Professional Documents
Culture Documents
Hindi Political Theory Concept and Debate Edited Qwughz
Hindi Political Theory Concept and Debate Edited Qwughz
इकाई-IV: अतधकार
इकाई - V: लोकिांत्र
ग) बहुसंस्कृवतिाद और सवहष्णु ता
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
2
प्रश्न 1 - िकारात्मक और नकारात्मक स्विांत्रिा के बीच अांिर कीतजए । यशायाह बतलिन स्विांत्रिा की
तकि अवधारणा को वरीयिा दे िे हैं ?
अथवा
यशायाह बतलिन ने िकारात्मक और नकारात्मक स्विांत्रिा में भेद तकया है। क्या आप इििे िहमि
उत्तर - पररचय
20िी ं सदी के राजनीवतक दार्रवनक यशायाह बतलिन (1909-97) ने अपने वनबं ि 'टू कॉन्से प्ट् ि ऑफ
तलबटी' (1958) में दो प्रकार की स्वतंत्रता को प्रवतवष्ठत वकया। वजसे उन्ोंने नकारात्मक स्वतंत्रता और
सकारात्मक स्वतंत्रता कहा।
बवलरन के वलए, स्वतं त्रता एक सरल या सीिी अििारणा नही ं थी, बक्ति एक
और व्यक्ति के मुि वनम्नतर आत्म पर इसका प्रभुत्व होना चावहए। ऐसा होने पर
ही कोई व्यक्ति सकारात्मक स्वतंत्र ता के अथर में या स्वतंत्र हो सकता है। बवलरन
ने इस संबंि में वलखा है वक 'स्विांत्रिा शब्द का िकारात्मक अथि तकिी व्यक्ति की खुद अपना मातलक
होने की इच्छा िे उत्पन्न होिा है। सकारात्मक स्वतंत्र ता का अथर यह नही ं है वक इसमें वकसी तरह की
दखलंदाजी न हो। दरअसल, इसमें यह बात भी र्ावमल है वक व्यक्ति अपना मावलक हो और उसके उच्चतर
आत्म का उसके वनम्नतर आत्म पर प्रभुत्व हो।
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
3
नकारात्मक स्विांत्रिा:
यशायाह बतलिन नकारात्मक स्विांत्रिा की अवधारणा को वरीयिा दे िे हैं , इिमें उनके द्वारा शातमल
नकारात्मक स्वतंत्रता में 'नकारात्मक' र्ब्द इस बात का संकेत करता है वक यह व्यक्ति की आजादी को
सीवमत करने िाले हर काम को नकारता है। आमतौर पर, इसे हस्तक्षेप या दखलंदाजी से आजादी के रूप
में समझा जाता है। नकारात्मक स्विांत्रिा का दायरा इि िवाल के जवाब िे िय होिा है वक 'मैं वकस
क्षेत्र का मावलक हूँ। बवलरन आगे कहते हैं वक 'यवद दू सरे मु झे िह काम करने से रोकते हैं , जो मैं उनके द्वारा
न रोके जाने पर कर सकता था, तो मैं उस सीमा तक गैर आजाद हूँ। यवद इस क्षेत्र में दू सरे आदवमयों का
बहरहाल, बतलि न यह स्पि करिे हैं तक यवद कोई व्यक्ति वकसी लक्ष्य को हावसल करने में असमथर है , तो
इसका अथर यह नही ं है वक िह आजाद नही ं है । उन्ोंने वलखा है वक 'केिल दू सरे लोगों द्वारा थोपी जाने िाली
पाबंवदयाूँ ही मेरी आजादी को प्रभावित करती हैं । '
(i) हर व्यक्ति सबसे बेहतर तरीके से अपना वहत जानता है। यह सूत्र इस मान्यता पर आिाररत है वक
व्यक्ति तकर कर सकते हैं। इसवलए उनमें विचार-विमर्र करने और जानकाररयों के आिार पर सही
(ii) राज्य की भूवमका बहुत ही सीवमत है। दरअसल, यह वपछले सूत्र का ही विस्तार है। चूूँवक व्यक्ति को
तावकरक कर्त्ार माना गया है , इसवलए राज्य व्यक्ति के लक्ष्यों और उद्दे श्ों के बारे में फैसला नही ं कर
सकता है।
यशायाह बतलिन ने नकारात्मक स्विांत्रिा की अवधारणा को प्राथतमकिा दी। उन्ोंने तकर वदया वक
प्राथवमक वचंता सरकारी हस्तक्षेप के माध्यम से सकारात्मक स्वतंत्रता को बढािा दे ने के प्रयास के बजाय
व्यक्तियों को बाहरी हस्तक्षेप और जबरदस्ती से बचाने की होनी चावहए।
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
4
अपने वनबंि "टू कॉन्से प्ट्ि ऑफ तलबटी" में , बवलरन ने नकारात्मक और िकारात्मक स्विांत्रिा के बीच
स्पि अांिर वकया और सर्त्ा के संभावित दु रुपयोग के क्तखलाफ सुरक्षा के रूप में नकारात्मक स्वतंत्रता के
वलए अपनी प्राथवमकता व्यि की।
हाूँ , यर्ायाह बवलरन ने सकारात्मक और नकारात्मक स्वतंत्रता में भेद वकया है जो की इस प्रकार है :
1. स्वतंत्र ता की सकारात्मक अििारणा का अथर बंि नों 1. स्वतंत्र ता की नकारात्मक अििारणा का अथर हैं
परस्पर सहयोगी हैं। कानून स्वतंत्रता की रक्षा करते स्वतंत्र ता परस्पर विरोिी हैं। कानू न स्वतंत्र ता की
3. सकारात्मक स्वतंत्रता के अनुसार व्यक्ति के वहत 3. नकारात्मक स्वतंत्रता के अनुसार व्यक्तिगत वहत
और समाज के वहतों में कोई विरोि नही ं होता । और सामावजक वहत दोनों अलग- अलग होते हैं।
4. सकारात्मक स्वतं त्रता के तकर कुछ करने की 4. नकारात्मक स्वतंत्रता का तकर यह स्पष्ट् करता है
स्वंतत्रता' के विचार की व्याख्या से जुडे हैं। वक व्यक्ति क्या करने से मुि हैं ।
व्यक्ति केिल समाज में ही | स्वतंत्र हो सकता है , अनुलंघनीय क्षेत्र से है , इस क्षेत्र से बाहर समाज
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
5
तनष्कर्ि
यर्ायाह बवलरन की नकारात्मक स्वतंत्र ता को प्राथवमकता अविक उदारिादी पररप्रेक्ष्य के साथ सं रेक्तखत होती
की रक्षा करने में मदद वमलती है , जबवक सकारात्मक स्वतं त्रता के वलए अत्यविक हस्तक्षेपिादी दृवष्ट्कोण से
जुडे संभावित खतरों से साििान रहना पडता है , वजससे व्यक्तिगत स्वतंत्र ता का उल्लंघन हो सकता है ।
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
6
प्रश्न 2 - नफरि भार्ण क्या है ? 'अतभव्यक्ति की स्विांत्रिा' के तवचार िे िांबां तधि तवतवध वाद-तववाद
का आलोचनात्मक परीक्षण कीतजए ।
अथवा
क्या एक उदारवादी-लोकिाां तत्रक िमाज को रािरीय मीतिया में जातिवादी तवचारोां के प्रिारण की
उत्तर - पररचय
नफरि भार्ण : "नफरत भाषण" एक प्रकार का भाषण है जो जावत, िमर , जातीयता, राष्ट्रीयता, वलंग, यौन
जैसी विर्ेषताओं के आिार पर वकसी विर्ेष व्यक्ति या समूह को बढािा दे ता है , या भेदभाि करता है। भारत
के विवि आयोग की 267िी ं ररपोिर में , नफरत फैलाने िाले भाषण को मु ख्य रूप से नस्ल, जातीयता, वलंग,
यौन अवभविन्यास, िावमरक वििास और इसी तरह के आिार पर पररभावषत व्यक्तियों के एक समूह के
'अवभव्यक्ति की स्वतंत्र ता' की अििारणा लोकतां वत्रक समाजों का एक मौवलक और आिश्क तत्व है , यहां
अवभव्यक्ति की स्वतं त्रता के विचार से संबंवित कुछ प्रमुख बहसों की आलोचनात्मक जां च की गई है:
1. स्विांत्र भार्ण और नुक िान के बीच िांिुलन : सबसे महत्वपू णर बहसों में से एक स्वतं त्र अवभव्यक्ति
की अनु मवत दे ने और नु कसान को रोकने के बीच सही संतुलन खोजने के इदर -वगदर घू मती है। आलोचकों
का तकर है वक अवभव्यक्ति की वनरं कुर् स्वतं त्रता से नफरत फैलाने िाले भाषण, वहंस ा भडकाने या गलत
सूचना का प्रसार हो सकता है। स्वतंत्र भाषण के समथर क खुले संिाद के महत्व पर जोर दे ते हैं और तकर
दे ते हैं वक भाषण पर सीमाएं सेंसरवर्प को जन्म दे सकती हैं और असहमवत की आिाजों को दबा सकती
हैं। सही संतुलन बनाना चु नौतीपूणर है और यह वनरं तर बहस का विषय है।
अवभव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में नई बहस छे ड दी है। ये प्लेिफॉमर व्यक्तियों को खुद को अवभव्यि
करने के वलए एक र्क्तिर्ाली माध्यम प्रदान करते हैं , लेवकन उन्ें उत्पीडन, साइबरबुवलंग और गलत
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
7
सूचना के प्रसार जैसे मु द्दों का भी सामना करना पडता है । सोर्ल मीविया कंपवनयों द्वारा सामग्री को
वनयंवत्रत करने के वनणरयों से भाषण को विवनयवमत करने में वनजी संथथाओं के प्रभाि और वजम्मेदारी के
बारे में चचार हुई है ।
3. प्रेि की स्विांत्रिा : प्रेस की स्वतंत्रता स्वतंत्र अवभव्यक्ति का एक महत्वपू णर घिक है । सरकारी वनयंत्र ण
और मीविया स्वावमत्व को लेकर अक्सर बहसें उठती रहती हैं। वचंताओं में कुछ लोगों के हाथों में मीविया
का संकेंद्रण र्ावमल है , वजससे विविि दृवष्ट्कोणों और संभावित पू िार ग्रहों की कमी हो सकती है। दू सरी
ओर, सरकारी सेंसरवर्प पत्रकाररता की स्वतं त्रता और आलोचनात्मक ररपोवििं ग को बावित कर सकती
है।
4. कलात्मक अतभव्यक्ति और िें िरतशप : अवभव्यक्ति की कलात्मक स्वतं त्रता कभी-कभी सामावजक
मानदं िों और मूल्ों से िकराती है। वजस कला को उर्त्ेज क या आपवर्त्जनक माना जाता है , िह
सेंसरवर्प और कलात्मक अवभव्यक्ति की सीमाओं के बारे में बहस का कारण बन सकती है।
विचारों, वििासों, को मुूँह, र्ब्द, लेखन, मुद्रण, वचत्र या वकसी अन्य तरीके से स्वतंत्र रूप से व्यि करने का
अविकार है। इस स्वतं त्रता को लोकतां वत्रक प्रिचन, विचारों के आदान-प्रदान और एक विविि और जीिंत
समाज के विकास के वलए महत्वपू णर माना जाता है।
िेंिरतशप (Censorship): सरवर्प में अवभव्यक्ति के कुछ रूपों पर प्रवतबंि या दमन र्ावमल है। सरकारें ,
संथथान या यहां तक वक वनजी संथ थाएं नु कसान को रोकने , सािरजवनक व्यिथथा बनाए रखने , या व्यक्तियों के
अविकारों और भलाई की रक्षा के वलए सेंसरवर्प अक्सर सर्त्ा के संभावित दु रुपयोग और अवभव्यक्ति की
स्वतंत्र ता के उल्लंघन के बारे में वचंता पैदा करती है।
“एक उदारवादी-लोकिाां तत्रक िमाज को रािरीय मीतिया में जातिवादी तवचारोां के प्रिारण की
अनुमति ‘नही’ दे नी चातहए।“
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
8
अतभव्यक्ति की स्विांत्रिा और िेन्सरतशप के बीच वाद-तववाद के िां दभि में कथन की व्याख्या:
1. व्यक्तियोां और िमूहोां को नुक िान : नस्लिादी विचार व्यक्तियों और समुदायों को िास्तविक नुकसान
पहुंचा सकते हैं , खासकर उन लोगों को जो पहले से ही हावर्ए पर हैं। नफरत फैलाने िाले भाषण और
नस्लिादी प्रचार से वहंसा, भेदभाि और सामावजक अर्ां वत भडक सकती है। ऐसे भाषण को सीवमत
2. िामातजक एकजुटिा को कमजोर करना : राष्ट्रीय मीविया में नस्लिादी विचारों को बढािा दे ने की
सकता है । यह अल्पसंख्य कों के वलए र्त्रु तापूणर माहौल में योगदान दे सकता है , वजससे हावर्ए पर रहने
िाले समूहों के वलए लोकतां वत्रक प्रविया में पूरी तरह से भाग लेना अविक कवठन हो जाएगा।
3. नफरि को िामान्य बनाना : राष्ट्रीय मीविया में नस्लिादी विचारों को अनु मवत दे ने से नस्लिाद सामान्य
वदया जाता है , तो यह उनमें िैि ता की भािना व्यि कर सकता है। इस तरह का सामान्यीकरण िीरे -
िीरे होता है , इन विचारों के नु कसान और आिामकता के प्रवत असं िेदनर्ीलता एक िास्तविक वचंता
बन जाती है।
4. िमान अतधकारोां का उल्लांघन: कुछ लोगों का तकर है वक नस्लिादी विचार सभी व्यक्तियों के समान
अविकारों और गररमा का उल्लं घन करते हैं , जो एक उदार-लोकतां वत्रक समाज के वसद्ां तों के विपरीत
है। नस्लिादी विचार व्यक्तियों को उनकी नस्ल या जातीयता के आिार पर अमानिीय और अिमू ल्न
करते हैं , वजससे प्रत्येक व्यक्ति के अंतवनरवहत मूल् और गररमा में वििास कम हो जाता है।
तनष्कर्ि
राष्ट्रीय मीविया में नस्लिादी विचारों के प्रसारण की अनु मवत दे ने का वनणरय विवर्ष्ट् पररक्तथथवतयों, इसमें र्ावमल
संभावित नु कसान और उदार लोकतं त्र को रे खां वकत करने िाले स्वतंत्र अवभव्यक्ति के वसद्ां तों पर
साििानीपूिरक विचार करने के बाद वकया जाना चावहए। यह एक जविल मुद्दा है वजसके वलए सूक्ष्म और
संदभर -विवर्ष्ट् दृवष्ट्कोण की आिश्कता है।
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
9
उत्तर – पररचय
संबोवित करने के दो अलग-अलग दृवष्ट्कोण हैं । िे सामावजक न्याय के बारे में सोचने और प्रयास करने के
विवभन्न तरीकों का प्रवतवनवित्व करते हैं।
िमानिा: समानता र्ब्द की उत्पवर्त् प्राचीन फ्रेंच एिं लैविन र्ब्द एकु लीि (Aequalis), एकू ि (Aequus)
और एकुतलिि (Aequalitas) से हुई है। सामान्य र्ब्दों में , समानता का अथर समान व्यिहार और प्रवतफल
से है। यह आिश्कता प्राकृवतक समानता के रूप में है। इस विचार का यह मानना है वक व्यक्ति प्राकृवतक
एिं स्वतंत्र जन्म लेता है। परं तु व्यक्ति न तो र्ारीररक रचना और न ही अपनी मानवसक क्षमताओं के संबंि
में समान है ।
हेरोल्ड लास्की के अनु िार यह क्तथथवतयाूँ समानता को वनिार ररत करती है -सामावजक पररप्रेक्ष्य में
विर्ेषाविकारों का अं त,सभी को अपने व्यक्तित्व के विकास के वलए पयार प्त अिसर,पाररिाररक क्तथथवत, िन
एिं अनुिां वर्कता इत्यावद जैसे वकसी भी आिार पर कोई प्रवतबंि नही ,ं सामावजक और आवथरक र्ोषण की
अनुपक्तथथवत।
विर्ेषताओं की परिाह वकए वबना, जीिन में सफल होने या अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने का समान मौका
वमलना चावहए। यह, यह सुवनवित करने पर ध्यान केंवद्रत करता है वक िभी के पाि िमान शु रु आिी तबां दु
और िमान अविरोां िक पहांच हो, और यह नस्ल, वलंग, सामावजक-आवथर क क्तथथवत या विकलां गता जैसे
कारकों के पररणामस्वरूप होने िाले अनुव चत लाभ या नुकसान को खत्म करना चाहता है।
अिसरों की समानता मुख्यतः औपचाररक समानता के विचार के अनुसरण पर आिाररत है। प्लेट ो के लेखन
कायों में भी इिका पिा चलिा है। वजसमें िह एक ऐसी र्ैक्षवणक प्रणाली का प्रस्ताि करते हैं , जो सभी
बच्चों को अपनी योग्यता को विकवसत ि प्रदवर्रत करने का समान अिसर प्रदान करती है । अिसरों की
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
10
समानता की प्रारं वभक र्तें यह नही ं है वक सभी व्यक्ति को समान अिसर वदया जाएगा। परं तु इसमें उस
व्यक्ति के साथ कुछ विर्ेष प्राििान वकया जाएगा जो सबसे कमजोर है। तावक पररणामों की असमानता को
स्वीकार वकया जा सके। यह अििारणा उस बािाओं को दू र करने का प्रयास करती है जो व्यक्ति के विकास
में बािक है ।
जॉन राल्स के अनुिार अिसरों की औपचाररक समानता पयार प्त नही ं है , बक्ति उनका मानना है वक वितरण
के मापदं िों में बुक्तद् के समािेर् ि सामावजक क्तथथवत को सक्तम्मवलत करना चावहए। अविरोां की िमानिा
की धारणा उन कारकोां की क्षतिपूतिि नही ां करिी है जो नै तिक दृति िे अिमान होिे हैं। व्यक्ति की
व्यक्तिगत प्रवतभा, सामावजक आवथर क क्तथथवत असमान हो सकती है । जॉन रॉल्स का वद्वतीय वसद्ां त
अिसर की समानता का संबंि सभी को जीिन में पररणाम की समानता यह सुवनवित करने पर केंवद्रत
सफल होने का समान अिसर प्रदान करने से है , है वक सभी व्यक्ति या समूह अपने र्ुरुआती वबंदु या
भले ही उनकी पृष्ठभूवम या प्रारं वभक पररक्तथथवतयाूँ पररक्तथथवतयों की परिाह वकए वबना समान या समान
को वर्क्षा, स्वास्थ्य दे खभाल और अन्य आिश्क जोर दे ता है। इसमें प्रगवतर्ील करािान, कल्ाण
सेिाओं तक पहुं च प्राप्त हो। इसका उद्दे श् उन कायरिम और िन पु नविरतरण र्ावमल हो सकता है
बािाओं को दू र करना है जो लोगों को उनकी क्षमता तावक यह सुवनवित वकया जा सके वक सभी को
तक पहुं चने से रोकती हैं। न्यूनतम जीिन स्तर तक पहुंच प्राप्त हो।
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
11
अिसर की समानता को बढािा दे ने िाली नीवतयों में लक्ष्य अविक समतापूणर समाज प्राप्त करने के वलए
सकारात्मक कारर िाई, भेदभाि-विरोिी कानून और आय, िन, वर्क्षा और अन्य पररणामों में
सकते हैं ।
दू र करने के वलए पयार प्त नही ं हो सकती है क्योंवक विकास को रोक सकती है , क्योंवक यह लोगों को
यह ऐवतहावसक नुकसानों को संबोवित नही ं करती कडी मेहनत करने या जोक्तखम लेने से हतोत्सावहत
है और प्रणालीगत पूिार ग्रह के प्रभािों को पू री तरह कर सकती है यवद उन्ें पता है वक उनके पुरस्कारों
से समाप्त नही ं कर सकती है। को भारी रूप से पुनविरतररत वकया जाएगा।
तनष्कर्ि
अिसर समानता वबना वकसी भेदभाि के सभी को उनकी योग्येता के आिार पर नोकाररयो ि सरकारी पद
में समान अिसर प्रदान करना हैं जबवक पररणाम की समानता विभेद कारी नीवत के आिार पर समानता
थथावपत करने की स्वकृवत दे ता हैं ।
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
12
अथवा
रोनाल्ड िोरतकन द्वारा तदए गए तवचारोां के तवशेर् िांदभि में 'िांिाधनोां की िमानिा' की अवधारणा
पर चचाि करें ।
उत्तर - पररचय
"जतटल िमानिा" जॉन रॉल्स के राजनीवतक दर्रन से जुडी एक अििारणा है , जो वितरणात्मक न्याय और
सामावजक अनुबंि वसद्ां त पर अपने काम के वलए जाने जाते हैं। जविल समानता न्याय का एक वसद्ां त है
वजसे माइकल वाल्ज़र ने अपने 1983 के तकिाब स्फेयिि ऑफ जक्तिि में रे खां वकत वकया है । इसकी
तुलना अक्सर "िां िाधन िमिावाद" से की जाती है , जो वितरणात्मक न्याय को संबोवित करने का एक
और दृवष्ट्कोण है ।
जविल समानता न्याय का एक वसद्ां त है वजसे माइकल िाल्ज़र ने अपने 1983 के वकताब “स्फेयिि ऑफ
जक्तिि” में रे खां वकत वकया है । वितरण की व्यापक अििारणा पर जोर दे ने के कारण इसे अवभनि माना
जाता है , वजसमें न केिल मूतर िस्तुएं बक्ति अविकार जैसे अमूतर सामान भी र्ावमल हैं। यह वसद्ां त सािारण
समानता से अलग है क्योंवक यह सामावजक िस्तुओं में कुछ असमानताओं की अनु मवत दे ता है।
मान्यिाएँ :
न्याय के वलए आिश्क है वक प्रत्येक िस्तु को उसके अपने क्षेत्र -विवर्ष्ट् वसद्ां तों के अनुसार वितररत
वकया जाए, जो उसके सामावजक अथर की व्याख्या से तय होते हैं ।
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
13
सािारण समानता से अंतर वकया है । जविल समानता विवभन्न सामग्री या िस्तुओं को विवभन्न लोगों के वितरण
से जुडी हुई है । यहां विवभन्न प्रकार के स्फेयर /परािी होती है ( उदाहरण स्वरूप बाजार, राजनीवत, पररिार
इत्यावद ) वजसमें विवभन्न प्रकार की सामवग्रयां आिंवित होती हैं तथा सभी स्वतंत्र योग्यता के आिार पर
आिंवित होते हैं। दू सरे र्ब्दों में वििर ीब्यूर्न ऑफ ररिॉिर ज आिुवनक समाज में आय और िन के साथ
संलग्न है। इसके साथ-साथ बहुवप्रय कायों जैसे िन, सामावजक प्रवतष्ठा, राजनीवतक ऑवफस, प्यार और
सद्भािना प्रमुख हैं ।
जतटल िमानिा की अवधारणा के तवपरीि, "िां िाधन िमिावाद" एक अतधक िीधा दृतिकोण है जो
संख्यात्मक समानता प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ संसािनों या आय को यथासंभि समान रूप से वितररत
करने पर केंवद्रत है। संसािन समतािाद आिश्क रूप से व्यक्तिगत पररक्तथथवतयों या आिश्कताओं की
जविलताओं पर जविल समानता के समान विचार नही ं करता है ।
दोनोां अवधारणाओां के बीच मुख्य अांिर असमानता को संबोवित करने के उनके दृवष्ट्कोण में वनवहत है ।
जविल समानता का उद्दे श् व्यापक सामावजक संदभर को ध्यान में रखते हुए उन अंतवनरवहत कारकों को
संबोवित करना है जो असमानता का कारण बनते हैं , जबवक संसािन समतािाद संस ािनों के समान वितरण
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
14
संसािनो से ईष्यार न करे । वकसी भी व्यक्ति के जीिन में आिंवित वकये जाने िाले
इि प्रकार उिका तविरण व्यक्ति की महत्त्वाकाांक्षा पर तनभिर करे गा। इस वितरण से यदी कोई
असमानता उत्पन्न होती है तो िह उवचत होगी क्योंवक प्रत्ये क व्यक्ति को अपनी इस 'खुली लािरी' की
व्यक्तिगत वजम्मेदारी तो लेनी ही होगी। िोरवकन के अनुसार, प्राकृवतक लािरी को संतुवलत करने का यही
एक तरीका है तावक इस प्रकार के पु नः वितरण द्वारा योग्य 'लोगों की दासता से मुक्ति पाई जा सके।
तनष्कर्ि
जविल समानता, व्यक्तिगत क्तथथवतयों की जविलताओं पर विचार करते हुए और गहरे स्तर पर असमानताओं
को संबोवित करते हुए, सामावजक न्याय और समानता प्राप्त करने के वलए एक अविक व्यापक और सूक्ष्म
दृवष्ट्कोण है , जबवक संसािन समतािाद एक सरल, अविक सं ख्यात्मक दृवष्ट्कोण है जो संसािनों के समान
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
15
अथवा
उत्तर - पररचय
जॉन रॉल्स (1921-2002) का न्याय वसद्ां त, समकालीन राजनीवतक दर्रन में न्याय
के सबसे प्रभािर्ाली और व्यापक रूप से चवचर त वसद्ां तों में से एक है । 1971 में
इनकी प्रथम पुस्तक ए थ्योरी ऑफ जक्तिि प्रकावर्त हुई। इस पु स्तक में ही रॉल्स
जॉन रॉल्स ने अपनी तकिाब “ए थ्योरी ऑफ जक्तिि” में न्याय के अपने वसद्ां त में प्रवियात्मक न्याय
के बुवनयादी कारकों का बहुत मजबूती से समथर न वकया है। यानी उन्ोंने भी इस विचार को आगे बढाया
है वक न्याय के वलए कुछ वनवित वनयमों का साििानी से पालन करना जरूरी है।
रॉल्स अपने वसद्ां त के वनमार ण के वलए एक ऐसी क्तथथवत की कल्पना करते हैं , वजसमें व्यक्ति अपनी
सामावजक और आवथरक पृष्ठभूवम के बारे में नही ं जानते हैं। रॉल्स इसे 'अज्ञान का पदाि ' (veil of
ignorance) कहते हैं। अज्ञान के पदे के पीछे रहने िाला व्यक्ति यह नही ं जानता है वक िह कौन है
और उसकी रुवचयाूँ , दक्षताएूँ , जरूरतें आवद क्या हैं।
रॉल्स का न्याय-तिद्ाांि 'िमाज के तवतभन्न वगों, व्यक्तियोां और िमूह के बीच विवभन्न िस्तुओं,
सेिाओं, अिसरों, लाभों आवद को आिंवित करने का नैवतक ि न्यायसंगत आिारों पर आिाररत हैं। इस
समस्या को हल करने के वलए कई वचंतकों ने अपने -अपने ढं ग से विचारों का प्रवतपादन वकया हैं। उन्ी ं
विचारकों ि वचंतकों में से एक जॉन रॉल्स भी हैं। रॉबिर एमिू र ने कहा है वक रॉल्स का उद्दे श् ऐसे वसद्ां त
विकवसत करना है जो हमें समाज के मू ल ढां चे को समझने में मदद करें ।
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
16
रॉल्स ने अपने न्याय-वसद्ां त को प्रस्तुत करते हुए सबसे पहले उपयोतगिावादी तवचारोां का खां िन
तकया और अपने न्याय-वसद्ां त को प्रकायार त्मक आिार प्रदान वकए। रॉल्स ने न्यास को उवचतता के रूप
में पररभावषत करके न्याय-वसद्ां त की परं परागत समझौतािादी अििारणा को उच्च स्तर पर मू तर रूप
प्रदान वकये। रॉल्स ने न्याि की िमस्या का ध्यान में रखिे हए, पाया तक प्राथतमक वस्तुओ ां और
िेवाओां के न्यायपू णि व उतचि तविरण की िमस्या हैं। ये प्राथवमक िस्तुएूँ-अविकार और स्वतंत्र ताएूँ ,
र्क्तियां ि अिसर, आय और संपवर्त् तथा आत्म सम्मान के सािन हैं । रॉल्स ने इन्ें र्ुद् प्रवियात्मक
न्याय का नाम वदया हैं। रॉल्स का मानना है वक जब तक िस्तु ओं और सेिाओं आवद प्राथवमक िस्तुओं
का न्यायपूणर वितरण नही ं होगा तब तक सामावजक न्याय की कल्पना करना व्यथर हैं ।
न्याय के दो तिद्ाांि:
(क) िमान बुतनयादी स्विांत्रिा का तिद्ाांि: रॉल्स का तकर है वक मूल क्तथथवत में , व्यक्ति स्वतंत्रता के एक
बुवनयादी सेि के वलए सहमत होंगे जो सभी के वलए उपलब्ध है । इन स्वतंत्रताओं में भाषण, सभा, विचार और
व्यक्तिगत संपवर्त् के अविकार की स्वतंत्रता र्ावमल है।
(ख) भे दमूलक तिद्ाांि और अविर की उक्तिि िमानिा: रॉल्स का प्रस्ताि है वक िन और संसािनों में
असमानताएं तभी स्वीकायर हैं जब िे समाज के सबसे कम सुवििा प्राप्त सदस्यों को लाभ पहुंचाती हैं। यह
आलोचानाएँ :
अतावकरक एिं अव्यािहाररक माना गया है। इनका का मत है वक न्याय की कोई एक मात्र और सिरमान्य
पररभाषा नही ं हो सकती बक्ति विवभन्न समूह एिं विवभन्न समुदायों के वलए न्याय की वभन्न-वभन्न िारणाएूँ
आिश्क है।
नारीवातदयोां के तवचार: सुसेन मोलर ओवकन जैसी नारीिादी लेक्तखका इस बात पर ध्यान केंवद्रत करती है
वक रॉल्स का न्याय का वसद्ां त पररिार में मौजूदा असमानताओं और अन्याय के बारे में खामोर् है। उनका
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
17
मत है वक न्याय के संदभर में हुए अविकां र् महत्त्वपू णर र्ोि-कायों में पररिार की आं तररक क्तथथवत एिं भूवमका
पर र्ायद ही कोई विचार वकया गया है।
अमर्त्ि िेन के तवचार: अमत्यर से न ने अपनी रचना 'द आइतिया ऑफ जक्ति ि' (2010) में जॉन रॉल्स के
न्याय के वसद्ां तों की आलोचनात्मक मूल्ां कन करते हुए न्याय के संबंि में एक विर्ेष विचार, ‘क्षमता या
सामर्थ्र ' को प्रवतपावदत वकया है । सेन मत है वक रॉल्स द्वारा िवणरत मूल संसािन स्वतंत्र ता प्राप्त करने का
सािन मात्र है , िे स्वतंत्रता की मात्रा तथा गु णिर्त्ा तय नही ं कर सकते ।
अस्वीकायर है वक व्यक्तिगत योग्यताएूँ एिं क्षमताएूँ समाज की सािरजवनक संपवर्त् है तथा उनको सामावजक
न्याय के आिार पर पुनविर तररत वकया जाना चावहए। नॉवजक ने रॉल्स के ‘भेदमूल क वसद्ां त’ की आलोचना
करते हैं । यह विचारक तकर दे ते हैं वक रॉल्स ने समानता पर अत्याविक महत्त्व दे ते हुए मनु ष्य की स्वतंत्रता
की बवल दे दी है।
जानकारी के अभाि में न्याय के वसद्ां त को वनिार ररत करना युक्तिसंगत नही ं है । रॉल्स न्याय के वनयमों को
ज्ञात करने हे तु मनु ष्य को एक काल्पवनक ‘मूल- क्तथथवत' में रखा जहाूँ उन्ें सामावजक-आवथरक तर्थ्ों का बोि
नही ं होता एिं िे इस संदभर में 'अज्ञान के पदे के पीछे समझौता करता है ।
प्रवियात्मक न्याय प्रवियाओं में वनष्पक्षता का विचार ताक्तत्वक न्याय यह है वक यह एक उवचत व्यिहार या
वकसी वनणरय या समािान तक पहुंचने के वलए उपयोग अंवतम पररणाम या वनणरय या सं कल्प की सामग्री पर
वकए जाने िाले सािनों या तरीकों पर जोर दे ता है। जोर दे ता है।
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
18
यह मूल्ां कन करता है वक वनणरय लेने की प्रविया यह मूल्ां कन करता है वक पररणाम या वनणरय स्वयं
इस न्याय व्यिथथा के समथर क यह मानते हैं वक, तत्वात्मक न्याय के समथर कों की मान्यता है वक
सेिाओं, पदों एिं िस्तुओं इत्यावद के वितरण की उपरोि सेिाओं, पदों एिं िस्तुओं इत्यावद का
प्रवियात्मक न्याय में जहाूँ क्षमता पर बल वदया जाता तत्वात्मक न्याय व्यक्ति की मूलभूत आवथर क
प्रवियात्मक न्याय के वचं तकों में हबरिर स्पेंसर , एफ. ए. तत्वात्मक न्याय के वचंतकों में जॉन रॉल्स (1921-
हेयक, वमल्टन फ्रीिमैन तथा रॉबिर नॉवजक के नाम 2002) सबसे ज्यादा प्रवसद्द हैं ।
यह विचार बाजारिादी अथरव्यिथथा एिं पूूँजीिादी तत्वात्मक न्याय या सामावजक न्याय का विचार
अथरव्यिथथा को महत्त्वपू णर मानते हुए इस मान्यता पर माक्सरिाद एिं समाजिाद के साथ वनकिता से जुडा
वििास करता है वक सबके वलए समान वनयम बना दे ने हुआ है। यह एक ऐसे साम्यिादी समाज की कल्पना
से समाज के सभी सदस्य अपने परस्पर संबंिों को करते हैं , वजसमें उत्पादनों के सािनों पर पूरे समाज
तनष्कर्ि
जॉन रॉल्स के न्याय के वसद्ां त की न्याय को यथासंभि वनकितम तरीकों में से एक में पररभावषत करने में
एक गहरी भूवमका रही है। हालां वक उनके द्वारा सवचत्र काल्पवनक क्तथथवत का समथर न करने िाली िास्तविक
जीिन की पररक्तथथवतयों का सामना करना लगभग असंभि है , रॉल्स न्याय की अििारणा को काफी हद तक
वनष्पक्षता के रूप में स्पष्ट् करने में सफल रहे हैं। सबसे महत्वपू णर बात, उनका वसद्ां त अल्पसंख्य कों के
अविकारों और स्वतंत्र ता पर प्रकार् िालता है , जो उपयोवगतािाद करने में विफल रहा है।
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
19
प्रश्न 6 - प्राकृ तिक अतधकार तकिे कहिे हैं ? प्राकृतिक अतधकारोां की आलोचना क्योां की जािी हैं ?
अथवा
मानव अतधकार के िावि भौतमक एवां िाांस्कृतिक िापेक्षवाद पर िां तक्षप बहि कीतजए ।
उत्तर - पररचय
प्राकृवतक अविकारों की पररकल्पना अविकारों के विवभन्न वसद्ान्ों में सबसे पहली और सबसे प्राचीन है।
जॉन लॉक ने 1690 में प्रकावर्त अपने लेख “िेकें ि टर ीटीज ऑन तितवल गवनिमेंट” में प्राकृवतक
अविकारों पर सबसे प्रभािी ििव्य वदया था। लेवकन उससे पहले प्राकृवतक अविकारों के वसद्ां त का
प्रस्तुवतकरण थॉमस हॉब्स के द्वारा वकया जा चुका था। प्राकृवतक अविकारों का अथर व्यिक्तथथत राजनीवतक
संथथा और सरकार की अनुपक्तथथवत में मानि जीिन की अिथथा से है। हॉब्स ने प्राकृवतक अविकार को 'जि
लॉक ने , जीिन, स्वतंत्र ता और संपवर्त् के तीन अविकारों को प्राकृवतक अविकारों की श्रेणी में रखा है।
प्राकृतिक अतधकार :
प्राकृवतक अविकारों के प्रमुख समथर क जॉन लॉक ने घोषणा की वक 'व्यक्ति कुछ जन्मजात अविकारों के
साथ पैदा होता है। ये अविकार व्यक्ति में अंतवनरवहत होते हैं । अथार त, ये समाज अथिा राज्य पर वनभरर नही ं
होते। वकसी भी राज्य द्वारा प्रदान वकये जाने िाले अविकार िास्ति में व्यक्ति के अपने प्राकृवतक अविकार
ही है और िह जहाूँ भी रहे , अविकारों से उसे कोई िंवचत नही ं कर सकता क्योंवक ये वकसी सं थथा या समूह
की दे न नही ं हैं। प्राकृवतक अविकारों का स्रोत प्राकृतिक कानून को माना जाता है । प्राकृवतक अविकार िे
है वजनके वलए व्यक्ति राज्य पर वनभरर नही ं है , बक्ति राज्य का वनमार ण इन अविकारों की रक्षा के वलए हुआ
है।
िबिे प्रतिद् प्राकृ तिक अतधकार िूत्रीकरण जॉन लोके का है , वजन्ोंने तकर वदया वक प्राकृवतक
अविकारों में पू णर समानता और स्वतंत्रता, और जीिन और सं पवर्त् को संरवक्षत करने का अविकार र्ावमल
है। जो तक इि प्रकार हैं :
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
20
1. जीवन का अतधकार : मनु ष्य को जीिन का अविकार प्राकृवतक कानू न से प्राप्त होता है । लॉक की िारणा
है वक आत्मरक्षा व्यक्ति की सिोर्त्म प्रिृवर्त् है और प्रत्ये क व्यक्ति अपने जीिन को सुरवक्षत रखने का वनरं तर
प्रयास करता है । आत्मरक्षा को हॉब्स मानि की सिोर्त्म प्रे रणा मानता है , उसी प्रकार लॉक का मानना है वक
व्यक्ति न तो अपने जीिन का स्वयं अन् कर सकता है और न ही िह अन्य वकसी व्यक्ति को इसकी अनु मवत
दे सकता है।
2. स्विन्त्रिा का अतधकार : लॉक के अनुसार क्योंवक सभी मनु ष्य एक ही सृवष्ट् की रचना हैं , इसवलए िे
सब समान और स्वतन्त्र हैं। यह स्वतंत्रता प्राकृवतक कानून की सीमा के भीतर है । स्वािीनता के अथर प्राकृवतक
वनयम को छोडकर सभी बंिनों से मुक्ति है जो मनुष्य की स्वतं त्रता का सािन है। "इस कानून के अनुसार
िह वकसी अन्य व्यक्ति के अिीन नही ं होते तथा स्वतन्त्रतापू िरक स्वेच्छा से कायर करते हैं।" व्यक्ति की यह
स्वतन्त्रता प्राकृवतक कानून की सीमाओं के अन्दर होती है। अतः मनमानी स्वतन्त्रता नही ं है।
3. िम्पतत्त का अतधकार : लॉक ने सम्पवर्त् के अविकार को एक महत्त्वपू णर अविकार माना है। लॉक के
अनुसार सम्पवर्त् की सुरक्षा का विचार ही मनुष्यों को यह प्रे रणा दे ता है वक िे प्राकृवतक दर्ा का त्याग करके
समाज की थथापना करें । लॉक ने सम्पवर्त् के अविकार को प्राकृवतक अविकार माना है। अपनी रचना 'तद्विीय
तनबन्ध' में लॉक ने इस अविकार की व्याख्या की है। उन्ोंने इस अविकार को जीिन तथा स्वतन्त्रता के
अविकार से भी महत्त्वपूणर माना है। संकुवचत अथर में लॉक ने केिल वनजी सम्पवर्त् के अविकार की ही व्याख्या
की है। व्यापक अथर में लॉक ने जीिन तथा स्वतन्त्रता के अविकारों को भी सम्पवर्त् के अविकार में र्ावमल
वकया है।
प्राकृतिक अतधकारोां की आलोचना : प्राकृवतक अविकारों के वसद्ान् की विवभन्न विचारकों द्वारा आलोचना
की गई। बैंथम ने ऐसे सभी अविकारों की आलोचना की जो राज्य से पहले है या उसके विरुद् है। प्राकृवतक
अविकारों की वनम्न आिार पर भी आलोचना की जाती है।
यवद व्यक्ति के अविकार असीवमत और वनरं कुर् हैं तो हम व्यक्ति और समाज के विरोिाभास को हल
नही ं कर सकते। उदाहरण के वलए वकसी अकाल अथिा महामारी की क्तथथवत में , यवद एक व्यक्ति अनाज
इकट्ठा कर लेता है और माूँ गने पर भी दू सरों को नही ं दे ता है तो इसकी िजह से दू सरे के जीिन के
अविकार का हनन हो सकता है। और यवद लोग जबरदस्ती छीनते हैं तो उसका संपवर्त् का अविकार
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
21
खतरे में आ जाता है। अथार त् यवद दो प्राकृवतक अविकार आपस में िकरा जायें तो उनके समािान का
विवभन्न विचारकों में प्राकृवतक का अथर से ले कर भी आलोचना की है। इनका कहना है वक कोई भी व्यक्ति
प्रकृवत का कुछ भी अथर लगा सकता है जैसे , प्राकृवतक 'ब्रह्ां ि के अथर में , इस संसार के गैर-मानिीय
भाग के रूप में इत्यावद। पररणामस्वरूप प्राकृवतक अविकारों की िारणा विवभन्न रूपों में अस्पष्ट् सी रही
है।
कोई भी अविकार वबना वकसी कानून के नही ं हो सकते । अविकार कुछ कर्त्रव्यों की अपेक्षा भी करते हैं।
ये कुछ मानिीय संबंिों का वनमार ण भी करते हैं वजन पर कर्त्रव्य विके रहते हैं। ग्रीन वलखते हैं वक, प्रत्येक
अविकार को अपना औवचत्य समाज के कुछ ऐसे लक्ष्यों के संदभर में वसद् करना होता है वजनके वबना
कर दे ता है , वजन पर इनका औवचत्य है। प्राकृवतक अविकारों का वसद्ान् मान कर चलता है वक अविकार
और कर्त्रव्य समाज से स्वतंत्र है। परन्ु यह गलत िारणा है क्योंवक अविकार का सिाल केिल समाज
िावि भौमवाद का िकि है वक मानिाविकार सभी व्यक्तियों में अंतवनरवहत हैं , चाहे उनकी सां स्कृवतक या
सामावजक पृष्ठभूवम कुछ भी हो। इन अविकारों को मौवलक, अविभाज्य माना जाता है और इन्ें सां स्कृवतक
या क्षेत्रीय मतभेदों के बािजूद हर जगह बरकरार रखा जाना चावहए। सािरभौवमकतािादी िैविक मानकों के
एक सेि में वििास करते हैं जो सभी समाजों के पालन के वलए एक सामान्य नैवतक और कानूनी ढां चा प्रदान
करते हैं। उनका तकर है वक कुछ अविकार, जैसे जीिन का अविकार और यातना से मुक्ति , पर समझौता
नही ं वकया जा सकता है और सां स्कृवतक या थथानीय रीवत-ररिाजों की परिाह वकए वबना, उनका कभी भी
उल्लं घन नही ं वकया जाना चावहए।
िाांस्कृतिक िापेक्षवाद का िकि है वक मानिाविकार सां स्कृवतक रूप से वनिार ररत होते हैं और इन अविकारों
की पररभाषा और अनु प्रयोग एक संस्कृवत से दू सरी संस्कृवत में वभन्न हो सकते हैं। इसका तकर है वक विवभन्न
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
22
संस्कृवतयों के अपने मूल्, मानदं ि और परं पराएं हैं , वजनका सम्मान वकया जाना चावहए। इस पररप्रेक्ष्य के
अनुसार, वजसे एक सं स्कृवत में "अविकार" माना जाता है िह दू सरी सं स्कृवत में लागू या िां छनीय भी नही ं हो
सकता है । सां स्कृवतक सापेक्षिादी सां स्कृवतक विवििता के संरक्षण के महत्व पर जोर दे ते हैं और गैर -पविमी
साथ सां स्कृवतक विवििता के सम्मान को संतुवलत करने की आिश्कता के बारे में महत्वपू णर प्रश्न उठाती
है । अं तरराष्ट्रीय मानिाविकार समझौतों में उक्तल्लक्तखत, सािरभौवमक रूप से लागू होने िाले कुछ प्रमुख
मानिाविकारों को कायम रखते हुए सां स्कृवतक मतभेदों का सम्मान करने िाला एक मध्य मागर खोजना
आिश्क है। यह दृवष्ट्कोण स्वीकार करता है वक सां स्कृवतक विवििता का सम्मान वकया जाना चावहए,
लेवकन कुछ ऐसे वसद्ां त हैं जो सां स्कृवतक सीमाओं से परे हैं और सभी व्यक्ति यों की गररमा और भलाई
तनष्कर्ि
मानिाविकारों के सािरभौवमक और सां स्कृवतक सापेक्ष िाद के बीच बहस में , प्राकृवतक अविकारों की
आलोचना अक्सर सािरभौवमकता के क्तखलाफ तकर से जुडी होती है। सािरभौवमकता के समथरक प्राकृवतक
अविकारों के महत्व पर जोर दे ते हैं , उनका तकर है वक िे मानिीय गररमा की रक्षा करने और सरकारों को
जिाबदे ह बनाने के वलए एक मजबूत आिार प्रदान करते हैं। दू सरी ओर, आलोचक सां स्कृवतक संदभर पर
विचार करने की िकालत करते हैं और तकर दे ते हैं वक सािरभौवमक अविकारों पर जोर दे ने से सां स्कृवतक
असंिेदनर्ीलता और थथानीय मूल्ों और रीवत-ररिाजों की उपेक्षा हो सकती है।
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
23
प्रश्न 7 - उदारवादी लोकिांत्र के तवचार एवां व्यवहार के तवकाि का आलोचनात्मक वणिन कीतजए ।
उत्तर - पररचय
उदारवाद (Liberalism) : िह विचारिारा है वजसके अंतगरत मनुष्य को वििेकर्ील प्राणी मानते हुए
सामावजक संथथाओं को मनु ष्यों की सू झबूझ और सामूवहक प्रयास का पररणाम समझा जाता है। उदारिाद
की उत्पवत को 17िी र्ताब्दी के प्रारं भ से दे खा जा सकता हैं। जॉन लॉक को उदारिाद का जनक माना
जाता है।
लोकिांत्र (Democracy) : यह एक ऐसी र्ासन प्रणाली है , वजसमें जनता अपनी इच्छा से वकसी भी दल को
लोकतंत्र का यह विर्ेष प्रवतमान वजसे हम उदार लोकिांत्र कहते हैं , अविकां र् लोगों के वदमाग तथा सोच
पर हािी हो गया है , विर्ेष रूप से , पविम में , िे विचार करते हैं वक केिल, उदार लोकतंत्र एक व्यािहाररक
अथिा अथरपूणर तथा साथर क लोकतं त्र है। कई विचारक, विर्े ष रूप से , जब उदारिादी लोकतंत्र को, रूस में
साम्यिाद के पतन के बहुत समय बाद समाजिाद या माक्सरिादी आदर्ों द्वारा चुनौती दी गई थी, एक
अमेररकी नि-दवक्षणपंथी वसद्ां तकार, फ्ाांतिि फुकुयामा (दी एां ि ऑफ दी तहिर ी 1992) ने इवतहास
अंत के बारे में तकर वदया। इवतहास के अंत से , उनका मतलब था, कोई प्रवतस्पिी विचार नही ं है , क्योंवक
केिल एक विचार है जो जीतता है तथा इसे उदार लोकतंत्र कहा जाता है।
उदार लोकतंत्र की उत्पवर्त् का पता जॉन लॉक, जीन-जैक्स रूसो और मोंिेथक्यू जैसे प्रबुद् विचारकों से
लगाया जा सकता है। लॉक की "टू टर ीटीज ऑफ गवनिमेंट" ने प्राकृवतक अविकारों और सामावजक अनुबंि
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
24
की अििारणा को स्पष्ट् वकया, वजसमें व्यक्तिगि स्विांत्रिा की सुरक्षा और सीवमत सरकार के विचार पर
जोर वदया गया। इस दोरान संरक्षक लोकतंत्र विचार को जन्म वमला।
अमेररकी िां वत (1775-1783) उदार लोकतंत्र के विकास में एक महत्वपू णर क्षण था। स्वतंत्र ता की घोषणा
और अमेररकी संवििान ने लोकवप्रय संप्रभुता, र्क्तियों के पृथक्करण और व्यक्तिगत अविकारों के वसद्ां तों
को संवहताबद् वकया, वजससे लोकतां वत्रक र्ासन के वलए एक वमसाल कायम हुई।
जबवक फ्रां सीसी िां वत का उद्दे श् भी लोकतां वत्रक वसद्ां तों की थथापना करना था, इसने कट्टरपंथी और
अक्सर अर्ां त पररणामों के साथ एक अलग मोड ले वलया। इसने सािरभौवमक मताविकार और समानता के
विचारों को पे र् वकया लेवकन लोकतंत्रीकरण की जविलताओं को उजागर करते हुए सर्त्ािादी र्ासन और
वहंसा के दौर का अनुभ ि वकया।
19िी ं सदी में पविमी लोकतंत्रों में मताविकार अविकारों का िवमक विस्तार दे खा गया। प्रारं भ में , ये अविकार
संपवर्त् के मावलक िेत पु रुषों तक ही सीवमत थे , लेवकन समय के साथ, इन्ें मवहलाओं और अल्पसंख्यकों
सवहत आबादी के एक बडे वहस्से को र्ावमल करने के वलए बढा वदया गया।
र्ुरुआती उदारिादी ‘आम जनिा की िानाशाही' (Tyranny of the masses) और 'राज्य ित्ता की
िानाशाही' (ryrantry of state power) दोनों से ही िरते थे । "जेम्स वमल, मेविसन और मॉिे थक्यू सभी ने
सािरभौवमक मताविकार का विरोि वकया। मसलन, जॉन लॉक उदारिादी लोकतं त्र के मुख्य विचारों को
अवभव्यि करने िाले पहले वचं तक थे। उन्ोंने इस बात पर जोर वदया वक िोि दे ने का अविकार संपवर्त्
रखने िाले लोगों तक ही सीवमत रहना चावहए। उन्ोंने संपवर्त् को एक 'प्राकृवतक में अविकार माना और
संपवर्त् के असमान वितरण का भी पक्ष वलया।
जॉन िु अटि तमल ऐसे पहले विचारक थे , वजन्ोंने सािरभौवमक ियस्क मताविकार (universal adult
franchise) का समथरन वकया और इस बात पर जोर वदया वक मवहलाओं को िोि दे ने का अविकार वमलना
चावहए। लेवकन उन्ोंने भी र्ैवक्षक योग्यता के आिार पर िोि दे ने के अविकार को सीवमत करने की माूँ ग
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
25
की। सािरभौवमक ियस्क मताविकार को स्वीकार करने के बाद ही उदारिादी लोकतंत्र ने अपना ितरमान
रूप हावसल वकया है।
अतभजार्त् दृतिकोण: उदार लोकतां वत्रक राज्य के भीतर वहतों के विवभन्न समूहों पर बल दे ता है जो वकसी
एक समूह को हािी होने से रोकता है। अवभजात िगीय वसद्ां त का तकर है वक र्क्ति कुछ के हाथों में केक्तित
है , जो संपवर्त्र्ाली हैं। िे दािा करते हैं वक चूूँवक र्क्ति सामान्यतः र्ीषर में केंवद्रत होती है , अतएि औसत
बहलवादी दृतिकोण: जबवक बहुलिादी आम तौर पर उदार लोकतंत्र के विचार का समथर न करते हैं , िे
इसके कायार न्वयन की आलोचना करते हैं , यह तकर दे ते हुए वक यह अक्सर अपने आदर्ों से कमतर होता
है। उनका दािा है वक व्यिहार में , र्क्तिर्ाली वहत समूह राजनीवतक प्रविया पर अनु वचत प्रभाि िाल सकते
हैं , वजसके पररणामस्वरूप ऐसी नीवतयां बनती हैं जो व्यापक जनता के बजाय इन समूहों की प्राथवमकताओं
को प्रवतवबंवबत करती हैं ।
मार्क्िवादी दृतिकोण: माक्सरिादी दृवष्ट्कोण से , उदार लोकतंत्र को पूंजीपवत िगर द्वारा अपनी र्क्ति बनाए
रखने और उत्पादन के सािनों पर वनयंत्र ण बनाए रखने के एक उपकरण के रूप में दे खा जाता है। आलोचकों
का तकर है वक पूंजीिाद में वनवहत आवथर क असमानताएं उदार लोकतां वत्रक व्यिथथा में राजनीवतक
असमानताओं में तब्दील हो जाती हैं ।
वपतृसर्त्ात्मक बुवनयादों को संबोवित करने में इसकी विफलता पर केंवद्रत हैं । उनका तकर है वक उदार
लोकतंत्र अक्सर वलंग आिाररत भेदभाि और हावर्ए पर रहने को बढािा दे ता है।
तनष्कर्ि
उदार लोकतंत्र के विकास को ऐवतहावसक, दार्रवनक और व्यािहाररक विकासों की एक श्रृंखला द्वारा वचवित
वकया गया है , जो अक्सर बाहरी घिनाओं और चु नौवतयों से प्रभावित होते हैं । उदार लोकतंत्र की अििारणा
आिुवनक दु वनया में एक गवतर्ील और विकासर्ील र्क्ति बनी हुई है , वजसमें ितरमान और भविष्य के
सामावजक मुद्दों को संबोवित करने के वलए चल रही बहस और अनु कूलन र्ावमल हैं ।
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
26
प्रश्न 8 - बहिां स्कृतिवाद िे आप क्या िमझिे हैं ? क्या आप यह मानिे हैं तक तवल तकमतलका का
बहिांस्कृतिवाद का िै द्ाांिीकरण अल्पिांख्यक अतधकारोां के मिले को हल करिा है ?
उत्तर - पररचय
पहचानता है और महत्व दे ता है। यह इस विचार पर आिाररत है वक एक समाज विवभन्न सां स्कृवतक, जातीय,
िावमरक और भाषाई पृष्ठभूवम के व्यक्तियों और समूहों से बना है। तवल तकमतलका एक प्रमुख राजनीवतक
दार्रवनक हैं जो बहुसंस्कृवतिाद और अल्पसं ख्यक अविकारों पर अपने काम के वलए जाने जाते हैं। उन्ोंने
बहुसंस्कृवतिाद के वसद्ां तीकरण में महत्वपू णर योगदान वदया है और उनके विचारों का अल्पसंख्य क
बहिांस्कृतिवाद :
विविि सां स्कृवतक, जातीय और िावमरक समूहों के सह-अक्तस्तत्व और मान्यता पर जोर दे ती है। यह इस विचार
को बढािा दे ता है वक एक समाज अपने सदस्यों को आत्मसात करने या एकरूप बनाने की कोवर्र् करने
के बजाय, इस विवििता को अपना सकता है और उसका जश्न मना सकता है। बहुसंस्कृवतिाद स्वीकार
करता है वक विवभन्न समूह अवद्वतीय दृवष्ट्कोण, परं पराएं , भाषाएं और मूल् लाते हैं , जो वकसी राष्ट्र की
सां स्कृवतक छवि को समृद् करते हैं।
यह िमावे तशिा और िमानिा को बढावा दे िा है , सभी व्यक्तियों के वलए समान अविकारों और अिसरों
की िकालत करता है , भले ही उनकी सां स्कृवतक पृष्ठभूवम कुछ भी हो। जबवक बहुसं स्कृवतिाद की सामावजक
एकजुिता, सवहष्णु ता और समझ को बढािा दे ने की क्षमता के वलए प्रर्ंसा की गई है , इसे सां स्कृवतक विखंिन
या अलगाि की संभािना के बारे में वचंताओं के साथ कुछ हलकों में आलोचना का भी सामना करना पडा
है। बहरहाल, यह आिुवनक समाजों में एक केंद्रीय अििारणा बनी हुई है , क्योंवक िे तेजी से विविि और
परस्पर जुडे हुए विि द्वारा प्रस्तुत चुनौवतयों और अिसरों से जू झ रहे हैं ।
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
27
बहिांस्कृतिवाद उदारवादी प्रजािाक्तन्त्रिक दे शोां में एक चुन ौिी माना जािा है । प्रजाताक्तन्त्रक व्यिथथा
कानून लागू हो। उनके साथ वकसी अन्य िमर , जावत या प्रजावत का होने के नाते वकसी प्रकार का भेदभाि न
वकया जाए। ऐसी मान्यता को जातीय एिं प्रजातीय संस्तरण के आिार पर विभावजत परम्परागत समाजों में
लागू करना िास्ति में एक चुनौती है। आज भी भारत में समान नागररक संवहता (Uniform civil code) को
एक बहिाां स्कृतिक िमाज में , कुछ भाषा को उनकी आविकाररक भाषा के रूप में स्वीकार करने , खुद
को एक राष्ट्र के रूप में पररभावषत करने , सदस्यता के वलए एक मानदं ि रखने और वफर यह वनिार ररत करने
का वनणरय लेना होगा वक कौन इसमें र्ावमल हो सकता है। इस तरह के वनणरयों द्वारा ही राज्य व्यिहार में
बहुसंस्कृवतिाद का पालन करते हैं।
विल वकमवलका एक िमकालीन कनािाई दाशि तनक हैं वजन्ें समकालीन समय में अल्पसंख्यक अविकारों
की सैद्ां वतक समझ में उनके योगदान के वलए जाना जाता है। राजनीवतक वसद्ां त में , उनके कायों को काफी
हद तक उदार परं परा से पहचाना जाता है और अविकारों और व्यक्ति और समाज के उदारिादी दृवष्ट्कोण
की रक्षा और विस्तार करने का एक व्यिक्तथथत प्रयास वकया गया था। िह आमतौर पर व्याख्या की जाने िाली
उदारिाद की लोकवप्रय अििारणा के क्तखलाफ तकर दे ते हैं।
उनका बहुसां स्कृवतक पविमी लोकतां वत्रक, उर्त्र साम्यिादी राज्यों और उर्त्र औपवनिेवर्क राज्यों में जातीय
और नस्लीय पदानुिम को संबोवित करने के वलए एक मॉिल के रूप में उदार बहुसंस्कृवतिाद को तैनात
उन्ोंने सिोर्त्म अभ्यास प्रकावर्त करने , न्यूनतम कानू नी, उदार मानदं ि तैयार करने और मामले के विवर्ष्ट्
समािान तैयार करने जैसे अल्पसंख्य क अविकारों के मानदं िों को अपनाकर बहुसंस्कृवतिाद से एक
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
28
1. रािरीय अल्पिां ख्यक: बहुराष्ट्रीय राज्यों में राष्ट्रीय अल्पसं ख्यक होते हैं । राष्ट्रीय अल्पसं ख्यक पू रे राष्ट्र के
स्वैक्तच्छक या अनैक्तच्छक समािे र् से उत्पन्न होते हैं। इसके वलए अल्पसंख्य कों को व्यापक स्वर्ासन अविकारों
के साथ थथायी सुवििाओं के रूप में रखा गया हैं ।
2. जािीय अल्पिांख्य क: बहुजातीय राज्यों में जातीय समूह होते हैं । जबवक जातीय अल्पसंख्य क विवभन्न
दे र्ों की व्यक्तिगत और पररवचत कल्पना से उत्पन्न होते हैं । वकमवलका जातीय समूहों के वलए स्वर्ासन
तवल तकमतलका के अनुिार बहिां स्कृतिवादी व्यवस्था में अल्पिांख्य क अतधकार की महिपूणििा
राइट् ि’ (Multicultural Citizenship a Liberal Theory of Minority Rights 1995) में अल्पसंख्यक
अविकारों की बात की हैं । राष्ट्रीय और जातीय मतभे दों के समायोजन के अपने वसद्ां त में , िह िास्ति में
समूह-विभेवदत अविकारों के तीन रूपों के वलए तकर दे ते हैं , जैसा वक आपने उल्लेख वकया है:
1. स्वशािन अतधकार: वकमवलका का सु झाि है वक कुछ राष्ट्रीय या जातीय समू हों को एक बडी
राजनीवतक इकाई के भीतर स्वर्ासन कुछ हद तक प्रदान की जानी चावहए। इसका मतलब यह है वक
उनके पास ऐसे वनणरय और नीवतयां बनाने का अविकार होना चावहए जो उनके समु दाय के सां स्कृवतक,
2. बहजािीय अतधकार: बहुजातीय अविकार उन नीवतयों और प्रथाओं को संदवभरत करते हैं जो एक समाज
के भीतर कई जातीय और सां स्कृवतक समूहों की उपक्तथथवत को पहचानते हैं और समायोवजत करते हैं।
और संरक्षण वकया जाए। इसमें वद्वभाषी वर्क्षा, सां स्कृवतक उत्सि और भेदभाि विरोिी कानून जैसे उपाय
समूहों को उन राजनीवतक वनणरयों में अपनी बात रखने की अनुमवत दे ते हैं जो उन्ें प्रभावित करते हैं।
इसमें वििावयकाओं, सलाहकार पररषदों, या राजनीवतक प्रवतवनवित्व के अन्य रूपों में आरवक्षत सीिें
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
29
र्ावमल हो सकती हैं जो अल्पसं ख्यक समूहों को उनसे संबंवित नीवतयों और कानू नों को आकार दे ने में
आिाज दे ती हैं।
तकमतलका का िकि है वक सच्ची नागररकता में केिल औपचाररक कानू नी समानता से कही ं अविक र्ावमल
है। इसमें समाज के सामावजक, राजनीवतक और सां स्कृवतक जीिन में साथर क भागीदारी भी र्ावमल है।
अल्पसंख्यक अविकारों की रक्षा से यह सुवनवित करने में मदद वमलती है वक सभी नागररक अपनी
सां स्कृवतक या जातीय पृष्ठभूवम की परिाह वकए वबना समान रूप से भाग ले सकते हैं। उनका मानना है वक
सां स्कृवतक विवििता बनाए रखने के वलए अल्पसंख्य क अविकारों की रक्षा और प्रचार करना आिश्क है ।
यह विवििता समाज को समृद् बनाती है और व्यक्तियों को अपनी पहचान और मू ल्ों को स्वतं त्र रूप से
तनष्कर्ि
वकमवलका का बहुसं स्कृवतिाद का वसद्ां त िास्ति में अल्पसंख्य क अविकारों के मु द्दे को संबोवित करता है ,
क्योंवक िह बहुसां स्कृवतक समाजों के भीतर अल्पसंख्य क और हावर्ए पर रहने िाले समूहों के अविकारों
की रक्षा पर जोर दे ता है। उनका तकर है वक सां स्कृवतक और समूह मतभेदों को पहचानना और समायोवजत
करना समाज के सभी सदस्यों की समानता और भलाई को बढािा दे ने का एक तरीका है। हालाूँ वक, यह
ध्यान रखना महत्वपूणर है वक वकमवलका के विचार भी बहस और आलोचना का विषय रहे हैं , विर्े ष रूप से
समूह अविकारों और व्यक्तिगत अविकारों के बीच संतुलन के साथ-साथ विविि समाजों में उनके वसद्ां तों
के व्यािहाररक कायार न्वयन के संबंि में।
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
30
उत्तर -
पररचय
महात्मा गां िी की "स्वराज" की अििारणा उनके दर्र न में एक मौवलक विचार है और इसने भारतीय
स्वतंत्र ता आं दोलन में केंद्रीय भूवमका वनभाई। "स्वराज" एक िां स्कृि शब्द है वजसका अनुिाद "स्वशािन"
के रूप में वकया जा सकता है। लोकतन्त्र को लेकर उनके विचार पविमी विचारकों से पृथक थे। गाूँ िी का
"स्वराज" को लेकर विचार केिल उनके लेखनों का ही पररणाम नही ं हैं। गां िी के वनिन के बाद, गाूँ िीिादी
स्वराज की अवधारणा
गाूँ िी िास्ति में भारत के ग्रामीण अंचलों में रहने िाले लोगों का "स्वराज" चाहते थे । उनका मानना था वक
भारत की आत्मा उसके गां िों में बसती है। िे सर्त्ा का प्रिाह नीचे से चाहते थे । िे भारत में िास्तविक
लोकतन्त्र चाहते थे। उन्ोंने कहा था, "वास्ततवक लोकिन्त्र केन्द्र में बैठे 20 लोगोां द्वारा नही ां चलाई जा
िकिी है। वह नीचे िे गाांव के प्रर्त्ेक व्यक्ति द्वारा चलाई जानी चातहए।
िे "ग्रामीण गणिन्त्र' की कल्पना करते थे। “पांचायिी राज ही वास्ततवक लोकिन्त्र को दर्ार ता है। सबसे
वनम्न भारतीय को राजा के बराबर माना जाय" महात्मा गाूँ िी ने पंचायती राज का समथर न वकया जहाूँ विकेक्तित
सरकार होगी।
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
31
िे चाहते थे वक राजनैवतक सर्त्ा भारत के गां िों में बां िी जाये। वे लोकिन्त्र के तलए "स्वराज" शब्द का
उपयोग उपयु ि मानिे थे। यह लोकतन्त्र स्वािीनता पर आिाररत थी । व्यक्तिगत स्वतं न्त्रता, स्वाध्यायी,
स्वर्ासी, आत्मा वनभरर समाज जहां व्यक्ति को सहभागीता का अिसर प्रदान वकया जाए, िही ं संभि है।
गाँधी के अनु िार, "ग्राम स्वराज की मेरी कल्पना ऐसे पू णर गणतन्त्र की है , जो अपनी आििताओं के वलये
अपने पडोसी पर आवश्रत न हो परन्ु परस्पर वनभररता हो जहाूँ आििता हो ।" गाूँ िी का ग्राम स्वराज मानि
केक्तित गैर-र्ोषणकारी, विकेक्तित सरल ग्रामीण अथरव्य िथथा है , जहाूँ प्रत्येक नागररक को पूणर रोजगार प्राप्त
हो । स्वैक्तच्छक सहभावगता हो तावक भोजन, कपडे तथा अन्य आिश्कताओं के वलए आत्म-वनभरर हों।
प्रत्येक गां ि लोकताक्तन्त्रक होगा जहाूँ बढी जरूरतों के वलए भी िे अपने पडोसी पर आवश्रत नही ं होंगे।"
कोई भी व्यक्ति भूखा अथिा िस्त्रहीन नही ं होगा । प्रत्ये क व्यक्ति के पास अपनी आिश्कताओं को पू णर
करने लायक काम होगे । यह तभी संभि है जब उत्पादन के सािन जनता के अविकार में हो।
गाूँ िी के “स्वराज” के विचार में “आदर्र गां ि" अथिा " ग्रामीण गणतन्त्र" मु ख्य हैं। आदर्र गां ि में अवहंसा
के साथ सामावजक और आवथर क ढां चा होगा और आिश्क िस्तुओं का उत्पादन लघु तथा कुिीर उद्योग
"विकेिीकरण आवथरक ढाूँ चे के वलए आदर्र गां ि आिश्क हैं"। गाूँ िी के आदर्र गां ि की पररकल्पना
में राजनैवतक ढाूँ चा, आवथर क ढाूँ चे के वबना संभि नही ं है।
“मेरे आदर्र गां ि में बुक्तद्मान लोग होंगे , िे जानिरों की तरह गंदगी तथा अंि कार में नही ं रहेंगे। मवहला
तथा पुरूष स्वतन्त्र होंगे तथा विि में वकसी से भी कम नही ं होंगे। हैजा, प्लेग, चे चक नही ं होगा, न ही कोई
ग्राम स्वराज का मूल मंत्र है वक प्रत्येक गां ि अपना "गणतन्त्र" हो। उन्ोंने नीचे से ऊपर जाने की बात
कही।ं स्वतन्त्रता का प्रारम्भ नीचे से होना चावहये। अतः प्रत्येक गां ि गणतन्त्र अथिा पंचायत होगा, वजसके
पास सभी अविकार होंगे।
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
32
तनष्कर्ि
गां िीजी का स्वराज दर्रन स्वतं त्रता संग्राम के दौरान भारतीय जनता को संगवठत करने में सहायक था।
अवहंसा, आत्मवनभररता और समुदाय-आिाररत कारर िाई पर उनके जोर का भारतीय स्वतंत्र ता आं दोलन पर
गहरा प्रभाि पडा। जैसा वक गां िी ने कहा था, स्वराज भारत की ऐवतहावसक और दार्रवनक विरासत का एक
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
33
पररचय
वकसी सरकार या संगठन द्वारा की गई सकारात्मक कारर िाई का अथर वर्क्षा और रोजगार जैसे क्षेत्रों में उनके
वलंग, जातीयता, यौन अवभविन्यास, िमर या राष्ट्रीयता के आिार पर विवर्ष्ट् समू हों को र्ावमल करने के वलए
वनवमरत की गई नीवतयों और प्रथाओं के संग्रह को संदवभरत करता है वजसमें उनका कम मूल्ां कन वकया जाता
है। सकारात्मक कारर िाई के वलए समथरन पारं पररक रूप से और विि स्तर पर आय और रोजगार
असमानताओं को संबोवित करने , र्ैवक्षक अिसरों का विस्तार करने , विवििता को बढािा दे ने, और कवथत
वपछली गलवतयों, नुकसान या बािाओं को दू र करने जैसे उद्दे श्ों को पूरा करने के उद्दे श् से है ।
िकारात्मक कारवाई :
पररभार्ा: सकारात्मक कारर िाई वकसी सरकार या संगठन के भीतर नीवतयों और प्रथाओं के एक सेि को
संदवभरत करती है जो वलंग , जावत, पं थ या राष्ट्रीयता के आिार पर उन क्षे त्रों में विर्े ष समू हों का प्रवतवनवित्व
बढाने की मां ग करती है वजनमें वर्क्षा और रोजगार जैसे क्षेत्रों में उनका प्रवतवनवित्व कम है ।
सकारात्मक कारर िाई नीवतयों और प्रयोग का एक समूह है वजसका उद्दे श् ऐवतहावसक रूप से वांतचि िमूहोां
के तलए अविरोां को बढाना और भेद भाव को कम करना है , विर्ेष रूप से रोजगार और वर्क्षा के क्षेत्रों
में। सकारात्मक कारर िाई का प्राथवमक लक्ष्य प्रणालीगत और ऐवतहावसक अन्याय को संबोवित करना,
विवििता को बढािा दे ना और एक अविक न्यायसंगत समाज का वनमार ण करना है।
िकारात्मक कारि वाई, तजिकी पररकल्पना गणिांत्र की स्थापना के समय की गई थी, िास्ति में हमारे
संवििान वनमार ताओं द्वारा प्रस्तुत उल्लेखनीय प्राििानों में से एक है । यह भारत जैसे एक भारी असमान और
दमनकारी सामावजक व्यिथथा िाले दे र् में न्याय के वसद्ां त को प्रवतपावदत करने हेतु ऐवतहावसक रूप से
अत्यंत महत्त्वपूणर रहा है। अनुसूवचत जावत – अनुसूवचत जनजावत और अन्य वपछडा िगर को आरक्षण
सकारात्मक कारर िाई नीवतयों का एक सबसे बडा उदहारण हैं ।
िकारात्मक कारि वाई की प्रकृति: सकारात्मक कारर िाई नीवतयों की प्रकृवत अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-
अलग होती है और कठोर कोिा से ले कर बढी हुई भागीदारी के वलए प्रोत्साहन को लवक्षत करने तक एक
स्पेक्ट्रम पर मौजूद होती है। कुछ दे र् कोिा प्रणाली का उपयोग करते हैं , वजसके तहत सरकारी नौकररयों,
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
34
राजनीवतक पदों और स्कूल की ररक्तियों का एक वनवित प्रवतर्त एक वनवित समूह के सदस्यों के वलए
आरवक्षत होना चावहए; इसका एक उदाहरण भारत में आरक्षण प्रणाली है।
ऐतिहातिक और अां िररािरीय स्तर पर, सकारात्मक कारर िाई के वलए समथरन ने रोजगार और िेतन में
असमानताओं को पािने , वर्क्षा तक पहुंच बढाने , विवििता को बढािा दे ने और स्पष्ट् अतीत की गलवतयों,
नुकसान या बािाओं का वनिारण करने जैसे लक्ष्यों को प्राप्त करने की मां ग की है।
आलोचकों का तकर है वक सकारात्मक कारर िाई से विपरीत भेदभाि हो सकता है , जहां ऐवतहावसक रूप
से सुवििा प्राप्त समूहों के व्यक्तियों को वर्क्षा और रोजगार में नु कसान का सामना करना पडता है ।
कुछ लोगों का तकर है वक सकारात्मक कारर िाई व्यक्तिगत योग्यताओं और उपलक्तब्धयों पर समूह की
कुछ लोगों का तकर है वक सकारात्मक कारर िाई हमेर्ा असमानता को दू र करने का सबसे प्रभािी तरीका
नही ं हो सकती है , क्योंवक यह भेदभाि के मूल कारणों को लवक्षत नही ं कर सकती है।
आलोचक सकारात्मक कारर िाई की वनष्पक्षता पर सिाल उठाते हैं , उनका मानना है वक यह व्यक्तियों
के साथ उनके वनयंत्र ण से परे कारकों, जैसे जावत या वलंग, के आिार पर अलग-अलग व्यिहार करता
है।
तनष्कर्ि
सकारात्मक कारर िाई एक जविल और उभरता हुआ विषय बना हुआ है , इसकी खूवबयों, सीमाओं और
में चचार और बहस चल रही है। विवर्ष्ट् नीवतयां और उनका कायार न्वयन विवभन्न संथथानों और दे र्ों के बीच
व्यापक रूप से वभन्न हो सकते हैं ।
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
35
पररचय
िैविक न्याय राजनीवतक वसद्ान्ों में एक ऐसा मुद्दा है जो इस िारणा पर आिाररत है वक ‘हम – एक न्यायपूणर
संसार में नही ं रहते। इस समय संसार में अविकतर लोग अत्यविक गरीब है जबवक अन्य अत्यविक समृद्।
कई अभी भी तानार्ाही र्ासकों के अन्गरत जी रहे हैं। अनवगनत लोग वहंसा, बीमारी तथा भुखमरी के
वर्कार है। कई अकाल मृत्यु का ग्रास बन जाते है। अत: मूल प्रश्न यह है -इस प्रकार के तर्थ्ों को हम वकस
प्रकार समझे या इन पर अपनी प्रवतविया जावहर करें । िैविक न्याय का लक्ष्य एक न्यायसंगत विि व्यिथथा
बनाना है वजसमें सभी लोगों के अविकारों और कल्ाण का सम्मान और सुरक्षा की जाती है , चाहे उनकी
िैविक न्याय एक सैद्ां वतक दृवष्ट्कोण है जो दु वनया भर में लाभ और बोझ के उवचत वितरण के मु द्दे को
संबोवित करता है और इस तरह के न्यायसंगत वितरण को सुरवक्षत करने के वलए आिश्क सं थथानों की
व्यिहायरता को दे खता है ।
जॉन रॉल्स ने अपने वकताब “द लॉ ऑफ पीपल्स (1999)” में िैविक न्याय से संबं वित कुछ मुद्दों को
संबोवित वकया है। अपने आठ वसद्ां तों में , िह मानिाविकारों के वलए सम्मान और अच्छे जीिन से िंवचत
अन्य लोगों की सहायता करने के कतरव्य की मां ग करते हैं ।
थॉमि पोगे का तकर है वक 'िैविक संथ थागत व्यिथथा' के कारण िैविक गरीबों और अमीरों के बीच बहुत
बडा अंतर है। यह िम विकवसत दे र्ो में र्क्तिर्ाली सरकारों, विकासर्ील दे र्ो में सर्त्ािादी र्ासकों
और िैविक वहतों िाले व्यापाररक अवभजात िगर के बीच सहयोग के माध्यम से कायम है। सर्त्ािादी नेता
अपने दे र् के सं सािनों को बहुराष्ट्रीय वनगमों को बे च दे ते हैं और इसका लाभ िै विक गरीबों तक नही ं पहुूँ च
पाता है। पोग्गे एक िै कक्तल्पक िैविक आवथर क व्यिथथा के वलए तकर दे ते हैं जो गरीबों के वलए भी फायदे मंद
होगी।
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
36
ये िह अििारणा हैं जो इस समस्या का समािान ढू ं ढती है वक विि में सभी व्यक्तियों के वलए उनकी राष्ट्रीयता
या क्तथथवत की परिाह वकए वबना न्यायपूणर जीिन कैसे सुरवक्षत वकया जाए। राज्य की सीमा से परे , ‘वैतिक
स्तर िक न्याय के दायरे का तवस्तार अां िररािरीय िां बांध के दायरे में इिका मिलब वै तिक िां िाधनोां,
लाभोां और तजम्मेदाररयोां का उतचि और तनष्पक्ष तविरण और िभी दे शोां को िमान दजाि दे ना है। ‘ उन
वसद्ां तों और संथथानों को प्रस्तावित करने की अििारणा को सैद्ां वतक रूप दे ने का प्रयास करते हैं वजन
पर सभी सहमत हों और न्यायसंगत िैविक व्यिथथा सुवनवित होती हैं । िैविक न्याय के दायरे में लैंवगक न्याय,
आप्रिासन और र्रणाथी, भूख और गरीबी, अल्पसंख्य क और स्वदे र्ी लोगों के अविकार, युद्,आतं किाद
अनेक ज्वलंत समस्याओं का दायरा िैविक है । िैविक समस्याओं से दु वनया भर के लोगों के सहयोग से ही
वनपिा जा सकता है । वै िीकरण ने दु तनया को एक वै तिक गाां व बना तदया है , इसवलए हमें िैविक न्याय
की आिश्कता है अन्य लोगों के प्रवत हमारी वजम्मे दारी राष्ट्र-राज्य के क्षेत्र तक सीवमत नही ं है । वनष्पक्ष और
न्यायपूणर िैविक र्ासन, लाभ और बोझ का उवचत वितरण, और िैविक स्तर पर उवचत अिसरों की उवचत
समानता थथावपत करना ही िैविक न्याय हैं ।
तविरणात्मक न्याय: यह वसद्ां त िैविक स्तर पर संसािनों, िन और अिसरों के उवचत वितरण से संबंवित
है। इसमें िैविक आवथर क और राजनीवतक प्रणावलयों के लाभ और बोझ को कैसे आिंवित वकया जाता है ,
इसके बारे में प्रश्न र्ावमल हैं।
मानवातधकार: िैविक न्याय दु वनया भर में मानिाविकारों के प्रचार और सं रक्षण से वनकिता से जुडा हुआ
है। इसमें नागररक, राजनीवतक, आवथर क, सामावजक और सां स्कृवतक अविकार र्ावमल हैं वजन्ें सभी
व्यक्तियों के वलए उनकी राष्ट्रीयता की परिाह वकए वबना बरकरार रखा जाना चावहए।
अां िराि िरीय कानू न: िैविक न्याय अक्सर दे र्ों के व्यिहार को विवनयवमत करने और यह सुवनवित करने के
वलए वक िे न्याय और वनष्पक्षता के सामान्य मानकों का पालन करते हैं , अं तरार ष्ट्रीय कानू न और सं युि राष्ट्र
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
37
तनष्पक्ष व्यापार और आतथिक िमानिा: िैविक न्याय के पक्षिर वनष्पक्ष व्यापार प्रथाओं के वलए तकर दे ते
हैं जो दे र्ों के बीच न्यायसंगत आवथरक संबंिों को सुवनवित करते हैं , साथ ही िैविक गरीबी और असमानता
को कम करने के उपाय भी बताते हैं।
पयािवरणीय न्याय: यह स्वीकार करते हुए वक जलिायु पररितर न और संसािनों की कमी जैसी पयार िरणीय
समस्याओं के िैविक पररणाम होते हैं , िैविक न्याय पयार िरणीय लागतों और लाभों के उवचत वितरण सवहत
पयार िरणीय विचारों को भी र्ावमल करता है।
तनष्कर्ि
िैविक न्याय की अििारणा चल रही दार्रवनक और राजनीवतक बहस का विषय है , क्योंवक इसमें राज्यों के
अविकारों और वजम्मेदाररयों, अं तरराष्ट्रीय सं थथानों की भू वमका और विवभन्न दे र्ों की विवििता और वहतों
का सम्मान करते हुए गंभीर िैविक चुनौवतयों का समािान कैसे वकया जाए, के बारे में जविल प्रश्न र्ावमल
हैं। यह राजनीवतक दर्रन , अं तरार ष्ट्रीय सं बंि और िै विक र्ासन जै से क्षे त्रों में एक केंद्रीय वचं ता का विषय
बना हुआ है।
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
38
पररचय
अविकार और कतरव्य नैवतकता, कानू न और राजनावतक दर्रन में दो मूलभूत अििारणाएूँ हैं वजनकी चचार
अक्सर व्यक्तिगत और सामावजक संबंिों के संदभर में की जाती है। िे परस्पर संबंवित अििारणाएूँ हैं , और
अतधकार: अविकार सामावजक जीिन की िे आिश्क र्तें हैं वजनके वबना कोई भी व्यक्ति सामान्यतः
अपने सिोर्त्म स्वरूप का एहसास नही ं कर सकता। ये व्यक्ति और उसके समाज दोनों के स्वास्थ्य के वलए
आिश्क र्तें हैं । जब लोगों को अविकार वमलते हैं और िे उनका आनंद लेते हैं तभी िे अपने व्यक्तित्व
का विकास कर सकते हैं और समाज में अपनी सिोर्त्म सेिाएं दे सकते हैं ।
लास्की: "अविकार सामावजक जीिन की िे क्तथथवतयाूँ हैं वजनके वबना कोई भी व्यक्ति सामान्य रूप से स्वयं
को सिोर्त्म रूप में प्राप्त नही ं कर सकता।" -लास्की
टी एच. ग्रीन: "अविकार एक नैवतक प्राणी के रूप में मनुष्य के व्यिसाय की पूवतर के वलए आिश्क र्क्तियाूँ
हैं।"
क़ानूनी अतधकार: कानून वकसी भी कानूनी कथन की सच्चाई में सामान्य जीिन या नैवतक विमर्र से वभन्न
होते हैं अंततः कुछ प्राविकाररयों के कृत्यों पर वनभरर करता है । ये अविकार कानून के द्वारा मान्यता प्राप्त होते
हैं । जो कुछ भी िैि या अिैि है िह इसवलए है क्योंवक इसे कानूनी अविकाररयों द्वारा ऐसा घोवषत वकया गया
था।
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
39
नैतिक अतधकार: िे अविकार हैं जो मानिीय चे तना पर आिाररत हैं । िे मानि मन की नैवतक र्क्ति द्वारा
समवथरत हैं । ये अच्छाई और न्याय की मानिीय भािना पर आिाररत हैं। ये कानून के बल द्वारा समवथरत नही ं
हैं। अच्छाई की भािना और जनमत नै वतक अविकारों के पीछे की मंजू री हैं।
दातयि : दू सरों के अविकारों को पूरा करने और उनका सम्मान करने के वलए व्यक्तियों, व्यिसायों, समाज
कानूनी दातयि िे दावयत्व हैं जो कानून के औपचाररक वििरण बन गए हैं और कानून के तहत लागू करने
योग्य हैं। उदाहरण के वलए, सभी स्वास्थ्यकवमरयों का यह कानूनी दावयत्व है वक िे उन्ें सौंपे गए मरीजों को
सुरवक्षत और सक्षम दे खभाल प्रदान करें ।
नैतिक दातयि िे दावयत्व हैं जो नैवतक वसद्ां तों पर आिाररत होते हैं , ले वकन आमतौर पर कानून के तहत
लागू करने योग्य नही ं होते हैं।
अतधकार िथा दातयि में िम्बन्ध: नागररकों के अविकार ि कतरव्य िास्ति में एक ही वसक्के के दो पहलू
परस्पररक िम्बन्ध: कोई भी समाज पारस्पररकता के वसद्ां तों पर ही वियार्ील हो सकता है। उदाहरण
के वलए - हमारे अविकारों के संदभर में समाज का यह दावयत्व है वक िह उन्ें यथोवचत सम्मान दे । इसके
साथ ही हमारा भी कतरव्य बन जाता है वक हम दू सरों के ऐसे ही अविकारों को समान मान्यता प्रदान करे ।
अपने अविकारों का समान उपभोग कर सके, इसके वलए यह आिश्क है वक हम दू सरे के प्रवत अपने
दावयत्व ि कतरव्यों को सहज स्वीकार करें ।
दातयि:एक तजम्मेद ारी: अविकारों ि कतरव्यों के तकर का यह भी वनवहताथर है वक यवद राज्य के विरुद् हमारे
कोई दािे हैं तो उसकी समृक्तद् की वदर्ा में हमारे कुछ उर्त्रदावयत्व भी हैं। इन दावयत्वों का वनिार ह हम ऐसे
कायों द्वारा करते हैं जो सामावजक दृवष्ट् से उपयोगी होते हैं। राज्य उन क्तथथवतयों का वनमार ण करता है वजनमें
हम अपने आपको सिार विक उपयुि रूप से पा सकते हैं अथार त अपने व्यक्तित्व ि क्षमता का सिोर्त्म
विकास कर सकते हैं । इसके बदले हमारा यह कतर व्य हो जाता है। वक हम इन क्तथथवतयों का सिोर्त्म लाभ
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
40
उठाएं और उनको अपना सिोत्कृष्ट् योगदान दें । समाज को हमारा सबसे अच्छा योगदान केिल यही हो
सकता है वक हम जीिन में अपने वनवदर ष्ट् थथान पर रहते हुए अपना उर्त्रदावयत्व वनभाएूँ , अपनी सामावजक
वजम्मेदाररयों को स्वीकार करें तथा समाज के अन्य सदस्यों के अविकारों को अपना पूणर सम्मान दें ।
तनष्कर्ि
अविकारों और कतरव्यों को संतुवलत करना कानूनी और नैवतक प्रणावलयों में एक केंद्रीय चुनौती है , क्योंवक
समाज व्यिथथा और सामान्य भलाई को बनाए रखते हुए व्यक्तिगत स्वतंत्र ता की रक्षा करना चाहते हैं। इन
अििारणाओं की चचार कानूनों, नैवतकता और सामावजक मानदं िों को आकार दे ने के साथ-साथ न्याय और
सामावजक वजम्मेदारी से संबंवित मुद्दों को संबोवित करने में महत्वपूणर भूवमका वनभाती है।
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
41
पररचय
"प्रवतवनवित्व" और "भागीदारी" र्ब्द अक्सर राजनीवत, सरकार और सामावजक प्रणावलयों के संदभर में
उपयोग वकए जाते हैं। लोकतंत्र और र्ासन के क्षेत्र में प्रवतवनवित्व और भागीदारी दो मूलभूत अििारणाएूँ
हैं। िे इस बात से संबंवित हैं वक व्यक्ति या समूह वकसी समाज की वनणरय लेने की प्रवियाओं में कैसे र्ावमल
होते हैं और उनके वहतों और आिाजों को कैसे व्यि वकया जाता है और उन पर विचार वकया जाता है।
प्रतितनतधि : प्रवतवनवित्व से तात्पयर एक बडे वनिार चन क्षेत्र , जैसे समुदाय, राज्य या राष्ट्र की ओर से कायर
करने के वलए व्यक्तियों या समूहों को चुनने की प्रथा से है। यह प्रविया लोकतां वत्रक प्रणावलयों में मौवलक है ,
क्योंवक यह नागररकों को वनिार वचत प्रवतवनवियों के माध्यम से अपनी आिाज सुनने और वहतों को संबोवित
करने की अनुमवत दे ती है ।
वनिार वचत अविकारी, जैसे संसद या राजवनवतक दलों के सदस्य, अपने मतदाताओं के विविि विचारों और
प्रवतवनवित्व प्रत्यक्ष हो सकता है , जहां नागररक विवर्ष्ट् मु द्दों पर मतदान करते हैं , जहां िे अपनी ओर से
प्रभािी प्रवतवनवित्व चुनािी प्रणावलयों, वजला सीमाओं और वनिार वचत अविकाररयों की अपने मतदाताओं
के प्रवत जिाबदे ही जैसे कारकों पर वनभरर करता है।
भागीदारी : भागीदारी का तात्पयर समाज की वनणरय लेने की प्रवियाओं और गवतविवियों में व्यक्तियों और
समूहों की सविय भागीदारी से है। यह कायरर्ील लोकतं त्र का एक महत्वपू णर घिक है और यह सुवनवित
करता है वक सरकार लोगों के प्रवत जिाबदे ह और उर्त्रदायी बनी रहे।
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672
42
राजनीतिक भागीदारी: इसमें मतदान, सािरजवनक बैठकों में भाग लेना, राजनीवतक संगठनों में र्ावमल
होना और सरकारी नीवतयों और वनणरयों को प्रभावित करने के वलए िकालत में र्ावमल होना जैसी
गवतविवियाूँ र्ावमल हैं।
नागररक िमाज की भागीदारी: भागीदारी मतदान से परे तक फैली हुई है और इसमें विवभन्न
िमावेतशिा: प्रभािी भागीदारी से यह सुवनवित होना चावहए वक समाज के सभी सदस्यों को, उनकी
पृष्ठभूवम की परिाह वकए वबना, राष्ट्र के राजनीवतक और नागररक जीिन में र्ावमल होने के समान अिसर
प्राप्त हों।
प्रतितनतधि और भागीदारी आपि में घतनष्ठ रूप िे जु ड़े हए हैं। वनिार वचत प्रवतवनवियों से अपेक्षा की
जाती है वक िे अपने मतदाताओं की वचंताओं को सुनकर और वनणरय लेने िाले वनकायों को अपने विचार
बताकर राजनीवतक प्रविया में उनकी भागीदारी को सुवििाजनक बनाएं गे और बढाएं गे। बदले में , प्रवतवनवियों
को जिाबदे ह बनाने और यह सुवनवित करने के वलए वक सरकार के फैसले सािरजवनक वहत के अनु रूप हों ,
तनष्कर्ि
एक अच्छी तरह से कायरर्ील लोकतंत्र में , प्रवतवनवित्व और भागीदारी एक ऐसी प्रणाली बनाने के वलए वमलकर
काम करती है जहां सरकार अपने नागररकों की जरूरतों और इच्छाओं के प्रवत उर्त्रदायी होती है , वनणरय
लेने की प्रविया में िैिता, वििास और सामूवहक स्वावमत्व की भािना को बढािा दे ती है।
All Rights Reserved © Manish Verma, for more Notes visit https://manishvermanotes.com/ +91 9599279672