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िश ा का अथायाम

मुकुल कािनटकर
अ.भा. संगठन मं ी,
भारतीय िश ण मंडल

ितवष शासन ारा अपने वा षक य का अनुमान (Budget) तुत करने पर िश ा पर कए


जानेवाले य क चचा होती है। क सरकार ारा िश ा पर सकल रा ीय उ पाद (G.D.P.) के लगभग 4%
य कया जाता है। िविभ आयोग ारा समय-समय पर यह अनुशंसा क गयी है क एक संवेदनशील रा म
िश ा य सकल उ पाद के कम से कम 6% होना चािहए। िभ -िभ शैि क संगठन ने भी समय-समय पर
यह मांग क है। भारतीय िश ण मंडल ने सकल रा ीय उ पाद के अनुपात के थान पर शासक य य के 10%
का ावधान िश ा े म करने क मांग रखी है। यह क ीय य का योगदान है। सभी रा य शासन तो अपने
य का लगभग 20% िश ा पर लगाते ही है। द ली, कनाटक, महारा जैसे कु छ रा य का िश ा य तो
23% से अिधक है। इस सबके बाद भी िश ा म मूलभूत आव यकता क पूत भी अभी तक नह हो पा रही।
20-25 वष पूव सरकार ने अपनी असमथता को वीकार कर नीजी े को िश ा म िनवेश के िलए आमंि त
कया। वैधािनक प से िश ा धमाथ सेवा के प म ही दी जा सकती है। शैि क सं थान लाभकारी उप म
(Profit Making Enterprise) नह हो सकते। कतु वा तव म भारत जैसे देश म िश ा एक आकषक उ ोग
बनता जा रहा है। जमीन, व आ द उ ोग म चुनौितयाँ बढ़ने के बाद अनेक उ ोजक ने अपने कारखान
तथा ापारी सं थान को अिभयांि क महािव ालय जैसे ावसाियक िश ा सं थान म प रव तत कर
दया। इसे शी लाभ का साधन माना जाने लगा। वैधािनक लाभ ाि क व था न होने के कारण िश ा के
ापारीकरण हेतु अनेक अनैितक कु रीितय का ज म आ।
शासन के िश ा य का एक ब त बड़ा िह सा, कु छ-कु छ रा य म तो 90% से अिधक िह सा िश क
के वेतन पर लगाना पड़ता है। िविभ वेतन आयोग ने सरकारी िश क क आमदनी म अ छी वृि क है।
कतु सरकार इस बोझ के कारण शैि क िवकास क अ य सभी गितिविधय म कटौती करने पर िववश है। नए
भवन का िनमाण, ंथालय, योगशाला, अ याधुिनक िश ा साधन आ द के िलए अनुदान लगभग बंद हो गया
है। सव िश ा अिभयान के अंतगत मा या ह भोजन, गरीब छा के िलए िनःशु क गणवेश, पा साम ी तथा
बािलका के िलए साइ कल आ द का ावधान कया गया। गत दो दशक से ए इन यास का सुखद
प रणाम शालेय िश ा म पंजीयन बढ़ने म आ। सरकारी आंकड़ के अनुसार ाथिमक िश ा का सकल वेश
अनुपात [Gross Enrollment Ratio (G.E.R.)] 95% हो गया है। कु छ रा य म तो यह 100% हो गया है।
इसका अथ है क भारत म ज म लेनेवाले 6 वष तक क आयु के 100 म से 95 बालक शाला म वेश ले रहे ह।
सविश ा अिभयान क योजना का 70% अनुदान क सरकार देती है। बा क 30% क व था रा य
शासन को करनी होती है। पूव र तथा ज मू क मीर के अिवकिसत रा य हेतु 90% अनुदान क शासन का
होता है। इन सब बात से भी िश ा य म वृि ई है। कतु िश ा क गुणव ा पर इसका ब त अिधक भाव
नह दखाई देता है। उ िश ा म होनेवाला य भी बढ़ाया गया है।
इस सबके बाद भी शालेय िश ा म नीजी सं था क भागीदारी बढ़ रही है। एक अनुमान के अनुसार
46% शालेय िव ाथ नीजी सं थान म अ ययनरत है। उ िश ा म छा सं या म नीजी सं था क
भागीदारी 30% से कम है। कतु महािव ालय क सं या म यह अनुपात 50% के लगभग हो गया है।
नीितिनधारक एवं अिधका रय म कु छ का मानना है क नीजी े के बढ़ने से ही ‘सबको िश ा’ का ल य
ा हो सके गा। अतः योजना म उसी कार के ावधान गत दस वष से कए जा रहे ह। अनुभवी िश ािवद
एवं िश ा जगत म कायरत कायकता का अनुभव है क नीजी े के बढ़ने से ापारीकरण बढ़ेगा और
समाज के बड़े वग क प च ँ से गुणव ापूण िश ा बाहर हो जाएगी।
िश ा के अथायाम पर िवचार करते समय शैि क दृि कोण मह वपूण है। हम िश ा के उ े य को कस
दृि से देखते ह इस बात पर िनभर करे गा क िश ा का दािय व कसपर है। शासक य िश ा म िश ा के य
का भार शासन वहन करता है जब क नीजी े म यह बोझ छा अथात उनके अिभभावक पर डाला जाता
है। य द िश ा को हम ि के िवकास के मा यम से ही देखते ह, और वह िवकास भी के वल भौितक तर पर
ही समझा जाता है तब तो यह तक ठीक बैठता है क सभी को अपनी-अपनी िश ा पर होने वाले य का भार
उठाना चािहए। य द अिभभावक स म हो तो वे अपनी मता के अनुसार महँगी से महँगी िश ा अपने बालक
को उपल ध कराएं। िश ा ऋण (Education loan) के पीछे भी यही दृि है। जहाँ अिभभावक आ थक प से
स म नह है वहां वयं छा को िश ा ऋण उपल ध करा दया जाएं ता क वे अपने मन के अनुसार िश ा
खरीद सक। ऐसी िश ा ा कर रोजगार िमलने के बाद छा अपने ऋण का भुगतान कर। गत दो दशक से
यह िवचार भावी होता जा रहा है। िवलािसतापूण नीजी िश ा सं थान म लाख पये शु क का भुगतान
करने के िलए तैयार अिभभावक बढ़ रहे ह। दूसरी ओर िश ा ऋण क सं या एवं रािश म भी ितवष कई गुना
वृि हो रही है। इन दोन प ितय म छा और अिभभावक ाहक अथवा उपभोगता क भूिमका म आ जाते ह
और िश ा सं थान ापारी अथवा सेवा दाता (Service Provider) बन जाते ह। ऐसे िव ालय म
अिभभावक िश क बैठक (PTM) ाहक-नौकर संवाद म बदलती जा रही है। ‘जब हम इतना शु क दे रहे ह तो
या इतनी भी अपे ा नह कर सकते?’, ‘हम इतने सारे पैसे देकर ब को कू ल भेज रहे ह, अब उ ह पढ़ाना
आपक िज मेदारी है।’ जैसे वा य ब क माता ारा िश क को कहा जाना सामा य बात हो गयी है।
भारत म िश ा क यही दृि नह है। के वल परं परागत भारतीय िश ण क ही बात नह है अिपतु
भारत के संिवधान म भी िश ा को ापार क व तु मानने का िवरोध है। अिनवाय तथा िनःशु क मूलभूत
(Elementary) िश ा को ारं भ म संिवधान िनमाता ने रा य के िनदेशक त व म रखा और अपे ा क क
शी ाितशी इसे वैधािनक प दान कया जाएं। 86वे संिवधान संशोधन इ. स. 2002 ारा िश ा को
मौिलक अिधकार का थान दया गया और त प ात इ. स. 2009 म ‘िश ा के अिधकार अिधिनयम’ (RTE)
ारा 6 से 14 वष के येक बालक क मूलभूत िश ा (8वी तक) अिनवाय कर दी गयी। अब ये माता-िपता का
िवक प नह रहा क वे ब को पढ़ाएं या न पढ़ाएं। अिनवायता के साथ िनःशु क िश ा का ावधान भी
आव यक था। य द िश ा ापा रक सेवा मानी जाये तो उसे अिनवाय नह कया जा सकता। य द िश ा का
उ शे ि गत िवकास एवं रोजगार तक सीिमत हो और इस कारण उसे ि अथवा प रवार क िज मेवारी
माना जाएं तो फर िश ा हण न करने का िवक प भी खुला रखना पड़ेगा। मूलभूत िश ा क अिनवायता यह
िस करती है क भारत का संिवधान िश ा को ि गत नह , सामूिहक दािय व मानता है। िवधान क
िववशता है क वह समाज को अपने दािय व के िलए बा य नह कर सकता। अतः िनःशु क िश ा का भार
रा य पर डाला गया है। भारत के संिवधान म मौिलक अिधकार तो िविध ारा संरि त है। अतः रा य का
दािय व बनता है क इनक र ा का उिचत बंध कर। कतु दूसरी ओर संिवधान म सूचीब कये गए मौिलक
कत िनदेशक त व (directive principles) के प म है, अतः बा यकारी नह ह। िश ा के अिधकार
अिधिनयम ने मूलभूत िश ा को मौिलक अिधकार बनाकर अिभभावक को बा य कर दया है और आ थक
मता के को िनःशु क िश ा उपल ध कराने के िलए रा य को बा य कर सुलझाया गया है।
परं परागत प से भारत म िश ा को ि गत अिधकार, आव यकता अथवा िवकास का साधन नह
माना गया। अपनी अगली पीढ़ी को वयं से सवाई (125% िवकिसत) बनाने हेतु समाज के सामूिहक दािय व के
प म िश ा को देखा गया है। समाज क आव यकता है क उसका येक घटक के वल सुिशि त ही नह अिपतु
सुसं का रत बन। अतः यह समाज का कत बनता है क वह इसक समुिचत व था कर। ात ाचीनतम
इितहास से ही भारत म िश ा िनःशु क रही है। िश ा को न तो ापार बनाया गया और न ही सरकार के
अनुदान पर आि त रखा गया। भारत म िश ा स े अथ म वाय एवं समाजपोिषत रही है। आ थक
वावलंबन के िबना शैि क व शासक य वाय ता का कोई अथ नह रह जाता। अतः भारत म िश ा क
समाजपोिषत व था य पूवक िवकिसत क गयी। सब कालखंड म सव एक सी व था नह थी कतु जो
भी िविवध कार क व था िवकिसत क गयी उसम वावलंबन समाज का आधार तथा शासन एवं समाज
िनरपे ता को यान म रखा गया। वैसे ही गु कु ल िश ा म आव यकताएं कम करने का िश ण दया जाता
है। अतः गु कु ल क अपनी आव यकताएं भी यूनतम आ करती थी।
साधारणतः तीन कार के िश ा सं थान भारत म कायरत रहे ह। आवासीय गु कु ल नगर, गांव से दूर
वन म आ करते थे। इनम बड़ी सं या म छा एवं आचाय के िनवास, अ य शैि क गितिविधय के िलए
अ ययनशाला, गोशाला, य शाला, पाकशाला, योगशालाएं भी आ करती थी। छा के अनुपात म इन सभी
छा ावास एवं शाला क भी आव यकता पड़ती थी। इस सबके साथ ही कृ िष भूिम भी गु कु ल से जुड़ी ई
थी। छा एवं आचाय कृ िष और गोपालन का काय साथ िमलकर करते थे। अतः भोजना द क व था इ ह म
से हो जाती थी। व िनमाण का काय भी अ ययन का अंग होता था। अतः छा क यूनतम आव यकता
क पूत ावहा रक अ ययन के िलए कए गए काय से हो जाती थी। भूिम एवं गाय समाज से दान म ा
होती थी। अिधकतर िनमाण साम ी ाकृ ितक ही होने के कारण वन से ही उनक आपू त हो जाती थी।
म यकाल म बड़े-बड़े भवन का िनमाण नालंदा, त िशला आ द गु कु ल म आ था। उसम समाज के धिनक
वग का दान लगा आ होगा। राजा भी इन बड़े गु कु ल के िनमाण म योगदान करते थे। कतु वह दान दि णा
के प म होता था। रा य ारा थोपी गयी िविवध बा यता से बंधा अनुदान गु कु ल वीकार नह करते थे।
देश के कु छ भाग म बड़े-बड़े गु कु ल के संचालन हेतु राजा ारा गु कु ल को कु छ ाम के अिभलेख (प े)
दान कए जाने के माण उपल ध ह। इन गांव से ा कर राजा के पास नह , गु कु ल के पास जमा होता
था। इस व था म भी राजा का ह त ेप नह होता था। एक बार अिभलेख दान हो जाने के बाद गांव क
पंचायत व था का दािय व होता था क सु वि थत कर-सं हण कर गु कु ल को उपल ध कराया जाएं। इस
कार वाय ता से गु कु ल क आ थक व था हो जाती थी। अ ययनकाल के कु छ िनि त समय म िभ ा-
भोजन अथवा माधुकरी अिनवाय थी। पाँच घर म िभ ा मांगने से न के वल छा के अहंकार का िवसजन
होकर उनके ि व का िवकास होता था अिपतु साथ ही सारे गु कु ल का भोजन भी समाज के आधार पर हो
जाता था।
भारतीय िश ा व था क आ थक वाय ता का सबसे बड़ा मा यम गु दि णा थी, जो छा अपने
गु के ित वे छा से अपण करते थे। हम पुराण म और अ य इितहास ंथ म िवल ण गु दि णा के अनेक
संग पाते ह। कतु, यह तो अपवादा मक घटनाएं ह। सब गु दि णा इस कार क नह थी।
गु पू णमा के दन वेश करते समय छा अपने हाथ म के वल सिमधा लेकर - सिम पािण हो गु को
वयं अ पत हो जाता था। हाथ म धारण क गई सिमधा उसके मन का तीक थी क ‘िजस कार यह सिमधा
य म अ पत होकर वाहा हो जाएगी, उसी कार म आपके चरण म न-मन करते ए अपने मन को आप को
स प रहा ।ं अब आप इसे जीवन यो य बनाइए।’ यूनतम 12 वष क िश ा के बाद छा ातक होता था। यह
समय सबके िलए िनधा रत नह था कतु सामा यतः इतना समय लगता था। कोई अलौ कक छा हो तो कम
समय म भी यो य हो जाता था। जैसा कहते ह क भगवान ीकृ ण ने मा 2 वष गु सांदीपिन के आ म म
रहकर 64 कला और 14 िव ा का अ ययन कर िलया। दूसरी ओर उ ंक का उदाहरण है िज ह आयु के
40 वष तक यानी लगभग 30-32 वष गु कु ल म रहना पड़ा। यह अपवाद ह। सामा यतः 12 वष म िश ा पूण
हो जाती थी।
इसके प ात छा समाज म अपना योगदान करने के िलए तैयार होता था और गृह थ जीवन म वेश
करता था। गु को दी जाने वाली दि णा जीवनपयत देनी है य क गु ने जीवन क िश ा दी है। अतः अपनी
कमाई म से दशांश गु को भेजने क परं परा भारत म थी। सभी छा इस परं परा का कत मानकर पालन
करते थे। चाहे राजा का पु हो अथवा कोई गरीब कसान, अपनी आजीिवका चलाने के िलए क से ा कए
धन म से दसवां िह सा अपने गु कु ल, पाठशाला अथवा गु को भेजता था। सभी िश य से ा यह रािश
गु कु ल संचालन हेतु पया होती थी। अतः कसी भी नए गु कु ल को थम 12 वष ही अपने आ थक भार हेतु
व था करनी पड़ती थी। समाज म दान िभ ा मांगनी पड़ती थी। 12 वष बाद तो पूव छा ही गु कु ल को
संभाल लेते थे। यह अ यंत वावलंबी व था थी। इसके कारण आ मण काल म स ा िवदेशी िवध मय के
हाथ म चले जाने के बावजूद भारत म गु कु ल जीवंत रहे।
आज जब हम गु कु ल िश ा क पुनः ित ा क बात करते ह तो के वल फर एक बार अिधकािधक
गु कु ल से भारत म सभी को िश ा दान करना इतना ही उसका अथ नह है। साथ ही वतमान व था म भी
गु कु ल के कु छ त व का समावेश अ याव यक है। इन त व म से गु कु ल का अथायाम सबसे पहले लागू कया
जा सकता है। य द हमारी िश ा व था से िनकले ए छा अपना कत समझकर अपनी आय का कु छ
िनि त िह सा अपने िश ा सं थान को भेजना ारं भ कर द तो सारे िव ालय, महािव ालय यहां तक क
भारतीय ौ ोिगक सं थान IIT जैसे बड़े-बड़े शैि क सं थान भी वावलंबी बन सकते ह। पूरी तरह से इस
व था का अभी परी ण कया जाना बाक है कतु कु छ अंश म इसका योग सेवाभावी सं था म हो रहा
है। अभी यह वैि छक है। िव ा भारती, रामकृ ण िमशन, िच मय िमशन जैसे संगठन म पढ़े ए छा अपनी
ा से अपने पूव िव ालय को दान देते रहते ह। राज थान म भामाशाह योजना के अंतगत शासक य
िव ालय म भी समाज के योगदान को ारं भ कया गया। इसके चम का रक प रणाम सामने आए। पाली िजले
म िव ालय , महािव ालय के भवन तक समाज ने िनमाण कए।
य द इसे परं परा का प दे दया जाए और सभी पूव छा एक िनि त रािश ितमाह भेजने लगे तो
और कसी संसाधन क आव यकता ही नह रहेगी। सारी िश ा िनःशु क दी जा सके गी। जो छा िनःशु क
िश ा ा करे गा वह इस कत का पालन और अिधक ा से करे गा। वतमान म चल रहे ापा रक िश ा
सं थान से िनकले ए छा म यह ा नह दखाई देती य क उनके मन म ाहक बोध है। उ ह लगता है
क हमारी िश ा का पूरा य हमारे माता-िपता ने ही वहन कया। अब हम इसे वापस कमाना है। इस भाव के
कारण वह अपने वसाय म भी येन के न कारे ण कमाने म ही िव ास रखता है। य द सभी कार क िश ा
िनःशु क हो जाए तो अपने िव ालय, महािव ालय के ित ऋण से उऋण होने का भाव छा म रहेगा। पूव
छा ा से अपने िश ा सं थान का योग ेम वहन करगे। के वल इतना ही नह , सेवाभाव से ा िश ा के
कारण उनके ावसाियक जीवन म भी वही सेवाभाव धान होगा। कहते ह ना, जो बीज बोएंगे फसल उसी क
काटी जाएगी। िश ा म य द हम ापार का बीज बोएंगे तो हमारे छा बड़े होकर उसी कार क
ावसाियकता का आचरण करगे। य द िश ा सेवाभाव से दान क जाएगी तो उससे तैयार छा भी अपने
जीवन के येक काय को सेवाभाव से ही करगे। अतः िश ा का अथायाम के वल आ थक िवषय ना होकर िश ा
म नैितकता का भी िवषय बन जाता है। सरकार-िनरपे और ापार-िनरपे िश ा व था ही वा तिवकता
म वावलंबी, नैितक, धमानुसारी िश ा है।
भारत माता को पुनः एक बार िव गु के पद पर आसीन करने के िलए आइए हम इस अथायाम को
वयं से ारं भ कर। हम चाहे िजस िश ा सं थान म पढ़े हो सरकारी, िनजी अथवा सेवाभावी, अपने जीवन म
कमाई का िनि त अंश देना ारं भ कर। यह िनि त है क आज क व था म तुरंत दशांश दान करना ारंभ
नह होगा। कतु 2% से ारंभ कया जा सकता है। धीरे धीरे बढ़ते ए 5% तक भी ले गए तो शासन को कसी
कार क आ थक व था नह करनी पड़ेगी और ना ही िश ा सं थान को ापार करना पड़ेगा।
'जीवन म हमने जो पाया है उससे अिधक हम दान कर सक' यही मनु य होने का ल ण है। अतः,
िबना कसी तक-कु तक हम अपने िव ालय को, िजसके कारण आज हम बने ह, उसे आंिशक गु दि णा देना
ारं भ कर। यही गु कु ल क पुनः थापना का थायी माग है।

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