You are on page 1of 21

स्वास्थ्य शिक्षा

लोगों को स्वास्थ्य के सभी पहलुओं के बारे में शिक्षित करना स्वास्थ्य शिक्षा कहलाती है।

स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य

भारत में परिवार नियोजन का महत्व


परिवार नियोजन के वल जन्म नियंत्रण या गर्भनिरोधन से ही नहीं नियंत्रित किया जा सकता है। परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार और माता एवं उसके बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए यह
अत्यंत महत्वपूर्ण है। सबसे पहले परिवार नियोजन में जन्म अंतराल पर महत्व दिया गया है जिसमें बताया गया है कि एक से दूसरे बच्चे के जन्म के मध्य कम से कम 2 वर्ष का अंतर होना
चाहिए। मेडिकल साइंसेज के अनुसार, 5 वर्ष से अधिक या 2 वर्ष से कम के अंतराल में जन्म देने वाली माता और बच्चे के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
जन्म देने में लागत शामिल है क्योंकि परिवार में बच्चों की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ गर्भावस्था और जन्म की चिकित्सा के लिए बहुत रुपए खर्च करने पड़ते हैं और साथ ही बच्चों के भरण-
पोषण और लालन-पालन के लिए उच्च लागत को व्यय करना पड़ता है। सभी माता-पिता का यह कर्तव्य होता है कि वह अपने बच्चों के लिए भोजन, कपड़े, आश्रय, शिक्षा का बंदोबस्त
करें। यदि किसी परिवार ने पारिवारिक नियोजन अपनाया है तो उसे वित्तीय स्थिति को स्थिर रखने में काफी मदद मिलती है।
लक्ष्य- इसका समग्र लक्ष्य भारत की कु ल प्रजनन दर को वर्ष 2025 तक 2.1 तक कम करना है। उद्देश्य- इस मिशन का मुख्य रणनीति फोकस सुनिश्चित सेवाओं की उपलब्धता, नई
प्रोत्साहन योजनाओं, सेवा प्रदाताओं के क्षमता निर्माण, कारगर माहौल निर्माण, निगरानी और कार्यान्वयन के माध्यम से गर्भ निरोधकों तक पहुंच में सुधार करना है।

सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र स्वास्थ्य प्रणाली के अंतर्गत कार्यक्रम के माध्यम से विभिन्न स्तरों पर परिवार नियोजन सेवाएं प्रदान करता है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने वर्ष
2016 में "मिशन परिवार विकास" की शुरूआत की। मिशन परिवार विकास सर्वाधिक कु ल प्रजनन दर वाले देश के सात राज्यों के जिलों में शुरू किया गया था

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय


Cabinet Minister

डॉ हर्षवर्धन
परिवार नियोजन के लाभ
परिवार नियोजन का लाभ उस अपनाने वाले परिवार के साथ ही देश और समाज को है इसको हम निम्न रूप में देख सकते है।

1. बच्चो को लाभ- परिवार नियोजन का बच्चों पर अनुकू ल प्रभाव पड.ता है। कम बच्चे होने को कारण उनकी पढाई तथा पालन-पोषण अच्छे ढंग से किया जा सके गा। उनके शिक्षा
स्वास्थ्य पर हम अच्छा विकास कर सके गें। जो आगे चलकर देश के अच्छे नागरिक बन सके गे।
2. माता-पिता को लाभ- परिवार नियोजन का माता-पिता के स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पडता है। वे अपने परिवार का जीवन स्तर ऊँ चा रख सकते है। माताओं को अच्छा
स्वास्थ्य,अधिक लम्बी आयु और अधिक सुखीजीवन तथा बच्चों की अधिक देखभाल और पालन-पोषण एवं शिक्षण के लिए परिवार नियोजन आवश्यक है।
3. समाज को लाभ- परिवार नियोजन व्यक्ति और समाज दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। क्योंकि कम बच्चो पर व्यक्ति उनका अच्छे से पालन-पोषण कर सके गा जो आगे अच्छे नागरिक
बनेगा जिसके कारण समाज उन्नत बन सके गा तथा समाज का स्तर ऊपर उठेगा।
4. राष्ट्र को लाभ- परिवार नियोजन को प्रभावी रूप में लागू करने पर ही देश का आर्थिक रूप से तीव्र विकास संभव है। गरीबी, बेरोजगारी और आर्थिक असमानता को कम किया
जा सकता है।

 इसके अंतर्गत परिवार कल्याण ऑपरेशन पुरूष/महिला और जन्म में अंतर सुनिश्चित करने के लिए अंतराल विधियों की सेवायें निशुल्क उपलब्ध कराई जाती है।
महिला शिक्षा 

“आप किसी राष्ट्र में महिलाओं की स्थिति देखकर उस राष्ट्र के हालात बता सकते हैं”

-जवाहरलाल नेहरू

किसी भी राष्ट्र के सामाजिक और आर्थिक विकास में महिलाओं की भूमिका को अनदेखा नहीं किया जा सकता। महिला और पुरुष दोनों समान रूप से समाज के दो पहियों की तरह कार्य
करते हैं और समाज को प्रगति की ओर ले जाते हैं। 

र्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में महिला साक्षरता दर मात्र 64.46 फीसदी है, जबकि पुरुष साक्षरता दर 82.14 फीसदी है। उल्लेखनीय है कि भारत की महिला साक्षरता दर
विश्व के औसत 79.7 प्रतिशत से काफी कम है।

भारत में महिला शिक्षा वर्तमान परिदृश

 भारत में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की साक्षरता दर काफी कम है। वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़े दर्शाते हैं कि राजस्थान (52.12 प्रतिशत) और बिहार
(51.50 प्रतिशत) में महिला शिक्षा की स्थिति काफी खराब है।
 कई अध्ययनों के अनुसार, भारत में 15-24 वर्ष आयु वर्ग की युवा महिलाओं की बेरोज़गारी दर 11.5 प्रतिशत है, जबकि समान आयु वर्ग के युवा पुरुषों के मामले में यह
9.8 प्रतिशत है।
 उल्लेखनीय है कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा स्थिति और अधिक गंभीर है
भारत में महिला शिक्षा का इतिहास

भारत में महिला शिक्षा की वर्तमान स्थिति को समझने के लिये आवश्यक है कि इतिहास में इसकी विकास यात्रा को भी समझा जाए। इसे मुख्यतः 3 भागों (1) प्राचीन वैदिक काल, (2)
ब्रिटिश इंडिया और (3) स्वतंत्र भारत में विभाजित कर देखा जा सकता है।

प्राचीन वैदिक काल

 भारत में महिला शिक्षा का इतिहास प्राचीन वैदिक काल से जुड़ा हुआ है। उल्लेखनीय है कि लगभग 3000 से अधिक वर्ष पूर्व वैदिक काल के दौरान महिलाओं को समाज में
एक प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त था और उन्हें पुरुषों के समान समाज का एक महत्त्वपूर्ण अंग समझा जाता था।
 वैदिक अवधारणा के स्त्री शक्ति सिद्धांत के अनुसार, महिलाओं की देवी के रूप में पूजा शुरू हुई- उदाहरण के लिये शिक्षा की देवी सरस्वती।
ब्रिटिश इंडिया

 इस काल में पहला ऑल-गर्ल्स बोर्डिंग स्कू ल वर्ष 1821 में दक्षिण भारत के तिरुनेलवेली में स्थापित किया गया था।
 वर्ष 1840 तक स्कॉटिश चर्च सोसाइटी द्वारा दक्षिण भारत में निर्मित छह स्कू ल मौजूद थे जिनमें कु ल 200 लड़कियों का नामांकन कराया गया था।
 वर्ष 1848 में पुणे में गर्ल्स स्कू ल की शुरुआत करने वाले ज्योतिबा फु ले और उनकी पत्नी सावित्री बाई पश्चिमी भारत में भी महिला शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी थे।
 पश्चिम भारत में महिला शिक्षा की शुरुआत पुणे में गर्ल्स स्कू ल के निर्माण के साथ हुई जिसे वर्ष 1848 में ज्योतिबा फु ले और उनकी पत्नी सावित्री बाई ने शुरू किया था।
 उल्लेखनीय है कि 1850 तक मद्रास मिशनरियों ने स्कू ल में लगभग 8,000 से अधिक लड़कियों का नामांकन कराया था।
 ईस्ट इंडिया कं पनी के कार्यक्रम वुड्स डिस्पैच ने वर्ष 1854 में महिलाओं की शिक्षा और उनके लिये रोज़गार की आवश्यकता को स्वीकार किया।
 वर्ष 1879 में स्थापित बेथ्यून कॉलेज वर्तमान में एशिया का सबसे पुराना महिला कॉलेज है।
स्वतंत्र भारत

 स्वतंत्रता के समय देश में महिला साक्षरता दर काफी कम थी, जिसे सरकार द्वारा नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता था। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए वर्ष 1958 में
सरकार ने महिला शिक्षा पर एक राष्ट्रीय समिति का गठन किया, जिसकी सभी सिफारिशें स्वीकार कर ली गईं। इन सिफारिशों का सार यह था कि महिला शिक्षा को भी पुरुष शिक्षा के
सामानांतर पहुँचाया जाए।
 वर्ष 1959 में इसी विषय पर गठित एक समिति ने लड़कों और लड़कियों के लिये एक समान पाठ्यक्रम को विभिन्न चरणों में लागू करने की सिफारिश की।
 वर्ष 1964 में स्थापित शिक्षा आयोग ने बड़े पैमाने पर महिला शिक्षा के विषय में बात की और वर्ष 1968 में भारत सरकार से एक राष्ट्रीय नीति विकसित करने की
सिफारिश की।
महिला शिक्षा की आवश्यकता

 महिलाओं को शिक्षित करना भारत में कई सामाजिक बुराइयों जैसे- दहेज़ प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या और कार्यस्थल पर उत्पीड़न आदि को दूर करने की कुं जी साबित हो सकती
है।
 यह निश्चित तौर पर देश के आर्थिक विकास में भी सहायक होगा, क्योंकि अधिक-से-अधिक शिक्षित महिलाएँ देश के श्रम बल में हिस्सा ले पाएंगी।
 हाल ही में स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा एक सर्वेक्षण जारी किया गया है, जिसमें बच्चों की पोषण स्थिति और उनकी माताओं की शिक्षा के बीच सीधा संबंध दिखाया गया है।
 इस सर्वेक्षण से यह बात सामने आई है कि महिलाएँ जितनी अधिक शिक्षित होती हैं, उनके बच्चों को उतना ही अधिक पोषण आधार मिलता है।
 इसके अलावा कई विकास अर्थशास्त्रियों ने लंबे समय तक इस विषय का अध्ययन किया है कि किस प्रकार लड़कियों की शिक्षा उन्हें परिवर्तन के एजेंट के रूप में उभरने में
सक्षम बनाती है।

महिला शिक्षा के मार्ग में बाधाएँ:

 भारतीय समाज पुरुष प्रधान है। महिलाओं को पुरुषों के बराबर सामाजिक दर्जा नहीं दिया जाता है और उन्हें घर की चहारदीवारी तक सीमित कर दिया जाता है। हालाँकि
ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरी क्षेत्रों में स्थिति अच्छी है, परंतु इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि आज भी देश की अधिकांश आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है।
 हम दुनिया की सुपर पॉवर बनने के लिये तेज़ी से प्रगति कर रहे हैं, परंतु लैंगिक असमानता की चुनौती आज भी हमारे समक्ष एक कठोर वास्तविकता के रूप में खड़ी है। यहाँ
तक कि देश में कई शिक्षित और कामकाजी शहरी महिलाएँ भी लैंगिक असमानता का अनुभव करती हैं।
 समाज में यह मिथ काफी प्रचलित है कि किसी विशेष कार्य या परियोजना के लिये महिलाओं की दक्षता उनके पुरुष समकक्षों के मुकाबले कम होती है और इसी कारण देश में
महिलाओं तथा पुरुषों के औसत वेतन में काफी अंतर आता है ।
 देश में महिला सुरक्षा अभी एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है, जिसके कारण कई अभिभावक लड़कियों को स्कू ल भेजने से कतराते हैं। हालाँकि सरकार द्वारा इस क्षेत्र में काफी काम
किया गया है, परंतु वे सभी प्रयास इस मुद्दे को पूर्णतः संबोधित करने में असफल रहे हैं।
महिला शिक्षा हेतु सरकार के प्रयास

 ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ की शुरुआत वर्ष 2015 में देश भर में घटते बाल लिंग अनुपात के मुद्दे को संबोधित करने हेतु की गई थी। यह महिला और बाल विकास मंत्रालय,
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा मानव संसाधन मंत्रालय की संयुक्त पहल है। इसके तहत कन्या भ्रूण हत्या रोकने, स्कू लों में लड़कियों की संख्या बढ़ाने, स्कू ल छोड़ने वालों
की संख्या को कम करने, शिक्षा के अधिकार के नियमों को लागू करने और लड़कियों के लिये शौचालयों के निर्माण में वृद्धि करने जैसे उद्देश्य निर्धारित किये गए हैं।
 कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना की शुरुआत वर्ष 2004 में विशेष रूप से कम साक्षरता दर वाले क्षेत्रों में लड़कियों के लिये प्राथमिक स्तर की शिक्षा की व्यवस्था
करने हेतु की गई थी।
 महिला समाख्या कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1989 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 के लक्ष्यों के अनुसार महिलाओं की शिक्षा में सुधार व उन्हें सशक्त करने हेतु की गई थी।
 यूनिसेफ भी देश में लड़कियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने हेतु भारत सरकार के साथ काम कर रहा है।
 इसके अलावा महिला शिक्षा के उत्थान की दिशा में झारखंड ने भी एक बड़ी पहल की है। झारखंड स्कू ल ऑफ एजुके शन ने कक्षा 9 से 12 वीं तक की सभी छात्राओं को मुफ्त
पाठ्य पुस्तक, यूनिफॉर्म और नोटबुक बाँटने का फै सला किया है।

जन्म और मृत्यु
कु पोषण
Who
भारत के कें द्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन को वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के अगले कार्यकारी बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया है. डब्लूएचओ
के मुताबिक, भारत में कोरोना से लड़ाई में अहम भूमिका निभा रहे हर्षवर्धन अपना कार्यभार 22 मई को संभालेंगे. वह जापान के डॉक्टर हिरोकी नकाटनी के
स्थान पर बोर्ड के अध्यक्ष नियुक्त किए गए हैं.

 इथियोपिया के डॉक्टर टैड्रोस ऐडरेनॉम ग़ैबरेयेसस विश्व स्वास्थ्य संगठन के नए महानिदेशक निर्वाचित हुए हैं।

 स्वास्थ्य क्षेत्र के लिये संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (World Health Organization-WHO) की स्थापना वर्ष 1948 हुई थी।
 इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है।
 वर्तमान में 194 देश WHO के सदस्य हैं। 150 देशों में इसके कार्यालय होने के साथ-साथ इसके छह क्षेत्रीय कार्यालय भी हैं।
 यह एक अंतर-सरकारी संगठन है तथा सामान्यतः अपने सदस्य राष्ट्रों के स्वास्थ्य मंत्रालयों के सहयोग से कार्य करता है।
WHO ने 7 अप्रैल, 1948 से कार्य आरंभ किया, अतः वर्तमान में 7 अप्रैल को प्रतिवर्ष विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारत

(WHO and India):

 भारत 12 जनवरी, 1948 को WHO का सदस्य बना।


 WHO का दक्षिण-पूर्व एशिया का क्षेत्रीय कार्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
भारत में WHO द्वारा किये गए स्वास्थ्य संबंधी प्रयास:

 चेचक
(Smallpox):
o वर्ष 1967 में भारत में दर्ज किये गए चेचक के मामलों की कु ल संख्या विश्व के कु ल मामलों की लगभग 65% थी।
o इनमें से 26,225 मामलों में रोगी की मृत्यु हो गई, इस घटना ने भविष्य में होने वाले अथक संघर्ष की विकट तस्वीर प्रस्तुत की है।
o वर्ष 1967 में WHO ने गहन चेचक उन्मूलन कार्यक्रम (Intensified Smallpox Eradication Programme) प्रारंभ किया।
o WHO और भारत सरकार के समन्वित प्रयास से वर्ष 1977 में चेचक का उन्मूलन किया गया।
 पोलियो
(Polio):
o विश्व बैंक की वित्तीय एवं तकनीकी सहायता से WHO द्वारा वर्ष 1988 में प्रारंभ की गई वैश्विक पोलियो उन्मूलन पहल (Global Polio
Eradication Initiative) के संदर्भ में भारत ने पोलियो रोग के खिलाफ मुहिम की शुरुआत की।
o पोलियो अभियान-2012: भारत सरकार ने यूनिसेफ, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, रोटरी इंटरनेशनल और रोग
नियंत्रण एवं रोकथाम कें द्रों की साझेदारी से पाँच वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों को पोलियो से बचाव हेतु टीका लगवाने की आवश्यकता के बारे में सार्वभौमिक जागरूकता में
योगदान दिया है।
o इन प्रयासों के परिणामस्वरूप वर्ष 2014 में भारत को एंडेमिक देशों की सूची से बाहर रखा गया।
 WHO देश सहयोग रणनीति- भारत (वर्ष 2012-2017) नामक रणनीति को संयुक्त रूप से स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoH & FW) तथा भारत
स्थित WHO के देशीय कार्यालय (WHO Country Office-WCO) द्वारा विकसित किया गया था।

वैश्विक स्वास्थ्य चिंताएँ एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन

World Health Concerns & WHO:


पर्यावरण प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन

(Air Pollution and Climate Change):

 पूरे विश्व में प्रतिदिन दस में से नौ लोग प्रदूषित हवा में साँस लेते हैं। वर्ष 2019 में WHO द्वारा वायु प्रदूषण को स्वास्थ्य के लिये सबसे बड़ा पर्यावरणीय जोखिम माना
गया है।
 हवा के साथ सूक्ष्म प्रदूषक श्वसन और रक्त संचार तंत्र में प्रवेश कर फे फड़ों, हृदय एवं मस्तिष्क को नुकसान पहुँचा सकते हैं जिससे कैं सर, स्ट्रोक, हृदय और फे फड़ों की
बीमारी जैसे रोगों से प्रतिवर्ष 7 मिलियन लोगों की असामयिक मौत हो जाती है।
 वायु प्रदूषण का प्राथमिक कारण (जीवाश्म ईंधन जलाना) भी जलवायु परिवर्तन में एक प्रमुख योगदानकर्त्ता है जो विभिन्न प्रकार से लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
 वर्ष 2030 से वर्ष 2050 के दौरान जलवायु परिवर्तन के कारण प्रतिवर्ष कु पोषण, मलेरिया, डायरिया और हीट स्ट्रेस (Heat Stress) से 2,50,000 अतिरिक्त
मौतें होने की संभावना है।

गैर-संक्रामक रोग

(Noncommunicable Diseases):

 गैर-संक्रामक रोग जैसे- मधुमेह, कैं सर एवं हृदय रोग संपूर्ण विश्व में कु ल मौतों के 70% से अधिक अथवा 41 मिलियन लोगों की मृत्यु के लिये सामूहिक रूप से ज़िम्मेदार
हैं।
 WHO के अनुसार, इन रोगों में वृद्धि के पाँच प्रमुख कारण तंबाकू का उपयोग, शारीरिक निष्क्रियता, शराब का अविवेकपूर्ण उपयोग, अस्वास्थ्यकर आहार एवं वायु प्रदूषण
हैं।
 15-19 वर्ष के बच्चों में आत्महत्या मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण है।
वैश्विक इन्फ्लूएंज़ा महामारी

(Global Influenza Pandemic):

 WHO महामारी के संभावित कारणों का पता लगाने के लिये इन्फ्लूएंज़ा वायरस के प्रसार की लगातार निगरानी कर रहा है। 114 देशों के 153 संस्थान इस वैश्विक
निगरानी एवं प्रतिक्रिया में शामिल हैं।
नाजुक एवं सुभेद्य परिस्थितियाँ

(Fragile and Vulnerable Settings):

 1.6 बिलियन से अधिक लोग (वैश्विक आबादी का 22%) उन स्थानों में रहते हैं जहां दीर्घकालिक संकट (सूखा, अकाल, संघर्ष एवं जनसंख्या विस्थापन जैसी साझा
चुनौतियाँ) की स्थितियाँ होती हैं तथा कमज़ोर स्वास्थ्य सेवाओं के कारण वे बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रह जाते हैं।
रोगाणुरोधी प्रतिरोध

(Antimicrobial Resistance):

 यह एक ऐसी समस्या है जिसमें बैक्टीरिया, परजीवी, वायरस और कवक आधुनिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी क्षमता उत्पन्न कर लेते हैं जिससे विभिन्न संक्रमणों का आसानी से
इलाज करने में कठिनाई होती है।
 संक्रमण को रोकने में असमर्थता के कारण सर्जरी एवं कीमोथेरेपी जैसी गंभीर प्रक्रियाओं को अपनाना पड़ता है।
 दवा प्रतिरोध, लोगों में एंटीमाइक्रोबियल (Antimicrobial) के अत्यधिक प्रयोग से उत्पन्न होता है।
 WHO द्वारा रोगाणुरोधी के विवेकपूर्ण उपयोग को प्रोत्साहित कर संक्रमण को कम करने तथा रोगाणुरोधी प्रतिरोध से निपटने हेतु लोगों में जागरूकता एवं ज्ञान वृद्धि के लिये
एक वैश्विक कार्ययोजना को लागू करने पर कार्य किया जा रहा है।
इबोला एवं अन्य गंभीर रोगजनक

(Ebola and Other High-Threat Pathogens):

 वर्ष 2018 में डेमोक्रे टिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में 1 मिलियन से अधिक जनसंख्या वाले दो अलग-अलग शहरों में इबोला का प्रकोप देखा गया था। प्रभावित प्रांतों में से एक
सक्रिय संघर्ष क्षेत्र भी है।
 WHO का अनुसंधान एवं विकास ब्लूप्रिंट (WHO’s R&D Blueprint) उन बीमारियों और रोगजनकों की पहचान करता है जिनके कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य
आपातकाल की स्थिति उत्पन्न होती है परंतु उनके लिये प्रभावी उपचार तथा टीकों का अभाव होता है।
 WHO इसकी सहायता से इबोला, कई अन्य रक्तस्रावी बुखार जैसे- जीका, निपाह, मध्य पूर्व श्वसन सिंड्रोम, कोरोनावायरस (MERS-CoV) और गंभीर एक्यूट
रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (SARS) जैसी वैश्विक स्वास्थ्य समस्याओं के निवारण के क्षेत्र में कार्य करता है।.
 प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएँ आमतौर पर लोगों की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के साथ पहला संपर्क बिंदु होती हैं तथा सभी देशों को अपने नागरिकों को जीवन भर व्यापक, सस्ती,
समुदाय-आधारित सेवाएँ प्रदान करने का प्रयास करना चाहिये।
डेंगू

(Dengue):

 यह एक मच्छर जनित बीमारी है जो फ्लू जैसे लक्षणों का कारण बनती है और गंभीर रूप से डेंगू से पीड़ित 20% लोगों में घातक एवं जानलेवा साबित हो सकती है, जो दशकों
से एक गंभीर चुनौती बनी हुई है।
 बांग्लादेश और भारत आदि देशों में वर्षा ऋतु में बहुत अधिक संख्या में डेंगू के मामले सामने आते हैं।
 अब इन देशों के डेंगू से प्रभावित होने की अवधि में काफी वृद्धि हो रही है (वर्ष 2018 में बांग्लादेश में लगभग दो दशकों में सबसे ज़्यादा मौतें हुईं)।
 अब यह बीमारी नेपाल जैसे उन कम उष्णकटिबंधीय एवं अधिक समशीतोष्ण देशों में फै ल रही है जिन्होंने परंपरागत रूप से इस बीमारी का सामना नहीं किया है।
 WHO की डेंगू नियंत्रण रणनीति (WHO’s Dengue Control Strategy) का उद्देश्य वर्ष 2020 तक डेंगू से होने वाली मौतों को 50% तक कम
करना है।
एचआईवी

(HIV):

 लोगों में एचआईवी परीक्षण के संदर्भ में व्यापक प्रगति देखी जा रही है तथा लगभग 22 मिलियन प्रभावितों को एंटीरेट्रोवाइरल (Antiretrovirals) उपचार प्रदान किया
जा रहा है तथा प्री एक्सपोज़र प्रोफिलैक्सिस (Pre-exposure Prophylaxis) जैसे निवारक उपायों तक पहुँच स्थापित की जा रही है। (जब लोगों को एचआईवी का
जोखिम होता है तो एचआईवी संक्रमण को रोकने के लिये एंटीरेट्रोवाइरल उपचार प्रदान किया जाता है)।
 आज संपूर्ण विश्व में लगभग 37 मिलियन लोग एचआईवी से ग्रस्त हैं।
 15-24 वर्ष आयु वर्ग की युवा लड़कियाँ और महिलाएँ एचआईवी से अधिक प्रभावित हो रही हैं जो कि एक गंभीर समस्या है।
 WHO देशों के साथ स्व-परीक्षण की शुरुआत का समर्थन करने के लिये काम कर रहा है ताकि अधिक से अधिक एचआईवी संक्रमित लोगों को उनकी स्थिति का पता चल
सके तथा वे उपचार (निवारक उपाय) प्राप्त कर सकें ।

WHO की संगठनात्मक चुनौतियाँ

(WHOs' Organisational Challenges):

 WHO देशों से सुरक्षित वित्तपोषण के बजाय मुख्य रूप से समृद्ध देशों एवं बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन जैसी संस्थाओं द्वारा प्रदत्त फं ड्स पर निर्भर है।
 परिणामस्वरूप वर्तमान में WHO का 80% वित्त उन कार्यक्रमों से संबंधित है जिन्हें फं ड देने वालों द्वारा चुना जाता है। WHO के महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम अल्प वित्तपोषित
हैं क्योंकि इन कार्यक्रमों को निर्धारित करने में फं ड देने वाली संस्थाओं और समृद्ध एवं विकसित देशों के बीच हितों का टकराव होता है।
 नतीजतन वैश्विक स्वास्थ्य क्षेत्र में एक प्रतिनिधि के रूप में WHO की भूमिका को विश्व बैंक जैसे अन्य अंतर-सरकारी निकायों द्वारा और बड़े प्रतिष्ठानों द्वारा प्रतिस्थापित
कर दिया गया है।
 वर्ष 2014 में पश्चिम अफ्रीका में फै ली इबोला महामारी को खत्म करने में इसके अपर्याप्त प्रदर्शन के बाद संगठन की प्रभावकारिता सवालों के घेरे में आ गई है।
विश्व जनसंख्या दिवस की इस बार की थीम कोरोना वायरस के चलते दुनियाभर में महिलाओं और लड़कियों के स्वास्थ्य और अधिकारों की सुरक्षा पर
कें द्रित है।

भारत में सबसे अधिक 20 मिलियन जन्मों का पूर्वानुमान


लंबे समय में यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं सहित आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं की सीमित उपलब्धता हानिकारक होगी। यूनिसेफ के अनुमानों के
अनुसार, नौ महीने के अंतराल में भारत में सबसे अधिक 20 मिलियन जन्मों की पूर्वानुमान संख्या (forecast births) होगी। विश्व जनसंख्या दिवस हर
वर्ष 11 जुलाई को मनाया जाने वाला कार्यक्रम है

जनसंख्या नियंत्रण- तर्काधार

किसी भी देश में जब जनसंख्या विस्फोटक स्थिति में पहुँच जाती है तो संसाधनों के साथ उसकी ग़ैर-अनुपातित वृद्धि होने लगती है, इसलिये इसमें स्थिरता लाना ज़रूरी होता है। संसाधन
एक बहुत महत्त्वपूर्ण घटक है। भारत में विकास की गति की अपेक्षा जनसंख्या वृद्धि दर अधिक है। संसाधनों के साथ क्षेत्रीय असंतुलन भी तेज़ी से बढ़ रहा है। 

 भारत में वर्तमान स्थिति में युवा एवं कार्यशील जनसंख्या अत्यधिक है किं तु उसके लिये रोज़गार के सीमित अवसर ही उपलब्ध हैं। ऐसे में यदि जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित न
किया गया तो स्थिति भयावह हो सकती है। इसी संदर्भ में हाल ही में भारतीय प्रधानमंत्री ने जनसंख्या नियंत्रण की बात कही है।भारत को इस समस्या के सबसे भीषण रूप का सामना
करना है। चीन अभी आबादी में हमसे आगे है तो क्षेत्रफल में भी काफी बड़ा है। फिलहाल भारत की जनसंख्या 1.3 अरब और चीन की 1.4 अरब है।
इसके बाद भारत की आबादी वर्ष 2030 में करीब 1.5 अरब हो जाएगी और कई दशकों तक बढ़ती रहेगी। वर्ष 2050 में इसके 1.66 अरब तक पहुँचने का अनुमान है, जबकि चीन
की आबादी 2030 तक स्थिर रहने के बाद धीमी गति से कम होनी शुरू हो जाएगी।
बढ़ती आबादी की प्रमुख चुनौतियाँ

 स्थिर जनसंख्या: स्थिर जनसंख्या वृद्धि के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये यह आवश्यक है कि सर्वप्रथम प्रजनन दर में कमी की जाए। यह बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य
प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में काफी अधिक है, जो एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
 जीवन की गुणवत्ता: नागरिकों को न्यूनतम जीवन गुणवत्ता प्रदान करने के लिये शिक्षा और स्वास्थ्य प्रणाली के विकास पर निवेश करना होगा, अनाजों एवं खाद्यान्नों का
अधिक-से-अधिक उत्पादन करना होगा, लोगों को रहने के लिये घर देना होगा, स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति बढ़ानी होगी एवं सड़क, परिवहन और विद्युत उत्पादन तथा वितरण जैसे
बुनियादी ढाँचे को मज़बूत बनाने पर काम करना होगा।
 नागरिकों की मूलभूत ज़रूरतों को पूरा करने और बढ़ती आबादी को सामाजिक बुनियादी ढाँचा प्रदान करके समायोजित करने के लिये भारत को अधिक खर्च करने की
आवश्यकता है तथा इसके लिये भारत को सभी संभावित माध्यमों से अपने संसाधन बढ़ाने होंगे।
 जनसांख्यिकीय विभाजन: बढ़ती जनसंख्या का लाभ उठाने के लिये भारत को मानव पूंजी का मज़बूत आधार बनाना होगा ताकि वे लोग देश की अर्थव्यवस्था में अपना
महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकें , लेकिन भारत की कम साक्षरता दर (लगभग 74 प्रतिशत) इस मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है।
 सतत् शहरी विकास: वर्ष 2050 तक देश की शहरी आबादी दोगुनी हो जाएगी, जिसके चलते शहरी सुविधाओं में सुधार और सभी को आवास उपलब्ध कराने की चुनौती
होगी, साथ ही पर्यावरण को भी मद्देनज़र रखना ज़रूरी होगा।
 असमान आय वितरण : आय का असमान वितरण और लोगों के बीच बढ़ती असमानता अत्यधिक जनसंख्या के नकारात्मक परिणामों के रूप में सामने आएगी।
गरीबी तथा जनसंख्या वृद्धि में महत्त्वपूर्ण संबंध

परिवार का स्वास्थ्य, बाल उत्तरजीविता और बच्चों की संख्या आदि माता-पिता (विशेषकर माता) के स्वास्थ्य और शिक्षा के स्तर से गहराई से संबद्ध हैं। इस प्रकार कोई दंपति जितना निर्धन
होगा, उसमें उतने अधिक बच्चों को जन्म देने की प्रवृत्ति होगी। इस प्रवृत्ति का संबंध लोगों को उपलब्ध अवसरों, विकल्पों और सेवाओं से है। गरीब लोगों में अधिक बच्चों को जन्म देने की
प्रवृत्ति इसलिये होती है क्योंकि इस वर्ग में बाल उत्तरजीविता निम्न है, पुत्र प्राप्ति की इच्छा हमेशा से उच्च बनी रही है, बच्चे आर्थिक गतिविधियों में सहयोग देते हैं और इस प्रकार परिवार की
आर्थिक और भावनात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।

जनसंख्या नियंत्रण- उपाय

आर्थिक सर्वेक्षण के अनुमान के बावजूद भारत की बढ़ती जनसंख्या एक सच्चाई है, जो वर्ष 2030 तक चीन से भी अधिक हो जाएगी। जनसंख्या में तीव्र वृद्धि विभिन्न नकारात्मक परिणाम
उत्पन्न करते हैं। इन परिणामों को रोकने के लिये आवश्यक है कि जनसंख्या को नियंत्रित करके वृद्धि दर को स्थिर किया जाए। निम्नलिखित उपायों से जनसंख्या की तीव्र वृद्धि दर को रोका
जा सकता है-

 आयु की एक निश्चित अवधि में मनुष्य की प्रजनन दर अधिक होती है। यदि विवाह की आयु में वृद्धि की जाए तो बच्चों की जन्म दर को नियंत्रित किया जा सकता है।
 महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार तथा उन्हें निर्णय प्रक्रिया में शामिल करना।
 शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार तथा लोगों के अधिक बच्चों को जन्म देने के दृष्टिकोण को परिवर्तित करना।
 भारत में अनाथ बच्चों की संख्या अधिक है तथा ऐसे परिवार भी हैं जो बच्चों को जन्म देने में सक्षम नहीं हैं। ऐसे परिवारों को बच्चे गोद लेने के लिये प्रोत्साहित करना , साथ ही
अन्य परिवारों को भी बच्चों को गोद लेने के लिये प्रेरित करना। इस प्रकार से न सिर्फ अनाथ बच्चों की स्थिति में सुधार होगा बल्कि जनसंख्या को भी नियंत्रित किया जा सके गा।
 भारत में विभिन्न कारकों के चलते पुत्र प्राप्ति को आवश्यक माना जाता है तथा पुत्री के जन्म को हतोत्साहित किया जाता है। यदि लैंगिक भेदभाव को समाप्त किया जाता है तो
पुत्र की चाहत में अधिक-से-अधिक बच्चों को जन्म देने की प्रवृत्ति को रोका जा सकता है।
 भारतीय समाज में किसी भी दंपत्ति के लिये संतान प्राप्ति आवश्यक समझा जाता है तथा इसके बिना दंपत्ति को हेय दृष्टि से देखा जाता है, यदि इस सोच में बदलाव किया जाता
है तो यह जनसंख्या में कमी करने में सहायक होगा।
 सामाजिक सुरक्षा तथा वृद्धावस्था में सहारे के रूप में बच्चों का होना आवश्यक माना जाता है। किं तु मौजूदा समय में विभिन्न सरकारी योजनाओं एवं सुविधाओं के कारण इस
विचार में बदलाव आया है। यह कारक भी जनसंख्या नियंत्रण में उपयोगी हो सकता है।
 परिवारों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाकर तथा उनके जीवन स्तर को ऊँ चा उठाकर जनसंख्या वृद्धि को कम किया जा सकता है। प्रायः ऐसा देखा गया है कि उच्च जीवन
स्तर वाले लोग छोटे परिवार को प्राथमिकता देते हैं।

पोषण अभियान (राष्ट्रीय पोषण मिशन)

योजना के बारे मे :
भारत सरकार द्वारा कु पोषण को दूर करने के लिए जीवनचक्र एप्रोच अपनाकर चरणबद्ध ढंग से पोषण अभियान चलाया जा रहा है ,भारत सरकार द्वारा
0 से 06 वर्ष तक के बच्चों एवं गर्भवती एवं धात्री माताओ के स्वास्थ्य एवं पोषण स्तर में समयबद्ध तरीके से सुधार हेतु महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय पोषण
मिशन का गठन किया गया है राष्ट्रीय पोषण मिशन अर्न्तगत कु पोषण को चरणबद्ध तरीके से दूर करने के लिए आगामी 03 वर्षो के लिए लक्ष्य निर्धारित
किये गये है-

उद्देश्य एवं लक्ष्य :


1. 0-6 वर्ष के बच्चों में ठिगनेपन से बचाव एवं इसमें कु ल 6 प्रतिशत,प्रति वर्ष 2%की दर से कमी लाना।
2. 0 से 6 वर्ष के बच्चों का अल्प पोषण से बचाव एवं इसमें कु ल 6 प्रतिशत,प्रति वर्ष 2%की दर से कमी लाना ।
3. 6 से 59 माह के बच्चों में एनीमिया के प्रसार मेंकु ल 9 प्रतिशत,प्रति वर्ष 3%की दर से कमी लाना ।
4. 15 से 49 वर्ष की किशोरियों, गर्भवती एवं धात्री माताओं में एनीमिया के प्रसार में कु ल 9 प्रतिशत,प्रति वर्ष 3%की दर से कमी लाना ।
5. कम वजन के साथ जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या में कु ल 6 प्रतिशत,प्रति वर्ष 2%की दर से कमी लाना ।
प्रधान मंत्री मातृ वंदना योजना

प्रधान मंत्री मातृत्व वंदना योजना (PMMVY) का उद्देश्य :


काम करने वाली महिलाओं की मजदूरी के नुकसान की भरपाई करने के लिए मुआवजा देना और उनके उचित आराम और पोषण को सुनिश्चित
करना। गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के स्वास्थ्य में सुधार और नकदी प्रोत्साहन के माध्यम से अधीन-पोषण के प्रभाव को
कम करना।

योजना के लाभ :
इस योजना से गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को पहले जीवित बच्चे के जन्म के दौरान फायदा होगा। योजना की लाभ राशि
DBT के माध्यम से लाभार्थी के बैंक खाते में सीधे भेज दी जाएगी। रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार निम्नलिखित किश्तों में राशि का भुगतान करेगी।
पहली किस्त: 1000 रुपए गर्भावस्था के पंजीकरण के समय
दूसरी किस्त: 2000 रुपए,यदि लाभार्थी छह महीने की गर्भावस्था के बाद कम से कम एक प्रसवपूर्व जांच कर लेते हैं ।
तीसरी किस्त: 2000 रुपए, जब बच्चे का जन्म पंजीकृ त हो जाता है और बच्चे को BCG, OPV, DPT और हेपेटाइटिस-B सहित पहले
टीके का चक्र शुरू होता है ।

पूरक आहार का उद्देश्य मां के दूध की सम्पूर्ति करना तथा यह सुनिश्चित करना है कि शिशु को पर्याप्त ऊर्जा, प्रोटीन तथा अन्य पोषक तत्व प्राप्त होते रहें, ताकि वह सामान्य रूप से
विकसित हो सके ।

समेकित बाल विकास परियोजना

योजना के बारे मे :
वर्तमान में मध्यप्रदेश के सभी 313 विकासखण्डों में 278 ग्रामीण, 102 आदिवासी परियोजनायें संचालित हैं। इसके अतिरिक्त 73 शहरी बाल
विकास परियोजनाओं सहित प्रदेश में कु ल 453 समेकित बाल विकास परियोजनाएं संचालित हैं। 453 बाल विकास परियोजनाओं में कु ल
80,160 आंगनबाड़ी के न्द्र एवं 12,070 उप आंगनबाड़ी के न्द्र स्वीकृ त हैं। इन आंगनबाड़ी के न्द्रों के माध्यम से लगभग 97.68 लाख
हितग्राहियों को आर्इ.सी.डी.एस. की सेवाओं से लाभान्वित किया जा रहा है। आंगनबाड़ी के न्द्रों के माध्यम से निम्नानुसार सेवाएं समन्वित रूप से दी
जाती है :-

1.पूरक पोषण आहार -


6 वर्ष से कम उम्र के बच्चे, गर्भवती व दूध पिलाने वाली माताओं तथा किशोरियों की पहचान हेतु समुदाय के सभी परिवारों का सर्वेक्षण किया जाता है
तथा साल में कम से कम तीन सौ दिन पूरक पोषण आहार दिया जाता हैं। वर्तमान में 06 माह से 06 वर्ष तक के बच्चों को 4.00 रूपये प्रति बच्चा
प्रतिदिन के मान से 12-15 ग्राम प्रोटीन एवं 500 कै लोरी युक्त पोषण आहार दिये जाने का प्रावधान है। गंभीर कु पोषित बच्चों को 6.00 रूपये प्रति
बच्चा प्रतिदिन के मान से 20-25 ग्राम प्रोटीन एवं 800 कै लोरी युक्त पोषण आहार तथा गर्भवती/धात्री माताओं एवं किशोरी बालिकाओं को
5.00 रूपये प्रति हितग्राही प्रतिदिन के मान से 18-20 ग्राम प्रोटीन एवं 600 कै लोरी युक्त पोषण आहार दिये जाने का प्रावधान है।

2.स्वास्थ्य जांच -
प्रत्येक आंगनबाड़ी के न्द्र में प्रत्येक माह में किसी एक मंगलवार या शुक्रवार के दिन ए.एन.एम तथा स्वास्थ्य कार्यकर्ता द्वारा महिलाओं तथा बच्चों की
स्वास्थ्य जाँच की जाती है। स्वास्थ्य जाँच के आधार पर स्वास्थ्य में सुधार हेतु आवश्यक सलाह हितग्राहियों को दी जाती है।

3.संदर्भ सेवाएँ -
स्वास्थ्य जांच के आधार पर आवश्यक होने पर महिलाओं एवं बच्चों को खण्ड चिकित्सा अधिकारी अथवा विकासखण्डजिलास्तरीय चिकित्सालयों में
रेफर किया जाता है।
4.टीकाकरण -
प्रति आंगनबाड़ी प्रतिमाह किसी एक सप्ताह का मंगलवारशुक्रवार टीकाकरण के लिये निर्धारित रहता है। उक्त दिवस में ए.एन.एम द्वारा आंगनबाड़ी के न्द्र
पर बच्चों, गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण किया जाता है।

5.पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा -


आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एवं ए.एन.एम द्वारा उनके कार्यक्षेत्र में गृह भेंट करने का प्रावधान है। गृहभेंट के दौरान महिलाओं को स्वास्थ्य एवं संतुलित भोजन
से संबंधित जानकारी व सलाह दी जाती है।

6.स्कू ल पूर्व अनौपचारिक शिक्षा -


आंगनबाड़ी के न्द्रों का मुख्य उददेश्य बच्चों का मानसिक विकास करना भी है जिससे वह प्राथमिक स्कू ल में और बेहतर तरीके से शिक्षा प्राप्त कर सकें ।
इसके लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ता द्वारा 3 से 6 वर्ष तक के बच्चों को खेल-खेल में शिक्षा दी जाती हैं। बच्चों को प्राकृ तिक संसाधनों जैसे -जल, जंगल,
जानवर, इत्यादि के बारे में प्रारंभिक ज्ञान कराया जाता है।

You might also like