसादपयंत
ऄपना पद धारण करता है। आसका तात्पया है कक ईसे राष्ट्रपवत द्वारा ककसी भी समय पद से हिाया जा
सकता है। परं परा के ऄनुसार, जब सरकार त्यागपत्र दे या ईसे बदल कदया जाए तो महान्यायिादी भी

त्यागपत्र दे देता है, क्योंकक ईसकी वनयुवि सरकार की सलाह से होती है। महान्यायिादी सरकारी

कमाचाररयों की श्रेणी में नहीं अता है। आसके ऄवतररि, ईसे वनजी िकालत से रोका नहीं जा सकता।

8.1 काया

भारत सरकार के मुख्य कानूनी ऄवधकारी के रूप में, महान्यायिादी के वनम्नवलवखत कताव्य है:

1. भारत सरकार को विवध संबंधी ऐसे विषयों पर सलाह देना जो राष्ट्रपवत द्वारा ईसे वनर्कदष्ट ककए
गए हों।
2. विवधक प्रकृ वत के ऐसे ऄन्य कताव्यों का पालन करना जो राष्ट्रपवत द्वारा ईसे वनर्कदष्ट ककए गए हों।
3. संविधान या ककसी ऄन्य विवध द्वारा प्रदत्त कृ त्यों का वनिाहन करना।
राष्ट्रपवत ने महान्यायिादी को वनम्नवलवखत काया वनर्कदष्ट ककए हैं:
1. भारत सरकार से संबद्ध सभी मामलों में भारत सरकार की ओर से ईच्चतम न्यायालय में पेश होना।
2. राष्ट्रपवत द्वारा संविधान के ऄनुच्छेद 143 के तहत ईच्चतम न्यायालय को संदर्तभत मामलों में भारत
सरकार का प्रवतवनवधत्ि करना।
ऄपने सरकारी कताव्यों के वनिाहन में महान्यायिादी को भारत के ककसी भी क्षेत्र में ककसी भी ऄदालत में
सुनिाइ का ऄवधकार है। आसके ऄवतररि,महान्यायिादी को संसद के दोनों सदनों में बोलने या
कायािाही में भाग लेने ऄथिा दोनों सदनों की संयि
ु बैठक और संसद की ककसी भी सवमवत में
मतावधकार के वबना भाग लेने का ऄवधकार है। ईसे ऐसी सवमवत के सदस्य के रूप में भी नावमत ककया
जा सकता है। यहां यह ईल्लेखनीय है कक महान्यायिादी मंवत्रमंडल का सदस्य नहीं होता है।
ककसी भी तरह की जरिलता या कताव्य के िकराि से बचने के वलए महान्यायिादी पर वनम्नवलवखत
सीमाएं अरोवपत की गइ हैं:
1. ईसे भारत सरकार के विरुद्ध कोइ सलाह या विश्लेषण नहीं करना चावहए।
2. भारत सरकार की ऄनुमवत के वबना, ईसे ककसी अपरावधक मामले में ककसी ऄवभयुि का बचाि
नहीं करना चावहए।
3. भारत सरकार की ऄनुमवत के वबना,ईसे ककसी वनगम या कं पनी के वनदेशक का पद ग्रहण नहीं
करना चावहए।
महावधििा एिं ऄपर महावधििा भारत सरकार के ऄन्य कानूनी ऄवधकारी हैं। ये महान्यायिादी को
ईसकी अवधकाररक वजम्मेदाररयों को वनभाने में सहायता प्रदान करते हैं। यहां यह ईल्लेखनीय है कक
के िल महान्यायिादी का ही पद, संविधान के ऄनुच्छेद 76 के तहत िर्तणत ककया गया है और
महावधििा एिं ऄपर महावधििा के पद का संविधान में कोइ ईल्लेख नहीं है।

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9. राज्य का महावधििा
कें द्र की संरचना के समान, संविधान ने राज्यों के वलए ऄनुच्छेद 165 के तहत राज्य के महावधििा पद

का प्रािधान ककया है। महावधििा की वनयुवि राज्यपाल द्वारा की जाती है। महावधििा पद के
अकांक्षी व्यवि में ईच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने की योग्यता होनी चावहए। राज्य के संदभा में
ईसके वलए िही शवियां, कताव्य और सेिा शतें वनधााररत की गइ हैं जो कें द्र के मामले में महान्यायिादी

के वलए वनधााररत हैं। िह ऄपने पद पर राज्यपाल के प्रसादपयान्त बना रहता है ऄथाात ईसे राज्यपाल
द्वारा कभी भी हिाया जा सकता है। िह ऄपने पद से त्यागपत्र देकर भी कायामुि हो सकता है।

10. भाषायी ऄल्पसं ख्यक िगों के वलए विशे ष ऄवधकारी


भारतीय संविधान के तहत भाषायी ऄल्पसंख्यकों के संरक्षण हेतु ऄनेक प्रािधान ककये गये हैं। ऄनुच्छेद
350-B में िर्तणत ककया गया है कक भाषायी ऄल्पसंख्यक िगों के वलए एक विशेष ऄवधकारी होगा।

वजसकी वनयुवि राष्ट्रपवत द्वारा की जाएगी।


आसी ऄनुच्छेद के तहत जुलाइ 1957 में, भाषायी ऄल्पसंख्यकों के वलए एक विशेष ऄवधकारी के

कायाालय की स्थापना की गयी। भाषायी ऄल्पसंख्यक अयुि का मुख्यालय आलाहाबाद में और आसके
क्षेत्रीय कायाालय कोलकाता, बेलगाम और चेन्नइ में स्थावपत ककये गये है। प्रत्येक क्षेत्रीय कायाालय का

प्रमुख एक ईप-अयुि को बनाया गया है।

10.1 काया

विशेष भाषायी ऄल्पसंख्यक अयुि का कताव्य होगा कक िह ऄल्पसंख्यक िगों के संरक्षण हेतु संविधान
में शावमल विवभन्न रक्षोपायों से संबंवधत सभी विषयों का ऄन्िेक्षण करते हुए, राष्ट्रपवत को िार्तषक

प्रवतिेदन प्रस्तुत करे ।


राष्ट्रपवत ऐसे प्रवतिेदनों को संसद के दोनों सदनों के समक्ष प्रस्तुत कराएगा तथा सम्बंवधत राज्य
सरकारों को प्रेवषत कराएगा।
आसके ऄवतररि, भाषायी ऄल्पसंख्यक अयुि, ऄल्पसंख्यकों को प्रदत्त संरक्षण से संबंधी राष्ट्रीय और

संिैधावनक योजनाओं के लागू नहीं ककए जाने से जुडी वशकायतों की जाँच करता है। ये मुद्दे भाषायी
ऄल्पसंख्यक समूहों या संगठनों द्वारा राज्य सरकारों एिं कें द्र शावसत प्रदेशों के प्रशासवनक और
राजनीवत के ईच्चतम स्तर से संज्ञान में वलए जाते हैं और अयुि आन वशकायतों को दूर करने के ईपाय
सुझाता है।

11. ऄं त राा ज्यीय पररषद


भारतीय संविधान में सहयोगात्मक संघिाद की ऄिधारणा को मूता स्िरूप प्रदान करने के वलए ऄनेक
ईपकरणों को ऄपनाया गया है। ऄंतरााज्यीय पररषद आनमें से एक प्रमुख ईपकरण है। भारत में शवियों
एिं कायों के वितरण, प्रयोग, क्षेत्रावधकार, अकद के सम्बन्ध में कें द्र तथा राज्यों के मध्य ऄनेक मुद्दे

विद्यमान हैं। कें द्र एिं राज्यों के मध्य वििाकदत मुद्दों के समाधान तथा परस्पर सहयोग में िृवद्ध के
ईद्देश्य से सरकाररया अयोग द्वारा एक स्ितंत्र राष्ट्रीय मंच के रूप में ऄंतरााज्यीय पररषद स्थावपत ककए
जाने की ऄनुशंसा की गयी थी। आस ऄनुशंसा के अधार पर ऄनुच्छेद 263 के तहत राष्ट्रपवत द्वारा मइ

1990 में जारी ककये गए अदेश के तहत ऄंतरााज्यीय पररषद का गठन ककया गया।

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11.1 सं र चना
ऄंतरााज्यीय पररषद् में वनम्नवलवखत सदस्यों को शावमल ककया गया है-
 प्रधान मंत्री (पदेन ऄध्यक्ष)
 सभी राज्यों के मुख्य मंत्री (सदस्य)
 विधान सभा िाले संघ राज्य क्षेत्रों के मुख्य मंत्री और ईन संघ राज्य क्षेत्रों के प्रशासक जहाँ विधान
सभा नहीं है।
 राष्ट्रपवत शासन िाले राज्यों के राज्यपाल
 गृहमंत्री सवहत प्रधानमन्त्री द्वारा नावमत छः कें द्रीय कै वबनेि मंत्री।
11.2 काया

 कें द्र एिं राज्य या विवभन्न राज्यों के मध्य ईत्पन्न वििादों के समाधान के वलए सुझाि देना।
 कें द्र एिं राज्य या विवभन्न राज्यों के साझे वहतों की पहचान तथा ईनकी संिृवद्ध हेतु चचाा करना।
 समन्ियात्मक तथा सहयोगात्मक िातािरण के वनमााण के वलए सुझाि देना।
 नीवतयों तथा कायािावहयों में समन्िय स्थावपत करने के प्रयास करना।
 सामान्य एिं साझे वहतों से सम्बंवधत ईन विषयों पर राज्यों के साथ चचाा करना, वजन्हें आसके
ऄध्यक्ष द्वारा प्रेवषत ककया जाये।
11.3 निीनतम घिनाक्रम

कें द्र सरकार द्वारा ऄक्िू बर 2016 को ऄंतरााज्यीय पररषद अदेश, 1990 के ऄनुच्छेद 2 के तहत
ऄंतरााज्यीय पररषद (ISC) एिं ऄंतरााज्यीय पररषद की स्थायी सवमवत का पुनगाठन ककया गया है।
प्रधानमंत्री की ऄध्यक्षता में गरठत पररषद् में 6 के न्द्रीय मंत्री, सभी राज्यों एिं के न्द्रशावसत प्रदेशों के
मुख्यमंत्री एिं प्रशासकों को सदस्यता प्रदान की गयी जबकक 10 के न्द्रीय मंवत्रयों को आसके स्थायी
अमंवत्रत सदस्यों के रूप में शावमल ककया गया।
निंबर 2017 में पररषद की 12िीं बैठक अयोवजत की गयी। नइ कदल्ली में ऄंतर-राज्यीय पररषद की
12िीं स्थायी सवमवत की बैठक में पूंछी अयोग की वसफाररशों पर चचाा की गइ। आससे पूिा आसकी 11िीं
बैठक एिं 10िीं बैठक का अयोजन क्रमशः 2016 एिं 2006 में ककया गया था। ऄंतर राज्यीय पररषद
की स्थायी सवमवत की 11िीं बैठक 11 िषा के ऄंतराल के बाद हुइ थी। हालाँकक विगत एक ही िषा में
स्थायी सवमवत की दो बार बैठकें बुलाने से पता चलता है कक कें द्र-राज्य संबंधों में सामंजस्य को बढ़ािा
देने को सरकार महत्ि दे रही है।
11िीं बैठक में वनम्नवलवखत प्रमुख विषयों पर चचाा की गयी:
 कें द्र राज्य संबधों पर पुछ
ं ी अयोग की वसफाररशों पर।
 प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) के तहत सवब्सडी, लाभ, तथा सािाजवनक सेिाओं अकद के वलए
अधार का पहचान पत्र के रूप में प्रयोग।
 स्कू ली वशक्षा में सुधार एिं आसके बेहतर प्रदशान हेतु सुझाि।
 अंतररक सुरक्षा।

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Classroom Study Material

भारतीय संविधान एिं शासन


18. ऄन्य महत्िपूर्ण वनकाय एिं संस्थाएं

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विषय सूची
1. राष्ट्रीय मवहला अयोग (National Commission for women) __________________________________________ 3

1.1 पृष्ठभूवम ________________________________________________________________________________ 3

1.2 संरचना और कायणकाल ______________________________________________________________________ 3

1.3 अयोग के प्रकायण एिं शवियााँ__________________________________________________________________ 4

1.4 अयोग की कायणप्रर्ाली ______________________________________________________________________ 5

1.5 ितणमान समय में आसकी भूवमका ________________________________________________________________ 6

2. के न्रीय सतकण ता अयोग (Central Vigilance Commission) ____________________________________________ 7

2.1 संरचना एिं कायाणिवध _______________________________________________________________________ 7

2.2 पद से हटाया जाना ________________________________________________________________________ 8

2.3 कें रीय सतकण ता अयोग ऄवधवनयम के ऄन्तगणत अयोग का ऄवधकार क्षेत्र _____________________________________ 8

2.4 कायण __________________________________________________________________________________ 8


2.4.1 CBI के संबंध में _______________________________________________________________________ 8
2.4.2 सतकण ता के संबंध में ____________________________________________________________________ 9

2.5 CVC की कायणप्रर्ाली ______________________________________________________________________ 9

3. कें रीय ऄन्िेषर् ब्यूरो (Central Bureau of Investigation: CBI) _______________________________________ 10

3.1 CBI की संरचना _________________________________________________________________________ 10

3.2 CBI के कायण ____________________________________________________________________________ 11

4. कें रीय सूचना अयोग (Central Information Commission) ___________________________________________ 12

4.1 संगठन और वनयुवि _______________________________________________________________________ 12

4.2 कायणकाल एिं पदच्युवत _____________________________________________________________________ 12

4.3 सूचना अयोग की शवियााँ और कायण ____________________________________________________________ 13

5. योजना अयोग तथा नीवत अयोग (Planning Commission & NITI Ayog) ________________________________ 14

5.1 योजना अयोग से नीवत अयोग तक ____________________________________________________________ 14

5.2 नीवत अयोग और योजना अयोग में ऄंतर ________________________________________________________ 15

5.3 नीवत अयोग के प्रमुख ईद्देश्य _________________________________________________________________ 15

6. के न्रीय फिल्म प्रमार्न बोडण (Central Board of Film Certification: CBFC)_______________________________ 16

6.1 संरचना ________________________________________________________________________________ 16

6.2. प्रमार्न _______________________________________________________________________________ 16

6.3 CBFC के प्रमुख ईद्देश्य _____________________________________________________________________ 17

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1. राष्ट्रीय मवहला अयोग (National Commission for


women)
राष्ट्रीय मवहला अयोग (NCW) की स्थापना राष्ट्रीय मवहला अयोग ऄवधवनयम, 1990 के ऄंतगणत एक

सांविवधक वनकाय के रूप में की गयी। आस अयोग का गठन 31 जनिरी, 1992 को श्रीमती जयंती
पटनायक की ऄध्यक्षता में फकया गया था। अयोग के ईद्देश्य वन्नलवलवखत ह:
i. मवहलाओं के वलए संिैधावनक एिं विवधक रक्षोपायों की समीक्षा करना,

ii. विधायी ईपचारात्मक ईपायों की वसिाररश करना,

iii. वशकायत वनिारर् की सुविधा प्रदान करना, तथा

iv. मवहलाओं को प्रभावित करने िाले सभी नीवतगत मामलों पर सरकार को सलाह देना।

मवहला एिं बाल विकास मंत्रालय, अयोग के वलए नोडल मंत्रालय के रूप में कायण करता है। राष्ट्रीय

मवहला अयोग ऄवधवनयम, 1990 जम्मू-कश्मीर राज्य के ऄलािा सम्पूर्ण भारत में लागू है।

1.1 पृ ष्ठ भू वम

भारत सरकार द्वारा 1974 में ‘भारत में मवहलाओं की वस्थवत पर सवमवत’ (The Committee on

the Status of Women in India: CSWI) का गठन फकया गया। आस सवमवत ने मवहलाओं के
सामावजक-अर्थथक विकास में तीव्रता लाने तथा वशकायत वनिारर् सुविधा की वनगरानी के वलए एक
राष्ट्रीय मवहला अयोग की स्थापना करने की ऄनुशंसा की। आसके साथ ही मवहलाओं के वलए राष्ट्रीय
पररप्रेक्ष्य योजना (National Perspective Plan for Women) सवहत मवहलाओं से संबंवधत

सवमवतयों, अयोगों और योजनाओं ने मवहलाओं के वलए एक शीषण वनकाय के गठन की ऄनुशंसाएाँ की

थीं। तदनुसार मवहलाओं के ऄवधकारों और वहतों की रक्षा, प्रोत्साहन और संरक्षर् के वलए राष्ट्रीय
मवहला अयोग का गठन फकया गया।

1.2 सं र चना और कायण काल

यह अयोग एक बहु-सदस्यीय वनकाय है। यह वनकाय एक ऄध्यक्ष, पांच सदस्य और एक सदस्य-सवचि

से वमलकर बनता है। राष्ट्रीय मवहला अयोग ऄवधवनयम, 1990 के ऄनुसार अयोग के वन्नलवलवखत
घटक होते ह:
 कें र सरकार द्वारा मवहलाओं कल्यार् के वलए समर्थपत फकसी व्यवि को ऄध्यक्ष के रूप में नावमत
फकया जायेगा।
 सदस्यों के रूप में योग्य, इमानदार और प्रवतवनवष्ठत व्यवियों में से 5 व्यवियों को नावमत फकया

जायेगा। आनका चयन न्यायविदों, ट्रेड यूवनयन, औद्योवगक क्षेत्र, मवहलाओं से सम्बवन्धत स्िैवच्िक

संगठनों, प्रशासन, अर्थथक विकास, स्िास््य, शैवक्षक ऄथिा सामावजक कल्यार् क्षेत्रों से फकया
जाता है। आनमें से फकसी एक सदस्य का ऄनुसूवचत जावत एिं जनजावत से सम्बवन्धत होना
ऄवनिायण है।
 कें र सरकार द्वारा नाम-वनर्ददष्ट एक सदस्य-सवचि जो
o प्रबंधन, संगठनात्मक संरचना या सामावजक अंदोलन के क्षेत्र में विशेषज्ञ हो,
o ऐसा ऄवधकारी जो संघ की वसविल सेिा या ऄवखल भारतीय सेिा का सदस्य है ऄथिा संघ के
ऄधीन कोइ वसविल पद धारर् करता है एिं वजसके पास समुवचत ऄनुभि है।

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पदािवध और सेिाशतें
 ऄध्यक्ष और सदस्य तीन िषण की ऄिवध के वलए पद धारर् करते ह:।
 ऄध्यक्ष ऄथिा कोइ सदस्य (कें र सरकार द्वारा नामवनर्ददष्ट सदस्य-सवचि के ऄवतररि) कें रीय
सरकार को संबोवधत ऄपने त्यागपत्र द्वारा फकसी भी समय पद का त्याग कर सकते ह:।
 आसके ऄवतररि, कें र सरकार वन्नलवलवखत पररवस्थवतयों में ऄध्यक्ष या सदस्य को पद से हटा सकती
है
o घोवषत फदिावलया,
o मानवसक रूप से ऄवस्थर होने पर,
o नैवतक चररत्रहीनता के अधार पर फकसी ऄपराध में दोषी पाया गया हो,
o पद का दुरुपयोग करने पर; और
o तीन से ऄवधक बैठकों से ऄनुपवस्थत रहने पर।

1.3 अयोग के प्रकायण एिं शवियााँ

1. अयोग के द्वारा वन्नलवलवखत सभी या कु ि कृ त्यों का पालन फकया जाएगा


(a) मवहलाओं के कल्यार् से संबंवधत संिैधावनक प्रािधानों एिं ऄन्य विवधयों के ऄधीन ईपबंवधत
रक्षोपायों से सम्बंवधत सभी विषयों का ऄन्िेषर् और परीक्षर् करना;
(b) ईन रक्षोपायों के कायणकरर् के सम्बन्ध में प्रवतिषण ऄथिा अयोग जब भी ईवचत समझे, कें र
सरकार को ऄपनी ररपोटण प्रेवषत करना;
(c) ऄपनी ररपोटण के माध्यम से मवहलाओं की दशा में सुधार करने हेतु संघ या फकसी राज्य द्वारा ईन
रक्षोपायों के प्रभािी फियान्ियन हेतु वसिाररशें करना;
(d) संविधान और ऄन्य विवधयों में विद्यमान मवहलाओं को प्रभावित करने िाले ईपबंधों का समय-
समय पर पुनर्थिलोकन करना। आसके साथ ही आन ईपबंधों में संशोधन करने की वसिाररश करना
वजससे फक ऐसे विधानों में व्याप्त फकसी कमी, ऄपयाणप्तता या त्रुरट को दूर करने के वलए ईपचारी
विधायी ईपायों का सुझाि फदया जा सके ;
(e) मवहलाओं से सम्बंवधत, संविधान और ऄन्य विवधयों के ईपबंधों के ऄवतिमर् के मामलों को
समुवचत प्रावधकाररयों के समक्ष प्रस्तुत करना;
(f) वन्नलवलवखत विषयों से सम्बंवधत वशकायतों की जांच पड़ताल, स्ितः संज्ञान (suo-motu) लेना
तथा आन्हें समुवचत प्रावधकाररयों के समक्ष प्रस्तुत करना
i. मवहलाओं के ऄवधकार का ईल्लंघन;
ii. मवहला संरक्षर्, विकास एिं समानता सम्बन्धी रक्षोपायों का फियान्ियन न होना;
iii. मवहलाओं को सुरक्षा एिं संतुवष्ट प्रदान करने के प्रयोजनाथण नीवतगत वनर्णयों, अदेशों, आत्याफद का
फियान्ियन न होना।
(a) मवहलाओं के विरुद्ध विभेद और ऄत्याचारों से ईत्पन्न विवनर्ददष्ट समस्याओं या वस्थवतयों का विशेष
ऄध्ययन ऄथिा ऄन्िेषर् करना। आसके साथ ही ईन बाधाओं का पता लगाना वजससे ईनको दूर
करने की कायण योजनाओं की वसिाररश की जा सके ;
(b) संिधणन और वशक्षा सम्बन्धी ऄनुसंधान ताफक मवहलाओं का सभी क्षेत्रों में सम्यक प्रवतवनवधत्ि
सुवनवित करने के ईपायों का सुझाि फदया जा सके । आसके ऄवतररि ईनकी ईन्नवत में ऄिरोध
ईत्पन्न करने के ईत्तरदायी कारर्ों का पता लगाना- जैसे फक अिास और मूलभूत सेिाओं की प्रावप्त
में कमी, नीरसता और ईपजीविकाजन्य स्िास््य पररसंकटों को कम करने तथा मवहलाओं की
ईत्पादकता में िृवद्ध हेतु सहायक सेिाओं और प्रौद्योवगकी की ऄपयाणप्तता अफद;

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(c) मवहलाओं के सामावजक-अर्थथक विकास की योजना प्रफिया में सहभावगता तथा परामशण प्रदान
करना;

(d) संघ और फकसी राज्य के ऄधीन मवहलाओं के विकास की प्रगवत का मूल्यांकन करना;

(e) फकसी जेल, सुधारगृह, मवहला संस्था या ऄवभरक्षा के ऄन्य स्थान का (जहााँ मवहलाओं को बंदी के
रूप में या ऄन्यथा रखा जाता है) वनरीक्षर् करना या करिाना। साथ ही यफद अिश्यक हो तो
ईपचारात्मक कारण िाइ हेतु सम्बंवधत प्रावधकाररयों से िाताणलाप;

(f) बहुसंख्यक मवहलाओं को प्रभावित करने िाले प्रश्नों से सम्बंवधत मुकदमों के वलए धन ईपलब्ध
कराना;

(g) मवहलाओं से सम्बंवधत फकसी विषय, विवशष्टतः ईन विवभन्न करठनाइयों के सम्बंध में वजनके ऄधीन

मवहलाएं कायण करती ह:, सरकार को समय-समय पर ररपोटण देना;

(h) कोइ ऄन्य विषय वजसे कें र सरकार विवनर्ददष्ट करे ।

2. अयोग स्ियं द्वारा समय-समय पर ईठाए जाने िाले विवशष्ट मुद्दों से वनपटने हेतु अिश्यक
सवमवतयों की वनयुवि कर सकता है।
3. अयोग ऄपनी और ऄपनी सवमवतयों की प्रफिया को स्ियं विवनयवमत करे गा।
4. अयोग को मवहलाओं के वलए संविधान तथा ऄन्य विवधयों के ऄधीन ईपबंवधत रक्षोपायों एिं
मवहलाओं के ऄवधकारों के िंचन से सम्बंवधत सभी विषयों की वििेचना करते समय एक वसविल
न्यायालय की शवियााँ प्राप्त होंगी। आनमें वन्नलवलवखत सवम्मवलत ह:
(a) भारत के फकसी भी भाग से फकसी व्यवि को समन जारी करना और ईसे ईपवस्थत करिाना
तथा शपथ का परीक्षर् करना;

(b) फकसी दस्तािेज के प्रकटन एिं प्रस्तुतीकरर् की ऄपेक्षा करना;

(c) शपथपत्रों पर साक्ष्य प्राप्त करना;

(d) फकसी न्यायालय या कायालणय से फकसी लोक ऄवभलेख या ईसकी प्रवतवलवप की ऄपेक्षा करना;

(e) साक्ष्यों और दस्तािेजों की परीक्षा के वलए कमीशन जारी करना; तथा

(f) कोइ ऄन्य विषय जो विवहत फकया जाए।


5. सरकार द्वारा मवहलाओं को प्रभावित करने िाले फकसी भी वनर्णय से पूिण राष्ट्रीय मवहला अयोग से
विमशण फकया जाना चावहए।

1.4 अयोग की कायण प्र र्ाली

अयोग वलवखत या मौवखक रूप से प्राप्त वशकायतों पर कायणिाही करता है। आसके साथ ही यह
मवहलाओं से सम्बंवधत मामलों में स्ितः संज्ञान (suo motu) भी लेता है। अयोग द्वारा प्राप्त की गयी

वशकायतें मवहलाओं के विरुद्ध ऄपराधों की विवभन्न श्रेवर्यों यथा घरे लू हहसा, ईत्पीड़न, दहेज,

ऄत्याचार, हत्या, ऄपहरर्/फिरौती के वलए ऄपहरर्, NRI वििाहों से सम्बंवधत वशकायतें, पररत्याग,

वद्व-वििाह, बलात्कार, पुवलस ईत्पीड़न / िू रता, पवत द्वारा िू रता, ऄवधकारों से िंवचत फकया जाना,

ल:वगक भेदभाि, कायणस्थल पर यौन ईत्पीड़न आत्याफद से सम्बंवधत होती ह:।


आन वशकायतों पर वन्नलवलवखत तरीके से कायणिाही की जाती है

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1. पुवलस की ईदासीनता िाले विवशष्ट मामलों की जांच हेतु पुवलस ऄवधकाररयों को भेजा जाता है
और आनकी वनगरानी की जाती है।
2. रुके हुए समझौते या पाररिाररक वििादों को परामशण के माध्यम से सुलझाया जाता है।
3. विवभन्न राज्य के ऄवधकाररयों को कायणिाही की सुविधा के वलए ऄलग-ऄलग अाँकड़े ईपलब्ध
कराए जाते ह:।
4. यौन शोषर् की वशकायतों में सम्बंवधत संगठनों से मामले के वनिारर् में तेजी लाने का अग्रह
फकया जाता है तथा सम्पूर्ण प्रफिया की वनगरानी की जाती है।
5. अयोग, गंभीर ऄपराधों के वलए हहसा एिं ऄत्याचार के वशकार लोगों को तत्काल राहत और
न्याय प्रदान करने के वलए जांच सवमवत का गठन करता है।

1.5 ितण मान समय में आसकी भू वमका

मवहलाओं के विरुद्ध हहसा की समस्या की बहुमुखी प्रकृ वत के कारर् NCW ने ऐसी समस्याओं के
वनिारर् हेतु एक बहुअयामी रर्नीवत ऄपनायी है। अयोग ने मवहलाओं के मध्य विवधक साक्षरता के
प्रसार करने का कायण प्रारम्भ फकया है ताफक ईन्हें ऄपने ऄवधकारों की जानकारी प्राप्त हो सके तथा िे
ईनके ईपयोग में सक्षम हो सकें ।
 यह मवहलाओं को ईनकी वशकायतों के वनिारर् हेतु मुक़दमे पूिण की सेिाएाँ (pre-litigation

services) प्रदान कर ईनकी सहायता करता है। मवहलाओं को प्रभावित करने िाले कानूनों तथा

विद्यमान संिैधावनक प्रािधानों की समीक्षा कर ईनमें व्याप्त कवमयों, ऄक्षमताओं तथा


ऄपयाणप्तताओं के संदभण में संशोधन की वसिाररश करने तथा न्याय तक सरल एिं शीघ्र पहुाँच
सुवनवित करने के वलए देश के विवभन्न भागों में पाररिाररक मवहला लोक ऄदालतें संचावलत की
जा रही ह:।
 यह मवहलाओं को प्रेररत करने तथा ईनकी वस्थवत के बारे में जानकारी प्राप्त करने के वलए प्रचारक
गवतविवधयों का अयोजन करता है। यह मवहला सशविकरर् में अमूलचूल पररितणन लाने हेतु
ऄनुशस
ं ाएाँ करता है।
 अयोग की वशकायत एिं परामशण शाखा, NCW ऄवधवनयम की धारा 20 के तहत मौवखक,
वलवखत या स्ितः संज्ञान ली गयी वशकायतों पर कायण करती है।
 अयोग द्वारा समय-समय पर सेवमनार, कायणशालाओं और सम्मेलनों का अयोजन फकया जाता है।
आस तरह के कायणिमों का वित्तपोषर् करने के वलए शोध-संस्थाओं और गैर-सरकारी संगठनों
(NGOs) को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

 ऄभी तक शावमल फकये गए महत्िपूर्ण क्षेत्रों में कै द में मवहलाएाँ, मवहलाओं के विरुद्ध िू रता;

कायणस्थल पर यौन ईत्पीड़न; शैवक्षक, स्िास््य और रोजगार संबध


ं ी पहलू; कृ वष और पंचायती राज

के क्षेत्र में मवहलाएाँ; तथा वहरासत में न्याय और मानवसक स्िास््य संस्थान अफद शावमल ह:।

 NCW मवहलाओं के एक बड़े तबके को प्रभावित करने िाले मुद्दों यथा मवहलाओं के विरुद्ध हहसा,

ऄसंगरठत श्रम क्षेत्र में मवहलाएाँ, कृ वष के क्षेत्र में मवहलाएाँ तथा ऄल्पसंख्यक मवहलाओं से सम्बंवधत
मुद्दों पर विचार करने हेतु सािणजवनक िाताणओं का अयोजन करता है। आसके द्वारा की गयी जांचों
से समस्याओं को समझने और सुधारात्मक कारण िाइ प्रारम्भ करने में मदद वमलती है।
 NCW सामावजक एकता, रखरखाि और तलाकशुदा मवहलाओं, पंचायती राज की कायणिावहयों,

ऄनुबंध अधाररत मवहला श्रम, न्यावयक वनर्णयों में ल:वगक विभेद, पररिार-ऄदालतों आत्याफद के

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सन्दभण में ऄध्ययन करिाता है। आसके साथ ही यह विवभन्न अयोगों द्वारा मवहलाओं पर दी गयी
ररपोटों में ल:वगक-घटक, मवहलाओं के विरुद्ध हहसा तथा मवलन बवस्तयों में स्िास््य और वशक्षा
तक मवहलाओं की पहुंच जैसे विषयों के सम्बन्ध में शोध को प्रोत्सावहत करता है। आसके
पररर्ामस्िरूप आसकी नीवतयों के वनमाणर् की ऄनुसंशाओं में सहायता वमलती है।
 आसके ऄवतररि, NCW का विशेष ऄध्ययन ऄग्रवलवखत कायणकलापों से भी संबद्ध है -
o ऄनुसूवचत जनजावत समुदायों से संबंवधत मवहलाओं ि कमजोर िगों की मवहलाओं के स्िास््य
विकास;

o ऄनुसूवचत जावत की मवहलाओं का सामावजक-अर्थथक विकास;


o मानवसक रूप से विकलांग मवहलाओं और िृंदािन में वनिास करने िाली विधिा मवहलाओं
का सामावजक-अर्थथक विकास; एिं
o ऄन्य अिश्यक विकास पर ध्यान कें फरत करना अफद।

2. के न्रीय सतकण ता अयोग (Central Vigilance


Commission)
भ्रष्टाचार वनिारर् पर गरठत संथानम सवमवत (1962-64) की ऄनुशस
ं ाओं के अधार पर कें र सरकार

द्वारा पाररत प्रस्ताि के तहत 1964 में कें रीय सतकण ता अयोग (CVC) का गठन फकया गया था। 2003

में संसद द्वारा पाररत एक ऄवधवनयम द्वारा CVC को सांविवधक दजाण प्रदान फकया गया।

 2004 में, भारत सरकार ने CVC को भ्रष्टाचार या पदों के दुरुपयोग से सम्बंवधत फकसी अरोप के
प्रकटीकरर् हेतु वलवखत वशकायतों को प्राप्त करने तथा ईवचत कायण की ऄनुशंसा करने के वलए
“नावमत संस्था (Designated Agency)” के रूप में ऄवधकृ त फकया।

 CVC को सिोच्च सतकण ता संस्था माना जाता है तथा यह फकसी भी कायणकारी प्रावधकरर् के
वनयंत्रर् से मुि है।
 आसका कायण कें र सरकार के ऄधीन सभी सतकण ता गवतविवधयों की वनगरानी तथा कें र सरकार के
संगठनों के विवभन्न प्रावधकाररयों को ईनके सतकण ता कायण के योजना वनमाणर्, वनष्पादन, समीक्षा
और सुधार करने में सलाह देना है।

2.1 सं र चना एिं कायाण ि वध

CVC एक बहुसदस्यीय संस्था है। आस संस्था एक ऄध्यक्ष (कें रीय सतकण ता अयुि) तथा दो ऄन्य सदस्य
(सतकण ता अयुि) होते ह:। आनकी वनयुवि राष्ट्रपवत द्वारा वन्नलवलवखत व्यवियों से वमलकर वनर्थमत होने
एक िाली सवमवत की वसिाररश के अधार पर की जाती है
 प्रधानमंत्री (ऄध्यक्ष के रुप में)
 कें रीय गृह मंत्री
 लोकसभा में विपक्ष के नेता।
आनका कायणकाल 4 िषण की ऄिवध ऄथिा 65 िषण की अयु, जो भी पहले हो, तक होता है। िे ऄपने
कायणकाल की समावप्त के पिात कें र या फकसी राज्य सरकार के ऄधीन फकसी भी पद के योग्य नहीं होते
ह:।

 2011 में ईच्चतम ने पी. जे. थॉमस की कें रीय सतकण ता अयुि के रूप में वनयुवि को ऄमान्य घोवषत
कर फदया था क्योंफक िे भ्रष्टाचार वनरोधक ऄवधवनयम के तहत के रल पामोलीन मामले में अरोपी थे।

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2.2 पद से हटाया जाना


राष्ट्रपवत वन्नलवलवखत पररवस्थवतयों में अयुि या फकसी भी सदस्य को ईसके पद से हटा सकते ह:
1. यफद िह फदिावलया घोवषत हो; या
2. यफद िह नैवतक चररत्रहीनता के अधार पर फकसी ऄपराध में दोषी (कें र सरकार की राय में) पाया
गया हो; या
3. यफद िह ऄपने कायणकाल में ऄपने कायणक्षेत्र से आतर फकसी ऄन्य लाभ के पद को ग्रहर् करता है, या
4. यफद िह (राष्ट्रपवत की राय में) मानवसक ऄथिा शारीररक कारर्ों से कायण करने में सक्षम नहीं हो;
या
5. यफद िह कोइ अर्थथक या आस प्रकार के ऄन्य लाभ को प्राप्त करता हो वजससे ईसके अवधकाररक
कायों पर प्रवतकू ल प्रभाि की संभािना हो।
आसके ऄवतररि, राष्ट्रपवत फकसी भी सदस्य को वसद्ध कदाचार या ऄक्षमता के अधार पर भी ईनके पद
से हटा सकता है। हालांफक, आस वस्थवत में राष्ट्रपवत को ऐसे मामलों को जांच के वलए ईच्चतम न्यायालय
में भेजना होगा। यफद जांच के ईपरान्त ईच्चतम न्यायालय हटाने के कारर् की पुवष्ट करता है और हटाने
की सलाह देता है तो राष्ट्रपवत ईसे पद से हटा सकते ह:।
कोइ सदस्य कदाचार का दोषी माना जाता है, यफद
 िह कें र सरकार द्वारा फकए गए फकसी भी ऄनुबंध या समझौते से संबद्ध या वहतबद्ध हो, ऄथिा
 एक वनजी सदस्य के रूप में िह फकसी कॉपोरे ट कं पनी के ऄन्य सदस्यों के साथ आस तरह के ऄनुबंध
या समझौते के लाभ या आससे ईत्पन्न होने िाली फकसी भी तरह की अय प्राप्त करता है।
2.3 कें रीय सतकण ता अयोग ऄवधवनयम के ऄन्तगण त अयोग का ऄवधकार क्षे त्र

 ऄवखल भारतीय सेिाओं के सदस्य जो संघ के कायों के संबंध में सेिारत ह: तथा के न्रीय सरकार के
समूह 'क' ऄवधकारी ।
 सािणजवनक क्षेत्र के ब:कों में ‘स्के ल पांच’ स्तर के तथा ईससे ईच्च स्तर के ऄवधकारी।
 भारतीय ररजिण ब:क, नाबाडण तथा वसडबी में ‘ग्रेड डी’ तथा आससे ईच्च स्तर के ऄवधकारी।
 ऄनुसूची 'क' तथा 'ख' सािणजवनक ईपिमों में मुख्य कायणपालक तथा कायणपालक मंडल एिं इ-8
तथा आससे ईच्च ऄन्य ऄवधकारी।
 ऄनुसूची 'ग' तथा 'घ' सािणजवनक ईपिमों में मुख्य कायणपालक तथा कायणपालक मंडल एिं इ-7
तथा आससे ईच्च ऄन्य ऄवधकारी।
 सामान्य बीमा कं पवनयों में प्रबंधक एिं आससे ईच्च ऄवधकारी।
 जीिन बीमा वनगमों में िररष्ठ मण्डलीय प्रबन्धक एिं ईच्च ऄवधकारी।
 सवमवतयों तथा ऄन्य स्थानीय प्रावधकरर्ों में ऄवधसूचना की वतवथ को तथा समय-समय पर
यथासंशोवधत के न्र सरकार डी.ए. प्रवतमान पर 8700/- रू0 प्रवतमाह तथा आससे उपर िेतन पाने
िाले ऄवधकारी।
2.4 कायण

2.4.1 CBI के सं बं ध में

 भ्रष्टाचार वनरोधक ऄवधवनयम, 1988 के तहत, जांच के सन्दभण में फदल्ली विशेष पुवलस स्थापना
(DSPE) ऄथाणत् CBI के कायों का ऄधीक्षर् करना; या लोक सेिकों के वनवित िगों के वलए
CrPC के तहत फकये गए ऄपराध की जांच करना और आस ईत्तरदावयत्ि के वनिणहन हेतु DSPE
को वनदेश देना;

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 भ्रष्टाचार वनरोधक ऄवधवनयम के तहत वनर्ददष्ट फकये गए ऄपराधों के वलए DSPE द्वारा संचावलत
जांच प्रफियाओं की प्रगवत हेतु वनदेश देना एिं समीक्षा करना;
 विनीत नारायर् मामले में, भारत के ईच्चतम न्यायालय ने वनर्णय फदया फक CBI (और प्रितणन
वनदेशालय) के वनदेशक की वनयुवि कें रीय सतकण ता अयुि, गृह सवचि और कार्थमक मंत्रालय के
सवचि के नेतृत्ि में गरठत सवमवत की वसिाररशों पर की जानी चावहए। सवमवत को मंवत्रमंडल के
पास ऄपनी वसिाररशों को ऄग्रेवषत करने से पूिण CBI के ितणमान वनदेशक की राय भी लेनी
चावहए।
 CBI के वनदेशक की वनयुवि से संबंवधत सवमवत को वनदेशक (CBI) से परामशण करने के बाद
DSPE में SP के समकक्ष और ईससे ईच्च पदों के ऄवधकाररयों की वनयुवि की वसिाररश करने का
ऄवधकार फदया जाता है।
 प्रितणन वनदेशालय के वनदेशक की वनयुवि से संबंवधत सवमवत को भी प्रितणन वनदेशालय के
तत्कालीन वनदेशक से परामशण करने के बाद, ईपवनदेशक स्तर एिं ईससे ईच्च पदों हेतु वनयुवि की
वसिाररश करने का ऄवधकार फदया जाता है।
2.4.2 सतकण ता के सं बं ध में

 यफद भारत सरकार के कायणकारी वनयंत्रर् के ऄधीन फकसी संगठन में कायणरत फकसी लोक सेिक पर
भ्रष्ट तरीके से कायण करने या ऄनुवचत ईद्देश्य हेतु कायण करने का संदह
े फकया गया हो या अरोप
लगाया गया हो, तो आससे सम्बंवधत कायणिाही हेतु जांच या पूिताि अरम्भ करना;
 भारत सरकार के ईन मंत्रालयों, विभागों और ऄन्य संगठनों के सतकण ता और भ्रष्टाचार विरोधी
कायों पर सामान्य वनयंत्रर् और पयणिेक्षर् का प्रयोग करना, वजनमें संघ की कायणकारी शवि का
विस्तार होता है; और
 सािणजवनक वहत प्रकटीकरर् और सूचनादाता की सुरक्षा के सन्दभण में प्राप्त वशकायतों की जााँच
अरम्भ करना तथा ईवचत कायणिाही की वसिाररश करना।
 लोक सेिाओं में वनयुि व्यवियों, संघ के विषयों से सम्बंवधत पदों तथा ऄवखल भारतीय सेिाओं के
सदस्यों से सम्बद्ध सतकण ता एिं ऄनुशासनात्मक विषयों को वनयंवत्रत करने िाले वनयम एिं
विवनयम बनाने से पूिण CVC से परामशण करना अिश्यक होता है।
 कें र सरकार को ऄवखल भारतीय सेिाओं और कें रीय सेिाओं के सदस्यों से संबंवधत सतकण ता एिं
ऄनुशासनात्मक विषयों को वनयंवत्रत करने िाले वनयमों एिं विवनयमों के वनमाणर् में CVC से
परामशण करना अिश्यक होता है।

2.5 CVC की कायण प्र र्ाली

CVC का मुख्यालय नइ फदल्ली में वस्थत है। यह नइ फदल्ली से ऄपनी कायणिावहयों का संचालन करता
है।
 आसका चररत्र न्यावयक है। आसे दीिानी न्यायालय की शवियां प्राप्त होती ह: तथा यह ऄपनी प्रफिया
को विवनयवमत करने का ऄवधकार रखता है।
 यह कें र सरकार या ईसके ऄवधकाररयों से सूचना या ररपोटण की मांग कर सकता है, ताफक सतकण ता
और भ्रष्टाचार विरोधी कायण के सम्बन्ध में सामान्य पयणिेक्षर् फकया जा सके ।
 फकसी संस्था द्वारा जांच की गइ ररपोटण प्राप्त करने के बाद CVC कें र सरकार या ईसके
ऄवधकाररयों को अगे की कायणिाही के वलए ऄनुशंसा प्रदान करता है। यफद िे CVC के परामशण से
सहमत नहीं ह:, तो ईन्हें ईनकी ऄसहमवत का कारर् बताना होता है।

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 CVC के प्रदशणन की िार्थषक ररपोटण को राष्ट्रपवत के समक्ष प्रस्तुत फकया जाता है। राष्ट्रपवत द्वारा आस
ररपोटण को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष प्रस्तुत फकया जाता है।
 कें र सरकार के सभी मंत्रालय/ विभाग में एक मुख्य सतकण ता ऄवधकारी (CVO) होता है। यह
CVO सतकण ता से संबंवधत सभी विषयों में सवचि या कायाणलय प्रमुख की सहायता करता है और
ईन्हें परामशण देता है। आसके साथ ही िह संबंवधत संगठन के सतकण ता विभाग की ऄध्यक्षता भी
करता है।
 िह ऄपने संगठन और कें रीय सतकण ता अयोग के बीच तथा दूसरी ओर ऄपने संगठन और कें रीय
जांच ब्यूरो के बीच कड़ी का कायण करता है।

3. कें रीय ऄन्िे ष र् ब्यू रो (Central Bureau of


Investigation: CBI)
के न्रीय ऄन्िेषर् ब्यूरो की स्थापना का मूल 1941 में तत्कालीन विरटश भारतीय सरकार द्वारा वनर्थमत
“विशेष पुवलस स्थापना” (Special Police Establishment: SPE) में वनवहत है। SPE का वनमाणर्
वद्वतीय विश्व युद्ध के दौरान भारत के युद्ध तथा अपूर्थत विभाग के साथ लेन-देन में ररश्वतखोरी और
भ्रष्टाचार के मामलों की जांच-पड़ताल के वलए फकया गया था। SPE का ऄधीक्षर् युद्ध विभाग में
विवहत था।
कालांतर में, संथानम सवमवत की ऄनुशंसाओं के अधार पर भ्रष्टाचार की रोकथाम के वलए गृह मंत्रालय
के एक प्रस्ताि द्वारा CBI की स्थापना की गयी। तत्पिात आसे कार्थमक मंत्रालय में स्थानांतररत कर
फदया गया और ितणमान में यह एक ऄनुलग्न कायाणलय की तरह कायण करता है।
 CBI एक िैधावनक वनकाय नहीं है। यह फदल्ली विशेष पुवलस स्थापना ऄवधवनयम, 1946 से
ऄपनी शवियां प्राप्त करता है।
 CBI कें र सरकार की प्रमुख जांच एजेंसी है। यह भ्रष्टाचार की रोकथाम और प्रशासन की एकता को
बनाए रखने में महत्िपूर्ण भूवमका वनभाती है। भ्रष्टाचार वनिारर् ऄवधवनयम, 1988 के तहत यह
कें रीय सतकण ता अयोग के ऄधीक्षर् के तहत कायण करती है।
3.1 CBI की सं र चना

CBI की ऄध्यक्षता वनदेशक द्वारा की जाती है तथा एक विशेष वनदेशक या ऄवतररि वनदेशक आसे
सहायता प्रदान करता है। आसके ऄवतररि, आसमें कइ संयुि वनदेशक, ईपमहावनरीक्षक, पुवलस ऄधीक्षक
और सामान्य र: क के ऄन्य पुवलसकमी सवम्मवलत होते ह:।
 CBI वनदेशक, पुवलस महावनरीक्षक के रूप में फदल्ली विशेष पुवलस स्थापना के तहत संगठन के
प्रशासन के वलए ईत्तरदायी होता है।
 CVC ऄवधवनयम, 2003 (विनीत नारायर् िाद) द्वारा CBI के वनदेशक को 2 िषण के कायणकाल
की सुरक्षा प्रदान की गइ है।
 CVC ऄवधवनयम, 2003 CBI के वनदेशक और CBI में पुवलस ऄधीक्षक तथा आससे ईच्च
ऄवधकाररयों के चयन की व्यिस्था भी प्रदान करता है। CBI के वनदेशक को एक सवमवत की
ऄनुशसं ा पर कें र सरकार द्वारा वनयुि फकया जाता है। आस सवमवत में वन्नलवलवखत सदस्य
सवम्मवलत होते ह:
o कें रीय सतकण ता अयुि ऄध्यक्ष के रूप में,
o ऄन्य सतकण ता अयुि,
o गृह सवचि- भारत सरकार; तथा
o कै वबनेट सवचिालय के सवचि (समन्िय और लोक वशकायत)

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 शाखाएाँ ितणमान में (2013), CBI की वन्नलवलवखत शाखाएं है

1. भ्रष्टाचार-वनरोधक शाखा
2. अर्थथक ऄपराध शाखा
3. विशेष ऄपराध शाखा
4. नीवतगत एिं ऄंतराणष्ट्रीय पुवलस सहयोग शाखा
5. प्रशासवनक शाखा
6. ऄवभयोजन वनदेशालय
7. कें रीय िोरें वसक विज्ञान प्रयोगशाला

3.2 CBI के कायण

CBI के कायण वन्नलवलवखत ह:

i. कें र सरकार के कमणचाररयों के भ्रष्टाचार, ररश्वतखोरी और कदाचार के मामलों की जााँच करना।

ii. राजकोषीय तथा अर्थथक कानूनों के ईल्लंघन से संबंवधत मामलों की जााँच करना। आनमें वनयाणत
और अयात वनयंत्रर्, कें रीय ईत्पाद एिं सीमा शुल्क, अय कर, विदेशी मुरा विवनमय के

विवनयमन अफद से सम्बंवधत कानूनों के ईल्लंघन के मामले सवम्मवलत ह:। हालााँफक, ऐसे मामलों में
संबंवधत विभाग के ऄनुरोध या परामशण के अधार पर ही कदम ईठाये जाते ह:।
iii. पेशेिर ऄपरावधयों के संगरठत वगरोहों द्वारा प्रवतबद्ध राष्ट्रीय और ऄंतराणष्ट्रीय प्रभाि िाले गंभीर
ऄपराधों की जांच करना।
iv. भ्रष्टाचार-वनरोधक एजेंवसयों और विवभन्न राज्य पुवलस बलों के मध्य समन्िय स्थावपत करना।
v. राज्य सरकार के ऄनुरोध पर सािणजवनक महत्ि के फकसी मामले को जााँच के वलए ऄपने हाथ में
लेना।
vi. ऄपराध से संबंवधत अंकड़ों का वनरीक्षर् करना और अपरावधक सूचनाओं का प्रसार करना।
CBI भारत सरकार की एक बहुविषयक जााँच एजेंसी है। CBI को भ्रष्टाचार संबंधी मामलों की जांच,
अर्थथक ऄपराध और पारं पररक ऄपराध के मामलों की जांच का ईत्तरदावयत्ि प्राप्त है। सामान्यतः यह
कें र सरकार, कें र शावसत प्रदेश तथा ईनके लोक ईद्यमों के कमणचाररयों के भ्रष्टाचार के ऄनुसंधान तक
सीवमत रहती है। परन्तु यह राज्य सरकारों द्वारा ऄनुरोध करने पर या ईच्चतम न्यायालय और ईच्च
न्यायालय द्वारा वनदेश देने पर पारं पररक ऄपराधों जैसे हत्या, ऄपहरर्, बलात्कार अफद की भी जांच

करती है। CBI भारत में आं टरपोल के ‘राष्ट्रीय कें रीय ब्यूरो’ (National Central Bureau) के रूप में

कायण करती है। CBI की आं टरपोल हिग भारतीय कानून प्रितणन एजेंवसयों और आं टरपोल के सदस्य देशों
से होने िाली जांच संबंधी गवतविवधयों के ऄनुरोधों का समन्िय करती है।
3.3 CBI का हपजरे में बंद तोते के रूप में होना और आसे मुि करने के वलए कदम

ईच्चतम न्यायालय ने कोलगेट घोटाला मामले की सुनिाइ करते हुए CBI की स्ितंत्रता पर प्रश्न ईठाते

हुए कहा था फक यह “ऄपने मावलक की अिाज में बोलने िाला तोता” है। तत्पिात ईच्चतम न्यायालय

ने कें र को CBI को वनष्पक्ष बनाने का वनदेश फदया और यह भी वनदेश फदया फक यह सुवनवित करना

अिश्यक है फक CBI सभी बाहरी दबािों से मुि हो।

आसके जिाब में, कें र सरकार ने एक हलिनामा दायर फकया वजसके ऄनुसार CBI की स्िायत्तता
सुवनवित करने के वलए वन्नलवलवखत मानक ऄपनाए जाएाँगे

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I. CBI के वनदेशक की वनयुवि प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायधीश और विपक्ष के नेता से वनर्थमत
एक कॉलेवजयम द्वारा की जाएगी। CBI वनदेशक को आस कॉलेवजयम की सहमवत के वबना वनयुि
या हटाया नहीं जा सकता है।
II. CBI के वनदेशक को दुव्यणिहार के अधार पर के िल जांच के बाद, राष्ट्रपवत के अदेश से हटाया जा
सकता है।
III. ईच्चतम न्यायालय या ईच्च न्यायालय के तीन सेिावनिृत्त न्यायाधीशों की ऄध्यक्षता में एक
ईत्तरदावयत्ि सवमवत का वनमाणर् फकया जायेगा। यह सवमवत CBI के विरुद्ध की गइ वशकायत के
मामलों की जांच करे गी।
IV. शपथ पत्र में यह भी कहा गया है फक CVC को भ्रष्टाचार वनिारर् ऄवधवनयम के तहत सभी
मामलों की जांच के वलए CBI पर ऄधीक्षर् और प्रशासन की शवि होगी, लेफकन शेष मामलों के
वलए आस तरह की शवि कें र में वनवहत होगी।
V. एजेंसी की वित्तीय स्िायत्तता सुवनवित करने के वलए संसद में एक विधेयक प्रस्तुत फकया जाएगा।
VI. जांच के वलए स्िीकृ वत कें र सरकार, संयुि सवचि और ईच्च स्तर के ऄवधकाररयों के विरुद्ध मामलों
पर जांच की स्िीकृ वत हेतु फकए गए ऄनुरोध पर तीन महीने के भीतर वनर्णय लेगी। यफद स्िीकृ वत
प्रदान नहीं की गइ है तो आसका कारर् बताना ऄवनिायण होगा।
4. कें रीय सू च ना अयोग (Central Information
Commission)
सूचना ऄवधकार ऄवधवनयम, 2005 के प्रािधानों के तहत कें र सरकार द्वारा 2005 में कें रीय सूचना
अयोग की स्थापना की गइ थी। आसी प्रकार राज्यों द्वारा शासकीय राजपत्र में ऄवधसूचना के माध्यम से
राज्य सूचना अयोग की स्थापना की गयी है।

4.1 सं ग ठन और वनयु वि

 सूचना अयोग में एक मुख्य सूचना अयुि और ऄवधकतम 10 सूचना अयुि सवम्मवलत होते ह:।
आनकी वनयुवि, राष्ट्रपवत द्वारा एक सवमवत की वसिाररश के अधार पर की जाती है। आस सवमवत
में वन्नलवलवखत व्यवि सवम्मवलत होते ह:-
o प्रधानमंत्री (ऄध्यक्ष के रूप में)
o लोकसभा नेता प्रवतपक्ष
o प्रधानमंत्री के द्वारा नामांफकत एक कें रीय कै वबनेट मंत्री।
 िे सािणजवनक जीिन में कानून, विज्ञान और प्रौद्योवगकी, सामावजक सेिा, प्रबंधन, पत्रकाररता,
जनसंचार या प्रशासन में व्यापक ज्ञान और ऄनुभि प्राप्त व्यवि होने चावहए।
 िे संसद के सदस्य या फकसी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के विधान मंडल के सदस्य नहीं होने चावहए।
 िे फकसी ऄन्य लाभ के पद पर नहीं होने चावहए या फकसी राजनीवतक दल से सम्बद्ध नहीं होने
चावहए।
 िे फकसी ऄन्य व्यिसाय या ईद्यम में भी सवम्मवलत नहीं होने चावहए।
4.2 कायण काल एिं पदच्यु वत

 कें रीय सूचना अयोग/राज्य सूचना अयोग के सदस्यों का कायणकाल 5 िषण या 65 िषण की अयु
तक, दोनों में से जो भी पहले पूरा हो, वनधाणररत फकया गया है। िे पुनर्थनयुवि के वलए योग्य नहीं
ह:।
 सूचना अयुि, मुख्य सूचना अयुि के रूप में वनयुवि के वलए पात्र ह:, फकन्तु िे सूचना अयुि के
रूप में ऄपने कायणकाल सवहत कु ल 5 िषण से ऄवधक की ऄिवध के वलए पद धारर् नहीं कर सकते
ह:।

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 राष्ट्रपवत (राज्य सूचना अयोगों के मामले में राज्यपाल) वन्नलवलवखत पररवस्थवतयों में फकसी भी
सदस्य को पदच्युत कर सकते ह:
1. यफद िह फदिावलया हो गया हो; या
2. यफद ईसे फकसी ऐसे ऄपराध के वलए दोषी ठहराया गया है (राष्ट्रपवत की राय में) जो नैवतक
रुप से भ्रष्ट अचरर् की श्रेर्ी में अता है; या
3. ऄपने कायणकाल के दौरान फकसी ऄन्य लाभ के पद पर कायणरत हो; या
4. यफद िह (राष्ट्रपवत की राय में) मानवसक ऄथिा शारीररक रूप से ऄपने दावयत्िों का वनिणहन
करने में ऄसमथण हो; या
5. िे फकसी लाभ को प्राप्त करते हुए पाए जाते ह: वजससे ईनका कायण या वनष्पक्षता प्रभावित
होती हो।
आसके ऄवतररि, राष्ट्रपवत फकसी भी सदस्य को वसद्ध कदाचार या ऄक्षमता के अधार पर पद से हटा
सकता है। हालांफक, आस वस्थवत में राष्ट्रपवत को ऐसे मामलों को जांच हेतु ईच्चतम न्यायालय में भेजना
होगा। यफद जांच के ईपरान्त ईच्चतम न्यायालय ईसके अरोपों की पुवष्ट करते हुए हटाने की सलाह देता
है तो राष्ट्रपवत ईसे हटा सकता है।
िह कदाचार का दोषी माना जाता है यफद
 िह कें र सरकार द्वारा फकए गए फकसी भी ऄनुबंध या समझौते से संबद्ध हो या आसमें रुवच रखता
है, या
 एक वनजी सदस्य के रूप में िह फकसी कॉपोरे ट कं पनी के ऄन्य सदस्यों के साथ आस तरह के ऄनुबंध
या समझौते के लाभ या आससे ईत्पन्न होने िाली फकसी भी तरह की अय प्राप्त करता है।
4.3 सू च ना अयोग की शवियााँ और कायण

1. अयोग का यह दावयत्ि है फक िह सूचना ऄवधकार ऄवधवनयम के ईपबंधों के ऄधीन रहते हुए


फकसी व्यवि से प्राप्त जानकारी एिं वशकायतों का वनराकरर् करे , यफद
(a) िह जन सूचना ऄवधकारी को अिेदन प्रस्तुत करने में आसवलए ऄसमथण रहा है फक ऐसे
ऄवधकारी की वनयुवि नहीं हुइ है या सहायक जन सूचना ऄवधकारी ने अिेदन या ऄपील को
ऄग्रेवषत करने से आं कार कर फदया है।
(b) ईसे आस ऄवधवनयम के ऄधीन मांगी गइ कोइ सूचना फदए जाने से मना कर फदया गया हो।
(c) ईसे आस ऄवधवनयम के ऄधीन वनधाणररत समय-सीमा के भीतर सूचना हेतु या सूचना तक
पहुंच हेतु फकये गए अिेदन का ईत्तर नहीं फदया गया है।
(d) यफद ईसे लगता हो फक सूचना के एिज में मांगी गयी फ़ीस सही नहीं है।
(e) यफद ईसे यह विश्वास हो फक ईसके द्वारा मांगी गयी सूचना ऄपयाणप्त, भ्रामक या झूठी है।
(f) ईसकी वशकायत आस ऄवधवनयम के ऄधीन ऄवभलेखों के वलए ऄनुरोध करने या ईन तक पहुंच
प्राप्त करने से संबंवधत फकसी ऄन्य विषय के संबंध में है।
2. यफद अयोग को फकसी प्रकरर् में जााँच के वलए युविसंगत अधार होने का विवनिय हो जाता है तो
िह ईसके संबंध में जााँच अरं भ कर सके गा।
3. फकसी िाद की जााँच के दौरान अयोग में वसविल प्रफिया संवहता, 1908 के ऄंतगणत वसविल
न्यायालय की वन्नलवलवखत शवियां वनवहत होंगी
(a) अयोग को फकसी व्यवि को समन जारी करने और ईसकी ईपवस्थवत सुवनवित करने, वलवखत
या मौवखक गिाही लेने तथा शपथ परीक्षर् करने;
(b) फकसी दस्तािेज को माँगिाने एिं ईसकी जााँच करिाने;
(c) शपथपत्र के रूप में साक्ष्य प्राप्त करने;
(d) फकसी भी न्यायालय ऄथिा कायाणलय से कोइ सािणजवनक ऄवभलेख या ईसकी प्रवत प्राप्त करने;
(e) सावक्षयों और प्रलेखों के परीक्षर् के वलए अदेश देने ; तथा
(f) वनर्ददष्ट फकये गए फकसी ऄन्य मामले के संबंध में अिश्यक पहल करने की शवियां प्राप्त होंगी।

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4. फकसी मामले की जााँच के दौरान CIC/SIC लोक प्रावधकारी के वनयंत्रर्ाधीन फकसी दस्तािेज़ या
ररकॉडण की जांच कर सकता है तथा आस ररकॉडण को फकसी भी अधार पर प्रस्तुत करने से आं कार नहीं
फकया जा सकता है। दूसरे शब्दों में जांच के दौरान सभी सािणजवनक दस्तािेजों को अयोग के
सामने प्रस्तुत करना ऄवनिायण होता है।
5. लोक प्रावधकरर्ों से ऄपने वनर्णयों का ऄनुपालन सुवनवित कराने के ऄवधकार के तहत
वन्नलवलवखत कायण शावमल ह:-
 विशेष रुप में सूचना तक पहुंच प्रदान करना।
 जहां कोइ PIO/APIO वनयुि नहीं हो िहााँ ईसकी वनयुवि के वलए सािणजवनक प्रावधकरर्
को वनदेश देना।
 सूचनाओं की श्रेर्ी या सूचनाओं का प्रकाशन।
 ऄवभलेखों के प्रबंधन, रखरखाि और विनष्टीकरर् से संबंवधत नीवतयों में अिश्यक पररितणन
करना।
 RTI ऄवधकाररयों के वलए प्रवशक्षर् प्रािधान सुवनवित करना।
 आस कानून के ऄनुपालन के सन्दभण में सािणजवनक प्रावधकरर् से िार्थषक ररपोटण की मांग करना।
 अिेदक द्वारा फकसी भी हावन या ऄन्य प्रकार की क्षवतयों के वलए क्षवतपूर्थत की व्यिस्था
करना।
 आस ऄवधवनयम के तहत अर्थथक दंड लगाना।
 फकसी यावचका को ऄस्िीकार करना।
6. जब कोइ सािणजवनक प्रावधकरर् RTI कानून के प्रािधानों की पुवष्ट नहीं करता है, तो अयोग
(प्रावधकरर् को) ईन ईपायों की ऄनुशस
ं ा करता है, वजससे आस प्रकार की पुवष्ट को प्रोत्साहन वमले।
 राज्य सूचना अयोग संबंवधत राज्य सरकार के ऄधीन कायाणलयों, वित्तीय संस्थानों, सािणजवनक
क्षेत्र के ईपिमों अफद में भी आसी प्रकार के कायण करता है।
 CIC द्वारा कें र सरकार को िार्थषक ररपोटण प्रस्तुत की जाती है। कें र सरकार आसे संसद के दोनों
सदनों के समक्ष प्रस्तुत करती है। SIC राज्य सरकार को िार्थषक ररपोटण प्रस्तुत करती है तथा
राज्य सरकार आसे राज्य विधानमंडल (जहााँ व्यिहायण हो िहां दोनों सदनों में) के समक्ष प्रस्तुत
करती है I

5. योजना अयोग तथा नीवत अयोग (Planning


Commission & NITI Ayog)
योजना अयोग की स्थापना माचण, 1950 में की गइ थी। अयोग की स्थापना 1946 में के सी वनयोगी
की ऄध्यक्षता में गरठत सवमवत की वसिाररश पर भारत सरकार के कायणकारी प्रस्ताि (ऄथाणत कें रीय
कै वबनेट) द्वारा की गइ थी। आस प्रकार, योजना अयोग न तो एक संिैधावनक संस्था थी और न ही एक
सांविवधक वनकाय था। दूसरे शब्दों में, यह एक संविधानेत्तर वनकाय (ऄथाणत संविधान द्वारा नहीं बनाया
गया) और एक गैर-सांविवधक वनकाय (ऄथाणत संसद के ऄवधवनयम द्वारा नहीं बनाया गया) था। योजना
अयोग ने भारत में सामावजक और अर्थथक विकास के वलए योजना-वनमाणर् की सिोच्च संस्था के रूप में
कायण फकया।
5.1 योजना अयोग से नीवत अयोग तक

 लगभग 65 िषों में भारत ने ऄपनी ऄथणव्यिस्था में अमूल-चूल पररितणन फकया है तथा एक ऄद्धण-
विकवसत ऄथणव्यिस्था से विकास कर विश्व की सबसे बड़ी ऄथणव्यिस्थाओं में से एक के रूप में
स्थावपत हुइ है। आसके ऄवतररि वपिले कु ि दशकों के दौरान भारतीय राष्ट्रीयता की सशिता भी
प्रदर्थशत हुइ है।
 भारत विवभन्न भाषाओं, विश्िासों और सांस्कृ वतक प्रर्ावलयों िाला एक विविधतापूर्ण देश है। देश
के विकास की प्रफिया में ऄिरोध बनने के स्थान पर आस विविधता ने भारतीय ऄनुभि की संपूर्त
ण ा
को समृद्ध बनाया है।

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 राजनीवतक रूप से भी, भारत ने बहुिाद को व्यापक रूप से ऄंगीकार फकया है और सरकारी
विवनयंत्रर् में संघीय सिण-सहमवतयों को नया अकार फदया है। राज्य ऄब के िल के न्र के
ऄनुसरर्कताण बन कर नहीं रहना चाहते ह: बवल्क िे अर्थथक विकास और प्रगवत के वशल्प के
वनधाणरर् में ऄपना वनर्ाणयक ऄवधकार चाहते ह:।
 के न्रीय योजना में प्राय सभी राज्यों के वलए एक जैसे वसद्धांत का दृवष्टकोर् ऄंतर्थनवहत होता है।
आसमें ऄनािश्यक तनाि ईत्पन्न करने और राष्ट्रीय प्रयास की संपूर्त
ण ा को कमजोर बनाने की
क्षमता होती है। डॉ. ऄम्बेडकर ने दूरदर्थशतापूिक
ण कहा था फक ‘िहां ऄवधकारों को के न्रीकृ त करना
ऄवििेकपूर्ण है, जहां के न्रीय वनयंत्रर् और एकरूपता स्पष्ट रूप से ऄवनिायण नहीं है या आसका
ईपयोग नहीं हो सकता है।’
 भारत के बदलाि की गवतशीलता के मूल में प्रौद्योवगकी िांवत और सूचनाओं तक बेहतर पहुंच एिं
ईन्हें साझा करने की भािना ऄंतर्थनवहत है।
 हमारे संस्थानों तथा राजनीवत का ईभव ि एिं पररपक्िता भी के न्रीकृ त योजना की भूवमका को
वनम्न बना देती है, वजसे खुद में ही पुनपर्ररभावषत करने की अिश्यकता है।
ऄतः सरकार ने योजना अयोग के स्थान पर 1 जनिरी, 2015 को नीवत अयोग (नेशनल आन्स्टीच्यूट
िॉर ट्रांसिार्ममग आवण्डया NITI) नामक एक नए संस्थान की स्थापना की।
 योजना अयोग की तरह नीवत अयोग का गठन भी कें रीय मंवत्रमंडल के वनर्णय से हुअ है।
 प्रधानमंत्री नीवत अयोग के ऄध्यक्ष होंगे तथा आनके द्वारा नीवत अयोग के एक ईपाध्यक्ष की
वनयुवि की जाएगी। आसके पांच पूर्क
ण ावलक तथा दो ऄंशकावलक सदस्य होंगे।

5.2 नीवत अयोग और योजना अयोग में ऄं त र

नीवत अयोग का ईद्देश्य जमीनी िास्तविकताओं के अधार पर योजना वनमाणर् करना है। ऄतः आसमें
विके न्रीकरर् (सहकारी संघिाद) को भी सवम्मवलत फकया गया है। आससे योजना-वनमाणर् में कें र के साथ
राज्य भी ऄपनी राय रख सकें गे। आसके ऄंतगणत योजना वनचले स्तर पर वस्थत इकाइयों यथा गांि ,
वजले, राज्य, कें र अफद के साथ अपसी िाताणओं के ईपरांत तैयार की जाएगी।

5.3 नीवत अयोग के प्रमु ख ईद्दे श्य

 राष्ट्रीय ईद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए राज्यों की सफिय भागीदारी के साथ राष्ट्रीय विकास की
प्राथवमकताओं, क्षेत्रों और रर्नीवतयों का एक साझा दृवष्टकोर् विकवसत करना। नीवत अयोग का
विजन सहयोगात्मक विकास के वलए प्रधानमंत्री और मुख्यमंवत्रयों को ‘राष्ट्रीय एजेंडा’ का प्रारूप
ईपलब्ध कराना है।
 ‘सशि राज्य ही सशि राष्ट्र का वनमाणर् कर सकता है’ आस त्य की महत्ता को स्िीकार करते हुए
राज्यों के साथ सतत अधार पर संरचनात्मक सहयोग की पहल और तंत्र के माध्यम से सहयोगपूर्ण
संघिाद को बढािा देना।
 ग्राम स्तर पर विश्वसनीय योजना तैयार करने के वलए तंत्र विकवसत करना तथा आसे ईत्तरोत्तर ईच्च
स्तर तक पहुाँचाना।
 अयोग यह सुवनवित करे गा फक जो क्षेत्र विशेष रूप से ईसे सौंपे गए ह: ईनकी अर्थथक कायण-नीवत
और नीवत में राष्ट्रीय सुरक्षा के वहतों को शावमल फकया जाये।
 भारतीय समाज के ईन िगों पर विशेष रूप से ध्यान देना वजन पर अर्थथक प्रगवत से ईवचत प्रकार
से लाभावन्ित ना हो पाने का जोवखम हो।
 दीघाणिवध के वलए नीवत तथा कायणिम का ढांचा तैयार करना। साथ ही ईनकी प्रगवत और क्षमता
की वनगरानी करना। वनगरानी और प्रवतफिया के अधार पर मध्यािवध संशोधन सवहत निीन
सुधार फकए जाएंगे।

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 महत्िपूर्ण वहतधारकों तथा समान विचार िाले राष्ट्रीय एिं ऄंतराणष्ट्रीय हथक ट:क और साथ ही
शैवक्षक एिं नीवत ऄनुसंधान संस्थानों के बीच भागीदारी को परामशण तथा प्रोत्साहन देना।
 राष्ट्रीय एिं ऄंतराणष्ट्रीय विशेषज्ञों, प्रैवक्टशनरों तथा ऄन्य वहतधारकों के सहयोगात्मक समुदाय के

माध्यम से ज्ञान, निाचार तथा ईद्यमशीलता के विकास हेतु सहायक प्रर्ाली का वनमाणर् करना।
 विकास के एजेंडे के कायाणन्ियन में तेजी लाने के िम में ऄंतर-क्षेत्रीय और ऄंतर-विभागीय मुद्दों के
समाधान के वलए एक मंच प्रदान करना।
 ऄत्याधुवनक शोध कें र का वनमाणर् करना जो सुशासन तथा सतत और न्यायसंगत विकास की
सिणश्रेष्ठ कायणप्रर्ाली पर ऄनुसध
ं ान करने के साथ वहतधारकों तक जानकारी पहुंचाने में भी
सहायता करे ।
 अिश्यक संसाधनों की पहचान करके , ईनके विकास कायणिमों और ईपायों के कायाणन्ियन का
सफिय मूल्यांकन और सफिय वनगरानी करना वजससे फक सेिाएं प्रदान करने में सिलता की
संभािनाओं को प्रबल बनाया जा सके ।
 कायणिमों और नीवतयों के फियान्ियन के वलए प्रौद्योवगकी ईन्नयन और क्षमता वनमाणर् पर बल
फदया जायेगा।
 राष्ट्रीय विकास के एजेंडे और ईपरोि ईद्देश्यों की पूर्थत के वलए ऄन्य अिश्यक गवतविवधयां
संपाफदत करना।

6. के न्रीय फिल्म प्रमार्न बोडण (Central Board of Film


Certification: CBFC)
के न्रीय फिल्म प्रमार्न बोडण, सूचना एिं प्रसारर् मंत्रालय के ऄधीन एक संस्था है। यह चलवचत्र

ऄवधवनयम 1952 के प्रािधानों का ऄनुसरर् करते हुए फिल्मों के सािणजवनक प्रदशणन का वनयंत्रर् करता
है। भारत में फकसी भी फिल्म के सािणजवनक प्रदशणन से पूिण आसकी ऄनुमवत लेना ऄवनिायण है।

6.1 सं र चना

बोडण में कें र सरकार द्वारा वनयुि ऄध्यक्ष एिं गैर-सरकारी सदस्यों को शावमल फकया जाता है। बोडण का
मुख्यालय मुब
ं इ में वस्थत है तथा आसके नौ क्षेत्रीय कायाणलय ह:। ये मुंबइ, कोलकाता, चेन्नइ, बंगलौर,

वतरुिनंतपुरम, हैदराबाद, नइ फदल्ली, कटक और गुिाहाटी में वस्थत ह:।


क्षेत्रीय कायाणलयों में सलाहकार पैनलों की सहायता से फिल्मों का परीक्षर् फकया जाता है। आन पैनलों के
सदस्यों का नामांकन कें र सरकार द्वारा समाज के विविध स्तरों के व्यवियों का समािेश करते हुए फकया
जाता है। आन सदस्यों का कायणकाल दो िषण होता है।

6.2. प्रमार्न

CBFC द्वारा फिल्मों के प्रमार्न हेतु चलवचत्र ऄवधवनयम, 1952, चलवचत्र (प्रमार्न) वनयम, 1983

तथा 5 (ख) के तहत के न्र सरकार द्वारा जारी फकए गए वनदेशों का ऄनुसरर् फकया जाता है।
आसके द्वारा फिल्मों को चार िगों के ऄन्तगणत प्रमावर्त फकया जाता है
1. U - ऄवनबंवधत सािणजवनक प्रदशणन (सभी के देखने योग्य)

2. U/A- ऄवनबंवधत सािणजवनक प्रदशणन के वलए फकन्तु 12 िषण से कम अयु के बालक/बावलका


को माता-वपता के मागणदशणन के साथ फिल्म देखने की चेतािनी के साथ
3. A- ियस्क दशणकों के वलए वनबंवधत

4. S- व्यवियों की फकसी विवशष्ट श्रेर्ी हेतु वनबंवधत

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6.3 CBFC के प्रमु ख ईद्दे श्य

1. समाज के वलए बेहतर एिं ईपयुि मनोरं जन, मनोविनोद एिं वशक्षा सुवनवित करना।

2. प्रमार्न प्रफिया को पारदशी एिं ईत्तरदायी बनाना।

3. बैठकों एिं कायणशालाओं के माध्यम से सदस्यों, मीवडया एिं फिल्म वनमाणताओं को सेंसरवशप

मागणदर्थशका तथा फिल्मों की ितणमान प्रिृवत्त के मध्य सामंजस्य स्थावपत करने हेतु सुझाि देना।

4. प्रमार्न प्रफिया का कं प्यूटरीकरर् तथा मूलभूत सुविधाओं के ईन्नयन के माध्यम से प्रमार्न में
अधुवनक तकनीकी ऄपनाना।

5. स्िैवच्िक प्रकृ टीकरर्, इ-शासन का फियान्ियन, RTI प्रश्नों के सही ईत्तर और िार्थषक ररपोटण के मुरर्

आत्याफद के माध्यम से बोडण के फियाकलापों की पारदर्थशता बनाये रखना।

6. CBFC को एक ईत्कृ ष्ट प्रमार्न कें र के रुप में विकवसत करना।

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भारतीय संविधान एिं शासन


19. भारत में विवनयामक प्रावधकरण

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विषय सूची
1. विवनयमन __________________________________________________________________________________ 4

1.1. राज्य की भूवमका में पररिततन _________________________________________________________________ 4

1.2 विवनयमन की अिश्यकता ___________________________________________________________________ 4

2. भारत में विवनयमन ___________________________________________________________________________ 6

2.1 भारत में विवनयमन का विकास ________________________________________________________________ 6

2.2 भारत में विवनयमन के प्रकार __________________________________________________________________ 6

3. भारत में वनयामकों की श्रेवणयााँ ___________________________________________________________________ 7

3.1 स्ितंत्र िैधावनक विवनयामक एजेंवसयााँ ___________________________________________________________ 7

3.2 स्िवनयामक प्रावधकरण ______________________________________________________________________ 8

4. भारत में विवनयामक वनकायों से जुड़े मुद्दे ____________________________________________________________ 8

4.1 स्ितंत्रता _______________________________________________________________________________ 8

4.2 जिाबदेही ______________________________________________________________________________ 8

4.3 पारदर्शशता ______________________________________________________________________________ 9

5. महत्िपूणत विवनयामक वनकाय ___________________________________________________________________ 10

5.1 भारतीय प्रवतभूवत और विवनमय बोडत (SEBI) _____________________________________________________ 10

5.2 बीमा विवनयामक और विकास प्रावधकरण ________________________________________________________ 11

5.3 भारतीय प्रवतस्पधात अयोग __________________________________________________________________ 11

5.4 भारतीय दूरसंचार विवनयामक प्रावधकरण ________________________________________________________ 12

6. प्रिततन वनदेशालय ___________________________________________________________________________ 12

7. वित्तीय क्षेत्रक विधायी सुधार अयोग (FSLRC) _____________________________________________________ 13

8. कु छ ऄन्य वनयामकीय प्रावधकरण _________________________________________________________________ 15

8.1 भारतीय विज्ञापन मानक पररषद् (ASCI) ________________________________________________________ 15

8.2 भारतीय वचककत्सा पररषद् (MCI) _____________________________________________________________ 15

8.3 खाद्य क्षेत्रक विवनयमन______________________________________________________________________ 16

8.4 पेशेिर सेिाओं के वलए स्ितंत्र वनयामक __________________________________________________________ 17

9. विवनयमन से संबध
ं ी विवभन्न पहलु ________________________________________________________________ 17

9.1 नीवत वनमातताओं और वनयामकों के मध्य ऄन्तःकिया एिं आसकी िततमान वस्थवत _______________________________ 17

9.2 वनयामकीय प्रकिया में वहतधारकों की भागीदारी ___________________________________________________ 18

9.3 प्रवतस्पधात प्रावधकरण बनाम क्षेत्रक वनयामक ______________________________________________________ 19

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9.4 ईपभोक्ताओं की समस्या का वनिारण ___________________________________________________________ 19

9.5 विवनयामक सुसग


ं तता _____________________________________________________________________ 20

9.6 भािी कारत िाइ का स्िरुप ___________________________________________________________________ 20

9.7 विवनयामक वनकायों की स्ितंत्रता से संबंवधत तकत __________________________________________________ 21

10. ईत्तरदावयत्ि तय करने के संबध


ं में ऄनुशस
ं ाएं _______________________________________________________ 21

10.1 वितीय प्रशासवनक सुधार अयोग की ऄनुशंसाएं (Recommendations of 2nd ARC) _____________________ 21

10.2 ऄन्य वसफाररशें _________________________________________________________________________ 23

11. एकल मजबूत विवनयामक बनाम बहु वनयामकीय संरचना ______________________________________________ 24

11.1 एकीकृ त पयतिेक्षण (ऄथातत् एकल मजबूत वनयामक) के पक्ष में तकत _______________________________________ 24

11.2 एकीकृ त विवनयमन के विपक्ष में तकत ____________________________________________________________ 25

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1. विवनयमन
विवनयमन को व्यापक स्तर पर सामावजक और व्यवक्तगत कारत िाइ के वनयम अधाररत वनदेशन के
माध्यम से सामावजक जोवखम, बाजार की विफलता या आकिटी सम्बन्धी चचताओं को राज्य िारा
संबोवधत करने के प्रयास के रूप में समझा जा सकता है। विवनयमन ऄिांछनीय व्यिहार पर लागत
ऄवधरोपण या रोक लगाते हुए वनजी व्यिहार को िांवछत कदशा में वनयंवत्रत या प्रभावित करने का एक
प्रयास है। चूंकक अर्शथक दक्षता और वनजी प्रोत्साहन के सन्दभत में विवनयमन के महत्िपूणत पररणाम हो
सकते हैं। ऄतः यह अमतौर पर के िल बाजार विफलताओं की रोकथाम, प्रवतस्पधात विरोधी व्यिहार
पर प्रवतबंध या वनिारण और जनवहत को बढ़ािा देने जैसी विशेष पररवस्थवतयों में ही न्यायसंगत है।
1.1. राज्य की भू वमका में पररितत न

अर्शथक और सामावजक जीिन में राज्य की भूवमका नाटकीय ढंग से बदल गइ है; सामावजक और
अर्शथक सेिाओं की मुख्य प्रदाता के स्थान पर ऄब आसकी भूवमका वनयम-वनमातता और विवनयामक की
हो गइ है। राज्य की संरचना और संबंधों के साथ आसका नया रूप विवनयामक कायों और वजम्मेदाररयों
में िृवि के कारण होता है। आन पररिततनों ने एक ऐसे राज्य के ईद्भि का मागत प्रशस्त ककया है जो ऄपनी
विवनयामक संस्थाओं के विस्तार, विविधता और जरटलता िारा पररभावषत होता है। ऐसा राज्य
विवनयामक राज्य के रूप में जाना जाता है।
अशा के विपरीत, 1980 और 1990 के दशक के दौरान ईदारीकरण और वनजीकरण ने राज्य के
विवनयामक दावयत्िों में विस्तृत विकास का मागत प्रशस्त ककया। भारत में सरकार की विवनयामक
भूवमका का मूल, संविधान के प्रािधानों में वनवहत है, जो विवभन्न विषयों पर कानून वनमातण हेतु संघ
और राज्य विधानमंडलों को शवक्त प्रदान करता है। संविधान साितजवनक व्यिस्था, भारत की संप्रभुता
और ऄखंडता के वहत में, अम जनता के वहतों की रक्षा के वलए या शालीनता, नैवतकता अकद के वहत में
ऄनुच्छेद 19 िारा प्रदत्त विवभन्न ऄवधकारों के ईपभोग पर युवक्तयुक्त प्रवतबंध अरोवपत करने हेतु राज्य
को शवक्त प्रदान करता है। पररणामस्िरूप ऐसे बहुतायत कानून और वनयम हैं, जो व्यवक्तयों और
व्यवक्तयों के समूहों की गवतविवधयों को विवनयवमत करते हैं। संविधान के साथ-साथ संसद िारा
ऄवधवनयवमत कानूनों ने विवधयों और वनयमों के कायातन्ियन के वलए संस्थानों और प्रकियाओं की
स्थापना की है। संविधान का ऄनुच्छेद 53(1) संघ की कायतकारी शवक्तयों के प्रयोग को विवनयवमत
करता है। आसके ऄवतररक्त, ऄनुच्छेद 53(3) के तहत संसद ऐसे कायों को विवध के माध्यम से एक
समुवचत प्रावधकरण को प्रत्यायोवजत कर सकती है।
1.2 विवनयमन की अिश्यकता

वनयामकीय हस्तक्षेप को तकत संगत ठहराने के तीन अधार हैं:


(i) बाजार-विफलता की रोकथाम
बाजार की विफलता एक ऐसी वस्थवत है वजसमें बाजार तंत्र समाज कल्याण को ऄवधकतम सीमा तक
बढ़ाने हेतु संसाधनों के कु शलतापूितक अिंटन में विफल हो जाता है। बाजार विफलताएं िस्तुतः
प्राकृ वतक एकावधकार या विषम (ऄसमवमत) सूचना, और बाह्यताओं (externalities) की ईपवस्थवत के
चलते साितजवनक िस्तुओं के व्यिस्थापन में घरटत होती हैं।
 प्राकृ वतक एकावधकार तब घरटत होता है जब आनिीचजग ररटनत टू स्के ल (ऄथातत्, ह्रासमान लागत)
के कारण दो या दो से ऄवधक कं पवनयों की तुलना में एक ही कं पनी िारा सम्पूणत बाजार को ऄवधक
कु शलतापूिक
त सेिा ईपलब्ध कराइ जाती है। आस प्रकार प्राकृ वतक एकावधकार को स्के ल बेनेकफट
प्राप्त होता है जो ईसे प्रवतस्पधात से संरवक्षत करता है; ऄन्य कं पवनयों का प्रिेश ऄकु शल ईत्पादन की
ओर ले जाता है ऄथातत ईत्पादन की औसत लागत के िल एक कम्पनी की ईपवस्थवत की तुलना में

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कइ कं पवनयों के प्रिेश से बहुत ऄवधक बढ़ जाती है। ऐसे मामलों में ईपभोक्ता वहतों की रक्षा करने
के वलए विवनयमन अिश्यक हो सकता है। ऐसा करने के िम में, विवनयमन क्षेत्र में नइ कं पवनयों
के प्रिेश को रोका जा सकता है और आस प्रकार िततमान ऑपरे टर के एकावधकार की वस्थवत को
संरवक्षत ककया जा सकता है। भारत में ऄभी भी विद्युत् पारे षण और वितरण क्षेत्र में प्राकृ वतक
एकावधकार व्याप्त है।
 विषम (ऄसमवमत) सूचना एक ऐसी वस्थवत है जहााँ सौदे का एक पक्षकार ऄन्य की तुलना में
ईत्पाद के बारे में ऄवधक जानकारी रखता है। यह बाजार तंत्र को संसाधनों के कु शल अिंटन को
प्राप्त करने से रोकता है। यह सूचनाओं की ऄसमवमतताओं को न्यूनतम करने या समाप्त करने हेतु
बाजार में लेनदेन या सूचना के प्रािधान के विवनयमन के वलए ककसी तीसरे पक्ष की भूवमका
वनर्शमत करता है। भारत में, स्िास््य और वशक्षा के क्षेत्र में काफी हद तक सूचना ऄसमवमतता
मौजूद है।
बाह्यताएं बाजार की विफलता का एक ऄन्य स्रोत हैं और आसे प्रासंवगक ईत्पाद बाज़ार में शावमल न
होने िाले कारकों पर, ईत्पादन या ईपभोग गवतविवधयों के सकारात्मक या नकारात्मक प्रभािों के रूप
में पररभावषत ककया जाता है। ईदाहरण के वलए, ककसी नदी में ऄपवशष्ट प्रिावहत करने िाला एक
औद्योवगक संयंत्र नदी के ऄनुप्रिाह में प्रयोक्ताओं पर नकारात्मक बाह्यता (लागत) ऄवधरोवपत करता है।
संयंत्र के ईत्पादन सम्बन्धी वनणतयों में आस लागत पर ध्यान नहद कदया जाता ऄवपतु आसे समाज िारा
िहन ककया जाता है। ऐसी पररवस्थवतयों में, अर्शथक दक्षता बहाल करने के वलए विवनयमन को ईवचत
माना जा सकता है।ऄवनयंवत्रत ईत्पादन और ईपभोग बाह्यताएं ऄन्य विकासशील ऄथतव्यिस्थाओं की
तरह भारत में भी सामान्य हैं।
आसवलए, बाजार विफलताओं की रोकथाम, ऄप्रवतस्पधी व्यिहार को समाप्त करने या ईन पर प्रवतबन्ध
अरोवपत करने, और जनता के वहतों को बढ़ािा देने के वलए न्यावयक सुरक्षा ईपायों की अिश्यकता है।

(ii) ऄप्रवतस्पधी व्यिहारों पर वनयंत्रण के वलए


कं पवनयां मूल्य वनधातरण (प्राआस कफचससग), बाजार साझा करने ऄथिा प्रभाि या एकावधकार के
दुरुपयोग जैसे ऄप्रवतस्पधी तौर तरीकों का सहारा ले सकती हैं। आस संदभत में कारत िाइ करने के वलए
ऄवधकाररयों को सशक्त बनाने िाले क़ानून ऐसे तौर तरीकों को रोकने में मदद कर सकते हैं। पारदशी,
संगत, और गैर-भेदभािपूणत वनयमों के एक समुच्चय के माध्यम से विवनयमन िारा एक प्रवतस्पधी और

गवतशील िातािरण तैयार ककया जा सकता है, वजसमें बाजार के सभी घटक ईन्नवत कर सकते हैं। आसके
ऄभाि में, ऄप्रवतस्पधी व्यिहार और वनयामकीय विफलतायें बाजार के वलए सामावजक रूप से आष्टतम
पररणाम प्राप्त करने में बाधा ईत्पन्न कर सकती हैं।
(iii) साितजवनक वहत को बढ़ािा देने हेतु
तीसरा औवचत्य जनवहत को बढ़ािा देने के मुद्दे से ईत्पन्न होता है, जो विवभन्न सरकारों का एक

महत्िपूणत नीवतगत ईद्देश्य है। ईवचत पहुाँच सुवनवित करना, गैर-भेदभािपूण,त सकारात्मक कारत िाइ, या
साितजवनक महत्ि के ककसी भी ऄन्य मुद्दे को सुवनवित करना विवनयमन के वलए एक महत्िपूणत अधार
प्रदान कर सकते हैं। भारत में आस संबंध में कु छ प्रमुख विवनयम विद्यमान हैं:
 समथतन मूल्य वनधातरण: ककसानों से गेहं या चािल खरीदने के वलए बाजार मूल्य की तुलना में
ऄवधक कीमत का सरकारी प्रस्ताि।
 साितजवनक वितरण प्रणाली: बाजार मूल्य से कम कीमत पर खाद्यान्न की अपूर्शत।
 वन:शुल्क वितरण: जल अपूर्शत और कृ वष के वलए शुल्क रवहत विद्युत,् जोकक शून्य शुल्क अरोपण के
नीवतगत ईद्देश्य से ईत्पन्न एक वनयामकीय वनणतय है।

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2. भारत में विवनयमन


2.1 भारत में विवनयमन का विकास

स्ितंत्रता पिात् भारत ने एक ‘वमवश्रत अर्शथक मॉडल’ ऄपनाया। वजसके ऄंतगतत ऄथतव्यिस्था के
महत्त्िपूणत घटकों यथा भारी ईद्योगों तथा जनोपयोगी सेिाओं पर राज्य का वनयंत्रण था। यद्यवप
तत्कालीन पररवस्थवतयों में वनजी क्षेत्र की गवतविवधयों को ऄनुमवत प्रदान की गइ थी तथावप सरकार ने
आन ईद्योगों के िारा ईत्पाकदत िस्तुओं, अयातों तथा वनगतमों पर लाआसेंस एिं कोटा के माध्यम से
वनयंत्रण का एक संजाल बना रखा था। आसके साथ ही आस तरह के वनयंत्रणों को ऄत्यवधक ईच्च प्रशुल्क
के प्रािधानों से भी बल वमल रहा था।
आस प्रकार सरकार न वसफत रणनीवतक एिं महत्त्िपूणत िस्तुओं एिं सेिाओं की ईत्पादक एिं वनयंत्रक थी
ऄवपतु आसने वनजी क्षेत्र के ईत्पादन, एिं कभी-कभी आससे सम्बंवधत मूल्यों पर भी, सीधा वनयंत्रण रखा।
हालााँकक विवभन्न दबािों के कारण सरकार के वनयंत्रणकारी कायों में कु छ सीमा तक कमी हुयी है लेककन
आन वनयामकीय कारत िाइयों को ककसी भी रूप में ‘स्ितंत्र’ नहद माना जा सकता।
1985 के बाद से भारतीय ऄथतव्यिस्था में सुधार की प्रकिया प्रारम्भ की गयी; आसमें वनम्नवलवखत तत्ि
सवम्मवलत थे- कं पवनयों का गैर-लाआसेंसीकरण तथा अईटपुट कोटा या फमत के ईत्पादन पर अरोवपत
सीमा का ईन्मूलन, विवभन्न क्षेत्रकों वजन पर ऄभी तक वसफत सरकार का एकावधकार था, ईनमें वनजी
कं पवनयों को प्रिेश तथा पूंजीगत िस्तुओं के अयात पर प्रशुल्कों एिं कोटा का ईदारीकरण।
1991 के बाद से बाह्य क्षेत्रक के ईदारीकरण का अशय प्रशुल्कों में कमी वजसे िस्तु व्यापार के सभी
क्षेत्रों तक विस्ताररत कर दी गयी थी तथा विदेशी वनिेश की शतों को असान एिं ईदारीकृ त बना कदया
गया था। घरे लू सुधार और बाह्य ईदारीकरण की प्रकिया ऄभी भी चल रही है। हालााँकक, बहुत से ऐसे
क्षेत्रक जहााँ सरकार का एकावधकार था (यथा विद्युत, दूरसंचार) िहां वनजी कं पवनयों के सहऄवस्तत्ि के
कारण आन क्षेत्रकों की ईत्पादक प्रोफाआल में महत्त्िपूणत ऄंतर देखने को वमला है। आसके साथ ही वनणतय
वनमातताओं के बीच यह अम सहमवत है कक ऐसे क्षेत्रकों में समान प्रवतस्पधात सुवनवित करने के वलए
आनका स्ितंत्र विवनयमन अिश्यक है। आसके पररणामस्िरूप, विद्युत और दूरसंचार क्षेत्रकों से प्रारं भ
करके विवभन्न क्षेत्रकों में स्ितंत्र वनयामकों का गठन ककया गया है, और वनयामकों की संख्या ऄभी भी
बढ़ रही है।

2.2 भारत में विवनयमन के प्रकार

भारत में विवनयमन को मुख्य रूप से तीन व्यापक श्रेवणयों में विभावजत ककया जा सकता है: अर्शथक
विवनयमन, लोकवहत में विवनयमन तथा पयातिरणीय विवनयमन।
(i) अर्शथक विवनयमन
अर्शथक विवनयमन का ईद्देश्य बाजार की विफलता को रोकना या ईसका प्रवतरोध करना है। आस हेतु
ऐसे वनयमों का वनमातण ककया जाता है वजनके माध्यम से बाजार विकृ त करने िाले कियाकलापों को
रोका तथा दवडडत ककया जा सके । भारतीय पररप्रेक्ष्य में आसका ईदाहरण 2003 का विद्युत् ऄवधवनयम,
है वजसके माध्यम से राज्य वनयामकों को विद्युत् ईपभोग के वलए शुल्क वनधातररत करने की ऄनुमवत दी
गयी है, ताकक अपूर्शतकतात प्राकृ वतक एकावधकार का ऄिांवछत लाभ न ईठा सकें ।
(ii) लोकवहत में विवनयमन
यह ईन क्षेत्रों को सवम्मवलत करता है जहााँ ईद्योग ककसी साितजवनक महत्ि के मानकों का ऄनुपालन
करने में ऄसमथत होते हैं। यह बाजार विफलता से वभन्न है। आसका एक ईवचत ईदाहरण स्िास््य एिं
सुरक्षा क्षेत्र है, जहााँ फमत ऄपने कमतचाररयों या सामान्य जनता को नुकसान से सुरवक्षत करने में ऄसमथत
हो सकती हैं।

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भारतीय मानक ऄवधवनयम, 1986 के तहत स्थावपत भारतीय मानक ब्यूरो विवभन्न ईत्पादों के वलए
सुरक्षा एिं गुणित्ता के मानकों को तय करता है; वजनमें से कु छ का पालन करना ऄवनिायत है। आस तरह
के विवनयमन अिश्यक हैं सयोंकक हमारी जनसंख्या के एक बड़े वहस्से में ईपभोक्ता जागरूकता का वनम्न
स्तर, अय का ऄसमान वितरण तथा बुवनयादी सेिाओं एिं अिश्यकताओं अकद के भुगतान की क्षमता
का ऄभाि है। आस कारण से खाद्य फसलों के वलए समथतन मूल्य के वनधातरण से ककसानों को खाद्यान्नों की
खेती के वलए प्रोत्साहन वमलता है, जो ऄंततः खाद्य सुरक्षा में िृवि का कारण बनता है।
(iii) पयातिरणीय विवनयमन
पयातिरणीय विवनयमन के ऄंतगतत पयातिरण को क्षवत से बचाने के वलए ककये जाने िाले प्रयास
सवम्मवलत होते हैं। एक स्िस्थ पयातिरण के िल सौन्दयातत्मक अधार पर िांवछत नहद है, ऄवपतु आसका
महत्ि आसवलए भी है सयोंकक पयातिरणीय वनम्नीकरण की कीमत भूवम, श्रम तथा संसाधनों को भी
चुकानी पड़ती है जो अर्शथक विकास पर ऄत्यंत महत्त्िपूणत प्रभाि डालते हैं। भारत में पयातिरण संरक्षण
को संिैधावनक दजात प्रदान ककया गया है। राज्य के नीवत वनदेशक तत्ि के ऄनुसार पयातिरण की संरक्षा
तथा ईसमें सुधार न वसफत राज्य का ऄवपतु देश के प्रत्येक नागररक का भी कततव्य है।
भारत सरकार ने पयातिरण संरक्षण के वलए पयातिरण संरक्षण ऄवधवनयम, 1986 के दायरे में विवभन्न
कानून लागू ककये हैं। पयातिरणीय कानूनों के वलए पयातिरण एिं िन मंत्रालय नोडल एजेंसी है।
हालााँकक, कें द्र सरकार िारा लागू ककये गए प्रमुख कानूनों के ऄवतररक्त विवभन्न राज्यों ने भी ऄपने
विधान लागू ककये हैं। प्रत्येक राज्य में स्थावपत राज्य प्रदूषण वनयंत्रण बोडत (SPCB), आन कानूनों के
कियान्ियन तथा स्िच्छ पयातिरण हेतु मानकों के वनधातरण हेतु वनयमों और विवनयमनों को जारी करने
के वलए ईत्तरदायी हैं। राज्य प्रदूषण वनयंत्रण बोडों की गवतविवधयों को कें द्रीय प्रदूषण वनयंत्रण बोडत
िारा समवन्ित ककया जाता है।
3. भारत में वनयामकों की श्रे वणयााँ
भारत में मुख्यतः दो प्रकार की विवनयामक एजेंवसयााँ कायतरत हैं:
3.1 स्ितं त्र िै धावनक विवनयामक एजें वसयााँ

सरकार िारा स्ियं के स्िावमत्ि िाले विभागों या प्रत्यक्ष वनयंत्रण िाली एजेंवसयों के माध्यम से वनयमन
करना सदैि ही ऄवस्तत्ि में रहा है। परं तु विगत सदी में विवनयामक तंत्रों की एक विशेष श्रेणी का ईद्भि
हुअ वजन्हें स्ितंत्र िैधावनक विवनयामक एजेंवसयााँ कहा गया। ये एजेंवसयााँ पारं पररक विवनयमन प्रणाली
का ऄनुसरण नहद करतद सयोंकक ये सरकार की कायतकारी शाखा से सम्बि होने के बजाए स्िायत्त होती
हैं। स्ितन्त्र वनयामकों की ऄिधारणा की ईत्पवत्त ऄमेररका में हुइ। आन एजेंवसयों की स्थापना का मूलभूत
अधार यह रहा है कक एक बाजार अधाररत ऄथतव्यिस्था में सभी के वलए समान प्रवतस्पधात तथा
व्यापक साितजवनक ि राष्ट्रीय वहतों के वलए विवनयमन का होना ऄत्यािश्यक है। आसके ऄवतररक्त ऄन्य
कारकों ने स्ितन्त्र वनयामकों की स्थापना का मागत प्रशस्त ककया, िे हैं:
1. जरटलताओं में िृवि और अिश्यक प्रौद्योवगककयों के विकास ने विशेषज्ञों िारा ऐसे मुद्दों से
वनपटना सरल बना कदया;
2. जनता के वलए वहतकर है, कक कु छ मामलों में वनणतयन की प्रकिया को राजनीवतक हस्तक्षेप से मुक्त
रखा जाए।
90 के दशक के प्रारं भ में, भारत में अर्शथक ईदारीकरण की प्रकिया के कारण सरकार बहुत से ऐसे क्षेत्रों
से पीछे हट गयी वजनपर ऄभी तक ईसका एकावधकार व्याप्त था। कॉरपोरे ट सेसटर के प्रिेश के ईपरांत
वनिेशक क्षमता को बढ़ािा देने के वलए और जनता के वहत की रक्षा के वलए कु छ ईपाय अिश्यक हो
गए। ऐसे ही एक ईपाय के तहत स्ितंत्र वनयामकों की स्थापना की गइ थी। आसके ऄवतररक्त, सरकार की
पारं पररक विभागीय संरचना सम्बंवधत क्षेत्रक के वलए नीवत-वनमातण तथा विवनयमन की दोहरी भूवमका
वनभाने के वलए ऄनुकूल नहद थी।

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3.2 स्िवनयामक प्रावधकरण

आन प्रावधकरणों की स्थापना विवभन्न कानूनों के िारा की गयी है, परं तु आनका चररत्र स्िवनयामक है।
आनके प्रकायों में सवम्मवलत हैं:
 व्यािसावयक वशक्षा से सम्बंवधत मुद्द;े

 पेशेिर के नैवतक अचरण तथा ईनके लाआसेंस से सम्बंवधत मुद्दे।

4. भारत में विवनयामक वनकायों से जु ड़े मु द्दे


4.1 स्ितं त्र ता

विवनयामकीय प्रभािकाररता, कायातत्मक स्ितंत्रता की मांग करती है, वजसके वलए अिश्यक है कक
विवनयामक वनकाय िारा वहत समूहों से एक वनवित दूरी बना कर रखी जाए। ऐसी स्िायत्तता का एक
पहलू कोष तक पहुाँच बनाए रखने की विवनयामक की क्षमता है, वजसका पररमाण के न्द्रीय मंत्रालय की
आच्छा पर वनभतर नहद करता ऄथातत वित्तीय स्ितंत्रता पर आसमें प्रमुख बल होता है।
 हालांकक, स्ितंत्रता के वलए ऄन्य पूित शतों का पालन अिश्यक है- एक बार वनयुक्त हो चुके
विवनयामक के सदस्यों/ऄध्यक्ष के पास वनवित कायतकाल तथा ऄक्षमता और नैवतक ऄधमता के
मामले को छोड़कर पदच्युवत के विरुि ईन्मुवक्त (पयातप्त सुरक्षा) होनी चावहए। भारत में, विशेष
क्षेत्रक विवनयामकों को स्िायत्तता प्रदान की गयी है, हालांकक आस तरह की स्िायत्तता विवभन्न
अयामों में सीवमत है।
 आसके ऄवतररक्त, ऄवनिायत और प्रत्यायोवजत स्ितंत्रता के मध्य एक ऄंतर है, वजसमें कायतकारी
िारा प्रयुक्त वनयंत्रण के कारण ऄवनिायत स्ितंत्रता की तुलना में प्रत्यायोवजत स्ितंत्रता काफी कम
है। बजटीय अिंटनों एिं कमतचाररयों की वनयुवक्तयों की ऄनुमवत के वलए और साथ ही वनयामकों
िारा सम्बि मंत्रालयों को ररपोटत करने की अिश्यकता के कारण कायातत्मक स्ितंत्रता प्रायः
बावधत हो जाती है।
 विवभन्न वनयामकों के वित्त पोषण एिं ईनकी स्ितंत्रता में कोइ एकरूपता नहद है। एक ओर जहां
वित्त मंत्रालय, स्ियं को ररपोटत करने िाले वनयामकों को सुरवक्षत वित्तीयन और पररणामी
स्ितंत्रता प्रदान करने में सकिय रहा है िही ाँ कइ ऄन्य मंत्रालयों िारा आस वसिांत को व्यापक तौर
पर नज़रं दाज़ ककया गया है।

4.2 जिाबदे ही

स्ितंत्रता के साथ-साथ, सभी वनयामकों को जिाबदेह होने की अिश्यकता है। आस हेतु ईवचत तंत्र की
स्थापना अिश्यक है। जिाबदेवहता दो प्रकार की होती है- राजनीवतक और कानूनी।
भारत में, सामान्य रूप से विवनयामक वनकायों की वनम्नवलवखत प्रमुख विशेषताएं हैं जो आनकी
जिाबदेही के वलए प्रासंवगक हैं:
i. आन्हें क़ानूनी अधार पर गरठत ककया गया है, जो बोडत के सदस्यों की वनयुवक्त और ईन्हें हटाने के
संदभत में वनयम और शतें वनधातररत करता है।
ii. ऄवधकतर मामलों में आनके वनणतय के विरुि एक वनर्ददष्ट प्रावधकारी के समक्ष ऄपील दायर की जा
सकती है। स्िाभाविक रूप से, ये ईच्च न्यायालयों और ईच्चतम न्यायालय के ररट क्षेत्रावधकार के भी
ऄधीन हैं।
iii. विवनयामक के खातों की लेखा परीक्षा वनयंत्रक एिं महालेखा परीक्षक िारा की जाती है।
iv. ये कानूनी तौर पर एक िार्शषक ररपोटत तैयार करने और ईसे सरकार के समक्ष प्रस्तुत करने के वलए
बाध्य हैं, जो आसे संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखती है।

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v. संबंवधत विवधयों ने यह ऄवनिायत कर कदया है कक विवनयामक ऄपनी शवक्तयों का प्रयोग और कायों


का वनितहन करते समय पारदर्शशता को बनाए रखेंगे।
vi. वनयामकों के ऄध्यक्षों, सदस्यों और ऄवधकाररयों को भारतीय दंड संवहता (IPC) की धारा 21 के
ऄंतगतत लोक सेिक माना गया है।
 संसदीय पयतिेक्षण राजनीवतक ईत्तरदावयत्ि का एक अदशत रूप है, सयोंकक संघीय मंत्रालय के प्रवत
ज़िाबदेही को प्रायः मंत्रालय िारा पररचावलत लाभों/ईपयोवगताओं का पक्ष लेने हेतु संघीय
मंत्रालय के माध्यम से विवनयामक पर डाले जा रहे दबाि से सम्बि ककया जा सकता है।
 आसी प्रकार, वनवहत वहतकारी समूहों के वलए प्रायः संसद की ऄपेक्षा संघीय मंत्रालय के माध्यम से
विवनयामक पर प्रभािी ढंग से दबाि बनाना सरल होता है। ऄतः, सम्पूणत बोडत में संसदीय
पयतिेक्षण िारा संघीय मंत्रालय के वनयंत्रण की जगह लेना अिश्यक है। यह प्रािधान वितीय ARC
िारा भी सुझाया गया वजसके विषय में एक ऄनुिती ऄनुच्छेद में चचात की गयी थी।
 विवनयामक की कारत िाइ पर तभी सिाल ईठते हैं जब देश में कोइ गंभीर बहस या असन्न संकट की
वस्थवत हो। िास्ति में, आस तरह के ऄवधकांश मामलों में संघीय मंत्रालय पर ही प्रश्न ईठते हैं न कक
वनयामकों पर। आस तरह की गलत ऄिधारणाएं संघीय मंत्रालय को वनयामकीय वनकाय के कायों
में हस्तक्षेप करने में सक्षम बनाती हैं।
 कानूनी जिाबदेवहता एक विवनयामक के विवशष्ट फै सलों की समीक्षा की ऄनुमवत देता है। यह
सुवनवित करना महत्िपूणत है कक समीक्षा प्रकिया विवनयमन के एक दूसरे स्तर का वनमातण नहद
करती है, जैसाकक दूरसंचार क्षेत्र में ऄनुभि ककया गया।
 दूरसंचार क्षेत्र में ऄपीलीय न्यायावधकरण ि दूरसंचार वििाद वनपटान और ऄपीलीय
न्यायावधकरण (TDSAT) की भूवमका काफी विस्तृत है। वििादों के समाधान हेतु TDSAT (न कक
TRAI) को सशक्त बनाया गया है। कायत के आस विभाजन ने दूरसंचार विवनयामक के प्रदशतन को
प्रवतकू ल रूप से प्रभावित ककया है सयोंकक ककसी भी मुद्दे को वििाद के रूप में प्रस्तुत ककया जा
सकता है। आसके बािजूद, आस सन्दभत में कु छ सकारात्मक पहलु भी हैं जैसे -ककसी विवनयामक
एजेंसी के वनणतय के विरुि संरक्षण में न्यावयक समीक्षा की भूवमका महत्िपूणत मानी जाती है, जो
आसके िैधावनक ऄवधदेश की पररवध के बाहर वस्थत है या स्थावपत प्रशासवनक प्रकियाओं का
ऄनुसरण करने में ऄसफल रहते हैं।
 जहां TRAI ने ईपयुक्त प्रकियाओं का पालन नहद ककया िहां TDSAT ने कु छ मामलों में वनणतय
वलए हैं। सभी क्षेत्रकों में ऄपीलीय शवक्तयााँ भी एक समान नहद हैं। TDSAT के विपरीत,
वससयोररटीज ऄपीलेट रिब्यूनल (SAT) के िल पूज
ं ी बाजार वनयामक- भारतीय प्रवतभूवत एिं
विवनमय बोडत (SEBI) के वनणतय के विरुि ऄपील पर विचार कर सकती है।

4.3 पारदर्शशता

पारदशी वनयामकीय प्रकिया ऄत्यािश्यक है। विवनयामक प्रकिया में पारदर्शशता सुवनवित करने के वलए
कु छ महत्िपूणत कदम ईठाये जाने की भी अिश्यकता है। ईदाहरण के वलए, वहतधारकों को विवनयामक
प्रकिया से ऄिगत कराया जाना चावहए और स्ितंत्र रूप से ऄपने विचार प्रस्तुत करने के वलए ऄिसर
कदया जाना चावहए।
कु छ मामलों में, भारत में विवनयामक कानून ने एक पारदशी विवनयामक प्रकिया की गारं टी प्रदान
करने के वलए कु छ विशेष प्रािधान ककए गये हैं। ईदाहरण के वलए, विद्युत् और दूरसंचार क्षेत्रों में, यह
ऄवनिायत कर कदया गया है कक वनयामकों को ऄपनी शवक्तयों के प्रयोग और कायों का वनितहन करते
समय पारदर्शशता सुवनवित करनी चावहए। प्रमुख पत्तनों के वलए टैररफ प्रावधकरण (TAMP) के मामले
में, वनवहत विधान में पारदर्शशता को लेकर कोइ विशेष प्रािधान नहद ककया गया है। हालांकक, TAMP
ने कदशा-वनदेशों के माध्यम से पारदर्शशता लाने का प्रयास ककया है।

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प्रवतस्पधात ऄवधवनयम में पारदर्शशता के संबंध में कोइ प्रािधान विद्यमान नहद है, ककन्तु सरकार िारा
प्रवतपाकदत सामान्य प्रशासन के वसिांतों में एक ईपबंध मौजूद है। आसके ऄवतररक्त, सूचना का ऄवधकार
(RTI) ऄवधवनयम नागररकों को ककसी भी सरकारी विभाग या ईपिम से ककसी भी मामले पर
जानकारी लेने के वलए सशक्त करता है।

5. महत्िपू णत विवनयामक वनकाय


कु छ महत्िपूणत विवनयामक वनकायों तथा ईनकी शवक्तयां एिं कायत नीचे सूचीबि ककए गए हैं। यहााँ
विस्तृत सूची न देकर के िल महत्िपूणत विवनयामक वनकायों को ही सूचीबि ककया गया है।

5.1 भारतीय प्रवतभू वत और विवनमय बोडत (SEBI)

भारतीय प्रवतभूवत और विवनमय बोडत भारत में प्रवतभूवत बाजार का विवनयामक वनकाय है। यह SEBI
ऄवधवनयम के प्रािधानों के ऄनुसार 12 ऄप्रैल, 1992 को स्थावपत ककया गया था (ईल्लेखनीय है कक
एक गैर-सांविवधक वनकाय के रूप में 1988 में आसका गठन ककया गया था, ईसके बाद SEBI एसट,
1992 के िारा आसे िैधावनक दजात प्रदान ककया गया)। SEBI का तीन समूहों की अिश्यकताओं के प्रवत
जिाबदेही होना अिश्यक है, जो बाजार का गठन करते हैं, ये हैं; प्रवतभूवतयों के वनगतमनकतात; वनिेशक;
बाजार के वबचौवलए।
(A) शवक्तयां
सेबी िारा ऄपने कायों के कु शलतापूितक वनितहन हेतु, आसमें वनम्नवलवखत शवक्तयों को ऄन्तर्शनवहत ककया
गया है:
 स्टॉक एससचेंजों के कानूनों का ऄनुमोदन करना।
 स्टॉक एससचेंजों के कानूनों में संशोधन की अिश्यकता पर बल देना।
 मान्यता प्राप्त स्टॉक एससचेंजों से समय-समय पर अिवधक ररटनत की मांग करना एिं बही-खाते
का वनरीक्षण करना।
 वित्तीय मध्यस्थों के बही-खाते का वनरीक्षण करना।
 कु छ कं पवनयों पर ईनके शेयरों को एक या एक से ऄवधक शेयर बाजारों में सूचीबि करने हेतु
दबाि डालना।
 वबचौवलयों पर ईनके कायों के प्रदशतन हेतु शुल्क और प्रभार ऄवधरोवपत करना।
 वनवित क्षेत्रों में लेनदेन के प्रयोजन हेतु ककसी व्यवक्त को लाआसेंस प्रदान करना।
 आसके िारा प्रयोज्य शवक्तयों को प्रत्यायोवजत करना।
 कं पनी ऄवधवनयम के कु छ प्रािधानों के ईल्लंघन का प्रत्यक्ष रूप से वनणतयन और मुकदमा चलाना।
 मौकद्रक दंड ऄवधरोवपत करने की शवक्त।
(b) एक मूल्यांकन
SEBI िारा वशकायत वनिारण के मामलों की सफलता में िृवि हुइ है। हालांकक, एक सिेक्षण से पता
चलता है, कक ऄवधकांश वनिेशक आसके वििाद वनपटान प्रणाली को ऄप्रभािी मानते हैं। आसके ऄलािा,
SEBI ‘साआन-बोडत' एिं ‘फ्लाइ बाय नाइट’ (रात भर में गायब होने िाली) कं पवनयों के विरुि
कायतिाही करने के वलए सक्षम नहद है, जो बहुत ऄवधक धन लेकर ऄचानक गायब हो जाती हैं। SEBI
वनयमों और विवनयमन के वनमातण में ऄवधक व्यस्त हो गइ है, वजसके कारण आसकी संरचना जरटल और
बोवझल होती जा रही है, जो वििेकाधीन व्याख्या हेतु ऄिसर प्रदान करते हैं। यह बाजार में ऄसामान्य
ईतार-चढ़ाि के वलए वजम्मेदार कारकों पर वनयंत्रण करने में विफल रहा है। आस कारण, छोटे वनिेशकों
का वनिेश में विश्वास कम होता जा रहा हैं। कमोबेश कें द्रीय वित्त मंत्रालय की एक शाखा के रूप में
कायतरत होने के कारण, SEBI की स्िायत्तता के साथ समझौता ककया गया है।

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5.2 बीमा विवनयामक और विकास प्रावधकरण

(Insurance Regulatory and Development Authority-IRDA)


IRDA एक सिोच्च स्िायत्त सांविवधक वनकाय है, जो भारत में बीमा ईद्योग का संिधतन एिं विवनयमन
करता है। आसकी स्थापना बीमा विवनयामक एिं विकास प्रावधकरण ऄवधवनयम, 1999 िारा की गइ
थी।
(a) शवक्तयां एिं कायत
 अिेदक को पंजीकरण प्रमाण पत्र जारी करना और ऄयोग्य पंजीकरण को वनलंवबत या रद्द करना।
 बीमा धारकों के बीमा पॉवलसी से संबंवधत मामलों जैसे बीमा दािे का वनपटारा, बीमा योग्य
ब्याज, बीमा धारक िारा नामजदगी और ऄन्य वनयम एिं शतों आत्याकद में पॉवलसी धारकों के
वहतों की रक्षा करना।
 मध्यस्थ या बीमा वबचौवलयों और एजेंटों हेतु ऄपेवक्षत योग्यता, अचार संवहता एिं व्यािहाररक
प्रवशक्षण को वनर्ददष्ट करना।
 यह बीमा कारोबार में दक्षता को बढ़ािा देना।
 बीमा कं पवनयों, वबचौवलयों, बीमा वबचौवलयों और बीमा कारोबार से जुड़े ऄन्य संगठनों की जांच
सवहत लेखा परीक्षा, जांच-पड़ताल, वनरीक्षण एिं जानकारी की मांग करना।
 सामान्य बीमा कारोबार के संबध
ं में बीमा कं पवनयों िारा ऑफर की जाने िाली बीमा दरों, लाभ,
वनयम और शतों जो टैररफ सलाहकार सवमवत िारा पूणत
त ः वनयंवत्रत और विवनयवमत नहद है,
ईसका वनयंत्रण एिं विवनयमन करना।
 बीमा कं पवनयों िारा धन के वनिेश को वनयंवत्रत और विवनयवमत करना।
 मध्यस्थों या बीमा मध्यस्थों और बीमा कतात के मध्य वििादों का वनपटारा करना।

5.3 भारतीय प्रवतस्पधात अयोग

(Competition Commission of India-CCI)


CCI, भारत सरकार की एक संस्था है। यह सम्पूणत भारत में प्रवतस्पधात ऄवधवनयम, 2002 के कियान्िण
तथा प्रवतस्पधात पर प्रवतकू ल प्रभाि डालने िाली गवतविवधयों को रोकने हेतु ईत्तरदायी संस्था है।
प्रवतस्पधात संशोधन ऄवधवनयम, 2007 (यथा संशोवधत प्रवतस्पधात ऄवधवनयम, 2002) अधुवनक
प्रवतस्पधात कानूनों के विचारों का ऄनुसरण करता है। यह ऄवधवनयम प्रवतस्पधात-रोधी करारों, ईद्यमों
िारा प्रमुख वस्थवत के दुरूपयोग का वनषेध करता है तथा ऐसे संयोजनों {ऄवधग्रहण, वनयंत्रण तथा
विलय और ऄवधग्रहण (M&A) की प्रावप्त} को विवनयवमत करता है, वजसके कारण भारत में प्रवतस्पधात
पर ऄवधक प्रवतकू ल प्रभाि पड़ सकता है ऄथिा ईसके प्रभावित होने की संभािना हो सकती है।
(a) कायत एिं ईत्तरदावयत्ि
 बाजार को ईपभोक्ताओं के लाभ एिं कल्याण के वलए कायतशील बनाना।
 देश में ऄथतव्यिस्था के विकास तथा तीव्र एिं समािेशी विकास हेतु अर्शथक गवतविवधयों में वनष्पक्ष
और स्िस्थ प्रवतस्पधात सुवनवित करना।
 अर्शथक संसाधनों का ऄत्यवधक दक्ष ईपयोग सुवनवित करने के ईद्देश्य के साथ प्रवतस्पधी नीवतयों
को कियावन्ित करना।
 क्षेत्रीय विवनयामक कानून का प्रवतस्पधात कानूनों के साथ सुचारू संरेखण सुवनवित करने हेतु
क्षेत्रीय वनयामकों के साथ प्रभािकारी संबंध एिं संचार का विकास एिं संिधतन।
 प्रवतस्पिात का प्रभािी रूप से विस्तार करना तथा भारतीय ऄथतव्यिस्था में प्रवतस्पधी संस्कृ वत को
विकवसत एिं स्थावपत करने हेतु सभी ऄंशधारकों के मध्य प्रवतस्पिात के लाभों की सूचना का प्रसार
करना।

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5.4 भारतीय दू र सं चार विवनयामक प्रावधकरण

(Telecom Regulatory Authority of India -TRAI)


TRAI भारत में दूरसंचार कारोबार के विवनयमन हेतु एक स्ितंत्र विवनयामक है। यह देश में दूरसंचार
के क्षेत्र में कायतरत कम्पवनयों के वलए विवनयामक ऄथातत ईनके वनयमन एिं देख-रे ख का कायत करती है।
आसका गठन टेवलकॉम रे गल
ु ेटरी ऄथॉररटी ऑफ़ आं वडया एसट, 1997 के ऄंतगतत ककया गया है।
(A) शवक्तयां और कायत
 नए सेिा प्रदाताओं के प्रिेश हेतु समय एिं अिश्यकताओं की ऄनुशंसा करना।
 ककसी सेिा प्रदाता के वलए लाआसेंस की सेिा शतों की ऄनुशस
ं ा करना।
 विवभन्न सेिा प्रदाताओं के बीच तकनीकी सुसंगतता एिं प्रभािी ऄंतसंपकत सुवनवित करना।
 लाआसेंस हेतु सेिा शतों के ऄनुपालन को सुवनवित करना।
 दूरसंचार सेिाओं के प्रचालन में प्रवतस्पिात को सुसाध्य बनाना एिं कायतदक्षता को बढ़ािा देना
ताकक आन सेिाओं में संिृवि प्राप्त की जा सके ।
 दूरसंचार सेिा के ईपभोक्ताओं के वहतों की रक्षा करना।
 सेिा की गुणित्ता की वनगरानी करना और सेिा प्रदाताओं िारा मुहय
ै ा कराइ गइ ऐसी सेिाओं का
अिवधक सिेक्षण करना।
 नेटिकत में प्रयुक्त ईपकरणों की जांच करना और सेिा प्रदाताओं िारा प्रयोज्य ईपकरणों की
ऄनुशस
ं ा करना।
 सेिा प्रदाताओं के मध्य वििादों का वनपटारा करना।

6. प्रितत न वनदे शालय


प्रिततन वनदेशालय, राजस्ि् विभाग, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार के ऄधीन एक विशेष वित्तीय जांच
ऐजेंसी है, जो वनवम्नलवखत विवधयों को प्रिर्शतत करता है:-
(a) विदेशी मुद्रा प्रबंधन ऄवधवनयम, 1999 (Foreign Exchange Management Act: FEMA)
और
(b) धन-शोधन वनिारण ऄवधवनयम, 2002 (Prevention of Money Laundering Act, 2002:
PMLA)।
प्रिततन वनदेशक (Director of Enforcement), वनदेशालय के प्रमुख होते हैं। आसका मुख्यालय नइ
कदल्ली में वस्थत है जबकक मुंबइ, चेन्नइ, चंडीगढ़, कोलकाता और कदल्ली में आसके पांच क्षेत्रीय कायातलय
हैं। क्षेत्रीय कायातलयों के प्रमुख विशेष प्रिततन वनदेशक (Special Directors of Enforcement) होते
हैं।
यह वनदेशालय कार्शमकों की सीधी वनयुवक्त के ऄवतररक्त, विवभन्न जांच एजेंवसयों ऄथातत, सीमा शुल्क
और कें द्रीय ईत्पाद शुल्क, अय-कर, पुवलस, अकद से प्रवतवनयुवक्त के अधार पर ऄवधकाररयों की
वनयुवक्त करता है।
ईत्पवत्त और विकास
 आस वनदेशालय की स्थापना 01 मइ, 1956 को हुइ थी।जब विदेशी मुद्रा विवनयमन ऄवधवनयम,
1947 (फे रा, 1947) के ऄंतगतत विवनमय वनयंत्रण विवधयों के ईल्लंघन को रोकने के वलए अर्शथक
कायत विभाग के वनयंत्रण में एक ‘प्रिततन आकाइ’ गरठत की गइ थी। नइ कदल्ली में वस्थत मुख्यालय
और बंबइ एिं कलकत्ता की दो शाखाओं के साथ विवधक सेिा के एक ऄवधकारी, प्रिततन वनदेशक के
रूप में, आस आकाइ के प्रमुख थे।

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 िषत 1957 में, आस आकाइ को 'प्रिततन वनदेशालय' नाम कदया गया, और एक ऄन्य शाखा मद्रास में
स्थावपत की गयी। िषत 1960 में वनदेशालय के प्रशासवनक वनयंत्रण को अर्शथक मामलों के विभाग
से राजस्ि विभाग को हस्तांतररत कर कदया गया। बाद में, FERA- 47 को वनरस्त कर कदया गया
और FERA, 1973 िारा आसे प्रवतस्थावपत कर कदया गया। 4 िषों की ऄल्पािवध (1973 -
1977) के वलए वनदेशालय, कार्शमक एिं प्रशासवनक सुधार विभाग के प्रशासवनक क्षेत्रावधकार में
बना रहा।
 अर्शथक ईदारीकरण की प्रकिया के अरम्भ के साथ FERA, 1973, जो एक विवनयामक कानून
था, ईसे वनरस्त कर कदया और ईसके स्थान पर 1 जून, 2000 से प्रभािी एक नए कानून - विदेशी
मुद्रा प्रबंधन ऄवधवनयम, 1999 (FEMA) को लागू ककया गया। आसके ऄवतररक्त, ऄंतरातष्ट्रीय धन
शोधन व्यिस्था (आं टरनेशनल एंटी मनी लॉन्ड़ररग ररजाआम) के ऄनुरूप, एक नए कानून ‘धन-
शोधन वनिारण ऄवधवनयम, 2002’ (Prevention of Money Laundering Act, 2002
:PMLA) को ऄवधवनयवमत ककया गया और प्रिततन वनदेशालय को आसे प्रिर्शतत करने का दावयत्ि
सौंपा गया।

1. FEMA, जो कक एक दीिानी (वसविल) कानून है, आसके तहत मुद्रा विवनमय वनयंत्रण कानूनों एिं
विवनयमन के संकदग्ध ईल्लंघन की जांच करने के साथ आस हेतु दोषी घोवषत व्यवक्त पर दंड
ऄवधरोवपत करने की ऄधत-न्यावयक शवक्तयां प्राप्त हैं; तथा
2. PMLA, एक अपरावधक कानून है, वजसके तहत ऄवधकाररयों को ऄपरावधक गवतविवधयों से
व्युत्पन्न की गइ पररसंपवत्तयों का पता लगाने हेतु जॉंच करने और ईस संपवत्त को ऄनंवतम रूप से
जब्त या कु की करने एिं धन शोधन में संलग्न ऄपरावधयों पर मुकदमा चलाने की शवक्तयां प्राप्त हैं।

कायत
वनदेशालय के मुख्य कायत आस प्रकार हैं:
 विदेशी मुद्रा प्रबंधन ऄवधवनयम, 1999 (FEMA) के प्रािधानों के ईल्लंघन की जााँच करना।
FEMA के ईल्लंघन का वनपटान प्रिततन वनदेशालय के नावमत प्रावधकाररयों िारा ककया जाता है
और आसके ऄंतगतत जांच प्रकिया के दौरान ईल्लंघन वसि होने की वस्थवत में मामले में संवलप्त रावश
से तीन गुना तक की रावश का अर्शथक दंड लगाया जा सकता है।
 PMLA के प्रािधानों के तहत मनी लॉन्ड़ररग के ऄपराधों की जांच करना और यकद कोइ संपवत्त
PMLA के तहत ऄनुसूवचत ऄपराध के तहत बनाइ गयी हो तो संपवत्त की जब्ती एिं कु की पर
कारत िाइ करना, तथा मनी लॉन्ड़ररग के ऄपराध में शावमल लोगों पर मुकदमा चलाना। 28
विधानों के तहत 156 ऄपराध हैं, जो PMLA के तहत ऄनुसूवचत ऄपराध हैं।
 विदेशी मुद्रा संरक्षण तथा तस्करी गवतविवध वनिारण ऄवधवनयम, 1974 (COFEPOSA) के
प्रत्यायोवजत मामलों के संबंध में फे मा का ईल्लंघन।
 PMLA के प्रािधानों के ऄंतगतत मनी लॉन्ड़ररग और पररसंपवत्त के प्रत्यायन (बहाली) के संबंध में
ऄन्य देशों को सहयोग ईपलब्ध कराना और आस तरह के मामलों में सहयोग प्राप्त करना।

7. वित्तीय क्षे त्र क विधायी सु धार अयोग (FSLRC)


माचत 2011 में वित्त मंत्रालय िारा गरठत वित्तीय क्षेत्रक विधायी सुधार अयोग (FSLRC), को
भारत की वित्तीय प्रणाली को शावसत करने िाले विधानों की व्यापक समीक्षा एिं ईन्हें पुनरत वचत
करने का वनदेश कदया गया था।
 ईच्चतम न्यायालय के पूित न्यायाधीश श्री बी.एन. श्रीकृ ष्ण ने अयोग की ऄध्यक्षता की।
 FSLRC के ऄनुसार, िततमान विवनयामक व्यिस्था खंवडत है और विवनयामक ऄंतरालों,

ऄवतव्यापनों, विसंगवतयों और वििाचनों (arbitrage) से भरा हुअ है।

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 आसके समाधान हेतु FSLRC ने, 22 माचत 2013 को वित्त मंत्रालय को ऄपनी ररपोटत सौंपी
वजसमें िततमान विवनयामक व्यिस्था का विश्लेषण तथा मौजूदा वित्तीय कानूनों के ऄवधकांश
भाग को प्रवतस्थावपत करने के वलए भारतीय वित्तीय संवहता (IFC) का मसौदा ईपवस्थत है।
 वनयामकों के सन्दभत में, FSLRC ने स्ितंत्रता और जिाबदेही, दोनों की अिश्यकता पर बल
कदया है। भारतीय वित्तीय संवहता के मसौदे में स्िावमत्ि तटस्थता की बात कही गयी है, जहााँ
ककसी वित्तीय फमत का विवनयमन और पयतिेक्षण समान होता है चाहे िह वनजी कं पनी हो या
साितजवनक कं पनी।
 मसौदा संवहता ककसी व्यिस्था के िततमान क्षेत्रक विवशष्ट विवनयमन से एक ऐसी प्रणाली की
ओर स्थानान्तरण का प्रयास करता है जहां RBI बैंककग और भुगतान व्यिस्था का विवनयमन
करता है।
 यह एक एकीकृ त वित्तीय एजेंसी (UFA) SEBI, IRDA, PFRDA और FMC जैसे वनयामकों
को शावमल करती है ताकक शेष वित्तीय बाजारों को विवनयवमत ककया जा सके ।
 वनयामकों के सदस्यों की वनयुवक्त के वलए एक सटीक चयन-सह-खोज की प्रकिया के साथ एक
सशक्त बोडत की व्यिस्था की वसफाररश की गयी है।
 एक विवनयामक बोडत के सदस्यों को चार श्रेवणयों- ऄध्यक्ष, कायतकारी सदस्य, गैर-कायतकारी
सदस्यों और सरकार िारा नामवनदेवशत सदस्यों, में विभावजत ककया जा सकता है। आसके
ऄवतररक्त, बोडत का समथतन करने हेतु सलाहकार पररषदों की स्थापना के वलए एक सामान्य
रूपरे खा वनधातररत की गइ है।
 सभी विवनयामक एजेंवसयों का सम्पूणत वित्त पोषण वित्तीय प्रणाली से वलए गए शुल्क से ककया
जाएगा।
FSLRC, मौजूदा प्रवतभूवत ऄपीलीय न्यायावधकरण (वससयोररटीज ऄपीलेट रिब्यूनल: FSAT) को
सवम्मवलत करते हुए वित्त से सम्बंवधत सभी ऄपीलों की सुनिाइ करने के वलए एक एकीकृ त वित्तीय
क्षेत्र ऄपीलीय न्यायावधकरण (FSAT) के रूप में कायत करता है।
वनम्नवलवखत तावलका FSLRC िारा प्रस्तावित विवनयामक व्यिस्था की एक रूपरे खा प्रदान करता
है।
िततमान प्रस्तावित कायत

RBI RBI मौकद्रक नीवत, बैंकों का विवनयमन और


पयतिेक्षण,भुगतान प्रणाली का विवनयमन
और पयतिेक्षण

SEBI एकीकृ त वित्तीय एजेंसी सभी गैर-बैंककग और भुगतान सम्बंवधत


(UFA) बाज़ारों का विवनयमन
FMC
IRDA
PFRDA

वससयोररटीज ऄपीलेट वित्तीय क्षेत्र


ऄपीलीय भारतीय ररजित बैंक, UFA और FRA के
रिब्यूनल (SAT) न्यायावधकरण (FSAT) वखलाफ ऄपील की सुनिाइ करता है ।

वनक्षेप बीमा और प्रत्यय रे जोल्यूशन कारपोरे शन सम्पूणत वित्तीय प्रणाली में


गारं टी वनगम (DICGC) (RESOLUTION रे जोल्यूशन कायत

CORPORATION)

वित्तीय वस्थरता विकास FSDC प्रणालीगत जोवखम और विकास के वलए

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पररषद (FSDC) िैधावनक एजेंसी

निीनतम संस्थाएं ऋण प्रबंधन एजेंसी(DMA) ---------- एक स्ितंत्र ऋण प्रबंधन एजेंसी

---------------- …………………...
ईपभोक्ताओं की वशकायतें
फाआनेंवसयल रे ड्रस
े ल एजेंसी(FRA)

8. कु छ ऄन्य वनयामकीय प्रावधकरण


8.1 भारतीय विज्ञापन मानक पररषद् (ASCI)

(Advertising Standards Council of India [ASCI])


भारतीय विज्ञापन मानक पररषद् (ASCI) तथा भारतीय खाद्य सुरक्षा एिं मानक प्रावधकरण
(FSSAI) के मध्य एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर हुअ। यह समझौता ज्ञापन िस्तुतः खाद्य
तथा पेय पदाथों के क्षेत्र में भ्रामक विज्ञापनों की जााँच से संबंवधत है।
ASCI सया है ?
 विज्ञापन के क्षेत्र में ASCI नामक स्ि-वनयामक संस्था का गठन 1985 में ककया गया था।
 विज्ञापन ईद्योग के तीन प्रमुख घटकों विज्ञापन दाता, विज्ञापन एजेंवसयों तथा मीवडया ने संयुक्त
रूप से आस स्ितंत्र गैर सरकारी संस्था का गठन ककया।
 आस संस्था का प्रमुख लक्ष्य विज्ञापनों के प्रवत अम लोगों के विश्वास को बनाये रखना तथा ईसे और
ऄवधक बढ़ाना है। ASCI के ऄवधदेश के ऄंतगतत आसे यह सुवनवित करना है कक समस्त विज्ञापन
सामग्री सत्यपरक, कानूनी रूप से मान्य तथा ऄपने ईद्देश्य के प्रवत इमानदार हो ि भ्रामक ना हो।
 आसके ऄलािा यह संस्था यह भी सुवनवित करती है कक विज्ञापन मयातकदत हों, मवहलाओं को
िस्तुपरक नजररये से प्रस्तुत ना करता हो तथा ईपभोक्ताओं विशेषत: बच्चों के वलए ईपयुक्त हो ि
आसके साथ ही ऄपने प्रवतिन्दी के प्रवत भी ईदार हो।
 यह संस्था ककसी विज्ञापन के विरुि की गइ ककसी भी प्रकार की वशकायत को ASCI के मानकों
तथा ऄन्य कानूनों के प्रकाश में विचार करती है।
8.2 भारतीय वचककत्सा पररषद् (MCI)

 MCI भारत में मेवडकल वशक्षा के वलए एक समान तथा ईच्च मानकों की स्थापना के ईद्देश्य से
वनर्शमत एक िैधावनक वनकाय है।
 यह मेवडवसन पेशे में ईपयुक्त मानदंडों को सुवनवित कर, जनता के स्िास््य और ईनकी सुरक्षा को
बढ़ािा देने तथा ईसकी वनगरानी के वलए भारत में काम करने के वलए वचककत्सकों को पंजीकृ त
करती है।
हाल ही में संसद की एक स्थायी सवमवत (PSC) ने ऄपनी ररपोटत प्रस्तुत की है। आसमें भारतीय
वचककत्सा पररषद् (MCI) की कायत-प्रणाली में गंभीर ऄवनयवमतताओं की ओर ध्यान अकृ ष्ट ककया गया
है।“रूपांतरणीय प्रकृ वत” के पररिततनों की मांग की गयी।
ररपोटत में सवम्मवलत कु छ महत्िपूणत रटप्पवणयााँ
1. MCI की संरचना ऄपारदशी है, तथा आसमें विविध पृष्ठभूवम के वहतधारक सवम्मवलत नहद है, तथा
पररषद् में के िल वचककत्सक हैं।

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2. MCI के िारा ऄवधदेवशत न्यूनतम मानक अिश्यकताएं िस्तुतः “ऄव्यिहाररक तथा कृ वत्रम रूप से
कठोर मानक हैं।” यह मेवडकल कॉलेज की स्थापना और ईनके विस्तार में ऄड़चन ईत्पन्न करते हैं।
3. मेवडकल सीट पाने के वलए 50 लाख रूपए तक कै वपटेशन फीस।
4. वनरीक्षण की िततमान प्रणाली में सकारात्मक फीडबैक का कोइ प्रािधान नहद है, तथा पूरी प्रकिया
का दृवष्टकोण सुधारात्मक की बजाय दंडात्मक है।
सुधार हेतु सुझाि
 सवमवत ने तीन क्षेत्रों में MCI में अमूलचूल पररिततनों की ऄनुशंसा की है:
o MCI की एक विवनयामक वनकाय के रूप में स्थापना,
o मेवडकल कॉलेज का प्रशासन, तथा
o भ्रष्टाचार को समाप्त करना।
 विविध पृष्ठभूवमयों, यथा साितजवनक स्िास््य विशेषज्ञों तथा समाज-विज्ञावनयों, स्िास््य संबंधी
ऄथतशावियों एिं स्िास्थ क्षेत्र के गैर-सरकारी संगठनों के वहतधारकों को प्रशासी वनकाय में
सवम्मवलत करना।
 सत्यवनष्ठ गैर-वचककत्सीय पेशि
े रों तथा सामुदावयक स्िास््य विशेषज्ञों को विवनयामक वनकायों में
सवम्मवलत ककया जाना साितजवनक वहत को अगे बढ़ाने में सहायता करे गा।
 शवक्त का पृथक्करण: पाठ्यिम विकास, वशक्षक प्रवशक्षण तथा स्नातक और स्नातकोत्तर वशक्षा के
वलए मानक तय करने के वलए िततमान MCI को चार स्ितंत्र पररषदों के िारा प्रवतस्थावपत करना।
ईच्चतम न्यायालय का मत
 संसदीय स्थायी सवमवत की माचत 2016 की ररपोटत से सहमवत जताते हुए सुप्रीम कोटत ने संविधान
के ऄनुच्छेद 142 के तहत ऄपनी दुलतभ और ऄसाधारण शवक्तयों का आस्तेमाल ककया है और एक
तीन सदस्यीय सवमवत गरठत की है।
 भारत के पूित मुख्य न्यायाधीश अर.एम. लोढ़ा की ऄध्यक्षता में यह सवमवत कम से कम एक िषत के
वलए मेवडकल काईं वसल ऑफ आं वडया (MCI) के कामकाज की वनगरानी करे गी।

8.3 खाद्य क्षे त्र क विवनयमन

(Food Sector Regulation)


भारतीय खाद्य संरक्षा एिं मानक प्रावधकरण (FSSAI) ने संकेत कदया है कक िह नए विवनयम जारी
करके अरम्भ-पूित ईत्पाद (प्री-लॉन्च प्रोडसट) ऄनुमोदन की प्रणाली को पुनः प्रारं भ करे गा।
पृष्ठभूवम:
कु छ समय पूित सिोच्च न्यायालय ने ईत्पाद ऄनुमोदन की प्रकिया पर FSSAI िारा जारी की गयी
अवधकाररक घोषणा को ऄमान्य घोवषत करके बम्बइ ईच्च न्यायालय के वनणतय का समथतन ककया है।
बम्बइ ईच्च न्यायालय ने वनणतय कदया था कक ईत्पाद के ऄनुमोदन पर FSSAI की अवधकाररक घोषणा
में “क़ानून का प्रिततन सवम्मवलत नहद था” और यह घोषणा खाद्य संरक्षा मानक ऄवधवनयम, 2006
िारा आसे प्रदत्त ऄवधकारों से परे थी।
FSSAI ने शीषत ऄदालत के वनणतय का पालन करते हुए ईत्पाद ऄनुमोदन संबंधी प्रकिया को समाप्त कर
कदया।
िैवश्वक स्तर पर कं पवनयों को ईनके ईत्पाद को बाजार में लाने के वलए वनयामकों के ऄनुमोदन की
अिश्यकता नहद होती है। FSSAI ने आसका अरम्भ आसवलए ककया सयोंकक यह ऄंवतम ईत्पादों को
वनयंवत्रत करना चाहता था।
ईत्पाद ऄनुमोदन प्रकिया: आससे पहले ईत्पादों के ऄनुमोदन की अिश्यकता वसफत तभी पड़ती थी जब
ककसी नए ऄियि या घटक को शावमल ककया जाता था। लेककन मइ 2013 में FSSAI िारा जारी की

गइ ऄवधसूचना के ऄनुसार, स्िीकायत सीमा के भीतर ऄनुमोकदत ऄियिों या घटकों का ईपयोग ककए
जाने के बािजूद आसमें सभी ईत्पादों को सवम्मवलत कर कदया गया था।

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चचताएं:
FSSAI की हाल के आस घोषणा के बाद आस मुद्दे पर पुनः ऄवनवितता और भ्रम का िातािरण बन गया
है। आसका कारण यह है कक आसकी अवधकाररक घोषणा पर न्यायालय के अदेश का सम्मान करने के
बािजूद, ऄनुमोदन प्रकिया को पुनजीवित करने के वलए यह नए विवनयमों के साथ अएगा।
खाद्य विवनयामक तंत्र को सुदढ़ृ बनाने के वलए FSSAI िारा ईठाए गए कदम
 FSSAI ने देश में खाद्य विवनयामक तंत्र को सुदढ़ृ बनाने से संबंवधत कायत को शीघ्र पूरा करने के
वलए नौ नए पैनलों की स्थापना की है।
 FSSAI ने परीक्षण एिं ऄंशांकन प्रयोगशालाओं (Testing and Calibration Laboratories)
से मान्यता प्राप्त वनजी प्रयोगशालाओं के वलए 12 रे फरल (सन्दभत) प्रयोगशालाओं और 82 राष्ट्रीय
प्रमाणन बोडत को ऄवधसूवचत भी ककया है।
भारत के खाद्य विवनयमन क़ानून ऄथातत 2006 के FSSAI कानून के वनयमों के तहत िास्ति में ककसी
नए ईत्पाद को औपचाररक रूप से विवनयामक िारा ऄनुमोकदत करने की अिश्यकता नहद होती है,
यकद ईसकी सामवग्रयां क़ानून के ऄनुरूप हैं। आस प्रकार खाद्य संरक्षा विवनयामक को िैवश्वक कायत
ऄभ्यासों का ऄनुसरण करना चावहए और ईद्योग को मानकों के साथ ऄनुपालन को स्ियं प्रमावणत
करने की ऄनुमवत देनी चावहए।
8.4 पे शे ि र से िाओं के वलए स्ितं त्र वनयामक

(Independent Regulators for Professional Services)


सरकार वचककत्सा, कानून, चाटतडत ऄकाईं टेंसी, कॉस्ट ऄकाईं टेंसी और कं पनी सवचि जैसी सेिाओं के
वलए स्ितंत्र वनयामकों को वनयुक्त करने की योजना बना रही है।
िततमान में यह MCU, BCI, ICAI, ICSI जैसे सांविवधक वनकायों िारा विवनयवमत की जाती हैं।
िततमान संरचना संबधं ी समस्याएं:
 आन सेिाओं के वलए एक वनयामक-सह-पेशेिर वनकाय िाली संरचना पर वहतों के टकराि से जुड़े
कइ मामलों मे अरोप लगाया गया है।
 आससे आन वनकायों की प्रवतष्ठा और विश्वसनीयता को अघात पहुाँचा है और कु शल श्रवमकों और
पेशेिरों की सीमाओं के पार असान ऄस्थायी अिा-जाही को सक्षम करने के वलए ऄन्य देशों के
साथ अपसी मान्यता समझौता (Mutual Recognition Agreement) करने के भारत के
प्रयासों को झटका लगा है।
 विकवसत देशों की भांवत, ये स्ितंत्र विवनयामक व्यािसावयक वनकायों से दूरी बनाए रखेंगे।

9. विवनयमन से सं बं धी विवभन्न पहलु


9.1 नीवत वनमात ताओं और वनयामकों के मध्य ऄन्तःकिया एिं आसकी ितत मान वस्थवत

(Interaction between Policy Makers and Regulators and its Current Status)
विवनयामक का सितप्रमुख कायत, प्रत्येक व्यवक्त िारा संबंवधत गवतविवध के बुवनयादी वनयमों का पालन
करना सुवनवित करते हुए पूितवनधातररत नीवतगत लक्ष्यों को प्राप्त करना और बाज़ार में प्रवतस्पधातत्मक
पररवस्थवत बनाए रखना है। दूसरी ओर, नीवत-वनमातताओं की भूवमका देश के विकास के वलए
दीघातिवधक लक्ष्य और दृवष्ट प्रदान करना है।
 नीवत-वनमातता नीवतगत कदशावनदेश जारी करते हैं, जोकक क्षेत्रकों के सतत विकास को िरीयता
और देश के सुविधाहीन क्षेत्रों या सुविधाहीन ईपभोक्ता िगों के सेिा संबंधी कायत हेतु मानक तय
करते हैं। हालांकक, वसिांततः नीवत वनमातताओं और वनयामकों की स्पष्ट रूप से ऄलग-ऄलग
भूवमकाएं वनधातररत की गयी हैं, परन्तु िास्ति में नीवत वनमातता और विवनयामक एक समान
वजम्मेदाररयां साझा करते हैं: क्षेत्रकों का व्यिवस्थत और सतत विकास सुवनवित करना, वनजी
वनिेश अकर्शषत करना, ईपभोक्ता ऄवधकार संरक्षण को बढ़ािा देना एिं ऄन्य कायत।

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 हालांकक यह सितविकदत है कक प्रायः वनयामकीय संस्थाओं का गठन पूितवनधातररत नीवतगत ईद्देश्यों


को प्राप्त करने के वलए ककया जाता है, परन्तु दोनों के मध्य पूणत ऄलगाि ऄपेवक्षत नहद है और आनके
मध्य ईवचत ऄन्तःकिया ऄत्यवधक महत्िपूणत हो गइ है।
 यह सुवनवित करना समान रूप से महत्िपूणत है, कक नीवतगत ईद्देश्यों को प्राप्त करने के नाम पर
सरकार िारा वनयामकों के ऄवधकार क्षेत्र का हनन नहद ककया जाए। यह नीवत और विवनयमन के
मध्य स्पष्ट भेद को दशातता है, जो भारत में प्रायः नहद पाया जाता है। विवनयामक संस्थाओं की
भूवमका, ईनकी स्िायत्तता, आनकी जिाबदेही अकद के वनधातरण के वलए सरकार के नीवतगत वनणतय
कइ बार ऄस्पष्ट होते हैं। पररणामस्िरूप, अिश्यकतानुसार सम्बंवधत मंत्रालय वनयामकीय
ऄवधदेश में पररिततन के वलए ऄपनी सुविधा के ऄनुसार विधेयक बना देते हैं। आस प्रकार पररणामी
ऄसुरक्षा के कारण विवनयामक प्रायः मंत्रालय के विस्ताररत कायातलय के रूप में कायत करते हैं।
 विवनयामक और नीवत-वनमातता के मध्य ऄन्तःकिया की कमी के पररणामस्िरूप ऄवधकार क्षेत्र के
संदभत में व्युत्पन्न भ्रम ऄपयातप्त सशवक्तकरण के साथ संयुवग्मत होकर वनयामकों को ऄप्रभािी बना
देता है। ईदाहरणस्िरुप, दूरसंचार विभाग (DoT) ने आन्हें नीवतगत मुद्दे मानते हुए, दूरसंचार क्षेत्र
की प्रशुल्क दरों (Tariff) की पुनसंरचना हेतु कु छ विशेष प्रस्तािों की घोषणा की। हालांकक, आस
क्षेत्र के विवनयामक TRAI ने आन प्रस्तािों पर अपवत्त जताइ।
 RBI और वित्त मंत्रालय के मध्य विचार विमशत की रीवत आसका एक ऄच्छा ईदाहरण है। ऄत:
RBI, ऄपनी स्िायत्तता से समझौता ककए वबना, औपचाररक या ऄनौपचाररक स्तरों पर, वित्त
मंत्रालय से वनयवमत रूप से विचार विमशत करती रहती है।
9.2 वनयामकीय प्रकिया में वहतधारकों की भागीदारी

(Participation of Stakeholders in the Regulatory Process)


सरकार के साथ ही साथ वनयामकों का भी साझा ईद्देश्य सम्बंवधत क्षेत्रक का विकास होना चावहए।
हालांकक, आसे प्रायः भुला कदया जाता है। ककसी क्षेत्रक के सुव्यिवस्थत विकास हेतु ईद्योग, सरकार,
वनयामकों और ईपभोक्ताओं जैसे ऄन्य वहतधारकों के मध्य वनयवमत विचार विमशत अिश्यक है। आन
सभी को शावमल करते हुए वनयवमत बैठकें वहतधारकों की समस्याओं और चचताओं को समझने में
वनयामकों की सहायता कर सकती है।
 ऐसे मंच, विवभन्न वनयामकीय वनणतयों के औवचत्य की व्याख्या करने के वलए वनयामकों को सक्षम
भी बनाते हैं। हालांकक, ऄन्य वहतधारकों के प्रवतवनवधयों से िातात प्रकिया को सुवनवित करने के
वलए ऄवधकांश वनयामकों िारा कोइ ठोस विचार नहद ककया गया है। यही कारण है कक ऄन्य
वहतधारकों के प्रवतवनवधयों को िातात प्रकिया में शावमल करने पर प्रायः बल कदया जाता है।
 भारत में, अर्शथक सुधारों के साथ होने िाले वनयामकीय सुधारों को ईपभोक्ता भागीदारी की कमी
िारा वचवन्हत ककया गया है। िृहद् स्तर पर ऄसंगरठत ईपभोक्ताओं के कारण सुधार की प्रकिया में
बड़े पैमाने पर आनकी ईपेक्षा (कु छ मुद्दों को छोड़कर, जहााँ पर कु छ ईपभोक्ता संबंधी चचताओं को
मीवडया िारा ईभारा गया है) की गइ है जो िततमान में मजबूत व्यापाररक लॉबी िारा प्रभावित
की गइ।
 भारत में के न्द्रीय विद्युत् विवनयामक अयोग (CERC) और TRAI जैसी कु छ वनयामकीय संस्थाओं
ने ईपभोक्ताओं एिं ऄन्य वहतधारकों के प्रवतवनवध के साथ सलाहकार सवमवत के माध्यम से
भागीदारी तंत्र का वनमातण ककया है। वहतधारकों, विशेष रूप से ईपभोक्ताओं की भागीदारी को
सुवनयोवजत और कायातवन्ित जन बैठकों िारा ज्यादा प्रभािी बनाया जा सकता है।
 ईवचत विचार विमशत की कमी के साथ ही वनयामकों और वनिेश संबंधी नीवतयों को बनाने एिं
लागू करने के वलये ईत्तरदायी सरकारी विभागों के मध्य समन्िय की भी कमी है। हालांकक, वनणतय
प्रकिया में वनयामकों िारा ऐसी सूचनाओं को ध्यान में रखना चावहए। परामशत के सटीक
दस्तािेजीकरण एिं विवनयामक के वखलाफ प्रभािी कानूनी कारत िाइ का सहारा लेकर खराब
वनणतयों में सुधार को सुवनवित ककया जा सकता है।

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9.3 प्रवतस्पधात प्रावधकरण बनाम क्षे त्र क वनयामक

(Competition Authority vs. Sector Regulators)


बाज़ार में प्रवतस्पधातत्मक शवक्तयों की मजबूती के वलए प्रवतस्पधात कानून और नीवतयां (प्रवतस्पधात
अयोग िारा प्रिर्शतत करने के वलए) एिं बाज़ार विवनयामक कानून (वनयामकों िारा प्रिर्शतत करने के
वलए) दोनों की अिश्यकता है। ये एक दूसरे के पूरक हैं।
 बाज़ार प्रकिया में हस्तक्षेप की दोनों विवधयों की प्रकृ वत का ऄंतर आनकी प्रकृ वत में वनवहत है। यह
विवनयामक फ़मों को बताता है कक ईन्हें सया करना है। विवनयामक आसके िारा विवनयवमत
ईद्योगों में तकनीकी, मूल्य और प्रकिया से सम्बंवधत मुद्दों का परीक्षण करते हैं। दूसरी तरफ,

प्रवतस्पधात प्रावधकरण फ़मों को यह बताता है, कक ईन्हें सया नहद करना चावहए; ईदाहरणस्िरुप-

मूल्य वस्थरीकरण, ऄत्यवधक मूल्य वनधातरण, ईत्पादक संघ (cartels), विभेदकारी व्यिहार
आत्याकद।
 प्रवतस्पधात प्रावधकरण की भूवमका ऄवधवनणातयक (adjudicator) की है, जोकक ऄप्रवतस्पधी
व्यिहारों के विरुि कारत िाइ करता है। प्रत्यावशत प्रकायों (विवनयामक का ऄवधकार क्षेत्र) और
ऄवधवनणातयक प्रकायों के मध्य पृथक्करण ईत्तम नहद है और आसवलए आसे ऄवधकार क्षेत्र से सम्बंवधत
वििाद और भ्रम िारा वचवन्हत ककया जाता है।
 आसके ऄवतररक्त एक क्षेत्रक विवनयामक का कें द्रचबदु (focus) बहुत संकीणत होता है, जबकक
प्रवतस्पधात प्रावधकरण का वनयंत्रण सम्पूणत ऄथतव्यिस्था पर बना होता है। ऄवधकार क्षेत्र में मतभे दों
के पररणामस्िरुप दृवष्टकोण में मतभेद ईत्पन्न होते हैं और यह प्रवतस्पधात प्रावधकरण एिं क्षेत्रक
विवनयामक के मध्य तनाि ईत्पन्न करता है। न के िल प्रवतस्पधात प्रावधकरण एिं क्षेत्रक विवनयामक
के मध्य सहयोग को प्रोत्सावहत करने की अिश्यकता है, ऄवपतु कायत क्षेत्र के ऄनािश्यक वििाद
और क्षेत्रावधकार वििाद से बचने एिं सहयोग सुवनवित करने के वलए क्षेत्रक वनयामकों तथा
प्रवतस्पधात प्रावधकरण के मध्य कायतरत औपचाररक विधान प्रबन्धों की समीक्षा करने की भी
अिश्यकता है।

9.4 ईपभोक्ताओं की समस्या का वनिारण

(Consumer Redress)

वनिारण तंत्र ककसी भी देश की प्रवतस्पधात कानून का एक ऄवनिायत घटक है। भारत में भी, MRTPA

(एकावधकार एिं प्रवतबंवधत व्यापार व्यिहार ऄवधवनयम) के ऄंतगतत वशकायत वनिारण प्रािधान

ऄंतर्शनवहत है। हालांकक, वपछले कु छ िषों में, ऄपयातप्त बजटीय अिंटन और स्िायत्तता की कमी जैसे

कारकों के कारण MRTPC (MRTPA िारा शावसत CCI की पूितिती) वनिारण प्रदान करने में बहुत
प्रभािी नहद हुइ है और आसके पररणामस्िरूप लंवबत मामलों की संख्या में िृवि हुयी है।
CCI िारा वनिारण के मामले में ईपभोक्ताओं की बेहतर सेिा की ऄपेक्षा की गयी है। ईपरोक्त के

ऄवतररक्त, कु छ क्षेत्रीय वनयामकों जैसे दूरसंचार, विद्युत् और बीमा के पास भी वनिारण तंत्र हैं: आनमें

TRAI िारा सामान्य (generic) वशकायतों का वनिारण, टेलीफोन ऄदालत (courts), राज्य विद्युत

अयोगों का वशकायत वनिारण तंत्र, बीमा विवनयामक एिं विकास प्रावधकरण (IRDA) का ईपभोक्ता

वशकायत वनिारण सेल, बीमा लोकपाल, बैंककग लोकपाल अकद शावमल है।

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9.5 विवनयामक सु सं ग तता

(Regulatory Coherence)
ऄथतव्यिस्था एिं आसके घटक क्षेत्रों के समवन्ित विकास हेतु एक सुदढ़ृ ि व्यापक विवनयामकीय ढााँचा
अिश्यक है। हालााँकक भारत में विवनयामक संस्थानों का विकास ककसी सामान्य दशतन िारा वनदेवशत
नहद है। ऐसा प्रतीत होता है कक राजनीवतक बाधाओं और सरकारी प्राथवमकताओं ने सुधार एजेंडा पर
ऄपना िचतस्ि बनाए रखा है। भारत में स्ितंत्र वनयमन के बीस से ऄवधक िषों के आवतहास की विशेषता
रही है कक सरकार स्ितंत्र विवनयमन के वलए एक ठोस और सुसंगत दृवष्टकोण का वनमातण और
ऄनुपालन करने में ऄसमथत रही है।
राज्य स्तर पर औद्योवगक संिधतन ब्यूरो (BIP) विवनयामक सुसंगतता प्रदान करने हेतु एक नोडल
एजेंसी के रूप में कायतरत है। एक नोडल एजेंसी होने के नाते, यह राज्य स्तर पर सभी विवनयामक
वनकायों के साथ सूचना का अदान-प्रदान एिं ईनके मध्य सुसंगतता सुवनवित करने का प्रयास करती
है। ककन्तु व्यिहाररक रूप से यह ऄवधक प्रभािी नहद है।
समग्र रूप से विवनयामक सुसंगवत वनम्नवलवखत संस्थागत व्यिस्थाओं में सुधार के ज़ररये स्थावपत की जा
सकती है :
 कें द्र में क्षेत्रक विशेष वनकायों को स्थावपत ककये जाने की अिश्यकता है। आन वनकायों को सुचारू
रूप से संपूणत ऄथतव्यिस्था के वलए विवनयामकीय और प्रवतस्पधात प्रावधकरण से संपूररत ककया
जाना चावहए।
 क्षेत्र के वनयामकों के विरुि ऄपील के वलए एक ऄपीलीय न्यायावधकरण स्थावपत करने की
अिश्यकता है। यकद काम का बोझ ककसी भी एक क्षेत्र में बढ़ जाता है, तो ईसे ऄलग ककया जा
सकता है।
 वनयामकों और प्रवतस्पधात अयोग के बीच के आं टरफे स को विवधक रूप में औपचाररक रूप कदया
जाना अिश्यक है ताकक ईनके मध्य ककसी भी प्रकार का टकराि न रहे तथा वििाद में संलग्न
(impugned) पक्ष आस संघषत/टकराि का लाभ न ईठाएं।
 बहु वहतधारक भागीदारी को ऄपनाया जाना चावहए, जो प्रभािी विवनयामक प्रभािकाररता और
जिाबदेही के संबंध में कइ चचताओं का ध्यान रख सकती है। ईपभोक्ता संगठनों को संसाधनों के
िारा मजबूत प्रदान करने की अिश्यकता है, ताकक िे आसे प्रभािशाली समथतन प्रदान कर सकें ।

9.6 भािी कारत िाइ का स्िरुप

सरकार विवनयामक अयोगों के संस्थागत ढांचे, ईनकी भूवमका, कायों और कायतपावलका एिं
विधावयका के परस्पर संबंध, बाजारों और लोगों के साथ ईनकी ऄंतर्दिया, वनयम वनमातण एिं
वििाद समाधान सवहत विवनयमन की विवधयााँ एिं प्रकियाओं में वनम्नवलवखत सुधार लाने की
योजना बना रही है:
 सभी वनयामकों को वनयम वनमातण एिं ईनके कियान्ियन, लाआसेंस जारी करने और वनलंबन या
लाआसेंस रद्द करने सवहत दंडात्मक ईपायों को लागू करने, प्रदशतन मानकों को वनधातररत करने
तथा टैररफ वनधातरन के वलए सशक्त बनाना।
 विवनयामक वनकायों की स्ितंत्रता सुवनवित करना: चयन प्रकिया को पारदशी बनाने और
न्यूनतम हस्तक्षेप के वलए सरकार योजना बना रही है।
 सदस्यों का कायतकाल तय करना: सरकार सभी विवनयामक वनकायों के सदस्यों के वलए चार
िषत के एक समान कायतकाल की शतत पर विचार कर रही है। आसके ऄवतररक्त, कु शल/प्रवतभािान
कर्शमयों को अकर्शषत करने और विवनयामक वनकाय के कायत को समृि बनाने के वलए
पाररश्रवमक को बढ़ाया जाएगा और एक गैर-सरकारी प्रवतवनवध के रूप में एक वशक्षक या
िकील को सदस्य के रूप में शावमल ककये जाने का प्रािधान ककया जाएगा।

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 CCI और वनयामकों के बीच क्षेत्रावधकार के ऄवतव्यापन को कम करना; सरकार श्रम के


व्यािहाररक विभाजन को पररभावषत करने और दोनों के बीच ऄंतर्दिया को बढ़ाने की योजना
बना रही है, जो (परस्पर ऄंतकिया) िततमान में न्यूनतम है।

 बहु-क्षेत्रीय वनयामकों का अरं भ: सरकार (i) संचार (ii) पररिहन; और (iii) विद्युत,् ईंधन और
गैस के वलए बहु-क्षेत्रीय वनयामकों की स्थापना पर विचार कर रही है। आससे विवनयामक
अयोगों के प्रसार को समाप्त ककया जा सके गा, क्षमता और विशेषज्ञता के वनमातण में मदद

वमलेगी, दृवष्टकोण की वस्थरता को बढ़ािा वमलेगा और लागतों में बचत होगी। राज्य स्तर पर,
एकल विवनयामक अयोग बुवनयादी ढांचे के सभी क्षेत्रों के वलए और ऄवधक ईत्पादक एिं
लागत प्रभािी हो सकता है। राज्यों को आस दृवष्टकोण पर विचार करने के वलए प्रोत्सावहत ककया
जाना चावहए और ईनके मौजूदा वबजली वनयामकों के दायरे को ऄन्य क्षेत्रों में बढ़ाया जा
सकता है।
 दूरसंचार और विद्युत ऄपीलीय न्यायावधकरण की तजत पर ऄपीलीय न्यायावधकरणों का गठन
करना। एक ऄन्य दृवष्टकोण भी विचाराधीन है वजसके ऄनुसार, सभी विवनयामक अयोगों के
वलए क्षेत्रीय पीठों के साथ एक एकल ऄपीलीय न्यायावधकरण का गठन करना है।

9.7 विवनयामक वनकायों की स्ितं त्र ता से सं बं वधत तकत


स्ितंत्रता के पक्ष में वनम्नवलवखत तकत कदए जा सकते हैं:
 विवनयामक एक श्रेष्ठतर तकनीकी ज्ञान प्राप्त विशेष कायतबल स्थावपत करने में सक्षम होता है।
 मुख्यधारा के सरकारी विभागों के कामकाज की तुलना में आसे रूपांतररत मानि संसाधन और ऄन्य
प्रकियाओं के िारा सहायता प्राप्त होती है।
 आस तरह के ज्ञान प्राप्त एिं ईद्योगों का वनकट ऄिलोकन करने िाली स्ितंत्र वनयामक, कानूनों में
लचीलापन लाते हुए विवनयमों को संशोवधत करने की कदशा में तेज़ी से बढ़ने में सक्षम होता है।
 स्ितंत्र वनयामकों की ईपवस्थवत कानूनी वनवितता में सुधार करती है।

10. ईत्तरदावयत्ि तय करने के सं बं ध में ऄनु शं साएं


10.1 वितीय प्रशासवनक सु धार अयोग की ऄनु शं साएं (Recommendations of
2 n d ARC)

2nd ARC की ‘नागररक के वन्द्रत प्रशासन’ शीषतक िाली 12िद ररपोटत में ईवल्लवखत है कक:

i. जहााँ अिश्यक हो के िल िहद विवनयमन: यह तकत कदया जाता है कक भारत में एक ऄत्यवधक
वनयंवत्रत व्यिस्था को ऄपनाया गया है, ककन्तु यहााँ ऄनेक विवनयमों का गंभीरतापूिक
त कायातन्ियन

नहद ककया जा रहा। आसके कारणों में सवम्मवलत हैं - (a) ऐसे विवनयमनों की िास्तविक संख्या

ऄवधकता एिं ऄस्पष्टता (b) ऄप्रचवलत विवनयमन जो सांविवध पुस्तकों/वनयमािली में ऄभी भी

बने हुए हैं (c) ऄत्यवधक संख्या में विधान पाररत करने की प्रिृवत: पररणामस्िरूप विधान स्ियं

ऄंवतम लक्ष्य बन जाता है, और (d) आन विवनयमों में वनधातररत जरटल प्रकियात्मक

औपचाररकताएं। आसवलए सभी के न्द्रीय, राज्य और स्थानीय विधानों एिं विवनयमों की विस्तृत

जााँच पड़ताल करना अिश्यक है, तत्पिात ऄनािश्यक विवनयमों को रद्द ककया जाना चावहए,
ऄप्रचवलत विवनयमों को ऄद्यवतत और प्रकियाओं को सरल बनाया जाना चावहए ताकक ऄनुपालन
सहजतापुिक
त हो सके ।

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ii. विवनयमन प्रभािी होना चावहए: ऄत्यवधक संख्या में विवनयमों का पररणाम ईनका ऄसंतोषजनक
प्रिततन होता है। सामावजक विधान आसके ईल्लेखनीय ईदाहरण हैं। वनवष्िय प्रिततन के कारण भ्रष्ट
और ऄनैवतक प्रथाओं का विकास होता है तथा विधान के ईद्देश्यों की सफलतापूिक
त प्रावप्त नहद
होती है। विवनयमों के ऄसंतोषजनक प्रिततन का एक ऄन्य कारण ईन्हें प्रिर्शतत करने का कायत वजन
एजेंवसयों को सौंपा गया है ईनकी क्षमता वनमातण पर कम ध्यान कदया जाना है। ईदाहरण के वलए,
मोटर िाहन विभाग की क्षमता और विशेषज्ञता सड़कों पर चल रहे िाहनों की विस्फोटक िृवि के
साथ समन्िय नहद रख पायी है। अयोग का मत है कक विवनयामक ईपायों के पररणामस्िरुप भ्रष्ट
प्रथाएं न पनपें यह सुवनवित करने के वलए, ईन एजेंवसयों का प्रभािी पयतिेक्षण अिश्यक है जो
आन विवनयामक कायों का वनष्पादन करते हैं। यह पयतिक्ष
े ण प्रमुख रूप से पयतिेक्षण ऄवधकाररयों
िारा अंतररक रूप से ककया जाना चावहए और एक स्ितंत्र एजेंसी िारा समय समय पर अंकलन
के माध्यम से आसकी पूरक व्यिस्था की जानी चावहए।

iii. विवनयमन का सिोत्तम स्िरुप स्िविवनयमन है: कराधान के क्षेत्र, विभागीय अंकलन के स्थान पर

स्ि अंकलन पर ऄवधक वनभतरता की ओर पररिर्शतत हुअ है। यह अयकर जैसे संघीय करों, VAT
जैसे राज्य करों और संपवत्त कर जैसे स्थानीय कर के सम्बन्ध में सही है। स्िैवच्छक ऄनुपालन के आस
वसिांत का ऄन्य क्षेत्रों तक विस्तार ककया जा सकता है, जैसे कक आमारत संबंधी ईप-वनयम,

साितजवनक स्िास््य विवनयम अकद। प्रारम्भ में, यह वसिांत सीधे ही ईन मामलों पर लागू ककया
जा सकता है वजन मामलों में समय-समय पर निीकरण ककये जाने की अिश्यकता है।
iv. विवनयामक प्रकियायें सरल, पारदशी और नागररक ऄनुकूल होनी चावहए: भ्रष्टाचार की गुज
ं ाआश
को न्यूनतम करने के वलए ऄनेक सुव्यिवस्थत सुधारों पर विचार ककया जाना चावहए। आनमें
सवम्मवलत हैं: कारोबार को सरल बनाना, IT का ईपयोग, पारदर्शशता को प्रोत्सावहत करना, वििेक

को कम करना, प्रभािी पयतिेक्षण अकद।

v. विवनयमन कायतकलापों में नागररक समूहों, व्यािसावयक संगठनों को सवम्मवलत करना: नागररक
समूहों और व्यािसावयक संगठनों को विवनयमों के ऄनुपालन को प्रमावणत करने और सम्बंवधत
प्रावधकाररयों को ईनके ईल्लंघन की ररपोटत दजत करने हेतु शावमल करके प्रिततन तंत्र के संचालन में
सहभागीता प्राप्त की जा सकती है। हाल ही में, कदल्ली में भिन-वनमातण ऄनुमवत प्रदान करने की
प्रकिया को सरल बनाया गया है तथा पंजीकृ त िास्तुविदों को भिनों के वलए वनमातण योजनाएं
प्रमावणत करने हेतु प्रावधकृ त ककया गया है। आससे, वसविल एजेंवसयों के कायत में विलम्ब और
भ्रष्टाचार में भी कमी अइ है। आस वसिांत का ऄन्य कायत क्षेत्रों में भी विस्तार ककया जा सकता है।
वितीय प्रशासवनक सुधार अयोग की 13िद ररपोटत में, स्ितंत्र विवनयामकों की कायतप्रणाली में सुधार के
वलए वनम्नवलवखत चरण प्रस्तावित ककए गए हैं:
1. एक विवनयामक की स्थापना से पूित आसकी नीवत व्यिस्था की विस्तृत समीक्षा की जानी चावहए।
आससे यह वनणतय वलया जा सके कक सया सम्बंवधत क्षेत्रक में नीवत व्यिस्था विवनयामक सम्बंवधत
विभाग के नीवत ईद्देश्यों की पूर्शत करने के वलए ईपयुक्त है ऄथिा नहद।
2. सरकार और विवनयामक के बीच ऄन्योन्यकिया पर बल देने के वलए एक सांविवधक फ्रेमिकत का
वनमातण ककया जाना चावहए। आसके ऄवतररक्त, प्रत्येक मंत्रालय / विभाग को एक ‘प्रबंधन िक्तव्य’
तैयार करना चावहए। वजसमें प्रत्येक विवनयामक के ईद्देश्यों और भूवमका तथा सरकार के साथ
ईनकी ऄन्योन्यकिया को शावसत करने िाले कदशावनदेशों का ईल्लेख ककया जाए। यह सरकारी
विभाग और विवनयामक दोनों के वलए मागतदशतक होगा।

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3. विवभन्न विवनयामक प्रावधकाररयों के सम्बन्ध में यह विचार करते हुए कक आनकी स्थापना सामान्य
रूप से समान ईद्देश्यों और कायो के वलए की गइ है तथा ईन्हें समान स्िायत्तता प्रदान की जानी
चावहए, ईनकी वनयुवक्त, पदािवध और हटाने की शतों में और ऄवधक एकरूपता की अिश्यकता

है। ऄध्यक्ष ऄथिा बोडत सदस्यों के रूप में वनयुवक्त की प्रारं वभक प्रकिया पारदशी, विश्वसनीय और
वनष्पक्ष होनी चावहए।
4. ऐसे सभी विवनयामक प्रावधकरणों के वलए ऄध्यक्ष और बोडत सदस्यों की वनयुवक्त के न्द्र/ राज्य
सरकारों के िारा एक चयन सवमवत के माध्यम से नामों के एक पैनल की प्रारवम्भक संिीक्षा और
ऄनुसंशा पिात् की जानी चावहए। चयन सवमवत के गठन को सम्बंवधत ऄवधवनयमों में पररभावषत
ककया जाना चावहए तथा आस सवमवत के गठन के वलए सामान्यतः विद्युत् विवनयामक अयोग
ऄवधवनयम में वनधातररत पिवत का पालन ककया जाना चावहए।
5. ऄध्यक्ष और बोडत सदस्यों की कायातिवध भी एक समान बनाइ जा सकती है, संभितः तीन िषत

ऄथिा 65 िषत की अयु आसमें जो भी पहले हो।

6. बोडत सदस्यों को हटाए जाने के सम्बन्ध में कानूनी प्रािधानों को एक समान बनाया जाना चावहए
तथा साथ ही मनमाने रूप से हटाये जाने के विरुि पयातप्त रक्षोपाय सुवनवित ककए जाने चावहए।
कें द्र सरकार िारा आनको हटाने की ऄनुमवत के िल कवतपय शतों की पूर्शत के तहत ही प्रदान की
जानी चावहए, जैसे कक ‘IRDA’ ऄवधवनयम की धारा 6 तथा एक ऄवतररक्त रक्षोपाय में वनधातररत

ककया गया है वजसके ऄनुसार शवक्त के दुरुपयोग के वलए हटाने से पहले एक जााँच और UPSC से
परामशत ककया जाना चावहए।
7. विभाग से संबंवधत संसदीय स्थायी सवमवतयों के माध्यम से विवनयामकों पर संसदीय वनगरानी
सुवनवित की जानी चावहए।

8. विख्यात बाह्य विशेषज्ञों से युक्त एक वनकाय िारा स्ितंत्र विवनयामकों के अिवधक मूल्यांकन के
वलए कदशावनदेश तैयार ककए जाने चावहए। आन कदशावनदेशों के अधार पर सरकार िारा विभाग से
संबंवधत संसदीय स्थायी सवमवतयों के साथ परामशत कर ईन वसिांतों का वनधातरण ककया जाना
चावहए। विवनयामकों की िार्शषक ररपोटत में आन वसिांतों के सन्दभत में ईनके वनष्पादन से सम्बंवधत
एक ररपोटत सवम्मवलत होनी चावहए। आस ररपोटत पर विचार-विमशत करने हेतु आसे सम्बंवधत
संसदीय सवमवत के समक्ष प्रस्तुत ककया जाना चावहए।
9. विवनयामक की स्थापना करने िाली प्रत्येक विवध में एक बाह्य एजेंसी िारा समय-समय पर प्रभाि
अंकलन हेतु प्रािधान ककया जाना चावहए। कायातत्मक वस्थवत प्राप्त कर वलए जाने के बाद,

विवनयामक के हस्तक्षेप को िवमक ढंग से कम ककया जा सकता है, वजससे ऄंततः या तो ईन्हें
समाप्त ककया जा सकता है ऄथिा ईन्हें ऄन्य एजेंवसयों के साथ सवम्मवलत जा सकता है।

10. विवनयामकीय पिवत में और ऄवधक एकरूपता लाए जाने की अिश्यकता है।

11. सवचि (समन्ियन) िारा सहायता प्राप्त सवचिों की सवमवत/मंवत्रमंडलीय सवमवतयां जैसे विद्यमान
समन्िय तंत्र सहज रूप से यह सुवनवित कर सकते हैं कक सभी विवनयामकों से सम्बि संस्थागत
फ्रेमिकत एक समान पिवत का पालन करें ।

10.2 ऄन्य वसफाररशें

 परस्पर विरोधी ईद्देश्यों से बचना: यह समस्या वहतों के टकराि िाली वस्थवत में ऄवधक बढ़ जाती
है। आसवलए ईद्देश्यों की स्पष्टता और परस्पर विरोधी ईद्देश्यों की ऄनुपवस्थवत िाले विवनयामक
वनकायों की स्थापना िांछनीय है।

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 सुव्यिवस्थत वनयम वनमातण की प्रकिया: यह सुवनवित करने के वलए कक विवनयमों का लाभ, लागत
से ऄवधक हो प्रत्येक प्रस्तावित विवनयमन में वनम्नवलवखत चबदु सवम्मवलत होने चावहए:
o ऄधीनस्थ विधान के ईद्देश्यों और कारणों का एक सुगरठत वििरण;

o बाजार पररणाम का वििरण, जो ऄप्रभािी है, (ऄथतशाि की भाषा में " बाजार की

विफलता");
o यह वनरुवपत करना कक बाजार की आस विफलता का समाधान करना विवनयामक के ईद्देश्यों
में सवम्मवलत है;

o प्रस्तावित हस्तक्षेपों का स्पष्ट और सटीक वििरण;

o यह वनरुवपत करना कक प्रस्तावित हस्तक्षेप विवनयामक की शवक्तयों में वनवहत है;


o यह वनरुवपत करना कक प्रस्तावित हस्तक्षेप वनधातररत ककये गए बाजार की विफलता का
समाधान करे गा;

o यह वनरुवपत करना कक हस्तक्षेप के ऄनुपालन िारा समाज पर भाररत लागत, बाजार की


विफलता का समाधान होने से समाज को होने िाले लाभ से कम है।
 विवध का शासन: विवध के शासन के वनम्नवलवखत तीन मूल वसिांत, वनयामकों की जिाबदेही और
स्ितंत्रता के महत्िपूणत तत्ि हैं:
 कारत िाइ करने से पूित विवध की जानकारी होनी चावहए।
 समान पररवस्थवतयों में समान विवध लागू की जानी चावहए।
 विवध के प्रत्येक ऄनुप्रयोग के बारे में वनजी पक्ष को सूवचत करना, वजससे ईन्हें आसकी जानकारी हो

कक ईक्त वनणतय पर (विवनयामक िारा) कै से पहुंचा गया; साथ ही ऄपील की प्रकिया की भी सूचना
प्रदान करनी चावहए।
 प्रवतिेदन : यकद ककसी एजेंसी के ईद्देश्यों को एक बार पररभावषत कर कदया गया तो ईस एजेंसी से
प्रवतिेदन के सम्बन्ध में प्रश्न करना ऄथतपण
ू त है - जैसे िार्शषक ररपोटत में – ईसने ककस हद तक ऄपने
ईद्देश्यों को प्राप्त कर वलया है। प्रत्येक एजेंसी को यह ररपोटत प्रस्तुत करनी चावहए कक िांवछत
पररणामों को प्राप्त करने में यह ककतनी और ककस लागत पर सफल रही।

11. एकल मजबू त विवनयामक बनाम बहु वनयामकीय


सं र चना

11.1 एकीकृ त पयत िे क्ष ण (ऄथात त् एकल मजबू त वनयामक) के पक्ष में तकत

 विखंवडत (बहुस्तरीय) पयतिेक्षण के कारण विवनयामक वित्तीय क्षेत्रक की ककसी संस्था (घरे लु या
ऄंतरातष्ट्रीय स्तर पर कायतरत) के समग्र जोवखम मूल्यांकन के साथ-साथ ईनकी क्षमता के संबंध में,
एक समग्र रुपरे खा प्रस्तुत करने में ऄसफल रहता है। आसके ऄवतररक्त कु छ सामूवहक ऄन्य जोवखम
हैं वजन्हें विखंवडत वनयामकों िारा पयातप्त रूप से संबोवधत नहद ककया जा सकता है।
 चूंकक ईत्पादों और संस्थाओं के बीच सीमांकन की रे खाएं धुंधली हो गयी है, ऄतः विवभन्न
विवनयामक एक ही गवतविवध के वलए विवभन्न संस्थाओं हेतु वभन्न-वभन्न वनयम तय कर सकते हैं।
आस प्रकार एकीकृ त पयतिक्ष
े ण प्रवतस्पधी तटस्थता/वनष्पक्षता प्राप्त करने में सहायक हो सकता है।
(ULIPs पर IRDA और SEBI के बीच टकराि आसका ईदहारण है)

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 एकीकृ त दृवष्टकोण ऄवधक लचीली विवनयामक व्यिस्थाओं के विकास को संभि बनाता है। जबकक
पृथक एजेंसी तंत्र की प्रभािशीलता को 'िचतस्ि के वलए संघषत' या ‘ईत्तरदावयत्ि को दूसरों पर

मढ़ने’ की आच्छा िारा कम ककया जा सकता है। एकीकृ त संगठन में आन समस्याओं को ऄत्यंत

सरलता से सीवमत एिं वनयंवत्रत ककया जा सकता है। (ईदाहरण: NSEL संकट)

 एकीकृ त पयतिेक्षण ‘आकोनोवमज़ ऑफ़ स्के ल’ की वस्थवत ईत्पन्न कर सकता है, सयोंकक ऄपेक्षाकृ त बड़े

संगठन में श्रम की ऄवधक ईत्कृ ष्ट विशेषज्ञता और अगतों (आनपुट) का ऄत्यन्त गहन ईपयोग संभि
है।पुनः एकीकरण, साझा बुवनयादी सुविधाओं, प्रशासन और समथतन प्रणाली के अधार पर लागत

में कमी लायी जा सकती है। एकीकरण, सूचना प्रौद्योवगकी के ऄवधग्रहण की ऄनुमवत भी दे सकता

है जो पररचालनों के के िल एक वनवित स्तर से परे लागत प्रभािी होती है, तथा ऄनुसंधान एिं

सूचना जुटाने के प्रयासों के वनरथतक दोहराि से बचाि कर सकता है।


 एकीकरण के पक्ष में एक ऄंवतम तकत यह है कक यह विवनयमन की जिाबदेवहता में सुधार करता है।
विवभन्न विवनयामक एजेंवसयों की प्रणाली के तहत, वनयामकों को विवनयमन की लागत, ईनके

िैधावनक ईद्देश्यों के ऄनुरूप प्रदशतन, ऄनुशासनात्मक नीवतयों और विवनयामक विफलताओं के

वलए जिाबदेह बनाना और ऄवधक करठन हो सकता है।

11.2 एकीकृ त विवनयमन के विपक्ष में तकत

कु छ महत्िपूणत देशों में ऄलग-ऄलग वनयामकों की प्रणाली जारी है, हालांकक सभी स्थानों पर

वनयामकीय समन्िय में िृवि हो रही है। ईदाहरण के वलए, ऄमेररका में जो मॉडल ऄपनाया गया है,

िह ऄम्रेला पयतिेक्षण के साथ कायातत्मक विवनयमन का वमश्रण है। 60 से ऄवधक िषों तक, ऄमेररका में

वित्तीय संस्थानों का विवनयमन कइ ऄलग-ऄलग एजेंवसयों के मध्य विभावजत था। निंबर 1999 में

ऄवधवनयवमत Gramm-Leach-Bliley (ग्रैम-लीच-बले) एसट, के िारा कायातत्मक विवनयमन के

वसिांत का ऄनुपालन ककया गया है। आसके तहत बीमा कं पवनयों, वनिेश कं पवनयों और बैंकों के

प्राथवमक विवनयामक पूित के समान विशेषज्ञ विवनयामक बने रहे। हालांकक, वित्त धारक कं पवनयों को

कु छ सीमाओं के ऄधीन विवनयवमत ककया गया वजन्हें सामूवहक रूप से फे ड-लाआट प्रािधान के रूप से
जाना जाता है। आसके वलए िततमान में फे डरल ररजित बोडत को ऄम्रेला पयतिेक्षक की भूवमका सौंपी गयी
है।
ऄवधकांश ऄथतव्यिस्थाओं में पृथक वनयामकों की ईपवस्थवत यह त्य प्रदर्शशत करती है कक एकीकृ त
पयतिेक्षण के विपक्ष में भी समान रूप से ऄकाट्य तकत हैं। आनमें सवम्मवलत हैं:
 व्यिस्थागत जोवखम के विरुि रक्षा से लेकर, व्यवक्तगत ईपभोक्ता की धोखाधड़ी से रक्षा करने तक

ईद्देश्यों की विस्तृत व्याख्या की गयी है। ईद्देश्यों की विविधता के कारण यह संभि है कक एकल
विवनयामक विवभन्न ईद्देश्यों और विवनयमन के औवचत्य पर पूणततया ध्यान कें कद्रत न कर सके ।
आसके ऄवतररक्त, यह भी संभि है कक िह विवभन्न प्रकार की संस्थानों के मध्य पयातप्त रूप से भेद

करने में भी सक्षम न हो सके ।

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 एकीकृ त वनयामक, वडसआकॉनमीज़ ऑफ़ स्के ल की समस्या से भी ग्रवसत हो सकता है। ऄक्षमता का

एक स्रोत एकीकृ त एजेंसी के वनयामकीय एकावधकार के कारण ईत्पन्न हो सकता है, आससे
एकावधकार के मामलों में दृवष्टगोचर ऄक्षमताएं ईत्पन्न हो सकती हैं। एकावधकार प्राप्त विवनयामक
से सम्बंवधत विशेष चचता का विषय यह है कक आसके कायत आन पृथक विशेषीकृ त एजेंवसयों की
तुलना में ऄवधक कठोर और नौकरशाही प्रकृ वत के हो सकते हैं। यह तकत कदया जाता है कक
वडसआकॉनमीज़ ऑफ़ स्के ल का एक ऄन्य स्रोत, एकीकृ त एजेंवसयों के वलए कायों की विस्तृत

श्रृंखला सौंपने की प्रिृवत है; आसे कभी-कभी 'किसमस िी आफ़े सट' के नाम से भी जाना जाता है।

 कु छ अलोचकों का तकत है कक एकीकरण से तालमेल/सहकिया का बहुत ऄवधक लाभ नहद होगा,


ऄथातत आकॉनोमीज़ ऑफ़ स्कोप के आकॉनोमीज़ ऑफ़ स्के ल की तुलना में काफी कम महत्िपूणत होने
की संभािना है। विवभन्न पयतिेक्षकों की कायत संस्कृ वतयां, फोकस और कौशल स्पष्ट रूप से काफी
वभन्न होते हैं। ईदाहरण के वलए, यह तकत कदया गया है कक बैंकों में जोवखम के स्रोत, पररसंपवत्त
(एसेट) हैं, जबकक बीमा कं पवनयों के सिातवधक जोवखम दावयत्ि (लायवबवलटी) हैं।
 एकीकृ त वनगरानी एजेंसी सृजन के वनणतय से जुड़े एक ऄन्य गंभीर हावन पररिततन प्रकिया की
ऄवनवितता हो सकती है। पहला जोवखम यह है कक आस मुद्दे को चचात के वलए ईठाने पर घटनाओं
की एक श्रृंखला ईत्पन्न होगी वजसके पररणामस्िरूप एकीकृ त एजेंसी की स्थापना होगी, चाहे
आसकी स्थापना ईपयुक्त हो या नहद। दूसरा जोवखम यह है कक एक एकीकृ त एजेंसी की स्थापना पर
सामान्यतया नए कानून की अिश्यकता होगी, लेककन आससे यह संभािना ईत्पन्न होती है कक आस
प्रकिया का विशेष वहतों िारा ऄपने लाभ के वलए ईपयोग ककया जाएगा। तीसरा जोवखम मुख्य
विभाग के नुकसान के िारा विवनयमन की क्षमता में संभावित कमी है। एक ऄन्य जोवखम यह भी
है कक आससे प्रबंधन प्रकिया स्ियं ही मागत से भटक जाएगी।

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भारतीय संविधान एिं शासन


20. नागररकता

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विषय सूची
1. नागररक - ऄथथ _______________________________________________________________________________ 4

2. पररचय ____________________________________________________________________________________ 4

2.1. गैर वनिासी भारतीय (NRI) __________________________________________________________________ 5

2.2. भारतीय मूल के व्यवि (PIO) _________________________________________________________________ 5

2.3. प्रिासी भारतीय नागररक (OCI) _______________________________________________________________ 6

3. संिध
ै ावनक प्रािधान ___________________________________________________________________________ 6

3.1. ऄनुच्छेद 5 ______________________________________________________________________________ 6

3.2. ऄनुच्छेद 6 ______________________________________________________________________________ 6

3.3. ऄनुच्छेद 7 ______________________________________________________________________________ 7

3.4. ऄनुच्छेद 8______________________________________________________________________________ 7

3.5. ऄनुच्छेद 9 ______________________________________________________________________________ 7

3.6. ऄनुच्छेद 10 ____________________________________________________________________________ 7

3.7. ऄनुच्छेद 11 _____________________________________________________________________________ 7

4. नागररकता का ऄजथन और समावि _________________________________________________________________ 8

4.1. जन्म से नागररकता (धारा 3) __________________________________________________________________ 8

4.2. िंश के अधार पर नागररकता (धारा 4) ___________________________________________________________ 8

4.3. पंजीकरण द्वारा नागररकता [धारा 5 (1)] _________________________________________________________ 9

4.4. देशीयकरण द्वारा नागररकता (धारा 6) ___________________________________________________________ 9

4.5. क्षेत्र के समािेश से नागररकता ________________________________________________________________ 10

5. नागररकता की समावि ________________________________________________________________________ 10

5.1. नागररकता का स्िैवच्छक त्याग ________________________________________________________________ 10

5.2. दूसरे देश की नागररकता का ग्रहण _____________________________________________________________ 11

5.3. नागररकता से िंवचत करना __________________________________________________________________ 11

6. दोहरी नागररकता की ऄिधारणा _________________________________________________________________ 12

7. नागररकता (संशोधन) ऄवधवनयम 2016 ____________________________________________________________ 13

7.1. पृष्ठभूवम _______________________________________________________________________________ 13

7.2. संशोधन की विशेषताएं _____________________________________________________________________ 13

7.3. चचताएं ________________________________________________________________________________ 14

8. भारत में शरणार्थथयों की वस्थवत __________________________________________________________________ 14

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8.1. वतब्बती शरणाथी ________________________________________________________________________ 15


8.1.1. कानूनी दजाथ ________________________________________________________________________ 15

8.2. श्रीलंकाइ शरणाथी________________________________________________________________________ 15

8.3. भूटानी शरणाथी _________________________________________________________________________ 16


8.3.1 कानूनी दजाथ _________________________________________________________________________ 16

8.4. चहदू पाककस्तानी शरणाथी___________________________________________________________________ 17

8.5. बमी शरणाथी ___________________________________________________________________________ 17

8.6. किलीस्तीनी शरणाथी _____________________________________________________________________ 17

8.7. ऄिगान शरणाथी ________________________________________________________________________ 17

8.8. वनष्कषथ________________________________________________________________________________ 18

9. प्रिासी भारतीय कदिस ________________________________________________________________________ 18

9.1. भारतीय प्रिासी कदिस मनाने का ईद्देश्य _________________________________________________________ 18

9.2. अवसयान-भारत प्रिासी भारतीय कदिस _________________________________________________________ 19

10. ितथमान मुद्दे _______________________________________________________________________________ 19

10.1. नागररकता की विचार- एक विश्लेषण __________________________________________________________ 19

10.2 NPR बनाम UIDAI- एक विश्लेषण ____________________________________________________________ 20

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1. नागररक - ऄथथ
ऑक्सिोडथ वडक्शनरी एक नागररक को वनम्न रूप में पररभावषत करती है:
 एक राज्य या राष्ट्रमंडल में विवधक मान्यता प्राि व्यवि या वनिासी।
 ककसी कस्बे या शहर का एक वनिासी।
नागररक एक समाज या समुदाय (मूलतः एक कस्बे या शहर, लेककन ऄब सामान्यतः एक देश) का ऐसा
सदस्य होता है वजसे राजनीवतक भागीदारी से सम्बंवधत ऄवधकार प्राि हो। यह ऄवधकार नागररकता
कहलाता है।

2. पररचय
ककसी राज्य का नागररक िह व्यवि है वजसे राज्य या राजनीवतक समुदाय की पूणथ सदस्यता प्राि होती
है। ककसी भी देश में व्यवियों के दो िगथ होते हैं-
 नागररक एिं
 विदेशी।
विदेशी व्यवि एिं साधारण वनिासी, नागररकों से ऄलग होते हैं क्योंकक िे ईन ऄवधकारों का ईपभोग
नहीं कर पाते जो पूणथ सदस्यता धारण करने िाले नागररकों हेतु सुलभ होते हैं।
ईदाहरण के वलए, नागररक मतदान कर सकते हैं और प्रवतवनवध कायाथलयों की पूणथ सेिाएं प्राि कर
सकते है जैसे संसद सदस्यता धारण करना ,वनिाथचन प्रकिया में भाग लेना आत्याकद ,जबकक विदेशी
व्यवियों को यह ऄवधकार प्राि नहीं होते हैं ।
विदेशी व्यवि दो प्रकार के हो सकते हैं:
 वमत्र देश के व्यवि तथा
 शत्रु देश के व्यवि।
हालााँकक शत्रु देश के नागररक कु छ ऐसे ऄवधकारों से िंवचत होते हैं जो वमत्र देश के नागररकों (विदेशी)
के वलए सुलभ होते हैं।
आसके ऄवतररि भारत के नागररकों को वनम्नवलवखत ऄवधकार प्राि हैं, जो विदेवशयों को नहीं कदए गए
हैं-
 कु छ मूल ऄवधकार वसिथ नागररकों के वलए हैं। यथा ऄनुच्छेद 15, 16, 19, 29, तथा 30
 कु छ पदों पर वसिथ नागररक ही वनयुि हो सकते हैं। यथा राष्ट्रपवत, ईपराष्ट्रपवत, ईच्च न्यायालय या
ईच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, महान्यायिादी, ककसी राज्य का राज्यपाल, महावधििा।
 लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं के सदस्यों के वनिाथचन हेतु चुनाि में मतदान करने तथा
सांसद/विधायक के रूप में वनिाथवचत होने का ऄवधकार वसिथ नागररकों को प्राि है।
भारतीय मूल के व्यवि (PIO) से तात्पयथ ऐसे व्यवि से है वजसे ककसी ऄन्य राष्ट्र की नागररकता प्राि है।
ईसे गैर वनिासी भारतीय (NRI) के समान नागररक नहीं माना जाता।
नागररकता से संबंवधत प्रािधान भारत के संविधान के भाग II में ऄनुच्छेद 5 से 11 में वनवहत हैं।
नागररकता ऄवधवनयम, 1955 भारतीय नागररकता के ऄजथन, वनधाथरण तथा आसकी समावि अकद
विषयों से संबंवधत है।
 यह जन्म, िंश, पंजीकरण द्वारा तथा देशीयकरण के अधार पर भारतीय नागररकता के ऄवधग्रहण
के वलए प्रािधान करता है।
 ऄवधवनयम की धारा 2(b) के ऄनुसार-"ककसी देश के सन्दभथ में प्रथम सूची में वनर्ददष्ट नागररक से
तात्पयथ तत्समय ईस देश में नागररकता या राष्ट्रीयता से सम्बंवधत ककसी विवध के ऄंतगथत नागररक
होने से है जो प्रितथन में हो I

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 यहााँ ईवललवखत प्रथम ऄनुसच


ू ी को नागररकता (संशोधन) ऄवधवनयम, 2003, द्वारा हटा कदया
गया है।
 भारतीय कानून के ऄनुसार, नागररकों के ऄवतररि व्यवियों की कु छ ऄन्य श्रेवणयााँ भी हैं। ये वनम्न
हैं :-

2.1. गै र वनिासी भारतीय (NRI)

एक गैर वनिासी/ऄवनिासी भारतीय, सामान्यतः भारत से बाहर रहने िाला तथा भारतीय पासपोटथ
धारण करने िाला व्यवि है। भारतीय कानून के ऄनुसार, वनिासी िह व्यवि है जो देश में कु छ वनवित
कदनों तक (वपछले िषथ में कम से कम 182 कदन) वनिास करता है जबकक NRI भारतीय नागररक तो है
परं तु देश में कु छ सुवनवित कदनों तक के वलए वनिास करने की शतथ नहीं पूरी करता।

2.2. भारतीय मू ल के व्यवि (PIO)

यह िे व्यवि हैं जो स्ियं या वजन के पूिज


थ भारत के नागररक रहे हैं ककतु, ितथमान में यह ककसी ऄन्य
देश के नागररक हैं। वनयमों के ऄनुसार, वजन व्यवियों के पास कभी भी भारत का पासपोटथ रहा है या
वजन के माता वपता या दादा-दादी या नाना-नानी में से कोइ 1935 के भारत शासन ऄवधवनयम द्वारा
पररभावषत भारत का या ककसी ऐसे क्षेत्र का वनिासी रहा है जो बाद में भारत का वहस्सा बन गया हो
तो ईस व्यवि तथा ईसके वििाह संबंधी (spouse) को भारतीय मूल का व्यवि माना जाता है।
ध्यातव्य है कक जो व्यवि पाककस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान ऄफ़गावनस्तान ि चीन के
नागररक हैं या कभी रहे हैं, िे भारतीय मूल के व्यवि (PIO) िगथ में शावमल नहीं हो सकते। भारत
सरकार चाहे तो आस वनषेधात्मक सूची में कु छ और देशों का नाम भी जोड़ सकती है। भारतीय मूल के
व्यवियों को 2002 में एक काडथ जारी करने की प्रकिया शुरु की गइ थी वजसे PIO काडथ या भारतिंशी
काडथ कहा जाता है। आस काडथ के धारकों को कइ विशेष सुविधाएं दी गयी हैं, जैसे:
लाभ:
 भारत की यात्रा करने के वलए ऄलग से िीजा की अिश्यकता नहीं होगी।
 भारत में प्रिास के दौरान एकल दौरे में 180 कदनों की ऄिवध तक ईन्हें पंजीकरण की अिश्यकता
नहीं होगी।
 भारत में लगातार 180 कदनों की ऄिवध से ऄवधक के प्रिास की वस्थवत में ईन्हें आस ऄिवध के
समाि होने के 30 कदनों के भीतर संबंवधत विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण ऄवधकारी या विदेशी
पंजीकरण ऄवधकारी (FRRO/FRO) के पास पंजीकरण कराना अिश्यक होगा।
 ऄवनिासी भारतीयों को प्राि लगभग सभी अर्थथक, वित्तीय तथा शैवक्षक सुविधाएं आन्हें भी दी गइ
हैं। परं तु कु छ ऄपिाद भी हैं यथा
o कृ वष / बागान संपवत्तयों के ऄवधग्रहण के मामलों में तथा,
o राजनीवतक ऄवधकारों के क्षेत्र में आन्हें समानता से िंवचत ककया गया है।
 PIO काडथ धारक व्यवि काडथ जारी होने के पंद्रह िषों तक वबना िीजा के भारत की यात्रा कर
सकता है। ईसे ऄपने प्रिास के दौरान स्थानीय पुवलस ऄवधकारी के यहााँ पंजीकरण की अिश्यकता
तब होगी जब िह पहली बार 180 कदनों से ऄवधक भारत में वनिास करे ।
नागररकता ऄवधवनयम की धारा 5(1)(a) एिं 5(1)(c) के ऄनुसार, एक PIO काडथ धारक को भारतीय

नागररकता प्राि करने के वलए अिेदन करने से पहले कम से कम 7 िषथ के वलए भारत में वनिास करना
अिश्यक होगा।

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2.3. प्रिासी भारतीय नागररक (OCI)

 नागररकता ऄवधवनयम, 1955 की धारा 7 (क) के तहत प्रिासी भारतीय नागररक (OCI) के रूप
में पंजीकृ त एक व्यवि। OCI योजना 2-12-2005 से लागू है।
एक विदेशी नागररक, जो 15 ऄगस्त 1947 के बाद भारत में शावमल होने िाले ककसी क्षेत्र का वनिासी
हो, और िह या ईसके बच्चे या पोते-पोवतयां, तो िह OCI के रूप में पंजीकृ त होने के पात्र होंगे,यकद
संबंवधत देश के नागररकता प्रािधान में या स्थानीय कानूनों के तहत दोहरी नागररकता की ऄनुमवत हो।
 26 जनिरी 1950 को भारत का नागररक बनने की योग्यता रखता हो, या
 26 जनिरी 1950 को या ईसके बाद भारत का नागररक हो, या
OCI को वनम्नवलवखत लाभ प्राि हैं :-
1. भारत यात्रा के वलए विविध प्रिेश एिं विविध प्रयोजन हेतु अजीिन िीजा।
2. ऄसीवमत ऄिवध हेतु भारत में रहने के वलए स्थानीय पुवलस के रवजस्रेशन से छू ट।
3. अर्थथक, वितीय, शैवक्षक क्षेत्र में ऄप्रिासी भारतीयों के साथ समता, परन्तु आससे जुड़े क्षेत्रों को
छोड़कर यथा:
(a) कृ वष या बागानी सम्पवत का ऄवधग्रहण, एिं
(b) राजनीवतक ऄवधकारों में कोइ समानता नहीं होगी ।

3. सं िै धावनक प्रािधान
3.1. ऄनु च्छे द 5

संविधान के प्रारं भ पर नागररकता - आस संविधान के प्रारं भ पर प्रत्येक व्यवि वजसका भारत के


राज्यक्षेत्र में ऄवधिास है और -
 जो भारत के राज्य-क्षेत्र में जन्मा हो, या
 वजसके माता या वपता में से कोइ भारत के राज्य-क्षेत्र में जन्मे हो, या
 जो संविधान के प्रारं भ होने के कम से कम पांच िषथ पहले से भारत के राज्य-क्षेत्र में वनिासी रहा
है:
भारत का नागररक होगा।
3.2. ऄनु च्छे द 6

पाककस्तान से भारत को प्रव्रजन करने िाले कु छ व्यवियों के नागररकता के ऄवधकार - ऄनुच्छेद 5 में
ककसी बात के होते हुए भी, कोइ व्यवि वजसने ऐसे राज्यक्षेत्र से जो आस समय पाककस्तान के ऄंतगथत है,
भारत के राज्यक्षेत्र में प्रव्रजन ककया है, आस संविधान के प्रारं भ पर भारत का नागररक माना जाएगा -
 यकद िह या ईसके माता-वपता में से कोइ ऄथिा ईसके दादा या दादी या नाना या नानी में से कोइ
(मूल रूप में यथा ऄवधवनयवमत) भारत शासन ऄवधवनयम, 1935 में पररभावषत भारत में जन्मा
हो,
 यकद ईस व्यवि ने 19 जुलाइ, 1948 से पहले आस प्रकार प्रिजन ककया है तथा िह ऄपने प्रिजन
की तारीख से भारत के राज्यक्षेत्र का मामूली तौर से वनिासी रहा है, या
 यकद ईस व्यवि ने 19 जुलाइ, 1948 को या ईसके पिात् आस प्रकार प्रिजन ककया है तब यकद िह
नागररकता प्रावि के वलए भारत की डोवमवनयन सरकार द्वारा विवहत प्रारूप में और रीवत से
ईसके द्वारा आस संविधान के प्रारं भ से पहले ऐसे ऄवधकारी को, वजसे ईस सरकार ने आस प्रयोजन के
वलए वनयुि ककया है, अिेदन ककए जाने पर ईस ऄवधकारी द्वारा भारत का नागररक पंजीकृ त कर
वलया गया है :

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परन्तु यकद कोइ व्यवि ऄपने अिेदन की तारीख से ठीक पहले कम से कम छः माह भारत के राज्यक्षेत्र
में वनिासी नहीं रहा है तो िह आस प्रकार पंजीकृ त नहीं ककया जाएगा।

3.3. ऄनु च्छे द 7

पाककस्तान को प्रव्रजन करने िाले कु छ व्यवियों के नागररकता के ऄवधकार -


ऄनुच्छेद 5 और ऄनुच्छेद 6 में ककसी बात के होते हुए भी, कोइ व्यवि वजसने 1 माचथ 1947 के पिात्

भारत से ऐसे राज्य-क्षेत्र को, जो आस समय पाककस्तान के ऄंतगथत है, प्रव्रजन ककया है, भारत का

नागररक नहीं समझा जाएगा

परन्तु आस ऄनुच्छेद की कोइ बात ऐसे व्यवि पर लागू नहीं होगी जो ऐसे राज्यक्षेत्र को, जो आस समय

पाककस्तान के ऄंतगथत है, प्रिजन करने के पिात् भारत के राज्यक्षेत्र में ऐसी ऄनुज्ञा के ऄधीन लौट
अया है जो पुनिाथस के वलए या स्थायी रूप से लौटने के वलए ककसी विवध के प्रावधकार द्वारा या ईसके
ऄधीन दी गइ है। साथ ही, प्रत्येक ऐसे व्यवि के बारे में ऄनुच्छेद 6 के खंड (ख) के प्रयोजनों के वलए यह

समझा जाएगा कक ईसने भारत के राज्यक्षेत्र में 19 जुलाइ, 1948 के पिात् प्रव्रजन ककया है।

3.4. ऄनु च्छे द 8

भारत के बाहर रहने िाले भारतीय मूल के कु छ व्यवियों के नागररकता के ऄवधकार- एक व्यवि

वजसके माता-वपता या दादा-दादी ऄविभावजत भारत में पैदा हुए गो,लेककन िह भारत के बाहर रह

रहा हो। किर भी, िह भारत का नागररक बन सकता है, यकद ईसने भारत के नागररक के रूप में
पंजीकरण राजनवयक तरीके से या कौंसवलय प्रवतवनवध के रूप में अिेदन ककया हो तथा भारत का
नागररक पंजीकृ त कर वलया गया हो । यह व्यिस्था भारत के बाहर अने िाले भारतीयों के वलए बनाइ
गइ ताकक िह भारत की नागररकता ग्रहण कर सकें ।

3.5. ऄनु च्छे द 9

विदेशी राज्य की नागररकता स्िेच्छा से ऄर्थजत करने िाले व्यवियों का नागररक न होना - यकद ककसी

व्यवि ने ककसी विदेशी राज्य की नागररकता स्िेच्छा से ऄर्थजत कर ली है तो िह ऄनुच्छेद 5 के अधार

पर भारत का नागररक नहीं होगा ऄथिा ऄनुच्छेद 6 या ऄनुच्छेद 8 के अधार पर भारत का नागररक
नहीं समझा जाएगा।

3.6. ऄनु च्छे द 10

नागररकता के ऄवधकारों का बना रहना - प्रत्येक व्यवि, जो आस भाग के पूिथगामी ईपबंधों में से ककसी

के ऄधीन भारत का नागररक है या समझा जाता है। साथ ही, कोइ व्यवि संसद द्वारा वनर्थमत विवध के

ईपबंधों के ऄधीन रहते हुए, भारत का नागररक बना रहेगा।

3.7. ऄनु च्छे द 11

संसद द्वारा नागररकता के ऄवधकार का विवध द्वारा विवनयमन ककया जाना - आस भाग के पूिग
थ ामी
ईपबंधों की कोइ बात नागररकता के ऄजथन एिं समावि तथा नागररकता से संबंवधत ऄन्य सभी विषयों
के संबंध में ईपबंध करने की संसद की शवि को कम नहीं करे गी।

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4. नागररकता का ऄजथ न और समावि


भारत में नागररकता के ऄजथन और समावि के विवधक प्रािधान नागररकता ऄवधवनयम, 1955 में
वनवहत हैं। यह भारतीय कानून नागररकता प्रावि की वनम्नवलवखत शतें िर्थणत करता है :
 जन्म से
 िंश के अधार पर
 पंजीकरण द्वारा
 देशीयकरण द्वारा
 क्षेत्र के समािेश द्वारा

4.1. जन्म से नागररकता (धारा 3)

 26 जनिरी, 1950 को या ईसके बाद परन्तु 1 जुलाइ, 1987 से पूिथ भारत में जन्मा व्यवि जन्म
से भारत का नागररक होगा, भले ही ईसके माता-वपता की राष्ट्रीयता कु छ भी हो।
 भारत में 1 जुलाइ, 1987 को या ईसके बाद परन्तु 3 कदसम्बर, 2004 [ नागररकता (संशोधन)
ऄवधवनयम, 2003 लागू हुअ ] से पूिथ जन्मा व्यवि के िल तभी भारत का नागररक माना जाएगा,
यकद ईसके जन्म के समय ईसके माता-वपता में से कोइ एक भारत का नागररक हो ।
 यकद ककसी व्यवि का जन्म 3 कदसंबर, 2004 के बाद भारत में हुअ तो िह ईसी दशा में जन्म से
भारत का नागररक माना जाएगा, यकद ईसके माता-वपता दोनों ईसके जन्म के समय भारत के
नागररक हों या माता या वपता में से कोइ एक ईस समय भारत का नागररक हो तथा दूसरा ऄिैध
प्रिासी न हो।
 आस खंड के अधार पर एक व्यवि भारत का नागररक नहीं माना जाएगा, यकद ईसके जन्म के
समय-
o ईसके वपता या माता को, िादों या िैध अदेवशका में ऐसी ईन्मुवि प्राि हो जैसी भारत के
राष्ट्रपवत को प्रत्यायोवजत ऄन्य संप्रभु देश के राजनवयक को प्राि होती है और िह,
यथावस्थवत, भारत का नागररक नहीं है; या
o ईसके वपता या माता कोइ ऄन्य देशीय शत्रु है और ईसका जन्म ककसी ऐसे स्थान पर हुअ हो
जो ईस समय शत्रु के ऄवभयोग के ऄधीन हो।
एक "ऄिैध प्रिासी" जैसा कक ऄवधवनयम की धारा 2(1)(b) में पररभावषत ककया गया है, एक विदेशी
है, जो भारत में प्रिेश करता है -
(I) एक िैध पासपोटथ या ऄन्य वनधाथररत यात्रा दस्तािेजों के वबना, या
(Ii) एक िैध पासपोटथ या ऄन्य वनधाथररत यात्रा दस्तािेजों के साथ, लेककन भारत में ईस समयािवध से
ऄवतररि समय तक रहता है वजतनी की ऄनुमवत दी गइ थी।

4.2. िं श के अधार पर नागररकता (धारा 4)

 कोइ व्यवि वजसका जन्म 26 जनिरी, 1950 को या ईसके बाद परन्तु 10 कदसम्बर, 1992 से पूिथ
भारत के बाहर हुअ हो िह िंश के अधार पर भारत का नागररक होगा, यकद ईसके जन्म के समय
ईसका वपता जन्म से भारत का नागररक रहा हो। यकद ईसका वपता के िल िंश के अधार पर
भारत का नागररक हो, तो िह व्यवि भारत का नागररक नहीं होगा, यकद ईसके जन्म के एक िषथ
के भीतर भारतीय कौंसलेट में ईसके जन्म का पंजीकरण न करा कदया गया हो या कें द्र सरकार की
सहमवत से ईि ऄिवध की समावि के बाद पंजीकरण न हुअ हो।

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 कोइ व्यवि वजसका जन्म 10 कदसंबर, 1992 को या ईसके बाद परन्तु 3 कदसंबर 2004 के पूिथ
भारत के बाहर हुअ हो, को भारत के नागररक के रूप में माना जाएगा यकद ईसके जन्म के समय
ईसके माता या वपता में से कोइ जन्म से, भारत का नागररक हो। यकद ईसके माता या वपता में से

कोइ िंश के अधार पर भारत के नागररक हों, तो िह व्यवि भारत का नागररक नहीं होगा, यकद
ईसके जन्म के एक िषथ के भीतर भारतीय कांसुलेट में ईसके जन्म का पंजीकरण न करा कदया गया
हो या कें द्र सरकार की सहमवत से ईि ऄिवध की समावि के बाद पंजीकरण न हुअ हो।
 3 कदसंबर 2004 को या ईसके बाद भारत से बाहर जन्मा कोइ व्यवि भारत का नागररक नहीं
होगा, जबतक बच्चे के माता-वपता अिेदन पत्र में घोवषत न करें कक बच्चे के पास ककसी ऄन्य देश का
पासपोटथ नहीं है और ईसके जन्म के एक िषथ के भीतर भारतीय कांसुलेट में ईसके जन्म का
पंजीकरण न करा कदया गया हो या कें द्र सरकार की सहमवत से ईि ऄिवध की समावि के बाद
पंजीकरण न हुअ हो।

4.3. पं जीकरण द्वारा नागररकता [धारा 5 (1)]

पंजीकरण द्वारा ककसी व्यवि (ऄिैध प्रिासी न हो) को भारत की नागररकता वनम्न तरीकों से प्राि हो
सकती है :-
 भारतीय मूल का व्यवि, जो नागररकता प्रावि का अिेदन देने से ठीक पहले से 7 िषथ से भारत में

रह रहा हो। (अिेदन देने से ठीक पहले 12 माह पूिथ से िह भारत में रह रहा हो और आस 12 माह
की ऄिवध से पूिथ के 8 िषों में से 6 िषथ भारत में रहा हो)
 भारतीय मूल का िह व्यवि जो आस धारा के तहत िर्थणत ऄविभावजत भारत के बाहर या ककसी
ऄन्य देश या स्थान पर अमतौर पर रह रहा हो।
 िह व्यवि वजसने भारतीय नागररक से वििाह ककया हो और आस धारा के तहत पंजीकरण के वलए
प्राथथना पत्र देने से पूिथ सात िषथ से अमतौर पर भारत में रह रहा हो।
 नाबावलग बच्चे वजनके माता-वपता दोनों आस धारा के तहत भारत के नागररक हों।
 कोइ व्यवि, जो व्यस्क तथा पूणथ सामर्थयथ धारण करता हो तथा ईसके माता-वपता भारत के
नागररक के रूप में पंजीकृ त हों।
 कोइ व्यवि, जो व्यस्क तथा पूणथ सामर्थयथ धारण करता हो तथा िह या ईसके माता या वपता पूिथ में
स्ितंत्र भारत के नागररक के रूप में पंजीकृ त रहे हों तथा िह पंजीकरण का आस प्रकार का अिेदन
देने से ठीक पूिथ एक िषथ से भारत में रह रहा हो।
 कोइ व्यवि, जो व्यस्क तथा पूणथ सामर्थयथ धारण करता हो तथा OCI (प्रिासी भारतीय नागररक)
के रूप में पांच िषथ से पंजीकृ त हो या तथा िह पंजीकरण का आस प्रकार का अिेदन देने से एक िषथ
पूिथ से भारत में रह रहा हो।
एक व्यवि को भारतीय मूल का व्यवि (Person of indian origin) माना जाएगा, यकद िह या ईसके

माता-वपता में से कोइ ऄविभावजत भारत में या 15 ऄगस्त, 1947 के बाद भारत का ऄंग बनने िाले
ककसी भूक्षेत्र में पैदा हुअ हो।

4.4. दे शीयकरण द्वारा नागररकता (धारा 6)

देशीयकरण द्वारा भारत की नागररकता एक विदेशी (ऄिैध प्रिासी न हो) के द्वारा प्राि की जा सकती
है जो सामान्यतः 12 िषों (अिेदन की तारीख के ठीक पहले 12 महीने की ऄिवध से और आस 12
महीने की ऄिवध के पहले 14 िषों में कु ल वमलाकर ग्यारह िषों तक) से भारत का वनिासी है और
ऄवधवनयम की तीसरी ऄनुसच
ू ी में वनर्ददष्ट ऄन्य योग्यताओं को पूरा करता हो।

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 जब ककसी ियस्क और पूणथ सामर्थयथ धारण करने िाले व्यवि, जो पहली ऄनुसच
ू ी में वनर्ददष्ट ककसी
देश का नागररक नहीं है, द्वारा वनधाथररत रीवत से देशीयकरण द्वारा नागररकता प्रमाण पत्र प्राि
करने के वलए अिेदन ककया जाता है। यकद कें द्र सरकार संतुष्ट हो जाती है कक अिेदक तीसरी
ऄनुसूची के प्रािधानों के तहत देशीयकरण द्वारा नागररकता के वलए योग्य है, तब ईसे देशीयकरण
द्वारा नागररकता का प्रमाण पत्र प्रदान ककया जा सकता है।
 हालांकक यकद के न्द्र सरकार की राय में अिेदक एक ऐसा व्यवि हो वजसने विज्ञान, दशथन, कला,
सावहत्य, विश्व शांवत या मानि प्रगवत के वलए प्रवतवष्ठत सेिाएं प्रदान की हैं, तो िह नागररकता
ऄवधवनयम, 1955 की तीसरी ऄनुसच
ू ी में वनर्ददष्ट सभी या कोइ भी शतथ हटा सकती है।
 वजस व्यवि को देशीयकरण द्वारा नागररकता का प्रमाण पत्र प्रदान ककया जाता है, ईसे नागररकता
ऄवधवनयम की दूसरी ऄनुसच ू ी में वनर्ददष्ट िॉमथ में भारत के संविधान के प्रवत वनष्ठा की शपथ लेनी
होगी और प्रमाण-पत्र की स्िीकृ वत की वतवथ से देशीयकरण द्वारा भारत का नागररक माना
जाएगा।
4.5. क्षे त्र के समािे श से नागररकता

यकद कोइ भी क्षेत्र भारत का वहस्सा बन जाता है, तो कें द्र सरकार, सरकारी गजट में अदेश द्वारा ईन
व्यवियों को ऄवधसूवचत कर सकती है वजन्हें ईस क्षेत्र से संबंवधत होने के कारण भारत का नागररक
माना जाएगा और आस तरह अदेश में वनर्ददष्ट वतवथ से ईन लोगों को भारत के नागररक के रूप में माना
जाएगा।

5. नागररकता की समावि
नागररकता, स्िैवच्छक त्याग या दूसरे देश की नागररकता ग्रहण करने से समाि हो सकती है।
नागररकता की समावि संबंधी प्रािधान, नागररकता ऄवधवनयम, 1955 की धारा 9 में ऄन्तर्थनवहत है।
 ऄवधवनयम की धारा 9 (1) में प्रािधान है कक भारत का कोइ भी नागररक जो देशीयकरण या
पंजीकरण द्वारा ककसी दूसरे देश की नागररकता प्राि कर ले, िह भारत का नागररक नहीं रह
जाएगा।
 साथ ही, यह भी प्रािधान है कक भारत का कोइ भी नागररक जो स्िैवच्छक रूप से ककसी दूसरे देश
की नागररकता ग्रहण करे गा, भारत का नागररक नहीं रह जाएगा।

5.1. नागररकता का स्िै वच्छक त्याग

नागररकता का स्िैवच्छक त्याग, नागररकता ऄवधवनयम, 1955 की धारा 8 में ऄन्तर्थनवहत है:
 यकद भारत का कोइ भी ियस्क और पूणथ क्षमतािान नागररक, जो ककसी ऄन्य देश का भी नागररक
या रावष्ट्रक है, वनधाथररत तरीके से भारत की नागररकता को त्यागने की घोषणा करता है तथा आस
घोषणा को विवहत प्रावधकारी द्वारा पंजीकृ त कर वलया जाता है तो आस तरह के पंजीकरण से िह
व्यवि भारतीय नागररक नहीं रह जाएगा।
 यकद यह घोषणा युद्ध के दौरान की गयी हो और भारत भी युद्ध में संलग्न हो तो आस पंजीकरण पर
रोक लगा दी जाएगी जब तक कक कें द्र सरकार ऄन्यथा कोइ वनदेश न दे।
 यकद ककसी व्यवि की भारत की नागररकता समाि हो जाती है तो ईस व्यवि के प्रत्येक नाबावलग
बच्चे की नागररकता भी समाि हो जाएगी, बशते कक ऐसा कोइ बच्चा ियस्क होने के बाद एक िषथ
के ऄन्दर यह घोषणा करे कक िह भारत की नागररकता पुनःग्रहण करना चाहता है और ऐसी
घोषणा के बाद िह किर से भारत का नागररक बन जाएगा।
 आस खंड के प्रयोजन के वलए, कोइ मवहला जो शादीशुदा है, या रही है, ईसे पूणथ अयु (ियस्क ) का
माना जाएगा।

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5.2. दू स रे दे श की नागररकता का ग्रहण

 भारत का कोइ भी नागररक वजसने देशीयकरण, पंजीकरण द्वारा या ऄन्यथा स्िेच्छा से, या 26

जनिरी 1950 से आस ऄवधवनयम के लागू होने के बीच ककसी भी समय स्िैवच्छक रूप से ककसी

दूसरे देश की नागररकता ग्रहण की है, िह भारत का नागररक नहीं रहेगा।

 हालांकक, यह प्रािधान युद्ध, वजसमें भारत शावमल हो सकता है, के दौरान स्िैवच्छक रूप से ककसी

दूसरे देश की नागररकता ग्रहण करने िाले भारतीय नागररक पर लागू नहीं होता, जब तक कक कें द्र
सरकार ऄन्यथा कोइ वनदेश न दे।
 यकद यह प्रश्न ईठता है कक क्या, कब या कै से ककसी व्यवि द्वारा दूसरे देश की नागररकता ग्रहण की

गयी है, तो आसका वनधाथरण आसके वलए वनर्ददष्ट प्रावधकरण द्वारा वनधाथररत रीवत और प्रमाण के
सन्दभथ में ईवललवखत वनयमों को ध्यान में रखकर ककया जाएगा।
 ककसी दूसरे देश का पासपोटथ ग्रहण करना भी नागररकता वनयम, 1956 के तहत ककसी दूसरे देश
की राष्ट्रीयता का स्िैवच्छक ग्रहण माना जाता है।
 नागररकता वनयम, 1956 की ऄनुसच
ू ी III के वनयम 3 में कहा गया है कक “यह तर्थय कक भारत के
नागररक द्वारा ककसी भी ऄन्य देश की सरकार की ओर से ककसी भी वतवथ को पासपोटथ प्राि ककया
गया है, ईसके पास ईस वतवथ से पहले ईस देश की नागररकता ग्रहण करने का वनणाथयक प्रमाण

होगा”।

5.3. नागररकता से िं वचत करना

भारतीय नागररकता ऄवधवनयम, 1955 की धारा 10 के तहत कें द्र सरकार ककसी भी नागररक को
भारतीय नागररकता से िंवचत कर सकती है यकद यह संतुष्ट है कक:
 पंजीकरण या देशीयकरण द्वारा नागररकता का प्रमाण पत्र धोखाधड़ी, गलत वनरूपण या ककसी

तर्थय को वछपाकर प्राि ककया गया है, या


 ककसी नागररक ने ऄपने कृ त्य या ििव्य द्वारा या विवध द्वारा यथा स्थावपत भारत के संविधान के
प्रवत ऄनादर या ऄसंतुवष्ट प्रदर्थशत की है, या

 यकद ककसी नागररक ने युद्ध के दौरान, वजसमें भारत संलग्न है, शत्रु देश के साथ गैर-क़ानूनी रूप से

संबंध स्थावपत ककया हो या ईसे कोइ राष्ट्र विरोधी सूचना दी हो, या

 यकद ककसी नागररक को पंजीकरण या देशीयकरण के पांच िषथ के भीतर ककसी दूसरे देश में 2 िषथ

या आससे ऄवधक ऄिवध के वलए सजा सुनाइ गयी हो; या


 यकद कोइ नागररक सामान्य रूप से सात िषथ की एक वनरं तर ऄिवध से भारत के बाहर वनिास कर
रहा हो और आस ऄिवध के दौरान भारत के बाहर िह कभी भी ककसी शैक्षवणक संस्थान का छात्र
नहीं रहा हो या भारत सरकार की सेिा में नहीं रहा हो या भारत की सदस्यता िाले ककसी
ऄंतराथष्ट्रीय संगठन में सेिारत नहीं रहा हो और न ही भारत की नागररकता बनाये रखने के ऄपने
आरादे के संदभथ में वनधाथररत तरीके से भारतीय दूतािास में िार्थषक अधार पर पंजीयन ही करिाया
हो, या
 कें द्र सरकार द्वारा ककसी नागररक को नागररकता से तब तक िंवचत नहीं ककया जा सकता है जब
तक कक यह समाधान नहीं हो जाता कक ऄमुक व्यवि की भारतीय नागररकता जारी रखना
सािथजवनक वहत के वलए ऄनुकूल नहीं है।

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6. दोहरी नागररकता की ऄिधारणा


(CONCEPT OF DUAL CITIZENSHIP)
सामान्यतः नागररकता को कु छ सामान्य कारकों के अधार पर पररभावषत की जाती है। कोइ व्यवि
ककसी देश का नागररक वनम्नवलवखत एक या एक से ऄवधक कारणों से हो सकता है:
 "जन्मभूवम का ऄवधकार"– यकद ईसका जन्म ईस देश में (सीमाओं के भीतर) हुअ हो।
 "रि का ऄवधकार- यकद ईसके माता-वपता में से एक या दोनों देश के नागररक हों।
 वििाह द्वारा- यकद ईसने ऐसे व्यवि से वििाह ककया है जो कक ईस देश का नागररक है (यह एक
स्िचावलत प्रकिया नहीं है- व्यवि को नागररकता के वलए अिेदन करने की अिश्यकता होती है)
 देशीयकरण– यकद िह देशीकरण की कानूनी प्रकिया के माध्यम से देश की नागररकता प्राि करता
है।
ककसी देश की नागररकता प्राि करने के विवभन्न तरीके हैं, ककसी भी व्यवि के वलए यह संभि है कक िह
एक ही समय में दो या दो से ऄवधक देशों के कानूनों के तहत एक नागररक माना जा सकता है। यह
दोहरी नागररकता है।
दोहरी नागररकता, एक ही समय में दो देशों का नागररक होना है। दोहरी नागररकता िाले व्यवि के दो
पासपोटथ हो सकते हैं तथा िास्ति में िे ईनके देशी और देशीयकृ त देशों में स्ितंत्र रूप से रह सकते है,
कायथ एिं यात्रा कर सकते हैं। कु छ देशों में दोहरी नागररकता की ऄनु मवत नहीं है। ईदाहरण के वलए,
दवक्षण कोररयाइ और ऄमेररकी नागररकता एक साथ धारण नहीं की जा सकती।
कदसंबर 2003 में भारतीय संसद ने भारतीय मूल के लोगों को प्रिासी भारतीय नागररकता (OCI)
प्रदान करने के वलए एक विधेयक पाररत ककया। OCI योजना 2 कदसंबर 2005 से लागू हो गयी।
भारतीय संविधान में एक साथ भारतीय नागररकता एिं विदेशी देश की नागररकता धारण करने की
ऄनुमवत नहीं है ।
प्रिासी भारतीयों (आं वडयन डायस्पोरा) पर ईच्च स्तरीय सवमवत की वसिाररश के अधार पर भारत
सरकार ने प्रिासी भारतीय नागररकता (OCI) प्रदान करने का वनणथय वलया वजसे सामान्यतया ‘दोहरी
नागररकता' के रूप में जाना जाता है।
वजस विवध के तहत भारतीय मूल के काडथ धारक व्यवि(PIO), जो भारत से प्रिास कर विदेश में बस
गए है और विदेशी देश (पाककस्तान और बांग्लादेश के ऄवतररि ऄन्य देश) की नागररकता प्राि कर ली
है, कु छ लाभ के पात्र हैं, ईसी विवध के तहत भारत सरकार, प्रिासी भारतीय नागररक(OCI) का दजाथ
प्रदान करती है -" यकद ईनके देश में ककसी भी ऄन्य रूप में या ईनके स्थानीय कानूनों के तहत दोहरी
नागररकता की ऄनुमवत देते हैं "।
यह दजाथ भारत के नागररक होने के समान नहीं है - भारत सरकार द्वारा जारी ककए गए संशोधन के
ऄनुसार, ऐसे व्यवि :
 को भारतीय पासपोटथ नहीं वमलता है,
 को कोइ मतावधकार प्राि नहीं है,
 चुनाि नहीं लड़ सकते या लोकसभा, राज्यसभा, विधान सभा या पररषद के वलए नावमत नहीं
ककये जा सकते हैं,
 राष्ट्रपवत, ईपराष्ट्रपवत, सिोच्च न्यायालय या ईच्च न्यायालय के न्यायाधीश जैसे संिैधावनक पदों का
कायथभार ग्रहण नहीं कर सकते।
 वनधाथररत प्रारूप में पंजीकरण प्रमाणपत्र जारी ककया जाता है और भारत यात्रा के वलए विविध
प्रिेश एिम विविध प्रयोजन हेतु जीिनकाल का िीजा प्रदान ककया जाता है।

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7. नागररकता (सं शोधन) ऄवधवनयम 2016


(The Citizenship (Amendment) Bill 2016)

हाल ही में सरकार ने नागररकता संशोधन ऄवधवनयम, 2016 के माध्यम से नागररकता संबंधी वनयमों
में कु छ पररितथन प्रस्तावित ककए हैं।

7.1. पृ ष्ठ भू वम

मूल नागररकता ऄवधवनयम, 1955 में पाररत ककया गया। यह भारतीय नागररकता की ऄिधारणा को
पररभावषत करता है और आसे प्राि करने के तरीकों की सूची प्रदान करता है। आसमें स्पष्ट रूप से सभी
वबना दस्तािेज िाले प्रिावसयों को नागररकता देने से आनकार ककया गया है।
 आस कानून के ऄनुसार कोइ व्यवि वनम्नवलवखत अधार पर नागररकता प्राि कर सकता है:
o जन्म के अधार पर
o वजसके माता-वपता भारतीय हो, या
o ककसी वनवित समय से देश में वनिास कर रहा हो।
 यह विधेयक ऄिैध प्रिावसयों को भारतीय नागररकता प्राि करने से रोकता है।
 िॉरनर एक्ट 1946 और पासपोटथ एंरी आन टू आं वडया एक्ट,1920 के तहत ऄिैध प्रिावसयों को कै द
या वनिाथवसत ककया जा सकता है।

ऄिैध प्रिासी कौन है?

ऄिैध प्रिासी िह विदेशी है जो या तो:


 िैध यात्रा दस्तािेजों के वबना देश में प्रिेश करता है।
 िैध दस्तािेजों के साथ प्रिेश करता है। लेककन, ऄनुमवत प्राि समय से ऄवधक वनिास करता है।

ऄप्रिासी भारतीय नागररक कौन हैं?

OCIs िे विदेशी होते हैं जो भारतीय मूल के व्यवि हैं। ईदाहरण के वलए, िे ितथमान भारतीय नागररक

के बच्चे या पूिथ भारतीय नागररक हो सकते हैं। ईन्हें विवभन्न ऄवधकार प्राि होते हैं, जैसे:- िीजा के वबना
भारत की यात्रा करना।

ऄनुच्छेद 14 -ऄनुच्छेद 14 में ‘सामानों में समानता’ ऄथिा सकारात्मक विभेद का वसद्धांत वनवहत है।

ऄसमान लोगों के बीच युवियुि अधारों पर सकारात्मक विभेद ककया जा सकता है। आस विधेयक के
प्रािधान और कारण ककसी भी रूप में युवियुिता की कसौटी पर खरा नहीं ईतरते हैं।

7.2. सं शोधन की विशे ष ताएं

 यह लोगों की दो श्रेवणयों से संबंवधत है-


1. ऄिैध ऄप्रिासी

2. ओिरसीज काडथधारक

 यह ऐसे ऄिैध प्रिावसयों की पहचान करता है जो ऄिगावनस्तान, बांग्लादेश और पाककस्तान के

वहन्दू, वसक्ख, बौद्ध, जैन, पारसी और आसाइ हैं तथा नागररकता धारण करने के पात्र हैं।

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 ऄब िे िैध दस्तािेज नहीं होने पर भी कै द या वनिाथवसत नहीं ककए जाएाँगे।

 ऄवधवनयम ने कें द्र सरकार द्वारा OCI पंजीकरण रद्द करने के अधारों को विस्तृत कर कदया है,

ईदाहरण के वलए, ऄगर कोइ व्यवि देश के ककसी भी कानून का ईललंघन करता है तो ईसका OCI
पंजीकरण रद्द ककया जा सकता है।
 देशीयकरण (naturalisation) के अधार पर नागररकता प्राि करने के वलए पात्रता मानदंड को

12 साल से घटाकर 7 साल कर कदया गया है।

7.3. चचताएं

 विधेयक, भारत में मुवस्लम समुदाय से संबद्ध शरणार्थथयों का ध्यान नहीं रखता है जो ईत्पीड़न के

कारण यहााँ अ गए हैं। विधेयक, धमथ के अधार पर ईनसे प्रथक व्यिहार करता हैं। आस प्रकार का

भेदभािपूणथ व्यिहार भारतीय संविधान के ऄनुच्छेद 14 का ईललंघन हो सकता है।

 यह विधेयक ककसी भी कानून के ईललंघन पर OCI पंजीकरण रद्द करने की ऄनुमवत देता है। यह

एक व्यापक अधार है वजसमे नो पार्ककग जोन में पार्ककग करना जैसे मामूली ऄपराध भी शावमल
हो जाते हैं।
 प्रस्तावित विधेयक शरणार्थथयों के ऄवधकारों की पहचान करता है और ईन्हें संरवक्षत करता है।

यह भारत की शरणाथी नीवत में एक स्िागतयोग्य पररितथन का प्रवतवनवधत्ि करता है। लेककन, यह

तभी ईवचत स्िरूप ग्रहण करे गा जब विधेयक में ‘तीन देशों में गैर-मुवस्लम ऄलपसंख्यकों’

शब्दािली के स्थान पर "सताए हुए ऄलपसंख्यक" शब्दािली का आस्तेमाल ककया जाय ।

 यह एक ईत्तम भािना पर अधाररत कानून हो सकता है। लेककन, यह कानून हमारे पड़ोसी देशों

के कइ शोवषत ऄलपसंख्यकों को छोड़ देता है, जैसे:- पाककस्तान से ऄहमकदया और म्यांमार से


रोचहग्या।

8. भारत में शरणार्थथयों की वस्थवत


(STATUS OF REFUGEES IN INDIA)

 भारत, 1951 के शरणार्थथयों पर सम्मेलन और 1967 के प्रोटोकॉल का न तो हस्ताक्षरकताथ न ही


सहभागी/समथथक था। भारत में विवशष्ट शरणाथी कानून के ऄभाि ने सरकार को विवभन्न शरणाथी
ऄंत:प्रिाह/प्रिेश हेतु एक तदथथ दृवष्टकोण ऄपनाने के वलए बाध्य ककया है।
 भारत में शरणार्थथयों की वस्थवत, अचरण के ककसी संवहताबद्ध मॉडल के बजाय मुख्य रूप से
राजनीवतक और प्रशासवनक वनणथयों द्वारा वनयंवत्रत होती है।
 सरकार के दृवष्टकोण की आस तदथथ प्रकृ वत ने विवभन्न शरणाथी समूहों हेतु ऄलग-ऄलग ईपचार
ककये जाने की प्रिृवत को प्रेररत ककया है।
 कु छ समूहों को कानूनी वनिास तथा कानूनी रूप से वनयोवजत ककये जाने की योग्यता सवहत ऄन्य
कइ लाभ प्रदान ककये गए है जबकक ऄन्य समूहों को गैर-कानूनी घोवषत ककया गया है और
बुवनयादी सामावजक संसाधनों का ईपयोग करने से िंवचत ककया गया है।
 भारत में शरणार्थथयों की कानूनी वस्थवत मुख्य रूप से विदेशी ऄवधवनयम 1946 और नागररकता

ऄवधवनयम 1955 द्वारा विवनयवमत एिं वनयंवत्रत होती है। ये ऄवधवनयम शरणार्थथयों में भेद नहीं
करते हैं और सभी गैर-नागररकों के वलए समान रूप से लागू होते है।

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 आन ऄवधवनयमों के तहत वबना िैध यात्रा या वनिास दस्तािेजों के होना एक दंडनीय ऄपराध है। ये
प्रािधान, शरणार्थथयों को वनिाथसन और वनरोध के वलए ईत्तरदायी बनाते है ।
 शरणार्थथयों हेतु संयुि राष्ट्र का ईच्चायुि(UNHCR) कायाथलय नइ कदलली में वस्थत है। एक बार
मान्यता प्राि करने के पिात्, ऄिगानी, बमी, किवलस्तीनी और सोमाली शरणाथी UNHCR से
सुरक्षा प्राि करते हैं।
 कइ शरणाथी, सामान्य मावसक गुजारा भत्ता प्राि करते हैं और सभी शरणार्थथयों की कदलली में
UNHCR को लागू करने िाले भागीदारों: YMCA, डॉन बोस्कोि और सामावजक-कानूनी
कें द्र(SLIC) द्वारा ईपलब्ध कराइ गइ सेिाओं तक पहुाँच है।
 भारत की ऄवधकांश शरणाथी अबादी UNHCR के जनादेश के तहत नहीं अती है, परन्तु किर भी
सरकार द्वारा आन्हें शरणाथी माना जाता है। 1,50,000 से ऄवधक वतब्बती और 90,000 से
ऄवधक श्रीलंकाइ लोगों ने चहसा और ईत्पीड़न से भाग कर, भारत में शरण की मांग की है।
 आन समूहों को ऄलग-ऄलग मात्रा में वशक्षा, स्िास्र्थय, रोजगार और वनिास तक पहुाँच स्थावपत
करने की सहायता एिं सुविधा प्रदान की जाती हैं।
8.1. वतब्बती शरणाथी

1959 में एिं 1951 में चीनी अिमण के बाद, कइ िषों में सतत प्रिाह द्वारा कइ वतब्बवतयों ने भारत
में शरण ली है। भारत में लगभग 1,50,000 वतब्बती शरणाथी हैं।

8.1.1. कानू नी दजाथ

1951 में शरणार्थथयों से सम्बंवधत संयुि राष्ट्र सम्मेलन में तथा 1967 के प्रोटोकॉल में भाग नहीं लेने के
बािजूद भारत सरकार द्वारा वतब्बवतयों को, जो 1950 के दशक के ऄंत और 1960 के दशक के अरम्भ
में भारत में पहुंच,े शरणाथी का दजाथ कदया गया।
 आन वतब्बती शरणार्थथयों के वलए पंजीकरण प्रमाण-पत्र जारी ककये गए, वजन्हें िषथ में एक या दो
बार निीनीकृ त करिाना ऄवनिायथ है। िे वतब्बती वजनका जन्म भारत में हुअ है, भी 18 िषथ की
अयु होने के पिात पंजीकरण प्रमाण-पत्र प्राि करने के वलए पात्र होते हैं।
 हालांकक भारत सरकार द्वारा वतब्बवतयों के देश में प्रिेश करने हेतु दी गयी ऄनुमवत ऄभी भी जारी
है, किर भी यह आन वतब्बवतयों को सिथप्रथम(first wave) अये वतब्बवतयों के समान कानूनी दजाथ
प्रदान करने में समथथ नहीं है।
वतब्बवतयों को भारत में ऄन्य शरणाथी समूहों की तुलना में सबसे ऄवधक ऄवधकार कदए गए हैं:
1. ईन्हें वनिास परवमट प्रदान ककये गए है, जो ईन्हें औपचाररक रोजगार की मांग करने के वलए
ऄवधकार प्रदान करते हैं।
2. ये एकमात्र शरणाथी समूह है वजसे भारत सरकार द्वारा यात्रा परवमट प्राि हैं।
8.2. श्रीलं काइ शरणाथी

 भारत में श्रीलंकाइ शरणार्थथयों की कानूनी वस्थवत, अवधकाररक तौर पर विदेशी ऄवधवनयम
1946 और भारत के नागररकता ऄवधवनयम 1955 द्वारा वनयंवत्रत होती है।
 ये ऄवधवनयम, सभी गैर-नागररकों को वजनमे िीजा के वबना प्रिेश करने िाले ऄिैध प्रिासी,
शरणाथी या शरण चाहने िाले सवम्मवलत हैं, को पररभावषत करते हैं।
 चेंगलापेट या िेललोर में 'विशेष वशविर' में िैसे श्रीलंकाइ शरणार्थथयों, वजन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के वलए
खतरा माना जाता है, या पिथ में वलट्टे से संबंवधत ईग्रिादी(militants) समझा जाता है, को
वनरुद्ध(detain) ककया जाता है।

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 सामान्यतया भारत सरकार, चहसा के कारण ऄपना देश छोड़कर अये श्रीलंकाइ लोगों को
शरणाथी होने की मान्यता देती है और तदनुसार ईन्हें सुरक्षा प्रदान करती है।

8.3. भू टानी शरणाथी

20 िीं सदी के अरम्भ में बड़ी संख्या में नृजातीय नेपाली लोगों ने भूटान पहुंचना शुरू कर कदया।

1980 के दशक तक िे भूटान की एक चौथाइ अबादी बन गए । 1980 के दशक के मध्य में,


ऄवधकाररयों ने भूटान में चहदू नेपाली लोगों की बढ़ती संख्या को भूटान नृजातीय पहचान के वलए एक
प्रत्यक्ष खतरे के रूप में देखना शुरू ककया। आसके पिात्, नेपावलयों को सरकारी नौकररयां प्राि करने,
ईन्हें पदोन्नवत प्राि करने और पासपोटथ प्राि करने से प्रवतबंवधत करने के वलए कइ भेद -भािपूणथ ईपाय
ऄपनाये गए।
आन ईपायों के साथ-साथ, सरकार ने पारं पररक संस्कृ वत को पुनजीवित करने के वलए एक राष्ट्रीय
ऄवभयान की शुरुअत की। विद्यालयों में ऄन्य भाषा के रूप में नेपाली के वशक्षण पर प्रवतबंध लगा कदया
गया तथा विद्यालयों एिं सरकारी ऄिसरों पर भूटानी राष्ट्रीय पोशाक पहनना ऄवनिायथ कर कदया

गया। भूटान में नेपाली लोगों की संख्या वनधाथररत करने के वलए 1980 के दशक में एक जनगणना की
गयी।
जनगणना के पररणामस्िरुप, नागररकता ऄवधवनयम, 1985 ऄवधवनयवमत ककया गया, वजसके तहत

भूटान की नागररकता के वलए नइ शतें लागू की गयी। आससे चहदू नेपाली, बड़ी संख्या में ऄिैध वनिासी

हो गए। वपछले िषों में भूटान में ईनके वनिास को सावबत करना, नागररकता को पुन:प्राि करने का
एक मात्र रास्ता रह गया था।
पररणामतः,कइ देशीयकृ त नागररकों का दजाथ समाि हो गया। ऄवधवनयम के तहत ककसी भी देशीयकृ त

नागररकों की नागररकता समाि करने की ऄनुमवत भी दी गयी, यकद िे नागररक राजा, देश या भूटान

के लोगों के प्रवत 'विश्वासघाती' होते हैं। आस 'देशद्रोह' के अधार िाले प्रािधान का चहदू नेपाली
नागररकता को रद्द करने के वलए बार-बार प्रयोग ककया गया।
भारत में लगभग 30,000 नृजातीय नेपाली रह रहे हैं। ईनके वलए, शरणार्थथयों के रूप में मान्यता प्राि
करना एक ऄसंभि कायथ है।

8.3.1 कानू नी दजाथ

1949 के बाद से, भूटानी नागररकों को वबना प्रवतबन्ध भारतीय सीमा पार करने की ऄनुमवत दी गइ।

संबंवधत राज्यों के बीच ऄंवतम बार िरिरी 2007 में ऄद्यतन संवध द्वारा भारत और नेपाल तथा भारत
और भूटान के बीच एक खुली सीमा का प्रािधान ककया गया है।
भारत एिं भूटान के बीच एक पारस्पररक व्यिस्था, ईनके नागररकों को समान व्यिहार और
विशेषावधकार प्रदान करती है।
पहचान पत्रों की अिश्यकता के बगैर वनिास, ऄध्ययन और अजीविका के ऄवधकारों की गारं टी दी

गयी है। आस कारण से, भारत सरकार ने नृजातीय नेपाली भूटानी शरणार्थथयों, वजन्हें पलायन करने एिं

शरणाथी बनने के वलए मजबूर ककया गया था, को स्िीकार नहीं ककया है तथा न ही ककसी भी प्रकार

की सहायता प्रदान की गइ है। UNHCR, भूटावनयों की वस्थवत वनधाथरण नहीं करता है। संभितः यह
दोनों देशों के बीच मैत्री संवध के कारण है।

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8.4. चहदू पाककस्तानी शरणाथी

1965 के पिात् पाककस्तान से बड़ी संख्या में विस्थावपत लोग भारत में अये हैं। भारत सरकार, आस
समूह को शरणाथी समूह की मान्यता नहीं देती है तथा पररणामस्िरुप, िे वनिास परवमट प्राि करने में
ऄसमथथ हैं और ईनके वलए रोजगार प्राि करना करठन होता है।
हालांकक, भारतीय संविधान एिं भारतीय नागररकता ऄवधवनयम 1955, ईन व्यवियों के वलए वजनका
जन्म या वजनके माता-वपता का जन्म ऄविभावजत भारत में हुअ था, भारतीय नागररकता प्राि करने
हेतु अिेदन के वलए विशेष प्रािधान करते हैं।
नागररकता संशोधन वनयम, 2004 विशेष रूप से पाककस्तानी नागररकों को गुजरात और राजस्थान में
नागररकता हेतु अिेदन करने की व्यिस्था प्रदान करते है।
नागररकता की शतें यह है कक ऄन्य विदेवशयों की नागररकता के वलए अिेदन करने के मामले में 12
िषथ की वनिास ऄवनिायथता के बजाय व्यवि, भारत में लगातार 5 िषथ से वनिासी होना चावहए और
ईसका स्थायी रूप से भारत में बसने का आरादा होना चावहए।
आस कानून के पररणामस्िरूप, 2005 एिं 2006 के बीच भारत सरकार ने 13,000 चहदू
पाककस्तावनयों को भारतीय नागररकता प्रदान की। एक बार पाककस्तानी शरणाथी, नागररकता प्राि
करते ही भारतीय नागररक के समान ऄवधकार प्राि करने में समथथ हो जाते हैं।
हालांकक, नागररकता ऄवधवनयम, 2005 में संशोधन द्वारा नागररकता अिेदन हेतु शुलक संरचना में
ऄत्यवधक िृवद्ध की गयी है।
8.5. बमी शरणाथी

ऄवधकांश बमी पूिोत्तर से भारत में प्रिेश करते हैं लेककन ईनमें से भी िही UNHCR द्वारा शरणाथी के
रूप में पहचाने जाते हैं जो कदलली अकर UNHCR में शरणाथी दजे के वलए अिेदन करते हैं। संगठन
ऄवधक सुभेद्य लोगों को एक मावसक भत्ता प्रदान करता है। UNHCR द्वारा मान्यता प्राि शरणार्थथयों
के ऄलािा बड़ी संख्या में भारत में शरण के आच्छु क बमी आस देश में रह रहे हैं। कु छ ऄन्य शरणाथी
समूहों के विपरीत, बमी शरणार्थथयों को भारत में रुकने के वलए वनिास परवमट प्रदान ककये गए हैं।

8.6. किलीस्तीनी शरणाथी

ितथमान में कम संख्या में वनिास करनेिाले किवलस्तीनी नागररक, शरणाथी के दजे की मांग कर रहे हैं।
ये भारत में सबसे हाल में अने िाले शरणाथी समूह हैं। कदलली में संयुि राष्ट्र शरणाथी ईच्चायोग
(UNHCR) ने कु छ किवलस्तीवनयों को शरणाथी के रूप में मान्यता दी है जबकक कु छ ऄन्य अिेदन
विचाराधीन हैं। आन शरणार्थथयों को भारत सरकार द्वारा वनिास परवमट नहीं जारी ककया गया है।
8.7. ऄिगान शरणाथी

भारत सरकार अवधकाररक तौर पर ऄिगान समुदाय को शरणाथी के रूप में मान्यता नहीं देती।
बवलक ईन्हें UNHCR के मैंडटे के तहत, मान्यता और संरक्षण प्रदान ककया जाता है।
भारत सरकार ने ऄवधकााँश ऄिगान शरणार्थथयों को िैध वनिास परवमट जारी ककया है। यह ईन्हें एक
सीमा तक विवधक संरक्षण प्रदान करता है जो ईन्हें िैध पासपोटथ के वबना भी भारत में रहने की ऄनुमवत
देता है।
भारत में 2004-07 के बीच नए प्रिेवशयों/अगमनों के वलए वनिास परवमट प्राि करना ऄवधक करठन
रहा है। ऄिगान शरणार्थथयों को पहले 6 महीने तक, मुख्य अिेदक तथा ईस पर वनभथर प्रत्येक अवश्रत
हेत,ु मामूली वनिाथह भत्ता प्रदान ककया जाता है।
आन समूहों के ऄलािा, भारत सूडान, आराक, इरान, आररररया और आवथयोवपया से अये कु छ शरणार्थथयों
को भी अश्रय प्रदान करता है।

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8.8. वनष्कषथ

नागररकता की ऄिधारणा विशेषतः िैश्वीकरण और भारत में प्रत्यक्ष विदेशी वनिेश के सन्दभथ में ऄवधक
महत्ि प्राि कर रही है। भारत के ओिरसीज नागररकों को योजना के तहत कु छ लाभ कदया गया है।
हालांकक, ऄभी तक यह लाभ वनिेश के सन्दभथ में नहीं कदए गए हैं । लेककन, वजस तरह से ऄनेक पक्षों में
भारतीय कानूनी व्यिस्था ऄन्य देशों के वलए सकारात्मक प्रिृवत्त दशाथ रही है ईसे देखते हुए संभि है कक
वनकट भविष्य में भारतीय ऄथथव्यिस्था प्रिासी भारतीय नागररकों (overseas citizens of india)
को वनिेश के सन्दभथ में कु छ ऄवतररि ऄवधकार भी प्रदान करे । भारतीय मूल के वनिेशक/सम्भाव्य
वनिेशकों की बड़ी संख्या को देखते हुए ये एक ऄच्छा विचार माना जा सकता है।

9. प्रिासी भारतीय कदिस


प्रिासी भारतीय कदिस (PBD) भारत के विकास में प्रिासी भारतीय समुदाय के योगदान को वचवननत

करने के वलए प्रवतिषथ 9 जनिरी को मनाया जाता है। 9 जनिरी 1915 के कदन ही महात्मा गााँधी
दवक्षण ऄफ्रीका से भारत िापस अये और राष्ट्रीय स्िाधीनता संघषथ का नेतृत्ि करते हुए भारतीयों का
जीिन सदा के वलए बदल कदया। आसी के ईपलक्ष्य में हर िषथ 9 जनिरी को प्रिासी भारतीय कदिस
मनाया जाता है।
प्रिासी भारतीय कदिस सम्मलेन 2003 से हर िषथ अयोवजत ककये जाते हैं। ये सम्मेलन प्रिासी

भारतीय समुदाय के वलए, ऄपने पूिथजों की भूवम के लोगों और सरकार के साथ पारस्पररक लाभ हेतु

संलग्न होने के वलए एक मंच प्रदान करते हैं। यह सम्मलेन विश्व के विवभन्न भागों में रहने िाले प्रिासी
भारतीयों के समुदाय के मध्य नेटिर्ककग तथा विविध क्षेत्रों में ईनके ऄनुभिों को साझा करने में ईन्हें
संलग्न करने के वलए ईपयोगी है। सम्मलेन के दौरान, ऄसाधारण योग्यता के व्यवियों को भारत के
विकास में ईनकी भूवमका की सराहना करने के वलए प्रवतवष्ठत प्रिासी भारतीय सम्मान पुरस्कार से
सम्मावनत ककया जाता है।सम्मेलन विदेशों में बसे भारतीयों के संबंध में महत्िपूणथ मुद्दों पर चचाथ के
वलए एक मंच प्रदान करता है।

9.1. भारतीय प्रिासी कदिस मनाने का ईद्दे श्य

 प्रिासी भारतीय कदिस सम्मेलन अयोवजत करने का प्रमुख ईद्देश्य प्रिासी भारतीय समुदाय की
ईपलवब्धयों को मंच प्रदान कर ईनको दुवनया के सामने लाना है।
 ऄप्रिासी भारतीयों की भारत के प्रवत सोच, भािना की ऄवभव्यवि, देशिावसयों के साथ
सकारात्मक बातचीत के वलये एक मंच ईपलब्ध कराना।
 विश्व के सभी देशों में ऄप्रिासी भारतीयों का नेटिकथ बनाना।
 युिा पीढ़ी को ऄप्रिावसयों से जोड़ना।
 विदेशों में रह रहे भारतीय श्रवमकों और लोगों की करठनाआयां जानना तथा ईन्हें दूर करने के
प्रयास करना।
 भारतीय ऄवनिावसयों को अकर्थषत करना।
 वनिेश के ऄिसरों में िृवद्ध करना ।
आस िषथ 16िें भारतीय प्रिासी कदिस का अयोजन 6-7 जनिरी 2018 को चसगापुर में ककया गया।

आसके बाद प्रथम प्रिासी सांसद सम्मेलन का अयोजन 9 जनिरी को नइ कदलली में ककया गया।

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9.2. अवसयान-भारत प्रिासी भारतीय कदिस

आस िषथ प्रिासी भारतीय कदिस के ऄिसर पर 7 जनिरी को चसगापुर में अवसयान-भारत प्रिासी
भारतीय कदिस का अयोजन ककया गया, वजसमें भारत का प्रवतवनवधत्ि विदेश मंत्री सुषमा स्िराज ने
ककया। अवसयान के साथ भारत की िाताथ भागीदारी सामररक भागीदारी में बदल गइ है और भारतीय
समुदाय अवसयान देशों के साथ संबंधों को और मजबूत करने का एक मंच ईपलब्ध कराता है। आस
सम्मेलन में भारत ने कहा कक अवसयान क्षेत्र के साथ ईसका संपकथ परस्पर वसद्धांतों की स्पष्टता में
वनवहत है और भारत यह मानता है कक जब सभी देश ऄंतरराष्ट्रीय वनयमों का पालन करते हैं और
सािथभौम समानता एिं परस्पर सम्मान के अधार पर अचरण करते हैं, तब सभी स्ियं को सुरवक्षत
महसूस करते हैं और हमारी ऄथथव्यिस्थाएं समृद्ध होती हैं।

ऄब तक कब और कहां मनाया गया प्रिासी भारतीय दव िस


2003 से लेकर ऄब तक हर साल भारत के ऄलग-ऄलग शहरों में में प्रिासी भारतीय कदिस मनाया
जाता रहा हैI ऄब तक मनाए गए सभी प्रिासी भारतीय कदिसों की सूची :
1. 2003 पहला प्रिासी भारतीय कदिस, नइ कदलली
2. 2004 दूसरा प्रिासी भारतीय कदिस, नइ कदलली
3. 2005 तीसरा प्रिासी भारतीय कदिस, मुंबइ
4. 2006 चौथा प्रिासी भारतीय कदिस, हैदराबाद
5. 2007 पांचिा प्रिासी भारतीय कदिस, नइ कदलली
6. 2008 छठां प्रिासी भारतीय कदिस, नइ कदलली
7. 2009 सातिां प्रिासी भारतीय कदिस, चेन्नइ
8. 2010 अठिां प्रिासी भारतीय कदिस, नइ कदलली
9. 2011 निां प्रिासी भारतीय कदिस, नइ कदलली
10. 2012 दसिां प्रिासी भारतीय कदिस, जयपुर
11. 2013 ग्यारहिां प्रिासी भारतीय कदिस, के रल
12. 2014 बारहिां प्रिासी भारतीय कदिस, नइ कदलली
13. 2015 तेरहिां प्रिासी भारतीय कदिस, गांधीनगर
14. 2016 चौदहिां प्रिासी भारतीय कदिस, नइ कदलली
15. 2017 पंद्रहिां प्रिासी भारतीय कदिस, बेंगलुरु
16. 2018 सोलहिां प्रिासी भारतीय कदिस, चसगापुर

10. ितथ मान मु द्दे


10.1. नागररकता की विचार- एक विश्ले ष ण

भारत में नागररकता की समझ के संदभथ में पररितथन अया है। लगभग 40 िषों तक, भारत में
नागररकता का एक दाशथवनक और िैचाररक अधार रहा है। अजादी के बाद भारत के राज्यक्षेत्र में पैदा
हुए प्रत्येक व्यवि को यहााँ का नागररक बनने का ऄवधकार था।
यह ऄवधकार देने का अधार सम्बद्धता था: संविधान के संस्थापक नागररकता की एक ऐसी ऄिधारणा
को ऄपनाना चाहते थे जो भारतीय भूवम पर जन्मे प्रत्येक व्यवि (वबना ककसी भेदभाि के ) को
समायोवजत करने के वलए पयाथि रूप से विस्तृत हो। दरऄसल, कइ गणराज्यीय देशों में स्ितंत्र होने के
बाद िहां के राज्यक्षेत्र में जन्म लेने के अधार पर ही नागररकता प्राि हो जाती है।

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आसके ऄलािा जो लोग भारतीय नागररकता के वलए दािा पेश करते हैं, िे ऐसा या तो ऄपने
ऄवभभािकों के भारत भूवम पर जन्म के अधार पर या 1950 में संविधान ऄपनाने से ठीक पूिथ भारत में
कम से कम 5 िषों के वनिास के अधार पर करते हैं।
तथावप भारत ने नागररकता के आस अदशथ ऄथथ के प्रवत ऄपनी प्रवतबद्धता से िमशः ऄलग होना अरम्भ
ककया। 1955 के नागररकता ऄवधवनयम के ऄनुसार, 26 जनिरी को या ईसके बाद भारत में जन्मा हर
व्यवि, जन्म से भारत का नागररक हो गया था।
ककन्तु, नागररकता (संशोधन) ऄवधवनयम, 1986 के वनयमानुसार भारत में पैदा हुअ व्यवि तभी
भारतीय होगा जब ईसके जन्म के समय ईसके माता-वपता में से कोइ एक भारत का नागररक रहा हो।
आस प्रकार भारतीय व्युत्पवत्त को आसमें प्राथवमकता दी गयी।
2003 के नागररकता संशोधन ऄवधवनयम में जन्म के अधार पर वमलने िाली नागररकता को सशतथ
बनाया गया। आसे भारत में पैदा हुए व्यवि तक सीवमत कर कदया गया वजसके माता-वपता दोनों ही
भारत के नागररक हों या ईसके जन्म के समय दोनों में से कोइ एक भारत का नागररक हो तथा दूसरा
व्यवि भारत में ऄिैध प्रिासी न हो।
जहां एक ओर राजीि गांधी के नेतृत्ि िाली कांग्रस
े सरकार को 1986 के संशोधन के वलए दोषी
ठहराया जा सकता है, तो िहीं दूसरी ओर 2003 में ऄटल वबहारी िाजपेयी के नेतृत्ि िाली राष्ट्रीय
जनतांवत्रक गठबंधन सरकार ने नागररकता की ऐसी ऄिधारणा प्रस्तुत की जो संविधान की भािना के
विरुद्ध थी।
10.2 NPR बनाम UIDAI- एक विश्ले ष ण

भारत में पहले से बड़ी संख्या में ऄिैध ऄप्रिासी रह रहे है, जो न के िल राष्ट्रीय सुरक्षा के वलए खतरा है
बवलक ये ऄिैध ऄप्रिासी, भारतीय नागररकों के वलए प्रायोवजत योजनाओं ि लाभ में भी संलग्न है।
ऐसे पररदृश्य में प्रत्येक भारतीय नागररक की गणना के पीछे का तकथ और ऄवधक मजबूत हो जाता है।
िह तकथ ये है कक ईनकी गवतविवधयों को जब अिश्यक हो, संभितः राष्ट्रीय सुरक्षा के दृवष्टकोण से देखा
जा सके ।
यह प्रायः विपरीत और कभी-कभी ही वमलने िाले ईन दो िैवश्वक दृवष्टकोणों के बीच संघषथ है जो
विवशष्ट भारतीय पहचान प्रावधकरण (UIDAI) और राष्ट्रीय जनसंख्या रवजस्टर (NPR) के बीच होने
िाले वनरं तर द्वन्द के मूल में है।
NPR का विचार 1986 में राजस्थान के चयवनत सीमािती क्षेत्रों में पहचान पत्र जारी करने की एक
स्थानीय पररयोजना के दौरान ऄवस्तत्ि में अया। ईस समय के राष्ट्रीय सुरक्षा पररदृश्य ने आस सम्बन्ध में
कु छ ऐसा दबाि बनाया कक 1993 तक आस विषय में 'विवशष्ट क्षेत्र (वनिावसयों के वलए पहचान पत्र
जारी करना) विधेयक' भी संसद में पेश ककया गया हालााँकक यह पाररत नहीं हो सका।
कारवगल घुसपैठ एक कठोर अघात था और मंवत्रयों के एक समूह (GOM) ने भारत में रहने िाले
नागररको और गैर नागररकों के ऄवनिायथ पंजीकरण की वसिाररश की। ईन्होंने यह भी वसिाररश की
कक सभी नागररकों को एक बहुईद्देशीय राष्ट्रीय पहचान पत्र (MPNIC) और गैर-नागररकों को एक
ऄलग रं ग और वडजाआन के काडथ जारी ककए जाएाँ ।
आन वसिाररशों को सरकार द्वारा 2001 में स्िीकार कर वलया गया है और 2004 में नागररकता
ऄवधवनयम 1955 की धारा 14A में संशोधन ककया गया, वजसने कें द्र सरकार को भारत के हर नागररक
के वलए पंजीकरण ऄवनिायथ करने और एक राष्ट्रीय पहचान काडथ जारी करने की ऄनुमवत दी।
महत्िपूणथ बात है कक आसने सरकार को भारतीय नागररकों का एक राष्ट्रीय रवजस्टर (NRIC) बनाये
रखने की ऄनुमवत दी और नागररकों के पंजीकरण के वलए एक रवजस्रार जनरल के रूप में महापंजीयक
नावमत ककया गया।

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नागररकता वनयम (नागररकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करना), 2003 तय ककए
गए थे और देश भर में कइ स्थानों पर 2003 और 2006 के बीच प्रकियाओं और कायथविवधयों का
परीक्षण करने के वलए पायलट पररयोजनाए संचावलत की गइ।
पायलट पररयोजनाओं के पररणामों को मंवत्रयों के ऄवधकार प्राि समूह (EGOM) की एक ऄन्य
वसिाररश से पहले रखा गया वजसमे भारतीय नागररकों का एक राष्ट्रीय रवजस्टर (NRIC) बनाने की
कदशा में पहले कदम के रूप में एक NPR के सृजन की वसिाररश की गयी थी। NPR के ईद्देश्यों पर
चचाथ करते समय ईसके आस आवतहास को ध्यान में रखने की अिश्यकता है।
िही ाँ दूसरी ओर UIDAI के अधार कायथिम की पृष्ठभूवम पूणत
थ ः वभन्न है। यह 21 िीं सदी का एक
विचार है तथा शांवतपूणथ ढंग से ईभरते हुए, अर्थथक रूप से सशि भारत की एक विचार प्रकिया है।
आस विचार के तकथ में ऄन्तर्थनवहत अत्मविश्लेषी ऄवभिृवत्त यह है कक यह कै से सुवनवित ककया जाय कक
विकास का लाभ प्रत्येक भारतीय तक पहुंच रहा है।
अधार कायथिम के विचार मूल रूप से आस विश्वास में वनवहत हैं कक तकनीकी समाधान और वनजी क्षेत्र
के साथ सहयोगात्मक भागीदारी विकास की धारा से िंवचत लोगों को स्पष्ट एिं ऄवभकें कद्रत सहयोग
प्रदान करने के व्यापक सामावजक लाभों की ओर ले जाया जा सकता है।
भारत के सभी वनिावसयों के वलए एक ऄवद्वतीय 12 ऄंकों की संख्या जारी करने और UID संख्या
डेटाबेस को बनाए रखने के वलए एक अदेश के साथ िरिरी 2009 में सरकार द्वारा UIDAI को
स्थावपत ककया गया था।
सरकार आस बात को स्िीकार करती है कक आस कायथिम का ईद्देश्य, ककसी भी प्रकार के प्रमावणत
पहचान पत्र से िंवचत लोगों को पहचान का एक रूप प्रदान कर समािेशी विकास को सुवनवित करना
है।
NPR और UIDAI के ईद्देश्यों में िास्तविक मतभेद हैं। ईनके िैवश्वक दृवष्टकोण विवभन्न कालों का
प्रवतवनवधत्ि करते हैं। एक की जड़ बवहष्कार और सुरक्षा की मानवसकता में वनवहत है, िहीं दूसरा
समािेशी और भागीदारी के विचार पर अधाररत है।
आन मतभेदों की व्याख्या तर्थयात्मक अंकड़ो, तरीकों और डेटा के सुरवक्षत भंडारण जैसे मुद्दों के अधार
पर की जा सकती है। यह आन दोनों कायथिमों के बीच मौजूद सतत विद्वेष की ऄंतधाथरा की व्याख्या नहीं
करता। न ही यह आस बात की व्याख्या करता है कक आन दो कायथिमों पर लोकवप्रय चचाथ विशेष रूप से
'दुहराि' तथा राजकोष पर ऄवतररि लागत के ही मुद्दों पर क्यों रटकी हुइ है।
NPR सदैि लोगों पर ऄवधक वनयंत्रण प्राि करने और ईसे स्थावपत करने का एक तरीका रहा है। संक्षप

में, NPR व्यािहाररक रूप से नौकरशाहो को हर एक भारतीय पर एक सख्त वनयंत्रण की ऄनुमवत देता
है।
अधार काडथ सदैि गैर-नौकरशाहीकरण/डी ब्यूरोिे टाइजेशन की प्रकिया का एक माध्यम रहा है ताकक
प्रत्येक भारतीय को ककराया िसूलने की प्रिृवत्त से युि आस नौकरशाही से ऄलग करने के वलए सशि
ककया जा सके जो नेताओं और ठे केदारों के साथ ऄपनी वमलीभगत के जररये ईन्हें वमलने िाले लाभों को
ऄनुवचत तरीके से कहीं और हस्तांतररत कर रही थी।

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कक्षा 01: भारतीय संविधान एिं शासन प्रणाली

 विषय का संक्षिप्त परिचय


 विषय की समझ विकससत किना
 सूचना
 तथ्यों का समाकलन एिं समेकन
 ज्ञान
 समझ
 पढ़ने के तिीके पि चचाा
 जनतंत्र
 जनतंत्र क्या है ?
 यह ककस प्रकाि से अन्य शासन प्रणासलयों से सिन्न है
 िल
ू सध
ु ाि का अिसि
 सामहू हक आिाज
 विधध का शासन
 मल
ू ित
ू अधधकाि
 तानाशाही का अिाि
 जनतंत्र के घटक
 विधध का शासन
 विधध के समि समानता
 ननिं कुश शासन की अनुपस्थिनत
 नागरिक थितंत्रताए
 लोक संप्रिुता
 लोगों की इच्छा से सिकाि का चयन
 ननिााचन प्रणाली
 कुछ अधधकािों की प्रत्यािूत प्रकृनत
 कुछ अधधकाि प्रत्यािूत होते हैं
 इन अधधकािों के संििण की व्यिथिा
 संविधान
 असलखित एिं सलखित संविधान में अंति
 प्रकृनत
 संशोधन
 सिोच्चता
 संविधान एिं संविधानिाद की अिधािणा ि इनके बीच अंति
 सीसमत सिकाि से प्रथफुहटत
 व्यस्क्त के शासन ि विधध के शासन में अंति
 संप्रिुता
 धमाननिपेिता/पंिननिपेिता
 समाजिाद
 उदाििादी समाजिाद
 वितिणिादी समाजिाद
 जनतांत्रत्रक गणतंत्र
 िाष्ट्रपतीय प्रणाली
 ससदधांत
 विशेषताएं
 संसदीय प्रणाली
 ससदधांत
 विशेषताएं
 अन्य महत्िपूणा संकल्पनाओं पि चचाा

Assignment Question

1. जनतंत्र क्या है ? यह ककस प्रकाि से अन्य प्रणासलयों से सिन्न है , इसकी समीिा कीस्जए।

(शब्द सीमा – 200 शब्द)


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भारतीय राजनीतत एवं राजव्यवस्था कक्षा 02

पष्ृ टभमू ि

भारतीय संविधान की विशेषताएं

 संघीय या अर्द्ध-संघीय संववधान


 K. C. Wheare की राय
 Alexandrowicz की राय
 Sui-generis का मसदधांत
 डी.डी. बसु की राय
 Ivor Jennings की राय

 सहकारी संघवाद
 सहकारी संघिाद क्या हैं?
 Granville Austin की राय
 प्रो. िक
ु ु ल एशर की राय
 सहकारी संघिाद के उदाहरण
नीतत आयोग

 UGC
 भारतीय संघिाद के विमशष्ट तत्ि
 तनिााण का तरीका
 राज्यों का राज्य सभा िें प्रतततनधधत्ि
 एकल नागररकता
 अविभाजित लोक सेिा
 सािान्य जथितत िें भी राज्यों पर संघ का तनयंत्रण
 सरकाररया आयोग की मसफाररशें
 पछ
ुं ी आयोग की मसफाररशें
 तनष्कषा
 भारतीय संविधान के स्रोत

Assignment Question

1. भारतीय रािनीततक-तंत्र एक Quasi-federal प्रणाली का निन


ू ा हैंI इसकी वििेचना कीजिए I
(शब्द सीिा – 200 शब्द)

प्रश्न की प्रकृतत – सािान्य

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कक्षा 03: भारतीय संविधान एिं शासन प्रणाली

सविधान की विशेषताए ( to be continued...)

 भारतीय संविधान में कुछ िर्गों/क्षेत्रो के लिए विशेष उपबंध


 संघीय एककों के भी संविधान
 जम्मू और कश्मीर के लिए विशेष उपबंध
 नार्गािैंड, लसक्ककम आदि राज्यों के लिए विशेष उपबंध
 संघीय संबध
ं ो का विस्तार से िर्णन
 िाि योग्य और अिाि योग्य प्रािधान ि उपबंध (मि
ू अधधकार ि नीतत तनिे शक तत्त्ि)
 नम्यता एिं अनम्यता का समन्िय
 विधायन के द्िारा संविधान का विस्तार
 लिखित संविधान ि संसिीय सिोच्चता के बीच तािमेि
 भारतीय संविधान में परं परा की महत्िपर्
ू ण भलू मका
 संिध
ै ातनक उपचार
 मंत्रत्रमंडिीय प्रर्ािी
 न्यातयक पन
ु विणिोकन
 न्यातयक पन
ु विणिोकन एिं संसिीय सिोच्चता के बीच तािमेि
 मि
ू अधधकारों की सीमाएं तय की र्गयी हैं (यक्ु कतयक
ु त तनबणन्धन)
 संविधान सामाक्जक एकता की व्यिस्था करता है |
 मि
ू कर्त्णव्यों की व्यिस्था
 त्रबना सांप्रिातयक तनिाणचन प्रर्ािी के सािणभौलमक तनिाणचन की व्यिस्था
 संघीय प्रर्ािी जो एकात्मक ढांचे की ओर झुकी हुई है |
 संसिीय मि
ू क प्रर्ािी के साथ-साथ तनिाणधचत राष्ट्रपतत की व्यिस्था

प्रस्तािना/उद्दे शशका

 अधधतनयलमत उप-िाकय
 सविधान के स्त्रोत का उल्िेि
 अंर्गीकृत ि आत्मावपणत
 अन्ततनणदहत िशणन

Assignment question

1. भारतीय संविधान नम्यता एिं अनम्यता का समन्िय है | उिाहरर् सदहत इसकी वििेचना कीक्जए |

शब्ि सीमा – 200 शब्ि

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कक्षा 04: भारतीय संविधान एिं शासन प्रणाली

प्रस्तािना (to be continued...)

 गणतंत्र से सम्बद्ध विशेषण की िततमान पररवस्थवतयों में प्रासंवगकता


 अथतव्यिस्था एिं अथतशास्त्र में अंतर
 अथतव्यिस्था
 विचारधारा के आधार पर
 पूंजीिादी अथतव्यिस्था
 समाजिादी अथतव्यिस्था
 समतािादी
 समानतािादी
 वमवित अथतव्यिस्था
 विकास स्तर के आधार पर
 विकवसत अथतव्यिस्था
 विकासशील अथतव्यिस्था
 अधतविकवसत अथतव्यिस्था
 पंथवनरपेक्षता
 D. D. Basu की राय
 लोकतंत्र
 Levis की राय
 P. S. Appu की राय
 न्याय
 सामावजक
 आर्थथक
 K M Panikkarकी राय
 D. D. Basu की राय
 Dr. Ambedkar की राय
 राजनीवतक
 स्ितंत्रता
 स्िेच्छाचाररता
 सीमा के साथ
 सीमा के वबना
 समानता
 बंधुता

Assignment Question

1. वनम्नवलवित पर संवक्षप्त नोट वलविए:

(A)समाजिाद

(B)पंथवनरपेक्षता

शब्द सीमा – 200 शब्द

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कक्षा 05: भारतीय संविधान एिं शासन प्रणाली

भारत संघ और उसके राज्य

 संघ, पररसंघ तथा अवधसंघ में अंतर


 भारत सरकार अवधवनयम ,1919
 भारत सरकार अवधवनयम ,1935

भारतीय संघ में पररसंघीय लक्षण

भारत में एकात्मक राजनीवतक और प्रशासवनक व्यिस्था के लक्षण

अनुसवू ित क्षेत्र

 अनुसूिी 5
 अनुसूिी 6
 अनुच्छे द 244
 अनुसूवित क्षेत्र घोवित करने के वलए अपनाए जाने िाले मानदंड

जम्मू ि कश्मीर

 महत्िपूणण उपबंध
 अनुच्छे द 370
 अनुच्छे द 35 A
 इसका विरोध क्यों?
 स्थायी नागररकता
 नागररको के अवधकार

Assignment Question

1. भारतीय संघ के पररसंघीय लक्षणों पर एक एक करके विस्तार से ििाण करे |

शब्द सीमा – 200 शब्द

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कक्षा 06: भारतीय संविधान एिं शासन प्रणाली

गोरखालैंड पर चचाा

 गोरखा जन मुवि मोचाा की मांग


 पृथकतािादी /विप्लिकारी शवियों से वनपटने में कें द्र की भूवमका
 अनुच्छे द 355
 संघिाद के परीक्षण की जााँच के तरीके

अनुच्छे द 2

अनुच्छे द 3

संघ राज्य क्षेत्र

 अनुच्छे द 239
 ददल्ली के उप-राज्यपाल की शवियां

मूल अवधकार

 विवभन्न प्रकार के अवधकार


 मानिावधकार
 मूल अवधकार
 राजनीवतक अवधकार
 वसविल अवधकार/नैसर्गगक अवधकार
 मूल अवधकार क्या है?
 मूल अवधकार मौवलक क्यों?
 अनुच्छे द 12
Assignment Question

1. भारत एक संघ है ,क्योंदक भारतीय संविधान में एकात्मक पद का प्रयोग कही भी नहीं दकया गया है ?

शब्द सीमा – 100 शब्द

2. भारत एकात्मक ढााँचा प्रस्तुत करता है ,क्योंदक भारतीय शासन ि प्रशासन की संरचना विटेन की प्रणाली से प्रभावित है?

शब्द सीमा – 100 शब्द

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कक्षा 07: भारतीय संविधान एिं शासन प्रणाली मू ल अवधकार (to be continued...)

 अनुच्छेद 12
 राज्य क्या है ?
 राज्य की विशे षताएं
 प्रशासननक व्यवस्था
 ननगम की नवशेषताएं
 सुप्रीम कोर्ट का मत
 अनुच्छे द 13
 कानून क्या है?
 अनुच्छे द 13(1)
 अनुच्छे द 13 (2)
 पाथटक्य का नसद्ांत
 मूल अनधकार के पररत्याग का नसद्ांत
 सुप्रीम कोर्ट का मत

Assignment Question

1. मूल अनधकारों की नवशेषताओं पर चचाट कीनजए |

शब्द सीमा – 200 शब्द

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कक्षा 08: भारतीय संविधान एिं शासन प्रणाली

मूल अधधकार (to be continued...)

 6 प्रकार की स्वतंत्रताएं
 धिटेन व अमेररका से तुलना
 D. D. Basu के अनुसार अधधकारों का वर्गीकरण
 अनुच्छे द 14
 धवधध के समक्ष समता
 धवधध का समान संरक्षण
 समानता के अधधकार के अपवाद
 राष्ट्रपधत व राज्यपाल
 मीधिया में प्रकाशन
 सांसद/धवधायक
 अनुच्छे द 31
 धिप्लोमेट्स
 संयुक्त राष्ट्र संघ के पदाधधकारी
 अनुच्छे द 15
 93वां संधवधान संशोधन कानून
 क्रीमी लेयर की संकल्पना
 86वां संधवधान संशोधन कानून
 अपवाद
 अनुच्छे द 16
 अनुच्छे द 340
 इं ददरा साहनी वाद
 मंिल आयोर्ग

Assignment Question

1. 'यह जरूरी नहीं है दक हर कोई देश में समान हो, लेदकन सभी को समान माना जाएर्गा' | भारतीय संधवधान के अनुच्छे द 14 के
संदभभ में उपरोक्त कथन को समझाए ।

शब्द सीमा – 200 शब्द

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कक्षा 09: भारतीय संविधान एिं शासन प्रणाली

मूल अधिकार (to be continued...)

अनुच्छे द 15 व 16

 अनुच्छे द 15(4) व 16(4) में समानता व अंतर


 धिछड़ा व्यधि कौन है?
 क्या जाधत को धिछड़ेिन का आिार माना जा सकता है ?
 क्या सामाधजक व शैक्षधिक रूि से धिछड़ा व्यधि आर्थिक रूि से भी धिछड़ा होता है?
 नंदन सधमधत 1993
 चम्िकम दोरायराजन वाद
 क्या आरक्षि की कोई सीमा तय सीमा होनी चाधहए?
 अनुच्छे द 355
 क्या SC/ST के धलए सरकारी धशक्षि संस्िानों में प्रवेश हेतु न्यूनतम अहहता अंक नही होना चाधहए?
 प्रीती श्रीवास्तव वाद
 मंडल आयोग व इं ददरा साहनी वाद 1993
 अनुच्छे द 16(4) व 16(5)
 प्रोन्नधत में आरक्षि क्यों?
 अनुवती वररष्ठता (Consequential Seniority)

अनुच्छे द 17

 अस्िृश्यता उन्मूलन अधिधनयम ,1955


 अनुच्छे द 35
 क्या अनुच्छे द 15(2) में अस्िृश्यता उन्मूलन के उिबंि धनधहत हैं ?

Assignment Question

1. धनम्नधलधित िर संधक्षप्त रिप्ििी धलिें :


(a) िदोन्नधत में आरक्षि से सबंधित मुद्दे |
(b) अनुवती वररष्ठता: (Consequential Seniority)

शब्द सीमा – 200 शब्द

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कक्षा 10: भारतीय संविधान एिं शासन प्रणाली

मूल अधिकार (to be continued...)

अनुच्छे द 18 – उपाधियों का अंत

 अनुच्छे द 18(1)
 अनुच्छे द 18(2)
 अनुच्छे द 18(3)
 अनुच्छे द 18(4)

अनुच्छे द 19 – स्वतंत्रता का अधिकार

 6 प्रकार के अधिकार
 सम्पधत का अधिकार
 धवधिक अधिकारों व मूल अधिकारों में अंतर
 अनुच्छे द 19(1)(a) व 19(2)
 अनुच्छे द 19(2) - आठ प्रकार के प्रधतबंि
 हड़ताल का अधिकार
 अनुच्छे द 19(1)(b)
 अनुच्छे द 19(1)(c)
 अयुधियुि धनबंिन के उदाहरण

Assignment Question

1. धनम्नधलधित पर संधिप्त टिप्पणी धलधिए:


a. युधियुि धनबंिन
b. धवधिक अधिकार एवं मूल अधिकार में अंतर

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