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शासन
क्रम ऄध्याय पृष्ठ संख्या
संख्या
1. शासन के महत्वपूणण अयाम 1-33
2. लोकतन्त्र में सससवल सेवाओं की भूसमका 34-60
3. सवकास प्रक्रक्रयाएं तथा सवकास ईद्योग – गैर-सरकारी संगठनों, स्वयं 61-101

सहायता समूहों, सवसभन्न समूहों व संघों, दानकताणओं, लोकोपकारी


संस्थाओं, संस्थागत एवं ऄन्त्य पक्षों / सहतधारकों की भूसमका
4. सरकारी नीसतयों और सवसभन्न क्षेरों में सवकास के सलए हस्तक्षेप और 102-141
ईनके ऄसभकल्पन तथा कायाणन्त्वयन के कारण ईत्पन्न सवषय

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शासन के महत्वपूणण अयाम


सवषय सूची

1. शासन _________________________________________________________________________________ 4

1.1. शासन क्या है? (What is Governance?) ____________________________________________________ 4

1.2. शासन के सहतधारक (Stakeholders of Governance) ___________________________________________ 4

1.3. सुशासन (Good Governance) ____________________________________________________________ 5

1.4. सुशासन हेतु रणनीसतयां ( Strategies for Good Governance) _____________________________________ 6

1.5. वल्डणवाआड गवनेंस आंसडके टर प्रोजेक्ट – सवश्व बैंक ___________________________________________________ 7

2. भारत में शासन (Governance in India) ________________________________________________________ 8

2.1. भारत में शासन के अयाम (Dimensions of Governance in India) __________________________________ 8

2.2. भारत में शासन संबध


ं ी मुद्दे (Governance Issues in India) ________________________________________ 9

2.3. भारत में सुशासन की पहल (Good Governance Initiatives in India) _______________________________ 10

2.4. न्त्यन
ू तम सरकार, ऄसधकतम शासन __________________________________________________________ 10

3. नागररक चाटणर (Citizen Charter) ____________________________________________________________ 11

3.1. नागररक चाटणर क्या है? (What is Citizen Charter?) ___________________________________________ 11

3.2. नागररक चाटणर की ईत्पसि और ऄवधारणा _____________________________________________________ 11

3.3. नागररक चाटणर का महत्त्व (Significance of Citizen Charter) _____________________________________ 11

3.4. भारत में नागररक चाटणर (Citizen Charter in India) ____________________________________________ 12

3.5. भारत में नागररक चाटणर से संबसं धत मुद्दे _______________________________________________________ 12

3.6. सितीय ARC ररपोटण की संस्तुसतयां __________________________________________________________ 13

4. सेवोिम मॉडल (Sevottam Model) ___________________________________________________________ 13

4.1. सवोिम मॉडल क्या है? (What is Sevottam Model?) __________________________________________ 13

4.2. मॉडल का महत्त्व (Significance of the model) _______________________________________________ 14

4.3. सेवाओं का समयबद्ध सवतरण (Time Bound Delivery of Services) _________________________________ 14

5. सामासजक लेखापरीक्षा (Social Audit)__________________________________________________________ 14

5.1. सामासजक लेखापरीक्षा क्या है? (What is Social Audit?) _________________________________________ 14

5.2. सामासजक लेखा परीक्षा की अवश्यकता (Need of Social Audit) ____________________________________ 15

5.3. सामासजक लेखापरीक्षा के ससद्धांत (Principles of Social Audit) ____________________________________ 15

5.4. सामासजक लेखापरीक्षा का महत्व (Significance of Social Audit) ___________________________________ 16


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5.5. सामासजक लेखापरीक्षा की सीमाएं (Limitations of Social Audit) ___________________________________ 17

5.6. अगे की राह (Way Forward) ____________________________________________________________ 17

6. इ-गवनेंस (E-Governance) ________________________________________________________________ 17

6.1. इ-गवनेंस क्या है? (What iS E-Governance?) ________________________________________________ 17

6.2. इ-गवनेंस की संभाव्यता (Potential of e-governance) __________________________________________ 18

6.3. इ-शासन के मॉडल (Models of e-governance) _______________________________________________ 18


6.3.1. सरकार से नागररकों तक ________________________________________________________________ 18
6.3.2. सरकार से सरकार तक _________________________________________________________________ 19
6.3.3. सरकार से व्यावसाआयों तक ______________________________________________________________ 19
6.3.4. सरकार से कमणचाररयों तक ______________________________________________________________ 19

6.4. भारत में इ-शासन संबध


ं ी पहलें (E-Governance Initiatives in India) ________________________________ 19
6.4.1. सरकार से नागररक (G2C) संबंधी पहलें ____________________________________________________ 20
6.4.2. सरकार से व्यवसाय (G2B) तक संबंधी पहलें _________________________________________________ 21
6.4.3. सरकार से सरकार (G2G) संबंधी पहलें _____________________________________________________ 21

6.5. चुनौसतयां (Challenges) ________________________________________________________________ 21


6.5.1. पररवेश संबंधी और सामासजक चुनौसतयां ____________________________________________________ 21
6.5.2. अर्थथक चुनौसतयां_____________________________________________________________________ 22
6.5.3. तकनीकी चुनौसतयां ___________________________________________________________________ 22

6.6. इ-शासन पर सितीय ARC की ऄनुशस


ं ाएं ______________________________________________________ 22

6.7. शासन की सुगमता (Ease of Governance) __________________________________________________ 23

7.Vision IAS मुख्य परीक्षा टेस्ट सीररज के प्र्न: ______________________________________________________ 24

8. UPSC मुख्य परीक्षा में सवगत वषों में पूछे गए प्र् __________________________________________________ 33
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1. शासन
1.1. शासन क्या है ? (What is Governance?)

संयक्त
ु राष्ट्र सवकास कायणक्रम (UNDP), 1997 ने शासन को “सभी स्तरों पर देश के मामलों का प्रबंधन
करने के सलए अर्थथक, राजनीसतक एवं प्रशाससनक प्रासधकार के ऄभ्यास” के रूप में पररभासषत क्रकया
है। आसमें ऐसे तंर, प्रक्रक्रयाएं एवं संस्थान ससममसलत होते हैं सजनके माध्यम से नागररक और समूह ऄपने
सहतों को सहसंबंसधत करते हैं, ऄपने सवसधक ऄसधकारों का ईपयोग करते हैं, ऄपने दासयत्वों को पूणण
करते हैं और ऄपने मतभेदों का सनराकरण करते हैं”।
वषण 1993 में सवश्व बैंक ने शासन को ऐसी सवसध के रूप में पररभासषत क्रकया सजसके माध्यम से क्रकसी
देश के प्रबंधन में राजनीसतक, अर्थथक एवं सामासजक संसाधनों का सवकास हेतु ईपयोग क्रकया जाता है।
सरल शब्दों में शासन ऐसी प्रक्रक्रया एवं संस्थान हैं सजनके माध्यम से सनणणय क्रकए जाते हैं और देश में
प्रासधकार का प्रयोग क्रकया जाता है। शासन को कइ संदभों में ईपयोग क्रकया जा सकता है जैसे क्रक
सनगसमत शासन, ऄंतरराष्ट्रीय शासन एवं स्थानीय शासन।
आस प्रकार शासन सनणणय करने की प्रक्रक्रया, एवं ईन सनणणयों के कायाणन्त्वयन में समासवष्ट औपचाररक एवं
ऄनौपचाररक कताणओं एवं संस्थानों पर ध्यान कें क्रित करता है।

1.2. शासन के सहतधारक (Stakeholders of Governan ce)

शासन में सरकार प्रमुख सहतधारक होती है। ऄन्त्य सहतधारकों में राजनीसतक कताण और संस्थाएँ, रूसच
रखने वाले समूह, नागररक समाज, मीसडया, गैर-सरकारी और ऄंतरराष्ट्रीय संगठन ससममसलत हो सकते
हैं। शासन में ससममसलत ऄन्त्य ऄसभकताणओं में सरकार के स्तर के ऄनुसार सभन्नता हो सकती है।

अमतौर पर, राष्ट्रीय स्तर पर सरकार शासन के सहतधारकों को तीन व्यापक श्रेसणयों में वगीकृ त क्रकया
जा सकता है – राज्य, बाजार एवं नागररक।
 राज्य में सरकार के सवसभन्न ऄंग (सवधासयका, न्त्यायपासलका एवं कायणपासलका) एवं ईनके साधन,
स्वतंर ईत्तरदासयत्व तंर ससममसलत होते हैं। आसमें कताणओं के सवसभन्न संभाग (सनवाणसचत
प्रसतसनसध, राजनीसतक कायणकारी, कायाणलय नौकरशाही/सवसभन्न स्तरों पर सससवल सेवक अक्रद भी
ससममसलत होते हैं)।
 बाजार में सनजी क्षेरक- संगरठत और साथ ही ऄसंगरठत क्षेरक भी ससममसलत होता है- सजसमें बडे
कारपोरेट घरानों से लेकर लघु स्तरीय ईद्योग एवं प्रसतष्ठान ससममसलत होते हैं।
 नागररक समाज सबसे सवसवधतापूणण होता है और आसमें अमतौर पर वे सभी समूह ससममसलत होते
हैं जो (1) or (2) में ससममसलत नहीं होते हैं। आसमें गैर सरकारी संगठन (Non-Governmental
Organizations: NGOs), स्वैसछछक संगठन (Voluntary Organizations: VOs), मीसडया
संगठन/संघ, व्यापार यूसनयन, धार्थमक समूह, दबाव समूह अक्रद ससममसलत होते हैं।

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1.3. सु शासन (Good Governance)

शासन ऄपने अप में तटस्थ शब्द है जबक्रक


‘सुशासन’ में शासन की गुणविा से संबद्ध
सकारात्मक सवशेषताएँ और मूल्य सनसहत
होते हैं। सुशासन एक गसतशील ऄवधारणा है
और सुशासन के पहलुओं को पररभासषत करने
में बडी मारा में व्यसक्तगत सनष्ठा समासवष्ट
होती है।
संयुक्त राष्ट्र सवकास कायणक्रम (UNDP)
सुशासन की अठ मुख्य सवशेषताओं को मान्त्यता प्रदान करता हैन:
 सहभासगतापूणण
 सवणसहमसत-ईन्त्मुख
 पारदशी
 ईिरदायी
 ऄनुक्रक्रयात्मक
 प्रभावी और कु शल
 समतापूणण और समावेशी
 कानून के शासन का पालन करने वाला
महत्वपूणण शब्दों को समझनान:
सहभासगतापूणण  समाज के सभी वगो की सहभासगता सुशासन की अधारसशला है।
 सहभासगतापूणण शासन नागररकों को सनणणय करने , सरकार की
गसतसवसधयों के कायाणन्त्वयन एवं ईनकी सनगरानी करने में भाग लेने
के ऄवसर प्रदान करता है।
 लेक्रकन सहभासगता सुसूसचत एवं संगरठत होनी चासहए। आसमें संघ
और ऄसभव्यसक्त की स्वतंरता एवम् साथ ही संगरठत नागररक
समाज का समावेश होता है।
सवणसहमसत- ईन्त्मख
ु  सुशासन हेतु सनम्नसलसखत सवषयों पर व्यापक अम सहमसत तक
पहंचने के सलए समाज में सवसभन्न सहतों की मध्यस्थता की
अवश्यकता होती है
 समपूणण समुदाय का सवोिम सहत क्या है और
 आसे क्रकस प्रकार प्राप्त क्रकया जा सकता है।
 आसे संधारणीय मानव सवकास एवं आस प्रकार के सवकास लक्ष्यों को
प्राप्त करने की पद्धसत के सवषय में अवश्यक व्यापक और
दीघणकासलक पररप्रेक्ष्य की भी अवश्यकता होती है।
कानून का शासन  सुशासन के सलये सनष्पक्ष सवसधक संरचनाओं की अवश्यकता होती
है सजन्त्हें सनष्पक्षतापूवणक लागू क्रकया जाए।
 आसके सलए सवशेष रूप से ऄल्पसंख्यकों एवं समाज के सुभेद्य वगों के
मानव ऄसधकारों के पूणण संरक्षण की अवश्यकता भी होती है।
 सनष्पक्ष प्रवतणन के सलए स्वतंर न्त्यायपासलका के साथ सनष्पक्ष व
इमानदार पुसलस बल भी ऄपररहायण होता है
पारदशी  पारदर्थशता का ऄथण यह है क्रक सलए गए सनणणयों एवं ईनका प्रवतणन
आस प्रकार क्रकया जाए सजससे सनयमों एवं सवसनयमों का पालन
होता हो।
 आसका ऄथण यह भी है क्रक प्रकार के सनणणय तथा ईनके प्रवतणन से
प्रभासवत होने वाले व्यसक्तयों को सूचना असानी से समझ में अने

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वाले रूप में और प्रत्यक्ष रुप से ईपलब्ध हो।


 आसका ऄथण यह भी है क्रक पयाणप्त जानकारी प्रदान की जाए और वह
जानकारी भी असानी से समझ में अने वाले रूप में एवं मीसडया के
माध्यम से प्रदान की जाए।
 ईदाहरण के सलए भारत में सूचना का ऄसधकार (RTI) ऄसधसनयम
लोगों के हाथों में एक शसक्तशाली साधन रहा है सजसके माध्यम से
कायणपासलका िारा सनणणय करने की प्रक्रक्रया में पारदर्थशता सुसनसित
की जा सकती है।
ईिरदायी  ईिरदासयत्वता कारणवाआयों, पररणामों, सनणणयों और नीसतयों हेतु
ईिरदासयत्व की ऄसभस्वीकृ सत एवं पूवणधारणा है।
 ईिरदासयत्वता के ऄवयवों में जबावदेही, ऄनुमोदन, समाधान और
प्रणालीगत सुधार ससममसलत हैं।
 सामान्त्य रूप से कोइ संगठन या संस्थान ईन व्यसक्तयों के प्रसत
ईिरदायी होता है जो ईसके सनणणय या कारणवाआयों िारा प्रभासवत
होंगे।
 ईिरदासयत्वता को पारदर्थशता और कानून के शासन के ऄभाव में
प्रवर्थतत नहीं क्रकया जा सकता।
ऄनुक्रक्रयात्मक  सुशासन के सलये यह अवश्यक होता है क्रक संस्थान और प्रक्रक्रयाएं
सभी सहतधारकों को ईसचत समय ऄवसध में सेवा प्रदान करने का
प्रयास करें।
 नागररकों की सशकायतों का समाधान, नागररक ईन्त्मुखीकरण,
नागररक ऄनुकूलता और सेवाओं का समय पर प्रदान क्रकया जाना
ऄनुक्रक्रयात्मक शासन के मुख्य ऄवयव हैं।
प्रभावी एवं दक्ष  ऄथाणत संस्थान ऐसे पररणाम ईत्पन्न करें सजससे ईनकी ओर से
संसाधनों का आष्टतम ईपयोग संभव हो।
 आस प्रकार यह प्राकृ सतक संसाधनों के संधारणीय ईपयोग तथा
पयाणवरण के संरक्षण को भी ससममसलत करता है।
समतापूणण एवं समावेशी  क्रकसी समाज का कल्याण आस पर सनभणर करता है क्रक ईसके सभी
सदस्य यह ऄनुभव करें क्रक ईसमें ईन सभी का योगदान है और वे
ऄपने अप को समाज की मुख्यधारा से कटा हअ ऄनुभव न करें।
 आसके सलए यह अवश्यक है क्रक सभी समूहों को, सवशेष रूप से जो
सवाणसधक सुभेद्य समूह है ईनको भी सवकससत होने का ऄवसर समलें।
ऄनेक स्रोत "रणनीसतक दृसष्टकोण" को सुशासन के 9वें ससद्धांत के रूप में ससममसलत करते हैं।
रणनीसतक दृसष्टकोणन: सुशासन और मानव सवकास हेतु व्यापक और दीघाणवसधक पररप्रेक्ष्य की
अवश्यकता होती है। ऐसतहाससक, सांस्कृ सतक और सामासजक जरटलताओं की समझ भी ऐसा तत्व है
सजसपर वह पररप्रेक्ष्य अधाररत होता है।

1.4. सु शासन हे तु रणनीसतयां ( Strategies for good governance)

 मानव अवश्यकताओं में ईसचत सनवेश के माध्यम से राज्य की प्राथसमकताओं का पुनः ईन्त्मु खीकरण
करना।
 सनधाणत और सीमांत व्यसक्तयों के सलए सामासजक सुरक्षा का प्रावधान।
 राज्य संस्थाओं को सुदढ़ृ करना

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 संसद के कामकाज एवं आसकी प्रभावशीलता में वृसद्ध करने में ईपयुक्त सुधारों का समावेश करना।
 प्रदशणन और ईिरदासयत्वता से मेल खाने वाले ईपयुक्त सुधार ईपायों के माध्यम से लोक सेवाओं
की क्षमता बढ़ाना।
 नागररक समाज के साथ नए गठजोड सनर्थमत करना।
 सरकार-व्यवसाय सहयोग के सलए एक नया ढांचा तैयार करना।

1.5. वल्डण वाआड गवनें स आं सडके टर प्रोजे क्ट – सवश्व बैं क

(The Worldwide Governance Indicators project – World Bank)


जैसा क्रक उपर ईल्लेख क्रकया गया है, सवश्व बैंक शासन को ऐसी प्रक्रक्रया और संस्थाओं के रूप में
पररभासषत करती है सजनके माध्यम से क्रकसी देश में प्रासधकार का ईपयोग क्रकया जाता है।
सवशेष रूप से, शासन हैन:
 ऐसी प्रक्रक्रया सजसके माध्यम से सरकारें चुनी जाती हैं, ईन्त्हें सजममेदार ठहराया जाता है, ईनकी
सनगरानी की जाती है और ईनको प्रसतस्थासपत क्रकया जाता है;
 संसाधनों को दक्षता पूवणक प्रबंसधत करने, एवं समथण नीसतयां और सवसनयमों को तैयार करना,
कायाणसन्त्वत करना और लागू करने की सरकारों की क्षमता; एवं
 नागररकों और राज्य के बीच अर्थथक एवं सामासजक ऄंतर क्रक्रयाओं को प्रशाससत करने वाले
संस्थानों के प्रसत नागररकों और राज्य की ओर से सममान का भाव।

सवश्व बैंक िारा - ‘वल्डणवाआड गवनेंस आंसडके टर प्रोजेक्ट', 200 से ऄसधक देशों को शासन के छह प्रमुख
संकेतकों के अधार पर श्रेणीक्रम प्रदान करती है। ये छह संकेतक हैंन:
 मतासधकार और ईिरदासयत्व
 राजनीसतक सस्थरता और हहसा की ऄनुपसस्थसत
 सरकार की प्रभावशीलता
 सवसनयामक गुणविा
 कानून का शासन
 भ्रष्टाचार का सनयंरण
ये समग्र संकेतक औद्योसगक और सवकासशील देशों में बडी संख्या में ईद्यमों, नागररकों और सवशेषज्ञ
सवेक्षण ईिरदाताओं के दृसष्टकोणों को संयोसजत करते हैं।

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2. भारत में शासन (Governance in India)


2.1. भारत में शासन के अयाम (Dimensions of Governance in India)

प्रशाससनक सुधार एवं जन सशकायत सवभाग (DARPG) ने ऄपनी ररपोटण "शासन की दशा-मूल्यांकन
की एक रूपरेखा" में शासन को पांच अयामों राजनीसतक, सवसधक एवं न्त्यासयक, प्रशाससनक, अर्थथक
तथा सामासजक एवं पयाणवरणीय अयाम में सवभासजत क्रकया है।

1. राजनीसतक अयाम (Political Dimension)


शासन का सवाणसधक महत्वपूणण पहलू होने के कारण राजनीसतक अयाम राजनीसतक प्रसतस्पधाण की
गुणवत्ता, लोगों का प्रसतसनसधत्व करने वाले व्यसक्तयों और संस्थाओं के अचरण, राजनीसतक प्रासधकार
के ईपयोग और दुरुपयोग, शसक्तयों के सवकें िीकरण और और राजनीसतक व्यवस्था में नागररेकों के
सवश्वास पर ध्यान के सन्त्ित करता है।
आसके चार मुख्य ऄवयव हैंन:
 मतासधकार का ईपयोग
 राजनीसतक प्रसतसनसधयों, राजनीसतक दलों और राजनीसतक कायणकाररणी की रूपरेखा और
अचरण
 सवधासयका की कायण पद्धसत
 राजनीसतक सवके न्त्िीकरण
2. शासन के सवसधक एवं न्त्यासयक अयाम (Legal & Judicial Dimension of Governance)
यह अयाम यह मापने का प्रयास करता है क्रक क्या कें ि िारा शसक्तयों का ईपयोग ईसकी सीमाओं के
ऄंतगणत क्रकया जा रहा है। साथ ही यह कानून और व्यवस्था को प्रभावी रूप से बनाए रखने,
मानवासधकारों की सुरक्षा करने तथा न्त्याय तक पहंच और ईसका सवतरण को संभव करने की आसकी
क्षमता का भी मापन करता है।
आसके चार मूलभूत ऄवयव हैन:
 कानून व्यवस्था और अंतररक सुरक्षा
 मूलभूत ऄसधकारों की सुरक्षा
 पुसलस प्रशासन एवं नागररकों के प्रसत समरवत व्यवहार
 न्त्याय और न्त्यासयक ईत्तरदासयत्व।
3. शासन का प्रशाससनक अयाम (Administrative Dimension of Governance)
यह अयाम मानवीय एवं सविीय संसाधनों को दक्षतापूवणक प्रबंसधत करके नागररकों को मूलभूत
सुसवधाएं प्रदान करने की सरकार की क्षमता का सनधाणरण करता है। आसमें सतकण ता और भ्रष्टाचार

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मामलों पर राज्य का प्रदशणन एवं साथ ही प्रशासन में ऄनुक्रक्रयात्मकता एवं पारदर्थशता भी ससममसलत
होती है।
आसमें सनमनसलसखत चार ऄवयव होते हैंन:
 नागररक आंटरफ़े स और संलग्नता
 मानव, सविीय और ऄन्त्य संसाधनों को प्रबंसधत करना।
 अधारभूत सेवा सवतरण
 भ्रष्टाचार बोध, सतकण ता एवं प्रवतणन।
4. शासन का अर्थथक अयाम (Economic Dimension of Governance)
अर्थथक अयाम, समसष्ट-अर्थथक सस्थरता सुसनसित करने एवं ऄथणव्यवस्था के सवसभन्त्न क्षेरकों में अर्थथक
गसतसवसध समपन्त्न होने हेतु ऄनुकूल माहौल सनर्थमत करने के सलए राज्य की क्षमता से संबंसधत होता है।
अर्थथक शासन, प्राथसमक क्षेरक को समथणन प्रदान करने में राज्य की क्षमता में भी प्रसतलसक्षत होता है।
आसके तीन मूलभूत घटक होते हैंन:
 सविीय शासन
 कारोबारी माहौल
 प्राथसमक क्षेरक को समथणन
5. शासन के सामासजक और पयाणवरणीय अयाम (Social and Environmental Dimension of
Governance)
सामासजक अयाम का संबंध समाज के सुभेद्य वगों का ध्यान रखने की राज्य की क्षमता से होता है। यह
नागररक समाज और मीसडया की भूसमका और गुणविा का परीक्षण करके शासन का अकलन करने का
प्रयास करता है। शासन में बढ़ते महत्व के कारण भी पयाणवरण प्रबंधन को एक पृथक ऄवयव के रूप में
ससममसलत क्रकया जाता है।
आस अयाम में तीन प्रमुख ऄवयव होते हैंन:
 सनधणन और सुभेद्य व्यसक्तयों का कल्याण
 नागररक समाज और मीसडया की भूसमका
 पयाणवरण प्रबंधन

2.2. भारत में शासन सं बं धी मु द्दे (Governance Issues in India)

भारत राजनीसतक, अर्थथक, प्रशाससनक और कानूनी क्षेर में शासन से जुडे सवसभन्न मुद्दों का सामना कर
रहा है। खराब शासन के कु छ प्रमुख कारक आस प्रकार हैंन:
 राजनीसतक मुद्देन:
o राजनीसत का ऄपराधीकरण
o राजनीसतक शसक्त का दुरूपयोग
o सवकें िीकरण की बातें कागजों में ऄसधक, क्रक्रयान्त्वयन में कम
 कानूनी और न्त्यासयक मुद्दे
o सवलंसबत न्त्याय, वाद सवचाराधीनता से जुडे मुद्दे
o न्त्यायपासलका में जवाबदेही का ऄभाव
o जीवन और व्यसक्तगत सुरक्षा के सलए संकट
 प्रशाससनक मुद्दे
o राजकीय मशीनरी में संवेदनशीलता, पारदर्थशता और जवाबदेही का ऄभाव।
o नौकरशाही िारा देरी
o पारदर्थशता और जवाबदेही में वृसद्ध करने वाले पररवतणनों का प्रसतरोध
o भ्रष्टाचार
 अर्थथक मुद्दे
o ऄथणव्यवस्था का कु प्रबन्त्धन
o सविीय ऄसंतुलन
o क्षेरीय ऄसमानताएं

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 सामासजक और पयाणवरणीय मुद्दे


o जनसंख्या के एक बडे भाग को मूल सुसवधाएँ भी प्राप्त नहीं होना।
o सामासजक, धार्थमक, जासत और लैंसगक समबद्धता के कारण ईनका बसहष्करण।
o सनधणन लोगों, सजन्त्हें प्रशासन में भागीदारी के बहत कम ऄवसर समलते हैं; और
o भौसतक पयाणवरण में, सवशेषकर शहरों में सगरावट।

2.3. भारत में सु शासन की पहल (Good Governance Initiatives in India)

भारत को ऄपने शासन के ररकाडण में सुधार करने के सलए बहत प्रयास करने होंगे। आस क्रदशा में कइ
कदम ईठाये भी गए हैं। ईदाहरण के सलए, अम अदमी को सशक्त बनाने और शासन की प्रभावी
कामकाज के सलए भारत में जो दो बडी पहलें की गइ हैं, ईनमें सूचना का ऄसधकार और इ-शासन के
ईपाय सममसलत हैं।
सुशासन की संसक्षप्त रूप में सनम्नसलसखत व्याख्या की जा सकती हैन:
 सवकें िीकरण और जन भागीदारी– संसवधान का 73वां और 74वां संशोधन (राज्यव्यवस्था खंड में
सममसलत)
 सनबणल वगों और सपछडे क्षेरों के सलए कायणक्रम सवकससत करना (सामासजक न्त्याय खंड में
सममसलत)
 सविीय प्रबन्त्धन और बजट शुसचता
 कायणपद्धसत और प्रक्रक्रयाओं का सरलीकरण
 नागररक चाटणर
 सेवोिम मॉडल
 नागररकों की सशकायतों का सनवारण
 इ-शासन और ICT ईपकरणों का ईपयोग
 सावणजसनक सेवा में भ्रष्टाचार कम करने के ईपाय
 पारदर्थशता और जवाबदेही के ईपाय
o सूचना का ऄसधकार
o सामासजक लेखा परीक्षा

2.4. न्त्यू न तम सरकार, ऄसधकतम शासन

(Minimum Government, Maximum Governance)


 आसका ऄथण नागररक ऄनुकूल और ईिरदायी प्रशासन है।
 आसे प्रक्रक्रयाओं के सरलीकरण, ऄप्रचसलत/पुरातन कानूनों/सनयमों को सनरस्त करके , सवसभन्न प्रपरों
(फॉमण) की पहचान कर ईन्त्हें संसक्षप्त बना कर, पसब्लक आंटरफे स में पारदर्थशता लाने हेतु प्रौद्योसगकी
का लाभ ईठा कर और एक सशक्त सावणजसनक सशकायत सनवारण व्यवस्था से प्राप्त क्रकया जा
सकता है।
 आससे सावणजसनक कायाणलयों में नागररकों और सरकार कमणचाररयों, दोनों ही के समय और प्रयासों
में कमी अएगी।
 आसी पद्धसत से सडसजटल आंसडया ने पंचायती राज मंरालय को 100% इ-कायाणलय बना क्रदया है।
 व्यवसाय में सुगमता में भी शासन की सुगमता पर के सन्त्ित है। शासन को और ऄसधक दक्ष और
प्रभावी बनाने के सलए, वतणमान सनयमों के सरलीकरण और तकण संगत बनाने पर और सूचना
प्रौद्योसगकी को प्रारमभ करने पर बल क्रदया जा रहा है।
 mygov@nic.in और india.gITov.info दो नागररक के सन्त्ित मंच हैं जो लोगों को सरकार से
जुडने और सुशासन में योगदान देने के सलए सशक्त बनाते हैं।
 PMO की वेबसाआट भी भारत से समबसन्त्धत सवसभन्न सवषयों पर लोगों से सवशेषज्ञ परामशण,
सवचार अमंसरत करती रहती है।

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3. नागररक चाटण र (Citizen Charter)


3.1. नागररक चाटण र क्या है ? (What is Citizen Charter?)

नागररक चाटणर एक दस्तावेज है जो सशकायत सनवारण तन्त्र के साथ सेवा सवतरण के मानक, गुणविा
और समय सीमा के प्रसत सावणजसनक सनकाय की प्रसतबद्धता को रे खांक्रकत करता है। यह नागररक और
सेवा प्रदाता के बीच सेवाओं की प्रकृ सत की समझ की ऄसभव्यसक्त है, सजसे ईिरवती प्रदान करने के सलए
बाध्य है।

3.2. नागररक चाटण र की ईत्पसि और ऄवधारणा

(Origin and the concept of Citizen Charter)


आसकी ऄवधारणा की ऄसभव्यसक्त और कायाणन्त्वयन, सवणप्रथम आंग्लैण्ड में जॉन मेजर की कं जरवेरटव
सरकार ने 1991 में एक राष्ट्रीय कायणक्रम के रूप में क्रकया था। नागररक चाटणर का मूल ईद्देश्य
सावणजसनक सेवा सवतरण क्रकए समबन्त्ध में नागररक को सशक्त बनाना था।
मूल रूप से तैयार क्रकए गए नागररक चाटणर अन्त्दोलन के छह ससद्धांत थेन:
 गुणविा: सेवाओं की गुणविा में सुधार;
 सवकल्पन: जहाँ भी समभव हो;
 मानकन: क्या ऄपेक्षा की जाए, आसे स्पष्ट करना और यक्रद वे पूरे न हो तो क्या करना है;
 मूल्यन: करदाताओं के धन का;
 जवाबदेहीन: व्यसक्तगत और संगठनात्मक; और
 पारदर्थशतान: सनयमों/प्रक्रक्रयाओं/योजनाओं/सशकायतों में।
आस कायणक्रम को 1998 में टोनी ब्लेयर की लेबर सरकार ने पुनन: प्रारमभ क्रकया, सजसका नामकरण
सर्थवस फस्टण (सेवा प्रथम) क्रकया गया था। आसमें नौ प्रमुख सेवाओं का सवतरण सममसलत क्रकया गया था
(1998), जो आस प्रकार हैंन:
 सेवाओं के मानक सनधाणरण;
 खुल कर बात करें और पूरी जानकारी दें;
 परामशण लें और सममसलत करें ;
 पहंच को बढ़ावा दें और सवकल्प को प्रोत्सासहत करें ;
 सभी के साथ न्त्यायपूणण व्यवहार करें ;
 जब कु छ गलत हो जाये तो ईसे सही ढंग से प्रस्तुत करें ;
 संसाधनों को प्रभावी ढंग से ईपयोग करें ;
 नवप्रवतणन और सुधार करें ;
 प्रदाताओं के साथ काम करें।

3.3. नागररक चाटण र का महत्त्व (Significance of Citizen Charter)

 यह सावणजसनक संस्थानों में पारदर्थशता लाता है और ईन्त्हें ईिरदायी बनाता है।


 यह नागररक समाज को सममसलत करने और भ्रष्टाचार को रोकने के सलए प्रभावी ईपकरण है।
 आसका ईद्देश्य सेवा सवतरण के मानकों में वृसद्ध करना है।
 यह सरकार को ऄसधक प्रसतक्रक्रयाशील बनाता है।
 यह शासन प्रक्रक्रया में लोगों की सहभासगता और सरकार की सवश्वसनीयता में वृसद्ध करता है।

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3.4. भारत में नागररक चाटण र (Citizen Charter in India)

कार्थमक सवभाग में प्रशाससनक सुधार और सावणजसनक सशकायत और पेंशन सवभाग (DARPG)
नागररकों के चाटणरों को तैयार करने एवं ईसे संचासलत करने के प्रयासों को समसन्त्वत करता है। यह
चाटणरों के सनमाणण के साथ-साथ ईनके मूल्यांकन हेतु भी क्रदशा-सनदेश प्रदान करता है।
DARPG यह सनधाणररत करता है क्रक एक ऄछछे नागररक चाटणर में सनम्नसलसखत घटक होने चासहएन:
 संगठन की दृसष्ट और समशन वक्तव्य
 संगठन िारा क्रकए जाने वाले कायों का सववरण
 ‘नागररकों’ या ‘ग्राहकों’ का सववरण
 मानकों, गुणविा, समय सीमा ससहत प्रत्येक नागररक/ग्राहक समूह सेवाओं को प्रदान की जाने
वाली सवसभन्न सेवाएं मानकों, गुणविा, समय सीमा अक्रद का सववरण और ईन्त्हें कै से/कहाँ प्राप्त
क्रकया जा सकता है।
 सशकायत सनवारण प्रणाली का सववरण और ईस तक कै से पहंचा जा सकता है।
 ‘नागररकों’ या ‘ग्राहकों’ से क्या ऄपेक्षाएं हैं।
 ऄसतररक्त प्रसतबद्धताएँ जैसे सेवा सवतरण में सवफलता पर हजाणना।
नागररक चाटणर के सन्त्दभण में ‘नागररक’ कौन है?
नागररक चाटणर में शब्द ‘नागररक’ से ऄसभप्राय वे ग्राहक या ईपभोक्ता हैं, सजनके सहतों और मूल्यों को
नागररक चाटणर में समबोसधत क्रकया जाता है और आससलए आसमें न के वल नागररक ऄसपतु सभी
सहतधारक ऄथाणत नागररक, ग्राहक, ईपभोक्ता, ईपयोगकताण, लाभकताण, ऄन्त्य मंरालय/सवभाग/संगठन,
राज्य सरकारें , कें ि शाससत प्रशासन अक्रद ससममसलत है।

3.5. भारत में नागररक चाटण र से सं बं सधत मु द्दे

(Issues with Citizen Charters in India)


 चाटणरों को कानूनी समथणन का ऄभाव। नागररक चाटणर कानूनी रूप से लागू नहीं क्रकये जा सकते ,
आससलए वे गैर-न्त्यायोसचत हैं।
 खराब सडजाआन और सवषय सामग्री: एजेंससयों को ईिरदायी बनाने वाली महत्त्वपूणण जानकारी
सजसकी ऄंसतम ईपभोक्ता को अवश्यकता है, वे चाटणरों में ईपलब्ध नहीं है।
 परामशण का ऄभाव: चाटणरों के प्रारूप बनाते समय ऄंसतम प्रयोक्ताओं और नागररकों से परामशण
नहीं क्रकया जाता।
 जमीनी स्तर पर ऄपयाणप्त कायणन: चाटणरों के दशणन, लक्ष्य और प्रमुख सवशेषताओं की सेवा प्रदाताओं
को जानकारी नहीं होती है।
 सावणजसनक जागरूकता का ऄभावन: जनता को सेवा सवतरण के मानकों के समबन्त्ध में संचार और
सशसक्षत करने के सलए प्रभावी प्रयास नहीं क्रकए गये हैं।
 पररवतणन का प्रसतरोधन: कु छ लोगों के संकुसचत सहत, नागररक चाटणर को पूरी तरह से समाप्त करने
या आसे सनष्प्रभावी बनाने के सलए कायण करते हैं।
 समीक्षा का ऄभावन: चाटणर को समीक्षा और ऄद्यतन करने का कायण बहत ही ख़राब रहा है।
 वररष्ठ नागररकों और क्रदव्यांगों ससहत ऄन्त्य सवशेष श्रेसणयों के लोगों को चाटणर बनाने की ऄसधकांश
प्रक्रक्रया में सममसलत ही नहीं क्रकया गया है।
 चाटणरों को स्थानीय भाषाओँ में तैयार नहीं क्रकया गया है।
 सावणजसनक सशकायत ऄसधकाररयों का सववरण कइ चाटणरों में क्रदया ही नहीं गया है।

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3.6. सितीय ARC ररपोटण की सं स्तु सतयां

(Recommendations of 2nd ARC report)


ईपयुणक्त मुद्दों को समबोसधत करने और आन चाटणरों को प्रभावी ईपकरण बनाने हेतु , सितीय ARC ने
सनम्नसलसखत सुझाव प्रस्तुत क्रकए हैंन:
 सभी सवभागों या संघटनों के सलये एक समान चाटणर सही नहीं होगा (One size does not fit
all)।
 संगठन के चाटणर को ध्यान में रखते हए, प्रत्येक नागररक चाटणर को प्रत्येक स्वतंर आकाइ के सलए
तैयार क्रकया जाना चासहए।
 व्यापक परामशण प्रक्रक्रया में नागररक समाज को सममसलत क्रकया जाना चासहए।
 दृढ प्रसतबद्धताएँ की जानी चासहए।
 अंतररक प्रक्रक्रयाओं और ढांचे का सुधार करना चासहए ताक्रक वे चाटणर में दी गयी प्रसतबद्धताओं को
पूरा कर सकें ।
 सवफलता की सस्थसत में सनवारण तन्त्र।
 नागररक चाटणरों का अवसधक मूल्यांकन।
 ऄंसतम प्रयोक्ता के फीडबैक के ईपयोग से बेंचमाकण सनधाणररत करना।
 पररणामों के सलए ऄसधकाररयों को ईिरदायी बनाना।

4. सेवोिम मॉडल (Sevottam Model)


4.1. सवोिम मॉडल क्या है ? (What is Sevottam Model?)
देश में सेवाओं के सवतरण में सुधार के ऄसतमहत्वपूणण ईद्देश्य हेतु सवोिम मॉडल को सवकससत क्रकया
गया है। यह दो शब्दों सेवा और ईिम (ईत्कृ ष्ट) से समलकर बना है ।
यह नागररकों को सेवा प्रदान करने के गुणविा में सुधार में सलए संगठन का एक ढांचा प्रदान करता है।
आस मॉडल का सुझाव सितीय ARC ने ऄपनी नागररक के सन्त्ित प्रशासन ररपोटण में क्रदया था।
आस मॉडल में तीन मॉड्यूल हैंन:
 नागररक चाटणर
 सावणजसनक सशकायत सनवारण तन्त्र
 सेवा सवतरण क्षमता
आस मॉडल में तीन चरण सनधाणररत क्रकए गये हैं:
 सेवाओं को पररभासषत करें और ग्राहकों की पहचान।
 प्रत्येक सेवा के सलए मानक सनधाणरण।
 मानकों को पूरा करने की क्षमता सवकास।
 मानकों का प्राप्त करने हेतु प्रदशणन।
 स्थासपत मानकों के ऄनुरूप प्रदशणन की सनगरानी।
 प्रभाव का एक स्वतंर तंर िारा मूल्यांकन।
 सनगरानी और मूल्यांकन के अधार पर सनरंतर सुधार।
सेवा प्रदान करने के सलए सेवोिम मॉडल ऄपनाने वाले संगठनों को सात चरणों का पालन और तीन
मोड्यूल का सनमाणण सुसनसित करने की अवश्यकता है।
सरकारी सवभागों में सेवोिम मॉडल के ढाँचे का कायाणन्त्वयन 2009 में प्रारमभ हअ था। बाद में
सेवोिम को एक प्रमाणन योजना के रूप में प्रारमभ क्रकया गया था, जो ईन सावणजसनक सेवा संगठनों को
ईत्कृ ष्टता के सलए पुरस्कार प्रदान करता है, जो सवशेष रूप से बनाये गये मानक दस्तावेज में ईल्लेसखत
प्रबन्त्धन व्यवस्था की अवश्यकताओं के सेट का ऄनुपालन प्रदर्थशत कर सकता है। आस मानक को IS
15700:2005 के नाम से जाना जाता है, सजसे सेवोिम के ईद्देश्यों पर अधाररत मानकों पर भारतीय
मानक ब्यूरो (BIS) िारा सवकससत क्रकया गया था।

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4.2. मॉडल का महत्त्व (Significance of the model)

 यह सेवा प्राप्तकताणओं के आंटरफे स हबदु पर सावणजसनक सेवा प्रदाता संगठनों की गसतसवसधयों पर


लागू गुणविा प्रबन्त्धन ढांचा है।
 यह ढांचा कायाणन्त्वयन एजेंससयों के हाथों में एक ईपकरण है।
 यह सेवा सवतरण में संधारणीय सुधार के सलए एक व्यवसस्थत पहलों से मागणदशणन करता है।
 यह ढांचा कायाणन्त्वयन एजेंससयों को नागररक के सन्त्ित सेवाओं के सलए एक व्यवसस्थत, सवश्वसनीय
और प्रमासणत स्व-मूल्यांकन (या ऄन्त्तराल सवश्लेषण) करने में सक्षम बनाता है।
 आस सवश्लेषण के ईपयोग से, संगठन की दैसनक गसतसवसधयों में धीरे धीरे व्यवहाररक समाधान
समासवष्ट होते रहते हैं, सजनसे संधारणीय पररणाम सुसनसित होते हैं।

4.3. से वाओं का समयबद्ध सवतरण (Time Bound Delivery of Services)

नागररकों के माल और सेवाओं के समयबद्ध प्रासप्त के ऄसधकार को सुसनसित करने हेतु “माल और
सेवाओं के समयबद्ध सवतरण और सशकायत सनवारण सवधेयक 2011” को लोकसभा में 2011 में प्रस्तुत
क्रकया गया था, परन्त्तु यह सदन की ऄवसध की समासप्त के साथ ही समाप्त हो गया था।
समय की मांग है क्रक सेवाओं के सवतरण को एक ऄसधकार के रूप में मान्त्यता दी जाए और ईसके सलए
समयबद्ध सेवाओं के सवतरण को कानूनी प्रावधान के ऄंतगणत लाया जाए।
“माल और सेवाओं के समयबद्ध सवतरण और सशकायत सनवारण सवधेयक 2011” की मुख्य सवशेषताएंन:
 प्रत्येक सावणजसनक सनकाय को आस ऄसधसनयम के पाररत होने के छह महीने में ऄपना नागररक
चाटणर प्रकासशत करना अवश्यक होगा।
 एक नागररक सनम्नसलसखत में से क्रकसी भी सवषय पर सशकायत दजण कर सकता हैन:
o नागररक चाटणर;
o सावणजसनक सनकाय के कामकाज पर; या
o कानून, नीसत और योजना का ईल्लंघन।
 सवधेयक में सभी सावणजसनक प्रासधकरणों को सशकायत सनवारण ऄसधकाररयों की सनयुसक्त करनी है।
 सशकायत सनवारण 30 कामकाजी क्रदनों में करना होगा।
 सवधेयक में के न्त्िीय और राज्य सावणजसनक सशकायत सनवारण अयोगों का भी प्रावधान था।
 सेवाएँ प्रदान करने में सवफल रहने पर समबसन्त्धत ऄसधकारी या सशकायत सनवारण ऄसधकारी पर
50,000 रूपये तक अर्थथक दंड लगाया जा सकता है।
कु छ राज्यों ने सावणजसनक सेवाओं के सवतरण के ऄसधकार की गांरटी के सलए कानून बनाये हैं, परन्त्तु देश
भर में व्यापक ढांचा प्रदान करने के सलए एक के न्त्िीय कानून की अवश्यकता है।

5. सामासजक लेखापरीक्षा (Social Audit)

5.1. सामासजक ले खापरीक्षा क्या है ? (What is Social Audit?)

सामासजक लेखापरीक्षा एक ऐसी प्रक्रक्रया है सजसके ऄंतगणत सावणजसनक पहलों के सलए ईपयोग क्रकए गए
संसाधनों के सववरणों को प्रायन: सावणजसनक मंचों के माध्यम से जन-साधारण के साथ साझा क्रकया जाता
है, जो ऄंसतम ईपयोगकताणओं को सवकास कायणक्रमों के प्रभाव की जांच करने की ऄनुमसत देता है।
सामासजक लेखापरीक्षा क्रकसी संगठन के सामासजक ईिरदासयत्व को मापने के सलए एक साधन के रूप
में कायण करता है। आसने पंचायत राज संस्थानों से संबंसधत संसवधान के 73वें संशोधन के पिात महत्व
प्राप्त क्रकया।

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सामासजक लेखापरीक्षा तथा ऄन्त्य लेखापरीक्षाओं के मध्य ऄंतर

एक पारंपररक सविीय लेखापरीक्षा, एक बाह्य लेखा परीक्षक िारा सविीय ऄसभलेख ससद्धांतों का
ऄनुसरण करते हए सविीय ऄसभलेखों तथा ईनकी बारीकी से की गयी जांच पर कें क्रित होता है।
सामासजक लेखापरीक्षा, सहतधारकों के व्यापक सक्षसतज को समासवष्ट करता है क्योंक्रक आसकी ररपोटण
नैसतकता, श्रम, पयाणवरण, मानवासधकार, समुदाय, समाज व वैधासनक ऄनुपालनों के आदण-सगदण घूमती
है।

5.2. सामासजक ले खा परीक्षा की अवश्यकता (Need of Social Audit)

स्वतंरता के पिात से सामासजक सवकास कायणक्रमों में, भारत सरकार तथा सवसभन्न राष्ट्रीय एवं
ऄंतराणष्ट्रीय एजेंससयों िारा बडी मारा में धन व संसाधनों के रूप में क्रकए गए सनवेश को, आसके िारा
बनाए गए प्रभाव से न्त्यायोसचत नहीं ठहराया गया है।
ऄभी तक सरकार का ध्यान मुख्य रूप से , कायणक्रम सवतरण प्रणाली की अपूर्थत पर ही के सन्त्ित रहा है।
जबक्रक मांग पक्ष को सुदढ़ृ बनाते हए (जोक्रक एक ऄल्पकालीन प्रक्रक्रया हो सकती है) , अपूर्थत पक्ष में
सुधार करना एक दीघाणवसध प्रक्रक्रया है, जो समग्र सवतरण प्रणाली की प्रभावशीलता में तेजी से सुधार
करेगी।
प्राथसमकता के अधार पर मांग पक्ष को सनम्नसलसखत के माध्यम से सुदढ़ृ बनाने की अवश्यकता हैन:
 सवकास कायणक्रमों के सामासजक लेखा परीक्षा का पालन करना, तथा
 ग्राम सभा को सुदढ़ृ बनाना।

5.3. सामासजक ले खापरीक्षा के ससद्धां त (Principles of Social Audit)

सामासजक लेखापरीक्षा के सन्त्दभण में अठ सवसशष्ट ससद्धांतों की पहचान की गइ हैन:


 बह-पररप्रेक्ष्य: सभी सहतधारकों के सवचारों को प्रसतहबसबत करे।
 व्यापक: संगठन के कायण एवं सनष्पादन के सभी पहलुओं पर ररपोटण करे।
 सहभागी: सहतधारकों की भागीदारी तथा ईनके मूल्यों के सहभाजन को प्रोत्सासहत करे।
 बहअयामी: सहतधारक सवसवध पहलुओं को सांझा करे तथा प्रसतक्रक्रया दे।
 सनयसमत: सामासजक लेखों को सनयसमत अधार पर प्रस्तुत करे ताक्रक सभी गसतसवसधयों को
समासवष्ट करते हए, यह ऄवधारणा तथा ऄभ्यास संगठन की संस्कृ सत में ससन्नसहत हो सके ।
 तुलनात्मक: एक ऐसा माध्यम प्रदान करे सजससे संगठन मानदंडों तथा ऄन्त्य संगठनों के सनष्पादन
के सममुख ऄपने सनष्पादन की तुलना कर सके ।
 सत्यापन: संगठन में क्रकसी भी प्रकार की सनसहत रुसच न रखने वाले एक ईपयुक्त रूप से ऄनुभवी
व्यसक्त या एजेंसी िारा सामासजक लेखों की लेखा परीक्षा की जानी चासहए।
 प्रकरटतन: लेखापरीसक्षत लेखों को ईिरदासयत्व एवं पारदर्थशता के सहत में सहतधारकों तथा व्यापक
समुदाय के सलए प्रकट क्रकया जाना चासहए।

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ये सामासजक लेखापरीक्षा के स्तंभ हैं, जहां सामासजक-सांस्कृ सतक, प्रशाससनक, सवसधक तथा
लोकतांसरक समायोजन, सामासजक लेखापरीक्षा के संचालन के अधार का सनमाणण करते हैं।

5.4. सामासजक ले खापरीक्षा का महत्व (Significance of Social Audit)

सामासजक क्षेर के कायणक्रमों के सलए सामासजक लेखापरीक्षा के महत्व को सनम्नसलसखत हबदुओं से समझा
जा सकता हैन:
 प्रसतष्ठा में वृसद्ध: सामासजक लेखा परीक्षा, समस्या क्षेरों की पहचान करने में सवधासयका तथा
कायणपासलका की सहायता करती है तथा एक ऄग्रसक्रक्रय दृसष्टकोण ऄपनाने व समाधानों का
सनमाणण करने का ऄवसर प्रदान करती है।
 नीसत-सनधाणरकों को सहतधारकों के रुझानों के सलए सचेत करना: सामासजक लेखा परीक्षा एक ऐसा
ईपकरण है जो प्रबंधकों को सहतधारक की हचताओं को समझने तथा ऄनुमान लगाने में सहायता
प्रदान करता है।
 सकारात्मक संगठनात्मक पररवतणन को प्रभासवत करना: सामासजक लेखा परीक्षा सवसशष्ट
संगठनात्मक सुधार लक्ष्यों की पहचान करती है तथा ईनके कायाणन्त्वयन एवं पूणणता की प्रगसत पर
प्रकाश डालती है।
 ईिरदासयत्व में वृसद्ध: सरकारी सवभागों पर स्पष्टता तथा ईिरदासयत्व के सलए काफी जोर क्रदया
जाता है। सामासजक लेखापरीक्षा यह सत्यासपत करने के सलए क्रक सामासजक लेखापरीक्षा समावेशी
एवं पूणण है, एक बाह्य सत्यापन का ईपयोग करती है। आससे ऄपव्यय तथा भ्रष्टाचार में कमी अती
है।
 प्राथसमकताओं के पुनऄणनक
ु ू लन तथा पुनके न्त्िण में सहायक: सामासजक लेखा परीक्षा, लोगों के
ऄपेक्षाओं के ऄनुरूप ऄपनी प्राथसमकताओं को पुनन: अकार देने में, सवभागों के सहायता करने के
सलए एक ईपयोगी ईपकरण हो सकती है।
 सामासजक क्षेरों में अत्मसवश्वास प्रदान करना: सामासजक लेखापरीक्षा सवभागों/संस्थानों को ईन
सामासजक क्षेरों में ऄसधक अत्मसवश्वास के साथ कायण करने में सक्षम बनाती है सजन्त्हें ऄतीत में
ईपेसक्षत क्रकया गया था या सजन्त्हें कम प्राथसमकता दी गइ थी।

हाल के वषों में, स्थानीय सरकार को धन तथा कायों के हस्तांतरण में सस्थर पररवतणन के कारण,
सामासजक लेखापरीक्षा की मांग बढ़ गयी है। MGNREGA जैसी प्रमुख योजनाओं में, कें ि सरकार
भ्रष्टाचार की जांच के सलए सामासजक लेखापरीक्षा को बढ़ावा दे रही है।
आसी प्रकार, राजस्थान तथा अंध्र प्रदेश जैसी सवसभन्न राज्य सरकारों ने ग्राम सभा के माध्यम से तथा
NGOs के साथ साझेदारी िारा सामासजक लेखापरीक्षा को ऄपनी जांच प्रणाली के सहस्से के रूप में
ससममसलत करने की पहल की है।

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5.5. सामासजक ले खापरीक्षा की सीमाएं (Limitations of Social Audit)

 सामासजक लेखापरीक्षा का कायणक्षेर ऄत्यसधक स्थानीय होता है तथा यह के वल कु छ चयसनत


पहलुओं को ही ससममसलत करती है।
 सामासजक लेखापरीक्षा प्रायः तदथण होती है।
 जांच ऄनौपचाररक तथा ऄपररष्कृ त होती है।
 सामासजक लेखापरीक्षा के सनष्कषों को संपूणण जन समुदाय के सलए सहमत नहीं बनाया जा सकता
है।
 व्यसक्तगत कायणक्रम ऄपनी ऄनूठी चुनौसतयों का सामना करते हैं। ईदाहरण के सलए वयस्कों के
साक्षरता कायणक्रम के सलए प्रवसन के अंकडों की अवश्यकता होती है।
 कइ समस्याओं के सलए कायणक्रम के एक पैकेज को एक ही समय पर लागू करने की अवश्यकता
होती है। ईदाहरण के सलए, ग्रामीण स्वास््य कायणक्रम को जल अपूर्थत, सशक्षा, स्वछछता, पोषण
अक्रद के मध्य ऄसभसरण की अवश्यकता होती है। आससलए सामासजक लेखापरीक्षा को और ऄसधक
समग्र दृसष्टकोण की अवश्यकता हो सकती है।
 प्रसशसक्षत लेखा परीक्षकों का ऄभाव।
 लेखापरीक्षा ररपोटों तथा सनष्कषों पर कारणवाइ की कमी।

5.6. अगे की राह (Way Forward)

 मांग तंर के सशसक्तकरण के सलए, सावणजसनक/ग्रामसभा सदस्यों के सवकास तथा जागरूकता की


अवश्यकता है।
 सूचना भंडारण तथा सवतरण तंर के संदभण में PRI, ब्लॉक, तथा DRDA स्तर पर संस्थागत क्षमता
में वृसद्ध करने की अवश्यकता है।
 प्रसतबद्ध व सक्षम गैर-सरकारी संगठनों को सामासजक लेखा परीक्षा के संचालन ससहत ईत्प्रेरक के
भूसमका सनभाने के सलए समथणन प्रदान क्रकया जा सकता है।
 मीसडया को और ऄसधक ग्रामीण एवं सवकास ईन्त्मुख होने की अवश्यकता है।
 ईन सदस्यों को पहचान करनी चासहए तथा पुरस्कृ त करना चासहए सजन्त्होंने तंर को सुदढ़ृ बनाने
की प्रक्रक्रया में योगदान क्रदया है तथा सेवा सवतरण को बेहतर बनाया है।
 एक संस्थागत फ्रेमवकण सवकससत करना चासहए ताक्रक PRI लेखांकन लेखापरीक्षा व सामासजक
लेखापरीक्षा को सुसनयोसजत क्रकया जा सके तथा ईन्त्हें आंटरनेट पर डाला जा सके ।
 सामासजक लेखापरीक्षा को सुसवधाजनक बनाने के सलए सूचना के ऄग्रसक्रक्रय प्रकटीकरण को
बढ़ावा देना चासहए।

6. इ-गवनेंस (E-Governance)
6.1. इ-गवनें स क्या है ? (What is E-governance?)

सवश्व बैंक के ऄनुसार, "इ-गवनेंस, सरकारी एजेंससयों िारा सूचना प्रौद्योसगक्रकयों (जैसे वाआड एररया
नेटवकण , आंटरनेट, तथा मोबाआल कं प्यूटटग) के ईपयोग को संदर्थभत करता है, वे प्रौद्योसगक्रकयां सजनमें
नागररकों, व्यवसायों तथा सरकार की ऄन्त्य शाखाओं के साथ संबध
ं ों को पररवर्थतत करने की क्षमता है।
ये प्रौद्योसगक्रकयां सवसवध ईद्देश्यों की पूर्थत कर सकती हैं, सजनमें ससममसलत हैन:
 नागररकों को सरकारी सेवाओं का बेहतर सवतरण
 व्यापार तथा ईद्योग के साथ बेहतर ऄंतन:क्रक्रया
 सूचना तक पहँच के माध्यम से नागररकों का सशसक्तकरण
 तथा सरकारी सेवाओं को बेहतर प्रबंधन
कम भ्रष्टाचार, पारदर्थशता में वृसद्ध, ऄसधक सुसवधा, राजस्व में वृसद्ध, और/या लागत में कमी, ऄन्त्य
पररणामी लाभ हो सकते हैं।"

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UNESCO के ऄनुसार, "इ-गवनेंस को आलेक्रॉसनक साधनों के माध्यम से प्रशासन के सनष्पादन के रूप


में समझा जा सकता है ताक्रक सावणजसनक, तथा ऄन्त्य एजेंससयों को सूचना प्रसाररत करने की एक कु शल,
तीव्र एवं पारदशी प्रक्रक्रया को सुगम बनाया जा सके तथा सरकारी प्रशाससनक गसतसवसधयों का बेहतर
सनष्पादन क्रकया जा सके ।"

6.2. इ-गवनें स की सं भाव्यता (Potential of e-governance)

 तीव्र, सुसवधाजनक एवं लागत प्रभावी सेवा सवतरण: इ-सेवा सवतरण के प्रारंभ होने के साथ,
सरकार कम लागत पर, कम समय में तथा ऄसधक सुसवधा के साथ सूचना एवं सेवाएं प्रदान कर
सकती है।
 पारदर्थशता, ईिरदासयत्व तथा भ्रष्टाचार में कमी: ICT के माध्यम से सूचना का प्रसार पारदर्थशता
को बढ़ाता है, ईिरदासयत्व को सुसनसित करता है तथा भ्रष्टाचार को रोकता है। कं प्यूटर व वेब
अधाररत सेवाओं का ऄसधक ईपयोग, नागररकों को ईनके ऄसधकारों एवं शसक्तयों के बारे में
जागरूकता के स्तर में वृसद्ध करता है। यह सरकारी ऄसधकाररयों के सववेकासधकारों को कम करने
में सहायता करता है तथा भ्रष्टाचार को कम करता है।
 शासन का प्रसाररत सवस्तार: टेलीफोन नेटवकण का सवस्तार, मोबाआल टेलीफोनी में तीव्र प्रगसत,
आंटरनेट का प्रसार तथा ऄन्त्य संचार ऄवसंरचनाओं में वृसद्ध, कइ सावणजसनक सेवाओं के सवतरण को
सुगम बना देगा।
 सूचना के माध्यम से लोगों को सशसक्तकरण: सूचना ऄसभगमयता में हइ वृसद्ध ने नागररकों को समथण
बनाया है तथा ईनकी भागीदारी में वृसद्ध की है। सरकारी सेवाओं तक सरल ऄसभगम के साथ,
सरकार के प्रसत नागररकों का सवश्वास बढ़ता है तथा वे ऄपने सवचार व प्रसतक्रक्रया को साझा करने
के सलए अगे अते हैं।
 व्यापार तथा ईद्योग के साथ आंटरफे स में सुधार: ऄतीत में जरटल प्रक्रक्रयाओं तथा नौकरशाही के
कारण हए सवलंबों के कारण भारत में औद्योसगक सवकास बासधत हअ। इ-गवनेंस का ईद्देश्य
सवसभन्न प्रक्रक्रयाओं को तीव्र करना है जो औद्योसगक सवकास के सलए महत्वपूणण है।

6.3. इ-शासन के मॉडल (Models of e-governance)

इ-शासन संबंधी सेवाओं को नागररकों, व्यावसायी वगण, सरकार तथा कमणचाररयों के बीच साझा क्रकया
जा सकता है। इ-शासन के ये चार मॉडल हैंन:
 सरकार से नागररक तक (G2C),
 सरकार से सरकार तक (G2G),
 सरकार से व्यावसायी तक (G2B) तथा
 सरकार से कमणचाररयों तक (G2E)।

6.3.1. सरकार से नागररकों तक

(Government to Citizen: G2C)


इ-शासन के आस मॉडल का संबंध नागररकों िारा साझा क्रकए जाने वाले सरकारी सेवाओं से है। यह
मॉडल सरकार तथा नागररकों के बीच के संबंध को सुदढ़ृ करता है। आस मॉडल के िारा प्रदान की जाने
वाली सेवाएं सनम्नसलसखत हैंन:
 ऑनलाआन सबलों, यथा सवद्युत उजाण, जल, टेसलफ़ोन सबल, आत्याक्रद का भुगतान
 अवेदनों का ऑनलाआन सनबंधन (रसजस्रेशन)
 भूसम संबंधी ररकॉडण की ऑनलाआन प्रसत
 सशकायतों का ऑनलाआन सनपटारा
 क्रकसी प्रकार की ऑनलाआन सूचना या जानकारी की ईपलब्धता

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6.3.2. सरकार से सरकार तक

(Government to Government: G2G)


आस मॉडल का तात्पयण सरकार से सरकार के बीच साझा की जाने वाली सेवाओं से है। ऐसी बहत सी
जानकाररयाँ व सूचनाएं होती हैं सजन्त्हें सवसवध सरकारी एजेंससयों, सवभागों तथा संगठनों के बीच साझा
क्रकए जाने की अवश्यकता होती है। आस प्रकार की सेवाएं या जानकाररयाँ सनम्नसलसखत होती हैंन:
 सरकारी दस्तावेज़ों का अदान-प्रदान सजसमे तैयारी, स्वीकृ सत, सवतरण तथा सभी सरकारी
दस्तावेजों का भंडारण भी इ-शासन के िारा क्रकया जाता है।
 ऄसधकांश सविीय तथा बजट संबंधी कायण इ-शासन के माध्यम से ही क्रकए जाते हैं।

6.3.3. सरकार से व्यावसाआयों तक

(Government to Businessmen: G2B)


आस मॉडल के माध्यम से सनजी क्षेर तथा सरकार के बीच संबंधों में मज़बूती अती है। वे आस मॉडल के
माध्यम से सनम्न प्रकार की जानकाररयाँ साझा करते हैंन:
 करों की ईगाही
 पेटेंट की स्वीकृ सत या ऄस्वीकरण
 सभी प्रकार के सबलों तथा ऄथणदड
ं का भुगतान
 सभी प्रकार की जानकाररयों, सनयमों तथा अंकडों को साझा क्रकया जाना
 सशकायतों तथा क्रकसी प्रकार की ऄसंतुसष्ट को ऄसभव्यक्त क्रकया जा सकता है

6.3.4. सरकार से कमण चाररयों तक

(Government to Employees: G2E)


यह मॉडल सरकार तथा ईसके कमणचाररयों के बीच पारदर्थशता को बढ़ाता है, तथा आस प्रकार ईनके
संबध
ं ों को मज़बूती प्रदान करता है। आस प्रसतदशण के िारा साझा की जा सकने वाली जानकाररयाँ
सनम्नसलसखत हैंन:
 सवसभन्न सरकारी कायाणलयों से सभी प्रकार के अंकडे (ईपसस्थसत संबंधी ररकॉडण , कमणचाररयों से
संबंसधत ररकॉडण) जमा क्रकया जाना
 कमणचारी सशकायत दायर कर सकते हैं तथा ऄसंतुसष्ट व्यक्त कर सकते हैं।
 कमणचाररयों के सलए सनयत सनयम तथा सवसनयम तथा सूचनाएं साझा की जा सकती हैं।
 कमणचारी ऄपने भुगतान तथा काम के ररकॉडण की जांच कर सकते हैं।

6.4. भारत में इ-शासन सं बं धी पहलें (E-Governance Initiatives in India)

भारत को सडसजटल शसक्त संपन्न समाज तथा ज्ञानाधाररत ऄथणव्यवस्था में पररवर्थतत करने के लक्ष्य के
साथ भारत सरकार ‘सडसजटल भारत’ कायणक्रम को कायाणसन्त्वत कर रही है। सडसजटल भारत एक ऄमरेला
कायणक्रम है सजसके ऄंतगणत बहत से सरकारी मंरालय तथा सवभाग ससममसलत हैं तथा आसका
क्रक्रयान्त्वयन MeitY (आलेक्रॉसनकी तथा सूचना प्रौद्योसगकी मंरालय) के िारा क्रकया जा रहा है।
सडसजटल भारत कायणक्रम के ऄंतगणत भारत सरकार के िारा की जाने वाली सवसवध इ-शासन संबंधी
पहलें सनम्नसलसखत हैंन:
 सडसजटल भारत के ऄंतगणत ससममसलत क्रकए गए राष्ट्रीय इ-शासन कायण योजना (NeGP) के ऄंतगणत
सनम्न प्रकार की मुख्य ऄवसंरचनात्मक घटकों को कायाणसन्त्वत क्रकया जा रहा है

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o राज्य अंकडा कें ि (SDCs),


o राज्य भर में सस्थत एररया नेटवकण (SWANs),
o सामान्त्य सेवा कें ि (CSCs),
o राज्य इ-शासन सेवा सवतरण गेटवे (SSDGs),
o इ-सजला तथा क्षमता सनमाणण
 इ-क्रासन्त्त (सेवाओं का आलेक्रॉसनक सवतरण)न: इ-क्रासन्त्त का ज़ोर सनम्नसलसखत का प्रसार कर इ-
शासन संबंधी सेवाओं में अमूल पररवतणन लाने पर हैन:
o सवसभन्न सरकारी सवभागों के ऄंतगणत इ-शासन में समशन मोड की पररयोजनाओं के संसवभाग,
o सरकारी प्रक्रक्रया को पुनः व्यावहाररक स्वरुप देना (GPR),
o कायण प्रगसत का स्वचालन,
o क्लाईड तथा मोबाआल प्लेटफॉमण जैसी नवीनतम प्रौद्योसगकी को चलन में लाना, तथा
o सेवाओं का एकीकरण
भारत में कायाणसन्त्वत क्रकए जा रहे सफल इ-शासन संबंधी पहल सनम्नसलसखत हैं।

6.4.1. सरकार से नागररक (G2C) सं बं धी पहलें

(Government to Citizen Initiatives)


 भूसम-संबध
ं ी ररकॉर्डसण का कमप्यूटरीकरण (भूसम संबध
ं ी संसाधन सवभाग)न: 100% के न्त्ि िारा
प्रायोसजत भूसम संबंधी ररकॉडों के कमप्यूटरीकरण पर अधाररत प्रायोसगक पररयोजना का अरमभ
1994-95 से क्रकया गया।
 कनाणटक में भूसम पररयोजना (भूसम संबध
ं ी ररकॉडों की ऑनलाआन सडलीवरी)न: भूसम 6.7 समसलयन
क्रकसानों को 20 समसलयन ग्रामीण भूसम ररकॉर्डसण की कमप्युटरीकृ त सडलीवरी हेतु एक स्व-पोसषत
इ-शासन पररयोजना है।
 ज्ञानदूत (मध्य प्रदेश)न: यह एक आंरानेट अधाररत सेवा सवतरण है सजसका दोहरा लक्ष्य ग्रामीण
जनसंख्या को ईसचत जानकाररयाँ ईपलब्ध कराना तथा सजला प्रशासन एवं लोगों के बीच आंटरफ़े स
के रूप में कायण करना है। ज्ञानदूत नेटवकण के माध्यम से प्रस्तासवत सेवाओं में सनम्नसलसखत
ससममसलत हैंन: दैसनक कृ सष अधाररत वस्तुओं की दरें (मंडीभाव), अय प्रमाणपर, लोक सशकायत
सनवारण, BPL पररवारों की सूची, आत्याक्रद।
 ईिर प्रदेश में लोकवाणी पररयोजनान: आसका ईद्देश्य सशकायतों के सनपटारे, भूसम ररकॉडण के रख-
रखाव तथा अवश्यक सेवाओं के समश्रण को प्रदान करने हेतु एक ही स्थान पर स्व-पोसषत शासन
संबंधी समाधान प्रदान करना है।
 के रल में FRIENDS पररयोजना: FRIENDS (सेवाओं के सवतरण हेतु तीव्र, भरोसेमंद,
तात्कासलक, प्रभावी नेटवकण न: Fast, Reliable, Instant, Efficient Network for the
Disbursement of Services) एक ही स्थान पर प्रदि सुसवधा है जो नागररकों को राज्य
सरकार को कर तथा ऄन्त्य सविीय देयरासशयों को चुकाने का साधन प्रदान कर रहा है।
 MyGov: आसका लक्ष्य सुशासन के लक्ष्य को प्राप्त करने के सलए सरकार तथा नागररकों के बीच
एक संपकण सूर स्थासपत करना है। MyGov नागररकों तथा सवदेश में सस्थत लोगों को सवसभन्न
गसतसवसधयों, यथा कायणकरण, पररचचाण, वाताण, ब्लॉग आत्याक्रद में ससममसलत होने के सलए
प्रोत्सासहत करता है।

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 सडसजटल लॉकर प्रणालीन: यह नागररकों को प्रत्यक्ष रूप से आलेक्रॉसनक माध्यम से ईन्त्हें ऄसभगम
करने वाले सेवा प्रदाताओं के साथ ऄपने दस्तावेजों को साझा करने तथा ईन्त्हें संगृसहत करने हेतु
एक मंच प्रदान करता है।

6.4.2. सरकार से व्यवसाय (G2B) तक सं बं धी पहलें

(Government to Business Initiatives)


 अंध्र प्रदेश तथा गुजरात में इ-ऄसधप्रासप्त पररयोजनान: आस पररयोजना का अरमभ व्यवसाय करने में
लगने वाली लागत तथा समय को कम करने के सलए, बेहतर प्रसतस्पद्धाण के माध्यम से व्यय क्रकए
जाने वाले धन का बेहतर मूल्य प्राप्त करने के सलए तथा सरकारी सवभागों में ऄसधप्रासप्त संबंधी
प्रक्रक्रयाओं का मानकीकरण करने के ईद्देश्य से क्रकया गया था।
 SWIFT (Single Window Interface for Trade) पहलन: ‘कारोबार में असानी’ या आज ऑफ़
डू आंग सबज़नस संबंधी पहलों के भाग के रूप में ईत्पादन तथा सीमाशुल्क के न्त्िीय बोडण ने भारत में
सीमाओं के अर-पार व्यापार को असान बनाने के ईद्देश्य से एकल-सखडकी पररयोजना के
कायाणन्त्वयन का सजममा ईठाया है। व्यापार हेतु एकल-सखडकी आंटरफे स (SWIFT) सरकारी
एजेंससयों के साथ आंटरफे स को कम करेगा, समय तथा व्यवसाय पर अने वाली लागत को सनयंसरत
करेगा।

6.4.3. सरकार से सरकार (G2G) सं बं धी पहलें

(Government to Government Initiatives)


 कनाणटक में ख़जाना पररयोजनान: आस पररयोजना का पररणाम राज्य सरकार की समपूणण राज्य-कोष
संबंधी गसतसवसधयों के कमप्यूटरीकरण के रूप में सामने अया है, तथा आस प्रणाली या तंर में राज्य
के बजट की स्वीकृ सत से ले कर सरकार को लेखा प्रदान करने तक प्रत्येक गसतसवसध का पता लगाने
की क्षमता है।

6.5. चु नौसतयां (Challenges)

भारत में इ-शासन के कायाणन्त्वयन में बडी संख्या में बाधाएं हैं। आन्त्हें सनम्नसलसखत में वगीकृ त क्रकया जा
सकता हैन:

6.5.1. पररवे श सं बं धी और सामासजक चु नौसतयां

(Environmental and Social Challenges)


 गैर स्थानीय भाषान: इ-शासन एप्लीके शन ऄंग्रेजी भाषा में सलखे गए होते हैं जो कइ लोगों के सलए
सुबोध नहीं होते हैं।
 सनमन IT साक्षरतान: भारत का साक्षरता स्तर बहत सनमन है और यहां तक क्रक साक्षर लोगों में भी,
भारत के ऄसधकांश लोगों को सूचना प्रौद्योसगकी के ईपयोग के संबंध में नहीं पता है।
 सरकारी वेबसाआटों की प्रयोक्ता ऄनुकूलतान: इ-शासन एप्लीके शनों के ईपयोगकताण प्रायन: गैर-
सवशेषज्ञ ईपयोगकताण होते हैं जो सही तरीके से एप्लीके शनों का ईपयोग करने में सक्षम नहीं होते
हैं।
 सडसजटल सवभाजन (Digital Divide): यह सूचना प्रौद्योसगकी तक पहंच रखने वाले और ऐसी
पहंच नहीं रखने वाले लोगों, समुदायों और व्यापारों के बीच सवद्यमान सवभाजन है। गरीबी रेखा से
नीचे रहने वाले लोग इ- सरकार और ऄन्त्य ऑनलाआन सेवाओं का लाभ लेने के सलए स्वयं कं प्यूटर

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और आंटरनेट कनेक्शन का व्यय नहीं ईठा सकते हैं। लोगों के बीच जागरूकता की कमी के कारण
भी सडसजटल सवभाजन हो सकता है।
 पररवतणन का प्रसतरोधन: कागज-अधाररत प्रणाली से वेब-अधाररत प्रणाली में पररवर्थतत होने का
प्रसतरोध हो सकता है।

6.5.2. अर्थथक चु नौसतयां

(Economic Challenges)
 लागतन: भारत जैसे सवकासशील देश में , इ-शासन पररयोजनाओं के कायाणन्त्वयन के मागण में लागत
सबसे बडी बाधाओं में से एक है। कायाणन्त्वयन, पररचालन संबंधी और सवकासवादी रखरखाव कायों
में बडी मारा में धनरासश लगती है।
 एप्लीके शन एक प्लेटफॉमण से दूसरे प्लेटफॉमण तक हस्तांतरणीय होने चासहएन: इ-शासन एसप्लके शन
हाडणवेयर या सॉफ़्टवेयर प्लेटफ़ॉमण से स्वतंर होने चासहए।
 आलेक्रॉसनक ईपकरणों का रखरखावन: चूँक्रक सूचना प्रौद्योसगकी बहत तेज़ी से बदल रही है और
हमारे सलए ऄपनी वतणमान प्रणासलयां बहत तेजी से ऄद्यतन करना बहत मुसश्कल होता है। तेजी से
बदलते तकनीकी वातावरण में रखरखाव लंबे जीवनकाल वाली प्रणासलयों के सलए एक महत्वपूणण
कारक है।

6.5.3. तकनीकी चु नौसतयां

(Technical challenges)
 ऄंतःक्रक्रयाशीलतान: ऄंतःक्रक्रयाशीलता सभन्त्न-सभन्न गुणवत्ता वाली प्रणासलयों और संगठनों की एक
साथ काम करने की क्षमता है। इ-शासन एप्लीके शनों में यह सवसशष्ट गुण होना चासहए ताक्रक नए-
नए सवकससत और वतणमान ऄनुप्रयोगों को एक साथ कायाणसन्त्वत क्रकया जा सके ।
 बहसवध ऄंतरक्रक्रयान: बहसवध ऄंतरक्रक्रया ईपयोगकताण को प्रणाली के साथ ऄंतरक्रक्रया करने के कइ
तरीके प्रदान करती है। इ-सरकार एसप्लके शन वास्तव में तभी प्रभावी हो सकता है यक्रद ईसके
ईपयोगकताण ईसे सवसभन्न ईपकरणों पर आनका ईपयोग कर सकें ।
 गोपनीयता और सुरक्षान: इ-शासन के कायाणन्त्वयन में एक महत्वपूणण बाधा व्यसक्त के व्यसक्तगत डेटा
की गोपनीयता और सुरक्षा है सजसे वह सरकारी सेवाएं प्राप्त करने के सलए प्रदान करता है।
 सपछडे क्षेरों के सलए कनेसक्टसवटीन: भारत का एक बडा भाग जीवन की मूलभूत अवश्यकताओं से
बहत दूर है। आन क्षेरों में इ-शासन की कनेसक्टसवटी सरकार के सलए चुनौतीपूणण कायण होगा।
 स्थानीय भाषान: इ-शासन एप्लीके शन लोगों की स्थानीय भाषा में सलखे होने चासहए ताक्रक वे आन
एप्लीके शनों का ईपयोग कर और लाभ ईठा सकें ।
 मानव संसाधन की कमीन: भारत क्रदन प्रसतक्रदन बेहतर तकनीसशयन बनाने की क्रदशा में कडी मेहनत
कर रहा है। लेक्रकन क्रफर भी, देश में इ-शासन पररयोजनाओं की देखभाल करने के सलए कु शल
तकनीसशयनों की कमी है।

6.6. इ-शासन पर सितीय ARC की ऄनु शं साएं

(Recommendations of 2nd ARC on E-governance)


इ-शासन पर सितीय प्रशाससनक अयोग की कु छ महत्वपूणण ऄनुशंसाएं सनम्नसलसखत हैंन:
ऄनुकूल पररवेश का सनमाणणन: ऄनुकूल पररवेश का सनमाणण इ-शासन पहल के सफल कायाणन्त्वयन के सलए
ऄपररहायण तत्व है। आसे प्राप्त क्रकया जाना चासहएन:
 सरकार के भीतर पररवतणन लाने की आछछा पैदा और प्रदर्थशत करके
 ईच्चतम स्तर पर राजनीसतक समथणन प्रदान करके
 इ-शासन को प्रोत्सासहत करके
 पररवतणन की मांग पैदा करने के सलए जनता में जागरूकता ईत्पन्न करके ।

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व्यापार प्रक्रक्रया पुनरणचना (Business Process Re-engineering): सरकारी प्रपरों, प्रक्रक्रयाओं


और संरचनाओं को प्रक्रक्रयात्मक, संस्थागत और कानूनी पररवतणनों िारा समर्थथत इ-शासन के ऄनुकूल
बनाने के सलए क्रफर से सडजाआन क्रकया जाना चासहए।
क्षमता सनमाणण और जागरूकता सृजनन: क्षमता सनमाणण प्रयासों को इ-शासन पररयोजनाओं के
कायाणन्त्वयन से जुडे व्यसक्तयों के व्यवसासयक और कौशल ईन्नयन की भांसत संगठनात्मक क्षमता सनमाणण
पर भी ध्यान देना चासहए।
तकनीकी समाधान सवकससत करनान: जैसा क्रक कु छ देशों में क्रकया गया है, राष्ट्रीय इ-शासन 'ईद्यम
अर्ककटेक्चर' (enterprise architecture) सवकससत करना चासहए।
सनगरानी और मूल्यांकनन: इ-शासन पररयोजनाओं की सनगरानी कायाणन्त्वयन के दौरान कायाणन्त्वयन करने
वाले संगठन िारा की जानी चासहए। सजस तरह बडी ऄवसंरचना पररयोजनाओं के सलए पररयोजना
सनगरानी की जाती है, ईसी तरह यह भी क्रकया जाना चासहए।
सावणजसनक-सनजी भागीदारी (PPP): इ-शासन पररयोजनाओं के कइ घटक ऄपने अपको सावणजसनक-
सनजी भागीदारी (PPP) का रूप देते हैं। ऐसे सभी मामलों में (PPP) ऄसधमानता प्राप्त तरीका होना
चासहए। सनजी भागीदार पारदशी प्रक्रक्रया के माध्यम से चुना जाना चासहए। स्वयं प्रारंसभक चरण में
सरकार के साथ-साथ सनजी भागीदार की भूसमकाएं और ईत्तरदासयत्व स्पष्ट रूप से सनधाणररत कर क्रदए
जाने चासहए, सजससे क्रकसी भी ऄस्पष्टता के सलए कोइ गुंजाइश न बचे।
महत्वपूणण सूचना ऄवसंरचना पररसंपसि की सुरक्षा करनान: महत्वपूणण सूचना ऄवसंरचना पररसंपसि
सुरक्षा रणनीसत सवकससत करने की अवश्यकता है। आसका खतरों और भेद्यताओं पर ईन्त्नत सवश्लेषण
और चेतावनी क्षमताओं के साथ-साथ ईन्त्नत सूचना साझाकरण से ऄनुपूरण क्रकया जाना चासहए।
साझी सहायता ऄवसंरचनान: NIC जैसी सरकारी एजेंससयों िारा राज्य डेटा कें ि (SDC) का ऄनुरक्षण
क्रकया जाना चासहए क्योंक्रक आसमें संप्रभु डेटा की साज-संभाल ससममसलत होती है। पुनश्च, राज्य स्तर
पर सभी डेटा कें िों को SDC में ससममसलत कर क्रदया जाना चासहए।
इ-शासन के सलए कानूनी ढांचान: 2020 तक इ-शासन प्रणाली में सभी स्तरों पर नागररक-सरकार
ऄंतरक्रक्रया रूपांतररत करने के ऄंसतम ईद्देश्य के साथ भारत सरकार िारा महत्वपूणण ईपलसब्ध के
समुछचय के साथ स्पष्ट रोडमैप रेखांक्रकत क्रकया जाना चासहए।
ज्ञान प्रबंधनन: संघ और राज्य सरकारों को सामान्त्य रूप से प्रशाससनक सुधारों और सवशेष रूप से इ-
शासन के सलए एक महत्वपूणण कदम के रूप में ज्ञान प्रबंधन प्रणाली स्थासपत करने के सलए सक्रक्रय ईपाय
करना चासहए।

6.7. शासन की सु ग मता (Ease of Governance)

 हाल ही में कार्थमक, लोक सशकायत और पेंशन मंरी िारा शासन की सुगमता का सवचार प्रस्तुत
क्रकया गया था।
 आस सवचार के ऄनुसार, इ-शासन का मुख्य ईद्देश्य 'शासन की सुगमता' होना चासहए सजससे लोगों
का 'जीवन सुगम' हो। 'न्त्यू आंसडया' के लक्ष्यों को प्राप्त करने के सलए यह अवश्यक है।
 शासन की सुगमता का ऄसनवायणतन: ऄथण प्रशासन तक सुगम पहंच है जहां सावणजसनक नीसतयां
जमीनी स्तर पर काम के साथ सहानुभूसतपूणण और ऄनुक्रक्रयाशील सरकारी तंर के साथ जन कें क्रित
होती हैं।
 ऐसे शासन का एक ईदाहरण वायुयान रटकट बुककग पर ईच्च सनरस्तीकरण शुल्क समाप्त करने के
सलए सवमानन मंरालय िारा एयरलाआन ऑपरेटरों से कहने के सलए त्वररत कदम ईठाना है।
3000 रुपये तक सनरस्तीकरण शुल्क काफी ऄसधक था और यहां तक क्रक कभी-कभी रटकट की
वास्तसवक कीमत से भी ऄसधक होता था।

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7.Vision IAS मुख्य परीक्षा टे स्ट सीररज के प्र्न:


1. नागररक, जो सेवाओं के प्राप्तकताण हैं, ऄपने लाभ के सलए प्रशाससत सेवाओं की गुणविा और
मारा के सवणश्रष्ठ
े सनणाणयक होते हैं। परन्त्तु प्रशासन को ईिरदायी ठहराने हेतु ईनके पास
शायद ही कोइ साधन है। "सनरीक्षण कीसजए।
दृसष्टकोणन:
 प्रशासन के एक भाग के रूप में सावणजसनक सेवा सवतरण का वणणन कीसजए।
 सावणजसनक सेवाओं के सवतरण में ईिरदासयत्व का महत्व दशाणआए।
 संबंसधत सुधारों को सुझाआए।
ईिरन:
सेवा सवतरण के पररप्रेक्ष्य से , शासन को प्रोत्साहन, जवाबदेही व्यवस्था और सनयमों के समूह
के रूप में समझा जा सकता है। जो नीसत सनमाणताओं, प्रदाता संगठनों और ईनके प्रबंधकों एवं
कमणचाररयों ससहत प्रमुख ऄसभकताणओं को प्रभासवत करता है, ये सभी दक्षता और
ऄनुक्रक्रयाशीलता ससहत ईच्च गुणविापूणण सेवाओं के सवतरण हेतु ऄपने व्यवहार एवं दक्षता के
सलए ईिरदायी होते हैं।
ऄनेक सनम्न और मध्यम अय वाले देशों में, सावणजसनक सेवा सवतरण की गुणविा में
ऄसफलताएँ सावणजसनक सनसधयों के दुरूपयोग एवं सामासजक सहायता संबंधी लाभों के सलए
वस्तुओं के गैर सवतरण िारा प्रदर्थशत होती हैं। आन ऄसफलताओं ने बेहतर शासन और
ईिरदासयत्व के एजेंडा को प्रेररत क्रकया है। सरकारों, नागररक समाज और दाताओं में आस
सवचार के महत्व में तीव्रता से वृसद्ध हइ है क्रक नागररक, नीसत सनमाणताओं और सेवाओं के
प्रदाताओं को ईिरदायी बना कर सेवा सवतरण की बेहतर गुणविा में योगदान दे सकते हैं।
ईिरदासयत्व बनाने का आस सवचार को 2004 की वल्डण डेवलपमेंट ररपोटणन: मेककग सर्थवसेज़
वकण फॉर पुऄर पीपल िारा अकार प्रदान क्रकया गया था। WDR िारा नीसत सनमाणताओं,
प्रदाताओं और नागररकों के मध्य ईिरदासयत्व संबंधों का सवश्लेषण करने हेतु एक ढांचें को
पररभासषत क्रकया गया है। आस ढांचे के भीतर, जवाबदेही को "लंबे मागण" के माध्यम से
कायाणसन्त्वत क्रकया जा सकता है, सजसमें नागररक नीसत सनमाणताओं को प्रभासवत करते हैं जो
बदले में प्रदाताओं के माध्यम से सेवा सवतरण को प्रभासवत करते हैं, या "लघु मागण", सजसके
माध्यम से नागररक व्यसक्तगत एवं सामूसहक रूप से भागीदारी और प्रदाताओं िारा सवतररत
सेवाओं की सनगरानी िारा आसे प्रत्यक्ष प्रभासवत कर सकते हैं।

आन दो तरीकों को ध्यान में रखते हए ऄसभकताणओं को ईिरदायी बनाने के सलए सनम्नसलसखत


ईपायों को प्रस्तुत क्रकया गया हैन:
 सशकायत सनवारण तंरन: सशकायत सनवारण तंर (Grievance Redress
Mechanisms: GRMs) सेवा सवतरण को प्रभासवत करने हेतु लोगों को सूचनाओं का
ईपयोग करने के ऄवसर प्रदान करते हैं।

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 सवतरण में सवलमब से बचने के सलए सेवाओं के सवतरण के सलए एकल सखडकी प्रणाली
(Single Window System)।
 लोक सेवा सवतरण गारंटी ऄसधसनयमन: मध्य प्रदेश सबहार, जममू-कश्मीर, क्रदल्ली,
राजस्थान, ईिर प्रदेश (सावणजसनक सेवा ऄसधसनयम, RTPS ऄसधसनयम के ऄसधकार के
रूप में संदर्थभत) जैसे सवसभन्न राज्यों में नागररकों को चयसनत सेवाओं की समयबद्ध
सवतरण की गारंटी प्रदान करता है। यह ऄसधसनयम महत्वपूणण हैं, क्योंक्रक आसमें सेवा
प्रदाता पर देरी से सेवा सवतरण करने पर जुमाणने का प्रावधान करता हैं।
ये पहलें सावणजसनक सेवाओं की गुणविा में सुधार और व्यसक्तगत स्तर पर ईिरदासयत्व के
ईसचत सनधाणरण में ईपयोगी ससद्ध हो सकती हैं।

2. चचाण कीसजए क्रक भारत में सुशासन के सलए क्या प्रावधन क्रकए गए हैं तथा सामासजक न्त्याय
के सवसभन्न पहलुओं को दशाणते हए यह भी चचाण कीसजए क्रक सामासजक न्त्याय के संरक्षण में
सुशासन क्रकस प्रकार सहायता करता है?
दृसष्टकोणः
 सवणप्रथम सुशासन क्या है? आसकी चचाण करें। आस धारणा की व्याख्या करने की प्रयास
करें। सुशासन के ऄथण को सवसशष्ट रूप से भारत के सन्त्दभण में सवमशण करे। ऐसा करते हए
ईन चुनौसतयों को ध्यान में रखें सजनका हम एक राष्ट्र के रूप में सामना करते है। यह
समीक्षा करें क्रक सुशासन देश की सवसभन्न चुनौसतयों के समाधान में क्रकस प्रकार सहायक
ससद्ध होगा।
 क्रफर अगे सामासजक न्त्याय की धारण की व्याख्या करें। सामासजक न्त्याय के सन्त्दभण में
भारतीय तथा पािात्य सवचारों के ऄन्त्तर को ध्यान में रखे और यह स्थासपत करने का
प्रयास करें क्रक दोनों में क्या सभन्नता है।
 ऄन्त्ततः आसकी व्याख्या करे -क्रक सामासजक न्त्याय के सवसभन्न पक्ष तभी प्रासंसगक होगे जब
ईनको सुरसक्षत क्रकया जा सके । यहाँ यह भी सवमशण करे क्रक सुशासन क्रकस प्रकार से न्त्याय
को प्राप्त करने में सहायक ससद्ध होगा एवं आस प्रकार से न्त्याय प्राप्त करना भी ऄपने अप
में सुशासन का ही ऄंग है।
ईिरः
 जवाहरलाल नेहरू ने ऄपने प्रससद्ध भाषण ‘ररस्ट सवद डेसस्टनी' (भाग्य के साथ भेंट) में,
गरीबी का ऄंत , ऄज्ञानता, बीमारी और ऄवसरों की ऄसमानता को मुख्य चुनौती के रूप
में संबोसधत क्रकया। भारत के सवगत छः दशकों के लोकतांसरक ऄनुभवों ने यह स्पष्ट रूप
से यह स्थासपत क्रकया क्रक हमारी के न्त्िीय चुनौसतयाँ ऄभी भी समान सामासजक ऄवसरों
को ईपलब्ध कराना एवं व्यापक गरीबी से संबंसधत है।
 सुशासन एक धारणा के रूप में प्रशाससनक सुधारों जो क्रक परमपरागत रूप से समझे जाते
है से ज्यादा व्यापक है एवं सुशासन ऄपने में और ऄसधक अधारों एवं तासत्वक बातों को
समासहत करता है। यह शासन के नैसतक पृष्ठभूसम से संबंसधत है और आसका मूल्यांकन
सनसित रूप से क्रकसी सवशेष समाज के मानव एवं ईद्देश्यों के सन्त्दभण में क्रकया जाना
चासहये।
 आससे अगे सुशासन धारणा समाज के सभी वगो के उपर लागू होती है जैसे-सरकार,
सवधासयका, न्त्यायपासलका, मीसडया, सनजी क्षेर, कारपोरेट क्षेर, सहकारी सोसाआटी
पंजीकरण ऄसधसनयम के ऄन्त्तगणत पंजीकृ त संस्थायें यथावत पंजीकृ त रस्ट, संस्थान जैसे
क्रक रेड यूसनयन और ऄन्त्ततः और सरकारी संगठन (NGOs)
 भारत के सन्त्दभण में सुशासन को आस तरह की शासन व्यवस्था के रूप में पररभासषत क्रकया
जा सकता है जो न्त्याय प्राप्त करने में, लोगों को सशक्त बनाने में, रोजगार ईपलब्ध कराने
एवं कु शलतापूवणक लोक सेवाओं को प्रदान करने में मदद करे। ये सभी त्य ईसी सीमा
तक प्रासंसगक है क्रक जहाँ तक क्रक हमारी के न्त्िीय चुनौसतयों के समाधान एवं सनराकरण में
प्रभावी रूप से सहायक हो। ऄतः प्रथम और सबसे महत्वपूणण पक्ष यह है क्रक सुशासन का

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ईद्देश्य सामासजक ऄवसरों के सवस्तार करने तथा गरीबी का ईपशमन करने के सलए ही
होना चासहये।
 साथ ही साथ सामासजक न्त्याय की धारणा मुख्य रूप से “गरीब कामगारों में गरीबी के
ईपशमन” के रूप में व्याख्यासयत है। यह धारण औपचाररक एवं ऄनौपचाररक, रोजगार
एवं अंसशक रोजगार के क्षेर में समान रूप से लागू होती है।
 जबक्रक सवसशष्ट रूप से भारत के सन्त्दभण में सामासजक न्त्याय सुसनसित करने का ऄथण के वल
गरीबी, भौसतक वस्तुओं का ऄसमान रूप से सवतरण एवं, सामासजक बसहष्कार ही नही
है जैसा क्रक पािात्य समाज में देखा जाता है बसल्क सामासजक ऄसमानता को दूर करना
भी आसका मुख्य ईद्देश्य होना चासहये।
 लेक्रकन यह सभी सामासजक न्त्याय के पहलू तभी प्रासंसगक होगें जब आनका संरक्षण हो
सके एवं वह सामान्त्य जन की पहँच में हो तथा साथ ही साथ कानून के सनयमों के िारा
आनकों सुसनित क्रकया जा सके ।
 ईपयुणक्त आन्त्हीं सन्त्दभो के िारा सुशासन महत्वपूणण हो जाता है। वस्तुतः न्त्याय प्राप्त करना
सुशासन का एक महत्वपूणण पक्ष है। यह के वल भारत के सलए ही नहीं वरन् समस्त संसार
की सावणभौम अवश्यकता है। ईदाहरण के सलए जीवन एवं समपसि की सुरक्षा, लोक
सामान्त्य के सलए महत्वपूणण वस्तु आत्याक्रद की सुरक्षा के वल सुशासन के माध्यम से ही की
जा सकती है। न्त्याय प्राप्त करने की धारणा मौसलक रूप से आस ससद्धांत पर अधाररत है
क्रक लोग सनयमों के सही क्रक्रयान्त्वयन पर सवश्वास करे। न्त्याय तक की पहँच के वल और
के वल सुशासन के माध्यम से ही सुसनसित की जा सकती है। आसके ऄसतररक्त कानून का
शासन जो क्रक न्त्याय प्राप्त करने के सलए एक महत्वपूणण पक्ष है, भी सुशासन का सहस्सा है।
यह के वल सुशासन ही है जो क्रक यह सुसनसित कर सकता है क्रक कोइ भी कानून से उपर
नहीं है।
 ऄतः सुशासन एवं सामासजक न्त्याय के वल एक समान लक्ष्य को प्राप्त करने का ही प्रयास
नहीं करते बसल्क न्त्याय प्राप्त करना भी सुशासन का एक महत्वपूणण पहलू है।

3. सडसजटल आंसडया कायणक्रम में न के वल नागररक सेवा-सवतरण के रूप को बदलने, बसल्क


महत्वपूणण सामासजक और औद्योसगक क्षेरों को ऄसतअवश्यक प्रोत्साहन प्रदान करने की भी
क्षमता है। परीक्षण करें।
दृसष्टकोणः
 ईिर में नागररक सेवा सवतरण, समासजक और औद्योसगक क्षेर पर सडसजटल भारत
कायणक्रम के पडने वाले संभासवत प्रभावों को रेखांक्रकत करते हए आसके लक्ष्यों और ईद्देश्यों
के बारे में बताना चासहए।
 ईिर के तीन भाग होने चासहएः
o सडसजटल आंसडया कायणक्रम का लक्ष्य और ईद्देश्य।
o नागररक सेवा सवतरण, मुख्य समासजक और औद्योसगक क्षेरों पर पडने वाले आसके
समभासवत या ईद्देसशत प्रभाव।
o सवशेष रूप से आस क्षेर में सपछले सरकारी पहलों के ऄनुभवों को ध्यान में रखते हए
सीमाओं और चुनौसतयों को रेखांक्रकत क्रकया जाना चासहए।
 आन चुनौसतयों को संबोसधत करने वाले प्रावधानों का ईल्लेख करते हए ईिर समाप्त करें।
ईिरः
सडसजटल आंसडया कायणक्रम का ईद्देश्य इ-शासन को बढावा देना और भारत को एक सडसजटल
रूप से सशक्त समाज और ज्ञान ऄथणव्यवस्था में बदलना है। आस कायणक्रम की पररकल्पना
आलेक्रॉसनक और सूचना प्रोद्यौसगकी सवभाग (डी. इ. अइ. टी. वाइ) िारा की गयी है जो
संचार एवं सूचना प्रौद्योसगकी मंरालय, ग्रामीण सवकास मंरालय, मानव संसाधन मंरालय,
स्वास््य मंरालय और ऄन्त्यों को प्रभासवत करेगा।
यह वृसद्ध के क्षेर में नौ पहलुओं पर जोर देता है। यक्रद आस कायणक्रम का ईद्देश्य सफल होता है
तो यह सवस्तृत क्षेरों मे युगांतकारी बदलावों का वाहक ससद्ध होगा जैसेः

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नागररक सेवा सवतरण में पररवतणनन: सडसजटल आंसडया का ईद्देश्य यह सुसनसित करना है क्रक
सरकारी सेवाएं नागररकों को आलेक्रॉसनक रूप से ईपलब्ध हों। यह आलेक्रॉसनक रूप से
सरकारी सेवाओं के ऄसनवायण सवतरण; प्रमासणक और मानक अधाररत ऄन्त्तर-प्रचालनीय और
एकीकृ त सरकारी ऄनुप्रयोगों और अंकडों के अधार पर यूसनक अइ. डी और इ-प्रमाण के
माध्यम से सावणजसनक जवाबदेही का सृजन करेगा। नागररकों का सडसजटल सशसक्तकरण
सावणभौसमक सडसजटल साक्षरता और भारतीय भाषाओं में सडसजटल संसाधनों/सेवाओं की
ईपलब्धता पर जोर देगा।
मुख्य समासजक क्षेरों में पररवतणनः प्रौद्योसगकी ऄनुप्रयोग के माध्यम से , सडसजटल आंसडया
कायणक्रम में सशक्षा जैसे क्षेरों यथा-दूरस्थ सशक्षा, टेली-सशक्षा, इ-साक्षरता में बदलाव लाने की
क्षमता है। आसी प्रकार, स्वास््य क्षेर में यह टेली मेसडससन, स्वास््य सेवा के सवतरण में अइ.
सी. टी के प्रयोग, व जागरूकता एवं साथ ही सशकायत सनवारण को बढ़ावा देगा। ग्रामीण और
कृ सष क्षेर पर जोर देने से आस कायणक्रम का आन क्षेरों पर भी पररवतणनकारी प्रभाव पड सकता
है। आसके ऄसतररक्त, आस कायणक्रम से 17 समसलयन प्रत्यक्ष और 85 समसलयन ऄप्रत्यक्ष
नौकररयों का सृजन होने की संभावना है।
मुख्य औद्योसगक क्षेरों में पररवतणन
एक लाख करोड रूपए के सनयोसजत व्यय से सडसजटल आंसडया कायणक्रम सपछडेऺ और ऄगडेऺ के
बीच संपकण के माध्यम से औद्योसगक सवकास को बढ़ावा देने में ईत्प्रेरक ससद्ध हो सकता है।
अइ. टी./अइ. टी. इ. एस, टेलीकॉम, आलेक्रॉसनक सवसनमाणण क्षेर भी सडसजटल आंसडया
कायणक्रम से लाभासन्त्वत होंगे। आसके ऄसतररक्त, सवशेषज्ञों की राय है क्रक आस कायणक्रम का ऄन्त्य
ईद्योग क्षेरों पर भी सकारात्मक प्रभाव पडेऺगा, जैसे ईजाण क्षेर, बैंककग और सविीय सेवाएं।
हांलांक्रक, सवगत पहलों से सबक लेते हए ऄवसंरचना, मानव संसाधन एवं भारी-भरकम
सनवेश की अवश्यकता के ऄथों में ग्रामीण-शहरी सडसजटल ऄन्त्तराल, लास्ट माआल
कनेसक्टसवटी, और क्षमता सनमाणण के मागण की बाधाओं को जीतना होगा। सडसजटल आंसडया
कायणक्रम सवसभन्न वतणमान कायणक्रमों व पहलों के बीच तालमेल और जुडाव की भी पररकल्पना
करता है। आस क्रदशा में पी. पी. पी. के माध्यम से सनजी क्षेर की भागीदारी और साथ ही
बारीक्रकयों का स्पष्ट सचरण, व्यक्त ईद्देश्यों को प्राप्त करने में लमबा सफर तय करेगा।

4. लोकतंर के सलए लोक सशकायतों का सनवारण क्यों महत्वपूणण है? भारत में लोक सशकायतों के
सनवारण के सलए सवसभन्न ईपकरणों की कायणप्रणाली का अलोचनात्मक मूल्यांकन कीसजए।
दृसष्टकोणन:
 सशकायत की ऄवधारणा की व्याख्या करते हए पररचय दीसजए।
 लोकतंर में आसके महत्व को समझाइये।
 आन सशकायतों के समाधान हेतु ईठाए गए कदमों को समझाते हए आनका मूल्यांकन
कीसजए।
 और क्या क्रकए जाने की अवश्यकता है, दशाणआए।
ईिरन:
जहाँ एक ओर सशकायत, क्रकसी संगठन के ईत्पादों, सेवाओं और प्रक्रक्रया से संबंसधत ईत्पन्न
ऄसंतोष की ऄसभव्यसक्त होती है, वही आसकी प्रसतक्रक्रया या समाधान प्रत्यक्ष और ऄप्रत्यक्ष रूप
से ऄपेसक्षत होता है। आसके पीछे मूल धारणा यह है क्रक यक्रद सेवा सवतरण का सनधाणररत
ऄपेसक्षत स्तर प्राप्त नहीं होता है या क्रकसी नागररक के ऄसधकार का सममान नहीं क्रकया जाता
है, तो नागररक ऄपनी सशकायत सनवारण के सलए एक तंर की सहायता प्राप्त करने हेतु सक्षम
होना चासहए।
सशकायत सनवारण क्यों अवश्यक हैन:
 लोक सशकायतों के शीघ्र और प्रभावी सनवारण करने में ऄसधकांश सावणजसनक एजेंससयों
का खराब ररकॉडण लोगों के ऄसंतोष का एक प्रमुख कारण है और चूंक्रक सरकार एक सेवा

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प्रदाता है, आससलए यह लोगों की अवश्यकताओं और अकांक्षाओं को पूरा करने के सलए


बाध्य है।
 लोक सशकायतों का प्रभावी और समयोसचत सनवारण ऄनुक्रक्रयाशील और ईिरदायी
शासन की एक सवशेषता होती है
 सुगम और प्रभावी सशकायत तंर की ईपलब्धता ईिरदासयत्व सनधाणररत करने का एक
अवश्यक घटक हैं
 जब तक नागररकों को प्रदान क्रकए गए ऄसधकारों के ईल्लंघन के सलए समाधान तंर
ईपलब्ध कराने की सुसवधा प्रदान नहीं की जाती तब तक सेवाओं से कोइ लाभदायक
संतुसष्ट प्राप्त नहीं हो सकती है। ऄतन: समाधान प्रणाली की ऄनुपसस्थसत में ऄसधकार
ऄलाभप्रद हो जाते हैं।
सशकायत सनवारण हेतु सनम्नसलसखत कदम ईठाए जा रहे हैंन:
 कें ि सरकार, राज्य सरकारों के साथ-साथ सवसभन्न संगठनों िारा नागररकों की सशकायतों
के समाधान हेतु सशकायत सनवारण तंर की स्थापना की गयी हैं, ईदाहरण के सलए कें िीय
स्तर पर के न्त्िीकृ त लोक सशकायत सनवारण और सनगरानी प्रणाली (CPGRAMS),
राजस्थान में सुगम जैसे ऑनलाआन पोटणल आत्याक्रद।
 आसके ऄसतररक्त, के न्त्िीय सतकण ता अयोग (CVC) और लोकायुक्त जैसे ऄन्त्य संस्थागत
तंर भी सवद्यमान हैं सजन्त्हें लोक सेवकों की भ्रष्टाचार और पद के दुरुपयोग संबंधी
सशकायतों की जांच करने का ऄसधदेश प्राप्त है।
 कइ संगठनों, ईदाहरणस्वरुप भारतीय ररजवण बैंक ने सशकायतों के समाधान हेतु
लोकपाल की स्थापना की है।
 राष्ट्रीय और राज्य मानवासधकार अयोगों, राष्ट्रीय और राज्य मसहला अयोगों, राष्ट्रीय
ऄनुसूसचत जासत अयोग और राष्ट्रीय ऄनुसूसचत जनजासत अयोग जैसी संस्थानों िारा
ईनके सनधाणररत क्षेरासधकार में अने वाली लोगों की सशकायतों की जांच की जा रही हैं।
लेक्रकन आन कायणवाइयों से संबंसधत ऄनेक समस्याएं सवद्यमान हैं। सामान्त्यतन: ये समस्याएं हैंन:
लोगों एवं ऄसधकाररयों के मध्य जागरूकता का ऄभाव और साथ ही आन तंरों के संबंध में भी
जागरूकता का ऄभाव, सशकायत सनवारण तंर की ईसचत सनगरानी का ऄभाव, लोक
सशकायत सवभागों में प्रायन: कमणचाररयों एवं संसाधनों की कमी, सशकायत के समाधान में
ऄसधक समय लगना आत्याक्रद।
अगे की राहन:
 राष्ट्रीय, क्षेरीय और स्थानीय मीसडया के साथ-साथ आलेक्रॉसनक मीसडया के माध्यम से
आन तंरों के संबंध में व्यापक प्रचार क्रकया जाना चासहए।
 सशकायत-सनवारण प्रणाली सुगम, सरल, त्वररत, सनष्पक्ष, ऄनुक्रक्रयाशील और प्रभावी
होनी चासहए।
 व्यवहार में पररवतणन (Behavioural reform): लोक सेवकों की ऄसभवृसि/व्यवहार में
पूणण पररवतणन करने की अवश्यकता है। दूसरे शब्दों में, सभी स्तरों पर लोक सशकायतों के
सनवारण के प्रसत मानससकता और लोगों की सशकायतों के सलए कारणवाइ का ईिरदासयत्व
सनधाणररत करने की अवश्यकता है।

5. लाभार्थथयों की बढ़ रही जागरूकता के बावज़ूद सामासजक लेखांकन ने भ्रष्टाचार को घटाने


तथा ऄसनयसमतताओं का पता लगाने में महत्वपूणण भूसमका नहीं सनभाइ है। चचाण करें।
सामासजक लेखांकन को क्रकस प्रकार और ऄसधक प्रभावी बनाया जा सकता है?
दृसष्टकोणः
 सवणप्रथम, सामासजक लेखांकन और सेवाओं के सवतरण में सुधार से समबंसधत आसके लाभों
का संसक्षप्त में पररचय दे। अगे आसके समभासवत लाभों से समबन्त्ध स्थासपत करें,
सामुदासयक सहभासगता की भूसमका पर ध्यान के सन्त्ित करें तथा लेखांकन के पारमपररक
दृसष्टकोण से आसकी तुलना करें।
 आसके ऄसतररक्त सामासजक मुद्दों पर ध्यान के सन्त्ित करते हए आसकी कसमयों को प्रस्तुत
करें तथा आन कसमयों का समाधान प्रस्तुत करें।

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ईिरन:
सामासजक लेखांकन जन कल्याण के सलए प्रायोसजत कायणक्रमों तथा नीसतयों के सलए
सावणजसनक कोष से सवि की सनकासी तथा प्रयोग पर सामासजक सनयन्त्रण स्थासपत करता हैं
यह जनता को पारदर्थशता तथा जवाबदेही जैसे मूल्यों को साकार करने में समथण बनाता है।
आस प्रकार लाभार्थथयों को आन कायणक्रमों का मूल्यांकन करने का एक ऄवसर प्रदान करता है।
सामासजक लेखांकन के लाभ
 सामासजक लेखांकन नागररकों को सनसष्क्रय प्राप्तकताण से सक्रक्रय मांगकताण के रूप में
रूपान्त्तरण को सहज बनाता है। आस प्रकार सरकार को जवाबदेह बनाता है।
 ये ऄसधकारों के बारे में जागरूकता ईत्पन्न करने में मदद करते हैं।
 ये लेखांकन सवसभन्न योजनाओं के लाभार्थथयों को ऄनाचार से समबंसधत सशकायत को दजण
कराने की ऄनुमसत देते हैं।
 सवकास गसतसवसधयों में जनभागीदारी यह सुसनसित करता है क्रक धन वहीं पर व्यय
क्रकया जा रहा है जहाँ आसकी अवश्यकता है।
 लेखांकन के पारमपररक प्रारूपों से ऄलग, सामासजक लेखांकन एक सतत प्रक्रक्रया है।
 सामासजक लेखांकन ऄपव्यय और भ्रष्टाचार को कम करता है।
 यह लोगों के ऄन्त्दर एकीकरण एवं सामुदासयक सहभासगता की भावना को बढ़ावा देता है
तथा शासन के स्तर को सुधारता है।
सामासजक लेखांकन के क्रक्रयान्त्वयन संबंधी समस्याओं को मनरेगा के ईदाहरण िारा स्पष्ट तौर
पर समझा जा सकता है। मनरेगा के तहत सामासजक लेखांकन का सभी राज्यों में कायाणन्त्वयन
क्रकया जा चुका है।
 मनरेगा जैसे ऄसधसनयमों में अवश्यक प्रावधान होने के बावजूद बहत कम राज्यों ने ही
वास्तव में सामासजक लेखांकन की प्रणाली को संस्थासपत क्रकया है।
 स्थानीय प्रसतसनसधयों का ऄनाचार में भागीदारी होना सामासजक लेखांकन के मागण में
ऄवरोध ईत्पन्न क्रकया है।
 दण्डों का प्रवतणन तथा ऄनुवतणन कमजोर है। ऄसधकतर मामलों में सतकण ता प्रकोष्ठ की
स्थापना में भी कमी रही है।
 स्थानीय सनकायों तथा सामासजक सक्रक्रयता के बीच कु शल सवशेषज्ञों की सापेक्ष कमी
प्रायः सामासजक लेखांकन को प्रतीकात्मक तथा शमणनाक प्रयोग बनाता है।
सुझाव
 सभी राज्यों में सामासजक लेखांकन के संस्थानीकरण को सुसनसित करना, आसे प्रवतणनीय
तथा ऄनुबंधों के अवंटन संबंधी ईिरदासयत्वों को सवश्वसनीय बनाना, समयसीमा को
सनधाणररत करना तथा ऄपराधी के सलए शीघ्र ऄथणदण्ड को सुसनसित करना।
 स्थानीय पररसस्थसतयों तथा स्थानीय सहभासगता को ध्यान में रखते हए लाभाथी-
अधाररत लेखाकं न को संभव बनाने के सलए क्षमता सनमाणण।
 समासजक लेखांकन की व्यवहायणता को सुसनसित करने के सलए पयाणप्त संस्थासनक
सहायता तथा पयाणप्त सविीय प्रावधान।
सभी कायणक्रमों के साथणक पररणामों को प्राप्त करने के हेतु पूवण प्रयोगों से सशक्षा ग्रहण करना
एवं समाधान की तकनीकों को सवकससत करना ऄथातण भसवष्य में क्रकए जाने वाले सुधारों में
सामासजक लेखांकन की प्रभासवता का सुसनसित करना।

6. इ-गवनेंस पररयोजनाओं की ऄसफलता के कु छ भी कारण हों पर तकनीकी कारण नहीं हैं।


भारत के संदभण में चचाण कीसजए।
दृसष्टकोणन:
 इ-गवनेंस का आसके सवसभन्न अयामों ससहत सववरण दीसजए।
 सफलता की कमी के कारण बताते समय आन अयामों को ससममसलत क्रकया जाना
चासहए। जहां भी संभव हो, ईदाहरण दीसजए।
ईिर न:
नागररक सरकार से सवसभन्न कारणों से संपकण करते हैं, जैसे सावणजसनक नीसत प्रभासवत करने,
व्यसक्तगत हचता, जो ईनकी होती है, को संबोसधत करने, सरकारी लेन-देन करने और ईन

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लाभों और सेवाओं के संबंध में, जो सरकार प्रदान करती है, जानकारी पाने हेतु। इ-गवनेंस
सावणजसनक सेवा सवतरण का ऐसा ही एक चैनल है। इ-गवनेंस मार तकनीकी पहल न होकर
आससे कहीं ऄसधक व्यापक है, और सहतधारक की प्रसतबद्धता, संरसचत सवकासात्मक प्रक्रक्रयाओं
और पयाणप्त ढांचागत संसाधनों के बीच संबंधों के जरटल समूह से बना है।
इ-गवनेंस पररयोजनाओं के अशा के ऄनुरूप प्रदशणन न करने का कारणन:
 इ-गवनेंस को सुशासन के साधन की बजाय कमप्यूटरीकरण, कायाणलयी स्वचालन (office
automation) और मालसूची प्रबंधन के रूप में ऄसधक देखा जाता है।
 इ-गवनेंस से शासन में नागररकों को सनसष्क्रय प्रसतभागी से सक्रक्रय प्रसतभागी में
रूपांतररत करने की अशा की जाती थी। जहाँ नेट न्त्युरसलटी पर नागररकों की प्रसतक्रक्रया
को ऄंसतम नीसत में ससममसलत क्रकए जाने जैसे सफल प्रसंग हैं, वहीं ऐसे ईदाहरण बहत
कम हैं।
 नागररक मूल्य संवधणन में वृसद्ध को इ-गवनेंस पररयोजनाओं से जोड कर नहीं देखते हैं।
ईदाहरण के सलए, ऐसे सवभागों में जो सवशेष रूप से ग्रामीण क्षेरों में भूसम ररकाडण का
ऄनुरक्षण करते हैं, भूस्वासमत्व, फसल पैटनण अक्रद से संबंसधत सववरण कमप्यूटरीकृ त क्रकए
गए हैं लेक्रकन कानूनों में तदनुरूप पररवतणन के ऄभाव में आस प्रकार की प्रणाली िारा
ईत्पन्न पररणामों को कोइ सवसधक वैधता नहीं दी गइ है।
 क्षैसतज एकीकरण की कमी का होना, सजसका ऄथण है क्रक इ-गवनेंस पररयोजनाएं खंसडत
और ऄसंतोषजनक तरीके से सेवाएं दे रही हैं सजसके पररणामस्वरूप ऄंसतम
ईपयोगकताणओं को कइ सरकारी एजेंससयों से संपकण करना पडता है, आस प्रकार 'समसनमम
गवनणमेंट' का वादा सनष्फल हो जाता है।
 कु छ प्रकरणों में नागररकों की व्यसक्तगत जानकारी जैसे सववरणों की गोपनीयता से
संबंसधत मुद्दों की ओर ध्यान क्रदए जाने की कमी।
 सडसजटल सडवाआडन: ऐसा खतरा हमेशा बना रहता है क्रक इ-गवनेंस पररयोजनाओं का
कायाणन्त्वयन आस प्रकार तो नहीं हो रहा क्रक समाज के के वल कु छ ही वगों का लाभ
प्राथसमकता हो।
सफल इ-गवनेंस कायाणन्त्वयन के चार मुख्य घटक हैंन: ऄंसतम ईपयोगकताणओं की अवश्यकताओं
की पहचान, व्यापार प्रक्रम संशोधन, अइटी का ईपयोग और सरकार का ऄसभप्राय। आनमें से
क्रकसी में भी कमी के पररणामस्वरूप इ-गवनेंस पररयोजनाएँ ऄपना ईद्देश्य प्राप्त करने में
सवफल हो जाएंगी।
ARC के ऄनुसार, वांसछत पररणाम प्राप्त करने के सलए पूणण राजनीसतक समथणन, सरकार के
सभी संगठनों और सवभागों िारा दृढ़संकसल्पत और ऄटल दृसष्टकोण के साथ-साथ जनता िारा
सक्रक्रय और रचनात्मक भागीदारी की अवश्यकता होगी। हमारी सारी सांस्कृ सतक और क्षेरीय
सवसवधताओं तक इ-गवनेंस की पहलें की पहँच बनाने के सलए संस्थागत और भौसतक
ऄवसंरचना ईपलब्ध कराने और ऐसे वातावरण के सनमाणण की अवश्यकता होगी जो ICT का
ऄंगीकरण प्रोत्सासहत करे। आस प्रकार, तकनीकी अवश्यकता के ऄसतररक्त, इ-गवनेंस पहलों
की सफलता सरकार के भीतर और सरकार के बाहर क्षमता सनमाणण और जागरूकता पैदा
करने पर सनभणर करेगी।

7. यद्यसप सडसजटल साधन (Digital tools) प्रशासन में पारदर्थशता, दक्षता एवं जवाबदेसहता
लाने में सहयोग कर सकते हैं, क्रकन्त्तु आन ईद्देश्यों को पूरा करने के सलए के वल सवशाल
सडसजटल ऄवसंरचना एवं महज़ कनेसक्टसवटी (संपकण क्षमता) सृसजत करने की तुलना में कहीं
ऄसधक प्रयास क्रकए जाने की अवश्यकता है। चचाण कीसजए।
दृसष्टकोण न:
 सडसजटल साधन (Digital tools) और इ-गवनेंस के पीछे सनसहत सवचार समझाएं।
 आस प्रकार की पहलों के कु छ ईदाहरण दीसजए।
 प्रकाश डालें क्रक सडसजटल साधनों (Digital tools) को प्रभावी बनाने के सलए सरकार को
क्या ऄसतररक्त कदम ईठाने की अवश्यकता है।

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ईिर न:
सडसजटल साधनों (Digital tools) का ईद्देश्य सरकार के कामकाज में सुधार लाना है।
सडसजटल साधन सरकार को नागररक ऄनुकूल बनाते हए प्रशासन में पारदर्थशता, दक्षता और
जवाबदेही को सुसनसित करते हैं।
सडसजटल साधनो का ईपयोग अधार, पेमेंट गेटवे, मोबाआल सेवा प्लेटफॉमण, डेटाबेस, अइटी
ऄवसंरचना और ऐसी ऄन्त्य सेवाओं और प्लेटफामों का ईपयोग संभव बनाता है। इ-क्रांसत और
राष्ट्रीय इ-गवनेंस कायणक्रम का ईद्देश्य इ-गवनेंस के युग का शुभारमभ करना है।
आन साधनों (tools) को ईपयोग में लाने के सलए ICT ऄवसंरचना और आंटरनेट के रूप में
कनेसक्टसवटी (संपकण क्षमता) की अवश्यकता है। लेक्रकन, सवश्व स्तर पर, ऐसी पररयोजनाओं
का कायाणन्त्वयन, आस बात का साक्षी है क्रक के वल ये सुधार ही पयाणप्त नहीं हैं।
आन साधनों (tools) के प्रभावी होने के सलए, सनम्नसलसखत ईपायों की भी अवश्यकता हैन:
सरकारी कायाणलयों में कायण संस्कृ सत में सुधार लाना
 आन साधनों (tools) का प्रभावी ढंग से ईपयोग करने के सलए सरकार के भीतर से इ-
गवनेंस के लक्ष्य के सलए मजबूत आछछाशसक्त और राजनीसतक प्रसतबद्धता की अवश्यकता
है।
 सरकारी कमणचाररयों के सलए पारदर्थशता, जवाबदेही और दक्षता के मूल्यों को अत्मसात
करने की अवश्यकता है। तभी सुशासन का संचालन करने के सलए सडसजटल साधनों
(Digital tools) का कु शलतापूवणक ईपयोग क्रकया जा सकता है।
 आन पहलों के संकल्पना, शुभारंभ, कायाणन्त्यवन और संधारण के सलए अवश्यक कौशल
और ज्ञान के रूप में आन साधनों (tools) के ईपयोग के संबंध में प्रसशक्षण और क्षमता
सनमाणण।
 स्थानीय शासन में सडसजटल साधनों (Digital tools) को प्रोत्सासहत करने की
अवश्यकता है क्योंक्रक ये नागररकों के सनकटतम हैं।
 कायाणलयों के बीच और जनता के साथ िुत संचार के सलए सडसजटल साधनों (Digital
tools) -इमेल, SMS का ईपयोग प्रोत्सासहत करने के सलए अइटी ऄसधसनयम 2002 में
ईपयुक्त संशोधन क्रकए जाने की अवश्यकता है।
 पारदर्थशता को सुसनसित करने के सलए वेबसाआट सदृश सडसजटल साधनों (Digital
tools) का ईपयोग कर, जैसा क्रक ‘सूचना का ऄसधकार ऄसधसनयम’ में ऄसनवायण है,
सावणजसनक कायाणलयों िारा सूचना का पहले से ही प्रकाशन कर देना चासहए।
 सरकारी कायाणलयों में समशन के रूप में गुणविा का ऄंगीकरण होना चासहए जैसाक्रक
जापान में क्रकया गया है।
 नागररक संतुसष्ट बढ़ाने के सलए प्रक्रक्रयाओं के सुदढ़ृ ीकरण में संभासवत लाभों का प्रदशणन
करना और आस प्रकार सवसभन्न हलकों से पररवतणन के सवरुद्ध होने वाले प्रसतरोधों पर
सवजय पाना।
 क्रकस प्रकार आन साधनों (Digital tools) से पारदर्थशता, दक्षता और जवाबदेही प्राप्त
करने में सहायता समलती है, यह प्रदर्थशत करने वाले प्रदशणन मापदण्ड सवकससत करना।
नागररकों का सशक्तीकरण
 प्रत्येक नागररक को इ-साक्षर बनाकर सडसजटल ऄंतराल को पाटने की अवश्यकता है।
 स्थानीय भाषान: स्थानीय भाषा में सामग्री, क्रकयोस्क के सनमाणण से, सवशेष रूप से ग्रामीण
क्षेरों में, लोगों की व्यापक भागीदारी में सहायता समलेगी।
 जागरूकतान: मीसडया, गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से जनता के बीच जागरूकता
बढ़ाने, और सडसजटल साधनों (Digital tools) के संबंध में प्रदशणनों से आसके ऄसधक से
ऄसधक ईपयोग में सहायता समलेगी।

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 पयाणप्त और प्रभावी सशकायत सनवारण तंर की अवश्यकता है ताक्रक सरकारी कायाणलयों


में जवाबदेही लाने के सलए नागररकों िारा सडसजटल साधनों (Digital tools) का
ईपयोग क्रकया जा सके ।
 व्यसक्तयों और संस्थाओं के बीच नइ प्रक्रक्रयाओं के ऄंगीकरण को प्रोत्साहन।
 सवशेष रूप से सवकलांग व्यसक्तयों के सलए पहँच सुसनसित करना।
सवसभन्न ऄवसंरचनाओं का सवकास करना और कनेसक्टसवटी (संपकण क्षमता) सुसनसित करना
इ-गवनेंस के सलए सडसजटल साधनों (Digital tools) के कायाणन्त्वयन की नींव तो है, लेक्रकन
यह ईस ऄसभयान का ऄंत नहीं है। ईपयुणक्त कदम ईठाने से शासन में पारदर्थशता, दक्षता और
जवाबदेही प्राप्त करने के सलए आन साधनों (Digital tools) के प्रभावी ईपयोग की पहेली हल
की जा सकती है।

8. सवश्व बैंक के ऄनुसार, जहां सडसजटल प्रौद्योसगक्रकयों का पूरे सवश्व में िुत गसत से प्रसार हअ है,
वहीं पररणामी सडसजटल लाभांश पीछे रह गया है। भारत के संदभण में सवश्लेषण कीसजए।
दृसष्टकोणन:
भारत में सडसजटल प्रौद्योसगकी के बढ़ते ईपयोग का ईल्लेख कीसजए।
 आसके ऄपेसक्षत संभासवत लाभों को रेखांक्रकत कीसजए।
 सडसजटल लाभांश के पयाणप्त रूप से प्राप्त न होने के कारणों को स्पष्ट कीसजये।
 सुझाव दीसजये क्रक ऄसधकतम सडसजटल लाभांश क्रकस प्रकार प्राप्त क्रकया जा सकता है?
ईिरन:
सवसभन्न सरकारी प्रयासों एवं सनजी क्षेरकों की प्रौद्योसगकी अधाररत व्यापार पहलों के
पररणामस्वरूप सडसजटल प्रौद्योसगक्रकयाँ भारत के दूरस्थ भागों में पहँच रही हैं। भारतीय
ऄथणव्यवस्था का कोइ भी क्षेरक तथा सावणजसनक क्षेरक सडसजटल क्रांसत से ऄछू ता नहीं रहा है।
सरकार ने भारतनेट, सडसजटल आंसडया, राष्रीय इ-शासन योजना जैसी पहलों के माध्यम से
सडसजटल आकोससस्टम को सुदढ़ृ करने के महत्वपूणण प्रयास क्रकए हैं।
सडसजटल लाभांश
सडसजटल सनवेश का सवाणसधक महत्वपूणण प्रभाव रोजगार और सवकास पर पडता है तथा प्राप्त
होने वाली सेवाएँ आनका महत्वपूणण प्रसतफल हैं। सूचना संबंधी लागतों को कम करके सडसजटल
प्रौद्योसगकी; कं पसनयों, व्यसक्तयों एवं सावणजसनक क्षेरक के सलए अर्थथक एवं सामासजक लेन-
देनों की लागत को ऄत्यसधक कम कर देती हैं। जब लेन -देन की लागतें वास्तव में शून्त्य हो
जाती हैं तो वे नवोन्त्मष
े को बढ़ावा देती हैं। महत्वपूणण कायो एवं सेवाओं के सस्ते, त्वररत एवं
ऄसधक सुसवधाजनक होने से दक्षता में भी वृसद्ध होती है। जब लोगों को वे सुसवधाएँ प्राप्त होती
हैं जो पहले ईनकी पहंच से बाहर थीं तो ऄंततः आस प्रक्रक्रया में समावेशन को बढ़ावा समलता
है।
भारत में सडसजटल प्रौद्योसगक्रकयों के व्यापक स्तर पर ईपयोग से समपूणण राष्ट्र में सुशासन
स्थासपत होगा तथा कारोबार करने में सरलता होगी। आसके साथ ही तकनीक का व्यापक स्तर
पर प्रयोग भारत को ज्ञान अधाररत ऄथणव्यवस्था में रूपांतररत करेगा तथा भारतीयों, सवशेष
रूप से समाज के वंसचत वगण के सशसक्तकरण की प्रक्रक्रया संपन्न होगी।
परन्त्तु सवश्व बैंक ने ऄपनी हाल की ररपोटण में यह त्य ईजागर क्रकया है क्रक सडसजटल लाभांश
तीव्र गसत से सवस्ताररत नहीं हो रहे हैं।
 लगभग 1.063 सबसलयन भारतीयों की सडसजटल माध्यमों तक पहँच नहीं है। यही कारण
है क्रक वे सडसजटल ऄथणव्यवस्था में साथणक भागीदारी नहीं कर सकते।
 हलग, भौगोसलक सस्थसत तथा अयु जैसे घटकों के अधार पर समाज में सडसजटल
सवभाजन सवद्यमान है।
 लगभग 40% जनसंख्या सनधणनता रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही है। सनरक्षरता दर
25-30% से ऄसधक है एवं भारत की लगभग 90% से ऄसधक जनसंख्या में सडसजटल
साक्षरता लगभग शून्त्य है।

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सनिय ही क्रकसी देश के सशसक्षत, भली भांसत जुडे हए तथा समथण नागररक ही सडसजटल क्रांसत
से ऄसधकासधक लाभ प्राप्त कर पाते हैं।
सडसजटल लाभांश का लाभ ईठाने के सलए क्या क्रकया जा सकता है?

 आंटरनेट की सावणभौसमक ईपलब्धता एवं आसे सस्ता बनाना वैसश्वक प्राथसमकता होनी
चासहए।
 सडसजटल ऄवसंरचना को तीव्र गसत से सवस्ताररत करना एवं भारत की जनता के बीच
सडसजटल प्रौद्योसगक्रकयों के प्रसत सवश्वास जगाने हेतु ऄपनी साआबर सुरक्षा को सुसनसित
करना।
 सडसजटल लाभांश का ऄसधकतम लाभ ईठाने के सलए अवश्यक ऄन्त्य कारकों तथा
प्रौद्योसगकी की ऄंतर्कक्रया की बेहतर समझ अवश्यक है।
 एक सडसजटल ऄथणव्यवस्था के सनमाणण हेतु सशक्त अधारसशला की भी अवश्यकता है। आस
अधारसशला में अवश्यक सवसनयमन शासमल होने चासहए सजनके माध्यम से एक ऐसे
वातावरण का सनमाणण क्रकया जाना चासहए जहाँ कं पसनयाँ सडसजटल तकनीक का लाभ
ईठाते हए एक दूसरे से स्वस्थ प्रसतस्पधाण तथा नवाचारों को संपन्न कर सकें ; सवसवध
कौशल शासमल होने चासहए सजनके िारा कमणचारी, ईद्यमी एवं लोक सेवक सडसजटल
सवश्व में ऄवसरों का लाभ ईठा सकें तथा आसके साथ ही ईिरदासयत्वपूणण संस्थाएँ शासमल
होनी चासहए जो आंटरनेट के ईपयोग से नागररकों को सशक्त करने में समथण हों।

8. UPSC मुख्य परीक्षा में सवगत वषों में पूछे गए प्र्


1. यद्यसप ऄनेक लोक सेवा प्रदान करने वाले लोक संगठनों के नागररक घोषणा पर (ससटीजन चाटणर)
बनाये है, पर दी जाने वाली सेवाओं के गुणविा और नागररकों की संतुसष्ट स्तर में ऄनुकूल सुधार
नहीं हअ हैं, सवश्लेषण कीसजए। (2013)
2. “सवसभन्न स्तरों पर सरकारी तंर की प्रभासवता तथा शासकीय तंर में जन-सहभासगता
ऄन्त्योन्त्यासश्रत होती है।” भारत के सन्त्दभण में आनके बीच समबन्त्ध पर चचाण क्रकसजए। (2016)

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लोकतन्त्र में सससिल सेिाओं की भूसमका


सिषय सूची

1. भारत में सससिल सेिाएं (Civil Services in India) _________________________________________________ 35

1.1 भारत में सससिल सेिाओं का सिकास_____________________________________________________________ 35

1.2 िततमान सथथसत (Current Status) ____________________________________________________________ 36

1.3 भारतीय संसिधान में सससिल सेिाओं से सम्बंसधत प्रािधान _____________________________________________ 37

2. लोकतंर में सससिल सेिाओं की भूसमका (Role of Civil Services in a Democracy) _________________________ 38

2.1. सससिल सेिकों की बढ़ती भूसमका ______________________________________________________________ 38

2.2 नौकरशाही एिं लोकतंर (Bureaucracy and democracy) _________________________________________ 39

2.3 कै डर अधाररत सससिल सेिा (Cadre based Civil Service) _________________________________________ 40

3. भारत में सससिल सेिाओं से जुड़े मुद्दे (Issues with Civil Services in India) _______________________________ 42

3.1 नौकरशाही का िेबेररयन मॉडल और सम्बंसधत मुद्दे___________________________________________________ 42


3.2 ऄसखल भारतीय सेिाओं से जुड़े मुद्दे (Issues with All India Services) __________________________________ 44
3.2.1 ऄसखल भारतीय सेिाओं का महत्ि _________________________________________________________ 44
3.2.2 ऄसखल भारतीय सेिाओं से जुड़े मुद्दे _________________________________________________________ 44
3.2.3 सरकाररया अयोग की ससफाररशें___________________________________________________________ 45
4. सससिल सेिाओं में अिश्यक सुधार (Reforms Required in civil services) _______________________________ 46

4.1 लोक सेिाओं की जिाबदेसहता सुसनसित करना _____________________________________________________ 46

4.2. सनष्पादन पर बल देना (Emphasize Performance) ______________________________________________ 46

4.3 िररष्ठ थतर की सनयुसियों के सलए प्रसतयोसगता और सिशेषज्ञतापूणत ज्ञान ____________________________________ 47

4.4 प्रभािी ऄनुशासनात्मक व्यिथथा (Effective Disciplinary Regime) ___________________________________ 48

4.5 कायत संथकृ सत का रूपांतरण (Transforming Work Culture) _________________________________________ 48

4.6 सनयमों और प्रक्रियाओं को सुव्यिसथथत करना ______________________________________________________ 49

4.7 सनजीकरण और बाह्य ऄनुबंध (Privatization and Contracting Out) __________________________________ 49

4.8. सूचना प्रौद्योसगकी (IT) और इ-गिनेंस को ऄपनाना _________________________________________________ 49

4.9. कायतकाल की सथथरता (Stability of Tenure ) ____________________________________________________ 50

4.10 सससिल सेिाओं का सिराजनीसतकरण (Depoliticization of Civil Services) _____________________________ 50

4.11 सससिल सेिाओं में पार्श्त प्रिेश (लेटरल एंट्री) ______________________________________________________ 51

4.12 सितीय प्रशाससनक सुधार अयोग की ऄन्त्य महत्िपूणत ऄनुशंसाएँ _________________________________________ 52

5. Vision IAS मुख्य परीक्षा टेथट सीररज के प्रश्न : _____________________________________________________ 54

6. UPSC मुख्य परीक्षा में सिगत िषों में पूछे गए प्रश्न __________________________________________________ 60

34
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1. भारत में सससिल सेिाएं (Civil Services in India)


1.1 भारत में सससिल से िाओं का सिकास

(Evolution of Civil Services in India)


भारतीय सससिल सेिा प्रणाली सिर्श् की प्राचीनतम प्रशाससनक प्रणासलयों में से एक है। भारत में
सससिल सेिा प्रणाली का ईद्भि मौयत काल में ही हो गया था। कौरटल्य िारा रसचत ऄथतशास्त्र के ऄंतगतत
सससिल सेिकों के चयन और पदोन्नसत के ससद्ांतों, सससिल सेिा में सनयुसि के सलए सनष्ठा संबंधी शतों,
ईनके कायत सनष्पादन के मूल्यांकन की सिसधयों और ईनके िारा ऄनुसरण की जाने िाली अचार संसहता
के ससद्ांतों को िर्णणत क्रकया गया है।
भारत में अधुसनक सससिल सेिाओं की ईत्पसि सिरटश शासन के दौरान हुइ थी।
 गिनतर-जनरल के रूप में िॉरेन हेस्थटग्स के कायतकाल (1773-1785) के दौरान, 1772 में राजथि
संग्रहण प्रणाली (बोडत ऑफ़ रेिेन्त्यू) की थथापना की गइ थी। सजला कलेक्टर का मुख्य कायत राजथि
का संग्रह और प्रबंधन था।
 लॉडत कॉनतिासलस को भारत में सससिल सेिाओं के जनक के रूप में जाना जाता है। कानतिासलस ने
सससिल सेिाओं में सुधार क्रकया और ईसे संगरित थिरूप प्रदान क्रकया। ईन्त्होंने राजथि प्रशासन को
न्त्यासयक प्रशासन से ऄलग कर क्रदया। कलेक्टर को सजले के राजथि प्रशासन का प्रमु ख बनाया गया
था।
 सिरटश संसद की चयन ससमसत के सदथय लॉडत मैकॉले की ररपोटत से पूित, लोक सेिकों को प्रत्यक्ष
रूप से इथट आंसडया कं पनी के सनदेशकों िारा मनोनीत क्रकया जाता था।
 1853 के चाटतर ऄसधसनयम के ऄंतगतत लोक सेिाओं की सनयुसि के सलए खुली प्रसतथपद्ात की
व्यिथथा की गइ। क्रकन्त्तु भारत में लोक सेिा को ऄनुबंसधत (covenant) और गैर-ऄनुबंसधत
(non-covenant) सेिा के रूप में सिभासजत करते हुए भारतीयों को कम प्रशाससनक महत्ि के
गैर-ऄनुबंसधत पदों तक ही सीसमत कर क्रदया गया।
 1854 में, मैकॉले की ररपोटत की ऄनुशंसाओं के अधार पर लोक सेिकों की भती के सलए सससिल
सेिा अयोग की थथापना की गइ। प्रारंभ में परीक्षा के िल लंदन में अयोसजत की जाती थी तथा
आनके सलए न्त्यूनतम और ऄसधकतम अयु िमश: 18 और 23 िषत थी।
 आसके पाठ्यिम में यूरोपीय सिषयों की प्रधानता होने के बािजूद, सत्येंद्रनाथ टैगोर 1864 में लोक
सेिा में सफलता प्राप्त करने िाले प्रथम भारतीय बने।
 एसचन्त्सन कमीशन (1886) ने एक नइ पद्सत के अधार पर सेिाओं के पुनगतिन की ससफाररश की
और सेिाओं को तीन समूहों में सिभासजत क्रकया - आंपीररयल, प्रांतीय और ऄधीनथथ। 'राज्य
ससचि' आंपीररयल सेिाओं के सलए भती और सनयंरक प्रासधकरण था जबक्रक प्रांतीय सेिाओं के सलए
भती और सनयंरक प्रासधकरण ‘राज्य’ थे।
 सिरटश सरकार िारा 1911 में, मुख्यतः भारत में सिरटश प्रशासन को मजबूत करने के ईद्देश्य से
भारतीय लोक सेिा की थथापना की गइ।
 हालांक्रक भारतीयों िारा लम्बे समय से आन सेिाओं में सुधारों की मांग की जा रही थी क्रकन्त्तु प्रथम
सिर्श् युद् और मांटेग्यू चेम्सफोडत सुधारों के बाद ही सससिल सेिाओं की चयन प्रक्रिया में पररिततन
क्रकया गया।
 1922 से, यह परीक्षा भारत में भी अयोसजत की जाने लगी। सिप्रतथम, आलाहाबाद में और
तत्पिात क्रदल्ली में संघीय लोक सेिा अयोग की थथापना की गयी।
 भारत सरकार ऄसधसनयम 1919 ने आंपीररयल सेिाओं को ऄसखल भारतीय सेिाओं और कें द्रीय
सेिाओं में सिभासजत क्रकया गया। कें द्रीय सेिा की ऄसधकाररता कें द्र सरकार के प्रत्यक्ष सनयंरण के
तहत अने िाले सिषयों तक सिथताररत थी।

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 आस ऄसधसनयम के तहत भारत में लोक सेिा अयोग की थथापना के सलए भी प्रािधान क्रकये गए थे।
क्रकन्त्तु आसकी थथापना 1926 में ली अयोग िारा आसके गिन हेतु की गइ ससफाररशों के पिात् ही
हुइ।
 आसके ऄसतररि, भारत सरकार ऄसधसनयम, 1935 में संघ के सलए एक लोक सेिा अयोग और
प्रत्येक प्रांत या प्रांतों के समूह के सलए एक प्रांतीय लोक सेिा अयोग के गिन का प्रािधान क्रकया
गया। आस प्रकार आस ऄसधसनयम िारा लोक सेिा अयोग को संघीय लोक सेिा अयोग का थिरूप
प्रदान क्रकया गया।
पुसलस सेिा
 थितंरता से पूित आंपीररयल पुसलस की सनयुसि प्रसतयोगी परीक्षा के माध्यम से राज्य ससचि िारा
की जाती थी।
 आंपीररयल पुसलस में भारतीयों के प्रिेश हेतु 1920 के पिात् ही ऄिसर प्रदान क्रकए गए और
अगामी िषत की सेिाओं के सलए परीक्षा आंग्लैंड और भारत दोनों में अयोसजत की गइ थी।
 आस्थलगटन अयोग एिं ली अयोग की ससफाररशों के बािजूद पुसलस सेिाओं के भारतीयकरण
(1931 में कु ल पदों का 20%) की गसत मंद रही।
िन सेिाएँ
 भारत में आंपीररयल िन सिभाग की थथापना 1864 में जबक्रक आंपीररयल िन सेिा का गिन 1867
में क्रकया गया। 1867 से 1885 तक, आंपीररयल िन सेिा में सनयुि ऄसधकाररयों को फ्ांस और
जमतनी में प्रसशसक्षत क्रकया जाता था।
 िषत 1920 में यह सनणतय सलया गया क्रक आंपीररयल िन सेिा के सलए अगामी सनयुसियां आंग्लैंड
और भारत में प्रत्यक्ष भती के रूप में तथा प्रांतीय सेिा से पदोन्नसत के माध्यम से की जाएगी।
26 जनिरी, 1950 में भारतीय संसिधान के प्रभािी होते ही, संसिधान के ऄनुच्छेद 378 के खंड (1) के
अधार पर संघीय (फ़े डरल) लोक सेिा अयोग को संघ लोक सेिा अयोग िारा प्रसतथथासपत कर क्रदया
गया और संघीय लोक सेिा अयोग के ऄध्यक्ष एिं सदथय, संघ लोक सेिा के ऄध्यक्ष एिं सदथय बन
गए।
थितंरता के पिात, सससिल सेिकों से यह ऄपेक्षा की जाने लगी क्रक िह ‘पुसलस राज्य’ नहीं बसल्क एक
कल्याणकारी राज्य से सम्बंसधत भूसमका सनभाएं। भारतीय जनसामान्त्य के कल्याण को भारतीय राज्य
के कें द्रीय कायत के रूप में सनधातररत क्रकया गया। आससलए ईन्त्हें सिसभन्न कल्याणकारी भूसमकाएं प्रदान की
गइ जैसे शरणार्णथयों का पुनिातस और दैसनक जीिन की न्त्यूनतम अिश्यकताओं की पूर्णत की व्यिथथा
करना, बाहरी अिमण से राष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा और अंतररक शांसत के सलए ईिरदायी
पररसथथसतयों का सनमातण अक्रद।
थितंर भारत में सससिल सेिा की प्रकृ सत में 1940 के दशक के ईिराद्त में कल्याण-ईन्त्मुखता, 1960
और 1980 के दशक के मध्य सिकास-ईन्त्मुखता और ऄंततः 1990 के दशक में सुसिधा प्रदाता के रूप में
पररिततन हुअ। आसकी िततमान भूसमकाओं में ऄनेक पक्षों जैसे पयातिरणीय चुनौसतयों, 1996, 2000
और 2004 के अम चुनािों के दौरान सिसभन्न राजनीसतक दलों िारा जारी घोषणापर में प्रसतस्बसबत
“सामूसहक चयन तंर”(कलेसक्टि चॉआस मैकेसनज्म) और लाखों लोगों की लोकतांसरक अिश्यकताओं को
पूरा करने की चुनौती अक्रद को शासमल क्रकया जाता है।

1.2 ितत मान सथथसत (Current Status)

भारत में,संघ और राज्य थतर पर सिसभन्न सससिल सेिाओं को तीन व्यापक समूहों में िगीकृ त क्रकया जा
सकता है- के न्त्द्रीय सससिल सेिाएं, ऄसखल भारतीय सेिाएं और राज्य सससिल सेिाएं।
 के न्त्द्रीय सेिाएं कें द्र सरकार के ऄंतगतत कायत करती हैं और ये सामान्त्यतः संसिधान के ऄंतगतत संघ को
सौंपे गए सिषयों को प्रशाससत करती हैं।
 ऄसखल भारतीय सेिाएं संघ और राज्य सरकारों के सलए ईभयसनष्ठ होती हैं और राज्य सेिाएं
के िल राज्य सरकारों के ऄधीन कायत करती हैं।

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 संघ और राज्य सेिाओं को ईनकी भूसमका एिं ईिरदासयत्ि के अधार पर समूह A, B, C और D


श्रेसणयों में िगीकृ त क्रकया जा सकता है।
 आन सेिाओं को तकनीकी और गैर-तकनीकी सेिाओं में भी िगीकृ त क्रकया जा सकता है।
ऄसखल भारतीय सेिाओं तथा समूह A एिं समूह B की कु छ सेिाओं की चयन प्रक्रिया संघ लोक सेिा
अयोग (UPSC) िारा संचासलत की जाती है। समूह B, समूह C और D की कु छ सेिाओं के सदथयों का
चयन कमतचारी चयन अयोग िारा क्रकया जाता है। राज्य सरकारों का थियं का राज्य लोक सेिा अयोग
होता है। आन अयोगों के कायत एक ऄलग ऄसधसनयम िारा सनयंसरत क्रकए जाते हैं।

1.3 भारतीय सं सिधान में सससिल से िाओं से सम्बं सधत प्रािधान

(Provisions with Respect to Civil Services in the Constitution)


संसिधान का भाग XIV सससिल सेिाओं के प्रािधानों से संबंसधत है।
ऄनुच्छेद 309: संसद और राज्य सिधान-मंडल की शसियां
यह ऄनुच्छेद संसद और राज्य सिधान-मंडल को यह ऄसधकार प्रदान करता है क्रक संघ या क्रकसी राज्य
के कायतकलाप से संबंसधत लोक सेिाओं और पदों के सलए भती एिं सनयुि व्यसियों की सेिा की शतों
का सिसनयमन कर सकें गे।
ऄनुच्छेद 310: प्रसादपयंत पद ऄिधारण का ससद्ांत (डॉसक्ट्रन ऑफ प्लेजर)
आस संसिधान िारा ऄसभव्यि रूप से यथा ईपबंसधत के ससिाय, प्रत्येक व्यसि जो रक्षा का या संघ की
सससिल सेिा का या ऄसखल भारतीय सेिा का सदथय है ऄथिा रक्षा से सम्बंसधत कोइ पद या संघ के
ऄधीन कोइ पद धारण करता है, तो िह राष्ट्रपसत के प्रसादपयंत पद धारण करेगा और िह प्रत्येक व्यसि
जो क्रकसी राज्य की सससिल सेिा का सदथय है या राज्य के ऄधीन कोइ सससिल पद धारण करता है िह
(ईस राज्य के राज्यपाल) के प्रसादपयंत पद धारण करेगा।
ऄनुच्छेद 311: संघ या राज्य के ऄधीन सससिल सेिा में सनयोसजत व्यसियों का पदच्युत क्रकया जाना,
पद से हटाया जाना या रैंक को ऄिनत क्रकया जाना
 ऄधीनथथ प्रासधकारी िारा पदच्युत नहीं क्रकया जाना: क्रकसी भी व्यसि को जो संघ की सससिल
सेिा का ऄथिा राज्य की सससिल सेिा का या ऄसखल भारतीय सेिा का सदथय है ऄथिा संघ या
राज्य के ऄधीन कोइ सससिल पद धारण करता है, ईसकी सनयुसि करने िाले प्रासधकारी के
ऄधीनथथ क्रकसी प्रासधकारी िारा पदच्युत नहीं क्रकया जाएगा या पद से नहीं हटाया जाएगा।
 अरोपों की सूचना एिं जाँच: यथापूिोि क्रकसी व्यसि को, ऐसी जांच के पिात् ही, सजसमें ईसे
ऄपने सिरुद् अरोपों की सूचना दे दी गइ है और ईन अरोपों के सम्बन्त्ध में सुनिाइ का युसियुि
ऄिसर दे क्रदया गया है, पदच्युत क्रकया जाएगा या पद से हटाया जाएगा या पंसि में ऄिनत क्रकया
जाएगा, ऄन्त्यथा नहीं।
ऄनुच्छेद 312: नइ ऄसखल भारतीय सेिा का सृजन
यक्रद राज्यसभा ने ईपसथथत और मत देने िाले सदथयों में से कम से कम दो-सतहाइ सदथयों िारा
समर्णथत संकल्प िारा यह घोसषत क्रकया है क्रक राष्ट्रीय सहत में ऐसा करना अिश्यक या समीचीन है तो
संसद सिसध िारा, संघ और राज्यों के सलए ससम्मसलत एक या ऄसधक ऄसखल भारतीय सेिाओं के
(सजनके ऄंतगतत ऄसखल भारतीय न्त्यासयक सेिा है) सृजन के सलए ईपबंध कर सके गी और आस ऄध्याय के
ऄन्त्य ईपबंधों के ऄधीन रहते हुए, क्रकसी ऐसी सेिा के सलए भती का और सनयुि व्यसियों की सेिा की
शतों का सिसनयमन कर सके गी।
ऄनुच्छेद 315 से 322: लोक सेिा अयोगों से सम्बंसधत प्रािधान।
ऄनुच्छेद 323 A: प्रशाससनक ऄसधकरण
संसद सिसध िारा, संघ या क्रकसी राज्य के ऄथिा भारत के राज्यक्षेर के भीतर या भारत सरकार के
सनयंरण के ऄधीन क्रकसी थथानीय या ऄन्त्य प्रासधकारी के ऄथिा सरकार के थिासमत्ि या सनयंरण के
ऄधीन क्रकसी सनगम के कायतकलाप से सम्बंसधत लोक सेिाओं और पदों के सलए भती तथा सनयुि
व्यसियों की सेिा की शतों के सम्बन्त्ध में सििादों और पररिादों के प्रशाससनक ऄसधकरणों िारा
न्त्यायसनणतयन या सिचारण के सलए ईपबंध कर सके गी।

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2. लोकतंर में सससिल सेिाओं की भूसमका


(Role of Civil Services in a Democracy)

2.1. सससिल से ि कों की बढ़ती भू समका

(Substantive Role of Civil Servants)

सससिल सेिाएं सनम्नसलसखत महत्िपूणत कायों का सनष्पादन करती हैं:


 सरकार को अधार प्रदान करना: क्रकसी भी सरकार का प्रशाससनक मशीनरी के सबना ऄसथतत्ि नहीं
हो सकता है। सभी राष्ट्रों में ईनकी सरकारी प्रणाली होने के बािजूद, नीसतयों को लागू करने के
सलए क्रकसी न क्रकसी प्रकार की प्रशाससनक मशीनरी की अिश्यकता होती ही है।
 कानून और नीसतयों को लागू करने के सलए एक साधन के रूप में: सससिल सेिाएं सरकार के
कानूनों और नीसतयों को लागू करने के सलए ईिरदायी हैं। कानूनों का पालन करके , यह समाज में
लोगों के व्यिहार को सनयंसरत करती हैं। साितजसनक नीसतयों और कायतिमों को लागू करके , यह
लसक्षत लाभार्णथयों को िथतुएं और सेिाएं प्रदान करती हैं। एक दक्ष सससिल सेिा ऄपसशटों ों से
बचाि, रुरटयों को सही करना तथा कानूनों और साितजसनक नीसतयों को लागू करते समय ऄक्षमता
या गैर-सजम्मेदारी के पररणामों को सीसमत कर सकती है।
 नीसत सनमातण में सहभासगता: सससिल सेिक मंसरयों को सलाह देकर और अिश्यक सूचना प्रदान
करके नीसत सनमातण प्रक्रिया में भागीदारी करते हैं। साितजसनक नौकरशाही के प्रशाससनक कायों में
नीसतयों और योजनाओं का सनमातण, कायतिमों का सनष्पादन एिं सनगरानी करना, कानूनों, सनयमों
और सिसनयमों को सनधातररत करना शासमल होता है, जो जीिन के लगभग सभी क्षेरों में मानिीय
कायों को प्रभासित करते हैं।
 सनरंतरता प्रदान करती है: जब चुनािों के कारण सरकारें बदलती हैं तब सससिल सेिाएं प्रशासन
का संचालन करती हैं। रैम्ज़ म्योर ने रटप्पणी की है क्रक सरकारें बदल सकती हैं और मंसरयों की
संख्या ऄसधक या कम हो सकती है परन्त्तु क्रकसी देश का प्रशासन सदैि संचासलत होता रहता है।
यह कहने की अिश्यकता नहीं है क्रक सससिल सेिाएं प्रशासन की रीढ़ होती हैं।
 सामासजक-अर्णथक सिकास में भूसमका: सिकासशील राष्ट्र सामासजक और अर्णथक सिकास के
अधुसनकीकरण को प्राप्त करने और कल्याण ल्यों को समझने के सलए संघषत कर रहे हैं। आन
ईद्देश्यों ने साितजसनक प्रशासन के सलए चुनौतीपूणत कायों को प्रथतुत क्रकया है जैसे -अर्णथक
योजनाओं का सनमातण तथा अर्णथक सिकास एिं सामासजक पररिततन के सलए ईनका सफल
कायातन्त्ियन। सनम्नसलसखत प्रकार से सामासजक-अर्णथक सिकास में सससिल सेिक महत्िपूणत भूसमका
सनभाते हैं:
o कृ सष को सिकससत करने के सलए सससिल सेिक भूसम, जल संसाधन, िनों, अद्रतभूसम और बंजर
भूसम का सिकास जैसे सामुदासयक संसाधनों का ईसचत प्रबंधन करते हैं।
o औद्योसगक सिकास की सुसिधा के सलए, सड़कों, सिद्युत, संचार, बाजार कें द्र अक्रद जैसी
अधारभूत सुसिधाएं प्रदान क्रकया जाना अिश्यक होता है। आन देशों में सससिल सेिाएं
सरकारी थिासमत्ि िाले व्यिसाय, औद्योसगक ईद्यमों और साितजसनक ईपयोसगता सेिाओं का
प्रबंधन करती हैं।
o कृ सष, ईद्योग, सशक्षा, थिाथ्य, संचार आत्याक्रद के सलए ईसचत सिकास ल्यों और
प्राथसमकताओं को थथासपत करना।
o देश के सिकास और अधुसनकीकरण के सलए रणनीसतयों और कायतिमों का सनमातण और
कायातन्त्ियन करना।
o प्राकृ सतक, मानि और सििीय संसाधनों का सिकास और सिकासात्मक ईद्देश्यों की पूर्णत के
सलए ईनका ईसचत ईपयोग सुसनसित करना।
o सिकासात्मक कायों को पूरा करने के सलए अिश्यक प्रबंधकीय कौशल और तकनीकी क्षमता
को सुरसक्षत करने के सलए मानिीय संसाधनों का सिकास करना।

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o नए प्रशाससनक संगिनों का सृजन और सिकासात्मक ईद्देश्यों के सलए मौजूदा लोगों की क्षमता


में सुधार।
o समाज में होने िाले सामासजक-अर्णथक पररिततनों के प्रसत ईसचत दृसटों कोण सिकससत कर
सिकास की प्रक्रिया में ईन्त्हें ससम्मसलत करके सिकास गसतसिसधयों के सलए लोगों के समथतन को
सुरसक्षत करना।
o थिच्छ एिं हररत पयातिरण तथा मानि ऄसधकारों की सुरक्षा को बढ़ािा देना।
 राष्ट्रिाद की भािना सिकससत करना: सांप्रदासयकता एिं नृजातीय संघषत, जासत सििाद तथा
क्षेरीय प्रसतिंसिता जैसे कइ सिभाजनकारी कारक प्रायः राष्ट्रीय एकता के सलए खतरा ईत्पन्न करते
हैं। आन देशों के लोगों के बीच राष्ट्रिाद की भािना सिकससत करने के सलए, सससिल सेिकों को
लोगों के बीच ईप-राष्ट्रीय और ईप-सांथकृ सतक मतभेदों का समाधान करना होगा।
 लोकतंर को सुगम बनाना: सससिल सेिक नीसत सनमातण के कायों में और नीसतयों को लागू करने में
ऄपने राजनीसतक प्रमुखों (मंसरयों) की सहायता करके लोकतांसरक अदशों को बनाए रखने में
महत्िपूणत भूसमका सनभाते हैं। चूंक्रक सिकासशील देश लोकतांसरक संथथानों के सलए नए हैं ऄतः यह
के िल थथायी और दक्ष सससिल सेिा ही है जो लोकतंर को सुदढ़ृ ता प्रदान कर सकती है।
 अपदाएं और संकट: भूकंप, बाढ़, सूखा और चििात जैसी प्राकृ सतक अपदाओं ने सससिल सेिाओं
के महत्ि को भी बढ़ा क्रदया है। ऐसी प्राकृ सतक अपदाओं की सथथसत में, साितजसनक ऄसधकाररयों को
प्रभासित लोगों के जीिन और संपसि के नुकसान को रोकने के सलए त्िररत रूप से कायत करना और
बचाि ऄसभयान चलाना चासहए।
 प्रशाससनक न्त्याय सनणतय: यह सससिल सेिा िारा सनष्पाक्रदत एक ऄद्त-न्त्यासयक कायत है। सससिल
सेिक, नागररकों और राज्य के बीच सििादों का समाधान करते हैं। आस ईद्देश्य के सलए, प्रशाससनक
न्त्यायासधकरण में सससिल सेिक न्त्यायाधीशों के रूप में सनयुि क्रकए जाते हैं। ईदाहरण के सलए:
अयकर ऄपीलीय न्त्यायासधकरण।
 ईपयुति के ऄसतररि, सससिल सेिा िारा क्रकए गए कु छ ऄन्त्य कायत सनम्नसलसखत हैं:
o संसद और आसकी ससमसतयों के प्रसत ऄपने ईिरदासयत्िों को पूरा करने में मंसरयों की सहायता
करना।
o राज्य के सििीय संचालन को संभालना।
o O और M (ऄथातत संगिन और सिसधयों) के माध्यम से प्रशासन को सुधारना।

2.2 नौकरशाही एिं लोकतं र (Bureaucracy and democracy )

नौकरशाही सरकार की कायतकारी शाखा है। लोकतंर एक ऐसी प्रक्रिया है सजसमें सरकार का सनिातचन
लोगों िारा होता है, जबक्रक नौकरशाही एक ऐसी व्यिथथा है सजसमे सनिातसचत सरकार िारा राज्य के
ऄसधकाररयों को राज्य के संचालन का कायत सौंपा जाता है। आनका चयन सरकार िारा मेररट अधाररत
प्रक्रिया के माध्यम से क्रकया जाता है।
थितंरता के पिात् नौकरशाही का सिकास

 राष्ट्र सनमातण: थितंरता के पिात, नौकरशाही ने ऄपने राजनीसतक थिासमयों के एजेंडे को


कायातसन्त्ित करने के सलए हेतु व्यिथथा का सनमातण क्रकया। आसके ऄंतगतत लोकतांसरक समाजिाद,
धमतसनरपेक्षता और गुटसनरपेक्षता की प्रसतबद्ता ससम्मसलत थी।
 नौकरशाही का लोकतंरीकरण: 1967 के लोकसभा चुनािों के पिात् सपछड़े िगों के बढ़ते
प्रसतसनसधत्ि के साथ सससिल सेिाओं को प्रोत्साहन समला। मंडल अयोग की ऄनुशंसाओं के बाद
सपछड़े िगों के प्रसतसनसधत्ि में और ऄसधक िृसद् हुइ। सिशेषज्ञों का तकत है क्रक आससे नौकरशाही का
लोकतांरीकरण हुअ है।
 प्रसतबद् नौकरशाही: आस ऄिधारणा का ईद्भि 1970 और 80 के दशक में हुअ। आसका मूलभूत
सिचार यह था क्रक एक नौकरशाह को सिारूढ़ राजनीसतक दल की नीसतयों एिं कायतिमों के प्रसत
पूणत रूप से प्रसतबद् होना चासहए। आसके ऄसतररि ईन्त्हें सिारूढ़ व्यसिगत राजनेताओं के प्रसत भी
पूणत प्रसतबद् रहना चासहए। साथ ही एक नौकरशाह को क्रकसी ऄन्त्य सिचार से सनदेसशत नहीं क्रकया
जाना चासहए।

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 लाआसेंस परसमट राज: सिकास के समाजिादी मॉडल के कारण, क्रकसी भी बड़े ऄथिा छोटे प्रकार
के व्यिसाय को प्रारंभ करने हेतु लाआसेंस की अिश्यकता पड़ती थी। ऄतः सििेकाधीन शसि
नौकरशाही के पास होती है जो संबंसधत व्यिसायी िारा क्रदए गए ऄनुग्रहों के बदले में ही ईसे
लाआसेंस प्रदान करती है।
 िैर्श्ीकरण: आसे भारतीय नौकरशाही के सलए सिातसधक पररिततनकारी युग के रूप में माना जाता
है। ऄथतव्यिथथा के ईदारीकरण से तात्पयत है राष्ट्रीय ऄथतव्यिथथा को सरकारी सनयंरण से मुि
करना और आसका संचालन बाजार की शसियों के ऄनुसार करना।
मुद्दे
 मंरी ऄथिा नौकरशाह: अलोचकों का यह तकत है क्रक कायतकारी पदों पर सिधायकों की सनयुसि
करना एक दोषपूणत एिं जोसखम से भरा हुअ है। सनिातसचत प्रसतसनसधयों को ऄपना ध्यान प्रशासक
बनने के थथान पर सामासजक मुद्दों का समाधान करने तथा कानून सनमातण पर के सन्त्द्रत करना
चासहए। ईनके िारा सिशेषज्ञता एिं प्रौद्योसगकी के युग में गुणििायुि सेिाएं प्रदान करने की
अशा करना सितथा ऄसंगत है। जब क्रकसी भी पेशेिर राजनेता को पेशेिर प्रशासक का प्रभार सौंपा
जाता है, तो यह दोनों के ईद्देश्यों को सनष्फल बना देता है।
 नौकरशाही का राजनीसतकरण: यह गैर-पक्षपातपूणत एिं कु शल प्रशासन प्रदान करने के नौकरशाहों
के मूलभूत ईद्देश्य को सनष्फल बना देता है। जैसे ही नइ सरकार सिा में अती है, प्रशासकों िारा
मंसरयों को सिभागों के बेहतर पहलुओं एिं बारीक्रकयों के बारे में प्रसशक्षण देकर ईन्त्हें आनसे ऄिगत
कराया जाता है। आसके ऄसतररि राजनेताओं को प्रदान की गइ शसि संरक्षण को ईत्पन्न करती है,
न क्रक प्रदशतन को तथा क्रकसी भी ऄन्त्य सनरीक्षण और जांच के ऄभाि में , िे राजनेता भ्रटों ाचार में
सलप्त हो जाते हैं।
 राजनेता, नौकरशाह एिं व्यिसायी का गिजोड़ : आस गिजोड़ का ईद्भि लाआसेंस कोटा राज से
हुअ है। लाआसेंस कोटा राज में राजनेताओं एिं नौकरशाहों के पास देश के प्राकृ सतक संसाधनों के
अिंटन की सििेकाधीन शसि होती है। आसके फलथिरूप यह आस प्रकार की ऄनैसतक सांि-गांि एिं
िोनी कै सपटसलज्म का मुख्य कारण बन गया है। आसने देश की लोकतांसरक साख को भी कमजोर
क्रकया है।
 नौकरशाही का रिैया : ईदारीकरण के पररणामथिरूप ऄथतव्यिथथा के संरचनात्मक समायोजन के
बाद, नौकरशाही के रिैये में ऄिधारणात्मक पररिततन हुए हैं। शुरुअती चरण में , िे खुले तौर पर
आन सुधारों के सिरोधी थे। िे एक सुसिधा प्रदाता बनने के बजाय सिकास में ही बाधक ससद् हुए।
हालांक्रक, यह प्रिृसि सपछले कु छ िषों में पररिर्णतत हुइ है।

2.3 कै डर अधाररत सससिल से िा (Cadre based Civil Service)

कै डर अधाररत सससिल सेिा क्या होती है?


 कै डर का तात्पयत ऐसे प्रसशसक्षत लोगों के एक छोटे समूह से है जो सैन्त्य , राजनीसतक या
व्यािसासयक संगिन की मूल आकाइ का सनमातण करते हैं।
 ऄसखल भारतीय सेिाओं में एक बार चयसनत हो जाने के पिात् ईम्मीदिारों को ईनकी िरीयता,
योग्यता तथा पदों की ईपलब्धता के अधार पर कै डर प्रदान क्रकया जाता है।
 भारत में AGMUT एिं DANICS (जो क्रक कइ राज्यों को समलाकर संयुि राज्य कै डर हैं) जैसे
कु छ ऄपिादों को छोड़कर प्रत्येक राज्य एक कै डर है।
सससिल सेिा में कै डर व्यिथथा की अिश्यकता
राज्य सरकारों में प्रमुख प्रशाससनक तथा पुसलस पदों को 'कै डर पद' के रूप में नासमत क्रकया गया है जो
दशातता है क्रक ये पद के िल अइएएस/अइपीएस ऄसधकाररयों िारा ही धारण क्रकये जा सकते हैं। यह
गुणििा, सनष्पक्षता, ऄखंडता एिं ऄसखल भारतीय दृसटों कोण को बढ़ािा देने हेतु ऄसखल भारतीय
सेिाओं की सुसिचाररत सिशेषता है।
कै डर अधाररत सससिल सेिाओं से संबसं धत मुद्दे
भारत में सससिल सेिाओं को संिैधासनक रूप से आस प्रकार गरित क्रकया गया है क्रक आसमें भारतीय
चररर को बनाए रखने के सलए 'बाहरी लोगों’ (ऄन्त्य राज्य के सनिासी) को क्रकसी दूसरे राज्य कै डर में

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सनयुि क्रकया जाता है। राज्य कै डर में ऄन्त्य राज्य के सनिासी शासन व्यिथथा में ईच्च थतर की सनष्पक्षता
एिं तटथथता को सुसनसित करेंगे। आसके ऄभाि में शासन पर व्यापक थतर पर क्षेरीय तथा थथानीय
दबाि पड़ने की संभािना थी सजसे कै डर व्यिथथा ने समाप्त कर क्रदया। परंतु आसके बािजूद 1980 तथा
90 के दशक में पक्षपात, थथानीय ऄिधारणाएँ तथा भाइ-भतीजािाद की प्रिृसत भी आस व्यिथथा में
समासहत हो गइ।
 कै डरों की सथथरता:यह सससिल सेिकों के कायत में ऄक्षमता और ऄप्रभासिता के रूप में पररणत
होता है। कै डरों की सथथरता ऄसखल भारतीय चररर में कमी लाती है तथा थथानीय मुद्दों के प्रसत
ऄसधकाररयों की स्चताओं को भी सीसमत करती है।
 प्रांतीयकरण: मेहता एिं कपूर िारा सलखी गइ पुथतक 'पसब्लक आंसथटट्यूशंस आन आंसडया-
परफॉरमेंस एंड सडज़ाआन’ के ऄनुसार ऐसा प्रतीत होता है क्रक अइएएस ऄसधकारी ऄब नाममार के
'ऄसखल भारतीय' थिरुप के ऄसधकारी रह गए हैं। िाथतसिक तौर पर राज्य एिं कें द्र सरकार के
मध्य संपकत थथासपत करने िाले ऄसधकाररयों के ऄनुपात में सगरािट अइ है।
 ईत्कृ टों प्रथाओं को ऄपनाना: सससिल सेिाओं का प्रांतीयकरण सससिल सेिाओं की ऄन्त्य कै डरों की
ऄच्छी प्रथाओं को ऄपनाने तथा प्रसाररत करने की क्षमता को प्रभासित कर सकता है।
 थथानीय राजनेताओं के साथ गिजोड़: पसंदीदा एिं ईच्च पद पर तैनाती की आच्छा रखने िाले
ऄसधकारी थथानीय राजनेताओं तथा ऄसधकाररयों के साथ गिजोड़ करते हैं।
 सिसशटों सथथसतयां: सितीय प्रशाससनक सुधार अयोग (2nd ARC) के ऄनुसार, कै डर अधाररत
सससिल सेिाओं के कारण पार्श्त प्रिेश (लेटरल एंट्री) के माध्यम से महत्िपूणत पदों पर सिसशटों ज्ञान
िाले व्यसियों की भती सीसमत हो गइ है।
 िृहत सभन्नता: राज्य की कु ल जनसंख्या के संबंध में अइएएस कै डरों के अकार में िृहत सभन्नताएं
सिद्यमान हैं। आसके पररणामथिरूप, के िल जनसंख्या के अधार पर ईिर प्रदेश में अइएएस कै डर
ऄपेक्षा से 40% छोटा है, जबक्रक ससक्रिम में यह ऄपेक्षा से 15% बड़ा है।
 कें द्रीय प्रसतसनयुसि: मेहता एिं कपूर िारा सलखी गइ पुथतक 'पसब्लक आंसथटट्यूशंस आन आंसडया-
परफॉरमेंस एंड सडज़ाआन’ के ऄनुसार भारत के कइ छोटे राज्य बड़े राज्यों की तुलना में कें द्रीय
मंरालयों तथा सिभागों में काफी बेहतर प्रसतसनसधत्ि करते हैं।
 'डी-कै डर(de-cadre)' पदों के प्रसत ऄसनच्छा: सामासजक एिं अर्णथक पररसथथसतयों में पररिततन के
कारण कु छ पदों के महत्ि में कमी अइ है। परंतु ईन पदों को कै डर से हटाने के ईदाहरण दुलतभ हैं।
ईदाहरणाथत, भूसम ऄसधग्रहण / भूसम राजथि सनपटान कायों के पूणत होने के दशकों बाद ऄभी भी
कइ राज्यों में भू-व्यिथथा ऄसधकारी के पद को कै डर में यथाित रखा गया है।
अगे की राह
 नइ कै डर नीसत (2017) का सनमातण ईपयुति मुद्दों के समाधान हेतु क्रकया गया है। नइ नीसत का
ईद्देश्य देश की शीषत नौकरशाही में 'राष्ट्रीय एकीकरण' को सुसनसित करना है।
 नइ नीसत यह सुसनसित करने का प्रयास करेगी क्रक सबहार के ऄसधकाररयों को दसक्षणी एिं ईिर-
पूिी राज्यों में कायत सौंपा जाए, जो सामान्त्यतः ईनके पसंदीदा कै डर नहीं होते हैं।
 ऄसखल भारतीय सेिा के ऄसधकाररयों से यह ऄपेसक्षत है क्रक ईन्त्हें सिसभन्न ऄनुभि प्राप्त हों। ऐसा िे
सिसभन्न राज्यों में कायत करके ऄर्णजत कर सकते हैं। यह ईन्त्हें सिोिम प्रथाओं का भी ज्ञान प्रदान
करेगा।

नइ कै डर नीसत (2017)
नइ नीसत का ईद्देश्य “राष्ट्रीय एकीकरण” है, सजसके ऄंतगतत सभी राज्यों एिं संयुि कै डरों को 5 जोन में
सिभासजत क्रकया गया हैं:
 जोन I- AGMUT, जम्मू एिं कश्मीर, सहमाचल प्रदेश, ईिराखंड, पंजाब, राजथथान एिं
हररयाणा
 जोन II- ईिर प्रदेश, सबहार, झारखण्ड तथा ओसडशा

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 जोन III- गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छिीसगढ़


 जोन IV- पसिम बंगाल, ससक्रिम, ऄसम-मेघालय, मसणपुर, सरपुरा और नागालैंड
 जोन V- तेलंगाना, अंध्र प्रदेश, कनातटक, तसमलनाडु और के रल
ऄभ्यर्णथयों को िरीयता के ऄिरोही िम में, सिसभन्न जोनों में से कै डर सिकल्प देना पड़ता है। ऄभ्यथी
ऄपनी पहली पसंद के रूप में के िल एक जोन में से एक राज्य/कै डर चुन सकते हैं। ईनकी ऄगली पसंद
एक सभन्न जोन से होनी चासहए। सभी जोनों में से पहली पसंद चुनने के बाद ही पुनः पहले जोन से
दूसरे राज्य/कै डर का चयन क्रकया जा सकता है। आस नीसत के बनने से पूित ईम्मीदिार ऄपने घरेलू राज्य
को िरीयता देता था, जबक्रक पड़ोसी राज्यों को ऄपनी ऄगली िरीयताओं के रूप में चुनता था।

 पार्श्त प्रिेश (लैटरल एंट्री)- हाल ही में, सरकार िारा सिसशटों पदों के सलए सिशेषज्ञों की भती की
घोषणा एक थिागतयोग्य कदम है। आसके साथ ही यह सितीय प्रशाससनक सुधार अयोग (2nd
ARC) िारा दी गइ ऄनुशंसा के भी ऄनुरूप है।
 कै डरों के अकार में कटौती: ऄप्रासंसगक पदों के प्रसार के कारण ही, ऄसधकाररयों को सनरुत्सासहत
क्रकया जाता है तथा थथानांतरण का प्रयोग ईन्त्हें दंड के ईद्देश्य से क्रकया जाता है। ऄतः अिसधक
समीक्षा करने के पिात् ही कै डर के अकार में कटौती की जानी चासहए।

मइ 2018 में, प्रधानमंरी कायातलय (PMO) की

सलाह पर कार्णमक एिं प्रसशक्षण सिभाग (DoPT) ने

फाईं डेशन कोसत तथा सससिल सेिा परीक्षा में प्रदशतन

के संयुि थकोर के अधार पर सेिा और कै डर

अिंरटत करने के सनयमों में पररिततन करने का


प्रथताि क्रदया है। यह प्रथताि ऄभी सिसभन्न सिभागों

में सिचार-सिमशत के सलए भेजा गया है। िततमान में

कै डर पूणत रूप से सससिल सेिा परीक्षा में ईम्मीदिार

की िरीयता तथा रैंक के अधार पर अिंरटत क्रकया


जाता है।

3. भारत में सससिल सेिाओं से जुड़े मुद्दे


(Issues with Civil Services in India)

3.1 नौकरशाही का िे बे ररयन मॉडल और सम्बं सधत मु द्दे

(Weberian Model of Bureaucracy and Related Issues)


भारत को िेबेररयन मॉडल पर अधाररत नौकरशाही ऄंग्रेजों से सिरासत में समली। िेबेररयन मॉडल पर
अधाररत नौकरशाही एक ऐसे कररयर का गिन करती है सजसमें िररष्ठता के अधार पर पदोन्नसत की
एक प्रणाली, पेंशन के ऄसधकार के साथ ऄसधकाररयों के सलए सनसित पाररश्रसमक, पदानुिम के रूप में
संगिन एिं किोर सनयमों का ऄनुपालन आत्याक्रद जैसी सिशेषताएं शासमल होती हैं। िेबर ने नौकरशाही
की सनम्नसलसखत सिशेषताओं की पहचान की:
 ऄसधकाररयों को कायातलयों में थपटों रूप से पररभासषत पदानुिम में संगरित क्रकया जाता है।

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 ईम्मीदिारों को तकनीकी योग्यता के अधार पर चुना जाता है।


 ईन्त्हें सनसित िेतन प्रदान क्रकया जाता है।
 यह एक कररयर का गिन करता है। आसमें िररष्ठता ऄथिा ईपलसब्ध या दोनों के ऄनुसार 'पदोन्नसत'
की एक प्रणाली सिद्यमान है।
 असधकाररक कायत पूरी तरह से प्रशासन के साधनों के थिासमत्ि से और ईनके पद का ईपयोग क्रकये
सबना ऄलग क्रकये गए हैं।
 प्रत्येक कायातलय में कायत करने की क्षमता का एक पररभासषत क्षेर होता है।
 ऄसधकारी व्यसिगत रूप से थितंर होते हैं और के िल ऄपने व्यसिगत असधकाररक दासयत्िों के
संबंध में प्रासधकरण के ऄधीन होते हैं।
ऄनुभि से थपटों होता है क्रक परम्परागत प्रकृ सत की नौकरशाही व्यिथथाएं लोगों की अिश्यकताओं के
प्रसत ईिरदायी नहीं हैं क्योंक्रक िे लाल फीताशाही और औपचाररकतािाद, भाइ-भतीजािाद जैसे
सििादों में सघरी रहती हैं तथा रूक्रढ़िाद एिं यथा-सथथसत बनाये रखने के पक्ष में होती हैं।
अज का पररिेश जहां कं प्यूटर, आलेक्ट्रॉसनक्स और एसियासनक्स के क्षेर में सिकास ने समय और थथान
की दूरी को समाप्त कर क्रदया है, ऐसे संथथानों की मांग करता है जो ऄत्यंत लचीले एिं बदलते पररिेश
के ऄनुरूप थियं को ऄनुकूसलत करने में सक्षम हों ताक्रक ये संथथान लोगों को ईच्च गुणििा िाली सेिाएं
प्रदान करने और जरटल िैर्श्ीकृ त सिर्श् में व्याप्त चुनौसतयों का सामना में सक्षम हो सकें ।
यूनाआटेड ककगडम (UK), न्त्यूजीलैंड, ऑथट्रेसलया, कनाडा, स्सगापुर जैसे राष्ट्रमंडल देशों ने नौकरशाही के
िेबेररयन मॉडल को ऄथिीकार कर क्रदया है और साितजसनक सेिा दक्षता में नाटकीय िृसद् के साथ, न्त्यू
पसब्लक मैनज
े मेंट (NPM) या नि लोक प्रबंधन के नाम से सिख्यात एक नये दशतन को ऄपना सलया है।
NPM दशतन के मुख्य घटकों में प्रासधकार का हथतांतरण, प्रदशतन ऄनुबंध और ग्राहक को कें द्र में रखना
आत्याक्रद ससम्मसलत हैं।
भारतीय सससिल सेिा प्रणाली रैंक-अधाररत है और पद-अधाररत सससिल सेिाओं के ससद्ांतों का
पालन नहीं करती है। आस कारण भारत में एक सिशेषीकृ त सससिल सेिा प्रणाली की ऄनुपसथथसत रही है।
भारतीय सससिल सेिा प्रणाली के मूल दशतन ने आस पररघटना में ऄत्यसधक योगदान क्रदया है, क्योंक्रक
आसमें सिशेषज्ञों के बजाय सामान्त्यज्ञों की भती पर ऄत्यसधक बल क्रदया जाता है। भारतीय सससिल सेिा
के पदासीन ऄसधकाररयों की कायातिसध (क्रकसी एक थथान पर क्रकसी सनसित पद के सन्त्दभत में) ऄत्यल्प
(सामान्त्यतः एक िषत से भी कम) होती है। गैर-संघीय चररर को लेकर ऄसखल भारतीय सेिाओं की
अलोचना की जाती है।
आस प्रकार भारत में सससिल सेिाओं से जुड़े मुख्य मुद्दों को संक्षेप में ईल्लेसखत क्रकया जा सकता है:
 ऄसखल भारतीय सेिाओं की समथयाएं
 जिाबदेसहता की ऄनुपसथथसत
 ऄप्रचसलत कानून, सनयम और प्रक्रियाएं
 ऄत्यसधक कें द्रीकरण
 सनम्नथतरीय कायत संथकृ सत और दक्षता का ऄभाि
 सेिाओं का राजनीसतकरण और राजनीसतक हथतक्षेप
 प्रासधकरण के दुरुपयोग की नकारात्मक शसि और भ्रटों ाचार
 भूमंडलीकृ त सिर्श् में सामान्त्यज्ञ सससिल सेिक
ईपयुति सभी मुद्दों ने सनम्नसलसखत तरीकों से सससिल सेिाओं एिं लोकतंर के मध्य संघषत ईत्पन्न क्रकया
है:
 किोर संगिन संरचनाएं एिं बोसझल प्रक्रियाएं।
 ऄसभजात्यिादी, सिािादी, रूक्रढ़िादी दृसटों कोण।
 नौकरशाही में सिद्यमान ऄसधकारी ऄलग-ऄलग खण्डों में ऄपनी भूसमकाओं का सनितहन करते हैं
(ऄथातत कोइ भी सनणतय कइ चरणों से गुज़रता है) सजन पर ईनका कोइ सनयंरण नहीं होता है।
पररणामतः, ईनके पास व्यसिगत सनणतय लेने का बहुत कम या कोइ ऄिसर नहीं होता है।
 एक नौकरशाह को सामंजथय और सनयसमतता के ससद्ांतों का पालन करने की अिश्यकता है ,
सजससे बदलती पररसथथसतयों को ऄनुकूसलत करने हेतु थिचासलत रूप से ईसकी क्षमता सीसमत हो
जाती है।

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 सामान्त्य सनयम जो समग्र दक्षता हेतु सलए जा सकते हैं िे व्यसिगत मामलों में ऄक्षमता और
ऄन्त्याय ईत्पन्न करते हैं।
 ऄसनसितता और पररिततन से सनपटने में सससिल सेिाओं की करिनाइ आसकी दक्षता पर एक
महत्िपूणत सीमा अरोसपत करती है।

3.2 ऄसखल भारतीय से िाओं से जु ड़े मु द्दे (Issues with All India Services)

3.2.1 ऄसखल भारतीय से िाओं का महत्ि

(Significance of All India Services)


संसद िारा ऄसखल भारतीय सेिाओं (AIS) में सनयुि व्यसियों की भती और सेिा शतों के सिसनयमन
सम्बन्त्धी सनयम बनाने हेत,ु राज्य सरकारों के परामशत से कें द्र सरकार को सशि बनाने के सलए ऄसखल
भारतीय सेिा ऄसधसनयम,1951 पाररत क्रकया गया। संसिधान सनमातताओं ने, राज्यसभा िारा ईपसथथत
एिं मतदान करने िाले सदथयों के दो-सतहाइ से ऄसधक सदथयों िारा समर्णथत संकल्प की घोषणा के
माध्यम से ऄन्त्य क्षेरों में भी ऄसखल भारतीय सेिाओं के सनमातण के सलए प्रािधान क्रकया। संघ लोक सेिा
अयोग (UPSC) िारा अयोसजत परीक्षा के माध्यम से चयसनत ऄसधकाररयों के ज़ररये कें द्र सरकार
राष्ट्रीय थतर पर ऄसखल भारतीय थतर की सेिाएं प्रदान करती है। हालांक्रक सिसभन्न राज्य थतर के कै डरों
के माध्यम से ईनकी तैनाती कें द्र और राज्य सरकार दोनों थतरों पर अिंरटत की जा सकती हैं।
 ऄसखल भारतीय सेिाएं राज्यों के थथानीय दृसटों कोण का सनिारण करते हुए देश की एकता एिं
समन्त्िय को बढ़ािा देती हैं।
 चूंक्रक आन सेिाओं के ऄसधकाररयों को सामान्त्य तौर पर थियं के राज्य से ऄलग ऄन्त्य राज्यों में
तैनात क्रकया जाता है, आससलए िे राज्य के ऄसधकाररयों की तुलना में थथानीय और क्षेरीय प्रभािों
के प्रसत कम संिेदनशील होते हैं।
 आन सेिाओं के ऄसधकारी कें द्र और राज्यों के मध्य िसमक रूप में भेजे जा सकते हैं और आस प्रकार,
दोनों के मध्य संबंध को सुसिधाजनक बना सकते हैं।
 आन सेिाओं में सिथतृत क्षेर से लोगों को भती क्रकया जाता है और ईन्त्हें ईच्च पाररश्रसमक, पद और
प्रसतष्ठा का लाभ प्रदान क्रकया जाता हैं।
 AIS के सदथय राज्यों में महत्िपूणत पद धारण करते हैं, और िे राज्य के मंसरयों को थितंर रूप से
सलाह दे सकते हैं। जबक्रक राज्य सेिाओं के ऄसधकारी ऐसी सलाह देने में संकोच कर सकते हैं।
 राष्ट्रीय या संिैधासनक अपात की सथथसत में, कें द्र सरकार AIS के माध्यम से कायत कर सकती है।
 कें द्र सरकार AIS के माध्यम से सनचले थतर की िाथतसिकताओं के संपकत में रहती है।

3.2.2 ऄसखल भारतीय से िाओं से जु ड़े मु द्दे

(Issues with All India Services)


कें द्र-राज्य संबंधों पर सरकाररया अयोग ने सनम्नसलसखत प्रश्नों पर राज्य सरकारों से ईनके सिचारों की
मांग की:
 क्या ऄसखल भारतीय सेिाओं (AIS) ने संसिधान सनमातताओं की ऄपेक्षाओं को पूरा क्रकया है; तथा
 क्या राज्य सरकार का ईनके उपर ऄसधक सनयंरण होना चासहए।
 ऄसधकांश राज्य सरकारें आस बात से सहमत हैं क्रक AIS ने बड़े पैमाने पर संसिधान सनमातताओं की
ईम्मीदों को पूरा क्रकया है। हालांक्रक, कु छ राज्य सरकारों ने स्चताएं व्यि की हैं जैसे :
 थितंरता के ऄनेक िषों पिात AIS की प्रासंसगकता: देश के समक्ष व्याप्त राजनीसतक-प्रशाससनक
प्रबंधन की गंभीर समथयाओं और ऄसथथरता के कारण संसिधान के सनमातताओं ने AIS का प्रिधान
क्रकया। हालांक्रक, तब से संघ और राज्य सरकारों ने पयातप्त राजनीसतक, प्रशाससनक और प्रबंधकीय
ऄनुभि प्राप्त क्रकया है।

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 भारतीय पुसलस सेिा (IPS): चूंक्रक राज्य पुसलस में सभी प्रमुख पदों पर IPS के सदथय ही सनयुि
क्रकए जाते हैं, आससलए लोक व्यिथथा के संबंध में राज्य सरकार के ईिरदासयत्ि में भी कमी अइ है।
 संघिाद के सिरुद् : यह तकत क्रदया जाता है क्रक AIS की समासप्त और राज्य एिं कें द्र की नागररक
सेिाओं का एक दूसरे से पृथिरण आन सरकारों के कायो को संघीय प्रणाली के ससन्नकट लाएगा।
 देश की एकता और ऄखंडता एिं राष्ट्रीय एकीकरण को AIS जैसे प्रशाससनक ईपकरण के बजाय
अर्णथक समृसद्, मजबूत िैकसल्पक संथथान आत्याक्रद जैसे ऄसधक रटकाउ कारकों पर अधाररत होना
चासहए।
 प्रासधकरण-ईिरदासयत्ि ऄंतराल : AIS के ऄसधकाररयों का मानना है क्रक िे राज्य सरकार नहीं
बसल्क कें द्र सरकार के ऄनुशासनात्मक सनयंरण में कायत करते हैं । आसके ईपरांत कु छ राज्य सरकारों
ने आस बात पर सिशेष बल क्रदया है की ईनके राज्य क्षेर में सेिारत AIS के ऄसधकाररयों को ईनके
पूणत ऄनुशासनात्मक सनयंरण के ऄंतगतत कायत करना चासहए।
 कै डर अिंटन नीसत: AIS के प्रत्येक राज्य कै डर में कम से कम 50% बाहरी लोगों को शासमल
करने के सलए संघ की नीसत का तात्पयत यह है क्रक ये बाहरी लोग ऄंदरूनी लोगों की तुलना में कें द्र
सरकार के सनयंरण के सलए ऄसधक ईिरदायी हैं। यह दृसटों कोण AIS और राज्य सेिाओं के साथ-
साथ राज्य में पूित और राजनीसतक नेतृत्ि के बीच सििादों को बढ़ािा देता है। राज्यों सरकारों का
ऐसा मानना है क्रक यह ईनको सनयंसरत करने हेतु कें द्र सरकार की एक कु रटल नीसत है।
 भूसम पुर ससद्ांत (Son of soil theory): बाहरी लोग सजन ऄन्त्य राज्यों में तैनात क्रकए जाते है,
िे िहां की भाषा, अचार तथा राज्य प्रोफाआल के सिषय में पयातप्त जानकारी नहीं रखते हैं।
 संघ सूची के तहत AIS : ऄसखल भारतीय सेिाएँ कें द्र और राज्य का संयुि ईिरदासयत्ि है, क्रफर
भी यह संघ सूची (प्रसिसटों 70) के ऄंतगतत अती है।
 नए AIS का गिन: निीन ऄसखल भारतीय सेिाओं (AIS) के गिन का प्रश्न कें द्र सरकार और
राज्यों के मध्य मुख्य रूप से तीन कारणों से तनाि का एक महत्िपूणत क्षेर रहा है:
o निीन AIS का सृजन राज्य सेिाओं के प्रभािी सिथतार में कटौती करता है, आस प्रकार, भूसम
पुरों के सलए रोजगार के ऄिसरों में कमी करना,
o AIS राज्य थिायिता पर ऄसतिमण करती हैं, और
o िे ईच्च िेतन के कारण बड़े व्यय में भी शासमल होते हैं।
 कें द्रीय प्रसतसनयुसि: 1984 तक, कें द्रीय प्रसतसनयुसि राज्य सरकार की सहमसत पर की जाती थी
सजसे कालांतर में समाप्त कर क्रदया गया।

3.2.3 सरकाररया अयोग की ससफाररशें

(Sarkaria Commission recommendations)


 ऄसखल भारतीय सेिाओं (AIS) की सजतनी अिश्यकता अज है ईतनी ही संसिधान सनमातण के
समय थी।
 AIS को भंग करने का कोइ कदम या क्रकसी राज्य सरकार को AIS की व्यिथथा से बाहर सनकलने
की ऄनुमसत देना देश के व्यापक सहतों के प्रसतकू ल और हासनकारक माना जाना चासहए।
 AIS को और ऄसधक सुदढ़ृ बनाया जाना चासहए और ईनके िारा सनभायी जाने िाली भूसमका पर
ऄसधक बल क्रदया जाना चासहए। यह चयन, प्रसशक्षण, तैनाती, सिकास और पदोन्नसत नीसतयों एिं
तरीकों में भली-भांसत योजनाबद् सुधारों के माध्यम से प्राप्त क्रकया जा सकता है।
 िततमान में सामान्त्यज्ञता पर सिशेष बल क्रदए जाने से लोक प्रशासन के एक या एक से ऄसधक क्षेरों
में ऄसधक सिशेषज्ञता का मागत प्रशथत होना चासहए।
 प्रत्येक AIS ऄसधकारी (चाहे प्रत्यक्ष रूप में भती हुअ हो या पदोन्नत ऄसधकारी हो) को कें द्र
सरकार के ऄधीन न्त्यूनतम ऄिसध तक रखा जाना चासहए और आस ईद्देश्य के सलए कें द्रीय

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प्रसतसनयुसियों (डेपुटेशन) की न्त्यन


ू तम संख्या प्रत्यक्ष भती होने िाले और पदोन्नत ऄसधकाररयों
के सलए ऄलग-ऄलग सनधातररत की जानी चासहए ।
 संघ और राज्य सरकारों के मध्य AIS के प्रबंधन पर सनयसमत परामशत होना चासहए।
 आस ईद्देश्य के सलए AIS के कार्णमक प्रशासन हेतु एक सलाहकार पररषद की थथापना की जा सकती
है, सजसमें पूणततः िररष्ठ ऄसधकारी ससम्मसलत होंगे जो सिचार-सिमशत क्रकए जाने िाले मुद्दों से
प्रत्यक्ष रूप में संबंसधत होंगे।
 आसकी बैिक सनयसमत रूप से एक सनसित ऄंतराल पर होनी चासहए और आसे संघ एिं राज्य
सरकारों िारा संदर्णभत समथयाओं के समाधान का सुझाि देना चासहए।
 कें द्र सरकार आंजीसनयरों के सलए भारतीय सेिाएं (IES), भारतीय सचक्रकत्सा और थिाथ्य सेिाएं
(IM&HS) और सशक्षा के सलए ऄसखल भारतीय सेिाओं के गिन हेतु सहमत करने के सलए राज्य
सरकारों को मन सकती हैं।

4. सससिल सेिाओं में अिश्यक सुधार


(Reforms Required in civil services)
सससिल सेिा सुधारों के महत्िपूणत क्षेरों और आन क्षेरों से संबसन्त्धत सितीय प्रशाससनक सुधार अयोग
(2nd ARC) और कु छ ऄन्त्य ससमसतयों की ऄनुशंसाएं सनम्नसलसखत हैं:

4.1 लोक से िाओं की जिाबदे सहता सु सनसित करना

(Bringing Accountability in Public Services)


जिाबदेही की ऄिधारणा ईस सीमा को संदर्णभत करती है जहाँ तक लोक सेिक और लोक कायतिमों को
प्रदान करने िाले गैर-सरकारी क्षेरों के ऄन्त्य लोग, थियं िारा प्रदान की जाने िाली सेिाओं के प्रसत
जिाबदेह होते हैं। जिाबदेसहता के पारंपररक ईपाय (लाआन या टॉप-डाईन ईपायों पर सनभतर) पूणत रूप
से ईिरदासयत्ि संथकृ सत के सलए एक ईत्कृ टों मागतदशतन प्रदान नहीं करते हैं। आस प्रकार, सिातसधक
महत्िपूणत अिश्यक कदम जिाबदेसहता के नए ऄसधदेश और बहुपक्षीयता दोनों की पहचान करना है।
सितीय प्रशाससनक सुधार अयोग (2nd ARC) ने आस सन्त्दभत में सनम्नसलसखत ऄनुशस
ं ाएं की हैं:
 दो गहन समीक्षाओं का एक तंर - प्रथम 14 िषत की सेिा पूणत होने पर और सितीय 20 िषत की
सेिा पूणत होने पर, सभी सरकारी कमतचाररयों के सलए थथासपत की जानी चासहए।
 14 िषत की प्रथम समीक्षा प्राथसमक रूप से लोक सेिक को ईनके भसिष्य की ईन्नसत के सलए ईनकी
शसियों और कसमयों के बारे में सूसचत करने के ईद्देश्य से की जानी चासहए।
 20 िषत की सितीय समीक्षा का मुख्य ईद्देश्य ऄसधकारी की अगामी सनरंतरता के सलए ऄसधकारी
की ईपयुिता (क्रफटनेस) का अकलन करना होगा।
 ऐसे लोक सेिकों की सेिाओं को समाप्त कर देना चासहए जो सितीय समीक्षा के पिात् ऄनुपयुि
पाए जाते हैं।
 प्रथतासित सससिल सेिा कानून में आस सन्त्दभत में एक ईपबंध की सनमातण क्रकया जाना चासहए।
 नइ सनयुसियों के सलए थपटों रूप से यह प्रािधान क्रकया जाना चासहए क्रक रोजगार की ऄिसध 20
िषत तक होगी।
 सरकारी सेिा में आसके अगे की सनरंतरता गहन प्रदशतन समीक्षा के पररणाम पर सनभतर करेगी।

4.2. सनष्पादन पर बल दे ना (Emphasize Performance)

सससिल सेिा में िततमान पदोन्नसत प्रणाली काल-िम (टाआम थके ल) पर अधाररत है और यह आसके
कायतकाल की सुरक्षा के साथ जुड़ी होती है। हमारी लोक सेिा में ये तत्ि गसतशील सससिल सेिकों को
अत्मसंतुटों बना रहे हैं और कइ पदोन्नसतयाँ नेताओं या मंसरयों के संरक्षण पर अधाररत होती हैं। एक

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सरकारी कमतचारी की पदोन्नसत, कररयर ईन्नसत और सेिा में सनरंतरता नौकरी में ईसके िाथतसिक
प्रदशतन से सम्बद् होनी चासहए एिं ऄकमतण्य लोगों को सनष्काससत क्रकया जाना चासहए।
 पदोन्नसत योग्यता अधाररत होनी चासहए। संबंसधत ऄसधकाररयों को सिोिम तौर-तरीकों को एक
मानक के रूप में थथासपत करना होगा होगा तथा ईसके अधार पर िततमान तौर-तरीकों का
अकलन करना होगा। आसके ऄसतररि सिसभन्न प्रकार के मानकों के अधार पर सससिल सेिकों के
प्रदशतन का गुणात्मक और मारात्मक रूप से मूल्यांकन करना होगा।
 सनष्पादन संबसं धत प्रोत्साहन योजना (Performance Related Incentive Scheme:PRIS):
छिें िेतन अयोग ने सरकारी कमतचाररयों के सलए सनयसमत िेतन के ऄसतररि एक नए प्रदशतन
अधाररत मौक्रद्रक लाभ को अरम्भ करने की ऄनुशंसा की है। यह सनष्पादन सिसशटों पुरथकार
(ऄलग-ऄलग सनष्पादनों के सलए ऄलग-ऄलग पुरथकार) के ससद्ांत पर अधाररत होना चासहए।
सरकार में PRIS अरम्भ करने का ऄंसतम ईद्देश्य कमतचारी की ऄसभप्रेरणा में सुधार करने ; ईच्च
ईत्पादकता या अगत प्राप्त करने और गुणििापूणत साितजसनक सेिा प्रदान करने तक सीसमत नहीं
है; बसल्क यह ईिरदायी शासन के सलए प्रभािशीलता और सुव्यिसथथत पररिततन के बड़े ल्यों की
तलाश करता है।
 सनष्पादन प्रबंधन प्रणाली पर 2nd ARC की ऄनुशस
ं ाएं
o मूल्यांकन को ऄसधक परामशी और पारदशी बनाना - सभी सेिाओं के सलए प्रदशतन मूल्यांकन
प्रणाली को ऄसखल भारतीय सेिाओं हेतु हाल ही में प्रथतुत क्रकए गए कार्णमक प्रशासन सनयम
(Personnel Administration Rule:PAR) की तजत पर संशोसधत क्रकया जाना चासहए।
o सनष्पादन अकलन िषत-पयंत चलना चासहए: सभी सेिाओं के सलए सिथतृत कायत योजना और
एक ऄद्त-िार्णषक समीक्षा हेतु प्रािधान क्रकया जाना चासहए।
o ऄंकीय रेटटग सनर्ददटों करने के सलए क्रदशा-सनदेश तैयार क्रकए जाने की अिश्यकता है।
o सरकार को व्यापक सनष्पादन प्रबंधन प्रणाली (PMS) के सलए ऄपने कमतचाररयों की िततमान
सनष्पादन मूल्यांकन प्रणाली के दायरे का सिथतार करना चासहए।
o PMS को सिशेष मंरालय/सिभाग/संगिन के सलए ईपयुि समग्र नीसतगत रूपरेखा के ऄंतगतत
सडजाआन क्रकया जाना चासहए।

4.3 िररष्ठ थतर की सनयु सियों के सलए प्रसतयोसगता और सिशे ष ज्ञतापू णत ज्ञान

(Competition and Specialist Knowledge for Senior Level Appointments)


सरकार में नीसत बनाने का कायत जरटल है और सिषय के सिशेषज्ञतापूणत ज्ञान की अिश्यकता होती है।
मौजूदा प्रणाली के तहत, कें द्रीय ससचिालय के साथ-साथ शीषत क्षेर थतर के पदों में िररष्ठतम थतर की
सनयुसियां भारतीय प्रशाससनक सेिा (IAS) के ऄसधकाररयों में से की जाती हैं सजनका सिषय के सम्बन्त्ध
में सामान्त्य थतर का ज्ञान होता है।
 1969 में प्रथम प्रशाससनक सुधार अयोग ने सससिल सेिकों िारा िररष्ठ थतर के पद धारण करने के
सलए पूि-त योग्यता के रूप में सिशेषज्ञता की अिश्यकता पर बल क्रदया था। आसने सुझाि क्रदया क्रक
सभी सेिाओं को के न्त्द्रीय ससचिालय में मध्यम और िररष्ठ थतर के प्रबंधन थतरों में प्रिेश करने का
ऄिसर समलना चासहए और ईनका चयन कररयर के मध्य में प्रसतयोगी परीक्षा अयोसजत करके
क्रकया जाना चासहए, सजसमें UPSC िारा अयोसजत साक्षात्कार शासमल होना चासहए।
 सुरेंद्र नाथ ससमसत (2003) और होता ससमसत (2004) ने संयुि ससचि और आससे ईच्च पदों पर
सनयुसि के अधार के रूप में क्षेर सिसशटों ज्ञान और योग्यता पर बल क्रदया था।
आस संदभत में 2nd ARC की ऄनुशस
ं ाएं
 2nd ARC ने सामान्त्य प्रशासन, शहरी सिकास, सुरक्षा, ग्रामीण सिकास आत्याक्रद जैसे 12 डोमेन
सचसननत क्रकये हैं सजसमें ऄसधकाररयों को सिशेषज्ञ होना चासहए। आसने यह भी ऄनुशंसा की है क्रक
13 िषत पूणत होने पर ऄसखल भारतीय सेिाओं और कें द्रीय सससिल सेिाओं के सभी ऄसधकाररयों को
डोमेन सौंपे जाने चासहए एिं ईप ससचि/सनदेशक के थतर की सेिा और ररसियों पर क्रकसी

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ऄसधकारी की सनयुसि तभी करनी चासहए जब ईस ऄक्रदकारी की क्षमता पद के सलए अिश्यक


डोमेन क्षमता से मेल खाती हो।
 अयोग ने िररष्ठ प्रशाससनक थतर और आससे ईच्च (संयुि ससचि थतर) सेिाओं में िररष्ठ पदों को
सभी सेिाओं हेतु खोलते हुए आन पदों पर प्रसतयोसगता के माध्यम से सनयुसियां करने का सुझाि
क्रदया है।
 ईच्च प्रशाससनक ग्रेड पदों (ऄसतररि ससचि और ईसके उपर) में से कु छ पदों के सलए भती खुले
बाजार से की जा सकती है।
 आसने एक सांसिसधक के न्त्द्रीय सससिल सेिा प्रासधकरण के गिन का सुझाि क्रदया है। यह डोमेन
अिंटन के मामलों, सिसभन्न थतरों पर ऄसधकाररयों को तैनात करने के सलए पैनल तैयार करने ,
कायतकाल तय करने जैसे कायत करेगा और यह सनधातररत करेगा क्रक कौन-से पदों को पार्श्त प्रिेश
(लैटरल एंट्री) के सलए सिज्ञासपत क्रकया जाना चासहए।

4.4 प्रभािी ऄनु शासनात्मक व्यिथथा (Effective Disciplinary Regime)

िततमान में ऄनुशासन संबंधी सनयमों के प्रािधान ऄत्यसधक जरटल और समयसाध्य हैं सजससे क्रकसी
दोषी कमतचारी के सिरुद् अदेश के ईल्लंघन और दुव्यित हार के सलए कारतिाइ करना ऄत्यंत करिन हो
जाता है। आस प्रकार, एक बार सनयुसि हो जाने के पिात् क्रकसी कमतचारी को हटाना या सनष्कासषत
करना लगभग ऄसंभि हो जाता है। आसका पररणाम सनम्न कायत संथ कृ सत और समग्रता में ऄक्षमता के रूप
में होता है। सससिल सेिा अचरण और ऄनुशासन सनयमों के प्रािधान ऄत्यसधक दोषपूणत ि जरटल हैं।
आस संदभत में 2nd ARC की ऄनुशस
ं ाएं
 2nd ARC के ऄनुसार सससिल सेिकों को प्रदि सिसधक सुरक्षा ने ऄक्षमता और गलत कायत के
सलए दंड के ऄभाि में अिश्यकता से ऄसधक सुरक्षा का िातािरण बना क्रदया है।
 प्रथतासित सससिल सेिा कानून में प्राकृ सतक न्त्याय के मानदंडों को पूरा करने के सलए न्त्यूनतम
सांसिसधक ऄनुशासनात्मक और पद से बखातथतगी की प्रक्रियाओं व्यिथथा की जानी चासहए और
पालन की जाने िाली प्रक्रिया के ब्यौरे संबंसधत सरकारी सिभागों पर छोड़ क्रदए जाने चासहए।
 िततमान मौसखक जांच प्रक्रिया को पररिर्णतत क्रकया जाना चासहए। यह जांच एक िररष्ठ ऄसधकारी
िारा, कोटत ट्रायल प्रक्रियाओं के सबना, सारांश रूप (समरी मैनर) में सम्पन्न एक ऄनुशासनात्मक
बैिक या साक्षात्कार के रूप में की जानी चासहए।
 बखातथतगी और पदच्युसत के िल क्रकसी ऐसे प्रासधकारी िारा ही की जानी चासहए जो सम्बंसधत
सरकारी कमतचारी िारा धारण क्रकये पद से कम से कम तीन थतर उपर हो।
 जब तक जाँच नहीं की गइ हो और दोषी सरकारी कमतचारी को सुनिाइ का एक ऄिसर क्रदया नहीं
क्रदया गया हो तब तक कोइ दंड नहीं क्रदया जा सकता।
 सतकत ता दृसटों कोण से जुड़े मामलों में CVC के साथ दो चरणीय परामशत को समाप्त करके
ऄनुशासनात्मक प्रक्रिया के पूणत होने के पिात् के िल सितीय चरण का परामशत प्राप्त क्रकया जाना
चासहए।
 UPSC के साथ परामशत के िल ईन मामलों में ऄसनिायत होना चासहए सजनमें सरकारी कमतचारी
को पद से हटाना ससम्मसलत हो और ऄन्त्य सभी प्रकार के ऄनुशासनात्मक मामलों को UPSC के
दायरे से हटा देना चासहए।

4.5 कायत सं थकृ सत का रूपां त रण (Transforming Work Culture)

ऄसधकांश सरकारी सिभाग सनम्नथतरीय कायत संथकृ सत और सनम्न ईत्पादकता से ग्रथत हैं। लागत प्रभािी
सेिाएं प्रदान करने के सलए सनम्नसलसखत ईपाय क्रकये जा सकते हैं:
 बहु-थतरीय पदानुिसमक संरचना को कम क्रकया जाना चासहए और सनणतय लेने में तीव्रता लाने हेतु
सीधे एक थतर से क्रकसी ऄन्त्य थतर पर जाने की व्यिथथा (लेिल जस्म्पग) से युि एक ऄसधकारी
ईन्त्मुख तंर प्रथतुत क्रकया जाना चासहए।
 सरकारी कायातलयों को कं प्यूटर एिं ऄन्त्य गैजेट प्रदान कर ईनका अधुसनकीकरण क्रकया जाना
चासहए और एक सहायक कायत िातािरण का सृजन क्रकया जाना चासहए।

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 ऄसधकाररयों को ऄसभप्रेररत रहना चासहए और ईन्त्हें ऄसधक ईिरदासयत्ि एिं सनणतय लेने का
ऄसधकार प्रदान करके सशि बनाया जाना चासहए।
 प्रक्रियाओं और कायत पद्सतयों का अधुसनकीकरण कर और सरकारी कायातलयों में 'बाबू' संथकृ सत
को समाप्त कर सरकारी तंर को थिथ्य, लघु एिं दक्ष बनाने की अिश्यकता है।

4.6 सनयमों और प्रक्रियाओं को सु व्य िसथथत करना

(Streamline Rules and Procedures)


पासपोटत जारी करने, संपसि के पंजीकरण, अिास सनमातण के सलए थिीकृ सत, व्यिसाय अरम्भ करने के
सलए लाआसेंस, कारखानों का सनरीक्षण जैसे मामलों में सरकार के साथ नागररकों के क्रदन-प्रसतक्रदन के
संपकत से जुड़े सनयमों और प्रक्रियाओं का एक बड़ा भाग पुराना और चलन से बाहर है। ये ऄप्रासंसगक
सनयम प्रायः सरकारी कमतचारी को नागररकों के कायत में सिलंब करने एिं ईनका ईत्पीड़न करने का
ऄिसर प्रदान करते हैं।
 आन सनयमों को ऄद्यसतत एिं सरल होना चासहए तथा लोक सेिकों के सििेकासधकारों को सीसमत
या समाप्त क्रकया जाना चासहए।
 सरकारी कायातलय की दक्षता का एक बड़ा भाग कर्णमयों, सििीय एिं खरीद प्रबंधन प्रणाली पर
सनभतर करता है। कर्णमयों के प्रबंधन से संबंसधत सनयम पुराने और किोर हैं तथा थथानीय
पररसथथसतयों के ऄनुकूल होने के सलए सिभागों को कोइ लचीलापन प्रदान नहीं करते हैं सजसके
पररणामथिरूप ऄक्षमता ईत्पन्न होती है।
 बजटीय एिं खरीद सनयमों को पररिर्णतत क्रकया जाना चासहए। सिभागों को पयातप्त लचीलापन
प्रदान क्रकया जाना चासहए सजससे िे धन का सिोिम मूल्य सुरसक्षत करने के ऄपने सनणतय का
ईपयोग करने में सक्षम हो सकें ।

4.7 सनजीकरण और बाह्य ऄनु बं ध (Privatization and Contracting Out)

ईदारीकरण के युग में राज्य के थिासमत्ि िाले ईन ईद्यमों, जो या तो घाटे में चल रहे हैं या होटल,
पयतटन, आंजीसनयटरग और कपड़ा क्षेर जैसे ऄथतव्यिथथा के तृतीयक क्षेर से सम्बंसधत हैं, के सनजीकरण के
पीछे अर्णथक तकत सनसहत है। ये ईद्यम सनजी क्षेर के साथ प्रसतथपधात नहीं कर कर पाने के कारण राष्ट्रीय
संसाधनों के सनगतमन का कारण बने हुए हैं।
 नगरपासलका मागों की सफाइ, ऄपसशटों संग्रहण, सिद्युत् सितरण, शहरी पररिहन अक्रद जैसी
सेिाओं के सनजीकरण के सलए एक सुदढ़ृ सथथसत बनी हुइ है।
 ऄनुभि से पता चलता है क्रक साितजसनक और सनजी क्षेर के प्रदाताओं के मध्य प्रसतथपद्ात ससहत
साितजसनक सेिाओं के सितरण में प्रसतथपद्ात के बढ़ते ईपयोग से लागत प्रभािशीलता और सेिा की
गुणििा में सुधार हुअ है।

4.8. सू च ना प्रौद्योसगकी (IT) और इ-गिनें स को ऄपनाना

(Adoption of IT and E-Governance)

सूचना प्रौद्योसगकी के क्षेर में अयी िांसत ने सुशासन के सलए आसे ऄपनाने की ओर ध्यान अकर्णषत क्रकया
है।
 इ-गिनेंस सुदरू िती गांिों को शहरों में सथथत सरकारी कायातलयों से सम्बद् कर दूररयों को घटा
कर शून्त्य कर सकता है, कमतचाररयों की संख्या को कम कर सकता है, लागत में कटौती कर सकता
है, सरकारी तंर में गोपनीय सूचनाओं के प्रकटीकरण की जांच कर सकता है तथा कतारों में खड़े
हुए सबना और दफ्तरों में क्लकों से ईत्पीसड़त हुए सबना नागररक एिं सरकार के मध्य ऄंतःक्रिया
को सुगम बना सकता है।
 परन्त्तु यह ध्यान रखना अिश्यक है क्रक इ-गिनेंस के िल सुशासन के सलए एक साधन है। यह थितंर
या ईिरदायी ऄसधकाररयों का थथान नहीं ले सकता है। आसे के िल राजनीसतक नेतृत्ि के थिासमत्ि
के ऄधीन होना चासहए।

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4.9. कायत काल की सथथरता (Stability of Tenure)

ऄसधकाररयों को सिशेषकर राज्य सरकारों में सेिा प्रदान करने िाली ऄसखल भारतीय सेिाओं के संदभत
में, ईनके कायतकाल से संबंसधत िाथतसिक समथयाओं का सामना करना पड़ रहा है।
 सामान्त्यतः सरकार में पररिततन के साथ ऄसधकाररयों का थथानांतरण होता है और कु छ राज्यों में
सजलासधकारी (DM) एिं पुसलस ऄधीक्षक (SP) का औसत कायतकाल के िल एक िषत से भी कम
समय का होता है। ऄसधकाररयों के आस प्रकार के तीव्र थथानांतरण से अम जनता को प्रदान की
जाने िाली सेिाओं की अपूर्णत एिं गुणििा प्रसतकू ल रूप से प्रभासित होती है।
 क्रकसी भी समय होने िाले थथानान्त्तरण का भय ऄसधकाररयों िारा ऄिांसछत थथानीय दबािों का
सामना करने के सलए अिश्यक मनोबल एिं क्षमता को प्रसतकू ल रूप से प्रभासित करता है
 लंबे समय तक,राज्यों में ऄसखल भारतीय सेिाओं के ऄसधकाररयों के सनरंतर थथानांतरण से
पररयोजनाओं के कायातन्त्ियन में सिलम्ब होता है। आसके ऄसतररि ऄसधकारी िह ऄथतपूणत ऄनुभि
प्राप्त नहीं कर पाते हैं जो राज्य एिं कें द्र सरकार के ऄधीन ईच्चतर पदों पर नीसत सनमातण के थतर
पर ईनकी क्षमता में िृसद् करता है।
आस संदभत में सससिल सेिा सुधार पर होता ससमसत ने सनम्नसलसखत सुझाि क्रदए:
 िार्णषक सनष्पादन ल्यों के साथ ईच्च सससिल सेिा के एक ऄसधकारी के सलए कम से कम तीन िषत
का एक सनसित कायतकाल।
 सससिल सेिा बोडत / थथापना बोडत दोनों को राज्यों और भारत सरकार में िैधासनक सथथसत प्रदान
करने के सलए एक सससिल सेिा ऄसधसनयम लागू क्रकया जाना चासहए।
 यक्रद कोइ मुख्यमंरी सससिल सेिा बोडत / थथापना बोडत की ससफाररशों से सहमत नहीं है, तो ईसे
सलसखत में ऄपने कारणों का ररकॉडत रखना होगा।
 मुख्यमंरी के अदेश के ऄंतगतत ऄपने सामान्त्य कायतकाल से पूित थथानांतररत क्रकया गया ऄसधकारी
तीन सदथयीय लोकपाल के समक्ष ऄपने मामले को प्रथतुत कर सकता है।
 ऐसे सभी समयपूित थथानांतरणों के संबंध में लोकपाल राज्य के राज्यपाल को एक ररपोटत प्रथतुत
करेगा। राज्यपाल आस ररपोटत को िार्णषक ररपोटत के साथ राज्य सिधासयका के पटल पर रखिाएगा।

4.10 सससिल से िाओं का सिराजनीसतकरण (Depoliticization of Civil Services)

राजनीसतक कायतकाररणी और सससिल सेिकों के मध्य संबंधों पर सितीय प्रशाससनक सुधार अयोग
(2nd ARC) की ऄनुशंसाएं सनम्नसलसखत हैं:
 लोक सेिाओं की राजनीसतक तटथथता और सनष्पक्षता का संरक्षण करने की अिश्यकता है।
 यह समान रूप से राजनीसतक कायतकाररणी और सससिल सेिाओं का दासयत्ि है।
 आस पक्ष को मंसरयों की अचार संसहता के साथ-साथ लोक सेिकों की अचार संसहता में ससम्मसलत
क्रकया जाना चासहए।
 भ्रटों ाचार सनिारण ऄसधसनयम,1988 के ऄंतगतत भ्रटों ाचार की पररभाषा का परीक्षण करते समय
"क्रकसी का ऄनुसचत पक्ष लेने और क्षसत पहुँचाने हेतु ऄसधकार के दुरुपयोग" और "न्त्याय में बाधा
पहुँचाने" को ऄसधसनयम के तहत ऄपराध के रूप में िगीकृ त क्रकया जाना चासहए।
 पक्षपात, भाइ-भतीजािाद, भ्रटों ाचार और सिा के दुरुपयोग की सशकायतों से बचने के सलए
सरकार में भती के सलए कु छ मानदंडों को थथासपत करना अिश्यक है। ये मानदंड हैं:
o सभी सरकारी नौकररयों में भती के सलए सुपररभासषत प्रक्रिया।
o सभी पदों की भती के सलए व्यापक प्रचार और खुली प्रसतयोसगता।
o यक्रद ईन्त्मूलन न हो सके तो कम से कम भती प्रक्रिया में सििेकासधकार का न्त्यूनीकरण।
o साक्षात्कार के न्त्यूनतम भारांश के साथ मुख्य रूप से सलसखत परीक्षा के अधार पर ऄथिा
मौजूदा साितजसनक/बोडत/सिर्श्सिद्यालय परीक्षा में प्रदशतन के अधार पर चयन।
नौकरशाही को राजनीसतक हथतक्षेप से पृथक करने और राजनीसतक प्रमुखों के िारा सससिल सेिकों के
सनरंतर होने िाले तबादलों को समाप्त करने हेतु िषत 2013 में ईच्चतम न्त्यायालय ने सससिल सेिकों को
राजनीसतक प्रभाि से पृथक करने के सलए सनदेशों की एक श्रृंखला जारी की। टीएसअर सुिमण्यम और
ऄन्त्य बनाम भारत संघ िाद में ईच्चतम न्त्यायालय िारा सनम्नसलसखत क्रदशा-सनदेश जारी क्रकए गए हैं ।

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 भारतीय प्रशाससनक सेिा (IAS), ऄन्त्य ऄसखल भारतीय सेिाओं के ऄसधकारी एिं ऄन्त्य सससिल
सेिक मौसखक सनदेशों का पालन करने के सलए बाध्य नहीं थे , क्योंक्रक िे "सिर्श्सनीयता को
कमजोर करते हैं”। ईनके िारा सभी कारतिाआयां सलसखत संप्रेषण के अधार पर की जानी चासहए।
 ऄसखल भारतीय सेिाओं (IAS, IFS और IPS) के ऄसधकाररयों के थथानांतरण और तैनाती की
ऄनुशंसा करने के सलए राष्ट्रीय थतर पर कै सबनेट ससचि और राज्य थतर पर मुख्य ससचिों की
ऄध्यक्षता में सससिल सेिा बोडत (CSB) की थथापना की जानी चासहए। ईनके सिचार के िल
ऄसभसलसखत कारणों से राजनीसतक कायतकाररणी िारा ऄथिीकृ त क्रकए जा सकते हैं।
 CSB की थथापना के सलए संसद को संसिधान के ऄनुच्छेद 309 के ऄंतगतत सससिल सेिा
ऄसधसनयम को तैयार करना चासहए।
 न्त्यूनतम कायतकाल सनसित होना चासहए।
 समूह 'B' ऄसधकाररयों को सिभागों के प्रमुखों (HoDs) के िारा थथानांतररत क्रकया जाए।
 सससिल सेिकों के थथानान्त्तरण या तैनाती में मुख्यमंरी के ऄसतररि ऄन्त्य मंसरयों का हथतक्षेप नहीं
होना चासहए।

4.11 सससिल से िाओं में पार्श्त प्रिे श (ले ट रल एं ट्री)

(Lateral entry into civil services)


सससिल सेिाओं में पार्श्त प्रिेश का ऄथत पदानुिसमक संरचना के ईच्च थतर पर, सनयसमत प्रणाली को
दरक्रकनार कर, योग्य ईम्मीदिारों को नौकरशाही में ससम्मसलत करना है।

 जून 2018 में, कार्णमक एिं प्रसशक्षण सिभाग (DoPT) िारा जारी ऄसधसूचना में अर्णथक
मामलों, राजथि, िासणज्य और राजमागों के सिभागों में संयुि ससचि थतर पर 10 िररष्ठ थतर के
पदों के सलए अिेदनों को अमंसरत क्रकया गया है।
 योग्यता मानदंडों में "साितजसनक क्षेर के ईपिमों, थिायि सनकायों, सांसिसधक संगिनों,
ऄनुसंधान सनकायों और सिर्श्सिद्यालयों में कायतरत लोगों के ऄसतररि सनजी क्षेर की कं पसनयों,
परामशत संगिनों, ऄंतरातष्ट्रीय / बहुराष्ट्रीय संगिनों के साथ न्त्यूनतम 15 िषों के ऄनुभि के साथ
तुलनात्मक थतर पर कायत करने िाले व्यसि ससम्मसलत हैं"।
 DoPT के ऄनुसार, भती तीन से पांच िषत हेतु ऄनुबंध के अधार पर होगी। प्रारंसभक तौर पर
10 सिभागों में भती की जाएगी क्रकन्त्तु दूसरे चरण में आसका सिथतार ऄन्त्य श्रेसणयों में भी क्रकया
जाएगा।

पार्श्त प्रिेश (लैटरल एंट्री) की अिश्यकता


 ऄफसरों की कमी: ईिर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजथथान एिं सबहार जैसे बड़े राज्यों में ऄसधकाररयों
की कमी है। ये िही राज्य हैं जहाँ सामासजक सिकास के साथ-साथ अर्णथक सिकास भी ऄत्यसधक
सनराशाजनक है।
 सिशेषज्ञ तथा दक्ष: पेशेिर नौकरशाह ऄपने सनयसमत थथानान्त्तरण एिं प्रसतसनयुसियों के कारण
सामान्त्यज्ञ प्रकृ सत के बने रहते हैं। आसके साथ ही नौकरशाहों को ईन्नत पाठ्यिमों में ससम्मसलत
होने एिं ज्ञान में िृसद् करने हेतु बहुत कम प्रोत्साहन क्रदया जाता है। आस प्रकार भू -राजनीसतक एिं
अर्णथक पररिेश में पररिततन को ध्यान में रखते हुए कु छ पदों के सलए सिशेषज्ञों की अिश्यकता
होती है।
 राजकोष (exchequer) पर भार : औपचाररक प्रक्रिया के माध्यम से की गइ भती से अजीिन
िेतन, पेंशन तथा ऄन्त्य भिों आत्याक्रद के कारण अर्णथक बोझ में िृसद् होती है। संिैधासनक सुरक्षा
भी ऄपने कततव्यों का ईसचत प्रकार से पालन न करने िाले ऄसधकाररयों के सनष्कासन में व्यिधान
ईत्पन्न करती है। आस सिसंगसत का समाधान पार्श्त प्रिेश के माध्यम से क्रकया जा सकता है।

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 निाचार को प्रोत्साहन: ऐसा माना जाता है क्रक सनजी क्षेर से पेशेिरों को सससिल सेिाओं में लाने
से निीन सिचारों का प्रिेश होगा तथा एक सिशाल, शसिशाली और ऄनम्य संथथान में निाचारी
समथया समाधान सिसधयों के प्रयोग का अरम्भ होगा।
 प्रसतथपद्ात : यह पेशेिर नौकरशाहों को बेहतर प्रदशतन करने हेतु थिथथ प्रसतथपद्ात की ओर ले
जाएगा। आसके ऄसतररि यह 'प्रदशतन नहीं तो पद नहीं' (perform or perish) के चेतािनी संकेत
के रूप में भी कायत करेगा।
पार्श्त प्रिेश से संबसं धत मुद्दे
 संघ लोक सेिा अयोग (UPSC) की ईपेक्षा करना: UPSC एक संिैधासनक सनकाय है और आसने
सिगत कु छ िषों में चयन प्रक्रिया की िैधता एिं सिर्श्सनीयता को बनाए रखा है। कु छ सिशेषज्ञों
का यह भी मानना है क्रक पार्श्त प्रिेश ऄसंिैधासनक है।
 प्रत्येक समथया का समाधान नहीं: ऐसा भी तकत क्रदया जाता है क्रक एक व्यिसथथत समथया से
सनपटने के सलए यह एक खंसडत प्रयास है। नौकरशाही में व्यापक सनरीक्षण के पिात् सुधार करने
की अिश्यकता है |

 प्रथताि पयातप्त अकषतक नहीं : ऄसधकांशतः भती संबंधी शतें सिोिम प्रसतभा को अकर्णषत करने

हेतु ऄपेसक्षत प्रसतफल प्रदान नहीं कर पाती हैं। यहां तक क्रक हासलया पार्श्त प्रिेश पहल भी के िल 3
िषों के सलए पाररश्रसमक (जो क्रक सनजी क्षेर के समतुल्य नहीं है) के साथ पेशेिरों की भती करेगी।
 सनजीकरण के सलए ऄिसर प्रदान करना : कु छ सससिल सेिकों का मानना है क्रक यह पहल
सनजीकरण को ऄत्यसधक बढ़ािा देगी और ऄंततः सरकार ऄपनी समाजिादी एिं कल्याणकारी
सिशेषताओं को खो देगी।
 भती में पारदर्णशता: सरकार को यह सुसनसित करना चासहए क्रक नए सदथय "सिघटनिादी

प्रिृसियों" से मुि रहें। सससिल सेिाओं में चयन प्रक्रिया की पारदर्णशता को बनाए रखने हेतु आसे
िततमान सरकार से पृथक क्रकया जाना चासहए।
अगे की राह
 सितीय प्रशाससनक सुधार अयोग ने कें द्र एिं राज्य दोनों थतरों पर पार्श्त प्रिेश के सलए एक
संथथागत एिं पारदशी प्रक्रिया की ऄनुशंसा की है। परंतु नौकरशाहों, सेिारत कमतचाररयों एिं
सेिासनिृि लोगों की नकारात्मक प्रसतक्रिया और दशकों से व्यापक थतर पर सिद्यमान ऄपररिर्णतत
सससिल सेिाओं की संथथागत सनसष्ियता ने आसकी प्रगसत में बाधा ईत्पन्न की है।
 डॉ. शसश थरूर की ऄध्यक्षता में सिदेशी मामलों पर गरित संसदीय थथायी ससमसत ने सरकार से
देश के राजनसयक समूहों का सिथतार करने हेतु सिदेश सेिा में ऄसनिासी भारतीयों (NRI) को
प्रिेश की सुसिधा प्रदान करने का अग्रह क्रकया है।
 पार्श्त प्रिेश के ऄसतररि सससिल सेिा प्रसशक्षण की प्रणाली में भी ऄनेक अिश्यक सुधार करने की
अिश्यकता है।

4.12 सितीय प्रशाससनक सु धार अयोग की ऄन्त्य महत्िपू णत ऄनु शं साएँ

(Other Important Recommendations of 2nd ARC)

सितीय प्रशाससनक सुधार अयोग ने ऄपनी 10िीं ररपोटत “कार्णमक प्रशासन का पुनगतिन-नइ उंचाइयों

तक पहुंचना” में 22 प्रमुख शीषतकों के ऄंतगतत सिसभन्न ऄनुशंसाएँ की हैं। ईनमें से कु छ प्रमुख ऄनुशंसाओं
का ईपयुति शीषतकों में िणतन क्रकया जा चुका है। कु छ ऄन्त्य महत्िपूणत ऄनुशंसाएं सनम्नसलसखत हैं:

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सससिल सेिाओं में प्रिेश की ऄिथथा

 भारत सरकार को लोक प्रशासन में स्नातक सडग्री के पाठ्यिमों के संचालन हेतु राष्ट्रीय लोक
प्रशासन संथथानों की थथापना करनी चासहए।
 चयसनत के न्त्द्रीय तथा ऄन्त्य सिसर्श्द्यालयों को भी आस प्रकार के स्नातक थतरीय कायतिमों को अरम्भ
करने हेतु सहायता दी जानी चासहए।
 राष्ट्रीय लोक प्रशासन संथथान और चयसनत सिसर्श्द्यालयों से ईपयुति ईल्लेसखत सिशेष पाठ्यिमों
के स्नातक छार सससिल सेिाओं की परीक्षा में प्रिेश करने के योग्य होंगें।
प्रिेश करने की अयु तथा प्रयासों की संख्या
 सामान्त्य ईम्मीदिार हेतु अयु सीमा 21 से 25 िषत, ऄन्त्य सपछड़ा िगत के ईम्मीदिार के सलए 21 से

28 िषत तथा ऄनुसूसचत जासत/ऄनुसूसचत जनजासत एिं सन:शि जनों के सलए 21 से 29 िषत होनी

चासहए।
 सससिल सेिा परीक्षा में ऄनुमसत प्रयासों की संख्या सामान्त्य िगत हेतु 3, ऄन्त्य सपछड़ा िगत हेतु 5,

ऄनुसूसचत जासत/ऄनुसूसचत जनजासत हेतु 6 एिं सन:शि जनों के सलए 6 होनी चासहए।

क्षमता सनमातण
 प्रत्येक सरकारी ऄसधकारी को प्रिेश के थतर पर तथा ईनके कायतकाल के दौरान समय-समय पर
ऄसनिायत प्रसशक्षण क्रदया जाना चासहए। सेिा में थथासयत्ि तथा अगामी पदोन्नसत हेतु आन
प्रसशक्षणों की सफलतापूितक पूरा करना एक न्त्यूनतम अिश्यक शतत होनी चासहए।
 कायतकाल के मध्य में प्रसशक्षण का ईद्देश्य असधकारी के बदलते कायतक्षेर के सलए ऄपेसक्षत ज्ञान और
क्षमता के सिथतार का सिकास करना होना चासहए।
सससिल सेिकों को ऄसभप्रेररत करना
 सेिारत सससिल सेिकों के ईत्कृ टों कायत को राष्ट्रीय पुरथकारों के माध्यम से पहचान क्रदलाने की
अिश्यकता है। ईिम कायत सनष्पादन की पहचान हेतु राज्य एिं सजला थतर पर भी पुरथकारों की
थथापना की जानी चासहए।
 सिदेश में सनयुसि हेतु चयन के न्त्द्रीय सससिल सेिा प्रासधकरण की ऄनुशंसाओं पर अधाररत होना
चासहए।
सससिल सेिा सुधारों का ल्य मुख्य सरकारी कायों के सनष्पादन हेतु प्रशाससनक क्षमताओं को सुदढ़ृ
करना है। ये सुधार नागररकों के प्रसत सेिाओं की गुणििा में िृसद् करेंगे जो थथायी अर्णथक एिं
सामासजक सिकास के संिद्तन हेतु ऄसत अिश्यक हैं।

लोक सेिाओं में सुधार करना सरकार के समक्ष एक प्रमुख चुनौती है। सबसे बड़ा व्यिधान नौकरशाहों

िारा ईत्पन्न क्रकया जाता है जो ऄपने व्यापक सहतों के कारण आन सुधारों को सनष्पादन ईन्त्मुख तथा
ईिरदायी बनाने के क्रकसी भी प्रयास का सिरोध करते हैं।
साथतक सुधारों के क्रियान्त्ियन हेतु ईच्चतम थतर पर राजनीसतक आच्छा की अिश्यकता है। यही समय है
जब सरकार को भी यह थिीकार करना चासहए क्रक देश से सनधतनता, सनरक्षरता, कु पोषण एिं िंचना के

ईन्त्मूलन के सलए तथा देश को खुशहाल, थिथथ और समृद् सनिास थथान बनाने हेतु लोक सेिा सुधार

एक अिश्यक पूिातपेक्षा है।

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5. Vision IAS मुख्य परीक्षा टे थट सीररज के प्रश्न


1. लोक सेिकों के सलए समड-कररयर (कायतकाल के मध्य में) कायत सनष्पादन मूल्यांकन के महत्ि
पर चचात कीसजए। आसके ऄसतररि, आस प्रकार की समीक्षा के पिात् सेिारत नौकरशाहों के
ऄसनिायत ऄिकाश ग्रहण की व्यिहायतता और प्रभािशीलता का मूल्यांकन करें।
दृसटों कोण:
 िततमान में भारत की प्रशासकीय दशा का संक्षेप में िणतन करें।
 ईनकी सिशेषताओं के साथ-साथ ईनके कायतकाल के मध्य में क्रकये गए कायत सनष्पादन का
होने िाले मूल्यांकन की व्याख्या करें।
 भारत में कायतकाल के मूल्यांकन की िततमान प्रणाली की सीमाओं का ईल्लेख करें।
 कायतकाल के मध्य में कायत -सनष्पादन की मूल्यांकन प्रणाली के महत्ि तथा प्रभाि पर
चचात करें।
 ऄसनिायत सेिा-सनिृसि तथा आसके सकारात्मक तथा नकारात्मक पहलुओं के साथ
नौकरशाही में सुधार की अिश्यकता के पक्ष में तकत देते हुए ईिर का समापन करें।
ईिर:
भारत में जन सेिकों को सनम्न संरक्षण प्रदान क्रकये गए हैं:
 संिैधासनक संरक्षण
 राजनीसतक तटथथता
 थथासयत्ि
 प्रसतभा के अधार पर भती, अक्रद
आससे िततमान में नौकरशाही समथयाओं से सघर गयी है।
 पारदर्णशता का ऄभाि
 जनता की अिश्यकताओं के प्रसत ऄनुिरदायी तथा ईदासीन होना
 ऄकु शलता तथा ऄक्षमता
 भ्रटों अचार-व्यिहार
प्रशासकीय सुधार अयोगों की दो ररपोटों के बाद भी कु छ बदलाि नहीं अ सका है।
मूल्यांकन की िततमान प्रणाली के साथ समथयाएं तथा निीन मूल्यांकन प्रणाली की
अिश्यकता
 भारत में जन सेिकों (ऄसखल भारतीय सेिाओं को छोड़ कर) मूल्यांकन की एक सीसमत
प्रणाली।
 आसमें ल्यों के पररभाषिाचक सिश्लेषण तथा कायत-सनष्पादन के मानदंडों के मूल्यांकन
का ऄभाि है।
 िरीय ऄसधकाररयों के िारा पक्षपात तथा राजनीसतक प्रभाि, आत्याक्रद
कायत-काल के मध्य में क्रकया जाने िाला कायत-सनष्पादन क्षमता का मूल्यांकन क्या है?
कायत-काल के मध्य में क्रकया जाने िाले कायत -सनष्पादन क्षमता संबंधी मूल्यांकन सनष्पादन
क्षमता की सनगरानी हेतु क्रकया जाता है। यह प्रत्येक सनयत ऄिसध के बाद ररपोटत क्रकये गए
सरकारी ऄसधकारी तथा ररपोटत करने िाले ऄसधकारी के बीच संपन्न क्रकया जाने िाला एक
संयुि ऄभ्यास है।
ल्यों को सनयत करते समय संपाक्रदत कायत की प्रकृ सत तथा क्षेर को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक
सिषय के ऄनुसार प्राथसमकता सनर्ददटों की जानी चासहए।
कायत-काल के मध्य में कायत-सनष्पादन क्षमता के मूल्यांकन का महत्ि
 आससे तीव्रगसत से पररिर्णतत हो रही संथथाओं में सहभागी के कायातधार में प्रयुि ज्ञान
तथा कु शलता का ऄद्यतनीकरण होगा।

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 आससे कायत-प्रोफाआल में अने िाले बदलािों (जैसा क्रक प्रायः प्रोन्नसत समलने पर घरटत
होता है) के सलए योग्यताओं का सिकास करने में सहायता समलेगी।
 यह औपचाररक शैक्षसणक योग्यताओं को ईन्नत करने का माध्यम बन सकती है। आससे
ऄसधकारी के अत्मसिर्श्ास में िृसद् होगी।
 ऄच्छे तथा पररश्रमी जन सेिक पुरथकृ त होंगे।
 कायत सनष्पादन के थपटों मानदंड सनयत होंगे।
 सनयत ल्यों तथा जन सेिकों के कायत सनष्पादन के सतत ररपोटों के कारण राजनीसतक
हथतक्षेप में कमी अयेगी।
 आससे नौकरशाह बेहतर सिेक्षण ऄंक प्राप्त करने के सलए ऄसधक पररश्रम से कायत करने
को बाध्य होंगे।
 सिभागों में व्यािसासयक प्रिृसियों का प्रिेश होगा।
 ऄक्षम जन सेिकों को चुन कर हटाये जाने से बेहतर ईम्मीदिारों के सलए थथान ईपलब्ध
होगा।
ऄसनिायत सेिा-सनिृसि के सकारात्मक पहलू:
 कायत-सनष्पादन में सिफल ऄसधकाररयों की सनिारण युसि।
 आससे ऄसधकाररयों के बीच करिन पररश्रम तथा कायत-कु शलता की प्रिृसि पनप सकती है।
 नौकरशाहों में नए कायत के अरम्भ करने या नए जोसखम ईिाने की सनसष्ियता में कमी
अयेगी।
 नौकरशाहों को प्रेरणा प्रदान करना।
नकारात्मक प्रभाि:
 इमानदार ऄसधकाररयों के सिरुद् राजनीसतक हसथयार के रूप में आसका दुष्प्रयोग क्रकया
जा सकता है।
 यद्यसप, मंरी तथा नौकरशाह एक साथ समल कर कायत करते हैं, क्रकन्त्तु आससे मंसरयों को
कभी-कभी नौकरशाहों पर ऄसधक सनयंरण प्राप्त हो सकता है सजससे ऄसधकारी की कायत -
सनष्पादन क्षमता पर बुरा प्रभाि पड़ सकता है।
ऄसनिायत सेिा-सनिृसि एक िांछनीय दृसटों कोण है चूँक्रक क्रकसी प्रणाली की कु शलता का
सनधातरण शसि का प्रयोग करने िाले लोगों को क्रदए जाने िाले प्रोत्साहनों के अधार पर होता
है। चूँक्रक नौकरशाहों िृहद् शसियों का प्रयोग करते हैं। एक गारंरटत नौकरी के गलत प्रलोभन
भी होते हैं। आससलए, कायत-काल के मध्य में क्रकया जाने िाला मूल्यांकन तथा ऄसनिायत सेिा-
सनिृसि भारत में नौकरशाही में ऄत्यािश्यक सुधारों का ऄंग हो सकते हैं।

2. भारत में सससिल सेिकों का छोटा कायतकाल ईनके प्रबंधन को क्रकस प्रकार ऄल्प प्रभािी

बनाता है? आस मुददे को संबोसधत करने के सलए सससिल सेिा बोडत की थथापना करने की
पहल पर अलोचनात्मक चचात कीसजए।
दृसटों कोण:
 सितप्रथम भारत में सससिल सेिकों के छोटे कायतकाल के मुद्दे की संसक्षप्त रूपरेखा प्रथतु त
कीसजए।
 आसके पिात, भारत में सससिल सेिकों के छोटे कायतकाल से संबद् महत्िपूणत मुद्दों को
प्रथतुत कीसजए।
 आसके पिात, सससिल सेिा बोडों की थथापना की ऄिधारणा को थपष्ट कीसजए और
आनके लाभों और आनसे जुड़ी स्चताओं को ईद्धृत करते हुए चचात कीसजए क्रक क्या यह
िततमान मुद्दों का प्रभािी समाधान करेगा।

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ईिर:
सससिल सेिकों को कायतकाल की सथथरता प्राप्त नहीं होती है, सिशेष रूप से राज्य सरकारों में
ईनके थथानांतरण और पदथथापन प्रायः कायतकारी प्रमुखों की सनक और मजी के ऄनुसार
क्रकए जाते हैं।
सससिल सेिकों के छोटे कायतकाल से सनम्नसलसखत मुद्दे संबंसद्त हैं:
 छोटा कायतकाल एिं पदथथापन के सलए राजनीसतक िगत पर सनभतरता के कारण सससिल
सेिकों में पक्षपात की प्रिृसि सिकससत हो जाती है। आस प्रिृसि के कारण ईनमें भ्रटों ाचार,
सहत-संघषत, भाइ-भतीजािाद एिं तटथथता का क्षरण, जैसी ऄन्त्य अशंकाएं बढ़ जाती हैं।
 भारत में महत्िपूणत पदों में कायतकाल की सुरक्षा का ऄभाि के कारण सससिल सेिा के
मनोबल और क्षमता में ऄत्यसधक ्ास हुअ है।
 सससिल सेिकों के छोटे कायतकाल के कारण ईनका कायत -सनष्पादन मापन एिं मूल्यांकन
का थतर ऄल्प-प्रभािी रह जाता है।
 महत्िपूणत पद धारण करने िाले सससिल सेिकों के मनमाना थथानांतरण कभी-कभी
जनसहत एिं सुशासन के ससद्ातों के सिरुद् चले जाते हैं।
 थथाइ कायतकाल, पदासीन ऄसधकाररयों को नौकरी के दौरान सीखने, ऄपनी क्षमता का
सिकास करने और तत्पिात सिोत्तम रूप से योगदान देने में सक्षम बनाने हेतु अिश्यक
है।
आस प्रकार, राजनीसतकरण एिं संरक्षणिाद से सससिल सेिकों की सुरक्षा हेतु सितीय
प्रशाससनक सुधार अयोग (ARC) और साथ ही सिोच्च न्त्यायालय ने 2013 में सनम्नसलसखत
ईद्देश्यों के सलए सससिल सेिा बोडत की थथापना करने की ऄनुशंसा की:
 राजनीसतक हथतक्षेपों से ऄसधकारी िगत का परररक्षण करना एिं सससिल सेिकों के बार-
बार थथानांतरण क्रकए जाने की कायतप्रणाली को समाप्त करना।
 थथानांतरण, पदथथापन, जाँच एिं प्रोन्त्नसत, पुरथकार, दण्ड एिं ऄनुशासनात्मक मामलों
के प्रक्रिया की, देखरेख करना।
 सससिल सेिकों को पद की सथथरता प्रदान करने से ईनकी कायत पद्सत में तटथथता एिं
सनष्पक्षता बनी रहेगी।
क्रकन्त्तु कु छ ऐसे मुद्दें हैं, जो सससिल सेिा बोडत की थथापना के ईद्देश्य को संभितः बासधत कर
सकते हैं:
 सक्षम ऄसधकारी जैसे क्रक के न्त्द्र के मामले में प्रधानमंरी एिं राज्य के मामले में मुख्यमंरी
सससिल सेिा बोडत की ऄनुशंसा को संशोसधत, पररिर्णतत या सनरथत कर सकते हैं, सजसके
कारणों को सलसखत रूप में दजत क्रकया जाना होगा।
 आस बोडत की ऄध्यक्षता राज्य के मुख्य ससचि िारा की जानी है, सजनके सहटन में टकराि
आस प्रक्रिया में हो सकता है।
 आस प्रकार, सससिल सेिा बोडत की थथापना करने के ऄसतररक्त आसकी राजनीसतक
पृथकता भी अिश्यक है। साथ ही कु छ िॉचडॉग जैसे क्रक समयपूित थथानांतरण के मामले
में लोकायुक्त की ऄनुमसत को आस ्‍यिथथा में समासिष्ट क्रकया जा सकता है।

3. 21िीं सदी की साितजसनक नीसत िथतुतः एक सामान्त्यज्ञ नौकरशाही की मांग करती है।
भारतीय सससिल सेिा के संदभत में सिश्लेषण कीसजए।
दृसटों कोण:
 अप या तो सामान्त्यज्ञ बनाम सिशेषज्ञ के िाद-सििाद के साथ ऄथिा सितप्रथम 21िीं
सदी की अिश्यकताओं को सूचीबद् करने के बाद, प्रश्न के दृसटों कोण का ऄनुसरण करते
हुए सिषय प्रिेश कर सकते हैं।
 नौकरशाही की अिश्यकताओं को ईन्त्हें पूरा करने की सामान्त्यज्ञ या सिशेषज्ञ क्षमताओं से
संबद् कीसजए।

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ईिर:
अम तौर पर, लोक सेिकों से के िल कु छ पहलुओं के गहरे शैक्षसणक (ऄकादसमक) ज्ञान की
तुलना में लोक नीसत के सिसिध पहलुओं से ऄिगत होने की ऄपेक्षा की जाती है। 21िीं सदी में
लोक सेिा की चुनौसतयां बहुमुखी और जरटल हैं। आसके सलए गिबंधनों का सनमातण करने ,
सिशेषीकृ त ज्ञान, पदानुिम में न ईलझने, ऄसधक सहयोग, कायतक्षेर (डोमेन) सिशेषज्ञता एिं
सरल पेशेिर संरचनाओं का सिकास करने की अिश्यकता है। आस संबंध में, सससिल सेिकों के
सिशेषज्ञ एिं सामान्त्यज्ञ दोनों ही दृसटों कोणों के ऄपने गुण और ऄिगुण हैं:
सिशेषज्ञ दृसटों कोण को ऄपनाना:
 सिकासशील ऄथतव्यिथथा में एक सिशेषज्ञ को, सामान्त्यज्ञ लाआन ऑसथररटी (generalist
line authority) से जुड़े कमतचाररयों के सेल के बजाय लाआन ऑसथररटी (line
authority) में शीषत थतर पर सिद्यमान रहना चासहए। आसका लाभ यह है क्रक आससे
शासन में नौकरशाही में कमी अएगी और यह ऄपेक्षाकृ त ऄसधक कायतिम ईन्त्मु ख एिं
प्रसतबद् बनेगी।
 सामान्त्यज्ञ प्रशासक अमतौर पर क्रकसी सिसशटों गसतसिसध के प्रसत सचरकासलक
(संधारणीय) रुसच सिकससत नहीं करता है। ऄपिादथिरूप यक्रद िह आस प्रकार की रुसच
पैदा भी कर लेता है तो िह सनष्फल हो जाती है क्योंक्रक जब तक िह क्रकसी कायत को
सीखता है, तब तक ईसका क्रकसी ऄन्त्य कायत के सलए थथानांतरण कर क्रदया जाता है।
 प्रबंधन एिं प्रशासन (जैसे साितजसनक क्षेरक के ईपिम) से संबंसधत ऄसधकाररयों को
ऄपने ईद्यमों की कायत-प्रणाली के संबंध में ईत्कृ ष्ट प्रसशक्षण-प्राप्त होना चासहए। एकमार
सैद्ांसतक, ऄसधकारीतंरीय सनयंरण के थथान पर अत्मसनभतर सुसिज्ञ ्‍यिथथा पर जोर
क्रदया जाना चासहए।
 कहा गया है क्रक सामान्त्यज्ञ लोग सनयमों, सिसनयमों एिं दृटों ांतों से बंधे होते हैं एिं
सनरंतरता, सािधानी और लाल-फीताशाही पर अिश्यकता से ऄसधक जोर क्रदया जाता
है।
 सिशेषज्ञों (समान कायत क्षेर के सिशेषज्ञता प्राप्त ्‍यसियों) में बेहतर अपसी समझ होती
है और आसके कारण कायत करने का ऄनुकूल िातािरण बन सकता है एिं बेहतर नीसतयाँ
सिकससत हो सकती हैं।
सामान्त्यज्ञ दृसटों कोण को ऄपनाना:
 सामान्त्यज्ञ प्रशासन कायतरूप में राजनीसत है। जैस-े जैसे पदानुिम बढ़ता जाता है, कायत का
प्रबंधन करने िाले ्‍यसियों की संख्या घटती जाती है और संसाधनों का प्रबंधन करने की
ऄसधकासधक शसि प्राप्त होती जाती है। यह प्रक्रिया ऄसधकारी में सरकार के सामान्त्य
दृसटों कोण को प्रिर्णतत करने के सलए ईत्तरोत्तर ऄसधकासधक सजम्मेदारी सनसहत करती
जाती है।
 शीषत प्रबंधन थतरीय कायत के सलए सामान्त्य समझ की अिश्यकता होती है। आस कायत के
सलए सितसमािेशी दृसटों कोण की अिश्यकता होती है।
 ऄसधकतर सिशेषज्ञ अम तौर पर ऄपने सिचारों को ्‍यक्त करने के सलए गूढ़ भाषा का
प्रयोग करते हैं। आसके कारण प्रशासन में गैर-सिशेषज्ञ मंरी एिं ऄसत सिसशटों सिशेषज्ञ
ससचिों के बीच संिाद में करिनाइ अती है।
आस प्रकार सससिल सेिा के सलए सामान्त्यज्ञों एिं सिशेषज्ञों दोनों के समश्रण की अिश्यकता
होती है। हालांक्रक, िततमान समय में नौकरशाही को जीिन िृसि बनाए जाने के बोलबाले ने
सरकारी तंर से बाहर के आच्छु क और योग्य सिशेषज्ञों को सरकार में ससम्मसलत होने से रोका

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है। यहाँ तक क्रक ऄसधकतर मामलों में कायतकारी भूसमकाएँ प्रदान करने के थथान पर सित्त जैसे
जरटल मंरालयों में भी ऄकादसमक ऄथतशासस्त्रयों को के िल परामशतदायी भूसमकाओं तक
सीसमत रखा गया है। नौकरशाही के सिशेषज्ञ तंर के सनमातण का ऄथत पाश्ित प्रिेशों (lateral
entries) के माध्यम से शीषत थतर पर एकासधकार की समासप्त; एिं ऄसधक अयु के
ऄसधकाररयों को ईच्च पद प्रदान करने की पररपाटी की समासप्त होगी, क्योंक्रक कम अयु के
सिशेषज्ञ ्‍यसियों को ईच्च पदों पर ऄसधकार प्राप्त हो जाएगा। ये पररिततन कायत -सनष्पादन
प्रबंधन में सुधार करेंगे एिं तकत बुसद्िादी नौकरशाही का सूरपात करेंगे , जो 21िीं सदी में
ऄपेसक्षत है।

4. नौकरशाही का लोकतंर के साथ प्रेम-घृणा का संबध


ं है। एक सेिक के रूप में नौकरशाही
ऄमूल्य है, लेक्रकन एक थिामी के रूप में यह हमें बबातद भी कर सकती है। थितंरता के बाद से
भारत में लोकतंर और नौकरशाही के बीच के सम्बन्त्धों के अलोक में आसकी चचात करें। आसके
ऄलािा, ईन तरीकों का भी परीक्षण करें सजससे नौकरशाही की लोकतांसरक सिर्श्सनीयता
को मजबूत क्रकया जा सकता है।
दृसटों कोणः
लोकतंर में नौकरशाही के महत्ि की चचात करें और तब नौकरशाही एिं लोकतंर के बीच
संघषों के कारणों को रेखांक्रकत करते हुए नौकरशाही की प्रकृ सत में ऐसतहाससक बदलाि की
पहचान करें। ऄन्त्त में नौकरशाही की लोकतांसरक साख को मजबूत करने के सलए सुझाि दें,
ईदाहरण के सलए सससिल सेिा सुधार, RTI।
ईिरः
सबडंबना यह है क्रक नौकरशाही और लोकतंर को राजनीसतक व्यिथथा के पूरक और
सिरोधात्मक गुण के रूप में देखा जाता है। लोकतंर में नौकरशाही कु छ महत्िपूणत दासयत्िों को
सनभाती है, ईदाहरण के सलए, नौकरशाही सिसध सम्मत शासन मजबूत बनाने, थितंर और
सनष्पक्ष चुनाि का संचालन करने , अर्णथक लोकतंर की थथापना करने एिं नीसतयों के
कायातन्त्ियन/मूल्यांकन और सनगरानी में सहायता करती है।
लोकतंर के अरसम्भक 40 िषों के दौरान नौकरशाही ने लोक सेिाओं के सितरण हेतु ऄसत
शसिशाली, गुप्त और सम्भ्रान्त्त संगिन के रूप में कायत क्रकया। हालांक्रक, 1990 के बाद
सहभागी लोकतंर और सिके न्त्द्रीकरण पर जोर के साथ, यह लोक अिश्यकताओं के प्रसत
संिेदनशील, ऄसधक खुला और सक्रिय संगिन बनने की क्रदशा में ऄपना चररर बदल रहा है।
क्रफर भी, नौकरशाही के सिरुद् ईसकी लोकतांसरक साख पर सिाल के साथ अरोप लग रहे
हैः
 यह एक ईपकरण/ईपाय से खुद के सिशेषासधकारों और स्चताओं िाली संथथा में
रूपांतररत हो गइ है।
 नौकरशाही प्रकायो के भीतर किोर प्रणाली, ऄनािश्यक जरटलताएं, नीसत और प्रबन्त्धन
ढांचों में ऄसत के न्त्द्रीकरण ऄकसर बहुत बाधा पैदा करती हैं।
 हमारा समाज अर्णथक िृसद्, शहरीकरण, प्रौद्योसगकीय पररिततन अक्रद के रूप में तीव्र
पररिततन का साक्षी बन रहा है। लेक्रकन धारणा यह है क्रक नौकरशाही ऐसे पररिततनों का
प्रसतरोध करती है।
 यह प्रायः नागररक समाज, राजनीसतक दलों, और थथानीय सनकायों की भूसमका में बाधा
डालता है।

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 नौकशाही की सनष्पक्षता हमेशा सन्त्दह


े के दायरे में रहती है।
 नागररकों के बारे में ज्यादा से ज्यादा सूचनाएं आकििा करने, भण्डारण, सिश्लेषण और
पुनःप्राप्त करने की प्रणाली का सिकास करके नौकरशाही में लोगों के सनजी जीिन में
दखलंदाजी की प्रिृसि होती है।
 ऄमेररकी नौरशाही की सफलता को प्रायः आसके प्रसतसनधात्मक चररर से जोड़कर देखा
जाता है। आसे सम्पूणत समाज के सू्म जगत के रूप में माना जाता है। भारतीय नौकरशही
आस मानदण्ड के पैमाने पर नहीं है।
नौकरशाही की लोकतांसरक साख में सुधार हेतु सुझािः
 किोर सनयमों ि सिसनयमों के सख्त ऄनुपालन की बजाय सिकासात्मक कायों के सलए
कु छ लोचशीलता की अिश्यकता है।
 सससिल सेिकों की भती के मामले में सुधार अिश्यक है।
 RTI, नागररक चाटतर, समासजक अकें क्षण, लोकपाल अक्रद जैसे ईपकरणों का
प्रभािशाली कायातन्त्ियन हो।
 भ्रटों ों के सिरुद् ऄनुकरणीय और त्िररत कारतिाइ होनी चासहए।
 नौकरशाही को ऄसधक सहतधारक भागीदारी की ओर ईन्त्मुख क्रकया जाना चासहए।
 इ-शासन को मजबूत बनाने से जिाबदेही सुसनसित होगी।
ऄसधकारों के सिके न्त्द्रीकरण और कॉलेसजयम सनणतय से लोकतांसरक साख में िृसद् होगी।

5. लोकतन्त्र में सुशासन हेतु मसन्त्रयों एिं नौकरशाहों के मध्य थिथथ कायतकारी सम्बन्त्ध बहुत
महत्िपूणत हैं क्रफर भी नौकरशाही को राजनीसतक प्रभाि से ऄिश्य ही मुि होना चासहए।
रटप्पणी कीसजये।
दृसटों कोणः
आस प्रश्न का ईद्देश्य राजनीसतक और थथायी कायतपासलका के बीच संबंधों की परख करना है।
एक नौकरशाह से राजनीसतक रूप से तटथथ और व्यिहार में सनष्पक्ष होने की अशा की जाती
है। ईिर में आस बात की व्याख्या की जानी चासहए क्रक क्रकस प्रकार समय के साथ-साथ
राजनीसतक तटथथता की ऄिधारणा खत्म होती जा रही है और क्रकस प्रकार आसे पुनः
प्रसतथथासपत क्रकया जाना चासहए।
ईिरः
नौकरशाहों और राजनीसतक कायतपासलका के बीच संबध
ं का महत्ि
 क्रकसी प्रजातंर में शसि जनता में सनसहत होती है। यह शसि आसके चुने गए प्रसतसनसधयों
के िारा ईपयोग में लाइ जाती है सजनके पास एक सनसित ऄिधी तक ईन पर शासन कर
सकने का जनादेश होता है।
 ऄपने ज्ञान, ऄनुभि और जन मामलों की समझ के बल पर नौकरशाही नीसत सनमातण में
चुने गए प्रसतसनसधयों की सहायता करती हैं तथा ईन नीसतयों को क्रियासन्त्ित करने के
सलए ईिरदायी होती हैं।
 आससलए, ऄच्छी शासन व्यिथथा के सलए मंसरयों और नौकरशाहों के बीच थिथथ
कायतकारी सम्बन्त्ध का होना ऄत्यंत महत्िपूणत है।
 एक बार कानून बन जाने और सनयमों और सनयामकों के थिीकृ त हो जाने पर, िे हर
व्यसि पर एक सामान रूप से लागू होती हैं, क्रफर चाहे िो राजनीसतक कायतपासलका का
सदथय हो या थथायी नौकरशाही का।
 एक नौकरशाह से यह ऄपेक्षा की जाती है क्रक िह सबना क्रकसी पक्षपात के , इमानदारी के
साथ और सबना क्रकसी भय या झुकाि के सरकार के अदेशों को लागू करे।

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नौकरशाही की तटथथता
 दुभातग्य से, नौकरशाही के तटथथ रहने की ऄिधारणा ऄब खत्म होती क्रदख रही है।
सरकार में पररिततन-खास तौर से राज्य थतर पर-नौकरशाहों के बड़े थतर पर थथानांतरण
को जन्त्म देता है।
 बहुत से नौकरशाहों के , चाहे यह सही हो या गलत, क्रकसी सिशेष राजनीसतक धड़े से जुड़े
होने का प्रमाण समलने के बाद राजनीसतक तटथथता ऄब थिीकृ त कसौटी नहीं रह गयी
है।
 ऐसा समझा जाता है क्रक के न्त्द्र सरकार में भी ऄसधकाररयों को ईपयुि पद प्राप्त करने के
सलए राजनीसतज्ञों का िरदहथत प्राप्त करना अिश्यक हो जाता है। सजस कारण जन
सामान्त्य की ऄिधारणा में नौकरशाही को और ऄसधक राजनीसतक रंग में रंगा हुअ
समझते हैं।
 नौकरशाही की राजनीसतक तटथथता और सनष्पक्षता को सुरसक्षत रखना अिश्यक हो
गया है। आसकी सजम्मेदारी राजनीसतक कायतपासलका और नौकरशाही दोनों पर समान
रूप से है।
 मंसरयों को नौकरशाही की राजनीसतक सनष्पक्षता को समथतन देना चासहए, तथा
नौकरशाही को क्रकसी भी ऐसे तरीके से कायत करने को नहीं कहना चासहए जो ईनके
दासयत्िों और सजम्मेदाररयों के साथ मेल नहीं खाता।
 ऄगर संक्षेप में कहें तो, मंसरयों या सांसदों या सिधायकों िारा नौकरशाही को सौंपे गए
कायत में सनरंकुश और ऄिैध हथतक्षेप एक प्रभािी सरकार के सलए न तो िांसछत है और न
ही लाभकारी।

6. UPSC मुख्य परीक्षा में सिगत िषों में पूछे गए प्रश्न


1. UPSC 2014: क्या संिगत अधाररत सससिल सेिा संगिन भारत में धीमे पररिततन का कारण
रहा है? समालोचनापूितक परीक्षण कीसजए।
2. UPSC 2016: ‘‘पारम्पररक ऄसधकारीतंरीय संरचना और संथकृ सत ने भारत में सामासजक-
अर्णथक सिकास की प्रक्रिया में बाध डाली है।’’ रटप्पणी कीसजए।
3. UPSC 2017: प्रारंसभक तौर पर भारत में लोक सेिाएं तटथथता और प्रभािशीलता के
ल्यों को प्राप्त करने के सलए ऄसभकसल्पत की गइ थी, सजनका िततमान संदभत में ऄभाि
क्रदखाइ देता है I क्या अप आस मत से सहमत हैं की लोक सेिाओं में कड़े सुधारों की
अिश्यकता हैं ? रटपणी कीसजये I

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विकास प्रक्रियाएं तथा विकास ईद्योग – गैर-सरकारी संगठनों, स्ियं सहायता समूहों,
विवभन्न समूहों ि संघों, दानकतााओं, लोकोपकारी संस्थाओं, संस्थागत एिं ऄर्नय पक्षों/
वहतधारकों की भूवमका

विषय सूची

1. विकास प्रक्रियाएं (Development Processes) ___________________________________________________ 63

1.1. विकास और विकास प्रक्रिया क्या है? _________________________________________________________ 63

2. वसविल सोसायटी (नागररक समाज) (Civil Societies) _______________________________________________ 64

2.1. वसविल सोसाआटी क्या है? ________________________________________________________________ 64

2.2. भारत में वसविल सोसायटी ________________________________________________________________ 65

2.3. भारत में वसविल सोसाआटी के प्रकार __________________________________________________________ 66

2.4. स्िैवछिक क्षेत्र पर राष्ट्रीय नीवत _____________________________________________________________ 67

3. ग़ैर-सरकारी संगठन _______________________________________________________________________ 67

3.1. NGOS क्या हैं? (What are NGOS?) ______________________________________________________ 67

3.2. NGOS के प्रकार (Types of NGOS) _______________________________________________________ 68

3.3. विकास में NGOS की भूवमका _____________________________________________________________ 69

3.4. पयाािरण संरक्षण में NGOS की भूवमका _______________________________________________________ 70

3.5. भारत में NGOS द्वारा सामना की जाने िाली चुनौवतयााँ ____________________________________________ 71

3.6. राज्य बनाम NGOS (State v/s NGOS) _____________________________________________________ 72

3.7. NGOS की कायाप्रणाली में सुधार हेतु सुझाि ____________________________________________________ 73

4. स्ियं सहायता समूह _______________________________________________________________________ 74

4.1. SHGS क्या हैं? (What are SHGS?) ______________________________________________________ 74

4.2. SHGS कै से काया करते हैं?________________________________________________________________ 74

4.3. भारत में SHGS का ईद्भि _______________________________________________________________ 75

4.4. SHGS के लाभ (Benefits of SHGS) ______________________________________________________ 76

4.5. SHGS से संबद्ध सामार्नय मुद्दे (General Issues related to SHGS) _________________________________ 76

4.6. ग्रामीण क्षेत्रों में SHGS के प्रिेश में सामावजक-सांस्कृ वतक बाधाएं ______________________________________ 77

4.7. SHGS को बढ़ािा देने के वलए सरकार द्वारा ईठाये गए कदम _________________________________________ 77

4.8. SHGS की कायाप्रणाली में सुधार के वलए सुझाि__________________________________________________ 78

5. विकास में सहायता और वनजी वित्त पोषण ________________________________________________________ 79

61
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5.1. भारत में विकास सहायता ________________________________________________________________ 79

5.2. भारत में विदेशी सहायता (Foreign Aid to India) ______________________________________________ 80

5.3. विदेशी वित्त पोषण एिं NGOS ____________________________________________________________ 81

5.4. भारत से विदेशी सहायता ________________________________________________________________ 82

6. सूक्ष्मवित्त संस्थाएं (Microfinance Institutions) __________________________________________________ 83

6.1. सूक्ष्मवित्त संस्थान क्या हैं? ________________________________________________________________ 83

6.2. विकास में सूक्ष्मवित्त संस्थानों की भूवमका ______________________________________________________ 84

6.3. सूक्ष्मवित्त संस्थानों से संबवं धत मुद्दे ___________________________________________________________ 85

6.4. सूक्ष्मवित्त संस्थानों के कायाकरण में सुधार लाने हेतु सुझाि ___________________________________________ 85

7. सोसाआटी, र्नयास, दानकताा, लोकोपकारी संस्था और ऄर्नय पक्ष/वहतधारक ____________________________________ 86

7.1. सोसाआटी (Societies) __________________________________________________________________ 86

7.2. र्नयास, ररलीवजयस एनडाईनमेंट (धार्ममक धमास्ि) और िक्फ __________________________________________ 86


7.2.1. र्नयास (Trusts) ______________________________________________________________________ 87
7.2.2. ररलीवजयस एनडाईनमेंट (धार्ममक धमास्ि) ___________________________________________________ 87
7.2.3. भारत में िक्फ (Waqfs in India) ________________________________________________________ 88

7.3. श्रवमक संघ (Trade Unions) _____________________________________________________________ 89

8. विगत िषों में Vision IAS GS मेंस टेस्ट सीरीज में पूिे गए प्रश्न _________________________________________ 89

9. विगत िषों में संघ लोक सेिा अयोग (UPSC) द्वारा पूिे गए प्रश्न ________________________________________ 101

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1. विकास प्रक्रियाएं (Development Processes)


1.1. विकास और विकास प्रक्रि या क्या है ?

(What is Development and Development Process?)


 विकास (development) शर्फद के कइ ऄथा हैं, लेक्रकन प्राय: आसे अर्मथक संिवृ द्ध (economic
growth) से जोड़ कर देखा जाता है। जबक्रक व्यापक संदभा में आसे सामावजक विकास, संधारणीय
विकास और मानि विकास जैसे िृहद् ऄथों से जोड़कर देखा जाता है।
 सरल शर्फदों में, विकास का ऄथा है 'एक ऐसा सामावजक पररितान लाना जो लोगों को ईनकी
मानिीय क्षमता प्राप्त करने में सहायक हो'।
 ऄमर्तया सेन ने विकास की ऄिधारणा को एक नया अयाम क्रदया है। िह विकास को एक
राजनीवतक प्रक्रिया के रूप में देखते हैं।
 सेन के ऄनुसार, विकास में ईन विवभन्न प्रकार के ऄस्िातर्न्य या स्िातं्यविहीनताओं
(unfreedoms) का वनिारण शावमल है जो लोगों को ईनके सामर्थया के ऄनुसार काया करने में
थोड़े विकल्प और थोड़े ऄिसर प्रदान करती हैं।

विकास के अयाम
 एक राजनीवतक प्रक्रिया के रूप में विकास: आसे क्रकसी एजेंसी (राज्य या विकास संगठन) द्वारा
दूसरों के वलए क्रकए गए काया के रूप में समझा जा सकता है। आसे राजनीवतक प्रक्रिया कहा जाता है
क्योंक्रक यह आस बात पर प्रश्न ईठाता है क्रक क्रकसी के वलए कु ि करने की शवि क्रकसके पास है।
 मानि विकास: सेन आस दृविकोण के
प्रमुख ििा रहे हैं। िे अर्मथक संिृवद्ध
को विकास के मापक के रूप में समझे
जाने िाले दृविकोण को ऄर्तयंत
दोषपूणा और ऄपयााप्त मानते हैं।
ईर्नहोंने मानि ऄवधकारों को विकास के
एक मौवलक भाग के रूप में सवर्भमवलत
करते हुए आस (विकास) शर्फद को पुन:
पररभावषत क्रकया और यह भी व्याख्या
की क्रक सामावजक पररितान की सभी
ईवचत प्रक्रियाएं ऄवधकार-अधाररत
और अर्मथक रूप से एक-साथ स्थावपत
होती हैं। सेन के द्वारा प्रवतपाक्रदत
क्षमता दृविकोण (capability
approach) समाज के सबसे वनचले वहस्से में रहने िाले लोगों के कल्याण पर कें क्रित है, न क्रक
शीषा पर विद्यमान लोगों की दक्षता पर।
 संधारणीय विकास: ब्रुर्न्टलैंड अयोग की ररपोटा जो बाद में "हमारा साझा भविष्य" (Our
Common Future) शीषाक से पुस्तक के रूप में प्रकावशत हुइ, आसमें संधारणीय विकास को एक
ऐसे विकास के रूप में पररभावषत क्रकया गया है जो भािी पीक्रढ़यों को ईनकी स्ियं की
अिश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता के साथ समझौता क्रकए वबना, ितामान की अिश्यकताओं
को पूरा करता है। आसे प्राप्त करने के वलए, संयुि राष्ट्र ने संधारणीय विकास लक्ष्यों (Sustainable
Development Goals: SDGs) को ऄपनाया है वजर्नहें िषा 2030 तक प्राप्त क्रकया जाना है।

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ईल्लेखनीय है क्रक SDGs के goals (लक्ष्य) और targets (प्रयोजन) सािाभौवमक हैं, वजसका ऄथा
है क्रक िे दुवनया भर के सभी देशों पर लागू होते हैं, न क्रक के िल गरीब देशों पर। लक्ष्यों (goals)
को हावसल करने के वलए सभी मोचों पर कायािाही की अिश्यकता है – सरकार, व्यिसाय,
वसविल सोसाआटी और जनता। सभी को कोइ न कोइ भूवमका वनभानी है।

 अर्मथक विकास: अर्मथक विकास िह प्रक्रिया है वजसके द्वारा एक राष्ट्र ऄपनी जनता के अर्मथक,
राजनीवतक और सामावजक कल्याण में सुधार करता है। यह अर्मथक संिृवद्ध से एक प्रकार से वभन्न
है क्योंक्रक आसमें मात्रार्तमक और गुणार्तमक, दोनों पररितान सवर्भमवलत होते हैं। आसके ऄवतररि, यह
एक ऐसी प्रक्रिया है वजसके द्वारा कम अय िाली राष्ट्रीय ऄथाव्यिस्थाएं अधुवनक औद्योवगक
ऄथाव्यिस्थाओं में पररिर्मतत होती हैं।
 सामावजक विकास: सामावजक विकास का ऄथा है जनता के चहुंमुखी विकास हेतु वनिेश करना।
आसके वलए विवभन्न बाधाओं को दूर करने की अिश्यकता होती है ताक्रक सभी नागररक
अर्तमविश्वास और गररमा के साथ ऄपने सपनों की ओर अगे बढ़ सकें । यह आस ऄिधारणा का
पररर्तयाग करना है क्रक गरीबी में रहने िाले लोग हमेशा गरीब ही रहेंगे। यह लोगों की सहायता
करने से संबंवधत है ताक्रक िे अर्तमवनभारता के मागा पर अगे बढ़ सकें । भारत के संदभा में , यह
ऄवधक महर्तिपूणा हो जाता है क्योंक्रक जावत व्यिस्था जैसी सामावजक बाधाएं, क्रकसी के सामर्थया को
ऄनुभि करने और सामावजक स्ितंत्रता का अनंद लेने में बड़ी रुकािटें वसद्ध होती हैं। राज्य द्वारा
की गइ कायािाही के मार्धयम से आस प्रकार की बाधाओं को दूर करना सामावजक विकास का
महर्तिपूणा वहस्सा है।

2. वसविल सोसायटी (नागररक समाज) (Civil Societies)

2.1. वसविल सोसाआटी क्या है ?

(What are Civil Societies?)


विश्व बैंक के ऄनुसार, वसविल सोसाआटी िस्तुतः संगठनों, सामुदावयक समूहों, गैर-सरकारी संगठनों
(NGOs), श्रवमक संघों, स्िदेशी समूहों, धमााथा संगठनों, अस्था-अधाररत संगठनों, पेशेिर संघों और
प्रवतष्ठानों के एक विस्तृत समूह को संदर्मभत करता है।
 िैवश्वक स्तर पर, 'वसविल सोसायटी' पद 1980 के दशक में लोकवप्रय हुअ, जब आसे सत्तािादी

शासन (authoritarian regime) का विरोध करने िाले गैर-राज्यीय अंदोलनों के साथ पहचान
वमली, विशेष रूप से पूिी यूरोप और लैरटन ऄमेररका में।

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 जब वसविल सोसाआटी अपस में संगरठत होते हैं तब कभी-कभी आर्नहें "तृतीय क्षेत्रक" (सरकार और
िावणज्य के बाद) भी कहा जाता है। ऐसे में आनके पास वनिाावचत नीवत वनमााताओं और व्यिसायों
के कायों को प्रभावित करने की शवि होती है।
 प्रवसद्ध वसविल सोसाआटी संगठनों के ईदाहरणों में एमनेस्टी आंटरनेशनल, आंटरनेशनल ट्रेड यूवनयन
कर्नफे डरेशन, िल्डा िाआड फं ड फॉर नेचर (WWF), ग्रीनपीस और डेवनश रेर्पयूजी काईं वसल
(DRC) सवर्भमवलत हैं।
वनम्नवलवखत वचत्र वसविल सोसाआटी के ऄवस्तर्ति और संधारणीयता हेतु विवभन्न महर्तिपूणा कारकों को
दशााता है:

2.2. भारत में वसविल सोसायटी

(Civil Society in India)


 भारत में वसविल सोसाआटी ऄपनी शवियां स्िेछिा से ऄपनी सेिा समर्मपत करने की गांधीिादी
परंपरा से प्राप्त करती हैं, लेक्रकन ितामान समय में ये स्ियं को सक्रियतािाद के कइ वभन्न-वभन्न रूपों
से जोड़ चुके हैं। स्ितंत्र भारत में, गांधीजी और ईनके ऄनुयावययों द्वारा अरंभ क्रकए गए स्िैवछिक
संगठनों की प्रारंवभक भूवमका िस्तुतः विकास प्रक्रिया के दौरान सरकार द्वारा िोड़े गए ऄंतरालों
को भरने की थी।
 स्ियंसेिकों ने गांिों में हथकरघा बुनकरों को सहकारी सवमवतयों के गठन के वलए संगरठत क्रकया,
वजसके मार्धयम से िे ऄपने ईर्तपाद का सीधे तौर पर विपणन कर सकते थे और बेहतर मूल्य प्राप्त
कर सकते थे। ऄमूल ऐसे ही एक सहकारी अंदोलन का पररणाम है।
 वसविल सोसाआटी सुशासन में एक महर्तिपूणा भूवमका वनभाते हैं। चूंक्रक भारत में सहभागी लोकतंत्र
नहीं है, ऄवपतु यहााँ प्रवतवनवध लोकतंत्र है, ऄतः सरकार स्ियं ही सभी प्रमुख वनणाय लेती है। आस
प्रकार यहााँ वसविल सोसाआटी सरकार और जनता के मर्धय ऄंतःक्रिया के वलए आंटरफ़े स के रूप में
काया करते हैं।
 सुशासन में वसविल सोसाआटी के वनम्नवलवखत कायाार्तमक योगदान हो सकते हैं:
o पहरेदार: मानिावधकारों का ईल्लंघन और शासकीय त्रुरटयों के विरुद्ध।
o पक्षसमथाक (एडिोके सी): कमजोर िगा के दृविकोण का समथाक।
o अंदोलनकारी: पीवड़त नागररकों की ओर से।
o वशक्षक: नागररकों के ईनके ऄवधकारों, हक/पात्रता और वजर्भमेदाररयों के प्रवत जागरूक
करने में और सरकार को लोगों के मनोभाि के बारे में सचेत करने में।

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o सेिा प्रदाता: ईन क्षेत्रों और लोगों के वलए जहां तक अवधकाररक प्रयास पहुाँच नहीं पाए
हैं या सरकार के एजेंटों के रूप में।
o संघटक (Mobiliser): क्रकसी कायािम या नीवत के पक्ष में या ईसके विरुद्ध सािाजवनक
राय का संघटक।
 वसविल सोसाआटी 'सामावजक पूंजी' के मार्धयम से काया करता है। यहााँ सामावजक पूंजी का तार्तपया
साझे दीघाकावलक वहतों को पूरा करने हेतु लोगों के स्िेछिापूिाक एक-साथ काया करने की क्षमता से
है। क्रकसी सजातीय, समतािादी समाज में सामावजक पूंजी सशि होती है।

2.3. भारत में वसविल सोसाआटी के प्रकार

(Types of Civil societies in India)


वसविल सोसाआटी संगठन वजस क़ानून के ऄधीन काया करते हैं तथा वजन गवतविवधयों को िे संचावलत
करते हैं, ईस अधार पर हमारे देश में वसविल सोसाआटी को वनम्नवलवखत व्यापक िगों में बांटा जा
सकता है (जैसा क्रक 2nd ARC ने वनधााररत क्रकया है):
 विवशि ईद्देश्यों के वलए गरठत पंजीकृ त सोसाआरटयां ;
 धमााथा संगठन तथा र्नयास;
 स्थानीय वहतधारक समूह, माआिोिे वडट तथा वनक्षेप संस्थाएं, SHGs;
 व्यािसावयक स्ि-वनयामक वनकाय;
 सहकारी सवमवतयां;
 वबना क्रकसी औपचाररक सांगठवनक संरचना िाले वनकाय; तथा
 सरकार द्वारा समर्मथत तृतीय क्षेत्रक के संगठन।
हालांक्रक, सभी गैर-सरकारी तथा गैर-लाभकारी संगठनों को सवर्भमवलत कर व्यापक रूप से ईर्नहें
वनम्नवलवखत रूप में िगीकृ त क्रकया जा सकता है:
 नागररक ऄवधकारों के समथाक संगठन: मवहलाओं, प्रिावसयों, क्रदव्यांग जनों, HIV से संिवमत
लोगों, यौन कार्ममकों, दवलतों, जनजातीय लोगों, तथा आस प्रकार के ऄर्नय समुदायों के
मानिावधकारों को समथान तथा प्रोर्तसाहन देना।
 नागररक स्ितंत्रता के समथाक संगठन: विवशि सामावजक समूहों पर र्धयान के वर्नित करने के स्थान
पर िैयविक नागररक स्ितंत्रता तथा सभी नागररकों के मानिावधकारों को प्रोर्तसाहन देना।
 समुदाय अधाररत संगठन, नागररक समूह, क्रकसान सहकारी सवमवतयां: सािाजवनक नीवत से
संबंवधत मुद्दों में नागररकों की भागीदारी बढ़ाना ताक्रक क्रकसी समुदाय विशेष में जीिन की
गुणित्ता में सुधार लाया जा सके ।
 व्यािसाय तथा ईद्योग संगठन: व्यािसाय से संबंवधत नीवतयों तथा कायों का प्रोन्नयन करना।
 श्रवमक संघ: कमाचाररयों एिं श्रवमकों के ऄवधकारों को प्रोर्तसाहन देना।
 ऄंतरााष्ट्रीय शांवत एिं मानिावधकार संगठन: शावर्नत तथा मानिावधकारों को प्रोर्तसाहन देना।
 मीवडया, संिाद संगठन: एक या ऄवधक मीवडया रूपों में प्रोडक्शन सुविधाओं की प्रस्तुती, तथा
प्रसार; आसमें टेलीविज़न, प्रप्रटटग तथा रेवडयो सवर्भमवलत हैं।
 राष्ट्रीय संसाधन संरक्षण तथा सुरक्षा संगठन: सािाजवनक ईपयोग के वलए भूवम, जल, उजाा, िर्नय-
जीिन तथा पादप संसाधनों जैसे प्राकृ वतक संसाधनों के संरक्षण को बढ़ािा देना।
 वनजी तथा सािाजवनक अधार: ऄनुदानों तथा साझेदारी के मार्धयम से विकास को प्रोर्तसाहन देना।
 वसविल सोसाआटी में ये भी सवर्भमवलत हैं: राजनीवतक दल, धार्ममक संगठन, हाईप्रसग सहकारी
सवमवतयां अक्रद।

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2.4. स्िै वछिक क्षे त्र पर राष्ट्रीय नीवत

(National Policy on Voluntary Sector)


स्िैवछिक क्षेत्र पर राष्ट्रीय नीवत, 2007 िस्तुतः एक स्ितंत्र, रचनार्तमक एिं प्रभािी स्िैवछिक क्षेत्रक को
प्रोर्तसाहन देन,े सक्षमता प्रदान करने तथा ईसे सशि बनाने के प्रवत एक संकल्प है ताक्रक यह भारत क
लोगों के सामावजक, सांस्कृ वतक एिं अर्मथक ईन्नवत में सहायक हो सके ।
आस नीवत के लक्ष्य
 स्िैवछिक संगठनों (Voluntary Organizations: VOs) के वलए एक सक्षम िातािरण का
वनमााण करना, वजससे न के िल ईनकी प्रभािकाररता में िृवद्ध हो बवल्क ईनकी पहचान की रक्षा हो
सके तथा ईनकी स्िायत्तता भी कायम रखी जा सके ।
 स्िैवछिक संगठनों को भारत तथा विदेशों से अिश्यक वित्तीय संसाधनों की प्रावप्त हेतु क़ानूनी
ऄवधकार प्रदान करना।
 ऐसी प्रणाली की पहचान करना वजससे सरकार स्ियं स्िैवछिक क्षेत्रक के साथ काम कर सके ।
 पारदशी तथा ईत्तरदायी शासन एिं प्रबंधन प्रणावलयों को ऄपनाने के वलए स्िैवछिक संगठनों को
प्रोर्तसावहत करना।
आस प्रकार, स्िैवछिक क्षेत्र पर राष्ट्रीय नीवत, 2007 एक ऐसी प्रक्रिया को अरर्भभ करने की पररकल्पना
करती है वजससे स्िैवछिक संगठनों की स्िायत्तता एिं पहचान को प्रभावित क्रकए वबना सरकार तथा
स्िैवछिक क्षेत्रक के बीच एक निीन काया-संबंध (working relationship) विकवसत हो सके ।
विश्लेषण
 स्िैवछिक क्षेत्र पर राष्ट्रीय नीवत, 2007 में पररकवल्पत ऄवधकतर नीवतयों को कायाावर्नित नहीं
क्रकया जा सका है, जबक्रक ऄवधकांश वहतधारकों से व्यापक विचार-विमशा के पश्चात् आन क्रदशा-
वनदेशों को अकार क्रदया गया था।
 गैर-लाभकारी संगठन के वलए एक राष्ट्रीय मार्नयता प्राप्त एजेंसी के विचार का प्रस्ताि रखा गया
था, लेक्रकन आस संबंध में कु ि भी नहीं क्रकया गया है।
 आस नीवत में NGOs द्वारा स्ि-वनयमन, पारदर्मशता तथा जिाबदेही के पालन का अह्िान क्रकया
गया था, लेक्रकन सिोच्च र्नयायालय के हाल के वनणाय तथा IB की ररपोटा आसके विपरीत हैं।
 आसके ऄवतररि, क्रकसी स्िैवछिक संगठन का विविधतापूणा चररत्र एकल समान वनयामक
प्रावधकरण से मेल नहीं खाता।

3. ग़ैर -सरकारी संग ठन


(Non-Governmental Organizations: NGOs)

3.1. NGOs क्या हैं ? (What are NGOs?)


संरचनार्तमक रूप से व्यिवस्थत तथा विशेष प्रकार का काया वनष्पाक्रदत करने िाली वसविल सोसाआटी को
NGOs कहते हैं।
NGOs की विशेषताएं
 यह वनजी व्यवियों का एक ऐसा समूह है जो कु ि विशेष सामावजक वसद्धांतों में विश्वास रखते हैं।
 िे वजस समुदाय की सेिा कर रहे होते हैं, ईसके विकास के वलए ऄपनी गवतविवधयों को एक विशेष
रूप प्रदान करते हैं।
 यह एक प्रकार का सामावजक विकास संगठन होता है।
 ये स्ितंत्र, प्रजातांवत्रक और गैर-नस्लीय सािाजवनक संगठन होते हैं, जो अर्मथक और/या सामावजक
रूप से िंवचत लोगों के सशिीकरण के वलए काया करते हैं।
 NGOs ऐसे संगठन होते हैं, जो क्रकसी भी राजनीवतक दल से सर्भबद्ध नहीं होते।

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भारत में NGOs का ईद्भि

ऄिवध गवतविवधयााँ

स्ितंत्रता समाज कल्याण, स्ितंत्रता अंदोलन से संबद्ध रचनार्तमक काया (गांधीजी के दशान से
से पूिा प्रभावित)।

1950- समाज कल्याण, सरकार द्वारा वित्तपोवषत एिं प्रबंवधत NGOs (जैसे- खादी एिं
1970 ग्रामोद्योग), पंचिषीय योजनाएं ऄवस्तर्ति में अईं, ऄवधकतर विकासार्तमक काया NGOs
द्वारा वनष्पाक्रदत।

1970- 1970 के दशक में नागररक समाज का ईद्भि हुअ। आस दौरान NGOs ने यह बताना शुरू
1990 कर क्रदया क्रक सरकारी कायािम क्यों गरीबों एिं िंवचतों तक ऄपेवक्षत रूप से नहीं पहुाँच
पायीं हैं, तथा ईर्नहोंने जन-भागीदारी िाले विकासार्तमक कायों के नए मॉडल पेश क्रकए।
आस नए मॉडल के ऄंतगात NGOs को कइ विस्तृत कायािमों में शावमल क्रकया गया, जैसे-
वशक्षा, प्राथवमक स्िास्र्थय देखभाल, पेयजल, सूक्ष्म प्रसचाइ, िन पुनरुद्धार, जनजावत
विकास, मवहला विकास, बाल मजदूरी, प्रदुषण से सुरक्षा अक्रद। बाद में आनमें से ऄवधकांश
मॉडलों को सरकारी कायािमों में शावमल क्रकया गया।

1990- आस ऄिवध में सरकार एिं NGOs के मर्धय भागीदारी में ईिाल अया। NGOs ने आस
2005 दौरान SHGs, सूक्ष्म ऊण, एिं अजीविका पर ऄवधक र्धयान कें क्रित क्रकया। नीवत-वनमााण
एिं कायािम कायाार्नियन में NGOs की भागीदारी सुवनवश्चत की गयी।

3.2. NGOs के प्रकार (Types of NGOs)

1980 के दशक में, भारत में वनम्नवलवखत तीन प्रकार के NGOs/स्िैवछिक अर्नदोलन ईभरे:
 परर्भपरागत विकास से संबवं धत NGOs : ये NGOs सीधे तौर पर जनता से जुड़े होते हैं, गााँिों
और जनजातीय क्षेत्रों में जाते हैं तथा वशक्षा, स्िास्र्थय, स्िछिता, ग्रामीण विकास अक्रद से संबंवधत
अधारभूत विकास काया करते हैं। ईदाहरण के वलए- मर्धय भारत में बाबा अमटे द्वारा कु ष्ठ रोवगयों
की वचक्रकर्तसा हेतु ईपचार कें ि।
 सक्रियतािादी (Activist) NGOs : ऐसे NGOs सक्रियतािाद को ऄपने लक्ष्य तक पहुाँचने का
प्राथवमक साधन समझते हैं क्योंक्रक ईर्नहें विश्वास ही नहीं होता क्रक िे ऄवधकाररयों को क्रकसी ऄर्नय
ढंग से काया हेतु तर्तपर कर सकते हैं। आस िगा में अने िाले NGOs का सिाावधक प्रवसद्ध ईदाहरण
नमादा बचाओ अर्नदोलन है। यह एक ऐसा संगठन है वजसने मर्धय भारत में नमादा नदी पर बांधों
की एक श्रृंखला के वनमााण का विरोध क्रकया था।
 ररसचा NGOs: ऐसे NGOs क्रकसी विषय या मुद्दे का सघन तथा गहन विश्लेषण करते हैं, और
सरकार, ईद्योग जगत या ऄर्नय एजेंवसयों के साथ वमलकर सािाजवनक नीवतयों को प्रभावित करने
के वलए जनमत तैयार करते हैं। ईदाहरण- सेंटर फॉर साआंस एंड एनिायरनमेंट, जो पयाािरण से
संबंवधत कायों में संलग्न है।
हालांक्रक, यह िगीकरण कठोर तथा ऄनर्भय नहीं है। NGOs बहुत प्रकार के कायों में संलग्न रहते हैं
वजर्नहें एक या दूसरे ऐसे िगा में रखा जा सकता है।

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NGOs का िगीकरण वनम्नवलवखत अधार पर भी क्रकया जा सकता है:

 NGOs का वनमााण क्रकसे लाभ पहुंचाने के वलए हुअ है? ऄथाात्, लाभाथी कौन है, आसके अधार
पर।
 NGOs क्रकस प्रकार का काया करती है? ऄथाात्, गवतविवध के अधार पर।
एक NGO के बहुल गवतविवधयों में संलग्न होने तथा आसके बहुत प्रकार के लाभाथी होने से संबंवधत एक
व्यिवस्थत प्रस्तुवत वनम्नवलवखत है:

3.3. विकास में NGOs की भू वमका

(Role of NGOs in Development)


भारत जैसे विकासशील देशों में, विकास प्रक्रिया में सरकार द्वारा ऄनेक काया ऄधूरे िोड़ क्रदए जाते हैं ,

ऄथाात् विकास प्रक्रिया में एक गैप बना रहता है। ऐसे में यह ऄंतराल NGOs द्वारा भरे जाते हैं। आसे
हम वनम्नवलवखत के मार्धयम से समझ सकते हैं:
 ऐसे काया वजर्नहें पूरा करने में राज्य आछिु क नहीं होते: ईदाहरण के वलए जावत व्यिस्था एक ऐसा
मुद्दा है वजसे ख़र्तम करने के वलए सरकार समय व्यथा नहीं करना चाहती। जावत पदानुिम व्यिस्था
की वनरंतर विद्यमानता राजनेताओं के वलए िोट बैंक का काम करती है। ऄतः आस प्रक्रिया में,
जावत के अधार पर क्रकए जाने िाले भेदभाि का वनषेध करने िाले कानून प्राय: तब तक ईपेवक्षत
रह जाते हैं, जब तक क्रक ईस क्षेत्र में कोइ ऐसा NGOs काया नहीं कर रहा हो जो भेदभाि से
ग्रवसत लोगों के वहतों के वलए काया करने का आछिु क हो।
 ऐसे काया वजर्नहें पूरा करने के वलए राज्य के संसाधन ऄपयााप्त हैं: आस प्रकार के दो प्रमुख क्षेत्र वशक्षा
और स्िास्र्थय देखभाल हैं। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार द्वारा संचावलत स्कू लों और
ऄस्पतालों की संख्या पयााप्त नहीं है। भले ही िह विद्यमान हो लेक्रकन ईनके पास पयााप्त सं साधन
नहीं है। NGOs आस कमी के ऄनुपूरका का काया करते हैं और आन पहओं को पूणाता तक पहुंचाते हैं।
के रल शास्त्र सावहर्तय पररषद् नामक NGO को के रल में शत प्रवतशत साक्षरता दर के वलए व्यापक
रूप से श्रेय क्रदया जाता है।
 सामावजक बुराआयों से संघषा: सरकार ने NGOs के प्रयासों से ही ्ूण के प्रलग परीक्षण को
प्रवतबंवधत क्रकया है क्योंक्रक यह कर्नया ्ूण हर्तया जैसी बुराआयों को जर्नम देता है।
 अश्रय (Shelter) का ऄवधकार: मुंबइ जैसे शहरों में युिा (YUVA ) और स्पाका (SPARC) जैसे
NGOs ने झुग्गी-झोपवड़यों के विर्धिंस का विरोध क्रकया है, तथा िे बढ़ते झुग्गी-झोपवड़यों में
जीिन की गुणित्ता बढ़ाने का प्रयास करते हैं।

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 सूचना का ऄवधकार: NGOs के प्रयासों से भारत में सूचना का ऄवधकार िास्तविकता में पररवणत
हो पाया है।
 जनजातीय ऄवधकार: जैसा क्रक िेदांता एिं पास्को मामले में देखा गया। यहााँ NGOs ने बहुराष्ट्रीय
कं पवनयों द्वारा अक्रदिासी के प्रवत क्रकए जाने िाले भेदभाि के विरुद्ध अिाज ईठाइ है। कइ
NGOs ने िन ऄवधकार ऄवधवनयम, CAMPA (क्षवतपूरक िनरोपण वनवध प्रबंधन एिं योजना
प्रावधकरण) अक्रद जैसे अवधवनयमों के ईवचत कायाार्नियन के वलए ग्राम पंचायतों के साथ
भागीदारी की है।
 सामुदावयक विकास: विकास गवतविवधयों में प्रमुख कतााओं एिं भागीदारों के रूप में क्षेत्र में
स्थानीय और राष्ट्रीय NGOs का ईदय हुअ है। सामुदावयक स्तर पर, अधारभूत जरूरतों और

सुविधाओं की प्रदायगी में सहायता प्रदान करने, जागरूकता बढ़ाने और समुदायों की समस्याओं के
वलए अिाज ईठाने में िे ऄवग्रम पंवि में हैं।
 पुनिाास: िषा 2004 की सुनामी के बाद NGOs ने ईल्लेखनीय काया क्रकए हैं। राहत कायों में

सहायता करने के ऄवतररि NGOs ने व्यिसावयक प्रवशक्षण कें ि भी स्थावपत क्रकए हैं।
 कल्याणकारी योजनाओं का कायाार्नियन: सामार्नय जनता से वनकटता के कारण NGOs सरकार

और ऄंवतम ईपयोगकतााओं के बीच एक कड़ी के रूप में काया करते हैं। आस प्रकार NGOs सरकार

की कल्याणकारी योजनाओं के कायाार्नियन में कायाार्नियक, ईर्तप्रेरक और भागीदार की भूवमकाएाँ


वनभाते हैं।

3.4. पयाा ि रण सं र क्षण में NGOs की भू वमका

(Role of NGOs in Protection of Environment)


तीव्र अर्मथक विकास भारत में कइ प्रकार की पयाािरण समस्याएं ईर्तपन्न कर रहा है। पयाािरण को
वनरंतर बढ़ती क्षवत से वनपटने के वलए कइ NGOs स्थावपत क्रकए गए हैं।
 िे नीवतगत विकास को बढ़ािा देने के वलए ऄनुसंधान अयोवजत कर, संस्थागत क्षमता का वनमााण
कर और लोगों को ऄवधक संधारणीय जीिन शैवलयों के साथ जीिन व्यतीत करने में लोगों की
सहायता करने के वलए सर्बय समाज के साथ स्ितंत्र संिाद को सुसार्धय कर आन ऄंतरालों को भरने
में सहायता कर महर्तिपूणा भूवमका वनभाते हैं।
 पयाािरण संरक्षण का भविष्य, संधारणीय विकास और शूर्नय जनसंख्या िृवद्ध दर जैसे मुद्दे पयाािरण

संरक्षण से जुड़े NGOs की कु ि प्रमुख प्रचताएं हैं।

 NGOs द्वारा चलाए गए कु ि प्रमुख ऄवभयान हैं:


 जलिायु पररितान;

 प्राचीन िनों का संरक्षण;

 समुिी जीिन और विविधता का संरक्षण;


 व्हेलों के वशकार के विरुद्ध ऄवभयान;

 अनुिांवशक ऄवभयांवत्रकी/अनुिांवशक रूप से संशोवधत जीिों के विरुद्ध ऄवभयान;

 िर्नयजीिों के वलए परमाणु खतरे की रोकथाम ;


 रासायवनक और जैविक विषाि ऄपवशि का ईर्नमूलन;

 संधारणीय व्यापार को प्रोर्तसाहन; अक्रद।

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 NGOs जन जागरूकता ऄवभयान, िृक्षारोपण ऄवभयान, ऄपवशि वनिारण के वलए लैंडक्रफल्स में

ऄपवशि का वनपटान करने के स्थान पर पाररवस्थवतकीय रूप से संधारणीय प्रथाओं, जैसे- कें चुअ
पालन एिं कर्भपोप्रस्टग को बढ़ािा देने , जीिाश्म ईंधनों के स्थान पर साआकलों और हररत

निीकरणीय ईंधनों के ईपयोग को प्रोर्तसावहत करने जैसे काया करते हैं। .

 कइ NGOs जो डेटा-चावलत समथान प्रदान करने में विशेषज्ञता रखते हैं, िे सरकारी वनकायों को
सहायता प्रदान करते हैं तथा सरकार के समक्ष जैि विविधता और जल वनकायों पर ऄवतिमण की
खतरनाक वस्थवत का पररणामार्तमक प्रमाण प्रदर्मशत करते हैं। ईनकी ररपोटें मीवडया का र्धयान
अकर्मषत करती हैं, जनता को वशवक्षत करती हैं और ईनकी राय को क्रदशा प्रदान करती हैं।

 िैवश्वक NGOs में िैवश्वक संवधयों को प्रस्तुत करने की क्षमता होती है, वजनमें खतरनाक ऄपवशिों
के विवनयमन को संबोवधत करने के वलए सुधार, बारूदी सुरंगों पर प्रवतबंध और ग्रीनहाईस गैसों
एिं ईनके ईर्तसजान का वनयंत्रण सवर्भमवलत है। ईदाहरण के वलए सेंटर फॉर साआंस एंड
एनिायरनमेंट नामक NGO ने प्रदूषण, खाद्य और पेय में विषाि पदाथों की विद्यमानता एिं
ऄर्नय महर्तिपूणा क्षेत्रों की ओर र्धयान अकर्मषत क्रकया है।
 भारत में कु ि प्रमुख पयाािरणीय NGOs आस प्रकार हैं:
 ग्रीनपीस;

 WWF;
 बॉर्भबे नेचुरल वहस्ट्री सोसाआटी (BNHS);
 विकास विकल्प समूह (Development Alternatives Group);

 उजाा ऄनुसंधान संस्थान (The Energy Research Institute);


 बडा लाआफ आंटरनेशनल;

 सेंटर फॉर साआंस एंड एनिायरनमेंट; अक्रद।

 बॉर्भबे नेचरु ल वहस्ट्री सोसायटी: यह पवक्षयों के माआग्रेशन (प्रिास) पर फील्ड ररसचा का अयोजन
करती है। यह िर्नयजीिों की कु ि आंडेंजडा प्रजावतयों एिं ईनके पयाािास का भी ऄर्धययन करती है
और पयाािरण वशक्षा के मार्धयम से िर्नयजीिों के संरक्षण की अिश्यकता संबंधी ज्ञान एिं
जागरुकता प्रदान करती है।
 उजाा ऄनुसध
ं ान संस्थान: आसका वमशन प्राकृ वतक संसाधनों के कु शल और संधारणीय ईपयोग के
वलए प्रौद्योवगक्रकयों, नीवतयों एिं संस्थाओं का विकास करना तथा ईर्नहें बढ़ािा देना है। यह उजाा

क्षेत्रक में नीवत संबंधी कायों, पयाािरण विषयों पर शोध, निीकरणीय उजाा प्रौद्योवगक्रकयों के
विकास तथा ईद्योग एिं पररिहन क्षेत्रक में उजाा दक्षता के संिधान से संबद्ध है।

3.5. भारत में NGOs द्वारा सामना की जाने िाली चु नौवतयााँ

(Challenges faced by NGOs in India)


 ऄपयााप्त वनवध/फं ड: भारत में ऄवधकतर NGOs धनाभाि की समस्या का सामना कर रहे हैं।
सरकार आर्नहें शत प्रवतशत सहायता ऄनुदान नहीं देती है या ऄनेक कायािमों के वलए ऄनुदान
ईपलर्फध कराने में विलंब करती है। NGOs को ऄनुदानों के ऄनुरूप ऄपने योगदानों को प्रदर्मशत
करना होता है वजसका प्रबंधन करने में कभी-कभी िे सक्षम नहीं होते, और आसवलए ऄनुदान प्राप्त
करने में सफल नहीं हो पाते।

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 ऄपयााप्त प्रवशवक्षत कार्ममक: यह ऄपेक्षा की जाती है क्रक NGOs में काया करने िाले कार्ममकों में
समपाण, प्रवतबद्धता और सामावजक सेिाओं के प्रवत रुवच का भाि हो। पेशेिर प्रवशवक्षत कार्ममकों
की कमी भारत में NGOs द्वारा सामना की जाने िाली प्रमुख चुनौवतयों में से एक है।
 वनवधयों का दुरुपयोग: यह एक अम ऄनुभि है क्रक NGOs पर सरकार ि विदेशी दानकतााओं से
प्राप्त ऄनुदानों ऄथिा आनके द्वारा स्ियं ऄपने संसाधनों के मार्धयम से जुटाइ गइ वनवधयों के के
मामले में दुरुपयोग एिं हेराफे री के गंभीर अरोप लगते रहे हैं। ऐसे NGOs समपाण और
प्रवतबद्धता से काया करने िाले ऄर्नय NGOs की िवि को नकारार्तमक तौर पर प्रभावित कर सकते
हैं।
 ग्रामीण क्षेत्रों में ऄसमानता: ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्र में NGOs ऄवधक विकवसत हैं।
ग्रामीण लोगों के वपिड़ापन ि ऄज्ञानता और आन क्षेत्रों में र्नयूनतम सुख-सुविधाओं की ईपलर्फधता
के ऄभाि के कारण सामावजक कायाकतााओं में ईनके बीच काया करने के प्रवत ईर्तसाह की कमी देखने
को वमलती है। ग्रामीण क्षेत्रों में NGOs के वपिड़ेपन के वलए ये दो महर्तिपूणा कारण हैं।
 युिाओं के बीच स्ियंसि
े ा/सामावजक काया के भाि का ऄभाि: स्ियंसेिा का भाि स्ियंसेिी संगठन
की मूल विशेषता है। स्ियंसेिा का भाि क्रदन-प्रवतक्रदन घटता जा रहा है और आसके स्थान लोग
पेशेिर बनते जा रहे हैं। यहां तक क्रक सामावजक काया के युिा स्नातक भी पेशेिर क्षेत्र में ऄपना
कररयर बनाने में रुवच रखते हैं। आससे NGOs में कु शल स्ियंसेिकों की कमी ईर्तपर्नन होती है।

3.6. राज्य बनाम NGOs (State v/s NGOs)

 भारत में विगत िषों में NGOs की संख्या में काफी िृवद्ध हुइ है। कें िीय ऄर्निेषण र्फयूरो (CBI) एक
एक ऄनुमान के ऄनुसार, भारत में प्रर्तयेक 600 नागररकों पर एक NGO है। लेक्रकन भारत में
NGOs में जिाबदेही का ऄभाि है। सिोच्च र्नयायालय में दायर की गइ एक जनवहत यावचका के
प्रवत ऄनुक्रिया करते हुए CBI ने कहा क्रक ऄवधकांश NGOs ऄनुदान प्रावप्त एिं व्यय के वििरण
कर ऄवधकाररयों के समक्ष प्रस्तुत नहीं करते हैं।
 सिोच्च र्नयायालय की एक जांच में अंध्र प्रदेश, वबहार, क्रदल्ली, हररयाणा, कनााटक, राजस्थान,
पवश्चम बंगाल, ओवडशा, तवमलनाडु , ित्तीसगढ़ और वहमाचल प्रदेश जैसे प्रमुख राज्य ऄपने राज्य
क्षेत्र में काया करने िाले NGOs के विषय में वििरण प्रदान नहीं कर पाए। यह व्यापक रूप से
भारत में NGOs से संबंद्ध विवनयामक तंत्र की विफलता की व्याख्या करता है। सिोच्च र्नयायालय
ने िषा 2017 में सरकार को 30 लाख NGOs एिं स्िैवछिक संगठनों, जो सािाजवनक वनवध प्राप्त
तो करते हैं लेक्रकन ऄपने व्ययों का वििरण प्रस्तुत करने में विफल रहते हैं, की लेखा परीक्षा करने
का अदेश क्रदया था।
 एक जनवहत यावचका ने यह प्रदर्मशत क्रकया है क्रक NGOs में वित्तपोषण की वनगरानी करने के
वलए पारदशी तंत्र विद्यमान नहीं है। CBI की एक ररपोटा वजसने 32 लाख NGOs के राज्यिार
डाटा का संकलन क्रकया, ईसने यह दशााया है क्रक के िल 10% NGOs ने ऄपने िार्मषक अय एिं
व्यय वििरणों को दायर क्रकया।
 आंटेवलजेंस र्फयूरो ने ऄपनी एक ररपोटा में विदेशों से वित्त प्राप्त करने िाले NGOs पर देश भर में
परमाणु और कोयला-चावलत विद्युत संयंत्रों के विरुद्ध अंदोलनों एिं GMOs के विरुद्ध अंदोलनों
को प्रायोवजत करने और आस प्रकार पवश्चमी राष्ट्रों की विदेश नीवत के वहतों के वलए ईपकरणों के
रूप में काया करने का अरोप लगया। आन NGOs पर स्थानीय संगठनों के एक नेटिका के मार्धयम

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से काया करते हुए GDP की संिृवद्ध को 2–3% तक ऊणार्तमक रूप से प्रभावित करने का अरोप
लगाये गए हैं।
 ग्रीनपीस पर यह अरोप लगाया गया क्रक आसने भारत में प्रमुख कोयला र्फलॉकों और कोयला
संचावलत विद्युत संयंत्र स्थलों पर 'कोल नेटिका ' ऄर्भब्रेला के ऄंतगात विरोध अंदोलन चलाने के
वलए विदेशी वित्तीयन का ईपयोग कर भारत के कोयला संचावलत विद्युत संयंत्रों और कोयला
खनन गवतविवधयों को बंद करिाने के वलए व्यापक स्तर पर प्रयास कर रहा था।
 ऄप्रैल 2015 में भारत सरकार ने कु ि शीषा ऄंतरााष्ट्रीय दानकतााओं पर विदेशी ऄंशदान विवनयमन
ऄवधवनयम (Foreign Contribution Regulation Act: FCRA), 2010 के ईल्लंघन के वलए
की कानूनी कायािाही की तथा आसी दौरान संक्रदग्ध विदेशी विर्ततपोषण की जांच करने के वलए
फाआनेंवसयल आंटेवलजेंस यूवनट (FIU) के साथ 42,000 से ऄवधक NGOs की सूची साझा की।
 पहली बार, सरकार ने स्पि रूप से आस क्षेत्रक को पररभावषत क्रकया है, वजसमें सामार्नय NGOs के
ऄवतररि, विदेशी ऄंशदान प्राप्त करने िाले इसाइ वमशनररयों, प्रहदू, वसख और मुवस्लम धार्ममक
समूहों को सूचीबद्ध क्रकया है। हालांक्रक, यह संदह
े व्यि क्रकया गया है क्रक मनी लॉप्रर्निंग करने िाले
लोग ऄिैध धन प्रेवषत करने के वलए आन िैध मागों का ईपयोग कर सकते हैं।

3.7. NGOs की काया प्र णाली में सु धार हे तु सु झाि

(Suggestions to Improve the Working of NGOs)


 सरकार द्वारा ऄनुदान संबंधी वनयमों एिं विवनयमनों को ईदारीकृ त क्रकया जाना चावहए और
NGOs को ऄवधक ऄनुदान प्रदान करना चावहए।
 साथ ही, सरकार को NGOs द्वारा वनवधयों के दुरुपयोग पर ऄंकुश लगाने के वलए जांच अयोगों
की वनयुवि करनी चावहए। अयोग के सदस्य को NGOs की गवतविवधयों की अिवधक रूप से
पयािेक्षण करने और वनगरानी करनी चावहए।
 विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के युिा स्नातकों को सािाजवनक सेवमनार, बैठकों अक्रद का अयोजन
करना चावहए और स्ियंसेिा के महर्ति एिं NGOs की सफलता की कहावनयों का प्रचार करना
चावहए। लोगों को स्िैवछिक भागीदारी के वलए प्रोर्तसावहत करने हेतु मीवडया का ईपयोग करना
चावहए।
 विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और स्कू लों को NGOs के साथ सहयोग करना चावहए और स्िैवछिक
कायों में रुवच रखने िाले युिा स्नातकों के वलए पररसर में साक्षार्तकारों का अयोजन करना चावहए।
राष्ट्रीय सेिा योजना और नेशनल कै डेट कोर को, बाल्यकाल से ही िात्रों को स्िैवछिक भागीदारी
करने के वलए प्रोर्तसावहत करना चावहए।
 भारत में लगभग 65% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों से संबंवधत है। आसवलए NGOs को ग्रामीण क्षेत्रों
में गांि के लोगों के सहयोग से ईनके जीिन को बेहतर बनाने हेतु काया करने के वलए बड़े पैमाने पर
संचालन करने की अिश्यकता है। साथ ही, आन NGOs को ग्रामीण क्षेत्रों के वशवक्षत युिा स्नातकों
को स्िैवछिक भागीदारी करने के वलए प्रोर्तसावहत करना चावहए। सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में काया
करने िाले NGOs को ऄनुदान प्राप्त करने की पात्रताओं की शतों को पूरा करने के वलए हेतु कु ि
विशेष प्रािधान प्रदान करने चावहए।
 कल्याणकारी संगठन होने के नाते NGOs को ऄपनी सेिा में ईच्च गुणित्ता का स्तर बनाए रखना
चावहए। सरकार को ईन NGOs को ऄवतररि ऄनुदान के साथ सर्भमान या पुरस्कार देकर विशेष
मार्नयता भी प्रदान करनी चावहए। आससे ऄर्नय NGOs दक्षता पूिाक काया करने के वलए प्रेररत होंगे।

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 सरकार को NGOs के कार्ममकों के िेतन और भत्तों की समीक्षा करनी चावहए। साथ ही, कार्ममकों
को जमीनी स्तर पर प्रवशवक्षत करने के वलए NGOs के वलए कु ि विशेष वनवधयों का अबंटन
क्रकया जाना चावहए।
 NGOs को ऄपनी वनवधयों को जुटाने, पारस्पररक सहयोग, ऄपने ईर्तपादों का विज्ञापन करने एिं
कु शल कार्ममकों के चयन के वलए आंटरनेट, िेबसाआट जैसी निीनतम प्रौद्योवगक्रकयों का ईपयोग
करना चावहए।

4. स्ियं सहायता समूह


(Self Help Groups: SHGs)

4.1. SHGs क्या हैं ? (What are SHGs?)

 स्ियं-सहायता समूह (SHGs) िस्तुतः वनधान और िंवचत लोगों को संगरठत करने तथा ईनकी
व्यविगत समस्याओं के समाधान के वलए ईर्नहें एक साथ लाने का एक ईपाय है। विश्व भर में
सरकारों, NGOs और ऄर्नय लोगों द्वारा SHGs की गवतविवधयों का ईपयोग क्रकया जाता है।
वनधान लोग ऄपनी संग्रवहत बचत को बैंकों में जमा करते हैं। ईसके बदले में ईर्नहें सूक्ष्म ईद्यम
प्रारर्भभ करने के वलए कम र्फयाज दर पर ऊण तक पहुंच सुगम हो जाती है।
 एक स्ियं-सहायता समूह को “ एक समान अर्मथक पृष्ठभूवम िाले और साझे ईद्देश्य के वलए सामूवहक
रूप से काया करने के आछिु क लोगों के स्ियं -शावसत और समकक्ष द्वारा वनयंवत्रत सूचना समूह” के
रूप में पररभावषत क्रकया गया है।

4.2. SHGs कै से काया करते हैं ?

(How Does SHGs Function?)


 एक SHG में अमतौर पर समान अर्मथक दृविकोण और सामावजक वस्थवत िाले र्नयूनतम पांच
व्यवि (ऄवधकतम बीस) सदस्य सर्भमवलत होते हैं।
 समूह के सदस्य ऄपनी समस्याओं के समाधान के वलए एक-दूसरे की सहायता करते हैं। एक
सामार्नय रूप से वशवक्षत और स्थानीय सहायक व्यवि आन लोगों को एक साथ लाने और समूह के
गठन में ऄग्रणी भूवमका वनभाता है।
 िह व्यवि, वजसे एवनमेटर या समर्नियक कहा जाता है, समूह के सदस्यों के बीच वमतव्यवयता और
िोटी बचत की अदतों को विकवसत करने में सहायता करता है। समूह की बचत को साझे बैंक
खाते में रखा जाता है, वजसमें से सदस्यों को सूक्ष्म/लघु ऊण क्रदए जाते हैं।

 िह महीने के पश्चात् SHG ऄपने सदस्यों के वलए ईपयुि ईद्यम के संचालन हेतु बैंक के पास ऊण
सुविधा के वलए जा सकता है। आस सामूवहक ऊण को लघु व्यिसाय चलाने के वलए सदस्यों के बीच
विभावजत क्रकया जाता है। व्यिसाय से ऄर्मजत लाभ से ऊण चुकता क्रकया जाता है।

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4.3. भारत में SHGs का ईद्भि

(Evolution of SHGs in India)


 सशविकरण प्रयासों के वलए भारत में SHG का एक साधन के रूप में ईपयोग का आवतहास काफी
पुराना है। वनधानता ईर्नमूलन के प्रयासों के वलए SHGs का एक संगरठत रूप में ईदय सातिीं
पंचिषीय योजना (1985-90) के दौरान हुअ था।
 बचत और ऊण के वलए भारत में SHGs का गठन और िावणवज्यक बैंकों के साथ ईनके संयोजन
का श्रीगणेश 1980 के दशक के मर्धय में एक गैर-सरकारी संगठन MYRADA (मैसूर ररसेटलमेंट
एंड डेिलपमेंट एजेंसी) द्वारा क्रकया गया था।
 हालााँक्रक, वनधानता की समस्या से वनपटने के वलए एक ईपकरण के रूप SHG को महर्ति 1992 में
तब वमला, जब भारतीय ररजिा बैक (RBI) ने 500 SHGs को NABARD-SHG बैंक प्रलके ज
पायलट प्रोग्राम से जोड़ने हेतु एक पररपत्र जारी क्रकया था।
 आस सफलता ने SHGs को वित्तीय पररदृश्य और विशेष रूप से भारतीय बैंककग व्यिस्था की
मुख्यधारा से जोड़ क्रदया है, वजसके कारण 7.5 वमवलयन SHGs के द्वारा 94 वमवलयन वनधान
लोग बैंककग प्रणाली से जुड़ गये हैं और िे वबना ऄवग्रम जमानत के ऊण का लाभ ईठा रहे हैं।
 आन SHGs से संबद्ध वनधान मवहलाएं सामूवहक रूप से लगभग 1,00,000 करोड़ रुपये (17
वबवलयन डॉलर) के िार्मषक कारोबार का वनयर्नत्रण कर रही हैं। यह रावश भारत की कइ बहुराष्ट्रीय
कं पवनयों से कहीं ऄवधक है।
 आसके साथ ही, कु ि बड़ी भारतीय NGOs ने यह प्रदर्मशत क्रकया है क्रक स्िास्र्थय क्षेत्रक के साथ-
साथ जावतगत और लैंवगक ऄसमानताओं की खाआयों को पाटने में सामूवहकता सामावजक और
अर्मथक सशविकरण का साधन बन सकती है।
 वनधानता ईर्नमूलन के ईपायों के एक भाग के रूप में , भारत सरकार ने ऄप्रैल 1999 में स्िणा जयंती
ग्राम स्िरोजगार योजना (SGSY) का शुभारर्भभ क्रकया, जहााँ माआिो-िे वडट फाआनेंस के मार्धयम से
SHG के गठन, सामावजक लामबंदी और अर्मथक सक्रियता पर प्रमुखता से बल क्रदया गया।
 आस सफलता के पश्चात् 2011 में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय ग्रामीण अजीविका वमशन
(National Rural Livelihoods Mission: NRLM) के मार्धयम से विशाल समुदावयक लामबंदी
की पहल अरंभ की गइ।

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4.4. SHGs के लाभ (Benefits of SHGs)

 कु ि ऄनुमानों के ऄनुसार, लगभग 46 वमवलयन ग्रामीण वनधान मवहलाएं SHGs के द्वारा लामबंद
हैं। ये संगठन विशेष रूप से बैंको से ऄसर्भबद्ध मवहलाओं को वित्तीय मर्धयस्थता समाधान प्रदान
करने के प्रभािी साधन वसद्ध हुए हैं।

 आसके सामावजक-अर्मथक लाभों में अर्मथक अर्तमवनभारता, ग्रामीण मामलों में सहभावगता और
शैवक्षक जागरूकता सर्भमवलत हैं।
 राष्ट्रीय ग्रामीण अजीविका वमशन के ऄंतगात, BPL मवहलाओं पर विशेष र्धयान क्रदया जाता है। आस

योजना में SHGs के क्षमता वनमााण और ईर्नहें संस्थागत बनाने पर भी र्धयान क्रदया जाता है। आससे
सामावजक लामबंदी, संस्था वनमााण, समुदायीकरण और मानि संसाधन को बेहतर बनाने में
सहायता प्राप्त हुइ है।
 SHGs की बैठकों की वनयवमत प्रक्रिया से मवहलाओं को सामावजक पूाँजी जुटाने में सहायता वमली
है। आससे पररिार और समाज में ईनकी हैवसयत बढ़ी है।
 अर्मथक सशविकरण ने ईर्नहें पररिार में वनणाायक भूवमका प्रदान करने में सहायता की है। आस
प्रकार से वपतृसत्ता की बेवड़यााँ काटने में सहायता वमली है।
 एक शोध से पता चला है क्रक ‘सहभागी वशक्षा और कायािाही’ (participatory learning and

action) को ऄपनाने से मातृ मृर्तयु दर में 49% और बाल मृर्तयु दर में 33% की कमी अइ है।

4.5. SHGs से सं ब द्ध सामार्नय मु द्दे (General Issues related to SHGs)

 कृ वष गवतविवधयााँ: ऄवधकांश SHGs स्थानीय स्तर पर कृ वष से संबद्ध गवतविवधयों में ही संलग्न हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में SHGs को गैर-कृ वष व्यिसाय से भी जोड़ना चावहए और ईर्नहें ऄर्तयाधुवनक
मशीनरी प्रदान की जानी चावहए।
 प्रौद्योवगकी का ऄभाि: ऄवधकांश SHGs ऄल्पविकवसत हैं या वबना क्रकसी तकनीक के काया करते
हैं।
 बाजार तक पहुंच: SHGs द्वारा ईर्तपाक्रदत िस्तुओं की बड़े बाजारों तक पहुंच नहीं है।
 खराब ऄिसंरचना: ऄवधकांश SHGs ग्रामीण और सुदरू क्षेत्रों में वस्थत हैं जहााँ सडक या रेल संपका
नहीं है। विद्युत् की पहुंच भी एक मुद्दा है।
 प्रवशक्षण और क्षमता वनमााण का ऄभाि: ऄवधकांश SHGs कौशल विकास और क्षमता वनमााण के
वलए राज्य से वबना क्रकसी सहायता के ऄपने ही स्तर पर काया करते रहते हैं।

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 राजनीवतकरण: राजनीवतक सर्भबद्धता और हस्तक्षेप SHGs के वलए एक गर्भभीर समस्या बन गया


है। राजनीवतक सर्भबद्धता सामूवहक संघषों का कारण बनती है।
 ऊण संग्रहण: एक ऄर्धययन से पता चला है क्रक 48% सदस्यों को स्थानीय महाजनों, ररश्तेदारों

और पड़ोवसयों से ईधार लेना पड़ता है, क्योंक्रक समूहों से ईर्नहें ऄपयााप्त ऊण वमल रहा था। आसके
ऄवतररि धन की जमाखोरी भी देखने में अइ है।
 वनगरानी प्रणाली: SHGs की प्रगवत पर कु ि ररपोटों में यह बात सामने अयी है क्रक SHG की
कायाप्रणाली और प्रक्रियाओं पर प्रश्न ईठाये वबना ही ईनके विकास और प्रसार के अंकड़े प्रस्तुत
क्रकये जाते हैं।
 अजीविका प्रोर्तसाहन: SHGs के सदस्यों के बीच सूक्ष्म ईद्यमों को प्रोर्तसावहत करने हेतु एक पद्धवत

विकवसत करने की अिश्यकता है, वजसे बड़े स्तर पर लागू क्रकया जा सकता है।

4.6. ग्रामीण क्षे त्रों में SHGs के प्रिे श में सामावजक-सां स्कृ वतक बाधाएं

(Socio-Cultural Hurdles in Penetration of SHGs in Rural Areas)


भारत में SHGs का प्रसार ऄसमान है। सरकारी समथान सवहत सामावजक-सांस्कृ वतक कारक और

NGOs की ईपवस्थवत आसका प्रमुख कारण रहे हैं। माचा 2001 में, 71% प्रलक्ड SHGs दवक्षणी क्षेत्र
(अंध्रप्रदेश, कनााटक, के रल और तवमलनाडु ) से थे।
 ज्यादातर वनधान राज्यों का प्रदशान खराब रहा है, जैसे- UP और वबहार।

 ये राज्य ऐसे हैं, जहााँ समाज बहुत ऄवधक वपतृसत्तार्तमक है और मवहलाओं के वलए ईपलर्फध वित्तीय
साधन और ईनकी भूवमका बहुत सीवमत है।
 एक सामंती समाज में ईद्यवमता को ह्तोसावहत क्रकया जाता है। एक पारर्भपररक समाज में
मवहलाओं की भूवमका का कठोर वनधाारण होता है। ऄतः मवहलाओं के वलए स्ितंत्र वनणाय लेने और
अर्मथक स्ितर्नत्रता के वलए बहुत ही कम गुंजाआश रहती है।
 पाररिाररक वजर्भमेदाररयों के कारण ऄवधकांश मवहला सदस्य ऄपने ईद्यमों पर र्धयान नहीं दे पाती
हैं।
 पररिार के सदस्यों से समथान का ऄभाि प्रमुख बाधाओं में से एक है।
 पुरुष िचास्ि िाले समाज में, मवहला सदस्य सामावजक गवतशीलता के ऄभाि में ऄपने व्यिसायों
को अगे नहीं बढ़ा सकतीं।
 कइ वििावहत मवहलाएं ऄपने वनिास स्थान में पररितान होने से समूह से जुड़े रहने की वस्थवत में
नहीं रह जाती हैं।
 कइ SHGs में सशि सदस्य ऄज्ञानी और ऄवशवक्षत सदस्यों का शोषण करके ऄवधक लाभ ऄर्मजत
करने का प्रयास करते हैं।

4.7. SHGs को बढ़ािा दे ने के वलए सरकार द्वारा ईठाये गए कदम

(Measures Taken by the Government to Promote the SHGs)


 सेल्फ़ हेल्प ग्रुप-बैंक प्रलके ज प्रोग्राम: एस. के . कावलया सवमवत की संस्तुवतयों पर, SHG-बैंक
प्रलके ज प्रोग्राम को 1992 में NABARD की पहल पर ऄसंगरठत क्षेत्रों को औपचाररक बैंककग
क्षेत्रक से जोड़ने के वलए प्रारर्भभ क्रकया गया था। आस कायािम के ऄंतगात बैंकों को SHGs के वलए
बचत खाते खोलने की ऄनुमवत दी गयी थी। बैंक SHGs को सामूवहक गारंटी के बदले में ऊण देते
हैं और ऊण की मात्रा आन SHGs द्वारा बैंकों में जमा सामूवहक रावश से कइ गुना ऄवधक हो

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सकती है। बैंकों को SHGs के सदस्यों की सर्भपूणा ऊण अिश्यकताओं पर विचार करना चावहए,
ऄथाात्,
o अय सृजन गवतविवधयााँ,
o सामावजक अिश्यकताएं, जैसे- अिास, वशक्षा, वििाह, अक्रद और
o ऊण विवनमय (debt swapping)।
आसे िावणवज्यक बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRBs) और सहकारी बैंकों द्वारा कायाावर्नित क्रकया जा
रहा है।
 RBI ने SHG-बैंक प्रलके ज प्रोग्राम के ऄंतगात ऄप्रैल 1996 में सूक्ष्म वित्त अधाररत ऊण पर बल
क्रदया। आस प्रकार ऄब 103 वमवलयन से ऄवधक ग्रामीण पररिार 7.96 वमवलयन SHGs के
मार्धयम से वनयवमत बचत कर पाने में सक्षम हैं।
 प्राथवमकता-प्राप्त क्षेत्र को ईधार (Priority Sector Lending): भारत सरकार ने SHGs को
प्राथवमकता-प्राप्त क्षेत्र के ऄंतगात सर्भमवलत कर वलया है ताक्रक बैंकों का ईन पर र्धयान ऄवधक हो।
SHGs के सदस्य प्राथवमकता-प्राप्त क्षेत्रक की विवभन्न श्रेवणयों – कृ वष, सूक्ष्म, लघु और मर्धयम
ईद्यम, सामावजक ऄिसरंचना और ऄर्नय - के ऄंतगात ऊण/ऄवग्रम प्राप्त कर सकते हैं।
 खाद्य सुरक्षा को सुदढ़ृ बनाने हेतु SHGs को फ़ू ड एंड के यर रीजन (खाद्य और देखभाल क्षेत्रों) में
ऄनाज बैंक चलाने की ऄनुमवत दी गयी है।
 वप्रयदशानी योजना (NABARD आसकी एक नोडल एजेंसी है) का ईद्देश्य SHGs के मार्धयम से
मवहला सशविकरण और अजीविका में िृवद्ध करना है।
 दीनदयाल ऄंर्तयोदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण अजीविका वमशन (DAY-NRLM): यह वनधानों के
वलए सतत सामुदावयक संस्थानों के सृजन के मार्धयम से ग्रामीण वनधानता को समाप्त करने पर
कें क्रित है। SHGs को बैंक ऊण प्रदान करने के वलए यह वमशन वित्तीय सेिाएं विभाग
(Department of Financial Services: DFS), भारतीय ररजिा बैंक (RBI) और आंवडयन बैंक
एसोवसएशन के वनकट सहयोग से काया करता है। वित्त िषा 2017-18 में देश भर के 6.96 लाख
SHGs में 82 लाख से भी ऄवधक पररिारों को लामबंद क्रकया गया। कु ल वमला कर 4.75 करोड़
मवहलाओं को 40 लाख SHGs में लामबंद क्रकया गया है। यह वमशन, ऊण की लागत कम करने
हेतु 3 लाख रूपये तक का ऊण लेने िाले मवहला SHGs को र्फयाज में िू ट प्रदान करने के वलए
सवर्फसडी भी प्रदान करता है। आस प्रकार की र्फयाज िू ट से ऊण की प्रभािी लागत में प्रवत िषा 7%
की कमी हो जाती है।
 मवहला क्रकसान सशविकरण पररयोजना: िैसी कृ वष-पाररवस्थवतकीय प्रथाओं को प्रोर्तसावहत करने
के वलए वजनसे मवहला क्रकसानों की अय में िृवद्ध होती है और आनपुट लागत ि जोवखम में कमी
अती है, DAY-NRLM वमशन मवहला क्रकसान सशविकरण पररयोजना (MKSP) का
कायाार्नियन कर रहा है। माचा 2018 तक 33 लाख से ऄवधक मवहला क्रकसान आस योजना से
लाभावर्नित हो रही थीं।

4.8. SHGs की काया प्र णाली में सु धार के वलए सु झाि

(Suggestions to Improve the Working of SHGs)

 प्रौद्योवगकी के साथ बैकिडा प्रलक और प्रसंस्करण ि बाजार संगठनों के साथ फॉिाडा प्रलके ज के
सर्नदभा में एक वनधान पररिार की समग्र ऊण अिश्यकताओं को पूरा करने के वलए एक समेक्रकत
दृविकोण की अिश्यकता है।

 विविधतापूणा गवतविवधयों के वलए ऊण क्रदया जाना चावहए वजनमें अय िृवद्ध िाली अजीविका
गवतविवधयां, घरेलू ईपभोग के वलए ऊण और कु ि अकवस्मक अपदाएं सर्भमवलत हैं।

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 वितरण प्रणाली को ऄग्रसक्रिय बनाना होगा, जो क्रकसानों की वित्तीय अिश्कताओं के प्रवत


ऄनुक्रिया कर सके ।
 वित्तीय प्रबर्नधन, खातों की देखरेख, ईर्तपादन और विपणन गवतविवधयों से सर्भबवर्नधत प्रवशक्षण
कायािम अयोवजत क्रकये जाने चावहए।
 ऊण देने की प्रक्रिया को सरलीकृ त करना चावहए।
 बैंक कमाचाररयों को लैंवगक संिदेनशीलता का प्रवशक्षण देना, ताक्रक िे ऄपने ग्रामीण ग्राहकों,
विशेष रूप से मवहलाओं की अिश्यकताओं के प्रवत संिेदनशील बन सकें ।
 ईद्यवमयों के वहतों की रक्षा के वलए SHGs द्वारा प्रिर्मतत व्यिसावयक आकाआयों को वित्तीय क्षवत से
सुरवक्षत रखने के वलए पयााप्त बीमा किर प्रदान क्रकया जाना चावहए।

5. विकास में सहायता और वनजी वित्त पोषण


(Aid and Private Funding in Development)

5.1. भारत में विकास सहायता

(Development Aid in India)

विकासशील देशों में सरकारों और ऄर्नय एजेंवसयों द्वारा अर्मथक, पयाािरणीय, सामावजक और
राजनीवतक विकास के वलए प्रदान की जाने िाली वित्तीय सहायता को विकास सहायता कहा जाता है।
आसमें वनधानता ईर्नमूलन के वलए दीघाकावलक रणनीवत सर्भमवलत होती है।
 विदेशी विशेषज्ञ भारत को ‘विकासार्तमक विरोधाभास’ (development paradox) की संज्ञा देते
हैं। भारत विश्व की बड़ी ऄथाव्यस्थाओं में से एक है और आसकी संिृवद्ध दर काफी ईच्च है। यह भारी
मात्रा में सुरक्षा पर व्यय करता है। क्रफर भी यह विकास सहायता चाहता है। ऄंतरााष्ट्रीय स्तर पर
यह बहस का एक मुद्दा है।
 ्िाचार: विदेशी ऄनुदान (प्रायः ऄफ्रीका के तानाशाही राष्ट्रों में) को सरकारी ऄवधकाररयों द्वारा
ऄपने वनजी वहतों के वलए हड़प वलया जाता है। आससे कइ सारे गैर -वनष्पाक्रदत NGOs की ईर्तपवत्त
हुइ है।
 पररयोजनाओं की पहचान: ऄतीत में बहुत-सी धनरावश बबााद हो गयी, क्योंक्रक ऄनुदान के जारी
होने से पहले न तो प्रस्तािों की पयााप्त जांच नहीं की गयी और न ही प्राथवमकताओं की सही ढंग से
पहचान की गयी।

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 प्राप्तकताा देशों को प्रभावित करना: सहायता प्रदान करने िालों पर प्रायः प्राप्तकताा सरकारों और
ईनके द्वारा बनाइ जाने िाली नीवतयों को ऄनािश्यक रूप से प्रभावित करने के अरोप लगते रहे
हैं।
 ऊण सहायता: िैवश्वक अर्मथक मंदी के कारण कइ देश ऊण सहायता प्रदान करने में ऄसमथा हो
गए हैं।

5.2. भारत में विदे शी सहायता (Foreign Aid to India)

 “विदेशी/बाह्य सहायता” (Foreign Aid) पद को “विदेशी विकास सहायता” (Overseas


Development Assistance: ODA) की ऄिधारणा से वलया गया है। संयुि राष्ट्र की
शर्फदािली में ODA िस्तुतः विकासशील देशों के वलए विकवसत देशों और OECD के सदस्यों
द्वारा विकास सहायता प्रदान करने की प्रवतबद्धता है। ितामान समय में, विकवसत देश ऄपने GDP
का 0.7% ODA के रूप में विकाशील देशों को देने के वलए प्रवतबद्ध हैं, हालााँक्रक कम ही देशों ने
आस लक्ष्य को पूरा क्रकया है।

 विदेशी सहायता प्राप्त करने िाले देशों में भारत 2011 में िठा सबसे बड़ा प्राप्तकताा था और
ईच्चतम प्राप्तकताा बना हुअ है। विश्व बैंक की िेबसाआट पर ईपलर्फध अंकड़ों के ऄनुसार, भारत ने
2011 में 3.2 वबवलयन डॉलर, 2012 में 1.6 वबवलयन डॉलर और 2013 में 2.4 वबवलयन डॉलर
प्राप्त क्रकये।
 शीषा दानकतााओं में शावमल हैं: विश्व बैंक, जापान, जमानी, एवशयाइ विकास बैंक, यूनाआटेड
ककगडम, फ़्ांस, ग्लोबल फं ड (AIDS, तपेक्रदक और मलेररया से लड़ने के वलए), यूनाआटेड स्टेट्स
ऑफ़ ऄमेररका और यूरोपीय संघ।
 भारत भी ऄर्नय देशों को सहायता प्रदान करता है। आसका 2015-16 के वलए विदेशी सहायता का
बजट 1.6 वबवलयन डॉलर था।
 हालााँक्रक, हाल के समय में भारत की विदेशी सहायता में काफी कमी अइ है। यह अंवशक रूप से
भारत की तीव्र अर्मथक संिृवद्ध और अंवशक रूप से बदलते भौगोवलक-राजवनवतक धुरी के कारण
हैं।
 स्िछि उजाा, खाद्य सुरक्षा और स्िास्र्थय के वलए लवक्षत ऄमेररकी सहायता में हाल के िषों में 25
प्रवतशत (िषा 2010 में लगभग 127 वमवलयन डॉलर से घट कर 2013 में 98.3 वमवलयन डॉलर)
की वगरािट अइ है। ।
 2015 में UK ने भारत को अर्मथक विकास के नाम पर दी जाने िाली सहायता बंद कर दी। भारत
ने यह कहते हुए आस कदम का स्िागत क्रकया है क्रक “सहायता ऄतीत है, व्यापार भविष्य है”।

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 भारत ऄब समृद्ध राष्ट्रों से एक वनधान राष्ट्र के रूप में सहायता प्राप्त करने िाले मॉडल को नकारते
हुए स्ियं को एक िैवश्वक शवि तथा वब्रटेन जैसे विकवसत देशों के एक भागीदार के रूप में देखता
और खुद को आसी रूप में प्रस्तुत करता है।

5.3. विदे शी वित्त पोषण एिं NGOs

(Foreign Funding and NGOs)


 गैर-लाभकारी संगठन होने के नाते NGOs ऄपने कामकाज के वलए पूरी तरह ऄनुदान (विदेशी या
घरेलू) पर वनभार होते हैं। हालांक्रक हाल के क्रदनों में कइ NGOs सरकारी जााँच के दायरे में अए हैं।
 विदेशी ऄंशदान (विवनयमन) ऄवधवनयम, 2010 (FCRA) तथा विदेशी ऄंशदान (विवनयमन)
वनयम, 2011 (FCRR) भारत में NGOs द्वारा विदेशी ऄंशदान की प्रावप्त एिं ईसके ईपयोग को
विवनयवमत करने के वलए ऄवधवनयवमत क्रकए/बनाए गए हैं।
विदेशी ऄंशदान (विवनयमन) ऄवधवनयम, 2010 {Foreign Contribution Regulation Act
(FCRA), 2010}
आसे विदेशी ऄंशदान (विवनयमन) ऄवधवनयम (FCRA), 1976 के स्थान पर लाया गया है। यह
ऄवधवनयम (FCRA, 2010) दान, ईपहार या ऄनुदान के मार्धयम से प्राप्त हाने िाले सभी विदेशी धन
की स्िीकृ वत एिं ईपयोग को विवनयवमत करता है।
 1976 के ऄवधवनयम के ऄंतगात ऄनेक ऐसे संगठनों एिं व्यवियों की सूची तैयार की गयी है, वजर्नहें
विदेशी ऄंशदान स्िीकार करने से प्रवतबंवधत क्रकया गया है। नए ऄवधवनयम द्वारा आस सूची में
"राजनीवतक प्रकृ वत" के संगठनों तथा आलेक्ट्रॉवनक मीवडया संगठनों को जोड़ा गया है।
 आस ऄवधवनयम के ऄनुसार, विदेशी ऄंशदान स्िीकार करने के वलए व्यवियों को FCRA के
ऄंतगात पंजीकरण करने की अिश्यकता है। कें ि सरकार कु ि शतों के ऄंतगात प्रमाणीकरण देने से
मना या ईसका वनलंबन या ईसे रद्द कर सकती है।
 संगठनों को प्रर्तयेक पांच िषा पर FCRA प्रमाण-पत्र को निीनीकृ त करना होगा।
 यह ऄवधवनयम व्यवियों की कु ि वनवश्चत वनर्ददि श्रेणी, जैसे- चुनािी ईर्भमीदिार, र्नयायाधीश,
पत्रकार, स्तंभकार, र्नयूज़पेपर पवर्फलके शन, काटूावनस्ट एिं ऄर्नय अक्रद द्वारा विदेशी ऄंशदान के
ईपयोग या विदेशी अवतर्थय की स्िीकृ वत को प्रवतबंवधत करता है।
 यह ऄवधवनयम राष्ट्रीय वहत को नुकसान पहुाँचाने िाले क्रकसी भी गवतविवध के वलए विदेशी
ऄंशदान या विदेशी अवतर्थय के ईपयोग को प्रवतबंवधत करता है।
 विदेशी ऄंशदान का ईपयोग ईसी ईद्देश्य के वलए क्रकया जाना चावहए वजसके वलए आसे प्राप्त क्रकया
गया है तथा एक वित्तीय िषा दौरान ऄंशदान के रूप में प्राप्त कु ल रावश के 50 प्रवतशत तक का ही
प्रशासवनक खचों के वलए ईपयोग क्रकया जा सकता है।
 प्रर्तयेक बैंक प्राप्त विदेशी प्रेषण रावश, ईसके स्रोत एिं स्िरूप अक्रद के वििरण को वनधााररत
प्रावधकारी समक्ष भेजेंगे।
 आस ऄवधवनयम के तहत पंजीकृ त या पूिा ऄनुमोदन प्राप्त करने िाले प्रर्तयेक NGO को प्रावधकरण के
समक्ष वनधााररत प्रारूप में िार्मषक ररपोटा दजा करनी होगी। आस ररपोटा के साथ अय एिं व्यय के
वििरण, रसीद एिं भुगतान खाता तथा प्रासंवगक वित्तीय िषा के वलए बैलेंस शीट संलग्न होनी
चावहए। ईन वित्तीय िषों के वलए भी वजनमें कोइ विदेशी ऄंशदान प्राप्त नहीं हुअ हो, प्रावधकरण
के समक्ष ‘शूर्नय‘ ररपोटा प्रस्तुत की जानी चावहए।
 ऄवधवनयम के प्रािधानों का ईल्लंघन क्रकए जाने पर ऄनुमत पंजीकरण के वनलंबन के साथ-साथ,
ईसे रद्द कर देने के वलए भी नए प्रािधान क्रकए गए हैं।

आस ऄवधवनयम का दायरा बहुत व्यापक है तथा यह एक व्यवि, कॉरपोरेट वनकाय, ऄर्नय सभी प्रकार
की भारतीय संस्थाओं (चाहे वनगवमत हों या नहीं) अक्रद पर लागू है। साथ ही, यह भारत में गरठत या
पंजीकृ त भारतीय कं पवनयों तथा ऄर्नय संस्थाओं, ऄवनिासी भारतीयों तथा भारतीय कं पवनयों की

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विदेशी शाखाओं/सहायक कं पवनयों पर भी लागू है। यह भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा कायाावर्नित
क्रकया जाता है।
FCRA से संबवं धत हावलया मुद्दे तथा NGOs पर प्रभाि
 24 जुलाइ, 2018 को कें िीय गृह राज्य मंत्री ने लोकसभा में एक प्रश्न के ईत्तर में कहा क्रक िषा
2011 से ऄब तक लगभग 19,000 NGOs का FCRA पंजीकरण रद्द कर क्रदया गया है तथा ईर्नहें
विदेशी धन प्राप्त करने से प्रवतबंवधत कर क्रदया गया है। ईर्नहोंने सदन को यह भी बताया क्रक अज
तक 2,547 NGOs ने ऄपने लंवबत िार्मषक ररटना - अय एिं व्यय, विदेशों से धनरावश की
प्रावप्तयां ि बैलेंस शीट - जमा करने में सरकारी अदेशों का पालन नहीं क्रकया है।
 कु ल प्राप्त रावश का 13 प्रवतशत धार्ममक संस्थानों एिं जागरूकता ऄवभयान जैसे वििाक्रदत मुद्दों पर
व्यय होता है। सरकार ने आन दोनों गवतविवधयों को राष्ट्र-विरोधी करार क्रदया है, क्योंक्रक धार्ममक
संस्थान अतंकिादी गवतविवधयों को बढ़ािा दे रहे हैं तथा जागरूकता ऄवभयान सरकार की
विकासार्तमक पररयोजनाओं को लवक्षत कर रहे हैं।
 विशेषज्ञों ने एक विरोधाभास की ओर संकेत क्रकया है क्रक भारत प्रर्तयक्ष विदेशी वनिेश (FDI) को
तो बढ़ािा देता है, परंतु NGOs को सहायता लेने से प्रवतबंवधत करता है। ऄतीत में, रूस एिं
हंगरी जैसे कर्भयुवनस्ट देशों द्वारा समान प्रवतबंध लगाए गए थे।
 एक खुक्रफया ररपोटा (IB) ने भारत के GDP में वगरािट के वलए NGOs को दोषी ठहराया है। यह
भी अरोप लगाया गया है क्रक कु ि इसाइ NGOs धमाांतरण में लगे हुए हैं। आस िम में , ऄमेररका-
अधाररत एक NGO कर्भपैशन आंटरनेशनल को सरकार द्वारा ‘प्राथवमकता सूची‘ (priority list) में
रखा गया था।
 जून 2018 में, सरकार ने FCRA मानदंडों का ईल्लंघन करने पर NGOs पर लगाए जाने िाले
जुमााने में ढील दी है। ऄब से, वनलंबन या लाआसेंस रद्द करने के बजाय, NGOs पर भारी जुमााना
लगाया जाएगा। ये जुमााने भूतलक्षी तौर पर अरोवपत नहीं क्रकये जाएंगे।

राजनीवतक दलों को िू ट देने के वलए FCRA में क्रकए गए निीन संशोधन


 वित्त विधेयक 2016 के मार्धयम से एक संशोधन पाररत क्रकया गया, जो FCRA के मानदंडों का
ईल्लंघन करने पर भी राजनीवतक दलों को सुरक्षा प्रदान करती है। लंदन वस्थत एक बहुराष्ट्रीय
कं पनी िेदांता द्वारा बीजेपी एिं कांग्रेस को प्रदत्त ऄंशदान के संबंध में क्रदल्ली ईच्च र्नयायालय में
मामला दजा करने के बाद यह संशोधन क्रकया गया था।
 माचा 2018 में, वित्त विधेयक 2018 के मार्धयम से संसद ने वनरस्त हो चुके FCRA, 1976 में
भूतलक्षी प्रभाि के रूप में संशोधन क्रकया। आसका ईद्देश्य राजनीवतक दलों को 1976 के बाद से
विदेशों से प्राप्त धन की जांच से िू ट देना है।
 ईल्लेखनीय है क्रक जन प्रवतवनवधर्ति कानून तथा FCRA राजनीवतक दलों को विदेशी धन प्राप्त
करने से प्रवतबंवधत करता है।
 विदेशी कं पवनयां ऄब भारत में NGOs के साथ-साथ राजनीवतक दलों को भी फं ड दे सकती हैं।
 संशोधन का प्रभािः चूंक्रक राजनीवतक दान कर मुि होते हैं, ऄतः ऄवधक से ऄवधक गैर-सरकारी
संस्थान राजनीवतक दल बनने का प्रयास करेंगे। अयकर ऄवधवनयम की धारा 13A के ऄंतगात
राजनीवतक दलों के वलए व्यापार अय सवहत क्रकसी भी स्रोत से प्राप्त अय 100 प्रवतशत कर-मुि
है।

5.4. भारत से विदे शी सहायता

(Foreign Aid from India)


भारत, विकासार्तमक कायों के वलए विदेशी सहायता का एक प्रमुख प्राप्तकताा रहा है। परंतु, वपिले 3
िषों से भारत ने वजतनी वित्तीय सहायता प्राप्त की है, ईससे ऄवधक आसने ऄर्नय देशों को प्रदान की है।

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वित्तीय िषा 2015-16 में भारत ने सहायता के रूप में 7,719.66 करोड़ रुपये क्रदए, जबक्रक आसे ऄर्नय
देशों तथा िैवश्वक बैंकों से सहायता के रूप में मात्र 2,144.77 करोड़ रुपये वमले।
विदेशी राष्ट्रों को विकास के वलए वित्तीय सहायता प्रदान करने से न के िल अर्मथक ईद्देश्यों की पूर्मत
होती है, बवल्क यह एक रणनीवतक ईपकरण के रूप में भी काया करती है।
 भारत स्ियं को एक प्रमुख अर्मथक शवि एिं UN सुरक्षा पररषद की स्थायी सदस्यता के वलए एक
िैध दािेदार के रूप में प्रस्तुत करना चाहता है।
 ‘पड़ोसी प्रथम’ नीवत (Neighborhood First Policy): पड़ोसी देश भारत से वित्तीय सहायता के
सबसे बड़े प्राप्तकताा हैं। भारतीय सहायता का एक बहुत बड़ा वहस्सा िषों से भूटान प्राप्त करता अ
रहा है। 2015-16 में भूटान को भारत की ओर से 5,368.46 करोड़ प्राप्त हुए। यह मुख्य रूप से
हाआिंो-आलेवक्ट्रक पािर विकवसत करने के ईद्देश्य से दी गइ। ऄफगावनस्तान भारतीय सहायता का
दूसरा बड़ा प्राप्तकताा देश है।
 नृजातीय मुद्दे: लगभग तीन दशकों तक चले एक लंबे युद्ध के कारण विस्थावपत तवमल जनसंख्या के
पुनिाास के वलए भारत श्रीलंका में घरों का वनमााण कर रहा है।
 सॉर्पट पॉिर कू टनीवतः भारत ऄपनी सॉर्पट पािर की पहचान स्थावपत करने के वलए भी सहायता
प्रदान करता है।
 पड़ोसी देशों में चीन के प्रभाि का मुकाबला करना भारतीय सहायता के पीिे एक और प्रमुख
कारण है।
 दवक्षण एवशया एक अपदा प्रिण क्षेत्र है तथा आस क्षेत्र के कइ देश स्ियं राहत काया करने में सक्षम
नहीं हैं।

6. सूक्ष्मवित्त संस्थाएं (Microfinance Institutions)

6.1. सू क्ष्मवित्त सं स्थान क्या हैं ?

(What are Microfinance Institutions?)

सूक्ष्मवित्त, वजसे माआिोिे वडट भी कहा जाता है, एक प्रकार


की बैंककग सेिा है। आसे ऐसे बेरोजगार या कम अय िाले
व्यवियों या समूहों को प्रदान की जाती है, वजनके पास
ऄर्नय वित्तीय सेिाओं तक कोइ पहुंच नहीं होती है।
 सूक्ष्मवित्त संस्थान (Microfinance Institutions:
MFIs) समाज के जरूरतमंद और िंवचत िगों को
ऄपना ईद्यम स्थावपत करने के वलए ऄल्पकावलक ऊण
ईपलर्फध कराकर ईनके ईर्तथान की क्रदशा में काम करने
िाले वित्तीय संस्थान हैं। सूक्ष्मवित्त संस्थान र्नयूनतम या
बहुत पररकवलत जोवखम ईठाते हैं और आछिु क
ईधारकतााओं को ईनके प्रवशक्षण, िोटे पैमाने पर
व्यापार स्थावपत करने और चलाने में सहायता करने के
वलए विर्ततपोषण करते हैं।
 MFIs भारत में कइ रूपों और अकारों में काम करते
हैं:
 संयुि देयता समूह;

 स्ियं सहायता समूह;


 ग्रामीण बैंक मॉडल;

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 ग्रामीण सहकारी सवमवतयां।


 MFIs की ईधारी प्रणाली परंपरागत बैंककग क्षेत्र से पूरी तरह वभन्न है। सूक्ष्मवित्त के क्षेत्र में,
संबंवधत वित्तीय संस्थान द्वारा एक ऄवधकारी वनयुि क्रकया जाता है जो ऊण अिेदन और वितरण
प्रक्रिया पर चचाा करने के वलए व्यवि/समूह से संपका स्थावपत करता है।
 िह पहले अिेदक के कौशल एिं अिश्यकताओं को समझता है और क्रफर आसके अधार पर िह
ऊण की रावश वनधााररत करता है।
 वनयुि ऄवधकारी न के िल ईस व्यापार को समझता है जो ईधारकताा ितामान में संचावलत कर
रहा है या भविष्य में अरंभ करने में रुवच रखता है, ऄवपतु िह आसके साथ जुड़े जोवखम कारक का
भी विश्लेषण करता है।

6.2. विकास में सू क्ष्मवित्त सं स्थानों की भू वमका

(Role of Microfinance Institutions in Development)


 मवहला सशविकरण: सूक्ष्मवित्त संस्थान भारत में मवहलाओं को सशि बनाने में प्रमुख भूवमका
वनभा रहे हैं। देश की गरीब िंवचत मवहलाओं को वित्तीय सेिाएं प्रदान करके , आन संस्थानों ने ईनके
वलए अर्मथक विकास का दरिाजा खोला है। ऄवशवक्षत, गरीब और बेरोजगार मवहलाओं को
सामार्नयत: परंपरागत व्यिस्था के मार्धयम से सुलभ तरीके से ऊण नहीं वमल पाती है और यहीं पर
MFIs ईनकी सहायता के वलए अगे अते हैं।
 ग्रामीण विकास: सवर्फसडी से ऄवधक, गरीबों को ऊण तक पहुंच की अिश्यकता होती है।
औपचाररक रोजगार की ऄनुपवस्थवत ईर्नहें गैर 'बैंक योग्य' बना देती है। आससे िह ऄर्तयवधक र्फयाज
दर पर ईधार लेने के वलए वििश होते हैं। MFIs औपचाररक बंधक की ऄनुपवस्थवत में भी गरीबों
को ऊण प्रदान करते हैं।
 गैर-वित्तपोवशत लोगों का वित्तपोषण: सूक्ष्मवित्त क्षेत्रक वनरंतर गरीबों की अिश्यकताओं को
समझने और ईनकी अिश्यकताओं के ऄनुरूप सेिाएं प्रदान करने के बेहतर तरीकों का ऄविष्कार
करने, गरीबों को वित्त प्रदान करने के वलए सिाावधक कु शल और प्रभािी तंत्र विकवसत करने पर
र्धयान कें क्रित करते हैं।
 विश्व बैंक का ऄनुमान है क्रक 500 वमवलयन से ऄवधक लोगों को सूक्ष्मवित्त से संबंवधत पररचालन
से प्रर्तयक्ष या परोक्ष रूप से लाभ हुअ है।
 सूक्ष्मवित्त का लाभ के िल लोगों को पूंजी का स्रोत प्रदान करने के प्रर्तयक्ष प्रभाि तक ही सीवमत
नहीं है ऄवपतु यह आससे परे भी विस्ताररत है। सफल व्यापार का संचालन करने िाले ईद्यमी, बदले
में समुदाय के भीतर नौकररयां , व्यापार और समग्र अर्मथक सुधार सृवजत करते हैं।
 विशेष रूप से मवहलाओं को सशि बनाने से पररिारों के वलए और बाद में समाज में ऄवधक
वस्थरता और समृवद्ध अ सकती है।

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6.3. सू क्ष्मवित्त सं स्थानों से सं बं वधत मु द्दे

(Issues Related to Microfinance Institutions)


 ईच्च र्फयाज दर: िावणवज्यक बैंकों (8-12%) की तुलना में MFIs बहुत ईच्च र्फयाज दर (12-30%)
िसूलते हैं। हाल ही में, RBI ने MFIs ऊणों पर 26% र्फयाज की उपरी सीमा हटाने की घोषणा
की। आससे ग्राहकों की वस्थवत खराब हो गइ है और अंध्रप्रदेश एिं महाराष्ट्र जैसे राज्यों में आसके
कारण क्रकसान अर्तमहर्तया में िृवद्ध हुइ है।
 बैंककग क्षेत्र पर MFIs की ऄवधक वनभारता: आनका लगभग 80% फं ड बैंकों से अता है। आनमें से
ऄवधकतर वनजी बैंक हैं जो ईच्च र्फयाज दर प्रभाररत करते हैं और साथ ही ऊण की ऄिवध भी कम
होती है। यह ईर्नहें वडफ़ॉल्ट और चूक के प्रकरणों के प्रवत ऄल्प प्रवतक्रियाशील बनाता है।
 वित्तीय सेिाओं के संबध ं में जागरूकता की कमी: भारत में वित्तीय साक्षरता बहुत कम है। लगभग
76% अबादी मूलभूत वित्तीय ऄिधारणाएं नहीं समझती है। MFIs जागरूकता की आस कमी के
कारण ऄपने व्यापार को वित्तीय रूप से ऄवधक व्यिहाया बनाने के वलए संघषा करते हैं।
 वनयामकीय मुद्दे: RBI, MFIs का वनयामक है, लेक्रकन सूक्ष्मवित्त क्षेत्रक की अिश्यकताएं और
प्रारूप बैंकों से काफी वभन्न है। वनयामकीय मुद्दों ने ईप-आितम प्रदशान और नए वित्तीय ईर्तपादों
एिं सेिाओं के विकास में विफलता का मागा प्रशस्त क्रकया है
 ईपयुि मॉडल: ऄवधकांश MFIs SHGs या संयुि देयता समूह मॉडल का ऄनुसरण करते हैं।
ऄक्सर यह देखा जाता है क्रक आनके मॉडल के चयन की प्रकृ वत िैज्ञावनक नहीं होती है। आससे
दीघाकाल में संगठन की संधारणीयता प्रभावित होती है और साथ ही गरीब िगा के वलए ईधार लेने
का जोवखम ईनकी सहनशीलता से परे भी बढ़ सकता है।

6.4. सू क्ष्मवित्त सं स्थानों के काया क रण में सु धार लाने हे तु सु झाि

(Suggestions to Improve the Working of Microfinance Institutions)


 जमीनी िास्तविकताओं और ऐसे संस्थानों की पररचालन दक्षता की जांच करने के वलए MFIs के
कायाक्षेत्र के पयािेक्षण की अिश्यकता है।
 साथ ही बैंकरवहत गांिों में शाखाएं खोलने के वलए MFIs को प्रोर्तसाहन भी प्रदान क्रकया जाना
चावहए, ताक्रक ग्रामीण प्रिेश में िृवद्ध हो।
 साथ ही MFIs को ऄपने ग्राहकों को ईर्तपादों की पूरी श्रृंखला प्रदान करने के वलए भी प्रोर्तसावहत
क्रकया जाना चावहए। एकरूपता और दक्षता बनाए रखने के वलए पारदशी मूल्य वनधाारण और
प्रौद्योवगकी को ऄपनाने की जरुरत है।
 पयााप्त फं ड प्राप्त करने में MFIs की ऄक्षमता सूक्ष्मवित्त क्षेत्रक के विकास में एक बड़ी बाधा है, ऄतः
आन संस्थानों को फं ड के िैकवल्पक स्रोतों की ओर रूख करना चावहए।
 कु ि िैकवल्पक फं ड स्रोतों में बाह्य आक्रिटी वनिेश, पोटाफोवलयो खरीद और ऊणों का प्रवतभूवतकरण
सवर्भमवलत हैं वजसका ितामान में के िल कु ि बड़े MFIs लाभ ईठा रहे हैं।
 सूचना और प्रौद्योवगकी िे वडट बाजार की पहुाँच की वस्थवत पर दूरगामी प्रभाि डाल सकती है जो
बाजार मूल्य पर औपचाररक ऊण की ईपलर्फधता की बात अने पर सिाावधक महर्तिपूणा मुद्दा बना
रहता है।
 भारतीय सूक्ष्मवित्त ईद्योग ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (Regional and Rural Banks: RRBs) के
विकास के साथ 1975 से लंबा सफर तय क्रकया है। भारतीय सूक्ष्मवित्त ईद्योग के सुचारु कायाकरण
को सुवनवश्चत करने के वलए एक पृथक वनयामकीय प्रावधकरण की स्थापना करने की अिश्यकता है
आससे कदाचार और राजनीवतक हस्तक्षेप को कम क्रकया जा सकता है।
 िे वडट वनयंत्रण और ऊण संग्रह प्रक्रियाओं को सुदढ़ृ बनाना तथा ग्रामीणों को ईर्तपादों एिं
पररणामों के संबंध में वशवक्षत करना महर्तिपूणा है।

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7. सोसाआटी, र्नयास, दानकताा , लोकोपकारी संस्था और ऄर्नय


पक्ष/वहतधारक
(Societies, Trusts, Donors, Charities and other Stakeholders)
भारत में सोसाआटी, र्नयास, िक्फ और ऄर्नय धमााथा संगठनों से जुड़े कानूनों को वनम्नवलवखत तीन व्यापक
समूहों में रखा जा सकता है:
 सोसाआटी (Societies): सोसाआटी पंजीकरण ऄवधवनयम, 1860 और 1947 के बाद से आसमें हुए
विवभन्न राज्य संशोधनों के ऄंतगात पंजीकृ त सोसाआरटयां आसके ऄंतगात अती हैं;
 धार्ममक और लोकोपकारी काया (religious and charitable work): ररलीवजयस एंड
एनडाईनमेंट एक्ट, 1863; चैररटेबल एंड ररलीवजयस ट्रस्ट एक्ट, 1920; िक्फ ऄवधवनयम, 1995
और ऐसे ही ऄर्नय राज्य ऄवधवनयमों के ऄंतगात पंजीकृ त विशुद्ध धार्ममक और लोकोपकारी काया में
लगी सोसाआरटयां;
 र्नयास एिं लोकोपकारी संस्था (Trusts and charitable institutions): भारतीय र्नयास
ऄवधवनयम, 1882; चैररटेबल एनडाईनमेंट एक्ट, 1890; बॉर्भबे पवर्फलक सािाजवनक ट्रस्ट एक्ट,
1950; और ऐसे ही ऄर्नय राज्य ऄवधवनयमों के ऄंतगात पंजीकृ त र्नयास और लोकोपकारी संस्थाएं।

7.1. सोसाआटी (Societies)

सोसाआटी िस्तुतः सावहर्तय, लवलत कला, विज्ञान आर्तयाक्रद के संिधान के वलए कु ि साझा ईद्देश्यों से सात
या ऄवधक व्यवियों द्वारा वनर्ममत संघ होती है। आसे अरं भ करने के वलए कु ि साझी पररसंपवत्तयां हो भी
सकती हैं या नहीं भी हो सकती हैं, लेक्रकन समय के साथ, सोसाआरटयां वपरसंपवत्तयां ऄवधग्रहीत कर
सकती हैं। आर्नहें सोसाआटी पंजीकरण ऄवधवनयम, 1860 के ऄंतगात पंजीकृ त क्रकया जाता है।
कइ राज्य कानूनों (स्ितंत्रता के बाद संशोधन के मार्धयम से) ने सोसाआरटयों के दुरुपयोग और दुराचार से
वनपटने के वलए व्यापक सरकारी वनयंत्रण स्थावपत क्रकया है। आन कानूनी ईपायों में सवर्भमवलत हैं:
 पूिताि और जांच की राज्य की शवि;
 पंजीकरण का वनरसन और पररणामस्िरूप सोसाआटी का विघटन;
 शासी वनकाय का ऄवधग्रहण;
 प्रशासक की वनयुवि;
 विघटन; तथा
 वनवष्िय संगठनों का विलोपन।

7.2. र्नयास, ररलीवजयस एनडाईनमें ट (धार्ममक धमा स्ि) और िक्फ

(Trusts, Religious Endowments and Waqfs)


र्नयास, ररलीवजयस एनडाईनमेंट और िक्फ को िैधावनक तौर पर गरठत क्रकया जाता है। ये वनवश्चत
धमााथा और धार्ममक ईद्देश्यों के वलए समर्मपत संस्थान होते हैं तथा आस हेतु संपवत्त की व्यिस्था/बंदोबस्त
करते हैं। वजस कानून के ऄंतगात िे पंजीकृ त होते हैं, ईसी के तहत ईनके वनगमन, संगठनार्तमक संरचना
और कायों एिं शवियों के वितरण का वनयंवत्रत होता है।
व्यापक रूप से, ऐसे संगठन वनम्नवलवखत पांच तरीकों से कानूनी विशेषता धारण कर सकते हैं:
 संबंवधत राज्य सािाजवनक र्नयास ऄवधवनयम, ईदाहरण के वलए बॉर्भबे पवर्फलक सािाजवनक ट्रस्ट
एक्ट, 1950; गुजरात पवर्फलक सािाजवनक ट्रस्ट एक्ट अक्रद के ऄंतगात चैररटी अयुि/पंजीकरण
महावनरीक्षक के समक्ष औपचाररक पंजीकरण के मार्धयम से;

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 नागररक प्रक्रिया संवहता की धारा 92 और 93 के ऄंतगात र्नयास को वनयंवत्रत करने हेतु पद्धवत
वनधााररत करने के वलए वसविल र्नयायालयों के हस्तक्षेप को ऄनुमवत देकर;
 पंजीकरण ऄवधवनयम, 1908 के ऄंतगात सािाजवनक लोकोपकारी र्नयास का पंजीकरण;
 लोकोपकारी र्नयास और ररलीवजयस एनडाईनमेंट की सूची में संगठन को ऄवधसूवचत करके ,
वजसका राज्य के एनडाईनमेंट अयुक्त या चैररटेबल एनडाईनमेंट एक्ट, 1890 या प्रहदू
ररलीवजयस एंड एनडाईनमेंट पर ऄर्नय राज्य कानूनों के ऄंतगात गरठत प्रबंध सवमवत द्वारा
पयािेक्षण क्रकया जाता है; तथा
 िक्फ सृवजत कर, वजसका िक्फ ऄवधवनयम, 1995 के प्रािधानों के ऄंतगात प्रबंधन क्रकया जा
सकता है।

7.2.1. र्नयास (Trusts)

 र्नयास िस्तुतः संगठन का एक विशेष प्रकार होता है जो िसीयतनामा (will) से ईर्दभूत होता है।
िसीयतनामा वनमााता विशेष रूप से क्रकसी विवशि ईद्देश्य के वलए ईपयोग क्रकए जाने हेतु संपवत्त
का स्िावमर्ति हस्तांतररत कर देता है। यक्रद आसका ईद्देश्य विशेष व्यवियों को लाभ पहुंचाना है, तो
िह वनजी र्नयास बन जाता है और यक्रद यह समग्र रूप से अम जनता या समुदाय के कु ि ईद्देश्यों से
संबंवधत है, तो आसे सािाजवनक र्नयास कहा जाता है।
र्नयास और सोसाआटी के बीच ऄंतर
 सामार्नयतः वजन विषयों के अधार पर क्रकसी संस्थान को सोसाआटी पंजीकरण ऄवधवनयम, 1860
के ऄंतगात पंजीकृ त क्रकया जा सकता है, व्यािहाररक रूप से ईर्नहीं अधारों पर र्नयास को गरठत
क्रकया जा सकता है।
 सोसाआटी, प्रथमदृष्टया, विवभन्न लोकतांवत्रक आकाइयों में से एक है, क्योंक्रक आसके सभी सदस्यों
(कम से कम सात) की आसके संचालन में समान भागीदारी होती है, जबक्रक र्नयास में, िसीयतनामा
की स्पिता के अधार पर संपवत्त पर वनयंत्रण पूरी तरह से र्नयावसयों (Trustees) के हाथों में बना
रहता है और ऐसा प्रबंधन लंबे समय तक ऄवस्तर्ति में बना रहता है।
 सरकार र्नयास के मामलों में के िल तभी हस्तक्षेप करती है जब र्नयासी बदलते हैं या र्नयास आतना
ऄवधक पुराना हो जाता है क्रक मूल िसीयतनामा की शतों के ऄनुसार आसे प्रबंवधत नहीं क्रकया जा
सकता है या र्नयास के दुराचार या दुरुपयोग के अधार पर।

7.2.2. ररलीवजयस एनडाईनमें ट (धार्ममक धमा स्ि)

(Religious Endowments)
 ररलीवजयस एनडाईनमेंट और िक्फ र्नयास के प्रकार हैं वजनका विवशि धार्ममक ईद्देश्यों के वलए
गठन क्रकया जाता है, ईदाहरण के वलए, िमशः प्रहदुओं और मुसलमानों के बीच इश्वर, दान-पुण्य
और धमा से संबंवधत कायों में सहायता प्रदान करने के वलए।
 सािाजवनक र्नयासों के विपरीत, ये ऄवनिाया रूप से क्रकसी औपचाररक पंजीकरण के मार्धयम से
गरठत नहीं भी हो सकते हैं, न ही िे दाता, र्नयासी और लाभाथी के बीच वत्रकोणीय संबंधों पर
विशेष रूप से बल देते हैं।
 ररलीवजयस एनडाईनमेंट िस्तुतः धार्ममक ईद्देश्यों के वलए संपवत्त के समपाण से गरठत होते हैं।
मुवस्लम समुदाय के बीच सदृश कायािाही से िक्फ का सृजन होता है। िक्फ संपवत्त की व्यस्था
करते हैं और लोगों को भोगावधकार समर्मपत कर देते हैं।

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 भारतीय संविधान धार्ममक प्रकरणों को प्रबंवधत करने की स्ितंत्रता को ऄपने नागररक के एक मूल
ऄवधकार के रूप में मार्नयता देता है। ऄनुछिेद 26 के ऄनुसार - "लोक व्यिस्था, सदाचार और
स्िास्र्थय के ऄधीन रहते हुए, प्रर्तयेक धार्ममक संप्रदाय या ईसके क्रकसी ऄनुभाग को-
(a) धार्ममक और पूता प्रयोजनों के वलए संस्थाओं की स्थापना और पोषण का;
(b) ऄपने धमा विषयक कायों का प्रबंध करने का;
(c) जंगम और स्थािर संपवत्त के ऄजान और स्िावमर्ति का; तथा
(d) ऐसी संपवत्त का विवध के ऄनुसार प्रशासन करने का;
ऄवधकार होगा।
 हालांक्रक, ईपयुाि प्रािधान धार्ममक ईद्देश्यों के वलए र्नयास/लोकोपकारी संस्थाओं को सृवजत करने
की स्ितंत्रता देता है, लेक्रकन यह "विवध के ऄनुसार" ऐसी संपवत्त के प्रशासन पर कु ि वनयंत्रण
स्थावपत करता है - ऄनुछिेद 26 (d)।

7.2.3. भारत में िक्फ (Waqfs in India)

 भारत में मुवस्लम शासन के दौरान, िक्फ की ऄिधारणा को व्यापक रूप से कु रान द्वारा ऄनुमोक्रदत
दान-पुण्य की भािना के साथ यथा संरेवखत क्रकया गया था। िक्फ का तार्तपया आस अधार पर
मुवस्लमों द्वारा इश्िर को चल या ऄचल, मूता या ऄमूता संपवत्त ऄर्मपत करने से है क्रक यह हस्तांतरण
जरूरतमंदों को लाभावर्नित करेगा। जैसा क्रक आसका तार्तपया इश्िर को संपवत्त के ऄर्बयपाण से है,
ऄत: िक्फ विलेख (Waqf deed) ऄपररितानीय और शाश्वत होता है।
 ितामान में, भारत में 30,0000 िक्फों को िक्फ ऄवधवनयम, 1995 के विवभन्न प्रािधानों के
ऄंतगात प्रशावसत क्रकया जा रहा है। यह ऄवधवनयम जर्भमू-कश्मीर और दरगाह ख्िाजा साहब,
ऄजमेर को िोड़कर पूरे देश में लागू है।
 आस ऄवधवनयम के ऄंतगात प्रबंधन संरचना के तहत प्रर्तयेक राज्य में एक शीषा वनकाय के रूप में एक
िक्फ बोडा का गठन क्रकया गया है। प्रर्तयेक िक्फ बोडा एक ऄधा-र्नयावयक वनकाय है वजसे िक्फ से
संबंवधत वििादों पर वनणाय देने का ऄवधकार है। राष्ट्रीय स्तर पर, कें िीय िक्फ पररषद (Central
Waqf Council) का गठन क्रकया गया है जो एक िैधावनक एिं सलाहकारी वनकाय है।
 िक्फ ऄवधवनयम को 2013 में संशोवधत क्रकया गया था। संशोवधत िक्फ ऄवधवनयम ने िक्फ
संस्थान को मजबूत बनाने और ईनका कायाकरण सुव्यिवस्थत बनाने के प्रािधान क्रकए हैं। आस
ऄवधवनयम में सवर्भमवलत कु ि महर्तिपूणा प्रािधान हैं:
o गैर-मुसलमानों को भी िक्फ के सृजन की ऄनुमवत देने के वलए िक्फ की पररभाषा में संशोधन
क्रकया गया है।
o यक्रद क्रकरायेदारी (tenancy), पट्टा या लाआसेंस समाप्त हो गया है या समाप्त कर क्रदया गया
है, तो आसे ऄवतिमण माना जाएगा।
o कें िीय िक्फ पररषद को यह ऄवधकार क्रदया गया है क्रक िह िार्मषक ररपोटा और लेखा परीक्षा
ररपोटा की जानकारी मांगते हुए राज्य िक्फ बोडों को ईनके वित्तीय प्रदशान, सिेक्षण, िक्फ
विलेखों के रखरखाि, राजस्ि ऄवभलेख, और िक्फ संपवत्तयों के ऄवतिमण पर वनदेश जारी
कर सकता है।
o कें िीय िक्फ पररषद द्वारा जारी क्रकए गए वनदेशों से ईर्तपर्नन होने िाला कोइ भी वििाद
सिोच्च र्नयायालय के सेिावनिृत्त र्नयायाधीश या ईच्च र्नयायालय के सेिावनिृत्त मुख्य र्नयायाधीश
की ऄर्धयक्षता में कें ि सरकार द्वारा गरठत ऄवधवनणाय बोडा को संदर्मभत क्रकया जाएगा।
o आस ऄवधवनयम के अरं भ होने की वतवथ से 6 महीने के भीतर राज्य िक्फ बोडों की स्थापना
की जाएंगी।

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o िक्फ संपवत्तयों के हस्तांतरण को रोकने के वलए िक्फ संपवत्तयों की 'वबिी', 'ईपहार', 'बंधक',
विवनमय' और 'हस्तांतरण' पर प्रवतबंध लगाया गया है।
o िक्फ संपवत्तयों के 'पट्टे' की ऄनुमवत है। हालांक्रक, मवस्जद, दरगाह, खानकाह, कवब्रस्तान और
आमामबाड़ा का 'पट्टा' वनवषद्ध कर क्रदया गया है।
o राज्य सरकार द्वारा ऄनुमोदन से पट्टा ऄिवध को िावणवज्यक गवतविवधयों, वशक्षा या स्िास्र्थय
ईद्देश्यों के वलए ऐसी पररयोजनाओं की लंबी पररपक्िता ऄिवध और वनयोवजत पूंजी पर लंबी
ऄिवध के प्रवतफल के कारण एक समान रूप से 30 िषों तक बढ़ाया गया है। कृ वष भूवम के पट्टे
की ऄवधकतम ऄिवध 3 िषा तय की गइ है। आसके ऄवतररक्त, 3 िषा से ऄवधक पट्टे की राज्य
सरकार को सूचना दी जानी चावहए और यह के िल 45 क्रदनों के बाद प्रभािी होगा।

7.3. श्रवमक सं घ (Trade Unions)

 श्रवमक संघ ऄवधवनयम, 1926 (Trade Unions Act, 1926) की धारा 2 के संदभा में, "श्रवमक
संघ से अशय मुख्य रूप से श्रवमकों और वनयोिाओं के बीच या श्रवमकों और श्रवमकों के बीच या
वनयोिाओं और वनयोिाओं के बीच संबंधों को विवनयवमत करने के ईद्देश्य से गरठत या क्रकसी भी
व्यापार या व्यिसाय के संचालन पर प्रवतबंधक शते लागू करने के वलए संयोजन से है, चाहे
ऄस्थायी हो या स्थायी, और आसमें दो या दो से ऄवधक श्रवमक संघों िाला कोइ भी संघ सवर्भमवलत
है।"
 श्रवमक संघ ऄवधवनयम का ईद्देश्य, जैसा क्रक उपर पररभावषत क्रकया गया है, श्रवमक संघों को
कानूनी ऄवस्तर्ति और सुरक्षा प्रदान करना है।
 महर्तिपूणा बात यह है क्रक यह भी प्रािधान क्रकया गया है क्रक संघ या राज्य में मंवत्रपररषद का कोइ
भी सदस्य या लाभ का पद धारण करने िाला व्यवि पंजीकृ त श्रवमक संघ का कायाकारी सदस्य या
ऄर्नय पदधारी नहीं होगा।

8. विगत िषों में Vision IAS GS मेंस टे स्ट सीरीज में पू िे


गए प्रश्न
(Previous Year Vision IAS GS Mains Test Series Questions)

1. स्ियं-सहायता समूह (SHG) बैंक प्रलके ज प्रोग्राम आसे विवभन्न देशों में विविध सामावजक-
अर्मथक समस्यायों को सुलझाने हेतु प्रयुि एक प्रभािी साधन के रूप में प्रस्तुत करता है।
भारत में आस प्रकार के कायािम के संभावित वनष्पादन और संधारणीयता का ऄर्निेषण
कीवजए?
दृविकोण:
 भूवमका में स्ियं-सहायता समूह (SHG) बैंक प्रलके ज प्रोग्राम का िणान कीवजए।
 आसके वनष्पादन को बताते समय सकारार्तमक पररणामों और सामना की जाने िाली चुनौवतयों
को किर क्रकया जाना चावहए।
 संधारणीयता का ऄर्निेषण कीवजए और कायािम को सुदढ़ृ बनाने हेतु अिश्यक सुझाि
दीवजए।
ईत्तर:
बैंकों के शाखाओं में काफी विस्तार के बािजूद भारत में जनसंख्या का एक बड़ा भाग
औपचाररक बैंककग प्रणाली से बाहर बना हुअ है। वित्तीय समािेशन के ईद्देश्य को पूरा करने
के वलए िैकवल्पक मॉडल का प्रयोग क्रकया जा रहा है। SHG-बैंक प्रलके ज मॉडल भारत में
विकवसत सूक्ष्म-ऊण का स्िदेशी मॉडल है और आसे व्यापक रूप से सफल मॉडल के रूप में
प्रशंवसत क्रकया गया है।

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SHGs ग्रामीण वनधान लोगों (प्रर्तयेक में सामार्नयतः 10-20 सदस्य) एक लघु समूह होता है।
सदस्यों के बीच बचत को बढ़ािा देने और एक साझा कोष में पारस्पररक योगदान करने के
वलए अर्मथक रूप से सजातीय संबंध िाले लोग स्िेछिापूिाक आसे गरठत करते हैं। समूह के
सदस्यों के वनणाय के ऄनुसार आसके सदस्यों को पैसा ईधार क्रदया जाता है। आसवलए SHGs
को सदस्य-संचावलत वमनी बैंक कहा जा सकता है।
SHG-बैंक प्रलके ज प्रोग्राम (SBLP) िस्तुतः 1980 के दशक के दौरान भारत के ग्रामीण
वनधानों की औपचाररक संस्थागत वित्तीय सेिाओं तक पहुंच में सुधार हेतु अरंभ क्रकये गए
पायलट पररयोजनाओं का पररणाम था। यह बैंकों के वलए भी लाभप्रद था क्योंक्रक बैंक यहााँ
व्यवियों के बजाय लोगों के समूहों से प्रर्तयक्ष व्यिहार करते थे वजससे बैंकों के काया -संपादन
(transaction) की लागत कम हुइ। पुनः व्यवि के बजाये समूह से िाताा करने के चलते बैंकों
के जोवखम में भी कमी अइ और आसके पररणामस्िरूप लोग भी सुरवक्षत हुए।
SHG-बैंक प्रलके ज प्रोग्राम के सकारार्तमक पररणाम
 वित्तीय समािेश और आस प्रकार वनधान मवहलाओं का सशविकरण।
 ऊण िापसी - समय पर ऊण िापस करने की ईच्च प्रिृवत्त।
 अय में िृवद्ध के चलते वनधानता में कमी। वनधानों को पररसंपवत्तयां सृवजत करने में सक्षम
बनाया जा सका और आस प्रकार ईनकी सुभेद्यता कम हुइ है।
 SHGs से ऄसंबद्ध पररिारों की तुलना में आससे संबद्ध पररिार वशक्षा पर ऄवधक व्यय
करने में ऄवधक सक्षम हुए हैं।
 बेहतर पोषण, अिास और स्िास्र्थय के मार्धयम से विशेषकर मवहलाओं और बच्चों के मर्धय
बाल मृर्तयु दर में कमी, मातृ स्िास्र्थय और वनधानों की रोगों से वनपटने की क्षमता में
सुधार हुअ है।
 ऄनौपचाररक ऊण दाताओं और ऄर्नय गैर-संस्थागत स्रोतों पर वनभारता कम करने में
योगदान क्रदया है।
 आसने विवभन्न वहतधारकों के वलए निाचार, सीखने और पुनरुर्तपादन करने के वलए
ऄिसर प्रस्तुत क्रकया है। पररणामतः, कु ि गैर-सरकारी संगठनों ने ऄपने विभागों में सूक्ष्म
बीमा ईर्तपादों को जोड़ा है, कु ि SHGs ने अजीविका संबंधी गवतविवधयों के साथ
प्रयोग क्रकया है और पूिी क्षेत्र में SHGs मॉडल में ऄनाज बैंकों को सफलतापूिाक सृवजत
क्रकया गया है।
सामना की जाने िाली चुनौवतयााँ
 कायािम के ऄंतगात बैंकों से सर्भबद्ध SHGs के विस्तार और संचयी बैंक ऊण दोनों के
सर्नदभा में व्यापक क्षेत्रीय ऄसमानता विद्यमान है। जहााँ कु ल SHGs में से 48.2 प्रवतशत

दवक्षणी क्षेत्र में ईपवस्थत हैं, िहीं ईत्तर-पूिी क्षेत्र में ये के िल 3.4 प्रवतशत हैं। कु ल बैंक

ऊण में SHGs के शेयर के मामले में क्षेत्रिार ऄंतर बढ़ता जा रहा है।
 यहााँ तक क्रक SHGs में घटक राज्यों के मर्धय भी व्यापक ऄंतर-क्षेत्रीय ऄसमानता फै ल

गइ है। दवक्षणी क्षेत्र में, प्रवत लाख जनसंख्या पर अंध्र प्रदेश में 891 और के रल में 435

SHGs की ईपवस्थवत के साथ वभन्नता विद्यमान थी। ईत्तर-पूिी क्षेत्र में, जहााँ कु ल
SHGs में ऄसम का 3.1 प्रवतशत वहस्सा था, िहीं आस क्षेत्र के शेष िह राज्यों का कु ल
SHGs में नगण्य वहस्सा था।

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 बैंककग अईटरीच और SHGs अंदोलन के प्रसार के मर्धय सामंजस्य का भी ऄभाि है।

आसी प्रकार एक ही बैंककग नेटिका के मामले में भी क्षेत्र और राज्यों के मर्धय SHG के
विस्तार में वभन्नताएं क्रदखायी देती हैं जो दशााता है क्रक ऄर्नय स्थानीय कारक समान रूप
से महर्तिपूणा होते हैं।
 विवभन्न ऄर्धययनों में यह पाया गया है क्रक कम वनधान लोग आससे ऄवधक जुड़े हैं जबक्रक
ऄवत वनधान लोगों की पहुाँच ऄभी भी नगण्य है। सरकार प्रायोवजत कायािमों को िोड़कर
जो वनधानों पर र्धयान कें क्रित करने के वलए ऄवनिाया है, ऄर्नय प्रयास वनधानतम को
प्राथवमकता नहीं देते हैं।
SHG-बैंक प्रलके ज प्रोग्राम की दीघाकावलक संधारणीयता के वलए सुझाि:

 िंवचत क्षेत्रों में SHGs को प्रोर्तसावहत करना;


 सरकारी कायाकतााओं का क्षमता वनमााण;

 ऊण स्िीकृ वत और ईन्नयन करते समय ्िाचार/कमीशन के मामलों की जांच करना;

 SHGs अंदोलन के सहभागी चररत्र को बनाए रखना;


 NABARD द्वारा गरीबों की पहचान;

 गैर-सरकारी संगठनों के वलए प्रोर्तसाहन पैकेज ईपलर्फध करना;

 ऊण की 'एिर-ग्रीप्रनग' से बचाि;
 ररकॉडा के रखरखाि में पारदर्मशता सुवनवश्चत करना;

 ऄवधशेष वितरण हेतु मानदंड विकवसत करने में SHGs की सकारार्तमक भूवमका पर बल
देना;

 अय/रोजगार सृजन करने िाली गवतविवधयों की पहचान करना; और

 ICT प्रौद्योवगकी और ईर्तपाद निाचार पर बल।

2. SHGs और सहकारी सवमवतयों के मर्धय ऄंतर स्पि कीवजए?


दृविकोण:
 सहकारी सवमवतयां और SHGs की एक संवक्षप्त भूवमका प्रस्तुत कीवजए।

 व्याख्या कीवजए क्रक SHG की प्रकृ वत ऄभी भी ऄनौपचाररक है तथा सहकाररता के विपरीत
आसमें ईत्तरदायी संरचना, जो अय सृवजत करने िाली गवतविवधयों हेतु समूह को सक्षम
बनाती है, ईसका यहााँ ऄभाि है।
ईत्तर:
एक सहकारी सवमवत ऄपने सदस्यों की सेिा करने के ईद्देश्य से प्रारंभ लोगों का एक स्िैवछिक
संगठन है। आसे मुख्य रूप से ऄपने सदस्यों के अर्मथक वहत को बढ़ािा देने के वलए सृवजत
क्रकया गया है। यह एक स्ि-शावसत संस्था है।
जबक्रक दूसरी ओर, SHGs ऄपने सदस्यों के कल्याण के वलए स्ि-वनयोवजत लोगों के िोटे
समूह के एक संगठन को संदर्मभत करता है। यह भी एक स्िैवछिक संगठन है वजसमें समूह
सामार्नय समस्याओं के समाधान के वलए एक साथ एकवत्रत होते हैं। यह भी सहकारी,
सहभावगता और सशविकरण संस्कृ वत की सुविधा प्रदान करता है। यद्यवप दोनों संगठनों में
समानताएं हैं, परर्नतु कु ि ऄसामनताएं भी विद्यमान हैं, जो वनम्नवलवखत हैं:

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 SHG सहकारी सवमवत की तुलना में एक ऄनौपचाररक संरचना है, जबक्रक सहकारी
सवमवत एक ऄवधक औपचाररक और पंजीकृ त संगठन है।
 SHGs को संगरठत करना सुगम होता है जबक्रक सहकारी सवमवतयों को ऄवधक संगरठत
संरचना की अिश्यकता होती है।
 SHGs में 10 से 20 सदस्य होते हैं, जबक्रक सहकारी सवमवत में सदस्यों की संख्या
ऄवनयत होती है।
 SHG के सदस्य सामार्नय और व्यविगत समस्याओं के समाधान के वलए एक साथ

एकवत्रत होते हैं। जबक्रक सहकारी सवमवतयों में, व्यविगत समस्याएं हमेशा बनी (वजन
समस्याओं का समाधान नहीं हुअ है) रहती हैं।
 SHG सूक्ष्म ऊण (माआिो-िे वडट), अय सृजन, सामुदावयक विकास, विशेष ईर्तथान
अक्रद जैसी ऄसीवमत भूवमकाओं का वनिाहन करते हैं। जबक्रक सहकारी सवमवतयों की
भूवमकाएं अर्मथक गवतविवधयों (विशेष रूप से विपणन) तक ही सीवमत होती हैं।
 SHG स्िायत्तशासी वनणाय-वनमााण िाला संगठन है जबक्रक सहकारी सवमवतयों में
स्िायत्ता प्रवतबंवधत होती है।

3. बड़ी संख्या में पेशि


े र तथा ऄछिी तरह से वित्त-पेवषत NGOs के सक्रिय होने से भारत में
नागररक समाज (वसविल सोसायटी) की प्रकृ वत में होने िाले पररितानों का अलोचनार्तमक
विश्लेषण कीवजए तथा आनके कारण नागररक समाज के समक्ष ईभरने िाले द्वर्नद्व तथा सीमाओं
की चचाा कीवजए।
दृविकोणः
 नागररक समाज की ऄिधारणा की व्याख्या कीवजए।
 भारत में नागररक समाज की पृष्ठभूवम के बारे में बताइए, विशेषतः स्ितंत्रता काल से पूिा के ।
ईसके बाद व्याख्या कीवजए क्रक कै से अने िाले िषो में NGOs के अने से ईनकी वस्थवत में
पररितान हुअ।
 आसके पश्चात्, ईल्लेख कीवजए क्रक क्या आससे दुविधा ईर्तपन्न हुइ है। यह तभी होगा जब

नागररक समाज की प्रकृ वत की स्पि व्याख्या की जाएगी। आसके ऄलािा NGOs की सीमाओं
का ईल्लेख कीवजए और नागररक समाज की भूवमका पर प्रकाश डालते हुए बताएं क्रक ईनसे
क्या ईर्भमीद की जाती है।
ईत्तरः
भारत में नागररक समाज संगठन का ईद्भि दो प्रक्रियाओं के कारण हुअ, पहला,
औपवनिेशीकरण का विरोध और दूसरा पारर्भपररक ऄर्बयासों/प्रथाओं के प्रवत अर्तम-सर्भमान
की ऄवभिृवत्त का विकास। ये दोनों अधुवनक वशक्षा प्रणाली और ईदारिादी विचारधाराओं के
प्रकाश में ऄस्िीकाया थे।
स्ितंत्रता प्रावप्त के पूिा काल में कम से कम सात तरह के संगठनों ने नागररक समाज का
वनमााण क्रकया वजनमें सामावजक धार्ममक सुधार अंदोलन, गांधीजी द्वारा स्थावपत संस्थाएं,

बहुसंख्य SHGs जो क्रक व्यापाररक संघों के चारों ओर पनपे थे, सामावजक दमन के विरूद्ध

अंदोलन विशेषतः जावतविरोधी अंदोलन, प्रवशवक्षत ऄंग्रेजी भाषी भारतीयों का संगठन जो


औपवनिेवशक सरकार से ऄंग्रेजी वशक्षा को बढ़ाने और वशवक्षत मर्धयिगीय लोगों के वलए
रोजगार ऄिसर ईपलर्फध कराने का वनिेदन करती थी, कांग्रेस पाटी से सर्भबद्व समूह और

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सामावजक तथा अर्मथक संगठन जो क्रक वहर्नदू राष्ट्र स्थावपत करने के कायायोजना के वलए
प्रवतबद्ध थे, मुख्य हैं।
लोकतांवत्रक ऄवधकारों के हनन और विकास की कमी से ईर्तपन्न शूर्नय को भरने के वलए
स्ितंत्रता के पश्चात् कइ नागररक समाज संगठनों का ईद्भि हुअ। ईदाहरण के वलए, 1970 के

ईत्तराद्धा में प्रलग समानता संघषा, जावत विरोधी अंदोलन और नागररक ऄवधकारों की सुरक्षा

हेतु अंदोलन (पीपल्स यूवनयन फॉर वसविल वलबटी: PUCL तथा पीपल्स यूवनयन फॉर
डेमोिे रटक राआट्स: PUDR), स्िछि पयाािरण हेतु अंदोलन (जैसे- वचपकों अंदोलन), बृहद
विकास पररयोजनाओं के विरूद्ध संघषा वजसने हजारों गरीब अक्रदिावसयों और लोगों को
विस्थावपत क्रकया है (नमादा बचाओं अंदोलन), खाद्य सुरक्षा का ऄवधकार, काया का ऄवधकार,

सूचना का ऄवधकार, अश्रय, प्राथवमक वशक्षा एिं स्िास्र्थय अक्रद के वलए ऄवभयान।

हालांक्रक, 1990 के दशक से कइ पेशिर एिं ऄछिी तरह से वित्त पोवषत NGOs का ईद्भि
हुअ, जो विवभन्न संघटकों की ओर से बोलने का दािा करते हैं। यद्यवप ऐसा नहीं है, क्रक

NGOs नागररक समाज संगठन नहीं है, परर्नतु ये सामावजक संगठनों, या अंदोलनों, या

नागररक समूहों या व्यिसायी संगठनों से वभन्न होते हैं, जो सदस्य अधाररत संगठन हो भी
सकते है, और नही भी। ईदाहरण के वलए रीप्रडग और विचार विमशा का क्लब सदस्यता
अधाररत होता है। आस प्रकार जब ऐसी विकास एजेंवसयााँ नागररक समाज के स्थान पर अती
हैं, और नागररकों के स्थान पर काया करने लगती हैं, तो िास्ति में यह साफ नही होता क्रक ये
क्रकससे विचार विमशा करती हैं और क्रकस संघटक के प्रवत ईत्तरदायी हैं। आसके ऄलािा कइ
ऄिसरों पर NGOs की कायासूची और अदेश भी स्पि नहीं होते।

पुनः नागररक समाज में ऄनुभिी NGOs के प्रिेश से काम करने के तरीकों में गुणार्तमक

पररितान अया है - सामावजक अंदोलनों के स्थान पर ‘ऄवभयान’, नागररकों को राजनीवतक


रंग देने के बजाय सरकारी कमाचाररयों और मीवडया की लॉप्रबग, नागररक सक्रियता के बजाय

नेटिका पर वनभारता, सीधी प्रक्रिया के बजाय र्नयायपावलका पर ऄवत वनभारता अक्रद। ईनके
द्वारा चलाये गये ऄवभयान ऄवधकतर तभी सफल होते हैं, जब ईच्चतम र्नयायालय द्वारा ईन
मुद्दों पर हस्तक्षेप क्रकया जाता है।
यद्यवप कोटा के हस्तक्षेप के द्वारा आन ऄवभयानों को लक्ष्य प्रावप्त में सफलता वमलती है, परर्नतु
र्नयायपावलका का ये हस्तक्षेप नागररक समाज संघटन के विरोधाभास को स्पि करता है। यह
मान वलया गया है क्रक नागररक समाज के पास राज्य को संबोवधत करने तथा ऄपनी मागों पर
र्धयान अकृ ि कराने की क्षमता है। हालांक्रक भारतीय राज्य र्नयायालय के प्रवत ऄवधक
ईत्तरदायी सावबत हुए हैं और ऄवधक से ऄवधक समूहों को र्नयावयक रास्ता ऄपनाने के वलए
बार्धय क्रकया है।
िैसे NGOs जो नागररक समाज पर प्रभािशाली हैं, ईर्नहोने ईन मुद्दो पर र्धयान के वर्नित करके
जो राजनीवतक प्रवतवनवधयों द्वारा िोड़ क्रदए गए थे, लोकतंत्र को मजबूत क्रकया है। ये मुद्दे हैं-
नागररक स्ितंत्रता, सामुदावयकता, सांप्रदावयकता, भोजन का ऄवधकार, काम का ऄवधकार,
सूचना का ऄवधकार आर्तयाक्रद। हालांक्रक आर्नहोंने कु ि दुविधा भी ईर्तपन्न की है। प्रथमतया,
NGOs सेिा अपूर्मत के कायो में रहे हैं, ऄतः ये मुवश्कल से ईन कायों को कर पाते हैं, जो

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सामावजक, अर्मथक और राजनीवतक पररितान में ईर्तप्रेरक का काया करे और गरीब,


ऄवधकारहीन तथा प्रवतकू ल पररवस्थवतजर्नय लोगों का साथ दे सकें ।
चूंक्रक हमारे संसदीय प्रवतवनवध खुद को लोकतांवत्रक वसद्ध करने में सफल नहीं हुए हैं, ऄतः ऐसे

संगठन जो लोकतंत्र को और मजबूत बनाना चाहते है, िे वनवश्चत तौर पर राजनेताओं की


आछिाओं की पूर्मत नहीं कर सकते। ऄवधकतर NGOs के पास तकनीकी विशेषता िाले

कमाचारी होते हैं, वजनके ऄपने विचार होते हैं, जो जानते हैं क्रक समस्या क्या है, और आस बारे
में क्या होना चावहए। नागररक राजनीवत का राजनीवतक सर्नदभा ऄब बदल चुका है। ऄब लोग
के िल वनिाावचत प्रवतवनवध पर के वर्नित न होकर ये विचार लगे हैं क्रक कै से ईर्नहोंने ऄपना काया
क्रकया, कै से प्रवतवनवध तंत्र को और लोकतांवत्रक बनाया जा सकता है। ये गैर -सरकारी एजेंट

वबना ईन संघटकों के प्रभाि में अए वजनका िे प्रवतवनवधर्ति करते है, नागररकों का स्थान

लेकर ईनके समथान में बोलते हैं, पक्ष समथान की राजनीवत में शावमल होते हैं, और ऄक्सर
नीवतयााँ बनाते एिं वबगाडते हैं। आसका ऄथा है क्रक जब NGOs लोकतंत्र के कायारत होते हैं,
तब िे प्रवतवनवध या नागररकों के प्रवत ईनके चूक/कृ र्तयों के प्रवत वजर्भमेदार नहीं होते।
खैर, NGOs क्षेत्रक की भी ऄपनी सीमाएं हैं। िे आस वस्थवत में नहीं होते क्रक आतना संसाधन
जमा कर लें, वजससे नागररकों की गरीबी और ऄभाि की समस्या का समाधान हो जाए। ये
शायद ही ऐसी क्रकसी योजना को सर्भपाक्रदत कर पाएंगे जो वितराणार्तमक र्नयाय सुवनवश्चत करे
और संसाधनों को ‘सर्भपन्न’ से िंवचत तबके की ओर स्थानांतररत करे। साथ ही गैर-सरकारी
संस्थाएं कभी भी आतनी शविशाली और स्थाइ संस्था नहीं हो सकतीं जो नीवत का
क्रियार्नियन करने में सक्षम हों।
ईल्लेखनीय है क्रक ऄवधकतर NGOs या तो एक या ऄवधक तर्तकावलक मुद्दो पर ही के वर्नित
होते हैं, और कइ ऐसे मुद्दे ईनसे ऄनिु ए रह जाते हैं, ईदाहरण के वलए, देश में संसाधनों की
भारी विषमता। न ही ये संगठन अर्मथक समानता के मुद्दों को संबोवधत करने में सक्षम हैं। िे
बहुत बड़े और पूरा न हो सकने िाले सपने नहीं देखते, ऄवपतु िे बस अने िाली पीढ़ी के
सामावजक रूप से सक्रिय होने की कल्पना करते हैं ताक्रक शवि के ढ़ांचे का पुनगाठन हो, और
सामावजक संबंधों की नइ और र्नयायसंगत संरचना विकवसत हो।

4. नीवत-वनमााण प्रक्रिया में नागररक समाज का समािेशन लोकतंत्र की प्रकृ वत को ऄवधक


सहभागी बनाता है। भारत के संदभा में आस कथन का परीक्षण कीवजए।
दृविकोणः
 आस प्रश्न में भारत में नागररक समाज की भूवमका को समझने और बताने की अिश्यकता है।
 अपको नीवत-वनमााण के चरण में नागररक समाज को भागीदार बनाए जाने के लाभों को
ईजागर करना चावहए।
 ईत्तर को सूचना का ऄवधकार ऄवधवनयम, 12िीं पंचिषीय योजना आर्तयाक्रद के दृिांत से
ऄवधक प्रभािकारी बनाया जा सकता है।
 ईत्तर का समापन आस संदभा की निीनतम घटनाओं और सुझािों के साथ क्रकया जाना चावहए।
ईत्तरः
भारत जैसे प्रवतवनवधर्ति अधाररत लोकतंत्र में, जनता के प्रवतवनवध कानून के वनमााण के वलए
ईत्तरदायी हैं। हालांक्रक ितामान समय में शासन प्रक्रिया में, नागररक समाज की भूवमका पर

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और ऄवधक बल क्रदया जा रहा है। आसके ऄलािा एक ऄनुभूवत यह है क्रक नागररक समाज को
कानून बनने से ले कर कानून को लागू करने, विकास कायािमों के पोस्ट-फै क्टो विश्लेषण के
चरणों तक साझेदार बनाया जाना चावहए। भारत ने पूिा में सूचना का ऄवधकार ऄवधवनयम,
काया स्थल पर मवहलाओं के यौन ईर्तपीड़न (बचाि, वनषेध और वनदान) ऄवधवनयम आर्तयाक्रद से
सर्भबंवधत कानूनों के वनमााण की प्रक्रिया में नागररक समाज की भागीदारी के कु ि ईदाहरण
देखे हैं। आससे वनम्नवलवखत लाभ हो सकते हैंःः
 भारत जैसे विविधतापूणा देश में कें िीकृ त कानून वनमााण की प्रक्रिया के मार्धयम से सभी
िगों की प्रचताओं का समाधान नहीं क्रकया जा सकता। भागीदारीपूणा कानून वनमााण की
प्रक्रिया यह सुवनवश्चत करेगी क्रक कानून सभी िगों की प्रचताओं का समाधान कर सके ।
आस प्रकार कानून की कवमयााँ दूर होती हैं।
 भारत की मुख्य समस्याओं में से एक है जनता का कानून के प्रवत ऄनवभज्ञता। कानून
वनमााण में जनता की भागीदारी यह सुवनवश्चत कर सके गी क्रक िे भी कानून के विषय में
जानें।
 कानून के बारे में ऄवधक जागरूकता ऄंततः कानून के विषय में लोगों की वशकायतों को
कम करेगा और आससे कानून का बेहतर क्रियार्नियन भी सुवनवश्चत हो सके गा।
 यह क्रियार्नियन एजेंवसयों के दावयर्तिबोध को बढ़ाएगा क्योंक्रक जागरूक लोग एजेंवसयों
की भूल-चूक के कृ र्तयों के वलए ईर्नहें वजर्भमेदार ठहराने में समथा हो सकें गे।
 यह प्रशासन में पारदर्मशता सुवनवश्चत करेगा।
 भारत में कानूनों को ऄक्सर अम लोगों की समझ से परे तकनीकी शर्फदािवलयों में बााँध
क्रदया जाता है। लोगों की भागीदारी से यह सुवनवश्चत होगा क्रक कानूनों को अमलोगों के
समझने लायक बनाया जाए।
यह कदम भारत को “प्रवतवनवधर्ति अधाररत लोकतंत्र से भागीदारीपूणा, विचारशील लोकतंत्र”
में पररिर्मतत कर देगा।
आसके ऄलािा, हाल ही में कै वबनेट सवचि के नेतृर्ति िाली सवमवत ने भारत में कानून वनमााण
की पूिा-विधायी संिीक्षा प्रक्रिया में जन-भागीदारी को संस्थागत रूप देने का वनश्चय क्रकया है।
आस वनणाय में के र्नि सरकार के प्रर्तयेक विभाग को क्रकसी प्रस्तावित कानून के र्फयौरे को सं सद में
प्रस्तुत करने से पूिा आंटरनेट और ऄर्नय मार्धयमों से ईपलर्फध कराना होगा। आस प्रवतदशा को
के रल में पुवलस विधेयक को पुनवनर्ममत करने में अजमाया गया था वजसमें बहुत से सुझािों
को शावमल क्रकया गया।
आस वनणाय के तहत, िंार्पट विधेयकों के साथ एक व्याख्यार्तमक रटर्ऩपणी होनी चावहए वजसमें
विधेयक के अिश्यक प्रािधानों को तथा प्रभावित लोगों के जीिन पर होने िाले आसके
प्रभािों को संक्षेप में बताया गया हो। तर्तपश्चात जनता को कम-से-कम 30 क्रदन रटर्ऩपणी करने
के वलए क्रदया जाना चावहए। आन रटर्ऩपवणयों को विधेयक की जांच कर रही संसद की सं बंवधत
स्थायी सवमवत के समक्ष प्रस्तुत क्रकया जाना चावहए।

5. हालांक्रक राज्य एजेंवसयों और स्िैवछिक संगठनों के बीच मतवभन्नता हैं, क्रफर भी राज्य
स्िैवछिक क्षेत्र के विकास के वलए परररक्षण, संरक्षण और एक ऄनुकूल िातािरण की
अिश्यकता को मार्नयता प्रदान करता है। स्िैवछिक क्षेत्र पर राष्ट्रीय नीवत के संदभा में व्याख्या
कीवजए।
दृविकोण:
 स्िैवछिक संगठनों की भूवमका के महर्ति का संवक्षप्त पररचय दीवजए।
 विवभन्न मुद्दों पर स्िैवछिक संगठनों और राज्य एजेंवसयों के बीच विचारों/विवधयों के ऄर्नतर के
बारे मे प्रश्नगत कथन की व्याख्या कीवजए।

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 आसके पश्चात्, सरकार द्वारा स्िैवछिक संगठनों को बढ़ािा देने की भूवमका का ईल्लेख कीवजए
और बताइए क्रक राष्ट्रीय नीवत के अलोक में आसे कै से देखा जा सकता है।
 स्िैवछिक संगठनों के प्रवत सरकार की सक्रिय भूवमका को रे खांक्रकत कीवजए। आसमे शावमल हैः
o विकास में साझेदारी।
o स्िैवछिक क्षेत्र के वलए ऄनुकूल िातािरण स्थावपत करना।
o स्िैवछिक संगठनों के प्रशासन और प्रबर्नधन की पारदशी एिं जिाबदेह प्रणाली सुवनवश्चत
करने के वलए स्ि-विवनयमन को बढ़ािा देना।
 सकारार्तमक भाि के साथ ईत्तर समाप्त कीवजए।
 अप कु ि ईदाहरण भी दे सकते हैं, जैसे- PMANE द्वारा कु डनकु लम विरोधी अंदोलन अक्रद।
 चेतािनीः स्िैवछिक क्षेत्र पर राष्ट्रीय नीवत के ईद्देश्यों को दो टूक तरीके से वलखने से बवचए।
ईत्तरः
 देश कइ जरटल समस्याओं का सामना कर रहा है वजसके वलए ऄनुकूल एिं बहु-क्षेत्रीय
समाधान की अिश्यकता है तथा साथ ही ऄनिरत सामावजक लामबर्नदी भी आस हेतु विशेष
रूप से महर्तिपूणा है।
 यद्यवप आन दोनों संस्थानों के बीच विचारों और कायों को लेकर मतभेद हैं, तथावप ऐसे क्षेऺत्रों
के वलए सरकार और स्िैवछिक संगठनों के बीच रणनीवतक सहयोग की तर्तकाल अिश्यकता
है। स्िैवछिक क्षेत्र लोगों और सरकार के बीच एक प्रभािशाली ऄराजनैवतक कड़ी के रूप में
काम करता है। स्िैवछिक संगठनों और सरकार के बीच संबंध , संसाधनों का सदुपयोग, लोगों
के विस्थापन अक्रद को लेकर मतभेद विद्यमान है।
 स्िैवछिक क्षेत्र पर राष्ट्रीय नीवत, 2007 में साझेदारी हेतु तीन क्षेत्रों की पहचान की गइ, यथा,
(i) परामशा: के र्नि, राज्य और वजला स्तर पर एक औपचाररक प्रक्रिया के मार्धयम से बातचीत;

(ii) रणनीवतक सहयोग: दीघाकाल के वलए सतत सामावजक लामबंदी के महर्ति को देखते हुए

जरटल हस्तक्षेपों से वनपटने के वलए रणनीवतक सहयोग; और (iii) वित्त पोषण: मानक
योजनाओं के मार्धयम से पररयोजनाओं के वलए वित्त पोषण।

विकास में साझेदारी

 स्िैवछिक संगठन िस्तुतः एक िैकवल्पक दृविकोण, प्रवतबद्ध विशेषज्ञता, स्थानीय ऄिसरों

और बाधाओं की समझ प्रस्तुत करते हैं; और समुदायों, विशेषकर सुविधाविहीन समुदायों


के साथ साथाक संिाद को सक्षम बनाते हैं। आसवलए सरकार यह अिश्यक मानती है क्रक
सरकार और स्िैवछिक क्षेत्र साथ वमलकर काम काम करें।
 यह साझी वजर्भमेदारी और प्रावधकार के साथ पारस्पररक विश्वास और अदर के बुवनयादी
वसद्धांतों पर अधाररत होना चावहए।

स्िैवछिक क्षेत्र के वलए एक सक्षम माहौल का सृजन

 स्िैवछिक क्षेत्र पर राष्ट्रीय नीवत, 2007 के मार्धयम से सरकार का ईद्देश्य स्िैवछिक क्षेत्र
की स्िायत्तता की रक्षा और साथ ही ईनकी जिाबदेही को सुवनवश्चत करते हुए स्िैवछिक
क्षेत्र से सर्भबवर्नधत विवधयों, नीवतयों, वनयम और विवनयमों का एक समुच्चय ईपलर्फध
कराना है।
 स्िैवछिक क्षेत्र की स्ितंत्रता ईर्नहें लोकवहत के विरुद्ध काया कर सकने िाली सामावजक,
अर्मथक और राजनीवतक ताकतों को चुनौती देने के वलए विकास के िैकवल्पक प्रवतमानों

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एिं गरीबी, ऄभाि ि ऄर्नय सामावजक समस्याओं से वनबटने हेतु नए तरीकों की खोज की
स्िीकृ वत प्रदान करेगी।
 आससे स्िैवछिक क्षेत्र को िैध रूप से भारत और विदेशों से अिश्यक वित्तीय संसाधन
(कर िू ट, FCRA के मार्धयम से विवनयमन) जुटाने का ऄवधकार वमलेगा। आसके साथ ही,
सरकार यह सुवनवश्चत करने के वलए प्रशासवनक और दण्डार्तमक प्रक्रियाओं को कठोर
बनाने पर विचार करे गी ताक्रक आन प्रोर्तसाहनों का दुरूपयोग कागजी र्नयासों द्वारा वनजी
वित्तीय लाभ के वलए न क्रकया जाए।
 स्िैवछिक क्षेत्र के साथ व्यिहार करने हेतु समयबद्ध प्रक्रियाएं शुरू करने के वलए सरकार
सभी सर्भबवर्नधत के र्निीय और राज्य सरकार की एजेंवसयों को प्रोर्तसावहत करेगी। आसमें
पंजीकरण, अय कर क्लीयरेंस, वित्तीय सहायता अक्रद शावमल है। स्िैवछिक क्षेत्र की
वशकायतों के पंजीकरण एिं वनिारण हेतु औपचाररक प्रणावलयां होगी।
स्िैवछिक संगठनों के प्रशासन और प्रबंधन में पारदशी एिं जिाबदेह प्रणाली सुवनवश्चत करने
हेतु स्ि-विवनयमन को बढ़ािा देना
 सरकार, स्िैवछिक क्षेत्र हेतु एक स्ितंत्र, राष्ट्र स्तरीय स्ि-विवनयामक एजेंसी के ईद्भि को
प्रोर्तसावहत करती है एिं ईर्नहें मार्नयता प्रदान करती है।
 आन समस्याओं पर चचाा ओर सिासर्भमवत कायम करने की सुविधा हेतु सरकार, समथाक
संगठनों और स्िैवछिक क्षेत्र नेटिका और महासंघों को प्रोर्तसावहत करेगी।
यह नीवत स्िैवछिक संगठनों के अकार और कायो में विविधता से युि एक स्ितंत्र, रचनार्तमक
और प्रभािशाली स्िैवछिक क्षेत्र को प्रोर्तसावहत, समथा और सशि बनाने के प्रवत समर्मपत है
ताक्रक यह भारत के लोगों के सामावजक, सांस्कृ वतक और अर्मथक प्रगवत में योगदान दे सके ।

6. स्ियं सहायता समूहों (SHGs) तथा पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) के बीच ऄस्िस्थ
प्रवतस्पद्धाा, दोनों की प्रभाविता को कम करती है। चचाा कीवजए। दोनों के बीच सामंजस्य
स्थावपत करने से ईप-वजला स्तर पर विकास की चुनौवतयों से वनपटने में क्रकस प्रकार सहायता
वमल सकती है?
दृविकोण:
 संक्षेप में PRIs की भूवमका तथा ईत्तरदावयर्तिों और SHGs आन ईत्तरदावयर्तिों के साथ कै से
प्रवतस्पधाा कर रहे हैं, आसे पररभावषत कीवजए।
 चचाा कीवजए क्रक आस प्रकार का परस्पर व्यापन दोनों संस्थानों की प्रभािशीलता के वलए क्रकस
प्रकार से हावनकारक हो सकता है।
 ऄंत में चचाा कीवजए क्रक समर्निय और स्पि सीमांकन दोनों के बीच कै से पूरकता ला सकता है।
सफल PRIs-SHGs प्रलके ज का ईदाहरण प्रस्तुत कीवजए।
ईत्तर:
SHGs सूक्ष्म वित्तीय मर्धयस्थ होते हैं। सामार्नयत: NGOs द्वारा आर्नहें सहायता प्रदान की
जाती है और ये कृ वष तथा गैर-कृ वष कायों में संलग्न ऄपने विवभन्न सदस्यों को प्रवशक्षण ि
सलाह प्रदान करते हैं। मवहलाओं को सशि बनाने, नेतृर्ति क्षमता का विकास करने, विद्यालय
में नामांकन में िृवद्ध करने , पोषण में सुधार लाने , अक्रद जैसे बड़े लक्ष्यों को साकार करने के
वलए वित्तीय मर्धयस्थता सामार्नयत: आनका प्राथवमक ईद्देश्य होता है।
जैसा क्रक देखा भी जा सकता है, PRIs और SHGs के गरीबी ईर्नमूलन से लेकर सहभागी
लोकतंत्र का संिधान करने तक परस्पंर व्यापन करने िाले ईद्देश्य हैं। ये दोनों संस्थान कभी

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कभी विकास प्रशासन और राजनीवतक प्रक्रिया में ईवचत स्थान पाने के वलए एक दूसरे के
साथ प्रवतस्पधाा करते हैं। तब SHGs को PRIs की संिैधावनक भूवमका को कम करने िाला
देखा जाता है। वनम्नवलवखत तर्थय प्रवतस्पधाा के प्रबदुओं को स्पि करते हैं:
 SHGs विवभन्न विकास योजनाओं के वलए मागा बनते जा रहे हैं।
 SHGs के वहतों के साथ सूक्ष्म वित्तीय संस्थाओं (MFIs), NGOs, वनगमों और
दानकतााओं के वहतों का संरेखण देखने को वमला है। क्षमता वनमााण के मामले में ये PRIs
के स्थान पर SHGs के साथ ऄवधक से ऄवधक संवलप्त होते जा रहे हैं।
 PRIs और SHGs की सामावजक संरचनाओं के कारण राजनीवतक पूिााग्रह ने दोनों के
बीच संबंधों को कमजोर बनाया है।
 कु ि राज्यों ने PRIs की विवभन्न सवमवतयों (जैसे- वमड-डे मील) में SHGs के सदस्यों
का समोिश करना ऄवनिाया बना क्रदया है। हालांक्रक, आस संबंध में कोइ प्रयास नहीं क्रकया
गया है।
हालांक्रक, ऐसे कइ सफल ईदाहरण हैं जहााँ साथ वमलकर काम करने िाले SHGs और PRIs
ने ग्रामीण समाज में सकारार्तमक पररितान को प्रभावित क्रकया है। अंध्र प्रदेश में ग्रामीण
गरीबी ईर्नमूलन सोसायटी (Society for Elimination of Rural Poverty: SERP) की
‘आंक्रदरा िांवत प्रथम योजना’ ग्रामीण गरीब पररिारों की अजीविका में सुधार लाने में बहुत
सक्रिय है। ये SHGs मनरेगा अक्रद के ऄंतागत सामावजक सुरक्षा, पेंशन और मजदूरी के
वितरण के वलए पंचायत प्रणाली के ऄंतागत काम करते हैं। कु दुर्भबश्री (के रल), मवहला
अधाररत भागीदारी युि गरीबी ईर्नमूलन कायािम, एक SHG अंदोलन है वजसमें विवभन्न
पंचायत स्तरों का एकीकरण हुअ है।
आन दोनों संस्थानों की प्रकृ वत और जनादेश मांग करती है क्रक संसाधनों का कु शलता पूिाक
ईपयोग करने और बेहतर पररणाम पैदा करने के वलए ये समर्निय के साथ काम करें। SHGs
के साथ संस्थागत और कायाार्तमक संबंध से PRIs के ईत्तरदावयर्ति और पारदर्मशता में िृवद्ध
होगी।
जहां ग्राम पंचायत स्तर पर SHGs लागू करने िाले, वनगरानी करने िाले और मूल्यांकन
करने िाले ऄवभकरण बन सकते है, िहीं प्रखंड और वजला स्तर पर दबाि समूह के रूप में
काया कर सकते हैं, फीडबैक ईपलर्फध करा सकते हैं और िाचडॉग के रूप में काया कर सकते हैं।
हालांक्रक, यह अिश्यक है सहजीिी संबंध के वलए SHGs और PRIs की क्षमता और सामर्थया
को मजबूत बनाया जाना चावहए।

7. वसविल सोसाआटी के गैर-राजनीवतक क्षेत्र में वस्थवत होने के बािजूद भी गैर-सरकारी संगठन
(NGOs) भारत की राजनीवत में भले ही ऄप्रर्तयक्ष, लेक्रकन महर्तिपूणा भूवमका वनभा रहे हैं।
रटर्ऩपणी कीवजए।
दृविकोण:
 गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) को पररभावषत करते हुए ईत्तर प्रारर्भभ कीवजए।
 संक्षेप में भारतीय समाज में NGOs की भूवमका पर चचाा कीवजए।

 भारतीय राजनीवत में NGOs की भूवमका (प्रर्तयक्ष/ऄप्रर्तयक्ष) पर चचाा कीवजए।


 अिश्यकतानुसार ईपयुि ईदाहरण दीवजए।
 ईपयुाि प्रबदुओं के अधार पर ईत्तर समार्ऩत कीवजए।

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ईत्तर:
 NGOs को गैर-लाभकारी वनजी संगठन के रूप में पररभावषत क्रकया जाता है, जो समस्याओं को

दूर करने, गरीबों के वहतों को बढ़ािा देन,े पयाािरण की सुरक्षा करने, अधारभूत सामावजक सेिाएं
प्रदान करने या सामुदावयक विकास का भार ईठाने िाली गवतविवधयों का ऄनुसरण करते है।
 काया-ईर्नमुख और साझा वहतों िाले लोगों द्वारा संचावलत, NGOs विवभन्न प्रकार की सेिाएं और

मानिीय काया करते हैं, नागररकों की प्रचताओं को सरकारों तक पहुंचाते हैं, नीवतयों का समथान
और वनगरानी करते हैं तथा सूचना के प्रबंधन के मार्धयम से राजनीवतक भागीदारी को प्रोर्तसावहत
करते हैं।
 कु ि NGOs कु ि सािाजवनक मुद्दों पर लोगों की लामबंदी के मार्धयम से ईनका सशविकरण भी

करते हैं और आस प्रकार 'कल्याण' के दृविकोण को बढ़ािा देते हैं। ऐसे NGOs वनम्नवलवखत तरीकों
से राजनीवत को प्रभावित करते हैं:
o कु ि NGOs प्रस्तावित पररयोजनाओं के विरूद्ध लामबंदी में लगे हुए हैं, जैसे- कु डनकु लम

परमाणु पररयोजना, POSCO संयंत्र, नमादा बचाओ अंदोलन अक्रद। ऐसी पररयोजनाओं से

प्रभावित लोगों को र्नयाय क्रदलाने के वलए अंदोलनों को बढ़ािा देते हैं। आस प्रकार NGOs
राजनीवतक दलों और ऄर्नय सामावजक अंदोलनों के वलए महर्तिपूणा सूचनाएं ईपलर्फध कराने
िाले स्रोत बन गए हैं।
 कु ि NGOs प्रर्तयक्ष रूप से राजनीवतक क्षेत्र में काम कर रहे हैं:

o लोगों या ऄपने वनिााचन क्षेत्र की समस्याओं का प्रवतवनवधर्ति करने की बजाय,


प्रवतवनवधर्ति अधाररत लोकतंत्र ने जावत और धमा को राजनीवतक वनिााचन क्षेत्र बना
क्रदया है। ऐसे पररदृश्य में कु ि NGOs द्वारा आस खाइ को पाटा गया है।

o कु ि NGOs वनरंतर वनिााचन सुधार के वलए काम कर रहे हैं।

o कु ि NGOs संविधान और कानून को बनाए रखने तथा लोगों के ऄवधकारों की सुरक्षा के

वलए कानूनी लड़ाइ लड़ रहे हैं, जैसे- पीपुल्स यूवनयन फॉर वसविल वलबटीज।

o ऄनेक NGOs जमीनी स्तर पर लोगों को सािाजवनक सेिाएं ईपलर्फध करिा रहे हैं,
वजसके कारण ईर्नहें लोकवप्रय समथान प्राप्त हो रहा है।
 ऄनेक NGOs सक्रिय रूप से सभी के कल्याण के वलए नीवत में पररितान की िकालत कर रहे हैं,
जैसे- ग्रीनपीस। ईनकी िकालत नीवतगत वनणायों को प्रभावित करती हैं और आसी के कारण ईर्नहें
राजनीवतक भूवमका वनभाने िाला कहा जाता है।
 NGOs और अंदोलन समूहों तथा NGOs और राज्य के बीच ऄस्पि होती सीमारेखा ईन ऄनेक

कारकों में से एक है वजसने NGOs को धीरे -धीरे और प्राय: परोक्ष रूप से चुनािी राजनीवत के
क्षेत्र में प्रिेश करने की ऄनुमवत दी है।
 हालांक्रक, ऄनेक NGOs को वित्तीय ऄवनयवमतताओं और राष्ट्रीय वहतों के विरूद्ध काम करने का

दोषी भी पाया गया है, वजनमे सुधार क्रकए जाने की अिश्यकता है। लोकतांवत्रक विकें िीकरण ने

NGOs को राजनीवतक क्षेत्र में प्रिेश करने का ऄिसर प्रदान क्रकया है। लेक्रकन ऄंतत: NGOs का
विकासार्तमक एजेंडा ईर्नहें राजनीवत के साथ महर्तिपूणा रूप से संरेवखत करता है।

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8. भारत के विकास की प्रक्रिया में NGOs के महर्ति को र्धयान में रखते हुए आनके वलए पयााप्त
कानूनी एिं विवनयामक तंत्र का होना ऄर्तयािश्यक हो जाता है। हाल के विकास संदभा में चचाा
कीवजए।
दृविकोण:
 NGOs और ईनके कायों के महर्ति पर प्रकाश डालते हुए ईत्तर अरंभ कीवजए।
 आसके ऄवतररि, हाल के ईन प्रकरणों का ईल्लेख कीवजए वजर्नहोंने NGOs के कामकाज के
संबंध में आस मुद्दे पर प्रकाश डाला है।
 विवनयमन के पक्ष और विपक्ष में तका प्रस्तुत कीवजए। जहां संभि हो, विवशि ईदाहरणों और
ऄनुशंसाओं या वनणायों का ईल्लेख कीवजए।
ईत्तर:
विश्व बैंक, NGOs को ऐसे "वनजी संगठनों के रूप में पररभावषत करता है जो विपवत्त से
राहत देने और गरीबों के वहतों का संिधान करने िाली गवतविवधयों का ऄनुगमन करते हैं।"
NGOs ने समथानकारी गवतविवधयां संचावलत करके भारत के विकास की प्रक्रिया में
महर्तिपूणा भूवमका वनभाइ है। NGOs ऄंवतम िोर तक सेिा प्रदायगी करते हैं जहां राज्य
सामार्नयतया नहीं पहुाँचता है या पहुाँच नहीं सकता है। NGOs सरकारी योजनाओं की
प्रभािकाररता के संबंध में प्रवतक्रिया प्रदान करते हैं और ईनके कायाार्नियन में सहायक होते हैं।
स्िैवछिक क्षेत्र पर राष्ट्रीय नीवत, 2007 (National policy on Voluntary Sector,
2007) में स्पि रूप से राष्ट्रीय विकास में स्िैवछिक क्षेत्र की भूवमका को मार्नयता दी गइ है।
ईनकी गवतविवधयों का व्यापक दायरा जो महर्तिपूणा सािाजवनक वहतों को प्रभावित करता है,
मांग करता है क्रक ईवचत कानूनी और वनयामक तंत्र विद्यमान होने चावहए। आसके ऄवतररि,
ईर्नहें वनवश्चतता के िातािरण में काया करने के वलए सक्षम बनाने के वलए, 'पयााप्त' रूपरेखा
अिश्यक है।
हावलया घटनािम:
 िषा 2015 में NGOs की विदेशी फं प्रडग को विवनयवमत करने के वलए विदेशी ऄंशदान
(विवनयमन) ऄवधवनयम (FCRA) के वनयमों में संशोधन क्रकया गया था और ग्रीनपीस
आंवडया का FCRA लाआसेंस रद्द कर क्रदया गया था।
 हाल के िषों में, कायाकताा या राजनीवतक NGOs का ईद्भि देखने को वमला हैं,
वजर्नहोंने सरकार की नीवतयों में पररितान लाने या प्रहरी की भूवमका वनभाने के वलए
नीवतगत पक्षधरता, लॉप्रबग, जन लामबंदी और तीखे प्रचार का सहारा वलया हैं।
 सरकार को आन विसंगवतयों के कारण विदेशी वित्त पोवषत NGOs के बैंक खातों की
जांच करनी पड़ी है।
विवनयमन के पक्ष में तका :
ईपयुाि घटनािमों के ऄवतररि, ऄर्नय कारण हैं:
 NGOs क्षेत्रक हाल के िषों में बहुत तेज गवत से बढ़ा है।
 चलायमान NGOs द्वारा फं ड का दुरूपयोग।
 ऄवधकांश NGOs ऄपयााप्त प्रवशवक्षत पेशेिरों के साथ काम करते हैं।
 ईनके नेतृर्ति पर बढ़ता हुअ एकावधकार देखने को वमला है।
 कइ NGOs सरकार द्वारा वित्त पोवषत हैं, और आसवलए ईनकी िानबीन की जानी
चावहए।
 सिोच्च र्नयायालय ने भी ऄपने हाल ही के वनणाय में आस कदम का पक्ष वलया है।
 10% से भी कम NGOs रवजस्ट्रार, सोसायटीज को ऄपना लेखा-जोखा प्रस्तुत करते हैं,
जैसाक्रक कानून द्वारा ऄवनिाया है।

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 विदेशी धन से वित्त पोवषत NGOs का एजेंडा राष्ट्रीय वहतों के विपरीत हो सकता है।
विवनयमन के विपक्ष में तका :
 पहले से ही विवनयमन के कइ ईपाय विद्यमान हैं। ऄवधक ईपाय ऄवत विवनयमन का
मागा प्रशस्त कर सकते हैं।
 लोकपाल और लोकायुि ऄवधवनयम, 2013 के ऄंतगात िररष्ठ प्रबंधन कर्ममयों को
"सरकारी कमाचाररयों" की पररभाषा के ऄंतगात लाया गया है और आस प्रकार, ऄपने
पवत-पत्नी और बच्चों की संपवत्तयों और देनदाररयों साथ-साथ ऄपनी संपवत्त और
देनदाररयों का प्रकटीकरण करना ऄपेवक्षत है।
 ऄवत विवनयमन ऄछिे ऄवभप्राय िाले NGOs के कामकाज में बाधक हो सकता है।
 आससे सामावजक, अर्मथक और राजनीवतक बलों को चुनौती देने के वलए विकास के
िैकवल्पक मानदंडों का पता लगाने की ईनकी क्षमता सीवमत हो सकती है।
आसवलए, जहां NGOs का विवनयमन िांिनीय और स्िीकाया है, िहीं सरकार को ऄवत
विवनयमन से ईनकी अिाज न दबाने का भी र्धयान रखना चावहए।

9. विगत िषों में संघ लोक सेिा अयोग (UPSC) द्वारा पू िे


गए प्रश्न
(Past Year UPSC Questions)
1. UPSC 2013: स्ि-सहायता समूहों की िैधता एिं जिाबदेही और ईनके संरक्षक, सूक्ष्म-वित्त
पोषक आकाइयों का, आस ऄिधारणा की सतत सफलता के वलए योजनाबद्ध अकलन और
संिीक्षण अिश्यक है। वििेचना कीवजए।
2. UPSC 2014: ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कायािमों में भागीदारी को प्रोन्नत करने में स्ियं -
सहायता समूहों के प्रिेश को सामावजक-सांस्कृ वतक बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।
परीक्षण कीवजए।
3. UPSC 2015: विदेशी ऄवभदाय (विवनयमन) ऄवधवनयम (FCRA), 1976 के ऄधीन गैर-
सरकारी संगठनों के विदेशी वित्तीयन वनयंत्रण वनयमों में हाल के पररितानों का
समालोचनार्तमक परीक्षण कीवजए।
4. UPSC 2015: अर्तमवनभार समूह (SHG) बैंक ऄनुबंध कायािम (SBLP), जो क्रक भारत का
स्ियं का निाचार है, वनधानता र्नयूनीकरण और मवहला सशविकरण कायािमों में सिाावधक
प्रभािी कायािम सावबत हुअ है। सविस्तार स्पि कीवजए।
5. UPSC 2015: पयाािरण की सुरक्षा से संबंवधत विकास कायों के वलए भारत में गैर-सरकारी
संगठनों की भूवमका क्रकस प्रकार मजबूत बनाया जा सकता है? मुख्य बार्धयताओं पर प्रकाश
डालते हुए चचाा कीवजए।
6. UPSC 2016: "भारतीय शासकीय तंत्र में , ग़ैर--राजकीय कतााओं की भूवमका सीवमत ही
रही है।" आस कथन का समालोचनार्तमेक परीक्षण कीवजए।
7. UPSC 2017: "ितामान समय में स्ियं सहायता समूहों का ईद्भि राज्य के विकासार्तमक
गवतविवधयों से धीरे परंतु वनरंतर पीिे हटने का संकेत है।" विकासार्तमक गवतविवधयों में स्ियं
सहायता समूहों की भूवमका का एिं भारत सरकार द्वारा स्ियं सहायता समूहों को प्रोर्तसावहत
करने के वलए क्रकए गए ईपायों का परीक्षण कीवजए।

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सरकारी नीततयों और तितभन्न क्षेत्रों में तिकास के तिए


हस्तक्षेप और ईनके ऄतभकल्पन तथा कायाान्ियन
के कारण ईत्पन्न तिषय
तिषय सूची
1.सािाजतनक नीतत (Public Policy) ____________________________________________________________ 104

1.1. सािाजतनक नीतत क्या है? _______________________________________________________________ 104

1.2. सािाजतनक नीततयों की प्रकृ तत _____________________________________________________________ 104

1.3. सािाजतनक नीतत तनमााण के िक्षण _________________________________________________________ 105

1.4. सािाजतनक नीतत के प्रकार (Types of Public Policy) ___________________________________________ 105

2. भारत में सािाजतनक नीतत (Public Policy in India) _______________________________________________ 106

2.1. स्ितंत्रता प्राति के पश्चात भारत में सािाजतनक नीतत ______________________________________________ 106

2.2. भारत की सािाजतनक नीतत तनमााण की कमजोररयााँ _______________________________________________ 108

2.3. भारत में सािाजतनक नीतत को सुदढ़ृ बनाना ____________________________________________________ 109

2.4. नीतत तनमााण तथा क्रियान्ियन में नागररक समाज की भूतमका ________________________________________ 109

2.5. नीतत तनगरानी और मूल्यांकन (Policy Monitoring and Evaluation) _______________________________ 110

3. तितभन्न क्षेत्रों में तिकास के तिए प्रमुख सरकारी हस्तक्षेप ______________________________________________ 111

3.1. ग्रामीण तिकास (Rural Development) ____________________________________________________ 111


3.1.1. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी ऄतधतनयम (MGNREGA) ____________________________ 111
3.1.2. नेशनि रुबान तमशन (National Rurban Mission:NRuM) ____________________________________ 112
3.1.3. प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना (PMGY) _____________________________________________________ 112
3.1.4. प्रधानमंत्री ईज्वलििा योजना (Pradhan Mantri Ujjwala Yojana:PMUY) _________________________ 112
3.1.5. दीन दयाि ईपाध्याय ग्राम ज्योतत योजना (DDUGJY) _________________________________________ 113
3.1.6. राष्ट्रीय ग्रामीण अजीतिका तमशन (National Rural Livelihoods Mission) ________________________ 113
3.1.7. तमशन ऄंत्योदय (Mission Antyodaya) __________________________________________________ 114
3.1.8. प्रधानमंत्री ग्राम सक क योजना (Pradhan Mantri Gram Sadak Yojana) _________________________ 114
3.1.9. संसद अदशा ग्राम योजना (Sansad Adarsh Gram Yojna) ____________________________________ 114
3.1.10. प्रधानमंत्री अिास योजना (Pradhan Mantri Awas Yojana) _________________________________ 115
3.1.11. ग्राम स्िराज ऄतभयान (Gram Swaraj Abhiyan) __________________________________________ 115

3.2. शहरी तिकास (Urban Development)_____________________________________________________ 116


3.2.1. स्माटा तसटी तमशन (The Smart Cities Mission) ___________________________________________ 116
3.2.2. कायाकल्प एिं शहरी रूपांतरण के तिए ऄटि तमशन ___________________________________________ 117
3.2.3. प्रधानमंत्री अिास योजना (शहरी) या 2022 तक सभी के तिए अिास तमशन _________________________ 118
3.2.4. राष्ट्रीय धरोहर तिकास एिं संिर्द्ान योजना (HRIDAY) _________________________________________ 118

102
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3.3. कौशि तिकास (Skill Development) ______________________________________________________ 118


3.3.1 प्रधानमंत्री कौशि तिकास योजना _________________________________________________________ 118
3.3.2. दीन दयाि ईपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना ________________________________________________ 119
3.3.3. क्रदव्ांगजनों के कौशि प्रतशक्षण के तिए तित्तीय सहायता ________________________________________ 120
3.3.4. राष्ट्रीय प्रतशक्षु संिर्द्ान योजना ___________________________________________________________ 120
3.3.5. ऄल्पसंख्यकों के तिए कौशि तिकास (Skill Development for Minorities) _________________________ 120

3.4. सामातजक सुरक्षा (Social Security) _______________________________________________________ 121


3.4.1. राष्ट्रीय सामातजक सहायता कायािम _______________________________________________________ 121
3.4.2. राष्ट्रीय पेंशन प्रणािी (National Pension System) _________________________________________ 121
3.4.3. ऄटि पेंशन योजना (Atal Pension Yojana) _______________________________________________ 122
3.4.4. प्रधानमंत्री जीिन ज्योतत बीमा योजना _____________________________________________________ 122
3.4.5. प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना __________________________________________________________ 122
3.4.6. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा ऄतधतनयम, 2013 _____________________________________________________ 122

3.5. NITI अयोग की काया योजना 2017-20 का तिश्लेषण _____________________________________________ 124


3.5.1. ग्रामीण तिकास (Rural Development) __________________________________________________ 124
3.5.2. शहरी तिकास (Urban Development) ___________________________________________________ 127
3.5.3 कौशि तिकास (Skill Development) ____________________________________________________ 129

4. िोकतंत्र एिं तिकास ______________________________________________________________________ 130

4.1. प्रक्रियात्मक िोकतंत्र एिं मूिभूत िोकतंत्र _____________________________________________________ 130

4.2. तिकास में िोकतंत्र की भूतमका- मूल्यांकन एिं अिोचना ___________________________________________ 131

5. स्रोत (Sources) ________________________________________________________________________ 134

6. तिगत िषों में Vision IAS GS मेंस टेस्ट सीरीज में पूछे गए प्रश्न ________________________________________ 134

103
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1.सािाज तनक नीतत (Public Policy)


1.1. सािा ज तनक नीतत क्या है ?

(What is Public Policy?)

सािाजतनक नीतत क्रकसी क्रदए गए पररिेश के भीतर सरकार द्वारा प्रस्तातित क्रियातितध है जो ऄिसर
ईपिब्ध कराती है, तथा ऄिरोधों को दूर करके नीततगत ईद्देश्यों तथा दी गयी भूतमका का क्रियान्ियन
संभि बनाती है।
ईपयुाक्त पररभाषा स्पष्टतः दशााती है क्रक सािाजतनक नीततयााँ सरकारी िक्ष्यों और कु छ ईद्देश्यों के
ऄनुसरण में पररणामी कायािातहयााँ ह।। आसके तिए महत्िपूणा सरकारी एजेंतसयों- राजनीततक
कायापातिका, तिधातयका, नौकरशाही और न्यायपातिका के मध्य पूणातः घतनष्ठ संबंध और ऄंतसंबर्द्ता
की अिश्यकता है।

1.2. सािा ज तनक नीततयों की प्रकृ तत

(Nature of Public Policies)


 िक्ष्य ईन्मुख: ये िक्ष्य ईन्मुख होती ह।। सामान्य तौर पर अम जनता को िाभ पहाँचाने हेतु सरकार
द्वारा तिचाररत ईद्देश्यों को प्राि करने के तिए सािाजतनक नीततयााँ तैयार की जाती ह। और आन्हें
िागू क्रकया जाता है।

 सामूतहक काया: यह सरकार के सामूतहक कायों का पररणाम है। आसे क्रियातितध या 'सरकारी
ऄतधकाररयों और कतााओं को ईनके तििेकातधकार और तिखंतडत तनणायों के स्थान पर एक
सामूतहक तनणाय िेने के ऄथा में जाना जाता है।
 तनणाय: सािाजतनक नीतत का संबंध सरकार द्वारा िास्ति में तिए गए तनणाय या क्रकए जाने िािे
कायों के चयन से है। यह कानून, ऄध्यादेश, न्यायाियों के तनणाय, कायाकारी अदेश और तनणायों
जैसे तितभन्न रूपों में हो सकता है।

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 सकारात्मक / नकारात्मक: सािाजतनक नीतत आस ऄथा में सकारात्मक है क्रक यह सरकार की चचता
को दशााती है और आसमें एक तिशेष समस्या के तिए आसकी कारा िाइ सतममतित होती है तजसके
तिए नीतत बनाइ गइ है। आसके पीछे तितध और ऄतधकार की स्िीकृ तत होती है। नकारात्मक रूप
से, आसमें क्रकसी तिशेष मुद्दे पर कोइ कारािाइ नहीं करने के संबंध में सरकारी ऄतधकाररयों द्वारा
तिए गए तनणाय सतममतित ह।।

1.3. सािा ज तनक नीतत तनमाा ण के िक्षण

(Characteristics of Public Policy Formulation)


 जरटि: नीतत तनमााण में कइ घटक सतममतित होते ह। जो संचार और फीडबैक िूप के माध्यम से
ऄंतसंबंतधत होते ह।।

 गततशीि: यह एक सतत प्रक्रिया है तजसके तिए संसाधनों और प्रोत्साहनों के तनयतमत अगत की


अिश्यकता होती है। यह समय के साथ पररिर्ततत भी होता है।
 तितभन्न घटकों का समािेशन: सािाजतनक नीतत तनमााण में तितभन्न प्रकार की ईपसंरचनाएं
सतममतित ह।। आन ईपसंरचनाओं की पहचान और नीतत तनमााण में ईनकी भागीदारी की सीमा,
तितभन्न मुद्दों, पररतस्थततयों और सामातजक मूल्यों के कारण तभन्न-तभन्न होती है।
 क्रदशातनदेश जारी करना: ऄतधकांश मामिों में, सािाजतनक नीतत, कारािाइ के मुख्य अधारों पर
सामान्य क्रदशा तनदेश देती है।
 कारािाइ के पररणाम: सािाजतनक नीतत कारािाइ के तिए ईपकरण और पररिेश का तनमााण करती
है।
 संभातित साधनों का सिोत्तम ईपयोग: सािाजतनक नीतत तनमााण का िक्ष्य साधनों का ऄतधकतम
ईपयोग संभि बनाना है, साथ ही न्यूनतम अगतों के साथ ऄतधकतम िाभ प्राि करना है।
 भतिष्योन्मुखी: नीतत तनमााण को भतिष्य की रणनीतत को ध्यान में रखते हए तनदेतशत क्रकया जाता
है। यह आसकी सबसे महत्िपूणा तिशेषताओं में से एक है क्योंक्रक आसमें सदैि ऄतनतश्चतता और
संक्रदग्धता के तत्ि तिद्यमान रहते ह।।
 सािाजतनक तहत: नीतत तनमााण की रणनीतत का मागादशान एक िृहद सािाजतनक तहत करता है।
 व्ापक परामशा: औद्योतगक श्रतमक, मतदाता, बुतर्द्जीिी, सांसद/तिधायक, नौकरशाह,
राजनीततक दि, राजनीततक ऄतधकारी, न्यायपातिका अक्रद ऐसे तितभन्न ऄंग ह। जो सािाजतनक
नीतत तनमााण में भाग िेते ह। और नीतत प्रक्रिया को काफी हद तक प्रभातित कर सकते ह।।

1.4. सािा ज तनक नीतत के प्रकार (Types of Public Policy)

 मौतिक (Substantive): ये सामान्य कल्याण और समाज के तिकास, तशक्षा के प्रािधान और


रोजगार के ऄिसर, अर्तथक तस्थरीकरण, तितध एिं अदेश प्रितान, प्रदूषण तिरोधी तिधान जैसे
कायािमों से संबंतधत नीततयााँ ह।।
 तितनयामकीय (Regulatory): ये व्ापार, व्िसाय, सुरक्षा ईपायों, सािाजतनक ईपयोतगताओं के
तितनयमन से संबंतधत चचताएाँ ह।। जीिन बीमा तनगम (LIC), भारतीय ररज़िा ब।क (RBI) जैसे
संगठन सरकार के पक्ष में आन तितनयमों का तनमााण करते ह।।
 तिभाजनीय (Distributive): ये समाज के तितशष्ट भागों के तिए ह। और िस्तुओं, सािाजतनक
कल्याण या स्िास््य सेिाओं के ऄनुदान के क्षेत्र से संबंतधत ह।। ईदाहरणों में ियस्क तशक्षा कायािम,
खाद्य राहत, सामातजक बीमा, टीकाकरण तशतिर आत्याक्रद सतममतित ह।।

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 पुनर्तितरण (Redistributive): पुनर्तितररत नीततयााँ, नीततयों के पुनगाठन से संबंतधत ह। जो


बुतनयादी सामातजक और अर्तथक पररितान िाने से संबंतधत ह।। कु छ िस्तु और सेिाएं जो
अनुपाततक रूप से तिभातजत ह।, सुव्ितस्थत ह।।
 पूज
ं ीकरण (Capitalization): आस नीतत के तहत, कें द्र सरकारों द्वारा राज्य और स्थानीय सरकारों
को तित्तीय सतब्सडी दी जाती है।

2. भारत में सािाज तनक नीतत (Public Policy in India)

2.1. स्ितं त्र ता प्राति के पश्चात भारत में सािा ज तनक नीतत

(Public Policy in India After Independence)


स्ितंत्रता प्राति के पश्चात भारत ने तनयोतजत अर्तथक तिकास का चयन क्रकया। ईस समय ऐसा माना
गया क्रक अर्तथक तिकास ही मानि तिकास को बढ़ािा देने हेतु सामातजक एिं राजनीततक तिकास में
िृतर्द् कर सकता है।
एक तनयोतजत ऄथाव्िस्था में, राज्य को सािाजतनक नीतत की सहायता से तितभन्न गतततितधयों के
माध्यम से समाज को बढ़ािा तथा अकार देने हेतु सक्रिय कताा के रूप में माना जाता है। आसने
सािाजतनक नीतत के दायरे को मात्र तितनयामक तक संबर्द् नहीं रखते हए तिकास तक तिस्तृत क्रकया।
आसके पररणामस्िरूप नीततयों के तनमााण एिं कायाान्ियन हेतु सरकारी एजेंतसयों और संस्थानों की
भागीदारी में िृतर्द् हइ।
भारत में यह भूतमका प्राथतमक रूप से पूिािती योजना अयोग (ितामान में नीतत अयोग) द्वारा तनिााह
की गयी, तजसके तहत िह नीतत तनमााण और दृतष्टकोणों को तिकतसत करता है, जो यह तनधााररत करता
है की देश के तिकास का पथ प्रदशान करने िािी नीततयों का अधार क्या होगा। सभी नीततगत तनदेशों
हेतु पंचिषीय योजनाओं (Five Year Plans:FYPs) को प्रमुख स्रोत बनाया जाता था।
नीतत दो प्रकार की होती थी- तितनयामकी एिं तिकास प्रेरक। जहााँ एक ओर यह ईद्यतमयों तथा
ईद्योगपततयों के दायरे को तनयंतत्रत करती है, तो िही दूसरी ओर यह दहेज ऄतधतनयम और तिाक
ऄतधतनयम जैसे ऄतधतनयमों के माध्यम से सामातजक पररितान को भी प्रोत्सातहत करती है।
भारत में सािाजतनक नीतत का पहिा िक्ष्य सामातजक-अर्तथक क्षेत्र में तिकास करना था। तजसके तिए
ईद्योग तथा कृ तष क्षेत्रक के तिकास हेतु प्रमुख नीततयों का तनमााण क्रकया गया था।
अर्तथक-सामातजक चुनौततयों के ऄततररक्त भारत अंतररक एिं बाह्य सुरक्षा के खतरों, क्षेत्रिाद की
समस्याओं जैसे की पृथकतािादी प्रिृततयों का ईद्भि आत्याक्रद का भी सामना कर रहा है। आसके कारण
राष्ट्रीय एकीकरण को बनाए रखने और िृहत राष्ट्रीय संगतता के तनमााण हेतु रक्षा नीततयों के तनमााण में
िृतर्द् हइ।
हािांक्रक, भारत में एक सिाव्ापी नीतत तनमााण करना एक करठन प्रक्रिया रही है। नीततयां ऄपने
प्राकृ ततक स्िरूप में ही तिरोधाभासी रही ह।। आसतिए ऐसा अिश्यक नहीं की राष्ट्रीय एकीकरण हेतु
तका संगत नीतत अर्तथक तिकास के तिए भी तका संगत हो। ऄतः बाह्य खतरों से तनपटने हेतु एक सुदढ़ृ
कें द्र की अिश्यकता को महत्िपूणा माना जाता है, परंतु यह तिकें द्रीकरण के तसर्द्ांत के तिरुर्द् भी जा
सकता है जो एक तिषमता युक्त समाज में िृहत राष्ट्रीय एकीकरण को प्रोत्सातहत करेगा।
पंचिषीय योजनाएं (Five Year Plans:FYPs) भारत में तिकास हेतु मूिभूत तत्िों पर कें क्रद्रत होती
ह।। ईदाहरणाथा प्रथम FYP मुख्यतः कृ तष क्षेत्र पर कें क्रद्रत थी, जबक्रक दूसरी FYP का ईद्देश्य देश में
िृहत पैमाने पर औद्योतगकीकरण करना था। बाद की योजनाओं के ऄंतगात ितक्षत क्षेत्रों में सतममतित
थे- औद्योतगक तिकास, कृ तष ईत्पादकता, रक्षा व्य, तनयाात, सािाजतनक तिकास व्य, गरीबी, ग्रामीण
तिकास, ऄिसंरचना, बाजार सुधार, सामातजक ऄिसंरचना तथा ऄन्य मुद्दे आत्याक्रद।

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तनयोतजत तिकास की ईपितब्धयां (Achievements of Planned Development)


 तिकास की ईच्च दर: योजना-पूिा युग के दौरान भारत न्यूनतम संतुिन (Low Equilibrium) से
ग्रस्त था। हािांक्रक बाद में तिकास दर में सुधार हअ, परंतु यह िैतिक औसत से कम ही रही, तजसे
'चहदू तिकास दर' कहा जाता था। अर्तथक सुधारों (ईदारीकरण, तनजीकरण एिं िैिीकरण: LPG)
के पश्चात तिकास दर में िृहत स्तर पर सुधार हअ। आसमें 2002 से 2014 के मध्य की ऄितध के
दौरान कइ िषों में डबि ऄंकों की िृतर्द् देखी गइ।
 राष्ट्रीय अय और प्रतत व्तक्त अय में िृतर्द्: अज भारत िय शतक्त समता (Purchasing Power
Parity:PPP) के संदभा में तिि की तीसरी सबसे बक ी ऄथाव्िस्था (ऄमेररका और चीन िमशः
पहिे ि दूसरे स्थान पर) है। साथ ही तिगत दशकों के दौरान प्रतत व्तक्त अय में भी ईल्िे खनीय
रूप से िृतर्द् हइ है।
 सामातजक ऄिसंरचना: मतहिा एिं पुरुष दोनों के तिए औसत जीिन प्रत्याशा में काफी सुधार
हअ है। तशशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर में काफी तगरािट दजा की गइ है। भारत पोतियो एिं
स्मॉि पॉक्स जैसे रोगों को समाि करने में भी सफि रहा है।
 कृ तष में अत्मतनभारता: भारत 1960 के दशक में गंभीर खाद्य संकट से जूझ रहा था। तजसके कारण
आसे तिदेशी खाद्य सहायता पर तनभार होना पक ा। आसके कारण सरकार को हररत िांतत और
ऑपरेशन फ्िड प्रारंभ करने हेतु बाध्य होना पक ा। ितामान में, भारत ऄतधशेष ऄनाज का ईत्पादन
करता है।
 बचत और ब्याज: 1950-51 में बचत दर का योगदान सकि घरेिू ईत्पाद में मात्र 8-9% था।
ितामान में यह सकि घरेिू ईत्पाद का 30% है।
 आसके ऄततररक्त भारत ऄब एक अत्मतनभार ऄथाव्िस्था, तिदेशी तनिेश हेतु अकषाक गंतव् स्थान
के रूप में ईभरा है और साथ ही यहााँ मूिभूत एिं पूंजीगत िस्तुओं के ईद्योगों का तिकास भी हअ
है।

तनयोतजत तिकास की तिफिताएं (Failures of planned development)

 अर्तथक ऄसमानता एिं सामातजक ऄन्याय: स्ितंत्रता प्राति के 7 दशकों के बाद भी, 22% से
ऄतधक जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे ऄपना जीिन यापन कर रही है। गरीबी हेतु मानदंड को
न्यूनतम रखने के बाद भी यह अंकक ा तनराशाजनक है। हािांक्रक भारत में तिि के ऄरबपततयों की
तीसरी सबसे बक ी संख्या भी है, तथा ऄसमानता स्ततमभत कर देने िािी है।

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 बेरोजगारी: भारत में ‘जॉबिेस ग्रोथ’ की ऄिधारणा को देखा गया है। कइ िषों से सबसे तीव्र
तिकतसत होती ऄथाव्िस्था होने के बािजूद के िि 2% की दर से ही रोजगार सृजन हअ है।
 ईत्पादन क्षेत्र में धीमी गतत: कइ योजनाओं में कृ तष क्षेत्रक के तिकास को प्राथतमकता देने के
बािजूद आसे ऄभी तक प्राि नहीं क्रकया जा सका है। आसके ऄततररक्त ग्रामीण क्षेत्रों के िघु स्तरीय
ईद्योगों के स्थान पर शहरी क्षेत्रों के पूंजी गहन ईद्योगों को प्राथतमकता दी गइ है।
 ऄप्रभािी प्रशासन: संयुक्त राष्ट्र की एक ररपोटा के मुतातबक, योजना िषों की कतमयों में से एक
ऄक्षम कायाान्ियन है। गहन चचाा एिं तिचार-तिमशा के पश्चात ही योजनाओं का तनमााण क्रकया
जाता है, परंतु ऄप्रभािी प्रशासन, बेइमानी, तनतहत स्िाथा तथा िािफीताशाही के कारण आनके
द्वारा तनधााररत िक्ष्यों को प्राि नहीं क्रकया जा सका है।
 प्रततक्रिया, तनगरानी एिं मूल्यांकन हेतु कोइ तंत्र नहीं: तिगत योजनाओं की प्रभािशीिता का
तिश्लेषण करने हेतु क्षेत्र ऄध्ययन क्रकए तबना सभी योजनाओं को एकि तनकाय (योजना अयोग)
द्वारा तैयार क्रकया गया था। राज्य सरकारों जैसे तितभन्न तहतधारकों के साथ ऄपयााि परामशा के
साथ ही नीतत तनमााण में कु छ हद तक मनमानी भी की गइ थी।
 जीिन स्तर: प्रतत व्तक्त अय में िृतर्द् नहीं हइ है, जबक्रक महंगाइ (inflation) ने मध्यम एिं तनम्न
िगीय जीिन को प्रभातित क्रकया है। शहरों में मतिन बतस्तयों के क्षेत्रों (slums) के प्रसार के साथ-
साथ स्िच्छता, मतहिाओं और बच्चों के तिरुर्द् बढ़ते ऄपराध आत्याक्रद मुद्दों में िृतर्द् हइ है।

2.2. भारत की सािा ज तनक नीतत तनमाा ण की कमजोररयााँ

(Weaknesses in India’s Public Policy Making)


 सोच और कारािाइ में तारतमय नहीं होना: संरचना में ऄत्यतधक ऄंतर तिद्यमान है। ईदाहरण के
तिए, पररिहन क्षेत्र को भारत सरकार के पांच तिभागों / मंत्राियों द्वारा देखा जाता है जबक्रक
ऄमेररका और तिटेन में यह एक ही तिभाग का तहस्सा है। आस प्रकार का ऄंतर एिं तिखंडन यह
पहचानने में तिफि रहता है क्रक एक क्षेत्र में क्रकए गए कायों का दूसरे पर गंभीर प्रभाि पक ता है
और यह ऄन्य क्षेत्र की नीततयों के साथ दूसरे प्रयोजनों के तिए काया कर सकता है।
 नीतत तनमााण और कायाान्ियन के मध्य ऄततव्ापन: आससे सािाजतनक अिश्यकताओं की ऄपेक्षा
पररचािन सुतिधा पर ध्यान कें क्रद्रत करने की प्रिृतत्त ईत्पन्न होती है। भारत में, नीतत तनमााण
तनदेशक और ईच्च स्तर पर क्रकया जाता है। िेक्रकन सबसे महत्िपूणा स्तर ऄथाात िॉस-कटटग प्रभािों
के तिचार के तिए सबसे ज्यादा महत्ि सतचिों का है। नीतत तनमााण की तुिना में कायाान्ियन
मामिों के साथ ऄतधकारी भी ऄतधक सुगम होते ह।। यह ईप-आष्टतम नीततयों का पररणाम है, जहां
नागररक अिश्यकताओं के तिए पयााि ध्यान नहीं क्रदया जाता है।
 ऄत्यतधक-कें द्रीकरण: भारत में, मंत्राियों के ईच्च स्तर पर कायाान्ियन शतक्तयों का ऄत्यतधक
संकेन्द्रण होता है।
 गैर-सरकारी अगतों और सूतचत तिचार-तिमशा का ऄभाि: तितभन्न क्षेत्रों में बेहतर तिशेषज्ञता
सरकार के पास नहीं होकर तनजी क्षेत्र के पास होती है। साथ ही नीततगत प्रक्रियाओं और सरकारी
संरचनाओं के पास बाह्य आनपुट प्राि करने के तिए कोइ व्ितस्थत माध्यम नहीं होता है।
 नीतत तनमााण से पूिा व्ितस्थत तिश्लेषण और एकीकरण का ऄभाि: नीततगत तनणाय ऄक्सर
िागत, िाभ, व्ापार-गत और पररणामों के पयााि तिश्लेषण के तबना तिए जाते ह।। तिचारों का
एक समूह जो यह सुझाि देता है क्रक ऄल्पज्ञ सामान्यज्ञों की ऄत्यतधक भागीदारी खराब नीतत
तनमााण और कायाान्ियन का मुख्य कारण है।
 साक्ष्य अधाररत शोध का ऄभाि: ऄतधकांशतः, नीतत तनमााण कु छ िररष्ठ नौकरशाहों और
राजनेताओं द्वारा क्रकया जाता है जो मौजूदा जमीनी िास्ततिकताओं से ऄिगत नहीं होते ह।। समतष्ट
के साथ-साथ जमीन की िास्ततिकताओं के व्तष्ट दृश्य को जानने के तिए कोइ पूिा क्षेत्रीय ऄध्ययन
या सिेक्षण नहीं क्रकया जाता है।

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 राजनीततक रूप से प्रेररत नीततयां: कभी-कभी, चुनािी तिचार नीतत के ईद्देश्यों और िक्ष्यों पर
प्रभािी हो जाते ह।। भारत में तितभन्न राज्यों द्वारा िगातार ऊण माफ़ी आसका एक ईदाहरण है।
ऊण माफ़ी एक खराब अर्तथक नीतत है। यह क्रकसानों के तिए नैततक संकट ईत्पन्न करती है और
ब।ककग क्षेत्र पर दबाि डािती है।
 दूरदर्तशता का ऄभाि: भारत में सािाजतनक नीतत-तनमााण को पूिाानुमान अिश्यकताओं, प्रभािों
या प्रततक्रियाओं की तिफिता से तचतन्हत क्रकया जाता है, जो ईतचत रूप से पूिाित हो सकते थे,
आस प्रकार अर्तथक तिकास में कमी अइ है। नीततयों को बतहजाात पररितान या नइ जानकारी से
ऄनुबर्द् की तुिना में ऄतधक बार ईिटा या पररिर्ततत क्रकया गया है।
सेंस एंड सॉतिडेररटी - झोिािािा आकोनॉतमक्स फॉर एिरीिन
ज्यााँ द्रेज, ऄपनी नइ क्रकताब 'सेंस एंड सॉतिडेररटी - झोिािािा आकोनॉतमक्स फॉर एिरीिन' में
ऄनपेतक्षत पररणाम को एक मुद्दे के रूप में बताते ह।। िह MGNREGS में होने िािे सुधारों को एक
प्रत्यक्ष ईदाहरण के रूप में िेकर आसको दशााते ह।। ईन्होंने बताया है क्रक कै से मजदूरी प्रदान करने में
होने िािी बेइमानी को रोकने के तिए सरकार ने मजदूरी का ब।कों और डाकघरों के माध्यम से सीधा
भुगतान करना प्रारंभ कर क्रदया है। आसका ऄनचाहा प्रभाि यह पक ा क्रक आसके कारण कइ स्थानीय
ऄतधकाररयों ने MGNREGS से संबंतधत क्रकसी भी काया को करने में आच्छा प्रदर्तशत नहीं की,चूाँक्रक
ऄब ईनके तिए मजदूरी तितरण में बेइमानी करना संभि नहीं रह गया।

2.3. भारत में सािा ज तनक नीतत को सु द ृ ढ़ बनाना

(Strengthening Public Policy in India)


 तिखंडन में कमी करके : आसे कु छ सतचिों की तनयुतक्त करके प्राि क्रकया जा सकता है। ईनमें से
प्रत्येक मौजूदा क्षेत्रों में से एक से ऄतधक को संभाि सकते ह।। आसके पररणामस्िरूप नीतत तनमााण
और कायाान्ियन में ऄतधक समन्िय और एकीकरण होगा।
 क्रियातन्ित प्रातधकरण के कायाान्ियन और तिके न्द्रीकरण से नीतत तनमााण को पृथक करना:
कायाान्ियन तजममेदाररयों को संयुक्त सतचि ऄथिा ऄततररक्त सतचि के पद पर एक महातनदेशक
की ऄध्यक्षता में बोडा और एजेंतसयों को सौंपा जाना चातहए। जबक्रक ईसकी प्राथतमक तज़ममेदारी
कायाातन्ित होगी, यह नीतत तनमााण के तिए अिश्यक आनपुट भी प्रदान करेगी। आस प्रकार, िह
नीतत और कायाान्ियन के मध्य संपका के रूप में काया करेगी। जबक्रक सतचि को के िि नीतत तनमााण
के तिए ईत्तरदायी होना चातहए और आसे कोइ कायाान्ियन तजममेदाररयां नहीं दी जानी चातहए।
 सरकार के बाहर से एकीकरण और ज्ञान के प्रिाह में सुधार: संरचनाओं के सृजन की अिश्यकता है
जो गैर-सरकारी आनपुट और तिषय िस्तु तिशेषज्ञता के नीतत तनमााताओं की ईपिब्धता सुतनतश्चत
करते ह।। आसके ऄंत में , प्रत्येक मंत्रािय या तिभाग के पास "नीतत सिाहकार समूह" होना चातहए।
आसमें तनम्नतितखत शातमि होंगे:
o संबंतधत क्षेत्रों को किर करने िािे चयतनत शीषा तसतिि सेिक।
o स्टेकहोल्डर / ईद्योग प्रतततनतध
o क्षेत्र में तिशेषज्ञता के साथ ऄकादतमक पृष्ठभूतम के व्तक्त

आन नीतत सिाहकार समूहों को तिभागीय दृतष्टकोण में कमी करनी चातहए और एकीकृ त नीतत सुझाि
प्रदान करना चातहए। नीतत सिाहकार समूह के परामशा और समूह के तिचारों को मंतत्रमंडि के समक्ष
एक प्रस्ताि प्रस्तुत क्रकए जाने से पूिा सभी नीततगत मामिों पर तिचार करना ऄतनिाया होगा।

2.4. नीतत तनमाा ण तथा क्रियान्ियन में नागररक समाज की भू तमका

(Role of Civil Society in Policy Formulation and Implementation)


 स्ितंत्रता प्राति के पश्चात 1980 के दशक तक सामातजक क्षेत्र नीततयों के तनमााण, क्रियान्ियन
तथा मूल्यांकन का दातयत्ि राज्य ने स्ियं ऄपने उपर िे तिया था।

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 हािांक्रक िैिीकरण तथा ईदारीकरण के पश्चात् दो प्रक्रियाएं प्रकट हइ थीं। पहिी, राज्य की
भूतमका पररिर्ततत एिं ऄतधक जरटि होना प्रारमभ हो गइ थी तथा दूसरी, सािाजतनक नीततयों की
जमीनी अधार से ऄत्यतधक जांच अरमभ हइ।
 ईपयुक्त नीततयों तथा संरचनाओं, नीतत तनमााण की प्रक्रियाओं, नीतत तनमााताओं की क्षमता में
सुधार तथा नीतत पररणामों के मूल्यांकन से संबंतधत प्रश्नों की ओर ऄतधक ध्यान कें क्रद्रत हअ है।
 आसने राज्य को सहयोग हेतु राज्य से बाहर देखने के तिए बाध्य क्रकया। ईन्होंने गैर-राज्य
ऄतभकतााओं हेतु नीतत तनमााण का मागा खोि क्रदया। आसके तिए सरकार के एक कें द्रीकृ त,
पदानुितमक तथा शीषा से नीचे की ओर परमपरागत प्रततमान से एक ऄतधक सहयोगात्मक, क्षैततज
संरचना तथा एक गैर-पदानुितमत व्िस्था की ओर शासन का पुन: ऄिधारण ऄपररहाया है , जो
ऄब नेटिर्ककग, िाताा तथा िॉचबग पर अधाररत होना था।
 यह भागीदारी या प्रसाररत शासन के एक प्रततमान पर अधाररत था तजसमें बाजार और नागररक
समाज को शातमि करते हए सरकार और गैर -सरकारी ऄतभकतााओं के मध्य संबंध ही नीततयों के
तनमााण तथा सािाजतनक िस्तुओं की अपूर्तत में मुख्य कताा बन गया है।
 सरकारी-काया नीतत नेटिर्ककग को सुतिधाजनक बनाने हेतु तिगत दशकों में नए संस्थागत प्रबंधनों
का अतधक्य व्ाि हो चुका है। जैसे क्रक प्रधानमंत्री कायाािय के ऄं तगात व्ापार और ईद्योग
पररषद तथा िातणज्य मंत्रािय में बोडा ऑफ़ ट्रेड।
 तिशेषत: आन पररषदों और बोडों में से ऄतधकांश में व्ापार संघों, श्रम संघों या नागररक समाज
संगठनों का कोइ प्रतततनतधत्ि नहीं है। कु ि तमिाकर आन ईभरते नीतत नेटिका में नागररक समाज
की संतििता हेतु औपचाररक तंत्र या ऄन्तराि नग्य हो गए ह।।
 नागररक समाज िगों से नि ईदारिादी फ्रेमिका की अिोचना और भारत में राज्य-नागररक
समाज संबंधों की व्ग्र पहचान को देखते हए यह कोइ अश्चयाजनक बात नहीं है क्रक भारत में राज्य
शीषा पर है और नागररक समाज सीमांत पर बना हअ है।
 यद्यतप, राष्ट्रीय सिाहकार पररषद (NAC) जैसे कु छ संस्थान सामने अए ह।, जो सरकारी-नागररक
समाज नेटिर्ककग की सुतिधा प्रदान करते ह।। NAC ने सूचना का ऄतधकार, महात्मा गांधी ग्रामीण
रोजगार गारंटी ऄतधतनयम (मनरेगा) जैसे कानूनों के क्रियान्ियन में महत्िपूणा भूतमका तनभाइ है।
 तीव्रता से, नीतत तनमााण नेटिका में औपचाररक रूप से नागररक समाज ऄतभनेताओं को शातमि
करने के सरकार के दृतष्टकोण में एक प्रत्यक्ष पररितान अया है। यह प्रिृतत्त सरकार के सभी प्रमुख
कायािमों में स्पष्ट रूप से दृष्टव् होती है, चाहे िह मनरेगा हो या जैसा क्रक राष्ट्रीय स्िैतच्छक क्षेत्रक
नीतत 2011 (National Voluntary Sector Policy 2011) में प्रततचबतबत होता है, जो नीतत
तनमााण से कायाान्ियन और तनगरानी के तिए तितभन्न स्तरों पर तिकासशीि नागररक समाज को
संिग्न करने हेतु सरकार की महत्िाकांक्षी योजना की रूपरेखा तैयार करता है।
 आसके ऄततररक्त, 73िें संशोधन ऄतधतनयम के कायाान्ियन और पंचायती राज संस्थानों के अगमन
ने राज्य को सक्रिय रूप से नागररक समाज कत्तााओं के साथ सहभातगता की तिाश करने के तिए
प्रेररत क्रकया है।

2.5. नीतत तनगरानी और मू ल्यां क न (Policy Monitoring and Evaluation)

 अर्तथक तिकास से प्रेररत सािाजतनक व्य में िृतर्द् के पररणामस्िरूप तनगरानी और मूल्यांकन
(M&E) एिं सरकार के प्रदशान प्रबंधन, कायािम कायाान्ियन करने िािों, ऄंतरााष्ट्रीय दाता
संगठनों और िृहद स्तर पर नागररक समाज की मांग में िृतर्द् हइ है।
 आन ऄतनिायाताओं के तनदेशन में, भारत सरकार ने तनगरानी और मूल्यांकन पररिेश में सुधार
करने के तिए पहि की है। ईनमें से कु छ में तनम्नतितखत शातमि ह।-
o कै तबनेट सतचिािय द्वारा तनर्तमत प्रदशान प्रबंधन और मूल्यांकन प्रणािी

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o औद्योतगक नीतत और संिधान तिभाग, िातणज्य और ईद्योग मंत्रािय के ऄंतगात राष्ट्रीय


ईत्पादकता पररषद
o तित्त मंत्रािय ने पररणाम अधाररत बजट प्रारंभ क्रकया है।
o प्रबंधन सूचना प्रणािी (MIS)
o कायािम मूल्यांकन संगठन (पूिा योजना अयोग के तहत)
o नीतत अयोग
 आन संस्थानों के ऄततररक्त, नागररक समाज और मीतडया ने सरकारी नीततयों का मूल्यांकन करने में
भी महत्िपूणा भूतमका तनभाइ है।
 मीतडया और नागररक समाज के ऄिािा दो और संस्थान ह। जो भारत की संिैधातनक शासन
प्रणािी का तहस्सा ह।, ये ईत्तरदातयत्ि की मांग में महत्िपूणा भूतमका तनभा रहे ह।। आनमें से एक
तनयंत्रक और महािेखा परीक्षक (CAG) है और दूसरा सिोच्च न्यायािय है।
 CAG बक े भ्रष्टाचार के घोटािों (कं पतनयों को 2 जी स्पेक्ट्रम अिंटन, राष्ट्रमंडि खेिों के घोटािों
और तनजी कं पतनयों को कोयिा खनन अिंटन से संबंतधत घोटािों) को ईजागर करने िािी ऄपनी
ररपोटा के तिए ऄग्रणी रहा है।
 आसी प्रकार, भारत का सिोच्च न्यायािय नागररक समाज से कइ जनतहत यातचकाओं को स्िीकार
कर रहा है और कायापातिका के कायों की तनगरानी कर रहा है।

3. तितभन्न क्षेत्रों में तिकास के तिए प्रमुख सरकारी हस्तक्षेप


(Major Governmental Interventions for Development in Various Sectors)
(आस खंड में ग्रामीण तिकास, शहरी तिकास, कौशि तिकास और सामातजक सुरक्षा के क्षेत्र शातमि ह।।
ऄन्य क्षेत्रों को सामातजक न्याय तिषयों की ऄततररक्त सामग्री (value addition material) में शातमि
क्रकया गया है)

3.1. ग्रामीण तिकास (Rural Development)

ग्रामीण तिकास में अर्तथक तिकास और सामातजक पररितान दोनों ही शातमि ह।। ग्रामीण तिकास
मंत्रािय अर्तथक तिकास के तिए बेहतर संभािनाओं को बढ़ािा देने, तनधानता में कमी करने, ग्रामीण
ऄिसंरचनात्मक अिासीय सुतिधाओं का तिकास करने , अधारभूत न्यूनतम सेिाओं के प्रािधान तथा
शहरी क्षेत्रों से मौसमी और स्थायी प्रिासन को हतोत्सातहत करने के तिए सीमांत क्रकसानों / मजदूरों
को रोजगार प्रदान करने हेतु राज्य सरकारों के माध्यम से तितभन्न कायािमों को क्रियातन्ित कर रहा है।

3.1.1. महात्मा गां धी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारं टी ऄतधतनयम (MGNREGA)

 MGNREGA योजना प्रत्येक तित्तीय िषा में क्रकसी भी ग्रामीण पररिार के ईन ियस्क सदस्यों को
100 क्रदन का रोजगार ईपिब्ध कराती है जो सांतितधक न्यूनतम मजदूरी पर सािाजतनक काया-
समबंतधत ऄकु शि मजदूरी करने के तिए तैयार ह।।
 ग्रामीण तिकास मंत्रािय (MRD), भारत सरकार राज्य सरकारों के सहयोग से आस योजना के पूणा
कायाान्ियन की तनगरानी कर रहा है।
िक्ष्य
 जब ऄन्य रोजगार के तिकल्प दुिाभ या ऄपयााि होते ह। तब रोज़गार स्रोत प्रदान कर सुभेद्य समूहों
के तिए सुदढ़ृ सामातजक सुरक्षा जाि तनर्तमत करना।
 कृ तष ऄथाव्िस्था के संधारणीय तिकास के तिए तिकास आंजन। सूखा, िनोन्मूिन और मृदा
ऄपरदन जैसी दीघाकातिक गरीबी (chronic poverty) के कारणों को संबोतधत करने िािे कायों

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पर रोजगार प्रदान करने की प्रक्रिया के माध्यम से , यह ऄतधतनयम ग्रामीण अजीतिका के प्राकृ ततक
संसाधन अधार को सुदढ़ृ करने और ग्रामीण क्षेत्रों में रटकाउ संपतत्त सृतजत करने की मांग करता
है।
 प्रभािी रूप से कायाातन्ित, मनरेगा में गरीबी की पृष्ठभूतम को पररिर्ततत करने की क्षमता है।
 ऄतधकार-अधाररत कानून की प्रक्रियाओं के माध्यम से ग्रामीण गरीबों का सशतक्तकरण,
पारदर्तशता और जमीनी स्तर के मूि िोकतंत्र के तसर्द्ांतों पर अधाररत शासन सुधार के मॉडि के
रूप में व्िसाय करने के नए तरीके । आस प्रकार, MGNREGA अधारभूत मजदूरी सुरक्षा से
िेकर समािेशी तिकास के तिए तस्थततयों को बढ़ािा देता है और ग्रामीण ऄथाव्िस्था को िोकतंत्र
की एक पररितानीय सशतक्तकरण प्रक्रिया के रूप में पररिर्ततत करता है।

3.1.2. ने श नि रुबा न तमशन (National Rurban Mission:NRuM)

 तमशन का िक्ष्य ग्रामीण तिकास समूहों (क्िस्टसा) का तिकास करना है, तजनके पास सभी राज्यों
में तिकास के तिए तनतहत क्षमता तिद्यमान है। यह क्षेत्र में समग्र तिकास को त्िररत करेगा।
 आन समूहों या क्िस्टसा को अर्तथक गतततितधयों, तिकास कौशि और स्थानीय ईद्यतमता के तिकास
और ऄिसंरचनात्मक सुतिधाओं को प्रदान करके तिकतसत क्रकया जाएगा। आस प्रकार रुबान तमशन
स्माटा गांिों के क्िस्टर को तिकतसत करेगा।
 राज्य सरकार ग्रामीण तिकास मंत्रािय द्वारा तैयार क्रकए गए कायाान्ियन फ्रेमिका के ऄनुसार
क्िस्टर की पहचान करेगी। समूहों में भौगोतिक रूप से मैदानी और तटीय क्षेत्रों की 25000 से
50000 जनसंख्या तथा पहाक ी, रेतगस्तानी और जनजातत क्षेत्रों की 5000 से 15000 जनसंख्या
िािे ग्राम पंचायतों को शातमि क्रकया जाएगा।
 क्िस्टर के चयन के तिए, मंत्रािय क्िस्टर चयन की िैज्ञातनक प्रक्रिया को ऄपना रहा है तजसमें
जनसांतख्यकी, ऄथाव्िस्था, पयाटन और तीथायात्रा महत्ि और पररिहन गतियारे के प्रभाि के
तजिा, ईप तजिा और ग्राम स्तर पर एक ईद्देश्य तिश्लेषण शातमि है।
 समस्त क्षेत्रीय तिकास को ईत्प्रेररत करने के ईद्देश्य से रुबान तिकास समूहों के तिकास के माध्यम से
यह योजना देश के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों को एक साथ िाभातन्ित करेगी, तजससे ग्रामीण क्षेत्रों
को सुदढ़ृ करने और शहरी क्षेत्रों के बोझ को कम करने के दोहरे ईद्देश्यों को प्राि क्रकया जा सके गा
और देश का तिकास और संतुतित क्षेत्रीय तिकास के िक्ष्य को हातसि क्रकया जाएगा।

3.1.3. प्रधानमं त्री ग्रामोदय योजना ( PMGY)

 प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना (ग्रामीण अिास) आंक्रदरा अिास योजना के पैटना पर अधाररत है और
आसे देश भर में ग्रामीण क्षेत्रों में िागू क्रकया जाएगा।
 आस योजना के ऄंतगात घरों के तिए ितक्षत समूह, ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा से नीचे रहने िािे
िोग, ऄनुसूतचत जातत/ऄनुसूतचत जनजाततयों, बंधुअ मजदूरी से मुक्त कराये गए व्तक्त और गैर
ऄनुसूतचत जातत/ऄनुसूतचत जनजातत श्रेतणयों से संबंतधत व्तक्त होंगे।
 अिासीय आकाआयों का अिंटन िाभाथी पररिार की मतहिा सदस्य के नाम पर होगा; िैकतल्पक
रूप से, अिास आकाइ को पतत और पत्नी दोनों के नाम पर अिंरटत क्रकया जा सकता है।

3.1.4. प्रधानमं त्री ईज्वलििा योजना (Pradhan Mantri Ujjwala Yojana:PMUY)

 आस योजना का िक्ष्य BPL पररिारों को 5 करोक LPG कनेक्शन प्रदान करना है। आस िक्ष्य को 3
िषों के भीतर प्राि करना था।
 आस िक्ष्य को समय सीमा से पूिा ही प्राि कर तिया गया था। PMUY प्रारंभ होने से पहिे, 62%
भारतीय पररिारों के पास LPG कनेक्शन थे, ऄब LPG किरेज को 85% पररिारों तक बढ़ा

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क्रदया गया है। आसके ऄततररक्त, 60 िाख PMUY िाभार्तथयों ने LPG को खाना पकाने के
प्राथतमक ईंधन के रूप में प्रयोग करना प्रारमभ कर क्रदया है।
 प्रधानमंत्री LPG पंचायत: PMUY की सफिता के बाद, सरकार ने प्रधानमंत्री एिपीजी पंचायत
योजना प्रारंभ की जो ग्रामीण LPG ईपयोगकतााओं के तिए LPG के सुरतक्षत ईपयोग, पयाािरण
के तिए आसके िाभ, मतहिा सशतक्तकरण और मतहिा स्िास््य जैसे तितभन्न तिषयों पर ग्रामीण
एिपीजी ईपयोगकतााओं के तिए एक आंटरैतक्टि संचार मंच है और ईपभोक्ताओं को तनयतमत रूप
से स्िच्छ खाना पकाने के ईंधन के रूप में LPG का ईपयोग करने हेतु प्रोत्सातहत करने के तिए आस
मंच का ईपयोग करना है।

3.1.5. दीन दयाि ईपाध्याय ग्राम ज्योतत योजना ( DDUGJY)

 यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में कृ तष एिं गैर -कृ तष फीडरों का पृथक्करण और सभी स्तरों पर मीटरींग
सतहत ईप-पारेषण और तितरण (ST&D) ऄिसंरचनाओं के सुदढ़ृ ीकरण पर कें क्रद्रत है। यह योजना
ग्रामीण पररिारों को तनरंतर तिद्युत की अपूर्तत और कृ तष ईपभोक्ताओं को पयााि तिद्युत प्रदान
करने में सहायता करेगी।
 ग्रामीण तिद्युतीकरण के तिए पूिा में संचातित राजीि गांधी ग्रामीण तिद्युतीकरण योजना
(RGGVY) को ग्रामीण तिद्युतीकरण के एक घटक के रूप में नइ योजना में समातहत क्रकया गया
है।
 सरकार ने दािा क्रकया क्रक तिद्युतीकरण के तिए चयतनत 18,452 गांिों में से 15,183 गांिों को
क्रदसंबर 2017 तक तग्रड से जोक क्रदया गया।

3.1.6. राष्ट्रीय ग्रामीण अजीतिका तमशन (National Rural Livelihoods Mission)

 दीनदयाि ऄंत्योदय योजना- राष्ट्रीय ग्रामीण अजीतिका तमशन (DAY-NRLM) ग्रामीण तिकास
मंत्रािय (MoRD) का एक प्रमुख कायािम है तजसका ईद्देश्य गरीबों के सतत सामुदातयक संस्थानों
के तनमााण के माध्यम से ग्रामीण तनधानता का ईन्मूिन करना है। यह कें द्र प्रायोतजत कायािम राज्य
सरकारों की साझेदारी से िागू क्रकया जा रहा है।
 तित्तीय िषा 2017-18 में देश भर में 82 िाख से ऄतधक पररिारों को 6.96 िाख स्ियं सहायता
समूह (SHGs) के साथ जोक ा गया है। कु ि तमिाकर, 4.75 करोक से ऄतधक मतहिाओं को 40
िाख से ऄतधक SHGs के साथ जोक ा गया है।
 यह योजना सुदरू िती क्षेत्रों में मतहिाओं के तित्तीय समािेश की क्रदशा में एक महत्िपूणा कदम तसर्द्
हइ है।

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3.1.7. तमशन ऄं त्योदय (Mission Antyodaya)

 यह तमशन ग्राम पंचायतों को अयोजना की मूिभूत आकाइ के रूप में मानते हए सरकारी हस्तक्षेप
करने का प्रयास करता है, साथ ही एक संतृति दृतष्टकोण (saturation approach) का ऄनुकरण
करते हए मानि और तित्तीय संसाधनों की पूचिग के माध्यम से संधारणीय अजीतिका सुतनतश्चत
करता है।
 यह 1000 क्रदनों में 5000 ग्रामीण क्िस्टरों ऄथिा 50,000 ग्राम पंचायतों में तनिास करने िािे
1 करोक पररिारों के जीिन के मापनीय पररणामों के अधार पर एक िास्ततिक ऄंतर िाने हेतु
ग्रामीण पररितान के तिए राज्य के नेतृत्ि में एक पहि है।
 सािाजतनक संस्थान, जैसे- कृ तष तिज्ञान कें द्र, MSME क्िस्टर, ऄन्य कौशि तिकास संस्थान अक्रद
ईत्पादक रोजगार और अर्तथक गतततितधयों को बढ़ाने के तिए आन क्िस्टरों की पूणा क्षमता
तिकतसत करने में संिग्न ह।।
 आन क्िस्टरों की क्षमता जैतिक कृ तष, बागिानी, तितनमााण, सेिाएं, पयाटन अक्रद जैसे ऄन्य तिषयों
में हो सकती है।
 यहां तक क्रक तनजी क्षेत्र, तिशेष रूप से युिा CEOs, स्टाटा-ऄप और कॉरपोरेट सामातजक
ईत्तरदातयत्ि पहिों को अजीतिका तितिधीकरण और बाजार चिके ज में संिधान के माध्यम से
पंचायतों को गरीबी मुक्त बनाने हेतु अंदोिन में शातमि होने के तिए अमंतत्रत क्रकया जा रहा है।

3.1.8. प्रधानमं त्री ग्राम सक क योजना ( Pradhan Mantri Gram Sadak Yojana)

 ग्रामीण सक क संपका अर्तथक और सामातजक सेिाओं तक पहाँच का संिधान करते हए और


फिस्िरूप भारत में कृ तष अय और ईत्पादक रोजगार ऄिसरों का ऄतधक मात्रा में सृजन करते हए
ग्रामीण तिकास का न के िि एक मुख्य घटक है बतल्क स्थायी रूप से गरीबी तनिारण कायािम का
भी एक मुख्य भाग है।
 सरकार ने समपका तिहीन बसािटों को ऄच्छी बारहमासी सक क मुहय
ै ा कराने के तिए 25 क्रदसंबर,
2000 को प्रधानमंत्री ग्राम सक क योजना का शुभारंभ क्रकया। प्रधान मंत्री ग्राम सक क योजना
(PMGSY) शत-प्रततशत के न्द्र प्रायोतजत योजना है। आस कायािम के तिए हाइ स्पीड डीजि
(HSD) पर 50 प्रततशत ईपकर तनधााररत है।
 सरकार ने प्रधानमंत्री ग्राम सक क योजना (PMGSY) के तहत बारहमासी सक कों के माध्यम से
पूणा ग्रामीण कनेतक्टतिटी प्राि करने के तिए तनधााररत िक्ष्य सीमा को 2022 से तीन िषा कम कर
2019 कर क्रदया है। आस त्िररत कायाान्ियन को ईन्नत तित्तीय अिंटन और योजना में एक
संशोतधत तित्तपोषण पैटना के माध्यम से प्राि क्रकया जाएगा।
 PMGSY के िि ग्रामीण क्षेत्रों को किर करेगी। शहरी सक कों को आस कायािम के दायरे से बाहर
रखा गया है। यहां तक क्रक ग्रामीण क्षेत्रों में, PMGSY के िि ग्रामीण सक कों को किर करता है
ऄथाात िे सक कें तजन्हें पहिे 'ऄन्य तजिा सक क (ODR)' और 'ग्राम रोड (VR)' के रूप में िगीकृ त
क्रकया गया था।

3.1.9. सं स द अदशा ग्राम योजना ( Sansad Adarsh Gram Yojna)

 संसद अदशा ग्राम योजना (SAGY) ऄक्टूबर 2014 में भारत सरकार द्वारा प्रारंभ की गइ एक
ग्राम तिकास पररयोजना है, तजसके ऄंतगात प्रत्येक सांसद 2019 तक तीन गांिों में भौततक और
संस्थागत ऄिसंरचना तिकतसत करने का ईत्तरदातयत्ि िेगा।

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 आसके तहत माचा 2019 तक प्रत्येक सांसद द्वारा तीन अदशा ग्राम तिकतसत करने का िक्ष्य है,
तजसमें से एक अदशा ग्राम को 2016 तक तिकतसत क्रकया जाना था। तत्पश्चात, प्रतत िषा एक गााँि
का चयन करके 2024 तक पांच अदशा ग्रामों का तिकास क्रकया जाना है।
 ऄिसंरचनात्मक तिकास के ऄततररक्त, SAGY का ईद्देश्य गांिों और िहााँ के िोगों में ऐसे मूल्यों
का तिकास करना है ताक्रक िे दूसरों के तिए अदशा बन सके ।

3.1.10. प्रधानमं त्री अिास योजना (Pradhan Mantri Awas Yojana)

 ‘2022 तक सभी के तिए अिास’ के रूप में तनधााररत िक्ष्य के ऄनुसरण में ग्रामीण अिास योजना
आंक्रदरा अिास योजना को प्रधानमंत्री अिास योजना - ग्रामीण के रूप में पुनगारठत क्रकया गया है
और माचा, 2016 में आसे ऄनुमोक्रदत क्रकया गया।
 आस योजना के तहत, सभी बेघर तथा कच्चे और जीणा -शीणा घरों िािे पररिारों को एक पक्का घर
ईपिब्ध कराने के तिए तित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। आस पररयोजना के तहत 2016-17
से 2018-19 की ऄितध के दौरान एक करोक पररिारों को पक्के घर के तनमााण के तिए सहायता
प्रदान करना प्रस्तातित है।
 यह योजना क्रदल्िी और चंडीगढ़ को छोक कर संपूणा भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में िागू की जाएगी।
घरों की िागत को कें द्र और राज्यों के मध्य साझा क्रकया जाएगा।
 पारदर्तशता और तनष्पक्षता सुतनतश्चत करने के तिए सहायता हेतु पात्र िाभार्तथयों की पहचान और
ईनकी प्राथतमकता के तनधाारण हेतु सामातजक अर्तथक और जातत जनगणना (SECC) के अाँकक ों
का ईपयोग क्रकया जाएगा। पहिे सहायता प्राि कर चुके ऄथिा ऄन्य कारणों से ऄयोग्य
िाभार्तथयों की पहचान करने के तिए सूची ग्राम सभा को प्रस्तुत की जाएगी।
 PMAY के तहत, यूतनट सहायता की िागत कें द्र और राज्य सरकारों के मध्य मैदानी क्षेत्रों में
60:40 और पूिोत्तर और पिातीय राज्यों में 90:10 के ऄनुपात में साझा की जानी है।

3.1.11. ग्राम स्िराज ऄतभयान (Gram Swaraj Abhiyan)

 यह ऄतभयान "सबका साथ, सबका गांि, सबका तिकास" के नाम से अरंभ क्रकया गया है। आसका
ईद्देश्य सामातजक सौहादा को बढ़ािा देना, सरकार की तनधानता संबंधी पहिों के तिषय में
जागरूकता का प्रसार करना, तितभन्न कल्याण कायािमों पर तनधान पररिारों की प्रततक्रिया प्राि
करने और ईन्हें आनके दायरे में िाने हेतु ईन तक पहंच स्थातपत करना है।

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 ग्राम स्िराज ऄतभयान पात्र पररिारों/व्तक्तयों के तिए 21,058 चयतनत गांिों में तनधान-समथाक
सात प्रमुख योजनाओं का तिशेष कें क्रद्रत हस्तक्षेप है, ये सात योजनाएं है: प्रधानमंत्री ईज्वलििा
योजना, प्रधानमंत्री सौभाग्य योजना, ईजािा योजना, प्रधानमंत्री जन धन योजना, प्रधानमंत्री
जीिन ज्योतत बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और तमशन आंद्रधनुष।

3.2. शहरी तिकास (Urban Development)

भारत, तिि की दूसरी सबसे बक ी शहरी जनसंख्या िािा देश है और 2050 तक भारत की िगभग
50% जनसंख्या ऄथाात् 814 तमतियन िोगों के शहरी क्षेत्रों में तनिास करने का ऄनुमान है। आस
पररदृश्य को देखते हए, शहरों और कस्बों में तिद्यमान ितामान ऄिसंरचना और बुतनयादी सुतिधाएं
तिस्तारशीि शहरीकरण प्रक्रिया का समाधान करने हेतु पयााि नहीं ह।।
देश में शहरी ऄिसंरचना को बढ़ािा देने के तिए सरकार द्वारा कइ पहिों की शुरूअत की गइ है। स्माटा
तसटी तमशन और AMRUT योजना के रूप में क्रकए गए दोहरे प्रयास आस संदभा में की गयी प्रमुख पहिें
ह।।

3.2.1. स्माटा तसटी तमशन (The Smart Cities Mission)

 स्माटा तसटी तमशन देश भर में चयतनत 100 शहरों में तनिास योग्य पररतस्थततयों और ऄिसंरचना
को तिकतसत एिं ईन्नत बनाने के तिए सरकार द्वारा शुरू क्रकया गया एक प्रमुख शहरी निीनीकरण
कायािम है।
 आस कायािम का ईद्देश्य अधारभूत ऄिसंरचना के तनमााण के माध्यम से शहरों को अधुतनक
बनाना है तथा ऄपने नागररकों को जीिन की समुतचत गुणित्ता, स्िच्छ एिं संधारणीय पररिेश
और 'स्माटा' समाधान प्रदान करना है।
 आस कायािम को अतधकाररक रूप से 25 जून 2016 को िॉन्च क्रकया गया था और आसके प्रथम
चरण में 20 शहरों को स्माटा शहरों के रूप में पररिर्ततत करने हेतु तित्तपोषण प्रदान क्रकया गया
था। अगामी दो िषों में, शेष शहरों को भी आस पररयोजना के ऄंतगात सतममतित क्रकया जाएगा।
शहरी तिकास मंत्रािय आस पररयोजना के कायाान्ियन के तिए नोडि एजेंसी है।
 आस पररयोजना का मुख्य फोकस
पुनःसंयोजन (रेट्रोक्रफटटग) और
पुनर्तिकास के माध्यम से तिद्यमान
क्षेत्रों को रूपांतररत कर शहरों का
क्षेत्र अधाररत तिकास (ABS)
करना है।
 स्माटा तसटी पररयोजना का एक
ऄन्य घटक नए क्षेत्रों या ग्रीनफील्ड
क्षेत्रों का तिकास करना है। आस
प्रकार प्रौद्योतगकी, सूचना और
अकक ों के ईपयोग सतहत स्माटा
समाधानों को ऄपनाया जाएगा
ताक्रक पररयोजना के तहत ऄिसंरचना और सेिाओं में सुधार क्रकया जा सके ।
स्माटा तसटी तमशन का तित्तपोषण (Financing of Smart Cities)
 आस तमशन का तित्तपोषण कें द्र, राज्य और स्थानीय तनकायों द्वारा सामूतहक रूप से क्रकया जाएगा।
तनजी क्षेत्र को भी तित्तपोषण के तिए अमंतत्रत क्रकया जाएगा और सािाजतनक तनजी भागीदारी
पररयोजना के तित्तपोषण में सहायता करेगी।

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 सिाातधक महत्िपूणा योगदान के रूप में कें द्र द्वारा पांच िषा में 48,000 करोक रुपये ऄथाात् प्रत्येक
शहर को औसतन 100 करोक रूपये प्रतत िषा प्रदान क्रकए जाएंगे। कें द्र के योगदान के ऄनुरूप ही
राज्य/शहरी स्थानीय तनकायों द्वारा भी समान रातश प्रदान की जाएगी। स्माटा तसटीज पररयोजना
के तिए सरकारी स्रोतों के माध्यम से िगभग एक िाख करोक रुपये ईपिब्ध होंगे। पररयोजना के
कायाान्ियन के तिए प्रत्येक शहर को एक समर्तपत स्पेशि पपाज व्हीकि (SPV) का गठन करना
चातहए।

3.2.2. कायाकल्प एिं शहरी रूपां त रण के तिए ऄटि तमशन

(Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation Project: AMRUT)


 स्माटा तसटी और कायाकल्प एिं शहरी रूपांतरण के तिए ऄटि तमशन (AMRUT) कायािमों को
शहरों में ऄिसंरचना के ईन्नयन के माध्यम से रहने योग्य पररतस्थततयों में सुधार करने हेतु सरकार
द्वारा संयुक्त रूप से योजनाबर्द् एिं अरंभ क्रकया गया था।
 AMRUT योजना का ईद्देश्य पांच िषों की ऄितध के दौरान 500 शहरों और कस्बों को कु शि
रहने योग्य स्थानों के रूप में रूपांतररत करना है। शहरी तिकास मंत्रािय ने राज्य सरकारों की
सहायता से पांच सौ शहरों का चयन क्रकया है।
 स्माटा तसटी तमशन के क्षेत्र अधाररत दृतष्टकोण के तिपरीत आस योजना के ऄंतगात एक पररयोजना
ईन्मुख तिकास दृतष्टकोण को ऄपनाया गया है।
 मंतत्रमंडि द्वारा आस तमशन के तिए 50,000 करोक रुपये की स्िीकृ तत प्रदान की गयी है तजसे पांच
िषा की ऄितध में व्य क्रकया जाना है। कें द्र से 80% बजटीय सहायता के साथ यह एक कें द्रीय
प्रायोतजत योजना है।
 AMRUT का तमशन है: (i) यह सुतनतश्चत करना क्रक प्रत्येक पररिार की तनतश्चत जिापूर्तत के साथ
एक नि कनेक्शन और सीिर कनेक्शन तक पहाँच हो; (ii) हररयािी और बेहतर तरीके से प्रबंतधत
खुिे स्थानों (जैसे पाका ) का तिकास करके शहरों के रमणीयता मूल्यों में िृतर्द् करना; और (iii)
सािाजतनक पररिहन प्रणािी को ऄपनाकर या गैर -मोटर चातित पररिहन (जैसे- पैदि चिना
और साआक्रकि चिाना) के तिए सुतिधाओं का तनमााण करके प्रदूषण को कम करना।

सतत तिकास िक्ष्य (SDG) और शहरी तिकास


िक्ष्य 9: शहरों को समािेशी, सुरतक्षत और प्रत्यास्थ बनाना
 2030 तक, सभी के तिए पयााि, सुरतक्षत और िहनीय अिास और मूिभूत सेिाओं तक पहंच
सुतनतश्चत करना और मतिन बतस्तयों का ईन्नयन करना।
 2030 तक, सभी के तिए सुरतक्षत, िहनीय, सुिभ एिं धारणीय पररिहन प्रणािी तक पहंच
प्रदान करना तथा सक क सुरक्षा में सुधार (तिशेष रूप से सािाजतनक पररिहन के तिस्तार के
माध्यम से) करना। आसके तहत सुभेद्य िोगों (मतहिाओं, बच्चों, क्रदव्ांगों एिं िृर्द् व्तक्तयों) की
अिश्यकताओं पर तिशेष फोकस क्रकया जाना है।
 2030 तक, सभी देशों में संधारणीय शहरीकरण को बढ़ािा देना तथा सहभातगतापूण,ा एकीकृ त
और धारणीय मानि ऄतधिास योजना और प्रबंधन के तिए क्षमता में िृतर्द् करना।
 तिि की सांस्कृ ततक और प्राकृ ततक तिरासत के संरक्षण एिं सुरक्षा के प्रयासों को सुदढ़ृ करना।
 2030 तक, गरीबों एिं सुभेद्य पररतस्थततयों में रह रहे िोगों की सुरक्षा पर ध्यान देने के साथ-
साथ अपदाओं (जि जतनत अपदाओं सतहत) के कारण होने िािी िोगों की मृत्यु और प्रभातित
िोगों की संख्या में कमी िाना तथा मुख्यतः िैतिक सकि घरेिू ईत्पाद के सापेक्ष प्रत्यक्ष अर्तथक
हातनयों को प्रभािी रूप से कम करना।
 2030 तक, िायु की गुणित्ता और नगर पातिका तथा ऄन्य ऄपतशष्ट प्रबंधन पर तिशेष ध्यान
देकर शहरों के प्रततकू ि प्रतत व्तक्त पयाािरणीय प्रभाि को कम करना।
 2030 तक, तिशेष रूप से मतहिाओं एिं बच्चों, िृर्द् एिं क्रदव्ांग व्तक्तयों को सुरतक्षत, समािेशी

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और सुिभ हररत और सािाजतनक स्थानों तक सािाभौतमक पहंच प्रदान करना।


 राष्ट्रीय और क्षेत्रीय तिकास योजना को सुदढ़ृ करके शहरी, शहरों के पररधीय क्षेत्रों और ग्रामीण
क्षेत्रों के मध्य सकारात्मक अर्तथक, सामातजक और पयाािरणीय संबंधों को समथान प्रदान करना।
2020 तक, समािेशन, संसाधन दक्षता, जििायु पररितान शमन एिं ऄनुकूिन तथा अपदाओं
के प्रतत प्रत्यास्थता की क्रदशा में एकीकृ त नीततयों और योजनाओं को ऄपनाने एिं कायाातन्ित
करने िािे शहरों और मानि बसािटों की संख्या में पयााि िृतर्द् करना। आसके साथ ही सभी
स्तरों पर, अपदा जोतखम न्यूनीकरण पर सेंडाइ फ्रेमिका 2015-2030 के ऄनुरूप, एक समग्र
अपदा जोतखम प्रबंधन रणनीतत को ऄपनाना।
 तित्तीय और तकनीकी सहायता के माध्यम से ऄल्प तिकतसत देशों को संधारणीय और प्रत्यास्थ
आमारतों के तनमााण और स्थानीय सामतग्रयों के ईपयोग हेतु सहायता प्रदान करना।

3.2.3. प्रधानमं त्री अिास योजना (शहरी) या 2022 तक सभी के तिए अिास तमशन

PMAY (Urban) or Household mission for everyone by 2022


 कें द्र सरकार द्वारा ‘प्रधानमंत्री अिास योजना-सभी के तिए अिास (शहरी)’ योजना के तहत
अरंभ की गइ “2022 तक सभी के तिए अिास” का ईद्देश्य 2022 तक सभी शहरी िोगों को घर
ईपिब्ध कराना है।
 आसके तहत शहरी मतिन बतस्तयों और अर्तथक रूप से कमजोर िगों पर तिशेष फोकस के साथ
सभी पात्र िगों के तिए अिासीय आकाइयों के तनमााण के तिए राज्यों और कें द्रशातसत प्रदेशों को
कें द्रीय सहायता प्रदान की जाती है। ऄतः, मतिन बस्ती पुनिाास और अर्तथक रूप से कमजोर िगों
के तिए िहनीय अिास आस पररयोजना की प्रमुख तिशेषताएं ह।।
 कायािम के तनम्नतितखत घटक ह।:
o संसाधन के रूप में भूतम का ईपयोग करके तनजी डेििपसा की भागीदारी से मतिन बस्ती में
रहने िािे िोगों का पुनिाास करना।
o िे तडट चिक्ड सतब्सडी के माध्यम से कमजोर िगों के तिए िहनीय अिास को प्रोत्साहन
प्रदान करना।
o सािाजतनक और तनजी क्षेत्रों की साझेदारी द्वारा िहनीय अिास की सुतिधा प्रदान करना।
o व्तक्तगत स्तर पर अिास तनमााण या तिस्तार के तिए िाभार्तथयों को सतब्सडी प्रदान करना।

3.2.4. राष्ट्रीय धरोहर तिकास एिं सं ि र्द्ा न योजना (HRIDAY)

 HRIDAY योजना को धरोहर शहरों के समग्र तिकास के तिए अरंभ क्रकया गया है। आसका ईद्देश्य
भारत में धरोहर शहरों की ऄतद्वतीय तिशेषताओं को संरतक्षत और पुनजीतित करना है।
 कायािम के प्रथम चरण के तिए 500 करोक रूपये अिंरटत क्रकए गए ह। तजसका तित्तपोषण पूणा
रूप से कें द्र सरकार द्वारा क्रकया गया है। आस पररयोजना हेतु ऄजमेर , ऄमरािती, ऄमृतसर सतहत
12 शहरों की पहचान की गइ है।

3.3. कौशि तिकास (Skill Development)

3.3.1 प्रधानमं त्री कौशि तिकास योजना

(Pradhan Mantri Kaushal Vikas Yojna: PMKVY)


 यह कौशि तिकास एिं ईद्यतमता मंत्रािय (MSDE) की प्रमुख योजना है। आस कौशि प्रमाणन
योजना का ईद्देश्य ईद्योग-प्रासंतगक अधुतनक कौशि प्रतशक्षण प्रदान करके बक ी संख्या में भारतीय
युिाओं को सक्षम करना है, जो ईन्हें बेहतर अजीतिका प्राि करने में सहायता करेगा।

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 पूिा तशक्षण ऄनुभि या कौशि िािे व्तक्तयों का मूल्यांकन और पूिा तशक्षा की पहचान (RPL) के
तहत प्रमाणन क्रकया जाएगा। आस योजना के तहत, प्रतशक्षण एिं मूल्यांकन का संपूणा शुल्क सरकार
द्वारा भुगतान क्रकया जाता है।
 यह योजना राष्ट्रीय कौशि तिकास तनगम (NSDC) के माध्यम से िागू की गइ है।
 आसके ऄततररक्त, आस योजना के तहत प्रतशक्षण के तिए कें द्र/ राज्य सरकार से संबर्द् प्रतशक्षण
प्रदाताओं का भी ईपयोग क्रकया जाएगा।
 प्रतशक्षण के ऄंतगात असान कौशि, व्तक्तगत तिकास, स्िच्छता हेतु व्िहार में पररितान, ऄच्छी
काया नैततकता भी शातमि है।

3.3.2. दीन दयाि ईपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना

(Deen Dayal Upadhyaya Grameen Kaushalya Yojana: DDU-GKY)


 जनगणना 2011 के ऄनुसार, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में 15 से 35 िषा की अयु के मध्य 55
तमतियन से ऄतधक संभातित कामगार ह।। साथ ही, 2020 तक तिि को िगभग 57 तमतियन
कामगारों की कमी का सामना करना पक सकता है।
 यह जनांक्रककीय अतधक्य को जनांक्रककीय िाभांश में पररणत करने का एक ऐततहातसक ऄिसर है।
 ग्रामीण तिकास मंत्रािय गरीब पररिारों के ग्रामीण युिाओं की कौशि और ईत्पादक क्षमता का
तिकास करने के साथ, समािेशी तिकास के तिए राष्ट्रीय एजेंडे के रूप में DDU-GKY का
कयाान्ियन करता है।
 अधुतनक बाजार में प्रततस्पधाा करने में भारत के ग्रामीण तनधानों के समक्ष चुनौततयााँ तिद्यमान ह। ,
जैसे औपचाररक तशक्षा और बाजार-ऄनुकूि कौशि की कमी। तिश्िस्तरीय प्रतशक्षण, तित्तपोषण,
रोजगार ईपिब्ध कराने पर बि देन,े नौकरी में बने रहने (retention), कररयर प्रगतत और
तिदेशों में प्िेसमेंट जैसे ईपायों के माध्यम से DDU-GKY आस ऄंतर को कम करने का काया करती
है।
तिशेषताएं (Features)
 िाभकारी योजनाओं तक तनधानों और सीमांत िोगों की पहंच को सक्षम बनाना: ग्रामीण तनधानों
के तिए मांग अधाररत तन:शुल्क कौशि प्रतशक्षण प्रदान करना।
 समािेशी कायािम तैयार करना: सामातजक रूप से िंतचत समूहों (SC/ST 50%, ऄल्पसंख्यक
15%, मतहिा 33%) को ऄतनिाया रूप से शातमि करना।

 प्रतशक्षण से कररयर प्रगतत पर बि देना: नौकरी में बने रहने (Job Retention), कररयर प्रगतत
और तिदेशों में प्िेसमेंट के तिए प्रोत्साहन प्रदान करना।
 तनयोतजत ईममीदिारों को ऄतधक समथान: प्िेसमेंट-पश्चात समथान, प्रव्रजन (माआग्रेशन) में समथान
और एिुतमनाइ नेटिका ।
 प्िेसमेंट साझेदारी बनाने के तिए सक्रिय दृतष्टकोण: कम से कम 75% प्रतशतक्षत ईममीदिारों के
तिए प्िेसमेंट की गारंटी।
 कायाान्ियन भागीदारों की क्षमता को बढ़ाना: नए प्रतशक्षण सेिा प्रदाताओं को पोतषत करना और
ईनके कौशि को तिकतसत करना।
 रीजनि फोकस
o जममू-कश्मीर (HIMAYAT) तथा ईत्तर-पूिा क्षेत्र और 27 िामपंथी ईग्रिाद (LWE) प्रभातित
तजिों (ROSHINI) में गरीब ग्रामीण युिाओं के तिए पररयोजनाओं पर ऄतधक बि देना।

 मानक अधाररत सेिा तितरण: कायािम से संबर्द् सभी गतततितधयााँ मानक संचािन प्रक्रियाओं के
ऄधीन होती ह। जो स्थानीय तनरीक्षकों द्वारा तनिाचन के तिए नहीं ह।। सभी प्रकार के तनरीक्षण भू -
स्थैततक प्रमाण (geo-tagged), समय के तििरण सतहत (time stamped) िीतडयो/तस्िीरों
द्वारा समर्तथत ह।।

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3.3.3. क्रदव्ां ग जनों के कौशि प्रतशक्षण के तिए तित्तीय सहायता

(Financial Assistance for Skill Training of Persons with Disabilities)


 आस योजना का ईद्देश्य क्रदव्ांगजनों के कौशि प्रतशक्षण हेतु तित्तीय सहायता प्रदान करना है।
 यह योजना ईन क्रदव्ांगजनों को किर करती है, तजनकी तिकिांगता कम से कम 40% है और आस
हेतु ईनके पास सक्षम तचक्रकत्सा प्रातधकारी द्वारा जारी तिकिांगता का प्रमाण पत्र (certificate)
है।
 मतहिा िाभार्तथयों के तिए 30% अरक्षण: मतहिाओं को प्रोत्सातहत करने के प्रयास के रूप में ,
प्रत्येक प्रतशक्षण कायािम की कु ि िाभार्तथयों में मतहिाओं को 30% अरक्षण प्रदान क्रकया
जाएगा।

3.3.4. राष्ट्रीय प्रतशक्षु सं ि र्द्ा न योजना

(National Apprenticeship Promotion Scheme: NAPS)


 राष्ट्रीय प्रतशक्षुता संिर्द्ान योजना का ईद्देश्य देश में प्रतशक्षुओं के प्रतशक्षण को प्रोत्साहन प्रदान
करना है।
 ईद्देश्य : आस योजना का मुख्य ईद्देश्य प्रतशक्षुओं के प्रतशक्षण को प्रोत्साहन प्रदान करना और 2020
तक प्रतशक्षुओं की संख्या को ितामान के 2.3 िाख से बढ़ाकर 50 िाख करना।
 तिस्तार (SCOPE): आस योजना में स्नातक, तकनीतशयन और तकनीतशयन (व्ािसातयक)
प्रतशक्षुओं को छोक कर ऄन्य सभी प्रतशक्षुओं की श्रेतणयों को शातमि क्रकया गया है, जो मानि
संसाधन तिकास मंत्रािय द्वारा प्रशातसत योजना में शातमि क्रकए गए ह।।
 कायाान्ियन एजेंसी: प्रतशक्षण महातनदेशािय के ऄंतगात प्रतशक्षु प्रतशक्षण क्षेत्रीय तनदेशािय
(RDATs) ईनके संबंतधत क्षेत्रों में, 4 या ऄतधक राज्यों में व्िसाय संचतित करने िािे कें द्रीय
सािाजतनक क्षेत्र ईपिम और प्रततष्ठानों के तिए कायाान्ियन एजेंतसयों के रूप में काया करेगी। राज्य
प्रतशक्षु सिाहकार ऄपने क्षेत्रातधकार में सािाजतनक क्षेत्र और तनजी प्रततष्ठानों के तिए कायाान्ियन
एजेंसी रूप में काया करते ह।।

3.3.5. ऄल्पसं ख्यकों के तिए कौशि तिकास (Skill Development for Minorities)

कौशि तिकास का िक्ष्य रखने िािी ऄल्पसंख्यक काया मंत्रािय द्वारा कायाातन्ित कु छ योजनाएं
तनम्नतितखत ह।:
 सीखो और कमाओ (Learn & Earn) : यह 2013-14 से कायाातन्ित एक प्िेसमेंट-चिक्ड कौशि
तिकास योजना है, तजसका ईद्देश्य योग्यता, ितामान अर्तथक प्रिृतत्त और बाजार क्षमता के अधार
पर ऄल्पसंख्यक युिाओं के तितभन्न अधुतनक एिं पारंपररक कौशिों का ईन्नयन करना है। जो ईन्हें
ईपयुक्त रोजगार ईपिब्ध कराने ऄथिा ईन्हें स्ि-रोजगार के तिए ईपयुक्त कौशि प्रदान करेगी।
 पारंपररक किाओं/तशल्पों के तिकास हेतु कौशि तिकास एिं प्रतशक्षण योजना: ईस्ताद
(Upgrading the Skills and Training in Traditional Arts/ Crafts for Development:
USTTAD): आसका ईद्देश्य ऄल्पसंख्यकों की पारंपररक किाओं/तशल्पों की समृर्द् तिरासत का
संरक्षण करना है।
 नइ मंतजि: आस योजना का ईद्देश्य ईन युिाओं को िाभातन्ित करना है तजनके पास औपचाररक
तशक्षा छोक ने का प्रमाण पत्र नहीं है, ताक्रक ईन्हें औपचाररक तशक्षा और कौशि प्रदान क्रकया जा
सके तजससे िे संगरठत क्षेत्र में रोजगार प्राि कर ऄपने जीिन को बेहतर बना सकें ।

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 मौिाना अज़ाद राष्ट्रीय कौशि ऄकादमी (MANAS): MANAS, ऄल्पसंख्यक समुदायों को


ईभरते बाजार की मांग के ऄनुरूप सभी प्रकार के कौशिों में प्रतशक्षण प्रदान करने के तिए, PPP
मॉडि पर स्थानीय / राष्ट्रीय /ऄंतरााष्ट्रीय प्रतशक्षण संगठनों के साथ संबर्द्ता के अधार पर एक
संपूणा भारतीय स्तर का प्रतशक्षण ढांचा प्रदान करता है।

3.4. सामातजक सु र क्षा (Social Security)

3.4.1. राष्ट्रीय सामातजक सहायता काया ि म

(National Social Assistance Program)


 राष्ट्रीय सामातजक सहायता कायािम (NSAP) संतिधान के ऄनुच्छेद 41 एिं 42 में तनतहत
तनदेशक तत्िों की पूर्तत हेतु एक ईल्िेखनीय कदम है , जो आस संदभा में कें द्र और राज्य सरकारों के
समिती ईत्तरदातयत्ि को स्िीकृ तत प्रदान करता है।
 तिशेष रूप से, भारतीय संतिधान के ऄनुच्छेद 41 में राज्य को बेरोजगारी, िृर्द्ािस्था, बीमारी
और तन:शक्तता तथा ऄन्य ऄनहा ऄभाि की दशाओं में ऄपनी अर्तथक क्षमता और तिकास की सीमा
के भीतर नागररकों को िोक सहायता प्रदान करने का तनदेश क्रदया गया है।
 राष्ट्रीय सामातजक सहायता कायािम एक सामातजक सुरक्षा एिं कल्याणकारी कायािम है, तजसका
ईद्देश्य िृर्द् व्तक्तयों, तिधिाओं, क्रदव्ांग जनों, जीतिकोपाजान करने िािे मुख्य सदस्य की मृत्यु
िािे िंतचत पररिारों और गरीबी रेखा से नीचे रहने िािे पररिारों को सहायता प्रदान करना है।
 1995 में NSAP के अरंभ के समय प्रमुख रूप से आसमें तीन घटक शातमि थे:
o राष्ट्रीय िृर्द्ािस्था पेंशन योजना (NOAPS)
o राष्ट्रीय पाररिाररक िाभ योजना (NFBS)
o राष्ट्रीय मातृत्ि िाभ योजना (NMBS)

3.4.2. राष्ट्रीय पें श न प्रणािी (National Pension System)

 राष्ट्रीय पेंशन प्रणािी (NPS) एक स्िैतच्छक एिं तनधााररत योगदान िािी सेिातनिृतत्त बचत
योजना है, तजसका तनमााण आसके ऄतभदाताओं को ईनके कामकाजी जीिन के दौरान व्ितस्थत
बचत के माध्यम से ऄपने भतिष्य के तिए आष्टतम तनणाय िेने में सक्षम बनाने हेतु क्रकया गया है।
 NPS का ईद्देश्य नागररकों के मध्य सेिातनिृतत्त हेतु बचत की प्रिृतत्त को बढ़ािा देना है। यह भारत
के प्रत्येक नागररक को पयााि सेिातनिृतत्त अय प्रदान करने की समस्या के स्थायी समाधान की
खोज करने का एक प्रयास है।
 NPS के तहत, व्तक्तगत बचत को पेंशन फं ड में जमा क्रकया जाता है तजसे पेंशन तनतध तितनयामक
और तिकास प्रातधकरण (PFRDA) द्वारा तितनयतमत पेशेिर तनतध प्रबंधकों द्वारा सरकारी बॉन्ड,
तबि, कॉपोरेट तडबेंचर और शेयरों की तितभन्न श्रेतणयों में ऄनुमोक्रदत तनिेश संबंधी क्रदशा-तनदेशों
के ऄनुसार तनिेश क्रकया जाता है।
 क्रकए गए तनिेश द्वारा ऄर्तजत िाभ के अधार पर िषा दर िषा आन योगदानों में िृतर्द् होती है और ये
संतचत होते रहते ह।।
 NPS से सामान्य तनगाम के समय, भुगतानकताा कु ि संचतयत पेंशन रातश की एकमुश्त रातश
िापस िेने के ऄततररक्त PFRDA द्वारा सूचीबर्द् जीिन बीमा कं पनी से िाआफ एन्युटी (annuity)
खरीदने हेतु आस योजना के तहत संतचत पेंशन रातश का ईपयोग कर सकते ह।, यक्रद िे आसका चयन
करते ह।।

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3.4.3. ऄटि पें श न योजना (Atal Pension Yojana)

 ऄटि पेंशन योजना (API) ऄसंगरठत क्षेत्र में कायाशीि गरीब व्तक्तयों की िृर्द्ािस्था में अय
सुरक्षा और कामगारों के दीघाायु तक जोतखमों से तनपटने का समाधान करती है। यह योजना
ऄसंगरठत क्षेत्र में कामगारों को स्िैतच्छक रूप से ऄपनी सेिातनिृतत्त हेतु बचत करने के तिए
प्रोत्सातहत करती है।
िाभ (Benefits):
 ऄतभदाताओं को 1000 रूपये से 5000 रूपये के मध्य तनधााररत पेंशन प्रदान की जाएगी यक्रद कोइ
व्तक्त आस योजना का 18 िषा से 40 िषा की अयु के भीतर सदस्य बनता है और ऄंशदान करता
है।
 ऄतभदाता की मृत्यु के पश्चात समान पेंशन रातश ईसके पतत/पत्नी को दी जाएगी।
 पत्नी की मृत्यु के पश्चात नातमत व्तक्त को सूचक पेंशन रातश िापस प्रदान की जाएगी।
 ऄटि पेंशन योजना (APY) में योगदान करने िािे व्तक्तयों को भी राष्ट्रीय पेंशन प्रणािी (NPS)
के समान ही कर िाभ प्रदान क्रकया जायेगा।

3.4.4. प्रधानमं त्री जीिन ज्योतत बीमा योजना

(Pradhan Mantri Jeevan Jyoti Beema Yojana)


 यह योजना ईसी व्तक्त के तिए ईपिब्ध है तजसकी अयु 18 से 50 िषा के मध्य है तथा तजसका
ब।क में खाता है।
 यक्रद भुगतानकताा 50 िषा की अयु से पूिा योजना में शातमि होता है, तो 55 िषा की अयु तक
जीिन बीमा के जोतखम को जारी रख सकता है, जो क्रक क्रकस्तों के भुगतान पर तनभार करेगा।
 भुगतानकताा की क्रकसी भी कारण से मृत्यु होने पर नातमत व्तक्त को 2 िाख रूपये की जोतखम
रातश (ररस्क किर) का भुगतान क्रकया जायेगा।

3.4.5. प्रधानमं त्री सु र क्षा बीमा योजना

(Pradhan Mantri Suraksha Bima Yojana)


 यह योजना ईसी व्तक्त के तिए ईपिब्ध है तजसकी अयु 18 से 70 िषा के मध्य है तथा तजसका
ब।क में खाता है। 12 रुपये की िार्तषक क्रकस्त के साथ यह तनम्नतितखत जोतखमों को शातमि करती
है:
o ऄतभदाता की मृत्यु होने पर 2 िाख रुपए की रातश का भुगतान क्रकया जायेगा।
o दुघाटना के समय पूणा तिकिांगता और दोनों नेत्रों या दोनों हाथों या पैरों की ऄप्रततिभ्य
(irrecoverable) क्षतत ऄथिा एक नेत्र की दृतष्ट की क्षतत और एक हाथ या पैर की क्षतत होने
पर 2 िाख रूपये की रातश का भुगतान क्रकया जायेगा।
o पूणा और एक नेत्र की दृतष्ट की ऄप्रततिभ्य क्षतत या एक हाथ ऄथिा एक पैर की क्षतत होने पर
1 िाख रूपये की रातश का भुगतान क्रकया जायेगा।

3.4.6. राष्ट्रीय खाद्य सु र क्षा ऄतधतनयम, 2013

(National Food Security Act, 2013)


 आस ऄतधतनयम का ईद्देश्य एक गररमापूणा जीिन जीने के तिए िोगों को िहनीय मूल्यों पर बेहतर
गुणित्ता के खाद्यान्न की पयााप्त मात्रा ईपिब्ध कराते हए ईन्हें मानि जीिन-चि दृतष्टकोण में
खाद्य और पौषण संबंधी सुरक्षा प्रदान करना है।

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आस ऄतधतनयम की प्रमुख तिशेषताएं (Main features of the Act):


 ितक्षत सािाजतनक तितरण प्रणािी (TPDS) के ऄंतगात किरेज एिं पात्रता: TPDS के ऄंतगात 5
क्रकिोग्राम प्रतत व्यतक्त प्रतत माह की एक-समान पात्रता के साथ 75% ग्रामीण जनसंख्या तथा
50% शहरी जनसंख्या को किर क्रकया जाएगा। चूंक्रक ऄंत्योदय ऄन्न योजना (AAY) में तनधानतम
पररिार शातमि होते ह। और ितामान में आन पररिारों को 35 क्रकिोग्राम प्रतत पररिार प्रतत माह
का ऄतधकार प्रदान क्रकया जाता है, ऄत: मौजूदा ऄंत्योदय ऄन्न योजना पररिारों की 35
क्रकिोग्राम प्रतत पररिार प्रतत माह के ऄतधकार को सुतनतश्चत रखा गया है।
 राज्य-िार किरेज: आसके ऄंतगात ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में िमशः 75% और 50% के ऄतखि
भारतीय किरेज को पररकतल्पत क्रकया गया है। तत्कािीन योजना अयोग (ऄब नीतत अयोग)
द्वारा िषा 2011-12 के राष्ट्रीय प्रततदशा सिेक्षण (NSS) पाररिाररक ईपभोग सिेक्षण अंकक ों के
अधार पर राज्य-िार किरेज का तनधाारण क्रकया था।
 TPDS के ऄंतगात सतब्सडीकृ त मूल्य तथा ईनमें संशोधन: आस ऄतधतनयम के िागू होने की तारीख
से 3 िषा की ऄितध के तिए TPDS के ऄंतगात खाद्यान्न ऄथाात् चािि, गेहं और मोटा ऄनाज
िमश: 3/2/1 रूपए प्रतत क्रकिोग्राम के सतब्सडीकृ त मूल्य पर ईपिब्ध कराया गया।
 पररिारों की पहचान: प्रत्येक राज्य के तिए तनधााररत TPDS के तहत किरेज के भीतर पात्र
पररिारों की पहचान संबंधी काया राज्यों/कें द्र शातसत क्षेत्रों द्वारा क्रकया जाएगा।
 मतहिाओं और बच्चों को पोषण सहायता: गभािती मतहिाएं एिं स्तनपान कराने िािी माताएं
तथा 6 माह से िेकर 14 िषा तक की अयु समूह के बच्चे एकीकृ त बाि तिकास सेिा (ICDS) और
मध्याह्न न भोजन (MDM) योजनाओं के ऄंतगात तनधााररत पोषण संबंधी मानद्डों के ऄनुरूप
भोजन प्राि करने के पात्र होंगे। 6 िषा तक की अयु के कु पोतषत बच्चों के तिए ईच्च स्तर के
पोषण संबंधी मानद्ड तनधााररत क्रकए गए ह।।
 मातृत्ि िाभ: गभािती मतहिाएं और स्तनपान कराने िािी माताएं मातृत्ि िाभ प्राप्त करने की
भी पात्र होंगी, जो की 6000 रूपए से कम नहीं होगा।
 मतहिा सशतक्तकरण: राशन काडा जारी करने के प्रयोजनाथा पररिार में 18 िषा या ईससे ऄतधक
अयु की सबसे बुजुगा मतहिा को पररिार की मुतखया के रूप में माना जाएगा।
 तशकायत तनिारण तंत्र: तजिा एिं राज्य स्तरों पर तशकायत तनिारण तंत्र की स्थापना की
जाएगी। राज्यों को मौजूदा तंत्र का ईपयोग करने ऄथिा ऄपना पृथक तंत्र स्थातपत करने की छू ट
प्राि होगी।
 खाद्यान्नों का राज्यों के भीतर पररिहन तथा प्रबंधन संबध
ं ी िागत और ईतचत मूल्य की दुकानों के
डीिरों का िाभ: कें द्र सरकार राज्यों के भीतर पररिहन तथा प्रबंधन पर क्रकए गए व्य की पूर्तत
करने हेतु राज्यों को सहायता ईपिब्ध कराएगी।
 पारदर्तशता और जिाबदेही: पारदर्तशता और जिाबदेही को सुतनतश्चत करने हेतु सािाजतनक
तितरण प्रणािी से संबंतधत ररकाडों को सािाजतनक करने, सामातजक िेखा परीक्षण करने तथा
सतका ता सतमततयों का गठन करने का प्रािधान क्रकया गया है।
 खाद्य सुरक्षा भत्ता: पात्र व्तक्त के खाद्यान्न ऄथिा भोजन की अपूर्तत न होने की तस्थतत में पात्र
िाभार्तथयों के तिए खाद्य सुरक्षा भत्ते का प्रािधान क्रकया गया है।
 द्ड: आसके ऄंतगात तजिा तशकायत तनिारण ऄतधकारी द्वारा ऄनुशंतसत राहत प्रदान करने संबंधी
प्रािधान का ऄनुपािन न क्रकये जाने की तस्थतत में राज्य खाद्य अयोग द्वारा सरकारी कमाचारी या
प्रातधकरण पर द्ड िगाने के प्रािधान को शातमि क्रकया गया है।

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3.5. NITI अयोग की काया योजना 2017-20 का तिश्ले ष ण

(Analysis by Niti Aayog’s Action Agenda 2017-20)

NITI अयोग का ''आंतडया: थ्री इयर एक्शन एजेंडा 2017-18 to 2019-20' भारत के सभी क्षेत्रों में
ऄपने तिज़न को रेखांक्रकत करता है। आसका ईद्देश्य भारत की पररिर्ततत िास्ततिकता के साथ तिकास
रणनीतत को बेहतर ढंग से संरेतखत करना है। ईपयुाक्त क्षेत्रों में तीन िषीय काया योजना का तिश्लेषण
और तसफाररशें तनम्नतितखत ह।।

3.5.1. ग्रामीण तिकास (Rural Development)

 ग्रामीण पररदृश्य ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के मध्य स्पष्ट ऄंतर के समाि होने के साथ रूपांतररत हो
रहा है। आसके पररणामस्िरूप ऄथाव्िस्था ऄतधक एकीकृ त हइ है।
 रोजगार सृजन यद्यतप कृ तष से गैर-कृ तष क्षेत्रों की ओर होने िािे स्थानांतरण के साथ समन्िय
स्थातपत नहीं कर पाया है। ग्रामीण क्षेत्रों के समक्ष ऄन्य चुनौततयों में तनम्न साक्षरता स्तर, स्िास््य,
पेयजि एिं स्िच्छता तक ऄपयााि पहंच के साथ-साथ औपचाररक तित्तीय संस्थानों के साथ
ऄपयााि संबंध सतममतित ह।।
योजनाएं और ईनके कायाान्ियन में पारदर्तशता (Schemes and Transparency in
implementation)

 चूंक्रक सामातजक, अर्तथक और जाततगत जनगणना (Socio Economic and Caste Census:

SECC)- 2011 तितभन्न कायािमों के तिए िाभाथी स्तर के ऄतधकारों को तनधााररत करने का
अधार बन गया है, ऄतः तनयतमत रूप से डेटा ऄद्यतन करने के तिए संस्थागत तंत्र की अिश्यकता
है।
 कमजोर पररिारों द्वारा सामना की जाने िािी बह-अयामी तनधानता की चुनौती का समाधान
करने के तिए योजनाओं के मध्य ऄतभसरण सुतनतश्चत करने हेतु पंचायत स्तर पर आस डेटा का
तिश्लेषण क्रकया जा सकता है।
 राज्य तिकास संस्थान (State Institutes of Rural Development: SIRD) आस ऄतभसरण
को सुतिधाजनक बनाने में महत्िपूणा भूतमका तनभा सकते ह। क्योंक्रक ये ग्रामीण तिकास के तितभन्न
कायािमों और पंचायत स्तर पर प्रतततनतधयों के प्रतशक्षण के तिए ईत्तरदायी ह।।
 MGNREGA और प्रधानमंत्री अिास योजना के तहत तनर्तमत घरों और संपतत्तयों को ट्रैक करने

के तिए GIS का प्रयोग क्रकया जाना चातहए।


कौशि तिकास और रोजगार सृजन (Skill Development and Employment Generation)

 2016 में ग्रामीण तिकास मंत्रािय द्वारा गरठत साझा समीक्षा तमशन (Common Review

Mission: CRM) ने दीनदयाि ऄंत्योदय योजना - राष्ट्रीय ग्रामीण अजीतिका तमशन (Deen
Dayal Antodaya Yojna – National Rural Livelihood Mission DAY: NRLM) से
संबंतधत कायाान्ियन चुनौततयों को स्पष्ट क्रकया। तजनमें मानि संसाधन के मुद्दे और धन की कमी
प्रमुख चुनौततयां थीं।
 मानि संसाधन से संबतं धत चुनौततयां: राज्य ग्रामीण अजीतिका तमशन (State Rural

Livelihood Missions: SRLM) के CEO के तिए दीघा कायाकाि को सुतनतश्चत करने के प्रयास
क्रकए जाने चातहए। तजिा और ब्िॉक स्तर पर पररयोजना कमाचाररयों को बनाए रखने पर बि
क्रदया जाना चातहए।

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 CRM टीम ने पाया क्रक कायािम SHG-ब।क चिके ज को प्राि करने में सफि रहा है, ईत्पादक
समूह और ईत्पादक कं पतनयों को संधारणीय कृ तष और गैर -काष्ठ िन ईत्पादों जैसे क्षेत्रों में सृतजत
और सुदढ़ृ करने के तिए ऄतधक प्रयास क्रकए जाने की अिश्यकता है।
 घरेिू बचत, अय, संपतत्त तनमााण, ऊण में कमी और ईत्पादकता सतहत SHG के तिए प्रमुख
संकेतकों को मापने के तिए एक तंत्र तिकतसत क्रकया जाना चातहए।
 दीन दयाि ईपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (Deen Dayal Upadhyaya Grameen
Kaushalya Yojna: DDU-GKY) के संबंध में, प्िेसमेंट की गुणित्ता की तनगरानी और सुधार
पर ध्यान कें क्रद्रत क्रकया जाना चातहए।
मुख्यमंतत्रयों के ईप-समूह द्वारा DDY-GKY और NRLM के तिए कौशि तिकास संबध
ं ी ऄनुसश
ं ाएं :
(Sub – group of Chief Ministers on Skill Development recommendation on DDU –
GKY and NRLM)
 नौकरी में प्िेसमेंट के संदभा में कृ तष और संबर्द् व्िसायों में स्ि-रोजगार को शातमि करने के तिए
पररचािन क्रदशातनदेशों को संशोतधत करना।
 राष्ट्रीय कौशि योग्यता फ्रेमिका (National Skills Qualification Framework: NSQF) के
ऄंतगात पूिा तशक्षण की मान्यता (Recognition to Prior Learning: RPL) का िाभ ईठाए
जाने की अिश्यकता है। सभी राज्य तिभागों को भारतीय कृ तष कौशि पररषद (Agriculture
Skill Council of India: ASCI) के सहयोग से कृ तष और संबर्द् क्षेत्रों में ऄर्द्ा कु शि और कु शि
कामगारों के मूल्यांकन और प्रमाणन के तिए योजनाएं तिकतसत की जानी चातहए।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (MGNREGA)
 ऄगिे 3 िषों में तनगरानी को सुदढ़ृ बनाने जाने की अिश्यकता है। आसके ऄततररक्त, एक स्ितंत्र
आकाइ द्वारा ऄतनिाया रूप से सामातजक िेखांकन की सुतिधा ईपिब्ध करिाइ जानी चातहए।
 ऄनुरक्षण के ऄभाि के कारण, MGNREGA के तहत सृतजत संपतत्तयां समय के साथ ऄनुपयोगी
हो जाती ह।। आस प्रकार, MGNREGA के तहत तनर्तमत सामुदातयक संपतत्तयों के तिए एक पृथक
रखरखाि तनतध स्थातपत क्रकए जाने की अिश्यकता है।
 सभी ररक्त तकनीकी कमाचाररयों के पदों पर तनयुतक्त क्रकए जाने की अिश्यकता है तथा योजना के
तहत सृतजत संपतत्तयों की तनगरानी के तिए कर्तमयों के पास पयााि क्षमता होनी चातहए।
 अंकक ों से स्पष्ट है क्रक MGNREGA के िाभों को कु छ राज्यों द्वारा ऄसमान रूप से ईपयोग क्रकया
गया है। ऄतः, तनधानतम पररिारों के पक्ष में कायािम को ितक्षत करने के तिए समािेशन,
ऄपिजान और िंचन के मानदंडों की एक व्िस्था तिकतसत करने की अिश्यकता है।
अिास (Housing)
 2022 तक सभी के तिए अिास के िक्ष्य को पूरा करने के तिए, कायासूची और स्पष्ट रूप से
तनधााररत िक्ष्यों के साथ राज्य तितशष्ट योजनाओं को तिकतसत करने की अिश्यकता है। आस
योजना में तितभन्न प्रकार के िहनीय और अपदा प्रततरोधी अिास मॉडि को शातमि क्रकया जाना
चातहए जो देश के तितभन्न भागों में ईपिब्ध सामतग्रयों का ईपयोग कर सकते ह।।
 एक ऄन्य प्राथतमकता यह सुतनतश्चत करना है क्रक पररयोजनाओं के प्रत्येक चरण के पूणा होने के
साक्ष्य के अधार पर धन को समय पर जारी क्रकया जाना चातहए। अिास तनमााण की भू -टैग
तस्िीरों के साथ-साथ ऄतनिाया सामातजक िेखांकन को िागू करने से तनगरानी तंत्र को सुदढ़ृ
क्रकया जाना चातहए।
 हाि ही में कै तबनेट द्वारा प्रत्येक घर के तिए ब्याज सतब्सडी के प्रािधानों को स्िीकृ तत प्रदान की
गइ है, जो PMAY-G के ऄंतगात सतममतित नहीं है। आन प्रािधानों को PMAY-G के साथ
समन्ितयत करने की अिश्यकता है।

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पेयजि एिं स्िच्छता (Drinking Water and Sanitation)


 2019 तक भारत को खुिे में शौच मुक्त करने के तिए, स्िच्छ भारत ऄतभयान - ग्रामीण के तहत
55 तमतियन घरेिू शौचािय और 115,000 समुदातयक शौचाियों का तनमााण क्रकए जाने की
अिश्यकता है। मतहिाओं, बच्चों, िररष्ठ नागररकों और क्रदव्ांगजनों हेतु स्िच्छता तक पहंच के
संबंध में ऄसमानताओं को दूर करने के तिए तिशेष ध्यान क्रदया जाना चातहए।
 मुख्यमंतत्रयों के ईप-समूह ने एक पेशेिर एजेंसी को तनगरानी एिं मूल्यांकन तथा व्ापक मीतडया
ऄतभयान के साथ संिग्न करने की ऄनुशंसा की है, जो िोगों को शौचाियों को बनाने एिं ईपयोग
करने के तिए प्रोत्सातहत करती है और साथ ही सािाजतनक शौचाियों के ईपयोग के तिए भुगतान
करती है।
 समुदाय संचातित समपूणा स्िच्छता (Community Led Total Sanitation: CLTS) कायािम
का अकिन करने के तिए यह व्ापक तिश्लेषण करने की अिश्यकता है क्रक यह कायािम तहमाचि
प्रदेश जैसे राज्यों तथा ऄन्य देशों में सफि रहा है, परंतु भारत में आसे राष्ट्रीय स्तर पर क्यों नहीं
बढ़ाया गया है।
 समुदाय अधाररत स्िच्छता कर्तमयों या स्िच्छता दूत (तजसकी पररकल्पना स्िच्छ भारत तमशन में
की गइ है) के एक कै डर को प्रतशक्षण एिं प्रोत्साहन प्रदान करना, एक ऄन्य प्राथतमकता होनी
चातहए।
उजाा (Energy)
 दीनदयाि ईपाध्याय ग्राम ज्योतत योजना के ऄंतगात ग्रामीण भारत में प्रत्येक घर के तिद्युतीकरण
के िक्ष्य को प्राि करने हेतु अपूर्तत की गुणित्ता, तििसनीयता, िहनीयता और िैधता पर ध्यान
कें क्रद्रत करने की अिश्यकता है, तजसकी ऄनुपतस्थतत में ग्रामीण पररिारों को िास्ततिक तिद्युत
प्राि करने हेतु तिद्युतीकरण पूणा रूप से पररिर्ततत नहीं हो पाएगा।
 गिा (GARV) को िांच करना - िास्ततिक समय के अधार पर िोगों को डेटा ईपिब्ध करने हेतु
एक डैशबोडा और मोबाआि ऐप पारदर्तशता िाएगा।
 आसके ऄततररक्त, 50 तमतियन गरीबी रेखा से नीचे रहने िािे (BPL) पररिार, तजनमें से
ऄतधकांश ग्रामीण भारत में तनिास करते ह।, ईनकी प्रधानमंत्री ईज्वलििा योजना के तहत LPG तक
पहंच प्राति को सुतनतश्चत क्रकया जाना चातहए।
सक क (Road)
 तीन िषों में, प्रधानमंत्री ग्राम सडक योजना के तहत तनर्तमत सभी ग्रामीण सक कों को सभी मौसम
में पररचािन योग्य सक कों से जोक ने का िक्ष्य होना चातहए। आस संबंध में , भारत के तनयंत्रक और
महािेखा परीक्षक ने कु छ तसफाररशें की ह।:
o ग्रामीण सक कों पर GIS डेटा बेस बनाने की अिश्यकता है।
o तजिा ग्रामीण सक क योजना में तिद्यमान तिसंगततयों और कतमयों का समाधान क्रकए जाने की
अिश्यकता है।
o गुणित्ता तनयंत्रण और तनगरानी को रेखांक्रकत करने की अिश्यकता है।
o ऑनिाआन प्रबंधन, तनगरानी और िेखा प्रणािी ( Online Management, Monitoring
and Accounting System: OMMAS) से संबंतधत डेटा तनयतमत अधार पर ऄद्यतन
क्रकया जाना चातहए।
तडतजटि कनेतक्टतिटी और साक्षरता (Digital Connectivity and Literacy)
 कनेतक्टतिटी में सुधार के साथ, तडतजटि साक्षरता सुतनतश्चत करना भी महत्िपूणा है। आस संबंध में,
प्रधानमंत्री तडतजटि साक्षरता ऄतभयान (PM Digital Saksharta Abhiyan: PMDISHA) के
तहत 6 करोक ग्रामीण पररिारों को तडतजटि साक्षर बनाने के तिए एक महत्िपूणा कदम ईठाया
है।
 यह JAM (जन-धन, अधार और मोबाआि) रट्रतनटी के व्ापक ईपयोग में सहायता प्रदान करेगा।

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सुदढ़ृ स्थानीय शासन के तिए पंचायत (Panchayats for Strong Local Governance)
 पंचायत भिनों को कायाात्मक आंटरनेट कनेक्शन के साथ कं प्यूटर और तिद्युत् सतहत अिश्यक
सुतिधाओं से सुसतित क्रकया जाना चातहए।
 राज्यों को पंचायतों में कायारत कमाचाररयों को पूणा प्रशासतनक और तित्तीय तनयंत्रण प्रदान करना
चातहए। ईन्हें कमाचाररयों की भती करने का ऄतधकार भी होना चातहए।
 पंचायती राज मंत्रािय द्वारा संचातित पंचायत हस्तांतरण सूचकांक (Panchayat Devolution
Index: PDI) पर िार्तषक ऄध्ययन के ऄनुसार कु छ राज्यों के बेहतर प्रदशान के तिए ईतल्ितखत
कारणों को रेखांक्रकत क्रकया गया है।
 ISO प्रमाणन प्राि करने के तिए पंचायतों को समथान प्रदान क्रकया जाना चातहए। ईदाहरण के
तिए, PDI र।ककग में के रि प्रथम स्थान पर रहा है, क्योंक्रक िहां स्थानीय स्ि-शासन तिभाग द्वारा
पंचायतों को ISO िगा के ऄंतगात िाने के तिए समथान प्रदान करने में िृतर्द् की गइ है।

3.5.2. शहरी तिकास (Urban Development)

शहरी अिास (Urban Housing)


 सबसे महत्िपूणा मुद्दा भूतम की ईच्च कीमत है, तजसके पररणामस्िरूप िहनीय अिासों की
ईपिब्धता प्रभातित होती है।
 नीतत अयोग के ऄनुसार, भारत में अपूर्तत पक्ष के तनम्नतितखत चार प्रमुख कारकों के फिस्िरूप
कृ तत्रम रूप से शहरी संपतत्त के मूल्यों में िृतर्द् हइ है।
o कइ बक े भूखंड मुकदमेबाजी में फं से हए ह।। कइ रुग्ण सािाजतनक क्षेत्र के ईपिमों (PSEs) के
पास प्रमुख शहरी क्षेत्रों में बक ी मात्रा में ऄप्रयुक्त भूतम है।
o कें द्र और राज्य सरकार की ऄपनी अिश्यक शहरी भूतम जो या तो ऄप्रयुक्त है या ईस पर
ऄततिमण हो रखा है।
o भूतम ऄतधग्रहण ऄतधतनयम, 2013 के ऄतगात ईच्च दर पर मुअिजे का प्रािधान क्रकया गया
है। यह अिासीय पररयोजनाओं को ऄिहनीय बना देता है।
 नीतत अयोग द्वारा ईपयुाक्त मुद्दों के समाधान हेतु तनम्नतितखत सुझाि क्रदए गए ह।:
o सहबर्द् भूतमयों से संबंतधत समाधान प्रक्रिया को शीघ्रतापूिाक िागू करना।
o आन रुग्ण PSEs को बंद करना (आस क्रदशा में पहिे ही कायािाइ की जा रही है)
o ऄिसंरचनात्मक एिं ऄन्य महत्िपूणा व्यों के तित्त पोषण हेतु आन शहरी भूतमयों का
मुद्रीकरण करना।
o ऄतधतनयम में संशोधन करना।
 आसके ऄततररक्त, भूतम से संबंतधत कठोर कानून/तनयमों का भी मुद्दा है। शहरी क्षेत्रों के चारों ओर
भूतम के बक े-बक े क्षेत्र ऄप्रयुक्त ऄिस्था में तिद्यमान है। परन्तु आन भूतमयों का ईपयोग करने हेतु ,
आन्हें कृ तष से गैर कृ तष भूतम में पररिर्ततत करना अिश्यक है। परंतु राज्यों के राजस्ि तिभाग ऐसा
करने में ऄतनच्छु क ह।।
 क्षैततज स्थान की कमी को िंबित तिस्तार के माध्यम से दूर क्रकया जाना चातहए। दुभााग्यिश,
भारत में स्िीकृ त फ़्िोर स्पेस आंडेक्स (FSI) बहत कम (1 से 1.5 तक) है, तजसके पररणामस्िरूप
भारत में उाँची आमारतों की ऄनुपतस्थतत है। ऄतः स्िीकृ त FSI में छू ट प्रदान करने की अिश्यकता
है।
कम क्रकराये िािे अिास (Low Rent Housing)
 ऄत्यंत उाँची कीमत िािी भूतम तनम्न क्रकराया प्रततफि का कारण बनती ह।, जो कम क्रकराए िािे
अिासों के तनमााण में संस्थागत तनिेशकों के समक्ष बाधा ईत्पन्न करता है। 2011 की जनगणना के

ऄनुसार, संपूणा देश में िगभग 11.09 तमतियन शहरी संपतत ररक्त है।

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 ऄतधकांश राज्यों में , क्रकराया तनयंत्रण कानून ने ऄसंगत रूप से क्रकरायेदारों को संरक्षण प्रदान
क्रकया है। क्रकराये को तनम्न स्तर पर बनाए रखा जाता है एिं क्रकराएदारों को घर से तनकािना भी
बहत करठन होता है। यह एक ऐसी तिरोधाभासी तस्थतत को ईत्पन्न करता है तजसमें क्रकराए के
अिास की मांग ऄसंतुष्ट होती है जबक्रक आसी दौरान कइ आकाआयां ररक्त होती ह।।
 ितामान क्रकराया तनयंत्रण कानूनों को मॉडना टेनेंसी एक्ट में पररिर्ततत करने की अिश्यकता है, जो
क्रकरायेदार और संपतत्त मातिक को क्रकराए के तनधाारण में पूणा स्ितंत्रता प्रदान करते हो। 2015 में,
अिास और शहरी गरीबी ईन्मूिन मंत्रािय द्वारा मॉडि टेनस
ें ी िॉ का मसौदा तैयार क्रकया गया
था।
 भूतम की कीमतों में सुधार क्रकए तबना, क्रकराये की दर तनम्न ही बनी रहेगी। क्रकराये की दरों को
बेहतर तरीके से संरेतखत करने हेतु भूतम बाजारों का सुधार तनम्न क्रकराए िािे िातणतज्यक अिासों
के तिए महत्िपूणा है।
 स्िातमत्ि ऄतधकार: दीघाकातिक रूप से, संपतत मातिकों को ऄंततम स्िातमत्ि प्रदान करने के तिए

कानूनों की भी अिश्यकता है, जो आनको संरक्षण प्रदान करते हो। राजस्थान ही एकमात्र ऐसा
राज्य है तजसने आस संबंध में कानून पाररत क्रकया है।
 शयनगृह: यह तबना पररिार के शहर में अने िािे प्रिासी श्रतमकों की अिास संबंधी समस्याओं
का समाधान करेगा। आसके साथ ही यह मतिन बतस्तयों की संख्या में होने िािी िृतर्द् को भी
हतोत्सातहत करेगा।
 रेंटि िाईचर स्कीम: सरकार द्वारा 100 स्माटा तसटी में शहरी गरीबों के तिए रेंटि िाईचर स्कीम
पर तिचार क्रकया जा रहा है। आस त्य को ध्यान में रखते हए क्रक शहरी गरीबों को बहत सीतमत
मात्रा में सरकारी सहायता प्राि होती है, योजना एक महत्िपूणा सकारात्मक कदम होगी।

शहरी स्िछता (स्िच्छ भारत) Urban Cleaning (Swachha Bharat)


 नगरपातिका ठोस ऄपतशष्ट (MSW) तनपटान: भारत के सभी शहरों के असपास तस्थत ऄपतशष्ट
के पहाक नुमा ढ़ेर, िोक स्िास््य के समक्ष एक गंभीर समस्या है। ऄंततम तनपटान के तरीकों के रूप
में बायोगैस और कं पोचस्टग जैसे तिकल्प बक े शहरों में सतत समाधान नहीं ह। क्योंक्रक िे ईच्च मात्रा
में ईपोत्पाद और ऄिशेष ईत्पन्न करते ह।।
 ऄपतशष्ट तनपटान का सतत एकमात्र समाधान भस्मीकरण (incineration) है, तजसे ऄपतशष्ट से

उजाा, थमाि पायरोतितसस और प्िाज्मा गैसीकरण प्रौद्योतगकी भी कहा जाता है। भारत की
ऄत्यतधक तितिध ऄपतशष्ट ईत्पादन और प्िाज्मा प्रौद्योतगकी की ईच्च िागत को ध्यान में रखते
हए, भस्मीकरण सबसे बेहतर समाधान प्रदान करता है।
 स्िच्छ भारत ऄतभयान पर गरठत मुख्यमंतत्रयों के ईप-समूह की ररपोटा में बक ी नगरपातिकाओं एिं
नगरपातिकाओं के समूहों में ऄपतशष्ट से उजाा संयत्र तथा छोटे कस्बों एिं ग्रामीण क्षेत्रों में ऄपतशष्ट
का तनपटान कर कमपोस्ट तनमााण की तितध की ऄनुशंसा की गइ है।
 नीतत अयोग द्वारा राष्ट्रीय राजमागा प्रातधकरण के समान िेस्ट टू एनजी कारपोरेशन ऑफ़ आंतडया
(WECI) नामक प्रातधकरण की स्थापना हेतु ऄनुशंसा की गइ है।

शहरी पररिहन (Urban Transport)


 भारतीय सक कें पैदि चिने िािों के तिए ऄनुकूि नहीं ह। तथा साथ ही ख़राब सतह, संकुतित और
सक कों पर तनरंतर खुदाइ का होना अक्रद के रूप में तिख्यात ह।। आन चुनौततयों का समाधान करने
के तिए शहरों की सक कों के तिए राष्ट्रीय तडजाआन मानकों और ऄनुबंध मानकों को तैयार करना
एक महत्िपूणा और तत्काि पररितानकारी सुधार होगा।

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 भारतीय शहरों में भी यातायात के प्रिाह पर तिशेष ध्यान देने की अिश्यकता है। पतश्चमी देशों के
शहरों के तिपरीत, भारत में मोटर िाहन बारंबार और ऄप्रत्यातशत तरीकों से ऄपने यातायात पथ
को पररिर्ततत करते रहते ह।।
 नीतत अयोग द्वारा एक पायिट पररयोजना की ऄनुशंसा की गइ है ताक्रक यह पता िगाया जा सके
क्रक क्या ईल्िंघन करने के मामिे में जुमााना के माध्यम से यातायात के तनयमों का कठोर प्रितान
व्िहारगत पररितान को बढ़ािा दे सकता है ओर सभी तनयमों का ऄनुपािन करने से प्राि होने
िािे िाभों के संबंध में चािकों को प्रेररत कर सकता है।
 मेट्रो रेि सेिा, भारतीय शहरों में सािाजतनक पररिहन का एक प्रभािी साधन तसर्द् हइ है। यह
एक राष्ट्रीय मेट्रो रेि नीतत की अिश्यकता को रेखांक्रकत करती है जो यह सुतनतश्चत करेगी क्रक मेट्रो
पररयोजनाएं का संचािन एकाकी रूप से नहीं क्रकया जा रहा है, बतल्क आनका संचािन समग्र
राष्ट्रीय पररिहन योजना के ऄंतगात ही क्रकया जा रहा है।

3.5.3 कौशि तिकास (Skill Development)

 एक ऄनुमान के ऄनुसार, भारतीय जनसंख्या का के िि 2.3% ही औपचाररक कौशि प्रतशक्षण


प्राि कर पाया है। यह UK के 68%, जमानी के 75%, USA के 52%, जापान के 80% और
दतक्षण कोररया के 96% की तुिना में बहत कम है।
 एक नए मंत्रािय के रूप में कौशि तिकास मंत्रािय का गठन, आस क्रदशा में एक प्रततमान तसर्द्
हअ है। कौशि भारत पहि का िक्ष्य 2022 तक 50 करोक भारतीयों को कौशि प्रदान करना है।
आसके ऄततररक्त, ऄनेक योजनाओं और नीततयों की शुरूअत भी की गइ है।
 िेक्रकन के िि योजना तनमााण ही पयााि नहीं है। यह ऄनुमान है क्रक हमारा जनांक्रककीय िाभांश
के िि 25 िषों के तिए ही है। आस प्रकार, भारत को सािाजतनक और तनजी दोनों क्षेत्रों के प्रयासों
सतहत गुणित्ता और गतत सुतनतश्चत करने हेतु ऄपनी कौशि तिकास संबंधी पहिों में महत्िपूणा
सुधार करने की अिश्यकता है।
 प्रतशक्षुता कौशि तिकास के तिए एक प्रभािी तरीका है, क्योंक्रक यह ईद्योग अधाररत प्रभािी
प्रतशक्षण प्रदान करती है।
 देश में तितभन्न कौशि तिकास संबंधी पहिों पर तनगरानी रखने हेतु कोइ स्ितंत्र तनयामक तंत्र
तिद्यमान नहीं है। कौशि तिकास और ईद्यतमता मंत्रािय (MSDE) ही नीतत तनमााण और
तनयामकीय तनकाय दोनों के रूप में काया करता है। ऄगिा कदम, सरकार से पृथक एक स्ितंत्र
तनयामकीय तनकाय की स्थापना होना चातहए।
 कौशि तिकास ईपितब्ध ररपोटा - 2016 के ऄनुसार, सरकारी योजनाओं के ऄंतगात कौशि प्राि
व्तक्तयों की तनयोजन दर 50% से कम है। तजसमें अगामी तीन िषो में 80% की िृतर्द् की जानी
चातहए।
 तनम्नतितखत संकेतकों का ईपयोग NSDC के समग्र प्रदशान से संबंतधत ररपोटा तैयार करने के तिए
क्रकया जाना चातहए:
o पंजीकृ त ईममीदिारों में से तनयोतजत होने िािों का प्रततशत
o प्रमातणत ईममीदिारों की स्ियं द्वारा चुने हए रोजगार क्षेत्र में काया करने की समयाितध।
o प्रमातणत और ऄकु शि ईममीदिारों के मध्य िेतन में ऄंतर।
o व्ािसातयक प्रतशक्षण तंत्र द्वारा तनर्तमत ईद्यतमयों की संख्या।
o तिदेशों में व्ािसातयक रोजगारों में तनयोतजत प्रमातणत ईममीदिारों की संख्या।
 सरकार की सभी प्रचार गतततितधयों को समेक्रकत करने हेतु तिदेश मंत्रािय के ऄंतगात एक राष्ट्रीय
स्तर की ओिरसीज एमप्िॉयमेंट प्रोमोशन एजेंसी (OEPA) की स्थापना की जानी चातहए।
 तिदेशों में रहने िािे भारतीयों या िापस िौटने िािे भारतीय व्तक्तयों के कौशि और तिशेषज्ञता
को स्िीकृ तत प्रदान करना तथा ईसका आष्टतम ईपयोग क्रकया जाना चातहए। आसके ऄततररक्त, भारत

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में तिदेशी अप्रिातसयों द्वारा तिकतसत कौशि पर पृथक रूप से ध्यान कें क्रद्रत क्रकया जाना चातहए,
क्योंक्रक आससे िे िैतिक ऄनुभि और दृतष्टकोण प्राि क्रकया जा सकता है।
 पूिा ऄनुभि को मान्यता (RPL) के ऄततररक्त, ईनके हस्तांतरणीय कौशि की पहचान करने पर
तिशेष ध्यान देना चातहए।
 NSDC की भूतमका को बेहतर ढंग से पुनः पररभातषत क्रकये जाने की अिश्यकता है। ितामान में
NSDC की ऄतधकांश क्षमता PMKVY के प्रबंधन में संिग्न है, जो मुख्य रूप से कौशि के ईच्च
स्तर या बाजार प्रेररत गैर-प्रायोतजत कौशि कायािम पर ध्यान नहीं देता है। PMKVY हेतु एक
समर्तपत प्रकोष्ठ (Cell) स्थातपत करने की अिश्यकता है ताक्रक NSDC ऄपनी पररकतल्पत भूतमका
पर ध्यान कें क्रद्रत कर सके ।

4. िोकतंत्र एिं तिकास


(Democracy and Development)

4.1. प्रक्रियात्मक िोकतं त्र एिं मू ि भू त िोक तं त्र

(Procedural Democracy and Substantive Democracy)


भारत ने गांधीिादी तसर्द्ांतों के अिोक में ग्राम स्तरीय सरकार के तिपरीत सािाभौतमक ियस्क
मतातधकार ि अितधक चुनाि के तसर्द्ांतों के अधार पर राष्ट्र-राज्य के तनमााण हेतु सरकार के संसदीय
स्िरूप (Parliamentary form of government) का चयन क्रकया।
िोकतंत्र का मूल्यांकन संकेतों को आंतगत करने ऄथिा मापने हेतु प्रयुक्त होने िािे सूचकांकों पर तनभार
करता है। िोकतंत्र के संदभा में मुख्यतः सूचकांकों के दो मॉडि ह। - तजसमें पहिा न्यूनतम संस्थातनक
(Institutional minimal) ऄथाात्त प्रक्रियात्मक िोकतंत्र से संबंतधत है और दूसरा मूिभूत या प्रभािी
िोकतंत्र से संबंतधत है।

प्रक्रियात्मक िोकतंत्र (Procedural Democracy)


 प्रक्रियात्मक िोकतंत्र के समीक्षकों का मानना है क्रक भारत में िोकतंत्र सफि रहा है। आस मूल्यांकन
का मानदंड- सहभातगता एिं प्रततस्पधाा है। यह भारत में चुनािों की अिृतत्त एिं चुनाि िक ने हेतु
राजनीततक दिों के मध्य प्रततस्पधाा का पररचायक है।

 भारत में प्रक्रियात्मक िोकतंत्र का ईद्देश्य राष्ट्र के तनमााण में योगदान करना था। तितभन्न तिचारकों
के ऄनुसार सािाभौतमक ियस्क मतातधकार ि अितधक चुनाि भारत में अधुतनकीकरण की
प्रक्रिया को अगे बढ़ाएंगे। आससे सामातजक-अर्तथक अधुतनकीकरण, नगरीकरण, जनसंचार के
तिस्तार, तशक्षा, संपतत्त तथा समानता के तिस्तार में भी िृतर्द् होगी।

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 ऐसा माना जाता था क्रक भारत में तिकास के साथ िोकतंत्र का सुदढ़ृ ीकरण होगा। जातत तथा धमा
के अधार पर तिभाजन समाि हो जाएगा।
 परंतु ये सभी अशाएं 1960 और 70 के दशक में धूतमि हो गइ। 1960 के दशक में भाषाइ एिं
जातीय चहसा की कइ घटनाएं हइ। िोकतांतत्रक रूप से आन चुनौततयों से तनपटने में ऄसमथा
राजनीततक कायाकारी ने सत्तािाद, संस्थानों के तनजीकरण और ऄतधरोपण द्वारा आनका प्रत्युतर
क्रदया। ईदाहरणाथा: 1975 में अपातकाि की ईद्घोषणा।
मूिभूत िोकतंत्र (Substantive Democracy)
 िास्ततिक िोकतंत्र के समथाकों द्वारा चुनाि और सािाभौतमक ियस्क मतातधकार को िोकतंत्र हेतु
ऄपयााि ईपायों के रूप में रेखांक्रकत क्रकया गया है। िोकतंत्र को संस्थागत प्रणािी से पृथक कर
समाज में ऄंतर्तनतहत क्रकया जाना चातहए।
 दतितों, ऄन्य तपछक ा िगों (Other Backward Classes: OBCs), मतहिाओं, जनजाततयों,
नृजातीयता और पयाािरण आत्याक्रद द्वारा पहचान की राजनीतत (identity politics) के ईदय ने
मूिभूत िोकतंत्र पर ध्यान कें क्रद्रत क्रकया है। आसे राष्ट्र-राज्य हेतु एक चुनौती और देश में
िोकतांतत्रक तत्िों में िृतर्द् दोनों के रूप में देखा जाता है।
 73 िें और 74 िें संिैधातनक संशोधनों के साथ, तिके न्द्रीकरण का िोकतांतत्रकरण क्रकया गया है
और तृणमूि स्तर पर मतहिाओं, OBCs एिं दतितों को सतममतित करने हेतु िोकतंत्र के दायरे में
भी िृतर्द् हइ है।
 यह िोकतंत्र को ‘टॉप-बॉटम’ से ‘बॉटम-टॉप’ में पररिर्ततत करने का एक प्रयास था।

4.2. तिकास में िोकतं त्र की भू तमका - मू ल्यां क न एिं अिोचना

(Role of Democracy in Development – Appraisal and Criticism)


क्या िोकतंत्र एिं तिकास एक-दूसरे के सुसग
ं त है ?
(Are democracy and development compatible?)
िोकतंत्र के ऄतधकांश िैतिक तिचारकों के ऄनुसार भारत एक शमानाक तिसंगततयों िािा देश है।
ईनका मानना था क्रक व्ापक तनधानता, ऄत्यतधक ग्रामीण एिं ऄतशतक्षत जनसंख्या, ऄसक्षम नागररक
संस्थान, संपतत्त तितरण में ऄसमानता तथा जाततिाद , क्षेत्रिाद एिं संप्रदायिाद जैसे सामातजक
तिभाजन आत्याक्रद समस्याओं के कारण भारत में िोकतंत्र दीघााितध तक ऄतस्तत्ि में नहीं रह पाएगा।
आन सभी के बािजूद भारत ने स्ियं को एक ईल्िेखनीय नमय िोकतांतत्रक राजव्िस्था के रूप में तसर्द्
क्रकया है।
तत्पश्चात तिकास के साथ िोकतंत्र के सुसंगत होने का प्रश्न अता है। क्या िोकतंत्र और िोकतांतत्रक
संस्थान अर्तथक तिकास को सुतिधाजनक बनाते ह।?
प्रत्येक प्रश्न का अनुभतिक ईत्तर सदैि सकारात्मक हो, ऐसा अिश्यक नहीं है। ईदाहरण के तिए कु छ
तिचारक तका देते ह। क्रक कोररया, ताआिान या आंडोनेतशया के ऄनुभिों से ज्ञात होता है क्रक एक सुदढ़ृ
सत्तािादी राज्य भारत जैसे चुनािी िोकतंत्र की तुिना में अर्तथक तिकास की सफि प्रक्रिया को बेहतर
बनाने में ऄतधक सक्षम है।
यद्यतप यह स्थातपत त्य है क्रक िोकतंत्र ही 'ईतचत प्रकार' (right kind) के अर्तथक तिकास को
सुतनतश्चत कर सकता है।
ईतचत प्रकार का अर्तथक तिकास क्या है?
(What is economic development of the right kind?)
ईतचत प्रकार के अर्तथक तिकास के तितभन्न अयाम ह।:
 समाज की ईत्पादन क्षमता में िृतर्द् ऄथाात श्रम, कृ तष तथा पूंजी की ईत्पादकता में िृतर्द्। यह प्रतत
व्तक्त अय और प्रतत व्तक्त संपतत्तयों में िृतर्द् को सुतनतश्चत करता है।
 तनधान िोगों के जीिन स्तर की गुणित्ता में सुधार।

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 अर्तथक संपतत्तयों और अय का तितरण।


 कायास्थि पर स्िास््य एिं सुरक्षा संबंधी तस्थततयों में सुधार।
 जीिन स्तर की गुणित्ता में सुधार - स्िास््य सेिा, स्िच्छ जि, तशक्षा तक बेहतर पहंच।
 सतत पयाािरण पररितान।
 ि।तगक समानता।
भारतीय पररदृश्य (Indian Scenario)
 हािांक्रक एक ऐसा दशान भी है जो िोकतांतत्रक संस्थानों और अर्तथक तिकास के मध्य के
नकारात्मक सहसंबंध को दशााता है। ऄन्य कु छ मतों के ऄनुसार, िोकतांतत्रक शासन-व्िस्था
सामान्यतः सत्तािादी शासन-व्िस्थाओं की तुिना में प्रभािी अर्तथक तिकास के प्रबंधन में कम
सक्षम होती ह।।
 आस तका का कें द्रीय पक्ष ऄििोकन पर अधाररत है, तजसके ऄनुसार तिकास के तिए पररितान की
अिश्यकता होती है और यह पररितान कु छ मतदाताओं को प्रततकू ि रूप से प्रभातित करता है।
आसतिए अगामी चुनािों में चुनािी समथान के तिए सरकारें सामान्यतः ईन तिकल्पों से दूर रहती
ह। जो की मतदाताओं की ऄत्यतधक संख्या पर करठनाआयों को अरोतपत करते ह।।
 भारत में यह एक मानक बन चुका है। चुनािी िषों के दौरान मतदाता समूहों के तिए तितभन्न
जनिादी ईपायों की श्रृंखिा को ितक्षत क्रकया जाता है और तजससे तित्तीय ऄनुशासन भी खंतडत
हो जाता है। िास्ततिक रूप से आस प्रिृतत्त का भारतीय िोकतंत्र पर तिघटनकारी प्रभाि पक ता है।
 तितभन्न तिश्लेषकों द्वारा राष्ट्रीय तिकास हेतु िोकतंत्र से िाभातन्ित होने की भारत की क्षमता पर
संदह
े व्क्त क्रकया है, ईनका तका है की तिशेष तहत एिं ऄपयााि प्रतत व्तक्त संपतत्त, भारत में
यथाथा िोकतंत्र के तिकास को बातधत करते है।
 फरीद जकाररया जैसे राजनीततक तिचारक का तका है क्रक "अज हमें राजनीततक व्िस्था में
ऄतधक नहीं बतल्क कम िोकतंत्र प्रणािी की अिश्यकता है। ” तिशेषतः एक तबतियन से ऄतधक
जनसंख्या िािे देश में बाजार तसर्द्ांतों द्वारा राजनीतत को तनदेतशत करने की स्िीकृ तत प्रदान कर
िोकतंत्र को स्ियं से बचाया जा सकता है। ऄरुण शोरी कभी-कभी आस बात की तशकायत करते है
क्रक यह एक ऐसे देश में है जहााँ प्रत्येक के पास िीटो की शतक्त है।
 आसके तिपरीत में क्रदए गए तकों के ऄनुसार भारत को िाि फीताशाही और भ्रष्टाचार की कु ख्यात
नौकरशाही संस्कृ तत से मुक्त होने के तिए स्थानीय, नागररक-सहभातगता प्रकार के िोकतंत्र की
अिश्यकता है।
 भारत जैसे तितिधता िािे देश में, व्तक्तगत स्ितंत्रता और स्थानीय सशतक्तकरण को तिस्तृत
करना ऄतधक न्यायसंगत तिकास की कुं जी है। तिशेषतः कम अय पर ऄमत्या सेन ने डेििपमेंट ऐज
फ्रीडम में तका क्रदया है क्रक ऄत्यतधक अर्तथक अिश्यकताओं की पूर्तत हेतु ितक्षत जनसंख्या की
रचनात्मक भागीदारी की अिश्यकता है ताक्रक सभी ऄपने ऄतधकारों को तनधााररत कर सके तथा
ईनका ईपयोग कर सकें । संतक्षि में, िोकतंत्र न तो ऄनुक्रियाशीि है और न ही तितरण के तिए एक
सफि माध्यम है।
चीन से िोकतांतत्रक सीख (Democratic Lessons from China?)
 चीन में ईत्तर-दतक्षण तिभाजन ऄत्यतधक दृढ़ होने के बािजूद चीन से बहत कु छ सीखा जा सकता
है- जो क्रक कु छ मामिों में भारत की तुिना में ऄतधक िोकतांतत्रक रूप से काया करता है।
 यद्यतप चीन में संघीय तनिाातचत िोकतंत्र का ऄभाि है, आसके बािजूद आसके सरकारी संस्थान
ऄपने नागररकों और तिदेशी तनिेशकों को सेिाएं प्रदान करने पर ध्यान कें क्रद्रत करते ह।। फसिों की
कीमतों में िृतर्द् करने, पररिहन तथा तिद्युत नेटिका का ईन्नयन करने के माध्यम से चरम तनधानता
को कु ि जनसंख्या के 10 प्रततशत से भी कम क्रकया गया है।
 ग्रामीण चीन में िृहद माआिो-िे तडट योजनाओं के तडजाआन और कायाान्ियन में स्थानीय िोगों की
भागीदाररता होती है और शहरी तनधानता को कम करने के तिए प्रतत िषा िगभग 1 तबतियन
डॉिर व्य क्रकए जाते ह।।

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 भारत कइ मामिों में आसी प्रकार की चुनौततयों का सामना कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र के मानि
तिकास सूचकांक में भारत को 188 देशों में 133िां स्थान प्राि हअ ह।, साथ ही भारत की प्रतत
व्तक्त सकि घरेिू ईत्पाद ऄभी भी 1710 डॉिर से कम है। आसकी 1.7% की जनसंख्या िृतर्द्
अर्तथक तिकास के प्रभाि को िगभग 4% तक कम कर देती है।
 कु पोषण के िगभग 40% तक रहने का ऄनुमान है और िास्ततिक साक्षरता 65% के अतधकाररक
अंकक ों से काफी कम है।
 भारत और चीन दोनों ही तीव्र शहरीकरण का सामना कर रहे ह।। उजाा और जि की मांग भारत में
सबसे बक ी चुनौततयां बनी हइ ह।। दोनों देशों में एड्स संिमण के फै िने का भय बना रहता ह।,
तजस पर तबि गेट्स ने कहा था क्रक आसके कारण भारत एक संपूणा पीढ़ी को गाँिा सकता है। चीन
की भांतत ही भारत की नौकरशाही भी सामातजक तिकास पर क्रकए जाने िािे ऄल्प व्य को या
तो गबन कर िेती है या क्रफर ऄिशोतषत कर िेती है।
िोकतांतत्रक दुतिधा (Democratic Dilemma)
 भारत में तिद्यमान पररतस्थततयां समृतर्द् ऄथिा प्रततष्ठा की एक ईत्कृ ष्ट िोकतांतत्रक दुतिधा
ऄतधरोतपत करती है, ऄथाात् जो िोग संसाधनों तक पहंच में समथा हो सकते ह। तथा तनजीकरण से
िाभ प्राि कर सकते ह।, ईनकी समाज के िाभ हेतु सािाजतनक प्रयासों का समथान करने में रूतच
रखने की कम संभािना होती है।
 ितामान में कृ तष क्षेत्र का GDP में 25% का योगदान है जबक्रक आसमें देश की 80% जनसंख्या
संिग्न ह।। आस प्रकार तितनमााण और पारंपररक क्षेत्रक व्ापक तिकास हेतु िास्ततिक संचािक बने
हए है। परन्तु ऄततशय नौकरशाही तथा तनकृ ष्ट ऄिसंरचना ने िृहद पैमाने पर तिस्तारशीि श्रम
बि को संिग्न करने हेतु ऄिसरों को ऄिरुर्द् क्रकया हअ है।
 तबज़नेस प्रोसेस अईटसोर्ससग (BPO) ऄथाव्िस्था न तो भारत के व्ापक शासन संकट का
समाधान कर सकती है तथा न ही समाधानों का तित्तीयन ईपिब्ध करा सकती है। तसतिकॉन िैिी
जैसे पररसरों के तिकास से जिाभाि की समस्या का समाधान नहीं हो पाएंगे, जो क्रक पेयजि तक
पहंच नहीं होने के कारण, तनधान िोगों को बोतिबंद जि के तिए 15 गुना ऄतधक भुगतान करने
के तिए बाध्य करता है। भारत में नौकररयों की अईटसोर्ससग के द्वारा आन सब चुनौततयों का
समाधान नहीं क्रकया जा सकता है।
आसका समाधान क्या ह।? (Where lies the solution?)
 ऄल्प िोकतंत्र के माध्यम से भारत में तिद्यमान समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता है। आसके
बजाय ऄत्यतधक ईत्तरदातयत्ि और पारदर्तशता नागररकों को सरकारी िादों के कायाान्ियन पर बि
देने की ऄनुमतत प्रदान करेंगे तथा नागररकों को ऄपने अर्तथक भतिष्य पर तनयंत्रण रखने हेतु
ऄिसर भी प्रदान करेंगे।
 आस प्रकार, ऄत्यतधक िोकतंत्र तथा ऄत्यतधक अर्तथक ईदारीकरण एिं खुिेपन के मध्य ऄंतर्तिरोध
नहीं है- दोनों को एक-साथ अगे बढ़ना चातहए।
ऄतधक तथा ऄल्प िोकतंत्र की अिश्यकता!
(Need for more as well as less democracy!)
 ऄतधक और ऄल्प िोकतंत्र दोनों िोकतांतत्रक दुतिधा के ईत्तर ह।। शीषा पर न्यूनतम तितशष्ट तहत,
नौकरशाही तथा ऄन्य ऄिरोध के साथ ऄतधक से ऄतधक स्थानीय स्िातमत्ि और स्ि-शासन।
 प्रबंधन फमा मैक्रकन्से एंड कं पनी द्वारा क्रकए गए एक ऄध्ययन में कहा गया है क्रक ऄत्यतधक
तनजीकरण, तिदेशी तनिेशों पर प्रततबंधों का तनराकरण और भू-स्िातमत्ि कानूनों में सुधार िस्तुतः
भारत के सकि राष्ट्रीय ईत्पाद (Gross National Product:GNP) को दोगुना कर सकते ह। तथा
कृ षक पररिारों की िास्ततिक अय में 40% की िृतर्द् कर सकते ह।।

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 तनधान िोगों को िस्तुतः ऄपनी स्ियं की व्ािसातयक योजनाओं के तनमााण हेतु अिश्यक रूप से
सशक्त बनाया जाना चातहए, क्योंक्रक सफि माआिो-िे तडट योजनाओं ने ईन्हें प्रोत्सातहत क्रकया है।
आसके साथ ही तित्तीय प्रबंधन को भी तिके न्द्रीकृ त क्रकया जाना चातहए।
 आसके ऄततररक्त आस हेतु सरकार को ईद्यतमता की प्रेरणादायक भािना पर ऄिश्य ध्यान के तन्द्रत
करना चातहए।
एतशयन टाआगसा के ईदाहरण (Lessons from Asian Tigers)
 एतशयन टाआगसा की सभी सफि कहातनयों में िोकतंत्र से पूिा पूज
ं ीिाद शातमि है जो भारत के
तिए एक दुःसाध्य ईन्नतत की ओर संकेत करती ह।, तजसने मामिों को “तिपरीत में” तिया है।
 परन्तु टाआगसा ने तिगत 1990 के दशक के ईनके तित्तीय संकट से महत्िपूणा सबक सीखा है।
ऄनुदार िोकतंत्र एक सीमा तक ही अर्तथक तिकास हेतु सहायक ह।। परन्तु ऄत्यतधक तिकें द्रीकृ त
व्िस्था ऄंततः तिकास और समृतर्द् को बातधत करती है।
 व्तक्तयों को ईनके संसाधनों को तनयंतत्रत और प्रबंतधत करने हेतु सशक्त करना हािांक्रक यह िोगों
की ऄपेक्षा एिं मांग स्तरों तक सामातजक और अर्तथक तिकास को प्रेररत कर सकता है।
 तिि का सबसे बक ा िोकतंत्र और एक ईभरती िैतिक ऄथाव्िस्था होने का त्य मात्र भारत की
महानता का दािा करने के तिए पयााि नहीं है। चुनािों के पश्चात् ही िास्ततिक काया अरंभ होते
ह।।

5. स्रोत (Sources)
1. िोक नीतत पर IGNOU मॉड्यूि
2. नीतत अयोग एक्शन एजेंडा 2017-2020
3. मंत्राियों की िार्तषक ररपोट्सा
4. द तहन्दू तथा द आंतडयन एक्सप्रेस
5. आकॉनोतमक एंड पॉतिरटकि िीकिी

6. तिगत िषों में Vision IAS GS मेंस टे स्ट सीरीज में पू छे


गए प्रश्न
(Previous Year Vision IAS GS Mains Test Series Questions)

1. जैस-े जैसे िोक-कल्याणकारी राज्य की मांग बढ़ती गयी िैस-े िैसे राज्यों की सीमा में नाटकीय
प्रसार हअ। िेक्रकन ितामान मांग “न्यूनतम सरकार और ऄतधकतम ऄतभशासन” की है।
अिोचनात्मक परीक्षण कीतजये।
दृतष्टकोण:
 ईत्तर ‘न्यूनतम सरकार और ऄतधकतम ऄतभशासन’ के ऄथा, ितामान पररप्रेक्ष्य आसके
महत्ि और आसे प्राि करने के तिए क्रकये जाने िािे ईपायों के संदभा पर कें क्रद्रत होना
चातहए।
ईत्तर:
21िीं शताब्दी की अिश्यकताओं को पूरा करने के तिए, सरकार 19िीं शताब्दी की
मानतसकता और 20िीं शताब्दी की सरकारी प्रक्रियाओं के साथ शासन का संचािन नहीं कर
सकती। यह ‘न्यूनतम सरकार, ऄतधकतम ऄतभशासन’ की अिश्यक मांग का स्पष्ट कारण है।
‘न्यूनतम सरकार, ऄतधकतम ऄतभशासन’ को प्राि करने के तिए तनम्नतितखत त्यों का
परीक्षण क्रकया जा सकता है:

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1. ऄतभशासन को ऄतनिाया रूप से 365 क्रदन की अचार संतहता का पािन करते हए संसद
के तनिाातचत सदस्यों के साथ अरंभ क्रकया जाना चातहए। आसका ऄथा सांसदों के पद की
शपथ को पुन: तनधााररत करना है। ईनके द्वारा न के िि गोपनीयता और भारत के
संतिधान का पािन करने की शपथ बतल्क िोक सभा कोइ ‘बंद’ सभा और राज्य सभा
कोइ ‘रोष’ सभा न हो जाए यह सुतनतश्चत करने का एक महान संकल्प भी तिया जाता
ह।। आसका ऄथा यह है क्रक तनिाातचत प्रतततनतध संसद की कायािातहयों में तशष्टाचार और
मयाादा के ईतचत ईदाहरण तनधााररत करते ह।। अिश्यता पक ने पर सदस्य तबना ऄिरोध
और तोक -फोक के ; तमचा के तछक काि के , कागज फाक े तथा माआक खींचे या ईपद्रिी
अचरण अक्रद के तबना तिरोध कर सकते ह।। जब तक तनिाातचत राजनीततक िगा सुशासन
का ईतचत ईदाहरण प्रस्तुत नहीं करता, िे सुशासन के तिए नागररकों की सहभातगता
प्राि करने हेतु नैततक शतक्त, सममान और तििास प्राि नहीं कर सकते।
2. ईपयुक्त स्थानों पर बुतर्द्मान एिं इमानदार पदातधकाररयों के तबना न्यूनतम सरकार के
साथ ऄतधकतम ऄतभशासन की प्राति नहीं की जा सकती है। मंतत्रमंडि सतचि महत्िपूणा
पद है, जो कें द्रीय सतचिों का तनरीक्षण करता है और प्रधान मंत्री कायाािय तथा कें द्र के
साथ-साथ राज्यों में भी शेष सतचिों के मध्य महत्िपूणा संपका स्थातपत करता है। ऄन्य
मुख्य पद ह।- मुख्य सतचि, पुतिस और राजस्ि अरक्षी महातनदेशक। सुशासन का िक्ष्य
प्राि करने के तिए, आन पदातधकाररयों का ईत्कृ ष्ट होना अिश्यक है।
3. प्रधानमंत्री द्वारा पयााि ईपाय क्रकए तबना हस्तान्तररत बचत ऄथिा ईधार धन के ररसाि
को रोका जा सकता है। आसका संबंध तितभन्न सामातजक कल्याण योजनाओं पर व्य
क्रकये गए धन एिं िोट ब।क को ध्यान रखते हए “खचा क्रकये गए धन” से होता है।
4. मंत्रीमंडि सतचि, मुख्य सतचिों, अरक्षी महातनदेशकों और राजस्ि अयुक्तों जैसे मुख्य
पदों पर पदस्थापन, स्थानांतरण और प्रोन्नतत के तिए ईपयुक्त पदातधकाररयों की पहचान
करने में सक्षम प्रणातियां ऄतनिाया रूप से तैयार की जानी चातहए।मुख्य सतचिों द्वारा
प्रभािशीि समन्ियन सुतनतश्चत होता है; सक्षम पुतिस प्रमुखों द्वारा बेहतर कानून एिं
व्िस्था सुतनतश्चत होती है तथा राजस्ि पदातधकाररयों द्वारा न्यायसंगत तिकास के तिए
धन की ईपिब्धता हेतु राजस्ि की पयााि ईगाही सुतनतश्चत होती है।
5. तकनीक का ईपयोग- व्िसाय और ईद्यतमता समुदाय के तिए एक समान ऄिसर
सुतनतश्चत करने हेतु एक तनतश्चत सीमा रातश से उपर के सभी ऄनुबंध , साआट पर प्रस्तुत
क्रकए जा सकते ह।। आससे सरकार में तििास पुनः स्थातपत होगा।

2. तितभन्न सरकारी योजनाओं को अपस में जोक ने से बेहतर सेिा तितरण और िागत
प्रभािशीिता का मागा प्रशस्त हो सकता है। ईदाहरण सतहत स्पष्ट कीतजए।
दृतष्टकोणः
 आस प्रश्न में कल्याणकारी योजनाओं के तिश्लेषण की अिश्यकता है। अर्तथक सिेक्षण
2013-14 में दक्षता में सुधार हेतु एक-समान तथा ऄततव्ातपत पररयोजनाओं को अपस
में जोक ने का सुझाि क्रदया गया है। अपको ईपयुक्त ईदाहरणों द्वारा ऐसे ईपायों के िाभ
को स्पष्ट करना चातहए।
ईत्तरः
भारत में के न्द्र और राज्य सरकारें तितभन्न ईद्देश्यों के तिए बहतायत में कल्याणकारी योजनाएं
संचातित करती ह।। हािांक्रक पररयोजनाओं की ऄतधकता के कारण तनम्न समस्याएं ईत्पन्न हइ
ह।:

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पररयोजनाओं के कायों और ितक्षत अबादी का परस्पर ऄततव्ापन। अर्तथक सिेक्षण 2013-


14 तितभन्न पररयोजनाओं जैसे अम अदमी बीमा योजना, जनश्री बीमा योजना और राष्ट्रीय
सुरक्षा बीमा योजना के परस्पर ऄततव्ापन का ईदाहरण प्रस्तुत करती ह।, जो ‘समान या एक
ही िगा की अबादी’ की अिश्यकताओं को पूरा करते ह।।
 कायाान्ियन करने िािी एजेंतसयों के मध्य समन्िय का ऄभाि।
 ऄनेक पररयोजनाओं के कायाान्ियन की ईच्च िागत सािाजतनक कोष पर तित्तीय दबाि
ईत्पन्न करती है।
 िाभार्तथयों के मध्य िाभों, पररयोजनाओं के तिए पात्रता, प्रक्रिया और दस्तािेजीकरण
और ऄंततः तशकायत तनदान प्रणािी के तिषय में जागरूकता का ऄभाि।
ऐसे ऄततव्ापनों के कारण, सरकार ने के न्द्र प्रायोतजत पररयोजनाओं के व्ापक पुनमूाल्यांकन
के तिए बी. के . चतुिेदी सतमतत का गठन क्रकया। आस सतमतत की ऄनुशंसा पर सरकार ने 147
योजनाओं को अपस में समेक्रकत कर 67 पररयोजनाओं के रूप में पुनगाठन क्रकया।
आन बातों को ध्यान में रखते हए, तितभन्न सरकारी ररपोटों ने कु छ कल्याणकारी योजनाओं
और कायािमों को अपस में समेक्रकत करने का तनणाय तिया है ताक्रक बेहतर तितरण सुतनतश्चत
क्रकया जा सके और व्य को सुगम और प्रभािी बनाया जा सके । आससे तनम्नतितखत िाभ होंगेः
 कायाान्ियन एजेंतसयों के मध्य बेहतर समन्िय क्योंक्रक िे के िि कु छ ितक्षत पररयोजनाओं
के कायाान्ियन के तिए ईत्तरदायी होंगी।
 सरकारी तंत्र के कायाान्ियन िागत पर बचत।
 नागररकों को बेहतर सेिा तितरण। ईदाहरण के तिए, राष्ट्रीय ग्रामीण अजीतिका तमशन
के साथ संपूणा स्िच्छता ऄतभयान (TSC) के समेकन से तनर्तमत शौचाियों के प्रभािी
रख-रखाि में सहायता प्राि हइ। TSC को पाआप अधाररत जि पररयोजना (पाआप्ड
िॉटर स्कीम) से जोक ने के कारण पेयजि तनकायों का प्रदूषण से बचाि क्रकया जाएगा।
 पररयोजनाओं की ऄतधकता से नागररकों में दुतिधा ईत्पन्न होती है। क्रकन्तु कु छ ितक्षत
पररयोजनाएं ईनके ऄतधकारों और ईनकी पात्रता के तिषय में बेहतर जागरूकता ईत्पन्न
कर सकती है।
 सेिा तितरण संबंधी मंचों का अपस में जोक े जाने से िोगों तक िाभ की असान पहंच
सुतनतश्चत हो सके गी।
हाि ही में सरकार ने राष्ट्रीय स्िास््य बीमा योजना, अम अदमी बीमा योजना और आंक्रदरा
गांधी िृर्द्ािस्था पेंशन योजना के सेिा तितरण संबंधी मंचों को अपस में समेक्रकत क्रकया है।
मनरेगा के कृ तष, िन, जि संसाधन, भूतम संसाधन, ग्रामीण मागों, अंगनिाक ी के न्द्रों, पेयजि
और स्िच्छता संबंधी पररयोजनाओं के साथ समेकन से मनरेगा के तहत ऐसे संसाधनों और
पररसंपतत्तयों की ईत्पादकता में िृतर्द् की जा सकती है, तजससे ग्रामीण पररिारों को बेहतर
अजीतिका पर्द्ततयों के साथ जीिन की गुणित्ता को सुधारने में सहायता प्राि होगी। 12िीं
पंचिषीय योजना में भी ऐसे कायािमों को अपस में समेक्रकत करने पर बि क्रदया गया है।

3. भारत के तिकास मॉडि में ईन ग्रामीण तिकास योजनाओं को सतममतित क्रकया जाना चातहए
जो “कायािम संचातित” होने की ऄपेक्षा “मांग संचातित” हों। सामातजक क्षेत्र की तितभन्न
योजनाओं की रूपरेखा के संदभा में परीक्षण कीतजए।
दृतष्टकोणः
 सिाप्रथम, ईस सन्दभा को प्रस्तुत कीतजए तजस पर प्रश्न अधाररत है। तत्पश्चात ’’मांग
संचातित’’ और ’’कायािम संचातित’’ दृतष्टकोणों की तुिना कीतजए और ईनके मध्य

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ऄन्तर स्पष्ट कीतजए। अगे, ईदाहरण प्रस्तुत करके िणान कीतजए क्रक क्रकस प्रकार ितामान
सरकारी योजनाएं मांग संचातित दृतष्टकोण पर अधाररत ह।। ऄपने तका के संबंध में अप
के स स्टडी दृतष्टकोण का भी ईपयोग कर सकते ह।। (जैसे, MNREGA और आसकी
सफिता की कहानी ऄथिा SAGY)
ईत्तरः
भारत में ऄत्यतधक िंबे समय तक तिकास की समझ जमीनी स्तर की मांग को पूरा करने की
बजाय टॉप टू डाईन मॉडि पर अधाररत सरकारी योजनाओं के कायाान्ियन तक सीतमत थी।
कायािम संचातित दृतष्टकोण, गगनचुंबी आमारतों में तिशेषज्ञों द्वारा तनर्तमत योजनाओं के
एकदम तभन्न पररिेश में कायाान्ियन के रूप में पररणातमत हअ तजसने बहत से िोगों के
जीिन को प्रभातित क्रकया। राज्य की िमबे समय से यह तशकायत रही है क्रक सामातजक क्षेत्र
की योजनाओं के तिए तनतधयां, JNNURM, RKVY, AIBP, RGGVY अक्रद जैसी के न्द्र
प्रायोतजत योजनाओं के ऄनुसार ऄत्यतधक सीतमत होती थीं और स्थानीय तिकास की तिशेष
अिश्यकता के तिए ईनका ईपयोग नहीं क्रकया जा सकता था। भारत के तितभन्न क्षेत्रों की
अिश्यकताएं भी तभन्न-तभन्न थीं तजसके तिए टॉप टू डाईन एकमुखी दृतष्टकोण को ईपयुक्त
नहीं पाया गया।
तिकास के पररिर्ततत प्रततमान में, तिकास के प्रतत एक दृतष्टकोण के रूप में मांग संचातित
शासन तनम्नतितखत तिशेषताओं पर बि प्रदान करता है, जो तनम्नतितखत िाभ प्रदान करते
ह।:
 संसाधन अिंटन और तितरण का तिके न्द्रीकृ त घटक जो क्रकसी के न्द्रीकृ त प्रातधकरण की
ऄपेक्षा िोगों को प्राथतमकता प्रदान करता है।
आस बात को ध्यान में रखकर सांसद अदशा ग्राम योजना (SAGY) का तनमााण क्रकया गया है।
आसका दृतष्टकोण स्थानीय स्तर पर भागीदारी के तिए समुदाय को जोक ने और िामबंद करने
तथा तितभन्न सरकारी कायािमों, तनजी और स्िैतच्छक पहिों के ऄतभसरण और िोगों की
अकांक्षाओं के साथ समन्िय स्थातपत कर व्ापक तिकास प्राि करने पर के तन्द्रत है।
 स्थानीय कायाकतााओं और नागररक समाज संगठनों की सारगर्तभत भागीदारी और सह-
संकल्प जो िाभप्रद योगदान प्रदान करता है और ईनमें स्िातमत्ि की भािना का संचार
करता है; ईदाहरण के तिए, दीनदयाि ईपाध्याय ग्राम ज्योतत योजना जैसी सामातजक
क्षेत्र की योजनाओं का कायाान्ियन के िि CPSU’s, राज्य सरकार के ईजाा तिभाग,
राज्य तिद्युत पररषद और तडस्कॉम द्वारा ही नही क्रकया जा रहा है बतल्क आसके
कायाान्ियन में सहकारी संस्थाओं की भी समान भूतमका है।
 स्थानीय ऄतधकाररयों और शासन के ढांचे के साथ तािमेि और समन्िय की स्थापना भी
सामातजक तनिेश को सुतनतश्चत करता है।
 स्थानीय स्तर पर पारदर्तशता को सुतनतश्चत करने के तिए तनयंत्रण एिं संतुिन तथा
राज्य और तिकासात्मक प्रणातियों को ईत्तरदायी बनाए रखने हेतु सामुदातयक तनिााचन
क्षेत्रों को ऄतधकार प्रदान करना, ऄतधकतम प्रदशान को सुतनतश्चत करता है। ईदाहरण के
तिए ग्राम सभाओं द्वारा सामातजक ऄकें क्षण मनरेगा के सफि कायाान्ियन प्रमुख कारण
रहा है।
 मांग संचातित सेिाओं की ऄिधारणा ईत्तरदायी शासन की क्रदशा में सािाजतनक क्षेत्र में
सुधार के प्रततमान में पररितान से भी संबर्द् है।
यद्यतप मांग संचातित कायािम ‘टॉप टू डाईन’ दृतष्टकोण की ऄपेक्षा प्रगतत का प्रतततनतधत्ि
करता है, िेक्रकन ईपिब्ध ऄनुभिों के अिोक में कु छ प्रततरूपों के जाि से बचा जाना
चातहए, ऄथाातः

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 मांग संचातित दृतष्टकोण, गतततितधयों को खत्डत ि प्रकीर्तणत कर सकता है। यह स्पष्ट है


क्रक कायािमों में भौगोतिक तनयोजन और ऄतभसरण की प्रारंतभक चरण में ईपेक्षा नहीं
की जानी चातहए।
 तितभन्न स्तरों पर स्थानीय तिकास योजनाओं के ढांचे के भीतर बक े और छोटे तनिेशों को
संयोतजत करने के तिए टॉप-डाईन और बॉटम-ऄप ऄिसंरचना तनयोजन, दोनों को स्पष्ट
क्रकए जाने की अिश्यकता है।
 ऐसे कायािमों से पहिे स्थानीय स्तर पर क्षमता तनमााण की अिश्यकता है।
संक्षेप में, िोगों की तितभन्न सामातजक-सांस्कृ ततक अिश्यकताओं के संबंध में, स्थानीय
स्तरीय तिकास के दृतष्टकोण ने िास्ततिक सामुदातयक अिश्यकताओं, सामुदातयक सहयोग
और स्ियं-सहायता के मेि-जोि की क्रदशा में ऄंतरण क्रकया है। आस प्रकार से, ग्रामीण तिकास
योजनाओं द्वारा न के िि स्थानीय िोगों की मांगों को पूरा क्रकया जाना चातहए तथा स्थानीय
स्िशासन संस्थानों का सशतक्तकरण क्रकया जाना चातहए बतल्क ईनमें ऄंतर्तनतहत क्षमता
तनमााण पहिें भी की जानी चातहए और साथ ही ईन्हें ऄतभसरण ईन्मुख राष्ट्रीय ईद्देश्यों के
साथ समन्िय भी स्थातपत क्रकया जाना चातहए तजससे राष्ट्र के समग्र तिकास को प्राि करने में
सहायता प्राि हो सके ।

4. ‘सामातजक नीतत के प्रतत ऄतधकार अधाररत दृतष्टकोण’, तजसने तपछिे डेढ़ दशकों से भारत
को अंदोतित क्रकया है। शासन को संरक्षण के तिचारों से पुनः राज्य के प्रतत कताव् तथा
नागररकों के न्यायोतचत ऄतधकारों की ओर िे जाता है। दृष्टान्तों के साथ आस तिषय पर चचाा
करें। आस बात की भी व्ाख्या करें क्रक ऄतधकार अधाररत दृतष्टकोण सािाजतनक सेिाओं के
तितरण में क्रकस प्रकार सहायता करता है?
दृतष्टकोण:
 ईदाहरणों के माध्यम से चचाा कीतजये क्रक सामातजक नीतत के प्रतत ऄतधकार अधाररत
दृतष्टकोण क्या है।
 आस बात की भी व्ाख्या कीतजये क्रक राज्य पर िैध दातयत्ि अरोतपत कर और ईनकी
पूर्तत के तिए िोगों को ऄतधकार देकर आसने शासन के रूप को क्रकस प्रकार पररिर्ततत
क्रकया है।
 सािाजतनक सेिा के तितरण में आसके िाभों पर प्रकाश डािते हए ईत्तर समाि कीतजये ।
ईत्तरः
ऄतधकार अधाररत दृतष्टकोण ऄपने ऄतधकारों को जानने और ईन पर दािा करने के तिए
िोगों को ऄतधकार संपन्न बनाता है। साथ ही यह ईन ऄतधकारों की रक्षा करने और पूर्तत
करने के तिए ईत्तरदयी िोगों और संस्थाओं की क्षमता और ईत्तरदेयता में भी िृतर्द् करता है।
सामातजक नीतत के प्रतत ऄतधकार अधाररत दृतष्टकोण का तात्पया 'सामातजक न्यूनतम' यानी
भोजन, अिास, काम अक्रद जैसी अधारभूत अिश्यतकताओं को पूरा करने तक िोगों की
ईतचत पहंच की गारंटी दे सकने िािी संस्थाएं और नीततयों का तिद्यमान होना है । जैसे -जैसे
सामातजक-अर्तथक तस्थतत में सुधार अता है, यह 'न्यूनतम' भी पररिर्ततत हो जाता है।
तपछिे कु छ िषों में, 'ऄतधकारों' को सुशासन से जोक कर देखने की प्रिृतत्त तिकतसत हइ है और
प्रशासन में सुधार िाने के तिए राजनीतत और नौकरशाही के प्रयासों को प्रायः सरकार पर
नागररकों के तिस्तारशीि ऄतधकारों के रूप में पररभातषत क्रकया जाता रहा है। आसके
ऄततररक्त, तसतिि सोसायटी, दाता एजेंतसयां (संयुक्त राष्ट्र के तनकाय) जैसे दबाि समूहों एिं
ऄन्य िोगों के साथ ही मूि ऄतधकारों समबन्धी सिोच्च न्यायािय की व्ापक व्ाख्या ने

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तिशेष रूप से कमजोरों के ऄतधकारों के संबंध में सािाजतनक नीतत तनमााण के तिए ऄतधक
समािेशी दृतष्टकोण सुतनतश्चत क्रकया है।
बढ़ती जानकारी, जागरूकता, सामातजक पूंजी और घरेिू और ऄंतरराष्ट्रीय नागररक समाजों

की सहायता से, कु छ तिशेष ऄतधकारों को राज्य की क्षमता के नाम पर तिितमबत की जा


सकने िािी तििातसता की तुिना में राज्य पर मूिभूत दातयत्ि के रूप में देखा जाने िगा है।
'मूिभूत न्यूनतम' ऄतधकार ऄब राज्य का संरक्षण नहीं रहे ह।, बतल्क ऄब ये ईसके कताव् बन
गए ह।। ईठाए गए तनम्नतितखत कदमों को ऄतधकार अधाररत दृतष्टकोण के तितभन्न पहिु माने
जा सकते ह।:
 पंचायती राज संस्थाओं को संिैधातनक दजाा (जमीनी स्तर पर, सहभागी िोकतंत्र)।

 सूचना का ऄतधकार (पारदर्तशता और ईत्तरदातयत्ि तनधाारक), तशक्षा का ऄतधकार

(मानि पूंजी का तनमााण करने िािा), भोजन के ऄतधकार (राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा

ऄतधतनयम के माध्यम से) का ऄंगीकरण, राष्ट्रीय स्िास््य तमशन तैयार करना अक्रद।
 िोगों को सेिाओं का समयबर्द् तितरण प्रदान करने के तिए कइ राज्यों द्वारा िोक सेिा
के ऄतधकार के ऄतधतनयमों को ऄंगीकृ त क्रकया गया है ।
 सरकारी कायािमों का सामातजक ऄंकेक्षण।

सािाजतनक सेिा तितरण में सुधार िाने में ऄतधकार अधाररत दृतष्टकोण का महत्िः

 ऄतधकारों, ईनके धारकों और िागू करने िािी एजेंतसयों की स्पष्ट पहचान से


ईत्तरदातयत्ि में सुधार अता है।
 ऄतधकारों के तिषय में श्रेष्ठतर समझ और जागरूकता फै िाने के तिए िंतचतों को ितक्षत
क्रकया जा सकता है और ऄपरातधयों पर ऄतभयोग चिाया जा सकता है।
 ऄतधकारों की प्राति और प्रितान के तिए क्षमताओं, साम्या और ऄिसंरचना के तनमााण
में सहायता तमिती है। यह नागररकों और प्रशासन के बीच सत्ता की ऄसमानता को
मान्यता देता है और नागररकों को आससे तनपटने के तिए साधन प्रदान करता है।
 कइ तहतधारकों की सक्रिय और साथाक भागीदारी के तिए सुतिधा प्रदान करता है। यह
तिकास प्रक्रिया के स्िातमत्ि की भािना पैदा करता है।
संक्षेप में, तिकास के प्रतत ऄतधकार अधाररत दृतष्टकोण स्पष्ट रूप से सममान सतहत जीिन

यापन के तिए न्यूनतम दशाओं की प्राति पर कें क्रद्रत है। आस प्रकार, यह दृतष्टकोण राज्य की
ईत्तरदेयता और कारािाइ के साथ-साथ नागररकों की भागीदारी और पारदर्तशता के तिए
अधार तैयार करता है।

5. मनरेगा को ग्रामीण तिकास का ईत्कृ ष्ट ईदाहरण माना गया है। आस संदभा में आस बात पर
चचाा कीतजए क्रक मनरेगा कायािम की ऄतभकल्पना (तडजाआन) आसे ऄन्य ग्रामीण तिकास
कायािमों की तुिना में क्रकतना ऄतधक सफि बनाती है।
दृतष्टकोण :
 भूतमका में ईन कारकों का संक्षेप में ईल्िेख कीतजए जो मनरेगा को ग्रामीण तिकास का
ईत्कृ ष्ट ईदाहरण बनाते ह।।
 मनरेगा की ऄतभकल्पना की स्पष्ट रूपरेखा प्रस्तुत कीतजए।
 मनरेगा को तनरूतपत करने के तिए आसकी कायापतर्द्त के सफि ईदाहरण प्रदान कीतजए।

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ईत्तरः
मनरेगा ने संकटकािीन तस्थततयों जैसे क्रक सूखा, फसि बबााद हो जाना एिं ग्रामीण रोजगार
प्राप्त होने की कम संभािनाओं िािे क्रदनों में, तनधानों को रोजगार प्रदान करने के स्रोत के रुप
में काया क्रकया है।
 आसने समय के साथ ग्रामीण मजदूररयों में तेजी से िृतर्द् की है , और तजन स्थानों में आसे
बेहतर तरीके से कायाातन्ित क्रकया गया है, िहााँ आसने ग्रामीण पररसमपतत्तयों जैसे क्रक
चसचाइ के तिए नहरें और सक कें तनर्तमत कर स्थानीय ऄिसंरचना का संिर्द्ान क्रकया है।

मनरेगा कायािम की ऄतभकल्पना (तडजाआन)

मनरेगा कायािम की ऄतभकल्पना तनमनतितखत को सुतनतश्चत करती है:


 ऄतधकार अधाररत, मांग प्रेररत दृतष्टकोण: काया का अकिन और संबंतधत योजना
तनमााण काया की मांग के अधार पर क्रकया जाता है। आसतिए, आस योजना के िाभार्तथयों
द्वारा यह तनधाारण करना संभि हो जाता है क्रक ईन्हें काया की अिश्यकता कब है।
 तित्तीय समािेशन: िषा 2008 से, सभी मजदूरी भुगतानों को िाभार्तथयों के ब।क या
पोस्ट ऑक्रफस खातों में ऄंतररत क्रकया गया।
 सामातजक सुरक्षा ईपाय: िषा 2008 में बनाए गए एक प्रािधान ने िाभार्तथयों को या तो
जनश्री बीमा योजना (JBY) या राष्ट्रीय स्िास््य बीमा योजना में सतममतित क्रकया
जाना संभि क्रकया।
 सूचना प्रोद्यौतगकी का ईपयोग: पहचान सुतनतश्चत करने, कायाान्ियन एिं मजदूररयों का
भुगतान e-FMS (Electronic Fund Management System) के माध्यम से क्रकया
गया।
 चिग समानता: पुरुषों और मतहिाओं दोनों को समान पाररश्रतमक प्राप्त करने का
ऄतधकार है। ऄनुमातनत रूप से एक ततहाइ िाभाथी मतहिाएाँ ह।। कायास्थि पर प्राप्त
होने िािी सुतिधाएं जैसे क्रक तशशुगृहों की व्यिस्था सभी कायास्थिों पर ईपिब्ध करानी
होती है।
 पारदर्तशता एिं जबािदेही- मनरेगा से संबंतधत सभी खाते और ररकाडों के दस्तािेजों को
सािाजतनक जांच हेतु ईपिब्ध कराया जाएगा। ठे केदारों और मशीनरी का ईपयोग
तनतश्चत सीमा तक ही क्रकया जा सकता है।
 तिके न्द्रीकृ त योजना तनमााण :
o कायों की ऄनुशंसाएाँ ग्राम सभाओं द्वारा की जाती है।
o कम से कम 50% काया तनष्पादन ग्राम पंचायतों द्वारा क्रकया जाता है।
o योजना तनमााण, तनगरानी एिं कायाान्ियन में पंचायती राज संस्थानों की प्रमुख
भूतमका।
मनरेगा की सफिता

 यद्यतप तितभन्न राज्यों में आसके क्रियान्ियन के तमतश्रत पररणाम ह। िेक्रकन ब।ककग/पोस्टि
नेटिका के ईपयोग के कारण आस कायािम को ऄभी भी देश में ऄन्य सामातजक तिकास
कायािमों की तुिना में सिाातधक सफि कायािमों में से एक माना जाता है।
 कु छ अंकक े यह संकेत करते ह। क्रक आस योजना ने ग्रामीण खाता धारकों की संख्या को
बढ़ाकर 8.6 करोक की तिशाि संख्या तक पहाँचा क्रदया है। ऐसे ब।क खातों द्वारा अरमभ
क्रकए गए आस तित्तीय समािेशन के आस पहिू ने बचतों एिं साथ ही ग्रामीण तनधानों को
बेहतर ऊण ईपिब्धता को बढ़ाया है।

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 आस कायािम से समुदायों के बीच समानता में सुधार िाने में भी सहायता तमिी है।
तनयोतजत क्रकए जाने िािे िोगों में से अश्चयाजनक रूप से 81 प्रततशत ऐसे िोग ह। जो
कच्चे घरों में तनिास करते ह।, िगभग 61 प्रततशत ऄतशतक्षत ह। और िगभग 72 प्रततशत
िोगों के घरों में तिद्युत् की ईपिब्धता नहीं ह।।
 ऐसा प्रतीत होता है क्रक मनरेगा ने मतहिाओं को भी ऄत्यतधक सहयोग क्रकया है।
निीनतम जानकारी यह संकेत करती है क्रक तिगत अठ िषों में प्रदान क्रकए गए कु ि
रोजगार में से 53 प्रततशत से ऄतधक रोजगार मतहिाओं द्वारा संपन्न क्रकए गए ह।। यह
कु छ सीमा तक ग्रामीण क्षेत्रों में मतहिाओं की सामातजक और अर्तथक तस्थतत में सुधार
करने में सफि रहा है।
 हाि ही में की गइ पहिें, जैसे क्रक अधार अधाररत ऄंतरण एिं साथ ही ब।ककग नेटिका में
सुधार (औपचाररक ब।ककग और साथ ही साथ भारतीय डाक को कोर ब।ककग समथानकारी
बनाकर) के िि कायािम की दक्षता में और ऄतधक िृतर्द् करेगा एिं ग्रामीण क्षेत्रों के
तनधानों के बीच अजीतिका में सुधार करेगा।
आस कायािम को तिश्ि ब।क द्वारा 'ग्रामीण तिकास का ईत्कृ ष्ट ईदाहरण कहा गया है। आसे
ऄथाव्िस्था को स्िचातित तस्थरता प्रदान करने िािा माना गया है और यह गरीबी के
दुष्चि (vicious circle) के तिरुर्द् एक ईपाय के रूप में काया करता है।

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