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अर्थशास्त्र और अर्थव्यवस्था (Economics and Economy)

 अर्थशास्त्र मानव की आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन करता है । मानव द्वारा सम्पन्न वह सारी गतिविधियाँ जिनसे
आर्थिक लाभ या हानि के तत्व विद्यमान हों, आर्थिक गतिविधियाँ कही जाती हैं ।
 जब हम किसी दे श को उसकी समस्त आर्थिक क्रियाओं के सं दर्भ में परिभाषित करते हैं , तो उसे अर्थव्यवस्था कहते हैं ।
 निजी क्षे तर् और बाजार के सापे क्ष राज्य व सरकार की भूमिका के आधार पर अर्थव्यवस्थाओं का वर्गीकरण तीन श्रेणियों में
किया जाता है -
(1) पूँजीवादी अर्थव्यवस्था- इस व्यवस्था के अन्तर्गत क्या उत्पादन करना है , कितना उत्पादन करना है और उसे किस कीमत पर
बे चना है , ये सब बाजार तय करता है , इसमें सरकार की कोई भी आर्थिक भूमिका नहीं होती है ।
 एडम स्मिथ की पु स्तक 'द वे ल्थ ऑफ ने शंस' (1776 ई. में प्रकाशित) को पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का उद्गम स्रोत माना
जाता है ।
(2) राज्य अर्थव्यवस्था-इस अर्थव्यवस्था की उत्पत्ति पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की लोकप्रियता के विरोध स्वरूप हुई है । इसमें
उत्पादन, आपूर्ति और कीमत सबका फैसला सरकार द्वारा लिया जाता है ।
 राज्य अर्थव्यवस्था की दो अलग-अलग शै ली नजर आती हैं | सोवियत सं घ की अर्थव्यवस्था को समाजवादी अर्थव्यवस्था
कहते हैं जबकि 1985 ई. से पहले चीन की अर्थव्यवस्था को साम्यवादी अर्थव्यवस्था कहते हैं ।
 समाजवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधनों पर सामूहिक नियं तर् ण की बात शामिल थी और अर्थव्यवस्था को चलाने में
सरकार की बड़ी भूमिका थी। वहीं साम्यवादी अर्थव्यवस्था में सभी सम्पत्तियों पर सरकार का नियं तर् ण था और श्रम
सं साधन भी सरकार के अधीन थे ।
 जर्मन दार्शनिक कार्लमार्क्स (1818-1883 ई.) ने पहली बार राज्य अर्थव्यवस्था का सिद्धान्त दिया था । एक व्यवस्था के तौर
पर पहली बार 1917 ई. को बोलशे विक क् रां ति के बाद सोवियत सं घ में नजर आयी और इसका आदर्श रूप चीन (1949 ई.) में
सामने आया।
(3) मिश्रित अर्थव्यवस्था इसमें कुछ लक्षण राज्य अर्थव्यवस्था के तो कुछ लक्षण पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के। इसमें सार्वजनिक
व निजी क्षे तर् का सह-अस्तित्व होता है ।
 द्वितीय विश्वयु द्ध की समाप्ति के बाद उपनिवे शवाद के चं गुल से निकले दुनिया के कई दे शों ने मिश्रित अर्थव्यवस्था को
अपनाया। इसमें भारत, इं डोने शिया एवं मले शिया जै से दे श शामिल हैं ।
 प्रो लांज ने सु झाव दिया कि समाजवादी अर्थव्यवस्था को पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की ओर कदम बढ़ाना चाहिए । वहीं केंस
ने कहा है कि पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को समाजवादी अर्थव्यवस्था की ओर कुछ कदम बढ़ाना चाहिए।
 बं द अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसमें न तो निर्यात और न ही आयात होता है यानी ऐसी अर्थव्यवस्था का शे ष विश्व
से कोई सम्बं ध नहीं होता।

अर्थव्यवस्था के क्षे तर्


 अर्थव्यवस्था की आर्थिक गतिविधियों को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है -
A. प्राथमिक क्षे तर् - अर्थव्यवस्था का यह क्षे तर् प्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण पर निर्भर होता है । इसके अन्तर्गत कृषि, पशु पालन,
मत्स्य पालन और उससे सम्बद्ध गतिविधियों को शामिल किया गया है ।
B. द्वितीयक क्षे तर् - अर्थव्यवस्था का वह क्षे तर् जो प्राथमिक क्षे तर् के उत्पादों को अपनी गतिविधियों में कच्चे माल की तरह
उपयोग करता है , द्वितीयक क्षे तर् कहलाता है । जै से-लौह इस्पात उद्योग, वस्त्र उद्योग, वाहन उद्योग, इले क्ट् रॉनिक्स
उद्योग आदि ।
C. तृ तीयक क्षे तर् - इस क्षे तर् में विभिन्न प्रकार की से वाओं का उत्पादन किया जाता है , जै से–बीमा, बैं किंग, चिकित्सा, शिक्षा,
पर्यटन आदि।
 तृ तीय क्षे तर् भारतीय अर्थव्यवस्था के सकल राष्ट् रीय उत्पाद में सबसे अधिक योगदान करता है ।
 भारतीय अर्थव्यवस्था एक श्रवम आधिक्य वाली अर्थव्यवस्था है ।

आर्थिक व सामाजिक विकास (Economic and Social Development)

 भारत में नियोजित आर्थिक विकास का शु भारम्भ वर्ष 1951 ई.में प्रथम पं चवर्षीय योजना के प्रारम्भ होने से हुआ, ले किन
आर्थिक नियोजन के लिए सै द्धान्तिक प्रयास स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व ही प्रारम्भ हो गये थे ।
 वर्ष 1934 ई. में सर एम. विश्वे श्वरै या ने भारत के लिए नियोजित अर्थव्यवस्था' (Planned Economy for India) नामक
पु स्तक लिखी । इस पु स्तक में उन्होंने पहली बार भारत के नियोजित विकास के लिए 10 वर्षीय कार्यक् रम प्रस्तु त किया था।
 1938 ई. में भारतीय राष्ट् रीय काँ गर् े स के पं . जवाहर लाल ने हरू की अध्यक्षता में एक राष्ट् रीय नियोजन समिति का गठन
किया गया ले किन द्वितीय विश्व यु द्ध प्रारम्भ हो जाने से इसका क्रियान्वयन नहीं हो सका।
 1944 ई. में मु म्बई के 8 प्रमु ख उद्योगपतियों ने एक 15-वर्षीय योजना का प्रारूप प्रस्तु त किया जिसे 'बॉम्बे प्लान' के नाम
से जाना गया।
 महात्मा गां धी की आर्थिक विचारधारा से प्रेरणा पाकर श्रीमन्ननारायण ने 1944 ई. में एक आर्थिक योजना निर्मित की जिसे
'गां धीवादी योजना' के नाम से जाना जाता है ।
 भारतीय श्रम सं घ की यु द्धोपरान्त पु नर्निर्माण समिति के अध्यक्ष श्री एम. एन. राय द्वारा अप्रैल, 1945 ई. में 'जन योजना'
(People Plan) निर्मित की गयी।
 1950 ई. में जयप्रकाश नारायण ने एक योजना 'सर्वोदय योजना' के नाम से प्रकाशित की। इस योजना को सरकार ने
आं शिक रूप से स्वीकार किया।
 अर्थव्यवस्था के विकास के लिए केन्द्रीकृत नियोजन सर्वप्रथम सोवियत सं घ में अपनाया गया था ।
 भारत सरकार के एक प्रस्ताव द्वारा 15 मार्च, 1950 को योजना आयोग (Planning Commission) का गठन किया गया ।
योजना आयोग के स्थान पर एक नई सं स्था 1 जनवरी, 2015 से अस्तित्व में आयी है । इस सं स्था को आमतौर से नीति
आयोग' के नाम से जाना जाता है ।

नीति आयोग (NITI Commission)


 अब योजना आयोग के स्थान पर 1 जनवरी, 2015 से एक नई सं स्था 'नीति आयोग' अस्तित्व में आयी है । इस नई सं स्था को
'राष्ट् रीय भारत परिवर्तन सं स्थान' (National Institution forTransforming India NITI) नाम दिया गया है । आमतौर पर
इसे 'नीति आयोग' के नाम से जाना जाता है । प्रधानमन्त्री की अध्यक्षता वाले इस आयोग में एक उपाध्यक्ष व एक मु ख्य
कार्यकारी अधिकारी (CEO) का प्रावधान किया गया है ।
 पं चवर्षीय योजनाओं को भावी स्वरूप दे ने आदि के सम्बन्ध में सरकार को सलाह भी नीति आयोग दे गा।

 सभी राज्यों के मु ख्यमन्त्री तथा केन्द्र शासित राज्यों के उपराज्यपाल को नीति आयोग की अधिशासी परिषद् में शामिल
किया गया है ।

राष्ट् रीय विकास परिषद् (National Development Council—NDC)


 राष्ट् रीय विकास परिषद् एक गै र-सं वैधानिक निकाय है , जिसका गठन आर्थिक नियोजन हे तु राज्यों एवं योजना आयोग के
बीच सहयोग का वातावरण बनाने के लिए किया गया था ।
 6 अगस्त, 1952 को राष्ट् रीय विकास परिषद् (NDC) का गठन किया गया । प्रधानमन्त्री इसके अध्यक्ष तथा योजना
आयोग का सचिव v इसका भी सचिव होता है ।
 इसका प्रमु ख कार्य योजना आयोग द्वारा तै यार की गयी योजना का अध्ययन करना तथा विचार-विमर्श के पश्चात् उसे
अन्तिम रूप प्रदान करना । इसकी स्वीकृति के बाद ही योजना का प्रारूप प्रकाशित होता है ।
 भारत में अब तक 12 पं चवर्षीय योजनाएँ लागू की जा चु की हैं । इन पं चवर्षीय योजनाओं के लक्ष्यों तथा उपलब्धियों का
विवरण निम्न प्रकार प्रस्तु त किया जा रहा है -

प्रथम पं चवर्षीय योजना (1951-56 ई.)


 प्रथम पं चवर्षीय योजना है रॉड डोमर मॉडल पर आधारित थी।
 प्रथम पं चवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 1951 से प्रारम्भ हुई । इस योजना में कृषि को उच्चतम प्राथमिकता दी गयी।
 इस योजना का मु ख्य उद्दे श्य अर्थव्यवस्था के सं तुलित विकास की प्रक्रिया को आरम्भ करना था।
 यह योजना सफल रही तथा इसने लक्ष्य से आगे 3.5% विकास दर को हासिल किया, जबकि लक्ष्य 2.1% रखा गया था।
 ् हुई।
इस योजना के दौरान राष्ट् रीय आय में 18% तथा प्रति व्यक्ति आय में 11% की कुल वृ दधि
 इस पं चवर्षीय योजना के दौरान भाखड़ा नां गल, दामोदर घाटी तथा हीराकुड नदी घाटी परियोजनाएँ प्रारम्भ की गयीं।
 इस पं चवर्षीय योजना के दौरान गाँ वों के समग्र विकास हे तु सामु दायिक विकास कार्यक् रम (सीडीपी) की शु रूआत 2
अक्टू बर, 1952 से की गयी।

ू टी पं चवर्षीय योजना (1956-61 ई.)


दस
 ू री पं चवर्षीय योजना प्रो. पी. सी. महालनोबिस मॉडल पर आधारित थी। इस योजना का लक्ष्य तीव्र औद्योगीकरण
दस
तथा समाजवादी समाज की स्थापना करना था।
 ् हुई, किन्तु प्रति व्यक्ति आय में
द्वितीय योजना में 1993-94 की कीमतों पर राष्ट् रीय आय में 4.1% की वार्षिक वृ दधि
् हुई।
2.0% की वार्षिक वृ दधि
 इस योजना में भारी उद्योगों व खनिजों को उच्च प्राथमिकता दी गयी तथा इस मद में सार्वजनिक क्षे तर् के व्यय की 24%
राशि व्यय की गयी।
 इस पं चवर्षीय योजना के दौरान राउरकेला, भिलाई, दुर्गापु र इस्पात सं यन्त्रों की स्थापना की गयी।

तीसरी पं चवर्षीय योजना (1961-66 ई.)


 इस पं चवर्षीय योजना का उद्दे श्य अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाना तथा स्वतः स्फू र्त अवस्था में पहुँचाना था।
 भारत-चीन यु द्ध (1962), भारत-पाक यु द्ध (1965) और 1965-66 के दौरान भीषण सूखा पड़ जाने के कारण तीसरी पं चवर्षीय
योजना पूरी तरह से असफल रही।
 ् की जा सके,
इस पं चवर्षीय योजना के दौरान जून, 1966 में रुपये का अवमूल्यन किया गया ताकि दे श के निर्यातों में वृ दधि
किन्तु इसके अनु कूल परिणाम प्राप्त नहीं हो सके।
 इस पं चवर्षीय योजना में अवसर की समानता (Equality of Opportunity) को अधिकाधिक बढ़ाना, आय व धन के वितरण
की असमानता को कम करना एवं आर्थिक शक्ति का समान वितरण करना है ।
 इस योजना में 1964 ई. में सोवियत सं घ के सहयोग से बोकारो (झारखण्ड) में बोकारो आयरन एण्ड स्टील इण्डस्ट् री की
स्थापना की गयी।
 इस योजना के दौरान वर्ष 1964 में यूनिट ट् रस्ट ऑफ इण्डिया (UTI) और इण्डस्ट्रियल डे वलपमे ण्ट , बैं क ऑफ इण्डिया
(IDBI) की स्थापना की गयी।
 इस योजना के दौरान वर्ष 1965 ई. में भारतीय खाद्य निगम (FCI) और कृषि कीमत आयोग (APC) की स्थापना की गयी।
 प्रथम, द्वितीय तथा तीसरी पं चवर्षीय योजना में सरकार ने 'ट्रिकल डाउन थियरी’ का अनु सरण किया था।
 तीसरी योजना में सन्तु लित विकास अर्थात् कृषि एवं उद्योगों की प्रगति कराकर ध्यान दे ने की रणनीति को अपनाया गया ।
इस योजना में वै ज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकीय उन्नति तथा उत्पादकता के सामान्य स्तर को बढ़ाने के उपायों एवं जनसं ख्या
नियन्त्रण, रोजगार सृ जन पर भी अधिक बल दिया गया ।

योजना अवकाश (1966-69 ई.)


 इस योजना अवधि में तीन वार्षिक योजनाएँ तै यार की गयीं। कुछ अर्थशास्त्रियों ने तो 1966 से 1969 तक की अवधि को
'योजना अवकाश' (Plan Holiday) की सं ज्ञा दी।
 1969 में नरीमन समिति की सिफारिश के आधार पर 'लीड बैं क योजना की शु रूआत की गयी।
 तीनों वार्षिक योजनाओं के दौरान पूरी तरह से एक नई कृषि नीति अपनायी गयी और कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए उच्च
गु णवत्ता वाले बीज के वितरण, उर्वरक का बड़े पै माने पर प्रयोग, सिं चाई क्षमता का विस्तार व भू-सं रक्षण आदि विधियों पर
विशे ष जोर दिया गया ।
 योजना अवकाश के दौरान 1966-67 में ही हरित क् रान्ति की शु रूआत हुई। भारत में हरित क् रां ति के जनक कृषि वै ज्ञानिक
एम. एस. स्वामीनाथन को माना जाता है । विश्व में हरित क् रां ति के जनक नार्मन ई. बोरलॉग को माना जाता है ।

चौथी पं चवर्षीय योजना (1969-74 ई.)


 चौथी पं चवर्षीय योजना डी. आर. गाडगिल मॉडल पर आधारित थी।
 चौथी पं चवर्षीय योजना का मूल उद्दे श्य स्थिरता के साथ आर्थिक विकास (Growth with Stability) तथा आत्मनिर्भरता की
अधिकाधिक प्राप्ति (Progress Towards Self Reliance) था ।
 ् दर 3.8% तथा प्रति व्यक्ति
चौथी पं चवर्षीय योजना में 1993-94 की कीमतों पर राष्ट् रीय आय में औसत वार्षिक वृ दधि
् दर 15% रही, जो कि लक्ष्य से कम थी।
आय की वार्षिक वृ दधि
 चौथी योजना के दौरान जु लाई, 1969 में 14 वाणिज्यिक बैं कों का राष्ट् रीयकरण किया गया।
 इस योजना के दौरान भारत ने 1974 में अपना पहला भूमिगत नाभिकीय परीक्षण (स्माइलिं ग बु द्धा) किया ।
 चौथी योजना में एक बार फिर कृषि विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान की गयी।

पाँचवीं पं चवर्षीय योजना (1974-79 ई.)


 पाँचवीं पं चवर्षीय योजना डी. पी. धर मॉडल के आधार पर तै यार की गयी।
 पाँचवीं पं चवर्षीय योजना का मु ख्य उद्दे श्य ‘गरीबी उन्मूलन के साथ आत्मनिर्भरता' प्राप्त करना था।
 मार्च, 1978 में जनता पार्टी की सरकार ने चार वर्षों के पश्चात् ही पाँचवीं पं चवर्षीय योजना समाप्त कर दिया।
 पाँचवीं पं चवर्षीय योजना के दौरान विकास लक्ष्य 5.5% रखा गया, परन्तु बाद में इसे सं शोधित कर 4.4% कर दिया गया।
 इसी योजना के दौरान 2 अक्टू बर, 1975 को क्षे तर् ीय ग्रामीण बैं कों की स्थापना की गयी।
 पाँचवीं पं चवर्षीय योजना के दौरान ‘न्यूनतम आवश्यकता कार्यक् रम' को लागू किया गया।
 ् दर सर्वाधिक (19.5%) रही।
पाँचवीं पं चवर्षीय योजना में आयात की वार्षिक वृ दधि

अनवरत योजना (Rolling Plan) (1978-80 ई.)


 जनता पार्टी की सरकार ने पाँचवीं पं चवर्षीय योजना को एक वर्ष पहले ही समाप्त करके एक नई योजना प्रारम्भ की जिसे
अनवरत योजना (Rolling Plan) कहा गया।
 रोलिं ग प्लान (Rolling Plan) के तहत् एक योजना कुछ वर्षों के लिए बनायी जाती है तथा इसमें प्रत्ये क वर्ष अर्थव्यवस्था
की जरूरतों के अनु सार सं शोधन किया जाता है ।
 अनवरत योजना के दौरान गां धीवादी नीति का अनु सरण किया गया । 1979 में ग्रामीण यु वा स्वरोजगार प्रशिक्षण
कार्यक् रम (ट् राइसे म) की शु रूआत की गयी, जिसे 1999 में स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना में शामिल कर लिया
गया।
 अनवरत योजना की अवधारणा गु न्नार मिर्डल ने अपनी पु स्तक 'एशियन ड्रामा' में पे श की थी।

छठी पं चवर्षीय योजना (1980-85 ई.)


 छठी पं चवर्षीय योजना को डी. टी. लकड़वाला मॉडल के आधार पर तै यार किया गया था।
 ् दर रखा गया तथा सफलतापूर्वक 5.5% की वार्षिक वृ दधि
इस योजना के दौरान विकास का लक्ष्य 5:2% वार्षिक वृ दधि ् दर
प्राप्त की गयी।
 इसी योजना के दौरान पूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गां धी द्वारा भारत में गरीबी उन्मूलन के लिए 'गरीबी हटाओ' का
नारा दिया गया ।
 ् , प्रौद्योगिकी का आधु निकीकरण, गरीबी एवं बे रोजगारी में
इस पं चवर्षीय योजना का मु ख्य उद्दे श्य राष्ट् रीय आय में वृ दधि
लगातार कमी करना तथा परिवार नियोजन के जरिए जनसं ख्या को नियन्त्रित करना है ।
 इसी योजना के दौरान 1980 में 6 बैं कों का राष्ट् रीयकरण किया गया ।
 इसी योजना के दौरान 12 जु लाई, 1982 को नाबार्ड की स्थापना
 की गयी।

सातवीं पं चवर्षीय योजना (1985-90 ई.)


 ् , आधु निकीकरण, आत्मनिर्भरता और सामाजिक न्याय पर बल दे ना था।
सातवीं पं चवर्षीय योजना का मु ख्य उद्दे श्य सम्वृ दधि
् , उत्पादकता व रोजगार के अवसरों में वृ दधि
इसके लिए खाद्यान्न उत्पादन में वृ दधि ् पर विशे ष ध्यान दिया गया।
 ् दर का लक्ष्य रखा गया था, जबकि सफलतापूर्वक
सातवीं पं चवर्षीय योजना में सकल घरे लू उत्पाद में 5% वार्षिक वृ दधि
् दर प्राप्त की गयी।
5.6% की वार्षिक वृ दधि
 इसी योजना के दौरान 1986 में डाक विभाग ने स्पीड पोस्ट व्यवस्था की शु रूआत की।
 इसी सातवीं पं चवर्षीय योजना के दौरान अप्रैल, 1989 में जवाहर रोजगार योजना (JSY) और सितम्बर, 1989 में ने हरू
रोजगार योजना की शु रूआत हुई।
 इसी योजना में योजना परिव्यय की दृष्टि से पहली बार निजी क्षे तर् को सार्वजनिक क्षे तर् की तु लना में वरीयता दी गयी।
 प्रो. राजकृष्णा ने सातवीं योजना को हिन्द ू वृ दधि
् दर के रूप में वर्णित किया है ।
 7 वीं पं चवर्षीय योजना की रणनीति थी कि प्रौद्योगिकी विकास तथा आर्थिक विकास को बढ़ाना व कायम रखना | जनसं ख्या
के दरिद्रतम वर्गों तथा निर्धनतम राज्यों की आयों और उत्पादकता को बढ़ाने , स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास तथा स्वच्छ पे यजल
् दर को रोकने पर केन्द्रित थी।
जै सी मूलभूत सु विधाओं को मु हैया कराने , जनसं ख्या वृ दधि
 ् दर सर्वाधिक रही।
सातवीं पं चवर्षीय योजना के दौरान निर्यात की वार्षिक वृ दधि

आठवीं पं चवर्षीय योजना (1992-97 ई.)


 आठवीं पं चवर्षीय योजना का मूलभूत उद्दे श्य ‘मानव सं साधन का विकास' अर्थात् रोजगार, शिक्षा व जनस्वास्थ्य को दिया
गया है ।
 यह योजना सफलतम योजना रही तथा वार्षिक विकास दर का लक्ष्य 5.6% निर्धारित किया गया था, जबकि 6.5% की
् दर प्राप्त की गयी।
वार्षिक वृ दधि
 इसी योजना के दौरान 1993 में शिक्षित बे रोजगारों के लिए रोजगार मु हैया कराने हे तु प्रधानमन्त्री रोजगार योजना शु रू
की गयी।
 इसी योजना के तहत् सभी गाँ वों एवं समस्त जनसं ख्या हे तु पे यजल तथा टीकाकरण सहित प्राथमिक चिकित्सा सु विधाओं
का प्रावधान करना, मै ला ढोने की प्रथा को पूर्णतः समाप्त करना तथा खाद्यान्नों मे आत्मनिर्भरता प्राप्त करना था।
 8 वीं पं चवर्षीय योजना की आयोजना रणनीति इस दृष्टि से अन्य योजनाओं की रणनीति से भिन्न थी कि इसमें दिशामूलक
आयोजना को अपनाया गया था, जबकि इससे पहले भी अन्य समस्त योजनाओं में रणनीति निर्दे शात्मक आयोजना की थी।

नवीं पं चवर्षीय योजना (1997-2002 ई.)


 ् के साथ सामाजिक न्याय और समानता' था।
नवी योजना का मु ख्य लक्ष्य वृ दधि
 नवी योजना में सकल राष्ट् रीय उत्पाद के 6.5% के लक्ष्य के विरुद्ध वास्तविक उपलब्धि केवल 5.4% रही थी। अतः नवी
् के लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल रही।
योजना अपने सकल राष्ट् रीय वृ दधि
 अन्तर्राष्ट् रीय बाजार में मन्दी के कारण नवीं पं चवर्षीय योजना को असफल माना जा रहा है ।

दसवीं पं चवर्षीय योजना (2002-07 ई.)


 10 वीं पं चवर्षीय योजना का मु ख्य उद्दे श्य ‘साम्यता तथा सामाजिक न्याय' की प्राप्ति करना था। 10 वीं योजना में कृषि,
् दर का लक्ष्य क् रमशः 4.0%, 8.9% एवं 9.4% सं शोधित रूप में निर्धारित किया गया था,
उद्योग एवं से वा क्षे तर् ों की वृ दधि
् दर उक्त तीनों क्षे तर् ों में क् रमशः 2.13%, 8.74% एवं 9.28% प्राप्त की गयी है , जो लगभग
किन्तु वास्तविक वृ दधि
लक्ष्यानु कूल रही।
 दसवीं पं चवर्षीय योजना में मु ख्य ध्यान दे श में गरीबी और बे रोजगारी समाप्त करना तथा अगले 10 वर्षों में प्रति व्यक्ति
आय दोगु नी करना था।
 ् का लक्ष्य 8:0% था, उपलब्धि 7.8% प्रतिवर्ष रही। 7.8% की यह सम्वृ दधि
दसवीं पं चवर्षीय योजना में आर्थिक सम्वृ दधि ्
अब तक की किसी भी योजनावधि में सर्वाधिक है ।
 10 वीं योजनाकाल मु दर् ा स्फीति की दर औसत रूप से 5-0% आँ की गयी है , जबकि सकल घरे लू बजट दर GDP के प्रतिशत
के रूप में 26.62% रहा, जो लक्ष्य 23-3 से 3.31% अधिक था।
 इस योजना में पहली बार राज्यों के साथ विचार-विमर्श कर राज्यवार विकास दर निर्धारित की गयी। इसके साथ ही पहली
बार आर्थिक लक्ष्यों के साथ-साथ सामाजिक लक्ष्यों पर भी निगरानी की व्यवस्था की गयी।
 इस योजना में वर्ष 2007 तक गरीबी का अनु पात 26% से घटाकर 21% तथा 2012 तक 15% बिन्दु तक लाना था।
 इस योजना के दौरान वर्ष 2007 तक साक्षरता 75% शिशु मृ त्यु दर को 45 प्रति हजार, मातृ त्व मृ त्यु दर 2007 तक 2 प्रति
हजार तथा वनीकरण को 25% तक पहुँचाना था।
ग्यारहवीं पं चवर्षीय योजना (2007-2012 ई.)
 ग्यारहवीं पं चवर्षीय योजना का मूलभूत उद्दे श्य तीव्रतर और अधिक समावे शी विकास' को रखा गया है ।
 ् दर के साथ अन्तिम वर्ष 2011-12 में 10% वृ दधि
इस योजना में 9% की औसत वृ दधि ् का लक्ष्य रखा गया था ताकि 2016-
17 तक प्रति व्यक्ति आय को दोगु ना किया जा सके।
 9% वार्षिक विकास के लिए 2007-12 के दौरान कृषि में 4% तथा उद्योगों व से वाओं में 9% से 11% प्रतिवर्ष की दर से
् का लक्ष्य इस योजना में थे ।
वृ दधि
 11 वीं योजना के मध्यावधि मूल्यांकन दस्तावे ज में लक्षित औसत विकास दर को कम करके 8.6% कर दिया गया। कृषि क्षे तर्
की लक्षित औसत विकास दर को 4% से कम करके 3% किया गया ।
 ् की दशकीय वृ दधि
2001 से 2011 तक के दशक में जनसं ख्या सम्वृ दधि ् दर को घटाकर 16-2% के स्तर पर लाना।
 ग्यारहवीं पं चवर्षीय योजना के दौरान साक्षरता दर को बढ़ाकर 85% शिशु मृ त्यु दर को 28 प्रति हजार, मातृ त्व मृ त्यु दर को
1 प्रति हजार कुल प्रजनन दर को घटाकर 2.1% के स्तर पर लाना तथा वनीकरण को 33% तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया

 इस योजना के दौरान गरीबी रे खा से नीचे रहने वाले लोगों की सं ख्या में 10% बिन्दु तक की कमी करना ।
 वर्ष 2012 तक दे श के सभी गाँ वों में स्वच्छ पे यजल की व्यवस्था करना तथा योजनावधि में रोजगार के 7 करोड़ नये अवसर
सृ जित करना था।
 11 वीं पं चवर्षीय योजना के वित्तीयन हे तु 2007-12 की अवधि में बचत की दर सकल घरे लू उत्पाद (GDP) के 34.8% तथा
निवे श की दर 36.7% बनाये रखने का लक्ष्य योजना दस्तावे ज में निर्धारित किया गया।

बारहवीं पं चवर्षीय योजना (2012-17 ई.)


 1 अप्रैल, 2012 से शु रू होने वाली 12 वीं पं चवर्षीय योजना को अन्तिम मं जरू ी 22 अक्टू बर, 2011 को राष्ट् रीय विकास
परिषद् ने प्रदान की।
 12 वीं पं चवर्षीय योजना में वार्षिक विकास दर 8:0% प्राप्त की गयी। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कृषि, उद्योग व
् प्राप्त करने के लक्ष्य तय किये गये हैं । इसके लिए
से वाओं के क्षे तर् में क् रमशः 4:0%, 9.6% व 10-0% की वार्षिक वृ दधि
निवे श दर सकल घरे लू उत्पाद (GDP) की 38.7% प्राप्त करनी होगी।

बजट
 बजट सामान्यतः सरकारी विवरण या दस्तावे ज के रूप में जाना जाता है , जिसमें सरकार की गत वर्ष की आय-व्यय की
स्थिति, चालू वर्ष में सरकारी आय-व्यय के सं शोधित आकलन तथा आगामी वर्ष के आर्थिक-सामाजिक कार्यक् रम एवं आय-
व्यय घटाने -बढ़ाने के लिए प्रस्तावों का विवरण दिया जाता है । भारतीय सं विधान में बजट शब्द का कहीं भी उल्ले ख नहीं
किया गया है ।
 भारतीय सं विधान में वित्तीय कथन का उल्ले ख है , जिसे सामान्यतः बजट समझा जाता है । सं विधान के अनु च्छे द-112 में
प्रावधान है कि सरकार प्रत्ये क वर्ष आय-व्यय का एक ले खा-जोखा प्रस्तु त करे गी, जिसमें यह उल्ले ख होगा कि सरकार
आगामी वित्तीय वर्ष में किस मद पर कितना व्यय करे गी तथा इस व्यय को पूरा करने के लिए आय कहाँ से प्राप्त करे गी।

सार्वजनिक आय
 बजट का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष सार्वजनिक आय या प्राप्तियाँ हैं । सार्व जनिक आय या प्राप्तियों से आशय सरकार को
किसी एक वर्ष में विविध स्रोतों से प्राप्त होने वाली आय से है । सार्वजनिक प्राप्तियों को मु ख्यतः दो भागों मे विभाजित
किया जाता है —(1) राजस्व प्राप्तियाँ तथा (2) पूँजीगत प्राप्तियाँ ।

 राजस्व प्राप्तियाँ —ऐसी सार्वजनिक प्राप्तियों को राजस्व प्राप्तियाँ कहा जाता है जिससे न तो सरकार की दे यता में
् होती है और न ही सरकार की परिसम्पत्ति में कमी आती है । राजस्व प्राप्तियों को सरकार की आर्थिक क्रियाओं का
वृ दधि
प्रतिफल माना जाता है । इसका सम्बन्ध चालू खाते से होता है । चालू खाते में आय के उन स्रोतों को रखा जाता है , जिनके
सन्दर्भ में कोई भु गतान नहीं करना होता है । राजस्व प्राप्तियों को मु ख्यतः दो भागों-कर आय तथा गै र-कर आय में
विभाजित किया जाता है । ध्यातव्य है कि राजस्व प्राप्तियों की प्रकृति अल्पकालीन होती है ।

(1) कर आय—करों से प्राप्त होने वाली आय को कर-आय कहा जाता है । करों से प्राप्त आय के दो भाग होते हैं -प्रत्यक्ष
कर से प्राप्त आय तथा अप्रत्यक्ष कर से प्राप्त आय | ध्यातव्य है कि भारत में कर राजस्व में प्रत्यक्ष कर का अं श निरन्तर
बढ़ रहा है , जबकि अप्रत्यक्ष कर का अं श लगातार कम हो रहा है ।
o प्रत्यक्ष कर (Direct Tax)—वे कर हैं जिन्हें तु रन्त ही व्यक्तियों की सम्पत्ति और आय पर लगाया जाता है तथा
उपभोक्ता प्रत्यक्षतः सरकार को चु काते हैं । आय कर, ब्याज कर, सम्पत्ति कर और निगम कर ऐसे ही प्रत्यक्ष करों
के उदाहरण हैं ।
o अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax)—व्यक्तियों की आय और सम्पत्ति को उनके उपभोग के माध्यम से प्रभावित करते
हैं । परोक्ष कर वस्तु ओं एवं से वाओं पर आरोपित किये जाते हैं और इनके भार को विवर्तित करना सम्भव होता है ।
सीमा शु ल्क, उत्पादन शु ल्क, बिक् री कर आदि अप्रत्यक्ष करों के उदाहरण हैं ।
(2) गै र-कर आय-करों के अतिरिक्त अन्य मदों से प्राप्त होने वाली आय गै र-कर आय कहलाती है । इसके अन्तर्गत सरकार द्वारा
प्रदत्त से वाओं पर लगाया गया शु ल्क, लाभ एवं लाभां श तथा ब्याज की आय को सम्मिलित किया जाता है ।
 पूँजीगत प्राप्तियाँ —सार्वजनिक प्राप्तियों के उस स्वरूप को पूँजीगत कहा जाता है , जिससे या तो सरकार की दे यताएँ
बढ़ती हैं या सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी होती है । पूँजीगत प्राप्तियों की प्रकृति दीर्घकालीन होती है । विनिवे श से
प्राप्तियाँ , निबल घरे लू ऋण, निबल विदे शी ऋण, ऋण वापसी तथा लोक ले खा प्राप्तियाँ आदि पूँजीगत प्राप्तियों के रूप
हैं ।

सार्वजनिक व्यय
 ू रा महत्वपूर्ण पक्ष सार्वजनिक व्यय है । किसी भी वित्तीय वर्ष में सरकार द्वारा विभिन्न कार्यक् रमों, योजनाओं
बजट का दस
तथा से वा पर किये गये व्यय को सार्वजनिक व्यय कहा जाता है । सार्वजनिक व्यय को लोक व्यय भी कहा जाता है ।
सार्वजनिक व्यय को दो भागों में विभाजित किया जाता है —(1) राजस्व व्यय तथा (2) पूँजीगत व्यय ।
(1) राजस्व व्यय- सार्वजनिक व्यय के उस स्वरूप को राजस्व व्यय कहा जाता है जिससे किसी भी उत्पादक कोटि की परिसम्पत्ति
का सृ जन नहीं होता है । सामान्यतः राजस्व व्यय की प्रकृति गै र-विकासात्मक होती है क्योंकि विकासात्मक कार्यों में इनका
प्रत्यक्षतः योगदान नहीं होता है । गै र-विकासात्मक राजस्व व्यय की प्रमु ख मदें - (i) सरकारी से वाओं पर होने वाला व्यय, (ii)
सरकारी सब्सिडी, (iii) ब्याज अदायगी तथा हैं ।
o राजस्व व्यय की कुछ मदें ऐसी हैं , जिनको विकासात्मक माना जाता है , जो अप्रत्यक्षतः विकास कार्यों को बढ़ावा दे ती हैं ।
राजस्व व्यय की विकासात्मक मदों में सामाजिक एवं सामु दायिक से वाएँ , सामान्य आर्थिक से वाएँ , कृषि एवं सहायक से वाएँ ,
विद्यु त, सिं चाई एवं बाढ़ नियन्त्रण से सम्बन्धित परियोजनाएँ , राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदे शों को दिया गया अनु दान
आदि सम्मिलित हैं ।
् होती है । पूँजीगत व्यय
(2) पूँजीगत व्यय—ऐसे व्ययों को पूँजीगत व्यय कहा जाता है जिससे सरकार की परिसम्पत्तियों में वृ दधि
उत्पादक कोटि का होता है । इसका लाभ केवल चालू वर्ष तक ही नहीं मिलता है बल्कि इसका लाभ कई वर्षों तक मिलता रहता
है ; जै से—अस्पताल का निर्माण, सड़क का निर्माण, कारखाना आदि।

आयोजना व्यय
 ू रा वर्गीकरण आयोजना एवं गै र-आयोजना व्यय में किया जाता है । ऐसे व्यय को आयोजना व्यय कहा
सार्वजनिक व्यय का दस
जाता है , जिससे उत्पादक कोटि की परिसम्पत्ति का सृ जन होता है । आयोजना व्यय विभिन्न आर्थिक-सामाजिक कल्याण
कार्यक् रमों/योजनाओं तथा परियोजनाओं के सम्बन्ध में होता है ।

गै र-आयोजना व्यय
 गै र-आयोजना व्यय से आशय ऐसे व्यय से है , जिससे प्रत्यक्षतः किसी उत्पादक कोटि की परिसम्पत्ति का निर्माण नहीं होता
है । परन्तु यह अनिवार्य एवं बाध्यकारी व्यय है । इसको पूरा करने के लिए सरकार बाध्य है ; यथा-रक्षा व्यय, सरकारी
कर्मचारियों के वे तन, सब्सिडी, कार्यालय मरम्मत एवं रख-रखाव, पें शन, महं गाई भत्ता आदि । रक्षा व्यय, सब्सिडी, ब्याज
अदायगी तथा अनु रक्षण प्रमु ख गै र-आयोजना व्यय हैं ।

बजट के घटक
बजट तीन भागों में विभाजित किये जाते हैं जो निम्नलिखित प्रकार के होते हैं

(1) सं चित निधि (Consolidated Fund)—सरकार को प्राप्त सभी प्रकार की आय; यथा-कर आय, करे त्तर आय, ऋण प्राप्तियाँ
आदि इसमें शामिल की जाती हैं । इसी प्रकार समस्त व्यय भी इसी खाते से लिये जाते हैं । इस कोष की कोई भी राशि सं सद के
अनु मोदन के बिना व्यय नहीं की जा सकती है । (सं विधान में निर्दिष्ट कुछ व्ययों को छोड़कर; जै से-सर्वोच्च न्यायालय के
न्यायाधीशों, नियन्त्रक तथा महाले खा परीक्षक आदि के वे तन का भु गतान) अपवादस्वरूप होने वाले इन व्ययों को बजट में
शामिल किया जाता है , परन्तु उन पर मतदान नहीं होता है । इसी प्रकार राज्य सरकारों के लिए राज्य सं चित कोष' होता है
जिनके व्यय की अनु मति राज्य विधानसभा दे ती है ।

बजट सम्बन्धी कुछ महत्वपूर्ण तथ्य


 भारत में सर्वप्रथम बजट पद्धति की शु रुआत भारत के प्रथम वायसराय लॉर्ड कैनिं ग (1856-62) के कार्यकाल में हुई थी।
 जे म्स विल्सन को 1859 ई. में पहली बार वायसराय की कार्यकारिणी का वित्त सचिव नियु क्त किया और इन्होंने भारत का
पहला बजट 7 अप्रैल, 1860 को 'हाउस ऑफ कॉमन्स' में प्रस्तु त किया था। इसीलिए जे म्स विल्सन को भारत में बजट
पद्धति का सं स्थापक एवं जन्मदाता कहा जाता है ।
 स्वतन्त्र भारत का पहला बजट 26 नवम्बर, 1947 को पहले वित्त मन्त्री आर. के. षणामु खम शे ट्टी द्वारा पे श किया गया
था। यह बजट 15 अगस्त, 1947 से 31 मार्च, 1948 तक की साढ़े सात माह की अवधि के लिए था।
 जॉन मथाई को वर्ष 1950 में गणतन्त्र भारत का पहला केन्द्रीय बजट पे श करने का गौरव हासिल हुआ।
 गै र-हिन्दी भाषी होने के बावजूद सी. डी. दे शमु ख ने वित्त मन्त्री रहते हुए 1955-56 का बजट पे श करने से पहले इस बात
को सु निश्चित किया था कि बजट के सभी दस्तावे ज हिन्दी में छपें इससे पूर्व ये सिर्फ अं गर् े जी में छपते थे ।
 दे श में चार प्रधानमन्त्री ऐसे हुए हैं जो वित्त मन्त्री के पद पर भी काम कर चु के हैं -मोरारजी दे साई, चौधरी चरण सिं ह,
विश्वनाथ प्रताप सिं ह और मनमोहन सिं ह।
 प्रधानमन्त्री पद पर रहते हुए जवाहरलाल ने हरू, इन्दिरा गां ध और मनमोहन सिं ह के पास वित्त मन्त्री पद भी रहा ।
 जवाहरलाल ने हरू ने वर्ष 1958-59 का बजट पे श किया और उस बजट को पे श करते हुए उन्होंने घोषणा की थी कि अगले
वर्ष से बजट 28 फरवरी के दिन ही पे श किया जाये गा।
 भारत में सबसे ज्यादा बजट पे श करने वाले वित्त मन्त्री मोरारजी दे साई थे । उन्होंने कुल दस बजट पे श किये , जबकि पी.
चिदम्बरम ने आठ बजट पे श किये ।
 जॉन मथाई भारत के तीसरे वित्त मन्त्री बने । उन्होंने सं सद में 1949-50 व 1950-51 के दो बजट पे श किये ।
 वित्त मन्त्रालय का भार प्रधानमन्त्री के पास होने के बावजूद भी विदे शी मामलों के मन्त्री प्रणब मु खर्जी ने वर्ष 2009-10
का अन्तरिम बजट पे श किया ।
 हे मवती नन्दन बहुगु णा, के. सी. नियोगी और मनमोहन सिं ह वित्त मन्त्री रहने के बावजूद भी कोई बजट पे श नहीं कर पाये ।
 वित्त मन्त्री के रूप में वर्ष 1991 में डॉ. मनमोहन सिं ह ने दे श में आर्थिक उदारीकरण की नीति लागू करने की घोषणा की।
अं गर् े जों ने भारत के लिए बजट पे श करना शु रू किया तो उसके लिए शाम के पाँच बजे का समय रखा गया था ले किन 1999
में राज्य सरकार के वित्त मन्त्री यशवन्त सिन्हा ने बजट पे श करने का समय दिन के 11 बजे कर दिया।
 25 फरवरी, 1992 में भारत में पहली बार रे ल बजट और 29 फरवरी, 1992 को सामान्य बजट का टे लीविजन पर प्रसारण शु रू
हुआ था।
 अब आम बजट (2017-18) में रे ल बजट को मिला दिया गया है । इसी के साथ 92 साल पु रानी परम्परा समाप्त हो गहै ।
इससे पहले रे ल सम्बन्धी वित्तीय योजनाएँ और खर्चे आदि सम्बन्धी मामले आम बजट से 1924 में अलग कर दिये गये थे ।
 बजट की प्रक्रिया 31 मार्च से पहले खत्म करने का विचार है । अब आम बजट 1 फरवरी को पे श होगा। अब तक आम बजट
फरवरी के आखिरी दिन पे श होता रहा है ।
 'पारम्परिक बजट' आज के आम बजट का प्रारम्भिक रूप कहा जा सकता है । इस प्रकार के बजट का मु ख्य उद्दे श्य
विधायिका का कार्यपालिका पर वित्तीय नियन्त्रण स्थापित करना रहा है ।
 'निष्पादन बजट' को उपलब्धि बजट या कार्यपूर्ति बजट भी कहा जाता है । अतः कार्य के परिणामों या निष्पादन को आधार
बनाकर निर्मित होने वाला बजट निष्पादन बजट कहलाता है ।
 'आउटकम बजट' के अन्तर्गत एक वित्तीय वर्ष के लिए किसी मन्त्रालय अथवा विभाग को आवण्टित किये गये बजट में
अनु शर् वण तथा मूल्यांकन किये जा सकने वाले भौतिक लक्षणों का निर्धारण इस उद्दे श्य से किया जाता है , ताकि बजट के
क्रियान्वयन की गु णवत्ता को परखा जाना सम्भव हो सके। भारत के सं सदीय इतिहास में पहली बार 25 अगस्त, 2005 को
आउटकम बजट वित्त मन्त्री द्वारा सं सद में प्रस्तु त किया गया।
 'जोरीबे स बजट' को सूर्यास्त बजट प्रणाली (सनसे ट बजट सिस्टम) भी कहते हैं जिसका अर्थ यह है कि वित्तीय वर्ष के
सूर्यास्त से पूर्व प्रत्ये क विभाग को एक शून्य आधारीय बजट प्रस्तु त करना होता है , जिसमें उसके प्रत्ये क क्रियाकलाप व
उपलब्धियों का ले खा-जोखा रहता है ।
 केन्द्रीय बजट वर्ष 2000 तक शाम 5 बजे पे श किया जाता था। ऐसा ब्रिटिश राज्य की परम्परानु सार होता था। तब ब्रिटिश
सं सद दोपहर में बजट पास करती थी और भारत में इसे शाम को पे श किया जाता था। इस परम्परा को 2001 में वित्त मन्त्री
यशवन्त सिन्हा ने बदला और बजट को सु बह 11 बजे पे श किया जाने लगा।
 'जे ण्डर बजटिं ग' की शु रूआत दे श में महिला सशक्तिकरण की दिशा में बजट के योगदान को स्वीकार करते हुए महिलाओं के
विकास, कल्याण और सशक्तिकरण से सम्बन्धित योजनाओं और कार्यक् रमों के लिए प्रतिवर्ष बजट में एक निर्धारित राशि
की व्यवस्था सु निश्चित की गई।
(2) आकस्मिक निधि (Contingency Fund)—इस कोष से सरकार के ऐसे व्ययों को पूरा किया जाता है जिनमें विलम्ब नहीं किया
जा सकता है । इस कोष से व्यय करने के लिए लोकसभा/राज्य विधानसभा की पूर्व अनु मति नहीं ले नी पड़ती है , परन्तु ऐसे
प्रत्ये क व्यय को बाद में सदन से स्वीकृत कराना होता है । इस कोष का कोई भी अं श व्यय हो जाने के बाद सदन की अनु मति से
सं चित निधि में से उसकी भरपाई कर दी जाती है ।

(3) लोक खाता (Public Account)—इस खाते में एकत्रित धनराशि सरकार की नहीं होती है । इस खाते में वे धनराशियाँ
सम्मिलित की जाती हैं , जो लघु बचतों, जमाओं और भविष्य निधि के रूप में सरकार प्राप्त करती है । इस खाते में से किसी भी
प्रकार का भु गतान करने के लिए सरकार को लोकसभा राज्य विधानसभा से अनु मति की आवश्यकता नहीं होती है ।

केन्द्र और राज्यों के बीच वित्तीय सम्बन्ध

भारतीय सं विधान के अनु च्छे द 264 से 293 में केन्द्र एवं राज्य सरकारों के वित्तीय सम्बन्धों की स्पष्ट व्याख्या की गई है । वे कर
जिनका अन्तर्राज्यीय आधार है , केन्द्र सरकार द्वारा लगाये जाते हैं , जबकि स्थानीय आधार वाले कर राज्य सरकारों द्वारा लगाये जाते
हैं । अवशिष्ट अधिकार केन्द्र सरकार को प्राप्त है ।

केन्द्रीय राजस्व का वितरण


सं विधान की सातवीं अनु सच
ू ी में केन्द्र एवं राज्यों के बीच वित्तीय स्रोतों का विभाजन किया गया है । सातवीं अनु सच
ू ी की प्रथम
ू री सूची में उन करों का वर्णन है ,
सूची में उन करों का वर्णन है , जो पूर्णतया केन्द्र द्वारा लगाये जाते हैं । इन्हें सं घीय कर कहते हैं । दस
जो पूर्णतया राज्यों के अधिकार में आते हैं , इन्हें राज्य का कर कहते हैं । राज्यों के राजस्व में योगदान हे तु सं घ राज्यों को ऐच्छिक
वित्तीय सहायता भी हस्तान्तरित करता है । उपर्युक्त दो सूचियों के अतिरिक्त सं विधान में एक तीसरी समवर्ती सूची भी है , जिसमें
वर्तमान में 52 विषय सम्मिलित हैं ।

(A) सं घीय कर-


1. निगम कर।
2. से वा कर।
3. आय कर (कृषि आय के अतिरिक्त)।
4. अफीम व ऐल्कोहॉलिक पे य पदार्थों को छोड़कर शे ष वस्तु ओं के सम्बन्ध में उत्पादन शु ल्क।
5. सीमा शु ल्क अथवा आयात-निर्यात शु ल्क ।
6. समाचार-पत्रों के क् रय-विक् रय तथा उनमें प्रकाशित विज्ञापनों पर कर।
7. रे लयात्रा किराये तथा माल भाड़े पर कर ।
8. रे ल, समु दर् या वायु मार्ग द्वारा ले जाये गये यात्रियों तथा माल पर कर।
9. अन्तर्राज्यीय व्यापार तथा वाणिज्य के दौरान माल के क् रय-विक् रय पर कर (कुछ मदों को छोड़कर)।
10. कृषि भूमि से भिन्न अन्य सम्पत्ति के सम्बन्ध में सम्पदा तथा उत्तराधिकार शु ल्क।
11. व्यक्तियों तथा कम्पनियों की सम्पत्तियों के पूँजी मूल्य पर कर (कृषि भूमि के अतिरिक्त)।
12. प्रपत्रों पर स्टाम्प शु ल्क।
13. शे यर बाजारों तथा सट् टे बाजार के व्यवहारों पर स्टाम्प शु ल्क के अतिरिक्त अन्य कर।
(B) राज्य कर—ये कर जो राज्य सरकारों द्वारा ही आरोपित किये जाते हैं और उन्हीं के द्वारा सं गृहीत किये जाते हैं । यदि राज्य चाहे
तो उनके द्वारा यह अधिकार केन्द्रीय सरकार को हस्तान्तरित किया जा सकता है । ऐसी परिस्थित में केन्द्र द्वारा कर सं गृहीत करके
उन राज्य सरकार को दे दिया जाता है । भारत में पश्चिम बं गाल और जम्मू-कश्मीर के अलावा समस्त अन्य राज्य सरकारों ने कृषि
भूमि पर सम्पदा शु ल्क वसूल करने का अधिकार केन्द्रीय सरकार को दे रखा है । राज्य कर निम्नलिखित हैं
1. कृषि आय पर कर।
2. लगाना या भूमि कर।
3. माल के क् रय-विक् रय पर कर (समाचार-पत्रों के अतिरिक्त)।
4. कृषि भूमि पर सम्पदा शु ल्क तथा उत्तराधिकार के सम्बन्ध में शु ल्क ।
5. ऐल्कोहॉल, मदिरा, नारकोटिक्स आदि पर उत्पादन शु ल्क |
6. भूमि तथा भवन पर कर ।
7. गाड़ियों, पशु ओं तथा नावों पर कर।
8. सड़क तथा आन्तरिक जलमार्गों द्वारा यात्रियों तथा माल के आवागमन पर कर।
9. विलासिताओं (मनोरं जन, जु आ आदि) पर कर ।
10. पथ कर।
11. पे शे, व्यापार, आजीविका तथा रोजगार पर कर ।
12. विज्ञापनों पर कर (समाचार-पत्रों, रे डियो व दरू दर्शन के विज्ञापनों के अतिरिक्त)।
13. स्थानीय क्षे तर् में प्रविष्ट होने वाले माल पर कर।
14. खनिज अधिकारों पर कर (सं सद द्वारा निर्धारित सीमाओं के अधीन)।
15. विद्यु त के उपयोग तथा विक् रय पर कर।

(C) वे कर जो केन्द्र द्वारा लगाये जाते हैं किन्तु राज्य सरकारों द्वारा एकत्र एवं प्रयु क्त किये जाते हैं ।
 भारतीय सं विधान के अनु च्छे द 268 में उल्ले ख है कि स्टाम्प शु ल्क, औषधि तथा प्रसाधनों पर उत्पादन शु ल्क यद्यपि सं घीय
सूची में सम्मिलित है तथा केन्द्रीय सरकार द्वारा ही आरोपित किये जाते हैं , किन्तु इन्हें राज्यों को सं गृहीत करने व उपयोग
करने हे तु अधिकार दिये गये हैं ।
(D) वे कर, जो केन्द्र द्वारा आरोपित किये जाते हैं एवं सं गृहीत किये जाते हैं , किन्तु जिनकी पूरी राशि राज्यों को हस्तान्तरित कर दी
जाती है ।
 सं विधान के अनु च्छे द 269 में आरोपित करों; यथा-
1. उत्तराधिकार शु ल्क।
2. कृषि भूमि से भिन्न सम्पत्ति के सम्बन्ध में सम्पदा शु ल्क।
3. रे ल किराये तथा माल भाड़े पर कर ।
4. रे ल, समु दर् या वायु मार्ग द्वारा ले जाये जाने वाले माल तथा यात्रियों पर सीमा कर।
5. समाचार-पत्रों के क् रय-विक् रय तथा उनके विज्ञापन पर कर |
6. समाचार-पत्रों से भिन्न माल के क् रय-विक् रय पर उस दशा में कर, जिसमें ऐसा क् रय या विक् रय अन्तर्राष्ट् रीय व्यापार
या वाणिज्य के दौरान होता है , आदि को केन्द्रीय सरकार द्वारा आरोपित एवं सं गृहीत किया जाता है , किन्तु इनका
हस्तान्तरण उन राज्यों को कर दिया जाता है , जहाँ से ये सं गृहीत किये जाते हैं ।

(E) वे कर, जो केन्द्र द्वारा आरोपित एवं सं गृहीत किये जाते हैं तथा जिनका केन्द्र तथा राज्यों के मध्य बँ टवारा किया जाता है ।
 वित्तीय सं साधनों की समानता एवं न्याय के आधार पर विभाजन के लिए निम्न कर यद्यपि सं घीय सरकार द्वारा आरोपित व
एकत्रित किये जाते हैं , किन्तु इनका वितरण केन्द्र एवं राज्य के मध्य किया जाता है । इस प्रकार के कुछ कर निम्नलिखित
हैं -
1. कृषि आय के अतिरिक्त अन्य आय पर आरोपित कर।
2. औषधि एवं प्रसाधन उत्पादों पर आरोपित उत्पाद शु ल्क के अतिरिक्त अन्य वस्तु ओं के सम्बन्ध में उत्पादन शु ल्क इस
प्रकार के राजस्व को सं सद के विधि निर्माण के द्वारा दोनों के मध्य विभाजित किया जा सकता है ।

वै ट प्रणाली
 मूल्यवर्द्धित कर (VAT) एक सामान्य अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax) है , जो वस्तु ओं तथा से वाओं के आदान-प्रदान के
प्रत्ये क बिन्दु पर प्राथमिक उत्पाद से ले कर अन्तिम उपभोग पर लगाया जाता है ।
 यह वस्तु ओं अथवा से वाओं (आउटपु ट) की बिक् री, कीमतों तथा उनमें
 प्रयु क्त इनपु ट की लागतों के अन्तर पर लगाया जाता है ।
 वै ट एक किस्म का बिक् री कर है जिसे उपभोक्ता व्यय पर उस राज्य की सरकार ले ती है ।
 वै ट वस्तु ओं या से वाओं की अन्तिम खपत पर लगने वाला कर है और इसे अन्ततः उपभोक्ता वहन करता है ।
 यह बहुचरण कर है , जिसके साथ एक आरम्भिक अवस्था पर निवे श कर क् रे डिट (ITC) की अनु मति का प्रावधान है , जिसके
परिणामस्वरूप हुई बिक् री पर वै ट दे यता की तु लना में पु नर्विनियोजित किया जा सकता है ।
 वै ट मूलतः राज्य का विषय है , जो राज्य की सूची से व्यु त्पन्न हुआ है , जिसके लिए निर्णय हे तु राज्य के पास सम्प्रभु ता है ।
 दे श में मूल्य वर्द्धित कर प्रणाली (VAT) की शु रूआत करने वाला प्रथम राज्य हरियाणा था ।
 वर्ष 2007 तक वै ट की शु रूआत 30 से अधिक राज्यों/सं घ राज्य
 क्षे तर् ों में की जा चु की है ।
 1 जनवरी, 2008 से उत्तर प्रदे श सरकार ने राज्य में वै ट प्रणाली की शु रूआत की।

वस्तु एवं से वा कर (Goods and Service Tax)


 भारत में वस्तु एवं से वा कर (GST) को 1 जु लाई, 2017 से लागू किया गया है । अब केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार या दोनों
के द्वारा लगाये जाने वाले सभी करें के स्थान पर सिर्फ एक जीएसटी लगे गा जो सभी वस्तु ओं एवं से वाओं के ऊपर लगे गा।
 वस्तु के ऊपर जो भी जीएसटी कर की दर होगी वह पूरे दे श में एक समान ही रहे गी।
 101 वें सं विधान सं शोधन (8 सितम्बर, 2016 को अधिसूचित) के द्वारा जीएसटी को लागू किया गया है । जीएसटी एक
अप्रत्यक्ष कर है ।
 जीएसटी के अन्तर्गत वस्तु ओं और से वाओं पर इन दरों पर कर लगे गा 5%, 12%, 18% एवं 28% | अपरिष्कृत रत्नों और
रत्नो पत्थरों पर 0.25% की विशे ष दर से और सोने पर 3% कर लगे गा।
 मानव उपयोग के लिए अल्कोहल, पाँच पे ट्रोलियम उत्पाद [कच्चा ते ल, मोटर स्पिरिट (पे ट्रोल), हाईस्पीड डीजल,
प्राकृतिक गै स और एविएशन टरबाइन] को जीएसटी से बाहर रखा गया है । जीएसटी में 17 अप्रत्यक्ष कर (8 केन्द्रीय, 9
राज्य स्तरीय और 23 केन्द्रीय और राज्यीय उपकर समाहित हैं ।

वित्त आयोग
केन्द्र से राज्यों को वित्तीय हस्तान्तरण हे तु दिशा-निर्देश सु झाने हे तु वित्त आयोग (Finance Commission) का गठन किया जाता है ।
सं विधान के अनु च्छे द 280 (1) में यह व्यवस्था है कि राष्ट् रपति द्वारा प्रत्ये क पाँच वर्ष के पश्चात् या आवश्यकता पड़ने पर उससे पूर्व
एक वित्त आयोग का गठन किया जाये गा, जिसमें अध्यक्ष के अतिरिक्त चार अन्य सदस्य होंगे । अनु च्छे द 280 के अनु सार आयोग का
कर्तव्य होगा कि वह राष्ट् रपति को निम्नलिखित के सम्बन्ध में अपनी सं स्तु तियाँ दे -
1. केन्द्र तथा राज्यों के बीच विभाजनीय करों से प्राप्त शु द्ध राजस्व का वितरण तथा इसमें विभिन्न राज्यों का हिस्सा।
2. भारत की सं चित निधि (Consolidated Fund of India) में से राज्यों को दिये जाने वाले अनु दानों (Grants-in-aid) के लिए
सिद्धान्त ।
3. सु दृढ़ वित्त के हित व राष्ट् रपति द्वारा आयोग को निर्दिष्ट किया गया अन्य कोई मामला।
उपर्युक्त के सन्दर्भ में भारत में अब तक 15 वित्त आयोगों का गठन किया जा चु का है । पहले वित्त आयोग का गठन 1951 में श्री के.
सी. नियोगी की अध्यक्षता में किया गया था।

14 वां वित्त आयोग


 14 वें वित्त आयोग का गठन राष्ट् रपति द्वारा जनवरी, 2013 में किया गया है । भारतीय रिजर्व बैं क के पूर्व गवर्नर वाई. वी.
रे ड्डी अध्यक्षता में गठित इस 5 सदस्यीय आयोग को अपनी सं स्तु तियाँ अनु च्छे द 281 के तहत् 24 फरवरी, 2015 को सं सद
में प्रस्तु त की गयीं। आयोग की सिफारिशों की क्रियान्वयन अवधि 1 अपै ल, 2015 से 31 मार्च, 2020 तक है ।
 27 नवम्बर, 2017 को केन्द्र सरकार ने 15 वें वित्त आयोग का गठन किया। 15 वां वित्त आयोग 1 अप्रैल, 2020 से शु रू हो
रही पाँच वर्ष की अवधि के लिए सिफारिशें दे गा। इसके अध्यक्ष एन. के. सिं ह हैं ।
 14 वें वित्त आयोग ने राजकोषीय घाटे में वर्ष 2016-17 तक GDP के अनु पात के रूप में 3% तक की कमी होने का अनु मान
व्यक्त किया है ।
 रिपोर्ट में केन्द्र का राजस्व घाटा वित्त वर्ष 2014-15 के 2.9% से घटकर वर्ष 2019-20 तक जीडीपी के 0.93% तक होने का
अनु मान है ।
 14 वें वित्त आयोग ने निबल केन्द्रीय करों में राज्यों का हिस्सा बढ़ाकर 42% करने की सं स्तु ति की है ।
 15 वें वित्त आयोग का गठन सरकार ने 27 नवम्बर, 2017 को किया था । केन्द्र सरकार के पूर्व सचिव एन. के. सिं ह को इस
आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है । आयोग की सिफारिशें 1 अप्रैल, 2020 से 31 मार्च, 2025 की पाँच वर्षीय अवधि के लिए
होंगी।

भारत में निर्धनता (Poverty in India)


गरीबी अथवा निर्धनता का अर्थ उस स्थिति से है , जिसमें समाज का एक भाग अपने जीवन की बु नियादी आवश्यकताओं को प्राप्त
करने में असमर्थ रहता है । योजना आयोग की रिपोर्ट के अनु सार ग्रामीण क्षे तर् में प्रति व्यक्ति 2400 कैलोरी प्रतिदिन तथा शहरी
क्षे तर् में प्रति व्यक्ति 2100 कैलोरी प्रतिदिन के हिसाब से भी जिन्हें प्राप्त नहीं हो पाता, उसे गरीबी रे खा के नीचे माना जाता है ।
रं गराजन समिति के अनु सार वर्तमान (2014-15) में 29-5 प्रतिशत जनसं ख्या गरीबी रे खा के नीचे बनी हुई है ।
 ते न्दुलकर समिति ने उपभोग व्यय के आधार पर 2004-05 में दे श में 37.2% के स्थान पर 2011-12 में 21.92% जनसं ख्या को
गरीबी रे खा के नीचे माना है ।
 सु रेश ते न्दुलकर द्वारा सु झाये गये फॉर्मूले में उपभोग व्यय को आधार माना गया है तथा शहरी क्षे तर् में प्रतिदिन ₹ 33.3 व
ग्रामीण क्षे तर् में ₹ 27.2 प्रतिदिन से कम उपभोग व्यय वालों को इस फॉर्मूले के तहत् 2014-15 में निर्धन माना गया।
 योजना आयोग के अनु सार 2014-15 में दे श में निर्धनों की सर्वाधिक सं ख्या वाले राज्य क् रमशः उत्तर प्रदे श, बिहार व मध्य
प्रदे श रहे हैं ।
 योजना आयोग के अनु सार 2011-12 में निर्धनता अनु पात की दृष्टि से पहले तीन स्थान क् रमशः छत्तीसगढ़, मणिपु र व
ओडिशा के हैं ।
भारत की राष्ट् रीय आय (National Income of India)
 राष्ट् रीय आय से तात्पर्य अर्थव्यवस्था द्वारा पूरे वर्ष के दौरान उत्पादित अन्तिम वस्तु ओं व से वाओं के शु द्ध मूल्य के योग से
होता है । इसमें विदे शों से अर्जित आय भी शामिल होती है ।
 भारत में सबसे पहले दादा भाई नौरोजी ने 1868 ई. में राष्ट् रीय आय के अनु मान अपनी पु स्तक 'Poverty and Un-British
Rule in India' में प्रति व्यक्ति वार्षिक आय ₹ 20 बताई थी।
 डॉ.वी. के. आर. वी. राव ने 1925 से 1929 तक की अवधि के लिए ₹ 76 प्रति व्यक्ति वार्षिक आय बताई थी।
 अगस्त, 1949 ई. में प्रो. पी. सी. महालनोबिस की अध्यक्षता में एक राष्ट् रीय आय समिति का गठन किया गया था, जिसका
उद्दे श्य भारत की राष्ट् रीय आय के सम्बन्ध में अनु मान लगाना था।
 इस समिति ने अप्रैल, 1951 में अपनी प्रथम रिपोर्ट प्रस्तु त की थी। इसमें 1948-49 के लिए दे श की कुल राष्ट् रीय आय ₹
8,650 करोड़ बतायी गई तथा प्रति व्यक्ति आय ₹ 246-9 बताई गई।
 राष्ट् रीय आय के आँ कड़ों का सं कलन करने के लिए सरकार द्वारा केन्द्रीय सां ख्यिकीय सं गठन (Central Statistical
Organization) की स्थापना की गई।

अर्थव्यवस्था के क्षे तर्

 प्राथमिक क्षे तर् -कृषि, वन, मत्स्य क्षे तर् व खाने ।


 द्वितीय क्षे तर् निर्माण (Construction) तथा विनिर्माण (Manufacturing)|
 तृ तीयक क्षे तर् व्यापार, परिवहन, सं चार, बैं किंग, बीमा, वास्तविक जायदाद तथा सामु दायिक व वै यक्तिक से वाएँ ।
o नियोजन के प्रारम्भ (1950-51) में भारत में सकल घरे लू उत्पाद (GDP) में प्राथमिक क्षे तर् , द्वितीयक क्षे तर् ,
तृ तीयक क्षे तर् का योगदानक् रमश: 55.11%, 13.34% तथा 29.55% था।
o वर्ष 2014-15 के दौरान 2004-05 की कीमतों पर GDP में प्राथमिक क्षे तर् , द्वितीयक क्षे तर् तथा तृ तीयक क्षे तर् का
योगदान क् रमशः 20-04, 27.36% तथा 52.60% हो गया था ।
o भारत में वर्ष 2018 सर्वाधिक प्रति व्यक्ति आय वाले राज्य क् रमशः महाराष्ट् र, तमिलनाडु व गु जरात हैं ।

भारतीय बैं क ढाँचा


 यूरोपीय बैं क पद्धति पर आधारित भारत का प्रथम बैं क विदे शी पूँजी के सहयोग से एले क्जे ण्डर एण्ड कम्पनी द्वारा बैं क ऑफ
हिन्दुस्तान के नाम से 1770 ई. में कोलकाता में स्थापित किया गया था।
 सीमित दे यता के आधार पर 1881 ई. में स्थापित अवध कॉमर्शियल बैं क भारतीयों द्वारा सं चालित पहला बैं क था, जबकि पूर्ण
रूप से पहला भारतीय बैं क 'पं जाब ने शनल बैं क' था। इसकी स्थापना 1894 ई. में की गई थी।
 इसके बाद दे श में निजी अं शधारियों द्वारा तीन प्रेसीडे न्सी बैं कों की स्थापना की गई। सन् 1806 में बैं क ऑफ बं गाल, सन्
1840 ई. में बैं क ऑफ बॉम्बे तथा 1843 ई. में बैं क ऑफ मद्रास की स्थापना की गई।
 आगे चलकर सन् 1921 में इन तीनों बैं कों को मिलाकर इम्पीरियल बैं क ऑफ इण्डिया (Imperial Bank of India) की स्थापना
की गई और 1 जु लाई, 1955 को राष्ट् रीयकरण के उपरान्त इसका नाम बदलकर स्टे ट बैं क ऑफ इण्डिया रख दिया गया।
 बैं कों को और अधिक समाजोपयोगी बनाने के उद्दे श्य से , दे श के ऐसे 14 बड़े व्यावसायिक बैं कों का 19 जु लाई, 1969 को
राष्ट् रीयकरण कर दिया गया, जिनकी जमाएँ ₹ 50 करोड़ से अधिक थीं।
पहले चरण में राष्ट् रीयकृत बैं क
1. पं जाब ने शनल बैं क
2. इण्डियन ओवरसीज बैं क
3. यूनाईटे ड बैं क ऑफ इण्डिया
4. बैं क ऑफ इण्डिया
5. बैं क ऑफ बड़ौदा
6. से ण्ट् रल बैं क ऑफ इण्डिया
7. सिन्डीकेट बैं क
8. यूनियन बैं क ऑफ इण्डिया
9. बैं क ऑफ महाराष्ट् र
10. केनरा बैं क
11. यूनाईटे ड कॉमर्शियल बैं क
12. इण्डियन बैं क
13. इलाहाबाद बैं क
14. दे ना बैं क

 15 अप्रैल, 1980 को पु नः 6 उन निजी बैं कों का राष्ट् रीयकरण किया जिनकी जमाएँ ₹ 200 करोड़ से अधिक थीं।

ू रे चरण में राष्ट् रीयकृत बैं क


दस
1. पं जाब तथा सिन्ध बैं क
2. न्यू बैं क ऑफ इण्डिया
3. आन्ध्रा बैं क
4. कॉर्पोरेशन बैं क
5. विजया बैं क
6. ओरियण्टल बैं क ऑफ कॉमर्स

 4 सितम्बर, 1997 को भारत सरकार ने न्यू बैं क ऑफ इण्डिया का पं जाब ने शनल बैं क में विलय कर दिया ।

भारतीय बैं कों का विलय


 बैं क ऑफ बड़ौदा में विलय-1 अप्रैल, 2019 को-1. दे ना बैं क, 2. विजया बैं क।
 ू रा सबसे बड़ा बैं क था और 1 अप्रैल, 2020 से यह तीसरा बड़ा बैं क होगा।
विलय के समय दस
 पं जाब ने शनल बैं क में विलय-1 अप्रैल, 2020 से -1. ओरियण्टल बैं क ऑफ कॉमर्स, 2. यूनाईटे ड बैं क ऑफ इण्डिया ।
 ू रा बड़ा सार्वजनिक क्षे तर् का बैं क होगा।
विलय के पश्चात् पं जाब ने शनल बैं क भारत का दस
 केनरा बैं क में विलय-1 अप्रैल, 2020 से -1. सिं डीकेट बैं क।
 विलय के बाद चौथा सबसे बड़ा बैं क होगा।
 यूनियन बैं क ऑफ इण्डिया में विलय-1 अप्रैल, 2020 से 1. आं धर् ा बैं क, 2. कॉर्पोरेशन बैं क।
 विलय के बाद पाँचवाँ सबसे बड़ा बैं क होगा।
 इं डियन बैं क में विलय-1 अप्रैल, 2020 से -1. इलाहाबाद बैं क ।
 विलय के बाद दे श का सातवाँ सबसे बड़ा बैं क होगा।

ध्यान दें
 1 अप्रैल, 2020 को उपर्युक्त बैं कों के विलय के बाद दे श में सरकारी बैं कों की सं ख्या 12 रह जाएगी। वह 12 बैं क हैं 1. स्टे ट
बैं क ऑफ इण्डिया, 2. पं जाब ने शनल बैं क, 3. केनरा बैं क, 4. से न्ट् रल बैं क ऑफ इण्डिया, 5. इण्डियन ओवरसीज बैं क, 6.
यूनियन बैं क ऑफ इण्डिया, 7. बैं क ऑफ बड़ौदा, 8. बैं क ऑफ महाराष्ट् र, 9. इण्डियन बैं क, 10. पं जाब एण्ड सिं ध बैं क, 11.
यूको बैं क, 12. बैं क ऑफ इण्डिया।

भारतीय रिजर्व बैं क (Reserve Bank of India)


 भारतीय रिजर्व बैं क एक केन्द्रीय बैं क है ।
 भारतीय रिजर्व बैं क की स्थापना भारतीय रिजर्व बैं क अधिनियम, 1934 के प्रावधानों के अनु सार 1 अप्रैल, 1935 को की गयी
थी। रिजर्व बैं क का केन्द्रीय कार्यालय प्रारम्भ में कोलकाता में स्थापित किया गया था जिसे 1937 में स्थायी रूप से मु म्बई
में स्थानान्तरित कर दिया गया ।
 इसका राष्ट् रीयकरण 1 जनवरी, 1949 में किया गया। रिजर्व बैं क के एक गवर्नर और अधिकतम चार उप-गवर्नर होते हैं
जिनकी नियु क्ति पाँच वर्ष के लिए की जाती है ।
 भारतीय रिजर्व बैं क के मूल कार्यों में शामिल हैं -
i. बैं क नोटों के निर्गम को नियन्त्रित करना और भारत में मौद्रिक स्थायित्व प्राप्त करने की दृष्टि से आरक्षित निधि
रखना तथा दे श हित में मु दर् ा और ऋण प्रणाली को परिचालित करना।
ii. सरकार का बैं कर अर्थात् केन्द्र और राज्य सरकारों के लिए व्यापारी बैं क की भूमिका अदा करना और उनके बैं कर का
कार्य भी करना,बैं कों के लिए बैं कर का कार्य करना, अर्थात् सभी अनु सचि
ू त बैं कों के बैं क खाते रखना।

बैं कों का वर्गीकरण


दे श के वाणिज्यिक बैं किंग सं स्थानों को निम्नलिखित दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है -
(1) अनु सचि
ू त बैं क–अनु सचि
ू त बैं क वह बैं क है , जिसका नाम रिजर्व बैं क अधिनियम, 1934 की अनु सच
ू ी द्वितीय में सम्मिलित
किया गया है । इस अनु सच
ू ी में उन्हीं बैं कों को सम्मिलित किया जाता है , जिनका-
o बैं क की प्रदत्त पूँजी और सं चित कोष ₹ 5 लाख से कम न हो।
o भारतीय रिजर्व बैं क को इस बात की सन्तु ष्टि हो कि बैं क का कोई भी कार्यकलाप जमाकर्ताओं के हित में हानिकारक
नहीं होगा।
(2) गै र-अनु सचि
ू त बैं क—जो बैं क अनु सचि
ू त नहीं होते हैं , वे गै र-अनु सचि
ू त कहलाते हैं । इस प्रकार के बैं कों की सं ख्या में अब
निरन्तर कमी हो रही है । इन बैं कों को भी सां विधिक नकद कोष शर्तों को मानना पड़ता है ले किन इस कोष को बैं क रिजर्व बैं क के
पास रखने को बाध्य नहीं है ।

भारतीय रुपये का अपना पहचान चिह्न ''


 अमरीकी डॉलर', ब्रिटिश पाउण्ड', जापानी ये न' व यूरोपीय 'यूरो' की तरह भारतीय रुपये का भी अपना अलग पहचान चिह्न
15 जु लाई, 2010 को स्वीकार कर लिया गया।
 दे वनागरी लिपि के 'र' व रोमन अक्षर 'आर' (R) से मिलते -जु लते प्रतीक चिह्न ' को रुपये के सिम्बल के रूप में स्वीकार किया
गया है ।
 अमरीकी ‘डॉलर' ($), ब्रिटिश पाउण्ड स्टर्लिं ग' (), जापानी ये न (¥) व यूरोपीय यूरो (€) के बाद भारतीय रुपये की पाँचवीं
ऐसी मु दर् ा है , जिसका अपना अलग पहचान चिह्न है ।
 इस अलग पहचान चिह्न से भारतीय रुपये की पाकिस्तान, इण्डोने शिया, ने पाल, बां ग्लादे श व श्रीलं का के रुपये से अलग
पहचान स्थापित होगी।
 रुपये के सिम्बल के लिए चयनित चिह्न (२) की रचना आई. आई. टी. मु म्बई से इण्डस्ट्रियल डिजाइनिं ग में स्नातकोत्तर
उपाधि प्राप्त डी. उदय कुमार ने की है । इसके लिए उन्हें ₹ 2.5 लाख की राशि पु रस्कार स्वरूप दी गयी है ।

भारतीय स्टे ट बैं क (SBI)


भारतीय स्टे ट बैं क की स्थापना 2 जून, 1806 को बैं क ऑफ कोलकाता के नाम से की गयी थी। वर्ष 1921 में इसे बैं क ऑफ
मद्रास (1843) तथा बैं क ऑफ मु म्बई (1840) के साथ मिलाकर इम्पीरियल बैं क ऑफ इण्डिया नाम दे दिया गया। सं सद
द्वारा एक कानून पारित कर 1 जु लाई, 1955 को इसे भारतीय स्टे ट बैं क के रूप में परिवर्तित कर दिया गया।
 31 दिसम्बर, 2016 तक इसकी 25,532 शाखाएँ थीं।
 वर्तमान में स्वयं सहायता समूह क्षे तर् में भारतीय स्टे ट बैं क की अग्रणी भूमिका है । यह दे श का पहला वाणिज्यिक बैं क है
जिसे नाबार्ड (NABARD) ने स्वयं सहायता प्रोन्नयन सं स्थान का दर्जा दिया है ।
 भारतीय स्टे ट बैं क ने विदे श में पहली शाखा कोलम्बो (श्रीलं का) में स्थापित की । कुल मिलाकर 52 दे शों में SBI की 183
शाखाएँ हैं ।
 जीवन बीमा क्षे तर् में प्रवे श करने वाला पहला वाणिज्यिक बैं क SBI है ।
 सार्वजनिक क्षे तर् के बैं कों में सबसे बड़ा बैं क भारतीय स्टे ट बैं क (SBI) है ।
 भारतीय स्टे ट बैं क में विलय-1 अप्रैल, 2017 को-1. स्टे ट बैं क बीकाने र एण्ड जयपु र, 2. स्टे ट बैं क है दराबाद, 3. स्टे ट बैं क
मै सरू , 4. स्टे ट बैं क त्रावणकोर, 5. स्टे ट बैं क पटियाला, 6. महिला बैं क का भी विलय।

सहकारी बैं क (Co-operative Bank)


 भारत में सहकारी बैं क भी बैं क के आधारभूत कार्य सम्पन्न करते हैं , किन्तु वे वाणिज्यिक बैं कों से भिन्न प्रकार के होते हैं ।
 सहकारी बैं कों की स्थापना अलग-अलग राज्यों द्वारा बनाये गये सहकारी समितियों के अधिनियमों द्वारा की गयी है ।
 भारत में सहकारी बैं के तीन प्रकार की होती हैं ।
i. राज्य सहकारी बैं क (राज्य स्तर पर),
ii. जिला सहकारी बैं क (जिला स्तर पर),
iii. ऋण समितियाँ (ग्राम स्तर पर)।
 सहकारी बैं कों पर रिजर्व बैं क का नियन्त्रण केवल आं शिक होता है ।
 प्राथमिक सहकारी बैं क (PCBs) को अपने कुल अग्रिमों का 60% प्राथमिक क्षे तर् की गतिविधियों में तथा कम-से -कम
25% कमजोर वर्गों को आबण्टित करना होता है ।
 केन्द्रीय व जिला सहकारी बैं कों की सं ख्या के मामले में प्रथम तीन स्थान वाले राज्य हैं -उत्तर प्रदे श, मध्य प्रदे श व
महाराष्ट् र।

क्षे तर् ीय ग्रामीण बैं क (Regional Rural Bank)


 क्षे तर् ीय ग्रामीण बैं क (RRB) की स्थापना विशे षकर दरू दराज के ऐसे गाँ वों में बैं किंग से वाएँ पहुँचाने के लिए 2 अक्टू बर,
1975 में की गयी थी जहाँ पहले ऐसी सु विधाओं की पहुँच नहीं थी।
 इन्हें मूलतः समाज के कमजोर वर्गों को सं स्थानिक ऋण उपलब्ध कराने की दृष्टि से शु रू किया गया था।
 क्षे तर् ीय ग्रामीण बैं कों का स्वामित्व भारत सरकार, सम्बन्धित राज्य सरकार तथा इनके प्रवर्तक बैं कों के पास है । इनकी
निर्गत पूँजी क् रमशः 50%, 15% तथा 35% के अनु पात में है ।
 शु रू में इन बैं कों की स्थापना उत्तर प्रदे श में मु रादाबाद, गोरखपु र, हरियाणा में भिवानी, राजस्थान में जयपु र तथा पश्चिम
बं गाल में माल्दा में की गयी थी। बाद में दे श के अन्य भागों में भी इन बैं कों का विस्तार किया गया।
 वर्तमान में क्षे तर् ीय ग्रामीण बैं क सिक्किम एवं गोवा को छोड़कर सभी राज्यों में कार्यरत हैं ।
 31 मार्च, 2015 को 56 क्षे तर् ीय ग्रामीण बैं कों की 20,059 शाखाएँ कार्य कर रही थीं, जिनमें से 75.3% शाखाएँ ग्रामीण
क्षे तर् ों में हैं ।

भूमि विकास बैं क (Land Development Bank)


 किसानों की दीर्घकालीन वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भूमि विकास बैं कों की स्थापना की गयी है । ये बैं क किसानों
को भूमि खरीदने , भूमि पर स्थायी सु धार करने अथवा पु राने ऋणों का भु गतान करने आदि के लिए दीर्घकालीन ऋणों की
व्यवस्था करते हैं ।
 कुछ राज्यों; जै से- -उत्तर प्रदे श व जम्मू-कश्मीर में यह ढाँचा ऐकिक है , अर्थात् वहाँ पर शीर्षस्थ भूमि विकास बैं क हैं , जो
जिला स्तर परस्वयं अपनी शाखाओं द्वारा सीधे ही अपनी गतिविधियाँ सम्पन्न करते हैं ।
 इन बैं कों के ऋणपत्रों में मु ख्य रूप से भारतीय रिजर्व बैं क, व्यापारिक बैं क, सहकारी बैं क, जीवन बीमा निगम तथा केन्द्र एवं
राज्य सरकारें निवे श करती हैं ।
 इस बैं क के ऋणपत्र दीर्घकालीन अवधि 25 वर्ष तक के होते हैं ।

राष्ट् रीय कृषि तथा ग्रामीण विकास बैं क (नाबार्ड) (National Bank for Agriculture and Rural Development–NABARD)
 नाबार्ड बैं क 12 जु लाई, 1982 को अस्तित्व में आया
 इसकी स्थापना कृषि, लघु एवं कुटीर उद्योगों, हस्तशिल्पों और गाँ वों अन्य आर्थिक गतिविधियों के सं वर्द्धन हे तु ऋण
उपलब्ध कराने के लिए की गयी थी।
 आर. बी. आई. ने NABARD की ईक्विटी में अपनी लगभग हिस्से दारी सरकार को अक्टू बर, 2010 में बे च दी।
 31 अक्टू बर, 2010 को किये गये ईक्विटी हस्तान्तरण के तहत् RBI ने NABARD की केवल 1% हिस्से दारी अपने पास रखी
है ।
 NABARD की ईक्विटी में केन्द्र सरकार व RBI की हिस्से दारी क् रमशः 99%, 1% रह गयी है ।
 नाबार्ड ग्रामीण ऋण ढाँचे में एक शीर्षस्थ सं स्था के रूप में अने क वित्तीय सं स्थाओं (राज्य भूमि विकास बैं क, राज्य सहकारी
बैं क, अनु सचि
ू त वाणिज्यिक बैं क, क्षे तर् ीय ग्रामीण बैं क) को पु नर्वित्त सु विधाएँ प्रदान करता है तथा ऋण दे ता है ।

भारतीय निर्यात- -आयात बैं क (एक्जिम बैं क) (Export-ImportBankofIndia—EXIM BANK)


 भारतीय निर्यात-आयात बैं क की स्थापना 1 जनवरी, 1982 में की गयी थी। इसका प्रधान कार्यालय मु म्बई में है ।
 एक्जिम बैं क का उद्दे श्य निर्यातकों एवं आयातकों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है । यह बैं क न केवल भारत, अपितु
तृ तीय विश्व के दे शों के लिए भी वस्तु ओं एवं से वाओं के निर्यात एवं आयात के लिए वित्त जु टाते हैं ।
 भारत के एक्जिम बैं क के विदे शों में कार्यालय वाशिं गटन, सिं गापु र, आबिदजान (आइबरी कोस्ट) तथा बु डापे स्ट (हं गरी) में
स्थापित किये गये हैं ।

राष्ट् रीय आवास बैं क (National Housing Bank-NHB)


 दे श में आवासीय वित्त उपलब्ध कराने वाले शीर्ष सं स्थान ने शनल हाउसिं ग बैं क (एन.एच.बी.) की स्थापना भारतीय रिजर्व
बैं क के पूर्ण स्वामित्व वाले सहयोगी के रूप में की गयी।
 इसकी शु रूआत जु लाई, 1988 में हुई।
 1 जु लाई, 1989 से राष्ट् रीय आवास बैं क ने जमा राशि स्वीकार करने की एक योजना प्रारम्भ की, जिसे 'गृ ह ऋण खाते की
योजना' कहते हैं । यह योजना व्यापारिक बैं कों तथा सहकारी बैं कों के माध्यम से चलायी जा रही है ।
 30 जु लाई, 2017 से UTI बैं क का नाम बदलकर एक्सिस बैं क कर दिया गया है ।

विशे ष तथ्य
 दे श में नया निजी बैं क स्थापित करने के लिए कम्पनियों को अब कम-से -कम ₹ 500 करोड़ का निवे श करना होगा। इससे पूर्व
यह राशि ₹ 300 करोड़ थी।
 भारत में लीड बैं क योजना 1969 में प्रारम्भ की गई थी।
 भारत में राष्ट् रीय नियोजन समिति की स्थापना 1938 ई. में की गई थी।
 ट् राइसे म एक केन्द्रीय प्रायोजित योजना है , जो 15 अगस्त, 1979 ई. से शु रू हुई थी।
 भारत की पहली मानव रिपोर्ट अप्रैल, 2002 में जारी की गई थी।
 नरीमन समिति की रिपोर्ट के आधार पर वर्ष 1969 में दे श में लीड बैं क योजना लागू की गई।
 भारतीय स्टे ट बैं क ने सर्वप्रथम उपग्रह ने टवर्क का इस्ते माल किया ।
 दे श की पहली पूर्णतः महिला बैं क शाखा 1962 में बं गलु रू में स्थित सिं डीकेट बैं क की शे षद्रिपु रम् शाखा है ।
 भारत की पहली महिला बैं क मै नेजर शान्ता कुमारी (सिं डीकेट बैं क) हैं ।
 सबसे पहले भारतीय स्टे ट बैं क मार्के ट बैं किंग डिवीजन खोलने वाला राष्ट् रीयकृत बैं क है ।
 भारतीय स्टे ट बैं क ने दे श का पहला तै रता एटीएम कोच्चि में 9 फरवरी, 2004 को खोला गया। यह एटीएम केरला शिपिं ग
एण्ड इनलै ण्ड ने वीगे शन कॉर्पोरेशन के झं कार नाम के स्टीमर में लगाया गया।
 निजी क्षे तर् से पूँजी उगाहने वाला पहला राष्ट् रीयकृत बैं क ओरियण्टल बैं क ऑफ कॉमर्स है ।
 सार्वजनिक क्षे तर् की बैं क इलाहाबाद बैं क ने विदे श में अपनी पहली शाखा हां गकां ग में स्थापित की।
 भारतीय स्टे ट बैं क ने विदे श में अपनी पहली शाखा कोलम्बो (श्रीलं का) में स्थापित की।
 सार्वजनिक क्षे तर् के बैं कों में भारतीय स्टे ट बैं क सबसे बड़ी बैं क है ।
 भारत के प्रधानमं तर् ी नरे न्द्र मोदी द्वारा 8 नवम्बर, 2016 में राष्ट् र के नाम सम्बोधन में रात्रि 12 बजे के बाद ₹500 एवं
₹1000 के करें सी नोट की विधिग्राह्यता को समाप्त किए जाने की घोषणा के साथ ही भारतीय रिजर्व बैं क ने इन नोटों का
विमु दर् ीकरण कर दिया।
 इसका उद्दे श्यं दे श में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करना, काले धन की अर्थव्यवस्था को मु ख्य धारा में लाना, हवाला-
कारोबार पर रोक लगाना, आतं कवादियों पर धन मु हैय्या कराने पर रोक लगाना, मु दर् ा प्रसार को रोककर बढ़ती कीमतों पर
अं कुश लगाना है ।
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड-से बी
 भारत सरकार द्वारा सं सद में एक कानून पास करके 12 अप्रैल, 1988 को भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड-से बी की
स्थापना की गयी। इस सं स्था को 30 जनवरी, 1992 में वै धानिक दर्जा भी प्रदान किया गया।
 से बी का मु ख्यालय मु म्बई में बनाया गया है , जबकि इसके क्षे तर् ीय कार्यालय कोलकाता, दिल्ली, चे न्नई में स्थापित किये गये
हैं ।
 शे यर बाजार में चलने वाले वृ हद् कारोबार को नियन्त्रित और विनियमित करने का काम सिक्योरिटीज एण्ड एक्सचें ज बोर्ड
ऑफ इण्डिया' अर्थात् से बी (SEBI) द्वारा किया जाता है ।

भारत के मान्यता प्राप्त स्टॉक 23 एक्सचें ज


1. उत्तर प्रदे श स्टॉक एक्सचें ज, कानपु र
2. बड़ौदा स्टॉक एक्सचें ज, बड़ोदरा
3. कोयम्बटू र स्टॉक एक्सचें ज, कोयम्बटू र
4. मे रठ स्टॉक एक्सचें ज, मे रठ
5. मु म्बई स्टॉक एक्सचें ज, मु म्बई
6. ओवर दी काउण्टर एक्सचें ज ऑफ इण्डिया (OTCEI), मु म्बई
7. राष्ट् रीय स्टॉक एक्सचें ज, मु म्बई
8. अहमदाबाद स्टॉक एक्सचें ज, अहमदाबाद
9. बं गलु रु स्टॉक एक्सचें ज, बं गलु रु
10. भु वने श्वर स्टॉक एक्सचें ज, भु वने श्वर
11. कलकत्ता स्टॉक एक्सचें ज, कोलकाता
12. कोचीन स्टॉक एक्सचें ज, कोचीन
13. दिल्ली स्टॉक एक्सचें ज, दिल्ली
14. गोवाहाटी स्टॉक एक्सचें ज, गु वाहाटी
15. है दराबाद स्टॉक एक्सचें ज, है दराबाद
16. जयपु र स्टॉक एक्सचें ज, जयपु र
17. कनारा स्टॉक एक्सचें ज, मं गलौर
18. लु धियाना स्टॉक एक्सचें ज, लु धियाना
19. चे न्नई स्टॉक एक्सचें ज, चे न्नई
20. मध्य प्रदे श स्टॉक एक्सचें ज, इन्दौर
21. मगध स्टॉक एक्सचें ज, पटना
22. पु णे स्टॉक एक्सचें ज, पु णे
23. कैपीटल स्टॉक एक्सचें ज केरला लिमिटे ड, तिरुअनन्तपु रम, केरल

 से बी ने पिछले कई वर्षों से निष्क्रिय पड़े सौराष्ट् र कच्छ स्टॉक एक्सचें ज की मान्यता 9 जु लाई, 2007 को समाप्त कर दी
थी, अतः अब मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचें ज की सं ख्या 24 से घटकर 23 रह गयी है ।

छापाखाने (Printing Press)


(1) इण्डिया सिक्योरिटी प्रेस, नासिक (महाराष्ट् र) नासिक (महाराष्ट् र में स्थित भारत प्रतिभूति मु दर् णालय में डाक सम्बन्धी ले खन
सामग्री, डाक एवं डाक-भिन्न टिकटों, अदालती एवं गै र-अदालती स्टाम्पों, बैं कों (RBI तथा SBI) के चे कों, बॉण्डों, राष्ट् रीय बचत
पत्रों, किसान विकास पत्रों आदि के अलावा राज्य सरकारों, सरकारी क्षे तर् के उपक् रमों, वित्तीय निगमों आदि के प्रतिभूति पत्रों
की छपाई की जाती है ।

(2) सिक्योरिटी प्रिं टिंग प्रेस, है दराबाद इसकी स्थापना दक्षिण राज्यों की डाक ले खन सामग्री की माँ गों को पूरा करने के लिए
1982 में आन्ध्र प्रदे श की राजधानी है दराबाद में की गई थी ताकि भारत प्रतिभूति मु दर् णालय, नासिक रोड के उत्पादन की अनु पर्ति

की जा सके।

(3) करे न्सी प्रेस नोट, नासिक (महाराष्ट् र) नासिक में स्थित करे न्सी नोट प्रेस ₹ 10, 50, 100, 500, 1000 और 2000 के बैं क नोट
छापती है और उनकी पूर्ति करती है ।

(4) बैं क नोट प्रेस, दे वास (मध्य प्रदे श) दे वास स्थित बैं क नोट प्रेस ₹ 10, 50, 100 और 500, 1000 और 2000 के उच्च मूल्य वर्ग के
नोट छापती है । बैं क नोट प्रेस का स्याही का कारखाना प्रतिभूति पत्रों की स्याही का निर्माण भी करता है ।

(5) शाहबनी (पश्चिम बं गाल) तथा मै सरू (कर्नाटक) के भारतीय रिजर्व बैं क नोट मु दर् ण लिमिटे ड-दो नये एवं अत्याधु निक करे न्सी
नोट प्रेस मै सरू (कर्नाटक) तथा साल्बोनी (प. बं गाल) में स्थापित किये गये हैं । यहाँ आरबीआई के नियन्त्रण में करे न्सी नोट छापे
जाते हैं ।

(6) सिक्योरिटी पे पर मिल, होशं गाबाद (मध्य प्रदे श)—बैं क और करें सी नोट कागज तथा नॉन-ज्यूडीशियल स्टाम्प पे पर की छपाई में
प्रयोग होने वाले कागज का उत्पादन करने के लिए सिक्योरिटी पे पर मिल, होशं गाबाद (मध्य प्रदे श) में 1967-68 में चालू की गई
थी।

टकसाल (Mints)
सिक्कों का उत्पादन करने तथा सोने और चाँदी की परख करने एवं तमगों का उत्पादन करने के लिए भारत सरकार की चार
टकसालें मु म्बई, कोलकाता, है दराबाद तथा नोएडा में स्थित हैं । मु म्बई, है दराबाद और कोलकाता की टकसालें काफी समय
पहले क् रमशः 1830, 1903 और 1950 में स्थापित की गई थीं, जबकि नोएडा की टकसाल 1989 में स्थापित की गई थी।
मु म्बई तथा कोलकाता की टकसालों में सिक्कों के अलावा विभिन्न प्रकार के पदकों (मे डल) का भी उत्पादन किया जाता है ।
नोएडा की टकसाल में नवीनतम मशीनरी तथा उपकरण हैं ।

भारतीय जीवन बीमा निगम


 भारत में जीवन बीमा ब्रिटे न की दे न है । सर्वप्रथम 1818 में एक ब्रिटिश फर्म ने कलकत्ता में ओरियण्टल लाइफ
इन्श्योरे न्स कम्पनी की स्थापना की।
 1823 में मु म्बई में बॉम्बे लाइफ इन्श्योरे न्स कम्पनी व 1829 में मद्रास इक्विटे बिल लाइफ इन्श्योरे न्स सोसाइटी की स्थापना
की गई।
 जीवन बीमा व्यवसाय को विनियमित करने के लिए पहली बार 1912 में एक भारतीय बीमा कम्पनी एक्ट लागू किया गया।
 बाद में 1928 में एक और भारतीय इन्श्योरे न्स कम्पनी एक्ट पास किया गया, जिसका उद्दे श्य भारत में कार्यरत भारतीय तथा
विदे शी बीमा करने वालों के द्वारा जीवन बीमा तथा अन्य प्रकार की बीमा से सम्बन्धित सां ख्यिकीय सूचनाएँ सरकार को
उपलब्ध कराना था।
 इस प्रकार के सभी अधिनियमों को समन्वित करके व्यापक प्रावधानों के साथ इन्श्योरे न्स एक्ट, 1938 लागू किया गया ।
स्वतन्त्रता के बाद 1950 में इस अधिनियम में सं शोधन किये गये ।
 19 जनवरी, 1956 को केन्द्र सरकार ने इस समय 245 भारतीय तथा विदे शी बीमा कम्पनियों को अपने अधिकार में ले लिया
तथा 1 सितम्बर, 1956 को इनका राष्ट् रीयकरण कर दिया गया | सं सद के एक अधिनियम के तहत् सितम्बर, 1956 में ₹5
करोड़ की भारत सरकार की पूँजी के साथ भारतीय जीवन बीमा निगम (एल. आई. सी.) की स्थापना की गई।
 यह अपने मु म्बई स्थित केन्द्रीय कार्यालय तथा मु म्बई, कोलकाता, दिल्ली, चे न्नई, है दराबाद, कानपु र और भोपाल स्थित
सात क्षे तर् ीय कार्यालयों एवं प्रमु ख शहरों में स्थित अपने 101 मण्डल कार्यालयों तथा 2,048 शाखाओं के जरिए कार्य करता
है । विदे शों में इसके कार्यालय फिजी, मॉरीशस और ब्रिटे न में हैं । निगम की एक अन्तर्राष्ट् रीय अनु षंगी कम्पनी लाइफ
इं श्योरें स कॉरपोरे शन (इण्टरने शनल) ई.सी. बहरीन की स्थापना 1989 में की गई थी।

नई राष्ट् रीय स्वास्थ्य बीमा योजना


 निर्धनता रे खा से नीचे जीवनयापन कर रहे असं गठित क्षे तर् के कर्मियों के लिए एक नई राष्ट् रीय स्वास्थ्य बीमा योजना'
(National Health Insurance Scheme) 2008-09 में लागू की गई है । पहले चरण में 2008-09 में 1-25 करोड़ परिवारों को
योजना के दायरे में लाने का सरकार का इरादा है तथा अगले पाँच वर्षों में सभी लक्षित व्यक्तियों को इस योजना के दायरे में
लाया जाये गा।
 योजना पर होने वाले व्यय का 75% भाग केन्द्र द्वारा वहन किया जाये गा, जबकि शे ष 25% भाग तथा प्रशासनिक व्यय
राज्य सरकारों को वहन करना होगा। पहले वर्ष अर्थात् 2008-09 के दौरान केन्द्र पर पड़ने वाला वित्तीय भार ₹ 751-50
करोड़ आकलित किया गया है ।
 इस योजना के तहत् लक्षित व्यक्तियों को केवल ₹ 30 के लागत मूल्य पर एक स्मार्ट कार्ड जारी किया जाये गा । सार्वजनिक
एवं चु निन्दा निजी अस्पतालों में वर्ष के अधिकतम ₹ 30 हजार मूल्य की चिकित्सा से वा उन्हें बिना कोई शु ल्क चु काये
(Costless) इस कार्ड के जरिए प्राप्त हो सकेगी।

भारत में विकास एवं रोजगार कार्यक् रम (Development and Em- ployment Programmes in India)

 स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना (SGSY)-


स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना गाँ वों में रहने वाले गरीबों के लिए स्वरोजगार की इस योजना की शु रूआत 1 अप्रैल,
1999 में की गई। इस योजना में पूर्व से चल रही 6 योजनाओं का विलय किया गया है —
1. समन्वित ग्राम विकास कार्यक् रम (IRDP),
2. स्वरोजगार के लिए ग्रामीण यु वाओं का प्रशिक्षण कार्यक् रम (TRYSEM),
3. ग्रामीण क्षे तर् में महिला एवं बाल विकास कार्यक् रम (DWCRA),
4. ग्रामीण दस्तकारोंको उन्नत औजारोंकी किट की आपूर्ति का कार्यक् रम (SITRA),
5. गं गा कल्याण योजना (SKY),
6. दस लाख कुआँ योजना (MWS)।
नोट-अब ये योजनाएँ अलग से नहीं चल रही हैं ।
 महात्मा गां धी ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम, 2005
राष्ट् रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम (National Rural Employment Guarantee Act_NREGA) को सितम्बर,
2005 में अधिसूचित किया गया था। ‘नरे गा' भारत सरकार का फ्लै गशिप कार्यक् रम है जो केन्द्रीय ग्रामीण विकास
मन्त्रालय द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है । इस कार्यक् रम का शु भारम्भ प्रधानमन्त्री मनमोहन सिं ह द्वारा 2 फरवरी,
2006 को आन्ध्र प्रदे श के अनन्तपु र जिले से किया गया था। इस प्रथम चरण में 200 जिले सम्मिलित थे । 2007-08 में यह
ू रे चरण में 130 अतिरिक्त जिलों में लागू किया गया। तीसरे चरण में 1 अप्रैल, 2008 से यह भारत के सभी जिलों में लागू
दस
कर दिया गया।
 पूर्व में लागू ‘काम के बदले अनाज योजना' तथा 'सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना' का विलय अब इस योजना में कर दिया
गया है ।
 'राष्ट् रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम' (नरे गा) समावे शी विकास के लक्ष्य के तहत् ग्रामीण क्षे तर् ों में परिवारों को
जीवनयापन की सु रक्षा प्रदान करती है , क्योंकि इसके जरिए एक वित्तीय वर्ष में प्रत्ये क परिवार को कम-से -कम 100 दिनों
के लिए रोजगार की गारण्टी प्रदान की जाती है , जिसमें परिवार के वयस्क सदस्य अकुशल
 शारीरिक श्रम के लिए अपनी इच्छा से शामिल हो सकते हैं ।
 'नरे गा' का नामकरण महात्मा गां धी के नाम पर 'मनरे गा' (महात्मा गां धी राष्ट् रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम
(Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act—MNREGA) की घोषणा 2 अक्टू बर, 2009 को गां धी
जयन्ती के अवसर पर की गई थी। इस फैसले के कार्यान्वयन के लिए लोकसभा में सं शोधन विधे यक 26 नवम्बर, 2009 को
पे श किया गया था।
 मनरे गा विश्व में मजदरू ी पर रोजगार गारण्टी प्रदान करने वाला सबसे बड़ा कार्यक् रम है ।
 इसमें प्रदत्त रोजगार की 90% रकम केन्द्र तथा 10% रकम राज्य वहन करता है ।

राष्ट् रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, 2005


12 अप्रैल, 2005 को राष्ट् रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शु रूआत की गई है । इस योजना के तहत् ग्रामीण क्षे तर् ों में
निर्धनतम परिवारों को वहनीय और विश्वसनीय गु णवत्तापूर्ण स्वास्थ्य से वाएँ उपलब्ध कराने हे तु की गई थी।
 इस मिशन का उद्दे श्य राष्ट् रीय जनसं ख्या नीति, 2000 और राष्ट् रीय स्वास्थ्य नीति दोनों के लक्ष्यों को भी प्राप्त करना है ।
 इस मिशन के तहत् शिशु मृ त्यु दर (IMR) को 30/1000 जीवित जन्म से नीचे लाना, मातृ मृ त्यु दर (MMR) को
100/100,000 जीवित जन्म से नीचे लाना तथा कुल प्रजनन दर (TFR) के 2012 तक 2 प्रति महिला पर लाने का लक्ष्य
रखा गया है ।

आम आदमी बीमा योजना, 2007


इस योजना की शु रूआत 2 अक्टू बर, 2007 में की गई है । यह केन्द्र प्रायोजित योजना है जिसका उद्दे श्य उन ग्रामीण भूमिहीन
परिवारों को सामाजिक सु रक्षा प्रदान करना है , जिन्हें जीवन बीमा निगम के साथ चलायी राज्य सरकार की किसी पॉलिसी के
अन्तर्गत सु रक्षा प्रदान नहीं की गई है ।
 इस योजना के तहत् केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा 50:50 के अनु पात में खर्चा वहन किया जाता है ।
 इस योजना के अन्तर्गत भूमिहीन परिवार का मु खिया या परिवार का रोजगार प्रदान करने वाला एक सदस्य, जिसकी उम्र
18-59 वर्ष के मध्य हो, इस योजना के तहत् बीमा पा सकेगा।
 केन्द्र द्वारा प्रायोजित इस योजना का सं चालन राज्यों/केन्द्रशासित क्षे तर् ों की सरकारों व भारतीय जीवन बीमा निगम
(LIC) के सहयोग से किया जा रहा है ।
 इस योजना के तहत् स्वाभाविक मृ त्यु की स्थिति में बीमा धारक के परिवार को ₹ 30 हजार, दुर्घटना के कारण होने वाली
मृ त्यु पर ₹ 75 हजार, पूर्ण और स्थायी विकलां गता की स्थिति में ₹ 75 हजार, आं शिक स्थायी विकलां गता में ₹ 37.5 हजार
दिये जायें गे ।

भारत निर्माण कार्यक् रम, 2005


ग्रामीण भारत में मूलभूत ढाँचागत सु विधाओं की कमी के यथार्थ को स्वीकार करते हुए इनकी समु चित व्यवस्था करने के उद्दे श्य
से 16 दिसम्बर, 2005 में केन्द्र सरकार द्वारा 4 वर्षीय 'भारत निर्माण कार्यक् रम शु रू किया गया।
 इस महत्वाकां क्षी योजना के तहत् दे श के ग्रामीण आधारित सं रचना के 6 प्रमु ख क्षे तर् ों में निर्धारित लक्ष्यों को रखा गया।
इसमें सिं चाई, जलापूर्ति, आवास, सड़क, टे लीफोन तथा विद्यु तीकरण को शामिल किया गया।
 वर्ष 2008-09 के अन्त में इसके कार्यान्वयन की स्थिति को ध्यान में रखते हुए सरकार ने इस कार्यक् रम के द्वितीय चरण को
सन् 2012 तक बढ़ा दिया है ।

सर्वशिक्षा अभियान (SSA), 2000-01


 दे श के 6 से 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को वर्ष 2010 तक आठवीं कक्षा तक की प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराने के
लिए वर्ष 2000-01 में सर्वशिक्षा अभियान की घोषणा की गई।
 इस अभियान पर किये गये व्यय को केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा 65 : 35 के अनु पात में वहन किया जाता है । पूर्वोत्तर
राज्यों के मामले में यह अनु पात 90 : 10 का है ।
 सभी को शिक्षा (Education for All) उपलब्ध कराने के लिए यूनेस्को ने सन् 2015 तक की सीमा निर्धारित की है , किन्तु
भारत ने सर्वशिक्षा अभियान के तहत् वर्ष 2010 तक ही इस उद्दे श्य को प्राप्त करने का लक्ष्य रखा।

कृषि
 कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मे रुदण्ड है । भारतीय जनसं ख्या का 48.9% भाग आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है । कृषि
निजी क्षे तर् का सबसे बड़ा व्यवसाय है ।
 भारत में कृषि वर्ष 1 जु लाई से 30 जून तक माना जाता है ।
 भारत में कृषि क्षे तर् पर जीडीपी का 0.3% कृषि शोध पर व्यय किया जाता है , जबकि अमे रिका में यह 4% है । राष्ट् रीय
किसान आयोग ने इसे 5% करने का सु झाव दिया है ।
 दे श का लगभग 55% कृषि क्षे तर् वर्षा पर निर्भर है ।
 सकल घरे लू उत्पादन कृषि एवं पशु धन का योगदान 2017-18 में 4.9% था जबकि 2016-17 में 4.8% था ।

किसान क् रे डिट कार्ड योजना


 किसान क् रे डिट कार्ड योजना की शु रूआत अगस्त, 1998 ई. में वाणिज्यिक बैं कों, क्षे तर् ीय ग्रामीण बैं कों तथा सहकारी बैं कों
से प्राप्त ऋण को सु साध्य बनाने के लिए प्रारम्भ की गई थी।
 ₹ 5000 अथवा अधिक-से -अधिक तीन लाख तक के उत्पादन ऋण के लिए पात्र किसान, किसान क् रे डिट कार्ड प्राप्त करने
के हकदार हैं । यह कार्ड किसानों को उनकी भूमि के आधार पर जारी किये जाते हैं ।
 दिसम्बर, 2015 ई.तक 17.63 करोड़ किसान क् रे डिट कार्ड जारी किये जा चु के हैं । इनमें 48.21% सहकारी बैं कों द्वारा, 13.16%
ग्रामीण क्षे तर् ीय बैं कों द्वारा तथा 38.63% वाणिज्यिक बैं कों द्वारा जारी किये गये ।
किसान कॉल से ण्टर व कृषि चै नल
 भूतपूर्व प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपे यी ने जनवरी, 2004 को नई दिल्ली में किसान कॉल से ण्टर' (KCC) व 'कृषि
चै नल' का उद्घाटन किया था।
 किसान कॉल से ण्टर प्रारम्भ में दे श के आठ महानगरों में शु रू किया गया था। इसके तहत् किसान बिना शु ल्क दिये 1551
नम्बर डायल करके कृषि सम्बन्धी जानकारी प्राप्त कर सकता है ।

 इसी अवसर पर प्रधानमन्त्री ने उपग्रह प्रणाली के माध्यम से इन्दिरा गां धी मु क्त विश्वविद्यालय के किसान चै नल' का
भी उद्घाटन किया। इसके तहत् तीन-तीन घण्टे के प्रोग्राम दिन में चार बार प्रसारित किये जाते हैं ।

हरित क् रान्ति (Green Revolution)


 खाद्यान्न सं कट से जूझते भारत में हरित क् रान्ति' के नाम से कृषि की नई तकनीक 1966-67 में प्रारम्भ की गई।
 हरित क् रान्ति शब्द का सबसे पहले प्रयोग अमरीकी वै ज्ञानिक डॉ.विलियम गॉड ने किया था, परन्तु हरित क् रान्ति को
असली जामा पहनाने का क्षे तर् मै क्सिको के कृषि वै ज्ञानिक डॉ. नॉरमन बोरलॉग को दिया जाता है ।
 भारत में हरित क् रान्ति के जनक प्रो. एम. एस. स्वामीनाथन हैं । स्वामीनाथन भारत के राष्ट् रीय किसान आयोग के प्रथम
अध्यक्ष बनाये गये हैं । भारत में हरित क् रान्ति का सर्वाधिक सकारात्मक प्रभाव गें हँ ू और चावल की उपज पर पड़ा । मोटे
अनाजों व दलहन के उत्पादन पर उसका प्रभाव सीमित ही रहा । हरित क् रान्ति का सबसे अधिकलाभ पं जाब, हरियाणा
तथा पश्चिमी उत्तर प्रदे श के किसानों को हुआ।
 अधिक उपज दे ने वाली प्रजातियों का प्रयोग, सिं चाई सु विधाओं की पर्याप्तता, रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग,
कीटनाशकों तथा दवाईयों से फसल सु रक्षा, कृषकों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिए कृषि विपणन मण्डियों
का विनियमितीकरण तथा भूमि सु धारों,काश्तकारी सु धार, भू-सीमा निर्धारण, अतिरिक्त भूमि का भूमिहीनों में वितरण तथा
चकबन्दी आदि उपायों से दे श में अनाजों, दालों, तिलहनों, बागवानी फसलों, नकदी फसलों आदि सभी के उत्पादन में
् हुई है ।
व्यापक वृ दधि
 हरित क् रान्ति की सफलता के पश्चात् अब भारत को द्वितीय हरित क् रान्ति अर्थात् ‘एवरग्रीन रिवॉल्यूशन' (Evergreen
Revolution) की ओर बढ़ना है , ताकि दे श के सालाना खाद्यान्न उत्पादन को 210 मिलियन टन के मौजूदा स्तर से दोगु ना
करने 420 मिलियन टन किया जा सके । यह विचार प्रमु ख कृषि वै ज्ञानिक व किसानों के राष्ट् रीय आयोग के अध्यक्ष एम.
एस. स्वामीनाथन ने 25 जनवरी, 2006 को कोयम्बटू र में एक व्याख्यान में व्यक्त किये हैं ।
 इसके लिए विज्ञान की सर्वश्रेष्ठ तकनीकों के इस्ते माल व ऑर्गेनिक फार्मिं ग में शोध को बढ़ावा दे ने पर उन्होंने बल दिया है ।
मिट् टी के स्वास्थ्य (Soil Health) का उन्नयन करने , लै ब टु लै ण्ड प्रदर्शनों को बढ़ावा दे ने, रे न वाटर हार्वेस्टिं ग को अनिवार्य
बनाने तथा किसानों को उचित मूल्य पर साख उपलब्ध कराने की आवश्यकता भी आयोग के अध्यक्ष ने सम्बोधन में बताई
है ।

श्वे त क् रन्ति (White Revolution) या ऑपरे शन फ्लड


 ऑपरे शन फ्लड के सूतर् धार अर्थात् श्वे त क् रान्ति के पितामह/जनक डॉ. वर्गीज कुरियन थे ।
 वर्ष 1964-65 में दे श में सघन पशु विकास प्रोग्राम’ चलाया गया, जिसके अन्तर्गत श्वे त क् रान्ति लाने के लिए पशु पालकों
को पशु पालन के सु धरे तरीकों का पै केज प्रदान किया गया । बाद में श्वे त क् रान्ति की गति और ते ज करने के लिए 1970 में
'ऑपरे शन फ्लड' कार्यक् रम चलाया गया है , जो विश्व का सबसे बड़ा समन्वित डे यरी विकास कार्यक् रम है ।
 ू उत्पादन में भारत का पहला स्थान है व दस
विश्व में दध ू रा स्थान अमरीका का है ।
 विश्व में सर्वाधिक पशु ओं की सं ख्या भारत में है ।
 भारत में दुग्ध उत्पादन में अग्रणी राज्य उत्तर प्रदे श है , जबकि दस
ू रा स्थान राजस्थान का है ।
 भारत की 20 वीं पशु धन गणना के परिणाम 16 अक्टू बर, 2019 को जारी हुए । दे श में कुल पशु धन आबादी 2019 में 535.78
मिलियन है , जो पशु धन गणना 2012 की तु लना में 4.6% है ।

उद्योग (Industry)
 स्वतन्त्रता के पश्चात् दे श की प्रथम औद्योगिक नीति की घोषणा 6 अप्रैल, 1948 में तत्कालीन केन्द्रीय उद्योग मन्त्री
डॉ. श्यामा प्रसाद मु खर्जी द्वारा की गई थी।
 पहली औद्योगिक नीति के द्वारा ही दे श में मिश्रित एवं नियन्त्रित अर्थव्यवस्था (Mixed and Controlled Economy) की
नींव रखी गई।
 ू री औद्योगिक नीति 30 अप्रैल, 1956 में जारी की।
सरकार ने दस
 24 जु लाई, 1991 को सरकार ने औद्योगिक नीति में व्यापक परिवर्तनों की घोषणा की। इस नई औद्योगिक नीति में 18
प्रमु ख उद्योगों को छोड़कर अन्य सभी उद्योगों को लाइसें स से मु क्त कर दिया गया। बाद में 13 और उद्योगों को लाइसें स
की आवश्यकता से मु क्त कर दिया गया।
 जु लाई, 2009 तक लाइसें सिं ग की आवश्यकता से मु क्त उद्योगों की सं ख्या घटकर 5 रह गई है ।
 दे श की GDP में औद्योगिक क्षे तर् का हिस्सा 2014-15 तक लगभग 31.8% था।

कपड़ा उद्योग (Cloth Industry)


 ू रा सबसे बड़ा रोजगार प्रदान करने वाला उद्योग है । वर्तमान में औद्योगिक उत्पादन में
कपड़ा उद्योग दे श में कृषि के बाद दस
इसका योगदान 14% है और सकल घरे लू उत्पाद (GDP) में 4% है तथा विदे शी आय में 12.53% है ।
 इस उद्योग से दे श के 4.5 करोड़ लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ है ।
 दे श के कुल निर्यात (Export) में कपड़ा उद्योग का योगदान 24.6% है तथा दे श के कुल आयात (Import) में इसका हिस्सा
ू रा सबसे बड़ा कपड़ा उत्पादक दे श है ।
3% है । भारत चीन के बाद दस
 भारत में आधु निक स्तर की प्रथम सूती कपड़ा मिल सन् 1818 ई. में कोलकाता के निकट फोर्ट ग्लोस्टर में लगाई गई थी,
किन्तु यह मिल सफल न हुई। द्वितीय मिल मु म्बई स्पिनिं ग एण्ड वीविं ग कम्पनी द्वारा 1854 ई. में मु म्बई के फवास जी.
एन. डाबर द्वारा स्थापित की गई।
 सिले -सिलाये वस्त्रों के निर्यात सं वर्द्धन के लिए दे श का पहला वस्त्र पार्क (Apparel Park) की स्थापना तमिलनाडु में
तिरुपु र के एट् टीवरम्पलायम गाँ व में 4 जु लाई, 2003 को की गई।
 भारत का वस्त्र उद्योग मु ख्यतः सूत (Cotton) पर ही आधारित रहा है तथा दे श में कपड़े की खपत का 56% भाग सूत से ही
सम्बद्ध है ।
 ू रा सबसे बड़ा उत्पादक दे श है तथा विश्व के कच्चे रे शम के उत्पादन में इसका
विश्व स्तर पर भारत रे शम का चीन के बाद दस
 योगदान 18% है ।
 विश्व में रे शम का उत्पादन सर्वप्रथम चीन में हुआ। भारत में भी रे शम प्राचीन काल से ही उत्पादित किया जा रहा है ।
 भारत में रे शम के चार प्रकार उपलब्ध हैं , जिनके नाम हैं मलबरी, एरी, तसर एवं मूंगा।
 मूंगा रे शम की एक ऐसी किस्म है जिसका उत्पादन विश्व में सिर्फ असोम में होता है ।
 रे शम उद्योग में लगभग 72.5 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है ।
 दे श में कुल रे शम उत्पादन में मलबरी किस्म के रे शम का उत्पादन 89%, एरी रे शम का 8.6%, तसर रे शम का 2.0% तथा मूं गा
किस्म के रे शम का उत्पादन 0.4% है ।
 दे श के कपड़ा निर्यात में रे शमी वस्त्रों का हिस्सा लगभग 3% है ।
 ू रा स्थान आन्ध्र प्रदे श (21.2%) का
दे श का कुल रे शम उत्पादन कर्नाटक में सर्वाधिक 29.2% उत्पादित किया जाता है । दस
है ।

लोहा एवं इस्पात उद्योग (Iron and Steel Industry)


 ू रा सबसे बड़ा दे श बन गया है । इस मामले में पहला स्थान चीन का है ।
वर्ष 2019 में भारत इस्पात उत्पादन का विश्व में दस
 भारत में इस्पात व लोहे का आरम्भ 1870 ई. में हुआ था, जब बं गाल आयरन वर्क्स कम्पनी ने झरिया के निकट कुल्टी तथा
पश्चिम बं गाल में अपने कारखाने की स्थापना की ।
 बड़े पै माने पर उत्पादन का प्रयास 1907 ई. में जमशे दपु र में टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (TISCO) की स्थापना के
साथ आरम्भ हुआ। इसके बाद 1919 ई. में बर्नपु र में इण्डियन आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (IISCO) की स्थापना हुई।
 सार्वजनिक क्षे तर् की पहली इकाई के रूप में 1923 में भद्रावती विश्वे श्वरै या आयरन एण्ड स्टील वर्क्स की स्थापना के साथ
हुआ।
 ू री पं चवर्षीय योजना के दौरान सोवियत सं घ की सहायता से भिलाई (छत्तीसगढ़) में ब्रिटे न की सहायता से दुर्गापु र
दस
(पश्चिम बं गाल) में और पश्चिमी जर्मनी की सहायता से राउरकेला (ओडिशा) में 10-10 लाख टन इस्पात उत्पादन क्षमता के
कारखाने स्थापित किये गये ।
 तीसरी पं चवर्षीय योजना में सोवियत सं घ के सहयोग से बोकारो (झारखण्ड) में एक और इस्पात कारखाने की स्थापना की
गई।
 चौथी पं चवर्षीय योजना के दौरान सले म (तमिलनाडु ), विजयनगर (कर्नाटक) और विशाखापट् टनम (आन्ध्र प्रदे श) में भी
नये इस्पात कारखाने स्थापित किये गये ।
 1974 में भारत सरकार ने स्टील अथॉरिटी ऑफ इण्डिया (SAIL) की स्थापना की तथा इसे इस्पात उद्योग के विकास की
जिम्मे दारी दी गई।
 निजी क्षे तर् के इस्पात सं यन्त्र ‘इस्को' (ISCO) का विलय भारतीय इस्पात प्राधिकरण (SAIL) में हो गया।
 यूरोप की सबसे बड़ी इस्पात कम्पनी आर्से लर के मित्तल स्टील में विलय के लिए दोनों कम्पनियों में सहमति जून, 2006 में
बन गई थी।

सीमे ण्ट उद्योग (Cement Industry)


 सीमे ण्ट उद्योग का स्थान दे श में सबसे उन्नत उद्योग में है । भारतीय सीमे ण्ट उद्योग न केवल उत्पादन के स्तर पर विश्व में
ू रा स्थान रखता है बल्कि विश्वस्तरीय गु णवत्ता का सीमे ण्ट उत्पादित करता है ।
चीन के बाद दस
 मार्च, 2012 तक भारत में 173 बड़े सीमे ण्ट कारखाने थे , जिनकी उत्पादन क्षमता लगभग 29-41 करोड़ टन थी।

कोयला उद्योग (Coal Industry)


 दे श में कुल ऊर्जा उपभोग में कोयले का अं श 67% है । कुल कोयला उत्पादन में गै र-कोकिंग कोल का भाग लगभग 92% है ।
 ू रा स्थान है ।
कोयला उत्पादन में भारत का विश्व में चीन के बाद दस
 हमारे दे श में कोयला उत्पादक क्षे तर् ों को दो भागों में बाँटा जा सकता है ।
i. गोंडवाना कोयला क्षे तर् ,
ii. टर्शियरी कोयला क्षे तर् ।

(1) गोंडवाना कोयला क्षे तर् का अधिकां श कोयला सोन, दामोदर, गोदावरी, वर्धा आदि नदियों की घाटी में स्थित है । यहाँ से
प्राप्त होने वाले कोयले का अं श 98% होता है । इस क्षे तर् में प्राप्त होने वाला कोयला एन्थे साइट और बिटु मिनस प्रकार
का होता है । गोण्डवाना क्षे तर् का अधिकां श कोयला ओडिशा, पश्चिम बं गाल, बिहार, मध्य प्रदे श, आन्ध्र प्रदे श तथा
महाराष्ट् र आदि राज्यों में पाया जाता है ।

(2) टर्शियरी कोयला क्षे तर् से मात्र 2% कोयले का उत्पादन होता है । यह क्षे तर् जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, असोम, मे घालय,
उत्तर प्रदे श तथा तमिलनाडु आदि राज्यों में पाया जाता है ।

चीनी उद्योग (Sugar Industry)


 चीनी उद्योग का कुटीर उद्योग के रूप में विकास 300 ई. पू. माना जाता है किन्तु बड़े उद्योग के रूप में इसका विकास 20 वीं
सदी से प्रारम्भ हुआ।
 ू रा सबसे बड़ा कृषि आधारित उद्योग है ।
सूती वस्त्र उद्योग के बाद चीनी उद्योग ही दस
 ू रा
भारत विश्व में ब्राजील के बाद चीनी उत्पादन करने वाला दस
 सबसे बड़ा दे श है , जबकि चीनी की खपत में विश्व में पहला स्थान
 है ।
 वर्ष 2018-19 में दे श में चीनी उत्पादन में महाराष्ट् र का प्रथम स्थान था। यहाँ 92.05 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ, जो
दे श के कुल चीनी उत्पादन का 30% था ।
 महाराष्ट् र में चीनी मिलों की सबसे अधिक सं ख्या (134) है ।
 पहले चीनी मिलों की स्थापना के लिए लाइसें स प्राप्त करना अनिवार्य था, किन्तु 20 अगस्त, 1998 को सरकार ने इस
उद्योग को लाइसें स मु क्त कर दिया।

पे ट्रोलियम उद्योग (Petroleum Industry)


 पे ट्रोलियम दुर्गन्धयु क्त गहरे रं ग का श्यान (Viscous) पदार्थ है जो विभिन्न तरह के हाइड्रोकार्बन्स का जटिल मिश्रण है ।
लगभग 40 करोड़ वर्ष पहले पादपों तथा जन्तु ओं के गहरे भूगर्भ में दब जाने तथा तब से उच्च अन्दरूनी तापमान में रहने के
चलते ऐसे जीवाश्मीय ईंधन का निर्माण हुआ । यह मु ख्यतः अवसादी परतों में पाया जाता है ।
 भारत में सबसे पहले खनिज ते ल असोम में 1825 ई. में ब्रह्मपु त्र की घाटी में प्राप्त किया गया था।
 द्वितीय पं चवर्षीय योजना के आरम्भ तक दे श में केवल डिगबोई (असोम) के आस-पास के क्षे तर् में ते ल निकाला जाता था।
 वर्तमान में दे श के खनिज ते ल की कुल आवश्यकता के लगभग 20% भाग की आपूर्ति ही स्वदे शी उत्पादन द्वारा की जाती है ।
अब इसका उत्पादन असोम, मु म्बई, गु जरात, केरल के तटीय क्षे तर् , तमिलनाडु , हिमाचल प्रदे श, आन्ध्र प्रदे श व अण्डमान
एवं निकोबार द्वीप समूह के क्षे तर् ों में उत्पादन होने लगा है ।
 ू रा स्थान हो गया है ।
खनिज ते ल की खपत में अमरीका के बाद चीन का अब दस
 भारत को खनिज ते ल का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता दे श सऊदी अरब है ।
 अन्तर्राष्ट् रीय ऊर्जा एजे न्सी (IEA) के एक आकलन के अनु सार ते जी से बढ़ रही ऊर्जा जरूरतों के चलते भारत सन् 2025
तक अमरीका और चीन के बाद तीसरा विशालतम ते ल आयातक दे श बन जाये गा।
 हाइड्रोकार्बन विजन, 2025 का सम्बन्ध पे ट्रोलियम उत्पाद के भण्डार से है ।
 भारत में ते ल अन्वे षण का कार्य ओएनजीसी और ऑयल इण्डिया लिमिटे ड द्वारा किया जाता है ।
 इस समय दे श में 21 ते लशोधन कारखाने हैं जिनमें 17 सार्वजनिक क्षे तर् , 3 निजी क्षे तर् और 1 सं युक्त क्षे तर् में है ।
 भारत सरकार ने दुग्ध उत्पादन में आत्मनिर्भरता के पश्चात् अब पे ट्रोलियम/खनिज ते ल की दिशा में आत्मनिर्भरता की ओर
बढ़ने के लिए कृष्ण क् रान्ति (Black Revolution) की घोषणा की।
 रिलायं स पे ट्रोलियम की 27 मिलियन टन वार्षिक क्षमता वाली जामनगर रिफायनरी विश्व में सबसे बड़ी ते ल रिफायनरी है ।

उर्वरक (Fertilizers)
 कृषि वै ज्ञानिकों के अनु सार कृषि में विभिन्न किस्मों के उर्वरकों (नाइट् रोजनी, फॉस्फेटी तथा पोटाशी-NPK) का उपयोग
सन्तु लित अनु पात में ही किया जाना चाहिए |
 नाइट् रोजन और फॉस्फेटी उर्वरकों के घरे लू उत्पादन में कमी को आयातों से पूरा किया जाता है ।
 भारत यूरिया के मामले में लगभग आत्मनिर्भर है ।
 उर्वरकों की सर्वाधिक खपत पं जाब में होती है । यहाँ वर्ष 2009-10 में यह खपत 237 किग्रा प्रति हे क्टे यर थी।
 उर्वरक उत्पादन एवं उपभोग में भारत का विश्व में चीन और अमरीका के बाद तीसरा स्थान है ।

दे श की महारत्न, नवरत्नव मिनी रत्न कम्पनियाँ


महारत्न का दर्जा प्राप्त कम्पनियों को निवे श के मामले में अपे क्षाकृत अधिक स्वायत्तता प्राप्त होती है । इस कम्पनी का
निदे शक मण्डल बिना सरकारी मं जरू ी ₹ 5000 करोड़ तक के निवे श का निर्णय ले सकेगी। साथ ही साथ महारत्न कम्पनियाँ अपने
निबल मूल्य के 15% तक के निवे श पर स्वतन्त्र निर्णय ले ने में भी सक्षम होंगी । यद्यपि निवे श, विलय और अधिग्रहण के
मामले में कुल सीमा निबल मूल्य की 30% होगी। उसी नवरत्न कम्पनी को महारत्न का दर्जा मिले गा जिसका पिछले तीन वर्षों में
औसत कारोबार ₹ 25,000 करोड़ रहा हो। इस दौरान कम्पनी ने ₹ 5000 करोड़ का औसत लाभ अर्जित किया हो तथा कम्पनी के
पास नवरत्न का दर्जा हो । वर्तमान में 10 कम्पनियों को महारत्न का दर्जा प्राप्त है -
1. ते ल एवं प्राकृतिक गै स निगम (ONGC)
2. भारतीय ते ल निगम (IOC)
3. भारतीय इस्पात प्राधिकरण (SAIL)
4. राष्ट् रीय ताप विद्यु त निगम (NTPC)
5. कोल इण्डिया लिमिटे ड (CIL)
6. भारत है वी इले क्ट्रिकल्स लिमिटे ड (BHEL)
7. गै स अथॉरिटी ऑफ इण्डिया लिमिटे ड (GAIL)
8. भारत पे ट्रोलियम कार्पोरेशन लि. (BPCL)
9. पॉवर ग्रिड कार्पोरेशन लिमिटे ड (PGCH)
10. हिन्दुस्तान पे ट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटे ड (HPCL)

नवरत्न
नवरत्न का दर्जा प्राप्त कम्पनियाँ निवे श के मामले में ₹ 1000 करोड़ तक के प्रस्तावों पर केन्द्र सरकार की पूर्वानु मति के
बिना ही निर्णय ले सकती हैं । वर्तमान में दे श में 14 कम्पनियों को नवरत्न का दर्जा प्राप्त है । उल्ले खनीय है कि नवरत्न का
दर्जा प्राप्त हो जाने से कम्पनियों को ज्यादा प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वायत्तता मिलती है ।
1. भारत इले क्ट् रॉनिक्स लिमिटे ड (BEL)
2. महानगर टे लीफोन निगम लिमिटे ड (MTNL)
3. हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटे ड (HAL)
4. राष्ट् रीय खनिज विकास निगम (NMDC)
5. ग्रामीण विद्यु तीकरण निगम लिमिटे ड (REC)
6. ने शनल ऐल्यु मिनियम कम्पनी (NALCO)
7. राष्ट् रीय इस्पात निगम लिमिटे ड (RINL)
8. पॉवर फाइने न्स कॉर्पोरेशन (PFC)
9. भारतीय नौवहन निगम (SCI)
10. ऑयल इण्डिया लिमिटे ड (OIL)
11. निवे ली लिग्नाइट लिमिटे ड (NLL)
12. इं जीनियरिं ग इण्डिया लिमिटे ड (EIL)
13. ने शनल बिल्डिं ग कंस्ट् रक्शन कार्पोरेशन लिमिटे ड (NBCL)
14. कण्टे नर कॉर्पोरेशन लिमिटे ड।

मिनी रत्न
ऐसे सार्वजनिक उपक् रम को मिनी रत्न कहा जाता है , जिसने पिछले वर्ष ₹300 करोड़ या इससे अधिक लाभ अर्जित किया
अथवा विगत तीन वर्षों में ₹100 करोड़ से अधिक का लाभ अर्जित किया । इस समय कुल 77 मिनीरत्न कम्पनियाँ हैं ।

विशे ष आर्थिक क्षे तर् (Special Economic Zones)


 विशे ष आर्थिक क्षे तर् (SEZ) उस विशे ष रूप से परिभाषित भौगोलिक क्षे तर् को कहते हैं , जहाँ से व्यापार, आर्थिक क्रिया-
कलाप, उत्पादन तथा अन्य व्यावसायिक गतिविधियों को किया जाता है ।
 भारत एशिया का पहला दे श है जिसने निर्यात सं वर्द्धन में निर्यात प्रसं स्करण क्षे तर् (Export Processing Zones) की महत्ता
को स्वीकार किया और काण्डला (गु जरात) में एशिया का पहला निर्यात प्रसं स्करण क्षे तर् 1965 ई. में स्थापित किया।
सार्वजनिक क्षे तर् में ऐसे 7 क्षे तर् काण्डला (गु जरात), सान्ताक् रुज (मु म्बई), फाल्ता (पश्चिम बं गाल), नोएडा (उत्तर प्रदे श),
कोच्चि (केरल), चे न्नई (तमिलनाडु ) तथा विशाखापट् टनम (आन्ध्र प्रदे श) में स्थित हैं ।
 भारत में ऐसे 8 निर्यात प्रोसे सिंग क्षे तर् हैं , जिनमें निजी क्षे तर् में सूरत में सचिन औद्योगिक क्षे तर् में स्थापित निर्यात
प्रोसे सिंग क्षे तर् भी शामिल है ।
 भारत सरकार ने इसके लिए 1 अप्रैल, 2000 में विशे ष आर्थिक क्षे तर् (से ज) नीति की घोषणा की । इस से ज नीति 2000 का
उद्दे श्य विशे ष आर्थिक क्षे तर् को विकास का इं जन बनाना था जिसमें विश्वस्तरीय उत्तम आधारित सं रचना हो, कम-से -कम
नियम व प्रतिबन्ध हों तथा केन्द्र व राज्य दोनों स्तरों पर बे हतर राजकोषीय सु विधाएँ प्राप्त हों।
 से ज नीति को प्रभावी बनाने के उद्दे श्य से भारत सरकार ने वर्ष 2005 में विशे ष आर्थिक क्षे तर् अधिनियम पारित किया। यह
अधिनियम फरवरी, 2006 में लागू हुआ।
 सरकार ने उपरोक्त 8 और निर्यात प्रसं स्करण क्षे तर् काण्डला और सूरत (गु जरात), सान्ताक् रुज (महाराष्ट् र), कोच्चि (केरल),
चे न्नई (तमिलनाडु ), नोएडा (उत्तर प्रदे श), फाल्ता (पश्चिम बं गाल) और विशाखपट् टनम (आन्ध्र प्रदे श) में मौजूदा सभी
को विशे ष आर्थिक क्षे तर् (SEZ) में परिवर्तित कर दिया है ।

नोट-जयपु र (राजस्थान) के निकट सीतापु र में दे श के पहले निर्यात सं वर्द्ध औद्योगिक पार्क (Export Promotion Industrial Park-
EPIP) का औपचारिक उद्घाटन 22 मार्च, 1997 को किया।

प्रत्यक्ष विदे शी निवे श (FDI)


 ू रे दे श में किया गया निवे श प्रत्यक्ष विदे शी निवे श (Foreign Direct Investment)
किसी एक दे श की कम्पनी द्वारा दस
ू रे दे श की उस कम्पनी के प्रबन्धन में कुछ हिस्सा प्राप्त हो जाता है जिनमें
कहलाता है । ऐसे निवे श से निवे शकों को दस
उनका पै सा निवे श हुआ रहता है ।
 किसी निवे श को एफडीआई की श्रेणी में शामिल करने के लिए कम-से -कम कम्पनी में निवे शकों को 10% शे यर खरीदना
पड़ता है ।
 प्रत्यक्ष विदे शी निवे श (FDI) किसी दे श के दीर्घकालीन आर्थिक विकास में अहम् भूमिका निभाता है ।
 भारत में एफडीआई प्रवाह बढ़ने का मु ख्य कारण है उच्च स्तर के कुशल एवं कम लागत वाले मै न पॉवर की मौजूदगी। इस
तरह की मै न पॉवर की मौजूदगी से बिजने स प्रोसे स आउटसोर्सिं ग, नॉले ज प्रोसे स आउटसोर्सिं ग एवं इं जीनियरिं ग प्रोसे स
आउटसोर्सिं ग वाले क्षे तर् ों में एफडीआई का अन्तर्प्रवाह निरन्तर बढ़ रहा है ।
 1991 के आर्थिक सु धारों में भारत ने विदे शी निवे श की नीतियों को उदार बनाने की प्रक्रिया शु रू की। 51% ईक्विटी निवे श
की स्वतः स्वीकृति व इससे कम ईक्विटी निवे श को ते ज करने के लिए विदे शी निवे श सं वर्द्धन बोर्ड (Foreign Investment
Promotion Board) बनाया गया जिससे अनिवासी भारतीयों और विदे शी निकायों ने भारत में पै सा लगाना शु रू किया।
 भारत सरकार ने 14 सितम्बर, 2012 को खु दरा क्षे तर् में 100% व 5 अक्टू बर, 2012 को बीमा क्षे तर् में 49% प्रत्यक्ष विदे शी
निवे श की अनु मति प्रदान की।
 भारत में सबसे अधिक प्रत्यक्ष विदे शी निवे श मॉरीशस के रास्ते भारत आता है ।

मोबाइल नम्बर पोर्टे बिलिटी सु विधा


20 जनवरी, 2011 से मोबाइल फोन उपभोक्ताओं के लिए मोबाइल नम्बर पोर्टे बिलिटी (MNP) की बहुप्रतीक्षित सु विधा दे श भर
में उपलब्ध हो गई है । इस सु विधा के द्वारा मोबाइल फोन धारक अब अपना पु राना फोन नम्बर बरकरार रखते हुए किसी भी अन्य
फोन कम्पनी के ऑपरे टर से कने क्शन ले सकेगा। इस सु विधा के लिए ट् राई (TRAI) ने अधिकतम शु ल्क ₹ 19 निर्धारित किया
है ।
 मोबाइल फोन कने क्शनों की सं ख्या के मामले में पहला स्थान चीन का है । इसके बाद अमरीका का स्थान है ।
 दे श में मोबाइल फोन से वा प्रारम्भ करने वाली पहली कम्पनी ऑस्ट् रेलिया की टे ल्स्ट् रा (Telstra) व भारत की बी. के. मोदी
ग्रुप की सं युक्त उपक् रम कम्पनी थी।
 इस कम्पनी की पहली बात पश्चिम बं गाल के तत्कालीन मु ख्यमन्त्री ज्योति बसु ने तत्कालीन सं चार मन्त्री सु खराम के
साथ 22 अगस्त, 1994 को की थी।
 वर्तमान (2018) में भारत में मोबाइल फोन कम्पनियों की सं ख्या 10 हो गई है ।

विश्व व्यापार सं गठन (World Trade Organization-WTO)


 1947 में GATT की स्थापना के बाद से बहुराष्ट् रीय व्यापार प्रणाली के विकास के फलस्वरूप 1 जनवरी, 1995 को विश्व
व्यापार सं गठन (WTO) की स्थापना हुई।
 15 अप्रैल, 1994 को 123 दे शों के वाणिज्य मन्त्रियों ने मराकेश में उरुग्वे दौर के फाइनल पर हस्ताक्षर किये थे ।
 भारत GATT और WTO दोनों का सं स्थापक सदस्य है । विश्व व्यापार सं गठन नियम आधारित, पारदर्शी एवं प्रत्यक्ष
बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था है जो ताकतवर व्यापार भागीदार के दबाव से सदस्य दे शों की रक्षा करती है ।
 विश्व व्यापार सं गठन (WTO) का मु ख्यालय जे नेवा (स्विट् जरलै ण्ड) में है ।
 दिसम्बर, 2015 तक WTO की सदस्य सं ख्या 164 थी। वर्तमान में विश्व के लगभग 30 अन्य दे श WTO के सदस्य बनने की
प्रक्रिया में हैं ।
 इस सं गठन का 164 वां सदस्य 19 दिसम्बर, 2015 को बनाया गया ।

विविध महत्वपूर्ण तथ्य


 दे श में हरित निवे श को बढ़ावा दे ने के लिए मु म्बई शे यर बाजार ने दे श का पहला पर्यावरण अनु कूल ईक्विटी सूचकांक शु रू
किया है । बीएसई ग्रीने क्स नाम के इस सूचकांक का उद्घाटन कम्पनी मामलो के मन्त्री वीरप्पा मोइली ने 22 फरवरी,
2012 को किया ।
 8 नवम्बर, 1996 को मु म्बई में दे श की पहली डिपॉजिटरी 'द ने शनल सिक्यूरिटीज डिपॉजिटरी लि. (NSDL) की स्थापना की
गई।
 मोबाइल नम्बर पोर्टे बिलिटी की तर्ज पर दे श में स्वास्थ्य बीमा पोर्टे बिलिटी की व्यवस्था अब 1 अक्टू बर, 2011 से शु रू की
गई है ।
 निजी क्षे तर् के यूटीआई बैं क लि. का नाम बदलकर अब एक्सिस बैं क लि. (Axis Bank Ltd.) कर दिया गया है । यह नाम 30
जु लाई, 2007 से प्रभावी किया गया है ।
 बैं कों में पूँजी पर्याप्तता के सम्बन्ध में बासे ल-III मानक लागू करने के लिए दिशा-निर्दे श भारतीय रिजर्व बैं क द्वारा 2 मई,
2012 को जारी किये गये हैं । इन मानकों का कार्यान्वयन 1 जनवरी, 2013 से चरणबद्ध तरीके से शु रू हुआ जिसे 31 मार्च, 2018
तक इसे पूरी तरह से लागू कर दिया गया है ।
 क्षे तर् ीय ग्रामीण बैं क सिक्किम व गोवा के अलावा सभी राज्यों में कार्यरत हैं । 31 मार्च, 2015 को 56 क्षे तर् ीय ग्रामीण बैं कों
की 20,059 शाखाएँ कार्य कर रही हैं ।
 विश्व में सर्वाधिक सहकारी सं स्थाएँ भारत में हैं ।
 सब्जी के उत्पादन में भारत का पहला स्थान है ।
 ू का उत्पादन उत्तर प्रदे श में होता है । भारत 1998 से विश्व में सर्वाधिक दध
भारत में सर्वाधिक दध ू उत्पादक राष्ट् र है ।
 भारत की प्रमु ख फसल चावल है ।
 वर्ष 2011 की जनगणना के अनु सार दे श में लगभग 52% लोगों को रोजगार कृषि क्षे तर् में मिला हुआ है । वर्ष 2014-15 के
दौरान GDP में कृषि क्षे तर् का अं श 14.5% अनु मानित किया गया था।
 भारत में सोयाबीन का सर्वाधिक उत्पादन मध्य प्रदे श में होता है ।
 ू रा तथा तीसरा स्थान
भारत में गें हँ ू का सर्वाधिक उत्पादन उत्तर प्रदे श में होता है । पं जाब तथा मध्य प्रदे श का क् रमशः दस
है ।
 भारत में चावल का सर्वाधिक उत्पादन पश्चिम बं गाल में होता है ।
 ू रा तथा तीसरा स्थान है ।
उत्तर प्रदे श तथा आन्ध्र प्रदे श का क् रमशः दस
 भारत में मोटे अनाज का सर्वाधिक उत्पादन राजस्थान में होता है ।
 ू रा तथा तीसरा स्थान है ।
महाराष्ट् र तथा कर्नाटक का क् रमशः दस
 भारत में दालों का सर्वाधिक उत्पादन मध्य प्रदे श में होता है ।
 ू रा तथा तीसरा स्थान है ।
राजस्थान तथा महाराष्ट् र का क् रमशः दस
 ू रा तथा तीसरा
भारत में तिलहनों का सर्वाधिक उत्पादन गु जरात में होता है । मध्य प्रदे श तथा राजस्थान का क् रमशः दस
स्थान है । चाय के उत्पादन तथा उपभोग में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है । यहाँ विश्व की 27% चाय का उत्पादन तथा
विश्व व्यापार का 13% व्यापार होता है ।
 नारियल के उत्पादन, उपभोग तथा निर्यात में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है ।
 विश्व के कुल कॉफी उत्पादन में भारत का छठा स्थान है । कॉफी का 4:0% उत्पादन भारत में होता है ।
 भारत में कॉफी के कुल उत्पादन का 56.5% केवल कर्नाटक राज्य में होता है ।
 विश्व में तम्बाकू का सबसे बड़ा उत्पादक एवं उपभोक्ता राष्ट् र चीन है ।
 ू रा सबसे बड़ा उत्पादक राष्ट् र है ।
भारत विश्व में मछली का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और मत्स्य पालन का दस
 दे श का 90% रबड़ का उत्पादन केरल राज्य में होता है । विश्व में रबड़ के उत्पादन में थाईलै ण्ड का प्रथम स्थान है । रबड़ के
उत्पादन में भारत का चौथा स्थान है । भारत में फलोत्पादन में क् रान्ति लाने के लिए उत्तर प्रदे श का पहला फल उद्यान
शोध केन्द्र मथु रा में स्थापित किया गया है ।
 विश्व में अण्डों के उत्पादन में भारत का पाँचवाँ स्थान है ।
 विश्व में सर्वाधिक अफीम का उत्पादन अफगानिस्तान में होता है ।
 कपास उत्पादन के मामले में भारत विश्व में चौथे स्थान पर है और कपास के अन्तर्गत क्षे तर् फल की दृष्टि से प्रथम स्थान
पर है ।
 मु म्बई को सूती कपड़ों की राजधानी कहा जाता है ।
 गु जरात के अहमदाबाद में सूती वस्त्रों की 66 मिलें हैं । इसे पूर्व का बोस्टन कहा जाता है ।
 उत्तर प्रदे श के कानपु र शहर में सूती वस्त्र की 10 मिले हैं , जिसे उत्तर भारत का मानचे स्टर कहा जाता है ।
 दे श के कुल औद्योगिक उत्पादन में 45% उत्पादन लघु उद्योग क्षे तर् का है । दे श के कुल निर्यात में लगभग 35% हिस्सा लघु
उद्योग क्षे तर् का है ।
 भारत में साइकिल उत्पादन का पहला कारखाना 1938 में कोलकाता में खोला गया था। भारत में प्रतिवर्ष लगभग 90 लाख
साइकिलों का उत्पादन होता है , जो विश्व में तीसरे स्थान पर है ।
 भारत में डीजल इं जन बनाने का पहला कारखाना 1932 में सतारा (महाराष्ट् र) में खोला गया था।
 दालों के उत्पादन में भारत का विश्व में पहला स्थान होने के बावजूद प्रतिवर्ष 20 लाख टन दालों का आयात करता है ।
राज्यों में सड़क मार्ग की लम्बाई में प्रथम स्थान महाराष्ट् र का है ।
 ू री बड़ी रे ल प्रणाली है ।
भारतीय रे ल वर्तमान में एशिया की सबसे बड़ी व विश्व की दस
 जे भारतीय रे लवे में 15.77 लाख कर्मचारी कार्यरत हैं । यह सं ख्या किसी भी उपक् रम की सबसे अधिक सं ख्या है ।
 नई दिल्ली के हजरत निजामु द्दीन व आगरा कैण्ट स्टे शन के बीच 5 अप्रैल, 2016 से चलाई गई गतिमान एक्सप्रेस अब दे श
में सर्वाधिक गति से चलने वाली रे लगाड़ी है । दोनों स्टे शनों के बीच की दरू ी 100 मिनट में तय करने के लिए 160 किमी की
गति प्राप्त करती है ।
 वर्ष 2015 तक भारत में इण्टरने ट उपभोक्ताओं की सं ख्या 37.5 मिलियन थी । इस दृष्टि से भारत विश्व में चीन के बाद दस
ू रे
स्थान पर है ।
 चीन व अमरीका के बाद भारत विश्व का तीसरा बड़ा टे लीफोन ने टवर्क बन गया है ।
 पूर्ण रूप से दे श का पहला भारतीय बैं क पं जाब ने शनल बैं क' था। इसकी स्थापना 1894 ई. में की गई थी।
 भारत का पहला पूर्णतः कम्प्यूटरीकृत डाकघर नई दिल्ली में 10 अक्टू बर, 1994 में को स्थापित किया गया था।
 भारत ने अपना पहला डाक टिकट 1854 ई. में कराची से जारी किया गया था।
 भारत में प्रथम डाकघर बचत बैं क की शु रूआत 1882 ई. में की गई थी।
 भारत में मनीऑर्डर प्रणाली की शु रूआत सर्वप्रथम 1880 ई. में हुई थी।
 2009-10 में भारत का सर्वाधिक प्रति व्यक्ति आय वाला राज्य गोवा था तथा सर्वाधिक प्रति व्यक्ति आय वाला
केन्द्रशासित राज्य चण्डीगढ़ था।
 ू रा सबसे बड़ा दे श है । चीनी की सर्वाधिक खपत भारत में होती
भारत विश्व में ब्राजील के बाद चीनी उत्पादन करने वाला दस
है ।
 ू रा सबसे बड़ा दे श का कृषि आधारित उद्योग है ।
सूती वस्त्र उद्योग के बाद चीनी ही दस
 प्राथमिक शिक्षा को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ बच्चों को पोषित आहार उपलब्ध कराने के लिए 1995 ई. में भारत ने
दोपहर भोजन सहायता (मिडडे मील) की शु रूआत तमिलनाडु प्रदे श से की । इसका खर्चा केन्द्र व राज्य सरकार क् रमशः
75 : 25 के अनु पात में उठाते हैं । इसे 1997-98 तक दे श के सभी ब्लॉकों में लागू कर दिया गया है ।
 यह योजना कक्षा 1 से 5 तक के सभी बच्चों के लिए 300 कैलोरी और 8-10 ग्राम प्रोटीन वाला पका हुआ मध्याह्न भोजन
प्रदान करने की व्यवस्था की गई है ।
 भारत सरकार ने पर्यटन उद्योग को बढ़ावा दे ने के लिए सिं गापु र, फिनलै ण्ड, लग्जमबर्ग तथा जापान के पर्यटकों को अब
भारत पहुंचने पर हवाई अड्डे पर ही पर्यटन बीजा उपलब्ध कराने हे तु बीजा ऑन अराइवल' योजना 1 जनवरी, 2010 को
प्रारम्भ की है ।
 1 जनवरी, 2011 से छ: और दे शों क् रमशः कम्बोडिया, इण्डोने शिया, लाओस, म्यांमार, फिलीपींस और वियतनाम के पर्यटकों
के लिए भी 'वीजा ऑन अराइवल' योजना लागू कर दी है ।
 पर्यटन मन्त्रालय ने पर्यटन उद्योग के विभिन्न हितकारकों तथा आम जनता के लिए 'अतिथि दे वो भव' अभियान शु रू किया
है , जिसके अन्तर्गत आम जनता को पर्यटकों के प्रति उनके व्यवहार और दृष्टिकोण के साथ सफाई और स्वास्थ्य से
सम्बन्धित मु द्दों पर जागरूक किया जा रहा है ।
 वर्ष 2011 के दौरान भारत में विदे शी पर्यटक आगमन की सं ख्या वर्ष 2010 की 5-78 मिलियन विदे शी पर्यटन आगमन की
् दर्ज करते हुए 6-29 मिलियन के स्तर पर पहुँच गयी।
तु लना में 8.9% की वृ दधि
 भारत विश्व के उन दे शों में से एक है , जहाँ 1894 ई. से ही एक व्यवस्थित वन नीति रही है । स्वतन्त्रता के बाद पहली बार
1952 में एक 'राष्ट् रीय वन नीति' की घोषणा की गयी तथा 1988 ई. में वनों की सु रक्षा, सं रक्षण और विकास को आधार
बनाकर इसमें सं शोधन किये गये ।
 1985 में गं गा एक्शन प्लान' नामक योजना के माध्यम से इस नदी को पु नर्जीवित करने का प्रयास हुआ था ले किन दो चरणों
ू ण स्तर ही बढ़ता गया।
में 22 वर्ष (1985-2007 तक) चले इस अभियान पर ₹900 करोड़ खर्च करने के बावजूद गं गा का प्रदष
 केन्द्र सरकार ने मिशन क्लीन गं गा' नामक महत्वाकां क्षी परियोजना प्रारम्भ की। इस परियोजना के तहत् वर्ष 2020 तक
गं गा को पूरी तरह से साफ किया जाये गा तथा इस पर ₹ 15000 करोड़ खर्च किये जायें गे ।
 नाबार्ड (NABARD) में रिजर्व बैं क की हिस्से दारी 72.5% है ।
 भारतीय अर्थव्यवस्था में सर्वोच्च विकास दर (10.5%) 1989 में पायी गयी थी।
 शत-प्रतिशत केन्द्रीय सहायता पर आधारित मरुभूमि विकास कार्यक् रम 1977-78 में शु रू किया गया था।
 राष्ट् रीय आय की सामाजिक ले खांकन गणना विधि का विकास रिचर्ड स्टोन ने किया था।
 उपभोक्ता की बचत का सिद्धान्त अल्फ् रे ड मार्शल ने दिया था। केन्द्रीय एगमार्क प्रयोगशाला नागपु र में स्थित है ।
 स्वतन्त्र भारत की औद्योगिक नीति का प्रस्ताव 1945 ई. में पारित किया गया था।
 बैं किंग प्रणाली के सम्बन्ध में सु झाव के लिए 1991 ई. में नरसिम्हन समिति का गठन किया गया था।
 भारतीय आयात-निर्यात बैं क की स्थापना 1982 ई. में की गयी थी। मनोरं जन कर राज्य सरकार द्वारा लगाया जाता है ।
 विश्व में पिनकाओ (थाईलै ण्ड) चावल को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है ।
 विश्व बैं क की उदार ऋण दे ने वाली खिड़की अन्तर्राष्ट् रीय विकास मं च को कहा जाता है ।
 कम-से -कम 1000 की आबादी वाले गाँ वों में बैं क खोलने की भारत सरकार की योजना है ।
 भारत में भारतीय स्टे ट बैं क (SBI) की सर्वाधिक शाखाएँ हैं ।
 भारत के यूनियन बैं क ने सर्वप्रथम ग्राहकों की सु विधा के लिए रात्रिकालीन से वा प्रारम्भ की।
 4 सितम्बर, 1987 से हां गकां ग एण्ड शं घाई बैं क ने भारत में (मु म्बई शाखा) ग्राहकों की सु विधा के लिए सर्वप्रथम
ऑटोमे टिक टे लर मशीन एटीएम) को उपलब्ध करवाया ।
 ू री सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हो गयी। इस मामले में जापान का तीसरा स्थान है ।
अमरीका के बाद चीन विश्व की दस
 अमरीकी वाणिज्यिक पत्रिका फोर्ब्स के अनु सार खाड़ी क्षे तर् के ते ल सम्पन्न दे श कतर में प्रति व्यक्ति आय विश्व में
सर्वाधिक है । फोर्ब्स आकलन के अनु सार वर्ष 2010 में वहाँ प्रति जीडीपी 88,000 डॉलर बतायी गयी है ।
 ू रा बड़ा बाजार हो गया है ।
सीडीएमए (Code Division Multiple Access) फोन से वा का भारत अब अमरीका के बाद दस
 विश्व में इण्टरने ट का उपयोग करने वाले लोगों की सं ख्या में चीन (67-4 करोड़) पहले स्थान पर है तथा भारत (37.5 करोड़),
ू रे , तीसरे तथा चौथे स्थान पर हैं ।
अमरीका (28.1 करोड़) व ब्राजील (11.8 करोड़) क् रमशः दस
 ू रा, तीसरा,
विश्व में इण्टरने ट का उपयोग करने वाले लोगों के प्रतिशत में ऑस्ट् रेलिया (80-6%) का पहला स्थान तथा दस
चौथा स्थान क् रमशः दक्षिण कोरिया (76-0%), अमरीका (74-7%), जापान (73.8%) का है ।
 पूर्वोत्तर के राज्यों के सामाजिक आर्थिक विकास हे तु विजन, 2020 दस्तावे ज प्रधानमन्त्री मनमोहन सिं ह द्वारा नयी दिल्ली
में 2 जु लाई, 2008 को जारी किया गया।
 मॉडवे ट (MODVAT_Modified Value Added Tax) यह पूर्व में प्रचलित VAT का ही सं शोधित रूप है । इसकी सं स्तु ति
1976 में लक्ष्मीकान्त झा की अध्यक्षता में गठित समिति ने की थी । यह समिति वास्तव में अप्रत्यक्ष कर ढाँचे में सु धार के
लिए सिफारिशें दे ने के लिए गठित की गयी थी।
 उत्पाद शु ल्क की नई कर सं रचना के तहत् मॉडवे ट (MODVAT) योजना को 1 अप्रैल, 2000 से से नवे ट (CENVAT)
योजना के नाम से जाना जाता है ।
 वर्ष 2000-01 के बजट में पिछले बजट में घोषित उत्पाद शु ल्क की तीन दरों (8, 16 व 24%) को 16% की एक मॉडवे ट योग्य
दर(16%) में प्रतिस्थापित किया। इसे ही से ण्ट् रल वै ल्यू एडे ड टै क्स (CENVAT) नाम दिया गया है ।
 ' बीमारू (BiMaRU) राज्य बिहार, मध्य प्रदे श, राजस्थान तथा उत्तर प्रदे श हैं । यह राज्य सामाजिक विकास की दृष्टि से
पिछड़े हुए (बीमार या Sick) हैं ।
 भारतीय मानक ब्यूरो के आई. एस. आई. चिह्न की भाँ ति ही पर्यावरण वन मन्त्रालय ने जनवरी, 1992 से एक 'इकोमार्क ' चिह्न
योजना प्रारम्भ की। मिट् टी के मटके के रूप में इकोमार्क एक प्रतीक चिह्न है , जो किसी भी ऐसे उत्पाद पर प्रदान किया
जाता है , जो पर्यावरण को हानि नहीं पहुंचाता है ।
 भारत में ऐगमार्क एक्ट (Agmark Act) 1937 ई. से लागू हुआ।
 दे श का पहला बोलता एटीएम 6 जून, 2012 को गु जरात की राजधानी गां धीनगर में यूनियन बैं क ऑफ इण्डिया (UBI) ने
खोला। यह एटीएम विशे ष रूप से दृष्टिबाधित लोगों के लिए बनाया गया है ।
 कोयले से चलने वाला दे श का सबसे पु राना भाप लोकोमोटिव 'फेयरी क्वीन' है । ईस्ट इण्डियन रे लवे के लिए इस
लोकोमोटिव का निर्माण 1855 ई. में ब्रिटे न की थामसन एण्ड हे विटसन कम्पनी ने किया था।
 दे श की सर्वाधिक दरू ी तय करने वाली रे लगाड़ी अब 'विवे क एक्सप्रेस' है । असोम को कन्याकुमारी से जोड़ने वाली इस
रे लगाड़ी का परिचालन 19 नवम्बर, 2011 को किया गया । यह रे लगाड़ी डिब्रूगढ़ (असोम) से कन्याकुमारी (तमिलनाडु ) तक
4,286 किमी की दरू ी 82.30 घण्टे में तय करे गी। इससे पूर्व जम्मू-तवी से कन्याकुमारी के बीच 3,715 किमी की दरू ी तय करने
वाली हिमसागर एक्सप्रेस थी।
 दे श की पहली राजधानी एक्सप्रेस 1 मार्च, 1969 से नई दिल्ली-हाबड़ा के बीच सप्ताह में दो बार चलायी गयी थी।
 दिल्ली मे ट्रो की रे लगाड़ियों का निर्माण जापान की मित्सु बिशी कॉर्पोरेशन, मित्सु बिशी इले क्ट्रिक कॉर्पोरेशन और कोरिया
की रोटे म कम्पनी द्वारा किया गया।
 कोरिया स्थित इस फैक्ट् री से इस मे ट्रो रे लगाड़ी को भारत के लिए 26 जु लाई, 2002 को लाया गया तथा इसका
व्यावसायिक परिचालन 25 दिसम्बर, 2002 को हो गया था। न्यूयॉर्क मे ट्रो के पश्चात्
 ू री मे ट्रो रे ल है ।
ISO-14001 प्रमाणन प्राप्त विश्व की यह दस
 बाड़मे र (राजस्थान) में ते ल के विशाल भण्डार पाये जाते हैं ।
 राष्ट् रीय ले खा सां ख्यिकी को श्वे त-पत्र कहा जाता है ।
 भारत की पहली स्वर्ण रिफायनरी सिरपु र (महाराष्ट् र) में स्थापित की गई थी।

विशिष्ट पहचान पत्र 'आधार


 26 अप्रैल, 2010 को नई दिल्ली में दे श के सभी नागरिकों को विशिष्ट पहचान सं ख्या (Unique ID) 12 अं कीय प्रदान करने
की महत्वाकां क्षी योजना को जारी किया गया ।
 सरकार की इस योजना का उद्दे श्य बे ईमानी और बिचौलियों को समाप्त करने , पारदर्शिता लाने और सरकारी पै सा
लाभान्वितों तक सीधे पहुँचाने के लिए अत्याधु निक तकनीक का इस्ते माल इसमें किया गया है ।
 यूपीए सरकार की विशिष्ट पहचान-पत्र की महत्त्वाकां क्षी आधार परियोजना के वर्ष सितम्बर, 2012 में पूरे हुए हैं । इसकी
ू री वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में राजस्थान में दद
दस ू ू कस्बे में 20 अक्टू बर, 2012 को आयोजित एक समारोह में 21 करोड़वां
विशिष्ट पहचान-पत्र यूपीए सरकार ने उदयपु र जिले की एक महिला को सौंपा।
 12 अं कीय इस आधार पर योजना के अन्तर्गत दे श के हर निवासी को जनसां ख्यिकीय और बायोमीट्रिक जानकारी वाली एक
अद्वितीय पहचान सं ख्या जारी की गयी है । इस यूआईडी नम्बर का उपयोग
 दे श का प्रत्ये क नागरिक भारत में कहीं भी अपनी पहचान बताने में कर सकेगा।
 इस यूआईडी बायोमीट्रिक पहचान सं ख्या के लिए प्रत्ये क व्यक्ति की दसों अं गुलियों का फिंगर प्रिण्ट, एक फोटो और
आँ खों का स्कैन लिया जाता है ।
 ऐसा पहला यूआईडी कार्ड 'आधार' 29 सितम्बर, 2010 में महाराष्ट् र के नन्दुरबार जिले के ते म्भली गाँ व में तत्कालीन
प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिं ह द्वारा जारी किया गया ।

ISO प्रमाणन प्राप्त 13 भारतीय रे लगाड़ियाँ


दे श की 13 रे लगाड़ियों को दिसम्बर, 2004 तक उत्कृष्ट से वाएँ प्रदान करने के लिए ISO प्रमाणन मिल चु का था । इसमें 5
रे लगाड़ियाँ उत्तर रे लवे की तथा 3-3 रे लगाड़ियाँ मध्य रे लवे तथा उत्तर-मध्य रे लवे की और 2 रे लगाड़ियाँ पश्चिम मध्य
रे लवे की हैं । इनके नाम निम्नलिखित हैं -
आर्थिक शब्दावली
 ई-कॉमर्स (E-Commerce)
उपभोक्ता बाजार की यह नई कार्य प्रणाली है जिसके अन्तर्गत इण्टरने ट पर वस्तु ओं का क् रय-विक् रय किया जाता है । ई-
कॉमर्स व्यापार की एक नई सम्पूर्ण विधा है जो वस्तु ओं के विस्तृ त विवरण, उनके मूल्य एवं आकार-प्रकार को इण्टरने ट पर
प्रदर्शित करने से ले कर उनको बे चने , उनका भु गतान करने और तत्पश्चात् तरह-तरह से ग्राहक को प्रलोभित, सहायता
एवं से वा उपलब्ध कराने की सु विधा प्रदान कराती है ।

 ई-बिजने स (E-Business)
इण्टरने ट पर किये जाने वाली बिजने स को ई-बिजने स कहा जाता है । जब पारम्परिक सूचना प्रौद्योगिकी निकायों को
इण्टरने ट के साथ जोड़ दिया जाता है तब वह ई-बिजने स में परिवर्तित हो जाता है । यह गतिज (Dynamic) तथा परस्पर
सम्बन्ध स्थापित करने वाला (Inter Active) होता है । इसका दायरा बहुत व्यापक है जिसमें निजी इण्ट् राने ट (Intranet),
सहभाजी (Extranet) तथा इण्टरने ट सम्मिलित हैं ।

 मु दर् ा नीति (Monetary Policy)


नीति जिसके द्वारा मौद्रिक प्राधिकरण (जै से-भारत में रिजर्व बैं क या यू. एस. ए. में फैडरल रिजर्व सिस्टम) मु दर् ा पूर्ति को
प्रसारित करता या सिकोड़ता है या ऋण को सस्ता या महँ गा बनाता है , विपरीत चक् रीय नीति के रूप में इसका उपयोग
किया जाता है ।

 विशे ष उधाराधिकार (एस. डी. आर.) (Special Drawing Right [SDRs])


आई. एम. एफ. के पास पूरक रिजर्व जो मे म्बरों को कोटे के रूप में आबण्टित किये जाते हैं और जो उधाराधिकार के रूप में
सर्वमान्य होते हैं । यह भु गतान शे ष में घाटे के अर्थ प्रबन्ध के लिए दिये जाते हैं ।

 विदे शी प्रत्यक्ष निवे श (Foreign Direct Investment)


भौतिक सम्पदा; जै से-कारखाने , भूमि, पूँजीगत वस्तु एँ तथा आधारिक सं रचना वाले क्षे तर् ों में जब विदे शी निवे शक अपना धन
लगाते हैं , तो इसे प्रत्यक्ष विदे शी पूँजी निवे श कहा जाता है । अधिकां शतया इस प्रकार के निवे श बहुराष्ट् रीय कम्पनियों
द्वारा किये जाते हैं ।

 गिफिन वस्तु एँ (Giffin Goods)


गिफिन वस्तु एँ कुछ घटिया किस्म की ऐसी वस्तु एँ होती हैं जिन पर उपभोक्ता अपनी आय का बड़ा भाग व्यय करता है । इन
् से इनकी माँ ग बढ़ जाती है तथा मूल्य में कमी से माँ ग भी
वस्तु ओं पर माँ ग का नियम लागू नहीं होता, बल्कि मूल्य में वृ दधि
कम हो जाती है । इस विरोधाभास को गिफिन का विरोधाभास (Giffin's Paradox) कहा जाता है ।

 म्यूचुअल फण्ड (Mutual Fund)


म्यूचुअल फण्ड के अन्तर्गत जन-साधारण के निवे श योग्य धन को ऐच्छिक आधार पर एकत्रित करके विनियोग के बे हतर
अवसरों में प्रयोग किया जाता है इसकी स्थापना प्रायः निवे श सम्बन्धी निर्णय ले ने वाली दक्ष वित्तीय सं स्थाओं द्वारा की
जाती है । भारत में यूनिट ट् रस्ट ऑफ इण्डिया, स्टे ट बैं क, केनरा बैं बैं क ऑफ इण्डिया, इण्डियन बैं क तथा जीवन बीमा निगम
आदि ने इस प्रकार केम्यूचुअल फण्ड स्थापित किये हैं ।
 प्रशासित मूत्य (Administered Prices)
जब किसी वस्तु के मूल्य का निर्धारण बाजार की माँ ग व पूर्ति की स्वतन्त्र के शक्तियों द्वारा न होकर किसी केन्द्रीय शक्ति
द्वारा होता है तो इस प्रकार का मूल्य प्रशासित मूल्य कहलाता है । किसी एकाधिकारी फर्म द्वारा एकपक्षीय तरीके से
निर्धारित मूल्य या सरकार द्वारा किसी वस्तु का निर्धारित मूल्य आदि प्रशासित मूल्य के उदाहरण हैं ।

 मु दर् ा सं कुचन (Deflation)


जब बाजार में मु दर् ा की कमी के कारण कीमतें गिर जाती हैं , उत्पादन व व्यापार गिर जाता है और बे रोजगारी बढ़ती है , वह
अवस्था ‘मु दर् ा सं कुचन' कहलाती है । रिसे शन (Recession) रिसे शन से तात्पर्य मन्दी की अवस्था से है । जब वस्तु ओं की पूर्ति
की तु लना में माँ ग कम हो तो रिसे शन की स्थिति उत्पन्न होती है । ऐसी स्थिति में धनाभाव के कारण लोगों की क् रय-शक्ति
कम होती है और उत्पादित वस्तु एँ अनबिकी रह जाती हैं । इससे उद्योगों को बन्द करने की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है व
बे रोजगारी बढ़ जाती है । 1930 दशक में विश्वव्यापी रिसे शन की स्थिति उत्पन्न हुई थी तब विश्व के सभी दे शों पर उसका
प्रतिकू ल प्रभाव पड़ा था।

 मु दर् ास्फीति (Inflation)


मु दर् ा प्रसार या मु दर् ास्फीति वह अवस्था है जिसमें मु दर् ा का मूल्य गिर जाता है और कीमतें बढ़ जाती हैं । आर्थिक दृष्टि
से सीमित एवं नियन्त्रित मु दर् ास्फीति अल्पविकसित अर्थव्यवस्था हे तु लाभदायक होती है क्योंकि इससे उत्पादन में वृ दधि

को प्रोत्साहन मिलता है , किन्तु एक सीमा से अधिक मु दर् ास्फीति हानिकारक है ।

 रिफ्ले शन (Reflation)
् हो और वस्तु ओं की
मन्दी की अवस्था में अर्थव्यवस्था में कुछ ऐसे कदम उठाये जाते हैं कि लोगों की क् रय-शक्ति में वृ दधि
् होती है , उसे रिफ्ले शन कहते हैं ।
माँ ग बढ़े , इसके परिणामस्वरूप मूल्य में जो वृ दधि

 राजकोषीय कर्षण (Fiscal Drag)


जब कर की दरों में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जाता, ले किन मु दर् ास्फीति के कारण कर का भार बढ़ जाता है तो
बढ़े हुए कर भार को राजकोषीय कर्षण कहते हैं । इसके परिणामस्वरूप बढ़े हुए वे तन व मजदरू ी के कारण व्यक्ति उच्च कर
श्रेणी में पहुँच जाता है ।

 राजस्व घाटा (Revenue Deficit)


राजस्व व्यय (Revenue Expenditure) एवं राजस्व प्राप्तियाँ (Revenue Receipts) के बीच के अन्तर को राजस्व घाटा
(Revenue Deficit) कहा जाता है । इसमें पूँजीगत खाते का घाटा सम्मिलित नहीं किया जाता है । यह वस्तु तः चालू खाते का
घाटा होता है । यह अल्पकालिक उपभोग की प्रवृ त्ति के व्ययों को दर्शाता है ।

 मौद्रिक परिसम्पत्ति (Monetary Asset)


मु दर् ा की निश्चित मात्रा का अधिकार (दावा) उदाहरण-बचत, डिपॉजिट, प्रॉमिसरी नोट, नकदी, बॉण्ड, ले नदार खाता
इत्यादि प्रत्ये क परिसम्पत्ति के अनु रूप दायित्व की उतनी ही मात्रा होती है ।
 रोलिं ग प्लान (Rolling Plan)
इसकी अवधारणा प्रथम बार गु न्नार मिर्डल द्वारा प्रस्तु त की गई। यह 'एकवर्षीय योजना', 'पं चवर्षीय योजना' तथा
ू रे वर्ष यह 1991
'पर्सपे क्टिव योजना' सभी होती हैं । उदाहरण के लिए अगर कोई योजना 1990 से 1995 तक के लिए है तो दस
से 1996 तक के लिए हो जाये गी तथा फिर अगले वर्ष 1992 से 1997 तक के लिए । भारत में यह प्रथम बार जनता सरकार
द्वारा 1978 में लागू की गयी थी, किन्तु 1980 में इन्दिरा गां धी की सरकार ने इसे समाप्त कर दिया।

 बिजने स प्रोसे स आउटसोर्सिं ग (Business Process Outsourcing)


ू रे दे शों के विशे षज्ञ) से कार्य करवाने की प्रक्रिया ‘बिजने स प्रोसे स आउटसोर्सिं ग'
किसी उद्यमी द्वारा बाहरी स्रोतों (दस
कहलाता है यानी ठे के पर काम करने की प्रथा। जीवन प्रत्याशा सूचकांक इसके मापन हे तु इसके अधिकतम एवं न्यूनतम
जीवन प्रत्याशा मूल्य जो क् रमशः 85 वर्ष से 25 वर्ष माना जाता है , के आधार पर निम्न सूतर् के द्वारा जीवन प्रत्याशा
सूचकांक प्राप्त किया जाता है - वास्तवित मूल्य – न्यूनतम मूल्य जीवन प्रत्याशा = अधिकतम मूल्य – जीवन प्रत्याशा

 बहुराष्ट् रीय निगम (Multinational Corporation)


एक ऐसी कम्पनी जिसके कार्यक्षे तर् का विस्तार एक से अधिक दे शों में होता है जिसका उत्पादन एवं से वा सु विधाएँ उस दे श
से बाहर भी सम्पन्न होती हैं जिसमें यह जन्म ले ती हैं , को अन्तर्राष्ट् रीय कम्पनी या बहुराष्ट् रीय निगम कहा जाता है । ऐसी
कम्पनियों की महत्वपूर्ण विशिष्टता यह है कि प्रमु ख निर्णय पूरे विश्व के सन्दर्भ में एक साथ लिये जाते हैं , जिसके कारण
इनके निर्णय बहुधा उस दे श की नीतियों से बे मेल हो जाते हैं , जिनमें यह कम्पनी कार्य कर रही होती है ।

 हवाला (Hawala)
यह व्यापार अधिकृत विदे शी विनियम चै नलों को बाईपास करने वाली एक प्रणाली है । इस व्यापार में लगे लोग भु गतान
घरे लू मु दर् ा (Domestic Currency) की आपूर्ति कर दे ते हैं । यह व्यापार एक प्रमु ख सं चालक के नियन्त्रण में कार्यरत
एजे ण्टों के माध्यम से परिचालित होता रहता है । हवाला व्यापार की विनिम दरें दे श के विभिन्न केन्द्रों में प्रायः अलग-
अलग होती हैं । कुछ आयातक एवं निर्यातक भी हवाला व्यापार के माध्यम से ले न-दे न में रुचि रखते हैं ।

 व्यापारिक कटौती (Trade Discount)


विक् रे ता अपनी मूल्य सूची में दिये हुए मूल्य से कुछ कम मूल्य पर माल ग्राहक को बे चता है , तो इस प्रकार जितना कम
् करना होता है । इस राशि का ले खांकन नहीं
मूल्य होता है , उसे 'व्यापारिक कटौती' कहते हैं । इसका उद्दे श्य विक् रय वृ दधि
किया जाता।

 नकद कटौती (Cash Discount)


नकद कटौती उन व्यापारियों को दी जाती है , जो एक निश्चित तिथि के पहले मूल्य का भु गतान नकदी में कर दे ते हैं । इसका
ले खांकन किया जाता है । इसका उद्दे श्य ग्राहकों को राशि का शीघ्र भु गतान हे तु प्रोत्साहित करना है ।

 जीरो ने ट-एड (Zero Net Aid)


जब किसी दे श विशे ष की आर्थिक व्यवस्था स्वनिर्भर हो जाती है तथ उसे किसी विदे शी आर्थिक सहायता की आवश्यकता
नहीं होती, तो वह 'जीरो ने ट-एड' कहलाती है ।
 हॉट मनी (Hot Money)
उस विदे शी मु दर् ा को हॉट मनी कहते हैं , जिसमें शीघ्र पलायन कर जाने की प्रवृ त्ति होती है । जिस स्थान पर अधिक लाभ
मिलने की सम्भावना होती है वहीं यह स्थानान्तरित हो जाती है ।

 हार्ड करे न्सी (Hard Currency)


अन्तर्राष्ट् रीय बाजार में जिस मु दर् ा की पूर्ति की तु लना में माँ ग लगातार अधिक होती है वह हार्ड करे न्सी कहलाती है ।
प्रायः विकसित दे शों की मु दर् ा हार्ड करे न्सी कही जाती है ।

 हीनार्थ प्रबन्धन (Deficit Financing)


जब सरकार का बजट घाटे का होता है अर्थात् आय कम होती है और व्यय अधिक होता है और व्यय के इस आधिक्य को
केन्द्रीय बैं क से ऋण ले कर अथवा अतिरिक्त पत्र मु दर् ा निर्गमित कर पूरा किया जाता है , तो यह व्यवस्था 'घाटे की वित्त
व्यवस्था' अथवा 'हीनार्थ प्रबन्धन' कहलाती है । सीमित मात्रा में ही इसे उचित माना जाता है । हीनार्थ प्रबन्ध को स्थायी
नीति बना ले ने के परिणाम अच्छे नहीं होते ।

 विमु दर् ीकरण (Demonetization)


जब काला धन बढ़ जाता है और अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बन जाता है , तो इसे दरू करने के लिए विमु दर् ीकरण की विधि
अपनाई जाती है । इसके अन्तर्गत सरकार पु रानी मु दर् ा को समाप्त कर दे ती है और नई मु दर् ा चालू कर दे ती है । जिनके पास
काला धन होता है , वह उसके बदले में नई मु दर् ा ले ने का साहस नहीं जु टा पाता है और काला धन स्वयं ही नष्ट हो जाता है ।

 अवमूल्यन (Devaluation)
यदि किसी मु दर् ा का विनिमय मूल्य अन्य मु दर् ाओं की तु लना में जान-बूझकर कम कर दिया जाता है , तो इसे उस मु दर् ा का
अवमूल्यन कहते हैं । यह अवमूल्यन परिस्थितियों के अनु सार सरकार स्वयं करती है । इस नीति का प्रयोग व्यापार सन्तु लन
में आये घाटे की स्थिति में सु धार लाने के लिए किया जाता है । भारत में अवमूल्यन तीन बार (1949, 1966 एवं 1991) में
किया गया था।

 साख सं कुचन (Credit Squeeze)


इसका अर्थ यह है —कम मात्रा में ऋण वितरित करना । जब बैं कों द्वारा अधिक ऋण दे दिया जाता है , तो बाजार में मु दर् ा
बढ़ जाती है । इससे वस्तु ओं की माँ ग बढ़ जाती है , कीमतें बढ़ने लगती हैं और मु दर् ास्फीति की स्थिति उत्पन्न होने लगती
है । इसे रोकने के लिए केन्द्रीय बैं क द्वारा ‘साख सं कुचन' की विधि अपनाई जाती है ।

 कोर से क्टर (Core Sector)


अर्थव्यवस्था के विकास हे तु कुछ आधारभूत सं रचनाओं की आवश्यकता होती है ; जै से—सीमे ण्ट, लोहा-इस्पात, पे ट्रोलियम,
भारी मशीनरी इत्यादि । इन आधारभूत उद्योगों का विकास करके ही अन्य उद्योगों की स्थापना की जा सकती है । इसे 'कोर
से क्टर' के उद्योग कहा जाता है ।

 ब्रिज लोन (Bridge Loan)


कम्पनियाँ प्रायः अपनी पूँजी का विस्तार करने के लिए नये शे यर तथा डिबें चर्स जारी करती रहती हैं । कम्पनी को शे यर
जारी करके पूँजी जु टाने में तीन माह से भी अधिक समय लगता है । इस समयावधि में अपना काम जारी रखने के लिए
कम्पनियाँ बैं कों से अन्तरिम अवधि के लिए ऋण प्राप्त कर ले ती हैं । इस प्रकार के ऋणों को 'ब्रिज लोन' कहते हैं ।

 बफर स्टॉक (Buffer Stock)


आपात स्थिति में किसी वस्तु की कमी को पूरा करने के लिए वस्तु का स्टॉक तै यार करना बफर स्टॉक कहलाता है ।

 काला धन (Black Money)


जिस धन का हिसाब-किताब कर अधिकारियों से छिपाकर रखा जाता है , उसे काला धन कहते हैं ।

 ऋणशोधन निधि (Sinking Fund)


नियमित रूप से धनराशि जमा करके तै यार किया गया ऐसा कोष जिससे किसी ऋण की परिपक्वता पर आसानी से भु गतान
किया जा सके, ऋण शोधन कोष कहलाता है ।

 प्रतिभूति (Security)
प्रतिभूति एक व्यापक शब्द है , एक अर्थ में प्रतिभूति शब्द का प्रयोग प्रपत्रों के रूप में वित्तीय परिसम्पत्तियों; यथा-
शे यर, डिबे न्चर व अन्य ऋणपत्रों आदि के लिए किया जाता है । बैं किंग में ऋणों की जमानत के सन्दर्भ में प्रतिभूति' फी
प्रयु क्त होता है , जहाँ प्रतिभूति से अभिप्राय उस बीमित हित से होता है , जो ऋण के भु गतान न होने की स्थिति में
उत्पन्न होता है , अर्थात् प्रतिभूति ऋण का बीमा होता है । बैं कों द्वारा ऋणी की व्यक्तिगत अथवा दृश्य प्रतिभूति पर ऋण
प्रदान किया जाता है ।

 सॉफ्ट करे न्सी (Soft Currency)


जब अन्तर्राष्ट् रीय बाजार में किसी मु दर् ा की माँ ग की तु लना में पूर्ति अधिक होती है , तो ऐसी मु दर् ा ‘सॉफ्ट करे न्सी'
कहलाती है ।

 सॉफ्ट लोन (Soft Loan)


जिस ऋण को कम ब्याज और लम्बी भु गतान अवधि जै सी आसान शर्तों पर प्राप्त किया जाता है , उसे 'सॉफ्ट लोन' कहते हैं ।

 तालाबन्दी (Lock Out)


जब से वा नियोजकों द्वारा किसी फैक्ट् री में तालाबन्दी कर दी जाये , ताकि कर्मचारियों से उनके द्वारा निर्धारित शर्तों को
मनवाया जा सके, यही 'लॉक आउट' कहलाता है ।

 एज्यु टी (Annuity)
किसी पूर्व निर्धारित योजना के अन्तर्गत प्रति वर्ष एक या अधिक किस्तों में प्राप्त होने वाला भु गतान ‘एन्यु टी' कहलाता
है । जै से-सरकारी ऋणपत्रों पर ब्याज का भु गतान ‘एन्यु टी' के रूप में हो सकता है ।

 सकल घरे लू उत्पाद (Gross Domestic Product-GDP)


यह राष्ट् रीय आय ले खांकन का एक रूप है । किसी दे श में किसी वर्ष में उत्पादित समस्त अन्तिम वस्तु ओं और से वाओं के
मौद्रिक मूल्य के योग को सकल घरे लू उत्पाद कहा जाता है । इसमें विदे शों से अर्जित आय शामिल नहीं है ।

 आर्थिक नियोजन (Economic Planning)


आर्थिक सं साधनों का पूर्व मूल्यांकन करके, पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को निश्चित
समय में प्राप्त करने हे तु सं साधनों का योजनाबद्ध उपयोग करना आर्थिक नियोजन कहलाता है । आर्थिक नियोजन के
अन्तर्गत प्राथमिकताओं का निर्धारण कर लिया जाता है तथा साधनों का आवण्टन उसी के अनु सार किया जाता है ।

 चक् रीय बे रोजगारी (Cyclical Unemployment)


व्यापार चक् र की मन्दी के समय उत्पन्न बे रोजगारी 'चक् रीय बे रोजगारी' कहलाती है ।

 ब्लू चिप (Blue Chip)


यह शब्द प्रायः उन कम्पनियों के शे यरों के लिए प्रयोग किया जाता है , जो अत्यन्त सु दृढ़ हैं तथा जिनका प्रबन्ध इत्यादि
कुशल हैं । ऐसे शे यरों को खरीदने में हानि की सम्भावना बहुत कम होती है तथा जब चाहे उचित मूल्य पर इन्हें बाजार में
बे चा जा सकता है ।

 प्रच्छन्न बे रोजगारी अथवा अदृश्य बे रोजगारी (Disguised Unemployment)


यह इस प्रकार की बे रोजगारी है जिसमें व्यक्ति स्पष्ट रूप से बे रोजगार प्रतीत नहीं होते , वे काम पर तो लगे हुए होते हैं ,
किन्तु उस काम में उनकी सीमान्त उत्पादकता शून्य होती है । ऐसे लोगों को यदि काम से हटा दिया जाये , तो कुल उत्पादन
पर कोई प्रतिकू ल प्रभाव नहीं पड़ता । भारत में कृषि क्षे तर् में पर्याप्त प्रच्छन्न बे रोजगारी पायी जाती है ।

 राशिपतन (Dumping)
किसी वस्तु के अति उत्पादन की स्थिति में बाजार में वस्तु के मूल्य को एक न्यूनतम स्तर से नीचे गिरने से रोकने के लिए
वस्तु के अतिरिक्त भण्डार को विदे शी बाजार में बहुत कम मूल्य पर बे चने और यहाँ तक कि नष्ट तक कर दे ने की प्रक्रिया
राशिपतन कहलाती है । उत्पादकों के हितों की सु रक्षा के लिए कभी-कभी ऐसा करना पड़ता है , ताकि अतिरिक्त उत्पादन को
बाजार से दरू करके वस्तु के मूल्य को गिरने से रोका जा सके।

 सकल राष्ट् रीय उत्पाद (Gross National Product-GNP)


इसका प्रयोग भी राष्ट् रीय आय ले खांकन में किया जाता है । सकल घरे लू उत्पाद में से यदि वह आय घटा दी जाये , जो
सृ जित तो दे श में ही हुई है , किन्तु विदे शों को प्राप्त है तथा दे श को प्राप्त होने वाली, किन्तु विदे शों में अर्जित आय जोड़
दी जाये , तो सकल राष्ट् रीय उत्पाद प्राप्त होता है ।

 कराघात (Impact of Tax)


सरकार द्वारा लगाये गये कर का मौद्रिक भार जिस व्यक्ति पर सबसे पहले पड़ता है अर्थात् सरकार जिससे कर वसूल करती
है , उस पर कराघात होता है । यदि वह व्यक्ति कर के मौद्रिक भार को किसी अन्य व्यक्ति पर टालने में सफल हो जाता है ,
तो कराघात तो प्रथम व्यक्ति पर ही रहता है , किन्तु करापात (Incidence) उस व्यक्ति पर रहता है , जो अन्तिम रूप से कर
के मौद्रिक भार को वहन करता है । जै से-उत्पादन शु ल्क सरकार द्वारा उत्पादक से वसूल किया जाता है , किन्तु उत्पादक कर
की राशि को वस्तु के मूल्य में शामिल कर दे ता है जिससे करापात उपभोक्ता पर आता है ।

 शु द्ध प्रजनन दर (Net Reproduction Rate)


यह वह दर है जिस पर किसी दे श की महिला जनसं ख्या अपने आपको प्रतिस्थापित करती है । यदि शु द्ध पु नरुत्पादन दर
अथवा शु द्ध प्रजनन दर एक हो, तो दे श की जनसं ख्या में स्थिरता की प्रवृ त्ति होगी। यह दर एक से अधिक होने पर
् होती है तथा एक से कम होने पर जनसं ख्या में घटने की प्रवृ त्ति पायी जाती है ।
जनसं ख्या में वृ दधि

 बॉण्ड अथवा डिबे न्चर (Bond and Debenture)


बॉण्ड एवं डिबे न्चर का अर्थ ऋणपत्रों से होता है , जिन्हें केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकार अथवा किसी सं स्थान द्वारा ऋण
ले कर जारी किया जाता है । सं युक्त पूँजी कम्पनियाँ ऋण प्राप्त करने के लिए अपने डिबे न्चर जारी करती हैं । इन बॉण्डों को
हस्तान्तरित भी किया जा सकता है । जो सं स्था इन्हें जारी करती है वह इन पर धारक को एक निश्चित दर से ब्याज भी दे ती
है ।

 धारक बॉण्ड (Bearer Bond)


धारक बॉण्ड वे ऋणपत्र हैं , जिनका भु गतान परिपक्वता पर कोई भी प्राप्त कर सकता है । इन पर न तो खरीददार का नाम
लिखा होता है और न ही हस्तान्तरित करते समय इनकी पीठ पर हस्ताक्षर ही करने होते हैं । प्रायः इनका उपयोग काले धन
को सफेद धन में बदलने के लिए किया जाता है ।

 सस्ती मु दर् ा (Cheap Money)


वह मु दर् ा जिसे नीची ब्याज दर (Low Interest Rate) पर प्राप्त किया जा सकता है , सस्ती मु दर् ा कहलाती है ।

 खु ले बाजार की क्रियाएँ (Open Market Operations)


यह भी केन्द्रीय बैं क द्वारा साख नियन्त्रण का महत्वपूर्ण उपाय है । खु ले बाजार की क्रियाओं के अन्तर्गत केन्द्रीय बैं क द्वारा
मु दर् ा बाजार में किसी भी प्रकार के बिलों अथवा प्रतिभूतियों का क् रय-विक् रय होता है परन्तु सं कीर्ण अर्थ में इससे
अभिप्राय केन्द्रीय बैं क द्वारा केवल सरकारी प्रतिभूतियों का क् रय-विक् रय होता है ।

 प्रत्यक्ष कार्यवाही (Direct Action)


जब वाणिज्यिक बैं क केन्द्रीय बैं क के आदे शों का पालन नहीं करते हैं , तो उन बैं कों को नीति का अनु करण करने के लिए
बाध्य करने की विधि को ही प्रत्यक्ष कार्यवाही कहा जाता है ; जै से- बैं कों को दी जाने वाली पु नः कटौती की सु विधा को बन्द
कर दे ना, अतिरिक्त साख की स्वीकृति न दे ना आदि।

 स्मार्ट कार्ड (Smart Card)


डाक विभाग द्वारा चु निन्दा शहरों में प्रारम्भ की गयी प्रीमियम बचत बैं क से वा के अन्तर्गत प्रत्ये क खाते दार को एक 'स्मार्ट
कार्ड' जारी किया जाये गा जिससे वर्तमान कागज की पासबु क समाप्त हो जाये गी । ‘स्मार्ट कार्ट' के माध्यम से खाते दार किसी
एक निश्चित डाकघर के स्थान पर विभिन्न डाकघरों में अपने खाते में धन जमा करा सकेंगे तथा निकाल सकेंगे ।
 ग्रीन बॉक्स (Green Box)
कृषि के क्षे तर् में दी गयी ऐसी अर्थ सहायताएँ जिनसे व्यापार में कोई विकृति नहीं होती है , ग्रीन बॉक्स सहायताएँ कहलाती
हैं ; जै से-कृषि अनु सन्धान, पौध सं रक्षण उपाय आदि । विश्व व्यापार सं गठन के नियम इस प्रकार की सहायताओं पर कोई
प्रतिबन नहीं लगाते हैं ।

 कोन्स समूह (Coirns Group)


कृषि उत्पादक 14 प्रमु ख दे शों का समूह जिसका उद्दे श्य वै श्विक कृषि बाजार से विकृतियों को समाप्त करना है । इसके सदस्य
हैं -ऑस्ट् रेलिया, ब्राजील, कनाडा, अर्जे ण्टीना, चिली, कम्बोडिया, फिजी, इण्डोने शिया, हं गरी, मले शिया,न्यूजीलै ण्ड,
फिलीपीन्स, थाईलै ण्ड और उरुग्वे |

 ब्लू बॉक्स (Blue Box)


कृषि समझौते के अन्तर्गत उत्पादन के उद्दे श्य से कुछ सीमा तक सब्सिडी की अनु मति है ; जै से–बिजली, सिं चाई, उर्वरक
आदि आगतों पर दी जाने वाली सब्सिडी | इस प्रकार की सब्सिडी को व्यापार को आं शिक रूप से बाधित करने वाली
सब्सिडी माना गया है ।

 गै र-निष्पादनीय परिसम्पत्तियाँ (Non-Performing Assets)


गै र-निष्पादनीय परिसम्पत्तियाँ बैं कों एवं वित्तीय सं स्थानों द्वारा वितरित वे ऋण हैं , जिनके मूलधन एवं उस पर दे य ब्याज की
वापसी समय से नहीं हो पाती या बिल्कुल नहीं हो पाती। सामान्यतया बैं कों द्वारा विपरीत ऐसे सभी ऋण और उस पर दे य
ब्याज गै र-निष्पादनीय परिसम्पत्ति के रूप में पहचाने जाते हैं , जिनमें किसी वित्तीय वर्ष में मूलधन का भु गतान 180 दिन तथा
ब्याज का भु गतान 365 दिन से अधिक दिनों तक रोक लिया जाता है ।

 ब्लू टू थ (Blue Tooth)


ब्लू टू थ सूचना प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित तीसरी पीढ़ी का उपकरण है , जो सं चार क्षे तर् के लिए एक क् रान्तिकारी तकनीक
साबित होगा । कम्प्यूटर जगत में ब्लू टू थ एक मानक टे क्नोलॉजी है जिसका मकसद हमारे कम्प्यूटरों को तारों के जाल से
निजात दिलाना है । इस तकनीकी की मदद से से लफोन और लै पटॉप या ऐसे कोई भी दो उपकरण (जिनमें ब्लू टू थ तकनीकी
ू रे से जु ड़ सकते हैं ।
का प्रयोग किया गया हो) बिना तार के एक-दस

 ऑन लाइन शॉपिं ग (Online Shopping)


Internet के बढ़ते उपयोग के साथ-साथ ऑन लाइन शॉपिं ग का उपयोग बढ़ने की सम्भावनाएँ हैं । ऑन लाइन शॉपिं ग में
अमरीका सबसे आगे है । ऑन लाइन द्वारा खरीदे जाने वाली वस्तु ओं में प्रमु ख पु स्तकें और सी डी. हैं । पर्यटन एवं यात्रा
सम्बन्धी बु किंग और कम्प्यूटर हार्डवे यर एवं सॉफ्टवे यर भी खरीदे जाते हैं । ऑन लाइन भारत में धीरे -धीरे अपनी जगह बना
रहा है और विविध उत्पाद एवं से वाओं की उपलब्धता मात्र माउस के एक क्लिक द्वारा सम्भव है । भारतीय रे लवे द्वारा शु रू
की गयी ऑन लाइन टिकट आरक्षण एवं बिक् री से वा इसका नवीनतम उदाहरण है ।

 वै श्विक गाँ व (Global Village)


सूचना तकनीक के क्षे तर् में हुई अभूतपूर्व क् रान्ति, चाहे वह उपग्रह के माध्यम से हुई हो या माइक् रोवे व से या किसी
कम्प्यूटर प्रणाली से , हमारे लिये एक नवीन दुनिया प्रस्तु त करती है । सूचना के मामले में दुनिया का आकार दिन-प्रतिदिन
ू रे के अत्यधिक निकट आते जा रहे हैं । मार्शल मकलु हान इसी स्थिति को ही
छोटा होता जा रहा है , अर्थात् हम एक-दस
ग्लोबल विले ज' या वै श्विक गाँ व' कहते हैं ।

 साख-पत्र (Letter of Credit)


साख-पत्र सामान्यतः एक बैं क द्वारा किसी अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों के नाम लिखा गया एक पत्र होता है जिसमें निर्दिष्ट
व्यक्ति द्वारा जारी किये गये चे कों या उसके द्वारा स्वीकार किये गये विनिमय बिलों के भु गतान की गारण्टी प्रदान की जाती
है । इस प्रकार के साख-पत्र निर्यात-आयात व्यापार में बहुत उपयोगी होते हैं ।

 नकद आरक्षण अनु पात (Cash Reserve Ration-CRR)


रिजर्व बैं क अधिनियम की धारा 42 (1) के अन्तर्गत अनु सचि
ू त बैं कों को यह अनिवार्य है कि वह अपनी जमाराशि के कम-से -
कम 3:0% के बराबर रकम रिजर्व बैं क के पास नकद रूप से जमा रखें । रिजर्व बैं क को यह अधिकार है कि वह इस अनु पात को
् करने का परिणाम यह होता है कि बैं कों के पास नकद कोष
3-0% से बढ़ाकर 15% तक कर सकता है । इस अनु पात में वृ दधि
में कमी हो जाती है , जिसके कारण ऋणों और अग्रिमों की मात्रा भी कम हो जाती है ।

 निर्धनता अनु पात (Poverty Ratio)


किसी भी दे श की जनसं ख्या का वह भाग जो निर्धनता रे खा के नीचे जीवनयापन करता है , निर्धनता अनु पात कहलाता है ।

 ने ट बैं किंग (Net Banking)


इण्टरने ट एवं कम्प्यूटर की सहायता से घर बै ठे बैं किंग के कार्यों का सं चालन किया जाता है । इस प्रक्रिया को ने ट बैं किंग
कहते हैं । ने ट बैं किंग के माध्यम से ग्राहक अपने कम्प्यूटर का उपयोग कर अपने बैं क ने टवर्क और वे बसाइट को एक्से स कर
सकता है । ने ट बैं किंग का सबसे बड़ा लाभ यह है कि कोई भी घर बै ठे या ऑफिस से बैं क सर्विस का लाभ उठा सकता है ।

 रे पो दर (Repo Rate)
अल्पकालिक आवश्यकताओं की पूर्ति हे तु जिस ब्याज दर पर कॉमर्शियल बैं क रिजर्व बैं क से नकदी ऋण प्राप्त करते हैं , 'रे पो
दर कहलाती है ।

 रिवर्स रे पो दर (Reverse Repo Rate)


अल्पकालिक अवधि के लिए जिस बैं क द्वारा कॉमर्शियल बैं कों से जिस ब्याज दर पर नकदी प्राप्त की जाती है रिवर्स रे पो दर
कहलाती है । सामान्यतः में मु दर् ा की आपूर्ति बढ़ जाने पर उसमें कमी लाने के उद्दे श्य से रिजर्व बैं क द्वारा बढ़ी ब्याज दरों पर
कॉमर्शियल बैं कों को अल्प अवधि के लिए नकदी रिजर्व बैं क में जमा करने हे तु प्रोत्साहित किया जाता है ।

 वै धानिक तरलता अनु पात (SER)


किसी भी वाणिज्यिक बैं क में कुल जमा राशि का वह भाग जो नकद, स्वर्ण व विदे शी मु दर् ा के रूप में अपने पास अनिवार्य
रूप में रखना पड़ता है । बैं कों को वित्तीय सं कट का सामना करने हे तु रिजर्व बैं क द्वारा ऐसी व्यवस्था निर्धारित की गयी है ।

 परमाने ण्ट एकाउण्ट नम्बर (PAN)


परमाने ण्ट एकाउण्ट नम्बर या स्थायी ले खा सं ख्या आयकरदाताओं को आबण्टित एक ऐसी सं ख्या है , जिससे उसके धारक
द्वारा किसी वर्ष में प्राप्त की गयी आय एवं अन्य ले न-दे न, जिनमें पी.ए.एन. का उल्ले ख करना अनिवार्य है , का ले खा-जोखा
रखा जाता है ताकि कर अपवं चन को रोका जा सके।

 ट् राईफेड (TRIFED)
जनजातीय लोगों का शोषण करने वाले निजी व्यापारियों से छुटकारा दिलाने और उनके द्वारा तै यार की गयी वस्तु ओं का
अच्छा मूल्य दिलाने के उद्दे श्य से सरकार ने अगस्त, 1987 में भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास सं घ (Tribal Co-
operative Marketing Development Federation of India Ltd.—TRIFED) की स्थापना की थी। इसने अप्रैल, 1988 में
कार्य प्रारम्भ कर दिया था।

 कृषि उपजों का भण्डारण


कृषि उपजों के भण्डारण की सु विधाएँ उपलब्ध कराने के लिए 1956 में राष्ट् रीय सहकारी विकास एवं भण्डागार बोर्ड तथा
1957 में केन्द्रीय भण्डागार निगम (Central Warehousing Corporation) की स्थापना की गयी थी। इसके बाद राज्यों में भी
राज्य भण्डागार निगम स्थापित किये गये हैं ।

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