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Synopsis

Topic-- पंचायती राज (सामान्य) नियम, 1997

पंचायती राज का उद्देय


य यजिलों, क्षेत्रों और गांवों में स्थानीय
सनशा
स्व सन का विकास करना

Name-Manisha Yadav
LL.B 3 Yr
Sem.:-6th
पंचायती राज (सामान्य) नियम, 1997
प्रस्तावना:-

पंचायती राज का सम्बन्ध सत्ता के प्रजातान्त्रिक विकेन्द्रीकरण से


है। अतः पंचायती राज को प्रजातन्त्रीय राज्य में जनता को उसके
कल्याण कार्य में सहभागी बनाने की एक पद्धति कहा जा सकता है ।
सनि
यह स्थानीय स्तर पर प्र सनिककशा
स्वायत्त शासन के विकास की व्यवस्था
है ।
पंचायती राज व्यवस्था (Panchayati Raj System) एक सी व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत
सनि
क् तिका विकेन्द्रीकरण किया जाता है तथा सत्ता तथा प्र सनिककशा
शक्तियों को विभिन्न क्षेत्रों
में विभाजित किया जाता है। शक्ति का विकेन्द्रीकरण किया जाता है ताकि विकास योजनाओं को
राष्ट्र के प्रत्येक क्षेत्र में क्रियान्वित किया जा सके।
बलवंत राय मेहता को पंचायती राज के जनक के रूप में जाना जाता है। बलवंत राय मेहता
समिति की शुरुआत 1950 के दक में आधुनिक भारत में पंचायती राज व्यवस्था की वापसी की
रूपरेखा तैयार करने के उद्देय
य यसे की गई थी।

समीक्षा(Literature Review)
भारत में पंचायती व्यवस्था पूरी तरह से स्वतंत्रता के बाद की घटना नहीं है।
वास्तव में, ग्रामीण भारत में प्रमुख राजनीतिक संस्था सदियों से ग्राम पंचायत रही
है। प्राचीन भारत में, पंचायतें आमतौर पर कार्यकारी और न्यायिक क्तियों वाली
ष रूप से मुगल और ब्रिटिश, और
निर्वाचित परिषदें होती थीं। विदे शाप्रभुत्व, वि षशे
प्राकृतिक और मजबूर सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों ने ग्राम पंचायतों के महत्व को
कम कर दिया था। हालाँकि, स्वतंत्रता-पूर्व काल में, पंचायतें गाँव के बाकी हिस्सों
पर उच्च जातियों के प्रभुत्व के लिए साधन थीं, जो सामाजिक-आर्थिक स्थिति या जाति
पदानुक्रम के आधार पर विभाजन को आगे बढ़ाती थीं।

हालाँकि, संविधान का मसौदा तैयार होने के बाद स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पंचायती
राज व्यवस्था के विकास को गति मिली। भारत के संविधान के अनुच्छेद 40 में कहा
गया है: "राज्य ग्राम पंचायतों को संगठित करने के लिए कदम उठाएगा और उन्हें
सी शक्तियां और अधिकार प्रदान करेगा जो उन्हें स्व सनसनशा
की इकाइयों के रूप में
कार्य करने में सक्षम बनाने के लिए आवयककश्य हों"।

सनशा
ग्रामीण स्तर पर स्व सन के कार्यान्वयन का अध्ययन करने और इस लक्ष्य को प्राप्त
करने के लिए कदमों की सिफारिश करने के लिए भारत सरकार द्वारा कई समितियाँ
नियुक्त की गईं।

कार्यप्रणाली(Methodology)
भारतीय संविधान के अनुसार, ग्राम सभा अपने कार्यों का प्रयोग करती है और
उसके पास उस राज्य की विधायिका द्वारा तय और प्रदान की गई क्तियां हैं।
ग्राम सभा की विभिन्न शक्तियाँ और कार्य इस प्रकार हैं:
 ग्राम पंचायत की विकास योजनाओं एवं कार्यक्रमों का क्रियान्वयन।
 यह विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं के लाभार्थियों की पहचान भी
करता है। यदि वे सा करने में असफल रहते हैं तो यह कार्य ग्राम
पंचायत द्वारा किया जाता है।
 यह गाँव के लोगों से विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं और कार्यक्रमों
में नकद या वस्तु या दोनों के रूप में समर्थन का अनुरोध करता है।
 यह विभिन्न जन शिक्षा और परिवार कल्याण कार्यक्रमों और योजनाओं का
समर्थन करता है।
 यह कर या शुल्क आदि लगाने या ग्राम पंचायत द्वारा निर्दिष्ट किसी अन्य
मामले से संबंधित मामलों पर विचार करता है।
 ग्राम पंचायत का मुख्य कार्य विभिन्न सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों
को लागू करना और क्रियान्वित करना है।
 यदि ग्राम सभा ऐसा करने में विफल रहती है तो विभिन्न योजनाओं और
कार्यक्रमों के लाभार्थियों की पहचान करना।
 स्थानीय करों का उद्ग्रहण एवं संग्रहण।
 गाँव में सार्वजनिक संपत्ति जैसे सड़कों, पुलों, स्कूलों, अस्पतालों
आदि का निर्माण और रखरखाव।

उद्देश्य(objective)
पंचायती राज का उद्देश्य जिलों, क्षेत्रों और गांवों में स्थानीय स्व सन
सनशा
का विकास करना है।

पंचायत प्रणाली में ग्राम स्तर (ग्राम पंचायत), गांवों के समूह (खंड पंचायत), और जिला
स्तर (जिला पंचायत) शामिल हैं। पंचायती राज ग्राम स्तर पर सरकार का एक रूप है जहाँ
प्रत्येक गाँव अपनी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार होता है।

पंचायती राज का प्रमुख उद्देय श्य


प्रजातान्त्रिक विकेन्द्रीकरण है।
बी० आर० मेहता के अनुसार, “यह स्वीकार किया जाता है कि कोई भी
प्रजातन्त्र बिना विकेन्द्रीकरण के सफल नहीं हो सकता है।" यह
सत्ता का संसद से ग्राम पंचायत की ओर पलायन है।
ष रूप
पंचायती राज गांव की स्थानीय सरकार की स्थापना करती है जो गांवों के विकास में वि षशे
से प्राथमिक शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि विकास, महिला एवं बाल विकास और स्थानीय सरकार में
महिलाओं की भागीदारी आदि जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

निष्कर्ष
यहाँ, इस लेख में, हमने पंचायतों के बारे में बात की है। हमने पंचायती
राज के विकास, ग्राम पंचायत प्रणाली, पंचायत के कार्य, ग्राम पंचायत कैसे
काम करती है, ग्राम पंचायत की परिभाषा, ग्राम सभा और ग्राम पंचायत के बीच
अंतर, पंचायत समिति, जिला परिषद और अन्य संबंधित चीजों के बारे में
सीखा है। हमें उम्मीद है कि ये नोट्स आपको लोकतंत्र की मूल इकाई के साथ-
साथ इन सभी निकायों की कार्यप्रणाली को समझने में मदद करेंगे। यह
समझना कि विधायी और कार्यकारी निकाय स्थानीय स्तर पर कैसे काम करते
हैं, मज़ेदार हो सकता है लेकिन इससे आपको सिस्टम को बेहतर ढंग से
जानने और वास्तविक जीवन में इसका उपयोग करने में भी मदद मिलेगी।

अध्यायीकरण(Chapterization)
देश के वास्तविक विकास के लिए स्थानीय स्व सन सनशाका होना बहुत आवयककश्य
है
क्योंकि स्थानीय स्तर ही वास्तविक क्षेत्र हैं जहां नीतियों और कार्यक्रमों
को क्रियान्वित किया जाना है और जहां सरकार को मौजूदा नीतियों आदि में
समस्याओं और मुद्दों का पता चलेगा। इसलिए, भारत ने संविधान के 73 वें और
74 वें सं धन
धनशो
अधिनियमों के माध्यम से स्थानीय सरकार भी लायी जिसमें
पंचायतें और नगर पालिकाएं दोनों शामिल हैं।
स्थानीय सरकारों या पंचायती राज व्यवस्था पर चर्चा के लिए विभिन्न समितियों
का गठन किया गया है। उदाहरण के लिए 1957 की बलवंत राय मेहता समिति और
अ ककशो मेहता समिति। पीवी नरसिम्हा राव की अवधि के दौरान, 73 वें संवैधानिक सं धनधनशो
अधिनियम को 1992 में संसद द्वारा 74 वें
धनशोअधिनियम के साथ पारित किया
संवैधानिक सं धन
गया था, जिसमें भाग IX, यानी शामिल किया गया था। क्रम! शापंचायतें और भाग
IX-A, अर्थात् नगर पालिकाएँ। बलवंत राय मेहता समिति का प्रबंधन भारत
सरकार द्वारा इसके दो बहुत पहले कार्यक्रमों के कामकाज को देखने के लिए
किया गया था। समिति ने अपनी अत्यंत उद्देयपूर्ण पूर् रिपोर्ट 1957 में प्रस्तुत
णश्य
की। लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण शब्द सबसे पहले वहीं सामने आया।

उनकी महत्वपूर्ण सिफारि शाथीं: त्रि-स्तरीय पंचायती राज प्रणाली की स्थापना -


यानी, ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति और जिला
स्तर पर जिला परिषद।

सुझाव
 वास्तविक राजकोषीय संघवाद अर्थात् वित्तीय उत्तरदायित्व के साथ वित्तीय स्वायत्तता एक
दीर्घकालिक समाधान प्रदान कर सकती है और इनके बिना पंचायती राज संस्थाएँ केवल एक
महँगी विफलता ही साबित होगी।

 द्वितीय प्र सनिक सुधार आयोग की 6 ठीं रिपोर्ट ('स्थानीय सन- भविष्य की ओर एक
प्रेरणादायक यात्रा'- Local Governance- An Inspiring Journey into the
Future) में सिफारि की गई थी कि सरकार के प्रत्येक स्तर के कार्यों का स्पष्ट रूप से
सीमांकन होना चाहिये।
 राज्यों को 'एक्टिविटी मैपिंग’ की अवधारणा को अपनाना चाहिये जहाँ प्रत्येक राज्य
अनुसूची XI में सूचीबद्ध विषयों के संबंध में सरकार के विभिन्न स्तरों के लिये
उत्तरदायित्वों और भूमिकाओं को स्पष्ट रूप से इंगित करता है।

 जनता के प्रति जवाबदेहिता के आधार पर विषयों को अलग-अलग स्तरों पर विभाजित कर


सौंपा जाना चाहिये।

 कर्नाटक और केरल जैसे राज्यों ने इस दिशा में कुछ कदम उठाए हैं लेकिन समग्र
प्रगति अत्यधिक असमान रही है।

 ष रूप से ज़िला स्तर पर उर्ध्वगामी योजना निर्माण की आवयकता


वि षशे कताश्य
है जो ग्राम सभा से
प्राप्त ज़मीनी इनपुट पर आधारित हो।

 कर्नाटक ने पंचायतों के लिये एक अलग नौकर ही संवर्ग/कैडर का निर्माण किया है ताकि


अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति की व्यवस्था से मुक्ति पाई जा सके जहाँ ये अधिकारी
प्रायः निर्वाचित प्रतिनिधियों पर अधिभावी बने रहते हैं।

o सनशा
स्थानीय स्व सन के वास्तविक चरित्र को मज़बूत करने के लिये अन्य राज्यों में भी
इस व्यवस्था को अपनाया जाना चाहिये।

 कता
केंद्र को भी राज्यों को आर्थिक रूप से प्रोत्साहित करने की आवयकताय यहै ताकि राज्य
कार्य, वित्त और कर्मचारियों के मामले में पंचायतों की ओर क्ति के प्रभावी हस्तांतरण
के लिये प्रेरित हों।

 षज्ञता के विकास के लिये उन्हें प्रशिक्षण प्रदान किया जाना


स्थानीय प्रतिनिधियों में वि षज्ञताशे
चाहिये ताकि वे नीतियों एवं कार्यक्रमों के नियोजन और कार्यान्वयन में अधिक
योगदान कर सकें।

 प्रॉक्सी प्रतिनिधित्व की समस्या को हल करने के लिये राजनीतिक सक्तीकरण से पहले


सामाजिक सक्तीकरण के मार्ग का अनुसरण करना होगा।

 यों
हाल ही में राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों ने पंचायत चुनावों के प्रत्या यों शि
के लिये कुछ न्यूनतम योग्यता मानक तय किये हैं। इस तरह के योग्यता मानक शासन
लता
तंत्र की प्रभाव लता शी
में सुधार लाने में सहायता कर सकते हैं।

 ऐसे योग्यता मानक विधायकों और सांसदों के लिये भी लागू होने चाहिये और इस दिशा में
सरकार को सार्वभौमिक शिक्षा के लिये किये जा रहे प्रयासों को तीव्रता प्रदान
करनी चाहिये।

 यह सुनिचित तश्चि
करने के लिये स्पष्ट तंत्र होना चाहिये कि राज्य संवैधानिक प्रावधानों
का पालन करते हैं अथवा नहीं; वि षशेष रूप से राज्य वित्त आयोगों (SFCs) की सिफारि शा
की स्वीकृति और उनके कार्यान्वयन के मामले में यह अनुपालन आवयककश्य है।

संदर्भ
 पंचायती राज संस्थान (Panchayati Raj Institution- PRI) भारत में ग्रामीण
स्थानीय स्व सन (Rural Local Self-government) की एक प्रणाली है।

 सनशाका अर्थ है स्थानीय लोगों द्वारा निर्वाचित निकायों द्वारा स्थानीय मामलों
स्थानीय स्व सन
का प्रबंधन।
 ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र की स्थापना करने के लिये 73 वें संविधान सं धन
अधिनियम, 1992 के माध्यम से पंचायती राज संस्थान को संवैधानिक स्थिति प्रदान
की गई और उन्हें देश में ग्रामीण विकास का कार्य सौंपा गया।

 अपने वर्तमान स्वरूप और संरचना में पंचायती राज संस्थान ने 27 वर्ष पूरे कर
लिये हैं। लेकिन विकेंद्रीकरण को आगे बढ़ाने और ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र को
मज़बूत करने के लिये अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है।

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