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अर्थशास्त्र मानव की आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन करता है । मानव द्वारा सम्पन्न वह सारी गतिविधियाँ जिनसे
आर्थिक लाभ या हानि के तत्व विद्यमान हों, आर्थिक गतिविधियाँ कही जाती हैं ।
जब हम किसी दे श को उसकी समस्त आर्थिक क्रियाओं के सं दर्भ में परिभाषित करते हैं , तो उसे अर्थव्यवस्था कहते हैं ।
निजी क्षे तर् और बाजार के सापे क्ष राज्य व सरकार की भूमिका के आधार पर अर्थव्यवस्थाओं का वर्गीकरण तीन श्रेणियों में
किया जाता है -
(1) पूँजीवादी अर्थव्यवस्था- इस व्यवस्था के अन्तर्गत क्या उत्पादन करना है , कितना उत्पादन करना है और उसे किस कीमत पर
बे चना है , ये सब बाजार तय करता है , इसमें सरकार की कोई भी आर्थिक भूमिका नहीं होती है ।
एडम स्मिथ की पु स्तक 'द वे ल्थ ऑफ ने शंस' (1776 ई. में प्रकाशित) को पूँजीवादी अर्थव्यवस्था का उद्गम स्रोत माना
जाता है ।
(2) राज्य अर्थव्यवस्था-इस अर्थव्यवस्था की उत्पत्ति पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की लोकप्रियता के विरोध स्वरूप हुई है । इसमें
उत्पादन, आपूर्ति और कीमत सबका फैसला सरकार द्वारा लिया जाता है ।
राज्य अर्थव्यवस्था की दो अलग-अलग शै ली नजर आती हैं | सोवियत सं घ की अर्थव्यवस्था को समाजवादी अर्थव्यवस्था
कहते हैं जबकि 1985 ई. से पहले चीन की अर्थव्यवस्था को साम्यवादी अर्थव्यवस्था कहते हैं ।
समाजवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधनों पर सामूहिक नियं तर् ण की बात शामिल थी और अर्थव्यवस्था को चलाने में
सरकार की बड़ी भूमिका थी। वहीं साम्यवादी अर्थव्यवस्था में सभी सम्पत्तियों पर सरकार का नियं तर् ण था और श्रम
सं साधन भी सरकार के अधीन थे ।
जर्मन दार्शनिक कार्लमार्क्स (1818-1883 ई.) ने पहली बार राज्य अर्थव्यवस्था का सिद्धान्त दिया था । एक व्यवस्था के तौर
पर पहली बार 1917 ई. को बोलशे विक क् रां ति के बाद सोवियत सं घ में नजर आयी और इसका आदर्श रूप चीन (1949 ई.) में
सामने आया।
(3) मिश्रित अर्थव्यवस्था इसमें कुछ लक्षण राज्य अर्थव्यवस्था के तो कुछ लक्षण पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के। इसमें सार्वजनिक
व निजी क्षे तर् का सह-अस्तित्व होता है ।
द्वितीय विश्वयु द्ध की समाप्ति के बाद उपनिवे शवाद के चं गुल से निकले दुनिया के कई दे शों ने मिश्रित अर्थव्यवस्था को
अपनाया। इसमें भारत, इं डोने शिया एवं मले शिया जै से दे श शामिल हैं ।
प्रो लांज ने सु झाव दिया कि समाजवादी अर्थव्यवस्था को पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की ओर कदम बढ़ाना चाहिए । वहीं केंस
ने कहा है कि पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को समाजवादी अर्थव्यवस्था की ओर कुछ कदम बढ़ाना चाहिए।
बं द अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसमें न तो निर्यात और न ही आयात होता है यानी ऐसी अर्थव्यवस्था का शे ष विश्व
से कोई सम्बं ध नहीं होता।
भारत में नियोजित आर्थिक विकास का शु भारम्भ वर्ष 1951 ई.में प्रथम पं चवर्षीय योजना के प्रारम्भ होने से हुआ, ले किन
आर्थिक नियोजन के लिए सै द्धान्तिक प्रयास स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व ही प्रारम्भ हो गये थे ।
वर्ष 1934 ई. में सर एम. विश्वे श्वरै या ने भारत के लिए नियोजित अर्थव्यवस्था' (Planned Economy for India) नामक
पु स्तक लिखी । इस पु स्तक में उन्होंने पहली बार भारत के नियोजित विकास के लिए 10 वर्षीय कार्यक् रम प्रस्तु त किया था।
1938 ई. में भारतीय राष्ट् रीय काँ गर् े स के पं . जवाहर लाल ने हरू की अध्यक्षता में एक राष्ट् रीय नियोजन समिति का गठन
किया गया ले किन द्वितीय विश्व यु द्ध प्रारम्भ हो जाने से इसका क्रियान्वयन नहीं हो सका।
1944 ई. में मु म्बई के 8 प्रमु ख उद्योगपतियों ने एक 15-वर्षीय योजना का प्रारूप प्रस्तु त किया जिसे 'बॉम्बे प्लान' के नाम
से जाना गया।
महात्मा गां धी की आर्थिक विचारधारा से प्रेरणा पाकर श्रीमन्ननारायण ने 1944 ई. में एक आर्थिक योजना निर्मित की जिसे
'गां धीवादी योजना' के नाम से जाना जाता है ।
भारतीय श्रम सं घ की यु द्धोपरान्त पु नर्निर्माण समिति के अध्यक्ष श्री एम. एन. राय द्वारा अप्रैल, 1945 ई. में 'जन योजना'
(People Plan) निर्मित की गयी।
1950 ई. में जयप्रकाश नारायण ने एक योजना 'सर्वोदय योजना' के नाम से प्रकाशित की। इस योजना को सरकार ने
आं शिक रूप से स्वीकार किया।
अर्थव्यवस्था के विकास के लिए केन्द्रीकृत नियोजन सर्वप्रथम सोवियत सं घ में अपनाया गया था ।
भारत सरकार के एक प्रस्ताव द्वारा 15 मार्च, 1950 को योजना आयोग (Planning Commission) का गठन किया गया ।
योजना आयोग के स्थान पर एक नई सं स्था 1 जनवरी, 2015 से अस्तित्व में आयी है । इस सं स्था को आमतौर से नीति
आयोग' के नाम से जाना जाता है ।
सभी राज्यों के मु ख्यमन्त्री तथा केन्द्र शासित राज्यों के उपराज्यपाल को नीति आयोग की अधिशासी परिषद् में शामिल
किया गया है ।
बजट
बजट सामान्यतः सरकारी विवरण या दस्तावे ज के रूप में जाना जाता है , जिसमें सरकार की गत वर्ष की आय-व्यय की
स्थिति, चालू वर्ष में सरकारी आय-व्यय के सं शोधित आकलन तथा आगामी वर्ष के आर्थिक-सामाजिक कार्यक् रम एवं आय-
व्यय घटाने -बढ़ाने के लिए प्रस्तावों का विवरण दिया जाता है । भारतीय सं विधान में बजट शब्द का कहीं भी उल्ले ख नहीं
किया गया है ।
भारतीय सं विधान में वित्तीय कथन का उल्ले ख है , जिसे सामान्यतः बजट समझा जाता है । सं विधान के अनु च्छे द-112 में
प्रावधान है कि सरकार प्रत्ये क वर्ष आय-व्यय का एक ले खा-जोखा प्रस्तु त करे गी, जिसमें यह उल्ले ख होगा कि सरकार
आगामी वित्तीय वर्ष में किस मद पर कितना व्यय करे गी तथा इस व्यय को पूरा करने के लिए आय कहाँ से प्राप्त करे गी।
सार्वजनिक आय
बजट का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष सार्वजनिक आय या प्राप्तियाँ हैं । सार्व जनिक आय या प्राप्तियों से आशय सरकार को
किसी एक वर्ष में विविध स्रोतों से प्राप्त होने वाली आय से है । सार्वजनिक प्राप्तियों को मु ख्यतः दो भागों मे विभाजित
किया जाता है —(1) राजस्व प्राप्तियाँ तथा (2) पूँजीगत प्राप्तियाँ ।
राजस्व प्राप्तियाँ —ऐसी सार्वजनिक प्राप्तियों को राजस्व प्राप्तियाँ कहा जाता है जिससे न तो सरकार की दे यता में
् होती है और न ही सरकार की परिसम्पत्ति में कमी आती है । राजस्व प्राप्तियों को सरकार की आर्थिक क्रियाओं का
वृ दधि
प्रतिफल माना जाता है । इसका सम्बन्ध चालू खाते से होता है । चालू खाते में आय के उन स्रोतों को रखा जाता है , जिनके
सन्दर्भ में कोई भु गतान नहीं करना होता है । राजस्व प्राप्तियों को मु ख्यतः दो भागों-कर आय तथा गै र-कर आय में
विभाजित किया जाता है । ध्यातव्य है कि राजस्व प्राप्तियों की प्रकृति अल्पकालीन होती है ।
(1) कर आय—करों से प्राप्त होने वाली आय को कर-आय कहा जाता है । करों से प्राप्त आय के दो भाग होते हैं -प्रत्यक्ष
कर से प्राप्त आय तथा अप्रत्यक्ष कर से प्राप्त आय | ध्यातव्य है कि भारत में कर राजस्व में प्रत्यक्ष कर का अं श निरन्तर
बढ़ रहा है , जबकि अप्रत्यक्ष कर का अं श लगातार कम हो रहा है ।
o प्रत्यक्ष कर (Direct Tax)—वे कर हैं जिन्हें तु रन्त ही व्यक्तियों की सम्पत्ति और आय पर लगाया जाता है तथा
उपभोक्ता प्रत्यक्षतः सरकार को चु काते हैं । आय कर, ब्याज कर, सम्पत्ति कर और निगम कर ऐसे ही प्रत्यक्ष करों
के उदाहरण हैं ।
o अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax)—व्यक्तियों की आय और सम्पत्ति को उनके उपभोग के माध्यम से प्रभावित करते
हैं । परोक्ष कर वस्तु ओं एवं से वाओं पर आरोपित किये जाते हैं और इनके भार को विवर्तित करना सम्भव होता है ।
सीमा शु ल्क, उत्पादन शु ल्क, बिक् री कर आदि अप्रत्यक्ष करों के उदाहरण हैं ।
(2) गै र-कर आय-करों के अतिरिक्त अन्य मदों से प्राप्त होने वाली आय गै र-कर आय कहलाती है । इसके अन्तर्गत सरकार द्वारा
प्रदत्त से वाओं पर लगाया गया शु ल्क, लाभ एवं लाभां श तथा ब्याज की आय को सम्मिलित किया जाता है ।
पूँजीगत प्राप्तियाँ —सार्वजनिक प्राप्तियों के उस स्वरूप को पूँजीगत कहा जाता है , जिससे या तो सरकार की दे यताएँ
बढ़ती हैं या सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी होती है । पूँजीगत प्राप्तियों की प्रकृति दीर्घकालीन होती है । विनिवे श से
प्राप्तियाँ , निबल घरे लू ऋण, निबल विदे शी ऋण, ऋण वापसी तथा लोक ले खा प्राप्तियाँ आदि पूँजीगत प्राप्तियों के रूप
हैं ।
सार्वजनिक व्यय
ू रा महत्वपूर्ण पक्ष सार्वजनिक व्यय है । किसी भी वित्तीय वर्ष में सरकार द्वारा विभिन्न कार्यक् रमों, योजनाओं
बजट का दस
तथा से वा पर किये गये व्यय को सार्वजनिक व्यय कहा जाता है । सार्वजनिक व्यय को लोक व्यय भी कहा जाता है ।
सार्वजनिक व्यय को दो भागों में विभाजित किया जाता है —(1) राजस्व व्यय तथा (2) पूँजीगत व्यय ।
(1) राजस्व व्यय- सार्वजनिक व्यय के उस स्वरूप को राजस्व व्यय कहा जाता है जिससे किसी भी उत्पादक कोटि की परिसम्पत्ति
का सृ जन नहीं होता है । सामान्यतः राजस्व व्यय की प्रकृति गै र-विकासात्मक होती है क्योंकि विकासात्मक कार्यों में इनका
प्रत्यक्षतः योगदान नहीं होता है । गै र-विकासात्मक राजस्व व्यय की प्रमु ख मदें - (i) सरकारी से वाओं पर होने वाला व्यय, (ii)
सरकारी सब्सिडी, (iii) ब्याज अदायगी तथा हैं ।
o राजस्व व्यय की कुछ मदें ऐसी हैं , जिनको विकासात्मक माना जाता है , जो अप्रत्यक्षतः विकास कार्यों को बढ़ावा दे ती हैं ।
राजस्व व्यय की विकासात्मक मदों में सामाजिक एवं सामु दायिक से वाएँ , सामान्य आर्थिक से वाएँ , कृषि एवं सहायक से वाएँ ,
विद्यु त, सिं चाई एवं बाढ़ नियन्त्रण से सम्बन्धित परियोजनाएँ , राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदे शों को दिया गया अनु दान
आदि सम्मिलित हैं ।
् होती है । पूँजीगत व्यय
(2) पूँजीगत व्यय—ऐसे व्ययों को पूँजीगत व्यय कहा जाता है जिससे सरकार की परिसम्पत्तियों में वृ दधि
उत्पादक कोटि का होता है । इसका लाभ केवल चालू वर्ष तक ही नहीं मिलता है बल्कि इसका लाभ कई वर्षों तक मिलता रहता
है ; जै से—अस्पताल का निर्माण, सड़क का निर्माण, कारखाना आदि।
आयोजना व्यय
ू रा वर्गीकरण आयोजना एवं गै र-आयोजना व्यय में किया जाता है । ऐसे व्यय को आयोजना व्यय कहा
सार्वजनिक व्यय का दस
जाता है , जिससे उत्पादक कोटि की परिसम्पत्ति का सृ जन होता है । आयोजना व्यय विभिन्न आर्थिक-सामाजिक कल्याण
कार्यक् रमों/योजनाओं तथा परियोजनाओं के सम्बन्ध में होता है ।
गै र-आयोजना व्यय
गै र-आयोजना व्यय से आशय ऐसे व्यय से है , जिससे प्रत्यक्षतः किसी उत्पादक कोटि की परिसम्पत्ति का निर्माण नहीं होता
है । परन्तु यह अनिवार्य एवं बाध्यकारी व्यय है । इसको पूरा करने के लिए सरकार बाध्य है ; यथा-रक्षा व्यय, सरकारी
कर्मचारियों के वे तन, सब्सिडी, कार्यालय मरम्मत एवं रख-रखाव, पें शन, महं गाई भत्ता आदि । रक्षा व्यय, सब्सिडी, ब्याज
अदायगी तथा अनु रक्षण प्रमु ख गै र-आयोजना व्यय हैं ।
बजट के घटक
बजट तीन भागों में विभाजित किये जाते हैं जो निम्नलिखित प्रकार के होते हैं
(1) सं चित निधि (Consolidated Fund)—सरकार को प्राप्त सभी प्रकार की आय; यथा-कर आय, करे त्तर आय, ऋण प्राप्तियाँ
आदि इसमें शामिल की जाती हैं । इसी प्रकार समस्त व्यय भी इसी खाते से लिये जाते हैं । इस कोष की कोई भी राशि सं सद के
अनु मोदन के बिना व्यय नहीं की जा सकती है । (सं विधान में निर्दिष्ट कुछ व्ययों को छोड़कर; जै से-सर्वोच्च न्यायालय के
न्यायाधीशों, नियन्त्रक तथा महाले खा परीक्षक आदि के वे तन का भु गतान) अपवादस्वरूप होने वाले इन व्ययों को बजट में
शामिल किया जाता है , परन्तु उन पर मतदान नहीं होता है । इसी प्रकार राज्य सरकारों के लिए राज्य सं चित कोष' होता है
जिनके व्यय की अनु मति राज्य विधानसभा दे ती है ।
(3) लोक खाता (Public Account)—इस खाते में एकत्रित धनराशि सरकार की नहीं होती है । इस खाते में वे धनराशियाँ
सम्मिलित की जाती हैं , जो लघु बचतों, जमाओं और भविष्य निधि के रूप में सरकार प्राप्त करती है । इस खाते में से किसी भी
प्रकार का भु गतान करने के लिए सरकार को लोकसभा राज्य विधानसभा से अनु मति की आवश्यकता नहीं होती है ।
भारतीय सं विधान के अनु च्छे द 264 से 293 में केन्द्र एवं राज्य सरकारों के वित्तीय सम्बन्धों की स्पष्ट व्याख्या की गई है । वे कर
जिनका अन्तर्राज्यीय आधार है , केन्द्र सरकार द्वारा लगाये जाते हैं , जबकि स्थानीय आधार वाले कर राज्य सरकारों द्वारा लगाये जाते
हैं । अवशिष्ट अधिकार केन्द्र सरकार को प्राप्त है ।
(C) वे कर जो केन्द्र द्वारा लगाये जाते हैं किन्तु राज्य सरकारों द्वारा एकत्र एवं प्रयु क्त किये जाते हैं ।
भारतीय सं विधान के अनु च्छे द 268 में उल्ले ख है कि स्टाम्प शु ल्क, औषधि तथा प्रसाधनों पर उत्पादन शु ल्क यद्यपि सं घीय
सूची में सम्मिलित है तथा केन्द्रीय सरकार द्वारा ही आरोपित किये जाते हैं , किन्तु इन्हें राज्यों को सं गृहीत करने व उपयोग
करने हे तु अधिकार दिये गये हैं ।
(D) वे कर, जो केन्द्र द्वारा आरोपित किये जाते हैं एवं सं गृहीत किये जाते हैं , किन्तु जिनकी पूरी राशि राज्यों को हस्तान्तरित कर दी
जाती है ।
सं विधान के अनु च्छे द 269 में आरोपित करों; यथा-
1. उत्तराधिकार शु ल्क।
2. कृषि भूमि से भिन्न सम्पत्ति के सम्बन्ध में सम्पदा शु ल्क।
3. रे ल किराये तथा माल भाड़े पर कर ।
4. रे ल, समु दर् या वायु मार्ग द्वारा ले जाये जाने वाले माल तथा यात्रियों पर सीमा कर।
5. समाचार-पत्रों के क् रय-विक् रय तथा उनके विज्ञापन पर कर |
6. समाचार-पत्रों से भिन्न माल के क् रय-विक् रय पर उस दशा में कर, जिसमें ऐसा क् रय या विक् रय अन्तर्राष्ट् रीय व्यापार
या वाणिज्य के दौरान होता है , आदि को केन्द्रीय सरकार द्वारा आरोपित एवं सं गृहीत किया जाता है , किन्तु इनका
हस्तान्तरण उन राज्यों को कर दिया जाता है , जहाँ से ये सं गृहीत किये जाते हैं ।
(E) वे कर, जो केन्द्र द्वारा आरोपित एवं सं गृहीत किये जाते हैं तथा जिनका केन्द्र तथा राज्यों के मध्य बँ टवारा किया जाता है ।
वित्तीय सं साधनों की समानता एवं न्याय के आधार पर विभाजन के लिए निम्न कर यद्यपि सं घीय सरकार द्वारा आरोपित व
एकत्रित किये जाते हैं , किन्तु इनका वितरण केन्द्र एवं राज्य के मध्य किया जाता है । इस प्रकार के कुछ कर निम्नलिखित
हैं -
1. कृषि आय के अतिरिक्त अन्य आय पर आरोपित कर।
2. औषधि एवं प्रसाधन उत्पादों पर आरोपित उत्पाद शु ल्क के अतिरिक्त अन्य वस्तु ओं के सम्बन्ध में उत्पादन शु ल्क इस
प्रकार के राजस्व को सं सद के विधि निर्माण के द्वारा दोनों के मध्य विभाजित किया जा सकता है ।
वै ट प्रणाली
मूल्यवर्द्धित कर (VAT) एक सामान्य अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax) है , जो वस्तु ओं तथा से वाओं के आदान-प्रदान के
प्रत्ये क बिन्दु पर प्राथमिक उत्पाद से ले कर अन्तिम उपभोग पर लगाया जाता है ।
यह वस्तु ओं अथवा से वाओं (आउटपु ट) की बिक् री, कीमतों तथा उनमें
प्रयु क्त इनपु ट की लागतों के अन्तर पर लगाया जाता है ।
वै ट एक किस्म का बिक् री कर है जिसे उपभोक्ता व्यय पर उस राज्य की सरकार ले ती है ।
वै ट वस्तु ओं या से वाओं की अन्तिम खपत पर लगने वाला कर है और इसे अन्ततः उपभोक्ता वहन करता है ।
यह बहुचरण कर है , जिसके साथ एक आरम्भिक अवस्था पर निवे श कर क् रे डिट (ITC) की अनु मति का प्रावधान है , जिसके
परिणामस्वरूप हुई बिक् री पर वै ट दे यता की तु लना में पु नर्विनियोजित किया जा सकता है ।
वै ट मूलतः राज्य का विषय है , जो राज्य की सूची से व्यु त्पन्न हुआ है , जिसके लिए निर्णय हे तु राज्य के पास सम्प्रभु ता है ।
दे श में मूल्य वर्द्धित कर प्रणाली (VAT) की शु रूआत करने वाला प्रथम राज्य हरियाणा था ।
वर्ष 2007 तक वै ट की शु रूआत 30 से अधिक राज्यों/सं घ राज्य
क्षे तर् ों में की जा चु की है ।
1 जनवरी, 2008 से उत्तर प्रदे श सरकार ने राज्य में वै ट प्रणाली की शु रूआत की।
वित्त आयोग
केन्द्र से राज्यों को वित्तीय हस्तान्तरण हे तु दिशा-निर्देश सु झाने हे तु वित्त आयोग (Finance Commission) का गठन किया जाता है ।
सं विधान के अनु च्छे द 280 (1) में यह व्यवस्था है कि राष्ट् रपति द्वारा प्रत्ये क पाँच वर्ष के पश्चात् या आवश्यकता पड़ने पर उससे पूर्व
एक वित्त आयोग का गठन किया जाये गा, जिसमें अध्यक्ष के अतिरिक्त चार अन्य सदस्य होंगे । अनु च्छे द 280 के अनु सार आयोग का
कर्तव्य होगा कि वह राष्ट् रपति को निम्नलिखित के सम्बन्ध में अपनी सं स्तु तियाँ दे -
1. केन्द्र तथा राज्यों के बीच विभाजनीय करों से प्राप्त शु द्ध राजस्व का वितरण तथा इसमें विभिन्न राज्यों का हिस्सा।
2. भारत की सं चित निधि (Consolidated Fund of India) में से राज्यों को दिये जाने वाले अनु दानों (Grants-in-aid) के लिए
सिद्धान्त ।
3. सु दृढ़ वित्त के हित व राष्ट् रपति द्वारा आयोग को निर्दिष्ट किया गया अन्य कोई मामला।
उपर्युक्त के सन्दर्भ में भारत में अब तक 15 वित्त आयोगों का गठन किया जा चु का है । पहले वित्त आयोग का गठन 1951 में श्री के.
सी. नियोगी की अध्यक्षता में किया गया था।
15 अप्रैल, 1980 को पु नः 6 उन निजी बैं कों का राष्ट् रीयकरण किया जिनकी जमाएँ ₹ 200 करोड़ से अधिक थीं।
4 सितम्बर, 1997 को भारत सरकार ने न्यू बैं क ऑफ इण्डिया का पं जाब ने शनल बैं क में विलय कर दिया ।
ध्यान दें
1 अप्रैल, 2020 को उपर्युक्त बैं कों के विलय के बाद दे श में सरकारी बैं कों की सं ख्या 12 रह जाएगी। वह 12 बैं क हैं 1. स्टे ट
बैं क ऑफ इण्डिया, 2. पं जाब ने शनल बैं क, 3. केनरा बैं क, 4. से न्ट् रल बैं क ऑफ इण्डिया, 5. इण्डियन ओवरसीज बैं क, 6.
यूनियन बैं क ऑफ इण्डिया, 7. बैं क ऑफ बड़ौदा, 8. बैं क ऑफ महाराष्ट् र, 9. इण्डियन बैं क, 10. पं जाब एण्ड सिं ध बैं क, 11.
यूको बैं क, 12. बैं क ऑफ इण्डिया।
राष्ट् रीय कृषि तथा ग्रामीण विकास बैं क (नाबार्ड) (National Bank for Agriculture and Rural Development–NABARD)
नाबार्ड बैं क 12 जु लाई, 1982 को अस्तित्व में आया
इसकी स्थापना कृषि, लघु एवं कुटीर उद्योगों, हस्तशिल्पों और गाँ वों अन्य आर्थिक गतिविधियों के सं वर्द्धन हे तु ऋण
उपलब्ध कराने के लिए की गयी थी।
आर. बी. आई. ने NABARD की ईक्विटी में अपनी लगभग हिस्से दारी सरकार को अक्टू बर, 2010 में बे च दी।
31 अक्टू बर, 2010 को किये गये ईक्विटी हस्तान्तरण के तहत् RBI ने NABARD की केवल 1% हिस्से दारी अपने पास रखी
है ।
NABARD की ईक्विटी में केन्द्र सरकार व RBI की हिस्से दारी क् रमशः 99%, 1% रह गयी है ।
नाबार्ड ग्रामीण ऋण ढाँचे में एक शीर्षस्थ सं स्था के रूप में अने क वित्तीय सं स्थाओं (राज्य भूमि विकास बैं क, राज्य सहकारी
बैं क, अनु सचि
ू त वाणिज्यिक बैं क, क्षे तर् ीय ग्रामीण बैं क) को पु नर्वित्त सु विधाएँ प्रदान करता है तथा ऋण दे ता है ।
विशे ष तथ्य
दे श में नया निजी बैं क स्थापित करने के लिए कम्पनियों को अब कम-से -कम ₹ 500 करोड़ का निवे श करना होगा। इससे पूर्व
यह राशि ₹ 300 करोड़ थी।
भारत में लीड बैं क योजना 1969 में प्रारम्भ की गई थी।
भारत में राष्ट् रीय नियोजन समिति की स्थापना 1938 ई. में की गई थी।
ट् राइसे म एक केन्द्रीय प्रायोजित योजना है , जो 15 अगस्त, 1979 ई. से शु रू हुई थी।
भारत की पहली मानव रिपोर्ट अप्रैल, 2002 में जारी की गई थी।
नरीमन समिति की रिपोर्ट के आधार पर वर्ष 1969 में दे श में लीड बैं क योजना लागू की गई।
भारतीय स्टे ट बैं क ने सर्वप्रथम उपग्रह ने टवर्क का इस्ते माल किया ।
दे श की पहली पूर्णतः महिला बैं क शाखा 1962 में बं गलु रू में स्थित सिं डीकेट बैं क की शे षद्रिपु रम् शाखा है ।
भारत की पहली महिला बैं क मै नेजर शान्ता कुमारी (सिं डीकेट बैं क) हैं ।
सबसे पहले भारतीय स्टे ट बैं क मार्के ट बैं किंग डिवीजन खोलने वाला राष्ट् रीयकृत बैं क है ।
भारतीय स्टे ट बैं क ने दे श का पहला तै रता एटीएम कोच्चि में 9 फरवरी, 2004 को खोला गया। यह एटीएम केरला शिपिं ग
एण्ड इनलै ण्ड ने वीगे शन कॉर्पोरेशन के झं कार नाम के स्टीमर में लगाया गया।
निजी क्षे तर् से पूँजी उगाहने वाला पहला राष्ट् रीयकृत बैं क ओरियण्टल बैं क ऑफ कॉमर्स है ।
सार्वजनिक क्षे तर् की बैं क इलाहाबाद बैं क ने विदे श में अपनी पहली शाखा हां गकां ग में स्थापित की।
भारतीय स्टे ट बैं क ने विदे श में अपनी पहली शाखा कोलम्बो (श्रीलं का) में स्थापित की।
सार्वजनिक क्षे तर् के बैं कों में भारतीय स्टे ट बैं क सबसे बड़ी बैं क है ।
भारत के प्रधानमं तर् ी नरे न्द्र मोदी द्वारा 8 नवम्बर, 2016 में राष्ट् र के नाम सम्बोधन में रात्रि 12 बजे के बाद ₹500 एवं
₹1000 के करें सी नोट की विधिग्राह्यता को समाप्त किए जाने की घोषणा के साथ ही भारतीय रिजर्व बैं क ने इन नोटों का
विमु दर् ीकरण कर दिया।
इसका उद्दे श्यं दे श में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करना, काले धन की अर्थव्यवस्था को मु ख्य धारा में लाना, हवाला-
कारोबार पर रोक लगाना, आतं कवादियों पर धन मु हैय्या कराने पर रोक लगाना, मु दर् ा प्रसार को रोककर बढ़ती कीमतों पर
अं कुश लगाना है ।
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड-से बी
भारत सरकार द्वारा सं सद में एक कानून पास करके 12 अप्रैल, 1988 को भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड-से बी की
स्थापना की गयी। इस सं स्था को 30 जनवरी, 1992 में वै धानिक दर्जा भी प्रदान किया गया।
से बी का मु ख्यालय मु म्बई में बनाया गया है , जबकि इसके क्षे तर् ीय कार्यालय कोलकाता, दिल्ली, चे न्नई में स्थापित किये गये
हैं ।
शे यर बाजार में चलने वाले वृ हद् कारोबार को नियन्त्रित और विनियमित करने का काम सिक्योरिटीज एण्ड एक्सचें ज बोर्ड
ऑफ इण्डिया' अर्थात् से बी (SEBI) द्वारा किया जाता है ।
से बी ने पिछले कई वर्षों से निष्क्रिय पड़े सौराष्ट् र कच्छ स्टॉक एक्सचें ज की मान्यता 9 जु लाई, 2007 को समाप्त कर दी
थी, अतः अब मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचें ज की सं ख्या 24 से घटकर 23 रह गयी है ।
(2) सिक्योरिटी प्रिं टिंग प्रेस, है दराबाद इसकी स्थापना दक्षिण राज्यों की डाक ले खन सामग्री की माँ गों को पूरा करने के लिए
1982 में आन्ध्र प्रदे श की राजधानी है दराबाद में की गई थी ताकि भारत प्रतिभूति मु दर् णालय, नासिक रोड के उत्पादन की अनु पर्ति
ू
की जा सके।
(3) करे न्सी प्रेस नोट, नासिक (महाराष्ट् र) नासिक में स्थित करे न्सी नोट प्रेस ₹ 10, 50, 100, 500, 1000 और 2000 के बैं क नोट
छापती है और उनकी पूर्ति करती है ।
(4) बैं क नोट प्रेस, दे वास (मध्य प्रदे श) दे वास स्थित बैं क नोट प्रेस ₹ 10, 50, 100 और 500, 1000 और 2000 के उच्च मूल्य वर्ग के
नोट छापती है । बैं क नोट प्रेस का स्याही का कारखाना प्रतिभूति पत्रों की स्याही का निर्माण भी करता है ।
(5) शाहबनी (पश्चिम बं गाल) तथा मै सरू (कर्नाटक) के भारतीय रिजर्व बैं क नोट मु दर् ण लिमिटे ड-दो नये एवं अत्याधु निक करे न्सी
नोट प्रेस मै सरू (कर्नाटक) तथा साल्बोनी (प. बं गाल) में स्थापित किये गये हैं । यहाँ आरबीआई के नियन्त्रण में करे न्सी नोट छापे
जाते हैं ।
(6) सिक्योरिटी पे पर मिल, होशं गाबाद (मध्य प्रदे श)—बैं क और करें सी नोट कागज तथा नॉन-ज्यूडीशियल स्टाम्प पे पर की छपाई में
प्रयोग होने वाले कागज का उत्पादन करने के लिए सिक्योरिटी पे पर मिल, होशं गाबाद (मध्य प्रदे श) में 1967-68 में चालू की गई
थी।
टकसाल (Mints)
सिक्कों का उत्पादन करने तथा सोने और चाँदी की परख करने एवं तमगों का उत्पादन करने के लिए भारत सरकार की चार
टकसालें मु म्बई, कोलकाता, है दराबाद तथा नोएडा में स्थित हैं । मु म्बई, है दराबाद और कोलकाता की टकसालें काफी समय
पहले क् रमशः 1830, 1903 और 1950 में स्थापित की गई थीं, जबकि नोएडा की टकसाल 1989 में स्थापित की गई थी।
मु म्बई तथा कोलकाता की टकसालों में सिक्कों के अलावा विभिन्न प्रकार के पदकों (मे डल) का भी उत्पादन किया जाता है ।
नोएडा की टकसाल में नवीनतम मशीनरी तथा उपकरण हैं ।
भारत में विकास एवं रोजगार कार्यक् रम (Development and Em- ployment Programmes in India)
कृषि
कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मे रुदण्ड है । भारतीय जनसं ख्या का 48.9% भाग आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है । कृषि
निजी क्षे तर् का सबसे बड़ा व्यवसाय है ।
भारत में कृषि वर्ष 1 जु लाई से 30 जून तक माना जाता है ।
भारत में कृषि क्षे तर् पर जीडीपी का 0.3% कृषि शोध पर व्यय किया जाता है , जबकि अमे रिका में यह 4% है । राष्ट् रीय
किसान आयोग ने इसे 5% करने का सु झाव दिया है ।
दे श का लगभग 55% कृषि क्षे तर् वर्षा पर निर्भर है ।
सकल घरे लू उत्पादन कृषि एवं पशु धन का योगदान 2017-18 में 4.9% था जबकि 2016-17 में 4.8% था ।
इसी अवसर पर प्रधानमन्त्री ने उपग्रह प्रणाली के माध्यम से इन्दिरा गां धी मु क्त विश्वविद्यालय के किसान चै नल' का
भी उद्घाटन किया। इसके तहत् तीन-तीन घण्टे के प्रोग्राम दिन में चार बार प्रसारित किये जाते हैं ।
उद्योग (Industry)
स्वतन्त्रता के पश्चात् दे श की प्रथम औद्योगिक नीति की घोषणा 6 अप्रैल, 1948 में तत्कालीन केन्द्रीय उद्योग मन्त्री
डॉ. श्यामा प्रसाद मु खर्जी द्वारा की गई थी।
पहली औद्योगिक नीति के द्वारा ही दे श में मिश्रित एवं नियन्त्रित अर्थव्यवस्था (Mixed and Controlled Economy) की
नींव रखी गई।
ू री औद्योगिक नीति 30 अप्रैल, 1956 में जारी की।
सरकार ने दस
24 जु लाई, 1991 को सरकार ने औद्योगिक नीति में व्यापक परिवर्तनों की घोषणा की। इस नई औद्योगिक नीति में 18
प्रमु ख उद्योगों को छोड़कर अन्य सभी उद्योगों को लाइसें स से मु क्त कर दिया गया। बाद में 13 और उद्योगों को लाइसें स
की आवश्यकता से मु क्त कर दिया गया।
जु लाई, 2009 तक लाइसें सिं ग की आवश्यकता से मु क्त उद्योगों की सं ख्या घटकर 5 रह गई है ।
दे श की GDP में औद्योगिक क्षे तर् का हिस्सा 2014-15 तक लगभग 31.8% था।
(1) गोंडवाना कोयला क्षे तर् का अधिकां श कोयला सोन, दामोदर, गोदावरी, वर्धा आदि नदियों की घाटी में स्थित है । यहाँ से
प्राप्त होने वाले कोयले का अं श 98% होता है । इस क्षे तर् में प्राप्त होने वाला कोयला एन्थे साइट और बिटु मिनस प्रकार
का होता है । गोण्डवाना क्षे तर् का अधिकां श कोयला ओडिशा, पश्चिम बं गाल, बिहार, मध्य प्रदे श, आन्ध्र प्रदे श तथा
महाराष्ट् र आदि राज्यों में पाया जाता है ।
(2) टर्शियरी कोयला क्षे तर् से मात्र 2% कोयले का उत्पादन होता है । यह क्षे तर् जम्मू-कश्मीर, राजस्थान, असोम, मे घालय,
उत्तर प्रदे श तथा तमिलनाडु आदि राज्यों में पाया जाता है ।
उर्वरक (Fertilizers)
कृषि वै ज्ञानिकों के अनु सार कृषि में विभिन्न किस्मों के उर्वरकों (नाइट् रोजनी, फॉस्फेटी तथा पोटाशी-NPK) का उपयोग
सन्तु लित अनु पात में ही किया जाना चाहिए |
नाइट् रोजन और फॉस्फेटी उर्वरकों के घरे लू उत्पादन में कमी को आयातों से पूरा किया जाता है ।
भारत यूरिया के मामले में लगभग आत्मनिर्भर है ।
उर्वरकों की सर्वाधिक खपत पं जाब में होती है । यहाँ वर्ष 2009-10 में यह खपत 237 किग्रा प्रति हे क्टे यर थी।
उर्वरक उत्पादन एवं उपभोग में भारत का विश्व में चीन और अमरीका के बाद तीसरा स्थान है ।
नवरत्न
नवरत्न का दर्जा प्राप्त कम्पनियाँ निवे श के मामले में ₹ 1000 करोड़ तक के प्रस्तावों पर केन्द्र सरकार की पूर्वानु मति के
बिना ही निर्णय ले सकती हैं । वर्तमान में दे श में 14 कम्पनियों को नवरत्न का दर्जा प्राप्त है । उल्ले खनीय है कि नवरत्न का
दर्जा प्राप्त हो जाने से कम्पनियों को ज्यादा प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वायत्तता मिलती है ।
1. भारत इले क्ट् रॉनिक्स लिमिटे ड (BEL)
2. महानगर टे लीफोन निगम लिमिटे ड (MTNL)
3. हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटे ड (HAL)
4. राष्ट् रीय खनिज विकास निगम (NMDC)
5. ग्रामीण विद्यु तीकरण निगम लिमिटे ड (REC)
6. ने शनल ऐल्यु मिनियम कम्पनी (NALCO)
7. राष्ट् रीय इस्पात निगम लिमिटे ड (RINL)
8. पॉवर फाइने न्स कॉर्पोरेशन (PFC)
9. भारतीय नौवहन निगम (SCI)
10. ऑयल इण्डिया लिमिटे ड (OIL)
11. निवे ली लिग्नाइट लिमिटे ड (NLL)
12. इं जीनियरिं ग इण्डिया लिमिटे ड (EIL)
13. ने शनल बिल्डिं ग कंस्ट् रक्शन कार्पोरेशन लिमिटे ड (NBCL)
14. कण्टे नर कॉर्पोरेशन लिमिटे ड।
मिनी रत्न
ऐसे सार्वजनिक उपक् रम को मिनी रत्न कहा जाता है , जिसने पिछले वर्ष ₹300 करोड़ या इससे अधिक लाभ अर्जित किया
अथवा विगत तीन वर्षों में ₹100 करोड़ से अधिक का लाभ अर्जित किया । इस समय कुल 77 मिनीरत्न कम्पनियाँ हैं ।
नोट-जयपु र (राजस्थान) के निकट सीतापु र में दे श के पहले निर्यात सं वर्द्ध औद्योगिक पार्क (Export Promotion Industrial Park-
EPIP) का औपचारिक उद्घाटन 22 मार्च, 1997 को किया।
ई-बिजने स (E-Business)
इण्टरने ट पर किये जाने वाली बिजने स को ई-बिजने स कहा जाता है । जब पारम्परिक सूचना प्रौद्योगिकी निकायों को
इण्टरने ट के साथ जोड़ दिया जाता है तब वह ई-बिजने स में परिवर्तित हो जाता है । यह गतिज (Dynamic) तथा परस्पर
सम्बन्ध स्थापित करने वाला (Inter Active) होता है । इसका दायरा बहुत व्यापक है जिसमें निजी इण्ट् राने ट (Intranet),
सहभाजी (Extranet) तथा इण्टरने ट सम्मिलित हैं ।
रिफ्ले शन (Reflation)
् हो और वस्तु ओं की
मन्दी की अवस्था में अर्थव्यवस्था में कुछ ऐसे कदम उठाये जाते हैं कि लोगों की क् रय-शक्ति में वृ दधि
् होती है , उसे रिफ्ले शन कहते हैं ।
माँ ग बढ़े , इसके परिणामस्वरूप मूल्य में जो वृ दधि
हवाला (Hawala)
यह व्यापार अधिकृत विदे शी विनियम चै नलों को बाईपास करने वाली एक प्रणाली है । इस व्यापार में लगे लोग भु गतान
घरे लू मु दर् ा (Domestic Currency) की आपूर्ति कर दे ते हैं । यह व्यापार एक प्रमु ख सं चालक के नियन्त्रण में कार्यरत
एजे ण्टों के माध्यम से परिचालित होता रहता है । हवाला व्यापार की विनिम दरें दे श के विभिन्न केन्द्रों में प्रायः अलग-
अलग होती हैं । कुछ आयातक एवं निर्यातक भी हवाला व्यापार के माध्यम से ले न-दे न में रुचि रखते हैं ।
अवमूल्यन (Devaluation)
यदि किसी मु दर् ा का विनिमय मूल्य अन्य मु दर् ाओं की तु लना में जान-बूझकर कम कर दिया जाता है , तो इसे उस मु दर् ा का
अवमूल्यन कहते हैं । यह अवमूल्यन परिस्थितियों के अनु सार सरकार स्वयं करती है । इस नीति का प्रयोग व्यापार सन्तु लन
में आये घाटे की स्थिति में सु धार लाने के लिए किया जाता है । भारत में अवमूल्यन तीन बार (1949, 1966 एवं 1991) में
किया गया था।
प्रतिभूति (Security)
प्रतिभूति एक व्यापक शब्द है , एक अर्थ में प्रतिभूति शब्द का प्रयोग प्रपत्रों के रूप में वित्तीय परिसम्पत्तियों; यथा-
शे यर, डिबे न्चर व अन्य ऋणपत्रों आदि के लिए किया जाता है । बैं किंग में ऋणों की जमानत के सन्दर्भ में प्रतिभूति' फी
प्रयु क्त होता है , जहाँ प्रतिभूति से अभिप्राय उस बीमित हित से होता है , जो ऋण के भु गतान न होने की स्थिति में
उत्पन्न होता है , अर्थात् प्रतिभूति ऋण का बीमा होता है । बैं कों द्वारा ऋणी की व्यक्तिगत अथवा दृश्य प्रतिभूति पर ऋण
प्रदान किया जाता है ।
एज्यु टी (Annuity)
किसी पूर्व निर्धारित योजना के अन्तर्गत प्रति वर्ष एक या अधिक किस्तों में प्राप्त होने वाला भु गतान ‘एन्यु टी' कहलाता
है । जै से-सरकारी ऋणपत्रों पर ब्याज का भु गतान ‘एन्यु टी' के रूप में हो सकता है ।
राशिपतन (Dumping)
किसी वस्तु के अति उत्पादन की स्थिति में बाजार में वस्तु के मूल्य को एक न्यूनतम स्तर से नीचे गिरने से रोकने के लिए
वस्तु के अतिरिक्त भण्डार को विदे शी बाजार में बहुत कम मूल्य पर बे चने और यहाँ तक कि नष्ट तक कर दे ने की प्रक्रिया
राशिपतन कहलाती है । उत्पादकों के हितों की सु रक्षा के लिए कभी-कभी ऐसा करना पड़ता है , ताकि अतिरिक्त उत्पादन को
बाजार से दरू करके वस्तु के मूल्य को गिरने से रोका जा सके।
रे पो दर (Repo Rate)
अल्पकालिक आवश्यकताओं की पूर्ति हे तु जिस ब्याज दर पर कॉमर्शियल बैं क रिजर्व बैं क से नकदी ऋण प्राप्त करते हैं , 'रे पो
दर कहलाती है ।
ट् राईफेड (TRIFED)
जनजातीय लोगों का शोषण करने वाले निजी व्यापारियों से छुटकारा दिलाने और उनके द्वारा तै यार की गयी वस्तु ओं का
अच्छा मूल्य दिलाने के उद्दे श्य से सरकार ने अगस्त, 1987 में भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास सं घ (Tribal Co-
operative Marketing Development Federation of India Ltd.—TRIFED) की स्थापना की थी। इसने अप्रैल, 1988 में
कार्य प्रारम्भ कर दिया था।