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अर्थशास्त्र की प्रकृति तथा क्षेत्र
अर्थशास्त्र की प्रकृति तथा क्षेत्र
परिचय
परिभाषा
इतिहास
आधनि
ु क का आर्थिक इतिहास
अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री
अर्थशास्त्र का स्वभाव
अर्थशास्त्र की सीमाएँ
अर्थशास्त्र का ध्येय
आर्थिक क्रियाएँ
अर्थशास्त्र की सीमाएँ
पाश्चात्य अर्थशास्त्र
निष्कर्ष
सन्दर्भ ग्रंथ
परिचय
~1~
अर्थशास्त्र सामाजिक विज्ञान की वह शाखा है , जिसके अन्तर्गत वस्तुओं और
शाब्दिक अर्थ है - 'धन का अध्ययन'। किसी विषय के संबंध में मनष्ु यों के कार्यो के
क्रमबद्ध ज्ञान को उस विषय का शास्त्र कहते हैं, इसलिए अर्थशास्त्र में मनुष्यों के
का प्रयोग समाज से सम्बन्धित विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है , जैसे:- अपराध,
इत्यदि।
~2~
ब्रिटिश अर्थशास्त्री अल्फ्रेड मार्शल ने इस विषय को परिभाषित करते हुए इसे
समाज में जो कुछ भी घट रहा है , उसके पीछे आर्थिक शक्तियां हुआ करती हैं।
इसीलिए समाज को समझने और इसे बेहतर बनाने के लिए हमें इसके अर्थिक
ू जाना चाहिए कि ज्ञान का उद्देश्य अर्थ प्राप्त करना ही नहीं है , सत्य की खोज
भल
भी बतलाता है कि मनुष्यों के आर्थिक प्रयत्नों द्वारा विश्व में सुख और शांति कैसे
व्यक्ति या राष्ट्रों का शोषण करने लगें , जिससे विश्व की शांति भंग हो जाए। परं तु
विश्वकल्याण की वद्धि
ृ हो। इस विवेचन से स्पष्ट है कि अर्थशास्त्र की सरल
~3~
परिभाषा इस प्रकार होनी चाहिए-अर्थशास्त्र में मुनष्यों के अर्थसंबंधी सब कार्यो का
दृष्टिकोण अंतर्राष्ट्रीय है ।
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परिभाषा
अध्ययन किया जाता है । 'अर्थशास्त्र' शब्द संस्कृत शब्दों अर्थ (धन) और शास्त्र की
कहते हैं।
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एडम स्मिथ ने 1776 में प्रकाशित अपनी पुस्तक (An
enquiry into the Nature and the Causes of the Wealth of
~5~
सम्बन्ध में उनका मत है कि मानवीय आवश्यकताएं असीमित है तथा
आधनि
ु क अर्थशास्त्री कपिल आर्य (Kapil Arya) ने अपनी पुस्तक
~6~
इतिहास
अर्थशास्त्र बहुत प्राचीन विद्या है । चार उपवेद अति प्राचीन काल में बनाए गए थे।
प्रसिद्ध हैं। ये चंद्रगुप्त मौर्य (321-297 ई.पू.) के महामंत्री थे। इनका ग्रंथ
'अर्थशास्त्र' पंडितों की राय में प्राय: 2,300 वर्ष परु ाना है । आचार्य कौटिल्य के
मतानुसार अर्थशास्त्र का क्षेत्र पथ्ृ वी को प्राप्त करने और उसकी रक्षा करने के उपायों
का विचार करना है । उन्होंने अपने अर्थशास्त्र में ब्रह्मचर्य की दीक्षा से लेकर दे शों की
विजय करने की अनेक बातों का समावेश किया है । प्रो.अशोक कुमार ने घटमपरु प्त
से विचार आचार्य कौटिल्य अपने ग्रंथ में करते हैं। प्रमाणत: इस ग्रंथ की कितनी ही
बातें अर्थशास्त्र के आधुनिक काल में निर्दिष्ट क्षेत्र से बाहर की हैं। उसमें राजनीति,
~7~
संस्कृति में चार पुरुषार्थों में अर्थ (धन-सम्पदा) भी सम्मिलित है । जैन धर्म में
'सर्वे गण
ु ा कांचनम ् आश्रयन्ते' (सभी गण
ु ों का आधार स्वर्ण ही है ।)। चाणक्यसत्र
ू में
कहा है -
सुखस्य मूलं धर्मः। धर्मस्य मूलं अर्थः। अर्थस्य मूलं राज्यं। राज्यस्य मूलं इन्द्रिय
~8~
आधनि
ु क का आर्थिक इतिहास
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमरीका और सोवियत संघ में शीत युद्ध छिड गया। यह
कोई यद्ध
ु नहीं था परन्तु इससे विश्व दो भागों में बँट गया।
नीति को अपनाया गया। लोगों को व्यापार करने की खुली छूट थी। शेयर बाजार में
पैसा लगाने की छूट थी। इन दे शों में बहुत सारी बडी-बडी कम्पनियाँ बनीं। इन
इंजिनीयरी उद्योग, बैंक आदि सभी क्षेत्रोँ में जमकर तरक्की हुई। ये सभी दे श दस
ू रे
सरकारी नियंत्रण होता था। उद्योगों से होने वाले लाभ पर सरकार का अधिकार
करते थे। इस तरह की अर्थ नीति के कारण यहां के उद्योगों में अधिक प्रतिस्पर्धा
नहीं होती थी। आम लोगों को भी लाभ कमाने के लिये कोई प्रोत्साहन नहीं था। इन
~9~
3 अक्टूबर-1990 को पूर्व जर्मनी और पश्चिम जर्मनी का विलय हुआ। संयुक्त
को अपनाया। इसके बाद 1991 में सोवियत रूस का विखंडन हुआ और रूस सहित
अपनाया। चीन ने समाजवाद को पूरी तरह तो नहीं छोड़ा पर 1970 के अंत से उदार
अर्थव्यवस्था को अपनाया।
~ 10 ~
अर्थशास्त्र की प्रकृति तथा क्षेत्र
अर्थशास्त्र की विषय-सामग्री
परम्परावादी अर्थशास्त्रियों (एडम स्मिथ, जे० बी० से तथा प्रो० वाकर आदि) की
दृष्टि में अर्थशास्त्र धन को प्राप्त करने तथा उसे व्यय करने से सम्बन्धित क्रियाओं
है ।
~ 11 ~
1. उपयोग (Consumption) – इसके अन्तर्गत आवश्यकताएँ तथा इससे
तष्टि
ु गण ु नियम, पारिवारिक बजट, आय-व्यय व बचत, उपयोगिता व
हैं—
कीमत सिद्धान्त
~ 12 ~
1- कीमत सिद्धान्त (Price Theory) –
आर्थिक विश्लेषण के इस अंग में छोटे -छोटे अंशों अथवा व्यक्तिगत आर्थिक
इकाइयों का अध्ययन किया जाता है । इसी खण्ड में यह भी ज्ञात किया जाता है कि
किसी वस्तु विशेष या सेवा की कीमत का किस प्रकार निर्धारण होता है ? इस प्रकार
ु क कीमत सिद्धान्त के विकास में प्रो० मार्शल, प्रो० चैम्बरलिन, श्रीमती जोन
आधनि
रोबिन्सन तथा प्रो० जे० आर० हिक्स का योगदान विशेष उल्लेखनीय रहा है ।
इकाइयों का अध्ययन करते हैं। अन्य शब्दों में , “आय सिद्धान्त या व्यापक
अर्थशास्त्र कुल आय, कुल रोजगार, कुल व्यय, कुल बचत, कुल विनियोग तथा
~ 13 ~
क्योंकि आय के निर्धारक तत्त्व ही अर्थव्यवस्था में रोजगार की मात्रा का निर्धारण
पक
ु ारा जाता है ।
अर्थशास्त्र में समस्त मानवीय क्रियाओं का अध्ययन नहीं किया जाता, वरन ्
मार्शल के अनुसार, अर्थशास्त्र केवल समाज में रहने वाले सामान्य व्यक्तियों
~ 14 ~
अर्थशास्त्र के नियम ध्रुव सत्य नहीं होते हैं। वरन ् केवल आर्थिक प्रवत्ति
ृ यों के
~ 15 ~
अर्थशास्त्र का ध्येय
संसार में प्रत्येक व्यक्ति अधिक से अधिक सुखी होना और द:ु ख से बचना चाहता
प्राप्त करने में सहायता मिलती है । इसलिए प्रत्येक व्यक्ति धन प्राप्त करने का
अधिक से अधिक सुख प्राप्त करने के लिए वह अधिक से अधिक धन प्राप्त करने
को दख
ु पहुँचता है । इस प्रकार धन प्राप्त करने के अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं।
पँज
ू ीपति अधिक धन प्राप्त करने की चिंता में अपने मजदरू ों को उचित मजदरू ी नहीं
इस नियम को शायद भल
ू जाते हैं। जो धन दस
ू रों को दख
ु पहुँचाकर प्राप्त होता है
~ 16 ~
उससे अंत में द:ु ख ही मिलता है । उससे सुख की आशा करना व्यर्थ है । यह सत्य है
कि दस
ू रों को दख
ु पहुँचाकर जो धन प्राप्त किया जाता है उससे इच्छित वस्तुएँ प्राप्त
की जा सकती है और इन वस्तओ
ु ं को प्राप्त करने से सख
ु मिल सकता है । परं तु यह
सख
ु अस्थायी है और अंत में दख
ु का कारण हो जाता है । संसार में ऐसी कई वस्तए
ु ँ हैं
जिनका उपयोग करने से तत्काल तो सुख मिलता है , परं तु दीर्घकाल में उनसे दख
ु
है , परतु जब उनकी आदत पड़ जाती है तब उनका सेवन अत्यधिक मात्रा में होने
लगता है , जिसका स्वास्थ्य पर बरु ा प्रभाव पड़ता है । इससे अंत में द:ु खी होना पड़ता
है । दस
ू रों को हानि पहुँचाकर जो धन प्राप्त होता है वह निश्चित रूप से बरु ी आदतों
बन जाता है । दस
ू रों को दख
ु दे कर प्राप्त किया हुआ धन कभी भी स्थायी सुख और
इनके उदाहरण ऊपर दिए जा चुके हैं। कुछ सुख ऐसे हैं जो दस
ू रों को सुखी बनाकर
प्रप्त होते हैं। वे मनुष्य के मन में शांति उत्पन्न करते हैं। अपना कर्तव्य पालन
करने से जो सुख प्राप्त होता है वह भी शांति प्रद होता है कर्तव्यपालन करते समय
पर वह द:ु ख सुख में परिणत हो जाता है और उससेन मन में शांति उत्पन्न होती है ।
इस प्रकार का सुख भविष्य में द:ु ख का साधन नहीं होता ओर इस प्रकार के सुख को
~ 17 ~
आनंद कहते हैं। जब आनंद ही आनंद प्राप्त होता है तब द:ु ख का लेश मात्र भी नहीं
रह जाता। ऐसी दशा को परमानंद कहते हैं। परमानंद प्राप्त करना प्रत्येक व्यक्ति
कल्याण इसी में है कि वह परमानंद प्राप्त करने का हमेशा प्रयत्न करता रहे । वह
हमेशा ऐसा सुख प्राप्त करता रहे जो भाविष्य में द:ु ख का कारण या साधन न बन
साधन बन जाते हैं तब प्रकृति के अटल नियम के अनुसार इन्हीं प्रयत्नों द्वारा
उपाय दस
ू रों के कल्याण का साधन बनना है । इसी प्रकार अपने कार्यों द्वारा किसी
लिए दस
ू रों के कल्याण का हमेशा प्रयत्न करने लगेगा तब किसी भी तरह से स्वार्थो
~ 18 ~
आत्मकल्याण के लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति दस
ू रों के स्वार्थों को
चाहिए। इसका पारिणाम यह होगा कि ऐसे कार्य बंद हो जाएँगे जिनके कारण दस
ू रों
चाहिए।
~ 19 ~
अर्थशास्त्र का क्षेत्र में किन किन क्रियाओं को शामिल किया जाता है ।
अध्ययन करता है जो इच्छित वस्तु और उसके परिमित साधनों के रूप में उपस्थित
(3) अर्थशास्त्र में उन्हीं कार्यों के संबंध में विचार होता है जिनमें -
है ।
पास जो साधन, द्रव्य इत्यादि हैं वे परिमित हैं। व्यक्ति कितना भी धनवान क्यों न
हो, उसके धन की मात्रा अवश्य परिमित रहती है ; फिर वह इस परिमित साधन द्रव्य
~ 20 ~
परिमित साधनों द्वारा अपनी इच्छाओं को तप्ृ त करने के लिए करता है । इस प्रकार
उसके उपभोग संबंधी सब कार्यो का विवेचन अर्थशास्त्र में किया जाना आवश्यक हो
वस्तुएँ किस प्रकार खरीदता है , वह कौन सी वस्तु किस दर से, किस परिमाण में ,
विचार अर्थशास्त्र में किया जाता है । मनुष्य जब कोई वस्तु तैयार करता है , इसके
स्वाभाविक है ।
मनुष्य को अपने समय का उपयोग करने की अनेक इच्छाएँ होती हैं। परं तु समय
लीजिए, कोई मनुष्य सो रहा है , पूजा कर रहा है या कोई खेल खेल रहा है । प्रोफ़ेसर
में लगाया जा सकता था। मनुष्य कोई भी काम करे , उसमें समय की आवश्यकता
~ 21 ~
राजनीतिक या सामाजिक ही क्यों न हो, अर्थशास्त्र के अंदर आ जाता है । इस
प्रत्येक कार्य का आर्थिक पहलू रहता है और इसी पहलू पर अर्थशास्त्र में विचार
किया जाता है । वे कहते हैं, यदि किसी कार्य का संबंध राज्य से हो तो उसका उस
पहलू से विचार राजनीतिशास्त्र में किया जाए और यदि उस कार्य का संबंध धर्म से
उत्पति या पूर्ति पर क्या पड़ रहा है , इसका विचार तो अर्थशास्त्र में होगा; चोरबाजारी
आचारशास्त्र या धर्मशास्त्र में होगा। और, यह कैसे रोका जा सकता है , इसका विचार
शायद किसी भी शास्त्र में न हो। किसी भी कार्य का केवल एक ही पहलू से विचार
रहता है जो किसी समय में कार्य कारण का संबंध बतलाते हैं। परिस्थितियों में किस
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प्रकार के परिवर्तन होने चाहिए और परिस्थितियों के बदलने के क्या तरीके हैं, इन
गंभीर प्रश्नों पर उसमें विचार नहीं किया जा सकता, क्योंकि ये सब कार्य विज्ञान के
बाहर हैं। माने लें, किसी समय किसी दे श में शराब पीनेवाले व्यक्तियों की सँख्या
किया जाएगा कि शराब पीनेवालों की संख्या बढ़ने से शराब की कीमत, शराब पैदा
करनेवालों और स्वयं शराबियों पर क्या असर पड़ेगा। परं तु उनके अर्थशास्त्र में इस
शराब पीने की आदत सरकार द्वारा कैसे बंद की जा सकती है । उनके अर्थशास्त्र में
हो सकता।
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बातें आ जाती हैं। हमको अर्थशास्त्र का क्षेत्र इस प्रकार निर्धारित करना चाहिए
पाए।
~ 24 ~
आर्थिक क्रियाएँ
पूर्व में उत्पादन, उपभोग, विनिमय तथा वितरण - अर्थशास्त्र के ये चार प्रधान अंग
जाना।
जाता है ।
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राजस्व (Public Finance) : राजस्व के अन्तर्गत लोक व्यय, लोक आय,
किया जाता है ।
~ 26 ~
अल्पविकसित दे शों का विकास
बाद सबसे बड़ा अर्थशास्त्रीय ग्रंथ प्रकाशित हुआ है जिसमें अल्पविकसित दे शों की
योजनाकरण (प्लानिंग), पज
ूं ी निर्माण तथा विदे शी सहायता जैसी वर्तमान
अनस
ु ार ऐसे स्थिति हुई
~ 27 ~
अर्थशास्त्र की उपादे यता
अर्थशास्त्र का महत्व बड़ी तीव्र गति से बढता जा रहा है । संयुक्त राष्ट्र संघ एफाके
घंटे विश्व में प्रकाशित हो रहे हैं। राजनीति के बाद लोकप्रियता में अर्थशास्त्र का ही
सुखी नहीं कर सकता। प्रो॰ शुंपीटर ने अपने नवीनतम लेख अर्थशास्त्र का भविष्य में
स्वीकार किया है कि सिद्धांत रूप से आर्थिक विश्लेषण चाहे जितनी प्रगति कर ले,
बहुत उज्वल होगा। इसी कारण अब अर्थशास्त्र पर नोबेल परु स्कार भी दिया जाने
लगा है ।
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अर्थशास्त्र की सीमाएँ
दर्ल
ु भ पदार्थो का अध्ययन
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पाश्चात्य अर्थशास्त्र
अर्थशास्त्र का वर्तमान रूप में विकास पाश्चात्य दे शों में (विशेषकर इंग्लैंड में ) हुआ।
ऐडम स्मिथ वर्तमान अर्थशास्त्र के जन्मदाता माने जाते हैं।[2] आपने 'राष्ट्रों की
की संपत्ति और शक्ति बढ़ाना है । उनके बाद माल्थस, रिकार्डो, मिल, जेवंस, काल
पर संद
ु र रचनाएँ कीं। परं तु अर्थशास्त्र को एक निश्चित रूप दे ने का श्रेय प्रोफ़ेसर
के संबंध में मतभेद है । पाश्चात्य अर्थशास्त्रियों में अर्थशास्त्र के क्षेत्र के संबंध में तीन
को केवल विज्ञान मानकर यह स्वीकार नहीं करता कि अर्थशास्त्र में ऐसी बातों पर
विचार किया जाए जिनके द्वारा आर्थिक सुधारों के लिए मार्गदर्शन हो। दस
ू रा दल
और पज
ंू ीपतियों तथा जमींदारों का नाश करके मजदरू ों की उन्नति चाहता है । वह
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मजदरू ों का राज भी चाहता है । तीनों दलों में अर्थशास्त्र के क्षेत्र के संबंध में बहुत
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निष्कर्ष
या राष्ट्रों का शोषण करने लगें , जिससे विश्व की शांति भंग हो जाए। परं तु
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सन्दर्भ ग्रंथ
कोश. राजकमल
प्रकाशन. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788126714285.
पब्लिकेशन्स. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788187344735.[मत
ृ कड़ियाँ
रचयिता :
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