You are on page 1of 21

Session :- 2022-2023

Dr. sangeeta mukharjee Shrikant mishra


Political science (HOD)& MA 4sem
All professor Roll no 20122596.
En. Roll 151001A0584

CERTIFICATE
This is to certify that the project report entitled *Public Administration*is a
partial fulfillment of the requirement for the award of the degree in MA with
specialization The matter embodied is the actual work and this work has not
submitted earlier ( in part or full) for the award of any other degree.

1|Page
Candidate name - Shrikant mishra

Enrollment:- 151001A0584

DECLARATON BY THE CANDIDATE


Date - …/…./……

I declare that the project report on *Public Administration*is my own


work conducted dr. sangeeta mukharjee Affiliated to MCBU chhatarpur

2|Page
mp to the best of my knowledge the report does not contain only work
which has been submitted for my degree anywhere.

Candidate name
Shrikant mishra
Enrollment
151001A0584
Candidate Signature

3|Page
 प्रशासन
 इतिहास
 लोक प्रशासन का अर्थ एवं परिभाषाएँ
 ू तत्त्व
लोक प्रशासन के सिद्धांत और मल
 लोक प्रशासन: एक व्यावहारिक शास्त्र
 प्रशासन और लोक-प्रशासन में अन्तर
 लोक प्रशासन की प्रकृति और कार्यक्षेतर्
 लोक प्रशासन में मल्ू य
 प्रशासनिक नीतिशास्त्र
 विभिन्न देशों में लोककर्मियों का प्रतिशत
 एकीकृत विचार
 प्रबन्धकीय विचार
 लोक प्रशासन का कार्यक्षेतर् (Scope)
 लोक-प्रशासन : कला अथवा विज्ञान

लोक प्रशासन
 (अंगर् ेज़ी: Public administration) मोटे तौर पर शासकीय नीति (government policy) के
विभिन्न पहलुओ ं का विकास, उन पर अमल एवं उनका अध्ययन है। प्रशासन का वह भाग जो
सामान्य जनता के लाभ के लिये होता है, लोकप्रशासन कहलाता है। लोकप्रशासन का संबध ं
सामान्य नीतियों अथवा सार्वजनिक नीतियों से होता है। [1]

एक अनुशासन के रूप में इसका अर्थ वह जनसेवा है जिसे 'सरकार' कहे जाने वाले व्यक्तियों का एक
संगठन करता है। इसका प्रमुख उद्देश्य और अस्तित्व का आधार 'सेवा' है। इस प्रकार की सेवा

4|Page
उठाने के लिए सरकार को जन का वित्तीय बोझ करों और महसूलों के रूप में राजस्व वसूल कर
संसाधन जुटाने पड़ते हैं। जिनकी कु छ आय है उनसे कु छ लेकर सेवाओं के माध्यम से उसका
समतापूर्ण वितरण करना इसका उद्देश्य है।
किसी भी देश में लोक प्रशासन के उद्देश्य वहां की संस्थाओं, प्रक्रियाओं, कार्मिक-राजनीतिक
व्यवस्था की संरचनाओं तथा उस देश के संविधान में व्यक्त शासन के सिद्धातों पर निर्भर होते हैं।
प्रतिनिधित्व, उत्तरदायित्व, औचित्य और समता की दृष्टि से शासन का स्वरूप महत्त्व रखता है,
लेकिन सरकार एक अच्छे प्रशासन के माध्यम से इन्हें साकार करने का प्रयास करती है।

प्रशासन[
मानव एक सामाजिक प्राणी है। वह सदैव समाज में रहता है। प्रत्येक समाज को बनाये रखने के
लिए कोई न कोई राजनीतिक व्यवस्था अवश्य होती है इसलिये यह माना जा सकता है कि उसके लिये
समाज तथा राजनीतिक व्यवस्था अनादि काल से अनिवार्य रही है। अरस्तू ने कहा है कि “यदि कोई
मनुष्य ऐसा है, जो समाज में न रह सकता हो, या जिसे समाज की आवश्यकता नही ं है, क्योंकि वह
अपने आप में पूर्ण है, तो वह अवश्य ही एक जंगली जानवर या देवता होगा।” प्रत्येक समाज में
व्यवस्था बनाये रखने के लिये कोई न कोई निकाय या संस्था होती है , चाहे उसे नगर-राज्य कहें
अथवा राष्ट् र-राज्य। राज्य, सरकार और प्रशासन के माध्यम से कार्य करता है। राज्य के उद्देश्य
और नीतियाँ कितनी भी प्रभावशाली, आकर्षक और उपयोगी क्यों नहों, उनसे उस समय तक कोई
लाभ नही ं हो सकता, जब तक कि उनको प्रशासन के द्वारा कार्य रूप में परिणीत नही ं किया जाये।
इसलिये प्रशासन के संगठन, व्यवहार और प्रक्रियाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है।
चार्ल्सबियर्ड ने कहा है कि “ कोई भी विषय इतना अधिक महत्त्वपूर्ण नही ं है जितना कि प्रशासन है।
राज्य एवं सरकार का, यहाँ तक कि, स्वयं सभ्यता का भविष्य, सभ्य समाज के कार्यों का निष्पादन
करने में सक्षम प्रशासन के विज्ञान, दर्शन और कला के विकास करने की हमारी योग्यता पर निर्भर
है।” डॉनहम ने विश्वासपूर्व क बताया कि “यदि हमारी सभ्यता असफल होगी तो यह मुख्यतः प्रशासन
की असफलता के कारण होगा। यदि किसी सैनिक अधिकारी की गलती से अणुबम छू ट जाये तो
ततृ ीय विश्व युद्ध शुरू हो जायेगा और कु छ ही क्षणों में विकसित सभ्यताओं के नष्ट होनेकी सम्भावनाएँ
उत्पन्न हो जायेंगी।”
ज्यों-ज्यों राज्य के स्वरूप और गतिविधियों का विस्तार होता गया है, त्यों-त्यों प्रशासन का महत्त्व
बढ़ता गया है। यह कहना अतिशयोक्ति नही ं है कि हम प्रशासन की गोद में पैदा होते हैं , पलते है, बड़े
होते हैं, मित्रता करते, एवं टकराते हैं और मर जाते हैं। आज की बढ़ती हुई जटिलताओं का सामना
करने में, व्यक्ति एवं समुदाय, अपनी सीमित क्षमताओं और साधनों के कारण, स्वयं को असमर्थपाते
हैं। चाहे अकाल, बाढ़, युद्धया मलेरिया की रोकथाम करनेकी समस्या हो अथवा अज्ञान, शोषण,
असमानता या भ्रष्टाचार को मिटानेका प्रश्न हो, प्रशासन की सहायता के बिना अधिक कु छ नही ं
किया जा सकता। स्थिति यह है कि प्रशासन के अभाव में हमारा अपना जीवन, मत्ृ यु के समान
भयावह और टू टे तारे के समान असहाय लगता है। हम उसे अपने वर्तमान का ही सहारा नही ं समझते,
वरन् एक नई सभ्यता, संस्कृति, व्यवस्था और विश्व के निर्माण का आधार मानतेहैं। हमें अपना भविष्य
प्रशासन के हाथों में सौंप देने में अधिक संकोच नही ं होता।

5|Page
प्रशासन की आवश्यकता सभी निजी और सार्वजनिक संगठनों को होती है। डिमॉक एवं कोइंग ने
कहा है कि “ वही (प्रशासन) यह निर्धारण करता है कि हम किस तरह का सामान्य जीवन बितायेंगे
और हम अपनी कार्यकु शलताओं के साथ कितनी स्वाधीनताओं का उपभोग करने में समर्थ होंगे।”
प्रशासन स्वप्न और उनकी पूर्ति के बीच की दुनिया है। उसे हमारी व्यवस्था, स्वास्थ्य और
जीवनशक्ति की कु न्जी माना जा सकता है। जहाँ स्मिथबर्ग, साइमन एवं थॉमसन उसे “सहयोगपूर्ण
समूहव्यवहार” का पर्याय मानते हैं, वहाँ मोर्स्टीन मार्क्स के लिये वह “प्रत्येक का कार्य” है। वस्तुतः
प्रशासन सभी नियोजित कार्यों में विद्यमान होता है, चाहे वे निजी हों अथवा सार्वजनिक। उसे प्रत्येक
जनसमुदाय की सामान्य इच्छाओं की पूर्ति में निरत व्यवस्था माना जा सकता है।
प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था को प्रशासन की आवश्यकता होती है , चाहे वह लोकतंतर् ात्मक हो
अथवा समाजवादी या तानाशाही। एक दृष्टि से, प्रशासन की आवश्यकता लोकतंतर् से भी अधिक
समाजवादी व्यवस्थाओं को रहती है। समाजवादी व्यवस्थाओं के सभी कार्यप्रशासकों द्वारा ही सम्पन्न
किये जाते हैं। लोकतंतर् ात्मक व्यवस्थाओं में व्यक्ति निजी तौर पर तथा सूचना समुदाय भी
सार्वजनिक जीवन में अपना योगदान देते हैं। यद्यपि यह कहा जा सकता है कि प्रशासन का कार्य
समाजवाद की अपेक्षा लोकतंतर् में अधिक कठिन होता है।
समाजवाद में प्रशासन पूरी तरह से एक राजनीतिक दल द्वारा नियन्त्रित और निर्देशित समान लक्ष्यों
को पूरा करने के लिये समूहों द्वारा सहयोगपूर्ण ढंग से की गयी क्रियाएँ ही प्रशासन है।  गुलिक ने
सुपरिभाषित उद्देश्यों की पूर्ति को उपलब्ध कराने को प्रशासन कहा है। स्मिथबर्ग, साइमन आदि
ने समान लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये सहयोग करने वाले समूहों की गतिविधि को प्रशासन माना
है। फिफनर व प्रैस्थस के मतानुसार, प्रशासन “वांछित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये मानवीय तथा
भौतिक साधनों का संगठन एवं संचालन है।” एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटे निका ने उसे “कार्यो के प्रबन्ध
अथवा उनको पूरा करनेकी क्रिया” बताया है। नीग्रो के अनुसार, “प्रशासन लक्ष्य की प्राप्ति के
लिये मनुष्य तथा सामग्री का उपयोग एवं संगठन है।” व्हाइट के विचारों में, वह “किसी विशिष्ट उद्देश्य
अथवा लक्ष्य की प्राप्ति के लिये बहुत से व्यक्तियों का निर्देशन, नियन्त्रण तथा समन्वयन की कला
है।”
उपर्युक्तपरिभाषाओं की दृष्टि से, प्रशासन के सामान्य लक्षण अग्रलिखित रूप से बताये जा सकते हैं
-

 1. मनुष्य तथा भौतिक साधनों का समन्वयन,


 2. सामान्य लक्ष्यों अथवा नीति का पूर्व निर्धारण,
 3. संगठन एवंमानवीय सहयोग,
 4. मानवीय गतिविधियों का निर्देशन औरनियंतर् ण,
 5. लक्ष्यों की प्राप्ति।

इन सभी लक्षणों को टीड की परिभाषा में देखा जा सकता है कि “प्रशासन वांछित परिणाम की प्राप्ति
के लिये मानव प्रयासों के एकीकरण की समावेशी प्रक्रिया है।”
इन सभी परिभाषाओं में प्रशासन की बड़ी व्यापक व्याख्याएँ की गयी हैं। जब हम केवल सार्वजनिक
नीतियों अथवा लोकनीतियों के क्रियान्वयन से संबधि ं त प्रशासन की बात करते हैं तो इसे
6|Page
“सार्वजनिक प्रशासन” या ‘लोकप्रशासन’ कहा गया है। यही ं लोकप्रशासन सामान्य “प्रशासन” से
पथृ क् एवं विशिष्ट हो जाता है। लोकप्रशासन के सिद्धान्त एवं कार्यप्रणालियाँ अन्य क्षेतर् ों में उपलब्ध
प्रशासनों को अधिकाधिक मात्रा में प्रभावित करती जा रही हैं।

लोक प्रशासन का अर्थ एवं परिभाषाएँ


व्हाइट के शब्दों में, लोक प्रशासन में “वे गतिविधियाँ आती हैं जिनका प्रयोजन सार्वजनिक नीति को
पूरा करना अथवा क्रियान्वित करना होता है।”
वुडरो विल्सन के अनुसार, “लोकप्रशासन विधि अथवा कानून को विस्तत ृ एवं क्रमबद्ध रूप में
क्रियान्वित करने का काम है। कानून को क्रियान्वित करने की प्रत्येक क्रिया प्रशासकीय क्रिया
है।”
डिमॉक ने बताया है कि “ प्रशासन का संबध ं सरकार के “क्या” और “कैसे” से है। “क्या” से
अभिप्राय विषय में निहित ज्ञान से है, अर्थात् वह विशिष्ट ज्ञान, जो किसी भी प्रशासकीय क्षेतर् में
प्रशासक को अपना कार्य करनेकी क्षमता प्रदान करता हो। “कैसे” से अभिप्राय प्रबन्ध करनेकी
उस कला एवं सिद्धान्तों से है, जिसके अनुसार, सामूहिक योजनाओं को सफलता की ओर ले जाया
जाता है।”
हार्वे वाकर ने कहा कि “कानून को क्रियात्मक रूप प्रदान करने के लिये सरकार जो कार्य करती है ,
वही प्रशासन है।”
विलोबी के मतानुसार, “प्रशासन का कार्यवास्तव में सरकार के व्यवस्थापिका अंग द्वारा घोषित और
न्यायपालिका द्वारा निर्मित कानून को प्रशासित करने से सम्बद्ध है।”
पर्सीमेक्वीन ने बताया कि “ लोकप्रशासन सरकार के कार्यों से संबधि
ं त होता है, चाहे वे केन्द्र द्वारा
सम्पादित हों अथवा स्थानीय निकाय द्वारा।"
व्यापक गतिविधि (Generic activity) के रूप में वाल्डो ने इसे “बोद्धिकता की उच्च मात्रा युक्त
सहयोगपूर्ण मानवीय-क्रिया” कहा है।
सिद्धान्त एवं विश्लेषण की दृष्टि से लोकप्रशासन एवं निजी प्रशासन, सामान्य प्रशासन के ही दो
विशिष्ट रूप हैं किन्तु इन दोनों रूपों में मौलिक समानताएँ पायी जाती हैं। वर्तमान समय में , इनके मध्य
चली आ रही असमानताएँ क्रमशः कम होती जा रही हैं। इसी प्रकार, प्रबन्धन भी प्रशासन से
भिन्न न होकर उसी का संचालन एवं निर्देशात्मक भाग है।

लोक प्रशासन के सिद्धांत और मूल तत्त्व

7|Page
लोक प्रशासन का विषय बहुत व्यापक और विविधतापूर्ण है। इसका सिद्धांत अंतः अनुशासनात्मक
(इन्टर-डिसिप्लिनरी) है क्योंकि यह अपने दायरे में अर्थशास्त्र, राजनीति
विज्ञान, प्रबंधशास्त्र और समाजशास्त्र जैसे अनेक सामाजिक विज्ञानों को समेटता है।
लोक प्रशासन या सुशासन के केन्द्रीय तत्त्व पूरी दुनिया में समान ही हैं - दक्षता, मितव्ययिता और
समता उसके मूलाधार हैं। शासन के स्वरूपों, आर्थिक विकास के स्तर, राजनीतिक और सामाजिक-
सांस्कृतिक कारकों, अतीत के प्रभावों तथा भविष्य संबध ं ी लक्ष्यों या स्वप्नों के आधार पर विभिन्न
देशों की व्यवस्थाओं में अंतर अपरिहार्य हैं। लोकतंतर् में लोक प्रशासन का उद्देश्य ऐसे उचित साधनों
द्वारा, जो पारदर्शी तथा सुस्पष्ट हों, अधिकतम जनता का अधिकतम कल्याण है।

लोक प्रशासन: एक व्यावहारिक शास्त्र


अमेरिकी विद्वान वुडरो विल्सन के अनुसार, एक संविधान बनाने की अपेक्षा उसे चलाना अधिक कठिन
है। चूकिं संविधान के क्रियान्वयन में प्रशासन की भूमिका होती है इसलिए प्रशासन को एक
व्यावहारिक अनुशासन माना जाता है, जिसके गंभीर अध्ययन की आवश्यकता है। विल्सन का मुख्य
संदेश था कि, लोक प्रशासन को राजनीति से पथ ृ क किया जाना चाहिए। हालांकि राजनीति
प्रशासन के कार्य निर्धारित कर सकती है, फिर भी प्रशानिक अनुशासन को अपने कार्य से विचलित
नही ं किया जाना चाहिए।[2] लोक प्रशासन चाहे कला हो या विज्ञान हो, यह एक व्यावहारिक शास्त्र
है, जो सर्वव्यापी बन चुके राजनीति और राजकीय कार्यकलापों से गहराई से जुड़ा हुआ है। व्यवहार में
भी लोक प्रशासन एक सर्व-समावेशी (आल-इनक्लूसिव) शास्त्र बन चुका है, क्योंकि यह जन्म से
लेकर मत्ृ यु तक (पेंशन, क्षतिपूर्ति, अनुगर् ह राशि आदि के रूप में) व्यक्ति के जीवन को प्रभावित
करता है। वास्तव में यह व्यक्ति को उसके जन्म के पहले से भी प्रभावित कर सकता है, जैसे भ्रूण
परीक्षण पर प्रतिबंध या महिलाओं और बच्चों के लिए स्वास्थ्य सेवाओं के प्रावधान जैसी नीतियों के
द्वारा।

प्रशासन और लोक-प्रशासन में अन्तर


 'लोक प्रशासन' के अर्थ को भली-भांति समझने के लिए ‘प्रशासन’ और ‘लोक प्रशासन’ में
विभेद समझना आवश्यक हैः

 प्रशासन  लोक प्रशासन

 लोक प्रशासन का परिप्रेक्ष्य संकुचित है,


 प्रशासन एक सामान्य शब्दावली है
क्योंकि यह सार्वजनिक नीतियों से ही
जिसका परिप्रेक्ष्य व्यापक है।
सम्बन्धित है।

8|Page
 लोक प्रशासन दोहरे स्वरूप वाला है। यह
 प्रशासन का सम्बन्ध कार्यों को सम्पन्न
अध्ययन, अध्यापन एवं अनुसध ं ान का
कराने से है जिससे कि निर्धारित लक्ष्य
शैक्षणिक विषय होने के साथ-साथ
पूरे हो सकें।
क्रियाशील विज्ञान भी है।

 आमतौर से प्रशासन एक क्रिया  लोक प्रशासन का सम्बन्ध सार्वजनिक


(activity) भी है और प्रक्रिया नीति के निर्माण, क्रियान्वयन से है। यह
(process) भी है। नीति विज्ञान और प्रक्रिया होती है।

 प्रशासन एक सार्वलौकिक क्रिया है  लोक प्रशासन का सम्बन्ध विशिष्ट रूप से


जिसे समस्त प्रकार के समूह प्रयत्नों सरकारी क्रियाकलापों से है। इसके
में देखा जा सकता है, चाहे वह समूह अन्तर्गत वे सभी प्रशासन आ सकते हैं
परिवार, राज्य या अन्य सामाजिक संघ जिनका जनता पर पर्याप्त प्रभाव पड़ता
हो। है।

 प्रशासन उन समस्त सामूहिक


 लोक प्रशासन सरकार के कार्य का वह
क्रियाओं का नाम है जो सामान्य लक्ष्य
भाग है जिसके द्वारा सरकार के उद्देश्यों एवं
की प्राप्ति के लिए सहयोगात्मक रूप में
लक्ष्यों की प्राप्ति होती है।
प्रस्तुत की जाती है।

 लोक प्रशासन ऐसे उद्देश्यों का


 प्रशासन एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा क्रियान्वयन है, जिन्हें जनता द्वारा
विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए सहयोगी निर्वाचित प्रतिनिधियों ने निर्धारित किया
ढंग से किया जाने वाला कार्य है। है। इन उद्देश्यों की प्राप्ति लोक सेवाओं
द्वारा सहयोगी ढंग से की जाती है।

 प्रशासन के अन्तर्गत लोक प्रशासन  लोक प्रशासन का सम्बन्ध ‘सार्वजनिक’


और निजी प्रशासन दोनों समाविष्ट हैं। (जनता से सम्बन्धित) प्रशासन से है।

9|Page
लोक प्रशासन की प्रकृति और कार्यक्षे तर्
मुख्य लेख: लोक प्रशासन की प्रकृति
लोकप्रशासन की प्रकृति को लेकर विद्वानों में तीव्र मतभेद है कि लोक प्रशासन को विज्ञान की
श्रेणी में रखा जाये अथवा कला की श्रेणी में। इसी मतभेद के आधार पर विद्वानों को चार श्रेणियों में
विभक्त किया जा सकता है:
(1) लोक प्रशासन को विज्ञान मानने वाले विचारक।
(2) लोक प्रशासन को विज्ञान न मानने वाले विचारक।
(3) लोक प्रशासन को कला मानने वाले विचारक।
(4) लोक प्रशासन को कला व विज्ञान दोनों की श्रेणी में रखने वाले विचारक।

लोक प्रशासन में मूल्य


वर्तमान समय में लोक प्रशासन की भूमिका अत्यधिक व्यापक एवं जटिल हो गई है। नीति निर्माण की
प्रक्रिया और विभिन्न समस्याओं को सुलझाने में प्रशासक स्थाई रूप से भाग लेने लगे हैं। अतः यह
आवश्यक है कि सभी प्रशासक निर्णय प्रक्रिया से बेहतर ढंग से परिचित हों। साथ ही उन्हें यह भी
पता होना चाहिए कि समस्या समाधान में मूल्यों एवं तथ्यों की भूमिका क्या हो सकती है। लोक सेवाएं
वैध सत्ता पर आधारित हैं जिन्हें कार्यों के संपादन हेत ु समुचित अधिकार, आवश्यक सुरक्षा तथा पर्याप्त
सुविधा प्रदान की गई है। अतः इन सेवाओं में कार्यरत लोकसेवकों के उत्तरदायित्व भी सुनिश्चित
होने चाहिए।[3]
लोक सेवकों को उनके कार्यों एवं व्यावसायिक संहिता सम्बन्धी दिशानिर्देशन लोकसेवा मूल्यों के
ु त ढांचे द्वारा दिया जाना चाहिए।
संतलि
लोकतान्त्रिक मूल्य -

 लोक सेवकों द्वारा मंत्रियों को निष्पक्ष एवं ईमानदारीपूर्व क परामर्श देना।


 लोक सेवकों द्वारा मंत्रिमंडलीय निर्णय का ईमानदारीपूर्व क लागु करवाना।
 लोक सेवकों द्वारा वैयक्तिक एवं सामूहिक दोनों प्रकार के मंत्रिमंडलीय उत्तरदायित्वों का
समर्थन करना।

व्यावसायिक मूल्य -

 लोक सेवकों द्वारा अपने कार्यों का निष्पादन कानून के दायरे में ही करना।
 राजनीति से तटस्थ बने रहें।
 सार्वजनिक धन का सही, प्रभावी व दक्षतापूर्ण प्रयोग सुनिश्चित करें।

10 | P a g e
 सरकार में पारदर्शिता के मूल्यों का समावेश करें तथा उचित प्रयास करें।

नैतिक मूल्य -

 लोक सेवकों को अपने सभी कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए।


 लोक सेवक अपने सभी कर्तव्यों तथा उत्तरदायित्वों को निष्ठापूर्वक निभाएं।
 लोक सेवकों द्वारा लिया जाने वाला प्रत्येक निर्णय सार्वजनिक हित में हो।

सार्वजनिक मूल्य -

 लोक सेवा में नियुक्ति सम्बन्धी निर्णय योग्यता के आधार पर लिए जाने चाहिए।
 लोक सेवा संगठनों में सहभागिता, पारदर्शिता एवं संचार व्याप्त होना चाहिए।

प्रशासनिक नीतिशास्त्र
सामान्यतः नीतिशास्त्र का तात्पर्य उन नैतिक मूल्यों से है जो लोगों के व्यवहार को निर्देशित एवं
संस्कृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जब इन नैतिक मूल्यों की प्रशासन के सन्दर्भ में
परिचर्चा की जाती है तो यह "प्रशासनिक नीतिशास्त्र" कहलाता है। आधुनिक लोकसेवाएं एक पेशे
का रूप धारण कर चुकी हैं, अतः प्रशासनिक नीतिशास्त्र की मांग उठने लगी है। जर्मनी वह प्रथम
देश है जहाँ लोक सेवाओं का पेशेवर रूप विकसित हुआ और लोकसेवकों के लिए पेशेवर आचार
संहिता विकसित हुई। वही ं अमेरिकन लोक प्रशासन में नैतिकता के प्रारम्भ को वहां प्रचलित "लूट
पद्धति" (Spoil System ) के सन्दर्भ में जोड़ा जा सकता है, जब इस पद्धति से तंग आकर एक
अमेरिकन युवक ने वर्ष 1881 में तत्कालीन अमेरिकन राष्ट् रपति गारफील्ड की हत्या कर दी थी।
जिस प्रकार लोक प्रशासन की परिभाषा में कई दृष्टिकोण दिखाई देते हैं, उसी प्रकार इसकी
प्रकृति के विषय में भी दो तरह के दृष्टिकोण हैं। प्रथम, व्यापक दृष्टिकोण जिसे 'पूर्ण विचार' अथवा
'एकीकृत विचार' कहा जाता है और दूसरा संकुचित दृष्टिकोण जिसे 'प्रबन्धकीय विचार' कहा
जाता है।

एकीकृत विचार
इस विचार के समर्थकों के मतानुसार, लोक प्रशासन लोकनीति को लागू करने और उस की पूर्ति के
लिए प्रयोग की गई गतिविधियों का योग है। इस प्रकार निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति हेत ु सम्पादित की
जाने वाली क्रियाओं का योग ही प्रशासन है, चाहे वे क्रियाएं, प्रबन्धकीय अथवा तकनीकी ही क्यों
न हो। विस्ततृ रूप से सरकार की सभी गतिविधियाँ चाहे वे कार्यपालिका हो तथा चाहे विधायक
अथवा न्यायिक, लोक प्रशासन में शामिल हैं।
एल.डी. ह्नाइट, विलसन, डीमाक और फिफनर आदि लेखकों ने इस विचार का समर्थन किया है।
एल.डी. ह्नाइट ने स्पष्ट शब्दों में कहा है, ”लोक प्रशासन का सम्बन्ध उन सभी कार्यों से है जिन का
प्रयोजन सार्वजनिक नीति को पूरा करना या उसे क्रियान्वित करना होता है।“ इस परिभाषा में
शासन सम्बन्धी सभी क्षेतर् ों की विशेष क्रियाएं आ जाती है, जैसे पत्र-वितरण, सार्वजनिक भूमि का
विक्रय, किसी सन्धि की वार्ता, घायल कर्मचारी को क्षतिपूर्ति देना, संक्रामक रोग से बीमार बच्चे को
11 | P a g e
अन्य व्यक्तियों के सम्पर्क में आने से रोकना, सार्वजनिक पार्क में से कूड़ा-करकट
हटाना, प्लूटोनियम का निर्माण तथा अणु शक्ति के प्रयोग का अनुपालन।“
इस दृष्टिकोण को अपनाते हुए फिफनर (Pfiffner) ने कहा है, ”लोक प्रशासन का अर्थ है सरकार
का काम करना चाहे वह कार्य स्वास्थ्य प्रयोगशाला में एक्सरे मशीन का संचालन हो
अथवा टकसाल में सिक्के बनाना हो। लोक प्रशासन से तात्पर्य है लोगों के प्रयासों में समन्वय
स्थापित करके कार्य को सम्पन्न करना ताकि वे मिलकर कार्य कर सकें अथवा अपने निश्चित कार्यों
को पूरा कर सके।“

प्रबन्धकीय विचार
इस विचार के समर्थक केवल उन्ही ं लोगों के कार्यों को प्रशासन मानते हैं जो किसी उद्यम सम्बन्धी
कार्यों को पूरा करते हैं। प्रबन्धकीय कार्य का लक्ष्य उद्यम की सभी क्रियाओं का एकीकरण,
नियन्त्रण तथा समन्वय करना होता है जिससे सभी क्रियाकलाप एक समन्वित प्रयत्न (Co-
ordinated Effort) जैसे दिखाई देते हैं।
साइमन, स्मिथबर्ग तथा थॉमसन इस दृष्टिकोण के समर्थक हैं। उनके मतानुसार, ”प्रशासन शब्द
अपने संकुचित अर्थों में आचरण के उन आदर्शों को प्रकट करने के लिए प्रयोग किया जाता है जो
अनेक प्रकार के सहयोगी समूहों में समान रूप से पाए जाते हैं और न तो उस लक्ष्य विशेष पर ही
आधारित होते हैं जिसकी प्राप्ति के लिए वे सहयोग कर रहे हैं और न उन विशेष तकनीकी रीतियों पर
ही अवलम्बित हैं जो उन लक्ष्यों के हेत ु प्रयोग की जाती हैं।“ इस विचार का पक्ष लेते हुए लूथर गुलिक
ने भी लिखा है, ”प्रशासन का सम्बन्ध कार्य पूरा किये जाने और निर्धारित उद्देश्यों की परिपूर्ति से है।“
दूसरे शब्दों में इस विचार के समर्थक लोक प्रशासन को केवल कार्यपालिका शाखा की गतिविधियों
तक ही सीमित कर देते हैं।
इन दोनों विचारों में कई पहलुओ ं से भिन्नता पाई जाती है। एकीकृत विचार में प्रशासन से सम्बन्धित
सभी व्यक्तियों के कार्य शामिल हैं, जबकि प्रबन्धकीय विचार प्रशासन को केवल कु छ एक ऊपर के
व्यक्तियों के कार्यों तक ही सीमित करता है। दूसरे शब्दों में एकीकृत दृष्टिकोण में प्रबन्धकीय,
तकनीकी तथा गैर-तकनीकी सब प्रकार की गतिविधियां शामिल हैं जब कि प्रबन्धकीय दृष्टिकोण
अपने आप को एक संगठन के प्रबन्धकीय कार्यों तक ही सीमित रखता है। एकीकृत दृष्टिकोण के
अनुसार लोक प्रशासन सरकार की तीनों शाखाओं-कार्यपालिका, विधानपालिका तथा न्यायपालिका
से सम्बन्धित है। परन्तु प्रबन्धकीय दृष्टिकोण के अनुसार लोक प्रशासन का संबध ं केवल
कार्यपालिका कार्यों से है। इन दोनों विचारों में से किसी की भी पूर्णतः उपेक्षा नही ं की जा सकती।
प्रशासन का ठीक अर्थ तो उस प्रसंग पर निर्भर करता है जिस संदर्भ में शब्द का प्रयोग किया जाता
है।
डिमॉक तथा कोईनिंग (Koening) ने सभी पक्षों को ध्यान में रखते हुए लोक प्रशासन की प्रकृति
का सारांश निकालने का प्रयत्न किया है। उनके अनुसार,
अध्ययन के विषय के रूप में प्रशासन उन सरकारी प्रयत्नों के प्रत्येक पहलू की परीक्षा
करता है जो कानून तथा लोकनीति को क्रियान्वित करने हेत ु किए जाते हैं।
एक प्रक्रिया के रूप में इसमें वे सभी प्रयत्न आ जाते हैं जो किसी संस्थान में अधिकार-
क्षेतर् प्राप्त करने से लेकर अन्तिम ईटं रखते तक उठाए जाते हैं (और कार्यक्रमों का निर्माण

12 | P a g e
करने वाले अभिकरण का प्रमुख भाग भी इसमें सम्मिलित होता है) तथा व्यवसाय के रूप में
प्रशासन किसी भी सार्वजनिक संस्थान के क्रिया-कलापों का संगठन तथा संचालन करता
है।

लोक प्रशासन का कार्यक्षे तर् (Scope)


लोक प्रशासन के क्षेतर् संबध
ं ी विचार को दो भागों में बांटा जा सकता है-

 (१) एक वर्ग के विचारक लोक प्रशासन की व्याख्या इतने व्यापक अर्थ में करते हैं कि लोक
प्रशासन की सीमा के अन्दर सरकार के सभी विभाग तथा कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और
न्यायपालिका के क्षेतर् आ जाते हैं। इस परिभाषा को स्वीकार करने पर प्रशासन के क्षेतर् में
वे सभी कार्य शामिल होंगे जो सरकार की सम्पूर्ण सार्वजनिक नीतियों को निर्धारित करने तथा
उन नीतियों को कार्यान्वित करने के लिए किए जाते हैं परन्तु इस परिभाषा में लोक प्रशासन
की अपनी 'विशिष्टता' नही ं रह जाएगी।

 (२) लोक प्रशासन के संबध ं में दूसरा विशिष्ट विचार ही अधिक ग्राह्य है। इनके अन्तर्गत
लोक प्रशासन का अध्ययन कार्यपालिका के उस पक्ष से संबधि ं त है जो व्यवस्थापिका के द्वारा
निश्चित की गई नीतियों का व्यवहार में लाने का उत्तरदायित्व ग्रहण करता है। इसलिए लोक
प्रशासन कार्यपालिका से ही संबधि ं त है और उसी के नेतत्ृ व में काम करता है। एफ मार्क्स के
अनुसार लोक प्रशासन के अन्तर्गत वे समस्त विषय आते हैं जिनका संबध ं सार्वजनिक नीति
से है, स्थायी परम्पराओं के अनुसार, लोक प्रशासन के कार्य असैनिक संगठन, कर्मचारियों
एवं प्रक्रियाओं से लगाये जाते हैं , जो प्रशासन को प्रभावशाली बनाने के लिए कार्यपालिका
को दिए जाते हैं।

विलोबी के अनुसार, लोक प्रशासन के क्षेतर् का संबध


ं इन बातों से है-

 (१) सामान्य प्रशासन,


 (२) संगठन,
 (३) कर्मचारी वर्ग,
 (४) सामग्री, तथा
 (५) वित्त

उपर्युक्त विचारों के प्रकाश में लोक प्रशासन के क्षेतर् को हम निम्न रूप में वर्णित कर सकते हैं-

 (१) इसका संबंध सरकार के ‘क्यों’ और ‘कैसे’ से है : लोक प्रशासन का संबध ं सरकार
के ‘क्या’ से है जिनका अर्थ उन समस्त लक्ष्यों की उपस्थिति है जिनको हम सामग्री कहते हैं
और जिनको पूर्ण करने के लिए वह प्रयत्नशील रहती है। ‘कैसे’ का संबध ं उन साधनों से है
जिनका प्रयोग सरकार उन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए करती है। वित्त, कर्मचारियों की

13 | P a g e
नियुक्ति, निर्देशन, नेतत्ृ व इत्यादि इसके उदाहरण हैं। इसके अन्तर्गत प्रशासन के दोनों पहलू
आ जाते हैं- सिद्धान्त तथा व्यवहार।

 (२) कार्यपालिका की क्रियाशीलता का अध्ययन - लोक प्रशासन, प्रशासन का वह अंग


है जो कार्यपालिका के क्रियाशील तत्वों का अध्ययन करता है। लोक प्रशासन का संबध ं
कार्यपालिका की उन समस्त असैनिक क्रियाओं से है जिनके द्वारा वह राज्य के निश्चित
लक्ष्यों को प्राप्त करने की चेष्टा करता है। लोक प्रशासन का यह संकीर्ण रूप है।
प्रशासन का वास्तविक उत्तरदायित्व कार्यपालिका के ऊपर है, चाहे वह राष्ट् रीय, राजकीय
अथवा स्थानीय स्तर की क्यों न हो।

 (३) लोक प्रशासन का संबंध संगठन की समस्याओं से है  - लोक प्रशासन में हम


प्रशासनिक संगठन का अध्ययन करते हैं। सरकार के विभागीय संगठन का अध्ययन इसके
अन्तर्गत किया जाता है। लोक प्रशासन के क्षेतर् में नागरिक सेवाओं (असैनिक) के विभिन्न
सूतर् ों, उसके संगठनों तथा क्षेतर् ीय संगठनों का व्यापक अध्ययन करते हैं।

 (४) पदाधिकारियों की समस्याओं का अध्ययन - लोक प्रशासन के क्षेतर् में पदाधिकारियों


की भर्ती, प्रशिक्षण, सेवाओं की दशा, अनुशासन तथा कर्मचारी संघ आदि समस्याओं का
व्यापक रूप से गहन अध्ययन किया जाता है।

 (५) इसका संबंध सामान्य प्रशासन से है  - लक्ष्य निर्धारण, व्यवस्थापिकाएवं प्रशासन


संबध ं ी नीतियां, सामान्य कार्यों का निर्देशन, स्थान एवं नियंतर् ण आदि लोक प्रशासन के
क्षेतर् में सम्मिलित हैं।

 (६) सामग्री प्रदाय संबंधी समस्यायें - लोक प्रशासन के अन्तर्गत क्रय, स्टोर करना,
ृ अध्ययन किया
वस्तु प्राप्त करने के साधन तथा कार्य करने के यंतर् आदि का भी विस्तत
जाता है।

 (७) वित्त संबंधी समस्याओं का अध्ययन - लोक प्रशासन में बजट वित्तीय आवश्यकताओं
की व्यवस्था तथा करारोपण आदि का अध्ययन किया जाता है।

 (८) प्रशासकीय उत्तरदायित्व - लोक प्रशासन की परिधि में हम सरकार के विभिन्न


उत्तरदायित्व का विवेचन करते हैं। न्यायालयों के प्रति उत्तरदायित्व, जनता तथा विधान-
मंडल आदि के प्रति प्रशासन के उत्तरदायित्व का अध्ययन किया जाता है।

 (९) मानव-तत्व का अध्ययन - लोक प्रशासन एक मानव शास्त्र है। मानवीय तत्त्व के
अभाव में वह अपूर्ण है। अमेरिकी लेखक साइमन तथा मार्क्स ने लोक प्रशासन के अध्ययन
में मानवीय तत्त्व के अध्ययन को विशेष महत्त्व दिया है। व्यक्ति ही समस्त प्रशासकीय
व्यवस्था का संचालक, स्रोत, आधार तथा मार्गनिर्देशक होता है। मानव-मनोविज्ञान के
अध्ययन के बिना लोक प्रशासन की विविध समस्याओं को नही ं समझाया जा सकता।
प्रशासन पर परम्पराओं, सभ्यता, संस्कृति एवं बाह्य वातावरण का प्रभाव पड़ता है। लोक

14 | P a g e
प्रशासन की विविध समस्याओं को हमें मानवीय व्यवहार की पष्ृ ठभूमि में देखना चाहिए। लोक
प्रशासन एक सामूहिक मानवीय क्रिया है।

सामूहिक संबधं ों का आधार क्या है तथा व्यक्ति उन आवश्यकताओं की पूर्ति किस प्रकार कर
पाता है, यह विचारणीय विषय लोक प्रशासन का है। प्रशासकीय निर्णयों पर किन-किन तत्वों
का व्यापक रूप से प्रभाव होता है, इसका अध्ययन हम लोक प्रशासन में करते हैं।
लोक प्रशासन के अध्ययन-क्षेतर् के बारे में विचारकों में बड़ा भेद है। मूलतः मतभेद इन प्रश्नों
को लेकर है कि क्या लोक प्रशासन शासकीय कामकाज का केवल प्रबन्धकीय अंश है अथवा
सरकार के समस्त अंगों का समग्र अध्ययन? क्या लोक प्रशासन सरकारी नीतियों का
क्रियान्वयन है अथवा यह नीति-निर्धारण में भी प्रभावी भूमिका अदा करता है।

लोक-प्रशासन : कला अथवा विज्ञान


लोक प्रशासन कला है या विज्ञान - इस विषय पर विद्वानों में मतभेद है।
लोकप्रशासन को विज्ञान मानने वालो विचारकों में लूथर, गुलिक, उर्विक, वुडरो विल्सन
आदि प्रमुख है। ं इनके अनुसार लोकप्रशासन का अध्ययन क्रमबद्ध तरीके से किया जाता
है जिसमे परिकल्पना, तथ्यों का संगर् ह, तथ्यों की पुष्टि, तथ्यों का वर्गीकरण, तुलनात्मक
अध्ययन, विश्लेषण आदि वैज्ञानिक तरीको का उपयोग कर एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचा
जाता है। इस प्रकार लोक प्रशासन में इन वैज्ञानिक पद्धतियों का उपयोग करके ही
सामान्य नियम स्थापित किया जाता है। विज्ञान की भाँति ही लोक प्रशासन में कुछ
सर्वमान्य सिद्धान्त भी है जैसे- आदेश की एकता, नियंतर् ण क्षेतर् , टे लर का वैज्ञानिक
प्रबन्ध का सिद्धान्त आदि। लोक प्रशासन में विद्धमान दोषो को दूर करने व प्रशासनिक
तकनीक के विकास हेत ु विज्ञान की तरह ही लोकप्रशासन में भी नवीन प्रयोग किये जाते
है। इसी के साथ लोक प्रशासन में तकनीकी ज्ञान की भी प्रधानता है। एक वैज्ञानिक
की भाँति एक कुशल प्रशासक को भी तकनीकी ज्ञान से युक्त होना आवश्यक है ताकि
वह अपने दायित्वों का कुशलतापूर्व क निर्वाह कर सके। इन अर्थो में लोकप्रशासन को
विज्ञान माना जा सकता है।
दूसरी और प्रो व्हाइट, डॉ एम् पी शर्मा, आर्ट वे टिड जैसे विचारक लोकप्रशासन को कला
की श्रेणी में रखते है।
ं उनके अनुसार लोकप्रशासन का विकास भी कला की भांति धीरे -
धीरे क्रमिक रूप से हुआ है। इस दृष्टि से लोक प्रशासन भी एक कला है जिसमे विभिन्न
युगों का व्यवस्थित अध्ययन करते हुए सामान्य नियम स्थापित किये गए है। एक कलाकार
के समान ही प्रशासक भी अनुभव एंव अभ्यास के आधार पर ही सफल और सिद्ध हो सकता
है। जिस प्रकार कला की सफलता कुछ निश्चित नियमो पर आधारित होती है उसी
प्रकार लोकप्रशासन में भी नियमो के आभाव में प्रशासको के स्वेच्छाचारिता एंव प्रशासन
के स्वरूप विकृत होने की सम्भावना बनी रहती है। विकासशील होने के कारण जिस
प्रकार कला के सिद्धान्तों में परिवर्तन होता रहता है ठीक उसी प्रकार लोकप्रशासन में भी
विकास की प्रक्रिया निरतंर चलती रहती है और नए नियम बनते रहते है। कला के
उपर्युक्त सभी लक्षणों की उपस्थिति के कारण लोकप्रशासन को एक कला के रूप में
स्वीकार किया जाता है।

15 | P a g e
लोक प्रशासन के शीर्ष सिद्धांत

1. राजनीतिक निर्देशन का सिद्धांत (Political Direction Theory)

2. लोक उत्तरदायित्व का सिद्धांत (Theory of Public Accountability)

3. सामाजिक आवश्यकता का सिद्धांत (Theory of Social Necessity)

4. कार्यकुशलता का सिद्धांत (Theory of Efficiency) and a Few Others.

प्रो. वार्नर ने अधिक स्पष्टता और विस्तार के साथ लोक प्रशासन के आठ आधारभूत


सिद्धांतों का निरूपण किया है जिनकी प्रो. ह्वाइट ने विस्तार से निम्नांकित रूप में
व्याख्या की है ।

1. राजनीतिक निर्देशन का सिद्धांत (Political Direction Theory):


लोक प्रशासन को एक ऐसे अभिकरण के रूप में कार्यशील रहना चाहिए जो राजनीतिक
कार्यपालिका के नियंत्रण में कार्य करता हो और उसके प्रति उत्तरदायी रहता हो ।
राजनीतिक कार्यपालिका के नियंत्रण नीतियों का अनप
ु ालन करना लोक प्रशासकों का
कर्तव्य है ।

प्रशासकीय संगठन सामान्यत: दस


ू रों की इच्छानस
ु ार कार्य करता है । उसके पास स्वयं का
कोई उपक्रम नह होता और यदि होता भी है तो केवल उन विषयों के बारे में जो ऐसे
उच्चतर कार्यपालिका द्वारा सौंपी जाए ।

प्रशासन यद्यपि स्थायी कार्यपालिका है तथापि उसे अस्थायी राजनीतिक कार्यपालिका के


संरक्षण में कार्य करना होता है और इसका यह स्वाभाविक निष्कर्ष है कि प्रशासकीय

16 | P a g e
कर्मचारियों को राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय भाग लेने से बचना चाहिए । भारत में
प्रशासकीय कर्मचारियों को राजनीति में सक्रिय भाग लेने का निषेध है ।

2. लोक उत्तरदायित्व का सिद्धांत (Theory of Public Accountability):


लोक प्रशासन का अन्तिम उद्देश्य जनता की हित साधना है । अत: वह अन्तिम रूप में
जनता के प्रति उत्तरदायी होता है । राजनीतिक कार्यपालिका द्वारा लोक प्रशासन का
उत्तरदायित्व जनता के प्रतिस्थापित होता है ।

लोक प्रशासकों को स्वयं को जनता का स्वामी नह सेवक मानना चाहिए । उनका यह


कर्तव्य है कि वे जनता की कठिनाइयों को दरू करें और जनता की समस्याओं का समाधान
करने को सदै व तैयार रहें । यही कारण है कि प्रशासकीय कार्यों के व्यापक अभिलेख रखे
जाते हैं ताकि यदि व्यवस्थापिकाओं में अथवा अन्यत्र कोई प्रश्न उठे तो प्रशासकीय
कर्मचारी प्रमाणित उत्तर दे सकें ।

लोक प्रशासकों से यह अपेक्षित है कि वे जनता के साथ निष्पक्ष और समान व्यवहार करें ,


किसी वर्ग अथवा व्यक्ति के साथ पक्षपात न करें । ऐसा करने पर ही लोक प्रशासन जन
विश्वसनीयता अर्जित कर सकता है ।

3. सामाजिक आवश्यकता का सिद्धांत (Theory of Social Necessity):


लोक प्रशासन जनता के हित के लिए है अर्थात ् उसका उद्देश्य सामाजिक आवश्यकताओं
की पूर्ति होना चाहिए । लोक प्रशासन को सम्यता और संस्कृति का रक्षक तथा शान्ति और
व्यवस्था बनाये रखने वाला यन्त्र इसलिए कहा जाता है कि वह सामाजिक यान्त्रिक
संगठन का केन्द्र है और सामाजिक आवश्यकताओं की पर्ति
ू के सिद्धांत का आचरण करता
है । लोक प्रशासन के सिद्धांत की अन्तिम कसौटी यह है कि वह जन आकांक्षाओं के
कितना अनुरूप है ।

योजनाएं बना लेना आसान है , लेकिन उनका वास्तविक महत्व तो उनके क्रियान्वयन,
ईमानदार और कुशलता में है तो योजनाओं के समचि
ु त क्रियान्वयन द्वारा वह दे श और

17 | P a g e
समाज को लाभान्वित कर सकता है । सामाजिक प्रगति के संदर्भ में लोक प्रशासन की
मात्रात्मक सफलता की अपेक्षा गुणात्मक सफलता अधिक महत्वपूर्ण है ।

4. कार्यकुशलता का सिद्धांत (Theory of Efficiency):


लोक प्रशासकों से अपेक्षा की जाती है कि वे अधिकाधिक कार्यकुशल बनें, यक्ति
ु एवं विवेक
से काम लें तथा अपनी कार्यक्षमता को इतना बढ़ाएं कि वांछित लक्ष्यों की प्राप्ति सुगम हो
जाए । प्रशासनिक कार्यकुशलता का विकास करने के लिए प्रशासन में यथासम्भव
स्थिरता लाई जाए अर्थात ् जल्दी-जल्दी परिवर्तन की नीति को छोड़ा जाए, अधिकारियों
और कर्मचारियों के कर्तव्यों का स्पष्ट एवं निश्चित निर्धारण किया जाए, प्रशासक-उपक्रम
की स्थापना की जाए, पदोन्नति के न्यायगत नियम बनाए जाएं निर्णय में शीघ्रता और
सुनिश्चितता लाई जाए तथा उत्तरदायित्व एवं शीघ्रता आदि के लिए पदाधिकारियों को
प्रोत्साहन दिया जाए ।

कम से कम व्यय पर अधिक से अधिक कुशलता और कार्यक्षमता के सिद्धांत का आचरण


किया जाए । प्रशासनिक कार्य कुशलता बहुत कुछ राजनीतिक और स्थाई कार्यपालिका के
पारम्परिक संबंध पर भी आश्रित हैं । यदि दोनों के संबंध मधरु और समन्वयात्मक हैं तो
प्रशासन की गाडी सुचारू रूप से चलती है ।

यह उचित है कि भर्ती की समचि


ु त व्यवस्था की जाए और राजनीतिक कार्यपालिका के
निर्देश और उसकी नीतियों में स्पष्टता बढ़ती जाए । राजनीतिक कार्यपालिका नीति-
निर्धारण में स्थाई कार्यपालिका के कुशल कर्मचारियों से परामर्श ले और उनका सहयोग
प्राप्त करें । कार्यकुशलता ही लोक प्रशासन की सफलता की कंु जी होती है ।

5. जन-सम्पर्क का सिद्धांत (Theory of Public Relations):


सुनियोजित जन-सम्पर्क लोकप्रिय प्रशासन की कल्पना के बिना निरर्थक है । लोक
कल्याणकारी राज्य में लोक सम्पर्क का महत्व निर्विवाद है । प्रशासन के क्षेत्र में लोक-
सम्पर्क के कुछ मूलभूत उद्देश्य होते हैं ।

यथा:

18 | P a g e
(i) सरकार द्वारा संचालित अभियानों (उदाहरणार्थ- अल्प बचत या परिवार नियोजन) में
जन साधारण को सहयोग के लिए प्रेरित करना,

(ii) सरकारी नियमों और कानन


ू ों का पालन,

(iii) सरकारी नीतियों के समर्थन के लिए जनता में प्रचार आदि ।

लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली में सरकार के लिए यह नितान्त आवश्यक है कि वह समय-


समय पर राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं पर अपनी नीतियों से जनता को अवगत
कराती रहे । जनता के सतर्क और सक्रिय समर्थन के अभाव में इन नीतियों का परिपालन
भी कठिन है । कई बार सरकार के आन्तरिक अथवा बाह्य विरोधियों के जवाब में जवाबी
प्रचार भी करना पड़ता है । इस प्रकार की भूमिका! लोक सम्पर्क को निभानी पड़ती हैं ।

पुनश्च: प्रशासन का एक मूल उद्देश्य जनता की आवश्यकताओं को समझना और उन्हें दरू


करने का प्रयास करना है । लोक सम्पर्क के माध्यम से कठिनाइयों को खोजकर उनका
उचित निदान करना अधिक सुगम हो जाता है ।

भारत में लोकसम्पर्क के लिए केन्द्रीय सच


ू ना तथा प्रसार मन्त्रालय के अन्तर्गत
निम्नलिखित विभाग या शाखाएँ कार्यरत हैं:
(1) आकाशवाणी,

(2) पत्र-सूचना कार्यालय,

(3) रजिस्ट्रार, न्यूजपेपर्स ऑफ इण्डिया,

(4) फिल्म डिवीजन,

(5) प्रकाशन विभाग,

(6) विज्ञापन तथा दृश्य प्रचार निदे शालय,

19 | P a g e
(7) फोटो डिवीजन,

(8) संदर्भ तथा अनस


ु न्धान विभाग, और

(9) क्षेत्रीय प्रचार विभाग ।

6. सं गठन का सिद्धांत (Organization Theory):


प्रशासन एक सहकारी प्रक्रिया है । इसमें अनेक व्यक्ति पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार
मिलकर कार्य करते हैं । योजनाबद्ध व्यवहार किसी संगठन की मूल विशेषता होती हैं ।
लोक प्रशासन को सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ने के लिए संगठन के सिद्धांत का अनुसरण
करना चाहिए । प्रशासकीय विभागों में पारस्परिक आदान-प्रदान के साथ-साथ समन्वय
होना नितान्त आवश्यक है ।

संगठन में दो बातें सम्मिलित हैं- श्रम-विभाजन और कार्य-विशेषीकरण, दोनों की सफलता


इस बात में है कि किसी भी कार्य के आते ही जनता और सरकारी कर्मचारियों को यह पता
लग जाए कि उसका संबंध सरकार के किस विभाग तथा संगठन के किस सोपान से हो ।

संगठन की सफलता के लिए आवश्यक है कि लाइन तथा स्टॉक अभिकरणों में स्पष्ट
विभाजन हो । कोई भी प्रशासनिक क्रिया संगठन के बिना संचालित नह की जा सकती ।
प्रशासन और संगठन के बीच अटूट संबंध है ।

7. विकास एवं प्रगति का सिद्धांत (Theory of Development and Progress):


लोक प्रशासन सामाजिक हित के साध्य की उपलब्धि का साधन है । अत: स्वाभाविक है
कि वह सामाजिक प्रगति के साथ कदम मिलाकर चले तथा सामाजिक आवश्यकताओं
और परिस्थितियों के अनरू
ु प अपने स्वरूप, संगठन और प्रक्रियाओं में परिवर्तन एवं
संशोधन के लिए तैयार रहे ।

उसमें नए मूल्यों और दृष्टिकाणों के अनुकूल ढलने का लचीलापन हो । सिद्धांत और


व्यवहार में लोक प्रशासन यह मानकर चले कि लोक कल्याणकारी राज्य में उसका व्यापक

20 | P a g e
दायित्व है और उसे समाज की विभिन्न समस्याओं तथा आवश्यकताओं का निदान करते
हुए दे श को विकास और प्रगति के पथ पर अग्रसर करना है ।

अत: लोक प्रशासन सदै व वैज्ञानिक और मानवीय दृष्टिकोण को अपनाते हुए परु ाने घिसे-
पिटे तर्कों के स्थान पर नवीन पद्धतियों को प्रयोग में लाए तथा लोक-सम्पर्क का
अधिकाधिक विकास करें । अपनी गति और शक्ति बनाए रखने के लिए लोक प्रशासन
सभी आवश्यक वैज्ञानिक और आधनि
ु क उपाय अपनाता रहे । वह राजनीतिक इंजन से
बल प्राप्त करें और निकम्मे नौकरशाही के आवरण को हटाकर लोक-हित का जामा पहने ।

8. अन्वे षण अथवा खोज का सिद्धांत (Theory of Exploration or Discovery):


लोक प्रशासन में यद्यपि भौतिक विज्ञान की तरह प्रयोगशालाएं स्थापित नहीं की जा
सकतीं तथापि मस्तिष्क और अनुभव द्वारा उसकी सामग्री अवश्य ही एकत्रित की जा
सकती है जिसके आधार पर कार्योपयोगी निष्कर्ष निकाले जा सकें, प्रशासनिक कुशलता
बढ़ाई जा सके तथा प्रशासनिक उद्देश्यों की पर्ति
ू की दिशा में तेजी से अग्रसर हुआ जा सके
। भारत सरकार का दिल्ली स्थित लोक प्रशासन संस्थान प्रशासकीय खोज के क्षेत्र में
प्रशंसनीय कार्य कर रहा है । उसने अनेक खोज कार्यक्रमों और योजनाओं को संचालित
किया है ।

21 | P a g e

You might also like