Professional Documents
Culture Documents
Home
Contact us
About us
सामाजिक विधान
का अर्थ एवं
परिभाषा
SHARE
Sociology
व्यक्ति का समाज के साथ घनिष्ठ
संबंध है। उसकी आवश्यकता ओं की
संतुष्टि समाज में ही संभव है।
सामाजिक संरचना का निर्माण एवं
पुनर्गठन इसलिए किया जाता है
ताकि इन आवश्यकताओं की
समुचित एवं प्रभावपूर्ण ढंग से संतुष्टि
हो सके । दुर्भाग्य की बात है कि
कालांतर में भारतीय सामाजिक
संरचना मैं ऐसे दोष उत्पन्न हुए
जिनके कारण कु छ लोग सबल तथा
कु छ निर्बल हो गए और सबलो द्वारा
निर्बलों का शोषण किया जाने लगा।
परिणामत: यह अनुभव किया गया
कि निर्बल वर्गों के हितों का संरक्षण
करने हेतु राज्य द्वारा कु छ विशेष
प्रयास किए जाएं ताकि निर्बलों को
भी व्यक्तित्व के विकास एवं
सामाजिक क्रियाकलापों में अपनी
योग्यताओं एवं क्षमताओं के अनुसार
भाग लेने के अवसर प्राप्त हो सके ।
यद्यपि ऐसे प्रयास सदैव से होते रहे
हैं किंतु इस दिशा में व्यवस्थित ,
चेतन एवं योजनाबद्ध प्रयास स्वतंत्रता
के पश्चात ही प्रारंभ किए जा सके
जब राज्य एक कल्याणकारी राज्य
के रूप में उभरकर सामने आया। ये
प्रयास निर्बल एवं शोषण का सरलता
पूर्वक शिकार बनने वाले वर्गों के
हितों के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु
सामाजिक विधानों के रूप में सामने
आए।
नियमन की
स्थिति उत्पन्न
करना तथा
सुरक्षा प्रदान
करना
सामाजिक आवश्यकताओं
का
पूर्वानुमान
करते हुए
सामाजिक
व्यवस्था
में परिवर्तन
लाने का
प्रयास करन
स्वतंत्रता
से पूर्व सामाजिक विधान
प्रारंभ में सामाजिक न्याय व्यवस्था
का कार्य समाज में फै ली धार्मिक
कु रीतियों को रोकना था। 1929 में
बंगाल में सती प्रथा को रोकने के
लिए कानून बनाया गया। इसी कानून
को बाद में मद्रास एवं मुंबई में भी
भारतीय
संविधान
के अधीन
सामाजिक प्रावधान
भारतीय संविधान की वर्तमान
प्रस्तावना में यह कहा गया है :
"
हम, भारत के लोग, भारत को एक
संपूर्ण संप्रभुता संपन्न समाजवादी
धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य
बनाने के लिए तथा इनके सभी
नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक
और राजनीतिक न्याय, विचार
अभिव्यक्ति, विश्वास, आस्था एवं
उपासना की स्वतंत्रता, स्थिति और
अवसर की समानता, और इन सभी
को प्रोत्साहन करने हेतु व्यक्ति की
महत्ता एवं राष्ट्र की एकता एवं
अखंडता का आश्वासन देने वाले
भ्रतृत्व को
बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प
होकर…….. इस संविधान को
अंगीकृ त, अधिनियमित एवं अपने
आप को समर्पित करते हैं " ।
संविधान की प्रस्तावना से यह स्पष्ट है
कि हम प्रत्येक नागरिक को न्याय,
स्वतंत्रता, समानता एवं बंधुत्व का
आश्वासन प्रदान करते हुए संप्रभुता
पूर्ण, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष एवं
सामाजिक विधानों को
निम्नलिखित 6 श्रेणियों में विभाजित
किया जा सकता है।
1. धार्मिक एवं
दातव्य न्यासों
से
संबंधित
विधान।
2. निराश्रित व्यक्तियों
से संबंधित
विधान जिसके
अंतर्गत
अकिंचन
कोढियों से
संबंधित
विधान
को सम्मिलित
किया जा
रहा हैं।
3. बाधितों से
संबंधित विधान
जिसके अंतर्गत
विशेष रूप
से
सामाजिक
तथा आर्थिक
रूप
से
बाधित व्यक्तियों
के लिए
विधान विशेष
रूप से
अनुसूचित जातियों
से संबंधित
विधान तथा
शारीरिक एवं
आर्थिक रूप
से बाधित
व्यक्तियों से
संबंधित विधान
विशेष रूप
से बच्चों
से संबंधित
विधान को
सम्मिलित किया
जा
रहा
है।
4. शोषण का
सरलता पूर्वक
शिकार बनने
वाले व्यक्तियों
से
संबंधित
विधान जिसके
अंतर्गत
महिलाओं,
श्रमिकों एवं
युवकों
से
संबंधित विधान
को
सम्मिलित
किया जा
रहा है।
5. बिजली तो
व्यवहार वाले
व्यक्तियों से
संबंधित विधान
जिसके अंतर्गत
बाल
आवारापन,
बाल अपराध,
सफे दपोश अपराध,
वेश्यावृत्ति,
भिक्षावृत्ति,
मद्यपान एवं
मादक
द्रव्य
व्यसन, धूत
क्रीड़ा से
संबंधित विधान
को सम्मिलित
किया जा
रहा है।
6. असामान्य व्यवहार
प्रदर्शित
करने
वाले व्यक्तियों
से संबंधित
विधान जिसके
अंतर्गत
मानसिक
रूप से
विक्षिप्त
व्यक्तियों
से संबंधित
विधान को
सम्मिलित किया
जा रहा
है।
धार्मिक
एवं दातव्य न्यासों से
संबंधित विधान
1890
में दातव्य धर्मदाय
अधिनियम पास किया गया जिसके
अधीन सरकार द्वारा नियुक्त दातव्य
धर्मदायो के कोषाध्यक्ष में
सार्वजनिक न्यासों के विहितिकरण
एवं प्रशासन का दायित्व सौंपा गया।
1920 में धार्मिक एवं दातव्य न्यास
अधिनियम पारित किया गया जिसके
अधीन दातव्य एवं धार्मिक धर्मदायों
के लिए बनाए गए न्यासों के संबंध में
सूचना प्राप्त करने की सुविधाओं का
प्रावधान किया गया।
निराश्रित
व्यक्तियों
से संबंधित
विधान
1898 के कोढ़ी अधिनियम
के अधीन अकिंचान कोढ़ियों के
अलग रखे जाने तथा उनके
चिकित्सकीय उपचार का प्रावधान
किया गया है।
बाधितों
से संबंधित विधान
नागरिक अधिकार संरक्षण
अधिनियम 1976 के अधीन
अनुसूचित जाति के व्यक्तियों के लिए
नागरिक अधिकारों के संरक्षण की
व्यवस्था की गई है। बच्चों की
अभिरुचियों के प्रोत्साहन के लिए
भारतीय दंड संहिता 1860, ( धारा
82,83,315,316,317,318,361,
363,363ए, तथा 369 )
आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 (
धारा
27,98,125,160,198,320,360,
361,437, तथा 448 ), अपराधी
परिवीक्षा अधिनियम 1958 , किशोर
न्याय अधिनियम 1986, भारतीय
व्यापार पोत अधिनियम 1923 (
धारा 23), बाल श्रम बंधक
अधिनियम 1933, बाल सेवायोजन
विचलित
व्यवहार
प्रदर्शित
करने
वाले व्यक्तियों से संबंधित विधान
-
बाल आवारापन से संबंधित
प्रावधान किशोर न्याय अधिनियम
1986 के अंतर्गत किए गए हैं।
आवारापन संबंधी प्रावधान
आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973
के अध्याय 8 में किए गए हैं। बाल
अपराध की समस्या पर नियंत्रण तथा
बाल अपराधियों के सुधार हेतु
बोस्ट्रल विद्यालय अधिनियम,
अपराधी परिवीक्षा अधिनियम,
किशोर न्याय अधिनियम अलग से
पारित किए गए हैं। इसके अतिरिक्त
भारतीय दंड संहिता तथा आपराधिक
प्रक्रिया संहिता के अधीन भी
प्रावधान किए गए हैं। अपराध की
समस्या से निपटने के लिए भारतीय
दंड संहिता तथा आपराधिक प्रक्रिया
संहिता के अधीन किए गए सामान्य
प्रावधानों के अतिरिक्त अन्य विविध
क्षेत्रों के संदर्भ में बनाए गए विशिष्ट
असामान्य
व्यवहार
प्रदर्शित
करने
वाले व्यक्तियों से संबंधित विधान
-
Comments
सामाजिक
नियंत्रण के
साधन या
अभिकरण
April 30, 2020
सामाजिक नियंत्रण के
साधन या अभिकरण
सामाजिक नियंत्रण की
SHARE
POST A COMMENT
READ MORE
नगरीय
समुदाय का
अर्थ,विशेषता
एं
December 07, 2019
नगरीय समुदाय का
अर्थ,विशेषताएं नगरीय
समुदाय- नगर के विकास
SHARE
3 COMMENTS
READ MORE
ग्रामीण
समुदाय की
अवधारणा
एवं
विशेषताएं
December 06, 2019
ग्रामीण समुदाय की
अवधारणा एवं
विशेषताएं- प्रारंभिक
SHARE
POST A COMMENT
READ MORE
Followers
Followers (23)
Next
Follow
About Me
vikram Pandey
VISIT PROFILE
Archive
Labels
Powered by Blogger
Privacy Policy
Terms & Condition