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भारतीय संविधान का संघात्मक ढां चा एिं केंद्रीय राज्य संबंध

प्रस्तािना:

भारतीय संविधान, जो 26 जनिरी 1950 को लागू हुआ था, एक


सशक्त और समृद्धि की ओर बढ़ते भारत की ऊजाा को दशाा ता है ।
संविधान ने भारतीय समाज को सामावजक, आवथाक और राजनीवतक
दृवि से सुधारने का एक मागा प्रदान वकया है । संविधान का संघात्मक
ढां चा और केंद्रीय राज्य संबंध भारतीय संविधान की महत्वपूर्ा
विशेषताओं में से कुछ हैं जो इसे एक अवितीय और सशक्त दस्तािेज
बनाते हैं ।

संविधान का संघात्मक ढां चा:

संविधान, भारत का सिोच्च कानून है वजसने दे श की राजनीवत,


सामावजक द्धिवत और आवथाक प्रर्ाली को वनधाा ररत वकया है । इसका
संघात्मक ढां चा, अथाा त इसका समग्र आकार, एक संविधान वनमाा र्
करने िाले सहकारी सवमवत के िारा तैयार वकया गया था। सवमवत में
डॉ. बी. आर. अंबेडकर को अध्यक्ष और उनके साथ कई योगदानी
वििान शावमल थे, वजन्ोंने भारत के विचारकों के साथ वमलकर
संविधान का वनमाा र् वकया।
संविधान का संघात्मक ढां चा भारतीय समाज की विवभन्न विशेषताओं
और आिश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है । इसमें एक
उच्चतम न्यायालय के साथ-साथ अन्य न्यावयक और कानूनी संिाएं ,
विधावयका और कायापावलका को िावपत करने के वलए विभागों का
वििरर् है । संविधान ने सामावजक न्याय, सामावजक समरसता,
धावमाक स्वतंत्रता और अन्य मौवलक अवधकारों की रक्षा के वलए
सामावजक समानता की भािना को प्रमोट वकया है ।

Main body
भारतीय संविधान का संघात्मक ढांचा सात अनुच्छेदों (Articles) में विभावजत है जो संविधान सभा िारा
तैयार वकए गए थे। इन सभी अनुच्छेदों में विवभन्न विषयों पर वनदे श वदए गए हैं।

1. प्रस्तावना (Preamble): इसमें संविधान के मुख्य उद्दे श्यों और मूल वसिांतों का सार है।
2. राज्यपत्रिका (Union and its Territory): इसमें भारत के संघ का वििरर् और राज्यों की
सीमाओं का वििरर् है।
3. नागररकता (Citizenship): इस अनुच्छेद में नागररकता के प्राद्धि और नागररकों के
अवधकारों का वििरर् है।
4. मौत्रिक अत्रिकार (Fundamental Rights): इसमें नागररकों के मौवलक अवधकारों का
सूचीबि है, जो सरकार िारा समाज में न्याय और समानता सुवनवित करने के वलए वदए गए हैं।
5. साववजत्रनक सेवा (Directive Principles of State Policy): इसमें सरकार को संविधान
के मुख्य उद्दे श्यों के प्रवत आत्मसमपार् का वििरर् है ।
6. राज्य संघ के संबंि में (Centre-State Relations): इसमें भारतीय संघ और राज्यों के बीच
संबंधों का वििरर् है।
7. समाचार एवं प्रसार (Amendment of the Constitution): इसमें संविधान की संशोधन
प्रविया का वििरर् है।

भारतीय संविधान का यह संरचना दे श के राजनीवतक और सामावजक संदभा को ध्यान में रखते हुए
तैयार वकया गया है तावक समाज में न्याय, समानता, और सामररक सुधार को प्रोत्सावहत वकया जा सके।

केंद्रीय राज्य संबंध:

संविधान में केंद्र और राज्यों के बीच संबंधों का विशेष ध्यान वदया गया है तावक दे श में सामंजस्य और
एकविधता बनी रह सके। इसे बहुतंवत्रक भारतीय संघ नाम से भी जाना जाता है।
केंद्रीय राज्य संबंधों का सिोच्च वसिांत यह है वक भारत एक संघीय राज्य है वजसमें केंद्र और राज्य दोनों
होते हैं। इनके बीच संबंधों को स्पि रूप से विभावजत वकया गया है तावक राज्यों को अपनी अवधकारों
और कताव्ों का पूरा अवधकार हो सके और साथ ही केंद्र सरकार को भी अपने क्षेत्र में नेतृत्व वदखा
सके।

केंद्र और राज्यों के बीच विवभन्न संबंधों की व्ििा के वलए अनुसूची 7 में बताए गए समान भूवमका के
कारर् इसे एक संघीय राज्य कहा जाता है। इसके अनुसार, संघ राज्य सरकार और भौवतक दृवि से
राज्यों की सरकारों को वमलकर एक भूवमका वनभाते हैं।

केंद्रीय शद्धक्त और राज्य स्वायत्तता:

भारतीय संविधान ने सािाभौवमक रूप से संरवचत भूतपूिा संस्कृवत, भूगोल, और सामावजक संरचना के
आधार पर केंद्र और राज्यों के संबंधों को वनधााररत वकया है। केंद्र और राज्यों के बीच संबंध भारतीय
संघ राज्य का वसरपरे च वनवमात करते हैं , वजसमें केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारें सहयोगपूर्ा रूप से
काम करती हैं।

केंद्र राज्यों को सामावजक न्याय, आवथाक समृद्धि, और सामावजक सुरक्षा की सुवनविवत के वलए
वजम्मेदार बनाता है, जबवक राज्य स्वयं की स्वायत्तता और अपनी िानीय आिश्यकताओं के अनुसार
नीवतयों को वनधााररत करता है। इस प्रकार, संविधान ने केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन को बनाए रखने
का प्रयास वकया है तावक न केंद्रीय सरकार स्वयं सत्ता का उपयोग अत्यवधक करे और न ही राज्य स्वयं
को विलीन द्धिवत में पाए।

केंद्र और राज्य संबंध में चुनौवतयां:

हाल के िषों में, केंद्र और राज्यों के संबंधों में चुनौवतयां उत्पन्न हो रही हैं। अनेक बार, विवभन्न राज्यों में
अपनी विशेषता और आिश्यकताओं को ध्यान में रखकर केंद्र सरकार के वनर्ायों का विरोध हो रहा है।
यह वििाद राज्यों के और केंद्र के बीच संतुलन को कमजोर कर सकता है और समृद्धि की प्रविया को
दीघाकावलक रूप से प्रभावित कर सकता है ।

केंद्र और राज्यों के बीच इस तरह की चुनौवतयों का सामना करना महत्वपूर्ा है तावक दोनों ही स्तरों की
सरकारें वमलकर नागररकों के वहत में काम कर सकें। यह सुवनवित करना आिश्यक है वक राज्यों की
विशेष आिश्यकताओं को समझकर उन्ें सही समथान प्रदान वकया जाए तावक उनका विकास हो सके
और रािर की समृद्धि में योगदान हो सके।
भारतीय संविधान में केंद्रीय राज्य सं बंधों का वििरर् इस प्रकार है :

1. **राज्य सूची (State List):**


राज्य सूची भारतीय संविधान की एक अहम अनुसूची है , जो निीनतम संशोधन के िारा
जोडी गई है । इसमें केंद्र और राज्यों के संबंधों की सूची है और इसे भारतीय भाषा सूची भी
कहा जाता है । यहां कुछ मुख्य बातें हैं जो राज्य सूची को महत्वपूर्ा बनाती हैं :

1. केंद्रीय शक्तियां और राज्य सूची: राज्य सूची में केंद्रीय और राज्य सरकारों को
विवभन्न क्षेत्रों में संघवटत करने की शद्धक्तयां दी गई हैं , जो समृद्धि, न्याय, और सुरक्षा
के क्षेत्र में सहयोगी होती हैं ।
2. भारतीय समृक्ति और सामात्रजक सुरक्षा: यह सूची भारत की समृद्धि और
सामावजक सुरक्षा के क्षेत्र में राज्यों को संगवित रखने का कारर् है।
3. त्रवशेष रूप से त्रशक्षा: वशक्षा के क्षेत्र में राज्यों को स्वयं नीवतयों बनाने और लागू
करने का अवधकार है , वजससे वशक्षा में समानता बनी रह सकती है।
4. यातायात और संचार: राज्य सूची में यातायात और संचार के क्षेत्र में राज्यों को स्वयं
वनर्ाय लेने का अवधकार है , जो िानीय आिश्यकताओं को ध्यान में रखता है ।
5. गणराज्य नागररक के अत्रिकार: इसमें गर्राज्य नागररकों के अवधकार को
संरवचत करने का प्रािधान है, वजससे समाज में न्याय और समानता का समथान हो
सकता है।

राज्य सूची का उद्दे श्य यह है वक राज्यों को उनकी आिश्यकताओं और विशेषताओं के


आधार पर संरवचत रूप में शद्धक्तयों का प्रबंधन करने का अवधकार वमले, वजससे उन्ें सही
समथान प्रदान वकया जा सके और िे अपनी िानीय समृद्धि को बढ़ा सकें। इससे समृद्धि
और सुरक्षा की सुवनविवत हो सकती है , वजससे रािर की सामररक और आवथाक विकास की
प्रविया में समानता बनी रह सकती है
यह सूची उन विषयों को सूचीबि करती है जो राज्य सरकारों की वजम्मेदारी में हैं । इसमें वशक्षा, स्वास्थ्य,
पुवलस, िानीय सरकारों की संचालन क्षमता, औद्योवगक नीवतयााँ , और अन्य सामावजक क्षेत्रों के मुद्दे शावमल
हैं । यह सूची बडे पैम्बर बॉडा र राज्यों को अपनी आपवत्तयों के अनुसार कारा िाई करने की अनुमवत दे ती है ।
2. **संघ सूची (Union List):**
1. इस सूची में विषय हैं जो केंद्र सरकार की वजम्मेदारी में हैं। इसमें रािरीय सुरक्षा, विदे शी मामले,
नागररकता, रे लिे, विमानन, और समरस िस्त्रावधकार शावमल हैं। इसमें केंद्र सरकार को पूर्ा
वनयंत्रर् वमलता है और राज्यों को इन क्षेत्रों में केिल सहायता दे ने का काया होता है।
2.
रक्षा और सुरक्षा: संघ सूची में रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में केंद्रीय सरकार को मुख्य
अवधकार और वजम्मेदाररयां वमलती हैं । इसमें उन्ें रािरीय सुरक्षा की सुवनविवत के
वलए अवधकार है ।
3. त्रवदे शी मामिे और आपत्कािीन क्तित्रतयााँ: संघ सूची में विदे शी मामलों और
आपत्कालीन द्धिवतयों के क्षेत्र में केंद्रीय सरकार को अवधकार है, जो विशेष रूप से
विदे शी राजनीवत और रािरीय सुरक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ा होता है।
4. त्रवत्त और अर्वव्यविा: संघ सूची में वित्त और अथाव्ििा के क्षेत्र में केंद्रीय
सरकार को अवधकार है, वजससे रािर की आवथाक नीवतयों को संचावलत करने में
मदद वमलती है।
5. राजस्व और कर: संघ सूची में राजस्व और कर के क्षेत्र में केंद्रीय सरकार को
अवधकार है, वजससे रािर के आवथाक संरचना को संचावलत करने में मदद वमलती है ।
6. त्रवज्ञान और प्रौद्योत्रगकी: संघ सूची में विज्ञान और प्रौद्योवगकी के क्षेत्र में केंद्रीय
सरकार को अवधकार है, वजससे िैज्ञावनक और प्रौद्योवगकी विकास को समथान
वमलता है ।

संघ सूची राज्यों और केंद्र के बीच साकारात्मक और सहयोगी संबंध िावपत करने में मदद
करती है और विवभन्न क्षेत्रों में सहयोग और संगिन में महत्वपूर्ा भूवमका वनभाती है।

3. **संयुक्त सूची (Concurrent List):**


इस सूची में विषय हैं जो और राज्य सरकारों और केंद्र सरकारों दोनों की वजम्मेदारी में हैं। इसमें
जलिायु पररितान, विधावयका, बेरोजगारी वनयंत्रर्, आवद शावमल हैं । इस सूची के अंतगात, राज्य और
केंद्र दोनों सक्षम होते हैं कानून बनाने में और राज्यों को अपनी अपनी आिश्यकताओं के अनुसार
कानून बनाने का अवधकार होता है। भारतीय संविधान में, संयुक्त सूची (Concurrent List) एक
महत्वपूर्ा भूवमका वनभाती है जो केंद्र और राज्यों के बीच शद्धक्तयों और कायों का विभाजन करती है।
यहां कुछ महत्वपूर्ा बातें हैं जो संयुक्त सूची के संदभा में हैं :

1. **साझा अवधकार (Concurrent Powers):** संयुक्त सूची में सूचीकृत विषयों पर


केंद्र और राज्यों दोनों को वनयमन करने का अवधकार होता है। इसका मतलब है वक ये विषय केंद्र और
राज्यों दोनों की शद्धक्त में शावमल हैं ।

2. **संयुक्त सूची के उदाहरर्:** कुछ मुख्य संयुक्त सूची के विषयों में शावमल हैं जैसे वक
विदे शी मुद्रा, न्यावयक वनयम, व्ापार और उद्योग, पेटरोवलयम और प्राकृवतक गैस, और एडु केशन। इन
क्षेत्रों पर केंद्र और राज्यों दोनों को वनयमन करने का अवधकार है।

3. **समानता का वसिां त:** संयुक्त सूची यह सुवनवित करने के वलए है वक कोई भी


विषय एक से अवधक एकावधकाररक स्तर पर संज्ञानबि हो, वजससे एक समानता का वसिांत बना रहे।

4. **प्रमु ख राजनीवतक वििादों का कारर्:** कई बार, संयुक्त सूची के विषयों


पर केंद्र और राज्यों के बीच राजनीवतक वििाद हो सकते हैं। इससे वनयमन का तरीका और
प्रावधकृवतकरर् के संबंध में वििाद उत्पन्न हो सकता है।

5. **सं युक्त सू ची क े संशोधन:** संयुक्त सूची में पररितान के वलए संविधान में संशोधन
की प्रविया को बताया गया है। संयुक्त सूची के संशोधन के वलए राज्य सभाओं और लोक सभाओं का
आपसी सहमवत आिश्यक होता है।

इन बातों से सावबत होता है वक संयुक्त सूची एक महत्वपूर्ा संविधावनक प्रािधान है जो भारतीय


संविधान में राज्यों और केंद्र के बीच शद्धक्तयों का संतुलन िावपत करने का प्रयास करता है।
4. **आवधकाररक सूची (Residuary List):**

इस सूची में विषय हैं जो न केंद्र सरकार और न राज्य सरकार की


वजम्मेदारी में हैं । इसमें िह विषय शावमल हैं वजन्ें अन्य सूवचयों में
शावमल नहीं वकया गया है ।
आवधकाररक सूची, भारतीय संविधान के सवचिालय (अनुसूची X) में शावमल है , और इसे "संघ और
राज्यों के बीच आवधकाररक सूची" भी कहा जाता है। इसमें िे क्षेत्र शावमल हैं जो न तो संघ की सूची
(Union List) में हैं और न ही राज्य सूची (State List) में। यहां कुछ मुख्य बातें हैं जो आवधकाररक
सूची को महत्वपूर्ा बनाती हैं:

1. अन्यान्य त्रवषयों का संबंि: आवधकाररक सूची में ऐसे विषय शावमल हैं जो न तो संघ और न
ही राज्यों के अधीन हैं। यहां उन संदभों को शावमल वकया गया है वजनमें संघ और राज्यों के
बीच विभाजन हो सकता है ।
2. अत्रिकृत त्रवषयों का संबंि: आवधकाररक सूची में संघ और राज्यों के बीच अवधकृत विषयों
का संबंध है , जो अन्य सूवचयों में नहीं हैं। इसमें ऐसे क्षेत्रों की सूची है जो वकसी अन्य सूची में
नहीं शावमल हैं।
3. संघीय रूप से संबंत्रित त्रवषय: यह सूची उन विषयों को संज्ञान में लेती है जो संघीय रूप से
संबंवधत हो सकते हैं , और इसमें संघ और राज्यों के बीच सहमवत और समथान की आिश्यकता
हो सकती है।
4. संघ और राज्यों के बीच त्रववाद के क्षेि: आवधकाररक सूची में ऐसे विषयों का संबंध है जो
संघ और राज्यों के बीच वििाद के क्षेत्र में आ सकते हैं और इसमें समथान और वििादवनिृवत्त
की प्रविया को तैयार करने का अवधकार है।
5. संघीय संरचना और संघीय आिाररत त्रवषय: इसमें संघीय संरचना और संघीय आधाररत
विषयों का संबंध है, जो संघ और राज्यों के बीच साझेदारी की भािना को प्रोत्सावहत करते हैं ।

आवधकाररक सूची भारतीय संविधान की एक महत्वपूर्ा अनुसूची है जो संघ और राज्यों के बीच संबंधों
को वििरर्ात्मक रूप से वनधााररत करती है और संघीय नीवतयों और विषयों के प्रबंधन में सहायक होती
है।
5. **सामिेत (Integrated):**

यह सूची उन विषयों को सूचीबि करती है जो राज्यों और केंद्र


सरकारों के बीच सहयोग और समथान की आिश्यकता है । इसमें
वित्त, विकास पररयोजनाएं , रािरीय स्वयंसेिक सेना, आवद शावमल हैं ।

केंद्रीय राज्य संबंधों में यह महत्वपू र्ा है वक इसे संविधान ने सुरवक्षत


वकया है तावक राज्यों को स्वतंत्रता हो और उन्ें अपनी समस्याओं का
समाधान करने का अवधकार हो। इसके बािजू द, संविधान ने राज्यों
को समथान करने और उन्ें आिश्यक रूप से नेतृत्व वदखाने की
स्वतंत्रता भी दी है । इससे सामंजस्य और सहयोग का माहौल बना
रहता है और दे श की विकास की वदशा में एक समृद्धि की राह
खोलता है ।

केंद्र राज्य सं बंधों में एक और महत्वपूर्ा पहलुओं में से एक है केंद्रीय


सत्रों का प्रबंधन। केंद्रीय सत्रें राज्यों और केंद्र सरकार के बीच साझा
वकए जाते हैं तावक सभी क्षेत्रों में विकास हो सके और कोई राज्य पीछे
न रहे ।
संसद का अंग मुख्य रूप से दो सदनों, लोकसभा और राज्यसभा से
वमलता है । लोकसभा के सदस्यों का चयन वनिाा वचत प्रवतवनवधयों के
माध्यम से होता है जो लोगों के विचारों को सुनते हैं और उनकी बातों
को पाररत करने का काया करते हैं । राज्यसभा में सदस्यों का चयन
राज्य सभाओं िारा वकया जाता है । इससे सभी राज्यों का प्रवतवनवधत्व
होता है और राज्यों के मुद्दों पर चचाा होती है ।

राज्यों और केंद्र सरकार के बीच सं बंधों को सुरवक्षत रखने के वलए


राज्यपाल को वनयु क्त वकया जाता है , जो राज्य के प्रमुख के रूप में
काया करता है । राज्यपाल का कायाक्षेत्र राज्य सरकार के साथ-साथ
केंद्र सरकार के साथ भी होता है तावक संबंध समझदारी से चल सकें
और उच्चतम आदशों की िापना हो सके।

सामिेत सूची, भारतीय संविधान के निीनतम संशोधन के अनुसार बनाई गई है और इसे "सामिेत
(Integrated) सूची" भी कहा जाता है। इसमें विशेष जावतयों और आवदिासी समुदायों के लोगों के वलए
आरवक्षत नौ और सातों राज्यों के बीच समावहत वकए गए नौ विशेष राज्यों की सूची शावमल हैं। यहां
कुछ मुख्य बातें हैं जो सामिेत सूची को महत्वपूर्ा बनाती हैं :

1. सामवेत समुदाय: सामिेत सूची में शावमल विशेष जावतयों और आवदिासी समुदायों के लोगों
के वलए विवभन्न सामावजक, आवथाक, और शैवक्षक योजनाओं और आरक्षर्ों को संरवचत करने
का उद्दे श्य है।
2. नौ और सात राज्यों की समात्रित सूची: सामिेत सूची में नौ और सात राज्यों की सूची
शावमल है, वजनमें यह विशेष जावतयां और आवदिासी समुदाय हैं । इन राज्यों के बीच सामावहती
का माध्यवमक उद्दे श्य है सामवजक और आवथाक समानता को बढ़ािा दे ना।
3. आरत्रक्षत सीटें : सामिेत सूची में राज्यों को वनवदा ि सीटों पर आरवक्षत िानों की प्रदान की
जाती है, वजससे विशेष जावतयों और आवदिासी समुदायों का प्रवतवनवधत्व सुवनवित हो सकता
है।
4. सामात्रजक और आत्रर्वक त्रवकास: सामिेत सूची से जुडे राज्यों को सामावजक और आवथाक
विकास के वलए विशेष योजनाएं और प्रोजेक्ट्स वमलते हैं। इसका उद्दे श्य विशेष जावतयों और
आवदिासी समुदायों को समृद्धि की प्रविया में समावहत करना है।
5. सामवेती राज्यों का समृक्तिकरण: इस सूची के माध्यम से सामिेती राज्यों को विशेष रूप से
समृद्धिकरर् के वलए विवभन्न योजनाएं वमलती हैं , वजससे उनका सामावजक और आवथाक
विकास हो सकता है।
सामिेत सूची ने विशेष जावतयों और आवदिासी समुदायों को समृद्धि की प्रविया में सही समथान और
सुरक्षा प्रदान करने का माध्यम बनाया है, वजससे उन्ें समाज में समानता और न्याय वमल सके।

केंद्र राज्य सं बंधों का उदाहरर्:

केंद्र राज्य सं बंधों को समझने के वलए कुछ उदाहरर्ों की


आिश्यकता है :

1. **आवथाक विकास:**
केंद्र और राज्य सरकारें एकसाथ काम करके आवथाक विकास को बढ़ािा दे ती हैं। आवथाक योजनाओं,
उद्यवमता, और बाजारी नीवतयों में समथान के माध्यम से दे श को मजबूत बनाने के वलए सहयोग वकया
जाता है।
केंद्र-राज्य संबंधों में आवथाक विकास को समथान करने के वलए कई कदम उिाए जा सकते हैं . यहां
कुछ विचार वदए गए हैं जो इस मुद्दे में मदद कर सकते हैं :

1. साझेदारी और सियोग: केंद्र और राज्य सरकारों के बीच साझेदारी और सहयोग बढ़ाना


अत्यंत महत्वपूर्ा है। यह सां वघक योजनाओं और पररयोजनाओं को समथान प्रदान करने में
मदद करता है जो आवथाक विकास को बढ़ािा दे ने की क्षमता रखते हैं।
2. संत्रवदात्रनक सुिार और संशोिन: संविदावनक सुधार और संशोधन के माध्यम से केंद्र और
राज्यों को आपसी संबंधों में सुधार करने का अिसर वमलता है , जो आवथाक विकास को
प्रोत्सावहत कर सकता है।
3. सुरत्रक्षत और त्रनष्पक्ष त्रवत्तीय प्रबंिन: सुरवक्षत और वनष्पक्ष वित्तीय प्रबंधन के माध्यम से केंद्र
और राज्यों को आवथाक द्धिवत को सुधारने के वलए आिश्यक धन समथान वमल सकता है।
4. नैत्रतकता और सुशासन: सुशासन और नैवतकता के प्रवत पुनरािृवत्त के माध्यम से, केंद्र और
राज्य सरकारें समवपातता और सहयोग की भािना को मजबूत कर सकती हैं , जो आवथाक
विकास को प्रोत्सावहत करने में मदद कर सकती है।
5. क्षेिीय और िानीय समृक्ति: क्षेत्रीय और िानीय समृद्धि को प्रोत्सावहत करने के वलए
योजनाएं बनाना और संचावलत करना, विशेष रूप से उपयोगकताा बने रहने िाले क्षेत्रों को
समृद्धि में शावमल कर सकता है।
6. त्रशक्षा और प्रत्रशक्षण: सुवशवक्षत और कुशल जनसंख्या आवथाक विकास के वलए महत्वपूर्ा है ,
इसवलए केंद्र और राज्यों को वशक्षा और प्रवशक्षर् के क्षेत्र में विशेष ध्यान दे ना चावहए।
7. स्वास्थ्य की सुरक्षा: स्वास्थ्य सेिाओं की पहुंच को बढ़ाने और आवथाक द्धिवत को सुधारने के
वलए केंद्र और राज्यों को स्वास्थ्य की सुरक्षा में विशेष ध्यान दे ना चावहए।
केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग और साझेदारी से, समृद्धि की प्रविया में सहारा वमल सकता है और
आवथाक विकास को सुवनवित रूप से बढ़ािा वमल सकता है।

2. **राजनीवतक द्धिवत:**
केंद्र राज्य संबंधों के माध्यम से राजनीवतक द्धिवत को सुधारा जा सकता है । राज्यों को
उनके स्वतंत्रता के अनुसार काम करने का अवधकार होता है , लेवकन उन्ें रािर के साथ
वमलकर काम करने का भी अवधकार होता है ।
केंद्र और राज्य संबंध भारतीय संविधान के अंतगात व्िद्धित होते हैं और इनमें राजनीवतक द्धिवत का महत्वपूर्ा
िान है। यह संबंध राज्यों और केंद्र के बीच सहयोग और साझेदारी को सुवनवित करने का काया करते हैं , लेवकन
कई बार राजनीवतक समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं।

यहां कुछ मुख्य कारर् और पररद्धिवतयां हैं जो केंद्र राज्य संबंधों में राजनीवतक द्धिवत को
प्रभावित कर सकती हैं :

1. **राजनीवतक दलों की द्धिवत:** केंद्र और राज्यों के बीच संबंधों में राजनीवतक दलों की द्धिवत
बडा प्रभाि डाल सकती है । अगर केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारों के बीच वकसी राजनीवतक विरोधीता की
द्धिवत है , तो सहयोग और साझेदारी में कविनाई हो सकती है ।

2. **राज्यों की राजनीवतक आवदत्यता:** विवभन्न राज्यों में विवभन्न राजनीवतक दल होते हैं जो
अपने-आप में विवभन्न प्राथवमकताओं और मुद्दों को लेकर विवभन्न दृविकोर् रख सकते हैं । इससे केंद्र-राज्य संबंधों
में समन्वय को बढ़ािा दे ना कविन हो सकता है ।

3. **राजनीवतक नेताओं का सहमवत:** केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारों के नेता एक साथ


काम करने के वलए सहमत होना चावहए, तावक िे सामंजस्य और सहयोग की भािना बनाए रख सकें। राजनीवतक
असहमवत की द्धिवत में सहयोग कम हो सकता है ।

4. **सामावजक और सां स्कृवतक मुद्दे:** राजनीवतक विवभन्नता और सामावजक-सांस्कृवतक मुद्दे


भी केंद्र और राज्य संबंधों में प्रभाि डाल सकते हैं । अगर वकसी विशेष मुद्दे पर केंद्र और राज्य में असहमवत है , तो
यह सहयोग को प्रभावित कर सकता है ।
5. **राज्यों की आवथाक द्धिवत:** राज्यों की आवथाक द्धिवत भी इस प्रविया पर प्रभाि डाल सकती
है । अगर वकसी राज्य की आवथाक द्धिवत बुरी है , तो उसे अवधक सहारा और समथान की जरूरत हो सकती है ।

6. **संविदावनक प्रािधान:** संविधान में केंद्र और राज्य संबंधों के वलए विशेष प्रािधान हैं, जो संबंधों
को वनधाा ररत करने में मदद करते हैं ।

सद्धम्मवलत करते हुए, केंद्र राज्य संबंधों में राजनीवतक द्धिवत को सुधारने के वलए सभी प्रभािकारी कदम उिाने
चावहए तावक सहयोग, साझेदारी, और समन्वय की भािना बनी रहे और दे श का समृद्धि और समानता की वदशा में
बढ़ सके।

3. **सामावजक क्षेत्र:**
वशक्षा, स्वास्थ्य, और सामावजक क्षेत्रों में केंद्र राज्य संबंधों के माध्यम से सहयोग वकया
जा सकता है । राज्यों को अपनी आिश्यकताओं के अनुसार योजनाएं बनाने का अवधकार
होता है , लेवकन िे केंद्र से सहायता ले सकते हैं जब आिश्यक हो।
केंद्र राज्य संबंधों में सामावजक क्षेत्र महत्वपूर्ा है , क्ोंवक यह दोनों के बीच सहयोग, साझेदारी, और सामावजक
समृद्धि की वदशा में काम करता है । भारतीय संविधान ने केंद्र और राज्यों के बीच सामावजक क्षेत्र को वििेवचत करने
और सुधारने के वलए विवभन्न धाराओं में विशेष प्रािधान वकए हैं।

यहां कुछ मुख्य क्षेत्रों को दे खा जा सकता है जो केंद्र राज्य संबंधों में सामावजक क्षेत्र को समृद्धि की वदशा में प्रभावित
कर सकते हैं :

1. **वशक्षा:** वशक्षा एक महत्वपूर्ा क्षेत्र है वजसमें केंद्र और राज्य सरकारें वमलकर काम करती हैं । वशक्षा का
स्तर बढ़ाने, वशक्षा का पहुं चाि बढ़ाने, और सामावजक और आवथाक रूप से कमजोर िगों को वशक्षा प्राि करने में
सहायक होना चावहए।

2. **स्वास्थ्य:** स्वास्थ्य सेिाओं की पहुंच, आरोग्य सुरक्षा, और जनसंख्या की आधारभूत स्वास्थ्य


सुविधाओं को बढ़ािा दे ने के वलए केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग की आिश्यकता है ।

3. **सामावजक सुरक्षा:** आवथाक रूप से कमजोर िगों और समाज के अशक्त सदस्यों के वलए
सामावजक सुरक्षा योजनाओं का समथान और संचालन महत्वपूर्ा है ।
4. **सामावजक न्याय:** समाज में समानता और न्याय की वदशा में केंद्र और राज्य सरकारों को
साझेदारी करनी चावहए। विवभन्न समृद्धि कायािमों के माध्यम से समाज के सभी िगों को बढ़ािा वमलना चावहए।

5. **सामावजक समृद्धि:** भूखमरी, बेरोजगारी, और अन्य सामावजक समस्याओं का समाधान केंद्र


और राज्य सरकारों के साझेदारी से हो सकता है।

6. **सां स्कृवतक संरक्षर्:** सांस्कृवतक और भाषा संरक्षर् के वलए केंद्र और राज्यों को वमलकर काम
करना चावहए। समृद्धि के वलए अपनी भूवमका और भाषा सम्बंवधत कायों में सहयोग करना महत्वपूर्ा है ।

7. **समाज सेिा योजनाएं :** गरीबी रे खा के नीचे रहने िाले लोगों के वलए विशेष समाज सेिा
योजनाएं बनाए जाना चावहए वजनसे उन्ें आवथाक सहारा और समथान वमल सके।

8. **मवहला सशकवतकरर्:** मवहलाओं को समाज में समानता और सामावजक िान की वदशा में
समथान करने के वलए स्वतंत्रता, वशक्षा, और रोजगार के अिसरों को बढ़ािा दे ना चावहए।

इन सामावजक क्षेत्रों में सहयोग और साझेदारी से, केंद्र और राज्य सरकारें सामावजक समृद्धि और सामावजक न्याय
की वदशा में सकारात्मक पररर्ाम प्राि कर सकती हैं ।

4. **रािरीय सुरक्षा:**
केंद्र और राज्य सरकारें एकसाथ काम करके रािरीय सुरक्षा को मजबूती दे ने के वलए
सहयोग कर सकती हैं । आतंकिाद, सीमा सुरक्षा, और रािरीय सुरक्षा के क्षेत्र में एकमत
िावपत करने के वलए उच्च स्तरीय समथान आिश्यक है ।

केंद्र राज्य संबंधों में रािरीय सुरक्षा का प्रबंधन एक महत्वपूर्ा और ज़रूरी क्षेत्र है । यह सुवनवित करने का काया
करता है वक दे श में सुरवक्षत और द्धिरता से रहा जा सके, और उच्च स्तर पर रािरीय सुरक्षा के वलए कारगर रूप से
संचालन हो सके।

यहां कुछ मुख्य क्षेत्रों को दे खा जा सकता है जो केंद्र राज्य संबंधों में रािरीय सुरक्षा के प्रबंधन में महत्वपूर्ा हो सकते
हैं :
1. **सीमा सुरक्षा:** दे श की सीमाओं की सुरक्षा केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहयोग और साझेदारी
की आिश्यकता को बताती है । सीमा सुरक्षा उच्च तंवत्रका सुरक्षा, सीमा सुरक्षा बल, और सीमा सुरक्षा तंत्रों के
माध्यम से सुवनवित की जाती है।

2. **आतं किाद और युिाभ्यास:** आतंकिाद और युिाभ्यास के द्धखलाफ नकारात्मक कदम


उिाना, सुरक्षा बलों को तैयार रखना, और युिपूर्ा चुनौवतयों के वलए समथान प्रदान करना अत्यंत महत्वपूर्ा है ।

3. **सामररक शद्धक्त:** समररक शद्धक्त एक रािरीय सुरक्षा के पहलुओं में से एक है। केंद्र सरकार को
समररक शद्धक्त को मजबूत रखने, निीनतम सैन्य तंत्रों को अपनाने, और सुरक्षा क्षमता को बढ़ाने के वलए सहयोग
करना चावहए।

4. **साइबर सुरक्षा:** वडवजटल युग में साइबर हमलों का खतरा बढ़ रहा है, इसवलए साइबर सुरक्षा का
प्रबंधन बहुतंत्री स्तर पर करना चावहए, वजसमें केंद्र और राज्य सरकारें सहयोग कर सकती है

ंं ।

5. **सरकारी संिाएं :** सुरक्षा से संबंवधत सरकारी संिाएं , जैसे वक रािरीय सुरक्षा सलाहकार पररषद,
रक्षा उत्पाद और विकास संगिन, सेना, और िायु सेना, को सहयोगी रूप से काम करना चावहए।

6. **जनसं ख्या सुरक्षा:** बडी जनसंख्या के साथ जीने िाले दे श को जनसंख्या सुरक्षा के वलए सािधान
रहना चावहए, तावक रािरीय संतुलन बना रह सके और सुरक्षा पर बुरा असर न हो।

7. **सं प्रभु ता का संरक्षर्:** संप्रभुता को सुरवक्षत रखने के वलए समथान और सहायता प्रदान करना
चावहए, तावक दे श का संप्रभुता और स्वायत्ता सुरवक्षत रहे ।

केंद्र राज्य संबंधों में रािरीय सुरक्षा का प्रबंधन केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच सहयोगपूर्ा एिं समथानपूर्ा होना
चावहए तावक दे श अंतराािरीय स्तर पर भी सुरवक्षत रह सके और उसका समृद्धि का मागा पुनः प्रशस्त हो सके।
5. **प्रशासवनक न्याय:**
राज्यों को आपसी समस्याओं और वििादों के समाधान के वलए केंद्र से मदद प्राि करने
का अवधकार होता है । केंद्र राज्य संबंधों के माध्यम से यह सुवनवित वकया जा सकता है वक
न्यायपावलका का सुशासन बना रहे और वििादों का सही समाधान हो।
केंद्र और राज्य संबंधों में प्रशासवनक न्याय का सुथरा प्रबंधन दे श की सुशासन और सुरक्षा के वलए महत्वपूर्ा है ।
इसका मुख्य उद्दे श्य सुवनवित करना है वक न्यायप्रर्ाली और प्रशासवनक प्रवियाएाँ संविधान और कानूनों के
अनुसार समथानयोग्य हैं और न्यावयक तंत्र वनष्पक्ष, उदार, और सुदृढ़ हैं ।

1. **न्यायपावलका की स्वतंत्रता:** न्यायपावलका को स्वतंत्रता और वनष्पक्षता का पालन करना चावहए,


वजससे वक यह केंद्र और राज्यों के बीच संबंधों में न्यावयक वनर्ाय वनभीक हो सके।

2. **संविधावनक व्ििा:** संविधावनक व्ििा के अनुसार, केंद्र और राज्यों में न्यायपावलका को


अपने क्षेत्र में अवधकार और कताव् का पालन करना चावहए।

3. **व्ािसावयक और आपरावधक न्याय:** व्ािसावयक और आपरावधक मामलों में केंद्र और


राज्यों के बीच सहयोग और आपसी समन्वय की आिश्यकता है , तावक विशेषज्ञता और संभािना के वहसाब से इन
मामलों में न्यावयक तंत्र काम कर सके।

4. **प्रशासवनक सुधार:** प्रशासवनक प्रवियाओं में सुधार के वलए सहयोग और समन्वय की आिश्यकता
है , तावक न्यावयक प्रवियाएं तेजी से और सुधाररत रूप से हो सकें।

5. **जन न्याय:** न्यावयक तंत्र को जन न्याय के वसिांतों का पालन करना चावहए, वजससे न्याय का दृविकोर्
और सुदृढ़ हो सके।

6. **सं बंवधत कानूनी मुद्दे:** केंद्र और राज्यों के बीच संबंवधत कानूनी मुद्दों में सहयोग और समन्वय का
माध्यम बनाए रखना चावहए, तावक न्यावयक प्रवियाएं वििादों को सुलझाने में मदद कर सकें।

7. **लोकावधकार की सुरक्षा:** न्यावयक प्रवियाओं के माध्यम से लोकावधकार की सुरक्षा करना


चावहए, तावक नागररकों को न्यावयक सुवनवितता का अवधकार हो।
8. **सु शासन और लोकतंत्र का समथान:** न्यावयक प्रवियाएं सुशासन और लोकतंत्र के वसिांतों
का समथान करनी चावहए, वजससे न्यावयक संस्कृवत और न्यावयक साक्षरता में सुधार हो सके।

9. **न्यावयक प्रवशक्षर्:** न्यावयक तंत्र के सदस्यों को न्यावयक प्रवशक्षर् के माध्यम से उनकी योग्यता को
बढ़ाने के वलए सहयोग करना चावहए।

10. **आम जन के प्रवत सेिा:** न्यावयक तंत्र को आम जन के प्रवत सेिा का दृविकोर् बनाए रखना
चावहए, तावक न्याय प्रर्ाली विश्वास जता सके।

केंद्र और राज्य संबंधों में प्रशासवनक न्याय की मजबूती से दे श में सुशासन और न्याय की भािना को बनाए रखना
हमारे समृद्धि और समृद्धि की वदशा में महत्वपूर्ा योगदान कर सकता है ।

"संविधान का संघात्मक ढां चा एिं केंद्रीय राज्य संबंध


IMPORTANT ARTICLE
के संदभा में भारतीय संविधान में कुछ अनुच्छेद हैं जो इस विषय पर प्रािधान करते हैं । इसके वलए प्रमुख अनुच्छेदों
का संक्षेप में वििरर् नीचे वदया गया है :

1. **अनुच्छेद 1 (सािाभौवमक नागररकता):** इस अनुच्छेद में दे श की सािाभौवमक


नागररकता का वसिां त व्क्त वकया गया है , वजसका अथा है वक हर नागररक को संविधान के अनुच्छेदों के तहत
समान अवधकार और कताव् होते हैं ।

2. **अनुच्छेद 2 (भूवम अनुभूवत अवधकार):** इस अनुच्छेद में भूवम अनुभूवत का


अवधकार व्क्त वकया गया है , वजससे यह स्पि होता है वक कोई भी व्द्धक्त वकसी भी भूवम का अवधकारी हो सकता
है और इसे न्यावयक रूप से प्राि कर सकता है ।

3. **अनुच्छेद 3 (धमावनरपेक्षता):** इस अनुच्छेद में भारतीय नागररकों को धमावनरपेक्षता


का अवधकार प्रदान वकया गया है , वजससे यह स्पि होता है वक कोई भी व्द्धक्त अपने धमीय अनुसार जीने में स्वतंत्र
है ।
4. **अनुच्छेद 5 (न्यायपूर्ा वनर्ाय):** इस अनुच्छेद में न्यावयक प्रविया के वनर्ाय को
न्यायपूर्ा बनाए रखने का प्रयास वकया गया है , वजससे कोई भी व्द्धक्त न्यावयक वनर्ाय के द्धखलाफ अपील कर
सकता है ।

5. **अनुच्छेद 11 (राज्यों के बीच शद्धक्त संबंध):** इस अनुच्छेद में भारतीय


संविधान के सभी राज्यों के बीच शद्धक्त संबंध को सुवनवित करने का प्रयास वकया गया है । यह राज्यों को स्वतंत्रता
और आत्म-वनयंत्रर् दे ता है , लेवकन उन्ें एक एकत्र आना चावहए जब वकसी बडे विषय पर वनर्ाय लेना हो।

6. **अनुच्छेद 73 (केंद्र और राज्यों के बीच सू ची):** इस अनुच्छेद में केंद्र और

राज्यों के बीच सूची की िापना की गई है , वजससे यह स्पि होता है वक कौन-कौन से क्षेत्र केंद्र और राज्यों के वलए
हैं ।

7. **अनुच्छेद 74 (केंद्रीय और राज्यों के बीच सू ची में संशोधन):** इस


अनुच्छेद में केंद्रीय और राज्यों के बीच सूची में संशोधन करने का प्रािधान वकया गया है , वजससे यह स्पि होता है
वक संविधान में आिश्यकता अनुसार संशोधन वकया जा सकता है ।

8. **अनुच्छेद 280 (केंद्रीय और राज्यों के बीच वित्त संबंध):** इस


अनुच्छेद में केंद्र और राज्यों के बीच वित्त संबंध को सुवनवित करने का प्रयास वकया गया है , तावक राज्यों
को वित्तीय समथान वमल सके।

BHARTIYA SANVIDHAN KE PART 11 : CHAPTER 1 . 2 . / PART


12 : CHAPTER : 1 .2 ETC
Jaise bhut se anuched diya gya hai

इन अनुच्छेदों के माध्यम से, भारतीय संविधान ने संघात्मक ढांचा और केंद्रीय राज्य संबंधों को सुरवक्षत करने का
प्रयास वकया है । इसके आलािा, अन्य अनुच्छेद और अनुशासन भी हैं जो इस मुद्दे पर प्रदान करते हैं ।

भारतीय संविधान के संघीय ढां चे के विकास और सुधार के वलए


विवभन्न आयोग
भारतीय संविधान के संघीय ढांचे के विकास और सुधार के वलए विवभन्न आयोग गवित वकए गए हैं , वजनमें से कुछ
मुख्य हैं :

1. **संविधान सुधार आयोग (Constitution Review Commission):** यह आयोग


संविधान के सुधार और संविधावनक पररितानों की जरूरत की गहराईयों से जााँ च करता है और संविधान में
आिश्यक पररितान के वलए सुझाि दे ता है । इसका मुख्य उद्दे श्य संविधान को समझाना और सुधारना है तावक यह
समग्र रूप से आधुवनक याग्रावफक सीमाओं और आिश्यकताओं को पूरा कर सके।

2. **केंद्रीय राज्य संबंध सवमवत (Center-State Relations Committee):** यह


सवमवत केंद्र और राज्यों के बीच संबंधों की समीक्षा करती है और उन्ें निीनीकरर् और सुधारने के वलए सुझाि
दे ती है । इसका मुख्य ध्यान केंद्रीय और राज्य सरकारों के बीच सहयोग और साझेदारी में होता है ।

3. **वित्तीय योजना आयोग (Financial Planning Commission):** यह आयोग राज्यों


के बीच वित्तीय संबंधों की समीक्षा करता है और वित्तीय संबंधों को सुधारने के वलए सुझाि दे ता है ।

4. **समथा न
और विकास आयोग (Support and Development
Commission):** इस आयोग का काया विकास क्षेत्र में नीवतयों की समीक्षा करना है, और उच्चतम स्तर पर
उत्पन्न हो रहे समस्याओं के समाधान के वलए सुझाि दे ना है ।

5. **वशक्षा आयोग (Education Commission):** इस आयोग का उद्दे श्य वशक्षा के क्षेत्र में
नीवतयों की समीक्षा करना है और वशक्षा के क्षेत्र में सुधार के वलए सुझाि दे ना है ।

6. **स्वास्थ्य और आरोग्य सवमवत (Health and Wellness Committee):** इस


सवमवत का काया स्वास्थ्य और आरोग्य से संबंवधत नीवतयों की समीक्षा करना है और उनमें सुधार के वलए सुझाि
दे ना है ।

7. **ग्रामीर् विकास आयोग (Rural Development Commission):** इस आयोग का काया गााँिों के


विकास के क्षेत्र में नीवतयों की समीक्षा करना है और ग्रामीर् क्षेत्रों में सुधार के वलए सुझाि दे ना है ।

ये आयोग और सवमवतयां संविधानीय संघात्मक ढां चे के बेहतर विकास और केंद्र-राज्य संबंधों में सुधार के वलए
अच्छी नीवतयों की रूपरे खा तय करने में मदद करती हैं ।
भारतीय संविधान का संघात्मक ढां चा एिं केंद्रीय राज्य संबंध में
महत्वपूर्ा केस कानून

भारतीय संविधान के संघात्मक ढांचा और केंद्र-राज्य संबंधों के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ा मुकदमे (case
laws) हैं जो न्यावयक प्रविया के माध्यम से िावपत हुए हैं। ये मुकदमे ने संविधानीय प्रािधानों की
समझ को स्पि करने और इसके महत्वपूर्ा वसिांतों को व्ाख्यान करने में मदद की हैं । यहां कुछ ऐसे
मुकदमे हैं जो इस क्षेत्र में महत्वपूर्ा हैं :

1. Kesavananda Bharati vs. State of Kerala (1973): यह मुकदमा संविधानीय संरचना


और भूवमका की सबसे महत्वपूर्ा मुकदमों में से एक है । सुप्रीम कोटा ने इस मुकदमे में
आपवत्तयों को सुनने के बाद संविधान के प्रािधानों को बचाने िाले मौवद्रक प्रािधान की स्वीकृवत
दी, लेवकन उसका मन्तव् था वक संविधान में संशोधन की यह अवधकार हमेशा सीवमत रहेगा।
2. S.R. Bommai vs. Union of India (1994): इस मुकदमे में सुप्रीम कोटा ने राज्य
सरकारों की िापना और उनके वगरािट की द्धिवत पर संविधानीय वििादों को सुलझाने के
वलए आदशा दपार् प्रदान वकया।
3. Bommai vs. Union of India (1994): इस मुकदमे में सुप्रीम कोटा ने यह तय वकया वक
राज्य सरकार को िावपत करने और वगरािट की द्धिवत पर रािरपवत की अनुमवत के वलए
अगर वििाद हो, तो इसे न्यायालय में सुलझाना चावहए।
4. Sajjan Singh vs. State of Rajasthan (1965): इस मुकदमे में सुप्रीम कोटा ने यह तय
वकया वक संविधान में शास्त्रीय स्वतंत्रता का वसिांत है और कोई भी संविधान में संशोधन करने
का प्रयास ऐसा होना चावहए जो लोकसभा और राज्यसभा दोनों के िारा बराबर से समथान
प्राि करता है।
5. Indira Nehru Gandhi vs. Raj Narain (1975): इस मुकदमे में सुप्रीम कोटा ने यह तय
वकया वक आपरावधक तत्त्व और चुनाि बचाि के वलए सीवमत समय के दौरान प्रधानमंत्री को
विरोधी प्रवतभाओं के द्धखलाफ कारा िाई का हक है।
6. Minerva Mills Ltd. vs. Union of India (1980): इस मुकदमे में सुप्रीम कोटा ने यह
तय वकया वक संविधान में न्यावयक प्रावधकृवत को सीवमत करने और रक्षा करने के वलए न्यावयक
स्वतंत्रता एक आिश्यक शता है और संविधानीय संरचना के मौवद्रक धाराओं की आपेवक्षक रूप
से अव्ििा का दोष वकसी भी समय दू र वकया जा सकता है।

ये मुकदमे वसफा एक कुछ उदाहरर् हैं और संविधानीय क्षेत्र में और भी कई महत्वपूर्ा मुकदमे हैं जो
न्यावयक प्रविया के माध्यम से िावपत हुए हैं।
समाद्धि:
केंद्र और राज्य संबंधों का संघात्मक ढांचा भारतीय संविधान की एक महत्वपूर्ा विशेषता है जो दे श को
संघीय राज्य के रूप में संगवित करता है। इसमें यह सुवनवित वकया गया है वक राज्यों को अपने
आपवत्तयों के अनुसार कारा िाई करने का अवधकार होता है लेवकन साथ ही केंद्र सरकार को भी दे श की
समृद्धि और एकता के प्रवत उत्सावहत करता है। संविधान ने इसे सुरवक्षत रखने के वलए उच्चतम न्यायालय
की सहायता और संविधान संसद के माध्यम से सम्बोवधत वकया है तावक दे श का उत्कृि चलन सुवनवित
वकया जा सके।

reference book

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