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उदारवाद के अर्थ,परिभाषाएं,विशेषताएं ,आलोचना ,विकास ,रूप

राजनीतिक शास्त्रियों ने राज्य के स्वरूप और कार्य क्षेत्र से संबंधित अनेक राजनीतिक विचारधारा का प्रतिपादन किया है। इसका कारण यह है कि राजनीतिक
विचारधाराएं व्यक्ति और समाज के सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक जीवन पर अपनी छाप अंकित करती है और राज्य के उद्देश्य, कार्य और व्यक्ति एवं
राज्य के आपसी संबंधों आदि को सुनिश्चित करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।आधुनिक युग में जिन अनेक विचारधाराओं का विकास हुआ है उनमें से
उदारवादी विचारधारा भी अपना स्थान महत्त्व रखती है। उदारवाद का इतिहास आधुनिक पश्चिमी दर्शन का इतिहास बन गया है क्योंकि प्राय: सभी पश्चिमी
देश इसके दर्शन से प्रभावित हो रहे हैं।
यह आधुनिक युग की जबरदस्त विचारधारा है जिसने बहुत से महान राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तनों को प्रेरणा दी, बहुत से
राजनीतिक आर्थिक आंदोलनों का विरोध किया। यह एक अत्यंत लचीली तथा गतिशील विचारधारा है।
*उदारवाद की परिभाषाएं*
*सुप्रसिद्ध लास्की के अनुसार – इसमें कोई संदेह नहीं है,कि उदारवाद का सीधा संबंध स्वतंत्रता से है।
*डेविस और गुड के शब्दों में - व्यापक अर्थ में उदारवाद प्रजातंत्र का समानार्थी हैं ।
*सारटोरी के अनुसार – साधारण शब्दों में उदारवाद व्यक्तिगत स्वतंत्रता, न्यायिक सुरक्षा तथा संवैधानिक
राज्य का सिद्धांत व व्यवहार है ।
*एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार – उदारवाद के सारे विचार का सार स्वतंत्रता का सिद्धांत है।
इसके अतिरिक्त स्वतंत्रता का विचार इसका मूल है।
*उदारवाद का उदय तथा विकास*
अन्य कई विचारधाराओं के समान ही उदारवादी विचारधारा का जन्म तत्कालीन सामाजिक,राजनीतिक ,आर्थिक तथा धार्मिक परिस्थितियों के कारण यूरोप में
मध्य युग के अंत तथा आधुनिक युग के आरंभ में हुआ। परिस्थितियों के बदलने के साथ-साथ इस विचारधारा में भी परिवर्तन हुआ। उदारवाद के विकास के
तीन चरण निम्नलिखित हैं-
1.पुनर्जागरण (Renaissance):-
ऐतिहासिक दृष्टि से उदारवाद की प्रथम अवस्था पुनर्जागरण से प्रारंभ होती है। 14 वीं शताब्दी से 16 वीं शताब्दी तक साहित्य,विज्ञान तथा कला का
विकास हुआ,नए आविष्कार हुए और नई खोजें हुई। यूरोप में बौद्धिक जागरण हुआ। नए विचारों का उदय हुआ यही पुनर्जागरण कहलाता है।
2.धर्म सुधार आंदोलन (Reformation):-
16 वीं शताब्दी में धार्मिक क्षेत्र में पोप की निरंकु शता के विरोध में आवाजें उठी और धर्म सुधार का आंदोलन शुरू हुआ। मार्टिन लूथर तथा काल्विन जैसे
धर्म सुधारको के द्वारा धार्मिक निरंकु शता का विरोध किया गया। धर्म सुधार ने परंपराओं के बंधन तोड़ कर धार्मिक स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया।
3.औधोगिक क्रांति (Industrial Revolution):-
मध्य युग में लोगों का आर्थिक जीवन स्वतंत्र नहीं था। किसान सामंतों के नियंत्रण में थे,और दस्तकारों पर उनकी श्रेणियों का नियंत्रण था जो “गिल्ड ”
कहलाते थे। इसके अतिरिक्त चर्च का भी आर्थिक जीवन में हस्तक्षेप था और आर्थिक जीवन से संबंधित अनेक धार्मिक तथा नैतिक नियम थे। 18 वीं और
19 वीं शताब्दी मैं यूरोप के कई देशों में औद्योगिक क्रांति हुई। इसके परिणाम स्वरूप समाज में नवीन समृद्धिशाली वर्ग उत्पन्न हुआ जिसका एकमात्र उद्देश्य
अधिक से अधिक संपत्ति प्राप्त करना था। यह वर्ग उन नियमों एवं प्रतिबंधों का विरोध करने लगा जो उनके संपत्ति अर्जित करने के रास्ते में बाधक थे। इस
प्रकार आर्थिक स्वतंत्रता की भावना उदारवाद का स्रोत बनी।
*उदारवाद के रूप
उदारवादी विचारधारा किसी एक विचारक की देन नहीं है। इस को विकसित करने में अनेक विचारकों ने अपने अपने दृष्टिकोण से योगदान दिया है। इन्हीं
परिवर्तनों के आधार पर उदारवाद का दो रूपों में वर्णन किया जा सकता है जो इस प्रकार है – परम्परागत उदारवाद और समकालीन उदारवाद ।
*परंपरागत उदारवाद अथवा नकारात्मक उदारवाद ( Classical Or Negative Liberalism )
जॉन लॉक , एडम स्मिथ , जर्मी बैंथम , जेम्स मिल , हरबर्ट स्पेंसर आदि परंपरागत उदारवाद के प्रमुख समर्थक है। परंपरागत उदारवाद व्यक्तिवाद का
दूसरा नाम है। इसलिए परंपरागत उदारवाद भी व्यक्तिवाद की तरह व्यक्ति को सामाजिक व्यवस्था का कें द्र बिंदु मानकर इसे अधिकाधिक स्वतंत्रता देने के पक्ष
में है। व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता में विश्वास करते हुए एवं व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए यह राज्य के द्वारा अहस्तक्षेप की नीति का समर्थन करते हैं।
*समकालीन उदारवाद अथवा सकारात्मक उदारवाद (Contemporary or Positive Liberalism)
हैरोल्ड लास्की , मैकाईवर, जी डी एच , कोल आदि समकालीन उदारवाद के प्रमुख समर्थक हैं। 18 वीं शताब्दी के अंत एवं 19 वीं शताब्दी के
आरंभिक वर्षों में आर्थिक क्षेत्र में स्वतंत्र व्यापार एवं खुली प्रतियोगिता की भयानक दुष्परिणाम निकले। श्रमिकों का अत्यधिक शोषण बढ़ गया और आर्थिक
परिस्थितियां भी डगमगा गई। परिणाम स्वरूप समकालीन उदारवाद के समर्थकों ने समाज को महत्व देते हुए इस तथ्य का समर्थन किया है कि व्यक्ति के
अधिकार और स्वतंत्रताएं सामाजिक हित के अनुकू ल हो। यह विचारधारा संपूर्ण समाज के हितों के अनुकू ल अर्थव्यवस्था पर राज्य का नियंत्रण अनिवार्य करती
है। समकालीन उदारवाद राज्य को एक बुराई नहीं बल्कि सामाजिक एवं नैतिक संस्था के रूप में मानव जीवन के लिए अति अनिवार्य समझते हैं।
*परंपरागत उदारवाद अथवा शास्त्रीय उदारवाद की मुख्य विशेषताएं:-
> परंपरागत उदारवाद अथवा शास्त्रीय उदारवाद की मुख्य विशेषताएं या तत्व निम्नलिखित हैं –
1.व्यक्ति की सर्वोच्च महानता (Man is Supreme):-
- परंपरावादी अथवा शास्त्रीय उदारवाद की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि उदारवाद मानव व्यक्तित्व
के असीम मूल्यों एवं व्यक्तियों की आध्यात्मिक समानता में विश्वास रखता है। उदारवाद व्यक्ति को
राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था का कें द्र बिंदु मानता है। व्यक्ति का समाज में स्वतंत्र
अस्तित्व है। शास्त्रीय उदारवाद व्यक्ति की स्वतंत्रत इच्छा में विश्वास रखता है।
2.सहनशीलता (Tolerance):-
- शास्त्रीय उदारवाद सहनशीलता में विश्वास रखता है। विरोधी विचारों को कु चलने की अपेक्षा उनके
प्रति सहिष्णुता का दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
3.निजी संपत्ति का अधिकार (Right to Private Property):-
- शास्त्रीय उदारवाद निजी संपत्ति के अधिकार का महान समर्थक है। शास्त्रीय उदारवाद संपत्ति के
अधिकार को एक पवित्र अधिकार मानते हैं और इस पर किसी भी तरह का प्रतिबंध लगाने के पक्ष
में नहीं है।
4.मानव की स्वतंत्रता (Freedom of Man):-
- शास्त्रीय उदारवाद मानव की स्वतंत्रता का महान समर्थक है। इसके अनुसार व्यक्ति को जीवन के हर
क्षेत्र जैसे की राजनीतिक ,आर्थिक ,सामाजिक, धार्मिक और बौद्धिक आदि में स्वतंत्र होना चाहिए।
स्वतंत्रता का अर्थ बंधनों का अभाव माना गया है। दूसरे शब्दों में स्वतंत्रता का अर्थ सभी सत्ताओं से
मुक्ति है।
5.प्राकृ तिक अधिकार (Natural Rights):-
- परंपरागत अथवा शास्त्रीय उदारवाद व्यक्ति के प्राकृ तिक अधिकारों का समर्थन करता है। शास्त्रीय
उदारवाद ने विशेषकर जीवन ,स्वतंत्रता व संपत्ति के अधिकार पर बल दिया है। राज्य का उद्देश्य
व्यक्ति के प्राकृ तिक अधिकारों की रक्षा करना है।
6.व्यक्ति साध्य है और राज्य साधन (Man is an end,State is a Mean):-
- शास्त्रीय उदारवाद व्यक्ति को साध्य और राज्य को साधन मानता है। राज्य व्यक्ति के लिए है ना कि
व्यक्ति राज्य के लिए है। समुदाय ,समाज ,राज्य ,राजनीतिक व्यवस्था एवं विधि-वधान सब कु छ
व्यक्ति के लिए है ,व्यक्ति उनके लिए नहीं है। व्यक्ति के नैतिक व आध्यात्मिक कल्याण तथा उसका
संपूर्ण विकास ही राज्य का उद्देश्य है। व्यक्ति के हितों को साधन के रूप में अपने उद्देश्य को पूरा
करने में ही इनके अस्तित्व का औचित्य है।
7.मानव की विवेकशीलता में विश्वास (Believes in Rationality of Man):-
- शास्त्रीय उदारवाद मानव की विवेकशीलता और अच्छाई में विश्वास रखता है। व्यक्ति अपने भले बुरे
को पहचानने की क्षमता रखता है क्योंकि उसके पास बौद्धिक शक्ति है।
8.राज्य के न्यूनतम कार्य (Minimum Functions of State):-
- शास्त्रीय उदारवाद राज्य के कार्य क्षेत्र को सीमित करने पर बल देता है। शास्त्रीय उदारवादियों के
अनुसार राज्य का कार्य के वल जीवन तथा संपत्ति की रक्षा करना और अपराधियों को दंड देना ही है।
अन्य सभी कार्यों में व्यक्तियों को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिए। उनका विश्वास था कि राज्य का
अधिक हस्तक्षेप व्यक्ति की स्वतंत्रता को कम कर देता है।
उदारवाद की आलोचना
- उदारवाद की आलोचना निम्नलिखित तर्कों के आधार पर की गई हैं-
1.मनुष्य प्रकृ ति से के वल स्वार्थी नहीं है:- उदारवाद मनुष्य की प्रकृ ति को गलत रूप से चित्रित करता है और उसे मूलतः स्वार्थी मानता है, वास्तव में
ऐसा नहीं है। मनुष्य में परमार्थ भी होता है, वह अपने साथ दूसरों की भलाई भी चाहता है। इसमें संदेह नहीं है कि मनुष्य में स्वार्थ की भावना अधिक
होती है, परन्तु वह एक सामाजिक प्राणी भी है और वह अपने साथ अन्य व्यक्तियों को भी सुखी देखना चाहता है।
2.राज्य आवश्यक बुराई नहीं है:- व्यक्तिवादियों की भाँति उदारवादी भी राज्य को एक आवश्यक बुराई मानते हैं, जिसकी उत्पति व्यक्ति के अहित करने
के लिए हुई है। परन्तु यह धारणा ठीक नहीं है। वास्तव में राज्य एक स्वाभाविक संस्था है जिसकी उत्पति मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए तथा
उसके जीवन के कल्याण के लिये हुई है। आधुनिक राज्य एक कल्याणकारी राज्य है जो मानव की समस्त प्रकार की जरूरतों की पूर्ति हेतु कार्य करता है।
3.प्राकृ तिक अधिकारों की धारणा गलत है:- लॉक जैसे उदारवादी लेखकों का विचार है कि राज्य की उत्पत्ति से पहले प्रकृ ति द्वारा मनुष्य को कु छ
प्राकृ तिक अधिकार प्राप्त थे जिनमें जीवन, स्वतन्त्रता तथा सम्पति के अधिकार प्रमुख थे। परन्तु यह विचार ठीक नहीं है। अधिकार के वल राज्य तथा समाज
में ही प्राप्त होते हैं और राज्य ही इन अधिकारों की रक्षा करता है।
4.मनुष्य स्वयं अपनी भलाई नहीं समझता:- उदारवादियों का यह विचार भी ठीक नहीं है कि प्रत्येक मनुष्य स्वयं अपनी भलाई समझता है। वास्तव में
समाज में अधिकांश व्यक्ति अशिक्षित तथा अज्ञानी होते हैं, जिनका दृष्टिकोण बहुत सीमित होता है। वे अपनी भलाई को ठीक ढंग से समझने में असमर्थ होते
हैं। राज्य को जनता के हित में व्यक्ति के असामाजिक प्रवृत्तियों को नियंत्रित करने का अधिकार मिलना ही चाहिए।
5.अस्पष्ट धारणा:- उदारवाद की आलोचना इस आधार पर भी की जाती है कि यह एक स्पष्ट विचारधारा नहीं है। इसकी कोई निश्चित परिभाषा नहीं दी
जा सकती है। और न ही इसके सिद्धान्तों पर सभी उदारवादी सहमत है। यह विचारधारा विविध विद्वानों के आदर्शों का सम्मिश्रण है। इसमें कई स्थानों पर
विरोधाभास भी पाए जाते हैं।
*उदारवाद का निष्कर्ष:-
आधुनिक युग में उदारवाद को सकारात्मक उदारवाद के रूप में भी देखा जा सकता है। वर्तमान में कई समाजवादी देश उदारवाद के सिद्धांतों के अनुसार
अपनी नीतियों में संशोधन करते हैं जिसके परिणाम स्वरूप समय-समय पर विभिन्न राज्यों में कई सकारात्मक बदलाव किए जाते हैं। उदारवादी विचारधारा स्पष्ट
रूप से पूंजीवाद की विचारधारा पर आधारित है जो लोग कल्याण हेतु अत्यंत आवश्यक है। वर्तमान समय में उदारवाद के सम्मुख पुनर्जीवित राष्ट्रवाद एक
स्थाई खतरा उत्पन्न कर रहा है जिसके कारण राष्ट्रवाद के स्वरूप में विभिन्न देशों में कट्टरपंथियों का सामाजिक रूप से उदय हो रहा है। कई अर्थशास्त्रियों का
मानना है कि देश की सरकार को उदारवाद के संदर्भ में कई परिवर्तन करने की आवश्यकता है जिससे नागरिकों की स्वतंत्रता के मूल सिद्धांतों को गंभीरता
से पालन किया जा सके ।

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