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इस महीने चमक-दमक वािी कई शाददयाां हुईं, जजसने मध्यवर्ीय भारतीयों के एक तबके को खासा नाराज ककया। उनकी लशकायत है कक ये
आयोजन काफी भव्य और भड़कीिे रहे । जब दे श ‘कृषि सांकट’ से जझ
ू रहा हो, तो कफर शाददयों में भिा इतने पैसे कैसे खचग ककए जा सकते
हैं? उल्िेखनीय है कक शहरी मध्य-वर्ग महज अपने लिए खाना पकाने, अपनी र्ाड़ड़याां चिाने और कुत्तों को घम
ु ाने के लिए ही र्रीबों को नौकरी
पर नहीां रखता, बजल्क उनका इस्तेमाि खुद से अमीर तबकों को घेरने के लिए एक ‘नैततक सहारे ’ के रूप में भी करता है । इस वर्ग की मानें ,
तो अमीर ‘इस र्रीब मुल्क में बहुत ही अलशष्ट हैं’।
यहाां तक कक कुछ िोर् वे ददन भी याद ददिा रहे थे, जब शादी-समारोहों पर पलु िस के छापे पड़ा करते थे। उस वक्त दे श में अन्न की इतनी
कमी हो र्ई थी कक आयोजनों में ककतना खाना परोसा जाए, इसकी भी सीमा तय कर दी र्ई थी। मर्र अब भारतीयों को मानो अय्याशी
करने की छूट लमि र्ई है - शहरी मध्य वर्ग के चचढ़े होने की यही वजह है ।
मर्र क्या भारत के इस सबसे बड़े तबके यानी र्रीब और खरबपतत, अरबपतत, करोड़पतत व दे श के शीिग एक फीसदी में शालमि िोर्ों में कोई
अांतर है ? क्या ईमानदार ‘आडांबरहीन’ भारतीयों के लिए ‘स्कोडा’ र्ाड़ी ठीक उसी तरह ददखावा नहीां है , जजस तरह वांचचत तबकों के लिए ‘मेबैक’
र्ाड़ी? दरअसि, करोड़पतत ही राष्र की अांतरात्मा माने जाते हैं , या कफर कम से कम वे िोर्, जो आमदनी के मामिे में शीिग के एक फीसदी में
शुमार हैं। उनका मानना है कक भारत तो इतना र्रीब है कक यहाां के पररवारों की मालसक आमदनी दो िाख रुपये भी नहीां है! उनकी मानें , तो
सांयम से जीना इस साधनहीन मल्
ु क में अलशष्ट हरकत के समान है । ठीक इसी तरह, यह ऊपरी मध्य वर्ग भी र्रीबों की नजर में अमीर है ,
क्योंकक अतत-धनाढ्य के आभामांडि को तो वे दे ख भी नहीां पाते। नोटबांदी के बाद षवश्िेिक इसी को नहीां परख पाए थे , और सरकार का यह
कदम लसयासत के नजररए से इसलिए िोकषिय साबबत हो र्या, क्योंकक औसत मतदाताओां ने अपनी आांखों से इन अमीरों का दि
ु भ
ग पतन
दे खा।
अतत-धनाढ्य िोर्ों की शाददयों की खबर िेने वािे मध्य वर्ग के िोर्ों को पहिे अपने चर्रे बान में झाांकना चादहए कक वे खुद र्रीबों के सामने
ककतने अलशष्ट नजर आते हैं। आम धारणा यही है कक इनकी सांपषत्त सावगजतनक नहीां हो पाती, मर्र कई ऐसी चीजें हैं, जो र्रीबों की नजरों से
तछपी भी नहीां रहतीां। असि में , यही वर्ग र्रीबों को धन-सांपदा और षवदे शी सांस्कृतत, दोनों की याद ददिाता है , और यही कारण है कक इस वर्ग
को राजनीततक रूप से र्रीब तबकों से अचधक अनदे खा ककया जाना चादहए। क्या यह सच नहीां है कक औसत भारतीय अरबपतत सिमान खान
से कहीां अचधक जुड़ाव महसस
ू करता है , जबकक ददल्िी के ‘सादर्ी पसांद’ बौद्चधकों से उस तरह नहीां जुड़ पाता, जजसकी एकमात्र कफजूिखची वह
रकम होती है , जो उसके माता-षपता ने कॉिेज की ड़डग्री हालसि करने में खचग की होती है ?
हमारी राजनीतत की धारा इसी र्ांदिे नािे से र्ुजरती है । असि में, भारत की लसयासत र्रीबों के िततशोध की राजनीतत है , िेककन यह िाांतीय
पूांजीपततयों को उतना परे शान नहीां करती, जजतना वैजश्वक भारतीयों को, जो पजश्चमी यूरोपीय दशगन और ‘पीपि’ के पेड़ के नीचे लमिे ज्ञान,
दोनों में षवश्वास रखते हैं। हािाांकक इसे पूरी तरह से भारतीयों पर ही िार्ू नहीां ककया जा सकता।
षवश्व के सबसे ताकतवर शख्स (अमेररकी राष्रपतत डोनाल्ड रां प) के उदय और दतु नया भर में दक्षिणपांथ के उभार, यहाां तक कक ब्रेजजजट वोट
ने भी यही साबबत ककया है कक औसत मतदाता बौद्चधकों को पसांद नहीां करता। यह नापसांदर्ी इतनी ज्यादा है कक यदद कोई बौद्चधक
समझदारी की बात भी कहता है , तो मतदाता उस समझदारी पर ही सवाि उठाने िर्ता है । मैं यहाां िोर्ों को मूखग नहीां समझ रहा। असलियत
में वे कुछ िोर्ों से दस
ू रों की तुिना में कहीां अचधक नफरत करते हैं। और यही वह वजह है कक कुछ बौद्चधक अपने एजक्टषवज्म के लिए वहाां
शरण िेना चाहते हैं, जहाां उन्हें ज्यादा पसांद ककया जाता है ।
यहाां आप यह तकग दे सकते हैं कक कोई भी र्रीब आपके और हे िीकॉप्टरों में घूमने वािे अरबपततयों के बीच आसानी से अांतर बता सकता है ।
इस तकग से मेरा भी इनकार नहीां है , कफर भी ककसी र्रीब शख्स को यह बताने में मुझे खुशी लमिेर्ी कक ‘मेरे दोस्त, अमीरी एक स्पेक्रम
यानी वणग-क्रम है ’। मर्र क्या र्रीबी को भी स्पेक्रम कह सकते हैं? यह क्रम आांकड़ों का हो सकता है , तो क्या र्रीब बने रहने की अवस्था भी
यही क्रम है ?
राजनीतत में पहचान कभी भी वणग-क्रम नहीां होती। यह अक्सर दो-र्ण
ु ों से लमिकर बनती है , चाहे उनमें दोि ही क्यों न हो! मसिन, स्त्री-परु
ु ि,
श्वेत-अश्वेत, अमीर-र्रीब आदद। हमारे दे श में एक ऐसा समय भी था, जब दे श का मध्य वर्ग र्रीबों की तरह व्यवहार ककया करता था। हममें
से कई राशन की दक
ु ानों में र्ए ही होंर्े। कई ने उसी स्कूि में पढ़ाई की होर्ी या लसनेमा हॉि में कफल्में दे खी होंर्ी, जहाां र्रीब भी मौजूद
होते थे। यहाां तक कक हमने समान राजनीततक दि को भी वोट ददया है । मर्र आज, हम अमीरों की तरह कहीां ज्यादा व्यवहार करने िर्े हैं।
हर इांसान हमेशा इसी सवाि का सटीक जवाब जानना चाहता है कक ‘सामने वािा शख्स दे श में अमीर है या र्रीब’?
एक सोच यह है कक भारत के अमीर र्रीबों को सजससडी दे ते हैं। मर्र जैसा कक पूवग मुख्य आचथगक सिाहकार अरषवांद सुब्रमण्यम ने 2015 के
आचथगक सवे में बताया था कक भारत में सजससडी का िाभ अमीरों को ज्यादा लमिता है , क्योंकक वे सस्ती बबजिी, जनोपयोर्ी सेवाओां और
खाद्यान्न का अचधक उपभोर् करने की जस्थतत में होते हैं। इसके अिावा, र्रीबों को दी जाने वािी कम मजदरू ी के रूप में भी मध्य वर्ग को
सजससडी लमिती है । लिहाजा, एक र्रीब दे श में मध्य वर्ग होना दरअसि, भारी ररयायत के साथ अमीर होना ही है ।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
दबाि में प्रणाली की प्रभािशीलता (प्रभात खबर)
19/12/18-डॉ िाईिी रे ड्डी पूिव गिनवर, आरबीआइ
इस सुधार िकक्रया की कई ऐसी षवशेिताएां थीां, जो राजकोिीय, मौदिक तथा षवत्तीय िेत्र की नीततयों के लिहाज से र्ौरतिब हैं: पहिी, सरकार ने षवत्तीय
एवां वैदेलशक िेत्र के सांबांध में अपना िाचधकार आरबीआइ षवतनयामकों एवां बाजारों के हाथ छोड़ ददया. आरबीआइ ने पररचािन सांबांधी स्वयत्तता हालसि
की, अपनी नीततयों को सरकार से सांबद्ध ककया तथा सांरचनात्मक पररवतगनों के मामिों में सरकार के साथ घतनष्ठ सहयोर् रखते हुए काम करना
आरां भ ककया. स्वचालित मुिीकरण (मोनेटाइजेशन) तथा षवतनमय तनयांत्रण की समाजप्त की तरह कई बार ऐसा भी हुआ कक इन चीजों पर अमि पहिे
शुरू हुआ और उन्हें वैधातनक स्वीकृतत बाद में लमिी.
दस
ू री, षवत्तीय िेत्र के सुधारों के सांबांध में आरबीआइ ने सरकार के सिाहकार के रूप में सकक्रय भूलमका तनभाना शुरू ककया. तीसरी, जैसे-जैसे सुधार
परवान चढ़े , सरकार ने पररचािन स्तर पर समन्वयन का कायग पूांजी बाजारों पर दे खरे ख के लिए स्थाषपत एक कमेटी को सौंप ददया, जजसके अध्यि
आरबीआइ र्वनगर तथा सांयोजक षवत्त मांत्रािय के सांयक्
ु त सचचव होते हैं. राजकोिीय िाचधकाररयों से बातचीत कर आरबीआइ का बैिेंस शीट समद्
ृ ध
करते हुए नीततर्त सुधारों की िभावशीिता बढ़ायी र्यी.
विग 2010 में षवत्त मांत्री की अध्यिता में षवत्तीय जस्थरता और षवकास पररिद् (एफएसडीसी) की स्थापना के साथ ही षवत्तीय सुधारों के िेत्र में
समन्वयन का कायग सीधे सरकार के हाथ आ र्या. इस पररिद् के अन्य सदस्यों में आरबीआइ के र्वनगर, सरकार के चार सचचव, मुख्य आचथगक
सिाहकार तथा षवलभन्न षवतनयामक तनकायों के चार िमख
ु शालमि हैं. इस पररिद् को षवत्तीय षवकास, षवत्तीय जस्थरता, षवत्तीय सािरता, षवत्तीय
समावेशन और सवागचधक िमुख रूप से अांतर षवतनयामकीय समन्वयन का उत्तरदातयत्व दे ददया र्या.
आरबीआइ एक्ट में सांशोधन कर जून 2016 में भारत में एक नये मौदिक नीतत ढाांचे हे तु षवधायी स्वीकृतत िार्ू की र्यी. मौदिक नीतत का िाथलमक
उद्दे श्य अब षवकास िक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए मूल्य जस्थरता कायम रखना हो र्या और आरबीआइ को इस नये ढाांचे के पररचािन की जजम्मेदारी
दी र्यी.
एफएसडीसी सरकार को षवत्तीय िेत्र के षवकास तथा जस्थरता हे तु जजम्मेदार बनाती है . उभरते बाजारों की अथगव्यवस्थाओां के अांतर्गत षवत्तीय िेत्र की
अजस्थरता राजनीततक अजस्थरता के साथ सह-अजस्तत्व बनाये रखती है. इसलिए जब सरकार स्वयां ही अजस्थर हो, तो उसे षवत्तीय अजस्थरता से तनबटने
में ददक्कतें पेश आती हैं. यदद सेंरि बैंक (ररजवग बैंक) तथा षवतनयामकों का सरकार के साथ सही तािमेि न हो, तो एक समन्वयक के साथ ही
षवतनयलमत तनकायों की स्वालमनी होने की वजह से वह उन्हें तनष्िभावी बना दे ती है .
सरकार द्वारा षवत्तीय िेत्र, खासकर बैंक जमा रालशयों को सांसदीय तनर्रानी के बर्ैर ही बजट के षवस्ताररत अांर् की तरह इस्तेमाि करने की परां परा
रही है . राजकोिीय दबाव में षवतनयामक एवां सरकारी स्वालमत्व के षवतनयलमत के बीच के सांबांधों को िभाषवत करने की िमता होती है , जजसके
राजकोिीय तनदहताथग बाद में िकट होते हैं. पूवग में ररजवग बैंक के बहुतेरे उद्दे श्य हुआ करते थे और ड़डप्टी र्वनगर मौदिक नीतत तनमागण से घतनष्ठ रूप
से जड़
ु े होते थे. नयी व्यवस्था के तहत षवत्तीय जस्थरता की चचांताओां पर िकट रूप से षवचार नहीां ककया जाता. यहाां तक कक वैदेलशक िेत्र के सांबांध में
भी षवत्तीय जस्थरता के सरोकारों को मौदिक नीतत के उद्दे श्यों में शालमि नहीां ककया जाता.
तो क्या एक सांपूणग सेवाएां दे नेवािे सेंरि बैंक के साथ अांततनगदहत ढां र् से जुड़ी समन्वयक की भूलमका भुिा दे ने की वजह से अब एक खतरा आ खड़ा
हुआ है ? क्या एक सांपूणग सेवाएां दे नेवािे सेंरि बैंक (आरबीआइ) के साथ मौदिक नीतत कमेटी (एमपीसी) के सह-अजस्तत्व से एक पहचान का सांकट आ
खड़ा हुआ है ?
मौदिक नीतत का सांचरण अब भी बैंककां र् िणािी पर तनभगर है , जजसमें सावगजतनक िेत्र के बैंकों का दबदबा कायम है . मौदिक नीतत वािे यह मानते हैं
कक यह व्यवस्था वस्तु तथा बाजार उन्मुखी िोत्साहनों एवां तनरुत्साहनों के ितत िततकक्रया करती है . मर्र सावगजतनक िेत्र के बैंक व्यापक सावगजतनक
दहतों को ध्यान में रखते हुए मौदिक नीतत सांकेतों के ितत िततकक्रया दे ते हैं.
मौदिक नीततर्त बयान के बाद षवत्त मांत्री आवश्यक रूप से सावगजतनक िेत्र के बैंकों के पदाचधकाररयों को सांबोचधत ककया करते हैं , ताकक उन्हें उनकी
अर्िी कारग वाइयों के लिए ददशा-तनदे श ददये जा सकें. इस िकार, मौदिक नीतत के सांचरण हे तु सरकारी स्वालमत्व के बैंकों की अहलमयत के कारण एक
‘स्वतांत्र’ मौदिक नीतत का असर भोथरा हो जाता है .
चूांकक सावगजतनक िेत्र के बैंकों का शासन सरकार तनदे लशत ही है , अतः बैंकों का षवतनयमन ढाांचा उनके स्वालमत्व के ितत तनरपेि नहीां रह पाता है .
राजकोिीय िाचधकारी बैंककां र् िणािी का इस्तेमाि कुछ सरकारी कायगक्रमों के कक्रयान्वयन हे तु करते हैं और इस काम में एक षवतनयामक के रूप में
आरबीआइ सर्
ु मता िदान करता है . कानून के अनुसार, बैंकों के खचे काटकर उनके पास बाकी बचे अचधशेि से सुरक्षित कोि में ददया जानेवािा अांश
भर्
ु तान करने के बाद सरकार को ददये जानेवािे िाभाांश का भर्
ु तान ककया जाता है . पर हाि में इस िकक्रया पर भी राजकोिीय सरोकारों का असर
पड़ता ददखता है .
(अनव
ु ाद: षवजय नांदन)
ब
The ambiguity of reservations for the poor- 22.1.19
The 103rd Constitution Amendment Act introducing special measures and reservations for ‘economically weaker
sections’ (EWS) has been perceived as being obviously unconstitutional. This article is sceptical of such a reading and
takes the view that a constitutional challenge to the amendment will take us into unclear constitutional territories. The
strongest constitutional challenge might not be to the amendment itself but to the manner in which governments
implement it. There is no foregone conclusion to a potential challenge and we would do well to start identifying the core
constitutional questions that arise. To be clear, I am here concerned only with questions that arise within constitutional
law.
Special measures
Article 15 stands amended enabling the state to take special measures (not limited to reservations) in favour of
EWS generally with an explicit sub-article on admissions to educational institutions with maximum 10%
reservations. The amendment to Article 16 allows 10% reservations (and not special measures) for EWS in public
employment and does so in a manner that is different from reservations for Scheduled Caste/Scheduled Tribes and
Other Backward Classes. The amendment leaves the definition of ‘economically weaker sections’ to be
determined by the state on the basis of ‘family income’ and other economic indicators. Also critical to this
amendment is the exclusion of SC/STs, OBCs and other beneficiary groups under Articles 15(4), 15(5) and 16(4)
as beneficiaries of the 10% EWS reservation.
A good point to start the consitutional examination is the Supreme Court’s view on reservations based purely on
economic criteria. Eight of the nine judges in Indra Sawhney (November 1992) held that the Narasimha Rao
government’s executive order (and not a constitutional amendment) providing for 10% reservations based purely
on economic criteria was unconstitutional. Their reasons included the position that income/property holdings
cannot be the basis for exclusion from government jobs, and that the Constitution was primarily concerned with
addressing social backwardness.
What explains the divergence in the economic fortunes of States? The report suggests that, at least during fiscal year
2018, government spending may be what boosted gross domestic product growth in the top-performing States,
particularly in Bihar and Andhra Pradesh whose double-digit growth rates have come along with a burgeoning fiscal
deficit. The impact of greater spending was that 10 of the 17 States breached the 3% fiscal deficit limit set by the Fiscal
Responsibility and Budget Management Act. Many other big-spending States, however, have not managed to achieve
growth above the national average. Punjab and Kerala, which are at the bottom of the growth table, are ranked as
profligates by the report. This suggests that the size of public spending is probably not what differentiates the richer
States from the poorer ones. Other variables like the strength of State-level institutions, as gauged by their ability to
uphold the rule of law and create a free, competitive marketplace for businesses to thrive, and the quality of public
spending could be crucial determinants of the long-run growth prospects of States.
Clear trends
Therefore, it is imperative to understand why India is not doing as well as these countries on the health front.
Looking at other developed and transitional economies over many years, two important trends can be discerned:
as countries become richer, they tend to invest more on health, and the share of health spending that is paid out of
the pocket declines. Economists have sought to explain this phenomena as “health financing transition”, akin to
demographic and epidemiologic transitions. The point to be noted is that similar to these transitions, the health
financing transition is not bound to happen, though it is widespread.
As with the other two transitions, countries differ in terms of timing to start the transition, vary in speed with
which they transition through it, and, sometimes, may even experience reversals. Economic, political and
technological factors move countries through this health financing transition. Of these, social solidarity for
redistribution of resources to the less advantaged is the key element in pushing for public policies that expand
pooled funding to provide health care. Out-of-pocket payments push millions of people into poverty and deter the
poor from using health services. Pre-paid financing mechanisms, such as general tax revenue or social health
insurance (not for profit), collect taxes or premium contributions from people based on their income, but allow
them to use health care based on their need and not on the basis of how much they would be expected to pay in to
the pooled fund.
Hence, most countries, which includes the developing ones, have adopted either of the above two financing
arrangements or a hybrid model to achieve Universal Health Care (UHC) for their respective populations. For
example, according to the World Health Organisation’s recent estimates, out-of-pocket expenditure contributed
only 20% to total health expenditure in Bhutan in 2015 whereas general government expenditure on health
accounted for 72%, which is about 2.6% of its GDP. Similarly, public expenditure represents 2%-4% of GDP
among the developing countries with significant UHC coverage, examples being Ghana, Thailand, Sri Lanka,
China and South Africa.
Increase allocation
If this sluggish public health spending has to be reversed, there is a need for a substantial increase in the allocation
for health in the forthcoming Union Budget. However, the rise in government health spending also depends on
health spending by States as they account for more than two-thirds of total spending.
Hence, both the Centre and States must increase their health spending efforts, which would reduce the burden of
out of pocket expenditure and improve the health status of the population. Else, the 2019 Budget would also see
public health spending sticking at 1% of GDP. This would mean India, would, without doubt, miss the 2025
target, and thereby fail to achieve UHC in a foreseeable future.
Soumitra Ghosh is Assistant Professor, Centre for Health Policy, Planning and Management, School of Health
Systems Studies, Tata Institute of Social Sciences, Mumbai
िाांछित तत्िों पर जल्द नकेल कसने के ललए प्रत्यपवण की लांबी प्रक्रिया खत्म
होनी चाहहए JWed, 06 Feb 2019 05:00 AM (IST)
भारत में घपिा-घोटािा या अन्य कोई अवैध-अनुचचत काम कर षवदे श में तछपने वािों को स्वदे श िाने के
लिए कूटनीततक र्ततषवचधयों को र्तत दे ना समय की माांर् है , िेककन इसी के साथ उन उपायों पर भी र्ौर
ककया जाना चादहए जजससे ित्यपगण में कम से कम समय िर्े। यह इसलिए आवश्यक है , क्योंकक
अचधकतर मामिों में षवदे श में जा तछपे िोर्ों को भारत िाने में कहीां अचधक समय िर् जाता है ।
तन:सांदेह यह राहतकारी है कक बब्रटे न के र्ह
ृ मांत्री ने षवजय माल्या को भारत ित्यषपगत करने की अनम
ु तत
दे दी, िेककन अभी यह तय नहीां कक वह भारत के हाथ कब िर्ें र्े।
षवजय माल्या बब्रटे न के र्ह
ृ मांत्री के आदे श के खखिाफ वहाां के उच्च न्यायािय में अपीि करें र्े। यदद उच्च
न्यायािय ने तनचिी अदाित के आदे श को सही पाया तब जाकर उनका भारत आना सतु नजश्चत हो
सकेर्ा। हािाांकक इसके आसार न के बराबर है ैैैां कक उच्च न्यायािय तनचिी अदाित के आदे श में कोई
हे रफेर करे र्ा, िेककन अभी यह नहीां कहा जा सकता कक वह अपना फैसिा कब सन
ु ाएर्ा? दे खना यह भी
होर्ा कक बब्रदटश उच्च न्यायािय के आदे श के बाद षवजय माल्या भारत आने से बचने के लिए कोई जतन
करते है ैैैां या नहीां? ध्यान रहे कक वह भारत आने से बचने के लिए ककस्म-ककस्म के बहाने र्ढ़ते रहे
है ैैैां। यही काम पांजाब नेशनि बैैैैांक में घोटािे के आरोपी नीरव मोदी और मेहुि चोकसी भी कर रहे
है ैैैां।
जहाां नीरव मोदी यह रार् अिाप रहे कक उन्हें भारत में खिनायक की तरह दे खा जा रहा वहीां मेहुि
चोकसी यह बहाना पेश कर रहे कक वह एांटीर्ुआ से भारत तक का िांबा हवाई सफर नहीां कर सकते।
षवडांबना यह है कक कई बार इस तरह की बहानेबाजी को सांबांचधत दे शों की अदाितें महत्व दे ने िर्ती
है ैैैां।
यह एक तथ्य है कक बब्रटे न की अदाितों ने भारत में वाांतछत कई तत्वों को इस आधार पर ित्यषपगत करने
से मना कर ददया कक यहाां की जेिों की दशा अच्छी नहीां है । एक ओर जहाां बब्रटे न जैसे दे श है ैैैां , जहाां का
ित्यपगण सांबांधी तांत्र कुछ ज्यादा ही जदटि है वहीां दस
ू री ओर सऊदी अरब और सांयुक्त अरब अमीरात जैसे
दे श है ैैैां जो वाांतछत शख्स की पहचान स्थाषपत होने और उसकी कारर्ुजारी का षववरण लमिते ही उसे
ित्यषपगत कर दे ते है ैैैां। इसके अततररक्त कुछ ऐसे भी दे श है ैैैां जो ित्यपगण के मामिे में एक तरह से
मनमाना रवैया िदलशगत करते है ैैैां।
पुरुलिया काांड में वाांतछत ककम डेवी का पुतर्
ग ाि से ित्यपगण नहीां हो पा रहा है तो इसीलिए, क्योंकक वहाां की
सरकार भारत की चचांता समझने के बजाय अपने आपराचधक अतीत और छषव वािे नार्ररक की दहफाजत
को ज्यादा अहलमयत दे रही है ैै। यह सही है कक पुतर्
ग ाि सरीखे यूरोपीय दे श मानवाचधकारों को कहीां
अचधक अहलमयत दे ते है ैैैां, िेककन इसका यह मतिब नहीां कक वे इसके नाम पर अपराचधयों का बचाव
करें । जरूरी केवि यह नहीां है कक पत
ु र्
ग ाि सरीखे दे शों के ितत सख्त कूटनीतत का पररचय ददया जाए,
बजल्क यह भी है कक ित्यपगण की िकक्रया को आसान बनाने के लिए अांतरराष्रीय मांचों पर आवाज भी
उठाई जाए ताकक ऐसा कोई कानून बन सके जजससे वाांतछत तत्व बहानेबाजी कर ित्यपगण से बचने न
पाएां।
सारधा-रोज वैिी जैसे घोटािों की ऐसी जाांच न हो जजसमें पीड़ड़तों को राहत न
लमि सके jPublish Date:Wed, 06 Feb 2019 07:44 AM (IST)
राजीि सचान ]: हजारों करोड़ रुपये के चचटफांड घोटािों की सीबीआइ जाांच को िेकर ममता और मोदी
सरकार के बीच तछड़े घमासान पर सुिीम कोटग के फैसिे के बाद दोनों पि जो मन में आए वह दावा कर
सकते है ैैैां, िेककन ऐसा दावा कोई नहीां कर सकता कक उन िाखों िोर्ों के मन में उम्मीद की कोई
ककरण जर्ी होर्ी जजन्हें सारधा और रोज वैिी नामक चचटफांड कांपतनयों ने िूटा। एक आांकड़े के अनुसार
इन दोनों चचटफांड कांपतनयों ने करीब 22 िाख िोर्ों के िर्भर् 20 हजार करोड़ रुपये हड़प ककए। इन
ददनों भिे ही सारधा घोटािे की जाांच को िेकर कोिकाता से िेकर ददल्िी तक बवाि मचा हुआ हो,
िेककन इस घोटािे से बड़ा घोटािा रोज वैिी कांपनी ने अांजाम ददया था। ये दोनों कांपतनयाां हजारों करोड़
रुपये की िूट इसलिए आसानी से कर सकीां, क्योंकक उन्होंने तमाम नेताओां के साथ मीड़डया के भी कई
िोर्ों को अपने धनबि से सांतुष्ट रखा।
सारधा घोटािा 2013 में ही सतह पर आ र्या था। ममता सरकार ने इस घोटािे की जाांच के लिए षवशेि
जाांच दि का र्ठन ककया। इस जाांच दि के िमुख वही राजीव कुमार थे जो इस समय कोिकाता के
पुलिस आयुक्त है ैैैां और जजनसे सीबीआइ की पूछताछ को िेकर कोहराम मचा। जब षवशेि जाांच दि से
जाांच को नाकाफी बताकर सीबीआइ जाांच की माांर् हुई तो ममता सरकार ने ऐसी ककसी जाांच का षवरोध
ककया, िेककन मई 2014 में सि
ु ीम कोटग ने यह दे खते हुए सीबीआइ जाांच के आदे श ददए कक इस घोटािे का
दायरा पजश्चम बांर्ाि के बाहर पड़ोसी राज्यों में भी फैिा हुआ है ।
चकांू क सि
ु ीम कोटग ने सारधा के साथ अन्य चचटफांड कांपतनयों की भी जाांच जरूरी बताई थी इसलिए रोज
वैिी कांपनी भी सीबीआइ जाांच के दायरे में आई। जल्द ही यह पता चिा कक रोज वैिी कांपनी ने तो कहीां
अचधक िोर्ों को ठर्ा है । यह सही है कक बीते चार सािों में सारधा और रोज वैिी घोटािे में कई िोर्ों
की चर्रफ्तारी हुई है और कई िोर् जेि भी र्ए है ैैैां, िेककन कोई नहीां जानता कक इन दोनों घोटािों की
जाांच कब तक जारी रहे र्ी? इस बारे में तो दरू -दर तक कोई खबर ही नहीां कक इन दोनों कांपतनयों की ठर्ी
का लशकार हुए िाखों िोर्ों को ककसी तरह की कोई राहत कब लमिेर्ी?
हािाांकक सारधा और रोज वैिी कांपतनयों के सांचािकों की तमाम सांपषत्तयाां जसत की जा चक
ु ी है ैैैां, िेककन
अभी तक इन कांपतनयों की सांपषत्तयाां बेचकर ठर्ी के लशकार हुए िोर्ों को राहत दे ने की कोई कोलशश होती
नहीां ददख रही है । इस तरह के घोटािों की वैसी जाांच का कोई मतिब नहीां जजसमें पीड़ड़त िोर्ों को राहत
लमिने की कोई सूरत न नजर आए। हो सकता है कक सीबीआइ जाांच सही ददशा में हो, िेककन क्या इसकी
अनदे खी कर दी जाए कक वह अभी तक वे दस्तावेज भी हालसि नहीां कर सकी है जो राजीव कुमार ने
षवशेि जाांच दि के िमुख के नाते सारधा कांपनी के मुखखया सुदीप्त सेन और उसकी सहयोर्ी दे वजानी
मुखजी से हालसि ककए थे।
सीबीआइ की मानें तो दे वजानी ने यह स्वीकार ककया था कक षवशेि जाांच दि ने उसके पास से एक िाि
डायरी और पेन ड्राइव समेत कुछ दस्तावेज जसत ककए थे। यह है रानी की बात है कक सीबीआइ अभी तक
वह िाि डायरी और पेन ड्राइव की ही तिाश कर रही है । माना जाता है कक इसी िाि डायरी और पेन
ड्राइव के बारे में जानकारी हालसि करने के लिए सीबीआइ कोिकाता के पुलिस आयुक्त राजीव कुमार से
पूछताछ करना चाह रही थी। ममता सरकार ने ऐसा नहीां करने ददया और सीबीआइ अचधकाररयों को ही
बांधक बना लिया।
यदद इस बात में ततनक भी सच्चाई है कक कोिकाता के पलु िस आयक्
ु त राजीव कुमार सारधा घोटािे के
सब
ु त
ू दबाए बैठे है ैैैां तो सीबीआइ को उनसे पछ
ू ताछ करने के साथ उन्हें चर्रफ्तार करने का भी अचधकार
होना चादहए। कफिहाि सि
ु ीम कोटग ने सीबीआइ को यह आदे श ददया है कक वह उनसे लशिाांर् में पछ
ू ताछ
तो कर सकती है , िेककन चर्रफ्तार नहीां कर सकती। जजस मामिे की जाांच सि
ु ीम कोटग के आदे श पर हो
रही है उसकी िर्तत और साथ ही उसकी दशा-ददशा से उसे पररचचत होना चादहए। हो सकता है कक वह
पररचचत हो, िेककन इतना ही पयागप्त नहीां। इन घोटािों का पटािेप होता हुआ भी ददखना चादहए। तन:सांदेह
पटािेप तभी होर्ा जब ठर्ी का लशकार हुए िाखों िोर्ों को उनका मूिधन हालसि हो जाए। यदद कोई यह
सुतनजश्चत करने वािा नहीां है कक ऐसा यथाशीघ्र हो तो कफर सीबीआइ जाांच का कोई मतिब नहीां है । जो
जाांच पीड़ड़त िोर्ों को राहत न दे सके उससे तो केवि घोटािेबाज ही सांतुष्ट हो सकते है ैैैां।
सीबीआइ की सुस्त जाांच के मामिे में मोदी सरकार की भी जवाबदे ही बनती है । यह सामान्य बात नहीां
कक चार साि बीत चक
ु े हैं, िेककन सीबीआइ अभी तक सारधा घोटािे की तह तक भी नहीां पहुांची है । आज
अर्र सीबीआइ को िेकर षवपिी दि केंि सरकार पर हमिा कर रहे है ैैैां तो इसके लिए वह खद ु भी
जजम्मेदार है , क्योंकक उसके कायगकाि में इस जाांच एजेंसी की छषव और साख, दोनों को धक्का िर्ा है ।
यह दे खना दयनीय है कक मोदी सरकार ने न तो पलु िस सध
ु ार में कोई ददिचस्पी िी और न ही सीबीआइ
को वास्तव में सिम एवां भरोसेमांद जाांच एजेंसी बनाने में , िेककन इसका यह मतिब नहीां कक षवपिी नेता
ममता सरकार के साथ खड़े होकर सही कर रहे है ैैैां। वास्तव में वे तो राजनीततक अवसरवाद का तनकृष्ट
उदाहरण पेश कर रहे है ैै
ै ां। इनमें वह राहुि र्ाांधी भी हैं जो एक समय यह कह रहे थे कक जजन िोर्ों ने
सारधा घोटािे को अांजाम ददया उन्हें ममता जी बचा रही है ैैैां। क्या राहुि र्ाांधी और अन्य षवपिी नेता
यह दे खकर उत्सादहत हैं कक ममता बनजी सीबीआइ अचधकाररयों को बांधक बनाने वािी पुलिस के साथ
धरने पर बैठने में सांकोच नहीां कर रही है ैैैां? क्या उन्हें यह दे खकर आनांद की अनुभूतत हो रही है कक
ममता दीदी इसके लिए हरसांभव जतन कर रही है ैैैां कक अलमत शाह से िेकर योर्ी आददत्यनाथ के
हे िीकॉप्टर पजश्चम बांर्ाि की धरती पर उतरने न पाएां?
अर्र सांषवधान के साथ सांघीय ढाांचे की रिा इसी तरह होती है तो कफर छीछािेदर कैसे होती है ? अर्र
सारधा घोटािे से ममता बनजी का कोई िेना-दे ना नहीां तो कफर वह कोिकाता के पुलिस आयुक्त का
बचाव अपने ककसी कायगकताग की तरह क्यों कर रही है ैैैां? इससे भी र्ांभीर सवाि यह है कक एक पुलिस
आयुक्त उनके साथ धरने पर बैठकर क्या कहना चाह रहा है ?
यह सही है कक अनुच्छे द 28(1) के अनुसार सरकार द्वारा सांचालित कोई भी सांस्थान ककसी भी षवलशष्ट
धमग की लशिा नहीां दे सकता, िेककन ‘असतो मा सद्र्मय, तमसो मा ज्योततर्गमय, मत्ृ योमागमत
ृ ां र्मय’,
जजसका अथग है , ‘मुझे असत्य से सत्य की ओर िे चिो, मुझे अांधकार से िकाश की ओर िे चिो, मुझे
मत्ृ यु से अमरता की ओर िे चिो’ केवि इसलिए धालमगक नहीां हो जाता कक यह दहांदओ
ु ां के उपतनिद से
उद्धत
ृ है । सॉलिलसटर जनरि तुिार मेहता ने कोटग में ठीक ही कहा कक ‘असतो मा सद्र्मय’ धमगतनरपेि
है । यह सावगभौलमक सत्य के वचन हैं जो सभी धमागविांबबयों पर िार्ू होते हैं। मेहता ने यह दिीि भी दी
कक सि
ु ीम कोटग के ितीक चचन्ह पर भी सांस्कृत में ‘यतो धमगस्ततो जय:’ लिखा है जो श्रीमदभर्द्र्ीता से
उद्धत
ृ है । इसका मतिब यह तो नहीां हुआ कक सि
ु ीम कोटग धालमगक है ।
मेहता का तकग सही है , नहीां तो भारत का राष्रीय आदशग वाक्य सत्यमेव जयते भी एक धालमगक वाक्य हो
जाएर्ा, क्योंकक यह मुांडकोपतनिद से लिया र्या है । और तो और हमारा राष्रीय ितीक-चचन्ह अशोक स्तांभ
भी धालमगक हो जाएर्ा, क्योंकक सत्यमेव जयते अशोक स्तांभ के नीचे अांककत है । ज्ञातव्य है कक सम्राट
अशोक द्वारा बनवाए इस लसांह स्तांभ में यह आदशग वाक्य मूि रूप से नहीां है । इस वाक्य को राष्रीय
ितीक-चचन्ह में अिर् से जोड़ा र्या। इसे पांड़डत नेहरू, डॉ. आांबेडकर और अन्य नेताओां ने 26 जनवरी,
1950 को स्वीकारा था। कफर जजस श्िोक की िाथगना पर षववाद हो रहा है वह कोई धालमगक लशिा नहीां है
और उसे काांग्रेस सरकार के समय शरू
ु ककया र्या था।
कोई िबुद्ध समाज अपनी र्ौरवशािी षवरासत को नकार कर आर्े नहीां बढ़ सकता। िलसद्ध अश्वेत
चचांतक मारकस र्ावी लिखते हैं कक अपने अतीत, मूि और सांस्कृतत के ज्ञान के बबना व्यजक्त एक जड़हीन
पेड़ की तरह है । चकूां क भारतीय साांस्कृततक षवरासत की बड़ी थाती सांस्कृत परां परा से आती है तो इसे कैसे
छोड़ ददया जाए? कफर इस षवरासत के िर्ततशीि, मानवतावादी और धमगतनरपेि तत्वों को ही अपनाने की
बात की जा रही है , षवशुद्ध धालमगक ितीकों को नहीां। याचचका के तकग को अर्र मान लिया जाए तो
स्कूि-कॉिेजों में पढ़ाए जा रहे दहांदी या अन्य भारतीय भािाओां के पाठ्यक्रम से महान भजक्त सादहत्य को
ही बाहर कर दे ना पड़ेर्ा, जजसे दे सी-षवदे शी षवद्वानों, यहाां तक कक माक्सगवादी सादहत्यकारों और चचांतकों ने
भी मुक्त कांठ से सराहा है ।
िाथगना के षवरुद्ध याचचका में ददया एक अन्य तकग कक यह वैज्ञातनक सोच में बाधक है , भी सही नहीां है ।
सभी धमों में िाथगना पर जोर ददया जाता है , िेककन इसका अथग वहाां कमग और वैज्ञातनक सोच से षवमुख
होना नहीां है । यहाां िाथगना ककसी षवशेि वस्तु के लिए न होकर अपनी आत्मा और अांत:शजक्त को जार्त
ृ
करने के लिए, स्वयां के पररष्कार के लिए है । और यह परू े स्कूिी कायगक्रम और समय का अत्यांत छोटा
दहस्सा है । कफर आज की जदटि होती जा रही जजांदर्ी में जब बच्चे, ककशोर और युवा आजत्मक रूप से
कमजोर होकर कई तरह की षवकृततयों का लशकार हो रहे हैं उस जस्थतत में ‘असतो मा सद्र्मय’ जैसी
पांजक्तयाां उनमें आत्मषवश्वास और नैततक शजक्त का सांचार कर सकती है ैैैां।
दरअसि आजादी के बाद से हमारा साांस्कृततक, बौद्चधक और शैिखणक षवमशग जाने-अनजाने वामपांथी और
पजश्चमी िभाव से आतांककत अांग्रेजीपरस्त िोर्ों के चांर्ुि में चिा र्या था, जहाां भारतीय तत्वों के ितत
उपेिा या हीनता का और पजश्चमी चीजों के ितत श्रद्धालमचश्रत भय का भाव होता है । इसी भाव के कारण
हम आज भी चाणक्य को भारत का मैककयावेिी कहते हैं तो कालिदास को भारत का शेक्सषपयर और
समुिर्ुप्त को भारत का नेपोलियन, जबकक कािक्रम, िततभा और उपिजसधयों-तीनों ही दृजष्टयों से चाणक्य,
कालिदास और समुिर्ुप्त ऊपर हैं। इसी मानलसकता के कारण सादहत्य के माध्यम से भारतीय पररवेश में
कानून की र्ुजत्थयों को समझने के लिए ककसी भारतीय कृतत की जर्ह है री पॉटर को पाठ्यक्रम में शालमि
ककया जाता है । समय आ र्या है कक इस साांस्कृततक-बौद्चधक सांघिग में हम अपने साांस्कृततक अतीत की
र्ौरवशािी जड़ों से जुड़ें। इसी में हमारा भषवष्य है ।
हमारे पड़ोस में जजस तरह की अजस्थरता का माहौि बना हुआ है , उसमें हमारी चन ु ौततयाां बहुत ज्यादा हैं.
इन चन ु ौततयों के लिए हमारे खचग भी ज्यादा होने चादहए, जो कक नहीां हैं. हर बजट में सरकार एक िाइन
डाि दे ती है कक अभी इतना रिा बजट है , जरूरी पड़ी तो इसे बढ़ाया भी जा सकता है .
इसका मतिब साफ है कक सरकार को पता है कक रिा बजट को बढ़ाये जाने की जरूरत है , िेककन वह
बढ़ायेर्ी नहीां. सरकार यह कब समझेर्ी कक रिा साजो-सामान के लिए बाद में बजट बढ़ाने का कोई
औचचत्य नहीां है , क्योंकक यह राशन बजट नहीां है .
मान िीजजए कक आपके घर में आटा या चावि कम हो जाये, तो आप फौरन बोिेंर्े कक अभी बाजार से
िेकर आते हैं, तब खाना बनेर्ा, िेककन जरा सोचचए, अर्र हमारे दश्ु मन यिर्ार कर दें और हमारे पास
िड़ने के लिए हचथयार और साजाैे-सामान नहीां होंर्े, तो दश्ु मन से क्या आप यह कहें र्े कक भई रुको
अभी हम हचथयार खदी कर आते हैं, तब िड़ेंर्े?
सरकार को यह क्यों नहीां समझ में आता कक उसे अपना घर सुरक्षित रखने के लिए पयागप्त मात्रा में
हचथयार और साजो-सामान होना चादहए!
िततददन आधतु नक होते समय में जजस तरह की तकनीकें षवकलसत हो रही हैं, वे एक तरफ चन
ु ौततयों को
बढ़ा रही हैं, तो दस
ू री तरफ सैन्य साजो-सामान के अत्याधतु नक होने की माांर् भी कर रही हैं.
दरअसि, एक खास तरह का र्ित रें ड हमने दे खा है कक हमारी कोलशश यह रही है कक सैतनकों की
भततगयाां करते रहो, यानी ज्यादा बड़ी सेना हो, िेककन यह सोच नहीां रही है कक इतनी बड़ी सेना आखखर
िड़ेर्ी कैसे, जब उसके पास आधतु नक हचथयार पयागप्त मात्रा में नहीां होंर्े? भारतीय सेना में बहुत सारे
उपकरण विों परु ाने हैं और इसे आधतु नक उपकरण मह ु ै या कराना सख्त जरूरी है . इसके लिए हमें अपनी
जीडीपी का ढाई से तीन िततशत खचग करना होर्ा, जो कक अभी सांभव नहीां ददख रहा है . रिा बजट को
िेकर फैसिे िेनेवािे िोर्ों में नीततयों का अभाव ददखता है .
अभी जो रिा बजट पास हुआ है , एक आकिन के मुताबबक, इसका करीब अस्सी िततशत तो सैन्य
उपकरणों की दे ख-रे ख, सैतनकों की तनख्वाह और रोज के जरूरी खचों व रे तनांर् आदद में ही खत्म हो जाता
है . इसमें कोई शक नहीां कक भारतीय सैतनक जोशीिे हैं , िेककन िड़ाई के मैदान में लसफग जोश से नहीां िड़ा
जा सकता, उसके लिए हचथयार भी चादहए.
सैतनकों का मनोबि आधतु नक हचथयारों से बढ़ता है . सेना पर ज्यादा खचग हमारी अथगव्यवस्था के लिए भी
जरूरी है , क्योंकक अर्र आधतु नक हचथयारों से िैस सीमा पर खड़ी सेना से दे श के िोर् सुरक्षित महसूस
करते हैं, तो वे दे श के भीतर ज्यादा जोश से काम करते हैं और दे श तरक्की की राह पर चि पड़ता है .
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधाररत)
बबना गठबांधन की एकता Updated Date: Feb 6 2019 5:57AM prbhat khabar
बीती 19 जनवरी को ही वे सब कोिकाता में एक मांच पर इकट्ठा हुए थे. ममता बनजी की बुिायी रै िी के
मांच से उन सबने मोदी के नेतत्ृ व वािे एनडीए को केंि की सत्ता से उखाड़ फेंकने का आह्वान ककया था.
रषववार को कोिकाता में नाटकीय घटनाक्रम के बाद एक बार कफर वे लमि कर मोदी सरकार को कोसने,
उसे िोकतांत्र, सांघीय स्वरूप और सांवैधातनक सांस्थाओां को नष्ट करनेवािा बताने में कोई कसर नहीां छोड़े. वे
सब ममता बनजी के पीछे खड़े होकर मोदी के खखिाफ एकजुट ददखने की कोलशश कर रहे हैं.
षपछिे डेढ़-दो साि से ऐसी ही जस्थतत बनी हुई है . काांग्रेस समेत भाजपा षवरोधी कई िेत्रीय दि 2019 के
आम चन ु ाव में मोदी को परास्त करने के लिए एकजट ु होने की कोलशश करते रहे हैं. महार्ठबांधन बनाने
की चचागएां जब-तब होती रहीां. षवपिी नेताओां के ददल्िी डेरों से िेकर िाांतीय राजधातनयों के सरकारी बांर्िों
तक बैठकों के दौर चिते रहे . महार्ठबांधन बनाने की पहिी बड़ी कोलशश िािू यादव की पहि पर डेढ़
साि पहिे पटना रै िी में हुई थी.
उत्तर िदे श के दो धरु -षवरोधी दिों, सपा और बसपा के एक साथ आने की जमीन उसी पहि से बननी शुरू
हुई थी. पटना रै िी से बड़े-बड़े एिान हुए थे. उसके बाद से महार्ठबांधन बनने की चचागओां को र्तत लमिी
थी, हािाांकक िेत्रीय दिों के अांतषवगरोधों ने उसकी सांभावनाओां पर सवाि भी खब
ू िर्ा ददये थे.
षवपिी दिों को एक और बड़ा अवसर मई 2018 में लमिा, जब कनागटक चुनाव में भाजपा सत्ता कसजाने में
नाकाम हुई और कुमारस्वामी के नेतत्ृ व में काांग्रेस-जनता दि (सेकुिर) की सरकार बनी.
कुमारस्वामी का शपथ ग्रहण समारोह भाजपा के खखिाफ षवपिी दिों का बड़ा जुटान बना. वह मांच
षवपिी नेताओां के लिए न केवि उत्साहवधगक था, बजल्क एकता के ितीक रूप में कुछ अद्भुत दृश्य बहुत
ददनों तक मीड़डया में छाये रहे थे.
सोतनया और मायावती की स्नेदहि आलिांर्न वािी बहुिचाररत तस्वीर बेंर्िुरु के उसी मांच की है . िर्
रहा था कक मायावती का पुराना काांग्रेस षवरोध अब ततरोदहत हो जायेर्ा. उसी मांच पर सपा अध्यि
अखखिेश यादव ने बसपा नेता मायावती का बड़े आदर से स्वार्त ककया था. पटना से साांकेततक रूप में
शरू
ु हुई उनकी दोस्ती उसी ददन सावगजतनक हुई थी.
बेंर्िरु
ु के उसी मांच पर बांर्ाि के परु ाने राजनीततक शत्रु माकपा नेता सीताराम येचरु ी और तण
ृ मि
ू काांग्रेस
की ममता बनजी भी मौजद ू थीां. एक-दसू रे को फूटी आांख न दे खनेवािे ये नेता उस ददन मस्
ु कराते हुए
आमने-सामने भी हुए. वहाां और भी िेत्रीय नेता थे, जजनका जोश बता रहा था कक उन्हें भाजपा को
सताच्युत करने के लिए एकता का सूत्र लमि र्या है .
जजस तरह पटना की रै िी के बाद महार्ठबांधन की सांभावना धलू मि होती र्यी, उसी तरह बेंर्िरु
ु के
षवपिी जमावड़े से तनकिे एकजुटता के सांदेश भी जल्दी से उिटे सांकेत दे ने िर्े. सोतनया र्ाांधी के
र्िबदहयाां डािनेवािी मायावती काांग्रेस पर हमिावर होती र्यीां.
इसके अिावा टीआरएस नेता चांिशेखर राव और तेिुर्ु दे शम के चांिबाबू नायडु ने षवपिी एकता की जो
पहि की, वह ककसी नतीजे तक नहीां पहुांची. तेिांर्ाना में तेिुर्ु दे शम, काांग्रेस और वाम दिों ने लमि कर
चन
ु ाव िड़ा, िेककन नाकामयाब रहे . इस ियोर् की षवफिता के बाद काांग्रेस अब तेिुर्ु दे शम से दरू ी बना
रही है . सांकेत हैं कक वह आांध्र में उसके साथ लमि कर िोकसभा चन
ु ाव नहीां िड़ेर्ी.
अपने अांतरषवरोधों, िेत्रीय समीकरणों और काांग्रेस से परु ाने बैर के कारण अब तक भाजपा षवरोधी दि
राष्रीय स्तर पर ककसी एकता का आधार तैयार नहीां कर सके. आम चन
ु ाव सामने है . कोई र्ठबांधन बन
पायेर्ा, इसके आसार नहीां ददखते. इसके बावजद
ू इन दिों में 2019 के चन
ु ाव में भाजपा को धि
ू चटाने की
तीव्र िािसा ददखती है .
सबको अपने राजनीततक अजस्तत्व के लिए भाजपा ही बड़ा खतरा ददख रही है . इसलिए वे एकजुटता
ददखाने, एक मांच पर आने और भाजपा-षवरोध के लिए सामूदहक मुद्दा तिाशने का कोई भी मौका नहीां
छोड़ना चाहते हैं.
ममता बनजी की षवपिी रै िी को एक महीना भी नहीां हुआ कक षवपिी दिों के लिए कोिकाता कफर एक
ऐसा अवसर िे आया, जब वे लमि कर मोदी सरकार के खखिाफ अपनी एकजट ु ता ददखा सकते थे. सारधा
घोटािे के लसिलसिे में वहाां के पुलिस कलमश्नर से पूछताछ करने सीबीआइ क्या पहुांची, ममता बनजी ने
मोदी सरकार के खखिाफ नया मोचाग खोि ददया.
वह ‘सांघीय ढाांचे को ध्वस्त करने’ का आरोप िर्ाकर धरने पर क्या बैठीां कक पूरा षवपि ममता के समथगन
में और मोदी सरकार के षवरुद्ध एक सरु में बोिने िर्ा. कई दिों के बड़े नेता कोिकाता जाकर उनके
धरना-मांच में शरीक हो आये और कई ने अपने र्ढ़ से ही मोदी सरकार के खखिाफ हुांकार भरी.
करीब बाईस राजनीततक पादटग याां मोदी सरकार के खखिाफ और ममता बनजी के समथगन में इस समय
बयान दे रही हैं. इनमें काांग्रेस समेत षवलभन्न राज्यों के बड़े दि शालमि हैं.
ममता के मामिे में बीजू जनता दि ने भी भाजपा षवरोधी तेवर ददखाये हैं. िर्ता है कक भाजपा के
षवरुद्ध व्यापक मोचाग तैयार है , िेककन वास्तव में कोई मोचाग तैयार नहीां है. ममता के पि में खड़े सारे
नेता उन्हें अपना नेता मानने को कतई तैयार नहीां होंर्े.
इस तथ्य के बावजद
ू भाजपा के लिए 2019 का सांग्राम आसान नहीां है . उत्तर िदे श में काांग्रेस के अिर्
मैदान में उतरने के बावजद
ू सपा-बसपा के र्ठबांधन से िड़ाई बहुत कदठन हो चक
ु ी है . बबहार में नीतीश के
कारण एनडीए मजबूत भिे ददखता हो, षवरोधी र्ठबांधन को कमजोर नहीां आांकना चादहए.
इसके अिावा कुछ राज्यों में भाजपा की काांग्रेस से सीधी िड़ाई है और उन राज्यों में 2014 के बाद से
काांग्रेस मजबूत हुई है . ककसी सांयुक्त मोचे या र्ठबांधन के बबना भी भाजपा षवरोध के स्वर तीव्र हो रहे हैं.
षवपि इन षवरोधी सुरों को तेज बनाये रखना चाहता है . कफिहाि यही स्वर उनकी एकजट ु ता है .
कृषि जोत लसकुड़कर अव्यावहाररक बन रही हैं और परां परार्त कृषि अिाभकारी हो रही है । ऐसे में वदटग कि
खेती ने फसि उर्ाने के एक आकिगक तरीके के रूप में ध्यान आकृष्ट करना शुरू कर ददया है । कृषि की
इस अनोखी िणािी में पौधों को दीवारों से जुड़ी अिमाररयों पर रखे कांटे नरों में या उर्ाया जाता है या िांबे
फ्रेम या षपिर पर टाांर्ा जाता है । इससे पौधों को अपनी पूरी ऊांचाई तक बढऩे और हर पौधे तक िकाश
को पहुांचने की पयागप्त जर्ह लमिती है । छतों, बािकनी और शहरों में बहुमांजजिा इमारतों के कुछ दहस्सों
में फसिी पौधे उर्ाने को भी वदटग कि कृषि के ही एक दहस्से के रूप में दे खा जाता है । हािाांकक इसके
सबसे अच्छे नतीजे तब लमिते हैं, जब ऐसी खेती इमारत के भीतर या पॉलि हाउस में की जाती है । इनमें
पयागवरण की दशाओां को तनयांबत्रत ककया जा सकता है । वदटग कि कृषि का बतु नयादी उद्दे श्य कम से कम
जर्ह में ज्यादा से ज्यादा सांख्या में पौधे उर्ाना है । इसमें िैततज की तरह ऊध्र्वाधर जर्ह का इस्तेमाि
ककया जाता है ।
हािाांकक अभी भारत में फसिें उर्ाने का यह तरीका शुरुआती चरण में ही है । मर्र यह अन्य कई दे शों में
काफी िर्तत कर चक
ु ा है । षवशेि रूप से उन दे शों में , जहाां जमीन की उपिसधता कम है । इस बात में कोई
सांदेह नहीां है कक बड़े आकार और वजनी फसिें इस तरह की खेती के लिए उपयुक्त नहीां हैं। िेककन ऊांचे
मूल्य और छोटे आकार की बहुत सी फसिें आसानी से ऊध्र्वाधर ढाांचों में उर्ाई जा सकती हैं। वदटग कि
खेती करने वािे ज्यादातर उद्यमी िेदटस, ब्रोकिी, औिधीय एवां सुर्ांचधत जड़ी-बूदटयाां, फूि और साज-सज्जा
के पौधे, टमाटर, बैर्न जैसी मझोिी आकार की फसिें और स्रॉबेरी जैसे फि उर्ाते हैं।
सांरक्षित पयागवरण में अिमाररयों में रे में मशरूम की वाखणजज्यक खेती वदटग कि खेती का सबसे आम
उदाहरण है । उच्च तकनीक वािी वदटग कि खेती का एक अन्य सामान्य उदाहरण दटश्यू कल्चर है । इसमें
पौधों के बीजों को टे स्ट ट्यूब में लसांथेदटक माध्यम में उर्ाया जाता है और कृबत्रम िकाश और पयागवरण
मह
ु ै या कराया जाता है । वदटग कि फामग में उर्ाए जाने वािे उत्पाद बीमाररयों, कीटों और कीटनाशकों से
मक्
ु त होते हैं। आम तौर पर इनकी र्णु वत्ता बहुत बेहतर होती है , इसलिए उनके दाम भी ज्यादा लमिते हैं।
इस समय वदटग कि कृषि मख् ु य रूप से बेंर्िरु
ू , है दराबाद , ददल्िी और कुछ अन्य शहरों में होती है । यहाां
उद्यलमयों ने शौककया तौर पर वदटग कि खेती की शरु
ु आत की थी, िेककन बाद में व्यावसातयक उद्यम का
रूप दे ददया। इन शहरों में बहुत से उद्यमी हाइड्रोपोतनक्स और एयरोपोतनक्स जैसे जानी-मानी िणालियों
का इस्तेमाि कर रहे हैं। हाइड्रोपोतनक्स में पौधों को पानी में उर्ाया जाता है । इस पानी में आवश्यक
पादप पोिक लमिे होते हैं। एयरोपोतनक्स में पौधों की जड़ों पर केवि लमचश्रत पोिक तत्त्वों का तछड़काव
ककया जाता है । र्मिे में िर्े पौधों के मामिे में आम तौर पर लमट्टी की जर्ह पिागइट, नाररयि के रे श,े
कोको पीट, फसिों का फूस या बजरी का इस्तेमाि ककया जाता है ।
हािाांकक वदटग कि कृषि के कुछ पेचीदा पहिू भी हैं । ये ददक्कतें मामिे पर तनभगर करती हैं और इसलिए
उनसे हर मामिे के आधार पर तनपटा जाना चादहए। इनमें से एक चन
ु ौती पौधों के लिए पयागप्त िकाश
सुतनजश्चत करना भी है । अर्र उस इमारती ढाांचे की इकाइयों में पयागप्त मात्रा में सूरज की रोशनी उपिसध
नहीां है तो कृबत्रम िकाश की व्यवस्था की जानी चादहए ताकक पौधों की सामान्य वद्
ृ चध हो सके। इसमें
एिईडी बल्ब और ट्यूब मददर्ार साबबत हो सकते है , जजनकी िार्त अब काफी कम हो र्ई है । इमारत के
अांदर के पौधों तक सूरज की रोशनी पहुांचाने के लिए िकाश परावतगकों का भी इस्तेमाि ककया जा सकता
है ।
परार्ण एक अन्य चन
ु ौती है , षवशेि रूप से क्रॉस पॉलिनेटड फसिों के मामिे में । इस पर ध्यान दे ने की
जरूरत है । इनडोर फॉमग में परार्ण कीट नहीां होते हैं , इसलिए परार्ण हाथ से करना होता है । इसमें िार्त
आती है और समय भी खचग होता है । अब बहुत से उद्यमी इस उद्दे श्य के लिए वदटग कि फॉलमिंर् इकाइयों
में मधम
ु क्खी पािन करते हैं। मधम
ु क्खी पािन से शहद और मोम, िोपोलिस और रॉयि जेिी जैसे महां र्े
उपोत्पाद िाप्त होते हैं, जजसे बेचकर अततररक्त आमदनी अजजगत की जा सकती है ।
भारत में वदटग कि फॉलमिंर् के मामूिी िसार की मुख्य वजहों में से एक शोध एवां षवकास मदद का अभाव
है । वदटग कि खेती की तकनीक को बेहतर बनाने और िार्त कम करने के लिए मुजश्कि से ही कोई
सांस्थार्त शोध चि रहा है । वदटग कि खेती के समथगक भारतीय कृषि अनस
ु ांधान पररिद के सहायक
महातनदे शक टी जानकीराम कहते हैं कक खेती की इस िणािी को िोकषिय बनाने के लिए ऐसे शोध की
तत्काि जरूरत है । सरकारी और तनजी दोनों िेत्रों को शोध एवां षवकास केंि स्थाषपत करने के बारे में
षवचार करना चादहए ताकक वदटग कि खेती को िोत्सादहत ककया जा सके। इससे इस कृषि िणािी के
आचथगक, पयागवरण और अन्य िाभ हालसि ककए जा सकेंर्े। कृषि उपज की बड़ी मात्रा को शहरों में भेजने
से यातायात जाम और वाहन िदि
ू ण समेत जदटि समस्याएां पैदा हो रही हैं। इसके अिावा इन उपजों को
भेजने की भारी मािभाड़ा िार्त आती है । इसे मद्दे नजर रखते हुए शहरों को अपनी जरूरत के एक दहस्से
की आपूततग स्थानीय उत्पादन से करनी चादहए। इसलिए सरकार को वदटग कि कृषि को बढ़ावा दे ने के लिए
नीततयाां िानी चादहए।
शेि 56 िततशत घाटे में से 33 िततशत की पतू तग तेि एवां र्ैस उत्खनन व आयात करने वािी कांपतनयााँ करती हैं।
अब षवश्व बाजार में खतनज तेि के भाव 125 डॉिर ितत बैरि हो जाने से िर्ता है कक तेि
कांपतनयों का अपूररत घाटा 40 अरब डॉिर के आस-पास पहुाँच सकता है , क्योंकक दे श में
पेरोि-डीजि की मााँर् तेजी से बढ़ रही है । खाना पकाने की र्ैस की मााँर् भी जोर-शोर से बढ़
रही है
ये कांपतनयााँ हैं- तेि एवां िाकृततक र्ैस आयोर् (ओएनजीसी), र्ैस अथॉररटी ऑफ इांड़डया लि. (जीएआईएि या र्ैि)
एवां ऑइि इांड़डया लि. (ओआईएि)। शेि 23 िततशत घाटा षवपणन करने वािी कांपतनयााँ अथागत इांड़डयन ऑइि
(आईओएि), भारत पेरोलियम (बीपीआईएि) एवां दहन्दस्
ु तान पेरोलियम (एचपीसीएि) बदागश्त करती हैं। इससे उनकी
मािी हाित िर्ातार कमजोर होती जा रही है ।
इन कांपतनयों की मख्
ु यतया तीन मााँर्ें हैं- एक, तेि षवपणन कांपतनयों को सरकार की नीतत के तहत जो 23-24
िततशत घाटा उठाना पड़ रहा है वह घटकर 12-13 िततशत हो जाए, इसलिए केंि सरकार 44 िततशत घाटे के बजाय
50 िततशत घाटे के बराबर ऑइि बॉण््स जारी करे । दो, सरकार दे श में पेरोि-डीजि, र्ैस व केरोलसन के भाव
बढ़ाए।
ये शल्
ु क खत्म ककए जाएाँ। अर्र शल्
ु क खत्म नहीां होते तो कम से कम मल्
ू य के आधार पर शल्
ु क न िर्ाया जाए।
केंि के साथ ही साथ राज्य सरकारों ने भी पेरोलियम उत्पादों पर भारी कर िर्ाकर अपनी कमाई अथागत कर
राजस्व बढ़ाने का साधन बना लिया है । दे श में इन उत्पादों पर कर का भार 40 िततशत से अचधक है । इसी वजह से
आम नार्ररकों को दे श में पेरोि व डीजि के भाव अचधक भारी महसस
ू होते हैं।
इस तरह दे खा जाए तो महाँर्े भाव पर आयात ककए जाने वािे खतनज तेि से होने वािे घाटे की पतू तग के लिए तेि
कांपतनयों के पास कोई साधन नहीां है ।
उभरती अथगव्यवस्था वािे दे श में पेरोि-डीजि की खपत में तेज वद्
ृ चध होती ही है । पर पता
नहीां, आम भारतीय इनकी खपत में कोर-कसर करने के ितत अचधक उत्सादहत क्यों नहीां है
सरकार सबलसडी की पतू तग के लिए ऑइि बॉण््स जारी करती है । और कांपतनयााँ िर्ातार मााँर् करती आ रही हैं कक
इन बॉण्डों को एसएिआर (साांषवचधक लिजक्वड़डटी रे शो) की श्रेणी दी जाए ताकक बैंकों की इन बॉण्डों में ददिचस्पी बढ़े
एवां बॉण्ड बाजार में ऑइि बॉण्डों का कामकाज बढ़े ककां तु सरकार उनकी इस मााँर् से भी सहमत नहीां है ।
एसएिआर के तहत बैंकों को अपनी जमा रकमों की 25 िततशत रालश सरकारी िततभतू तयों व सरकारी बॉण्डों में
रखना पड़ती है । इसलिए जजन बॉण्डों में एसएिआर पात्रता है उन्हीां को खरीदने में बैंकों की ददिचस्पी बनी रहती है ।
षपछिे विग षवत्तमांत्री तेि कांपतनयों के घाटे की 57 िततशत की पतू तग ऑइि बॉण्डों से करने पर राजी हो र्ए थे ककां तु
इस विग वे पन
ु ः मक
ु र र्ए एवां कह रहे हैं कक 57 िततशत के घाटे की आपतू तग केंिीय मांबत्रमांडि की स्वीकृतत से ही
हो सकती है और मांबत्रमांडि ने अभी तक यह स्वीकृतत नहीां दी है ।
अब षवश्व बाजार में खतनज तेि के भाव 125 डॉिर ितत बैरि हो जाने से िर्ता है कक तेि कांपतनयों का अपरू रत
घाटा 40 अरब डॉिर के आस-पास पहुाँच सकता है , क्योंकक दे श में पेरोि-डीजि की मााँर् तेजी से बढ़ रही है । खाना
पकाने की र्ैस की मााँर् भी जोर-शोर से बढ़ रही है और ऐसा ही हाि केरोलसन का है । सरकारी सहायता (सबलसडी)
की वजह से दे श में पेरोि व डीजि के भाव वैजश्वक भाव की ति
ु ना में बहुत सस्ते हैं।
इस बढ़े -चढ़े घाटे का कारण षवश्व बाजार में खतनज तेि के भाव बढ़ने के साथ दे श में डॉिर की ति
ु ना में रुपए के
भाव घटना है । कांपतनयों को अब अचधक रुपए दे कर डॉिर खरीदना पड़ रहे हैं जजससे उनका घाटा बढ़ रहा है और
इस घाटे की परू ी पतू तग न हो पाने से तेि षवपणन कांपतनयों का राजस्व तेजी से घट रहा है एवां षवस्तार व षवकास
के लिए उनके सामने धन के अभाव की समस्या खड़ी हो र्ई है एवां घाटा हर सीमा को िााँघ रहा है ।
इसीलिए दे श में तेि का षवपणन करने वािी कांपतनयों की षवत्तीय हाित बदतर हो रही है । महाँर्े खतनज तेि का
बढ़ता आयात एवां डॉिर के मक
ु ाबिे रुपए के घटते मल्
ू य की वजह से चािू खाते (आयात-तनयागत के खाते) का घाटा
तेजी से बढ़ रहा है । विग 2007-08 की चौथी ततमाही (जनवरी से माचग) में चािू खाते के घाटे में 2 अरब डॉिर की
वद्
ृ चध हो र्ई। दे श के तनयागत की ति
ु ना में आयात 80 अरब डॉिर अचधक है , क्योंकक विग 2007-08 में आयात 27
िततशत बढ़कर 236 अरब डॉिर हो र्या। इसमें खतनज तेि का आयात िततशत अचधक है ।
यह जस्थतत डॉिर एवां खतनज तेि के बढ़ते हुए भाव से बनी है । ऐसे में सरकार के सामने ऊपाय यही है कक दे श में
पेरोलियम उत्पादों के भाव बढ़ाएाँ एवां उन पर सबलसडी समाप्त करें । ककां तु षवधानसभाओां के चन
ु ाव एवां कफर आम
चुनाव के पररिेक्ष्य में सरकार के लिए यह तनणगय िेना कदठन है । कफर इस तनणगय से दे श में मि
ु ास्फीतत व महाँर्ाई
बढ़े र्ी एवां दे श की षवकास दर अवरुद्ध होर्ी, जो सरकार के दहत में नहीां है ।
लिहाजा, तेि षवतरण करने वािी कांपतनयों की हाित अभी और खस्ता बनना ही उनके भाजय में बदा है । खतनज
तेि के भाव घटने की कोई सांभावना नहीां है एवां रुपया तभी मजबत
ू बनेर्ा, जब दे श में डॉिर की आवक बढ़े र्ी।
अभी आवक बढ़ने की कोई सांभावना नहीां है । इसलिए तेि षवपणन कांपतनयों को बहुत कुछ सहना शेि है ।
सीबीआइ केंि के अधीन कायग करती है , उसे राज्यों में कारग वाई करने का अचधकार है । िोकसभा में र्ह
ृ
मांत्री राजनाथ लसांह ने भी केंि सरकार की शजक्तयों का हवािा दे ते हुए कहा कक दे श के ककसी भी
दहस्से में जस्थततयाां सामान्य बनाए रखने के लिए जरूरी कदम उठाने का सांषवधान के तहत केंि को
अचधकार है । िेककन पजश्चम बांर्ाि में जो घटनाक्रम हुआ, उससे पहिा सवाि यही उठता है कक क्या
सीबीआइ को पुलिस के इतने बड़े अचधकारी पर कारग वाई करने से पहिे राज्य सरकार को भरोसे में
िेने की जरूरत नहीां थी? सवाि इसलिए भी खड़ा होता है , क्योंकक पजश्चम बांर्ाि सरकार ने सीबीआइ
के सीधे दखि पर रोक िर्ाई हुई है । ऐसे में केंि सरकार और सीबीआइ की जजम्मेदारी बनती है कक
वह राज्य के अचधकारों का सम्मान करे । सवाि राज्यों के इस रवैये पर भी उठता है कक आखखर ऐसी
क्या वजह हुई कक कुछ र्ैर-भाजपा शालसत राज्यों ने सीबीआइ के सीधे दखि पर रोक िर्ा दी।
कठघरे में सीबीआइ की कायगशैिी भी है । उसकी सकक्रयता षवपिी राज्यों में ही क्यों ज्यादा ददखाई
दे ती है ? क्या इसके राजनीततक मायने नहीां तिाशे जाएांर्े? वैसे भी सीबीआइ पर राजनीततक तौर पर
काम करने के आरोप िर्ते रहे हैं। षवपिी नेता केंि सरकार पर सीबीआइ के दरु
ु पयोर् का आरोप
िर्ाते रहे हैं। खुद भाजपा भी षवपि में रहकर ऐसे आरोपों को दोहराती रही है । आज जब वह सत्ता में
है , तब यह आरोप उसके ऊपर िर् रहे हैं। बेहतर हो कक सीबीआइ अपनी चर्रती िततष्ठा को ध्यान में
रखे और ईमानदारी और तनष्पिता के साथ काम करे । राज्यों की भी जजम्मेदारी है कक वह सांघीय
व्यवस्था को सीधे चुनौती दे ने से बचें । अर्र आपको केंि की ककसी कारग वाई पर एतराज है तो आप
उचचत फोरम पर अपनी बात रख सकते हैं। वजह साफ है , दोनों के ऊपर दे श के सांघीय ढाांचे को बचाए
रखने का बराबर जजम्मा है । दोनों को एक-दस
ू रे के अचधकारों का सम्मान करना होर्ा। यही दे श का
सांषवधान भी कहता है । ऐसे में केंि या राज्य सरकारें सांषवधान के षवपरीत जाकर काम नहीां कर
सकती हैं। केंि और राज्यों के बीच ररश्ते जजतने मधरु होंर्े, हमारा िोकतांत्र उतना ही ज्यादा मजबूत
बनकर उभरे र्ा।
Fixing the federal fallout of the Kerala flood relief funding row requires
care
The differences between the Kerala and Central governments over the denial of
external assistance to rebuild the State after the devastating floods of August last year
surfaced again last month, in the Kerala Governor’s policy speech in the Assembly as
well as the statements of a Kerala Minister at the Pravasi Bharatiya Divas in Varanasi.
Governor Justice P. Sathasivam had said that the Kerala government had requested
the Centre to enhance its borrowing limit to mobilise additional resources for
rebuilding the flood-hit State. “We are still awaiting a favourable response from the
Central government in this regard,” he added. Minister K.T. Jaleel, who represented
Kerala at the conclave, complained that he was not allowed to raise the issue there.
The bitterness over the flood money still persists.
Competitive federalism, in the context of interaction with foreign countries, promoted
by Prime Minister Narendra Modi, has proved to be a double-edged
sword. Kerala Chief Minister Pinarayi Vijayan now stands accused of violating rules
regarding the seeking of foreign assistance. He remains unclear on how to make up for
the shortfall, of several crores. The Central government is unable to provide the funds
while Kerala has been stopped in its tracks from seeking resources from abroad, either
from the Kerala diaspora or from friendly foreign governments.
The present situation is a result of a series of errors of judgment and
misunderstandings on both sides. Mutual political suspicion and a lack of appreciation
of the complexities of the international situation have brought about a confrontation.
The Chief Minister may have even made diplomatic and tactical misjudgments.
Diplomatic trajectory
India had no qualms about receiving foreign assistance for disaster management till
2004. But when India’s aspiration for permanent membership of the UN Security
Council met with strong resistance, New Delhi hit upon the idea of forcing a vote in
the General Assembly. The game plan was to secure a two-thirds majority and then
attempt to embarrass the permanent members into supporting the expansion of the
Security Council. The two false presumptions were that India would win the required
number of votes and that the Security Council would wilt under pressure from the
General Assembly. In fact, many Assembly members were opposed to the veto even
for the existing permanent members and had no interest in creating more permanent
members with veto. India thought that it could win over the other countries if it was
seen to be helping them in emergencies rather than seeking such assistance for itself.
The tsunami of 2004 and the threat of piracy in the Indian Ocean provided India an
opportunity to test its new posture. Everybody was grateful, but it made no difference
to India’s claim to permanent membership. There were other factors too which
militated against India’s claim. The Modi government decided, however, to lay down
the rules regarding foreign assistance in order to bring some clarity to the situation.
The rules, which were framed in 2016, clarified that India would not solicit any
assistance but would receive relief assistance, even as cash, from individuals,
charitable institutions and foundations. If cash were to be offered bilaterally by foreign
governments, the matter would be considered on a case-by-case basis. Even before the
extent of the damage was fully known, I had urged the Central government in early
August 2018 to make a suitable amendment to the rule as the damage in Kerala was
beyond the capacity to handle it. Needless to say, nobody responded at that stage.
The UAE’s offer
The saga of the offer by the United Arab Emirates (UAE) began well when the Prime
Minister was informed by the UAE authorities that relief assistance was being put
together as a special gesture, which the Prime Minister reciprocated with a warm reply
of gratitude. But the Kerala Chief Minister’s announcement that the UAE would
provide ₹700 crore, made on the same day as the Central government’s announcement
of a provision of ₹500 crore, opened a Pandora’s box. It appeared as though the UAE
was more generous than New Delhi was to Kerala and that the Central government
was not empathetic to Kerala’s plight because of political considerations. Moreover,
the source of the information was supposed to have been an Indian businessman in the
UAE. An embarrassed UAE government then asked its Ambassador in New Delhi to
deny that there was any specific offer of ₹700 crore.
An immediate consequence was a reluctance by other governments to make any offer
of bilateral assistance. No one could answer the question whether any offer from other
governments would be accepted. When the Thai Ambassador in Delhi was stopped
from being at a ceremony to hand over relief goods to an Indian official, the world was
convinced that India would not accept resources. The issue was politicised as one
between the Bharatiya Janata Party and the ruling CPI(M) in Kerala.
It was against this backdrop that Kerala put forward an unwise proposal to despatch its
Ministers abroad to collect donations. This was unacceptable in the context of the
policy that had crystallised after the floods in Kerala and the Central Government
having refused permission for Ministers other than the Chief Minister to travel to
countries. Apart from the ignominy of soliciting donations, there was a clear likelihood
of receiving very little by way of cash donations. The possibility of loans from the
International Monetary Fund and the World Bank became distant as the Centre refused
to raise the limits on loans from these global organisations that a State government
could take. The emergence of the Sabarimala crisis further eroded the credibility of the
State Government and much of the empathy over the flood damage was also lost.
The Prime Minister had always maintained that marshalling of resources is the
responsibility of the Union government according to the Constitution. Now the only
option before Kerala is to demand more funding from the Centre to make up the
shortfall. Undoubtedly, the situation is a tragedy of errors caused by an inadequate
familiarity with decision making and the complexity of international relations.
India is a federal state, but unitary in nature when it comes to national security and
foreign policy. Individual States may have some advantages in dealing with some
countries in their neighbourhood, but they will do well not to transgress the thin line
when it comes to managing international relations. Now it will take longer for trust to
be established to have competitive federalism work again.
T.P. Sreenivasan, a former diplomat, is Chairman, Academic Council and Director,
NSS Academy of Civil Services. He is also Director General, Kerala International
Centre, Thiruvananthapuram
रोजगार पर राजनीछत
ध्य िदे श के मुख्यमांत्री के रूप में शपथ िेने के बाद ही कमिनाथ ने कहा था कक सरकारी सहायता िाप्त उद्योर्ों को
70 िततशत नौकरी स्थानीय िोर्ों को दे नी होर्ी। उस समय कुछ िोर्ों को इसके राष्रव्यापी राजनीतत तनदहताथग के
मद्दे नजर शायद यह िर्ा होर्ा कक मध्य िदे श सरकार इस ददशा में आर्े नहीां बढ़े र्ी, िेककन ऐसे िोर्ों का अनुमान
र्ित तनकिा। कमिनाथ ने अपने चुनावी घोिणापत्र का हवािा दे ते हुए ट्षवटर पर लिखा कक हमने राज्य सरकार -
द्वारा पोषित शासकीय योजनाओां, कर छूट और अन्य सहायता िाप्त सभी उद्योर्ों में-70 िततशत रोजर्ार मध्य िदे श
के िोर्ों को दे ना अतनवायग कर ददया है । मध्य िदे श सरकार के इस फैसिे के दो पहिू हैंएक सांवैधातनक और दस
ू रा -
राजनीततक। पहिी बात तो यह है कक सरकारी सहायता िाप्त उद्योर्ों को भी राज्य की व्यापक पररभािा के तहत राज्य
का ही दहस्सा माना जा सकता है । इसलिए ककसी राज्य सरकार को अर्र यह िर्ता है कक वहाां की सेवाओां में वहाां के
स्थानीय िोर्ों का पयागप्त ितततनचधत्व नहीां है , तो वह उनके दहतों के सांरिण के लिए आरिण का िावधान कर सकती
है । इसके बावजूद नौकररयों की इस सीमा पर सवाि उठाया जा सकता है । यही नहीां, इसे उस सांघीय भावना के खखिाफ
भी माना जा सकता है , जजसमें भारतीय राज्य की एकात्मक िवषृ त्त पर जोर है । वास्तषवक पररवतगन को रे खाांककत करने
में सांघवाद के ितत व्यावहाररक दृजष्टकोण को तभी सफि माना जा सकता है , जब सामाजजक और राजनीततक धराति
पर उसे समथगन लमिे। मख्
ु यमांत्री कमिनाथ की इस घोिणा को मध्य िदे श के भीतर भिे ही समथगन लमि जाए, िेककन
दस
ू रे राज्यों में समथगन लमिना मजु श्कि होर्ा। मीड़डया ररपोटरे के मत
ु ाबबक कमिनाथ ने कहा था कक बबहार, उत्तर िदे श
जैसे राज्यों के िोर्ों के कारण मध्य िदे श में स्थानीय िोर्ों को नौकरी नहीां लमि पाती है । यह सोच सांघीय ढाांचे में
जड़
ु े राज्यों और वहाां के िोर्ों के बीच भावनात्मक एकता षवकलसत करने में सहायक नहीां होर्ी। यही कारण है कक उस
समय दिर्त आधार से उठकर भाजपा, जदय,ू राजद और सपा ने बयान की आिोचना की थी। उि और बबहार में
अपनी जमीन मजबत
ू करने में िर्ी काांग्रेस के लिए यह परे शानी का सबब बन सकता है , अर्र कोई राजनीततक दि या
सामाजजक सांर्ठन इस मसिे को उठा दे ।
नागररकता विधेयक को लेकर राजनीछतक दलों में राष्ट्ट्रीय हहतों की अनदे खी नहीां होनी
चाहहए
यह ठीक नहीां कक तीन तिाक सांबांधी षवधेयक की तरह से नार्ररकता सांबांधी षवधेयक पर भी पि-षवपि के बीच
कोई सहमतत बनती नहीां ददख रही है । इसका बड़ा कारण षवलभन्न दिों की ओर से अपने-अपने राजनीततक दहतों
को जरूरत से ज्यादा अहलमयत ददया जाना है । चकूां क आम चन
ु ाव करीब आ र्ए है ैैैां इसलिए यह स्वाभाषवक है
कक राजनीततक दि अपने चन
ु ावी दहतों की चचांता करें , िेककन इस कोलशश में राष्रीय दहतों की अनदे खी नहीां होनी
चादहए।
नार्ररकता सांशोधन षवधेयक पर षवपि की आपषत्त का एक बड़ा आधार यह है कक आखखर इसमें पाककस्तान,
बाांजिादे श और अफर्ातनस्तान के दहांद,ू लसख, बौद्ध, जैन, ईसाई, पारसी समद
ु ाय के िोर्ों को ही भारतीय नार्ररकता
दे ने का िावधान क्यों है और मजु स्िम समद
ु ाय के िोर्ों को बाहर क्यों रखा र्या है ? सैद्धाांततक तौर पर यह
आपषत्त उचचत नजर आती है , िेककन व्यवहाररक तौर पर दे खें तो इसका औचचत्य नहीां नजर आता कक
अफर्ातनस्तान, बाांजिादे श और पाककस्तान के बहुसांख्यकों को वैसी ही ररयायत दी जाए जैसी इन दे शों के
अल्पसांख्यक समद
ु ाय के िोर्ों को दे ने की व्यवस्था की र्ई है ।
सभी को एक समान नजर से दे खने की माांर् करने वािे षवपिी दि इसकी अनदे खी नहीां कर सकते कक उक्त
तीनों दे शों से िताड़ड़त होकर भारत की राह दे खने वािे मूित: वहाां के अल्पसांख्यक ही होते है ैैै,ां न कक
बहुसांख्यक। वे इस तथ्य को भी ओझि नहीां कर सकते कक बाांजिादे श से होने वािी अवैध घस ु पैठ के कारण
पजश्चम बांर्ाि और असम के साथ पूवोत्तर के अन्य राज्यों के तमाम इिाकों का सामाजजक सांतुिन ककस तरह
र्ड़बड़ा र्या है । आदशगवादी लसद्धाांत जमीनी हकीकत से मेि भी खाने चादहए। यह कोई तकग नहीां हुआ कक भारत
दक्षिण एलशया का बड़ा दे श है और उसे उन सभी को शरण दे नी चादहए जो इस दे श में बसना चाहता है । भारत का
सांषवधान भारत के िोर्ों पर िार्ू होता है , बाहर के नार्ररकों पर नहीां और यह तय करना दे श षवशेि का अचधकार
है कक वह ककसे शरण दे और ककसे नहीां?
आखखर षवपिी दिों के साथ इस षवधेयक का षवरोध करने वािे अन्य िोर् यह क्यों नहीां दे ख पा रहे है ैैैां कक
बाहरी िोर्ों की घुसपैठ और खासकर बाांजिादे लशयों की अवैध बसाहट से असम की सांस्कृतत ककस तरह खतरे में पड़
र्ई है । क्या सुिीम कोटग के आदे श पर जो राष्रीय नार्ररकता रजजस्टर तैयार हुआ उसका एक बड़ा मकसद असम
की मूि सांस्कृतत को बचाना नहीां है ? यह सही है कक असम और पूवोत्तर के कुछ अन्य राज्यों में नार्ररकता
षवधेयक का षवरोध हो रहा है , िेककन इसकी वजह वह नहीां है जजसे षवपिी दि बयान कर रहे है ैैै।ां
असम और अन्य राज्यों में इस षवधेयक का षवरोध तो इस आशांका के चिते हो रहा है कक अर्र पड़ोसी दे शों के
अल्पसांख्यकों को उनके यहाां बसा ददया र्या तो उनकी सांस्कृतत खत्म हो जाएर्ी? बेहतर हो कक केंि सरकार पूवोत्तर
के उन िोर्ों और समूहों की चचांताओां को दरू करे जो नार्ररकता षवधेयक का षवरोध कर रहे है ैैैां। तन:सांदेह उसे
षवपिी दिों से भी व्यापक षवचार-षवमशग करना चादहए ताकक बीच का कोई रास्ता तनकि सके। राजनीततक
पररपक्वता का पररचय ददया जाए तो ऐसा हो सकता है ।
िक्त की पक
ु ार, मस्ु स्लम समाज में जड़ें जमा चुकी जाछत व्यिस्र्ा की विसांगछतयाां दरू
होनी चाहहए
ररजिान अांसारी ]: मुसिमानों के बीच अल्िामा इकबाि की यह उजक्त बेहद मशहूर है , ‘एक ही सफ में खड़े हो र्ए
महमूद व अयाज, न कोई बांदा रहा न कोई बांदा नवाज।’ दरअसि जब भी मुसिमानों में र्ैर-बराबरी का सवाि
उठता है तब इसी उजक्त के जररये सभी िोर्ों के बराबर होने का दावा ककया जाता है और कफर असमानता के
सारे सवाि कहीां र्म
ु हो जाते हैं। एक ऐसे समय जब मजु स्िमों में भी जाततवादी सोच अपनी र्हरी पैठ बना चक
ु ी
है तब सवाि है कक बराबरी का यह दावा ककतना दरु
ु स्त है ? क्या वाकई मजु स्िमों की जातत व्यवस्था, दस
ू रे धमों
की जातत-व्यवस्था से परे है ? यह सवाि इसलिए भी कक दहांद ू धमग में सवणों और दलितों के बीच के मतभेद तो
एक राष्रीय मुद्दा बन जाते है ैैैां, िेककन मजु स्िम समाज में जड़ें जमा चक
ु ी इस जातत व्यवस्था की षवसांर्ततयाां
शायद ही िकाश में आ पाती हैं।
दे खा जाए तो मजु स्िमों में बराबरी का लशर्फ
ू ा महज मजस्जद और शरीयत से जड़
ु े मसिों तक ही सीलमत है ।
अन्यथा जाततवादी मानलसकता की बेड़ड़यों में पूरा मुजस्िम समाज ही जकड़ा हुआ है । कुछ हद तक तथाकचथत
बराबरी ददखाने की कोलशश भी होती है तो ऐसा केवि धालमगक कारणों से ही सांभव हो पाता है , िेककन हर लिहाज
से षपछड़े मुजस्िम अर्ड़े मुजस्िमों की उपेिा के लशकार ही होते रहे हैं। यही वजह है कक इन दो वर्ों के बीच
अभी तक भरोसेमांद सामाजजक ररश्ते कायम नहीां हो सके हैं। बेटी-रोटी का ररश्ता तो दरू , षपछड़े मुसिमान अर्ड़ों
की उपेिा का लशकार होते रहे हैं। दस
ू रे शसदों में कहें तो षपछड़े मुसिमानों की एक बड़ी आबादी थोड़े से अर्ड़े
मुसिमानों के कारण षवकलसत नहीां हो सकी है ।
2011 की जनर्णना के मत
ु ाबबक दे श में 14.2 फीसद मजु स्िम हैं। एक अध्ययन के अनस
ु ार दे श की िर्भर् 80
फीसद मजु स्िम आबादी षपछड़ी जातत से आती है वहीां ककसी राज्य षवशेि में तो यह आांकड़ा राष्रीय औसत से भी
अचधक है । बबहार में तो 85 फीसद से अचधक मुजस्िम षपछड़े हैं। ये सामाजजक, आचथगक और राजनीततक तीनों ही
रूप से षपछड़े रहे हैं। ‘दलित मजु स्िम’ की सांकल्पना इसी का एक पहिू है ।
र्ौरतिब है कक मजु स्िमों को दो बड़े वर्ों मसिन-अशरफी और र्ैर-अशरफी में बाांटा र्या है । अशरफी यानी सवणग
मुजस्िमों में मुर्ि, सैयद, शेख और पठान आते हैं और शेि सभी जाततयाां षपछड़ी यानी र्ैर-अशरफी के तहत आती
हैं। हािाांकक इस्िाम में जातत व्यवस्था की कोई सांकल्पना नहीां है , िेककन मौजूदा व्यवस्था पररजस्थततजन्य कही
जा सकती है । जातत के आधार पर भेदभाव और सामाजजक बदहष्कार की समस्या इसी का एक पहिू है । सच्चर
कमेटी, मांडि आयोर् और सतीश दे शपाांडे की ररपोटग ने भी मुजस्िमों में मौजूद इसी जातत व्यवस्था के कारण
षपछड़ों के बबर्ड़ते हािात की तरफ सांकेत ककए है ैैैां।
आचथगक रूप से भी षपछड़े मुसिमान िर्ातार षपछड़ते जा रहे हैं। र्रीबी और बेरोजर्ारी की समस्याएां इनमें अपनी
जड़ें जमा चक
ु ी है ैैैां। आचथगक रूप से कमजोर होने के कारण इनमें लशिा का घोर अभाव दे खा जा सकता है ।
हािाांकक दे श के महज 57 फीसद मुजस्िम ही सािर हैं, िेककन षपछड़े मुसिमानों की बात करें तो मुजस्िमों की
कुि सािरता में उनकी भार्ीदारी चचांताजनक जस्थतत में है । यही कारण है कक सरकारी सेवाओां में अर्ड़े मुजस्िमों
का बोिबािा है । सरकारी सेवाओां में षपछड़ों की जो भी भार्ीदारी है उनमें उनकी मौजूदर्ी छोटे पदों पर ही दे खी
जाती है ।
शैिखणक रूप से षपछड़े होने की वजह से इनमें कोई बड़ा राजनीततक नेतत्ृ व भी षवकलसत नहीां हो पाया है । यही
वजह है कक षपछड़े मुजस्िम राजनीततक रूप से अदृश्य सामाजजक समूह बनकर रह र्ए है ैैैां। एक अध्ययन के
मुताबबक दे शभर के कुि मुजस्िम षवधायकों में षपछड़ों की भार्ीदारी िर्भर् 30 फीसद ही है । उदाहरण के तौर पर
राज्य षवशेि की बात करें तो आजादी के बाद से विग 2010 तक बबहार में 255 मुजस्िम षवधायक बने जजनमें
केवि 70 ही षपछड़े वर्ग से थे। कमोबेश यही हाि केंि की राजनीतत में है । िर्भर् तीन चौथाई मुजस्िम साांसद
सामान्य वर्ग के होते हैं, जबकक दे श की मुजस्िम आबादी में तीन चौथाई से भी अचधक दहस्सेदारी षपछड़ों की है ।
ऐसे में यह राजनीततक षपछड़ापन जहाां मुजस्िमों की सामाजजक व्यवस्था की पोि खोिता है वहीां उन सभी
लसयासी दिों की नीयत पर भी सवालिया तनशान िर्ाता है जो दबे-कुचिों के दहमायती होने का दम भरते रहे हैं।
षपछड़े मजु स्िमों में कोई भी बड़ा राजनीततक नेतत्ृ व षवकलसत नहीां होने की वजह से वे उच्च वर्ों के उम्मीदवारों
को ही हमेशा अपना ितततनचध चन
ु ने के लिए मजबरू होते रहे हैं। लिहाजा जहाां एक तरफ अर्ड़े मजु स्िम हर
लिहाज से सशक्त होते रहे , वहीां षपछड़े मजु स्िम कमजोर होते चिे र्ए। तनरां तर अनदे खी और उपेिा के कारण
आज उनकी जस्थततग ैांहद-ू दलितों से भी दयनीय हो र्ई है । यही कारण है कक दलित मजु स्िम अपने ही समाज के
अांदर उच्च वर्ों के शोिण के खखिाफ आांदोिनरत हैं। पव
ू ी उत्तर िदे श और बबहार में ‘पसमाांदा मजु स्िम महाज’ का
अर्ड़े मुजस्िमों और उिेमाओां के खखिाफ षवरोध-िदशगन इसी का एक पहिू है । षवडांबना है कक 21वीां सदी में भी
षपछड़े मुजस्िमों को असमानता, उत्पीड़न और भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है । नासूर बन चक
ु ी इस
जाततवादी मानलसकता से मुजस्िम समाज को आजादी ददिाने और दे श के िोकताांबत्रक मूल्यों को बनाए रखने के
लिए यह जरूरी है कक उनके सवािों और आवाज को सामने िाया जाए।
आज षपछड़े मुजस्िमों के लिए एक ऐसा मांच षवकलसत करने की जरूरत है जो अन्यायपूणग सामाजजक सांरचना के
खखिाफ िड़ सके और षपछड़ों के लिए एक सम्मानपूणग जर्ह समाज में सतु नजश्चत कर सके। राष्रीय अल्पसांख्यक
आयोर् और राष्रीय धालमगक और भािाई अल्पसांख्यक आयोर् द्वारा ‘दलित मुजस्िमों’ को उनके दहांद ू समकिों के
साथ अनुसूचचत जातत की श्रेणी में शालमि ककए जाने की लसफाररश इसी का एक पहिू है । सरकार को भी इस
ददशा में सकारात्मक पहि करनी चादहए। आज जब भारत षवज्ञान, सच
ू ना िौद्योचर्की और आचथगक षवकास में
िर्ातार अपना परचम िहरा रहा है तब यह ठीक नहीां कक मस
ु िमानों का एक बड़ा तबका अभी भी दजी, नाई,
ससजी षवक्रेता आदद जैसे पेशों में ही उिझा हुआ है । जब तक समाज को इस जाततवादी मानलसकता से आजादी
नहीां लमि जाती तब तक षपछड़े और पसमाांदा मुसिमानों को ‘न्याय’ का इांतजार रहे र्ा।
षपछिे शुक्रवार को पेश अांतररम बजट में षवत्त विग 2018-19 के कुछ अनुमानों को सांशोचधत ककया र्या है , जजन्हें
िेकर कुछ िोर् सवाि उठा सकते हैं। िेककन ऐसे िोर्ों को सरकार का जवाब यह है कक षवत्त मांत्रािय के पास
ऐसे सयोरे और आांकड़े उपिसध हैं , जो उसे ये आांकड़े जारी करने का भरोसा दे ते हैं। यह बयान आश्वस्त करने
वािा होना चादहए। आखखरकार ये सांशोचधत आांकड़े सरकार के लिए राजकोिीय घाटे के अपने सांशोचधत िक्ष्य को
हालसि करने में अहम होंर्े। यह िक्ष्य षवत्त विग 2018-19 के लिए सकि घरे िू उत्पाद (जीडीपी) का 3.4 फीसदी
है । इसके बावजद
ू इन आांकड़ों की हकीकत की पड़ताि उपयोर्ी साबबत हो सकती है । सबसे पहिे हमें दे श में
िमख
ु सजससडी पर खचग को दे खना चादहए। खाद्य सजससडी का सांशोचधत अनम
ु ान षवत्त विग 2018-19 के लिए 1.71
िाख करोड़ रुपये है , जबकक इसका बजट अनम
ु ान 1.69 िाख करोड़ रुपये पेश ककया र्या था। अांतररम बजट से
पहिे नवांबर 2018 तक का खाद्य सजससडी का मालसक आांकड़ा उपिसध था। इस आांकड़े के अनस
ु ार अिैि से
नवांबर तक खाद्य सजससडी का बबि 1.42 िाख करोड़ रुपये या करीब 17,800 करोड़ रुपये िततमाह था। अर्र यह
मानकर चिते हैं कक चािू षवत्त विग के शेि चार महीनों में खाद्य सजससडी की औसत मालसक दर यही बनी रही
तो कुि खाद्य सजससडी बबि बढ़कर 2.14 िाख करोड़ रुपये पर पहुांच जाएर्ा। यह अांतररम बजट के सांशोचधत
अनुमान से करीब 42,000 करोड़ रुपये अचधक होर्ा।
उवगरक सजससडी के भी दो अहम दहस्से हैं। अांतररम बजट दशागता है कक यूररया सजससडी का सांशोचधत अनुमान षवत्त
विग 2018-19 के लिए 44,985 करोड़ रुपये है । यह बजट अनुमान 44,989 करोड़ रुपये से मामूिी कम है । अिैि से
नवांबर 2018 के दौरान यूररया सजससडी पर खचग 33,294 करोड़ रुपये रहा है , यानी हर महीने 4,162 करोड़ रुपये।
अर्र चािू विग के शेि चार महीनों में भी खचग इसी दर से बढ़ा तो कुि यूररया सजससडी बबि बढ़कर 49,941 करोड़
रुपये पर पहुांच जाएर्ा, जो अांतररम बजट में ददए र्ए सांशोचधत अनुमान के आांकड़े से करीब 4,956 करोड़ रुपये
अचधक होर्ा।
इसी तरह पोिण आधाररत उवगरकों का सजससडी बबि 2018-19 के सांशोचधत अनुमानों में 25,090 करोड़ रुपये
ददखाया र्या है , जो एक साि पहिे बजट अनुमानों में ददए र्ए आांकड़े के समान है । िेककन इस मद पर अिैि-
नवांबर 2018 की अवचध में 20,152 करोड़ रुपये पहिे ही खचग हो चक
ु े हैं यानी हर महीने 2,159 करोड़ रुपये। अर्र
विग के शेि चार महीनों में खचग इसी रफ्तार से बढ़ा तो पोिण आधाररत उवरग कों की सजससडी का सािाना बबि
बढ़कर 30,228 करोड़ रुपये पर पहुांच जाएर्ा। यह अांतररम बजट में पेश ककए र्ए सांशोचधत अनुमान से 5,138
करोड़ रुपये अचधक होर्ा।
अांतररम बजट में पेरोलियम सजससडी बबि का सांशोचधत अनुमान 24,833 करोड़ रुपये है , जो इसी विग के बजट
अनुमान 24,933 करोड़ रुपये से कम था। चािू षवत्त विग के दौरान कच्चे तेि की कीमतें तेजी से बढ़ी थीां, इसलिए
रसोई र्ैस और केरोलसन के सजससडी बबि बढऩे चादहए। असि में चािू षवत्त विग के पहिे आठ महीनों में
पेरोलियम सजससडी पर 23,142 करोड़ रुपये का खचग आने का अनम
ु ान है यानी हर महीने 2,893 करोड़ रुपये का
खचग आया है । अर्र चािू षवत्त विग के शेि चार महीनों में पेरोलियम सजससडी का खचग इसी रफ्तार से बढ़ा तो
कुि बबि बढ़कर 34,713 करोड़ रुपये पर पहुांच जाएर्ा। यह अांतररम बजट के सांशोचधत अनम
ु ान से 9,880 करोड़
रुपये अचधक होर्ा।
सांशोचधत अनम
ु ानों के मुताबबक इन िमख
ु सजससडी पर 2018-19 के दौरान कुि 2.66 िाख करोड़ रुपये खचग होंर्े।
यह रालश बजट अनम
ु ान 2.64 िाख करोड़ रुपये से मामि
ू ी अचधक है । अर्र आप अिैि से नवांबर 2018 के दौरान
इन सजससडी पर आए खचग के आधार पर पूरे साि के खचग का अनुमान िर्ाएांर्े तो पाएांर्े कक खचग 0.62 िाख
करोड़ रुपये अचधक रह सकता है । िमुख सजससडी का वास्तषवक बबि 3.28 िाख करोड़ रुपये तक पहुांच सकता है ,
जबकक इनका सांशोचधत अनुमान 2.64 िाख करोड़ रुपये ही है ।
यह बात ध्यान दे ने िायक है कक इन सजससडी पर खचग के मालसक आांकड़े तनयांत्रक एवां महािेखा परीिक (सीएजी)
हर महीने जारी करता है । तनस्सांदेह सीएजी के आांकड़े ऑड़डट नहीां ककए हुए और अस्थायी हैं। इसके अिावा यह
भी सांभव है कक बीते महीनों के खचग की रफ्तार हर मामिे में िार्ू न हो। बजट बनाने वािों की सच ू नाओां और
आांकड़ों तक ज्यादा पहुांच होती है । इनसे उन्हें सांशोचधत आांकड़े जारी करने का भरोसा लमिने की सांभावना है । यह
सांभव है कक राजकोिीय घाटे के आांकड़े पर इसके असर को कुछ मदों में सांैश ां ोचधत अनम
ु ानों की तुिना में कम
खचग करके बेअसर कर ददया जाए। या इस खचग के एक दहस्से को अर्िे साि तक टाि ददया जाए? िेककन िमुख
सजससडी पर ही सांशोचधत अनुमान के मुकाबिे 0.62 िाख करोड़ रुपये अचधक खचग होने से सरकार के राजकोिीय
मजबूती के कायगक्रम की र्ुणवत्ता पर िततकूि असर पड़ेंर्े।
अमेररका और चीन के कारोबारी युद्घ की बातों के बीच हम एक अहम घटना पर ध्यान नहीां दे पाए हैं।
षपछिे कुछ ददनों में चीन और जापान के तनावपण
ू ग राजनीततक ररश्तों की बफग कुछ हद तक षपघिती नजर आई
है और उनके बीच व्यापाररक और आचथगक ररश्तों में नई जान आ रही है । चीन के िधानमांत्री िी कछयाांर् मई
2018 में जापान की यात्रा पर र्ए थे। वह एक शुरुआत थी जजसके बाद अक्टूबर 2018 में जापानी िधानमांत्री चीन
र्ए। यह 11 विग में पहिा मौका था जब कोई जापानी िधानमांत्री चीन र्या था। दोनों पिों के तनावपूणग ररश्तों में
नरमी की शुरुआत तब हुई जब अमेररका के रां प िशासन ने व्यापाररक मसिों पर इन दोनों दे शों को तनशाना
बनाना शुरू कर ददया। चीन के लिए जापानी उद्योर् एवां व्यापार का महत्त्व यह है कक अमेररकी बाजारों और
उन्नत तकनीक तक उसकी पहुांच िर्ातार सीलमत होती जा रही है । उधर जापान कुछ सीमाओां के साथ एक
आकिगक षवकल्प बना हुआ है । हाि के ददनों में हुआवेई का जापानी दरू सांचार बाजार से बाहर होना ऐसी ही एक
घटना है ।
चीन और जापान के ररश्तों में तनाव नई सहस्रासदी के आर्मन के समय िेत्रीय और सुरिा मसिों को
िेकर हुआ। सन 2012 में षववाददत सेंकाकू द्वीप को िेकर हािात बहुत नाजुक हो र्ए थे। विग 2012 में चीन में
जापानी एफडीआई 740 करोड़ डॉिर के उच्चतम स्तर पर पहुांचा था िेककन अर्िे कुछ विों में इसमें चर्रावट आई
और यह 2016 में 310 अरब डॉिर रह र्या। सािाना सवेिणों की बात करें तो अचधक से अचधक जापानी कांपतनयाां
चीन से बाहर तनकिने पर षवचार कर रही थीां जबकक वहाां षवस्तार करने की इच्छा रखने वािी कांपतनयाां बहुत
कम थीां। दोनों दे शों के बीच अत्यांत तनावपण
ू ग ररश्तों के कारण जापान ने अपना तनवेश चीन के अिावा अन्य
िेत्रों में फैिाना शरू
ु ककया। यही वह वक्त था जब जापान ने भारत की ओर ध्यान ददया। यह ध्यान सरु िा
साझेदार के रूप में भी था और जापानी व्यापार और तनवेश के केंि के रूप में भी। तेजी से षवकलसत होती
भारतीय अथगव्यवस्था को चीन के समतल्
ु य पेशकश वािा बाजार माना जाने िर्ा। भारत में जापानी एफडीआई
2006-07 के 8.5 करोड़ डॉिर से बढ़कर 2016-17 में 470 करोड़ डॉिर हो र्या। चीन में कुि लमिाकर 10,000 करोड़
डॉिर की जापानी पांज
ू ी है । भारत में यह केवि 2,500 करोड़ डॉिर है । अब जबकक चीन एक बार कफर जापानी
तनवेश के लिए उपयक्
ु त केंि बनकर उभर रहा है तो कहा जा सकता है कक भारत पर हालशये पर चिे जाने का
खतरा मांडरा रहा है । चीन में जापानी एफडीआई 2017 में सध
ु रकर 320 करोड़ डॉिर हो र्या और माना जा रहा है
कक इसमें आर्े और सुधार होर्ा। जापान के बाह्य व्यापार सांर्ठन (जेरो) के एक अचधकारी के मुताबबक, 'हमारा
मौजूदा तनष्किग यह है कक जापनी कारोबार चीन में तनवेश को िेकर आर्े और सकारात्मक रहे र्ा।'
जापान-चीन व्यापार में भी विग 2012 के बाद आई चर्रावट अब पिटी है और सुधार दे खने को लमि रहा
है । 2017 में यह करीब 30,000 करोड़ डॉिर रहा। भारत-जापान व्यापार में हाि के विों में चर्रावट आई है और यह
2012-13 के 1,850 करोड़ डॉिर से घटकर 2016-17 में मात्र 1,350 करोड़ डॉिर रह र्या। इसी अवचध में भारतीय
तनयागत 610 करोड़ डॉिर से कम होकर 380 करोड़ डॉिर रह र्या। जापान का कारे ाबारी जर्त चीन की मेड इन
चाइना 2025 पहि को एक बड़े अवसर के रूप में दे खता है । इस पहि में 10 िेत्रों को चचजह्नत ककया र्या है
जजनमें कृबत्रम मेधा, रोबोदटक्स, इिेक्रॉतनक व्हीकि और क्वाांटम कांप्यूदटांर् आदद शालमि हैं। चीन का िक्ष्य सन
2025 तक इन तमाम िेत्रों में अच्छी काबबलियत हालसि करने का है । जापान इन िेत्रों में पहिे ही अहम
काबबलियत हालसि कर चक
ु ा है । हाि ही में जापान की रोबोट तनमागता कांपनी यासकावा और चीन की वाहन
कांपनी चेरी ने इिेजक्रक वाहन तनमागण को िेकर समझौता ककया है । नैशनि पैनासोतनक के शाांघाई जस्थत शोध
एवां षवकास केंि ने चीन की अिीबाबा और बायडू से कनेक्टे ड ड़डवाइस और नई पीढ़ी के वाहनों के इांस्ूमें ट पैनि
बनाने के लिए समझौता ककया है । अमेररकी और पजश्चमी यूरोप के दे श जहाां मेड इन चाइना पहि को अपने
तकनीकी दबदबे के लिए चन
ु ौती के रूप में दे ख रहे हैं, वहीां जापान का रुख इसके उिट है । भारत के पास इसके
समतुल्य अवसर नहीां है ।
सन 2013 में जापान ने चीन की बेल्ट ऐांड रोड पहि का षवरोध ककया था। परां तु 2015 में उसने र्ुणवत्तापूणग
बुतनयादी ढां ैाचे में सहयोर् के साथ िततकक्रया दी और एलशया तथा अफ्रीका के दे शों में षवत्तीय सहायता का
व्यवहायग तथा पारदशी षवकल्प उपिसध कराया। सन 2017 में भारत और जापान ने लमिकर एलशया-अफ्रीका
इकनॉलमक ग्रोथ कॉररडोर (एएईजीसी) की घोिणा की ताकक एलशया और अफ्रीका के दे शों में बुतनयादी षवकास को
सांयक्
ु त फांड़डांर् की जा सके। बहरहाि, जन ां े आबे ने इसके लिए चीन का हाथ
ू 2018 में जापान के िधानमांत्री लशज
थाम लिया। अक्टबरू 2018 में उनकी चीन यात्रा के दौरान ऐसी 50 पररयोजनाओां की घोिणा की र्ई। इनमें थाईिैंड
की एक रे ि पररयोजना भी शालमि थी। जापान अब बेल्ट रोड पहि में चीन के साथ है ।
जापान का कारोबारी जर्त भारत में तनवेश के माहौि को िेकर भी चचांततत रहता है । भारत-जापान
बबज़नेस िीडसग की हालिया सांयक्
ु त ररपोटग में जापानी पि ने भारत सरकार से माांर् की कक वह जीएसटी व्यवस्था
को सुसांर्त और र्ततशीि बनाए तथा उससे जुड़ी िकक्रयाओां को भी ठीक करे । इसके अिावा कर व्यवस्था को
सुधारने, उसमें आांतररक स्तर पर तनरां तरता िाने आदद जैसी बातें भी कही र्ईं। इसमें मास्टर फाइि की जरूरतों
की समीिा, श्रम सुधारों को मजबूत बनाना और उनमें सांशोधन करना, डेटा स्थानीयकरण को िेकर तनयमों को
सहज कर डेटा का मुक्त िवाह सुतनजश्चत करना, बुतनयादी षवकास को बढ़ावा दे ना, पररयोजनाओां की बोिी िकक्रया
में सुधार, पारदलशगता िाना, कानूनी और सांस्थार्त ढाांचों के िवतगन में तनरां तरता उत्पन्न करना, िशासतनक
िकक्रयाओां के आम तनयमों का षवकास करना और उनका ड़डजजटिीकरण करना आदद तमाम बातें शालमि हैं। आज
चीन में एफडीआई को िेकर कोई बहुत बेहतर शतों की पेशकश नहीां है िेककन इसके बावजूद जापान को भारत के
बजाय चीन तथा दक्षिण पव
ू ी एलशया के दे शों के साथ कारोबार करना ज्यादा रास आ रहा है , उसे इसमें अचधक
सहजता महसस
ू हो रही है ।
(िेखक पूवग षवदे श सचचव और वतगमान में सीपीआर के वररष्ठ फेिो हैं। िेख में िस्तुत षवचार पूरी तरह तनजी हैं।)