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जॉन रॉल्स का सामाजिक न्याय का सिद्धान्त

(Social Justice Theory of John Rawls)

प्रस्तुतकर्ता :-
डॉ प्रबोध कु मार गर्ग
असिस्टेंट प्रोफे सर
विधि विभाग
शिया पी जी कॉलेज लखनऊ
मानव चिन्तनशील प्राणी होने के नाते राजनीतिक समाज के प्रादुर्भाव से ही अपने
लिए न्याय की मांग करता आया है। न्याय की समस्या मुख्यता यह निर्णय करने
की समस्या है कि समाज के विभिन्न वर्गों व्यक्तियों और समूहों के बीच विभिन्न
वस्तुओं, सेवाओं, अवसरो, लाभों आदि को आबंटित करने का नैतिक व न्यायसंगत
आधार क्या हो। इसी कारण अनेक विचारकों ने स्वतन्त्रता तथा समानता के विरोधी
दावों को हल करने के लिए अपने न्याय सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। उन्हीं
विचारकों में से एक जॉन रॉल्स हैं।
जॉन रॉल्स ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘A Theory of Justice’ में अपना न्याय का सिद्धान्त
प्रस्तुत करते हुए उपयोगितवादियों के विचारों का खण्डन किया है । जॉन रॉल्स ने अपने
न्याय सिद्धान्त की शुरूआत में ही न्याय के बारे में यह तर्क दिया है कि अच्छे समाज में
अनेक सद्गुण अपेक्षित होते हैं और उनमें न्याय का भी महत्वपूर्ण सथान है। न्याय उत्तम
समाज की आवश्यक शर्त हैं, परन्तुयह उसके लिए पर्याप्त नहीं है, क्योंकि किसी समाज में
न्याय के अतिरिक्त भी दूसरे नैतिक गुणों की प्रधानता हो सकती है। परन्तु जो समाज
अन्यायपूर्ण है उसकी कभी प्रशंसा नहीं की जानी चाहिए। न्याय के बिना समाज की उन्नति
और उत्तम समाज की स्थापना दोनों ही असम्भव है।
जॉन रॉल्स के न्याय-सिद्धान्त की व्याख्या(Explanation of Theory of Justice
of John Rawls)-
जॉन रॉल्स ने अपने न्याय सम्बन्धी विचार सर्वप्रथम 1950 में से बनाने शुरू
किए। उसने 1957 में ‘न्याय उचितता के रूप में’ नामक लेख में अपने न्याय
सम्बन्धी विचार प्रस्तुत किए। 1963 तथा 1968 में उसने अपने विचारों को फिर
से आगे प्रस्तुत किया और वितरणात्मक न्याय (Distributive Justice) की
अवधारणा प्रस्तुत की।
जॉन रॉल्स का वितरणात्मक न्याय समझौतावादी सिद्धान्त पर आधारित है। जॉन रॉल्स
ने सामाजिक सहयोग में न्याय की भूमिका को स्पष्ट करते हुए न्याय का सरलीकरण
किया है । जॉन रॉल्स ने न्याय को उचितता के रूप में परिभाषित करके न्याय के
सिद्धान्त की परम्परागत समझौतावादी अवधारणा को उच्च स्तर पर अमूर्त रूप प्रदान
किया है। उसने अपने न्याय सिद्धान्त की तुलना उपयोगितावादी न्याय के सिद्धान्त से
करके वितरणात्मक या सामाजिक न्याय सिद्धान्त की श्रेष्ठता स्थापित करने का प्रयास
किया है। जॉन रॉल्स के सामाजिक न्याय सिद्धान्त का अध्ययन इन शीर्षकों के
अन्तर्गत किया जा सकता है-
न्याय की समस्या(Problem Of Justice) –
जॉन रॉल्स अपने न्याय सिद्धान्त की शुरूआत इस समस्या से करता है कि न्याय
क्या है? इस समस्या का समाधान जॉन रॉल्स इस बात में तलाश करता है कि न्याय
की समस्या प्राथमिक वस्तुओं और सेवाओं के न्यायपूर्ण व उचित वितरण की
समस्या है। ये प्राथमिक वस्तुएं-अधिकार और स्वतन्त्रताएं, शक्तियां व अवसर, आय
और सम्पत्ति तथा आत्मसम्मान के साधन हैं। जॉन रॉल्स ने इन्हें शुद्ध प्रक्रियात्मक
न्याय(Procedural Justice) का नाम दिया है। जॉन रॉल्स का कहना है कि जब तक
वस्तुओं और सेवाओं आदि प्राथमिक वस्तुओं का न्यायपूर्ण वितरण नहीं होगा तब
तक सामाजिक न्याय की कल्पना करना निरर्थक है।
उपयोगितावाद की आलोचना(Criticism of Utilitarianism) –

जॉन रॉल्स का कहना है कि उपयोगितावाद का सिद्धान्त अधिकतम लोगों के अधिकतम


सुख (Greatest Happiness of the Greatest Number) के अनुसार प्राथमिक वस्तुओं के
न्यायपूर्ण वितरण में बाधा डालता है। वह अधिकतम लोगों को अधिकतम सुख पहुंचाने
के चक्कर में यह देखना भूल जाता है कि इससे व्यक्ति विशेष को कितनी हानि हो रही
है। जॉन रॉल्स ने उपयोगितावाद के विचार की कड़ी आलोचना करते हुए कहा है-’’सुखी
लोगों के सुख को कितना ही क्यों न बढ़ा दिया, उससे दु:खी लोगों के दु:ख का हिसाब
बराबर नहीं किया जा सकता।’’
जॉन रॉल्स ने उपयोगिता की ओर अधिक आलोचना इसलिए की है कि
उपयोगितावाद का सिद्धान्त सामाजिक न्याय के विरूद्ध इसलिए भी जाता है,
क्योंकि इसमें अल्पसंख्यकों के दावे को बहुमत द्वारा कु चल दिया जाता है।
उपयोगितावादी सिद्धान्त न्याय के सामान्य सिद्धान्त के विरूद्ध भी जाता है,
क्योंकि यह समाज में प्रत्येक सदस्य की भूमिका को अस्वीकार करता है। जॉन
रॉल्स ने कहा है कि हम बहुसंख्ययक की अधिकतम सन्तुष्टि को प्राप्त करने के
चक्कर में किसी अन्य की स्वतन्त्रता का हनन नहीं कर सकते।
समझौतावाद का सिद्धान्त –

जॉन रॉल्स ने अपने न्याय सिद्धान्त समझौतावादी विचारों पर आधारित किया है। इसी
कारण उसके इस न्याय सिद्धान्त का समझौतावादी न्याय सिद्धान्त भी कहा जाता है।
जॉन रॉल्स का कहना है कि मेरा सामाजिक अनुबन्ध किसी विशेष प्रकार के समाज से
सम्बन्धित नहीं है। मेरा मुख्य विचार तो समाज की मुख्य संरचना की स्थापना के
लिए आवश्यक न्याय सिद्धान्तों का निर्माण करना है। ये ऐसे सिद्धान्त हैं जिन्हें
स्वतन्त्र विवेकी व्यक्ति अपने हितों का संवर्धन करने के लिए प्रारम्भिक अवस्था में
स्वीकार करते हैं। ये सिद्धान्त बाद वाले सभी समझौतों का नियमन करके सामाजिक
सहयोग के नियम बनाते हैं और न्यायप्रिय सरकारों की स्थापना करते हैं।’
जॉन रॉल्स का कहना है कि पराम्परागत उपयोगितावादी सिद्धान्त का सर्वोत्तम
विकल्प सामाजिक समझौता का सिद्धान्त ही है। यह समझौता मुक्त तथा स्वतन्त्र
व्यक्तियों के बीच सहमति पर आधारित होता है। यह सहमति ‘समानता की मूल
स्थिति’ में ही सम्भव है। प्रत्येक व्यक्ति समाज में अपने स्थान, अपनी वर्ग स्थिति
तथा सामाजिक प्रतिष्ठा को नहीं जानता है।यह अनभिज्ञता का आवरण प्रत्येक व्यक्ति
को उस विशिष्ट सामाजिक वर्ग के अवसरों तथा स्थितियों से लाभान्वित या
अलाभान्वित होने से रोकता है।’ यह स्थिति ही न्याय के निष्पक्ष सिद्धान्तों के निर्माण
में सहायक हो सकती है।
न्याय उचितता के रूप में –

जॉन रॉल्स ने अपने समझौतावादी विचारों में मूल स्थिति (Original Position) की कल्पना
करके न्याय के सिद्धान्तों को बनाने की उचित प्रक्रिया की व्यवस्था की है। सामाजिक
समझौते से न्याय के सिद्धान्तों के विचार को ऐसे प्रतिपादित किया जा सकता है कि वे
विवेकी व्यक्तियों द्वारा चुने गए हैं और इसतरह से न्याय की अवधारणा की व्याख्या की
जा सकती है। इस तरह जॉन रॉल्स का सिद्धान्त चुनाव के सिद्धान्त के रूप में ‘न्याय
उचितता का सिद्धान्त’ है।
जॉन रॉल्स का मानना है कि न्याय के सिद्धान्तों का चयन मूल:स्थिति के
विवेकी एवं एक-दूसरे के प्रति अनासक्त व्यक्तियों द्वारा किया जाता है और
इससे उन्हीं सिद्धान्तों का चयन होता है जिनमें व्यक्तियों का मूल अधिकार और
कर्त्तव्य दिए जाते हैं एवं सामाजिक लाभों का बंटवारा हो सकता है।
मूल स्थिति का औचित्य –

अपने अनुबन्धवादी विचारों में जॉन रॉल्स ने मूल स्थिति की कल्पना करते हुए,
इस अवस्था के लोगों की विवेकशील तथा ईष्र्या से हीन प्राणी माना है। इसी
कारण न्याय उचितता के रूप में के वल मूल स्थिति में ही सम्भव है। जॉन रॉल्स
का मानना है कि मूल स्थिति में ही वे मान्यताएं और मापदण्ड निहित हैं जो
न्याय के उचित सिद्धान्त का निर्माण कर सकते हैं।
न्याय के मूल सिद्धान्त( Principle of fundamental Justice) –

जॉन रॉल्स ने लिखा है कि मूल स्थिति के वातावरण में प्रत्येक व्यक्ति अपने को
हीनतम स्थिति से बचाने के लिए अधिकतम लाभ की व्यवस्था की मांग करेगा। इससे
सामाजिक न्याय के सिद्धान्त की स्थापना में दो नियमों से होगी।
 प्रत्येक व्यक्ति को सर्वाधिक मूल स्वतन्त्रता का समान अधिकार हो और यही अधिकर
दूसरों को भी हो।
 सामाजिक तथ आर्थिक असमानताओं को इस रूप में व्यवस्थित करना चाहिए कि (क)
न्यूनतम सुविधा प्राप्त व्यक्तियों को सर्वाधिक लाभ मिले (ख) ये विषमताएं इस तरह
से व्यवस्थित हों कि अवसर को उचित समानता के अन्तर्गत सभी के लिए पद और
स्थितियां खुली हों।
जॉन रॉल्स का कहना है कि प्रथम नियम स्थान स्वतन्त्रता के सिद्धान्त की
तरफ जाता है और दूसरा नियम दो सिद्धान्तों को अंगीकार कर लेता है,
जिसमें से एक प्रत्येक के लिए लाभ और दूसरा सबके लिए खुले लाभ या
अवसर की उचित समानता है।
समान स्वतन्त्रता का सिद्धान्त ( Principle of equal Freedom )–
न्याय का प्रथम सिद्धान्त नागरिकों की मूल स्वतन्त्रताओं को मत देने की स्वतन्त्रता,
सार्वजनिक पद ग्रहण की योग्यता, भाषण देने की स्वतन्त्रता, सम्पत्ति रखने की स्वतन्त्रता,
कानून के समक्ष समानता आदि से सम्बन्ध रख्ता है। जॉन रॉल्स का कहना है कि सभी
स्वतन्त्रताएं प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से मिलनी चाहिए। न्याय के सिद्धान्तों की
व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि प्रथम सिद्धान्त को ही सबसे ऊपर रखा जाना चाहिए। इसके
लिए संविधान-निर्मात्री संस्थाओं को या व्यवस्थापिका को इस तरह से स्वतन्त्रताओं की
व्यवस्था करनी चाहिए कि प्रथम सिद्धान्त को ही महत्व मिले।
न्याय का दूसरा सिद्धान्त(Second theory Of Justice) –
इस सिद्धान्त का सम्बन्ध अवसर को उचित समानता व आय को पुनर्वितरण से
है। जॉन रॉल्स ने इस सिद्धान्त में भेदमूलक सिद्धान्त तथा अवसर की उचित
समानता का सिद्धान्त, दो सिद्धान्त जोड़े हैं। जॉन रॉल्स का कहना है कि सम्पत्ति
तथा आय का बंटवारा समान हो, यह आवश्यक नहीं है, लेकिन यह असमान
वितरण ऐसा होना चाहिए कि कम सुविधा प्राप्त व्यक्तियों को भी अधिक-से-
अधिक लाभ प्राप्त हो।
इसी तरह अवसर की समानता के बारे में जॉन रॉल्स ने कहा है कि पद और सत्ता
सभी व्यक्तियों के लिए खुली हो ताकि आम आदमी की भी उस तक पहुंच
सुनिश्चित हो सके । जॉन रॉल्स का कहना है कि उनको, जिनकी योग्यता तथा
क्षमात का स्तर समान है तथा जो पद प्राप्ति की समान इच्छा रखते हैं, उन्हें यह
देखे बिना कि किस जाति या आर्थिक वर्ग में पैदा हुए हैं, सफलता के समान अवसर
प्राप्त होने चाहिए। इस तरह रॉल्स वितरण की समस्या को उठाकर अपने न्याय
सिद्धान्त को वितरणात्मक न्याय बना देता है ।
प्रक्रियात्मक न्याय(Procedural justice) –
जॉन रॉल्स का ‘‘वितरणात्मक न्याय’’ (Distributive Justice) का सम्बन्ध प्रक्रियात्मक
न्याय से है। इसका अर्थ यह है कि एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था का निर्माण किया जाए
जो सामाजिक नीतियों के द्वारा न्याय प्रदान करे। इस प्रक्रियात्मक न्याय के लिए प्रक्रिया
की उचितता की स्थापना हो। इसके लिए न के वल संस्थाओं की न्यायिक व्यवस्था की
स्थापना आवश्यक है बल्कि उन्हें लागू करने के लिए निष्पक्ष रूप से प्रशासित भी होना
चाहिए। न्यायिक मूल संरचना ही न्यायिक प्रक्रिया का आधार होती है और यह सरंचना
एक न्यायपूर्ण राजनीतिक संविधान तथा आर्थिक एवं सामाजिक संस्थाओं की न्यायपूर्ण
व्यवस्था से ही निर्मित होती है। इस प्रक्रियात्मक न्याय को प्राप्त किए बिना वितरणात्मक
न्याय की बात करना बेईमानी है।
न्याय के सिद्धान्त की आवश्यक शर्तें(Essential condition of principle of
justice) –
जॉन रॉल्स का कहना है कि न्याय के सिद्धान्त हेतु कु छ आवश्यक परिस्थितियों
की आवश्यकता पड़ती है। इन पृष्ठभूमियों के बिना न्याय के किसी भी सिद्धान्त
की कल्पना करना बेकार है। जॉन रॉल्स के अनुसार ये दशाएं हैं-
 न्यायसंगत संविधान,
 राजनीतिक प्रक्रिया का उचित रूप से संचालन,
 अवसर की समानता,
 न्यूनतम सामाजिक आवश्यकताओं की गारन्टी।
इस प्रकार जॉन रॉल्स ने न्याय सिद्धान्त में कु छ महत्वपूर्ण समस्याओं पर विचार
किया है, जिनमें से प्राथमिक वस्तुओं, सेवाओं और लाभों की समस्या प्रमुख है।
जॉन रॉल्स का न्याय शुद्ध प्रक्रियात्मक व वितरणात्मक स्वरूप रखता है। अत:
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि जॉन रॉल्स का न्याय सिद्धान्त ‘सामाजिक
न्याय’ का महत्वपूर्ण सिद्धान्त है और जॉन रॉल्स व उसकी पुस्तक ‘A Theory of
Justice’ बीसवीं सदी के साथ-साथ आधुनिक युग में भी महत्व रखते हैं।
जॉन रॉल्स के न्याय-सिद्धान्त की व्याख्या(Explanation of theory of Justice of
John Rawls) -
उपरोक्त विवेचन के बाद जॉन रॉल्स के न्याय-सिद्धान्त के अन्तर्निहित परिणाम
निकलते हैं-
 न्याय का अर्थ है न्यायसंगत।
 न्याय की समस्या का संबंध प्राथमिक वस्तुओं और सेवाओं के न्यायपूर्ण वितरण
से है।
 उपयोगितावाद सामाजिक न्याय का विरोधी है।
 जॉन रॉल्स का न्याय समझौतावादी है।
 न्याय की स्थापना मूल स्थिति में ही संभव है, क्योंकि यह अज्ञान के पर्दे को
समेटे हुए है।
 न्याय के लिए उचित प्रक्रिया का होना आवश्यक है।
 न्याय का ध्येय कमजोर वर्ग को उन लाभों से परिपूर्ण करना है, जो उसे
अब तक नहीं मिले हैं।
 समान स्वतन्त्रता व अवससर की समानता न्याय सिद्धान्त के मेरुदण्ड हैं।
इनके बिना न्याय की कल्पना करना बेकार है।
 प्रक्रियात्मक नय ही वितरणात्मक न्याय व सामाजिक न्याय का आधार है।
 न्याय की प्राप्ति के लिए संस्थाओं का न्यायसंगत होना जरूरी है।
 न्यायसंगत संविधान ही न्याय की प्राप्ति का साधन है।
Source/credit: -
Books:-
 The Interpretation of Statutes by Prof. T. Bhattacharya
 Principles Of Statutory Interpretation by G.P. Singh
 Interpretation of Statutes by D.N. Mathur
 Lectures on Interpretation of Statutes by Dr. Rega Surya
Rao
 Introduction to The Interpretation Of Statutes by Dr. Avatar
Singh
 Interpretation of Statues by Dr. S. R. Myneni
 Interpretation of Statues by Dr. Radha Gupta
Websites: -
 www.legalbites.in
 http://persmin.gov.in
 www.docsity.com
 www.academia.edu
 www.ajol.info
 https://guides.libraries.uc.edu
 http://studymaterial.unipune.ac.in
 https://blog.ipleaders.in
 https://www.lawethiopia.com
 https://www.lexisnexis.com
 https://www.lawfinderlive.com
 https://biotech.law.lsu.edu
 www.Legalserviceindia.com
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