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67th BPSC Economy Hindi 80
67th BPSC Economy Hindi 80
तत
ृ ीय योजना 1961-1966 · ध्यान: भार और बुननयाद उद्योग जजसे बाद में कृवर्ष की
(लक्ष्य वद्
ृ र्ध: 5.6% ओर प्रनतस्थावपत कर ददया गया।
वास्तववक वद्
ृ र्ध: 2.84%) · चीन 1962 और पाककस्तान 1965 दो युद्धों तथा 1965-
66 में भयंकर सखा पडा था, यह योजना कईं मोचों पर
असफल सात्रबत हुई।
दसवीं योजना 2002-2007 1. इसका लक्ष्य अगले 10 वर्षों में भारत में प्रनत
(लक्ष्य वद्
ृ र्ध: 8.1% व्यजक्त आय को दोगुनी करना था।
वास्तववक वद्
ृ र्ध: 7.7%) 2. 2012 तक गर बी अनप
ु ात को 15% तक घटाना
था।
नीनत आयोग
● नीनत आयोग, नेशनल इंस्ट र्टयट ऑफ रांसफॉशमिंग इंडडया वर्षि 2015 में भारत सरकार द्वारा स्थावपत
एक र्थंक टैंक है।
● इसने योजना आयोग का स्थान शलया है।
● धारणीय ववकास लक्ष्यों को प्राप्त करना और ‘नीचे से ऊपर’ दृजष्ट्टकोण अपनाकर सहयोगी संघवाद को
बढावा दे ना इसके दोहरे लक्ष्य थे। इसकी पहलों में शाशमल हैं:
(i) 15 वर्षीय रोड मैप
(ii) 7 वर्षीय सोच, रणनीनत और कायि-योजना
(iii) 3 वर्षीय एजेंडा
राष्ट्र य आय
राष्ट्र य आय के संबंध में
● सामान्यतया समस्त ननशमित माल एवं एक ननजश्चत समय अंतराल(सामान्यतया एक वर्षि) में दे शभर में
द जाने वाल सेवाओं के कुल मल्य को राष्ट्र य आय के रूप में पररभावर्षत ककया जाता है |
राष्ट्र य आय के मापांक ननम्न प्रकार हैं-
(A) GDP (सकल घरे ल उत्पाद)
(B) GNP (सकल राष्ट्र य उत्पाद)
(C) NNP (कुल राष्ट्र य उत्पाद)
(D) PI (ननजी आय)
(E) DPI (अवशशष्ट्ट ननजी आय)
(A) GDP (सकल घरे ल उत्पाद)-
● एक ननजश्चत समय अंतराल के दौरान दे श की भौगोशलक सीमा के अंतगित उत्पाददत समस्त माल एवं
सेवाओं के कुल मल्य को GDP कहते हैं(सामन्यतया एक वर्षि)
● इसमें ननजी नागर कों एवं ववदे शी राष्ट्रों जो उस दे श की सीमा के अन्दर रहते हैं, द्वारा उत्पाददत सभी
माल/सेवाओं को शाशमल ककया जाता है |
● उदाहरण-
माना कक कुल 100 करोड भारतीय हैं जजन्हें भारतीय िेि में 100 करोड रुपयों की आय प्राप्त होती है और
1 करोड ववदे शी हैं जजन्हें भारतीय िेि में 10 करोड रूपये प्राप्त होते हैं और वे उन्हें अपने क्रमशः दे शों में
भेजते हैं| उसी समय ववदे श में रह रहे 10 करोड भारतीय 40 करोड रूपये प्रापर करते हैं और इसे भारत
भेजते हैं| यहााँ, GDP (100 + 10 = 110 करोड) है|
(B) GNP (सकल राष्ट्र य उत्पाद)-
● भारतीयों द्वारा भारत एवं ववदे श में ककसी जन्सर्चत समय अंतराल के दौरान उत्पाददत होने वाले तैयार
माल एवं सेवाओं के कुल मल्य को GNP कहा जाता है|
● GNP में ककसी दे श के ननवास करने वाले एवं ननवास नह ं करने वाले नागररकों द्वारा उत्पाददत माल का
मल्य शाशमल ककया जाता है जबकक भारत में रहने वाले ववदे शशयों की आय को शाशमल नह ं ककया जाता
है|
● उदाहरण-
माना 100 करोड भारतीय हैं जजन्हें भारतीय िेि में 100 करोड रूपये प्राप्त होते हैं एवं भारतीय िेि में 1
करोड ववदे शी हैं जजन्हें 10 करोड रूपये प्राप्त होते हैं और इसे वे क्रमशः दे शों में भेजते हैं| उसी समय
ववदे शी दे शों में रह रहे 10 करोड भारतीय 40 करोड प्राप्त करते हैं और इसे भारत भेजते हैं|
3. माजजिन आवश्यकताएं
● आरबीआई अनुप्रासंर्गक के खखलाफ माजजिन ननधािररत कर सकता है। उदाहरण के शलए, 100 रुपये की
मल्य संपवत्त के शलए केवल 70 रुपए उधार दें , माजजिन की आवश्यकता 30% है। यदद आरबीआई माजजिन
की आवश्यकता को बढाता है , तो ग्राहक कम ऋण लेने में सिम होंगे।
4. नैनतक प्रत्यायन
● नैनतक प्रत्यायन अथिव्यवस्था की प्रववृ त्त के अनुसार ननजश्चत उपाय करने हे तु भारतीय ररजवि बैंक
द्वारा वाखणजज्यक बैंकों के शलए अनुरोध की पद्धनत तथा परामशि की पद्धनत को संदशभित करता है।
5. प्रत्यि कायिवाह
● आरबीआई अथिव्यवस्था में वतिमान जस्थनत के आधार पर समय-समय पर कुछ ददशा-ननदे शों को जार
करता है। इन ददशा-ननदे शों का पालन बैंकों द्वारा ककया जाना चादहए। यदद कोई भी बैंक इन ददशा-
ननदे शों का उल्लंघन करता है तो भारतीय ररजवि बैंक उन्हें दं डडत करता है।
भारत में गर बी
गर बी
● वह जस्थनत जजसमे समाज का एक दहस्सा अपने जीवन की मल आवश्यकताओं को पणि करने में
असमथि होता है |
● यह दो प्रकार की होती है-
(a) सम्पणि गर बी
(b) तल
ु नात्मक गर बी
(a) सम्पणि गर बी
● इसमें हम जीवन में आवश्यक वस्तओ
ु ं की ननम्नतम मािा का कुल मान ज्ञात करते हैं(एक आंकडा जो
प्रनत व्यजक्त उपभोक्ता व्यय को व्यक्त करता है )|
● जजस जनसंख्या का आय-स्तर (या व्यय) इस कुल मान से कम होता है उसे गर बी रे खा के नीचे(BPL)
माना जाता है|
● गर बी के इस मापांक में, हमने गर बों की संख्या को कुल जनसंख्या के समानुपात माना है | इस मापांक
को मुख्य गणना अनुपात के नाम से भी जाना जाता है|
उदाहरण: जनसंख्या का 13%, BPL है|
(b) तुलनात्मक गर बी
● इस प्रकार की गर बी में व्यजक्त, ननम्नतम गर बी रे खा(BPL) के ऊपर हो सकता है ककन्तु अन्य
व्यजक्तयों की तुलना में गर ब ह होता है जजनकी आय उसकी आय/उपभोग से अर्धक है|
● इस प्रकार की गर बी में , ववशभन्न प्रनतशत समहों में जनसंख्या की आय गणना/ उपभोग ववतरण का
अनुमान लगाया जाता है और उनकी तुलना की जाती है|
● यह कुल जनसंख्या के बीच उपजस्थत असमानता प्रदान करता है|
● Quintile ratio(पंचमक अनुपात) इस असमानता का ह एक माप है |
● पंचमक आय अनुपात= सबसे अमीर 20% की औसत आय/ सबसे गर ब 20 व्यजक्तयों की औसत आय
त्रिदटश भारत मे गर बी का अनुमान
● गर बी का सविप्रथम अनुमान दादाभाई नौरोजी द्वारा उनकी पुस्तक “Poverty and un-British rule in
India” में 1901 में प्रकाशशत हुआ|
● 1936 में, राष्ट्र य योजना समीनत ने संयक्
ु त भारत में गर बी के बारे में ववचार ददया| ककन्तु उनके द्वारा
ददए गए आंकडों को भारत में गर बी के रूप में नह ं माना गया|
स्वतन्ि भारत में गर बी का अनुमान
(A) डॉ. V.M. दांडेकर एवं ननलान्था रथ (1968-69)
● ननजश्चत वंर्चत न्यनतम पोर्षण = 2250 कैलोर /ददन
● वपछडे िेिों में, इस मािा में पोर्षण खर दने हे तु आवश्यक राशश - 170 रूपये/वर्षि
● शहर िेिों में , इस मािा में पोर्षण खर दने हे तु आवश्यक राशश - 271 रूपये/वर्षि
● इस सन्दभि के प्रयोग से, उन्होंने दे खा कक वपछडे िेिों के 40% एवं शहर िेिों के 50%, 1960-61 में
गर बी रे खा से नीचे थे|
(B) योजना आयोग ववशेर्षज्ञ समह
● गर बी रे खा अवधारणा को सविप्रथम 1962 में योजना संगिन के योजना आयोग कायि समह द्वारा
प्रस्तुत ककया गया था|
(i) Alagh Committee (अलघ समीनत)
● अध्यि- Y K अलघ
● 1979 तक गर बी का मल्यांकन आय की कमी के आधार पर होता रहा, ककन्तु 1979 में Y K अलघ
समीनत ने घरे ल प्रनत व्यजक्त खपत व्यय के आधार पर एक नया तर का अपनाया|
● इस समीनत ने भारत में प्रथम गर बी रे खा को पररभावर्षत ककया|
● वपछडे िेिों में समीनत द्वारा सनु नजश्चत ककया गया प्रनतददन उपभोग = 2400 कैलोर /ददन
शहर िेिों में समीनत द्वारा सनु नजश्चत ककया गया प्रनतददन उपभोग = 2100 कैलोर /ददन
ववशेर्ष- वपछडे भारत में उपभोग का मान उनके द्वारा ककये गए शार ररक श्रम के कारण अर्धक रखा
गया था|
(ii) लकडावाला समीनत
● 1989 में बनाई गयी|
● अध्यि- D.T. लकडावाला
● 1993 में जांच/ररपोटि जमा की गयी|
● वपछडे िेिों में समीनत द्वारा सुननजश्चत ककया गया प्रनतददन उपभोग = 2400 कैलोर /ददन
● शहर िेिों में समीनत द्वारा सुननजश्चत ककया गया प्रनतददन उपभोग = 2100 कैलोर /ददन
● समीनत ने गर बी के अनुमान के शलए CPI-IL एवं CPI- AL का प्रयोग ककया|
ववशेर्ष- CPI-IL (Consumer Price Index for Industrial Labourers)
CPI-AL (Consumer Price Index for Agriculture Labourers)
● पररणाम-
1993-94 में BPL के अंतगित कुल व्यजक्त थे = 36%
2004-05 में BPL के अंतगित कुल व्यजक्त थे = 27.5%
(ii) तें दल
ु कर समीनत
● 2005 में बनाई गयी|
● अध्यि- सुरेश तेंदल
ु कर
● इसकी ररपोटि 2009 में जमा की गयी|
● कैलोर आधाररत अनुमान को पोर्षण, स्वास््य एवं अन्य व्यय के आधार पर पररवनतित ककया|
● एक नया शब्द Poverty Line Basket (PLB) प्रस्तुत ककया जो कक गर बी रे खा ननजश्चत करने वाल सभी
चयननत वस्तुओं की एक टोकर (basket) को प्रदशशित करता है |
● उपभोग मािा दोनों वपछडे एवं शहर िेि के लोगों के शलए समान ननजश्चत की गयी ककन्तु मल्य में
अंतर है -
ग्रामीण/वपछडे िेिों के शलए दै ननक प्रनत व्यजक्त व्यय- 27 रूपये
शहर िेिों के शलए दै ननक प्रनत व्यजक्त व्यय- 33 रूपये
पररणाम-
कुल गर बी- 37.2% (वर्षि 2004-05 में)
वपछडे- 41.8% (वर्षि 2004-05 में)
शहर - 25.7% (वर्षि 2004-05 में )
(iii) रं गराजन समीनत
● जन 2012 में बनाई गयी|
● अध्यि- रं गराजन
● इसकी ररपोटि जन 2014 में जमा की गयी|
● दोबारा, भतकाल में की गयी कैलोर आधाररत ववर्ध को अपनाया गया|
ग्रामीण के शलए दै ननक प्रनत व्यजक्त व्यय- 33 रूपये
शहर के शलए दै ननक प्रनत व्यजक्त व्यय- 47 रूपये
● पररणाम-
कुल गर बी- 29.5% (वर्षि 2011-12 में)
वपछडे- 30.9% (वर्षि 2011-12 में)
शहर - 26.4% (वर्षि 2011-12 में )
भारतीय बैंककं ग प्रणाल ववकास के चरण
भारतीय बैंककं ग प्रणाल के ववकास को तीन अलग-अलग चरणों में वगीकृत ककया गया है :
1. स्वतंिता से पवि का चरण अथाित 1947 से पहले
2. दसरा चरण 1947 से 1991 तक
3. तीसरा चरण 1991 से अब तक
1. स्वतंिता से पवि का चरण अथाित 1947 से पहले- प्रथम चरण
● इस चरण की मुख्य ववशेर्षता अर्धक मािा में बैंकों की उपजस्थनत (600 से अर्धक) है।
● भारत में बैंककं ग प्रणाल का आरं भ वर्षि 1770 में कलकत्ता (अब कोलकाता) में बैंक ऑफ दहंदस्
ु तान की
स्थापना के साथ हुआ, जजसने वर्षि 1832 में कायि करना समाप्त कर ददया।
● इसके बाद कई बैंक स्थावपत हुए लेककन उनमें से कुछ सफल नह ं हुए जैस-े
(1) जनरल बैंक ऑफ इंडडया (1786-1791)
(2) अवध कॉमशशियल बैंक (1881-1958) - भारत का पहला वाखणजज्यक बैंक
● जबकक कुछ सफल भी हुए और अभी तक कायिरत हैं, जैस-े
(1) इलाहाबाद बैंक (1865 में स्थावपत)
(2) पंजाब नेशनल बैंक (1894 में स्थावपत, मख्
ु यालय लाहौर में (उस समय))
(3) बैंक ऑफ इंडडया (1906 में स्थावपत)
(4) बैंक ऑफ बडौदा (1908 में स्थावपत)
(5) सेंरल बैंक ऑफ इंडडया (1911 में स्थावपत)
● जबकक बैंक ऑफ बंगाल (1806 में स्थावपत), बैंक ऑफ बॉम्बे (1840 में स्थावपत), बैंक ऑफ मरास
(1843 में स्थावपत) जैसे कुछ अन्य बैंकों का वर्षि 1921 में एक की बैंक में ववलय कर ददया गया, जजसे
इंपीररयल बैंक ऑफ इंडडया के नाम से जाना जाता था।
● इंपीररयल बैंक ऑफ इंडडया का नाम वर्षि 1955 में पररवनतित करके स्टे ट बैंक ऑफ इंडडया कर ददया
गया।
● अप्रैल 1935 में , दहल्टन यंग कशमशन (1926 में स्थावपत) की शसफाररश के आधार पर भारतीय ररजवि
बैंक की स्थापना की गई।
● इस समयावर्ध में, अर्धकांश बैंक आकार में छोटे थे और उनमें से कई असफलता से ग्रशसत थे।
फलस्वरूप, इन बैंकों में जनता का ववश्
वास कम था और इन बैंकों का धन संग्रह भी अर्धक नह ं था।
इसशलए लोगों ने असंगदित िेि (साहकार और स्थानीय बैंकरों) पर भरोसा जार रखा।
2. दसरा चरण 1947 से 1991 तक
● इस चरण की मुख्य ववशेर्षता बैंकों का राष्ट्र यकरण थी।
● आर्थिक योजना के दृजष्ट्टकोण से, राष्ट्र यकरण प्रभावी समाधान के रूप में उभर के सामने आया।
भारत में राष्ट्र यकरण की आवश्यकता:
● ज्यादातर बैंकों की स्थापना बडे उद्योगों, बडे व्यापाररक घरानों की जरूरतों को परा करने के शलए हुई।
● कृवर्ष, लघु उद्योग और ननयाित जैसे िेि पीछे हो गए।
● साहकारों द्वारा आम जनता का शोर्षण ककया जाता रहा।
● इसके बाद, 1 जनवर , 1949 को भारतीय ररजवि बैंक का राष्ट्र यकरण ककया गया।
● 19 जुलाई, 1969 को चौदह वाखणजज्यक बैंकों का राष्ट्र यकरण ककया गया। वर्षि 1969 के दौरान श्रीमती
इंददरा गांधी भारत की प्रधान मंिी थीं। ये बैंक ननम्न थे-
(1) सेंरल बैंक ऑफ इंडडया
(2) बैंक ऑफ इंडडया
(3) पंजाब नेशनल बैंक
(4) बैंक ऑफ बडौदा
(5) यनाइटे ड कॉमशशियल बैंक
(6) कैनरा बैंक
(7) दे ना बैंक
(8) यनाइटे ड बैंक
(9) शसंडडकेट बैंक
(10) इलाहाबाद बैंक
(11) इंडडयन बैंक
(12) यननयन बैंक ऑफ इंडडया
(13) बैंक ऑफ महाराष्ट्र
(14) इंडडयन ओवरसीज बैंक
● अप्रैल 1980 में अन्य छह वाखणजज्यक बैंकों का राष्ट्र यकरण हुआ। ये ननम्न थे:
(1) आंध्रा बैंक
(2) कॉरपोरे शन बैंक
(3) न्य बैंक ऑफ इंडडया
(4) ओररएंटल बैंक ऑफ कॉमसि
(5) पंजाब एंड शसंध बैंक
(6) ववजया बैंक
● इस बीच, नरशसम्हम सशमनत की शसफाररश पर 2 अक्टबर, 1975 को, िेिीय ग्रामीण बैंक (आर.आर.बी)
का गिन ककया गया। आर.आर.बी के गिन के पीछे का उद्दे श्य सेवा से अछती ग्रामीण िेिों की बडी
आबाद तक सेवा का लाभ पहुंचाना और ववत्तीय समावेशन को बढावा दे ना था।
● ववशभन्न िेिों (जैसे कृवर्ष, आवास, ववदे शी व्यापार, उद्योग) की ववशशष्ट्
ट आवश्यकताओं को परा करने
के शलए कुछ शीर्षि स्तर की बैंककं ग संस्थाएं भी स्थावपत की गईं-
(1) नाबाडि (1982 में स्थावपत)
(2) एजक्जम (1982 में स्थावपत)
(3) एन.एच.बी (1988 में स्
थावपत)
(4) शसडबी (1990 में स्थावपत)
3. तीसरा चरण 1991 से अब तक
● इस अवर्ध में आर्थिक नीनतयों के उदार करण के साथ बैंकों के ववकास की प्रकक्रया में उल्लेखनीय वद्
ृ र्ध
दजि की गई।
● राष्ट्र यकरण और उसके बाद के ननयमों के बाद भी, बैंककं ग सेवाओं द्वारा जनता का एक बडा दहस्सा
अछता रहा।
● इसे ध्यान में रखते हुए, वर्षि 1991 में, नरशसम्हम सशमनत ने, बैंककं ग प्रणाल में ननजी िेि के बैंकों के
प्रवेश की अनुमनत की शसफाररश की।
● इसके बाद आर.बी.आई ने 10 ननजी संस्थाओं को लाइसेंस ददया, जजनमें से 6 आज भी कायिरत हैं-
आई.सी.आई.सी.आई, एच.डी.एफ.सी, एजक्सस बैंक, इंडसइंड बैंक,डी.सी.बी।
● वर्षि 1998 में, नरशसम्हम सशमनत ने पुन: अन्य ननजी बैंकों के प्रवेश की शसफाररश की। फलस्वरूप,
आर.बी.आई ने ननम्न बैंकों को लाइसेंस ददया-
(1) कोटक मदहंरा बैंक (2001)
(2) यस बैंक (2004)
● वर्षि 2013-14 में , बैंक को लाइसेंस प्रदान करने का तीसरा दौर शुरु हुआ। और वर्षि 2014 में
आई.डी.एफ.सी बैंक और बंधन बैंक उभर कर सामने आए।
● अन्य ववत्तीय समावेशन के शलए, आर.बी.आई ने दो प्रकार के बैंकों का गिन करने का प्रस्ताव भी रखा,
जैसे भग
ु तान बैंक और लघु बैंक।
अन्य महत्वपणि त्य
1. इलाहाबाद बैंक, 1865 में स्थावपत - इलाहाबाद बैंक भारत का सबसे परु ाना साविजननक िेि का बैंक है ,
जजसकी शाखाएं परे भारत में हैं और यह बैंक वपछले 145 वर्षों से ग्राहकों की सेवा में है।
2. इंपीररयल बैंक ऑफ इंडडया का नाम वर्षि 1955 में बदल कर स्टे ट बैंक ऑफ इंडडया कर ददया गया था।
3. पंजाब नेशनल बैंक केवल भारतीयों द्वारा प्रबंर्धत पहला बैंक है , जजसे वर्षि 1895 में लाहौर में स्थावपत
ककया गया था।
4. सबसे पहले स्वदे शी बैंक - सेंरल बैंक ऑफ इंडडया को भारत का पहला पणि स्वदे शी बैंक माना जाता है ,
जजसे वर्षि 1911 में स्थावपत ककया गया था और यह पणितया भारतीयों के स्वाशमत्व एवं प्रबंधन वाला
बैंक था।
5. यननयन बैंक ऑफ इंडडया का उद्घाटन महात्मा गांधी ने वर्षि 1919 में ककया था।
6. ओसबॉनि जस्मथ, भारतीय ररजवि बैंक के पहले गवनिर थे।
7. सी.डी. दे शमुख, भारतीय ररजवि बैंक के पहले भारतीय गवनिर थे।
8. ववदे श में बैंक खोलने वाला पहला भारतीय बैंक, ‘बैंक ऑफ इंडडया’ है। इस बैंक द्वारा वर्षि 1946 में लंदन
में एक शाखा स्थावपत की गई थी।
9. भारतीय स्टे ट बैंक की ववदे शी शाखाओं की संख्या सवािर्धक है।
संगदित िेि:
इसे भी दो श्रेखणयों में ववभाजजत ककया गया है
1. बैंककं ग
आरबीआई अर्धननयम 1934 की अनस
ु ची पर आधाररत बैंकों का वगीकरण
सभी बैंकों (वाखणजज्यक बैंक, आरआरबी, सहकार बैंक) को अनस
ु र्चत और गैर-अनस
ु र्चत बैंकों में वगीकृत
ककया जा सकता है।
1. अनस
ु र्चत बैंक
● वे बैंक जो आरबीआई अर्धननयम, 1934 की दसर अनस
ु ची में सचीबद्ध हैं।
● बैंक दर पर RBI से ऋण प्राप्त करने के शलए पाि हैं।
2. गैर-अनुसर्चत बैंक
● वे बैंक जो आरबीआई अर्धननयम, 1934 की दसर अनस
ु ची में सचीबद्ध नह ं हैं।
● आमतौर पर, आरबीआई से ऋण प्राप्त करने के शलए पाि नह ं हैं।
● सीआरआर अपने साथ रखें आरबीआई के साथ नह ।ं
वाखणजज्यक बैंक
● बैंककं ग ववननयमन अर्धननयम 1949 के तहत ववननयशमत।
● वे जमा को स्वीकार कर सकते हैं, लाभ अजजित करने के शलए ऋण और अन्य ववत्तीय सेवाएं प्रदान कर
सकते हैं।
● वाखणजज्यक बैंकों में साविजननक िेि के बैंक और ननजी िेि के बैंक शाशमल हैं।
साविजननक िेि के बैंक
● इन बैंकों में ज्यादातर शेयर (50% से अर्धक) सरकार द्वारा आयोजजत ककए जाते हैं।
● वतिमान में अपने सहयोगी बैंकों और भारतीय मदहला बैंक (बीएमबी) के साथ एसबीआई के ववलय के
बाद भारत में 21 साविजननक िेि के बैंक हैं।
● बैंकों का राष्ट्र यकरण दो चरणों में सरकार द्वारा ककया गया था-
राष्ट्र यकरण का पहला चरण जुलाई 1969 में हुआ था, जजसमें चौदह बैंकों का राष्ट्र यकरण हुआ था।
बैंकों के राष्ट्र यकरण का दसरा चरण अप्रैल 1980 में हुआ था, जजसमें 6 बैंकों का राष्ट्र यकरण हुआ था।
बैंकों के राष्ट्र यकरण के उद्दे श्य -
1. ननजी एकार्धकार को कम करना
2. सामाजजक कल्याण
3. बैंककं ग सुववधाओं का ववस्तार
4. प्राथशमकता िेि के ऋण पर ध्यान दे ना
ननजी िेि बैंक
● इन बैंकों में शेयरों के बहुमत दहस्सेदार सरकार द्वारा आयोजजत नह ं होती।
● इन बैंकों में भारतीय बैंकों के साथ-साथ ववदे शी बैंक दोनों शाशमल होते हैं।
● ननजी बैंक जो 1990 (अथिव्यवस्था का उदार करण) से पहले स्थावपत ककए गए थे, उन्हें पुराने बैंकों के
रूप में वगीकृत ककया गया है।
● 1990 (अथिव्यवस्था का उदार करण) के बाद स्थावपत ककए जाने वाले ननजी बैंकों को नए बैंकों के रूप में
वगीकृत ककया गया है।
● स्थानीय िेि बैंक - ननजी बैंक, जजन्हें सीशमत िेि में संचाशलत करने की अनम
ु नत है तथा जो कंपनी
अर्धननयम, 1956 के तहत पंजीकृत हैं, उन्
हें स्थानीय िेि बैंक कहते हैं। इसके शलए कम से कम 5
करोड की पंजी की आवश्यकता है।
िेिीय ग्रामीण बैंक
● आरआरबी अर्धननयम, 1976 के तहत स्थावपत हैं।
● साविजननक िेि के बैंकों द्वारा स्थावपत हैं।
● इसका उद्दे श्य ग्रामीण िेिों में क्रेडडट फ्लो को बढाना है।
● अप्रैल, 1987 में केलकर सशमनत की शसफाररशों के बाद, कोई भी नया आरआरबी खोला नह ं गया है।
सहकार बैंक
● कृवर्ष, कुदटज उद्योग आदद के ववत्तपोर्षण के उद्दे श्य से स्थावपत हैं।
● जमा और उधार दे ना दोनों गनतववर्धयां कर सकता है।
● नाबाडि (राष्ट्र य कृवर्ष और ग्रामीण ववकास बैंक) भारत में सहकार िेि की सवोच्च संस्था है।
सहकार बैंकों की संरचना
1. ग्रामीण सहकार ऋण संस्थान
(a) अल्पावर्ध संरचना
● एक वर्षि तक के शलए उधार दें ।
● इसे तीन स्तर य सेट-अप में ववभाजजत ककया गया है-
(i) राज्य सहकार बैंक -
● राज्य में सहकार बैंकों के शलए सवोच्च ननकाय है।
(ii) केंर य या जजला सहकार बैंक -
● जजला स्तर पर संचालन।
(iii) प्राथशमक कृवर्ष ऋण सोसाइट -
● ग्राम स्तर पर संचालन।
(b) द घिकाशलक संरचना
● एक वर्षि से अर्धक के शलए पच्चीस वर्षों तक उधार दे ना।
● इसे दो स्तर य सेट-अप में ववभाजजत ककया गया है
(i) राज्य सहकार कृवर्ष और ग्रामीण ववकास बैंक तथा
(ii) प्राथशमक सहकार कृवर्ष और ग्रामीण ववकास बैंक
2. शहर सहकार ऋण संस्थान
● शहर और अधि-शहर िेिों में स्थावपत हैं।
● छोटे व्यवसायों और उधारकतािओं को उधार दे ना।
2. उप-बाजार
● उप-बाजार ननवेश के शलए संसाधनों का ननमािण करने हे तु और ननयशमत गनतववर्धयों के शलए धन में
कमी को परा करने हेतु बाजार हैं।
● सरकार, ववत्तीय संस्थान तथा उद्योग उप-बाजार में भाग लेते हैं।
उप-बाजार की संरचना
(i) कॉल मनी माककिट
● लघु सचना बाजार के रूप में जाना जाता है ।
● आमतौर पर अंतर बैंक उधार लेने और ऋण दे ने के शलए उपयोग ककया जाता है।
● एक से चौदह ददनों तक की सीमा के शलए ऋण।
● यह भी दो श्रेखणयों में ववभाजजत है- ओवरनाइट बाजार (एक ददन के भीतर) B. लघु सचना बाजार (चौदह
ददन तक)
(ii) त्रबल बाजार या डडस्काउं ट बाजार
(a) राजकोर्ष त्रबल -
● सरकार राजकोर्ष द्वारा जार ।
● अल्पावर्ध ऋण के शलए उपयोग ककया जाता है।
● गैर-ब्याज बीयररंग (शन्य कपन बांड) छट कीमत पर जार ।
(b) वाखणजज्यक त्रबल बाजार -
● राजकोर्ष त्रबलों के अलावा अन्य त्रबल।
● व्यापाररयों और उद्योगों द्वारा जार ।
(iii) ददनांककत सरकार प्रनतभनतयां
● द घिकाशलक पररपक्वता के शलए उपयोग ककया जाता है।
(iv) जमा प्रमाणपि
● वाखणजज्यक बैंकों और ववत्तीय संस्थान द्वारा जार ककए गए ।
(v) वाखणजज्यक पि
● कॉपोरे ट, प्राथशमक डीलरों और ववत्तीय संस्थानों द्वारा जार ।
पंजी बाज़ार
मर
ु ा बाजार
● इसका प्रयोग कम समय के ऋण के शलए होता है।
● सामान्यतया इसे 1 साल तक के ऋण के शलए उपयोग करते हैं|
● इसमें भारतीय ररज़वि बैंक, वाखणजज्यक बैंक, सहकार बैंक, िेिीय ग्रामीण बैंक और कुछ एनबीएफसी
इत्यादद शाशमल है।
पंजी बाजार
● इसका प्रयोग लंबे समय के ऋण के शलए होता है।
● सामान्यतया इसे 1 साल से ज्यादा वर्षि वाले ऋण के शलए उपयोग करते हैं|
● इसमें स्टॉक एक्सचें ज, हाउशसंग फाइनेंस कम्पननयााँ, बीमा कम्पननयााँ इत्यादद शाशमल है।
● पंजी बाजार में सचीबद्ध सभी संस्थानों को गैर-बैंककं ग ववत्तीय कम्पननयों को एनबीएफसी कहते है।
लेककन यह आवश्यक नह ं की सभी एनबीएफसी पंजी बाजार का दहस्सा हो।
एनबीएफसी (NBFCs)
एनबीएफसी कंपनी अर्धननयम, 1956 के तहत पंजीकृत एक कंपनी है। यह ननम्न पहलुओ में बैंको से
शभन्न है -
(i) यह डडमांड डडपॉजजर्टस (मांग जमा) स्वीकार नह ं कर सकते।
(ii) एनबीएफसी का उनके जमा राशश पर बीमा कवर नह ं होता है , जबकक बैंक के जमा राशश का जमा
बीमा और क्रेडडट गारं ट ननगम से बीमा कवर होता है।
पंजी बाजार के संघटक
● यह मख्
ु यतः तीन वगों में ववभाजजत है -
(A) प्रनतभनत बाजार
(B) ववकास ववत्तीय संस्थानो
(c) ववत्तीय मध्यस्थ
(A) प्रनतभनत बाजार
● यह शेयर और कजि उपकरणों में डील करता है। यह उपकरण धन जुटाने में प्रयोग होता है।
● शेयर उपकरण में हम इजक्वट शेयर, डेररवेदटव्स इत्यादद को शाशमल करते है। इन उपकरणों में
ननवेशको के शलए पंजी, लाभ और हानन में सहयोगी होते है।
● ऋण उपकरण में हम बांड्स, डडबेंचर इत्यादद को शाशमल करते है। इन उपकरणों में लाभ या हानन से
अलग हमे ऋण उपकरण धारक को ब्याज के भुगतान की आवश्यकता होती है।
● डडबेंचर (Debentures)- इसमें ऋणदाता कंपननयों को कुछ जमानत (जैसे की प्लांट, मशीनर इत्यादद)
के बदले ऋण दे ती है। लेककन बांड के केस में ऋणदाता कंपननयों को त्रबना ककसी जमानत के ऋण दे ती
है।
● शेयर मुख्यतः दो प्रकार के होते है – पहला इजक्वट शेयर और दसरा परे फरें स शेयर। इजक्वट शेयर में
धारक पंजी, लाभ और हानन पर दावा करता है। प्रीफ्रेंस शेयसि में धारक एक ननजश्चत मािा में डडववडेंड
पाने का हकदार होता है। कंपनी के बंद होने के मामले में वप्रफरें स शेयरहोल्डर को पंजी के वापस भुगतान
पाने का प्रेफेरें शशयल अर्धकार होता है।
प्रनतभनतयों के व्यापार के शलए, हमारे पास प्राथशमक (न्य इश) और द्ववतीयक (ओल्ड इश) बाजार है।
प्राथशमक Primary (न्य इश माककिट)
● इसमें जार कताि प्रनतभनत जार करता है और जनता खर दती है। इसमें नए या पहल बार वाले
प्रनतभनतयों को ख़र दा जाता है।
● प्राथशमक बाजार में यदद कोई कंपनी पहल बार शेयर जार करता है तो इसे इननशशयल पजब्लक
ऑफररंग (आईपीओ) कहते है।
● यदद ककसी कंपनी ने पहले से ह शेयर जार ककया हुआ हो, और वह अनतररक्त धन जुटाने के शलए
दोबारा शेयर जार करता है तो इसे फॉलो ओन पजब्लक ओफररंग (एफपीओ) कहा जाता है।
द्ववतीयक Secondary (ओल्ड इश माककिट)
● न्य इश (प्राइमर ) माककिट में प्रनतभनतयों की खर द और त्रबक्री पहले से जार ककया जा चका है।
● इस माककिट में व्यापार के शलए दो तरह के प्लेटफामि है -
(1) स्टॉक एक्सचें ज (केवल सचीबद्ध प्रनतभनतयााँ), (2) काउं टर एक्सचें ज से अर्धक (प्रनतभनतयााँ जो
ककसी भी स्टॉक एक्सचें ज में सचीबद्ध नह ं है)
प्रनतभनत बाजार में प्रयोग की जाने वाल शब्दाबल
● घोवर्षत मल्य अंक (Declared Price Issue)- एक ह मल्य
● बक
ु त्रबजल्डंग अंक (Book Building Issue)- मांग के अनस
ु ार मल्य ननधािरण
● मचेंट बैंकर (Merchant Banker)- जार कताि धन जट
ु ाने की गनतववर्धयों के शलए इसे ननयक्
ु त करता है
● अर्धकृत पंजी (Authorised Capital)- कंपनी के उच्च अर्धकाररयों द्वारा अर्धकृत की गई राशश जो की
कम्पनी द्वारा जट
ु ाया जा सकता है
● जार कताि पंजी(Issuer Capital)- कंपनी द्वारा जार की गई वास्तववक राशश
● सब्सक्राइबर पंजी(Subscriber Capital)- जनता द्वारा सब्सक्राइब की गई वास्तववक राशश
● अंडरराइटर(Underwriter)- यह एक ववत्तीय मध्यस्थ है जो अनसब्सक्राइब पंजी के खर द का वादा
करता है।
● कॉल्ड अप पंजी (Called up Capital)- कंपनी ककश्तों में पैसे जमा करती है और ग्राहकों से शलए गए पैसो
के एक भाग को कॉल्ड अप पंजी कहते है।
● पेड अप पंजी(Paid up Capital)- ग्राहकों द्वारा चुकाया गया वास्तववक राशश ।
● ररज़वि कैवपटल (Reserve Capital)- मांग न ककया जाने वाले धनराशी का दहस्सा।
● राईट इश (Right Issue) – इसमें मौजदा शेयरहोल्डर को एफपीओ द्वारा प्रनतभनत प्रस्ताव।
● बोनस ईशु(Bonus Issue)-मौजदा शेयर के लाभ के मुकाबले शेयर जार करना।
● स्वेट इजक्वट इश (Sweat Equity Issue)- कमिचाररयों को कंपनी के शलए ककये गए कदिन पररश्रम के
शलए शेयर का प्रस्ताव।
● नकद व्यापार(Cash trading)- व्यापार ददवस की कीमत पर प्रनतभनतयों की त्रबक्री और खर द।
● फॉरवडि रे डडंग(Forward trading)-दोनों खर दार और ववक्रेता प्रनतभनतयों के पहले से सहमत कीमतों पर
खर दने के शलए एक समझौते पर हस्तािर करते है।
● डेर वेदटव (Derivatives)-इसका कोई स्वतंि मल्य नह ं होता है, इसका मल्य अन्तननिदहत प्रनतभनत के
कारण होता है जजसका व्यापार होना होता है।
● डीम्युचुअलाईजेशन (Demutualisation)- शेयर को िोकर से पजब्लक को हस्तांतरण करने के प्रकक्रया।
स्टॉक एक्सचें ज
● भारत में दो महत्वपणि स्टॉक एक्सचें ज है – एनएसई और बीएसई।
नेशनल स्टॉक एक्सचें ज (NSE)-
● यह फेरवानी सशमनत के शसफाररशों पर 1992 में स्थावपत ककया गया था।
● ननफ्ट और ननफ्ट जननयर एनएसई के सचकांक है। ननफ्ट टॉप के 50 शेयर और ननफ्ट जननयर
उसके बाद के 50 शेयरों की कीमतों की दे खरे ख करता है।
बॉम्बे स्टॉक एक्सचें ज (BSE)-
● यह एशशया का सबसे परु ाना स्टॉक एक्सचें ज है और 1875 में स्थावपत ककया गया था।
● सेंसेक्स (संवेदनशील सचकांक) बीएसई का सचकांक है। सेंसेक्स टॉप की 30 कंपननयों के शेयर की
कीमतों में उछाल की दे खरे ख करता है।
डडपाजजटर ज (Depositaries)-
● इसमें ननवेशक अपनी प्रनतभनतयों को डीमैट (डी- मैटेररयलाइज्ड) के रूप में रखते है। वतिमान में भारत
में दो डडपाजजटर ज है।
(1) एनएसडीएल (नेशनल शसक्योररट ज डडपाजजटर शलशमटे ड)- यह मंब
ु ई में जस्थत है।
(2) सीडीएसएल (सेंरल डडपाजजटर सवविसेज शलशमटे ड)- यह भी मंब
ु ई में जस्थत है।
(B) ववकास ववत्तीय संस्थान
● वे लंबे समय के शलए लोन, एन्िेप्रेनेउररअल सहायता (तकनीकी सलाह इत्यादद) प्रदान करते है।
● इसके उदहारण है - आईडीबीआई, ईएक्सआईएम बैंक इत्यादद।
(C) ववत्तीय मध्यस्थ
● RBI द्वारा ववननयशमत -
(1) संपवत्त फाइनेंस कंपनी
(2) लोन कंपनी
(3) ननवेश कंपनी
● सेबी द्वारा ववननयशमत -
(1) वेंचर कैवपटल फण्ड
(2) मचेंट बैंककं ग कम्पनीज
(3) स्टॉक िोककं ग कम्पनीज
2. लाफेर वक्र:
● लाफेर वक्र राज्य प्रार्धकरणों द्वारा लगाए गए करों और संग्रदहत करों के बीच संबंध को प्रकट करता है।
● इसके अनस
ु ार जैसे-जैसे कर दरों में ननम्न स्तर से वद्
ृ र्ध होती है , कर संग्रह भी बढता है लेककन एक
महत्वपणि सीमा के बाद कर की दर बढने पर, कर संग्रह घटने लगता है।
● यह उच्च कर दरों के कारण ननम्न लाभ होने और चोर करके उच्च लाभ अजजित करने से जुडी है।
3. कफशलप्स वक्र
● इसे न्यज़ीलैण्ड के अथिशास्िी ए. ववशलयम कफशलप्स ने ददया था।
● इसके अनस
ु ार, यह मर
ु ाजस्फनत और बेरोजगार के बीच एक व्यत्ु क्रम एवं जस्थर संबंध है अथाित जब एक
र्गरता है , तो दसरा बढता है।
● इसके शलए एक पद और भी है जो उच्च मुराजस्फनत और उच्च बेरोजागार की समकाशलक उपजस्थनत को
पररभावर्षत करता है, जैसे उच्च मर
ु ाजस्फनत के साथ ननम्न ववकास, जजसे अवजस्फनत भी कहते हैं।
4. कुज़नेर्टस वक्र
● कुज़नेर्टस वक्र एक पररकल्पना पर आधाररत है जजसे अथिशास्िी शसमोन कुज़नेर्टस ने आगे बढाया था।
● इस पररकल्पना के अनुसार, जब एक दे श ववकशसत होना शुरु होता है, तो पहले कुछ समय के शलए
आर्थिक असमानता बढती है लेककन एक सीमांत के बाद, जब एक ननजश्चत औसत आय प्राप्त हो जाती
है, तो आर्थिक असमानता कम होना शुरु हो जाती है।
● इसीशलए इसे नीचे ग्राफ में ददखाए गए अनुसार U-आकार के वक्र में प्रदशशित ककया गया है।
जब आर्थिक प्रगनत चरणों को x – अि पर ननरुवपत करते हैं और पयािवरण िरण को y-अि पर ननरुवपत करते
हैं, तो पयािवरण कुज़नेर्टस वक्र उल्टा U-आकार का वक्र बनता है।
ग्रेशम का ननयम:
● ग्रेशम का कानन कहता है कक ‘खराब धन अच्छा ननकलता है ’।
● इसका अथि है यदद ककसी दे श में दो मुराएं, सस्ती मुरा मंहगी मुरा को उपयोग से बाहर कर दे ती है।
● इसका कारण है लोग मंहगी मुरा का संग्रह करना शुरु कर दें गे और अंततः वह पररसंचरण से बाहर हो
जाएगी।
● इसका यह नाम अंग्रेज ववत्तीयशास्िी सर थॉमस ग्रेशम (1519-1579) के नाम पर रखा गया है।
अवसर लागत
● ककसी अगले बेहतर ववकल्प को छोडकर मौजद ववकल्प को खर दने पर अगले बेहतर ववकल्प की
कीमत मौजदा ववकल्प के शलए अवसर लागत होगी।
● आसान शब्दों में, यह पहल वस्तु को त्यागकर दसर वस्तु लेने पर पहल वाल वस्तु की कीमत होगी।
● या दसरे शब्दों में, ककसी ववकल्प के शलए चुनाव करते समय जो आप खोते हैं, वह आपके चयन की
अवसर लागत होती है।
2. आम सामान (प्रचर) नह ं
3. आम सामान (दल
ु भ
ि ) हां
● प्राकृनतक रूप से प्रचर मािा में पाए जाने वाले संसाधनों जैसे मुफ्त अप्रदवर्षत वायु, जल आदद और सभी
आम सामों जैसे चारा भशम, महासागरों इत्यादद के शलए भी अवसर लागत शन्य होती है।
● सरकार व्ययों के शलए अवसर लागत कभी शन्य नह ं होती है क्योकक प्रार्धकरण के पास हमेशा चयन
का ववकल्प होता है।
● इसशलए, ककसी भी चीज को चन
ु े जाने पर, ककसी न ककसी चीज को छोडना ह पडता है। उदाहरण के शलए
यदद सरकार एक पल
ु बनाने का ननणिय लेती है, तो सरकार उस कीमत को सरु िा सनु नजश्चत करने के
शलए अर्धक कमी तैनात करने पर खचि कर सकती थी।
● मफ्
ु त सेवाओं की जस्थनत में , नागररकों/उपभोक्ताओं के शलए, कोई अवसर लागत नह ं होती है क्योंकक
यह सरकार की ओर से उनको द जाती हैं।
उत्पादन संभावना वक्र
● ननजश्चत मािा में संसाधनों और तकनीक के साथ, दो वस्तुओं के समह से उत्पादन के ववशभन्न
संयोजनों को ननरुवपत करके एक उत्पादन संभावना वक्र बनाया जाता है।
● इसे उत्पादन संभावना सीमा अथवा रूपांतरण वक्र भी कहते हैं।
● यह वक्र “उत्पादन का चुनाव” ननधािररत करने में सहायता करता है।
● अतः, वक्र उपलब्ध सभी उत्पादन संभावनाएं प्रदान करता है , जजसमें आर्थिक रूप से सबसे सस्ता और
प्राकृनतक रूप से सबसे सल
ु भ उपागम को चन
ु ा जा सकता है जो लाभ को अर्धकतम बनाए और संबद्ध
जोखखमों को कम करे ।
वक्र पर ववशभन्न त्रबंद ु
त्रबंद ु X संसाधनों के न्यन उपयोग को दशािता है;
त्रबंद ु Y अव्यवहायि ववकल्प को दशािता है जैसे (िमता से बाहर) चयननत संयोजन की गैर-अव्यवहायिता;
जबकक त्रबंद ु A, B और C संसाधनों की पणि उपयोर्गता को दशािते हैं।
यदद उपलब्ध संसाधन तथा तकनीक बढते हैं, वक्र दाएं ओर झुकता है और यदद संसाधन तथा तकनीक घटते हैं,
तो वक्र बाएं ओर झुकता है।
ववश्
व व्यापार संगिन: संरचना, उद्दे श्य, समझौते, आर्थिक सहायता
पररचय
● WTO एक अंतरािष्ट्र य संगिन है, जजसे वर्षि 1995 में मारकेश समझौते के तहत सामान्य शल्
ु क एवं
व्यापार समझौते (GATT) के स्थान पर स्थावपत ककया गया था।
● यह एकमाि वैजश्
वक अंतरािष्ट्र
य संगिन है जो राष्ट्रों के बीच अंतरािष्ट्र य व्यापार से संबंर्धत है।
● इसका मख्
ु यालय जस्वर्टजरलैंड के जजनेवा में जस्थत है।
● वतिमान में , ववश्
व व्यापार संगिन के 164 सदस्य दे श हैं और भारत ववश्
व व्यापार संगिन का संस्थापक
सदस्य है।
● वतिमान में , ववश्
व व्यापार संगिन के प्रमुख (महाननदे शक) रॉबटो अजेवेडो हैं।
ववश्
व व्यापार संगिन का ववकास
● द्ववतीय ववश्
व यद्
ु ध की समाजप्त के बाद, आर्थिक, सामाजजक और तकनीकी समस्याओं का मक
ु ाबला
करने में दे शों के बीच सहयोग को आगे बढाने के शलए ववशभन्न अंतरािष्ट्र य संगिनों की स्थापना की गई
थी।
● सभी दे शों के बीच वैजश्
वक अथिव्यवस्था और ननबािध व्यापार के ववकास के शलए, अंतरािष्ट्र य व्यापार को
ववननयशमत करने हेतु एक अंतरािष्ट्र य संगिन की अत्
यंत आवश्यकता महसस की गई।
● वर्षि 1945 में िेटन वुड्स कॉन्फ्रेंस (दो िेटन वुड संस्थानों – अंतरािष्ट्र य मुरा कोर्ष और ववश्
व बैंक) नामक
एक सम्मेलन अंतरािष्ट्र य व्यापार संगिन (ITO) के गिन के शलए आयोजजत ककया गया था, जो अंतत:
अमेररका और कई अन्य प्रमुख दे शों से अनुमोदन न शमलने के कारण स्थावपत नह ं ककया जा सका।
● चंकक द्ववतीय ववश्
व युद्ध के बाद अमेररका ववश्
व शजक्त बन रहा था, इसशलए अमेररका के त्रबना ITO
का सज
ृ न ननरथिक था।
● इस बीच, समझौता वाताि के माध्यम से, वर्षि 1947 में एक बहुपिीय समझौता संपन्न हुआ जजसे
सामान्य शल्
ु क एवं व्यापार समझौते (GATT) के नाम से जाना जाता है।
● व्यापार पर प्रनतवाद के शलए ननजश्चत समयांतराल पर GATT के ववशभन्न सम्मेलन आयोजजत ककए
गए। अंत में, वर्षि 1986 से 1994 तक आयोजजत उरुग्वे सम्मेलन दौर के दौरान, WTO की स्थापना के
समझौते को अंततः मारकेश समझौते के माध्यम से अंगीकृत ककया गया।
● भारत वर्षि 1948 से GATT का सदस्य और ववश्
व व्यापार संगिन (WTO) का संस्थापक सदस्य है। चीन
वर्षि 2001 में और रूस वर्षि 2012 में WTO में शाशमल हुए।
ववश्
व व्यापार संगिन के उद्दे श्य
● अंतरािष्ट्र य व्यापार के शलए ननयम बनाना और उन्
हें लाग करना।
● व्यापार उदार करण बढाने में समझौता वाताि और ननगरानी के शलए एक मंच प्रदान करना।
● वववादों के ननपटान के शलए एक मंच प्रदान करना।
● तकनीकी सहयोग और प्रशशिण के माध्यम से ववश्
व व्यापार संगिन के ननयमों और अनश
ु ासन को
समायोजजत करने के शलए पारगमन में ववकासशील, अल्प ववकशसत और ननम्न आय वाले दे शों को
सहायता प्रदान करना।
● वैजश्
वक आर्थिक प्रबंधन में शाशमल अन्य प्रमुख आर्थिक संस्थानों (जैसे संयुक्त राष्ट्र, ववश्
व बैंक, IMF
आदद) के साथ सहयोग करना।
ववश्
व व्यापार संगिन की संरचना
ववश्
व व्यापार संगिन की मल संरचना इस प्रकार है: -
● मंत्रिस्तर य सम्मेलन – यह ववश्
व व्यापार संगिन की ननणिय लेने वाल सवोच्च संस्था है। इसकी बैिक
आमतौर पर प्रत्येक दो वर्षि के बाद होती है। यह ववश्
व व्यापार संगिन के सभी सदस्यों को एक मंच पर
लाती है।
● प्रधान पररर्षद (जनरल काउं शसल) – यह सभी सदस्य राष्ट्रों के प्रनतननर्धयों से बनी है। यह ववश्
व व्यापार
संगिन के ददन-प्रनतददन के व्यवसाय और प्रबंधन के शलए उत्तरदायी है।
● अन्य पररर्षद/संस्थाएं - गुड्स काउं शसल, सवविस काउं शसल, व्यापार नीनत समीिा संस्था, वववाद
ननपटान संस्था आदद जैसी कई अन्य संस्थाएं हैं जो अन्य ववशशष्ट्
ट मुद्दों पर कायि करती हैं।
ववश्
व व्यापार संगिन के शसद्धांत
ववश्
व व्यापार संगिन के समझौते ननम्नशलखखत प्राथशमक और आधारभत शसद्धांतों पर आधाररत हैं: -
● गैर पिपाती
● मोस्ट फेवडि नेशन – सभी राष्ट्रों के साथ समान व्यवहार ककया जाना चादहए। कोई भी दे श ककसी अन्य
सदस्य दे श को कोई ववशेर्ष सहायता नह ं दे सकता है। उदाहरण के शलए, यदद एक दे श दसरे दे श के शलए
शल्
ु क कम करता है तो उसे अन्य सभी सदस्य दे शों के शलए भी कम करना होगा।
● सवि-साधारण व्यवहार (नेशनल र टमेंट)- सभी उत्पादों के शलए एक समान व्यवहार, चाहे वह स्थानीय
हो या ववदे शी। स्थानीय के साथ-साथ अन्य दे शों से आयानतत उत्पादों के साथ उर्चत और समान
व्यवहार ककया जाता है।
● पारस्पररकता - ककसी अन्य दे श द्वारा आयात शल्
ु क और अन्य व्यापार बाधाओं को कम करने के बदले
में समान ररयायत प्रदान करना।
● अननवायि और प्रवतिनीय प्रनतबद्धताओं के माध्यम से पवािनुमान – व्यापार की पररजस्थनत को जस्थर
और पवािनुमाननत बनाना।
● पारदशशिता – ववश्
व व्यापार संगिन के सदस्यों को अपने व्यापार ननयम जार करने और व्यापार
नीनतयों में पररवतिन के शलए ववश्
व व्यापार संगिन को सर्चत करने की आवश्यकता होती है।
● ववकास एवं आर्थिक सुधारों को प्रोत्सादहत करना – WTO प्रणाल द्वारा ववकास में योगदान दे ने के शलए
सभी संभव प्रयास ककए जाते हैं।
ववश्
व व्यापार संगिन के प्रमख
ु व्यापार समझौते
ववश्
व व्यापार संगिन के तहत हुए महत्वपणि व्यापार समझौते इस प्रकार हैं -
● कृवर्ष पर समझौता (AoA),
● बौद्र्धक संपदा अर्धकारों के व्यापार-संबंर्धत पिों पर समझौता (TRIPS),
● स्वच्छता और पादप स्वच्छता संबंधी अनुप्रयोगों पर समझौता (SPS),
● व्यापार में तकनीकी बाधाओं पर समझौता (TBT),
● व्यापार-संबद्ध ननवेश उपायों पर समझौता (TRIMS),
● सेवा व्यापार पर सामान्य समझौता (GATS) आदद
● एम्बर बॉक्स – वे सभी घरे ल सजब्सडी या समथिन जो उत्पादन और व्यापार दोनों को ववकृत कर सकते हैं
(कुछ अपवादों के साथ) एम्बर बॉक्स के अंतगित आती हैं। समथिन मल्य के उपाय इस बॉक्स के अंतगित
आते हैं। इसका अपवाद ववकशसत दे शों के शलए कृवर्ष उत्पादन की 5% और ववकासशील दे शों के शलए
कृवर्ष उत्पादन की 10% तक की सजब्सडी स्वीकार करने का प्रावधान है।
● ब्ल बॉक्स – वे सभी एम्बर बॉक्स सजब्सडी जो उत्पादन को सीशमत करते हैं, ब्ल बॉक्स के अंतगित आती
है। इसे त्रबना सीमा के तब तक बढाया जा सकता है जब तक सजब्सडी उत्पादन-प्रनतबंधक योजनाओं से
जड
ु ी हो।
3. ननयाित सजब्सडी – वे सभी सजब्सडी जो कृवर्ष उत्पादों के ननयाित को सस्ता बनाती हैं, ननयाित सजब्सडी
कहलाती हैं। इन्हें मल रूप से व्यापार-ववकृत प्रभाव माना जाता है। यह समझौता सदस्य राष्ट्रों द्वारा
कृवर्ष उत्पादों के शलए ननयाित सजब्सडी के उपयोग पर प्रनतबंध लगाता है।
ऑपरे शन फ्लड:
1970 में, राष्ट्रीय डेयरी विकास बोडड (NDDB) ने "ऑपरे शन फ्लड" शुरू ककया, जो भारत दनु नया का
सबसे बडा दध
ू उत्पादक बन गया। इस कायडक्रम की अपार सफलता के कारण इसे "श्िेत क्राांनत"
करार ददया गया। डॉ कुररयन, जजन्हें आमतौर पर "श्िेत क्राांनत के जनक" के रूप में जाना जाता है ,
इस सफल प्रयास के प्रमुख िास्तुकार थे।
श्री कुररयन ने स्िेच्छा से 1949 में एक डेयरी इांजीननयर के रूप में एक सरकारी पद छोड ददया और
कैरा जजला सहकारी दग्ु ध उत्पादक सांघ (केडीसीएमपीयए
ू ल) में शाममल हो गए, जजसे आज अमल
ू के
नाम से जाना जाता है।
तब से कुररयन ने इस सांगठन को भारत के सबसे बडे और सबसे सफल सांस्थानों में से एक के रूप
में विकमसत ककया है। अमूल सहकारी मॉडल इतना सफल था कक 1965 में, तत्कालीन भारतीय प्रधान
मांत्री श्री लाल बहादरु शास्त्री ने कुररयन के "असाधारण और जोरदार नेतत्ृ ि" की प्रशांसा करते हुए
इसे पूरे दे श में दोहराने के मलए राष्ट्रीय डेयरी विकास बोडड (NDDB) की स्थापना की।
ऑपरे शन फ्लड:
ऑपरे शन फ्लड तीन चरणों में पूरा हुआ:
प्रथम चरण (1970-79):- इस चरण के दौरान, मुांबई, ददल्ली, चेन्नई और कोलकाता के चार महानगरों
में उपभोक्ताओां को दे श के 18 प्राथममक दग्ु धशालाओां से जोडा गया। इस फेज में कुल 116 करोड
रुपये खचड हुए। मुख्य लक्ष्य दध
ू बाजार पर ननयांत्रण हामसल करना और ग्रामीण क्षेत्रों में डेयरी पशुओां
के विकास में तेजी लाना था।
अमूल:
("अनमोल")। सांस्कृत "अमूल्य" से व्युत्पन्न डेयरी सहकारी "अमूल" की स्थापना 1946 में हुई थी।
यह गुजरात को-ऑपरे दटि ममल्क माकेदटांग फेडरे शन मलममटे ड (GCMMF) द्िारा ननयांत्रत्रत एक ब्ाांड
नाम है, जो 2.8 मममलयन ककसानों द्िारा ननयांत्रत्रत एक शीर्ड सहकारी सांगठन है। श्िेत क्राांनत के मलए
अमल
ू एक आदशड मॉडल था। एनडीडीबी का परू ा कायडक्रम इसी डेयरी बोडड की सफलता पर आधाररत
था। दे श की श्िेत क्राांनत लाने में त्रत्रस्तरीय 'अमूल मॉडल' महत्िपूणड था।
• इसने दध
ू उत्पादन में भारत के अभूतपूिड विकास को सक्षम बनाया है , जो केिल 40 िर्ों में 20
मममलयन मीदरक टन से बढकर 100 मममलयन मीदरक टन हो गया है। नतीजतन, भारत आज दनु नया
का सबसे बडा दध
ू उत्पादक दे श बन गया है ।
• डेयरी सहकारी आांदोलन ने भारतीय डेयरी उत्पादकों को और अचधक पशुओां को रखने के मलए
प्रेररत ककया है , जजसके पररणामस्िरूप दनु नया की सबसे बडी मिेशी और भैंस की आबादी 500
मममलयन है।
• 22 राज्यों के 180 जजलों में 125,000 से अचधक समुदाय डेयरी सहकारी आांदोलन में शाममल हो
गए हैं।
• जजला और राज्य स्तरों पर एक अच्छी तरह से विकमसत खरीद प्रणाली और समचथडत सांघीय ढाांचे
के कारण, आांदोलन प्रभािी रहा है।
भारत के विकास की प्रकक्रया में ममचश्रत अथडव्यिस्था को चुनने का ननणडय अटूट रूप से जुडा हुआ
है। ममचश्रत अथडव्यिस्था मॉडल भारत के मलए सबसे अच्छा विकल्प है या नहीां, इस पर सामाजजक
िैज्ञाननकों के बीच कभी भी आम सहमनत नहीां बनी और आम सहमनत का यह अभाि आज भी
जारी है।
ममचश्रत अथडव्यिस्था में , सािडजननक और ननजी क्षेत्रों को एक साथ काम करने पर सहमती बनती है।
यह बाजार तांत्र को स्ितांत्र रूप से चलने से रोकता है , और सरकार ननजी क्षेत्र में इस तरह से
हस्तक्षेप करती है या ननयांत्रत्रत करती है कक दोनों क्षेत्र परस्पर एक दस
ू रे को सुदृढ करते हैं। ममचश्रत
अथडव्यिस्था में व्यजक्तगत पहल और सामाजजक दहतों को समेटा जा सकता है।
यह पूांजीिाद और समाजिाद का ममश्रण है , इसमलए हमे दोनों के बारे में जानना चादहए।
पूांजीिाद:
पांज
ू ीिाद को एक आचथडक प्रणाली के रूप में पररभावर्त ककया गया है जो एक बाजार अथडव्यिस्था,
लाभ के मकसद और ननजी स्िाममत्ि के साथ व्यजक्तगत पहल पर जोर दे ती है। उत्पादन के सभी
साधन, जजसमें खेत, कारखाने, खदानें और पररिहन शाममल हैं, पूांजीिाद के तहत ननजी व्यजक्तयों और
व्यिसायों के स्िाममत्ि और ननयांत्रण में होते हैं। इन औद्योचगक सांपवियों के मामलक ननजी लाभ
उत्पन्न करने के मलए उनका उपयोग करने के मलए स्ितांत्र हैं क्योंकक िे उपयुक्त समझते हैं। राज्य
या सरकार लोगों की आचथडक गनतविचधयों में सबसे छोटी भूममका ननभाती है । सरकार केिल रक्षा,
विदे शी मामलों, मुद्रा और मसक्का और कुछ महत्िपूणड मसविल कायों जैसे सडकों और पुलों के ननमाडण
जैसे मामलों को दे खती है क्योंकक ननजी व्यजक्तयों को ऐसे कायों को करने में लाभ नहीां ममल सकता
है।
पांज
ू ीिाद की विशेषताएां
3) प्रॉकफट मोदटि
4) प्रनतयोचगता
5) उपभोक्ता सांप्रभुता
6) मल्
ू य प्रणाली
7) आय का असमान वितरण
समाजिाद
० इसमें सािडजननक क्षेत्र और ननजी क्षेत्र की सीमाओां का स्पष्ट्ट सीमाांकन ककया गया है ताकक 'मुख्य
क्षेत्र और रणनीनतक क्षेत्र सािडजननक क्षेत्र में अननिायड रूप से हों;
o जबकक लाभ का उद्दे श्य ननजी क्षेत्र में ननणडय लेने को प्रभावित करता है , सािडजननक क्षेत्र में ननिेश
ननणडयों के मलए आचथडक व्यिहायडता मानदां ड सामाजजक लागत-लाभ विश्लेर्ण पर आधाररत है ;
o सािडजननक क्षेत्र, ननजी क्षेत्र, सांयुक्त क्षेत्र और सहकारी क्षेत्र के बीच उत्पादन के साधनों का स्िाममत्ि
इस प्रकार तय ककया जाता है कक व्यजक्तगत और सामाजजक प्रोत्साहन और अनुभागीय और
सामान्य दहतों के बीच सांतल
ु न हो;
o सरकार सािडजननक वितरण प्रणाली, गरीबी उन्मूलन कायडक्रमों आदद के माध्यम से समाज के
कमजोर िगों के उपभोग स्तर और उद्दे श्यों की दे खभाल करने का प्रयास करती है ;
o समानता, रोजगार, सांतुमलत क्षेत्रीय विकास, पररिार कल्याण के सामाजजक उद्दे श्यों पर बल ददया
जाता है ;
प्रथम पांचिर्ीय योजना के प्रारां भ में ही, भारतीय नीनत ननमाडताओां ने ननणडय मलया कक राज्य को न
केिल बनु नयादी सवु िधाओां और सामाजजक उपररव्यय प्रदान करने की जजम्मेदारी लेनी चादहए, बजल्क
प्रत्यक्ष प्रचार कायड भी करना चादहए। यह माना गया कक सरकार को औद्योचगक क्षेत्र में हस्तक्षेप
करना चादहए और तदनुसार बुननयादी और सामररक उद्योगों के विकास को सािडजननक क्षेत्र के मलए
ननधाडररत ककया गया था। यह भी माना गया कक दे श के आचथडक विकास का कायड इतना बडा था कक
इष्ट्टतम विकास के मलए ननजी और सािडजननक दोनों क्षेत्रों की पहल का उपयोग करना पडा।
औद्योचगक नीनत के दो मुख्य साधन थे, उद्योग (विकास और विननयमन) अचधननयम 1951 और
कांपनी अचधननयम 1956। इन दो अचधननयमों ने सरकार को लाइसेंस प्रकक्रया के माध्यम से, प्रमुख
उद्योगों के स्थान, उत्पादन और विस्तार को विननयममत करने की शजक्त प्रदान की। दे श।
औद्योश्रिक नीतत सांकल्प, 1956 - भारतीय राष्ट्रीय काांग्रेस के अिादी सांकल्प ने सरकार की आचथडक
और औद्योचगक नीनत के उद्दे श्य के रूप में समाज के एक समाजिादी पैटनड की स्थापना की
घोर्णा की।
अनुसूची A: िे उद्योग जो राज्य की एकमात्र जजम्मेदारी थी। इस सूची में 17 उद्योग शाममल थे -
हचथयार और गोला-बारूद, परमाणु ऊजाड, लोहा और इस्पात, खनन के मलए आिश्यक भारी मशीनरी
आदद।
अनस
ु च
ू ी B: सच
ू ी में लगभग एक दजडन उद्योग थे, जहााँ राज्य नई इकाइयााँ स्थावपत कर सकता था
या मौजूदा इकाइयों का उिरोिर राष्ट्रीयकरण ककया जा सकता था।
अनुसूची C: उद्योग जो ननजी क्षेत्र के हाथों में होंगे और सरकार की सामाजजक और आचथडक नीनत
के अधीन होंगे।
औद्योश्रिक नीतत सांकल्प, 1977: 1977 की नई औद्योचगक नीनत ने 1956 के बारे में कहा "बेरोजगारी
बढी है, ग्रामीण-शहरी असांतल
ु न गहराया है , और िास्तविक ननिेश की गनत ठप हो गई है ," ।
औद्योचगक उत्पादन की औसत िावर्डक िद्
ृ चध दर तीन से चार प्रनतशत के बीच रही है ।
• नई नीनत में लघु क्षेत्र, कुटीर और घरे लू उद्योग और लघु क्षेत्र के विकास पर ध्यान केंदद्रत ककया
गया।
• इसमें आगे बडे औद्योचगक घरानों के विस्तार के खखलाफ एकाचधकार और प्रनतबांधात्मक व्यापार
व्यिहार अचधननयम के प्रािधानों का उपयोग करने का प्रािधान है।
• सािडजननक क्षेत्र का उपयोग बनु नयादी प्रकृनत के रणनीनतक सामान उपलब्ध कराने और आिश्यक
िस्तुओां की आपूनतड बनाए रखने के मलए भी ककया जाना था
औद्योश्रिक नीतत 1980: इसने औद्योचगक नीनत, 1956 की घोर्णाओां को दोहराया जजसमें रचनात्मक
लचीलेपन का गुण ददखाया गया था। दे श में आचथडक बुननयादी ढाांचे के स्तांभों को ऊपर उठाने का
कायड सािडजननक क्षेत्र को इसकी अचधक विश्िसनीयता के कारणों के मलए सौंपा गया था। नीनत में
स्थावपत क्षमता के इष्ट्टतम उपयोग, सांतुमलत क्षेत्रीय विकास, कृवर्-आधाररत, ननयाडतोन्मुख उद्योगों
और शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में छोटी लेककन बढती औद्योचगक इकाइयों पर ननिेश के समान प्रसार
द्िारा "आचथडक सांघिाद" को बढािा दे ने को प्राथममकता दी गई।
भारत में एलपीजी सुधार भारत के आचथडक विकास के मलए एक बहुत ही महत्िपूणड कदम था। यह
विर्य यूपीएससी प्रारां मभक और मुख्य के मलए महत्िपूणड है ।
स्ितांत्रता के बाद से, भारत ने समाजिादी आचथडक प्रणाली के साथ पूांजीिादी आचथडक प्रणाली के लाभों
को सांयक्
ु त करके ममचश्रत अथडव्यिस्था ढाांचे का अनस
ु रण ककया है । िर्ड 1991 में , भारत अपने बाहरी
ऋण से सांबांचधत एक आचथडक सांकट से ननपटा था- सरकार विदे शों से अपने ऋण का पन
ु भग
ुड तान
करने में सक्षम नहीां थी क्योंकक विदे शी मद्र
ु ा भांडार समाप्त हो गया था। आिश्यक िस्तओ
ु ां की बढती
कीमतों से सांकट ओर बढ गया था। इन सभी ने सरकार को नीनतगत उपायों का एक नया सेट पेश
करने हे तु प्रेररत ककया, जजसने हमारी विकास रणनीनतयों की ददशा बदल दी।
अब, हम सांकट की पष्ट्ृ ठभूमम, सरकार द्िारा अपनाए गए उपायों और अथडव्यिस्था के विमभन्न क्षेत्रों
पर उनके प्रभािों पर एक नज़र डालते हैं।
• 1980 के दशक में भारतीय अथडव्यिस्था का अक्षम प्रबांधन था। भारत ने कृवर् आधाररत अथडव्यिस्था
होने के कारण अन्य क्षेत्रों जैसे उद्योग, बैंककां ग, बीमा, विदे श व्यापार आदद की उपेक्षा की थी।
• जब आय से अचधक व्यय होता है तो सरकार, बैंकों से और दे श के भीतर और अांतराडष्ट्रीय वििीय
सांस्थानों से घाटे का वििपोर्ण करने के मलए ऋण लेती है ।
• राजस्ि बहुत कम होने पर भी विकास नीनतयों की आिश्यकता थी, सरकार को बेरोजगारी, गरीबी और
जनसांख्या विस्फोट जैसी चन
ु ौनतयों का सामना करने के मलए अपने राजस्ि को बढाना पडा था।
• सरकार के विकास कायडक्रमों पर ननरां तर खचड करने से अनतररक्त राजस्ि नहीां उत्पन्न होगा।
• इसके अनतररक्त, सरकार कराधान जैसे आांतररक स्रोतों से पयाडप्त रूप से राजस्ि उत्पन्न करने में
सक्षम नहीां थी।
• बढते खचड को पूरा करने के मलए सािडजननक क्षेत्र के उपक्रमों से प्राप्त आय भी बहुत अचधक नहीां थी।
• अन्य दे शों और अांतराडष्ट्रीय वििीय सांस्थानों से उधार मलया गया विदे शी विननमय, उपभोग की
आिश्यक्ताओां को पूरा करने पर खचड ककया जाता था।
• इसके अनतररक्त, बढते आयातों का भुगतान करने के मलए ननयाडत को बढािा दे ने पर पयाडप्त रूप से
ध्यान नहीां ददया गया था।
• 1980 के दशक के अांत में , सरकारी व्यय अपने राजस्ि से इतने बडे माजजडन से अचधक होने लगे थे
जजससे कक ऋण के माध्यम से खचड को पूरा करना अजस्थर हो गया था।
o कई आिश्यक िस्तओ
ु ां की कीमतें तेजी से बढ गईं थी।
o ननयाडत की िद्ृ चध के ममलान के त्रबना आयात बहुत अचधक दर से बढ रहा था।
o विदे शी मद्र
ु ा भांडार, उस स्तर तक चगर गया था, जो दो सप्ताह से अचधक के मलए आयात को
वित्तपोवर्त करने हे तु पयाडप्त नहीां था।
भारत ने अांतराडष्ट्रीय पुनननडमाडण एिां विकास (आई.बी.आर.डी.) से सांपकड ककया था, जजसे लोकवप्रय रूप
से विश्ि बैंक और अांतराडष्ट्रीय मुद्रा कोर् (आई.एम.एफ.) के रूप में जाना जाता है और इस सांकट का
प्रबांधन करने के मलए ऋण के रूप में 7 त्रबमलयन डॉलर का ऋण प्राप्त हुआ था। ऋण का लाभ
उठाने के मलए, भारत ने विश्ि बैंक और आई.एम.एफ. की शतों पर सहमनत व्यक्त की थी और नई
आचथडक नीनत (एन.ई.पी.) की घोर्णा की थी।
नीनतयों के इस समूह को व्यापक रूप से दो समूहों में िगीकृत ककया जा सकता है , जो कक
जस्थरीकरण उपाय और सांरचनात्मक सध
ु ार उपाय हैं।
ब्स्थरीकरण उपाय, एक अल्पकामलक उपाय हैं, जजसका उद्दे श्य उन कुछ कमजोररयों को दरू करना है
जो भुगतान के बैलेंस में विकमसत हुई हैं और मुद्रास्फीनत को ननयांत्रण में लाना है । सरल शब्दों में ,
इसका अथड पयाडप्त विदे शी मुद्रा भांडार बनाए रखना और बढती कीमतों को ननयांत्रण में रखने की
आिश्यकता था।
सांरचनात्मक सि
ु ार नीततयाां, एक दीघडकामलक उपाय हैं, जजसका उद्दे श्य भारतीय अथडव्यिस्था के
विमभन्न क्षेत्रों में व्याप्त कुरीनतयों को दरू करके अथडव्यिस्था की दक्षता में सध
ु ार करना और इसकी
अांतराडष्ट्रीय प्रनतस्पधाड को बढाना है । सरकार ने विमभन्न नीनतयों की शुरुआत की है, जो तीन प्रमुखों-
उदारीकरण, ननजीकरण और िैश्िीकरण के अांतगडत आती हैं।
उदारीकरण
हालाांकक 1980 के दशक में औद्योचगक लाइसेंसीकरण, ननयाडत-आयात नीनत, प्रौद्योचगकी उन्नयन,
राजकोर्ीय नीनत और विदे शी ननिेश के क्षेत्रों में कुछ उदारीकरण उपायों को शरू
ु करके ककए गए थे,
1991 में शरू
ु की गई सध
ु ार नीनतयाां अचधक व्यापक बन गईं थीां।
भारत में , वितनयामक तांिों को विमभन्न तरीकों से लािू ककया िया था:
• औद्योचगक लाइसेंसीकरण, जजसके अांतगडत प्रत्येक उद्यमी को एक फमड शुरू करने, एक फमड को बांद
करने या उत्पाददत होने िाली िस्तुओां की मात्रा तय करने के मलए सरकारी अचधकाररयों से अनुमनत
लेनी होती थी।
• कई उद्योगों में ननजी क्षेत्र की अनुमनत नहीां थी।
• कुछ उत्पादों का उत्पादन केिल लघु उद्योगों में ककया जा सकता था और
• चयननत औद्योचगक उत्पादों के मूल्य ननधाडरण और वितरण पर ननयांत्रण करना
1991 और उसके बाद शुरू की गई सुधार नीनतयों ने इनमें से कई प्रनतबांधों को हटा ददया था।
औद्योचगक लाइसेंसीकरण को लगभग सभी उत्पादों से हटा ददया गया था लेककन कुछ उत्पाद
श्रेखणयों जैसे शराब, मसगरे ट, खतरनाक रसायनों, औद्योचगक विस्फोटकों, इलेक्रॉननक्स, एयरोस्पेस और
दिा और फामाडस्यूदटकल्स के मलए समाप्त कर ददया गया था।
2. िैर-आरक्षण
केिल ऐसे उद्योग जो अब सािडजननक क्षेत्र के मलए आरक्षक्षत हैं, िे रक्षा उपकरण, अांतररक्ष, परमाणु
ऊजाड उत्पादन, रे लिे पररिहन, दल
ु भ
ड खननजों के खनन आदद का एक दहस्सा हैं, छोटे स्तर के उद्योगों
द्िारा उत्पाददत कई उत्पाद अब गैर-आरक्षक्षत हो गए हैं। कई उद्योगों में , बाजार को कीमतें ननधाडररत
करने की अनम
ु नत दी गई है ।
3. अतनयांिण
सरकार द्िारा ककए गए िस्तुओां के मूल्य ननधाडरण को केिल ननम्न सूची में मौजूद महत्िपूणड
िस्तुओां के मलए प्रनतबांचधत ककया गया था।
4. अवितनयमन
उपयक्
ुड त तामलका में सूचीबद्ध के रूप में अन्य सभी अनतररक्त प्रनतबांध हटा ददए गए थे।
तनजीकरण
इसका तात्पयड ककसी सरकारी स्िाममत्ि िाले उद्यम के स्िाममत्ि या प्रबांधन से है। सरकारी कांपननयों
को ननजी कांपननयों में बदलने के दो तरीके हैं, (i) सािडजननक क्षेत्र की कांपननयों के स्िाममत्ि और
प्रबांधन से सरकार की ननकासी करके (i) ननजी कांपननयों की प्रत्यक्ष त्रबक्री करके हैं।
गैर-आरक्षण के प्रािधानों के अनुसार, सरकार को केिल कुछ क्षेत्रों के मलए अपनी भूममका को सीममत
करना था और अन्य सभी क्षेत्रों के मलए, ननजी खखलाडडयों की ननशुल्क भागीदारी की जगह बनानी
होगी।
सुधार प्रकक्रया ने तीन दशक पूरे कर मलए हैं। आइए अब इस अिचध के दौरान भारतीय अथडव्यिस्था
के प्रदशडन को दे खते हैं।
• 1991 के बाद के भारत ने लगातार दो दशकों तक ननरां तर आधार पर जी.डी.पी. में तीव्र िद्
ृ चध दे खी
है । जी.डी.पी. की िद्
ृ चध 1990-91 के दौरान 6 प्रनतशत से बढकर 2017-18 के दौरान 7.2 प्रनतशत हो गई
थी।
• सुधार की अिचध के दौरान, कृवर् की िद्
ृ चध में चगरािट आई है । कृवर् क्षेत्र में सािडजननक ननिेश, विशेर्
रूप से बनु नयादी ढाांचे में ननिेश इस अिचध के दौरान कम हो गया था, जजसमें मसांचाई, त्रबजली, सडक,
बाजार सांपकड और अनुसांधान और विस्तार (जजसने हररत क्राांनत में महत्िपण
ू ड भूममका ननभाई है )
शाममल हैं। खाद्य अनाज के उत्पादन के बदले नकदी फसलों पर ध्यान केंदद्रत करने के मलए ननयाडत
बाजार हे तु उत्पादन की ददशा में घरे लू बाजार के मलए उत्पादन में बदलाि ककया गया है । इससे
खाद्यान्न की कीमतों पर दबाि पड गया है ।
• जबकक औद्योचगक क्षेत्र में उतार-चढाि की दजड ककया गया है , जब कक सेिा क्षेत्र की िद्
ृ चध हुई है ।
औद्योचगक विकास ने भी मांदी दजड की गई है । इसका कारण औद्योचगक उत्पादों की माांग में कमी है
जो कक विमभन्न कारणों जैसे सस्ता आयात, बनु नयादी ढाांचे में अपयाडप्त ननिेश आदद के कारण है ।
इसके अनतररक्त, भारत जैसे विकासशील दे श अभी भी उच्च टै ररफ बाधाओां के कारण विकमसत दे शों
के बाजारों तक पहुांच प्राप्त नहीां कर सके हैं।
• विदे शी ननिेश, जजसमें प्रत्यक्ष विदे शी ननिेश (एफ.डी.आई.) और विदे शी सांस्थागत ननिेश
(एफ.आई.आई.) शाममल हैं, यह 1990-91 में लगभग 100 मममलयन अमेररकी डॉलर से बढकर 2017-18
में 30 त्रबमलयन अमेररकी हो गया है ।
• 1990-91 में लगभग 6 त्रबमलयन अमेररकी डॉलर से 2018-19 में 413 त्रबमलयन अमेररकी डॉलर के विदे शी
मुद्रा भांडार में िद्
ृ चध हुई है ।
• आचथडक सध ु ारों ने सािडजननक व्यय की िद्
ृ चध पर विशेर्कर सामाजजक क्षेत्रों पर सीमाएां लगा दी हैं।
नॉमथन ई. बोरलॉि, नोबल पुरस्कार विजेता, और एक अमेररकी कृवर्विज्ञानी, जजन्होंने विश्ि भर में इस
प्रेरणा का नेतत्ृ ि ककया जजसने कृवर् उत्पादन में व्यापक िद्
ृ चध में योगदान ददया। उन्होंने ही हररत
क्राांनत की सांज्ञा दी। इस प्रकार, उन्हें हररत क्राांनत का जनक कहा जाता है।
हररत क्राांनत को आधुननक तरीकों और तकनीकों के उपयोग के साथ खाद्यान्नों के उत्पादन में असामान्य
िद्
ृ चध प्राप्त करने की एक प्रकक्रया के रूप में पररभावर्त ककया जा सकता है। दस
ू रे शब्दों में , इसका अथड है
प्रनत इकाई भमू म की उच्च उत्पादकता या खाद्यान्न की बहुविध आित
ृ प्राप्त करना।
भारत में हररत क्ाांतत को अपनाने के मलए कौन से कारक उत्तरदायी थे?
हररत क्राांनत से पहले, भारत को खाद्य उत्पादन में काफी कदठनाइयों का सामना करना पडा था:
• तनयममत अकाल: 1964-65 और 1965-66 में , भारत ने दो विकट के अकालों (सूख)े का अनुभि ककया
जजसके कारण भोजन का अभाि हो गया।
• सांस्थाित वित्त का अभाि: सीमाांत ककसानों को सरकार और बैंकों से ककफायती दरों पर विि एिां ऋण
प्राप्त करना बहुत मजु श्कल था।
• कम उत्पादकता: भारत की पारां पररक कृवर् पद्धनतयों ने अपयाडप्त खाद्य उत्पादन प्राप्त ककया।
एम.एस. स्िामीनाथन, उन्हें भारत में हररत क्ाांतत के जनक के रूप में भी जाना जाता है , ने उच्च उपज
िाले विमभन्न बीजों (गेहूां और चािल) के विकास में योगदान ददया है , जजससे भारत को खाद्य सरु क्षा
प्राप्त करने में मदद ममली है।
हररत क्राांनत में विमभन्न कृवर् घटकों या आदानों की समय पर और पयाडप्त आपनू तड की आिश्यकता
है, जैसे कक:
• उच्च उपज िण
ु ित्ता िाले बीज: नॉमडन ई. बोरलॉग जैसे कृवर्विदों ने मैजक्सको में एक विविध प्रकार के
गेहूां के बीज विकमसत ककए, जो एमशया और लैदटन अमेररका में कृर्कों की सहायता के मलए थे और
बाद में पूरी दनु नया उच्च पैदािार उत्पन्न कर सकती थी।
• रासायतनक उिथरक: हररत क्राांनत के मलए बीज या पौधों के मलए आिश्यक पोर्क तत्िों की आिश्यकता
होती है - मुख्य रूप से नाइरोजन, फास्फोरस एिां पोटे मशयम। परां तु पारां पररक खाद विचधयों से ये
पोर्क तत्ि उच्च पैदािार उत्पन्न करने के मलए पयाडप्त नहीां हैं। इसमलए, रासायननक उिडरकों का
नछडकाि / अनुप्रयोग मद
ृ ा को उच्च पोर्क तत्ि प्रदान करता है तथा इस प्रकार पौधों को उच्च
पैदािार उत्पन्न करने में सहायक होता है ।
• मसांचाई: रासायननक उिडरकों की पयाडप्त मात्रा एिां फसलों की ननयांत्रत्रत िद्
ृ चध के मलए जल सांसाधनों की
ननयांत्रत्रत आपूनतड आिश्यक है ।
• कीटाणन
ु ाशक और जीिाणन
ु ाशक: चांकू क नए बीज की ककस्में स्थानीय कीटों और जीिाणओ
ु ां के मलए गैर-
अनुकूलन होती हैं, उन्हें मारने के मलए कीटाणुनाशक और जीिाणुनाशक का उपयोग सांरक्षक्षत फसल के
मलए आिश्यक है ।
• तण
ृ नाशक और घास-फूस नाशक: उच्च उपज ककस्म के बीजों की बुिाई करते समय, रासायननक उिडरकों
को खेत में शाक और खरपतिारों द्िारा सेिन से रोकने के मलए तण
ृ नाशक और घास-फूस नाशक के
उपयोग की आिश्यकता होती है ।
• कृवष-भूमम मशीनीकरण: कृवर्-भूमम मशीनीकरण कृवर् कायड को आसान और तेज बनाता है । जैसा कक
हररत क्राांनत बडे भूभाग पर एकल-खेती का समथडन करती है , इसमलए मशीनीकरण आिश्यक है ।
• ऋण, भांडारण और विपणन:
o ऋण: उपयक्
ुड त सभी आदानों को खरीदना - कृवर् मशीनरी, उच्त उपज ककस्म के बीज,
रासायननक उिडरक, मसांचाई (पांप सेट, बोरिेल), कीटनाशक और जीिाणुनाशक तथा शाकनाशी
और खरपतिारनाशक- काफी महां गे हैं। इसमलए ककसानों को सस्ती ऋण की उपलब्धता की
आिश्यकता होती है ।
o भांडारण: जैसा कक हररत क्राांनत क्षेत्र विमशष्ट्ट है , पि
ू -ड विश्िसनीय मसांचाई सवु िधाओां िाला एक
क्षेत्र- भाखडा-नाांगल बहुउद्दे श्यीय बाांध पांजाब, हररयाणा और राजस्थान में 135 लाख एकड में
मसांचाई प्रदान करता है - स्थानीय क्षेत्रों में बम्पर फसल, भांडारण की सुविधा प्रदान करता है ।
विमभन्न बाजारों में वितररत करने के मलए आिश्यक है।
o विपणन एिां वितरण: अभाि िाले क्षेत्रों और विमभन्न बाजारों में विपणन, वितरण और पररिहन
सांयोजन की उचचत श्रांख
ृ ला भोजन वितररत करने के मलए आिश्यक है । रसद ननमाडण के मलए,
भारत सदहत कई दे शों ने विश्ि बैंक जैसी बहुपक्षीय एजेंमसयों से ककफायती धन अथिा सस्ते
ऋण के विकल्प को चुना।
हररत क्राांनत का भारतीय अथडव्यिस्था पर सामान्य और कृवर् एिां विशेर् रूप से पयाडिरण दोनों पर
सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाि पडता है।
सकारात्मक प्रबाि
• खाद्य सरु क्षा सतु नब्श्चत करें : भारत खाद्य उत्पादन में आत्मननभडरता प्राप्त कर सकता है और खाद्य
अचधशेर् दे श (ननयाडतक) के रूप में भी आगे बढ सकता है ।
• खाद्य वितरण: अभाि िाले क्षेत्रों में भांडारण और विपणन सुविधाओां के विकास के साथ भोजन ममल
सकता है । पी.डी.एस. प्रणाली ने गरीब कमजोर िगों के बीच भूख को कम ककया।
• उन्नत कृवष आय: हररत क्राांनत ने भरपूर फसल उत्पादन के साथ ककसान की आय में िद्
ृ चध की है ।
• कृवष आिाररत उद्योिों का विकास: हररत क्राांनत ने कृवर् आधाररत उद्योगों जैसे बीज कांपननयों, उिडरक
उद्योगों, कीटनाशकों उद्योगों, ऑटो और रै क्टर उद्योगों आदद का विकास ककया।
नकारात्मक प्रभाि
• अांतर-िैयब्क्तक असमानताएँ: चूांकक हररत क्राांनत ने भूमम के विशाल भूभाग के साथ व्यजक्तगत ककसानों
को लाभाजन्ित ककया, जबकक गरीब ककसान उसी से िांचचत था।
• क्षेिीय असमानताएँ: चूांकक हररत क्राांनत के मलए मसांचाई सुविधाओां की ननरां तर आपूनतड की आिश्यकता
होती है , इसमलए अच्छी मसांचाई सुविधाओां िाले क्षेत्रों (पांजाब, हररयाणा आदद) को लाभ ममला, जबकक
उिर-पि
ू ड भारत तथा मध्य भारत के कुछ दहस्से नहीां कर सके।
• विषम खेती पैटनथ: फसलों की पसांद गेहूां और चािल के पक्ष में रही है और फसलों को प्रभावित ककया
है जैसे कक दलहन, नतलहन, मक्का, जौ आदद।
• मद
ृ ा उिथरता में अभाि: एक ही भमू म पर साल-दर-साल एकल-कृवर् या एक ही फसल उगाने, अन्य
फसलों के माध्यम से ननयममत आितडन की अनुपजस्थनत में या एक ही भूमम (पॉलीकल्चर) पर कई
फसलों को उगाने से ममट्टी का क्षरण होता है ।
• मसांचाई:
o जलभराि: चािल की खेती में भारी मात्रा में पानी की आिश्यकता होती है , जजससे जलभराि
होता है । जलभराि जड की िद्
ृ चध को रोकता है क्योंकक जडें ऑक्सीजन प्राप्त नहीां कर सकती
हैं। जल-भराि के कारण मलेररया भी होता है ।
o ममट्टी की लिणता: ममट्टी का लिणीकरण तब होता है जब मसांचाई के पानी में लिण की
थोडी मात्रा िाष्ट्पीकरण के माध्यम से ममट्टी की सतह पर अत्यचधक केंदद्रत हो जाती है ।
o तनम्न जल स्तर: बोरिेल और जलभत
ृ ् से फसलों की मसांचाई के मलए पानी की अनतररक्त
खखांचाि से पानी की कमी हो जाती है ।
• उिथरक, कीटनाशक और शाकनाशक:
o उिडरकों, कीटनाशकों और शाकनाशकों के अत्यचधक प्रयोग से जल, भमू म और िायु प्रदवू र्त
होकर पयाडिरण में चगरािट आई है ।
o शैिाल का उिना: मसांथदे टक या जैविक उिडरक आसन्न जल ननकायों में जाते हैं, जजससे शैिाल
उगते हैं तथा अांततः समद्र
ु ी प्रजानतयों की मत्ृ यु हो जाती है ।
o जैि सांचयन: समय के साथ ककसी जीि के िसायक्
ु त ऊतकों के भीतर रसायनों (उिडरकों और
कीटनाशकों) की बढती एकाग्रता है । भारत की खाद्य श्रांख
ृ ला में विर्ाक्त स्तर इतना बढ गया
है कक भारत में उत्पाददत कुछ भी मानि उपभोग के मलए उपयक्
ु त नहीां है ।
• उपरोक्त नकारात्मक प्रभाि को दरू करने के मलए, स्िामीनाथन ने पयाडिरण की दृजष्ट्ट से स्थायी कृवर्,
स्थायी खाद्य सरु क्षा और सांरक्षण का उपयोग करने के मलए "सदाबहार क्ाांतत" की समथडन ककया।
• असांतुमलत कृवर् प्रणाली को ननयांत्रत्रत करने के मलए, भारत सरकार ने इांद्रधनुर् क्राांनत- एकीकृत खेती
आदद को बढािा दे ने के मलए कल्पना की है ।
2014 के बाद सुधार
जीएसटी
जीएसटी के विमभन्न स्लैब के तहत दरों पर चचाड करने से पहले, जीएसटी क्या है इस पर एक नज़र
डालते हैं? जीएसटी का पूणड रूप माल तथा सेिा कर (गड्
ु स एांड सविडस टै क्स) है। इसे सांविधान (एक
सौ तथा पहले सांशोधन) अचधननयम, 2016 में पेश ककया गया था। वित्त मांत्री अरूण जेटली जीएसटी
पररर्द के अध्यक्ष हैं
जीएसटी का लक्ष्य विमभन्न केंद्रीय और राज्य स्तर के करों को एकीकृत करना है , जो एकल कर में
व्यजक्तगत रूप लागू होता है । यह कदम एक सामान्य राष्ट्रीय बाजार ननमाडण के द्िारा दे श की
अप्रत्यक्ष कर प्रणाली में एक महत्िपूणड सुधार लाने की उम्मीद है। उपभोक्ताओां के मलए माल पर
समग्र कर का बोझ कम हो जाएगा। सरकार के अनुसार यह कमी 25-30% होने का अनुमान है।
एकल स्तर कर शासन के कारण करों के प्रशासन तथा प्रचलन को लागू करने की भी अपेक्षा है।
14िीां जीएसटी पररर्द बैठक कुछ िस्तुओां की दरों को पररभावर्त करने के मलए आज (18 मई 2017)
श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर में आयोजजत की गई। दरें नीचे ददए गए स्तरों पर लागू होंगी-
• शन्
ू य
• 5%
• 12%
• 18%
• 28%
शन्
ू य (कोई भी टै क्स स्लैब नहीां) -
कुछ िस्तओ
ु ां जैसे ताजा दध
ू , माांस, अांडे, छाछ, दही, प्राकृनतक शहद, ताजी सजब्जयाां, कांद तथा मूल, फलों
(जमे हुए या सांरक्षक्षत राज्य में रहने िालों के अलािा), कॉफी बीन्स, सभी अनाज िस्तुएां (यूननट
कांटे नर में लगाए गए पदाथों और पांजीकृत ब्ाांड नाम के अलािा) आटा, सोयाबीन, मूांगफली, गन्ना गुड,
मुरमुरे, रोटी, प्रसाद, आम नमक, त्रबांदी, मसांधुर, प्लाजस्टक की चूडडयााँ, लकडी का कोयला, न्यानयक, गैर-
न्यानयक डाक दटकट, अख़बार, हथकरघा आदद पर कोई कर लागू नहीां होगा।
5% स्लैब -
इस टै क्स स्लैब में िस्तुएां जैसे जमी हुई मछली, मछली कफलेट, अल्रा उच्च तापमान दध ू , दध
ू क्रीम,
क्रीम दही, मट्ठा, आइिरी, हबड, छाल, सूखे पौधे, जमे हुए या सांरक्षक्षत फल और सजब्जयाां, खट्टे फल
और खरबूजे की छील, कॉफी, चाय, प्राकृनतक गोंद, रॉल, िनस्पनत िसा तथा तेल, चुकांदर, चीनी, गन्ना
चीनी, कोको बीन्स, रोटी की तैयारी के मलए ममक्स तथा आटा, तांबाकू के पिे, अनारोदहत आयरन
पेररटस, सल्फर, सभी कच्ची धातुएां तथा दाने, ममट्टी के तेल, सल्फोनेदटड अरां डी का तेल, मछली का
तेल, हस्तननममडत माचचस, त्रबजल्डांग ईंट, ममट्टी के तेल, लाइफबोट आदद शाममल होंगी ।
12% स्लैब
इस स्लैब में जमा हुआ माांस, मक्खन और अन्य िसा, पनीर, सूखे मेिे, स्टाचड, पशु िसा और तेल, सॉस
और इसी तरह के माल के उत्पाद, माांस ओफल या खून, फल तथा सजब्जयों का रस, भुना हुआ
चचकरी, सोया दध
ू पेय, पेय युक्त दध
ू , माबडल, ग्रेनाइट ब्लॉक, बॉयोगैस, और्धीय ग्रेड हाइड्रोजन
पेरोक्साइड, उिडरक, फाउां टे न/ बॉल पेन इांक, टूथ पाउडर, अगरबत्ती, मोमबनतयाां, फोटोग्राकफक प्लेट्स और
कफल्म, बच्चों के चचत्र / ड्राइांग / रां गीन ककताबें , छतररयाां, रे त चूना ईंट, मसलाई मशीनें, सेल फोन आदद
जैसी कुछ िस्तु शाममल होंगी।
18% स्लैब
28% स्लैब
इस कर स्लैब में चविांगम, कोको मक्खन, अकड, सुगांध और कॉफी के दाने, गैर-अल्कोहल पेय, िायुकृत
जल, पोटड लड
ैं सीमेंट, पें ट्स और िाननडश, कलाकार / छात्र या साइनबोडड चचत्रकार के रां ग, परफ्यूम,
टूथपेस्ट, आनतशबाजी, मसांक, िॉश बेमसन, िॉल पेपर / किररांग, लैंप, लाइदटांग कफदटांग, वपयानो, ररिॉल्िसड,
िॉमशांग मशीन, िैक्यूम क्लीनर, मोटरसाइककल, ननजी इस्तेमाल के मलए एयरक्राफ्ट, नौका आदद िस्तुएां
शाममल हैं।
श्रम और रोजगार मांत्रालय भारत सरकार के सबसे पुराने और महत्िपूणड मांत्रालयों में से एक है। इस
मांत्रालय की प्रमुख जजम्मेदारी समाज के गरीब, िांचचत और िांचचत िगों पर विशेर् जोर दे ने के साथ
श्रममकों के दहतों की सुरक्षा और सुरक्षा है । यह उन्नत उत्पादन के साथ-साथ उत्पादकता और आगे
व्यािसानयक कौशल प्रमशक्षण और रोजगार सेिाओां को विकमसत करने के मलए एक स्िस्थ कायड
िातािरण बनाने के मलए सुननजश्चत करता है ।
इस लेख में , हम वपछले कुछ िर्ों में िम और रोजिार मांिालय द्िारा शुरू की गई सभी योजनाओां
को दे खेंगे और यह आगामी यूपीएससी मसविल सेिाओां और यूपीएससी ईपीएफओ 2020 परीक्षाओां के
मलए महत्िपूणड होगा।
• यह एक केंद्रीय योजना है जो
इसका उद्दे श्य कीटनाशकों
ननम्नमलखखत घटकों के साथ शुरू की गई
के कारण मद
ृ ा, जल और
है
भारत में कीट िायु में पयाडिरण प्रदर्
ू ण
o एकीकृत कीट प्रबांधन
प्रबांधन के दृजष्ट्टकोण को कम करना है।
o दटड्डी ननयांत्रण और अनुसांधान
को मजबूत करना
रासायननक कीटनाशकों के o कीटनाशक अचधननयम, 1968 का
और आधुननक
कारण व्यािसानयक कायाडन्ियन
बनाना (SMPMA)
स्िास््य खतरों को कम • एजेंसी- 35 केंद्रीय एकीकृत कीट प्रबांधन
• यह ककसानों को 7% की ब्याज दर पर 3
लाख रुपये तक अल्पकामलक फसल ऋण
दे श में कृवर् उत्पादकता
के मलए प्रनत िर्ड 2% की ररयायत प्रदान
ब्याज अनुदान और उत्पादन को बढािा
करता है।
योजना (Interest दे ने के मलए सस्ती दर पर
• प्रनत िर्ड 3 प्रनतशत का अनतररक्त ब्याज
Subvention Scheme) अल्पकामलक फसल ऋण
अनुदान "शीघ्र भुगतान करने िाले
प्रदान करना
ककसानों" को ददया जाता है।
PSS:
PDPS:
PPSS:
• यह एकछत्रीय योजना है
• यह 4 उप-योजनाओां के माध्यम से विस्तार
तांत्र को मजबूत करने पर विचार करती है :
o कृवर् विस्तार उप ममशन (SMAE)
राष्ट्रीय कृवर् विस्तार o बीज एिां रोपण सामग्री उप ममशन
विस्तार प्रणाली को ककसान
एिां प्रौद्योचगकी (SMSP)
चामलत करना
ममशन o कृवर् याांत्रत्रकीकरण उप ममशन
(SMAM)
o पादप सांरक्षण और पादप सांगरोध
उप ममशन (SMPP)
• यह ककसानों के मलए दग्ु ध उत्पादन को
बढािा दे ने और उत्पादकता बढाने और
डेयरी को अचधक लाभकारी बनाने के मलए
2016 में शुरू की गई थी।
• यह योजना ननम्नमलखखत चार घटकों के
राष्ट्रीय गोजातीय दग्ु ध उत्पादन और माध्यम से कायाडजन्ित की जा रही है
उत्पादकता ममशन उत्पादकता बढाना o पशु सांजीिनी
o उन्नत प्रजनन तकनीक
o ई-पशु हाट पोटड ल
o नेशनल बोिाइन जीनोममक सेंटर
फॉर इांडीजीनस ब्ीड्स की स्थापना
आश्रथथक सि
ु ार