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न्याय

समानता और स्वतन्त्रता की तरह न्याय भी एक आधुनिक आदर्श के रूप


में स्वीकार किया जाता है , लेकिन फिर भी न्याय पर प्राचीन काल से
विचार होता आया है। बदलते समय के अनुसार न्याय के दृष्टिकोण में भी
परिवर्तन देखने को मिलता है। जहाँ पहले न्याय से उत्पन्न सद्गुणों को एक
व्यक्ति में खोजने का प्रयास किया जाता था तो आधुनिक दृष्टिकोण में
न्याय के आदर्श को एक व्यवस्था में खोजने का प्रयास किया जाता है।
दूसरे शब्दों में जहाँ पहले एक न्यायपूर्ण व्यक्ति की बात की जाती थी, तो
वहीं अब सामाजिक न्याय के आदर्श को स्वीकार किया जाता है।
सामाजिक न्याय की संकल्पना के अन्तर्गत यदि व्यवस्था न्यायपूर्ण नहीं
होती तो सामाजिक परिवर्तन की माँग की जाती है।
न्याय के सर्वप्रथम दर्शन, ग्रीक, विचारकों प्लेटो और अरस्तू में मिलते हैं।
प्लेटो ने चार सद्गुणों को स्वीकार किया, यथा- विवेक, साहस, संयम व
न्याय। इन चारों में न्याय का सर्वाधिक महत्व है। क्योंकि न्याय शेष तीनों
सद्गुणों का संतुलन ही है और अन्तिम सद्गुण है। जबकि शेष तीनों सद्गुण
साधन है। सरल शब्दों में प्लेटो के अनुसार उस व्यक्ति को न्यायपूर्ण कहा
जायेगा जिसमें विवेक, साहस व संयम तीनों सन्तुलित अवस्था में हो।
यहाँ प्लेटो के न्याय के आदर्श की तुलना भारतीय परम्परा के पुरुषार्थों से
की जा सकती है क्योंकि जिस प्रकार भारतीय परम्परा में धर्म, अर्थ, काम
व मोक्ष के रूप में चार पुरुषार्थों को स्वीकार करते हुए मोक्ष को अन्तिम
या सहायक पुरुषार्थ माना गया है। मोक्ष को साध्य एवं शेष तीनों पुरुषार्थों

को है हीं री के जो जि के
को साधन माना गया है , वहीं दूसरी तरफ अरस्तू के अनुसार- जो जिसके
योग्य है , उसको उतना मिलना चाहिए, यही न्याय है। अरस्तू के न्याय में
दो बातें मुख्य हैं -

1. वितरणात्मक न्याय एवं

2. सुधारात्मक न्याय।

अरस्तू के न्याय में योग्यता सापेक्ष होने के कारण अरस्तू का न्याय सापेक्ष
न्याय; है। समय के सापेक्षता में जिस न्याय की धारणा बदलती है वह
न्याय, सापेक्ष न्याय है।

न्याय रॉय के परिप्रेक्ष्य में


न्याय समाज का सबसे बड़ा सद्गुण है -रॉल्स रॉल्य के अनुसार न्याय ही वह
प्रक्रिया है जो सबके मध्य साम्य स्थापित करता है। रॉल्स की समस्या
वितरण की है। रॉल्स अपने न्याय सिद्धान्त की शुरुआत उपयोगिता की
आलोचना से शुरू करता है। उपयोगितावाद अपना एक सूत्र पहले ही
सुरक्षित रखता है वह अधिकमत व्यक्तियों का अधिकतम सुख है। रॉल्स
इस तरह की कोई धारणा पहले से नहीं रखता अपितु वह शुद्ध विधि और
प्रक्रिया पर जोर देता है। रॉल्स परिणाम को दृष्टि में रखकर पहले से कोई
धारणा नहीं बनाता अपितु वह प्रक्रिया को लागू करने की बात करता है ,
परिणाम क्या होगा? सामने आयेगा। जैसे मार्क्सवादी अपना परिणाम
घोषि कि ये है कि में र्ग ही ही दी हो
घोषित किये है कि अन्त में वर्गहीन, राज्यहीन साम्यवादी समाज होगा
अर्थात् मार्क्सवाद परिणाम को ध्यान में रखकर प्रक्रिया बनाता है। रॉल्स,
मार्क्सवाद की तरह बिना परिणाम घोषित किये सिर्फ शुद्ध विधि एवं
प्रक्रिया पर जोर देता है।

राल्स का न्याय सिद्धान्त


बीसवीं सदी तक आते -आते उदारवाद पर यह आरोप सामान्य हो गया कि
उसके पास राजनीतिक जीवन हेतु कोई नैतिक आधार नहीं है और वह
मुख्यतः उपयोगितावादी मान्यताओं से जुड़ा हुआ है। कु छ लेखकों ने इस
समस्या का हल प्रस्तुत करने की, जिनमें 'जॉन राल्स' का नाम सर्वोपरि
है। रॉल्स की पुस्तक Theory of justice के समय अमेरिका में
अल्पसंख्यक वर्गों विशेषतः अश्वेत जातियों के लिए समान अधिकारों का
आन्दोलन अपने चरम पर था। पूँजीवादी व मिश्रित अर्थव्यवस्थाओं ने
वस्तुओं एवं सेवाओं को जुटाने में भारी सफलता प्राप्त की थी। 
परन्तु अभी भी आय, शक्ति व सम्पदा की दृष्टि से घोर विषमता व्याप्त
थी। ऐसी परिस्थिति में रॉल्स आर्थिक और सामाजिक स्तर पर
पुनर्विरणात्मक न्याय का समर्थन करता है। रॉल्स के अनुसार राज्य का
कार्य के वल सामाजिक व्यवस्था की सुरक्षा ही नहीं है , बल्कि सबसे
अधिक जरूरतमन्द लोगों की आवश्यकताओं को उच्चतम सामाजिक
आदर्श बनाकर मूल पदार्थों के पुनर्वितरण द्वारा न्याय उपलब्ध करवाना है।
जॉन रॉल्स अपने चिन्तन का आरम्भ उपयोगितावादी चिन्तन की
आलोचना करता है , जिसमें अधिकतम की अच्छाई के हित में कु छ
व्यक्तियों के हितों के बलिदान को औचित्यपूर्ण ठहराया जाता है अर्थात्
उपयोगितावाद सम्पूर्ण की खुशी के बजाय अधिकांश की खुशी पर जोर
दे है योगि धि के धि के को
देता है। उपयोगिता अधिकतम संख्या के अधिकतम सुख के सूत्र को
अपनाता है। परन्तु उपयोगितावाद इस बात की परवाह नहीं करता कि
उसके वितरण में किसको क्या मिला? रॉल्स की नजर में 'न्याय' मूलतः
वितरण का सिद्धान्त है।
रॉल्स के विश्लेषण का आधार काण्ट का नैतिक दर्शन है। जॉन रॉल्स,
काण्ट के चिन्तन के तीन तत्व स्वायत्तता, निरपेक्ष आदेश तथा लक्ष्यों के
साम्राज्य की अवधारणा पर जोर देता है। अपने न्याय सिद्धान्त में रॉल्स
अज्ञान के परदे की कल्पना करके वार्ताकारों की स्वायत्तता को सुनिश्चित
करता है।
निरपेक्ष आदेश से तात्पर्य है , व्यवहार के नियम जो ऐसे व्यक्तियों पर
लागू होते हैं जिनकी प्रकृ ति स्वतन्त्र तथा समाज विवेकवान प्राणी की है।
रॉल्स के वार्ताकारों का उद्देश्य के वल प्राथमिक वस्तुओं के वितरण का
सूत्र तलाशने तक सीमित है।
रॉल्स ने अपने न्याय सिद्धान्त में काण्ट, लाक एवं रूसों को मिलाने की
कोशिश की है। यद्यपि उसने उपयोगितावादी न्याय का विकल्प प्रस्तुत
किया है। परन्तु उसमें उदारवादी धारणाओं की प्रधानता है जिसका
वास्तविक वाहक उपयोगितावादी न्याय सिद्धान्त ही है। राल्स अपने
पुनर्वितरणात्मक सूत्र से उस विकृ ति को ठीक कर उसे नैतिक स्वरूप देने
की कोशिश करता है। इसीलिए यह भी कहा जाता है कि वह बेन्थम को
काण्ट से जोड़ देता है।
रॉल्स न्याय के नियमों का पता लगाने के लिए अनुबन्धमूलक सामाजिक
दर्शन का अनुकरण करता है। जिस तरह से हाब्स, लॉक, रूसो ने अपने
समझौता सिद्धान्त में प्राकृ तिक अवस्था की परिकल्पना की है , उसी तरह
रॉल्स ने मूल स्थिति ; व्तपहपदंस च्वेपजपवदद्ध की कल्पना अपने न्याय
सिद्धान्त में की है। मूल स्थिति का तात्पर्य उस अवस्था से है जिसमें मुक्त
त्री जि झौ हे मि ते
व स्वतन्त्र, स्त्री व पुरुष एक सामाजिक समझौता हेतु एक साथ मिलते
है। परम्परागत समझौतावादियों के प्राकृ तिक अवस्था के व्यक्तियों व
रॉल्स के मूलस्थिति के व्यक्तियों के प्रकृ ति में भारी अन्तर है। रॉल्स की
मूलस्थिति के व्यक्ति जंगली व असभ्य न होकर विवेकवान हैं। समझौते
में पूर्वाग्रह से तथा निष्पक्षता लाने के लिए रॉल्स ने अज्ञान के पर्दे की
कल्पना की है।
अज्ञान के पर्दे के पीछे बैठे बुद्धिमान, नैतिक वार्ताकारों को अपनी
व्यक्तिगत क्षमता के साथ-साथ अपनी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक
स्थिति का ज्ञान नहीं है। वार्ताकार अपने हितों , आवश्यकताओं ,
निपुणताओं , योग्यताओं आदि के संज्ञान से परे हैं , परन्तु उन्हें अर्थशास्त्र,
मनोविज्ञान व न्याय का बोध है। ये वार्ताकार जोखिम से डरते हैं। अगर
व्यक्ति को अपने वर्ग, स्थान, स्थिति या सामाजिक प्रतिष्ठा की जानकारी
है तो न्याय का कोई निश्चित निष्पक्ष सिद्धान्त तय कर पाना उसके लिए
सम्भव नहीं होगा। क्योंकि इन सूचनाओं की उपस्थिति में निष्पक्ष एवं
सार्वभौमिक न्याय के स्थान पर सापेक्ष एवं व्यक्तिगत हित स्थापित हो
जायेगा।
रॉल्स के अनुसार न्याय, वितरण का गुण है। इसका सम्बन्ध समाज में
वस्तुओं एवं सेवाओं के वितरण से है। रॉल्स इन वस्तुओं को मौलिक
पदार्थों ; च्तपउं तल ळववके द्ध की संज्ञा देता है। इसके अन्तर्गत दो तरह की
प्राथमिक वस्तुएँ हैं - प्रथम, सामाजिक प्राथमिक वस्तुएँ , यथा-अधिकार व
स्वतन्त्रता, शक्तियाँ व अवसर, आय व सम्पदा, आत्मसम्मान के साधन
आदि। इन्हें सामाजिक संस्थाओं द्वारा प्रत्यक्ष रूप से वितरित किया जाता
है। द्वितीय प्राकृ तिक प्राथमिक वस्तुएँ , यथा- स्वास्थ्य, बुद्धि, साहस,
काल्पनिक शक्ति क्षमता जो कि सामाजिक संस्थाओं द्वारा प्रत्यक्ष रूप
से  राजनीति विज्ञान के सिद्धांत BAPS101 वितरित नहीं किया जाता।

से वि हो है जै से क्ति द्धि पै
परन्तु इनसे प्रभावित अवश्य होता है। जैसे - व्यक्ति स्वास्थ्य, बुद्धि पैदा
होता है , परन्तु सामाजिक संस्थाएँ अस्पताल खोलकर स्वास्थ्य और
विद्यालय खोलकर बुद्धि का विकास सुनिश्चित कर सकती है। रॉल्स के
वार्ताकार सिर्फ प्राथमिक सामाजिक वस्तुओं के विवरण का सूत्र अथवा
सिद्धान्त समझौते के माध्यम से तय करते हैं।

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