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गांवों से पलायन के प्रमुख कारण

परम्परागत जाति व्यवस्था का शिकंजा: परम्परागत जाति व्यवस्था का शिकंजा इतना मजबूत है कि शासन और
प्रशासन भी सामहि
ू क अन्याय का मक
ु ाबला करने वालों के प्रति उदासीन बना रहता है। जैसाकि पिछले दिनों उत्तर
भारत के कुछ राज्यों हरियाणा, उत्तर प्रदे श आदि में खाप पंचायतों के अन्यायपूर्ण क्रूर आदे शों को दे खने पर स्पष्ट हो
जाता है जिसमें सड़ते और दबते रहने की बजाय लोग गांव से पलायन करना पसंद करते हैं।
शहरों में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना:औद्योगीकरण शहरीकरण की पहली सीढ़ी है । आजादी के बाद भारत ने दे श
के आर्थिक विकास को बढ़ावा दे ने के इरादे से छोटे -बड़े उद्योगों की स्थापना का अभियान चलाया। ये सभी उद्योग
शहरों में लगाए गए जिसके कारण ग्रामीण लोगों का रोजगार की तलाश एवं आजीविका के लिए शहरों में पलायन करना
आवश्यक हो गया।
नगरीय चकाचौंध:भारत में गांवों से शहर की ओर पलायन की प्रवत्ति
ृ बेहद ज्यादा है । जहां गांव में विद्यमान गरीबी,
बेरोजगारी, कम मजदरू ी, मौसमी बेरोजगारी, जाति और परम्परा पर आधारित सामाजिक रुढ़ियां, अनुपयोगी होती भूमि, वर्षा
का अभाव एवं प्राकृतिक प्रकोप इत्यादि कारणों ने न सिर्फ लोगों को बाहर भेजने की प्रेरणा दी वही शहरों ने अपनी
चकाचौंध सवि
ु धाएं, यव
ु ाओं के सपने, रोजगार के अवसर, आर्थिक विषमता, निश्चित और अनवरत अवसरों में आकर्षित
करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इस प्रकार पुरुष और महिलाओं के एक बड़े समूह ने गांव से शहर की ओर पलायन
किया है । वर्ष 2001 से 2011 तक की शहरी जनसंख्या में 5.16 प्रतिशत की वद्धि ृ हुई।
शिक्षा और साक्षरता का अभाव:शिक्षा और साक्षरता का अभाव पाया जाना ग्रामीण जीवन का एक बहुत बड़ा नकारात्मक
पहलू है । गांवों में न तो अच्छे स्कूल ही होते हैं और न ही वहां पर ग्रामीण बच्चों को आगे बढ़ने के अवसर मिल पाते
हैं। इस कारण हर ग्रामीण माता-पिता अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा प्रदान करने के लिए शहरी वातावरण की ओर
पलायन करते हैं।
हालांकि सरकारी एवं निजी तौर पर आज ग्रामीण शिक्षा को बढ़ाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन जब रोजगार
प्राप्ति एवं उच्च-स्तरीयता की बात आती है तो ग्रामीण परिवेश के बच्चे शहरी बच्चों की तल
ु ना में पिछड़ जाते हैं।
ग्रामीण बच्चे अपने माता-पिता के साथ गांव में रहने के कारण माता-पिता के परम्परागत कार्यों में हाथ बंटाने में लग
जाते हैं जिससे उन्हें उच्च शिक्षा के अवसर सुलभ नहीं हो पाते हैं। इस कारण माता-पिता उन्हें शहर में ही दाखिला
दिला कर शिक्षा दे ना चाहते हैं और फिर छात्र शहरी चकाचौंध से प्रभावित होकर शहर में ही रहने के लिए प्रयास करता
है जो पलायन का एक प्रमख
ु कारण है।
रोजगार और मौलिक सुविधाओं का अभाव:गांवों में कृषि भमि
ू का लगातार कम होते जाना, जनसंख्या बढ़ने, और
प्राकृतिक आपदाओं के चलते रोजी-रोटी की तलाश में ग्रामीणों को शहरों-नगरों की तरफ जाना पड़ रहा है । गांवों में
मौलिक आवश्कताओं की कमी भी पलायन का एक बड़ा कारण है । गांवों में रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, आवास,
सड़क, परिवहन जैसी अनेक सुविधाएं शहरों की तल
ु ना में बेहद कम हैं। इन बुनियादी कमियों के साथ-साथ गांवों में
भेदभावपूर्ण सामाजिक व्यवस्था के चलते शोषण और उत्पीड़न से तंग आकार भी बहुत से लोग शहरों का रुख कर लेते
है ।

गांवों से पलायन रोकने के प्रमुख सुझाव


समानता और न्याय पर आधारित समाज की स्थापना: ग्रामीण पलायन रोकने के लिए सामाजिक समानता एवं न्याय
पर आधारित समाज की स्थापना करना अति आवश्यक है । इसलिए सभी विकास योजनाओं में उपेक्षित वर्गों को विशेष
रियायत दी जाए। इसके अलावा महिलाओं के लिए स्वयंसहायता समह
ू ों के जरिए विभिन्न व्यवसाय चलाने, स्वरोजगार
प्रशिक्षण, राष्ट्रीय परिवार लाभ योजना (वद्ध
ृ ावस्था पें शन योजना, विधवा पें शन योजना, छात्रवत्ति
ृ योजना, राष्ट्रीय परिवार
लाभ योजना) जैसे अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं जिनसे लाभ उठाकर गरीब तथा उपेक्षित वर्गों के लोग अपना तथा
अपने परिवार का उत्थान कर सकते हैं।
इस संदर्भ में मैं एक अपने अनुभव पर आधारित प्रोजेक्ट के माध्यम से गांवों में चुने हुए जन प्रतिनिधियों की व्यवस्था
के बारे में जानकारी दे रहा हूं। हमने एक प्रोजेक्ट किया जिसमें ग्रामीण क्षेत्र में चुने हुए जन-प्रतिनिधियों के बारे में
जानकारी जुटानी थी मुख्य रूप से जो ग्रामीण पंच बनाए गए हैं उनकी आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और शैक्षिक
जानकारी प्राप्त करनी थी। जिसमें पंचों ने अपनी व्यथा बड़े गम्भीर ढं ग से उजागर की और बताया कि हम पंच तो हैं
लेकिन हमें सरकार से मिल रही नई योजनाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं और न ही कोई प्रशिक्षण की व्यवस्था है ।
अधिकतर पंच अशिक्षित व्यक्ति एवं महिलाएं बनाई गई हैं। और लोगों ने हमें कहा कि पंचों के लिए शैक्षिक योग्यता
अवश्य निर्धारित की जानी चाहिए तभी ग्रामीण विकास हो सकता है । कुछ लोगों ने यह भी बताया कि हमारे साथ
पंचायत में न्यायपूर्ण व्यवहार नहीं किया जाता है और मात्र जोर-जबर्दस्ती एवं दबाव डालकर प्रस्ताव पर हस्ताक्षर या
अगूंठा लगवाया जाता है। अतः यह सामाजिक असमानता एवं अन्याय ही तो है । इस कारण लोग राजनीतिक कार्यों से
विमख
ु होकर अपनी आजीविका में शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। अतः इसका उचित समाधान किया जाना चाहिए।
रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना : सर्वप्रथम गांवों में रोजगार के अवसर निरं तरता के साथ उपलब्ध कराए जाए
जिससे लोगों को आर्थिक सुरक्षा तो मिलेगी साथ ही वे स्वतः अपनी जीवनशैली में सुधार करें गे। केंद्र सरकार द्वारा
मनरे गा योजना 2 फरवरी, 2006 को दे श के 200 जिलों में शुरू की गई। दस
ू रे चरण में 130 जिलों में एवं तीसरे चरण में
1 अप्रैल, 2008 को दे श के शेष 265 जिलों में मनरे गा कार्यक्रम चलाया गया जिससे ग्रामीणों को रोजगार के अवसर सजि
ृ त
हुए और गांवों से पलायन भी रुका है ।
मौलिक सवि
ु धाएं उपलब्ध करवाना : ग्रामीण क्षेत्रों में शहरों जैसी सवि
ु धाएं उपलब्ध कराई जाए जिसमें , परिवहन सवि
ु धा,
सड़क, चिकित्सालय, शिक्षण संस्थाएं, विद्युत आपूर्ति, पेयजल सुविधा, रोजगार तथा उचित न्याय व्यवस्था आदि शामिल
हैं। गांवों की दशा सुधारने के लिए एक अप्रैल, 2010 में लागू हुए शिक्षा का अधिकार कानून से इस समस्या के समाधान
की आशा की जा सकती है । इस कानून से गांवों के स्कूलों की स्थिति, अध्यापकों की उपस्थिति और बच्चों के दाखिले
में वद्धि
ृ का लक्ष्य रखा गया है । सर्व शिक्षा अभियान के माध्यम से इस कानून को लागू करके गांवों में शिक्षा का प्रकाश
फैलने से रोजगार के अवसर बढ़ें गे, वही असमानता, शोषण, भ्रष्टाचार तथा भेदभाव में कमी होगी जिसके फलस्वरूप
ग्रामीण जीवन बेहतर बनेगा। इस अभियान के तहत तीन लाख से अधिक नये स्कूल खोले गए जिसमें आधे से अधिक
ग्रामीण क्षेत्रों में खोले गए हैं।
भ्रष्टाचार-मुक्त प्रशासन की स्थापना : लोक कल्याण करने एवं ग्रामीण पलायन रोकने के लिए सरकार द्वारा योजना तो
लागू की जाती है लेकिन ये योजनाएं भ्रष्ट व्यक्तियों द्वारा हथिया ली जाती हैं जिससे उसका पूरा लाभ जनता को नहीं
मिल पाता है। ग्रामीण पंचायती राज क्षेत्र में इन योजनाओं की निगरानी के लिए व्यवस्था की जानी चाहिए जैसा कि
भीलवाड़ा (राजस्थान) में सर्वप्रथम “सामाजिक अंकेक्षण” की शुरुआत की गई। इससे ग्रामीणों में विश्वास जगा है।
ग्रामीण क्षेत्रों में परम्परागत कृषि के स्थान पर पंज
ू ी आधारित व अधिक आय प्रदान करने वाली खेती को प्रोत्साहन
दिया जाए जिससे किसानों के साथ-साथ सीमांत किसानों और मजदरू ों को भी ज्यादा से ज्यादा लाभ हो सके। सिंचाई
सुविधा, जल प्रबन्ध इत्यादि के माध्यम से कृषि भूमि क्षेत्र का विस्तार किया जाए जिससे न केवल उत्पादन में वद्धि

होगी साथ ही आय में भी वद्धि
ृ होगी और किसानों में आत्मविश्वास व स्वाभिमान जागत
ृ होगा जिससे ग्रामीण पलायन
रुकेगा।
मजदरू ों तथा अन्य बेरोजगार यव
ु कों के लिए स्वरोजगार हे तु वित्तीय सहायता एवं प्रशिक्षण की सवि
ु धा तथा प्रशिक्षण
केन्द्र गांवों में खोले जाएं। रोजगार के वैकल्पिक साधन यथा बुनाई, हथकरघा, कुटीर उद्योग, साथ ही खाद्य प्रसंस्करण
केन्द्र की स्थापना की जाए।स्वयंसहायता समह
ू , सामहि
ू क रोजगार प्रशिक्षण, मजदरू ों को शीघ्र मजदरू ी तथा उनके बच्चों
को बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा तथा अन्य मनोरं जन की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।
सभी राज्यों में मुख्यत:ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुसंगठित एवं पारदर्शी बनाया जाए जिससे लोगों
को उचित दामों से खाद्य सरु क्षा व अनाज उपलब्ध हो सके और ग्रामीण पलायन रोका जा सके।

निष्कर्ष : आजादी के बाद पंचायती राज व्यवस्था में सामुदायिक विकास तथा योजनाबद्ध विकास की अन्य अनेक
योजनाओं के माध्यम से गांवों की हालत बेहतर बनाने और गांव वालों के लिए रोजगार के अवसर जुटाने पर ध्यान
केन्द्रित किया जाता रहा है । 73 वें संविधान संशोधन के जरिए पंचायती राज संस्थाओं को अधिक मजबत
ू तथा अधिकार-
सम्पन्न बनाया गया और ग्रामीण विकास में पंचायतों की भमि
ू का काफी बढ़ गई है। पंचायतों में महिलाओं व उपेक्षित
वर्गों के लिए आरक्षण से गांवों के विकास की प्रक्रिया में सभी वर्गों की हिस्सेदारी होने लगी है । इस प्रकार से गांवों में
शहरों जैसी बुनियादी जरूरतें उपलब्ध करवाकर पलायन की प्रवत्ति
ृ को सुलभ साधनों से रोका जा सकता है ।
महिला सशक्तिकरण क्या है ?

महिला सशक्तिकरण को बेहद आसान शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है कि इससे महिलाएँ
शक्तिशाली बनती है जिससे वो अपने जीवन से जड़
ु े हर फैसले स्वयं ले सकती है और परिवार और
समाज में अच्छे से रह सकती है । समाज में उनके वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिये उन्हें
सक्षम बनाना महिला सशक्तिकरण है ।

प्रस्तावना : आज के समय में महिला सशक्तिकरण एक चर्चा का विषय है , खासतौर से पिछड़े और


प्रगतिशील दे शों में क्योंकि उन्हें इस बात का काफी बाद में ज्ञान हुआ कि बिना महिलाओं तरक्की और
सशक्तिकरण के दे श की तरक्की संभव नही है । महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का अर्थ उनके
आर्थिक फैसलों, आय, संपत्ति और दस
ू रे वस्तओ
ु ं की उपलब्धता से है , इन सवि
ु धाओं को पाकर ही वह
अपने सामाजिक स्तर को उं चा कर सकती है ।

भारत में महिला सशक्तिकरण के मार्ग में आने वाली बाधाएं

1) सामाजिक मापदं ड : पुरानी और रुढ़ीवादी विचारधाराओं के कारण भारत के कई सारे क्षेत्रों में महिलाओं
के घर छोड़ने पर पाबंदी होती है । इस तरह के क्षेत्रों में महिलाओं को शिक्षा या फिर रोजगार के लिए घर
से बाहर जाने के लिए आजादी नही होती है । इस तरह के वातावरण में रहने के कारण महिलाएं खुद को
पुरुषों से कमतर समझने लगती है और अपने वर्तमान सामाजिक और आर्थिक दशा को बदलने में
नाकाम साबित होती है ।

2) कार्यक्षेत्र में शारीरिक शोषण : कार्यक्षेत्र में होने वाला शोषण भी महिला सशक्तिकरण में एक बड़ी बाधा
है । नीजी क्षेत्र जैसे कि सेवा उद्योग, साफ्टवेयर उद्योग, शैक्षिक संस्थाएं और अस्पताल इस समस्या से
सबसे ज्यादे प्रभावित होते है । यह समाज में पुरुष प्रधनता के वर्चस्व के कारण महिलाओं के लिए और
भी समस्याएं उत्पन्न करता है । पिछले कुछ समय में कार्यक्षेत्रों में महिलाओं के साथ होने वाले उत्पीड़ने
में काफी तेजी से वद्धि
ृ हुई है और पिछले कुछ दशकों में लगभग 170 प्रतिशत वद्धि
ृ दे खने को मिली है ।

3) लैंगिग भेदभाव : भारत में अभी भी कार्यस्थलों महिलाओं के साथ लैंगिग स्तर पर काफी भेदभाव किया
जाता है । कई सारे क्षेत्रों में तो महिलाओं को शिक्षा और रोजगार के लिए बाहर जाने की भी इजाजत नही
होती है । इसके साथ ही उन्हें आजादीपर्व
ू क कार्य करने या परिवार से जड़
ु े फैलसे लेने की भी आजादी नही
होती है और उन्हें सदै व हर कार्य में परु
ु षों के अपेक्षा कमतर ही माना जाता है । इस प्रकार के भेदभावों
के कारण महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक दशा बिगड़ जाती है और इसके साथ ही यह महिला
सशक्तिकरण के लक्ष्य को भी बरु े तरह से प्रभावित करता है ।

4) भुगतान में असमानता : भारत में महिलाओं को अपने पुरुष समकक्षों के अपेक्षा कम भग
ु तान किया
जाता है और असंगठित क्षेत्रो में यह समस्या और भी ज्यादे दयनीय है , खासतौर से दिहाड़ी मजदरू ी वाले
जगहों पर तो यह सबसे बदतर है । समान कार्य को समान समय तक करने के बावजूद भी महिलाओं को
पुरुषों के अपेक्षा काफी कम भुगतान किया जाता है और इस तरह के कार्य महिलाओं और पुरुषों के मध्य
के शक्ति असमानता को प्रदर्शित करते है ।
5) अशिक्षा : महिलाओं में अशिक्षा और बीच में पढ़ाई छोड़ने जैसी समस्याएं भी महिला सशक्तिकरण में
काफी बड़ी बाधाएं है । वैसे तो शहरी क्षेत्रों में लड़किया शिक्षा के मामले में लड़को के बराबर है पर ग्रामीण
क्षेत्रों में इस मामले वह काफी पीछे हैं। भारत में महिला शिक्षा दर 64.6 प्रतिशत है जबकि पुरुषों की
शिक्षा दर 80.9 प्रतिशत है । काफी सारी ग्रामीण लड़कियां जो स्कूल जाती भी हैं, उनकी पढ़ाई भी बीच में
ही छूट जाती है और वह दसवीं कक्षा भी नही पास कर पाती है ।

6) बाल विवाह : हालांकि पिछलें कुछ दशकों सरकार द्वारा लिए गये प्रभावी फैसलों द्वारा भारत में बाल
विवाह जैसी कुरीति को काफी हद तक कम कर दिया गया है लेकिन 2018 में यूनिसेफ के एक रिपोर्ट
द्वारा पता चलता है , कि भारत में अब भी हर वर्ष लगभग 15 लाख लड़कियों की शादी 18 वर्ष से पहले
ही कर दी जाती है , जल्द शादी हो जाने के कारण महिलाओं का विकास रुक जाता है और वह शारीरिक
तथा मानसिक रुप से व्यस्क नही हो पाती है ।

7) महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराध : भारतीय महिलाओं के विरुद्ध कई सारे घरे लू हिंसाओं के साथ
दहे ज, हॉनर किलिंग और तस्करी जैसे गंभीर अपराध दे खने को मिलते हैं। हालांकि यह काफी अजीब है
कि शहरी क्षेत्रों की महिलाएं ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के अपेक्षा अपराधिक हमलों की अधिक शिकार
होती हैं। यहां तक कि कामकाजी महिलाएं भी दे र रात में अपनी सुरक्षा को दे खते हुए सार्वजनिक
परिवहन का उपयोग नही करती है । सही मायनों में महिला सशक्तिकरण की प्राप्ति तभी की जा सकती
है जब महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके और पुरुषों के तरह वह भी बिना भय के
स्वच्छं द रुप से कही भी आ जा सकें।

8) कन्या भ्रूणहत्या : कन्या भ्रूणहत्या या फिर लिंग के आधार पर गर्भपात भारत में महिला सशक्तिकरण
के रास्तें में आने वाले सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है । कन्या भ्रूणहत्या का अर्थ लिंग के आधार पर
होने वाली भ्रूण हत्या से है , जिसके अंतर्गत कन्या भ्रूण का पता चलने पर बिना माँ के सहमति के ही
गर्भपात करा दिया जाता है । कन्या भ्रूण हत्या के कारण ही हरियाणा और जम्मू कश्मीर जैसे प्रदे शों में
स्त्री और परु
ु ष लिंगानप
ु ात में काफी ज्यादे अंतर आ गया है । हमारे महिला सशक्तिकरण के यह दावे तब
तक नही परू े होंगे जबतक हम कन्या भ्रण
ू हत्या के समस्या को मिटा नही पायेंगे।

भारत में महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार की भमि


ू का : भारत सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण
के लिए कई सारी योजनाएं चलायी जाती है । महिला एंव बाल विकास कल्याण मंत्रालय और भारत
सरकार द्वारा भारतीय महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कई सारी योजनाएं चलायी जा रही है । इन्हीं
में से कुछ मख्
ु य योजनाओं के विषय में नीचे बताया गया है ।

1) बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं योजना


2) महिला हे ल्पलाइन योजना
3) उज्जवला योजना
4) सपोर्ट टू ट्रे निग
ं एंड एम्प्लॉयमें ट प्रोग्राम फॉर वूमेन (स्टे प)
5) महिला शक्ति केंद्र
6) पंचायाती राज योजनाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण
प्रति,
श्रीमान शाखा प्रबधं क महोदय
सहकारी बैंक
जिला मख्ु यालय छिंदवाड़ा
विषय: सहकारी बैंक की एक शाखा ग्राम में खोलने बाबत |
महोदय जी,
सनम्र निवेदन है कि ग्राम बमोरी में बैंकिंग की सवि
ु धा नहीं है जिसके कारण ग्राम वासियों जैसे
बच्चे, बजु र्गु , महिला आदि को को जिला मख्ु यालय की शाखा में जाकर लेन देन करना पड़ता है |
अतः महोदय जी से निवेदन है कि ग्राम वासियों को हो रही असवि ु धा को देखते हुए ग्राम में ही
बैंक की एक शाखा खोली जावे |

धन्यवाद

दिनाक
ं : आवेदक

ग्रामवासी

समाचार पत्र का संपादक प्रतिदिन दे श की ज्वलंत समस्याओं, घटनाओं पर संपादकीय लेखन करता है . संपादक
द्वारा लिखे गए लेख में व्यक्त विचार किसी सामाजिक, राजनीतिक, सामयिक ज्वलंत समस्या पर समाचार-पत्र की
नीति को प्रकट करता है . अत: संपादकीय लेख वह लेख है , जिसमें समाचार-पत्र के संपादक का अपना नजरिया
दिखता है
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हैं। नई पत्रकारिता में समाचारों का प्रसार करना ही एकमात्र उद्देश्य नहीं है , बल्कि इसके उद्देश्य मनोरं जन,
राय-विश्लेषण, समीक्षा, साक्षात्कार, घटना-विश्लेषण, विज्ञापन और कुछ हद तक समाज को प्रभावित करने में
भी निहित हैं। मीडिया समाज का आईना होने के साथ-साथ जागरूकता लाने का भी माध्यम है ।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से लाभ
 पिछले कुछ वर्षों में इसमें   काफी वद्धि
ृ हुई है जिससे लोगों की इस के प्रति रुचि बढ़ी है इसका प्रभाव
आधुनिक समाज पर स्पष्ट रूप से दे खा जा सकता है चाहे फैशन का प्रचलन हो चाहे आधुनिक गीत का
प्रचार प्रसार, इन सभी में मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण होती है वर्तमान में गायिका  रानू मंडल एक
उदाहरण है जिन्हें फर्श  से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने बॉलीवुड की स्टार गायिका के रूप में आसमान पर
पहुंचा दिया है ,
यद्यपि  भारत में अधिकतर फिल्मों का उद्देश्य मनोरं जन के माध्यम से धन कमाना होता है किंतु
पिछले कुछ वर्षों में कुछ सार्थक एवं समाज उपयोगी फिल्मों का भी निर्माण हुआ है जिन्होंने समाज को
दशा व दिशा प्रदान की है और समाज सध ु ार में   महत्वपर्ण
ू भमि
ू का निभाई है , लोगों के रहन-सहन
आचार विचार बोलचाल रं ग ढं ग सभी में टे लीविजन एवं सिनेमा का स्पष्ट प्रभाव दे खने को मिलता है !
यव
ु ा वर्ग के अतिरिक्त बच्चों एवं महिलाओं पर भी इसका प्रभाव पड़ता है जो उनके रहन-सहन में स्पष्ट
रूप से दे खने को मिलता है !  यहां तक कि यह संस्कृति को भी प्रभावित करने में पर्ण
ू रूप से सक्षम
होता है आजकल भारतीय युवा वर्गों के पश्चिमीकरण, पश्चिमी संस्कृति के प्रति उनकी रुचि इसी का
प्रभाव है ,इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से दे श के हर गतिविधि की जानकारी मिलती है साथ ही यह
मनोरं जन का भी एक अच्छा साधन है यह  दे श की राजनीति सामाजिक आर्थिक एवं सांस्कृतिक
गतिविधियों की सही तस्वीर प्रस्तुत करता है चुनाव एवं अन्य परिस्थितियों में सामाजिक एवं नैतिक
मूल्यों से अवगत कराने की जिम्मेदारी भी संचार माध्यमों  की ही होती है यह सरकार एवं जनता के
मध्य सेतु का कार्य करता है ,जनता की समस्याओं को इस माध्यम से जन-जन तक पहुंचाया जाता है
विभिन्न अपराधों एवं घोटालों का भी पर्दाफाश करके दे श की जनता के सामने सच्चाई से अवगत कराया
जाता है ,
प्रति,

श्रीमान सांसद महोदय

जिला छिंदवाड़ा
विषय:- ग्राम में एक पुस्तकालय खोलने बाबत |

महोदय

सनम्र निवेदन है कि ग्राम में रह रहे सभी छोटे बड़े बच्चे पढ़ना लिखना चाहते हैं लेकिन पुस्तक आदि
पर व्यय करने के लिए सक्षम नहीं है इस हे तु ग्राम में एक पुस्तकालय खुल जाए तो बच्चे पढ़ लिख कर
एक अच्छे नागरिक बन कर दे श के विकास में सहयोग प्रदान कर सकते हैं |

धन्यवाद

दिनांक आवेदक

समस्त ग्रामवासी

वर्तमान में भी पस्


ु तकालय उतनी ही अहमियत रखते हैं जितनी कि वह परु ाने जमाने में रखा करते थे
खासकर हमारे भारत दे श में आज भी पुस्तकालयों की कमी है क्योंकि हमारे दे श में आज भी कई लोगों को
शिक्षा उपलब्ध नहीं हो पाती है जिसका एक अहम कारण शिक्षा का वाणिज्य करण है जिसके कारण शिक्षा
दिन-प्रतिदिन महं गी होती जा रही है .

इसीलिए पस्
ु तकालयों की महत्वता और अधिक बढ़ती जा रही है आज भी हमारे दे श के गांव में पस्
ु तकालय
दे खने को नहीं मिलते है जिसके कारण वहां के गरीब लोग पढ़ लिख नहीं पाते हैं और अपना परू ा जीवन
गरीबी में व्यतीत करने को मजबूर हो जाते है .

अगर हमें हमारे दे श के प्रत्येक बच्चे को अच्छी शिक्षा दे नी है तो हमें अच्छे पुस्तकालयों का विकास करना
होगा. विदे शों में शिक्षा व्यवस्था इसीलिए सुदृढ़ है क्योंकि वहां के प्रत्येक गांव और शहर में एक पुस्तकालय
जरूर होता है .

हमें भी प्रत्येक गांव में पुस्तकालय खोलने चाहिए जिससे हमारे दे श का प्रत्येक बच्चा पढ़ लिख कर एक
अच्छा व्यक्ति बनेगा और सामाजिक विकास के साथ-साथ दे श के आर्थिक विकास में भी सहयोग करें .

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