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Classroom Study Material


अथथव्यवस्था
PART-1
2019
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ववषय सूची
1. राष्ट्रीय आय लेखाांकन (National Income Accounting) ________________________________________________ 4

1.1. राष्ट्रीय आय लेखाांकन का महत्व ________________________________________________________________ 6

2. राष्ट्रीय आय की अवधारणाएँ (Concepts of National Income) __________________________________________ 6

2.1. सकल घरे लू उत्पाद (Gross Domestic Product: GDP) ____________________________________________ 6


2.1.1. साांकेवतक GDP एवां वास्तववक GDP (Nominal GDP & Real GDP) ______________________________ 8

2.2. सकल राष्ट्रीय उत्पाद (Gross National Product: GNP) ____________________________________________ 9


2.2.1. ववदेशों से प्राप्त वनवल साधन (कारक) आय (Net Factor Income from Abroad:
NFIA) _________________________________________________________________________________ 10

2.3. GDP वैविक स्तर पर सबसे स्वीकायथ सांकेतक क्यों है? _______________________________________________ 10

2.4. मूल्यह्रास (Depreciation) _________________________________________________________________ 10

2.5. वनवल घरे लू उत्पाद (Net Domestic Product: NDP) _____________________________________________ 11

2.6. वनवल राष्ट्रीय उत्पाद (Net National Product: NNP) _____________________________________________ 11

2.7. बाजार मूल्य और साधन (कारक) लागत की अवधारणा _______________________________________________ 11

2.8. राष्ट्रीय आय (National Income: NI) _________________________________________________________ 12

2.9. हस्ताांतरण भुगतान (Transfer Payments) _____________________________________________________ 13

2.10. व्यविगत आय (Personal Income: PI) ______________________________________________________ 13

2.11. व्यविगत प्रयोज्य आय (Disposable Personal Income: DPI) _____________________________________ 14

3. राष्ट्रीय आय को प्रभाववत करने वाले कारक (Factors Affecting National Income) __________________________ 14

4. वववभन्न देशों की राष्ट्रीय आयों की तुलना करना (Comparing National Income Across
Countries) _________________________________________________________________________________ 15

4.1. वववनमय दरों के प्रकार (Types of Exchange Rates) _____________________________________________ 15

5. राष्ट्रीय आय का मापन (Measurement of National Income) _________________________________________ 17

5.1. मूल्य वधथन वववध (Value Added Method) _____________________________________________________ 17

5.2. आय वववध (Income Method) ______________________________________________________________ 19

5.3. व्यय वववध (Expenditure Method) __________________________________________________________ 19

5.4. वववभन्न वववधयों का प्रयोग __________________________________________________________________ 20

5.5. GDP अवस्फीतक एवां आधार वषथ (GDP Deflator & Base Year) ____________________________________ 21

5.6. राष्ट्रीय आय के मापन में कठिनाई (भारत के ववशेष सांदभथ में) ____________________________________________ 22

6. GDP मापन में नवीनतम ववकास (Recent Development in GDP) _____________________________________ 23

6.1. सकल मूल्य वधथन (Gross Value Added) ______________________________________________________ 23


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7. GDP और अन्य सूचकाांकों से सांबवां धत वववाद ________________________________________________________ 25

7.1. आर्थथक सांवृवि बनाम आर्थथक ववकास ___________________________________________________________ 25

7.2. GDP को प्रगवत का मापन करने वाले एक पैरामीटर के रूप में मानने के ववरुि में अन्य तकथ _______________________ 26

7.3. ववकास को मापने के वलए अन्य सूचकाांक _________________________________________________________ 26


7.3.1 मानव ववकास सूचकाांक (Human Development Index: HDI) ___________________________________ 26
7.3.2. लैंवगक ववषमता सूचकाांक (Gender Inequality Index : GII) ____________________________________ 27
7.3.3. लैंवगक ववकास सूचकाांक (Gender Development Index: GDI)__________________________________ 27
7.3.4. बहुआयामी वनधथनता सूचकाांक (Multidimensional Poverty Index: MPI) __________________________ 28
7.3.5. असमानता-समायोवजत मानव ववकास सूचकाांक ________________________________________________ 28
7.3.6. ग्रीन GDP (Green GDP) _____________________________________________________________ 29
7.3.7. ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस (Gross National Happiness) _________________________________________ 29
7.3.8. मानव वनधथनता सूचकाांक (Human Poverty Index: HPI) ______________________________________ 30
7.3.9. वास्तववक प्रगवत सांकेतक (Genuine Progress Indicator) ______________________________________ 31
1. राष्ट्रीय आय ले खाां क न (National Income
Accounting)
 राष्ट्रीय आय लेखाांकन का तात्पयथ उन वववधयों या तकनीकों से है वजनका उपयोग ककसी भी
अथथव्यवस्था में समग्र रूप से आर्थथक गवतवववधयों के मापन के वलए होता है। वजस प्रकार एक
व्यवि या एक सांस्था की आय की गणना की जा सकती है, िीक उसी प्रकार एक देश की आय की
भी गणना की जा सकती है। साइमन कु जनेट्स को राष्ट्रीय आय लेखाांकन का जनक माना जाता है।
 राष्ट्रीय आय लेखाांकन के वववभन्न तरीकों को समझने से पहले हमारे वलए अथथव्यवस्था की समग्र
गवतवववधयों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है। नीचे कदया गया फ्लो चाटथ एक खुली
अथथव्यवस्था में सांसाधनों (धन/आय) के चक्रीय प्रवाह को दशाथता है:

वचत्र 1: आय या सांसाधनों का चक्रीय प्रवाह


 उत्पादन, उपभोग और वनवेश अथथव्यवस्था की महत्वपूणथ गवतवववधयाँ हैं। इन्हीं के सांचालन में
अथथव्यवस्था के वववभन्न क्षेत्रकों के बीच लेन-देन होते हैं। इन लेन-देनों में आय और व्यय के प्रवाह
का चक्रीय स्वरूप हो जाता है। यह दो वसिाांतों पर आधठरत है:
o क्रेता का व्यय ववक्रेता की आय बन जाती है और
o वस्तुएँ और सेवाएँ ववक्रेता से क्रेता की ओर प्रवावहत होती हैं। इनके वलए मौकिक भुगतान
ववपरीत कदशा में अथाथत् क्रेता से ववक्रेता की ओर प्रवावहत होता है। इस प्रकार वस्तुओं और
सेवाओं के प्रवाह (वास्तववक प्रवाह) एक कदशा में होते हैं तो दूसरी ओर मौकिक भुगतान के
रूप में प्रवाह (मौकिक प्रवाह) होते हैं। ये दोनों प्रवाह एक साथ वमलकर चक्रीय प्रवाह
कहलाते हैं।
 पठरवार क्षेत्रक (Households sector), फमथ (व्यापाठरक कां पनी) से वस्तुएँ एवां सेवाएँ खरीदता
है। वस्तुओं एवां सेवाओं की वबक्री से जो आय प्राप्त होता है, उनका प्रयोग फमथ के स्वावमयों द्वारा
मजदूरों को मजदूरी का भुगतान करने, भू-स्वामी को ककराया देने और स्वयां को लाभाांश का
ववतरण आकद करने में ककया जाता है। इस प्रकार सकल घरे लू उत्पाद (GDP) वस्तुतः वस्तुओं एवां
सेवाओं के वलए लोगों द्वारा बाजार में व्यय की गई कु ल रावश के बराबर होता है। साथ ही यह
उत्पादन के कारकों के वलए बाजार में फमों द्वारा भुगतान की गई कु ल मजदूरी, ककरायों और लाभ
के बराबर भी होती है।

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 उपयुथि फ्लो चाटथ द्वारा सामान्य अथथव्यवस्था में पठरवारों एवां फमों के मध्य हुए सभी लेनदेन का
वणथन ककया गया है। यह फ्लो चाटथ इस ववषय-वस्तु को यह मानकर सरलीकृ त करता है कक सभी
वस्तुएँ एवां सेवाएँ लोगों द्वारा खरीदी जाती हैं और लोग अपनी सांपूणथ आय का खचथ करते हैं।
 इसमें यह दशाथया गया है कक आय/धन लगातार लोगों से फमों की ओर गवतशील होता है और पुन:
लोगों के पास वापस आता है।

उत्पादन के साधन (Factors of Production)


एक उत्पादक को वस्तुओं एवां सेवाओं के उत्पादन के वलए कु छ वस्तुओं या सेवाओं की आवश्यकता होती
है, वजन्हें हम उत्पादन के साधन कहते हैं। आधुवनक उत्पादन प्रकक्रया में सामान्यतया उत्पादन के चार
साधनों- भूवम (Land), श्रम (Labour), पूँजी (Capital) तथा उद्यवमता (Entrepreneurship) को
सवम्मवलत ककया जाता है।

 धन के इस प्रवाह को GDP द्वारा मापा जाता है। ककसी अथथव्यवस्था के वलए इसकी गणना
वनम्नवलवखत दो तरीकों से की जा सकती है:
o लोगों द्वारा ककये गये कु ल व्यय को जोड़कर; या
o फमों द्वारा भुगतान की गई कु ल आय (मजदूरी, ककराया, लाभ) को जोड़कर।
 चूांकक ककसी अथथव्यवस्था में सभी व्यय वस्तुतः ककसी की आय के रूप में होते हैं, इसवलए हम ककसी
भी पिवत से GDP की गणना करें , GDP का मान समान ही प्राप्त होता है।

खुली एवां बांद अथथव्यवस्था (Open and Closed Economy)


 खुली अथथव्यवस्था से तात्पयथ ऐसी अथथव्यवस्था से है वजसके ववि के अन्य देशों से आर्थथक सांबध
ां
होते हैं। आज ववि के अवधकाांश देश खुली अथथव्यवस्थाओं के उदाहरण हैं। वजन देशों
(अथथव्यवस्थाओं) के शेष ववि से कोई आर्थथक लेन-देन नहीं होते, उन्हें हम बांद अथथव्यवस्थाएँ कहते
हैं। वतथमान समय में ववि में ऐसे ककसी देश का होना बहुत कठिन है।
 एक बांद अथथव्यवस्था के अांतगथत हम उस देश की सीमाओं के अांतगथत होने वाली आर्थथक
गवतवववधयों का ही ववश्लेषण करते हैं। ऐसी अथथव्यवस्था में आयात, वनयाथत एवां ववदेशी वनवेश
शून्य होता है।
 इसके ववपरीत खुली अथथव्यवस्था में हम एक देश के आर्थथक लेन-देन का अध्ययन दूसरे देशों के
साथ करते हैं, अथाथत् इसमें ववदेशी क्षेत्र भी जुड़ जाता है। इसमें आयात, वनयाथत, ववदेशी वनवेश
एवां वववनमय दर जैसी महत्वपूणथ अवधारणाओं का भी ववश्लेषण ककया जाता है।

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1.1. राष्ट्रीय आय ले खाां क न का महत्व

 अांतराथष्ट्रीय तुलना (International Comparison): राष्ट्रीय आय लेखाांकन के माध्यम से ककसी


देश की अथथव्यवस्था की सांवृवि दर और उस देश के ववकास का मापन सांभव होता है। इसका प्रयोग
वववभन्न देशों के लोगों के जीवन स्तर की तुलना करने के वलए ककया जा सकता है।
 व्यावसावयक वनणथय (Business Decisions): राष्ट्रीय आय लेखाांकन अथथव्यवस्था के वववभन्न
क्षेत्रकों के सापेक्ष योगदान और इन क्षेत्रकों की अभीष्ट क्षमता को दशाथता है। यह क्षमता व्यवसायी
वगथ का भववष्य में उत्पादन हेतु वववभन्न क्षेत्रों के चयन करने और योजना वनमाथण में मागथदशथन
करती है।
 नीवत वनमाथण (Policy Formulation): राष्ट्रीय आय लेखाांकन अथथव्यवस्था में आय एवां सांसाधनों
के ववतरण पर प्रकाश डालता है, वजससे सरकार को देश में समानता को बढ़ावा देने और
ववकासात्मक कायों हेतु सांसाधनों के समुवचत आवांटन में मदद वमलती है।
 नीवतगत मूल्याांकन (Policy Evaluation): राष्ट्रीय आय लेखाांकन, वववशष्ट आर्थथक उपलवधधयों
और ववफलताओं को उजागर करता है। इस प्रकार यह सरकारी नीवतयों के मूल्याांकन में लोगों की
मदद करता है।
 वार्थषक बजट (Annual Budget): राष्ट्रीय आय लेखाांकन से सरकार को अपने बजटीय नीवत को
आकार देने में मदद वमलती है। आय एवां रोजगार की अवनवितता को दूर करने के वलए सरकार
राष्ट्रीय आय लेखाांकन ववश्लेषण करती है और तत्पिात् आवश्यकतानुसार अपनी कर एवां उधार
लेने हेतु नीवत बनाती है। ककसी अथथव्यवस्था में मांदी या मुिास्फीवत की समस्या को दूर करने के
वलए सरकार घाटे या अवधशेष वाला बजट पेश करती है।
 राष्ट्रीय व्यय में सहायक (Useful in National Expenditure): राष्ट्रीय आय के आांकड़े यह स्पष्ट
करते हैं कक राष्ट्रीय व्यय को वनवेश और उपभोग में कै से ववभावजत ककया जाए। आय लेखाांकन से
समवष्ट अथथव्यस्था की कक्रयावववध को भी समझने में मदद वमलती हैं।
2. राष्ट्रीय आय की अवधारणाएँ (Concepts of National
Income)
समय के साथ-साथ राष्ट्रीय आय की गणना की वववध में कई सुधार हुए हैं। ककसी देश की आय की गणना
हेतु अथथशावियों द्वारा चार प्रकार की अवधारणाओं - GDP, GNP, NDP और NNP का उपयोग
ककया जाता है।

2.1. सकल घरे लू उत्पाद (Gross Domestic Product: GDP)

 ककसी अथथव्यवस्था में एक वनवित समयाववध (एक वषथ या वतमाही या अधथ-वार्थषकी) में उत्पाकदत
सभी अांवतम वस्तुओं एवां सेवाओं के कु ल बाजार मूल्य को सकल घरे लू उत्पाद कहते हैं। भारत के
वलए यह समयाववध 1 अप्रैल से 31 माचथ तक है।
 अत: यह ककसी देश कीघरे लू सीमा के अांतगथत वनवावसयों या गैर-वनवावसयों या फमों द्वारा एक
ववत्तीय वषथ में उत्पाकदत समस्त अांवतम वस्तुओं एवां सेवाओं का मौकिक मूल्य होता है। सरल शधदों
में कहें तो यह ककसी व्यवि या फमथ की राष्ट्रीयता पर ववचार ककए वबना देश की घेरेलू सीमा के
भीतर उत्पाकदत अांवतम वस्तुओं एवां सेवाओं के मूल्यों का मापन करता है।
 उदाहरण के वलए, एक जापानी कां पनी द्वारा भारत में वववनर्थमत कारों को भारत के GDP में
सवम्मवलत ककया जाएगा जबकक टाटा मोटसथ द्वारा विटेन में वववनर्थमत जगुआर कारों को भारत के
GDP में सवम्मवलत नहीं ककया जाएगा।
 GDP के वल वस्तुओं एवां सेवाओं के अांवतम उत्पादन को ही सांदर्थभत करता है। इसमें के वल पूणथ या

अांवतम वस्तुओं को इसवलए सवम्मवलत करते हैं ताकक (वस्तुओं एवां सेवाओं से सांबांवधत) कच्चे माल,
मध्यवती उत्पाद और अांवतम उत्पादों की दोहरी या वतहरी गणना से बचा जा सके ।

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आर्थथक या घरे लू सीमा (Economic or Domestic Territory)
वसस्टम ऑफ नेशनल एकाउन्ट्स में घरे लू सीमा को आर्थथक सीमा के रूप में पठरभावषत ककया गया है।
राष्ट्रीय आय लेखाांकन में इसका अलग अथथ तथा महत्व है। घरे लू या आर्थथक सीमा वैसे देश की भौगावलक
सीमा से सांबांवधत होती है तथा आर्थथक सीमा में भौगोवलक सीमा को सवम्मवलत ककया जाता है पर
आर्थथक सीमा तथा भौगोवलक सीमा वबल्कु ल एक ही नहीं होगी। आर्थथक सीमा के अांतगथत वनम्नाांककत को
सवम्मवलत ककया जाता है-
 वायु क्षेत्र (Air-Space) तथा क्षेत्रीय जल क्षेत्र (territorial water) वजस पर मत्स्यन, ईंधन या
खवनज दोहन का अवधकार राष्ट्र का हो।
 शेष ववि में सीमान्तगथत ववदेशी अांतःक्षेत्र (territorial enclaves) वजसके अन्तगथत दूतावास,
वमवलट्री बेस, प्रवजन कायाथलय भी सवम्मवलत है।
 मुि क्षेत्र (free zones), कस्टम के वनयांत्रण में आने वाले समुितट के उद्यम, पर इसके अांतगथत देश
की सीमा में दूसरी सरकारों या देशों के ववदेशी अांतः क्षेत्र नहीं आयेगें वजनमें उनके दूतावास हैं या
जहाँ वववभन्न अांतराथष्ट्रीय सांस्थायें या उनके कायाथलय या अन्य देशों के वमवलट्री बेस हैं।
इस प्रकार जहाँ तक आर्थथक सीमा का प्रश्न है इसमें देश की भौगोवलक सीमा का वह भाग नहीं सवम्मवलत
होगा जो दूसरे देशों को ववदेशी अांतः क्षेत्र के रूप में दूतावास या अन्य कायाथलयों के वलए कदए गए हैं या
अांतराथष्ट्रीय सांगिनों को कदए गए हैं या अन्य वजनका उल्लेख िीक ऊपर ककया गया है। इस दृवष्ट से आर्थथक
सीमा भौगोवलक सीमा से छोटी होगी पर इसमें ववि के अन्य देशों के भी ऐसे वहस्से जो इस देश को
वमवलट्री बेस, दूतावासों के रूप में ववदेशी अांतः क्षेत्र के रूप में प्राप्त हुए होंगे उन्हें उि देश की आर्थथक
सीमा (घरे लू सीमा) में सवम्मवलत ककया जायेगा, यद्यवप वह दूर-दराज तक भी ककसी रूप में उस देश की
भौगोवलक सीमा का भाग नहीं हो सकता। इस दृवष्ट से कु ल आर्थथक सीमा भौगोवलक सीमा से बड़ी होगी।
इस प्रकार आर्थथक या घरे लू सीमा में वनम्नवलवखत सवम्मवलत होते हैं:
 देश की भौगोवलक, राजनैवतक एवां सामुकिक सीमा।
 मछली पकड़ने की नौकाएँ, दो या दो से अवधक देशों के मध्य चलने वाले जहाज, वायुयान आकद।
 पेट्रोवलयम एवां गैस अन्वेषण के वलए समुि में वस्थत स्थान।
 देश के ववदेशों में दूतावास, वावणवज्यक दूतावास एवां सैवनक अड्डें।

 उदाहरण के वलए, ऑटोमोबाइल के मूल्य में पहले से ही उसके वववनमाथण हेतु उपयोग में लाए जाने
वाले इस्पात, काांच, रबड़ और अन्य घटकों के मूल्य सवम्मवलत होते हैं। इन्हें नीचे सांवक्षप्त में
समझाया गया है:
o अांवतम उत्पाद (Final Output): इसका अथथ है ‘अांवतम उपभोग के वलए क्रय की गयी वस्तुएँ
एवां सेवाएँ।
o मध्यवती वस्तुएँ अथवा उत्पादन के कारक या कच्चा माल (Intermediate
Goods/Factors of Production/Raw Materials): ककसी अन्य उत्पाद के उत्पादन में
इनपुट या आगत या कच्चे माल के रूप में प्रयुि उत्पाद को मध्यवती वस्तुओं की श्रेणी में रखा
जाता है।
 दोहरी गणना (Double counting) से बचाव के दो तरीके हैं:
o के वल अांवतम उत्पाद के मूल्य की गणना करना, या
o ककसी वस्तु के उत्पादन के आरां वभक चरण से लेकर अांवतम चरण तक हुए मूल्य वधथन की
गणना करना। उसके बाद उि वस्तु के ववक्रय मूल्य में से मध्यवती वस्तुओं के मूल्य को घटा
देना।

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 कोई वस्तु अांवतम है या माध्यवमक, यह इस बात पर वनभथर करे गा कक वह वस्तु उत्पादन प्रकक्रया में
प्रयोग में आ रही या उपभोग हेतु प्रयोग आ रही है। एक ही वस्तु ककसी वस्थवत में अांवतम होगी तो
दूसरी वस्थवत में माध्यवमक हो सकती है।
 जैसे बेकरी में िेड बनाने में प्रयोग में आने वाला आटा माध्यवमक वस्तु है, जबकक घर में रोटी
बनाने में प्रयोग में आने वाला आटा उपभोग वस्तु (अन्त्य) है।

2.1.1. साां के वतक GDP एवां वास्तववक GDP (Nominal GDP & Real GDP)

 साांकेवतक (Nominal) GDP: जब वस्तुओं एवां सेवाओं के मूल्य की गणना चालू वषथ की कीमतों

पर (current year prices) की जाती है तो वह चालू मूल्य पर सकल घरे लू उत्पाद अथाथत्

साांकेवतक GDP कहलाता है।

 वास्तववक (Real) GDP: जब वस्तुओं एवां सेवाओं के मूल्य की गणना आधार वषथ (base year)

की कीमतों पर की जाती है, तो उसे वस्थर मूल्य पर सकल घरे लू उत्पाद अथवा वास्तववक GDP

कहते हैं। अथाथत् वास्तववक GDP द्वारा वतथमान वषथ में उत्पाकदत वस्तुओं एवां सेवाओं के मूल्यों की
गणना आधार वषथ के कीमतों पर की जाती है। उल्लेखनीय है कक आधार वषथ पर मूल्य वस्थर होते
हैं।
 वास्तववक GDP वस्तुतः GDP की गणना करने का एक बेहतर तरीका है क्योंकक एक ववशेष वषथ

में अथथव्यवस्था में मुिास्फीवत की उच्च दर के कारण GDP में अचानक उछाल देखा जा सकता है।

इसवलए, वास्तववक GDP हमें मुिास्फीवत और मुिा की क्रय शवि में पठरवतथन के बावजूद,
उत्पादन में हुई वास्तववक वृवि या कमी को वनधाथठरत करने में मदद करता है।
 इसे बेहतर तरीके से समझने के वलए, आप एक ऐसी अथथव्यवस्था पर ववचार कीवजए जो के वल

सेब का उत्पादन करती है। मान लीवजए कक वषथ 2010 के दौरान एक अथथव्यवस्था में 100 सेब

उत्पाकदत हुए थे और प्रत्येक सेब की लागत 1 डॉलर थी। इस प्रकार वषथ 2010 में उि

अथथव्यवस्था का साांकेवतक GDP 100 डॉलर (1 डॉलर को 100 से गुणा करना) होगी। अब मान

लीवजए की 5 वषों के बाद, सेब का उत्पादन एक वषथ में 50 सेब तक घट गया। हालाांकक, कीमतें 3

डॉलर तक बढ़ गईं। अब वषथ 2015 के वलए साांकेवतक GDP 150 डॉलर (3 डॉलर को 50 से गुणा

करने पर प्राप्त) होगा। इस प्रकार हमें यह प्रतीत होता है कक 2010 की तुलना में 2015 में GDP

में वृवि हुई है, परां तु वास्तव में 2015 के दौरान अथथव्यवस्था में उत्पादन में कमी आई है।

 अब यकद वषथ 2010 को आधार वषथ के रूप में मान वलया जाए तो, वषथ 2010 के वलए वास्तववक

GDP 100 डॉलर हो जाएगी जबकक वषथ 2015 के वलए यह 2010 की वस्थर कीमतों पर (आधार

वषथ की कीमत पर) 50 डॉलर होगी। इस प्रकार स्पष्ट है कक यहाँ वास्तववक GDP में वगरावट

अथथव्यवस्था में उत्पादन में वगरावट के अनुपात में है। अतः वास्तववक GDP ककसी भी

अथथव्यवस्था की साांकेवतक GDP की तुलना में एक बेहतर तस्वीर प्रस्तुत करता है। (आधार वषथ
को आगे ववस्तार से समझाया गया है।)

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2.2. सकल राष्ट्रीय उत्पाद (Gross National Product: GNP)

 GNP और GDP की अवधारणायें परस्पर घवनष्ट रूप से सांबांवधत हैं। जैसा कक ऊपर उल्लेख ककया

गया है कक GDP की अवधारणा का अथथ एक वनवित समयाववध में ककसी देश की घरे लू सीमा
वनवावसयों और गैर-वनवावसयों दोनों द्वारा उत्पाकदत अांवतम वस्तुओं एवां सेवाओं के मूल्यों से है।
इस प्रकार GDP में ‘उत्पादन ककसके द्वारा ककया गया है’ के स्थान पर ‘उत्पादन कहाँ पर हुआ है’
पर ध्यान कदया जाता है।
 दूसरी ओर, घरे लू सीमा के भीतर या बाहर एक देश के वनवावसयों द्वारा उत्पाकदत सभी अांवतम

वस्तुओं एवां सेवाओं के कु ल मूल्य को GNP कहते हैं। इस प्रकार जब भारत के GNP की गणना की
जाती है तो इसके अांतगथत भारत के भीतर तथा ववि के अन्य देशों में भारतीय नागठरकों द्वारा
उत्पाकदत सभी अांवतम वस्तुओं एवां सेवाओं के कु ल मूल्यों की भी गणना की जाती है।
 आइए एक उदाहरण के माध्यम से इसे सरल तरीके से समझते हैं; जैस-े माइक्रोसॉफ्ट USA की एक

फमथ है। जब यह भारत में कोई कां पनी खोलती है, तो उसके उत्पादन का मूल्य भारत के GDP में

सवम्मवलत ककया जाएगा लेककन भारत की GNP की गणना करते समय इसे सवम्मवलत नहीं ककया

जाएगा। इसी तरह जब इांफोवसस या TCS जैसी भारतीय कां पवनयाँ अमेठरका में अपनी सेवाएँ

उपलधध करवाती हैं, तो इन सेवाओं का मूल्य भारत के GDP में सवम्मवलत नहीं ककया जाता है,

लेककन भारत के GNP की गणना करते समय उन्हें सवम्मवलत ककया जाता है। इस प्रकार GDP

'जहाँ उत्पादन होता है' उससे सांबांवधत है। जबकक दूसरी ओर, GNP 'जो उत्पादन करते हैं' से
सांबांवधत है।

GNP = GDP + ववदेश से वनवल साधन आय (Net Factor Income from Abroad : NFIA)

 यकद ककसी अथथव्यवस्था में FDI का अांतप्रथवाह काफी अवधक है तथा बवहप्रथवाह अत्यल्प है तो ऐसी

पठरवस्थवत में सामान्यतया उि देश की GDP उसके GNP की तुलना में अवधक होगी। वहीं दूसरी

ओर, यकद ककसी देश के नागठरक अत्यवधक सांख्या में ववदेश जाते हैं एवां वहाँ आर्थथक गवतवववधयों

में सांलग्न होकर अपने गृह देश में बहुत अवधक पैसा भेजते हैं, जबकक उस देश में ववदेशी नागठरकों
की आर्थथक गवतवववधयाँ न्यून हैं (अथाथत् ववदेशी नागठरक यहाँ से अपने गृह देश में कम पैसा भेजते
हैं) तो ऐसी पठरवस्थवतयों में उि देश की GNP उसके GDP से अवधक होगी। भारत की बात करें

तो इसकी GNP इसके GDP की तुलना में कम है क्योंकक भारत में ववदेशों से प्राप्त वनवल आय
सदैव नकारात्मक रही है।
 यद्यवप GDP का उपयोग ककसी राष्ट्र की अथथव्यवस्था की वस्थवत को जानने के वलए ककया जाता है,
ककतु कु छ अथथशािी इसे एक राष्ट्र की अथथव्यवस्था की वास्तववक वस्थवत को प्रवतबबवबत करने
वाला नही मानते हैं। चूांकक GDP की गणना में ववदेशी कां पवनयों द्वारा ककसी देश में अर्थजत लाभ
को भी सवम्मवलत ककया जाता है और ये लाभ इन ववदेशी वनवेशकों द्वारा अपने गृह देश (या अन्य
देश में भी) में पुन: प्रेवषत कर कदए जाते हैं। अतः ऐसी वस्थवत में यकद देश के बाहर भेजा जाने
वाला उि लाभ ककसी देश के नागठरकों द्वारा ववदेशों में अर्थजत आय एवां ववदेशी पठरसांपवत्तयों से
हुए लाभ की तुलना में बहुत अवधक हैं, तो वनवित ही उस देश की GNP उसके GDP की तुलना
में अत्यांत कम होगी।

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2.2.1. ववदे शों से प्राप्त वनवल साधन (कारक) आय ( Net Factor Income from

Abroad: NFIA)

 ववदेश से प्राप्त वनवल साधन आय (NFIA) वस्तुतः एक देश के नागठरकों और कां पवनयों द्वारा
ववदेशों से प्राप्त कु ल आय और उस देश में ववदेशी नागठरकों और ववदेशी कां पवनयों द्वारा अर्थजत कु ल
रावश के मध्य का अांतर है।

सांक्षप
े में, NFIA = GNP – GDP

हालाांकक वतथमान समय में अवधकाांश देशों की NFIA बहुत ही कम है क्योंकक नागठरकों द्वारा सृवजत
(ववदेशों से) साधन आय और ववदेवशयों को कदए जाने वाले भुगतान कमोबेश एक-दूसरे को प्रवतसांतुवलत
कर देते हैं।

2.3. GDP वै विक स्तर पर सबसे स्वीकायथ सां के तक क्यों है ?

 GDP सांवृवि दर (आर्थथक सांवृवि का मापक) वस्तुतः ककसी राष्ट्र के कल्याणकारी गवतवववधयों हेतु
एक प्रमुख सांकेतक होती है। साथ ही यह 'ववकास' के कई अन्य मापकों, जैस-े साक्षरता, स्वास््य
सुववधाएँ आकद सांकेतकों से भी सांबांवधत होता है।
 वतथमान में यह स्पष्टतया पठरभावषत है और इसकी गणना करना अपेक्षाकृ त सरल है।
 चूांकक यह एक मौकिक / गवणतीय / लेखा गणना है और इसकी एक स्थावपत पिवत भी ववद्यमान है,
अतः यह वस्तुवनष्ठ है {इसके ववपरीत “खुशहाली” (happiness) और “राजनीवतक स्वतांत्रता”
(political freedom) जैसे सूचक व्यविवनष्ठ हैं, वजन्हें मापना कठिन है)।
 GDP का व्यापक रूप से उपयोग ककया जाता है और लगभग सभी देश अपने राष्ट्रीय आय की
गणना में इसी पिवत का उपयोग करते हैं। अतः इसके माध्यम से वववभन्न देशों के मध्य तुलना
करने में भी सुववधा होती है।
 अपने वृहद इवतहास और मानक पिवत के कारण GDP को नीवत वनमाथताओं द्वारा समझना
अपेक्षाकृ त आसान है।

2.4. मू ल्यह्रास (Depreciation)

 उत्पादन प्रकक्रया में दूसरी वस्तुओं के उत्पादन में प्रयुि सभी मशीनों और उपकरणों में कु छ टू ट-फू ट
होती रहती हैं। आर्थथक बोल-चाल की भाषा में, ऐसी पूज
ां ीगत वस्तुओं की वह हावन वजसका प्रत्येक
अथथव्यवस्था को टू ट-फू ट (wear and tear) के रूप में भुगतना पड़ता है, मूल्यह्रास कहलाता है।
 अथथव्यवस्था में उत्पाकदत पूज
ां ीगत वस्तुओं के एक भाग को इस टू ट -फू ट के बदले में रखा जाना
चावहए, अन्यथा एक राष्ट्र की उत्पादक क्षमता कम हो जाएगी। इस प्रकार रखे गए पूज
ां ी को
कै वपटल कां जम्पशन अलाउां स (Capital Consumption Allowance) कहते हैं।
 इस प्रकार ऐसे पठरदृश्य में ककसी फमथ में हुए वनवेश व्यय (Investment expenditure) को दो
भागों में रखा जाता है। इसके एक भाग का उत्पादन के वलए नई पूांजीगत वस्तुओं और मशीनरी को
खरीदने में उपयोग ककया जाता है। इसे वनवल वनवेश (Net Investment) कहा जाता है, क्योंकक
इससे फमों की उत्पादन क्षमता का ववस्तार ककया जा सकता है।
 इसके दूसरे भाग को उपयोग में लाई गई पूज ां ीगत वस्तुओं को प्रवतस्थावपत करने या मौजूदा
पूांजीगत वस्तुओं के रखरखाव के वलए व्यय ककया जाता है। इस हेतु हुए व्यय को मूल्यह्रास व्यय
(Depreciation Expenditure) कहा जाता है।
 ककसी फमथ द्वारा इन दोनों रावशयों के रूप में ककए गए वनवेश को सकल वनवेश (Gross
Investment) कहते हैं।

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सकल वनवेश = वनवल वनवेश + मूल्यह्रास
(Gross Investment = Net Investment + Depreciation)
या
वनवल वनवेश = सकल वनवेश - मूल्यह्रास
(Net Investment = Gross Investment – Depreciation)

 यकद वनवल वनवेश सकारात्मक है तो यह राष्ट्र की उत्पादन क्षमता और आउटपुट को बढ़ाता है। इसे
ककसी छोटे फमथ या एक सांयांत्र के स्तर पर आसानी से सत्यावपत ककया जा सकता है। अथाथत् एक
फमथ के वलए ककसी भी वषथ में स्थावपत नई मशीनों की सांख्या उन मशीनों की तुलना में अवधक
होनी चावहए जो उस वषथ के दौरान उपयोग में लाई गई हैं।
 सामान्यतया सरकार ही ककसी अथथव्यवस्था में मूल्यह्रास की दर तय करती है और इसकी घोषणा
करती है कक ककस सांपवत्त में ककतना मूल्यह्रास होगा तथा इसकी एक सूची भी प्रकावशत की जाती
है। अथथव्यवस्था के वववभन्न क्षेत्रों द्वारा इसका उपयोग वभन्न-वभन्न प्रकार की पठरसांपवत्तयों में
मूल्यह्रास के वास्तववक स्तर को वनधाथठरत करने के वलए ककया जाता है।

2.5. वनवल घरे लू उत्पाद (Net Domestic Product: NDP)

 'मूल्यह्रास' की रावश को समायोवजत करने के बाद जब GDP की गणना की जाती है तो ऐसे

GDP को ही NDP कहते हैं। वस्तुतः NDP, वनवल GDP ही है, (अथाथत् GDP -

मूल्यह्रास)। साधारण शधदों में, वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के दौरान पठरसांपवत्तयों में

होने वाले 'टू ट-फू ट' (मूल्यह्रास) की कु ल रावश को GDP में से घटाने पर NDP प्राप्त होता हैं।

NDP= GDP- मूल्यह्रास (NDP = GDP – Depreciation)

 ककसी अथथव्यवस्था की NDP हमेशा उसके GDP की तुलना में कम होती है, क्योंकक मूल्यह्रास को
कभी भी शून्य तक नहीं लाया जा सकता है तथा यह हमेशा धनात्मक रहता है।

2.6. वनवल राष्ट्रीय उत्पाद (Net National Product: NNP)

 सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) में से मूल्यह्रास को घटाकर NNP प्राप्त ककया जाता है।

NNP = GNP - मूल्यह्रास (NNP = GNP - Depreciation)

 वववभन्न अथथव्यवस्थाओं की तुलना करने के वलए NDP और NNP की अवधारणाओं का उपयोग

नहीं ककया जाता है, क्योंकक मूल्यह्रास की गणना की वववध अलग-अलग राष्ट्रों में वभन्न-वभन्न तरीके
से होती है।

2.7. बाजार मू ल्य और साधन (कारक) लागत की अवधारणा

(The Concept of Market Price and Factor Cost)


 बाजार मूल्य वस्तुतः वस्तुओं एवां सेवाओं के वास्तववक लेनदेन के मूल्य को सांदर्थभत करता है। इसमें
अप्रत्यक्ष कर तथा सवधसडी सवम्मवलत होते हैं। अप्रत्यक्ष कर वस्तु के मूल्य को बढ़ा देते हैं और
सवधसडी इसको कम करती है।

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 साधन लागत वस्तुतः वस्तुओं एवां सेवाओं के उत्पादन में प्रयुि या उपभोग की गयी उत्पादन के
सभी कारकों की लागत को सांदर्थभत करता है। इसमें भूवम के वलए ककराया, पूांजी के वलए धयाज,

श्रम के वलए मजदूरी और उद्यवमता (entrepreneurship) के वलए लाभ सवम्मवलत होते हैं। यह
वास्तववक उत्पादन लागत है वजस पर ककसी फमथ द्वारा वस्तुओं एवां सेवाओं का उत्पादन ककया
जाता है। साधन लागत पर गणना करते समय अप्रत्यक्ष करों को घटाया जाता है तथा सरकार
द्वारा दी गयी सवधसडी को जोड़ा जाता है।

दूसरे शधदों में,

साधन लागत (FC) = बाजार मूल्य - वनवल अप्रत्यक्ष कर

{Factor Cost (FC) = Market Price – Net Indirect Taxes}

जहाँ,

वनवल अप्रत्यक्ष कर (NIT) = अप्रत्यक्ष कर - सवधसडी

{Net Indirect Taxes (NIT) = Indirect Taxes – Subsidies}

इसवलए,
साधन लागत = बाजार मूल्य - अप्रत्यक्ष कर + सवधसडी
 इस अवधारणा का उपयोग करके , कारक या साधन लागत पर GDP की गणना बाजार मूल्य पर

GDP में से वनवल अप्रत्यक्ष कर को घटाकर भी की जा सकती है।

साधन लागत पर GDP = बाजार मूल्य पर GDP - वनवल अप्रत्यक्ष कर


या
साधन लागत पर GDP = बाजार मूल्य पर GDP - अप्रत्यक्ष कर + सवधसडी
इसी तरह
साधन लागत पर GNP = बाजार मूल्य पर GNP - वनवल अप्रत्यक्ष कर

साधन लागत पर NDP = बाजार मूल्य पर NDP - वनवल अप्रत्यक्ष कर

साधन लागत पर NNP = बाजार मूल्य पर NNP- वनवल अप्रत्यक्ष कर

2.8. राष्ट्रीय आय (National Income: NI)

 राष्ट्रीय आय वस्तुतः (एक लेखा वषथ की अववध के दौरान) एक देश के वनवावसयों द्वारा अपने गृह
देश या ववदेशों में अपनी भूवम, श्रम, पूांजी और उद्यमी प्रवतभा द्वारा अर्थजत कारक/साधन आय का

कु ल योग है। यह साधन लागत पर वनवल राष्ट्रीय उत्पाद (NNP) के बराबर होता है। इसे बाजार

मूल्य पर NNP में से वनवल अप्रत्यक्ष कर को घटाकर (जैसा कक ऊपर बताया गया है) प्राप्त ककया
जाता है।

साधन लागत पर राष्ट्रीय आय = बाजार मूल्य पर NNP - अप्रत्यक्ष कर + सवधसडी

{National Income at Factor Cost = NNP at Market Price – Indirect Taxes +

Subsidies}

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राष्ट्रीय आय के रूप में साधन लागत पर NNP को अपनाये जाने के वनम्नवलवखत कारण हैं:

 NNP देश के सभी वनवावसयों द्वारा अर्थजत आय को दशाथता है। यह सही भी है, क्योंकक इसमें

ववदेवशयों द्वारा अर्थजत आय को भारत की राष्ट्रीय आय में शावमल नहीं ककया जाता है। इस प्रकार
NNP को NDP से अवधक वरीयता प्रदान की जाती है।

 साधन लागत का प्रयोग इसवलए ककया जाता है क्योंकक वनवल अप्रत्यक्ष कर, जैस-े वबक्री कर,

उत्पाद शुल्क आकद उत्पादन के साधनों/कारकों (factors of production) के वलए ककए गए

भुगतान नहीं है। अथाथत,् उत्पादन के कारक (factor) को ही इसमें शावमल ककया जा सकता है।

 वववभन्न देशों के करों में समानता नहीं है।


 भारत जैसे ववकासशील देशों में प्राय: वस्तुएँ कीमतों के साथ मुकित नहीं की जाती हैं।

2.9. हस्ताां त रण भु ग तान (Transfer Payments)

 हस्ताांतरण भुगतान का तात्पयथ सरकार द्वारा ऐसे व्यवियों को ककए गए भुगतानों से है, वजसके

बदले में इन व्यवियों द्वारा कोई आर्थथक गवतवववध या सेवा प्रदान नहीं की जाती है। वृिावस्था

पेंशन, छात्रवृवत्त आकद हस्ताांतरण भुगतान के कु छ उदाहरण हैं।

2.10. व्यविगत आय (Personal Income: PI)

 व्यविगत आय, सभी व्यवियों या पठरवारों द्वारा एक वषथ में अर्थजत कु ल आय होती है। इसमें

LPG सवधसडी जैसे हस्ताांतरण भुगतान भी शावमल हैं। पठरवारों द्वारा कल्याणकारी भुगतान प्राप्त

ककए जाते हैं, परन्तु ये भुगतान राष्टीय आय के घटक नहीं होते हैं क्योंकक ये हस्ताांतरण भुगतान

होते हैं।
 इसी प्रकार, राष्ट्रीय आय लेखाांकन में कु छ ऐसी आय शावमल कर ली जाती हैं जो व्यवियों

(individuals) की व्यविगत आय होती हैं परन्तु जो व्यवियों को वास्तव में प्राप्त नहीं होती हैं,

जैस-े अववतठरत लाभ, सामावजक सुरक्षा हेतु कमथचारी का योगदान, कॉपोरे ट इन्कम टैक्स आय

(corporate income taxes) आकद। इन्हें राष्ट्रीय आय में शावमल ककया जाता है परां तु व्यवियों

द्वारा इन्हें प्राप्त नहीं ककया जाता है। इसवलए व्यविगत आय का अनुमान लगाने के वलए इनको
राष्ट्रीय आय में से घटाया जाता है। इस प्रकार व्यविगत आय है:

व्यविगत आय = राष्ट्रीय आय + हस्ताांतरण भुगतान - कॉरपोरे ट प्रवतधाठरत आय, आयकर, सामावजक

सुरक्षा कर
{PI = NI + transfer payments - Corporate retained earnings, income taxes, social

security taxes}

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2.11. व्यविगत प्रयोज्य आय (Disposable Personal Income: DPI)

 व्यविगत प्रयोज्य (व्यय योग्य) आय से आशय ककसी व्यवि के पास उपलधध वास्तववक व्यय योग्य
रावश से है। इसका अथथ व्यविगत रूप से भुगतान ककए गए करों, जैस-े आय कर, सांपवत्त कर,
प्रोफे शनल टैक्स आकद के भुगतान के बाद व्यवि के पास बची हुई रावश से है।

इस प्रकार,
व्यविगत प्रयोज्य आय = व्यविगत आय - व्यविगत कर {DPI = PI - Personal Taxes}

 यह अवधारणा व्यवियों के व्यय और बचत व्यवहार को जानने और समझने के वलए बहुत ही


उपयोगी है। यह वह रावश है, वजसको खचथ ककया या बचाया जा सकता है।

प्रयोज्य आय = उपभोग + बचत (Disposable Income = Consumption + Savings)

वचत्र: 2 राष्ट्रीय आय से सांबवां धत वववभन्न अवधारणाएां

अभी तक हमनें राष्ट्रीय आय के वनम्नवलवखत मापकों की चचाथ की हैं:


 राष्ट्रीय आय = साधन लागत पर NNP

 साधन लागत पर NNP = बाजार मूल्य पर NNP – वनवल अप्रत्यक्ष कर


 साधन लागत पर NDP = बाज़ार मूल्य पर NDP – वनवल अप्रत्यक्ष कर
 वनवल अप्रत्यक्ष कर (NIT) = अप्रत्यक्ष कर – सवधसडी

 NNP = GNP – मूल्यह्रास


 NDP = GDP – मूल्यह्रास
 GNP = GDP + ववदेशों से प्राप्त वनवल साधन आय

3. राष्ट्रीय आय को प्रभाववत करने वाले कारक (Factors


Affecting National Income)
कई ऐसे कारक हैं जो ककसी देश की राष्ट्रीय आय को प्रभाववत करते हैं। उनमें से कु छ वनम्नवलवखत हैं:
 उत्पादन के कारक (Factors of Production): सामान्यतया जब सांसाधन अवधक कु शल और

समृि होंगे तो वनिय ही राष्ट्रीय आय या GNP का स्तर उच्चतर होगा।

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 भूवम (Land): भारी उद्योगों के वलए कोयला, लौह और लकड़ी जैसे सांसाधनों की उपलधधता एवां
उन तक पहुँच आवश्यक हैं। दूसरे शधदों में, इन प्राकृ वतक सांसाधनों की भौगोवलक - GNP के स्तर
को प्रभाववत करती है।
 पूज
ां ी (Capital): पूांजी आम तौर पर वनवेश द्वारा वनधाथठरत होती है। यह अलग बात है कक वनवेश

अन्य कारकों पर वनभथर करता है, जैस-े लाभप्रदता (profitability), राजनीवतक वस्थरता आकद।
 श्रम और उद्यवमता (Labour and Entrepreneur): मानव सांसाधन की सांख्या से अवधक

महत्वपूणथ मानव सांसाधन की गुणवत्ता या उत्पादकता है। श्रम शवि, वनयोजन और वशक्षा
अथथव्यवस्था की उत्पादकता और उत्पादन क्षमता को प्रभाववत करती हैं।
 प्रौद्योवगकी (Technology): अल्प प्राकृ वतक सांसाधनों वाले देशों के वलए यह कारक अवधक
महत्वपूणथ है। प्रौद्योवगकी के क्षेत्र में हुए या होने वाले ववकास और नवाचार के स्तर से राष्ट्रीय आय
का स्तर प्रभाववत होता है।
 सरकार (Government): सरकार वनवेश हेतु अनुकूल कारोबारी पठरवेश प्रदान करने में मदद कर

सकती है। यह कानून-व्यवस्था, वववनयमन आकद उपलधध कराती है।

 राजनीवतक वस्थरता (Political Stability): एक वस्थर अथथव्यवस्था और राजनीवतक व्यवस्था

सांसाधनों के उवचत आवांटन में मदद करती है। युि, हमलों और सामावजक असांतल
ु न से वनवेश और
व्यावसावयक गवतवववधयाँ हतोत्सावहत होती हैं।

4. वववभन्न दे शों की राष्ट्रीय आयों की तु ल ना करना


(Comparing National Income Across Countries)
 दो वववभन्न मुिाओं वाले देशों के बीच GDP की तुलना करने के वलए उनके GDP के आांकड़ों को

पहले एक उभयवनष्ठ मुिा (Common Currency) में पठरवर्थतत ककया जाता है। इसके वलए
वववनमय दरों का उपयोग करके मुिा को (उभयवनष्ठ मुिा में) रूपाांतठरत ककया जाता है। यह
वववनमय दर ववदेशी मुिाओं के सांबांध में राष्ट्रीय मुिा के मूल्य को व्यि करते हैं। उदाहरण के वलए,

यकद एक डॉलर का वववनमय दर 60 रूपया है तो 120 ठट्रवलयन रूपये के भारतीय GDP का मूल्य
लगभग 2 ठट्रवलयन डॉलर होगा।

4.1. वववनमय दरों के प्रकार (Types of Exchange Rates)

अथथशािी दो प्रकार के वववनमय दरों का उल्लेख करते हैं: साांकेवतक वववनमय दर (Nominal

Exchange Rate) और वास्तववक वववनमय दर (Real Exchange Rate)। इन दोनों का वववरण


नीचे कदया गया है:
 साांकेवतक वववनमय दर वस्तुतः दो देशों की मुिाओं का सापेक्ष मूल्य होता है। उदाहरण के वलए,

यकद US डॉलर और भारतीय रुपये के बीच वववनमय दर 60 रु. प्रवत डॉलर है, तो हम ववि

बाजार में 60 रु. के बदले एक डॉलर के बराबर ववदेशी मुिा का आदान-प्रदान कर सकते हैं। जब

लोग दो देशों के बीच ‘वववनमय दर’ का सांदभथ देते हैं, तो उनका अथथ आमतौर पर साांकेवतक
वववनमय दर से होता है।

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o साांकेवतक वववनमय दर ववदेशी मुिा बाजार (एक प्रकार का मौकिक ववत्तीय बाजार) द्वारा

वनधाथठरत होती है, जो स्टॉक एक्सचेंज माके ट के समान होती है। चालू कीमतों पर देशी मुिा
के इकाई मात्रा के बदले प्राप्य ककसी एक देश की ववदेशी मुिा की मात्रा को साांकेवतक
वववनमय दर कहते हैं।
 वास्तववक वववनमय दर वस्तुतः दो देशों की वस्तुओं का सापेक्ष मूल्य होता है। यह वववनमय दर उस
दर को प्रदर्थशत करती है वजस पर हम एक देश की वस्तुओं का दूसरे देश की वस्तुओं के वलए
व्यापार कर सकते हैं। वास्तववक वववनमय दर को कभी-कभी व्यापार की शतें (Terms of

Trade) भी कहा जाता है।

o वस्थर कीमतों पर देशी मुिा के इकाई मात्रा के बदले प्राप्य ककसी एक देश की ववदेशी मुिा की
मात्रा को वास्तववक वववनमय दर कहते हैं।
 अब तक हमने वद्वपक्षीय वववनमय दरों पर चचाथ की है जो कक एक मुिा को दूसरी मुिा में पठरवर्थतत
करने की सुववधा प्रदान करते हैं। इसके अवतठरि एक अन्य अवधारणा प्रभावी वववनमय दर की भी
है जो अन्य ववववध मुिा समूह के साथ ककसी मुिा की सापेक्ष वस्थवत का वणथन करता है।
 इस प्रकार जहाँ एक ओर, साांकेवतक प्रभावी वववनमय दर (Nominal Effective Exchange

Rate: NEER) भारत के प्रमुख व्यापाठरक भागीदार देशों की मुिाओं के सापेक्ष रुपये की

साांकेवतक वववनमय दर का भाठरत औसत मूल्य है; वहीं दूसरी ओर, वास्तववक प्रभावी वववनमय दर

(Real Effective Exchange Rate: REER) भारत के प्रमुख व्यापाठरक भागीदार देशों की

मुिाओं के सापेक्ष रुपये की वास्तववक वववनमय दर का भाठरत औसत मूल्य है।


 सापेवक्षक भाठरता का वनधाथरण सांबांवधत मुिा के महत्व के आधार पर ककया जाता है जो कक घरे लू
देश द्वारा समझौते के तहत व्यापार में सवम्मवलत अन्य सभी मुिाओं को प्रदान ककया जाता है।
 NER और RER के ववपरीत, NEER और REER को प्रत्येक ववदेशी मुिा के वलए अलग-अलग

वनधाथठरत नहीं ककया जाता है। बवल्क, प्रत्येक एक एकल सांख्या है जो यह स्पष्ट करती है कक ववववध

मुिा समूह के सापेक्ष घरे लू मुिा के मूल्य के साथ क्या घठटत हो रहा है। यह मुिा के अलग-अलग
देशों के सापेक्ष प्रदशथन के बजाय मुिा के सम्पूणथ ववि के सापेक्ष प्रदशथन से सम्बांवधत कु छ सांदभथ या
बेंचमाकथ प्रदान करता है।
 हालाँकक रुपए में आांकवलत भारतीय GDP को बाजार वनधाथठरत वववनमय दर का उपयोग कर

डॉलर में पठरवर्थतत ककया जा सकता है, परन्तु इस प्रकार के प्रयोग की अपनी सीमाएँ हैं। इस

प्रकार की बाजार वनधाथठरत वववनमय दर के वल वनयाथत और आयात पर फोकस करती है तथा घरे लू
स्तर पर उत्पाकदत एवां उपभोग की जाने वाली गैर - व्यापाठरक GDP (non-traded GDP) की

उपेक्षा करती है। ऐसी वस्थवत में, क्रय शवि समता (PPP) की अवधारणा का उपयोग ककया जाता

है।
 क्रय शवि समता स्पष्ट करती है कक अांतरराष्ट्रीय स्तर पर बेची जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के
समूह को भारतीय मुिा की ककतनी मात्रा से खरीदा जा सकता है साथ ही वस्तुओं और सेवाओं के
इसी समूह को अमेठरका में ककतने डॉलर में खरीदा जा सकता है। इसवलए, बाजार वनधाथठरत

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वववनमय दर एक अमेठरकी डॉलर के वलए 60 रुपये हो सकती है, जबकक एक अमेठरकी डॉलर के

वलए PPP वववनमय दर पर यह समता 30 रुपये पर हो सकती है। इससे अांततः भारत के वलए

बाजार दर पर GDP की तुलना में PPP दरों पर GDP का अनुमान अवधक प्राप्त होता है।

5. राष्ट्रीय आय का मापन (Measurement of National


Income)

भारत में GDP का आांकलन कें िीय साांवख्यकी कायाथलय (Central Statistical Office: CSO) द्वारा
ककया जाता है। ककसी देश की राष्ट्रीय आय का वनधाथरण वनम्नवलवखत तीन वववधयों से ककया जाता है:
 मूल्य वधथन वववध (या उत्पाद वववध) {Value Added Method (or the Product
Method)}
 आय वववध {Income Method}
 व्यय वववध {Expenditure Method}
इनमें से ककस वववध को अपनाया जाए, यह आांकड़ों की उपलधधता एवां उद्देश्य पर वनभथर करता है।

5.1. मू ल्य वधथ न वववध (Value Added Method)

मूल्य वधथन वववध या उत्पाद वववध के अांतगथत GDP की गणना बाजार मूल्य के आधार पर की जाती है,
जो कक उत्पादन के वववभन्न चरणों में उत्पाकदत उत्पादों का कु ल मूल्य होता है। ध्यान देने वाली बात यह
है कक इसमें मध्यवती वस्तुओं के स्थान पर अांवतम वस्तुओं के आधार पर गणना की जाती है, वजससे कक
दोहरी गणना से बचा जा सके ।
उत्पादन में सवम्मवलत कु छ वस्तुएँ एवां सेवाएँ वनम्नवलवखत हैं:
 बाजार में ववक्रय की जाने वाली वस्तुएँ और सेवाएँ।
 वे वस्तुएँ और सेवाएँ वजन्हें बेचा नहीं जाता है, अवपतु वजनकी वन:शुल्क आपूर्थत की जाती है।
 एजेंटो द्वारा प्रदान की गयी सेवाएँ।
उदाहरण
 इसे हम एक साइककल वववनमाथण इकाई द्वारा एक वषथ में उत्पाकदत साइककलों के कु ल मूल्य की
गणना कर समझ सकते हैं। साइककल के अांवतम मूल्य की गणना (उत्पाकदत इकाईयों की कु ल सांख्या से
गुणा करके ) करने हेतु के वल उन साइककलों पर ही ववचार ककया जायेगा जो बाजार में वबक्री के वलए
उपलधध हैं, अथाथत् मध्यवती वस्तुओं, जो वववनमाथण की प्रकक्रया में उपयोग ककए जाते हैं, उनकी
लागत की गणना नहीं की जाएगी, अन्यथा दोहरी गणना की समस्या उत्पन्न हो जाएगी।
 मान लीवजए कक एक साइककल का बाजार मूल्य 2000 रू० है, जबकक इसकी वववनमाथण लागत
1800 रू० है तथा इसमें 200 रू० का लाभ मार्थजन सवम्मवलत है। इस 1800 रू० में साइककल के
सभी घटकों एवां भागों (ये मध्यवती वस्तुएँ हैं जो उत्पादन की प्रकक्रया में प्रयुि की जाती हैं) की
लागत भी सवम्मवलत हैं।

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 यकद इसमें उि वववनमाथण इकाई द्वारा उत्पाकदत साइककलों के अांवतम मूल्य की गणना करते समय
मध्यवती वस्तुओं एवां सेवाओं की लागत को भी सवम्मवलत कर वलया जाए तो वनिय ही यह मूल्य
बहुत अवधक हो जाएगा तथा दोहरी गणना के कारण त्रुठट उत्पन्न होगी।
 इसी प्रकार, समवष्ट स्तर पर भी मूल्य वधथन वववध के तहत राष्ट्रीय आय की गणना करते समय
वस्तुओं एवां सेवाओं के अांवतम मूल्य की ही गणना की जाती है तथा दोहरी गणना की त्रुठट से बचने के
वलए मध्यवती वस्तुओं की लागत को नहीं जोड़ा जाता है क्योंकक मध्यवती वस्तुओं की गणना पहले
से हो चुकी होती है।

वजन वस्तुओं एवां सेवाओं को उत्पादन में सवम्मवलत नहीं ककया जाता है, उनमें में से कु छ वनम्नवलवखत
हैं::
 पुरानी वस्तुएँ (Second hand items) तथा उनकी खरीद-वबक्री को इसमें शावमल नहीं करते हैं।
उदाहरण के वलए, पुराने कारों की खरीद-वबक्री को GDP की गणना में शावमल नहीं करते हैं
क्योंकक यह अथथव्यवस्था में नए उत्पादन का सूचक नहीं है।
 नयी या पुरानी वस्तुयें जो उस वषथ में उत्पाकदत नहीं हैं वजसमें हम राष्ट्रीय आय की गणना कर रहे
हैं।
 ववत्तीय सौदे, शेयर, ऋणपत्र आकद का क्रय-ववक्रय चाहे ये शेयर या ऋणपत्र राष्ट्रीय आय लेखाांकन
वाले वषथ में ही वनगथवमत क्यों न हों, क्योंकक इनके फलस्वरूप राष्ट्रीय उत्पाद पर कोई प्रत्यक्ष प्रभाव
नहीं पड़ता।
 हस्तान्तरण भुगतान जैसे - वृिावस्था पेन्शन, बेरोजगारी भत्ता, बच्चे को कदया गया जेब खचथ,
वनवावसयों को भोजन कराने पर व्यय आकद, जो वबना ककसी सेवा के कदए जाते हैं।
 पूांजीगत लाभ या हावन, अप्रत्यावशत लाभ (Windfall Profit)।
 ववदेशों से प्राप्त उपहार।
 एक फै क्ट्री का वबजली खचथ, वैज्ञावनक खोजों में प्रयोग की जाने वाली वस्तुयें, एक होटल द्वारा
खरीदी गयी सवधजयाँ तथा अन्य खाद्य, रायल्टी के रूप में ककया गया भुगतान क्योंकक ये मध्यवती
भुगतान हैं।
 एक पठरवार द्वारा अवकाश में अपने बगीचे में उत्पाकदत सवधजयाँ तथा फल, ककसी फमथ द्वारा रखे
गये स्टाक की कीमतों में वृवि।
 एक फमथ द्वारा दूसरी फमथ को कदया जाने वाला लाभाांश (dividend)।
 सेवा वनवृवत्त पेंशन को राष्ट्रीय आय में शावमल नहीं ककया जाता क्योंकक राष्ट्रीय आय की पठरभाषा
के अनुसार यह ककसी वषथ ववशेष में उत्पाकदत अांवतम वस्तुओं एवां सेवाओं का योग होती है। चूांकक
व्यवि सेवा वनवृवत्त के बाद राष्ट्रीय उत्पादन में योगदान नहीं करता तथा इसके कारण चालू
उत्पादन में ककसी भी प्रकार की वृवि नहीं होती। अतः उसको प्राप्त आय हस्ताांतरण आय
(Transfer earning) होगी। ध्यातव्य है कक हस्ताांतरण आय को राष्ट्रीय आय गणना में शावमल
नहीं ककया जाता क्योंकक उसे जो भी प्राप्त होता है। वह पूवथ वषों में की गयी सेवाओं, वजनके मूल्यों
को उन सम्बवन्धत वषों में जोड़ा गया होगा, के वलए होगी। अवकाश प्राप्त करने पर जो पेंशन वमल
रही है वह पेशन वाले वषथ में की गयी ककसी सेवा के कारण नहीं।
 वृिावस्था पेंशन (old age pension) जो गरीब वृिों को दी जाती है, वह भी इसी श्रेणी में आने
वाली हस्ताांतरण आय है।
 सेवावनवृवत्त होने पर बहुत सेवाओं में कु छ महीने का वेतन एक मुश्त ग्रैच्युटी (Gratiuity) के रूप
में प्राप्त होता है। वह सेवा के वलए प्रवतफल हैं इसवलए वजस वषथ प्राप्त होगी उस वषथ राष्ट्रीय आय में
जोड़ी जायेगी।

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5.2. आय वववध (Income Method)

 यह पिवत फमों द्वारा पठरवारों को ककए गए कु ल भुगतानों के योग पर कें कित है, वजन्हें साधन
भुगतान कहा जाता है। यह राष्ट्रीय आय का मापक है। राष्ट्रीय आय से आशय एक देश के वनवावसयों
और व्यवसायों द्वारा अर्थजत कु ल आय से है।
 उत्पादन के साधन चार प्रकार के होते हैं तथा साधन आय भी चार प्रकार की होती हैं। भूवम, श्रम,
पूांजी और सांगिन (Land, Labour, Capital and Organization) उत्पादन के चार साधन हैं
तथा लगान, मजदूरी, धयाज और लाभ (Rent, Wages, Interest and Profit) साधन आय के
प्रकार हैं।
 इस आय में अप्रत्यक्ष करों एवां मूल्यह्रास को जोड़ने तथा सवधसडी को घटाने पर GDP प्राप्त होती
है।
GDP = मजदूरी+ धयाज + लगान+ लाभ + लाभाांश + अप्रत्यक्ष कर - सवधसडी + मूल्यह्रास
 ‘लाभ’ को आगे लाभ कर (प्रॉकफट टैक्स), सभी शेयरधारकों को प्रदत्त लाभाांश और प्रवतधाठरत
लाभ/आय (retained profit/earnings) में उपववभावजत ककया जा सकता है।
 अथथव्यवस्था में सेवा क्षेत्रक के योगदान की गणना करने के वलए भारत में इस प्रकार की पिवत को
अपनाया गया है।
 ऐसी कोई भी आय वजसके कारण वस्तुओं एवां सेवाओं का प्रवाह नहीं होता है या मूल्य वधथन नहीं
होता है, उसे आय वववध की गणना में सवम्मवलत नहीं ककया जाता है।

5.3. व्यय वववध (Expenditure Method)

 GDP को ककसी अथथव्यवस्था में उत्पाकदत अन्त्य वस्तुओं एवां सेवाओं पर ककए गए कु ल व्यय के
रूप में भी देखा जा सकता है। ककसी अथथव्यवस्था में तीन मुख्य एजेंवसयाँ - पठरवार, फमथ और
सरकार होती हैं। ये एजेंवसयाँ वस्तुओं एवां सेवाओं का क्रय करती है।
इस कु ल व्यय को वनम्नवलवखत चार वगों में ववभि ककया जा सकता है:
1. उपभोग (Consumption) (C): घरे लू बाजार में उपभोिा पठरवारों द्वारा ककए गए व्यय को
वनजी उपभोग कहते हैं। यह व्यय उपभोिा पठरवारों द्वारा वस्तुओं एवां सेवाओं का उत्पादन करने
वाली फमों को भुगतान के रूप में ककया जाता है।
2. वनवेश व्यय (Investment Expenditure) (I): वनवेश से आशय एक वनवित अववध में एक
अथथव्यवस्था के पूज
ां ीगत स्टॉक में हुई वृवि से है। इसमें फमों एवां सरकारी क्षेत्रकों द्वारा ककए गए
वनवेश सवम्मवलत हैं।
3. सरकारी व्यय (Government Expenditure) (G): इस वगथ में सरकार द्वारा वस्तुओं एवां
सेवाओं की खरीद पर ककए गए व्यय को सवम्मवलत ककया जाता है। पेंशन योजनाओं, छात्रवृवत्तयों
एवां बेरोजगारी भत्तों आकद को सरकारी व्यय में सवम्मवलत नहीं ककया जाता है क्योंकक ये व्यय
हस्ताांतरण भुगतानों के अांतगथत आते हैं।
4. वनवल वनयाथत (X-IM): ववदेश में वनर्थमत उत्पादों (आयात) पर व्यय से पूज
ां ी का बवहप्रथवाह होता
है, अत: इस व्यय को कु ल व्यय में से घटा कदया जाता है। इसके ववपरीत घरे लू फमों द्वारा उत्पाकदत
वस्तुओं के ववदेशों में वनयाथत से प्राप्त पूज
ां ी को कु ल व्यय में जोड़ा जाता है। इन दोनों के सांयोजन से
वनवल वनयाथत प्राप्त होता है।

GDP = C + I + G + (X – IM)

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वनम्नाांककत को राष्ट्रीय आय की गणना करते समय सवम्मवलत ककया जाता है:
 आय-गणना वषथ में उत्पाकदत अन्त्य वस्तुयें तथा सेवायें।
 स्वयां उपभोग के वलए ककया गया उत्पादन।
 अप्रयुि मध्यवती वस्तुओं का स्टाक तथा गणना वषथ में उत्पाकदत पर उस वषथ का न वबका स्टाक।
 िोकसथ कमीशन क्योंकक वह उत्पादक सेवा है।
 सैवनक तथा सुरक्षा सेवायें।
 सरकार द्वारा जनता को प्रदान की गयी वनःशुल्क सेवायें।
 लाभाांश जो कम्पवनयों के ही लाभ के भाग होते हैं राष्ट्रीय आय में सवम्मवलत होते हैं।
 भववष्य वनवध कोष (Provident fund) में मावलकों का अांशदान।
 वघसावट या पूज
ां ी का उपभोग, सकल उत्पाद में तो शावमल होता है पर राष्ट्रीय आय जो शुि उत्पाद
होता है, में शावमल नहीं होता है।
 भारत में ववदेशी बैंकों द्वारा अर्थजत लाभ जो ववदेशी आय हैं, राष्ट्रीय आय में से घटा दी जाती है।
जबकक USA में वस्थत स्टेट बैंक ऑफ इवडडया की ककसी शाखा द्वारा अर्थजत लाभ, राष्ट्रीय आय में
जोड़ा जायेगा।
 सांसद सदस्य को कदया जाने वाला भत्ता।
 ववदेशी पयथटकों द्वारा भारत में ककया गया व्यय राष्ट्रीय आय में सवम्मवलत होगा।
 ववदेशी तकनीकी ववशेषज्ञ को कदया गया वेतन राष्ट्रीय आय में से घटा कदया जाता है।

5.4. वववभन्न वववधयों का प्रयोग

 प्रत्येक पिवत अथथव्यवस्था पर एक वववशष्ट दृवष्टकोण प्रदान करती है। हालाांकक, राष्ट्रीय आय
लेखाांकन को आधार प्रदान करने वाले मूल वसिाांत के अनुसार तीनों पिवतयाँ वतथमान आर्थथक
गवतवववध की कु ल रावश का एक समान मान प्रस्तुत करती हैं।
 वनम्न उदाहरण की सहायता से यह स्पष्ट ककया जा सकता है कक तीनों पिवतयाँ ककस प्रकार समान
हैं:
कल्पना कीवजए कक एक अथथव्यवस्था में के वल दो व्यवसाय: खन्ना फ्रूट्स और शमाथ जूस ही
ववद्यमान हैं। खन्ना फ्रूट्स सांतरे के बगीचों का मावलक है। यह अपने बगीचे के कु छ सांतरों को सीधे
लोगों को बेचता है तथा शेष सांतरे शमाथ जूस को बेचता है। शमाथ जूस, सांतरे के जूस के उत्पादन और
वबक्री में सांलग्न है। वनम्न तावलका दोनों व्यवसायों के एक वषथ के लेनदेन को दशाथती है।

खन्ना फ्रूट्स
खन्ना फ्रूट्स के कमथचाठरयों का वेतन रू० 15,000
सरकार को चुकाया गया कर रू० 5,000
सांतरे की वबक्री से प्राप्त राजस्व रू० 35,000
लोगों को बेचे गये सांतरे रू० 10,000
शमाथ जूस को बेचे गये सांतरे रू० 25,000
शमाथ जूस
शमाथ जूस के कमथचाठरयों को कदया गया वेतन रू० 10,000
सरकार को चुकाया गया कर रू० 2,000
खन्ना फ्रूट्स से प्राप्त सांतरों का मूल्य रू० 25,000
जूस की वबक्री से प्राप्त राजस्व रू० 40,000

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उत्पाद वववध
 खन्ना फ्रूट्स रू० 35,000 के उत्पाद का उत्पादन करता है तथा शमाथ जूस रू० 40,000 के उत्पाद
का उत्पादन करता है। हालाांकक रू० 35,000 और रू० 40,000 को जोड़कर समग्र आर्थथक
गवतवववध को नहीं माप सकते हैं क्योंकक इस योगफल में रू० 25,000 की "दोहरी गणना” भी
शावमल है। इस रावश से शमाथ जूस ने खन्ना फ्रूट्स से सांतरे के जूस के वलए सांतरे ख़रीदे थे। इस
दोहरी गणना से बचने के वलए, हम उत्पादन के स्थान पर मूल्य वधथन जोड़ते हैं: चूांकक शमाथ जूस ने
रू० 25,000 के सांतरों को सांसावधत कर रू० 40,000 के उत्पाद में तैयार ककया है। अत: रू०
15,000 (40,000 - 25,000) का मूल्य वधथन हुआ है। खन्ना फ्रूट्स ने अथथव्यवस्था के ककसी भी
अन्य व्यवसायों की आगतों का उपयोग नही ककया, अत: इसके द्वारा ककया मूल्य वधथन एवां इसका
राजस्व समान अथाथत् रू० 35,000 है। इस प्रकार अथथव्यवस्था में रू० 35,000 +15,000 = रू०
50,000 का कु ल मूल्य वधथन हुआ।
आय वववध
 जैसा कक हमने पहले देखा कक, खन्ना फ्रूट्स का लाभ (कर से पहले) इसके राजस्व रू० 35,000 में
से कमथचाठरयों को कदए गए वेतन रू० 15,000 को घटाने के पिात् प्राप्त रावश (35,000 -
15,000 = रू० 20,000) है। शमाथ जूस का लाभ इसके राजस्व रू० 40,000 में से खन्ना फ्रूट्स से
ख़रीदे गए सांतरों का मूल्य रू० 25,000 और कमथचाठरयों को कदए गए वेतन रू० 10,000 को
घटाने से प्राप्त रावश (40,000-25,000-10,000 = रू० 5,000) के बराबर है। खन्ना फ्रूट्स फमथ
का लाभ रू० 20,000 शमाथ जूस फमथ का लाभ रू० 5,000 और दोनों कां पवनयों के कमथचाठरयों को
प्राप्त कु ल रू० 25,000 के वेतन को जोड़ने से रू० 50,000 (20,000 + 5,000 + 25,000 =
रू० 50,000) की कु ल रावश प्राप्त करते है। यह रावश उत्पाद वववध से प्राप्त कु ल रावश के बराबर
है।
व्यय वववध
 इस उदाहरण में, पठरवार सांतरे के अांवतम उपभोिा हैं। शमाथ जूस सांतरे का एक अांवतम उपभोिा
नहीं है क्योंकक यह पठरवारों को सांतरे (सांसावधत एवां तरल रूप में) बेचता है। इस प्रकार अांवतम
उपभोिा रू० 10,000 के सांतरे खन्ना फ्रूट्स से खरीदते हैं और रू० 40,000 के सांतरे का जूस
शमाथ जूस से खरीदते है। इस प्रकार कु ल रू० 50,000 व्यय रावश प्राप्त होती है जो अन्य दोनों
वववधयों उत्पाद और आय वववधयों की गणना रावश के समान है।
भारत में मूल्य वधथन या उत्पाद वववध का प्रयोग मुख्य रूप से पांजीकृ त वववनमाथण इकाइयों और
प्राथवमक क्षेत्रक में ककया जाता है। आय वववध का उपयोग सेवा क्षेत्रक में ककया जाता है जबकक, ठरयल
एस्टेट क्षेत्र के योगदान की गणना के वलए व्यय वववध को अपनाया गया है। उत्पाद वववध, अववकवसत
अथथव्यवस्थाओं में प्रयुि की जाने वाली प्रमुख वववध है, जबकक ववकवसत अथथव्यवस्थाओं में राष्ट्रीय आय
के अनुमान की गणना के वलए आम तौर पर आय वववध का प्रयोग ककया जाता है।

5.5. GDP अवस्फीतक एवां आधार वषथ (GDP Deflator & Base Year)

GDP अवस्फीतक
यह मुिास्फीवत को व्यापक रूप से मापने वाला मूल्य सूचकाांक है। यह मौकिक या चालू मूल्य पर GDP
का वास्तववक या वस्थर मूल्य पर GDP के साथ अनुपात को दशाथता है। 1996 से GDP अवस्फीतक
को त्रैमावसक आधार पर प्रकावशत ककया जाता है। इसका कारण यह है कक अथथशािी वास्तववक मूल्य
अनुमानों को प्राप्त करने एवां साांकेवतक मूल्यों के प्रभाव को कम करने के वलए WPI या CPI के उपयोग
को वरीयता देते हैं।

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 WPI और CPI के ववपरीत, GDP अवस्फीतक वस्तुओं और सेवाओं के एक वनवित समूह पर
आधाठरत नहीं है, अवपतु यह सांपूणथ अथथव्यवस्था को सवम्मवलत करता है। GDP अवस्फीतक का
एक लाभ यह है कक उपभोग के पैटनथ में पठरवतथन या नई वस्तुओं और सेवाओं का प्रवेश अवस्फीतक
में स्वत: ही पठरलवक्षत होता है, जबकक WPI/ CPI के सम्बन्ध में ऐसा नहीं होता है।

 चालू मूल्यों पर प्रदर्थशत GNP को वस्थर मूल्यों पर प्राप्त करने के वलये अवस्फीतक (deflator) का
उपयोग ककया जाता है।
 अवस्फीतक एक मूल्य सूचकाांक है जो मूल्य में पठरवतथन के कारण GNP या GDP के मौकिक मूल्य
में होने वाले पठरवतथनों को िीक करने के वलए प्रयोग में लगाया जाता है। इसे मौकिक GDP को
वास्तववक GDP या मौकिक GNP को वास्तववक GNP में भाग देकर प्राप्त ककया जा सकता है, जो
वनम्न है:
 GNP अवस्फीतक = मौकिक या चालू मूल्य पर GNP / वास्तववक या वस्थर मूल्य पर GNP X
100
 GDP अवस्फीतक = मौकिक या चालू मूल्य पर GDP / वास्तववक या वस्थर मूल्य पर GDP X
100

आधार वषथ:
 GNP/GDP की गणना को सरल बनाने हेतु अथथशािी वास्तववक GNP/GDP की गणना के
दौरान एक मूल्य सूचकाांक का उपयोग करते हैं। यह मूल्य सूचकाांक वस्तुतः एक सांख्या होती है, जो
सभी स्तरों पर मूल्यों में हुए पठरवतथन को प्रदर्थशत करती है।
 यह ककसी अथथव्यवस्था के मूल्य स्तर में हुए सामान्य पठरवतथन को दशाथता है। आधार वषथ वस्तुतः
एक सूचकाांक के वनमाथण के वलए सांदभथ वषथ के रूप में प्रयुि ककया जाने वाला वषथ होता है, तथा
आमतौर पर इसे 100 मान वलया जाता है।
 हाल ही में भारत सरकार ने राष्ट्रीय लेखा की गणना करने के वलए आधार वषथ 2004-05 से
बदलकर वषथ 2011-12 कर कदया। आधार वषथ के चयन के वलए वनम्नवलवखत आधार हैं:
o समवष्ट आर्थथक मानदांडों की वस्थरता: यह एक सामान्य वषथ होना चावहए वजसमे उत्पादन,
व्यापार और वस्तुओ एवां सेवाओं के मूल्यों में अत्यवधक पठरवतथन न हो।
o आांकड़ों की उपलधधता: इस वषथ से सम्बांवधत उपलधध आकड़ें वविसनीय होने चावहए।
o तुलनात्म्कता: आधार वषथ ऐसा होना चावहए कक दोनों ही वषों के वलये एक समान मानदांडों
उपयोग ककया जा सके । इसवलए यह हाल ही का कोई वषथ होना चावहए, अवधक पुराना नहीं
होना चावहए।

5.6. राष्ट्रीय आय के मापन में कठिनाई (भारत के ववशे ष सां द भथ में )

राष्ट्रीय आय की गणना करते समय अथथशावियों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं, उनमें से
कु छ वनम्नवलवखत हैं:
 लेनदेन का गैर-मौकिकरण (Non-Monetization of Transactions): राष्ट्रीय आय की गणना के
दौरान आम तौर पर यह माना जाता है कक वस्तुओं या सेवाओं का आदान-प्रदान मुिा के वलए
ककया जाता है। लेककन भारत में ववशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, बड़ी सांख्या में आर्थथक लेनदेन वस्तु
वववनमय के रूप में होते हैं। GDP अनुमानों में इस प्रकार की गवतवववधयों का मापन करना अत्यांत
कठिन होता है, क्योंकक इसके पठरणामस्वरूप GDP का मान वास्तववक स्तर की तुलना में कम
प्राप्त होता है।

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 असूवचत अवैध आय (Unreported Illegal Income): भारतीय अथथव्यवस्था का एक प्रमुख भाग
अवैध या समानाांतर अथथव्यवस्था के रूप में सांचावलत होता है तथा अथथव्यवस्था के इस भाग से
सृवजत आय अवलवखत रह जाती है। सटीक GDP अनुमानों की गणना करने में यह एक बड़ी
समस्या है।
 घरे ल,ू छोटे उत्पादकों आकद से सम्बांवधत आांकड़ों की अनुपलधधता: उत्पादकों की एक बड़ी सांख्या
पाठरवाठरक स्तर पर उत्पादन करती है या घरे लू उद्यमों का सांचालन करती है। इन उद्यमों से
सांबांवधत आांकड़े प्राप्त करना अत्यांत कठिन है। राष्ट्रीय आय लेखाांकन के तहत अथथव्यवस्था में होने
वाली घरे लू सहायता और हाउसकीबपग आकद जैसी देखभाल सांबांधी गवतवववधयों को नहीं
सवम्मवलत ककया जाता है, यहाँ तक कक भारत में गृहवणयों द्वारा ककया जाने वाले अत्यांत महत्वपूणथ

कायों को भी GDP अनुमानों का वहस्सा नहीं माना जाता है।


 वनरां तर ववकवसत होते सेवा क्षेत्र से सांबवां धत आांकड़ों की अनुपलधधता: भारत के सेवा क्षेत्र में
चरघाताांकी वृवि दर देखी गई है। हालाँकक सेवा क्षेत्र के कई भागों में मूल्यवधथन सटीक सूचनाओं
पर आधाठरत नहीं है, इसीवलए राष्ट्रीय आय का प्राप्त मान वास्तववक मान से कम प्राप्त होता है।

6. GDP मापन में नवीनतम ववकास (Recent


Development in GDP)
 अब सांवृवि दर का मापन अांतराथष्ट्रीय स्तर के अनुरूप वस्थर बाजार मूल्यों पर GDP के माध्यम से

ककया जा रहा है। इससे पहले, सांवृवि दर का मापन वस्थर मूल्यों पर साधन लागत के रूप में ककया
जाता था।
 सकल मूल्य वधथन (GVA) के क्षेत्रवार अनुमान अब साधन लागत के स्थान पर आधार मूल्यों पर
प्रस्तुत ककए जाएांगे।
 अब MCA21 डेटाबेस का भी उपयोग ककया जाएगा। यह कॉपोरे ट मामलों के मांत्रालय के तहत
दायर ककया गया कां पवनयों का वार्थषक लेखा है। यह कॉपोरे ट क्षेत्र के कवरे ज को वववनमाथण और
सेवा क्षेत्रों तक ववस्तृत करे गा। इसके अवतठरि वववनमाथण कां पवनयों के वलए वनर्थमत यह डेटाबेस
इन कां पवनयों द्वारा वववनमाथण के अवतठरि की गई अन्य गवतवववधयों का वववरण प्रस्तुत करने में
भी सहायक होगा।
 स्टॉक िोकर, स्टॉक एक्सचेंजों, पठरसांपवत्त प्रबांधन कां पवनयों, म्यूचुअल फां ड एवां पेंशन फां ड तथा

SEBI, PFRDA और IRDA जैसे वनयामक वनकायों के खातों से सांबांवधत जानकारी सवम्मवलत
करके ववत्तीय क्षेत्र का व्यापक कवरे ज।
 स्थानीय वनकायों और स्वायत्त सांस्थाओं की गवतवववधयों का बेहतर कवरे ज, साथ ही इन सांस्थानों

को प्रदान ककए गए लगभग 60 प्रवतशत अनुदान/हस्ताांतरण को कवर करना।

6.1. सकल मू ल्य वधथ न (Gross Value Added)

 यह कु ल उत्पादन में से मध्यवती उपभोग के मूल्य को घटाने पर प्राप्त अांवतम उत्पादन मूल्य होता
है। मूल्य वधथन, उत्पादन प्रकक्रया में श्रम एवां पूांजी के योगदान को प्रदर्थशत करता है। आधार मूल्य

पर GVA में उत्पादन कर (Production Tax) को सवम्मवलत ककया जाता हैं तथा वस्तु पर प्रदान
की गयी उत्पादन सवधसडी को सवम्मवलत नहीं ककया जाता है।

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 दूसरी ओर, साधन लागत पर GVA में कोई कर सवम्मवलत नहीं ककया जाता है तथा ककसी भी

सवधसडी को सवम्मवलत नहीं ककया जाता है। बाजार मूल्य पर GDP में उत्पादन तथा उत्पाद कर

सवम्मवलत ककए जाते हैं तथा उत्पादन एवां उत्पाद सवधसडी को सवम्मवलत नहीं ककया जाता है।
 जब उत्पाद करों के मूल्यों (उत्पादों पर प्रदत्त सवधसडी को घटाया जाता है) को जोड़ा जाता है, तो

सभी वनवावसयों का मूल्य वधथन का यह योग GDP का मूल्य प्रदान करता है।

उपयुथि अवधारणा को वनम्नवलवखत समीकरणों के रूप में सांक्षेप में प्रस्तुत ककया जाता है:
आधार मूल्य पर GVA = CE + OS/ MI + CFC + उत्पादन कर - उत्पादन सवधसडी

साधन लागत पर GVA = आधार मूल्य पर GVA - उत्पादन कर + उत्पादन सवधसडी

GDP = ∑ आधार मूल्य पर GVA + उत्पाद कर - उत्पाद सवधसडी

नीचे उपयुथि समीकरणों में प्रयुि पदों की चचाथ की गई है:


 कमथचाठरयों को प्राप्त पाठरश्रवमक या प्रवतफल (Compensation of Employees: CE): यह

कायथ पूणथ होने पर वनयोिाओं द्वारा कमथचाठरयों को दी जाने वाले कु ल सकल (कर से पहले) वेतन
को प्रदर्थशत करता है।
 पठरचालन अवधशेष (Operating Surplus: OS): यह श्रम आगत लागतों का भुगतान करने के

पिात् उद्यम द्वारा उत्पन्न अवतठरि रावश को प्रदर्थशत करता है। यह अपने ऋणदाताओं को
पुनभुथगतान करने, कर अदायगी करने तथा अांततः अपने वनवेश के सभी भागों का ववत्तपोषण करने

हेतु उपलधध पूज


ां ी है।
 वमवश्रत आय (Mixed income: MI): यह पठरचालन अवधशेष की अवधारणा के समान है परन्तु

यह लघु घरे लू व्यवसायों (जैसे: कृ वष और खुदरा दुकानें या स्व-वनयोवजत टैक्सी चालक आकद) जैसे
अवनगवमत उद्यमों पर लागू होता है।
 ां ी का उपभोग (Consumption of Fixed Capital: CFC): यह ववचाराधीन अववध
वस्थर पूज

के दौरान उपयोग में ली गई वस्थर पठरसम्पवत्तयों की मात्रा को प्रदर्थशत करता है। यह अवधारणा
मूल्यह्रास से वभन्न है, चूांकक मूल्यह्रास के ववपरीत इसका मापन प्रारां वभक मूल्य पर नहीं ककया जाता

है, बवल्क चालू बाजार मूल्य पर ककया जाता है।

 उत्पादन कर/सवधसडी (Production taxes or subsidies): उत्पादन कर या सवधसडी का

उत्पादन के सांबांध में क्रमश: भुगतान ककया जाता है या इन्हें प्राप्त ककया जाता है। ये वास्तववक
उत्पादन की मात्रा से स्वतांत्र होते हैं। भू-राजस्व, स्टाम्प और व्यवसाय पर टैक्स आकद उत्पादन कर

के कु छ उदाहरण हैं। रे लवे को प्रदत्त सवधसडी, ककसानों को प्रदत्त आगत सवधसडी आकद उत्पादन

सवधसडी के कु छ उदाहरण हैं।


 उत्पाद कर/सवधसडी (Product taxes or subsidies): उत्पाद कर या सवधसडी का उत्पाद की

प्रवत इकाई पर क्रमशः भुगतान ककया जाता है या प्राप्त ककया जाता है। उत्पाद कर, वबक्री कर,

सेवा कर और आयात और वनयाथत शुल्क आकद उत्पाद करों के कु छ उदाहरण हैं । उत्पाद सवधसडी में
भोजन, पेट्रोवलयम और उवथरक सवधसडी सवम्मवलत है।

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7. GDP और अन्य सू च काां कों से सां बां वधत वववाद
7.1. आर्थथक सां वृ वि बनाम आर्थथक ववकास

 परां परागत रूप से, आर्थथक सांवृवि को देश के नागठरकों के जीवन स्तर में सुधार के मापन की
प्रकक्रया के रूप में पठरभावषत ककया जाता है। आर्थथक सांवृवि की गणना वषथ दर वषथ GDP में हुई
वृवि के रूप में की जाती है।
 हालाांकक, उच्च सांवृवि की प्रावप्त- यहाँ तक कक उच्च स्तर की सांधारणीय सांवृवि की प्रावप्त का अनुमान
आर्थथक सांवृवि से लोगों के जीवन एवां स्वतांत्रता पर अांततः पड़ने वाले प्रभाव के रूप में लगाया
जाता है। यह ध्यान देने योग्य बात है कक वववभन्न देशों में आर्थथक सांवृवि लोगों के बेहतर जीवन
स्तर के रूप में रूपाांतठरत नहीं होती है।
 इसके अच्छे उदाहरण के रूप में भारत को वलया जा सकता है। भारत में वपछले दो दशकों में तीव्र
आर्थथक सांवृवि देखी गयी है। लेककन, तीव्र वृवि की इस अववध में ववशेष रूप से ववशेषावधकार
प्राप्त वगों में से कु छ लोगों के जीवन स्तर की गुणवत्ता में वृवि देखी गयी हैं, जबकक अवधसांख्यक
लोगों के जीवन स्तर में पहले से भी अवधक वगरावट आयी है।
 ऐसा नहीं है कक लोगों के जीवन वनवाथह की पठरवस्थवतयों में कोई सुधार नहीं है, परन्तु अवधकाांश
लोगों के वलए सुधार की यह गवत अत्यांत धीमी रही है तथा कु छ लोगों के वलए अत्यांत ही कम
पठरवतथन हुए हैं। यद्यवप भारत में आर्थथक सांवृवि दर में तीव्र वृवि देखी गई है, तथावप आर्थथक
सांवृवि के सांदभथ की तुलना में कई देशों के जीवन स्तर के सामावजक सांकेतकों के पैमाने पर काफी
पीछे है।
 उदाहरण के वलए, वपछले दो दशकों में बाांग्लादेश की प्रवत व्यवि औसत आय के सांदभथ में भारत में
प्रवत व्यवि औसत आय में बढ़ोतरी हुई है। परन्तु जीवन स्तर के कई वववशष्ट सांकेतकों के सांदभथ में
(प्रवत व्यवि औसत आय के अवतठरि) बाांग्लादेश का स्तर न के वल भारत की तुलना में बेहतर है,
बवल्क इससे काफी आगे भी है (जैसा कक दो दशक पहले भारत इन्ही सूचकों में बाांग्लादेश से आगे
था)।
 एक अन्य वववशष्ट उदाहरण खाड़ी देशों का है। खाड़ी देशों में भी तीव्र आर्थथक सांवृवि देखी गई है
परन्तु ववकास सांकेतकों के सन्दभथ में इन देशों का प्रदशथन अत्यांत वनराशाजनक रहा है।
 अत: वतथमान में वववभन्न अथथशािी आर्थथक ववकास को ववि में प्रचवलत आर्थथक सांवृवि की
पठरभाषा से वभन्न प्रकार से पठरभावषत करते हैं। अथथशावियों के अनुसार ववकास, अथथव्यवस्था में
जीवन की गुणवत्ता को दशाथता है। जीवन की गुणवत्ता वनम्नवलवखत जैसे वववभन्न चरों की
उपलधधता के अनुरूप प्रदर्थशत होती है:
o पोषण का स्तर
o वचककत्सालयों, दवाइयों, सुरवक्षत पेयजल, टीकाकरण, स्वच्छता आकद स्वास््य सेवा सांबांधी
सुववधाओं तक पहुँच एवां इन सुववधाओं का ववस्तार
o वशक्षा का स्तर आकद
 उपयुथि चचाथ से यह स्पष्ट है कक वतथमान में अथथशावियों के अनुसार यह आवश्यक नहीं है कक उच्च
आर्थथक सांवृवि सदैव उच्च आर्थथक ववकास में पठरवर्थतत हो। परन्तु साथ ही आर्थथक ववकास और
आर्थथक सांवृवि साथ-साथ चलते हैं, आर्थथक ववकास के वलए सांववृ ि और आर्थथक सांवृवि के वलए
ववकास आवश्यक है।
 जब ‘सांवृवि’ शधद का उपयोग ककया जाता है तो इससे आशय कु छ मापदांडों में पठरमाणात्मक वृवि
से है तथा जब ववकास शधद का उपयोग ककया जाता है तो इससे आशय पठरमाणात्मक के साथ-
साथ गुणात्मक प्रगवत से होता है।
 यकद ववकास के वलए आर्थथक सांवृवि का उवचत उपयोग ककया जाता है, तो इससे सांवृवि में तीव्र
बढ़ोतरी होती है और अांततः उस क्षेत्र में वनवास करने वाली जनसांख्या का ववकास होता है। इसी
प्रकार उच्च सांवृवि और वनम्न ववकास के पठरणामस्वरूप अांततः सांवृवि में वगरावट आती है। इस
प्रकार सांवृवि और ववकास के बीच चक्रीय सांबांध है।

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7.2. GDP को प्रगवत का मापन करने वाले एक पै रामीटर के रूप में मानने के ववरुि में
अन्य तकथ

 लैंवगक ववषमता का मापक नहीं: हाल के वषों में लैंवगक ववषमता के मापन हेतु एक GII या लैंवगक
ववषमता सूचकाांक तैयार ककया गया है।
 सांववृ ि की सांधारणीयता का मापन नहीं करता: ककसी देश में आर्थथक सांवृवि, प्राकृ वतक सांसाधनों
का अत्यवधक दोहन करने के पठरणामस्वरूप भी हो सकती है।
 वनधथनों की वस्थवत प्रस्तुत नहीं की जाती है: उदाहरण के तौर पर, यद्यवप वपछले एक दशक में
भारतीय अथथव्यवस्था की वृवि दर 7-8% से अवधक रही, तथावप खाद्य मुिास्फीवत उच्चतम स्तर
पर थी वजसने समाज के वनधथनतम वगथ को प्रभाववत ककया।
 GDP द्वारा आर्थथक ववषमता को प्रकट नहीं ककया जाता है: GDP आर्थथक ववषमता को प्रकट नहीं
करता है, जो कक आर्थथक ववकास को प्रवतकू ल रूप से प्रभाववत करती है। वपछले दो दशकों में
भारत में आय ववषमता दोगुनी हो गई है, जबकक इस समयाववध में GDP वृवि दरें भी अपने
उच्चतम स्तर पर थी।
 अन्य अमूतथ पक्षों के मापन में असफल: GDP जीवन स्तर की गुणवत्ता, अवकाश का समय आकद
जैसे अमूतथ पक्षों का मूल्याांकन नहीं करता है। जबकक आर्थथक सांववृ ि द्वारा प्रदत्त भौवतक वस्तुओं के
अवतठरि अन्य कई अमूतथ पक्ष हैं वजनसे जीवन की गुणवत्ता का वनधाथरण ककया जाता है।
 उपयुथि कारणों के वजह से, कई अथथशावियों ने GDP को प्रवतस्थावपत करके कु छ अन्य सूचकाांकों
को सवम्मवलत करने का सुझाव कदया है। इन सूचकाांकों में GDP से सम्बांवधत उपयुथि सीमाओं को
ध्यान में रखा जाता है तथा इन सूचकाांकों में HDI, HPI (मानव गरीबी सूचकाांक), GNH (ग्रॉस
नेशनल हैप्पीनेस इां डक्
े स), ग्रीन GDP आकद सवम्मवलत हैं।

7.3. ववकास को मापने के वलए अन्य सू च काां क

7.3.1 मानव ववकास सू च काां क (Human Development Index: HDI)

सांयुि राष्ट्र ववकास कायथक्रम (UNDP) ने 1990 में अपनी प्रथम मानव ववकास ठरपोटथ (HDI) प्रकावशत
की थी। इस ठरपोटथ में HDI के बारे में बात की गयी। HDI, ववकास के स्तर को पठरभावषत करने और
मापने का प्रथम प्रयास था। यह सूचकाांक दीघाथय,ु ज्ञान और बेहतर जीवन स्तर के मापन पर फोकस
करता है।

वचत्र: 3 HDI के सांघटक (मानव ववकास सूचकाांक के तीन आयाम)

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I. जीवन स्तर (Standard of living): क्रय शवि समता (PPP) से समायोवजत वास्तववक प्रवत व्यवि
आय (GNI per capita PPP $) द्वारा दशाथया जाता है।
II. वशक्षा (Knowledge): इसका मापन वशक्षा के स्तर से सांबांवधत वनम्नवलवखत सांकेतकों द्वारा ककया
जाता है:
 वयस्कों में वशक्षा प्रावप्त/प्रौढ़ साक्षरता दर (⅔ भाठरता दी गई है)
 स्कू ल नामाांकन/सांयुि नामाांकन अनुपात (⅓ भाठरता दी गई है)
III. दीघाथय:ु जन्म के समय जीवन प्रत्याशा की गणना की जाती है।
 प्रारां भ में के वल 14 देशों का मानव ववकास ठरपोटथ जारी ककया गया था। UN की 2016 ठरपोटथ में
188 देशों के वलए HDI पठरणाम जारी ककए गए। मानव ववकास ठरपोटथ, 2016 में भारत का
131वाां स्थान था। भारत का स्कोर 0.624 था तथा यह मध्यम मानव ववकास श्रेणी में था। भारत
का वतथमान स्कोर 1990 के स्कोर से 0.428 से अवधक है अथाथत् 1990 से 2016 तक 46% की
वृवि हुई है।
7.3.2. लैं वगक ववषमता सू च काां क (Gender Inequality Index : GII)

 GII एक ववषमता सूचकाांक है। यह दो आयामों: सशिीकरण एवां आर्थथक वस्थवत में मवहलाओं
और पुरुषों कीं उपलवधधयों के मध्य ववद्यमान असमानता के कारण सांभाववत मानव ववकास में
होने वाली कमी को दशाथता है।
 साथ ही GII मवहला स्वास््य के प्रमुख आयाम के मानक आदशों के सापेक्ष ककसी देश की
वस्थवत को प्रदर्थशत करता है। कु ल वमलाकर GII प्रवतबबवबत करता है कक इन आयामों में
मवहलाओं की वस्थवत ककतनी प्रवतकू ल है।
 पूणथ लैंवगक समानता ककसी देश में नहीं है - इसवलए जब लैंवगक ववषमता को ध्यान में रखा
जाता है तो सभी देशों के मानव ववकास के प्रमुख पहलुओं की उपलवधधयों में कु छ कमी आती
है। GII का ववस्तार 0 और 1 के मध्य होता है तथा GII के उच्चतर मान ववषमता के उच्च स्तर
को दशाथते हैं।

वचत्र: 4 लैंवगक ववषमता सूचकाांक


7.3.3. लैं वगक ववकास सू च काां क (Gender Development Index: GDI)

GDI मानव ववकास के तीन बुवनयादी आयामों में पुरुषों और मवहलाओं की उपलवधधयों के मध्य व्याप्त
अांतर को मापता है:
 स्वास््य, इसका मापन जन्म के समय मवहला और पुरुष की जीवन प्रत्याशा के आधार पर ककया
जाता है;
 वशक्षा, इसका मापन बालक एवां बावलकाओं के स्कू ल अववध के अनुमावनत वषों तथा 25 वषथ एवां
इससे अवधक आयु के पुरुषों एवां मवहलाओं द्वारा स्कू ल में व्यतीत ककये गए औसत वषों द्वारा ककया
जाता हैं, तथा

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 आर्थथक सांसाधनों पर न्यायोवचत अवधकार, इसका मापन मवहलाओं और पुरुषों द्वारा अनुमावनत
अर्थजत आय द्वारा ककया जाता है।

वचत्र: 5 लैंवगक ववकास सूचकाांक

7.3.4. बहुआयामी वनधथ न ता सू च काां क (Multidimensional Poverty Index: MPI)

MPI पठरवार एवां व्यविगत स्तर पर स्वास््य, वशक्षा और जीवन स्तर में ववद्यमान वववभन्न वांचनाओं

की पहचान करता है। MPI आय आधाठरत वनधथनता मापकों को एक अत्यांत महत्वपूणथ पूरकता प्रदान
करता है।

वचत्र: 6 बहुआयामी वनधथनता सूचकाांक

7.3.5. असमानता-समायोवजत मानव ववकास सू च काां क

(Inequality-adjusted Human Development Index: IHDI)

IHDI ककसी देश की के वल स्वास््य, वशक्षा और आय की औसत उपलवधधयों को ही ध्यान में नहीं रखता

है, बवल्क यह इन उपलवधधयों का जनसांख्या के मध्य ववतरण पर भी फोकस करता है।

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वचत्र: 7 असमानता-समायोवजत मानव ववकास सूचकाांक (IHDI)

7.3.6. ग्रीन GDP (Green GDP)

 यह आर्थथक सांवृवि का एक सूचकाांक है, वजसके अांतगथत सांवृवि की प्रकक्रया के तहत पयाथवरणीय
पठरणामों को भी सवम्मवलत ककया जाता है। उत्पाकदत वस्तुओं एवां सेवाओं के अांवतम मूल्य में से
पयाथवरणीय वनम्नीकरण/अवनयन की लागत को घटाने पर ग्रीन GDP प्राप्त होती है।
 अथाथत् इसके अांतगथत आर्थथक ववकास की पयाथवरणीय लागतों या बह्याताओं (externalities) को
वस्तुओं एवां सेवाओं के अांवतम मूल्य में से घटाया जाता हैं।
 2009 में भारत सरकार ने ‘ग्रीन GDP’ के आांकड़ों को प्रकट करने की घोषणा की थी। देश की
आर्थथक सांवृवि के आांकड़ों में प्राकृ वतक सांसाधनों के ह्रास एवां वनम्नीकरण की पयाथवरणीय लागत की
स्पष्ट रूप से चचाथ की जाएगी। तत्पिात्, साांवख्यकी एवां कायथक्रम कक्रयान्वयन मांत्रालय ने 2011 में
पाथथ दासगुप्ता की अध्यक्षता में एक ववशेषज्ञ समूह का गिन ककया। इस ववशेषज्ञ समूह का उद्देश्य
भारत में ग्रीन नेशनल एकाउां ट्स के वलए एक फ्रेमवकथ तैयार करना है। हालाँकक यह प्रकक्रया अभी
तक पूणथ नहीं हुई है।

7.3.7. ग्रॉस ने श नल है प्पीने स (Gross National Happiness)

 ववि के अवधकाांश देश अपने GDP आांकड़ों में कमी के कारण के नाखुश हैं, वहीं एक छोटा सा राष्ट्र

भूटान इसके ववपरीत कदशा में अग्रसर है। भूटान के अवधकाठरयों ने ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस (GNH)
नामक एक वववशष्ट सूचकाांक तैयार ककया है। भूटान के प्रवसि पूवथ राजा वजग्मे बसग्ये वाांगचुक ने
1972 में ग्रॉस नेशनल हैप्पीनेस की अवधारणा की पठरकल्पना की थी तथा 2008 में भूटान ने

GNH को एक औपचाठरक आर्थथक सूचक के रूप में अपनाया।


 नवांबर 2008 में शुरू हुए सभी आर्थथक कारकों ने भूटान के वनवावसयों की खुशी पर प्रभाव वलए

GDP का ववश्लेषण करना शुरू ककया। यद्यवप बेरोजगारी, कृ वष, खुदरा वबक्री आकद जैसे उत्पादन
के कारक अभी भी ववद्यमान हैं परन्तु GNH शेष ववि की तुलना में भूटानी समाज में अत्यवधक

खुशहाली को प्रदर्थशत करता है। खुशहाली भूटानी समाज के वलए सवाथवधक महत्वपूणथ है। सांक्षप
े में,

खुशहाली मायने रखती है धन का सांग्रहण नहीं। GNH में वनम्नवलवखत मापदांडों का उपयोग ककया
जाता है:
o सांधारणीय और समावेशी सामावजक आर्थथक ववकास
o सुशासन
o प्राकृ वतक पयाथवरण का सांरक्षण
o साांस्कृ वतक मूल्यों का सांरक्षण एवां सांवधथन

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वचत्र: 8 GNH के वववभन्न आयाम

7.3.8. मानव वनधथ न ता सू च काां क (Human Poverty Index: HPI)

 HPI ककसी देश में के वल वनधथनता के मापन पर के वन्ित है। यह सूचकाांक सांयुि राष्ट्र द्वारा

ववकवसत ककया गया है। HPI के वलए दीघाथयु में वांचनाओं का मापन जन्म के समय 40 वषो तक

जीववत नहीं रहने की सांभावना द्वारा ककया जाता है; वशक्षा में वांचनाओं का मापन वनरक्षर वयस्कों

के प्रवतशत द्वारा ककया जाता है; जीवन स्तर के मानक के रूप में वांचनाओं को दो चरों से मापा
जाता है: एक बेहतर जल स्रोत तक स्थायी पहुांच नहीं रखने वाले लोगों का प्रवतशत और दूसरा
पाांच वषथ से कम उम्र के सामान्य से कम वजन वाले बच्चों का प्रवतशत है।

वचत्र: 9 ववकवसत एवां OECD देशों के वलये वनधथनता का मापन

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 HPI देश में बुवनयादी मानव क्षमताओं में वांचनाओं तथा सवाथवधक वांवचत लोगों पर ध्यान कें कित

करता है, न कक औसत राष्ट्रीय उपलवधध पर। मानव वनधथनता सूचकाांक, औसतन राष्ट्रीय उपलवधध
से एक अत्यांत वभन्न तस्वीर पेश करते हुए वांचनाओं में जीवन यापन करने वाले लोगों की सांख्या
पर प्रत्यक्ष रूप से ध्यान कें कित करते हैं।
 नोट: वतथमान में HPI को बहुआयामी वनधथनता सूचकाांक (Multidimensional Poverty Index:
MPI) द्वारा प्रवतस्थावपत कर कदया गया है।

7.3.9. वास्तववक प्रगवत सां के तक (Genuine Progress Indicator)

 GDP चालू आय का मापन करता है, जबकक GPI को उस आय की वस्थरता का मापन करने के

वलए तैयार ककया गया है। GPI में भी GDP के समान ही व्यविगत उपभोग आांकड़ों का उपयोग

ककया जाता है लेककन इसमें आय ववषमता, अपराध के कारण हुई क्षवत, पयाथवरणीय वनम्नीकरण,
अवकाश से हुई हावन को घटाया जाता है तथा उपभोिा ठटकाऊ वस्तुओं एवां सावथजवनक
अवसांरचना की सेवाओं एवां घरे लू कायों द्वारा प्राप्त लाभों को जोड़ा जाता है।
 GPI, प्राकृ वतक एवां सामावजक पूांजी में कमी करने वाली आर्थथक गवतवववधयों और वृवि करने

वाली गवतवववधयों के मध्य अांतर स्पष्ट करता है। इस प्रकार GPI और इसके चरों द्वारा के वल
आर्थथक गवतवववधयों का ही मापन नहीं ककया जाता है बवल्क सांधारणीय आर्थथक ववकास को भी
मापा जाता है। अतः GPI, GDP की तुलना में सांधारणीय ववकास के मापन में बेहतर है। 1995

से इसके महत्व में वृवि हुई है तथा सांयुि राज्य अमेठरका और कनाडा में GPI का उपयोग ककया
जाता है।

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Classroom Study Material

भारतीय ऄथथव्यवस्था
2. मुद्रा एवं बैंककग

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ववषय सूची
1. मुद्रा (Money) ______________________________________________________________________________ 4

1.1. कागजी मुद्रा का आवतहास और मुद्रा सृजन प्रक्रिया ____________________________________________________ 4

1.2. मुद्रा की पररभाषा (DEFINITION OF MONEY) _____________________________________________________ 5

1.3. मुद्रा के कायथ और महत्व (Functions And Significance Of Money)___________________________________ 7

1.4. मुद्रा के प्रकार (Kinds Of Money) ____________________________________________________________ 8


1.4.1. करें सी घटक (Currency Component) _________________________________________________________ 8
1.4.2. जमा मुद्रा घटक (Deposit money component) _________________________________________________ 9

1.5. भारत में मुद्रा की अपूर्तत (Money Supply In India) _______________________________________________ 9


1.5.1. मुद्रा अपूर्तत का मापन (Measures of Money Supply) ____________________________________________ 9
1.5.2. ईच्च शवि प्राप्त मुद्रा (High Powered Money) __________________________________________________ 11

1.6. भारत में मुद्रा की अपूर्तत को प्रभाववत करने वाले कारक _______________________________________________ 11

2. बैंककग (Banking) ___________________________________________________________________________ 13

2.1. भारतीय बैंककग प्रणाली ____________________________________________________________________ 13


2.1.1. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (Regional Rural Banks: RRBs) ____________________________________________ 14
2.1.2 सहकारी बैंक (Cooperative Banks) __________________________________________________________ 14
2.1.2.1. शहरी सहकारी बैंक (Urban Cooperative Banks: UCBs) _________________________________ 16
2.1.2.2. ग्रामीण सहकारी बैंक (Rural Cooperative Banks) _______________________________________ 18
2.1.3. वावणवययक बैंक (Commercial Banks) ________________________________________________________ 19
2.1.3.1. सावथजवनक क्षेत्र के बैंक (Public Sector Banks: PSBs) ____________________________________ 20
2.1.3.2. वनजी क्षेत्र के बैंक (Private Sector Banks) _____________________________________________ 22
2.1.3.3. वावणवययक बैंकों के कायथ (Functions of Commercial Banks) ______________________________ 25
2.1.3.4. भारत में वावणवययक बैंकों की समस्याएं (Problems of Commercial Banks in India) _____________ 26

2.2. ववदेशों में भारतीय बैंक (Indian Banks Abroad) ________________________________________________ 27

2.3. बैंकों के वगीकरण का एक ऄन्य तरीका __________________________________________________________ 28

2.4. बैंक बनाम गैर-बैंककग ववत्तीय कं पवनयां (Banks v/s Non-Banking Financial Companies: NBFCS) _________ 28
2.4.1. गैर-बैंककग ववत्तीय कं पवनयां (NBFCs) क्या हैं ? ___________________________________________________ 28
2.4.2. NBFC का वववनयमन _______________________________________________________________________ 29
2.4.3. NBFCs का बढ़ता प्रभाव और वववनयामकीय समस्याएँ ______________________________________________ 31
2.4.4. ईषा थोराट सवमवत की ररपोटथ _________________________________________________________________ 31
2.4.5. RBI द्वारा NBFCs के वलये ईठाए गए अवश्यक कदम ______________________________________________ 32

2.5. भारत में बैंककग सुधार _____________________________________________________________________ 32


2.5.1. नरससहम सवमवत (1991) ____________________________________________________________________ 32
2.5.2. नरससहम सवमवत II _________________________________________________________________________ 33
2.6. गैर-वनष्पाक्रदत पररसंपवत्तयों से संबद्ध मुद्दे (Issue of Non-Performing Assets: NPAS) ____________________ 34
2.6.1. गैर-वनष्पाक्रदत पररसंपवत्तयां (NPA’s) क्या हैं? ____________________________________________________ 35
2.6.2. NPAs की श्रेवणयां _________________________________________________________________________ 36
2.6.3. प्रोववजसनग मानदंड (Provisioning Norms) ____________________________________________________ 37
2.6.4. NPAs को कै से कम क्रकया जाए ________________________________________________________________ 37
2.6.5. हाल में ईठाये गए कदम ______________________________________________________________________ 39
2.6.6. ऄपेक्षाकृ त ऄवधक हस्तक्षेप की अवश्यकता वाले मुद्दे _________________________________________________ 41
2.6.7. ववत्त संबंधी मामलों पर संसदीय स्थायी सवमवत द्वारा सुझाए गए कदम ___________________________________ 42

2.7. कु छ महत्वपूणथ शब्दावली ___________________________________________________________________ 43


2.7.1. व्हाआट लेबल एटीएम (White Label ATMs: WLA) ______________________________________________ 43
2.7.2. शैडो बैंक _________________________________________________________________________________ 43
2.7.3. कोर बैंककग (Core Banking) ________________________________________________________________ 44
2.7.4. लीड बैंक स्कीम ____________________________________________________________________________ 44
2.7.5. SARFAESI एवं ऊण वसूली न्यायावधकरण (DRT) _______________________________________________ 45
2.7.6. बैंककग लोकपाल (Banking Ombudsman): ____________________________________________________ 45
2.7.7. घरे लू प्रणालीगत महत्वपूणथ बैंक (Domestic Systemically Important Banks: D-SIBS) ________________ 46
2.7.8. एवक्जम बैंक (Exim Bank) __________________________________________________________________ 46
2.7.9. प्राथवमकता क्षेत्रक ईधारी प्रमाण पत्र (Priority Sector Lending Certificates: PSLCS) _________________ 46
1. मु द्रा (Money)
1.1. कागजी मु द्रा का आवतहास और मु द्रा सृ ज न प्रक्रिया

 यद्यवप सोना और चांदी जैसी मूल्यवान धातुं ने कइ वषषों तक भली-भांवत प्रकार से मुद्रा के
ऄपेवक्षत कायषों की पूर्तत की तथा साथ ही भौवतक ईत्पादों को एक स्थान से दूसरे स्थान ले जाने की
तुलना में सोने के वसक्के ले जाना सरल भी होता था, परं तु कइ मायने में यह व्यापार संचावलत करने

का सुरवक्षत तरीका नहीं था।


 मुद्रा के आवतहास में एक महत्वपूणथ ववकास वचन-पत्र ऄथाथत् प्रॉवमसरी नोट (promissory note)

था। यह प्रक्रिया तब अरं भ हुइ जब लोग स्वणथकारों (goldsmiths) के पास ऄपना ऄवतररि सोना

रखने लगे। वे लोगों के जमा सोने को ऄपने पास रखते थे। बदले में स्वणथकार जमाकताथं को एक
रसीद देते थे। रसीद में यह ईल्लेख होता था क्रक ईन्होंने क्रकतना सोना जमा क्रकया है। ऄंततः
वस्तुं के िे तां द्वारा वस्तुं के वविे तां को सोने का भौवतक हस्तांतरण क्रकए जाने की बजाय
वस्तुं और सेवां के बदले आन रसीदों का सीधे व्यापार (लेन-देन) क्रकया जाने लगा।
 िे ता और वविे ता, दोनों को स्वणथकार पर ववश्वास करना पड़ता था क्योंक्रक सारा सोना स्वणथकार

के पास जमा होता था और स्वणथकार के ग्राहकों के पास के वल कागज की एक रसीद होती थी। ये
जमा रसीदें, लोगों की मांग पर सोने की एक वनवित मात्रा का भुगतान करने के वादे का प्रतीक

होती थीं। आसवलए ये कागजी मुद्राएं ईन मूल्यवान धातुं की प्रवतवनवध बन गइ, वजन पर वे

अधाररत होती थीं, ऄथाथत् ये कागजी मुद्राएं सीधे भौवतक वस्तु से संबंवधत होती थीं। आनमें से कइ

प्रारं वभक स्वणथकार बैंक के ूपप में ववकवसत हो गए। ये बैंक ऄपनी सेवा के बदले में ऄवतररि धन
(कमीशन) लेते थे और वचन-पत्र जारी करते थे। आन वचन पत्रों का ईपयोग वावणयय में क्रकया
जाने लगा।
 लोगों का सोना जमा करने और बदले में जमा रसीद तथा अगे चलकर वचन-पत्र जारी करने की
प्रक्रिया में, स्वणथकारों और प्रारं वभक बैंकों को यह लगने लगा क्रक ईनकी वतजोरी में रखा सोना

क्रकसी एक समय पर अहररत नहीं होता है। दूसरी ओर लोग वचन-पत्रों से वस्तुएं एवं सेवाएं
खरीदते और बेचते थे, लेक्रकन वचन-पत्रों से शीघ्र प्राप्त होने वाला ऄवधकांश सोना वतजोरी में पड़ा

रहता था। हालांक्रक समय के साथ वावणयय-व्यवसाय हेतु भुगतान में प्रयुि होने के कारण आसका
स्वावमत्व पररवर्ततत होता रहता था। आसवलए अहररत न क्रकया जाने वाला और वावणयय-व्यवसाय
हेतु सीधे ईपयोग न क्रकया जाने वाले सोने का एक वनवित भाग ब्याज दर पर दूसरों को ईधार
क्रदया जाने लगा। ऐसा करके , प्रारं वभक बैंकों ने मुद्रा सृजन क्रकया।

 ऄथथव्यवस्था में मुद्रा की भूवमका को समझने के वलए मुद्रा सृजन की प्रक्रिया को समझना महत्वपूणथ
है। आसकी प्रभावशीलता आस बात पर वनभथर करती है क्रक ऄपने ग्राहकों द्वारा की जाने वाली
वनकासी को बाधारवहत बनाने के वलए बैंकों ने क्रकतनी धनरावश अरवक्षत रखी है। आस धारणा के
अधार पर क्रक सभी ग्राहक क्रकसी एक समय पर ऄपनी सपूपूणथ धनरावश की वनकासी नहीं करें गे,

ग्राहकों का पैसा दूसरों को ईधार देने की आस पररपाटी को अंवशक अरवक्षत बैंककग (fractional

reserve banking) कहा जाता है।

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 यह प्रणाली कै से कायथ करती है आसे हम एक सरल ईदाहरण के माध्यम से समझ सकते हैं। मान
लीवजए क्रक ऄथथव्यवस्था में बैंकरों को यह दृढ़ ववश्वास हो जाता है क्रक ईन्हें ऄपने पास जमा
धनरावश का के वल 10% बनाए रखने की अवश्यकता है। आसे ररज़वथ ररक्वायरमेंट के ूपप में जाना
जाता है। ऄब ववचार कीवजए क्रक जब कोइ ग्राहक बैंक X में 100 रुपए जमा करता है तो क्या
होता है। यह जमा रावश, बैंक X के तुलनपत्र (balance sheet) में पररवतथन लाती है और यह
बैंक के वलए देनदारी (liability) में वृवद्ध करती है क्योंक्रक यह ग्राहक द्वारा प्रभावी ूपप से बैंक को
क्रदया गया ऊण है। आस जमा रावश का 90 प्रवतशत दूसरे ग्राहक को ईधार (या ऊण) देने पर बैंक
के पास दो प्रकार की अवस्तयां होती हैं:
o बैंक का 10 रु. का अरवक्षत भंडार और
o 90 रु. के बराबर ऊण।
 ऄब मान लीवजए क्रक 90 रु. ऊण लेने वाला व्यवि ऄब आस मूल्य की कु छ वस्तुएं खरीदने के वलए
आस मुद्रा का ईपयोग करता है और वस्तु का वविे ता यह 90 रु. दूसरे बैंक यानी बैंक Y में जमा कर
देता है। बैंक Y भी आसी प्रक्रिया से गुजरता है; वह 9 रु. अरवक्षत रखता है और दूसरे ग्राहक को
जमा ूपपए का 90% (81 रु.) ऊण दे देता है। पुन: वह ग्राहक कु छ वस्तुं या सेवां पर 81 रु.
व्यय करता है। आस धनरावश को प्राप्त करने वाला व्यवि ऄब बैंक Z में आसे जमा कर देता है और
आसी प्रकार यह प्रक्रिया वनरं तर चलती रहती है।
 जमा करने के वलए और ऊण देने हेतु धनरावश न बचने तक यह प्रक्रिया बनी रहती है। 100 रु. की
आस जमा से 'सृवजत' मुद्रा की कु ल रावश की आस प्रकार गणना की जा सकती है:
नइ जमा / ररज़वथ ररक्वायरमेंट = 100 रु. / 0.10 = 1,000 रु.
(New deposit / Reserve requirement = 100 रु. / 0.10 = 1,000 रु.)
 आस प्रकार यह बैंककग प्रणाली में ऄब सभी जमा रावशयों का योग है। साथ ही ध्यान रखें क्रक ररज़वथ
बैंककग प्रैवक्टस के माध्यम से 100 रु. की यह मूल जमा 1000 रु. के अर्तथक लेनदेन हेतु ईत्प्रेरक
थी। यद्यवप यह नहीं कहा जा सकता क्रक आस प्रक्रिया के वबना अर्तथक ववकास शून्य होता, लेक्रकन
यह अर्तथक गवतवववध में महत्वपूणथ घटक हो सकता है।
 ईपरोि ईदाहरण में, हमने माना था क्रक बैंक ऄपनी ररज़वथ ररक्वायरमेंट स्वयं वनधाथररत करते हैं
जबक्रक, कु छ ऄथथव्यवस्थां में कें द्रीय बैंक ररज़वथ ररक्वायरमेंट वनधाथररत करता है।

1.2. मु द्रा की पररभाषा (Definition of Money)

 मुद्रा सृजन की प्रक्रिया एक अधारभूत प्रश्न खड़ा करती है क्रक मुद्रा क्या है? वबना वचन-पत्र
(Promissory Notes) और अंवशक अरवक्षत बैंककग (Fractional Reserve Banking) वाली
ऄथथव्यवस्था में जहाँ मुद्रा चलन में है, वहां मुद्रा को पररभावषत करना ऄपेक्षाकृ त सरल है। ऐसी
ऄथथव्यवस्था में प्रचवलत सोने और चांदी के वसक्कों की कु ल रावश को ही मुद्रा कहा जाता है।
हालांक्रक, ईपयुथि मुद्रा सृजन प्रक्रिया से यह पता चलता है क्रक मुद्रा की व्यापक पररभाषा में
ऄथथव्यवस्था में प्रचवलत सभी नोट और वसक्के तथा सभी बैंक जमाएं सवपूमवलत हो सकती हैं।
 सामान्य ूपप से, हम मुद्रा को ऐसे क्रकसी भी माध्यम के ूपप में पररभावषत कर सकते हैं वजसका
वस्तुएं और सेवाएं खरीदने के वलए ईपयोग क्रकया जा सकता है। आस प्रयोजन को पूरा करने के वलए
नोटों और वसक्कों का ईपयोग क्रकया जा सकता है लेक्रकन क्रिर भी ऐसी मुद्राएं वस्तुयें एवं सेवायें
खरीदने का एकमात्र माध्यम नहीं है। चेक की सुववधा वाले बैंक खातों (Bank Chequing
Account) के अधार पर व्यविगत चेक जारी क्रकया जा सकता है, जबक्रक आसी ईद्देश्य के वलए
डेवबट काडथ का भी ईपयोग क्रकया जा सकता है। अजकल बचत खाते से चालू खाता में ऄपेक्षाकृ त
सरलता से ऄंतरण क्रकया जा सकता है; आसवलए, आन बचत खातों को मुद्रा भण्डार का भाग माना
जा सकता है।

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 वस्तुं और सेवां हेतु भुगतान करने के वलए िे वडट काडथ का भी ईपयोग क्रकया जाता है;

हालांक्रक, िे वडट काडथ द्वारा भुगतान और चेक एवं डेवबट काडथ द्वारा क्रकए जाने वाले भुगतान के

बीच एक महत्वपूणथ ऄंतर है। चेक या डेवबट काडथ से क्रकए जाने वाले भुगतान के ववपरीत, िे वडट

काडथ से भुगतान में अस्थवगत भुगतान (deferred payment) सवपूमवलत होता है।

 मूलत: क्रकसी भी ववत्तीय प्रणाली की जरटलता वजतनी ऄवधक होती है, मुद्रा को पररभावषत करना
ईतना ही करठन होता है। ऄवधकांश अधुवनक ऄथथव्यवस्थां में मौक्रद्रक प्रावधकरण द्वारा वववभन्न
प्रकारों से मुद्रा का मापन क्रकया जाता है। लेक्रकन सामान्य ऄथषों में, मुद्रा स्टॉक में प्रचवलत नोट एवं

वसक्के तथा बैंकों एवं ऄन्य ववत्तीय संस्थानों में जमा रावशयां सवपूमवलत होती हैं, वजनका
ऄथथव्यवस्था में वस्तुएं और सेवाएं खरीदने के वलए सरलता से ईपयोग क्रकया जा सकता है।
 आस संबंध में, ऄथथशास्त्री प्राय: संकीणथ मुद्रा और / या व्यापक मुद्रा (Narrow

Money and/or Broad Money) के वृवद्ध की दर की बात करते हैं।


 संकीणथ मुद्रा से ईनका अशय सामान्यत: ऄथथव्यवस्था में प्रचवलत नोटों और वसक्कों और साथ ही
ऄन्य ऄत्यवधक तरल जमां से होता है।
 व्यापक मुद्रा में संकीणथ मुद्रा तो सवपूमवलत होती ही है लेक्रकन साथ ही आसमें तरल अवस्तयों का
संपूणथ वहस्सा भी सवपूमवलत होता है, वजनका ईपयोग खरीदारी करने के वलए क्रकया जा सकता है।

 चूँक्रक ववत्तीय प्रणावलयां, व्यवहार और संस्थान एक ऄथथव्यवस्था से दूसरी ऄथथव्यवस्था में वभन्न-

वभन्न होते हैं, आसवलए मुद्रा की पररभाषाएं भी वभन्न-वभन्न होती हैं; आस प्रकार, ऄंतराथष्ट्रीय स्तर

पर तुलना करना करठन हो जाता है। क्रिर भी, ऄवधकांश कें द्रीय बैंक संकीणथ और व्यापक मुद्रा की
माप के साथ-साथ कु छ मध्यवती (मुद्रा) ूपप में भी आसका मापन करते हैं।
 वववभन्न ऄथथशावस्त्रयों ने वभन्न-वभन्न प्रकार से मुद्रा को पररभावषत क्रकया है, लेक्रकन मुद्रा की
सवथमान्य पररभाषा को मुद्रा के सभी कायषों के संदभथ में व्यि क्रकया जा सकता है। सामान्यतः
वववनमय के माध्यम, मूल्य के मापक/मापदंड, मूल्य संग्रह, स्थवगत भुगतानों तथा ऊण की
ऄदायगी के मानक के ूपप में स्वीकृ त वस्तु मुद्रा कहलाती है।
मुद्रा की कु छ अधारभूत ववशेषताएं वनम्नवलवखत हैं:
 मुद्रा को अम सहमवत से वववनमय के एक माध्यम के ूपप में स्वीकार क्रकया जाता है या िय शवि
को स्थानांतररत करने के एक साधन के ूपप में स्वीकार क्रकया जाता है। यह कोइ भी वस्तु हो
सकती है या यहां तक क्रक कागज का एक टु कड़ा भी हो सकती है।
 यह असानी से स्वीकायथ होनी चावहए।
 आसका एक ज्ञात मूल्य होना चावहए।
 ईसके वजन की तुलना में ईसका मूल्य ऄवधक होना चावहए।
 नकली मुद्रा बनाना ऄत्यंत करठन होना चावहए।
 आसे वस्तुं एवं सेवां के वलए भुगतान हेतु व्यापक ूपप से स्वीकार क्रकया जाना चावहए।
 यह असानी से मानकीकृ त क्रकये जाने योग्य होनी चावहए, वजससे आसके मूल्य का पता लगाना
सरल हो।
 यह असानी से ववभायय होनी चावहए, ताक्रक परस्पर पररवर्ततत की जा सके ।
 आसका एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण करना असान होना चावहए।
 यह दीघाथववध तक खराब नहीं होनी चावहए।

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1.3. मु द्रा के कायथ और महत्व (Functions and Significance of Money)

 वववनमय का माध्यम (Medium of exchange): मुद्रा सभी वस्तुं और सेवां के वववनमय के


माध्यम का कायथ करती है। आसका ईपयोग वस्तुं एवं सेवां के बदले में भुगतान के वलए क्रकया
जाता है। वववनमय के एक माध्यम के ूपप में मुद्रा का ईपयोग वस्तुतः वस्तुं और सेवां का
अदान-प्रदान करने में लगने वाले समय को कम करके अर्तथक क्षमता को बढ़ाता है। आसने वस्तु
वववनमय प्रणाली (barter system) में व्याप्त अवश्यकतां के दोहरे संयोग की करठनाइ का
समाधान क्रकया है।
o अवश्यकतां के दोहरे संयोग (double coincidence of wants) से अशय ईस वस्थवत से है
वजसके तहत एक व्यवि क्रकसी दूसरे व्यवि से ऄपनी वस्तु बदलना चाहता है तथा दूसरा व्यवि भी
पहले व्यवि की वस्तु लेने के वलए तैयार हो। साथ ही, मुद्रा के ववकास ने संबंवधत व्यवि को ढू ंढ़ने
की लागत तथा वस्तुं के ववभाजन के ऄभाव की समस्या का भी समाधान क्रकया है।
 लेखा की आकाइ (Unit of account): मुद्रा मूल्य का मापदंड करती है। मुद्रा की एक प्रमुख भूवमका
आसका लेखे की एक आकाइ होना है। लेखे की आकाइ का ऄथथ है क्रक प्रत्येक वस्तु एवं सेवा का मूल्य
मुद्रा के ूपप में मापा जाता है। ऄथाथत्, आसका ईपयोग ऄथथव्यवस्था में मूल्य के मापन के वलए क्रकया
जाता है। वजस प्रकार हम दूरी को मीटर तथा वजन को क्रकलोग्राम में मापते हैं ईसी प्रकार हम मुद्रा
द्वारा वस्तुं एवं सेवां के मूल्यों को मापते हैं। वस्तु वववनमय प्रणाली में यह लाभ संभव नहीं था
क्योंक्रक तब बाजार में ईपलब्ध क्रकन्हीं दो ईत्पादों या सेवां की परस्पर तुलना संभव नहीं थी।
 मूल्य का संचय (Store of Value): मूल्य के संचय से अशय धन के संचय से है। मुद्रा मूल्य संचय
के साधन के ूपप में भी कायथ करती हैं। यह समय के साथ िय शवि का एक भंडार है ऄथाथत् मुद्रा
धन संग्रह का सबसे सस्ता, सवथमान्य और सुववधाजनक साधन है, वजसके मूल्य में समय के साथ
शीघ्रता से कमी नहीं अती है। वस्तुं को खरीदने के वलए मुद्रा का प्रयोग वववनमय के माध्यम के
ूपप में क्रकया जाता है। आसका ऄथथ है क्रक मुद्रा के संचय से व्यवि की िय शवि में वृवद्ध होती है।
ईस िय शवि में वस्तु का मूल्य वनवहत है। आससे स्पष्ट है क्रक मुद्रा में ऄप्रत्यक्ष ूपप से क्रकसी भी
वस्तु का मूल्य संग्रवहत है। आसी प्रकार जब ईसका वविय क्रकया जाता है तो वस्तु के वविे ता के ूपप
में वस्तु का मूल्य भी पुन: प्राप्त क्रकया जा सकता है।
 अस्थवगत भुगतानों के मानक (Standard of Deferred Payments) : मुद्रा न के वल वस्तुं
और सेवां के वतथमान लेनदेन की सुववधा प्रदान करती है बवल्क ईनके िे वडट लेनदेन की सुववधा
भी ईपलब्ध कराती है। भववष्य में भुगतान के वलये वतथमान वस्तुं का अदान-प्रदान करते समय
यह िे वडट लेनदेन की सुववधा देती है।
o अस्थवगत भुगतान वे होते हैं, वजनकों भववष्य में देने का वादा क्रकया जाता है। दूसरे शब्दों में
अस्थवगत भुगतान का ऄथथ है क्रक भुगतान तत्काल न करके भववष्य में क्रकसी समय क्रकया जाता है।
वतथमान समय में, अस्थवगत भुगतानों का ब्योरा के वल मौक्रद्रक ूपप में ही वनधाथररत क्रकया जाता

है। आस संबंध में ईदाहरण हैं- ब्याज सवहत ऊण, पेंशन, क्रकराए, वेतन, बीमा, प्रीवमयम अक्रद का
पुनभुथगतान। मुद्रा स्थवगत भुगतानों का एक प्रभावी मानक के वल तभी हो सकता है जब मुद्रा का
मूल्य पररवर्ततत नहीं हो। यक्रद कीमतों में तेजी से वृवद्ध या कमी अती है और वजसके
पररणामस्वूपप मुद्रा के मूल्य में ऄत्यवधक ईतार-चढ़ाव अते हैं, तो आस वस्थवत में मुद्रा अस्थवगत
भुगतान के वलये एक ईवचत मानक नहीं होगी।

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 राष्ट्रीय अय का ववतरण (Distributor of National Income): ईत्पादन प्रक्रिया में लगे हुए
ईत्पादन कारकों द्वारा अय सृजन होता है। भूवम, श्रम, पूज
ं ी और ईद्यम ईत्पादन के साधन हैं।
ईत्पादन आकाइ में लगे आन साधनों में भूवम को लगान, श्रम को मजदूरी, पूंजी को ब्याज और
ईद्यमशीलता को लाभ प्राप्त होता है। िमथ द्वारा लगान, मजदूरी, ब्याज और लाभ मुद्रा के ूपप में
चुकाए जाते हैं। िमथ द्वारा ईत्पादन के साधनों को क्रकया गया भुगतान ईनकी साधन अय (Factor
Income) कहलाती है। आस प्रकार अय वववध का ईपयोग कर राष्ट्रीय अय का मापन क्रकया जाता
है। मुद्रा की ऄनुपवस्थवत में ऐसे ईत्पादन का ववतरण करना संभव नहीं होता।

1.4. मु द्रा के प्रकार (Kinds of Money)


एक अधुवनक ऄथथव्यवस्था के अर्तथक तंत्र में ववद्यमान मुद्रा के ऄंतगथत वनम्नवलवखत घटक सवपूमवलत हैं
 करें सी घटक (Currency component) और
 जमा मुद्रा घटक (Deposit money component)।

1.4.1. करें सी घटक (Currency Component)

करें सी घटक में वसक्के और पत्र मुद्रा शावमल हैं। वसक्कों के ऄंतगथत सभी धावत्वक मुद्राएँ सवपूमवलत हैं।
वसक्कों से सपूबंवधत कु छ महत्वपूणथ त्य वनम्नवलवखत हैं:
 वसक्का, सांकेवतक मुद्रा (टोकन मनी) है। सांकेवतक मुद्रा का ऄंक्रकत मूल्य ईसके यथाथथ मूल्य से
ऄवधक होता है।
 वसक्कों को ढालने पर सरकार का एकावधकार होता है।
 वे छोटे मूल्यों के लेन-देन करने के वलए ईपयोगी होते हैं।
 वे वतथमान में मुद्रा के के वल एक बहुत छोटे ऄंश के ूपप में हैं।
करें सी नोट पत्र मुद्रा को प्रदर्तशत करते हैं, आस सपूबन्ध में वनम्नवलवखत कथन महत्वपूणथ हैं:
 भारत में प्रचवलत लगभग सभी पत्र मुद्रा RBI द्वारा जारी की जाती हैं।
 पत्र मुद्रा का स्वयं का यथाथथ मूल्य बहुत कम होता है।
 यह ऄपररवतथनीय है, ऄथाथत् कें द्रीय बैंक के वलए स्वणथ से आसका वववनमय करने की बाध्यता को
समाप्त कर क्रदया गया है। प्रथम ववश्व युद्ध के बाद, लगभग सभी देशों ने स्वणथ से पररवतथनीयता को
त्याग क्रदया।
 भारतीय ररज़वथ बैंक ऄवधवनयम, 1934 की धारा 26 के ऄनुसार, भारतीय ररज़वथ बैंक पत्र मुद्रा का
मूल्य ऄदा करने के वलए ईत्तरदायी है। भारतीय ररज़वथ बैंक द्वारा यह ऄदायगी करें सी नोट
जारीकताथ होने के नाते है। भारतीय ररज़वथ बैंक पर पत्र मुद्रा के मूल्य की ऄदायगी का यह दावयत्व
क्रकसी संववदा के कारण नहीं ऄवपतु सांवववधक प्रावधानों के कारण है।
 करें सी नोट पर मुक्रद्रत वचन खण्ड ऄथाथत "मैं धारक को "X" रुपये ऄदा करने का वचन देता हँ"
एक वचन है वजसका ऄथथ है क्रक वह करें सी नोट ईस वनर्ददष्ट रावश के वलए वववध मान्य मुद्रा है।
हालांक्रक कागज का मूल्य और धातु का स्वयं का मूल्य आसके वनवल मूल्य से कम होता है, क्रिर भी लोग
वस्तुं के बदले ऐसे नोटों और वसक्कों को स्वीकार करते हैं जो आन तुलना में ऄवधक मूल्यवान हैं। ऐसा
आसवलए है क्योंक्रक करें सी नोटों और वसक्कों का मूल्य आनको जारी करने वाले प्रावधकरण द्वारा प्रदान की
जाने वाली गारं टी से प्राप्त होता है।
चूंक्रक करें सी नोटों और वसक्कों को सरकार के अदेश के तहत जारी क्रकया जाता है ,ऄत: आन्हें ‘क्रिएट
मनी’ कहा जाता हैं। ये व्यापक ूपप से स्वीकायथ मुद्रा है। अज लगभग सभी मुद्रा क्रिएट मनी है। क्रिएट
मनी लोकवप्रय आसवलए है क्योंक्रक यह माल या सेवा की खरीद के वलए भुगतान और कज़थ से मुवि के
वलए परं परागत ूपप से स्वीकार क्रकया जाता है, साथ ही क्रकसी भी तरह के लेन-देन के वनपटारे के वलए
देश के क्रकसी भी नागररक द्वारा आन्हें स्वीकारने से मना नहीं क्रकया जा सकता है, आसवलए आनको लीगल
टेंडर या वववध मान्य मुद्रा (legal tenders) भी कहा जाता है।

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हाल ही में भारत सरकार ने 500 और 1000 रुपये के नोटों का ववमुद्रीकरण क्रकया। वजसका ऄथथ है क्रक
सरकार द्वारा घोवषत वतवथ से ईि नोट लीगल टेंडर नहीं रह गए। आस प्रकार मुद्रा के ववमुद्रीकरण से
तात्पयथ घोवषत वतवथ से ववमुद्रीकृ त मुद्रा के ऄवववधमान्य होने से तथा ववमुद्रीकृ त मुद्रा के स्थान पर नइ
मुद्रा जारी करने से है।

1.4.2. जमा मु द्रा घटक (Deposit money component)

 जमा मुद्रा या बैंक मुद्रा बैंकों में जमा की गइ रावश होती है। आस जमा मुद्रा को चेकों के माध्यम से
हस्तांतररत क्रकया जा सकता है। ऐसी जमा मुद्रा दो प्रकार की हो सकती हैं:
o मांग जमा (Demand Deposits): यह खाताधारकों की मांग पर बैंक द्वारा देय होती हैं,
तथा
o साववध जमा (Time Deposits): साववध जमा में पररपक्वता की एक वनवित ऄववध होती
है। वनधाथररत समय के पिात् खाताधारक आनको वनकाल सकते हैं।
 चेक वस्तुतः बैंक को भुगतान करने या चेक में ईवल्लवखत रावश के बराबर धन स्थानांतरण करने के
वलए एक वनदेश होता है। आन क्रदनों ववशेष ूपप से ऄत्यवधक रावश के लेनदेन के वलए चेक को
भुगतान के एक साधन के ूपप में व्यापक ूपप से स्वीकार क्रकया जाता हैं, हालाँक्रक यह एक लीगल
टेंडर नहीं हैं। कोइ व्यवि कानूनी ूपप से चेक द्वारा भुगतान स्वीकार करने से मना कर सकता है
क्योंक्रक आसकी कोइ गारं टी नहीं है क्रक बैंक ईि रावश का भुगतान करे ही, क्योंक्रक ऄपयाथप्त जमा
रावश होने के मामले में बैंक ईि चेक में ईवल्लवखत रावश का भुगतान करने से मना कर सकता है।

1.5. भारत में मु द्रा की अपू र्तत (Money Supply in India)

 मुद्रा अपूर्तत का ऄथथ क्रकसी क्रदए गए समय में देश की ऄथथव्यवस्था में प्रचवलत मुद्रा की कु ल अपूर्तत
से है। आसका अशय एक ऄथथव्यवस्था में क्रकसी भी समय पर मुद्रा की ईस मात्रा से है जो पररवारों,
िमषों या व्यापाररक संस्थानों द्वारा लेन-देन और ऊणों के वनपटान के वलए रखी गइ है। दोहरी
गणना से बचने के वलए मुद्रा के ईत्पादकों (RBI, सरकार, वावणवययक बैंकों अक्रद) को आसमें
सवपूमवलत नहीं क्रकया जाता है।
 कु छ ऄथथशावस्त्रयों द्वारा मुद्रा अपूर्तत को मुद्रास्िीवत को वनयंवत्रत करने का एक महत्वपूणथ साधन
माना जाता है। ऄथथशास्त्री क्रकसी ऄथथव्यवस्था में मुद्रा की अपूर्तत का ववश्लेषण करते हैं तथा
ऄथथव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा को कम या ऄवधक कर तथा ब्याज दरों को वनयंवत्रत करके अर्तथक
नीवतयों का वनमाथण करते हैं। भारतीय ररजवथ बैंक द्वारा मुद्रा अपूर्तत के अंकड़ों को समय-समय पर
एकवत्रत, पंजीकृ त और प्रकावशत क्रकया जाता है।

1.5.1. मु द्रा अपू र्तत का मापन (Measures of Money Supply)

मुद्रा अपूर्तत के मापन के वलए M1, M2, M3 और M4 का ईपयोग क्रकया जाता हैं।
M1 या संकीणथ मुद्रा
 आसमें ईन सभी ववत्तीय पररसंपवत्तयों को सवपूमवलत क्रकया जाता है, वजन्हें अमतौर पर भुगतान के
साधन के ूपप में स्वीकार क्रकया जाता है।

M1 = जनता के पास करें सी (नोट, वसक्के अक्रद) + वावणवययक बैंकों के पास रखी गयी जनता की वनवल
मांग जमायें + भारतीय ररज़वथ बैंक के पास ऄन्य जमायें।

 M1 को संकीणथ मुद्रा के ूपप में जाना जाता हैं क्योंक्रक आसके ऄंतगथत मुद्रा को संकीणथ ूपप में
पररभावषत क्रकया गया है तथा M1 संकल्पना मुद्रा के के वल वववनयमन के माध्यम प्रकायथ पर जोर
देती है तथा के वल ईन्हीं पररसंपवत्तयों को सवपूमवलत करती है जो ऄत्यवधक तरल हैं।

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 यहाँ ‘वनवल’ शब्द का ऄथथ है क्रक वावणवययक बैंकों के पास रखी गयी जनता की के वल मांग जमायें
हीं आसके ऄंतगथत सवपूमवलत की जाती हैं; आं टरबैंक जमायें, जो क्रकसी एक वावणवययक बैंक द्वारा
ऄन्य वावणवययक बैंकों में रखी जाती हैं, को मुद्रा अपूर्तत के ूपप में नहीं माना जाता है।
 मांग जमा वस्तुतः जनता द्वारा बैंकों में जमा की गयी रावश होती है और RBI के पास ऄन्य जमा
भी आसमें शावमल होती है। लोग बैंकों में आन जमां के वनवमत्त ही चेक जारी करते हैं। ऄन्य जमा
घटकों में RBI में RBI के पूवथ गवनथर जैसे कु छ व्यवियों द्वारा की गयी जमा (के वल कु छ ही लोगों
को ऐसा करने की ऄनुमवत है) को शावमल क्रकया जाता है।
M2

M2 = M1 + डाक घर बचत जमायें

 डाकघर की बचत जमा वस्तुतः वावणवययक बैंक बचत की तुलना में कम तरल होती है। डाकघर में
रखी बचत जमा मांग पर अहररत की जा सकती हैं, लेक्रकन आसपर वनम्नवलवखत प्रवतबंध होते हैं:
o आन जमारावशयों का बहुत कम वहस्सा चेक के द्वारा अहरण योग्य होता है।
o क्रकसी भी सप्ताह में आनके अहरण की संख्या पर प्रवतबंध होता है।
o प्रत्येक अहरण की रावश की ऄवधकतम सीमा तय होती है (जब तक क्रक डाक घर को कोइ
ऄवग्रम सूचना नहीं दी जाती है)।
 पररणामस्वरुप, पोस्ट ऑक्रिस की बचत जमा वववनमय के माध्यम के ूपप स्वीकार में नहीं की जा
सकती है और वावणवययक बैंक जमां की तुलना में कम तरल होती है।
M3 या या ववस्तृत मुद्रा

M3 = M1 + सभी व्यापाररक बैंकों और सहकारी बैंकों के साववध जमा (आं टरबैंक साववध जमा को
वनकालकर)

 कु छ ऄथथशावस्त्रयों का मानना है क्रक साववध जमां को मुद्रा अपूर्तत में सवपूमवलत क्रकया जाना
चावहए क्योंक्रक वे वनवित ूपप से मुद्रा के भंडार का एक महत्वपूणथ ूपप हैं, क्योंक्रक ईनके अधार पर
जमाकताथ बैंकों से ईधार ले सकते हैं। आसके ऄवतररि, कु छ मामलों में जमाकताथं को ब्याज में
कु छ कटौती और जुमाथना देने के बाद ऄपनी जमा रावश वापस वनकलवाने की ऄनुमवत होती है।
 आसे व्यापक या ववस्तृत मुद्रा (broad money) ूपप में भी जाना जाता है क्योंक्रक आसमें धन की
व्यापक पररभाषा शावमल है। M1 व M3 में मुख्य ऄंतर साववध जमा को सवपूमवलत करना एवं
नहीं करना है, संकीणथ मुद्रा में साववध जमा को सवपूमवलत नहीं क्रकया जाता हैं क्योंक्रक वह
वास्तववक ऄथषों में तरल नहीं हैं। M3 सवाथवधक ईपयोग में वलया जाना वाला मुद्रा अपूर्तत का
मापक है, यह सकल मौक्रद्रक संसाधनों के ूपप में भी जाना जाता है।
M4

M4 = M3 + डाक घर की कु ल जमा (डाक घर में साववध जमा सवपूमवलत क्रकये जाते हैं लेक्रकन राष्ट्रीय
बचत प्रमाण पत्र सवपूमवलत नहीं होते है)

M3 एवं M4 दोनों को ववस्तृत मुद्रा के ूपप में जाना जाता हैं। ईपयुथि सभी घटकों में करें सी घटक
सवाथवधक तरल है, आसके बाद मांग जमा (मांग पर सरलता से मुद्रा में पररवतथनीय) तत्पिात डाक घर
में जमा रावश घटक का स्थान अता है। आसी तरह, साववध जमा के मामले में तरलता कम होती है
क्योंक्रक ईन्हें के वल पररपक्वता ऄववध पर ही नकदी में पररवर्ततत क्रकया जा सकता है ऄन्यथा ब्याज में
कु छ कटौती और जुमाथना अरोवपत क्रकया जाता है। M1 लेनदेन के वलए सबसे तरल और सबसे असान
है जबक्रक M4 सबसे कम तरल है।

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मुद्रा की अपूर्तत एवं तरलता
नाम प्रकार तरलता

M1 संकीणथ मुद्रा सवाथवधक

M2 संकीणथ मुद्रा M1 से कम

M3 ववस्तृत मुद्रा M2 से कम

M4 ववस्तृत मुद्रा सबसे कम

1.5.2. ईच्च शवि प्राप्त मु द्रा (High Powered Money)

 देश के मौक्रद्रक प्रावधकरण RBI की कु ल देयता को मौक्रद्रक अधार या ईच्च शवि प्राप्त मुद्रा कहा
जाता हैं। ईच्च शवि प्राप्त मुद्रा का अशय ईस मुद्रा से है, जो लोगों द्वारा करें सी (C), बैंकों के
सुरवक्षत कोष (R) तथा भारतीय ररजवथ बैंक की ऄन्य जमां के ूपप में होती हैं। ईच्च शवि प्राप्त
मुद्रा भारतीय ररजवथ बैंक और भारत सरकार द्वारा जारी की जाती है।

1.6. भारत में मु द्रा की अपू र्तत को प्रभाववत करने वाले कारक

जनता के मध्य मुद्रा अपूर्तत की मात्रा देश के कें द्रीय बैंक एवं व्यापाररक बैंकों द्वारा प्रभाववत होती है।
ऄपनी राजकोषीय नीवत के द्वारा सरकार भी कु छ हद तक मुद्रा अपूर्तत को प्रभाववत करती है।
 कें द्रीय बैंक एवं मुद्रा अपूर्तत: एक देश का कें द्रीय बैंक मुद्रा अपूर्तत को प्रत्यक्ष और ऄप्रत्यक्ष दोनों
तरीकों से प्रभाववत करता है। यह करें सी नोटों व वसक्कों के वनगथमन के वलए प्रत्यक्ष ूपप से
ईत्तरदायी होता है। दूसरी ओर यह जमां को परोक्ष ूपप से प्रभाववत करके मुद्रा की अपूर्तत को
प्रभाववत कर सकता है। हम जानते हैं क्रक व्यापाररक बैंक ऄपने नकद शेषों को ध्यान में रखकर
जमा का सृजन कर सकते हैं। यक्रद कें द्रीय बैंक ऐसी वववधयों का प्रयोग करता है वजससे क्रक
व्यापाररक बैंकों के नकद शेष घट जाए तो वे कम ऊण और ऄवग्रम दे सकें गे और कम वनक्षेपों का
वनमाथण कर सकें गे। आसी प्रकार यक्रद कें द्रीय बैंक ऄपनी शवि का प्रयोग व्यापाररक बैंकों के नकद
शेष बढ़ाने के वलए करता है तो आसका उपर बताये गये प्रभाव से एकदम ववपरीत प्रभाव पड़ेगा।
आस प्रकार कें द्रीय बैंक मुद्रा अपूर्तत को प्रभाववत करने के वलए वनयंत्रण के वववभन्न ईपायों का
प्रयोग करता है जैसे क्रक व्यापाररक बैंकों की सवाथवधक न्यूनतम रवक्षत वनवध में पररवतथन, बैंकों के
ब्याज दर ढाँचे में पररवतथन, खुले बाज़ार की संक्रियाएं और व्यापाररक बैंकों के वलए ऊण देने
संबध ं ी नीवत।
 व्यापाररक बैंक और मुद्रा की अपूर्तत: व्यापाररक बैंक माँग जमा या बैंक मुद्रा का सृजन कर सकते
हैं। आन जमा का वनमाथण दो तरीकों से क्रकया जाता है:
o जब लोग धन को बैंक में जमा करते हैं तो वे ऄपने नकद रावश को माँग जमा में पररवर्ततत कर
देते हैं। ये जमा प्राथवमक जमा कहलाते हैं।
o आन प्राथवमक जमा से बैंककग व्यवस्था में प्रवेश करने वाली नकद रावश द्वारा या तो बाज़ार से
ववत्तीय संपवत्तयाँ (जैसे वबल, बांड अक्रद) ख़रीद ली जाती है या ईसे ईद्योग और व्यापार को
ईधार दे क्रदया जाता है। जब कोइ बैंक क्रकसी ग्राहक को ऊण देता है तो वह ईसे नकद रावश
नहीं देता, बवल्क ग्राहक के खाते में ऊण की रावश िे वडट कर देता है। क्योंक्रक आन जमा का
प्राथवमक जमा के अधार पर सृजन क्रकया गया है आसवलए आन्हें व्युत्पन्न जमा कहते है। यक्रद
बैंक एक दी हुइ प्राथवमक जमा की रावश पर ऄवधक ऊण दे सकें तो आससे बैंक मुद्रा और
ऄवधक हो जाएगी। यह ध्यान रखें की साववध जमा साख वनमाथण का अधार नहीं बनती हैं
क्योंक्रक ये भुगतानों के माध्यम के ूपप में प्रयोग नहीं की जाती हैं। ये तो के वल एक वनवित
समय के वलए बचत होती हैं।

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o बैंककग प्रणाली द्वारा बैंक मुद्रा का सृजन करने की क्षमता वनम्नवलवखत कारकों पर वनभथर
करती है:
 बैंककग प्रणाली में नकदी की ईपलब्धता,

 बैंककग प्रणाली के ऊण लेने की आच्छा,

 नकदी व बैंक जमां का ऄनुपात,


 देश के कें द्रीय बैंक की साख नीवत अक्रद।
 सरकार और मुद्रा की अपूर्तत: सरकार भी मुद्रा की अपूर्तत को प्रभाववत करती है। सरकार कराधान
के माध्यम से ऄथवा लोगों से ऊण प्राप्त कर लोगों के पास ववद्यमान नकदी की मात्रा को कम
करती है। दूसरी ओर कराधान व सावथजवनक ऊण से प्राप्त प्रावप्तयाँ सरकार के व्यय से कम होने पर
वह कें द्रीय बेंक से (ऄपनी प्रवतभूवतयों पर) ऄपने देयताओ को भुगतान करने के वलए ऊण लेती है।
आससे लोगों के पास और बैंककग प्रणाली के पास नकदी की ईपलब्धता पररवर्ततत होती है तथा
आसके साथ-साथ ऄथथव्यवस्था की साख में वृवद्ध या कमी करने की क्षमता भी प्रभाववत होती है।
आसवलए वनष्कषथ के ूपप में कहा जा सकता है क्रक वनम्नवलवखत वस्थवतयों में ऄथथव्यवस्था में मुद्रा की
अपूर्तत बढ़ेगी:
o जब जनता ऄपने पास कम नकद रावश रखना चाहती है और बैंककग प्रणाली से ऄवधक ऊण
लेने को तैयार है।
o जब व्यापाररक बैंक ऄवधक साख का वनमाथण करें ।
o जब कें द्रीय बैंक ऄवधक करें सी का वनगथमन करे या ऐसी मुद्रा नीवत ऄपनायें जो साख के
ववस्तार में सहायक हो।

मुद्रा जमा ऄनुपात (The currency deposit ratio): यह वस्तुतः लोगों द्वारा बैंक में जमा की गयी
रावश की तुलना में ईनके द्वारा करें सी में धाररत रावश (धन) का ऄनुपात है।
मुद्रा जमा ऄनुपात (cdr) = संचरण में मुद्रा (Money in Circulation; CU) / मांग जमा (Demand

Deposits;DD)
आससे तरलता के संदभथ में लोगों की वरीयता का पता चलता है। यह ववशुद्ध ूपप से व्यवहार संबंधी
मापदंड है जो ऄन्य बातों के साथ-साथ, व्यय के मौसमी पैटनथ पर वनभथर करता है। ईदाहरण के वलए,

त्यौहारों के समय के दौरान मुद्रा जमा ऄनुपात बढ़ जाता है, क्योंक्रक लोग ऐसी ऄववध के दौरान ऄवतररि
व्यय की पूर्तत के वलए जमां को नकद शेष रावश में पररवर्ततत कर देते हैं।
अरवक्षत जमा ऄनुपात (The Reserve Deposit Ratio): बैंक वस्तुतः लोगों के बैंक जमां के ूपप में
रखी गयी मुद्रा का एक भाग ऄपने पास अरवक्षत मुद्रा के ूपप में रखते हैं और शेष रावश को वववभन्न
वनवेश पररयोजनां के वलए ऊण देते हैं। अरवक्षत मुद्रा दो प्रकार की रावशयों से वमलकर बनती है- बैंकों
में जमा नकद रावश और RBI के पास वावणवययक बैंकों की जमा रावशयां। खाताधारकों के नकदी की मांग

को पूरा करने के वलए बैंक आस अरवक्षत मुद्रा का ईपयोग करते हैं। अरवक्षत जमा ऄनुपात (RDR) कु ल

जमां का ऄनुपात है, वजसे वावणवययक बैंक अरवक्षत रखते हैं। बैंकों के वलए यह RDR एक महंगी

प्रक्रिया है, क्योंक्रक ऐसा नहीं होने पर वे आस शेष रावश को ऊण के ूपप में ईपलब्ध कराकर ब्याज ऄर्तजत

कर सकते हैं। हालांक्रक, RBI बैंक ग्राहकों द्वारा की जाने वाली वनकासी को बाधारवहत बनाने के वलए ही

वावणवययक बैंकों के वलए RDR को ऄवनवायथ बनाता है।

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RBI वावणवययक बैंकों के पास ईवचत मात्रा में अरवक्षत जमा ऄनुपात को बनाए रखने के वलए वववभन्न

नीवतगत साधनों का ईपयोग करता है। पहला साधन नकद अरवक्षत ऄनुपात (CRR) है, जो ईनकी जमा

रावशयों का वह ऄंश वनर्ददष्ट करता है वजसे बैंकों को RBI के पास रखना होता है। सांवववधक तरलता

ऄनुपात (SLR) नामक एक ऄन्य साधन है, जो बैंकों से ऄपनी कु ल मांग और साववध जमां का एक

वनवित ऄंश वनर्ददष्ट तरल अवस्तयों के ूपप में बनाए रखने की मांग करता है। आन ऄनुपातों के ऄवतररक्त,

अरवक्षत जमा ऄनुपात (RDR) को ध्यान में रखते हुए RBI बैंक दर (bank rate) नामक एक वनवित

ब्याज दर का ईपयोग करता है। अरवक्षत मुद्रा की कमी होने पर वावणवययक बैंक RBI से बैंक दर पर

पैसा ईधार ले सकते हैं। ईच्च बैंक दर के कारण RBI से पैसा लेना बैंकों को महंगा पड़ता है ऄतः वववश
होकर वावणवययक बैंक एक ईवचत मात्रा में अरवक्षत जमा ऄनुपात बनाए रखते हैं।
सरकार राजकोषीय नीवत के माध्यम से भी कु छ सीमा तक मुद्रा अपूर्तत को वनयंवत्रत करती है। आस पहलू
का ववस्तृत वववरण मौक्रद्रक नीवत पर दस्तावेज़ में क्रदया गया है।

2. बैं ककग (Banking)


 बैंक वे ववत्तीय संस्थान हैं जो जमा स्वीकार करते हैं और ऊण प्रदान करते हैं। एक ववस्तृत संदभथ में
बैंकों के ऄंतगथत वावणवययक बैंक, बचत और ऊण संगठन, पूयूचऄ
ू ल सेसवग बैंक, िे वडट यूवनयन
अक्रद सवपूमवलत हैं। बैंक वस्तुतः ववत्तीय मध्यस्थ होते हैं जो जन सामान्य को त्वररत बैंककग सेवा
प्रदान करते हैं। ईदाहरणस्वूपप यक्रद क्रकसी व्यवि को घर या कार खरीदने के वलए ऊण की
अवश्यकता होती है, तो वह अम तौर पर आस ऊण के वलये स्थानीय बैंक से संपकथ करता है।
 ऄवधकांश व्यवि बचत खातों या ऄन्य प्रकार के बैंक जमां के ूपप में बैंकों में ऄपनी ववत्तीय
पररसंपवत्तयों का एक बड़ा वहस्सा रखते हैं। चूंक्रक बैंक हमारी ऄथथव्यवस्था में सबसे बड़े ववत्तीय
मध्यस्थ हैं, आसवलए ईनकी कायथप्रणाली का स्पष्ट ज्ञान अवश्यक है। एक ववत्तीय संस्थान को एक
बैंक की भांवत कायथ करने के वलये वनम्नवलवखत तीन कायथ करना अवश्यक हैं:
o जमा स्वीकार करना: बैंक बड़े पैमाने पर जनता से जमा स्वीकार करते हैं, जो मांग पर
प्रवतदेय होती है तथा खाताधारक द्वारा चेक या ऄन्य क्रकसी माध्यम से आसकी वनकासी की
जाती है।
o ऊण प्रदान करना: बैंक द्वारा दूसरों को ईधार देने और प्रवतभूवतयों (वसक्योररटीज) में वनवेश
करने के वलए आन जमारावशयों का ईपयोग क्रकया जाता हैं।
o मुद्रा का प्रवाह संभव बनाना: यह वावणवययक बैंकों की एक ईल्लेखनीय ववशेषता है। ईनके
द्वारा प्रदान क्रकए गए ऊण ऄथथव्यवस्था में मुद्रा का प्रवाह संभव बनाते हैं। बैंक ऄपनी ऊण
गवतवववधयों के माध्यम से साख का सृजन करते हैं, साथ ही सृवजत धन का वववभन्न कायषों के
वलये ईपयोग भी करते हैं। बैंक द्वारा सृवजत यह मुद्रा जमा रावश या बैंक मुद्रा के ूपप में जानी
जाती है।
 क्रकसी ववत्तीय संस्थान को बैंक के ूपप में कायथ करने के वलए के वल एक कायथ को करना पयाथप्त नहीं
है, ईसे ईपरोि तीनों को ऄवनवायथ ूपप से पूरा करना अवश्यक है।

2.1. भारतीय बैं ककग प्रणाली

भारत में संगरठत बैंककग क्षेत्र को कइ ऄलग-ऄलग तरीकों से वगीकृ त क्रकया जाता है। सामान्यत: यह
वगीकरण वनम्नवलवखत प्रकार से क्रकया जाता है:
 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
 सहकारी बैंक
 वावणवययक बैंक

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2.1.1. क्षे त्रीय ग्रामीण बैं क (Regional Rural Banks: RRBs)

 ग्रामीण क्षेत्रों में कृ वष, व्यापार, वावणयय तथा ऄन्य ईत्पादक गवतवववधयों के वलए, ववशेष ूपप से
छोटे एवं सीमांत क्रकसानों, खेवतहर मजदूरों, दस्तकारों एवं छोटे ईद्यवमयों के वलए और ईनसे
संबंवधत मामलों के वलए ऊण और ऄन्य सुववधां की ईपलब्धता तथा ग्रामीण ऄथथव्यवस्था के
ववकास के ईद्देश्य से सरकार ने वषथ 1975 में नरससहम सवमवत का गठन क्रकया। आस सवमवत की
वसिाररशों के अधार पर वसतंबर 1975 में एक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ऄध्यादेश लागू क्रकया गया
और बाद में आसकी जगह क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ऄवधवनयम, 1976 लाया गया। आन्हें मुख्यत: ‘स्माल
मैन बैंक’ के नाम से जाना जाता है।
 RRBs वनम्नवलवखत ईद्देश्यों की प्रावप्त के वलये स्थावपत क्रकए गए थे:
o ग्रामीण क्षेत्रों में बचत को बढ़ावा देकर िे वडट प्रवाह को बढ़ाने के वलए तथा
o ररयायती दरों पर कमजोर वगषों को ऊण देने के वलए।
 हालांक्रक आन बैंकों की गणना ऄनुसवू चत वावणवययक बैंकों के ूपप में की जाती है लेक्रकन आनकी पहुंच
अमतौर पर एक या दो वजलों तक ही सीवमत होती है। जैसे ऄसम ग्रामीण ववकास बैंक,
आलाहाबाद यू.पी. ग्रामीण बैंक, बड़ौदा गुजरात ग्रामीण बैंक अक्रद क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के कु छ
ईदाहरण हैं।
 आन बैंकों को सावथजवनक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) द्वारा स्थावपत क्रकया गया है और वजस PSB द्वारा
RRB की स्थापना की जाती है ईसे RRB का प्रायोजक या प्रवतथक बैंक (sponsor bank) कहा
जाता है। आसके वलये भारत सरकार, संबंवधत रायय सरकार एवं प्रवतथक बैंक ऄग्रवलवखत ऄनुपात
में बैंक पूँजी साझा करते हैं। यह ऄनुपात िमशः 50%, 15% एवं 35% के ऄनुपात में होता है।
आन प्रायोजक बैंकों के वलए वनम्नवलवखत बातें अवश्यक होती हैं:
o क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की पूज
ं ी में वहस्सेदारी,
o ईनके कर्तमयों को प्रवशवक्षत करना एवं
o प्रबंधकीय और ववत्तीय सहायता प्रदान करना।
 1997 से RRBs को लवक्षत समूह के बाहर भी ऊण देने की छू ट दे दी गयी थी। कम लाभप्रद
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को योग्य व कायथक्षम बैंकों के साथ ववलय करने का प्रयास क्रकया जा रहा हैं
क्योंक्रक ऄवधकतर RRBs घाटे में चल रही हैं। साथ ही आन्हें ऄवधक स्वायत्तता भी दी गयी है।

2.1.2 सहकारी बैं क (Cooperative Banks)

 सहकारी बैंक वस्तुतः सहकारी वसद्धांतों के अधार पर स्थावपत एक संस्था होते हैं और साधारण
बैंककग व्यवसाय में क्रियाशील होते हैं। आन्हें सहकारी बैंक कहा जाता है क्योंक्रक वहतधारकों के साथ
सहयोग आनका ईद्देश्य होता है। सहकारी बैंकों के बारे में ध्यान देने योग्य कु छ सबदु वनम्नवलवखत हैं:
o ये रायय के कानूनों द्वारा स्थावपत होते हैं एवं सहकारी सोसायटी ऄवधवनयम, 1912 के तहत
पंजीकृ त होते हैं।
o ये भारतीय ररजवथ बैंक द्वारा बैंककग वववनयमन ऄवधवनयम, 1949 और बैंककग वनयम
(सहकारी सोसाआटी पर लागू) ऄवधवनयम, 1965 {Banking Laws (Application to Co-
operative Societies) Act, 1965} के द्वारा वववनयवमत होते हैं।
o कु छ व्यवि समूह बनाकर एक सहकारी बैंक स्थावपत कर सकते हैं।
o ये कृ वष एवं संबद्ध क्षेत्रों, कु टीर ईद्योगों एवं ग्रामोद्योग के ववत्तपोषण के ईद्देश्य से स्थावपत
क्रकए गए हैं।
o आनके द्वारा जमा रावश स्वीकार की जाती हैं और साथ ही ईधार देने का कायथ भी क्रकया जाता
हैं।
o ये वनणथय प्रक्रिया में 'एक व्यवि एक वोट' के वसद्धांत पर काम करते हैं।

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o वावणवययक बैंकों के लाभ के ईद्देश्य से संचावलत होते हैं। आसके ववपरीत, सहकारी बैंक "नो
प्रॉक्रिट,नो लॉस" के अधार पर काम करते हैं।
o भारत में सहकारी क्षेत्र पर वनयंत्रण के वलए नाबाडथ सवोच्च संस्था है।

राष्ट्रीय कृ वष एवं ग्रामीण ववकास बैंक: नाबाडथ


(National Bank for Agriculture and Rural Development: NABARD)
ध्ये य : "प्रभावी ऊण सहायता, सपूबं वधत से वां , सं स्था ववकास और ऄन्य नवोन्मे षी प्रयासों के
माध्यम से सतत और समतामू ल क कृ वष और ग्रामीण समृ वद्ध . "
 कृ वष और ग्रामीण ववकास के वलए शीषथ ववकास बैंक के ूपप में नाबाडथ की स्थापना भारतीय संसद के
एक ऄवधवनयम द्वारा 12 जुलाइ 1982 को की गइ। नाबाडथ की स्थापना वशवरमन सवमवत की
संस्तुवत पर हुइ। आसका मुख्यालय मुंबइ में है।
 आसे समवन्वत ग्रामीण ववकास के संवधथन और समृवद्ध हावसल करने के वलए कृ वष, लघु ईद्योगों, कु टीर
एवं ग्रामोद्योगों, हस्तवशल्प, ग्रामीण वशल्प और ग्रामीण क्षेत्रों में ऄन्य ऄनुषंगी अर्तथक गवतवववधयों
के वलए ऊण ईपलब्ध कराने एवं ईसका वववनयमन करने का कायथ (ऄवधदेश) सौंपा गया है।
 संवधथन और ववकास, पुनर्तवत्त, ववत्तपोषण, अयोजना और ऄनुप्रवतथन तथा पयथवेक्षण सवहत नाबाडथ
के कु छ प्रमुख कायथ वनम्नवलवखत हैं:
o ऊण अयोजना और ऄनुप्रवतथन, वववभन्न एजेवन्सयों और संस्थां के साथ समन्वय।
o कृ वष और ग्रामीण ववकास से संबंवधत मामलों पर भारत सरकार, भारतीय ररज़वथ बैंक और
रायय सरकारों की नीवत वनमाथण में सहयोग।
o ग्रामीण ऊण प्रदान करने को सुदढ़ृ बनाने के वलए सहकाररतां और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों
(RRBs) का संस्थागत ववकास व क्षमता वनमाथण।
o क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, रायय सहकारी बैंकों और वजला मध्यवती सहकारी बैंकों का सांवववधक
वनरीक्षण तथा रायय सहकारी कृ वष और ग्रामीण ववकास बैंकों का स्वैवच्छक वनरीक्षण व ईनकी
वनगरानी।
o कृ वष, गैर-कृ वष, सूक्ष्म ववत्त, सरकार प्रायोवजत कायथिमों के साथ तालमेल, ववत्तीय समावेशन
के क्षेत्रों में संवधथनात्मक व ववकासात्मक पहल।
o क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और सहकारी बैंकों के ववत्तीय समावेशन के प्रयासों में सहायता।
o अजीववका ऄवसरों और सूक्ष्म ईद्यमों के संवधथन पर बल।
o ऄनुसंधान और ववकास, ग्रामीण नवोन्मेषण अक्रद के क्षेत्र में सहयोग।
 ग्रामीण ऊण संस्थानों के संचालन में नाबाडथ एक समन्वयक के ूपप में कायथ करता है। यह ग्रामीण
ववकास से संबंवधत मामलों में सरकार, ररज़वथ बैंक ऑि आं वडया और ऄन्य संगठनों की सहायता
करता है। ग्रामीण ववकास के क्षेत्र में कायथरत बैंकों, सहकारी सवमवतयों और संगठनों को दक्षतापूवक

कायथ करने के वलए प्रवशक्षण और ऄनुसंधान सुववधाएं प्रदान करता है। साथ ही यह कृ वष एवं ग्रामीण
ववकास में संलग्न संस्थां को सहायता प्रदान कर रायय सरकारों को ईनके लक्ष्यों की प्रावप्त में मदद
करता है।
 नाबाडथ सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के वलए एक वनयामक के ूपप में भी कायथ करता है।
नाबाडथ की सबसे महत्वपूणथ भूवमका में से एक भागीदार एजेंवसयों और ववकास संस्थानों की क्षमता
वनमाथण है। आसके ऄवतररि नाबाडथ ग्रामीण बैंककग, कृ वष और ग्रामीण ववकास के क्षेत्र में ऄध्ययन,
शोध, तकनीकी-अर्तथक और ऄन्य सवेक्षणों सवहत सूचना के प्रसार और ऄनुसंधान को बढ़ावा देने के
वलए प्रवशक्षण प्रदान करने हेतु सुववधाएं प्रदान करता है। यह कृ वष एवं ग्रामीण ववकास सं बध
ं ी
गवतवववधयों में संलग्न क्रकसी भी व्यवि को तकनीकी, कानूनी, ववत्तीय, ववपणन और प्रशासवनक
सहायता प्रदान करता है। आस प्रकार ऐवतहावसक ूपप से, नाबाडथ ने देश के ग्रामीण आलाकों में गरीबी
ईन्मूलन में एक महत्वपूणथ भूवमका वनभाइ है तथा समेक्रकत ग्रामीण ववकास का संवधथन और ग्रामीण
क्षेत्रों की समृवद्ध सुवनवित की है।

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सहकारी बैंकों के प्रकार

 सहकारी बैंकों को शहरी और ग्रामीण सहकारी बैंकों में ववभावजत क्रकया जाता है। नीचे प्रदर्तशत
फ्लो चाटथ आन दोनों प्रकारों को पुन: ऄल्पकालीन संरचना और दीघथकालीन संरचना में ववभावजत
क्रकया जाता है:

वचत्र:1 सहकारी संस्थां की संरचना

2.1.2.1. शहरी सहकारी बैं क (Urban Cooperative Banks: UCBs)

 यद्यवप शहरी सहकारी बैंकों (UCBs) की कोइ औपचाररक पररभाषा नहीं है तथावप आसका
तात्पयथ शहरी व ऄधथ-शहरी क्षेत्रों में वस्थत प्राथवमक सहकारी बैंकों से है। प्राथवमक सहकारी बैंक,

आन क्षेत्रों के ग्राहकों की ववत्तीय अवश्यकतां की पूर्तत करते हैं। 1996 तक आन बैंकों को के वल


गैर-कृ वष संबंधी गवतवववधयों के वलए ऊण देने की ऄनुमवत दी गइ थी, परं तु वतथमान में ये छोटे
ऊणकताथं और कारोबाररयों को भी ऊण प्रदान करते हैं। आनके पररचालन क्षेत्र में ऄत्यवधक
ववस्तार हुअ है।
 भारत में शहरी सहकारी बैंककग गवतवववधयों की ईत्पवत्त ईन्नीसवीं सदी के ऄंत में देखी जा सकती
है। यह वह दौर था जब विटेन में सहकारी अंदोलन से संबंवधत प्रयोगों की सिलता और जमथनी में
सहकारी साख अंदोलन से प्रेररत होकर भारत में ऐसी सवमवतयों की स्थापना की गइ थी।
सहकारी सवमवतयां सहयोग, पारस्पररक सहायता, लोकतांवत्रक वनणथय वनमाथण और ईन्मुक्त
सदस्यता के वसद्धांतों पर अधाररत हैं। सहकारी सवमवतयों ने स्वावमत्वाधीन िमषों , साझेदारी िमषों
और यवाआं ट स्टॉक कं पवनयों के ववपरीत संगठन के प्रवत एक नवीन और वैकवल्पक दृवष्टकोण प्रदान
क्रकया।
शहरी सहकारी बैंकों (UCBs) के समक्ष चुनौवतयां
 वववभन्न प्रकार के प्रवतबंधों के कारण UCBs की संसाधन जुटाने की क्षमता प्रभाववत होती है। साथ
ही ऄपने ऄवधशेष संसाधनों के वनवेश के वलए ऄपनी नीवतयां तैयार करने में आनकी ऄसमथथता
आनके दायरे को कम करती है। आसके ऄवतररि ये वसूली के वनम्न स्तर, ईच्च लेनदेन लागत और
बढ़ती प्रवतस्पधाथ की समस्यां का भी सामना कर रहे हैं।
 आनके वनदेशक मंडल में नामांकन के माध्यम से सरकार आनका ऄप्रत्यक्ष वववनयमन करती है, पुनः
आन सवमवतयों में सरकारी ऄवधकाररयों की प्रवतवनयुवि के कारण आनकी स्वायत्तता भी प्रभाववत
होती है।

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सहकारी शहरी बैंकों के वलये टास्क िोसथ
 ररज़वथ बैंक द्वारा एक ही रायय में वस्थत शहरी सहकारी बैंकों के वलए रायय स्तरीय कायथबल
(TAFCUB- Task Force on Cooperative Urban Banks) का गठन क्रकया गया है।
बहुराययीय शहरी सहकारी बैंकों के वलए कें द्रीय TAFCUB का गठन क्रकया है।
 TAFCUB शहरी सहकारी बैंकों के संदभथ में सभी वनणाथयकों को एक मंच पर लाती है ताक्रक
त्वररत वनणथय वलए जा सके । TAFCUB बैठकों के दौरान रायय में मौजूद ऄथथक्षम (व्यवहायथ) और
गैर-ऄथथक्षम शहरी सहकारी बैंकों का पता लगाया जाता है तथा ऄथथक्षम बैंकों के वलए सुधारात्मक
ईपाय के सुझाव क्रदए जाते हैं और गैर-ऄथथक्षम बैंकों को बाधा रवहत वनष्कासन के मागथ बताए जाते
हैं। गैर-ऄथथक्षम बैंकों का वनष्कासन या तो सुदढ़ृ बैंकों के साथ ववलयन/समामेलन के माध्यम से हो
सकता है या सवमवतयों में ूपपांतररत होकर या ऄंवतम ईपाय के तौर पर पररसमापन के माध्यम से
हो सकता है।
शहरी सहकारी बैंकों पर गांधी सवमवत
 नए शहरी सहकारी बैंकों की लाआसेंससग पर ववशेषज्ञ सवमवत (मालेगाम सवमवत) की वसिाररश के
ऄनुसार शहरी सहकारी बैंकों के वलए नए लाआसेंस जारी करने के वलए समयानुकूलता वनधाथररत
करने के ऄवतररि, शहरी सहकारी बैंकों के वावणवययक बैंकों में ूपपांतरण संबंधी मुद्दों की जांच
करने और ऄनुज्ञय
े व्यापार लाआनों और ईवचत जांच एवं वसिाररश करने के वलए 30 जनवरी
2015 को, ररजवथ बैंक ने श्री अर. गांधी (वडप्टी गवनथर, भारतीय ररजवथ बैंक) की ऄध्यक्षता में एक
ईच्चावधकार प्राप्त सवमवत (HPC) के गठन की घोषणा की थी। आस सवमवत ने ऄगस्त, 2015 में
ऄपनी ररपोटथ सौंपी, आसमें वनम्नवलवखत वसिाररशें की गयी हैं:
o एक से ऄवधक राययों में ईपवस्थवत शहरी सहकारी बैंक वजनके कारोबार का अकार 20 हजार
करोड़ रुपये या ऄवधक का है, ईन्हें व्यावसावयक बैंक में ूपपान्तररत क्रकया जा सकता है।
हालांक्रक यह ूपपांतरण ऄवनवायथ नहीं था। आससे ईन्हें अगे बढने और ववत्तीय समावेशन के
वलए बढ़ावा वमलेगा।
o 20 हजार करोड़ रुपये से कम व्यावसावयक अकार वाले शहरी सहकारी बैंक भारतीय ररजवथ
बैंक के समक्ष लघु ववत्त बैंक (Small Finance Banks: SFBs) के ूपप में पंजीकरण हेतु
अवेदन कर सकते हैं। आसके वलए ईन्हें RBI द्वारा वनधाथररत अवश्यक मानदंडों एवं प्रक्रियां
का पालन करना होगा।
o अर्तथक ूपप से सशि, सुप्रबवन्धत और न्यूनतम 5 वषथ के ऄच्छे ट्रैक ररकॉडथ वाली
सहकारी ऊण सवमवतयों को लाआसेंससग शतषों के पालन के एवज में RBI द्वारा बैंक
लाआसेंस जारी क्रकया जा सकता है।
o मालेगाम सवमवत की वसिाररश के ऄनुसार शहरी सहकारी बैंकों को नए लाआसेंस प्रदान
करने और ईनके ववस्तार के वलए प्रबंधक मंडल (BoM) का गठन ऄवनवायथ लाआसेंससग
शतषों में से एक है।
o शहरी सहकारी बैंकों के बोडथ में जमाकताथं को मतदान का ऄवधकार होना चावहए।
आसके वलए ईपवनयमों में ईपयुि प्रावधान करके ऄवधकांश बोडथ सीटें जमाकताथं के वलए
अरवक्षत की जा सकती हैं।
o नए प्रवववष्ट वबन्दु मानदंड वनम्नवलवखत हैं:
 एक से ऄवधक रायय में शहरी सहकारी बैंक के संचालन हेतु 100 करोड़ रुपए।
 एक राययस्तरीय और दो से ऄवधक वजलों में शहरी सहकारी बैंक के संचालन के वलए
50 करोड़ रुपए।
 एक वजलास्तरीय (दो वजलों तक) शहरी सहकारी बैंकों के संचालन हेतु 25 करोड़
रुपए।

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 RRB रवहत क्षेत्रों और ईत्तर पूवथ में सहकारी ऊण सवमवतयों के ूपपांतरण के मामले
में ईवचत छू ट प्रदान की जाएगी।

2.1.2.2. ग्रामीण सहकारी बैं क (Rural Cooperative Banks)

 भारत में ग्रामीण सहकारी िे वडट (साख) प्रणाली की प्रमुख भूवमका कृ वष क्षेत्र को ऊण ईपलब्ध
कराना है। आस प्रणाली में ऄल्पकालीन और दीघथकालीन साख संरचनाएं सवपूमवलत हैं।
 ऄल्पकालीन सहकारी साख संरचना 3-रटयर प्रणाली के ूपप में कायथ करती है:
o जैसे ग्राम स्तरीय प्राथवमक कृ वष साख सवमवतयाँ (Primary agricultural credit
societies: PACs),
o वजला कें द्रीय सहकारी बैंक (DCCB) तथा
o रायय स्तर पर रायय सहकारी बैंक (SCB)।
 PACs, बैंककग वववनयमन ऄवधवनयम, 1949 के दायरे से बाहर हैं। आसवलए भारतीय ररज़वथ बैंक
आसका वववनयमन नहीं करता है। SCB/DCCB, संबंवधत रायय के रायय सहकारी सोसाआटी
ऄवधवनयम के ईपबंधों के तहत पंजीकृ त क्रकए गए हैं तथा ररज़वथ बैंक द्वारा आनका वववनयमन क्रकया
जाता है। बैंककारी वववनयमन ऄवधवनयम की धारा 35क के ऄंतगथत राष्ट्रीय कृ वष और ग्रामीण
ववकास बैंक (NABARD) को रायय और कें द्रीय सहकारी बैंकों के वनरीक्षण की शवियां प्रदान की
गइ हैं।
ऄल्पकालीन साख संरचना- ये एक वषथ तक ईधार देते हैं। ये कृ वष गवतवववधयों के वलए ईधार देते हैं
और बीज, ईवथरक अक्रद खरीदने के वलए कायथशील पूज
ं ी प्रदान करते हैं। ऄल्पकालीन संरचनां में तीन
स्तर होते हैं:
 रायय सहकारी बैंक (SCB) - प्रत्येक रायय का एक SCB होता है। यह रायय ववशेष में सहकारी
बैंकों के वलए सवोच्च वनकाय है। SCB एक तरि RBI और नाबाडथ के बीच मध्यस्थ के ूपप में कायथ
करता है तथा दूसरी ओर वजला या कें द्रीय सहकारी बैंक और प्राथवमक कृ वष साख सवमवतयों के
ूपप में कायथ करते हैं। साथ ही SCBs:
o ररयायती दर पर RBI से ऊण प्राप्त करते हैं तथा
o रायय में सहकारी बैंकों को ऄनुदान प्रदान करते हैं।
RBI और आन बैंकों के मध्य एक समझौता ज्ञापन द्वारा ऄब आन बैंकों की मध्यस्थता की भूवमका को
समाप्त कर क्रदया है। ऄब, RBI छोटे स्तर के बैंकों को प्रत्यक्ष ूपप से वनयंवत्रत करता है।
 वजला या कें द्रीय सहकारी बैंक (DCCB): यह वजला स्तर पर कायथ करता है। आसका पररचालन
एक क्षेत्र तक ही सीवमत है। दो प्रकार के कें द्रीय या वजला सहकारी बैंक हैं:
o सहकारी बैंककग यूवनयन: आसकी सदस्यता के वल सहकारी सवमवतयों के वलए खुली है तथा
o वमवश्रत कें द्रीय सहकारी बैंक: आसकी सदस्यता सहकारी सवमवतयों और व्यवियों दोनों के वलए
खुली है।
आन्हें SCBs से ऊण वमलता है और ये PACs और व्यवियों को ऊण प्रदान करते हैं।
 प्राथवमक कृ वष साख सवमवतयाँ (पैक्स: PACs): यह भारत की सबसे छोटी सहकारी ऊण
संस्थां में से एक है। यह जमीनी स्तर (गांव स्तर या ग्राम पंचायत स्तर) पर कायथ करती है।
के वल PACs के सदस्य ही यहाँ से ईधार लेने के हकदार होते हैं। ऄवधकांश ऊण कृ वष प्रयोजनों
(बावड़ी या कु ं की मरपूमत, छोटी मशीनरी की खरीद अक्रद) व ऄल्पाववध के वलए क्रदए जाते हैं।

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 दीघथकालीन साख संरचना: आसमें मध्यम ऄववध और दीघाथववध के वलए ऊण क्रदया जाता है। यह

समयाववध 1.5 से लेकर 25 वषथ तक की होती है। भूवम ववकास, कृ वष ईपकरणों को खरीदनें,

पुराने ऊणों को चुकाने अक्रद के वलए ये ऊण प्रदान क्रकए जाते हैं। अरपूभ में आन्हें बंधक बैंक

(mortgage banks) या भूवम ववकास बैंक कहा जाता था तथा वतथमान में आन्हें सहकारी कृ वष

और ग्रामीण ववकास बैंक (Cooperative Agricultural and Rural Development Banks:

CARDBs) कहा जाता है। आसकी संरचनाएं वद्वस्तरीय है:

o रायय सहकारी कृ वष और ग्रामीण ववकास बैंक (SCARDBs)

o प्राथवमक सहकारी कृ वष और ग्रामीण ववकास बैंक (PCARDBs)

वावणवययक बैंक एवं सहकारी बैंक में ऄंतर

(Differences Between Commercial and Co-operative Bank)

वावणवययक बैंक सहकारी बैंक

1. संसद द्वारा पाररत ऄवधवनयम के तहत 1. ऄलग-ऄलग राययों द्वारा वनर्तमत सहकारी
गरठत। सवमवतयों के ऄवधवनयम के तहत गरठत।

2. क्रकसी रायय, वजले यहां तक ववदेशों में भी 2. के वल वनधाथररत क्षेत्र में ही ऄपना कायथ करते

शाखाएं खोलने का ऄवधकार। हैं, जैस-े रायय सहकारी बैंक जो क्रक एक शीषथ

संस्था है वह एक रायय ववशेष तक ही


सीवमत है। वजला सहकारी बैंक वजले तक
सीवमत है।

3. वावणवययक बैंकों पर बैंककग वववनयमन 3. सहकारी बैंकों पर आस ऄवधवनयम की कु छ

ऄवधवनयम, 1949 की सभी धाराएँ लागू धाराएँ ही लागू हैं ऄथाथत् RBI का अंवशक

ऄथाथत् RBI का पूणथ वनयंत्रण। वनयंत्रण है।

4. पूणथ व्यापाररक वसद्धांतों पर अधाररत। 4. पूणथ सहकाररता के वसद्धांतों पर अधाररत

है। ऄतः RBI द्वारा ररयायती दरों पर

ववत्तीय सहायता प्राप्त होती है।

2.1.3. वावणवययक बैं क (Commercial Banks)

वावणवययक बैंक या व्यावसावयक बैंक (कॉमर्तशयल बैंक) वस्तुतः लाभ ऄजथक संस्थान हैं। ये बैंक लोगों से

धन स्वीकार करते हैं तथा घरे लू ईद्योगों, व्यवसावययों, लोगों अक्रद को ऊण प्रदान करते हैं। आनका

मुख्य ईद्देश्य ब्याज, कमीशन अक्रद के ूपप में लाभ ऄजथन होता है। आन सभी वावणवययक बैंकों के कायथ

RBI द्वारा बैंककग वववनयमन ऄवधवनयम, 1949 के तहत वववनयवमत होते हैं। आसमें सावथजवनक और

वनजी दोनों क्षेत्रों के बैंक सवपूमवलत क्रकए जाते हैं।

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2.1.3.1. सावथ ज वनक क्षे त्र के बैं क (Public Sector Banks: PSBs)

PSBs ऐसे बैंक हैं वजनमें शेयर का ऄवधकांश वहस्सा (51% या आससे ऄवधक) सरकार के पास रहता
है। सभी सरकारी बैंकों की स्थापना भारत सरकार द्वारा नहीं की गइ थी। कु छ बैंक वनजी क्षेत्र के
वनयंत्रणाधीन थे। आन बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पिात् ये सावथजवनक क्षेत्र के बैंक बन गए।
स्टेट बैंक समूह: आससे अशय स्टेट बैंक ऑि आं वडया (SBI) और ईसके सहयोगी बैंकों से है। SBI

सावथजवनक क्षेत्र का सबसे बड़ा बैंक है। SBI में पहले RBI के शेयर थे लेक्रकन RBI द्वारा आनको भारत
सरकार को सौंप क्रदया गया ताक्रक वह के वल वववनयामक कायषों को जारी रख सके ।
पूवथ भारतीय ररयासतों के सात बैंक SBI के तहत ईसके सहयोवगयों के ूपप में लाए गए थे:
 स्टेट बैंक ऑि बीकानेर एण्ड जयपुर
 स्टेट बैंक ऑि हैदराबाद
 स्टेट बैंक ऑि मैसरू
 स्टेट बैंक ऑि परटयाला
 स्टेट बैंक ऑि त्रावणकोर
 स्टेट बैंक ऑि सौराष्ट्र- 13 ऄगस्त 2008 को SBI के साथ वमला क्रदया गया।
 स्टेट बैंक ऑि आं दौर - 26 ऄगस्त 2010 को SBI के साथ अवधकाररक तौर पर ववलय हुअ।

 1 ऄप्रैल, 2017 को स्टेट बैंक ऑफ़ बीकानेर एंड जयपुर (SBBJ), स्टेट बैंक ऑफ़ मैसरू (SBM),
स्टेट बैंक ऑि त्रावणकोर (SBT), (गैर-सूचीबद्ध) स्टेट बैंक ऑि हैदराबाद (SBH), स्टेट बैंक
ऑि परटयाला (SBP) और भारतीय मवहला बैंक का भारतीय स्टेट बैंक के साथ ववलय हो गया।
आस ववलय के साथ SBI की बाजार वहस्सेदारी 17 प्रवतशत से बढ़कर लगभग 22 प्रवतशत हो जाएगी।
ववलय के लाभ:
 आसके चलते ट्रेजरी ऑपरे शन्स, ऑवडट, प्रौद्योवगकी अक्रद से संबवं धत खचषों में कमी अएगी। साथ
ही तरलता का बेहतर प्रबंधन हो सके गा।
 आसके द्वारा बेसल-III मानकों के क्रियान्वयन में मदद वमलेगी तथा ग्राहकों और पररसंपवत्तयों का
ववववधीकरण होगा।
 कम बैंकों के कारण बेहतर वनगरानी और वववनयमन।
 ऄंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान।
 चूंक्रक SBI ग्राहक सेवा में सुधार करने हेतु प्रक्रियां का ईन्नयन कर रहा है, ऄतः आस ववलय के
बाद छोटे बैंकों के ग्राहकों को ऊण दरों के वलए एक बेहतर ववकल्प ईपलब्ध होगा।

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ऄन्य राष्ट्रीयकृ त बैंक:

 बैंकों का राष्ट्रीयकरण दो चरणों में 1969 (14 बैंकों का) में और 1980 (6 बैंकों का) में क्रकया गया

था। राष्ट्रीयकरण के अरपूभ से पहले, देश की बैंककग प्रणाली द्वारा ऄथथव्यवस्था के कइ क्षेत्रों जैसे

कृ वष, लघु ईद्योगों और कमजोर वगषों को ऄनदेखा क्रकया गया। ईदाहरण के वलए, माचथ 1967 में

कृ वष क्षेत्र को कु ल ऊण का के वल 2.1% प्राप्त हुअ तथा यह ईद्योग के प्रदत्त 64% की तुलना में
बहुत कम था।
 बैंककग सुववधाएं शहरी क्षेत्रों में मुख्य ूपप से कें क्रद्रत थीं। यद्यवप ग्रामीण क्षेत्रों में कु छ बैंक थे, परंतु
वे मुख्य ूपप से जमारावशयों के वलए थे और आन जमारावशयों का ईपयोग शहरी क्षेत्रों में ईधार देने
के वलए क्रकया जाता था। शहरी क्षेत्रों में धनी लोगों द्वारा बैंककग सुववधां का ऄपेक्षाकृ त ऄवधक
लाभ ईठाया गया था। चूंक्रक ऄवधकांश बैंक वनजी क्षेत्र द्वारा संचावलत और प्रबंवधत क्रकये जाते थे
आसवलए आनकी अम लोगों तक पहुँच बेहद सीवमत थी।
 बैंकों पर मुख्य ूपप से ईद्योगपवतयों का स्वावमत्व था। ईन्होंने लोगों की जमारावशयां एकत्र करने
और आन बैंकों से ऊण प्राप्त करने के वलए आन बैंकों का ईपयोग क्रकया। आसवलए, भारत सरकार ने

अर्तथक एकावधकार, अर्तथक शवि के के न्द्रण और अर्तथक संसाधनों के दुरुपयोग को रोकने के वलए
बैंकों पर कु छ वनयंत्रण लगाने का वनणथय वलया। आस प्रकार सामावजक वनयंत्रण का मुख्य लक्ष्य बैंकों
को पूणत
थ ः सावथजवनक स्वावमत्व में ले जाए वबना सामावजक लाभ प्राप्त करना था।
राष्ट्रीय ऊण वनयंत्रण पररषद (National Credit Control Council)

 22 क्रदसंबर, 1967 को राष्ट्रीय ऊण वनयंत्रण पररषद का गठन क्रकया गया ताक्रक समय-समय पर
ऊण के ईपलब्ध संसाधनों का अकलन क्रकया जा सके और वववभन्न क्षेत्रकों के बीच समान और
ईद्देश्यपूणथ ववतरण सुवनवित क्रकया जा सके । 1969 में एक ऄध्यादेश के प्रख्यापन के माध्यम से देश

के 14 प्रमुख वावणवययक बैंकों का राष्ट्रीयकरण क्रकया गया। आनमें से कु छ बैंक थे- पंजाब नेशनल

बैंक, IOB, देना बैंक, ससवडके ट बैंक अक्रद। 1980 में छह और बैंकों का राष्ट्रीयकरण क्रकया गया।

1980 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के कु छ ईद्देश्य थे:


o बैंककग सुववधां तथा सेवां का ववस्तार करना तथा अर्तथक ववषमता को दूर करने हेतु
बैंक्रकग सेवां एवं सुववधां का लाभ समाज के सभी वगषों ववशेषत: ग्रामीण क्षेत्रों तक
पहुँचाना।
o अर्तथक ववकास में तेजी लाना।
o बेरोजगारों को बैंककग सेवां तथा सहायता का लाभ ईपलब्ध कराकर ईन्हें स्वरोजगार के
वलये प्रेररत करना, वजससे वे ऄपनी ईन्नवत के नए मागथ प्रशस्त कर सकें ।
o समाज के कमजोर वगषों तथा प्राथवमकता प्राप्त क्षेत्रों के लोगों का बैंककग सेवां एवं सुववधां
के माध्यम से ईत्थान करके देश की अर्तथक ईन्नवत को एक नइ क्रदशा प्रदान करना।
o ग्रामीण क्षेत्रों की वस्थवत में सुधार करना तथा कृ वष एवं लघु ईद्योगों की समुवचत प्रगवत को
बढ़ावा देना।
o देश के बीमार ईद्योगों को पुनजीववत करके नए लघु-स्तरीय ईद्योगों के नव वनमाथण को
बढ़ावा देना।
आस प्रकार ऄनेक सामावजक तथा अर्तथक ईद्देश्यों के कारण बैंकों का राष्ट्रीयकरण क्रकया गया ताक्रक
कमजोर एवं ईपेवक्षत वगषों की ईन्नवत के साथ समावेशी ववकास के लक्ष्य को प्राप्त क्रकया जा सके एवं
राष्ट्र की प्रगवत हो।

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बैंकों के राष्ट्रीयकरण के पिात् पररलवक्षत प्रभाव वनम्नवलवखत हैं:
 देश के प्रमुख शहरी कें द्रों के ऄवतररि ऄन्य वपछड़े क्षेत्रों में बैंकों की शाखां का ववस्तार,
 कृ वष ऊण में वृवद्ध,
 लघु ईद्योग के वलए ववत्त में बढ़ोतरी,
 जमां में वृवद्ध,
 कमजोर वगषों के वलए ऊण की मात्रा में बढ़ोतरी।

2.1.3.2. वनजी क्षे त्र के बैं क (Private Sector Banks)

वनजी क्षेत्र के बैंकों में भारतीय बैंक और ववदेशी बैंक दोनों सवपूमवलत हैं। ICICI, एवक्सस बैंक अक्रद
वनजी क्षेत्र के बैंकों के कु छ ईदाहरण हैं।
 भारतीय बैंक: सभी भारतीय बैंकों के प्रदशथन की तुलना करने की सुववधा के वलए भारतीय ररज़वथ
बैंक द्वारा भारतीय बैंकों को पुराने बैंकों और नए बैंकों में वगीकृ त क्रकया गया है।
o पुराने बैंक (Old banks): 1990 से पहले गरठत बैंक पुराने बैंकों के ऄंतगथत अते हैं। आसके
ऄंतगथत राष्ट्रीकृ त बैंकों के ऄवतररि ईन बैंकों को भी शावमल क्रकया गया वजनका स्वावमत्व
वनजी हाथों में रहने क्रदया गया। छोटा अकार व के वल छोटे क्षेत्रों में ईपवस्थवत के कारण आन
बैंकों का राष्ट्रीयकरण नही क्रकया गया था। जैसे - धनलक्ष्मी बैंक, वसटी यूवनयन बैंक अक्रद।
o नए बैंक (New banks): 1990 एवं आसके पिात् गरठत बैंकों को नए बैंकों के ऄंतगथत रखा
गया है। बैंककग वववनयमन ऄवधवनयम में 1993 में संशोधन के बाद अर्तथक सुधारों और
ववत्तीय क्षेत्र के सुधारों को लागू करने के साथ गरठत बैंक "नए वनजी क्षेत्र के बैंक" कहलाए।
आस ऄवधवनयम ने भारतीय बैंककग क्षेत्र में नए वनजी क्षेत्र के बैंकों के प्रवेश की ऄनुमवत दी थी,
जैस-े एवक्सस बैंक, कोटक मसहद्रा बैंक अक्रद।
o हाल ही में 2014 में भारतीय ररजवथ बैंक ने नवीन बैंकों के वलए लाआसेंस जारी क्रकया। RBI ने
लघु बैंकों (small banks) और भुगतान बैंकों (payment banks) की स्थापना का भी
प्रस्ताव प्रस्तुत क्रकया। आन्हें वनस बैंक (niche bank) या ववभेदीकृ त बैंक (differentiated
banks) कहा जाता है। ये बैंक अबादी के एक वनवित जनसांवख्यकीय वहस्से और ईसकी
अवश्यकतां पर के वन्द्रत बैंक हैं तथा कमजोर वगषों के मध्य ऊण देने की गवतवववध को
संपाक्रदत करते हैं। आनका मुख्य ईद्देश्य ववत्तीय समावेशन को बढ़ाना है।
लघु ववत्त बैंक (Small Finance banks: SFBs)
 लघु ववत्त बैंक जमा और ऊण की अपूर्तत जैसी मूलभूत बैंककग सेवाएं प्रदान करें गे। परन्तु आनका
पररचालन क्षेत्र सीवमत होगा। आस प्रकार, आन्हें वावणवययक बैंकों का छोटा संस्करण कहा जा सकता
है, वजनके कायथ जमा स्वीकार करना और ऊण देना दोनों ही होंगे। ये ववदेशी मुद्रा, पूयूचऄ
ु ल िं ड,
बीमा, पेंशन अक्रद से संबद्ध कायथ कर सकते हैं और पूणथकावलक बैंक में ूपपांतररत भी हो सकते हैं।
मुख्य ूपप से कृ वष के साथ-साथ सूक्ष्म, लघु और मध्यम ईद्योगों के ववकास के वलए आनकी स्थापना
की गइ है।
SFBs के वलए शतें:
 बैंककग और ववत्त क्षेत्र में 10 वषथ का ऄनुभव रखने वाले वनवासी व्यवि/पेशेवर लघु ववत्त बैंक की
स्थापना करने के पात्र होंगे। SFBs की 100 करोड़ रुपये की न्यूनतम पेड ऄप कै वपटल होगी।

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भुगतान बैंक (Payment Banks)
 ऄगस्त 2015 में RBI ने बैंककग सेवां की पहुंच बढ़ाने और ववत्तीय समावेशन के लक्ष्य को त्वररत
ढंग से पूरा करने के ईद्देश्य से 11 संस्थां को भुगतान बैंक प्रारं भ करने की सैद्धांवतक मंजूरी प्रदान
की। यह सैद्धांवतक मंजरू ी 18 महीनों तक मान्य रहेगी, तत्पिात RBI की सभी शतषों को पूणथ करने
पर आनको औपचाररक लाआसेंस दे क्रदए जाएंगे।
 ईद्देश्य: भुगतान बैंक का मुख्य ईद्देश्य बैंककग सेवा के लाभ से वंवचत लोगों तक बैंककग सेवा मुहय
ै ा
कराना है। आसके साथ ही लघु ईद्यमों के कारोबाररयों को वनम्न दर पर ऊण ईपलब्ध कराना और
लघु बचतों को बढ़ावा देना भी आनका मुख्य ईद्देश्य है। प्रवासी श्रवमकों और समाज के वंवचत वगषों
की पूज ं ी को जमा करना तथा धन प्रेषण जैसी बुवनयादी सुववधाएं ईपलब्ध कराना भी आस बैंक का
मुख्य ईद्देश्य होगा।
 सेवा प्रदायगी: भुगतान बैंक एटीएम, व्यवसाय प्रवतवनवधयों (वबजनेस कॉरे सपोंडें्स) और
मोबाआल बैंककग की मदद से भुगतान और प्रेषण सेवा प्रदान कर सकते हैं। वहीं आनके सेल्स
टर्तमनल्स से नकद प्रावप्त की सेवा भी दी जाएगी। ऄथाथत कोइ व्यवि क्रकसी दूसरे शहर से ऄपने
दोस्त या पररवार को पैसे भेजता है तो दोस्त या ररश्तेदार नजदीकी पेमेंट बैंक के सेल्स ऄकाईं ट से
नकद रावश प्राप्त कर सकते हैं। आसके वलए ऄकाईं ट की अवश्यकता नहीं होगी।
ववशेषताएं
 साधारण बैंक के समान भुगतान बैंक भी रावश जमा कर सकते हैं परन्तु रावश जमा करने की सीमा
वनधाथररत है। भुगतान बैंक एक ग्राहक से ऄवधकतम 1 लाख रुपए तक की जमा रावश ही स्वीकार
कर सकते हैं।
 भुगतान बैंक प्रवासी श्रवमकों, कम अय वाले पररवारों और लघु व्यवसावययों अक्रद जैसे ववत्तीय
ूपप से वंवचत ग्राहकों को लवक्षत करें गे।
 भुगतान बैंक ऄपने ग्राहकों को बचत (सेसवग) एवं चालू (करें ट) दोनों प्रकार के खातों की सुववधा
प्रदान कर सकते हैंंं।
 एटीएम और डेवबट काडथ सेवा प्रदान कर सकें गे परन्तु आन्हें िे वडट काडथ जारी करने का ऄवधकार
नहीं होगा।
 ये NRI से जमा स्वीकार नहीं कर सकते हैं ऄथाथत भारतीय मूल के जो लोग ववदेशों में बस गए हैं
ईनके पैसे को जमा नहीं कर सकते हैं।
 ये बैंक ऊण सेवा नहीं प्रदान सकते हैं। पररणामत: ये बैंक परं परागत बैंकों के समक्ष ईत्पन्न
जोवखमों से सुरवक्षत रहेंगे।
 भुगतान बैंक दूसरे बैंक के सहयोगी की तरह कायथ कर सकते हैं तथा पूयुचुऄल िं ड एवं बीमा
ईत्पादों का ववतरण भी कर सकें गे।
भुगतान बैंक के समक्ष चुनौवतयाँ
 कम राजस्व: ये ऊण नहीं प्रदान कर सकते हैं, ऄत: प्रारपूभ में आन्हें के वल ववप्रेषण से ही अय प्रावप्त
हो सकती है।
 आनको 75% रावश सरकारी प्रवतभूवतयों में वनवेश करनी पड़ेगी। आस प्रकार जमा अधार से लाभ
ऄजथन की आनकी क्षमता भी सीवमत है।
 आन बैंकों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएँ ऄन्य बैंक पहले से ही प्रदान कर रहे हैं, आसवलए आनके
वलए एक नया और ऄलग प्रस्ताव लाना असान नहीं होगा।
 यही कारण है क्रक कु छ वनजी कं पवनयों ने वववभन्न चुनौवतयों की वजह से भुगतान बैंक स्थावपत
करने की ऄपनी योजना का पररत्याग कर क्रदया है।
 भुगतान बैंकों के वलए अवेदन करने में प्रारं वभक ईत्साह के बाद टेक मसहद्रा, संघवी, चोलामंडलम
जैसी वनवेश कं पवनयों ने ऄंततः आन बैंकों को स्थावपत नहीं करने का वनणथय वलया। आन वनवेश
कं पवनयों को यह संदह
े है क्रक क्या ऐसे बैंको का कोइ भववष्य होगा जो पैसे ईधार नहीं दे सकते और
वजन्हें प्रवत ग्राहक 1 लाख ूपपए तक का ही ऄवधकतम जमा रखना हो।

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 एक ऄन्य सचता की बात यह है क्रक RBI को आन अभासी बैंकों को वववनयवमत करने में समस्यां
का सामना करना पड़ऺ सकता है जो मुख्य ूपप से प्वाआं ट-ऑफ़-सेल्स ईपकरणों और वबज़नस
कॉरे स्पोंडें्स (व्यावसावयक ऄवभकताथ) के माध्यम से काम करें गे।
थोक और दीघथकावलक ववत्त बैंक (Wholesale and long-term finance bank)
 थोक और दीघथकावलक ववत्त बैंक 1000 करोड़ रुपये की प्रस्ताववत न्यूनतम पूंजी के साथ
दीघथकावलक ऊण संस्थानों और वनवेश बैंकों का वमलाजुला ूपप होंगे। ये बचत जमाएं स्वीकार नहीं
कर सकते हैं। ये बैंक चालू खातों, थोक वस्थर जमां (bulk fixed amounts) और बांड्स
(बंधपत्रों) से धन जुटा सकते हैं। आससे कं पवनयों के वलए दीघथकावलक ववत्तपोषण असानी से प्राप्त
करना संभव होगा। आससे ऄवसंरचना क्षेत्रक के कारण बढती दबावग्रस्त पररसपूपवत्तयों से बैंककग
प्रणाली को राहत देने में सहायता वमल सकती है। ववशेषीकृ त संस्थानों के ूपप में, ये बैंक
दीघथकावलक पररयोजनां का मूल्यांकन और ववत्तपोषण करने में वावणवययक बैंकों की तुलना में
बेहतर वस्थवत में होंगे। आससे प्रवतस्पधाथ में और ऄवधक वृवद्ध होगी, वजससे ववत्तीय संसाधनों के
ऄवधक कु शल अवंटन का मागथ प्रशस्त होगा।
हालांक्रक, आस बात पर ध्यान क्रदया जाना चावहए क्रक ईनकी पररचालन स्वायत्तता बनाए रखी जाए और
आस प्रकार के ईच्च ववशेषीकृ त बैंकों का वनमाथण कर सकने की क्षमता के अधार पर ही लाआसेंस क्रदए
जाए।
लोकल एररया बैंक (Local areas bank: LABs)
लोकल एररया बैंकों को वनजी क्षेत्र के वनयंत्रणाधीन सीवमत क्षेत्रों में संचावलत करने की ऄनुमवत दी गइ
है, जहां आनकी शाखाएं भौगोवलक दृवष्ट से 3 वनकटतम वजलों की सीमां के भीतर स्थावपत की जा
सकती हैं।
 वपछड़े और कम ववकवसत वजलों को LABs के संचालन क्षेत्र के वलए अदशथ माना जाता है।
 आनकी स्थापना आस ईद्देश्य से की गयी है क्रक ये स्थानीय ऊण की अवश्यकतां को पूरा करने के
वलए स्थानीय संसाधनों का ईपयोग कर सकें ।
 ये कं पनी ऄवधवनयम के तहत पंजीकृ त होते हैं।
 आनके वलए अवश्यक न्यूनतम प्रदत्त पूज
ं ी (पेड ऄप कै वपटल) 5 करोड़ है और प्रमोटर को कम से
कम 2 करोड़ का योगदान देना होता है।
 ये RBI ऄवधवनयम, बैंककग वववनयमन ऄवधवनयम और RRB ऄवधवनयम के तहत वववनयवमत होते
हैं।
ववदेशी बैंक (Foreign banks)
 1991 के पिात् भारत में ववदेशी बैंकों को बैंककग कायथ की ऄनुमवत दी गयी। ईन्होंने शाखां या
पूणथ स्वावमत्व वाली सहायक कं पवनयों की स्थापना की। देश में सक्रिय कु छ ववदेशी बैंकों में बैंक
ऑि ऄमेररका, वसटीबैंक, HSBC, रॉयल बैंक ऑि स्कॉटलैंड अक्रद सवपूमवलत हैं।
 भारतीय ररजवथ बैंक द्वारा ववदेशी बैंकों के वलए नवीनतम ढांचा जारी क्रकया गया है। आस ढांचे में
आन बैंकों को भारत में ऄपने व्यवसाय को अगे बढ़ाने के वलए पूणथ स्वावमत्व वाली सहायक
कं पवनयों (Wholly-Owned Subsidiaries; WOS) के गठन करने पर बल क्रदया गया है।
भारतीय ररज़वथ बैंक के क्रदशावनदेश यह स्पष्ट करते हैं क्रक WOS मॉडल ववदेशी बैंकों के वनयमन के
ऄनुकूल होगा। नए और मौजूदा ववदेशी बैंक जो ऄपनी शाखां के माध्यम से बैंककग कायथ में जुटे
हैं, ईन्हें ईपयुि प्रोत्साहन प्रदान क्रकया जाता है। जो ववदेशी बैंक आन क्रदशावनदेशों का पालन करते
हैं ईनके साथ भारतीय बैंकों के जैसा ही व्यवहार क्रकया जाता है। ईन्हें पूंजीगत लाभ कर और स्टांप
शुल्क लाभ वमलेगा और स्थानीय वनजी बैंकों के ऄवधग्रहण करने की ऄनुमवत होगी।

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 हालांक्रक, आस प्रकार के कदमों से प्राथवमक क्षेत्रक ऊण (ईधारी) (Priority Sector Lending:

PSL) के मानदंडों में बदलाव वववाद का एक ववषय होगा। भारतीय ररजवथ बैंक के पास अवेदन

करने से पहले, कु छ ववदेशी बैंकों ने आन वनयमों में छु ट की ऄपील की थी। कें द्रीय बैंक के ऄनुसार

भारतीय बैंकों के समकक्ष ववदेशी बैंकों को भी PSL में ऄपने ऊण का 40 प्रवतशत योगदान करना

होगा। आसमें से, कृ वष क्षेत्र को 18 प्रवतशत क्रदया जाना है। आससे पहले ववदेशी बैंकों के वलए PSL

में 32 िीसदी (20 से ऄवधक शाखां वाले ववदेशी बैंकों के वलए यह 40 िीसदी थी) ऊण देना
वनधाथररत था। लेक्रकन ईन्हें पूणथ स्वावमत्व वाली सहायक कं पवनयों की स्थापना के पांच वषषों के
भीतर 40 प्रवतशत के मानकों का पालन करना होगा।

 RBI के ऄनुसार ऄगस्त 2010 के बाद से भारत में प्रवेश करने वाले ववदेशी बैंकों को ऄपनी
शाखां को पूणथ स्वावमत्व वाली सहायक कं पवनयों में बदलना होगा।
 विटेन के स्टैण्डडथ चाटथडथ बैंक की भारत में सवाथवधक शाखायें हैं। ववदेशों में कायथरत बैंकों में मुख्य
बैंक SBI, BOB, BOI, के नरा बैंक अक्रद हैं। विटेन में भारतीय बैंकों की सवाथवधक शाखायें हैं।

आसके बाद हांगकांग, क्रिजी और मॉररशस में आनकी शाखाएं हैं।

2.1.3.3. वावणवययक बैं कों के कायथ (Functions of Commercial Banks)


क्रकसी भी देश के अर्तथक ववकास में वावणवययक बैंक महत्वपूणथ भूवमका वनभाते हैं। वावणवययक बैंक का
कायथ मुख्यतः जमा स्वीकार करना और ऄल्पकालीन ऊण प्रदान करना है। आसके ऄवतररि, वावणवययक
बैंक द्वारा समाज में कइ ऄन्य ईपयोगी कायथ क्रकया जाता है। वावणवययक बैंकों के कु छ महत्वपूणथ कायथ
वनम्नवलवखत हैं:
(a) जमारावश का संग्रह: वावणवययक बैंक का सबसे महत्वपूणथ कायथ जमारावश का संग्रह करना है। ये
जमाएँ वववभन्न ूपपों में हो सकती हैं:
 साववध जमाएँ (Fixed Deposits): साववध जमा के ऄंतगथत ग्राहक को एक वनवित ऄववध के
वलए बैंक में एक वनवित रावश जमा करनी होती है। ग्राहक द्वारा आसी जमा पर ईसे ब्याज प्राप्त
होता है। यक्रद ग्राहक जमा की वनधाथररत ऄववध के ऄंत से पहले रावश वनकाल लेता है, तो ईसे
जुमाथना देना होता है। सामान्यतया साववध जमां पर ब्याज दर ऄन्य प्रकार की जमां से
ऄवधक होती है।
 बचत खाता जमाएँ: यह खाता ऄल्परावश से खोला जा सकता है। ग्राहक आसमें जब चाहे रावश

वनकाल सकते हैं, तथावप प्रवत सप्ताह क्रकतनी बार धनरावश की वनकासी करनी है आस पर कु छ
पाबंक्रदयां होती है। आसमें बैंक कम बचत और कम अय वाले पररवारों की ऄल्प रावशयों को जमा
करके ऄत्यवधक रावश एकवत्रत कर लेते हैं। आसके तहत ब्याज दरें चालू खाता से बेहतर होती हैं,
परन्तु साववध जमा से कम होती हैं।
 चालू खाता: आसे मांग जमा के ूपप में भी जाना जाता है। ग्राहक की िे वडट (साख) योग्यता सावबत
करने की कु छ शतषों को पूरा करने के बाद बैंक आस खाते को अरपूभ करता है। रावश जमा करने और
वनकासी की संख्या पर कोइ सीमा नहीं है। सामान्यतया, चालू खाते की जमां पर कोइ ब्याज
नहीं क्रदया जाता है।
(b) ऊण और ऄवग्रम रावश: वावणवययक बैंक, ऄथथव्यवस्था में ईद्योगों, व्यवियों, व्यवसायों, कृ षकों
अक्रद को ऄल्पकावलक ऊण व ऄवग्रम रावश प्रदान कर महत्वपूणथ भूवमका वनभाते हैं। वे वनयाथत और
अयात व्यापार के वलए भी ऊण प्रदान करते हैं।

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(c) ईपयोवगता सेवाएं: वावणवययक बैंक ग्राहकों को वववभन्न ईपयोगी सेवाएं प्रदान करते हैं। ईनमें से

कु छ सेवाएं नीचे सूचीबद्ध हैं:


 लॉकर सुववधा: बैंक ग्राहकों को प्रवतभूवतयां, अभूषण, दस्तावेज अक्रद जैसे ईनके कीमती सामान
रखने के वलए लॉकर सुववधा प्रदान करते हैं।
 ड्राफ्ट सुववधाएं: बैंक ग्राहकों को ड्राफ्ट जारी करते हैं तथा आन ड्राफ्ट के माध्यम से ग्राहक एकखाते
से दूसरे खाते में धन हस्तांतरण कर सकते हैं।

 लेटसथ ऑफ़ िे वडट: बैंक ऄपने ग्राहकों को ऊण पत्र जारी करते हैं। व्यापाररयों द्वारा ऊण//साख पर
ववदेशी माल खरीदने में आनका ईपयोग क्रकया जाता है।
(d) एजेंसी सेवाएं: वावणवययक बैंक ऄपने ग्राहकों के वलए एजेंन्ट के ूपप में भी वववभन्न कायथ करते हैं।

आन सेवां को एजेंसी सेवाएं कहा जाता है। आन एजेंसी सेवां में चेक/ड्राफ्ट की ईगाही/भुगतान,

प्रवतभूवतयों का िय-वविय, ट्रस्टी वनष्पादक अक्रद कायथ तथा पत्र-व्यवहार शावमल होते हैं।

 संग्रह: वावणवययक बैंक ऄपने ग्राहकों के वलए एजेंट के ूपप में प्रवतज्ञा नो्स, चेक, वबल, लाभांश,

सदस्यता, क्रकराया अक्रद का संग्रह करते हैं। ऄपने ग्राहकों को आन सेवां को प्रदान करने के एवज

में बैंक 'सेवा शुल्क' लेते हैं।

 भुगतान: बैंक ऄपने ग्राहकों के वलए समय-समय पर बीमा प्रीवमयम, क्रकराया, कर, वबजली वबल

अक्रद का भुगतान करने की वज़पूमेदारी स्वीकार करते हैं, वजसके वलए वे कमीशन लेते हैं।

 प्रवतभूवतयों का िय-वविय: ग्राहक कभी-कभी बैंकरों से ऄपनी प्रवतभूवतयों के िय-वविय हेतु


संपकथ करते हैं। आन सेवां के वलए बैंकों को कमीशन क्रदया जाता है।

2.1.3.4. भारत में वावणवययक बैं कों की समस्याएं (Problems of Commercial Banks in

India)

हालांक्रक, वावणवययक बैंकों ने शाखां के ववस्तार, जमा संग्रह करने, प्राथवमक क्षेत्रों और समाज के

कमजोर वगषों को ऊण देने के मामले में महत्वपूणथ प्रगवत की है, तथावप ये वववभन्न मामलों में कइ

समस्यां का सामना कर रहे हैं। ये समस्याएं वनम्नवलवखत हैं:


 शाखां के ववस्तार में समस्या: बैंकों को ईन ग्रामीण और वपछड़े क्षेत्रों में ऄपनी शाखाएं खोलने के
वलए कहा गया जहां सड़क, संचार, पररवहन, ववत्तीय साक्षरता, बैंक पररचालन के वलए सुरवक्षत
भवन अक्रद जैसी न्यूनतम बुवनयादी सुववधां का ऄभाव है। कु छ स्थानों पर बैंक कमथचाररयों की
सुरक्षा संबंधी समस्या भी ववद्यमान है।
 जमारावश के संग्रहण में समस्याएं: सावथजवनक क्षेत्र के बैंकों को जमारावश जुटाने हेतु अपस में
ऄत्यवधक प्रवतस्पधाथ का सामना करना पड़ता है क्योंक्रक ये सभी लगभग एक ही प्रकार की सेवा
प्रदान करते हैं। पुनः आन बैंकों को जमारावश जुटाने हेतु राष्ट्रीय बचत संगठनों, गैर-बैंककग कं पवनयों,

यूवनट ट्रस्ट ऑफ़ आं वडया, पूयुचुऄल िं ड अक्रद के साथ भी प्रवतस्पधाथ का सामना करना पड़ रहा है।

ऐसा प्रतीत होता है क्रक ऄनेक प्रयासों के बावजूद, बैंकों में एकवत्रत जमाएँ वतथमान की अर्तथक
अवश्यकतां की पूर्तत हेतु पयाथप्त नहीं हैं। यह भी अलोचना की गइ है क्रक बैंकों के वलए जमा
जुटाने की योजनाएँ ग्रामीण क्षेत्रों में संभाववत जमाकताथं की अवश्यकतां के ऄनुूपप नहीं है।

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 समन्वय की ऄनुपवस्थवत: ऊणकताथं के ववत्तपोषण के वलए वावणवययक बैंक, सहकारी बैंक,

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, रायय ववत्तीय वनगम अक्रद जैसी ऄनेक ववत्तीय संस्थाएं मौजूद हैं। आन ऄनेक
संस्थां की मौजूदगी तथा आन संस्थां के मध्य समन्वय की ऄनुपवस्थवत के पररणामस्वूपप
िजी/जाली ववत्तपोषण, ओवर-िाआनेंससग या ऄंडर-िाआनेंससग अक्रद समस्याएँ ईत्पन्न होती है।
 कृ वष के वलए ऄपयाथप्त ऊण: यद्यवप वावणवययक बैंकों ने कृ वष क्षेत्र की ववत्तीय अवश्यकतां और
आससे संबद्ध गवतवववधयों को पूरा करने के वलए ईल्लेखनीय प्रयास क्रकए हैं, तथावप ऄपेक्षाकृ त
ऄवधक प्रयासों की अवश्यकता है क्योंक्रक वावणवययक बैंकों द्वारा कृ वष क्षेत्र को प्रदत्त कु ल सहायता
आस क्षेत्र की अवश्यकतां का 10% भी नहीं है।
 ग्रामीण क्षेत्रों में ऄपयाथप्त बैंककग सुववधाएं: ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों की संख्या बैंककग सेवां की
अवश्यकतां की तुलना में कािी कम है।
 ु न: हालांक्रक वावणवययक बैंकों ने देश के वववभन्न वहस्सों में ऄपनी शाखाएं खोली हैं,
क्षेत्रीय ऄसंतल
परं तु ये समान ूपप से ववतररत नहीं हैं। भारतीय ररजवथ बैंक की एक ररपोटथ के ऄनुसार अधी
शाखाएं दवक्षणी और पविमी क्षेत्रों में कें क्रद्रत हैं। ऄसम, जपूमू और कश्मीर, मवणपुर, नागालैंड,

ओवडशा, वत्रपुरा, ईत्तर प्रदेश और पविम बंगाल जैसे राययों को ऄल्प बैंककग सुववधा वाले क्षेत्र
कहा जा सकता है।
 कम लाभप्रदता: प्राथवमक क्षेत्रों को ववत्तपोषण, ग्रामीण क्षेत्रों, गैर-बैंक्रकग वाले क्षेत्रों एवं वपछड़े

क्षेत्रों में शाखाएं खोलने, कमजोर वगषों को कम ब्याज दर पर ऊण देने, वेतन और संगठन की
लागत में वृवद्ध तथा ऄवतदेयता में वृवद्ध के कारण भारत में वावणवययक बैंकों के लाभ दर में
वगरावट अइ हैं। लागत में वृवद्ध, ऄक्षमता, नौकरशाही रवैया, प्रभावी लागत वनयंत्रण की

ऄनुपवस्थवत, वैधावनक तरलता ऄनुपात और नकद अरवक्षत ऄनुपात अक्रद में वृवद्ध के कारण आन
वावणवययक बैंकों की लाभप्रदता में कमी अइ है।
 कम कायथकुशलता: बैंकों के राष्ट्रीयकरण से बैंककग ईद्योग में सावथजवनक क्षेत्र के सभी दोष प्रवेश कर
गये हैं। आनमें प्रबंधकों का नौकरशाही दृवष्टकोण, पहल करने की कमी, लाल-फ़ीताशाही, ऄत्यवधक

ववलपूब, प्रवतबद्धता की कमी, वजपूमेदारी का ऄभाव, कायथ के प्रवत ईदासीनता अक्रद सवपूमवलत हैं।
आससे बैंकों की दक्षता में कमी अती है।
 राजनीवतक दबाव: बैंकों के राष्ट्रीयकरण ने बैंकों के सभी स्तरों पर राजनीवतक हस्तक्षेप और
राजनीवतक दबाव में वृवद्ध की है। राजनीवतक दबावों के कारण कइ बार ऄल्प दक्षता वाले
कमथचाररयों की वनयुवि होती है, तथा ऄयोग्य व्यवियों को ऄवग्रम ऊण क्रदए जाते हैं।

 ईदार ऊण नीवत की समस्या: कमजोर वगषों , कृ वष क्षेत्रक अक्रद की ऊण अवश्यकतां को पूरा

करने के वलए ईदार ऊण नीवत ऄपनाइ गयी हैं वजसके कारण NPA की मात्रा में वृवद्ध हुइ है।
िलस्वूपप बैंकों को प्रोववजसनग में ऄवधक पैसा लगाना पड़ता है वजससे ऊण देने हेतु ईनके पास
ऄल्प पूँजी शेष रह जाती है, वजसके कारण लाभप्रदता में भी कमी अती है।

2.2. ववदे शों में भारतीय बैं क (Indian Banks Abroad)

 भारत में स्थावपत ववदेशी बैंकों के समान भारतीय बैंक भी ववदेशों में ऄपनी शाखाएं या सहायक
संस्थान स्थावपत करते हैं। सावथजवनक और वनजी क्षेत्र दोनों बैंकों की ववदेशों में शाखाएं हैं।
 ऑिशोर (ऄपतटीय) बैंककग आकाआयां बहामास, के मैन द्वीप, चैनल द्वीपों, मॉरीशस अक्रद जगहों
पर वस्थत हैं। ऄपेक्षाकृ त ऄवधक ईदार कर कानूनों वाले देशों में ऄपतटीय बैंक में वस्थत होते हैं।

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2.3. बैं कों के वगीकरण का एक ऄन्य तरीका

ऄनुसवू चत और गैर-ऄनुसवू चत बैंक


 भारतीय ररज़वथ बैंक ऄवधवनयम, 1934 के ऄनुसार भारत में बैकों को ऄनुसूवचत (scheduled)
और गैर-ऄनुसूवचत बैंकों (non-scheduled) में वगीकृ त क्रकया गया है। ऄनुसूवचत बैंक ऐसे बैंक हैं
ू ी में सवपूमवलत क्रकया गया है।
वजन्हें भारतीय ररजवथ बैंक ऄवधवनयम, 1934 की दूसरी ऄनुसच
आसमें वे बैंक सवपूमवलत होते हैं वजनकी प्रदत्त पूज
ं ी (पेड ऄप कै वपटल) और अरवक्षत वनवध का
समग्र मूल्य 5 लाख रुपए से कम न हो और जो भारतीय ररजवथ बैंक को आस बात का ववश्वास
क्रदलाएं क्रक वे जमाकताथं के वहत में कायथ कर रहे हैं। जबक्रक गैर-ऄनुसवू चत बैंक वे बैंक है वजन्हें
ऄवधवनयम की दूसरी ऄनुसच ू ी में सवपूमवलत नहीं क्रकया गया है। ऄनुसूवचत बैंकों में ऄनुसूवचत
वावणवययक बैंक और ऄनुसूवचत सहकारी बैंक सवपूमवलत हैं।
ऄनुसूवचत बैंकों को प्राप्त होने वाली सुववधाएं वनम्नवलवखत हैं:
 ये RBI से बैंक दर पर ऊण प्राप्त करने के वलए पात्र हैं।
 ये स्वतः ही क्लीयररग हाईस की सदस्यता प्राप्त कर लेते हैं।
 ये भारतीय ररज़वथ बैंक से प्रथम श्रेणी के वववनमय वबलों में छू ट की सुववधा प्राप्त कर सकते हैं।
ईपयुथि शतषों को पूरी करने वाले बैंक दूसरी ऄनुसूची में सूचीबद्ध होते हैं। आन वसद्धांतों का ईल्लंघन
करने पर आन बैंकों को गैर-ऄनुसूवचत (descheduled) कर क्रदया जाता है।
गैर-ऄनुसूवचत बैंक भारतीय ररजवथ बैंक ऄवधवनयम, 1934 की दूसरी ऄनुसुची में सवपूमवलत नहीं क्रकए
गए हैं। आन बैंकों को भी CRR की शतषों का पालन करना पड़ता है परन्तु ये आसे ऄपने पास रख सकते
हैं। ये बैंक RBI से ऊण प्राप्त करने के पात्र नहीं हैं, परन्तु अपातकालीन वस्थवत में ये बैंक RBI से ऊण
प्राप्त कर सकते हैं।

2.4. बैं क बनाम गै र -बैं ककग ववत्तीय कं पवनयां (Banks v/s Non-Banking
Financial Companies: NBFCs)

2.4.1. गै र -बैं ककग ववत्तीय कं पवनयां (NBFCs) क्या हैं ?

 वे कपूपवनयाँ जो कं पनी ऄवधवनयम, 1956 के ऄंतगथत पंजीकृ त हो तथा वजनका मुख्य कायथ ईधार
देना, वववभन्न प्रकार के शेयरों/स्टॉक/बांड्स/वडबेंचरों/प्रवतभूवतयों और क्रकसी योजना ऄथवा
व्यवस्था के ऄंतगथत एकमुश्त ूपप से ऄथवा क्रकस्तों में जमारावशयां प्राप्त करना हो, गैर-बैंककग
ववत्तीय कपूपवनयाँ (NBFCs) कहलाती हैं।

 ककतु, क्रकसी NBFC में ऐसी कोइ भी संस्था सवपूमवलत नहीं होती है वजसका मुख्य कायथ कृ वष,
औद्योवगक एवं व्यापार संबंधी गवतवववधयां हो ऄथवा जो ऄचल संपवत्त के वविय/िय/वनमाथण
संबंधी गवतवववधयों में संलग्न हो।
 NBFCs ऊण प्रदान करती हैं और वनवेश भी करती हैं। आसवलए ईनकी गवतवववधयां बैंकों के
समान हैं; हालांक्रक आनके मध्य कु छ ऄंतर भी ववद्यमान हैं, जो वनम्नवलवखत हैं:
o NBFCs मांग जमा स्वीकार नहीं कर सकती हैं;
o NBFCs भुगतान और वनपटान प्रणाली (payment and settlement system) का
वहस्सा नहीं हैं और आनके पास चेक जारी करने की शवि नहीं हैं;
o सामान्य बैंकों के ववपरीत वनक्षेप बीमा और प्रत्यय गारं टी वनगम (Deposit Insurance
and Credit Guarantee Corporation) की जमा बीमा सुववधा NBFCs के जमाकताथं
के वलए ईपलब्ध नहीं होती है।

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 क्रकसी भी संस्था को NBFC के ूपप में कायथ करने हेतु भारतीय ररज़वथ बैंक में पंजीकरण करवाना

ऄवनवायथ है। यक्रद कोइ संस्था पंजीकरण प्रमाण-पत्र प्राप्त क्रकए वबना मुख्य व्यवसाय के तौर पर

गैर-बैंककग ववत्तीय गवतवववधयों (जैसे ईधार देना, वनवेश करना या जमारावशयाँ स्वीकार करना)

में संलग्न पाइ जाती है तो RBI आस संस्था पर दंड या जुमाथना अरोवपत कर सकता है या ईस पर

न्यायावधकरण में ऄवभयोग चला सकता है।

 कोइ भी NBFC, RBI से पंजीकरण प्रमाण-पत्र प्राप्त क्रकए वबना तथा 25 लाख ूपपए के वनवल

स्वावधकृ त वनवध (Net Owned Funds: NOF) के वबना गैर-बैंककग ववत्तीय संस्थान के ूपप में

व्यवसाय अरपूभ नहीं कर सकती है।

 NBFCs को कं पनी ऄवधवनयम, 1956 के तहत सवपूमवलत (वनगवमत) क्रकया गया है। NBFCs को

दो व्यापक श्रेवणयों में वगीकृ त क्रकया जा सकता है, वजनमें

o वे NBFCs जो जनता से जमा स्वीकार करती हैं (NBFCs-D) और (ii) वे NBFCs जो

जनता से जमा स्वीकार नहीं करती हैं (NBFCs-ND)।

o ऄववशष्ट गैर-बैंककग कं पवनयां (Residuary Non-Banking Companies: RNBCs)

NBFC की एक और श्रेणी हैं। आनका मुख्य कायथ जमा स्वीकार करना और स्वीकृ त

प्रवतभूवतयों में वनवेश करना है।

2.4.2. NBFC का वववनयमन

 भारतीय ररज़वथ बैंक सभी ववत्तीय कं पवनयों का वववनयमन नहीं करता है। कु छ कं पवनयों के

वववनयमन एवं पयथवेक्षण हेतु ववशेष वववनयामक हैं, जैस-े बीमा कपवनयों के वलए आरडा (IRDA);

मचेंट बैंककग कं पनी/वेंचर कै वपटल िं ड/स्टॉक िोककग कं पनी/पूयुचुऄल िं ड अक्रद के वलए भारतीय

प्रवतभूवत और वववनमय बोडथ (SEBI); अवास ववत्त कपंवनयों के वलए राष्ट्रीय अवास बैंक (NHB);

वनवध (Nidhi) कं पवनयों के वलए कं पनी कायथ ववभाग (DCA) {वनवध कं पवनयां, कं पनी ऄवधवनयम,

1956 के सेक्शन 620A के तहत ऄवधसूवचत होती हैं} और वचट िं ड कं पवनयों के वलए रायय

सरकारें । ऐसी वववशष्ट वववनयामक वाली ववत्तीय कं पवनयों को ररज़वथ बैंक ने कइ प्रकार की

वववनयामक ऄपेक्षां से ववशेष छू ट प्रदान की है, जैस-े पंजीकरण, चलवनवध पररसंपवत्तयां बनाए

रखना, सांवववधक अरवक्षत वनवध अक्रद।

नीचे क्रदए गए चाटथ में वववभन्न NBFCs से संबंवधत वववभन्न वववनयामकों को दशाथया गया है:

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वचत्र: 2 NBFCs से संबवं धत वववभन्न वववनयामक

वनवध कं पनी (Nidhi company)


 ऐसी कं पनी जो गैर-बैंककग भारतीय ववत्त क्षेत्र से संबंवधत होती है तथा वजसे कं पनी ऄवधवनयम,
2013 की धारा 406 के तहत मान्यता प्राप्त होती है, वनवध कं पनी कहलाती है । आनका मुख्य
व्यवसाय के वल ऄपने सदस्यों के बीच से ही धन की ईगाही करना और ईन्हें ईधार देना है। RBI
को ईनके जमा स्वीकृ वत गवतवववधयों से संबंवधत मामलों में वनदेश जारी करने का ऄवधकार है।
मूल ूपप से "वनवध" का ऄथथ है एक ऐसी कं पनी वजसे वनम्नवलवखत ईद्देश्यों से वनवध के ूपप में
वनगवमत क्रकया गया है:
o ऄपने सदस्यों के बीच वमतव्यवयता और बचत की अदत को ववकवसत करना तथा
o पारस्पररक लाभ के ईद्देश्य से के वल ऄपने सदस्यों से जमा स्वीकार करना एवं ईन्हें ही ईधार
देना।
वनवध कपूपवनयों पर कु छ सामान्य प्रवतबंध अरोवपत हैं। कोइ वनवध कं पनी वनम्नवलवखत कायथ नहीं
करे गी:
 वचट िं ड, हायर परचेज िाआनेंस, लीसजग िाआनेंस, बीमा या क्रकसी भी कॉरपोरे ट द्वारा जारी
प्रवतभूवत के ऄवधग्रहण का व्यवसाय करना।
 प्रेिेरें स शेयर, वडबेंचर या ऄन्य कोइ ऊण साधन जारी करना या ऄपने सदस्यों के वलए क्रकसी भी
प्रकार का चालू खाता खोलना।
 ऄपने स्वयं के नाम से ईधार लेने या ईधार देने के व्यवसाय के ऄवतररि कोइ ऄन्य व्यवसाय।
 ऄपने सदस्यों के ऄवतररि क्रकसी भी व्यवि से जमा स्वीकार करना या ईधार देना।
 वसक्योररटी के ूपप में ऄपने सदस्यों द्वारा दी गइ क्रकसी भी संपवत्त को वगरवी रखना।
 क्रकसी भी कॉरपोरे ट से जमा स्वीकार करना या ईधार देना।
 ऄपने ईधार देने या ईधार लेने की गवतवववधयों में क्रकसी से साझेदारी करना अक्रद।
परन्तु हाल के क्रदनों में, मुद्रा बाजार और पूंजी बाजार में हुए कु छ वचट िं ड घोटालों के कारण आन
कं पवनयों के बेहतर वववनयमन की मांग की जा रही है।

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2.4.3. NBFCs का बढ़ता प्रभाव और वववनयामकीय समस्याएँ

 गैर-बैंककग ववत्तीय क्षेत्र संचालन, वववभन्न प्रकार के ईत्पादों और ईपकरणों, तकनीकी पररष्कार
अक्रद के मामले में ऄत्यंत ववकवसत हुअ है। हाल के वषषों में, NBFCs के महत्व में वृवद्ध हुइ है तथा
आन्होने समग्र ववत्तीय क्षेत्र में ऄपनी पैठ जमा ली है। RBI की वववनयामकीय ऄनुक्रियां ने भी आस
क्षेत्र के ववकास के साथ तालमेल बनाये रखा है। ववशेष ूपप से, वववनयमन ने जमाकताथं के वहतों
के संरक्षण के मुद्दे का पयाथप्त ूपप से समाधान क्रकया है। यह मुद्दा RBI की सचता का ववषय है।
 NBFCs के वलए वववनयामकीय व्यवस्था कम कठोर है तथा कइ मामलों में बैंकों से वभन्न है। हाल
के वषषों में NBFCs को क्रदए जाने वाले बैंक ऊण में हुइ वनरं तर वृवद्ध का ऄथथ यह है क्रक ऄल्प
वववनयवमत NBFCs सेक्टर के कारण बैंककग क्षेत्र में जोवखमों के बढ़ने की संभावना को ऄब
खाररज नहीं क्रकया जा सकता है।
 कु ल पररसंपवत्तयों के अधार पर NBFCs क्षेत्र का अकार लगभग 12.5 रट्रवलयन रुपया है। यह
बैंककग क्षेत्र (वजसका अकार कु ल पररसंपवत्तयों के अधार पर 96.7 रट्रवलयन रुपया है) का लगभग
13% है।
 हालांक्रक यह तकथ देना करठन है क्रक ऄपने छोटे अकार के कारण क्रकसी ववशेष NBFC की
ऄसिलता बैंकों के प्रणालीगत जोवखम में वृवद्ध करे गी। परं तु यह ख़ाररज नहीं क्रकया जा सकता है
क्रक ईनकी सामूवहक वविलता, ववशेष ूपप से बैंक-ववत्त NBFC संबंधों के प्रकाश में, वनवित तौर
पर ववत्तीय प्रणाली को एक प्रणालीगत जोवखम के प्रवत सुभेद्य बना देंगी।
 गैर-बैंककग ववत्तीय कं पवनयां कभी-कभी ऄपने ऊणकताथं से ईच्च ब्याज दर वसूल करती हैं। RBI
ने ववत्तीय संस्थां (NBFC-माआिो िाआनेंस आं स्टीट्यूशन के ऄवतररि) से ऊण प्राप्त करने वाले
ऊणकताथं के वलए ब्याज दरों के वनधाथरण को वनयंत्रण-मुि कर क्रदया है। कं पनी द्वारा वसूली
जाने वाली ब्याज की दर वस्तुतः ऊणकताथ और NBFC के बीच दजथ ऊण समझौते के वनयम और
शतषों द्वारा वनयंवत्रत होती है। हालांक्रक, NBFCs को पारदशी होना चावहए और वववभन्न श्रेवणयों
के ऊणकताथं को ऊण अवेदन पत्र में ब्याज की दर से स्पष्ट तौर पर ऄवगत क्रकया जाना चावहए।

2.4.4. ईषा थोराट सवमवत की ररपोटथ

RBI ने गैर-बैंककग ववत्तीय कं पवनयों (NBFCs) से संबंवधत ईषा थोराट सवमवत की ररपोटथ जारी की है।
सवमवत की कु छ महत्वपूणथ वसिाररशें वनम्नवलवखत हैं:
 ँ ी: सवमवत ने सुझाव क्रदया है क्रक NBFCs के पंजीकरण के तीन वषथ के
NBFCs की रटयर I पूज
भीतर पूज
ं ी पयाथप्तता की दृवष्ट से ईनकी न्यूनतम रटयर I पूंजी 12 प्रवतशत होनी चावहए। ऄब तक
NBFC को 15% पूज
ं ी पयाथप्तता की अवश्यकता होती है, परन्तु आसमें रटयर I या रटयर II के पूज
ं ी
की कोइ कठोर शतथ नहीं है।
 तरलता ऄनुपात (Liquidity ratio): 30 क्रदनों के तरलता ऄनुपात का पालन क्रकया जाए। RBI ने
30 क्रदनों के वलए तरलता ऄनुपात बनाए रखने की वसिाररश की है। आसका ऄथथ है क्रक NBFC को
प्रत्येक महीने ऄपने ऊण भुगतान की बकाया रावश के बराबर नकद शेष रावश को ऄलग रखना
होगा। आस प्रकार यह ईपाय NBFC के पररसंपवत्त दावयत्व में होने वाले ऄसंतल
ु न पर वनयंत्रण हेतु
महत्वपूणथ होगा।
 बैंकों पर लागू होने वाले ऄकाईं रटग वनयम NBFCs के वलए भी होने चावहए। सवमवत के ऄनुसार
1,000 करोड़ रुपये से ऄवधक पररसंपवत्तयों वाली सभी NBFCs को सेबी के सूचीबद्धता करार
की धारा 49 के तहत कं पनी के वनदेशक मंडल का गठन करना चावहए, चाहे ये NBFCs सूचीबद्ध
हैं या नहीं।

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 सवमवत ने NBFCs को ऊण वसूली के नए कानून- ववत्तीय अवस्तयों का प्रवतभूवतकरण एवं
पुनर्तनमाथण तथा प्रवतभूवत वहत प्रवतथन ऄवधवनयम (Securitisation and Reconstruction of
Financial Assets And Enforcement of Security Interest or SARFAESI Act)- का
लाभ प्रदान करने का समथथन क्रकया है।
 ररजवथ बैंक को नए NBFC के पंजीकरण के वलए न्यूनतम 50 करोड़ रुपये की पररसंपवत्त तथा
आससे कम पररसंपवत्त वाले NBFCs का पंजीकरण रद्द क्रकया जाना चावहए या ईन्हें दो वषथ के
पिात् नया पंजीकरण प्रमाण-पत्र प्रदान क्रकया जाना चावहए।
 सवमवत ने सुझाव क्रदया है क्रक 25 प्रवतशत या आससे ऄवधक की प्रत्यक्ष या ऄप्रत्यक्ष वहस्सेदारी के
स्थानांतरण, वनयंत्रण में पररवतथन, क्रकसी भी पंजीकृ त NBFC के ववलय या ऄवधग्रहण हेतु RBI
की ऄनुमवत ऄवनवायथ होनी चावहए।
 1000 करोड़ और आससे ऄवधक पररसंपवत्तयों वाली NBFC का वार्तषक अधार पर व्यापक ूपप से
वनरीक्षण क्रकया जाना चावहए ताक्रक ईनकी सुभेद्यता का ऄनुमान लगाया जा सके ।

2.4.5. RBI द्वारा NBFCs के वलये ईठाए गए अवश्यक कदम

 नवंबर 2014 में RBI ने NBFC के वलए कठोर वनयम जारी क्रकए थे। नए क्रदशावनदेशों के ऄनुसार
NBFCs को ऄवधक न्यूनतम पूज
ं ी की अवश्यकता होगी; ईन्हें ऄशोध्य ऊण (bad loan) की
घोषणा हेतु कम समय वमलेगा; साथ ही वनदेशक मंडल की वनयुवि के वलए ईवचत मानदंड
ऄपनाने होंगें।
 चरणबद्ध तरीके से लागू होने वाले नए मानदंड 500 करोड़ रुपये का प्रबंधन करने वाली तथा
सावथजवनक जमा को स्वीकार करने वाली NBFCs के वलए लागू क्रकये गए हैं।
 RBI द्वारा जमाकताथं के वहत में ववकवसत एक वववनयामकीय संरचना की मुख्य ववशेषताएं
वनम्नवलवखत हैं:
o RBI के साथ NBFCs का पंजीकरण वस्तुतः NBFCs को के वल ईनके व्यवसाय के संचालन
के वलए ऄवधकृ त करता है। RBI, NBFCs द्वारा स्वीकार क्रकए गए जमा के पुनभुथगतान की
गारं टी नहीं देता है।
o NBFCs ऄपने व्यवसाय का संचालन करते समय RBI के नाम का ईपयोग नहीं कर सकते
हैं।
o कु छ पररसंपवत्त ववत्त (ईपकरण पट्टे और क्रकराया खरीद ववत्त) कं पवनयों और ऄववशष्ट गैर-
बैंककग कं पवनयों (RNBCs) के ऄवतररि जमा स्वीकार करने वाले NBFCs को जमा संग्रह
के वलए ऄनुमोक्रदत िे वडट रे रटग एजेंसी द्वारा प्रदत्त न्यूनतम वनवेश ग्रेड की िे वडट रे रटग प्राप्त
होनी चावहए।

2.5. भारत में बैं ककग सु धार

2.5.1. नरससहम सवमवत (1991)

आस सवमवत के ऄध्यक्ष RBI के 13वें गवनथर श्री एम. नरससहम थे। भुगतान संतल
ु न (BoP) के संकट की
पृष्ठभूवम में आस सवमवत का गठन क्रकया गया था। ववत्तीय प्रणाली से संबंवधत सभी कारकों का ववश्लेषण
करने और आसकी दक्षता एवं ईत्पादकता में सुधार की वसिाररश करने के वलए आस सवमवत का गठन
क्रकया गया था। सवमवत की कु छ महत्वपूणथ वसिाररशें वनम्नवलवखत थीं:

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 CRR और SLR में कमी।
 ब्याज दरों के वववनयमन में ढील: सवमवत के ऄनुसार प्रशावसत दरों का प्रचवलत ढांचा ऄत्यंत
जरटल और कठोर था। िलतः आस पर से वववनयमन हटाने के वलए कहा गया ताक्रक यह ईभरते
बाजार की वस्थवतयों को प्रवतसबवबत करे । हालांक्रक, आसे तत्काल लागू करने के ववरुद्ध चेतावनी दी
गयी और वववनयमन में िवमक ूपप से कमी करने का सुझाव क्रदया गया।
 बैंकों का संरचनात्मक पुनगथठन: आस संबंध में सवमवत ने वसिाररश की क्रक बैंकों की संरचना ऐसी
हो वजससे क्रक 3-4 बैंकों (SBI सवहत) को ऄंतराथष्ट्रीय बैंक बनाया जा सके तथा 8 से 10 राष्ट्रीय
बैंकों का एक राष्ट्रव्यापी नेटवकथ हो जो सावथभौवमक बैंककग सेवा प्रदान करें । साथ ही वववशष्ट क्षेत्र के
वलए स्थानीय बैंकों का गठन क्रकया जाए; ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामीण बैंकों (RRBs) की स्थापना हो
जो मुख्य ूपप से कृ वष और संबद्ध गवतवववधयों के ववत्तपोषण में संलग्न हों।
 ARF रट्रब्यूनल का गठन: सवमवत ने एक पररसंपवत्त पुनर्तनमाथण वनवध (Asset Reconstruction
Fund: AFR) की स्थापना की वसिाररश की। यह वनवध बैंकों और ववत्तीय संस्थानों से ऄशोध्य
और संक्रदग्ध ऊणों को खरीदेगी। AFR की वनबाथध और प्रभावी कायथप्रणाली सुवनवित करने के
वलए बैंकों के सभी ऄशोध्य और संक्रदग्ध ऊणों को चरणबद्ध तरीके से आसमें स्थानांतररत क्रकया
जाए। सवमवत ने बैंक द्वारा क्रदए गए ऊण की वसूली के वलए ववशेष रट्रब्यूनल के गठन का भी
सुझाव क्रदया।
 ं ी जुटाने की ऄनुमवत देना: सवमवत ने वसिाररश की क्रक लाभप्रद बैंकों और ऄच्छी
बैंकों को पूज
प्रवतष्ठा वाले बैंकों को पूज
ं ी बाजार के माध्यम से जनता से पूज
ं ी जुटाने की ऄनुमवत दी जानी
चावहए। ऄन्य बैंकों के संबंध में सवमवत का मानना था क्रक सरकार को आन बैंकों में पूज
ं ी का वनवेश
करना चावहए या ऊण देना चावहए। आस वनवेश या ऊण को ईनकी पूंजी अवश्यकतां को पूरा
करने वाले एक ऄधीनस्थ ऊण के ूपप में माना जाना चावहए।

2.5.2. नरससहम सवमवत II

1998 में श्री एम. नरससहम की ऄध्यक्षता में भारत सरकार के ववत्त मंत्रालय द्वारा आस सवमवत का गठन
क्रकया गया। आसका ईद्देश्य 1992 के पिात् बैंककग सुधारों के कायाथन्वयन की प्रगवत की समीक्षा करना
तथा भारत के ववत्तीय संस्थानों को ऄपेक्षाकृ त ऄवधक सशि बनाना था। सवमवत की ररपोटथ में बैंकों के
अकार और पूजं ी पयाथप्तता ऄनुपात जैसे मुद्दों पर ध्यान कें क्रद्रत क्रकया गया था। ररपोटथ की ऄन्य बातें:
 एक सशि बैंककग प्रणाली की अवश्यकता: आसने सशि बैंकों के ववलय की वसिाररश की। आस
ववलय का ईद्योगों पर गुणक प्रभाव होगा। दो या तीन बड़े सशि बैंकों को काम करने के वलए
ऄंतरराष्ट्रीय या वैवश्वक मंच प्रदान क्रकए जाने की वसिाररश भी की गयी।
 NPAs के वलए कठोर मानदंड: कु छ PSBs की पररसंपवत्त का लगभग 20 िीसदी वहस्सा NPAs
के तौर पर हैं। आन बैंकों के सिल कायाथन्वयन के वलए सवमवत ने संकीणथ बैंककग (Narrow
Banking) की संकल्पना की वसिाररश की। आसके ऄनुसार, कमजोर बैंकों द्वारा ऄपनी वनवधयों को
के वल ऄल्पाववध के वलए रखने तथा कम जोवखम वाली पररसंपवत्तयों में रखने की ऄनुमवत दी गइ।
 PSBs के वलए ऄवधक स्वायत्तता: सावथजवनक क्षेत्र के बैंकों के वलए ईनके ऄंतराथष्ट्रीय समकक्षों के
समान व्यावसावयकता के साथ काम करने के वलए ऄवधकावधक स्वायत्तता का प्रस्ताव क्रदया गया।
सवमवत ने कहा क्रक राष्ट्रीयकृ त बैंकों में भारत सरकार की आक्रक्वटी को 33% तक कम कर क्रदया
जाए; आन बैंकों के वनदेशक मंडल से RBI ऄलग हो जाए; साथ ही बैंक बोडषों के कायषों की समीक्षा
की जानी चावहए।
 पूजं ी पयाथप्तता मानदंड: भारतीय बैंककग प्रणाली को सुधारने के वलए सवमवत ने वसिाररश की थी
क्रक सरकार आन्हें जोवखम से भलीभांवत वनपटने में सक्षम बनाए। आसके वलए वनधाथररत पूंजी
पयाथप्तता मानदंड में वृवद्ध की वसिाररश की गयी। सवमवत ने पूज
ं ी पयाथप्तता ऄनुपात को वषथ 2000
तक 9% और 2002 तक 10% तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा था। सवमवत ने आन अवश्यकतां को
पूरा करने में वविल रहने वाले बैंकों के वलए दंड की वसिाररश की।

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वसिाररशों का कायाथन्वयन
 आन वसिाररशों को लागू करने के वलए, ऄक्टू बर 1998 में RBI ने नरससहम सवमवत II की ररपोटथ
के ऄनुसार ववत्तीय क्षेत्र के सुधार के दूसरे चरण की शुरुअत की। RBI ने पूज
ं ी पयाथप्तता ऄनुपात में
1% तक की वृवद्ध की तथा चरणबद्ध तरीके से प्रोववजसनग एवं पररसंपवत्त वगीकरण के वलए
मानदंडों को कठोर क्रकया। माचथ 2001 तक आस पूज
ं ी पयाथप्तता ऄनुपात को 9% तक लाने का लक्ष्य
रखा गया।
 माचथ 1999 तक "स्वायत्त वस्थवत" (autonomous status) के वलए वववभन्न मानदंडों की
पहचान की गयी और ऄक्टूबर 1999 में 17 बैंक स्वायत्तता के वलए पात्र माने गए। सवमवत की
वसिाररशों के अधार पर 2002 में SARAFESI ऄवधवनयम लाया गया। सवमवत द्वारा की गइ
वसिाररशों यथा सावथजवनक क्षेत्र के बैंकों में सरकार की शेयरधाररता 33% तक करना, ऄवधक
व्यावसावयकता को ऄपनाने और वनदेशक मंडल की स्वतंत्रता जैसे मुद्दे को ऄभी भी सरकारी
ऄनुमवत प्राप्त होना बाकी है। आसके वलये हाल ही में आन्द्रधनुष योजना लायी गयी हैं।
 2008 के अर्तथक संकट के दौरान, भारतीय बैंककग क्षेत्र का प्रदशथन ईनके ऄंतरराष्ट्रीय समकक्षों की
तुलना में कहीं ऄवधक बेहतर था। यह श्रेय नरससहम सवमवत II की वसिाररशों के सिल
कायाथन्वयन को क्रदया गया है। पूज ं ी पयाथप्तता मानदंडों के वलए ववशेष संदभथ और सावथजवनक क्षेत्र
के बैंकों का पुनपूज
ूं ीकरण अक्रद आसमें सहायक रहे। आन दोनों सवमवतयों का प्रभाव आतना महत्वपूणथ
है क्रक ववत्तीय-अर्तथक क्षेत्र के पेशवे रों ने आनकी सकारात्मक सराहना की है।
 आन्द्रधनुष योजना का ईद्देश्य सरकारी बैंकों में बहुमुखी सुधार लाना है। आं द्रधनुष में सात रं ग की
जगह A से लेकर G तक सात ऄल्िाबेट शावमल क्रकए गए हैं।
o A ऄथाथत् एपॉआं टमेंट: सरकारी बैंकों में चेयरमैन कम मैनेसजग डायरे क्टर के पद को दो वहस्सों
में बांटा गया। नॉन एवक्जक्यूरटव चेयरमैन और एमडी एंड सीइओ। आन दोनों पदों समेत
डायरे क्टर तक की वनयुवि की प्रक्रिया कािी पारदशी बनाइ गइ है।
o B ऄथाथत् बैंक बोडथ ब्यूरो: छ: सदस्यों वाले आस ब्यूरो का काम ईच्च पदों पर वनयुवि और बैंकों
की लॉन्ग टमथ रणनीवत तैयार करना होगा।
o C ऄथाथत् कै वपटलाआजेशन: आसके तहत एक तय िॉमूल
थ े के ऄनुसार बैंकों को ऄगले चार वषषों
में 70,000 करोड़ रुपये क्रदए जाएंगे।
o D ऄथाथत् डी-स्ट्रेससग ऑि बैंक: बैंकों पर NPAs के बोझ को कम करना है। आसके तहत कजथ
की शतषों में ढील देन,े कजथ के बोझ तले दबे क्षेत्रक और योजना की मॉवनटररग करने जैसे कदम
सवपूमवलत होंगे।
o E ऄथाथत् एपूपावरमेंट: ऄथाथत् बैंक ऄपने कारोबारी िै सले स्वयं लें। साथ में बैंकों की
वजपूमेदारी भी तय की गइ है। बैंकों के प्रदशथन को वनधाथररत करने के वलए 23 मापदंड तय
क्रकए गए हैं।
o F ऄथाथत् फ्रेमवकथ ऑि एकाईं टेवबवलटी
o G ऄथाथत् गवनेंस: ऄथाथत् बैंकों के कामकाज में सरकार की दखलंदाजी नहीं होगी। सरकार के
ऄवधकार, वहस्सेदारी और दखलंदाजी को कम करने के वलए एक होसल्डग कं पनी बनाने का भी
ववचार हैं।

2.6. गै र -वनष्पाक्रदत पररसं प वत्तयों से सं ब द्ध मु द्दे (Issue of Non-Performing


Assets: NPAs)

हाल के क्रदनों में बैंककग क्षेत्र में दबाव ग्रस्त पररसंपवत्तयों में वृवद्ध होने के कारण NPAs का मुद्दा ऄवत
महत्वपूणथ हो गया है।

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2.6.1. गै र -वनष्पाक्रदत पररसं प वत्तयां (NPA’s) क्या हैं ?

 गैर-वनष्पाक्रदत अवस्तयां या पररसंपवत्तयां वस्तुतः क्रकसी बैंक या ववत्त कं पनी द्वारा प्रदान क्रकये गए
ऊण होते हैं, वजनका समय पर पुनभुथगतान या ईनपर देय ब्याज का समय पर भुगतान नहीं क्रकया
जाता है। आनको गैर-वनष्पाक्रदत ऊण भी कहा जाता है।

कु ल दबावग्रस्त पररसंपवत्तयां = गैर-वनष्पाक्रदत पररसंपवत्तयां (NPA’s) + पुनगथरठत पररसंपवत्तयां


(Total stresses assets = NPAs + Restructured assets)
 दबावग्रस्त पररसंपवत्तयां : यह एक व्यापक शब्द है वजसमें NPAs, पुनगथरठत ऊण (रीस्ट्रक्चडथ
लोन) और ररटेन ऑि एसे्स सवपूमवलत होते हैं।
 NPAs - ऐसे ऊण या ऄवग्रम वजसके वलए मूलधन या ब्याज का भुगतान 90 क्रदनों की ऄववध तक
ऄवतदेय बना रहता है ऄथाथत् वजनका पुनभुथगतान नहीं क्रकया जा रहा है।
 पुनगथरठत ऊण (Restructured Loans) - ऐसी पररसंपवत्तयाँ/ऊण वजन्हें भुगतान के वलए लंबी
ऄववध देकर, ब्याज को कम करके या ईन्हें आक्रक्वटी (शेयर) में पररवर्ततत करके पुनगथरठत क्रकया
जाता है।
 ररटन ऑि एसे्स (Written off Assets) - ऐसी पररसंपवत्तयाँ/ऊण वजन्हें बकाया के ूपप में
नहीं वगना जाता है। आनकी पूर्तत क्रकसी ऄन्य तरीके से की जाती है।

 सामान्य भाषा में ऄनजथक या गैर-वनष्पाक्रदत पररसंपवत्तया (NPAs) बैंकों द्वारा प्रदान क्रकया गया
एक ऐसा ऊण या ऄवग्रम हैं वजसके मूलधन या ब्याज का भुगतान 90 क्रदनों की ऄववध तक बकाया
हो।
हालांक्रक कृ वष ऊण के वलए यह व्याख्या कु छ ऄलग है।
 ऄल्पाववध की िसल के वलए यक्रद ऊण की क्रकस्त या ब्याज 2 िसल ऄववध तक नहीं क्रदया गया
तो ईसे “गैर वनष्पाक्रदत पररसंपवत्त” कहा जाएगा, जैसे क्रक धान, यवार, बाजरा अक्रद के वलये प्रदान
क्रकये गए कृ वष ऊण। दीघाथववध की िसल के वलए यक्रद ऊण की क्रकस्त या ब्याज 1 िसल ऄववध
तक नहीं क्रदया गया गयी तो ईसे “गैर वनष्पाक्रदत पररसंपवत्त” कहा जाएगा।
 हाल के वषषों में सकल गैर-वनष्पाक्रदत पररसंपवत्तयों (GNPAs) के स्तर में तीव्र वृवद्ध हुइ है। यह
वसतंबर 2015 में 5.1 प्रवतशत से बढ़कर माचथ 2016 में 7.6 प्रवतशत हो गयी। यह वृवद्ध RBI
द्वारा की गयी पररसंपवत्त गुणवत्ता समीक्षा (asset quality review) के कारण हुअ है। आस
समीक्षा में पुनगथरठत कजथ का NPAs के ूपप में पुनवथगीकरण सवपूमवलत है। सावथजवनक क्षेत्रक के
बैंकों, वनजी क्षेत्रक के बैंकों और ववदेशी बैंकों की दबावग्रस्त पररसंपवत्तयां (गैर-वनष्पाक्रदत
पररसंपवत्तयां और पुनगथरठत ऊण) िमशः 14%, 4.6% तथा 3.4% हैं।
 हालांक्रक, यक्रद हम कु छ समय पूवथ का पररदृश्य देखें तो भारतीय बैंककग प्रणाली की पररसंपवत्त
गुणवत्ता में बैंककग क्षेत्र में सुधारों के क्रियान्वयन से वनरं तर सुधार हो रहा था। बेसल मापदंडों के
क्रियान्वयन, SARFAESI ऄवधवनयम, िे वडट सूचना कं पनी ऄवधवनयम अक्रद के कारण सकल
NPA ऄनुपात 1996-97 के 15.7 प्रवतशत से घटकर 2010-11 में 2.36 प्रवतशत हो गया था।
2014-15 में NPAs में वृवद्ध का प्रमुख कारण वैवश्वक मंदी है, साथ ही अतंररक कारकों जैसे घरे लू
ऄथथव्यवस्था में मंदी को भी आस वृवद्ध के वलये वजपूमेदार ठहराया गया है।
हाल ही में बैंककग प्रणाली में NPAs में कमी लाने के वलये सरकार एवं RBI द्वारा कइ कदम ईठाये गए
हैं, वजनमें वनम्नवलवखत प्रमुख हैं:
 दबावग्रस्त पररसंपवत्तयों की संधारणीय संरचना योजना (Scheme for Sustainable
Structuring of Stressed Assets: S4A): आसके ऄंतगथत बड़े ऊण वाली वजन पररयोजनां
का वावणवययक संचालन शुूप हो गया है, ऐसी पररयोजनाएँ S4A के तहत अती है। यहां

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ईधारदातां के वलए गैर-संधारणीय ऊण से संधारणीय ऊण को ऄलग करने की अवश्यकता
होती है। बैंक गैर-संधारणीय ऊणों को आक्रक्वटी (शेयर) या आक्रक्वटी संबंवधत ईपकरणों में पररवर्ततत
करें गे। पररणामस्वूपप, जहां एक ओर ईधारदाता का ऊण बोझ कािी हद तक कम हो जाएगा,
वहीं दूसरी ओर प्रमोटसथ की आक्रक्वटी वहस्सेदारी भी कम हो जाएगी।
 पररसंपवत्त पुनर्तनमाथण कं पनी (Asset Reconstruction Company: ARC): बढ़ती ऄनजथक
पररसंपवत्तयों से वनपटने के वलए, कें द्रीय ववत्त मंत्रालय और नीवत अयोग ने सरकार और RBI से
आक्रक्वटी िं सडग द्वारा एक पररसंपवत्त पुनर्तनमाथण कं पनी (ARC) की स्थापना करने की वसिाररश की
है।
 रणनीवतक ऊण पुनगथठन (Strategic Debt Restructuring: SDR): ईधारदातां का समूह
क्रकसी बीमार कं पनी में ऄपने ऊण के एक वहस्से को आक्रक्वटी में पररवर्ततत कर सकता है; आसके वलए
ईधारदातां के पास कम से कम 51 िीसदी वहस्सेदारी होनी चावहए।
 5:25 योजना: यह योजना बैंकों को वववभन्न पररयोजनां में नकदी प्रवाह बनाए रखने के वलए
प्रत्येक 5 या 7 वषषों में पुनर्तवत्तीयन के साथ 20-25 वषषों की लंबी ऄववध के ऊण देने की ऄनुमवत
देती है।
 पररसंपवत्त गुणवत्ता समीक्षा: कें द्रीय बैंक ने वावणवययक बैंकों को प्रोववजसनग (provisioning)
अवश्यकता में तीव्रता लाने तथा ऄग्र सक्रिय होकर दबावग्रस्त पररसंपवत्तयों को वचवन्हत करने का
वनदेश क्रदया है।
 कॉपोरे ट ऊण पुनगथठन (CDR) तंत्र और संयुि ऊणदाता िोरम का वनमाथण।
आसके ऄवतररि नइ क्रदवावलयापन संवहता लाइ गयी है, साथ ही ऊण वसूली ऄवधकरण (Debt
Recovery Tribunal; DRT) तथा प्रवतभूतीकरण और ववत्तीय पररसंपवत्तयों का पुनगथठन और
प्रवतभूवत वहत को प्रभावी करने का ऄवधवनयम 2002 (SARFAESI) को ऄवधक सशि बनाया गया
है।
(ऄध्याय में अगे ईपरोि कदमों का ववस्तार से वणथन क्रकया गया है)

2.6.2. NPAs की श्रे वणयां

 मानक पररसंपवत्तयाँ (Standard asset): जब ऊणकताथ वनयवमत ूपप से और समय पर ऄपने


बकाया का भुगतान करते हैं।
बैंकों से गैर-वनष्पाक्रदत पररसंपवत्तयों के गैर-वनष्पादक रहने की समयाववध तथा बकाया रावश के
पुनभुथगतान की सपूभावना के अधार पर NPAs को वनम्नवलवखत भागों में वगीकृ त करने की ऄपेक्षा की
जाती है।
 ववशेष ईल्लेवखत खाते (Special Mention Account: SMA): जब ऊणकताथ या ऊण प्राप्त
करने वाली संस्था 30 क्रदन से 90 क्रदन की ऄववध के बीच मूलधन एवं ब्याज नहीं लौटाते हैं, तो
ऐसे ऊणों को RBI, SMA के ऄन्तगथत रखती है। ऐसे मामलों में बैंकों को तत्काल सुधारात्मक
कारथ वाइ शुूप कर देनी चावहए।
 ऄवमानक पररसंपवत्तयां (Substandard Assets): 12 माह तक गैर-वनष्पादक बनी रहने वाली
पररसंपवत्त को ऄवमानक पररसंपवत्त कहते हैं। ऄवमानक पररसंपवत्तयों की ऄवधक मात्रा बैंक की
ऊण प्रदान करने की क्षमता को कम करती हैं।
 संक्रदग्ध पररसंपवत्तयां (Doubtful assets): 12 माह तक ऄवमानक पररसंपवत्त की श्रेणी में बनी
रहने वाली पररसंपवत्त को संक्रदग्ध पररसंपवत्त कहते हैं।
 घाटे की पररसंपवत्तयां (Loss assets): जब क्रकसी पररसपूपवत के बारे में RBI या कोइ
मान्यताप्राप्त लेखा परीक्षक यह घोवषत कर दे क्रक ईि पररसंपवत्त की वसूली सपूभव नही हैं तो ईसे
घाटे की पररसंपवत्त कहते हैं।

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2.6.3. प्रोववजसनग मानदं ड (Provisioning Norms)

 बैंक जब भी कोइ ऊण देते हैं तो ईन्हें ऐसे ऊण से होने वाले नुकसान (ऊण के पुनभुथगतान न होने
की वस्थवत में) से स्वयं को सुरवक्षत रखने के वलए कु छ वनवित रावश को ऄलग रखना होता है। आसे
ही प्रोववजसनग कहते हैं। ऊण के वडिॉल्ट (ऄथाथत जब पुनभुथगतान न हो पा रहा हो) होने पर बैंकों
को प्रवतकू ल ूपप से प्रभाववत होने से बचाने हेतु RBI ने प्रोववजसनग का वनयम बनाया है। बैंक को
प्रोववजन के बराबर रावश व्यवसाय से ऄलग रखनी पड़ती है।
 स्टैंडडथ ऄकाईं ट या मानक पररसंपवत्तयों के संपूबंध में: RBI द्वारा बैंकों की ववत्तीय सुरक्षा हेतु बनाए
वनयमों के ऄनुसार बैंकों को स्टैंडडथ लोन के वलए भी प्रोववजन करना पड़ता है। स्टैंडडथ लोन के वलए
बैंकों को ईसके 0.40 िीसदी के बराबर की रावश की प्रोववजसनग करनी पड़ती है। कमर्तशयल

ररयल एस्टेट के मामले में यह 1 िीसदी है, जबक्रक छोटे ईद्यमों के वलए 0.25 िीसदी है।
 सब-स्टैंडडथ या ऄवमानक पररसंपवत्तयों के वलए बैंक को बकाया रावश के 15 िीसदी के बराबर की

प्रोववजसनग करनी पड़ती है। वजस ऊण पर कोइ वसक्यूररटी नहीं होती है ईसमें बैंकों को 10
िीसदी ऄवतररि की प्रोवववजसनग करनी पड़ती है।
 ं में: चूंक्रक ऐसे ऊण की सपूपूणथ बकाया रावश की
डाईटिु ल एसेट या संक्रदग्ध पररसंपवत्तयों के संबध
पुनप्राथवप्त की संभावना बहुत कम होती है। ऄतः आसकी प्रोववजसनग आस बात पर वनभथर करती है क्रक
ऊण क्रकतने वषषों से संक्रदग्ध पररसंपवत्तयों की श्रेणी में है। यक्रद कोइ ऊण एक वषथ तक संक्रदग्ध
रहता है, तो ईसकी 25 िीसदी प्रोववजसनग होगी, तीन वषथ तक संक्रदग्ध रहने पर 40 िीसदी और

तीन वषथ के पिात् 100 िीसदी प्रोववजसनग करनी होगी।


 लॉस एसेट या घाटे की पररसंपवत्त के मामले में: बैंक जब यह मान लेता है क्रक बहीखाते पर
ईल्लेवखत क्रकसी लोन ऄकाईं ट की वैल्यू बहुत कम रह गइ है या खत्म हो गइ है, तब ईसे राआट

ऑि कर क्रदया जाता है। ऐसे में बैंक को बकाया रावश के 100 िीसदी के बराबर प्रोववजसनग

करनी पड़ती है। ऊणकताथ के बकाया ब्याज और मूलधन का भुगतान होने पर NPA को मानक

ऊण श्रेणी में सवपूमवलत क्रकया जा सकता है। NPA को मानक श्रेणी में सवपूमवलत करने के वलए
बैंक प्राय: ऊणकताथ को बकाया भुगतान के वलए ऄवधक समय देकर और ब्याज दर को घटाकर
ऊण को पुनगथरठत कर देते हैं।

2.6.4. NPAs को कै से कम क्रकया जाए

ऊण देने से पहले
 ऊणकताथं की िे वडट जानकारी: NPAs की वनगरानी क्रकसी भी ववत्तीय संस्था के साथ-साथ
वनयामक की सबसे बड़ी सचतां में से एक है। आसके समाधान के वलए RBI ने बैंकों, महत्वपूणथ
गैर-बैंककग ववत्तीय कं पवनयों तथा NBFCs (50 वमवलयन रुपये तथा ईससे ऄवधक) के वलए बड़े
ऊणों से संबवं धत सूचना का कें द्रीय वनधान (Central Repository of Information on Large
Credits; CRILC) की स्थापना की है।
 CRILC के सुस्पष्ट ईद्देश्य सुधाररत ऊण जोवखम मूल्यांकन के सूचना-ऄसंतुलन को कम करना
तथा वसूली प्रबंधन को सुधारना हैं। यद्यवप, CRILC की स्थापना मूलतः बैंकों और ऄन्य ववत्तीय
संस्थां को ईनके ऊण-प्रशासन को सुधारने में सहायता देने के वलए की गइ है, ककतु आससे यह
भी ऄपेवक्षत है क्रक जोवखम संकेंद्रण के वनमाथण तथा पररसंपवत्त गुणवत्ता संबंधी ईभरती हुइ
ऄवस्थरता के संबध
ं में पयथवेक्षी जोवखम के मूल्यांकन के वलए महत्वपूणथ आनपुट ईपलब्ध कराए।

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 थ व्यवहार: पररसंपवत्त वगीकरण और प्रोववजसनग का ईद्देश्य
ऊणकताथं के साथ सावधानीपूवक
बैंकों के तुलनपत्र की वास्तववक वस्थवत प्रदर्तशत करना है न क्रक ऊणकताथं का ऄपमान करना।
तथावप, दबावग्रस्त खातों पर ववचार करते हुए बैंकों को एक ओर ववलिु ल वडफ़ॉल्टरों/सहयोग न
करने वाले ऊणकताथं /ऄनैवतक ऊणकताथं और दूसरी ओर ऊणकताथं के वनयंत्रण के बाहर की
वस्थवतयों के कारण ईनके ऊण बाध्यता में चूक होने में स्पष्ट ऄंतर करना चावहए।
 ऊण की ईवचत संरचना: दीघथकालीन पररयोजनां के ववत्तपोषण में बैंकों की सहायता करने हेतु
RBI ने अववधक पुनर्तवत्तीयन ववकल्प के साथ दीघथकालीन पररयोजना ऊण की लचीली संरचना
से सपूबंवधत क्रदशा वनदेश जारी क्रकये हैं। दीघथकालीन पररयोजनां के ववत्तपोषण से आन
पररयोजनां के प्रारं वभक वषषों में नकदी प्रवाह दबाव को कम करके प्रमुख ईद्योग क्षेत्रगत
पररयोजनां और अधारभूत संरचना की दीघाथववधक व्यवहायथता को सुवनवित क्रकया जा सकता
है।
अवस्तयों को NPAs घोवषत करने के पिात
 RBI द्वारा जारी एक व्यापक ूपपरे खा: जनवरी 2014 में, RBI ने ‘ऄथथव्यवस्था में दबावग्रस्त
पररसंपवत्तयों को पुनजीववत करने के वलए एक व्यापक ूपपरे खा’ की शुरुअत की थी। यह एक
सुधारात्मक कायथयोजना की ूपपरे खा है वजसमें वनम्नवलवखत सवपूमवलत हैं:
o समस्यागत मामलों की समय रहते पहचान,
o व्यवहायथ माने जाने वाले खातों को समय रहते पुनगथरठत करना और ऄव्यवहाररक खातों में
सुधार करना,
o बैंकों द्वारा ऄप्रभावी खातों से पुनवथसूली या वनपटान के वलए शीघ्र कदम ईठाना।
 व्यवहायथ कं पवनयों को पुनजीववत करना: पुनगथठन या पुनरथ चना ईपचारात्मक ववकल्पों में से एक
ईपचार है। ऐसे श्रेष्ठ प्रयासों के पिात् भी कभी-कभी ऊणकताथ ऄपने अपको ववत्तीय करठनाइ में
पाते हैं। आसका कारण ईनके वनयंत्रण के बाह्य कारक और कवतपय अतंररक कारकों का होना हैं।
ऄथथक्षम प्रवतष्ठानों के पुनरुथान और बैंकों द्वारा प्रदान की गयी रावश की सुरक्षा के वलये वास्तववक
मामलों में पुनरथ चना के जररये समय रहते सहयोग की मांग हैं।
o व्यवहायथ संस्थां के ऄथथव्यवस्था में योगदान को मद्देनजर रखते हुए तथा ऊण देने वाले
संस्थां को होने वाली हावन को न्यूनतम करने एवं ऄन्य वहतधारकों की सुरक्षा हेतु कु छ
वास्तववक/यथाथथ मामलों में पुनगथठन के माध्यम से समय पर समथथन क्रदया जाना चावहए
ऄथाथत् व्यवहायथ कं पवनयों को पुनजीववत करना चावहए।
 ऊण वसूली ऄवधकरण: प्रवतभूवत ब्याज की त्वररत वसूली हेतु ऄपीलीय ऄवधकरणों के साथ-साथ
आन ऄवधकरणों की स्थापना की गइ थी।
 कानूनी प्रावधानों को प्रारं भ करना: ववत्तीय पररसंपवत्तयों के पुनर्तनमाथण एवं प्रवतभूवतकरण और
प्रवतभूवत वहत का प्रवतथन ऄवधवनयम, 2002 (SARFAESI) में बैंकों को ईनकी बकाया रावश
वसूलने के वलए कानूनी सहायता लेने का प्रावधान हैं।
 SARFAESI ऄवधवनयम के तहत पंजीकृ त SCs / RCs (प्रवतभूवतकरण कं पवनयों / पुनर्तनमाथण
कं पवनयों) को NPAs बेचना। आसमें SCs या RCs द्वारा NPAs की पुनप्राथवप्त की ऄपेक्षा की गयी
है वजससे प्रणाली में NPAs को कम क्रकया जा सके । के वल 15 पंजीकृ त SCs में से कु छ ही सिल
हुए हैं।
 ु त ऊणदाता िोरम (Joint Lenders’ Forum: JLF): यह क्रकसी कपूपनी के कारोबारी
संयक्
प्रदशथन की वनगरानी कर सकता है और अवश्यकता पड़ने पर एक ईपयुि पेशेवर प्रबंधक की
वनयुवि भी कर सकता है। यह सुवनवित करे गा क्रक सभी ऊण देने वाले बैंकर एक ववशेष
पररयोजना में ऄवधकतम वनवेश वाले प्रमुख बैंकर से सहमत हों।
 लोक ऄदालतें: लोक ऄदालतें, वववादों का वनपटान करने के वलए शीघ्र, सस्ती और पारस्पररक ूपप
से स्वीकायथ सुववधायें प्रदान करती हैं। सरकार ने सावथजवनक क्षेत्र के बैंकों को NPAs के मामलों में
वसूली के वलए आस तंत्र का ईपयोग करने की सलाह दी है।

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2.6.5. हाल में ईठाये गए कदम

प्रवतभूवतकरण कं पवनयों के वलए


 प्रवतभूवतकरण कं पवनयों (SCs) के कायथ में पारदर्तशता: हाल ही में RBI ने बैंकों और ववत्तीय
संस्थानों की ऄशोध्य पररसंपवत्तयों से वनपटने हेतु कइ सुधारात्मक कदम ईठाए हैं।
 प्रत्यक्ष ववदेशी वनवेश सीमा में बढ़ोतरी: SCs/RCs में प्रत्यक्ष ववदेशी वनवेश (FDI) की सीमा को
स्वचावलत मागथ के ऄधीन 49 % से बढ़ाकर 74 % कर क्रदया गया है।
बैंकों के वलए
 बैंकों की क्षमता वनमाथण: संयुक्त ऊणदाता िोरम (JLF) के ऄंतगथत सवपूमवलत पररयोजनां के
मूल्यांकन, पुनगथठन योजना अक्रद के वलए बैंकों को ऄवतररि तकनीकी क्षमतां से लैस होने की
अवश्यकता है। RBI ने ईन्नत ववत्तीय ऄनुसंधान और वशक्षा कें द्र के माध्यम से बैंकरों के वलए
क्षमता वनमाथण कायथिम को व्यववस्थत करने हेतु पहल की है।
बैंकों के वलए ररजवथ बैंक के नीवतगत कदमों का कालानुिम

रे खावचत्र: ररजवथ बैंक के नीवतगत कदमों का कालानुिम

 5/25 ऄवसंरचना पुनःववत्तीयन योजना (The 5/25 Refinancing of Infrastructure


Scheme): आस योजना ने ऄवसंरचना एवं 8 ऄवत महत्वपूणथ ईद्योगों में संकटासन्न पररसंपवत्तयों
के पुनःप्रवतष्ठापन के वलए ऄवधक ऄववध प्रदान की। ऊण देने वालों से कहा गया क्रक वापसी की
ऄववध 25 वषथ तक बढ़ा दो, प्रत्येक 5वें वषथ ब्याज की दर में भी पररवस्थवतयों के ऄनुसार पररवतथन
करो। आस प्रकार ऊण की ऄववध आन पररयोजनां की दीघथ प्रारं वभक ऄववध (long gestation
and productive life) के ऄवधक ऄनुूपप हो जाएगी। आस योजना का लक्ष्य ईधारकताथं की
साख और तरलता को सुधारना था। साथ ही बैंक आनको क्रदए गए ईधार को भी ऄपने मानक ऊण
मानकर आनकी भरपाइ के प्रावधान की लागत से बच सकते थे। क्रकन्तु ऊण वापसी की ऄववध का
एक पररणाम यह रहा क्रक कं पवनयों को कु ल वमलाकर ऄवधक रावशयां ब्याज के ूपप में चुकानी पड़
गइ। ये ईन्हें करठन लगा तथा बैंक और ऄवधक ऊण देने को बाध्य होते गए (पुराने ऊण एवरग्रीन
होते गए) तथा आसने प्रारं वभक समस्या को और गंभीर बना क्रदया है।
 वनजी पररसंपवत्त पुन:वनमाथण कं पवनयां (Private Asset Reconstruction Companies:
ARCs) : आन ARCs से भारत को SARFAESI ऄवधवनयम, 2002 के ऄंतगथत वनर्तमत क्रकया
गया था। अशा थी क्रक ऊण समस्या के समाधान की ववशेषज्ञ होने के नाते ये बैंकों को आस दावयत्व
से मुि कर देंगी। क्रकन्तु आन ARCs को भी ईन पररसंपवत्तयों की समस्या सुलझाने में करठनाआयां
अ रही हैं जो आन्होंने खरीद ली थी। ऄतः ऄब तो वे ऊणों को बहुत कम दामों पर खरीदने को
तैयार हो रही है। क्रकन्तु, पररणाम स्वूपप ऄब बैंक ईन्हें बड़े पैमाने पर ऊण बेचने को ईत्सुक नहीं
है। क्रिर, 2014 में ARCs द्वारा ईगाही जाने वाली शुल्क संरचना में भी बदलाव कर यह
अवश्यक कर क्रदया गया क्रक ARCs तय कीमत का एक बड़ा वहस्सा पहले ही नकद चुकाएंगी। वषथ
2014-15 और 2015-16 की ऄववध में खाता मूल्यों (book value) की बात करें तो मात्र 5 %
NPAs आन्हें बेची गइ थी।

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 युवियुि (रणनीवतक) ऊण पुनगथठन (Strategic Debt Restructuring: SDR): ररजवथ बैंक ने
जून 2015 में बैंकों को ऊणी कं पवनयों को क्रदए गए ईधार को ईन कं पवनयों की ऄंश पूज
ं ी में
बदलने का एक ऄवसर क्रदया ताक्रक वे 51 % ऄंश पूज
ं ी के मावलक बनकर ईन कपवनयों को ही
क्रकन्हीं ऄन्य पक्षों को ईच्चतम बोली पर बेच सकें । आसमें वतथमान शेयर धाररयों की सहमवत
अवश्यक थी (यह कायथ ईन कं पवनयों के संदभथ में क्रकया जाना था वजनकी पररसंपवत्तयों की
पुनःरचना की गइ थी क्रकन्तु वे ईि पुनःरचना की शतषों को पूरा नहीं कर पाइ थी)। आस कायथ के
वलए 18 महीने का समय क्रदया गया था और आस ऄवववध में ऊणों को वनष्पादक माना जाता था।
क्रकन्तु क्रदसंबर 2016 तक के वल दो कं पवनयों को आस प्रावधान के ऄंतगथत बेचा जा सका था। कारण
यही था क्रक कं पवनयों के ऊण का एक ऄंश ही पूज
ं ी में पररवर्ततत हुअ था और पररणाम स्वूपप वे
ववत्तीय ूपप से ऄथथक्षमताहीन ही बनी रही।
 पररसंपवत्त गुणवत्ता समीक्षा (Asset Quality Review: AQR) : बेड एसे्स (bad assets)
की समस्या के समाधान के वलए ईनकी सटीक पहचान करना अवश्यक होता है। ऄतः ररजवथ बैंक
ने AQR पर अग्रह क्रकया ताक्रक यह तय हो सके क्रक बैंक ऄपने क्रदए गए ऊणों का
अकलन/वगीकरण ररजवथ बैंक द्वारा वनर्ददष्ट ऊण वगीकरण वनयमों के ऄनुसार ही कर रहे थे या
नहीं। ईि वनयमों से प्रत्येक ववचलन को माचथ 2016 तक सुधारा जाना था।
 दवाबग्रस्त पररसंपवत्तयों की संधारणीय पुनःसंरचना (Sustainable Structuring of
Stressed Assets: S4A): जून 2016 में प्रारं भ आस व्यवस्था के ऄंतगथत बैंकों द्वारा वनयुि की
गइ कोइ स्वतंत्र एजेंसी यह वनवित करने वाली थी क्रक क्रकसी कपनी के संकटासन्न ऊणों का
क्रकतना ऄंश धारणीय था। शेष (ऄधारणीय) भाग को ऄंश पूंजी और वरीयता पूज ं ी में पररवर्ततत
क्रकया जाना था। SDR व्यवस्था के ववपरीत आसमें कपनी के स्वावमत्व में कोइ पररवतथन नहीं होना
था।
 बैंककग वववनयमन ऄध्यादेश 2017:
ऊणकताथं (ऊणी) के वलए
 क्रदवाला और क्रदवावलयापन (शोधन ऄक्षमता) संवहता (Insolvency and bankruptcy code)–
आस संवहता से क्रदवाला और क्रदवावलयापन के प्रकरणों के समाधान में होने वाले ववलपूब में कमी
अएगी और ईधार दी गइ रावश की वसूली असान होगी। आस प्रकार आससे सपूपूणथ ऄथथव्यवस्था में
पूंजी के दक्ष प्रवाह को सुववधाजनक बनाने में सहायता वमलेगी। आससे समग्र प्रक्रिया सुव्य ववस्थत
बनेगी। पहले आसे कं पनी ऄवधवनयम, SARFAESI ऄवधवनयम, रुग्ण औद्योवगक कं पनी
ऄवधवनयम (Sick Industrial Companies Act) जैसे कइ कानूनों द्वारा वववनयवमत क्रकया
जाता था।
 आस कानून की मुख्य ववशेषताएं हैं:
o क्रदवाला और क्रदवावलयापन के प्रकरणों का 180 क्रदनों की वनवित समय सीमा में समाधान,
हालांक्रक आस समय सीमा को 90 क्रदनों तक और बढ़ाया जा सकता है।
o एक नया वनयामक- क्रदवावलयापन और संबद्ध मामलों से वनपटने वाले पेशेवरों/एजेंवसयों को
वववनयवमत करने के वलए भारतीय क्रदवाला और क्रदवावलयापन बोडथ (Insolvency and
Bankruptcy Board of India) नामक एक संस्था का गठन क्रकया गया है।
o राष्ट्रीय कं पनी कानून न्यायावधकरण (National Company Law Tribunal): कं पवनयों,
सीवमत दावयत्व वाली आकाआयों के क्रदवावलयापन के मामलों में ऄवधवनणथय हेतु आसकी
स्थापना की गयी है।
o ऊण वसूली न्यायावधकरण (Debt Recovery Tribunal): व्यवियों और ऄसीवमत दावयत्व
वाली साझेदारी िमषों के प्रकरणों में ऄवधवनणथय हेतु आसकी स्थापना की गयी है।

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 बैड बैंक का गठन - यह एक ऄलग संस्था होगी, जो बैंकों के NPAs को खरीदेगी। आससे बैंकों के
बहीखाते दबाव मुि होंगे और वे नए ऊण देने में सक्षम होंगे। 2007 के ववत्तीय संकट के बाद फ़्ांस
जैसे कइ पविमी यूरोपीय देशों में आसका सिलतापूवथक कायाथन्वयन क्रकया गया है। हालांक्रक, भारत
के मामले में कु छ मुद्दों पर सावधानी बरतने की अवश्यकता होगी जैसे क्रक आसके शेयरों का ऄवधक
वहस्से का स्वावमत्व सरकार के पास होने से बैड बैंकों को PSBs के समान ही शासन और
पूंजीकरण के कु छ मुद्दों का सामना करना पड़ सकता है।

क्रदवाला और क्रदवावलयापन बोडथ (INSOLVENCY AND BANKRUPTCY BOARD)


कें द्र ने कॉपोरे ट कायथ मंत्रालय के ऄधीन चार सदस्यीय भारतीय क्रदवाला और शोधन ऄक्षमता बोडथ
(Insolvency and Bankruptcy Board of India: IBBI) का गठन क्रकया है।

2.6.6. ऄपे क्षाकृ त ऄवधक हस्तक्षे प की अवश्यकता वाले मु द्दे

 प्रभावी वनकास नीवत (Effective Exit Policy): ऐसे खातें वजनमें सुधार की संभावना नहीं है
ईनके वलए बैंकों को एक सुपररभावषत ऊण वसूली नीवत बनानी चावहए तथा ऐसी प्रक्रियां को
ऄपनाना चावहए वजससे क्रक ऐसे प्रत्येक खातों से ईनके बकाया की वस्थवत के ऄनुसार वनपटा जा
सके । बैंकों को मौजूदा खातों के वलए या तो वववधक ववकल्प या गैर-वववधक ववकल्पों का सहारा
लेना चावहए।
 न्यावयक ववलंब: न्यावयक प्रक्रिया में देरी SCs/RCs की वसूली प्रदशथन को प्रभाववत करने वाला
एक महत्वपूणथ कारक है। आसे SARFAESI ऄवधवनयम के तहत या ऊण वसूली ऄवधकरण के स्तर
पर रखना चावहए। NPAs के प्रभावी समाधान के वलए एक तीव्र और कु शल न्यावयक प्रणाली
अवश्यक है।
 वसूली प्रक्रिया का ऄप्रभावी प्रदशथन: वसूली के स्तर पर प्रदशथन ऄवधक ईत्साहजनक नहीं है।
वतथमान में SCs/RCs की औसत वसूली दर (पररसंपवत्तयों के ऄवधग्रहण की तुलना में वसूली गयी
पररसंपवत्तयां) 31.0 प्रवतशत के लगभग है।
 बैंकों द्वारा ARCs को NPAs की वबिी के वलए गैर-पारदशी नीलामी प्रक्रिया: RBI ने यह भी
सलाह दी है क्रक बैंकों द्वारा ARCs को NPA की वबिी के वलए ईपयोग में ली जाने वाली नीलामी
प्रक्रिया ऄपेक्षाकृ त ऄवधक पारदशी होनी चावहए।
 NPAs का मूल्य वनधाथरण: खराब पररसंपवत्त पोटथिोवलयो में वनवेशक ऄवधक जोवखम के बदले
ऄवधक लाभ व ईच्च ररटनथ की ईपूमीद करते हैं। ऐसे में SCs / RCs द्वारा वजन पररसंपवत्तयों का
ऄवधग्रहण क्रकया जाना होता है, ईनकी व्यवहायथ कीमत नहीं होने की वस्थवत में NPAs की समस्या
और बढ़ जाती है।
 अवधकाररक संख्या में पारदर्तशता: समस्या का एक स्पष्ट और पारदशी मूल्यांकन होना चावहए और
ईससे वहतधारकों को ऄवगत कराया जाना चावहए। समीक्षकों द्वारा गैर-वनष्पाक्रदत पररसंपवत्तयों
की अवधकाररक संख्यां पर सवाल ईठाए जा रहे हैं; यह ऄववश्वास की एक स्पष्ट ऄवभव्यवि है।
 बैंकों का ऄवधक पूज
ं ीकरण: भले ही यह कायथ प्रदशथन पर अधाररत हो, परं तु यह पूणथ पारदर्तशता के
ऄभाव में ऄत्यंत खतरनाक कदम है। कइ बार बेहतर प्रदशथन करने वाले बैंक भी प्रकावशत ररपोटथ के
ववपरीत स्वयं को ऄचानक बदतर वस्थवत में दशाथने लगते हैं। बैंकों के पुनपूज
ूं ीकरण के मामले में
कोइ भी कदम ईठाने से पहले एक पूणथ पारदशी प्रक्रिया का पालन क्रकया जाना चावहए।
 बैंकों के प्रबंधन और प्रशासन में सुधार: पी. जे. नायक की ऄध्यक्षता में गरठत सवमवत की
वसिाररशों पर ऄभी तक कोइ ववशेष कारथ वाइ प्रारं भ नहीं की गयी है, जबक्रक आसमें ऄत्यंत मूलभूत
प्रशासकीय सुधारों की वसिाररशें की गयी थी।

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 पररसंपवत्त पुनर्तनमाथण कं पनी (ARC): कें द्रीय ववत्त मंत्रालय और नीवत अयोग ने वसिाररश की है
क्रक सरकार द्वारा एक पररसंपवत्त पुनर्तनमाथण कं पनी (ARC) की स्थापना की जाए और बैंककग क्षेत्र
की दबावग्रस्त पररसंपवत्तयों को आन्हें स्थानांतररत क्रकया जाए। यह बैंकों के बैलेंस शीट में सुधार
करे गा।

2.6.7. ववत्त सं बं धी मामलों पर सं स दीय स्थायी सवमवत द्वारा सु झाए गए कदम

5 िरवरी 2016 को ववत्त संबंधी मामलों पर संसदीय स्थायी सवमवत द्वारा NPAs के संबंध में सुझाए
गए कु छ कदम वनम्नवलवखत है:
 िॉरें वसक ऑवडट (Forensic audit): सवमवत ने ईन सभी पुनगथरठत ऊणों की तत्काल िॉरें वसक
ऑवडट की वसिाररश की है जो क्रक बैड डेब्ट में बदल गए थे। ववलिु ल वडफ़ॉल्ट के मामले में भी
िॉरें वसक ऑवडट की अवश्यकता की बात कही गयी है। िारें वसक ऑवडट एक व्यवि या कं पनी के
ववत्तीय वववरणों की सत्यता और वैधता वनधाथररत करने के वलए वनरीक्षण की एक प्रक्रिया है।
आसका प्रयोग कॉपोरे ट लेखांकन धोखाधड़ी का पता लगाने में होता है।
 ं (DFIs) को पुनजीववत करना: पैनल ने ऄवसंरचना ईत्पादों
डेवलपमेंट िाआनैंवशयल आं वस्टट्यूशस
के ववत्तपोषण के वलए एक ‘जीवंत बांड बाजार’ (vibrant bond market) के ववकास की भी
वसिाररश की है।
o यह कहा गया है क्रक कें द्र को बड़ी पररयोजनां के दीघथकावलक ववत्तपोषण के वलए DFIs को
पुनजीववत करना चावहए।
 ववलिु ल वडिॉल्टर के नाम प्रकट करना: पैनल ने RBI से बैंकों और ईधारकताथं के स्तर पर ईच्च
ऊण की वनगरानी के वलए सशि सवमवतयों को गरठत करने के वलए कहा है। ववलिु ल वडफ़ॉल्टरों
(कोइ संस्था या व्यवि वजसके पास ऊण चुकाने की क्षमता तो है पर वह जानबूझकर ऊण का
पुनभ
थ ुगतान नहीं कर रहा है) पर PSBs का कु ल 64,335 करोड़ रुपया या कु ल गैर-वनष्पाक्रदत
पररसंपवत्तयों (NPAs) का 21 प्रवतशत बकाया है।
o RBI के वववनयमनों के ऄनुसार, ववलिु ल वडफ़ॉल्टर का अशय है: पयाथप्त नकदी प्रवाह और
ऄच्छे नेटवथथ के बावजूद बकाया रावश का जानबूझकर भुगतान न करना, चूक करने वाली
आकाइ को हावन पहुँचाते हुए बेइमानी से पैसा वनकालना, पररसंपवत्तयों और प्रावप्तयों का
दुरुपयोग करना, वम्या प्रस्तुवत/ऄवभलेखों का वम्याकरण; बैंक की जानकारी के वबना
प्रवतभूवतयों का वनपटान/स्थानान्तरण; ऊणकताथ द्वारा धोखाधड़ी भरा लेन-देन।
 वडिॉल्टर का नाम सावथजवनक ूपप से प्रकट करना : सवमवत ने कहा क्रक ऐसे वडफ़ॉल्टरों के
नाम गुप्त रखने का कोइ औवचत्य नहीं है, आसीवलए भारतीय ररजवथ बैंक से आसके क्रदशावनदेशों
में संशोधन करने को कहा गया है। यह भी वसिाररश की गइ क्रक प्रबंधन में पररवतथन को
ववलिु ल वडफ़ॉल्ट से जुड़े मामलों में ऄवनवायथ क्रकया जाना चावहए।
ववलिु ल वडफ़ॉल्टर के संबधं में ववत्त संबध
ं ी मामलों पर संसदीय स्थायी सवमवत की ऄनुशस ं ाएं:
 सवमवत ने ऄनुशस ं ा की है क्रक रायय के स्वावमत्वाधीन बैंक ववलिु ल वडिाल्टर से जुड़े ऄपने संबंवधत
शीषथ 30 खातों का नाम सावथजवनक करें ।
 यह वनवारक (deterrent) के ूपप में कायथ करे गा और वसूली के वलए या ऊण की अगे मंजरू ी देने में
प्रोमोटसथ से वनपटने में वववभन्न पक्षों द्वारा क्रदए जाने वाले दबावों और क्रकए जाने वाले हस्तक्षेपों का
सामना करने में बैंकों को समथथ बनाएगा।
 सवमवत ने RBI ऄवधवनयम और ऄन्य कानूनों और क्रदशा-वनदेशों में संशोधन की ऄनुशंसा की है।
सवमवत दोनों मोचषों पर, RBI के स्तर पर और बैंकों के स्तर पर, समस्या के प्रबंधन से प्रसन्न नहीं है।
 बैंकों को ऄपनी दबावग्रस्त पररसंपवत्तयों को कम करने और ऄपनी बैलेंस शीट के पररमाजथन की
तत्काल अवश्यकता है ताक्रक वे ऄथथव्यवस्था पर बोझ न बन जाएं।
 बड़े ऊण पोटथिोवलयो की वस्थवत पर वनरं तर दृवष्ट रखने और वनष्कषषों के संबंध में सरकार और संसद
के समक्ष समय-समय पर ररपोटथ प्रस्तुत करने के वलए वववशष्ट कायथ सवमवतयों को ऄवधदेवशत क्रकया
जाना चावहए।

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2.7. कु छ महत्वपू णथ शब्दावली

2.7.1. व्हाआट ले ब ल एटीएम (White Label ATMs: WLA)

गैर-बैंककग संस्थां द्वारा स्थावपत एवं पररचावलत तथा आन संस्थां के स्वावमत्व के तहत अने वाले
एटीएम को व्हाआट लेबल एटीएम (WLA) कहते हैं। ये गैर-बैंककग एटीएम पररचालक भुगतान और
वनपटान प्रणाली ऄवधवनयम, 2007 के ऄंतगथत भारतीय ररज़वथ बैंक द्वारा प्रावधकृ त होते हैं।
सामान्य एटीएम और WLA के मध्य वनम्नवलवखत ऄंतर है:
 WLA में, एटीएम मशीन और एटीएम पररसर में प्रदर्तशत बैंक लोगो के स्थान पर WLA
पररचालक का लोगो होगा। तथावप ग्राहक के वलए WLA का प्रयोग करना क्रकसी ऄन्य बैंक के
एटीएम (काडथ जारी करने वाले बैंक से आतर) के ईपयोग करने की तरह ही होगा।
 वतथमान में WLA में नकदी जमा को स्वीकार करने की ऄनुमवत नहीं है।

एटीएम के प्रकार:
 बैंक एटीएम- क्रकसी वववशष्ट बैंक द्वारा स्थावपत एवं संचावलत होता है।
 िाईन लेबल एटीएम जब बैंक ऄपने एटीएम से सपूबंवधत कामकाज को क्रकसी तीसरे पक्ष को सौंप
देते हैं, तो ईस तीसरे पक्ष द्वारा स्थावपत एटीएम िाईन लेबल एटीएम कहलाते हैं। एटीएम पर ईस
बैंक का लोगो (Logo) लगा होता है, वजसने ईस तीसरे पक्ष को काम सौंपा है।
 व्हाआट लेबल एटीएम (WLA)- गैर-बैंककग संस्था के स्वावमत्व वाले एटीएम को WLA कहा जाता
है। ईदाहरण के वलए मुथूट िाआनेंस एटीएम, टाटा आं वडकै श आत्याक्रद। आन पर क्रकसी बैंक का लोगो
(Logo) नहीं लगा होगा।

ववस्तृत ग्राहक सेवा के ईद्देश्य हेतु एटीएम के भौगोवलक ववस्तार को बढ़ाने के दृवष्टकोण से गैर-बैंककग
संस्थां को WLA की स्थापना करने की ऄनुमवत दी गयी है।

2.7.2. शै डो बैं क

 शैडो बैंककग से अशय है- बैंक के समान कायथ करना परन्तु बैंककग जैसी कानूनी बाध्यता का न होना
और कानून का कठोर न होना। ऄंतराथष्ट्रीय स्तर पर ववत्तीय प्रावधकरणों के बीच समन्वय का कायथ
करने वाली संस्था िाआनेंवशयल स्टेवबवलटी बोडथ (FSB) के ऄनुसार बैंककग प्रणाली के बाहर
ववत्तीय लेन-देन का कायथ करने वाले व्यवि या संस्थानों को शैडो बैंककग की श्रेणी में रखा जाता है।
वपछले कु छ वषषों में शैडो बैंककग के अकार में पयाथप्त वृवद्ध हुइ है। शैडो बैंककग के कारण कइ देशों में
ववत्तीय वस्थरता के समक्ष खतरा ईत्पन्न हो गया है।
 FSB के ऄनुसार 2002 में जहां शैडो बैंककग का अकार 26 लाख करोड़ डॉलर था, वहीं 2007 में
बढ़कर यह 62 लाख करोड़ डॉलर हो गया। हालांक्रक, वैवश्वक ववत्तीय संकट के कारण आसकी
गवतवववधयों में कु छ कमी अइ है, तथावप वषथ 2011 में यह 67 लाख करोड़ डॉलर के स्तर पर
पहुंच गया। यह वैवश्वक जीडीपी के 111 िीसदी के बराबर है। जहां तक शैडो बैंककग की शुरुअत
का प्रश्न है, तो यह शब्द ऄवधक पुराना नहीं है तथा ऄमेररका में वषथ 2008 के ववत्तीय संकट से कु छ
ही समय पहले आसकी शुरुअत हुइ थी। यहां तक की 2008 के ववत्तीय संकट के वलए कािी हद तक
शैडो बैंककग को भी वजपूमेदार माना जाता है।
 शैडो बैंककग की शुूपअत कइ ूपपों में और कइ ऄलग-ऄलग स्थानों पर हुइ। कु छ ऐसी जगहों पर
जहां बैककग प्रणाली पूरी तरह से काम नहीं कर रही है वहां पर ईस वनवाथत को भरने के वलए शैडो
बैंककग की शुूपअत हुइ। चीन का ईदाहरण प्रस्तुत क्रकया जा सकता है। चीन में कोइ भी लघु
व्यवसाय शुूप करने के वलए सरकारी वनयंत्रणाधीन बैंकों से ऊण लेना आतना असान नहीं है। आस

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जरटलता के कारण लोग बैंककग प्रणाली से बाहर ऊण लेकर ऄवधक ब्याज देने के वलए तैयार हो
जाते हैं। जब से जमा दरों को वनवित क्रकया गया है तब से लोग ऄवधक ररटनथ प्राप्त करने के नए-
नए ववकल्प तलाशने लगे हैं।
 भारत एवं शैडो बैंककग: भारत में शैडो बैंककग सीवमत है। देश में शैडो बैंककग संपवत्तयां GDP की
लगभग 21% हैं, जबक्रक बैंककग संपवत्तयां GDP की 86 % हैं। हालांक्रक, भारत में भी गैर-बैंककग
संस्थान कािी हद तक वनयंवत्रत हैं। परन्तु शैडो बैंककग के खतरे भी बहुत ऄवधक हैं। शैडो बैंक ,
SARFAESI ऄवधवनयम के तहत ऄवधवनयवमत नहीं हैं और आस प्रकार ईनके वलए लोन वडिॉल्ट
के मामले में पैसा वसूल करना करठन है। ईनकी पारदर्तशता और कामकाज की वववधयों के बारे में
सचताएं व्याप्त हैं।

2.7.3. कोर बैं ककग (Core Banking)

 वतथमान में भारतीय बैंककग क्षेत्र के पररप्रेक्ष्य में कोर बैंककग में प्रयुि शब्द कोर (CORE) का ऄथथ
है सेंट्रलाआज़्ड ऑन-लाआन ररयल-टाआम आनवायरमेंट (Centralized Online Real-time
Environment)। यह के न्द्रीयकृ त बैंककग की एक ऐसी प्रणाली है वजसके द्वारा आस प्रणाली से
सपूबद्ध सारे बैंक के न्द्रीयकृ त डेटा के न्द्रों का ईपयोग बैंककग लेन-देन से जुड़े सारे सौदों के वलए करते
हैं। कोर बैंककग में ररयल-टाआम अधार पर कायथ क्रकया जाता है तथा क्रकसी भी बैंक में हुअ कोइ भी
लेन-देन के न्द्रीय सवथरों द्वारा पूरी बैंककग प्रणाली में प्रवतसबवबत होता है। ऐसा कहा जा सकता है
क्रक कोर बैंककग में ईच्च स्तर की सूचना प्रौद्योवगकी का प्रयोग कर समग्र बैंककग प्रणाली को एक सूत्र
में वपरो कर बैंककग लेन-देनों में ऄवधक लचीलापन तथा पारदर्तशता सुवनवित की गइ है।
 ं (Core Banking Solutions or CBS): यह बैंक शाखां की एक
कोर बैंककग सोल्यूशस
कें द्रीकृ त व्यवस्था है जो ग्राहकों को CBS नेटवकथ पर बैंक की क्रकसी भी शाखा से ऄपना खाता
संचावलत करने और बैंककग सेवां का लाभ ईठाने में सक्षम बनाती है। आस व्यवस्था के कारण ऄब
आससे कोइ िकथ नहीं पड़ता है क्रक एक ग्राहक का ऄपना खाता कहां है। आस व्यवस्था में ग्राहक
के वल ऄपनी शाखा का ग्राहक नहीं रह जाता है बवल्क वह बैंक का ग्राहक बन जाता है।
 साथ ही CBS ने बैंककग तंत्र के सभी माध्यमों जैसे बैंक शाखा, एटीएम, आं टरनेट बैंककग, मोबाआल
एप तथा प्वाआं ट ऑि सेल (PoS) काईं टसथ को अपस में बड़ी कु शलता से संयोवजत कर क्रदया है।
आसी के साथ CBS ने ही सपूपूणथ बैंककग ईद्योग को एक तंत्र से जोड़ कर अपस में सूचनाएं ववतररत
करने का एक ऄत्यंत क्रकिायती तथा पारदशी माध्यम ईपलब्ध कराया है।

2.7.4. लीड बैं क स्कीम

 1969 के ऄंत में शुूप हुइ लीड बैंक स्कीम के तहत प्रत्येक बैंक (सावथजवनक क्षेत्र तथा वनजी क्षेत्र
दोनों में) को ईन्हें अवंरटत वज़लों के वलए ऄग्रणी भूवमका वनभाने का कायथ सौंपा गया। ग्रामीण
क्षेत्रों में शाखां के ऄपेक्षाकृ त बड़े नेटवकथ तथा पयाथप्त ववत्तीय एवं मानव संसाधन वाले बैंक को
सामान्यतः ईस वज़ले का ऄग्रणी दावयत्व सौंपा जाता है। तदनुसार देश के सभी वज़ले वववभन्न बैंकों
को अवंरटत क्रकए गए हैं। ऄग्रणी बैंक अवंरटत वज़लों में कृ वष, लघु ईद्योग तथा ग्रामीण तथा ऄधथ-
शहरी क्षेत्रों में प्राथवमकता प्राप्त क्षेत्रों में सवपूमवलत ऄन्य अर्तथक गवतवववधयों के वलए ऊण प्रवाह
बढ़ाने हेतु सभी ऊणदाता संस्थां के प्रयासों के वलए समन्वयक की भूवमका वनभाता है।
 ईषा थोराट की ऄध्यक्षता में लीड बैंक स्कीम की समीक्षा के वलए गरठत सवमवत ने वसिाररश की
क्रक क्रकसी बैंक को ववत्तीय समावेशन (िाआनैंवशयल आन्क्ल्यूजन) को सुवनवित करने के वलए
साप्तावहक बैंककग अईटलेट खोलने और आसके पररचालन में पूरा सहयोग करना चावहए।
 सवमवत ने कहा है क्रक 2,000 से ऄवधक जनसंख्या वाले गांवों में पूणथ ववत्तीय समावेशन को
सुवनवित करने के वलए ऐसा करना अवश्यक है। सवमवत की वसिाररश में यह भी कहा गया है क्रक
ररजवथ बैंक, बैंककग कॉरे स्पोंडें्स (ऐसे क्षेत्र में बैंककग सेवा शुूप करने में भूवमका वनभाने वाले लोग
जहां क्रक ऄभी तक शाखाएं नहीं खुली हैं) के मौजूदा वनयमों की भी समीक्षा करे गा वजससे क्रक
ऄवधकावधक श्रेवणयों को सवपूमवलत क्रकया जा सके ।

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2.7.5. SARFAESI एवं ऊण वसू ली न्यायावधकरण (DRT)

 SARFAESI ऄवधवनयम को वस्तुतः क्रकसी भी न्यायालय या ऊण वसूली न्यायावधकरण के


हस्तक्षेप के वबना अवासीय या वावणवययक पररसंपवत्तयों की नीलामी के वलए बैंकों और ववत्तीय
संस्थानों को सक्षम करने के वलए ऄवधवनयवमत क्रकया गया था। आसके पररणामस्वूपप पररसंपवत्त
पुनर्तनमाथण कं पवनयों (ARCs) का गठन हुअ, ताकी बैंक ऐसी सुरवक्षत पररसंपवत्तयों का प्रबंधन
ऄपने हाथों में लेने में सक्षम हो सकें । ऊण वसूली न्यायावधकरण: दीवानी ऄदालतों के ववकल्प के
तौर पर ऊणों के प्रवतथन तथा वसूली के वलए आनकी स्थापना की गइ है। यह ऊण वसूली के वलए
एक त्वररत एवं असान प्रक्रिया सुलभ कराता है।

2.7.6. बैं ककग लोकपाल (Banking Ombudsman):

 बैंककग लोकपाल योजना- 2006, भारतीय बैंकों के ग्राहकों की वशकायतों एवं समस्यां को
सुलझाने के वलये अरपूभ की गयी एक योजना है। आसके ऄन्तगथत एक 'बैंककग लोकपाल' की वनयुवि
की जाती है। बैंककग लोकपाल एक ऄधथ-न्यावयक प्रावधकारी होता है। वैसे तो बैंककग लोकपाल
योजना 1995 में ही लागू की गइ थी, परन्तु 2002 एवं 2006 में आस योजना का दायरा बढ़ाते
हुए कु छ संशोधन क्रकए गए, ताक्रक बैंकों द्वारा स्वच्छ, पारदशी, भेदभाव रवहत और वजपूमेदारी
पूवथक बैंककग सेवाएं प्रदान की जा सकें । यह एक स्वशासी स्वतंत्र संस्था है जो बैंकों द्वारा प्रदान की
गइ सेवां की वनगरानी में संलग्न है। ग्राहक समय पर सेवाएं न वमलने की वस्थवत में तथा क्रकसी
भी बैंक के ऄवधकारी व कमथचारी के वखलाि बैंककग लोकपाल के समक्ष डाक, इ-मेल, ऑन लाआन
अक्रद माध्यम से ऄपनी वशकायत दजथ करा सकता है। वन:शुल्क की जाने वाली आस वशकायत का
वनस्तारण तीस क्रदन के ऄंदर क्रकया जाता है। ग्राहकों को सुववधा देने व बैंकों में पारदर्तशता लाने के
वलए यह योजना संचावलत की गयी है।
 2006 में RBI ने संशोवधत बैंककग लोकपाल योजना की घोषणा करते हुए आसके दायरे को बढ़ाया,
वजसमें कु छ नए क्षेत्रों में ग्राहक वशकायतों को सवपूमवलत करने का प्रावधान था, जैस-े िे वडट काडथ
के संबंध में वशकायतें, बैंकों के सेल्स एजेंटों द्वारा क्रकए गए वादों पर कायम रहने में बैंकों की
ऄसिलता, ग्राहक को नोरटस क्रदए वबना सेवा शुल्क अरोवपत करना और बैंकों द्वारा ईवचत
व्यवहार संवहता (fair practices code) का पालन न करना। यह संशोवधत योजना 1 जनवरी,
2006 से लागू हो गयी है और यह भारत में संचावलत सभी वावणवययक बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों
और ऄनुसूवचत प्राथवमक सहकारी बैंकों पर लागू है।
 संशोवधत बैंककग लोकपाल योजना में सभी कमथचारी बैंकों के बजाय RBI द्वारा वनयुि क्रकए जाएंगे
और आसका ववत्तपोषण भी RBI द्वारा क्रकया जाएगा। ऐसा आसवलए क्रकया गया है ताक्रक आसकी
प्रभावशीलता को बढ़ाया जा सके । संशोवधत बैंककग लोकपाल योजना के ऄंतगथत, पररवादी
ऑनलाआन सवहत क्रकसी भी ूपप में ऄपने पररवाद प्रस्तुत कर सकें गे। बैंक ग्राहक, बैंककग लोकपाल
द्वारा क्रदए गए वनणथय के ववरुद्ध RBI में ऄपील भी कर सकें गे।
 आस प्रकार यह नइ योजना बैंक ग्राहकों को बैंकों के ववूपद्ध िे वडट काडथ, सेवा प्रभार, बैंकों के सेल्स
एजेंटों द्वारा क्रकए गए लेक्रकन बैंकों द्वारा नहीं वनभाए गए वादों और साथ ही बैंक सेवां के
ववतरण में देरी से संबंवधत ऄपनी सामान्य वशकायतों का समाधान प्राप्त करने का एक मंच प्रदान
करती है। बैंक ग्राहक ऄब भुगतान न करने या बैंकों द्वारा वबलों या ववप्रेषण के प्रवत चेक के
भुगतान या संग्रहण में कोइ ऄपयाथप्त देरी और साथ ही बैंकों द्वारा छोटे मूल्यवगथ के नोटों और
वसक्कों की ऄस्वीकृ वत या छोटे मूल्यवगथ के नोटों और वसक्कों की स्वीकृ वत के वलए कमीशन प्रभाररत
करने के संबंध में वशकायत कर सकें गे।

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2.7.7. घरे लू प्रणालीगत महत्वपू णथ बैं क (Domestic Systemically Important
Banks: D-SIBS)

 RBI ने 2016 में सावथजवनक क्षेत्र के भारतीय स्टेट बैंक (SBI) और वनजी क्षेत्र के ICICI बैंक को
घरे लू प्रणालीगत महत्वपूणथ बैंकों (D-SIBS) के ूपप में वचवन्हत क्रकया है। वषथ 2017 में आन दोनों
बैंकों के साथ HDFC को D-SIBS में शावमल क्रकया गया है। D-SIBs को देश के बड़े बैंकों के ूपप
में देखा जाता है। आन बैंकों का ग्राहक अधार ऄत्यंत ववस्तृत है और ये कइ क्षेत्रों (बीमा/पेंशन) की
गवतवववधयों में संलग्न हैं। आन्हें 'टू वबग टु िे ल' (TBTF) माना जाता है क्योंक्रक आनके पास ववशाल
ईपभोिा अधार होने के साथ NBFC सहायक कं पवनयां भी हैं, आसवलए संकट के समय ये
सरकारी सहायता की ऄपेक्षा करते हैं।

2.7.8. एवक्जम बैं क (Exim Bank)

 भारतीय वनयाथत-अयात बैंक (Export-Import Bank of India) वस्तुतः भारत के ववदेश


व्यापार का ववत्तपोषण करने, ईन्हें सुववधा प्रदान करने और बढ़ावा देने के वलए 1982 में गरठत
भारत सरकार के पूणथ स्वावमत्व वाली एक संस्था है। EXIM बैंक ववदेशों में ववत्तीय संस्थानों,
क्षेत्रीय ववकास बैंकों, संप्रभु सरकारों और ऄन्य संस्थां को लाआन ऑि िे वडट (LoC) प्रदान
करता है। आस प्रकार, EXIM बैंक आन देशों के खरीदारों को अस्थवगत साख शतषों (deferred
credit terms) पर भारत से ववकास और ऄवसंरचना संबंधी ईपकरण, वस्तुं और सेवां का
अयात करने में सक्षम बनाता है। यह बैंक ववदेशों में भारतीय कं पवनयों द्वारा संयुि ईद्यम स्थावपत
करने, सहायक कं पवनयों के माध्यम से कायथ करने या ववदेशी ऄवधग्रहण करने हेतु वनवेश की
सुववधा भी ईपलब्ध कराता है।

2.7.9. प्राथवमकता क्षे त्र क ईधारी प्रमाण पत्र (Priority Sector Lending
Certificates: PSLCS)

 भारतीय ररजवथ बैंक ने PSL प्रमाण पत्र जारी करने और व्यापार करने की ऄनुमवत दे दी है,
वजसके ऄंतगथत बैंक ऄपने प्राथवमकता क्षेत्रक ईधारी अवश्यकतां का प्रबंधन करने हेतु आस प्रकार
की िे वडट (प्रमाण पत्र) खरीद और बेच सकते है।

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Classroom Study Material

भारतीय ऄथथव्यवस्था
3. कें द्रीय बैंक और मौद्रद्रक नीतत

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तवषय सूची
1. कें द्रीय बैंककग (Central Banking) _______________________________________________________________ 4

1.1. कें द्रीय बैंक के कायथ ________________________________________________________________________ 4


1.1.1. तनगथमन बैंक (Bank of Issue)____________________________________________________________ 4
1.1.2. सरकार का बैंक, राजकोषीय एजेंट और परामर्थदाता (Banker, Fiscal Agent and Adviser to the
Government) ____________________________________________________________________________ 5
1.1.3. बैंकों का बैंक (Banker to the Banks) _____________________________________________________ 5
1.1.4. राष्ट्र के तवदेर्ी मुद्रा भंडार का ऄतभरक्षक (Custodian of Nation’s Foreign Exchange Reserves) _______ 6
1.1.5. ऄंततम ऊणदाता (Lender of Last Resort) _________________________________________________ 6
1.1.6. वातणतययक बैंकों के पारस्पररक दावों के ऄंतरण और तनपटान हेतु समार्ोधन गृह का कायथ ___________________ 6
1.1.7. साख तनयंत्रक (Controller of Credit) ______________________________________________________ 7
1.1.8. प्रोत्साहक एवं तवकासात्मक कायथ (Promotional and Developmental Functions) ____________________ 7
1.1.9. अर्थथक और सांतययकीय सूचना का प्रकार्न (Publication of Economic and Statistical Information) _____ 7

2. मौद्रद्रक नीतत (Monetary Policy) _______________________________________________________________ 7

2.1. मौद्रद्रक नीतत की पररभाषा ___________________________________________________________________ 7

2.2. मौद्रद्रक नीतत के प्रकार ______________________________________________________________________ 8

2.3. मौद्रद्रक नीतत के ईद्देश्य ______________________________________________________________________ 8

2.4. मौद्रद्रक नीतत को तवतनयतमत करने के ईपकरण ______________________________________________________ 9


2.4.1. मात्रात्मक साख तनयंत्रण तवतधयााँ (Quantitative Credit Control Methods) _________________________ 9
2.4.2. गुणात्मक साख तनयंत्रण तवतधयााँ (Qualitative Credit Control Methods) __________________________ 11

2.5. मौद्रद्रक नीतत की सीमाएाँ (Limitations of Monetary Policy) ________________________________________ 13

2.6. मौद्रद्रक नीतत बनाम राजकोषीय नीतत तथा मौद्रद्रक एवं राजकोषीय नीतत का तमश्रण ___________________________ 14
2.6.1. राजनीततक तववर्ताएाँ तथा ईद्देश्य _________________________________________________________ 14
2.6.2. तरलता पार् (Liquidity Trap) की समस्या __________________________________________________ 14
2.6.3. मौद्रद्रक और राजकोषीय नीततयों के समयांतराल में तभन्नता ________________________________________ 15

2.7. मौद्रद्रक नीतत के संदभथ में मुद्रास्फीतत बनाम संवृति दर ________________________________________________ 15


2.7.1. बढ़ती ब्याज दरों के तवरुि दृतिकोण ________________________________________________________ 15
2.7.2. ब्याज दरें बढ़ाने के तलए RBI द्वारा द्रदए गए तकथ _______________________________________________ 16
2.7.3. क्या के वल मौद्रद्रक नीतत ऄके ले ही ऄथथव्यवस्था में मुद्रास्फीतत को तनयंतत्रत कर सकती है? ___________________ 16
2.7.4. अपूर्थत पक्ष से संबंतधत मुद्रास्फीतत _________________________________________________________ 16
2.7.5. संरचनात्मक सुधार ____________________________________________________________________ 16
2.7.6. अयात प्रेररत मुद्रास्फीतत________________________________________________________________ 16
2.7.7. मुद्रास्फीतत सूचकांक ___________________________________________________________________ 17

2.8. भारत में मौद्रद्रक नीतत का पुनः ऄवलोकन (Revision of Monetary Policy in India) _______________________ 17

2.9. कु छ नए र्ब्द/ववाक्यांर् _____________________________________________________________________ 17


2.9.1. मात्रात्मक सहजता (Quantitaive Easing: QE) _____________________________________________ 17
2.9.2. मार्थजनल स्टैंडिडग फै तसतलटी ______________________________________________________________ 18
2.9.3. अधार दर (Base Rate)_______________________________________________________________ 19

2.10. फं ड की सीमांत लागत अधाररत ईधारी दर (Marginal Cost of funds based Lending Rate :MCLR) _______ 19
2.10.1. MCLR अरं भ करने के कारण ___________________________________________________________ 20
2.10.2. MCLR का लक्ष्य ____________________________________________________________________ 20

2.11. नवीनतम घटनाक्रम (Latest Developments) _________________________________________________ 20


2.11.1. ईर्थजत पटेल सतमतत __________________________________________________________________ 20
2.11.2. मुद्रास्फीतत-लक्ष्यीकरण के लाभ __________________________________________________________ 21
2.11.3. मौद्रद्रक नीतत सतमतत ( Monetary Policy Committee)_______________________________________ 21
2.11.4. MPC का आततहास___________________________________________________________________ 21
2.11.5. MPC की संरचना ___________________________________________________________________ 21
2.11.6. MPC के कायथ ______________________________________________________________________ 22
1. कें द्रीय बैं ककग (Central Banking)
 कें द्रीय बैंक, द्रकसी देर् के बैंककग और तवत्तीय ढााँचे में सवोच्च संस्था होती है। यह द्रकसी
ऄथथव्यवस्था की बैंककग एवं तवत्तीय संरचना के व्यवस्थापन, संचालन, पयथवेक्षण, तवतनयमन और
तवकास में ऄग्रणी भूतमका का तनवाथह करता है। द्रकसी ऄथथव्यवस्था के व्यवतस्थत संचालन हेतु
आसकी गतततवतधयााँ ऄत्यतधक महत्वपूणथ होती हैं।
 तवश्व के लगभग सभी देर्ों में एक कें द्रीय बैंक होता है। भारत का कें द्रीय बैंक ‘ररजवथ बैंक ऑफ
आं तडया’ (RBI) के नाम से जाना जाता है।
भारतीय ररज़वथ बैंक (RBI)
 भारतीय ररज़वथ बैंक देर् का कें द्रीय बैंक है। 1 ऄप्रैल 1935 को स्थातपत भारतीय ररज़वथ बैंक,
भारत का सवोच्च मौद्रद्रक एवं बैंककग प्रातधकरण है। वस्तुतः आसकी स्थापना तनजी र्ेयरधारकों के
एक बैंक के रूप में की गयी थी। द्रकन्तु, 1 जनवरी 1949 को आसका राष्ट्रीयकरण कर द्रदया गया
एवं आसे व्यापक र्तियां प्रदान की गयीं।
 RBI के कायथकारी प्रमुख को गवनथर कहा जाता है। आसका मुययालय मुंबइ में है। RBI के 19
कायाथलय हैं, जो कु छ राययों की राजधातनयों और भारत के कु छ प्रमुख र्हरों में तस्थत हैं। आसके
ऄततररक्त RBI के 9 ईप-कायाथलय हैं तथा ईत्तरी, पूवी, दतक्षणी और पतिमी क्षेत्रों हेतु चार
क्षेत्रीय कायाथलय क्रमर्ः द्रदल्ली, कोलकाता, चेन्नइ और मुब
ं इ में तस्थत हैं।
 कें द्रीय बैंक मूलत: कइ प्रकार से वातणतययक बैंकों से तभन्न होता है। आनके मुयय ऄंतर तन्‍नतलतखत
हैं:
o कें द्रीय बैंक लाभ ऄर्थजत करने वाली संस्था नहीं है। आसका लक्ष्य द्रकसी वातणतययक बैंक की
भााँतत लाभ ऄर्थजत करना नहीं होता है। यह जनतहत में कायथ करता है और आस ईद्देश्य से यह
राष्ट्र की बैंककग एवं तवत्तीय प्रणाली को तनयंतत्रत तथा तवतनयतमत करता है।
o कें द्रीय बैंक साधारण वातणतययक बैंककग कायों, जैस-े देर् के अम जनता से जमा स्वीकार
करना, को तनष्पाद्रदत नहीं करता है।
o कें द्रीय बैंक सरकार का एक ऄंग होता है, आसतलए आसका स्वातमत्व सरकार द्वारा धारण द्रकया
जाता है तथा आसे सरकारी ऄतधकाररयों द्वारा प्रबंतधत द्रकया जाता है। वहीं वातणतययक बैंकों
का स्वातमत्व सामान्य रूप से र्ेयरधारकों के रूप में तनजी ्‍यतियों द्वारा धारण द्रकया जाता
है, तथा कु छ ही मामलों में सरकार आसका स्वातमत्व धारण करती है।
o कें द्रीय बैंक का नोट तनगथमन पर एकातधकार होता है, जबद्रक वातणतययक बैंकों को नोट
तनगथमन का ऄतधकार नहीं है।
o प्रत्येक देर् का के वल एक कें द्रीय बैंक होता है तजसके कु छ कायाथलय होते हैं। दूसरी र प्रत्ये क
राष्ट्र में ऄनेक वातणतययक बैंक होते हैं तजनकी पूरे देर् में बहुसंययक र्ाखाएाँ होती हैं।

1.1. कें द्रीय बैं क के कायथ


एक कें द्रीय बैंक प्रत्येक राष्ट्र में कइ महत्वपूणथ कायों का तनष्पादण करता है। आनमें से कु छ प्रमुख कायथ
तनम्नतलतखत हैं:

1.1.1. तनगथ म न बैं क (Bank of Issue)

 कें द्रीय बैंक वस्तुतः तनगथमन बैंक होता है, क्योंद्रक आसके द्वारा करें सी नोट एवं तसक्के जारी द्रकये
जाते हैं और ये नोट एवं तसक्के तवतधमान्य मुद्राएाँ (लीगल टेंडर ह होती हैं। कें द्रीय बैंक में एक तनगथमन
तवभाग (issue department) होता है, जो नोट और तसक्के जारी करने हेतु पूणत
थ ः ईत्तरदायी
होता है। हालााँद्रक आस महत्त्वपूणथ र्ति का दुरुपयोग न हो, आस हेतु कें द्रीय बैंक को कु छ तनतित
तसिांतों का पालन करना अवश्यक होता है। ये तसिांत प्रत्येक राष्ट्र में तभन्न-तभन्न होते हैं।

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 ऄतधकांर् देर्ों में कें द्रीय बैंक के तलए नोट तनगथमन के तनतमत्त एक तनतित मात्रा में सोना तथा
तवदेर्ी प्रततभूततयों को रखने की अवश्यक होती है।
 नोट तनगथमन की ऄनन्य र्ति को कें द्रीय बैंक में संकेंद्रद्रत द्रकए जाने के कु छ लाभ तनम्नतलतखत हैं:
o आस र्ति के पररणामस्वरूप नोट तनगथमन की प्रद्रक्रया में एकरूपता होती है तथा तनगथतमत
नोट तवतनमय के माध्यम के रूप में ्‍यापक रूप से स्वीकार द्रकए जाते हैं।
o यह र्ति नोटों को तवतर्ि प्रतत्ा प्रदान करती है, तजसके पररणामस्वरूप जनता में करें सी के
प्रतत तवश्वास ईत्पन्न होता है।
o आससे कें द्रीय बैंक, वातणतययक बैंकों द्वारा सृतजत बैंक मनी पर प्रभावी तनयंत्रण प्राप्त करने में
सक्षम होता है।
o आससे सरकार को ऄथथव्यवस्था में धन की अपूर्थत पर पयथवक्ष
े ण और तनयंत्रण हातसल करने में
मदद तमलती है।

1.1.2. सरकार का बैं क , राजकोषीय एजें ट और परामर्थ दाता (Banker, Fiscal Agent

and Adviser to the Government)

 कें द्रीय बैंक सभी राष्ट्रों में सरकार के बैंक, राजकोषीय एजेंट और परामर्थदाता के रूप में कायथ
करता है।
 सरकार के बैंक के रूप में कें द्रीय बैंक ईन्हीं कायों का तनष्पादन करता है तजनका तनष्पादन
वातणतययक बैंकों द्वारा ऄपने ग्राहकों हेतु द्रकया जाता है। कें द्रीय बैंक सरकार से नकद, चेक, ड्राफ्ट
अद्रद जमा स्वीकार करता है। यह सरकार को वेतन व भत्तों के भुगतान तथा ऄन्य नकद संतवतरण
के तलए नकदी प्रदान करता है। आसके साथ ही यह सरकार की र से भुगतान करता है, सरकार
को ऄल्पावतध ऊण प्रदान करता है एवं सरकार की र से तवदेर्ी मुद्रा का क्रय एवं तवक्रय करता
है।
 राजकोषीय एजेंट के रूप में यह सावथजतनक ऊण का प्रबंधन करता है, सरकार की र से नए ऊण

जारी करता है, आन ऊणों के तलए ऄतभदान प्राप्त करता है, ईन पर ब्याज का भुगतान करता है
तथा ऄंत में आन ऊणों को चुकाता भी है। यह तवदेर्ी मुद्रा एवं तवतनमय के संबंध में एक
तनयंत्रणकताथ के रूप में सरकार के एजेंट तौर पर भी कायथ करता है।
 कें द्रीय बैंक सरकार के तवत्तीय परामर्थदाता के रूप में भी कायथ करता है। यह सरकार को सभी
तवत्तीय एवं मौद्रद्रक मामलों तथा अर्थथक नीततयों के तनमाथण, जैसे- मुद्रास्फीतत या ऄवस्फीतत का

तनयंत्रण, मुद्रा का ऄवमूल्यन ऄथवा पुनमूथल्यन, घाटे की तवत्त व्यवस्था (deficit financing) का

ईपयोग, तवदेर् व्यापार नीतत, बजटीय नीतत अद्रद पर परामर्थ देता है।

1.1.3. बैं कों का बैं क (Banker to the Banks)

 कें द्रीय बैंक का वातणतययक बैंकों के साथ वैसा ही संबंध होता है जैसा वातणतययक बैंकों का सामान्य
जनता के साथ होता है। बैंकों के बैंक के रूप में कें द्रीय बैंक कइ कायथ तनष्पाद्रदत करता है। यह
वातणतययक और ऄन्य बैंकों के नक़दी ररजवथ के ऄतभरक्षक के रूप में कायथ करता है। ऄपने जमाओं
का एक भाग कें द्रीय बैंक के पास ररजवथ के रूप में रखना वातणतययक बैंकों का वैधातनक दातयत्व
होता है।
 कें द्रीय बैंक वातणतययक बैंकों को ऊण, मुयय रूप से ऄल्पकातलक-ऊण, प्रदान करता है। यह ईन्हें
मागथदर्थन और तनदेर्न प्रदान करता है तथा ईनकी गतततवतधयों को तवतनयतमत करता है।

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वातणतययक बैंकों को ऄपनी नीतत कें द्रीय बैंक के द्रदर्ातनदेर्ों और मागथदर्थन के ऄनुसार तनधाथररत
करनी होती है।
नक़द ररजवथ (कै र् ररजवथह के कें द्रीयकरण के कइ लाभ हैं, यथा:
 आस ररजवथ के अधार पर ही बैंक तवतभन्न चेक के समार्ोधन की सुतवधा प्रदान करते हैं तथा
परस्पर भुगतान प्रद्रक्रया संपन्न करते हैं।
 यह राष्ट्र की बैंककग व्यवस्था को सर्ि बनाने में सहायक होता है।
 कें द्रीकृ त नक़दी ररजवथ तवर्ाल एवं ऄतधक न्‍य साख़ संरचना के अधार के रूप में कायथ करता
है।
 कें द्रीय बैंक आन नक़दी ररजवथ को पररवर्थतत कर वातणतययक बैंकों के साख सृजन की
गतततवतधयों को तनयंतत्रत कर सकता है।
 कें द्रीकृ त नक़द ररजवथ का ईपयोग मौसमी तनावों के दौरान या तवत्तीय संकट ऄथवा अपात के
दौरान प्रभावी रूप से द्रकया जा सकता है।

1.1.4. राष्ट्र के तवदे र्ी मु द्रा भं डार का ऄतभरक्षक (Custodian of Nation’s Foreign
Exchange Reserves)

 कें द्रीय बैंक का ऄन्य महत्वपूणथ कायथ यह है द्रक यह देर् के तवदेर्ी मुद्रा भंडार का ऄतभरक्षक होता
है। तवदेर्ी मुद्रा भंडार के ऄतभरक्षक होने के चलते कें द्रीय बैंक तनम्नतलतखत कायों को संपन्न करता
है:
o चूंद्रक एक राष्ट्र के सभी तवदेर्ी मुद्रा लेनदेन कें द्रीय बैंक के माध्यम से होते हैं। ऄतः यह तवदेर्ी
मुद्रा की प्रातप्त और भुगतान दोनों का तनयंत्रण करता है।
o यह तवतनमय दर की तस्थरता बनाए रखने का प्रयास करता है। आस प्रयोजन के तलए यह
तवदेर्ी मुद्रा तवतनमय दरों में ईतार-चढ़ाव को कम करने हेतु बाज़ार में तवदेर्ी मुद्रा का क्रय
एवं तवक्रय करता है।
o यह सरकार द्वारा समय-समय तनधाथररत तवतनमय तनयंत्रण तवतनयमनों को प्रवर्थतत करता है।

1.1.5. ऄं ततम ऊणदाता (Lender of Last Resort)

 कें द्रीय बैंक वातणतययक बैंकों के तलए ऊण प्रातप्त के ऄंततम साधन के रूप में भी कायथ करता है।
वातणतययक बैंकों के नकदी ररजवथ के ऄतभरक्षक होने के चलते आस कायथ को कें द्रीय बैंककग की एक
ऄतनवायथ र्तथ मानी जाती है।
 जब वातणतययक बैंकों के संसाधन समाप्त हो जाते हैं तथा ईन्हें तनतधयों की अवश्यकता होती है,
तब वे सामतयक तवत्तीय संकट से ईबरने के तलए कें द्रीय बैंक की र ईन्मुख होते हैं। ऄंततम
ऊणदाता के रूप में कायथ करते हुए कें द्रीय बैंक प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से वातणतययक बैंकों, बट्टाघरों
(discount houses), तबल ब्रोकरों एवं ऄन्य तवत्तीय संस्थानों को सभी ईतचत तवत्तीय सहायता
प्रदान करता है।
 कें द्रीय बैंक वस्तुतः ऐसी संस्थाओं को ईनके तवत्तीय दबाव/वतनाव के समय ऄनुमोद्रदत प्रततभूततयों
पर बट्टा प्रदान कर एवं संपार्थ क ऊण और ऄतग्रम ईपलब्ध कर सहायता करता है।

1.1.6. वातणतययक बैं कों के पारस्पररक दावों के ऄं त रण और तनपटान हे तु समार्ोधन गृ ह


का कायथ

(Clearing House for Transfer and Settlement of Mutual Claims of Commercial


Banks)
 यह कें द्रीय बैंक के सबसे महत्वपूणथ कायों में से एक है। कें द्रीय बैंक वातणतययक बैंकों के पारस्पररक
दावों के ऄंतरण और तनपटान हेतु एक समार्ोधन गृह के रूप में कायथ करता है।
 प्रततद्रदन तवतभन्न बैंकों के ग्राहक ऄपने बैंकों पर अहररत चेक जारी करते हैं। आससे वातणतययक
बैंकों को एक-दूसरे के दावों के तनपटान की अवश्यकता ईत्पन्न होती है। चूाँद्रक वातणतययक बैंक
ऄपना नकदी ररजवथ कें द्रीय बैंक के पास रखते हैं, आसतलए ये बैंक कें द्रीय बैंक द्वारा धाररत ऄपने
खाते में ऄंतरण (्ांसफरह द्रदखाकर एक-दूसरे के दावों का समार्ोधन और तनपटान करते हैं। यह
वातणतययक बैंकों के तलए सरल एवं सुतवधाजनक भी होता है।

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 बैंकों के पारस्पररक दावों के ऄंतरण और तनपटान के तलए कें द्रीय बैंक ब़े े र्हरों और ्‍यापार
के न्द्रों में ‘समार्ोधन गृह’ की सुतवधा प्रदान करता है। यह वातणतययक बैंकों के पारस्पररक दावों के
तनपटान हेतु सरल, सुतवधाजनक, समय की बचत करने वाली एवं तमतव्ययी युति है।

1.1.7. साख तनयं त्र क (Controller of Credit)

 कें द्रीय बैंक का एक ऄन्य महत्वपूणथ कायथ वातणतययक बैंकों के साख सृजन की गतततवतध को
तनयंतत्रत करना है। चूाँद्रक ‘क्रेतडट मनी’ (साख मुद्राह या ‘बैंक मनी’ वतथमान समय में मुद्रा (मनीह का
प्रमुख रूप है, आसतलए ऄथथव्यवस्था के व्यवतस्थत संचालन के तलए यह अवश्यक है द्रक ऊण की
अपूर्थत को ऄतनवायथतः तवतनयतमत द्रकया जाना चातहए।
 आस प्रयोजन के तलए कें द्रीय बैंक ऊण तनयंत्रण की मात्रात्मक (quantitative) और गुणात्मक
(qualitative) तवतधयों को ऄपनाता है। मात्रात्मक तवतधयों का ईद्देश्य ऊण की लागत और
ईपलब्धता को तनयंतत्रत करना होता है, जबद्रक गुणात्मक तवतधयां ऊण के ईपयोग और द्रदर्ा को
प्रभातवत करती हैं।

1.1.8. प्रोत्साहक एवं तवकासात्मक कायथ (Promotional and Developmental


Functions)

 एक तवकासर्ील देर् में कें द्रीय बैंक न के वल तथाकतथत पारं पररक कायों का तनष्पादन करता है,
ऄतपतु यह ऄनेक प्रोत्साहक एवं तवकासात्मक कायों को भी तनष्पाद्रदत करता है। आनमें से कु छ
महत्वपूणथ कायथ तनम्नतलतखत हैं:
o कें द्रीय बैंक को एक सुदढ़ ृ बैंककग प्रणाली के तवकास एवं प्रोत्साहन का ईत्तरदातयत्व सौंपा
जाता है। आस प्रयोजन हेतु यह वातणतययक बैंकों को ईदार एवं सस्ती पुनबथट्टाकरण सुतवधाएं
प्रदान करता है। आसके साथ ही यह तवतभन्न प्रकार की ररयायतें भी प्रदान करता है।
o कें द्रीय बैंक राष्ट्र के अर्थथक तवकास को प्रोत्सातहत करने हेतु तवतभन्न कायों का तनवथहन करता
है। यह कृ तष, ईद्योग और ऄथथव्यवस्था के ऄन्य क्षेत्रों के तवकास हेतु तनवेर् योग्य तनतध प्रदान
करने के तलए ‘तवकास बैंकों’ जैसे तवत्तीय संस्थानों के तवकास में सहायता करता है। आसके
साथ ही यह राष्ट्र में मुद्रा और पूंजी बाजार के तवकास में सहायता करता है तथा अर्थथक
तवकास को प्रोत्सातहत करने हेतु ईतचत मौद्रद्रक नीतत का भी ऄनुर्ीलन करता है।
o यह तवत्तीय ईत्पाद और सेवाओं, ऄच्छी तवत्तीय प्रथाओं, तडतजटलीकरण तथा ईपभोिा
संरक्षण के तवषय में जागरूता ईत्पन्न करता है।

1.1.9. अर्थथक और सां तययकीय सू च ना का प्रकार्न (Publication of Economic and


Statistical Information)

 कें द्रीय बैंक ऄथथव्यवस्था के तवतभन्न पहलुओं के संबंध में अवतधक अर्थथक और सांतययकीय सूचना
एकतत्रत करता है एवं अवतधक ररपोटथ प्रकातर्त करता है। यह ऄथथव्यवस्था की कायथपितत के
संबंध में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करता है। आसके साथ ही यह अर्थथक तवकास को बढ़ावा देने के
तलए सरकार को ईपयुि अर्थथक नीततयों का तनमाथण करने में भी समथथ बनाता है।

2. मौद्रद्रक नीतत (Monetary Policy)


2.1. मौद्रद्रक नीतत की पररभाषा
 मौद्रद्रक नीतत से अर्य सरकार या कें द्रीय बैंक द्वारा ऄपनाइ जाने वाली ईन नीततगत ईपायों से हैं
जो ऄथथव्यवस्था में मुद्रा अपूर्थत की ईपलब्धता एवं आसके अकार और संवृति दर को प्रभातवत
करते हैं।
 सामान्यतया, कु छ ऄथथर्ास्त्री मौद्रद्रक नीतत को वस्तुतः मुद्रास्फीतत को तनयंतत्रत करने, ईच्च संवृति
दर हातसल करने तथा पूणथ तनयोजन (रोजगारह की तस्थतत प्राप्त करने हेतु राष्ट्र के मुद्रा की अपूर्थत
के प्रबंधन की प्रद्रक्रया के रूप में पररभातषत करते हैं।

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 सामान्यतः सभी देर्ों में मौद्रद्रक नीतत की घोषणा वहााँ के कें द्रीय बैंककग तनकाय (भारत में
भारतीय ररज़वथ बैंकह द्वारा की जाती है। भारत में कें द्रीय बैंक वैध ऊण अवश्यकताओं की पूर्थत एवं
ईस ऊण का ऄनुत्पादक एवं सट्टेबाज़ी से स्‍बंतधत प्रयोजनों के तलए ईपयोग न द्रकया जाना
सुतनतित करता है।

2.2. मौद्रद्रक नीतत के प्रकार

 व्यापक रूप से मौद्रद्रक नीतत दो प्रकार की हो सकती है; तवस्तारवादी मौद्रद्रक नीतत
(Expansionary Monetary Policy) एवं संकुचनर्ील मौद्रद्रक नीतत (Contractionary
Monetary Policy)। सामान्यतया आन्हें क्रमर्: चीप मनी पॉतलसी एवं तडऄर मनी पॉतलसी भी
कहा जाता है।
 तवस्तारवादी मौद्रद्रक नीतत, सरलता से ऊण ईपलब्ध कराकर ऄथथव्यवस्था में मुद्रा की अपूर्थत
बढ़ाती है। ऐसी नीतत के माध्यम से सृतजत मुद्रा को चीप मनी कहते हैं। तवस्तारवादी मौद्रद्रक नीतत
का ईपयोग ईस समय द्रकया जाता है जब ऄथथव्यवस्था मंदी के दौर से गुजर रही होती है तथा साथ
ही संवृति का स्तर तनम्न एवं बेरोजगारी का स्तर ईच्च होता है। ईदाहरण के तलए 2008-09 में
भारत सतहत तवश्व के ऄतधकांर् देर्ों ने मंदी का सामना करने के तलए तवस्तारवादी मौद्रद्रक नीतत
ऄपनायी। परन्तु तवस्तारवादी मौद्रद्रक नीतत के ऄपने जोतखम होते हैं, यथा मुद्रास्फीतत। आसके साथ
ही, नीतत की घोषणा द्रकए जाने और ऄथथव्यवस्था में आसके प्रभावी होने में समय ऄंतराल होता है।
ऄतः कभी-कभी संवृति के संदभथ में ऄथथव्यवस्था में तवस्तारवादी मौद्रद्रक नीतत के समय पर वांतछत
प्रभाव नहीं प्राप्त होते।
 दूसरी र संकुचनर्ील मौद्रद्रक नीतत ऄथथव्यवस्था में मुद्रा की अपूर्थत को कम कर देती है।
संकुचनर्ील मौद्रद्रक नीतत का ईपयोग ब्याज दरों को बढ़ाकर मुद्रास्फीतत के खतरे से तनपटने के
तलए द्रकया जाता है।

2.3. मौद्रद्रक नीतत के ईद्दे श्य

 पांरपररक रूप से, तवतभन्न राष्ट्रों में तवतभन्न समयों तथा तवतभन्न अर्थथक पररतस्थततयों में मौद्रद्रक
नीतत के तवतभन्न ईद्देश्य रहते रहे हैं। मौद्रद्रक नीतत के समुतचत ईद्देश्य का चयन ऄथथव्यवस्था की
तवतर्ि तस्थततयों और अवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए मौद्रद्रक प्रातधकरण द्वारा द्रकया जाता
है। भारत जैसे तवकासर्ील देर्ों के तलए आसका ईद्देश्य मौद्रद्रक तस्थरता को बनाए रखना एवं
अर्थथक समृति की प्रद्रक्रया में सहायता करना हो सकता है। वहीं तवकतसत राष्ट्रों में आसका ईद्देश्य
मुद्रास्फीतत रतहत पूणथ रोजगार की तस्थतत प्राप्त करना हो सकता है।
मौद्रद्रक नीतत के कु छ ईद्देश्यों को नीचे सूचीबि द्रकया गया है:

(a) अर्थथक संवतृ ि: द्रकसी भी मौद्रद्रक नीतत का सबसे महत्वपूणथ ईद्देश्य अर्थथक संवृति हातसल करना
होता है। मौद्रद्रक नीतत वास्ततवक ब्याज दरों एवं तनवेर् पर आसके पररणामी प्रभाव को तनयंतत्रत
कर अर्थथक समृति को प्रभातवत कर सकती है। यद्रद RBI ब्याज दरों को कम करके सस्ती ऊण
नीतत का तवकल्प चुनती है तो ऄथथव्यवस्था में तनवेर् स्तर को प्रोत्सातहत द्रकया जा सकता है। यह
संवर्थधत तनवेर् अर्थथक समृति को तीव्र गतत प्रदान कर सकता है।
(b) मूल्य तस्थरता: मुद्रास्फीतत और ऄवस्फीतत दोनों ऄथथव्यवस्था के तलए ईपयुि नहीं होते हैं। मूल्य
तस्थरता को मुद्रास्फीतत की तनम्न और तस्थर व्यवस्था के रूप में पररभातषत द्रकया गया है तथा
मूल्य तस्थरता का ईद्देश्य रखने वाली मौद्रद्रक नीतत मुद्रा के मूल्य को एकसमान बनाये रखने का
प्रयास करती है। तवकतसत राष्ट्रों के तलए, आसकी सीमा रे खा को लगभग 2 प्रततर्त माना जाता है
जो तवकासर्ील राष्ट्रों के तलए, ईनके अर्थथक समृति की ऄवस्था के अधार पर ईच्च हो सकती है।
यूरोतपयन सेन््ल बैंक, बैंक ऑफ आं ग्लैंड और बैंक ऑफ जापान जैसे ऄनेक प्रमुख कें द्रीय बैंकों ने
मूल्य तस्थरता को मौद्रद्रक नीतत के एकमात्र ईद्देश्य के रूप में ऄपनाया है। जब ऄथथव्यवस्था मंदी से
ग्रस्त हो तो ‘सस्ती मुद्रा नीतत (चीप मनी पॉतलसीह’, जबद्रक यद्रद मुद्रास्फीतत की तस्थतत हो तो
'दुलभ
थ मुद्रा नीतत (तडयर मनी पॉतलसीह’ ऄपनायी जानी चातहए।

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(c) तवतनमय दर तस्थरता: मौद्रद्रक नीतत का एक प्रमुख ईद्देश्य तवतनमय दर तस्थरता को बनाए रखना
होता है। द्रकसी ऄथथव्यवस्था की तस्थर तवतनमय दर राष्ट्र की अर्थथक दर्ा की तस्थरता को प्रदर्थर्त
करती है। मौद्रद्रक नीतत का ईद्देश्य तवतनमय दर के सापेक्ष तस्थरता बनाए रखना होता है। RBI
तवदेर्ी मुद्रा भंडार में पररवतथन कर तवदेर्ी मुद्रा की मांग को प्रभातवत करने तथा तवतनमय दर
तस्थरता को बनाए रखने का प्रयास करता है।
(d) रोजगार सृजन करना: मौद्रद्रक नीतत का ईपयोग रोजगार सृजन के तलए द्रकया जा सकता है।
तवस्तारवादी मौद्रद्रक नीतत ऊण की अपूर्थत को प्रोत्सातहत कर ऄथथव्यवस्था के तवतभन्न क्षेत्रकों में
ऄतधक रोजगारों का सृजन करने में सहायक होती है।

(e) अय का समान तवतरण: पूवथ में कइ ऄथथर्ातस्त्रयों द्वारा अर्थथक समानता हातसल करने में
राजकोषीय नीतत की भूतमका का औतचत्य तसि द्रकया गया है। द्रकन्तु हाल के वषों में कु छ
ऄथथर्ातस्त्रयों ने राय दी है द्रक मौद्रद्रक नीतत अर्थथक समानता प्राप्त करने में पूरक भूतमका तनभा
सकती है। मौद्रद्रक नीतत के माध्यम से कृ तष, लघु ईद्योग, ग्रामोद्योग आत्याद्रद क्षेत्रकों के तलए तवर्ेष
प्रावधान द्रकया जा सकता है तथा ईन्हें दीघाथवतध के तलए सस्ता ऊण प्रदान ईपलब्ध कराया जा
सकता है। यह ईन क्षेत्रकों के तवकास हेतु लाभदायक तसि हो सकता है। आसके ऄततररक्त, मौद्रद्रक
प्रातधकरण राष्ट्र के ग्रामीण एवं तपछ़े े क्षेत्रों में बैंक तथा तवत्तीय संस्थानों की स्थापना में सहायता
कर सकते हैं। आस प्रकार, हाल के वषों में अर्थथक ऄसमानता कम करने में मौद्रद्रक नीतत की भूतमका

में ऄत्यतधक वृति हुइ है। RBI के पूवथ गवनथर सी. रं गराजन द्वारा दी गइ पररभाषा के ऄनुसार,
भारत में मौद्रद्रक नीतत के कु छ प्रमुख ईद्देश्य तनम्नतलतखत हैं:
 मूल्य तस्थरता की ईतचत तस्थतत को बनाए रखने हेतु मौद्रद्रक तवस्तार को तवतनयतमत करना; एवं
 अर्थथक समृति में सहायता करने के तलए ऊण में पयाथप्त तवस्तार सुतनतित करना।

2.4. मौद्रद्रक नीतत को तवतनयतमत करने के ईपकरण

 कें द्रीय बैंक द्वारा मौद्रद्रक नीतत के तवतनयमन हेतु तवतभन्न ईपकरणों का प्रयोग द्रकया जाता है। ये दो
श्रेतणयों में वगीकृ त द्रकये जा सकते हैं:

2.4.1. मात्रात्मक साख तनयं त्र ण तवतधयााँ (Quantitative Credit Control Methods)

 ये तवतधयां ऄथथव्यवस्था में कु ल सृतजत ऊण की मात्रा को तनयंतत्रत करने हेतु ऄतभकतल्पत की गइ


हैं। आनमें से कइ तवतधयों को वतथमान में ऄपनाया जा रहा है। ईदाहरण के तलए नकद अरतक्षत
ऄनुपात (CRR), सांतवतधक तरलता ऄनुपात (SLR), बैंक दर, रे पो दर, ररवसथ रे पो दर आत्याद्रद।

 सांतवतधक तरलता ऄनुपात (Statutory Liquidity Ratio: SLR): सांतवतधक तरलता ऄनुपात
से ऄतभप्राय वातणतययक बैंकों की तरल पररसंपतत्तयों से है जो ईन्हें ऄपनी कु ल जमाओं के एक
न्यूनतम प्रततर्त के रूप में (दैतनक अधार परह ऄपने पास ऄवश्य रखनी होती है। तरल
पररसंपतत्तयों में र्ातमल हैं: नकद, स्वणथ, भारमुि ऄनुमोद्रदत प्रततभूततयां अद्रद। वातणतययक बैंक

सामान्य रूप से आस धन का ईपयोग सरकारी प्रततभूततयों के क्रय हेतु करते हैं। आस प्रकार,
सांतवतधक तरलता ऄनुपात एक र बैंककग प्रणाली की ऄततररि नकदी को सहजतापूवथक तनकाल
देते हैं तथा दूसरी र सरकार के तलए राजस्व जुटाने में ईपयोगी होते हैं। RBI आस ऄनुपात को

वातणतययक बैंकों के कु ल जमाओं के 40 प्रततर्त तक बढ़ाने हेतु ऄतधकृ त है।

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 नकद अरतक्षत ऄनुपात (Cash Reserve Ratio: CRR): नकद अरतक्षत ऄनुपात से अर्य

भारत में द्रकसी बैंक के कु ल जमा के ईस ऄनुपात (RBI द्वारा तनधाथररतह से है, तजसे RBI के पास

नकद रूप में रखा जाना ऄतनवायथ है। CRR जमाओं पर बैंकों को कोइ ब्याज ऄर्थजत नहीं होता है।

o प्रार्‍भ में CRR के तलए तनचली सीमा 3% तथा उपरी सीमा 20% तनधाथररत थी, परन्तु

संर्ोधनों द्वारा आन सीमाओं को हटा द्रदया गया। आससे RBI को वांतछत पररचालनगत

न्‍यता (operational flexibility) प्राप्त हुइ।

o CRR ईच्च होने पर बैंकों द्वारा ऄथथव्यवस्था के प्रततभातगयों को ऊण देने के तलए कम धन

ईपलब्ध होता है। RBI ऄथथव्यवस्था में ऊण के दायरे को संकुतचत करने के तलए CRR में

बढ़ोत्तरी तथा ऊण तवस्तार हेतु CRR में कमी करती है।

o मौद्रद्रक नीतत के ईपकरण के रूप में CRR का ईपयोग ईस तस्थतत में द्रकया जाता है जब ऊण

और मुद्रास्फीतत को तनयंतत्रत करने की ऄपेक्षाकृ त गंभीर अवश्यकता होती है। ऄन्यथा, RBI

ऄपने मंत्‍य का संकेत देने के तलए रे पो और ररवसथ रे पो की नीततगत दरों पर तनभथर रहती
है।
 बैंक दर (Bank Rate): बैंक दर से अर्य ईस ब्याज दर से है तजस पर RBI, वातणतययक बैंकों को
दीघाथवतधक ऊण सुतवधा प्रदान करता है। बैंक दर में पररवतथन ब्याज की ऄन्य बाजार दरों को
प्रभातवत करता है। बैंक दर में वृति के पररणामस्वरूप ब्याज की ऄन्य दरों में बढ़ोत्तरी होती है,

तथा आसमें तगरावट ब्याज की ऄन्य दरों में तगरावट का कारण बनती है। आसे बट्टा दर (discount

rate) के रूप में भी संदर्थभत द्रकया जाता है।

o वातणतययक बैंकों द्वारा ईत्पन्न ऊण के प्रवाह को प्रभातवत करने के तलए RBI द्वारा बैंक दर में
जानबूझकर हेरफे र करने को बैंक दर नीतत के रूप में जाना जाता है।
o बैंक दर में वृति के फलस्वरूप ऊण की लागत या ईधार लेने की लागत में बढ़ोत्तरी होती है।
ऄतः आसमें वृति ऊण की मांग में संकुचन ईत्पन्न करती है। ऊण की मांग में संकुचन
ऄथथव्यवस्था में धन की कु ल ईपलब्धता में कमी का कारण बनता है। आस प्रकार यह (बैंक दर
में वृतिह मुद्रास्फीतत-तनयंत्रक ईपकरण के रूप में भी कायथ करता है।
o आसी प्रकार, बैंक दर में तगरावट के कारण ब्याज की ऄन्य दरों तथा ऊण की लागत में

तगरावट अती है, ऄथाथत् ईधार लेना और भी सस्ता हो जाता है। सस्ता ऊण वस्तुतः तनवेर्

और ईपभोग प्रयोजनों, दोनों के तलए ईच्च मांग ईत्पन्न कर सकता है। ऊण के प्रवाह में वृति

के माध्यम से मुद्रा के संचलन (circulation) में वृति होती है। आस प्रकार, यह (बैंक दर में
कमीह ऄवस्फीतत-तनयंत्रक ईपकरण के रूप में कायथ कर सकता है।
o दातडडक-दरें (penal rates) बैंक दरों से संबि होती हैं। ईदाहरण के तलए, यद्रद कोइ बैंक

CRR एवं SLR के अवश्यक स्तरों को बनाए रखने में ऄसमथथ है, तो RBI ऐसे बैंकों पर दडड

अरोतपत कर सकता है। वतथमान में दंड-दर “बैंक दर+3%” है।


o वतथमान में ऄथथव्यवस्था में मुद्रा की पूर्थत को तनयंतत्रत करने के ईपकरण के रूप में बैंक दर का
ईपयोग नहीं द्रकया जाता है, ऄतपतु आस हेतु तरलता समायोजन सुतवधा (LAF) का ईपयोग
द्रकया जाता है।

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 रे पो दर (Repo Rate): रे पो दर वह दर है तजस पर वातणतययक बैंक RBI से ऄल्पकातलक ईधार
लेते हैं। वातणतययक बैंकों के पास जब ऊण की मांगों तथा ऊण प्रदान करने हेतु ईनके पास तत्काल
ईपलब्ध धन के ऄंतराल में ऄसंगतत होती है तो ईसे पररपूणथ करने के तलए वे RBI से धन ईधार
लेते हैं।
o सरल र्ब्दों में, रे पो दर कें द्रीय बैंक द्वारा ऄन्य बैंकों के ऄल्पकातलक ईधारों पर प्रभाररत

द्रकया जाने वाला ब्याज दर होता है। आनके तलए प्रततभुततयों को जमानत के रूप में RBI के
पास रखा जाता है। ये प्रततभूततयां बैंकों द्वारा भतवष्य में द्रकसी भी समय पुनः खरीदी जा
सकती हैं।

o यद्रद RBI बैंकों के तलए धन ईधार लेना ऄतधक महाँगा बनाना चाहता है तो यह रे पो दर में

वृति करता है; तथा बैंकों के तलए धन ईधार लेना सस्ता बनाने हेतु यह रे पो दर में कमी लाता
है।
 ररवसथ रे पो दर (Reverse Repo Rate): ररवसथ रे पो दर वह दर है तजस पर कें द्रीय बैंक

(RBI) बाजार से ईधार लेता है। आसे ररवसथ रे पो दर कहा जाता है, क्योंद्रक आसकी प्रद्रक्रया रे पो
रे ट के तवपरीत होती है।
o रे पो और ररवसथ रे पो दरों को नीततगत दरें भी कहा जाता है। प्राय: कें द्रीय बैंक (RBI) द्वारा
तवत्तीय व्यवस्था को ऄपने ऊण देने और ईधार लेने के संचालनों को समायोतजत करने का
संकेत देने के तलए आनका ईपयोग द्रकया जाता है।

o रे पो दरें और ररवसथ रे पो दरें नकदी समायोजन सुतवधा (LAF) का भाग होती हैं।

 खुले बाज़ार की द्रक्रयाएाँ (Open Market Operations: OMOs): खुले बाज़ार की द्रक्रयाओं से
अर्य बैंककग प्रणाली में मुद्रा की मात्रा को तवस्ताररत या संकुतचत करने के तलए सरकारी
प्रततभूततयों की खरीद और तबक्री से है।
o यह तकनीक बैंक दर नीतत की तुलना में बेहतर है। आसके ऄंतगथत प्रततभूततयों को खरीद कर
बैंककग प्रणाली में मुद्रा को ऄंत:क्षेतपत (inject) द्रकया जाता है, जबद्रक प्रततभूततयों की तबक्री
आससे ठीक तवपरीत कायथ करती है।
o यह सामान्य तम्‍या धारणा है द्रक खुले बाजार की द्रक्रयाएाँ सरकारी प्रततभूततयों के कु ल स्टॉक
को पररवर्थतत कर देते हैं, जबद्रक यथाथथ में वे के वल RBI, वातणतययक तथा सहकारी बैंकों
द्वारा धाररत सरकारी प्रततभूततयों के ऄनुपात को पररवर्थतत करते हैं।
o RBI ने सरकारी प्रततभूततयों की तबक्री के ईपाय का बार्‍बार सहारा तलया है। आस प्रकार,

भारत में OMOs ने एक र ऄतधक बजटीय संसाधनों को ईपलब्ध कराने तथा दूसरी र
ऄथथव्यवस्था में तवद्यमान ऄततररक्त नकदी को सहजतापूवक
थ बाहर तनकाले जाने के ईपकरण
के रूप में कायथ द्रकया है।

2.4.2. गु णात्मक साख तनयं त्र ण तवतधयााँ (Qualitative Credit Control Methods)

ये ऐसे ईपकरण हैं तजनके माध्यम से कें द्रीय बैंक न के वल ऊणों का मूल्य (value of loans) तनयंतत्रत
करता है बतल्क ईस ईद्देश्य को भी तनयंतत्रत करता है तजसके तलए वातणतययक बैंकों द्वारा आन ऊणों को
तनर्ददि द्रकया जाता है। आनमें से कु छ तनम्नतलतखत हैं:

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 नैततक ऄतभप्रेरण (Moral Suasion): नैततक ऄतभप्रेरण से अर्य प्रोत्साहन एवं ऄनुरोध से है।
मुद्रास्फीतत की तस्थतत को तनयंतत्रत करने के तलए कें द्रीय बैंक वातणतययक बैंकों को कतल्पत
(ऄनुमातनतह और गैर-अवश्यक प्रयोजनों के तलए ऊण देने से बचने हेतु प्रोत्सातहत करता है एवं
ऄनुरोध भी करता है। दूसरी र, संकुचन का सामना करने के तलए कें द्रीय बैंक वातणतययक बैंकों
को तवतभन्न प्रयोजनों के तलए ऊण प्रदान करने हेतु प्रोत्सातहत करता है। आस संबंध में वातणतययक
बैंकों के ऄतधकाररयों के साथ अवतधक चचाथएं अयोतजत की जाती हैं। भारत में, 1949 के बाद से
ररजवथ बैंक वातणतययक बैंकों को ऊण के संबंध में ऄपनी नीततयों से सहमत करने के तलए नैततक
ऄतभप्रेरण की तवतध को प्रयोग करने में सफल रहा है।
 साख की रार्डिनग (Rationing of credit): साख की रार्डिनग ऐसी तवतध है तजसके द्वारा ररजवथ
बैंक ऊणों और ऄतग्रमों की ऄतधकतम रातर् को सीतमत करने का प्रयास करता है तथा साथ ही
कु छ मामलों में ऊणों और ऄतग्रम की तवतर्ि श्रेतणयों के तलए ईच्चतम सीमा (या कोटाह तनयत
करता है। भारतीय ररज़वथ बैंक ब्याज की ररयायती दरें प्रभाररत कर कु छ प्राथतमकता प्राप्त क्षेत्रकों
या कमजोर क्षेत्रकों के तलए ऊण की ईपलब्धता सुतनतित करता है। आसे कभी-कभी प्राथतमकता
प्राप्त क्षेत्रक ईधारी (PSL) के रूप में भी संदर्थभत द्रकया जाता है।

 ईपभोिा ऊण का तवतनयमन (Regulation of Consumer Credit): वतथमान समय में

ययादातर रटकाउ ईपभोक्ता वस्तुएाँ जैस-े कार, टीवी, लैपटॉप अद्रद द्रकस्तों पर ईपलब्ध हैं, तजन्हें
बैंक ऊण द्वारा तवत्त पोतषत द्रकया जाता है। वातणतययक बैंकों द्वारा रटकाउ ईपभोिा वस्तुओं की
खरीद के तलए ईपलब्ध कराए जाने वाले आस प्रकार के ऊण को ईपभोक्ता ऊण कहा जाता है।
o यद्रद द्रकसी तवतर्ि ईपभोिा रटकाउ वस्तुओं के तलए मांग की ऄतधकता है तजससे ईसके मूल्य
बढ़ जाते हैं, तो कें द्रीय बैंक (a) तत्काल ऄदायगी की रातर् बढ़ाकर, तथा (b) ऐसे ऊण की

ऄदायगी की द्रकश्तों में कमी कर, ईपभोक्ता ऊण में कमी कर सकता है।

o दूसरी र, यद्रद कु छ तवतर्ि वस्तुओं के तलए मांग में कमी है तजससे ऄवस्फीतत की तस्थतत

ईत्पन्न होती है, तो कें द्रीय बैंक (a) तत्काल ऄदायगी की रातर् कम कर, एवं (b) ऐसे ऊण की

ऄदायगी की द्रकश्तों में बढ़ोत्तरी कर, ईपभोिा ऊण में बढ़ोत्तरी कर सकता है।

 सीधी कारथ वाइ (Direct action): द्रकसी वातणतययक बैंक द्वारा वांछनीय ईद्देश्यों की ईपलतब्ध में
कें द्रीय बैंक के साथ सहयोग न करने की तस्थतत में सीधी कारथ वाइ का प्रयोग द्रकया जाता है। सीधी
कारथ वाइ ऄनेक रूपों में हो सकती है, यथा:
o कें द्रीय बैंक चूक करने वाले बैंकों पर बैंक दर से ऄततररक्त एवं ईच्च ब्याज दर प्रभाररत
सकता है;
o कें द्रीय बैंक ऐसे बैंकों के तबलों पर पुनबथट्टा देने से आन्कार कर सकता है जो आसके तनदेर्ों का
पालन नहीं कर रहे हों;
o कें द्रीय बैंक ऐसे बैंकों को और ऄतधक सहायता प्रदान करने से आंकार कर सकता है जो ऄपनी
पूंजी और अरतक्षत तनतधयों से ऄतधक ऊण ले रहे हों।
 सीमांत अवश्यकताएाँ (Margin Requirements): सीमांत अवश्यकता से ऄतभप्राय, बैंक द्वारा
द्रदए गए ऊण तथा जमानत वाली वतथमान वस्तु के मूल्य के ऄंतर से है। सामान्य रूप से,
वातणतययक बैंक 'स्टॉक' या 'प्रततभूततयों’ के बदले ऊण प्रदान करते हैं। 'स्टॉक' या 'प्रततभूततयों’ के
एवज में ऊण प्रदान करते समय वे मार्थजन रखते हैं। मार्थजन से अर्य प्रततभूतत के बाजार मूल्य
एवं आसके ऄतधकतम ऊण मूल्य के बीच ऄंतर से है। ईदाहरणाथथ यद्रद एक वातणतययक बैंक

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10,000 रुपए की प्रततभूतत के तवरुि 8000 रुपए का ऊण देता है तो यहााँ, मार्थजन 2000 रुपए
या 20% है।
o यद्रद कें द्रीय बैंक ऄनुभव करता है द्रक व्यवसातययों ऄथवा ्‍यापाररयों की सट्टेबाज़ी की
गतततवतधयों के कारण कु छ वस्तुओं की कीमतें बढ़ रही हैं, तो यह ऐसी गतततवतधयों में ऊण
के प्रवाह को हतोत्सातहत करने का प्रयास करने लगता है। आस हेतु यह ऄनुमातनत ऄथवा सट्टा
कारोबार के तलए ईधार लेने हेतु ऄततररि रातर् संबंधी अवश्यकताओं को बढ़ा देता है तथा
आस प्रकार ईधार लेने को हतोत्सातहत करता है। आससे सट्टेबाज़ी की गतततवतधयों के तलए धन
की अपूर्थत कम हो जाती है तथा आस प्रकार मुद्रास्फीतत की तस्थतत तनयंतत्रत होती है।
o दूसरी र, कें द्रीय बैंक मार्थजन संबंधी अवश्यकताओं को कम करके वातणतययक बैंकों द्वारा
ईधार लेने को प्रोत्सातहत कर सकता है। जब तवतभन्न व्यावसातयक गतततवतधयों के तलए ऊण
का ऄतधकातधक प्रवाह होता है, तो तनवेर् में बढ़ोत्तरी हो जाती है, लोगों की अय बढ़ जाती
हैं, वस्तुओं की मांग में तवस्तार हो जाता है तथा ऄवस्फीतत की तस्थतत तनयंतत्रत होती है।
o आस प्रकार, मार्थजन अवश्यकताएाँ, मुद्रास्फीतत और ऄवस्फीतत को प्रततसंतुतलत करने हेतु
कें द्रीय बैंक के महत्वपूणथ साधन हैं।

2.5. मौद्रद्रक नीतत की सीमाएाँ (Limitations of Monetary Policy)

 कीमतों को तनयंतत्रत करने में सीतमत भूतमका: आसके कु छ अलोचकों का मानना है द्रक, ररजवथ बैंक
की मौद्रद्रक नीतत ने मुद्रास्फीततजन्य दबाव को तनयंतत्रत करने में के वल सीतमत भूतमका तनभाइ है।
यह तस्थरता के साथ समृति दर में वृति के ईद्देश्य को प्राप्त करने में सफल नहीं हुइ है। मुद्रास्फीतत
का सामना करने में मौद्रद्रक नीतत की भूतमका के वल तभी प्रभावी हो सकती है जब यह नीतत के
समग्र फ्रेमवकथ का तहस्सा हो, तजसमें न के वल राजकोषीय और तवदेर्ी मुद्रा नीतत बतल्क
ऄथथव्यवस्था में संरचनात्मक पररवतथन भी सत्‍मतलत होते हैं। ईदाहरण के तलए, भारत में खराब
मानसून के पररणामस्वरूप खाद्य ईत्पादों की कीमतें बढ़ सकती है। ऐसी तस्थतत में खाद्य कीमतों
को तनयंतत्रत करने में मौद्रद्रक नीतत बहुत कारगर नहीं होगी बतल्क आसके स्थान पर संरचनात्मक
सुधारों (जैस-े बफर स्टॉक बनाए रखना, ऄपव्यय में कमी करना आत्याद्रदह एवं राजकोषीय नीतत
(जैस-े खाद्यान्नों का अयातह का तमश्रण वांछनीय है।
 काले धन का ऄतस्तत्व: ऄथथव्यवस्था में काले धन का ऄतस्तत्व मौद्रद्रक नीतत की कायथप्रणाली को
सीतमत कर देता है। काले धन को ऄतभतलतखत नहीं द्रकया जाता है क्योंद्रक ऊणग्रहीता और
ऊणदाता ऄपने लेनदेनों को गुप्त रखते हैं। पररणामस्वरूप, मुद्रा की अपूर्थत और मांग भी मौद्रद्रक
नीतत के ऄनुरूप में नहीं रहती।
 तवर्ाल गैर-मौद्रीकृ त क्षेत्रक: भारत में ऐसे तवर्ाल गैर-मौद्रीकृ त क्षेत्रक तवद्यमान हैं जो मौद्रद्रक
नीतत की सफलता को बातधत करते हैं। लोग ऄतधकतर ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं जहां मुययतः वस्तु
तवतनमय प्रणाली का भी पालन द्रकया जाता है। पररणामस्वरूप, मौद्रद्रक नीतत ऄथथव्यवस्था के आस
ब़े े क्षेत्र को प्रभातवत करने में तवफल रहती है।
 गैर बैंककग तवत्तीय मध्यवर्थतयों की तवर्ाल संयया: स्वदेर्ी बैंकरों जैसे गैर बैंककग तवत्तीय मध्यवती
भारत जैसे देर् में ब़े े पैमाने पर ऄपने कयथकलाप संचातलत करते हैं, लेद्रकन वे मौद्रद्रक प्रातधकरण
के तनयंत्रण के ऄधीन नहीं होते हैं। यह कारक मौद्रद्रक नीतत की प्रभावर्ीलता को सीतमत कर देता
है।
 तवरोधाभासी ईद्देश्य: मौद्रद्रक नीतत की एक महत्वपूणथ सीमा आसके परस्पर तवरोधी ईद्देश्यों का
होना है। ध्यातव्य है द्रक अर्थथक समृति के ईद्देश्य को प्राप्त करने के तलए मौद्रद्रक नीतत
तवस्तारवादी होनी चातहए जबद्रक मूल्य तस्थरता का ईद्देश्य प्राप्त करने के तलए मुद्रास्फीतत पर
ऄंकुर् धनापूर्थत को संकुतचत करके लगाया जा सकता है। मौद्रद्रक नीतत आन दो ईद्देश्यों के बीच
समुतचत समन्वय प्राप्त करने में सामान्यतः तवफल रहती है।

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 ऄतवकतसत मुद्रा बाजार: भारत में मौद्रद्रक नीतत की एक और सीमा यहााँ का ऄतवकतसत मुद्रा
बाजार है। कमजोर मुद्रा बाजार मौद्रद्रक नीतत के कवरे ज को सीतमत करता है। आसके साथ ही आसके
द्वारा मौद्रद्रक नीतत की कु र्ल कायथ प्रणाली भी सीतमत हो जाती है।
 गैर-मौद्रद्रक कारकों का प्रभाव: मौद्रद्रक नीतत की एक महत्वपूणथ सीमा गैर-मौद्रद्रक कारकों के तवषय
में आसकी ऄज्ञानता है। मौद्रद्रक नीतत वास्ततवक कारकों, घाटे की तवत्त व्यवस्था (deficit
financing) और तवदेर्ी मुद्रा संसाधनों में ईत्पन्न होने वाली मुद्रास्फीतत को तनयंतत्रत करने में
कभी भी प्राथतमक कारक नहीं हो सकती। ररजवथ बैंक का घाटे की तवत्त व्यवस्था पर कोइ तनयंत्रण
नहीं होता है। यह मुद्रा की पूर्थत को ईल्लेखनीय रूप से प्रभातवत करने वाले घाटे की तवत्त व्यवस्था
को तवतनयतमत नहीं कर सकता।
 मौद्रद्रक नीतत का ऄप्रभावी कायाथन्वयन: मौद्रद्रक नीतत का सफल ऄनुप्रयोग के वल ऊण तनयंत्रण के
साधनों की ईपलब्धता से नहीं है ऄतपतु आसका अर्य मुद्रा की अपूर्थत सुतनतित करने ऄथवा
ईसपर ऄंकुर् लगाने के समय एवं प्राप्त पररणामों से भी है। लेद्रकन, तपछले ऄनुभवों से यह प्रदर्थर्त
होता है द्रक ररजवथ बैंक की मौद्रद्रक नीतत ऄनेक प्रततबंधों से ग्रस्त है तथा आसमें कइ द्रदर्ाओं में
सुधार की अवश्यकता है।

2.6. मौद्रद्रक नीतत बनाम राजकोषीय नीतत तथा मौद्रद्रक एवं राजकोषीय नीतत का
तमश्रण
 वतथमान समय में ऄथथव्यवस्थाओं के प्रबंधन में मौद्रद्रक नीतत को ऄत्यतधक महत्व प्राप्त हो रहा है।
ऄतः आस तवषय पर तनरं तर वाद-तववाद जारी है द्रक राजकोषीय नीतत तथा मौद्रद्रक नीतत में से
ऄथथव्यवस्था पर वांतछत प्रभाव डालने में कौन ऄतधक प्रभावी है। आस सन्दभथ में प्रस्तुत कु छ तकथ
तनम्नतलतखत हैं:

2.6.1. राजनीततक तववर्ताएाँ तथा ईद्दे श्य

1960, 1970, और 1980 के दर्क के ऄनुभव सुझाते हैं द्रक लोकतांतत्रक ढंग से चुनी गइ सरकारों को
मुद्रास्फीतत का सामना करने में राजकोषीय नीतत का ईपयोग करने के दौरान ऄतधक करठनाइ होती है।
 मुद्रास्फीतत को तनयंतत्रत करने के तलए सरकार द्वारा ऄलोकतप्रय कारथ वाइयां करने की अवश्यकता
होती है, जैस-े ्‍यय को कम करना ऄथवा करों में बढ़ोत्तरी करना। संक्षेप में कहा जाए तो
राजनीततक वास्ततवकताएाँ ऐसा करने से सरकार को रोकती हैं।
 जबद्रक दूसरी र, राजकोषीय नीतत ऄथथव्यवस्था में बेरोजगारी दूर करने में ऄतधक ईपयोगी
होती है, क्योंद्रक सरकार द्वारा सावथजतनक ऄवसंरचना के तनमाथण एवं रोजगार ईत्पन्न करने हेतु
्‍यय में बढ़ोत्तरी की जा सकती है।

2.6.2. तरलता पार् (Liquidity Trap) की समस्या

अर्थथक ऄधोगतत की तस्थतत में एक ईपचार के रूप में मौद्रद्रक नीतत का कायथ चलन में मुद्रा की मात्रा में
बढ़ोत्तरी करने हेतु ब्याज दरों में कटौती करना होता है। परन्तु ब्याज दर र्ून्य तक पहुाँचने के ईपरांत,
कें द्रीय बैंक और ऄतधक कटौती नहीं कर सकता। आस तस्थतत को ऄथथर्ातस्त्रयों द्वारा “तरलता पार्” के
रूप में संदर्थभत द्रकया जाता है।
 ईदाहरणस्वरुप, जापान सरकार ने 1990 के दर्क के दौरान ऄपनी ऄथथ्‍यवस्था को र्ून्य ब्याज
दर नीतत द्वारा ईत्तेतजत करने का प्रयास द्रकया। ऐसी तस्थतत में जब आसकी ऄथथव्यवस्था तस्थर थी
एवं ब्याज दर र्ून्य के असपास था, तब कइ ऄथथर्ातस्त्रयों ने दृढ़तापूवथक यह ऄतभव्यि द्रकया द्रक
जापानी सरकार को ऄतधकातधक अक्रमक राजकोषीय नीतत का सहारा लेना चातहए था। ऐसे में,
मौद्रद्रक नीतत का कोइ महत्व नहीं रह जाता।
 हालााँद्रक कु छ ऄथथर्ास्त्री आस पर भी ऄसहमत हैं। ईनका तकथ है द्रक मौद्रद्रक नीतत में ऄल्पावतधक
पररवतथन ईपभोिा और व्यापार व्यवहार पर तनश्चय ही र्ी्रततापूवथक एवं जोरदार प्रभाव डालते
हैं।

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2.6.3. मौद्रद्रक और राजकोषीय नीततयों के समयां त राल में तभन्नता

मौद्रद्रक और राजकोषीय नीततयों के प्रभावी होने की गतत में ऄंतर होता है, क्योंद्रक दोनों मामलों में
समयांतराल पररवतथनीय होते हैं। जहााँ मौद्रद्रक नीतत ऄत्यतधक न्‍य होती है तथा दरों में ऄत्यल्प समय
में तात्कातलक पररवतथन द्रकए जा सकते हैं, वहीं कराधान में पररवतथनों को सु्‍यवतस्थत करने एवं
कायाथतन्वत करने में ऄतधक समय लगता है।
 चूंद्रक पूंजी तनवेर् के तलए भतवष्य में योजना तनमाथण करने की अवश्यकता होती है, आसतलए ब्याज
दरों में की जाने वाली कमी, तनवेर् ्‍यय में बढ़ोत्तरी के रूप में पररलतक्षत होने में कु छ समय लग
सकता है। अमतौर पर मौद्रद्रक नीतत में पररवतथन का प्रभाव ऄनुभव द्रकए जाने से पूवथ आसमें छ: से
बारह महीने या ईससे भी ऄतधक समय लगता है।
 बढ़े हुए सरकारी ्‍यय का प्रभाव ्‍यय होने के साथ ही ऄनुभव द्रकया जाता है तथा प्रत्यक्ष एवं
ऄप्रत्यक्ष कराधान में कटौती ऄथथव्यवस्था में बहुत तीव्र गतत से संचररत हो जाती है। परन्तु,
सरकारी ्‍यय कायथक्रम को ऄपनाने के तनणथय एवं आसके कायाथन्वयन के बीच ऄत्यतधक समय
्‍यतीत हो सकता है।
 आसतलए, आस मोचे पर भी आन दोनों में एक का चुनाव करना बहुत करठन होता है। जैसा द्रक कइ
तवर्ेषज्ञों ने कहा है, अज की अवश्यकता न के वल भारतीय ऄथथव्यवस्था में नकदी का
ऄतधकातधक समावेर् करना (ऄथाथत् मौद्रद्रक नीतत का ईपयोगह है ऄतपतु मांग का ऄततररि
ऄंत:क्षेपण करना भी है। यह के वल सरकार द्वारा प्रत्यक्ष राजकोषीय कारथ वाइ द्वारा ही संभव हो
सकता है। भारत में, सरकारी ्‍यय का ब़े ा भाग समावेर्ी और संतुतलत तवकास करने हेतु कृ तष,
ग्रामीण तवकास, स्वास््‍य, मानव संसाधन और ऄवसंरचना हेतु ईन्मुख होना चातहए।
 तनष्कषथ रूप में, मौद्रद्रक नीतत और राजकोषीय नीतत का लक्ष्य समान है। आनका लक्ष्य ऄथथव्यवस्था
में तस्थर और तवकतसत होती अर्थथक तस्थतत को बढ़ावा देना है, परन्तु आसे प्राप्त करने के तलए
ईपयोग द्रकए जाने वाले साधन एवं आनको कायाथतन्वत करने वाले तनकाय तभन्न हैं। वे सही प्रकार
से कायथ करने के तलए आस प्रकार तुल्यकातलक होने चातहए द्रक एक की कारथ वाआयााँ ऄन्य की
कारथ वाआयों को प्रभातवत न करें एवं वे मुद्रास्फीतत के ईतचत स्तर एवं तस्थर अर्थथक समृति को
बनाए रखने के ऄपने लक्ष्य में सफल हों।

2.7. मौद्रद्रक नीतत के सं द भथ में मु द्रास्फीतत बनाम सं वृ ति दर

ऄथथव्यवस्था में मुद्रास्फीततकारी रुझानों का सामना करने के तलए RBI ने कइ बार (जनवरी 2011 सेह
ऄपनी रे पो दर में वृति की है। द्रकन्तु RBI के ये प्रयास ऄसफल रहे हैं। हालााँद्रक अलोचकों ने मुद्रास्फीतत
का सामना करने की आस नीतत ऄथाथत् ब्याज दरों में वृति करने की तवतध पर प्रश्नतचन्ह लगाया है।

2.7.1. बढ़ती ब्याज दरों के तवरुि दृ तिकोण

 अलोचकों का मानना है द्रक मुद्रास्फीतत को कभी-कभी अर्थथक संवृति की कीमत पर तनयंतत्रत


करना प़े ता है। ईनका यह भी तकथ है द्रक तबना समुतचत तवचार द्रकये ब्याज दरों में वृति करना
मौद्रद्रक नीतत को सहायता नहीं प्रदान करता। कइ लोगों ने संवृति को बढ़ावा देने में ईच्च ब्याज
दरों की पहचान एक प्रमुख बाधा के रूप में की है। आसका कारण यह है द्रक कइ बार ईद्यमी RBI
द्वारा मौद्रद्रक नीतत में ररयायत की प्रतीक्षा में ऄपनी तनवेर् योजनाओं को रोक देते हैं। वहीं दूसरी
र ईद्योगों के प्रतततनतधयों का मानना है द्रक औद्योतगक तवकास कइ बार फं ड की ईच्च लागत और
अर्थथक प्रणाली में ऄन्य संरचनात्मक कठोरताओं, ईदाहरणाथथ- ऄपयाथप्त ऄवसंरचना और लेन-देन
की ईच्च लागत, से गंभीर रूप से प्रभातवत होता है।

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2.7.2. ब्याज दरें बढ़ाने के तलए RBI द्वारा द्रदए गए तकथ

 तेज़ी से बढ़ती हुइ मुद्रास्फीतत को तनयंतत्रत करने के तलए की जाने वाली कठोर नीततगत कारथ वाइ
से तवकास को पुनजीतवत करने में सहायता तमलती है, हालांद्रक ईद्योग आसके तवपरीत ईपाय पर
बल देते रहे हैं।
 चूंद्रक हमारी अर्थथक प्रणाली में पयाथप्त तरलता है, आसतलए जमा और ईधारी दरों में तत्काल कोइ
वृति नहीं होगी।
 बैंकों को FCNR जमाओं के रूप में तवर्ाल ऄंतवाथह प्राप्त हुअ है और वे आन कोषों का ईपयोग
करने का ऄवसर तलार् रहे हैं।
 यह भी चेतावनी दी गयी थी द्रक यद्रद RBI कोर आन्फ्लेर्न पर प्रहार करना चाहती है तो ईसे
नीततगत दरों में वृति करनी होगी।
 यह देखा गया है द्रक मुद्रास्फीतत को तन्‍न और तस्थर स्तर तक नीचे लाने से मौद्रद्रक नीतत स्थायी
रूप से ईपभोग और तनवेर् को पुनजीतवत करने में सहायक हो सकती है।

2.7.3. क्या के वल मौद्रद्रक नीतत ऄके ले ही ऄथथ व्य वस्था में मु द्रास्फीतत को तनयं तत्रत कर
सकती है ?

 हाल के द्रदनों में मुद्रास्फीतत भारत में ऄत्यतधक वाद-तववाद का तवषय रही है। आसे भारत के
अर्थथक समृति के मागथ में कैं सर के रूप में देखा जाता है। तवत्तीय क्षेत्र में आस कैं सर का तेजी से
बढ़ता हुअ तवकास रोकने के तलए RBI की मौद्रद्रक नीतत को रायय और अम अदमी द्वारा
रामबाण औषतध के रूप में देखा जाता है। द्रकन्तु, यह सही दृतिकोण नहीं है क्योंद्रक RBI की ऄपनी
भी सीमाएाँ हैं। रायय द्वारा, भारतीय ररजवथ बैंक को सीतमत र्तियां देकर ईनमें देर् का तवत्तीय
स्वास््‍य बनाए रखने का कतथव्य प्रत्यायोतजत नहीं द्रकया जा सकता है। RBI के हाथ बंधे हुए हैं हैं
क्योंद्रक मौद्रद्रक नीतत भी सीतमत भूतमका तनभाती है।
 आसके तवपरीत, आस तवत्तीय समीकरण में राजकोषीय नीतत ब़े ी भूतमका तनभाती है। मौद्रद्रक और
तवत्तीय नीततयों के ईद्देश्यों और लक्ष्यों के बीच सामंजस्य का ऄभाव भी स्पि प्रतीत होता है।

2.7.4. अपू र्थत पक्ष से सं बं तधत मु द्रास्फीतत

 आस सन्दभथ में अपूर्थत-पक्ष की प्रततद्रक्रयाओं के ऄवलोकन की ऄतधक अवश्यकता है। मौद्रद्रक और


राजकोषीय नीततयों को न के वल मांग प्रेररत मुद्रास्फीतत पर ध्यान कें द्रद्रत करना चातहए, बतल्क
लागत प्रेररत मुद्रास्फीतत पर भी ध्यान देना चातहए। दुभाथग्य से, भारतीय संदभथ में मुद्रास्फीतत को
त्रुरटवर् के वल मांग प्रेररत मुद्रास्फीतत समझा जाता है।

2.7.5. सं र चनात्मक सु धार

 राजकोषीय मोचे पर संरचनात्मक सुधार की अवश्यकता है। खाद्य मुद्रास्फीतत तवर्ेष रूप से
प्रणालीगत कतमयों के कारण होती है (ईदाहरण के तलए, मानसून पर भारतीय कृ तष की ब़े ी
तनभथरता, कृ तष ऄवसंरचना की कमी अद्रदह। आस द्रदर्ा में ईतचत कदम ईठाये जाने चातहए ।

2.7.6. अयात प्रे ररत मु द्रास्फीतत

 अयात प्रेररत मुद्रास्फीतत के मुद्दों से तनपटने की अवश्यकता है। अयाततत वस्तुओं पर तनभथरता का
सही ढंग से अकलन करना अवश्यक है क्योंद्रक आसके तलए ऄत्यतधक मूल्यवान तवदेर्ी मुद्रा का
भुगतान करना प़े ता है।

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2.7.7. मु द्रास्फीतत सू च कां क

 मौद्रद्रक नीतत तय करने के तलए एक मापदंड के रूप में RBI द्वारा कोर आन्फ्लेर्न सेक्टर आं डक्
े स
को ऄपनाए जाने की अवश्यकता है। आसमें वे क्षेत्र सत्‍मतलत नहीं होते हैं, तजन पर RBI की

नीततयों का ऄतधक तनयंत्रण नहीं है। ईदाहरणाथथ- संयुि रायय ऄमेररका में, कोर आन्फ्लेर्न सेक्टर

आं डक्े स बास्के ट में खाद्य पदाथथ और तेल सत्‍मतलत नहीं होते हैं, क्योंद्रक आन वस्तुओं की कीमतें
फे डरल ररजवथ नीतत से प्रभातवत नहीं होती हैं। आस आं डक्
े स से बाहर रखी जाने वाली मदें,ऄपनी

ऄतस्थरता के अधार पर एक देर् से दूसरे देर् में तभन्न-तभन्न हो सकती हैं। ऄतः आससे RBI का
ईद्देश्य और ऄतधक यथाथथवादी बन जाएगा।
ईपयुक्
थ त चचाथ से यह ऄनुमान लगाया जा सकता है द्रक एक सरलीकृ त मुद्रास्फीतत-लक्ष्यीकरण दृतिकोण
ऄथाथत् ऄथथव्यवस्था में तस्थरता हातसल कर सप्रथथम मुद्रास्फीतत को तनयंतत्रत करना और संवृति दर के
बारे में बाद में तवचार करना वस्तुतः IMF का दृतिकोण रहा है जो तवश्व में ऄन्यत्र सफल नहीं रहा है।
ऄतः यह दृतिकोण भारत में भी सफल नहीं हो सकता। हमें ऄतधक व्यापक दृतिकोण ऄपनाने की
अवश्यकता है जो एक साथ संवतृ ि दर में वृति कर सके ऄथवा ईसे एक युतियुि रूप में बनाये रखे
और मुद्रास्फीतत को भी कम कर सके । वतथमान मंदी ऄथवा तनम्न संवृति दर की तस्थतत से बाहर तनकलने
के तलए मौद्रद्रक, राजकोषीय और अपूर्थत पक्ष की नीततयों के बीच पारस्पररक द्रक्रया को ध्यान में रखा
जाना चातहए।

2.8. भारत में मौद्रद्रक नीतत का पु नः ऄवलोकन ( Revision of Monetary Policy

in India)

 ऐततहातसक रूप से, भारत में मौद्रद्रक नीतत वषथ में दो बार घोतषत की जाती थी। आसे स्लैक सीजन

पॉतलसी (Slack season policy) (ऄप्रैल से तसतंबरह तथा तबजी सीजन पॉतलसी (busy

season policy) (ऄक्टू बर से माचथह से संदर्थभत द्रकया जाता था।

 द्रकन्तु वै ीकरण से जतनत दबाव और मौद्रद्रक नीतत के महत्व में वृति होने से RBI ने ऄथथव्यवस्था
की तस्थतत के ऄनुसार समय-समय पर ऄतधक सद्रक्रयता के साथ मौद्रद्रक नीतत में पररवतथन करने
का दृतिकोण ऄपनाया। साथ ही, RBI ऄब प्रत्येक वषथ ऄप्रैल माह के ऄंत में एकल मौद्रद्रक नीतत

जारी करने लगा है, हालांद्रक आस नीतत की समीक्षा हर ततमाही में होती है।

2.9. कु छ नए र्ब्द/ववाक्यां र्

2.9.1. मात्रात्मक सहजता (Quantitaive Easing: QE)

 मात्रात्मक सहजता से अर्य ऐसी तस्थतत या मौद्रद्रक नीतत से है तजसका प्रयोग ऄत्यल्प या र्ून्य
ब्याज दरों की तस्थतत में ऄथथव्यवस्था के ईद्दीपन (stimulation) या प्रोत्साहन हेतु द्रकया जाता है।
 यह कभी-कभी ही ईपयोग की जाने वाली मौद्रद्रक नीतत है। वातणतययक बैंकों के ऊण/वईधारी एवं
ईपभोिा ्‍यय में वृति के ईद्देश्य से सरकार द्वारा ऄथथव्यवस्था में मुद्रा की अपूर्थत को बढ़ाने के
तलए आसे ऄपनाया जाता है। कें द्रीय बैंक वातणतययक बैंकों और तनजी संस्थाओं से तवत्तीय
पररसंपतत्तयां खरीदकर ऄथथव्यवस्था में पूवथ-तनधाथररत मात्रा में मुद्रा की अपूर्थत में वृति करता है।
आससे बैंकों के अरतक्षत भंडार में वृति होती है।

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 साधारणतः, कें द्रीय बैंक ब्याज दरों में कटौती करके , ऄप्रत्यक्ष रूप से ऄथथव्यवस्था में ईधारी की
मात्रा और गतततवतध बढ़ाने का प्रयास करता है। कम ब्याज दरें लोगों को ्‍यय के तलए (बचत
करने के तलए नहींह प्रोत्सातहत करती हैं। द्रकन्तु जब ब्याज दरों में और तगरावट संभव नहीं होती है,
तो कें द्रीय बैंक के पास एकमात्र ईपाय ऄथथव्यवस्था में प्रत्यक्ष रूप से मुद्रा की अपूर्थत को बढ़ाना
होता है। आसी प्रद्रक्रया को मात्रात्मक सहजता (QE) कहा जाता है।
 मात्रात्मक सहजता के साथ मुद्रास्फीतत और मुद्रा का ऄवमूल्यन जैसे जोतखम जु़े े हुए हैं (ध्यातव्य
है द्रक मात्रात्मक सहजता तब मानी जाती है जब ऄल्पकातलक ब्याज दरें र्ून्य पर या र्ून्य के
तनकट होती हैं तथा आसमें नए बैंक नोटों का मुद्रण सत्‍मतलत नहीं होता हैह।
 ऄथथव्यवस्था में ऄतधक मुद्रा होने से वस्तुओं की कीमत बढ़ने लगती हैं तजसके कारण मुद्रास्फीतत की
तस्थतत ईत्पन्न होती है। मुद्रा की ऄतधक अपूर्थत होने के कारण घरे लू मुद्रा का ऄवमूल्यन होने
लगता है।
 1990 के दर्क में एसेट प्राआस बबल (पररस्‍पतत्तयों की कीमतों में ऄतनयंतत्रत वृतिह के समाप्त
होने के बाद ऄवस्फीतत के दौर से बाहर तनकलने के तलए सवथप्रथम जापान के कें द्रीय बैंक द्वारा
आसका ईपयोग द्रकया गया था। ऄमेररकी सरकार ऄब तक तीन बार ऐसा कर चुकी है, ये हैं: QE1
(नवंबर 2008 से माचथ 2010 तकह, QE2 (नवंबर से जून 2011) और QE3 (तसतंबर 2012 से
ऄक्टू बर 2014)। ऄमेररका के QE कायथक्रम में ऄंततः QE3 के दौरान कमी (टेपररगह देखी गयी
और ऄक्टू बर 2014 में बॉन्ड की खरीदारी पर रोक लगा दी गइ। फे डरल ररजवथ के प्रमुख जेनेट
येलन ने 2017 में रटप्पणी की थी द्रक QE एक ऄतत ऄसामान्य हस्तक्षेप था, भतवष्य में बार-बार
आसका सहारा नहीं तलया जाएगा, क्योंद्रक आससे कें द्रीय बैंक की बैलेंस र्ीट में ईतार-चढ़ाव अता
है। RBI के पूवथ गवनथर रघुराम राजन ने तवकासर्ील ऄथथव्यवस्थाओं पर QE के प्रभाव के कारण
तवकतसत देर्ों द्वारा घरे लू स्तर पर संवृति को प्रोत्सातहत करने के तलए QE के ईपयोग पर प्रश्न
ईठाया है।

2.9.2. मार्थजनल स्टैं डिडग फै तसतलटी

 मार्थजनल स्टैंडिडग फै तसतलटी (MSF) की दर ईस दर को संदर्थभत करती है तजस पर ऄनुसूतचत बैंक


सरकारी प्रततभूततयों के बदले RBI से वरनाआट एक द्रदवसीय ईधारी ले सकते हैं। ऄनुसूतचत
वातणतययक बैंकों के तलए MSF वस्तुतः एक ऄत्यंत ऄल्पकातलक ईधारी योजना है। नकदी की
गंभीर कमी या तरलता की तीव्र कमी के दौरान बैंक MSF के माध्यम से धन ईधार ले सकते हैं।
 बैंकों को प्राय: ऄपनी जमाओं और ऊण पोटथफोतलयों में ऄसंतलु न के कारण तरलता की कमी का
सामना करना प़े ता है। ये ऄसंतल ु न प्राय: बहुत ही ऄल्पावतधक होते हैं और बैंक द्रदनांद्रकत
सरकारी प्रततभूततयां प्रदान करके RBI से एक द्रदन की ऄवतध के तलए ईधार ले सकते हैं।
 जब बैंक सरकारी प्रततभूततयों के बदले तरलता समायोजन सतवधा (Liquidity Adjustment
Facility: LAF), तजसपर MSF की तुलना में कम ब्याज दर (ऄथाथत् रे पो दरह होता है, सतहत
ऄपने सभी ईधारी तवकल्पों को आस्तेमाल कर चुके होते हैं, तो वैसी पररतस्थतत में ईनके समक्ष
MSF एक ऄंततम तवकल्प होता है। MSF बैंकों के तलए दातडडक दर है और बैंक, सांवतधक
तरलता ऄनुपात की सीमाओं के भीतर सरकारी प्रततभूततयों को बंधक रखकर धन ईधार ले सकते
हैं। ऄंतर बैंक बाजार में वरनाआट ईधारी की दरों में ईतार-चढ़ाव को कम करने और तवत्तीय
प्रणाली में सुचारू रूप से मुद्रा पररसंचरण को संभव बनाने के ईद्देश्य से RBI द्वारा यह योजना
प्रार्‍भ की गइ है। MSF दर स्वतः ही रे पो दर से उपर 1 प्रततर्त तक समायोतजत हो जाती है।

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2.9.3. अधार दर (Base Rate)

 अधार दर वह ब्याज दर है, तजससे कम दर पर ऄनुसूतचत वातणतययक बैंक ऄपने ग्राहकों को

ईधार नहीं दे सकते हैं। यह दर 2010 में दीपक मोहंती सतमतत की ऄनुर्ंसाओं के अधार पर लागू
की गइ थी।
 आस दर को यह सुतनतित करने के तलए लाया गया था द्रक कॉपोरे ट घरानों को कम दरों पर धन
ईधार न द्रदया जाए और ईच्च ऊण दर वाले लघु एवं मध्यम व्यवसायों के प्रतत भेदभाव न द्रकया
जाए। ऄतीत में बैंक लघु एवं मध्यम व्यवसायों से ऄत्यतधक उाँची दरें वसूल करके कं पतनयों के तलए
कम दरों की क्षततपूर्थत द्रकया करते थे।
 अधार दर का एक ऄन्य लाभ यह है द्रक यह मौद्रद्रक संचरण में सहायता करता है, ऄथाथत् RBI
द्वारा की गइ दर में कटौती समाज के सभी वगों तक पहुाँचती है। ऐसी ्‍यवस्था के ऄभाव में
कॉपोरे ट घरानों को कटौती का लाभ तमलता है और लघु एवं मध्यम व्यवसायों को ईच्च दरों का
भुगतान करना प़े ता हैं।
 आस ्‍यवस्था ने ऄत्यतधक दुरूपयोग की गयी बेंचमाकथ प्राआम लेंडिडग रे ट (BPLR) का स्थान ग्रहण

द्रकया है। 2003 में अरं भ की गइ BPLR प्रणाली ईधारी दरों में पारदर्थर्ता लाने के ऄपने मूल
ईद्देश्य में तवफल रही थी।
 बैंक की फं ड लागत के अधार पर ही अधार दर तनधाथररत की जाती है, तजसमें जमाओं की लागत,

लाभ मार्थजन, पररचालन व्यय, प्रर्ासतनक ्‍यय और सांतवतधक ्‍यय सत्‍मतलत हैं।

 वतथमान में, सभी श्रेतणयों के ऊणों का मूल्य तनधाथरण के वल अधार दर के संदभथ में द्रकया जाता है,

हालांद्रक आसके कु छ ऄपवाद हैं, जैसे:

o तवभेद्रदत ब्याज दर (DRI) वाले ऊण,

o बैंक के ऄपने कमथचाररयों को ऊण, और


o ऄपनी ही जमाओं के तवरूि बैंक के जमाकताथओं को ऊण।

2.10. फं ड की सीमां त लागत अधाररत ईधारी दर (Marginal Cost of funds

based Lending Rate :MCLR)

 फं ड की सीमांत लागत अधाररत ईधारी दर (MCLR) एक बैंक की ईस न्यूनतम ब्याज दर को

संदर्थभत करती है, तजससे कम दर पर RBI द्वारा ऄनुमत कु छ प्रकरणों को छोडकर, बैंक ईधार
नहीं दे सकता है। यह बैंक के तलए एक अंतररक मानदंड या संदभथ दर है।
 MCLR वस्तुतः ईस पितत का वणथन करता है तजससे द्वारा एक बैंक ऊण के तलए न्यूनतम ब्याज

दर तनधाथररत करता है। यह तनधाथरण ईधार लेने वालों के तलए 1 रुपया की व्यवस्था करने हेतु जो

सीमांत लागत या ऄततररि लागत अती है ईसके अधार पर की जाती है। MCLR वस्तुतः ऄवतध
संबंतधत मानदंड है (यहााँ ऄवतध का ऄथथ ऊण चुकाने के तलए बचे समय से हैह।
 ऄतग्रम के तलए ब्याज दर तय करने हेतु MCLR पितत RBI द्वारा अरं भ की गइ थी, जो 1 ऄप्रैल

2016 से प्रभावी है। आस नइ पितत ने जुलाइ 2010 में अरं भ की गइ अधार दर प्रणाली का
स्थान ग्रहण द्रकया।

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2.10.1. MCLR अरं भ करने के कारण

 फं ड की सीमांत लागत पर अधाररत दरें नीतत दरों में बदलाव के प्रतत ऄतधक संवद
े नर्ील होती हैं।
 MCLR प्रणाली से पूव,थ ऄलग-ऄलग बैंक अधार दर /व न्यूनतम दर की गणना के तलए ऄलग-ऄलग
पितत का ऄनुसरण कर रहे थे – ऄथाथत् या तो फं ड की औसत लागत या फं ड की सीमांत लागत या
फं ड की तमतश्रत लागत के अधार पर।

2.10.2. MCLR का लक्ष्य

 बैंकों की ईधारी दरों में, नीतत दरों के संचरण में सुधार लाना।
 ऄतग्रमों पर ब्याज दर तनधाथररत करने के तलए बैंकों द्वारा ऄनुसररत पितत में पारदर्थर्ता लाना।
 ईधारकताथओं और साथ ही बैंकों के तलए ईतचत ब्याज दरों पर बैंक ऊण की ईपलब्धता सुतनतित
करना।
 बैंकों को ऄतधक प्रततस्पधी बनाने और ईनके द्वारा ऄपना दीघथकातलक मूल्य और अर्थथक तवकास में
योगदान बढ़ाने में सक्षम बनाना।

2.11. नवीनतम घटनाक्रम (Latest Developments)

2.11.1. ईर्थजत पटे ल सतमतत

जनवरी 2014 में, RBI ने तत्कालीन मौद्रद्रक नीतत ढांचे की समीक्षा करने के तलए RBI के तत्कालीन
ईप-गवनथर ईर्थजत पटेल की ऄध्यक्षता में एक तवर्ेषज्ञ सतमतत का गठन द्रकया था। आस सतमतत ने कइ
दूरगामी ऄनुर्ंसाएं की, तजनमें से कु छ ऄनुर्ंसाएाँ तनम्नतलतखत हैं।
 सतमतत की सबसे महत्वपूणथ ऄनुर्ंसा यह थी द्रक RBI को प्राथतमक तौर पर ऄथथव्यवस्था में
मुद्रास्फीतत तनयंतत्रत करने पर ध्यान कें द्रद्रत करना चातहए या दूसरे र्ब्दों में, मुद्रास्फीतत वस्तुतः
मौद्रद्रक नीतत तैयार करने हेतु नॉतमनल एंकर के तौर पर होना चातहए।
 मुद्रास्फीतत का लक्ष्य लगभग +/व-2 प्रततर्त के ईतार-चढ़ाव के साथ 4 प्रततर्त पर तनधाथररत द्रकया
जाना चातहए।
 नॉतमनल एंकर को हेडलाआन CPI मुद्रास्फीतत के रूप में पररभातषत द्रकया जाना चातहए, जो
तनवाथह व्यय को तनकटता से दर्ाथता है और ऄन्य ईपलब्ध पैमानों के सापेक्ष मुद्रास्फीतत ऄपेक्षाओं
को प्रभातवत करता है। ऐततहातसक रूप से, भारतीय नीतत तनमाथताओं ने थोक मूल्य सूचकांक पर
तव ास द्रकया है।
 आसने मुद्रास्फीतत का लक्ष्य औपचाररक रूप से ऄपनाए जाने के पूवथ, 12 महीने के तलए 8 प्रततर्त
के लक्ष्य और 24 महीने के तलए 6 प्रततर्त के लक्ष्य की ऄनुर्ंसा की।
 सतमतत ने कें द्र सरकार से यह सुतनतित करने के तलए कहा है द्रक GDP (सकल घरे लू ईत्पादह के
ऄनुपात के रूप में 2016-17 तक राजकोषीय घाटे को 3.0 प्रततर्त तक नीचे लाया जाए।
 सतमतत का मानना था द्रक मौद्रद्रक नीतत पर तनणथय मौद्रद्रक नीतत सतमतत (MPC) द्वारा तलया
जाना चातहए।
 सतमतत ने यह भी सुझाव द्रदया था द्रक RBI का गवनथर MPC का ऄध्यक्ष होना चातहए। सतमतत
की ऄनुर्ंसा के ऄनुसार मौद्रद्रक नीतत के प्रभारी तडप्टी-गवनथर को MPC का ईपाध्यक्ष बनाया जा
सकता है। आसके साथ ही मौद्रद्रक नीतत के प्रभारी कायथकारी तनदेर्क को सदस्य बनाने की ऄनुर्ंसा
की गयी थी। आसमें दो बाहरी सदस्यों को भी र्ातमल करने की बात की गयी थी।
 नवीकरण की संभावना के तबना, MPC की पदावतध तीन वषथ हो सकती है।
 बैठक की तततथ से दो सप्ताह के ऄंतराल पर MPC की कायथवाही का तववरण जारी द्रकया जाना
चातहए।

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2.11.2. मु द्रास्फीतत-लक्ष्यीकरण के लाभ

 आससे ब्याज दरों में कमी अती है। कम ब्याज दर पर ईधारी में बढ़ोतरी होती है, तनवेर् बढ़ता है
और आस प्रकार ऄथथव्यवस्था में गतततवतधयों को बढ़ावा तमलता है।
 सावथजतनक और तनजी संस्थाओं को दीघथकातलक योजना बनाने और नीतत तैयार करने में सहायता
तमलती है।
 समाज में तवतभन्न समूहों के बीच अय और धन का पुनर्थवतरण होता है। ईच्च मुद्रास्फीतत से दूसरों
की कीमत पर कु छ समूह लाभातन्वत होते हैं।
 तनतितता का माहौल अता है और आस प्रकार ऊणदाता का अत्मतव ास बढ़ता है। ईच्च
मुद्रास्फीतत स्पष्ट रूप से ऊणदाता को नुकसान पहुंचाती है।

2.11.3. मौद्रद्रक नीतत सतमतत ( Monetary Policy Committee)

 मूल्य तस्थरता और मुद्रास्फीतत लक्ष्यीकरण का ईत्तरदातयत्व RBI को सौंपने के तलए सरकार और

RBI के बीच हुए समझौते के पररणामस्वरूप MPC का गठन द्रकया गया है। भारतीय ररजवथ बैंक

और भारत सरकार ने 20 फरवरी 2015 को मॉनेटरी पॉतलसी फ़्रेमवकथ समझौते पर हस्ताक्षर


द्रकया था।
 MPC ने ईस पूवथ प्रचतलत व्यवस्था का स्थान तलया जहां RBI गवनथर ऄपनी अंतररक टीम और
तकनीकी परामर्थदात्री सतमतत की सहायता और परामर्थ से मौद्रद्रक नीतत संबंधी तनणथयों पर पूरा
तनयंत्रण रखता था।
 सतमतत अधाररत दृतिकोण मौद्रद्रक नीतत के तनणथयों में मूल्य वधथन करे गा और पारदर्थर्ता लाएगा।

2.11.4. MPC का आततहास

 MPC को गरठत द्रकए जाने के तलए सुझावों का आततहास नया नहीं है। वषथ 2002 में ही वाइ. वी.

रे ड्डी सतमतत ने नीततगत कारथ वातहयों हेतु MPC के गठन की ऄनुर्ंसा की थी। तदनंतर, 2006 में

तारापोर सतमतत द्वारा, 2007 में परसी तमस्त्री सतमतत द्वारा, 2009 में रघुराम राजन सतमतत

द्वारा और पुनः वषथ 2013 में तवत्तीय क्षेत्रक तवधायी सुधार अयोग (FSLRC) तथा डॉ. ईर्थजत

अर. पटेल सतमतत की ररपोटथ में MPC को गरठत करने के संदभथ में सुझाव द्रदए गए थे।

2.11.5. MPC की सं र चना

 MPC मे छह सदस्य होते हैं - RBI का गवनथर (ऄध्यक्षह, मौद्रद्रक नीतत का प्रभारी RBI का तडप्टी

गवनथर, RBI बोडथ द्वारा नामांद्रकत एक ऄतधकारी और भारत सरकार द्वारा नामांद्रकत र्ेष तीन
सदस्य।
 कै तबनेट सतचव (ऄध्यक्षह, RBI के गवनथर, तवत्त मंत्रालय के अर्थथक मामलों के तवभाग का सतचव
और कें द्र सरकार द्वारा यथा मनोनीत ऄथथर्ास्त्र या बैंककग क्षेत्र के तीन तवर्ेषज्ञों से तमलकर बनी
एक खोज एवं चयन सतमतत (search cum selection committee) की ऄनुर्स
ं ाओं के अधार
पर सरकार द्वारा नामांद्रकत ्‍यतियों को तनयुि द्रकया जाता है। नामांद्रकत व्यति चार वषों की
ऄवतध तक पद धारण करते हैं और पुनर्थनयुति के पात्र नहीं होते हैं।
 RBI ऄतधतनयम MPC के सदस्यों के तलए अवश्यक योग्यता और पात्रता तनधाथररत करता है।

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2.11.6. MPC के कायथ

 RBI मध्यम ऄवतध में 4% (2% के मानक तवचलन के साथह पर मुद्रास्फीतत के लक्ष्य को सीतमत
करने के तलए ईत्तरदायी है।
 कें द्र सरकार RBI से परामर्थ करके प्रत्येक पांच वषथ में एक बार ईपभोिा मूल्य सूचकांक के संदभथ
में मुद्रास्फीतत का लक्ष्य तनधाथररत करती है।
 तनर्ददि मुद्रास्फीतत लक्ष्यों तक पहुंचने में तवफल रहने पर RBI को कें द्र सरकार को एक प्रततवेदन

के माध्यम से स्पिीकरण देना होगा। प्रततवेदन में तवफलता के कारणों, ईपचारात्मक कायों के

साथ-साथ ईस ऄनुमातनत समय का ईल्लेख करना होगा, तजसके भीतर मुद्रास्फीतत लक्ष्य को प्राप्त
द्रकया जाएगा।
 RBI के तलए प्रत्येक छह महीने में मौद्रद्रक नीतत ररपोटथ प्रकातर्त करना ऄतनवायथ है। आसमें ईसे

मुद्रास्फीतत के स्रोतों को बताना होगा, साथ ही अगामी छह से ऄठारह महीनों की ऄवतध के तलए
मुद्रास्फीतत के पूवाथनम
ु ानों का भी आसे ईल्लेख करना होगा।
 यह अवश्यक है द्रक RBI एक वषथ में MPC की कम से कम चार बैठकें अयोतजत करे ।

 MPC बहुमत (ईपतस्थत और मतदान करने वाले लोगों के ह के अधार पर तनणथय लेती है। बराबरी

की तस्थतत में, RBI के गवनथर के पास सेकंड या काडिस्टग वोट होता है। सतमतत के तनणथय RBI के
तलए बाध्यकारी होंगे।

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भारतीय ऄथथव्यवस्था
4. राजकोषीय नीतत

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तवषय सूची
1. प्रस्तावना एवं पररभाषा ________________________________________________________________________ 4

2. राजकोषीय नीतत के ईपकरण ____________________________________________________________________ 4

2.1. सरकारी या सावथजतनक व्यय __________________________________________________________________ 5


2.1.1. पूंजीगत एवं राजस्व व्यय (Capital and Revenue Expenditure) _________________________________ 5
2.1.2. तवकासात्मक एवं गैर-तवकासात्मक व्यय (Development and Non-Development Expenditure) _________ 5
2.1.3. प्रत्यक्ष व्यय एवं ऄंतरण व्यय (Direct Expenditure and Transfer Expenditure) _____________________ 6
2.1.4. ईत्पादक और ऄनुत्पादक व्यय (Productive and Unproductive Expenditure) _______________________ 7

2.2. सरकारी या सावथजतनक राजस्व ________________________________________________________________ 7

2.2.1. राजस्व प्रातियां (Revenue Receipts) _______________________________________________________ 7


2.2.2. पूंजीगत प्रातियााँ______________________________________________________________________ 14

3. कराधान के कै स्के डिंग प्रभाव : मोिंवैट एवं सेनवैट (modvat and cenvat)___________________________________ 14

4. बजेटरी घाटा _______________________________________________________________________________ 16

4.1. राजस्व घाटा ____________________________________________________________________________ 16

4.2. राजकोषीय घाटा _________________________________________________________________________ 16

4.3. प्राथतमक घाटा __________________________________________________________________________ 17

4.4.घाटे की तवत्तीय व्यवस्था या हीनाथथ प्रबंधन (Deficit Financing) _______________________________________ 17


4.4.1. सावथजतनक ऊण ऄच्छा है या बुरा? ________________________________________________________ 17
4.4.2. ररकार्डिंयन तुल्यता ____________________________________________________________________ 18
4.4.3. ऊण बनाम मुद्रास्फीतत _________________________________________________________________ 18

4.5. घाटे में कमी ____________________________________________________________________________ 19


4.5.1. राजकोषीय ईत्तरदातयत्व और बजट प्रबंधन ऄतधतनयम, 2003 (FRBMA) ____________________________ 19

5. कायथरूप में राजकोषीय नीतत ____________________________________________________________________ 22

5.1. तवस्तारवादी/तवस्ताररत और संकुचनवादी राजकोषीय नीतत ___________________________________________ 22

5.2. राजकोषीय नीतत का शास्त्रीय एवं कीतससयन दृतिकोण _______________________________________________ 22

5.3. तववेकाधीन एवं स्वचातित राजकोषीय नीतत ______________________________________________________ 23

5.4. राजकोषीय या अर्डथक प्रोत्साहन ______________________________________________________________ 23

5.5 समति ऄथथव्यवस्था पर राजकोषीय नीतत का प्रभाव __________________________________________________ 24

5.6 ईपभोक्ता व्यय पर राजकोषीय नीतत का प्रभाव _____________________________________________________ 24

6. राजकोषीय नीतत की सीमाएं एवं कतमयां ___________________________________________________________ 25

7. भारत की राजकोषीय नीतत का प्रक्षेपपथ ____________________________________________________________ 25

8. भारतीय कराधान प्रणािी में पररवतथन _____________________________________________________________ 26

9. हाि ही में कराधान व्यवस्था में हुए तवकास __________________________________________________________ 27


9.1. वस्तु एवं सेवा कर (गुड्स एंिं सर्डवसेज टैक्स-GST) _________________________________________________ 27

10. तवतवध __________________________________________________________________________________ 33

10.1. कर अतंकवाद __________________________________________________________________________ 33

10.2. कर चोरी एवं कर-पररहार__________________________________________________________________ 33

10.3. टैक्स हेवसस____________________________________________________________________________ 33


1. प्रस्तावना एवं पररभाषा
 ऄथथव्यवस्था में सरकार की भूतमका का ऄध्ययन िोक तवत्त या सावथजतनक तवत्त (Public
finance) कहिाता है। यह ऄथथशास्त्र की वह शाखा है जो सरकार की अय तथा व्यय का अकिन
करती है। ऄथाथत् यह सावथजतनक प्रातधकरणों की अय एवं व्यय तथा आनके मध्य अपसी समसवय से
संबंतधत कायथकरण से संबंतधत शाखा है।
 राजकोषीय नीतत के ऄंतगथत सरकार अर्डथक नीततयों के तवतभन्न ईद्देश्यों को प्राि करने के तिए
कराधान, सावथजतनक व्यय और सावथजतनक ऊण जैसे साधनों का प्रयोग करती है। जहााँ
राजकोषीय नीतत, सरकार के कराधान एवं व्यय संबंधी तनणथयों से संबंतधत होती है, वहीं मौद्रद्रक
नीतत, ऄथथव्यवस्था में मुद्रा की अपूर्डत एवं ब्याज दर से संबतं धत होती है। ऄतधकांश अधुतनक
ऄथथव्यवस्थाओं में, सरकार द्वारा राजकोषीय नीतत का तनधाथरण द्रकया जाता है जबद्रक मौद्रद्रक
नीतत का तनधाथरण कें द्रीय बैंक द्वारा द्रकया जाता है।
2. राजकोषीय नीतत के ईपकरण
 राजकोषीय नीतत को सरकार के तवधायी और/या कायथकारी तवभागों द्वारा कायाथतसवत द्रकया जाता
है। राजकोषीय नीतत के दो मुख्य ईपकरण सरकारी कराधान तथा व्यय हैं। सरकार सावथजतनक
वस्तुओं और सेवाओं पर होने वािे व्यय के तवत्तपोषण हेतु कर संग्रहण करती है। सरकारी व्यय,
कराधान एवं ऊण समग्र ऄथथव्यवस्था को ऄत्यतधक प्रभातवत करते हैं।

राजकोषीय नीतत के ईद्देश्य


1. अर्डथक तस्थरता बनाए रखना
2. पूणथ रोजगार की प्राति
3. अर्डथक संवृति को त्वररत करना
4. अय और संपतत्त में ऄसमानता के स्तर को कम करना
5. मूल्य स्तर में तस्थरता बनाए रखना
6. बाह्य संति
ु न को प्राि करना

सरकार की राजकोषीय नीतत के माध्यम से संचातित होने वािे तीन तवतशि कायथ तनम्नतितखत हैं:

1. तनजी वस्तुओं (जैसे कपडे, कारें , खाद्य पदाथथ) से आतर सावथजतनक वस्तुओं (जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा,
सडकें , सरकारी प्रशासन) के रूप में संदर्डभत कु छ वस्तुएं बाजार तंर अ ऄथाथत् व्यतक्तगत ईपभोक्ताओं
और ईत्पादकों के मध्य िेन-देन के माध्यम से ईपिब्ध नहीं करायी जा सकती हैं। ये वस्तुएाँ सरकार
द्वारा ईपिब्ध करवाइ जाती है। यह अवंटन प्रकायथ (Allocation Function) है।
2. सरकार, कर एवं व्यय नीतत के माध्यम से अय का तवतरण करने का प्रयास करती है। आस तवतरण
को समाज द्वारा 'ईतचत' माना जाता है। सरकार, ऄंतरण भुगतान एवं कर संग्रहण के माध्यम से
पररवारों की व्यतक्तगत प्रयोज्य अय को प्रभातवत करती है तथा आस प्रकार सरकार अय तवतरण
को पररवर्डतत कर सकती है। यह तवतरण कायथ है।
3. ऄथथव्यवस्था में ऄत्यतधक ईतार-चढाव की प्रवृतत्त बनी रहती है। यह बेरोजगारी या मुद्रास्फीतत के
िंबी ऄवतध तक बने रहने से प्रभातवत हो सकती है। ऐसी पररतस्थतत भी ईत्पन्न हो सकती है जब
समग्र मांग में वृति करने के तिए ऄततररक्त सरकारी व्यय की अवश्यकता होती है। साथ ही, ऐसी
पररतस्थतत भी ईत्पन्न हो सकती है जब ईच्च रोजगार की तस्थततयों के ऄंतगथत व्यय, ईपिब्ध
ईत्पादन से ऄतधक हो जाए, आस प्रकार मुद्रास्फीतत की तस्थतत ईत्पन्न हो सकती है। ऐसी
पररतस्थततयों में मांग में कमी करने के तिए प्रततबंधात्मक शतों की अवश्यकता होती है। ये घरेिू
ऄथथव्यवस्था के तस्थरीकरण संबंधी अवश्यकताओं के ऄतनवायथ घटक हैं।

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ध्यान दीतजए: वस्तुओं का सावथजतनक प्रावधान, सावथजतनक ईत्पादन के समान नहीं है। सावथजतनक
प्रावधान का ऄथथ यह है द्रक वस्तुओं का तवत्त पोषण बजट के माध्यम से द्रकया जाता है तथा आसहें द्रकसी
भी प्रकार के प्रत्यक्ष भुगतान के तबना ईपिब्ध कराया जाता है। आन वस्तु ओं का ईत्पादन प्रत्यक्ष
सरकारी प्रबंधन के ऄधीन या तनजी क्षेर अ द्वारा द्रकया जा सकता है।

2.1. सरकारी या सावथ ज तनक व्यय

 सावथजतनक व्यय से अशय सावथजतनक प्रातधकरणों - कें द्र सरकार, राज्य सरकार तथा स्थानीय
प्रातधकरणों द्वारा ऄपने ऄनुरक्षण तथा नागररकों की सामूतहक अवश्यकताओं की पूर्डत के तिए या
ईनके अर्डथक एवं सामातजक कल्याण को बढावा देने के तिए द्रकए गए व्यय से है। ईदाहरण के
तिए, सावथजतनक प्रातधकरणों द्वारा कानून एवं व्यवस्था बनाये रखने पर द्रकए गए व्यय, तशक्षा,

स्वास््य, पररवहन, रक्षा, सामातजक सुरक्षा अद्रद के तिए द्रकए गए व्यय।


सरकारी व्यय को तनम्नतितखत शीषथकों के ऄंतगथत वगगीककृ त द्रकया जा सकता है:

2.1.1. पूं जीगत एवं राजस्व व्यय (Capital and Revenue Expenditure)

 सरकार द्वारा द्रकया गया वह व्यय तजसके पररणामस्वरूप भौततक या तवत्तीय पररसंपतत्तयों का
सृजन होता है ऄथवा ईस व्यय से सरकार की तवत्तीय देयताओं में कमी अती है, पूज
ं ीगत व्यय
कहिाता है। पूज
ं ीगत व्यय में सतममतित हैं:
o भूतम, भवन, मशीनरी, ईपकरणों का ऄतधग्रहण, शेयरों में तनवेश पर व्यय

o कें द्र सरकार द्वारा राज्य एवं कें द्रशातसत प्रदेशों की सरकारों, PSU और ऄसय पक्षों को द्रदए
गए ऊण तथा ऄतग्रम
 राजस्व व्यय, कें द्र सरकार की भौततक या तवत्तीय पररसंपतत्तयों के सृजन से तभसन, ऄसय प्रयोजनों
के तिए द्रकया गया व्यय है। यह तनम्नतितखत से संबंतधत होता है:
o सरकारी तवभागों और तवतभन्न सेवाओं के सामासय कायों के तिए द्रकए गए व्यय
o सरकार द्वारा तिए गए ऊणों पर ब्याज के भुगतान
o राज्य सरकारों एवं ऄसय पक्षों को द्रदए गए ऄनुदान

2.1.2. तवकासात्मक एवं गै र -तवकासात्मक व्यय (Development and Non-

Development Expenditure)

 तवकासात्मक व्यय- अर्डथक एवं सामातजक तवकास को बढावा देने वािे सभी व्ययों को
तवकासात्मक व्यय कहा जाता है। तवकासात्मक व्यय, ईत्पादक व्यय के समान होते हैं, आनसे

भौततक पररसमपतत्तयों का सृजन होता है। ईदाहरण- तशक्षा, सावथजतनक स्वास््य, रोजगार,

पररवहन, संचार अद्रद क्षेर अों में तवकास।

 गैर-तवकासात्मक व्यय- ऐसे व्ययों, तजनसे द्रकसी प्रकार की भौततक पररसमपतत्तयों का सृजन नहीं

होता है, ऐसे ऄनुत्पादक व्ययों को गैर-तवकासात्मक व्यय कहा जाता है। ईदाहरणस्वरूप-

प्रशासतनक सेवाएं जैसे द्रक पुतिस, सयाय प्रशासन, रक्षा या ब्याज भुगतान, राज्यों को ऄनुदान
अद्रद।

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2.1.3. प्रत्यक्ष व्यय एवं ऄं त रण व्यय (Direct Expenditure and Transfer

Expenditure)

 प्रत्यक्ष व्यय - अय या संपतत्तयों का सृजन करने वािे व्यय प्रत्यक्ष या गैर-ऄंतरण व्यय से संबंतधत
होते हैं। मूि रूप से यह वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद पर तथा ईत्पादन के कारकों की वतथमान
सेवाओं पर सरकार द्वारा द्रकया गया व्यय है।

योजनागत एवं गैर-योजना व्यय


 वतथमान में योजना और गैर-योजना व्यय के तवभेदन को समाि कर द्रदया गया है। पहिे योजना
व्यय तनधाथररत करने में योजना अयोग की महत्वपूणथ भूतमका रहती थी।
 योजनागत व्यय - कें द्र सरकार के वतथमान (पंचवषगीकय) योजना प्रस्तावों के तहत तनधाथररत
कायथक्रमों के तिए अवंरटत धन ऄथवा राज्यों को ईनकी योजनाओं के तिए कें द्र द्वारा अवंरटत धन
से समबंतधत व्यय को योजनागत व्यय कहा जाता है।
 गैर योजना व्यय - यह सरकार के एक वषथ के तनयतमत कामकाज के तिए बजट में अवंरटत
ऄनुमातनत व्यय को दशाथता है। सरकार के योजनागत व्यय के ऄततररक्त ऄसय सभी प्रकार के व्यय,
गैर-योजनगत व्यय होते हैं।
 व्यय की योजनागत/गैर-योजनागत तवभाजन ने तवतभन्न योजनाओं के तिए संसाधनों के अवंटन के
एक खंतिंत दृतिकोण को प्रेररत द्रकया तजससे न के वि एक सेवा की तिंिीवरी की िागत का पता

िगाना मुतश्कि हो गया ऄतपतु आसके अईटकम (पररणामों) को आसके पररव्यय से संबि करना भी
एक करिन कायथ बन गया।
 कें द्र के साथ-साथ राज्य सरकारों की ओर से भी योजनागत व्यय के प्रतत पक्षपातपूणथ रवैये ने
पररससंपतत्त के रखरखाव और ऄसय संस्थानों पर होने वािे व अवश्यक सामातजक सेवाएं प्रदान
करने से संबंतधत व्ययों को नजरऄंदाज करने के तिए प्रेररत द्रकया है। यह प्रणािी तपछिे
प्रततबिताओं और अवश्यकताओं तथा प्िान बजट के तिए ऄवतशि संसाधनों के अवंटन पर
अधाररत है। आससे प्िान बजट के भीतर फं िं अवंटन में होने वािे िचीिेपन में कमी अइ है।

 गैर-ऄंतरण व्यय में तवकासात्मक एवं गैर-तवकासात्मक व्यय सतममतित होते हैं। तवकासात्मक एवं
गैर-तवकासात्मक व्ययों से प्रत्यक्ष या ऄप्रत्यक्ष रूप से ईत्पादन का सृजन होता है। अर्डथक
ऄवसंरचना जैसे द्रक तबजिी, पररवहन, डसचाइ अद्रद तथा सामातजक ऄवसंरचना जैसे द्रक तशक्षा,

स्वास््य और पररवार कल्याण, अंतररक कानून एवं व्यवस्था, रक्षा और िोक प्रशासन अद्रद।
 ऐसे व्यय के माध्यम से सरकार अर्डथक गतततवतधयों के तिए ईतचत पररतस्थततयों ऄथवा पररवेश
का तनमाथण करती है। अर्डथक वृति के कारण, सरकार शुल्कों एवं करों के रूप में अय का भी सृजन
कर सकती है।
 ऄंतरण व्यय - ऄंतरण व्यय से अशय भुगतान के रूप में द्रकए गए व्यय से है। आन व्ययों से द्रकसी
प्रकार का प्रततफि प्राि नहीं होता है। आस प्रकार के व्ययों में राष्ट्रीय वृिावस्था पेंशन योजना,

ब्याज भुगतान, सतब्सिंी, बेरोजगारी भत्ता, कमजोर वगों के तिए कल्याण िाभ अद्रद जैसे व्यय
सतममतित होते हैं।
 यद्यतप ऐसे व्ययों से सरकार को द्रकसी प्रकार का प्रततफि प्राि नहीं होता है, परसतु यह जन
सामासय के तिए तवशेषकर समाज के सवाथतधक कमजोर वगथ से संबंध िोगों के तिए कल्याणकारी
होते हैं। आन व्ययों के पररणामस्वरूप समाज में अय का पुनर्डवतरण होता है।

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2.1.4. ईत्पादक और ऄनु त्पादक व्यय (Productive and Unproductive

Expenditure)

 ईत्पादक व्यय- ऄवसंरचना तवकास, सावथजतनक ईद्यमों या कृ तष के तवकास पर व्यय से

ऄथथव्यवस्था की ईत्पादक क्षमता में वृति होती है तथा सरकार को अय प्राि होती है। आस प्रकार,
आन व्ययों को ईत्पादक व्यय के रूप में वगगीककृ त द्रकया जाता है। ईदाहरणस्वरूप- मशीनरी अद्रद
जैसी भौततक संपतत्तयों पर व्यय ऄथवा मानव पूज
ं ी पर ईनकी तशक्षा, स्वास््य एवं प्रतशक्षण अद्रद
पर व्यय।
 ऄनुत्पादक व्यय- रक्षा, ब्याज भुगतान, कानून एवं व्यवस्था, िोक प्रशासन अद्रद जैसी ईपभोग की
प्रकृ तत वािी मदों पर व्यय से द्रकसी प्रकार की ईत्पादक पररसंपतत्तयों का सृजन नहीं होता तजनसे
सरकार को कोइ अय या प्रततफि प्राि हो सके । ऐसे व्ययों को ऄनुत्पादक व्ययों के रूप में वगगीककृत
द्रकया जाता है। ईदाहरण - कानून एवं व्यवस्था का ऄनुरक्षण, रक्षा अद्रद।

2.2. सरकारी या सावथ ज तनक राजस्व

 सावथजतनक राजस्व से अशय सरकार को ईसके सभी स्रोतों से प्राि होने वािी अय से है। आन
प्रातियों में कर राजस्व प्रातियां एवं गैर-कर राजस्व प्रातियां सतममतित हैं। ये दोनों प्रातियां,

सरकार के राजस्व स्रोत हैं, ऄथाथत् ये सरकार की अय के स्रोत हैं। आस अय के तिए सरकार को
द्रकसी प्रकार का पुनभुथगतान नहीं करना पडता है। सावथजतनक राजस्व, सावथजतनक प्रातियों से
तभसन हैं चूंद्रक सावथजतनक प्रातियों से अशय सावथजतनक ऊण तथा नइ मुद्रा जारी करने सतहत
सरकार को प्राि होने वािी सभी प्रकार की अय से हैं।

सावथजतनक प्रातियां = सावथजतनक राजस्व प्रातियां + सावथजतनक ऊण और मुद्रा मुद्रण अद्रद जैसे ऄसय
स्रोतों से प्राि अय

सरकारी राजस्व ऄथवा प्रातियों को राजस्व प्रातियों एवं पूज


ं ीगत प्रातियों में वगगीककृत द्रकया जा सकता
है।

2.2.1. राजस्व प्रातियां (Revenue Receipts)

 राजस्व प्रातियां प्रततदेय नहीं होती हैं, ऄथाथत् आनसे प्राि अय को सरकार को वापस नहीं करना
पडता है। राजस्व प्रातियों को कर एवं गैर-कर राजस्व में तवभातजत द्रकया जाता है।
कर राजस्व
 कर राजस्व में कें द्र सरकार द्वारा अरोतपत करों तथा ऄसय शुल्कों से प्राि अय सतममतित होती है।
कर राजस्व, राजस्व प्रातियों का महत्वपूणथ घटक हैं। आसमें तनम्नतितखत कर सतममतित होते हैं:
1. व्यतक्तगत अयकर: व्यतक्त के वेतन एवं अय पर कर।
2. तनगम कर: फमों तथा तनगमों पर कर।
3. ईत्पाद शुल्क: राष्ट्र सीमा के ऄंदर ईत्पाद्रदत वस्तुओं पर िगाया गया शुल्क।
4. सीमा शुल्क: देश में अयात की गइ वस्तुओं और देश से तनयाथत की गइ वस्तुओं पर िगने वािा
शुल्क।
5. सेवा कर: कु छ सेवाओं के िेन-देन पर सेवा प्रदाताओं पर सरकार द्वारा अरोतपत कर।
6. संपतत्त कर: तनवि संपतत्त पर अरोतपत कर। यह संपतत्त के स्वातमत्व से प्राि होने वािे िाभों पर
िगाया गया कर है। आस कर को 1 ऄप्रैि, 2017 से समाि कर द्रदया गया है।

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7. ईपहार कर: तबना द्रकसी प्रततफि या पूणथ मूल्य से कम मूल्य प्राप्त करके एक व्यतक्त से दूसरे व्यतक्त
को संपतत्त के हस्तांतरण पर कर। दाता का अशय भिे ही हस्तांतररत वस्तु के ईपहार देने का हो
ऄथवा नहीं, ईपहार कर अरोतपत होता है।
 ईपहार कर, संपतत्त कर (ऄब समाि) और संपदा शुल्क (ऄब समाप्त) जैसे करों का राजस्व प्राति
के संदभथ में कभी भी बहुत ऄतधक महत्व नहीं रहा है। आस प्रकार आसहें पेपर टैक्स के रूप में संदर्डभत
द्रकया जाता है।
करों का ऄथथ
 करों को "प्रदत्त तवशेष िाभों के संदभथ के तबना, सभी के सामासय तहत में द्रकए गए व्ययों को

चुकाने के तिए व्यतक्त की ओर से सरकार को द्रकये गए ऄतनवायथ योगदान’’ के रूप में पररभातषत
द्रकया जा सकता है।
तनम्नतितखत चार तवशेषताओं के संदभथ में करों की प्रकृ तत की व्याख्या की जा सकती है:
 ऄतनवायथ योगदान: कोइ भी व्यतक्त/संस्थान करों का भुगतान करने से मना नहीं कर सकता है
क्योंद्रक द्रकसी भी कर योग्य व्यतक्त/संस्थान द्वारा आसकी ऄस्वीकृ तत रैर-कानूनी एवं दंिंनीय
ऄपराध है।
 व्यतक्तगत दातयत्व: यह व्यतक्तगत रूप से करों के भुगतान करने का दातयत्व अरोतपत करता है,
क्योंद्रक आसे द्रकसी ऄसय व्यतक्त पर हस्तांतररत नहीं द्रकया जा सकता है।
 सामासय िाभ: करों का अम-जन के सामासय िाभ एवं कल्याण के तिए ईपयोग द्रकया जाता है।
 कोइ प्रततदान नहीं (No quid pro quo): करों के भुगतान के बदिे सरकार पर करदाता के प्रतत
द्रकसी प्रकार की तनतित, प्रत्यक्ष या अनुपाततक िाभ संबधी देयताओं का सृजन नहीं होता है।
करों के प्रकार
प्रत्यक्ष और ऄप्रत्यक्ष कर
 करों को प्रत्यक्ष एवं ऄप्रत्यक्ष कर के रूप में वगगीककृ त द्रकया जाता है। प्रत्यक्ष कर वह कर है जो तजस
व्यतक्त पर िगाया जाता है, वह व्यतक्त ही ईसका भार ईिाता है। आस कर को टािा नहीं जा सकता
है, न ही आसका भार अंतशक या पूणथ रूप में द्रकसी ऄसय व्यतक्त को हस्तासतररत द्रकया जा सकता
है। दूसरे शब्दों में, जब द्रकसी कर का कराघात तथा करापात (Impact and Incidence of
Taxation) एक ही व्यतक्त पर पडता है, तब यह कर प्रत्यक्ष कर कहिाता है। प्रत्यक्ष कर का सबसे
ऄच्छा ईदाहरण अयकर है क्योंद्रक यह तजस व्यतक्त पर िगाया जाता है, वही व्यतक्त ईसकी
ऄदायगी करता है। प्रत्यक्ष कर के ऄसय ईदाहरण हैं- तनगम कर, समपतत्त कर, व्यय कर, समपदा
शुल्क अद्रद।
प्रत्यक्ष करों के गुण
प्रत्यक्ष करों के तनम्नतितखत गुण हैं:
 तमतव्ययी: आनका संग्रह करने की
िागत कम होती है क्योंद्रक
सामासयत: आसहें तनतित स्रोत से
संग्रतहत द्रकया जाता है।
 तनतितता: सरकार को
सामासयतः तनतित रूप से ज्ञात
होता है द्रक द्रकतना कर प्राि
होगा, क्योंद्रक करदाताओं को
पता होता है द्रक ईसहें कब, द्रकतना और द्रकस कर अधार पर करों का भुगतान करना है।

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 समताकारी तथा अर्डथक तवषमताएाँ कम करता है: कर दरों को प्रगततशीि बनाकर, गरीबों की
तुिना में ऄमीरों पर कर का ऄतधक बोझ िंािा जा सकता है।
 िोचशीिता: संकट के समय सरकार कर की दरें बढाकर राजस्व में वृति कर सकती है।
 नागररक चेतना: चूंद्रक करदाता सरकार को पूज
ं ी ईपिब्ध कराते हैं, आसतिए वे आसे िेकर ऄतधक
जागरूक एवं सजग होते हैं द्रक सरकार आसे द्रकस रूप में, कहााँ और कै से व्यय कर रही है।
 सरिता: कर संबंधी व्यवहारों को समझने में असानी एवं सरिता।
प्रत्यक्ष करों के ऄवगुण
प्रत्यक्ष करों में कु छ प्रमुख ऄवगुण आस प्रकार हैं:
 ऄिोकतप्रय: करदाता स्वयं को आससे सीधे प्रभातवत महसूस करते हैं क्योंद्रक आसे दूसरों पर टािा
नहीं जा सकता है।
 कर ऄपवंचन की संभावना ऄतधक होती है क्योंद्रक करदाता ऄपनी अय को तछपा सकते हैं या कम
करों का भुगतान करने के तिए ऄनुतचत तरीके ऄपना सकते हैं।
 ऄसुतवधाजनक: तवस्तृत खातों का रख-रखाव एवं तवतभन्न औपचाररकताओं का पािन करने की
अवश्यकता, प्रद्रक्रया को ऄसुतवधाजनक बना देती है।
 कायथ करने एवं बचत करने की आच्छाओं पर प्रततकू ि प्रभाव: ईदाहरण स्वरूप, संपतत्त एवं पैतक

संपतत्त पर कर अरोतपत करने से िोग बचत करने के तिए हतोत्सातहत होते हैं।
 स्वेच्छाचाररता: सरकार द्वारा कर की दरें मनमाने ढंग से तय की जाती हैं।
 संकीणथ दायरा: कर के भुगतान का दातयत्व कु छ तनतित वगों पर ही ऄतधरोतपत होता है न की
समपूणथ राष्ट्र वातसयों पर।
ऄप्रत्यक्ष या परोक्ष कर :
वह कर है तजसे दूसरे व्यतक्त या समूह पर हस्तांतररत द्रकया जा सकता है। जो कर द्रकसी एक व्यतक्त पर
िगाये जाएाँ परसतु ईनका भुगतान पूणथ
ऄथवा अंतशक रूप से दूसरे व्यतक्त करें , वे
ऄप्रत्यक्ष या परोक्ष कर कहिाते हैं।
ऄप्रत्यक्ष कर का भुगतान करने का
दातयत्व तथा कर का मौद्रद्रक भार तभन्न-
तभन्न व्यतक्तयों पर पडता है। व्यापारी,
ग्राहकों पर ईपिब्ध वस्तुओं या सेवाओं
की ईच्च कीमत प्रभाररत कर ईनके द्वारा
ऄदा की जाने वािी करों की िागत वसूि
कर सकते हैं। कर स्थानांतरण की ऄवस्था
में वस्तु/सेवा प्रदाता द्वारा करों के
भुगतान का ईत्तरदातयत्व ईपभोक्ता पर हस्तांतररत कर द्रदया जाता है। आस प्रकार ईत्पाद कर, सीमा
शुल्क, अबकारी, तबक्री-कर आत्याद्रद ऄप्रत्यक्ष कर के ईदाहरण कहे जा सकते हैं।

कराघात एवं करापात


 कराघात से तात्पयथ कर के प्रारतमभक भार से होता है. कर देने के कारण प्रारमभ में द्रकसी व्यतक्त पर
जो प्रभाव पडता है ईसे कराघात कहते हैं।
 करापात का ऄतभप्राय आसी कर के ईस ऄप्रत्यक्ष मौद्रद्रक भार से है जो द्रकसी व्यतक्त पर ऄतसतम रूप
से पडता है।
 कर तववतथन कर भार को एक तबसदु से दूसरे तबसदु तक स्थानासतररत करने की प्रद्रक्रया है ऄथाथत् कर
तववतथन कराघात से करापात की ओर जाने की प्रद्रक्रया है।
 कराघात का ऄनुभव वह व्यतक्त करता है तजससे द्रक कर संग्रह द्रकया जाता है और कर भार का
ऄनुभव वह व्यतक्त करता है, जोद्रक कर के भार को वास्तव में वहन करता है। कर भार का तो
तववतथन द्रकया जा सकता है, परसतु कराघात का नहीं।

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तवतशि एवं मूल्यानुसार कर (Specific and Ad Valorem Tax)
 करों का एक ऄसय वगगीककरण तवतशि कर एवं मूल्यानुसार कर के रूप में द्रकया जाता है। जब द्रकसी
वस्तु पर ईसकी नाप, अकार और वजन के अधार पर कर िगाया जाता है तो ईसे तवतशि कर
कहा जाता है। ईदाहरणस्वरूप, चीनी पर ईसके वजन के अधार पर ईत्पाद शुल्क अरोतपत द्रकया
जाता है; कपडे पर मीटर या गज के अधार पर ईत्पाद शुल्क अरोतपत द्रकया जाता है, आस ऄवस्था
में आसे तवतशि कर कहा जायेगा। तवतशष्ट कर, िाभप्रद होता है क्योंद्रक आसे सरितापूवक
थ अरोतपत
एवं प्रभाररत द्रकया जा सकता है।
 जब द्रकसी वस्तु पर तबक्री के मूल्य के अधार पर कर िगाया जाता है, तो ईसे मूल्यानुसार कर
कहा जाता है। ऐसी तस्थतत में कर, ईत्पाद के मूल्य के अधार पर िगाया जाता है। आसमें ईत्पाद के
वजन या अकार की गणना नहीं की जाती। मूल्यानुसार कर आस ऄथथ में िाभप्रद होता है द्रक आसका
बोझ सामासयतः ऄमीर वगथ पर पडता है। आसतिए, यह समता के तसिांत के ऄनुसार है। परसतु आस
कर के साथ जरटिता यह है द्रक आसमें वस्तु के मूल्य का सही ऄनुमान िगाना करिन होता है।
 भारत सरकार ने 1 जुिाइ 2017 से सभी कें द्र एवं राज्य स्तर के ऄप्रत्यक्ष करों को समाप्त कर
ईनको जीएसटी (GST) नामक एकि ऄप्रत्यक्ष कर से प्रततस्थातपत कर द्रदया है।

टोतबन कर
 1972 में नोबेि पुरस्कार तवजेता ऄमेररकी ऄथथशास्त्री जेमस टोतबन द्वारा टोतबन कर का प्रस्ताव
द्रदया गया था। मूितः, ईसहोंने एक मुद्रा से दूसरी मुद्रा में द्रकए गए सभी भुगतानों पर कर अरोतपत
करने का सुझाव द्रदया था। ईनका ईद्देश्य तवदेशी मुद्रा-तवतनमय के दौरान धन की ऄत्यतधक और
ऄतस्थरताकारी अवाजाही पर ऄाँकुश िगाना था।
 प्रो. टोतबन का मत था द्रक तवदेशी मुद्राओं में होने वािे ऄतधकांश िेनदेन सट्टा (Speculation) व
ऄसतराष्ट्रीय ब्याज दरों में ऄसतर से िाभ कमाने की प्रवृतत्त (Arbitrage) से समबतसधत होते हैं , ऐसे
िेनदेनों पर कर िगाकर पयाति संसाधन सृतजत द्रकए जा सकते हैं।
 ईसहोंने प्रस्ताव द्रदया द्रक टोतबन कर द्वारा एकतर अत रातश का तवकासशीि राष्ट्रों की सहायता हेतु
ईपयोग द्रकया जाना चातहए। आस तवचार को सभी शेयरों, बांड्स और मुद्रा िेन-देन पर कर
अरोतपत करने के तिए तवस्ताररत द्रकया जा रहा है।

गैर-कर राजस्व
गैर-कर राजस्व में मुख्य रूप से सतममतित हैं:
 कें द्र सरकार द्वारा द्रदए गए ऊण पर ब्याज प्रातियां।
 सरकार द्वारा द्रकए गए तनवेश पर िाभांश ऄथवा िाभ।
 सरकार द्वारा प्रदान की गइ सेवाओं के तिए शुल्क एवं ऄसय प्रातियां।
 तवदेशी राष्ट्रों एवं ऄंतरराष्ट्रीय संगिनों द्वारा नकद ऄनुदान।
ईत्तम कराधान प्रणािी की तवशेषताएं :
ईत्तम कर प्रणािी की पााँच अधारभूत प्रमुख तवशेषताएाँ: तनष्पक्षता, पयाथिता, सरिता, पारदर्डशता
और प्रशासतनक सहजता हैं।
 तनष्पक्षता या समता का ऄथथ है द्रक कर ऄदायगी में सभी की समानरूप से सहभातगता होनी
चातहए। समता की दो महत्वपूणथ ऄवधारणाएं हैं: क्षैततज समता एवं उध्वाथधर समता।
o क्षैततज समता (Horizontal equity) का ऄथथ यह है द्रक समान तवत्तीय तस्थतत वािे
करदाताओं को कर ऄदायगी के दौरान समान रातश का भुगतान करना चातहए।
o उध्वाथधर समता (Vertical equity) का ऄथथ यह है द्रक संपसन करदाताओं को, ऄपेक्षाकृ त कम
संपसन करदाताओं के समान अय के ऄनुपात में करों का भुगतान करना चातहए। उध्वाथधर
समता में करों को प्रततगामी, अनुपाततक ऄथवा प्रगततशीि के रूप में वगगीककृ त द्रकया जाता
है।

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 करों को प्रततगामी, अनुपाततक या प्रगततशीि के रूप में वगगीककृ त द्रकया जा सकता है तथा चूंद्रक
करयोग्य अधार (जैसे द्रक पररवार की अय या व्यापार के िाभ) में पररवतथन होता है ऄत: वगगीककरण
कर व्यवहार के ऄनुसार द्रकया जाता है। (नीचे द्रदया गया अरे ख देखें)
 प्रगततशीि कर (Progressive tax) - आसमें कम अय प्रािकताथ समूहों की तुिना में ईच्च अय
प्रािकताथ समूहों पर अरोतपत कर का प्रततशत ऄतधक होता है।
 अनुपाततक कर (Proportional tax) - वह कर जो सभी अय समूहों से अय का एक समान
प्रततशत िेता है।
 प्रततगामी कर (Regressive tax) - आसमें ईच्च अय वािे समूहों की तुिना में कम अय वािे समूहों
से अय का ऄतधक प्रततशत कर के रूप में तिया जाता है।
 ऄधोगामी कर (Degressive tax) - कराधान में प्रगतत की दर ईसी ऄनुपात में नहीं बढती है, तजस
ऄनुपात में अय में वृति होती है।

तनम्नतितखत कारणों से प्रगततशीि कराधान सवाथतधक िोकतप्रय है:


 आससे करों के बोझ का समतापूणथ और सयायसंगत तवतरण होता है क्योंद्रक यह कर का ऄतधक बोझ
समृि िोगों पर िंािता है।
 आससे अय एवं धन-संपतत्त की ऄसमानता कम करने में सहायता तमिती है।
 प्रगततशीि कराधान िोचदार होता है क्योंद्रक कर की दर में वृति के साथ सरकार के राजस्व में
ऄत्यतधक वृति होती है।
 यह ईत्पादक है क्योंद्रक अय में वृति से स्वत: ही ऄतधक राजस्व प्राि होता है।
 प्रगततशीि कराधान तमतव्ययी है क्योंद्रक कर संग्रह की िागत, कर दरों में वृति के साथ नहीं बढती
है।

 पयाथिता का ऄथथ है द्रक कर संग्रहण द्वारा पयाथि राजस्व प्राि होना चातहए ताद्रक समाज की
अधारभूत अवश्यकताओं की पूर्डत की जा सके । सावथजतनक सेवाओं की मांग पूरा करने के तिए
पयाथि राजस्व प्रदान करने वािी कर प्रणािी पयाथिता की परीक्षा पर खरी ईतरती है।
 पारदर्डशता का ऄथथ यह है द्रक करदाता एवं नेतृत्वकताथ असानी से यह जानकारी प्राप्त कर सकते हैं
द्रक कर प्रणािी और करों का ईपयोग कै से द्रकया जाता है। पारदशगीक कर प्रणािी के तहत हमें यह
जानकारी होती हैं द्रक द्रकस पर कर िगाया जा रहा है, वे द्रकतना भुगतान कर रहे हैं, और संग्रतहत
कर का ईपयोग कहााँ द्रकया जा रहा है। हम यह भी पता िगा सकते हैं द्रक कौन (व्यापक रूप से)
कर का भुगतान करता है और कौन कर छू टों, कटौततयों और क्रेतिंट से िाभातसवत हो रहा है।

 प्रशासतनक सहजता का ऄथथ है द्रक कर प्रणािी करदाताओं एवं कर संग्राहकों, दोनों के तिए
ऄत्यतधक जरटि या महंगी नहीं है। कर संबंधी तनयम सुतवद्रदत और ऄत्यंत असान हों; प्रपर अ बहुत

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जरटि न हो; स्वेच्छा से पािन करना असान हो; राज्य बता सकता हो द्रक क्या करों का समय पर
एवं सही तरीके से भुगतान द्रकया जाता है, और राज्य तनष्पक्ष तथा कु शि तरीके से िेखापरीक्षा
कर सकता है। एकतर अत रातश के संबंध में कर संग्रह करने की िागत बहुत कम होनी चातहए।
िैफर वक्र (Laffer Curve): द्रकसी ऄथथव्यवस्था में करों की दर एवं राजस्व प्राति के मध्य संबंध
दशाथता है।
 यह अरे ख दशाथता है द्रक जैसे-जैसे
शूसय से कर की दर बढती है,
संग्रतहत कर राजस्व की मार अा में भी
वृति होती है। परसतु डबदु T* पर
पहुाँचने के बाद कर की दर में और
वृति होने से संग्रतहत कर राजस्व में
कमी अना प्रारं भ हो जाती है।
सरकारें डबदु T* पर रहना चाहती
है, क्योंद्रक यह वह डबदु है तजस पर
सरकार, कर राजस्व की ऄतधकतम
रातश प्राि करती है। सैिांततक रूप
से यह वह डबदु है तजस पर संभातवत GDP ऄतधकतम होता है।
तवकासशीि ऄथथव्यवस्थाओं में कराधान प्रणािी
 कर, राजस्व एवं तवकास का स्रोत मार अ ही नहीं है, आसके ऄततररक्त भी कर के ऄनेक महत्व हैं। यह
राज्य को ईसके करदाताओं के प्रतत जवाबदेह बनाकर संस्थाओं, बाज़ारों एवं िोकतंर अ के तनमाथण में
महत्वपूणथ भूतमका तनभाता है। ऄमीर एवं गरीब देशों की सरकारों ने वषों से तवकास के तिए कर
के महत्व को ऄत्यतधक ऄहम माना है।
 हािााँद्रक, तवतभन्न देशों तवशेषकर ऄंतरराष्ट्रीय ऄथथव्यवस्था से एकीकृ त होने की अकांक्षा रखने
वािे तवकासशीि देशों के तिए कु शि एवं तनष्पक्ष कर प्रणािी की स्थापना करना सरि नहीं है।
आन तवकासशीि देशों में अदशथ कर प्रणािी द्वारा ऄततशय सरकारी ऊण के तबना अवश्यक
राजस्व संग्रतहत द्रकया जाना चातहए। साथ ही ऐसा अर्डथक गतततवतधयों को हतोत्सातहत द्रकए
तबना एवं ऄसय देशों की कर प्रणातियों से बहुत ऄतधक तवचतित हुए तबना द्रकया जाना चातहए।
तवकासशीि देशों में कराधान से जुडी प्रमुख समस्याएं तनम्नतितखत हैं:
o सवथप्रथम, आन देशों में ऄतधकांश श्रतमक सामासयत: कृ तष या िघु एवं ऄनौपचाररक ईद्यमों में
तनयोतजत हैं। चूाँद्रक, कदातचत ही आसहें तनयतमत एवं तनतित मजदूरी का भुगतान द्रकया जाता
है, ऄत: आनके द्वारा ऄर्डजत अय में ईतार-चढाव अता रहता है। साथ ही कइ िोगों को ‘’तबना
द्रकसी तितखत तहसाब के ’’ नकद में भुगतान द्रकया जाता है। आसतिए अयकर अधार की
गणना करना करिन हो जाता है। ऐसे देशों में श्रतमक सामासयत: ऄपनी अय तबक्री और माि
सूची का सटीक ररकॉिंथ रखने वािी द्रकसी बडी पंजीकृ त दुकान में व्यय नहीं करते हैं।
फिस्वरूप, अयकर एवं ईपभोक्ता कर जैसे राजस्व जुटाने के अधुतनक साधन ऐसी
ऄथथव्यवस्थाओं में कम भूतमका तनभाते हैं तथा सरकार द्वारा ईच्च कर स्तर प्राि करने की
समभावना वास्तव में बहुत कम होती है।
o दूसरी, जब कर ऄतधकाररयों को ऄच्छा वेतन देने के तिए तथा पररचािन का कमप्यूटरीकरण
(यहां तक द्रक कु शि टेिीफोन तथा मेि सेवाएं प्रदान करने के तिए) करने के तिए धन की
कमी होती है तथा साथ ही जब करदाताओं के पास खाता रखने की सीतमत क्षमता की तस्थतत
में ऐसे में सुतशतक्षत एवं सुप्रतशतक्षत कमथचाररयों के तबना कु शि कर प्रशासन बनाना करिन है।
फिस्वरूप्, सरकार प्राय: कम से कम प्रततरोध वािी कर प्रणािी तवकतसत करने का मागथ
ऄपनाती है, जो तकथ संगत, अधुतनक एवं कु शि कर प्रणातियों को स्थातपत करने की बजाय
जो भी तवकल्प ईपिब्ध हैं, का िाभ ईिाने की ऄनुमतत देती हैं।

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o तीसरी, कइ तवकासशीि देशों में ऄथथव्यवस्था की ऄनौपचाररक संरचना एवं तवत्तीय सीमाओं
के कारण सांतख्यकीय और कर कायाथियों को तवश्वसनीय अंकडे जुटाने में करिनाइ होती है।
अंकडों की यह कमी नीतत तनमाथताओं को कर प्रणािी में बडे पररवतथनों के संभातवत प्रभाव
को अकतित करने में ऄसमथथ बनाती है। फिस्वरूप, प्राय: प्रमुख संरचनात्मक पररवतथनों की
तुिना में गौण पररवतथनों को वरीयता दी जाती है। आससे ऄकु शि कर ढांचा स्थायी बना
रहता है।
o चौथी, तवकासशीि देशों में अय का तवतरण ऄसमान होता है। यद्यतप अदशथ रूप में आस
तस्थतत में ऄतधक कर राजस्व जुटाने हेतु गरीबों की तुिना में ऄमीरों पर ऄतधक भारी कर
अरोतपत करने की अवश्यकता होती है, परसतु संपसन करदाताओं की अर्डथक एवं राजनीततक
शतक्त प्राय: ईसहें ऐसी राजकोषीय सुधार प्रद्रक्रया ऄपनाने से रोक देती है तजससे ईनका कर
बोझ बढ सकता है। आससे अंतशक रूप से यह ज्ञात होता है द्रक क्यों कइ तवकासशीि देशों ने
व्यतक्तगत अय एवं संपतत्त कर का पूरी तरह से दोहन नहीं द्रकया है तथा क्यों ईनकी कर
प्रणािी कदातचत ही कभी संतोषजनक प्रगतत प्राि कर पाती है।
 तनष्कषथ में यह कहा जा सकता है, तवकासशीि देशों में कर नीतत प्राय: आितम कर संग्रह के िक्ष्य के
ऄनुसरण के स्थान पर समकातिक पररतस्थततयों की संभाव्यता पर ऄतधक अधाररत होती है।
आसतिए यह अियथजनक नहीं है द्रक अर्डथक तसिांत, तवशेष रूप से आितम कराधान का आन देशों
में प्रचतित कर प्रणातियों पर बहुत कम प्रभाव पडा है।
तवकासशीि देशों हेतु ईत्तम कराधान प्रणािी की तवशेषताएाँ
 तवकासशीि देशों में जहां संसाधनों का अवंटन करने में बाजार शतक्तयों की ऄत्यंत महत्वपूणथ
भूतमका होती है, कराधान प्रणािी की संरचना यथासंभव तटस्थ होनी चातहए ताद्रक अवंटन
प्रद्रक्रया के समय हस्तक्षेप में कमी की जा सके । तवतभसन करों एवं ईनकी ऄपररहायथ तवशेषताओं पर
तनमनतितखत प्रकार से चचाथ की जा सकती है:
व्यतक्तगत अय कर
 ऄतधकांश तवकासशीि देशों में व्यतक्तगत अय कर से ऄपेक्षाकृ त कम राजस्व प्राि होता है। आस कर
के दायरे में अने वािे व्यतक्तयों की संख्या (तवशेष रूप से ईच्चतम सीमांत दर पर) कम है। ऐसे देशों
द्वारा कर की दरों पर अधाररत तवतभन्न वगथ (रे ट ब्रैकेट्स) िागू करके आस कर में सांकेततक
प्रगततशीिता बनाए रखने को सामासयतः ऄत्यतधक महत्व द्रदया जाता है। साथ ही ये देश आन वगों
की संख्या में कमी करने वािे सुधारों को ऄपनाने के प्रतत ऄतनच्छु क रहते हैं। सांकेततक दर
प्रगततशीिता में और वगों की संख्या में कमी कर तथा कर छू ट एवं कटौततयों में कमी कर प्रभावी
दर प्रगततशीिता में सुधार द्रकया जा सकता है। तनतित रूप से द्रकसी भी तकथ संगत समता के
ईद्देश्य से व्यतक्तगत अयकर संरचना में कर की दरों के तनधाथरण हेतु ऄतधक वगथ तवभाजन करने की
अवश्यकता नहीं होगी।
तनगम कर
 तवकासशीि देशों में औद्योतगक देश की तुिना में तवतभन्न क्षेर अों (कु छ तनतित क्षेर अों, तवशेष रूप से
पैरास्टेटि सेक्टर को प्राि पूणत
थ या कर छू ट सतहत) के ऄनुसार ऄनेक कर दरों के होने की संभावना
ऄतधक होती है। ऐसा संभवतः तपछिे अर्डथक व्यवस्थाओं के कारण होता है तजसहोंने संसाधन
अवंटन में राज्य की भूतमका पर ऄतधक बि द्रदया था। पैरास्टेटि सेक्टर से अशय अंतशक या
पूणत
थ या सरकारी स्वातमत्व वािी आकाइयों से है।
 कर प्रयोजनों हेतु भौततक पररसंपतत्तयों का स्वीकायथ मूल्यह्रास, पूंजी की िागत एवं तनवेश की
िाभप्रदता को तनधाथररत करने वािा महत्वपूणथ संरचनात्मक घटक है। आन देशों में कर नीतत संबंधी
तवचार-तवमशथ के समय ईक्त कतमयों में सुधार को भी ऄत्यतधक वरीयता दी जानी चातहए।

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मूल्य-वर्डधत कर (VAT), ईत्पाद शुल्क एवं अयात प्रशुल्क
 यद्यतप VAT को ऄतधकांश तवकासशीि राष्ट्रों में ऄपनाया गया है, परसतु यह प्रायः द्रकसी न द्रकसी
प्रकार से ऄपूणथ होने की समस्या से ग्रतसत रहा है। कइ महत्वपूणथ क्षेर अ, तवशेष रूप से सेवाएाँ एवं
थोक व खुदरा क्षेर अ अद्रद मूल्य-वर्डधत कर (VAT) की पररतध से बाहर छू ट जाते हैं, ऄथवा ऊण
व्यवस्था अवश्यकता से ऄतधक प्रततबंधात्मक है, तवशेषकर पूज
ाँ ीगत वस्तुओं के समबसध में। चूंद्रक
आन िक्षणों से कै स्के डिंग प्रभाव (ऄंततम ईपयोगकताथ पर कर बोझ में बढोतरी) में वृति होती है,
ऄत: ये VAT को प्रयुक्त करने से प्राि होने वािे िाभों में कमी करते हैं। तवकासशीि देशों में VAT
प्रारूप एवं प्रशासन में तवद्यमान आन कतमयों में सुधार को वरीयता दी जानी चातहए।
 संकीणथ अधार एवं ऄपेक्षाकृ त सयून प्रशासतनक िागत के माध्यम से (ईप-ईत्पाद के रूप में) राजस्व
प्राि करने वािी प्रणािी ईत्तम ईत्पाद शुल्क प्रणािी होती है। व्यापार ईदारीकरण के भाग के रूप
में अयात प्रशुल्कों में कमी करना प्रमुख नीततगत चुनौती है। वतथमान में कइ तवकासशीि देश आस
चुनौती का सामना कर रहे हैं।
कर प्रोत्साहन
 कर प्रोत्साहनों को ईतचत माना जा सकता है यद्रद ये बाज़ार तवफिताओं के कु छ रूपों, तवशेषकर
बाह्यताओं का समावेश करने वािी बाज़ार तवफिताओं का समाधान करते हैं। बाह्यताओं से अशय
कर प्रोत्साहन के तनतित िाभों के ऄततररक्त प्राि होने वािे अर्डथक पररणामों से है।
ईदाहरणस्वरूप, शेष ऄथथव्यवस्था पर महत्वपूणथ सकारात्मक बाह्यताएाँ प्रदान करने वािे ईच्च
प्रौद्योतगकी ईद्योगों को बढावा देने हेतु ितक्षत प्रोत्साहन सामासयत: वैध होते हैं। ऄभी तक, ितक्षत
प्रोत्साहन प्रदान करने के तिए सवाथतधक प्रबि कारण आन देशों में क्षेर अीय तवकास संबंधी
अवश्यकताओं की पूर्डत करना है। तथातप, सभी प्रकार के कर प्रोत्साहन आन ईद्देश्यों की प्राति के
तिए समान रूप से ईपयुक्त नहीं हैं तथा कु छ कर प्रोत्साहन ऄसय प्रोत्साहनों की तुिना में कम
िागत-प्रभावी हैं।

2.2.2. पूं जीगत प्रातियााँ

 वे प्रातियााँ जो सरकार की देयता में वृति करती हैं ऄथवा तवत्तीय संपतत्तयों में कमी करती हैं,
पूाँजीगत प्रातियााँ कहिाती हैं। पूज
ाँ ीगत प्रातियों में सतममतित प्रमुख मदें आस प्रकार हैं:
o सरकार द्वारा जनता से प्राि द्रकया गया ऊण, तजसहें बाजार ईधारी कहा जाता है।
o सरकार द्वारा ट्रेजरी तबल्स की तबक्री के माध्यम से भारतीय ररजवथ बैंक, वातणतज्यक बैंकों
तथा ऄसय तवत्तीय संस्थानों से तिया जाने वािा ऊण।
o तवदेशी सरकारों एवं ऄंतरराष्ट्रीय संगिनों से प्राि ऊण।
o कें द्र सरकार द्वारा प्रदत्त ऊण की पुन:प्रातप्त।
o िघु बचत (िंाकघर बचत खाते, राष्ट्रीय बचत प्रमाण पर अ अद्रद)।
o भतवष्य तनतधयााँ
o सावथजतनक क्षेर अ के ईपक्रमों में शेयरों की तबक्री से तनवि प्रातियां।
3. कराधान के कै स्के डिंग प्रभाव : मोिंवै ट एवं से न वै ट
(modvat and cenvat)
 कच्चे माि, ऄवयव एवं ऄसय मध्यवतगीक वस्तुओं जैसी अगतों (आनपुट) पर कराधान की कइ सीमाएाँ
थीं। ईत्पादन प्रद्रक्रया में, ऄंततम ईत्पाद के तनमाथण से पहिे कच्चे माि को कइ प्रद्रक्रयाओं से गुज़ारा
जाता है। आस प्रकार, पहिे तवतनमाथता का अईटपुट दूसरे तवतनमाथता के तिए आनपुट बन जाता है
तथा आसी प्रकार यह प्रद्रक्रया ऄंततम ईत्पाद के तनमाथण से पहिे तनरं तर रूप में अगे जारी रहती है।

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 जब द्रकसी ईत्पाद A के तवतनमाथण के तिए आन अगतों का ईपयोग द्रकया जाता है, तो ऄंततम
ईत्पाद की िागत में न के वि अगतों की िागत के कारण ऄतपतु आस प्रकार के अगतों पर
अरोतपत शुल्क के भुगतान करने के कारण भी वृति होती है। चूाँद्रक ऄंततम ईत्पाद पर िगने वािा
शुल्क, मूल्यानुसार होता है तथा ईत्पाद A की ऄंततम िागत में शुल्क भुगतान के साथ अगतों की

िागत समातवष्ट होती है। आसतिए ईत्पाद A पर प्रभाररत शुल्क के ऄंतगथत कच्चे माि पर दोहरा

कराधान अरोतपत होता है। दूसरे शब्दों में, जैस-े जैसे कच्चा माि एवं ऄंततम ईत्पाद एक ऄवस्था
से गुजरकर दूसरी ऄवस्था में प्रवेश करते है वैस-े वैसे कर बोझ में वृति होती जाती है क्योंद्रक प्रत्येक
ऄगिे ग्राहक को पहिे से कर वहन कर चुकी वस्तु पर बारमबार कर का भुगतान करना पडता है।
आसे कै स्के डिंग प्रभाव ऄथवा दोहरा कराधान कहा जाता है।
 आसने ईत्पादन संरचना को तवकृ त करने के साथ कराधान के सटीक अकिन की प्रद्रक्रया को भी
बातधत द्रकया है। आसतिए सरकार ने अगतों को क्रमश: ईत्पाद कर एवं प्रततकारी शुल्क
(काईं टरवेडिग ड्यूटी) से छू ट प्रदान कर के सद्रीय ईत्पाद शुल्क प्रणािी की आन तवकृ ततयों को समाप्त
करने का प्रयास द्रकया है। आस ईद्देश्य को वास्ततवकता में पररणत करने वािी अदशथ प्रणािी के
तहत मूल्यवर्डधत कर (VAT) का ऄपनाया जाना था। परसतु, कु छ व्यावहाररक करिनाआयों के
कारण मूल्यवर्डधत कर को पूणथ रूप से ऄपनाया जाना संभव नहीं था।
 आसतिए, सरकार ने एक नइ योजना, मोिंवैट (संशोतधत मूल्य वर्डित कर) प्रणािी तवकतसत की।

मोिंवैट प्रणािी ऄतनवायथत: वैट प्रणािी का ऄनुपािन करती है। ऄथाथत् यद्रद तवतनमाथता A द्रकसी

ऄसय तवतनमाथता B से ऄपने ईत्पाद के ईत्पादन में ईपयोग करने के तिए कु छ मध्यवतगीक वस्तुएाँ

(कच्चा माि) खरीदता है। B ने ऄपने द्वारा तवतनर्डमत मध्यवतगीक वस्तुओं पर ईत्पाद शुल्क का

भुगतान कर द्रदया होगा और ईस ईत्पाद शुल्क की पुन: प्राति A द्वारा द्रदए गए तबक्री मूल्य से की

जाएगी। आस प्रकार A को स्वयं द्वारा तवतनर्डमत ईत्पाद पर अरोतपत ईत्पाद शुल्क का भुगतान

करना है और साथ ही कच्चे माि के अपूर्डतकताथ B द्वारा भुगतान द्रकए गए ईत्पाद शुल्क को भी
वहन करना है। मोिंवैट प्रणािी के ऄंतगथत तवतनमाथता ऄपने तवतनमाथण प्रद्रक्रया में प्रयुक्त द्रकए गए
कच्चे माि एवं मध्यवतगीक वस्तुओं पर भुगतान द्रकए गए ईत्पाद शुल्क का क्रेतिंट जमा प्राि कर
सकता है। आसके पररणामस्वरूप प्रत्येक तवतनमाथता द्वारा प्रत्येक चरण पर के वि मूल्य में हुइ वृति
पर ही ईत्पाद शुल्क का भुगतान द्रकया जाना होता है।
 मोिंवैट प्रणािी के माध्यम से यह सुतनतित द्रकया जाता है द्रक समान स्तर एवं समान समय में
तवतनर्डमत ऄंततम ईत्पाद का मूल्य कम हो। कै स्के डिंग प्रभाव के ईसमूिन के माध्यम से िागतों को
कम करने, कर संरचना को ऄतधकातधक युतक्तसंगत बनाने एवं ऄंततम ईत्पाद पर िगाए जाने वािे

कर की मार अा में सुतनतितता िाने के ऄततररक्त, यह प्रणािी ईपभोक्ता की द्रकसी भी ईत्पाद के

मूल्य पर कराधान के वास्ततवक प्रभाव को समझने में सहायता करे गी तथा आस प्रकार, ऄंततम
ईत्पादों के मूल्यों में वृति और ईच्च कर दरों हेतु ईत्तरदायी तवतनमाथताओं के ऄनुतचत प्रयासों का
तवरोध करने के तिए ईपभोक्ताओं को सक्षम बनाएगी।
 ततपिात्, मोिंवैट प्रणािी को सेनवैट (सेंट्रि वैल्यू एिंेिं टैक्स: CENVAT) प्रणािी में
पुनसंरतचत कर द्रदया गया। मोिंवैट प्रणािी में तवद्यमान सभी कतमयों को समाि कर द्रदया गया।
सेनवैट प्रणािी के ऄंतगथत ऄंततम ईत्पाद के तवतनमाथता या कर योग्य सेवाओं के प्रदाता को ईत्पाद
शुल्क के साथ ही द्रकसी भी अगत हेतु फै क्ट्री को चुकाए गए सेवा कर ऄथवा ऄंततम ईत्पाद के
तवतनमाथता को द्रकसी भी अगत सेवा हेतु चुकाए गए कर की सेवा कर जमा प्राि करने की ऄनुमतत
दी जाएगी।

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4. बजे ट री घाटा
 यद्रद द्रकसी वषथ में सरकार के कर राजस्व की तुिना में सरकारी व्यय ऄतधक हो जाता है तो ईस
वषथ बजेटीय घाटे की तस्थतत ईत्पन्न हो जाती है। यद्रद द्रकसी वषथ में सरकार के कर राजस्व की
तुिना सरकारी व्यय कम होता है तो ईस वषथ बजेटीय अतधक्य की तस्थतत होगी। बजेटीय
अतधक्य, कर राजस्व प्रातियों एवं सरकारी व्ययों के बीच ऄंतर है। यद्रद द्रकसी वषथ में सरकार का
कर राजस्व एवं सरकारी व्यय बराबर होते हैं तो यह दशा ईस वषथ सरकार के संततु ित बजट की
ऄवस्था को दशाथती है।
 सरकारी घाटे तथा ऄथथव्यवस्था के तिए ईसके तनतहताथों का ऄतभग्रहण करने वािे ऄनेक ईपायों
की चचाथ नीचे की गइ है:

4.1. राजस्व घाटा

राजस्व घाटे का अशय राजस्व प्रातियों की तुिना में सरकारी राजस्व व्यय के ऄतधक होने से है।

राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्रातियााँ

 राजस्व घाटे में सरकार की चािू अय तथा व्यय को प्रभातवत करने वािे िेन-देन ही सतममतित
होते हैं। यद्रद ऄथथव्यवस्था में राजस्व घाटे की तस्थतत ईत्पन्न होती है तो आसका अशय है द्रक
सरकार की बचत में कमी हो रही है तथा सरकार ऄथथव्यवस्था के ऄसय क्षेर अों की बचतों का ईपयोग
आसके ईपभोग व्ययों के तवत्तपोषण हेतु कर रही है। ऐसी तस्थतत में, सरकार को ऄपने तनवेश एवं
ऄपनी ईपभोग अवश्यकताओं को तवत्तपोतषत करने के तिए ऊण िेना पडता है। आससे ऊण एवं
ब्याज देयताओं में वृति होती है। पररणामस्वरूप सरकार व्यय में कटौती करने के तिए तववश हो
जाती है। चूाँद्रक राजस्व व्यय का एक बडा भाग प्रततबि व्यय होता है, ऄत: आसमें कमी नहीं की जा
सकती है। ऐसी तस्थतत में सामासयतः सरकार द्वारा ईत्पादक पूज ं ीगत व्यय ऄथवा कल्याणकारी
योजनाओं पर द्रकए जाने वािे व्यय में कमी की जाती है। आससे तवकास की दर धीमी होती है तथा
सामातजक कल्याण पर भी प्रततकू ि प्रभाव पडता है।

4.2. राजकोषीय घाटा

 राजकोषीय घाटा का अशय सरकार के कु ि व्यय एवं कु ि प्रातियों (ईधारी के ऄततररक्त) के मध्य
ऄंतर से है।

सकि राजकोषीय घाटा = कु ि व्यय–(राजस्व प्रातियााँ + देयताओं का सृजन नहीं करने वािी पूज
ं ीगत
प्रातियााँ)

 देयताओं का सृजन नहीं करने वािी पूज


ं ीगत प्रातियााँ ऊण नहीं होती हैं तथा आनके द्वारा सरकार
पर द्रकसी प्रकार की देयता का सृजन नहीं होता है। ईदाहरणस्वरूप, सरकार द्वारा प्रदत्त ऊणों की
पुन:प्राति एवं सावथजतनक क्षेर अ के ईद्यमों से होने वािी प्रातियााँ।
 राजकोषीय घाटे का तवत्तपोषण ऊणों के माध्यम से द्रकया जाता है। आस प्रकार, यह सभी स्रोतों से
प्राि सरकार की सकि ऊण अवश्यकताओं को आं तगत करता है। (तवत्तपोषण पक्ष)

सकि राजकोषीय घाटा = तनवि घरे िू ईधारी +भारतीय ररजवथ बैंक से प्राि ईधारी+ तवदेशों से प्राि
ईधारी

 तनवि घरे िू ईधारी में ऊण के साधनों (जैसे: तवतभन्न िघु बचत योजनाएं) के माध्यम से जनता से
प्रत्यक्ष रूप से प्राि ईधारी तथा ऄप्रत्यक्ष रूप से सांतवतधक तरिता ऄनुपात (Statutory
Liquidity Ratio: SLR) के माध्यम से वातणतज्यक बैंकों से तिया गया ऊण सतममतित होता है।

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 सकि राजकोषीय घाटा, सावथजतनक क्षेर अ की तवत्तीय तस्थतत एवं ऄथथव्यवस्था की तस्थरता का
तनधाथरण करने वािा महत्वपूणथ चर है। तजस तवतध से सकि राजकोषीय घाटे की गणना की जाती
है, ईससे यह प्रदर्डशत होता है द्रक राजस्व घाटा, राजकोषीय घाटे का भाग है।

राजकोषीय घाटा = राजस्व घाटा + पूंजीगत व्यय – देयताओं का सृजन नहीं करने वािी पूज
ं ीगत
प्रातियााँ

 राजकोषीय घाटे में राजस्व घाटे का ऄतधक होना यह आं तगत करता है द्रक ऊण के बडे भाग का
ईपयोग, तनवेश के स्थान पर ईपभोग व्यय अवश्यकताओं द्रक पूर्डत करने हेतु द्रकया जा रहा है।

4.3. प्राथतमक घाटा

 सरकार की ईधार अवश्यकताओं में संतचत ऊण के ब्याज दातयत्व भी सतममतित होते हैं। प्राथतमक
घाटे की गणना का िक्ष्य वतथमान राजकोषीय ऄसंति
ु नों पर ध्यान के तसद्रत करना होता है।
प्राथतमक घाटे का ईपयोग चािू व्ययों के राजस्व प्रातियों से ऄतधक हो जाने के कारण सरकार
द्वारा तिए जाने वािे ऊण का ऄनुमान िगाने के तिए द्रकया जाता है। यह राजकोषीय घाटे में से
ब्याज भुगतानों को घटाने पर प्राप्त होने वािा मान है।

सकि प्राथतमक घाटा = सकि राजकोषीय घाटा– तनवि ब्याज देयताएं

 तनवि ब्याज देयताओं में सरकार द्वारा तनवि घरे िू ईधार पर द्रकए गए ब्याज भुगतानों में से
ब्याज प्रातियों को घटाने पर प्राप्त मान सतममतित होता है।

4.4.घाटे की तवत्तीय व्यवस्था या हीनाथथ प्रबं ध न (Deficit Financing)

 बजट घाटे को कराधान, ईधारी ऄथवा नयी मुद्रा के तनगथमन द्वारा तवत्तपोतषत द्रकया जाता है।

सामासयत: सरकारें ईधारी पर तनभथर होती हैं। पररणामस्वरूप, सावथजतनक ऊण में वृति होती है।
घाटे एवं ऊण की ऄवधारणाएाँ परस्पर एक-दूसरे से तनकटता से संबंतधत हैं। घाटों से ऊणों के
स्टॉक में वृति होती है। यद्रद सरकार प्रत्येक वषथ ऊण िेती है, तब आससे ऊण का संचय होता है
एवं सरकार को ब्याज के रूप में ऄतधकातधक भुगतान करना पडता है। ये ब्याज भुगतान भी ऊण
में वृति करते हैं।

4.4.1. सावथ ज तनक ऊण ऄच्छा है या बु रा?

 सरकार द्वारा ऊण िेकर कम द्रकए गए ईपभोग के बोझ को भावी पीद्रढयों को हस्तांतररत करती
है। ऐसा आसतिए है क्योंद्रक सरकार तत्कािीन जनता को बांड्स जारी करके ऊण िेती है परसतु
िगभग बीस वषों के बाद करों की दर में वृति कर बांड्स का भुगतान करने का तनणथय कर सकती
है। आन करों का ऄतधरोपण युवा जनसंख्या पर द्रकया जा सकता है जो ऄभी-ऄभी ही कायथबि में
सतममतित हुइ होती है। आस युवा जनसंख्या की प्रयोज्य अय में कमी से ईपभोग में भी कमी होगी।
आस प्रकार, यह तकथ द्रदया गया है द्रक आससे राष्ट्रीय बचत में तगरावट अएगी। साथ ही, सरकार
द्वारा जनता से ऊण तिए जाने के कारण तनजी क्षेर अों हेतु ईपिब्ध बचतों में कमी होती है। यह
कमी आस सीमा तक होती है द्रक आससे पूाँजी तनमाथण एवं तवकास में कमी अती है, आसतिए ऊण

भावी पीद्रढयों पर ‘बोझ’ का कायथ करता है।

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4.4.2. ररकार्डिंयन तु ल्यता

 यह तकथ द्रदया गया है द्रक जब सरकार करों में कटौती करती है तथा बजट घाटे की तस्थतत ईत्पन्न
होती है, तब आसकी प्रततद्रक्रया में ईपभोक्ता वगथ ऄपनी करोपरांत बची शेष अय के ऄतधकांश:
भाग का व्यय करता है। संभव है द्रक ये िोग ऄदूरदशगीक हों तथा बजट घाटे के तनतहताथों को न
समझते हों। संभवत: आन िोगों को आस वास्ततवकता का बोध नहीं होता है द्रक सरकार को भतवष्य
में द्रकसी समय तबसदु पर ऊण एवं संतचत ब्याज का भुगतान करने के तिए करों में वृति करनी
होगी। यद्रद ये आस त्य को समझते भी हों, तो संभवत: वे ऄपेक्षा करते हैं द्रक भावी करों का बोझ
ईन पर नहीं ऄतपतु भावी पीद्रढयों पर पडेगा।
 ईपयुथक्त तकथ के तवरोध में यह तकथ द्रदया जाता है द्रक ईपभोक्ता दूरदशगीक होते हैं तथा ईपभोक्ताओं के
व्यय न के वि ईनकी वतथमान अय पर बतल्क भतवष्य की ईनकी प्रत्यातशत अय पर भी अधाररत
होंगे। वे समझते हैं द्रक वतथमान में तिए जाने वािे ऊण का ऄथथ भतवष्य में ईच्च कर होता है। वे
ऄब ऄपनी बचत में वृति करें गे। यह बचत सरकार द्वारा बचत में होने वािी कमी को प्रततसंतुतित
करें गी।
 आस दृतिकोण को ईन्नीसवीं शताब्दी के महान ऄथथशास्त्री िंेतविं ररकािंो के नाम पर ररकार्डिंयन
तुल्यता कहा जाता है। सवथप्रथम िंेतविं ररकािंो ने यह तकथ द्रदया द्रक ईच्च घाटे की तस्थततयों में
िोग ऄतधक बचत करते हैं। आसे ‘तुल्यता’ कहा जाता है क्योंद्रक यह तकथ द्रदया जाता है द्रक कराधान
एवं ऊण, व्यय का तवत्तपोषण करने के समतुल्य साधन हैं। सरकार वतथमान में ऊण िेकर व्यय में
वृति करती है। आस ऊण का भुगतान भतवष्य में करों द्वारा द्रकया जाता है पररणामस्वरूप आसका
ऄथथव्यवस्था पर िीक वैसा ही प्रभाव होता है जैसा द्रक सरकारी व्यय में बढोत्तरी का होता है तजसे
वतथमान में कर में वृति करके तवत्तपोतषत द्रकया जाता है।

4.4.3. ऊण बनाम मु द्रास्फीतत

 घाटे की एक प्रमुख अिोचना यह है द्रक घाटे मुद्रास्फीततकारी होते हैं। आसका कारण यह है द्रक
सरकार द्वारा व्यय में वृति ऄथवा करों में कटौती करने की तस्थतत में सकि मांग बढ जाती है।
परसतु कं पतनयां मांग की जा रही मदों का चािू कीमतों पर ईच्च मार अा में ईत्पादन नहीं कर पाती
हैं। आसतिए, कीमतों में वृति होती है। हािााँद्रक, यद्रद ऄप्रयुक्त संसाधन ईपिब्ध होते हैं, तो मांग
की कमी के कारण ईत्पादन की गतत धीमी रखी जाती है। यद्रद ईच्च राजकोषीय घाटे के साथ-साथ
ईच्च मांग एवं ऄपेक्षाकृ त ईच्च ईत्पादन की तस्थतत भी तवद्यमान होती है, तो घाटे के ऄवस्था
मुद्रास्फीततकारी नहीं होती है।
 यह तकथ द्रदया गया है द्रक तनजी क्षेर अ के तिए
ईपिब्ध बचत की रातश में कमी के कारण
तनवेश में कमी अती है। आसका कारण यह है
द्रक यद्रद सरकार ऄपने घाटे का तवत्तपोषण
करने के तिए बांिं जारी करके नागररकों से
ईधार िेने का तनणथय करती है, तो फं िं की
ईपिब्ध अपूर्डत के तिए ये बांड्स, तनगतमत
बांड्स एवं ऄसय तवत्तीय साधनों के साथ
प्रततस्पधाथ करते हैं। यद्रद कु छ तनजी
बचतकताथ बांड्स खरीदने का तनणथय िेते हैं,
तो तनजी क्षेर अों में तनवेश हेतु फं िं में कमी
अएगी। आस प्रकार, जब सरकार ऄथथव्यवस्था की कु ि बचत के ऄतधकांश भाग पर दावा करे गी तो
कु छ तनजी ईधारकताथ तवत्तीय बाजारों से बाहर हो जाएंगे (क्राईडिंग अईट)।

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 यद्रद सरकार ऄवसंरचना तनमाथण में तनवेश करती है, तो भावी पीद्रढयां ऄपेक्षाकृ त ऄतधक

िाभातसवत हो सकती हैं, चूंद्रक सामासयत: ऄवसंरचना तनमाथण हेतु द्रकए गए तनवेशों पर प्राि

प्रततफि, ब्याज की दर से ऄतधक होता है। ईत्पादन में वृति करके वास्ततवक ऊण का भुगतान
द्रकया जा सकता है। आस प्रकार के ऊण को बोझ सदृश नहीं माना जाना चातहए। ऊण में वृति का
समग्र रूप से ऄथथव्यवस्था की वृति के अधार पर अकिन द्रकया जाना चातहए।
 ध्यान देने योग्य डबदु: ऄपेक्षाकृ त वृहद घाटे सदैव ऄपेक्षाकृ त तवस्तृत राजकोषीय नीतत को सूतचत
नहीं करते हैं। समान राजकोषीय ईपाय देश की ऄथथव्यवस्था के अधार पर िघु ऄथवा वृहद घाटे
की तस्थतत ईत्पन्न कर सकते हैं। ईदाहरणस्वरूप: यद्रद द्रकसी ऄथथव्यवस्था में मंदी तथा GDP में
तगरावट की तस्थतत तवद्यमान है तो कर राजस्व में तगरावट देखी जाती है क्योंद्रक फमथ एवं पररवार
की अय में कमी के कारण ईनके द्वारा भुगतान की जाने वािी कर की रातश ऄपेक्षाकृ त कम हो
जाती है। आसका ऄथथ है द्रक मंदी के दौरान घाटे में वृति होती है तथा ऄथथव्यवस्था में ईछाि (तेजी)
के दौरान घाटे में कमी अती है, चाहे राजकोषीय नीतत में कोइ पररवतथन न द्रकए जाए।

4.5. घाटे में कमी

 करों में वृति या व्यय में कमी करके सरकारी घाटे को कम द्रकया जा सकता है। भारत में , सरकार

प्रत्यक्ष करों पर ऄतधक तनभथरता के साथ कर राजस्व बढाने का प्रयास कर रही है (ऄप्रत्यक्ष कर,
प्रकृ तत में प्रततगामी होते हैं - वे समान रूप से सभी अय समूहों को प्रभातवत करते हैं)। आसके साथ
ही PSU में शेयरों की तबक्री के माध्यम से प्रातियां को बढाने का भी प्रयास द्रकया जा रहा है।

 हािााँद्रक, सरकारी व्यय में कटौती पर मुख्य रूप से बि द्रदया गया है। कायथक्रमों के बेहतर
तनयोजन एवं बेहतर प्रशासन के माध्यम से सरकारी गतततवतधयों को ऄपेक्षाकृ त ऄतधक कु शि
बनाकर ऐसा द्रकया जा सकता है। योजना अयोग द्वारा द्रकए गए एक ऄध्ययन में ऄनुमान िगाया
गया है द्रक गरीबों को 1 रू. ऄंतररत करने के तिए, सरकार खाद्य सतब्सिंी के रूप में 3.65 रू.व्यय
करती है। आससे यह प्रदर्डशत होता है द्रक नकदी हस्तांतरण से कल्याण में वृति होगी। आसका एक
दूसरा तरीका सरकार द्वारा ऄपने पूवथ के संचातित कायथ क्षेर अों से पीछे हटना है।
 कृ तष, तशक्षा, स्वास््य एवं गरीबी ईसमूिन अद्रद जैसे महत्वपूणथ क्षेर अों में सरकारी कायथक्रमों मे
कटौती का ऄथथव्यवस्था पर प्रततकू ि प्रभाव पडेगा। कइ देशों में भारी घाटे की तस्थतत तवद्यमान है।
आस तस्थतत ने ईसहें ऄंततः पूव-थ तनधाथररत स्तर से ऄतधक व्यय न बढाने हेतु स्व-अरोतपत प्रततबंध
िगाने के तिए बाध्य द्रकया है। आस कायथ हेतु भारत में, FRBM ऄतधतनयम ऄपनाया गया है।

FRBM ऄतधतनयम को ऄगिे ऄनुभाग में समझाया गया है।

4.5.1. राजकोषीय ईत्तरदातयत्व और बजट प्रबं ध न ऄतधतनयम , 2003 (FRBMA)

बहु-दिीय संसदीय प्रणािी में, चुनावी डचताएं, व्यय नीततयों का तनधाथरण करने में महत्वपूणथ भूतमका
तनभाती हैं। यह तकथ द्रदया जाता है द्रक तथा भतवष्य की सभी सरकारों पर िागू होने वािे तवधायी
प्रावधान, संभवत: घाटे को तनयंतर अत करने में प्रभावी होते हैं। ऄगस्त 2003 में पाररत FRBM

ऄतधतनयम, राजकोषीय सुधारों में क्रांततकारी पररवतथन को आं तगत करता है। यह ऄतधतनयम सरकार को
एक संस्थागत ढांचे के माध्यम से दूरदशगीक राजकोषीय नीतत का ऄनुसरण करने के तिए बाध्य करता है।

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मुख्य तवशेषताएं
 आस ऄतधतनयम के तहत कें द्र सरकार के तिए राजकोषीय घाटे को कम करके GDP के 3% से कम
करना है तथा 31 माचथ, 2019 तक राजस्व घाटे को समाि करना है। तत्पिात पयाथि राजस्व
ऄतधशेष संग्रतहत करने हेतु ईपयुक्त कदम ईिाना भी शातमि है (बाद में संशोतधत)।
 आस ऄतधतनयम में प्रततवषथ राजकोषीय घाटे में GDP का 0.3% एवं राजस्व घाटे में 0.5% की
कटौती करने का िक्ष्य भी समातहत है। यद्रद कर राजस्व के माध्यम से यह िक्ष्य प्राप्त नहीं होता
है, तो व्यय में अवश्यक समायोजन कर कमी करनी चातहए।
 वास्ततवक घाटे के वि राष्ट्रीय सुरक्षा या प्राकृ ततक अपदा के अधार पर ऄथवा कें द्र सरकार द्वारा
तनर्ददि ऄसय ऄसाधारण अधारों पर तनधाथररत िक्ष्य से ऄतधक हो सकते हैं।
 कें द्र सरकार,नकद प्रातियों की तुिना में नकद ऄदायगी की ऄस्थायी ऄतधकता की तस्थतत के
समाधान हेतु ऄतग्रमों (way of advances) के ऄततररक्त भारतीय ररजवथ बैंक से ऊण नहीं िेगी।
 राजकोषीय पररचािनों में ऄतधक पारदर्डशता सुतनतित करने हेतु ईपाय द्रकए जाने चातहए।
 के सद्रीय सरकार, संसद के दोनों सदनों के समक्ष वार्डषक तवत्तीय तववरण सतहत तीन ऄसय तववरण-
मध्यम ऄवतध के राजकोषीय नीतत का तववरण, राजकोषीय नीतत संबंधी रणनीतत तववरण, समति
अर्डथक रूपरे खा तववरण प्रस्तुत करे गी।
 संसद के दोनों सदनों के समक्ष बजट से समबंतधत प्रातियों एवं व्ययों की ततमाही समीक्षा प्रस्तुत की
जानी चातहए।
यह ऄतधतनयम कें द्र सरकार पर िागू होता है। हािााँद्रक, 26 राज्यों ने भी राजकोषीय ईत्तरदातयत्व
कानून ऄतधतनयतमत द्रकए हैं तजसने सरकार के ऄतधतनयम अधाररत राजकोषीय सुधार कायथक्रम को
ऄतधक व्यापक अधार प्रदान द्रकया है।
2012 में FRBM ऄतधतनयम में द्रकये गए संशोधन :
आस संशोधन में प्रभावी राजस्व घाटे (Effective Revenue Deficit) की ऄवधारणा प्रस्तुत की गइ।
यह घाटा राजस्व घाटे एवं पूंजीगत संपतत्तयों के तनमाथण हेतु द्रदए गए ऄनुदान के बीच ऄंतर को दशाथ ता
है।
 आसने घाटे का िक्ष्य प्राि करने की समय सीमा बढाकर 31 माचथ 2015 कर द्रदया। नए िक्ष्य आस
प्रकार हैं:
प्रभावी राजस्व घाटा = शूसय
राजस्व घाटा = 2 प्रततशत
राजकोषीय घाटा = 3 प्रततशत
 यद्यतप FRBM ऄतधतनयम से सरकार द्वारा ऄपने तवत्त के संबंध में द्रकए जाने वािे प्रकटीकरण के
स्तर में सुधार अया है तथातप घाटे का वास्ततवक अकार कम करने संबंधी आसका मुख्य िक्ष्य
दुग्राथह्य है। ऐसा आसतिए है क्योंद्रक िोकतंर अ में सरकार का बजट के वि ऄथथव्यवस्था से ही समबि
नहीं होता है बतल्क बहुत हद तक राजनीततक भी होता है। आसतिए, के वि संख्या तनधाथररत करने
से सहायता नहीं तमि सकती है।
 2018-19 के कें द्रीय बजट में तवत्तीय वषथ 2017-18 के तिए राजकोषीय घाटा सकि घरे िू ईत्पाद
(GDP) का 3.2% और तवत्तीय वषथ 2018-19 के तिए 3.3% रहने का ऄनुमान िगाया गया है।
राजकोषीय समेकन के माध्यम से आसको 2019-20 में 3.1% और 2020-21 में 3% तक करने
का िक्ष्य तनधाथररत द्रकया गया है। 2017-18 के तिये राजस्व घाटे को 1.9% ऄनुमातनत द्रकया
गया था िेद्रकन यह 2.6% रहा। यह तनणथय तिया गया है द्रक, ऄगिे तवत्तीय वषथ 2018-19 से
सरकार राजस्व घाटे के िक्ष्यों को तनधाथररत नहीं करे गी।

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FRBM ऄतधतनमय में कतमयां
 FRBM व्यवस्था में एक महत्वपवपूणथ कमी है द्रक आसका राजकोषीय तनयमों से प्राय: तवचिन रहा
है। FRBM ऄतधतनयम स्पि रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी अवश्यकताओं, राष्ट्रीय अपदाओं और
ऄसय ऄसाधारण पररतस्थततयों की तस्थतत में िक्ष्य के ईल्िंघन का प्रावधान करता है। आसने
व्याख्या में बहुत सारी ऐसी गुज
ं ाआशें छोड दी है। 2012-13 में FRBM ऄतधतनयम में हुए संशोधन
ने राजकोषीय तनयमों की व्यवस्था पुनः स्थातपत की और मध्यम ऄवतध का व्यय ढांचा प्रारं भ
द्रकया। भतवष्य में, घाटे के तनयमों में व्यय तनयम जोडकर एवं ऄधथ-राजकोषीय गतततवतधयों को
समातवि करने के तिए घाटे की व्यापक पररभाषा ऄपनाकर ऄसय ऄसाधारण पररतस्थततयों से
समबंतधत ऄस्पिता का समाधान करने की अवश्यकता है।
 वतथमान FRBM ऄतधतनयम कें द्र के तिए GDP का 3% ितक्षत राजकोषीय घाटा तनधाथररत करता
है, िेद्रकन आस संख्या का कोइ स्पि औतचत्य नहीं है। चूंद्रक राज्यों के तिए एक पृथक सीमा है
(हािााँद्रक आस ऄतधतनयम में तनर्ददि नहीं है), ऄत: संयुक्त राजकोषीय घाटा (ऄंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष
की शब्दाविी में सामासय सरकारी घाटा) ऄपेक्षाकृ त ऄतधक है। ईदाहरण के तिए, चौदहवें तवत्त
अयोग (वाइ.वी. रे ड्डी की ऄध्यक्षता मे) ने स्पि रूप से कें द्र के तिए 3% और राज्यों के तिए भी
3% राजकोषीय घाटे की ऄनुशस
ं ा की है। 2015-16 से 2019-20 की ऄवतध के तिए यह सीमा
संयुक्त रूप से प्रतत वषथ 6% हो जाती है।
 तेरहवें और चौदहवें दोनों तवत्त अयोगों ने FRBM ऄतधतनयम के ऄंतगथत तवत्तीय तनष्पादन की
समीक्षा करने के तिए एक स्वायत्त तनकाय की स्थापना की ऄनुशस ं ा की थी। यह तनकाय तवकतसत
होकर तवत्त मंर अािय के माध्यम से संसद के समक्ष प्रततवेदन प्रस्तुत करने वािा सांतवतधक
राजकोषीय पररषद बन सकता है। कु छ क्षेर अीय अवश्यकतों के ऄनुसार द्रकए गए पररवतथनों के साथ
आस प्रकार के संस्थान कइ देशों द्वारा स्थातपत द्रकए गए हैं।
 तकनीकी तवशेषज्ञता वािी राजकोषीय पररषद, FRBM ऄतधतनयम के ऄंतगथत पररकतल्पत
दीघथकातिक राजकोषीय प्रक्षेप वक्र के साथ प्रत्येक बजट के राजकोषीय ईद्देश्य की सुसंगतता की
बेहतर समझ पैदा करने में सहायता करे गी। आससे तनतित रूप से संसदीय तनरीक्षण की गुणवत्ता में
सुधार अएगा और साथ ही यह ऄतधक सूतचत सावथजतनक बहस में भी यह योगदान देगी।
राजकोषीय ईत्तरदातयत्व एवं बजट प्रबंधन (FRBM) ऄतधतनयम की समीक्षा करने के तिए
सरकार ने मइ 2016 में एक सतमतत गरित की थी। श्री एन.के . डसह की ऄध्यक्षता वािी
राजकोषीय ईत्तरदातयत्व एवं बजट प्रबंधन (FRBM) सतमतत ने प्रततवेदन प्रस्तुत कर द्रदया है।
भतवष्य में सरकार प्रततवेदन की जांच और ईतचत कारथ वाइ करे गी।

FRBM की समीक्षा के तिए गरित सतमतत की तसफाररशें


 2019-20 तक GDP के ऄनुपात के 3% के बराबर राजकोषीय घाटा बनाए रखते हुए
राजकोषीय समेकन (ईदाहरण के तिए तनकट ऄवतध के तिए तवत्तीय तवस्तार ऄपनाना) के संदभथ
में कें द्र सरकार के तिए नमयता प्रदान की गयी है। आसके बाद, यह सतमतत राजकोषीय घाटे के िक्ष्य
में कमी की ऄनुशंसा करती है।
 सतमतत ने एक एस्के प क्िॉज़ की ऄनुशस
ं ा की है, तजसके ऄंतगथत सरकार को द्रकसी तवशेष वषथ के
तिए राजकोषीय घाटे का िक्ष्य छोडने की ऄनुमतत दी गयी है।
 वतथमान FRBM ऄतधतनयम रद्द कर द्रदया जाना चातहए और एक नया ऊण और राजकोषीय
दातयत्व ऄतधतनयम (Debt and Fiscal Responsibility Act) ऄंगीकृ त द्रकया जाना चातहए।
 आसने एक तवत्तीय पररषद (Fiscal Council) के गिन का भी सुझाव द्रदया है जो:
o कें द्र और राज्य सरकारों के तिए बहु-वषगीकय तवत्तीय पूवाथनम ु ान तैयार करे गी।
o कें द्र सरकार के तवत्तीय प्रदशथन का स्वतंर अ मूल्यांकन प्रदान करे गी।

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o एस्के प क्िॉज़ रद्द करने से पहिे सरकार को पररषद से ऄवश्य परामशथ करना चातहए।
 राजकोषीय और राजस्व घाटे की संख्याओं की बजाय, सरकार को 2023 तक GDP के ऄनुपात के
रूप में 60% (वतथमान में 68%) तक सावथजतनक ऊण पर ध्यान कें द्रद्रत करना चातहए। यह
द्रदवातिएपन का सरि पैमाना है, तजसका रे टटग एजेंतसयों द्वारा भी ईपयोग द्रकया जाता है।
 FRBMके ऄंदर राजकोषीय और राजस्व घाटे के तिए वषथ दर वषथ िक्ष्यों के ऄततररक्त ऊण सीमा
(दीघथकातिक तवत्तीय एंकर के रूप में कायथ करना) की स्थापना करना।

5. कायथ रू प में राजको षीय नीतत


5.1. तवस्तारवादी/तवस्ताररत और सं कु चनवादी राजकोषीय नीतत

 तवस्तारवादी राजकोषीय नीतत को सरकारी व्यय में वृति एवं/ऄथवा करों में कमी के रूप में
पररभातषत द्रकया जाता है। आसके पररणामस्वरूप सरकार के बजट घाटे में वृति होती है ऄथवा
सरकार के बजट ऄतधशेष में कमी अती है। संकुचनवादी राजकोषीय नीतत को सरकारी व्यय में
कमी एवं/ऄथवा करों में वृति के रूप में पररभातषत द्रकया जाता है। आसके पररणामस्वरूप सरकार
के बजट घाटे में कमी अती है ऄथवा सरकार के बजट ऄतधशेष में वृति होती है।
 तवस्तारवादी राजकोषीय नीतत की तस्थतत में, सरकार को घरे िू या तवदेशी स्रोतों से ऊण िेना
पडता है, ऄपना तवदेशी मुद्रा भंिंार अहररत करती है ऄथवा समतुल्य मुद्रा जारी करनी पडती है।
व्यापक सामासयीकरण करते हुए कहा जा सकता है द्रक ऄत्यतधक मुद्रा जारी करने से मुद्रास्फीतत
की तस्थतत ईत्पन्न हो जाती है। यद्रद सरकार तवदेशी राष्ट्रों/संस्थानों से ऄत्यतधक ऊण िेती है तो
ऊण संकट पैदा होता है। यद्रद सरकार ऄपने तवदेशी मुद्रा भंिंार को अहररत करती है, तो भुगतान
संति
ु न का संकट ईत्पन्न हो सकता है। सरकार द्वारा ऄत्यतधक घरे िू ईधारी से वास्ततवक ब्याज
दर ईच्च हो सकती है तथा घरे िू तनजी क्षेर अ तक धन की ईपिब्धता में कमी के कारण यह तनजी
तनवेश से बाहर हो सकता है (क्राईडिंग अईट प्रभाव)। कभी-कभी ये दोनों तस्थततयााँ एक साथ भी
घरटत हो सकती हैं। द्रकसी भी तस्थतत में, दीघथकातिक तवकास एवं अर्डथक कल्याण पर ऄत्यतधक
घाटे का प्रभाव नकारात्मक होता है। आसतिए, ऄनावश्यक तवशाि घाटे की तस्थतत सरकार के तिए
ऄच्छी नहीं है।
 हािााँद्रक, तवकासशीि देशों की तस्थतत में, जहां ऄवसंरचना और सामातजक तनवेशों की
अवश्यकता बहुत ऄतधक हो सकती है, दीघथकातिक तवकास की कीमत पर ऄतधशेष बनाए रखना
भी बुतिमत्तापूणथ नहीं हो सकता है। ऐसी तस्थतत में ऄतधकांश तवकासशीि देशों की सरकारों के
तिए मुख्य चुनौती, सरकार की तवत्तीय तस्थतत का प्रबंधन करते हुए ऄवसंरचना और सामातजक
अवश्यकताएं को आस प्रकार से पूरा करना है द्रक घाटे या संतचत ऊण का बोझ बहुत ऄतधक न हो।
नोट: घाटे के तवत्तपोषण से अशय है द्रक सरकार राजस्व प्रातियों से ऄतधक धन व्यय करती है। व्यय
एवं प्रातियों के आस ऄंतर को ऊण िेकर या नइ मुद्रा जारी कर पूरा द्रकया जाता है। हािााँद्रक बजटीय
घाटा कइ कारणों से हो सकता है, परसतु सामासयत: यह शब्द कर की दरों में कमी कर या सरकार के
व्यय में वृति कर ऄथथव्यवस्था को प्रोत्सातहत करने के तकथ संगत प्रयास को संदर्डभत करता है।

5.2. राजकोषीय नीतत का शास्त्रीय एवं कीतससयन दृ तिकोण

 तवस्तृत या संकुतचत राजकोषीय नीततयों का शास्त्रीय दृतिकोण यह है द्रक बाज़ार तंर अ की


ईपतस्थतत में ऐसी नीततयां ऄनावश्यक हैं - ईदाहरणस्वरूप, कीमतों और मजदूरी का िचीिा
समायोजन - जो हर समय ऄथथव्यवस्था को वास्ततवक GDP के स्वाभातवक स्तर पर या आस स्तर
के तनकट रखने का कायथ करता है। तदनुसार, शास्त्रीय ऄथथशास्त्री मानते हैं द्रक प्रतत वषथ सरकार को
बजट संतुतित रखना चातहए।

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 कीसस और ईनके ऄनुयातययों का आस तवश्वास के साथ तनकटतम संबंध है द्रक तवस्तृत एवं संकुतचत
राजकोषीय नीततयों का समति अर्डथक तनष्पादन को प्रभातवत करने के तिए ईपयोग द्रकया जा
सकता है। ईल्िेखनीय है द्रक ईत्पादन और रोजगार से संबंतधत कीतससयन तसिांत 1930 के दशक
में अयी महान मंदी के समय तवकतसत द्रकया गया था। आस मंदी के दौरान ऄमेररका और यूरोप में
बेरोजगारी दर 25% से ऄतधक थी और वास्ततवक GDP की वृति दर आस दशक के ऄतधकांश
वषों में तनरं तर तगर रही थी। कीसस और ईनके ऄनुयातययों का मानना था द्रक प्रचतित मंदी के
पररवेश का सामना करने का तरीका कीमतें एवं मजदूरी समायोतजत होने की प्रतीक्षा करना नहीं,
बतल्क आसके बजाय तवस्तृत राजकोषीय नीतत में संिग्न होना है।
नोट: राजकोषीय नीतत के शास्त्रीय दृतिकोण को सद्रक्रय राजकोषीय नीतत के रूप में भी जाना जाता है।
राजकोषीय नीतत के कीतससयन दृतिकोण को तनतष्क्रय राजकोषीय नीतत के रूप में भी जाना जाता है।

5.3. तववे काधीन एवं स्वचातित राजकोषीय नीतत

 तववेकाधीन राजकोषीय नीतत से अशय ऄथथव्यवस्था में हुए पररवतथनों के कारण सद्रक्रय सरकारी
कराधान तथा व्यय के स्तर में हुए पररवतथन से है। ये पररवतथन प्राय: पूणथ रोजगार और तस्थर मूल्य
अद्रद जैसे ऄथथशास्त्र के कु छ/सभी िक्ष्यों को पूरा करने के प्रयास में अरं भ द्रकए जाते हैं।
ईदाहरणस्वरूप, ऄथथव्यवस्था के तवकास हेतु ऄवसंरचना तनमाथण पर व्यय में वृति करना तथा कु ि
मांग के साथ-साथ रोजगार में संिग्न िोगों की संख्या में वृति करना।
 स्वचातित राजकोषीय नीतत वे पररवतथन हैं जो तपछिी सरकार के तवतनयमों एवं कर कानूनों का
पररणाम हैं, एवं जो पररवतथन ऄभी भी प्रभावी हैं तथा ये पररवतथन सरकार के प्रत्यक्ष हस्तक्षेप के
तबना व्यापार चक्र की तवस्तार और मंदी की ऄवतधयों के माध्यम से ऄथथव्यवस्था में व्यय को
समायोतजत/तस्थर करते हैं। आनमें प्रगततशीि कराधान, कृ तष के तिए सरकारी सहायता और
रोजगार बीमा अद्रद सतममतित हैं।
 पररवर्डतत राजकोषीय नीतत की अवश्यकता की पहचान करने तथा पररवर्डतत राजकोषीय नीतत
को ऄतधतनयतमत करने में होने वािी देरी के कारण तववेकाधीन राजकोषीय नीतत ऄतधक करिन
हो गइ है। संशोतधत राजकोषीय नीतत को कायाथतसवत करने के तिए सामासयत: तवधायी कारथ वाइ
की अवश्यकता होती है, तजसे कायाथतसवत करने में िंबा समय िगता है। ईतचत समय के साथ एक
करिनाइ यह है द्रक अर्डथक गतततवतधयों की भतवष्यवाणी करना समुतचत तवज्ञान नहीं है।
सामासयत: वह समय जब राजकोषीय नीतत में जब पररवतथन की अवश्यकता होती है तथा
कायथवाही करने की अवश्यकता की पहचान की तस्थतत के मध्य ऄंतराि तवद्यमान है। ऄथथव्यवस्था
की मंदी के दौरान ऄपनायी गयी प्रततकू ि राजकोषीय नीतत मुद्रास्फीतत में वृति कर सकती है और
ऄथथव्यवस्था में तगरावट की प्रवृतत्त को तीर क कर सकती है।
आस ऄथथ में मौद्रद्रक नीतत की तुिना में राजकोषीय नीतत िाभकारी होती है क्योंद्रक ऄथथव्यवस्था में
सावथजतनक व्यय की वृति से मांग में तत्काि वृति होती है।

5.4. राजकोषीय या अर्डथक प्रोत्साहन

 राजकोषीय या अर्डथक प्रोत्साहन से अशय सरकार द्वारा ऄथथव्यवस्था को तवत्तीय रूप से


प्रोत्सातहत करने के प्रयासों से है। अर्डथक प्रोत्साहन, तपछडी या संघषथरत ऄथथव्यवस्था में तेजी िाने
के तिए मौद्रद्रक या राजकोषीय नीतत पररवतथनों का ईपयोग करना है। आन पररवतथनों को
कायाथतसवत करने के तिए तवतभन्न रणनीततयों का प्रयोग कर सकती हैं जैसे द्रक ब्याज दरें कम
करना, सरकारी व्यय में वृति करना एवं मार अात्मक राहत पहुंचाना अद्रद।

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 2008-2009 में साख संकट के कारण ईत्पन्न हुइ मंदी की तस्थतत के बाद अर्डथक प्रोत्साहन शब्द
सामासय अर्डथक शब्द बन गया। आसके कारण तवश्व के ऄतधकांश देशों में मंदी की तस्थतत अ गइ
थी। आनमें से कइ देश मंदी और कु छ महामंदी की तस्थतत अ गयी थी। आस समय आन देशों की
सरकारों ने ऄसंख्य अर्डथक ईपायों के माध्यम से कमजोर ऄथथव्यवस्थाओं को प्रोत्सातहत करने के
तिए ऄभूतपूवथ कदम ईिाए।

5.5 समति ऄथथ व्य वस्था पर राजकोषीय नीतत का प्रभाव

 राजकोषीय नीतत समग्र मांग, धन का तवतरण एवं ऄथथव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं के ईत्पादन
करने की क्षमता को प्रभातवत करती है। ऄल्पावतध में व्यय ऄथवा कराधान में होने वािे पररवतथन,
वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग के पररमाण और प्रततरूप दोनों को पररवर्डतत कर सकते हैं। समय के
साथ, यह समग्र मांग ईत्पादन के कारकों पर प्रततफि, मानव पूंजी के तवकास, पूंजीगत व्यय के
अवंटन और तकनीकी नवाचारों में तनवेश को प्रभातवत कर ऄथथव्यवस्था में संसाधनों के अवंटन
तथा ईत्पादक क्षमता को प्रभातवत करती है।
 कर की दरें भी श्रम, बचत एवं तनवेश पर तनवि प्रततफि को प्रभातवत कर पररमाण और ईत्पादन
क्षमता के अवंटन, दोनों को प्रभातवत करती हैं। राजकोषीय नीतत भी अर्डथक प्रवृततयों को
प्रोत्सातहत करती है तथा मौद्रद्रक नीतत को प्रभातवत करती है।

5.6 ईपभोक्ता व्यय पर राजकोषीय नीतत का प्रभाव

 द्रकसी ऄथथव्यवस्था में सभी घटकों के तस्थर होने पर कर की तनम्न दरें िागू होने से पररवारों की
प्रयोज्य अय में वृति होती है पररणामस्वरूप ईपभोक्ताओं के व्यय में वृति करती हैं। कटौती के
पररणाम (द्रकतना व्यय द्रकया जाता है या द्रकतनी बचत की जाती है और अर्डथक गतततवतधयों के
प्रतत ऄनुद्रक्रया) ईपभोक्ताओं द्वारा तिए जाने वािे तनणथयों तथा तत्कािीन समति अर्डथक
पररतस्थततयों पर तनभथर करता है।
 कर कटौती चाहे ऄस्थायी या स्थायी के रूप में की गइ हो, यह ईपभोक्ताओं की बचत को प्रभातवत
करे गी। ऄस्थायी कटौती से ईपभोक्ताओं की प्रयोज्य अय तुिनात्मक रूप से कम पररवर्डतत होगी
तथा पररणामत: आनकी ईपभोग दर पर ऄत्यंत कम प्रभाव पडेगा। यद्रद कटौती को स्थायी माना
जाता है तो ईनकी प्रयोज्य अय में ऄत्यतधक वृति होगी।
 ऄल्पावतध में जब ऄथथव्यवस्था ऄपनी साम्यथ से तनम्न स्तर पर संचातित हो रही हो, तो ईस
तस्थतत में समग्र मांग को प्रोत्सातहत करने के तिए राजकोषीय नीतत का ईपयोग तथा वह तस्थतत
जब राष्ट्रीय बचत एवं भतवष्य में जीवन स्तर को ईन्नत बनाने हेतु पूज ं ीगत तनमाथण जैसे
दीघथकातिक िक्ष्यों को बढावा देने के तिए आस नीतत का ईपयोग द्रकया जाता है, आन दोनों
तस्थततयों के मध्य एक संभातवत संघषथ की तस्थतत पररितक्षत होती है। जब अर्डथक संसाधनों का
ऄत्यंत कम ईपयोग द्रकया जाता है, तब राजकोषीय प्रोत्साहन, तनवेश में वृति कर सकता है।
िेद्रकन जब ऄथथव्यवस्था ऄपनी साम्यथ के स्तर पर संचातित हो रही हो तो सावथजतनक ऊण में
वृति से तनजी तनवेश में तगरावट अ सकती है, बशते राजकोषीय प्रोत्साहन को कम नहीं द्रकया
जाता क्योंद्रक आससे ऄथथव्यवस्था पूणथ रोजगार एवं ईपयोतगता की ओर बढती है।
 नोट: राजकोषीय कषथण (fiscal drag) एक ऐसी ऄवधारणा है तजसमें मुद्रास्फीतत एवं अय में
वृति ऄतधकांश करदाताओं को ईच्च कर श्रेणी(tax bracket) में सतममतित कर सकती है। आसतिए
राजकोषीय कषथण, कर दरों में स्पि रूप से वृति द्रकए तबना सरकार के कर राजस्व में वृति को
प्रभातवत करती हैं।
 आस प्रकार राजकोषीय कषथण से समग्र मांग में कमी अती है और यह ऄपस्फीततकारी राजकोषीय
नीतत का एक ईदाहरण बन जाता है। आसे एक स्वचातित राजकोषीय तस्थरक (स्टेबिाआजर) के
रूप में भी देखा जा सकता है क्योंद्रक ऄपेक्षाकृ त ईच्च अय से कर ईच्च ऄतधरोतपत होगा तथा
ऄथथव्यवस्था में सीतमत मुद्रास्फीततकारी दबाव तनर्डमत होगा।

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6. राजकोषीय नीतत की सीमाएं एवं कतमयां
1. राजकोषीय नीतत में समय ऄंतराि महत्वपूणथ हैं, आनमें से कु छ तनम्नतितखत है:
 मासयता ऄंतराि (Recognition lag): वह समय जो सरकार द्वारा द्रकसी समस्या को
समझने में िगाया जाता है।
 तनणथय ऄंतराि (Decision lag): यह समस्या के तनदान के तिए सबसे ईपयुक्त नीतत
तनधाथररत करने में सरकार द्वारा तिया जाने वािा समय है।
 कायाथसवयन ऄंतराि (Implementation lag): नए तनदेशों को कै से कायाथतसवत द्रकया जाए,
यह समझने या तहसाब िगाने में िगने वािा समय है।
 प्रभाव ऄंतराि (Impact lag): यह द्रक्रयासवयन प्रद्रक्रया के प्रभाव की गणना करने में िगने
वािा समय है।
2. व्यय एवं कराधान नीततयों में पररवतथन करने के दौरान अने वािी करिनाआयां
 करों में वृति एवं व्यय घटाने की तुिना में व्यय में वृति करना और करों में कमी करना
ऄपेक्षाकृ त ऄतधक सरि है।
3. ईपयुक्त नीततयों पर प्रशासतनक स्तरों के मध्य संघषथ
 क्या द्रकया जाना चातहए, आस पर संघीय, प्रांतीय एवं स्थानीय सरकारों के तवचार तभन्न हो
सकते हैं।
 क्षेर अीय तवचिन
4. तनजी तनवेश से बाहर तनकिना (तनजी तनवेश का क्राईडिंग अईट)
 ब्याज दरों में वृति,
 तनजी तनवेश के तिए पूज
ं ी की मार अा में कमी
5. घाटा, भावी पीद्रढयों पर बोझ िंािता है।
6. तवदेशों से प्राि ऊणों से ऄथथव्यवस्था में पूज
ं ी में कमी अती है।
7. राजकोषीय संघवाद एवं कें द्र-राज्य ऄंतरण
भारत में, के सद्र से राज्यों को संसाधन कइ प्रकार से ऄंतररत द्रकए जाते हैं। कें द्र-राज्य तवत्तीय संबंधों के
तिए तवत्त अयोग ईत्तरदायी है।

7. भारत की राजकोषीय नीतत का प्रक्षे प पथ


 वषथ 1950 से अंरभ होने वािे तनयोतजत तवकास के चरण से 1991 में अर्डथक ईदारीकरण तक
भारत की राजकोषीय नीतत की मुख्य तवशेषता सावथजतनक क्षेर अ के ईद्योगों में बडे पैमाने पर तनवेश
करने के तिए तनजी संसाधनों के ऄंतरण हेतु तथा ऄपेक्षाकृ त ऄतधक अय की समानता प्राि करने
हेतु कर प्रणािी का ईपयोग करना थी। पररणामस्वरूप ईच्च अयकर दर के कारण कर चोरी की
प्रवृतत्त देखी गइ। सावथजतनक क्षेर अ के तनवेश और सामातजक व्यय भी प्रभावी नहीं थे। ऐसी स्पि
ऄपयाथिताओं को देखते हुए, 1980 के दशक में आस प्रणािी को सुधारने हेतु सीतमत प्रयास द्रकए
गए।
 1991 के संकट के बाद, सरकार ने अर्डथक ईदारीकरण का रास्ता चुना। कर सुधारों में कर की दरों
को कम करने एवं कर अधार के तवस्तार पर ध्यान कें द्रद्रत द्रकया गया। सतब्सिंी को कम करने और
सावथजतनक क्षेर अ के ईद्योगों में सरकारी धाररता को तवतनवेतशत करने के प्रयास द्रकए गए थे। यद्यतप
अरं भ में राजकोषीय घाटे तथा सावथजतनक ऊण को तनयंतर अत द्रकया गया, परसतु 2000 के दशक
के अरमभ में तस्थतत पुनः तबगडने िगी। आसने कें द्र और राज्यों के स्तर पर राजकोषीय
ईत्तरदातयत्व संबंधी कानूनों को ऄपनाने हेतु प्रेररत द्रकया। कें द्रीय स्तर पर आस प्रारूप को 2003 में

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संसद द्वारा राजकोषीय ईत्तरदातयत्व एवं बजट प्रबंधन ऄतधतनयम (FRBMA) पाररत करने के
साथ अरं भ द्रकया गया। VAT की शुरुअत के साथ ही राज्य स्तर पर भी कर प्रणािी में भी सुधार
प्रद्रक्रया अरं भ हुइ। पररणामतः सावथजतनक तवत्त में व्यापक स्तर पर सुधार हुए। आसने संभवत: ईच्च
वृति, कम घाटे एवं सामासय मुद्रास्फीतत वािे ऄनुकूि समति-राजकोषीय पररवेश के तनमाथण में
योगदान द्रदया। यह पररवेश वषथ 2008 के वैतश्वक तवत्तीय संकट अने तक बना रहा।
 आस चरण में वैतश्वक तवत्तीय संकट समाि हो गया क्योंद्रक वैतश्वक मंदी की तस्थतत देखते हुए
सरकार तवकास को बढावा देने के तिए तीर क प्रतत-चक्रीय ईपायों को ऄपनाने हेतु तववश थी। आन
ऄपनाए गए ईपायों में ईत्पाद शुल्क में कटौती, कु छ चुडनदा तनयाथत ईद्योगों को राजकोषीय
सहायता एवं सावथजतनक व्यय में वृति अद्रद सतममतित थे।
 भारतीय ऄथथव्यवस्था ने वैतश्वक संकट का ऄपेक्षाकृ त ऄतधक दृढता से सामना द्रकया। वषथ 2008-
09 की दूसरी छमाही में तवकास दर 5.8 प्रततशत तक रह गइ थी, परसतु पुनः 2009-10 में 8.5
प्रततशत तक पहुंच गइ। ऄथथव्यवस्था की तस्थतत में हुए आस सुधार को ध्यान में रखते हुए,
राजकोषीय प्रोत्साहनों को धीमी गतत से कम करने का प्रयास द्रकया गया। आस हेतु ऐसा तरीका
ऄपनाया गया तजससे ररकवरी (पुनःप्राति) प्रद्रक्रया को प्रभातवत द्रकए तबना राजकोषीय समेकन
प्राि द्रकया जा सके ।
8. भारतीय कराधान प्रणािी में पररवतथ न
 हाि के वषों में तवकासशीि देशों में कर सुधार प्रद्रक्रया प्रारमभ की गयी हैं। आस प्रकार के सुधार
स्थानीय कारकों के साथ-साथ अर्डथक गतततवतधयों के त्वररत ऄंतराथष्ट्रीयकरण से प्रेररत थे। तवत्तीय
ऄसंतुिन को सुधारने की अवश्यकता और कें द्रीकृ त तनयोतजत ऄथथव्यवस्था से बाजार ऄथथव्यवस्था
की ओर रूपांतरण, कर सुधारों में तीर कता िाने वािे महत्वपवपूणथ स्थानीय कारक थे। व्यय में कटौती
करने में होने वािी करिनाआयों ने तवत्तीय समायोजन की रणनीतत में कराधान प्रणािी के आन
सुधारों की महत्वपवपूणथ भूतमका को ऄतनवायथ बना द्रदया था।
 कें द्रीकृ त तनयोतजत ऄथथव्यवस्था से बाजार ऄथथव्यवस्था की ओर रूपांतरण के तिए प्रशातसत
कीमतों का बाजार तनधाथररत कीमतों से प्रततस्थापन, भौततक तनयंर अणों से तवत्तीय तनयसर अण में
पररवतथन और सावथजतनक ईद्यमों के िाभ को कर राजस्व में पररवर्डतत करने की अवश्यकता थी।
आसी प्रकार वैश्वीकरण के समय में कर सुधार अवश्यक हो जाते हैं। प्रततस्पधाथ में वृति और तवदेशी
तनवेश को अकर्डषत करने के तिए कर प्रणािी की दक्षता और ऄनुपािन िागतों को कम करना
अवश्यक है। वैश्वीकरण के कारण सीमा शुल्क में कमी होने से राजस्व हातन भी होती है, ऄत:
सीमा शुल्कों को घरे िू करों से प्रततस्थातपत करने की अवश्यकता है।
 तवकास रणनीतत में पररवतथन की प्रततद्रक्रया स्वरूप भारतीय कराधान प्रणािी में सुधार होना था।
प्रारतमभक वषों में, कर नीतत का तवतभन्न प्रकार के िक्ष्यों की प्राति के तिए एक साधन के रूप में
ईपयोग द्रकया जाता था। आन िक्ष्यों में िाइसेंडसग प्रणािी, तवतनमय तनयंर अण एवं प्रशातसत
कीमतों के साथ-साथ कें द्रीकृ त तनयोजन व्यवस्था द्वारा तनर्डमत बाजार सरं चना से ईत्पन्न होने
वािी होने वािी ऄसमानताओं को दूर करना तथा बचत के स्तर में वृति सतममतित थी।
योजनाबि तवकास रणनीतत के ढांचे के भीतर कर नीतत के तवकास के भारत के तिए महत्वपवपूणथ
तनतहताथथ थे:
o कर नीतत दक्षता तनतहताथों पर ध्यान द्रदए तबना सावथजतनक क्षेर अ के तिए संसाधन जुटाने हेतु
तनदेतशत थी।
o एक ओर समाज के समाजवादी स्वरूप को प्राि करने के ईद्देश्य के तिए ऄत्यतधक प्रगततशीि
कर संरचना की अवश्यकता थी।
o तवतवध ईद्देश्यों की प्राति के प्रयास ने कर प्रणािी की दक्षता एवं क्षैततज तनष्पक्षता दोनों ही
पर प्रततकू ि प्रभाव िंािा तथा कर प्रणािी को ऄत्यतधक जरटि बना द्रदया। आसने करों की
चोरी और कर वंचन या कर-पररहार के तवतभन्न ईपाय प्रस्तुत द्रकए।

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o ईपयुथक्त तकों ने कर प्रणािी को जरटि बना द्रदया तथा चयनात्मकता एवं तवचारशीिता, कर
नीतत एवं प्रशासन के तवतधसंगत भाग बन गए।
o तवशेष तहत समूहों का प्रभाव, पररवर्डतत होती प्राथतमकताएं और सूचना प्रणािी एवं
वैज्ञातनक तवश्लेषण के ऄभाव से नीततयााँ का ऄनौपचाररक और प्रायः ऄसंगत रूप से ऄंशांकन
(कै तिब्रेशन) या मानकीकरण होने िगा।
 यद्यतप भारत में समय-समय पर कर सुधार संबंधी सतमततयों का गिन करके कर संरचना का
मूल्यांकन द्रकया गया तथातप वास्ततवक सुधार के प्रयास ऄत्यंत ऄनौपचाररक थे। व्यवतस्थत कर
सुधार िागू करने से पहिे कु छ किोर संकट अवश्यक थे। 1991 के राजकोषीय एवं भुगतान
संतिु न संबंधी संकट कािों ने राजकोषीय ऄसंतुिनों को दूर करने हेतु कर प्रणािी की राजस्व
ईत्पादकता में सुधार करने के साथ-साथ बाजार ऄथथव्यवस्था की अवश्यकताओं हेतु कर प्रणािी
को पुन:तवसयातसत करने के तिए व्यवतस्थत सुधारों को कायम रखा।
 कर सुधार सतमतत (TRC; 1991) ने सरं चनात्मक सुधार प्रद्रक्रया के भाग के रूप में प्रत्यक्ष एवं
ऄप्रत्यक्ष करों में सुधार हेतु रूपरे खा एवं रणनीतत प्रस्तुत की। TRC द्वारा प्रस्तुत महत्वपवपूणथ
प्रस्तावों में तनम्नतितखत सतममतित थे:
o सीमा शुल्क, व्यतक्तगत कर तथा तनगम कर एवं ईत्पाद शुल्क अद्रद सभी प्रमुख करों की दर में
ईतचत कटौती, ताद्रक कर की प्रगततशीिता बनी रहे एवं कर चोरी को हतोत्सातहत द्रकया जा
सके ।
o छू ट और ररयायतों में कमी, कानूनों व प्रद्रक्रयाओं के सरिीकरण, ईतचत सूचना प्रणािी का
तनमाथण, कर तववरणी का कमप्यूटरीकरण तथा प्रशासतनक एवं प्रवतथन मशीनरी में सुधार एवं
आनके अधुतनकीकरण जैसे ईपायों द्वारा सभी प्रकार के करों के अधार को व्यापक बनाना।
o यह भी ऄनुशंसा की गयी द्रक घरे िू ईत्पादन पर कर पूणत
थ ः मूल्य वधथन कर (VAT) में
पररवर्डतत हो जाना चातहए और आसे राज्यों के साथ तमिकर वृहद् स्तर तक बढाया जाना
चातहए ताद्रक तवतनमाथण चरण के अगे का ऄततररक्त राजस्व राज्यों को स्थानांतररत द्रकया जा
सके ।

9. हाि ही में कराधान व्यवस्था में हुए तवकास


 DTC एवं GST के िागू होने से भारतीय कर प्रणािी में क्रांततकारी पररवतथन दृतिगत होने की
ऄपेक्षा की जा रही है। वतथमान में सरकारी सतमततयों द्वारा दोनों ही तवधानों पर तवचार-तवमशथ
द्रकया जा रहा है। आनका ईद्देश्य कर सरं चना की तवकृ ततयों को समाि कर ईसे ऄत्यंत सरि बनाना
है ताद्रक मुकदमेबाजी के ऄवसर कम हो सकें तथा ईसके ऄनुपािन में वृति हो सके ।

9.1. वस्तु एवं से वा कर (गु ड्स एं िं सर्डवसे ज टै क्स-GST)

 GST, तवतनमाथता से िेकर ईपभोक्ता तक वस्तु एवं सेवाओं की अपूर्डत पर िगने वािा एकमार अ
कर है। यह प्रत्येक चरण में मूल्य वधथन (वैल्यू एतिंशन) पर िगने वािा एक कर है, क्योंद्रक प्रत्येक
चरण में भुगतान द्रकया गया अगत कर जमा, ऄगिे चरण के मूल्य वधथन में ईपिब्ध होगा। आस
कराधान प्रणािी में, ऄंततम ईपभोक्ता द्वारा के वि अपूर्डत श्रृंखिा के ऄंततम चरण में अपूर्डतकताथ
द्वारा प्रभाररत GST ही ऄदा द्रकया जाएगा। आस प्रकार आसके िागू होने से पूवथ कर प्रणािी में
प्रचतित प्रपाती प्रभावों (कै स्के डिंग आणे क्ट) को पूरी तरह समाि द्रकया जा सके गा।
 GST, समपूणथ देश के तिए एक ऄप्रत्यक्ष कर है। आसमें ऄसय सभी प्रकार के ऄप्रत्यक्ष करों को
सममतित द्रकया गया है तथा आसे समान रूप से पूरे देश में िागू द्रकया जायेगा। ऄतः आससे भारत
‘एक राष्ट्र, एक कर, एक समान बाजार’ वािा देश बन जाएगा।

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GST में सतममतित होने वािे के सद्रीय तथा राज्य कर तनम्नतितखत है:-
कें द्रीय कर राज्य कर
 कें द्रीय ईत्पाद शुल्क  राज्य वैट
 ईत्पाद शुल्क (तचद्रकत्सा और शौचािय संबंधी  के सद्रीय तबक्री कर
सामतग्रयां)।
 ऄततररक्त ईत्पाद शुल्क (तवशेष महत्व की  क्रय कर
वस्तुएं और कपडा तथा कपडा ईत्पाद)
 ऄततररक्त सीमा शुल्क  तविातसता कर
 तवशेष ऄततररक्त सीमा शुल्क  प्रवेश कर (सभी प्रकार के )
 सेवा कर  मनोरं जन कर (स्थानीय तनकायों द्वारा
िगाए गए करों से ऄततररक्त) ।
 माि या सेवा की अपूर्डत तवषयक ईपकर और  तवज्ञापन कर
ऄतधभार
 िाटरी, सट्टा और जुअ कर
 राज्य ईपकर और ऄतधभार
GST प्रशासन
 भारत की संघीय सरं चना को ध्यान में रखते हुए, GST के दो घटक हैं: के सद्रीय GST (Central
GST) और राज्य GST (State GST)।
 कें द्र और राज्य, दोनों द्वारा समस्त मूल्य श्रृंखिा पर GST का अरोपण। वस्तुओं एवं सेवाओं की
सभी प्रकार की अपूर्डत पर करारोपण।
 कें द्र, के सद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (CGST) ऄतधरोतपत एवं संग्रतहत करे गा। वहीं राज्य, राज्य के
भीतर होने वािे सभी िेन-देन पर राज्य वस्तु एवं सेवा कर (SGST) ऄतधरोतपत एवं संग्रतहत
करे गा।
 CGST की अगत कर जमा, प्रत्येक चरण के अईटपुट पर CGST देयता की ऄदायगी के तिए
ईपिब्ध होगी। ईसी प्रकार, SGST की अगत कर जमा, SGST के अईटपुट पर ऄदायगी के
तिए ईपिब्ध रहेगी।
 जमा (क्रेतिंट) के दोहरे ईपयोग की ऄनुमतत नहीं होगी।
आसके साथ ही, ऄसतराथज्यीय िेन-देन की तस्थतत में संतवधान के ऄनुच्छेद 269A(1) के तहत वस्तुओं
एवं सेवाओं के संबंध में कें द्र सभी वस्तुओं एवं सेवाओं की ऄसतराथज्यीय अपूर्डत पर ऄसतराथज्यीय वस्तु
एवं सेवा कर (ISGST) ऄतधरोतपत तथा संग्रतहत करे गा।
GST पररषद
संतवधान के ऄनुच्छेद 279A के ऄनुसार GST पररषद, कें द्र एवं राज्यों का एक संयुक्त मंच है। आस
पररषद में तनम्नतितखत सदस्य होंगे:
o के सद्रीय तवत्त मंर अी (ऄध्यक्ष)
o के सद्रीय राज्य मंर अी, राजस्व-तवत्त के प्रभारी
o प्रत्येक राज्य का तवत्त / कराधान ऄथवा राज्य सरकार द्वारा नातमत कोइ ऄसय मंर अी।
 ऄनुच्छेद 279A (4) के ऄनुसार यह पररषद, GST से समबतसधत सभी महत्वपवपूणथ मुद्दों पर कें द्र
तथा राज्य सरकारों के समक्ष ऄनुशंसाएाँ प्रस्तुत करे गी। GST से समबतसधत आन महत्वपवपूणथ मुद्दों में
GST के तहत अने वािी ऄथवा GST छू ट-प्राि वस्तुएं एवं सेवाएं, मॉिंि GST कानून, अपूर्डत
के स्थान को शातसत करते वािे तसिांत, ऄतधकतम सीमा, फ्िोर रे ट और बैंिं सतहत GST दरें ,
प्राकृ ततक संकट/अपदाओं के दौरान ऄततररक्त संसाधनों के ईगाहने हेतु तवशेष दरें एवं कु छ राज्यों
के तिए तवशेष प्रावधान अद्रद सतममतित है।

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GST के कायाथसवयन के तिए IT ऄवसरं चना
 वस्तु एवं सेवा कर नेटवकथ (GSTN): देश में GST के कायाथसवयन के तिए कें द्र तथा राज्य
सरकारों ने संयुक्त रूप से GSTN को एक गैर-िाभकारी, गैर-सरकारी कमपनी के रूप में पंजीकृ त
द्रकया है ताद्रक कें द्र एवं राज्य सरकारों तथा करदाताओं समेत ऄसय तहतधारकों को साझा IT
ऄवसंरचना और सेवाएं प्रदान की जा सकें । GSTN की ज्ञात ऄतधकृ त पूंजी 10 करोड रूपये
(US.$.1.6 तमतियन) है। आस पूंजी में कें द्र एवं राज्य सरकारों की समान रूप से 24.5-24.5
प्रततशत की तहस्सेदारी है जबद्रक शेष तनजी बैंक कमपतनयों की तहस्सेदारी है।
 GSTN के प्रमुख ईद्देश्यों में कर दाताओं को एक मानक और यूतनणॉमथ आं टरफे स प्रदान करना तथा
कें द्र व राज्य/UT सरकारों को साझी ऄवसंरचना एवं सेवाएं प्रदान करना है। GSTN में सामासय
GST पोटथि सतहत ऄत्याधुतनक और व्यापक IT ऄवसरं चना को तवकतसत करने हेतु कायथ कर रहा
है, सभी करदाताओं का पंजीकरण, ररटनथ और भुगतान की प्रमुख सेवाएं एवं कु छ राज्यों का बैक-
आं िं IT मॉड्यूि भी सतममतित हैं, तजनमें ररटनथ की प्रद्रक्रया, पंजीकरण, िेखा परीक्षा, मूल्यांकन
तथा ऄपीि अद्रद सतममतित हैं।
 सक्षम पररयोजना: यह के सद्रीय ईत्पाद एवं सीमा शुल्क बोिंथ (CBEC) का एक नया ऄप्रत्यक्ष कर
नेटवकथ (प्रणािी एकीकरण) है। यह GSTN के साथ CBEC की IT प्रणािी को एकीकृ त करके
वस्तु एवं सेवा कर(GST) के कायाथसवयन में सहायता करे गा। यह व्यापार को सुगम बनाने के तिए
भारतीय सीमा शुल्क की डसगि डविंो आं टरणे स फॉर फतसिटैटटग ट्रेिं (SWIFT) के तवस्तार में भी
सहायता करे गा।
 सभी राज्य, िेखा प्रातधकारी संस्थान, RBI और बैंक भी GST के प्रशासन के तिए ईनकी IT
ऄवसरं चना तवकतसत कर रहे हैं।
 तववरतणयों (ररटनथ) को हस्ततितखत रूप से दातखि नहीं द्रकया जायेगा। सभी प्रकार के करों के
भुगतान का माध्यम ऑनिाआन होगा। र अुरटपूणथ तववरतणयां स्वतः हाइिाआट हो जायेगीं। ऄतः
आसमें मानवीय हस्तक्षेप की अवश्यकता नहीं होगी। ऄतधकांश तववरतणयों का स्वतः-मूल्यांकन हो
जायेगा।
GST के िाभ
1. सहयोग परक संघवाद को बढावा देना।  घरे िू ऄप्रत्यक्ष कर संबंधी िगभग सभी तनणथय
के सद्र और राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से
तिए जाएंगे
2. भ्रिाचार और हेराफे री में कमी िाना  स्व-नीतत तनधाथरण: अवक कर क्रेतिंट का
दावा करने के तिए बीजक के तमिान से
ऄननुपािन रूके गा और ऄनुपािन को बढावा
तमिेगा। पहिे बीजक तमिान के वि ऄंतरा-
राज्य वैट िेन-े देन के तिए ही तवद्यमान था
यह न तो सेवा कर ईत्पाद शुल्क या सेवा कर
के तिए ही तवद्यमान था न अयात के तिए
ही।
3. जरटि कर संरचना को सरि बनाना और  8-11 कें द्रीय ईत्पाद शुल्क दरें और सभी राज्यों
देशभर में कर दरों में एकरूपता िाना
पर तभन्न रूप से िागू होने वािी 3-5 राज्य
वैट दरें जीएसटी को 6 दरों में तवितयत की
गइ; सभी राज्यों पर एक समान रूप से िागू
की गईं (एक वस्तु पर एक भारतीय कर)।
 राज्यों और के सद्र के ऄसय कर और ईपकर
जीएसटी में तमिा द्रदए गए।

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4. एक समान बाजार बनाना  जीएसटी से राज्यों के बीच व्यापार पर िगे
हुए ऄतधकांश भौततक प्रततबंध और कर समाि
कर द्रदए जाएंगे।
5. अयात के नाम से होने वािे पक्षपात  अयातों पर िगाए गए घरे िू कर
तमटाकर 'मेक आन और आं तिंया' को बढावा (अइजीएसटी, पहिे प्रततकारी शुल्क तवशेष
देना ("नकारात्मक संरक्षण") ऄततररक्त शुल्क की रातश) को ऄतधक प्रभावी
और कम हेरा-फे री वािा बनाएगा, तजससे
घरे िू वस्तुएं और ऄतधक प्रततस्पधगीक होंगी।
6. तवतनमाथण के तवरुि कर पक्षपात  अपूर्डत श्रृंखिा में कतमयों को िीक करके और
तमटाना/ईपभोक्ता कर बोझ में कमी िाना ईत्पाद कर जमाओं के प्रवाह में सुगमता िाकर
जीएसटी, कास्के डिंग व्यवस्था ( मूल्य संवधथन
प्रत्येक स्तर पर कर और सभी पूवथ स्तरों पर कर
यथा के सद्रीय तबक्री कर सतहत) पयाथि रूप से
समाि होगी।
7. राजस्व, तनवेश, और मध्यकातिक अर्डथक  तनवेश बढेगा, क्योंद्रक पूज
ं ी पदाथों को
संवृति की गतत में तेजी िाना खरीदारी पर अदान कर क्रेतिंट का दायरा
बढेगा
 बेहतर ऄनुपािन से कर अधार का तवस्तार
होगा।
 तनयाथत में सतन्नतहत कर समाि हो जाएंगे।

GST के िाभों का सारांश तनम्नानुसार द्रकया जा सकता है :


व्यवसाय एवं ईद्योग के तिए
 सरि ऄनुपािन: एक सुदढृ और व्यापक IT प्रणािी के ऄंतगथत पंजीकरण, तववरणी (ररटनथ),
भुगतान अद्रद जैसी सभी करदाता सेवाएं, करदाताओं को ऑनिाआन ईपिब्ध होंगी, जो आसके
ऄनुपािन को सरि और पारदशगीक बनायेंगी।
 कर की दरों एवं सरं चनाओं में एकरूपता: GST यह सुतनतित करे गी द्रक पूरे देश में ऄप्रत्यक्ष कर
की दरें एक समान हों ताद्रक व्यापार करने में सुतनतितता और सुगमता अ सके । दूसरे शब्दों में
GST के प्रभाव स्वरूप व्यवसाय करने के तिए द्रकसी भी स्थान का चयन करने के बावजूद भी में
कर की दरों में तटस्थता रहेगी।
 प्रपाती प्रभाव की समाति: मूल्य श्रृंखिा और राज्यों की सीमाओं में तनबाथध कर जमा की प्रणािी
यह सुतनतित करे गी द्रक करों का सयूनतम प्रपाती प्रभाव पडे। आससे व्यवसाय करने की तछपी
िागत कम हो जाएगी।
 बेहतर प्रततस्पधाथ: GST में प्रमुख के सद्रीय और राज्य करों का सतममतित करने, अगत वस्तुओं और
सेवाओं का पूणथ एवं व्यापक मुअवज़े तथा के सद्रीय तबक्री कर (CST) की समाति से स्थानीय रूप से
तनर्डमत वस्तुओं एवं सेवाओं की िागत कम हो जाएगी। आससे भारतीय वस्तु एवं सेवा ईद्योग की
प्रततस्पधाथत्मकता में वृति होगी।
 तनमाथताओं और तनयाथतकों के तिए िाभकारी: ऄंतराथष्ट्रीय बाजार में भारतीय ईद्योगों की
प्रततस्पधाथत्मकता में वृति से भारतीय तनयाथत को बढावा तमिेगा। ऐसा ऄनुमान है द्रक GST के
िागू होने से GDP में 1.5 से 2% तक की वृति होगी।
के सद्र और राज्य सरकारों के तिए
 सरि एवं प्रशातसत करने में सुगमता: कें द्र और राज्य स्तरों पर कइ ऄप्रत्यक्ष करों को GST द्वारा
प्रततस्थातपत द्रकया जा रहा है। कें द्र और राज्यों द्वारा ऄभी तक िगाये गये सभी ऄप्रत्यक्ष करों की
तुिना में पूणत
थ या सुदढृ IT प्रणािी द्वारा समर्डथत GST को प्रशातसत करना सरि एवं सुगम
होगा।

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 ररसाव पर बेहतर तनयंर अण: एक सुदढृ IT ऄवसंरचना के कारण GST से बेहतर कर ऄनुपािन
पररणाम प्राि होंगे। मूल्य वधथन की श्रृंखिा में एक चरण से दुसरे चरण में अगत कर जमा के सहज
हस्तांतरण के कारण GST, एक ऄंतर्डनतहत प्रणािी है जोद्रक व्यापाररयों को आसके ऄनुपािन के
तिए प्रोत्सातहत करे गा।
 ऄपेक्षाकृ त ईच्च राजस्व दक्षता: GST से सरकार की कर-राजस्व संग्रह की िागत में कमी अएगी
पररणामस्वरूप राजस्व दक्षता ऄपेक्षाकृ त ईच्च प्राि होगी।
 वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य वधथन पर अरोतपत कर की स्व-तनगरानी सुतवधा से कर-चोरी में कमी
अएगी। कें द्र और राज्यों के दोहरे प्रशासतनक तनयसर अण से कर-चोरी सयूनतम हो जाएगी।
ईपभोक्ताओं के तिए
 वस्तु एवं सेवाओं के मूल्य के ऄनुपात में एकि एवं पारदशगीक कर: कें द्र और राज्य द्वारा अरोतपत कइ
ऄप्रत्यक्ष करों के कारण तथा साथ ही मूल्य वधथन के प्रगततशीि चरणों में ऄपूणथ या अगत कर जमा
ईपिब्ध न होने से देश में ईत्पाद्रदत वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्यों में कइ प्रकार के कर सतममतित
होते हैं। GST के ऄंतगथत तनमाथता से िेकर ईपभोक्ता तक के वि एक ही कर होगा, तजससे ऄंततम
ईपभोक्ता तक भुगतान द्रकये गये करों में पारदर्डशता होगी।
 समग्र करों के बोझ से राहत: दक्षता िाभ और ररसावों की रोकथाम के कारण, ऄतधकांश वस्तुओं
पर समग्र कर कम हो जायेगा। तजससे ईपभोक्ता वगथ िाभातसवत होगा।
GST के समक्ष चुनौततयााँ:
 तिंतजटि ऄवसरं चना: समपूणथ भारत में आिेक्ट्रॉतनक हस्तांतरण और यथातचत भुगतान की सुतवधा
हेतु अवश्यक तिंतजटि कनेतक्टतवटी के तिए बैंिंतवड्थ की ईपिब्धता।
 िंाटा की गोपनीयता: GSTN के 51% पर तनजी क्षेर अ का तनयंर अण है। आस प्रकार भारत के व्यपार
और तवत्त से संबंतधत िंेटा का तनयंर अण तनजी कं पनी के हाथों में होगा। ऄतः तबना पयाथि िंाटा
सुरक्षा ईपायों के भारत की तवत्तीय सुरक्षा प्रभातवत हो सकती है।
 संसदीय और तवधायी स्वायतता का मुद्दा: GST पररषद (एक कायथकारी तनकाय) ईपतस्थत और
मतदान करने वािों के कम से कम (कु ि मतदान का प्रभाव, कें द्र सरकार 33% और राज्यों में
66%) तीन चौथाइ मतों से ही द्रकसी प्रावधान को पाररत करे गी ।
 संघवाद: राज्य ‘करारोपण की स्वायत्तता’ जैसी ऄपनी सबसे ऄतधक महत्वपवपूणथ शतक्त को छोड रहे
हैं। राज्य ऄब व्यतक्तगत रूप से ऄपने करों में बदिाव करने में सक्षम नहीं होंगे। क्योंद्रक, वतथमान
व्यवस्था (तजसमे कें द्र और राज्य दोनों के पास ऄनुच्छेद 246(A) के ऄंतगथत कानून बनाने की शतक्त
है) के तवपरीत ऄब कें द्र और राज्यों को तमि कर कायथ करना होगा जो स्वयं आस क्षेर अ में एक
चुनौती है।
 स्थानीय शहरी तनकायों को एक भारी राजकोषीय ऄंतराि से तनपटना होगा क्योंद्रक GST
व्यवस्था के ऄंतगथत स्थानीय कर, चुंगी और ऄसय प्रवेश कर समाि हो जायेंगे।
 ऄपवजथन और तभन्न दरों की सूची –पेट्रोतियम ईत्पादों, िंीजि, पेट्रोि, तवमान टरबाआन आं धन,
मद्रदरा अद्रद को GST से बाहर रखे जाने तथा चार GST की चार दरें एक देश, एक कर के
तसिांत का ईल्िंघन करती हैं।
 बढे हुए करों के कारण दबाव – वतथमान के 1.5 करोड रूपये के तवपरीत 10 िाख रूपये से कम का
व्यवसाय करने वािी छोटी कमपतनयों को भी GST का भुगतान करना होगा। यहााँ तक द्रक
ऄसंगरित क्षेर अ, जो सबसे ऄतधक रोजगार ईपिब्ध कराता है, ईसकी प्रततस्पधाथत्मक बढत घट
सकती है। ईसहें िाभदायक बने रहने के तिए मूल्य बढाने पड सकते हैं।
 ईपभोक्ताओं के तिए –कम करों के कारण घटी हुइ कीमतों का िाभ ईन तक नहीं पहुंच पायेगा।
आसके ऄततररक्त, कु छ िोग GST को एक प्रततगामी कर व्यवस्था के रूप में देख रहे हैं, क्योंद्रक यह
सभी ईत्पादों के करों को िगभग बराबर ही कर देगा तजसका ऄथथ होगा द्रक धतनक तविातसता के
समान और सेवाओं पर कम कर देंगे और तनधथन मूिभूत वस्तुओं और सेवाओं के तिए ऄतधक कर
ऄदा करें गे ।

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चुनौततयों का सामना करने के तिए ईिाये गये कदम:

 छोटे व्यवसायों के तिए छू टः पूवोत्तर और पवथतीय राज्यों में वार्डषक रूप से 10 िाख रूपये से कम

व्यवसाय करने वािे व्यवसायी GST से बाहर रहेंगे वहीं शेष भारत में आस छू ट की सीमा वार्डषक

20 िाख रूपये होगी।

 मुनाफाखोरी तवरोधी कानूनः धारा 171 के ऄनुसार – यद्रद व्यापारी अद्रद आनपुट कर का क्रेतिंट िे
रहे हैं तो ईसहें यह िाभ ईपभोक्ता को देना होगा।
 GST पंजीकरण संख्याः िोगों को ऄभ्यस्त बनाने के तिए प्रोतवजनि अइ िंी और 90 द्रदन का
समय प्रदान द्रकया गया है।
 ऄतनवायथ पंजीकरण: ऄब करों से बचा नहीं जा सकता क्योंद्रक यद्रद कोइ व्यतक्त व्यापार करना
चाहता है तो ईसे GST व्यवस्था में अना ही पडेगा। ‘E-way bill’ व्यवस्था के ऄंतगथत 10 द्रकमी

से ऄतधक दूरी तथा 50,000 रूपये से ऄतधक िागत वािी वस्तुओं की अवजाही होगी, वहां
ऑनिाआन पंजीकरण अवश्यक है।
 संचार और जागरूकता कायथक्रमः आसके तिए सरकारी कायाथियों में सुतवधा कें द्र और ऄनेक
मागथदशथक कायथक्रम प्रारमभ द्रकये गये हैं।
 GST सुतवधा प्रदाता ( GST suvidha providers - GSP) –GSTN ने GST व्यवस्था के
ऄनुपािन हेतु करदाताओं और ऄसय तहतधारकों के तिए नवीन और सुतवधाजनक तरीके प्रदान
करने के तिए 34 GSPs का चयन द्रकया है। यह GST के ऄंतगथत कर प्रशासन की प्रद्रक्रया को
सुगम बनाने में सहायता करें गे।
अगे की राह
 GST िागू होने से भारतीय ऄथथव्यवस्था को कइ िाभ प्राि होंगे। सरकार को िंेटा गोपनीयता

जैसे ऄवरोधों को दूर करने का प्रयास करना चातहए और दीघाथवतध में GST से बाहर रखे गए
ईत्पादों की सूची को भी सीतमत करना चातहए।
 प्रगततशीि और कदम-दर-कदम पररवतथन, एकातधक कर दरों के कारण भिे ही GST एक सरि
व्यवस्था ना हो तथा ईतचत प्रशासतनक ऄनुपािन और तवकृ त िागत आसके िाभों को समाि कर
दे। द्रफर भी वतथमान व्यवस्था पहिी व्यवस्था से बेहतर है। वतथमान व्यवस्था के दोषों को
शीघ्राततशीघ्र दूर द्रकया जाना चातहए।
 राजस्व हातन के िंर से करों की दर कम रखने के जोतखम से बचने का प्रयास द्रकया है । जब तक
ऄथथव्यवस्था में तीर क बदिाव न अए तब तक आस रुख में जल्दी पररवतथन होने की समभावना नहीं
है। आसतिए GST पररषद को दरों की समीक्षा के तिए तजतनी बार समभव हो आस बारे में तवमशथ
करते रहना चातहए ताद्रक देश को तवकतसत देशों के समकक्ष खडा द्रकया जा सके ।
 प्राथतमकता पर, सरकार द्वारा छोटे कम समपन्न तहतधारकों, जैसे िघु ईद्योग और खुदरा तवक्रेताओं
की क्षमता तनमाथण करने की अवश्यकता है।
यद्यतप, ऄल्पावतध में कु छ चुनौततयााँ हो सकती है, परसतु दीघाथवतध में प्राि िाभ ईन सब की भरपाइ
कर देंगे । बढे हुए कर ऄनुपािन से सरकार को ऄतधक राजस्व की प्राति तथा देश का तवकास हो सकता
है। ररयि टाआम िंेटा की ईपिब्धता से वांतछत पररणामों को प्राि करने के तिए सरकारी नीततयों को
बेहतर बनाया जा सकता है।

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10. तवतवध
10.1. कर अतं क वाद

द्रकसी भी कराधान प्रणािी में सरकार का प्रयास राजस्व संग्रह को ऄतधकतम करना होता है, जबद्रक
करदाता, कर की तनम्न दरें एवं असानी से ऄनुपािन द्रकए जा सकने वािे तनयम चाहते हैं। हािााँद्रक,
जब सरकार करदाता से ऄतधक कर संग्रह करने के तिए इमानदार करदाताओं पर ऄवैध एवं ऄततररक्त
कानूनी दबाव िंािती है, तो सरकार के आस व्यवहार को कर अतंकवाद (Tax Terrorism) कहा जाता
है।
टैक्स टेरररज्म का मूि कारण कें द्रीय बजट में राजस्व संग्रह के ऄवास्ततवक िक्ष्यों को तनधाथररत द्रकया
जाना है। जरटि और तवतवध कर कानूनों ने कराधान प्रणािी में ऄनेक तवसंगततयों को बढावा द्रदया है।
बेस आरोजन एंिं प्रॉद्रफट तशडफ्टग जैसी प्रणातियों के कारण हुए कर वंचन से सरकार को राजस्व हातन
हुइ है तथा आसी कारण टैक्स टेरररज्म व्यवस्था को बढावा तमिा है।
कर अतंकवाद के ईदाहरण :
 अम जनता पर कर कानून को किोर तरीके से िागू करना तथा कर संबंधी प्रत्येक िेन -देन को
संद्रदग्ध समझना।
 अयकर ऄतधतनयम, 1961 में पूवथप्रभावी रीतत से संशोधन, देश में व्यापाररक अत्मतवश्वास को
प्रभातवत कर रहा है।
 टैक्स आं स्पेक्टरों पर सयूनतम टैक्स की वसूिी का िक्ष्य ऄतधरोतपत करना।
 राजस्व के िक्ष्य को साकार करने के नाम पर धन-वापसी से आनकार या प्रततकू ि सयायतनणथयन
अदेश का सहारा िेना।
 जनरि एंटी ऄवाआिंेसस रूि (GAAR)

10.2. कर चोरी एवं कर-पररहार

कर भुगतान न करने का ऄवैध तरीका कर चोरी कहिाता है। अय का सही ब्यौरा न देना, तजन खचों
की कानूनी ऄनुमतत न हो, ईन खचों को भी ब्यौंरे में सतममतित करना ऄथवा करों का भुगतान न
करना, कर चोरी है। यद्रद कोइ जानबूझकर अय का ब्यौरा देने में तवफि रहता है, तो आसे कर चोरी
माना जाता है।
सरकार द्वारा ऄनुमोद्रदत तरीकों का ईपयोग करके , कर से बचाव या वैध तरीके से कर को सयूनतम
करना कर-पररहार कहिाता है। व्यवसायी या व्यापारी, सभी वैध कटौती ऄपनाकर और बेहतर कर
तनयोजन की सहायता से अय कर के भुगतान से बचते हैं। आसमें कर के बोझ को कम करने के तिए, कर
कानूनों में तवद्यमान कतमयों का ईपयोग करना भी सतममतित है। कर चोरी के तवपरीत, कर-पररहार
एक कानूनी तरीका है। हािााँद्रक, यह ऄनुतचत है क्योंद्रक करदाता, कानून तनमाथताओं के ईद्देश्य के
तवपरीत स्वयं के तहतों से तनदेतशत होकर आनका ईपयोग करते हैं।

10.3. टै क्स हे व सस

टैक्स हेवसस एक ऐसा देश, जो तवदेशी व्यतक्तयों एवं व्यवसायों को सयूनतम ऄथवा शूसय कर की दर
तथा राजनीततक और अर्डथक रूप से तस्थर पररवेश प्रदान करता है। आसके साथ, तवदेशी कर
ऄतधकाररयों के साथ बहुत कम तवत्तीय जानकारी साझा करता है ऄथवा साझा नहीं करता है। ऐसे देशों
की सूची में मुख्यतः एंिंोरा, के मैन द्वीप, तब्ररटश वर्डजन अआिैंिं अद्रद जैसे राष्ट्र सतममतित हैं।
िोगों को टैक्स हैवसस का िाभ ईिाने के तिए ईक्त देश में रहने या ईस देश से व्यवसाय सं चातित करने
की अवश्यकता नहीं होती है। व्यावसातयक संचािन में वैश्वीकरण के कारण, तनगम करों को कम करने
के तिए कइ बहुराष्ट्रीय कं पतनयां, तवदेशी टैक्स हेवसस देशों में नकदी जमा करती हैं।

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भारतीय ऄथथव्यवस्था
5. बजट

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ववषय सूची
1. बजटटग: ऄथथ और महत्व ________________________________________________________________________ 4

2. भारतीय संघ का बजट _________________________________________________________________________ 5

2.1. संस्थाएँ एवं कानून _________________________________________________________________________ 5

2.2. सरकारी बजट के घटक ______________________________________________________________________ 8


2.2.1. राजस्व खाता_________________________________________________________________________ 8
2.2.2. पूंजीगत खाता _______________________________________________________________________ 10
2.2.3. 2018-19 के कें द्रीय बजट द्वारा ददए गए अंकडे ________________________________________________ 11

2.3. बजट प्रदिया के वववभन्न चरण ________________________________________________________________ 12


2.3.1. बजट की प्रस्तुवत _____________________________________________________________________ 12
2.3.2. बजट पर अम चचाथ ___________________________________________________________________ 12
2.3.3. ववभागीय सवमवतयों द्वारा मूलयांकन ________________________________________________________ 12
2.3.4. ऄनुदान की मांग _____________________________________________________________________ 13
2.3.5. वववनयोग ववधेयक ____________________________________________________________________ 15
2.3.6. ववत्त ववधेयक ________________________________________________________________________ 16

3. भारतीय बजट प्रणाली और कायाथन्वयन में कवमयां _____________________________________________________ 16

4. बजट सुधार ________________________________________________________________________________ 16

4.1. मध्यम ऄववध की बजट संरचना (Medium Term Budget Frameworks)_______________________________ 16

4.2. वववेकपूणथ अर्थथक ऄनुमान (Prudent Economic Assumptions) ____________________________________ 17

4.3. टॉप-डाईन बजटटग तकनीकें (Top-Down Budgeting Techniques) __________________________________ 17

4.4. के न्द्रीय वनवववियों के वनयंत्रण को विवथल बनाना (Relaxing Central Input Controls)______________________ 17

4.5. पररणामों पर ऄवधक फोकस (An Increased Focus on Results) ____________________________________ 18

4.6. बजट पारदर्थिता (Budget Transparency) ____________________________________________________ 18

4.7. अधुवनक ववत्तीय प्रबंधन व्यवहार (Modern Financial Management Practices) ________________________ 19

4.8. बजटीय ऄनुिासन (Budgetary Discipline) ____________________________________________________ 19

5. के न्द्रीय बजटटग में हाल ही में दकये गये पररवतथन ______________________________________________________ 20

5.1. कें द्र प्रायोवजत योजनाओं (CSS) तथा आन योजनाओं पर होने वाले व्यय की तकथ संगत व्याख्या _____________________ 20

5.2. योजनागत तथा गैर-योजनागत वगीकरण को समाप्त करना ____________________________________________ 21

5.3. रे ल बजट का सामान्य बजट में ववलय (Merging of Railway and General Budget) ______________________ 22

5.4. बजट की समय-पूवथ प्रस्तुवत (Budget Advancement) _____________________________________________ 23

6. बजटटग का ववकास (Evolution of Budgeting) _____________________________________________________ 24

6.1. लाआन अआटम बजट (The Line Item Budget) __________________________________________________ 24

6.2. वनष्पादन बजट (Performance Budget) ______________________________________________________ 24


6.3. अईटकम बजट (Outcome budgeting) _______________________________________________________ 25

6.4. िून्य-अधाररत बजटटग (Zero-based Budgeting: ZBB) __________________________________________ 25

6.5. जेंडर बजटटग (Gender Budgeting) _________________________________________________________ 25

6.6. इ-बजटटग (E-Budgeting) _________________________________________________________________ 26


1. बजटटग: ऄथथ और महत्व
 बजट, प्रत्येक ववत्तीय वषथ के वलए सरकार की ऄनुमावनत अय और व्यय का वववरण है। यह

संसाधनों की ईपलब्धता का ऄनुमान लगाने तथा तत्पश्चात् ईन्हें पूवथ वनधाथररत प्राथवमकता के
ऄनुसार दकसी संगठन की वववभन्न गवतवववधयों के वलए अवंरटत करने की प्रदिया है। आसके साथ
ही यह जनता की अवश्यकताओं और ई्ेश्यों के साथ दुलथभ संसाधनों को संतुवलत करने का प्रयास
भी है।
 दकन्तु बजट के वल देि का अर्थथक लेखा-जोखा ही नहीं है। बजट, धन की प्रावप्त और ईसके व्यय का

ही वववरण नहीं बवलक आससे कही ऄवधक व्यापक ऄवधारणा है। बजट वरीयताओं, नीवतयों और

वसद्ांतों का भी प्रवतवनवधत्व करता है। यह प्रवतस्पधी प्राथवमकताओं में संसाधनों का अवंटन है


तथा आन प्राथवमकताओं में वनष्पक्षता या सामावजक न्याय के मु्े भी सवममवलत हैं। बजट दकसी
देि द्वारा ईसके ई्ेश्यों की प्रावप्त हेतु चुने गए ददिा एवं मागथ को आं वगत करता है।
ऄपनी ववत्तीय भूवमका के ऄवतररक्त, बजट द्वारा या बजट के माध्यम से दकए जाने वाले ऄन्य कायथ

वनम्नवलवखत हैं:
 बजट वनयंत्रण के साधन के रूप में कायथ करता है। बजट वववभन्न ववभागों की प्रगवत का मूलयांकन
करने के वलए मापदंड के रूप में कायथ करता है। यदद कोइ ववभाग ऄपने बजटीय प्रस्तावों के संबंध
में लक्ष्य से दूर है तो ईसे सूवचत दकया जा सकता है एवं सुधारात्मक कारथ वाइ की जा सकती है।
 बजटेरी प्रदिया में सरकार के सभी ववभाग सवममवलत होते हैं। वववभन्न ववभागों के बीच होने वाले
संघषथ का समाधान दकया जाना अवश्यक है। आस प्रकार बजटीय योजना और आसका कायाथन्वयन,

वववभन्न ववभागों को एक साथ लाने तथा ईनके बीच समन्वय स्थावपत करने में सहायता करता है।
 ऄपेक्षा के ऄनुरूप प्रदिथन न करने वाले ववभागों का अवंटन कम करके दंडात्मक कारथ वाइ के साधन
के रूप में भी बजट का ईपयोग दकया जा सकता है। आसवलए, बजट वववभन्न ववभागों के कामकाज

में दक्षता बनाए रखने में भी सहायक होता है।


 बजट एक प्रिासक द्वारा आवछित पररवतथन करने और आस पररवतथन को संस्थागत बनाने में भी
सहायक हो सकता है। ईदाहरण के वलए, यदद सरकार ऄपने कमथचाररयों की ईत्पादकता में सुधार

लाना चाहती है तो वह बजट के माध्यम से कायथ वनष्पादन से संबवं धत बोनस जैसे प्रोत्साहन लागू
कर सकती है।
 बजट, संसाधनों के पुनर्थवतरण हेतु भी मंच ईपलब्ध कराता है। यह पुनर्थवतरण समृद् से वनधथन की

ओर या वववभन्न क्षेत्रों के मध्य, वववभन्न पीद़ियों के मध्य, श्रवमकों और गैर-श्रवमकों के मध्य हो

सकता है।
 यह धन की सावथजवनक जवाबदेही के ई्ेश्य की पूर्थत करता है।
संक्षेप में, यह संसाधनों को जुटाने की मांग करने वाली वनरं तर ब़िती सरकारी गवतवववधयों हेतु एक

वनयोवजत पद्वत है। वपिले कु ि वषों के दौरान सरकारी कायों के संबंध में जनता की पररवर्थतत होती
राय के ऄनुदिया स्वरूप बजेटरी प्रदिया में होने वाले पररवतथनों से िासन के वलए बजट की महत्ता को
भली-भांवत समझा जा सकता है।
व्यापाररक और सरकारी बजट में ऄत्यवधक ऄंतर होता हैं। दोनों के मध्य ऄंतर को वनम्न रूप में
सारणीबद् दकया गया है:

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सरकारी बजट व्यापाररक बजट
यह लगभग सभी सरकारी संस्थाओं के वलए कानूनी रूप में यह कानूनी रूप में बाध्यकारी
बाध्यकारी है। नहीं है।
वववनयोवजत रावि आसकी सीमा होती है और दकसी भी यह बजट आछिानुसार हो सकता
पररवतथन के वलए औपचाररक ऄनुमोदन की अवश्यकता है और आस बजट को बीच में भी
होती है तथा दी गइ व्यवस्था के ऄंतगथत आसे प्राप्त करना िोडा जा सकता है।
करठन होता है।
आसका ई्ेश्य कलयाणकारी होता है। यह प्राय: लाभोन्मुख होता है।

2. भारतीय सं घ का बजट
भारतीय संववधान का ऄनुछिेद 112 बजट को 'वार्थषक ववत्तीय वववरण' के रूप में संदर्थभत करता है।
बजट िब्द का प्रयोग संववधान में कहीं नहीं दकया गया है। संघीय बजट के दो ई्ेश्य हैं:
 संघ सरकार की गवतवववधयों का ववत्तपोषण करना।
 रोजगार, संधारणीय अर्थथक ववकास और कीमतों के स्तर में वस्थरता जैसे समविगत अर्थथक
ई्ेश्यों को प्राप्त करना, जो राजकोषीय नीवत का एक भाग है।

2.1. सं स्थाएँ एवं कानू न

 ववववध ईत्तरदावयत्वों को पूरा करने हेतु ऄपने सीवमत संसाधन, ववत्तीय वनयोजन और
'प्रवतवनवधत्व के वबना कर नहीं' जैसे लोकतांवत्रक वसद्ांतों को ध्यान में रखते हुए, सरकार को
प्रवतवषथ संसद के समक्ष ववत्तीय वववरण प्रस्तुत करना होता है। सरकार ऄपनी आछिानुसार कर
अरोवपत करने, ऋण लेने और धन व्यय करने के वलए स्वतंत्र नहीं होती है। व्यय की प्रत्येक मद
सुववचाररत होती है एवं एक ववविि ऄववध के वलए कु ल पररव्यय वनकाला जाता है। आसके
ऄवतररक्त, आन सभी ववत्तीय प्रस्तावों के पीिे स्पि रूप से ऄपने चुने हुए प्रवतवनवधयों के माध्यम
से अम-जन की स्वीकृ वत होनी चावहए।
 आसवलए प्रवतवषथ भारत सरकार का बजट संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत दकया जाता है। बजट में
सरकार का ववत्तीय वववरण सवममवलत होता है। आस ववत्तीय वववरण में एक ववत्तीय वषथ की
ऄनुमावनत प्रावप्तयां और व्यय होते हैं। वतथमान व्यवस्था के ऄंतगथत प्रवत वषथ 1 ऄप्रैल से नया
ववत्तीय वषथ अरं भ होता है। दूसरे िब्दों में, बजट अने वाले वषथ के दौरान दकस मद में दकतना धन
व्यय करना है, दकसके द्वारा आसमें दकतना योगदान ददया जाएगा और धन कहां से एकवत्रत दकया
जाएगा, प्रस्ताव में आन सभी बातों का वववरण होता है।
 बजट, अगामी वषथ का ऄनुमान प्रस्तुत करता है और संसद को आस पर चचाथ करने तथा ईसकी
अलोचना करने में सक्षम बनाता है। साथ ही, सरकार को ईसकी ववत्तीय एवं अर्थथक नीवत,
कायथिमों की समीक्षा और व्याख्या करने का ऄवसर भी प्रदान करता है। आसका महत्व के वल ववत्त
तक ही सीवमत नहीं है क्योंदक बजट, सरकार के ववचारों को भी प्रवतबबवबत करता है एवं भववष्य
की नीवतयों का संकेत देता है।
 भारत द्वारा ऄनुसरण की जाने वाली ववत्तीय प्रदिया के अवश्यक ऄवभलक्षणों का संववधान में
ईललेख दकया गया है। संववधान में ववत्तीय ववषयों में संघ स्तर पर लोकसभा और राज्य स्तर पर
ववधान सभा की सवोच्चता सुवनवश्चत की गइ है। संववधान प्रावधान करता है दक वववध के
प्रावधकार के वबना, करों का ऄवधरोपण नहीं दकया जा सकता एवं न ही ईन्हें एकवत्रत दकया जा
सकता है (ऄनुछिेद 265) तथा राष्ट्रपवत, प्रत्येक ववत्तीय वषथ के संबंध में दोनों सदनों के समक्ष
वार्थषक ववत्तीय वववरण प्रस्तुत करे गा (ऄनुछिेद 112)।

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 संववधान का ऄनुछिेद 112 (कें द्र सरकार के वलए) तथा ऄनुछिेद 202 (राज्य सरकार के वलए)
संबंवधत ववधान सभा के समक्ष वार्थषक ववत्तीय वववरण प्रस्तुत करने का प्रावधान करता है।
 1921 के पश्चात् से, संघ सरकार के बजट दो प्रकार के थे- रे लवे बजट और सामान्य बजट। 2017-

2018 के बजट में आस ववभाजन को पुन: समाप्त कर रे लवे बजट का सामान्य बजट में ववलय कर

ददया गया है। सामान्य बजट, कें द्रीय ववत्त मंत्री द्वारा प्रस्तुत दकया जाता है।
दकसी भी बजट में वनम्नवलवखत तीन प्रकार की सूचनाएं होती हैं:
 वपिले वषथ की प्रावप्तयों और व्यय के वास्तववक अंकडे
 चालू वषथ का बजट और संिोवधत अंकडे
 अगामी वषथ के वलए बजट ऄनुमान
 ईदाहरणाथथ आस वषथ ववत्त मंत्री द्वारा वषथ 2018-2019 के वलए बजट प्रस्तुत दकया गया। आस

बजट के वलए वपिला वषथ 2016-17 (वास्तववक अंकडें) है और चालू वषथ 2017-18 (संिोवधत

बजट ऄनुमान) है तथा 2018-2019 (बजट ऄनुमान) प्रस्तुत दकये गए है। जैसा की वनम्नवलवखत
तावलका से स्पि होता है:

तावलका: 1 बजट 2018-19 स्नैपिॉट

 प्रावप्तयों और संववतरण को सरकारी खातों के ऄंतगथत तीन भागों में दिाथया जाता हैः (i) संवचत

वनवध (ii) अकवस्मकता वनवध और (iii) लोक लेखा। ऄनुमावनत प्रावप्तयां, ऄवनवायथ रूप से आन्हीं
तीन वनवधयों में जमा की जाती है तथा आनमें से ही व्यय हेतु वनकाली जाती हैं।
संवचत वनवध
 ऐसी वनवध, वजसमें भारत सरकार की सभी प्रावप्तयां जमा की जाती हैं एवं सभी भुगतान वनकाले

जाते हैं, ऄथाथत,्


o भारत सरकार द्वारा प्राप्त सभी राजस्व।
o ट्रेज़री वबलस जारी करके सरकार द्वारा एकवत्रत दकये गए सभी ऋण (ऋण या ऄविमों के रूप
में)।
o भारत की संवचत वनवध से ऋणों के पुनभुथगतान से सरकार को प्राप्त समि धन।

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 भारत सरकार की ओर से वववधक रूप से ऄवधकृ त सभी भुगतान आस वनवध से दकए जाते हैं।
ईदाहरण के वलए-ऋणों का पुनभुथगतान, राज्य सरकारों को ऋण प्रदान करना अदद। संसदीय
कानून के ऄवतररक्त आस वनवध से कोइ धन वववनयोवजत (जारी या अहररत) नहीं दकया जा सकता
है। वववध द्वारा दकए गए वववनयोग के ऄधीन ही धन अहररत दकया जा सकता है। संवैधावनक
प्रावधानों के कारण, बजट में व्यय वनम्न प्रकार सवममवलत होते हैं:
o संववधान द्वारा भारत की संवचत वनवध पर भाररत एवं वनधाथररत व्यय की मदों को पूरा करने
के वलए अवश्यक रावियां।
o भारत की संवचत वनवध से दकए जाने हेतु प्रस्ताववत ऄन्य व्यय को पूरा करने के वलए अवश्यक
रावियां।
 पहली श्रेणी में वनवहत व्यय पर दोनों सदनों में चचाथ की जा सकती है, परन्तु दकसी भी सदन में आसे

मतदान के वलए प्रस्तुत नहीं दकया जा सकता है। दूसरे िब्दों में, यह बजट का गैर-मतदान योग्य
भाग है। भारत की संवचत वनवध पर भाररत व्यय में सवममवलत हैं:
o राष्ट्रपवत की पररलवब्धयां और भत्ते तथा ईसके कायाथलय के ऄन्य व्यय
o राज्यसभा के सभापवत (ईपराष्ट्रपवत) और ईपसभापवत तथा लोकसभा के ऄध्यक्ष और
ईपाध्यक्ष के वेतन एवं भत्ते
o सवोच्च न्यायालय के न्यायाधीिों को देय वेतन,भत्ते एवं पेंिन।
o ईच्च न्यायालयों के न्यायाधीिों की पेंिन।
o भारत के वनयंत्रक और महालेखा परीक्षक के वेतन, भत्ते और पेंिन।

o संघ लोक सेवा अयोग के ऄध्यक्ष एवं सदस्यों के वेतन, भत्ते तथा पेंिन।

o सवोछच न्यायालय, भारत के वनयंत्रक एवं महालेखा परीक्षक तथा संघ लोक सेवा अयोग के

कायाथलयों में सेवारत व्यवक्तयों के वेतन, भत्ते और पेंिन सवहत प्रिासवनक व्यय।

o ब्याज, ऋण िोधन वनवध प्रभार और िोधन प्रभार, ऋण लेने और ऋण सेवा एवं ऋण िोधन
से संबंवधत ऄन्य व्यय सवहत वे ऋण भार वजनका ईत्तरदावयत्व भारत सरकार पर है।
o दकसी भी न्यायालय या मध्यस्थ न्यायावधकरण का कोइ वनणथय, वडिी या पंचाट के ऄनुसार
अवश्यकता पूर्थत हेतु कोइ रावि।
o संववधान, संसद या कानून द्वारा घोवषत कोइ भी ऄन्य भाररत व्यय।
 दूसरी श्रेणी में अने वाला व्यय लोकसभा के समक्ष ऄनुदान मांग के रूप में प्रस्तुत दकया जाता है
तथा सदन में ईस पर मतदान दकया जाता है। लोकसभा को ऐसी कोइ भी मांग को स्वीकार या
ऄस्वीकार करने या ईसमें वनर्ददि मांग को कम करने का ऄवधकार प्राप्त है। राष्ट्रपवत की पूवथ
ऄनुिस
ं ा के वबना ऐसी दकसी भी मांग हेतु प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है। चूंदक यह मांगें सरकार
के कायथिमों और नीवतयों के वलए अवश्यक होती हैं, आसवलए यदद दकसी भी मांग को मतों द्वारा

ऄस्वीकार कर ददया जाता है, तो यह सरकार की पराजय के समान होता है।


भारत का लोक लेखा
 भारत सरकार द्वारा ऄथवा ईसकी ओर से प्राप्त ऄन्य सभी सावथजवनक धनरावियां (भारत की
संवचत वनवध में जाने वाली धनरावियों के ऄवतररक्त) भारत के लोक लेखा में जमा की जाती हैं।
 आसमें सरकार की देख-रे ख में रखी गइ भववष्य वनवध, लघु बचत जमा जैसी सभी धनरावियां तथा

सडक ववकास, प्राथवमक विक्षा जैसी ववविि मदों पर व्यय के वलए ऄलग से अरवक्षत सरकारी

अय, अरवक्षत/वविेष वनवधयां आत्यादद सवममवलत हैं।

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 यह लेखा कायथपावलका-अदेि द्वारा संचावलत होता है, ऄथाथत् आस लेखे से संसदीय वववनयोग के
वबना भुगतान दकया जा सकता है।
 लोक लेखा की वनवधयां सरकार के ऄंतगथत नहीं होती हैं और ऄंततः आसे जमा करने वाली जनता
या प्रावधकरणों को वापस दकया जाना अवश्यक होता है। आसवलए आस प्रकार के भुगतानों के वलए
संसदीय प्रावधकरण की अवश्यकता नहीं होती है, के वल ईस मामले को िोडकर जहां संसद के
ऄनुमोदन के पश्चात् संवचत वनवध से रावियां अहररत की जाती हैं और ववविष्ट मदों पर व्यय के
वलए लोक लेखा में रखी जाती हैं। आस वस्थवत में, ववविि मद पर दकए जाने वाले व्यय के लोक
लेखा से अहरण हेतु ववविि मद पर वास्तववक व्यय को पुन: संसद के मतदान के वलए प्रस्तु त
दकया जाता है।
भारत की अकवस्मकता वनवध
 संववधान का ऄनुछिेद 267 संसद को भारत की 'अकवस्मकता वनवध' स्थावपत करने के वलए
ऄवधकृ त करता है। आस वनवध से कानून द्वारा वनधाथररत रावि का समय-समय पर भुगतान दकया
जाता है। तदनुसार, संसद ने 1950 में भारत की अकवस्मकता वनवध को ऄवधवनयवमत दकया।

 यह वनवध राष्ट्रपवत के वनयंत्रण में तहत अती है, तथा दकसी ऄप्रत्यावित व्यय पूरा करने के वलए
आसमें से ऄविम ददया जाता है। राष्ट्रपवत की ओर से यह वनवध ववत्त सवचव द्वारा वनयंवत्रत की जाती
है।
 भारत के लोक लेखा की भांवत, आसे भी कायथपावलका द्वारा संचावलत दकया जाता है।
 ऐसे ऄप्रत्यावित व्यय के वलए कायोत्तर संसदीय ऄनुमोदन प्राप्त दकया जाता है और अकवस्मकता
वनवध की प्रवतपूर्थत करने हेतु संवचत वनवध से समतुलय रावि अहररत की जाती है। वतथमान में संसद
द्वारा ऄवधकृ त अकवस्मकता वनवध का कोष 500 करोड रूपए है और आसे संसद द्वारा ब़िाया जा
सकता है। राष्ट्रपवत की ओर से आस वनवध को ववत्त मंत्रालय द्वारा संचावलत दकया जाता है।
 संववधान के ऄंतगथत, वार्थषक ववत्तीय वववरण ऄन्य व्यय को राजस्व खाते से दकये गए व्यय से
ऄलग करता है। आसवलए सरकार के बजट में राजस्व बजट और पूंजी बजट सवममवलत होता है।
वार्थषक ववत्तीय वववरण में सवममवलत प्रावप्तयों एवं व्यय के ऄनुमान में व्यय, िुद् प्रवतदेय (ररफं ड)
तथा पुनभुथगतान को घटा कर प्राप्त दकया जाता है।

2.2. सरकारी बजट के घटक

 भारतीय संववधान यह प्रावधान करता है दक बजट में ऄन्य व्यय और राजस्व खाते से होने वाले
व्यय में ऄंतर दकया जाएगा। आसवलए, बजट में राजस्व बजट और पूंजी बजट सवममवलत होता है।

2.2.1. राजस्व खाता

राजस्व खाते में सरकार की राजस्व प्रावप्तयां और आस राजस्व से दकए जाने वाले व्यय सवममवलत होते
हैं।
 राजस्व प्रावप्तयां- राजस्व प्रावप्तयां वे प्रावप्तयां होती हैं वजन्हें सरकार द्वारा अदाता (payee) को

पुन: भुगतान दकए जाने की अवश्यकता नहीं होती है, ऄथाथत् ये ऄप्रवतदेय (non-redeemable)

होती हैं। आसे सरकार द्वारा पुनः प्राप्त (reclaimed) नहीं दकया जा सकता है। आसवलए राजस्व

प्रावप्तयां, एक ददिीय लेन-देन होती है। राजस्व प्रावप्तयां सरकार के वलए देयताओं का सृजन नहीं
करती है। राजस्व प्रावप्तयों को कर-राजस्व एवं गैर-कर राजस्व में ववभावजत दकया जाता है।

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 कर राजस्व- कर-राजस्व, कें द्र सरकार द्वारा करों के ऄवधरोपण और संिहण से प्राप्त राजस्व है।
आसमें प्रत्यक्ष कर तथा ऄप्रत्यक्ष कर, दोनों सवममवलत होते हैं।
o प्रत्यक्ष कर- व्यवक्तयों और कं पवनयों पर सीधे अरोवपत दकए जाने वाले कर, प्रत्यक्ष कर
कहलाते हैं, जैसे अयकर (व्यवक्त की व्यवक्तगत अय पर कर), वनगम कर (कं पवनयों पर कर),
प्रवतभूवत लेन-देन कर, बजस (वस्तु) लेन-देन कर अदद। संपवत्त कर (2015-16 के बजट में
समाप्त), ईपहार कर और संपदा िुलक (ऄब समाप्त) जैसे ऄन्य प्रत्यक्ष करों का कभी भी
राजस्व अय के संदभथ में ऄवधक महत्व नहीं रहा है। आसवलए आन्हें कागजी कर (पेपर टैक्स)
कहा जाता है।
o ऄप्रत्यक्ष कर- वे कर वजन्हें अरोवपत दकसी और व्यवक्त पर दकया जाता है दकन्तु आसका
भुगतान दकसी ऄन्य व्यवक्त द्वारा दकया जाता है। ईदाहरण के वलए-ईत्पाद कर, ईत्पादक पर
लगाया जाता है दकन्तु ऄंततः ईसका भुगतान ईपभोक्ता द्वारा ईत्पाद के ऄंवतम मूलय के साथ
दकया जाता है।
 आसमें ईत्पाद िुलक (राष्ट्र सीमा में ईत्पाददत वस्तुओं पर लगाया जाने वाला िुलक), सीमा िुलक
(भारत में अयावतत या वनयाथवतत वस्तुओं पर लगाया जाने वाला कर), वबिी कर/VAT (वस्तुओं
की वबिी पर कर, वजसे राज्य सरकारों द्वारा लगाया जाता है), कें द्रीय वबिी कर (ऄंतराथज्यीय
व्यापार में वस्तुओं की वबिी पर कर, कें द्र सरकार द्वारा लगाया जाता है दकन्तु राज्य द्वारा संिवहत
दकया जाता है) और सेवा कर (सेवाओं पर लगाया गया कर) अदद।
 गैर कर राजस्व- आसमें मुख्य रूप से सवममवलत हैं :
o ब्याज प्रावप्तयां- यह कें द्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों एवं ऄन्य सरकारी वनकायों को ददए गए
ऋणों से प्राप्त होने वाली ब्याज रावि है। यह गैर-कर राजस्व की सबसे बडी मद है।
o सरकार द्वारा दकए गए वनवेि पर लाभांि तथा लाभ। लाभांि, वनजी ईद्यमों और ऄधथ-
सरकारी ईद्यमों में सरकार द्वारा धाररत िेयरों से होने वाली अय है जबदक लाभ, पूणथ रूप से
सरकारी स्वावमत्व वाले ईद्यमों से होने वाली लाभांि अय है।
o सरकार द्वारा प्रदत्त सेवाओं के वलए िुलक एवं ऄन्य प्रावप्तयां।
o ववदेिों और ऄंतराथष्ट्रीय संगठनों से नकद ऄनुदान सहायता।
वार्थषक ववत्तीय वववरण में दिाथयी गइ राजस्व प्रावप्तयों के ऄनुमान में ववत्त ववधेयक में दकए गए
वववभन्न कराधान प्रस्तावों के प्रभावों का ध्यान रखा जाता है।
 राजस्व व्यय - आसमें सरकार के ऐसे सभी व्यय सवममवलत हैं, वजनसे दकसी प्रकार की भौवतक या
ववत्तीय पररसंपवत्तयों का सृजन नहीं होता है। यह सरकारी ववभागों के सामान्य कामकाज और
वववभन्न सेवाओं, ऄथाथत् दैवनक तथा वनयवमत अवश्यकताओं पर दकए जाने वाले व्यय से संबंवधत
है वजनसे भववष्य में कोइ राजस्व सृवजत नहीं होता है। यह एकमागी भुगतान है वजसका ऄथथ यह है
दक यदद सरकार धन व्यय करती है तो वह ईसे पुनः वसूल नहीं सकती है। 2017-2018 के बजट
तक, आसमें दो घटक सवममवलत थे:
 योजनागत राजस्व व्यय- यह कें द्रीय योजनाओं (पंचवषीय योजनाओं) तथा राज्य व संघ राज्य क्षेत्र
की योजनाओं के वलए कें द्रीय सहायता से संबंवधत व्यय था।
 गैर-योजनागत राजस्व व्यय - आस व्यय में सवममवलत था:
o बाजार ऋण या बाह्य ऋण ऄथवा वववभन्न ऄन्य अरवक्षत वनवधयों के माध्यम से सरकार द्वारा
वलए गए ऋण पर ब्याज का भुगतान
o राज्य सरकारों और ऄन्य पक्षों को ददए गए ऄनुदान (भले ही कु ि ऄनुदान पररसंपवत्तयों के
सृजन के वलए हो सकते हैं)
o ऄन्य - रक्षा सेवाएं, सवब्सडी, वेतन, पेंिन तथा वववभन्न सामावजक सेवाएं (स्वास््य, विक्षा
अदद के प्रवत गैर पूज
ं ीगत व्यय)।

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 ं ा के अधार पर यह वगीकरण 2017-2018 के बजट से समाप्त कर
रं गराजन सवमवत की ऄनुिस

ददया गया है। (आस ववषय पर अगे चचाथ की गयी है)।

2.2.2. पूं जीगत खाता

 पूंजीगत खाता, कें द्र सरकार की पररसंपवत्तयों तथा देयताओं का खाता है। आसमें पूज
ं ीगत पररवतथनों

को भी ध्यान में रखा जाता है। आसमें सरकार की पूंजीगत प्रावप्तयां एवं पूंजीगत व्यय सवममवलत
होते हैं।

 पूज
ं ीगत प्रावप्तयां- सरकार की वे सभी प्रावप्तयाँ वजनसे देयताओं का सृजन होता है या ववत्तीय

पररसंपवत्तयां कम होती है, ईन्हें पूंजीगत प्रावप्तयां कहा जाता है। आन प्रावप्तयों को दो श्रेवणयों ऋण

ं ी प्रावप्तयों तथा गैर-ऋण पूज


पूज ं ीगत प्रावप्तयों में वगीकृ त दकया जा सकता है।
 ऋण पूज
ं ी प्रावप्तयां - आसमें मुख्य रूप से ऋण और ऄन्य देयताएं सवममवलत हैं।
o ऋण ऄथवा सावथजवनक ऋण- भारत की संवचत वनवध को प्रवतभूवत के रूप में रखकर प्राप्त की
गयी रावि एवं ईससे पुनभुथगतान योग्य धन। आसमें सवममवलत है:

o देि के भीतर ईधारी, ऄथाथत,् जनता से वलए गए ऋण (बाजार ईधारी), ट्रेज़री वबलस की

वबिी के माध्यम से RBI तथा ऄन्य ववत्तीय संस्थानों से ऋण।

o ववदेिों से प्राप्त ऋण, ऄथाथत,् ववदेिी सरकारों और ऄंतराथष्ट्रीय संगठनों से प्राप्त ऋण।

o ऄन्य देयताएं- आसे सरकार द्वारा जनता से सीधे ऋण के रूप में नहीं वलया गया है परन्तु यह

सरकार के व्यय के प्रयोजन हेतु ईपलब्ध है, वजसका पुनभुथगतान करने के वलए सरकार

ईत्तरदायी होती है। आसमें भारत के लोक लेखा में रखा गया धन सवममवलत है वजसमें लघु

बचतें (डाकघर बचत खाता, राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्र, अदद), भववष्य वनवध आत्यादद िावमल

हैं।
 गैर-ऋण पूज
ं ीगत प्रावप्तयां - आसमें कें द्र सरकार द्वारा ददए गए ऋणों की वसूली और सावथजवनक

क्षेत्र के ईपिमों (PSU) में िेयरों की वबिी से प्राप्त िुद् प्रावप्तयां सवममवलत हैं (आसे PSU

वववनवेि भी कहा जाता है)।


 पूज
ं ीगत व्यय: आसमें वे व्यय सवममवलत हैं वजनसे स्थायी पररसंपवत्तयों का सृजन होता है और

अववधक अय ईत्पन्न होती है। आसमें भूवम, भवन, मिीनरी, ईपकरणों के ऄवधिहण पर व्यय,

िेयरों में वनवेि, के न्द्र सरकार द्वारा राज्य/संघ राज्य सरकारों, PSU और ऄन्य पक्षों को ददए गए

ऋण एवं ऄविम सवममवलत हैं।


 बजट दस्तावेज में पूज
ं ीगत व्यय को योजनागत और गैर-योजनागत व्यय के रूप में भी वगीकृ त
दकया जाता था। कें द्रीय योजना और राज्यों/संघ िावसत प्रदेिों की योजनाओं के वलए कें द्रीय
सहायता से संबंवधत योजनागत राजस्व व्यय की भांवत योजनागत पूंजीगत व्यय को भी समाप्त
कर ददया गया है। गैर-योजनागत पूज
ं ी व्यय में सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली वववभन्न

सामान्य, सामावजक और अर्थथक सेवाएं सवममवलत होती थी।

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2.2.3. 2018-19 के कें द्रीय बजट द्वारा ददए गए अं क डे

वनम्न पाइ रे खावचत्र में सरकार की अय तथा व्ययों को दिाथया गया है:

वचत्र:1 अय के स्त्रोत (बजट-2018-19)

वचत्र: 2 वववभन्न मदों के ऄंतगथत व्यय (बजट-2018-19)

ववत्तीय प्रबंधन से संबवं धत बजट 2018-19 के कु ि स्मरणीय बबदु:

 बजट में पररव्यय का संिोवधत ऄनुमान 2017-18 के वलए 21.57 लाख करोड रुपए है, जबदक

बजट का अकलन 21.47 लाख करोड रुपए का था।

 2018-19 के वलए बजट घाटे को GDP के 3.3 प्रवतित रहने का ऄनुमान व्यक्त दकया। संिोवधत

ववत्तीय घाटे का ऄनुमान वषथ 2017-18 के वलए 5.95 लाख करोड रुपए का है, जो GDP का

3.5 प्रवतित है।

 प्रत्यक्ष करों की वृवद् दर 2016-17 में 12.6 प्रवतित और 2017-18 में 18.7 प्रवतित रही है।

 कर दाताओं की संख्या जो 2014-15 में 6.47 करोड थी, ब़िकर 2016-17 में 8.27 करोड हो
गइ है।

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2.3. बजट प्रदिया के वववभन्न चरण

ववत्तीय ववषयों, वविेष रूप से बजट प्रस्तुवत के समय संसद में ऄपनायी जाने वाली प्रदिया में कइ चरण
सवममवलत होते हैं, जो वनम्नवलवखत अरे ख में दिाथयें गए है:

2.3.1. बजट की प्रस्तु वत

 बजट को 'बजट भाषण' के साथ प्रस्तुत दकया जाता है। बजट भाषण दो भागों में होता है: भाग A
में 'देि का सामान्य अर्थथक सववेक्षण' एवं भाग B में अगामी ववत्तीय वषथ हेतु ‘कराधान प्रस्ताव’
होते हैं।
ववत्तीय ववधान के वलए लोकसभा में प्रदियात्मक वनयम और कायथवाही संचालन वनम्नानुसार हैं:
 वार्थषक ववत्तीय वववरण या प्रत्येक ववत्तीय वषथ के संबंध में भारत सरकार की ऄनुमावनत प्रावप्तयों
और व्ययों के वववरण (वजसे 'बजट' भी कहा जाता है) को राष्ट्रपवत के वनदवेिानुसार वनयत दकए गए
ददन, सदन के समक्ष प्रस्तुत दकया जाता है।
 यदद प्राक्कलन सवमवत द्वारा कोइ सुझाव ददए गए हों तो ईन पर ववचार करने के पश्चात्, बजट को
ववत्त मंत्री द्वारा वनधाथररत रूप में सदन में प्रस्तुत दकया जाता है।
 सदन में बजट के प्रस्तुतीकरण के ददन आस पर कोइ चचाथ नहीं होती है।

2.3.2. बजट पर अम चचाथ

 स्पीकर द्वारा वनधाथररत ददन पर, सदन को संपण


ू थ बजट या ईसमें समाववि दकसी सैद्ांवतक प्रश्न पर
चचाथ करने की स्वतंत्रता होती है। दकन्तु कोइ भी कटौती प्रस्ताव नहीं लाया जाता है और न ही
बजट को सदन में मतदान हेतु प्रस्तुत दकया जाता है।
 संसद के दोनों सदनों में यह प्रदिया संचावलत होती है और अमतौर पर यह प्रदिया तीन से चार
ददनों तक चलती है।
 चचाथ के ऄंत में प्रत्युत्तर देने का सामान्य ऄवधकार ववत्त मंत्री को प्राप्त होता है। यदद ऄध्यक्ष ईवचत
समझता है तो वह भाषणों के वलए समय-सीमा वनधाथररत कर सकता है।

2.3.3. ववभागीय सवमवतयों द्वारा मू लयां क न

 बजट पर अम चचाथ समाप्त होने के पश्चात् सदन को लगभग तीन-चार सप्ताह के वलए स्थवगत कर
ददया जाता है। आस ऄन्तराल ऄववध में संसद की 24 ववभागीय स्थायी सवमवतयां, संबंवधत मंवत्रयों
द्वारा की जाने वाली ऄनुदान मांगों पर ववस्तारपूवक थ चचाथ करती हैं तथा आनसे समबंवधत ररपोटथ
तैयार करती हैं। तदुपरांत ये ररपोटथ संसद के दोनों सदनों में ववचार के वलए प्रस्तुत की जाती हैं।
1993 में स्थावपत (एवं 2004 में ववस्ताररत) यह स्थायी सवमवत व्यवस्था, मंत्रालयों पर संसदीय
ववत्तीय वनयंत्रण को ऄपेक्षाकृ त ऄवधक ववस्तृत, गहन तथा व्यापक बनाती है।

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2.3.4. ऄनु दान की मां ग

 ऄनुदान की मांग, भारत की संवचत वनवध से दकए जाने वाले ऄनुमावनत व्ययों का वववरण है।

संववधान के ऄनुछिेद 113 के ऄनुसार, भारत की संवचत वनवध से दकए जाने वाले व्यय के ऄनुमान
वार्थषक ववत्तीय वववरण में सवममवलत होंगे वजस पर पर लोकसभा द्वारा मतदान दकया जाना तथा
आसके साथ ही ईन्हें ऄनुदान मांग के रूप में प्रस्तुत दकया जाना अवश्यक है। ऄनुदान मांगों को
वार्थषक ववत्तीय वववरण के साथ लोकसभा में प्रस्तुत दकया जाता है।
 सामान्यतः प्रत्येक मंत्रालय द्वारा प्रस्ताववत ऄनुदान हेतु मांग पृथक रूप में प्रस्तुत की जाती हैं।
 प्रत्येक मांग में सवथप्रथम प्रस्ताववत समि ऄनुदान का वववरण और ईसके पश्चात् मदों में ववभावजत
प्रत्येक ऄनुदान के ऄंतगथत ववस्तृत ऄनुमान का वववरण िावमल होता है। वववधवत मतदान होने के
पश्चात् मांग, ऄनुदान बन जाती है।
आस संदभथ में दो बबदुओं पर ध्यान ददया जाना चावहए।
 पहला, ऄनुदान की मांगों पर मतदान करना लोकसभा का ऄनन्य वविेषावधकार है, ऄथाथत्
राज्यसभा को मांगों पर मतदान करने की कोइ िवक्त नहीं दी गयी है।
 दूसरा, मतदान, बजट के ईसी भाग तक ही सीवमत होता है वजन पर मतदान का प्रावधान दकया
गया है- भारत की संवचत वनवध पर भाररत व्यय को मतदान के वलए प्रस्तुत नहीं दकया जाता है
(आस पर के वल चचाथ की जा सकती है)।
 मांगों को प्रस्ताव के रूप में प्रस्तुत दकया जाना अवश्यक होता है, दकन्तु व्यावहाररक रूप में समय
बचाने के वलए ये मांगें ऄध्यक्ष द्वारा संचावलत और प्रस्ताववत मानी जाती हैं।
 आस वस्थवत के दौरान संसद के सदस्य बजट के वववरणों पर चचाथ कर सकते हैं। वे ऄनुदान की
दकसी भी मांग को कम करने के वलए प्रस्ताव पाररत कर सकते हैं। आस प्रकार के प्रस्तावों को
'कटौती प्रस्ताव' कहा जाता है।
 मांग की मात्रा में कमी करने के वलए वनमनवलवखत प्रकार से प्रस्ताव प्रस्तुत दकया जा सकता है:
 ‘मांग की रावि घटाकर 1/- रुपए कर दी जाए', जो मांग में ऄंतर्थनवहत नीवत की ऄस्वीकृ वत को

दिाथता है। आस प्रकार के प्रस्ताव को 'नीवत ऄनुमोदन कटौती प्रस्ताव’ के नाम से जाना जाता है।
ऐसे प्रस्ताव की सूचना देते समय सदस्य को नीवत के ईस भाग या ईन भागों का वववरण सटीक
िब्दों में प्रदर्थित करना होगा वजन्हे वह चचाथ के वलए प्रस्ताववत करता है। चचाथ, ववविि बबदु या
नोरटस में ईवललवखत वबन्दुओं तक ही सीवमत होती है और साथ ही सदस्यों द्वारा कोइ ऄन्य
वैकवलपक नीवत भी प्रस्तुत की जा सकती है।
 'मांग की रावि, वनधाथररत रावि से एक सीमा तक कम की जाए', जो संभवतः नीवतगत
वमतव्यवयता का प्रवतवनवधत्व करती है। आस प्रकार की वनर्ददि रावि को या तो मांग में से एकमुश्त
कम दकया जा सकता है या मांग में दकसी मद की कटौती या ईसमें कमी लायी जा सकती है। आस
प्रस्ताव को ‘वमतव्यवयता कटौती' के नाम से जाना जाता है। नोरटस द्वारा संक्षेप में और सटीक रूप

से ईस वविेष त्य का संकेत देना अवश्यक होता है, वजस पर चचाथ वांवित होती है तथा भाषण
के वल आस चचाथ तक सीवमत रहेगा दक दकस प्रकार वमतव्यवयता को संभव बनाया जा सकता है।
 'मांग की ईस रावि में से रू.100/- की कमी कर दी जाए' जो भारत सरकार के दकसी दावयत्व से

संबंवधत होती है। आस प्रकार के प्रस्ताव को 'सांकेवतक कटौती प्रस्ताव' के रूप में जाना जाता है एवं
ईस पर चचाथ आस प्रस्ताव में वनर्ददि वविेष मु्े तक ही सीवमत होती है।

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 सुववधा के वलए, सामान्यतः मांग हेतु मुख्य प्रस्ताव और आससे संबंवधत कटौती प्रस्तावों को सदन
में एक साथ प्रस्तुत दकया जाता है तथा चचाथ प्रारं भ की जाती है। आस प्रकार कटौती प्रस्ताव,
ऄनुदानों की मांगों पर चचाथ अरमभ करने एवं सरकार की गवतवववधयों को जांच के माध्यम से
ईत्तरदावयत्व युक्त सरकार के वसद्ांत को बनाए रखने का एक साधन है।
 चचाथ के पश्चात्, सवथप्रथम कटौती के प्रस्तावों का वनपटान दकया जाता है और ईसके पश्चात्,
ऄनुदान मांगों को सदन के समक्ष मतदान के वलए प्रस्तुत दकया जाता है। कटौती प्रस्ताव अम तौर
पर ववपक्ष के सदस्यों द्वारा लाया जाता है, तथा यदद कटौती प्रस्ताव पाररत हो जाता है तो यह
सरकार के ववरुद् बनदा-प्रस्ताव पर मतदान के समान होता है।
 मांगों पर मतदान के वलए कु ल 26 ददन वनधाथररत दकये गए हैं। ऄंवतम ददन ऄध्यक्ष सभी िेष मांगों
को मतदान हेतु प्रस्तुत करता है और ईनका वनस्तारण करता है, चाहे ईन पर सदस्यों द्वारा चचाथ
की गइ हो या नहीं। आस व्यवस्था को 'वगलोरटन' के नाम से जाना जाता है।
 ऄन्य ऄनुदान- एक ववत्तीय वषथ में अय और व्यय के साधारण ऄनुमानों को सवममवलत करने वाले
बजट के ऄवतररक्त, संसद द्वारा ऄसाधारण या वविेष पररवस्थवतयों में वववभन्न ऄन्य ऄनुदान प्रदान
दकए जाते हैं:
o लेखानुदान- भारत की संवचत वनवध से भुगतान के वल राष्ट्रपवत की स्वीकृ वत के पश्चात्
वववनयोग ऄवधवनयम के लागू हो जाने के बाद ही दकये जा सकते हैं। यह एक समयसाध्य
प्रदिया है और सामान्यतः ऄप्रैल के ऄंत तक चलती है। दकन्तु सरकार को 31 माचथ (ववत्तीय
वषथ के ऄंत) के पश्चात् ऄपनी सामान्य गवतवववधयों को समपन्न करने के वलए धन की
अवश्यकता होती है। आस कायाथत्मक करठनाइ को दूर करने के वलए संववधान ने ववत्तीय वषथ
की दकसी वविेष ऄववध के वलए ऄनुमावनत व्यय हेतु ऄविम ऄनुदान देने के वलए लोकसभा
को प्रावधकृ त दकया है। यह प्रावधान सुवनवश्चत करता है दक ऄनुदान की मांगों पर मतदान के
संपन्न होने एवं वववनयोग ववधेयक के ऄवधवनयवमत होने तक की ऄववध में ववत्त के ऄभाव में
सरकार का कामकाज बावधत न हो। आसी प्रावधान को 'लेखानुदान' के नाम से जाना जाता है।
o आसे बजट पर अम चचाथ की समावप्त के पश्चात् पाररत दकया जाता है। यह सामान्यतः कु ल
बजट अकलन के िठें भाग के समतुलय रावि (सामान्यतः दो माह) के वलए प्रदान दकया जाता
है।
o लेखानुदान पर मतदान के प्रस्ताव में वांवित कु ल अवश्यक धनरावि तथा प्रत्येक मंत्रालय
एवं ववभाग के वलए अवश्यक वववभन्न रावियों का ईललेख दकया जाता है।
o ऄनुदान की कमी के वलए संिोधन का प्रस्ताव लाया जा सकता है।
o प्रस्ताव या दकसी भी संिोधन पर सामान्य प्रकृ वत की चचाथ की ऄनुमवत दी जा सकती है।
हालांदक, सामान्य वबन्दुओं को स्पष्ट करने के वलए वजतना अवश्यक है के वल ईतनी ही चचाथ
की ऄनुमवत दी गयी है। आससे ऄवधक चचाथ ऄनुदान के वववरणों पर नहीं की जा सकती है।
ऄन्य सन्दभों में, लेखानुदान प्रस्ताव के साथ वही व्यवहार होता है जो ऄनुदान की माँग के
साथ दकया जाता है।
ऄनुपरू क ऄनुदान, ऄवतररक्त ऄनुदान, ऄवधक ऄनुदान, प्रत्ययानुदान एवं ऄपवादानुदान अदद
 ऄनुपूरक ऄनुदान, ऄवतररक्त ऄनुदान, ऄवधक ऄनुदान, प्रत्ययानुदान एवं ऄपवादानुदान अदद को
ईसी प्रदिया द्वारा वववनयवमत दकया जाता है जो ऄनुदान की मांगों के मामले में लागू होता है।
 ऄनुपरू क ऄनुदान ईस समय ददया जाता है, जब संसद द्वारा वववनयोग ऄवधवनयम के माध्यम से
दकसी वविेष सेवा हेतु वतथमान ववत्तीय वषथ के वलए प्रावधकृ त की गइ धनरावि ईस वषथ के वलए
ऄपयाथप्त पाइ जाती है।

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 ऄवतररक्त ऄनुदान ईस समय ददया जाता है, जब चालू ववत्त वषथ के दौरान ईस वषथ के वलए बजट में
पररकवलपत नहीं की गइ दकसी नइ सेवा पर ऄवतररक्त व्यय की अवश्यकता ईत्पन्न हो जाती है।
 ऄवधक ऄनुदान ईस समय प्रदान दकया जाता है, जब ववत्तीय वषथ के दौरान दकसी सेवा पर ईस
वषथ के वलए बजट में प्रदत्त ऄनुदान से ऄवधक धन व्यय हो गया हो। आस पर लोकसभा द्वारा
ववत्तीय वषथ के पश्चात् मतदान दकया जाता है।
 प्रत्ययानुदान दकसी सेवा हेतु ऄप्रत्यावित मांग को पूरा करने के वलए ददया जाता है। यह ऄनुदान
तब ददया जाता है जब सेवा के पररमाण या ऄवनवश्चत प्रकृ वत के कारण, मांग का ईललेख अमतौर
पर बजट में ददए जाने वाले वववरण के साथ दकया जाना संभव न हो। ऄत: यह लोकसभा द्वारा
कायथपावलका को ददए गए ब्लैंक चेक की भांवत है।
 ऄपवादानुदान वविेष प्रयोजन के वलए ददया जाता है तथा यह दकसी भी ववत्तीय वषथ की चालू
सेवा से संबंवधत नहीं होता है।
सांकेवतक ऄनुदान
 जब दकसी नइ सेवा पर प्रस्ताववत व्यय को पूरा करने के वलए वनवधयों को पुनर्थववनयोजन के
माध्यम से ईपलब्ध कराया जाता है, ईस ऄवस्था में दकसी सांकेवतक रावि के ऄनुदान की मांग
सदन के समक्ष मतदान के वलए प्रस्तुत की जा सकती है। यदद सदन मांग को स्वीकृ त करता है तो
धनरावि ईपलब्ध कराइ जाती है।

2.3.5. वववनयोग ववधे य क

 संवैधावनक प्रावधान के ऄंतगथत, संसद द्वारा कानून ऄवधवनयवमत दकए वबना भारत की संवचत

वनवध से कोइ धन अहररत नहीं दकया जा सकता। आसका ऄनुपालन करते हुए, लोकसभा द्वारा

संवचत वनवध पर भाररत व्यय के साथ-साथ, लोकसभा द्वारा मतदान दकये जाने वाली ऄनुदानों की
सभी मांगों को सवममवलत करने वाले ववधेयक को लोकसभा में पुर:स्थावपत दकया जाता है। आस
ववधेयक को वववनयोग ववधेयक के रूप में जाना जाता है। आसके नाम के ऄनुसार आस ववधेयक का
प्रयोजन सरकार को संवचत वनवध से दकए जाने वाले व्यय का वववनयोजन करने हेतु वववधक
प्रावधकार प्रदान करना है।
वववनयोग ववधेयक संबध
ं ी प्रदिया:
 वववनयोग ववधेयक को पाररत करने की प्रदिया भी दकसी ऄन्य ववधेयक के समान होती है।
अमतौर पर आसे के वल स्पीकर द्वारा अवश्यक समझे गए संिोधनों के साथ पाररत कर ददया जाता
है।
 हालांदक, वववनयोग ववधेयक पर बहस के वल ईन मामलों तक सीवमत होती है वजन्हें ईस समय

नहीं ईठाया गया हों, जब ऄनुदान के वलए प्रासंवगक मांगें ववचाराधीन होती हैं।
 आसमें दकसी प्रकार का कोइ संिोधन प्रस्ताववत नहीं दकया जा सकता है।
लोकसभा द्वारा ववधेयक पाररत होने के पश्चात् लोकसभा-ऄध्यक्ष आसे धन ववधेयक के रूप में प्रमावणत
करता है और आसे राज्यसभा को संप्रेवषत करता है। दूसरे सदन को ववधेयक में संिोधन करने तथा
ववधेयक को ऄस्वीकार करने की िवक्त नहीं होती है, परन्तु राज्य सभा, लोक सभा को ववधेयक संबंधी

कोइ भी परामिथ दे सकती है वजसकी प्रकृ वत लोक सभा पर बाध्यकारी नहीं होती। यदद राज्यसभा 14
ददन के भीतर आस पर कोइ कारथ वाइ नहीं करती है तो आसे पूवथवत रूप में राज्यसभा द्वारा पाररत मान
वलया जाता है। आसके पश्चात् ववधेयक, राष्ट्रपवत के समक्ष ईसकी स्वीकृ वत के वलए प्रस्तुत दकया जाता
है।

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2.3.6. ववत्त ववधे य क

 संसद के समक्ष वार्थषक ववत्तीय वववरण की प्रस्तुवत के समय, संववधान के ऄनुछिेद 110(1)(a) के
प्रावधानों के अधार पर बजट में प्रस्ताववत करों के ऄवधरोपण, ईन्मूलन, िू ट, पररवतथन या
वववनयमन का वववरण प्रदान करने वाला एक ववत्त ववधेयक भी प्रस्तुत दकया जाता है। ववत्त
ववधेयक संववधान के ऄनुछिेद 110 में पररभावषत एक प्रकार का धन ववधेयक होता है। आसके साथ
ही ववत्त ववधेयक में सवममवलत प्रावधानों की व्याख्या करने वाला एक ञापापन भी प्रस्तुत दकया
जाता है।
ववत्त ववधेयक संबध
ं ी प्रदिया
 वनयमानुसार ‘ववत्त ववधेयक’,ऄगले ववत्तीय वषथ के वलए भारत सरकार के ववत्तीय प्रस्तावों के
दियान्वयन हेतु प्रत्येक वषथ सामान्य रूप से पुरःस्थावपत दकया जाने वाला एक ववधेयक है। आस
ववधेयक में दकसी भी ऄववध के वलए ऄनुपरू क ववत्तीय प्रस्तावों को प्रभावी बनाने वाला ववधेयक
भी सवममवलत होता है।
 सदन में ववत्त ववधेयक पुरःस्थावपत होने के पश्चात् सदन का ऄध्यक्ष, ववधेयक पाररत होने में
समाववष्ट सभी चरणों या दकसी एक चरण को पूरा करने के वलए ददवस अवंरटत करता है।
तत्पश्चात्,ऄध्यक्ष अवंरटत ददवस को वनर्ददष्ट समय पर, ईस चरण से संबंवधत सभी िेष मामलों के
वनस्तारण हेतु अवश्यक प्रत्येक प्रश्न को तत्काल प्रस्तुत करता है,वजस चरण के वलए ददवस
अवंरटत दकया गया है।

3. भारतीय बजट प्रणाली और कायाथ न्वयन में कवमयां


 ऄवास्तववक बजट ऄनुमान।
 पररयोजनाओं के कायाथन्वयन में देरी।
 ववत्तीय वषथ की ऄंवतम वतमाही, वविेष रूप से ऄंवतम माह में व्यय होने वाले ऄवधकांि भाग के
साथ प्रवतकू ल व्यय प्रवतरूप।
 बहु-वषीय पररप्रेक्ष्य का ऄपयाथप्त ऄनुपालन तथा योजना और बजट के बीच 'लाआन ऑफ साआट' की
त्रुरट।
 व्यय और वास्तववक कायाथन्वयन के बीच कोइ ऄंतर-संबंध नहीं होना।
 तदथथ पररयोजना संबंधी घोषणाएं।
 पररणामों के बजाय प्रदियाओं के ऄनुपालन पर ऄवधक बल।
 ऄतार्दकक योजनागत/गैर-योजनागत भेद, संसाधनों के ईपयोग में ऄक्षमता ईत्पन्न करता है।

4. बजट सु धार
 वैविक स्तर पर बजटीय कवमयों का समाधान करने के वलए वनरं तर यथासंभव प्रयास दकये जा रहे
हैं। आस सन्दभथ में OECD देिों के बजट संबंधी रुझान ईललेखनीय हैं। OECD के सदस्य देिों में
बजटीय सुधारों के सामान्य तत्व वनम्नवलवखत हैं:

4.1. मध्यम ऄववध की बजट सं र चना (Medium Term Budget Frameworks)

 मध्यम ऄववध की बजट संरचना, राजकोषीय समेकन प्राप्त करने के अधार वनर्थमत करती हैं। आनके
द्वारा सकल राजस्व, व्यय, घाटे/ऄवधिेष और ऋण के स्तर जैसे ईच्च स्तरीय लक्ष्यों के संदभथ में
सरकार के मध्यम ऄववध के ववत्तीय लक्ष्य स्पि रूप से बताए जाने चावहए। तत्पश्चात् आनके द्वारा
कइ वषों के दौरान ऄलग-ऄलग मंत्रालयों और योजनाओं के वलए कठोर बजटीय प्रवतबंधों को
स्थावपत कर आन ईच्च स्तरीय लक्ष्यों को प्राप्त दकया जाना चावहए।

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4.2. वववे क पू णथ अर्थथक ऄनु मान (Prudent Economic Assumptions)

 बजट में ऄन्तर्थनवहत महत्वपूणथ अर्थथक पूवाथनम


ु ानों से ववचलन, सरकार के समक्ष ईपवस्थत मुख्य
राजकोषीय जोवखम है। वास्तव में दोषपूणथ अर्थथक ऄनुमान, राजकोषीय समेकन कायथिम को
‘ऄप्राप्य बनाने वाला’ सबसे महत्वपूणथ एकल कारक है। ऄतः आन ऄनुमानों के वनमाथण में ऄत्यंत
सावधानी बरती जानी चावहए तथा सभी प्रमुख अर्थथक ऄनुमानों को स्पि रूप से प्रकट दकया
जाना चावहए। आस हेतु बजट में ईपयोग दकए जाने वाले अर्थथक ऄनुमानों की ऄनुिंसा करने के
वलए एक स्वतंत्र वनकाय की स्थापना पर भी ववचार दकया जा सकता है। आन ईपायों द्वारा
ऄवास्तववक या अिावादी अर्थथक ऄनुमानों के ईपयोग के ववरूद् सुरक्षा प्राप्त की जा सकती है।

4.3 . टॉप-डाईन बजटटग तकनीकें (Top-Down Budgeting Techniques)

 परं परागत रूप से बजट की प्रदिया बॉटम-टॉप वसद्ांत पर संचावलत की जाती रही है। आसका ऄथथ
यह है दक सभी एजेंवसयाँ और सभी मंत्रालय, ववत्त मंत्रालय को ववत्तपोषण हेतु ऄनुरोध या मांग
प्रेवषत करते हैं। ये मांग ईस धन की तुलना में बहुत ऄवधक होता है वजतने की प्रावप्त की अिा होती
है। तत्पश्चात् ववत्त मंत्रालय आन मंत्रालयों और एजेंवसयों के साथ वाताथलाप कर कु ि सामान्य
बबदुओं पर सहमवत प्राप्त करता है एवं बजट प्रदिया को पूणथ करता है। हालांदक आस बॉटम-टॉप
प्रणाली में कइ दोष हैं, यथा:
o यह एक समय-साध्य प्रदिया है तथा आसमें भाग लेने वाले दोनों पक्षों को यह ञापात होता है दक
प्रारं वभक मांग यथाथथवादी नहीं हैं।
o आस प्रदिया में व्यय ब़िाने के समबन्ध में एक ऄंतर्थनवहत पूवाथिह होता है तथा सभी नए
कायथिमों, या वतथमान कायथिमों के ववस्तार को नए मांगों द्वारा ववत्त पोवषत दकया जाता है।
साथ ही व्यय करने वाले मंत्रालयों के तहत पुन:अवंटन की कोइ भी व्यवस्था तथा कोइ पूवथ-
वनधाथररत व्यय सीमा नहीं होती है।
o आस प्रणाली में राजनीवतक प्राथवमकताएं प्रवतबबवबत करना करठन होता है क्योंदक यह
ईध्वथगामी प्रदिया होती है तथा बजट आसके ऄंवतम चरण में प्राप्त होता है।
 ऄतः सुधारों के ईपरांत वतथमान में बजट वनमाथण का यह तरीका समाप्त कर ददया गया है तथा
आसका स्थान बजट तैयार करने के नए टॉप-डाईन प्रणाली ने ले वलया है। राजकोषीय समेकन प्राप्त
करने में यह ऄत्यवधक सहायक रहा है।
 आस नइ व्यवस्था के वलए सरकार का प्राथवमक कायथ व्यय के कु ल स्तर तथा व्यय करने वाले
मंत्रालयों में ईनके ववभाजन के संबध में बाध्यकारी राजनीवतक वनणथय लेने से है। यह वनणथय
मध्यम ऄववध की व्यय संरचना द्वारा संभव बनाया जाता है वजसमें अधारभूत व्यय की जानकारी
होती है, यथा, यह जानकारी दक यदद कोइ नया नीवतगत वनणथय न वलया जाये तो बजट क्या
होगा? राजनीवतक वनणथय से अिय यह है दक विक्षा जैसे ईच्च प्राथवमकता वाले क्षेत्र पर व्यय में
वृवद् करनी है ऄथवा रक्षा कायथिमों पर होने वाले व्यय में कमी करनी है। राजनीवतक पुन:अवंटन
के आस स्तर तक के वल सवाथवधक व्यापक और सवाथवधक महत्वपूणथ कायथिम ही पहुंच पाते हैं। मुख्य
बात यह है दक प्रत्येक मंत्रालय की व्यय समबन्धी पूवथ वनधाथररत सीमा होता है।

4.4 . के न्द्रीय वनवववियों के वनयं त्र ण को विवथल बनाना (Relaxing Central Input
Controls)

 यह आस साधारण धारणा पर अधाररत होता है दक प्रत्येक एजेंसी के प्रमुख, ईनकी एजेंसी की


गवतवववधयों का संचालन करने हेतु अगतों के सवाथवधक कु िल समूह का चयन करने के वलए सबसे
बेहतर वस्थवत में होते हैं। ऐसे में ऄंवतम पररणाम यह होता है दक एजेंसी कम कीमत पर समान
सेवाओं या समान कीमत पर ऄपेक्षाकृ त ऄवधक सेवाओं का ईत्पादन कर सकती है। यह सेवाओं पर
राजकोषीय समेकन का प्रभाव कम करके राजकोषीय समेकन रणनीवतयों को ऄवधक सुववधाजनक
बनाता है।

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के न्द्रीय वनवववियों के वनयंत्रण को विवथल बनाने की प्रदिया तीन स्तरों पर कायथ करती है:
 सभी पररचालन लागतों (वेतन, यात्रा, अपूर्थत अदद) के वलए एकल वववनयोजन में वववभन्न बजट

पहलुओं का एकीकरण;
 कार्थमक प्रबंधन कायथ का ववकें द्रीकरण एवं
 ऄन्य सामान्य सेवा संबंधी प्रावधानों, वविेषकर अवासों (भवनों) का ववकें द्रीकरण। आसे

सावथजवनक क्षेत्र के "वववनयमन" के प्रारूप के रूप में देखा जा सकता है।

4.5 . पररणामों पर ऄवधक फोकस (An Increased Focus on Results)

 ईपयुथक्त वववरण से स्पि है दक पररणामों पर ऄवधक फोकस, वनवववियों के वनयंत्रण को विवथल

बनाने (relaxing input controls) का प्रत्यक्ष प्रवतदान (direct quid pro quo ) है।
सावथजवनक क्षेत्र में जवाबदेवहता परं परागत रूप से वनयमों और प्रदियाओं के ऄनुपालन पर
अधाररत रही है। यदद वनयमों का ऄनुपालन दकया गया हो तो पररणाम के ववश्लेषण की प्रवृवत्त
नहीं रही। परन्तु वतथमान में सावथजवनक क्षेत्र के वववनयंवत्रत होने के कारण प्रबंधकों को जवाबदेह
बनाने के वलए एक नइ पररणाम-अधाररत प्रणाली की अवश्यकता है। यह मौवलक पररवतथन है
वजसके तहत प्रबंधकों को वे दकस प्रकार कायथ करते है आसके स्थान पर ईनके द्वारा दकये गए कायथ के
अधार पर जवाबदेह बनाया जायेगा।

4.6. बजट पारदर्थिता (Budget Transparency)

 बजट सरकार का प्रमुख नीवत दस्तावेज है। आसके द्वारा सरकार के नीवतगत ई्ेश्यों में सामंजस्य
स्थावपत दकया जाता है तथा आन ई्ेश्यों का दियान्वयन दकया जाता है। यही कारण है दक बजट
पारदर्थिता सुिासन का सार है। बजट पारदर्थिता के ऄंतगथत नीवत के प्रयोजनों, वनमाथण एवं
कायाथन्वयन में स्पिता सवममवलत है तथा बजट दकस सीमा तक ऄपने सभी या कु ि ई्ेश्यों को
प्राप्त करता है, वह पारदर्थिता पर ही वनभथर करता है। राजकोषीय पारदर्थिता को तीन मूलभूत
तत्वों द्वारा समझा जा सकता है:
o पहला, बजट अंकडे जारी करना है। वनणथयकताथओं द्वारा ववश्लेषण और वनष्कषों के वलए
प्रासंवगक राजकोषीय जानकाररयों या सूचनाओं को व्यववस्थत ढंग से और समय से जारी
करने को ही हम प्राय: बजट की पारदर्थिता से समबद् मानते हैं। यह ऄवनवायथ रूप से पूवथ-
ऄपेवक्षत है, परन्तु यह पयाथप्त नहीं है।

o दूसरा तत्व, ववधावयका की एक प्रभावी भूवमका है। आसे बजट ररपोटथ की संवीक्षा करने, स्वतंत्र

रूप से समीक्षा करने, बजट पर चचाथ करने तथा ईसे प्रभाववत करने में सक्षम होना चावहए।
आसके साथ ही आसे प्रभावी रूप से सरकार को ईत्तरदायी बनाने की वस्थवत में होना चावहए।
यह क्षमता दोनों ही रूपों ऄथाथत् ववधावयका की संवैधावनक भूवमका और ववधावयका के पास
ईपलब्ध संसाधनों के स्तर पर होनी चावहए।
o तीसरा तत्व, मीवडया और गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से नागररक समाज की प्रभावी

भूवमका है। नागररक प्रत्यक्ष रूप से या मीवडया और गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से, बजट

नीवत को प्रभाववत करने की वस्थवत में होने चावहए। कइ ऄथों में, यह ववधावयका के समान

भूवमका ही है, यद्यवप यह के वल ऄप्रत्यक्ष रूप में है।

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4.7. अधु वनक ववत्तीय प्रबं ध न व्यवहार (Modern Financial Management

Practices)

 सरकारों के ववत्तीय प्रबंधन के अधुवनकीकरण ने वपिले दस वषों में ऄत्यवधक प्रगवत की है।
सरकार के पारदिी या वविुद् पैमाने का ऄथथ यह है दक आस प्रकार के सुधारों का राजकोषीय
पररणामों पर महत्वपूणथ प्रभाव पडा है। आनमें संचयों का प्रारमभ (introduction of accruals),
पूंजीगत प्रभार, ऄप्रयुक्त वववनयोग को अगे ले जाना (कै री-ओवर) करना अदद सवममवलत हैं।

4.8. बजटीय ऄनु िासन (Budgetary Discipline)

 संसद द्वारा राजकोषीय घाटे में कमी और राजस्व घाटे के ईन्मूलन संबंधी लक्ष्य वनधाथररत कर कें द्र
तथा राज्य, दोनों ही स्तरों पर राजकोषीय ऄनुिासन को संस्थागत बनाने हेतु राजकोषीय
ईत्तरदावयत्व एवं बजट प्रबन्धन ऄवधवनयम (FRBMA) 2003 का ऄवधवनयमन दकया गया है।
यह भारत में राजकोषीय ऄनुिासन और राजकोषीय समेकन सुवनवश्चत करने हेतु ईठाए गए
ववधायी प्रावधानों में से एक है।
 आस ऄवधवनयम के ऄंतगथत वनधाथररत लक्ष्यों को बाद के वषों में कइ बार स्थवगत दकया गया था।
हालाँदक आस ऄवधवनयम के कु ि ऄन्य लक्ष्यों को कायाथवन्वत दकया गया है; जैसे सरकार द्वारा RBI
से ऋण लेने को चरणबद् तरीके से समाप्त करना।
 FRBM की अवश्यकता: सरकार के ब़िते हुए ऋण के कारण सरकार की ववत्तीय वस्थवत को होने
वाली क्षवत को देखते हुए 2003 में FRBM ऄवधवनयम को आसवलए लागू दकया गया था। सवब्सडी,
वेतन, रक्षा अदद पर ऄत्यवधक व्यय के कारण होने वाले व्यापक राजस्व घाटे को देखते हुए
सरकार को 1990 के दिक के प्रारमभ में तथा ईसके बाद भी बडी मात्रा में ईधार लेने हेतु वववि
होना पडा था। ऄपयाथप्त राजस्व होना भी सरकार द्वारा ऋण वलए जाने का कारण था।
 ऄत्यवधक रावि ईधार लेने के कारण ऄवधक ब्याज भुगतान की रावि में भी वृवद् हुइ। आस प्रकार,
ब्याज भुगतान सरकार की सबसे बडी व्यय की मद बन गया। ऄपने बजट में आस ववत्तीय दुबल
थ ता
को समाप्त करने हेत,ु सरकार ने FRBM के रूप में नए कानून का वनमाथण कर राजस्व घाटे की
कटौती के कु ि महत्वपूणथ लक्ष्य वनधाथररत दकये।
 FRBM क्या कहता है?: FRBM वनयम द्वारा राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 2008-09 तक GDP के
3% तक सीवमत दकया गया। आसे कें द्र सरकार द्वारा GDP में प्रवतवषथ 0.3% की कटौती के लक्ष्य
से प्राप्त दकया जाना तय दकया गया। आसी प्रकार, राजकोषीय घाटे को प्रवत वषथ 0.5% की दर से
घटाते हुए आसे वषथ 2008-09 तक पूरी तरह समाप्त दकया जाना था। हालाँदक कालांतर में ईक्त
लक्ष्यो का पुनर्थनधाथरण दकया गया और वषथ 2016-17 के बजट में माचथ 2018 तक 3% के
राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को प्राप्त करना वनधाथररत दकया गया।
 यद्यवप, प्रथम दृष्या ऄवधवनयम का लक्ष्य घाटे में कमी करना है, परन्तु आसका एक महत्वपूणथ
ई्ेश्य राजकोषीय प्रबन्धन में ऄंतर-पी़िीगत समता प्राप्त करना भी है। आसका कारण यह है दक
वतथमान समय में ऋण की रावि बहुत ऄवधक हैतथा आसे भावी पीद़ियों द्वारा चुकाया जायेगा।
FRBM के लक्ष्य प्राप्त होने से ऄंतर-पी़िीगत ऋण भार में समता (समानता) सुवनवश्चत होगी।
 आसके ऄन्य लक्ष्यों में दीघथकावलक समविगत अर्थथक वस्थरता, राजकोषीय और मौदद्रक नीवत के
बीच बेहतर समन्वय तथा सरकार के राजकोषीय संचालन में पारदर्थिता सवममवलत हैं।
(FRBM के बारे में ऄवधक जानकारी के वलए कृ पया राजकोषीय नीवत वाला ऄध्याय देख)ें

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5. के न्द्रीय बजटटग में हाल ही में दकये गये पररवतथ न
5.1. कें द्र प्रायोवजत योजनाओं (CSS) तथा आन योजनाओं पर होने वाले व्यय की
तकथ सं ग त व्याख्या

 2016-17 के बजट में कें द्र प्रयोवजत योजनाओं (CSS) के वगीकरण के अधार पर, कें द्र के व्यय के
वलए एक नयी वगीकरण व्यवस्था प्रारमभ की गयी। आसके तहत CSS के वगीकरण के अधार पर
वतथमान CSS की संख्या को सीवमत कर ददया गया है तथा ईन्हें तीन श्रेवणयों- कोर ऑफ़ द कोर
(core of the core) योजनाओं, कोर योजनाओं तथा वैकवलपक योजनाओं में ववभावजत दकया
गया।
कोर ऑफ़ द कोर (core of the core) योजनाएँ
 सामावजक सुरक्षा तथा सामावजक समावेिन को लवक्षत करने वाली योजनाएँ ‘कोर ऑफ़ द कोर’
योजनाओं के ऄंतगथत िावमल की गयी हैं। ये राष्ट्रीय ववकास एजेंडे के वलए ईपलब्ध धन पर
सवथप्रथम प्रभाररत की जाएगी। नवीन वगीकरण के ऄंतगथत, मनरे गा तथा ऄलपसंख्यकों, ऄनुसूवचत
जावतयों और ऄनुसूवचत जनजावतयों के ईत्थान की योजनाओं सवहत मुख्य ऄंब्रेला-योजनाओं को
‘कोर ऑफ़ द कोर’ योजनाओं के रूप में वगीकृ त दकया गया है।
 नइ व्यवस्था के ऄनुसार, ‘कोर ऑफ़ द कोर’ योजनायें ईच्चतम प्राथवमकता युक्त हैं तथा ईनके व्यय
के अवंटन ढांचे को बनाये रखा जायेगा। ईदाहरण के वलए मनरे गा में अर्थथक व्यय का 75% कें द्र
द्वारा तथा 25% राज्यों द्वारा प्रदान दकया जायेगा।
कोर योजनाएँ (core schemes)
 CSS का मुख्य ध्यान ईन योजनाओं पर होना चावहए, वजसमें राष्ट्रीय ववकास एजेंडा सवममवलत है
तथा वजसके वलए कें द्र एवं राज्य एक साथ ‘टीम आवडडया’ की भावना से कायथ करें गे। आन योजनाओं
के ऄंतगथत कृ वष ईन्नवत योजना, स्माटथ वसटी कायथिम और पुवलस बलों का अधुवनकीकरण जैसी
व्यापक योजनाएं सवममवलत हैं। प्राथवमकता में आनका दूसरा स्थान है और आनके व्यय के वलए
60:40 का फामूथला ऄपनाया जाता है।
वैकवलपक योजनाएँ (Optional Schemes)
 आनको कोइ राज्य वविेष ऄपने सामावजक-अर्थथक ववकास पर ववचार करने के पश्चात् अवश्यक
समझता है। आनके वलए 50:50 फामूल
थ ा ऄपनाया गया है, वजसमें राज्यों को यह स्वतंत्रता होगी दक
ईनमें वनवेि दकया जाये ऄथवा नहीं।
 CSS को तकथ संगत बनाने हेतु नीवत अयोग द्वारा गरठत मुख्यमंवत्रयों की ईप-सवमवत की ऄनुिस
ं ा
पर यह व्यवस्था लागू की गयी थी। आसे योजनागत/गैर-योजनागत सरकारी व्यय के ऄंतर को
समाप्त करने से पूवथ की तैयारी माना जा सकता है।
 यह व्यवस्था सभी मंत्रालयों और ववभागों के योजनागत तथा गैर-योजनागत कायथिमों को
तकथ संगत बनाने पर अधाररत है। सवमवत द्वारा आसे कायथिमों और योजनाओं के कायाथन्वयन की
पररणाम अधाररत प्रभावी वनगरानी एवं संसाधनों का आितम ईपयोग सुवनवश्चत करने के वलए
ऄपनाया गया था।
 यह 14वें ववत्त अयोग की ऄनुिस
ं ाओं का पररणाम था। 14वें ववत्त अयोग द्वारा कें द्र सरकार द्वारा
राज्य सरकारों को दकया जाने वाला कर प्रावप्तयों का ऄंतरण वतथमान के 32% से बढाकर 42%
कर ददया गया। आससे कें द्र सरकार द्वारा CSS का ववत्त पोषण ऄपने पूवथ स्तर पर जारी रखने की
क्षमता में कमी अ गइ। आसके साथ ही, आसके द्वारा राज्य सरकारों को ऄपनी प्राथवमकता के
ऄनुसार ववकास योजनाओं के ववत्तपोषण करने की स्वतंत्रता प्राप्त हुइ है।

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आस कदम का तकथ ?
 कु ि वविेषञापों के ऄनुसार, पररणामों के समबन्ध में मानकों की ऄनुपवस्थवत में ववविि ई्ेश्यों के
वलए वववभन्न ऄंतरण (जहाँ के न्द्रीय वनवधयों को एक वविेष ईपयोग के वलए ऄंतररत दकया जाता
है) ऄथथहीन हैं। हालाँदक नयी व्यवस्था भी व्ययों को पररणामों से जोडने के मु्े को समबोवधत नहीं
करती है, ऄवपतु यह के वल व्यय को पुनः वगीकृ त करती है।
 हालाँदक, आस वगीकरण द्वारा योजनाओं को ईनके महत्त्व के ऄनुसार पृथक करने का प्रयास दकया
जा रहा है। पूवथ में राज्य सरकारें आनमें से कइ आन योजनाओं के समबन्ध में स्वयं वनणथय ले रही थी।
परन्तु कें द्र के वतथमान दृविकोण के ऄनुसार कु ि योजनाएं महत्त्वपूणथ हैं जबदक ऄन्य के सन्दभथ में
राज्य स्वयं वनणथय ले सकते हैं। आस प्रकार, यह प्रमुख ववकास मानकों पर अम सहमवत सुवनवश्चत
करे गा और सहकारी संघवाद की भावना से राज्यों को अवश्यक लचीलापन प्रदान करे गा।
 2014-15 तक के न्द्रीय सहायता का लगभग 86 प्रवतित भाग 66 CSS में से के वल 17
योजनाओं के खाते में गया था। आन योजनाओं को ईनके अकार और माप के कारण ‘फ्लैगविप
योजनाओं (प्रमुख योजनाओं) के नाम से जाना जाता था। िेष 49 योजनाओं को बहुत कम बजटीय
अवंटन प्राप्त हुअ। यद्यवप वनम्न बजट योजनाओं के वलए भी कु ि के न्द्रीय सहायता ईपलब्ध थी,
आसवलए राज्यों को ईन सभी को लागू करने हेतु वववि होना पडा, तादक ईनके वलए वमलने वाली
सहायता प्राप्त हो सके । ऄब यह व्यवस्था समाप्त कर दी गयी है।

5.2. योजनागत तथा गै र -योजनागत वगीकरण को समाप्त करना

 पूवथ में ववद्यमान व्यय के योजनागत एवं गैर-योजनागत वगीकरण को ववत्त वषथ 2017-2018 से
समाप्त कर ददया गया है तथा ईनका स्थान ऄब पूज
ँ ीगत और राजस्व व्यय वगीकरण ने ले वलया
है। 2011 में सी. रं गराजन की ऄध्यक्षता वाली एक वविेषञाप सवमवत ने प्रस्ताव प्रस्तुत दकया था
दक आस ऄंतर समाप्त कर ददया जाना चावहए।
 पूव-थ प्रचवलत वगीकरण के ऄंतगथत, योजना के नाम पर दकये गये सभी व्ययों को योजनागत व्यय
कहा जाता था जबदक ऄन्य व्ययों को गैर-योजनागत व्यय के ऄंतगथत रखा गया था। आसके
ऄवतररक्त प्राय: (सदैव नहीं), योजनागत व्यय द्वारा अर्थथक ववकास से समबवन्धत कु ि भौवतक
पररसमपवत्तयां सृवजत की जाती थी। यही कारण था दक योजनागत व्यय को “ववकास व्यय” भी
कहा जाता था।
आस कदम के पीिे का तकथ
 यह कदम, योजना अयोग तथा ऄब तक कायथरत योजनाओं पर अधाररत ववकास को समाप्त दकये
जाने के ऄनुरूप है।
 आस वगीकरण ने वतथमान योजनाओं और सेवा स्तरों के ऄनुरक्षण (maintenance) की ईपेक्षा की
है तथा नइ योजनाएं/ पररयोजनाएं प्रारमभ करने की प्रवृवत को जन्म ददया है।
 आससे एक और गलत धारणा बन गयी है दक गैर-योजनागत व्यय स्वाभाववक रूप से महत्वहीन है।
यह धारणा विक्षा व स्वास््य जैसे ईन सामावजक क्षेत्रों में संसाधनों के अवंटन को प्रवतकू ल रूप से
प्रभाववत करती है, जहाँ वेतन एक महत्त्वपूणथ तत्व होता है।
 यह दकसी भी ऄथथपण
ू थ ‘पररणाम अधाररत बजट’ में बाधक है, क्योंदक के वल योजनागत व्यय को
ही पररणामों के वलए ईत्तरदायी माना जाता है, जबदक व्यावहाररक रूप से कु ल व्यय पर ववचार
दकया जाना चावहए।
 सरकार की प्रकृ वत (कामकाज और संगठन) में ब़िती जरटलता एवं वववभन्न मदों पर व्यय यह
सुवनवश्चत करता है दक योजनाबद् ऄथवा गैर-योजनाबद् वस्तुओं के ऄंतगथत मदों को तकथ संगत
अधार पर पृथक नहीं दकया जा सकता और आसवलए आनमें ऄंतर तकथ संगत नहीं है।

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 ऄंतर से अिय यह है दक ववद्यालय जैसी ऄवसंरचनाएं योजनागत व्यय के ऄंतगथत अती हैं, जबदक
विक्षकों पर व्यय गैर-योजनागत व्यय के ऄंतगथत होता है, आसी प्रकार ऄस्पताल योजनागत व्यय
जबदक ईसके डॉक्टर गैर-योजनागत व्यय के ऄंतगथत अते हैं। आस प्रकार की ऄसंगतता से कु प्रबन्धन
और संसाधनों का ऄप्रभावी ईपयोग होता है।

5.3. रे ल बजट का सामान्य बजट में ववलय ( Merging of Railway and General
Budget)

 रे ल बजट और सामान्य बजट को ऄलग-ऄलग प्रस्तुत करने की 92 वषों से चली अ रही प्रथा को
समाप्त कर ददया गया है। रे लवे के पुनगथठन और सुधार पर गरठत वबबेक देबरॉय सवमवत ने आसकी
ऄनुिसं ा की थी। आस कदम की सराहना की जा रही है क्योंदक यह ऄथथव्यवस्था के वलए लाभकारी
होगा एवं आसके द्वारा रे लवे के ववकास पर सकारात्मक प्रभाव पडेगा।
1921 में पृथक बजट प्रारमभ करने का तकथ
 दोनों बजटों को पृथक रूप में प्रस्तुत दकये जाने का प्रारं भ 1921 में एकवथथ सवमवत की ररपोटथ की
ऄनुिस
ं ाओं के अधार पर दकया गया था। आसका कारण यह था दक देि के सकल घरे लू ईत्पाद का
एक बडा भाग रे लवे राजस्व पर वनभथर था, ऄतः रे लवे पर पृथक रूप से ध्यान के वन्द्रत दकये जाने
की अवश्यकता का ऄनुभव दकया गया। स्वतंत्र भारत में भी यही प्रथा जारी रही और कु ि समय
के पश्चात् यह एक स्वीकृ त प्रथा बन गयी। आसके वनम्नवलवखत लाभ थे:
o ईत्तरदावयत्व: बजटीय प्रस्तावों पर मीवडया का पयाथप्त ध्यान रहता था, वजससे सरकार पर
ईत्तरदावयत्व की ववविता रहती थी।
o सावथजवनक पररवहन: रे लवे एक सावथजवनक पररवहन व्यवस्था रही है, आसवलए यह वांवित
था दक रे लवे पर पृथक बजट द्वारा वविेष ध्यान ददया जाए।
o स्वायत्तता: यह ऄपेक्षा की जाती थी दक पृथक बजट की प्रदिया रे लवे को एक स्वतंत्र वावणज्य
आकाइ के रूप में कायथ करने हेतु अवश्यक स्वायत्तता सुवनवश्चत करे गी।
 हालाँदक, कालान्तर में, रे लवे बजट लोकलुभावनवाद का ईपकरण मात्र बन गया। आसने
लोकलुभावन ऄपव्यय एवं ऄक्षमता को जन्म ददया। आसवलए, रे लवे के वनगमीकरण
(corporatization) की एक सिक्त मांग ईठी। आसके वलए पृथक बजट के न होने से आस प्रकार के
पररवतथन का अधार तैयार होता है। आसीवलए रे ल बजट का सामान्य बजट में ववलय कर ददया
गया।
ववलय हेतु तकथ
 वब्ररटि िासन के दौरान रे ल बजट, वार्थषक बजट का 85% तक होता था परन्तु ऄब यह प्रवतित
काफी कम हो कर मात्र 15% तक सीवमत रह गया है।
 के न्द्रीय बजट के साथ ही रे ल बजट को प्रस्तुत दकये जाने से दकसी नयी नीवत को प्रारमभ करने तथा
ईसे कायाथवन्वत करने में समय की बबाथदी कम होगी।
 पृथक रे ल बजट भ्रिाचार, ऄक्षमता और लोकलुभावन ईपायों का एक ईपकरण मात्र बनकर रह
गया था। पररणामस्वरूप, वनरं तर ब़िती पररचालन लागत के ऄनुरूप दकरायों में वृवद् करना रे ल
मंवत्रयों के वलए करठन हो गया था। यह ‘िास सवब्सडी’ (जहाँ यात्री यातायात को माल की ढु लाइ
से सवब्सडी दी जाती है) का एक प्राथवमक कारण था।
 रे लवे, ऄब कें द्र सरकार को 10,000 करोड रूपये का वार्थषक लाभांि देने से स्वतंत्र होगी। यह
वार्थषक लाभांि ऄब भारतीय रे लवे के ववकास के वलए प्रयुक्त हो सके गा।
 आससे सहदियािील यातायात नीवतयाँ संभव हो सकती हैं क्योंदक ववत्त मंत्रालय सभी प्रकार की
पररवहन प्रणावलयों हेतु संसाधनों के अवंटन हेतु ईत्तरदायी होगा।

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आस कदम को लेकर अिंकाएँ
 रे लवे का संसाधन अवंटन ऄब ववत्त मंत्रालय पर वनभथर होगा। आसवलए बजट के अकार के अधार
पर रे लवे को होने वाले संसाधन अवंटन में वृवद् या कमी हो सकती है। आससे रे लवे के स्वतंत्र
ववकास में बाधा अ सकती है।
 ववलय के कारण ईत्तरदावयत्व में भी कमी अ सकती है, क्योंदक ऄब मीवडया का ध्यान नहीं रहेगा।
रे लवे में होने वाले घाटों को विपाना असान हो जाएगा।
 कु ि वविेषञापों का यह मानना है दक ववलय, रे लवे को वनजीकरण और घोर पूज
ं ीवाद के वलए खुला
िोड देगा।
भारतीय रे लवे में ईच्चतम दजवे का कु प्रबन्धन रहा है तथा आसका के न्द्रीय बजट में ववलय करना एक ही
ऐसा समाधान है जो आसमें सुधार हेतु सहायक हो सकता है। कम होते राजस्व तथा नइ रे लगावडयों की
पररयोजनाएं एवं ईनका ठहराव रे ल मंत्रालय के वलए सदैव करठन कायथ रहा है। आस दृवि से भी बजट
का ववलय दकया जाना सही कदम है।

5.4. बजट की समय-पू वथ प्रस्तु वत (Budget Advancement)

 नवीनतम बजट को फरवरी माह की ऄंवतम वतवथ से 27 ददन पहले प्रस्तुत दकया गया था। आसका
ई्ेश्य 1 ऄप्रैल को ववत्तीय वषथ प्रारमभ होने से पहले ही बजट को संवैधावनक रूप से संसद की
स्वीकृ वत एवं राष्ट्रपवत का ऄनुमोदन प्राप्त करवाना तथा वववभन्न स्तरों पर सभी वववभन्न बजट-
धारकों को सभी प्रकार के संसाधनों का अंवटन करना है।
आस पहल हेतु तकथ
 सभी बजट प्रस्तावों सवहत ववत्त ववधेयक को ववत्तीय वषथ के प्रारमभ होने से पूवथ पाररत दकया जा
सके गा। आससे सभी सरकारी ववभागों, संस्थाओं को ऄपने अंवटन की जानकारी 1 ऄप्रैल से पूवथ ही
हो जाएगी।
 आससे वनजी क्षेत्र को सरकारी खरीद के रुझान का पूवाथनम
ु ान लगाने में सहायता वमलेगी और वे
ऄपनी व्यावसावयक योजनाओं को ववकवसत कर सकें गे।
 वतथमान वस्थवतयों में, ऄप्रैल-जून वतमाही के वलए लोकसभा लेखानुदान पाररत करती है, वजसके
ऄंतगथत ववभागों को वषथ भर के अवंटन का िठा भाग प्रदान दकया जाता है। बजट की समयपूवथ
प्रस्तुवत से सरकार आस लेखानुदान प्रथा को समाप्त कर सकती है।
 वतथमान में, ऄवसंरचना पररयोजनाओं में वनवेि काफी हद तक वषथ के बाद के महीनों में होता है,
क्योंदक बजट जून तक ही पाररत हो पाता है और ईस समय तक मानसून प्रारमभ हो जाता है।
वलहाजा ऄवसंरचना पररयोजनाओं को प्रारमभ करना करठन हो जाता है वजसके पररणामस्वरूप
प्रभावी वनवेि की ऄववध बहुत कम रह जाती है, जो ‘माचथ रि’ में समाप्त होती है। आस कारण
संसाधनों के ईपयोग में ऄक्षमता और पररयोजनाओं के कायाथन्वयन में ऄनावश्यक ववलमब होता है।
आस पहल संबध
ं ी अिंकाएँ:
 बजट की समयपूवथ प्रस्तुवत का एक बडा नुकसान व्यापक राजस्व और व्यय के अंकडों का ऄभाव
था। आससे पूवथ बजट बनाने का कायथ गंभीरतापूवक
थ ददसमबर से अरमभ होता था, फरवरी के मध्य
तक आसे ऄंवतम रूप दे ददया जाता था तथा राजस्व संिह व व्यय के रुझान के वल ववत्तीय वषथ के
पहले नौ महीनों के वलए ईपलब्ध होते थे। ऄथाथत् ऄप्रैल से ददसमबर तक के अधार पर पूरे वषथ के
वलए ऄनुमान लगाया जाता था।
 बजट की वतवथयों को पीिे करना व्यावहाररक रूप से करठनाइयों से भरा है। प्रभावी बजट योजना
अने वाले वषथ के मानसून संबंधी पूवाथनम
ु ानों पर वनभथर करती है। आसके कारण बजट की समयपूवथ
प्रस्तुवत की प्रदिया और भी करठन हो जाएगी।
आन अिंकाओं के बाद भी यह बजट सुधार एक स्वागतयोग्य कदम है। हालाँदक जैसादक सी. रं गराजन
सवमवत द्वारा 2011 में सुझाया गया है, आन सुधारों को और अगे ले जाने की अवश्यकता है।

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6. बजटटग का ववकास (Evolution of Budgeting)
 जब सरकार को ऄपने करदाताओं के समक्ष यह वसद् करना होता है दक वे ऄपने धन को लेकर
अिस्त हो सकते हैं, तो बजट में लागतों के वनयंत्रण, ववत्तीय लेखांकन तथा दक्षता सुधार पर बल
ददया जाता है। बाद में मंदी के दौरान, लोगों ने ऄपेक्षा की दक सरकार ऄिसदिय रूप से ईनकी
समस्याओं का समाधान करे गी (वजसके वलए काफी हद तक वनजी क्षेत्र को दोष ददया जाता था),
ऄतः सावथजवनक कायथिमों की प्रभाविीलता पर बजट में ऄवधक ध्यान के वन्द्रत दकया गया। ये
दोनों ध्येय हाल के वषों के बजटों में पररलवक्षत हुए हैं।

6.1. लाआन अआटम बजट (The Line Item Budget)

 ईन्नीसवीं िताब्दी के प्रारवमभक चरण में, ऄवधकांि देिों में सरकारी बजट प्रदियाओं की
वविेषताओं में ऄदक्ष लेखा प्रदियाएं, तदथथवाद (adhocism), न्यून के न्द्रीय वनयंत्रण तथा वनम्न
वनगरानी व मूलयांकन प्रदिया ववद्यमान थी।
 ईन्नीसवीं िताब्दी के ऄंवतम चरण में, कु ि देिों में लाआन-अआटम बजट प्रदिया प्रारमभ हुइ।
लाआन-अआटम बजट से अिय ऐसे बजट से है वजसमें, “व्यवक्तगत ववत्तीय वववरण की मदों
(अआटमों) को लागत-के न्द्रों या ववभागों में समूवहत दकया जाता है। यह वपिले लेखांकन या बजट
ऄववध के ववत्तीय अंकडों एवं वतथमान व भावी ऄववध के वलए ऄनुमावनत ववत्तीय अंकडों के बीच
तुलना दिाथता है।”
 एक लाआन-अआटम प्रणाली में बजट ऄववध के वलए व्यय, ववषयों या “लाआन-अआटम” के ऄनुसार
सूचीबद् दकये जाते हैं। आन लाआन-अआटम में एक आकाइ द्वारा वेतन, यात्रा भत्तों, कायाथलय खचथ
अदद की वनधाथररत सीमा का वववरण ददया जाता है। आस बात का ध्यान रखा जाता है दक संस्थाएं
या आकाआयां वनधाथररत सीमा से ऄवधक खचथ नहीं करें गी। आस वनधाथररत सीमा का वनधाथरण के न्द्रीय
ऄवधकरण या ववत्त मंत्रालय द्वारा दकया जाता है।
लाभ
 लाआन अआटम बजट दृविकोण को समझना और कायाथवन्वत करना असान है।
 यह के न्द्रीयकृ त वनयन्त्रण और व्यय करने वाली आकाआयों के ऄवधकारों तथा ईत्तरदावयत्वों के
वनधाथरण को सुसाध्य बना देता है।
कवमयां
 यह एकल आकाआयों (individual units) की गवतवववधयों और ईपलवब्धयों के संबंध में पयाथप्त
जानकारी ईपलब्ध नहीं कराता है।
 लाआन-अआटम बजट की कवमयों को कु ि सुधारों द्वारा दूर करने का प्रयास दकया गया था।
वनष्पादन बजटटग आस प्रकार का पहला सुधार था।

6.2. वनष्पादन बजट (Performance Budget)

 परमपरागत लाआन-अआटम बजट के ववपरीत, वनष्पादन बजट संगठन के लक्ष्य/ई्ेश्यों को प्रदर्थित


करता है तथा ईनके वनष्पाददत लक्ष्यों की व्याख्या करता है। आन लक्ष्यों को एक रणनीवत के
माध्यम से प्राप्त करने का प्रयास दकया जाता है। आकाआयों की लागत रणनीवत से जुडी होती है,
तदनुसार ईन ई्ेश्यों की प्रावप्त हेतु अवंटन दकया जाता है।
 वनष्पादन बजट यह संकेत देता है दक व्यय की गइ रावि, दकस प्रकार से अईटपुट दे सकती हैं।
हालाँदक वनष्पादन बजट की भी ऄपनी एक सीमा है- आकाइ की मानक लागत (वविेषकर
सामावजक कायथिम में) की जानकारी प्राप्त करना सरल नहीं होता है। आसके वलए बहु-अयामी
दृविकोण की अवश्यकता होती है।

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6.3. अईटकम बजट (Outcome budgeting)

 यह वववभन्न मंत्रालयों के ऄनुमावनत एवं आवछित पररणामों (अईटकम) का संकलन है। पररणाम
के वल ववत्तीय वनवेि का भौवतक ईत्पादन (physical output) ही नहीं है। अईटकम का ऄथथ है
समबवन्धत ववत्तीय वनवेि के भौवतक ईत्पादन से प्राप्त लाभ।
 ईदाहरण के वलए- भवन वनमाथण, मेज और कु र्थसयां अदद खरीदने के वलए धन का अवंटन करना
वनवेि है, वजसका अईटपुट ववद्यालय का वनमाथण है। यहाँ ऄंततः विवक्षत होने वाले िात्रों की
संख्या पररणाम (अईटकम) होगी।

6.4. िू न्य-अधाररत बजटटग (Zero-based Budgeting: ZBB)

 1970 के दिक में िून्य-अधाररत बजटटग की ऄवधारणा को प्रस्तुत दकया गया था। जैसा की नाम
से ववददत होता है, प्रत्येक बजट चि का प्रारमभ िून्य से होता है। पूवथवती प्रणावलयों में के वल
अवंटन में वृवद्िील पररवतथन दकये जाते थे। वहीं िून्य-अधाररत बजट जब भी बनाया जाता है
तो प्रत्येक गवतवववध का अकलन कर और दकसी गवतवववध की ऄपररहायथता सुवनवश्चत हो जाने के
बाद ही धन अवंरटत दकया जाता है। ZBB का मुख्य ई्ेश्य, ऄप्रासंवगक कायथिमों/गवतवववधयों
को चरणबद् रूप से समाप्त करना है। हालाँदक, िून्य-बजट को तैयार करने में होने वाले प्रयासों
और कार्थमक मु्ों से समबंवधत संस्थागत प्रवतरोध के कारण दकसी भी सरकार ने कभी पूणथरूपेण
िून्य-अधाररत बजट को कायाथवन्वत नहीं दकया, परन्तु िून्य-बजट के वसद्ान्तों को संिोवधत रूपों
में प्रायः ईपयोग में लाया जाता है।

6.5. जें ड र बजटटग (Gender Budgeting)

 जेंडर बजटटग से अिय मवहलाओं के वलए पृथक बजट से नहीं है ऄवपतु यह लैंवगक रूप से
संवेदनिील होकर संसाधनों का अवंटन सुवनवश्चत करने की रणनीवत तथा सवमिगत अर्थथक
नीवत के वनमाथण का एक साधन है।
 2005-06 के बजट में बजटीय अवंटन हेतु लैंवगक-संवेदनिीलता को रे खांदकत दकया गया
था। जेंडर बजटटग एक प्रकार से सरकार द्वारा ईवललवखत लैंवगक प्रवतबद्ताओं को बजट
प्रवतबद्ताओं में रूपांतररत करना है। आसमें मवहलाओं के सिवक्तकरण हेतु वविेष पहलें और
ईनके वलए अवंरटत संसाधनों के ईपयोग तथा सरकार द्वारा मवहलाओं के वलए बनाइ गइ
नीवतयों एवं सावथजवनक व्यय के प्रभावों की जाँच सवममवलत होते हैं। 2006-07 के बजट में
आसे और ऄवधक ववस्तृत दकया गया था।
आसकी अवश्यकता क्यों है?
 पुरुषों और मवहलाओं की अवश्यकताओं तथा प्राथवमकताओं पर समान रूप से ववचार सुवनवश्चत
करना।
 बजट की तैयारी, कायाथन्वयन, लेखा परीक्षा अदद जैसे सभी स्तरों पर लैंवगक ववश्लेषण के
समावेिन को प्रोत्सावहत करना तथा लैंवगक समानता के ई्ेश्यों पर बजट के प्रभाव का अकलन
करना।
 अर्थथक और सामवजक नीवतयों के पररणामों के मध्य ऄंतर-समबन्धों में वृवद् करना।
व्यय और लैंवगक ववश्लेषण के वलए ऄपनाया गया ढांचा प्रायः तीन श्रेवणयों में ववभावजत दकया जाता है:
 बलग-ववविि अवंटन वे अवंटन हैं, जो वविेष रूप से मवहलाओं और बावलकाओं ऄथवा पुरुष या
बालकों की ओर लवक्षत दकये जाते हैं। ईदाहरण के वलए, बावलकाओं के वलए स्कू ली िात्रवृवत या
घरे लू बहसा के मामलों में पुरुषों को परामिथ अदद। कइ सरकारों ने मवहलाओं के कायथिमों के वलए
वविेष कोष अवंरटत दकये हैं। मवहलाओं के जीवन पर पडने वाले ईनके प्रभावों का ववश्लेषण करना
महत्त्वपूणथ है तथा साथ ही यह सुवनवश्चत करना भी महत्त्वपूणथ है दक ऐसे कायथिमों ने प्रयुक्त धन
का पूणथ ईपयोग हुअ है।

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 मुख्यधारा के अवंटन द्वारा ईत्पन्न प्रभावों की जाँच दकये जाने की अवश्यकता है। ऄवधकांि व्यय
आसी श्रेणी में अते हैं और बलग ववश्लेषण की वास्तववक चुनौती यह जाँच करना है दक क्या अवंटन
ने वववभन्न अर्थथक और सामावजक पृष्ठभूवम की मवहलाओं, पुरुषों, बावलकाओं और बालकों की
अवश्यकताओं को समान रूप से समबोवधत दकया है।
 ं ी अवंटन, सावथजवनक सेवा में लैंवगक समानता को प्रोत्सावहत
रोजगार के समान ऄवसर संबध
करने हेतु दकया जाने वाला अवंटन है। ईदाहरण के वलए कमथचाररयों के बच्चों के वलए ददन में
देखभाल की सुववधा, ऄवभभावकीय ऄवकाि अदद।
जेंडर बजटटग में चुनौवतयाँ और आसे सीवमत करने वाले कारक:
जेंडर बजटटग के कायाथन्वयन और आन प्रदियाओं से प्राप्त ववश्लेषण को स्वीकार करने में कइ चुनौवतयाँ हैं:
 बलग-ऄसंबद् अंकडों का एकत्रीकरण: कु ि बलग-ऄसंबद् अंकडे ईपलब्ध हैं, परन्तु मवहलाओं और
पुरुषों तथा लडकों और लडदकयों के मध्य ईपवस्थत ऄसमानताओं पर प्रकाि डालने के वलए
ऄवधक जानकारी एकवत्रत करने की अवश्यकता है। यह जानकारी वविेष रूप से संसाधनों तक
पहुंच तथा ऄवसरों व सुरक्षा के संदभथ में महत्त्वपूणथ है तथा आसके वबना बजट प्रदिया में बलग
पररप्रेक्ष्य समावहत करना समभव नहीं है।
 नीवत और बजट पररवतथनों के साथ ववश्लेषण को समबद् करने हेतु सीवमत साक्ष्य ईपलब्ध हैं क्योंदक
वैविक रूप में भी जेंडर बजटटग पहल ऄभी ववश्लेषण के चरण में ही है।
 संसदीय हस्तक्षेप की सीमा: ववधान मंडल ने लैंवगक-वविेषञापों (gender experts) और वसववल
सोसाआटी के साथ वमलकर वववभन्न देिों में महत्त्वपूणथ समथथनकारी भूवमका वनभाइ है। परन्तु बजट
प्रदिया में ववधावयका की भूवमका प्रायः बजटीय ऄनुमोदन और पयथवेक्षण तक ही सीवमत रहती है।
यह बजट वनमाथण एवं आसके वनष्पादन में सवममवलत नहीं होती है।
 जेंडर बजटटग को संस्थागत बनाने की राजनीवतक आछिािवक्त: जेंडर बजटटग के वलए राजनीवतक
आछिािवक्त, पयाथप्त संसाधन और क्षमता की अवश्यकता होती है जो पारमपररक बजट-वनमाथण और
नीवत प्रदियाओं को लमबे समय से चले अ रहे पूवाथिहों से मुक्त कर सके क्योंदक आससे मवहलाएं
और बावलकाएं नुकसान की वस्थवत में रहती हैं।

6.6. इ-बजटटग (E-budgeting)

इ-बजटटग से अिय आलेक्ट्रॉवनक ऄथवा ईद्यम-व्यापी (enterprise-wide) बजट से है। यह आं टरनेट की


सहायता से लाभ प्रदान करता है। आसका लक्ष्य वववभन्न प्रवतष्ठानों द्वारा एक ऐसी ईद्यम-व्यापी बजट
प्रणाली वनष्पाददत करना हैसरल एवं सुगम हो।
लाभ:
 यह प्रणाली ऄत्यवधक कु िल है, क्योंदक यह पयथवेक्षण, वनयन्त्रण और बोवझल लेखांकन कायों का
ईन्मूलन कर दक्षता लाने में सहायक है।
 सुववधाजनक और ऄनुकूलनीय है क्योंदक कहीं भी तथा दकसी भी समय बजट-वनमाथण हेतु
प्रौद्योवगकी का ईपयोग दकया जा सकता है।
 आसके द्वारा इ-वबज़नस से तालमेल बनाये रखने में सक्षम योजनाओं का वनमाथण सुवनवश्चत होता है।
 एक ही मंच पर प्रबंधकों, प्रिासकों और मंवत्रयों के साथ सहयोग करने की क्षमता।
 वविव्यापी संचार और सहयोग।
 गणना और ऄन्य प्रदियाओं के स्वचालन से सुगम मूलयांकन।
संसाधनों के कु िल अवंटन से वनरं तर पररवर्थतत होते अर्थथक पररवेि में सफलतापूवक
थ प्रवतस्पधाथ करने
में सरकारों की सहायता करने के कारण इ-बजटटग ववि भर में एक मानक बनता जा रहा है।

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भारतीय ऄथथव्यवस्था
6. मुद्रास्फीतत

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तवषय सूची
1. मुद्रास्फीतत की पररभाषा ________________________________________________________________________ 3

2. मुद्रास्फीतत के प्रकार (मुद्रास्फीतत की दर के अधार पर) ___________________________________________________ 3

3. मुद्रास्फीतत के प्रकार (कारणों के अधार पर) __________________________________________________________ 3

4. संबतं धत पाररभातषक पद ________________________________________________________________________ 4

5. मुद्रास्फीतत के कारण ___________________________________________________________________________ 5

6. मुद्रास्फीतत के पररणाम ________________________________________________________________________ 6

7. मुद्रास्फीतत को रोकने के ईपाय और ईनकी सीमाएँ _____________________________________________________ 7

8. मुद्रास्फीतत का मापन __________________________________________________________________________ 9

8.1. ऄवतध के अधार पर मुद्रास्फीतत का मापन _________________________________________________________ 9

8.2. GDP तिफ्लेटर ___________________________________________________________________________ 9

8.3. थोक मूल्य सूचकांक (WPI) __________________________________________________________________ 10

8.4 ईपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) _______________________________________________________________ 13

8.5. सेवा मूल्य सूचकांक (Services Price Index; SPI) _______________________________________________ 15

8.6. GST का मुद्रास्फीतत दरों पर संभातवत प्रभाव _____________________________________________________ 16

9. मुद्रास्फीतत को तनयंत्रण करने हेतु नवीन नीततगत ईपाय _________________________________________________ 16

9.1. मौद्रद्रक नीतत सतमतत के लाभ _________________________________________________________________ 17

9.2. मौद्रद्रक नीतत सतमतत के पररप्रेक्ष्य में अशंकाएं______________________________________________________ 17


1. मु द्रास्फीतत की पररभाषा
 मुद्रास्फीतत से तात्पयथ ऄथथव्यवस्था के सामान्य मूल्य स्तर (general price level) में क्रतमक वृति
और समय के साथ मुद्रा की क्रय शतक्त में कमी से है। सरल शब्दों में, मुद्रास्फीतत से अशय
ऄथथव्यवस्था में समस्त वस्तुओं और सेवाओं के औसत मूल्य स्तर में वृति है। बाजार में ऄत्यंत कम
वस्तुओं के क्रय हेतु ऄत्यतधक मुद्रा का संचलन होने पर मुद्रास्फीतत की तस्थतत ईत्पन्न होती है
ऄथाथत् मुद्रा अपूर्तत के सापेक्ष वस्तुओं और सेवाओं की अपूर्तत में समान रूप से वृति नहीं हो पाती
है।

2. मु द्रास्फीतत के प्रकार (मु द्रास्फीतत की दर के अधार पर)


मुद्रास्फीतत की दर के अधार पर, आसे व्यापक रूप से तीन प्रकार में तवभक्त द्रकया जा सकता है :
 रें गती मुद्रास्फीतत (Creeping Inflation) की तस्थतत में मुद्रास्फीतत की दर 1% से 5% के मध्य
होती है। आस प्रकार की मुद्रास्फीतत मुद्रा की क्रय शतक्त को कम करती है, परन्तु तवकासशील
ऄथथव्यवस्था में आसे प्रबंधनीय और कभी-कभी ऄपररहायथ माना जाता है।
 ट्रॉटटग या तीव्र मुद्रास्फीतत (Trotting Inflation) की तस्थतत में वृति दर 5% से 10% के मध्य
होती है। ईतचत तनयंत्रण के ऄभाव में यह 10% से 20% वार्तषक की दर से बढने वाली मुद्रास्फीतत
ऄथाथत् गैलोपपग मुद्रास्फीतत (galloping inflation) में पररवर्ततत हो जाती है तथा गैलोपपग
स्फीतत, ऄतत मुद्रास्फीतत (runaway inflation) में पररवर्ततत हो सकती है।
 ऄतध मुद्रास्फीतत या हाआपर मुद्रास्फीतत (Hyper Inflation): आस प्रकार की मुद्रास्फीतत तनयंत्रण
से बाहर होती है। आसकी वार्तषक दर तमतलयन या रट्रतलयन में भी हो सकती है। ऐसी मुद्रास्फीतत में
न के वल वृति सीमा बहुत ऄतधक होती है, ऄतपतु यह वृति ऄत्यंत ही ऄल्प ऄवतध में होती है। कइ
तस्थततयों में वस्तुओं के मूल्य रात भर में बढ़ जाते हैं। यह मुद्रा के मूल्य में आतनी तीव्रता से कमी
करती है द्रक सरकार एक नइ मुद्रा को ऄपनाने के तवषय में तवचार करना अरम्भ करने लगती है l
1922 और नवंबर 1923 के मध्य की जमथन ऄथथव्यवस्था, ऄतध मुद्रास्फीतत के सबसे प्रतसि
ईदाहरणों में से एक है। नूतन ईदाहरणों में, 2008 में तजम्बाब्वे की ऄथथव्यवस्था में हुइ ऄतध
मुद्रास्फीतत की तस्थतत प्रमुख है ।

3. मु द्रास्फीतत के प्रकार (कारणों के अधार पर)


मुद्रास्फीतत को कारणों के अधार पर आसको तनम्नतलतखत प्रकारों में वगीकृ त द्रकया जा सकता है:
 मांग प्रेररत मुद्रास्फीतत (Demand Pull Inflation): आस प्रकार की मुद्रास्फीतत मांग में वृति के
कारण ईत्पन्न होती है। ऐसी तस्थतत में ऄथथव्यवस्था में वस्तु और सेवाओं की अपूर्तत ईनकी माँग के
सापेक्ष कम होती है। आस प्रकार की मुद्रास्फीतत को ‘ऄत्यंत कम वस्तुओं के क्रय हेतु ऄत्यतधक मुद्रा
की ईपलब्धता' द्वारा वर्तणत द्रकया जा सकता है। आस प्रकार की मुद्रास्फीतत का प्रमुख कारण
सरकारी व्यय या वेतनमान में वृति होने से बाजार में मुद्रा की अपूर्तत में वृति होना है।
 लागत जन्य मुद्रास्फीतत (Cost-push inflation): आसे अपूर्तत शॉक स्फीतत के नाम से भी जाना
जाता है। अगतों के मूल्यों में वृति के पररणामस्वरूप वस्तुओं/ सेवाओं की अपूर्तत में होने वाली
कमी के कारण से लागत जन्य मुद्रास्फीतत की तस्थतत ईत्पन्न होती है। ईदाहरणतया, ऄंतरराष्ट्रीय
बाजार में कच्चे तेल के मूल्यों में वृति से भारत जैसे देशो में लगभग सभी वस्तुओं की अगत पर
प्रततकू ल प्रभाव पड़ता है, क्योंद्रक भारत जैसे देशों के पास ऄपनी उजाथ की अवश्यकताओं को पूरा
करने के तलए तेल का कोइ ऄन्य तवकल्प ईपलब्ध नहीं है। साथ ही, भारत में घरे लू तेल का
ईत्पादन भी ऄतधक मात्रा में नहीं होता है।

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 संरचनात्मक मुद्रास्फीतत (Structural Inflation): आस प्रकार की मुद्रास्फीतत को बोटलनेक
(ऄवरोध कारक) मुद्रास्फीतत के रूप में भी जाना जाता है। सरकारी नीततयों के कारण आस प्रकार
की मुद्रास्फीतत की तस्थतत ईत्पन्न होती है। मौसम और ऊतु संबंधी तस्थततयों या अपूर्तत में अने
वाली बाधाओं के कारण समय-समय पर ऐसी मुद्रास्फीतत की तस्थतत ईत्पन्न होती है, तजससे
वस्तुओं और सेवाओं की अपूर्तत में कमी हो जाती है। भारत में मुद्रास्फीतत ऄतधकांशत:
संरचनात्मक कारकों के कारण होती है। ईदाहरण के तलए, भारत में द्रकसान और ऄंततम ईपभोक्ता
के मध्य मध्यस्थों की बड़ी संख्या; मांग की गइ वस्तुओं की अपूर्तत में ऄनुरूप वृति के तबना अहार-
संबंधी पैटनथ में बदलाव।

4. सं बं तधत पाररभातषक पद
 स्टैग्फफ्लेशन (Stagflation): स्टैग्फफ्लेशन से अशय ऄथथव्यवस्था की ऐसी तस्थतत से है तजसमे
मुद्रास्फीतत की दर और बेरोज़गारी दोनों का ईच्च स्तर पाया जाता है। ऐसी तस्थतत तब ईत्पन्न
होती है जब मुद्रास्फीतत लंबी ऄवतध से व्याप्त होती है और पररणामस्वरूप यह मुद्रास्फीतत
ऄथथव्यवस्था में अगतों के मूल्यों के साथ-साथ वस्तु और सेवाओं की मांग को भी प्रभातवत करती
है।
 मुद्रा ऄपस्फीतत (Deflation): यह मुद्रास्फीतत की पूणत
थ या तवपरीत तस्थतत है। आस तस्थतत में समय
के साथ ऄथथव्यवस्था में वस्तु और सेवाओं के सामान्य मूल्य स्तर में तगरावट अती है। मुद्रास्फीतत
की दर 0% (ऊणात्मक मुद्रास्फीतत दर) से कम होने पर ऄपस्फीतत की तस्थतत ईत्पन्न होती है। आसे
ऄवस्फीतत (disinflation) के साथ भ्रतमत नहीं करना चातहए। ऄवस्फीतत का ऄथथ मुद्रास्फीतत की
दर में धीमी द्रकन्तु सतत कमी (जहां मुद्रास्फीतत में तगरावट अती है, लेद्रकन यह सकारात्मक बनी
रहती है) से है। 1997 के ऄंत में एतशयाइ तवत्तीय संकट के बाद हांगकांग की ऄथथव्यवस्था में काफी
समय तक ऄपस्फीतत की तस्थतत बनी रही, जो ऄंततः वषथ 2004 के ऄंत में समाप्त हुइ।
 ररसेशन या ऄवमंदन (Recession): ररसेशन की तस्थतत में तनरं तर ततमातहयों में GDP की
नकारात्मक वृति दर ऄंद्रकत की जाती है। मंदी के कु छ संकेतकों में ऄथथव्यवस्था में तनवेश की कमी,
ऄथथव्यवस्था के ईत्पादन में तगरावट, ईत्पादन की तुलना मांग में कमी अना आत्याद्रद सतम्मतलत हैं।
 मंदी (Depression): यह ररसेशन का चरम रूप है और यह तस्थतत तब ईत्पन्न होती है जब
ऄथथव्यवस्था में मंदी की तस्थतत बहुत ऄतधक समय से व्याप्त हो। ररसेशन की तस्थतत को तनधाथररत
करने का सामान्य तनयम यह है की यद्रद दो सतत ततमातहयों में GDP की वृति दर नकारात्मक
रहती है तो ईसे ररसेशन की तस्थतत मान तलया जाता है। यद्रद आसके साथ ही सकल घरे लू ईत्पाद में
10% से ऄतधक की तगरावट दजथ की जाती है तो ईसे मंदी (Depression) की श्रेणी में रखा जाता
है। मंदी के कु छ संकेतको में वस्तुओं और सेवाओं की मांग एवं ईपभोग में ऄत्यतध कमी, व्यापाररक
तवश्वास का पतन, ऄथथव्यवस्था और तनवेश के ईत्पादन में तीव्र तगरावट अद्रद सतम्मतलत है। मंदी
के ईदाहरणों में से एक 1930 के दशक में अइ महामंदी (great depression) है।
 आन्फ्लेशन स्पाआरल (Inflation Spiral): एक ऄथथव्यवस्था में मुद्रास्फीतत की ऐसी तस्थतत जहां
मजदूरी की दर, वस्तुओं के मूल्य में वृति करती है तथा वस्तुओं के मूल्य, मजदूरी की दर में वृति
करती है। आसे मजदूरी-मूल्य सर्तपल (wage-price spiral) के रूप में भी जाना जाता है। 1935 में
ऄमेररकी ऄथथव्यवस्था में मुद्रास्फीतत के एक संभातवत कारण के रूप में आसकी पहली बार पहचान
की गइ थी।

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 ररफ्लेशन (Reflation): ईच्च स्तरीय अर्तथक तवकास हेतु बेरोजगारी को कम करने और मांग को
बढ़ाने के ईद्देश्य से सरकार द्वारा जान-बूझकर ऐसी तस्थतत पैदा की जाती है। आस तस्थतत में सरकार
द्वारा ईच्च सावथजतनक व्यय, कर कटौती, ब्याज दर में कटौती अद्रद द्रकये जाते हैं। आससे राजकोषीय

घाटे में वृति होती है और अम तौर पर वृति के ईच्च स्तर पर ऄततररक्त मुद्रा जारी की जाती है,
वेतन में वृति होती है। ररफ्लेशन को एक तभन्न दृतिकोण से भी समझा जा सकता है - जब
ऄथथव्यवस्था में ररसेशन की तस्थतत (कम मुद्रास्फीतत, ईच्च बेरोजगारी, कम मांग अद्रद) ईत्पन्न
होती है तो सरकार को ऄथथव्यवस्था को पुनजीतवत करने के तलए कु छ अर्तथक नीततगत तनणथय
करने पड़ते हैं। आन तनणथयों के पररणामस्वरूप कु छ वस्तुओं के मूल्यों में अकतस्मक वृति देखी जाती
है तथा मूल्यों में हुइ आस वृति को ररफ्लैशन के रूप में भी जाना जाता है।

5. मु द्रास्फीतत के कारण
 मुद्रास्फीतत मुख्य रूप से दो कारकों के कारण होती है- मांग प्रेररत कारक तथा लागत जन्य कारक।
ईपयुथक्त दोनों कारकों को नीचे तवस्तार से बताया गया है:
a) मांग प्रेररत कारक: आसमें ईन कारकों का समूह तनतहत हैं, तजनके कारण ऄथथव्यवस्था में वस्तुओं और
सेवाओं की मांग में वृति हो सकती है।
ईनमें से कु छ तनम्नतलतखत है:
 सरकारी व्यय में वृति: सरकारी व्यय में वृति के पररणामस्वरुप वस्तुओं और सेवाओं की मांग में
भी वृति होती है। आसके फलस्वरूप ईनके मूल्यों में वृति होती है। ऐसा सरकारी व्यय में वृति के
पररणामस्वरूप जनता के पास ऄतधक मुद्रा अ जाने के कारण होता है। ऄतधक मुद्रा से वस्तुओं और
सेवाओं की मांग में वृति तो हो जाती है परन्तु अपूर्तत यथावत या कम रहती है, पररणामस्वरूप
मुद्रास्फीतत की तस्थतत ईत्पन्न होती है। सरकार ऄपने व्यय को पूणथ करने हेतु नइ मुद्रा जारी करती
है, आससे सभी कारको की मुद्रास्फीतत पर ऄत्यतधक प्रभाव पड़ता है। यही कारण था द्रक FRBMA

ऄतधतनयम, 2003 के बाद आसे प्रततबंतधत कर द्रदया गया था।

 बढ़ती जनसंख्या: बढ़ती जनसंख्या भी मूल्य वृति में महत्वपूणथ कारक की भूतमका तनभाती है,
तवशेष रूप से जब बढ़ती जनसंख्या से मांग में वृति होती है परन्तु मांग के ऄनुरूप अपूर्तत में वृति
नहीं होती है।
 काला धन: काले धन का एक बड़ा तहस्सा शहरी आलाकों में स्थावर संपतत्त (ररयल एस्टेट) खरीदने
और बेचने, ऄनाज, दालों अद्रद जैसी अवश्यक वस्तुओं की व्यापक जमाखोरी एवं कालाबाजारी में
काले धन का आस्तेमाल होता है। आस प्रकार काले धन से वस्तुओं और सेवाओं की मांग और मूल्य में
वृति होती है।
 ईपभोग प्रततरूप में पररवतथन: भारतीय ररजवथ बैंक (RBI) के वररष्ठ ऄतधकाररयों द्वारा एक
तसिांत प्रस्तुत द्रकया है। आस तसिांत के ऄनुसार भारत में मुद्रास्फीतत की समस्या को अय वृति के
साथ जोड़ के देखा जा रहा है। चूद्रं क अय वृति के कारण लोगों की क्रय शतक्त में वृति होती है तथा
पररणामस्वरूप प्रोटीन युक्त भोजन, दालें, ऄंि,े मछली और मुगी अद्रद जैसे कु छ तवशेष खाद्य
वस्तुओं की मांग तेजी से बढ़ती हैं। आन वस्तुओं के ईपभोग में वृति के कारण ऄथथव्यवस्था में आनकी
कीमते भी बढ़ जाती है ।
 मजदूरी में वृति: जब सामान्य मजदूरी में वृति होती है, तो मुद्रा की अपूर्तत में वृति के कारण
ऄथथव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग भी बढ़ जाती है।

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b) लागत जन्य कारक:
 मजदूरी में वृति: यद्रद मजदूरी में समय-समय पर होने वाली वृति ईत्पादकता में होने वाली वृति
से ऄतधक है तो मजदूरी में आस वृति से लागत बढ़ती है तथा पररणामस्वरूप कीमतें भी बढ़ती हैं I
 ऄप्रत्यक्ष करों में वृति के कारण लागत जन्य मुद्रास्फीतत की तस्थतत ईत्पन्न होती है। सीमा शुल्क
और ईत्पाद शुल्क से करों में वृति से ईत्पादन लागत बढ़ जाती है चूंद्रक ये कर वस्तुओं पर अरोतपत
द्रकए जाते हैं।
 खाद्यान्न, पेट्रोतलयम ईत्पादों अद्रद के तलए MSP (न्यूनतम समथथन मूल्य) जैसे प्रशातसत मूल्यों में
वृति के पररणामस्वरूप मुद्रास्फीतत की तस्थतत ईत्पन्न हो जाती है क्योंद्रक अम अदमी के दैतनक
बजट में आन वस्तुओं का महत्वपूणथ योगदान होता है।
 ऄवसंरचना संबध
ं ी बाधाएं: ईतचत सड़क व्यवस्था का ऄभाव, तवद्युत, जल की कमी अद्रद जैसी
ऄवसंरचना संबंधी बाधाएं ईत्पादन की प्रतत यूतनट लागत में वृति करते हैं। यह भारतीय
ऄथथव्यवस्था के संदभथ में मुद्रास्फीतत के प्रमुख कारणों में से एक है।
 मौसमी एवं चक्रीय कारणों के कारण ईतार-चढ़ाव: ऄसफल मानसून जैसी घटनाओं के कारण कृ तष
ईत्पादकता में कमी ऄतनवायथ रूप से मुद्रास्फीतत को प्रभातवत करता है।
c) तवतवध कारण:
ईपयुथक्त कारणों के ऄततररक्त कइ ऄन्य कारक भी हैं जो ऄथथव्यवस्था में मुद्रास्फीतत में वृति करते हैं।
ईनमें से कु छ को नीचे सूचीबि द्रकया गया है:
 ऄंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेल, कच्चे तेल अद्रद जैसे कु छ पदाथों के मूल्यों में वृति।
 तबचौतलयों की बड़ी संख्या और ईनके द्वारा मुनाफे के रूप में बड़ी मात्रा में पैसा तलया गया।
 भारतीय ऄथथव्यवस्था में कु छ व्यापाररयों द्वारा ऄपनायी जाने वाली काटथलाआजेशन प्रथाओं
तजससे ईपभोक्ताओं के तहतों को नुकसान पहुंचता है।
 ऄथथव्यवस्था की उजाथ संबंधी मांगों की पूर्तत हेतु कच्चे तेल के अयात पर ऄत्यतधक तनभथरता।
 दीघथकालीन औद्योतगक ऄशांतत से ईत्पादन क्षमता में कमी अती है।

6. मु द्रास्फीतत के पररणाम
मुद्रास्फीतत कइ संदभो में ऄथथव्यवस्था को प्रभातवत करती है, ईनमें से कु छ प्रभावों को नीचे सूचीबि
द्रकया गया है:
 कु छ क्षेत्रों में ररसेशन: कु छ वस्तुओं के मूल्यों में वृति के कारण ईनकी मांग में कमी अ जाती है
तथा पररणामस्वरूप ऄथथव्यवस्था के कु छ क्षेत्रों में ररसेशन की तस्थतत ईत्पन्न हो जाती है।
 कमथचाररयों पर प्रततकू ल प्रभाव: मुद्रास्फीतत से कमथचारी प्रततकू ल रूप से प्रभातवत होते हैं क्योंद्रक
ईनकी क्रय शतक्त में कमी अती है जबद्रक वेतन समान रहता है। दूसरी ओर, यह व्यवसातययों के

ऄनुकूल होती है, क्योंद्रक मूल्यों में वृति के कारण ईन्हें लाभ प्राप्त होता है।
 ईत्पादन पैटनथ में तवकृ ततयां: मुद्रास्फीतत के कारण पूज
ं ी संसाधनों का दीघथकातलक ईपयोग के स्थान
पर ऄल्पावतधक ईपयोग होने लगता है तथा ऄथथव्यवस्था में ईत्पादन अवश्यक वस्तुओं से गैर-
अवश्यक वस्तुओं की ओर तवस्थातपत होने लगता है।
 वृति तथा ईद्योग के तलए ऊण ईपलब्धता पर प्रभाव: प्रायः ऄथथव्यवस्था में मुद्रास्फीतत को रोकने
के तलए ब्याज दरों में वृति की जाती है। आससे ईद्योगों के तलए ईतचत दर पर ऊण ईपलब्धता की
कमी हो जाती है तजससे ऄथथव्यवस्था का तवकास प्रभातवत होता है। हाल के वषों में भारत में हुइ
मुद्रास्फीतत में यह प्रवृतत्त देखी गइ है।

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 तनयाथत पर प्रभाव: मुद्रास्फीतत तनयाथत को हतोत्सातहत करती है क्योंद्रक तवदेशी अयातकों के तलए
माल की कीमते बढ़ जाती हैं, तथा तवतनमाथताओं के तलए घरे लू बाजार में वस्तुओं को तवक्रय
ऄपेक्षाकृ त ऄतधक लाभदायक हो जाता है। ये सभी भुगतान संतल
ु न को प्रततकू ल रूप से प्रभातवत
करते हैं। ईदाहरण के तलए हाल ही में भारतीय ऄथथव्यवस्था में ईच्च मुद्रास्फीतत के साथ ईच्च चालू
खाता घाटे की तस्थतत देखी गइ थी।
 अयात पर प्रभाव: घरे लू ऄथथव्यवस्था में मुद्रास्फीतत की तस्थतत में वस्तुओं के अयात में वृति होती
है क्योंद्रक अयाततत माल घरे लू स्तर पर ईत्पाद्रदत वस्तुओं की तुलना में सस्ते हो सकते हैं। अयात
में वृति से चालू खाता घाटे में वृति हो सकती है।
 तवदेशी मुद्रा पर प्रततकू ल प्रभाव: मुद्रास्फीतत के कारण तनयाथत में अइ कमी एवं अयात में हुइ
वृति से तवदेशी मुद्रा की मांग बढ़ जाती है। पररणामस्वरूप घरे लू ऄथथव्यवस्था में मूल्यह्रास की
तस्थतत ईत्पन्न हो जाती है। ईदाहरण के तलए भारतीय रूपए में हाल के द्रदनों में ईच्च मुद्रास्फीतत के
कारण सवाथतधक मूल्यह्रास देखा गया था।
 बचतों का हतोत्साहन: मुद्रा के मूल्य में कमी और दीघथकातलक ऄतनतितता के कारण ईच्च
मुद्रास्फीतत से ऄथथव्यवस्था में बचत की प्रवृतत हतोत्सातहत होती है।
 अमदनी का ऄसमान तवतरण: मुद्रास्फीतत से सांकेततक मजदूरी मूल्य में वृति होती है, जबद्रक
ईनके वास्ततवक मूल्य में कमी अती है। आससे वेतनीय कमथचाररयों की क्रय शतक्त और जीवन स्तर
पर मुद्रास्फीतत का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। आस प्रकार यह तनधथन को ओर तनधथन बनाता है।
मुद्रास्फीतत के समय में सट्टेबाजों और कालाबाजारी में संलग्न लोग जमाखोरी आत्याद्रद के माध्यम से
कृ तत्रम कमी पैदा करके जनता को ऄतधक मूल्य पर सामान बेचकर लाभ कमाते है। पररणामस्वरूप
अय के तवतरण में ऄसंतल
ु न हो जाता है।
 भ्रिाचार का बढ़ावा: करिन पररश्रम करने वाले और इमानदार व्यतक्त मुद्रास्फीतत से हतोत्सातहत

होते हैं, क्योंद्रक एक अम अदमी ऄपनी तनतित अय से बढ़ते हुए खचों को पूरा नहीं कर सकता

है। साथ ही मुद्रास्फीतत कालाबाजारी, जमाखोरी अद्रद को प्रोत्सातहत करती है।


 राजकोषीय घाटे में वृति: मुद्रास्फीतत में सरकार द्वारा प्राप्त ऊण भी ऄपेक्षाकृ त ऄतधक महंगा
हो जाता है तजससे राजकोषीय घाटा और बढ़ जाता है।

7. मु द्रास्फीतत को रोकने के ईपाय और ईनकी सीमाएँ


द्रकसी ऄथथव्यवस्था में मुद्रास्फीतत को आितम स्तर पर बनाये रखने के ईद्देश्य से मौद्रद्रक, तवत्तीय और
प्रशासतनक ईपाय द्रकए जाते हैं:
a) मौद्रद्रक ईपाय

द्रकसी देश के कें द्रीय बैंक (भारत के मामले में RBI) द्वारा मौद्रद्रक नीतत ईपाय द्रकए जाते है। आस पितत
में ऄथथव्यवस्था को मुख्यतः ब्याज दर द्वारा तवतनयतमत द्रकया जाता है। चूंद्रक ये ईपाय ऄथथव्यवस्था में
तरलता को तनयंतत्रत करते हैं, आसतलए आनका ईपयोग के वल मांग-प्रेररत मुद्रास्फीतत को तनयंतत्रत करने
के तलए द्रकया जा सकता है। आसके तवषय में नीचे चचाथ की गइ है:
 मांग प्रेररत मुद्रास्फीतत दर में कमी करने के तलए RBI किोर मौद्रद्रक नीतत का सहारा ले सकता हैI

ईदाहरण के तलए बाजार में मुद्रा की अपूर्तत को रोकने के तलए RBI, बैंक दर/रे पो दर अद्रद में
वृति कर सकता है। आसके चलते जनता बैंकों में ऄतधक तनवेश करे गी और फलस्वरूप जनता के
मध्य मुद्रा में कमी हो जाएगी, तजससे ऄथथव्यवस्था में मुद्रास्फीतत की दर कम होगी।

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 RBI गुणात्मक तनयंत्रण तवतधयों का ईपयोग भी कर सकता है, जैसे द्रक ईन वस्तुओं के ऊण पर

मार्तजन बढ़ाना तजन पर व्यापाररयों को कालाबाजारी और जमाखोरी करने की प्रवृतत्त होती है।
 RBI, खुले बाजार में प्रततभूततयों का क्रय-तवक्रय (Open Market Operations) जैसे ऄन्य

पररचालनों का सहारा ले सकता है।


परन्तु मौद्रद्रक ईपाय तभी सफल हो सकते हैं जबद्रक मुद्रास्फीतत संरचनात्मक न होकर तसफथ मांग प्रेररत
हो। नीचे ब्याज दरों में वृति करने की कु छ सीमाओं की चचाथ की गइ है:
 ऄतीत में कइ बार यह देखा गया है द्रक RBI द्वारा बैंक दर में की गयी वृति के ऄनुपात में बैंकों

द्वारा ब्याज दर में ईतचत वृति नहीं की जाती है। RBI द्वारा ईतचत संकेत देने के बाद भी बैंक

ऄतनवायथ रूप से समय-समय पर ऄपने स्वयं की ब्याज दर में वृति नहीं करते हैं तथा आस प्रकार
मौद्रद्रक ईपाय के सम्पूणथ ईद्देश्य को तवफल हो जाता है।
 ऄत्यतधक संख्या में ऄसंगरित बैंककग व्यवस्था की ईपतस्थतत, भारत जैसे देश में एक ऄन्य

महत्वपूणथ मुद्दा है। आसके पररणामस्वरूप RBI ऄथथव्यवस्था में बैंककग क्षेत्र के एक बड़े भाग को

तनयंतत्रत करने में सक्षम नहीं है।


 मुद्रास्फीतत को रोकने के तलए ऄपनाइ जाने वाली ईच्च ब्याज दरों का ऄथथव्यवस्था के ईत्पादक
क्षेत्रों में क्रेतिट या ऊण के प्रवाह पर प्रततकू ल प्रभाव पड़ता है। फलस्वरूप अर्तथक वृति से
समझौता करना हो सकता है। यह समस्या तपछले कु छ वषों से भारतीय ऄथथव्यवस्था में तनरं तर
बनी रही है।
b) राजकोषीय ईपाय

 ये ईपाय राजकोषीय नीतत के माध्यम से लागू द्रकये जाते हैं। राजकोषीय नीतत को लोकतप्रय रूप से
वार्तषक बजट कहा जाता है। आस तवतध के ऄंतगथत मूल्यों को कम करने के तलए सरकार दो तवकल्पों
का ईपयोग कर सकती है:
o सरकार तवतभन्न योजनाओं व पररयोजनाओं अद्रद पर होने वाले व्यय में कमी कर सकती है।
o सरकार, कर (प्रत्यक्ष या ऄप्रत्यक्ष) की दरों में वृति कर सकती है।

 जहां तक पहले तवकल्प का संबध


ं है, तवश्व भर में ऄतधकांश सरकारें आस तवतध को दो कारणों से

नहीं ऄपनाती है। पहला, वे ऄवसंरचना अद्रद से संबंतधत कइ महत्वपूणथ पररयोजनाओं में तनवेश में

ऄकस्मात् कमी नहीं कर सकती हैं। ऐसा करने से बाजार में नकारात्मक भावना का प्रसार होगा
और देश की तवकासात्मक छतव को िे स पहुंचेगी। दूसरा, यद्रद वे तवतभन्न महत्वपूणथ कल्याणकारी

योजनाओं अद्रद पर व्यय में कमी करते हैं तो ऄगले चुनावों में राजनीततक रूप से ईन्हें नुकसान
पहुँच सकता हैं। ऄतः तवतभन्न कारणों के कारण सरकारी व्यय को कम करना एक युतक्तसंगत ईपाय
नहीं माना जाता है।
 दूसरी तवतध व्यय को हतोत्सातहत करने हेतु कराधान को बढ़ाना है। लोगों की अय को कम करने
के तलए तनजी प्रत्यक्ष करों में वृति कर जनता में ईपभोग की प्रवृतत्त को कम द्रकया जा सकता है।
सरकार वस्तुओं पर लगने वाले ऄप्रत्यक्ष करों में वृति कर वस्तुओं की मूल्यों में वृति कर सकती है
तथा आस प्रकार वास्ततवक व्यय योग्फय अय कम होने से जनता द्वारा द्रकए जाने वाले व्यय को
हतोत्सातहत द्रकया जा सकता है। लेद्रकन आस तवकल्प की यह सीमा है द्रक आसे प्रभावी बनाने में कु छ
समय लगता है, क्योंद्रक राजकोषीय नीतत को वार्तषक अधार पर लागू द्रकया जाता है।

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c) प्रशासतनक ईपाय:
 ये ईपाय प्रशासतनक संस्थाओं द्वारा लागू द्रकए जाते हैं । चूंद्रक मौद्रद्रक नीतत और राजकोषीय नीतत
दोनों की ऄपनी ऄंतर्तनतहत सीमाएं हैं और आनके द्रक्रयान्वयन में कु छ ऄंतराल बना रहता हैं, ऄतः
मुद्रास्फीतत को कम करने हेतु सरकार द्वारा कु छ प्रशासतनक ईपाय करना महत्वपूणथ हो जाता है।
नीचे कु छ प्रशासतनक ईपायों के बारे में चचाथ की गइ है:
o खाद्य तेल, प्याज और दालों के तनयाथत पर प्रततबंध।
o कु छ अवश्यक वस्तुओं के वायदा व्यापार पर ऄस्थायी प्रततबंध।
o PDS में लीके ज को कम करने के तलए सरकार को किोर कदम ईिाने चातहए l छत्तीसगढ़ के
PDS मॉिल के अधार पर सरकार PDS में सुधार ला सकती है तथा आस प्रकार से बाजार
मूल्यों एवं ईतचत मूल्य दुकानों के मूल्यों को प्रभातवत कर सकती है।
o अवश्यक वस्तुओं की कालाबाजारी को रोकने हेतु सरकार द्वारा आन वस्तुओं के गोदामों में
औचक तनरीक्षण की व्यवस्था सुतनतित की जानी चातहए तजससे ऄल्पकालीन मुद्रास्फीतत को
दूर द्रकया जा सके ।
 आन ईपायों की भी ऄपनी सीमाएं हैं, और ये मुद्रास्फीतत को के वल ऄल्पावतध हेतु ही तनयंतत्रत कर
सकते हैं। मांग-प्रेररत या लागत जन्य मुद्रास्फीतत की रोकथाम में ये ऄतधक महत्वपूणथ नहीं हैं।
साधारणतया जनता को तत्काल राहत देने के तलए ये कदम ईिाए जाते हैं।
 आसतलए प्रभावी तनयंत्रण के तलए आन ईपायों के एक संयोजन को ऄपनाया जाता है। आनमें से एक
ईपाय मुद्रास्फीतत लक्ष्यीकरण (Inflation Targeting) की नीतत है, तजसकी तवस्तृत समालोचना
अगामी पृष्ठों में की जाएगी।
8. मु द्रास्फीतत का मापन
 भारतीय ऄथथव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों में होने वाले मूल्य पररवतथन की गणना
तवतभन्न मूल्य सूचकांकों जैसे WPI, CPI, SPI अद्रद द्वारा की जाती है। सभी मूल्य सूचकांकों के
तलए "अधार वषथ” का ईपयोग होता है तजसे द्रकसी वषथ तवशेष में द्रकसी वस्तु के मूल्य वृति की
गणना हेतु सन्दभथ वषथ के रूप में प्रयुक्त होता है। ईदाहरण के तलए ऄतखल भारतीय थोक मूल्य
सूचकांक (WPI) में अधार वषथ 2004-05 से पररवर्ततत कर 2011-12 कर द्रदया गया है।

8.1. ऄवतध के अधार पर मु द्रास्फीतत का मापन

 वार्तषक औसत मुद्रास्फीतत दर (Annual Average Inflation Rate): यह तपछले 52 सप्ताह में
मुद्रास्फीतत की दर के औसत को दशाथता है।
 पबदु-दर-पबदु मुद्रास्फीतत दर (Point to Point Inflation Rate): यह तपछले वषथ के एक तवशेष
सप्ताह और चालू वषथ में समान सप्ताह के मध्य मुद्रास्फीतत की दर में पररवतथन को दशाथता है।
ईदाहरण के तलए चालू वषथ के 36वें सप्ताह और तपछले वषथ के भी 36वें सप्ताह के मध्य मुद्रास्फीतत
की दर में पररवतथन को पबदु-दर-पबदु मुद्रास्फीतत दर कहते है।

8.2. GDP तिफ्ले ट र

 यह चालू मूल्यों पर GDP और तस्थर मूल्यों पर GDP के मध्य ऄनुपात को दशाथता है। यद्रद चालू
मूल्यों पर GDP और तस्थर मूल्यों पर GDP बराबर है, तो GDP तिफ्लेटर का मान 1 होगा।
आसका तात्पयथ है द्रक मूल्य स्तर में कोइ पररवतथन नहीं होगा। यद्रद GDP तिफ्लेटर का मान 2 होता
है, तो आसका तात्पयथ यह है द्रक मूल्य 2 के गुणक से बढ़ रही है तथा यद्रद GDP तिफ्लेटर का मान
4 होता है, तो आसका तात्पयथ है द्रक मूल्य 4 के गुणक से बढ़ रही है। GDP तिफ्लेटर को मूल्यों में
पररवतथन का एक श्रेष्ठतर संकेतक मानते है, क्योंद्रक यह देश में ईत्पाद्रदत होने वाली सभी वस्तुओं
और सेवाओं को कवर करता है।

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8.3. थोक मू ल्य सू च कां क (WPI)

 थोक मूल्य सूचकांक के अधार पर गणना की जाने वाली मुद्रास्फीतत को "हेिलाआन मुद्रास्फीतत"
कहा जाता है। हेिलाआन मुद्रास्फीतत की गणना WPI के सम्बन्ध में की जाती है। भारत में अर्तथक
सलाहकार सतमतत तथा औद्योतगक नीतत एवं संवधथन तवभाग के कायाथलय को WPI के मापन व
सूचकांक को जारी करने का कायथ सौंपा गया है। WPI एक महत्वपूणथ सांतख्यकीय सूचकांक हैं।
सरकार के मुद्रास्फीतत प्रबंधन, अवश्यक वस्तुओं के मूल्य की तनगरानी अद्रद जैसे तवतभन्न नीततगत
तनणथय WPI पर अधाररत हैं। भारत में कइ वषों तक WPI साप्तातहक अधार पर तैयार द्रकया
जाता था, परन्तु वषथ 2009 से WPI की मातसक ऄंतराल पर गणना प्रारं भ की गयी।
 ऄथथव्यवस्था में संरचनात्मक पररवतथन करने तथा समय-समय पर सूचकांकों की गुणवत्ता,
व्यापकता और प्रतततनतधत्व में सुधार करने के तलए सरकार, अर्तथक संकेतकों के अधार वषथ की
समीक्षा करती है और अधार वषथ पररवर्ततत करती है। आस द्रदशा में अर्तथक सलाहकार का
कायाथलय (OEA), औद्योतगक नीतत एवं संवधथन तवभाग, वातणज्य और ईद्योग मंत्रालय द्वारा ऑल
आं तिया WPI के अधार वषथ को 2004-05 से पररवर्ततत कर 2011-12 कर द्रदया गया है। सकल
घरे लू ईत्पाद (GDP) और औद्योतगक ईत्पादन सूचकांक (IIP) जैसे ऄन्य व्यापक अर्तथक संकेतकों
का अधार वषथ भी 2011-12 है।
 भारत के WPI श्रृंखला में ऄभी तक 1952-53, 1961-62, 1970-71, 1981-82, 1993-94
और 2004-05 सतहत छः बार संशोधन द्रकया जा चुका है। श्रृंखला में द्रकया गया वतथमान संशोधन
सातवाँ संशोधन है। आस संशोधन में अधार वषथ को 2004-05 से पररवर्ततत करके 2011-12 कर
द्रदया गया तथा साथ ही वस्तुओं की बास्के ट में पररवतथन और वस्तुओं को नया भारांश प्रदान द्रकया
गया है। साधारणतया प्रत्येक संशोधन के दौरान गरित कायथदल के परामशथ पर संशोधन द्रकया
जाता है। अधार वषथ 2011-12=100 के साथ अरं भ हुइ नइ श्रृंखला के तलए, 19 माचथ 2012 को
योजना अयोग के भूतपूवथ सदस्य स्वगीय िॉ. सौतमत्र चौधरी की ऄध्यक्षता में एक कायथदल का
गिन द्रकया गया था। आस समूह में ऄतधकांश तहतधारकों की भागीदारी सुतनतित की गयी थी।
मुख्य पबदु
संशोतधत श्रृंखला में में भी WPI को तीन प्रमुख समूहों प्राथतमक वस्तुएँ, ईंधन व ईजाथ और तवतनर्तमत
ईत्पाद में वगीकृ त द्रकया गया है।
नइ श्रृंखला में द्रकए गए पररवतथनों के मुख्य पबदु नीचे संक्षेप में प्रस्तुत द्रकए गए हैं:
 2011-12 में ऄथथव्यवस्था की संरचना के ऄनुरूप वस्तुओं की सूची और भाररता को ऄद्यततत
द्रकया गया है।
 वस्तुओं की संख्या को 676 से बढ़ाकर 697 कर द्रदया गया है। 199 नइ वस्तुओं को जोड़ा गया है
और 146 पुरानी वस्तुओं को हटा द्रदया गया हैं।
 नइ श्रृंखला में WPI के प्रतततनतधत्व में ऄपेक्षाकृ त वृति हुइ है। तनतवदाओं (quotations) की
संख्या 5482 से 8331 हो गइ है, ऄथाथत् 2849 तनतवदाओं (52%) की वृति हुइ है।
नए तवशेषताएँ
 WPI की नइ श्रृंखला में, ऄप्रत्यक्ष करो को संकतलत मूल्यों में समातहत नहीं द्रकया गया है ताद्रक
राजकोषीय नीतत के प्रभावों को कम द्रकया जा सके । यह ऄंतरराष्ट्रीय प्रणाली के ऄनुरूप है तथा
यह नइ WPI को ‘ईत्पादक मूल्य सूचकांक' के ऄतधक समरूप बनाएगा।

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 खाद्य वस्तुओं में मुद्रास्फीतत की दर के प्रभाव को ध्यान रखने के तलए एक नया "WPI खाद्य
सूचकांक" संकतलत द्रकया जाएगा। यह "प्राथतमक वस्तुओं" के ऄंतगथत "खाद्य ईत्पाद" और
"ईत्पाद्रदत ईत्पादों" के ऄंतगथत "खाद्य वस्तुओं" के संयोजन से संकतलत द्रकया जाएगा। के न्द्रीय
सांतख्यकी कायाथलय द्वारा जारी द्रकया जाने वाले ईपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (कं ज्यूमर फू ि
प्राआस आं िक्
े स) के साथ-साथ आससे खाद्य वस्तुओं के मूल्यों का बेहतर ढंग से तनरीक्षण करने में
सहायता प्राप्त होगी।
 मातसक अधार पर ईपलब्ध फलों और सतब्जयों की पैदावार को ऄद्यततत द्रकया गया है क्योंद्रक
आनमें से ऄतधकांश की ईपलब्धता ऄब लम्बे समय तक सुतनतित की जा सकती है।
 मद स्तरीय समुच्चयों के संकलन हेतु नए WPI को ऄंतराथष्ट्रीय स्तर पर सवथश्रेष्ठ प्रणाली के साथ
गुणोत्तर माध्य (GM) का प्रयोग कर संग्रतहत द्रकया जाता है। वतथमान में अल आं तिया CPI के
संग्रहण हेतु गुणोत्तर माध्य का प्रयोग द्रकया जाता है।
 ऄथथव्यवस्था की पररवतथनशील संरचना के साथ तालमेल रखने के क्रम में सक्रीय समीक्षा प्रद्रक्रया
को पूरा करने के तलए पहली बार एक ईच्च स्तरीय तकनीकी समीक्षा सतमतत की स्थापना की गइ
है।
 WPI की नइ श्रृंखला के ऄंतगथत तवतनर्तमत वस्तुओं की भाररता 64.97% से घटकर 64.23% हो
गइ है। आसी प्रकार ईंधन और तवद्युत की भाररता 14.91% से घटकर 13.15% हो गइ है। दूसरी
ओर प्राथतमक वस्तुओं की भाररता 20.12% से बढ़कर 22.62% हो गइ है।

तातलका 1 : WPI (2011-12) व WPI (2004-05)


WPI (2011-12) व WPI (2004-05) के मध्य ऄंतर
 वस्तु समूह (item basket) में संशोधन करते हुए नइ वस्तुओं को शातमल करने के साथ पुरानी
वस्तुओं को हटाया गया है। ऄथथव्यवस्था में हुए संरचनात्मक पररवतथनों के ऄनुसार WPI को
प्रासंतगक बनाए रखने के तलए वस्तुओं के समूह को नए तसरे से चुना गया है। आस प्रकार दोनों
शृंखलाओ में वस्तु-दर-वस्तु मूल्यांकन करना संभव नहीं है।
 सभी प्रमुख समूहों में अम तौर पर स्रोत एजेंतसयों की संख्या में वृति हुइ है। तनतरक्रय तथा बंद
स्रोतों को हटा द्रदया गया है। आस प्रकार, ऄपिेट द्रकए गए स्रोतों द्वारा ऄब यह ऄतधक प्रतततनतधत्व
अंकड़े प्रदर्तशत करे गा।
 नइ श्रृंखला के मद/वस्तु स्तर मूल्यों में ऄप्रत्यक्ष कर शातमल नहीं हैं। यह राजकोषीय नीतत के
प्रभाव को प्रतत संतुतलत करे गा।
 मद स्तरीय सूचकांकों (Item level indices) को गुणोत्तर माध्य (GM) का प्रयोग करते हुए
संकतलत द्रकया गया है जबद्रक 2004-05 की श्रृंखला में ऄंकगतणत माध्य (AM) को प्रयोग द्रकया
गया था।
 तवद्युत क्षेत्र ऄब एक मद समूह है तजसमेंंं स्टेशनों द्वारा तवतरकों को तवतररत तवद्युत की तबक्री की
औसत दर से संबंतधत िेटा शातमल होता है। आसके तवपरीत, WPI (2004-05) में कृ तष, घरे ल,ू
ईद्योग, वातणतज्यक और रे लवे जैसे तवतभन्न क्षेत्रों के ईपयोग लागू खुदरा स्तर के टैररफ का ईपयोग
तवद्युत् के WPI के संकलन हेतु द्रकया जाता था।

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आन पररवतथनों की अवश्यकता तथा तवश्लेषण:
 यह कदम लंबे समय से ऄपेतक्षत था क्योंद्रक यह IIP, WPI, CPI (ईपभोक्ता मूल्य सूचकांक),

राष्ट्रीय खातों समेत सभी प्रमुख मैक्रोआकॉनॉतमक संकेतकों के तलए वषथ 2011-12 को अधार वषथ

के रूप में प्रस्तुत करे गा, तजससे तुलनात्मक ऄध्ययन में असानी होगी। WPI की पुरानी श्रृंखला
ऄब पुरानी हो चुकी है। आसमें सतम्मतलत मदों का ईपभोग नहीं द्रकया जाता है तथा कइ
समकालीन ईत्पादों को आसमें समातहत नहीं द्रकया गया है और कइ ईत्पादों का मूल्य भार ईनके
महत्त्व से कम है। तवश्लेषकों का मानना है द्रक एक नए अधार वषथ के साथ श्रृंखला प्रकृ तत में ऄतधक
व्यापक होगी।
 यद्यतप तवश्लेषकों का मानना है द्रक वस्तुओं के पुराने समूह को बदलकर नइ वस्तुओं को जोड़ने से
श्रृंखला ऄथथव्यवस्था की वतथमान तस्थतत को भली भांतत तनरुतपत कर पायेगी, परन्तु द्रफर भी यह
सूचकांक में तस्थत ऄतस्थरता को कम करने में सक्षम नहीं होगी।
 तथातप, आस बात का ऄवश्य ध्यान रखा जाना चातहए की ऄतस्थरता ऄपने अप में जीवन की एक

वास्ततवक समस्या है, सांतख्यकीय नहीं। यद्रद यह वास्ततवक जीवन समस्या है तो िेटा का एकत्रण
और अधार वषथ में द्रकया गया पररवतथन बहुत ज्यादा ऄंतर नहीं ईत्पन्न करे गा। आसके ऄततररक्त यह
भी माना जाता है द्रक वस्तुओं का नया समूह, WPI और CPI नंबरों के मध्य ईत्पन्न हुए ऄंतर को
कम करे गा।
WPI की सीमाएं

 आसमें स्वास््य, तशक्षा, पररवहन, तवत्त अद्रद जैसी सेवाएं सतम्मतलत नहीं हैं।
 भारत में ऄसंगरित क्षेत्र के ईत्पादों के ररकॉिथ या अंकड़े िीक से ईपलब्ध नहीं है। ऄसंगरित क्षेत्र के
ईत्पाद, भारतीय ऄथथव्यवस्था के तवतनर्तमत ईत्पादन का 30 प्रततशत से ऄतधक भाग है।

 चूंद्रक मूल्यों का संग्रह स्वैतछछक अधार पर है, ऄत: आकाइयाँ तवशेषकर तवतनमाथण क्षेत्र से मूल्य

अंकड़ों का प्रवाह ऄतनयतमत हो जाता है तजससे WPI के संकलन में समस्याएं बढ़ जाती हैं।

जबद्रक CPI के संदभथ में यह अंकड़ा संग्रह NSSO के सरकारी सवेक्षणों द्वारा द्रकया जाता है।
 यह थोक स्तर पर मूल्य में ईतार-चढ़ाव को दशाथता है। ऄत: आसके द्वारा खुदरा मूल्यों को
प्रततपबतबत नहीं द्रकया जाता है। खुदरा मूल्य, वह मूल्य होता है तजस पर ऄंततम ईपभोक्ता द्वारा
वस्तुएँ खरीदी जाती हैं।
 आसी कारण से हाल ही में स्थातपत मौद्रद्रक नीतत संरचना मुद्रास्फीतत लक्ष्यीकरण के तहत CPI पर
फोकस करे गी।
WPI का महत्व
 मूल्यों के ऄत्यतधक ईतार-चढ़ाव का तनरीक्षण करता है।
 यह व्यापार, तवत्तीय और ऄन्य अर्तथक नीततयों के प्रारूप के तनमाथण में सहायता करता है।
 ऄभी तक यह तवतभन्न सांकेततक तवतधयों के ऄंतगथत मौद्रद्रक नीतत तैयार करने के तलए प्रयुक्त होता
था। परन्तु ऄप्रैल 2014 के पिात् से RBI ने मौद्रद्रक नीतत के तनमाथण हेतु ईर्तजत पटेल कमेटी की

तसफाररशो के अधार पर CPI का ईपयोग अरम्भ कर द्रदया है।

 व्यापाररक ऄनुबंध में आसे कच्चे माल, मशीनरी और तनमाथण कायथ की अपूर्तत में हुइ मूल्य वृति की
गणना करने के तलए प्रयोग द्रकया जाता है।

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8.4 ईपभोक्ता मू ल्य सू च कां क (CPI)

 WPI के ऄततररक्त भारत में मुद्रास्फीतत को ईपभोक्ता स्तर पर CPI के माध्यम से मापा जाता है।
सामातजक व अर्तथक ऄंतर के कारण भारत में ईपभोक्ताओं के ईपभोग और क्रयशतक्त में एक
व्यापक ऄंतर तवद्यमान है, फलतः भारत में ऄभी तक एक सयुक्त
ं और व्यापक ईपभोक्ता मूल्य

सूचकांक तवकतसत नही हो पाया है। भारत में 4 CPIs को ऄपनाया गया है:

 CPI– IW (औद्योतगक श्रतमक): औद्योतगक श्रतमकों के तलए ईपभोक्ता मूल्य सूचकांक की बास्के ट में

260 मदें (सेवाओं सतहत) सतम्मतलत हैं। आसका अधार वषथ 2001 है (आसका पहला अधार वषथ

1958-59 था)। देश भर के 76 के न्द्रों से आसके अंकिें प्रततमाह एकतत्रत द्रकये जाते है और सूचकांक

एक महीने के ऄंतराल से जारी द्रकया जाता है। आसकी बास्के ट में 120-160 वस्तुएं शातमल हैं। मूल
रूप से यह सूचकांक सरकारी कमथचाररयों (बैंकों और दूतावास के कमथचाररयों को छोड़कर) के
ईपभोग को तनर्ददि करता है। के न्द्रीय सरकारी कमथचाररयों के वेतन को आस सूचकांक में होने वाले
पररवतथनों के अधार पर संशोतधत द्रकया जाता है। आसके अधार पर वषथ में दो बार महँगाइ भत्ता
(DA) घोतषत द्रकया जाता है। वेतन अयोग की वेतन को संशोतधत संबंधी तसफाररशे CPI–IW के
अधार पर होती हैं।
 CPI (ऄबथन नॉन-मैनऄ
ु ल एम्प्लॉइ): ऄबथन नॉन-मैनुऄल एम्प्लॉइ (CPI-UNME) के तलए CPI

का अधार वषथ 1984-85 है तथा आसकी बास्के ट में 146-365 वस्तुएं है। आसके तलए दो सप्ताह के
ऄन्तराल पर अंकड़ों को मातसक अधार पर एकतत्रत द्रकया जाता है। यह सूचकांक शहरी क्षेत्र की
जनसंख्या द्वारा ईपभोग की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के औसत खुदरा मूल्यों के स्तर में
पररवतथन को दशाथता है। यह सूचकांक गैर-कृ तष क्षेत्र के नॉन मैनऄ
ु ल व्यवसायों से ऄपनी अय का
एक बड़ा तहस्सा प्राप्त करने वाले शहरी पररवारों को ध्यान में रख कर बनाया गया है। आस
सूचकांक का ईपयोग सीतमत है और आसका ईपयोग मूल रूप से भारत में संचातलत कु छ तवदेशी
कं पतनयों (यानी एयरलाआं स, संचार, बैंककग, बीमा, दूतावास, और ऄन्य तवत्तीय सेवाओं) के

कमथचाररयों के महंगाइ भत्ते (DA) के तनधाथरण के तलए द्रकया जाता है। अयकर ऄतधतनयम के

ऄंतगथत पूज
ं ी लाभ के तनधाथरण में आसका ईपयोग द्रकया जाता है। CSO (कें द्रीय सांतख्यकी संगिन)
द्वारा आसका प्रयोग सेवा क्षेत्र की कु छ ऄनन्य सेवाओं की ऄवस्फीतत (कारक लागत और चालू मूल्यों
पर) के तलए द्रकया जाता है ताद्रक तस्थर मूल्य स्तर पर आनकी सापेक्ष गणना की जा सके । हालांद्रक
पुराने अधार वषथ के कारण आसे जनवरी 2011 से बंद कर द्रदया गया है साथ ही CPI (शहरी)
अरम्भ द्रकया गया।
 CPI (कृ तष श्रतमक): कृ तष श्रतमकों के तलए ईपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-AL) का अधार वषथ

1986-87 है और आसकी बास्के ट में 260 वस्तुएं सतम्मतलत हैं। आसके अंकड़ों को प्रतत माह 600
गांवों से संग्रतहत द्रकया जाता है और आसमें तीन सप्ताह का ऄन्तराल होता है। आस सूचकांक का
तवतभन्न राज्यों में कृ तष श्रतमकों की न्यूनतम मजदूरी में संशोधन हेतु ईपयोग द्रकया जाता है।
 CPI (ग्रामीण श्रतमक): यह ग्रामीण श्रतमकों (CPI-RL) के तलए 1983 के अधार वषथ के रूप में

एक ऄन्य ईपभोक्ता मूल्य सूचकांक है। आसमें भी 600 गाँवो से मातसक अवृतत्त पर अंकड़ें एकतत्रत

द्रकये जाते है, तजसमें तीन सप्ताह का ऄन्तराल होता है। आसकी बास्के ट में 260 वस्तुएँ सतम्मतलत
हैं।

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CPI में नवीनतम पररवतथन
 2011 में कें द्रीय सांतख्यकी संगिन द्वारा 2010 के अधार मूल्य के अधार पर संशोतधत CPI को
प्रस्तुत द्रकया गया तजसमें CPI (शहरी), CPI (ग्रामीण) और CPI (शहरी + ग्रामीण) सतम्मतलत
थे। जनवरी 2015 में CSO ने आस नव-स्थातपत सूचकांक का अधार वषथ 2012 तनधाथररत द्रकया।
CPI बास्के ट में मदों की संख्या में 448 ग्रामीण और 460 शहरी क्षेत्रों शातमल द्रकया गया है। आस
प्रकार यह स्पि करता है द्रक CPI बास्के ट, WPI बास्के ट से ऄतधक व्यापक है। संशोतधत CPI-
ग्रामीण, CPI-शहरी और CPI-संयुक्त में तवतभन्न समूहों द्रक भाररता को नीचे दशाथया गया है:

अरे ख 1: CPI में नवीनतम पररवतथन


नए CPI सूचकांक की प्रमुख तवशेषताएं (2015 में संशोतधत)
 पुरानी श्रृंखला में समूहों की संख्या पांच थी। यह संख्या ऄब बढ़कर छह हो गइ है। ‘पान, तम्बाकू
और मादक' समूह पहले 'खाद्य, पेय और तंबाकू ' के तहत एक ईप-समूह था, ऄब आस समूह को एक
ऄलग समूह के रूप में रखा गया है। तदनुसार ऄब 'खाद्य, पेय पदाथथ और तंबाकू ' समूह का नाम
पररवर्ततत कर 'खाद्य और पेय पदाथथ' कर द्रदया गया है।
 ऄंिा, पुरानी श्रृंखला में 'ऄंिा, मछली और मांस' के ईप-समूह का तहस्सा था, आसे ऄब एक ऄलग
ईप-समूह के रूप में रखा गया है। तदनुसार 'ऄंिा, मछली और मांस' के ईप-समूह का नाम
संशोतधत कर 'मांस और मछली' समूह कर द्रदया गया है।

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 ईपभोग पैटनथ में पररवतथन के कारण, CPI बास्के ट में कु छ ऄततररक्त मद सतम्मतलत हुए।
 ऄंतराथष्ट्रीय प्रचलनों के ऄनुरूप बाजारों में पररवतथन तवतभन्न 29 CPI के अधार मूल्यों के संबंध में
प्राथतमक/मद सूचकांकों की गणना वतथमान मूल्यों के ‘संबंतधत मूल्य’ के गुणोत्तर माध्य मान (GM)
के माध्यम से की जाती है। पुरानी श्रृंखला में आस कायथ के तलए समांतर माध्य (AM) का ईपयोग
द्रकया जाता था। GM का ईपयोग करने का लाभ यह है यह सूचकांक की ऄतस्थरता को सीतमत कर
देता है चूंद्रक यह अत्यंततक मूल्यों से कम प्रभातवत होता है।
 मकान द्रकराया सूचकांक (House Rent Index) के संकलन के तलए मकान द्रकराए के अंकड़ों के
संग्रह के तलए तनदशथन अकार (samp।e size) को संशोतधत श्रृख
ं ला में बढ़ाकर दोगुना 13,368
कर द्रदया गया। यह पुरानी श्रृंखला में 6,684 था।

8.5. से वा मू ल्य सू च कां क (Services Price Index; SPI)

 भारत के सकल घरे लू ईत्पाद में तृतीयक क्षेत्र का योगदान में तपछले 6 से 7 वषों से वृति दजथ की
जा रही है तथा वतथमान में यह लगभग 54 प्रततशत है। भारत में सेवा मूल्य सूचकांक (SPI) की
अवश्यकता ऄथथव्यवस्था में सेवा क्षेत्र के बढ़ते प्रभुत्व के मापन हेतु है। सेवा क्षेत्र के मूल्यों में हुए
पररवतथनों को मापने के तलए ऄब तक कोइ सूचकांक तवकतसत नहीं द्रकया गया है। वतथमान
मुद्रास्फीतत (WPI में) के वल वस्तु-ईत्पादन क्षेत्र के मूल्य पररवतथनों को दशाथती है, ऄथाथत् आसमें
के वल प्राथतमक और तद्वतीयक क्षेत्र सतम्मतलत हैं एवं आसमें तृतीयक क्षेत्र का प्रतततनतधत्व नहीं है।
 WPI (1993-94) श्रृंखला को संशोतधत करने के तलए प्रोफे सर ऄतभजीत सेन की ऄध्यक्षता में
स्थातपत कायथ दल द्वारा ऐसे सूचकांक की अवश्यकता महसूस की गइ थी। सी रं गराजन की
ऄध्यक्षता में गरित राष्ट्रीय सांतख्यकी अयोग द्वारा भी आस सूचकांक की अवश्यकता की बात की
गइl
 अर्तथक सलाहकार, वातणज्य और ईद्योग मंत्रालय, तवश्व बैंक सहायता प्राप्त अर्तथक सुधार
पररयोजनाओं के ऄंतगथत तकनीकी सहायता के माध्यम से देश में क्षेत्र-तवतशि सेवा मूल्य सूचकांक
तवकतसत करने का प्रयास कर रहा है। वतथमान में प्रायोतगक अधार पर चयतनत सेवाओं (सड़क
पररवहन, रे लवे, वायुमागथ, व्यापार, व्यापार, बंदरगाह, िाक दूरसंचार, बैंककग और बीमा सेवाएं
अद्रद) के तलए सेवा मूल्य सूचकांक को शुरू करने के प्रयास द्रकए जा रहे हैं।
 कोर मुद्रास्फीतत: कोर मुद्रास्फीतत उजाथ और खाद्य पदाथों को छोड़कर ऄथथव्यवस्था की सभी
वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों की गणना करती है । आसमें ऄथथव्यवस्था में मुद्रास्फीतत की वास्ततवक
तस्थतत को तवकृ त करने वाली पररवतथनशील (volatile) वस्तुएं शातमल नहीं हैं। फलस्वरूप, यह
ऄथथव्यवस्था में व्याप्त मांग में पररवतथन को दशाथती है।
 कोर मुद्रास्फीतत की गणना ईपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में कु छ वस्तुओं को छोड़कर (अमतौर
पर उजाथ और खाद्य ईत्पादों) से की जाती है। यह समझने के तलए द्रक भोजन और उजाथ वगथ मूल्य
में पररवतथन के प्रतत ऄतधक संवेदनशील क्यों हैं, ईन पयाथवरणीय कारकों पर तवचार द्रकया जाता हैं
जो द्रकसी वषथ की फसलों को नि कर सकते हैं या बदलती OPEC नीततयों से तेल की अपूर्तत में
ईतार-चढ़ाव ईत्पन्न कर सकते हैं। ईपयुथक्त प्रत्येक ईदाहरण अपूर्तत शॉक से संबंतधत है तथा ये सभी
मूल्यों को प्रभातवत कर सकते है। हालांद्रक, आन वस्तुओं के मूल्यों में तेजी से वृति या कमी अती है,
परन्तु ये ऄथथव्यवस्था के समग्र मूल्य स्तर की प्रवृतत्त में पररवतथन से संबंतधत नहीं हो सकते है।
आसके स्थान पर, खाद्य और उजाथ के मूल्यों में पररवतथन प्रायः ऄस्थायी कारकों से जुड़े होते है जो
ऄथथव्यवस्था से बाहर होते हैं और तजनके पैटनथ में तवपरीत प्रवतत्त भी देखी जा सकती है।

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8.6. GST का मु द्रास्फीतत दरों पर सं भातवत प्रभाव

 चूंद्रक GST को तबक्री के ऄंततम पबदु पर प्राप्त द्रकया जाता है, ऄत: जुलाइ 2017 से लागू हुए

GST का प्रभाव के वल CPI में ही द्रदखाइ देगा क्योंद्रक WPI में द्रकये गए नवीन पररवतथनों द्वारा

ऄप्रत्यक्ष करों को बाहर कर द्रदया जायेगा। ऄतः GST नए WPI और CPI िेटा के मध्य एक
तनतित ऄंतर को ईत्पन्न करे गा।
GST का मुद्रास्फीतत पर संभातवत प्रभाव

CPI पर प्रभाव

 बहुस्तरीय GST में जहां ऄत्यतधक ईपभोग वाली 81% वस्तुओं को 18% या ईससे कम कर वाले

स्लैब में रखा गया है तजसके फलस्वरूप GST के मुद्रास्फीततकारी होने के ऄवसर कम है।

ऐसा आसतलए है क्योंद्रक वस्तु और सेवा कर (GST) को लागू करते समय ईत्पादन पर

ऄल्पकातलक प्रभाव पड़ने से मुद्रास्फीतत प्रभातवत हो सकती है। परन्तु देश में एक एकीकृ त वस्तु
और सेवाओं के बाजार के तनमाथण से अपूर्तत श्रृंखला की किोरता कम होगी तथा पररवहन लागत
में कमी एवं ईत्पादकता में सुधार के माध्यम से सामान्य लागत में कमी अएगी। हालांद्रक
दीघथकातलक प्रभाव, GST की मानक कर दर पर अधाररत होगा, जो वतथमान में 18% है।

यद्यतप सामान्य सहमतत यह है द्रक ईपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीतत पर सीतमत प्रभाव ही पड़ेगा यद्रद
मानक GST दर 18 प्रततशत पर रखी जाती है- वास्तव में ईत्पादन के कारकों के ऄतधक कु शल
अवंटन के कारण समग्र मूल्य स्तर में तगरावट हो सकती है।
WPI पर प्रभाव

 GST थोक मूल्य मुद्रास्फीतत को प्रभातवत नहीं करे गा क्योंद्रक आसमें ऄप्रत्यक्ष कर सतम्मतलत नहीं

हैं।

9. मु द्रास्फीतत को तनयं त्र ण करने हे तु नवीन नीततगत ईपाय


 नइ मौद्रद्रक नीतत संरचना समझौते के ऄंतगथत सरकार ने मुद्रास्फीतत की दर को तनम्न स्तर पर
बनाये रखने के तलए प्रततबिता व्यक्त की है। संशोतधत मौद्रद्रक नीतत संरचना के ऄंतगथत, सरकार

ररजवथ बैंक के साथ परामशथ करके मुद्रास्फीतत के लक्ष्य को तय करती है। वतथमान में मौद्रद्रक नीतत
का प्रबंधन भारतीय ररजवथ बैंक ऄतधतनयम, 1934 में द्रकये गए संशोधन के ऄनुसार भारतीय

ररज़वथ बैंक के गवनथर की ऄध्यक्षता वाली मौद्रद्रक नीतत सतमतत (MPC) द्वारा द्रकया जाता है।

 संशोतधत मौद्रद्रक नीतत संरचना के ऄनुसार, सरकार ने 5 ऄगस्त, 2016 से 31 माचथ, 2021 तक

की ऄवतध के तलए +/- 2 % की परास के साथ 4% की मुद्रास्फीतत का लक्ष्य तनधाथररत द्रकया है।
 मौद्रद्रक नीतत सतमतत को मुद्रास्फीतत को तनर्ददि लक्ष्य स्तर के भीतर तनयंतत्रत करने के तलए
अवश्यक बेंचमाकथ नीतत दर (रे पो दर) तय करने के कायथ को सौंपा गया है। यहां लतक्षत
मुद्रास्फीतत CPI है। RBI ऄतधतनयम के प्रावधानों के ऄनुसार, मौद्रद्रक नीतत सतमतत के छह

सदस्यों में से तीन सदस्य RBI से होंगे और ऄन्य तीन सदस्यों को कें द्रीय सरकार द्वारा तनयुक्त
द्रकया जाएगा।

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9.1. मौद्रद्रक नीतत सतमतत के लाभ

 सामूतहक तनणथय: MPC यह सुतनतित करे गी द्रक तनणथय सामूतहक रूप से तलए जायेंगे। पूवथ में ये
तनणथय के वल गवनथर द्वारा तलए जाते थे।
 तनणथय लेने में पारदर्तशता: MPC को ऄपने द्वारा तलए गये तनणथयों को कारण सतहत प्रकातशत
करना अवश्यक होगा।
 मौद्रद्रक प्रातधकरण की जवाबदेतहता: यद्रद यह ऄपने पूव-थ तनधाथररत लक्ष्य को प्राप्त करने में तवफल
हो जाती है तो MPC सरकार के प्रतत ईत्तरदायी होगी।

9.2. मौद्रद्रक नीतत सतमतत के पररप्रे क्ष्य में अशं काएं

 मौद्रद्रक प्रातधकरण के रूप में RBI के ऄतधकारों में कमी करना: ऄब MPC मौद्रद्रक नीतत तनमाथण
और ईसके कायाथन्वयन हेतु ऄंततम प्रातधकरण होगा। आसतलए कु छ तकों के ऄनुसार यह मौद्रद्रक
नीतत से संबंतधत मामलों पर तनणथय लेने में RBI और ईसके गवनथर की भूतमका को कमजोर
करे गा।
 सरकारी हस्तक्षेप: यह तकथ द्रदया जाता है द्रक सरकार द्वारा नातमत सदस्यों के कारण, MPC

सरकार की एक शाखा के रूप में कायथ करे गी, तजससे मूल्य तस्थरता और तवकास के मध्य स्थातपत
संतल
ु न पर प्रततकू ल प्रभाव पड़ेगा।
 अपूर्तत पक्ष की मुद्रास्फीतत को तनयंतत्रत करने में ऄसमथथ: तवशेषज्ञों का मानना है द्रक चूंद्रक MPC

मौद्रद्रक साधनों के माध्यम से लतक्षत मुद्रास्फीतत दर को बनाए रखने पर ध्यान कें द्रद्रत करे गा, ऄतः
यह अपूर्तत पक्ष में कमी के कारण ईत्पन्न मुद्रास्फीतत को तनयंतत्रत नहीं कर सकती है।
आन अशंकाओं के बावजूद, ऄंतरराष्ट्रीय कायथ प्रणाली से समेकन के तलये यह सुधार लंबे समय से वांतछत

था। MPC को सरकार से स्वतंत्र रूप से कायथ करने के तलए पयाथप्त स्वायत्तता प्रदान की गयी है। साथ

ही मौद्रद्रक तवषयों में RBI के ऄपेतक्षत ऄतधकारों को सुरतक्षत रखा गया हैं। तनणथय प्रद्रक्रया को बहुमत

द्वारा संपन्न द्रकया जायेगा तथा RBI गवनथर का वोट तनणाथयक (कापस्टग) होता है। हालांद्रक मुद्रास्फीतत
और संधारणीय तवकास पर प्रभावी तनयंत्रण के तलए मौद्रद्रक नीतत को राजकोषीय नीतत के साथ
तमलकर काम करना होगा।

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Classroom Study Material

भारतीय ऄथथव्यवस्था
7. भुगतान संतल
ु न एवं मुद्रा वववनमय दरें

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ववषय सूची
1. बाह्य क्षेत्र का महत्व - अयात और वनयाथत क्यों महत्त्वपूणथ है _______________________________________________ 4

2. ऄथथव्यवस्थाओं के प्रकार: बंद/अंतररक (Closed/Inward) और खुली / बाह्य (Open/Outward) _____________________ 4

3. भुगतान संतल
ु न (Balance of Payments) _________________________________________________________ 5

3.1. भुगतान संतल


ु न के घटक (Components of Balance of Payments) __________________________________ 5
3.1.1. चालू खाता लेन-देन (Current Account Transactions) ________________________________________ 5
3.1.2. पूंजी खाता लेन-देन (Capital Account Transactions) _________________________________________ 6

3.2. भुगतान संतल


ु न की श्रेवणयां (Categories of Balance of Payments) __________________________________ 7

3.3. भुगतान संतल


ु न में ऄसाम्यता या ऄसंतुलन (Balance of Payments Disequilibrium) _______________________ 8

3.4 भारत का भुगतान संतुलन संकट (Indian Balance of Payments Crisis) 1991 __________________________ 10

4. खुली भारतीय ऄथथव्यवस्था का अरं भ - नव ईदारवादी अर्थथक सुधार 1991___________________________________ 11

4.1. नव ईदारवादी अर्थथक सुधारों (1991) के 25 वषथ __________________________________________________ 11

5. पूवथ एवियाइ संकट 1997 ______________________________________________________________________ 12

6. 2008 की वैविक अर्थथक मंदी और भारत (Recession of 2008 And India) _______________________________ 13

7. भारतीय ववदेि व्यापार नीवत (FTP) 2015 - 2020___________________________________________________ 13

8. भारत का व्यापार घाटा________________________________________________________________________ 14

9. इज ऑफ़ डू आंग वबजनेस, सरकारी योजनायें अदद ______________________________________________________ 15

10. प्रत्यक्ष ववदेिी वनवेि, FII, FPI _________________________________________________________________ 16

10.1.प्रत्यक्ष ववदेिी वनवेि (Foreign Direct Investment) _____________________________________________ 16

10.2. ववदेिी पोटथफोवलयो वनवेि (Foreign Portfolio Investment) ______________________________________ 16

10.3. ववदेिी संस्थागत वनवेि (Foreign Institutional Investments) _____________________________________ 17

10.4. MOUS एवं FDI के मध्य ऄंतराल (Gaps Between Mous And FDI) ________________________________ 17

10.5. FDI में दकये गए सुधार (Reforms in FDI)_____________________________________________________ 17

10.6. प्रत्यक्ष ववदेिी वनवेि नीवत 2016 ____________________________________________________________ 18

10.7. खुदरा क्षेत्र में FDI _______________________________________________________________________ 19

11. मुद्रा वववनमय दर (Currency Exchange Rate) ___________________________________________________ 20

11.1. वास्तववक वववनमय दर (Real Exchange Rate)________________________________________________ 20

12. वववनमय दर प्रणाली - वस्थर एवं लचीली वववनमय दर _________________________________________________ 20

13. मुद्रा वववनमय दर- संकल्पनाएं __________________________________________________________________ 21

14. भारत का बाह्य ऊण (Indian External Debt) _____________________________________________________ 24

15. ऄन्य महत्वपूणथ ववषय ________________________________________________________________________ 26


15.1. भारतीय विपक्षीय वनवेि संवध का नया मॉडल (NEW MODEL INDIAN BILATERAL INVESTMENT TREATY) ______ 26

15.2. भारत और CMLV देि - कं बोवडया, लाओस, म्यांमार और ववयतनाम____________________________________ 27

15.3. वतथमान समय में ववि व्यापार संगठन की प्रासंवगकता _______________________________________________ 28

15.4. एक्ट इस्ट नीवत (ACT EAST POLICY) ________________________________________________________ 31

15.5. भारत के वलए महत्वपूणथ और प्रासंवगक ऄंतराथष्ट्रीय व्यापार समझौते______________________________________ 32

15.6. बदलता ऄंतराथष्ट्रीय पररवेि: ऄलगाववाद और देिीयता (Changing International Order: Isolationism And
Nativism) ________________________________________________________________________________ 33
1. बाह्य क्षे त्र का महत्व - अयात और वनयाथ त क्यों महत्त्वपू णथ है
 दकसी भी देि की संसाधन संपदा को दो व्यापक श्रेवणयों - श्रम और पूंजी, में वगीकृ त दकया जाता
है। भारत में श्रम संसाधन प्रचुर मात्रा में ईपलब्ध हैं, साथ ही सस्ते श्रवमकों की मांग वाले ईद्योगों
हेतु भारतीय पररवेि ऄत्यवधक ऄनुकूल है। आस प्रकार, भारत में पूज
ं ी की तुलना में श्रम की
ईपलब्धता ऄपेक्षाकृ त ऄवधक है।
 ईत्पादन के वनयमों के ऄनुसार वववभन्न देिों को ऐसी वस्तुओं का ईत्पादन करना चावहए वजन्हें वे
ऄवधक कु िलता से ईत्पाददत कर सकते हैं- ऄथाथत् देिों को लागत प्रभावी ईत्पादन प्रणाली
ऄपनानी चावहए। पूज
ं ी समृद्ध देिों को पूज
ं ीगत ईत्पादन में संलग्न होना चावहए, जबदक श्रम
संसाधनों से समृद्ध देिों को श्रम-गहन ईत्पादन में संलग्न होना चावहए।
 वैिीकरण के प्रारं भ के साथ श्रम और पूज
ं ी की गवतिीलता में ऄत्यवधक वृवद्ध हुइ है। ऐसे में,
ऄंतराथष्ट्रीय व्यापार के वलए यह अवश्यक हो जाता है दक वववभन्न देि प्रमुखतः ईनकी संसाधन
संपदा के ऄनुकूल व्यापार में ही संलग्न हो।
 तुलनात्मक लाभ के वसद्धांत के तहत देि ऄपनी संसाधन सम्पन्नता के ऄनुकूल व्यापार में संलग्न
होते हैं। ईदाहरणाथथ, श्रम संसाधनों से समृद्ध भारत को श्रम-गहन वस्तुओं का वनयाथत करना
चावहए तथा ऐसी वस्तुएं अयात करनी चावहए, वजनका ईत्पादन भारत के वलए तुलनात्मक रूप
में लाभकारी नहीं हों। भारत के पररप्रेक्ष्य में पूज
ं ी-गहन वस्तुएं अयात करने योग्य हैं।
 संसाधन संपदा की यह सापेक्ष ऄसमानता, ऄंतराथष्ट्रीय व्यापार का अधार है जो संसाधनों के कु िल
अवंटन एवं आसके आष्टतम रूप में ईपयोग को प्रोत्सावहत करती है। आसके पररणामस्वरूप,
व्यापाररक देिों को ईवचत अर्थथक लाभ प्राप्त होता है। वहीं दूसरी ओर व्यापाररक विवथलता से
ऄक्षमताओं में वृवद्ध, ईच्च लागत तथा मुद्रास्फीवत के भार के साथ-साथ मंद ववकास जैसी समस्याएँ
ईत्पन्न हो जाती हैं।
 संसाधनों के सवाथवधक कु िल ईपयोग हेतु, देि का बाह्य क्षेत्रक (external sector) ऄत्यंत
महत्वपूणथ है। ईदाहरणाथथ ववदेिी व्यापार, भारत की कु ल मांग को दो प्रकार से प्रभाववत करता है।
पहला, जब भारतीय नागररक कोइ ववदेिी वस्तु खरीदता है, तो यह व्यय चक्रीय प्रवाह से ररसाव
के रूप में बाहर वनकल जाता है, वजससे देि में ईत्पाददत वस्तुओं की कु ल मांग में कमी अती है।
दूसरा, हमारे ववदेिी वनयाथत से मुद्रा चक्रीय प्रवाह के भीतर प्रवेि करती है, वजससे घरे लू स्तर पर
ईत्पाददत वस्तुओं की कु ल मांग में वृवद्ध होती है।
2. ऄथथ व्य वस्थाओं के प्रकार: बं द /अं त ररक
(Closed/Inward) और खु ली / बाह्य (Open/Outward)
GDP के ऄनुपात में कु ल ववदेिी व्यापार (वनयाथत + अयात) यह प्रदर्थित करता है दक ऄथथव्यवस्था
दकतनी खुली ऄथवा बंद है।
वस्तुओं के वनयाथत तथा अयात के संतुलन को व्यापार संतल
ु न (Trade balance) कहा जाता है।

 बंद ऄथथव्यवस्था (Closed Economy): एक बंद ऄथथव्यवस्था में, कोइ बाह्य व्यापार ऄथाथत्
दकसी प्रकार का अयात या वनयाथत नहीं होता है। यह एक अत्मवनभथर और स्वतंत्र ऄथथव्यवस्था को
आं वगत करता है जो मुख्यतः ऄपने घरे लू क्षेत्रों के माध्यम से वृवद्ध करती है। बंद ऄथथव्यवस्था को
अत्मवनभथर राष्ट्र (Autarky) भी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है दक 1950 के दिक से अरं भ
होकर 1980 के दिक तक भारतीय ऄथथव्यवस्था, अत्म-ववकास पर के वन्द्रत एक बंद ऄथथव्यवस्था
थी। वजसको ऄंततः 1991 के अर्थथक संकट के बाद खुली ऄथथव्यवस्था में पररवर्थतत दकया गया।
 खुली ऄथथव्यवस्था (Open Economy): खुली ऄथथव्यवस्था वह है जो ऄन्य देिों के साथ वस्तुओं
एवं सेवाओं तथा ववत्तीय पररसंपवत्तयों का व्यापार करती है।

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3. भु ग तान सं तु ल न (Balance of Payments)
दकसी देि का भुगतान संतल
ु न (BoP), ईस देि के वनवावसयों तथा ऄन्य देिों के वनवावसयों के मध्य,
एक वनवित कालाववध में हुए, सभी अर्थथक लेन-देन का एक व्यववस्थत ऄवभलेख है।
BoP की पररभाषा में तीन बबदु महत्वपूणथ है:
 BoP से अिय दकसी देि के ऄन्य देिों के साथ दकए गए सभी अर्थथक लेन-देन को व्यववस्थत रूप
से है। यहाँ अर्थथक लेन-देन अर्थथक वस्तुओं, सेवाओं और पररसंपवत्तयों के प्रवाह से संबंवधत है l
सामान्यतः अर्थथक लेन-देन में आन प्रवाहों के बदले मुद्रा का भुगतान एवं प्रावप्तयां सवम्मवलत होती
हैं दकन्तु कु छ अर्थथक प्रवाह भुगतान रवहत भी होते है जैसे ववदेिों से प्राप्त ईपहार अदद। ऐसे
अर्थथक प्रवाह हस्तांतरण भुगतान (Transfer Payment) की श्रेणी में अते हैं। आस प्रकार BoP,
एक देि के ऄन्य देिों के साथ दकये गए सभी भुगतानों तथा प्रावप्तयों का एक ऄवभलेख है।
 BoP में पररलवक्षत अर्थथक लेन-देन एक देि के वनवावसयों और ऄन्य देिों के वनवावसयों के मध्य
दकये जाते हैं। देि के वनवासी होने का तात्पयथ है - ईस देि का सामान्य वनवासी होना।
 BoP, एक प्रवाह (flow) ऄवधारणा है। BoP में ईल्लेवखत प्राय: सभी अर्थथक लेन-देनों का एक
प्रवाह अयाम होता है। आन अर्थथक लेन-देनों से अिय एक समयाववध में दकये गए वनयाथत या
अयात के मूल्यों से है। दकसी देि का BoP सदैव एक वनवित ऄववध से सम्बंवधत होता है। यह
ऄववध सामान्यतः एक कै लेंडर वषथ की होती है।

3.1. भु ग तान सं तु ल न के घटक (Components of Balance of Payments)

भुगतान संतुलन (BoP) के ऄंतगथत दो मुख्य खाते सवम्मवलत दकये जाते है: चालू खाता (Current
Account) और पूज
ं ी खाता (Capital Account)।

3.1.1. चालू खाता ले न -दे न (Current Account Transactions)

आसे चार व्यापक श्रेवणयों में वगीकृ त दकया गया है:


 वस्तुओं ऄथवा पण्य का वनयाथत और अयात
o आसमें सभी प्रकार की भौवतक वस्तुओं का वनयाथत और अयात सवम्मवलत है।
o आसमें दृश्य व्यापार (Visible Trade) भी सवम्मवलत है।
 ऄदृश्य मदें
o आसके ऄंतगथत ऐसी मदें सवम्मवलत की जाती हैं जो ऄमूतथ हैं ऄथवा वजन्हें देखा नहीं जा सकता,
आसवलए आन्हें ऄदृश्य मदें कहा जाता है।
o ऄदृश्य मदों को तीन समूहों में वगीकृ त दकया गया है:
 सेवाएँ: आसमें देि के वनवावसयों िारा क्रय/ववक्रय की गयी गैर-कारक (non-factor)
सेवाएँ ऄंतर्थनवहत हैं।
 एकपक्षीय हस्तांतरण: आसमें वतथमान ऄववध में वबना दकसी सेवा ऄथवा कायथ के प्राप्त
होने वाले भुगतान एवं प्रावप्तयाँ सवम्मवलत होते हैं। फलस्वरूप ऐसे हस्तांतरणों में दकसी
प्रकार की कोइ अर्थथक लाभ/हावन जवनत नहीं होती है। आसमें वनजी और अवधकाररक
(सरकारी) - दोनों स्तरों पर हस्तांतरण िावमल होते हैं। ऄन्य देिों में वनवास कर रहे
लोगों िारा ऄपने पररवारों के वलए दकए जाने वाले नकद धन-प्रेषण को भी हस्तांतरण
प्रावप्तयों के ऄंतगथत सवम्मवलत दकया जाता है।
 अय: आसे वनम्न प्रकार से वगीकृ त दकया गया है:
(a) वनवेि अय (ब्याज, लाभांि, लाभ अदद) वह अय है जो दकसी देि के वनवावसयों िारा ववदेिों में
दकए गए ईनके वनवेि पर प्राप्त/देय होती है।

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(b) कमथचाररयों की क्षवतपूर्थत (आसके ऄंतगथत दकसी देि के वनवावसयों को गैर-वनवावसयों िारा प्राप्त

तथा देि की वनवावसयों िारा गैर-वनवावसयों को भुगतान दकए गए वेतन, मजदूरी अदद सवम्मवलत हैं)।
चालू खाता घाटा - भारत की वस्थवत
 चालू खाता घाटा (Current Account Deficit: CAD) वस्तुओं, सेवाओं और वनवेि अय सवहत
सभी अयातों के मूल्य तथा सभी वनयाथतों के मूल्य के बीच के ऄंतर को दिाथता है। यह घरे लू बचत
और घरे लू वनवेि के बीच के ऄंतर को प्रदर्थित करता है तथा स्पष्ट करता है दक ववदेिी बचत िारा
कहाँ तक आस घाटे को ववत्त पोवषत दकया जा सकता है।
 ववत्त वषथ 2017-18 के वलये CAD को GDP का लगभग 1.5% से 2% तक ऄनुमावनत दकया गया
है। आस ऄववध में सॉफ्टवेयर वनयाथत और वनजी हस्तांतरण में कमी अइ जबदक प्राथवमक अय का
वनकास ऄपेक्षाकृ त ऄवधक रहा।

3.1.2. पूं जी खाता ले न -दे न (Capital Account Transactions)

 पूंजी खाता, पररसंपवत्तयों के ववत्तीय और भौवतक रूप में पररवतथन से संबंवधत सभी ऄंतराथष्ट्रीय
अर्थथक लेन-देन को ऄवभलेवखत करता है। यह वनजी और अवधकाररक दोनों प्रकार के लेन-देन का
ऄल्पकावलक एवं दीघथकावलक ऄवभलेख है।
 पूंजी खाता लेन-देन, चालू खाता लेन-देन से वभन्न होते हैंI ये स्टॉक पररमाण में पररवतथन को
दिाथता है तथा पूज
ं ी प्रावप्तयों एवं भुगतान का ईल्लेख करता हैं। ये दीघथकावलक और ऄल्पकावलक
पूंजी के संचलन से संबवं धत होते हैं।
 RBI ने पूंजी खाते की वववभन्न मदों को वनम्न प्रकार से वगीकृ त दकया हैI पूज
ं ी खाते के मुख्य घटक
वनम्नवलवखत हैं:
o ववदेिी वनवेि: आसमें प्रत्यक्ष और पोटथफोवलयो वनवेि िावमल हैं।
o ऊण: ईधारी, वजसे वनम्न मदों में वगीकृ त दकया जाता है।

 ववदेिी सहायता (External Assistance)

 वावणवययक ऊण (Commercial Borrowing)


 बैंककग पूज
ं ी: आससे अिय भारतीय वावणवययक बैंकों की ववदेिी िाखाओं िारा ववदेिी मुद्रा लेन-
देन और ववदेिी मुद्रा एवं प्रवतभूवतयों में वनवेि के रूप में पूज
ं ीगत लेन-देन से है। आसमें ग़ैर-
वनवासी भारतीयों िारा जमा रावि भी सवम्मवलत होती है।
 रुपया ऊण सेवा (Rupee Debt Service): यह भारतीय वनवावसयों िारा ववदेवियों को रुपए
के रूप में दकया गया ऊण का भुगतान है।
 मौदद्रक संचलन: RBI, मौदद्रक संचलन िारा BoP में हुए ऄसंतल
ु न को पूरा करने का प्रयास करता
है। आसके ऄंतगथत वनम्नवलवखत सवम्मवलत हैं:
o IMF से क्रय और पुनःक्रय: आसका तात्पयथ IMF से भारतीय रुपये देकर ववदेिी मुद्रा के क्रय से

है। यह एक प्रकार से IMF से वलया गया ऊण है। जब ववदेिी मुद्रा में भुगतान करके देि

ऄपनी मुद्रा को वापस खरीदता है, तब आसे पुनःक्रय कहा जाता है।

o ववदेिी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves: FER) में पररवतथन: RBI के पास

FER के रूप में ववदेिी मुद्रा, स्वणथ भंडार तथा IMF में SDR (Special Drawing Rights

या वविेष अहरण ऄवधकार) होता हैं। यदद देि का BoP घाटे में जाता है तो FER से
वनकासी करके आस घाटे की पूर्थत की जा सकती है।

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ववदेिी मुद्रा वववनयमन ऄवधवनयम (FERA; 1973) एवं ववदेिी मुद्रा प्रबंधन ऄवधवनयम (FEMA;
1999)
 FERA 1974 में लागू हुअ तथा यह समग्र भारत में सभी नागररकों पर लागू दकया गया। आसका
ईद्देश्य सभी ववदेिी लेन-देन और भुगतानों को वववनयवमत करना था। यह कानून ऄत्यवधक
वनयंत्रण और वनयमन पर कें दद्रत था, वजससे वृवद्ध दर एवं ववकास की गवत धीमी हो गयी।
फलस्वरूप 1999 में ववदेिी मुद्रा प्रबंधन ऄवधवनयम (FEMA) िारा आसे प्रवतस्थावपत दकया गया।
यह 1991 में िुरू की गइ ईदारीकरण की नीवतयों के ऄनुरूप था।
 FEMA को एक ऄवधक ईदार ऄवधवनयम माना गया, जो ऄपेक्षाकृ त कम प्रवतबंधात्मक था। आसने
ऄंतराथष्ट्रीय व्यापार को असान बना ददया है। आससे सीमा पार पूज
ं ी प्रवाह, वविेष रूप से ववदेिी
वनवेि पर प्रवतबंध कम हो गया है।
 FEMA के ऄंतगथत वनम्नवलवखत सवम्मवलत हैं:
o भारतीय रुपये की पररवतथनीयता (Convertibility of Rupee)
o ववदेिी मुद्रा से संबवं धत अपरावधक मामलों की जांच करने के वलए एक पृथक प्रवतथन
वनदेिालय (Enforcement Directorate: ED) की स्थापना
o कॉपोरे ट क्षेत्र िारा वलये गए ऊण (Borrowings by the corporate sector)
पूज
ं ी खाता पररवतथनीयता (Capital Account Convertibility)
 पररवतथनीयता, खुली ऄथथव्यवस्थाओं से संबंवधत तथ्य है। पररवतथनीयता से तात्पयथ स्थानीय
ववत्तीय पररसंपवत्तयों को बाजार अधाररत मूल्य पर ववदेिी मुद्रा में पररवर्थतत करने की स्वतंत्रता
से है।
क्या भारत को पूज
ं ी खाता पररवतथनीयता की ददिा में ऄग्रसर होना चावहए?
ववचार के पक्ष में कु छ तथ्य :
 RBI ने हाल ही में भारतीय कं पवनयों को रूपी डेब्ट ऑफिोर (Rupee Debt Offshore) या
ववदेिों में रूपये के रूप में ऊण प्रदान करने की ऄनुमवत प्रदान की है।
 पररवतथनीयता से ईदारीकरण को प्रोत्साहन वमलेगा तथा ववदेिी वनवेि में वृवद्ध होगी।
 ऄंतराथष्ट्रीय व्यापार के ववस्तार से पूंजी खाते पर लगे प्रवतबंधों से बचने के ऄवसर ईत्पन्न हो सकते
हैं।
 आससे वनम्न दर पर मुद्रा का मुक्त वववनमय संभव हो सकता है। साथ ही, यह पूज
ं ी की ऄप्रवतबंवधत
गवतिीलता को प्रोत्सावहत करता है - जो दक ऄथथव्यवस्था को वैविक मंदी के आस काल में भी
प्रभाववत कर सकती है।
ववचार के ववपक्ष में कु छ तथ्य :
 देि से व्यापक रूप में पूज ं ी के प्रवेि एवं वनकास से देि की ऄथथव्यवस्था ऄवस्थर तथा ववकास की
गवत मंद हो सकती है।
 मुद्रा ऄवधमूल्यन/ऄवमूल्यन, व्यापार संतल
ु न (trade balance) को प्रभाववत कर सकता है।

3.2. भु ग तान सं तु ल न की श्रे वणयां (Categories of Balance of Payments)

व्यापार संतल
ु न (Balance of Trade: BoT)
 यह दृश्य वस्तुओं के अयात एवं वनयाथत के मध्य संतल
ु न को दिाथता है।
 आससे अिय BoP में व्यापाररक वस्तुओं वाले भाग से है। आसका मान वनयाथवतत वस्तुओं (दृश्य
मदों) के मूल्य को अयावतत वस्तुओं के मूल्य से घटा कर प्राप्त दकया जाता है।
 यह अवश्यक नहीं है दक BoT, प्रायः संतल
ु न की वस्थवत में ही हो।
BoT = वस्तुओं के वनयाथत का मूल्य – वस्तुओं के अयात का मूल्य

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चालू खाता संतल
ु न (Balance of Current Account)
 आसमें दृश्य (visibles), ऄदृश्य (invisibles) तथा हस्तांतररत लेन-देन (transfers) को
सवम्मवलत दकया जाता है।
 आसमें BoT, ऄदृश्य मदों ऄथवा सेवाओं का िेष तथा हस्तांतररत िेष सवम्मवलत होता है।
 यह वतथमान में ईत्पाददत वस्तुओं और सेवाओं के वलए दकए गए सभी भुगतानों के साथ-साथ ऄन्य
देिों के साथ हुए धन के गैर-व्यापाररक प्रवाह का एक माप है।
o गैर-व्यापाररक प्रवाह में ववदेिों से कारक अय (ब्याज, लाभ तथा मजदूरी अदद) और
ऄंतरराष्ट्रीय हस्तांतरण संबंधी भुगतान सवम्मवलत होता है।
o चूंदक हस्तांतरण लेन-देन का महत्व ऄपेक्षाकृ त कम है, आसवलए चालू खाते का संतल
ु न मुख्यतः
वस्तुओं और सेवाओं के अयात और वनयाथत के संतुलन को संदर्थभत करता है वजसमें कारक
सेवाएँ भी सवम्मवलत होती हैं।
 आसमें व्यापार संतल
ु न और ऄदृश्य मदों के लेन-देन के मध्य संतुलन सवम्मवलत हैं।
 ऄदृश्य लेन-देन का संतुलन, सेवाओं और ऄदृश्य वस्तुओं के अयात और वनयाथत के मूल्य को दिाथता
है।
चालू खाता संतल
ु न = व्यापार संतल
ु न + ऄदृश्य लेन-देन का संतल
ु न + हस्तांतरण संतल
ु न
पूज
ं ी खाता संतल
ु न (Balance of Capital Account)
 यह ववदेिों से पूज
ं ी हस्तांतरण, ऊण देने एवं ऊण लेने के मध्य संतल
ु न को दिाथता है। साथ ही यह
ऄन्य देिों से ख़रीदे गए स्वणथ स्टॉक के क्रय तथा ववदेिी वववनमय का लेखा-जोखा भी रखता है।
 पूंजी खाते में दो प्रकार के पूज
ं ी प्रवाह सवम्मवलत होते हैं:
o ं ी प्रवाह (Autonomous Capital Flows): ये साधारण पूज
स्वायत्त पूज ं ी प्रवाह हैं। यह
सामान्य अर्थथक गवतवववधयों जैसे ऊण के ब्याज, लाभांि िारा प्राप्त अय तथा ऄंतराथष्ट्रीय
वनवेि एवं ऊण देने िारा प्राप्त ऄन्य अय के कारण होता है।
o समायोवजत प्रवाह (Accomodating Flows): आन प्रवाहों का प्रयोग वविेष रूप से BoP
को संतुवलत करने के वलए दकया जाता है।
 चालू खाता संतलु न और पूज ं ी खाता संतल ु न परस्पर सम्बंवधत होते हैं। चालू खाते पर हुए घाटे को
पूंजी खाते पर होने वाले िुद्ध ऄवधिेष िारा पूरा दकया जाना चावहए। ऄवतररक्त अयात के वलए
अवश्यक ववत्त हेतु ववदेिी मुद्रा या तो दकसी ऄन्य देि से ऊण के रूप में ली जानी चावहए ऄथवा
सरकार िारा स्वयं के स्वणथ तथा ववदेिी मुद्राभंडार से प्रदान की जानी चावहए। आसी प्रकार, चालू
खाते के ऄवधिेष को पूज
ं ी खाते के घाटे से समानता रखनी चावहए।
चूंदक BoP, चालू खाता संतल
ु न और पूज
ं ी खाता संतुलन का योग है, ऄतः यह सदैव संतुलन की वस्थवत
में रहता है।

3.3. भु ग तान सं तु ल न में ऄसाम्यता या ऄसं तु ल न (Balance of Payments


Disequilibrium)

ववदेिी मुद्रा की मांग, आसकी अपूर्थत से ऄवधक होने पर भुगतान संतल


ु न में घाटा होगा। जब ववदेिी
मुद्रा की अपूर्थत, आसकी मांग से ऄवधक हो, तब भुगतान संतल
ु न का अवधक्य होगा।

 BoP में संतुलन के वलए चालू और पूज


ं ीगत खातों का कु ल योग िून्य होना चावहए। आसका तात्पयथ
यह है दक ववदेिी मुद्रा की मांग, ईसकी अपूर्थत के बराबर होने पर दकसी देि का भुगतान संतल
ु न
साम्य वस्थवत में होता जाता है।
 BoP में ऄसंतुलन को समझने के वलए, हमें चालू खाते के िेष (current account balance) को
ध्यान में रखना चावहए। यह िेष चालू अय तथा चालू व्ययों के बीच का ऄंतर होता है।

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 BoP ऄसंतुलन को अंतररक या बाह्य ववत्तपोषण िारा पोवषत दकया जाता है। ववदेिी ववत्त पोषण
के ऄंतगथत FDI प्रवाह, पोटथफोवलयो प्रवाह, ववदेिों से वलए जाने वाले ऊण में बढ़ोतरी / ववदेिी
मुद्रा की कम होबल्डग / घरे लू मुद्रा की बढ़ी हुइ ववदेिी होबल्डग (जो सरकार िारा ऄवधक ववदेिी
मुद्रा लेने पर संभव है) सवम्मवलत हैं। कु छ पररवस्थवतयों में ववदेिी सरकार ऊण को माफ़ कर
सकती है, यदद ऐसा होता है, तो यह पूज
ं ी खाते में एकल मागी प्रवाह होगा।
BoP में ऄसंतुलन वववभन्न कारकों के कारण ईत्पन्न हो सकता है। BoP में ऄसंतल
ु न के वनम्नवलवखत
कारण हो सकते है:
(a) प्रवतकू ल BoP के कारण (Causes of Adverse BoP)
 ऄसंतुलन की वस्थवत, लाभ और ऄवधिेष दोनों ही दिा में ईत्पन्न हो सकती है
o राजनैवतक ऄवनवितता
o घरे लू कारक
o बड़े पैमाने पर हुए ववकास व्यय से कु ल मांग में वृवद्ध होती है और कीमतें बढ़ जाती है
पररणामस्वरूप अयात में वृवद्ध होती है। यह ध्यान ददया जाना चावहए दक पूज
ं ीगत वस्तुओं के
अयात में बड़े पैमाने पर वृवद्ध को BoP घाटे में जोड़ा जाता है।
o वैविक मंदी जैसी पररवस्थवतयां।
o बाज़ार जन्य ऄवस्थरता।
o दकसी देि की प्रगवत को बावधत करने वाली अपदाएं।
(b) BoP के ऄसंतल
ु न को दूर करने के ईपाय
 BoP ऄसंतुलन को मौदद्रक नीवत एवं राजकोषीय नीवत के माध्यम से दूर दकया जाता है।
 BoP में होने वाला घाटा, बढ़ते हुए अयात को दिाथता है। जब ऄथथव्यवस्था में मुद्रा की अपूर्थत
कम होती है, तब क्रय िवक्त कम हो जाती है, वजससे कु ल मांग और घरे लू क़ीमतें कम हो जाती है।
आसके फलस्वरूप अयात कम हो जाता है।
 घरे लू कीमतों में यह वगरावट ऄवधक वनयाथत को प्रोत्सावहत करती है।
 आस प्रकार, मुद्रा की अपूर्थत में कमी से अयात में कमी तथा वनयाथत में वृवद्ध होती है।
पररनाम्स्वारूप, BoP के घाटे में सुधार अता है।
 ऄवमूल्यन (devaluation) िारा: ऄवमूल्यन से अिय एक मुद्रा के दूसरी मुद्रा में पररवतथन की
अवधकाररक दर में कमी से है। मुद्रा ऄवमूल्यन का ईद्देश्य ऄसंतुलन को दूर करने हेतु ऄपने वनयाथत
को प्रोत्सावहत करना और अयात को हतोत्सावहत करना है।
 वववनमय वनयंत्रण: वववनमय वनयंत्रण के ऄंतगथत, कें द्रीय बैंक का देि के ववदेिी मुद्रा भंडार और
आसकी अय पर पूणथ वनयंत्रण होता है।
 वनयाथत संवधथन: आसमें वनयाथत िुल्क की कमी ऄथवा आसका ईन्मूलन वनवहत है। आसके साथ ही
आसमें वनयाथत सवब्सडी प्रदान करना, वनयाथत ईत्पादन को प्रोत्सावहत करना और वनयाथत ववपणन
को बढ़ावा देना सवम्मवलत है तादक ववदेिी मुद्रा भंडार में वृवद्ध हो सके ।
 अयात वनयंत्रण: यह अयात िुल्क में सुधार या ईसे बढ़ाकर, अयात कोटा के माध्यम से अयात
को सीवमत करके , लाआसेंबसग और कु छ ऄनन्य वस्तुओं के अयात पर रोक लगाने के माध्यम से
दकया जाता है।
 FDI वृवद्ध पर कें दद्रत नीवतयों के माध्यम से।
स्वणथ मुद्रीकरण योजना (गोल्ड मॉनेटाइजेिन स्कीम) : भारत के BoP में सुधार के वलए
 स्वणथ मुद्रीकरण योजना, भारत सरकार िारा स्वणथ के मुद्रीकरण के ईद्देश्य से प्रारं भ की गयी तादक
स्वणथ भंडार पर ब्याज प्राप्त दकया जा सके ।

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स्वणथ मुद्रीकरण योजना के ईद्देश्य और वविेषताएँ
 आस योजना का मूल ईद्देश्य घरों व ऄन्य संस्थानों के पास लगभग वनवरक्रय पड़े स्वणथ का ईत्पादक
कायों में आस्तेमाल करना है।
 साथ ही आसका दीघाथववधक लक्ष्य स्वणथ के अयात को कम करना है।
 यह योजना वनवेिकों को स्वणथ की जमा रावि पर ब्याज ऄर्थजत करने का ऄवसर प्रदान करती है।
 स्वणथ को दकसी भी रूप (बुवलयन या अभूषण) में जमा दकया जा सकता है। हालांदक ऐसे
स्वणाथभष
ू ण वजनमें ऄन्य रत्न पत्थर लगे हो वे स्वीकायथ नहीं हैं। जमा के रूप में स्वीकार की जाने
वाली स्वणथ की न्यूनतम मात्रा 30 ग्राम (995 िुद्धता) है। स्वणथ जमा करने की कोइ ऄवधकतम
सीमा नहीं है।
 जमा रावि की ऄववध को तीन समयाववध योजनाओं में बाँटा जाता है, जो वनम्नवलवखत हैं:

i. ऄल्पाववध: 1 से 3 वषथ

ii. मध्याववध: 5 से 7 वषथ

iii. दीघाथववध: 12 से 15 वषथ


 वनवेिको को लॉक-आन ऄववध के पूरा होने से पहले वनकासी की ऄनुमवत हैं दकन्तु आसके के वलए
ईन्हें ऄथथदड
ं चुकाना होगा ।
 मध्यम और दीघथकावलक जमाओं के वलए, ब्याज की दर (एवं बैंकों को ईनकी सेवाओं हेतु ददया

गया बैंक िुल्क) सरकार िारा समय-समय पर RBI के परामिथ से वनधाथररत दकये जाते है। जबदक
ऄल्पकावलक ऄववध की ब्याज दर बैंकों िारा तय की जाती है तथा यह स्वणथ (प्रवत ग्राम यूवनट) में
वनधाथररत होती है।

3.4 भारत का भु ग तान सं तु ल न सं क ट ( Indian Balance of Payments Crisis)

1991

 1979 के तेल संकट के पिात्, भारत िारा दकये गए अयात का मूल्य 1978 और 1981-82 के

मध्य लगभग दोगुना बढ़ गया था। छठीं पंचवषीय योजना के ऄंत तक, चालू खाते के घाटे (CAD)
में वृवद्ध होने लगी।
 अर्थथक संकट, मुख्य रूप से 1980 के दिक के दौरान वविाल और बढ़ते ववत्तीय ऄसंतुलन के
कारण ईत्पन्न हुअ था। आस वविाल राजकोषीय घाटे का व्यापार घाटे पर प्रवतकू ल प्रभाव पड़ा
और समय के साथ यह एक बाह्य भुगतान संकट (external payments crisis) में बदल गया।

1990 के ऄंत तक, भारत गंभीर रूप से अर्थथक संकट की ऄवस्था में था।
 ऐसा कहा जाता है दक ववदेिी मुद्रा भंडार आस मात्रा तक कम हो गया था दक भारत के पास के वल
तीन सप्ताह के अयात हेतु ही ववदेिी मुद्रा भंडार बचा था।
 1991 के मध्य में, भारतीय वववनमय दर में कठोर समायोजन दकया गया।

 ववदेिी सहायता के ऄवतररक्त, IMF से SDR की वनकासी के कारण भारत को चालू खाते में भारी
घाटे का सामना करना पड़ा था।
 BoP संकट का सामना करने के वलए ईठाए गए कदम: 1991 में रुपये का ऄवमूल्यन कर ददया

गया। मुद्रा ऄवमूल्यन के कारण भारतीय रुपया 1991 के 17.50 रुपया प्रवत डॉलर से वगरकर

1992 में 45 रुपया प्रवत डॉलर पर अ गया। रुपये का मूल्य 23% तक कम कर ददया गया था।

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ईद्योगों को के लाआसेंस रद्द कर ददए गए। अयात प्रिुल्क कम कर ददए गए तथा अयात प्रवतबंधों
को समाप्त कर ददया गया। भारतीय ऄथथव्यवस्था को ववदेिी वनवेि के वलए खोल ददया गया।
1992 में वलबरलाआयड एक्सचेंज रे ट मैनज
े मेंट वसस्टम, या LERMS प्रस्तुत दकया गया तथा आसके
पिात् भारत ने वस्थर वववनमय प्रणाली से दोहरी वववनमय दर प्रणाली को ऄपनाया। 1993-94

के बजट ने एक एकीकृ त वववनमय दर या बाजार-अधाररत प्रबंधन प्रणाली की घोषणा की, वजसके


बाद िीघ्र ही चालू खाते पर पररवतथनीयता (convertibility on the current account) को
लागू कर ददया गया।

4. खु ली भारतीय ऄथथ व्य वस्था का अरं भ - नव ईदारवादी


अर्थथक सु धार 1991
 1980 के दिक में जब भारतीय ऄथथव्यवस्था में खुलापन लाने के वलए सुधारों का अरं भ हुअ, तब
भारतीय ऄथथव्यवस्था बड़े पैमाने पर एक समग्र संरक्षणवादी व्यवस्था के ऄधीन थी। आस व्यवस्था
का फोकस अयात प्रवतस्थापन (import substitution), कें द्रीकृ त सावथजवनक क्षेत्र और राजकीय
वनयंत्रण पर ऄवधक था।
 1991 तक, भारत में एक वस्थर वववनमय दर प्रणाली थी। आस प्रणाली में रुपये का मूल्य प्रमुख
व्यापाररक भागीदार देिों की मुद्राओं के समूह (बास्के ट ऑफ़ करें सीज़) के मूल्य के रूप में वनधाथररत
दकया जाता था।
 ध्यातव्य है दक भारत को 1991 में अर्थथक संकट का सामना करना पड़ा।

 वैिीकरण के वलए भारतीय ऄथथव्यवस्था में खुलापन लाने की अवश्यकता को समझते हुए,

सरकार ने 1991 में व्यापार ईदारीकरण और नव ईदार अर्थथक सुधारों की घोषणा की, वजसका
लक्ष्य वैिीकरण के सन्दभथ में भारत को ईदार बनाना था।
 आसका ईद्देश्य लाआसेंस राज को समाप्त करना, भारतीय ऄथथव्यवस्था में बाजारों और वनजी क्षेत्र का

प्रवेि कराना, प्रवतबंधों को कम करना तथा प्रत्यक्ष ववदेिी वनवेि को बढ़ावा देना था।
वनजी और ववदेिी वनवेिकों के वलए भारतीय बाज़ार में खुलापन लाने के वलए तथा सावथजवनक क्षेत्र का
एकावधकार कम करने के वलए वनम्नवलवखत ईपाय दकए गए:
o अयात प्रिुल्कों, बाजारों का वनयंत्रण एवं करों में कमी की गयी तथा ववदेिी वनवेि को
प्रोत्सावहत दकया गया।
o आन ईपायों को वनजीकरण, ईदारीकरण और वैिीकरण सुधारों के रूप में भी जाना जाता है।

o ऄपनी ऄथथव्यवस्था को खुली ऄथथव्यवस्था में बदलकर, भारत ने ववि को एक सिक्त संदि

भेजा दक भारत ववि के साथ अर्थथक रूप से एकीकृ त होना चाहता है।
 आन सुधारों में ईद्योग, बाह्य व्यापार, ववदेिी वनवेि, वववनमय दर प्रणाली, बैंककग, पूंजी बाजार
और ववत्तीय तथा मौदद्रक नीवतयों जैसे सभी प्रमुख क्षेत्रों को सवम्मवलत दकया गया था।

4.1. नव ईदारवादी अर्थथक सु धारों (1991) के 25 वषथ

 एक भारतीय की प्रवत व्यवक्त अय 1991 की 6,295 रुपये से लगभग 15 गुना बढ़कर वतथमान में

1,03,007 रुपये हो गइ है। मुद्रास्फीवत के समायोजन के बाद भी, अय में साढ़े पांच गुना की वृवद्ध
दजथ की गयी है। यह वृवद्ध बढ़ती क्रय िवक्त को प्रवतबबवबत करती है।
 2005-06 और 2010-11 के मध्य औसत वार्थषक ववकास दर 8.8 प्रवतित रही।

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क्या 1991 की नव-ईदारवादी नीवत संधारणीय है?

 मानव ववकास रैं ककग का वनम्न स्तर - 131 (HDI 2016)


 बढ़ती अर्थथक ऄसमानता
 वपछड़ता कृ वष क्षेत्र, दकसानों िारा की जाने वाली अत्महत्याओं में वृवद्ध
 क्रोनी कै वपटवलज़्म
 बैंककग क्षेत्र में गैर-वनरपाददत पररसंपवत्तयों की वृवद्ध
 सुधारों के बाद वगथ, जावत, बलग और धमथ में ऄंतर्थनवहत संरचनात्मक ऄसमानता (Structural

inequalities) न के वल बढ़ी है, बवल्क स्वास्थ्य और विक्षा जैसी सावथजवनक सेवाओं के वनजीकरण
के प्रयास के पिात् वंवचत वगथ मुख्यधारा से और भी ऄलग-थलग पड़ गया है।
 रोजगार के ऄवसरों की कमी
 यह संभव है दक 1991 के पूवथ के दिकों में अर्थथक वृवद्ध दर मंद हों दकन्तु यह भी ईतना ही सत्य है
दक रायय अधाररत ववकास ने ईन क्षमताओ को ईत्पन्न दकया जो वस्तुतः अर्थथक सुधारों और
ईदारीकरण की नींव थे।
 वैिीकरण ने भारतीय ऄथथव्यवस्था की ऄनौपचाररकरण बढ़ाने में योगदान ददया है।
o कॉन्रैक्ट वकथ र, अईट-वकथ र, एजेंसी लेबर, ऄस्थायी श्रवमक और टेली-वकथ र अदद जैसे बाह्य
श्रम का ऄवधक ईपयोग।
o संगरठत कायथबल की संख्या में कमी, ऄनौपचाररक क्षेत्र का ववस्तार और कायों का
ऄनौपचारीकरण।
o श्रम का यह 'ऄनौपचारीकरण' न के वल ऄथथव्यवस्था के ऄनौपचाररक क्षेत्रों में ही हुअ है
बवल्क औपचाररक क्षेत्रों में भी अईटसोर्ससग और ईप-ऄनुबंध के माध्यम से ईत्पादन तथा
नौकररयों के ऄनौपचारीकरण में वृवद्ध हुइ है।
o ऄनौपचारीकरण के प्रभाव:
 सामावजक सुरक्षा की ऄपयाथप्तता, रेड यूवनयनों का कमजोर होना तथा वेतन ऄसमानता
में वृवद्ध।
 ऄनौपचाररक श्रवमकों के मध्य वनधथनता में वृवद्ध हुइ है।
 ऄनौपचाररक मानव संसाधन के प्रविक्षण और ववकास की ईपेक्षा के फलस्वरूप
ऄथथव्यवस्था की ईत्पादकता में कमी अयी है।

5. पू वथ एवियाइ सं क ट 1997
 जून 1997 और जनवरी 1998 के मध्य, दवक्षण पूवी एविया की "टाआगर आकॉनोमीज" में एक

ववत्तीय संकट ईत्पन्न हुअ। आस संकट से पूवथ के दिक में थाइलैंड, मलेविया, बसगापुर, आं डोनेविया,
हांगकांग और दवक्षण कोररया जैसे दवक्षण-पूवी एवियाइ देिों में ईच्च अर्थथक वृवद्ध दर दजथ की गइ
थी।
 1997 में, आन एवियाइ देिों की यह ईच्च अर्थथक वृवद्ध दर समाप्त हो गयी तथा आन देिों में िेयर
बाजार और मुद्रा बाजार धरािायी हो गए।
 एवियाइ ववत्तीय संकट को "एवियन कं टेवजयन” (Asian Contagion) भी कहा जाता है। यह

ववत्तीय संकट मुद्रा ऄवमूल्यन और ऄन्य घटनाओं की वह श्रृंखला थी जो 1997 के प्रारं भ में कइ
एवियाइ बाजारों में व्याप्त थी।

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 मुद्रा बाजार सवथप्रथम थाइलैंड में ववफल हुअ, क्योंदक वहाँ की सरकार ने स्थानीय मुद्रा को
ऄमेररकी डॉलर (USD) से वववनयंवत्रत या ऄसंबद्ध करने का वनणथय वलया।
 आस क्षेत्र के लगभग सभी देिों को मांग में कमी और बाज़ार में वविास की कमी का सामना करना
पड़ा।
 यह माना जाता है दक कमजोर एवियाइ ववत्तीय प्रणावलयों ने आस संकट को जन्म ददया। अंविक
रूप से वनयंवत्रत वववनमय दर से प्रोत्सावहत तीव्र वृवद्ध दर और बढ़ते पूंजी प्रवाह के कारण ववत्तीय
क्षेत्र की आन कमजोररयों के ववषय में पता नहीं चला था।
6. 2008 की वै विक अर्थथक मं दी और भारत (Recession
of 2008 And India)
 वषथ 2008 की मंदी, ईस वषथ के ववत्तीय संकट के कारण ईत्पन्न हुइ थी।
 एविया में 2008 की मंदी से ईत्पन्न ववत्तीय संकट के प्रभाव, स्टॉक माके ट में ईथल-पुथल और
घरे लू क्रेवडट के संकुचन के रूप में पररलवक्षत हुए।
 मुख्य रूप से तत्कालीन ऄथथव्यवस्था में राष्ट्रीयकृ त बैंकों की बड़ी भूवमका और घरे लू ववत्त पर प्रबल
रूप में सरकारी वनयंत्रण के कारण भारत आस अर्थथक मंदी से सुरवक्षत रहा।
 भारत पर आस संकट का सवाथवधक तात्कावलक प्रभाव आदिटी माके ट से ववदेिी संस्थागत वनवेि का
बवहप्रथवाह था। ये ववदेिी संस्थागत वनवेिक ऐसे थे वजन्हें ऄपने देिों में नुकसान की क्षवतपूर्थत के
वलए पररसंपवत्तयों को बेचने की अवश्यकता थी और वजन्हें ऄवनवित ववत्तीय पररवेि में ऐसे
स्थान पर वनवेि की अवश्यकता थी दक ईनका वनवेि सुरवक्षत रह सके । आसके फलस्वरूप FDI का
बवहप्रथवाह हुअ। आसके पररणामस्वरूप रुपये का भी ऄवमूल्यन हुअ ।
7. भारतीय ववदे ि व्यापार नीवत (FTP) 2015 - 2020
 आसका प्राथवमक ईद्देश्य मेक आन आं वडया, वडवजटल आं वडया जैसी योजनाओंंं को सुदढ़ृ करने के
साथ-साथ भारतीय वनयाथत को बढ़ावा देना है। ऄत: यह आज़ ऑफ़ डू आंग वबज़नस के साथ भारतीय
वववनमाथण क्षेत्र पर ध्यान कें दद्रत करती है।
प्रमुख बबदु
 2019-2020 तक भारत के वनयाथत को 900 वबवलयन ऄमरीकी डॉलर तक बढ़ाना।
 FTP का ईद्देश्य वनयाथत िुल्क में 25% तक कमी लाना तथा घरे लू वववनमाथण को बढ़ावा देना है।
 FTP से होने वाले लाभों को MEIS और SEIS योजनाओं िारा SEZs में वस्थत आकाआयों तक
ववस्तृत करना।
 FTP 2015-20 ने दो नइ योजनाएँंँ प्रस्ताववत की गइ हैं:
o "भारत से वस्तु वनयाथत योजना (MEIS)" एवं "भारत से सेवा वनयाथत योजना (SEIS)"”:
पूवथवती ववदेि व्यापार नीवत (FTP) के ऄंतगथत 6 योजनाओंंं (फोकस प्रॉडक्ट स्कीम, माके ट
बलक्ड फोकस प्रोडक्ट स्कीम, फ़ोकस माके ट स्कीम, एग्रीकल्चर आन्रास्रक्चर आन्सेंरटव वस्क्रप,
वविेष कृ वष एवं ग्राम ईद्योग योजना तथा वृवद्धिील वनयाथत प्रोत्साहन योजना) को रखा गया
था। ये योजनाएँ या तो क्षेत्र-ववविष्ट थी या वास्तववक ईपयोगकताथ से जुड़ी थी। नयी योजना
में आन्हें एक ही योजना यथा - भारत से वस्तु वनयाथत योजना के ऄंतगथत समावहत कर ददया है।
o 'भारत से सेवा वनयाथत योजना' (SEIS) का ईद्देश्य ऄवधसूवचत सेवाओं के वनयाथत में वृवद्ध
करना है। सवथड् रॉम आं वडया स्कीम (SFIS) को भारत सरकार िारा (भारत से सेवा वनयाथत
स्कीम -SEIS) से प्रवतस्थावपत कर ददया गया है। SEIS स्कीम, 'भारतीय सेवा प्रदाताओं' के
बजाय 'भारत में वस्थत सेवा प्रदाताओं' पर लागू होती है। आस प्रकार, यह सेवा प्रदाता के
संघटन या प्रोफाआल की परवाह दकए वबना, भारत से ऄवधसूवचत सेवाएँ प्रदान करने वाले
सभी सेवा प्रदाताओं को प्रोत्साहन प्रदान करती है।

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o ववविष्ट बाजार ववदेिी व्यापार नीवत हेतु ववविष्ट सेवाओं को बढ़ावा देने के वलए भारत से
वस्तु वनयाथत योजना (MEIS) अरम्भ की गइ है।

o MEIS और SEIS ने कइ पूवव


थ ती योजनाओंंं का स्थान वलया है और आनमें पात्रता एवं

ईपयोग के वलए ऄलग-ऄलग ितों का प्रावधान है। SEZs के वलए भी प्रोत्साहन का प्रावधान

दकया गया है। हस्तविल्प, हथकरघा, पुस्तकों अदद के इ-कॉमसथ को भी MEIS के लाभ प्राप्त
होंगे।
 MEIS के ऄंतगथत कृ वष और ग्रामीण ईद्योग के ईत्पादों को ववि भर में क्रमिः 3% और 5% की

दर से समथथन प्राप्त होगा। MEIS के ऄंतगथत संसावधत, पैकेयड एग्रीकल्चर और पैकेयड फ़ू ड को


ऄपेक्षाकृ त ऄवधक समथथन ददया जायेगा।
 औद्योवगक ईत्पादों को प्रमुख बाजारों में 2% से 3% तक समथथन ददया जाएगा।

 व्यावसावयक सेवाओं, रे स्तरां और होटलों को SEIS के तहत 3% ररवॉडथ वस्क्रप्स औरस और ऄन्य ववविष्ट

सेवाओं को 5% ररवॉडथ वस्क्रप्स औरस प्रदान दकया जाएगा।

 सीमा िुल्क, ईत्पाद िुल्क और सेवा कर के भुगतान के वलए ड्यूटी क्रेवडट वस्क्रप्स औरस का बहुतायत से
हस्तांतरण और ईपयोग दकया जा सकता है।
 वववभन्न लाआसेंसों को जारी करने के वलए ऄंतर-मंत्रालय ववचार-ववमिथ सभा का ऑनलाआन
अयोजन दकया जाएगा।
 रक्षा, सैन्य भंडार, ऄंतररक्ष प्रौद्योवगकी और परमाणु उजाथ से संबंवधत वनयाथत वस्तुओं के वलए

वनयाथत िुल्क की ऄववध 18 माह के स्थान पर 24 माह कर दी जाएगी।

 कालीकट एयरपोटथ, (के रल) और ऄराकोणम ICDS (तवमलनाडु ) को अयात तथा वनयाथत के वलए
पंजीकृ त बंदरगाहों के रूप में ऄवधसूवचत दकया गया है। साथ ही वविाखापट्टनम और भीमावरम
को वनयाथत ईत्कृ ष्टता के नगरों के रूप में वचवन्हत दकया गया है।

8. भारत का व्यापार घाटा


 भारत का व्यापार घाटा वषथ 2004-05 के 28 वबवलयन ऄमरीकी डॉलर से बढ़कर 2012-13 में

ऄब तक के सवाथवधक स्तर 195 वबवलयन डॉलर तक पहुँच गया था।

 आसके पिात् से, व्यापार घाटे में लगातार कमी अइ है (ऄप्रैल-माचथ 2016-17 में व्यापार घाटा

105.72 वबवलयन ऄमेररकी डॉलर ऄनुमावनत था)। ऐसा पेरोवलयम, तेल एवं लुविकें ट (POL) के
अयात मूल्य में कमी के कारण हुअ जो ऄंतराथष्ट्रीय स्तर पर पेरोवलयम के मूल्यों में वगरावट के
कारण संभव हो सका।
 व्यापार घाटे को POL घाटे और गैर POL घाटे में ववभक्त दकया सकता है। POL घाटा (POL

वनयाथत - POL अयात), व्यापार घाटे का एक प्रमुख घटक है। यह 2011-12 से 2013-14 तक

100 वबवलयन ऄमरीकी डालर के लगभग था। 2014-15 में यह घटकर 81.5 वबवलयन ऄमेररकी

डॉलर हो गया और 2015-16 में यह घटकर 52.5 वबवलयन ऄमेररकी डॉलर रह गया।

 व्यापार नीवत में वनयाथत को बढ़ावा देने पर फोकस दकया गया है और आस प्रकार व्यापार नीवत,
व्यापार घाटे के स्तर को कम करने का प्रयास करती है। व्यापार घाटे के स्तर में सुधार ने मौजूदा
राजकोषीय वषथ में पूरे भुगतान संतल
ु न पर एक ऄच्छा प्रभाव डाला है और आसे सकारात्मक स्तर
पर बनाये रखा है।

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9. इज ऑफ़ डू आं ग वबजने स , सरकारी योजनायें अदद
 ववि बैंक के इज़ ऑफ़ डू आंग वबजनेस आं डक्
े स 2018 में भारत को 100वॉ स्थान प्राप्त हुअ है,
जबदक 2017 में भारत 130वें स्थान पर था। इज़ ऑफ़ डू आंग वबजनेस को बढ़ावा देने और मेक आन
आं वडया, स्टाटथ ऄप आं वडया जैसी योजनाओं के प्रभावी रूप से कायाथन्वयन के वलए सरकार ने वववभन्न
कदम ईठाये हैं। वडवजटल आं वडया भी आसी दक्षता को बढ़ाने की ददिा में एक प्रयास है।
 बसगल बवडो वक्लऄरें स, ESIC के वलए ऑनलाआन पोटथल, वावणयय ववभाग का 'आं वडयन रेड
पोटथल' अदद जैसी योजनाएँ भारत में ववदेिी वनवेि को असान बनाने की ददिा में ईठाये गए कु छ
कदम हैं।
 आसके ऄवतररक्त, कं पवनयों के वलए न्यूनतम पेड-ऄप कै वपटल और कॉमन सील की अवश्यकताओं
को हटाने के वलए कं पनी (संिोधन) ऄवधवनयम, 2015 पाररत दकया गया है।

वचत्र: इज ऑफ़ डू आंग वबजनेस 2017 एवं 2018; भारत का प्रदिथन


 व्यापार की सम्पूणथ ऄववध में वनवेिकों के मागथदिथन, सहायता और समथथन के वलए 'आन्वेस्ट
आं वडया' नामक एक वनवेिक सुववधा कें द्र (Investor Facilitation Cell) बनाया गया है।
 औद्योवगक नीवत एवं संवधथन ववभाग िारा जापान प्स औरलस और कोररया प्स औरलस के न्द्रों की स्थापना की
गयी है।
 सरकार का ईद्देश्य अठ ऄवधकरणों का वतथमान ऄवधकरण में ववलय और न्यायाधीिों के वलए
समान वेतनमान सुवनवित करना है वजससे यह सुवनवित हो सके दक आन ऄद्धथ-न्यावयक वनकायों में
पयाथप्त कायथबल हो तथा वववादों का िीघ्र समाधान सुवनवित दकया जा सके ।
 भारत ऄपनी ऄप्रत्यक्ष कर प्रणाली का िीघ्रता से कायाकल्प करना चाहता है तथा एकीकृ त
ऄप्रत्यक्ष कर - GST आसका सवोतम ववकल्प है।
 कें द्रीय ईत्पाद िुल्क एवं सीमा िुल्क बोडथ (CBEC) ने अयातकों हेतु प्रेवषत वस्तुओ की मंजूरी में
तेजी लाने के वलए वस्वफ्ट (बसगल बवडो आं टरफे स फॉर फै वसवलटेटटग रेड; SWIFT) नामक प्रणाली
ववकवसत की है।
िुल्क
 अयात िुल्क (Import Duty): अयात िुल्क वह कर है वजसका अयातक को ऄपने देि में ववदेिी
वस्तुओं को लाने के वलए भुगतान करना पड़ता है। अयात िुल्क को सीमा िुल्क, टैररफ, या अयात
प्रवतिुल्क के रूप में भी जाना जाता है। अयात िुल्क, एक मूल्यानुसार िुल्क हो सकता है, ऄथाथत्
यह वस्तुओं के मूल्य के अधार पर अधाररत होता है। यह ववविष्ट, ऄथाथत् वस्तुओं के वजन, अयाम
ऄथवा माप की ऄन्य आकाआयों पर भी अधाररत हो सकता है।

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 वनयाथत िुल्क (Export Duty): वनयाथत िुल्क में वस्तुओं या सेवाओं पर लगे सामान्य या ववविष्ट
कर सवम्मवलत होते हैं। यह ईस दिा में लागू होता है जब वस्तुएं देि के अर्थथक क्षेत्र से दूसरे देि
के अर्थथक क्षेत्र में प्रवेि करती हैं या जब गैर-वनवावसयों को सेवाएं प्रदान की जाती है।
 प्रवतकारी िुल्क (Countervailing duties): यह अयावतत वस्तुओं पर लगाया जाने वाला वह
िुल्क है जो वनयाथतक देि के ईत्पादकों को ईपयुथक्त वस्तुओं के ईत्पादन में दी गयी सवब्सडी को
प्रवतसंतुवलत करता है। प्रवतकारी िुल्क (CVD), दकसी ईत्पाद के घरे लू ईत्पादकों और ववदेिी
ईत्पादकों के मध्य समानता स्थावपत करता है। ववदेिी ईत्पादक ऄपनी सरकारों से वमलने वाली
सवब्सडी के कारण कम कीमतों पर ईत्पादन कर सकते हैं वजसके कारण CVD को लगाना
ऄपररहायथ हो जाता है। ऄवनयंवत्रत छोड़े जाने पर, आस तरह की सवब्सडी वाले अयातो का घरे लू
ईद्योग पर प्रवतकू ल प्रभाव पड़ सकता है वजससे ईद्योग बंद हो सकते है तथा रोजगार में कमी अ
सकती है। चूंदक वनयाथत सवब्सडी को ऄनुवचत व्यापाररक साधन माना जाता है, ऄतः ववि व्यापार
संगठन-WTO, (जो दक व्यापार के वैविक वनयमों का देिों के मध्य समन्वय करता है) ने ववस्तृत
प्रदक्रयाओं को स्थावपत दकया है। आसके ऄंतगथत एक वनयाथतक देि, वनयाथवतत वस्तुओं पर CVD
िुल्क अरोवपत कर सकता है।
 एंटी-डंबपग िुल्क (Anti-Dumping Duty): यह एक संरक्षणवादी िुल्क है। वनयाथवतत वस्तुओं का
मूल्य ईवचत बाजार मूल्य से कम होने पर स्वदेिी सरकार, ववदेिी अयात पर यह िुल्क लगाती
है। यदद कोइ कं पनी ऄपने घरे लू बाजार के मूल्य से कम मूल्य पर दकसी ईत्पाद का वनयाथत करती है
तो ईसे "डंबपग" कहा जाता है। WTO समझौता (GATT) सरकारों को डंबपग के ववरुद्ध कारथ वाइ
करने की ऄनुमवत देता है जहां प्रवतस्पधी घरे लू ईद्योगों को वास्तववक (वस्तुगत) क्षवत पहुँच रही
हो।
10. प्रत्यक्ष ववदे िी वनवे ि , FII, FPI
10.1.प्रत्यक्ष ववदे िी वनवे ि (Foreign Direct Investment)

 दकसी देि की कं पनी या व्यवक्तयों िारा दूसरे देि में व्यापाररक वहतों के वलए दकया गया वनवेि
होता है। यह वनवेि दूसरे देि में व्यावसावयक पररचालन स्थावपत कर ऄथवा व्यापाररक संपवत्तयों
का ऄवधग्रहण करके दकया जाता है। आसके ऄंतगथत ववदेिी कं पवनयों में स्वावमत्व या वहतों को
वनयंवत्रत करने के वलए दकया गया वनवेि सवम्मवलत होता है।
 प्रत्यक्ष ववदेिी वनवेि, पोटथफोवलयो वनवेि (portfolio investments) से ऄलग हैं। आसमेंंं
वनवेिक के वल ववदेि-अधाररत कं पवनयों की आदिटी खरीदता है। प्रत्यक्ष ववदेिी वनवेि की प्रमुख
वविेषता यह है दक यह एक ऐसा वनवेि है, जो दकसी ववदेिी व्यापार के वनणथयों पर प्रभावी
वनयंत्रण, या ऄंितः पयाथप्त प्रभाव स्थावपत करता है।
 ऄरबवद मायाराम सवमवत की ऄनुिंसाओं के ऄनुसार स्वीकार की गयी नइ पररभाषा के ऄनुसार,
भारतीय सूचीबद्ध कं पवनयों में 10% या ईससे ऄवधक के ववदेिी वनवेि को FDI माना जाता है।
 आसके ऄवतररक्त, एक ऄसूचीबद्ध कं पनी में हुअ ववदेिी वनवेि (वनवेि सीमा के वनरपेक्ष) FDI
माना जाता है।

10.2. ववदे िी पोटथ फोवलयो वनवे ि (Foreign Portfolio Investment)

 िेयरों, सरकारी बॉन्ड, कॉरपोरे ट बॉन््स, पररवतथनीय प्रवतभूवतयों, ऄवसंरचना संबंधी


प्रवतभूवतयों आत्यादद सवहत भारतीय प्रवतभूवतयों में गैर-वनवावसयों िारा दकया गया वनवेि FPI
कहलाता है।
 आन प्रवतभूवतयों में वनवेि करने वाले वनवेिकों के वगथ को ववदेिी पोटथफोवलयो वनवेिक (Foreign
Portfolio Investors) के रूप में जाना जाता है।

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 SEBI के ऄनुसार, गैर-वनवावसयों िारा दकया गया कोइ भी आदिटी वनवेि, पोटथफोवलयो वनवेि
है। यह जो दक कं पनी की कु ल पूज
ं ी के 10% से कम है। आस सीमा से ऄवधक के वनवेि को ववदेिी
प्रत्यक्ष वनवेि (FDI) माना जाएगा।
 ववदेिी पोटथफोवलयो वनवेिक के ऄंतगथत ववदेिी संस्थागत वनवेिक (FII), ऄहथता प्राप्त ववदेिी
वनवेिक (Qualified Foreign Investors; QFI) और ईप-खाते अदद सवम्मवलत हैं।

10.3. ववदे िी सं स्थागत वनवे ि (Foreign Institutional Investments)

 FII के ऄंतगथत पेंिन फं ड, म्यूचऄ


ु ल फं ड, वनवेि रस्ट, बीमा कं पनी तथा पुनबीमा कं पनी सवम्मवलत
हैं।
 SEBI के ऄनुसार, "FII वह संस्था है जो भारत के बाहर स्थावपत या वनगवमत होती है तथा
भारतीय प्रवतभूवतयों में वनवेि करने की आच्छा रखती है”।
 FII, भारतीय प्रवतभूवत एवं वववनमय बोडथ (ववदेिी संस्थागत वनवेिक) वववनयम, 1995 के तहत
पंजीकृ त होते हैं।

10.4. MoUs एवं FDI के मध्य ऄं त राल (Gaps between MoUs and FDI)

 ववगत वषों में, भारतीय ऄथथव्यवस्था में एक वविाल बाज़ार की ईपवस्थवत के कारण ववदेिी
वनवेिकों िारा आसमें ऄत्यवधक रुवच प्रदर्थित की गयी है। ववदेिी वनवेिकों िारा भारत के साथ
वनवेि के ईद्देश्य से कइ समझौता ज्ञापनों (MoUs) पर हस्ताक्षर भी दकए गए हैं। हालाँदक,
वववभन्न दोषों के कारण आनमें से कइ MoU, प्रत्यक्ष ववदेिी वनवेि में पररवर्थतत नहीं हुए हैं।
o भारत के इज ऑफ़ डू आंग वबज़नस पररदृश्य पर खराब प्रदिथन के चलते वनवेि के वलए
ऄनुपयुक्त पररवेि का होना।
o सड़क-रे ल संपकथ जैसी सिक्त भौवतक ऄवसंरचना की कमी।
o श्रवमक और ऄनुबंध प्रवतथन कानूनों की ऄत्यवधक जरटल प्रकृ वत।
o कर अतंकवाद (tax terrorism) की धारणा।
o 2009-10 के पिात् ईच्च ववत्तीय घाटा और नीवतगत ईदासीनता (policy paralysis)।
 देि में FDI की अवश्यकता को समझते हुए, संघीय स्तर पर प्रत्येक सरकार ने FDI को अकर्थषत
करने के वलए वृवद्धिील सुधारों का अरम्भ एवं दक्रयान्वयन दकया है।

10.5. FDI में दकये गए सु धार (Reforms in FDI)

स्वचावलत मागथ (Automatic Route): आस मागथ से दकये जाने वाले वनवेि के ऄंतगथत कें द्र सरकार की
ऄनुमवत की अवश्यकता नहीं होती है।
सरकारी मागथ (Government Route): आस मागथ से दकये जाने वाले वनवेि के ऄंतगथत, ववदेिी वनवेि
संवधथन बोडथ (FIPB) िारा FDI प्रस्तावों पर ववचार दकया जाता है। रक्षा क्षेत्र में 49% से ऄवधक FDI
के वलए रक्षा मामलों की कै वबनेट कमेटी का ऄनुमोदन अवश्यक है। 30 वबवलयन डॉलर से ऄवधक के
वनवेि से जुड़े प्रस्तावों पर अर्थथक मामलों की कै वबनेट कमेटी िारा ववचार दकया जाता है।

 ववि बैंक ने इज ऑफ़ डू आंग वबज़नस आं डक्


े स 2018 में भारत की रैं ककग में सुधार करते हुए 100वें
स्थान पर रखा है। IMF ने भारत को वैविक ऄथथव्यवस्था के सबसे महत्त्वपूणथ बबदु (brightest
spot) के रूप में वचवननत दकया है। ववि बैंक के ऄनुसार ववत्त वषथ 2018 में भारत की ववकास दर
7.6% ऄपेवक्षत है।

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 आन सुधारों का सार देि में ववदेिी वनवेि की प्रदक्रया को असान, तकथ संगत और सरल बनाना तथा
सरकारी मागथ के स्थान पर स्वचावलत मागथ के माध्यम से ऄवधकावधक FDI प्रस्तावों को पाररत
करवाना है तादक न्यूनतम सरकार-ऄवधकतम िासन (minimum government and
maximum governance) के ईद्देश्य को पूरा दकया जा सके । साथ ही यह 1991 में अरं भ हुए
ईदारीकरण सुधारों की श्रृंखला के क्रम में है।
 वनमाथण, थोक, खुदरा, वववनमाथण तथा इ-कॉमसथ क्षेत्र में ववदेिी वनवेि को ऄवधक अकर्थषत करने
के ईद्देश्य से मेक आन आं वडया, स्टाटथ ऄप आं वडया, फू ड प्रोसेबसग और वडवजटल आं वडया जैसे कायथक्रमों
को सिक्त बनाया गया है।
 FDI नीवत को और ऄवधक ईदार बनाने के वलए सरकार ने बजट में ववदेिी वनवेि संवधथन बोडथ की
समावप्त का प्रस्ताव रखा था। फलतः 5 जून 2017 को FIPB को समाप्त कर ददया गया है।
 सरकार िारा दकये गए आन प्रयासों का ईद्देश्य ववदेिी प्रत्यक्ष वनवेि के वलए नए क्षेत्रों को खोलना,
वतथमान क्षेत्रों में वनवेि सीमा को बढ़ाना और FDI नीवत की ऄन्य ितों को सरल बनाना है।

10.6. प्रत्यक्ष ववदे िी वनवे ि नीवत 2016

 FDI नीवत में संिोधन का ईद्देश्य FDI नीवत का ईदारीकरण एवं सरलीकरण करना है तादक देि
में व्यापार करने में सरलता तथा वनवेि, अय एवं रोजगार के ववकास में FDI प्रवाह की मात्रा में
वृवद्ध संभव हो सके ।
 PIB के ऄनुसार, कु छ ऄपवादों को छोड़कर िेष ऄवधकांि क्षेत्रों में FDI प्रवाह, स्वचावलत
स्वीकृ वत मागथ के तहत होगा। आन पररवतथनों के साथ, भारत ऄब FDI प्रवाह हेतु ववि की
सवाथवधक खुली ऄथथव्यवस्था बन गयी है।
 खाद्य ईत्पाद: भारत में वनर्थमत और/या ईत्पाददत खाद्य ईत्पादों (इ-कॉमसथ सवहत) में व्यापार के
वलए सरकारी मागथ से 100% प्रत्यक्ष ववदेिी वनवेि की ऄनुमवत है।
रक्षा क्षेत्र में 100% तक ववदेिी वनवेि:
 स्वचावलत मागथ के ऄंतगथत कं पनी की आदिटी में 49% तक FDI भागीदारी की ऄनुमवत दी जाती
है।
 49% से ऄवधक ववदेिी वनवेि को सरकारी मागथ के माध्यम से ऄनुमवत दी गइ है। जहां पर आस
वनवेि से अधुवनक तकनीक तक पहुंच होने की संभावना है या कवतपय ऄन्य कारण वजन्हें
ऄवभलेवखत करना अवश्यक है।
 अम्सथ एक्ट 1959 के ऄंतगथत अने वाले छोटे िस्त्रों तथा गोला-बारूद के वववनमाथण पर भी रक्षा
क्षेत्र की FDI सीमा लागू की गयी है।
 भारतीय ऄथथव्यवस्था और रक्षा क्षेत्र पर प्रभाव :
o यह 'मेक आन आं वडया' पहल के ऄंतगथत रक्षा वववनमाथण के क्षेत्र में एक महत्त्वपूणथ कदम है।
o यह सुरक्षा बलों के वलए ऄत्याधुवनक प्रौद्योवगदकयों की ईपलब्धता सुवनवित करे गा तथा
भारत में स्थानीय वववनमाथण को बढ़ावा देगा।
 फामाथस्यूरटकल या औषवध क्षेत्र (Pharmaceutical): फामाथस्यूरटकल क्षेत्र में पूवव
थ ती FDI नीवत,

ग्रीनफील्ड फामाथ में स्वचावलत मागथ के तहत 100% FDI और िाईनफील्ड फामाथ में सरकारी

मंजरू ी के तहत 100% FDI प्रवाह की मंज़ूरी प्रदान करती है। आस क्षेत्र के ववकास को बढ़ावा देने

के ईद्देश्य से िाईनफील्ड फामाथस्यूरटकल्स में 74% FDI को स्वचावलत मागथ के तहत ऄनुमवत दी

गइ है। 74% से ऄवधक FDI को सरकारी ऄनुमोदन मागथ के माध्यम से ऄनुमवत दी जाएगी।

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 नागर ववमानन क्षेत्र (Civil Aviation Sector): मौजूदा ववमान पत्तनों के अधुवनकीकरण के वलए
एक ईच्च मानक स्थावपत करने और मौजूदा ववमान पत्तनों पर दबाव कम करने के ईद्देश्य से ऄब
िाईनफील्ड ववमान पत्तन पररयोजनाओंंं में स्वचावलत मागथ के ऄंतगथत 100% FDI की ऄनुमवत
है।
 पिुपालन (Animal Husbandry): FDI नीवत 2016 के ऄनुसार, पिुपालन, मत्स्य पालन,
एिाकल्चर और एवपकल्चर को वनयंवत्रत पररवस्थवतयों में 100% स्वचावलत मागथ के तहत FDI
की ऄनुमवत प्रदान की गयी है। आन गवतवववधयों में FDI के वलए 'वनयंवत्रत पररवस्थवतयों' की
अवश्यकता ऄब समाप्त हो गइ है।
ऄन्य क्षेत्र:
 दूरसंचार में स्वचावलत मागथ के तहत 100% तक प्रत्यक्ष ववदेिी वनवेि की ऄनुमवत।
 ‘गैर-समाचार और समसामवयकी’ के टीवी चैनलों की ऄप बलककग और टीवी चैनलों की डाईन-
बलककग में स्वचावलत मागथ के ऄंतगथत 100% प्रत्यक्ष ववदेिी वनवेि।
 इ-कॉमसथ के माके टप्स औरलस
े मॉडल में स्वचावलत मागथ के तहत 100% FDI की ऄनुमवत दी गइ है।
 भारत में वनर्थमत और/या ईत्पाददत खाद्य ईत्पादों के संबंध में इ-कॉमसथ के माध्यम से तथा सरकारी
मागथ के तहत खुदरा व्यापार के वलए 100% FDI की ऄनुमवत दी गइ है।
 एसेट ररकन्स्रक्िन कं पवनयों (ARC) में स्वचावलत मागथ के तहत 100% FDI की ऄनुमवत।
 बीमा और पेंिन क्षेत्रों में स्वचावलत मागथ के ऄंतगथत 49% FDI की ऄनुमवत है।
 व्हाआट लेबल ATM क्षेत्र में स्वचावलत मागथ के ऄंतगथत 100% FDI ऄनुमवत दी गइ है।

10.7. खु द रा क्षे त्र में FDI

 बसगल िांड रीटेल रेबडग (खुदरा व्यापार): बसगल िांड ररटेल रेबडग के वह ईपक्रम जो 'स्टेट ऑफ़
दी अटथ' प्रौद्योवगकी का प्रयोग करते हुए ईत्पादन करते है, ईन्हें पूवथ सरकारी मंजूरी के साथ
स्थानीय सोर्ससग मानदंडों में तीन वषों तक की छू ट दी गयी है। ऐसे ईपक्रमों के वलए, अईटसोर्ससग
मानदंड व्यवसाय के पहले तीन वषों तक लागू नहीं होंगे। आसके ऄंतगथत ऐसे ईपक्रमों के प्रथम स्टोर
अएंगे जो 'स्टेट ऑफ़ दी अटथ' और 'कटटग एज' प्रौद्योवगकी का प्रयोग करते हुए ईत्पादन करते हैं
तथा जहां स्थानीय सोर्ससग संभव नहीं है। आस तीन वषथ की ऄववध के समापन के पिात् ही सोर्ससग
मानदंड लागू होंगे।
 मल्टी िांड ररटेल रेबडग: यह तकथ ददया जाता है दक मल्टी-िांड ररटेल रेबडग में प्रत्यक्ष ववदेिी
वनवेि (FDI) तब तक संभव नहीं हो सकता है जब तक दकसानों और खुदरा ववक्रेताओं को समान
प्रवतयोवगता के ऄवसर हेतु पयाथप्त संसाधन ईपलब्ध नहीं कराए जाते हैं। लास्ट माआल कनेवक्टववटी
की समस्याओं में बैक-एंड आन्रास्रक्चर का ऄभाव, ऄपयाथप्त ऊण तथा दकसानों और व्यापाररयों के
ववत्तीय समावेि जैसी समस्याएँ िावमल हैं। भारत की मौजूदा FDI नीवत, ववदेिी कं पवनयों को
एक भारतीय कं पनी में 51% वहस्सेदारी रखने की ऄनुमवत देती है। हालाँदक यह सरकार की
मंजरू ी के ऄधीन होता है।
 इ-कॉमसथ में बसगल िांड ररटेल िारा FDI (इ-कॉमसथ को लोकतंत्रीकृ त वावणयय के रूप में भी जाना
जाता है) ।
भारतीय इ-कॉमसथ कं पवनया जैसे वफ्लपकाटथ और स्नैपडील माके ट मॉडल का ऄनुसरण करती है- जो दक
ऄभी तक ऄपररभावषत है, और भारी ववदेिी वनवेि को अकर्थषत करती है।
बाज़ार स्थल (माके ट प्स औरलेस) मुख्यतः एक मंच के रूप में ग्राहकों और ववक्रेताओं को वमलाने का कायथ
करता है।
यह वडवजटल और आलेक्रॉवनक नेटवकथ पर इ-कॉमसथ कं पनी िारा संचावलत एक सूचना प्रौद्योवगकी मंच
है जो क्रेता एवं ववक्रेता के मध्य एक सुववधाकताथ की भूवमका वनभाता है।

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 कु छ ररपोटों के ऄनुसार, खुदरा क्षेत्र में इ-कॉमसथ का वहस्सा 2014 के 2% से बढ़कर 2019 तक
11% तक पहुँच सकता है।
 भारत सरकार ने भारत में काम कर रही इ-कॉमसथ कं पवनयों के वतथमान व्यवसायों को वैध बनाने
के वलए स्वचावलत मागथ के माध्यम से तथाकवथत "माके टप्स औरलस
े मॉडल" के ऄंतगथत वस्तुओ और
सेवाओं के ऑनलाआन खुदरा व्यापार में 100% प्रत्यक्ष ववदेिी वनवेि (FDI) की ऄनुमवत दे दी है।
 सरकार िारा प्रस्ताववत नए वनयम आन बाजारों को वडस्काईं ट देने पर प्रवतबंध लगाते है और एक
समूह कं पनी या एक ववक्रेता से होने वाली कु ल वबक्री को 25% तक सीवमत करते हैं। यह वनयम
ऑफ़लाआन स्टोरों को समान ऄवसर प्रदान करने के ईद्देश्य से लाया गया है, वजनके व्यापार में इ-
कॉमसथ की वृवद्ध के पिात् वगरावट देखी गइ हैं।
 ऄब भारत में व्यवसाय-से-व्यवसाय (B2B) इ-कॉमसथ में 100% ववदेिी वनवेि की ऄनुमवत है
परन्तु खुदरा इ-कॉमसथ, व्यापार से ईपभोक्ता (B2C) मॉडल में ववदेिी वनवेि की ऄनुमवत नहीं है।
 DIPP ने इ-कॉमसथ कं पवनयों में FDI पर रोक लगा दी है। आन इ-कॉमसथ कं पवनयों के पास वस्तुओं
और सेवाओं के स्वयं के भंडार हैं तथा जो ऑनलाआन प्स औरलेटफॉमथ का आस्तेमाल करते हुए सीधे आन
ईत्पादों को ईपभोक्ताओं को बेचते हैं।
 सरकार ने बजट में भारत में वनर्थमत एवं ईत्पाददत खाद्य ईत्पादों के ववपणन में 100% FDI की
ऄनुमवत प्रदान की है।
11. मु द्रा वववनमय दर (Currency Exchange Rate)
 दकसी मुद्रा के मूल्य का दूसरी मुद्रा के सापेक्ष अकलन करना मुद्रा वववनमय दर कहलाता है। आसे
ववदेिी मुद्रा की एक आकाइ खरीदने के वलए अवश्यक घरे लू मुद्रा की मात्रा के रूप में भी
पररभावषत दकया जाता है।
 साधारणत: आसमें ववदेिी मुद्रा का मूल्य घरे लू मुद्रा के संदभथ में पररभावषत दकया जाता है। आसे
विपक्षीय सांकेवतक वववनमय दर (नोवमनल एक्सचेंज रे ट) कहते है।

वास्तववक वववनमय दर = ep1/p0


जहाँ
p0 घरे लू मूल्य स्तर है।
p1 ववदेिी मूल्य स्तर है।
e ववदेिी मुद्रा का रुपये में मूल्य है (सांकेवतक वववनमय दर)

11.1. वास्तववक वववनमय दर (Real Exchange Rate)

 यह समान मुद्रा में मापा गया मुद्रा के ववदेिी और घरे लू मूल्यों का ऄनुपात है।
 यदद वास्तववक वववनमय दर एक के बराबर (क्रय िवक्त की समता पर) होती है तो आसका तात्पयथ
है की दो देिों में वस्तुओं को एक ही मुद्रा में मापे जाने पर ईनका मूल्य समान होगा।
 वास्तववक वववनमय दर दकसी देि की ऄंतराथष्ट्रीय प्रवतस्पधाथ का द्योतक होता है।

12. वववनमय दर प्रणाली - वस्थर एवं लचीली वववनमय दर


(Exchange Rate System – Fixed And Flexible Exchange Rate)

एक वस्थर वववनमय दर प्रणाली में, दकसी देि का कें द्रीय बैंक, साधारणत: एक खुले बाजार तंत्र का

ईपयोग करता है और ऄपनी मुद्रा के वनयंवत्रत ऄनुपात (pegged ratio) को बनाए रखने के वलए एक
वनवित ऄववध में ऄपनी मुद्रा का क्रय या ववक्रय करता है। साथ ही यह वनवित मुद्राओं के सन्दभथ में
ऄपनी मुद्रा के मूल्य को वस्थर बनाये रखता है।

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 लचीली वववनमय दर (Flexible Exchange Rate): आसे ऄस्थायी वववनमय दर प्रणाली के रूप
में भी जाना जाता है। यह वववनमय दर, बाजार की मांग-अपूर्थत की िवक्तयों िारा वनधाथररत होता
है। एक लचीली प्रणाली में कें द्रीय बैंक, वववनमय दर को सीधे प्रभाववत नहीं करता है। फलतः
कें द्रीय बैंक, ववदेिी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप नहीं करता (ऄथाथत् आनमें कोइ अवधकाररक ररज़वथ
लेन-देन नहीं होता है)।
 वस्थर या स्थायी वववनमय दर (Fixed Exchange Rates): िेटनवुड प्रणाली की समावप्त के बाद
से देि में लचीली वववनमय दर प्रणाली स्थावपत है। आससे पूवथ, ऄवधकांि देिों में वस्थर दर प्रणाली
(fixed rate system) थी वजसे कु छ देिो में वनयंवत्रत वववनमय दर प्रणाली (pegged
exchange rate) के नाम से भी जाना जाता था। यह ध्यान ददया जाना चावहए दक एक वस्थर
वववनमय दर प्रणाली (जैसे स्वणथ मानक) में , BoP ऄवधिेष या घाटे का समायोजन वववनमय दर
में पररवतथनों के माध्यम से दकया जा सकता है। समायोजन या तो स्वचावलत होना चावहए या आसे
सरकार िारा लाया जाना चावहए। एक वनवित वववनमय व्यवस्था में, सरकार मुद्रा का ऄवमूल्यन
भी कर सकती है। एक वनवित वववनमय दर प्रणाली में, सरकार वववनमय दर को ऄपररवर्थतत छोड़
कर मौदद्रक तथा राजकोषीय नीवत के प्रयोग से भी BoP की समस्या को हल कर सकती है।
 प्रबंवधत फ्लोटटग दर (Managed Floating Rate): वतथमान समय में वैविक व्यवस्था, एक
प्रबंवधत फ्लोटटग वववनमय दर प्रणाली का ऄनुसरण करती है। यह लचीली वववनमय दर प्रणाली
और वस्थर दर प्रणाली का वमश्रण है। आसे डटी फ्लोटटग (Dirty Floating) भी कहा जाता है -
जहां कें द्रीय बैंक, पररवस्थवतयों के संगत वववनमय दर को संयत करने के प्रयास में ववदेिी मुद्राओं के
क्रय-ववक्रय में हस्तक्षेप करते हैं। आस संदभथ में अवधकाररक अरवक्षत लेन-देन (Official reserve
transactions) िून्य के बराबर नहीं होते है।

13. मु द्रा वववनमय दर- सं क ल्पनाएं


(a) रुपये का मूल्यह्रास (Depreciation), ऄवधमूल्यन (Appreciation) और ऄवमूल्यन
(Devaluation)
 मूल्यह्रास: आसका तात्पयथ एक फ्लोटटग वववनमय दर प्रणाली में मुद्रा के मूल्य में वगरावट से है।
मूल्यह्रास, बाज़ार की िवक्तयों से प्रभाववत होता है।
 ऄवधमूल्यन: दकसी मुद्रा के मूल्य में हुइ बढ़ोतरी, मुद्रा का ऄवधमूल्यन कहलाती है।
 ऄवमूल्यन:
 ऄवमूल्यन का तात्पयथ एक वस्थर वववनमय दर प्रणाली के ऄन्तगथत दकसी देि की मुद्रा के मूल्य में
अवधकाररक कमी करना है।
 मुद्रा ऄवमूल्यन, वस्थर वववनमय दर प्रणाली का पालन करने वाले देिों में होता है। यह प्रबंवधत
फ्लोटटग दर प्रणाली वाले देिो में भी देखा जा सकता है।
 एक वस्थर वववनमय दर प्रणाली वाली ऄथथव्यवस्था में, सरकार तय करती है दक ऄन्य देिों की
तुलना में आसकी मुद्रा का मूल्य दकतना होना चावहए। आस पररप्रेक्ष्य में, सरकार साधारणतया
वववनमय दर को समान बनाये रखने के वलए ऄपनी मुद्रा के यथोवचत क्रय और ववक्रय का प्रयास
करती है। वववनमय दर के वल तभी पररवर्थतत हो सकती है जब सरकार आसे बदलने का फै सला
करती है। यदद कोइ सरकार ऄपनी मुद्रा के मूल्य को कम करने का फै सला करती है , तब आस
पररवतथन को ऄवमूल्यन कहा जाता है।

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मूल्यह्रास बनाम ऄवमूल्यन
 मुद्रा का मूल्यह्रास एक धीमी प्रदक्रया है तथा मुद्रा का मूल्य स्वचावलत रूप से बाजार की िवक्तयों से
समायोवजत हो जाता है।
 आस प्रकार, एक बार जब देि की मुद्रा के मूल्य में वगरावट अती है, तो ऄन्य देिों के वनवेिकों को
वनवेि का ऄवसर प्राप्त होता है और वे ऄन्य ऄथथव्यवस्थाओं से ऄपना वनवेि वनकाल कर ऐसी
ऄथथव्यवस्थाओं में वनवेि करते हैं। आससे मूल्यह्रास वाली ऄथथव्यवस्थाओं को बढ़ावा देने में मदद
वमलती है जो दीघाथववध में मुद्रा के मूल्य को वापस सामान्य स्तर पर ला सकती है।
 ऄवमूल्यन की वस्थवत में, ऄथथव्यवस्था पर वविास कम होता है। एक बार मुद्रा का ऄवमूल्यन हो
जाने पर, सरकार के वलए पूवथ की भांवत मुद्रा का पुनमूथल्यांकन करना करठन हो जाता है क्योंदक आस
तरह के पुनमूथल्यांकन से ऄथथव्यवस्था में जोवखम ईत्पन्न हो सकता है तथा ऄथथव्यवस्था जोवखम की
ऄवस्था में जा सकती है।

(b) NEER और REER


 सांकेवतक प्रभावी वववनमय दर (NEER) - एक बहुपक्षीय दर है जो ववदेिी मुद्राओं की एक
प्रवतवनवध समूह के मूल्य को दिाथती है जहाँ प्रत्येक मुद्रा को ऄंतराथष्ट्रीय व्यापार में ईनके सापेक्ष
घरे लू महत्व के ऄनुसार रखा जाता हैं (वनयाथत और अयात िेयरों के औसत को आसका संकेतक
माना जाता है)।
 वास्तववक प्रभावी वववनमय दर (REER)- ऄपने सभी व्यापाररक साझेदारों की वास्तववक
वववनमय दर के भाररत औसत के रूप में आसकी गणना की जाती है। यहाँ भाररत औसत से तात्पयथ
ववदेिी व्यापार में संबंवधत देिों की भागीदारी से है। यह ववदेिी मुद्रा के ददए गए समूह की एक
आकाइ को खरीदने के वलए अवश्यक घरे लू सामान की मात्रा के रूप में प्रदर्थित दकया जाता है।
(c) रुपए की वस्थरता बनाए रखने में RBI की भूवमका
 रुपये की वववनमय दर सामान्यतया ववदेिी मुद्रा बाजार में मांग और अपूर्थत की वस्थवत से
वनधाथररत होती है।
 ववदेिी मुद्रा बाजार में वस्थरता को बनाए रखने में RBI की ऄहम् भूवमका है। रुपये की वववनमय
दर को वबना दकसी पूवथ वनधाथररत स्तर या बैंड (band ) के सुवनवित दकया जाता है।
 हाल के ददनों में, रुपये का ववदेिी मुद्रा बाजार में बहुत ऄवधक ईतार-चढ़ाव देखने को वमला है।
रुपए के मूल्य को वस्थर करने के वलए RBI ने स्वणथ के अयात पर प्रवतबंध लगाने, मुद्रा वायदा
बाज़ार पर अरोवपत सीमा को बढ़ाने, वायदा और OTC बाजारों के बीच क्रय-ववक्रय कायथकलाप
को रोकने, वनवावसयों िारा ववदेिी मुद्रा के प्रवाह को तकथ संगत बनाने तथा पूज
ं ी प्रवाह को
प्रोत्साहन देने जैसे कइ ईपाय दकए हैं।
(d) रुपये के मूल्यह्रास की नवीनतम प्रवृवत्त (Latest Trends on Depreciating Rupee)
 कु छ वविेष पररवस्थवतयों में रुपए का मूल्यह्रास वनयाथत को अकषथक बनाने के ववपरीत अयात को
महंगा कर सकता है।
 मूल्यह्रास के ऄन्य प्रभावों में मुद्रास्फीवत में वृवद्ध महत्वपूणथ है, जो बढे हुए वनयाथत से होने वाले
लाभ को कम कर देती है। ऐसा आसवलए होता है क्योंदक साधारणतया वनयाथतक ईन वस्तुओ का
अयात भी करते है वजनका वे मुख्यतः वनयाथत करते है।
(e) चीनी युअन और भारतीय रुपये पर फ़े डरल दर में बढ़ोतरी के प्रभाव
 एविया में व्याप्त मंदी के कारण भारतीय रुपये और चीनी युअन के कमजोर होने की संभावना है।
फे डरल बैंक, ऄमेररका की ऄध्यक्ष जेनेट येलन
े और USA के ऄन्य नीवत वनमाथताओं ने ईच्च दरों की
संभावना को पुनजीववत कर ददया है।

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 मौवलक रूप से, रुपए में ऄपेक्षाकृ त ईच्च मुद्रास्फीवत के साथ-साथ ऄपने व्यापाररक सह-मुद्राओ की

तुलना में एक ऄंतर्थनवहत मूल्यह्रास का पूवाथग्रह है। फलतः 18-19 महीनों से भारत में वनरं तर
वनयाथत का संकुचन हो रहा है।
चीनी युअन का ऄवमूल्यन (Chinese Yuan Devaluation)

 2016 में चीनी युअन में 6.0% से ऄवधक की वगरावट दजथ की गयी और 2017 में आसका और भी
ऄवमूल्यन हुअ।
 2016 के प्रारं भ में चीन ने युअन का ऄवमूल्यन दकया था। आसका ईद्देश्य चीन के वनयाथत को
बढ़ावा देना था। चीन के ऄवमूल्यन के साथ प्रवतस्पधाथ करने से ऄथथव्यवस्थाओं पर सीधा प्रभाव
पड़ने की ईम्मीद है। संयुक्त रायय ऄमेररका और यूनाआटेड ककगडम के अर्थथक पररवेि में सुधार
अया है, परन्तु यूरोजोन में व्याप्त ऄिांवत और कमजोर वैविक मांग ने ववकास के वनयाथत-ईन्मुख
एवियाइ मॉडल को ऄवस्थर कर ददया है। युअन में हुअ यह ऄवमूल्यन मुद्रा को नुकसान
पहुंचाएगा, जो फलतः वनयाथत के वलए हावनकारक वसद्ध होगा।

 पीपुल्स बैंक ऑफ चाआना (PBoC) का ईद्देश्य युअन को बाजार वनधाथररत वववनमय दर में प्रभावी

रूप से स्थानांतररत करना और यह सुवनवित करना है दक बैंक िारा घोवषत कें द्रीय दर, बाजार की
अकांक्षाओ के ऄनुरूप बनी रहे।
 भारत और चीन ने अवधकाररक रूप से 1978 में व्यापार का पुनःअरं भ दकया था। 1984 में,

दोनों पक्षों ने मोस्ट फे वडथ नेिन (MFN) समझौते पर हस्ताक्षर दकए। भारत-चीन विपक्षीय

व्यापार का 2000-01 के मात्र 2.9 वबवलयन डॉलर से 2014-15 में 72.3 वबवलयन डॉलर तक

पहुँच गया (वनयाथत:11.9 वबवलयन डॉलर और अयात 60.4 वबवलयन डॉलर)। चीन भारत का
सबसे बड़ा व्यापाररक भागीदार बन चुका है। कमजोर वनयाथत और बढ़ते अयात के कारण चीन के
साथ भारत का व्यापाररक घाटा 2014-15 में करीब 50 डॉलर रहा।

 युअन के ऄवमूल्यन के कारण चीनी वनयाथत पर कोइ महत्वपूणथ प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंदक मुद्रा

ऄभी भी ऄत्यवधक ऄवधमुवल्यत है। आसके ऄवतररक्त, युअन में वगरावट के चलते ऄमेररकी डॉलर के
सन्दभथ में भारतीय रुपये को भी कु छ मूल्य हावन ईठानी पड़ सकती है। हालाँदक आसका भारत पर
एक ऄल्पकावलक प्रभाव ही पड़ेगा।
 यदद मुद्रा का यह समायोजन जारी रहता है, तो J-कवथ के ऄनुसार चीनी वनयाथत में वृवद्ध तभी ही
होगी जब वे और ऄवधक प्रवतस्पधी बन जायेंगे। आसका भारतीय वनयाथत पर नकारात्मक प्रभाव
पड़ेगा। आसके ऄवतररक्त, भारत में चीनी वस्तुओं का प्रवाह होगा, पररणामस्वरूप चीन के साथ
पहले से बढ़ता व्यापार घाटा और ऄवधक हो जायेगा।
 भारत से चीन को वनयाथवतत प्रमुख वस्तुओं में कपास, तांबा और खवनज ईंधन अदद में प्राथवमक

वस्तुएँ सवम्मवलत होती है, जो कु ल वनयाथत का 45% से ऄवधक भाग है। साथ ही चीन से भारत को

अयावतत प्रमुख वस्तुओं मे ववद्युत मिीनरी और परमाणु ईपकरण (कु ल अयात का 45%)
सवम्मवलत है।
 चीनी वस्तुओं की कीमतों में कमी, चीन िारा भारत में डंबपग की समस्या को भी बढ़ा सकती है।

टायर वनमाथताओं, स्टील ईद्योग, काबथवनक रसायन और पेरोके वमकल्स ईद्योग पहले से ही चीन
िारा बढ़ते डंबपग मामलों के कारण संकट का सामना कर रहे हैं। युअन का मुद्रा ऄवमूल्यन चीन के
वनयाथत को और प्रोत्सावहत करता है।

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(f) मसाला बांड (Masala Bonds)
 मसाला बांड, ऑफिोर कै वपटल माके ट (offshore capital markets) में जारी दकए गए तथा
भारतीय रुपए में नावमत बांड हैं।
 ये रुपए में वडनॉवमनेटेड बॉन्ड होते है, जो ऑफिोर वनवेिकों को जारी दकए जाते है तथा वजनका
भुगतान डॉलर में होता है। ऄतः ववदेिी मुद्रा ऊण के ववपरीत वजसमें भारतीय कं पवनयाँ ववदेिी
मुद्रा में ऊण एकत्र करती है, मसाला बांड में जोवखम वनवेिक को ईठाना होता है, न की जारीकताथ
को।

बाह्य वावणवययक ईधार (ECB) और मसाला बांड में ऄंतर


 मसाला बांड में, मुद्रा जोवखम, वनवेिक वहन करता है जबदक बाह्य वावणवययक ईधार में यह
जारीकताथ िारा वहन दकया जाता है।
 यद्यवप ECBs, कं पवनयों को ऄंतराथष्ट्रीय बाजारों में वनम्न ब्याज दरों का लाभ ईठाने में मदद करती
हैं, पर आनमें मुद्रा जोवखम के प्रवतरक्षा (hedging) की लागत ऄवधक हो सकती है।
 मसाला बांड के सन्दभथ में, ऊण की लागत बहुत कम हो सकती है।

 ग्रीन मसाला बांड (Green Masala Bond): आस प्रकार के मसाला बांड, ग्रीन आं रास्रक्चर के
वनमाथण में वनवेि हेतु जारी दकये जाते है।
 ईदाहरणत:
o 2015 में आं टरनेिनल फाआनेंस कॉरपोरे िन (IFC) ने भारत में बुवनयादी ढांचा पररयोजनाओं
के वलए 1,000 करोड़ रुपये के बांड जारी दकए थे। ये बांड लंदन स्टॉक एक्सचेंज (LSE) में
सूचीबद्ध थे।
o 2016 में, ऊणदाता ईपक्रम (Mortgage lender) हाईबसग डेवलपमेंट फाआनेंस कॉपथ
(HDFC) ने मसाला बांड जारी करके 3,000 करोड़ रुपये जुटाए थे।
 मसाला बांड के लाभ:
o कं पवनयों को रुपये के मूल्यह्रास के बारे में बचता करने की अवश्यकता नहीं होती है।
o मसाला बांड, कॉपोरे ट बैलस
ें िीट्स को वववनमय दर के जोवखमों से बचाने में मदद करते हैं।
हालाँदक आनको जारी करने तथा प्रयोग करने में संतल
ु न बनाये रखना चावहए।
o मसाला बांड, रुपए तथा ब्याज दरों एवं संपूणथ ऄथथव्यवस्था को प्रभाववत करने की क्षमता
रखता है।
14. भारत का बाह्य ऊण (Indian External Debt)
(a) बाह्य वावणवययक ईधार (External Commercial Borrowing)
 बाह्य वावणवययक ईधार (ECB) से तात्पयथ गैर-वनवासी ईधारदाताओं से प्राप्त व्यावसावयक ऊणों
से है तथा वजनकी औसत पररपिता ऄववध न्यूनतम 3 वषथ की होती है।
 ECB के ऄंतगथत बैंक ऊण, क्रेता क्रेवडट, अपूर्थतकताथ क्रेवडट एवं प्रवतभूवतकृ त (वसक्योररटी) ईत्पाद
अते हैं (जैसे फ्लोटटग रे ट नोट्स और दफक्स्ड दर बॉन्ड)।
 ECB को दो मागों के तहत प्राप्त दकया जा सकता है: स्वचावलत मागथ और ऄनुमोदन मागथ।
 ऄनुमोददत मागथ के ऄंतगथत, ऊण लेने से पहले सरकार की स्पष्ट ऄनुमवत की अवश्यकता होती है।
यह वनयाथत और अयात जैसे ववविष्ट क्षेत्रों के वलए अवश्यक है।
 ECB और FDI एक दूसरे से वभन्न होते है। जहाँ FDI, ववत्तीय आदिटी पूज
ं ी में वनवेवित ववदेिी

पूंजी है, वहीं, ECB आदिटी के ऄवतररक्त दकसी भी ऄन्य प्रकार की पूंजी हो सकती है।

 ECB भारत के बाह्य ऊण का सबसे बड़े घटक तथा आसका सबसे महत्वपूणथ वनधाथरक है।

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(b) सॉवरे न बॉन्ड (Sovereign Bonds)
 सॉवरे न बांड, दकसी राष्ट्रीय सरकार िारा जारी दकया गया एक ऊण सुरक्षा पत्र है।
 ये या तो स्थानीय मुद्रा में वनरूवपत होते हैं ऄथवा ववदेिी मुद्रा में वनरूवपत हो सकते हैं।
 ये कॉरपोरे ट बॉन्ड से वभन्न होते है। आन बांडों से जुड़े जोवखम ऄलग होते है जैसे वववनमय दर
जोवखम (यदद बांड स्थानीय मुद्रा में हैं), अर्थथक जोवखम और राजनीवतक जोवखम (ब्याज भुगतान
या मूलधन पर संभाववत वडफ़ॉल्ट) अदद ।
 सॉवरे न बांड ऄपवाद स्वरुप ही ददवावलया हो सकते हैं और साधारणतया, ये कम जोवखम वाले
बांड हैं तथा आस कारण आन पर प्राप्त लाभ(ररटनथ) भी कम ही होता है।
 आन बॉन्डों को तीन सबसे प्रवसद्ध रे टटग एजेंवसयों िारा मूल्यांदकत दकया जाता है - स्टैंडडथ एंड
पूऄसथ (S&P), मूडी तथा कफच। आनके िारा दकया गया मूल्यांकन वनम्न कारकों पर अधाररत होता
हैं :
 प्रवत व्यवक्त अय
 सकल घरे लू ईत्पाद की वृवद्ध दर
 मुद्रास्फीवत की दर
 बाह्य ऊण
 पहले कभी ददवावलया होने की घटनायें
 अर्थथक ववकास का स्तर
(c) भारत के बाह्य ऊण का पररदृश्य (India’s External Debt Scenario)
 माचथ 2015 के ऄंत में बाह्य ऊण में हुइ वृवद्ध मुख्यत: वावणवययक ईधार के ईच्च स्तर, वविेष रूप
से वावणवययक बैंक ऊण तथा प्रवतभूवतकृ त (वसक्योररटी) ऊण और NRI जमाओं के कारण थी।
 ददसंबर 2016 के ऄंत में भारत का बाह्य ऊण लगभग 456 वबवलयन डॉलर था।
 भारत के प्रमुख ऊण संकेतक, ऄन्य ऊणी ववकासिील देिों की तुलना में बेहतर वस्थवत के संकेत
देते है। ववि बैंक की "ऄंतराथष्ट्रीय ऊण सांवख्यकी, 2017" (International Debt Statistics,
2017) ररपोटथ के ऄनुसार, ऄपवाद स्वरुप चीन को छोड़कर, भारत बाह्य ऊण क्षेत्र में ऄपने विक्स
समकक्षों की तुलना में बेहतर प्रदिथन कर रहा है।
 2015 में, भारत के बाह्य ऊण भंडार और सकल राष्ट्रीय अय (GNI) का ऄनुपात 23.4% था। यह
ऄनुपात 20 सवाथवधक ववकासिील ऊणी देिों में सबसे कम था। बाह्य ऊण के वलए ववदेिी मुद्रा
भंडार िारा ईपलब्ध कराए गए कवर के संदभथ में 69.7% के साथ छठवें स्थान पर है।
 चीन के ऄल्पाववधक ऊण और कु ल ववदेिी ऊण का ऄनुपात 2016 की प्रत्येक वतमाही से
लगातार बढ़ रहा है। आस ऄनुपात की तुलना में भारत में यह ऄनुपात लगातार कम होता जा रहा
है।
 भारत का बाह्य ऊण सुरवक्षत सीमा के तहत ही है, जैसा दक बाह्य ऊण और GDP का ऄनुपात
(23.4%) तथा बाह्य ऊण और ऊण सेवा के ऄनुपात (8.8%) से दृष्टव्य है।
 भारत सरकार की बाह्य ऊण नीवत के पररणामस्वरूप बाह्य ऊण सुरवक्षत सीमाओं के तहत है और
आसकी वृवद्ध में कमी अने लगी है।
 भारत सरकार िारा जारी बाह्य ऊण प्रबंधन नीवत का ईद्देश्य ऄल्पाववधक और दीघाथववधक ऊणों
की वनगरानी करना, लंबी ऄववध की पररपिता वाले तथा ररयायती ितों पर वमलने वाले
सावथभौवमक या सॉवरे न ऊण को बढ़ाना, एंड-यूज़ और अल-आन-कास्ट प्रवतबंध के माध्यम से
ECB को वववनयवमत करना एवं NRI वडपावजट की ब्याज दरों को तकथ संगत बनाना है।

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(d) भारतीय ववदेिी मुद्रा भंडार की ऄन्य देिों के भंडार के साथ तुलना
 वविेषज्ञों के ऄनुसार भारत का बाह्य ऊण ऄन्य देिों की तुलना में ऄवधक बेहतर वस्थवत में हैं और
बाह्य ऊण की वृवद्ध दर दो ऄंकों से वगरकर एकल ऄंक पर अ गइ है।
 ईच्च ववदेिी ऊण वाले देिों में चीन (960 वबवलयन डॉलर), मेवक्सको (433 वबवलयन डॉलर),
तुकी (408 वबवलयन डॉलर), िाजील (557 वबवलयन डॉलर) और मलेविया (211 वबवलयन
डॉलर) अदद देि सवम्मवलत हैं।
15. ऄन्य महत्वपू णथ ववषय
15.1. भारतीय विपक्षीय वनवे ि सं वध का नया मॉडल (New Model Indian
Bilateral Investment Treaty)

 भारतीय वववध अयोग ने मॉडल भारतीय विपक्षीय संवध के मसौदे पर ऄपनी 26वीं ररपोटथ में
वनवेिकों के ऄवधकारों और रायय के ऄवधकारों के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास दकया है।
 नया भारतीय मॉडल BIT, भारत में ववदेिी वनवेिकों और ववदेिो में भारतीय वनवेिकों को
ईवचत सुरक्षा प्रदान करे गा।
 आसके ऄंतगथत वनवेि की पररसंपवत्त अधाररत पररभाषा, ईवचत प्रदक्रया के माध्यम से गैर-
भेदभावपूणथ व्यवहार, नेिनल रीटमेंट, सम्पवत्तहरण के ववरुद्ध सुरक्षा, वनवेिक रायय वववाद
वनपटान (Investor State Dispute Settlement; ISDS) प्रावधान वजसमेंंं वनवेिकों को
ऄंतराथष्ट्रीय मध्यस्थता िुरू करने से पहले सभी स्थानीय ईपायों का ईपयोग करने की अवश्यकता
तथा ऄके ले ररब्यूनल िारा मौदद्रक मुअवजा देने की िवक्त को सीवमत करना, वनवहत है।

BIT दो देिों के मध्य की गइ एक संवध है। यह संवध दूसरे रायय में वनवेि करने वाले पारस्पररक वनवेिकों
को अधारभूत सुरक्षा प्रदान करती है। ईदाहरण के वलए, ऐसी संवधयों में वनवेिकों को "वनरपक्ष और
न्यायसंगत ईपचार" की गारं टी प्रदान की जाती हैं। यह संवध, समानता का ऄवधकार प्रदान करने के साथ
ही रायय िारा की जाने वाली एकपक्षीय कारथ वाइ के ववरुद्ध सुरक्षा भी प्रदान करती है।

 सरकार के वववनयामक ऄवधकार को सुरवक्षत रखने हेतु आस मॉडल में सरकारी खरीद, कराधान,
सवब्सडी, ऄवनवायथ लाआसेंस और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मामलों को सवम्मवलत नहीं दकया गया है।
 हाल ही में भारत ने नीदरलैंड के साथ ऄपने विपक्षीय वनवेि संवध (BIT) को ऄपनी ओर से समाप्त
कर ददया है और 20 EU सदस्य देिों को ईनसे संबंवधत BIT को समाप्त करने के वलए नोरटस
जारी कर ददए हैं।
 BIT सभी मामलों में गैर-भेदभाव को अिस्त करके वनवेिकों के वविास को बढ़ा देता है और
सबको सामान ऄवसर प्रदान करने का अिासन देता हैl यह मध्यस्थता िारा वववाद वनपटान के
वलए एक स्वतंत्र मंच प्रदान करती है।
 BIT भारत को एक पसंदीदा ववदेिी प्रत्यक्ष वनवेि (FDI) गंतव्य के रूप में प्रस्तुत करने के साथ-
साथ बाहर जा रहे भारतीय FDI की रक्षा में मदद करती हैl

BIT का औवचत्य?
 2011 में भारत को व्हाआट आं डस्रीज के मामले (White Industries case) में BIT से ईत्पन्न
होने वाले पहले प्रवतकू ल मध्यस्थता वनणथय का सामना करना पड़ा था। व्हाआट आं डस्रीज एक
ऑस्रेवलयाइ कं पनी है। यह कं पनी कोल आं वडया वलवमटेड के ववरुद्ध वववाद में सफल रही थी।
व्हाआट आं डस्रीज के तकथ के ऄनुसार आसे ऄपने वनवेि के संबंध में ऄवधकारों को लागू करने के
"प्रभावी ईपायों" से वंवचत कर ददया गया था वजन्हें भारत-ऑस्रेवलया BIT के MFN खंड के
ऄंतगथत सुरक्षा प्राप्त थी।

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 तदोपरांत वोडाफोन समेत 17 ईपक्रम भारत के ववरुद्ध मध्यस्थता हेतु नोरटस जारी कर चुके हैं।

ईदाहरणतया, वोडाफोन के पूवव्य


थ ापी कर (रे रोस्पेवक्टव टैक्स) संिोधन के स में सवोच्च न्यायालय

िारा वोडाफोन के पक्ष में वनणथय ददया गया तथा टेलीनॉर, वजसका वनवेि भारत के 2G लाआसेंस

में था, सवोच्च न्यायालय के अदेि के ऄनुसार रद्द कर ददया गया था।
BIT पर वववध अयोग की वसफाररिें:

 अयोग की वसफ़ाररिों के ऄनुसार वनवेि की एक ऄत्यवधक संकीणथ 'ईद्यम-अधाररत पररभाषा' के

ऄवतररक्त एक व्यापक और सावथभौवमक रूप से स्वीकृ त 'पररसंपवत्त अधाररत पररभाषा' को


ऄपनाना चावहए। ईद्यम-अधाररत पररभाषा का ऄथथ होगा दक एक ववदेिी वनवेिक वजसने भारत
में कोइ ईद्यम स्थावपत नहीं दकया है, वह दकसी भी प्रकार से संरवक्षत नहीं होगा।
 MFN के वनयमों को सवम्मवलत नहीं दकया जाना चावहए क्योंदक आससे भारत वववभन्न राष्ट्रों से
अने वाले वनवेि के अधार पर ईन राष्ट्रों को ईसी प्रकार के वविेष लाभ प्रदान कर सकता है।
 LCI, मॉडल ड्राफ्ट में वनवहत वववाद वनपटान तंत्र के कु छ प्रावधानों में संिोधन का सुझाव देता है।

 मॉडल ड्राफ्ट में सामान्य ऄपवादों के साथ स्वीकायथ ईद्देश्यों जैसे सावथजवनक स्वास्थ्य, पयाथवरण,

सावथजवनक व्यवस्था, सावथजवनक नैवतकता, कायथिील पररवस्थवतयों में सुधार, ववत्तीय प्रणाली,
बैंकों और ववत्तीय संस्थानों अदद की वस्थरता सुवनवित करना िावमल है। साथ ही यह भी
प्रावधान दकया गया है दक वे ईपाय जो रायय के ऄनुसार ईपयुथक्त ईद्देश्यों को प्रोत्सावहत करते हैं,
वे ईपाय मध्यस्थ न्यायावधकरण के ऄधीन नहीं अएंगे।

15.2. भारत और CMLV दे ि - कं बोवडया, लाओस, म्यां मार और ववयतनाम

 भारत ने CMLV देिों में वनवेि के ईद्देश्य से भारतीय कं पवनयों की सहायता हेतु लगभग 75

वमवलयन डॉलर की एक पररयोजना ववकास वनवध (project development fund) का िुभारं भ


दकया है। यह पररयोजना ववकास वनवध भारतीय औद्योवगक समुदाय को वैविक ईत्पादन नेटवकथ से
एकीकृ त करने के ऄवतररक्त व्यापार के ववस्तार एवं लागत प्रवतस्पधी अपूर्थत श्रृंखला के ऄनुरक्षण
में लाभ प्रदान करे गी।
 क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं (regional value chains) पर भारत की वस्थवत का मुख्य ईद्देश्य,
दीघथकावलक अधार पर समर्थपत रोतोतों और भारतीय कच्चे एवं मध्यवती माल के वलए बाजार की
अवश्यकता की पूर्थत करना है।
 CMLV देिों की क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखला में एक ववविष्ट वस्थवत है और ये देि वववभन्न व्यापार

समझौतों के चलते चीन, यूरोपीय संघ तथा ऄन्य देिो के बाजार तक पहुँच स्थावपत करने हेतु एक
प्रवेि िार प्रदान करते हैं।
 भारत सरकार के अंकड़ों के ऄनुसार, 2004 में CMLV देिों के साथ भारत का कु ल व्यापार

वपछले दिक की तुलना में दस गुना बढ़ गया है। यह व्यापार 2004 के 1.1 वबवलयन डॉलर से

बढ़कर 2014 में 11.9 वबवलयन डॉलर हो गया। राइ-लेटरल राजमागथ, पूवोत्तर भारत में बढ़ती

कनेवक्टववटी, बंदरगाह कनेवक्टववटी सुधार और एक्ट इस्ट नीवत आस ददिा ईठाये गए कु छ साथथक
कदम है।
 भारत और CMLV देिों के बीच व्यापार संबंधों को और ऄवधक मजबूत दकया जाना चावहए
तादक क्षेत्रीय मूल्य श्रृंखलाओं के साथ कनेवक्टववटी एवं अर्थथक एकीकरण में सुधार हो सके ।

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15.3. वतथ मान समय में ववि व्यापार सं ग ठन की प्रासं वगकता

 व्यापक सहमवत के ऄभाव के कारण ववि व्यापार संगठन (WTO) के ऄंतगथत बहुपक्षीय व्यापार
वाताथ, ऄत्यंत ही धीमी गवत से बढ़ रही है। वहीं दूसरी ओर क्षेत्रीय व्यापार समझौतों (regional
trade agreements; RTA) का महत्व एवं ऄंतराथष्ट्रीय व्यापार में ईनका योगदान धीरे -धीरे
बढ़ता जा रहा है।
 यद्यवप RTA व्यापक रूप से ववि व्यापार संगठन के वनयमों के ऄनुरूप हैं और WTO की प्रदक्रया
का समथथन करते हैं, दफर भी वे गैर-सदस्यों के ववरुद्ध भेदभावपूणथ प्रकृ वत के हैं और वनम्न ईत्पादन
लागत वाले गैर-सदस्यीय देिों को तुलनात्मक रूप से हावन पहुँचाने के कारण कारगर भी नहीं हैं।
एक ओर जहाँ विपक्षीय RTA के ऄंतगथत समान व्यवहार की पयाथप्त संभावना हैं, वही ँ दूसरी ओर
वृहद-क्षेत्रीय व्यापार समूह सदैव समान व्यवहार के ववचार का ऄनुसरण नहीं कर पाते हैं,
वविेषकर तब जब आनमें छोटे देिों की भागीदारी हो। छोटे देिों का सदस्य होना और न होना -
दोनों ही वस्थवतयाँ ईनके वलए हावनकारक वसद्ध होती हैं। यदद छोटे देि सदस्य हैं तो वे ऄवधक
प्रभाव नहीं रखते और यदद वे सदस्य नहीं हैं, तो ईनकी हावन स्वाभाववक है।
 भारत ने सदैव एक खुली, न्यायसंगत, पूवाथनम
ु ावनत, गैर-भेदभावपूणथ और वनयम-अधाररत
ऄंतराथष्ट्रीय व्यापार प्रणाली का समथथन दकया है। भारत RTA को व्यापार ईदारीकरण के
महत्वपूणथ अधार के साथ-साथ WTO के बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के पूरक के रूप में देखता है।
 क्षेत्रीय और ववषयगत बहुपक्षीय समझौते व्यापार प्रवाह को नयी धारा प्रदान कर रहे हैं, जो
ईभरती हुइ ऄथथव्यवस्थाओं की प्रगवत के वलए हावनकारक वसद्ध हो रहे हैं। औद्योवगक देि, WTO
के नेतृत्व में हो रहे व्यापार ईदारीकरण के ववरुद्ध तेजी से अवाज ईठा रहे हैं। आन समझौतों ने
WTO के महत्व को कम कर ददया है।
 रांस-पैवसदफक साझेदारी: रांस-पैवसदफक साझेदारी (TPP) समझौता एक नया वृहद-क्षेत्रीय समूह
है वजससे भारत भी गंभीर रूप से प्रभाववत हो सकता है।
 12 प्रिांत महासागरीय देिों (ऑस्रेवलया, िुनइ
े , कनाडा, वचली, जापान, मलेविया, मैवक्सको,
न्यूजीलैंड, पेरू, बसगापुर, ऄमेररका और ववयतनाम) ने 5 ऄक्टू बर 2015 को TPP समझौते पर
हस्ताक्षर दकए। यह वस्तु एवं सेवा व्यापार के वलए ईच्च मानकों को तय करता है। यह एक वविाल
क्षेत्रीय FTA के समान है जो कइ मायनों में एक ऄग्रणी ईदाहरण बन सकता है। TPP, ववि
ऄथथव्यवस्था तथा वैविक व्यापार के वलए एक क्रांवतकारी कदम हो सकता है। हालाँदक ऄमेररका ने
स्वयं को रांस-पैवसदफक साझेदारी से ऄलग कर वलया है।
 TPP व्यापार समझौता बहुत व्यापक है। आसके ऄंतगथत टैररफ समाप्त करने वाले वृहद क्षेत्रीय
व्यापार समझौते सवम्मवलत है तथा साथ ही यह ऄंतराथष्ट्रीय व्यापार के वलए ईच्च मानक भी
स्थावपत करता है। आस ईद्देश्य की पूर्थत नॉन रैररफ बाधाओं के वलए कम बेंचमाकथ , ऄवधक कड़े श्रम
और पयाथवरण कानून, बौवद्धक संपवत्त के ऄवधकार (IPR) की ऄवधक सुरक्षा, सरकारी क्रय में
ऄवधक पारदर्थिता और सरकारी स्वावमत्व वाले ईद्यमों (SOE) और स्वास्थ्य प्रौद्योवगकी,
प्रवतस्पधाथ तथा अपूर्थत श्रृंखला में पारदर्थिता को सुवनवित करके की जाएगी।
 आसमें नए और ईभरते हुए व्यापाररक मुद्दों, आं टरनेट तथा वडवजटल ऄथथव्यवस्था जैसी क्रॉस-कटटग
समस्याओं को िावमल दकया गया है।
 ऄल्पाववध में, भले ही TPP का प्रभाव, भारतीय व्यापार पर गंभीर रूप से प्रवतकू ल न हो, परन्तु
लंबे समय की चुनौवतयों के सापेक्ष स्वयं के ऄनुकूलन के वलए गहन ववश्लेषण की अवश्यकता है।

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 हाल ही में, संयुक्त रायय ऄमेररका (जो दक प्रमुख प्रस्तावक था) ने आस समूह को छोड़ ददया है।
आसके बावजूद, िेष सदस्यों ने वबना ऄमेररकी भागीदारी के TPP को पुनजीववत करने का वनणथय
वलया है।
 TPP जैसे समझौतों का ईद्देश्य औद्योवगक वस्तुओं पर टैररफ को घटाकर िून्य करना और ववत्तीय
सेवाओं तथा वनवेिों के ईदारीकरण पर ध्यान कें दद्रत करना है;
 रांस-ऄटलांरटक व्यापार और वनवेि साझेदारी (TTIP) (वषथ 2013 में, यूरोपीय संघ और
ऄमेररका ने आस वाताथ में प्रवेि दकया) यूरोपीय गैर-सरकारी संगठन, TTIP के ववरुद्ध हैं क्योंदक
यह सामावजक और पयाथवरणीय मानकों तथा ईपभोक्ता संरक्षण को कमजोर कर सकता है जो
यूरोपीय संघ में ऄवधक प्रभावी रूप से ववकवसत हैं। आस समझौते का सबसे वववादास्पद भाग,
वनवेि सुरक्षा से संबंवधत है। यदद TTIP को ऄपनाया जाता है, तो आसका मैवक्सको के वस्त्र ईद्योग
पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
 आन क्षेत्रीय वृहद समझौतों के साथ-साथ, औद्योवगक देिों के नेतत्ृ व वाले कइ बहुपक्षीय समझौते
भी ववद्यमान हैं।
 ं में व्यापार (TISA): वषथ 2012 में, USA, यूरोपीय संघ और वस्वट्ज़रलैंड सवहत 50
सेवा ऄनुबध
देिों ने व्यापक सेवाओं के समझौते पर वाताथ अरं भ की थी।
ववकासिील देिों पर आन समझौतों का प्रभाव:

WTO की व्यापार वाताथओं (बहुपक्षीय व्यापार वाताथ सवहत) में भारत ने सदैव देि और ईसके दकसानों के
वहतों की रक्षा के वलए एक ऄटल रवैया ऄपनाया है।
WTO व्यापार वाताथ के दोहा दौर का ऄवधदेि वनयाथत सवब्सडी को कम करते हुए कालांतर में आसके सभी
रूपों को समाप्त करना था।
WTO के ईरुग्वे दौर में दकये गए कृ वष पर समझौते (AoA) के ऄंतगथत ईन सदस्यों को वनयाथत सवब्सडी
का ईपयोग करने की ऄनुमवत है जो अधार वषथ 1986-88 के दौरान ईनका ईपयोग करते थे।
आस प्रकार ऄमेररका और ऄन्य ववकवसत देि, यूरोपीय संघ अदद कृ वष पर समझौते (Aggrement on

Agriculture -AoA) के ऄनुसार वनयाथत सवब्सडी प्रदान कर सकते हैं।


भारत AOA के के वल एक वविेष और ववभेदक प्रावधान का ईपयोग कर सकता है जो ववकासिील देिों
को ऐसी सवब्सडी का प्रयोग करने की ऄनुमवत देता है वजसका लक्ष्य अंतररक और बाह्य पररवहन सवहत
ववपणन की लागत के साथ-साथ प्रबंधन लागत को भी कम करना है।

 ये समझौते वैविक ऄथथव्यवस्था के वनजीकरण, वववनमयन में कमी और ईदारीकरण पर ध्यान


कें दद्रत करते हैं।
 ये वृहद-समझौते चीन, भारत और दवक्षण ऄरीका की ऄथथव्यवस्था पर ऄस्पष्ट अक्रमण के समान
है। ये वे देि हैं, जो WTO के ढांचे में औद्योवगक वस्तुओं, सेवाओं, सरकारी क्रय और वनवेि में
व्यापार के ईदारीकरण का ववरोध करते हैं तथा कृ वष के क्षेत्र में ऄवधक न्यायोवचत वैविक वनयमों
के पक्षधर हैं।
 भारत सवहत ववकासिील देिों को, WTO के वडस्प्स औरयूट सेटलमेंट बॉडी (DSB) में दोहरे नुकसान
का सामना करना पड़ता हैं। आन देिों के पास न के वल ऐसे व्यापार कानून वविेषज्ञों की कमी होती
है, जो ईन्हें DSB पर प्रभावी ढंग से प्रवतवनवधत्व कर सकें बवल्क श्रम एवं पयाथवरण जैसे गैर-
व्यापाररक महत्वपूणथ ववषयों का समावेिन न होना भी ववकासिील देिों के वलए एक चुनौती है।

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क्षेत्रीय समझौतों के बावजूद WTO ऄभी भी महत्वपूणथ है

 व्यापार ईदारीकरण में बढ़ते क्षेत्रवाद के बावजूद, WTO एकमात्र ऐसा मंच है जहां प्रत्येक देि
एक-दूसरे से वाताथलाप कर सकता है।
 हालांदक संरक्षणवाद, वविव्यापी रूप से ववखंवडत समझौतों और ऄनुबंध ऄथथव्यवस्था

(contracting economy) के पररवेि में बढ़ने के वलए बाध्य था, परन्तु ऐसी पररवस्थवतयों में

WTO के वववाद समाधान (तंत्र) का महत्व और बढ़ जाता है।

 हाल ही में, WTO के तत्वावधान में हस्ताक्षररत, व्यापार सुववधा ऄनुबंध (TFA) लागू दकया
गया। यह समझौता देिो की सीमाओं के अर-पार वस्तुओं के अवागमन को असान करने का
प्रयास करता है।
 आसके ऄवतररक्त, भारत सवहत WTO के कु छ सदस्य देिों िारा सेवाओं में व्यापार सुववधा समझौते
को लागू करवाने का प्रयास दकया जा रहा है।
व्यापार सुववधा समझौता (रेड फै वसवलटेिन ऄग्रीमेंट: TFA)

 WTO की बाली मंवत्रमंडलीय सम्मेलन (2013) में व्यापार सुववधा समझौता (TFA) संबंधी चचाथ

वनरकषथ पर पहुँची तथा 22 फरवरी 2017 को WTO के दो-वतहाइ सदस्यों के ऄनुमोदन िारा आसे
लागू दकया गया।
 आस समझौते का ईद्देश्य वस्तुओं के अवागमन, वनस्तारण और वनकासी को सभी सीमाओं में
असान बनाना है।
 यह वनयाथत, अयात और अयात प्रदक्रयाओं को सरल, अधुवनक बनाने तथा ईनमें परस्पर
सामंजस्य स्थावपत करने का प्रयास करता है। यह ऄवधकाररक ववलंब और रे ड टेपीज़्म
(लालफीतािाही) को कम करता है। यह कस्टम और ऄन्य ऄवधकाररयों के मध्य व्यापार सुववधा
तथा सीमा िुल्क ऄनुपालन के मुद्दों के बीच प्रभावी सहयोग के ईपायों को भी वनधाथररत करता है।
आसके ऄवतररक्त यह तकनीकी सहायता और क्षमता वनमाथण के प्रावधानों को भी समावहत करता
है।
 वववभन्न ऄनुमानों के ऄनुसार TFA का पूणथ दक्रयान्वयन व्यापाररक लागत को 14.3% की औसत

से कम कर सकता है और वैविक व्यापार को प्रवत वषथ 1 ररवलयन तक बढ़ा सकता है। आसका सबसे
ऄवधक लाभ वनधथन देिों को होगा।
भारत के वलए TFA के लाभ :

 यह भारत के "इज ऑफ़ डू आंग वबजनेस" ईपक्रमों के ऄनुरूप है।


 यह ऄबाध व्यापार प्रवाह के वलए सीमा िुल्क वनयमों में छू ट प्रदान करे गा।
 यह व्यापार की लागत को कम करे गा।
 यह खाद्य सुरक्षा ईद्देश्यों के वलए सावथजवनक स्टॉकहोबल्डग के मुद्दे पर स्थायी समाधान प्रदान
कर सकता है।
 यह कृ वष दकसानों को औचक अयात वृवद्ध से वनधथन दकसानों की रक्षा के वलए सुरक्षा तंत्र
प्रदान करे गा।
 हालांदक, समझौते को िीघ्र मंजूरी देकर भारत ऄपने वहतों को सुरवक्षत रखने के वलए सौदेबाजी के
ऄवसर को खो सकता है।

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 हाल ही में, कें द्र सरकार ने व्यापार सुलभता के वलए TFA को मंजूरी प्रदान कर दी है और ऄवखल
भारतीय सड़क के मानवचत्र को ववकवसत करने के ईद्देश्य से व्यापार सुववधा पर एक राष्ट्रीय
सवमवत (NCTF) का गठन भी दकया गया है।
o NCTF, कै वबनेट सवचव के नेतृत्व में एक ऄंतर मंत्रालयी वनकाय होगा।
o TFA के कायाथन्वयन की वनगरानी, एक वत्र-स्तरीय ढांचे वाली मुख्य राष्ट्रीय सवमवत करे गी।
सेवाओं में व्यापार सुववधा (रेड फै वसवलटेिन आन सर्थवस : TFS)
 प्रस्ताववत समझौता, वस्तुओं में व्यापार सुववधा समझौते के समान है। TFS का ईद्देश्य 'बाजार
पहुंच को प्रभावी' और व्यावसावयक रूप से साथथक बनाना है। TFS पर भारत का प्रस्ताव, नए (या
ऄवधक) बाजार तक पहुंच के बारे में बात नहीं करता है।
TFS के ईद्देश्य
o वचदकत्सा पयथटन को बढ़ावा देने के वलए सामावजक सुरक्षा योगदान और सीमा पार बीमा
कवरे ज को बढ़ाना।
o देिीय सीमाओं के पार कु िल श्रवमकों के संचलन के वलए मानदंडों को असान बनाना।
 TFS समझौता सेवाओं में व्यापार को सुववधाजनक बनाने के वलए ईपयुक्त प्रमुख मुद्दों को
संबोवधत करता है, जैसे दक पारदर्थिता, प्रदक्रयाओं को सुव्यववस्थत बनाना और बाधाओं को दूर
करना।
 भारत ने फरवरी 2017 में WTO में TFS समझौते का एक कानूनी रूप से स्वीकृ त प्रारूप प्रस्तुत
दकया है।
 सेवाओं को वववभन्न प्रकारों में ववभावजत दकया गया है- मोड 1 (सीमा पार से सेवाएँ), मोड 2
(ववदेि में ईपभोग), मोड 3 (वावणवययक ईपवस्थवत) और मोड 4 (ऄल्पकावलक सेवा प्रदाताओं या
प्राकृ वतक व्यवक्तयों का संचलन)।
 मसौदे में वविेष और वभन्न ईपचार प्रावधानों को जगह दी गयी है, वजसके ऄंतगथत ववकासिील
देिों को पररवतथन की ऄववध प्रदान की जाती है, जबदक कम-ववकवसत देि TFS समझौते में दकसी
प्रकार की प्रवतबद्धता नहीं रखते हैं।
 हालांदक, कइ ववकासिील देिों ने कहा दक आससे ईनकी प्रवतबद्धताओं का भार बहुत बढ़ जायेगा।
 यूरोपीय संघ (EU), कनाडा, वस्वट्ज़रलैंड, ऑस्रेवलया और न्यूजीलैंड जैसे प्रमुख औद्योवगक
सदस्यों ने भारतीय प्रस्ताव का स्वागत दकया है।

15.4. एक्ट इस्ट नीवत (Act East Policy)

 ''एक्ट इस्ट पॉवलसी'' का ईद्देश्य अर्थथक सहयोग, सांस्कृ वतक संबध


ं ों को बढ़ावा देना तथा एविया-
प्रिांत क्षेत्र के देिों के साथ सामररक संबंध ववकवसत करना है तादक भारत के ईत्तर-पूवी राययों
की कनेवक्टववटी और ऄवभगम्यता बढ़ सके एवं पड़ोसी देिों (ऄरुणाचल प्रदेि से अवसयान देिों
तक) के साथ प्रगाढ़ संबंध स्थावपत हो सके ।
 यह पहल व्यापार, संस्कृ वत, लोगों के मध्य अपसी संपकथ (people-to-people contacts) और
भौवतक ऄवसंरचना (सड़क, हवाइ ऄड्डे, दूरसंचार, िवक्त अदद) के माध्यम से की गयी हैं।
 एक्ट इस्ट पॉवलसी में भारत-अवसयान सहयोग में ऄवसंरचना, वववनमाथण, व्यापार, कौिल
ववकास, िहरी नवीनीकरण, स्माटथ वसटीज, मेक आन आं वडया और ऄन्य पहलों पर बल ददया गया
है। कनेवक्टववटी पररयोजनाएँंँ, ऄंतररक्ष सहयोग, ववज्ञान एवं तकनीकी और लोगों के मध्य
अदान-प्रदान, क्षेत्रीय एकीकरण तथा समृवद्ध के द्योतक बन सकते हैं।

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 ऄगस्त 2015 में अवसयान-भारत प्स औरलान ऑफ़ एक्िन (2016-20) ऄपनाया गया जो सुरक्षा,
अर्थथक ववकास और सामावजक-सांस्कृ वतक मेलजोल के तीन स्तंभों पर ठोस पहल एवं सहयोग के
क्षेत्रों को वचवन्हत करता है:
o सांस्कृ वतक: लोगों के मध्य नए संपकथ और कनेवक्टववटी ववकवसत करने के वलए बौद्ध और बहदू
संबंधो को सदक्रय दकया जा सकता है।
o कनेवक्टववटी: पररवहन की बुवनयादी सुववधाओं को बढ़ाना, क्षेत्र में कनेवक्टववटी बढ़ाने के
वलए एयरलाआं स क्षेत्र को प्रोत्सावहत करना, ऄकादवमक और सांस्कृ वतक संस्थानों के बीच
संपकथ स्थावपत करना।
o अर्थथक भागीदारी और क्षेत्रीय एकीकरण।
o 1 जुलाइ 2015 से भारत और सात अवसयान देिों के मध्य सेवाओं और व्यापार वनवेि में
अवसयान-भारत समझौता लागू हो गया है।
o अतंकवाद का सामना करने, क्षेत्र में िांवत और वस्थरता बनाये रखने के वलए पारस्पररक
सहयोग एवं ऄंतराथष्ट्रीय मानदंडों तथा कानूनों के अधार पर समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देना।
कु छ प्रमुख पररयोजनाओं में सवम्मवलत हैं:
 कलादान मल्टी-मोडल रांवजट रांसपोटथ प्रोजेक्ट,
 भारत-म्यांमार-थाइलैंड वत्रपक्षीय राजमागथ पररयोजना,
 री-रटवडम(Rhi-Tiddim) सड़क ववकास पररयोजना,
 बॉडथर हाट आत्यादद
 अवसयान, अवसयान क्षेत्रीय फोरम (ARF) और पूवी एविया विखर सम्मेलन (EAS) के ऄवतररक्त
भारत बे ऑफ बंगाल आवनविएरटव फॉर मल्टी-सेक्टोरल टेदिकल एंड आकोनॉवमक कॉपोरे िन
(BIMSTEC-वबम्सटेक), एविया सहयोग वाताथ (ACD),
 मेकांग गंगा सहयोग (MGC)
 आं वडयन ओिन ररम एसोवसएिन (IORA)

15.5. भारत के वलए महत्वपू णथ और प्रासं वगक ऄं त राथ ष्ट्रीय व्यापार समझौते

 क्षेत्रीय व्यापक अर्थथक साझेदारी (RCEP): यह समझौता अवसयान और छह ऄन्य FTA


भागीदारों (ऑस्रेवलया, चीन, भारत, जापान, दवक्षण कोररया और न्यूजीलैंड) के मध्य दकया गया
है:
 RCEP ने क्षेत्रीय मुक्त व्यापार समझौते का प्रस्ताव रखा है। आसके सदस्य देिों की वैविक व्यापार
में लगभग 40 प्रवतित भागीदारी है।
 समझौते के ऄंतगथत वस्तुओं, सेवाओं, वनवेि, बौवद्धक संपदा, अर्थथक एवं तकनीकी सहयोग,
प्रवतस्पधाथ, इ-कॉमसथ और कानूनी तथा संस्थागत ववषयों सवहत कइ क्षेत्र सवम्मवलत है।
 आसका ईद्देश्य वस्तुओं के व्यापार में ईच्च टैररफ ईदारीकरण के स्तर को प्राप्त करना है। आसके
ऄंतगथत सभी सेवा क्षेत्रों को समावहत दकया जाएगा तथा वनवेि के संबंध में, सभी चार स्तंभों -
संवधथन, संरक्षण, सुववधा और ईदारीकरण (promotion, protection, facilitation and
liberalisation) को सवम्मवलत दकया जायेगा।
भारतीय ऄथथव्यवस्था के वलए RCEP का महत्व :
 RCEP समझौता अवसयान और ईसके कु छ सदस्य देिों के साथ भारत के मौजूदा मुक्त व्यापार
समझौतों के वलए एक पूरक होगा।
 चूंदक भारत APEC, TTP और TTIP का सदस्य नहीं है, ऄतः RCEP की सदस्यता से भारतीय
ऄथथव्यवस्था पर ईपयुथक्त समूहों का संभाववत नकारात्मक प्रभाव कम हो जायेगा।

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 भारत, अवसयान ऄथथव्यवस्था के ऄपेक्षाकृ त ऄवधक समीप पहुंच जाएगा जो भारत की एक्ट इस्ट
पॉवलसी के ईद्देश्य से संरेवखत होगा।
 RCEP नए बाजारों तक पहुंच प्रदान करे गा और भारत आन ऄवसरों का ईपयोग करके सूचना
प्रोद्योवगकी, स्वास्थ्य सेवा, विक्षा और सेवाओं में ऄपनी क्षमताओं के बल पर अर्थथक लाभ ईठा
सकता है।
RCEP में भारत के सामने समस्याएँ :
 टैररफ बाधाएं, जो विपक्षीय FTA में ऄसंतोष का ववषय है, वविेषकर अवसयान-भारत FTA के
संबंध में।
 गैर-व्यापाररक ववषय जैसे पयाथवरण और श्रम से सम्बंवधत ववषय ऄवधक जरटल है तथा आन पर
वविेष ध्यान देने की अवश्यकता है।
 MSME क्षेत्र को सुदढ़ृ बनाने का ईद्देश्य न के वल व्यापार के मुक्त प्रवाह को बनाये रखना है, बवल्क
वववभन्न ईपक्रमों के मध्य प्रवतस्पधाथ को भी बढ़ाना है।
 चीन के साथ समझौते स्थावपत करना भारत के वलए एक बड़ी समस्या होगी।

15.6. बदलता ऄं त राथ ष्ट्रीय पररवे ि : ऄलगाववाद और दे िीयता ( Changing


International Order: Isolationism and Nativism)

 ऄंतराथष्ट्रीय व्यवस्था बदल रही है और आसे नइ चुनौवतयों का सामना करना पड़ रहा है। िेवक्जट
और ऄमेररकी चुनावों का प्रभाव, ऄलगाववाद और देिीयता की ददिा में महत्वपूणथ प्रसंग बन
सकते हैं। हालांदक ये प्रभाव ऄभी भी ऄवनवित हैं।
 ववि युद्ध के बाद वस्तुओं, सेवाओं, श्रम तथा बाजार-अधाररत अर्थथक व्यवस्था के वैिीकरण के
पक्ष में बनी सवथसम्मत राय, वतथमान समय की ईन्नत ऄथथव्यवस्थाओं के युग में संकट में है।
 हाल के ईदाहरणों से यह स्पष्ट है जैसे- ऄमेररका िारा TTP को रद्द करना, पेिेवर व्यवक्तयों के
गमनागमन (ऄमेररका िारा H1B वीजा, ऑस्रेवलया िारा वीजा 457) पर प्रवतबंध।
भारत के वलए बचताएँ :
 भारत में "कनवजेन्स" देर से हुअ है- यह एक ऐसी ऄथथव्यवस्था है जहाँ जीवन स्तर ववि के ऄन्य
देिों की तुलना में बहुत वनम्न है। आस वस्थवत में ऐसी घटनाओ का भारत के वलए ऄत्यवधक महत्व
है।
 8-10 प्रवतित की ववकास दर प्राप्त करने के वलए भारत को 15-20 प्रवतित की वनयाथत वृवद्ध की
अवश्यकता है। परं त,ु भारत के व्यापाररक भागीदारों की ओर से मुक्त व्यापार में कटौती आस
महत्वाकांक्षा को ववपदा में डाल सकता है।
 वैविक स्तर पर श्रवमक गमनागमन पर लगे प्रवतबंधों से प्रेवषत धन (रे वमटेंस) में कमी अएगी,
भारतीय IT ईद्योग को नुकसान होगा और भारत में रोजगार प्रदान करने की चुनौती बढ़ेगी।
भारत को क्या करना चावहए?
 मुक्त व्यापार समझौता: भारत को MERCOSUR जैसे क्षेत्रीय व्यापाररक संगठनों के साथ मुक्त
व्यापार समझौते को सदक्रय रूप से अगे बढ़ाना चावहए।
 IT क्षेत्र: आस क्षेत्र में मूल्य श्रृंखला को अगे बढ़ाना चावहए और वीज़ा-स्वतंत्र-ग्लोबल वडवलवरी
वसस्टम को ववकवसत करना चावहए।
 वववनमाथण क्षेत्र: रोज़गार गहन क्षेत्रों को भारत में ववस्ताररत करने की अवश्यकता है।
 भारत को WTO के भीतर सेवाओं में व्यापार सुववधा को सदक्रय रूप से अगे बढ़ाने की
अवश्यकता है।

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ववषय सूची
1. पररचय ____________________________________________________________________________________ 4

2. ऄवसंरचना और अर्थथक ववकास के मध्य संबध


ं _________________________________________________________ 4

3. सड़क पररवहन_______________________________________________________________________________ 5

3.1. बाजार का अकार _________________________________________________________________________ 7

3.2. प्रमुख वनवेश तथा ववकास पररयोजनाएं ___________________________________________________________ 7

3.3. सरकारी पहलें ____________________________________________________________________________ 8


3.3.1 राष्ट्रीय राजमागथ ववकास पररयोजना (NHDP) __________________________________________________ 9
3.3.2. प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY)___________________________________________________ 10

3.4. ऄन्य योजनाएं एवं पहलें ____________________________________________________________________ 11

3.5. नइ पहलें ______________________________________________________________________________ 16


3.5.1. भारतमाला _________________________________________________________________________ 16
3.5.2. सेतु भारतम कायथक्रम __________________________________________________________________ 16
3.5.3. कौशल ववकास _______________________________________________________________________ 16
3.5.4. सड़क ककनारे सुववधाएं _________________________________________________________________ 16
3.5.5. राष्ट्रीय राजमागथ आं टर कनेवटटववटी सुधार पररयोजना ____________________________________________ 17
3.5.6. लोवजवस्टटस क्षमता संवधथन कायथक्रम (IEEP) _________________________________________________ 17
3.5.7. राजमागथ वनमाथण नीवतयां _______________________________________________________________ 17

3.6. हररत प्रयास ____________________________________________________________________________ 18

3.7. इ-पहलें _______________________________________________________________________________ 20

3.8. पड़ोसी देशों के साथ सड़क कनेवटटववटी पररयोजनाएं ________________________________________________ 21

4. रे लवे_____________________________________________________________________________________ 22

4.1. रोललग स्टॉक ____________________________________________________________________________ 25

4.2. डेडीके टेड फ्रेट कॉरीडोर (DFCS) ______________________________________________________________ 26

4.3. रे लवे सुरक्षा अयोग _______________________________________________________________________ 27

4.4. प्रमुख ववकास ___________________________________________________________________________ 27


4.4.1. यात्री सुववधाएं और सेवाएं ______________________________________________________________ 27
4.4.2. तीव्र गवत की ट्रेनें _____________________________________________________________________ 28
4.4.3. रे लवे ववकास प्रावधकरण ________________________________________________________________ 28
4.4.4. वडवजटल आं वडया पहल _________________________________________________________________ 28
4.4.5. ववत्त ______________________________________________________________________________ 28
4.4.6. सुरक्षा _____________________________________________________________________________ 29
4.4.7. ववद्युतीकरण और वसग्नललग ______________________________________________________________ 29
4.4.8. ग्रीन पहल __________________________________________________________________________ 29
4.4.9. समझौता ज्ञापन ______________________________________________________________________ 29
4.5. सुधारों के वलए गरित वववभन्न सवमवतयां _________________________________________________________ 30
4.5.1. राके श मोहन सवमवत- राष्ट्रीय पररवहन ववकास नीवत सवमवत (NTDPC) की वसफाररशें ____________________ 30
4.5.2. वबबेक देबरॉय सवमवत__________________________________________________________________ 31

4.6. चुनौवतयााँ और सुझाव ______________________________________________________________________ 32

4.7. महत्वपूणथ मुद्दे ___________________________________________________________________________ 33


1. पररचय
 आक्कीसवीं सदी में बहुपथीय राजमागों, रे ल मागों, हवाइ ऄड्डे, बंदरगाह, दूरसंचार, प्रत्येक मौसम में

ईपयुक्त ग्रामीण सड़कें , सुसच


ं ावलत नगरों और ववद्युत जैसे बुवनयादी-ढांचों की अवश्यकता समस्त

ववश्व में महसूस की गयी है। हालांकक भारत 'ऄवसंरचना ऄवभशाप' (Infrastructure Curse) से

ग्रस्त नहीं है। यह प्रायः तब देखा जाता है जब बुवनयादी सुववधाओं का ववकास ईनकी अवश्यकता
से पूवथ हो जाता है।
 ईदाहरण के वलए सड़कों के वनमाथण से यह तात्पयथ नहीं है कक वावणज्य गवतवववधयों का ववकास भी
ईसके साथ ही होगा। कु छ ऄफ्रीकी देशों में जहााँ सहायक एजेंवसयां और सरकारें सड़कों और
बंदरगाहों के वनमाथण पर धन तो खचथ करती है, परन्तु आस तथ्य को भूल जाती हैं कक मात्र

ऄवसंरचना वनमाथण से ही स्वत: ववकास तीव्र नहीं होगा, बवकक आसके वलए मांग सृवजत करना और

ईसमें वृवि करना भी एक महत्वपूणथ घटक है। यह वबककु ल ईसी तरह है जैसा कक एक घोड़ा-गाड़ी
में घोड़े के पहले गाड़ी लगाना। सौभाग्यवश भारत में जो भी ववकास हुअ है, ईस बुवनयादी ढांचे

के वनमाथण हेतु सामान्य जनता द्वारा ईत्पन्न मााँग को भी ध्यान में रखा गया है।
 वववभन्न अयामों पर बुवनयादी ढांचे में सुधार और ववस्तार की जरूरत पर अम सहमवत को देखते
हुए, वववभन्न सरकारों के समक्ष वतथमान में यह चुनौती है कक वे आसे 'कै से प्रबंवधत और ववतररत'

करते हैं। दूरसंचार क्षेत्र वजसे एक ऄपवाद के रूप में वलया जा सकता है। वववभन्न क्षेत्रों में बुवनयादी
सुववधाओं में वृवि के वलए सावथजवनक क्षेत्र को अगे अना होगा तथा आसके साथ ही साथ
सावथजवनक-वनजी भागीदारी के माध्यम से वनजी क्षेत्र की भागीदरी को भी सुवनवित करना होगा।

2. ऄवसं र चना और अर्थथक ववकास के मध्य सं बं ध


ऄवसंरचना या बुवनयादी ढांचा, प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों रूपों में अर्थथक ववकास के कइ वनधाथरक तत्वों

को प्रभाववत करता है:


 वनवेश में वृवि: यह अवश्यक अदानों (आनपुट्स) और सेवाओं के माध्यम से वनवेश की संभावनाओं

तथा बाजार के अकार को बढ़ाने में सहायता प्रदान करता है। साथ ही यह अपूर्थत की लोच और
ईत्पादन के कारकों की दक्षता में भी वृवि करता है। आस प्रकार बुवनयादी सुववधाओं की पयाथप्त
ईपलब्धता, गुणवत्ता और ववश्वसनीयता ककसी भी ऄथथव्यवस्था के ववकास के वलए महत्वपूणथ हैं।

ईदाहरण के वलए- कृ वष का ववकास प्रायः लसचाइ, ववद्युत् अपूर्थत, पररवहन, ववपणन, वशक्षा और

प्रवशक्षण, ऄनुसंधान और ववकास तथा ऄन्य सुववधाओं अकद ऄवसंरचना के ववकास पर वनभथर

करता है।
 औद्योवगक ववकास: यह घटक भी एक सुदढ़ृ बुवनयादी ढांचे पर वनभथर करता है।

 रोजगार सृजन: ऄवसंरचना का ववकास रोजगार सृजन में एक महत्वपूणथ भूवमका का वनवाथह करता

है। आससे गवतशीलता, ईत्पादकता और श्रम की क्षमता तथा दक्षता में सुधार होता है।

 व्यापार और वावणज्य: व्यापार और वावणज्य के ववकास में मजबूत एवं सुदढ़ृ ऄवसंरचना एक

महत्वपूणथ भूवमका वनभाती है। वस्तुतः यह व्यापार की गवत को तीव्र करने तथा ऄन्य व्यावसावयक
गवतवववधयों के ववस्तार हेतु एक मंच के रूप में कायथ करता है।

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 आस प्रकार बुवनयादी ढांचे का ववकास अर्थथक ववकास पर महत्वपूणथ प्रभाव डालता है। वनम्न अय
वगथ वाले देशों के वलए जल, लसचाइ और कु छ हद तक पररवहन के बुवनयादी ढांचे महत्वपूणथ हैं,
जैस-े जैसे ऄथथव्यवस्था मध्यम अय वगथ की ओर बढ़ती है तो यहााँ बुवनयादी ढांचे में ववद्युत,
पररवहन और दूरसंचार अकद की वहस्सेदारी भी बढ़ने लगती है। आसके ऄवतररक्त ऄवसंरचना का
ववकास न के वल वपछड़े क्षेत्रों और क्षेत्रीय ऄसंतल
ु न को दूर करने की कदशा में योगदान करता है
बवकक ये सामावजक पररवतथन के एक साधन के रूप में भी कायथ करते हैं। ववश्व बैंक द्वारा ककए गए
वृहत ऄध्ययनों से यह पता चलता है कक बुवनयादी ढांचे के स्टॉक में 1% की वनवेश वृवि करने से,
ककसी देश के सकल घरे लू ईत्पाद में लगभग 1% की वृवि हो जाती है।

3. सड़क पररवहन
 देश के अर्थथक ववकास के वलए सड़क पररवहन एक महत्वपूणथ बुवनयादी ढांचा है । यह ववकास की
गवत, संरचना और तरीकों को प्रभाववत करता है। सड़क पररवहन एवं राजमागथ मंत्रालय, राष्ट्रीय
राजमागों का वनमाथण तथा रखरखाव करता है।

 मोटर वाहन ऄवधवनयम 1988; कें द्रीय मोटर वाहन वनयम 1989; राष्ट्रीय राजमागथ ऄवधवनयम
1956 और राष्ट्रीय राजमागथ शुकक (दरों का वनधाथरण और संग्रह) वनयम 2008; सड़क पररवहन,
पयाथवरण संबंधी मुद्दों, ऑटोमोरटव मानकों अकद से संबंधी नीवत वनमाथण का कायथ करते है। आसके
ऄवतररक्त यह पड़ोसी देशों में वाहनों की अवाजाही के आं तजाम भी करता है । पररवहन (यात्री

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और माल) के वलए राष्ट्रीय राजमागों की क्षमता औद्योवगक ववकास के ऄनुरूप होनी चावहए।
भारत में 54.72 लाख ककलोमीटर से ऄवधक लंबा सड़क नेटवकथ है। भारत ववश्व के सबसे लंबे
सड़क नेटवकथ वाले देशों में शावमल है । आसके राष्ट्रीय राजमागों, एटसप्रेस मागों राज्य राजमागों,
प्रमुख वजला सड़कों, ऄन्य वजला सड़कों और ग्रामीण सड़कों की लंबाइ वनम्न प्रकार है :

सड़कों की कु ल लंबाइ (ककमी.) सड़कों की कु ल लंबाइ

श्रेणी (31 माचथ 2015 को ) (%)में


(31 माचथ 2015 को)

राष्ट्रीय राजमागथ (NHs) 97,991 1.79

राज्य राजमागथ (SHs) 1,67,109 3.05


ऄन्य लोक वनमाथण ववभाग 11,01,178 20.12
(OPWD) सड़क
ग्रामीण सड़कें 33,37,255 61.0
शहरी सड़कें 4,67,106 8.54
पररयोजना सड़कें 3,01,505 5.50
कु ल 54,72,144 100.00

राष्ट्रीय राजमागथ, जो कें द्र सरकार के ऄंतगथत अते हैं, कु ल सड़क नेटवकथ का 1.7% भाग है, हालांकक देश

के कु ल यातायात का लगभग 40% भाग राष्ट्रीय राजमागथ ही वहन करते हैं।

चौड़ाइ के मामले में राष्ट्रीय राजमागों का प्रवतशत वनम्नानुसार है (31 माचथ, 2015 को):

o लसगल लेन: 31.73%

o डबल लेन: 46.64%

o चार लेन/छह लेन/अि लेन: 21.63%

 देश में सड़को के ववकास के वलये 7 चरणों में कक्रयावन्वत की गयी राष्ट्रीय राजमागथ ववकास

पररयोजना (NHDP) से अशातीत प्रगवत हुइ है। आसके ऄंतगथत राष्ट्रीय राजमागथ प्रावधकरण

(NHAI) को राष्ट्रीय राज्यमागथ तथा PMGSY (प्रधान मंत्री ग्राम सड़क योजना) के ववकास का

व़िम्मा सौंपा गया। NHDP का ईद्देश्य राष्ट्रीय राजमागों के ईच्च घनत्व के गवलयारों की मरम्मत

करना और ईनको चौड़ा करना है। दूसरी ओर PMGSY को ग्रामीण क्षेत्रों में कनेवटटववटी में
सुधार हेतु वड़िाआन ककया गया था।
 भारत में सड़क ऄवसंरचना के ववकास में वनजी क्षेत्र एक प्रमुख भागीदार के रूप में ईभरे हैं। बढ़ती
औद्योवगक गवतवववधयों के साथ दोपवहया और चौपवहया वाहनों की संख्या में वृवि ने सड़क
पररवहन के ऄवसंरचना पररयोजनाओं में वृवि को प्रोत्सावहत ककया है। वनजी क्षेत्र की भागीदारी
में वृवि की सरकारी नीवत ऄवसंरचना क्षेत्र के वलए एक वरदान वसि हुइ है। बड़ी संख्या में वनजी
क्षेत्र PPP मॉडल के माध्यम से आस व्यवसाय में प्रवेश कर रहा है।

 सरकार द्वारा सड़क क्षेत्र में 100 प्रवतशत ववदेशी प्रत्यक्ष वनवेश (FDI) की ऄनुमवत के साथ कइ
ववदेशी कं पवनयों ने भारतीय कं पवनयों के साथ साझेदारी की है ताकक आस क्षेत्र में हो रही संवृवि
का लाभ ईिाया जा सके ।

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3.1. बाजार का अकार

 2017 में भारत में पररवहन ऄवसंरचना क्षेत्र लगभग 6.1 % की वास्तववक दर से बढ़ी है तथा

आसके 2021 तक 5.9 % की संयोवजत वार्थषक वृवि दर (CGAR) से बढ़ने की अशा है। आस तरह
यह क्षेत्र देश के ऄवसंरचना क्षेत्र का सबसे तेजी से बढ़ने वाला घटक बन कर ईभरे गा।
 राजमागों का वनमाथण ववत्तीय वषथ 2016-17 के दौरान 8142 ककमी तक पहुंच गया। वजसमें प्रवत

कदन 22.3 ककलोमीटर की एक ईच्चतम औसत वनमाथण गवत के साथ वनमाथण ककया गया। ववत्तीय

वषथ 2017-18 के पहले दो महीनों में प्रवत कदन 26.3 ककमी की औसत से 1,627 ककमी. राजमागथ
वनर्थमत ककया गया।
 प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) के तहत 2016-17 में प्रवत कदन 133 ककमी के औसत
वनमाथण गवत से सड़कों का वनमाथण ककया गया जबकक यह 2011-14 की ऄववध में 73 ककमी के
लगभग थी।

3.2. प्रमु ख वनवे श तथा ववकास पररयोजनाएं

 वतथमान में सरकार की नीवत का ईद्देश्य सड़क तथा वशलपग क्षेत्र में कॉपोरे ट वनवेश को बढ़ावा देना
है। साथ ही साथ आसका ईद्देश्य व्यापार ऄनुकूल रणनीवतयों का समायोजन करना भी है वजससे
प्रभावी पररयोजना वनष्पादन और लाभप्रदता के बीच संतल
ु न स्थावपत हो सके ।
भारतीय सड़क क्षेत्र में कु छ प्रमुख वनवेश और ववकास आस प्रकार हैं:
 NHAI के ऄधीन कायथरत नेशनल ग्रीन राजमागथ वमशन (NGHM) के 'ऄडॉप्ट ए ग्रीन हाइवे'

कायथक्रम के ऄंतगथत पावर फाआनेंस कॉरपोरे शन वलवमटेड (PFC) ने नागपुर क्षेत्र में NH 7 पर
वृक्षारोपण कायथ पूरा ककया।
 भारतीय प्रौद्योवगकी संस्थान (IIT-खड़गपुर) और NHAI ने भारत में रखरखाव मुक्त राजमागथ

वनमाथण हेतु अवश्यक प्रौद्योवगकी के ववकास के वलए MoU पर हस्ताक्षर ककए।

 राष्ट्रीय राजमागथ प्रावधकरण (NHAI) के ऄध्यक्ष के ऄनुसार NHAI द्वारा ऄगले 5 से 6 वषों में
लगभग 50,000 ककमी सड़क वनमाथण के वलए 240 सड़क पररयोजनाओं में लगभग 250 ऄरब
डॉलर का वनवेश ककया जायेगा।
 भारतीय राष्ट्रीय राजमागथ प्रावधकरण (NHAI) ने भारतीय ऄंतररक्ष ऄनुसंधान संगिन (ISRO) के
तहत राष्ट्रीय ररमोट सेंलसग सेंटर (NRSC) और ईत्तर-पूवथ प्रौद्योवगकी ऄनुप्रयोग और ऄनुसंधान

(NECTAR) के साथ समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर ककए हैं। आनसे प्राप्त स्थावनक डाटा
जैसे कक ईपग्रह डेटा का ईपयोग राजमागों की वनगरानी और प्रबंधन में ककया जाएगा।
 भारतमाला पररयोजना में ऄन्य बातों के साथ-साथ गवलयारों, सीमा सड़कों, तटीय और बंदरगाह

सम्बन्धी सड़कों का ववकास भी शावमल है। आन राजमागो का वनमाथण PPP पैटनथ जैसे वबकड-
ऑपरे ट-ट्रांसफर-टोल (BOT-Toll) और हाआविड एन्युटी मॉडल (HAM) के साथ ही आंजीवनयररग,

प्रोटयोरमेंट एंड कं स्ट्रटशन (EPC) मॉडल के तहत भी वनमाथण ककया जाना है।
 सड़क पररवहन और राजमागथ मंत्रालय ने वडवजटलीकरण प्रकक्रया के तहत एक ऑनलाआन
अधाररत नागररक के वन्द्रत एप्लीके शन की शुरुअत की है। वजसका नाम वाहन 4.0 और सारथी

4.0 रखा गया है । यह भ्रष्टाचार पर ऄंकुश लगाने के साथ-साथ ऄन्य प्रकक्रयाओं को भी असान
बनाएगा।

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3.3. सरकारी पहलें

2016-17 में राष्ट्रीय राजमागों के वलए वनधाथररत लक्ष्य 15,000 ककमी में से फरवरी 2017 के ऄंत तक
कु ल 6604 ककमी वनर्थमत ककया जा चुका है। हाल ही में हुए कु छ नवीनतम ववकास कायथ आस प्रकार हैं:
 भारत सरकार सावथजवनक वनजी भागीदारी (PPP) ऄनुबंधों के पुनर्थवचार पर एक नए रूपरे खा
पेश करने की योजना बना रही है, जो ववशेषकर राष्ट्रीय राजमागों और बंदरगाहों के वलए क्षेत्र
वववशष्ट मुद्दों पर अधाररत पुनर्थवचार की ऄनुमवत प्रदान करे गा और आसमें सवम्मवलत दलों को
ऄवधक लचीलापन प्रदान करे गा।
 सड़क पररवहन और राजमागथ मंत्रालय सम्पूणथ देश में भूवम ऄवधग्रहण सेल स्थावपत करने की
योजना बना रहा है, जो भूवम ऄवधग्रहण से संबंवधत मुद्दों को हल करने की कदशा में काम करे गा
और राज्य सरकारों द्वारा मुअवजे के शीघ्र संववतरण को सुवनवित करे गा।
 सड़क पररवहन और राजमागथ मंत्रालय की देश भर में पांच नए ग्रीनफीकड एटसप्रेस बनाने की
योजना है। आससे यात्रा में लगने वाले समय में कमी और अर्थथक ववकास को प्रेररत करने में
सहायक वमलेगी।
 अर्थथक मामलों की मंवत्रमंडल सवमवत (CCEA) ने राजमागथ पररयोजनाओं को लागू करने के वलए
एक नवोन्मेषी मॉडल, हाआविड एन्युटी मॉडल को स्वीकृ वत प्रदान की है। जो सरकार और वनजी
डेवलपर के बीच जोवखमों के अवंटन के वलए एक ऄवधक तकथ संगत दृवष्टकोण को ऄपनाता है तथा
आससे भारतीय राजमागथ पररयोजनाओं को पुनजीववत करने की ईम्मीद की जा रही है।
 सड़क और राजमागथ मंत्रालय वतथमान में सड़क क्षेत्र में वनजी वनवेश को पुनजीववत करने के ईद्देश्य
से पूंजी को अकर्थषत करने हेतु दो और मॉडल पर काम कर रहा है। एक मॉडल कम से कम वतथमान
मूकय के अधार पर सड़क पररयोजना की बोली लगाने की आजाजत देता है, तो दूसरा सरकारी
फं डों के प्रयोग से पूणथ की गयी सड़क वनमाथण पररयोजनाओं के ववक्रय की पररककपना करता है।
 ऄवधक वनवेश जुटाने के वलए मसाला बांड पर टैटस में छू ट का प्रावधान कदया गया है।
 सड़क सुरक्षा के मामले में नीवतगत वनणथय लेने के वलए सरकार ने राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा पररषद का
गिन ककया है।
 ववश्व बैंक तकनीकी सहायता कायथक्रम के तहत, सड़क पररवहन और राजमागथ मंत्रालय ने
लॉवजवस्टटस क्षमता संवधथन पर एक ऄध्ययन ककया है। ऄध्ययन ररपोटथ में राष्ट्रीय राजमागों पर
लॉवजवस्टटस पाकों के ववकास के साथ-साथ अर्थथक कोररडोर के ववकास, फीडर मागों और चोक
पॉआं टस को हटाने सवहत कइ वसफाररशें की गयी हैं। आन वसफाररशों को स्वीकार ककया गया है तथा
राज्य सरकारों और ऄन्य वहतधारकों के साथ चरणबि तरीके से पहचाने गए स्थानों पर
लॉवजवस्टटस पाकथ ववकवसत करने का काम NHAI को सौंप कदया गया है।
 राष्ट्रीय राजमागों पर सभी मौजूदा पुलों के वनमाथण की वस्तु सूची और वस्थवत मूकयांकन के वलए
सरकार ने भारतीय पुल प्रबंधन प्रणाली (IBMS) की शुरूअत की है।
 भारत की सबसे लंबी राजमागथ सुरंग जम्मू और कश्मीर में चेनानी-नैशरी सुरंग का वनमाथण पूणथ
ककया जा चुका है।
अगे की राह
 सरकार, कइ पहलों के माध्यम से वनवेशकों के वहतों को अकर्थषत करने के वलए नीवतयों पर काम
कर रही है। भारत सरकार ने NHDP, ईत्तर पूवी राज्यों में सड़क नेटवकथ के ववकास के वलए
ववशेष त्वररत सड़क ववकास कायथक्रम (Special Accelerated Road Development
Programme; SARDP-NE) और वामपंथी ईग्रवाद (।WE) जैसे वववभन्न कायथक्रमों के तहत

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कु ल 66,117 ककलोमीटर सड़कें बनाने की योजना बनाइ है। सरकार ने बंदरगाहों और दूरस्थ
गांवों के बीच कनेवटटववटी में सुधार के वलए 2,000 ककलोमीटर के तटीय सड़कों के ववकास की
पहचान की है।
 NHAI ने 2022 तक 250 ऄरब ऄमरीकी डॉलर के वनवेश से राष्ट्रीय राजमागथ नेटवकथ को

200,000 ककमी तक दोहरीकृ त करने के दीघथकावलक लक्ष्य के तहत 50,000 ककमी सड़क वनमाथण

करने की योजना बनाइ है।

3.3.1 राष्ट्रीय राजमागथ ववकास पररयोजना (NHDP)

NHDP को वनम्नवलवखत 7 चरणों में लागू ककया जा रहा है:

 स्वर्थणम चतुभज
ुथ तथा ईत्तर-दवक्षण और पूव-थ पविम कॉररडोर (NHDP I और II) को 4 लेन करना

 12,109 ककमी. का ईन्नयन (NHDP III)

 20,000 ककमी सड़क को दोहरी लेन वाला करने का प्रस्ताव (NHDP-IV)

 6,500 ककमी सड़कों को 6 लेन करने का प्रस्ताव (NHDP V)

 1000 ककमी एटसप्रेसवे का ववकास (NHDP -VI)

 700 ककमी की ऄन्य राजमागथ पररयोजनाओं का ववकास वजसमें ररग रोड, सर्थवस रोड अकद

शावमल हैं। (NHDP -VII)

NHDP के तहत प्रगवत ऄनुमान की तुलना में कु छ हद तक धीमी है। आसके कायाथन्वयन में कु छ प्रमुख

बाधाएं हैं
 ऄनुबंध प्रदान करने में देरी
 भूवम ऄवधग्रहण में करिनाआयााँ
 पयाथवरण मंजरू ी में ववलम्ब
 वनमाथण क्षमता में कमी

 2012 की एक ररपोटथ में, ववश्व बैंक ने भारतीय कांट्रेटटरों में धोखाधड़ी और भ्रष्ट अचरण की

ईपवस्थवत का अरोप लगाया था।


सुझाव

 NHDP के चरणों के भीतर, एकल लेन की सड़कों को दो लेन करने से संबंवधत कायथक्रम को उजाथ

दक्षता और सुरक्षा बढ़ाने की दृवष्ट से तीव्रता से सम्पाकदत करना चावहए।


 सभी मौजूदा चार लेन और छह लेन की सड़कों में स्थानीय यातायात के वलए सेवा लेन (सर्थवस
लेन) के त्वररत वनमाथण से उजाथ दक्षता बढ़ाइ जा सकती है और पररवहन को तीव्र ककया जा सकता
है।आन सड़कों के ववत्तपोषण के वलए टोल के रूप में यूजर चाजथ लप्रवसपल लागू होना चावहए और
मौजूदा सेंट्रल रोड फं ड को पेट्रोल और डीजल पर ऄवतररक्त लेवी के माध्यम से जारी रखना
चावहए।

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वचत्र : भारत- राष्ट्रीय राजमागथ

3.3.2. प्रधान मं त्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY)

PMGSY को 25 कदसंबर, 2000 को शुरू ककया गया था वजसके तहत चयवनत ग्रामीण क्षेत्रों में

बारहमासी सड़कों का वनमाथण करना है।


ग्रामीण क्षेत्रों के चयन के मानदंड:
 मैदानी क्षेत्रों में 500 या ईस से ज्यादा की अबादी वाली सभी बवस्तयााँ (2001 की जनगणना के

ऄनुसार)
 250 या ईससे ऄवधक की अबादी वाली वनम्नवलवखत क्षेत्रों की सभी बवस्तयााँ :

o पहाड़ी राज्य
o रे वगस्तानी क्षेत्र
o अकदवासी क्षेत्र (ऄनुसच
ू ी V)

o IAP (एकीकृ त कायथ योजना) के तहत जनजातीय और वपछड़े वजले

 2013 में भारत सरकार ने PMGSY II योजना को मंजूरी दी थी, वजसमें मौजूदा प्रमुख ग्रामीण

ललकों को ग्रामीण ववकास कें द्रों तक ऄपग्रेड ककया जाएगा। आसमें ईन्नयन की लागत राज्यों द्वारा
भी साझा की जाएगी।

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 PMGSY के चरण-III को भी ऄंवतम रूप कदया जा रहा है। आसके तहत सड़कों का स्थायी

रखरखाव और सवोत्तम प्रदशथन करने वाले राज्यों के वलए ववत्तीय प्रोत्साहन मुख्य फोकस क्षेत्र
होंगे।
 ग्रामीण ववकास मंत्रालय सड़कों के रखरखाव के वलए सवोत्तम प्रदशथन वाले राज्यों को 5% का

ववत्तीय प्रोत्साहन देने की योजना बना रहा है। देश में 8 से 9 ऐसे राज्य हैं जो वनधाथररत लक्ष्य से

पहले मानक और रटकाउ ग्रामीण सड़कों का वनमाथण कर रहे हैं।


 वषथ 2011-2014 के बीच, PMGSY के ऄंतगथत प्रवतकदन 73 km की ग्रामीण सड़कों का वनमाथण

ककया गया, जबकक 2014 से 2016 के बीच यह 100 Km प्रवत कदन पर पहुाँच गया।

 PMGSY के ऄंतगथत बनाइ गइ 15% ग्रामीण सड़कों में, ग्रीन टेक्नोलॉजी जैसे फ्लाइ ऐश, वजओ-

टेटसटाआल, प्लावस्टक और ऄन्य ऄपवशष्ट पदाथों का ईपयोग हुअ हैं। वषथ 2000 और 2014 के

मध्य, ग्रीन टेक्नोलॉजी के ईपयोग से 800 km की ग्रामीण सड़कों का वनमाथण ककया गया, जबकक

2014 से 2016 के मध्य आस वैकवकपक तंत्र के तहत 2600 Km से ऄवधक सड़कों का वनमाथण हुअ।

सुधार हेतु सुझाव


 सावथभौवमक कनेवटटववटी हावसल करने के वलए PMGSY के मौजूदा मैंडटे का ववस्तार ककया

जाना चावहए टयोंकक ये सड़कें गरीबी ईन्मूलन के वलए एक एंट्री पॉआं ट के रूप में काम करती हैं
और वशक्षा और स्वास्थ्य जैसे सामावजक बुवनयादी ढांचे तक पहुाँच बढ़ाती है।
 कु छ ग्रामीण सड़कों पर ट्रैकफक गहनता देखी जा सकती है जो आनकी चौड़ाइ को मध्यम या दो-लेन
तक बढ़ाने की जरूरत को न्यायसंगत बनाता है।
 ववत्तीय संघवाद वसिांत यह सुझाव देता है कक चूंकक ग्रामीण सड़कें सरकार के वलए प्राथवमक
पुनर्थवतरण ईपकरण के रूप में काम करती हैं, ऄतः ईन्हें कें द्र से ऄनुदान द्वारा ववत्त पोवषत करना

जारी रखना चावहए।


 आन सड़कों के ववत्तपोषण के वलए नाबाडथ के वतथमान CRF (सेंट्रल रोड फं ड) और IRDF (ग्रामीण

बुवनयादी ढांचा ववकास वनवध) को संवर्थधत करने की अवश्यकता हो सकती है।


 कृ वष ईत्पादों पर राज्यों द्वारा बाजार सवमवत फीस के माध्यम से धन जुटाने की पहल का ऄन्य
राज्यों द्वारा ऄनुसरण ककया जा सकता है। तृणमूल स्तर के कायों के वलए मनरे गा से भी कु छ फं ड
का लाभ वलया जा सकता है।

3.4. ऄन्य योजनाएं एवं पहलें

पूवोत्तर क्षेत्र के वलये ववशेष त्वररत सड़क ववकास कायथक्रम (SARDP-NE)

 आसमें ईत्तर-पूवी क्षेत्र के वजला मुख्यालयों तथा राज्यों की राजधावनयों के मध्य सड़क संपकथ को
सुधारने की पररककपना की गइ है।
वामपंथी ईग्रवाद से प्रभाववत (।WE) क्षेत्रों में सड़क कनेवटटववटी में सुधार के वलए सड़क अवश्यकता

योजना (RRP)

 भारत के 8 राज्यों के 34 वजलों के ।WE प्रभाववत क्षेत्रो में सड़क नेटवकथ ववकवसत करने के वलए

माचथ 2015 से यह योजना कक्रयाशील है।

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के न्द्रीय सड़क वनवध (CRF)

 यह पेट्रोल और हाइ स्पीड डीजल (HSD) तेल पर सेस के संग्रह द्वारा कें द्र सरकार द्वारा वनर्थमत

एक फं ड है। वतथमान में पेट्रोल और हाइ स्पीड डीजल (HSD) तेल पर ईपकर के रूप में 2 रुपये

प्रवत लीटर जमा ककया जाता है। के न्द्रीय सड़क वनवध ऄवधवनयम, 2000 में प्रदान की गइ NH,

राज्य सड़कों, ग्रामीण सड़कों, रे लवे ओवर-विज / ऄंडर-विज और ऄन्य सुरक्षा सुववधाओं के
ववकास और रखरखाव के वलए यह वनवध ववतररत की गइ है।
सीमा सड़क संगिन (BRO)

 BRO एक सड़क वनमाथण कायथकारी संस्था है जो भारतीय सेना एक ऄंग होते हुए भी स्वायत है।

मइ 1960 में आसका पररचालन के वल दो पररयोजनाओं, पूवी क्षेत्र में प्रोजेटट Tusker (पूवथ में

नाम प्रोजेटट Vartak) और पविम में प्रोजेटट Beacon के साथ कायथ करना प्रारं भ ककया।

 BRO ने न के वल देश के बाकी वहस्सों को ईत्तर और ईत्तर-पूवथ के सीमावती क्षेत्रों से जोड़ा है

बवकक वबहार, महाराष्ट्र, कनाथटक, राजस्थान, अंध्र प्रदेश, ऄंडमान और वनकोबार द्वीप समूह,

ईत्तराखंड और छत्तीसगढ़ में सड़क ढांचे का भी ववकास ककया है। आसके ऄवतररक्त, आसे

तावजककस्तान, ऄफगावनस्तान, भूटान और म्यांमार में सड़कों के वनमाथण का दावयत्व भी सौंपा

गया है। BRO के द्वारा ऄफगावनस्तान में ववपरीत पररवस्थवतयों के बावजूद 215 ककलोमीटर
डेलाराम-जरांज सड़क को सफलतापूवथक वनर्थमत कर वलया गया है।
सड़क सुरक्षा हेतु ईिाये गए कदम
सरकार सड़क पररवहन में सुरक्षा, दक्षता और वहनीयता में सुधार के वलए प्रयासरत है आस संबध
ं में
ईिाए गए कु छ कदम वनम्नवलवखत हैं:
 एक राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा नीवत को मंजरू ी दी गइ है, वजसमें जागरूकता फै लाने, सड़क सुरक्षा

सूचना डाटा बेस की स्थापना, सुरवक्षत सड़क ढांचे को प्रोत्सावहत करने, सुरक्षा कानूनों को लागू
करने जैसे वववभन्न नीवतगत ईपायों की रूपरे खा दी गइ है।
 4E - एजुकेशन, आं जीवनयररग (सड़कों और वाहनों दोनों) एन्फोसथमटें और आमरजेंसी के यर के

अधार पर समस्याओं से वनपटने के वलए मंत्रालय ने एक बहु-अयामी रणनीवत ववकवसत की हैl


सड़क सुरक्षा के मामले में नीवतगत फै सले लेने के वलए एक राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा पररषद का गिन
सवोच्च संस्था के रूप में ककया गया है।
 राष्ट्रीय राजमागथ पर ब्लैक स्पॉट (Black Spot) के सुधार और ऑटोमोबाआल सुरक्षा में सुधार के
वलए वनयामक ईपायों को ऄपनाने के वलए शीषथ प्राथवमकता दी गइ है। मंत्रालय ने राज्यों से ब्लैक
स्पॉट के सुधार के वलए प्रस्ताव भेजने और के न्द्रीय सड़क वनवध (CRF) के 10% भाग को सड़क
सुरक्षा ईपायों के वलए ईपयोग करने की ऄनुमवत दी गइ है।
 सड़क सुरक्षा को सड़क वडजाआलनग का एक ऄवभन्न ऄंग बना कदया गया है, राष्ट्रीय राजमागों के
चयवनत भागों के वलए सुरक्षा अवडट का अयोजन ककया जा रहा है। ऄकपकावलक साधनों के तौर
पर रं बल वस्ट्रप्स, जंटशनों पर चमकदार वस्टकर, साआनबोडथ / चेतावनी बोडथ का प्रयोग ककया जा
रहा है वजसमें साआनेज (संकेतकों) के साथ गवत प्रवतबंध अकद ऄंककत होते है। लंबी ऄववध के
ईपायों के तहत वाहनों के वलए ऄंडर-पास, बाय-पास, फ्लायओवर और 4-लेन का वनमाथण ककया
जा रहा है।

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 वषथ 2015-16 और 2016-17 के दौरान 1100 करोड़ रुपये की रावश सड़क सुरक्षा ईद्देश्यों के
वलए ईपलब्ध करायी गइ हैं। मंत्रालय ने राज्यों / संघ शावसत प्रदेशों को राज्य सड़क सुरक्षा
पररषद स्थावपत करने पर जोर देने को कहा हैl सड़क सुरक्षा में सुधार के वलए एक कायथ योजना

तैयार की गयी है तथा आसे एक िोस तरीके से लागू ककया गया हैl सड़क दुघथटनाओं को कम करने के

ईद्देश्य से एक वनवित, समयबि तरीके से पयाथप्त जनशवक्त की पहचान तथा ऄन्य संसाधनों को

अवंरटत करना हैl

 सड़क सुरक्षा को बढ़ावा देने के वलए मंत्रालय ने एक मीवडया ऄवभयान चलाया हैl सड़क सुरक्षा पर
काम करने के वलए गैर-सरकारी संगिनों की भूवमका में वृवि की गइ है।
 सभी वगों के वाहनों के वलए वाहन सुरक्षा मानकों का वनधाथरण ककया जा रहा हैl ट्रकों में बाहर

वनकली हुइ छड़ों को वनवषि ककया गया है; एंटी-लॉककग िेक वसस्टम (ABS) को भारी वाहनों पर

ऄवनवायथ बनाया गया है; कारों में कम-से-कम एक बच्चे की सीट कफट करने का प्रावधान ककया गया

है। कार क्रैश मानकों को 1 ऄप्रैल, 2018 से ऄवनवायथ तथा प्रभावी बनाया जाना है; 1 ऄप्रैल,

2018 से दुपवहया वाहनों के वलए ABS/CBS ऄवनवायथ है; दुपवहया वाहनों में ऄवनवायथ ककये गए

AHO (स्वचावलत हेडलाआट ऑन) ने ईन्हें सुरवक्षत बनाया है; सुरवक्षत और अरामदायक बसों के

वलए बस बॉडी कोड; चालकों और ऄन्य सड़क ईपयोगकताथओं के वलए सुरवक्षत के वबन हेतु ट्रक

बॉडी कोड; तीव्र गवत से बचने के वलए पररवहन वाहनों पर स्पीड गवनथसथ का ऄवनवायथ रूप से
लगाया जाना सुवनवित ककया गया है।
 वनभथया योजना के तहत अइटी सक्षम सुरक्षा ईपायों के साथ बसों का संचालन: मंत्रालय द्वारा
जारी ऄवधसूचना के ऄनुसार सभी लोक सेवा वाहनों (दो और तीन पवहया वाहनों, इ-ररटशा को

छोड़कर) को वाहन लोके शन ट्रैककग वडवाआस से सुसवित ककया जाना है, वजसमें एक या एक से
ऄवधक अपातकाल बटन हो।
 भारतीय पुल प्रबंधन प्रणाली (IBMS): देश में सभी पुलों की सूची तैयार करने के वलए IBMS को

ववकवसत ककया जा रहा हैl आसमें सभी पुलों की सरचनात्मक वस्थवत को मूकयांककत ककया जायेगा
वजस से समय-समय पर ईनकी मरम्मत का कायथ ककया जा सके ।
 चालकों के प्रवशक्षण और ऄनुसध
ं ान हेतु मॉडल संस्थान (ITDR): मंत्रालय ड्राआवर प्रवशक्षण और

ऄनुसंधान (ITDR) के मॉडल संस्थानों की स्थापना के वलए एक योजना का कक्रयान्वयन कर रहा

है, वजसके तहत प्रत्येक सेंटर के वलए 17.00 करोड़ रूपए, और छोटे क्षेत्रीय ड्राआलवग ट्रेलनग सेंटर

(RDTC) की स्थापना के वलए 5 करोड़ रूपए के ऄनुदान की व्यवस्था की गयी है। ITDR एक

प्रमुख संस्थान के रूप में ईभरे गा , जो प्रवशक्षकों को प्रवशवक्षत करे गा और छोटे संस्थानों का

मागथदशथन और वनगरानी भी करे गा l

 वाहनों की कफटनेस की जांच के वलए मॉडल स्वचावलत कें द्र: आस योजना के ऄंतगथत, मंत्रालय

प्रत्येक कें द्र के वलए 14.40 करोड़ रुपये का ऄनुदान प्रदान कर रहा है।

 प्रभावी ट्रॉमा के यर: NHAI राष्ट्रीय राजमागों के पूणथ हो चुके भागो में 50 km की दूरी पर
एम्बुलेंस प्रदान करता है। राष्ट्रीय राजमागों पर ववकास के वलए राष्ट्रीय राजमागथ दुघथटना राहत
सेवा योजना के तहत वववभन्न राज्य सरकारों को क्रेन और एम्बुलस
ें प्रदान की जाती हैं।

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 सड़क दुघथटना में पीवड़त व्यवक्तयों के कै शलेस ईपचार के वलए गुड़गांव-जयपुर, NH-8 के वडोदरा-

मुंबइ खंड और NH 33 के रााँची-रारगांव-महवलया खंड पर पायलट प्रोजेटट कक्रयावन्वत ककए गए


थे। ऄब आस योजना को स्वर्थणम चतुभज
ुथ के ईत्तर-दवक्षण तथा पूव-थ पविम कॉरीडोर (लगभग
13500 km) में 250 करोड़ रुपये की लागत से कक्रयावन्वत करने का कायथक्रम हैl

 गुड समाररटन (Good Samaritans) कदशावनदेश: सड़क दुघथटना पीवड़तों की मदद करने वाले

"ऄच्छे समाररटन" के ईत्पीड़न को रोकने के वलए मंत्रालय द्वारा कदशावनदेश जारी ककए गए हैं।
सवोच्च न्यायालय ने आन कदशावनदेशों को स्वीकार कर वलया है और राज्यों को कायाथन्वयन के वलए
वनदेश कदया है।

भारतीय पुल प्रबन्धन प्रणाली लॉवजवस्टक दक्षता संवधथन INAM-Pro+ की शुरूअत


(Indian Bridge कायथक्रम यह एक वेब अधाररत पोटथल
Management System: (Logistics Efficiency है आसे नेशनल हाइवे एंड
Enhancement Programme: आन्फ्रास्ट्रटचर डेवलपमेंट
IBMS)
LEEP) कॉरपोरे शन (NHIDCL)
IBMS का ववकास देश के समस्त
द्वारा ववकवसत ककया गया है
पुलों की एक ववस्तृत सूची तैयार आसका लक्ष्य ऄवसंरचनात्मक,
यह एक साझा मंच है वजसके
करने के वलए ककया जा रहा है प्रकक्रयात्मक और सूचना
ऄंतगथत सीमेंट खरीददारों और
ताकक ईनकी संरचना
की प्रौद्योवगकी (IT) के हस्तक्षेप के
ववक्रेताओं को एक साथ लाया
ऄवस्था का गंभीरता से अकलन
माध्यम से लागत, समय, जाएगा।
कर सही समय पर ईनकी
कन्साआनमेंट (माल) की ट्रैककग और यह INAM-PRO का एक
मरम्मत तथा पुनर्थनमाथण का
स्थानांतरणीयता में सुधार कर ऄपग्रेडड
े संस्करण है, वजसमें
कायथ संपन्न ककया जा सके ।
भारत में माल पररवहन में सुधार
आससे पररवहन दक्षता में सुधार वनमाथण सामग्री, ईपकरण /
लाना है।
होगा तथा दुघथटनाओं में कमी मशीनरी और सेवाएाँ जैसे
अएगी। आसके ऄंतगथत LEEP के तहत देश
खरीद/मजदूरी/नये-
देश में सभी पुलों को एक में माल ढु लाइ (freight पट्टे/वनमाथण सामग्री अकद
ऄवद्वतीय राष्ट्रीय पहचान प्रदान
movement) की मौजूदा शावमल हैं
की जायेगी
लॉवजवस्टक ऄवसंरचना और
आन्हें आनकी आं जीवनयररग
गंतव्य स्थानों के गहन परीक्षण के
ववशेषताओं एवं संरचनात्मक
वलए ववस्तृत पररयोजना ररपोटथ
घटकों के ऄनुसार वगीकृ त ककया
(वडटेकड प्रोजेटट ररपोटथ: DPRs-
जाता है तथा एक पुल वगीकरण
संख्या प्रदान की जाती है और सवे) पर कायथ प्रारं भ कर कदया है।
पुलों को स्ट्रटचरल रे रटग नंबर आस कायथक्रम की शुरुअत भारत
भी कदया जाता है। पररयोजना के तहत की गयी है।
पुलों को सामावजक-अर्थथक पुल 44 ऄलग-ऄलग माल गवलयारों
रे रटग संख्या भी दी जा रही है। (अर्थथक गवलयारों), ऄंतर
आससे क्षेत्रीय सामावजक अर्थथक
गवलयारों और फीडर मागों पर
गवतवववध में पुल के योगदान का
माल ढु लाइ की लागत और समय
महत्व वनधाथररत होगा।
की बचत के वलए यह ककया जा
रहा है।

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मोटर वाहन (संशोधन) ववधेयक, 2017

ऄप्रैल, 2017 में लोक सभा द्वारा मोटर वाहन (संशोधन) ववधेयक पाररत ककया गया था।

2017 के ववधेयक के प्रमुख प्रावधान

 थडथ पाटी आं श्योरें स: 2016 के संशोधन वबल में प्रदत्त थडथ पाटी आं श्योरें स की देयता पर सीमा को

2017 के ववधेयक में हटा कदया गया है।


 थडथ पाटी आं श्योरें स के तहत मुअवजे की मांग करने वाले दावेदारों को ऄंतररम राहत प्रदान करने
की योजना: 2017 का ववधेयक योजना के तहत दंड से संबवं धत प्रावधानों को हटा देता है।
 वहट एंड रन दुघटथ नाओं के वलए फं ड: घायल व्यवक्त के आलाज के वलए एक मोटर वाहन दुघथटना
कोष का गिन ककया गया है। वहट एंड रन के स में घायल व्यवक्त को मुअवजा या दुघथटना में व्यवक्त
की मृत्यु हो जाने पर ईसके ईत्तरावधकारी को मुअवजा प्रदान ककया जाएगा। 2016 के वबल में
सेस या कर के साथ फं ड को जमा करने की अवश्यकता को हटा कदया गया है।
 एग्रीगेटसथ के वलए कदशावनदेश: राज्य सरकारों को कें द्र सरकार द्वारा जारी कदशावनदेशों के ऄनुसार
एग्रीगेटसथ को लाआसेंस जारी करनी थी। वजसे 2017 के ववधेयक में वैकवकपक बनाया कदया गया।

 सड़क सुरक्षा के वलए एजेंसी: 2017 का ववधेयक, कें द्र सरकार द्वारा ऄवधसूवचत राष्ट्रीय सड़क

सुरक्षा बोडथ (सुद


ं र सवमवत द्वारा ऄनुशवं सत) का प्रावधान करता है।

 रोड वड़िाआन और आं जीवनयररग: 2017 ववधेयक में सड़कों के सुरक्षा मानकों के वडजाआन, वनमाथण,
या रखरखाव के वलए वजम्मेदार ककसी भी िे केदार या सलाहकार को राज्य/ कें द्र सरकार द्वारा
वनर्ददष्ट मानकों का पालन करने की अवश्यकता होगी।
 परे शानी मुक्त और त्वररत सेवाएं: ववधेयक ड्राआलवग लाआसेंस की वैधता बढ़ाने, ऑनलाआन लर्ननग
लाआसेंस प्राप्त करने और ड्राआलवग लाआसेंस जारी करने के वलए न्यूनतम योग्यता की अवश्यकता
को समाप्त करने का प्रस्ताव करता है।
 कड़े दंड : ऄपराध जैसे शराब पीकर गाड़ी चलाना, खतरनाक ड्राआलवग, चालकों द्वारा सुरक्षा
मानदंडों का पालन नहीं करने (जैसे हेलमेट नहीं पहनना अकद) हेतु पेनाकटी का प्रावधान रखा
गया है।आस वबल में नाबावलगों के माता-वपता के वलए तीन साल की जेल की सजा का प्रस्ताव है
तथा पीवड़त के मुअवजे में 10 गुना बढ़ोतरी का प्रावधान भी रखा गया है।
 अधार: ड्राआलवग लाआसेंस के अवेदन के वलए अधार अवश्यक है।
नए ववधेयक के लाभ
 एकीकृ त दृवष्टकोण: प्रत्येक चरण में दावयत्व तय ककया जा रहा है वजससे सड़क सुरक्षा सुवनवित
करने के वलए हर कोइ समान रूप से वजम्मेदार हो।
 वडवजटाआजेशन : आससे फजी ड्राआलवग लाआसेंस प्राप्त करना करिन हो जायेगा टयोंकक आसे अधार से
जोड़ा जाएगा। वाहनों का इ-पंजीकरण चोरी को हतोत्सावहत करने के साथ ही वाहन पंजीकरण के
मामले में एक राज्य से दूसरे राज्य में पोटेवबवलटी को भी प्रोत्सावहत वमलेगा।
 वनयमबि : कक्रयावन्वत हो जाने के पिात्, वबना परीक्षण के ड्राआलवग लाआसेंस प्राप्त करना ककसी

भी व्यवक्त, यहााँ तक की राजनेताओं के वलए भी ऄसंभव हो जायेगा।

 सड़क सुरक्षा: ववशेष रूप से ट्रैकफक ऄपरावधयों को वचवन्हत कर, कड़े दंड का प्रावधान और
प्राथवमकता वाले क्षेत्रों की पहचान करने से सड़क सुरक्षा में सुधार होगी।

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चुनौवतयां
 ट्रैकफक दुघथटनाओं को कम करने हेतु पुवलस बल को पेशेवर और जवाबदेह बनाने की अवश्यकता
है। वजसकी संख्या 2015 में 1,46,133 थी।
 राज्य सरकारों को संशोवधत कानून में वनधाथररत प्रशासवनक सुधारों के प्रारं वभक रोल-अईट के
वलए तैयार होना होगा, जैसे कक लनथर का ऑनलाआन लाआसेंस जारी करना।
 ऄनुसंधान से पता चलता है कक सख्त पेनकटी लगाने से सड़क वनयमों के पालन में कमी अती है।
IIT कदकली द्वारा जारी एक ररपोटथ भारत में सड़क सुरक्षा 2015 के ऄनुसार, कानून का वनवारक
प्रभाव दंड की तीव्रता और सख्ती पर वनभथर करने के साथ ही साथ ईकलंघन करने पर पकड़े जाने
की ऄवधक संभावना होने की ऄनुभूवत भी है।

3.5. नइ पहलें

3.5.1. भारतमाला

 आसे एक ऄम्िेला कायथक्रम के रूप में पररकवकपत ककया गया है। जो NHDP के ऄधूरे रह गए कायों
को समाप्त करे गा और नइ पहलों जैसे सीमा तथा आन्टरनेशनल कनेवटटववटी रोड्स, तटीय और
बंदरगाह कनेवटटववटी, राष्ट्रीय गवलयारों की दक्षता सुधार, अर्थथक गवलयारों और ऄन्य के ववकास
पर भी ध्यान कें कद्रत करे गा।

3.5.2. से तु भारतम कायथ क्र म

 यह कायथक्रम राष्ट्रीय राजमागों पर सुरवक्षत और वनबाथध यात्रा हेतु पुलों के वनमाथण के वलए है।
आसका लक्ष्य 2019 तक सभी राष्ट्रीय राजमागों को रे लवे क्रॉलसग से मुक्त करना है। आसके तहत
208 रे लवे ओवरविज एवं ऄंडरपास का वनमाथण ककया जायेगा। आसके ऄलावा 1500 पुराने और
जीणथ पुलों के प्रवतस्थापन / ववस्तार / सुदढ़ृ ीकरण के वलये कायथ ककया जायेगाl

3.5.3. कौशल ववकास

 सड़क पररवहन और राजमागथ मंत्रालय ने सड़क पररवहन और राजमागथ क्षेत्र में श्रमशवक्त की
अवश्यकताओं को पूरा करने के वलए कमथचाररयों के कौशल ववकास हेतु कदशावनदेश जारी ककए हैं।
आसके साथ रोजगार के ऄवतररक्त ऄवसरों का भी सृजन ककया जायेगा । कामगार प्रवशक्षण का
अयोजन प्रवशक्षण महावनदेशालय (DGT), कौशल ववकास एवं ईद्यम मंत्रालय, भारत सरकार
द्वारा ककया जाएगा। वनजी प्रमोटरों या राज्य सड़क पररवहन ऄंडरटेककग्स या SRTUs के सवोच्च
वनकाय, ऄथाथत एसोवसएशन ऑफ स्टेट रोड ट्रांसपोटथ ऄंडरटेककग्स (ASTRU) द्वारा संचावलत
ड्राआवर प्रवशक्षण के न्द्रों में चालकों को प्रवशक्षण प्रदान ककया जाएगा।

3.5.4. सड़क ककनारे सु ववधाएं

 राष्ट्रीय राजमागों पर यात्री पररवहन और माल ढु लाइ में ईकलेखनीय वृवि हुइ है। नतीजतन,
यावत्रयों और चालकों की सुववधा और सुरक्षा सुवनवित करने के वलए आन सड़कों पर पयाथप्त
सुववधाएं प्रदान करना प्राथवमकता है। आसवलए सड़क पररवहन और राजमागथ मंत्रालय (MoRTH)
ने राष्ट्रीय राजमागों के ककनारे “वे-साआड” सुववधाएं ववकवसत करने का वनणथय वलया है। आस तरह
की वे-साआड सुववधाओं (WSA) को 'राजमागथ हाट' के रूप में िांड ककया जाएगा। आन पररसरों में
कार और बस यावत्रयों तथा ट्रक ड्राआवरों के अराम करने की सुववधाएं ईपलब्ध कराइ जाएंगी।आस
प्रकार ड्राआवरों को थकान कम करने में मदद वमलेगी, वजससे सड़क सुरवक्षत होंगे और यात्रा भी
अरामदायक बनी रहेगी।

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3.5.5. राष्ट्रीय राजमागथ आं टर कने वटटववटी सु धार पररयोजना

 यह पररयोजना ववशेषकर वपछड़े क्षेत्रों में वस्थत राष्ट्रीय राजमागों पर ट्रैकफक के सुरवक्षत, सुचारू

और सभी मौसमों में अवाजाही सुवनवित करने के वलए है। कनाथटक, ओवडशा, वबहार, राजस्थान

और पविम बंगाल जैसे राज्यों में 1120 ककमी राष्ट्रीय राजमागों के ववकास को मंजूरी दी गइ है।

पररयोजनाओं को पहले ही लागू कर कदया गया है और 429 ककमी का कायथ पूरा हो चुका है।

जुलाइ, 2019 तक वसववल कायों के पूरा होने तथा जुलाइ, 2024 तक रखरखाव कायथ के पूरी होने
की अशा है।

3.5.6. लोवजवस्टटस क्षमता सं व धथ न कायथ क्र म (IEEP)

 आसका ईद्देश्य बुवनयादी ढांचा, प्रकक्रयात्मक और सूचना प्रौद्योवगकी (IT) के जररए माल ढु लाइ

पररवहन की लागत, समय, ट्रैककग और ऄंतरण में सुधार करना है। आन पाकों के द्वारा चार प्रमुख

सेवाओं के प्रदान करने की संभावना है: माल ढु लाइ और ववतरण, मकटी मोडल माल ढु लाइ,

भंडारण और वेयर हाईलसग, मूकय-वर्थधत सेवाएाँ जैसे कस्टम टलीयरें स।

 MoRTH ने 32,853 करोड़ की लागत से 15 स्थानों को मकटीमॉडल लॉवजवस्टटस पाकथ के

ववकास के वलए चुना है जहााँ पर सबसे ज्यादा माल ढु लाइ होती है। ये स्थान महाराष्ट्र, पंजाब,

गुजरात, राजस्थान, तवमलनाडु , कनाथटक और तेलंगाना राज्यों में है। राष्ट्रीय राजमागों के

लोवजवस्टक दक्षता में सुधार के वलए 44 अर्थथक कोररडोर, 170 फीडर मागों और ऄंतर-शहर के

गवलयारों, 35 लॉवजवस्टटस पाकथ और 191 चोक पॉआं ट्स की पहचान की गइ है।

3.5.7. राजमागथ वनमाथ ण नीवतयां

आस वषथ ककए गए प्रमुख नीवतगत हस्तक्षेप वनम्नवलवखत हैं:


 टोल-ऑपरे ट-ट्रांसफर (TOT) मॉडल का प्रयोग कर पररचालन राजमागथ पररसंपवत्तयों का

पुनचथक्रण: मॉडल को MoRTH द्वारा ववकवसत ककया गया है और ऄगस्त, 2016 में CCEA द्वारा

ऄनुमोकदत ककया गया है। मॉडल के ऄनुसार, सावथजवनक ववत्त पोवषत राष्ट्रीय राजमागथ

पररयोजनाओं के वलए टोल शुकक के संग्रह का ऄवधकार एक पूवथ वनधाथररत ररयायत ऄववध (30
वषथ) के वलए कदया जायेगा बशते िे केदारों द्वारा एकमुश्त रावश जमा की गयी हो।
 ऐसी पररयोजनाओं के O&M दावयत्वों को ररयायत ऄववध के पूरा होने तक ररयायत द्वारा ही
वहन ककया जाएगा। यह मॉडल वनजी क्षेत्र की दक्षता के माध्यम से राष्ट्रीय राजमागथ पररयोजनाओं
में लंबी ऄववध के O&M के वनमाथण की सुववधा देता है। यह बैंकों के ऄवतररक्त घरे लू और

ऄंतरराष्ट्रीय दीघथकावलक संस्थागत वनवेशकों, जैसे पेंशन फं ड, बीमा फं ड, वेकथ फं ड अकद के वलए

बड़े वनवेश का ऄवसर है। प्रारं भ में, लगभग 75 सावथजवनक ववत्त पोवषत राष्ट्रीय राजमागथ

पररयोजनाएं वजनकी कु ल लम्बाइ लगभग 4,500 ककमी और वार्थषक टोल राजस्व संग्रह लगभग

2,700 करोड़ रुपये हैं आस मॉडल के ऄनुप्रयोग हेतु पहचानी गइ हैं। मॉडल ररयायत समझौते

(MCA) का ववकास ककया गया है और पररयोजनाओं के वलए बोली लगाने का पहला दौर वनकट
भववष्य में शरू ककया जाएगा।

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 हाआविड एन्युटी मॉडल (HAM): आस मॉडल के ऄनुसार पररयोजना लागत का 40% भाग वनमाथण

ऄववध के दौरान वनजी डेवलपर को 'वनमाथण सहायता' के रूप में सरकार द्वारा प्रदान ककया जायेगा

और बकाया रावश पर ब्याज के साथ पररचालन ऄववध के दौरान 60% शेष रावश का भुगतान

ककया जायेगा। देय ब्याज दर बाजार दर से जुड़ी होगी (बैंक दर + 3.00%)। सरकार द्वारा

ररयायत दरों के वलए O&M भुगतान के ऄलग-ऄलग प्रावधान हैं। वनजी पाटी को यातायात और

मुद्रास्फीवत जोवखम नहीं झेलना पड़ेगा। यह मॉडल आस क्षेत्र में PPP को पुनजीववत करने में सफल

रहा है, जो आस तरह के पररयोजनाओं के वलए बाजार द्वारा कदखाइ गयी रूवच से स्पष्ट है। आस

मॉडल के ऄंतगथत ऄब तक 29,450 करोड़ रुपये की 33 राष्ट्रीय राजमागथ पररयोजनाओं (कु ल

1,800 ककमी) का अवंटन ककया जा चुका है। आसके ऄवतररक्त कइ और पररयोजनाएं बोली के
ऄवन्तम चरण में हैं।

3.6. हररत प्रयास

 टैटसी नीवत कदशावनदेश: सड़क पररवहन और राजमागथ मंत्रालय द्वारा गरित सवमवत ने टैटसी
परवमट से संबंवधत मुद्दों की समीक्षा, शहरी गवतशीलता को बढ़ावा देने के वलए टैटसी नीवत के
कदशा-वनदेशों के प्रस्ताव पर ऄपनी ररपोटथ पेश की। सवमवत ने वसफाररश की है कक ऐप बेस्ड
प्लेटफामथ के द्वारा शहर में टैटसी को चलाने की ऄनुमवत दी जानी चावहए। नीवतगत ऄनुशस
ं ाएं यह
भी सुवनवित करती है कक बड़े एग्रीगेटसथ पारं पररक कै ब को हावन न पंहुचा सकें । नीवत का मुख्य
ईद्देश्य अम जनता के वलए सुरवक्षत और सस्ती सवारी सुवनवित करना है ताकक शहरों में भीड़
और प्रदूषण को कम करने में सहायता वमल सके । आस नीवत में यह भी वसफाररश की गयी है कक
एग्रीगेटसथ द्वारा ईपयोग ककये जाने वाले ऐप आलेटट्रॉवनटस और सूचना प्रौद्योवगकी मंत्रालय द्वारा
ऄवधकृ त एजेंसी द्वारा मान्यता प्राप्त हो। ईम्मीद की जाती है कक यह नीवत टैटसी ईद्योग के स्वस्थ
ववकास में सहायक होगी। यह नीवत मात्र वसफाररशी है परन्तु ये ववस्तृत वनयमों को तैयार करने में
राज्यों के वलए एक ववशेष रूपरे खा प्रदान करने में मदद करे गी।
 वाहनों का अधुवनकीकरण कायथक्रम: पुराने, भारी और मध्यम वावणवज्यक वाहनों, जो ऄवधकतम

प्रदूषण करते हैं, के प्रवतस्थापन हेतु 'वाहन बेड़े के अधुवनकीकरण कायथक्रम' पर एक कॉन्सेप्ट नोट

MoRTH की अवधकाररक वेबसाआट पर प्रदर्थशत ककया गया है। MoRTH वेबसाआट पर आसे

संबंवधत मंत्रालय, ववभागों और ऄन्य वहतधारकों की सूचना और रटप्पवणयों के वलए डाला गया है।
आस नीवत में पुराने वाहनों को वनम्नवलवखत ववत्तीय लाभ का प्रस्ताव है : वाहन का स्क्रैप मूकय और
मूल ईपकरण वनमाथता (OEM) तथा सरकार के द्वारा ववत्तीय प्रोत्साहन ।

 MoRTH के द्वारा 1 ऄप्रैल 2020 से सभी वाहनों के वलए भारत मानक - VI (BS -VI) ईत्सजथन
मानदंडों के कायाथन्वयन को ऄवनवायथ रूप प्रदान करने हेतु एक ऄवधसूचना जारी कर दी है। देश में
वाहन प्रदूषण से वनपटने हेतु यह एक महत्वपूणथ कदम है।
 भारत फ्लेटस - फ्यूल ऑटोमोबाआकस के वलए तैयार : भारत के द्वारा पेट्रोल के साथ वमवश्रत
इथेनॉल जैसे फ्लेटस-फ्यूल के ईपयोग के वलए सभी अवश्यक कदशावनदेश वनर्थमत कर वलए गये हैं।
 वाहन वनमाथताओं को ईनके द्वारा बनाये गए प्रत्येक वाहन के ईत्सजथन और शोर के स्तर के बारे में
जानकारी देना ऄवनवायथ: सभी प्रकार के मोटर वाहन वनमाथताओं को इ-ररटशा और इ-काट्सथ
सवहत, सभी वनर्थमत वाहनों के ईत्सजथन के स्तर के बारे में ववस्तृत जानकारी प्रदान करनी होगी।

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 आथेनॉल-ईंधन चावलत बस: फ्लेटसी फ्यूल आथेनॉल E85 और ED95 के वलए जन ईत्सजथन मानकों

के वलए ऄवधसूचना जारी की गइ थी। यह ऄवधसूचना वाहन वनमाथताओं को बायो-आथनॉल E85

और ED95 पर चलने वाले वाहनों का वनमाथण करने में सक्षम बनाएगी।

 बायो- CNG और बायो-डीजल : बायो-CNG पर चलने वाले वाहनों के परीक्षण और वनकास


ईत्सजथन के वलए वनयमों की ऄवधसूचना जारी की गइ है। आस ऄवधसूचना के साथ ही देश में वाहन
वनमाथता बायो-CNG द्वारा चावलत वाहनों का वनमाथण और ववक्रय कर सकते हैं। बायो-डीजल

(B100) ईंधन चावलत वाहनों के वलए ईत्सजथन मानकों की एक ड्राफ्ट ऄवधसूचना भी तैयार की
गइ है।
 मौजूदा प्रदूषण वाहनों की आलेवटट्रक हाआविड और आलेवटट्रक वाहन में रे ट्रो कफरटग की ऄनुमवत:
वनयमों को ऄंवतम रूप कदया जा चुका है और तकनीक का प्रदशथन सफलतापूवक
थ पूरा ककया जा
चुका है।
 राष्ट्रीय हररत राजमागथ पररयोजना: ग्रीन हाइवे (वृक्षारोपण, प्रवतरोपण, सौंदयीकरण और

रखरखाव) पॉवलसी 2015 के एक भाग के रूप में, 1 जुलाइ, 2016 को लगभग 1,500 ककमी

राष्ट्रीय राजमागों पर 300 करोड़ रुपये की लागत से प्रारं वभक वृक्षारोपण ऄवभयान की शुरूअत

की गयी। नीवत का ईद्देश्य समुदायों, ककसानों, गैर-सरकारी संगिनों, वनजी क्षेत्र, सरकारी
एजेंवसयों एवं वन ववभाग के सहयोग से पयाथवरण ऄनुकूल राष्ट्रीय राजमागों के ववकास की
पररककपना की गइ है। यह नीवत कोररडोर के सौंदयथकरण, वायु प्रदूषण के प्रभाव को कम करने
और वाहनों से अने वाले चमक को कम कर दुघथटनाओं में कमी लाने में मदद करे गी। सड़क के
ककनारे वृक्षारोपण की गुणवत्ता सुवनवित करने हेतु मंत्रालय द्वारा सभी नए राजमागथ
पररयोजनाओं की कु ल पररयोजना लागत का 1 प्रवतशत ग्रीन फं ड के वलए ऄलग रखने का वनणथय
ककया गया है। वजसका ईपयोग वृक्षारोपण के वलए ककया जाएगा। वनीकरण से लगभग वार्थषक
रूप से 12 लाख मैरट्रक टन काबथन को कम करने का ऄनुमान है।

 'ऄडॉप्ट ए ग्रीन हाइवे प्रोग्राम’ जुलाइ, 2016 में लांच ककया गया था। राष्ट्रीय राजमागों के साथ

लगी भूवम पर हररत गवलयारे के ववकास हेतु एक सवम्मवलत प्रयास है। यह कायथ वनगमों,

सावथजवनक क्षेत्र आकाआयों, सरकारी संगिनों और ऄन्य संस्थानों के साथ वमलकर एवेन्यू, मध्यस्थ
और ऄन्य असपास में ईपलब्ध भूवम खंडों पर वृक्षारोपण एवं संबि गवतवववध के माध्यम से ककया
जाता है।
 'ककसान हररत राजमागथ योजना' एक पायलट योजना है वजसके तहत ककसानों को जोड़ने एवं
अस-पास के समुदायों के वलए वैकवकपक अजीववका ववककप प्रदान करने के माध्यम से राजमागों
के वतथमान ‘राआट ऑफ वे’ के परे हररत क्षेत्र का ववस्तार ककया जाना है।

 ‘राष्ट्रीय हररत राजमागथ वमशन मोबाआल एप का भी शुभारं भ ककया गया है। यह एप प्रबंधन को
वास्तववक समय डेटा के साथ सभी पररयोजनाओं की वनगरानी में सक्षम बनाएगा। यह एप
बाधाओं की शीघ्र पहचान और पररयोजनाओं के शीघ्र एवं सफल कक्रयान्वयन सुवनवित करने में
मदद करे गा।
 सरकार की इ-ररटशा नीवत ने प्रदूषण को काफी हद तक कम करने में मदद की है। इ-गावड़यां और
इ-ररटशा को परवमट की अवश्यकताओं से मुक्त कर कदया गया है।

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3.7. इ-पहलें

 इ-टोललग: टोल प्लाजा पर ट्रैकफक जाम को हटाने, वाहनों के वनबाथध प्रवाह और टोल संग्रह

सुवनवित करने के वलए, सरकार ने एक राष्ट्रव्यापी आलेटट्रॉवनक टोल संग्रह का वनमाथण ककया है।

आसे EPC जनरल-2, ISO के ऄनुरूप रे वडयो फ्रीक्वेंसी अआडेंरटटी वडटेटशन (RFID) के अधार पर

वडजाइन ककया गया है।18000-6C मानक FASTags के माध्यम से टोल का आलेटट्रॉवनक संग्रह
प्रदान करता है।
 ववमुद्रीकरण के बाद इ-टोललग को एक बड़े पैमाने पर प्रोत्साहन वमला। नवंबर 2016 में टोल संग्रह

के शुरुअती वनलंबन पिात्, जब 3 कदसम्बर से टोललग की शुरूअत हुइ तो राष्ट्रीय राजमागों के

सभी टोल प्लाजा पर स्वाआप मशीनों, इ पसथ और फास्टैग के माध्यम से शुकक भुगतान हेतु ववस्तृत

व्यवस्था की गइ थी। ऄटटू बर से नवंबर 2016 में आलेटट्रॉवनक माध्यम से शुकक का संग्रहण लगभग

5 प्रवतशत था। कदसंबर के मध्य तक आसमें लगभग 11 प्रवतशत की वृवि हो गयी।

 PMIS: वववभन्न एजेंवसयों द्वारा वनष्पाकदत 2000+ पररयोजनाओं को वडवजटल रूप से मॉवनटर
करने के वलए एक ऑनलाआन ऄत्याधुवनक व ररयल टाआम प्रोजेटट मॉवनटररग एंड आं फॉमेशन
वसस्टम (PMIS) ववकवसत ककया गया है। PMIS में प्रत्येक पररयोजना के वलए ववस्तृत डैशबोडथ
ईपलब्ध है और पररयोजना की समीक्षा के वलए अवश्यक कस्टम ररपोटथ तैयार ककए गए हैं। कायथ
प्रगवत की वनयवमत वनगरानी के वलए सड़क पररवहन और राजमागथ मंत्री के वलए ववशेष डैशबोडथ
ववकवसत ककए गए हैं। संबंवधत PIUs के द्वारा प्रोजेटट की जानकारी हर महीने ऄपडेट की जाती

है और PMIS प्रणाली द्वारा ईत्पन्न ररपोटों के अधार पर वररष्ठ ऄफसरों की बैिक का अयोजन

होता है। IEIAE ररपोट्सथ जैसे महत्वपूणथ दस्तावेजों को वसस्टम में सूचीबि ककया गया है और ईन्हें
अवश्यकतानुसार डाईनलोड ककया जा सकता है।
 आन्फ्राकोन आन्फ्रास्ट्रटचर कं सकटेंसी फमों और मुख्य कार्थमकों के वलए एक राष्ट्रीय पोटथल है। यह
पोटथल सड़क आं जीवनयररग और वनमाथण क्षेत्र में काम कर रहे परामशथ कं पवनयों तथा डोमेन
ववशेषज्ञों और प्रोजेटट की तैयारी और पयथवेक्षण में लगे प्रमुख कमथचाररयों के बीच एक पुल के रूप
में कायथ करता है । पोटथल परामशथ फमों और प्रमुख कर्थमयों के क्रेडेंवशयकस को होस्ट करता है। यह
डेटा सत्यापन और शुिता के वलए अधार और वडजी-लॉकर के साथ सम्बि हैं। 474 परामशथ फमथ

और वववभन्न श्रेवणयों के तहत 2387 प्रमुख कमथचारी पहले से ही आस पोटथल के साथ पंजीकृ त हैं।

 INAM-PRO आं फ्रास्ट्रटचर और सामग्री प्रदाता के वलए एक वेब-अधाररत एवप्लके शन

(www.inampro.nic.in) के रूप में ववकवसत ककया गया है। यह एक ऐसा वेब बेस्ड मार्दकट प्लेस
है जो सामग्री प्रदाताओं और भावी खरीदारों को साझा मंच पर एक साथ लाता है। पररयोजना
वनष्पादन स्थानों के असपास प्रवतयोगी दरों पर सीमेंट की पेशकश करने वाली पंजीकृ त सीमेंट
कं पवनयों के साथ सीमेंट के अदेशों के वलए कें द्र/राज्य ववत्त पोवषत सड़कों और राजमागों और पुल
वनमाथण पररयोजनाओं को कायाथवन्वत करने में लगे िे केदारों और सीमेंट खरीदारों की सुववधा के
वलए माचथ 2015 में आस पोटथल की शुरुअत की गयी है। सीमेंट क्षेत्र में INAM-PRO की सफलता

को देखते हुए, स्टील और स्टील स्लैग जैसी ऄन्य सामवग्रयों को भी आस मंच पर लाया गया है ताकक
यह बुवनयादी सुववधा प्रदाताओं के वलए एक व्यापक इ-माके ट प्लेस बन सके ।

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 वडवजटल आं वडया के ऄंतगथत ड्राआलवग लाआसेंस और पंजीकरण प्रमाणपत्रों को वडवजलॉकर स्कीम से
जोड़ा गया है। आसके बाद लोगों को ऄब ऄपने RCs की हाडथ कॉपी और ड्राआलवग लाआसेंस की

अवश्यकता नहीं होगी। आसके बजाय, वे वडजी-लॉकर मोबाआल ऐप के माध्यम से ऄपने मोबाआल
फोन पर ईसी की वडवजटल प्रवतयां एटसेस कर सकते हैं। ड्राआलवग लाआसेंस और वाहन पंजीकरण
दस्तावेज ऄब सीधे वडवजटल स्वरूप में व्यवक्तयों के वडजी लॉकर में जारी ककए जा सकते हैं। आन
वडवजटल प्रवतयों को ऄन्य ववभागों के साथ पहचान और पता प्रमाण पत्र के रूप में साझा ककया जा
सकता है। यातायात पुवलस के द्वारा आसका प्रयोग स्पॉट वेररकफके शन के वलए ककया जायेगा। लोगों
के वलए सुववधाजनक होने के साथ, आससे दस्तावेजों की प्रामावणकता के साथ साथ प्रशासवनक
बोझ को कम करने में भी मदद वमलेगी।

3.8. पड़ोसी दे शों के साथ सड़क कने वटटववटी पररयोजनाएं

 भारत के द्वारा तामू-ककगोन-कालेवा (Tamu-Kyigone-Kalewa; TKK) सड़क (149.70

ककमी) पर 69 पुलों और म्यांमार में भारत-म्यांमार-थाइलैंड (IMT) वत्रपक्षीय राजमागथ के कालेवा

और यागी ऄनुभाग के बीच 120.74 ककमी सड़क वनमाथण का ववत्तपोषण ककया जा रहा है।
वत्रपक्षीय राजमागथ भारत के मोरे ह (मवणपुर) से शुरू होकर म्यामांर से होते हुए थाइलैंड के मेइ
सोत (Mae Sot) तक जाता है। भारतीय सीमा सड़क संगिन के द्वारा मोरे ह (भारत) / तामु

(म्यांमार) से म्यांमार में वस्थत कालेवा को जोड़ने वाली 130 ककमी लम्बी सड़क का वनमाथण पहले

ही ककया जा चुका है। तामू-ककगोन-कालेवा सड़क खंड (149.70 ककमी) में 69 पुलों का वनमाथण

और म्यांमार में IMT वत्रपक्षीय राजमागथ के कालेवा-यागी सड़क खंड (120.74 ककमी) के वनमाथण /
ईन्नयन की वनववदा को ऄंवतम रूप प्रदान करने हेतु कं सकटेंट्स की वनयुवक्त एवं ऄनुबंध का अबंटन
ककया जा चुका है।
 BBIN कॉरीडोर: LEEP पर हुए ऄध्ययन के ऄनुसार, एक रणनीवतक पहल “बांग्लादेश-भूटान-

आं वडया-नेपाल (BBIN) कॉरीडोर” का ववकास ववचाराधीन है। आसका लक्ष्य अर्थथक सहयोग और

क्षेत्रीय कनेवटटववटी में सुधार करना है। BBIN क्षेत्र के भीतर सड़क संपकथ का ईन्नयन, फीडर मागों
का ववकास और लैंड पोटथ के ईन्नयन जैसे वववभन्न योजनाएं ववचाराधीन हैं।
3.9. राके श मोहन सवमवत- राष्ट्रीय पररवहन ववकास नीवत सवमवत (NTDPC) की वसफाररशें
 सड़क को पृथक नहीं बवकक पररवहन के एक एकीकृ त मकटी मोडल वसस्टम के भाग के रूप में देखा
जाना चावहए। रे लवे के डेवडके टेड फ्रेट कॉररडोर और रे लवे नेटवकथ के ऄन्य क्षेत्रों, बंदरगाहों, हवाइ

ऄड्डों, SEZ, रसद के न्द्रों, प्रमुख पयथटन कें द्रों और पड़ोसी देशों के साथ कनेवटटववटी को ध्यान में
रखते हुए प्राथवमक सड़क नेटवकथ योजना का ववकास करना चावहए।
 PMGSY के वतथमान कायथक्रम का ववस्तार सभी बवस्तयों की सावथभौवमक कनेवटटववटी को
समयबि तरीके से प्राप्त करने के वलए ककया जाना चावहए।
 ऄंतरराष्ट्रीय स्तर और मानकों के ऄनुरूप ऑटो ईद्योग, खासकर वावणवज्यक वाहन क्षेत्र में

प्रौद्योवगकी के सतत ईन्नयन की अवश्यकता है। आसका लक्ष्य बेहतर सुववधा, ईत्पादकता, उजाथ

दक्षता, सुरक्षा और ईत्सजथन मानकों की प्रावप्त होनी चावहए।

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 राजमागो क्षेत्र में वनजी वनवेश वावणवज्यक रूप से व्यवहायथ और ईच्च यातायात घनत्व वाले मागों
तक ही सीवमत रहेगा। ऄतः सावथजवनक ववत्तपोषण की ईपलब्धता को बढ़ाने का प्रयास वववेकपूणथ
होगा।

 राष्ट्रीय राजमागों और राज्य राजमागों के मौजूदा नेटवकथ का ववस्तार औद्योवगक हब, SEZ,

बंदरगाहों, पयथटन कें द्रों और ऄंतराथष्ट्रीय मागों जैसे एवशयाइ राजमागों और यूरोपीय रोड नेटवकथ के

ववकास के साथ ककया जा सकता है।

 राज्य राजमागों की क्षमता में वृवि के वलए प्रत्येक राज्य को NHDP की तजथ पर कायथक्रमों का

वनमाथण और कायाथवन्वत करना चावहए।

 CRF के स्रोतों में जाने वाली 2 रुपये प्रवत लीटर की वनवित रावश (वजसे वषथ 2005 में तय ककया

गया था) की वतथमान व्यवस्था के स्थान पर ऐड वलोरे म (ad valorem) के अधार पर ईंधन पर

सेस अरोवपत ककया जा सकता है। CRF स्रोतों में वृवि हेतु आसे 4 रुपये प्रवत लीटर तक बढ़ाया जा

सकता है।
 राष्ट्रीय राजमागों पर यूजर फी (टोल) की मौजूदा नीवत की समीक्षा करने की अवश्यकता है। प्रमुख

सड़कों (NH और SH) के संबंध में, कम से कम 2-लेन सड़कों को स रकारी बजट द्वारा पोवषत

ककया जाये तथा वजसमें कोइ भी प्रत्यक्ष यूजर फी न हो। बहु-लेन राजमागों, वनयंवत्रत तथा

ऄवनयंवत्रत, साथ ही सुधार पररयोजनाएं जैसे पुल, सुरंगों, फ्लाइओवर, बायपास जैसे स्थानों पर

टोल लगाना चावहए।

 सड़क योजनाओ के वनमाथण में बंदरगाहों, हवाइ ऄड्डों, खनन क्षेत्रों और ववद्युत संयत्र
ं ों के ववकास

की ववशेष जरूरतों को ध्यान में रखना चावहए।


 राज्यों को ईपयोगकताथ संतवु ष्ट सवेक्षण के माध्यम से नागररकों को प्रोत्सावहत करना चावहए और
ईपयोगकताथ की राय जाननी चावहए।

 एक समर्थपत सड़क वडजाआन संस्थान की स्थापना की जानी चावहए, जो MoRTH के तत्वाधान में

कायथ करे । प्रत्येक राज्य PWD और ग्रामीण सड़क एजेंसी में आसी तरह की संस्थाएं स्थावपत की

जानी चावहए।

 MoRTH को सभी राष्ट्रीय राजमागों और राष्ट्रीय एटसप्रेसवे को NHAI को सौंप देना चावहए और

के वल वनयोजन, नीवत और बजट कायों को देखना चावहए।

 सुंदर सवमवत द्वारा ऄनुशंवसत सड़क सुरक्षा और यातायात प्रबंधन बोडथ की स्थापना।

4. रे ल वे
 भारतीय रे लवे ने 1853 में पहली बार मुंबइ से िाणे तक 34 ककमी की यात्रा तय की थी। अज

भारतीय रे लवे ववश्व के सबसे बड़ा वनयोक्ता में से हैं और 2015-16 के ऄंत तक आसमें 1.331

वमवलयन कमथचारी वनयुक्त हैं। वतथमान में भारतीय रे लवे एवशया के सबसे बड़े रे ल नेटवकों में से
एक है। साथ ही एकल सरकारी स्वावमत्व वाला ववश्व का दूसरा सबसे बड़ा रे ल नेटवकथ है।

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वचत्र: भारतीय रे ल- एक नजर
 भारतीय रे लवे के ऄत्यंत ववशाल अकार के कारण रे ल प्रबंधन तंत्र पर बहुत ऄवधक दबाव पड़ता
है। ऄत: प्रशासवनक सुववधा एवं रे लों के पररचालन की सुववधा की दृवष्ट से भारतीय रे लवे को 17

क्षेत्र या जोन्स में ववभक्त ककया गया है, वजन्हें पुनः 68 वडवीजनों में ववभावजत ककया गया है। रे लवे

मंत्रालय के वनयंत्रण में तेरह ईपक्रम भी हैं l

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रे लवे जोन तथा ईनके मुख्यालय वनम्नवलवखत हैं;
1. ईत्तर रे लवे : कदकली
2. पूवोत्तर रे लवे : गोरखपुर
3. पूवोत्तर सीमांत रे लवे : गुवाहाटी
4. पूवथ रे लवे : कोलकाता
5. दवक्षण-पूवथ रे लवे : कोलकाता
6. दवक्षण-मध्य रे लवे : वसकं दराबाद
7. दवक्षण रे लवे : चेन्नइ
8. मध्य रे लवे : मुंबइ
9. पविम रे लवे : मुंबइ
10. दवक्षण-पविम रे लवे : हुबली
11. ईत्तर-पविम रे लवे : जयपुर
12. पविम-मध्य रे लवे : जबलपुर
13. ईत्तर-मध्य रे लवे : आलाहाबाद
14. दवक्षण-पूव-थ मध्य रे लवे : वबलासपुर
15. पूवथ तटीय रे लवे : भुवनेश्वर
16. पूव-थ मध्य रे लवे : हाजीपुर
17. कोंकण रे लवे : नवी मुंबइ
रे लवे पटरी की चौड़ाइ के अधार पर भारतीय रे ल को तीन वगों में ववभक्त ककया जाता है:

वचत्र : गेज के अधार पर रे लवे लाआन का वगीकरण

रे ल की पटररयों के मध्य की गेज की लम्बाइ (Km) कु ल रे लमागों की


गेज दूरी (मीटर में) लम्बाइ का प्रवतशत
(31 Oct, 2015 तक)

बड़ी लाआन (िॉड 1.676 86,526 79.59


गेज)

मीटर लाआन (मीटर 1 18,529 17.05


गेज)

छोटी लाआन (नैरो 0.762 या 0.610 3,651 3.36


गेज)

तावलका: गेज के अधार पर वववभन्न रे लवे लाआनें एवं ईनकी लम्बाइयााँ

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भारत में रे लमागों का ववतरण:
 सघन रे ल नेटवकथ वाले क्षेत्र: ईत्तरी मैदानी क्षेत्र
 मध्यम रे ल नेटवकथ वाले क्षेत्र: प्रायद्वीपीय क्षेत्र
 ववरल रे ल नेटवकथ वाले क्षेत्र: वहमालयी क्षेत्र, ईत्तर-पूवी भारत एवं पविम भारत

कोंकण रे ल: वषथ 1998 में कोंकण रे लवे का वनमाथण ककया गया। यह भारतीय रे ल की एक महत्वपूणथ

ईपलवब्ध है। आस रे लमागथ की लम्बाइ 760Km है। यह महाराष्ट्र के रोहा को कनाथटक के मंगलौर से
जोड़ता है। उबड़-खाबड़ पहाड़ी धरातल एवं ऄनेक नदी घारटयों वाले देश के पविमी तटीय प्रदेश में
रे लमागथ का वनमाथण करना लगभग ऄसंभव कायथ प्रतीत होता था। यह रे लमागथ 146 नकदयों एवं धाराओं

तथा 2000 पुलों एवं 91 सुरंगों को पार करता है।

मेट्रो रे ल: महानगरों में यातायात को सुव्यववस्थत करने के वलए मेट्रो रे ल का ईपयोग ककया जाता है।

भारत में मेट्रो रे ल का अरम्भ 1984-1985 में कलकत्ता मेट्रो रे लवे के साथ हुअ। आसी क्रम में कदकली में

24 कदसम्बर, 2002 को शाहदरा से तीस हजारी के बीच पहली मेट्रो ट्रेन चलाकर मेट्रो सेवा का शुभारं भ
ककया गया। कदकली में मेट्रो ने पररवहन व्यवस्था में क्रांवतकारी पररवतथन ला कदया है। कदकली के ऄनुभव से
प्रेररत होकर कइ ऄन्य राज्य सरकारों ने जयपुर, मुंबइ, लखनउ एवं बंगलोर, हैदराबाद अकद शहरों में
मेट्रो रे ल का अरम्भ ककया है।

4.1. रोललग स्टॉक

गत वषों में, भारतीय रे लवे ने देश में न के वल रोललग स्टॉक (लोकोमोरटव, वैगन, फ्रेट ट्रेन) के ईत्पादन
में अत्मवनभथरता प्राप्त की है बवकक ऄन्य देशों और गैर-रे लवे ग्राहकों को भी रोललग स्टॉक की अपूर्थत भी
की है।
'मेक आन आं वडया' कायथक्रम की सफलता की कदशा में यह एक महत्वपूणथ कदम हैं।

 भारत में दो लोको-कारखानों की स्थापना के समझौते के पिात् लगभग 40,000 करोड़ रुपये की

वनववदायें राजधानी और शताब्दी सेवाओं की ट्रेन सेटों के वलए अमंवत्रत की गयी है; आससे वतथमान

खरीद में 30% की वृवि होगी।

 ईत्पादन आकाआयों और वकथ शॉप का घरे लू और ऄंतरराष्ट्रीय बाजारों के वलए 2020 तक वववनमाथण

ईत्पादों के माध्यम से करीब 4,000 करोड़ रुपये का वार्थषक राजस्व ईत्पन्न करने का ईद्देश्य है।
भारतीय रे लवे की वववनमाथण आकाआयां वनम्नवलवखत हैं:
 डीजल लोकोमोरटव वटसथ, वाराणसी
 वचतरं जन लोकोमोरटव वटसथ
 रे ल कोच फै टटरी (RCF), कपूरथला

 आं टीग्रल कोच फै टटरी (ICF),चेन्नइ

 रे ल व्हील फै टटरी (RWF),बैंगलोर

 डीजल लोको अधुवनकीकरण वटसथ,परटयाला

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4.2. डे डीके टे ड फ्रे ट कॉरीडोर (DFC S )

डेडीके टेड फ्रेट कॉरीडोर (DFCS)


 डेडीके टेड फ्रेट कॉरीडोर पररयोजना को भारतीय रे ल के माल ढु लाइ पररचालन में पररवतथन लाने
के वलए लाया गया है। आस पररयोजना के तहत रे ल द्वारा माल ढु लाइ की सुववधा के वलए ऄलग से
पटररयााँ वबछाकर माल के त्वररत पहुाँच के साथ-साथ यात्रा के समय अने वाली बाधाओं का भी
समाधान ककया गया है।
 पूवी कॉररडोर के हावड़ा-कदकली तथा पविमी कॉररडोर के मुब ं इ-कदकली के मौजूदा ट्रंक मागथ
ऄत्यवधक संतप्त
ृ हैं और ईनकी क्षमता का ईपयोग 115% से 150% के मध्य है।
 उजाथ की बढती मांग से ऄत्यवधक मात्रा में कोयले की अवश्यकता महसूस की गयी है। ढांचागत
वनमाथण तथा बढ़ते हुए ऄंतराथष्ट्रीय व्यापार से डेवडके टेड फ्रेट कॉररडोर की अवश्यकता में वृवि हुइ
है।
 दो चरणों में यह ऄपने दो डेडीके टेड फ्रेट कॉररडोर के पूरा होने के साथ ऄथथव्यवस्था में महत्वपूणथ
बदलाव लाने का दावा करता है। ये दो डेवडके टेड फ्रेट कॉरीडोर वनम्नवलवखत हैं:
o पविमी डेवडके टेड फ्रेट कॉररडोर, (दादरी, यू.पी. से जवाहरलाल नेहरू पोटथ, मुंबइ- 1,468
km)
o पूवी डेवडके टेड फ्रेट कॉररडोर, (लुवधयाना पंजाब से दनकु नी पविम बंगाल- 1,760 km)
 रे ल मंत्रालय के तहत 2006 में स्थावपत डेवडके टेड फ्रेट कॉररडोर कारपोरे शन ऑफ आं वडया
वलवमटेड (DFCCIL) द्वारा वनष्पाकदत होने के बाद, दो समर्थपत फ्रेट कॉररडोर स्वर्थणम चतुभज
ुथ के
पविमी और पूवी रे ल मागथ के यातायात को सुगम बनायेंगेl साथ ही साथ ये कॉररडोर नइ
औद्योवगक गवतवववध और मकटी मॉडल वैकयू एडेड सेवाओं से लैस सर्थवस हब्स को प्रोत्सावहत
करें गlे
 तीन नए फ्रेट कॉरीडोर ईत्तर-दवक्षण में कदकली से चेन्नइ, इस्ट-वेस्ट में खड़गपुर से मुंबइ और इस्ट
कोस्ट में खड़गपुर से ववजयवाड़ा वनर्थमत करने का प्रस्ताव है l PPP सवहत नवीन ववत्तपोषण
स्रोतों द्वारा संरचना, प्रदान करने का वनणथय और समयबि कायाथन्वयन सुवनवित ककया जायेगाl

वचत्र : पविम एवं पूवी डेवडके टेड फ्रेट कॉररडोर

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 DFC को माल पररवहन क्षेत्र में गेम-चेंजर के रूप में बताया गया है। साथ ही यह ईम्मीद भी है

कक दीघाथववध में ये यातायात मांग को पयाथप्त रूप से और कु शलता से संभाल लेंगे l DFC पर माल-
ढु लाइ के यातायात को पुनर्थनदेवशत करने से ट्रंक रूट की मौजूदा क्षमता को यात्री पररवहन के वलए
खोला जा सकता हैl

 3360 ककलोमीटर पर ववस्तृत दो पररयोजनाओं की शुरूअत, न के वल रे लवे को माल ढु लाइ की

ऄपनी बाजार वहस्सेदारी बढ़ाने में मदद करे गी बवकक पररवहन, यूवनट लागत में कमी, छोटे

संगिन और प्रबंधन लागत में कमी के कारण मौवलक बदलाव भी लाएगी l


 ईच्च दक्षता के साथ कम उजाथ की खपत को बढ़ावा वमलेगा। दो डेवडके टेड फ्रेट कॉरीडोरों के
वनष्पादन में, DFCCIL का ईद्देश्य वनम्न काबथन पथ का पालन करना है। यह कायथ वववभन्न
तकनीकी ववककपों को ऄपना कर ककया जायेगा वजससे कॉररडोर का संचालन उजाथ दक्षता के साथ
हो सके ।

4.3. रे लवे सु र क्षा अयोग

 रे लवे सुरक्षा अयोग, भारत सरकार के नागररक ईड्डयन मंत्रालय के प्रशासवनक वनयंत्रण के तहत
काम कर रहा है। यह अयोग रे ल यात्रा और रे ल संचालन की सुरक्षा से संबंवधत मामलों की देखरे ख
करता है। रे लवे ऄवधवनयम (1989) के ऄनुसार आसके कायथ एक वनरीक्षक, जांच-पड़ताल और

सलाहकार प्रकृ वत के हैं। आस प्रकार यह सुवनवित करता है कक रे लवे के संचालन, रे ल वनमाथण और

सुरक्षा की सुदढ़ृ ता के संबंध में सभी वनधाथररत ईपाय ककए जाए। अयोग, रे लवे ऄवधवनयम और
समय-समय पर जारी कायथकारी वनदेशों के ऄनुसार कायथ करता है। यह देश के वववभन्न शहरों में
मेट्रो रे ल के संचालन के संबंध में भी ऐसे कायथ करता है।

4.4. प्रमु ख ववकास

4.4.1. यात्री सु ववधाएं और से वाएं

 "जननी सेवा" की शुरूअत की गयी है वजसके ऄंतगथत स्टेशन पर गमथ दूध, गमथ पानी और वशशु
खाद्य सामग्री के साथ ट्रेनों पर बच्चों के वलए मेन्यु की व्यवस्था की जाएगी।
 इ-रटकट यावत्रयों के वलए वैकवकपक यात्रा बीमा का शुभारं भ ककया गया है।
 कै टररग यूवनट के अवंटन में अरवक्षत श्रेणी के तहत मवहलाओं को 33% का ईप कोटा प्रदान करने
का वनणथय वलया गया है।
 IRCTC की इ-के टररग सेवाओं में स्थानीय व्यंजनों ईपलब्ध कराने हेतु स्व-सहायता समूहों को
शावमल ककया गया है।
 वैकवकपक रे ल सुववधा योजना (ATAS) वजसे VIKA।P के नाम से भी जाना जाता है, आसको

कदकली-हावड़ा, मुंबइ, चेन्नइ, बैंगलोर और वसकं दराबाद सवहत ऄन्य क्षेत्रों में ववस्ताररत ककया जा
रहा है और आस सन्दभथ में क्षेत्रीय रे लवे को कदशावनदेश कदए गए हैं।
 रे लवे दुघथटना में हताहत हुए लोगों को मुअवजे की दर दुगन
ु ी कर दी गइ है।
 राजधानी/ दुरंतो और शताब्दी ट्रेनों के वलए फ्लेटसी फे यर वसस्टम शुरू ककया गया।

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4.4.2. तीव्र गवत की ट्रे नें

 भारत की पहली सेमी-हाइ स्पीड ट्रेन वजसका नामकरण गवतमान एटसप्रेस ककया गया है, हजरत
वनजामुद्दीन और अगरा कैं ट के बीच 160 ककलोमीटर की ऄवधकतम गवत से चलने में सक्षम है।
आस ट्रेन में अवतथ्य सेवाएं प्रदान करने हेतु ट्रेन होस्टेस को रखा गया है।
 मुंबइ-ऄहमदाबाद गवलयारे के बीच ईच्च गवत वाली ट्रेन को पहले ही मंजूरी दे दी गइ है और
जापान से ववत्तीय और तकनीकी सहायता प्राप्त की जा रही है। हीरक चतुभज
ुथ पररयोजना
(Diamond Quadrilaterals) के ऄंतगथत ऄन्य हाइ स्पीड कॉररडोर के ऄन्वेषण का कायथ जारी
है।
 यात्रा समय को कम करने के वलए स्पैवनश टैकगो ट्रेन के वलए फीकड ट्रायल का अयोजन ककया गया
है।
 भारतीय रे लवे में मौजूदा ट्रेनों की बढ़ती गवत की कदशा में वमशन रफ़्तार शुरू ककया गया है।
 नागपुर-वसकं दराबाद रे लवे कॉररडोर की गवत बढ़ाने के व्यवहायथता ऄध्ययन के वलए भारतीय रे ल
और रूसी रे लवे के बीच प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर ककए गए।

4.4.3. रे लवे ववकास प्रावधकरण

 कें द्रीय मंवत्रमंडल ने रे लवे के वलए एक वनयामक - रे ल ववकास प्रावधकरण (RDA) की स्थापना को
स्वीकृ वत दे दी है। वनयामक चार प्राथवमक कायों का वनष्पादन करे गा - टैररफ वनधाथरण;

स्टैकहोकडर वनवेशकों के वलए वनष्पक्षता; दक्षता और प्रदशथन मानकों की स्थापना; और सूचना का


प्रसार ।

4.4.4. वडवजटल आं वडया पहल

 ऄनारवक्षत रटकटों में धोखाधड़ी को रोकने के वलए बार कोड का मुद्रण।


 मुंबइ सेंट्रल स्टेशन पर भारत की पहली हाइ स्पीड सावथजवनक वाइ-फाइ सेवा का ईद्घाटन।
 ईत्तरी रे लवे ने इ-सक्षम ट्रैक मैनज
े मेंट वसस्टम (TMS) और भारतीय रे लवे के TMS मोबाआल
एवप्लके शन तथा रे लवे आन्वेंटरी मैनज
े मेंट वसस्टम का ईद्घाटन ककया।
 TTEs को हैण्ड हेकड टर्थमनल प्रदान ककये गए।
 त्वररत वशकायत वनवारण के वलए समेककत (फे सबुक और वट्वटर) सोशल मीवडया प्लेटफामथ लॉन्च
ककया गया।
 रे लवे मंत्रालय के वट्वटर और फे सबुक ऄकाईं ट्स को औसतन 12,000 ट्वीट्स और 400 पोस्ट
प्रवत कदन प्राप्त होते हैं। आतने ज्यादा ट्वीट्स / पोस्ट के संचालन के वलए सोशल कस्टमर
ररलेशनवशप वसस्टम शुरू ककया गया है।
 नगदी रवहत लेनदेन को सुववधाजनक बनाने और बुककग काईं टर पर लगने वाले समय को कम
करने के वलए चुलनदा क्षेत्रों (नइ कदकली-मुम्बइ, नइ कदकली-हावड़ा) में पायलट अधार पर गो
भारत स्माटथ काडथ शुरू ककये गए हैं।

4.4.5. ववत्त

 कें द्रीय मंवत्रमंडल ने सामान्य बजट के साथ रे ल बजट के ववलय को मंजरू ी दे दी; बजट प्रस्तुवत का
समय अगे बढ़ा कदया गया है और बजट तथा खातों में योजना और गैर-योजना वगीकरण को
समाप्त कर कदया गया है।
 मंवत्रमंडल ने रे लवे कमथचाररयों के प्रोडवटटववटी ललटड बोनस को मंजरू ी दे दी है।

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4.4.6. सु र क्षा

 ट्रेन के पटरी से ईतरने की घटना का रोकथाम करने हेतु एक पखवाड़ा लंबे ववशाल सुरक्षा
ऄवभयान को शुरू ककया गया।
 मानव रवहत क्रॉलसग को खत्म करने के वलए भारतीय रे लवे एक कायथ योजना पर काम कर रही है।
यह प्रयास रे लवे "वमशन शून्य दुघटथ ना" का एक ईप-वमशन है।
 मानव रवहत क्रोलसग को पार करने के दौरान बरती जाने वाली सावधावनयों के बारे में जनता को
संवेदनशील बनाने हेतु वनयवमत जागरूकता ऄवभयान चलाया जा रहा है।
 TRI-NETRA-डीजल ड्राआवरों के वलए टेरेन आमेलजग आन्फ्रारे ड (Terrain imaging), एन्हांस्ड
ऑवप्टकल और रडार ऄवसस्टेड वसस्टम ट्रायल को लॉन्च ककया गया है।
 ऄगले 3 से 4 वषों में बेहतर सुरक्षा सुववधाओं के साथ मौजूदा 45,000 ICF वडजाआन के वडब्बों के
रे ट्रो कफरटग के वलए एक एटशन प्लान भी तैयार ककया गया है।
 यह वनणथय वलया गया है कक भारतीय रे लवे पूरी तरह से ।HB के वडब्बों के ईत्पादन पर बल देगी,
जो कक बेहतर सुरक्षा सुववधाओं जैसे एंटी टलाआलम्बग और एंटी-टेलेस्कोलपग के साथ वडजाआन ककए
गए हैं।
 भारतीय रे लवे के सुरक्षा प्रदशथन में सुधार लाने के वलए जापान और कोररया जैसे देशों के साथ
समझौता ककया गया है।
 ऄमृतसर - नइ कदकली शान-इ-पंजाब एटसप्रेस में CCTV कै मरे लगाये गए हैं। शान-ए-पंजाब
एटसप्रेस CCTV वनगरानी कै मरे के साथ पहली भारतीय रे लगाड़ी बन गयी है। सुरक्षा वनगरानी
के साथ यह प्रणाली रे ल यावत्रयों की गोपनीयता भी बनाये रखती है। प्रवत कोच में चार से छह
कै मरे , ववशेष रूप से डब्बों के गवलयारे में, लगाये गए हैं जो वडवजटल वीवडयो ररकॉडथर के साथ
कम रौशनी में फे वशयल ररकवग्नशन में सक्षम हैं।
 "ऑपरे शन मुस्कान - II" के ऄंतगथत RPF द्वारा बच्चों की ररहाइ।

4.4.7. ववद्यु तीकरण और वसग्नललग

 भारतीय रे लवे ने एक वषथ में 1775 rkm का ररकाडथ ववद्युतीकरण ककया। यह लक्ष्य 15 कदसंबर
2016 तक प्राप्त कर वलया गया था। यह 2015 की आसी ऄववध के दौरान प्राप्त 1479 rkm के
वपछले ररकाडथ स्तर के ववद्युतीकरण से 20% ऄवधक है।

4.4.8. ग्रीन पहल

 मानव ऄपवशष्ट वनवथहन से मुक्त 'प्रथम ग्रीन ट्रेन कॉररडोर रामेश्वरम - मनामदुराइ' का ईद्घाटन
ककया गया।
 पविमी रे लवे के गुजरात, ओखा-कनलुस और पोरबंदर-वांजवलया खंड का ग्रीन कॉररडोर खंड (ट्रेन
से मानव ऄपवशष्ट वनवथहन से मुक्त) के रूप ईद्घाटन ककया गया।

4.4.9. समझौता ज्ञापन

 रे ल मंत्रालय और के रल, अंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, हररयाणा और ओवडशा की सरकारों के


बीच समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर ककए गए हैं। आसके ऄंतगथत "रे लवे बुवनयादी ढांचा के
ववकास के वलए संयुक्त ईद्यम कं पवनयों का गिन" ककया जायेगा।

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 रे ल मंत्रालय और भारतीय ऄंतररक्ष ऄनुसंधान संगिन (ISRO) के मध्य मानव रवहत रे लवे क्रॉलसग
पर ररमोट सेंलसग के वलए ररमोट सेंलसग और भौगोवलक सूचना प्रणाली (GIS) के क्षेत्र में
ऄनुप्रयोगों के ववकास हेतु समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर ककए गए है। आसमें सभी भू-
स्थावनक समाधान ऄनुकूवलत ककए गए हैं तथा रे लवे को ववश्वसनीय, कु शल और आष्टतम समाधान
प्रदेयता के वलए सॉफ्टवेयर समाधान शावमल हैं, वजससे ऑपरे शन के वववभन्न क्षेत्रों में रे ल
ईपयोगकताथ को लाभ पहुच सकें ।

4.5. सु धारों के वलए गरित वववभन्न सवमवतयां

4.5.1. राके श मोहन सवमवत- राष्ट्रीय पररवहन ववकास नीवत सवमवत (NTDPC) की
वसफाररशें

डॉ राके श मोहन की ऄध्यक्षता में भारत सरकार ने वषथ 2010 में NTDPC की स्थापना की थी।
 NTDPC का ईद्देश्य वषथ 2029-30 तक देश के वलए दीघथकावलक पररवहन नीवत प्रदान करना
था।
 रे लवे में वनवेश को 11 वीं योजना के 0.4 जीडीपी प्रवतशत से बढ़ाकर 12 वीं योजना में 0.8
प्रवतशत और 13 वीं योजना में 1.1 प्रवतशत और ईससे अगे ले जाने का लक्ष्य रखा था।
 सरकार का रे लवे प्रबंधन और संचालन से पृथक्करण होना चावहए।
 भववष्य में रे ल मंत्रालय को नीवतयों के स्थापन तक सीवमत होना चावहए। एक नया रे लवे
वववनयामक प्रावधकरण स्थावपत ककया जाना चावहए, जो समग्र वववनयमन के वलए वजम्मेदार
होगा तथा वजसमें टैररफ का वनधाथरण शावमल हो।
 प्रबंधन और संचालन ककसी वनगवमत आकाइ द्वारा ककया जाना चावहए, भारतीय रे ल वनगम (IRC)
को एक सांवववधक वनगम के रूप में स्थावपत करना चावहए)।
 लेखा प्रणाली को एक कं पनी के खाते के स्वरूप में भारतीय GAAP (जनरे ली एटसेप्टेड एकाईं रटग
लप्रवसपल) के ऄनुरूप बनाया जाना चावहए।
 भारतीय रे लवे को तेजी से बढ़ते FMCG क्षेत्र, ईपभोक्ता रटकाउ और सूचना प्रौद्योवगकी,
कं टेनरीकृ त कागो और ऑटोमोबाआल अकद जैसे ऄन्य क्षेत्रों का एक महत्वपूणथ वहस्सा हावसल करने
के वलए कदम ईिाने चावहए, जहां आसकी ईपवस्थवत नगण्य है।
 यात्री सेवाओं को प्रदान करने की रणनीवत में अपूर्थत में वृवि, लंबी दूरी और ऄंतर शहर पररवहन,
गवत का ईन्नयन और चुलनदा हाइ स्पीड रे ल कॉररडोर के ववकास पर ध्यान देना चावहए।
 वतथमान और ऄनुमावनत यातायात संस्करणों के अधार पर ईद्योग समूहों और महत्वपूणथ बंदरगाहों
में बेहतर कनेवटटववटी।
 मुम्बइ, बैंगलोर, कदकली NCR अकद जैसे मुख्य नेटवकथ के न्द्रों में 15-20 लॉवजवस्टटस पाकथ का
वनमाथण।
 प्राथवमकता पर छह डेवडके टेड फ्रेट कॉररडोर (DFC) का वनमाथण।
 रे ल सुरक्षा और रे लवे ऄनुसंधान एवं ववकास पररषद की स्थापना के वलए राष्ट्रीय बोडथ की
स्थापना।
 पररयोजनाओं की वडलीवरी में तेजी लाने हेतु रे ल मंत्रालय के अंवशक रूप से स्वतंत्र राष्ट्रीय रे लवे
वनमाथण प्रावधकरण की स्थापना।
 प्रबंधन स्तर पर कमथचाररयों को ऄवधक तकथ संगत तथा वतथमान काडरों को कम करने की जरूरत
है।
 भारतीय रे लवे को ऄंतर-कनेवटटववटी पररयोजनाओं के वनष्पादन और संचालन में तेजी लानी
चावहए।

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4.5.2. वबबे क दे ब रॉय सवमवत

 ररपोटथ का ववषय "रे लवे मंत्रालय और रे लवे बोडथ के प्रमुख रे लवे प्रोजेटट्स के वलए संसाधनों का

संवधथन और पुनगथिन" है। ऄंवतम ररपोटथ जून, 2015 में प्रस्तुत की गइ और भारतीय रे ल के लगभग

सभी कायो और क्षेत्रों की समीक्षा की गइ। आस सवमवत की मुख्य वसफाररशें आस प्रकार हैं:
 व्यावसावयक लेखा पिवत को ऄपनाना : भारतीय रे लवे के ववत्तीय वववरणों को राष्ट्रीय और
ऄंतराथष्ट्रीय रूप से स्वीकार ककए गए वसिांतों और मानकों के ऄनुरूप पुन: तैयार करने की
अवश्यकता है।
 भती और मानव संसाधन प्रकक्रयाओं को व्यववस्थत करना: वववभन्न प्रकक्रयाओं के माध्यम से लोग
रे लवे सेवाओं में प्रवेश करते हैं। यहााँ ऄवनवायथ रूप से प्रकक्रया एकीकृ त करने और सुव्यववस्थत करने
की वसफाररश की गइ है।
 स्वतंत्र वनयामक RRAI की स्थापना: एक स्वतंत्र वववनयामक वनकाय के रूप में भारतीय रे लवे

वववनयामक प्रावधकरण (RRAI) की स्थापना की अवश्यकता है। रे लवे बोडथ को के वल भारतीय

रे लवे (PSU) की एक आकाइ के रूप में जारी रखना चावहए।

 वनजी प्रवेश को प्रोत्सावहत करना: भारतीय रे लवे के साथ प्रवतस्पधाथ में मालगाड़ी और यात्री दोनों
ट्रेन चलाने में वनजी प्रवेश की ऄनुमवत दी जानी चावहए और वववभन्न रे लवे अधारभूत संरचना
सेवाओं जैसे ईत्पादन और वनमाथण जैसी गैर-कोर गवतवववधयों में वनजी भागीदारी को प्रोत्सावहत
ककया जाना चावहए।
 भारतीय रे लवे वववनमाथण कं पनी: सवमवत का प्रस्ताव है कक ये सभी मौजूदा ईत्पादन आकाआयां चाहे
वह वडब्बों या आंजनों के वलए हों, ईन्हें सरकारी SVP भारतीय रे लवे वववनमाथण कं पनी (IRMC)

के तहत लाना जाना चावहए।


 संसाधनों में बढ़ोतरी: वनवेश के संसाधनों को बढ़ाने के वलए ववशेषज्ञ वनवेशकों, वनवेश बैंकरों,

SEBI के प्रवतवनवधयों, भारतीय ररजवथ बैंक, IDFC और ऄन्य संस्थानों की एक वनवेश सलाहकार

सवमवत की स्थापना की जा सकती है।


 ु ईपक्रम (JV) : नइ ईपनगरीय लाआनों का वनमाथण राज्य सरकारों के
सामावजक लागत एवं संयक्त

साथ संयुक्त ईपक्रम के रूप में ककया जाना चावहए। रे लवे के ऄंतगथत बहुत सारे क्षेत्र और प्रभाग हैं
और आस प्रकार एक युवक्तसंगत योजना अवश्यक है।
 ं में पररवतथन: ऄलग रे लवे बजट धीरे -धीरे समाप्त हो जाना चावहए और
सरकार और रे लवे के संबध
आसका सामान्य बजट के साथ ववलय कर कदया जाना चावहए (लागू ककया जा चुका है)।
 ववकें द्रीकरण: ववकें द्रीकरण वनचले स्तरों की सेवाओं पर लागू होना चावहए।
 गैर कोर क्षेत्र: ऄस्पतालों, स्कू लों, खानपान, ररयल एस्टेट डेवलपमेंट, लोकोमोरटव, कोचों और

वैगनों का वनमाथण जैसे गवतवववधयों का गावड़यों के संचालन जैसे मुख्य व्यवसाय से पृथक्करण ककया
जाना चावहए।
जावहर है, पैनल ने बड़े बदलावों के साथ एक बहुत दूरदशी ररपोटथ तैयार की है वजसे पूरा करने में बहुत

ऄवधक समय लगेगा, हालााँकक कु छ ऄनुशंसाओं को लागू ककया जा चुका है। एक बार लागू होने पर,

रे लवे की वतथमान वस्थवत पर आसका ऄनुकूल प्रभाव होगा।

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4.6. चु नौवतयााँ और सु झाव

 वपछले 60 वषों में क्षमता ववस्तार के वलए एक व्यापक ढांचे के ऄभाव से भारतीय रे लवे को क्षवत

पहुंची है। पररणामस्वरूप, गेज रूपांतरण, लाआनों का दोहरीकरण, वसग्नल अधुवनकीकरण अकद के

रूप में ही कु छ पररवतथन हुए हैं परन्तु साथ ही ऄव्यवावसक मागों पर नइ लाआनों को लगातार
वबछाया गया है।
 रे ल दुघथटनाओं की बढ़ती संख्या दुखद है। भारत में कु ल रे लवे ट्रैक का लगभग 25% ऄत्यवधक

पुराना है वजसके प्रवतस्थापन की तत्काल अवश्यकता है।


 नइ प्रौद्योवगककयों (ट्रेन कोवलजन ऄवॉआडन वसस्टम, ट्रेन प्रोटेटशन वार्ननग वसस्टम (TPWS),

वववजलेंस कण्ट्रोल वडवाआस), रखरखाव का मशीनीकरण, दोषों का शीघ्र पता लगाने अकद की

प्रकक्रया हेतु एक बहुअयामी दृवष्टकोण महत्वपूणथ है, ताकक मानवीय वनभथरता को कम ककया जा

सके । साथ ही साथ समय-समय पर सुरक्षा ऑवडट के साथ मानव संसाधन कौशल को ईन्नत करने
की भी अवश्यकता है।
 भारतीय रे लवे को राजस्व अय के साथ-साथ सामावजक दावयत्वों की दोहरी भूवमका वनभानी है।
हालांकक, ट्रंक मागों की संतृवप्त के साथ सेवाओं और ववश्वसनीयता की वनम्न गुणवत्ता के कारण

राजस्व वृवि में कमी दजथ की गइ है।


 वतथमान में, रे लवे नेटवकथ बुवनयादी ढांचे और क्षमता की कमी से ग्रस्त है और ईच्च घनत्व नेटवकथ

(HDN) पर ऄवधकांश मागथ पहले से ही संतृवप्त पर पहुंच गए हैं। नेटवकथ का ववस्तार और माल

ढु लाइ की क्षमता का ववस्तार वनतांत अवश्यक है।


 वपछले दो दशकों में कु ल पररवहन क्षेत्र के व्यय प्रवतशत का काफी कम भाग रे लवे पर व्यय हुअ है।
बारहवीं पंचवषीय योजना में रे ल क्षेत्र में वनवेश की जरुरत को बताते हुए कहा गया कक, "यकद

ऄगले 20 वषों में 7-10 प्रवतशत प्रवतवषथ की लगातार वृवि प्राप्त करनी है, तो रे लवे में ऄभूतपूवथ

क्षमता ववस्तार की अवश्यकता है। आस तरह के क्षमता ववस्तार की अवश्यकता माल और यात्री
यातायात दोनों में सामान रूप से है, वजसे स्वतंत्रता के बाद कभी प्राप्त नहीं ककया गया है। "

 हालांकक, भारतीय रे ल गंभीर ऄक्षमता से जूझ रही है और आसमें वनवेश की कमी है, परन्तु सड़क

क्षेत्र में वनवेश (वनजी और सावथजवनक दोनों) में लगातार वृवि देखी गइ है। संसाधनों के सापेक्ष
अवंटन में गंभीर ऄक्षमता और ववकृ वतयों के पररणामस्वरूप, भारतीय रे लवे की यावत्रयों और

माल-भाड़े दोनों की वहस्सेदारी में वगरावट देखी गयी है।


सरकार द्वारा भारतीय रे लवे की रणनीवत के 3 स्तम्भ प्रस्ताववत ककए गए हैं:

 नव ऄजथन (राजस्व के नए स्रोतों पर ध्यान कें कद्रत)


 नव मानक (प्रत्येक गवतवववध पर ऄनुकूलन का ऄनुकूलन); तथा

 नव संरचना (सभी प्रकक्रयाओं, वनयमों और संरचनाओं की समीक्षा करना)

भारतीय रे लवे के समेककत ववकास के वलए एक वनदेवशत दृवष्टकोण की अवश्यकता है जो रे ल और सड़क


के बीच संसाधनों के सापेक्ष अवंटन कर सके तथा वजसमें संगिनात्मक पररवतथन और रणनीवतक वनणथयों
को भी समावहत ककया गया हो। वनस्संदह
े यह भारत के ववकास के वलए एक वरदान वसि होगा।

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4.7. महत्वपू णथ मु द्दे

 आं टरकनेटटेड, पदानुक्रवमत पररवहन नेटवकथ : भारत को एकीकृ त पररवहन नेटवकथ वडजाआन करने में
एक समग्र दृवष्टकोण ऄपनाना चावहए। श्रेणीबि कनेवटटववटी, आंटरमोडल एटसेस और कफट-फॉर-
पपथस नेटवकथ मानकों पर जोर कदया जाना चावहए। नेटवकथ के ववस्तार और क्षमता संविथन का
मूकयांकन मौजूदा नेटवकथ पर और नेटवकथ के भीतर और बाहर ककया जाना चावहए। लेककन, पयाथप्त
पररवहन ऄवसंरचना का वनमाथण ऄभी होना बाकक है, कफर भी भारत पररवहन व्यवस्था के क्षेत्र में
एक ऄवधक वांछनीय और कु शल राज्य बन सकता है।
 व्यवहार और समयबिता: नए बुवनयादी ढांचे के वनमाथण में व्यय करने से पूवथ पररवहन और ऄन्य
वस्तु एवं सेवाओं की मांगों के दोनों पक्षों पर ववचार ककया जाना चावहए। भववष्य की मांग की
प्रत्याशा में अधारभूत संरचना को क्रमादेवशत ककया जाना चावहए। पोस्ट होक वनमाथण के बजाय
प्रायः यह कायथ सरल, सस्ता और तीव्र होता है वजससे मार्थजन क्षमता में वृवि होती है। वनमाथण के
पिात् रखरखाव वनयवमत, सामवयक, पूव-थ प्रभावी रूप से की जानी चावहए न कक पुनः स्थापना
की जानी चावहए। यह प्रकक्रया पररवहन के प्रत्येक साधन के पररसंपवत्त प्रबंधन प्रणाली का एक
महत्वपूणथ वहस्सा होना चावहए। बदलती पररवस्थवतयों के ऄनुरूप गवतशील प्रवतकक्रयाओं की
ऄनुमवत प्रदान करने हेतु भत्ते की भी व्यवस्था होनी चावहए।
 ु न और क्षमता: भारतीय पररवहन नेटवकथ पर क्षमता से ऄवधक दबाव है। ववशेषकर रे लवे,
पुनसंतल
ऄवधक ववश्वसनीय और उजाथ कु शल होने के बावजूद, क्षमता वृवि में वववभन्न मोचों पर सड़क
पररवहन से पीछे चल रही हैं। हालांकक ववत् पोषण में बढ़ोत्तरी देखी गयी है परन्तु भौवतक
अधारभूत संरचना की क्षमता में प्रासंवगक वृवि नहीं हो पाइ है। ऐसा आसीवलए है टयोंकक क्षमता
वृवि के बजाय नए और कभी-कभी ऄनार्थथक बुवनयादी ढांचे के वनमाथण पर ऄवधक से ऄवधक
वनवेश को फोकस कर कदया जाता है।
 ऄनुदान: वववभन्न पररवहन पिवतयों के ववत्तपोषण मॉडल की कइ ववशेषताएं होती हैं। सावथजवनक
साधनों के स्रोत को बेहतर बनाने हेतु प्रत्येक पिवत में कोइ न कोइ ईपाय होता है, ताकक बेहतर
लागत वमले और अर्थथक दक्षता प्राप्त हो सकें । ववशेष रूप से रे लवे के ववत्तपोषण में यह समस्याएं
व्याप्त हैं। बुवनयादी ढांचे के ववत्तपोषण में सरकार की भूवमका को बनाए रखते हुए, वनवेश के
ऄंतराल को भरने के वलए वनजी वनवेश में वृवि की अवश्यकता है। व्यावसावयक रूप से ऄसक्षम,
लेककन अर्थथक और सामावजक रूप से महत्वपूणथ वनवेश वनणथयों में सावथजवनक वनवेश के प्रवाह को
भी ऄनुमवत दी जानी चावहए।
 मूकय वनधाथरण: सवब्सडी, टैररफ और कराधान नीवतयों का एक पेचीदा जाल भारतीय पररवहन
पर लागू होता है। आसके पररणामस्वरुप ववकृ त मूकय वनधाथरण होता है जो संसाधनों कौशल में
ऄवरोध ईत्पन्न कर संसाधनों के क्षरण और सूदखोरी को बढ़ावा देता है। ऄवधक पररष्कृ त और वनम्न
ववरूपणकारी मूकय वनधाथरण, पररवहन क्षेत्र के बाजार के अकार वनधाथरण में सरकार का
शवक्तशाली ईपकरण बन सकता हैं।
 शहरी पररवहन : शहरी अबादी की तेजी से बढ़ती मांगों की पूर्थत, अपूर्थत पक्ष, मांग पक्ष,
सावथजवनक पररवहन की मजबूती, व्यवक्तगत पररवहन पर संतुवलत वनरोध अकद पर एक क्रवमक
दृवष्टकोण की अवश्यकता है। हालांकक, तकथ संगत और ऄनुकूलन वनणथयन हेतु अवश्यक है जब
सावथजवनक पररवहन के ककसी एक रूप में वनवेश का ववककप ककसी दूसरे मॉडल के "वन साआ़ि
कफट्स अल" के ववपरीत हो जाता है।
 कौशल और मानव संसाधन: भारत को बुवनयादी सुववधाओं के ववकास के संबंध में ऐसे लोगों की
अवश्यकता है जो में वनपुण हो: योजना, पररयोजना की पहचान और ववकास; कु शल और पारदशी
ऄनुबंध की खरीद, प्रशासन, और संचालन और प्रबंधन। कु शल पररवहन पेशेवरों की गंभीर कमी
को तुरंत समाप्त ककया जाना चावहए।

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भारतीय ऄथथव्यवस्था
8. ऄवसंरचना : भाग-II

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ववषय सूची
1. नागर ववमानन या नागररक ईड्डयन (वसववल एववएशन) __________________________________________________ 3

1.1. नागररक ईड्डयन से संबंवधत एजेंवसयां ____________________________________________________________ 4


1.1.1. डायरे क्टर जनरल ऑफ वसववल एववएशन; DGCA ______________________________________________ 4
1.1.2. नागररक ईड्डयन सुरक्षा ब्यूरो (BCAS)_______________________________________________________ 4
1.1.3. भारतीय ववमानपत्तन प्रावधकरण (AAI) ______________________________________________________ 5
1.1.4. पवन हंस हेवलकॉप्टर वलवमटेड (PHHL)______________________________________________________ 5

1.2. राष्ट्रीय नागर ववमानन नीवत (NCAP 2016) ______________________________________________________ 6

1.3. चुनौवतयां और वसफाररशें ____________________________________________________________________ 7

1.4. NTDPC (राके श मोहन सवमवत) की वसफाररशें _____________________________________________________ 8

2. बंदरगाह एवं जहाजरानी ________________________________________________________________________ 9

2.1. राष्ट्रीय समुद्री ववकास कायथक्रम (NMDP) ________________________________________________________ 12

2.2. वशपपग ________________________________________________________________________________ 12

2.3. तटीय वशपपग ___________________________________________________________________________ 13

2.4. ऄंतदेशीय जल पररवहन (Inland Water Transport) ______________________________________________ 13


2.4.1. राष्ट्रीय जलमागथ ______________________________________________________________________ 13

2.5. वशपपग कॉपोरे शन ऑफ आं वडया _______________________________________________________________ 15

2.6. भारत में जहाज वनमाथण ईद्योग _______________________________________________________________ 16


2.6.1. भारतीय जहज़ वनमाथण ईद्योग का SWOT ववश्लेषण _____________________________________________ 17

2.7. प्रमुख ववकास पररयोजनाऐं __________________________________________________________________ 18


2.7.1. सागर माला पररयोजना ________________________________________________________________ 18
2.7.2. प्रमुख बंदरगाह प्रावधकरण ववधेयक, 2016 ___________________________________________________ 19
2.7.3. मचेंट वशपपग एक्ट, 1958 के स्थान पर पुनर्ननर्नमत मचेंट वशपपग वबल ________________________________ 19
2.7.4. एडवमरै वलटी ववधेयक, 2016 ____________________________________________________________ 19
2.7.5. भारतीय समुद्री वशखर सम्मलेन, 2016______________________________________________________ 20
2.7.6. दक्षता में सुधार करने के वलए ईपाय ________________________________________________________ 20
2.7.7. बंदरगाहों में ववशेष पहल _______________________________________________________________ 20
2.7.8. तटीय नौवहन, पयथटन और क्षेत्रीय ववकास के वलए ववजन अलेख ____________________________________ 20

2.8. चुनौवतयााँ ______________________________________________________________________________ 21

2.9. NTDPC की वसफाररशें ____________________________________________________________________ 22


1. नागर ववमानन या नागररक ईड्डयन (वसववल एववएशन)
 वपछले दशक में, भारत में नागररक ईड्डयन क्षेत्र का ऄभूतपूवथ गवत से ववकास हुअ है तथा यह ववश्व
का नौवां सबसे बड़ा नागररक ईड्डयन बाजार बन गया है।
 ववत्त वषथ 2006-17 के दौरान, देश के यात्री यातायात में CAGR 10.51% रही। कु ल माल

ढु लाइ में ववत्त वषथ 2006-16 के ऄंतराल में CAGR 6.8% दजथ की गयी। यात्री और माल ढु लाइ

में वृवि कु ल ववमान संचालन में वृवि के कारण संभव हुइ है, वजसमें ववत्त वषथ 2007-17 में

5.59% CAGR दजथ की गइ है।

 भारत सरकार ने ववमान ईड्डयन क्षेत्र को वनजी भागीदारी के वलए खोला है और PPP मॉडल के
तहत बड़े शहरों में छह हवाइ ऄड्डों का ववकास ककया जा रहा है। भारतीय ववमानपत्तन प्रावधकरण
(AAI) ने 2020 तक देशभर में लगभग 250 हवाइऄड्डों का संचालन करने का लक्ष्य रखा है।

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वचत्र: नागररक ईड्डयन- एक पररदृश्य

1.1. नागररक ईड्डयन से सं बं वधत एजें वसयां

1.1.1. डायरे क्टर जनरल ऑफ वसववल एववएशन; DGCA

DGCA नागररक ईड्डयन के क्षेत्र में वनयामक वनकाय है। यह नागररक ईड्डयन मंत्रालय के ऄंतगथत है।
वतथमान में DGCA के पास भती करने की शवियााँ नहीं है। यह वनम्नवलवखत गवतवववधयों के वलए
वजम्मेदार है:
 ववमान वनयम,1937 के प्रावधानों के ऄनुसार दूसरे देशों से भारत में और भारत से दूसरे देशों में
हवाइ पररवहन सेवाओं का वववनयमन।
 पायलटों और ववमान रखरखाव ऄवभयंताओं को लाआसेंस देना, ईड़ान चालक दल मानकों की
वनगरानी करना।
 नागररक ववमान का पंजीकरण करना।
 भारत में पंजीकृ त नागररक ववमानों के वलए ईड़ान-योग्यता की अवश्यकताओं को वनधाथररत करना
और ऐसे ववमानों के वलए हवाइ-ईपयुिता प्रमाण पत्र जारी करना।
 छोटी हवाइ दुघथटनाओं की जांच और सरकार द्वारा वनयुि न्यायालयों/अयोगों के वलए तकनीकी
सहायकों को प्रदान करना।
 एयर वाहक और एयरोड्रोम का सुरक्षा वनरीक्षण और वनगरानी।
 दूसरे देशों के साथ वद्वपक्षीय वायु सेवा समझौतों सवहत हवाइ पररवहन से संबंवधत मामलों पर
सरकार को सलाह देना ।
 ववमान का प्रकार प्रमाणन करना ।
 भारत में वशकागो सम्मेलन के प्रावधानों को लागू करने के ईद्देश्य से ववमान ऄवधवनयम, 1934
और ववमानन वनयम, 1937 और नागररक ईड्डयन से संबंवधत ऄन्य वनयमो में संशोधन करना।

1.1.2. नागररक ईड्डयन सु र क्षा ब्यू रो (BCAS)

 1976 में आं वडयन एयरलाआंस के ववमान के ऄपहरण पश्चात् गरित पांडय


े सवमवत की वसफाररशों
पर 1978 में DGCA में एक BCAS सेल की स्थापना की गयी थी। आस सेल की भूवमका वसववल
ववमानन सुरक्षा मामलों से जुड़े कर्नमयों का समन्वय, मॉवनटर, वनरीक्षण और प्रवशक्षण करना था।

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 जून 1985 की कवनष्क ववमान घटना के बाद नागररक ईड्डयन मंत्रालय ने 1 ऄप्रैल 1987 को
BCAS को एक स्वतंत्र ववभाग के रूप में पुनगथरित कर कदया।
 भारत में ऄंतरराष्ट्रीय और घरे लू हवाइ ऄड्डों पर नागररक ईड़ानों संबंधी तथा ववदेशी हवाइ ऄड्डों
पर भारतीय ऑपरे टरों के वलए मानकों का वनमाथण BCAS की मुख्य वजम्मेदारी है।

 BCAS भारत का नागररक ईड्डयन सुरक्षा वनयामक है। यह नागररक ईड़ानों के संबंध में ववमानों
के पूव-थ अरोहन तथा सुरक्षा ईपायों के मानकों को वनधाथररत हेतु वजम्मेदार है। आन मानकों का
वनयवमत वनरीक्षण और सुरक्षा लेखापरीक्षा के माध्यम से ऄनुपालन सुवनवश्चत ककया जाता है।

1.1.3. भारतीय ववमानपत्तन प्रावधकरण (AAI)

 AAI नागर ववमानन मंत्रालय के तहत एक PSU है जो संपूणथ देश में हवाइऄड्डों के बुवनयादी ढांचे

का वनमाथण एवं ववकास और प्रबंधन करता है। 1995 में तत्कालीन दो प्रावधकरणों (राष्ट्रीय हवाइ

ऄड्डा प्रावधकरण और ऄंतराथष्ट्रीय हवाइऄड्डा प्रावधकरण) के ववलय पश्चात् AAI ऄवस्तत्व में अया
था।
 AAI की देश में स्थल और वायु पर नागररक ईड्डयन ऄवसंरचना के वनमाथण, ईन्नयन, रखरखाव

और प्रबंधन की वजम्मेदारी है। AAI के मुख्य कायों में यात्री टर्नमनलों का वनमाथण, सुधार और

प्रबंधन, कागो टर्नमनलों के ववकास और प्रबंधन, रे लवे के साथ-साथ रनवे, समानांतर टैक्सी मागथ,

संचार, नेववगेशन और वनगरानी की व्यवस्था शावमल है वजसमें DVOR/DME, ILS, ATC

रडार, दृश्य ईपकरणों के प्रावधान शावमल हैं। आसके ऄंतगथत एयर ट्रैकफक सेवाएं, यात्री टर्नमनलों में

यात्री सुववधाओं और संबंवधत सुववधाओं का प्रावधान भी है, वजससे देश में ववमान, यात्री और
कागो का सुरवक्षत संचालन सुवनवश्चत ककया जा सके ।
 हवाइ ऄड्डों की सुरक्षा मानकों में सुधार के वलए पुराने ऄत्याधुवनक ईपकरणों का प्रवधथन, पुराने
ईपकरणों के प्रवतस्थापन और नइ सुववधाओं का वनमाथण एक सतत प्रकक्रया है। नइ प्रकक्रयाओं और
नए ईपकरणों को एक साथ ही शावमल ककया जाता है। आस कदशा में कु छ प्रमुख पहलें एयरस्पेस
क्षमता को बढाने तथा वायु में भीड़ को कम करने के वलए भारत ने ररड्यूसड वटीकल सेपेरेशन
वमवनमम (RVSM) की शुरुअत की हैं; साथ ही आसरो के साथ GPS और वजयो ऑग्नेटेड

नेववगेशन (GAGAN) को संयुि रूप कायाथवन्वत करना है।

 AAI 125 हवाइ ऄड्डों का प्रबंधन करता है, वजसमें 18 ऄंतराथष्ट्रीय हवाइऄड्डे, 07 कस्टम एयरपोटथ,

78 घरे लू हवाइ ऄड्डे और वडफें स एयरफील्ड के 26 वसववल एनक्लेव्स शावमल हैं। AAI एयर स्पेस

के 2.8 वमवलयन वगथ नारटकल मील पर एयर नेववगेशन सेवाएं प्रदान करता है।

1.1.4. पवन हं स हे वलकॉप्टर वलवमटे ड (PHHL)

 PHHL कम्पनी ऄवधवनयम 1956 के ऄंतगथत एक सरकारी वनकाय है वजसका मुख्य ईद्देश्य

ऄपतटीय ऄन्वेषण में पेट्रोवलयम क्षेत्र को हेलीकॉप्टर सहायता सेवाएं प्रदान करना, पहाड़ी और

दुगथम क्षेत्रों में यात्रा और पयथटन को बढावा देने के वलए चाटथर ईड़ानें ईपलब्ध कराना है। 42

हेलीकाप्टरों के बेड़े के साथ PHHL एवशया के सबसे बड़े हेलीकॉप्टर ऑपरे टरों में से एक के रूप में
ईभरा है।

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1.2. राष्ट्रीय नागर ववमानन नीवत (NCAP 2016)

 कें द्रीय मंवत्रमंडल ने हाल ही में घरे लू ववमानन क्षेत्र को प्रोत्साहन और यात्री ऄनुकूल ककराया प्रदान
करने के वलए नागर ववमानन नीवत को मंजूरी दी है। आस नइ नीवत का ईद्देश्य घरे लू ववमान
यावत्रयों को वववभन्न लाभ प्रदान करना है।
नीवत का ईद्देश्य:
 भारत को वषथ 2022 तक तीसरा सबसे बड़ा नागररक ईड्डयन बाजार बनाना। वतथमान में भारत
नौवें स्थान पर है।
 घरे लू रटकटों को वषथ 2015 में 8 करोड़ से वषथ 2022 तक 30 करोड़ पर ले जाना तथा वषथ 2022

तक घरे लू यात्री यातायात लगभग चार गुना करके 30 करोड़ तक लाना।

 ऄनुसूवचत वावणवययक ईड़ानों वाले हवाइ ऄड्डों को वषथ 2016 में 77 से वषथ 2019 तक 127
करना।
 वषथ 2027 तक कागो की संख्या में 4 गुना की वृवि करके 10 वमवलयन टन करना।

 वववनयमन में ढील, सरलीकृ त प्रकक्रयाओं और इ-गवनेंस के माध्यम से “इज ऑफ़ डू आंग वबज़नेस” को
प्रोत्साहन।
 नागररक ईड्डयन क्षेत्र में “मेक आन आं वडया” को बढावा देना।

 वषथ 2025 तक गुणवत्ता प्रमावणत 3.3 लाख कु शल कर्नमयों की ईपलब्धता सुवनवश्चत करना।
राष्ट्रीय नागर ववमानन नीवत की मुख्य ववशेषताएं: नइ नागर ववमानन नीवत की अधारवशला में वनम्न
सवम्मवलत हैं:
 क्षेत्रीय संपकथ योजना (Regiona।Connectivity Scheme)

o ककराये की ईच्चतम सीमा: 30 वमनट के वलए 1200 रुपये और घंटे भर की ईड़ान के वलए

2500 रुपये।

o 50 करोड़ रुपये से 100 करोड़ रुपये की लागत से हवाइपरियों/हवाइऄड्डों का ‘नो किल’


हवाइऄड्डों के रूप में पुनरुिार।
o मागथ प्रकीणथन कदशावनदेश (Route Dispersa।Guidelines: RDG)

o नागररक ईड्डयन मंत्रालय द्वारा हवाइ यातायात मागों को 3 श्रेवणयों में वगीकृ त ककया
जाएगा।
 5/20 वनयम की समावि
o आस योजना के स्थान पर एक ऐसी योजना लायी गयी है वजसके तहत सभी को समान ऄवसर
प्रदान ककया जाएगा।
o सभी एयरलाआं स ऄब ऄंतराथष्ट्रीय पररचालन शुरू कर सकते हैं, बशते वे 20 ववमान या कु ल

क्षमता के 20% ववमान, जो भी ऄवधक हो, घरे लू ईड़ान के वलए पररचावलत करें ।
 वद्वपक्षीय यातायात ऄवधकार
o भारत सरकार, साकथ देशों और कदल्ली से 5,000 ककमी दूर वस्थत देशों के साथ पारस्पररक

अधार पर “ओपन स्काइ” प्रावधान को लागू करे गी। ऄथाथत ये देश, ईड़ानों और सीटों की

संख्या के मामले में भारतीय हवाइ ऄड्डों का ऄसीवमत ईपयोग कर पाएंगे, वजससे आन देशों के
साथ हवाइ ईड़ान में वृवि होगी।

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 इज ऑफ़ डू आंग वबज़नस

o ववमानन संबंधी सभी लेनदेन, वशकायतों अकद के वलए एकल वखड़की प्रणाली।

o “इज ऑफ़ डू आंग वबज़नस” पर ऄवधक फोकस क्योंकक सरकार की क्षेत्रीय ईड़ान की व्यवस्था

को ईदार करने की योजना है।


 ऄवसंरचना का ववकास

o भारतीय ववमानपत्तन प्रावधकरण के माध्यम से 50 करोड़ रुपये की ऄवधकतम कीमत पर

हवाइ परियों की बहाली।


o सरकार द्वारा चार हैली-हब ववकवसत ककया जाएगा। हेलीकाप्टर अपातकालीन वचककत्सा
सेवा भी शुरू होगी।

o रायय सरकारों के साथ-साथ वनजी क्षेत्र या PPP मोड के द्वारा ग्रीनफील्ड और ब्राईनफील्ड

हवाइ ऄड्डों के ववकास को प्रोत्सावहत ककया जाएगा।

o भववष्य में सभी हवाइऄड्डों पर टैररफ की गणना ‘हाआवब्रड रटल’ के अधार पर की जाएगी।

1.3. चु नौवतयां और वसफाररशें

 एयरलाआनस की बैलस
ें शीट लाभाजथन में ऄस्थाइ हैं, वजसमें ऄवधकांश एयरलाआन्स कइ वषों से

लाभ दजथ करने में ऄसफल रहे हैं।

 कइ बार, हवाइ रटकट की कीमतें ऄत्यंत कम या ऄनुवचत रूप से ईच्च रही हैं, तथा आसके वलए कोइ

स्पष्ट वनयामक प्रवतकक्रया नहीं हुइ है।

 एयर आं वडया को सरकारी सवब्सडी देने की पचता और ईसका ईद्योग पर होने वाला प्रभाव, प्रायः

नइ पूज
ं ी वनवेश से कु छ ऄवधक होता है।
 कु छ नए वनजी हवाइ ऄड्डों में कवथत रूप से ईच्च शुल्क लेने के मुद्दे सामने अए हैं।

 हवाइ ऄड्डों की समस्याओं या एयरलाआं स के संचालन की क्षमता जांच के वबना, हवाइ ऄड्डों की

नयी पररयोजनाओं को घोवषत ककया जाता है।

 भारत के नागररक ईड्डयन क्षेत्र में श्रम बल (पायलटों, के वबन क्रू, हवाइ यातायात वनयंत्रकों, ग्राईं ड

स्टाफ अकद) में गंभीर कमी अ रही है। यह कमी प्राथवमक रूप से प्रवशक्षण ऄकादवमयों, प्रवशक्षकों

और ईपकरणों सवहत प्रवशक्षण बुवनयादी ढांचे की कमी के कारण है।

 भारत में एववएशन टबाथआन फ्यूल (ATF), ऄन्य क्षेत्रीय हवाइ ऄड्डों की तुलना में ययादा महंगी है।

ऄंतरराष्ट्रीय एयरलाआन्स के 20% के अंकड़े के मुकाबले भारतीय एयरलाआन की पररचालन लागत

का लगभग 40% ATF के रूप में जाता हैं।

 आस सभी के बीच, ईद्योग करों, ईपकर, वनयमों और वववनयामक प्रवतबंधों की कष्टप्रद प्रणाली द्वारा

ववमानन क्षेत्र ग्रवसत है।

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 ववमानन एक मल्टी-मोडल नेटवकथ का वहस्सा है। हवाइ पररवहन ऄवसंरचना के प्रत्येक वनणथय को
ऄंततः स्थान और ईद्देश्य की समझ में व्यापक पररवहन नेटवकथ के भीतर होना चावहए, वजसमें

सभी मोड शावमल होते हैं। एयर ट्रांसपोटथ आंिास्ट्रक्चर की योजना वनमाथण के दौरान नेटवकथ -कें कद्रत
सोच को प्रबल होना चावहए। पूरक क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और ऄंतरराष्ट्रीय हवाइ नेटवकथ के वनमाथण पर

प्रयास ककए जाने चावहए।

1.4. NTDPC (राके श मोहन सवमवत) की वसफाररशें

 एक नेशनल मास्टर प्लान को बनाकर ईसे संधाररत करना चावहए, जो वनर्ददष्ट स्थानों पर हवाइ

ऄड्डे के वनमाथण के वलए स्पष्ट अर्नथक कारणों की पहचान करे । MoCA (नागररक ईड्डयन मंत्रालय)

के ऄंतगथत एक एयरपोटथ ऄप्रूवल कवमटी स्थावपत की जानी चावहए वजसका कायथ प्रस्ताववत हवाइ
ऄड्डों को मंजूरी देना तथा वपछली व्यावसावयक योजनाओं की समीक्षा करना है।
 हवाइ ऄड्डों की कागो को हैंडल करने की क्षमता तत्काल रूप से बढाइ जानी चावहए।
 एयर नेववगेशन सर्नवसेज द्वारा ववमानन सुरक्षा के मामले में एक ऄसाधारण ररकॉडथ को जारी रखने
हेतु पयाथि वनवेश की अवश्यकता है।
 वनयामकीय और नीवतगत कायथ को स्पष्ट रूप से पृथक कर देना चावहए। मंत्रालय को राष्ट्रीय नीवत
तैयार करने एवं ववमानन क्षेत्र को ववकवसत करने के प्रयासों में रायय सरकारों को प्रोत्साहन एवं
मागथदशथन पर फोकस करना चावहए।
 DGCA के स्थान पर एयर स्पेस मैनेजमेंट, पयाथवरण, प्रवतस्पधाथत्मकता और ईपभोिा संरक्षण के

वलए ऄलग-ऄलग वडवीजनों के साथ एयरलाआन, सुरक्षा और लाआसेंस जैसे एयरलाआनों के

पररचालन वववनयमन के वलए वजम्मेदार नागर ववमानन प्रावधकरण (CAA) के साथ बदला जाना

चावहए।
 चूाँकक ववमानन क्षेत्र स्थानीय अर्नथक ववकास का एक प्रमुख सहयोगी है, आसवलए रायय सरकारों

को हवाइ क्षेत्र में ऄवधक सकक्रय भूवमका वनभानी चावहए।


 AAI को दो ऄलग-ऄलग कायों में ववभावजत ककया जाना चावहए: एयरपोटथ ओपरे शन और एयर

नेववगेशन सेवाएं।
 ऐसी शतों को बनाया जाना चावहए वजससे भारतीय MRO (मैन्टेनेन्स, ररपेयर और ओवरहाल/

ओपरे शन) ईद्योग शीघ्रता से बढ सके । ववश्व का ऄग्रणी MRO ईद्योग बनने के वलए भारत के वलए

कइ तुलनात्मक लाभ हैं।


 ववमान क्रय, एववएशन टरबाआन फ्यूल, बीमा और पिे ककराये के साथ संपूणथ ववमानन ईद्योग पर

लागू होने वाले कराधान नीवत पर पुनर्नवचार करना चावहए।


 एयर आं वडया में सरकार की वहस्सेदारी के प्रगवतशील वववनवेश हेतु तीन से पांच वषथ की ऄववध की
एक चरणबि योजना बनाने की अवश्यकता है ।
 एववएशन टबाथआन फ्यूल की मूल्य नीवत में सुधार ककया जाना चावहए।
 बढती यातायात मांग के साथ तारतम्यता बनाए रखने हेतु सुरक्षा के नए मानकों को स्थावपत
ककया जाना चावहए।
 आस क्षेत्र के ट्रेपनग आंिास्ट्रक्चर में तत्काल रूप से सुधार ककया जाना चावहए।

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2. बं द रगाह एवं जहाजरानी
 ववत्त वषथ 2007-17 के दौरान, भारतीय बंदरगाहों पर कागो ट्रैकफक 7.4% CAGR से बढा है।

2017 में कागो ट्रैकफक लगभग 943.1 MMT पहुंच गया है।

 कागो का एक बड़ा भाग ऄब प्रमुख बंदरगाहों से गैर-प्रमुख बंदरगाहों की तरफ ववस्थावपत हो गया

है। कु ल यातायात में गैर-प्रमुख बंदरगाहों के यातायात का योगदान ववत्त वषथ 2007 में 28.6

फीसदी से बढकर ववत्त वषथ 2016 में 43.5 फीसदी हो गया। ववत्त वषथ 2016 में गैर-प्रमुख

बंदरगाहों का कागो यातायात 466.1 MMT था।

वचत्र: भारतीय बंदरगाहों पर कागो ट्रैकफक

 वतथमान में भारत में 13 प्रमुख बंदरगाह हैं और समुद्र तट और द्वीपों को वमलाकर 200 ऄवधसूवचत

गैर-प्रमुख बंदरगाह हैं। प्रमुख बंदरगाहों को 1963 के मेजर पोटथ ट्रस्ट एक्ट के तहत कें द्र सरकार

द्वारा प्रशावसत ककया जाता है। आसका एक ऄपवाद एन्नोर पोटथ , है जो कक कं पनी ऄवधवनयम,

1956 के प्रावधानों के तहत प्रशावसत ककया जाता है। गैर-प्रमुख बंदरगाहों का प्रबंधन तटीय

राययों और संघों द्वारा संबंवधत तटरे खा के भीतर ककया जाता है।

 1997 में अर्नथक ईदारीकरण की सामान्य नीवत को ध्यान में रखते हुए, वनजी क्षेत्र के वलए

बंदरगाह क्षेत्र को खोल कदया गया था। तदनुसार, बड़े बंदरगाहों के पोत और कागो-संबंवधत

टैररफों को वववनयवमत करने के वलए एक टैररफ प्रावधकरण (TAMP) संस्था का वनमाथण ककया

गया था। TAMP को यह भी वजम्मेदारी दी गयी है कक वह प्रमुख पोटथ ट्रस्ट और वनजी ऑपरे टरों

की संपवत्तयों के पिा दरों का वववनयमन करे । वतथमान में भारतीय वशपपग क्षेत्र में 100% FDI की

ऄनुमवत है।

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वचत्र : भारत के प्रमुख बंदरगाह
पवश्चमी तट के प्रमुख बंदरगाह: कांडला (गुजरात), मुंबइ (महाराष्ट्र), मामाथगाओ (गोअ), न्यू मंगलौर

(कनाथटक), कोवच्च (के रल), जवाहरलाल नेहरू पोटथ (पूवथ में न्हावा शेवा)।

पूवी तट के प्रमुख बंदरगाह: तूतीकोररन, एन्नोर एवं चेन्नइ (तवमलनाडु ), ववशाखापिनम (अंध्र प्रदेश),

पारादीप (ओडीशा), कोलकाता-हवल्दया (प. बंगाल) एवं पोटथब्लेयर (ऄंडमान वनकोबार द्वीप समूह)।

प्रमुख बंदरगाह ववशेषताएाँ

यह कच्छ खाड़ी के वसरे पर वस्थत यवारीय बंदरगाह है। आसके पृष्ठ प्रदेश में गुजरात
कांडला सवहत राजस्थान, हररयाणा, पंजाब, वहमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर सवम्मवलत
हैं। महत्वपूणथ यातायात की वस्तुओं में खाद्य तेल, पेट्रोवलयम ईत्पाद, खाद्यान्न,
नमक, कपड़ा, कच्चा तेल आत्याकद सवम्मवलत हैं।

यह एक प्राकृ वतक पोताश्रय है। ववस्तृत पृष्ठ प्रदेश वजसमें महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य
मुंबइ प्रदेश, हररयाणा, पंजाब, कदल्ली, ईत्तर-प्रदेश और ईत्तराखंड शावमल हैं। आसके
द्वारा ऄवधकांशतः पेट्रोवलयम ईत्पाद एवं शुष्क कागो का पररवहन ककया जाता हैं।

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जवाहरलाल जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह को अधुवनक सुववधाओं से सुसवित ककया गया है।
नेहरू बंदरगाह मुंबइ बंदरगाह पर दबाव को कम करने के वलये ववकवसत ककया गया।

गोवा में ऄरब सागर तट पर जुअरी नदी के तट पर वस्थत है। यह बंदरगाह लौह-
मामाथगाओ ऄयस्क वनयाथत के वलए मुख्य है। आससे मैंगनीज, सीमेंट, ऄपवशष्ट, ईवथरक और
मशीन अयात की जाती है।

न्यू मंगलौर यह मुंबइ तक NH-17 और रे ल मागथ द्वारा जुड़ा हुअ है। यहां से लौह-ऄयस्क
(कु द्रेमुख से प्राि) का वनयाथत ककया जाता है। पेट्रोवलयम ईत्पाद, ईवथरक और शीरा
अकद प्रमुख अयात ककये जाने वाले ईत्पाद है।

कोवच्च यह एक प्राकृ वतक पोताश्रय है, जहां से ईवथरक, पेट्रोवलयम ईत्पाद एवं सामान्य नौ-
भार (कागों) का पररवहन होता है।

तूतीकोररन यह गहरा कृ वत्रम पोताश्रय है। समृि पृष्ठ प्रदेश के साथ रे ल और सड़क मागथ (NH-
7A) से भलीभांवत जुड़ा हुअ है, यहां से मुख्यतः कोयला, नमक, खाद्य तेल, शुष्क
और नौ-भार एवं पेट्रोवलयम ईत्पादों का वनयाथत ककया जाता है।

चेन्नइ यह एक कृ वत्रम पोताश्रय है, यहां से काफी मात्रा में पररवहन का अवागमन होता
है। पेट्रोवलयम ईत्पाद, कच्चा तेल, ईवथरक, लौह ऄयस्क और शुष्क कागो आत्याकद
प्रमुख मद हैं।

एन्नोर यह देश का प्रथम वनगवमत पत्तन है जो चेन्नइ से लगभग 20 Km दूर एन्नौर में
वस्थत है। यह एक प्राकृ वतक पोताश्रय है और प्रारं भ में थमथल कोयला, रसायनों,
LNG और पेट्रोवलयम ईत्पादों का संचालन करने के वलए वडजाआन और ववकवसत
ककया गया। आसका नया नाम कामराज पोटथ वलवमटेड ककया गया है।

ववशाखापिनम यह सवाथवधक गहरा और प्राकृ वतक बंदरगाह है। लौह-ऄयस्क के वनयाथत हेतु यहां
एक बाहरी पोताश्रय का ववकास ककया गया है। साथ ही कच्चे तेल के वलए भी एक
बथथ यहां स्थावपत है। आसके सुववस्तृत पृष्ठ प्रदेश हैं-अंध्र प्रदेश के ऄलावा, ओडीशा,
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ।

पारादीप यह गहरा तथा लैगन


ू सदृश बंदरगाह है। यहां से लौह ऄयस्क, कपास, मैंगनीज
और लौहा एवं आस्पात का वनयाथत ककया जाता है। जबकक पेट्रोवलयम ईत्पाद, खाद्य
तेल और मशीनों का अयात ककया जाता है।

कोलकाता- यह हुगली नदी के मुहाने पर वस्थत बंदरगाह है। आसके सुववस्तृत क्षेत्र में छत्तीसगढ,
हवल्दया
वबहार, झारखण्ड, ओडीशा, पूवोत्तर प्रदेश और ईत्तर प्रदेश शावमल हैं। यहां से जूट
ईत्पाद, ऄभ्रक, कोयला तथा मशीनों का व्यापार होता है।

पोटथब्लेयर ऄंडमान वनकोबार द्वीप समूह में वस्थत पोटथब्लेयर को कें द्र सरकार द्वारा 1 जून,
2010 को प्रमुख बंदरगाहों की श्रेणी में रखा गया।

तावलका : भारत के प्रमुख बंदरगाह

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2.1. राष्ट्रीय समु द्री ववकास कायथ क्र म (NMDP)

 NMDP का ईद्देश्य वैवश्वक मानकों को ध्यान में रखते हुए भारत में बुवनयादी ढांचे का ईन्नयन और
अधुवनकीकरण करना है। बंदरगाहों में वनजी क्षेत्र की भागीदारी मुख्य रूप से व्यावसावयक रूप से
लाभप्रद पररयोजनाओं में होती है जैसे कक बथथ, टर्नमनलस का संचालन और ईनका ववकास।
सावथजवनक ववत्त पोवषत पररयोजनाएं कॉमन यूजर आंिास्ट्रक्चर के वनमाथण गवतवववध को समावहत
करती हैं। आसमें बड़ी संख्या में पररयोजनाएं शावमल हैं, वजनमें सभी प्रमुख बंदरगाह गवतवववधयााँ
सवम्मवलत हैं जैसे:
o बथथ का वनमाथण / ईन्नयन
o समुद्री चैनलों को गहरा करना
o रे ल/सड़क कनेवक्टववटी
o टनभार ऄवधग्रहण
o समुद्री प्रवशक्षण
o तटीय वशपपग
o नेववगेशन के वलए ऄनुदान
o जहाज वनमाथण और
o ऄंतदेशीय जल पररवहन (IWT) अधारभूत संरचना का वनमाथण

2.2. वशपपग

 देश के कु ल व्यापार का 95% वहस्सा (मूल्य के मामले में 68%) समुद्री मागों के द्वारा संचाररत
होता है। भारत के पास ववश्व का सबसे बड़े व्यापाररक वशपपग फ्लीट में से एक है।
 भारतीय वशपपग फ्लीट की औसत अयु 18.03 वषथ है। ऄक्टू बर, 2016 तक भारत के पास 11.24
MGT के कु ल 1299 जहाज हैं। कु ल टन भार में लगभग 1.52 वमवलयन GT के 900 जहाज
तटीय व्यापार में संलग्न हैं और शेष 399 जहाज ववदेशी व्यापार में संलग्न हैं। भारतीय जहाजों
द्वारा संचावलत माल के टन भार में वृवि के बावजूद, 1987-88 के 40.7% से घटकर 2014-15
में कु ल वनयाथत-अयात (एवक्जम) व्यापार का 7.45% प्रवतशत हो गया।

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2.3. तटीय वशपपग

 तटीय वशपपग भारतीय पररवहन नेटवकथ का एक उजाथ सक्षम, पयाथवरण ऄनुकूल और वमतव्ययी
पररवहन साधन है। यह घरे लू ईद्योग एवं व्यापार के ववकास के वलए एक महत्वपूणथ घटक है। ऄरब
सागर में लक्षद्वीप और बंगाल की खाड़ी में ऄंडमान और वनकोबार द्वीप समूह के ऄवतररि भारत
ऄपने 7,516 ककलोमीटर तटरे खा के साथ 9 समुद्री राययों के लगभग 3,80,000 वगथ ककमी क्षेत्र
को कवर करता है।
 भारत के EEZ क्षेत्र में ईप समुद्री संसाधनों के दोहन में भारी वृवि देखी है। भारत के पास एक
लंबी तटरे खा है जो प्रमुख और गैर-प्रमुख बंदरगाह युि है। यह पररवहन के आस वैकवल्पक मोड के
ववकास के वलए ऄनुकूल एवं सहयोगी है।

2.4. ऄं त दे शीय जल पररवहन (Inland Water Transport)

 भारत में कु ल 14,500 ककलोमीटर जलमागथ नौगम्य हैं। ऄंतदेशीय जल पररवहन (IWT) बुवनयादी
ढांचों के ववकास के कइ लाभ हैं, जैसे:
o ईंधन दक्षता
o पयाथवरण ऄनुकूल
o लागत प्रभावी
o ववशेष रूप से भारी वस्तुओं एवं खतरनाक वस्तुओं की अवाजाही हेतु सड़क और रे ल नेटवकथ
पर बोझ को कम करना।
 ऄंतदेशीय जलमागथ पररवहन (IWT) क्षेत्र दीघथकाल तक वनवष्क्रय रहा। फलतः समग्र पररवहन क्षेत्र
में आसकी प्रासंवगकता और महत्व कम होता चला गया। ईंधन की बचत, पयाथवरण ऄनुकूलता तथा
थोक वस्तुओं और जोवखम भरे वस्तुओं अकद के पररवहन के वलए IWT कोररडोर की लागत
प्रभावशीलता ऄत्यंत ईपयोगी है। आस संदभथ में यह अवश्यक है कक वजस भी स्थल पर IWT
कॉररडोर की संभावना ववद्यमान है, वहां आस संचार साधन को बुवनयादी ढांचे के साथ ववकवसत
ककया जाए ताकक बढते कागो और यात्री पररवहन के वलए आनका ईपयोग ककया जा सके ।
 IWT ऄवसंरचना ववकास के वलए कइ कदम ईिाए जा रहे हैं। आनका मुख्य फोकस कागो-संबंवधत
पररयोजनाओं पर है। IWT क्षेत्र के ववकास हेतु राष्ट्रीय जलमागथ ऄवधवनयम, 2016 वतथमान में
कायथरत 5 राष्ट्रीय जलमागथ सवहत 111 नए राष्ट्रीय जलमागों को घोवषत ककया गया है। नए राष्ट्रीय
जलमागों की तकनीकी अर्नथक व्यवहायथता (TEF) ऄध्ययन/ववस्तृत पररयोजना ररपोटथ (DPR)
तैयार करने की प्रकक्रया भी शुरू की गइ है। ऄभी तक प्राि संभाव्यता ररपोटों के ऄनुसार, ऄगले
तीन वषों में 32 नए राष्ट्रीय जलमागथ और पहले से मौजूद पांच राष्ट्रीय जलमागों को ववकवसत
ककया जाना है।

2.4.1. राष्ट्रीय जलमागथ

 राष्ट्रीय जलमागों का ववकास, रख-रखाव एवं प्रबन्ध अंतररक जलमागथ प्रावधकरण (आनलैण्ड
वाटरवेज ऄथॉररटी ऑफ आवण्डया: IWAI) द्वारा ककया जाता है। आस प्रावधकरण का गिन 1986 में
ककया गया था। आसका ईद्देश्य नौवहन और समुद्री अवागमन को सुवनवश्चत करना है। आसका
मुख्यालय नोएडा (ईत्तर प्रदेश) में है। राष्ट्रीय जलमागथ (गंगा-भगीरथी-हुगली नदी तंत्र का
आलाहाबाद-हवल्दया भाग) एक्ट, 1982 के ऄनुसार आस जल मागथ के ववकास का दावयत्व के न्द्रीय
सरकार पर है। वनम्नांककत पााँच जल-मागथ (2010-11 तक) राष्ट्रीय जलमागथ के तौर पर घोवषत
ककए गए हैं :

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(i) राष्ट्रीय जलमागथ-1 : यह भारत के सवाथवधक महत्वपूणथ जलमागों में से एक है। यह गंगा-भागीरथी-

हुगली नदी तंत्र का 1620 km लंबा आलाहाबाद-हवल्दया मागथ है। आसकी घोषणा 1986 में की गइ थी।
यह जलमागथ पटना तक यंत्रीकृ त नौकाओं द्वारा नौगम्य है तथा हररद्वार तक साधारण नौकाओं का
प्रयोग ककया जाता है। ववकास की दृवष्ट से यह तीन भागों में ववभि ककया जा सकता है:
 हवल्दया से फरक्का तक (560 km)

 फरक्का से पटना तक (460km)

 पटना से आलाहाबाद (600 km)

जल मागथ ववकास पररयोजना


राष्ट्रीय जलमागथ -1 (गंगा नदी) के हवल्दया से वाराणसी खंड (चरण -1) की क्षमता में वृवि के वलए जल
मागथ ववकास पररयोजना प्रारं भ की गइ है। ववश्व बैंक द्वारा आस पररयोजना को तकनीकी और ववत्तीय
सहायता प्रदान की जायेगी। आस पररयोजना की ऄनुमावनत लागत 5639 करोड़ रुपये है। आसका ईद्देश्य

NW-1 को 1500-2000 टन जहाजों के नेववगेशन के योग्य बनाना हैl आस पररयोजना को वववभन्न ईप-

पररयोजनाओं में ववभि ककया गया है जैसे- फे यरवे ववकास, नेववगेशनल ईपकरणों का ईपयोग,

वाराणसी, सावहबगंज और हवल्दया में मल्टी-मोडल टर्नमनलों का वनमाथण, फरक्का पर नए नेववगेशन

लॉक का वनमाथण, ररवर बैंक संरक्षण कायथ, LNG जहाज आत्याकद।

(ii) राष्ट्रीय जलमागथ-2: यह ब्रह्मपुत्र नदी पर 891 km लंबा सकदया-धुबरी जलमागथ है। वषथ 1988 में

आसकी घोषणा की गइ थी। ब्रह्मपुत्र नदी में वडब्रूगढ तक स्टीमर चलाए जा सकते हैं (1384 km)।

(iii) राष्ट्रीय जलमागथ-3 : यह के रल में कोिापुरम से कोल्लम तक ववस्तृत है। आस मागथ की लम्बाइ 168

km है। आसके तहत 168 km पवश्चमी तटीय नहर के साथ ईद्योगमंडल नहर (250 km) और चंपाकारा

नहर सवम्मवलत हैं। वषथ 1991 में आस जलमागथ की घोषणा की गइ थी।

(iv) राष्ट्रीय जलमागथ-4 : यह गोदावरी और कृ ष्णा नदी एवं काकीनाडा और पुदच


ु रे ी नहर और

कालुवल
ै ी टैंक पर बना है। 2008 में आस जलमागथ की घोषणा की गइ थी। आस मागथ की लम्बाइ 1028

km है।

(v) राष्ट्रीय जलमागथ-5 : यह ब्रह्माणी नदी के तालचेर धमरा नहर, पूवी नहर के वजयानखली से

चरबवतया, महानदी डेल्टा नदी-तंत्र के साथ मताइ नदी पर ववस्तृत चरबवतया-धमरा मागथ को

सवम्मवलत करता है। आस मागथ की लम्बाइ 585 km है। 2008 में आस जलमागथ की घोषणा की गइ थी।

(vi) राष्ट्रीय जलमागथ-6 : बराक नदी में लखीमपुर-भंगा मागथ देश का छिवां जलमागथ है। आसकी लम्बाइ

121 km है। आसके पररणामस्वरूप ईत्तरी-पूवी क्षेत्र, ववशेष रूप से ऄसम, नागालैंड, वमजोरम,

मवणपुर, वत्रपुरा एवं ऄरुणाचल प्रदेश क्षेत्रों के जहाजरानी एवं माल पररवहन का एकीकृ त ववकास

संभव होगा। जनवरी 2013 में आस मागथ कें द्रीय मंवत्रमण्डल ने छिवें राष्ट्रीय जलमागथ के रूप में स्वीकृ वत
प्रदान की थी।
 कें द्रीय जल अयोग द्वारा ईत्तर की नकदयों को प्रायद्वीपीय नकदयों से जोड़ने तथा कोलकाता एवं
मंगलौर को जलमागों की तटीय प्रणाली के माध्यम से संयुि करने का प्रस्ताव रखा गया है। राष्ट्रीय
जलमागथ ऄवधवनयम, 2016 के ऄनुसार, 111 जलमागों को राष्ट्रीय जलमागथ (NWs) घोवषत

ककया गया है वजसमें पााँच मौजूदा NWs सवम्मवलत हैं।

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वचत्र : भारत के राष्ट्रीय जलमागथ
भारत के ऄंत:स्थलीय जल पररवहन में समस्याएाँ
 नकदयों एवं नहरों में नौकायन की सुववधा मुख्यतः जल प्रवाह की वनरं तरता तथा ईस की गहराइ
पर वनभथर होती हैं वजसमें नौकायें चलाइ जा सकें । मौसम के ऄनुसार जल की मात्रा स्तर में ईतार-
चढाव तथा जल-प्रपातों की ईपवस्थवत जल पररवहन के समक्ष करिनाइ ईत्पन्न करते हैं।
 साथ ही नदी तल में ऄवसादों का जमाव, पसचाइ के वलये नहरों में पानी प्रवावहत ककए जाने के
कारण नदी जल की मात्रा में कमी, जल मागों ववशेष रूप से तटीय अन्तररक जल मागों की प्रमुख
समस्याएाँ हैं।

2.5. वशपपग कॉपोरे शन ऑफ आं वडया

 भारतीय वशपपग कॉपोरे शन की स्थापना 2 ऄक्टू बर 1961 को की गयी थी। पूवी वशपपग
कॉपोरे शन और पवश्चमी वशपपग कॉपोरे शन के एकीकरण से आसकी स्थापना हुइ थी।
 वसफथ 19 जहाजों के साथ एक सीमांत लाआनर वशपपग कं पनी के रूप में अरं भ होने वाली SCI
अज भारत की सबसे बड़ी वशपपग कं पनी है। वशपपग व्यापार के वववभन्न क्षेत्रों में SCI के महत्वपूणथ
शेयर हैं। SCI के स्वावमत्व वाली बेड़े में थोक वाहक, क्रूड ऑयल टैंकर, ईत्पाद टैंकर, कं टेनर
वाहक, यात्री-सह-कागो वाहक, फास्फोररक एवसड/रासायवनक वाहक, LPG/ऄमोवनया वाहक
और ऑफशोर सप्लाइ वेसल शावमल हैं। लगभग पांच दशकों के नौकायन आवतहास के साथ,
वतथमान में SCI की वैवश्वक समुद्री मानवचत्र पर एक महत्वपूणथ ईपवस्थवत है।
 देश की प्रमुख वशपपग कं पनी के रूप में, SCI भारतीय टन भार के लगभग एक वतहाइ वहस्से का
भार वहन करता है और राष्ट्रीय और ऄंतराथष्ट्रीय वशपपग व्यवसाय दोनों में, व्यावहाररक रूप से
संचालनशील वहतों का संचालन करता है l

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 भारतीय व्यापार की मांग को देखते हुए SCI के द्वारा ऄपने कायो का वववववधकरण ककया गया है।
वतथमान में SCI एकमात्र भारतीय वशपपग कं पनी है जो ब्रेक-बल्क सर्नवस, ऄंतरराष्ट्रीय कं टेनर
सेवाएं, तरल/सूखी थोक सेवाएं, ऄपतटीय सेवाएं, यात्री सेवाएं अकद का संचालन करती है। आसके
ऄवतररि, SCI वववभन्न सरकारी ववभागों और संगिनों की तरफ़ से बड़ी संख्या में जहाजों का
प्रबंधन करता है।
 भारत सरकार ने ऄगस्त, 2009 में SCI को "नवरत्न" का दजाथ प्रदान ककया है। नवरत्न दजाथ प्राि
करने के पश्चात् कं पनी की पूज
ं ीगत व्यय, संयुि ईपक्रमों का वनमाथण, ववलय अकद शवियों में
स्वायत्तता एवं प्रवतवनवधत्व को प्रोत्साहन वमला है।

2.6. भारत में जहाज वनमाथ ण ईद्योग

 सरकारी स्वावमत्व वाले कोचीन वशपयाडथ वलवमटेड और पहदुस्तान वशपयाडथ वलवमटेड भारत के
प्रमुख वशपयाडथ हैं। वनजी वशपयाडथ की संख्या ऄवधक है परन्तु जहाजों के अकार के सन्दभथ में
ईनकी वनमाथण क्षमता सीवमत हैं। भारतीय जहाज़ वनमाथण ईद्योग के वल भारतीय और ऄंतराथष्ट्रीय
कागो का ही ईत्पादन नहीं करता, बवल्क संपण
ू थ जहाज की मरम्मत की सुववधा भी प्रदान करता है।
कोचीन वशपयाडथ देश का सबसे बड़ा वशपयाडथ है।
जहाज़ वनमाथण ईद्योग वनम्न में ववभावजत है:
 नए जहाज वनमाथण याडथ: नया जहाज़ वनमाथण याडथ मुख्य रूप से वावणवययक और रक्षा जहाजों के
वनमाथण में सकक्रय हैं। ABG वशपयाडथ, भारती वशपयाडथ, मॉडेस्ट, पीपावाव वशपयाडथ, L&T
वशपयाडथ, कोचीन वशपयाडथ अकद कु छ प्रमुख याडथ हैं।
 जहाजों की मरम्मत : भारतीय जहाज मरम्मत ईद्योग में लगभग 7 वशप ररपेयर यूवनट (SRU's)
सवम्मवलत हैं: एलकॉक एशडोन एंड कं वलवमटेड, चेन्नइ पोटथ ट्रस्ट, पहदुस्तान वशपयाडथ वलवमटेड,
मुंबइ बंदरगाह ट्रस्ट, कोचीन वशपयार्डसथ, गाडथन रीच वशपवबल्डसथ और मझगांव डॉक वलवमटेड को
SRU's के रूप में स्थायी ऄनुमोदन प्रदान ककया गया है।

वचत्र: प्रमुख वशपयाडथ

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2.6.1. भारतीय जहज़ वनमाथ ण ईद्योग का SWOT ववश्ले ष ण

 वैवश्वक मंदी ने जहाज वनमाथण ईद्योग, ववशेष रूप से वनजी क्षेत्र में कइ याडों की ववत्तीय वस्थवत को

प्रभाववत ककया है। 2008 के बाद से बाजार में वगरावट और सरकार के नीवतगत समथथन की कमी

के कारण, रक्षा वशपयाडों को छोड़कर, जब वैवश्वक वशप वबपल्डग के बहुत कम ऑडथर अ रहे हैं ऐसे
में सभी पोत कारखाने को चुनौवतयों का सामना करना पड़ रहा है।
 भारतीय जहाज वनमाथण ईद्योग ने रक्षा और ऄपतटीय क्षेत्र के जहाजों के वनमाथण पर ध्यान देना
जारी रखा है। भारतीय नौसेना बेड़े की ववस्तार योजनाएं और भारतीय तट रक्षक के वलए जहाजों
का वनमाथण ऐसे दो प्रमुख खंड है, वजन्हें भारतीय वशपयाडों द्वारा लवक्षत ककया गया है। भारतीय
वावणवययक जहाज वनमाथण में नए अडथर की कमी तथा सरकार के नीवतगत समथथन की कमी का
भारतीय जहाज वनमाथण पर प्रवतकू ल प्रभाव पड़ा है। वषथ 2016 में, जहाज वनमाथण ईद्योग की
मजबूती के वलए सरकार ने वनम्नवलवखत पहल ककये हैं:
 वशपयाडथ को बुवनयादी ढांचे का दजाथ: आस दजे के साथ, वशपयाडथ लंबी ऄववध की पररयोजनागत

ऊणों की लचीली संरचना का लाभ ईिा पाएंगे, कम ब्याज दर पर आं िास्ट्रक्चर का लंबी ऄववध के

वलए फं पडग और ईनके पररसंपवत्तयों के आकोनॉवमक लाआफ तक ववत्त का वनवेश, ECB के


सरलीकृ त वनयमों के ऄंतगथत वमल पायेगा। कायथशील पूज
ं ी की अवश्यकताओं की पूर्नत के वलए
ऄवसंरचना बांड जारी ककया जायेगा l

 भारतीय वशपयाडथ के वलये सहायता: भारत सरकार ने घरे लू वशप वबपल्डग को प्रोत्सावहत करने के

वलए 4000 करोड़ रुपये से 10 वषथ की समयाववध के वलए एक जहाज वनमाथण ववत्तीय सहायता

नीवत की शुरुअत की है है l

 कर ऄनुपालन के वलए प्रकक्रया का सरलीकरण : जहाज वनमाथण कारोबार में इज ऑफ डू आंग

वबजनेस के वलए 2016-2017 के कें द्रीय बजट में, भारत सरकार ने वशप वबल्डरों के वलए कर

ऄनुपालन की सरलीकृ त प्रकक्रया जारी की है, जबकक वशप वबपल्डग और जहाज मरम्मत के वलए
ड्यूटी-िी माल की खरीद नीवत वनर्नमत की गयी है।

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2.7. प्रमु ख ववकास पररयोजनाऐं

2.7.1. सागर माला पररयोजना

 सागरमाला पररयोजना (नीली क्रांवत) का मुख्य ईद्देश्य पोटथ-प्रचावलत प्रत्यक्ष एवं ऄप्रत्यक्ष ववकास
का प्रोत्साहन है और एक बंदरगाह से दूसरे बंदरगाहों तक के पररवहन को कु शलतापूवक थ और
लागत-प्रभावी ढंग से बुवनयादी ढांचा प्रदान करना है। आसवलए, सागर माला पररयोजना का लक्ष्य
ऄन्य क्षेत्रों के साथ-साथ नए ववकास क्षेत्रों तक पहुंच ववकवसत करना है, जो आं टर मॉडल समाधान
और आष्टतम मोडल वस्प्लट को बढावा देगा और वजससे मुख्य अर्नथक कें द्रों के साथ रे ल, ऄंतदेशीय
जलमागथ, तटीय और सड़क सेवाओं के ववस्तार को बढावा वमलेगा।
 यह भारतीय बंदरगाहों के अधुवनकीकरण के वलए भारत सरकार की एक रणनीवतक और ग्राहक-
ईन्मुख पहल है, ताकक पोटथ संचावलत ववकास को बढाया जा सके और भारत के ववकास में तट
रे खाएं सहायता कर सकें ।
 सागर माला कायथक्रम ऄब संकल्पना और वनयोजन के चरण से अगे बढ कर कायाथन्वयन के चरण
में अ गया है। भारत के तटीय एवं समुद्री क्षेत्र के व्यापक ववकास के वलए राष्ट्रीय पररप्रेक्ष्य योजना
(NPP) तैयार की गइ है। वजसे 14 ऄप्रैल 2016 को पहली बार आसे समुद्री भारत वशखर सम्मेलन
2016 में जारी ककया गया था।
 सागरमाला के ऄंतगथत, 400 से ऄवधक पररयोजनाओं को, बंदरगाह अधुवनकीकरण, नए बंदरगाह
ववकास, बंदरगाह कनेवक्टववटी में वृवि, बंदरगाह संबंवधत औद्योगीकरण और तटीय सामुदावयक
ववकास के क्षेत्रों में 7 लाख करोड़ रुपये की लागत से कक्रयावन्वत ककया जायेगा। आन पररयोजनाओं
को मुख्य रूप से वनजी या PPP मोड के माध्यम से संबंवधत कें द्रीय मंत्रालयों, रायय सरकारों,
बंदरगाहों और ऄन्य एजेंवसयों द्वारा कायाथवन्वत ककया जाएगा।
 20 जुलाइ 2016 को मंवत्रपररषद की मंजरू ी वमलने के पश्चात्, 31ऄगस्त 2016 को सागरमाला
ववकास कं पनी (SDC) की स्थापना की गयी। वजसका ईद्देश्य सागरमाला के तहत ऄववशष्ट
पररयोजनाओं को आकिटी समथथन प्रदान करना था।
 पोटथ अधुवनकीकरण और नए बंदरगाहों का ववकास - प्रमुख बंदरगाहों के वलए मास्टर प्लान को
ऄंवतम रूप प्रदान ककया गया है। आस अधार पर ऄगले 20 वषों में 142 बंदरगाहों की क्षमता में
ववस्तार ककया जायेगा।
 पोटथ कनेवक्टववटी वृवि: भारतीय पोटथ रे ल कॉपोरे शन वलवमटेड (IPRCL) ने 9 प्रमुख बंदरगाहों में
25 वववभन्न कायों को पूरा करने की वजम्मेदारी ली है। आनमें से 8 कायथ पहले से ही प्रदत्त हैं और
ववत्त वषथ 2016-17 के वलए 5 ऄवतररि कायथ कदए जायेंगे। सागरमाला के तहत वचवन्हत 79
सड़क पररयोजनाओं में से 45 पररयोजनाएं सड़क पररवहन और राजमागथ मंत्रालय तथा NHAI
द्वारा कक्रयावन्वत की जाएगी। वजसमें 18 पररयोजनाऐं भारतमाला योजना के ऄंतगथत अती हैं।
 बंदरगाह संचावलत औद्योवगकीकरण के प्रोत्साहन हेतु, सभी समुद्री राययों तथा कें द्र शावसत प्रदेशों
को सवम्मवलत करने वाले 14 तटीय अर्नथक क्षेत्रों (CEZs) का प्रस्ताव रखा गया है। CEZ एक
स्थावनक-अर्नथक क्षेत्र है जो समुद्र तट से 300-500 ककलोमीटर की दूरी तक और तट रे खा से
200-300 ककमी ऄंदर तक ववस्तृत होता है। प्रत्येक CEZ रायय में संबंवधत प्रमुख और गैर-प्रमुख
बंदरगाहों के साथ जुड़ा होगा तथा CEZ का योजनाबि औद्योवगक गवलयारों के साथ सहकक्रयाओं
को टैप करने की पररकल्पना की गइ है।

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 सागर माला कायथक्रम के तटीय सामुदावयक ववकास ईद्देश्य के वहस्से के रूप में, जहाज़रानी
मंत्रालय कइ पहल/पररयोजनाएं कक्रयावन्वत कर रहा है। आनमें से समुद्री मत्स्य पालन क्षेत्र के
ववकास तथा तटीय कौशल समुदाय पररयोजना ईल्लेखनीय हैं।
 सागरमाला कायथक्रम के तहत वचवन्हत पररयोजनाओं से 7 लाख करोड़ रुपये से ऄवधक की
अधारभूत ढांचा वनवेश रावश जुटाने की संभावना है। घरे लू जलमागथ (ऄंतदेशीय और तटीय) के
शेयरों को मोडल वमक्स के तहत दोगुना ककया जाएगा। प्रवतवषथ रु 35,000-40,000 करोड़ की
बचत करें ग,े व्यापाररक वस्तुओं के वनयाथत को 110 ऄरब डॉलर तक बढाकर ऄगले 10 वषों में 40
लाख प्रत्यक्ष रोजगार सवहत 1 करोड़ नए रोजगार ऄवसरों का सृजन करने में सक्षम होंगे।

2.7.2. प्रमु ख बं द रगाह प्रावधकरण ववधे य क, 2016

 बंदरगाहों के बुवनयादी ढांचे के ववस्तार, व्यापार और वावणयय की सुववधा को बढावा देने के


ईद्देश्य से, वबल का लक्ष्य वनणथयन में ववके न्द्रीकरण और बंदरगाहों के प्रशासन में व्यावसावयकता
को शावमल करना है। नया प्रमुख बंदरगाह प्रावधकरण ववधेयक, 2016 वहतधारकों को लाभ
पहुंचाएगा और बेहतर पररयोजना वनष्पादन तथा क्षमता वृवि हेतु तेजी से पारदशी वनणथय लेने में
सहायक होगा।
 ववधेयक का लक्ष्य वैवश्वक बंदरगाहों के मानक को ध्यान में रखते हुए कें द्रीय बंदरगाहों के प्रशासन
मॉडल को पुनगथरित करना है। आससे प्रमुख बंदरगाहों के संचालन में पारदर्नशता लाने में भी मदद
वमलेगी।

2.7.3. मचें ट वशपपग एक्ट, 1958 के स्थान पर पु न र्ननर्नम त मचें ट वशपपग वबल

 भारतीय नौवहन के तहत भार वहन क्षमता को बढाने, समुद्री ऄवधकाररयों के संरक्षण और
ऄवधकारों की सुरक्षा, जहाजों की सुरक्षा और समुद्र में जीवन की सुरक्षा अकद चुनौवतयों का
सामना करने के वलए यह ववधेयक लाया गया हैl व्यवसाय में सरलता, भारतीय तटीय नौवहन
और व्यापार के ऄंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों के तहत भारत के दावयत्वों का ऄनुपालन सुवनवश्चत करने
हेतु एवं समकालीन प्रावधानों के साथ पुराने ऄनावश्यक प्रावधानों के प्रवतस्थापन के वलए, मचेंट
वशपपग वबल, 2016 लाया गया है। आस वबल को मचेंट वशपपग एक्ट, 1958 के स्थान पर लाया जा
रहा है।

2.7.4. एडवमरै वलटी ववधे य क, 2016

 21 नवंबर, 2016 को संसद में एडवमरै वलटी वबल, 2016 प्रस्ताववत ककया गया। एडवमरै वलटी का
संबंध ईच्च न्यायालयों की शवियों से है जो समुद्र और जलमागथ के द्वारा पररवहन पर लागू होती
है। वतथमान सांवववधक रूपरे खा के तहत, भारतीय न्यायालयों का एडवमरै वलटी क्षेत्रावधकार वब्ररटश
युग में ऄवधवनयवमत कानूनों से प्राि होता है। प्रस्ताववत ववधेयक न्यायालयों के एडवमरै वलटी
क्षेत्रावधकार, समुद्री दावों पर त्वररत एवं सरलता पूणथ कारथ वाइ, जहाजों को रोकना और संबंवधत
मुद्दों पर मौजूदा कानूनों को समेककत करता है। वसववल मामलों में नौसेना के ऄवधकार क्षेत्र पर
पांच पुराने वब्ररटश ऄवधवनयमों को वनरस्त करता है। ववधेयक भारत के तटीय राययों में वस्थत ईच्च
न्यायालयों को एडवमरै वलटी का न्यायक्षेत्र प्रदान करता है जो क्षेत्रीय जल पर भी लागू होगा। यह
ववधायी प्रस्ताव समुद्री ववधायी वबरादरी (maritime legal fraternity) के लंबी समय से चली
अ रही मांग की पूर्नत करे गा।

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2.7.5. भारतीय समु द्री वशखर सम्मले न , 2016

 14-16, ऄप्रैल 2016 को जहाजरानी मंत्रालय द्वारा मुब


ं इ में प्रथम भारतीय समुद्री वशखर
सम्मलेन, 2016 का अयोजन ककया गया। वशखर सम्मेलन का ईद्देश्य भारतीय समुद्री क्षेत्र की
क्षमता के प्रवत जागरूकता पैदा करना और वनवेश के ऄवसरों का प्रदशथन करना था।भारत को एक
अकषथक वनवेश गंतव्य के रूप में प्रस्तुत करने पर ववशेष ध्यान कदया गया था।

2.7.6. दक्षता में सु धार करने के वलए ईपाय

 पोटथ ऑपरे टरों को लचीलापन प्रदान करने के वलए टैररफ कदशावनदेशों को संशोवधत ककया गया था
ताकक प्रदशथन मानकों के ऄनुरूप टैररफ को बाजार मूल्य के वनकट लाया जा सके । पोटथ सेक्टर की
PPP पररयोजनाओं में 100% FDI की ऄनुमवत है। मॉडल कन्सेशन एग्रीमेंट को संशोवधत ककया
जा रहा है ताकक PPP पररयोजनाओं के वनष्पादन को प्रभाववत करने वाली अकवस्मकताओं से
वनपटा जा सकें । संस्थागत ढांचे को ऄवधक स्वायत्तता और अधुवनकीकरण प्रदान करने हेतु मौजूदा
प्रमुख बंदरगाह ऄवधवनयम, 1963 के स्थान पर एक नया प्रमुख बंदरगाह प्रावधकरण ऄवधवनयम
ववचाराधीन है। एक नइ बर्थथग पॉवलसी (berthing policy) और स्टीवेडोररग पॉवलसी
(stevedoring policy) वनर्नमत की गइ है।
 मंत्रालय ने प्रमुख बंदरगाहों में ड्राफ्ट वृवि हेतु एक कायथ योजना तैयार की है वजससे बड़े जहाजों के
संचलन में प्रमुख बंदरगाहों को सक्षम बनाया जा सके ।

2.7.7. बं द रगाहों में ववशे ष पहल

 बंदरगाहों के व्यवसाय को प्रोत्साहन और इज ऑफ डू आंग वबजनेस के वलए, कइ गवतवववधयों जैसे


मैनऄ
ु ल फॉम्सथ का ईन्मूलन, सीधे पोटथ पर वडलीवरी, बंदरगाहों पर कं टेनर स्कै नर की स्थापना,
RFID अधाररत स्वचालन प्रणाली अकद शावमल हैं। आसके ऄवतररि, स्वच्छ भारत ऄवभयान और
ग्रीन एजेंडे के तहत, प्रमुख बंदरगाहों को ववत्तीय सहायता प्रदान करने और तेल प्रदूषण या ऑआल
स्पील से वनपटने की ईनकी क्षमता के वनमाथण के वलए नइ योजनाएं तैयार की गइ हैं। ऄगले पांच
वषों में प्रमुख बंदरगाह 150 मेगावाट (सौर और पवन उजाथ) से ऄवधक ईजाथ ईत्पन्न करने के वलए
नवीकरणीय उजाथ पररयोजनाएं कायाथवन्वत कर रहे हैं। ववशेष बंदरगाहों के असपास ववशेष
अर्नथक क्षेत्रों (SEZ) और तटीय अर्नथक क्षेत्रों की स्थापना पर फोकस ककया जा रहा है।

2.7.8. तटीय नौवहन, पयथ ट न और क्षे त्रीय ववकास के वलए ववजन अले ख

 तटीय वशपपग से कम पयाथवरण प्रदूषण होता है क्योंकक आसमें ईंधन की प्रवत ककलोमीटर लागत
कम अती है। हालांकक, समेककत कागो और ररटनथ कागो की ऄनुपलब्धता और वशपसथ कम्युवनटी के
बीच जागरूकता की कमी के कारण तटीय वशपपग ऄलाभकारी है। आसके ववपरीत, सड़क के डोर टू
डोर कागो संचलन की क्षमता के रे ल और सड़क की ईच्च सघनता ने तटीय वशपपग को मुवश्कल बना
कदया हैl
 तटीय नौवहन और ऄंतदेशीय जल पररवहन का वहस्सा 2019-20 तक 10% तक बढाने और
समुद्री पयथटन तथा तटीय क्षेत्रों के ववकास के वलए, नौवहन मंत्रालय ने "कोस्टल वशपपग, पयथटन
और क्षेत्रीय ववकास" की एक कायथ योजना बनायी है। आसे सभी वहतधारकों के परामशथ के साथ
बनाया गया है। आस योजना का प्रमुख ईद्देश्य तटीय/IWT मोड के शेयर को 2019-20 तक 7% से
बढाकर 10% करना, संपूणथ अपूर्नत श्रृंखला के रूप में तटीय वशपपग का ववकास करना, IWT और
तटीय मागों का एकीकरण, तटीय कागो के वलए क्षेत्रीय कें द्रों का ववकास, घरे लू क्रूज ईद्योग का
ववकास और लाआटहाईस पयथटन को प्रोत्साहन देना है।

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2.8. चु नौवतयााँ

 गत वषों में, प्रमुख बंदरगाहों की कागो हैंडपलग क्षमता में लगातार वृवि हुइ है। हालांकक, बढते
यातायात की मांग स्पष्ट रूप से क्षमता में वृवि को पीछे छोड़ रही है, वजसके पररणामस्वरूप
बंदरगाहों पर दबाव बढ रहा है।ऄपने वववभन्न लाभों के बावजूद भारत के घरे लू पररवहन में तटीय
वशपपग का वहस्सा काफी कम है। भारत के बंदरगाहों की क्षमता ऄत्यंत बावधत है और वनकट
भववष्य में ऐसा बने रहने की संभावना है।
 वतथमान में, देश में बंदरगाहों के स्थान या आन बंदरगाहों में समग्र वनवेश कायथक्रम के वलए कोइ
व्यापक और सुसंगत रणनीवत नहीं है। ऄब तक, प्रमुख और गैर-प्रमुख बंदरगाहों में वनवेश कु छ
ऄव्यववस्थत ढंग से ककया गया है, वजसके पररणामस्वरूप ईपक्षेत्रीय दूरसंचार कनेवक्टववटी,
ऄपयाथि बुवनयादी ढांचा एवं ड्राफ्ट, और वनम्न स्तर के कं टेनराइज़ेशन, वजस कारण से बंदरगाह पर
ऄत्यवधक भीड़ और ईच्च लेनदेन लागत का प्रादुभाथव होता है। भारतीय बंदरगाहों के अधारभूत
ढांचे की ऄपयाथिता की एक स्पष्ट ऄवभव्यवि यह है कक वतथमान में, बड़े कं टेनर जहाजों को
संभालने में भारतीय ऄसमथथता के कारण भारतीय समुद्री व्यापार का एक बड़ा वहस्सा, कोलंबो या
पसगापुर को ट्रांसवशप्ड (trans shipped) होता है।
 मौजूदा वनवेश प्रवृवत्तयों से पररवहन पलक जो बढते गैर-प्रमुख बंदरगाहों से जुड़ते हैं, ईनके वनमाथण
में महत्वपूणथ क्षवत और ऄक्षमताएं हो सकती हैं। जहााँ बंदरगाहों का भौवतक ढांचा मनमाने ढंग से
बढा है, वही पोटथ प्रशासन हेतु स्वीकायथ, लैंड लाडथ मॉडल के ववकास में बहुत कम प्रगवत हुइ है।
 भारतीय बंदरगाह, ववशेषकर प्रमुख बंदरगाह, भारत सरकार के स्वावमत्व वाले और ट्रस्ट के रूप में
चलाने वाले, पुराने सर्नवस पोटथ मॉडल के हाआवब्रड प्रारूप और वैवश्वक स्तर पर पोटथ प्रबंधन के
लोकवप्रय लैंड लॉडथ मॉडल का पालन करते हैं। आसके फलस्वरूप पोटथ ट्रस्टों और वनजी क्षेत्र के बीच
एक संघषथ की वस्थवत ईत्पन्न हो जाती है क्योंकक कइ ईदाहरणों में ट्रस्ट पोटथ रे गल ु ेटर और
वावणवययक सेवाओं के प्रदाता, दोनों रूपों में कायथ करते हैं।
 सर्नवस पोटथ मॉडल में, बंदरगाह प्रावधकारी भूवम और सभी ईपलब्ध वस्थर और चल पररसंपवत्तयों
के मावलक होते हैं। सभी वववनयामकीय एवं बंदरगाह कायों को करते हैं। यहां, पोटथ ट्रस्ट दोनों लैंड
लॉडथ और कागो टर्नमनल ऑपरे टर के रूप में कायथ करते हैं।
 हालांकक भारत का सर्नवस पोटथ मॉडल एक कें द्रीकृ त ऄथथव्यवस्था के ऄनुरूप था, लेककन वतथमान
बाजार-ईन्मुख ऄथथव्यवस्था में आसकी व्यवहायथता कम हो गयी है।
 लैंड लाडथ मॉडल में, सावथजवनक रूप से शावसत बंदरगाह प्रावधकरण एक वववनयामक वनकाय और
लैंड लाडथ के रूप में काम करता है जबकक वनजी कं पवनयां बंदरगाह पररचालन करती हैं। मुख्यतः
कागो हैंडपलग गवतवववधयां। यहां बंदरगाह प्रावधकरण, बंदरगाह का स्वावमत्व ग्रहण करता है,
जबकक बुवनयादी ढांचा वनजी कं पवनयों को पिे पर दे कदया जाता है जो ऄपनी स्वयं की
ऄधोसंरचना बनाए रखती है और स्वयं के ईपकरण स्थावपत करती हैं।
 वतथमान में, भारत में ऄवधकतर प्रमुख बंदरगाह ट्रस्ट ने टर्नमनल ऑपरे शंस को भी पूरा ककया है,
वजसके पररणामस्वरूप बंदरगाह प्रशासन, एक हाआवब्रड मॉडल में पररवर्नतत हो गया है।
 आसके ऄलावा, बंदरगाह पर बुवनयादी सुववधाओं का ववकास परं परागत रूप से सावथजवनक वनवेश
द्वारा व्यापक रूप से प्रोत्सावहत ककया गया है। बंदरगाह ववकास और ववस्तार की ओर अकर्नषत
होने वाले वनजी वनवेशकों की सीवमत संख्या बंदरगाहों की ऄनूिी अर्नथक ववशेषताओं के कारण है।
 बंदरगाह की बुवनयादी सुववधाऐं जैसे कक समुद्री ऄवरोध, बैकवॉटर, पोटथ बेवसन और मुख्य
दूरसंचार कनेवक्टववटी के प्रावधान में बड़ी वनवश्चत लागत होती है। आस तरह के बु वनयादी ढांचे
सभी बंदरगाह टर्नमनल संचालन के वलए सामान है और वववशष्ट रूप से सावथजवनक वनवेश के
माध्यम से ववत्त पोवषत होते हैं।

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 तकनीकी दृवष्ट से बंदरगाह की बुवनयादी सुववधाओं को बहुत न्यूनतम प्रारं वभक क्षमता की
अवश्यकता है। आसके ऄलावा पोटथ आं िास्ट्रक्चर जो प्रायः ऄववभायय होता है, ऄथाथत पोटथ क्षमता
में वृवि के वल खंडो में ही प्रवतपाकदत की जा सकती है।
 शुरुअती चरणों की ववकास लागत के कारण बड़ा पूज
ं ी वनवेश कम होता है वजसके फलस्वरूप
बंदरगाहों के प्रारं वभक चरण की क्षमता का पूरा ईपयोग नहीं हो पाता l

 पररणामस्वरूप, वनजी वनवेशक मुख्य रूप से बंदरगाह टर्नमनल सुववधाओं में न कक ऄंतर्ननवहत

बुवनयादी ढांचे में वनवेश करते हैं। अम तौर पर वनजी वनवेशक BOT मॉडल के ऄंतगथत, 30-40
वषों की ररयायत के तहत सावथजवनक पोटथ प्रावधकरण की ओर से टर्नमनल आं िास्ट्रक्चर का वनमाथण
करते हैं।
 भारतीय बंदरगाह और वशपपग क्षेत्र कमजोर प्रोत्साहन और वनयामक संरचना में स्पष्टता की कमी
से ग्रवसत हैं। साथ ही ऄवतव्यावपत ऄवधकार क्षेत्र, ऄवत-पयथवक्ष
े ण और ऄवनणथय की वस्थवत, आस
क्षेत्र की समस्याओं को और दुरूह बना देती है। वैवश्वक ऄथथव्यवस्था के साथ भारत के बढते
एकीकरण के कारण वपछले दशक में देखी गइ यातायात में भारी वृवि के साथ-साथ न तो
वववनयामक संरचना और न ही क्षमता में तेजी से वृवि हुइ है। तटीय नौवहन के साथ ही साथ
ऄंतदेशीय जल पररवहन सेवा, वनम्न आकाइ पररवहन लागत और वनम्न पयाथवरणीय प्रभाव के होते

हुए भी, वांवछत गवत से कम तेजी से बढी है।

2.9. NTDPC की वसफाररशें

 ऄगले 20 वषों में चार से छह मेगा बंदरगाह बनाए जाएंगे तथा प्रत्येक तट पर ऐसे दो से तीन
बंदरगाह होंगे।
 बड़े बंदरगाहों को लैंड लॉडथ मॉडल में लाने और पोटथ ट्रस्टों को वैधावनक लैंड लॉडथ बंदरगाह
प्रावधकरणों में बदलने के वलए ईवचत ववधायी और नीवतगत पररवतथन करने की अवश्यकता है।
पोटथ ट्रस्टों के सभी टर्नमनल कायो को सावथजवनक क्षेत्र के वनगमों के रूप में पररवर्नतत ककया जाना
चावहए।
 एक नए वनयामक प्रावधकरण, बंदरगाहों के समुद्री प्रावधकरण (MAP) को एक अधुवनक भारतीय
बंदरगाह ऄवधवनयम के तहत गरित ककया जाना चावहए। जो देश के सभी प्रमुख और गैर-प्रमुख
बंदरगाहों में प्रवतस्पधाथ और बंदरगाह संरक्षण के वववनयमन में सक्षम हो।
 यह महत्वपूणथ है कक भारतीय वशपपग ईद्योग को दूसरे देशों के साथ वैवश्वक स्तर पर प्रवतस्पधी
बनाने के वलए एक सामान ऄवसर प्रदान ककया जाऐ। आसके वलए प्रवतबंधात्मक नीवतयों के
युविकरण ववशेष रूप से वववभन्न प्रकार के प्रत्यक्ष/ऄप्रत्यक्ष करों को लागू करने की अवश्यकता
होगी।
 प्रमुख बंदरगाहों में तटीय टर्नमनलों की स्थापना और तटीय बंदरगाहों के रूप में पूवी और पवश्चमी
तटों पर पांच या छह गैर-प्रमुख बंदरगाहों की पहचान द्वारा तटीय जहाजों को प्राथवमकता दी
जानी चावहए।
 आन तटीय टर्नमनलों को रे ल और सड़क से जोड़ा जाना चावहए।
 IWT/नौवहन प्रयोजनों के वलए नकदयों के गहरे वहस्सों का ववकास (कम से कम 2.5 मीटर और

ऄवधकतम 3.0 मीटर LAD (न्यूनतम ईपलब्ध गहराइ) पर ध्यान देना चावहए वजस से पूरे वषथ के

दौरान नौपररवहन जारी रह सके l

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Classroom Study Material

भारतीय ऄथथव्यवस्था
8. ऄवसंरचना : भाग-III

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ववषय सूची
1. उजाथ ______________________________________________________________________________________ 4

1.1. उजाथ की ऄनुमावनत मांग ____________________________________________________________________ 5

1.2. उजाथ दक्षता______________________________________________________________________________ 5


1.2.1. उजाथ दक्षता वमशन _____________________________________________________________________ 5
1.2.2. भारत उजाथ सुरक्षा पररदृश्य 2047 __________________________________________________________ 7

1.3 उजाथ मूल्य वनधाथरण ________________________________________________________________________ 7


1.3.1 पेट्रोवियम ईत्पादों का मूल्य वनधाथरण_________________________________________________________ 7
1.3.2. कोयिे की कीमत ______________________________________________________________________ 8
1.3.3. ववद्युत कीमत वनधाथरण __________________________________________________________________ 9

1.4. तेि और गैस ईत्पादन _______________________________________________________________________ 9


1.4.1. हाआड्रोकाबथन ऄन्वेषण और िाआसेंससग नीवत (HELP) ____________________________________________ 9

2. शवि ____________________________________________________________________________________ 10

2.1. भारत में ववद्युत ईपिब्धता __________________________________________________________________ 10

2.2 उजाथ क्षेत्र में प्रमुख ववकास ___________________________________________________________________ 10


2.2.1. टैररफ पॉविसी में संशोधन _______________________________________________________________ 10
2.2.2 ईत्तरदावयत्व और पारदर्शशता सुवनवित करने के विए मोबाआि एवलिके शन और वेबसाआट ___________________ 10
2.2.3. प्रत्यक्ष ववदेशी वनवेश __________________________________________________________________ 12
2.2.4. राष्ट्रीय विड _________________________________________________________________________ 12
2.2.5. ईज्जवि वडस्कॉम एश्योरें स योजना (UDAY) _________________________________________________ 12
2.2.6. िामीण ववद्युतीकरण___________________________________________________________________ 13

2.3 कोयिा ________________________________________________________________________________ 14


2.3.1. कोयिा का अयात ____________________________________________________________________ 15

3. नवीकरणीय उजाथ____________________________________________________________________________ 15

3.1. नीवतगत पहिें ___________________________________________________________________________ 16


3.1.1. दूसरी पीढी के एथेनॉि के विए ड्राफ्ट पॉविसी _________________________________________________ 17

3.2. प्रमुख ववकास ___________________________________________________________________________ 17

4. दूरसंचार __________________________________________________________________________________ 18

4.1. वतथमान वस्थवत __________________________________________________________________________ 19

4.2. टेिी घनत्व _____________________________________________________________________________ 19

4.3. ब्रॉडबैंड _______________________________________________________________________________ 20

4.4. राष्ट्रीय दूरसंचार नीवत 2012 ________________________________________________________________ 20

4.5. दूरसंचार ईपकरण का वववनमाथण ______________________________________________________________ 22

4.6. सावथभौवमक सेवा दावयत्व वनवध (USBO) _______________________________________________________ 22


4.7. राष्ट्रीय ऑवलटकि फाआबर नेटवकथ (NOFN)_______________________________________________________ 22

4.8. नए आं टरनेट प्रोटोकॉि में स्थानांतरण ___________________________________________________________ 23

4.9. वनयामक ढांचा __________________________________________________________________________ 23


4.9.1. नेट न्यूट्रैविटी ________________________________________________________________________ 24

4.10. ऄनुसंधान और ववकास ____________________________________________________________________ 24

4.11. सावथजवनक क्षेत्र के ईपक्रम (PSUS) ___________________________________________________________ 25

5. के िकर सवमवत की ररपोटथ: आन्रास्ट्रक्चर डेविपमेंट के PPP मॉडि का पुनजीवन और समीक्षा ______________________ 25

6. वषाांत समीक्षा-2017 (नवीन और नवीकरणीय उजाथ मंत्रािय) ____________________________________________ 26


1. उजाथ
 उजाथ को अर्शथक संवृवि के एक प्रमुख संचािक तत्व के ूपप में देखा जाता है अर्शथक ववकास के
िाभ को समाज के वनचिे स्तर तक पहुँचाने के विए उजाथ का वस्थर, धारणीय और यथोवचत मूल्य
अवश्यक है
 ऄमेररका, चीन और ूपस के बाद भारत ववश्व में उजाथ का चौथा सबसे बडा ईपभोिा है 2015 में

भारत, जापान को पीछे छोडते हए ववश्व का तीसरा सबसे बडा (USA तथा चीन के पिात्)

पेट्रोवियम ईपभोिा देश बन गया है हािांकक, भारत के पास प्रचुर मात्रा में उजाथ संसाधन

ईपिब्ध नहीं है कोयिे, यूरेवनयम, तेि, पनवबजिी और ऄन्य संसाधनों के ईपिब्ध घरे िू
संसाधनों के ईपयोग के साथ आनको अयात प्रवतपूणथ करते हए भारत ऄपनी ववकास अवश्यकताओं
की पूर्शत करता है ऄतः 8-9% अर्शथक ववकास दर के िक्ष्य के साथ जनसंख्या को सस्ते मूल्य पर
उजाथ ईपिब्ध कराना एक बडी चुनौती है
कु ि स्थावपत क्षमता

ईंधन MW कु ि क्षमता का %

कु ि थमथि 2,18,960 66.2%


(कोयिा+गैस+तेि)
कोयिा 1,92,972 58.3%
गैस 25,150 7.6%
तेि 838 0.3%
हाआड्रो (ऄक्षय ) 44,963 13.6%
नवभकीय 6,780 2.0%

RES* (MNRE) 60,158 18.2%

Total 330,861

* 31.09.2017 को स्थावपत क्षमता (नवीन एवं नवीकरणीय उजाथ मंत्रािय)

वचत्र: भारत का उजाथ क्षेत्र

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1.1. उजाथ की ऄनु मावनत मां ग

 भारत, कु ि वैवश्वक उजाथ की ऄनुमावनत मांग में वृवि का िगभग एक-चौथाइ भाग का योगदान
करता है यह ककसी भी ऄन्य देश के ऄनुमावनत उजाथ मांग से ऄवधक है भारत में नगरीकरण की
बढती दर उजाथ प्रवृवत्तयों का एक मुख्य संचािक है 2040 तक भारतीय शहरों में संयुि राज्य की
अबादी के बराबर, िगभग 315 वमवियन ऄवतररि जनसंख्या के वनवास की संभावना है
ऄंतराथष्ट्रीय उजाथ अईटिुक 2015 के ऄनुसार, 2040 तक तेि की मांग में 10 वमवियन बैरि
प्रवतकदन तक बढ जाएगी तथा प्राकृ वतक गैस की खपत भी तीन गुना बढकर 175 ऄरब घन मीटर
तक पहुँच जाएगी
 बढती उजाथ मांग को पूरा करने की हमारी क्षमता महत्वपूणथ उजाथ ईप क्षेत्रों, ववशेष ूपप से
पेट्रोवियम, गैस और कोयिे में घरे िू ईत्पादन का ववस्तार करने पर वनभथर करती है शेष उजाथ
अवश्यकताओं की अयात के माध्यम से पूर्शत होगी

1.2. उजाथ दक्षता


 देश में उजाथ दक्षता में वृवि को सुवनवित करने हेतु सरकार द्वारा कइ पहि ककये गए हैं जैसे -
परफॉमथ ऄचीव ट्रेड (PAT) योजना, एनजी कं ज़वेशन वबसल्डग कोड्स (ECBC), ब्यूरो ऑण
एनजी एकफवशएंसी (BEE) के द्वारा स्टैण्डडथ एंड िेबसिग प्रोिाम फॉर एलिायंसज
े , ईन्नत ज्योवत
के तहत सभी के विए सस्ते एिइडी बल्ब (UJALA) और स्ट्रीट िाआटटग नेशनि प्रोिाम
(SLNP), उजाथ कु शि पंखो को प्रोत्साहन और कृ वष पंप सेटों अकद का ववकास

1.2.1. उजाथ दक्षता वमशन

उजाथ दक्षता वमशन के मुख्य घटक वनम्नविवखत हैं:


 स्टैण्डडथ एंड िेबसिग ऑण आकिपमेंट एंड एलिायंसज
े : यह योजना 21 ईपकरणों पर िागू होती है
वजसमें 10 ईपकरणों के विए यह ऄवनवायथ है यह ईपयोगकताथओं को एक ईपकरण के द्वारा उजाथ
खपत एवं दूसरों की तुिना में आसकी सापेक्ष दक्षता के बारे में जानकारी प्रदान करता है

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 एनजी एकफवशएंसी आन वबसल्डग: उजाथ मंत्रािय और उजाथ दक्षता ब्यूरो (BEE) द्वारा एनजी

कं ज़वेशन वबसल्डग कोड, 2017 (ECBC 2017) ववकवसत ककया गया है ककसी आमारत को

ECBC कोड प्रदान ककये जाने के विए ईसे 25% की न्यूनतम उजाथ बचत का प्रदशथन करना

ऄवनवयथ है उजाथ दक्षता में ऄवतररि सुधार के विए नइ आमारतों को क्रमशः 35% और 50%

ऄवधक उजाथ बचत सक्षमता प्राप्त करनी होगी वजससे वो ECBC लिस या सुपर ECBC जैसे ईच्च

िेड प्राप्त कर सके संपूणथ देश में नए वावणवज्यक भवन वनमाथण के विए ECB 2017 मानकों के

स्वीकृ वत के साथ, 2030 तक उजाथ ईपयोग में 50% की कमी का ऄनुमान है यह 2030 तक

िगभग 300 ऄरब यूवनट की उजाथ बचत और एक वषथ में िगभग 15 GW की उजाथ खपत कम

करे गा आस प्रकार यह 35,000 करोड ूपपए की बचत और 250 वमवियन टन CO2 की कमी के
समतुल्य होगा
 ईद्योग में उजाथ दक्षता: परफॉमथ ऄचीव एंड ट्रेड (PAT) योजना, नेशनि एन्हांस्ड एनजी

एकफवशएंसी (NMEEE) का एक घटक है PAT एक बाजार अधाररत तंत्र है, जो उजाथ अधाररत
ईद्योगों में ऄवतररि उजाथ बचत को प्रमावणत करे गा तदोपरांत आसका क्रय-ववक्रय ककया जा
सकता है
 कृ वष पंसपग सेटों में उजाथ दक्षता: स्माटथ BEE स्टार रे टेड उजाथ कु शि कृ वष पंपसेट को ककसानों को
ववतररत ककया जाएगा आससे ककसान ऄपने ऄकु शि कृ वष पंप सेट को वन:शुल्क प्रवतस्थावपत कर
सकते हैं स्माटथ कण्ट्रोि पैनि के साथ अने वािे आन पंप में एक वसम काडथ और एक स्माटथ मीटर
िगा होता है स्माटथ कं ट्रोि पैनि, ककसान को ऄपने घर में बैठे बैठे ही मोबाआि के माध्यम से आन
पंपों को वस्वच ऑन या वस्वच ऑफ करने में सक्षम बनाता है स्माटथ मीटर ककसान को उजाथ खपत
की ररयि टाआम वनगरानी रखने में सक्षम बनाता है आस कायथक्रम के तहत उजाथ दक्षता सेवा
विवमटेड (EESL) 2,00,000 BEE स्टार-रे टेड पंप-सेट ककसानों को ववतररत करे गा, वजसके

द्वारा 2019 तक 30% तक उजाथ की बचत होगी यह िगभग 20,000 करोड रुपये की वार्शषक

कृ वष सवब्सडी ऄथवा प्रवत वषथ उजाथ की 50 वबवियन आकाआयों की बचत के समतुल्य है

 अवासीय प्रकाश व्यवस्था: प्रत्येक पररवार को तापदीप्त बल्ब की कीमत पर CFL बल्ब प्रदान

करने के विए बचत िैंप योजना (BLY) शुूप की गयी थी

डोमेवस्टक आकफशन्ट िाआटटग प्रोिाम (DELP) ईन्नत ज्योवत के तहत सभी के विए सस्ते एिइडी बल्ब

(UJALA) यह योजना 77 करोड तापदीप्त बल्बों के स्थान पर LED बल्बों को िगाने के विए िॉन्च

की गइ थी UJALA योजना के तहत एक पारदशी और प्रवतस्पधी बोिी प्रकक्रया के माध्यम से LED

बल्बों की इ-प्रोक्युमथन्ट (इ-ऄवधप्रावप्त) के फिस्वूपप LED बल्ब की खरीद कीमतों में िगभग 88% की

कमी अइ है आसका मूल्य फरवरी 2014 में 310 रुपए से घटकर ऄगस्त 2016 में 38 रुपए की प्रावप्त

मूल्य पर अ गया खुदरा मूल्य 550 रुपये से घटकर 65 रुपये हो गया है, जो ईपभोिाओं द्वारा देय है

20.11.16 तक UJALA योजना के ऄंतगथत कु ि 5.96 करोड अवासों को LED बल्ब प्रदान ककये गए
हैं
 माचथ, 2019 तक स्ट्रीट िाआटटग नेशनि प्रोिाम (SLNP) के तहत स्माटथ और उजाथ कु शि LED

स्ट्रीट िाआट के साथ 3.5 करोड पारं पररक स्ट्रीट िाआट को बदिने की योजना है

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 उजाथ दक्षता सेवा विवमटेड (EESL) वडबेंचर के ूपप में रुपये के वडमटेररऄिाआज, सुरवक्षत,
रीवडमेबि, कर योग्य, गैर-संचयी, गैर-पररवतथनीय बॉन्ड जारी ककए हैं वववभन्न उजाथ दक्षता
पररयोजनाओं के ववत्तपोषण के ईद्देश्य से वसतंबर, 2016 में 500 करोड रुपये के वडबेंचर जारी
ककये गए थे, जो पूरी तरह से ऄवभदत्त (सब्सक्राआब) कर विए गए ये बॉन्ड बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज
के साथ सूचीबि हैं

1.2.2. भारत उजाथ सु र क्षा पररदृ श्य 2047

नीवत अयोग के द्वारा भारत उजाथ सुरक्षा पररदृश्य 2047 कै िकु िेटर (IESS 2047), एक ओपन सोसथ
वेब अधाररत ईपकरण (ऄब संस्करण 2.0) िॉन्च ककया गया है आस ईपकरण का िक्ष्य 2047 तक
ववववध उजाथ मांगों और उजाथ अपूर्शत क्षेत्रों को ध्यान में रखते हए, भारत के विए एक संभाववत उजाथ
पररदृश्य का पता िगाना है
 यह सौर, पवन, जैव ईंधन, तेि, गैस, कोयिा और परमाणु जैसे उजाथ अपूर्शत क्षेत्रों एवं पररवहन,
ईद्योग, कृ वष, भोजन पकाने और प्रकाश ईपकरणों जैसे उजाथ खपत क्षेत्रों में भारत के संभाववत
उजाथ पररदृश्यों की पडताि करता है
 IESS ईपकरण का ईद्देश्य देश के उजाथ वनयोजन में वववभन्न वहतधारकों को शावमि करना और
वववभन्न स्तरों पर सूवचत ववचार ववमशथ को सुववधाजनक बनाना है यह ईपकरण नीवत वनमाथताओं
और सांसदों को भारत के विए एक ऄवधक सुरवक्षत और संधारणीय भववष्य वनमाथण में सहायक
होगा

1.3 उजाथ मू ल्य वनधाथ र ण


 उजाथ दक्षता को बढावा देने और घरे िू अपूर्शत के ववस्तार को सुवनवित करने में उजाथ कीमतों की
महत्वपूणथ भूवमका है वे ऄवधक उजाथ कु शि प्रौद्योवगककयों को ऄपनाने के विए अर्शथक प्रोत्साहन
प्रदान करते हए उजाथ दक्षता को बढावा देते हैं आस ईद्देश्य को उपर ववचाररत वववभन्न गैर-मूल्य
वािे कायों से प्रोत्साहन वमिता है
 ववस्ताररत उजाथ अपूर्शत सुवनवित करने के विए अवश्यक हैं कक उजाथ की कीमतों को तकथ संगत
रखा जाये ऄन्यथा उजाथ ईत्पादक ऄन्वेषण और ईत्पादन की िागत के ववत्तपोषण के विए
अवश्यक वनवेश योग्य ऄवधशेष ईत्पन्न नहीं करें गे दुभाथग्य से, वतथमान में उजाथ की कीमतों की
संरचना आष्टतम ऄपेक्षा से बहत वभन्न है

1.3.1 पे ट्रोवियम ईत्पादों का मू ल्य वनधाथ र ण

 2002 तक, सरकार द्वारा प्रशावसत मूल्य वनधाथरण तंत्र (APM) के माध्यम से पेट्रोवियम ईत्पादों
की कीमत तय की जाती थी जो तेि क्षेत्र में वनवेश पर पूवथवनधाथररत वापसी (बाज़ार अधाररत
कीमतों के बजाय) की ऄनुमवत प्रदान करने के वसिांत का पािन करती है 2002 के बाद, के वि
कु छ वनवित ईत्पाद (के रोवसन और LPG) वववनयवमत ककये गए, जबकक तेि कं पवनयां ऄन्य आं धनों
के विए ऄपनी कीमतें स्वयं वनधाथररत कर सकती थी हािांकक, कइ तेि ववपणन कं पवनयों ने ऄभी
भी खुदरा कीमतों को बाजार स्तर से नीचे स्थावपत कर रखा है ताकक वे ईवचत दर पर कु छ
ईत्पादों के विए ववत्त मंत्रािय से ऄंडर ररकवरी (एक वैवश्वक बाजार मूल्य और स्थानीय मूल्य के
बीच का ऄंतर) का दावा कर सकें
 सरकार ने घरे िू ईंधन के मूल्य में सुधार करना शुूप कर कदया है ववत्त वषथ 2011 में पेट्रोि तथा

ववत्त वषथ 2015 में डीजि की कीमतों को बाजार अधाररत करने के बाद, कें द्र ने ववत्त वषथ 2016

से घरे िू रसोइ गैस पर दी जा रही सवब्सडी को हटा विया है आसके ऄिावा, घरे िू बाजार में
पेट्रोि और डीजि का मूल्य कच्चे तेि की कीमत से वनधाथररत न होकर आनकी ऄंतरराष्ट्रीय कीमतों
से जुडा हअ है

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 सरकार ने पेट्रोवियम क्षेत्र में बाज़ारोन्मुख सुधारों की श्ृंखिा को जारी रखते हए एवं वृहत वनवेश
को अकर्शषत करने के विए, धीरे -धीरे के रोसीन पर से सवब्सडी को कम करना शुूप कर कदया हैं
कें द्र सरकार ने सरकारी तेि कं पवनयों को के रोवसन की कीमतों में जब तक आस पर वमि रही
सवब्सडी समाप्त न हो जाये या कोइ नया अदेश न कदया जाये हर पखवाडे 25 पैसे वृवि के अदेश
कदए हैं ईंधन में ऄभी भी भारी सवब्सडी दी जाती है परन्तु के रोसीन की मांग में तेजी से कमी अ
रही है, क्योंकक गांवों का तीव्र गवत से ववद्युतीकरण हो रहा है और सरकार ने वपछिे तीन वषों में
करोडों वनधथन जनसंख्या के विए रसोइ गैस कनेक्शन की अपूर्शत की है कदल्िी और चंडीगढ पहिे
ही के रोवसन मुि हैं
 सरकार सवब्सडी युि के रोवसन के ईपयोग को हतोत्सावहत कर रही है, वजसका मुख्य ूपप से
िामीण क्षेत्रो में गरीबों द्वारा प्रकाश और भोजन पकाने के विए ईपयोग ककया जाता है यह एक
प्रदूषणकारी ईंधन है और यह पेट्रोि पंपों पर वमिावट सामिी के ूपप में प्रयोग ककया जाता है
सवब्सडीकृ त के रोवसन का डीजि में वमिावट के विए भी दुरुपयोग ककया जाता है सवब्सडी में
कमी कर, सरकार के रोवसन को बाजार मूल्य के वनकट िा रही है वजससे ऄंततः वमिावट के विए
के रोवसन का प्रयोग कम होगा और साथ ही साथ ईपभोिाओं को स्वच्छ विकिफाआड पैट्रोवियम
गैस (LPG) को ऄपनाने का प्रोत्साहन प्राप्त होगा
 रसोइ गैस की कीमत को भी धीरे -धीरे बढाया जा रहा है ताकक ऄंततः आसे बाजार दर से संरेवखत
ककया जा सके
 सरकार द्वारा शुूप ककए गए ऄन्य सुधारों में वववादास्पद िाभ-साझाकरण प्रणािी (profit-
sharing system) को समाप्त करना शावमि है जो तेि मंत्रािय को तेि क्षेत्र के व्यय पर
बारीकी से वनगरानी करने के विए बाध्य करता है, वजससे वनजी वनवेशकों के साथ वववाद हो
सकता है नइ ऄन्वेषण नीवत गैस के विए बाजार मूल्य की ऄनुमवत देती है और कं पवनयों को स्वयं
ऄन्वेषण के विए स्वतंत्रता देती है I

1.3.2. कोयिे की कीमत

 कोि आं वडया विवमटेड (CIL) ऄपने प्रथम IPO को जारी करने से पहिे पुराने हीट वैल्यू-अधाररत
(UHV) मूल्य वनधाथरण को त्यागकर GCV अधाररत मूल्य वनधाथरण को ऄपना विया आससे
ऄंतरराष्ट्रीय कीमतों के अधार पर कोयिे का मूल्य वनधाथरण ककया जा सके गा चूंकक CIL ने 50%
तक की छू ट पर कोयिे की पेशकश की है, ऄब CIL ने सरकार को मूल्य वनधाथरण तंत्र बदिने के
विए सिाह दी है ताकक भारतीय कोयिे की कीमतें बाजार मूल्य के अधार पर एवं ऄंतरराष्ट्रीय
मानकों के ऄनुसार वनधाथररत की जा सके एक वनयामक के वनमाथण का भी सुझाव है, वजसके द्वारा
भारतीय कोयिे की कीमतों को वनधाथररत ककया जाएगा
 अयावतत कोयिे की तुिना में भारतीय कोयिा में राख तथा अद्रथता की मात्रा ईच्च तथा उष्मीय
मान (Calorific value) कम होता है भारत कोयिे की मांग और अपूर्शत के बीच के ऄंतर को
पूणथ ूपप से भरने में सक्षम नहीं है, क्योंकक भारत में कोककग कोि की पयाथप्त ईपिब्धता नहीं है
अयावतत कोयिे की अपूर्शत के अधार पर िगाए गए ववद्युत संयंत्रों को ईत्पादन के विए कोयिे
का अयात जारी रखना पडेगा आस प्रकार भारत द्वारा मांग और अपूर्शत के ऄंतर को बराबर करने
के विए और ईत्पादन में वृवि के विए के न्द्र सरकार द्वारा ईठाए गए कदमों के बावजूद भारत द्वारा
कोयिे का अयात जारी रहेगा
 नीवत अयोग ने कोयिे की मांग 2017-18 में 908.40 मीरट्रक टन होने का ऄनुमान िगाया है
जबकक ऄप्रैि से जून के बीच ईत्पादन 159.38 MT था

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1.3.3. ववद्यु त कीमत वनधाथ र ण

 हािांकक ववद्युत की कीमतें राज्य वनयामकों द्वारा वनधाथररत की जाती हैं परन्तु ऄवधकांशतः
राजनीवतक दबाव के चिते टैररफ समायोजन को कम महत्व कदया जाता है वडस्कॉम को टैररफ
संशोधन करने से हतोत्सावहत ककया जाता है, वजसके फिस्वूपप वडस्कॉम की ववत्तीय वस्थवत
प्रभाववत होती है

1.4. ते ि और गै स ईत्पादन

 तेि एवं गैस दोनों की अपूर्शत के विए भारत मुख्य ूपप से अयात पर वनभथर है भारत अयावतत
LNG पर भी बहत ऄवधक वनभथर है 2014 में, भारत ने 3.85 mbpd तेि का प्रयोग ककया,
जबकक ववत्त वषथ 2016 तक 4.0 mbpd ईपभोग ऄनुमावनत था, जो ववत्त वषथ 2008-16 के
दौरान 3.2 फीसदी CAGR से बढ कर रहा था भारत भी अयावतत LNG पर ऄवधक वनभथर है;
2015 में भारत चौथा सबसे बडा LNG अयातक देश बन गया जो वैवश्वक अयात का 5.68
प्रवतशत भाग के विए वजम्मेदार है
 वनजी वनवेशकों की भागीदारी के साथ घरे िू ईत्पादन में तेजी से वृवि के विए NELP के तहत तेि
और गैस ऄन्वेषण नीवत का वनमाथण ककया गया है यद्यवप, आससे प्राप्त पररणाम वनराशाजनक थे
हािांकक कच्चे तेि के ईत्पादन में कु छ वृवि और घरे िू गैस ईत्पादन में महत्वपूणथ ववस्तार हअ था
यद्यवप तेि और गैस दोनों के घरे िू ईत्पादन में काफी सुधार की अवश्यकता है

1.4.1. हाआड्रोकाबथ न ऄन्वे ष ण और िाआसें ससग नीवत (HELP)

 कें द्रीय कै वबनेट ने 10 माचथ 2016 को हाआड्रोकाबथन एक्सलिोरे शन एंड िायसेंससग पॉविसी
(HELP) को मंजरू ी दे दी HELP तेि एवं गैस के ऄन्वेषण और ईत्पादन के विए वतथमान में
जारी नीवत का स्थान िेगा वतथमान में जारी नीवत को न्यू एक्सलिोरे शन एंड िायसेंससग पॉविसी
(NELP) के नाम से जाना जाता है यह नीवत वपछिे 18 वषों से कायथरत थी
HELP की ववशेषताएं
 एकसमान िाआसेंस: मौजूदा व्यवस्था में प्रत्येक प्रकार के हाआड्रोकाबथन के विए ऄिग-ऄिग
िाआसेंस की जरुरत होती है नइ नीवत में कोि-बेड मीथेन (CBM), शेि गैस, टाआट गैस (tight
gas) और गैस हाआड्रेट्स सवहत परं परागत और ऄपरं परागत तेि व गैस संसाधनों का पता िगाने
के विए, ठे केदार को एक ही िाआसेंस की अवश्यकता होगी
 खुिा रकबा (open acreage): यह हाआड्रोकाबथन कं पनी को सरकार की ओर से औपचाररक
नीिामी चक्र की प्रतीक्षा ककए वबना, संपण
ू थ के विए ऄन्वेषण ब्िॉक का चयन करने का ववकल्प
देता है
 राजस्व साझा मॉडि (Revenue Sharing Model): ईत्पादन साझेदारी ऄनुबंध (PSC) की
वतथमान ववत्तीय प्रणािी के स्थान पर ऄवधक सुववधाजनक ‘राजस्व साझा मॉडि’ को ऄपनाया
गया है
 ववपणन और मूल्य वनधाथरण (Marketing and Pricing): यह नीवत आन ब्िॉकों से ईत्पाकदत कच्चे
तेि और प्राकृ वतक गैस के ववपणन की स्वतंत्रता भी प्रदान करती है यह सरकार की ‘न्यूनतम
सरकार – ऄवधकतम शासन’ (वमवनमम गवनथमटें -मैवक्समम गवनेंस) की नीवत के ऄनुूपप है

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2. शवि
2.1. भारत में ववद्यु त ईपिब्धता

 ववद्युत ईत्पादन में वषथ 2013-14 में 977 BU से 2014-15 में 1048 BU एवं 2015-16 में
1107 BU की वृवि देखी गइ है 2015-16 में ऄभी तक सबसे कम उजाथ घाटा 2.1 प्रवतशत पर
रहा, जो ऄप्रैि-ऄक्टू बर, 2016 में घटकर 0.7 प्रवतशत पर पहुँच गया 2015-16 की तुिना में
नेशनि पीक पावर डेकफवसट आसी ऄववध में अधा होकर 1.6% हो गया
 2014 से ववद्युत क्षेत्र में व्यापक बदिाव अए हैं, वजनमें वनम्न शावमि हैं: ईत्पादन क्षमता में
ररकॉडथ बढोतरी हइ है और ववतरण कं पवनयों की हाित और प्रदशथन में सुधार हेतु ईज्जवि
वडस्काम अश्वासन योजना (UDAY) िाइ गयी है
 आस संदभथ में, राज्यों एवं ईनके ववद्युत वनयामकों के विए दीघाथववध में वनम्नविवखत मुद्दे महत्वपूणथ
हैं: टैररफ कायथक्रम की जरटिता को कम कर ईसे ईपभोिाओं के ऄनुकुि बनाया जाना चावहए
भारतीय ईद्योग की प्रवतस्पधाथत्मकता पर गुणवत्ता समायोवजत दरों का प्रभाव और उजाथ के विए
एक बाजार वनमाथण में अने वािी परे शावनयां

2.2 उजाथ क्षे त्र में प्रमु ख ववकास

2.2.1. टै ररफ पॉविसी में सं शोधन

कें द्रीय कै वबनेट ने जनवरी, 2016 में टैररफ नीवत में संशोधन के प्रस्ताव को मंजरू ी दे दी यह देश की
उजाथ सुरक्षा के विए पनवबजिी के साथ-साथ नवीकरणीय उजाथ के ईपयोग को प्रोत्सावहत करे गा
मुख्य संशोधन आस प्रकार हैं:
 नवीकरणीय खरीद बाध्यता (Renewable Purchase Obligation; RPO) का प्रचार
 कचरे से-उजाथ संयंत्रों से वडस्कॉम द्वारा उजाथ की ऄवनवायथ खरीद
 थमथि पावर लिांट्स द्वारा सीवेज ईपचाररत जि का प्रयोग करने हेतु ईसका सीवेज ट्रीटमेंट लिांट
के 50 ककमी. के भीतर वस्थत होना
 15 ऄगस्त 2022 तक जि ववद्युत् पररयोजनाओं को प्रवतस्पधी बोिी से छू ट दी गइ
 'टाआम ऑण डे' मीटटरग के विए चरणबि ूपप से स्माटथ मीटर का प्रयोग
 के वि प्रवतस्पधाथत्मक बोिी-प्रकक्रया के माध्यम से ऄंतरराज्यीय और ऄंत:राज्यीय संचरण िाआन
का टेंडर
 IPP (वववनयवमत टैररफ) की मौजूदा क्षमता को 50% से बढाकर 100% तक करना

2.2.2 ईत्तरदावयत्व और पारदर्शशता सु वनवित करने के विए मोबाआि एवलिके शन और


वे ब साआट

 िामीण ववद्युतीकरण (GARV) एप नागररकों की सहूवियत के विए दीन दयाि ईपाध्याय िाम
ज्योवत योजना के तहत िामीण ववद्युतीकरण (DDUGJY)
 20 कदसंबर 2016 से शुूप GARV-l एप, िगभग 6 िाख गांवों के संबंध में डेटा का संकिन
करता है आन िामीण वनवावसयों को घरे िू ववद्युतीकरण की प्रगवत पर नज़र रखने के विए वचवन्हत
ककया गया है
 ववद्युत् प्रवाह एप को वबजिी की कीमत और ईपिब्धता की वास्तववक समय की जानकारी प्रदान
करने के विए बनाया गया है
 ईन्नत ज्योवत के तहत सभी के विए सस्ते एिइडी बल्ब (UJALA) एप घरे िू कु शि प्रकाश
कायथक्रम (DELP) के तहत LED बल्ब के ववतरण को ट्रैक करने के विए

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 ‘उजाथ’ (URJA-Urban Joyti Abhiyaan) मोबाआि एप: ववद्युत् मंत्रािय के विए उजाथ एप को
पावर फाआनेंस कारपोरे शन ने ववकवसत ककया है आस एप का मकसद शहरी वबजिी ववतरण क्षेत्र
का ईपभोिाओं के साथ संपकथ बेहतर करना है आसके जररये ईपभोिाओं को वबजिी कटौती,
समय पर कनेक्शन जारी करने तथा वशकायतों के वनपटान के बारे में जानकारी दी जाएगी
 आ-तरं ग एप ट्रांसवमशन वसस्टम की ररयि टाआम वस्थवत की मॉवनटटरग के विए है
 आ-ट्रांस एप टैररफ अधाररत प्रवतयोगी बोिी (TBCB) प्रकक्रया के माध्यम से सम्मावनत करने के
विए आं टर स्टेट ट्रांसवमशन प्रोजेक्ट के संबंध में बेहतर मूल्य खोज के विए एक मंच है
 'DEEP आ-नीिामी' पोटथि : पोटथि इ-ररवसथ नीिामी सुववधा के साथ एक व्यापक इ-वबसडग
लिेटफॉमथ प्रदान करे गा ताकक एक व्यापक नेटवकथ के जररए राष्ट्रव्यापी वबजिी खरीद की सुववधा
वमि सके ताकक वबजिी खरीद की प्रकक्रया में एकूपपता और पारदर्शशता िाइ जा सके
 स्टार िेबि ईपकरणों हेतु एक मोबाआि एप: BEE के द्वारा ईपभोिाओं के विए मानक और
िेबसिग कायथक्रम (S&L) हेतु एक मोबाआि एप ववकवसत ककया है जो BEE के S& डाटाबेस से
जुडा हअ है एवं ईपभोिाओं और ऄन्य वहतधारकों से वास्तववक समय में प्रवतकक्रया प्राप्त करने के
विए मंच प्रदान करता है

वचत्र: भारत के ववद्युत क्षेत्र का पररदृश्य

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2.2.3. प्रत्यक्ष ववदे शी वनवे श

 ववद्युत क्षेत्र में FDI के विए DIPP द्वारा जून 2016 में ऄवधसूवचत मौजूदा FDI नीवत ववद्युत
ईत्पादन (परमाणु उजाथ को छोडकर), संचरण, ववतरण और व्यापार की पररयोजनाओं के विए
स्वचावित प्रकक्रया के तहत 100% FDI की ऄनुमवत प्रदान करती है भारत सरकार द्वारा कें द्रीय
ववद्युत वनयामक अयोग (पावर माके ट) वववनयमन, 2010 के ऄंतगथत पंजीकृ त ववद्युत एक्सचेंजों में
49% तक प्रत्यक्ष ववदेशी वनवेश पॉविसी में वनधाथररत शतो के ऄनुसार ऄनुमवत दी है

2.2.4. राष्ट्रीय विड

 योजना और पररचािन प्रयोजनों के विए भारतीय ववद्युत प्रणािी को पांच क्षेत्रीय विड में
ववभावजत ककया है क्षेत्रीय विड और राष्ट्रीय विड की स्थापना और एकीकरण की ऄवधारणा नब्बे
के दशक मे शुूप हइ थी क्षेत्रीय विड की एकीकरण वववनयवमत वबजिी की सीवमत वववनमय के
विए ऄतुल्यकाविक एचवीडीसी बैक टू बैक ऄंतर - क्षेत्रीय सिक से शुूप हइ और बाद में क्षेत्रों के
बीच ईच्च क्षमता तुल्यकाविक सिक िगाइ गइ है
 सभी क्षेत्रीय विड की एकीकरण पावर के संसाधन कें कद्रत क्षेत्रों से हस्तांतरण द्वारा संसाधनों कें कद्रत
क्षेत्रों को िोड करने मे तथा दुिथभ प्राकृ वतक संसाधनों का आष्टतम ईपयोग में मदद करें गे आसके
ऄिावा, आस जीवंत वबजिी बाजार की स्थापना सत्ता के वववभन्न क्षेत्रों में व्यापार को सुववधाजनक
बनाने के विए मागथ प्रशस्त करें गे “एक राष्ट्र एक विड” सभी क्षेत्रीय विड को तुल्यकाविक कनेक्ट
करे गा और एक राष्ट्रीय अवृवत्त होगा
 राष्ट्रीय विड का ववकास देश में राष्ट्रीय ववद्युत विड का ववकास चरणबि ूपप से ककया जा रहा है
पांचों क्षेत्रीय विड यथा- ईत्तरी क्षेत्र, पविमी क्षेत्र, पूवी क्षेत्र, पूवोत्तर क्षेत्र और दवक्षणी क्षेत्र
समकाविक मोड में ऄंतरसंबि हैं और ऄंतर-क्षेत्रीय संपकों की कु ि हस्तांतरण क्षमता जून 2017
में िगभग 75,050 मेगावॉट थी

2.2.5. ईज्जवि वडस्कॉम एश्योरें स योजना (UDAY)

 20 नवंबर, 2015 को सरकार द्वारा वववभन्न वहतधारकों के साथ परामशथ से वबजिी ववतरण
कं पवनयों के ववत्तीय और पररचािनात्मक बदिाव हेतु ईज्जवि वडस्काम एश्योरें स योजना
(UDAY) शुूप की गइ आस योजना का ईद्देश्य िगभग 4.3 िाख करोड के िीगेसी ऊणों और
भववष्य में संभाववत हावन को एक स्थायी समाधान प्रदान करना है
ववशेषताएं :
 ईदय, DISCOMs को ऄगिे 2-3 वषों में वववभन्न ऄवसरों को वनम्न चार प्रस्तावों के माध्यम से
ईपिब्ध करायेगा जो वनम्न हैं: उजाथ ववतरक कं पनी (DISCOMs) की पररचािन क्षमता में
सुधार/वृवि, उजाथ ईत्पादन की िागत को कम करना, DISCOMs के विए ब्याज दरों में कमी
करना, राज्य द्वारा प्रदान ककए जाने वािे ववत्तीय योगदान के संदभथ में उजाथ कं पवनयों के विए शते
वनधाथररत की जानी चावहए ताकक ववत्तीय उजाथ कं पवनयों पर ववत्तीय ऄनुशासन िागू ककया जा
सके
 राज्य, DISCOMs में एक ईपयुि सीमा तक के स्वावमत्व के विए बाजार में या सीधे बैंकों ऄथवा
ववत्तीय संस्थाओं के माध्यम से बाण्ड जारी करें गे
 DISCOMs को ऊण राज्य द्वारा न देकर बैंक या ववत्तीय संस्थाओं द्वारा कदया जाएगा जो बैंक
द्वारा वनधाथररत अधार दर(Base Rate) से ऄवधक नहीं होगा

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प्रभाव
 पररचािन क्षमता में सुधार - ऐसी अशा की जा रही है कक आन प्रावधानों/सुधारों से कइ
सकारात्मक प्रभाव होंगें जैसे - मीटर िगाने को ऄवनवायथ करना, ट्रांसफामथसथ की गुणवत्ता में
सुधार, कु शि वैद्युत ईपकरणों का प्रयोग आत्याकद आससे औसत ववत्तीय एवं वावणवज्यक हावन को
22 प्रवतशत से 15 प्रवतशत तक िाया जा सकता है और वषथ 2018-19 तक औसत पूंजी एवं
ईत्पादन की औसत िागत के बीच ऄंतर को कम ककया जा सकता है
 उजाथ ईत्पादन की िागत कम होगी - सस्ते घरे िू कोयिे की अपूर्शत को बढाना, कम ईत्पादन वािे
संयंत्रों से ऄवधक ईत्पादन वािे संयंत्रों की ओर कोयिे का स्थानांतरण, कोयिे के मूल्य का
वनधाथरण GCV ऄथाथत सकि तापजन्य मूल्य के अधार पर करना, घुिे एवं संदवित (crushed)
कोयिे की अपूर्शत बढाना और ऄवतशीघ्र प्रेषण िाआनों के कायथ को पूरा करना
 राज्यों द्वारा DISCOMs के िगभग 75 प्रवतशत ऊृण का भार ईठाना- आस ईपाय के बाद ऊृण
की वतथमान दर जो 14 से 15 प्रवतशत के असपास है से कम करके 8 से 9 प्रवतशत के अस-पास
िायी जा सके गी, वजससे न वसफथ ईनकी बेिस
ें शीट में सुधार होगा बवल्क िाभ भी बढेगा
ऄविम ईपाय
 DISCOMs के सामने अ रही प्रमुख ववत्तीय समस्याओं का स्थायी समाधान, DISCOMs को
िागत के ऄनुसार मूल्य वनधाथररत करने की छू ट देना है, वजसमें पूज
ुँ ी पर वमिने वािा िाभ
सवम्मवित हो यह कायथ दो तरीकों से ककया जा सकता है:
o ईपभोिाओं को राज्य वनयामकों द्वारा वनधाथररत पूरा भुगतान देने को कहा जाए एवं बाद में
सरकार द्वारा सवब्सडी को सीधे तौर पर वनवित समूहों को स्थानांतररत (DBT) कर कदया
जाए
o शुल्क दर में दी गयी छू टों के विए वार्शषक ववत्तीय प्रावधान ककया जाए वजसे वनवित ऄंतराि
पर DISCOMs के खातों में स्थानांतररत कर कदया जाए
 ववतरण कं पवनयों को अर्शथक ूपप से व्यवहायथ बनाने के विए ईदय द्वारा महत्वपूणथ शुल्क सुधार
ककये जाने अवश्यक हैं
 UDAY के तहत भाग िेने वािे राज्यों के प्रदशथन की बारीकी से वनगरानी सुवनवित करने के विए
एक मल्टी िेवि मॉवनटटरग तंत्र स्थावपत ककया गया है वनगरानी के ईद्देश्य के विए एक वेब
पोटथि (www.uday.gov.in) भी िॉन्च ककया गया है

2.2.6. िामीण ववद्यु तीकरण

 2005 में राजीव गांधी िामीण ववद्युतीकरण योजना (RGGVY) की शुरुअत के साथ िामीण
ववद्युतीकरण में बहत ऄवधक ववकास हअ आसके बाद वषथ 2010-11 आसके विए बजटीय पररव्यय
में ईल्िेखनीय वृवि हइ हािांकक, RGGVY कायथक्रम ऄपने िक्ष्यों को पूरा करने में सफि नहीं हो
सका
 दीन दयाि ईपाध्याय िाम ज्योवत योजना (DDUGJY): यह योजना फीडर पृथक्करण (िामीण
घरों और कृ वष) पर ध्यान कें कद्रत करती है और िामीण क्षेत्रों में सभी स्तरों पर मीटरींग सवहत ईप-
संचरण और ववतरण अधारभूत संरचना को मजबूत करती है यह िामीण पररवारों को 24 घंटे
वबजिी प्रदान करने और कृ वष ईपभोिाओं को पयाथप्त वबजिी प्रदान करने में मदद करे गा
RGGVY को आस नइ योजना में िामीण ववद्युतीकरण के एक घटक के ूपप में शावमि ककया गया
है

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 यह योजना फीडर पृथक्करण, ईप-संचरण और ववतरण नेटवकथ को मजबूत करने, सभी स्तरों

(आनपुट पॉआं ट, फीडर और ववतरण ट्रांसफामथर), माआक्रो विड और ऑफ विड ववतरण नेटवकथ को
प्राथवमकता देती है
आस संदभथ में, यह ध्यान देने की जूपरत है कक 2005 से ककसी गांव को तब ववद्युतीकृ त माना जाता है,
जब:
o ररहाआशी आिाकों साथ ही साथ बस्ती/गांव में मूिभूत ऄवसंरचना जैसे ववतरण ट्रांसफामथर
और ववतरण िाआनें ईपिब्ध हैं
o ववद्याियों, पंचायत कायाथिय, स्वास््य कें द्र, दवाखानों, सामुदावयक कें द्र अकद जैसे
सावथजवनक स्थानों पर वबजिी प्रदान की जाती है
o गांव में ववद्यमान कु ि घरों में कम से कम 10 प्रवतशत ववद्युतीकृ त हो

 हािांकक, आसके विए के वि वबजिी िाआन के प्रावधान की अवश्यकता होती है, न कक वबजिी के
वास्तववक ईपयोग की आसमें प्राप्त वबजिी की वनयवमतता या वनरं तरता नहीं मापी जाती है
आसविए यहां तक कक ऄगर ककसी गांव में कु छ घरों में प्रवतकदन के वि कु छ घंटे वबजिी वमिती है
तो भी गांव को ववद्युतीकृ त माना जाता है आसविए ववद्युतीकरण के बाद, सरकार द्वारा "गहनता"

की एक और प्रकक्रया चिाइ गयी है, वजसमें सभी घरों को तब तक ववद्युतीकृ त ककया जाता है जब
तक यह सभी घरों को ईपिब्ध नहीं हो जाती है
 यह प्रकक्रया सभी राज्यों और सभी गांवों में चि रही है कु छ राज्य जैसे पंजाब, हररयाणा और

महाराष्ट्र वजन्हें कइ वषों से ववद्युतीकृ त समझा जा रहा था, वहाुँ पर भी आसे िागू ककया गया है

आसविए, ववद्युत् की ईपिब्धता वािे पररवारों का ऄनुपात ववद्युतीकृ त गांवों के ऄनुपात से काफी
ऄिग है
 आसविए, यद्यवप 597,464 जनगणना गांवों (99 प्रवतशत) में से 591,685 गाुँव ववद्युवतकृ त ककए

जा चुके हैं, मात्र 71 प्रवतशत घरों में ही वबजिी है (और यह भी वनयवमत या ववश्वसनीय नहीं है) -
िेककन यह शहरी और िामीण दोनों ही क्षेत्रों को कवर करती है स्पष्ट है कक िामीण घरो में
वबजिी की पहुँच शहर की ऄपेक्षा कम है, और ऄनुमान है कक पूरे भारत में िगभग 60 प्रवतशत

िामीण घरों में ही वबजिी की पहंच है आसका ऄथथ यह है कक ऄभी भी िामीण पररवारों का 2/5

वहस्सा ववश्वसनीय वबजिी की सावथभौवमक पहंच से दूर है िामीण भारत के ववद्युतीकरण को


ऄभी एक िंबा रास्ता तय करना है

2.3 कोयिा

 ऄंतराथष्ट्रीय उजाथ एजेंसी (IEA) के ऄनुसार, 2014 में भारत दुवनया का तीसरा सबसे बडा कोयिा
ईत्पादक और दूसरा सबसे बडा अयातक था भारत में कोयिे का एक बडा भंडार है और ववत्त वषथ
2016 के ऄंत तक भारत में कु ि कोयिा भंडार 308.802 ऄरब टन था बढते घरे िू कोयिा
ईत्पादन से देश का वबजिी क्षेत्र तेजी से वस्थर हो रहा है कीमत की ऄवस्थरता को कम करने और
ईत्पादन िागत को वनयंवत्रत करने के विए कं पवनयां ईंधन की वनबाथध अपूर्शत सुवनवित करने हेतु
कै वलटव कोयिा क्षेत्रों का ववकास कर रही हैं सरकार ने उजाथ कं पवनयों को यह छू ट दी है कक वे
वनकटतम स्रोतों के साथ ऄपनी कोयिे की अपूर्शत को बदि सकती है आससे न वसफथ रे ि नेटवकथ
का बोझ हल्का होगा, साथ ही साथ ऄन्य खचों को भी कम ककया जा सके गा

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 2015-16 के दौरान वबजिी संयंत्रों में घरे िू कोयिा अपूर्शत में 6.2% के असपास बढोतरी दजथ
हइ 2016-17 के दौरान कोयिा अधाररत वबजिी ईत्पादन 595.124 BU रहा, जो वपछिे वषथ
आसी ऄववध की तुिना में 5.92% की वृवि दर कदखा रहा है वसतंबर, 2016 तक कु ि 3000
MW की ऄकु शि ताप ईत्पादन क्षमता को हटा विया गया है
 21 कदसंबर, 2016 को शुूप की गइ कोि वमत्र वेब पोटथि को घरे िू कोयिे के प्रयोग में िचीिापन
िाने के विए वडजाआन ककया गया है कोयिा भंडार को ऐसे राज्य / कें द्र के स्वावमत्व या वनजी
क्षेत्र के ईत्पादन कें द्रों को स्थानांतररत ककया जायेगा जो ऄवधक कायथ कु शि है आस से वबजिी
ईत्पादन की िागत और ऄंततः ईपभोिाओं के विए कम मूल्य पर वबजिी की पूर्शत की जा सके गी
 पावर सेक्टर के विए कोयिे की एक ऄिग इ-नीिामी सवडो शुूप की गइ है थडथ पाटी सैंपसिग से
कोयिे की गुणवत्ता मापन प्रकक्रया में सुधार ककया गया है

2.3.1. कोयिा का अयात

 कोयिे के ईत्पादन में बढोतरी के कारण, कोयिा अयात 2014-15 में 217.78 Mte से घटकर
2015-16 में 199.88 Mte पर अ गया है 2016-17 में भी कोयिे के अयात में वगरावट का
रुझान जारी रहा वजसमें ऄप्रैि 2016 से जनवरी 2017 की ऄववध के दौरान कोयिा अयात में
वपछिे वषथ आसी ऄववध की तुिना में 2.59% की कमी अइ है हािांकक, कोयिे का अयात घरे िू
ईत्पादन पर पूरी तरह से वनभथर नहीं है यह ऄन्य कारकों पर भी वनभथर करता है जैसे अयावतत
कोयिे पर वडजाआन ककए गए वबजिी संयत्र ं और अवश्यक िेड के कोककग कोि की ऄपयाथप्त
ईपिब्धता
3. नवीकरणीय उजाथ
 वषों से नवीकरणीय उजाथ क्षेत्र भारत में विड से जुडे ववद्युत ईत्पादन क्षमता में एक महत्वपूणथ
वखिाडी के ूपप में ईभरा है यह सतत ववकास के सरकारी एजेंडे का समथथन करता है और उजाथ
अवश्यकताओं को पूरा करने के एक ववकल्प के ूपप में ईभर रहा है यह महसूस ककया गया है कक
अने वािे वषों में नवीकरणीय उजाथ को उजाथ सुरक्षा प्राप्त करने और उजाथ वनयोजन प्रकक्रया का
एक ऄवभन्न ऄंग बनने में काफी महत्वपूणथ भूवमका वनभानी होगी
 वपछिे कु छ वषों के दौरान भारतीय उजाथ पररदृश्य में नवीकरणीय उजाथ की एक प्रभावशािी
ईपवस्थत रही है भारत में नवीकरणीय उजाथ क्षेत्र के पररदृश्य में, वपछिे कु छ वषों के दौरान, सौर
उजाथ के योगदान को बढाने के विए त्वररत और महत्वाकांक्षी योजनाओं के साथ नीवतगत ढांचे में
भारी पररवतथन देखा गया है एक धारणा है कक नवीकरणीय उजाथ ऄब एक महत्वपूणथ भूवमका
वनभा सकती है साथ ही नवीकरणीय प्रौद्योवगककयों की क्षमता में ववकास और ववश्वास दोनों बढा
है
 जवाहरिाि नेहूप राष्ट्रीय सौर वमशन के दायरे का ववस्तार भववष्य की महत्वाकांक्षा और दृवष्ट
दोनों ूपप से महत्त्वपूणथ है आसके ऄिावा पैन-आं वडया नवीकरणीय उजाथ बाजार के वनमाथण में ऄक्षय
उजाथ प्रमाणपत्र (REC) तंत्र को िॉन्च करने से सहायता वमिती है ऄन्य महत्वपूणथ ईपिवब्धयां
सौर वववशष्ट खरीद दावयत्वों का पररचय है; बेहतर कु क-स्टोव पहि की शुूपअत; सौर PV और
थमथि में समवन्वत ऄनुसंधान और ववकास गवतवववधयों की शुरुअत; दूसरी पीढी के जैव ईंधन,
हाआड्रोजन उजाथ और ईंधन कोवशकाओं अकद का ववकास होगा
 भारत में वावणवज्यक ूपप से दोहन योग्य स्रोतों में िगभग 900GW की नवीकरणीय उजाथ क्षमता
है आनमें पवन - 102GW (खंबे की 80 मीटर की उंचाइ से), िघु जि ववद्युत् पररयोजना -
20GW; जैव-उजाथ - 25GW; और 3% बंजर भूवम मानते हए 750GW सौर उजाथ ईत्पादन की
क्षमता है
 वषथ 2015-16 के दौरान, पवन उजाथ क्षमता में 3.42GW की वृवि के साथ यह वपछिे एक वषथ के
दौरान देश की पवन उजाथ क्षमता में सबसे ज्यादा वृवि है देश में वतथमान पवन उजाथ की स्थावपत

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क्षमता िगभग 28.28GW है ऄब, स्थावपत पवन उजाथ क्षमता के मामिे में भारत ववश्व स्तर पर
चीन, ऄमेररका और जमथनी के बाद चौथे स्थान पर है
 भारत में देश में पवन उजाथ ईपकरण का एक मजबूत वववनमाथण अधार है वतथमान में, देश में
3.00MW की एकि टबाथआन वनमाथण की क्षमता वािे 20 ईत्पादक हैं जो 53 वभन्न मॉडिों का
वनमाथण कर सकते हैं भारत में वनर्शमत सवड टरबाआन ऄंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता मानकों के ऄनुूपप है
और िागत के वहसाब से दुवनया में सबसे कम मूल्य पर वनर्शमत होती है यूरोप, ऄमेररका और ऄन्य
देशों में आनका वनयाथत ककया जा रहा है
 नेशनि आं स्टीट्यूट फॉर सवड एनजी (NIWE) द्वारा देश की पवन उजाथ क्षमता का पुनमूथल्यांकन
ककया गया है आसे 100 मीटर हब-उंचाइ पर 302GW ऄनुमावनत ककया गया है NIWE की
वेबसाआट पर एक ऑनिाआन सवड एटिस ईपिब्ध है यह देश में पवन उजाथ ववकास में एक नए
अयाम का सृजन करे गा
 िम्बी तटरे खा के कारण ऄपतटीय पवन उजाथ पररयोजनाओं के ववकास की ऄच्छी संभावना है
कै वबनेट ने नेशनि ऑफशोर सवड एनजी पॉविसी को मंजरू ी दे दी है तथा आसे 6 ऄक्टू बर 2015
को ऄवधसूवचत ककया गया है गुजरात और तवमिनाडु की तट रे खा के पास कु छ ब्िॉक्स की
पहचान की गइ है आन तटीय क्षेत्रों में NIWE, सवड ररसोसथ एसेसमेंट करने की प्रकक्रया में है

3.1. नीवतगत पहिें

 जिवायु पररवतथन पर संयुि राष्ट्र फ़्रेमवकथ कन्वेंशन को कदए गए भारत सरकार के आन्टेन्डेड नेशनि
डेटर्शमन्ड कॉवन्ट्रब्यूशन (INDC) में कहा गया है कक भारत 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन अधाररत
उजाथ संसाधनों से 40% संचयी ववद्युत क्षमता को प्राप्त करे गा प्रौद्योवगकी हस्तांतरण और िीन
क्िाआमेट फं ड अकद की सहायता से प्राप्त ऄंतराथष्ट्रीय ववत्त से आस िक्ष्य को प्राप्त ककया जायेगा 31
ऄक्टू बर, 2016 तक देश में 8727.62 MW से ऄवधक क्षमता वािी सौर उजाथ पररयोजनाएं
स्थावपत की जा चुकी हैं
 सरकार वववभन्न प्रोत्साहनों, जैसे कक ईत्पादन अधाररत प्रोत्साहन (GBIs), पूंजी और ब्याज
सवब्सडी, वाआऄवबिटी गैप फं सडग, ररयायती ववत्त, ववत्तीय प्रोत्साहन आत्याकद द्वारा नवीकरणीय
उजाथ संसाधनों के प्रोत्साहन के विए एक सकक्रय भूवमका वनभा रही है
 वषथ 2022 तक 175 गीगावॉट नवीकरणीय उजाथ ईत्पादन के िक्ष्य की प्रावप्त हेतु, सौर पाकथ , सौर
रक्षा योजना, CPUs के विए सौर योजना, नहर बैंक और नहर के शीषथ पर सौर PV वबजिी
संयंत्र, सौर पम्प, सौर छत अकद प्रमुख कायथक्रम / योजनाओं का शुभारं भ ककया है
 वववभन्न नीवतगत ईपायों की शुूपअत की गइ है, वजसमें ऄन्य बातों के साथ-साथ, नवीकरणीय
खरीद बाध्यता (RPO) को मजबूत बनाने और नवीकरणीय सृजन बाध्यता (RGO) प्रदान करने
के विए ववद्युत ऄवधवनयम और टैररफ नीवत में ईपयुि संशोधन ककया गया है
 ऄन्य ईपायों में ववशेष सौर पाकों की स्थापना; िीन एनजी कॉररडोर पररयोजना के माध्यम से
पॉवर ट्रांसवमशन नेटवकथ का ववकास; सौर छत पररयोजनाओं के विए बडे सरकारी पररसरों /
आमारतों की पहचान; स्माटथ शहरों के ववकास के विए वमशन स्टेटमेंट और कदशावनदेशों के तहत
ऄवनवायथ ूपप से छत के उपर सौर पैनि और 10 प्रवतशत ऄक्षय उजाथ खपत का प्रावधान; नए
वनमाथण या ईच्च फशथ क्षेत्र ऄनुपात (higher Floor Area Ratio) के विए छत के उपर सौर पैनि
का ऄवनवायथ प्रावधान; सौर पररयोजनाओं के विए बुवनयादी ढांचे की वस्थवत; कर मुि सौर
ऊणपत्र जारी करना; दीघथकाविक ऊण प्रदान करना; बैंकों / NHB द्वारा अवास ऊण के एक
वहस्से के ूपप में छत के उपर सौर पैनि िगाने; ववतरण कं पवनयों को प्रोत्सावहत करने और नेट-

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मीटटरग ऄवनवायथ बनाने, वद्वपक्षीय और ऄंतराथष्ट्रीय दाताओं तथा िीन क्िाआमेट कोष से धन
जुटाने और समेककत उजाथ ववकास योजना (IPDS) को कक्रयावन्वत करना शावमि है

3.1.1. दू स री पीढी के एथे नॉि के विए ड्राफ्ट पॉविसी

नवीन और नवीकरणीय उजाथ मंत्रािय ने दूसरी पीढी आथेनॉि के विए एक नीवत के प्राूपप को जारी
ककया है
महत्व
 नीवत में शीरे (molasses) की कमी के कारण आथेनॉि के ईत्पादन के विए शीरे के ऄिावा ऄन्य
संसाधनों के प्रयोग की बात कही गयी है
 नवीन और नवीकरणीय उजाथ मंत्रािय एवं ववज्ञान और प्रौद्योवगकी मंत्रािय द्वारा बायोमास,
बांस, धान की परािी, गेहूं पुअि और कपास के भूसे अकद के प्रयोग से दूसरी पीढी के आथेनॉि के
ईत्पादन एवं वाहन में ईंधन के ूपप में प्रयोग करने के विए नइ प्रकक्रया की खोज
 दूसरी पीढी के आथेनॉि के प्रोत्साहन के विए सरकार पेट्रोि में 22.5 प्रवतशत और डीजि में 15
प्रवतशत तक आथेनॉि वमश्ण की योजना बनाने की प्रकक्रया में है
 सरकार ईद्योगों द्वारा ईत्पाकदत दूसरी पीढी के आथेनॉि की संपूणथ मात्रा खरीदने के विए तैयार है
 तेि ववपणन कं पवनयों (OMCs) के विए आथेनॉि की अपूर्शत बढाने हेतु, आथेनॉि की खरीद नीवत
को संशोवधत कर कदया गया है वजससे पूरी आथेनॉि अपूर्शत श्ृंखिा को सुदढृ ककया जा सके और
आथेनॉि को िाभकारी मूल्य पर ईपिब्ध कराया जा सके
िाभ
 रोजगार: ईत्तर-पूवी भारत में बांस से आथेनॉि बनाने से िाखों िोगो को रोजगार वमिेगा ईत्तर-
पूवथ के क्षेत्रो में दूसरी पीढी के आथेनॉि की वनमाथण क्षमता 40,000 िीटर है
 पयाथवरण ऄनुकूि: ईदहारण के विए: ब्राजीि में फ्िेक्स-ईंधन कारें नए एथॉनोि पर चिती हैं
और कम प्रदूषण करती है
 आथेनॉि के ईत्पादन में बढोतरी से भारत के कच्चे तेि के बडे अयात वबि में कटौती हो सकती है ,
वजसकी िागत प्रवत वषथ 7 िाख करोड रुपये पर अंकी गइ है

3.2. प्रमु ख ववकास

 िीन एनजी कॉररडोर: नवीकरणीय उजाथ को घरों तक पहुँचाने के विए 38,000 करोड रुपये की
िागत वािे िीन एनजी कॉररडोर की स्थापना की जा रही है पावर विड कॉरपोरे शन ऑफ
आं वडया विवमटेड (PGCIL) ने एवशयन डेवेिपमेंट बैंक (ADB) से 1 करोड ऄमेररकी डॉिर की
ऊण सहायता की मांग की है वजसमें 500 वमवियन ऄमरीकी डॉिर का सावथभौम गारं टीकृ त
ऊण और 500 वमवियन ऄमरीकी डॉिर का गैर-सावथजावनक ऊण शावमि है
 न्यूनतम सौर टैररफ: राष्ट्रीय सौर वमशन के तहत राजस्थान में 70MW की छह पररयोजनाओं में
से एक के विए ररवसथ नीिामी के माध्यम से सोिर टैररफ का मूल्य ऄभूतपूवथ ूपप से कम होकर रु
4.34 /kWh पर पहंच गया NTPC ने 18.01.2016 को 420MW सौर उजाथ पररयोजनाओं के
विए ररवसथ बोिी प्रकक्रया का अयोजन ककया हािांकक, आससे टैररफ 3 ूपपये प्रवत यूवनट तक
वगर गया, वजसे भारत में सौर उजाथ वनगम (SECI) द्वारा संचावित ूपफटॉप सोिर एनजी की
नीिामी में ऄमलिस एनजी सॉल्यूशंस द्वारा हावसि ककया गया था
 कौशि ववकास - माचथ 2020 तक 50,000 प्रवशवक्षत सौर फोटोवोल्टेआक तकनीवशयन तैयार
करने के विए सूयथ वमत्र योजना शुूप की गइ है 30.09 .2016 तक 5492 सूयथ वमत्रों को
प्रवशवक्षत ककया जा चुका है और 3000 से ऄवधक िोग ऄभी प्रवशक्षण प्राप्त कर रहे हैं सूयथ वमत्र
योजना को िागू करने के विए संपूणथ देश में 150 से ऄवधक संस्थानों का एक नेटवकथ बनाया गया
है

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4. दूर सं चार
 अधारभूत ढांचे जैसे वबजिी, सडक, जि की तरह ही दूरसंचार को भी ववकवसत ककया जा रहा है
और यह देश के समि सामावजक-अर्शथक ववकास के विए अवश्यक है यह अर्शथक ववकास का एक
महत्वपूणथ घटक है भारतीय दूरसंचार क्षेत्र ने वपछिे कु छ वषों में ऄभूतपूवथ वृवि दजथ की है तथा
यह चीन के पिात् ववश्व का दूसरा सबसे बडा टेिीफोन नेटवकथ बन गया है सरकार द्वारा सुधारों
की एक श्ृंखिा, वायरिेस तकनीक और वनजी क्षेत्र की सकक्रय भागीदारी ने देश में दूरसंचार क्षेत्र

की चर घातांकी वृवि में महत्वपूणथ भूवमका वनभाइ राष्ट्रीय दूरसंचार नीवत 2012 (NTP-2012)

का ईद्देश्य पूरे देश में सस्ती, ववश्वसनीय और सुरवक्षत दूरसंचार और ब्रॉडबैंड सेवाओं को ईपिब्ध
कराना है

वचत्र: भारत का दूरसंचार पररदृश्य

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4.1. वतथ मान वस्थवत

 वसतंबर 2016 तक िगभग 1074.23 वमवियन सब्सक्राआबर बेस के साथ, भारत में ववश्व का
दूसरा सबसे बडा दूरसंचार नेटवकथ है
 2016 में 367.48 वमवियन आं टरनेट सब्सक्राआबर के साथ, भारत कु ि आं टरनेट यूजर के मामिे में
तीसरे स्थान पर था
 भारत में आं टरनेट ईपयोग का एक प्रमुख घटक मोबाआि अधाररत आं टरनेट है, वजसमें 8 में से 7

यूजर ऄपने मोबाआि फोन से ही आं टरनेट का प्रयोग कर रहे हैं 2012 के बाद से, मोबाआि पर

वीवडयो देखने में खचथ ककया गया समय 200 घंटे बढा है

 वसतंबर 2016 तक शहरी टेिी घनत्व 156.24 प्रवतशत और िामीण टेिीफोन घनत्व 51.24
प्रवतशत रहा
 सस्ते स्माटथफोन और सेवाओं की कम दर के कारण भारतीय दूरसंचार ईद्योग में वृवि की बहत
संभावना है
 माचथ 2016 से, वायरिेस सेगमेंट (कु ि टेिीफोन सदस्यता का 97.60 प्रवतशत) ने बाजार पर

प्रभुत्व बना विया है, साथ ही वायरिाआन सेगमेंट में आसकी 2.4 फीसदी वहस्सेदारी है

4.2. टे िी घनत्व

 प्रवत 100 व्यविओं पर टेिीफोन की संख्या को टेिी-घनत्व के ूपप में व्यि ककया जाता है यह

देश में दूरसंचार पहंच (penetration) का एक महत्वपूणथ संकेत है मोबाआि सेगमेंट का टेिी

घनत्व ववत्त वषथ 2007 में 14.6 फीसदी से बढकर ववत्त वषथ 2017 में 86.25 फीसदी पर पहंच
गया
 ववत्तीय वषथ 2016 में, शहरी वायरिेस टेिीफोन घनत्व 148.73 पर रहा जबकक िामीण

वायरिेस टेिी घनत्व 50.88 पर रहा भारत में 62,443 से ऄवधक गांव ऄभी भी दूरसंचार की

पहुँच से दूर है; आन्हें सरकार की यूवनवसथि सर्शवस ऑवब्िगेशन फं ड (वजससे िामीण टेिीघनत्व में
वृवि) से सवब्सडी समथथन के साथ गांव टेिीफोन सुववधा प्रदान की जाएगी

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4.3. ब्रॉडबैं ड

 ब्रॉडबैंड कनेवक्टववटी में वृवि को बेहतर सामावजक अर्शथक प्रदशथन का ऄवभन्न ड्राआवर माना जाता
है ब्रॉडबैंड सेवाएं जनता को सशि बनाती हैं और व्यवियों को नए कै ररयर और शैवक्षक ऄवसरों
तक पहुँचने में मदद करती है साथ ही ये व्यवसायों के नए बाजारों तक पहंचने में मदद करती है
तथा दक्षता में सुधार और सभी नागररकों को स्वास््य, बैंककग और वावणज्य जैसे महत्वपूणथ सेवाओं
को ववतररत करने की सरकार की क्षमता में वृवि करती है माचथ 2016 के ऄंत में ब्रॉडबैंड
ईपभोिाओं की संख्या 149.75 वमवियन तक पहंच गइ ववत्तीय वषथ 2007-17 के दौरान देश में
ब्रॉडबैंड सवब्स्क्रलशन में 19.18 प्रवतशत CAGR की वृवि देखी गइ

वचत्र: ब्रॉडबैंड िाहकों की संख्या


 िामीण और सुदरू क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड की पहुँच 'वडवजटि वडवाआड' को कम करने में मदद करती है
दीघथकाि में व्यापक ूपप से ब्रॉडबैंड स्वीकरण से िामीण आिाकों में आसके गुणक प्रभाव
(multiplier effect) सामने अते हैं यह िामीण क्षेत्रों में ईत्पादकता में सुधार, एक ऄपयाथप्त
पररवहन ऄवसंरचना की बाधाओं को दूर करने और िामीण आिाकों में जीवन की गुणवत्ता में
सुधार िाने में मदद करता है सरकार के विए ब्रॉडबैंड की महत्वपूणथ अर्शथक और सामावजक िाभ
को देखते हए, ब्रॉडबैंड तक सबकी बढाना एक ईच्च प्राथवमकता बन गइ है िामीण और सुदरू क्षेत्रों
में ब्रॉडबैंड कनेवक्टववटी प्रदान करने के विए वववभन्न योजनाएं शुूप की गइ है

4.4. राष्ट्रीय दू र सं चार नीवत 2012

 सरकार के द्वारा 31 मइ 2012 को राष्ट्रीय दूरसंचार नीवत - 2012 (NTP -2012) को मंजरू ी दी
गइ, जो दूरसंचार क्षेत्र से संबंवधत रणनीवतक कदशा, नीवत और वववभन्न मध्यम ऄववध और
दीघथकाविक मुद्दों को संबोवधत करती है NTP - 2012 का प्राथवमक ईद्देश्य संपूणथ देश में सस्ते,
ववश्वसनीय और सुरवक्षत दूरसंचार और ब्रॉडबैंड सेवाओं को ईपिब्ध कराते हए सावथजवनक िाभ
प्रदान करना है
 नीवत का मुख्य ईद्देश्य दूरसंचार सेवाओं के गुणक प्रभाव और समि ऄथथव्यवस्था पर आसके
पररवतथनकारी प्रभाव पर फोकस करना है यह राष्ट्रीय ववकास एजेंडे को अगे बढाने में दूरसंचार
सेवाओं की भूवमका को स्वीकार करता है तथा समता और समावेशन को बढाता है नागररकों के
विए सस्ती और प्रभावी संचार की ईपिब्धता NTP -2012 के िक्ष्य का कें द्र सबदु है यह
दूरसंचार में वनजी क्षेत्र की प्रमुख भूवमका को भी महत्व देती है एवं फिस्वूपप ऐसे नीवत वनमाथण
को प्रोत्सावहत करती है जो प्रवतस्पधी माहौि में सेवा प्रदाताओं की सतत व्यवहायथता सुवनवित
कर सके
NTP-2012 के ईद्देश्यों में वनम्नविवखत सवम्मवित हैं:

 सभी नागररकों को सुरवक्षत, सस्ती और ईच्च गुणवत्ता युि दूरसंचार सेवाएं प्रदान करना
 एक राष्ट्र-एक िाआसेंस - सेवाओं और सेवा क्षेत्रों में एक िाआसेंस वनमाथण का प्रयास करना

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 एक राष्ट्र के िक्ष्य को प्राप्त करना - पूणथ मोबाआि नंबर पोटेवबविटी और संपण
ू थ भारत में वन:शुल्क
रोसमग िामीण टेिी घनत्व के मौजूदा स्तर को 39 प्रवतशत से बढाकर वषथ 2017 में 70 प्रवतशत
तथा वषथ 2020 तक शत प्रवतशत करना है
 दूरसंचार को, ब्रॉडबैंड कनेवक्टववटी सवहत, वशक्षा और स्वास््य जैसी बुवनयादी जूपरतों के समान
मान्यता प्रदान करना और 'ब्रॉडबैंड के ऄवधकार' की कदशा में काम करना
 2015 तक सस्ती और ववश्वसनीय ब्रॉडबैंड ऑन-वडमांड सेवा प्रदान करना वषथ 2017 तक 175
वमवियन ब्रॉडबैंड कनेक्शन स्थावपत करते हए 2020 तक 600 वमवियन कनेक्शन स्थावपत
करना साथ ही 2020 तक न्यूनतम 2 Mbps की डाईनिोड गवत और मांग पर कम से कम 100
Mbps की ईच्च गवत ईपिब्ध कराना
 वषथ 2014 तक प्रौद्योवगककयों के संयोजन के माध्यम से सभी िाम पंचायतों के विए ईच्च गवत और
ईच्च गुणवत्ता युि ब्रॉडबैंड का ईपयोग और 2020 तक क्रमशः सभी गांवों और बवस्तयों को
ब्रॉडबैंड सुववधा प्रदान करना
 ववकास के विए ICT की वास्तववक क्षमता की स्थापना में दूरसंचार को एक बुवनयादी ढांचा क्षेत्र
के ूपप में पहचाना जाना चावहए
 दूरसंचार ऄवसंरचनाओं की स्थापना में राआट ऑफ वे (RoW) की समस्याओं का वनस्तारण
 गैर-वववशष्ट और गैर-भेदभावपूणथ पहंच (non-exclusive and non-discriminatory access)
प्रदान करने के विए वववभन्न नेटवकों के बीच एक दूसरे से संबंध स्थापना हेतु एक साझा लिेटफॉमथ
की स्थापना सुवनवित करते हए एक पररवेश की स्थापना
 दूरसंचार में िीन पॉविसी को बढावा देना और नवीकरणीय संसाधनों के ईपयोग को प्रोत्सावहत
करना
 2020 तक चरणबि एवं समयबि ढंग से देश में नए आं टरनेट प्रोटोकॉि (IPv6) में स्थानान्तरण
हावसि करना और IP लिेटफॉमथ पर वभन्न सेवाओं के विए एक पाररवस्थवतकी तंत्र को प्रोत्सावहत
करना
वतथमान में, दूरसंचार ववभाग (DoT) द्वारा 2017 से एक नइ दूरसंचार नीवत पर काम शुूप करने की
योजना बनाइ जा रही है ताकक आस क्षेत्र में वृवि सुवनवित हो सके और ऄगिी पीढी के प्रौद्योवगककयों
की अवश्यकताओं की पूर्शत की जा सके साथ ही, दूरसंचार मंत्रािय ने NTP 2012 के तहत
प्रौद्योवगकी तटस्थ दूरसंचार िाआसेंस जारी ककए हैं, वजसे स्पेक्ट्रम से ऄिग कर कदया गया है ऄन्य
सुधारों में स्पेक्ट्रम ट्रेसडग और साझाकरण वनयमों को ऄंवतम ूपप देना, पूणथ मोबाआि नंबर पोटेवबविटी
और दूरसंचार कं पवनयों के विए स्पेक्ट्रम की अपूर्शत में वृवि शावमि हैं
हािांकक, मंत्रािय को ऄभी बहत से िक्ष्यों को प्राप्त करना शेष है, जैसे 2 mbps ब्रॉडबैंड स्पीड
ईपभोिाओं को प्रदान करना, संपूणथ देश में रोसमग शुल्क को समाप्त करना, वाआट स्पेस के ईपयोग को
बढावा देना, नेटवकथ रोिअईट मुद्दों को सरि बनाना, नेशनि मोबाआि प्रॉपटी रवजस्ट्री का गठन और
महत्वपूणथ ूपप से, सेवा प्रदाताओं के साथ वववादों को ईपभोिा फोरम के ऄवधकार क्षेत्र के ऄंतगथत
िाकर ईपभोिाओं को सशि बनाना
सरकार ने वायरिेस ऑपरे टटग िाआसेंस के ईन्मूिन को भी ऄवधसूवचत ककया है, यह एक ऐसा कदम है
वजससे इज ऑण डू आंग वबजनेस को प्राप्त ककया जा सके गा ऄब तक, दूरसंचार सेवा प्रदाताओं को बेस
स्टेशन स्थावपत और संचावित करने के विए एक ऄिग िाआसेंस प्राप्त करना अवश्यक था ऄन्य
वायरिेस ईपकरण पहिे से ही यूवनफाआड एक्सेस सर्शवस िाआसेंस के वहस्से के ूपप में शावमि हैं ऄतः,
एक ऄिग वायरिेस ऑपरे टटग िाआसेंस को समाप्त करने का कदम दूरसंचार ऑपरे टरों की परे शानी को
कम करता है

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4.5. दू र सं चार ईपकरण का वववनमाथ ण

 3G एवं ब्रॉडबैंड वायरिेस सेवाओं और ऄगिी पीढी की तकनीकों के बढते संचरण के साथ,

दूरसंचार ईपकरणों की मांग में तीव्र वृवि हइ है आस ऄवसर को ववत्तीय िाभ में बदिने हेतु,

सरकार और नीवत वनमाथता घरे िू वववनमाथण ईद्योग के ववकास पर ध्यान कें कद्रत कर रहे हैं NTP-

2012 के ईद्देश्यों में दूरसंचार ईपकरण के वववनमाथण का संवधथन भी शावमि ककया गया है

 घरे िू ईत्पाकदत आिेक्ट्रॉवनक ईत्पादों की वहस्सेदारी बढाने के विए, वजसमें दूरसंचार ईपकरण भी

शावमि हैं, सरकार ने खरीद में स्थानीय ूपप से ईत्पाकदत आिेक्ट्रॉवनक ईत्पादों (दूरसंचार
ईपकरणों सवहत) को प्राथवमकता देने की नीवत वनधाथररत की है
 तदनुसार दूरसंचार ववभाग ने सरकार के सभी मंत्राियों और ववभागों (रक्षा मंत्रािय को छोडकर)
एवं ईनके प्रशासवनक वनयंत्रण के ऄधीन वस्थत सभी एजेंवसयों, सभी सरकारी ववत्त पोवषत
दूरसंचार पररयोजनाओं हेतु खरीदे जाने वािे दूरसंचार ईत्पादों को ऄवधसूवचत ककया है
 देश में वववनमाथण को बढावा देने के विए कें द्र सरकार की पहिों जैसे 'मेक आन आं वडया' ऄवभयान का

देश में मोबाआि हैंडसेट के वनमाथण पर सकारात्मक प्रभाव पडा है सैमसंग, माआक्रोमैक्स और
स्पाआस जैसी कं पवनयां पहिे से ही देश में हैंडसेट तैयार कर रही हैं वजओमी और मोटोरोिा के
साथ िेनोवो ने भी भारत में स्माटथफोन वनमाथण की शुरुअत की है HTC, असुस और वजओनी
जैसी कं पवनयों ने भी देश में वववनमाथण अधार स्थावपत करने में रुवच कदखाइ है

4.6. सावथ भौवमक से वा दावयत्व वनवध (USBO)

 िामीण टेिीफोनी के प्रोत्साहन हेतु, सरकार ने एक संसदीय ऄवधवनयम (भारतीय टेिीिाफ

(संशोधन) ऄवधवनयम, 2003) द्वारा सावथभौवमक सेवा दावयत्व वनवध (USOF) का गठन ककया

देश के िामीण और सुदरू क्षेत्रों में दूरसंचार सुववधाओं के प्रवेश में सुधार के विए USOF द्वारा
वववभन्न योजनाएं शुूप की गइ हैं
 USOF के कायाथन्वयन के विए संसाधनों का सृजन यूवनवसथि सर्शवस िेवी (USL) के माध्यम से

ईत्पन्न ककया जाता है, जो वतथमान में सभी वैल्यू एडेड सर्शवस प्रदाताओं जैसे आं टरनेट, वॉयस मेि,
इ-मेि सेवा अकद को छोडकर सभी दूरसंचार सेवा प्रदाताओं के समायोवजत सकि राजस्व
(AGR) पर 5% की दर से िगाया जाता है आसके ऄवतररि कें द्र सरकार ऄनुदान और ऊण के
माध्यम से भी आसका ववत्तपोषण कर सकती है
 आस फं ड का ईपयोग के वि सावथभौवमक सेवा दावयत्व को पूरा करने के विए ककया जाना है
सावथभौवमक सेवा दावयत्व को ऄवधवनयम में आस प्रकार पररभावषत ककया गया है - िामीण और
सुदरू क्षेत्रों में िोगों को टेिीिाफ सेवाओं को सस्ती और ईवचत मूल्य पर पहुँचाने का दावयत्व

4.7. राष्ट्रीय ऑवलटकि फाआबर ने ट वकथ (NOFN)

 ऑवलटकि फाआबर के माध्यम से देश के सभी 2,50,000 िाम पंचायतों को 'राष्ट्रीय ऑवलटकि

फाआबर नेटवकथ ' (NOFN) के माध्यम से जोडने हेतु 20,000 करोड रुपये की एक पररयोजना को

मंजरू ी दे दी गयी है वजसका प्रयोग करके मोबाआि ऑपरे टर, दूरसंचार सेवा प्रदाता, आं टरनेट सेवा

प्रदाता (ISPs), के बि टीवी ऑपरे टर, कं टेंट प्रोवाआडर अकद िामीण क्षेत्रों में वववभन्न सेवाएं िॉन्च

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कर सकते हैं आस नेटवकथ के जररए इ-स्वास््य, इ-वशक्षा, इ-गवनेंस आत्याकद के विए कइ

एलिीके शन ईपिब्ध कराए जाते हैं आस पररयोजना को USOF द्वारा ववत्त पोवषत ककया जा रहा

है यह पररयोजना सरकार द्वारा स्थावपत भारत ब्रॉडबैंड नेटवकथ विवमटेड (BBNL) नामक एक

स्पेशि पपथस वेवहकि (SVP) एवं भारत संचार वनगम विवमटेड (BSNL), पावर विड कॉपोरे शन

ऑफ आंवडया (PGCI) और रे िटेि कॉपोरे शन ऑण आं वडया (RailTel) के सयुि प्रयासों से चिाइ


जा रही है
 ववत्त मंत्रािय ने भारतनेट पररयोजना का बजट 2017-18 के विए 6,000 करोड रुपये से बढाकर
10,000 करोड रुपये कर कदया है आसका िक्ष्य माचथ 2018 तक 1.50 िाख िाम पंचायतों को
ऑवलटकि फाआबर के माध्यम से हाइ-स्पीड ब्रॉडबैंड कनेवक्टववटी ईपिब्ध कराना है

4.8. नए आं टरने ट प्रोटोकॉि में स्थानां त रण

 IPv6 (आं टरनेट प्रोटोकॉि संस्करण 6) ऄगिी पीढी का आं टरनेट प्रोटोकॉि है IPv4 (आं टरनेट
प्रोटोकॉि संस्करण 4) द्वारा प्रदान ककए गए एड्रेस-स्पेस की कमी और नेटवकथ संतप्त
ृ ा के कारण,
IPv6 का आस्तेमाि अवश्यक हो जाता है जो भववष्य की जूपरतों के विए ववशाि एड्रेस-स्पेस और
कइ ऄन्य ववशेषताएं प्रदान करता है दुवनया भर के देशों ने IPv6 में स्थानांतरण शुूप कर कदया है
भारत दुवनया का पहिा देश है जहां सरकार ने नीवतगत वनणथयों के साथ नेशनि IPv6
वडलिॉआमन्ट रोडमैप जारी ककया है

4.9. वनयामक ढां चा

 वनजी सेवा प्रदाताओं की प्रवववष्ट के कारण एक स्वतंत्र वनयामक की अवश्यकता स्वतः ही ईत्पन्न
हो गयी टेिीकॉम सेवाओं के टैररफ वनधाथरण/संशोधन सवहत दूरसंचार सेवाओं के वववनयमन हेतु
संसद के दूरसंचार वववनयामक प्रावधकरण ऄवधवनयम, 1997 द्वारा भारतीय दूरसंचार वनयामक
प्रावधकरण (TRAI) नामक संस्था को 20 फरवरी, 1997 को प्रभावी ूपप से स्थावपत ककया गया
 TRAI का वमशन देश में दूरसंचार के ववकास के विए अवश्यक दशाओं का सृजन और ववकास आस
प्रकार करना है, जहाुँ भारत ईदीयमान वैवश्वक सूचना समाज के वनमाथण में एक ऄिणी भूवमका
वनभा सके
 TRAI के मुख्य ईद्देश्यों में से एक वनष्पक्ष एवं पारदशी नीवतगत पररवेश प्रदान करना है वजसमें
सभी को समान ऄवसर ईपिब्ध हो तथा वनष्पक्ष प्रवतयोगी माहौि बना रहे
 ईपयुथि ईद्देश्य के ऄनुसरण में, TRAI ने समय-समय पर ऄपने समक्ष अने वािे मुद्दों के समाधान
के विए कइ वनयम, अदेश और वनदेश जारी ककए हैं आसने भारतीय दूरसंचार बाजार को सरकारी
स्वावमत्व वािे एकावधकार से मल्टी ऑपरे टर मल्टी सेवा मुि प्रवतस्पधी बाजार के ूपप में
ववकवसत करने में ऄहम् भूवमका वनभाइ है
 वनदेश, अदेश और ऄवधवनयमों के द्वारा वववभन्न ववषयों जैसे टैररफ, आं टरकनेक्शन और सेवा की
गुणवत्ता के साथ प्रावधकरण के सुशासन सवहत कइ ववषयों को समावहत ककया जाता है
 TRAI ऄवधवनयम, 24 जनवरी 2000 से प्रभावी एक ऄध्यादेश द्वारा संशोवधत ककया गया था,
वजसमें दूरसंचार वववाद वनपटान और ऄपीिीय रट्रब्यूनि (TDSAT) की स्थापना ट्राइ से न्यावयक
और वववाद कायथवावहयों को पृथक करने के विए हइ थी TDSAT को एक िाआसेंसधारक और
िाआसेंसधारी (licensor and a licensee) के बीच, दो या ऄवधक सेवा प्रदाता के बीच, सेवा
प्रदाता और ईपभोिाओं के समूह के बीच, और TRAI के ककसी भी कदशावनदेश, वनणथय या अदेश
के ववरुि ऄपीि सुनने और वववाद वनपटाने के विए स्थावपत ककया गया है

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4.9.1. ने ट न्यू ट्रै विटी

 नेट न्यूट्रैविटी एक वसिांत है वजसके तहत माना जाता है, कक आं टरनेट सर्शवस प्रदान कं पवनयां
आं टरनेट पर हर तरह के डाटा को एक जैसा दजाथ देंगी चाहे वो डाटा वभन्न वेबसाआटों पर वववजट
करने के विए हो या कफर ऄन्य सेवाओं के विए ईन्हें ककसी सेवा को न तो ब्िॉक करना चावहए और
न ही ईसकी स्पीड स्िो करनी चावहए ये ठीक वैसा ही है जैसे कक सडक पर सभी ट्रैकफक के साथ
एक जैसा बताथव ककया जाए
 नेट न्यूट्रैविटी वनयमों के वबना, ISP ईपयोगकताथओं को कु छ वेबसाआटों पर जाने से रोक सकते है,
Netflix जैसी सेवाओं के विए धीमी गवत प्रदान कर सकते हैं या कफर ईपयोगकताथओं को एक
वेबसाआट से दूसरी प्रवतस्पधी वेबसाआट पर रीडायरे क्ट कर सकते हैं नेट न्यूट्रैविटी वनयम ISP को
कु छ साआटों या सेवाओं को ववशेष महत्व कदए वबना ईपयोगकताथओं को समान ूपप से आं टरनेट पर
सभी वैध सामिी के साथ जोडने के विए बाध्य करते हैं
 नेट न्यूट्रैविटी की ऄनुपवस्थवत में, कं पवनयां ISP िाहकों तक प्राथवमकता पहंच को खरीद सकती
हैं Google या Facebook जैसी बडी व् ऄमीर कं पवनयां प्रवतयोवगयों के मुकाबिे ऄपनी
वेबसाआटों पर तेज़, ऄवधक ववश्वसनीय पहंच प्रदान करने के विए ISPs को पैसा दे सकते हैं आससे
नयी स्टाटथ-ऄप सेवाओं को हावन पहुँच सकती है साथ ही, यकद ISP कु छ सेवाओं से कनेक्ट करने के
विए ऑनिाआन शुल्क िेना शुूप करता है, तो ऄंततः आसका ऄवतररि भार अम आन्टरनेट
ईपभोिा पर ही पडेगा
 दूरसंचार वनयामक TRAI ने नेट न्यूट्रैविटी के वसिांतों को बनाए रखने के विए दूरसंचार कं पवनयों
द्वारा मोबाआि यूजर को दी गइ आं टरनेट सेवाओं के विए ववभेदक मूल्य वनधाथरण को कम ककया है
आससे फे सबुक की री बेवसक और एयरटेि ज़ीरो जैसे ऄन्य शून्य रे टेड लिेटफामों को बडा झटका
िगा है

4.10. ऄनु सं धान और ववकास

 C-DOT, दूरसंचार के ऄनुसंधान एवं ववकास ववभाग का एक स्वायत्त वनकाय है जो वववभन्न


प्रकार के िागत-प्रभावी, स्वदेशी ूपप से ववकवसत एवं ऄत्याधुवनक स्टेट-ऑण-दी-अटथ दूरसंचार
समाधान प्रदान करने के विए प्रवतबि है
 मात्र डायि टोन ईपिब्ध कराने के िक्ष्य के साथ प्रारं भ हअ C-DOT वतथमान में संचार
प्रौद्योवगकी के ववववध क्षेत्र में ऄनुसंधान और ववकास हेतु एक राष्ट्रीय कें द्र बन गया है ईपिह
संचार, IN, ATM, DWDM, NMS, वायरिेस ब्रॉडबैंड, GPON, NGN और मोबाआि सेल्युिर
वसस्टम जैसे कइ क्षेत्रों में C-DOT कायथरत है भारतीय नौसेना के जहाजों में संचार के विए C-
DOT की ATM तकनीक का आस्तेमाि ककया जा रहा है दूरसंचार सॉफ्टवेयर समाधान प्रदान
करने के क्षेत्र में भी C-DOT सकक्रय है C-DOT के ऄम्ब्रेिा NMS (नेटवकथ मैनज
े मेंट वसस्टम)
समाधान ने ववक्रेताओं की वभन्न अवश्यकतों के साथ नेटवकथ का प्रबंधन करना संभव बना कदया है
BSNL और MTNL के बीच रोसमग ररकॉडों के सामंजस्य हेतु C-DOT का डाटा वक्ियटरग
हाईस (CLH) समाधान को व्यावसावयक ूपप से तैनात ककया गया है
 C-DOT को राष्ट्रीय महत्व की पररयोजनाओं जैसे कक दूरसंचार सुरक्षा के विए सेंट्रि मॉवनटटरग
वसस्टम और रणनीवतक ऄनुप्रयोगों के विए सुरवक्षत नेटवकथ (Secure Network for strategic
applications) की वजम्मेदारी सौंपी गयी है

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4.11. सावथ ज वनक क्षे त्र के ईपक्रम (PSUs)

DoT के प्रशासवनक वनयंत्रण के तहत 4 PSU अते हैं जो वनम्नविवखत है:


1. महानगर टेिीफोन वनगम विवमटेड (MTNL)
2. भारत संचार वनगम विवमटेड (BSNL)
3. ITI विवमटेड
4. टेविकम्यूवनके शन्स कं सल्टेंट्स आं वडया विवमटेड (TCIL)
 MTNL, 1986 में स्थावपत, एक नवरत्न PSU है जो भारत के प्रमुख महानगरों- कदल्िी और मुब
ं इ
में दूरसंचार सुववधाएं प्रदान करता है MTNL, कदल्िी और मुंबइ, आन दो महानगरों में GSM
मोबाआि सेवाओं और कफक्स्ड-िाआन दूरसंचार सेवा का प्रमुख प्रदाता है
 BSNL, भारत सरकार के संपण
ू थ स्वावमत्व वािा वनकाय है, वजसे ऄक्टू बर 2000 में बनाया गया
था कदल्िी और मुब
ं इ को छोडकर संपण
ू थ देश में दूरसंचार सेवाएं प्रदान करता है BSNL सभी
प्रकार की दूरसंचार सेवाएं प्रदान करता है जैसे िैंडिाआन, WLL और GSM मोबाआि, ब्रॉडबैंड,
आं टरनेट, िीज सर्ककट और िंबी दूरी की दूरसंचार सेवाएुँ िामीण टेिीफोनी BSNL के फोकस
क्षेत्रों में से एक है BSNL ईत्तर-पूवथ और अकदवासी क्षेत्रों में दूरसंचार सुववधाओं के ववकास पर
ववशेष बि देता है
 दूरसंचार सेवा प्रदाताओं और दूरसंचार ववभाग के विए दूरसंचार ईपकरणों की अपूर्शत के विए
1948 में ITI विवमटेड की स्थापना की गइ थी 1948 में ITI ने बेंगिुरु से ऄपना कायथ संचािन
शुूप ककया था, वजसे बाद में ऄन्य क्षेत्रों जैसे जम्मू-कश्मीर में श्ीनगर, ईत्तर प्रदेश में नैनी,
रायबरे िी एवं मनकापुर तथा के रि के पिक्कड में ववस्तृत ककया गया वववभन्न स्थानों पर आन
कारखानों की स्थापना का ईद्देश्य के वि वववनमाथण क्षमता बढाना ही नहीं बवल्क सामावजक
बुवनयादी ढांचे का भी ववकास करना है
 TCIL, भारत सरकार के संपूणथ स्वावमत्व में है यह 1978 में दूरसंचार और सूचना प्रौद्योवगकी के
सभी क्षेत्रों में ववश्वस्तरीय प्रौद्योवगकी ईपिब्ध कराने के मुख्य ईद्देश्य से बनायीं गयी थी, ताकक
ईवचत माके टटग रणनीवतयों के ववकास के द्वारा ववदेशों तथा घरे िू बाजारों में ऄपने कायथ संचािन
में ईत्कृ ष्टता प्राप्त कर सके और सतत ूपप से ऄत्याधुवनक प्रौद्योवगकी प्राप्त हो सके TCL एक
िाभकारी PSU है

5. के िकर सवमवत की ररपोटथ : आन्रास्ट्रक्चर डे व िपमें ट के


PPP मॉडि का पु न जीवन और समीक्षा
 कें द्रीय बजट 2015-16 में, ववत्त मंत्री ने घोषणा की थी कक अधारभूत ढांचे के ववकास के PPP
मॉडि की समीक्षा कर आसे पुनजीववत करना अवश्यक है आस घोषणा के ऄनुसरण में, अधारभूत
ढांचे के ववकास के PPP मॉडि को पुनजीवन हेतु एक सवमवत की स्थापना की गइ, वजसके ऄध्यक्ष
डॉ ववजय के िकर थे आस कवमटी ने वनम्नविवखत सुझाव कदए हैं:
o गवनेंस, संस्थान एवं क्षमता, PPP रे मवकथ के 3 प्रमुख स्तंभ के ूपप में वगने जाते हैं यह
संस्थागत क्षमता वनमाथण गवतवववध के विए अवश्यक हैं, ऄतः आन्हें सकक्रय रखा जाना
चावहए
o सरकार संसद के ऄनुमोदन से एक PPP कानून ववकवसत कर सकती है यह कायथपाविका को
कक्रयान्वयन की एक अवधकाररक ूपपरे खा प्रदान करे गा और साथ ही ववधावयका और
वनयामक एजेंवसयों की वजम्मेदारी भी तय कर सकता है

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o PPP मॉडि के तहत कायथरत पररयोजनाओं की समस्याओं का समयबि मूल्यांकन एवं
वसफाररशों को भेजने के विए, आं रास्ट्रक्चर PPP पररयोजना समीक्षा सवमवत (IPRC)
प्रस्ताववत है
o ऄनुबंध की वस्वस चैिज ें प्रवववध से बचा जाना चावहए और ऄनापेवक्षत प्रस्तावों को
प्रोत्सावहत करना चावहए
o बैंकों और ववत्तीय संस्थानों को न्यून िागत युि दीघाथववध पूज
ं ी हेतु, डीप वडस्काईं ट बॉन्ड
वजन्हें जीरो कू पन बांड के ूपप में भी जाना जाता है जारी करने के विए प्रोत्सावहत ककया
जाना चावहए
o भ्रष्टाचार वनरोधक ऄवधवनयम,1988 को शीघ्रावतशीघ्र संशोवधत ककया जाना चावहए ताकक
भ्रष्टाचारी गवतवववधयों को दंवडत ककया जा सके और वनणथय वनमाथण में वास्तववक गिवतयां
करने वािों को बचाया जा सके
o "वन साआज़ कफट्स अि" दृवष्टकोण से बचा जाना चावहए और पररयोजना वववशष्ट जोवखम
मूल्यांकन (मॉडि कं सेशन एिीमेंट) को ऄपनाया जाना चावहए
 सवमवत ने कइ ऄन्य सबदुओं पर भी जोर कदया है वजसमें जोवखम साझा में संति
ु न और वववभन्न
क्षेत्रों को पुनजीववत करना शावमि है PPP एक महत्वपूणथ नीवतगत साधन है जो भारत के
अर्शथक ववकास की यात्रा को कम समय में पूरी करने में सहायक वसि होगा बुवनयादी ढांचे में
PPP का एक सफि और बढता योगदान देश की ववकास प्रकक्रया को त्वररत करने में ऄत्यवधक
मददगार सावबत होगा
6. वषाां त समीक्षा-2017 (नवीन और नवीकरणीय उजाथ
मं त्रािय)
 नवीन तथा नवीकरणीय उजाथ मंत्रािय (MNRE) ने ‘नये भारत’ के विए एक स्वच्छ उजाथ भववष्य
के स्वलन को साकार करने के विए कइ कदम ईठाए हैं भारत ने ववश्व में सबसे बडा नवीकरणीय
क्षमता ववस्तार कायथक्रम अरं भ ककया है सरकार का िक्ष्य नवीकरणीय उजाथ पर भरपूर जोर देने
के जररए स्वच्छ उजाथ के वहस्से में बढोतरी करना है भारत में नवीन तथा नवीकरणीय उजाथ के
ववकास तथा ईपयोग के मुख्य वाहक उजाथ सुरक्षा, वबजिी की कमी, उजाथ पहंच, जिवायु
पररवतथन अकद रहे हैं
 विड कनेक्टेड नवीकरणीय उजाथ के तहत वपछिे साढे तीन वषों के दौरान 27.07 GW
नवीकरणीय उजाथ का क्षमता संवधथन ककया गया है, वजसमें सौर उजाथ से 12.87 GW, पवन उजाथ
से 11.70 GW,िघु पनवबजिी से 0.59 GWतथा जैव उजाथ से 0.79 GW शावमि है स्वच्छ
उजाथ क्षेत्र की वृवि दर से ईत्सावहत होकर भारत सरकार ने िवक्षत राष्ट्रीय वनधाथररत योगदान
(INDC) पर संयुक्त राष्ट्र जिवायु पररवतथन संरचना सम्मेिन को प्रस्तुत ऄपने प्रवतवेदन में कहा
है कक भारत प्रौद्योवगकी के ऄंतरण एवं हररत जिवायु वनवध समेत वनम्न िागत ऄंतराष्ट्रीय ववत्त
की सहायता से 2030 तक गैर-फॉवसि ईंधन अधाररत उजाथ संसाधनों से 40 प्रवतशत संचयी
वबजिी उजाथ क्षमता ऄर्शजत करे गा
 30.11.2017 तक देश में सोिर ूपफ टॉप पररयोजनाओं से 863.92 MW समेत 16611.73
MW की सकि क्षमता के साथ सौर उजाथ पररयोजनाएं संस्थावपत की गइ हैं
 सरकार सृजन अधाररत प्रोत्साहनों (GBI), पूंजी एवं ब्याज सवब्सवडयों, व्यावहायथ ऄंतराि
वनवधयन, ररयायतपूणथ ववत्त, ववत्तीय प्रोत्साहनों जैसे वववभन्न प्रोत्साहनों के जररए नवीकरणीय
उजाथ संसाधनों को बढावा देने में सकक्रय भूवमका वनभा रही है
 राष्ट्रीय सौर उजाथ वमशन का ईद्देश्य फॉवसि अधाररत उजाथ ववकल्पों के साथ सौर उजाथ को
प्रवतस्पधी बनाने के ऄंवतम ईद्देश्य के साथ वबजिी सृजन एवं ऄन्य ईपयोगों के विए सौर उजाथ के
ववकास एवं ईपयोग को बढावा देना है राष्ट्रीय सौर उजाथ वमशन का िक्ष्य दीघथकाविक नीवत, बडे

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स्तर पर पररवनयोजन िक्ष्यों, महत्वाकांक्षी ऄनुसंधान एवं ववकास तथा महत्वपूणथ कच्चे माि,
ऄवयवों तथा ईत्पादों के घरे िू ईत्पादन के माध्यम से देश में सौर उजाथ सृजन की िागत को कम
करना है नवीकरणीय उजाथ, फॉवसि ईंधन अधाररत सृजन की तुिना में िगातार िागत
प्रवतस्पधी बनती जा रही है
 वषथ 2022 तक 175 GW के नवीकरणीय उजाथ िक्ष्य को हावसि करने के विए वपछिे दो वषों के

दौरान सोिर पाकथ , सोिर ूपफटॉप योजना, सौर रक्षा योजना, नहर के बांधों तथा नहरों के उपर

सीपीयू सोिर पीवी पॉवर लिांट के विए सौर योजना, सोिर पंप, सोिर ूपफटॉप अकद के
कक्रयान्वयन के विए बडे कायथक्रम/योजनाएं अरं भ की गइ हैं
 वषथ 2022 तक 175 GW के नवीकरणीय उजाथ िक्ष्य को हावसि करने के विए नवीन तथा

नवीकरणीय उजाथ मंत्रािय (MNRE) द्वारा कायाथवन्वत की जा रही वववभन्न योजनाओं को


ववत्तीय समथथन ईपिब्ध कराने के ऄवतररक्त वववभन्न नीवतगत ईपाय अरं भ ककये जा रहे हैं तथा
ववशेष कदम ईठाए जा रहे हैं आनमें नवीकरणीय खरीद बाध्यता (RPO) के मजबूत कक्रयान्वयन

और नवीकरणीय सृजन बाध्यता (RGO) के विए वबजिी ऄवधवनयम एवं टैररफ नीवत में ऄनुकूि

संशोधन करना; हररत उजाथ गवियार पररयोजना के माध्यम से वबजिी पारे षण नेटवकथ का

ववकास; टैररफ अधाररत प्रवतस्पधी बोिी प्रकक्रया के माध्यम से सौर एवं पवन उजाथ की खरीद के

विए कदशा-वनदेश, राष्ट्रीय ऄपतटीय पवन उजाथ नीवत को ऄवधसूवचत ककया जाना, पवन उजाथ

पररयोजनाओं को कफर से मजबूत बनाने, सोिर फोटोवोि्टेक वसस्टम्स/वडवाआवसस की तैनाती के

विए मानक वनधाथररत करना, ऄंतरराज्यीय पारे षण प्रणािी प्रभारों तथा माचथ, 2019 तक
कमीशन की जाने वािी पररयोजनाओं के विए सौर तथा पवन वबजिी के ऄंत:राज्यीय वबक्री से
होने वािे नुकसान की माफी के विए अदेश; ूपफटॉप पररयोजनाओं के विए बडे सरकारी

पररसरों/भवनों की पहचान करने; वमशन वक्तव्य एवं स्माटथ वसटी के ववकास के विए कदशा-

वनदेशों के तहत ूपफटॉप सोिर एवं 10 प्रवतशत नवीकरणीय उजाथ के प्रावधान को ऄवनवायथ

बनाना, नये वनमाथण या ईच्चतर फशथ क्षेत्र ऄनुपात के विए ूपफटॉप सोिर के ऄवनवायथ प्रावधान

के विए भवन ईपवनयमों में संशोधन; सौर पररयोजनाओं के विए ऄवसंरचना दजाथ; कर मुक्त

सोिर बांड जारी करने; दीघथकाविक ऊण ईपिब्ध कराने; बैंकों/NHB द्वारा गृह ऊण के वहस्से के

ूपप में ूपफटॉप सोिर का वनमाथण; ववतरण कं पवनयों को प्रोत्सावहत करने तथा नेट-मीटटरग को

ऄवनवायथ बनाने के विए समेककत वबजिी ववकास योजना (IPDS) में ईपायों को शावमि करना
तथा आस िक्ष्य को हावसि करने के विए हररत जिवायु वनवध के ूपप में भी द्वीपक्षीय एवं
ऄंतराथष्ट्रीय दानकताथओं से फं ड जुटाना अकद शावमि हैं
NSRE की ऄन्य महत्वपूणथ पहिें तथा ईपिवब्धयां आस प्रकार हैं :
नवीकरणीय उजाथ की ऄनुमावनत क्षमता
 स्वदेशी नवीकरणीय संसाधनों के बढते ईपयोग से महंगे अयावतत फॉवसि ईंधनों पर भारत की
वनभथरता में कमी अने की ईम्मीद है िगभग 3 प्रवतशत बंजर भूवम के ऄनुमान के साथ भारत के

पास 1096 GW की वावणवज्यक ऄक्षय उजाथ स्रोतों से ऄनुमावनत ऄक्षय उजाथ क्षमता है, वजसमें

पवन - 302 GW; िघु हाआड्रो - 21 GW; जैव उजाथ 25 GW; और 750 GW सौर उजाथ
शावमि है

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िक्ष्य
 भारत सरकार ने 2022 के अवखर तक 175 GW नवीकरणीय उजाथ संस्थावपत क्षमता का िक्ष्य

वनधाथररत ककया है आसमें से 60 GW पवन उजाथ से, 100 GW सौर उजाथ से, 10 GW बायोमास

उजाथ से तथा पांच GW िघु पनवबजिी से शावमि है 2017-18 के विए 14550 MW विड

नवीकरणीय उजाथ (पवन 4000 MW, सौर 10000 MW, िघु पनवबजिी उजाथ 200 MW, जैव

उजाथ 340 MWएवं ऄववशष्ट से उजाथ 10 MW) वनधाथररत ककया गया है


कु ि संस्थावपत क्षमता में नवीकरणीय उजाथ का वहस्सा
 अर्शथक ववकास, बढती समृवि, शहरीकरण की बढती दर और प्रवत व्यवि उजाथ ईपभोग ने देश में

उजाथ की मांग में बढोतरी कर दी है उजाथ की मांग की पूरी करने के विए 31.10.2017 तक देश

में सभी संसाधनों से 331.95 GW की कु ि संस्थावपत वबजिी सृजन क्षमता है


ईपिवब्धयां
नवीन तथा नवीकरणीय उजाथ मंत्रािय की ईपिवब्धयां तथा वषथ के दौरान की गइ पहिों का वववरण
वनम्नविवखत है:
हररत उजाथ क्षमता संवधथन
 आस वषथ ऄभी तक (जनवरी, 2017 से नवम्बर, 2017 तक) देश में नवीकरणीय उजाथ स्रोतों से

कु ि 11788 MW िीन कनेक्टेड वबजिी सृजन क्षमता जुडी हइ है


ईपिवब्धयों की क्षेत्र-वार ववशेषताएं
 2016-17 में 5502.39 MW की ऄब तक की सबसे ऄवधक पनवबजिी क्षमता सृजन दजथ की गइ,

जो िक्ष्य की तुिना में 38 प्रवतशत ऄवधक है ऄब पवन उजाथ संस्थावपत क्षमता के विहाज से

भारत चीन, ऄमरीका एवं जमथनी के बाद चौथे स्थान पर है

 2017-18 में 5525.98 MW की ऄब तक का सबसे ऄवधक सौर उजाथ क्षमता संवधथन

 वपछिे साढे तीन वषों के दौरान 1.31 िाख समेत 30.11.2017 तक देश में ऄभी तक 1.42 िाख
सोिर पम्प संस्थावपत ककये गये हैं
 23656 MW क्षमता की सौर उजाथ पररयोजनाओं के विए टेंडर जारी ककये गये हैं तथा 19340

MW के विए अशय पत्र जारी कर कदए गए हैं

 िघु पन वबजिी संयंत्रों से वपछिे साढे तीन वषों के दौरान विड कनेक्टे ड नवीकरणीय उजाथ के

तहत 0.59 GW का क्षमता सृजन ककया गया है

 बायोमास दहन, बायोमास गैसीकरण एवं बैगस


े सहसृजन से संस्थापनों समेत बायोमास वबजिी

की संवचत ईपिवब्ध 8181.70 MW तक पहंच गइ


 राष्ट्रीय बायोगैस एवं खाद प्रबंधन कायथक्रम (एनबीएमएमपी) के तहत मुख्य ूपप से िामीण एवं
ऄिथशहरी पररवारों के विए पाररवाररक प्रकार बायोगैस संयंत्र स्थावपत ककए जाते हैं 2017-18

के दौरान 1.1 िाख बायोगैस संयंत्रों के िक्ष्य के मुकाबिे 0.15 िाख बायोगैस लिांट की स्थापना

की गइ है वजससे 30.11.2017 तक कु ि संचयी ईपिवब्ध 49.8 िाख बायोगैस संयंत्र तक पहंच


गइ है

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मंत्रािय की प्रमुख पहि
सौर उजाथ
 राष्ट्रीय सौर वमशन के तहत सौर उजाथ क्षमता स्थावपत करने के िक्ष्य को 20 GW से बढाकर वषथ

2021-22 तक 100 GW कर कदया गया है वषथ 2017-18 के विए 10,000 MW का िक्ष्य रखा

गया है, वजसकी बदौित 31 माचथ, 2018 तक संचयी क्षमता 20 GW से ऄवधक हो जाएगी

 ऄब तक 23656 MW के विए वनववदा जारी की गइ है, वजनमें से 19340 MW के विए अशय


पत्र (एिओअइ) जारी कर कदया गया है
 ‘सोिर पाकों और ऄल्ट्रा मेगा सौर उजाथ पररयोजनाओं के ववकास’ से जुडी योजना की क्षमता

20,000 MW से बढाकर 40,000 MW कर दी गइ है 21 राज्यों में कु ि वमिाकर 20,514

MW क्षमता के 35 सोिर पाकों को मंजूरी दी गइ है

 अंध्र प्रदेश में 1000 MW क्षमता के कु रनूि सोिर पाकथ को पहिे ही चािू ककया जा चुका है और

आसका पररचािन जारी है एक ही स्थान पर 1000 MW क्षमता के सोिर पाकथ के चािू हो जाने
से कु रनूि सोिर पाकथ ऄब दुवनया के सबसे बडे सोिर पाकथ के ूपप में ईभर कर सामने अया है
 राजस्थान में 650 MW क्षमता के भादिा (चरण-II) सोिर पाकथ को चािू कर कदया गया है

 मध्य प्रदेश में 250 MW क्षमता के नीमच मंदसौर सोिर पाकथ (500 MW) के चरण-I को चािू
कर कदया गया है
 सोिर पाकथ योजना के तहत क्षमता को 20,000 MW से बढाकर 40,000 MW करने के विए

संबंवधत कदशा-वनदेशों के जारी होने के बाद आस साि राजस्थान (1000 MW), गुजरात (500

MW) और वमजोरम (23 MW) में 3 नए सोिर पाकों को मंजरू ी दी गइ है

 सौर उजाथ की दर घटकर 2.44 रुपये प्रवत/kwh के न्यूनतम स्तर पर अ गइ है

 कइ योजनाएं जैसे कक (i) रक्षा योजना (ii) कें द्रीय सावथजवनक क्षेत्र ईपक्रमों (सीपीएसयू) की

योजना (iii) वमवश्त योजना (iv) कै नाि बैंक/कै नाि टॉप स्कीम (v) वीजीएफ योजना (vi) सोिर

पाकथ योजना (vii) सोिर ूपफटॉलस योजना कफिहाि कक्रयावन्वत ककए जा रहे राष्ट्रीय सोिर
वमशन के तहत मंत्रािय द्वारा शुूप/िांच की गइ हैं
सोिर ूपफटॉप
 मंत्रािय विड कनेक्टेड ूपफटॉप और छोटे सौर उजाथ संयंत्र कायथक्रम कक्रयावन्वत कर रहा है, वजसके

तहत अवासीय, सामावजक, सरकारी/पीएसयू और संस्थागत क्षेत्रों में सीएफए/प्रोत्साहन के जररए

2100 MW की क्षमता स्थावपत की जा रही है

 आस कायथक्रम के तहत सामान्य श्ेणी वािे राज्यों में अवासीय, संस्थागत एवं सामावजक क्षेत्रों में

आस तरह की पररयोजनाओं के विए बेंचमाकथ िागत के 30 प्रवतशत तक और ववशेष श्ेणी वािे

राज्यों में बेंचमाकथ िागत के 70 प्रवतशत तक कें द्रीय ववत्त सहायता मुहय
ै ा कराइ जा रही है
सरकारी क्षेत्र के विए ईपिवब्ध से संबि प्रोत्साहन कदए जा रहे हैं सवब्सडी/सीएफए वनजी क्षेत्र में
वावणवज्यक और औद्योवगक प्रवतष्ठानों के विए िागू नहीं है

 ऄब तक 1767 एमडब्ल्यूपी क्षमता की सोिर ूपफटॉप पररयोजनाओं के विए मंजरू ी दी गइ है और

िगभग 863.92 एमडब्ल्यूपी क्षमता स्थावपत की गइ है

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 सभी 36 राज्यों/कें द्रशावसत प्रदेशों के इअरसी ने ऄब ूपफटॉप सोिर पररयोजनाओं के विए
शुि/सकि मीटटरग वनयमन और /ऄथवा टैररफ अदेश ऄवधसूवचत ककए हैं
 ववश्व बैंक, एवशयाइ ववकास बैंक और नव ववकास बैंक की ओर से िगभग 1375 वमवियन

ऄमेररकी डॉिर के ररयायती ऊण सोिर ूपफटॉप पररयोजनाओं के विए भारतीय स्टे ट बैंक,
पंजाब नेशनि बैंक और के नरा बैंक को ईपिब्ध कराए गए हैं
 एक योग्य तकनीकी श्मबि तैयार करने के विए सूयथवमत्र कायथक्रम शुूप ककया गया है और आस
कायथक्रम के तहत 11,000 से भी ऄवधक व्यवियों को प्रवशवक्षत ककया गया है

 पररयोजना मंजूरी में तेजी िाने, ररपोटथ पेश करने और अरटीएस पररयोजनाओं की वनगरानी के
विए एक ऑनिाआन लिेटफॉमथ सृवजत ककया गया है
 खोज क्षमता और पारदर्शशता के विए आसरो के सहयोग से अरटीएस पररयोजनाओं की भौगोविक
टैवगग अरं भ करना
 अवेदन प्रस्तुत करने और जागरुकता के विए िाभार्शथयों के असानी से पहंच के विए मोबाआि ऐप
ऄरुण (ऄटि रुफ टॉप सोिर यूजर नेवीगेटर) िांच करना
 वववभन्न मंत्राियों/ववभागों में अरटीएस पररयोजनाओं के कायाथन्वयन के विए एमएनअरइ
(नवीन एवं नवीकरणीय उजाथ मंत्रािय) ने मंत्राियवार ववशेषज्ञ सावथजवनक क्षेत्र के ईपक्रम
अवंरटत ककए
 सौर उजाथ पररयोजनाओं के विए नीवतयों, वववनयमों, तकनीकी मानकों और ववत्त पोषण वनयमों
के सवोत्तम ऄ्‍यास मागथदर्शशका और संिह प्रकावशत ककया गया
पवन उजाथ
 वषथ 2016-17 के दौरान पवन उजाथ में 5.5 GW की क्षमता जोडी गइ जो देश में ऄब तक एक वषथ

में जोडी गइ क्षमता में सबसे ऄवधक है देश में वतथमान स्थावपत पवन उजाथ िगभग 32.75 GW

है पवन उजाथ क्षमता की स्थापना में भारत ववश्व में चीन, ऄमेररका और जमथनी के बाद चौथे
स्थान पर है
 भारत में पवन उजाथ ईपकरण वनमाथण का मजबूत अधार है वतथमान में देश में पवन टबाथआन के 53

मॉडि बनाने वािे 20 ऄनुमोकदत मान्यता प्रालत वनमाथता हैं और प्रत्येक टबाथआन की क्षमता 3 MW

तक है भारत में बनाइ जाने वािी पवन टबाथआन ववश्व गुणवत्ता मानको के ऄनुूपप है और यूरोप,
ऄमेररका तथा ऄन्य देशों से अयातीत टबाथआनों में सबसे कम िागत की है
 देश की पवन उजाथ क्षमता का राष्ट्रीय पवन उजाथ संस्थान (NIWE) द्वारा पुनमूथल्यांकन ककया गया
है 100 मीटर हब उंचाइ पर आसकी क्षमता का ऄनुमान 302 GW िगाया गया है
एनअइडब्ल्यूइ वेबसाआट पर ऑन िाआन सवड एटिस ईपिब्ध है आससे देश में पवन उजाथ ववकास
में नये ऄयाम जुडग
ें े
 पहिी एसइसीअइ पवन उजाथ नीिामी के विए पीपीए/पीएसए पर हस्ताक्षर ककए गए (1000

MW, फरवरी 2017 में शुल्क 3.46 रुपये प्रवत यूवनट अंका गया) 1000 MW की दूसरी पवन
उजाथ नीिामी में न्यूनतम शुल्क 2.64 रुपये प्रवत यूवनट अंका गया
 भारत में िम्बी तटीय रे खा है जहां तटीय पवन उजाथ पररयोजनाएं बनाने की ऄच्छी संभावना है
मंत्रीमंडि ने राष्ट्रीय तटीय पवन उजाथ नीवत को स्वीकृ वत प्रदान की है वजसे 6 ऄक्टू बर 2015 को
ऄवधसूवचत ककया गया है गुजरात और तवमिनाडु के तटीय क्षेत्रों में कु छ खंडों की पहचान की गइ
हैं पवन संसाधन अंकडे एकवत्रत करने के विए गुजरात तट पर पहिा एिअइडीएअर स्थावपत
ककया गया और चािू ककया गया

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 पवन संसाधनों की भववष्यवाणी :- तवमिनाडु में एनअइडब्ल्यूइ के साथ हवा की भववष्यवाणी के
अधार पर गुजरात और राजस्थान के साथ भववष्यवाणी के विए सहमवत पत्र पर हस्ताक्षर ककए
गए हैं
 120 मीटर उचाइ पर पवन संसाधन के विए मेसो मानदंड का मानवचत्र तैयार ककया गया है

क्योंकक ऄवधकतर टबाथआनों को 100 मीटर से ऄवधक उंचाइ पर स्थावपत ककया जाता है भारत का

कु ि ऄनुमावनत पवन संसाधन 100 मीटर हाआट पर 302 GW से 120 मीटर की उंचाइ पर

िगभग 600 GW हो जाएगी ऄपतटीय पवन उजाथ के विए भी मेसो मापदंड का मानवचत्र
बनाया गया कफर भी आनके वास्तववक ईपयोग को वववशष्ट स्थिों के मानदंड से मापा जाएगा
 ववद्युत ऄवधवनयम की धारा 63 के ऄंतगथत पवन संसाधनों की नीिामी के विए बोिी िगाने के
कदशा वनदेशों के विए उजाथ मंत्रािय को कदसंबर में ऄवधसूवचत ककया गया
छोटी पनवबजिी पररयोजना
 िीड कनेवक्टड नवीकरणीय ववद्युत के ऄंतगथत छोटी पनवबजिी पररयोजना की 0.59 GW से

वपछिे ढाइ वषों में 27.07 GW की नवीकरणीय उजाथ क्षमता में वृवि की गइ है
बायोमास पावर
 30.11.2017 को कु ि 8181.70 MW उजाथ ईपिब्ध हइ है
पररवार के विए बायोगैस संयत्र

 राष्ट्रीय बायोगैस और खाद प्रबंधन कायथक्रम (NBMMP) के ऄंतगथत िामीण और ऄिथशहरी घरों

के विए फै मिी साआज का बायोगैस संयत्र


ं स्थावपत ककए गए वषथ 2017-18 के दौरान 1.10 िाख

बायोगैस संयंत्र िगाने के िक्ष्य था वजसमें से 0.15 िाख बायोगैस संयंत्र िगाए जा चुके हैं आस

प्रकार कु ि बायोगैस संयत्र


ं ों की संख्या 49.8 िाख हो गइ है
अइअरइडीए
 भारतीय नवकरणीय उजाथ ववकास एजेंसी (अइअरइडीएए) को वमनी रत्न का दजाथ कदया गया है
और अइअरइडीए की ऄवधकृ त पूंजी रुपए 6000 करोड से बढकर 1000 करोड रुपये हइ है
हररत उजाथ गवियारा
 ऄंतराथज्यीय ट्रांसवमशन प्रणािी अठ नवीकरणीय उजाथ समृि राज्यों (तवमिनाडु , राजस्थान,

कनाथटक, अंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र,गुजरात, वहमाचि प्रदेश और मध्य प्रदेश) द्वारा िागू की जा रही है

पररयोजना की कु ि िागत 10141 करोड रुपए है 20 प्रवतशत वहस्सेदारी राज्यों की जबकक

भारत सरकार की ओर से 40 फीसदी ऄनुदान कदया जा रहा है पररयोजना के तहत िगभग

9400 सीके एम ट्रांसवमशन िाआन और 19000 एमवीए की क्षमता वािे सब स्टेशनों के कायथ को

माचथ 2020 तक पूरा ककया जाना है पररयोजना के विए 6766 करोड रुपए स्वीकृ त कर कदए गए

हैं वजसमें से 1400 करोड रुपए कें द्र सरकार के कोटे से राज्यों को जारी कर कदए गए है
ऄन्य पहि
 भारत ऄंतराथष्ट्रीय स्तर पर नवकरणीय उजाथ के क्षेत्र में ऄिणी भूवमका वनभा रहा है भारत ने रांस
के वमिकर ऄंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) के गठन में महत्वपूणथ भूवमका ऄदा की है आस संगठन

में 121 सदस्य देश शावमि हैं आसमें ऐसे देश शावमि हैं जो मकर और ककथ रे खा पर पडते हैं 47

देशों ने रे मवकथ समझौते पर हस्ताक्षर ककए हैं 18 देशों ने 1 वषथ के भीतर आसे ऄनुमोकदत ककया

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है अइएसए ने 6.12.2017 को भारत में ऄपने मुख्यािय के साथ कानूनी आकाइ के तौर पर कायथ
करना शुूप कर कदया
 सौर उजाथ अधाररत वबजिी जनरे टर, बायोमास अधाररत वबजिी जनरे टर, पवन उजाथ

प्रणािी,सूक्ष्म जिववद्युत संयंत्रों और नवीकरणीय उजाथ अधाररत सावथजवनक ईपयोग के विए

ईधारकताथओं को 15 करोड रुपये तक का बैंक से ऊण कदया जाएगा आसमें स्ट्रीट िाआट


वसस्टमऔर दूरदराज के गांवों में ववद्युतीकरण भी शावमि है व्यविगत पररवारों के विएऊण
सीमा 10 िाख प्रवत ईधारकताथ होगी

 ववद्युत ऄवधवनयम 2003 के प्रावधानों के तहत नवीकरणीय उजाथ ईत्पादन और ववतरण

पररयोजनाओं के विए स्वचावित मागथ के तहत 100% तक FDI की ऄनुमवत है


िक्ष्य पूरा करने के विए सरकार ने वववभन्न कदम ईठाए हैं जो कक वनम्नविवखत हैं
 ववद्युत अधाररत 175 गीगावॉट नवकरणीय उजाथ का संवचत िक्ष्य वजसके विए 100 गीगावॉट
सौर उजाथ की क्षमता वािे संयत्र की स्थापना की घोषणा
 टैररफ अधाररत प्रवतयोगी वनववदा प्रकक्रया के माध्यम से सौर और पवन उजाथ की खरीद के विए
कदशावनदेश जारी ककए गए
 वषथ 2018-19 तक के विए नवीकरणीय खरीद के विए प्रवतज्ञापत्र घोवषत
 नए कोयिा / विग्नाआट अधाररत थमथि लिांट पर नवीकरणीय उजाथ ईत्पन्न करने के विए
प्रवतज्ञापत्र की घोषणा
 राष्ट्रीय ऄपतटीय पवन उजाथ के विए नीवत ऄवधसूवचत
 पवन उजाथ पररयोजनाओं को सुचाूप ूपप से चिाने के विए नीवत को ऄवधसूवचत ककया
 सौर फोटोवोवल्टक प्रणावियों / ईपकरणों की तैनाती के विए मानदंड ऄवधसूवचत
 माचथ 2019 तक शुूप ककए जाने वािे पररयोजनाओं के विए ऄंतराथज्यीय ट्रांसवमशन वसस्टम के
शुल्क और घाटे को सौर और पवन उजाथ की ऄंतरराज्यीय वबक्री के विए माफी का अदेश जारी
 पांच राज्यों में सौर अधाररत स्ट्रीट िाआट के विए ऄटि ज्योवत योजना प्रारं भ
 ववशेष सौर पाकों की स्थापना
 सौर ूपफटॉप पररयोजनाओं के विए सरकारी पररसरों और आमारतों को वचवन्हत करना
 स्माटथ शहरों के ववकास के विए कदशा वनदेशों में ूपफटॉप और 10 प्रवतशत नवकरणीय उजाथ के
ईपयोग का प्रावधान करना
 नए वनमाथण या ईच्च एफएअर के प्रावधानों के विए आमारत कानून में संशोधन करना
 सौर पररयोजनाओं को ऄवसंरचना ढांचे का दजाथ
 शुल्क मुि सौर बोंड शुूप करना
 बैंको और एनबीएच द्वारा छत पर सौर उजाथ संयत्र
ं की स्थापना को हाईससग ऊण का वहस्सा
बनाना
 वद्वपक्षीय और ऄंतराथष्ट्रीय दानदाताओं से धन जुटाना िक्ष्य को पूरा करने के विए हररत जिवायु
कोष से भी धन हावसि करना
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Classroom Study Material

भारतीय ऄथथव्यवस्था
9. अर्थथक सुधार

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ववषय सूची
1. प्रस्तावना __________________________________________________________________________________ 4

2. ववकास वनयोजन _____________________________________________________________________________ 4

2.1. वनयोजन की प्रकृ वत और ईद्देश्य ________________________________________________________________ 6

2.2. नेहरू-महालनोवबस ववकास रणनीवत ____________________________________________________________ 6

2.3. कृ वष संबंधी पुनर्थनमाथण (Agrarian Reconstruction) _______________________________________________ 8

2.4. राज्य की भूवमका __________________________________________________________________________ 9

2.5. ववश्लेषण _______________________________________________________________________________ 10

3. अर्थथक संकट– 1960 का दशक __________________________________________________________________ 10

3.1. हररत क्ांवत _____________________________________________________________________________ 10

3.2. प्रारं वभक ववकास रणनीवत में पररवतथन __________________________________________________________ 11

3.3. राज्य संकट _____________________________________________________________________________ 11

3.4. ववश्लेषण _______________________________________________________________________________ 12

4. अर्थथक संकट - 1990 का शुरुअती दशक ___________________________________________________________ 12

5. अर्थथक सुधारों की अवश्यकता __________________________________________________________________ 13

5.1. 1991 के पूवथ की नीवतयों की कमजोररयााँ_________________________________________________________ 13

5.2. ववदेशी मुद्रा संकट ________________________________________________________________________ 13

5.3. IMF और ववश्व बैंक द्वारा अरोवपत की गयी शतें ____________________________________________________ 13

5.4. USSR (सोववयत समाजवादी गणतंत्रों का संघ) का ववघटन ___________________________________________ 14

6. अर्थथक सुधार ______________________________________________________________________________ 14

6.1. राज्य की भूवमका को पुनः पररभावषत करना ______________________________________________________ 15

7. ईदारीकरण, वनजीकरण और वैश्वीकरण ____________________________________________________________ 16

7.1. भारतीय ऄथथव्यवस्था के ईदारीकरण की नीवत _____________________________________________________ 16


7.1.1. ईदारीकरण का ऄथथ ___________________________________________________________________ 16
7.1.2. ईदारीकरण नीवत की ववशेषताएाँ __________________________________________________________ 16
7.1.3. ईदारीकृ त नीवत का महत्व _______________________________________________________________ 18

7.2. वनजीकरण की नीवत _______________________________________________________________________ 18


7.2.1. वनजीकरण का ऄथथ और औवचत्य __________________________________________________________ 18
7.2.2. वनजीकरण के ववरुद्ध तकथ ________________________________________________________________ 20
7.2.3. भारत में वनजीकरण नीवत की ववशेषताएाँ ____________________________________________________ 20

7.3. वैश्वीकरण की नीवत _______________________________________________________________________ 22


7.3.1. वैश्वीकरण का ऄथथ (Meaning of Globalisation) ____________________________________________ 22
7.3.2. वैश्वीकरण के प्रभाव ___________________________________________________________________ 23
7.3.3. भारतीय ऄथथव्यवस्था का वैश्वीकरण ________________________________________________________ 23
7.3.4. वैश्वीकरण नीवत की ववशेषताएाँ ___________________________________________________________ 24
7.3.5. भारतीय ईद्योग पर वैश्वीकरण के प्रभाव _____________________________________________________ 25

8. भारतीय ऄथथव्यवस्था पर सुधारों का प्रभाव __________________________________________________________ 26

9. सुधारों का अकलन (Assessment of Reforms)____________________________________________________ 27


1. प्रस्तावना
 समकालीन भारतीय ऄथथव्यवस्था एक वववशष्ट ववरोधाभास को दशाथती है। आसमें ईत्कृ ष्ट
ईपलवधधयों के साथ-साथ गंभीर ववफलताओं का ऄनोखा संयोजन है। स्वतंत्रता प्रावि के बाद से ही
भारतवषथ ने ऄपने अर्थथक वपछड़ेपन को कम करने में ईल्लेखनीय प्रगवत की है। 1950 के दशक की
वनधथनतम ऄवस्था और 1960 के दशक में 'बास्के ट के स' ऄथथव्यवस्था जैसी वववभन्न ऄवस्थाओं से
गुज़रते हुए अज भारत क्य शवि समता (Purchasing Power Parity: PPP) के अधार पर
ववश्व की तीसरी सबसे बड़ी ऄथथव्यवस्था बन चुका है। वतथमान समय में भारतीय ऄथथव्यवस्था
ववश्व की सवाथवधक तेजी से बढ़ती ऄथथव्यवस्थाओं में से एक है। हमारा देश ववशाल बौवद्धक संपदा
और बढ़ती सॉफ्टवेयर एवं सूचना प्रौद्योवगकी सेवाओं के कारण ऄब वैवश्वक स्तर पर ऄग्रणी ज्ञान
ऄथथव्यवस्थाओं में से एक है। आन कारकों के फलस्वरूप भारत ववदेशी वनवेश के वलए एक महत्वपूणथ
गंतव्य के रूप में स्थावपत हो चुका है।
 आन ऐवतहावसक ईपलवधधयों के होते हुए भी देश में व्यापक गरीबी, कु पोषण, वनरक्षरता और
बेरोज़गारी एक बड़ी समस्या है। यद्यवप भारत ववश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र हैं, तथावप हमारे देश
में एक बड़ा वगथ वनधथन मतदाताओं का है। जहााँ एक ओर भारत ऄपनी ववकास दर और तकनीकी
ईपलवधधयों से ऄवभभूत है, वहीं दूसरी ओर यह सामावजक ववरोधाभासों और ऄसंतुवलत ववकास
से ईत्पन्न ववडंबनाओं का साक्षी भी रहा है। आस प्रकार, शीघ्रता से ववकवसत होते एक समथथ भारत
के साथ ही साथ एक दूसरे दीन और दयनीय भारत का भी प्रादुभाथव हो रहा है वजसमें बढ़ती
ऄसमानता, बढ़ती मांग और दुगथवत के लक्षण दृष्टव्य है। यह ववरोधाभास कइ प्रश्नों को ज म देता है
जैस-े हमसे क्या चूक हुइ? स्वतंत्रता प्रावि के पश्चात् ऄपनाइ गयी ववकास रणनीवत कहााँ तक सही
थी? क्या 1991 के अर्थथक सुधारों को ईवचत रूप में क्रक्याव वत नहीं क्रकया गया था? यक्रद हााँ, तो
क्या आन सुधारों को और बेहतर कै से क्रकया जा सकता था?

2. ववकास वनयोजन
 1947 के पश्चात् भारत द्वारा ऄपनाइ गयी अर्थथक नीवतयां औपवनवेवशक ववरासत एवं तत्कालीन
ऄंतरराष्ट्रीय वस्थवतयों से प्रभाववत थीं। आन नीवतयों का रणनीवतक प्रारूप भारतीय राष्ट्रीय
अंदोलन की प्रमुख ववचारधारा और राष्ट्रवादी नेताओं ववशेषकर पंवडत जवाहरलाल नेहरू के
ववचारों से ऄत्यवधक प्रभाववत था l स्वतंत्रता प्रावि के समय, भारत वनम्न प्रवत व्यवि राष्ट्रीय अय,
स्थैवतक और ऄद्धथ सामंती कृ वष, ऄल्प ववकवसत ईद्योग तथा ऄपयाथि बुवनयादी ढांचे, व्यापक
वनधथनता, ऄत्यवधक बेरोजगारी तथा ऄल्प रोजगार, ईच्च वनरक्षरता, ईच्च ज म और मृत्यु दर तथा
स्वास््य सेवा की ऄत्यंत दयनीय वस्थवत का सामना कर रहा था। स्वतंत्र भारत को विरटश शासन
के कारण हुइ हावन की क्षवतपूर्थत के वलए ऄत्यवधक पररश्रम करना पड़ा। सामावजक-अर्थथक मोचे
पर पयाथि ईन्नवत के वलए राष्ट्रीय स्तर पर ववशाल और संगरित प्रयास करने की अवश्यकता थी।
आस क्रदशा में, योजनाबद्ध ववकास को भारत के ववकासात्मक प्रयासों की मुख्य रणनीवत के रूप में
स्वीकार क्रकया गया।
 भारतीय ऄथथव्यवस्था को ववकवसत करने के वलए योजनाबद्ध ववकास को बाजार तंत्र से बेहतर
माना गया था। जहााँ एक ओर बाजार तंत्र ईच्च-लाभकारी गवतवववधयों को प्राथवमकता देता है वहीं
दूसरी ओर योजनाबद्ध ववकास देश की ईत्पादक क्षमता का त्वररत वनमाथण सुवनवश्चत करने के वलए
ईपलधध संसाधनों का प्रगवतशील दर पर व्यववस्थत ईपयोग करता है। वनयोजन को एक ऐसे
ईपकरण के रूप में देखा गया जो राज्य को बड़े पैमाने पर कइ ववकास पररयोजनाएं तथा
बेरोजगारी और गरीबी ई मूलन जैसे कायथक्मों को अरम्भ करने में सक्षम बनाता है। आसके
ऄवतररि, 1947 में देश के ववभाजन से ईत्पन्न होने वाली करिनाआयों, ऄथाथत् पूवथ और पवश्चम
पाक्रकस्तान से शरणार्थथयों का ऄत्यवधक संख्या में प्रवेश और कच्चे माल के ईत्पादन वाले क्षेत्रों को
खो देने के कारण हुइ की हावन से वनपटने के वलए योजना का वनमाथण करना भी ऄवत अवश्यक
था।

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 20वीं शताधदी के अरं वभक दशकों में कइ ऄंतरराष्ट्रीय घटनाओं ने दक्षता और समता दोनों के
स दभथ में बाजार तंत्र की सीमाओं को रे खांक्रकत क्रकया है। 1917 की क्ांवत के बाद, ववश्व के प्रथम
समाजवादी राज्य के रूप में सोववयत संघ का ईदय हुअ। सोववयत संघ ने योजनाबद्ध ऄथथव्यवस्था
के मॉडल को ऄपनाया। सामावजक तथा अर्थथक मोचे पर सोववयत संघ की ईल्लेखनीय
ईपलवधधयों ने भारत में राष्ट्रवादी युवाओं को ऄत्यवधक प्रेररत क्रकया। लगभग ईसी समय, 1929-
33 की महान अर्थथक मंदी (ग्रेट वडप्रेशन) ने मुि बाजार ऄथथव्यवस्था की समस्याओं को ईजागर
कर क्रदया था। की सवाद (Keynesianism) का ववकास आसी अर्थथक मंदी का पररणाम था। आस
ऄवधारणा ने कराधान और व्यय नीवतयों के माध्यम से राज्य द्वारा संचावलत अर्थथक प्रबंधन का
दृढ़ता से समथथन क्रकया।
 वास्तव में, राष्ट्रीय अंदोलन द्वारा ईपवनवेशवाद के अर्थथक ईद्देश्यों की अलोचना ने स्वतंत्रता
प्रावि के पश्चात् भारत में ववकास योजना की रणनीवत को स्पष्ट अधार प्रदान क्रकया। औपवनवेवशक
काल में ऄल्प-ववकास और भारतीय ऄथथव्यवस्था के परावश्रत चररत्र की अलोचना करते हुए,
भारतीय राष्ट्रवाक्रदयों ने एक अत्मवनभथर तथा स्वतंत्र अर्थथक ववकास के ववचार को अगे बढ़ाया।
ऐसे ववकास के वलए राज्य द्वारा वनधाथररत की गयी योजना की महत्वपूणथ भूवमका की पररकल्पना
की गयी। 1930 के दशक में, अर्थथक ववकास के रुसी मॉडल, की सवाद द्वारा पोवषत अर्थथक
ववचारों और ऄमेररका के यू डील प्रोग्राम के प्रभाव के कारण डेवलपमेंट प्लाननग (ववकास
योजना) के ववचार का प्रादुभाथव हुअ। यह ऄवधारणा अर्थथक ववकास में राज्य के हस्तक्षेप की
पक्षधर थी। ऐसे पररदृश्य में वनयोजन की अवश्यकता ऄत्यवधक दृढ़ता से महसूस की गयी। आसी
ईद्देश्य से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रस
े ने 1938 में जवाहरलाल नेहरू की ऄध्यक्षता में राष्ट्रीय योजना
सवमवत (NPC) की स्थापना की। स्वतंत्रता प्रावि के पश्चात् आस अर्थथक योजना का भारत पर
ऄत्यवधक प्रभाव पड़ा। आस योजना के ऄवतररि, 1940 के दशक में वववभन्न वैचाररक मतों के
ऄंतगथत कइ योजना प्रपत्र तैयार क्रकए गए। आन योजनाओं में से एक बॉम्बे प्लान भारत के अि
ं ीपवतयों द्वारा ऄनुशंवसत योजना थी। दूसरी योजना एम. एन. रॉय द्वारा वनर्थमतपीपुल्स
प्रमुख पूज
प्लान थी वजसने एक वाम पक्षीय दृष्टीकोण प्रदान क्रकया। आन दोनों ही योजनाओं से ऄलग
श्रीमन्नारायण द्वारा वनर्थमत गांधीवादी योजना ने एक अत्मवनभथर ग्रामीण ऄथथव्यवस्था का प्रस्ताव
रखा। आन ऄलग-ऄलग दृवष्टकोणों के बावजूद गांधीवाक्रदयों, पूंजीपवतयों, समाजवाक्रदयों और
कम्युवनस्टों के मध्य स्वतंत्रता के पश्चात् ववकास और वनयोजन की प्रकृ वत एवं मागथ को लेकर एक
व्यापक अम सहमवत थी।
 देश के प्रथम प्रधानमंत्री और योजनाबद्ध ववकास के मुख्य वास्तुकार, पंवडत जवाहर लाल नेहरु
लोकतांवत्रक, समाजवादी और गांधीवादी मूल्यों से ऄत्यवधक प्रभाववत थे। ईनका मानना था क्रक
समाजवाद और लोकतंत्र ऄववभाज्य हैं। ऄतः ई होंने स्वतंत्र भारत के एजेंडे के रूप में लोकतांवत्रक
समाजवाद की पररकल्पना की। आस ववचार का मुख्य ईद्देश्य लोकतांवत्रक सामावजक पररवतथन को
देश की अर्थथक रणनीवत का एक ऄवभन्न ऄंग बनाना था। पंवडत नेहरू ने ऄपने दृवष्टकोण के वलए
एक पृथक मागथ प्रस्तुत क्रकया। आस मागथ में सभी मौजूदा प्रणावलयों यथा - रूसी, ऄमेररकी तथा
ऄ य राजव्यवस्थाओं से ईत्कृ ष्ट गुणों को लेकर ई हें भारतीय आवतहास और दशथन के ऄनुकूल
ऄपनाने का प्रयास ऄ तर्थनवहत था। ईनका ववचार था क्रक लोकतांवत्रक तरीके से अरम्भ की गइ
योजना, ववकास और ऄसमानता में कमी लाने का साधन बन सकती है। ऐसी योजना से व्यविगत
स्वतंत्रता सुवनवश्चत होगी और क्ांवतकारी पररवतथन के वलए होने वाली नहसा से भी बचा जा
सके गा। ई होंने अशा की क्रक योजनाबद्ध अधार पर सामावजक ववकास, मानवजावत को ईच्च
भौवतक और सांस्कृ वतक स्तर तक ले जाने में सहयोग करे गा। ऐसे ववकास द्वारा मूल्यों के सजथन तथा
अपसी सहयोग के माध्यम से ऄंततः एक बेहतर वैवश्वक व्यवस्था का वनमाथण क्रकया जा सकता है।
भारत जैसे ववशाल और ववववधता युि देश की समस्याओं को हल करने के वलए ई होंने योजना
को एक सकारात्मक साधन के रूप में देखा।

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2.1. वनयोजन की प्रकृ वत और ईद्दे श्य

 स्वतंत्रता प्रावि के पश्चात्, देश ने लोकताव त्रक ववचारधारा को ऄपनाया। आस ववचारधारा के


ऄंतगथत जनता के वलए ऄवधकारों और सावथभौवमक वयस्क मतावधकार पर अधाररत एक
प्रवतवनवध शासन को ऄपनाया गया। लोकतंत्र भारतीय ववकास मॉडल का कें द्र नबदु बन गया। एक
लोकतांवत्रक और नागररक-स्वतंत्रता ढांचे के ऄंतगथत योजना - वनमाथण के आस दृवष्टकोण को लेकर
तत्कालीन नेताओं के मध्य अम सहमवत थी। यह माना गया क्रक योजनाबद्ध ववकास, ऄथथव्यवस्था
को सावथजवनक वनयंत्रण में लेते हुए देश में एक लोकतांवत्रक ऄथथव्यवस्था को ज म देगा। तत्कालीन
भारत की ववकास रणनीवत में बाजार और अर्थथक वनयोजन एक दूसरे के पूरक थे। एक वमवश्रत
ऄथथव्यवस्था के ढांचे के ऄंतगथत ववकास योजनाओं का वनमाथण क्रकया जाना था। आस वमवश्रत
ऄथथव्यवस्था में समाजवाद और पूंजीवाद दोनों के गुण सवम्मवलत थे। वमवश्रत ऄथथव्यवस्था को
वनजी और सावथजवनक क्षेत्रों के सह-ऄवस्तत्व वाली प्रणाली के रूप में वचवननत क्रकया गया था।
वमवश्रत ऄथथव्यवस्था में सावथजवनक क्षेत्र, अधारभूत संरचना और भारी ईद्योगों तक ही सीवमत
था।
 वनयोजन के मूल ईद्देश्यों को संववधान में वनवहत राज्य के नीवत-वनदेशक वसद्धांतों से ग्रहण क्रकया
गया था। आन मूल ईद्देश्यों ने भारत में वनयोजन हेतु मागथदशथक वसद्धांत प्रदान क्रकए। ये वसद्धांत थे:
o अर्थथक ववकास - राष्ट्रीय और प्रवत व्यवि अय के ईच्च स्तर को प्राि करने हेतु ववकास को
तीव्र करना;
o अधुवनकीकरण - ऄथथव्यवस्था को प्रगवतशील और स्वतंत्र बनाने हेतु संरचनात्मक और
संस्थागत पररवतथनों को क्रक्याव वत करना;
o अत्मवनभथरता - ववदेशी सहायता और बाह्य दबावों पर भारत की वनभथरता को कम करना;
और
o सामावजक याय - जनता के जीवन स्तर को सुधारना, ववशेषकर वनधथनों की अय ऄसमानता

में कमी लाना, बेरोजगारी को समाि करना, वनधथनता ई मूलन, स्वास््य और वशक्षा के क्षेत्र में
सामावजक कायथक्मों का क्रक्या वयन तथा भूवम सुधार।
 समग्र तौर पर, ववकास और सामावजक याय ने वनयोजन के अर्थथक और सामावजक ढांचे का गिन
क्रकया। आस पररप्रेक्ष्य के साथ, अर्थथक और सामावजक ववकास के वलए एक योजना तैयार करने के
वलये कें द्र सरकार के सलाहकार वनकाय के रूप में 1950 में योजना अयोग की स्थापना एक
सरकारी प्रस्ताव (गवनथमेंट रे ज़ोल्यूशन ) के माध्यम से की गयी। तदुपरा त, योजना अयोग की
सहायता हेतु राष्ट्रीय ववकास पररषद (1952) का गिन क्रकया गया। राष्ट्रीय ववकास पररषद का
ईद्देश्य योजनाओं के वनमाथण में राज्यों से सहयोग प्राि करना था।

2.2. ने ह रू-महालनोवबस ववकास रणनीवत

 ऄप्रैल 1951 में प्रथम पंचवषीय योजना के शुभारं भ के साथ योजनाबद्ध ववकास का युग अरम्भ
हुअ (कु छ संशोधनों के साथ हैरड-डोमर मॉडल को प्रथम योजना के वलए ऄपनाया गया था)। आस
योजना के ऄंतगथत शरणार्थथयों के बढ़ते ऄ तवाथह, खाद्य पदाथों की भारी कमी और बढ़ती
मुद्रास्फीवत से ईत्पन्न समस्याओं को संबोवधत क्रकया गया। खाद्यान्न ईत्पादन में वृवद्ध, मुद्रास्फीवत में
कमी और अधारभूत संरचना के ववकास द्वारा खाद्य संकट की समस्या के समाधान को सवोच्च
प्राथवमकता दी गइ।

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 वद्वतीय पंचवषीय योजना को योजनाबद्ध ववकास के पररपेक्ष्य में मील का पत्थर माना जाता है
क्योंक्रक यह ववकास की नेहरू-महालनोवबस रणनीवत पर अधाररत थी। आस रणनीवत ने सातवीं
पंचवषीय योजना के ऄंत तक (तीन दशकों से ऄवधक समय तक) योजनाबद्ध ववकास का मागथदशथन
क्रकया। आस योजना का प्रारूप पी. सी. महालनोवबस ने तैयार क्रकया था। यह ववकास रणनीवत
भारतीय ऄथथव्यवस्था के संरचनात्मक वपछड़ेपन से सम्बंवधत कइ मा यताओं पर अधाररत थी।
ं ी (मैरटररयल कै वपटल ) की गंभीर कमी को ववकास की मूल बाधा के रूप में
सवथप्रथम, वस्तुगत पूज
देखा गया। आस बाधा के पररणामस्वरूप ऄपेक्षाकृ त ऄवधक ईत्पादक प्रौद्योवगक्रकयों का अगमन
ऄवरुद्ध हो गया था। दूसरी मा यता के ऄनुसार, ऄल्प बचत क्षमता के पररणामस्वरूप पूंजी
वनमाथण की गवत में ऄवरोध ईत्पन्न हुअ। तीसरी मा यता यह थी क्रक कृ वष क्षेत्र में ऄल्प रोजगार
वाले ऄवधशेष श्रवमकों को औद्योवगकीकरण के माध्यम से ईद्योगों में वनयोवजत क्रकया जा सकता है।
चौथी मा यता यह भी थी क्रक यक्रद बाजार तंत्र को प्राथवमकता दी जाती है, तो आससे ईच्च अय
वाले समूहों द्वारा ऄत्यवधक खपत होती है तथा यह ऄथथव्यवस्था के त्वररत ववकास के वलए
अवश्यक क्षेत्रों में सापेक्ष वनवेश को कम कर देता है।
 आन मा यताओं के प्रकाश में योजनाकारों के समक्ष ववद्यमान अधारभूत प्रश्न वनम्नवलवखत थे: पूंजी
भण्डार (कै वपटल स्टॉक) में तीव्र वृवद्ध कै से सुवनवश्चत करें ? बुवद्धमत्तापूणथ वनवेश क्रकस प्रकार क्रकया
जाये? बचत में क्रकस प्रकार वृवद्ध की जाए? बाजार को क्रकस प्रकार वववनयवमत क्रकया जाए?
आत्याक्रद। आन प्रश्नों का ईत्तर नेहरू-महालनोवबस ववकास रणनीवत ने ऄथथव्यवस्था में राज्य के
प्रत्यक्ष हस्तक्षेप और पूज
ं ीगत वस्तुओं के ववकास से त्वररत पूज
ं ी वनमाथण के माध्यम से क्रदया। यह
वनम्नवलवखत वसद्धांत पर अधाररत था- भारी या पूज ं ीगत वस्तुओं के ईद्योगों में क्रकया गया वनवेश
वजतना ऄवधक होगा, ऄल्पाववध में अय की वृवद्ध ईतनी ही कम रहेगी पर तु दीघाथववध में यह
ईतनी ही ऄवधक होगी। आस प्रकार, ईपभोिा वस्तु ईद्योगों के स्थान पर पूज
ं ीगत वस्तुओं के
ईद्योगों को वरीयता देना आस ववकास-रणनीवत का मूल अधार बन गया। आस रणनीवत के मूल
तत्वों को वनम्नवलवखत वब दुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:
o वनवेश दर में वृवद्ध का लक्ष्य रखा गया क्योंक्रक ववकास की दर वनवेश की दर पर वनभथर करती है।
ऄतः स्वाभाववक रूप से आस रणनीवत में घरे लू और ववदेशी बचत में वृवद्ध करना भी ऄ तर्थनवहत
था।
o ईद्योगों, ववशेषकर पूज
ं ीगत ईद्योगों के ववकास के वलए सावथजवनक वनवेश का वनदेशन करते हुए
ऄथथव्यवस्था की ईत्पादक क्षमता में तीव्र वृवद्ध। साथ ही, ईपभोिा वस्तुओं के ईत्पादन और
रोजगार के ऄवसरों में ववस्तार हेतु श्रम-गहन लघु और कु टीर ईद्योगों को प्रोत्साहन प्रदान करना।
o अत्म-वनभथरता को बढ़ाने और बाह्य-वनभथरता को कम करने के वलए अयात प्रवतस्थापन का
ईपयोग।
o योजना अवश्यकताओं के ऄनुसार ईद्योगों के मध्य संसाधनो का अवंटन और ईपभोिाओं के मध्य
ईपभोग-वस्तुओं के समान ववतरण को संभव बनाने हेतु वनयंत्रण तथा औद्योवगक लाआसेंनसग की
एक ववस्तृत प्रणाली की स्थापना। यह कायथ 1951 के ईद्योग ववकास और वववनयमन ऄवधवनयम
(IDRA) के माध्यम से क्रकया गया था।
o सावथजवनक क्षेत्र के दायरे और महत्व को बढ़ाना ताक्रक यह क्षेत्र पूंजीगत वस्तुओं के ईद्योगों पर
ऄपना प्रभुत्व स्थावपत कर सके और भारतीय ऄथथव्यवस्था के ववकास में एक महत्वपूणथ भूवमका
वनभा सके ।
 आस प्रकार, वद्वतीय पंचवषीय योजना ने ववकास के एक ऐसे स्वरुप को बढ़ावा क्रदया जो ऄंततः
भारतीय समाज में एक समाजवादी व्यवस्था की स्थापना में सहायक वसद्ध हुअ। तृतीय पंचवषीय
योजना की ववकास रणनीवत मूल रूप से वद्वतीय योजना के समान थी। ऄंतर के वल आतना था क्रक
तृतीय पंचवषीय योजना में सवोच्च प्राथवमकता कृ वष को दी गइ थी।

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2.3. कृ वष सं बं धी पु न र्थनमाथ ण (Agrarian Reconstruction)

 राष्ट्रीय योजनाओं और नीवतयों का वनमाथण करने के साथ-साथ, योजनाकारों ने कृ वष संरचना की


मौवलक, सामावजक और अर्थथक समस्याओं का समाधान करने का भी प्रयास क्रकया। आस स दभथ में
ग्राम स्वराज के गांधीवादी ववचार का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। 1950 के दशक में कृ वष
संरचना में व्यापक पररवतथन लाने के ईद्देश्य से, सामुदावयक ववकास कायथक्म और भूवम सुधार जैसे
दो महत्वपूणथ कदम ईिाए गए।
सामुदावयक ववकास कायथक्म (Community Development Programme)
 सामुदावयक ववकास कायथक्म (CDP) ग्रामीण ईत्थान का एक व्यापक कायथक्म था। आस कायथक्म
का लक्ष्य वस्थर ग्रामीण ऄथथव्यवस्था को गवतशीलता प्रदान करते हुए पारं पररक ग्रामीण जीवन का
रूपांतरण करना था। आस ववकास कायथक्म के ऄंतर्थनवहत वसद्धांतो में वनम्नवलवखत ईद्देश्य
सवम्मवलत थे:
o राष्ट्र की मुख्यधारा के जीवन में ग्रामीण समुदायों को एकीकृ त करना,
o राष्ट्रीय प्रगवत में योगदान हेतु ग्रामीण समुदायों को सक्षम बनाना तथा ईनकी अर्थथक,
सामावजक और सांस्कृ वतक वस्थवतयों में सुधार के वलए सरकार और लोगों के मध्य सहयोग
स्थावपत करना।
 2 ऄक्टू बर 1952 को देश के 55 सामुदावयक पररयोजना क्षेत्रों में एक पायलट पररयोजना के
अधार पर CDP को अरम्भ क्रकया गया। CDP की सफलता लोगों की सक्रक्य भागीदारी पर
वनभथर थी। आस भागीदारी को पंचायती राज योजना के ऄंतगथत 1959 में अरम्भ क्रकये गए
स्थानीय लोकतांवत्रक और प्रवतवनवध संस्थानों के माध्यम से सुवनवश्चत क्रकया गया।
भूवम सुधार (Land Reforms)
 अजादी के पश्चात्, औपवनवेवशक काल की प्रचवलत भू-धारण प्रणाली की शोषक प्रकृ वत के कारण
भूवम सुधारों की अवश्यकता ईत्पन्न हुइ। भूवम सुधारों के मूल ईद्देश्य थे:
o ऄतीत से ववरासत के रूप में प्राि ऄद्धथ-सामंती कृ वष संरचना से ईत्पन्न बाधाओं को दूर करते
हुए कृ वष ईत्पादन को बढ़ाना;एवं
o आस कृ वष प्रणाली के शोषक लक्षणों को समाि करते हुए ग्रामीण अबादी के सभी वगों के वलए
वस्थवत और ऄवसर की समानता ईपलधध कराना तथा ई हें सामावजक याय प्रदान करना।
 बड़े पैमाने पर, आन ईद्देश्यों को प्राि करने के वलए तीन कदम ईिाये गए थे। सवथप्रथम, विरटश
सरकार द्वारा स्थावपत जमींदारी प्रणाली को समाि कर क्रदया गया। ईन सभी जमींदारों की
ज़मींदारी को समाि कर क्रदया गया जो वबचौवलयों के रूप में कायथ करते हुए राज्य के वलए भू-
राजस्व एकवत्रत करते थे और ऄत्यवधक भूवमकर की वसूली द्वारा क्रकसानों का शोषण करते थे।
दूसरा, कइ काश्तकारी सुधारों द्वारा ईन काश्तकारों की वस्थवत में सुधार का प्रयास क्रकया गया जो
ऄ य व्यवियों के स्वावमत्व वाली भूवम पर काम करते थे। आसमें क्रकराए का वनधाथरण, काश्तकारों
को वनष्कासन से बचाने के वलए भू -धारण की सुरक्षा का भी प्रावधान शावमल था। भूवम के वलए
मूल्य के भुगतान जैसी कु छ शतों की पूर्थत के पश्चात्, काश्तकारों को भूवम पर स्वावमत्व का
ऄवधकार भी प्रदान क्रकया गया। तीसरा, क्रकसी व्यवि द्वारा वनजी स्वावमत्व में रखी जाने वाली
कृ वष योग्य भूवम की वैधावनक ईच्चतम सीमा के वनधाथरण में सुधार क्रकए गए। सीमा से उपर का
भूवम ऄवधशेष, भूवमहीन या लघु कृ षकों को स्थानांतररत क्रकया जाना था (हदबंदी)। आसके
ऄवतररि, सुधारों में कृ वष जोतों के समेकन (चकबंदी) का प्रावधान था वजसका ईद्देश्य क्रकसानों को
ईनके ऄवधकार में अने वाले ऄलग-ऄलग वबखरे हुए भू-खंडों के स्थान पर ईनके क्षेत्रफल के
बराबर एक समेक्रकत भू-खंड ईपलधध कराना था।

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2.4. राज्य की भू वमका

 भारत में औपवनवेवशक काल के समाि होने के बाद ऄवस्तत्व में अए स्वतंत्र भारत की प्रकृ वत का
वनधाथरण औपवनवेवशक ववरासत और समकालीन वैवश्वक घटनाओं द्वारा क्रकया गया था। 1930 के
दशक की महान अर्थथक मंदी, वद्वतीय ववश्व युद्ध की समस्याएं और रूसी ऄथथव्यवस्था की तीव्र
वृवद्ध ने ऄथथव्यवस्था में राज्य की सक्रक्य भूवमका के वलए ऄनुकूल पररवेश का वनमाथण क्रकया।
 समाज के वववभन्न क्षेत्रों में प्रमुख बदलाव लाने के वलए, प्रत्यक्ष राज्य हस्तक्षेप के प्रयोग हेतु
औपवनवेवशक ववरासत एक महत्वपूणथ कारक थी। स्वतंत्रता से पहले, राष्ट्रवादी अर्थथक दृवष्टकोण ने
अर्थथक ववकास की प्रक्रक्या में राज्य के वलए एक कें द्रीय भूवमका का समथथन क्रकया। यहां तक क्रक
एम.जी.रानाडे और दादाभाइ नौरोजी जैसे प्रारं वभक राष्ट्रवाक्रदयों ने 19वीं सदी के ऄंत में ही
भारत के अर्थथक ववकास में राज्य की महत्वपूणथ भूवमका के पक्ष में ऄपने ववचार व्यि क्रकए थे।
1931 के कराची प्रस्ताव की घोषणा के ऄनुसार- 'राज्य प्रमुख ईद्योगों और सेवाओं, खवनज
संसाधनों, रे लवे, जलमागथ, नौवहन और सावथजवनक पररवहन के ऄ य साधनों का स्वामी होगा या
ईनका वनयंत्रण करे गा'। NPC और बॉम्बे प्लान ने वनयोजन द्वारा ऄथथव्यवस्था में प्रत्यक्ष और
व्यववस्थत राज्य हस्तक्षेप की एक व्यापक नीवत तथा सावथजवनक क्षेत्र एवं ऄथथव्यवस्था के वववभन्न
क्षेत्रों पर सामा य वनयंत्रण की वसफाररश की थी। स्वतंत्रता प्रावि के समय भी भारतीय
ऄथथव्यवस्था में राज्य के सक्रक्य हस्तक्षेप को लेकर राष्ट्रवाक्रदयों के मध्य मतैक्य था।
 स्वतंत्रता के समय भारत की समस्याओं की प्रकृ वत को ध्यान में रखते हुए तत्कालीन नेतृत्व ने
ववकास को राज्य के एजेंडे के कें द्र में रखा। ववकास के व्यापक रूप में न के वल औद्योवगक
ऄथथव्यवस्था को सवम्मवलत क्रकया गया था बवल्क आसके साथ-साथ सामावजक पररवतथन और
राजनीवतक लोकतांवत्रकरण के कायथक्मों को भी सवम्मवलत क्रकया था। लोकतंत्र के दायरे में रहते
हुए राज्य ने अर्थथक ववकास और समतावादी सामावजक व्यवस्था प्राि करने का प्रयास क्रकया था।
1950 में सावथभौवमक वयस्क मतावधकार और मौवलक ऄवधकारों से युि संववधान ने अवधकाररक
तौर पर भारत को एक लोकतंत्र घोवषत क्रकया। सामावजक याय के लक्ष्य की प्रावि और के वल कु छ
लोगों के हाथों में धन के संग्रहण को रोकने के वलए संववधान के नीवत वनदेशक वसद्धांतो ने
ऄथथव्यवस्था में राज्य हस्तक्षेप के क्षेत्र और प्रकृ वत को ववस्तृत रूप से पररभावषत क्रकया।
 समाज में अर्थथक और सामावजक पररवतथन की प्रावि के वलए, भारत ने एक ववकासात्मक राज्य की
भूवमका ऄपनाइ। राज्य, वनयोजन की प्रक्रक्या के माध्यम से ववकास का कें द्रीय साधन बन गया,
वजसमें ईत्पादन, ववतरण तथा वस्तुओं और सेवाओं के अदान-प्रदान पर राज्य का वनयंत्रण था।
ववकास के ईद्देश्यों को पूरा करने के वलए राज्य ने ईत्पादन और ववतरण के क्षेत्र में प्रवेश क्रकया।
नेहरू-महालनोवबस रणनीवत के ईद्देश्यों की प्रावि के वलए राज्य को सवाथवधक ईपयुि एजेंसी के
रूप में देखा गया। ऄथथव्यवस्था में राज्य का हस्तक्षेप, भारी ईद्योगों में सावथजवनक क्षेत्र को बढ़ावा
देने तथा ऄथथव्यवस्था के ववकास की क्रदशा में एक अवश्यक कदम था। अधारभूत संरचना के
ववकास के वलए वृहद जल ववद्युत पररयोजनाओं, वृहद औद्योवगक और खनन पररयोजनाओं तथा
ईच्च वशक्षण संस्थानों को 'अधुवनक भारत के मंक्रदरों' के रूप में स्थावपत क्रकया गया। ग्रामीण जीवन
में सुधार के वलए राज्य ने संस्थागत सुधारों और भूवम सुधारों को ऄपनाया। प्राथवमक वशक्षा,
प्राथवमक स्वास््य देखभाल, सुरवक्षत पेयजल और रोजगार कायथक्मों के संचालन का प्राथवमक
ईत्तरदावयत्व सरकार ने स्वयं ले वलया। राज्य के अर्थथक और सामावजक ईत्तरदावयत्वों का व्यापक
ववस्तार समाजवादी प्रवतरूप के ईद्देश्य के ऄनुरूप था। हालांक्रक, आसका ऄथथ वनजी ईद्यमों का
पूणत
थ ः ई मूलन कदावप नहीं था। वास्तव में, लोकतंत्र और समाजवाद के वसद्धांतो के कारण राज्य,
समाज में वमवश्रत ऄथथव्यवस्था बनाए रखने के वलए प्रवतबद्ध था।

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2.5. ववश्ले ष ण

 ववकास की नेहरू-महालनोवबस रणनीवत की वववभन्न पक्षों द्वारा ऄत्यंत अलोचना की गयी। चूंक्रक
कृ वष ववकास की तुलना में औद्योवगकीकरण पर ऄवधक बल क्रदया गया था, ऄतः आसके फलस्वरूप
कालांतर में कृ वष क्षेत्र को नुकसान का सामना करना पड़ा। श्रम-गहन ईद्योगों की तुलना में भारी
ईद्योगों को ईच्च प्राथवमकता देने के कारण बड़े पैमाने पर धन और बेरोज़गारी की समस्या ईत्पन्न
हुइ। 1951 के IDRA (औद्योवगक ववकास वववनयमन ऄवधवनयम) ऄपने ईद्देश्यों में पूरी तरह
सफल नहीं हुअ। आसने देश के बड़े औद्योवगक घरानों के पक्ष में एक लाआसेंस राज का वनमाथण
क्रकया। यह लाआसेंस राज, समतापूणथ औद्योवगक ववकास में बाधक बन गया। कानूनों में व्याि
खावमयों, राजनीवतक आच्छा शवि की कमी और नौकरशाही की ईदासीनता के कारण भूवम सुधारों
का पूणथतः क्रक्या वयन नहीं क्रकया जा सका। आ हीं कारणों के फलस्वरूप, CDP (सामुदावयक
ववकास कायथक्म) पयाथि सफलता प्राि नहीं कर सका।
 तथावप ववकास के वलए क्रकये प्रयासों के पहले चरण में कइ महत्वपूणथ ईपलवधधयां दजथ की गयी।
आस चरण ने समाज के व्यापक ववकास के वलए भौवतक और अधारभूत मानव संरचना का वनमाथण
क्रकया। औपवनवेवशक काल की तुलना में आस काल में हुअ समग्र अर्थथक प्रदशथन ऄपेक्षाकृ त ऄवधक
श्रेष्ठ था। वृवद्ध दर ऄवधक प्रभावशाली रही। बचत और वनवेश, दोनों ही दरों में वृवद्ध दजथ की गयी।
भूवम सुधार, CDP, नसचाइ, ववद्युत् और कृ वष ऄनुसंधान में बहुत ऄवधक वनवेश करने के कारण
कृ वष ईत्पादन में वृवद्ध हुइ। ईद्योग कृ वष की तुलना में ऄवधक तेजी से बढ़े। देश की औद्योवगक
संरचना के भीतर ववववधीकरण के साथ भारी ईद्योगों का ववकास हुअ। आसके ऄवतररि, ईच्च
वशक्षा संस्थानों की स्थापना (ववशेष रूप से वैज्ञावनक क्षेत्र में) मानव पूज
ाँ ी क्षेत्र के ववकास में
सहायक वसद्ध हुइ।

3. अर्थथक सं क ट– 1960 का दशक


ईपयुथि महत्वपूणथ ईपलवधधयों के बावजूद, 1960 के दशक के मध्य में कृ वष और वनयाथत की मंद वृवद्ध,
1965 और 1966 के दो वनरं तर ऄकालों तथा 1965 के भारत-पाक युद्ध के कारण 1960 के दशक के
मध्य में भारत को एक व्यापक अर्थथक संकट के दौर से गुज़रना पड़ा। आसके पश्चात् भारत को ऄमेररकी
सहायता में हुइ कटौती का भी सामना करना पड़ा। फलस्वरूप चौथी योजना के क्रक्या वयन में ववलम्ब
हुअ और 1966 एवं 1969 के मध्य तीन वार्थषक योजनाएं ऄपनाइ गईं। संकट की आस वस्थवत में राज्य
की प्रवतक्रक्याएं वनम्नवलवखत थी:
o व्यय कम करते हुए प्रवतबंधात्मक ववत्तीय नीवतयों को ऄपनाना
o रुपए का ऄवमूल्यन; और
o हररत क्ांवत का शुभारं भ

3.1. हररत क्ां वत

 भारत में पहली बार 1966 में 'हररत क्ांवत' का अरम्भ क्रकया गया था। आस नवीन कृ वष रणनीवत
का अरम्भ खाद्य समस्या को दूर करने के वलए क्रकया गया था। आसे ईच्च-ईपज क्रकस्म कायथक्म
(हाइ-यीनल्डग वेरायटीज़ प्रोग्राम : HYVP) के रूप में भी जाना जाता है क्योंक्रक यह रणनीवत ईच्च
ईपज देने वाली क्रकस्मों पर अधाररत थी। आन क्रकस्मों में फ़सलो की पारं पररक क्रकस्मों की तुलना में
ईच्च ईत्पादक क्षमता ववद्यमान थी। पारं पररक कृ वष के ववपरीत, नइ रणनीवत में रासायवनक
ईवथरक, कीटनाशकों, संकर बीजों, कृ वष मशीनरी, व्यापक नसचाइ और बीजों की बेहतर क्रकस्मों
तथा डीजल और ववद्युत् का ईपयोग सवम्मवलत था।

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3.2. प्रारं वभक ववकास रणनीवत में पररवतथ न

 ऄथथ व्य वस्था के खराब प्रदशथ न और 1960 के मध्य के अर्थथक सं क ट के कारण ववकास के
ने ह रू-महालनोवबस मॉडल को गं भीर अलोचनाओं का सामना करना पड़ा। यद्यवप
महालनोवबस रणनीवत का मू ल ढां चा सातवीं योजना के ऄं त तक बनाए रखा गया ,
तथावप आस रणनीवत में पररवतथ न चौथी योजना के बाद से ही क्रदखाइ दे ने लगा था।
यद्यवप चौथी योजना में अत्मवनभथ र ता के ईद्दे श्य को छोड़ा नहीं गया तथावप आस योजना
में अर्थथक ववकास को प्रमु ख ता प्रदान की गयी। फलतः , भारी ईद्योगों के स्थान पर
त्वररत लाभ दे ने वाली पररयोजनाओं के साथ-साथ लघु ईद्योगों को प्राथवमकता दी गइ।
 राज्य ने ऄथथव्यवस्था पर ऄपने ववस्तृत वनयंत्रण के वलए 1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण, 1969 में
एकावधकार और प्रवतबंवधत व्यापार प्रथा (Monopolies and Restrictive Trade
Practices; MRTP) ऄवधवनयम, 1972 में बीमा क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण, 1973 में कोयला ईद्योग
का राष्ट्रीयकरण, और 1973 में ववदेशी वववनमय ऄवधवनयम (Foreign Exchange
Regulation Act; FERA) आत्याक्रद कदम ईिाये।
 महालनोवबस ववकास रणनीवत की वृहद अलोचना सवथप्रथम 1970 के दशक के अरम्भ में ववश्व
बैंक के ऄथथशावियों ने की थी। आस ववकासो मुख रणनीवत को चुनौती देते हुए ई होंने तकथ क्रदया
क्रक मात्र अर्थथक वृवद्ध के माध्यम से गरीबी को दूर करने का ईद्देश्य प्राि नहीं क्रकया जा सकता है।
ईि काल पर क्रकए गए कइ ऄध्ययनों से यह वनष्कषथ प्राि होता है क्रक गरीबों को अर्थथक वृवद्ध का
पयाथि लाभ नहीं वमला है। ऄतः पांचवीं पंचवषीय योजना के ऄंतगथत गरीबी ई मूलन को सवोच्च
प्राथवमकता प्रदान की गइ और वववभन्न क्षेत्र ववकास कायथक्मों को ऄपनाया गया। छिी पंचवषीय
योजना ने एकीकृ त ग्रामीण ववकास कायथक्म (Integrated Rural Development
Programme; IRDP) जैसे वववभन्न पुनर्थवतरण ईपायों को ऄपनाया। सातवीं पंचवषीय योजना
के ऄंतगथत खाद्यान्न ईत्पादन, रोजगार के ऄवसर और ईत्पादकता में वृवद्ध पर ध्यान कें क्रद्रत करते
हुए एक नइ दीघथकावलक ववकास रणनीवत का ऄंगीकार क्रकया गया।

3.3. राज्य सं क ट

 ने ह रू काल की समावि के बाद, राज्य की सं स्थाओं और राजनीवतक मू ल्यों में क्षरण के


कारण गं भीर राजनीवतक ऄवस्थरता दे खी गइ। आसे 1967 के चु नाव में कां ग्रे स का खराब
प्रदशथ न , 1969 में कां ग्रे स के ववभाजन, बड़े पै माने पर गु ट बं दी, भ्रष्टाचार, सावथ ज वनक
जीवन में 'ऄखं ड ता और शु वचता के मानकों के क्षरण तथा सां प्र दावयक , जातीय एवं
क्षे त्रीय सं घ षों की बढ़ती तीव्रता के रूप में ऄनु भ व क्रकया गया। 1970 के प्रारं वभक वषो
में कु छ राजने ताओं के प्रभु त्व के चलते शीषथ स्तर पर वनणथ य ले ने की प्रक्रक्या में ऄत्यवधक
कें द्रीकरण प्रारं भ हुअ, जो 1975 के अपातकाल में ऄपने चरम पर पहुाँ च गया तथा
1980 के दशक तक जारी रहा। आसने दल प्रणाली , सं स द, यायपावलका, नौकरशाही
और कानू न व्यवस्था जै सी प्रभावकारी राज्य सं स्थाओं को प्रवतकू ल रूप से प्रभाववत
क्रकया। राज्य के आस सं र चनात्मक सं क ट ने दे श में प्रशासन को जजथ र कर क्रदया।
 आस वस्थवत में, राजनीवतक नेताओं ने चुनाव जीतने के वलए लोकलुभावन नारों का प्रयोग करना
प्रारं भ कर क्रदया। ईदाहरणाथथ 1971 के चुनावों में गरीबी हटाओ का नारा क्रदया गया। आसके
ऄवतररि, नीवत वनमाथताओं ने कइ लोकलुभावन ईपायों (जैसे छोटे व्यापाररयों हेतु कर ररयायतें
और ग्रामीण ऊणों की ऊण-माफ़ी) का सहारा वलया, वजससे सरकारी व्यय में वृवद्ध हुइ और
राजस्व में कमी अयी। आस प्रकार, राज्य की नीवतयों से देश की वबगड़ती अर्थथक वस्थवत में वृवद्ध
हुइ।

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3.4. ववश्ले ष ण

 हररत क्ांवत के कारण, 1966 के पश्चात खाद्यान्न, ववशेष रूप से गेहं के ईत्पादन में ववशेष वृवद्ध
हुइ, पररणामत: खाद्य सुरक्षा और गरीबी में कमी अयी। सरकार के वनधथनता और रोजगार
कायथक्मों ने ग्रामीण वनधथनता और ग्रामीण बेरोजगारी से वनपटने में मदद की। खाद्य और ऄ य
वस्तुओं के अयात में कमी, वनयाथत में वृवद्ध और पवश्चम एवशया में कायथरत भारतीय श्रवमकों द्वारा
क्रकए गए धन-संप्रष
े ण (remittances) में वृवद्ध के कारण अर्थथक वस्थवत में सुधार हुअ। घरेलू
बचत और वनवेश की दर तथा औद्योवगक ववकास दर में वृवद्ध दजथ की गयी। बॉम्बे हाइ में नए तेल
क्षेत्रों की खोज ने तेल के अयात वबल को कम कर क्रदया। भारत की स्वतंत्रता के प्रथम तीन दशकों
तक 3 से 3.5 प्रवतशत तक की दर से वनरं तर जारी रही। 'ववकास की नहदू दर' (राज कृ ष्ण द्वारा
प्रवतपाक्रदत वसद्धांत) का 1980 के दशक में ऄंत हो गया और ऄथथव्यवस्था में 5.5% से ऄवधक वृवद्ध
दर दजथ की गइ। वहीं दूसरी ओर, हररत क्ांवत और तत्कालीन ऄववध की संरचनात्मक कमजोररयों
ने दीघाथववध में कइ अर्थथक समस्याओं को भी ज म क्रदया। चूंक्रक हररत क्ांवत काफी सीमा तक गेहं
की फ़सल पर अधाररत थी और आसे कु छ ही राज्यों में लागू क्रकया गया था ऄतः आसके फलस्वरूप
ऄंतर-फसल ऄसमानता और क्षेत्रीय ऄसंतल
ु न ईत्पन्न हुअ। पूज
ं ी गहन प्रकृ वत के कारण, आससे
गााँवों की गरीब जनता को लाभ नहीं प्राि हो सका।
4. अर्थथक सं क ट - 1990 का शु रु अती दशक
 1990 के दशक में भारत को एक वृहत अर्थथक संकट का सामना करना पड़ा, जो 1991 में ऄपने
चरम पर पहुंच गया था। आस अर्थथक संकट में ईच्च मुद्रास्फीवत, बढ़ती खाद्य कीमतें, चालू खाता
घाटा, ववशाल घरे लू और ववदेशी ऊण, ववदेशी मुद्रा भंडार में तीव्र वगरावट, भारत की क्े वडट
रे टटग में कमी और NRI (ऄवनवासी भारतीय) जमाओं के शुद्ध बवहप्रथवाह के साथ वावणवज्यक
ऊणों के कटौती जैसे लक्षण वनवहत थे।
 पूवथवती दशकों में, ववशेष रूप से 1980 के दशक की दीघथकावलक बाधाओं ने कु छ तात्कावलक
कारकों के साथ वमलकर आस अर्थथक संकट को ज म क्रदया था। प्रवतयोवगता के ऄभाव के कारण
नेहरू-महालनोवबस की अयात प्रवतस्थापन रणनीवत ने भारतीय ईद्योगों को ऄक्षम और तकनीकी
रूप से वपछड़ा बना क्रदया। ववदेशी पूज
ं ी प्रवाह को हतोत्सावहत करने की मानवसकता के कारण,
भारत की प्रौद्योवगकी आकाआयों को ववदेशी प्रवतस्पधाथ का लाभ नहीं वमल पाया। लाआसेंस और
परवमट व्यवस्था के माध्यम से वनजी क्षेत्र पर लागू ऄत्यवधक वनयंत्रण के कारण ईद्यमशीलता और
नवाचार को ऄत्यवधक क्षवत पहुंची। ऄत्यवधक राजनीवतक हस्तक्षेप के कारण आस रणनीवत के कें द्र
नबदु समझे जाने वाले सावथजवनक क्षेत्र के ईपक्म ऄत्यवधक ऄक्षम और रुग्ण हो गए। अत्मवनभथरता
पर आस रणनीवत द्वारा ववशेष बल क्रदए जाने के कारण वनयाथत हतोत्सावहत हुअ। भारी ईद्योग के
ववकास हेतु पूज
ं ीगत वस्तुओं के ऄत्यवधक अयात की अवश्यकता होती है। कम वनयाथतों के साथ
पूंजीगत वस्तुओं और खाद्यान्न के बड़े पैमाने पर अयात के कारण, व्यापार घाटे में वृवद्ध हुइ।
बदलती वैवश्वक वस्थवत के ऄनुसार स्वयं में अवश्यक पररवतथन करने के बजाय, सरकार
वनम्नवलवखत कदमों के फलस्वरूप,1980 के दशक में राजकोषीय वगरावट का स्वयं कारण बन
गयी:
o लोकलुभावन नीवतयााँ,
o ऄथथव्यवस्था पर राज्य के वनयंत्रण में तीव्र वृवद्ध, एवं
o कु छ क्षेत्रों के छोटे ईद्योगों के वलए अरक्षण की व्यवस्था। 1990 का खाड़ी संकट भारतीय
ऄथथव्यवस्था के वलए एक बाह्य अघात के रूप में था। जबक्रक यह ऄथथव्यवस्था पहले से ही एक
ऄत्यवधक ऄसुरवक्षत वस्थवत में थी।

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5. अर्थथक सु धारों की अवश्यकता
आस संदभथ में वनम्नवलवखत ऄंतर्थनवहत कारकों के कारण अर्थथक सुधारों की अवश्यकता ईत्पन्न हुइ:

5.1. 1991 के पू वथ की नीवतयों की कमजोररयााँ

 अर्थथक सुधारों के महत्वपूणथ कारकों में 1991 से पूवथ की अर्थथक नीवतयों की कमजोररयां जैसे-
अर्थथक ववकास की वनम्न दर, बढ़ती बेरोजगारी, घरे लू बचत और वनवेश की दर में वस्थरता,
सावथजवनक क्षेत्र के ईद्योगों का खराब प्रदशथन, ऄपयाथि संरचनात्मक सुववधाएं, औद्योवगक
लाआसेंनसग नीवत, एकावधकार में वृवद्ध अक्रद सवम्मवलत थे।
 आनके ऄवतररि 1990 और 1991 में ऄ य संकट भी ववद्यमान थे। आन संकटों ने भारत को
ईदारीकरण और वैश्वीकरण के वलए प्रेररत क्रकया।

5.2. ववदे शी मु द्रा सं क ट

1991 में भारतीय ऄथथव्यवस्था को ववदेशी मुद्रा के भारी ऄभाव का सामना करना पड़ा। आस संकट के
वलए कइ कारक ईत्तरदायी थे।
 सवथप्रथम, ववदेशी मुद्रा का संकट का तात्कावलक कारण आराक और कु वैत के खाड़ी देशों के बीच
युद्ध था। आससे तेल की कीमतों में और तेल अयात वबल में ऄत्यवधक वृवद्ध हुइ।
 दूसरा, समय के साथ भारत के बाह्य ऊण में वृवद्ध हुइ। पुराने ऊणों का बोझ ऄत्यवधक था।
ऄंतराथष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और ववश्व बैंक के साथ-साथ ऄ य वावणवज्यक ऊणदाता संस्थानों ने
भारत को नवीन ऊण देने से मना कर क्रदया था ।
 तीसरा, राजनीवतक ऄवस्थरता और ऄवनवश्चतता व्याि होने के कारण ववदेशी मुद्राओं के रूप में
NRI जमाओं का तीव्र गवत से अहरण (ववड्रॉल) हुअ।
 ऄंत में, अयात में वृवद्ध सदैव वनयाथत में वृवद्ध की तुलना में कहीं ऄवधक रही है। आसवलए, भारत की
ववदेशी ऊणों पर वनभथरता बढ़ी। आसके पररणामस्वरुप, ववदेशी ऊण में लगातार वृवद्ध हुइ। शीघ्र
ही, ववदेशी मुद्रा संकट ने एक गंभीर मोड़ ले वलया और जनवरी 1991 तथा जून 1991 के मध्य,
भारत को एक ऐसी वस्थवत का सामना करना पड़ा वजसमें ववदेशी मुद्रा भंडार के वल तीन सिाह के
अयात की अवश्यकताओं को पूरा कर सकता था। भारत लगभग ऄपने ववदेशी ववदेशी ऊण के
बोझ की वस्थवत में क्रदवावलया होने की कगार पर था। पररणामस्वरूप, भारतीय ररजवथ बैंक का
ववदेशी मुद्रा भंडार लगभग समाि हो गया।

5.3. IMF और ववश्व बैं क द्वारा अरोवपत की गयी शतें

 ववदेशी मुद्रा संकट के कारण भारत सरकार को IMF और ववश्व बैंक से संपकथ करना पड़ा। यद्यवप
आन संस्थानों ने अवश्यक ववदेशी मुद्रा प्रदान करने का कायथ क्रकया, तथावप आसके वलए ई होंने
भारत के सामने कु छ वनयम और शतें रखीं।
 आन शतों के ऄनुसार, भारत को राजकोषीय घाटे और मुद्रा अपूर्थत की दर को कम करने की
अवश्यकता थी ताक्रक घरे लू ऄथथव्यवस्था को ईदार बनाया जा सके और वस्तुओं, सेवाओंंं, पूंजी
और प्रौद्योवगकी के ऄंतरराष्ट्रीय प्रवाह पर प्रवतबंधों को कम क्रकया जा सके । ऄतः IMF तथा ववश्व
बैंक के दबाव में भारतीय नीवत वनमाथताओं को IMF एवं ववश्व बैंक से नए ऊण प्राि करने से पूवथ
ऄपनी नीवतयों में कइ प्रकार के संशोधन करने के वलए बाध्य होना पड़ा।

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5.4. USSR (सोववयत समाजवादी गणतं त्रों का सं घ ) का ववघटन

 USSR और पूवी यूरोपीय देश कालांतर में भारतीय ईपभोिा वस्तुओं के वनयाथत के वलए प्रमुख
बाजार बन गए थे। 1990 के ऄंत तक, आन देशों की राजनीवतक व्यवस्था ध्वस्त हो गयी। आनमे से
ऄवधकांश, बाजार ऄथथव्यवस्था में बदल गए और भारत को प्रवतस्पधाथत्मक अधार पर आन देशों के
साथ व्यापार अरम्भ करना पड़ा। वनयाथत में ऄपने भाग को बनाए रखने के वलए भारत को वैवश्वक
बाजार में प्रवतस्पधाथ का सामना करना पड़ा। ऄतः ऐसे में ववश्व में ऄपनी वहस्सेदारी को पुनः प्राि
करने के वलए भी भारत को ऄपनी अर्थथक नीवतयों को पुनःसंगरित करने की अवश्यकता थी।

6. अर्थथक सु धार
 1990-91 के अंतररक अर्थथक संकट और बदलती हुइ ऄंतराथष्ट्रीय वस्थवत के पररप्रेक्ष्य में, नरवसम्हा
राव सरकार ने अर्थथक सुधारों या नइ अर्थथक नीवत ( यू आकोनॉवमक पॉवलसी; NEP) को प्रस्तुत
करने का वनणथय वलया। NEP के अगमन ने समाजवादी ऄथथव्यवस्था का वैवश्वक पतन और समस्त
ववश्व में अर्थथक वैश्वीकरण की स्वीकृ वत जैसे कु छ वैवश्वक रुझानों को स्पष्ट रूप से पररलवक्षत
क्रकया।
 यद्यवप ईदारीकरण और वैश्वीकरण की प्रक्रक्या में क्रकये गए सुधारों की प्रकृ वत अमूल-चूल
पररवतथनों से युि थी, तथावप ये देश के लोकतांवत्रक ढांचे के बाहर नहीं थे। आन सुधारों ने 1950 के
दशक की नेहरूवादी ववचारधारा को पीछे छोड़ते हुए एक नइ सवथसम्मवत को ज म क्रदया जो
नवीन सुधारों की वहतैषी थी। हालांक्रक स्वतंत्रता प्रावि के समय वनधाथररत राष्ट्रीय लक्ष्यों में कोइ
पररवतथन नहीं क्रकया गया, ऄवपतु पररवतथन मात्र आन लक्ष्यों को प्राि करने की रणनीवत ऄथाथत
नेहरू-महालनोवबस ववकास रणनीवत से ईदारीकरण और अर्थथक सुधारों की नइ ववकास-रणनीवत
में हुअ था।
(a) समवष्टगत अर्थथक वस्थरीकरण ईपाय (Macroeconomic stabilization measures)
 व्यापक या समवष्टगत अर्थथक वस्थरीकरण एक ऄल्पकावलक कायथक्म था। आसका ईद्देश्य
ऄथथव्यवस्था में सकल मांग को वववनयवमत करके वृहद अर्थथक संकट से बाहर वनकलना था।
 वववन डेक्रफवसट (जुड़वााँ घाटा) ऄथाथत् BoP समस्या और राजकोषीय घाटे के समाधान हेतु 1991
के सुधार पैकेज को एक ऄल्पकावलक ईपाय के रूप में घोवषत क्रकया गया, वजसमें वनम्नवलवखत तीन
घटक वनवहत थे:
o ववत्तीय वस्थरीकरण ईपाय (Fiscal stabilization measures): बढ़ते राजकोषीय घाटे को
कम करने के वलए, आसमें राज्य सरकार द्वारा मांग को बढ़ाने तथा मुद्रास्फीवत को वनयंवत्रत
रखते हुए सामावजक क्षेत्र (स्कू ल, ऄस्पताल अक्रद) और बुवनयादी ढांचे (सड़कें , वबजली अक्रद)
में वनवेश को बढ़ाने का प्रस्ताव रखा गया था।
o अंतररक क्षेत्र ईदारीकरण (Internal sector Liberalization): आसका ईद्देश्य बाज़ार
वस्थवतयों के मांग एवं अपूर्थत के ऄनुसार वनजी क्षेत्र के ईत्पादन एवं वनवेश वनणथयों के सम्ब ध
में वनजी क्षेत्र को चयनात्मक रूप से वनयंवत्रत करना एवं ऄनुमवत प्रदान करना है। ई हें
ईदारता से वनवेश करने की ऄनुमवत प्रदान करना है।
o बाह्य क्षेत्र ईदारीकरण (External sector Liberalization): आसके ऄंतगथत ववदेशी व्यापार
और वववनमय दर पर लगे वनयंत्रण को हटाते हुए ऄवधक FDI प्रवाह को अकर्थषत करने के
वलए एक नइ नीवत के माध्यम से भारतीय ऄथथव्यवस्था और वैवश्वक ऄथथव्यवस्था के एकीकरण
का प्रयास क्रकया गया।

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 यह माना गया था क्रक आन ईपायों से ऄथथव्यवस्था में वनवेश में वृवद्ध होगी और ईच्च ईत्पादकता
प्राि होगी, रोजगार के ऄवसरों में वृवद्ध होगी तथा मांग को बढ़ावा वमलेगा। बढ़ी हुइ आस मांग से
ऄथथव्यवस्था को ईच्च ववकास पथ तक ले जाना संभव होगा। यद्यवप यह एक ऄल्पकावलक रणनीवत
मात्र ही थी, वजसका ईद्देश्य तत्कालीन प्रणाली की अर्थथक ववफलताओं में सुधार करना था।
 आसके पररणामस्वरूप भारत, IMF को ऄपनी देय रावश का समय पर भुगतान करने में सफल रहा।
आतना ही नहीं, भारतीय ऄथथव्यवस्था प्रगवत के पथ पर पुनः लौट अयी और भारत ने 8वीं
पंचवषीय योजना ऄववध के दौरान लवक्षत 5.6% की औसत वार्थषक वृवद्ध दर को सफलतापूवक

प्राि क्रकया। आसके साथ ही, मध्यम से दीघथकावलक ईपायों की एक श्रृंखला भी प्रारं भ की गयी वजसे
संरचनात्मक सुधार के रूप में जाना गया।
(b) संरचनात्मक सुधार प्रस्ताव (Structural Reform Measures)
 यह एक सवथस्वीकायथ मत था क्रक यक्रद भारतीय ऄथथव्यवस्था संरचनात्मक सुधार नहीं करती है तो
ऄल्पकाल में प्राि हुइ सफलता धारणीय नहीं रह पायेगी। संरचनात्मक सुधार एक मध्यम और
दीघथकावलक कायथक्म था वजसका ईद्देश्य ऄथथव्यवस्था में गवतशीलता और प्रवतस्पधाथत्मकता लाकर
क्षेत्रीय समायोजनों तथा ऄथथव्यवस्था के अपूर्थत पक्ष की समस्याओं का समाधान करना था। आनमें
ईदारीकृ त व्यापार और वनवेश नीवतयां वनवहत थीं वजनमें वनयाथत, औद्योवगक वनयंत्रण, वववनवेश
और सावथजवनक क्षेत्र के सुधार पर बल क्रदया गया था। आसके साथ ही पूज
ं ी बाजार और ववत्तीय
क्षेत्र में सुधारों को भी समायोवजत क्रकया गया था।
 संकट प्रबंधन ईपायों में भुगतान के दावयत्वों को पूरा करना, ववदेशी मुद्रा प्राि करने के वलए स्वणथ
का ईपयोग, रुपये का ऄवमूल्यन, अयात का संकुचन और बहुपक्षीय ववत्तीय संस्थानों तथा
वद्वपक्षीय दाताओं से ववत्त की मांग करना शावमल था। आस प्रकार, अंतररक वनयंत्रण को हटा कर
एक प्रगवतशील ऄथथव्यवस्था को प्राि करने का प्रयास क्रकया गया जो ववश्वव्यापी वैश्वीकरण
प्रक्रक्या द्वारा प्रदान क्रकए गए ऄवसरों का लाभ ईिा सके । तदनुसार, एक नइ व्यापार नीवत और
एक नइ औद्योवगक नीवत प्रस्ताववत की गइ। आन पररवतथनों के कारण 8वीं, 9वीं और 10वीं
पंचवषीय योजनाओं का अरम्भ हुअ।

6.1. राज्य की भू वमका को पु नः पररभावषत करना

 ईदारीकरण और वनजीकरण के अधार पर ऄपनाइ गयी NEP ने राज्य और बाजार के संबंधों की


प्रकृ वत पर गहन चचाथ को ज म क्रदया है। हालााँक्रक NEP का यह तात्पयथ कदावप नहीं है क्रक
ऄथथव्यवस्था में राज्य की भूवमका का क्षरण हो गया है। बवल्क यह कु छ वनवश्चत वसद्धांतों पर
अधाररत है। ये वसद्धांत वनम्नवलवखत हैं:
o सवथप्रथम, राज्य और बाजार एक दूसरे के ववकल्प नहीं बवल्क एक-दूसरे के पूरक हैं।
o दूसरा, ये दोनों एक दूसरे को परस्पर संतुवलत करते हैं।
o तीसरा, ईवचत हस्तक्षेप के माध्यम से बाजार को लोगों के ऄनुकूल बनाना अवश्यक है क्योंक्रक
सरकारें लोगों के प्रवत जवाबदेह होती हैं, जबक्रक बाजार लोगों के प्रवत जवाबदेह नहीं होते है।
 यह राज्य की भूवमका में पररवतथन लाने का प्रयास करती है वजसने ऄतीत में स्वयं के उपर
ऄत्यवधक ईत्तरदावयत्व ले वलया था। यह राज्य की प्रकृ वत को एक वनमाथता, वनवेशक और वनयामक
से पररवर्थतत कर एक सुववधा प्रदायक एजेंसी में रूपांतररत करती है।
 आसके तहत यह अवश्यक था क्रक राज्य एक सामा य कानून और व्यवस्था को बनाए रखे और ईन
क्षेत्रों में एक ईवचत नीवतगत ढांचा प्रदान करे जहां वनजी क्षेत्र एक बड़ी भूवमका वनभा सकते हैं।
आसके साथ ही बेहतर पारदर्थशता और ऄवधक जवाबदेही लाने के वलए नीवतयां तैयार करने की
अवश्यकता थी, जो वास्तव में सुशासन के मूल स्तंभ हैं।

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 नइ ववकास रणनीवत राज्य को अर्थथक और सामावजक ऄवसंरचना का वनमाथण करने में महत्वपूणथ
भूवमका का वनवाथह करने के वलए प्रेररत करती है क्योंक्रक आन क्षेत्रों में वनवेश की संभावना ऄत्यवधक
कम या नहीं के बराबर होती है, जैसे ग्रामीण और सड़कों तथा रे लवे का ववकास। यह ईन क्षेत्रों में
राज्य के हस्तक्षेप को ईवचत िहराता है जहां बाजार मौजूद नहीं हैं या जहां बाजार की
गवतवववधयों से ऄवांछनीय पररणाम सामने अ सकते हैं जैसे - स्वास््य सेवा, वशक्षा, सुरवक्षत
पेयजल, गरीबी ई मूलन, रोजगार सृजन, क्षेत्रीय ऄसंतुलन का ई मूलन और ऄशि वगों का
सशविकरण आत्याक्रद जैसी सावथजवनक सेवाएाँ प्रदान करना।
7. ईदारीकरण, वनजीकरण और वै श्वीकरण
 नइ अर्थथक नीवत मुख्यतः तीन नीवतगत ईपायों पर अवश्रत थी:
o ईदारीकरण (Liberalisation),
o वनजीकरण (Privatisation) और
o वैश्वीकरण (Globalisation)।
 ईदारीकरण की नीवत का लक्ष्य भारतीय ऄथथव्यवस्था को 1991 से पूवथ ववद्यमान गैर-कृ वष क्षेत्र को
वनयंवत्रत करने वाले वववभन्न प्रकार के वनयंत्रणों, लाआसेंसों और परवमटों से मुि करना था।
वनजीकरण की नीवत का लक्ष्य मूल रूप से वनजी क्षेत्र की भूवमका में वृवद्ध करना और सावथजवनक
क्षेत्र की भूवमका को सीवमत करना था। आसी प्रकार वैश्वीकरण, भारतीय ऄथथव्यवस्था को ववश्व की
ऄ य ऄथथव्यवस्थाओं के वलए खोलने की नीवत थी।
वनम्नवलवखत तीन नबदुओं के ऄंतगथत आन अर्थथक सुधारों का ववस्तृत ऄध्ययन क्रकया जा सकता है:

7.1. भारतीय ऄथथ व्य वस्था के ईदारीकरण की नीवत

7.1.1. ईदारीकरण का ऄथथ

 अर्थथक ईदारीकरण से अशय ऄथथव्यवस्था के वववभन्न भागों के ऄवववनयमन (deregulation)


वववनयमन में ढील की नीवत ऄपनाने से है। आसका ईद्देश्य ईद्योग तथा ऄ य गवतवववधयों पर 1991
से पूवथ ववद्यमान सरकारी वनयंत्रण को समाि या कम करना है। 1991 में प्रस्तुत की गयी
ईदारीकरण की नीवत का लक्ष्य एक वववनयवमत प्रणाली के स्थान पर एक ऐसी नवीन व्यवस्था का
अरम्भ करना था वजसमें वनयमों द्वारा कम-से-कम वनयंत्रण क्रकया जाए तथा ऄथथव्यवस्था के
वववभन्न क्षेत्रों को वनयंत्रण, लाआसेंस और परवमट से मुि कर क्रदया जाये।
 ध्यातव्य है क्रक भारतीय नीवत वनमाथता ‘ऄहस्तक्षेप की नीवत’ (policy of laissez-faire) पर
ववचार नहीं कर रहे थे, ऄथाथत् वे पूणथ रूप से ऄवववनयवमत ऄथथव्यवस्था के स्थान पर ऄल्प
वववनयमन के पक्षधर थे।

7.1.2. ईदारीकरण नीवत की ववशे ष ताएाँ

ईदारीकरण की नीवत की मुख्य ववशेषताएाँ आस प्रकार हैं:


 गैर-लाआसेंसीकरण (Delicensing): 1991 के पूवथ लाआसेंनसग तथा वनयंत्रण हेतु एक वववनयामक
व्यवस्था प्रचवलत थी। आस प्रणाली के ऄंतगथत लाये गए ईद्योगों के वलए पंजीकरण अवश्यक था
तथा ई हें सरकार द्वारा लाआसेंस प्रदान क्रकया जाता था। लाआसेंनसग और वनयंत्रण की यह
वववनयामक व्यवस्था कालांतर में औद्योवगक ववकास में बाधा बन गइ। आससे ववलंब के साथ-साथ
व्यवस्था में भ्रष्ट प्रथाओं की शरुअत भी हुइ। औद्योवगक लाआसेंनसग नीवत ने ऄनावश्यक सरकारी
हस्तक्षेप, वनवेश के वनणथयों में देरी, नौकरशाही में लाल-फीताशाही आत्याक्रद को ज म क्रदया। आसके
साथ ही वनयामक ईपायों के कारण एक ऄक्षम, ईच्च लागत वाले एवं कमजोर औद्योवगक क्षेत्र का
वनमाथण हुअ। ऄतः आस व्यवस्था की समीक्षा करने की अवश्यकता सामने अयी।

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 ईदारीकरण की नीवत के तहत ईद्योगों की लाआसेंनसग की अवश्यकता को समाि करने पर बल
क्रदया गया। 1991 की औद्योवगक नीवत के पररणामस्वरूप ऄवधकांश मामलों में लाआसेंनसग नीवत
को ऄत्यंत ईदारवादी बना क्रदया गया तथा ऄवधकांश ईद्योगों के वलए लाआसेंनसग की अवश्यकता
को समाि कर क्रदया गया है। ईद्यमी ऄब क्रकसी भी ईद्योग, व्यापार या व्यापार में प्रवेश करने के
वलए स्वतंत्र है।
 वनयंत्रण एकावधकार में ररयायत (Relaxation in Controlling Monopolies): एकावधकार
और प्रवतबंधात्मक ्‍यापार प्रथा (Monopolies and Restrictive Trade Practices:
MRTP) ऄवधवनयम के ऄंतगथत, एक वनवश्चत रावश (1985 के पश्चात 100 करोड़ रूपए) से ऄवधक
की संपवत्त वाली सभी कं पवनयों को मात्र चयवनत ईद्योगों में प्रवेश की ऄनुमवत दी गइ थी। आसके
ऄवतररि ईनके वलए क्रकसी भी वनवेश के प्रस्ताव हेतु सरकार से स्वीकृ वत लेना ऄवनवायथ था।
 ऄवववनयमन को ऄवधक प्रभावी बनाने के वलए, एकावधकार के प्रवतबंधों को कम क्रकया गया।
वतथमान में एकावधकार रखने वाले औद्योवगक घरानों (Monopoly houses) के वलए नए ईद्योगों
के ववस्तार और स्थापना हेतु पहले से सरकारी-मंजरू ी लेने की अवश्यकता नहीं है। आसके साथ ही
ऄब मुख्यतः ईपभोिाओं के वहतों की रक्षा के वलए, ऄनुवचत एकावधकारपूणथ तथा प्रवतबंधात्मक
व्यापार पद्धवतयों पर वनयंत्रण रखने तथा वनयम तोड़ने वालों के ववरुद्ध कायथवाही करने पर ध्यान
क्रदया जा रहा है।
 औद्योवगक ऄववस्थवत नीवत को ईदार बनाया गया (Industrial Location Policy
Liberalised): पूवथ प्रचवलत औद्योवगक ऄववस्थवत नीवत से ऄलग, वतथमान में कु छ ऄपवादों के
ऄवतररि क्रकसी भी स्थान पर ईद्योगों की स्थापना की स्वतंत्रता दी गइ है। आसके ऄवतररि,
ऄवनवायथ लाआसेंस हेतु वनधाथररत ईद्योगों के ऄवतररि शेष ईद्योगों के वलए सरकार की मंज़ूरी प्राि
करना अवश्यक नहीं है।
 प्रवतबंधों को हटाना (Removal of Restrictions): औद्योवगक आकाआयों के ववलय, ऄवधग्रहण
और ववभाजन अक्रद पर लगे ऄवधकांश प्रवतबंधों को समाि कर क्रदया गया है।
 ं ी बाजार का ईदारीकरण (Liberalisation of Capital Markets): पूंजी बाजार को मुि कर
पूज
क्रदया गया है। ऄब सरकार की ऄनुमवत के वबना ही नए शेयर और ऊणपत्र जारी कर एक नइ
कं पनी की स्थापना की जा सकती है। हालांक्रक, पूज
ं ी बाजार के कायों को वववनयवमत करने हेतु
भारतीय प्रवतभूवत और वववनमय बोडथ (SEBI) की स्थापना की गयी है।
 ववदेशी वववनमय बाज़ार (Foreign Exchange Market): ईदारीकरण की नीवत के ऄंतगथत
ववदेशी मुद्रा बाजार में वववभन्न सुधारों को लागू क्रकया गया है। आसके ऄंतगथत ऄब लचीली वववनमय
दर (Flexible exchange rate) ऄथाथत् बाजार शवियों द्वारा वनधाथररत वववनमय दर का
ऄनुसरण क्रकया जाने लगा है। 1993-94 में ववदेशी मुद्रा के मामले में रुपए को व्यापार खाते
(trade account) पर पूरी तरह से पररवतथनीय बनाया गया था। वतथमान में वनयाथतक ऄर्थजत
ववदेशी मुद्रा को प्रचवलत बाजार दर पर भारतीय रुपयों में पररवर्थतत कर सकते हैं। आसी प्रकार,
अयातक ऄब बाजार दर पर ववदेशी मुद्रा क्य कर सकते हैं। भारतीय ररजवथ बैंक (RBI) मात्र यह
सुवनवश्चत करने में सहायता करता है क्रक वववनमय दर में ऄत्यवधक ईतार-चढ़ाव न हों।
 अधारभूत संरचना का ववकास (Development of Infrastructure): वनजी क्षेत्र को ववद्युत,
सड़क मागथ, संचार, नौवहन, नागररक ईड्डयन, बैंककग अक्रद ऄवसंरचनात्मक क्षेत्रों में प्रवेश और
ववकास की ऄनुमवत प्राि हो गइ है।

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7.1.3. ईदारीकृ त नीवत का महत्व

 ईदारीकरण की नीवत ने कं ट्रोल राज की समस्याओं यथा सरकारी कायों में देरी, भ्रष्टाचार की
समस्या अक्रद को दूर करने का प्रयास क्रकया है। आसके साथ ही आसके तहत अर्थथक व्यवस्था में
प्रवतस्पधाथ की भावना को समावहत एवं ईद्यवमयों को वनवेश करने हेतु प्रोत्सावहत क्रकया गया है।
आसके पररणामस्वरूप ऄथथव्यवस्था की दक्षता में वृवद्ध हुइ है।

7.2. वनजीकरण की नीवत

 पूवथ में वववभन्न देशों में मुख्यतः व्यावहाररक कारणों और ऄंशतः वैचाररक कारणों से सावथजवनक
क्षेत्र के ईद्यमों की स्थापना की गयी। हाल के वषों में, अर्थथक ईदारीकरण के एक नए दशथन के
ईद्भव के साथ, वनजी क्षेत्र और बाजार बलों ने प्रमुखता प्राि की है।
 ऄतीत में, भारत में नीवत वनमाथताओं का पारम्पररक दृवष्टकोण था क्रक सावथजवनक क्षेत्र अर्थथक
ववकास हेतु सवाथवधक ईपयुि है। 1956 के औद्योवगक नीवत संकल्प द्वारा भारत में सावथजवनक क्षेत्र
की रणनीवतक भूवमका प्रस्तुत की गयी। तदनुसार, सावथजवनक क्षेत्र के ववकास हेतु पंचवषीय
योजनाओं के दौरान बड़े पैमाने पर वनवेश क्रकया गया। आस प्रकार सावथजवनक क्षेत्र, भारी और
अधारभूत ईद्योगों के ववकास द्वारा तथा अवश्यक अधारभूत संरचना प्रदान कर भारत में
औद्योवगक अधार स्थावपत करने में सफल हुअ।
 हालांक्रक, कु छ समय से, अर्थथक ववकास की प्रक्रक्या में सावथजवनक क्षेत्र की भूवमका की धारणा में
पररवतथन अया है और ईसकी भूवमका क्रफर से संशोवधत की जा रही है। आसके साथ ही वनजीकरण
की प्रक्रक्या को एक महत्वपूणथ ववकास के रूप में देखा जा रहा है।

7.2.1. वनजीकरण का ऄथथ और औवचत्य

 वनजीकरण मूल रूप से ईस प्रक्रक्या को दशाथता है वजसके ऄंतगथत सावथजवनक क्षेत्र के ईद्यमों का
स्वावमत्व सरकार से वनजी क्षेत्र में स्थानांतररत होता है। हालांक्रक, व्यापक ऄथों में, वनजीकरण के
ऄंतगथत सावथजवनक क्षेत्र के ईद्यमों को वनणथय लेने की स्वायत्तता देने और ईन में व्यावसायीकरण
की भावना को लागू करने की प्रक्रक्या भी वनवहत है।
वनजीकरण के समथथकों ने आसके पक्ष में वनम्नवलवखत तकथ प्रस्तुत क्रकए हैं:
 वैचाररक अधार (Ideological Grounds): ववकवसत देशों में वनजीकरण को वैचाररक अधारों
पर स्वीकार क्रकया जाता है। आस तकथ का कें द्रीय ववचार यह है क्रक सावथजवनक क्षेत्र के ईद्यमों को
के वल ईन ऄवनवायथ गवतवववधयों तक ही सीवमत रखा जाना चावहए, जो वनजी क्षेत्र नहीं कर
सकते या नहीं करें गे। ऄ य सभी गवतवववधयों को वनजी क्षेत्र के ईद्यमों द्वारा क्रकया जाना चावहए
क्योंक्रक वे ऄवधक कु शल होते हैं।
 प्रबंधकीय दक्षता में सुधार (Improvement in Managerial Efficiency): वनजीकरण को
प्रबंधकीय दक्षता में सुधार के साधन के रूप में देखा जाता है। वववनवेश के माध्यम से वनजीकरण
(ऄथाथत् सरकार द्वारा वनजी वनवेशकों को आक्रिटी का ववतरण) शेयरधारकों और प्रबंधन के मध्य
एक प्रत्यक्ष संबंध स्थावपत करता है। आसके पररणामस्वरूप आन ईद्यमों तथा आनकी दक्षता के
ववकास में वनजी शेयरधारकों की प्रत्यक्ष रुवच होती है। वनजीकरण होने पर प्रबंधन को राजनीवतक
दबाव और हस्तक्षेप से नहीं जूझना पड़ता तथा आससे राजनीवतक हस्तक्षेप के कारण ईत्पन्न
सावथजवनक क्षेत्र के ईद्यमों की प्रबंधकीय ऄक्षमता को कम क्रकया जा सकता है। आसके साथ ही आसके
माध्यम से प्रबंधन को अर्थथक और वावणवज्यक ववचारों द्वारा वनदेवशत क्रकया जाता है जो वनणथय
लेने की गुणवत्ता में सुधार लाने में सहायक होता है।

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 प्रवतयोगी पररवेश का वनमाथण (Creation of Competitive Environment): सावथजवनक क्षेत्र
के ईद्यमों का स्वावमत्व वनजी क्षेत्र को क्रदए जाने से एकावधकार की वस्थवत समाि होती है तथा आन
ईद्यमों को ऄ य समान ईद्यमों के साथ प्रवतस्पधाथ करनी होती है। आससे एक प्रवतयोगी पररवेश का
सृजन क्रकया जा सकता है जो आन ईद्यमों की प्रवतस्पधाथत्मक शवि और दक्षता में सुधार करने में
सहायता करे गा। यह ईद्यमों की वावणवज्यक भावना को प्रोत्सावहत करे गा। आसके साथ ही आन
ईद्यमों पर अधुवनक और बेहतर प्रौद्योवगक्रकयों का ईपयोग कर ईत्पादन दक्षता बढ़ाने का दबाव
भी होगा।
 लाभ-ई मुख वनणथय (Profit-oriented Decisions): वनजीकरण, नीवत ईद्यमों के कायथकलापों में
वावणवज्यक भावना को बढ़ाने में सहायक होगा। वनजी क्षेत्र, ईद्यमों के काम काज में 'लाभ-ई मुख'
फै सले लेने की प्रक्रक्या को अरं भ करें गे। आससे ईद्यमों की दक्षता और प्रदशथन में सुधार होगा।
 वनणथय लेने में ऄवधक लचीलापन (Greater Flexibility in Decision-making): सावथजवनक
क्षेत्र के ईद्यमों को सामा यतः पयाथि कायाथत्मक स्वायत्तता प्राि नहीं होती। आससे प्रायः वनणथय लेने
में देरी ऄथवा ऄवनणथय की वस्थवत ईत्पन्न होती है। वनजीकरण की नीवत से वनणथय लेने की प्रक्रक्या
में ऄवधक लोचशीलता की प्रावि होती है तथा प्रबंधन क्रकसी भी सरकारी हस्तक्षेप से मुि रहता है।
आसके साथ ही क्रकसी भी वनणथय के वलए क्रकसी से परामशथ की अवश्यकता नहीं होती तथा शीघ्र
और समय पर वनणथय लेना संभव होता है, जोक्रक दक्षता की पहचान है। समयानुसार और
वववेकपूणथ वनणथय व्यावसावयक संचालन की दक्षता में सुधार करते हैं।
 सरकारी राजकोष पर भार में कमी (Reduction in Burden on Public Exchequer):
सावथजवनक क्षेत्र के ईद्यमों का संचालन सरकारी राजकोष पर बोझ डाल रहा है क्योंक्रक कइ ईद्यमों
में भारी नुकसान के साथ सवधसडी भुगतान की मात्रा में भी बढ़ोतरी हुइ है। वनजीकरण, सरकार
पर पड़े आस ववत्तीय बोझ को कम करने में सहायक होगा। आस वस्थवत में सरकार पर सवधसडी
प्रदान करने और नुकसान की भरपाइ का दावयत्व नहीं होगा।
 ईपभोिाओं की संतवु ष्ट पर ऄवधक ध्यान (Attention to Consumers' Satisfaction): प्रायः
यह तकथ क्रदया जाता है क्रक सावथजवनक क्षेत्र के ईद्यम कइ बार ईपभोिाओं की अवश्यकताओं को
व्यविगत रूप से संतुष्ट नहीं कर पाते हैं। जबक्रक वनजी ईद्यमों का ऄवस्तत्व ईपभोिाओं की संतुवष्ट
पर ही वनभथर करता है। बाजार के वनमाथण तथा बाजार में बने रहने की अवश्यकता के कारण
वनजीकरण ईपभोिाओं की अकांक्षाओं को हमेशा सवोच्च प्राथवमकता प्रदान करता है। ऄतः आसके
पररणामस्वरूप ऄ य पररणामों के साथ-साथ सेवा की गुणवत्ता में भी सुधार देखा जाता है।
 ऄवधक वनवेश और रोजगार के ऄवसर (Greater Investment and Employment
Opportunities): वनजीकरण, वनजी क्षेत्र के ईद्यमों के वलए ईन नए क्षेत्रों को खोलेगा, जो ऄभी
तक सावथजवनक क्षेत्र के वलए अरवक्षत थे। आससे वनजी क्षेत्र के वनवेश में वृवद्ध होगी। वनवेश के ईच्च
स्तर से ऄवधक रोजगार और अय के ऄवसर ईत्पन्न होंगे।
 रुग्ण आकाआयों का पुनरुद्धार (Revival of Sick Units): कइ सावथजवनक क्षेत्र के ईद्यमों को लंबे
समय से नुकसान ईिाना पड़ रहा है तथा वे ऄवधक या कम मात्रा में रुग्ण आकाइयों में पररणत
होकर सरकार पर बोझ बन गए हैं। वनजीकरण आन रुग्ण आकाआयों को पुनजीववत करने में मदद कर
सकता है।
 जवाबदेही में वृवद्ध (Increase in Accountability): सावथजवनक क्षेत्र के ईद्यमों में क्रकसी भी त्रुरट
के वलए कमथचाररयों की जवाबदेही नहीं होती तथा आसे सदैव दूसरों को स्थानांतररत कर क्रदया
जाता है। वहीं वनजी क्षेत्र में ईत्तरदावयत्व का क्षेत्र स्पष्ट रूप से पररभावषत है। आस प्रकार,
वनजीकरण से सरकारी ईद्यमों के प्रबंधन की जवाबदेही में वृवद्ध होगी।
 ववत्तीय ऄनुशासन में वृवद्ध (Increase in Financial Discipline): सावथजवनक क्षेत्र के ईद्यमों
को ईनके प्रदशथन के वनरपेक्ष बजटीय सहायता प्राि हो सकती है पर तु वनजी क्षेत्र के ईद्यम ऄच्छा
प्रदशथन करने की वस्थवत में ही पूंजी बाजार से धन प्राि कर सकते हैं। ऄतः, वनजीकरण की
व्यवस्था में पूज
ं ी बाजार से धन जुटाने के वलए ईद्यमों पर ऄच्छा प्रदशथन करने का दबाव होगा।
आससे ईनके ववत्तीय ऄनुशासन में सुधार होगा।

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7.2.2. वनजीकरण के ववरुद्ध तकथ

वनजीकरण की नीवत के ववरुद्ध कइ तकथ क्रदए गए हैं:


 वनजीकरण सदैव वांछनीय नहीं है (Privatisation Not Always Desirable): सावथजवनक
ईद्यमों को सामा यतः ईन क्षेत्रों में स्थावपत क्रकया गया है जहााँ या तो वनजी क्षेत्र, अवश्यक
संसाधनों से युि नहीं है ऄथवा कम लाभ तथा लम्बे वनमाथणपूवथ ऄववध (long gestation
period) के कारण रुवच नहीं दशाथते हैं। कइ सावथजवनक क्षेत्र के ईद्यम ऐसे भी हैं वजनका ईद्देश्य
सामावजक कल्याण की प्रावि है। ऐसे में आन ईद्यमों का वनजीकरण संभव नहीं हो सकता है क्योंक्रक
वनजी क्षेत्र ऐसी सावथजवनक क्षेत्र आकाआयों के ऄवधग्रहण हेतु रुवच नहीं क्रदखाएगा।
 सामावजक कल्याण की ईपेक्षा (Social Welfare Neglected:): वनजीकरण की नीवत यदा-कदा
ईपभोिाओं के वहतों की ईपेक्षा कर सकती है। वनजी क्षेत्र के ईद्यमों का मुख्य ईद्देश्य ऄवधकतम
लाभ की प्रावि है। ईदाहरण के वलए, वनजी ऑपरे टर अम तौर पर सामावजक कल्याण को बढ़ावा
देने हेतु वनधथन ईपभोिाओं को सवधसडीयुि मूल्यों पर वस्तुओं के ववक्य में रुवच नहीं रखते तथा
आस प्रकार सामावजक याय और लोक कल्याण के वसद्धांतों की ईपेक्षा कर देते हैं।
 बेरोज़गारी की संभावना (Possibility of Unemployment): एक वास्तववक अशंका यह भी है
क्रक वनजीकरण से बेरोज़गारी में वृवद्ध हो सकती है। वनजी ईद्यमों द्वारा सावथजवनक ईद्यमों का
ऄवधग्रहण क्रकये जाने के पश्चात् प्रायः छाँटनी और आसके द्वारा बेरोज़गारी का भय ववद्यमान होता
है। कइ देशों में हुए वनजीकरण से आस त्य के प्रमाण प्राि हुए हैं।
 वनजी एकावधकार का ववकास (Growth of Private Monopoly): एक ऄ य वास्तववक अशंका
यह है क्रक वनजी कं पवनयों को की गयी सावथजवनक ईपक्म की वबक्ी मात्र सावथजवनक एकावधकार
को एक वनजी एकावधकार से प्रवतस्थावपत कर देगी। आससे ऄक्षम सावथजवनक स्वावमत्व के स्थान
पर कु शल वनजी स्वावमत्व द्वारा एकावधकारी शोषण की संभावनाएाँ ईत्पन्न हो सकती हैं।
 भ्रष्ट व्यवहार की संभावना (Possibility of Corrupt Practices): वनजीकरण की नीवत के
कायाथ वयन से भ्रष्टाचार में वृवद्ध हो सकती है। वनजी क्षेत्र को लाभ पहुाँचाने के ईद्देश्य से
सावथजवनक क्षेत्र पररसंपवत्तयों के ऄवमूल्यन करने की भी संभावना है। राजनेताओं, नौकरशाहों
और ववशेष व्यावसावयक समूहों के बीच वमलीभगत की संभावना को भी नज़रऄंदाज़ नहीं क्रकया
जा सकता।
 एकांगी या ऄसंतवु लत औद्योवगक ववकास (Lopsided Industrial Development): वनजीकरण
के पररणामस्वरूप देश में ईद्योगों का ऄसंतवु लत ववकास हो सकता है। वनजी ईद्यमों को ऐसी
पररयोजनाओं में क्रदलचस्पी नहीं होगी जो जोवखम पूणथ है तथा वजनमें कम लाभप्रदता के साथ ही
दीघथ वनमाथणपूवथ ऄववध है। यह देश में अधारभूत और भारी ईद्योगों तथा अधारभूत संरचना के
ववकास में ऄवरोध ईत्पन्न कर सकता है।

7.2.3. भारत में वनजीकरण नीवत की ववशे ष ताएाँ

नइ अर्थथक नीवत, सावथजवनक क्षेत्र के ईद्यमों में सुधार हेतु छह प्रमुख ईपायों पर के व द्रत है:
 ऄनारक्षण की नीवत (Policy of Dereservation): 1956 के औद्योवगक नीवत संकल्प के तहत
सावथजवनक क्षेत्र के वलए 17 ईद्योगों को अरवक्षत क्रकया गया था। 1991 की औद्योवगक नीवत ने
आस प्रकार के ईद्योगों की संख्या को अि तक सीवमत कर क्रदया। आसके पश्चात, 2016 में
सावथजवनक क्षेत्र के वलए के वल वनम्नवलवखत ईद्योगों को अरवक्षत क्रकया गया:
o परमाणु उजाथ (ववशेष रूप से ववखंडनीय सामवग्रयों एवं पदाथों का ईत्पादन, पृथक्करण या
संवधथन तथा सुववधाओं का संचालन)।
o DIPP द्वारा वववनर्ददष्ट वस्तुओं के वनमाथण, संचालन और रखरखाव के ऄवतररि रे लवे
संचालन का कायथ।

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 रुग्ण सावथजवनक क्षेत्र के ईपक्मों हेतु नीवत: नइ औद्योवगक नीवत के ऄनुसरण में, रुग्ण सावथजवनक
क्षेत्र के ईद्यमों को औद्योवगक और ववत्तीय पुनर्थनमाथण बोडथ (Board for Industrial and
Financial Reconstruction; BIFR) के ऄवधकार क्षेत्र में लाया गया है। 1992 से लागू होने
वाली आस नीवत का ईद्देश्य आन ईपक्मों का पुनरुद्धार करना है। 1992 के पूव,थ आस योजना का
प्रयोग मात्र रुग्ण वनजी क्षेत्र के ईद्यमों के वलए क्रकया जाता था। BIFR की स्थापना 1987 में
वनजी कं पवनयों की रुग्ण औद्योवगक आकाआयों के पुनरुद्धार हेतु की गयी थी।
 नवरत्न और वमवनरत्न कं पवनयों हेतु नीवत (Policy for Navaratnas and Miniratnas):
सरकार ने वववभन्न लाभकारी CPSE वज हें महारत्न, नवरत्न और वमवनरत्न के नाम से जाना जाता
है, के वनदेशक मंडलों को ऄवधक शवियां प्रदान की हैं। ईच्च-वनष्पादन और लाभ प्रदान करने वाले
सावथजवनक क्षेत्र के ईद्यमों की पहचान करने के वलए 1996 में सरकार के कायथक्म के रूप में कु छ
शतें पूणथ करने वाले ईद्योगों को नवरत्न का दजाथ क्रदया गया। आन ईद्यमों को वैवश्वक क्रदग्गज बनाने
हेतु ववत्तीय और प्रबंधकीय स्वायत्तता प्रदान की जानी थी। प्रारं भ में 9 ऐसे ईद्यमों (ऄतः नवरत्न के
रूप में ईपनाम) की पहचान की गइ थी। 2010-11 के दौरान सरकार ने महारत्न योजना प्रारम्भ
की। आस योजना के ऄंतगथत वृहद नवरत्न सावथजवनक क्षेत्र के ईद्यमों को घरे लू और ववदेशी बाजार
दोनों में ऄपने अपरे शनों का ववस्तार करने का ऄवधकार क्रदया गया। 2016 में 7 महारत्न (BHEL,
GAIL (भारत), NTPC, SAIL, CIL, IOCL, ONGC) तथा 17 नवरत्न ईपक्म ववद्यमान थे।
1997 में वमवनरत्न कं पवनयों का अरं भ क्रकया गया। ये वनरं तर लाभ प्रदान करने वाली कं पवनयां थीं
तथा आ हें दो श्रेवणयों में ववभावजत क्रकया गया हैं। आन महारत्न/नवरत्न/वमवनरत्न कं पवनयों को
पूंजीगत व्यय का सामना करने, ऊण जुटाने, संयुि ईद्यमों में प्रवेश करने, ऄपने बोडथ ऑफ़
डायरे क्टसथ का पुनगथिन करने तथा स्वयं की जनशवि एवं संसाधन प्रबंधन नीवतयों हेतु ऄवतररि
शवि और स्वतंत्रता दी गइ है।
 समझौता ज्ञापन (MoU): सरकार ने आनके प्रदशथन को सुधारने के ईद्देश्य से सावथजवनक क्षेत्र के
ईद्यमों के साथ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर क्रकये हैं। MoU का मुख्य ईद्देश्य सावथजवनक क्षेत्र के
ईद्यमों में वनयंत्रण में कमी लाकर तथा जवाबदेही की गुणवत्ता बढ़ाते हुए, ई हें स्वायत्तता प्रदान
करना है। आसके साथ ही आसका लक्ष्य स्वायत्तता और जवाबदेही के मध्य संतल ु न प्राि करना है।
आस हेतु प्रवतस्पधी पररवेश में स्पष्ट रूप से मापने योग्य लक्ष्यों का वनधाथरण तथा आन लक्ष्यों की
प्रावि हेतु प्रत्येक ईद्यम को ऄवधक स्वायत्तता प्रदान की जा रही है। MoU का ईद्देश्य सावथजवनक
क्षेत्र हेतु वनजी क्षेत्र के समानांतर ऄवसर सुवनवश्चत करना है। सरकार द्वारा, सावथजवनक क्षेत्र के
ईद्यमों के प्रदशथन मूल्यांकन हेतु ईद्यम की वास्तववक ईपलवधधयों तथा सरकार द्वारा वनधाथररत
वार्थषक लक्ष्यों की तुलना की जाती है। आस प्रकार सरकार के साथ समझौता ज्ञापन में सवम्मवलत
ईद्यमों को ईनके प्रदशथन के ऄनुसार रे टटग दी जाती है। यह मूल्यांकन 5 ऄंकों के स्के ल पर क्रकया
जाता है - ईत्कृ ष्ट, ऄच्छा, बहुत ऄच्छा, संतोषजनक तथा बेकार (excellent, good, very
good, fair and poor)। आस मूल्यांकन द्वारा सावथजवनक क्षेत्र के ईद्यमों को ईनकी दक्षता में
सुधार करने हेतु प्रोत्साहन प्रदान क्रकया जाता है।
 स्वैवच्छक सेवावनवृवत्त योजना (VRS): सावथजवनक क्षेत्र के ऄनेक ईपक्मों को अवश्यकता से
ऄवधक स्टाफ की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। ऄवतररि श्रवमकों की संख्या को कम करने
के वलए सरकार ने सावथजवनक क्षेत्र के ईद्यमों के वलए एक स्वैवच्छक सेवावनवृवत्त योजना प्रारं भ की
है। आस योजना के ऄंतगथत, स्वैवच्छक सेवावनवृवत्त लेने वाले श्रवमकों को ववत्तीय क्षवतपूर्थत दी जाती
है। आस योजना के पररणामस्वरूप, सरकार सावथजवनक क्षेत्र के ईद्यमों में कायथरत कमथचाररयों की
संख्या को कम करने में सफल रही है।

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 वववनवेश नीवत (Disinvestment Policy): 1991 की औद्योवगक नीवत के ऄंतगथत वनजीकरण
कायथक्म का प्रमुख मुद्दा वववनवेश नीवत है। वववनवेश से तात्पयथ वनवेश की वबक्ी से है। सावथजवनक
ईद्यमों के संदभथ में, वववनवेश की नीवत बाजार में सावथजवनक क्षेत्र की आकाआयों में सरकार की
आक्रिटी के ववक्य से संबवं धत है। आस नीवत के ऄंतगथत, चयवनत सावथजवनक क्षेत्र के ईपक्मों में
सरकार के शेयरों का एक वनवश्चत भाग वनजी वनवेशकों, ववत्तीय संस्थानों, म्यूचुऄल फं ड, श्रवमकों
और जनता को वनवेश हेतु प्रस्तुत क्रकया जाता है। सावथजवनक क्षेत्र के ईपक्मों के अधुवनकीकरण
की सहायता के वलए, धन ईपलधध कराने, अम जनता और कमथचाररयों की व्यापक भागीदारी को
प्रोत्सावहत करने और सावथजवनक ऊण के बोझ को कम करने के ईद्देश्य से संसाधनों को बढ़ाने के
वलए लाभ ऄर्थजत करने वाले सावथजवनक ईद्यमों के कु छ शेयरों का वववनवेश क्रकया जाता है।
 आस प्रकार, 1991 की नइ अर्थथक नीवत ने सावथजवनक क्षेत्र के ईद्यमों में सुधार के ईद्देश्य से
वनजीकरण लाने का प्रयास क्रकया है। हालांक्रक, यह ध्यान क्रदया जाना चावहए क्रक वनजीकरण,
ऄपने अप में, सावथजवनक क्षेत्र की सभी त्रुरटयों को दूर करने का साधन नहीं है। यक्रद क्रकसी देश में
प्रवतस्पधी वातावरण ईपवस्थत नहीं है, तो वनजी क्षेत्र को स्वावमत्व स्थानांतररत करने से ऄवधक
कु छ नहीं होगा। आसके ऄवतररि, वनजीकरण के जररए स्वावमत्व स्थानांतररत करना वनजी
एकावधकार को ईत्पन्न कर सकती है। वनजी एकावधकार, मूल सामावजक और राष्ट्रीय वहत के
ववरुद्ध होता है। वनजीकरण की नीवत तभी सफल कही जाएगी जब आन ईद्यमों के प्रदशथन में सुधार
होना प्रारं भ हो जायेगा।

7.3. वै श्वीकरण की नीवत

नइ अर्थथक नीवत का तीसरा भाग वैश्वीकरण है। यह भारतीय ऄथथव्यवस्था को ववश्व ऄथथव्यवस्था के
वलए खोलने की नीवत है।

7.3.1. वै श्वीकरण का ऄथथ (Meaning of Globalisation)

 व्यापार, पूज
ं ी प्रवाह और प्रौद्योवगकी के माध्यम से ववश्व की ऄ य ऄथथव्यवस्थाओं के साथ देश की
ऄथथव्यवस्था को एकीकृ त करने की प्रक्रक्या को वैश्वीकरण कहते हैं। आस प्रकार आसका तात्पयथ ववश्व
की ऄ य ऄथथव्यवस्थाओं से व्यापार हेतु देश की ऄथथव्यवस्था को खोलने से है। वैश्वीकरण के प्रसार
के माध्यम वनम्नवलवखत हैं:
 वैश्वीकरण के प्रसार का पहला माध्यम मुि वैवश्वक व्यापार है। आसके वलए वस्तुओं और सेवाओं के
व्यापार में ईदारीकरण की अवश्यकता होती है। वैवश्वक व्यापार के ववस्तार हेतु अयात
ईदारीकरण कायथक्मों को अरं भ करने, मात्रात्मक प्रवतबंधों को दूर करने और अयात शुल्क घटाने
की अवश्यकता है। वैश्वीकरण का तात्पयथ ऄंतराथष्ट्रीय व्यापार के वलए बाधाओं को हटाने से है ताक्रक
वववभन्न देशों के मध्य वस्तुओं और सेवाओं का मुि प्रवाह हो सके ।
 वैश्वीकरण हेतु ऄंतराथष्ट्रीय वनवेश में अने वाली बाधाओं को दूर क्रकया जाना अवश्यक है। ववदेशी
वनवेश के ईदारीकरण से ऄंतराथष्ट्रीय वनवेश में ऄत्यवधक वृवद्ध होगी। यह ऄथथव्यवस्था को प्रत्यक्ष
ववदेशी वनवेश (FDI) के वलए खोलने में महत्वपूणथ भूवमका वनभाता है। बहुराष्ट्रीय वनगमों
(बहुराष्ट्रीय कं पवनयों सवहत) सवहत ववदेशी कं पवनयों को देश में वनवेश करने के वलए प्रोत्सावहत
क्रकया जाना चावहए। ववदेशी कं पवनयों को सुववधाएं प्रदान की जानी चावहए तथा ऄंतराथष्ट्रीय
वनवेश को प्रोत्सावहत करने हेतु बहुराष्ट्रीय कं पवनयों के प्रवेश पर प्रवतबंध हटा क्रदए जाने चावहए।
 देशों के मध्य प्रौद्योवगकी का मुि प्रवाह वैश्वीकरण का एक प्रभावी माध्यम है। भारत जैसे
ववकासशील देशों के अर्थथक ववकास को बढ़ावा देने के वलए ईन्नत देशों से प्रौद्योवगकी के
हस्तांतरण की अवश्यकता है।

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7.3.2. वै श्वीकरण के प्रभाव

अर्थथक, तकनीकी तथा ऄ य क्षेत्रों में वैश्वीकरण के कइ लाभ हैं:

 वैश्वीकरण के कारण देशों के मध्य वस्तुओं के मुि प्रवाह में वृवद्ध हुइ है। आसके पररणामस्वरूप,
हाल के वषों में ववश्व व्यापार में वृवद्ध हुइ है।
 वैश्वीकरण ने पूज
ं ी के ऄंतराथष्ट्रीय प्रवाह में वृवद्ध की है। ववकवसत देशों के वलए वनवेश के ऄवसरों में
वृवद्ध हुइ है। ववकवसत देशों की बहुराष्ट्रीय कं पवनयों ने ववकासशील देशों में वनवेश प्रारं भ कर क्रदया
है। आससे ववश्वव्यापी ववत्तीय बाजार का ईद्भव हुअ है।
 वैश्वीकरण के कारण वववभन्न राष्ट्रों के मध्य पारस्पररक वनभथरता में वृवद्ध हुइ है। यह वस्तुओं और
सेवाओं के व्यापार के संबंध में तथा पूंजी के अवागमन के संबंध में बढती ऄ यो यावश्रतता के रूप
में पररलवक्षत होता है।
 वैश्वीकरण ने ववकासशील देशों के वलए नए ऄवसरों को ज म क्रदया है। आसके चलते ववकासशील
देशों की ईन्नत प्रौद्योवगक्रकयों तक पहुंच में वृवद्ध हुइ है। ववकवसत देशों द्वारा ववकासशील देशों को
प्रौद्योवगकी हस्तांतरण ने ईत्पादकता और ईच्च जीवन स्तर को प्रोत्सावहत क्रकया है।
 एक वैवश्वक ईत्पाद बाजार का ईद्भव हुअ है। आसने ईपभोिाओं के वलए ईपलधध वस्तुओं की
ववववधता और श्रेवणयों में वृवद्ध की है।
 वैवश्वक सम्पकथ साधनों (global mass media) में क्ांवत के पररणामस्वरूप वववभन्न देशों के
लोगों के मध्य संचार में वृवद्ध हुइ है। पररणामस्वरूप ववश्व ऄपेक्षाकृ त छोटा प्रतीत होने लगा है
और वववभन्न देशों के मध्य सूचना प्रवाह में वृवद्ध दजथ की गइ है।
 वैश्वीकरण ने ववकासशील देशों में अर्थथक समृवद्ध के ऄवसरों में वृवद्ध की है।
 वैश्वीकरण ने वववभन्न संस्कृ वतयों के लोगों को एक साथ लाने में सहायता की है। आसने सांस्कृ वतक
ऄवरोधों को कम क्रकया है। पारस्पररक सांस्कृ वतक संपकों में वृवद्ध ने वैवश्वक गांव का स्वप्न के
ऄवधक यथाथथवादी बना क्रदया है तथा साथ ही सांस्कृ वतक सामावसकता बढ़ी है।
हालांक्रक, वैश्वीकरण के कारण नकारात्मक प्रभाव भी देखने को वमले हैं:
 वैश्वीकरण के पररणामों में से एक यह है क्रक ववश्व के सभी देश ऄपनी सीमाओं के बाहर हो रहे
अर्थथक घटनाओं से ऄछू ते नहीं रहे। आसके चलते 1990 के दशक में बड़ी मात्रा में मुद्रा संकट और

वववनमय दरों तथा स्टॉक के मूल्यों में बड़े ईतार-चढ़ाव देखे गए। आसी प्रकार, संयुि राज्य

ऄमेररका के 2008 के ववत्तीय संकट के कारण हुइ मंदी ने ववश्व के ऄ य वहस्सों को भी ऄपनी चपेट

में ले वलया। ऐसी ही वस्थवत 2012 में यूरो संकट के कारण ईत्पन्न हो गयी थी।

 वैश्वीकरण ने वववभन्न राष्ट्रों में बढ़ती ऄसमानता, ववत्तीय बाजारों में ऄवस्थरता और पयाथवरणीय

वनम्नीकरण (environmental degradation) अक्रद जैसी नइ समस्याओं को ज म क्रदया है।

7.3.3. भारतीय ऄथथ व्य वस्था का वै श्वीकरण

 1991 में भारत ने वैश्वीकरण के कायथक्म को अरं भ कर क्रदया था। हालांक्रक, आसके लक्षण 1980 के

दशक के अरं भ में क्रकये गए अयात के ईदारीकरण, ववदेशी पूज


ं ी में कु छ ररयायतों के प्रावधान और
भारतीय ऄथथव्यवस्था के कु छ क्षेत्रों में बहुराष्ट्रीय कं पवनयों को प्रवेश देने की ऄनुमवत में ही
पररलवक्षत होने लगे थे। पर तु अर्थथक सुधारों की नीवत के एक ऄवनवायथ भाग के रूप में जुलाइ,

1991 के पश्चात् भारतीय ऄथथव्यवस्था में पूणथ रूपेण वैश्वीकरण की प्रक्रक्या को अरं भ क्रकया गया।

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7.3.4. वै श्वीकरण नीवत की ववशे ष ताएाँ

वैश्वीकरण के एजेंडे के कायाथ वयन के एक भाग के रूप में, भारत सरकार ने 1991 के बाद से
वनम्नवलवखत नीवतगत ईपाय क्रकए हैं:
 वववनमय दर में सुधार (Exchange Rate Reforms): वैवश्वक ऄथथव्यवस्था के साथ भारतीय
ऄथथव्यवस्था को एकीकृ त करने का सबसे महत्वपूणथ ईपाय स्थायी वववनमय दर का बाजार-
वनधाथररत वववनमय दर में पररवतथन था। अवधकाररक हस्तक्षेप के वबना ऄंतराथष्ट्रीय बाजार में
वववनमय दर वनधाथररत करने की ऄनुमवत देने की आस नीवत को मुद्रा की पररवतथनीयता के रूप में
जाना जाता है। व्यापार खाते पर भारतीय रुपये की पूणथ पररवतथनीयता ऄगस्त 1994 में प्राि कर
ली गइ थी। आसके साथ ही, वववभन्न प्रकार के वववनमय वनयंत्रण ईपायों को चरणबद्ध तरीके से
समाि कर क्रदया गया था। पररणाम स्वरुप, ववगत वषों में ववदेशी मुद्रा के हस्तांतरण पर लगे
प्रवतबंधों में ऄत्यवधक छू ट दी गयी है।
 अयात ईदारीकरण (Import Liberalisation): भारत, ववश्व व्यापार संगिन (WTO) के सदस्य
के रूप में व्यापार ऄवरोधों को कम करने के वलए प्रवतबद्ध है। सरकार ने अयात ईदारीकरण की
क्रदशा में कइ कदम ईिाए हैं, यथा:
o अयात लाआसेंनसग की प्रणाली को समाि कर क्रदया गया है।
o WTO के साथ क्रकये गए समझौते के ऄंतगथत अयात पर मात्रात्मक प्रवतबंधों को लगभग
समाि कर क्रदया गया है।
o राष्ट्रों के मध्य व्यापार को पहले की ऄपेक्षा और ऄवधक मुि करने के ईद्देश्य से अयात तथा
वनयाथत पर लगने वाले शुल्कों को कम कर क्रदया गया है।
 ववदेशी वनवेश (Foreign Investment): FDI से घरे लू वनवेश में वृवद्ध की अशा की जाती है
तथा आस प्रकार यह देश के औद्योवगक और अर्थथक ववकास में योगदान देता है। यह प्रवतस्पधाथ में
वृवद्ध कर एवं देश में नइ तकनीकी लाकर दक्षता तथा ईत्पादकता में भी वृवद्ध करता है। औद्योवगक
तथा अर्थथक सहयोग के बदलते वैवश्वक पररदृश्य में, FDI को बढ़ावा देना महत्वपूणथ है। ववदेशी
पूंजी को अकर्थषत करने और वैवश्वक ऄथथव्यवस्था के साथ भारतीय ऄथथव्यवस्था को एकीकृ त करने
के ईद्देश्य से, भारत सरकार ने ववदेशी वनवेशकों के वलए द्वार खोल क्रदए हैं। बेहतर प्रौद्योवगकी,
अधुवनकीकरण और ऄंतराथष्ट्रीय मानकों पर अधाररत वस्तुओं तथा सेवाओं को सुलभ बनाने हेतु
सरकार FDI प्रवाह को प्रोत्सावहत करने के वलए प्रवतबद्ध है। बड़े वनवेश और ईन्नत प्रौद्योवगकी की
अवश्यकता वाले ईच्च प्राथवमकता युि ईद्योगों में ववदेशी वनवेश को अमंवत्रत करने के वलए,
सरकार ने 1991 में 51% ववदेशी आक्रिटी तक FDI को मंजरू ी देने का वनणथय क्रकया। आनमें से कइ
ईद्योगों के वलए यह सीमा 51 प्रवतशत से बढाकर 74% और बाद में 100% कर दी गयी। सरकार
की नीवत का ईद्देश्य सड़कों का ववकास, हवाइ ऄड्डों, एयरलाआं स, ररयल एस्टेट, बैंकों, ववद्युत्
ईत्पादन, तेल की खोज अक्रद जैसे मूलभूत ऄवसंरचना क्षेत्रों में ववदेशी वनवेश को प्रोत्सावहत करना
है। आसके ऄवतररि ववदेशी संस्थागत वनवेशकों को भारतीय पूज
ं ी बाजार में कु छ वनयमों के ऄधीन
वनवेश करने की ऄनुमवत भी दी गइ है।
 ववदेशी प्रौद्योवगकी (Foreign Technology): भारतीय ईद्योगों में तकनीकी ववकास को
प्रोत्सावहत करने के ईद्देश्य से सरकार द्वारा प्रौद्योवगकी के मुि प्रवाह की ऄनुमवत दी गयी है। ईच्च
प्राथवमकता वाले ईद्योगों के ववषय में सरकार तकनीकी समझौतों के वलए स्वत: ऄनुमोदन प्रदान
करती है। आसी तरह की सुववधाएं ऄ य ईद्योगों के वलए भी प्रदान की जाती हैं, बशते ऐसे
समझौतों में ववदेशी मुद्रा की अवश्यकता न हो। ववदेशी प्रौद्योवगकी का ऄवधष्ठापन FDI के माध्यम
से तथा ववदेशी प्रौद्योवगकी समझौतों के माध्यम से क्रकया जाता है।

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7.3.5. भारतीय ईद्योग पर वै श्वीकरण के प्रभाव

भारतीय ईद्योगों पर वैश्वीकरण के कइ सकारात्मक प्रभाव देखे जा सकते हैं:


 वैश्वीकरण ने भारतीय ईद्योगों में कइ बहुराष्ट्रीय कपवनयों को अकर्थषत क्रकया है। आन बहुराष्ट्रीय
कं पवनयों द्वारा भारतीय ईद्योगों में बड़ी मात्रा में ववदेशी वनवेश क्रकया गया है, ववशेष रूप से

फामाथस्यूरटकल ईद्योग, पेट्रोवलयम, रसायन, कपड़ा और सीमेंट वववनमाथण ईद्योगों में। भारतीय
ईद्योगों में हुए वृहद प्रत्यक्ष ववदेशी वनवेश ने भारतीय ऄथथव्यवस्था को बढ़ावा क्रदया है।
 वैश्वीकरण के प्रमुख लाभों के रूप में सूचना प्रौद्योवगकी (IT) क्षेत्र और वबज़नस प्रोसेस

अईटसोर्ससग (business process outsourcing; BPO) क्षेत्र का ईदय हुअ है। IT और BPO

क्षेत्र ऄ य देशों, ववशेषकर ऄमेररका और यूरोप के ग्राहकों को अईटसोर्ससग ईपलधध करा रहे हैं।

कॉल सेंटरों के ईद्भव, IT और BPO सेवाओं की अईटसोर्ससग तथा बहुराष्ट्रीय कं पवनयों ने देश में
रोजगार के वृहद ऄवसर ईत्पन्न क्रकए हैं। वपछले कु छ वषों में भारत में आन क्षेत्रों में कु शल पेशेवरों
की संख्या में वृवद्ध हुइ है। IT और BPO ईद्योगों से ऄर्थजत संपदा ने एक नए मध्यम वगथ को ज म
क्रदया है।
 भारतीय ईद्योगों के वलए एक लाभ यह भी है क्रक बहुराष्ट्रीय कं पवनयां ऄपने साथ ऄत्यवधक ईन्नत
तकनीकें भी लायी हैं। आससे भारतीय ईद्योगों को तकनीकी रूप से ईन्नत बनाने में सहायता वमली
है।
 ववदेशी कं पवनयों को अकर्थषत करने के वलए SEZ स्थावपत क्रकए गए हैं। SEZ के वनमाथण ने
औद्योवगकीकरण में वृवद्ध की दर को बढ़ाया है। आससे न वसफथ रोजगार के ऄवसर ईत्पन्न करने में
सहायता प्राि हुइ है बवल्क ववदेशी वनवेश सवहत ववश्व स्तरीय बुवनयादी ढांचे और वनवेश का
सृजन भी हुअ है।
 टाटा, ररलायंस आत्याक्रद जैसे कु छ प्रमुख भारतीय ईद्योग ववदेशों में वनवेश के माध्यम से ऄथवा
कु छ प्रमुख ववदेशी कं पवनयों के ऄवधग्रहण के माध्यम से अज वैवश्वक स्तर पर स्थावपत हो चुके हैं।
आस्पात ईद्योग से विों तक, कारों से IT क्षेत्र तक, भारतीय कं पवनयां स्वयं वैश्वीकरण में नए प्रमुख
भागीदारों के रूप में ईभरी हैं।
हालांक्रक, भारत में वैश्वीकरण की प्रक्रक्या ने कु छ नकारात्मक प्रभाव भी ईत्पन्न क्रकए हैं-
 भारतीय ईद्योग पर वैश्वीकरण के प्रवतकू ल प्रभावों में से एक यह है क्रक आसके द्वारा भारतीय
बाजार में ववदेशी कं पवनयों और घरे लू कं पवनयों के मध्य प्रवतस्पधाथ में वृवद्ध हुइ है। कइ
पररवस्थवतयों में, आसने पूज
ाँ ी संपन्न ववशाल MNC और भारतीय कं पवनयों के बीच ऄसमान
प्रवतस्पधाथ को ज म क्रदया है।
 एक और नकारात्मक प्रभाव यह है क्रक देश में अने वाली ईन्नत ववदेशी प्रौद्योवगकी के कारण
श्रवमकों की अवश्यकता कम हो गइ है। आसके पररणामस्वरूप कइ लोगों के रोजगार पर संकट
ईत्पन्न हो गया हैं।
 ऄवधकांश प्रत्यक्ष ववदेशी वनवेश, वतथमान ईद्यमों के ऄवधग्रहण और भारतीय शेयर बाजार में
जोवखम वनवेश में क्रकया गया है।
आस प्रकार, भारतीय ऄथथव्यवस्था पर वैश्वीकरण के सकारात्मक प्रभावों के बावजूद, कु छ नकारात्मक

प्रभाव भी हैं। ऄतः, वैश्वीकरण के हावनकारक प्रभावों को कम करने के वलए एक ईपयुि नीवत के
वनमाथण की अवश्यकता है।

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8. भारतीय ऄथथ व्य वस्था पर सु धारों का प्रभाव
ईदारीकरण, वैश्वीकरण और वनजीकरण को स्वयं में समावहत क्रकये हुए नइ अर्थथक नीवत ने भारतीय

ऄथथव्यवस्था में कइ पररवतथन क्रकए हैं। 1991 के पश्चात शुरू क्रकये गए अर्थथक सुधारों ने ऄथथव्यवस्था के
वववभन्न क्षेत्रों के प्रदशथन को बेहतर बनाने में सफलता प्राि की है। नइ अर्थथक नीवत की कु छ प्रमुख
ईपलवधधयां आस प्रकार हैं:
 ईच्च वृवद्ध दर (Higher Growth Rates): नइ अर्थथक नीवत ने हाल के वषों में भारतीय
ऄथथव्यवस्था की ववकास दर को अगे बढ़ाने में एक महत्वपूणथ भूवमका वनभाइ है। राष्ट्रीय अय की
वृवद्ध दर 1990-1991 में 5 प्रवतशत से बढ़कर 2007-08 में लगभग 9 .3 प्रवतशत हो गइ। वषथ

2016-17 के दौरान वतथमान मूल्यों पर सकल राष्ट्रीय अय (GNI) 149.94 लाख करोड़ रुपये

रहने का ऄनुमान है, जो वषथ 2015-16 में 135.22 लाख करोड़ रुपये थी। यह 10.9 प्रवतशत की
वृवद्ध दशाथती है।
 औद्योवगक क्षेत्र का प्रदशथन (Performance of the Industrial Sector): अर्थथक सुधार के
पश्चात् के समय में औद्योवगक क्षेत्र का प्रदशथन सुधार-पूवथ की ऄववध से काफ़ी बेहतर है। हालााँक्रक
अर्थथक सुधारों के तत्काल बाद की ऄववध में औद्योवगक ईत्पादन की वनम्न ववकास दर देखी गयी
पर तु औद्योवगक ईत्पादन में हुइ यह मंदी एक ऄल्पाववधक घटना थी। भारत में औद्योवगक
ईत्पादन, 1994 से लेकर 2017 तक लगभग 6.59 प्रवतशत रहा, जो नवंबर 2006 में 20% के

ईच्चतम स्तर तक पहुाँच गया। दसवीं पंचवषीय योजना के दौरान आसमें 9.2 प्रवतशत की वृवद्ध दर

तथा ग्यारहवीं योजना के दौरान 7.7 प्रवतशत की वृवद्ध दर दजथ की गयी। ये त्य ईन सभी
अशंकाओं को गलत वसद्ध करते हैं वजनके ऄनुसार एक बार ऄथथव्यवस्था के खुलने पर ईस देश के
औद्योवगक क्षेत्र ऄ य देशों की प्रवतयोवगता का सामना नहीं कर पाता है।
 राष्ट्रीय अय की संरचना में पररवतथन (Changes in the Composition of National

Income): सुधारों के बाद की ऄववध में राष्ट्रीय अय की संरचना में महत्वपूणथ बदलाव पररलवक्षत

हुए। राष्ट्रीय अय में कृ वष और संबद्ध क्षेत्र का भाग 1991-92 के 29% से घटकर 2016-17 में

17% हो गया। दूसरी ओर, औद्योवगक क्षेत्र की भागीदारी, 1991-92 के 24% की दर से बढ़कर

2016-17 में लगभग 29% तक पहुाँच गयी। आसके ऄवतररि, तृतीयक या सेवा क्षेत्र का भाग

1991-92 में 44% से बढ़कर 2016-17 में लगभग 54% हो गया। आस प्रकार, सेवा क्षेत्र ने सुधार
के बाद के समय में एक महत्वपूणथ और सुसग
ं त वृवद्ध दजथ की है। यह भारतीय ऄथथव्यवस्था के
संरचनात्मक पररवतथन को दशाथता है।
 बचत और वनवेश प्रदशथन (Savings and Investment Performance): सुधारों के बाद की

ऄववध में बचत और वनवेश में ईल्लेखनीय वृवद्ध देखी गइ। सकल घरे लू बचत की दर 1990-92 के

23% से बढ़कर 2015-16 में लगभग 31% हो गइ, वनवेश की दर (GDP के मुकाबले सकल

घरे लू पूज
ं ी वनमाथण की दर) 1990-91 की 26% की दर से बढ़कर 2015-16 में 31% तक पहुाँच
गयी। नइ अर्थथक नीवत के ऄंतगथत वनजी क्षेत्र को एक प्रमुख भूवमका सौंपी गयी है।
पररणामस्वरूप, 2016-17 के ऄंतराल में, वतथमान और वस्थर मूल्यों (2011-12) पर वनजी

ऄंवतम ईपभोग व्यय (Private Final Consumption Expenditure; PFCE) की दर क्मश:

58.8% और 55.8% रही, जो 2015-16 में 58.0% और 55.0% की दर से ऄनुमावनत थी।

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 ववदेशी व्यापार (Foreign Trade): 1991 के पश्चात्, नीवतगत सुधारों के चलते भारतीय
ऄथथव्यवस्था के क्वमक ईदारीकरण ने भारतीय वनयाथतों को सामावजक और अर्थथक ववकास के
आं जन में पररवर्थतत कर क्रदया। तदोपरांत भारत एक बंद ऄथथव्यवस्था से वैवश्वक बाजार में एक
प्रमुख भागीदार बन गया। समय के साथ-साथ, वनयाथत क्षेत्र ववदेशी मुद्रा के ऄजथन का एक
महत्वपूणथ स्रोत बन गया तथा वतथमान में यह भारत की राष्ट्रीय अय में एक प्रमुख योगदानकताथ है।
 ववदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves): भुगतान संतुलन के प्रवतकू ल होने के
कारण 1990-91 के दौरान भारतीय ऄथथव्यवस्था को एक गंभीर ववदेशी मुद्रा संकट का सामना
करना पड़ा। पर तु अर्थथक सुधारों के ईपरांत भुगतान संतुलन में महत्वपूणथ सुधार देखा गया है।
पररणामस्वरूप, भारत के ववदेशी मुद्रा भंडार तीव्र वृवद्ध दजथ की गयी है। ऄगस्त, 2017 में ववदेशी

मुद्रा भंडार 393 वबवलयन ऄमरीकी डॉलर के स्तर तक पहुाँचा (वजसने क्रदसंबर, 2017 में 400
वबवलयन डॉलर का स्तर पार कर वलया है), जोक्रक जून, 1991 में मात्र 1.1 वबवलयन डॉलर था।
 प्रत्यक्ष ववदेशी वनवेश (Foreign Direct Investment): 1991 से भारत में प्रत्यक्ष ववदेशी वनवेश

में वृवद्ध हुइ है। यह 1990-91 में 1.3 वबवलयन ऄमरीकी डॉलर से बढ़कर 2016-17 में 60.08
वबवलयन ऄमरीकी डॉलर हो गया। यह ईदारीकृ त नीवत पररवतथनों तथा साथ ही एक बेहतर
वनवेश के पररवेश को प्रवतनबवबत करता है। 2014 के पश्चात् से तीन वषों में, सरकार ने 21 क्षेत्रों
में 87 FDI वनयमों को कम क्रकया है ताक्रक अर्थथक ववकास में तेजी लाइ जा सके और नौकररयों को
बढ़ावा क्रदया जा सके । कालांतर में प्रसारण, खुदरा, व्यापार और वायु पररवहन जैसे क्षेत्रों में FDI
वनयमों में व्यापक रूप से ढील दी गयी। वतथमान सरकार ने बीमा और पेंशन में ववदेशी वनवेश
सीमा को 26% से बढाकर 49% तक करने के वलए कानून में संशोधन क्रकया है। खाद्य ईत्पादों के

खुदरा व्यापार के वलए, सरकार ने 100% FDI को सशतथ ऄनुमवत दी है ताक्रक ऐसे खाद्य ईत्पादों
का वनमाथण भारत में क्रकया जा सके ।
 भारतीय कं पवनयों द्वारा ववदेशी वनवेश (Overseas Investment by Indian Companies) :
भारत से अईटबाईं ड वनवेश में, न के वल पररमाण के संदभथ में बवल्क भौगोवलक प्रसार और
भारतीय कं पवनयों के साथ क्षेत्रीय संरचना के संदभथ में भी काफी पररवतथन अया है। एक महत्वपूणथ
घटनाक्म में, विटेन ने घोषणा की क्रक भारत ईनके वलए FDI का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत बन गया

है, और 2015 में 65% की वनवेश वृवद्ध के साथ 9,000 से ऄवधक नइ और सुरवक्षत नौकररयों का
सृजन हुअ है।
 क्रकसी भी क्षेत्र में हुए सुधारों को ववलग रूप में नहीं देखा जा सकता है। वववभन्न प्रकार के सुधारों के
मध्य एक ववशाल स्तर की पूरकता है। यक्रद क्रकसी ववशेष मद/वनयाथत के ववतरण को गैर वनयंवत्रत
क्रकया जाता है, लेक्रकन ईसका ईत्पादन वनयंवत्रत है, तो सुधार का लाभ सीवमत होगा। आसके स्थान

पर, यक्रद औद्योवगक नीवत वस्तु के ईत्पादन को वनयंवत्रत करती है, तो लाभ बहुत ऄवधक होगा।
आस प्रकार, बाह्य क्षेत्र में क्रकये गए सुधार ऄपने चरम पर पहुाँच जायेंगे यक्रद ववत्तीय, राजकोषीय,
औद्योवगक और कृ वष क्षेत्रों में पयाथि सुधार क्रकये जाएाँ।

9. सु धारों का अकलन (Assessment of Reforms)


 यद्यवप सुधारों की वांछनीयता पर ऄवधकांश राजनीवतक दलों के बीच एक व्यापक सहमवत है,
तथावप सुधार कायथक्म की ववषय-वस्तु साथ ही ईनके कायाथ वयन और प्रभाव पर काफी वाद-
वववाद हुअ है।

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 अर्थथक सुधारों के बाद भारतीय ऄथथव्यवस्था की बैलेंस शीट वमवश्रत रही है। सुधारों के बाद प्राि
की गयी औसत ववकास दर सुधारों की ऄववध के पहले की औसत दर से ऄवधक रही और यह
पररवतथन मुख्यतः सेवा क्षेत्र में वृवद्ध के कारण संभव हो सका। मुद्रास्फीवत की प्रवृवत्त को वनयंवत्रत
करते हुए ववत्तीय संतुलन को प्राि करने का प्रयास क्रकया गया है। भारत, वववनमाथण और वचक्रकत्सा
सेवाओं जैसे क्षेत्रों में एक महत्वपूणथ योगदानकताथ के रूप में ईभर रहा है। वनयाथत में ऄत्यवधक
वृवद्ध, ववशेष रूप से सॉफ्टवेयर वनयाथत में और ववदेशों में कायथरत भारतीय श्रवमकों द्वारा बढ़ते
धनप्रेषण ने भारतीय ऄथथव्यवस्था में एक नए अत्मववश्वास को ईत्पन्न कर क्रदया है। आससे ववदेशी
मुद्रा भंडार में ऄभूतपूवथ वृवद्ध हुइ है तथा देश की व्यावसावयक तथा ववकासात्मक प्रवतस्पधाथ में
बढ़ोतरी हुइ है। एक सशि लोकतंत्र द्वारा समर्थथत मजबूत अर्थथक प्रदशथन, युवा जनसंख्या में
वृवद्ध, मध्यम वगथ तथा घरे लू बाजार का ववस्तार और सुववकवसत वनजी क्षेत्र के कारण भारत, एक
वस्थर ववकास आं जन और एक बड़े ईभरते बाजार (Big Emerging Market:BEM) के रूप में
ईभर रहा है।
 हालांक्रक, यह वृवद्ध समावेशी नहीं है। सबसे पहले, ऄथथव्यवस्था में हो रहा ववकास प्रत्येक स्तर पर
समान नहीं है। ईदाहरण के वलए, ईद्योग और कृ वष के ववकास में एक बड़ा ऄंतर ववद्यमान है तथा
अधारभूत संरचना, ववशेषकर ग्रामीण अधारभूत संरचना, ऄत्यंत ख़राब वस्थवत में है। दूसरा, ये
सुधार मात्र ऄथथव्यवस्था तक ही सीवमत है तथा आनका प्रसार सामावजक क्षेत्र में नहीं हो पा रहा है।
आस महत्वपूणथ क्षेत्र में सावथजवनक वनवेश की वगरावट के कारण स्वास््य, वशक्षा, सामावजक सुरक्षा,
लैंवगक समानता और पयाथवरण संरक्षण सवहत ऄ य सामावजक क्षेत्रों पर प्रवतकू ल प्रभाव पड़ा है।
सरकार द्वारा क्रकये गए ऄल्प व्यय के कारण वशक्षा क्षेत्र में ऄसमानता बढ़ रही है तथा आसकी
गुणवत्ता में वगरावट अइ है। भारतीय समाज को चार प्रमुख ववभाजनों द्वारा वचवननत क्रकया गया
है: ग्रामीण-शहरी, धनी-गरीब, नलग एवं जावत के अधार पर- जो सामावजक सेवाओं सवहत जीवन
के प्रत्येक रूप में व्याि है। प्रत्येक श्रेणी में, एक वंवचत वगथ का ऄवस्तत्व है वजसका सामावजक
सेवाओं तक पहुंच पाना ऄत्यंत करिन है और फलतः जो ववकास से वंवचत रह जाता है।
 यद्यवप स्वतंत्रता के पश्चात् ऄत्यवधक ईन्नवत हुइ है, तथावप हमारे पास ऄभी तक कोइ ऐसी प्रणाली
नहीं है जो सावथजवनक वस्तुओं तक पहुंच प्रदान करने में सक्षम हो। ईदारीकरण के पररणामस्वरूप,
राज्य सावथजवनक वस्तुओं को ईपलधध कराने की ऄपनी संवैधावनक वजम्मेदारी को तेजी से बाजार
शवियों की ओर स्थानांतररत कर रहा है। ऄतः राज्य मानवीय क्षमता का वनमाथण करने और देश
के प्रत्येक नागररक के वलए जीवन की गररमा सुवनवश्चत करने में ऄसमथथ होता जा रहा है। चूंक्रक
बाजार अर्थथक शवि के अधार पर चलता है, ऄतः आसमें अर्थथक रूप से ऄसमथथ अम लोगों और
ईपेवक्षत वगों के वहतों के बारे ववचार नहीं क्रकया जाता है। मुि बाजार की व्यवस्था ने सामावजक
क्षेत्र में अवश्यक राज्य समथथन की कमी के चलते, बड़ी पारस्पररक और ऄंतर-क्षेत्रीय ऄसमानताओं
को ज म क्रदया है। ये ऄसमानताएाँ समाज में बढ़ रहे ववरोध प्रदशथनों और क्रकसान अत्महत्याओं में
दृष्टव्य हैं। आनके कारण सामावजक ऄवस्थरता की वस्थवत ईत्पन्न हो गयी है।
 नए ववकास प्रवतमान के रूप में ववकवसत वैश्वीकरण की प्रक्रक्या ने ववशाल स्तर पर मानव
ववस्थापन, कइ समुदायों और संस्कृ वतयों के ववलोपन तथा बड़े पैमाने पर ववरोध प्रदशथनों को ज म
क्रदया है। यहााँ आं वडया और भारत का सतत ववरोधाभास है वजसमें एक ओर सुववक्रकवसत वनजी क्षेत्र
की सहायता से शीघ्रता से बढ़ रही ऄथथव्यवस्था है और दूसरी ओर संसाधनों की व्यापक कमी से
ग्रवसत एवं प्रभावी स्वतंत्रता सुवनवश्चत करने में ऄसमथथ ऄथथव्यवस्था है। यह ववरोधाभास देश के
लोकतांवत्रक ढांचे के भीतर, यह प्रश्न को पूछने को वववश करता है क्रक क्या लोकतंत्र और बाजार
व्यवस्था अपस में ऄसंगत हैं? जहााँ बाजार अम लोगों को आसके पररणाम से बाहर रखता है, वहीं
सावथभौवमक वयस्क मतावधकार पर अधाररत लोकतंत्र में सभी को अर्थथक लाभ में सवम्मवलत
क्रकया जाता है।

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 क्रफर भी, बाजार की ऄंतर्थनवहत ऄन य प्रवृवत्तयों को मात्र राज्य द्वारा जनसंख्या तथा देश के
ऄपवर्थजत वगों/क्षेत्रो में सावथजवनक वस्तुओं और सेवाओं के ववतरण करके ही सीवमत क्रकया जा
सकता है। ऐसा करने में ऄत्यवधक प्रवतस्पधी नप्रट और आलेक्ट्रॉवनक मीवडया सहायक वसद्ध हो
सकते हैं जो भारत के बहुलवादी और सहभागी लोकतंत्र को सटीक रूप से प्रदर्थशत करते हुए
समाज के वंवचत वगों पर ध्यान कें क्रद्रत करने के वलए सरकारों पर दबाव डालते हैं। ऄवधक
समावेशी ववकास को बढ़ावा देने के वलए, हमें ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए ऄवसरों का सृजन

करने, ऄवसंरचना की गुणवत्ता में सुधार लाने (दोनों, 'सॉफ्ट आंफ्रास्ट्रक्चर' - राजनीवतक, अर्थथक

नीवतयों और संस्थानों तथा 'हाडथ आं फ्रास्ट्रक्चर'- सड़कों, रे लवे और बंदरगाह) और स्वास््य एवं
वशक्षा को प्राथवमकता देकर मानव क्षमताओं में सुधार करने पर कायथ करना होगा।
 आन नचताओं को ध्यान में रखते हुए, सरकार ने पहली पीढ़ी के सुधारों के लाभकारी ईपायों को

जारी रखते हुए 1990 के अरम्भ में दूसरी पीढ़ी के सुधारों को प्रस्तुत करने का वनणथय वलया।
दूसरी पीढ़ी के सुधार समकालीन भारत के प्रमुख मुद्दों पर कें क्रद्रत हैं। आसके ऄंतगथत:
o अर्थथक सुधारों का राज्यों में ववस्तार;

o सावथजवनक-वनजी साझेदारी के माध्यम से अधारभूत ऄवसंरचना का वनमाथण;

o श्रम बाजार, कृ वष, बौवद्धक संपदा ऄवधकारों के शासन और दूरसंचार क्षेत्र में सुधार;

o कानूनी और राजनीवतक सुधारों के माध्यम से शासन में सुधार;

o वंवचतों को सशि बनाना;

o प्राथवमक वशक्षा का ववस्तार और ईच्च वशक्षा की गुणवत्ता में सुधार;

o नागररक समाज की शवियों के साथ वमलकर मानव-ववकास क्षेत्र में सुधार; और


o पयाथवरणीय संधारणीयता को प्राि करना अक्रद लक्ष्य सवम्मवलत है।
 आन सुधारों का ईद्देश्य न के वल भारत को तेजी से बढ़ती ऄथथव्यवस्था में पररवर्थतत करना है, बवल्क
ज्ञान क्षेत्र को सुदढ़ृ करते हुए ज्ञान ऄथथव्यवस्था का ववकास करना भी है। साथ ही सामावजक पूज
ं ी
का वनमाथण करके एक सशि लोकतंत्र की स्थापना और ऄंततः स्थायी मानव ववकास के ईच्चतम
स्तर के साथ मानवोवचत समाज की प्रावि भी आन सुधारों का लक्ष्य है। आन ईद्देश्यों की प्रावि हेतु ,

सरकार ने वववभन्न ररपोटथ, योजनाएं और कायथक्म प्रस्तुत क्रकए हैं, वजनका ईद्देश्य गरीबी और
बेरोजगारी को समाि करना है तथा ईस बहुप्रतीवक्षत वचन को पूरा करना है जो स्वतंत्रता के
समय जवाहरलाल नेहरू ने ऄपने 'वनयवत के साथ समझौते’ (tryst with destiny) में ऄत्यंत
वावग्मता से वपरोया था।

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भारतीय ऄथथव्यवस्था
10. औद्योगगक नीगत

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गवषय सूची
1. पररचय ____________________________________________________________________________________ 3

2. भारतीय ईद्योगों का गवकास _____________________________________________________________________ 3

2.1. औद्योगगक नीगत: एक पररचय _________________________________________________________________ 4


2.1.1. सुधार पूवथ ऄवगध में औद्योगगक नीगत व्यवस्था __________________________________________________ 5
2.1.1.1. औद्योगगक नीगत, 1948 ______________________________________________________________ 5
2.1.1.2. औद्योगगक (गवकास एवं गवगनयमन) ऄगधगनयम (IDRA), 1951 _________________________________ 6
2.1.1.3. औद्योगगक नीगत प्रस्ताव, 1956 (Industrial Policy Resolution, 1956) _________________________ 6
2.1.1.4. एकागधकार जांच अयोग (Monopolies Inquiry Commission) _______________________________ 7
2.1.1.5. औद्योगगक नीगत वक्तव्य, 1973 (Industrial Policy Statement, 1973) _________________________ 7
2.1.1.6. औद्योगगक नीगत वक्तव्य, 1977 (Industrial Policy Statement, 1977) _________________________ 7
2.1.1.7. औद्योगगक नीगत, 1980 (Industrial Policy, 1980) ________________________________________ 8
2.1.2. 1991-पूवथ औद्योगगक नीगत की प्रमुख गवशेषताएं ________________________________________________ 8
2.1.3. 1991 से पूवथ की औद्योगगक नीगत का अकलन __________________________________________________ 9

2.2. 1980 के दशक में सुधारों का अरं भ ____________________________________________________________ 10

2.3. नइ औद्योगगक नीगत, 1991 (NEW INDUSTRIAL POLICY, 1991) _____________________________________ 10


2.3.1. नइ औद्योगगक नीगत (NIP) का अकलन _____________________________________________________ 15

3. औद्योगगक गवकास के गलए सरकार द्वारा की गयी पहलें __________________________________________________ 18

3.1. गवगनवेश (DISINVESTMENT) _______________________________________________________________ 18

3.2. भारत में इज़ ऑफ़ डू आंग गबज़नेस (Ease of Doing Business in India) ________________________________ 20

3.3. इ-गबज़ पररयोजना (E-BIZ PROJECT) _________________________________________________________ 21

3.4. मेक आन आं गडया पहल ______________________________________________________________________ 21

3.5. राष्ट्रीय गवगनमाथण नीगत, 2011 _______________________________________________________________ 22

3.6. ददल्ली-मुम्बइ औद्योगगक गगलयारा_____________________________________________________________ 23

3.7. MSMES के प्रोन्नयन और गवकास के गलए ईठाये गये कदम ____________________________________________ 23


1. पररचय
 वैगिक ऄथथव्यवस्था के तेजी से पररवतिततत होते पररदृय य में गवकासशील देश गवकास और गवगवधता
के संदभथ में गवकगसत देशों को पीछे छोड़ रहे हैं। वैगिक स्तर पर, औद्योगगक क्षेत्र की संरचना
पररवतिततत हो रही प्रौद्योगगकी, दक्षता, पयाथवरण और प्रगतस्पधाथ जैसे पहलू गवकास एवं प्रदशथन के
महत्वपूणथ मानकों के ूपप में ईभर रहे हैं। अतितथक गवकास का पररवतथनशील स्वूपप नवीन खंडों
और क्षेत्रकों का मागथ प्रशस्त कर रहा है तथा औद्योगगक गवकास, प्रदशथन और प्रगतस्पधाथ के शीषथ
स्तर में देशों की रै िंकग में भी तेजी से पररवतथन अया है।
 आस संदभथ में, भारत सरकार देश में तीव्र औद्योगीकरण को बढावा देने के गलए समय-समय पर कइ
नीगतगत ईपाय और प्रोत्साहन अरं भ करती रही है। तीव्र औद्योगीकरण का लष्य गवगभ्‍न
सामागजक-अतितथक ईद्देय यों की प्रागहै है। आन ईद्देय यों में रोजगार सृजन, अतितथक गवकास, ऊण के
बोझ में कमी, प्रत्यक्ष गवदेशी गनवेश (FDI) ऄंतवाथह को बढावा देना, ईत्पादन तथा गवतरण में
अत्मगनभथरता का संवधथन, क्षेत्रीय ऄसमानता कम करना शागमल है। आसके साथ ही आनमें वतथमान
अतितथक व्यवस्था में गवगवधता लाना एवं आसका अधुगनकीकरण करना भी सगम्मगलत है। हालािदक
ये ईद्देय य के वल आ्‍हीं बबदुओं तक सीगमत नहीं हैं।
2. भारतीय ईद्योगों का गवकास
 भारतीय ऄथथव्यवस्था के सकल घरे लू ईत्पाद में ईद्योगों का योगदान लगभग 29% है (2016-17
में चालू मूल्यों पर 29.02% GVA तथा 2011-12 के मूल्यों पर 31.12%)। हालािदक यह समग्र
ूपप से गवकासशील देशों के औसत योगदान 35 प्रगतशत से कम है।
 1950 से 1980 की ऄवगध के दौरान भारतीय ईद्योग की ईत्पादकता का प्रदशथन धीमा एवं
गनम्नस्तरीय रहा। गवशेषकर 1970 के दशक के ईत्तराधथ की नीगतगत व्यवस्था के ऄंतगथत
सावथजगनक क्षेत्र को ऄगधक प्राथगमकता दी गइ, गनजी गनवेश पर व्यापक गनयंत्रण रखा गया,
कठोर श्रम कानून लाये गए तथा ऄत्यगधक संरक्षणात्मक व्यापार नीगत का पालन दकया गया।
आसके ऄगतररक्त औद्योगगक नीगत व्यवस्था के ईद्देय यों में लघु ईद्योगों तथा क्षेत्रीय संतल
ु न को
प्रोत्सागहत करना भी सगम्मगलत था।
 1960 के दशक के मध्य तक, नीगतगत साधनों का लष्य औद्योगगक क्षेत्र के भीतर ईद्देय यपूणथ
गवगवधीकरण (purposive diversification) और सावथजगनक गनवेश में वृगि करना था।
कालांतर में 1960 के दशक के ईत्तराधथ के दौरान अयात-प्रगतस्थापन व्यवस्था स्पष्ट ूपप से सुदढृ
हुइ तथा घरे लू गवगनयामकीय संरचना सशक्त हुइ। आस ऄवगध में वृगि-दर गगरकर 4% प्रगतवषथ रह
गइ जोदक 1950 से 1965 की ऄवगध के दौरान 6.1% प्रगतवषथ थी।
 1980 का दशक घरे लू गवगनयमन के साथ ही कु छ प्रयोगों का भी साक्षी बना। आन प्रयोगों ने
ईत्पादकता वृगि के ूपप में अकषथक लाभांश ददया तथा वृगि दर बढकर 7 प्रगतशत प्रगत वषथ हो
गइ। 1991 में, गंभीर भुगतान संतल
ु न संकट के प्रत्युत्तर में, भारत ने ऄपनी लम्बे समय से चली
अ रही ऄ्‍तः ऄगभमुखीकरण (inward orientation) की नीगत में एकाएक पररवतथन कर ददया।
आसके ईपरांत ऄनुवती सुधारों के माध्यम से नीगतगत व्यवस्था को ऄथथपण
ू थ ढंग से बाजार
ऄगभमुखीकरण, ऄगवगनयमन, और ईदारीकरण की ददशा में मोड़ ददया गया। आसके साथ ही
भारतीय ईद्योगों ने महत्त्वपूणथ ूपप से पुनगथरठत हो घरे लू तथा गवदेशी प्रगतस्पधाथ में हुइ वृगि का
भी ईत्तर ददया। हालांदक बाजार ऄगभमुखीकरण से प्रेररत नवीन और ईभरती हुइ नीगतगत
व्यवस्था में तीव्रता से समायोगजत होने के दौरान गनम्नस्तरीय ऄवसंरचना, बड़े पैमाने पर सुधारों
से वंगचत सावथजगनक क्षेत्र, बैंिंकग क्षेत्र में धीमा सुधार, कठोर श्रम कानून तथा ऄ्‍य बाधाएि ईत्पन्न
हुइ।

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2.1. औद्योगगक नीगत: एक पररचय

 सुधार पूवथ औद्योगगक नीगत की व्यवस्था, गवकास की ऄवसंरचनात्मक अवय यकताओं की पूतितत तथा
एक गमगश्रत ऄथथव्यवस्था फ्रेमवकथ के तहत औद्योगगक गवकास की प्रदिया को ददशा प्रदान करने के
गलए व्यापक पैमाने पर सावथजगनक क्षेत्रक के गवकास पर गनभथर थी। आस हेतु राज्य द्वारा जहाि
औद्योगगक ईत्पादन के कु छ रणनीगतक क्षेत्रकों को अरगक्षत कर गलया गया वहीं कु छ क्षेत्रों यथा
मशीन ईपकरणों, ऄलौह धातुओं, ईवथरक अदद में राज्य ने ऄग्रणी ईद्यमी की भूगमका गनभाइ।
अरगक्षत क्षेत्रकों में लौह एवं आस्पात, कोयला, पररवहन, गऺवद्युत, खगनज तेल, परमाणु उजाथ, शस्त्र
एवं गोला-बाूपद और तथा रक्षा ईपकरणों से संबि वस्तुएं थी। हालािदक आसके बाद भी गनजी क्षेत्र
से गवशेष ूपप से ईपभोक्ता वस्तुओं की अपूतितत करने तथा लघु ईद्योग क्षेत्र के गनमाथण में महत्वपूणथ
भूगमका गनभाने की ऄपेक्षा की गइ।
 औद्योगगक लाआसेंस व्यवस्था गनजी क्षेत्र पर गनयंत्रण का प्रमुख साधन थी गजसके ऄंतगथत नवीन
आकाआयों में गनवेश और वतथमान आकाआयों की क्षमता के और ऄगधक गवस्तार के गलए कें र स सरकार
की ऄनुमगत की अवय यकता होती थी। लाआसेंस व्यवस्था द्वारा प्रौद्योगगकी, ईत्पाद गमश्रण
(अईटपुट गमक्स), क्षमता ऄवगस्थगत (कै पेगसटी लोके शन) और सामग्री के अयात को भी गनयंगत्रत
दकया जाता था। बड़े औद्योगगक घरानों को एकागधकार एवं प्रगतबंगधत व्यापार व्यवहार (MRTP)
ऄगधगनयम के ऄंतगथत गनवेश या गवस्तार के गलए ऄलग से ऄनुमगत की अवय यकता होती थी तादक
अतितथक शगक्त का संकेंर सण रोका जा सके । ईवथरक, सीमेंट, एल्यूगमगनयम, पेट्रोगलयम और
फामाथस्यूरटकल्स जैसे ईद्योगों में मूल्य और गवतरण गनयंत्रण भी था। आसके साथ ही बड़ी औद्योगगक
आकाआयों से प्रगतस्पधाथ से लघु औद्योगगक आकाआयों की रक्षा करने के ईपाय के ूपप में लगभग 800
वस्तुएं लघु औद्योगगक आकाआयों द्वारा ईत्पादन हेतु अरगक्षत कर दी गयीं थी। ईस दौर में
औद्योगगक पुनगथठन और कं पगनयों के बाहर गनकलने (एगजजट) या बंद होने मे भी बाधाएि गवद्यमान
थी।
 अयात प्रशुल्क के दृगिकोण से भारत गवय व में सवाथगधक अयात प्रशुल्कों वाले देशों में था। 200%
से ऄगधक प्रशुल्क दर एक सामा्‍य पररघटना थी तथा यह ऄत्यगधक ऄव्यवगस्थत भी थी।
गवगनतितमत ईपभोक्ता वस्तुओं का अयात पूरी तरह से प्रगतबंगधत था। बाकी के गलए, के वल कु छ
वस्तुएं मुक्त ूपप से अयात की जा सकती थी और ऄगधकांश वस्तुओं के गलए जहां घरे लू
स्थानापन्न का ईत्पादन दकया जा रहा था, अयात मात्र अयात लाआसेंस के साथ ही था। आन
लाआसेंसों को जारी करने का मापदंड पारदशी नहीं था, गवलंब अम बात थी तथा भ्रिाचार
ऄपररहायथ हो गया था। आसके साथ ही गवदेशी गनवेश के प्रगत नीगत पूणथतः प्रगतबंधात्मक थी, जो
औद्योगगक नीगत का सामा्‍य संरक्षणवादी बल प्रगतबबगबत करती थी।
 1950 से 1980 की ऄवगध में 5.5 प्रगतशत प्रगत वषथ की दर से गस्थर औद्योगगक गवकास हुअ।
हालांदक, आस समयावगध के दौरान औद्योगगक संरचना में महत्वपूणथ गवगवधीकरण देखने को गमला
पर्‍तु ऄनुमान के ऄनुसार 1960 से 1980 की ऄवगध के दौरान सकल कारक ईत्पादकता (यह
दक्षता की माप है गजसका श्रम एवं पूज
ं ी के साथ गवगनमाथण क्षेत्र में मूल्य संवधथन ईत्प्‍न करने हेतु
ईपयोग दकया जाता है) में गस्थरता या गगरावट देखने को गमली। ऄत्यगधक संरक्षणवादी नीगत
व्यवस्था के पररणामस्वूपप ई्च लागत वाली औद्योगगक संरचना ने औद्योगगक क्षेत्र में गनयाथत-
गवरोधी पूवाथग्रह का गनमाथण दकया। प्रगतस्पधाथत्मकता के आस क्षरण के दुष्पररणाम गवगनतितमत
वस्तुओं के वैगिक गनयाथत में भारत की गहस्सेदारी में अइ गचरकागलक गगरावट के ूपप में देखे गए
जो 1950 में 1 प्रगतशत से गगरकर 1980 के दशक में 0.4 प्रगतशत रह गइ।

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2.1.1. सु धार पू वथ ऄवगध में औद्योगगक नीगत व्य वस्था

 भारत में औद्योगगक गवकास 1948 में ऄगस्तत्व में अने वाली लाआसेंबसग नीगतयों से गनयंगत्रत था।

1956 के प्रथम व्यापक औद्योगगक नीगत प्रस्ताव में ईद्योगों को तीन श्रेगणयों में वगीकृ त दकया

गया। आस प्रस्ताव में राज्य को औद्योगगक गवकास में प्राथगमक भूगमका दी गइ और गनजी क्षेत्र से
राज्य के प्रयासों का पूरक बनने की अशा की गइ। तदुपरांत 1970 के औद्योगगक नीगत प्रस्ताव ने

ईद्योगों को चार श्रेगणयों में वगीकृ त दकया: प्रमुख या कोर क्षेत्र (core sector), भारी गनवेश क्षेत्र

(heavy investment sector), मध्यम क्षेत्र (middle sector) और लाआसेंस-मुक्त क्षेत्र (de-

licensed sector)। आनमें से पहली तीन श्रेगणयां बड़े व्यापाररक घरानों और गवदेशी कं पगनयों

तक सीगमत रहीं।
 आसके ईपरांत 1973 के औद्योगगक नीगत वक्तव्य में लघु और मध्यम ईद्यमों (SMEs) की संवृगि

को वरीयता और बल ददया गया तथा 1977 के औद्योगगक नीगत वक्तव्य ने लघु, सूष्म और कु टीर

ईद्योगों के गलए बढी हुइ भूगमका के साथ गवकें र सीकरण को बढावा ददया।
 कालांतर में 1980 के औद्योगगक नीगत गववरण ने घरे लू बाजार में प्रगतयोगगता को बढावा देने,

तकनीकी ईन्नयन और ईद्योगों के अधुगनकीकरण पर ऄत्यगधक बल ददया।

2.1.1.1. औद्योगगक नीगत, 1948

पहला महत्वपूणथ औद्योगगक नीगत वक्तव्य; औद्योगगक नीगत प्रस्ताव, 1948 में ददया गया। आसमें मुख्य

ूपप से गमगश्रत ऄथथव्यवस्था के अरम्भ पर बल ददया गया। आसके द्वारा, भारत की ऄथथव्यवस्था के

गवकास में गनजी और सावथजगनक क्षेत्रक को महत्वपूणथ घटक के ूपप में स्वीकार दकया गया। आस नीगत के
ऄंतगथत ईद्योगों को चार व्यापक श्रेगणयों में गवभागजत दकया गया:
 राज्य के ऄन्‍य एकागधकार वाले ईद्योग: आसमें परमाणु उजाथ, रे लवे तथा हगथयार एवं गोला-

बाूपद-गनमाथण गगतगवगधयों में संलजन ईद्योग सगम्मगलत थे।


 सरकारी गनयंत्रण वाले ईद्योग: आसमें राष्ट्रीय महत्व के ईद्योग सगम्मगलत थे ऄतः आ्‍हें पंजीकृ त
दकए जाने की अवय यकता थी। आस श्रेणी में ऐसे 18 ईद्योग सगम्मगलत दकये गए। ईदाहरण के गलए

ईवथरक, भारी रसायन, भारी मशीनरी आत्यादद।

 गमगश्रत क्षेत्र में ईद्योग: आसमें वे ईद्योग सगम्मगलत थे गजनमें गनजी और सावथजगनक क्षेत्र, दोनों को

पररचालन की ऄनुमगत दी गइ थी। आसके ऄंतगथत दकसी भी मौजूदा गनजी ईपिम का ऄगधग्रहण
करने के गलए सरकार को गस्थगत की समीक्षा करने की ऄनुमगत थी।
 गनजी क्षेत्र के ऄंतगथत ईद्योग: ईपरोक्त में से दकसी भी श्रेणी के ऄंतगथत न अने वाले ईद्योग आस
श्रेणी में अते थे।

औद्योगगक नीगत,1948 ने सावथजगनक क्षेत्र को पररचालन हेतु एक गवशाल क्षेत्र प्रदान दकया। सरकार ने

औद्योगगक गवकास के ईत्प्रेरक एजेंट की भूगमका ग्रहण की तथा आस प्रस्ताव के माध्यम से लघु और
कु टीर ईद्योगों को ऄनुपरू क भूगमका प्रदान की गयी।

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2.1.1.2. औद्योगगक (गवकास एवं गवगनयमन) ऄगधगनयम (IDRA), 1951

 IDRA,1951; औद्योगगक गवगनयामकीय फ्रेमवकथ में सवाथगधक महत्त्वपूणथ गवधान है। आसने सरकार
को गवगभन्न तरीकों से ईद्योगों का गवगनयमन करने की शगक्त प्रदान की। आसके मुख्य साधन, क्षमता
(तथा आसके माध्यम से ईत्पादन) का गवगनयमन और मूल्य गनयंगत्रत करने की शगक्त थी। आसके
ऄंतगथत ऐसे ईद्योगों को ऄनुसूगचत दकया गया गजनके गलए लाआसेंस की अवय यकता थी। यहां तक
दक आन ईद्योगों के गवस्तार के गलए भी सरकार की पूवथ ऄनुमगत की अवय यकता होती थी ऄथाथत्
ईत्पादन क्षमता ऄत्यगधक गवगनयगमत थी। आसके साथ ही सरकार को ऄनुसूगचत ईद्योगों के
ईत्पादों का गवतरण करने और मूल्यों को गनयंगत्रत करने की शगक्त दी गइ। IDR ऄगधगनयम द्वारा
सरकार को व्यापक शगक्तयां प्रदान की गयीं पररणाम नौकरशाही द्वारा देश के औद्योगगक गवकास
पर लगभग पूणथ गनयंत्रण के ूपप में सामने अया।
IDRA,1951 के मुख्य प्रावधान थे:
 कें र स सरकार के स्वागमत्वाधीन ईपिमों के ऄगतररक्त, ऄगधगनयम के प्रभावी होने के समय कायथरत
सभी ईपिमों के गलए गनर्ददष्ट प्रागधकारी के कायाथलय में पंजीकरण कराना ऄगनवायथ था।
 के ्‍र स सरकार के ऄगतररक्त दकसी को भी कोइ नवीन औद्योगगक ईपिम स्थागपत करने की ऄनुमगत
नहीं थी; गसवाय आसके दक वह के वल कें र स सरकार द्वारा आस गनगमत्त जारी दकए गए लाआसेंस के
ऄंतगथत हो।”
 आस प्रकार का लाआसेंस या ऄनुमगत गवगभन्न प्रकार की शतें गनधाथररत करता था, यथा ऄवगस्थगत
तथा अकार एवं प्रयुक्त होने वाली तकनीकों के संबंध में ्‍यूनतम मानक; गज्‍हें कें र स सरकार द्वारा
ऄनुमोददत दकया जा सकता था।
 वतथमान औद्योगगक ईपिम के 'पयाथहै गवस्तार' की गस्थगत में भी ऐसे लाआसेंस और मंजूरी की
अवय यकता होती थी।

2.1.1.3. औद्योगगक नीगत प्रस्ताव, 1956 (Industrial Policy Resolution, 1956)


 1948 के प्रस्ताव को ऄपनाने के पचात्, भारत में औद्योगगक क्षेत्र में महत्वपूणथ पररवतथन दजथ दकए
गए। आस दौरान अतितथक गनयोजन ने एक संगरठत स्वरुप धारण कर गलया था तथा प्रथम पंचवषीय
योजना पूणथ हो चुकी थी। आसके साथ ही संसद द्वारा सामागजक और अतितथक नीगत के मूल ईद्देय य के
ूपप में समाजवादी स्वरुप को स्वीकार कर गलया गया। आन महत्वपूणथ घटनािमों के िम में
औद्योगगक नीगत के एक नवीन वक्तव्य की अवय यकता का ऄनुभव दकया गया। आसके
पररणामस्वूपप ऄप्रैल 1956 में 1948 के प्रस्ताव के स्थान पर एक दूसरा औद्योगगक नीगत प्रस्ताव
ऄपनाया गया। 1956 के प्रस्ताव के महत्वपूणथ प्रावधान गनम्नगलगखत थे:
 ईद्योगों का नया वगीकरण : IPR, 1956 ने ईद्योगों को गनम्नगलगखत तीन श्रेगणयों में गवभागजत
दकया:
o ऄनुसच
ू ी A के ईद्योग: ‘राज्य या सरकार के एकागधकार वाले ईद्योग’। आसमें 17 ईद्योग
सगम्मगलत थे। गनजी क्षेत्र को आन ईद्योगों में पररचालन की ऄनुमगत के वल ईसी गस्थगत में
प्रदान की गइ, जब राष्ट्र गहत में ऐसा करना अवय यक हो।
o ऄनुसच
ू ी B के ईद्योग: ईद्योगों की आस श्रेणी में, राज्य को नइ आकाआयां स्थागपत करने की
ऄनुमगत दी गइ, लेदकन गनजी क्षेत्र को आकाआयां स्थागपत करने या वतथमान आकाआयों का
गवस्तार करने से मना नहीं दकया गया। ईदाहरण के गलए, रासायगनक ईद्योग, ईवथरक,
बसथेरटक, रबर, एल्यूमीगनयम अदद।
o ऄनुसच
ू ी C के ईद्योग: ईपरोक्त श्रेगणयों में सगम्मगलत न होने वाले ईद्योगों को ऄनुसच
ू ी C के
ईद्योग कहा गया। आस प्रकार IPR, 1956 के ऄंतगथत सावथजगनक और गनजी क्षेत्र के ईद्योगों के
पारस्पररक ऄगस्तत्व पर बल ददया गया।

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 लघु और कु टीर ईद्योगों को प्रोत्साहन: लघु ईद्योग क्षेत्र को सशक्त बनाने के गलए, सस्ते ऊण,
सगससडी, अरक्षण अदद के ूपप में सहायक ईपाय सुझाए गए थे।
 क्षेत्रीय ऄसमानताओं में कमी लाने पर बल: गपछड़े क्षेत्रों में ईद्योगों की स्थापना हेतु गवत्तीय
ररयायतें दी गईं। आन क्षेत्रों का गवकास करने के गलए सावथजगनक क्षेत्र के ईद्यमों को ऄगधक भूगमका
प्रदान की गइ।
 IPR, 1956 का मूलाधार यह था दक राज्य को औद्योगगक गवकास के गलए प्राथगमक भूगमका दी
जाए क्योंदक पूज
ं ी दुलथभ थी और ईद्यमशीलता सशक्त नहीं थी। ऐसे में सावथजगनक क्षेत्र का
ऄत्यगधक गवस्तार दकया गया तादक वह ऄथथव्यवस्था का गवस्तार कर सके ।

2.1.1.4. एकागधकार जां च अयोग (Monopolies Inquiry Commission)


 ऄप्रैल 1964 में, भारत सरकार ने “गनजी क्षेत्र में अतितथक शगक्त की संके्‍र सण के ऄगस्तत्व और प्रभाव
की जांच करने के गलए’’ एकागधकार जांच अयोग (Monopolies Inquiry Commission) की
गनयुगक्त की। आस अयोग द्वारा ईद्योग के क्षेत्र में अतितथक शगक्त संके्‍र सण की जांच की गयी। आस
अयोग की ऄनुशस
ं ाओं के अधार पर, एकागधकार तथा प्रगतबंगधत व्यापार व्यवहार ऄगधगनयम
(MRTP ऄगधगनयम), 1969 ऄगधगनयगमत दकया गया। आस ऄगधगनयम का ईद्देय य ऐसी सभी
औद्योगगक आकाआयों की स्थापना और गवस्तार को गनयंगत्रत करना था, गजनके पास एक गवशेष
सीमा से ऄगधक पररसंपगत्त थी।

2.1.1.5. औद्योगगक नीगत वक्तव्य, 1973 (Industrial Policy Statement, 1973)


 1973 के औद्योगगक नीगत वक्तव्य द्वारा बड़े व्यापाररक घरानों द्वारा प्रारम्भ दकए जाने वाले
ईद्योगों की सूची तैयार की गयी तादक लघु ईद्योगों का प्रगतस्पधी प्रयास प्रभागवत न हो। आसमें
सभी ईद्योगों में सक्षम लघु और मध्यम ईद्यगमयों के प्रवेश को प्रोत्सागहत दकया गया। आसके साथ
ही बड़े ईद्योगों को ग्रामीण और गपछड़े क्षेत्रों को गवकगसत करने और असपास लघु ईद्योगों का
गवकास सक्षम बनाने के दृगिकोण के साथ पररचालन अरं भ करने की ऄनुमगत प्रदान की गइ।

2.1.1.6. औद्योगगक नीगत वक्तव्य, 1977 (Industrial Policy Statement, 1977)


आस नीगत के मुख्य तत्व गनम्नगलगखत थेः
 लघु ईद्योग क्षेत्रक का गवकासः आस नइ औद्योगगक नीगत ने मुख्य ूपप से छोटे और कु टीर ईद्योगों के
प्रभावी प्रोन्नयन पर बल ददया। आसके साथ ही सरकार द्वारा लघु ईद्योग क्षेत्रक को प्रोत्सागहत करने
के गलए व्यापक प्रसार और सहायक ईपायों को भी ऄपनाया गया। आसके ऄंतगथत लघु ईद्योग क्षेत्रक
को 3 श्रेगणयों में वगीकृ त दकया गया था: कु टीर और घरे लू ईद्योग, जो स्व-रोजगार प्रदान करते हैं;
छोटे क्षेत्रक (tiny sector) तथा लघु ईद्योग (small-scale industries)। वगीकरण का ईद्देय य
प्रत्येक श्रेणी के गलए गवशेष ूपप से नीगतगत ईपाय तैयार करना था। आस प्रकार नीगत वक्तव्य में
लघु पैमाने के क्षेत्र में ऄन्‍य गनमाथण के गलए अरगक्षत वस्तुओं की सूची में ऄत्यगधक गवस्तार दकया
गया।
 बड़े व्यापाररक घरानों के प्रगत प्रगतबंगधत दृगिकोणः वृहद् ईद्यम क्षेत्रक को अधारभूत, पूज
ं ीगत
वस्तुएं और ई्च तकनीकी ईद्योगों में ऄनुमगत दी गइ थी। नीगत में आस बात पर बल ददया गया दक
गवत्तीय संस्थानों से प्राहै धन छोटे क्षेत्रक के गवकास के गलए बड़े पैमाने पर ईपलसध कराया जाना
चागहए तथा वृहद् ईद्यमों को नइ पररयोजनाओं या वतथमान व्यापार के गवस्तार के गवत्तपोषण हेतु
अंतररक गवत्त स्त्रोतों का सृजन करना चागहए।
 सावथजगनक क्षेत्रक की भूगमका का गवस्तारः आस औद्योगगक नीगत के ऄनुसार सावथजगनक क्षेत्रक का
योगदान न के वल सामररक क्षेत्रों में होगा बगल्क ईपभोक्ता के गलए अवय यक अपूतितत को बनाए
रखने में गस्थरता प्रदान करने वाले कारक के ूपप में भी होगा।
आसके ऄगतररक्त, नीगत वक्तव्य में गवदेशी पूज
ं ी के प्रगत प्रगतबंधात्मक नीगत को दोहराया गया था गजसके
ऄंतगथत स्वागमत्व और प्रभावी गनयंत्रण में भारतीय दावेदारी ऄगधक होनी चागहए।

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2.1.1.7. औद्योगगक नीगत, 1980 (Industrial Policy, 1980)

 वषथ 1980 की औद्योगगक नीगत में आस बात पर बल ददया गया था दक सावथजगनक क्षेत्रक, अतितथक
अधारभूत संरचना का अधार है, गजसके कारण आसकी ऄगधक गविसनीयता, बड़े गनवेश की
अवय यकता और अतितथक गवकास के गलए महत्वपूणथ पररयोजनाओं की लंबी गनमाणथपूवथ तैयारी
ऄवगध (longer gestation period) होना है। आस नीगत की महत्वपूणथ गवशेषताएं आस प्रकार थी:
o सावथजगनक क्षेत्रक का प्रभावी प्रबंधनः आस नीगत में सावथजगनक क्षेत्रक के ईपिमों की दक्षता के
पुनः प्रवतथन (revival) पर बल ददया गया।
o औद्योगगक लाआसेंबसग का ईदारीकरणः आस नीगत वक्तव्य में MRTP और FERA के ऄंतगथत
मौजूदा आकाआयों की क्षमता बढाने के गलए स्वतः ऄनुमोदन के संदभथ में लाआसेंबसग में
ईदारवादी ईपाय प्रदान दकए गए। MRTP के ऄंतगथत पररसंपगत्त सीमा का गवस्तार कर ददया
गया। आसके साथ ही बड़ी संख्या में ईद्योगों को लाआसेंबसग से छू ट प्रदान की गइ। आस नीगत में
स्थूल वगीकरण की ऄवधारणा प्रस्तुत की गइ तादक नए लाआसेंस के गलए अवेदन दकए गबना
ईत्पाद गमश्रण को तय करने के गलए ईद्योगों को लचीलापन प्रदान दकया जा सके ।
o लघु-स्तरीय ईद्योगों को पुनपथररभागषत करनाः आस क्षेत्रक के गवकास को बढावा देने के गलए
लघु ईद्योगों को पररभागषत करने के गलए तय गनवेश की सीमा बढा दी गइ। छोटे क्षेत्रकों
(tiny sectors) के मामले में गनवेश की सीमा बढाकर 1 लाख रुपये; लघु ईद्योग की आकाइ के
गलए गनवेश की सीमा 10 लाख रुपये से बढाकर 20 लाख तक तथा सहायक ईद्योगों
(ancillaries) की आकाइयों के गलए गनवेश सीमा 15 लाख रुपये से बढाकर 25 लाख रुपये
कर दी गइ थी।
 औद्योगगक नीगत, 1980 ने घरे लू बाजार में प्रगतस्पधाथ को बढावा देने, तकनीकी ईन्नयन और
अधुगनकीकरण की अवय यकता पर ध्यान ददया। आसके साथ ही आस नीगत के तहत तेजी से बढते
प्रगतस्पधी गनयाथत-अधाररत ईद्योगों की तथा ई्च -प्रौद्योगगकी वाले क्षेत्रों में गवदेशी गनवेश को
प्रोत्सागहत करने की नींव रखी गयी।

2.1.2. 1991-पू वथ औद्योगगक नीगत की प्रमु ख गवशे ष ताएं

 भारतीय ईद्योगों को संरक्षणः 1991 से पूवथ की नीगत में ईत्पादों के अयात पर अंगशक प्रगतबंध
लगाकर तथा ई्च अयात शुल्क द्वारा स्थानीय ईद्योगों को ऄंतराथष्ट्रीय प्रगतयोगगता से संरक्षण
प्रदान दकया गया। अयात संरक्षण का ईद्देय य भारतीय ईद्योगों को गवगभन्न ईत्पादों के गनमाथण के
गलए प्रोत्सागहत करना था। आन सभी ईत्पादों के गलए एक तैयार बाजार भारत में पहले से ही
गवद्यमान था।
 अयात-प्रगतस्थापन नीगतः सरकार द्वारा ऄपनी अयात नीगत का प्रयोग स्थानीय ईद्योगों के बेहतर
गवकास के गलए दकया गया। स्वतंत्रता के पचात् प्रारं भ के कु छ वषों को छोड़कर, देश गवदेशी मुर सा
की कमी का सामना कर रहा था, आसगलए दुलभ
थ गवदेशी मुर सा को बचाने के गलए, अयात-
प्रगतस्थापन नीगत अरं भ की गइ थी। आस प्रकार सरकार ने अयात की जाने वाली वस्तुओं के
स्वदेशी ईत्पादन को प्रोत्सागहत दकया।
 गवत्तीय ऄवसंरचनाः ईद्योगों के गलए अवय यक गवत्तीय अधारभूत संरचना प्रदान करने हेतु
सरकार ने कइ गवकास बैंकों की स्थापना की। गवकास बैंक का प्रमुख कायथ मध्यम तथा दीघथकागलक
गनवेश प्रदान करना है। वे ईद्यम गवकास को बढावा देने में भी एक प्रमुख भूगमका गनभाते हैं। आस
ईद्देय य के साथ, सरकार ने 1948 में भारतीय औद्योगगक गवत्त गनगम (IFCI), 1955 में आं डगस्ट्रयल
िे गडट एंड आं वस्े टमेंट कॉरपोरे शन ऑफ आं गडया (ICICI), 1964 में भारतीय औद्योगगक गवकास बैंक
(IDBI), 1971 में आं डगस्ट्रयल ररक्‍स्ट्रक्शन कॉरपोरे शन ऑफ आं गडया, 1963 में यूगनट ट्रस्ट ऑफ
आं गडया (UTI) तथा भारतीय जीवन बीमा गनगम (LIC) की स्थापना की।

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 भारतीय ईद्योगों पर गनयंत्रणः भारतीय ईद्योगों को औद्योगगक लाआसेंबसग, MRTP ऄगधगनयम,

1969 आत्यादद जैसे कानूनों के माध्यम से ऄत्यगधक गवगनयगमत दकया गया। आन कानूनों के माध्यम

से देश में लगभग सभी प्रकार के ईद्योगों के ईत्पादन, गवस्तार और मूल्य गनधाथरण को प्रगतबंगधत
दकया गया।
 ं ी का गवगनयमन: गवदेशी मुर सा
गवदेशी मुर सा गवगनयमन ऄगधगनयम (FERA) के ऄंतगथत गवदेशी पूज

गवगनयमन ऄगधगनयम (FERA) द्वारा दकसी कं पनी में गवदेशी गनवेश को 40 प्रगतशत तक सीगमत
कर ददया गया। आससे गवदेशी सहयोग प्राहै कं पगनयों का गनयंत्रण भी भारतीयों के हाथों में
सुगनगचत हो गया। आसके साथ ही गवदेशी गनवेशकों द्वारा दकए गए तकनीकी सहयोग और गवदेशी
मुर सा के प्रत्यावतथन पर भी प्रगतबंध लगाये गए।
 लघु ईद्योगों को प्रोत्साहनः सरकार ने लघु ईद्योगों (SSI) के गवकास के गलए गवगभन्न सहायता

ईपाय ऄपनाकर ई्‍हें प्रोत्सागहत दकया। नीगतगत ईपायों के ऄंतगथत ऊण, गवपणन, प्रौद्योगगकी,

ईद्यगमता गवकास और राजकोषीय, गवत्तीय और अधारभूत संरचना संबंधी सहायता जैसी लघु
ईद्योगों की अधारभूत अवय यकताओं को संबोगधत दकया गया।
 सावथजगनक क्षेत्रक पर बल: ईद्योगों को अधारभूत संरचना और बुगनयादी सुगवधाएं प्रदान करने
हेतु सरकार ने ऄत्यगधक गनवेश दकया। यह गनवेश रागश गवद्युत ईत्पादन, पूज
ं ीगत वस्तुओं, भारी

मशीनरी, बैंिंकग, दूरसंचार अदद जैसे प्रमुख क्षेत्रों में सावथजगनक क्षेत्रक के ईद्यम स्थागपत करके
प्राहै की गइ।

2.1.3. 1991 से पू वथ की औद्योगगक नीगत का अकलन

 वषथ 1991 से पूवथ की औद्योगगक नीगतयों ने देश में तीव्र औद्योगगक गवकास के ऄनुकूल
पररगस्थगतयां गनतितमत की तथा अधारभूत संरचना और बुगनयादी ईद्योगों की स्थापना में सहायता
प्रदान की। बड़ी संख्या में वस्तुओं पर अत्मगनभथरता के साथ एक गवगवध औद्योगगक संरचना प्राहै
हुइ थी। स्वतंत्रता के समय कु ल औद्योगगक ईत्पादन का लगभग अधा गहस्सा ईपभोक्ता वस्तु
ईद्योगों का था। 1991 में ऐसे ईद्योगों का योगदान के वल 20 प्रगतशत था। आसके गवपरीत,

पूंजीगत वस्तुओं का ईत्पादन कु ल औद्योगगक ईत्पादन का 4 प्रगतशत से भी कम था। 1991 में यह

बढकर 24 प्रगतशत तक पहुंच गया था।


 आस दौरान नए ईद्योगों के गवगवध वगों में औद्योगगक गनवेश दकया गया एवं अधुगनक प्रबंधन
तकनीक ऄपनाइ गयी। सरकार की समथथन प्रणाली के कारण ईद्यगमयों का एक नया वगथ ईभरकर
सामने अया और देश के ऄगधकांश गहस्सों में बड़ी संख्या में नए औद्योगगक कें र स गवकगसत दकए गए।
कु छ वषों में सरकार ने ईद्योगों के गलए अवय यक बुगनयादी ढांचे का गनमाथण दकया और गवद्युत,

संचार, सड़कों अदद की अवय यक सुगवधाएं प्रदान करने के गलए बड़े पैमाने पर गनवेश दकया।

ईद्यगमता गवकास में सहयोग करने, ईद्योगों के गलए गवत्त ईपलसध कराने और ईद्योगों के गलए
अवय यक गवगवध कौशलों के गवकास हेतु बड़ी संख्या में संस्थानों को प्रोन्नत दकया गया।
 हालांदक, औद्योगगक नीगत के कायाथ्‍वयन में बहुत सारी कगमयां रह गईं। आस सम्ब्‍ध में यह तकथ
ददया जाता है दक औद्योगगक लाआसेंबसग वाली व्यवस्था ने ऄक्षमता और ई्च लागत वाली
ऄथथव्यवस्था को बढावा ददया जबदक वास्तव में योजना की प्राथगमकताओं और लष्यों के ऄनुसार
लाआसेंबसग द्वारा क्षमता गनमाथण सुगनगचत होनी चागहए थी। आसके साथ ही लाआसेंबसग
प्रागधकरणों में गनगहत ऄत्यगधक गववेकागधकारों के कारण यह तंत्र भ्रिाचार और रें ट-सीिंकग

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(rent-seeking) ऄथथव्यवस्था को बढावा देने वाला बनकर रह गया। आसके पररणामस्वूपप,
ऄथथव्यवस्था में नए ईद्यमों का प्रवेश बागधत हुअ तथा प्रगतस्पधाथ प्रगतकू ल ूपप से प्रभागवत हुइ।
ऄपने मूल तार्दकक अधार के गवपरीत, लाआलेंबसग प्रणाली में बड़े ईद्यमों को समथथन गमला तथा
गपछड़े क्षेत्रों के साथ भेदभाव हुअ। आसके साथ ही सरकार ने 1970, 1973 और 1980 की
औद्योगगक नीगतयों में कइ ईदारीकरण ईपायों की घोषणा की। हालांदक, 1991 में औद्योगगक
नीगत में ईदारीकरण के प्रभावी प्रयास दकए गए।

2.2. 1980 के दशक में सु धारों का अरं भ

 आन सुधारों का मुख्य ध्यान औद्योगगक ईत्पादकता में सुधार लाने पर था। सुधारों की कु छ
महत्वपूणथ गवशेषताओं में औद्योगगक लाआसेंबसग का चयनात्मक ई्‍मूलन, व्यापार नीगतयों और
प्रदियाओं का अंगशक ईदारीकरण तथा पूज
ं ीगत वस्तुओं के गलए प्रत्यक्ष गवदेशी गनवेश (FDI)
व्यवस्था में पररवतथन सगम्मगलत हैं। वस्त्र, चमड़े के ईत्पादों और खेल के सामान जैसे श्रम गहन
क्षेत्रों में भारत तुलनात्मक ूपप से लाभ की गस्थगत में था। आन क्षेत्रों में गनयाथत क्षमता गवकगसत
करने के रास्ते में एक बड़ी बाधा के बावजूद छोटे पैमाने (लघु ईद्योग) के क्षेत्रक को ईत्पादन में
प्राहै संरक्षण जारी रहा। 1980 की औद्योगगक नीगत में भी बाहर गनकलने (एगजजट क्लॉज़) में अने
वाली बाधाओं को दूर कर औद्योगगक क्षेत्र के पुनगथठन करने की ददशा में कम ध्यान ददया गया।
 1980 के दशक के दौरान कु शलता में सुधार और गनयाथत को बढावा देने के गलए गवचारपूवथक
व्यापार नीगतयों का गनमाथण दकया गया था। तकनीकी ईन्नयन के गलए क्षमता ईपयोग और
अधुगनक पूजं ीगत वस्तुओं की सुगवधा प्रदान करने के गलए अयागतत मध्यवती गनवेशों तक असान
पहुंच ही आन सुधारों की प्रेरणा शगक्त थी। संरक्षणवादी व्यवस्था के पररणामस्वूपप ईभरे गनयाथत-
गवरोधी पूवाथग्रह को समाहै करने के गलए गनयाथत सगससडी प्रदान की गइ थी।
 सीगमत घरे लू ऄगवगनयमन और व्यापार नीगत सुधार ऐसी गस्थगत लाने में सफल रहे आसके
पररणामस्वूपप 1980 के दशक में भारतीय गवगनमाथण क्षेत्रक में ईत्पादकता 27 प्रगतशत तक बढी।
1980 के दशक में औद्योगगक गवकास दर 7 प्रगतशत से ऄगधक हो गइ और गवगनतितमत वस्तुओं के
गनयाथत में करीब 11 प्रगतशत की वृगि हुइ।
 1980 के दशक के दौरान भारत सरकार के बढते राजकोषीय ऄपव्यय के कारण गबगड़ते समगि
अतितथक पररवेश में बेहतर गवकास की गनरं तरता और औद्योगगक क्षेत्रक की ईत्पादकता प्रदशथन को
बनाए रखना चुनौती से कम नहीं था। 1990 के खाड़ी युि और दशक के अरं भ में राजनीगतक
ऄगस्थरता के कारण भारतीय ऄथथव्यवस्था के प्रगत ऄंतराथष्ट्रीय स्तर पर गवद्यमान गविास में
ऄत्यगधक कमी अ गइ थी। 1991 का भुगतान संतुलन संकट आसी का पररणाम था।

2.3. नइ औद्योगगक नीगत, 1991 (New Industrial Policy, 1991)

 जुलाइ 1991 में भारत में प्रस्तुत की गइ नयी औद्योगगक नीगत (NIP) ऄपने ईद्देय यों और प्रमुख
गवशेषताओं के मामले में पूवथ की औद्योगगक नीगतयों की तुलना में ऄगधक िांगतकारी थी। आसमें
पहले से प्राहै लाभों को सुदढृ करने तथा ईनमें ईत्पन्न गवकृ गतयों या कमजोररयों को ठीक करने पर
ध्यान ददया गया। आस हेतु औद्योगगक गवकास को बढावा देने तथा ऄंतराथष्ट्रीय प्रगतस्पधाथ प्राहै करने
पर बल ददया गया। ईदारीकृ त औद्योगगक नीगत का ईद्देय य तीव्र एवं पयाथहै अतितथक गवकास तथा
सामंजस्यपूणथ ढंग से वैगिक ऄथथव्यवस्था से एकीकरण है।
 आसके ऄनुसार ‘सरकार ईद्यगमता को प्रोत्साहन, ऄनुस्‍धान और गवकास में गनवेश के माध्यम से
स्वदेशी प्रौद्योगगकी के गवकास, नयी तकनीक लाने, गनयामक प्रणाली को समाहै करने, पूज
ि ी
बाजार का गवकास और प्रगतस्पधाथत्मकता में वृगि के साथ सामा्‍य व्यगक्त के लाभ के गलए ठोस
नीगतगत फ्रेमवकथ का पालन करना जारी रखेगी।’

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नइ औद्योगगक नीगत (NIP) 1991 के गवगशि ईद्देय य: पहली औद्योगगक नीगतयों की तुलना में NIP के
दो गवगशि ईद्देय य थे:
 अत्मगनभथरता की ऄवधारणा को पुन: पररभागषत करना: NIP ने अत्मगनभथरता की ऄवधारणा को
पुन:पररभागषत दकया। 1956 से 1991 तक भारत ने सदैव अतितथक गनभथरता के गलए अयात

प्रगतस्थापन-औद्योगीकरण (ISI) रणनीगत पर बल ददया था। अतितथक अत्मगनभथरता का ऄथथ है


ईत्पादन क्षमताओं का स्वदेशी गवकास और ईन सभी औद्योगगक वस्तुओं का, गजनकी देश में मांग
है, अयात करने की बजाय देश में ही ईनका ईत्पादन करना। अतितथक अत्मगनभथरता का लष्य प्राहै

करने हेतु ISI नीगत को बढावा देने अवय यक हो गया। आसके द्वारा एक गनधाथररत समयावगध में
पूंजीगत वस्तु, मध्यवती वस्तु और अधारभूत वस्तु ईद्योग के बाजार का गवशाल अधार गनतितमत
करने में सहायता गमली। NIP का अतितथक गनभथरता को पुन: पररभागषत करने से अशय अवय यक
ूपप से घरे लू ईद्योग पर गनभथरता के बजाय गनयाथत द्वारा गवदेशी मुर सा ऄजथन के माध्यम से अयात
के गलए भुगतान करने की क्षमता प्राहै करने से है।
 ऄंतराथष्ट्रीय प्रगतस्पधाथत्मकता: NIP द्वारा वैगिक मानकों के ऄनुूपप प्रौद्योगगकी और गवगनमाथण क्षेत्र
में क्षमता गवकगसत करने की अवय यकता पर बल ददया गया। पूवथवती औद्योगगक नीगतयों में से
दकसी में भी प्रत्यक्ष या परोक्ष ूपप से, घरे लू औद्योगगक गवकास के स्‍दभथ में ऄंतराथष्ट्रीय प्रौद्योगगकी
और गवगनमाथण क्षमताओं का ईल्लेख नहीं था। ऐसे में पहली बार, NIP ने घरे लू ईद्योग द्वारा
ऄंतराथष्ट्रीय प्रगतस्पधाथ प्राहै करने की अवय यकता को स्पि ूपप से रे खांदकत दकया।
आन ईद्देय यों तथा ऄ्‍य सभी ईद्देय यों की प्रागहै हेतु NIP ने भारत के औद्योगगक नीगत के पररवेश में
पररवतथन प्रारम्भ दकये, गज्‍होंने एक दशक के समय में धीरे -धीरे गगत पकड़ ली। NIP के महत्त्वपूणथ
तत्वों को गनम्नगलगखत प्रकार से वगीकृ त दकया जा सकता है:
A. गवगनवेश के माध्यम से सावथजगनक क्षेत्रक का डी-ररजवेशन तथा गनजीकरण
 1991 तक सावथजगनक क्षेत्रक को भारतीय ईद्योग क्षेत्रक में एक प्रमुख स्थान प्रदान दकया गया था

तादक 1956 की औद्योगगक नीगत प्रस्ताव (IPR) के ऄंतगथत आसे “ऄथथव्यवस्था को ईल्लेखनीय
ईपलगसधयों” तक पहुंचने में सक्षम बनाया जा सके । आसके ऄनुसार सामररक महत्त्व के क्षेत्रों तथा
कोर क्षेत्रकों को गवशेष ूपप से सावथजगनक ईपिमों के गलए अरगक्षत कर ददया गया था। यहाि तक
दक सावथजगनक ईद्यमों को ऐसे स्थानों पर भी प्राथगमकता दी गयी थी जहाि गनजी गनवेश सम्भव
था। 1991 के ईपरांत, सावथजगनक क्षेत्रक की नीगत में गनम्नगलगखत तत्व सगम्मगलत दकये गए:
 सावथजगनक क्षेत्रक के गलए अरगक्षत ईद्योगों की संख्या में कमी: वतथमान में के वल दो ईद्योग
(परमाणु उजाथ और रे लवे संचालन) सावथजगनक क्षेत्र के गलए अरगक्षत दकये गए हैं। 1991 के बाद
से सरकार की सावथजगनक ईपिमों (PSU) की नीगत का सार यह रहा है दक सरकार को दकसी भी
व्यावसागयक ईद्यम का संचालन नहीं करना चागहए। आस नीगत में सभी गैर -रणनीगतक सावथजगनक
ईपिमों में सरकारी आदिटी को 26 प्रगतशत या ईससे कम करने के गलए, सम्भागवत ूपप से
व्यवहायथ सावथजगनक ईपिमों को पुनगथरठत या पुनजीगवत करने पर बल ददया गया था तथा गजन
सावथजगनक ईपिमों को पुनजीगवत नहीं दकया जा सकता, श्रगमकों के गहतों की रक्षा करने के गलए
ई्‍हें बंद दकये जाने पर बल ददया गया था। नॉन-कोर या गौण क्षेत्रकों से सरकार का हटना, पूज
ि ी
के दीघथकागलक कु शल ईपयोग, बढती हुए गवत्तीय ऄव्यवहायथता और आन PSUs की बढते हुए
प्रगतस्पधी तथा बाजार ई्‍मुखी पररवेश में संचालन की बाध्यता का पररचायक था।

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 समझौता ज्ञापन (MOU) का कायाथ्‍वयन: सावथजगनक ईद्यमों के प्रदशथन में सुधार के ईपायों के एक
भाग के ूपप में ऄगधकागधक सावथजगनक क्षेत्र की आकाआयों को समझौता ज्ञापन (MOU) प्रणाली की
पररगध में लाया गया। समझौता ज्ञापन एक गनष्पादन ऄनुबंध है, गजसके द्वारा सरकार और गवगशि
सावथजगनक ईद्यम के बीच स्वतंत्र ूपप से समझौता दकया जाता है।
 BIFR को गनर्ददि करना: सावथजगनक क्षेत्रक की कइ रुजण आकाआयों का पुनरुिार करने या जहाि
अवय यक हो, ई्‍हें बंद करने हेतु औद्योगगक और गवत्तीय पुनतितनमाथण बोडथ (BIFR) को गनर्ददि
दकया गया।
 श्रमशगक्त का तार्दकक गवतरण: श्रम शगक्त सुसंगतता प्राहै करने हेतु, ऄगधशेष श्रमशगक्त को कम
करने के गलए कइ सावथजगनक ईपिमों में स्वैगछछक सेवागनवृगत्त योजना (VRS) लायी गइ।
 गनजी आदिटी सहभागगता: PSUs को पूज
ि ी बाजार से आदिटी गवत्त प्रागहै करने की ऄनुमगत दी
गयी। आससे सावथजगनक क्षेत्रक के ईपिमों पर प्रदशथन में सुधार हेतु बाजार के दबाव में वृगि हुइ है।
 गवगनवेश और गनजीकरण: PSUs में कॉपोरे ट दक्षता, गवत्तीय गनष्पादन और परस्पर प्रगतस्पधाथ में
वृगि करने हेतु वतथमान PSUs में गवगनवेश और गनजीकरण को ऄपनाया गया। आसमें सरकारी
शेयरधाररता को गनजी शेयरधारकों का हस्ता्‍तरण सगम्मगलत है।
B. औद्योगगक लाआसेंस प्रणाली की समागहै (Industrial Delicensing)
 घरे लू और साथ ही गवदेशी ईद्योगों पर से लाआसेंस ऄगनवायथता को हटाना, गजसे सामा्‍यतया “गैर-
लाआसेंसीकरण” के नाम से जाना जाता है, NIP की एक महत्त्वपूणथ गवशेषता थी। 1990 के दशक
तक लगभग प्रत्येक ऐसे ईद्योग के गलए लाआसेंस ऄगनवायथ था, जो सावथजगनक क्षेत्र के गलए
अरगक्षत नहीं था। यह लाआसेंस व्यवस्था गस्थर पररसम्पगत्तयों (गजनमें भूगम, भवन, संय्‍त्र और
मशीनरी सगम्मगलत हैं) में एक गनगचत गनधाथररत सीमा से उपर गनवेश वाले सभी औद्योगगक
ईद्यमों के गलए लागू थी। ऄथथव्यवस्था के प्रगगतशील ईदारीकरण और गवगनयमन के साथ ईद्योग
(गवकास और गवगनयमन) ऄगधगनयम 1951 के ऄंतगथत गवगनयगमत होने वाले औद्योगगक लाआसेंस
की बहुत कम मामलों में अवय यकता रह गइ है।
 कु छ ऄपवादों के साथ ऄब गनवेशक एक नया औद्योगगक ईद्यम स्थागपत करने, वतथमान ईद्यम का
गवस्तार, स्थान पररवतथन और पहले से स्थागपत औद्योगगक ईद्यम में नये ईत्पाद का गवगनमाथण
करने हेतु स्वतंत्र हैं। औद्योगगक लाआसेंस की समागहै का ईद्देय य, व्यावसागयक ईद्यमों को तेजी से
बदलती बाह्य पररगस्थगतयों की प्रगतदिया के गलए सक्षम बनाना है। ईद्यमी ऄपने व्यवसागयक
गनणथय के अधार पर गनवेश गनणथय लेने के गलए स्वतंत्र हैं। आससे तकनीकी गगतशीलता और
ऄंतराथष्ट्रीय प्रगतस्पधाथ में सुगवधा होती है। आसके ऄगतररक्त, ईद्योगों को वतथमान औद्योगगक नीगत
पररवेश में “आकोनॉगमक्स ऑफ़ स्के ल’’ तथा “आकोनोमीज़ ऑफ़ स्कोप” का लाभ ईठाने की स्वतंत्रता
है।
C. एकागधकार और प्रगतबंगधत व्यापार व्यवहार (MRTP) ऄगधगनयम, 1969 में संशोधन
 भारत की औद्योगगक नीगतयों का एक महत्त्वपूणथ ईद्देय य के वल कु छ व्यगक्तयों के हाथों में
एकागधकार और अतितथक शगक्त के सके ्‍र सण को रोकना था। तदनुसार, एकागधकार और प्रगतबंगधत
व्यापार व्यवहार (MRTP) ऄगधगनयम 1969 को ऄगधगनयगमत दकया गया था। आसके साथ ही
औद्योगगक स्वागमत्व की समय-समय पर समीक्षा करने के गलए एक स्थायी गनकाय के ूपप में
MRTP अयोग की स्थापना की गइ थी। आस अयोग का कायथ सरकार को अतितथक शगक्त के
के ्‍र सीकरण को रोकने, एकागधकार व्यवहारों की जािच करने और सावथजगनक गहतों के प्रगतकू ल
प्रगतबंधात्मक व्यापार के सम्ब्‍ध में परामशथ देना था। आसके द्वारा MRTP कम्पनी को मुख्य ूपप से
ईसकी सम्पगत्त के अकार के स्‍दभथ में पररभागषत दकया गया। दकसी MRTP कम्पनी को एक नया
ईद्यम स्थागपत और ईद्यम के गवस्तार करने के गलए सरकार की पूवथ ऄनुमगत प्राहै करनी अवय यक
होती है। हालािदक MRTP ऄगधगनयम के वल गनजी क्षेत्र के ईद्यमों पर ही लागू था।

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 1991 से MRTP ऄगधगनयम को नया ूपप ददया गया है और नए ईपिम की स्थापना, गवस्तार,
एकीकरण, गवलय, ऄगधग्रहण तथा कम्पगनयों के गनदेशकों की गनयुगक्त के गलए सरकार के पूवथ
ऄनुमोदन सम्ब्‍धी प्रगतब्‍ध हटा ददए गये हैं। MRTP फमथ को पररभागषत करने के गलए
पररसम्पगत्त प्रगतब्‍ध और बाजार की भागीदारी की अवय यकता समाहै हो गयी है। MRTP
ऄगधगनयम ऄब गनजी और सावथजगनक क्षेत्र के ईद्यमों और गवत्तीय संस्थानों दोनों के गलए लागू है।
वतथमान में कम्पगनयों की प्रगतबंधात्मक व्यापार प्रथाओं की के वल गनगरानी और गनयंत्रण दकया
जाता है। आसके साथ ही MRTP ऄगधगनयम को ऄब प्रगतस्पधाथ ऄगधगनयम, 2002 द्वारा
प्रगतस्थागपत दकया गया है। आस कानून का ईद्देय य भारतीय बाजार में प्रगतस्पधाथ को बनाये रखना
है। 2003 में प्रगतस्पधाथ अयोग की स्थापना की गयी थी। यह अयोग मुख्यत: प्रगतस्पधाथ को
प्रगतकू ल ूपप से प्रभागवत करने वाली प्रथाओं को गनयंगत्रत करता है।
D. ईदारीकृ त गवदेशी गनवेश नीगत (Liberalized Foreign Investment Policy)
 भारत की पूवथवती औद्योगगक नीगतयों में गवदेशी गनवेश (FDI) को अकतितषत करने का प्रयास दकया
था, पर्‍तु आस बात पर बल ददया जाता था दक गवदेशी भागीदारी वाले सभी ईद्यमों का स्वागमत्व
और गनय्‍त्रण भारतीय हाथों में होना चागहए। 1960 के दशक के मध्य में भुगतान संतुलन (BoP)
की करठनाआयों ने देश को गवदेशी गनवेश बोडथ की स्थापना के माध्यम से FDI के प्रगत ऄगधक
प्रगतबंधात्मक दृगिकोण ऄपनाने के गलए गववश दकया, गजसने ईद्योगों का दो भागों में वगीकरण
कर ददया: तकनीकी सहयोग एवं FDI के गलए प्रगतबंगधत तथा तकनीकी सहयोग एवं FDI हेतु
ऄनुमगत प्राहै। गवदेशी गनवेश के गलए ईद्योगों की संख्या गनरं तर कम होती गयी और 1973 तक
के वल 19 ईद्योगों को ही FDI की ऄनुमगत प्राहै थी। FERA, 1973 के ऄगधगनयमन के माध्यम से
भारत की गवदेशी गनवेश नीगत का सवाथगधक प्रगतबंधात्मक चरण प्रारम्भ हुअ। ऄतः NIP में
गवदेशी गनवेश को अकतितषत करने से सम्बंगधत सुधार दकये गये। गवदेशी गनवेश नीगत से सम्बग्‍धत
महत्त्वपूणथ ईपाय आस प्रकार हैं:
o FERA 1973 का गनरसन: FERA 1973 को गनरस्त कर ददया गया तथा जून 2000 से
गवदेशी मुर सा प्रब्‍धन ऄगधगनयम (FEMA) प्रभाव में अया। गवगशि शतों के तहत प्रदत्त
ऄनुमगत को छोड़कर FEMA द्वारा गनवेश और प्रगतफल को स्वतंत्र ूपप से पुनस्थाथगपत दकया
जा सकता है। आन शतों में क्षेत्र गवशेष नीगतयों में गनर्ददि मूल गनवेश की लॉक-आन ऄवगध,
लाभांश सीमा, गवदेशी मुर सा तटस्थता अदद सगम्मगलत हैं। आसके ऄगतररक्त आस ऄगधगनयम में
घोगषत लाभांश हेतु ‘लाभांश संतुलन (dividend balancing)’ की गस्थगत को वापस गलया
गया। एक गवदेशी गनवेशक स्वतंत्र ूपप से भारत में औद्योगगक ईद्यमों में प्रवेश, गनवेश और
संचालन कर सकता है। गवदेशी ऄंशदान की स्वीकृ गत और ईपयोग को गनयगमत करने के गलए
कानून को सशक्त बनाने के गलए संसद द्वारा गवदेशी योगदान (गवगनयमन)
ऄगधगनयम(Foreign Contribution (Regulation) Act) 2010 लागू दकया गया।
o प्रत्यक्ष गवदेशी गनवेश (FDI) पर प्रगतबंधों को कम करना: परमाणु उजाथ और रे लवे पररवहन
को छोड़ कर सेवा क्षेत्र सगहत सभी क्षेत्रों में FDI की ऄनुमगत प्रदान कर दी गयी है।
E. गवदेशी प्रौद्योगगकी समझौता (Foreign Technology Agreement)
 ईद्योगों को गनर्ददि मानदंडों के भीतर प्रौद्योगगकी समझौते के गलए स्वतः ऄनुमोदन की ऄनुमगत
प्रदान की गयी है। वतथमान पररगस्थगतयों में भारतीय कं पगनयां ऄपने गवदेशी समकक्षों के साथ
ऄपने व्यावसागयक गनणथयों के ऄनुूपप प्रौद्योगगकी हस्तांतरण की शतों पर वाताथ करने हेतु स्वतंत्र
हैं।

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F. लघु ईद्योगों के संरक्षण में कमी और प्रगतस्पधाथ पर बल

 देश भर में ऄपनी गवगवधतापूणथ ईपगस्थगत के कारण लघु ईद्योगों (SSI) को एक गवगशि गस्थगत

प्राहै रही। आनके द्वारा ईन संसाधनों और कौशलों का ईपयोग दकया गया जो ऄ्‍यथा ऄनुप्रयुक्त रह
जाते। बड़े पैमाने पर रोज़गार सृजन करने, व्यापक ईपभोग की ईपभोक्ता वस्तुओं का ईत्पादन

करने तथा क्षेत्रीय गवषमताओं को कम करने की आनकी क्षमता को देखते हुए आस क्षेत्रक के गवकास
के गलए औद्योगगक नीगतयों में लघु ईद्योगों को समुगचत सुरक्षा प्रदान की गइ। आसके गलए दकए गए
प्रमुख सुरक्षात्मक ईपाय गनम्नगलगखत हैं:
o IDR ऄगधगनयम, 1951 के ऄंतगथत एक पररभाषा के माध्यम से लघु ईद्योगों की ऄ्‍य ईद्योगों

से ऄलग पहचान गनधाथररत की गइ।


o बैंिंकग प्रणाली से ररयायती ऊण।
o गवत्तीय ररयायतें।
o औद्योगगक लाआसेंबसग और श्रम कानूनों से छू ट।
o घरे लू और अयागतत, दोनों प्रकार के दुलभ
थ क्च े माल तक ऄगधमा्‍य पहुंच (Preferential

access)।

o सरकार द्वारा सरकारी खरीद और मूल्य वरीयताओं के गलए ईत्पादों के अरक्षण के माध्यम से
बाजार सहायता।
 लघु ईद्योग गवगनमाथण क्षेत्र में गवगशि गवगनमाथण के गलए ईत्पादों का अरक्षण और लघु ईद्योग
गवगनमाथण के गलए अरगक्षत ईत्पादों के बड़े पैमाने वाले क्षेत्र में ईत्पादन और क्षमता के गवकास पर
प्रगतबंध।
 आन नीगतगत ईपायों के माध्यम से लघु ईद्योगों को घरे लू और गवदेशी, दोनों प्रगतस्पधाथओं से

संरक्षण प्रदान दकया गया। हालांदक, 1991 से लघु ईद्योग नीगत के संरक्षण पर ऄपेक्षाकृ त कम बल

ददया जाने लगा। ऄगस्त 1991 में, भारत सरकार ने लघु ईद्योग के गलए एक गवशेष नीगत प्रस्तुत

की। आस नीगत की गवशेषताएि गनम्नगलगखत थी:


o लघु ईद्योगों के गलए सुरक्षात्मक ईपायों के ऄंत का अरं भ।
o आस क्षेत्र से जुड़ी प्रौद्योगगकी, गवत्त और गवपणन जैसी बुगनयादी समस्याओं को संबोगधत

करते हुए प्रगतस्पधाथ को बढावा देना।


 आसके बाद, लघु ईद्योग गवगनमाथण के गलए गवशेष ूपप से अरगक्षत वस्तुओं की संख्या धीरे -धीरे कम

होती गइ। अरगक्षत वस्तुओं की नीगत बहुत हद तक ऄपनी प्रासंगगकता खो चुकी है, क्योंदक यद्यगप

आन ईत्पादों को घरे लू स्तर पर वृहद् ईद्यमों द्वारा गनतितमत नहीं दकया जा सकता है तथागप वषथ
2001 में ऄगधकतम अयात पर मात्रात्मक और गैर-मात्रात्मक प्रगतबंध हटाए जाने के बाद से

गवदेश से आन ईत्पादों का अयात दकया जा सकता है। 1990 के दशक के दौरान लघु ईद्योगों के

गलए ईधार दरों में ररयायत को भी ऄगधकांशतः वापस ले गलया गया। सरकार द्वारा लघु ईद्योगों
से खरीद हेतु गवशेष ूपप से अरगक्षत ईत्पादों की संख्या भी कम कर दी गइ। आसके साथ ही लघु
ईद्योगों की प्रौद्योगगकी और गनयाथत क्षमता में सुधार के गलए ईपाय ऄपनाए गए हैं गजसके द्वारा
लघु ईद्योगों की समग्र प्रोन्नगत की ददशा सुरक्षा से स्थानांतररत होकर प्रगतस्पधाथ की ओर हो गइ है।

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2.3.1. नइ औद्योगगक नीगत (NIP) का अकलन

 भुगतान संतुलन के संकट की प्रगतदिया के ूपप में न के वल समगि स्तर पर अतितथक गस्थरीकरण की
नीगतयों के गलए स्थान बनाया गया ऄगपतु ई्च संवृगि हेतु भारतीय ऄथथव्यवस्था की क्षमता
प्रदतितशत करने के गलए गवस्तृत अतितथक सुधारों को कायाथग्‍वत करने का ऄवसर भी प्राहै हुअ।
1991 के बाद से नीगत गनमाथताओं ने ऄथथव्यवस्था को वैगिक स्तर पर एकीकृ त करने तथा 1980
के दशक की गगरावट से प्रभागवत व्यापक अतितथक पररवेश में सुधार लाने के गलए महत्वपूणथ कदम
ईठाने के प्रयास दकए।
 1991 के बाद के डेढ दशकों में व्यापक गनयंत्रण तथा एक सशक्त ऄंतमुथखी ऄगभगव्‍यास (inward
orientation) वाली नीगतगत व्यवस्था को ूपपांतररत दकया गया। यह ूपपांतरण वृगिशील तथा
िगमक पररवतथनों के माध्यम से, कभी-कभार पूवथवती नीगत से ऄलग दक्‍तु गबना दकसी बड़े
वैचाररक पररवतथन (यू-टऩथ) के संपन्न हुअ। आस दौरान के ्‍र स में गवगभन्न राजनीगतक दलों के
गठबंधन और राज्यों में गवगभन्न राजनीगतक दलों का शासन रहा, जो अतितथक सुधार प्रदिया को
अगे बढाए हुए हैं, यद्यगप आनका तरीका ऄव्यवगस्थत रहा है।
 1991-92 से 1996-97 तक की ऄवगध में औद्योगगक और व्यापार नीगतयों, कर नीगतयों और
व्यापक अतितथक प्रबंधन पर प्रभाव डालने वाली ऄ्‍य नीगतयों में तीव्र तथा व्यापक सुधार हुए।
1996-97 के ईपरांत अंगशक ूपप से प्रारं गभक सुधारों के प्रगत ऄनुकूल प्रगतदिया प्राहै होने के
कारण पर अत्मसंतुिता अने से तथा अंगशक ूपप से कें र स में सत्ता पररवतथन से ईत्पन्न व्याकु लता के
कारण सुधारों की गगत धीमी हो गइ थी। आसके ऄगतररक्त 1990 के मध्य तक, प्रगतस्पधाथ का
प्रारम्भ हो जाना तथा भारतीय ईद्योग द्वारा बाह्य ईदारीकरण समेत गवगभन्न पररवतथनों को कम
स्वीकृ गत प्रदान करना भी आस धीमी गगत का कारण बना।
 कालांतर में 2001 में, भारत ने गनजी गनवेश के गलए पररवेश में सुधार कर, ऄथथव्यवस्था को
गवदेशी प्रगतस्पधाथ के गलए खोलने तथा बुगनयादी ढांचे के गवकास के साथ ही पररवतथन की गगत
वापस प्राहै कर ली। हालांदक, व्यापक अतितथक प्रबंधन (एक ऄछछी शुरुअत के बाद जब कें र स और
राज्यों के समेदकत राजकोषीय घाटे को 1990-91 में GDP के 9.6 प्रगतशत से घटाकर 1992 में
7 प्रगतशत कर ददया गया था) कमजोरी का क्षेत्र रहा है जो भगवष्य में संधारणीय गवकास की
ईपलगसध को कमजोर कर सकता था।
 1990 के दशक में औद्योगगक नीगत सुधार के ऄंतगथत प्रवेश के दौरान अने वाली गवगभन्न बाधाओं
को दूर करने के गलए कइ महत्वपूणथ कदम ईठाए गए थे। ईदाहरण के गलए, गनवेश के गलए
औद्योगगक लाआसेंस को समाहै कर ददया गया तथा कु छ सामररक क्षेत्रों के ऄगतररक्त ऄ्‍य सभी को
गनजी क्षेत्रों के गलए खोल ददया गया। आसके साथ ही प्रगतस्पधाथ-गवरोधी व्यवहार को गवगनयगमत
करने के गलए पुराने MRTP ऄगधगनयम के स्थान पर एक नया प्रगतस्पधाथ कानून लागू दकया गया
तथा लघु ईद्योगों हेतु लागू अरक्षण की नीगत पर भी कदम ईठाए गए। यहाि तक दक कु छ वस्तुओं
के गवगनमाथण और खरीद पर अरक्षण समाहै कर ददया गया। हालांदक, कारक बाजार को ऄगधक
लोचशील बनाने तथा व्यगक्तगत कं पगनयों को ऄगधक प्रगतस्पधी पररवेश से लाभ पाने हेतु सक्षम
बनाने वाले सूष्म अतितथक सुधार और ्‍यागयक सुधार, धीमी गगत से प्रभाव में अये।
 व्यापार नीगत सुधारों ने अयात लाआसेंबसग की जरटल प्रणाली को समाहै करके और अयात पर
टैररफ दरों को कम करने के गलए एक खुली प्रगतबिता घोगषत कर अमूलचूल पररवतथन दकया।
प्रारं भ में, ईपभोक्ता वस्तुओं के ऄगतररक्त ऄगधकांश वस्तुओं के गलए अयात लाआसेंस प्रदान दकए
गए, गजससे भ्रिाचार और ऄक्षमता का एक बड़ा स्रोत समाहै हो गया था। 2001 में, भारत ने
ऄंततः तीन वषथ की ऄवगध के दौरान ईपभोक्ता वस्तुओं और कृ गष ईत्पादों पर से मात्रात्मक
प्रगतबंध हटा ददए।

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 अयात शुल्क गस्थरता से न सही धीरे -धीरे ही कम हुए। 1991-2003 में 73 प्रगतशत की औसत से

1997 में 25 प्रगतशत की तीव्र गगरावट के बाद, 2000-01 में अयात-भाररत अयात शुल्क बढते

हुए 36 प्रगतशत तक पहुंच गया। यह गस्थगत सुस्थागपत भारतीय ईद्योग से संरक्षणवादी दबाव के

पुन:प्रवतथन को दशाथती है। आसके बाद आस प्रवृगत्त का ईत्िमण (reversal) हुअ और सरकार ने पूवथ

एगशयाइ राष्ट्रों (अगसयान) के स्तरों पर भारत की टैररफ सुरक्षा दर कम करने के ईद्देय य को


दोहराया।
 1990 के दशक में प्रौद्योगगकी और गवि बाजारों में बेहतर पहुंच प्राहै करने और गनवेश पर

संसाधन की कमी को कम करने में सहायता करने के गलए FDI गनयमों को ईदार बनाया गया।

आसके तहत कइ ईद्योगों को गनयंत्रण मुक्त कर प्रत्यक्ष गवदेशी गनवेश (FDI) के गलए खोल ददया

गया तथा ऄ्‍य ईद्योगों के गलए, गवदेशी गनवेश हेतु अवेदन पत्र में तीव्रता लाने के गलए गवदेशी

गनवेश संवधथन बोडथ की स्थापना की गइ थी। आसके ऄलावा, गवदेशी संस्थागत गनवेशकों (FII) द्वारा

आदिटी में गनवेश हेतु भारतीय शेयर बाजार खोल ददया गया है। आन नीगतगत पररवतथनों से 1990

में नगण्य रहे FDI प्रवाह में तेजी से बढोतरी हुइ है।

 अधारभूत संरचनाओं के ईन्नयन हेतु भारी गनवेश अवय यकताओं को पूरा करने के गलए गवद्युत,

दूरसंचार, सड़कों, रे लवे, पत्तनों और हवाइ ऄड्डों जैसे क्षेत्रों में गनजी गनवेश को अकतितषत करना

सुधारों की एक बड़ी चुनौती थी। आन क्षेत्रों को बाद के वषों में ऄलग-ऄलग समय पर, सफलता के

गवगभन्न सोपानों के साथ, गनजी गनवेश के गलए खोल ददया गया।

 दूरसंचार क्षेत्र में सुधार सबसे सफल रहा, क्योंदक दूरसंचार सेवाओं का मूल्य (गवद्युत शगक्त के

गवपरीत) खचीला या ऄलाभकर नहीं था। दूरसंचार सेवाओं तक पहुंच बढी है, लागत कम हो गइ

है और गुणवत्ता में सुधार हुअ है, क्योंदक गनजी क्षेत्र के कु छ सशक्त दूरसंचार सेवा प्रदाता

सावथजगनक क्षेत्र की कं पगनयों के साथ प्रभावी ढंग से प्रगतस्पधाथ कर रहे हैं। बंदरगाहों और हवाइ
ऄड्डों के गवकास हेतु भी गनजी गनवेश को अकतितषत दकया गया है। ऄगधकांश देशों के समान भारत
में भी सड़क गनमाथण के क्षेत्र में नए गनवेश मुख्य ूपप से सावथजगनक क्षेत्र में दकए गए हैं लेदकन आसमें
गनजी क्षेत्र की भी कु छ भागीदारी है। गनजी गनवेश की आस भागीदारी में भगवष्य में वृगि हो सकती
है।
 गवद्युत क्षेत्र में, ईत्पादन क्षमता में वृगि हेतु भारी गनवेश को अकतितषत करने की ऄपेक्षाएं गवतरण

गवभाग की गवत्तीय समस्याओं के कारण धराशायी हो गईं। ईपभोक्ताओं (पररवारों और दकसानों)


के कु छ वगों के गलए ऄगविसनीय ूपप से कम गवद्युत दर और गबल भुगतान वसूली में गनष्फलता
के कारण गवतरण गवभाग लंबे समय तक ऄलाभकारी बना रहा। हाल के वषों में, गवद्युत दरों की

गनधाथरण प्रदिया को राजनीगत से दूर रखने के प्रयास दकए गए हैं। 2003 के गवद्युत ऄगधगनयम के

तहत गवद्युत क्षेत्र के गवगनयमन हेतु एक व्यापक कानूनी ढांचे का प्रावधान दकया गया है तथा राज्य
सरकारों को ऄगधक प्रगतस्पधाथ को बढावा देने, गनजी क्षेत्र की बढती भागीदारी और बेहतर
प्रशासन के माध्यम से गवद्युत क्षेत्र में सुधारों में तेजी लाने के गलए प्रभावी ढंग से शगक्तयां प्रदान की
गइ हैं।

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 लाभ ऄजथक सावथजगनक क्षेत्र के ईपिमों को पूज
ं ी बाजार में संसाधनों की वृगि हेतु ऄगधकागधक
स्वायत्तता और ऄगधक स्वतंत्रता की ऄनुमगत दी गइ थी, लेदकन सावथजगनक गनगधयों और पुनगथठन,
गनजीकरण या बंद कर देने की राजनीगतक आछछा के ऄभाव में ऄपेक्षाकृ त कम ऄछछे प्रदशथन वाले
सावथजगनक ईपिम दुबथल होते चले गए। 1997 में एक गवगनवेश अयोग की स्थापना हुइ, लेदकन
2001 तक गनजीकरण को नीगतगत एजेंडा में गंभीरता से सगम्मगलत नहीं दकया गया था। 2001-
2003 के दौरान प्रबंधन के हस्तांतरण के साथ कु छ सावथजगनक क्षेत्र के ईद्यमों का गनजीकरण दकया
गया था। आनमें सबसे महत्वपूणथ बाल्को (भारत एल्युगमगनयम कं पनी गलगमटेड) था, गजसे एक
रणनीगतक गनजी गनवेशक को बेच ददया गया था। लेदकन जब दो तेल कं पगनयों के गनजीकरण का
प्रयास दकया गया, तब ईसका दृढ प्रगतरोध देखने को गमला। कालांतर में 2004 में नइ सरकार ने
गनजीकरण पर रोक लगा दी। हालांदक, हाल ही में सावथजगनक क्षेत्र की दक्षता में वृगि करने के
गलए गवगनवेश पर ध्यान कें दर सत दकया गया है।
 नीगत व्यवस्था में बढते बाजार ई्‍मुखीकरण के कारण वषथ 1997 तक गनजी क्षेत्र से एक ऄनुकूल
गनवेश ऄनुदिया ईत्पन्न हो गइ। वस्तुतः गनजी गस्थर गनवेश की दर 1992 के 12.9 प्रगतशत से
बढकर 1996-97 में 15.9 प्रगतशत दजथ की गइ।
 1997 के बाद के सुधारों में मंदी और साथ ही एगशयाइ गवत्तीय संकट के बाद बाहरी अतितथक
पररवेश गबगड़ने के कारण औद्योगगक गवकास दर में गगरावट अने लगी। 1995-96 के 12.3
प्रगतशत से गगरकर औद्योगगक गवकास दर 1996-7 में 7.7 प्रगतशत पर पहुंच गइ और ईसके बाद
लगातार दो वषों तक यह 3.8 प्रगतशत पर रटकी रही। हालांदक, कालांतर में बेहतर गवकास दर के
साथ औद्योगगक पुनरुिार भी हुअ। आसके ऄगतररक्त, सॉफ्टवेयर बूम ने गवि बाजारों में भारत की
एक नइ ब्ांड छगव बनाइ, जो अज भी कायम है।
 1990 के मध्य से भारतीय ईद्योग धीमी लेदकन गस्थर तरीके से पुनगथठन और लागत को कम कर
रहा है। हालािदक कु छ परं परागत ईद्योगों में समायोजन और ऄनुकूलन की गगत धीमी रही है,
ईदाहरण के गलए, कपड़ा ईद्योग जो 2005 में मल्टी-फाआबर ऄरें जमेंट (MFA) समाहै होने के बाद
प्रगतस्पधी वैगिक बाजार पररदृय य की नइ चुनौगतयों का सामना कर रहे हैं। दूसरी तरफ, औषध
और यांगत्रक घटक ईन गवगनमाथण ईद्योगों के ईदाहरण हैं जो सफलतापूवक
थ ऄंतराथष्ट्रीय बाजार में
ऄपनी जगह बनाने के गलए एक वैगिक दृगि गवकगसत कर चुके हैं।
 गवि भर में तेजी से बढ रहे जेनेररक बाजार की ओर कदम बढाते हुए भारतीय औषगध ईद्योग,
ऄनुसंधान और गवकास (R&D) व्यय में वृगि और मूल्य श्रृंखला बढाने के गलए रणनीगतक गठजोड़
के माध्यम से भी नए बौगिक संपदा ऄगधकार (IPR) व्यवस्था के ऄंतगथत ऄपना स्थान सुगनगचत
कर रहा है। एक ऄगधक ईदार गवदेशी गनवेश नीगत के साथ, बहुराष्ट्रीय गनगमों और ऄंतरराष्ट्रीय
जेनेररक कं पगनयों को भी ऄपने कायों का पुनगथठन और भारत में मौजूदा ईद्यमों में ऄपने गहस्से को
बढाने और नए ईद्यम स्थागपत करने के गलए अकतितषत दकया गया है।
 सुधार के बाद के युग ने जैव प्रौद्योगगकी ईद्योग के गवकास को प्रेररत दकया है जो नए ईद्यम तथा
नवाचार से प्रेररत है। कु शल मानव संसाधन, सदिय सरकारी सहायता और सावथजगनक तथा गनजी
गनवेश में वृगि, वैगिक वृगि के ऄनुूपप आस ईद्योग की वृगि सुगनगचत करते हैं। ऄंतराथष्ट्रीय
मानदंडों के ऄनुूपप बढते सामंजस्य के कारण भारत, सहयोगात्मक ऄनुसंधान एवं गवकास, जैव
सूचना गवज्ञान, ऄनुबंध ऄनुसंधान और गवगनमाथण तथा नैदागनक ऄनुसंधान हेतु सबसे पसंदीदा
स्थान के ूपप में ईभर रहा है। आसके साथ ही कइ राज्यों ने शैक्षगणक और ईद्यमशील शगक्तयों के
अधार पर बायो-क्लस्टर गवकगसत करने के गलए कदम ईठाए हैं।

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3. औद्योगगक गवकास के गलए सरकार द्वारा की गयी पहलें
3.1. गवगनवे श (Disinvestment)

 सावथजगनक क्षेत्र में व्याहै ऄनेक खागमयों के कारण प्रायः आसके कामकाज पर प्रश्न ईठते रहे हैं। प्रायः
यह तकथ ददया जाता है दक सावथजगनक क्षेत्रक के वल तभी तक सुचाूप ढंग से काम करता है, जब ईसे
राजकीय ईपायों द्वारा सरं गक्षत दकया जाता है। एक तकथ यह भी ददया जाता है दक सावथजगनक क्षेत्र
ने बहुत ऄगधक क्षेत्रों में प्रवेश कर गलया है और आसगलए गनजी कम्पगनयों को प्रवेश दे कर
सावथजगनक क्षेत्रक को आन क्षेत्रों से बाहर गनकल जाना चागहए। ऄतः आस प्रकार कु छ सावथजगनक
ईपिमों के गनजीकरण का समथथन दकया गया और गवगनवेश ही ऐसी प्रदिया थी गजसके माध्यम से
गनजीकरण हो सकता था।
गवगनवेश के गलए ददए गये गवगभन्न कारण आस प्रकार थे:
o यह गैर-रणनीगतक सावथजगनक ईपिमों में ऄत्यगधक मात्रा में पररगनयोगजत सावथजगनक संसाधनों
को मुक्त करे गा। आन संसाधनों को स्वास््य, गशक्षा अदद जैसे सामागजक प्राथगमकता वाले क्षेत्रों में
गवपररगनयोगजत (रीगडप्लायमेंट) दकया जा सकता है।
o सावथजगनक ऊण में कमी।
o व्यावसागयक जोगखम को गनजी क्षेत्र में स्थानांतररत करना जो आसे साझा करने के गलए आछछु क है।
o ई्च प्राथगमकता वाले सामागजक क्षेत्रों में पुनतितनमाथण के गलए जन-संसाधनों एवं ऄ्‍य ऄमूतथ
संसाधनों को ईपलसध कराना।
o कु छ सावथजगनक ईपिमों में स्वागमत्व या प्रब्‍धन का भाग बनने के गलए जनता को सक्षम बनाना।
 पर्‍तु अलोचकों ने ईस गवगध पर प्रश्न ईठाये गजसके द्वारा गवगनवेश दकया गया था। गनजी
क्षेत्रकों ने के वल लाभ ऄतितजत करने वाले सावथजगनक ईपिमों के गवगनवेश में ही भाग गलया
था। ई्‍होंने घाटे में चल रहे सावथजगनक ईपिमों की पूणथतः ईपेक्षा की। आस प्रकार गनजी क्षेत्र
के साथ जोगखम में भागीदारी के ईद्देय य की ही ऄवहेलना कर दी गयी।
 अलोचकों ने लाभ ऄतितजत करने वाले सावथजगनक ईपिमों के गवगनवेश की भी अलोचना की।
पर्‍तु, सरकार ने राजकोषीय घाटे को कम करने के ईपाय के ूपप में गवगनवेश का ईपयोग
दकया। दूसरे शसदों में, यह कहा जा सकता है दक देश की सरकार ने अतितथक प्रब्‍धन में ऄपनी
ऄक्षमता को ढंकने के गलए एक लाभ कमाने वाली और राजस्व ईत्पन्न करने वाली आकाइ को
गंवा ददया।
गवगनवेश से अय
 गवगनवेश से प्राहै अय को 2005 में स्थागपत दकये गए राष्ट्रीय गनवेश कोष (NIF) में जमा दकया
जाता है। आस कोष का ईद्देय य के ्‍र सीय सावथजगनक क्षेत्र के ईद्यमों के गवगनवेश से अय प्राहै करना
और कोष में कमी दकये गबना अय ईत्पन्न करने के गलए ईसका गनवेश करना था। कोष से प्राहै अय
को चयगनत के ्‍र सीय सामागजक कल्याण योजनाओं के गलए ईपयोग दकया जाना था। यह कोष
भारत की समेदकत गनगध से बाहर रखा गया था।
 NIF का 2013 में पुनगथठन दकया गया और यह गनणथय गलया गया दक सम्पूणथ गवगनवेश अय को
वतथमान ‘सावथजगनक खाते’ में NIF शीषथ के ऄंतगथत जमा दकया जायेगा और तब तक वह रागश वही ि
रहेगी जब तक दकसी स्वीकृ त प्रयोजन के गलए ईसे गनकाला या गनवेश नहीं दकया जाता। NIF के
अवंटन का गनणथय सरकार के वातितषक बजट में होगा।
NIF से प्राहै अय को गनम्नगलगखत प्रयोजनों के गलए ईपयोग दकया जायेगा:
o PSBs और सावथजगनक क्षेत्र की बीमा कम्पगनयों सगहत CPSE द्वारा जारी दकये गये शेयरों को
राआट्स बेगसस (rights basis) पर िय करने के गलए, तादक ईन CPSEs/PSBs/बीमा
कम्पगनयों में सरकार की भागीदारी 51% से कम न हो ।

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o सेबी (पूज
ि ी और प्रकटीकरण अवय यकताएं) गवगनयम 2009 के ऄनुसार प्राथगमकता के अधार पर

प्रवतथकों को CPSEs के शेयरों का अवंटन, तादक ईन सभी मामलों में जहाि CPSE कै पेक्स

(Capex) कायथिम के गलए नए गसरे से आदिटी जुटाने जा रही हो वहाि सरकार की ऄंशधाररता

51% से कम न हो जाये ।

o सावथजगनक क्षेत्र के बैंकों और सावथजगनक क्षेत्र की बीमा कम्पगनयों का पुनपूज


ूं ीकरण।

o सरकार द्वारा RRBs/IIFCL/NABARD/Exim बैंक में गनवेश।

o गवगभन्न मेट्रो पररयोजनाओं में आदिटी गनवेश।


o भारतीय नागभकीय गवद्युत् गनगम गलगमटेड और भारतीय यूरेगनयम गनगम गलगमटेड में गनवेश।
o भारतीय रे लवे में पूज
ं ीगत व्यय के गलए गनवेश।

रणनीगतक गबिी, भंडारण, आदिटी का पुन: िय, गनजी-गनयोजन और पूज


ि ी बाजार के ऄ्‍य ईपकरण

अदद गवगनवेश के गवगभन्न ईपाय हैं।


गवगनवेश अय प्रब्‍धन में हाल में दकये गए पररवतथन

 गवगनवेश गवभाग को 1999 में एक पृथक गवभाग के ूपप में स्थागपत दकया गया था और 2004 से

आसे गवत्त मंत्रालय के ऄंतगथत एक गवभाग बना ददया गया। 2016-2017 के बजट में गवगनवेश

गवभाग का नाम बदलकर गनवेश और सावथजगनक पररसम्पगत्त प्रब्‍धन (DIPAM) कर ददया गया

और साथ ही आसे गनम्नगलगखत कायथ सौंपे गये :


o कें र सीय सावथजगनक क्षेत्र के ईपिमों में आदिटी के गवगनवेश सगहत सरकार द्वारा दकए गए गनवेश
के प्रब्‍धन के सभी मामलों के गलए आसे ईत्तरदायी बनाया गया।
o पूवथ के ्‍र सीय सावथजगनक ईपिमों में गबिी के प्रस्ताव या गनजी गनयोजनों ऄथवा दकसी भी
ऄ्‍य ईपाय के माध्यम से के ्‍र सीय सरकारी आदिटी की गबिी से सम्बंगधत सभी मामले।

o रणनीगतक गवगनवेश सगहत गवगनवेश के गलए प्रशासगनक मंत्रालयों, नीगत अयोग अदद की

गसफाररशों पर गनणथय।
o आदिटी में सरकारी गनवेश के प्रयोजन के गलए कें र सीय सावथजगनक ईपिमों में गलए जाने वाले

गनणथयों से सम्बंगधत मामले जैसे - पूिजी पुनगथठन, बोनस, लाभांश, सरकारी आदिटी का

गवगनवेश एवं ऄ्‍य सम्बग्‍धत मामले।


o के ्‍र सीय सावथजगनक क्षेत्र के ईद्यमों के गवत्तीय पुनगथठन के मामलों में सरकार को परामशथ देना
और पूज
ि ी बाजार के माध्यम से ईक्त ईद्यमों में गनवेश अकतितषत करना।

o हालािदक, जनवरी 2017 में गवगनवेश की प्रदिया को सुचाूप बनाने के गलए सरकार ने गवगनवेश से प्राहै

अय के ईपयोग पर सरकार को परामशथ देने की भूगमका गनवेश गवभाग और सावथजगनक सम्पगत्त

प्रब्‍धन (DIPAM) से अतितथक मामलों के गवभाग को स्थानांतररत कर दी है। गवत्त मंत्रालय में अतितथक

मामलों के गवभाग को ऄब “राष्ट्रीय गनवेश कोष में अय के प्रवाह को गनयोगजत करने से सम्बग्‍धत

गवत्तीय नीगत” का प्रभारी बना ददया गया है।

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3.2. भारत में इज़ ऑफ़ डू आं ग गबज़ने स (Ease of Doing Business in India)

 इज़ ऑफ़ डू आंग गबज़नेस (EoDB) गवि बैंक द्वारा गनतितमत एक सूचकांक है।


 यह व्यावसागयक गवगनयमों और सम्पगत्त के ऄगधकारों की सुरक्षा के सम्ब्‍ध में मात्रात्मक सूचकों
को प्रस्तुत करता है। यह 10 ऄलग-ऄलग मापदंडों पर अधाररत होते हैं गजनकी गवगभन्न
ऄथथव्यस्थाओं में तुलना की जा सकती है।

इज़ ऑफ़ डू आंग गबज़नेस ररपोटथ में प्रयुक्त मापदंड


 कारोबार शुूप करना
 गनमाथण ऄनुमगत
 गवद्युत प्राहै करना
 संपगत्त को पंजीकृ त करना
 िे गडट प्राहै करना
 ऄल्पसंख्यक गनवेशकों की रक्षा करना
 ऄदा दकए जाने वाले कर
 सीमा पार से व्यापार
 प्रवतथनीय ठे के (Enforcing contracts)
 ददवागलएपन का समाधान करना (Resolving insolvency)
 श्रम बाजार गवगनयमन

 ई्च तर रैं िंकग, व्यवसायों के गलए बेहतर, प्राय: सरल गनयम और सम्पगत्त के ऄगधकारों के गलए
ऄत्यगधक संरक्षण की ओर संकेत करती है।
 2018 में भारत की गस्थगत में 30 ऄंकों की वृगि हुइ। यह 2016 में 131 तथा 2017 में 130 वें
स्थान पर था।

गचत्र: EoDB में भारत की रैं िंकग

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भारत द्वारा EODB सूचकांक के 10 मानदंडों पर ऄपनी गस्थगत में सुधार के गलए ईठाये गये कदम:
 प्रदिया में तेजी लाना: ईदाहरण के गलए, 1-2 कायथददवसों के भीतर कम्पनी का पंजीकरण, पैन को
एक ददन में जारी करना, ऑनलाआन अवेदनों पर 15 ददन में गवद्युत कनेक्शन ईपलसध कराना
अदद।
 गडगजटलीकरण: यह व्यवसायों और ईनके कमथचाररयों के गलए गवगभन्न प्रदियाओं को सुगम बना
देता है, जैसे सम्पगत्त और भूगम के ररकाडथ का गडगजटलीकरण, ESIC और EPFO अदद का ररटनथ
भरने के गलए श्रम-सुगवधा पोटथल।
 सीमा पार से व्यापार को सुगवधाजनक बनाना: ‘आं गडयन कस्टम बसगल बवडो प्रोजेक्ट’ के माध्यम से
सीमा शुल्क के गलए ऄगनवायथ दस्तावेजों की संख्या कम करना।
 कानूनों और गनयमों का ऄगधगनयमन या संशोधन: जैसे वागणगज्यक ्‍यायालय ऄगधगनयमन, ई्च
्‍यायालयों में वागणगज्यक गवभाग और वागणगज्यक ऄपीलीय गडवीज़न ऄगधगनयम, 2015 और
गनकास प्रदिया के गलए आ्‍सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड 2016 अदद।
 ऄल्पसंख्यक गनवेशकों की सुरक्षा कम्पनी (संशोधन) ऄगधगनयम, 2015 द्वारा।
हालािदक भारत ने गवद्युत प्राहै करने, ऄल्पसंख्यकों को ऊण ईपलसध कराने और संरक्षण के मापदंड़ो पर
ऄछछा प्रदशथन दकया है। कु छ ऄ्‍य मापदंडों जैसे, गनमाथण परगमट, ददवागलयापन का समाधान, करों का
भुगतान, ऄनुबंधो को लागू करना अदद में प्रदशथन गनम्नस्तरीय रहा है।

3.3. इ-गबज़ पररयोजना (E-biz project)

 यह पररयोजना भारत सरकार की राष्ट्रीय इ -शासन योजना (NEGP) के ऄंतगथत एकीकृ त सेवाओं
की पररयोजनाओं में से एक है। यह 27 गमशन मोड पररयोजनाओं (MMP) का एक भाग है।
 इ-गबज़ का ईद्देय य ऑनलाआन पोटथल के माध्यम से गवनथमेंट टू गबज़नेस (G2B) सेवाओं तक तेज़ी से
और कु शल पहुंच को सुगनगचत कर देश में व्यावसागयक पररवेश में सुधार करना है। आससे व्यवसाय
को प्रारम्भ करने और चलाने के गलए अवय यक गवगभन्न गनयामक प्रदियाओं में होने वाली
ऄनावय यक देरी को कम करने में सहायता प्राहै होगी।
 आस पररयोजना का लष्य है दक सभी गवगनयामक सूचनाओं जैसे- एक व्यवसाय की स्थापना, ईसके
पररचालन से लेकर ईसके सम्भागवत ूपप से बंद होने तक से जुड़ी सूचनाएं आत्यादद को सम्बि
गवगभन्न गहतधारकों के गलए सरलता से ईपलसध कराते हुए भारत में एक गनवेशक ऄनुकूल पररवेश
तैयार करना है। वास्तव में, आसका ईद्देय य एक पारदशी, कु शल और सुगवधाजनक आं टरफे स
गवकगसत करना है, गजसके माध्यम से सरकार और व्यवसाय भगवष्य में समय-समय पर और
लागत प्रभावी ढंग से ऄंतर्दिया कर सकते हैं।
 इ-गबज़ पोटथल की ऄवधारणा नेशनल आं स्टीट्यूट ऑफ़ स्माटथ गवने्‍स (NISG) की सहायता से
गवकगसत की गइ थी तथा आस पोटथल को आं फोगसस टेक्नोलॉजी गलगमटेड (आ्‍फ़ोगसस) द्वारा 10 वषथ
की ऄवगध के गलए सावथजगनक-गनजी भागीदारी (PPP) मॉडल में गवकगसत दकया गया था।

3.4. मे क आन आं गडया पहल

 भारत को गवगनमाथण, गडज़ाआन और नवो्‍मेष का वैगिक कें र स बनाने के ईद्देय य से, भारत सरकार
द्वारा मेक आन आं गडया पहल अरम्भ की गइ है। यह चार स्तम्भों पर अधाररत है– नइ प्रदियाएं,
नइ ऄवसंरचनाएं, नए क्षेत्रक और नइ मानगसकता। यह पहल, न के वल गवगनमाथण में बगल्क
सम्बग्‍धत ऄवसंरचना और सेवा क्षेत्रों में ईद्यगमता को बढावा देने के गलए भी है।

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 गवदेशों के बाजारों में भारत को पसंदीदा गनवेश ग्‍तव्य के ूपप में बढावा देने के गलए, देश के
गनवेश ऄवसरों और सम्भावनाओं के संबंध में जागूपकता ईत्पन्न करने, गनवेशकों के साथ ऄंतर्दिया
और सूचना के प्रसार एवं वैगिक FDI में भारतीय गहस्सेदारी में वृगि के गलए एक आं टरै गक्टव
पोटथल http://makeinindia.com बनाया गया है। आसके ऄगतररक्त, 25 मुख्य क्षेत्रकों (थ्रस्ट
सेक्टसथ) की जानकारी, गजसमें FDI नीगत, राष्ट्रीय गवगनमाथण नीगत, बौगिक सम्पदा ऄगधकार और
ददल्ली-मुम्बइ औद्योगगक गगलयारा (DMIC) सगहत प्रस्तागवत राष्ट्रीय औद्योगगक गगलयारे की
जानकारी पोटथल पर ईपलसध है।
 गवगभन्न के ्‍र सीय मंत्रालयों, राज्य सरकारों, ईद्योग जगत के नेताओं और ऄ्‍य गहतधारकों के साथ
परामशथ करके औद्योगगक नीगत और संवधथन गवभाग (DIPP) ने 2020 तक गवगनमाथण क्षेत्र के
योगदान में 25 प्रगतशत की वृगि के गलए रणनीगत तैयार की है।
 भारत सरकार ने “आ्‍वेस्ट आं गडया” को राष्ट्रीय गनवेश प्रोन्नयन एवं सुगवधा एजेंसी के ूपप में
स्थागपत दकया है। देश में गनवेश को बढावा देने के ईद्देय य से मेक आन आं गडया पहल के ऄंतगथत एक
पूणतथ ः गवकगसत गनवेश सुगवधा कें र स तैयार दकया गया है। यह सुगवधा कें र स मुख्य ूपप से सभी गनवेश
सम्ब्‍धी प्रश्नों के सम्ब्‍ध में जानकारी ईपलसध कराएगा एवं साथ-साथ सम्भागवत गनवेशकों की
ओर से गवगभन्न एजेंगसयों के साथ सम्‍वयन का कायथ करे गा।

3.5. राष्ट्रीय गवगनमाथ ण नीगत, 2011

औगचत्य
 ऄपयाथहै भौगतक ऄवसरं चना, जरटल गवगनयामक पररवेश और कु शल श्रम शगक्त की ऄपयाथहै
ईपलसधता के कारण भारतीय गवगनमाथण ईद्योग सीगमत हो गया था।
 1980 के दशक से भारत के सकल घरे लू ईत्पाद में गवगनमाथण का भाग 15-16% पर गस्थर रहा है।
लोगों के त्वररत गवकास के गलए गवगनमाथण क्षेत्र की भागीदारी में वृगि करने हेतु दक्षता को बढाये
जाने एवं ईत्पादकता में संवधथन की अवय यकता है।
 गवगनमाथण क्षेत्रक का ऄ्‍य क्षेत्रों में नौकररयों के सृजन पर भी गुणक प्रभाव होगा।
 ऄ्‍य एगशयाइ देशों में GDP में गवगनमाथण क्षेत्रक का भाग लगभग 25 से 34% है। ऄतः यह स्पि
है दक देश में वैिीकरण द्वारा ईपलसध कराए गये ऄवसरों का लाभ ईठाने के गलए अवय यक क्षमता
का गवकास नहीं हुअ है ।
 भारत की जनसिख्या में 60% लोग 15-59 वषथ अयु वगथ में अते हैं। यह ऄनुकूल जनसांगख्यकीय
लाभांश है। ऄतः ऐसे में गवगभन्न कौशल वाले लोगों के आस वगथ को लाभकारी रोजगार के ऄवसर
प्रदान कराना अवय यक हो जाता है।
 भारत में ऄनेक प्राकृ गतक एवं कृ गष संसाधन हैं, दक्‍तु मूल्य विथन की मात्रा ऄत्यगधक कम है।
गवगनमाथण क्षेत्रक में वृगि मूल्य वृगि की आस समस्या को सम्बोगधत करे गी और पूज ि ी ईपकरणों के
अयात पर हमारी गनभथरता को कम करे गी।
 रक्षा और दूरसंचार जैसे ऄथथव्यवस्था के रणनीगतक क्षेत्रों में प्रगतस्पधाथ के पररप्रेष्य में यह अवय यक
हो जाता है दक गवगनमाथण के क्षेत्र में और ऄगधक गहनता लायी जाए।
नीगत की गवशेषताएं
 आसका ईद्देय य मध्यम ऄवगध में गवगनमाथण क्षेत्रक की वृगि को 12-14% तक बढा कर आसे

ऄथथव्यवस्था के गवकास का आंजन बनाना है। साथ ही वषथ 2022 तक गवगनमाथण क्षेत्रक को राष्ट्रीय

सकल घरे लू ईत्पाद में कम से कम 25% का योगदान करने में सक्षम बनाना है।

 2022 तक 100 गमगलयन ऄगतररक्त रोजगार सृगजत करने के गलए गवगनमाथण क्षेत्रक में रोजगार
सृजन की दर में वृगि।

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 ग्रामीण प्रवागसयों और शहरी गनधथनों के बीच ईपयुक्त कौशल समूह का गनमाथण करना तादक
संवृगि को समावेशी बनाया जा सके ।
 गवगनमाथण में घरे लू मूल्य संवधथन और तकनीकी गहनता में वृगि।
 ईपयुक्त नीगत समथथन द्वारा भारतीय गवगनमाथण की वैगिक प्रगतस्पधाथत्मकता में वृगि करना।
 गवशेष ूपप से पयाथवरण के सम्ब्‍ध में संधारणीय संवृगि सुगनगचत करना। आसके तहत उजाथ दक्षता
सगहत प्राकृ गतक संसाधनों का आितम ईपयोग और क्षगतग्रस्त एवं गवकृ त पाररगस्थगतकी तंत्रों का
पुनस्थाथपन सुगनगचत करना शागमल है।
नीगतगत लष्य प्राहै करने के ईपाय
 गवगनतितमत वस्तुओं के गलए देश के बढते हुए बाजार का लाभ ईठाने के साथ गवदेशी गनवेश और
प्रौद्योगगदकयों के प्रवेश को प्रोत्सागहत दकया जायेगा।
 यह नीगत, देश में ईद्यमों की प्रगतस्पधाथत्मकता, कायथिमों की ूपपरे खा और कायाथ्‍वयन हेतु
मागथदशथक गसिांत होगी।
 व्यापाररक गवगनयमों को तकथ संगत बनाने से ईद्योग पर प्रदियात्मक और गवगनयामक
औपचाररकताओं के कारण पड़ने वाले ऄनुपालन के बोझ ( कं प्लायंस बडेन ) में कमी होगी ।
 NMP, गवशेष ूपप से राष्ट्रीय गनवेश और गवगनमाथण क्षेत्र (NIMZs) के गनमाथण के माध्यम से
संकुलों और समूहन (क्लस्टसथ एंड एग्रीगेशन) के प्रोन्नयन को प्रोत्सागहत करता है ।
हाल ही में, सरकार ने घोषणा की है दक NMP को मेक आन आं गडया और औद्योगगक िांगत 4.0 जैसी
पहलों से संरेगखत करने के गलए संशोगधत दकया जा रहा है, जो ई्च स्तर के ऑटोमेशन (स्वचालन) को
दशाथता है।

3.6. ददल्ली-मु म्बइ औद्योगगक गगलयारा

 ददल्ली-मुम्बइ औद्योगगक गगलयारा जापानी गवत्तीय और तकनीकी सहायता से गनमाथणाधीन एक


गवशाल ऄवसंरचनात्मक पररयोजना है। 1483 दकमी. लम्बा यह गगलयारा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र
ददल्ली को मुब
ं इ से जोड़ेगा। यह गगलयारा देश के 6 राज्यों-ईत्तर प्रदेश, ददल्ली,हररयाणा,
राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र से होकर गुजरे गा।
 यह डेगडके टेड फ्रेट कॉररडोर, डबल स्टैक्ड कं टेनर ट्रेनों के हाइ एक्सल लोड वैगन (25 टन) के गलए
हाइ स्पीड कनेगक्टगवटी की पररकल्पना करता है। आसके ऄंतगथत ई्च शगक्त वाले आं जनों का प्रयोग
दकया जाएगा। स्वतितणम चतुभजुथ राष्ट्रीय राजमागथ की ददल्ली-मुम्बइ शाखा आस फ्रेट कॉररडोर के
लगभग समानांतर है।
 आस गगलयारे को मूलभूत सुगवधाओं की एक श्रृंखला से लैस दकया जायेगा, जैसे गवद्युत सुगवधाएि,
मागथ में पड़ने वाले ब्‍दरगाहों तक रे ल कनेगक्टगवटी आत्यादद ।

3.7. MSMEs के प्रोन्नयन और गवकास के गलए ईठाये गये कदम

MSME क्षेत्र के महत्त्व को समझते हुए, सरकार ने कइ कायथिम प्रारम्भ दकये है, जैसे प्रधानम्‍त्री
रोजगार सृजन कायथिम (PMEGP), िे गडट गारं टी ट्रस्ट फं ड फॉर माआिो एंड स्माल आं टरप्राआजेज
(CGTMSE), प्रोद्योगगकी ईन्नयन हेतु िे गडट बलक्ड कै गपटल सगससडी स्कीम (CLCSS), स्कीम ऑफ़
फण्ड फॉर ररजनरे शन ऑफ़ ट्रेगडशनल आं डस्ट्रीज (SFURTI), माआिो एंड स्माल आं टरप्राआजेज क्लस्टर
डेवलपमेंट प्रोग्राम (MSECDP)। सरकार द्वारा MSMEs के प्रोत्साहन और गवकास के गलए की गयी
कु छ पहलें आस प्रकार हैं:
 ईद्योग अधार मेमोरं डम (UAM): UAM योजना (2015) MSMEs की व्यवसागयक सुगमता के

गलए एक ऄग्रणी योजना है। आस योजना के ऄंतगथत MSME ईद्यगमयों को के वल एक यूगनक ईद्योग

अधार नंबर (UAN) के गलए तत्काल ऑनलाआन अवेदन देना होगा।

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 ईद्योगों के गलए रोजगार कायाथलय: रोजगार तलाश रहे युवाओं और गनयोक्ताओं को गमलाने के
ईद्देय य से ईद्योगों हेतु रोजगार के ्‍र सों का शुभारम्भ जून 2015 में गडगजटल आगण्डया के ऄनुूपप
दकया गया।
 MSMEs के पुनरुत्थान और पुनवाथस के गलए फ्रेमवकथ : आस फ्रेमवकथ के ऄंतगथत, बैंकों को दबावग्रस्त

MSME ईद्यमों के गलए क्षेत्रीय या गजला स्तर पर सुधारात्मक कायथयोजना (CAP) तैयार करने
हेतु सगमगत का गठन करना होगा।
 नवाचार और ग्रामीण ईद्यगमयों को बढावा देने की योजना (ASPIRE): ईद्यगमता में तेजी लाने
एवं ग्रामीण और कृ गष ईद्योग में नवाचार और ईद्यगमता के प्रारम्भ को बढावा देने के गलए
प्रौद्योगगकी के ्‍र सों और ईष्मायन के ्‍र सों (आ्‍क्यूबेशन सेंटर) के नेटवकथ स्थागपत करने के ईद्देय य से
ASPIRE प्रारम्भ दकया गया था।

 भारत अकांक्षा कोष की स्थापना भारत के लघु ईद्योग गवकास बैंक (SIDBI) के ऄंतगथत MSME
क्षेत्र में स्थागपत नए और गवस्ताररत होने वाले ईद्यमों को पूज
ि ी ईपलसध कराने के ईद्देय य से की
गयी थी।
 गसडबी मेक-आन-आगण्डया लोन फॉर स्माल आं टरप्राआजेज (SMILE): SMILE को भारतीय SMEs
को कम कठोर गनयमों और गवगनयमों के साथ ऄधथ -आदिटी और शतथ-अधाररत ऄल्पावगधक ऊण
प्रदान करने के गलए तथा आसके साथ ही मेक आन आगण्डया के 25 महत्त्वपूणथ क्षेत्रों पर गवशेष ध्यान
देने के गलए प्रारम्भ दकया गया था।
 माइिो यूगनट्स डेवलपमेंट री-फाइनेंस एजेंसी (MUDRA) बैंक की स्थापना सूष्म आकाइयों को

ददए गये ऊणों के गलए वागणज्यक बैंकों/NBFCs/सहकारी बैंकों को गवकास और पुनतितवत्त प्रदान

करने के ईद्देय य से की गयी थी। MUDRA बैंक गवत्तीय साक्षरता प्रदान करने एवं कौशल-ऄंतरालों
तथा सूचना-ऄंतरालों को समाहै करने के गलए िे गडट प्लस दृगिकोण का पालन करें गे।
 स्टाटथ ऄप आगण्डया ऄगभयान ईद्यगमता को प्रोत्सागहत करने और रोजगार सृजन के साथ स्टाटथ-ऄप
(प्रारगम्भक) ईद्यमों के गलए बैंक गवत्त पोषण को बढावा देने के ईद्देय य से गनतितमत कायथ योजना पर
अधाररत है, गजसमें MSME क्षेत्र पर गवशेष ध्यान ददया जायेगा।

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भारतीय ऄथथव्यवस्था
11. भारत में भूमम सुधार

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मवषय सूची
1. पररचय ____________________________________________________________________________________ 3

2. ऐमतहामसक पृष्ठभूमम ___________________________________________________________________________ 3

3. भारत में भूमम सुधारों की अवश्यकता _______________________________________________________________ 4

4. भारत में भूमम सुधारों के ईद्देश्य ___________________________________________________________________ 5

5. भारत में भूमम सुधार___________________________________________________________________________ 5

5.1. भूमम सुधारों के मिए मवमधक फ्रेमवकथ _____________________________________________________________ 5

5.2. भूमम सुधारों के मिए ककए गए ईपाय _____________________________________________________________ 6


5.2.1. मडमजटि आं मडया िैंड ररकॉडथ मॉडनाथआजेशन प्रोग्राम _____________________________________________ 10

6. भारत में भूमम ऄमधग्रहण _______________________________________________________________________ 10

6.1. भूमम ऄमधग्रहण में ईमचत मुअवजा एवं पारदर्शशता का ऄमधकार, पुनवाथस और पुनस्थाथपन ऄमधमनयम, 2013 __________ 11

6.2. भूमम ऄमधग्रहण में ईमचत मुअवजा एवं पारदर्शशता का ऄमधकार, पुनवाथस और पुनस्थाथपन ऄमधमनयम (संशोधन) ऄध्यादेश,
2015 ____________________________________________________________________________________ 11

6.3. भूमम ऄमधग्रहण में ईमचत मुअवजा एवं पारदर्शशता का ऄमधकार, पुनवाथस और पुनस्थाथपन (संशोधन) मवधेयक, 2015_____ 11

7. भूमम सुधार के ईपायों का मवश्लेषण ________________________________________________________________ 12

8. भूमम सुधारों का भमवष्य _______________________________________________________________________ 13

9. भमवष्य के मिए सुझाव ________________________________________________________________________ 14

10. मवशेष अिेख _____________________________________________________________________________ 15

10.1. भूमम ऄमधग्रहणः औमचत्य और भमवष्य की राह ____________________________________________________ 15

10.2. भूमम पट्टाकरण (Land Leasing): राज्यों के मिए फायदे का सुधार _____________________________________ 18
1. पररचय
 ग्रामीण भारत में सत्ता और प्रामधकार का मूि भूमम है। भूमम, सत्ता और िोगों के मध्य संबंध सदैव
पररवतथनशीि रहा है। ग्रामीण कु िीन और कृ मष शमि संरचना कें द्रों के बीच बदिते सम्बन्ध भूमम
से संबंमधत मुद्दों के ही आदथ-मगदथ घूमते है। भूमम, मनुष्य के ऄमस्तत्व या ईसकी अजीमवका के
प्राथममक स्त्रोतों में से एक है क्योंकक भूमम ही मनुष्य की भोजन, वस्त्र एवं अश्रय आत्याकद
अधारभूत अवश्यकताओं की पूर्शत करती है। भूमम का मूल्य मनरं तर बढ़ता रहता है। भूमम में
ऄन्तर्शनमहत ईपयोमगताओं के कारण ऄथथशास्त्री आसे एक मवशेष प्रकार की संपमत्त के रूप में देखते
हैं।
 सीममत ऄथों में, भूमम सुधार का ऄथथ कृ मष जोतों पर ऄमधकतम सीमा (सीलिग) के ऄमधरोपण के
कारण प्राप्त की गयी ऄमधशेष भूमम को छोटे ककसानों और भूममहीन काश्तकारों में मवतररत करना
है। जबकक व्यापक ऄथों में, आसमें स्वाममत्व, संचािन, पट्टा, मबक्री और भूमम के ईत्तरामधकार का
मवमनयमन समम्ममित है (वास्तव में भूमम के पुनर्शवतरण के मिए भी मवमधक पररवतथनों की
अवश्यकता है)।
 भूमम सुधार, मवशेष रूप से सामंती और ऄर्द्थ सामंती ईत्पादन संबंधों पर अधाररत ऄथथव्यवस्था में
सामामजक पररवतथन के प्रमुख साधन रहे है। भूमम सुधार कायथक्रम का मुख्य ईद्देश्य न के वि कृ मष
ईत्पादन में वृमर्द् करना है बमल्क भारत के संमवधान के ऄंतगथत ऄपेमित समतावादी सामामजक
व्यवस्था का मनमाथण करना भी है। आस प्रकार, भूमम एवं भूमम सुधार से सम्बंमधत मुद्दे देश के
राजनीमतक एवं अर्शथक एजेंडे के मुख्य लबदु हैं। यह सुधार भारत को वैमिक बाजार में प्रमतस्पधाथ
करने में सिम बनाने हेतु संवृमर्द् के मिए सुदढ़ृ अधार भी प्रदान करता है। भूमम सुधार नीमत मूि
रूप से राजनीमतक अर्शथक मुद्दा है और ऄमधकतर मामिों में यह जन अंदोिन का पररणाम है।

2. ऐमतहामसक पृ ष्ठ भू मम
 प्राचीन ऊग्वेद संमहता से ज्ञात होता है कक भारतीय-अयों में कृ मष योग्य भूमम मनजी स्वाममत्व या
पररवार के स्वाममत्व में रहती थी। सामुदामयक स्वाममत्व के वि चारागाहों तक सीममत था। भूमम
के मनजी स्वाममत्व को पूणथ रूप से मान्यता प्राप्त थी। भूमम ईस व्यमि की होती थी जो वनों को
साफ करता था और भूमम को कृ मष योग्य बनाता था। ईस व्यमि के पास ईस भूमम को बेचने, ककसी
को देन,े ईसे वसीयत के रूप में मिखने या ऄपने व्यमिगत मववेक के अधार पर हस्तांतररत करने
का ऄमधकार था।
 स्वाममत्वामधकारों एवं सीममत ऄचि संपमत्त ऄमधकारों (रे मस्िक्टेड ररयि एस्टेट राआट्स) के मध्य
स्पष्ट ऄंतर था। प्राचीन एवं मध्य काि के दौरान, भारत में भूमम बंदोबस्त की प्रधान आकाइ गांव
थी। भूमम को कभी भी राजा या सुल्तान की संपमत्त नहीं माना जाता था। यह गांव की संपमत्त होती
थी। राजा का ऄमधकार के वि ईसके द्वारा प्रदत्त संरिण के बदिे ईपभोग में एक ऄंश प्रा्‍त करने
तक सीममत था। चूंकक भू-राजस्व, राज्य के राजस्व का प्रमुख स्रोत था, आसमिए गांव संग्रहण एवं
राजस्व अकिन की एक आकाइ बन गए।
 स्वतंत्रता के समय देश में तीन प्रकार की भूराजस्व प्रणामियां प्रचमित थीं- जमींदारी व्यवस्था,
महािवाडी व्यवस्था और रै यतवाडी व्यवस्था। आन प्रणामियों में अधारभूत ऄंतर भू-राजस्व के
भुगतान की मवमध के स्तर पर था। जमींदारी व्यवस्था में जमींदार द्वारा ककसानों से भू-राजस्व
एकमत्रत ककया जाता था। महािवाडी व्यवस्था में सम्पूणथ गांव की ओर से गांव के मुमखया द्वारा
जबकक रै यतवाडी व्यवस्था में ककसानों द्वारा सीधे राज्य को भू-राजस्व का भुगतान ककया जाता
था।

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 आन प्रणामियों के पररणामस्वरूप, स्वतंत्रता पूवथ भारत में मनम्नमिमखत प्रवृमत्तयों का मवकास हुअ -

सामंती कृ मष संरचना, शोषण, मनम्न कृ मष ईत्पादकता, खाद्यान्नों ों की कमी एवं ऄसंतमु ित फसि
प्रमतरूप। यह व्यवस्थाएं शोषण पर अधाररत थीं मजनमें ऄंतर के वि शोषण की मात्रा का था।
जमींदारी व्यवस्था से रै यतवाडी व्यवस्था की ओर जाने पर क्रममक रूप से शोषण का स्तर कम
होता जाता था। ऄनुपमस्थत ज़मींदारों समहत बडे भूधारकों के एक छोटे से समूह का ही भूमम पर
ऄमधकार था। ककसानों की बहुसंख्यक अबादी का या तो भूमम पर कोइ ऄमधकार नहीं था या
काश्तकारों ऄथवा ईप-काश्तकारों के रूप में ईनके पास ऄत्यंत सीममत ऄमधकार थे। मनधथन िोग
बहुधा मनवाथह के मिए भूमम को पट्टे पर मिया करते थे। यकद काश्तकार ईन्नों त बीजों, खाद या
ऄमतररि श्रममकों का ईपयोग करते थे तो बढ़ी हुइ ईपज के अधे भाग को ईन्हें भू-स्वाममयों के
साथ साझा करना पडता था। स्वतंत्रता के पूवथ भी आस बात को व्यापक स्तर पर माना गया था कक
ऄथथव्यवस्था में मस्थरता एवं सामामजक ऄन्याय का मुख्य कारण कृ मष िेत्रक में गमतशीिता का
ऄभाव था और आसके मिए काफी हद तक शोषक प्रकृ मत के कृ मष संबंधों को मजम्मेदार ठहराया जा
सकता है। जब भारत स्वतंत्र हुअ तो नीमत मनमाथताओं को काश्तकारों द्वारा कृ मष व्यवस्था में
अमूि पररवतथन करने की अवश्यकता महसूस हुइ क्योंकक यह ऄत्यमधक शोषणकारी थी।

3. भारत में भू मम सु धारों की अवश्यकता


 भारत में भूमम सुधार की अवश्यकता के कारण ककसानों की ईन मांगों में मनमहत हैं मजनके तहत वे
ईस भूमम पर स्वाममत्व एवं काश्तकारी ऄमधकार प्राप्त करने के साथ-साथ िगान का तकथ संगत
तरीके से पुनगथठन ऄथवा ईसमे कमी चाहते थे, मजस पर वे खेती करते थे। भूमम सुधार, सामान्य

रूप से भूममहीनों, काश्तकारों और छोटे ककसानों के िाभ के मिए भूमम के पुनर्शवतरण की सरकारी
नीमत को दशाथता है। आसका िक्ष्य सम्पमत्त में मवस्तार के साथ-साथ अय एवं ईत्पादन िमता में
वृमर्द् करना है। भारत में भूमम का ऄभाव है, साथ ही स्वाममत्व का मवतरण भी ऄसमान है। भारत

में कृ मष छोटे ककसानों पर मनभथर है आसमिए भूमम सुधारों का महत्व न के वि सामामजक न्याय,
समान मवतरण ऄमपतु ईत्पादन और कृ मष व्यापार के पररप्रेक्ष्य में भी ऄमधकामधक बढ़ जाता है।
ऄतः आसमें कोइ अश्चयथ नहीं है कक स्वतंत्रता के समय भूमम सुधार के मुद्दे ने नीमतगत एजेंडे में
सवोच्च प्राथममकता प्राप्त की थी।
 आसके ऄमतररि भूमम सुधार नीमत के अर्शथक, सामामजक और राजनीमतक अयाम भी हैं। भूमम
सुधार के अर्शथक अयाम में एक छोटे समूह द्वारा भूमम का स्वाममत्व धारण करना समम्ममित है।
आस समूह के सदस्य वास्तव में कृ मष तो नहीं करते थे परन्तु वास्तमवक खेमतहरों यथा काश्तकार
और कृ मष श्रममकों का शोषण करते थे। दूसरी ओर प्रमतफिों या िाभों के ऄपयाथप्त होने के कारण
एवं ऄमधशेष की ऄनुपिब्धता के कारण काश्तकार भूमम संबंधी सुधार नहीं कर सके । जमीदारों को
ऄपनी भूमम में कोइ व्यमिगत रुमच नहीं थी और आस कारण वे भी भूमम सुधारों पर मनवेश करने के
आच्छु क नहीं थे। आसके पररणामस्वरूप भूमम की ईत्पादकता में मनरं तर कमी अती गइ। कायथ-कारण
की ईपयुथि श्रृंखिा ऄल्पमवकमसत कृ मष की मस्थमत की व्याख्या करने के मिए पयाथप्त हैं।
 जहां तक सामामजक अयामों का संबंध है, भूमम ऄमधकार पारं पररक रूप से ईच्च जामतयों के पास
ही थे और मनम्न जामतयां ऄमधकांशतः काश्तकार या कृ मष श्रममक थीं। अज भी भारत में बडी मात्रा
में भूमम का स्वाममत्व ईच्च जामतयों के पास ही है और काश्तकारों/कृ मष श्रममकों के रूप में ऄमधकतर
मनम्न जामत के िोग ही कायथ कर रहे हैं। आस सामामजक अयाम ने सामामजक ऄसमानता को
यथावत बनाए रखा। आस प्रकार, अर्शथक अयाम के तहत ईत्पन्नों अर्शथक ऄसमानता, कृ मष संबंधों
में मवद्यमान आस सामामजक ऄसमानता के कारण सुदढ़ृ हुइ।

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 यकद राजनीमतक अयाम की बात करें तो ध्यान देने योग्य बात यह है कक ऐमतहामसक रूप से भूमम
के स्वामी सत्तासीन सरकारों के समथथक रहे हैं। भारत में ऄंग्रेजों के शासन के दौरान यह
अमधकाररक रूप से स्पष्ट था। पहिे के जमीदार जो ऄब भूस्वामी हो चुके थे, वे ऄपनी ऄपेिाकृ त
कम संख्या तथा काश्तकारों पर ऄपनी अर्शथक पकड के कारण संरिण के मिए सरकार पर मनभथर
रहते थे (आस प्रकार वे ऄपनी स्वाथथ मसमर्द् करते थे)। साथ ही सरकार भी ईन पर ऄपने ऄमस्तत्व के
मिए मनभथर रहती थी क्योंकक काश्तकार संख्या में ऄमधक थे और स्वयं को शोषक राजनीमतक एवं
सामामजक व्यवस्था के मवरुर्द् संगरठत नहीं कर पाते थे। यह बात के वि भारत के ही पररप्रेक्ष्य में
सही नहीं है बमल्क कृ मष समस्याओं का सामना करने वािे ऄमधकांश देशों का कमोबेश यही ऄनुभव
रहा है।

4. भारत में भू मम सु धारों के ईद्दे श्य


भारत में भूमम सुधार के महत्वपूणथ ईद्देश्य मनम्नमिमखत है:
 ककसानों और काश्तकारों की अर्शथक मस्थमत में सुधार कर भूमम की ईत्पादकता में वृमर्द् करना
ताकक वह कृ मष सुधार तथा कृ मष में मनवेश करने में रुमच िें।
 मवतरणात्मक न्याय सुमनमश्चत करना और सभी प्रकार के शोषण को समाप्त कर समतावादी समाज
की स्थापना करना।
 काश्तकारों को भूमम प्रदान करने के ईद्देश्य से कृ षक स्वाममत्व की प्रणािी का मनमाथण करना।
 कु छ ही हाथों में संकेंकद्रत अय का मवके न्द्रीकरण करना ताकक ईपभोिा वस्तुओं के मिए मांग में
वृमर्द् हो सके ।

5. भारत में भू मम सु धार


 स्वातंत्र्योत्तर भारत में, भूमम-जोतों के प्रमतरूप को बदिने के मिये मवमभन्नों अन्दोिन चिाये गए,
मजनमें उपर से अरोमपत (From Above) मजनको व्यापक रूप से कें द्र सरकार द्वारा कदए गए
कदशा मनदेशों के ऄनुसार राज्य मवधायकों द्वारा ऄमधमनयममत एवं ऄंततः राज्य सरकार की एजेंसी
द्वारा कायाथमन्वत कानूनों के माध्यम से िागू ककया गया।
 भू-स्वाममयों की ऄनुममत एवं ककसानों द्वारा शांमतपूणथ जुिस
ू ों के माध्यम से नीचे की ओर से
(From Above) भूमम सुधार; जैसा कक भूदान, ग्रामदान के मामिे में देखा जा सकता है। प.
बंगाि में बटाइदारों को ‘ऑपरे शन बगाथ’ तथा कनाथटक में मवशेष रूप से गरठत ‘भूमम
न्यायामधकारण’ के जररए भूमम सुधारों को िागू ककया गया।

5.1. भू मम सु धारों के मिए मवमधक फ्रे मवकथ

 देश में भूमम सुधारों के कक्रयान्वयन की अवश्यकता को मान्यता प्रदान करते हुए भारत का
संमवधान ऄनुच्छेद 39 के ऄंतगथत मनम्नमिमखत प्रावधान करता है:
o देश के महत्वपूणथ संसाधनों के स्वाममत्व एवं मनयंत्रण को आस प्रकार मवतररत ककया जाना
चामहए कक सावथजमनक महत को सवोत्तम रूप में साधा जा सके ; और
o अर्शथक प्रणािी का संचािन आस प्रकार नहीं होना चामहए कक संपमत्त या ईत्पादन के साधनों
का सावथजमनक रूप से ऄमहतकारी संकेन्द्रण हो जाए।
 हािांकक, भारतीय संमवधान के ऄंतगथत भूमम सुधार संबमं धत राज्यों की मजम्मेदारी है, यद्यमप
संघीय सरकार आस सम्बन्ध में व्यापक नीमतगत कदशा-मनदेश जारी करती है ककन्तु भूमम सुधार
कानून की प्रकृ मत, राजनीमतक आच्छाशमि का स्तर एवं भूमम सुधार के मिए संस्थागत समथथन तथा
भूमम सुधारों को कायाथमन्वत करने में सफिता की कोरट ऄिग-ऄिग राज्यों में ऄिग-ऄिग रही है
क्योंकक ऄमधकतर राज्यों में यह एजेंडा पूणत
थ या िागू नहीं ककया गया है।

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5.2. भू मम सु धारों के मिए ककए गए ईपाय

भारत में भूमम सुधार की चार प्रमुख श्रेमणयां हैं:


1. काश्तकारी मवमनयमन जो काश्तकारों के मिए मनर्शमत संमवदात्मक शतों में सुधार करने का प्रयास
करता है। आनमें फसि भागीदारी और भू-धारण की सुरिा भी समम्ममित है।
2. ईन मबचौमियों का ईन्मूिन जो स्वतंत्रता पूवथ भू-राजस्व प्रणािी में िगान संग्राहक हुअ करते थे।
3. ऄमधशेष भूमम, भूममहीनों को पुनर्शवतररत करने के दृमष्टकोण से भूमम जोतों पर ऄमधकतम सीमा
(सीलिग) अरोमपत करना।
4. ऄसमान भू-जोतों को समेककत करने के प्रयास।
 भूमम सुधार की प्रथम श्रेणी ऄथाथत् काश्तकारी सुधार ने ऐसे मवमनयमन ऄमधरोमपत ककए जो
काश्तकारों के मिए बनायी गयी संमवदात्मक शतों में सुधार करते थे। मिरटश भू-राजस्व प्रणािी के
ऄंतगथत बडे सामंती भू-धारकों (जमीदारों) ने राज्य को कदए गए गए भू-राजस्व के बदिे ककसानों
से कर िेने के ऄमधकार प्राप्त ककए। स्वतंत्रता के समय िगभग अधी भूमम आस प्रणािी के ऄंतगथत
समम्ममित थी। आस प्रणािी को शोषणकारी माना जाता था।
 मबचौमियों के ईन्मूिन का ईद्देश्य आन बडे भू-धारकों की शमि को कम करना था और साथ ही यह
सुमनमश्चत करना था कक भूमम पर खेती करने वािे कृ षक सरकार के साथ सीधे संपकथ में रहें। आस
सुधार ने भू-धारकों द्वारा ऄन्यायपूणथ तरीके से ऄमधशेष िेने की प्रवृमत्त को कम ककया।
 तीसरे प्रकार का भूमम सुधार भूमम जोतों पर ऄमधकतम सीमा के ऄमधरोपण से सम्बंमधत था।
आसका ईद्देश्य ऄमधशेष भूमम को भूममहीनों में पुनः मवतररत करना था। ऄंततः भूमम जोतों के
समेकन में चौथे प्रकार का भूमम सुधार भी समम्ममित था मजसने यह सुमनमश्चत ककया कक छोटे
भूस्वाममयों के स्वाममत्व में अने वािे एक दूसरे से कु छ दूरी पर मस्थत भूमम के छोटे भूभागों को
व्यवहायथता और ईत्पादकता को बढ़ावा देने के मिए एक ही भूमम जोत में समेककत ककया जा सके ।
ककन्तु मवमभन्नों भूभागों में भूमम की गुणवत्ता में पररवतथन होने के कारण यह ईपाय कायाथमन्वत
करना ऄपेिाकृ त करठन रहा है।
 भूमम सुधारों में मबचौमियों के ईन्मूिन को सामान्य रूप से ऄन्य सुधारों की ऄपेिा ऄमधक सफि
माना गया है। भूमम सुधार के ऄन्य प्रकारों में मवमभन्नों राज्यों का ररकॉडथ मममश्रत और पररवतथनशीि
रहा है। ईदाहरण के मिए, ऄमधकतम सीमा कानून के ऄंतगथत कु ि कृ मष योग्य िेत्र के के वि 1.7%
को ऄमधशेष घोमषत ककया गया था और आसके के वि 1% को ही मवतररत ककया गया था। भू-
धारकों ने सीधे तौर पर ऄपने राजनीमतक प्रभाव के माध्यम से एवं साथ ही ऄपवंचन और
ईत्पीडऩ के मवमभन्नों तरीकों से आन सुधारों के कक्रयान्वयन का मवरोध ककया। आन तरीकों में
मनम्नमिमखत शाममि थे -
o ऄमधकतम सीमा कानून से बचने के मिए ऄपनी भूमम का पंजीकरण मवमभन्नों ररश्तेदारों के
नाम पर करना एवं ;
o काश्तकारों को मवमभन्न भू-भागों में बदि-बदिकर मनयोमजत करना या यहााँ तक कक ईन्हें
बेदखि ही कर देना ताकक वे काश्तकारी कानून के ऄंतगथत ककए गए संशोधनों के अधार पर
कायथकाि ऄमधकार प्रा्‍त न कर सकें ।
 भारतीय पररप्रेक्ष्य में भूमम सुधारों से सम्बंमधत सामान्य अकिन कु छ हद तक नकारात्मक है।
ईदाहरण के मिए योजना अयोग के टास्क फोसथ की कृ मष संबंधों पर ररपोटथ (1973) में भारत में
भूमम सुधारों का समग्र तौर पर अकिन मनम्नमिमखत था : ‘स्वतंत्रता के बाद से ऄपनाया गया
भूमम सुधार कायथक्रम कृ मष िेत्र में वांमछत पररवतथन िाने में मवफि रहा है।’ यह ररपोटथ आस
मवफिता के मिए प्रत्यि रूप से राज्य सरकारों की राजनीमतक आच्छाशमि को दोषी ठहराती है:
नीमत एवं मवधायन तथा कानून और ईसके कायाथन्वयन में मवद्यमान मवशाि ऄंतराि राजनीमतक
आच्छाशमि के ऄभाव को प्रदर्शशत करते हैं । स्वतंत्रता के बाद से सावथजमनक गमतमवमध के ककसी भी
िेत्र में मनयम और ऄभ्यास, नीमत सम्बन्धी घोषणाओं और वास्तमवक कक्रयान्वयन के मध्य आतना
ऄमधक ऄंतराि कहीं नहीं रहा है मजतना कक भूमम सुधारों के िेत्र में रहा है ।

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स्वतंत्रता के बाद से भारत में भूमम सम्बन्धी नीमत के व्यापक रूप से चार चरण रहे हैं -
1. प्रथम और सवाथमधक िंबे चरण (1950-72) में भूमम सुधार के तीन प्रमुख प्रयास ककए गए:

मबचौमियों का ईन्मूिन, काश्तकारी सुधार एवं भूमम की ऄमधकतम सीमा (िैंड सीलिग) अरोमपत
कर भूमम का पुनर्शवतरण। मबचौमियों का ईन्मूिन सफि रहा ककन्तु काश्तकारी सुधार एवं
ऄमधकतम सीमा अरोमपत करने जैसे कदमों को कम सफिता प्राप्त हुइ।
2. दूसरे चरण (1972 - 85) में ऄन्य बातों से ध्यान हटा कर गैर-कृ मष भूमम को कृ मष योग्य भूमम के
ऄंतगथत िाने पर ध्यान कें कद्रत ककया गया।
3. तीसरे चरण (1985 - 95) में जि ग्रहण (संभर) िेत्र का मवकास, सूखा प्रवण िेत्र का मवकास

(DPAP) एवं मरुस्थिीय िेत्र मवकास कायथक्रमों (DADP) के माध्यम से जि एवं मृदा संरिण पर
ऄमधकामधक ध्यान कदया गया। बंजर भूमम एवं बेकार हो चुकी भूमम पर ध्यान कें कद्रत करने के मिए
कें द्र सरकार द्वारा बंजर भूमम मवकास एजेंसी की स्थापना की गइ थी। आस चरण की कु छ नीमतयां
आस चरण की ऄवमध के समाप्त होने के बाद भी जारी रहीं।
4. नीमत का चौथा और वतथमान चरण (1995 से ऄब तक जारी), भूमम सम्बन्धी मवधायन जारी रखने
तथा भूमम राजस्व प्रशासन एवं मवशेष रूप से भूमम ऄमभिेखों में ऄमधक स्पष्टता िाने के प्रयासों
की अवश्यकता के सम्बन्ध में होने वािी चचाथओं एवं वाद-मववाद पर के मन्द्रत है।
 भूमम सम्बन्धी नीमत सभी पंचवषीय योजनाओं में समामवष्ट महत्वपूणथ ऄवयवों में से एक रही है।
योजना दस्तावेजों में नीमत ऄमभकथन कहीं-कहीं ऄत्यमधक स्पष्ट रूप से व्यि ककये गए हैं, ककन्तु
ऄमधकतर स्थानों पर आनकी ऄमभव्यमि काफी ऄस्पष्ट है। भूमम सम्बन्धी नीमत में मवमभन्न योजना
दस्तावेज़ों के माध्यम से दशाथए गए पररवतथनों का ऄविोकन मनम्नानुसार है:
योजना ऄवमध के माध्यम से भू-नीमत मनमाथण
योजना ऄवमध प्रमुख मुद्दा नीमतगत बि
पहिी योजना कृ मष के ऄंतगथत अने वािे िेत्र में परती भूमम को कृ मष ऄंतगथत िाने के मिए
1951 – 56 वृमर्द् की जाए। गांव की भूमम सुधार एवं भूमम ईपयोग दिता में वृमर्द्।
सावथजमनक भूमम की देखभाि काश्तकारों को भूमम पर खेती करने का
करने के मिए सामुदामयक मवकास ऄमधकार कदया जाना। मबचौमियों का
(CD) नेटवकथ । मवशाि अकार की ईन्मूिन।

जोतों के मध्य ऄवमस्थत गैर-


कृ मषत भूमम की ऄत्यमधक मात्रा।
दूसरी योजना व्यापक स्तर पर कृ मष की वषाथ पर महत्वपूणथ कायथक्रम के रूप में मृदा संरिण।
1956 – 61 मनभथरता एवं मनम्न भूमम भूमम सुधार कायाथन्वयनों का प्रथम चरण।
ईत्पादकता जैसी समस्याओं एवं वषाथ लसमचत िेत्रों के मिए लसचाइ मवकास।
लसचाइ कृ मष पर मुख्य बि। सामुदामयक मवकास के माध्यम से प्रौद्योमगकी
के मिए प्रमशिण एवं मवस्तार कायथ।
तीसरी योजना आस चरण में खाद्य सुरिा सम्बन्धी एक दृमष्टकोण के रूप में िेत्र मवकास। चयमनत
1961 – 66 लचताएं हावी रहीं। कृ मष योग्य मजिों के मिए गहन िेत्र मवकास कायथक्रम
बंजर भूमम को कृ मषत िेत्रों के ऄपनाया गया। एकीकृ त भूमम नीमत दृमष्टकोण
ऄंतगथत िाया जाना। मपछडे िेत्रों ऄन्तर्शनमहत था। मृदा संरिण सवेिण ककए
को मवकास की मुख्यधारा के गए थे।
ऄंतगथत िाना।
चौथी योजना आस चरण में खाद्य सुरिा पर बि शुष्क भूमम िेत्रों में लसचाइ एवं मृदा संरिण

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1969 – 74 कदया जाना जारी रहा क्योंकक पर ऄमधकामधक बि कदया गया एवं तकनीकी
न्यूनतम पोषण अवश्यकताओं की पररवतथन का अरं भ ककया गया। भूमम हदबंदी
पूर्शत ज़रूरी थी। भूमम ईपयोग को ऄमधमनयम एवं जोतों के समेकन (चकबंदी) के
गैर खाद्य फसिों से खाद्य फसिों माध्यम से भूमम सुधारों का मद्वतीय चरण।
की ओर ईन्मुख करने हेतु तथा आस कु छ संस्थागत पररवतथन ककए गए।
प्रकार की भूमम की िमता बढ़ाने
के मिए प्रोत्साहनों का प्रावधान
ककया गया।
पांचवीं योजना लसमचत कमान िेत्रों में मनम्नीकृ त सूखा प्रवण िेत्र का मवकास। मरुस्थि िेत्र
1974 – 79 भूमम-प्रबंधन की समस्याएं सामने मवकास कायथक्रम एवं मृदा संरिण अरम्भ
अइ। आस योजना में सूखा प्रवण ककया गया तथा अगे आन कायथक्रमों का और
िेत्रों पर ध्यान कदया गया। भी संवधथन ककया गया। शुष्क कृ मष के मिए
नवीन प्रोत्साहन।
छठीं योजना ईपिब्धता की तुिना में भूमम चयमनत िेत्रों में सूखा प्रवण िेत्र कायथक्रम के
1980 – 85 संसाधनों का ऄपेिाकृ त कम ऄंतगथत भूमम एवं जि प्रबंधन कायथक्रम।
ईपयोग। सूखा प्रवण िेत्रों पर
ध्यान देना जारी रखा गया। हररत
क्रांमत के दौरान जो िेत्र मपछड
गए थे ईन पर कृ मष करने की
अवश्यकता।
सातवीं योजना मृदा ऄपरदन और भूमम का मृदा और जि संरिण तथा भूमम मनम्नीकरण
1985 – 90 मनम्नीकरण प्रमुख मुद्दों के रूप में का समाधान करना। मनम्न भूममयों पर मवशेष
सामने अए। ऄकृ मषत भूमम में ध्यान। बंजर भूमम मवकास कायथक्रम। भूमम
वृमर्द्। मनवथनीकरण एवं वन भूमम प्रबंधन का दीघथकामिक दृमष्टकोण।
का मनम्नीकरण।
अठवीं योजना शुष्क भूमम और वषाथ लसमचत िेत्रों जिग्रहण िेत्र मवकास पर बि। मृदा संरिण
1992 – 97 पर ध्यान देने की अवश्यकता। का जिग्रहण िेत्र कायथक्रमों के साथ मविय
लसमचत कमान िेत्रों में भूमम का कर कदया गया। कृ मष जिवायु िेत्रीय योजना
मनम्नीकरण। िोगों की भागीदारी के दृमष्टकोण को समम्ममित ककया गया।
गांव के स्तर पर भूमम प्रबंधन में
प्रमुख मुद्दे के रूप में सामने अइ।
नौवीं योजना भूमम मनम्नीकरण ऄत्यमधक बढ़ ऄल्प प्रयुि भूमम को खेती के ऄंतगथत िाना।
1997 - 2002 गया। मवमभन्नों ऄवयवों में बंजर भूममयों का प्रबंधन। गांव की सावथजमनक
जिग्रहण िेत्र मवकास का भूममयों का रख-रखाव। मवके न्द्रीकृ त भूमम
एकीकरण। भूमम सुधारों पर प्रबन्धन प्रणािी। गांव की भूममयों का प्रबंधन
पुनर्शवचार। संभामवत और करने के मिए पंचायती राज संस्थाएं। भूमम
वास्तमवक फसि पैदावारों के बीच सम्बन्धी मवधायन पर पुनर्शवचार।
ऄंतरािों को समाप्त करने की
अवश्यकता। दीघथकामिक नीमत
दस्तावेज़ की अवश्यकता ।
दसवीं योजना भूमम ऄमधग्रहण, वन भूमम, भूमम मवशेष अर्शथक िेत्र ऄमधमनयम, परं परागत
2002-07 ऄमभिेख, शहरी भूमम अकद। वनवासी (वन ऄमधकारों की मान्यता)

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ऄमधमनयम, 2006 एवं मनयम, 2007 अकद।
ग्यारहवीं भूमम ऄमभिेख प्रबंधन भूमम ऄमभिेखों का कम््‍यूटरीकरण (CLR)
योजना एवं राजस्व प्रशासन तथा भूमम ऄमभिेखों के
2007-12 ऄद्यतनीकरण को सुदढ़ृ करने (SRA&ULR)
वािी दो मौजूदा के न्द्र प्रायोमजत योजनाओं
का मविय एवं ईन्हें रा्ीय भूमम ऄमभिेख
अधुमनकीकरण कायथक्रम (NLRMP) की
संशोमधत के न्द्र प्रायोमजत योजना के रूप में
प्रमतस्थामपत करना।
बारहवीं योजना भूमम ऄमधग्रहण, पुनवाथस और भूमम ऄमधग्रहण, पुनवाथस और प्रमतस्थापन
2012-17 प्रमतस्थापन, भूमम पट्टाकरण (LARR) 2013, भूमम पट्टाकरण (Land

(Land Leasing) Leasing) पर नीमत अयोग का कॉन्से्‍ट


पेपर एवं कृ षक महतैषी सुधार सूचकांक

 कु मार्‍पा समममत की ऄनुशस


ं ाओं का ऄनुपािन; भारतीय रा्ीय कांग्रेस ने देश में प्रचमित कृ मष
संबंधों का गहन ऄध्ययन करने के मिए जे. सी. कु मार्‍पा की ऄध्यिता में कृ मष सुधार समममत की
स्थापना की एवं राज्यों ने मबचौमियों के ईन्मूिन हेतु 1950 के दशक में क़ानून ऄमधमनयममत
ककए। यद्यमप आन कानूनों की प्रकृ मत एवं प्रभाव एक राज्य से दूसरे राज्य में मभन्न थे।
 भूदान अंदोिन 1951 में अरं भ हुअ था। मवनोबा भावे ने भूदान एवं ग्राम दान के माध्यम से भूमम
के व्यमिगत स्वाममत्व को समाप्त करने की अशा की थी और यह मविास जताया था कक यह
अंदोिन भूमम के न्यायपूणथ मवतरण, जोतों के एकीकरण एवं ईनकी संयुि खेती सुमनमश्चत करने के
मिए दीघाथवमध तक संचामित होना चामहए।
 मइ 1955 में योजना अयोग ने गुिजारी िाि नंदा की ऄध्यिता में देश में भूमम सुधारों की
समीिा करने हेतु एक समममत गरठत की। आस समममत ने कृ मष भूमम की मनरपेि मात्रा (ऄमधकतम
सीमा), भूमम के मिए पूज
ं ी मनवेश करने, मनजी कृ मष को प्रोत्सामहत करने, भूमम के िेत्र में
ऄमनमश्चतता समाप्त करने एवं भूममहीनों को कायथ व सुरिा प्रदान करने के संबंध में ऄनुशंसाएं कीं।
 सभी पंचवषीय योजनाओं का मवश्लेषण यह स्पष्ट करता है कक भारत में योजना मनमाथण के अरम्भ
के बाद से ग्रामीण मवकास और भूमम सुधारों का दृमष्टकोण, जोतों के समेकन, उपरी सीमा के
ईपरान्त ऄमधशेष भूमम और बंजर भूमम के पुनर्शवतरण एवं काश्तकारी सुधार, खेती और कृ मष
व्यापार के मिए पट्टे पर मनजी भूमम देने हेतु मवमधक प्रावधान बनाने, कं ्‍यूटरीकरण, भूमम
ऄमभिेखों के ऄद्यतनीकरण एवं सुधार, भूमम के सन्दभथ में स्त्री के ऄमधकारों की मान्यता देने अकद
िेत्रों पर कें कद्रत रहा है।
 ऐसा प्रतीत होता है कक अर्शथक सुधारों के पररणामस्वरूप भूमम सुधारों ने की गमत मंद हो गइ है।
यहााँ तक कक कभी-कभी तो भूमम सुधारों के माध्यम से भूमम के पुनर्शवतरण के मवचार पर ही
प्रश्नमचन्ह खडे कर कदए जाते हैं।
 हािांकक यह तकथ ऄनुमचत है कक भूमम सुधार बाज़ार ईन्मुख मवकास के रास्ते में बाधक बनते हैं।
जापान और कोररया जैसे देशों के ऄनुभव से पता चिता है कक भूमम सुधार ग्रामीण अबादी को
ऄमधक कष्ट कदए मबना पूज
ं ीवादी कृ मष के तीव्र और ऄमधक संधारणीय मवकास में सहायक हो सकते
हैं। ककन्तु ऐसे भूमम सुधारों के मबना ककए गए बाज़ार ईन्मुख अर्शथक सुधार ग्रामीण मनधथनों के
मिए कष्टदायक और दीघथकाि में गैर-संधारणीय हो सकते हैं।

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 मवगत 5 दशकों के दौरान भारत के भूमम सुधार नीमत सबंधी हस्तिेपों का अकिन मनधथनता

ईन्मूिन, संघषथ प्रबंधन और समता, संधारणीय अर्शथक मवकास, पयाथवरणीय प्रभाव एवं ईत्पादन
दिता अकद मवमभन्नों मापदंडों पर ईनके प्रभाव के अधार पर ककया जा सकता है। समग्र रूप से
कृ मष मस्थमत एवं नीमत कायाथन्वयन की सीमा के अधार पर राज्यों में भू-नीमत हस्तिेपों के मवमभन्नों
प्रकार के प्रभाव देखे गए हैं।

5.2.1. मडमजटि आं मडया िैं ड ररकॉडथ मॉडनाथ आ जे श न प्रोग्राम

भूमम सुधार (LR) मवभाग दो कें द्र प्रायोमजत योजनाओं - भूमम ऄमभिेखों का कं ्‍यूटरीकरण

(Computerisation of Land Records; CLR) तथा राजस्व प्रशासन का सुदढ़ृ ीकरण एवं भूमम

ऄमभिेखों का ऄद्यतनीकरण (Strengthening of Revenue Administration and Updating of

Land Records; SRA&ULR) को कायाथमन्वत कर रहा था। बाद में वषथ 2008 में मंमत्रमंडि ने

संशोमधत योजना मडमजटि आं मडया िैंड ररकॉडथ मॉडनाथआजेशन प्रोग्राम (DILRMP) या रा्ीय भूमम

ऄमभिेख अधुमनकीकरण कायथक्रम (NLRMP) में आन योजनाओं के मविय का ऄनुमोदन ककया।

DILRMP के मुख्य ईद्देश्य ऄद्यतन ककए गए भू-ऄमभिेखों की प्रणािी, स्वचामित एवं स्वत:

नामांतरण, पाठ संबंधी (textual) तथा स्थानीय ऄमभिेखों के मध्य एकीकरण, राजस्व और पंजीकरण

के मध्य परस्पर सम्बन्ध, वतथमान मविेखों का पंजीकरण करना तथा वतथमान में प्रचमित ऄनुमामनत
स्वाममत्वामधकार के स्थान पर मनमश्चत स्वाममत्वामधकार ‍यवस्था की प्रणािी अरं भ करना है।
DILRMP के तीन मुख्य ऄवयव हैं:
 भूमम ऄमभिेख का कं ्‍यूटरीकरण
 सवेिण /पुन: सवेिण
 पंजीकरण का कं ्‍यूटरीकरण
मजिे को कायाथन्वयन की आकाइ के रूप में माना गया है, जहााँ सभी कायथक्रम गमतमवमधयों को संकेंकद्रत

करना है। यह अशा की गइ थी कक 12वीं योजना की समामप्त तक देश के सभी मजिों को आसमें समामवष्ट
कर मिया जाएगा। के वि ऐसे मजिे शेष रह जाएंगे जहां पहिी बार भूमम कर सवेिण ककए जा रहे हैं।

6. भारत में भू मम ऄमधग्रहण


 2014 तक भूमम ऄमधग्रहण ऄमधमनयम, 1894 भूमम ऄमधग्रहण की प्रकक्रया को मवमनयममत करता

था। यद्यमप 1894 के ऄमधमनयम में भू-स्वाममयों के मिए िमतपूर्शत का प्रावधान था ककन्तु यह
मवस्थामपत पररवारों के मिए पुनवाथस एवं पुनस्थाथपना का प्रावधान नहीं करता था। भूमम
ऄमधग्रहण की प्रकक्रया को मवमनयममत करने हेतु नए कानून की अवश्यकता को ईमचत ठहराने के
मिए सरकार द्वारा कु छ कारण कदए गए थे। आसके ऄमतररि सवोच्च न्यायािय ने भी 1894 के
ऄमधमनयम में समामवष्ट ईमचत मुअवज़े के मनधाथरण संबंधी मुद्दों एवं सावथजमनक प्रयोजन का ऄथथ
स्पष्ट करने की अवश्यकता की ओर संकेत ककया था। आसमिए संसद द्वारा वषथ 2013 में भूमम

ऄमधग्रहण में ईमचत मुअवज़े एवं पारदर्शशता का ऄमधकार, पुनवाथस और पुनस्थाथपन ऄमधमनयम,

2013 पाररत ककया गया था।

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6.1. भू मम ऄमधग्रहण में ईमचत मु अ वजा एवं पारदर्शशता का ऄमधकार, पु न वाथ स और

पु न स्थाथ प न ऄमधमनयम, 2013

 यह ऄमधमनयम भूमम ऄमधग्रहण एवं साथ ही पुनवाथस तथा पुनस्थाथपन का प्रावधान करता है। आस
ऄमधमनयम ने भूमम ऄमधग्रहण ऄमधमनयम 1894 को प्रमतस्थामपत ककया है ।
 भूमम ऄमधग्रहण की प्रकक्रया, सामामजक प्रभाव अकिन सवेिण, ऄमधग्रहण का अशय स्पष्ट करते
हुए प्रारं मभक ऄमधसूचना व्यि करने, ऄमधग्रहण की घोषणा एवं मनमश्चत समय तक मुअवज़ा
प्रदान ककए जाने को समामवष्ट करती है। आसके ऄन्तगथत सभी ऄमधग्रहणों के मिए ऄमधग्रहण द्वारा
प्रभामवत िोगों को पुनवाथस एवं पुनस्थाथपन प्रदान ककया जाना अवश्यक है।
 ग्रामीण िेत्रों के मामिे में ऄमधग्रमहत भूमम के स्वाममयों को कदया जाने वािा मुअवज़ा बाजार
मूल्य की तुिना में चार गुना होगा और शहरी िेत्रों के मामिे में बाजार मूल्य की तुिना में दोगुना
होगा।
 नया कानून सावथजमनक मनजी भागीदारी पररयोजनाओं के मिए भूमम ऄमधग्रमहत ककए जाने के
मिए 70 % सहममत और मनजी कं पमनयों के मिए भूमम ऄमधग्रमहत ककए जाने के मिए 80 %
सहममत प्राप्त करने को ऄमनवायथ बनाता है।
 मनजी कं पमनयों द्वारा बडे भू-भागों की खरीद के मिए पुनवाथस एवं पुनस्थाथपन का प्रावधान
अवश्यक होगा।
 आस ऄमधमनयम के प्रावधान मौजूदा 16 कानूनों के ऄंतगथत ककए जाने वािे ऄमधग्रहण जैसे मवशेष
अर्शथक िेत्र ऄमधमनयम 2005, परमाणु उजाथ ऄमधमनयम 1962 एवं रे िवे ऄमधमनयम 1989 पर
िागू नहीं होंगे।

6.2. भू मम ऄमधग्रहण में ईमचत मु अ वजा एवं पारदर्शशता का ऄमधकार, पु न वाथ स और


पु न स्थाथ प न ऄमधमनयम (सं शोधन) ऄध्यादे श , 2015

 भूमम ऄमधग्रहण में ईमचत िमतपूर्शत एवं पारदर्शशता का ऄमधकार, पुनवाथस और पुनस्थाथपन
ऄमधमनयम, 2013, 1 जनवरी 2014 से िागू हुअ। ककन्तु आस ऄमधमनयम के कायाथन्वयन में
करठनाइ ईत्पन्नों हो रही थी। आसके ऄमतररि रा्ीय पररयोजनाओं के मिए भूमम के ऄमधग्रहण में
अने वािी प्रकक्रयात्मक करठनाआयों का शमन ककया जाना भी शेष था। आन करठनाआयों को समाप्त
करने एवं साथ ही ‘प्रभामवत पररवारों’ के महतों का ऄमधकामधक संरिण करने के मिए आस
ऄमधमनयम में कु छ संशोधन ककए गए। आसकी तात्कामिकता को ध्यान में रखते हुए यह संशोधन
ऄध्यादेश के माध्यम से 31 कदसंबर 2014 को प्रभाव में िाए गए थे। आसके बाद 10 माचथ 2015
को िोकसभा ने आस ऄध्यादेश को प्रमतस्थामपत करने के मिए संशोधन मवधेयक पाररत ककया।

6.3. भू मम ऄमधग्रहण में ईमचत मु अ वजा एवं पारदर्शशता का ऄमधकार, पु न वाथ स और


पु न स्थाथ प न (सं शोधन) मवधे य क, 2015

 यह मवधेयक 2013 में पाररत ककए गए मुख्य ऄमधमनयम में संशोधन के मिए िाया गया।
 यह मवधेयक, पांच ऄिग-ऄिग श्रेमणयों की पररयोजनाओं को मनम्नमिमखत ऄमनवायथताओं से छू ट

प्रदान करने हेतु सरकार को सिम बनाता है: (i) सामामजक प्रभाव अकिन, (ii) बहु-फसिी भूमम
के ऄमधग्रहण पर प्रमतबंध, और (iii) मनजी पररयोजनाओं और सावथजमनक मनजी भागीदारी
पररयोजनाओं के मिए सहममत।

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 पररयोजनाओं की पांच श्रेमणयां हैं: i) रिा, (ii) ग्रामीण ऄवसंरचना, (iii) ककफायती अवास, (iv)

औद्योमगक गमियारे , (v) सावथजमनक मनजी भागीदारी पररयोजनाओं समहत ऐसी ऄवसंरचना
मजसमें भूमम का स्वाममत्व सरकार के पास होता है।
 यकद भूमम ऄमधग्रहण के सम्बन्ध में ऄमधमनणथय 5 वषथ पूवथ ककया गया हो और मुअवज़ा प्रदान नहीं
ककया गया हो या कब्जा नहीं मिया गया हो तो ऐसे मामिों में आस ऄमधमनयम का प्रभाव
पूवव्य
थ ापी होगा। 5 वषथ की ऄवमध में ईस ऄवमध की गणना नहीं की जाएगी जब न्यायािय द्वारा
ऄमधग्रहण पर रोक िगाइ गइ थी।
 2013 के ऄमधमनयम में यह प्रावधान था कक यकद मवभाग द्वारा कोइ गैर-कानूनी कायथ ककया जाता
है तो ईसके मिए ईस सरकारी मवभाग के प्रमुख को दोषी माना जायेगा। यह मवधेयक आस प्रावधान
को समाप्त करता है और सरकारी कमथचारी पर मुकदमा चिाने हेतु पूवथ ऄनुममत को अवश्यक
बनाता है।

कृ षक महतैषी सुधार सूचकांक


 नीमत अयोग ने कृ मष बाजार सुधार, भूमम पट्टा सुधार और मनजी भूमम पर वामनकी (वृिों की कटाइ
एवं पररवहन) के तीन प्रमुख िेत्रों में सुधार िाने की अवश्यकता के प्रमत राज्यों को तैयार करने के
मिए पहिी बार कृ मष मवपणन और कृ षक महतैषी सुधार सूचकांक तैयार ककए हैं।
 आस सूचकांक में 0 से िेकर ऄमधकतम 100 ऄंक का ऄथथ होगा कक ईसमें पूरी तरह से सुधार िागू
ककए गए हैं। राज्यों और कें द्रशामसत प्रदेशों को सूचकांक में प्राप्त ऄंक के अधार पर क्रम कदए गए हैं।
 आन संकेतकों का ईद्देश्य कृ मष-व्यवसाय में सुगमता, अधुमनक व्यापार के मिए ऄवसर और ऄपनी
ईपज के मवक्रय हेतु मवकल्पों के बारे में प्रत्येक राज्य की मस्थमत दशाथना। ये कृ मष बाजारों में
स्पधाथत्मकता, दिता और पारदर्शशता को भी दशाथते हैं।

7. भू मम सु धार के ईपायों का मवश्ले ष ण


 मबचौमियों का ईन्मूिन ऄब ऄमधक लचता का मवषय नहीं रहा है, ककन्तु ऄमधकतम सीमा (सीलिग)
के बाद ऄमधशेष भूमम के भूममहीनों में मवतरण के ईद्देश्य को पूरा करने तथा काश्तकारी की सुरिा
करने में प्राप्त सफिता का स्तर मवमभन्नों राज्यों में ऄिग-ऄिग है। ऄमधकतम सीमा (सीलिग) के
बाद ऄमधशेष भूमम की पहचान करने में मुख्य ऄवरोध हैं: भूमम का पररवार के सदस्यों के बीच
मवभाजन एवं बेनामी िेनदेन जैसी अमतौर पर ककये जाने वािे छिपूणथ कायथ।
 मनमाने ढंग से बेदखि कर देने एवं ऄमधक ककराया िेने के मखिाफ सुरिा को सुमनमित करने के
साथ काश्तकारी की सुरिा भी एक संबंमधत मुद्दा है। भूमम सुधार फ्रेमवकथ को आस प्रश्न का भी
ऄमनवायथ रूप से समाधान करना होगा कक क्या काश्तकारों को भूमम का स्वाममत्व कदया जाना
चामहए या नहीं।
 दुभाथग्य से, भूमम सुधार कानून के कायाथन्वयन ने मोटे तौर पर ममहिाओं को भूमम की ईमचत
महस्सेदारी देने के मवषय में ईन्हें कोइ मवशेष संरिण प्रदान नहीं ककया है । ईदाहरण के मिए नेपाि
का भूमम सुधार कानून ममहिाओं की अवश्यकताओं और मुद्दों पर मवशेष ध्यान कें कद्रत करता है।
यह ऄत्यमधक महत्वपूणथ है कक भूमम सुधार का कोइ भी कायथक्रम ममहिाओं के मवशेष संरिण का
प्रावधान करे , मवशेष रूप से ऐसी ममहिाओं के मिए जो छोटे खेतों का प्रबंधन कर रही हैं।

ममहिाओं के मिए तैयार ककए गए स्वयं सहायता समूहों, ऊण योजनाओं और कृ मष मवस्तार


कायथक्रमों के माध्यम से सामूमहक कृ मष को प्रोत्सामहत करना आस समस्या को हि करने में सहायक
हो सकता है।

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 छोटी जोतों के पि में नीमत मनमाथण हेतु सुमवचाररत नीमतगत हस्तिेप अवश्यक हैं। मवद्वानों द्वारा
यह भी सुझाव कदया गया है कक स्वाममत्व के ऄंतगथत अने वािी भूमम के अकार के अधार पर
क्रममक रूप से बढ़ने वािा भूमम कर कु छ बडी भू-सम्पमत्तयों की मबक्री को प्रोत्सामहत कर सकता है।
यद्यमप ऐसे मवकल्पों का महत्व कम करके नहीं अंका जा सकता ककन्तु आन्हें कायाथमन्वत करने से पूवथ
सावधानी पूवक
थ परीिण करने की अवश्यकता है।

8. भू मम सु धारों का भमवष्य
 सावथजमनक भूमम का पुनर्शवतरण भूमम सुधारों की कदशा में पहिा कदम है। कफिीपींस में भूमम
सुधार आसके सवोत्तम ईदाहरणों में से एक है जहां कु ि िमित भूमम के 63 प्रमतशत भाग को
सफितापूवक
थ मवतररत कर कदया गया है। आनमे से ऄमधकांश भूमम या तो सावथजमनक भूमम रही है
या ईसे स्वैमच्छक मबक्री के माध्यम से प्राप्त ककया गया है। आस िेत्र में कफिीपींस के ऄनुभवों से कु छ
सीखा जा सकता है।
 ककन्तु भारत में िगभग प्रत्येक स्थान पर भूमम सुधार को भूमम पर ऄमधकार रखने वािे ऄमभजात्य
वगथ के तीव्र प्रमतरोध का सामना करना पडा है। पमश्चम बंगाि में तेभागा अंदोिन के दौरान
संशोधनों के प्रमत मवरोध आतना जबरदस्त था कक सरकार को आस पररयोजना को ही त्यागना पडा।
भूमम सुधार एजेंडे को सफि बनाने के मिए ऄत्यमधक राजनीमतक आच्छाशमि की अवश्यकता है।
 भूमम सुधार के िेत्र में प्राप्त ऄनुभवों से यह पता चिता है कक समतावादी ग्रामीण समाज के ईद्देश्य
को प्राप्त करने के मिए के वि सम्पन्न वगथ से भूमम िेकर मनधथन वगथ में मवतररत करना पयाथप्त नहीं
है। सवथप्रथम, संपन्नों वगथ द्वारा पुनर्शवतररत भूमम पर पुन: कब्ज़ा ककये जाने के मवरुर्द् संरिण प्रदान

करना महत्वपूणथ है। प्राय: जमींदार ऄमधकामधक सौदेबाजी की शमि द्वारा मबक्री के माध्यम से या
बि प्रयोग के माध्यम से ककसानों को अवंरटत की गइ भूमम को पुन: प्रा्‍त कर िेने में सफि होते
रहे हैं। आसमिए, के वि भूमम का पुनर्शवतरण कर ही भूमम सुधार कानून की आमतश्री नहीं हो सकती,

ऄमपतु मवतररत की गयी भूमम की सुरिा भी सुमनमश्चत करनी होगी।


 दूसरा, यह संभव है कक पुनर्शवतरण के तहत प्राप्त भूमम आसे प्रा्‍त करने वािे नए िोगों की
अधारभूत अवश्यकताओं को पूरा करने के मिए पयाथप्त नहीं हो। ईदाहरणाथथ यह देखा गया है कक
समय-समय पर ऄनुसूमचत जामत/ऄनुसूमचत जनजामत के पररवारों को भूमम तो अवंरटत की गइ
थी, ककन्तु वह ऄनुपयोगी थी क्योंकक या तो वह भू-भाग ककसी ऄन्य ‍यमि से संबंमधत था या वह

भूमम पथरीिी और ऄनुपजाउ थी। आस प्रकार, ककसी भी भूमम-सुधार ईपाय का िक्ष्य ऄमनवायथ

रूप से 'सुरमित और ईत्पादक’ भूमम ऄमधकार और पुनर्शवतरण ऄमधकार प्रदान करना होना

चामहए।
 भूमम सुधार में सफिता के मिए मवकें द्रीकृ त या नीचे से उपर की ओर कायथ करने के दृमष्टकोण
(bottom up approach) की अवश्यकता है। मवमध मनमाथताओं को सीमाओं का मनधाथरण करने,
दावों और मशकायतों को मिखने तथा गांव के सदस्यों की राय एवं ईद्देश्यों को ररकाडथ करने में
ककसानों की भागीदारी को ऄमनवायथ रूप से सुमनमश्चत करना चामहए। मध्य प्रदेश में भूमम संबंधी
मशकायतों का मनपटारा करने के मिए मजिा स्तरीय कायथ बिों के गठन से सुधार प्रकक्रया में पयाथ्‍त
सहायता प्राप्त हुइ है। के रि में सरकारी ऄमधकाररयों ने सीमाओं का सत्यापन करने के मिए गांव में
जाकर ककसानों से बात की; पमश्चम बंगाि में सरकार ने जागरूकता फै िाने के मिए मशमवरों का
अयोजन ककया और ककसानों को सरकारी प्रकक्रयाओं से ऄवगत कराया।

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9. भमवष्य के मिए सु झाव
 जागरूकता का प्रसार: ककसानों को ईनके ऄमधकारों के मवषय में जागरुक करना और ईन्हें सरकारी
प्रकक्रयाओं से पररमचत कराना, ईनमें अत्ममविास जागृत करने और भूस्वाममयों के प्रमत भय
समाप्त करने में िंबे समय के मिए प्रभावशािी होगा। साथ ही भूममहीनों की सुभेद्यता के प्रमत तथा
ईन्हें आस सुभेद्यता से बाहर मनकािने में बडे भूस्वाममयों को ईनकी महत्वपूणथ भूममका के प्रमत
संवेदनशीि एवं सजग बनाया जाना चामहए। सभी मनयमों और कदशा-मनदेशों को स्थानीय भाषा
में ईपिब्ध कराना आस कदशा में एक सरि कदम होगा।
 सामूमहक कारथ वाइ: सरकार को ककसानों के समूह और सहकाररता संगठनों के मनमाथण को सुगम
बनाना चामहए ताकक वे ऄपनी मांगों की पूर्शत हेतु एकजुट हो सकें और दुव्यथवहार तथा शोषण के
मवरुर्द् सुरिा के रूप में कायथ कर सकें । मवशेष रूप से ममहिाओं के मिए स्वयं सहायता समूहों के
माध्यम से सामूमहक कारथ वाइ, ईनके सशमिकरण में ऄत्यमधक सहायक हो सकती है।

 कृ मष भूमम की हामन को रोकना: ककसान संस्थागत ऊण की ऄनुपिब्धता, प्रमतकू ि मूल्य मनधाथरण,

ऄनुबंध कृ मष अकद के कारण संकटकािीन मबक्री (distress sales) के माध्यम से भी ऄपनी भूमम
खो देते हैं। ऊण प्रबंधन में सहायता करने के मिए ऊण राहत ऄमधमनयम का कायाथन्वयन एवं साथ
ही संपमत्त कानून में संशोधन कृ मष भूमम की हामन को रोकने में सहायता करे गा।
 मौजूदा भूमम सुधार ढांचे में व्याप्त कममयों को दूर करना: प्राय: भूस्वामी भूमम सुधार ढांचे में
कममयों का िाभ ईठाते हुए भूमम को बेचकर या पररवार के सदस्यों को हस्तांतररत कर ऄथवा
ऄन्य छिपूणथ साधनों द्वारा भूमम हदबन्दी कानूनों से बच मनकिते हैं।
 व्यापक सुधार पैकेज का अरम्भ करना: समथथन नीमतयों के मबना भूमम सुधार कानून पूणथ नहीं है
और आसमिए व्यापक पैकेज का अरम्भ सुमनमश्चत करना अवश्यक है मजसमें ककसानों के मिए
असान ऊण सुमवधाएं, पररसंपमत्त और खाद्य समब्सडी, ढांचागत सुमवधाएं, सहकारी समममतयों की
स्थापना आत्याकद समम्ममित हैं।
 मॉडि कें द्रीय कानून का मसौदा तैयार करना: एक के न्द्रीय कानून का मसौदा तैयार ककया जा
सकता है जो राज्यों के मिए ऄपने कानून तैयार करने हेतु मागथदशथक मॉडि के रूप में कायथ करे ।
ऐसे कानून सवथमनष्ठ ऄमधकतम सीमा का सुझाव दे सकते हैं और सहायक सुमवधाओं आत्याकद हेतु
प्रावधानों को समम्ममित कर सकते हैं।
 कानून में ममहिाओं के मिए मवशेष सुरिा का समावेश: ममहिाओं के व्यमिगत भू-ऄमधकार
सुमनमश्चत कर तथा ऊण और समब्सडी योजनाओं में बराबरी का दजाथ देकर ईनके मिए मवशेष
प्रावधान करना महत्वपूणथ है।
 कायाथन्वयन का अवमधक मूल्यांकन: स्वतंत्र ऄनुसंधान समूहों द्वारा अवमधक मूल्यांकन से सुधार
की प्रभावशीिता का मनधाथरण करने एवं अवश्यक पररवतथन करने में सहायता ममिेगी।
 भूमम ररकाडों की ऄद्यमतत ररकॉर्डडग: कइ मामिों में, मौजूदा भूमम ररकॉडथ गित या मनरथथक होते
हैं। वास्तमवक मस्थमत को दशाथने के मिए आन्हें ऄद्यमतत और सत्यामपत करने की अवश्यकता होती
है। आसके ऄमतररक्त, प्रिेखन का अधुमनकीकरण और कं ्‍यूटरीकरण ककया जाना ऄत्यंत अवश्यक
है।
 भूमम मववादों हेतु फास्ट िैक कोटथ: भूमम से संबंमधत मववादों के ऄमधमनणथयन एवं भूमम से संबंमधत
पररवादों से मनपटने के मिए फास्ट िैक कोटथ की स्थापना भू-ऄमधकारों को प्राप्त करने में होने वािे
मविम्ब को कम कर सकती है। आसके माध्यम से ईत्पीडन एवं व्यय में भी कमी िायी जा सकती है।
ऄनुसूमचत जामतयों और ऄनुसूमचत जनजामतयों को शाममि करने वािे मामिों का मवशेष संज्ञान
मिया जाना चामहए।

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 रा्ीय भूमम सुधार पररषद को सुदढ़ृ करना: रा्ीय भूमम सुधार पररषद के पास बाध्यकारी
शमियों का ऄभाव है क्योंकक भूमम सुधार संबंमधत मुद्दे राज्य सरकारों के िेत्रामधकार के ऄंतगथत
अते हैं। रा्ीय भूमम सुधार पररषद को शाममि करने एवं आसके द्वारा कानून का ईमचत
कायाथन्वयन सुमनमश्चत कराने के साथ ऄन्य ऄमधकार प्रदान करने हेतु संमवधान संशोधन का सहारा
मिया जा सकता है। यह ईन ग्रामीण भूममहीनों के महतों के मिए संषघथ की कदशा में एक महत्वपूणथ
कदम है जो हमारी जनसंख्या के िगभग 40 प्रमतशत भाग का मनमाथण करते हैं ।
 पंचायतों और ग्राम सभाओं की भूममका: भूमम मवतरण पर मनयम तैयार करने से पहिे ग्राम सभा
जैसे स्थानीय मनकायों के साथ परामशथ करना ऄमधकामधक भागीदारी को सुमनमश्चत करे गा और
आसमें सफिता की संभावनाएं भी ऄमधक होंगी, बशते आसमें भूममस्वाममयों के मत को ऄमधक
महत्व न कदया जाए।

10. मवशे ष अिे ख

10.1. भू मम ऄमधग्रहणः औमचत्य और भमवष्य की राह

ऄरमवन्द पानगमडया, पूवथ ईपाध्यि, नीमत अयोग

 भूमम ऄमधग्रहण ऄमधमनयम,2013 में संशोधन संबंधी ऄध्यादेश के मविोप के साथ ही, यह भूमम
ऄमधग्रहण के मुद्दे पर नए मसरे से नज़र डािने और भमवष्य की राह पर मवचार करने का सही
समय है। आसके औमचत्य के सम्बन्ध में कु छेक स्पष्टीकरण मनम्नमिमखत है:
भूमम के ऄमधग्रहण और ख़रीद के बीच मवभेद
 ख़ासकर िोकतांमत्रक समाजों में, मानवीय स्वभाव ककसी भी दबाव को स्वीकार नहीं करता। भूमम

ऄमधग्रहण के पररप्रेक्ष्य में, आसका ऄथथ बगैर सहममत के सरकार द्वारा ज़मीन के ऄमधग्रहण के

ऄस्वीकरण से है। ककतु, जब क्रेता और मवक्रेता सहमत हों, तो आस िेन-देन को ऄमधग्रहण की

बजाए, ख़रीद के रूप में पूरा ककया जा सकता है। आस सोच के कारण ही कक सहममत हमेशा ज़रूर

िी जानी चामहए, यह बहस पैदा होती है कक स्वाममत्व संबंधी सभी हस्तांतरण खरीद के माध्यम से
ही होने चामहए और भूमम ऄमधग्रहण क़ानून को समाप्त कर देने की अवश्यकता है।
सावथजमनक प्रयोजन तथा ईमचत मुअवजा महत्वपूणथ
 आसके बावजूद भूमम ऄमधग्रहण क़ानून आसमिए बने हुए हैं कक कइ पररमस्थमतयों में, व्यमिगत

ऄमधकार पर सावथजमनक प्रयोजन को प्राथममकता देनी होती है। ऐसी पररमस्थमतयों में, ऄमधकतर

देशों में सरकारें ईस सम्पमत्त के मामिक की सहममत के बगैर ही ऄमधग्रहण कर िेती हैं। वस्तुतः,

पारम्पररक रूप से, सहममत के बगैर ऄमधग्रहण को सरकार की सम्प्रभुता के प्रतीक के रूप में देखा

जाता है। आसके बगैर, राजमागथ तक बनाना ऄसंभव नहीं तो मुमश्कि तो हो ही जाएगा।
 भारत के ऄमतररि दूसरे देशों के भूमम ऄमधग्रहण संबंधी दस्तावेजों में भी सहममत पर शायद ही
कभी कोइ चचाथ हुइ है। आसकी बजाए, आन चचाथओं में आन बातों पर ज़ोर कदया गया है कक वे कौन
से ऐसे सावथजमनक प्रयोजन हैं मजनके कारण सहममत के बगैर ही सरकार को ऄमधग्रहण करने की
शमि देना ईमचत है और आस प्रयोजनाथथ ककतना मुअवज़ा देना ठीक है? ऄगर प्रयोजन
औमचत्यपूणथ हो और मुअवजा भी ईमचत कदया जा रहा हो तो सहममत के बगैर मनजी सम्पमत्त के
ऄमधग्रहण के सरकार के ऄमधकार पर कहीं सवाि नहीं ईठाया जाता है।

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 पारम्पररक रूप से, भारतीय क़ानूनों में सरकार को िोकमहत में मनजी सम्पमत्त के ऄमधग्रहण की
काफी शमियां दी गइ हैं। ऐसे ऄमधकार के बगैर, मनजी सम्पमत्त का रा्ीयकरण बेहद मुमश्कि
होता। प्रधानमंत्री आं कदरा गांधी 1960 और 1970 के दशक में बैंकों, कोयिा खानों और तेि
कम्पमनयों का रा्ीयकरण मूितः आसीमिए कर पाईं कक संमवधान िोकमहत में ऄमधग्रहण की
ऄनुममत देता है। यहां तक कक भूमम ऄमधग्रहण ऄमधमनयम, 2013 में भी सहममत के मबना
ऄमधग्रहण करने का ऄमधकार कदया गया है, बशते सरकार यह ऄमधग्रहण ककसी मवमनर्ददष्ट
सावथजमनक प्रयोजन से "ऄपने ईपयोग, मनयंत्रण और धाररता" के मिए कर रही हो। आन मामिों में,
नए कानून में तो पुराने कानून की तुिना में मुअवजा बढ़ाया ही गया है जो सामामजक रूप से
ईमचत भी है। मौजूदा सरकार ने हाि के एक फै सिे के द्वारा एक क़दम और अगे जाते हुए तेरह
ऐसे कें द्रीय कानूनों के तहत हुए ऄमधग्रहणों के मिए भी समान रूप से बढ़ा हुअ मु अवज़ा देने का
प्रावधान ककया मजन्हें 2013 के मूि कानून में शाममि नहीं ककया गया था।
मनजी तथा PPP पररयोजनाओं का भेद
 मुअवज़ा बढ़ाने के ऄिावा, 2013 के ऄमधमनयम में, मवमनर्ददष्ट सावथजमनक प्रयोजनों के मिए
सरकार द्वारा ऄपने ईपयोग, धाररता तथा मनयंत्रण हेतु ऄमधग्रमहत भूमम और ईन्हीं प्रयोजनों के
मिए ऄमधग्रमहत मनजी ऄथवा सावथजमनक-मनजी भागीदारी (PPP) वािी पररयोजनाओं के बीच
भेद ककया गया है। ऄमधमनयम में, सरकार की धाररता, ईपयोग और मनयंत्रण के मिए तो मबना
सहममत के भी ऄमधग्रहण करने की ऄनुममत दी गइ है ककतु आसमें यह व्यवस्था भी की गइ है कक
ऄगर भूमम मनजी पररयोजनाओाँ के मिए हो तो 80 प्रमतशत की और ऄगर भूमम पीपीपी
पररयोजनाओं के मिए हो तो ईनमें से 70 प्रमतशत की सहममत की अवश्यकता होगी।
 पूछा जा सकता है कक सरकार मनजी ऄथवा पीपीपी पररयोजनाओं के मिए ज़मीन का ऄमधग्रहण
करे गी ही क्यों? मजस पररयोजना का िाभ मनजी ईद्यममयों को होना है, ईसके मिए मवक्रेताओं के
साथ सीधे तौर पर तय रामश के बदिे में बाज़ार से ज़मीन खरीदने का काम ईनपर ही क्यों न
छोडा जाए? भारतीय पररप्रेक्ष्य में, दो कारणों से सरकार का हस्तिेप अवश्यक है।
 पहिा, भारत में स्वाममत्व का ऄमधकार ठीक से पररभामषत नहीं है तथा कु छ ख़ास तरह की
ज़मीनों पर मववाद खडा करना भी अम हो गया है। आसमिए, जब भी ककसी पररयोजना के मिए
बडे भूखंड की ज़रूरत होती है, तो ईद्यमी को ईस बडे भूखंड के भीतर छोटे-छोटे खंडों को िेकर
जारी स्वाममत्व मववाद का सामना करना पड सकता है। आसमिए, छोटे-छोटे भूखंडों के मवक्रेताओं
की पहचान की समस्या खडी हो जाती है। ऄगर ऐसे मामिों में छोटे भूखंडों को ख़रीद भी मिया
जाए तो भमवष्य में ककसी ऄदाित द्वारा वैकमल्पक दावेदार के पि में फै सिा सुनाने की अशंका को
देखते हुए, कोइ भी ईद्यमी ककसी भी पररयोजना को शुरू करने के प्रमत अिस्त नहीं रह सकता।
ऄगर सरकार यह ऄमधग्रहण करती है तो ऐसी समस्या पैदा नहीं होती। ऄगर कोइ पररयोजना
सावथजमनक महत्व की है तो सरकार का हस्तिेप करते हुए ईमचत मुअवज़ा देकर ऄमधग्रहण करना
एकदम ठीक है।
 दूसरी बात यह कक ऄगर स्वाममत्व का ऄमधकार सुपररभामषत हो, तो भी ख़रीद के माध्यम से
ज़मीन िेने से ऄमडयि रूख की समस्या पैदा हो सकती है। कइ ऐसे मवक्रेता हो सकते हैं जो ऄपनी
ज़मीन के वि ईन्हीं क़ीमतों पर बेचना चाहेंगे मजनका भुगतान करने से पररयोजना की सभी
संभामवत मनजी अय ही समाप्त हो जाए। आससे कोइ भी ईद्यमी ककसी भी पररयोजना को शुरू
करने के प्रमत हतोत्सामहत होगा। पुनः, ऄगर पररयोजना खासे सावथजमनक महत्व की हो तो ज़मीन
के ऄमधग्रहण का सरकार का ऄमधकार औमचत्यपूणथ कहा जा सकता है।

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 मनस्संदह
े , आन तकों का प्रभाव पयाथप्त सावथजमनक महत्व वािी मनजी ऄथवा पीपीपी पररयोजनाओं

की मवद्यमानता पर मनभथर करता है। िण-भर का लचतन यह दशाथएगा कक एक मवकासशीि देश में,

जहां सरकार के ऄमधकार में सीममत सावथजमनक संसाधन और जनशमि होती है, ऐसी

पररयोजनाओं की कोइ कमी नहीं है। ग्रामीण सडकों, राजमागों, ककफायती अवास, औद्योमगक

गमियारों, शैमिक संस्थाओं और ऄस्पतािों का मनमाथण करने के मिए िोक पूंजी को सामान्यतया

मनजी पूज
ं ी, प्रबंधन कौशि और ईद्यममता के साथ जोडना अवश्यक है।
 वतथमान सरकार के हाि में ही व्यपगत हुए ऄध्यादेश का औमचत्य ठीक आसी तकथ में था। आसने
ईपयुि सरकारों को ग्रामीण सडक, ककफायती अवास, औद्योमगक गमियारों और ऄवसंरचना जैसे

ईच्च-प्राथममकता वािे िेत्रों में मनजी और पीपीपी पररयोजनाओं को 2013 के ऄमधमनयम में
सहममत की ऄपेिा से छू ट देने का मवकल्प प्रदान करने की मांग की थी। यह छू ट ईन िेत्रों की
मनजी ऄथवा पीपीपी पररयोजनाओं के मिए नहीं थी जो ईच्च-प्राथममकता वािे िेत्र नहीं थे।
भमवष्य की राह
 2013 के ऄमधमनयम के तहत, ईन मामिों को छोडकर जब ईपयुि सरकार ऄपने ईपयोग,

ऄमधकार और मनयंत्रण के मिए भूमम ऄमधग्रहण करती है, ऄन्य मामिों में भूमम ऄमधग्रहण में

ऄनुमानतः कम-से-कम चार से पांच वषथ िग जाते हैं। आसके ऄमतररि, ऄमधग्रहण के ऄंततः सफि

समापन के संबंध में ऄमनमश्चतता बनी रहती है। ग्रामीण सडक, ककफायती अवास, ऄवसंरचना
और शहरों के मनमाथण जैसे िेत्रों में मनजी ऄथवा पीपीपी पररयोजनाओं के मिए मौजूदा व्यवस्था
की तुिना में कम समय िेने वािे मवकल्प की जरूरत ऄभी भी बनी हुइ है।
 भारतीय संमवधान के तहत, भूमम ऄमधग्रहण का मवषय समवती सूची के ऄन्तगथत अता है।

संमवधान का ऄनुच्छेद 254(2) राज्य को समवती सूची संबंधी ककसी के न्द्रीय ऄमधमनयम को
संशोमधत करने की ऄनुममत प्रदान करता है बशते कक के न्द्र सरकार द्वारा ऐसे संशोधन को
ऄनुमोकदत कर कदया जाए। वतथमान सरकार के ऄधीन, राजस्थान और मध्य प्रदेश राज्यों ने

समवती सूची के तहत अने वािे ऄनेक श्रम कानूनों को संशोमधत ककया है। यही प्रकक्रया, के न्द्र

सरकार के ऄनुमोदन के ऄध्यधीन, भूमम ऄमधग्रहण के मामिे में भी िागू की जा सकती है।

 तममिनाडु राज्य ने 2013 के ऄमधमनयम को पहिे ही संशोमधत कर कदया है और यह संशोमधत

ऄमधमनयम तममिनाडु में 5 जनवरी, 2015 से िागू है। तममिनाडु द्वारा ककए गए संशोधन के

तहत एक नइ धारा, धारा 105क जोडी गइ है मजसके द्वारा 2013 के ऄमधमनयम में मौजूदा चार

ऄनुसूमचयों में एक और ऄनुसच


ू ी को जोडा गया है। धारा 105A आस नइ पांचवीं ऄनुसच
ू ी में

सूचीबर्द् ककए गए तममिनाडु के कानूनों को 2013 के ऄमधमनयम के ईपबंधों से छू ट प्रदान करती

है। तथामप, यह संशोधन तममिनाडु सरकार को आन सूचीबर्द् कानूनों पर 2013 के ऄमधमनयम के


प्रमतपूर्शत और पुनवाथस तथा पुनस्थाथपना संबंधी ईपबंधों को िागू करने के मिए ऄमधकृ त करता है।
तममिनाडु संशोधन का एक प्रमुख िाभ यह है कक यह राज्यों को पररमस्थमतयां पररवर्शतत होने के
साथ ही पांचवीं ऄनुसूची में कानूनों को जोडने ऄथवा हटाने की ऄनुममत प्रदान करता है। आस तथ्य
के मद्देनजर कक के न्द्र सरकार ने तममिनाडु संशोधन को ऄनुमोकदत कर कदया है, आस बात की
संभावना नहीं है कक यकद ऄन्य राज्य आस प्रकार का संशोधन िागू करना चाहेंगे तो के न्द्र सरकार
ऐसे संशोधन के मिए ईन्हें मना करे गी।

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 भूमम ऄमधग्रहण की प्रकक्रया को भू-स्वाममयों के मिए और ऄमधक स्वीकायथ बनाने के मिए सरकारों
द्वारा एक ऄन्य ईपाय नामतः भूमम पूिन (िैंड पूलिग) का ईपयोग ककया जा सकता है। आसके तहत
ककसी पररयोजना के मिए अवश्यकता से ऄमधक भूमम का क्रय ऄथवा ऄमधग्रहण ककया जाता है
और पररयोजना के पूरा हो जाने के बाद ऄमतररि भूमम में से प्रत्येक भू-स्वामी को ईसकी भूमम का
कु छ ऄंश िौटा कदया जाता है। चूंकक प्रमुख िोक-ईद्देश्यीय पररयोजनाएं जैसे कक राजमागथ
पररयोजनाएं असपास की भूमम के मूल्य को बढ़ा देती हैं, आसमिए िौटाए गए मूि भूखण्ड के ऄंश

का मूल्य, पररयोजना के समापन से पूवथ पूरे भूखण्ड के मूल्य से ऄमधक हो सकता है, ऄतः
भूस्वाममयों को ऐसा सौदा अकषथक िगेगा।
 मवकल्पतः, सरकार भूमम का क्रय ऄथवा ऄमधग्रहण करने की बजाए दीघथकामिक पट्टे पर भूमम िे
सकती है। यह मवकल्प भी भूस्वाममयों को अकषथक िगेगा क्योंकक यह ईन्हें भूमम का स्वाममत्व
रखने, सुमनमश्चत प्रमतिाभ ऄर्शजत करने और पट्टे की प्रारं मभक ऄवमध समाप्त हो जाने पर शतों पर
पुनः समझौते की बातचीत करने का मवकल्प ईपिब्ध कराता है।

10.2. भू मम पट्टाकरण (Land Leasing): राज्यों के मिए फायदे का सु धार

ऄरमवन्द पानगमडया, पूवथ ईपाध्यि, नीमत अयोग


 अज़ादी के ठीक बाद के दशकों में भारतीय राज्यों में ग्रामीण कृ मष भूमम को पट्टे पर देने का कानून
व्यापक रूप से िागू ककया गया था। ईस समय सबसे बडी प्राथममकता ज़मींदारी प्रथा को ख़त्म
करने और जोतदारों को ज़मीन कदिाने के मिए ज़मीन का नए मसरे से मवतरण करने की थी। ईस
समय शीषथ नेतृत्व का मानना था कक मिरटश काि से चिी अ रही सामंती भूमम व्यवस्था के साथ
काश्तकारी और ईप-काश्तकारी ऄमभन्नों रूप से जुडी हुइ है। आसमिए, मवमभन्नों राज्यों ने जो

काश्तकारी सुधार कानून ऄपनाए, ईनमें काश्तकार को न मसफथ स्वाममत्व का ऄमधकार देने की
व्यवस्था की गइ बमल्क ज़मीन को पट्टे पर या ईप-पट्टे पर देने का भी मनषेध ककया गया ऄथवा ईसे
हतोत्सामहत ककया गया।
 जो भू-स्वामी राजनीमतक रूप से प्रभावशािी थे, वे आन सुधारों के प्रयोजन को नष्ट करने में

कामयाब रहे। तथामप, जैसा कक पी.एस.ऄ्‍पू ने 1996 की ऄपनी चर्शचत पुस्तक िैंड ररफॉम्सथ आन

आं मडया में मिखा है,1992 तक महज 4 प्रमतशत ज़मीन के जोतदारों को स्वाममत्व का ऄमधकार

ममि पाया था। आन जोतदारों में से भी 97 प्रमतशत मसफथ सात राज्यों-ऄसम, गुजरात, महमाचि

प्रदेश, कनाथटक, के रि, महारा् और पमश्चम बंगाि के थे।

 स्वाममत्व का ऄमधकार जोतदार को हस्तांतररत करने की कोमशश करने पर, कइ राज्यों ने

काश्तकारी को ही समाप्त कर कदया। िेककन भूमम हस्तांतरण भिे न्यूनतम हो पाया हो, ककतु आस
नीमत का एक परोि पररणाम यह ऄवश्य हुअ कक जहां कहीं भी काश्तकारी ककसी रूप में बची
थी,ईसको संरिण कदया जाना समाप्त हो गया और भमवष्य में काश्तकारी की गुंजाआश ख़त्म हो

गइ। कइ राज्यों ने काश्तकारी की ऄनुममत तो दी, िेककन यह शतथ िगाइ कक भूमम ककराया ईत्पाद
के एक-चौथाइ से पांचवे महस्से तक के बराबर होगा। ककतु चूंकक यह दर बाज़ार-दर से काफी कम
थी, आसमिए आन राज्यों में भी ठे का ज़बानी तौर पर चिता रहा मजसके मिए काश्तकार ईत्पाद का

िगभग 50 प्रमतशत बतौर ककराया देता था।

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 तेिंगाना, मबहार, कनाथटक, मध्यप्रदेश और ईत्तरप्रदेश समहत कइ बडे राज्यों में भूमम को पट्टे पर
देने पर प्रमतबंध है और के वि ईन भू-स्वाममयों को आससे छू ट दी गइ है जो मवधवा, नाबामिग,
ऄशि और रिाकमी हैं। के रि में काश्तकारी िम्बे समय से प्रमतबंमधत है और वहां हाि ही में
मसफथ स्व-सहायता समूहों को ज़मीन पट्टे पर देने की आजाज़त दी गइ है। पंजाब, हररयाणा, गुजरात,
मध्यप्रदेश और ऄसम जैसे कु छ राज्यों में भूमम को पट्टे पर देना मनमषर्द् नहीं ककया गया है, कफर भी
काश्तकार को पट्टे पर िी गइ भूमम को एक मनमश्चत ऄवमध के बाद ईसके मामिक से खरीदने का
ऄमधकार कदया गया है। आस प्रावधान के कारण भी काश्तकारी ज़बानी तौर पर जारी रही और
काश्तकारों की मस्थमत कमज़ोर बनी रही है। के वि अंध्रप्रदेश, तममिनाडु , राजस्थान और पमश्चम
बंगाि राज्यों के काश्तकारी कानून ईदार हैं मजनमें से पमश्चम बंगाि में तो काश्तकारी को
बटाइदारों तक सीममत कर कदया गया है। राजस्थान और तममिनाडु समहत कइ राज्यों के
काश्तकारी क़ानून तो ईदार हैं ककतु आन राज्यों में बटाइदारों को काश्तकार नहीं माना गया है।
 काश्तकारी कानूनों को सख़्त बनाने का जो मूि प्रयोजन था,ऄब वह प्रासंमगक नहीं रह गया है।
अज आन प्रमतबंधों के कारण न मसफथ ईन काश्तकार पर प्रभाव पडता है मजनके मिए मूितः कानूनी
संरिण की व्यवस्था की गइ थी, बमल्क भू-स्वामी और िोक नीमत के कायाथन्वयन पर भी
हामनकारक प्रभाव पडता है। काश्तकार आस बात के प्रमत अिस्त नहीं हो पाते कक ऄगर क़ानून भू -
स्वामी के साथ ककसी पारदशी ऄनुबंध की ऄनुममत दे तो वह ककतने समय के मिए स्वयं को
सुरमित महसूस कर सकता है। आसके पररणामस्वरूप, वह भूमम में दीघथकामिक मनवेश नहीं कर
पाता और जुताइ ऄमधकार बनाए रखने के प्रमत खुद को ऄसुरमित महसूस करते हुए ईसे छोड देता
है। साथ ही, आस प्रकार वह जोतदार होने के अधार पर कजथ प्राप्त करने की संभावना से भी वंमचत
हो जाता है। भू-स्वामी भी ज़मीन पट्टे पर देना ऄसुरमित महसूस करता है क्योंकक कइ िोग ज़मीन
को परती ही छोड सकते हैं। ईत्तपरवती प्रथा का प्रचिन बढ़ रहा है क्यों कक भूस्वाकमी और ईनके
बच्चेप गैर-कृ मष रोजगार तिाश रहे हैं।
 भूमम पट्टाकरण के संबंध में पारदशी कानूनों के ऄभाव में अज िोक नीमत भी गंभीर चुनौमतयों का
सामना कर रही है। मवस्ताररत और ऄमधक कारगर फसि बीमे के मिए मांग की जा रही हैं। आस
बात को स्वीकारते हुए कक ऐसा बीमा संभवत: बहुत ऄमधक समब्सडी-प्राप्त होगा, जैसा कक मवगत
कायथक्रमों के मामिे में था, एक स्वाभामवक प्रश्न यह है कक यह कै से सुमनमश्चत ककया जाए कक
काश्तकार, जो खेती के ऄमधकांश जोमखम को झेिता है, को यह िाभ प्राप्त हो। प्राकृ मतक अपदा के
समय भी यही समस्या, ईत्पन्नों होती है; यकद काश्तकारी ऄनौपचाररक है तो हम यह कै से
सुमनमश्चत करें कक अपदा सहायता वास्तमवक कृ षक को ममिे।
 आसी प्रकार, अज ईवथरक समब्सडी में बडे पैमाने पर हेराफे री हो रही है और समब्सडी-प्राप्त ईवथरक
की कािा-बाजारी की जा रही है। सैर्द्ांमतक रूप से, रसोइ गैस समब्सडी ऄंतरण की तजथ पर अधार
से जुडे बैंक खातों का ईपयोग करते हुए प्रत्यति िाभ ऄंतरण (DBT) को िागू करके आस प्रकार
की हेराफे री को तेजी से मनयंमत्रत ककया जा सकता है। परं तु वास्तमवक कृ षक और आसके फिस्वरूप
िमित िाभाथी की पहचान करने में करठनाइ को देखते हुए डीबीटी को संतोषजनक रूप से
कायाथमन्वित नहीं ककया जा सकता है।
 भूमम ऄमधग्रहण कानून 2013 के तहत भूमम ऄमधग्रहण में करठनाआयों के संदभथ में, औद्योगीकरण
को सुसाध्य बनाने के आच्छु क राज्यों को, भूमम पट्टाकरण की प्रकक्रया के ईदारीकरण से और ऄमधक
िाभ हो सकता है बशते कक वे आसके साथ-साथ गैर-कृ मष प्रयोजनों के मिए कृ मष भूमम के ईपयोग
को भी ईदारीकृ त बनाएं। कफिहाि, कृ मष भूमम को गैर-कृ मष प्रयोजनों के मिए ऄंतररत करने हेतु
ईमचत प्रामधकारी से ऄनुममत िेना ऄपेमित है मजसमें िम्बा समय िग सकता है।

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 राज्य सरकारों द्वारा या तो गैर-कृ मष ईपयोग के मिए ऄनुममत देने के प्रयोजनाथथ कानून के
संशोधन द्वारा या कायाथन्वयन के मवमनयमों में कृ मष भूमम ईपयोग के ऄंतरण के मिए अवेदनों की
समयबर्द् मंजूरी िागू करके आस ऄडचन को दूर ककया जा सकता है। यह सुधार, औद्योगीकरण के
मिए भूमम ईपिब्ध कराने हेतु एक ऄन्य मागथ खोिता है ऄथाथत् ऐसे दीघथकामिक भूमम पट्टे जो
भूस्वामी को ऄपनी भूमम पर िगान ऄर्शजत करने के साथ ही ऄपना स्वाघममत्वट बनाए रखने का
ऄमधकार प्रदान करते हैं। आसके ऄमतररि, मौजूदा पट्टा समाप्त हो जाने के बाद भूस्वावमी को पट्टे
की शतों को पुन: मनधाथररत करने का ऄमधकार होगा।
 ऄत: संभामवत काश्तकार ऄथवा बटाइदार को भूस्वामी के साथ मिमखत संमवदा मनष्पाकदत करने
की ऄनुममत देने वािे पारदशी भूमम पट्टाकरण कानूनों को िागू करना एक िाभकारी सुधार है।
काश्तकार को भूमम के सुधार के मिए मनवेश करने का प्रोत्साहन ममिेगा, भूस्वााामी ऄपनी भूमम
काश्तकार को खो देने के भय के मबना पट्टे पर दे सके गा और सरकार ऄपनी नीमतयां कु शितापूवक

िागू कर सके गी। आसके साथ-साथ भूमम ईपयोग संबंधी कानूनों के ईदारीकरण के फिस्वरूप
औद्योगीकरण के मिए भूमम ईपिब्धथ कराने हेतु वैकमल्पक मागथ भी खुि जाएगा जो पूणत
थ या
राज्य के िेत्रामधकार में है और भूस्वामी को ऄपनी भूमम पर स्वाममत्व बनाए रखने का ऄमधकार
प्रदान करता है।
 भूमम पट्टाकरण सुधार कानूनों की राह में एक संभामवत बाधा यह है कक भूस्वामी आस बात को
िेकर लचमतत हो सकते हैं कक कोइ भावी िोकमप्रय सरकार मिमखत काश्तकारी संमवदाओं के
अधार पर काश्तकार को भूमम ऄंतररत करने के मिए आनका ईपयोग कर सकती है और आसमिए वे
आस सुधार का मवरोध करें गे। यह एक वास्तकमवक लचता है परं तु दो वैकमल्पक तरीकों से आसका
समाधान ककया जा सकता है। अदशथ तरीका एक ऄन्ये प्रमुख सुधार होगा: भूस्वााीममयों को
ऄिो्‍य हक प्रदान करना। कनाथटक जैसे कु छ राज्य , मजनका भू-ऄमभिेख और पंजीकरण प्रणािी

पूणत
थ या कं ्‍यूटरीकृ त है, वास्तव में आस कदशा में अगे बढ़ने की मस्थमत में हैं। ऄन्यन राज्यों के मिए

ऐसी हकदाररयां भमवष्यकामिक समाधान हैं। ऄत: ऄंतररम रूप से, वे राजस्व ऄमभिेखों में
काश्तकार की ऄमभस्वीकृ मत से परहेज करते हुए पंचायत के स्तर पर संमवदाओं को दजथ करने के
वैकमल्पक समाधान के मवकल्प को चुन सकते हैं। तत्पश्चा्त्, वे संगत कायाथन्वयन मवमनयमों में यह
खंड जोड सकते हैं कक स्वाकममत्व ऄंतरण के प्रयोजनाथथ के वि राजस्व ऄमभिेखों में दशाथयी गइ
काश्तकारी की मस्थमत को मान्यता दी जाएगी।
 राज्य सरकारों को ऄपने पट्टाकरण (और भूमम ईपयोग) कानूनों की समीिा करने के बारे में
गंभीरतापूवक
थ मवचार करना चामहए ताकक यह पता िगाया जा सके कक क्या वे ईत्पादकता को
बढ़ाने और चहुंमुखी कल्याण के मिए ये सरि ककतु शमिशािी पररवतथन कर सकते हैं। नीमत
अयोग में, आस प्रयास में ईनकी सहायता के मिए सदैव तत्पर है।

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भारतीय ऄथथव्यवस्था
12. समावेशी ववकास - 1

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ववषय सूची
1. समावेशी ववकास (Inclusive Growth)_____________________________________________________________ 3

1.1. भूवमका ________________________________________________________________________________ 3

1.2. समावेशी ववकास का ऄथथ ____________________________________________________________________ 4

1.3. समावेशन की ऄवधारणा ____________________________________________________________________ 4


1.3.1. गरीबी न्यूनीकरण के रूप में समावेशन _______________________________________________________ 4
1.3.2. समूहगत समानता के रूप में समावेशन _______________________________________________________ 5
1.3.3. क्षेत्रीय संतुलन के रूप में समावेशन __________________________________________________________ 5
1.3.4. समावेशन और ऄसमानता ________________________________________________________________ 5
1.3.5. सशविकरण के रूप में समावेशन ___________________________________________________________ 6

1.4. समावेशी ववकास के तत्व_____________________________________________________________________ 6

1.5. समावेशी ववकास के संदभथ में ग्यारहवीं पंचवषीय योजना की ईपलवधधयां ____________________________________ 7

1.6. समावेशी ववकास के एक ईपकरण के रूप में मनरे गा का मूलयांकन _________________________________________ 8

1.7. भारत में समावेशी ववकास की चुनौवतयां __________________________________________________________ 8

1.8. वनष्कषथ_________________________________________________________________________________ 9

2. समावेशी ववकास से संबंवधत ऄन्य ऄद्यवतत ववषय-वस्तु __________________________________________________ 9

2.1. समावेश : रूपांतरणकारी नीवतगत सुधार के वलए ईत्कृ ष्ठता को बढ़ावा देना __________________________________ 9

2.2. समावेशी ववकास सूचकांक ___________________________________________________________________ 9

2.3. ‘ट्ांसफॉमेशन ऑफ़ ऐस्पीरै शनल वडवस्ट्क्स’ _______________________________________________________ 10

2.4. मानव ववकास की ऄवधारणा और माप __________________________________________________________ 11


1. समावे शी ववकास (Inclusive Growth)
1.1. भू वमका

 भारत के लगभग 1.25 ऄरब नागररकों को वतथमान समय में ऄपने भववष्य को लेकर पहले से
ऄवधक ऄपेक्षाएँ हैं। ईन्होंने ऄनुभव ाकया है ाक ववगत 10 वषों में ऄथथव्यवस्था ने पहले से ऄवधक
तीव्र गवत से संवृवि हावसल की है तथा साथ ही बडी संख्या में लोगों को प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त है। आस
पररघटना ने सभी वगों की ऄपेक्षाओं को स्पष्ट रूप से बढ़ा ादया है। आनमें वे वगथ भी शावमल हैं
वजन्हें ऄभी तक कम लाभ हुअ था। भारतीय ऄब भववष्य की संभावनाओं के प्रवत ऄवधक
अशावन्वत हैं।
 12वीं पंचवषीय योजना के ववज़न डॉक्यूमेंट से यह प्रमावणत होता है ाक "भारत ववकास की
प्रािया में अगे बढ़ रहा है। आसने सभी वगों के लोगों के जीवन स्तर में व्यापक सुधार सुवनवित
ाकया है जो पहले से ऄवधक तीव्र, ऄवधक समावेशी और पयाथवरण के दृवष्टकोण से ऄवधक
संधारणीय है।”
 मानव ववकास सूचकांक (ह्यूमन डेवलपमेंट आं डक्
े स) के अधार पर भारत का प्रदशथन वषथ 2000
और 2005 के िमशः 128वें और 127वें स्थान से नीचे वगरते हुए वषथ 2009 और 2011 में
134वें स्थान पर पहुंच गया। आस दौरान कु छ मुट्ठी भर लोग अर्थथक संवृवि का लाभ ईठाकर
ऄरबपवत की श्रेणी में प्रवेश कर गए, जबाक करोडों लोगों को वंवचत एवं ऄवधकार-ववहीन जीवन
जीने के वलए मजबूर ाकया गया। वषथ 2009 में आवतहास में पहली बार, ववश्व के 10 सबसे ऄमीर
लोगों में चार भारतीयों को स्थान वमला, लेाकन ईसी वषथ ववश्व के प्रत्येक दस गरीब लोगों में से
तीन भारतीय भी थे। आस प्रकार तीव्र संवृवि के साथ-साथ सतत गरीबी और ऄवधकारववहीनता
जैसी ऄसामान्य घटनाओं का चि वनरं तर जारी है।
 हाल के वषों में सरकार का ध्यान ऄतुलय भारत को बढ़ावा देने से स्थानांतररत होकर समावेशी
भारत बनाने की ओर गया है। गरीबी और ऄन्य सामावजक तथा अर्थथक ऄसमानताओं को कम
करने व अर्थथक संवृवि को सतत बनाए रखने के वलए समावेशी ववकास की अवश्यकता है। आसकी
स्वीकृ वत में, योजना अयोग ने 12वीं पंचवषीय योजना (2012-2017) में तीव्र, ऄवधक समावेशी
और धारणीय ववकास को एक सुस्पष्ट लक्ष्य के रूप में सवममवलत ाकया।

“अर्थथक संववृ ि से गरीबी तभी घटती है, जब वह गरीब लोगों के रोजगार, ईत्पादकता और मजदूरी में
वृवि करती है। जब सावथजवनक संसाधन मानव ववकास में सुधार के वलए लगते हैं तो हम कह सकते हैं ाक
तब वास्तव में अर्थथक संवृवि और मानव ववकास साथ-साथ चल रहे हैं। जब अर्थथक संवृवि में श्रम का
ऄवधक आस्तेमाल होता है और रोजगार का सृजन होता है और जब मानवीय कु शलता और स्वास््य का
तेजी से सुधार होता है तब समावेशन होता है।”

अर्थथक संववृ ि तथा अर्थथक ववकास


 अर्थथक संववृ ि से ऄवभप्राय ाकसी समयाववध में ाकसी ऄथथव्यवस्था में होने वाली वास्तववक अय की
वृवि से है। सामान्यतया याद सकल राष्ट्रीय ईत्पाद, सकल घरे लू ईत्पाद तथा प्रवत व्यवि अय में
वृवि हो रही हो तो हम कहते हैं ाक अर्थथक संवृवि हो रही है। सत्तर के दशक के पूवथ अर्थथक संवृवि
तथा अर्थथक ववकास को सामान्यतया समान ऄथथ में प्रयोग लाया जाता था पर बाद में आनमें भेद
स्थावपत ाकया गया। अर्थथक संववृ ि को अर्थथक ववकास के एक भाग के रूप में देखा गया।
 अर्थथक ववकास की धारणा अर्थथक संवृवि की धारणा से ऄवधक व्यापक है। अर्थथक संवृवि ईत्पादन

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की वृवि से समबवन्धत है, जबाक अर्थथक ववकास सामावजक, सांस्कृ वतक, अर्थथक, गुणात्मक एवं
पररणामात्मक सभी पररवतथनों से समबवन्धत है।
 जहां अर्थथक संवृवि पररमाणात्मक पररवतथन से समबवन्धत है, अर्थथक ववकास पररमाणात्मक तथा
गुणात्मक दोनों प्रकार के पररवतथनों से समबवन्धत है, जहां अर्थथक संवृवि वस्तुवनष्ठ है, वहीं अर्थथक
ववकास व्यविवनष्ठ है।
 अर्थथक ववकास तभी कहा जायेगा जबाक जीवन की गुणवत्ता (quality of life) में सुधार हो। ऐसा
माना जाता है ाक प्रवतव्यवि अय सूचकांक जीवन की गुणवत्ता को सही रूप में नहीं प्रदर्थशत करता
है, ऄतः अर्थथक ववकास की माप में ऄनेक चर सवममवलत ाकये जाते हैं, जैस-े अर्थथक, राजनैवतक
तथा सामावजक संस्थाओं के स्वरूप में पररवतथन, वशक्षा तथा साक्षरता दर, जीवन प्रत्याशा, पोषण
का स्तर, स्वास््य सेवायें, प्रवत व्यवि ईपभोग वस्तुएं अाद।

1.2. समावे शी ववकास का ऄथथ

 समावेशी ववकास, संवृवि की गवत और पैटनथ दोनों को दशाथती है। ये दोनों एक-दूसरे से
ऄंतःसंबंवधत हैं। ऄतः आन दोनों को एक साथ संबोवधत ाकये जाने की अवश्यकता है। ‘समावेशन’
एक ऐसी ऄवधारणा है वजसमें समता, ऄवसर की समानता और बाजार एवं रोजगार में
संिमणकालीन ऄववध में संरक्षण शावमल हैं। ऄतः समावेशन ाकसी भी सफल संवृवि रणनीवत का
एक ऄवनवायथ घटक है।
 समावेशी ववकास दीघथकावलक पररप्रेक्ष्य के दृवष्टकोण को ऄपनाता है। आसके तहत बवहष्कृ त समूहों
के वलए अय बढ़ाने के साधन के रूप में प्रत्यक्ष अय पुनर्थवतरण पर ध्यान के वन्ित करने के स्थान
पर ईत्पादक रोजगार पर ऄवधक ध्यान कें ाित ाकया जाता है। गरीबों पर वववभन्न नीवतयों के
नकारात्मक प्रभावों को कम करने और संवृवि हेतु शुरूअती छलाँग लगाने के ईद्देश्य से सरकार
लघु ऄववध में अय ववतरण योजनाओं का ईपयोग कर सकती है। परन्तु ऐसी हस्तांतरण योजनाएं
लंबे समय तक लाभदायी नहीं हो सकतीं।

1.3. समावे श न की ऄवधारणा

 समावेशन के कइ ऄथथ हैं और आसका प्रत्येक पहलु कु छ नीवतगत चुनौवतयाँ खडी करता है। ये
वनम्नवलवखत हैं:

1.3.1. गरीबी न्यू नीकरण के रूप में समावे श न

 ववकास सतत बनी रहे और गरीबी न्यूनीकरण में प्रभावी भी हो, आस हेतु ववकास का समावेशी
होना अवश्यक है। ववतरण संबध ं ी चचताओं को पारमपररक रूप से गरीबों और सवाथवधक वंवचत
वगों तक लाभों के पयाथप्त प्रवाह की सुवनवितता के रूप में देखा जाता रहा है।
 यह ध्यान देने योग्य है ाक समावेशन के आस पहलु का ररकॉडथ ईत्साहजनक रहा है। गरीबी रे खा के
नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों की संख्या में कमी अयी है, लेाकन ऄभी भी बहुत बडी संख्या
में लोग गरीबी रे खा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। 2004-05 से 2009-10 की ऄववध में
गरीबी में वगरावट की दर प्रवत वषथ 1.5 प्रवतशत चबदु थी, जो 1993-94 और 2004-05 के बीच
प्रवत वषथ 0.74 प्रवतशत चबदु की वगरावट की दर से दोगुनी है। आस प्रकार यह कहा जा सकता है ाक
गरीबी रे खा के नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों की संख्या में लगातार कमी अयी है; हालांाक
वगरावट की यह दर बहुत धीमी है।

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1.3.2. समू ह गत समानता के रूप में समावे श न

 समावेशन का अशय के वल अवधकाररक रूप से तय गरीबी रे खा से नीचे वस्थत लोगों को आस स्तर


से उपर लाना नहीं है। वस्तुतः यह ववकास की ईस प्रािया से भी समबंवधत है वजसे हमारे समाज
के वववभन्न सामावजक-अर्थथक समूहों द्वारा 'वनष्पक्ष' माना जाए। आसके तहत गरीब वनवित रूप से

एक लवक्षत समूह हैं, परन्तु समावेशन के ऄन्तगथत ऄनुसूवचत जावतयों (SCs), ऄनुसूवचत

जनजावतयों (STs), ऄन्य वपछडे वगों (OBCs), ऄलपसंख्यकों, ादव्यांगों और ऄन्य


ऄवधकारववहीन वगों जैसे ऄन्य समूहों की वस्थवत को भी शावमल ाकया जाना चावहए। साथ ही
समावेशन हेतु मवहलाओं को भी एक वंवचत समूह के रूप में देखा जा सकता है।
 समूह के दृवष्टकोण से देखा जाए तो समावेशन के तहत गरीबी न्यूनीकरण के ऄलावा समग्र
जनसंख्या के सापेक्ष ाकसी समूह की प्रवस्थवत पर ववचार करना भी शावमल है। ईदाहरण के वलए,
ऄनुसूवचत जावतयों या ऄनुसूवचत जनजावतयों और सामान्य जनसंख्या के बीच की खाइ को कम
करना, समावेशन की ाकसी भी ईवचत पररभाषा का वहस्सा होना चावहए। आस प्रकार यह गरीबी,

या ऄसमानता संबंधी चचताओं से काफी वभन्न है। ईदाहरण के वलए, यह संभव है ाक गरीबी

ईन्मूलन संबंधी रणनीवतयों के चलते SCs और STs जनसंख्या के बीच गरीबी कम हो जाए,
परन्तु यह अवश्यक नहीं ाक यह आन वगों एवं सामान्य जनसंख्या के मध्य व्याप्त अय ऄंतराल को
भी कम कर सकें ।

1.3.3. क्षे त्रीय सं तु ल न के रूप में समावे श न

 समावेशन का एक ऄन्य पहलू यह है ाक ववकास प्रािया सभी राज्यों तथा सभी क्षेत्रों के वलए
लाभप्रद वसि हो। हाल के वषों में समावेशन के क्षेत्रीय अयाम को ऄवधक महत्व प्राप्त हुअ है।
पररणामस्वरूप पहले के वपछडे राज्यों में से कइ राज्यों में संवृवि के स्तर पर ईललेखनीय सुधार
देखे जा रहे हैं और राज्यों के बीच संवृवि दर में ववद्यमान ऄंतराल भी कम हुए हैं।
 हालांाक, बेहतर प्रदशथन करने वाले राज्य तथा ऄन्य राज्य; दोनों ऄपने-ऄपने वपछडे क्षेत्रों या ईन

वजलों को लेकर चचवतत हैं, जो ऄन्य क्षेत्रों/वजलों में जीवन स्तर में हुए सुधारों का ऄनुभव नहीं कर

पाये हैं। आनमें से ऄवधकांश वजलों की पररवस्थवतयाँ वववशष्ट हैं, जैस-े वन्य क्षेत्रों में जनजातीय
जनसंख्या का ईच्च संकेन्िण ऄथवा शहरी क्षेत्रों में ऄलपसंख्यकों की ईपवस्थवत। साथ ही कु छ वजले
वामपंथी ईग्रवाद से भी प्रभाववत हैं, वजसके चलते ववकास संबंधी कायथ ऄवधक करठन हो जाते हैं।

1.3.4. समावे श न और ऄसमानता

 समावेशन से अशय अय ऄसमानता पर ऄवधक ध्यान देने से भी है। ववत्तीय संकट की पृष्ठभूवम में
ऄवधकांश औद्योवगक देशों में ऄसमानता का एक नवीन पहलु नज़र अया। आस दौरान यह देखा
गया ाक ऐसे ऄवधकांश देशों के टॉप (सबसे ऄमीर) 1 प्रवतशत लोगों के पास अय का चरम संकेंिण
हुअ है। भारत में भी कु छ ऐसे हीं लक्षण ादखायी पडते हैं और यह चचता सावथजवनक ववमशथ में
पररलवक्षत भी हुइ है।
 हालांाक तीव्र संवृवि और पररवतथन के दौरान एक ववकासशील देश में ऄसमानता में थोडी वृवि
ऄपररहायथ है और आसे सहन भी ाकया जा सकता है, बशते यह कालांतर में गरीबों के जीवन स्तर में
पयाथप्त सुधार सुवनवित करे । परन्तु गरीबों के जीवन स्तर में कम या नगण्य सुधार की वस्थवत में
ऄसमानता में वृवि सामावजक तनाव का कारण बन सकती है।

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1.3.5. सशविकरण के रूप में समावे श न

 समावेशन का ईद्देश्य के वल लाभों या अर्थथक ऄवसरों का व्यापक प्रवाह सुवनवित करना हीं नहीं
है; ऄवपतु यह सशविकरण तथा भागीदारी से भी संबंवधत है। यह सहभागी लोकतंत्र की सफलता
है ाक लोग ऄब सरकार द्वारा प्रदत्त लाभों के वनवष्िय प्राप्तकताथ बने रहने को तैयार नहीं हैं। वे
लाभों और ऄवसरों की मांग ऄपने ऄवधकारों के रूप में कर रहे हैं। आसके साथ ही ऄब लोग
प्रशावसत होने के तरीकों के संदभथ में भी ऄपना मत रखना चाहते हैं।

समावेशन
 समावेशन की दृवष्ट से प्रगवत का ऄनुमान लगाना करठन है क्योंाक समावेशन एक बहु-अयामीय
ऄवधारणा है। समावेशी ववकास से गरीबी के भार में कमी अनी चावहए, स्वास््य पररणामों में

व्यापक अधाररत और महत्वपूणथ सुधार होना चावहए। साथ ही स्कू ल तक बच्चों की सवथसल
ु भ पहुंच ,

ईच्चतर वशक्षा की ऄवधक सुलभता और वशक्षा के सुधरे स्तर, दक्षता ववकास अाद के क्षेत्र में

ईललेखनीय प्रगवत होनी चावहए। मजदूरी रोजगार और अजीववकाओं, दोनों में बेहतर ऄवसरों और

पानी, वबजली, सडकें , सफाइ और अवासन जैसे बुवनयादी सुववधाओं की व्यवस्था में सुधार
पररलवक्षत होना चावहए। ऄनु. जावतयों/ऄनु. जनजावतयों और ऄन्य वपछडे वगों की जरूरतों पर
खास ध्यान देने की जरूरत है। मवहलाओं और बच्चों की संख्या हमारी अबादी की 70 प्रवतशत है
तथा कइ क्षेत्रकों में संगत स्कीमों तक आनकी पहुंच के वलए ये ववशेष ध्यान देने के पात्र हैं।
ऄलपसंख्यकों व ऄन्य वपछडे समूहों को भी मुख्य धारा मे लाने के वलए ववशेष ध्यान देने की जरूरत
है। आन सभी ादशाओं में समावेशन प्राप्त करने के वलए ऄनेक ईपायों की अवश्यकता है और सफलता
न के वल नइ नीवतयों और सरकारी कायथिम लागू करने पर बवलक संस्थागत और ऄवभवृवत्तमूलक
पररवतथनों पर वनभथर करती है वजसमें समय लगता है।
 ग्यारहवीं योजना के दौरान समावेशन पर बल देने का एक महत्वपूणथ पररणाम समावेवशता के बारे
में पयाथप्त रूप से जागरूकता और लोगों के बीच सशिीकरण है।
 अजकल ऄवधकारों और हकदाररयों के बारे में सूचना प्राप्त करने की ऄवधक आच्छा है वजसे कानून
और नीवत द्वारा ईपलधध कराया गया है तथा सावथजवनक ववतरण प्रणावलयों से जवाबदेही की मांग
करने की ईत्कं ठा है। यह ववषय के वलए एक ऄच्छी बात है।

वस्तुतः समावेशन के ईपरोि पहलुओं में से प्रत्येक प्रासंवगक है तथा जनता का ध्यान प्राय: एक या
दूसरे पहलु पर कें ाित होता है। भारत का लक्ष्य आन पहलुओं में से प्रत्येक के मामले में वनरं तर प्रगवत
होना चावहए। हाल के कु छ वषों में तीव्र संवृवि ने ऄनेक व्यवियों को वववशष्ट लाभ प्रदान ाकये हैं। आस
प्रकार सृवजत समृवि को देखकर जनसंख्या के सभी वगों की ऄपेक्षाओं में वृवि हुइ है। पररणामस्वरूप
सभी वगों द्वारा संवृवि के लाभों में वहस्सेदारी की मांग की जा रही है।

1.4. समावे शी ववकास के तत्व

पूवथ प्रधानमंत्री मनमोहन चसह के ऄनुसार समावेशी ववकास रणनीवत के मूल ऄवयवों में वनम्नवलवखत
शावमल हैं:
o ग्रामीण ऄवसंरचना और कृ वष क्षेत्रक में वनवेश में तीव्र वृवि,

o ाकसानों के वलए ऊण में तीव्र वृवि,

o एक ऄवद्वतीय सामावजक सुरक्षा संजाल के माध्यम से ग्रामीण रोजगार में वृवि; तथा
o स्वास््य देखभाल और वशक्षा पर सावथजवनक व्ययों में तीव्र वृवि।

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1.5. समावे शी ववकास के सं द भथ में ग्यारहवीं पं च वषीय योजना की ईपलवधधयां

 वनम्नवलवखत संकेतक यह दशाथते हैं ाक समावेशी ववकास के ईद्देश्यों को पूरा करने में ग्यारहवीं
पंचवषीय योजना कहाँ तक सफल हुइ है:
o GDP वृवि दर: ग्यारहवीं पंचवषीय योजना (2007-08 से 2011-12) में GDP की संवृवि
दर लगभग 8 प्रवतशत रही। यह 10वीं पंचवषीय योजना (2002-03 से 2006-07) के 7.6
प्रवतशत तथा नवीं पंचवषीय योजना (1997-98 से 2001-02) के 5.7 प्रवतशत से ऄवधक
थी। ग्यारहवीं पंचवषीय योजना ऄववध में 7.9 प्रवतशत की संवृवि दर, ईस ऄववध में दो
वैवश्वक ववत्तीय संकट झेलने वाले ाकसी भी ऄन्य देश की संवृवि दर की तुलना में ऄवधक थी।
o ग्यारहवीं पंचवषीय योजना में कृ वष GDP में 3.7 प्रवतशत की औसत दर से तीव्र संववृ ि दजथ
की गइ। यह दसवीं पंचवषीय योजना में 2.4 प्रवतशत तथा नवीं पंचवषीय योजना में 2.5
प्रवतशत थी।
o गरीबी रे खा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों की संख्या में 2004-05 से 2009-10 की
ऄववध में प्रवत वषथ लगभग 1.5 प्रवतशत चबदु की दर से कमी अयी। यह 1993-94 से 2004-
05 की ऄववध में अयी कमी की तुलना में दोगुनी थी।
o ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवत व्यवि वास्तववक ईपभोग में वृवि दर 2004-05 से 2011-12 की
ऄववध में 3.4 प्रवतशत थी, जोाक 1993-94 से 2004-05 की पूवथ ऄववध से चार गुना
ऄवधक थी।
o बेरोजगारी दर 2004-05 की 8.2 प्रवतशत से घटकर 2009-10 में 6.6 प्रवतशत हो गइ।
जबाक आससे पूवथ यह 1993-94 के 6.1 प्रवतशत से बढ़कर 2004-05 में 8.2 प्रवतशत हो गइ
थी।
o व्यापक पैमाने पर सरकार की ग्रामीण नीवतयों और पहलों के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में
वास्तववक मजदूरी दर पूवथ दशक की प्रवत वषथ औसत 1.1 प्रवतशत की दर से बढकर ग्यारहवीं
योजना (2007-08 से 2011-12) में प्रवत वषथ 6.8 प्रवतशत हो गइ।
o कु ल प्रवतरक्षण (immunization) दर में 1998-99 और 2002-04 के मध्य प्रवत वषथ 1.7
प्रवतशत चबदु वगरावट की तुलना में 2002-04 और 2007-08 के मध्य प्रवत वषथ 2.1 प्रवतशत
चबदु की वृवि हुइ। आसी प्रकार संस्थागत प्रसव के मामले में 1998-99 और 2002-04 के

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मध्य प्रवत वषथ 1.3 प्रवतशत चबदु की वृवि दजथ की गयी, जबाक 2002-04 और 2007-08 के
मध्य प्रवत वषथ 1.6 प्रवतशत चबदु की ईच्चतर वृवि दजथ की गइ।
o प्राथवमक ववद्यालय के स्तर पर सकल नामांकन दर 2009-10 में बढ़कर 98.3 प्रवतशत हो

गइ। स्कू ल छोडने की दर (कक्षा I–VIII) में भी सुधार देखने को वमला।

1.6. समावे शी ववकास के एक ईपकरण के रूप में मनरे गा का मू लयां क न

 मनरे गा, ग्यारहवीं पंचवषीय योजना के दौरान समावेशन को प्रोत्साहन देने के वलए सबसे
महत्वपूणथ योजनाओं में से एक थी। जहाँ एक ओर गरीबी को कम करने तथा सूखे के दौरान ईत्पन्न
होने वाले गंभीर संकट को रोकने में आसकी ईपलवधधयों की सराहना की गयी, वहीं दूसरी ओर
मनरे गा के ववरुि लोगों की कु छ वशकायतें भी थीं। आन वशकायतों का मुख्य अधार यह था ाक यह
एक वनवाथह दान है, वजस पर ाकया जाने वाला ऄत्यवधक व्यय ऄन्य ईत्पादक कायों में प्रयोग ाकया
जा सकता था। साथ ही आसकी अलोचना आस अधार पर भी की जाती है ाक आससे कृ वष एवं
वववनमाथण श्रम ऄत्यवधक महंगे हो गये हैं।
 वस्तुतः यह ववचार ाक बढ़ती मजदूरी ऄपने अप में एक समस्या है, ववश्वसनीय नहीं है, क्योंाक
के वल यही एक तन्त्र है वजसके माध्यम से भूवमहीन कृ वष श्रवमक अर्थथक संवृवि से लाभ ले सकते
हैं। याद बढ़ती मजदूरी कृ वष-क्षेत्रक के लाभप्रदता को संकुवचत करती है, तो आसका समाधान ईच्च
मजदूरी को समायोवजत करने के वलए कृ वष ईत्पादकता में वृवि करने में वनवहत है। राष्ट्रीय प्रवतदशथ
सवेक्षण (नेशनल सैंपल सवे) मनरे गा के पिात् लोक वनमाथण कायों में रोजगार में हुइ अठ गुणा
वृवि को दशाथता है। आसमें कोइ संदह े नहीं है ाक ग्रामीण मजदूरी ईपाजथन और गरीबी पर आसका
प्रभाव पूवथ की सभी ग्रामीण रोजगार योजनाओं की तुलना में ऄत्यवधक है। हालांाक यह कम
प्रशंसनीय आसवलए है ाक कु ल के न्िीय योजना व्यय में कमी कर आस रोजगार योजना पर होने वाले
व्यय में वृवि की गइ है।
 आस प्रकार, हम यह कह सकते हैं ाक सभी अलोचनाओं के परे , एक वैधावनक ऄवधकार के रूप में
रोजगार की प्रावप्त के प्रावधान से सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों के ववकास के वलए ाकये जाने वाले
व्यय से लवक्षत लाभार्थथयों के वहस्से में व्यापक सुधार देखने को वमला है।

1.7. भारत में समावे शी ववकास की चु नौवतयां

 ‘भारत’ समूचे ववश्व में चचाथ का ववषय बना हुअ है। हमारी ऄथथव्यवस्था में ऄभूतपूवथ दर से होने
वाली संवृवि तथा समृि लोकतंत्र वस्तुतः समपूणथ ववश्व में लोगों को हमारे ववषय में ववचार करने
को बाध्य कर रही है। परन्तु यह ऄपनी वास्तववक क्षमता तक पहुंचने से ऄभी काफी दूर है। सभी
क्षेत्रों में ववकास समरूप नहीं हैं और अबादी का बहुत बडा ऄंश आसकी पररवध से बाहर है।
 संवृवि की ईच्च दर को बनाए रखने तथा साथ ही साथ आस संववृ ि को समावेशी बनाने के वलए
ववववध सामावजक, राजनीवतक तथा अर्थथक कारकों से वनपटने की अवश्यकता हैं।
 भारत में समावेशी ववकास से संबंवधत प्रमुख मुद्दे वनम्नवलवखत हैं:
o देश भ्रष्टाचार, लालफीताशाही, अयु संबंधी सामावजक बाधाओं तथा पारदर्थशता के ऄभाव से
ग्रवसत है।
o बाल श्रम का ईन्मूलन, मवहला सशविकरण, जावतगत बाधाओं का वनवारण तथा कायथ
संस्कृ वत में सुधार वववभन्न सामावजक चुनौवतयां हैं। आनसे वनपटने के वलए भारतीय समाज को
अत्मववश्लेषण करने की अवश्यकता है।
o ईच्च स्तरों पर भ्रष्टाचार से वनपटना, वनवाथचन प्रणाली की बुराआयों का वनराकरण, अन्दोलनों
की राजनीवत को त्यागना तथा राष्ट्रीय वहत को संकीणथ राजनीवत से उपर रखना देश के नीवत
वनमाथताओं के प्रमुख लक्ष्य होने चावहए।

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o ग्रामीण ऄथथव्यवस्था में तीव्र संववृ ि, सुवनयोवजत एवं लवक्षत शहरी ववकास, ऄवसंरचना में
वृवि, वशक्षा में सुधार, भववष्य की ईजाथ अवश्यकताओं को सुवनवित करना तथा एक स्वस्थ
सावथजवनक-वनजी भागीदारी वस्तुतः तीव्र, ऄवधक समावेशी और धारणीय ववकास के मुद्दे से
वनपटने के वलए कु छ बुवनयादी अवश्यकताएं हैं।
o समावेवशता की सुरक्षा के वलए राजनीवतक प्रयोजन, समाज के सभी वगों को संवृवि में समान
वहतधारक बनाना तथा सबसे उपर सुशासन समावेशी ववकास को सुवनवित करे गा।

1.8. वनष्कषथ

 वस्तुतः तीव्र, ऄवधक समावेशी और धारणीय ववकास को प्राप्त करने के वलए समग्र दृवष्टकोण तथा
एकीकृ त समाधान की अवश्यकता है। देश के लगभग 1.25 ऄरब लोगों के वलए एक समावेशी
भारत के वनमाथण का कायथ आतना व्यापक और जरटल है ाक यह सरकार और वनजी क्षेत्र द्वारा
ऄलगाव में रह कर कायथ करने से समपन्न नहीं होगा।
 तीव्र, ऄवधक समावेशी और धारणीय ववकास को के वल प्राथवमकता के रूप में ही नहीं बवलक
सावथजवनक और वनजी क्षेत्र में प्रत्येक ईद्यम के वलए समान रूप से एक महत्वपूणथ ऄवसर के रूप में
भी देखा जाना चावहए। वतथमान में भारत के वलए ‘समावेशन’ व्यवियों तथा ईद्यमों में लोकवप्रय
एक प्रचवलत शधद मात्र नहीं है ऄवपतु यह व्यवियों, सावथजवनक और वनजी ईद्यमों तथा सरकार
द्वारा ववकास की पररकलपना तथा संचालन हेतु ऄवनवायथ है। ऄतः अवश्यक है ाक प्रत्येक स्वरूप में
समावेशन की प्रावप्त हेतु संगरठत कारथ वाइ की जाए।
2. समावे शी ववकास से सं बं वधत ऄन्य ऄद्यवतत ववषय-वस्तु
2.1. समावे श : रूपां त रणकारी नीवतगत सु धार के वलए ईत्कृ ष्ठता को बढ़ावा दे ना

(Samavesh - Promoting Excellence For Transformative Policy Reform)


 समावेश (SAMAVESH ऄथाथत् Inclusion) नीवत अयोग का एक महत्वाकांक्षी कायथिम है।
 “समावेश” नीवत अयोग द्वारा शुरू की गइ एक कायथिम है। यह कायथिम वस्तुतः ववकास
प्राियाओं, संस्थागत क्षमता ववकास के संवधथन तथा पारस्पररक संमृवि के वलए समुदाय के साथ
एक फीलड स्तरीय आं टरफे स को सक्षम बनाने हेतु वववभन्न ऄग्रणी ज्ञान एवं ऄनुसंधान संस्थाओं
(Knowledge and Research Institutions) को एक साथ जोडने के ईद्देश्य से शुरू की गइ है।
 आसके एक भाग के रूप में, नीवत अयोग साक्ष्य अधाररत नीवतगत ऄनुसंधान के माहौल को सृवजत
करने हेतु प्रवतवष्ठत ज्ञान एवं ऄनुसंधान संस्थाओं के साथ नेटवर्ककग व भागीदारी के माध्यम से
ऄपनी संस्थागत क्षमता को मजबूत बनाना एवं ईसे ववस्तृत करना चाहता है।
 यह नेटवकथ सभी भागीदारों के बीच रूपांतरणकारी नीवतगत सुधार में ईनकी भूवमका के वनवथहन
हेतु ज्ञान को प्रभावी रूप से साझा करने व सूचनाओं के अदान-प्रदान को बढ़ावा देगा तााक सतत
ववकास लक्ष्यों तथा नीवत अयोग के 15 वषीय ववजन, 7 वषीय स्ट्ेटेवजक व 3 वषीय एक्शन
प्लान के साथ-साथ संधारणीय एवं ऄवधक समावेशी ववकास को हावसल ाकया जा सके ।

2.2. समावे शी ववकास सू च कां क

(Inclusive Development Index : IDI)


 समावेशी ववकास सूचकांक (Inclusive Development Index : IDI) 103 देशों के अर्थथक
प्रदशथन का एक वार्थषक मूलयांकन है जो यह मापता है ाक कोइ देश GDP के ऄवतररि अर्थथक
प्रगवत के ग्यारह अयामों पर कै से प्रगवत कर रहा है। आसके 3 स्तंभ हैं; संवृवि एवं ववकास;
समावेशन और आं टरजेनरे शनल आािटी।

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 IDI ववश्व अर्थथक मंच (World Economic Forum: WEF) का एक प्रोजेक्ट है, वजसका ईद्देश्य
नेतृत्व और ववश्लेषण, रणनीवतक वाताथ, ठोस सहयोग तथा कॉपोरे ट कायथवाही के माध्यम से
सामावजक प्रभाव में तेजी लाने के ईद्देश्य से मजबूत सावथजवनक-वनजी सहयोग के माध्यम से सतत
और समावेशी अर्थथक प्रगवत के बारे में देशों को सूवचत करना और ईन्हें सक्षम बनाना है।
 WEF के वषथ 2018 के समावेशी ववकास सूचकांक (IDI) में 103 देशों में भारत की रैं ककग 62वीं
है तथा यह चीन (26वां) व पााकस्तान (47वां) से काफी पीछे है। नॉवे को प्रथम स्थान प्राप्त हुअ
है।
 ईपरोि वर्थणत 3 स्तंभों के अधार पर 103 देशों को 2 भागों में ववभावजत कर ईन्हें रैं ककग प्रदान
की जाती है। आसके पहले भाग में 29 ववकवसत ऄथथव्यस्थाओं तथा दूसरे भाग में 74 ईभरती
ऄथथव्यस्थाओं को कवर ाकया जाता हैं।

2.3. ‘ट्ां स फॉमे श न ऑफ़ ऐस्पीरै शनल वडवस्ट्क्स’

(Transformation of Aspirational Districts) (महत्वाकांक्षी वजलों का रूपांतरण) कायथिम


 जनवरी 2018 में प्रधानमंत्री ने ‘ट्ांसफॉमेशन ऑफ़ ऐस्पीरै शनल वडवस्ट्क्स’ (महत्वाकांक्षी वजलों
का रूपांतरण) कायथिम की शुरुअत की, वजसका ईद्देश्य देश के कु छ ऄववकवसत वजलों में त्वररत
एवं प्रभावी बदलाव लाना है।
 आस कायथिम की व्यापक रूपरे खा में कन्वजेंस (कें ि एवं राज्य के योजनाओं का सवममलन), सहयोग
(कें िीय व राज्य स्तर के ‘प्रभारी ऄवधकाररयों’ और वजलावधकाररयों के बीच) और जन अंदोलन
द्वारा संचावलत वजलों के बीच प्रवतस्पधाथ शावमल हैं।
 राज्य सरकारें आस कायथिम के मुख्य संचालक होंगे।
 आस कायथिम के तहत आनमें से प्रत्येक वजले के सबल पक्षों व तत्काल सुधार के वलए वनम्न स्तर पर
प्रगवत करने वाले पक्षों की पहचान, ईनके प्रगवत का मापन तथा आन वजलों की रैं ककग प्रदान की
जाएगी।
 आस कायथिम के ऄंतगथत 5 वववभन्न ववकासात्मक क्षेत्रों पर मुख्य ध्यान ादया जा रहा है, यथा-
स्वास््य एवं पोषण, वशक्षा, कृ वष एवं जल संसाधन, ववत्तीय समावेशन एवं कौशल ववकास।
 नीवत अयोग के CEO श्री ऄवमताभ कांत का कहना है ाक “हम राज्य, वजला और यहां तक ाक
धलॉक स्तर पर भी प्रवतस्पधाथ का वातावरण बनाना चाहते हैं। अवखर क्यों कु छ वजले मानव
ववकास के महत्वपूणथ संकेतकों में पीछे हैं जबाक एक ही राज्य के ऄन्य वजले बेहतर हैं? राज्यों की
समृवि और राष्ट्र की प्रगवत को सुवनवित करने के वलए 'दूरी की सीमा' को पाटना महत्वपूणथ है।”
 “महत्वाकांक्षी वजलों का रूपांतरण कायथिम, रीयल-टाआम वनगरानी और सािय पाठ्यिम सुधारों
के माध्यम से, के न्िों और राज्यों के साथ ही वजला स्तर पर भी सहकारी और प्रवतस्पधी संघवाद
को मजबूत करता है।”
 1 ऄप्रैल 2018 से ‘चैंवपयंस ऑफ चेंज’ रीयल टाआम डाटा संग्रहण और वनगरानी के वलए डैशबोडथ
लोगों के वलए ईपलधध होगा। यह डैशबोडथ सभी अकांक्षी वजलों के वजलावधकाररयों को ईनके
वजलों के ईपलधध अंकडों को ऄपलोड करने की सुववधा प्रदान करे गा।
 वववभन्न वहतधारकों के साथ काफी ववचार-ववमशथ के ईपरांत, आन वजलों की प्रगवत को मापने के
वलए ईपरोि वर्थणत 5 ववववध क्षेत्रकों के वलए 49 प्रमुख प्रदशथन संकेतकों (key performance
indicators) (81 डाटा पॉआं ट्स) के अधार पर आन वजलों की रैं ककग की जानी है।

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 आस कायथिम के ऄंतगथत 101 ऐस्पीरै शनल वडवस्ट्क्स (महत्वाकांक्षी वजले ऄथवा ऄववकवसत वजले)

की हाल ही में रैं ककग जारी की गइ। ईललेखनीय है ाक ऐसे 115 ऐस्पीरै शनल वडवस्ट्क्स की

पहचान की गयी थी, लेाकन कु छ राज्यों (के रल, पविम बंगाल अाद) ने आस कायथिम से खुद को

ऄलग कर वलया था, ऄतः प्रथम दौर में के वल 101 वजलों की की रैं ककग जारी की गयी।

2.4. मानव ववकास की ऄवधारणा और माप

(The Concept and Measures of Human Development)

 मानव ववकास की ऄवधारणा की व्याख्या करते हुए UNDP की मानव ववकास ररपोटथ (1997) में

ईललेख ाकया गया ाक “यह वह प्रािया है वजसके द्वारा जनसामान्य के ववकलपों का ववस्तार ाकया
जाता है और आनके द्वारा ईनके कलयाण के ईन्नत स्तर को प्राप्त ाकया जाता है। यही मानव ववकास
की धारणा का मूल है। ऐसे वसिान्त न तो सीमाबि होते हैं और न ही स्थैवतक। परन्तु ववकास के
स्तर को दृवष्ट में रखते हुए जनसामान्य के पास तीन ववकलप हैं: एक लमबा और स्वस्थ जीवन
व्यतीत करना, ज्ञात प्राप्त करना और ऄच्छा जीवन-स्तर प्राप्त करने के वलए अवश्यक संसाधनों
तक ऄपनी पहुंच बढ़ाना। कइ और ववकलप भी हैं वजन्हें बहुत से लोग महत्वपूणथ मानते हैं। आनमें
ईललेखनीय हैं: राजनैवतक, अर्थथक और सामावजक स्वतंत्रता से सृजनात्मक और ईत्पादक बनने के

वलए ऄवसर और स्वावभमान एवं गारं टीकृ त मानव ऄवधकारों का लाभ ईठाना”।

 आसे और स्पष्ट करते हुए मानव ववकास ररपोटथ (1997) ने ईललेख ाकया: “अय के वल एक ववकलप

है जो लेाग प्राप्त करना चाहेंग,े चाहे यह बहुत महत्वपूणथ है, परन्तु यह ईनके समग्र जीवन का सार

नहीं है। अय एक साधन है, जबाक मानव ववकास एक ध्येय है”।

 महबूब-ईल-हक के मागथदशथन में 1990 में मानव ववकास ररपोटथ के प्रथम प्रकाशन के पिात् मानव
कलयाण के मापों का वनमाथण करने तथा ईन्हें और पररष्कृ त करने के प्रयास ाकए गए। यहाँ मानव
ववकास सूचकांक पर चचाथ की जाएगी।
 मानव ववकास सूचकांक वस्तुतः ववकास के तीन मूल अयामों की औसत ईपलवधध है:
o एक लमबे और स्वस्थ जीवन के माप के वलए जन्म पर जीवन-प्रत्याशा।
o ज्ञान वजसके माप के वलए बावलग साक्षरता दर (दो-वतहाइ वजन) और समग्र, प्राथवमक,

माध्यवमक और तृतीयक कु ल नामांकन (Enrollment) ऄनुपात (एक-वतहाइ वजन) को अंका


जाता है।
o एक ऄच्छा जीवन-स्तर वजसका माप है- प्रवत व्यवि सकल राष्ट्रीय ईत्पाद (GNI) {यू.एस.

डॉलर के संदभथ में िय शवि समता (PPP) के अधार पर}।

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Classroom Study Material

भारतीय ाऄथथव्यवस्था
12. समावेशी ववकास - 2

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ववषय सूची
1. भूवमका (Introduction)________________________________________________________________________ 4

2. सैद्ाांवतक पररप्रेक्ष्य (Theoretical Perspective) _____________________________________________________ 5

2.1. रिकल डााईन (Trickle down) ________________________________________________________________ 5

2.2. कल्याणकारी ाऄथथशास्त्र (Welfare Economics) __________________________________________________ 5

2.3. बॉटम-ाऄप एप्रोच (Bottom-up approach) ______________________________________________________ 6

2.4. समावेशी ववकास के प्रवत लोक सांबांध दृविकोण ______________________________________________________ 6

3. समावेशी ववकास के ाअयाम ______________________________________________________________________ 6

3.1. समानता (Equality) _______________________________________________________________________ 6

3.2 सुशासन (Good Governance) ______________________________________________________________ 7

3.3. ववकें द्रीकरण (Decentralization)_____________________________________________________________ 7

3.4. जवाबदेही और पारदर्शशता (Accountability and Transparency)____________________________________ 8

3.5. सांधारणीयता (Sustainability) ______________________________________________________________ 8


3.5.1. ववत्तीय सांधारणीयता (Financial Sustainability) _____________________________________________ 8
3.5.2. सामावजक सांधारणीयता (Social Sustainability)______________________________________________ 9
3.5.3. पयाथवरणीय सांधारणीयता (Environment Sustainability) _______________________________________ 9

4. समावेशी ववकास के मॉडल ______________________________________________________________________ 9

4.1. ववत्तीय समावेशन (Financial Inclusion) _______________________________________________________ 9

4.2. ाआां क्लूवसव माके टटग (Inclusive Marketing) _____________________________________________________ 10

4.3. कॉपोरे ट सामावजक ाईत्तरदावयत्व ______________________________________________________________ 10

5. कायाथन्वयन के वलए रणनीवतयााँ __________________________________________________________________ 11

5.1. सांसाधन ाअबांटन (Resource Allocation) ______________________________________________________ 11

5.2. रोजगार सृजन (Employment Generation) ___________________________________________________ 11

5.3. कौशल वनमाथण और क्षमता ववकास _____________________________________________________________ 12

5.4 कृ वष (AGRICULTURE) ____________________________________________________________________ 13

6. समावेशी ववकास से सम्बांवधत मुद्दे ________________________________________________________________ 13

6.1. सांवृवद् बनाम ववकास (Growth vs. Development) ______________________________________________ 13

6.2. वनधथनता को पररभावषत करना (Defining Poor) __________________________________________________ 14

6.3. राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) ____________________________________________________________ 14

6.4 ाईदारीकरण, वनजीकरण और वैश्वीकरण के दुष्प्प्रभाव _________________________________________________ 14

6.5. सामावजक ाऄन्याय (Social Injustice) _________________________________________________________ 15

6.6. ाऄवसांरचना (Infrastructure) _______________________________________________________________ 15


6.7. वनम्न प्रौद्योवगकी और नवाचार (Low Technology and Innovation) __________________________________ 16

7. समावेशी ववकास के वलए नीवतगत दृविकोण _________________________________________________________ 16

7.1. सांवृवद् ाईन्मुख नीवत (Growth Oriented Policy) _________________________________________________ 16

7.2. प्रत्यक्ष हस्तक्षेप (Direct Intervention) ________________________________________________________ 17

7.3. क्षमता वनमाथण (Capacity Building)__________________________________________________________ 17

7.4. कल्याणकारी योजनाएां (Welfare Schemes) ___________________________________________________ 17

7.5. जन भागीदारी (Public Participation) ________________________________________________________ 18

8. साराांश (Summary) _________________________________________________________________________ 18


1. भू वमका (Introduction)
 समावेवशता और सांधारणीयता का एजेंडा ाऄब राष्ट्रीय और ाऄांतराथष्ट्रीय दोनों स्तरों पर नीवतगत
ढाांचे का कें द्र बबदु बन चुका है। सामान्य जन को शावमल करते हुए वजस ववकासात्मक दृविकोण को
ाऄपनाया जाता है, वह व्यापक, साझा ववकास और गरीब-वहतैषी ववकास की ओर वनदेवशत होती
है। यही समावेशी ववकास का के न्द्रीय पहलू है ाऄथाथत् सामावजक-ाअर्शथक ववकास के लाभों को
समाज के सभी वगों के साथ साझा करना। समावेशी ववकास के ववचार के माध्यम से लोगों की
ाऄवत वनधथनता का ाईन्मूलन और सहभावगता को प्रोत्सावहत ककया जाता है।
 भारत सरकार की ग्यारहवीं पांचवषीय योजना के दृविकोण पत्र में समावेशी ववकास के वलए ववजन
और रणनीवतयों को वनधाथररत ककया गया है। ाआस ववजन में योजना के लक्ष्य के तौर पर के वल तीव्र
सांववृ द् को ही नहीं बवल्क समावेशी ववकास को भी रे खाांककत ककया गया है। ाऄन्य बातों के साथ-
साथ समावेशन का ाऄथथ है सभी के वलए ाऄवसर की समानता। ाआस ववजन में वनम्नवलवखत कारकों
को भी सवम्मवलत ककया गया है, जो समावेशी ववकास से सांबांवधत घटक हैं:
o वनधथनता कम करना;
o रोजगार सृजन;
o बुवनयादी सेवाओं तक पहुांच;
o ाऄवसरों की समानता;
o कौशल सृजन;
o सुशासन;
o मवहला सशविकरण।
 समावेशी ववकास की ाऄवधारणा और पररभाषा को औपचाररक रूप से ककसी दस्तावेज या सरकार
के स्तर पर कहीं भी स्पि नहीं ककया गया है। हालाांकक, समावेशी ववकास से सांबांवधत ववषय-वस्तु
का ढााँचा तैयार करने के कु छ प्रयास ाऄवश्य ककए गए हैं।
 ाईदाहरण के वलए, ाअर्शथक सवेक्षण (2007-2008) समावेशी ववकास की एक ाऄवधारणात्मक
पृष्ठभूवम प्रस्तुत करता है। UNDP और ववश्व बैंक जैसी ाऄांतराथष्ट्रीय सांस्थाओं ने समावेशी ववकास के
बारे में समझ का ववस्तार ककया है। वास्तव में समावेशी ववकास, सांधारणीयता, सुशासन जैसे
शब्दों को ाऄांतरराष्ट्रीय सांगठनों द्वारा लोकवप्रय बनाया गया है। वभन्न-वभन्न सरकारों, सांगठनों ाअकद
के वलए समावेशी ववकास के मापदांड वभन्न-वभन्न होते हैं।
 UNDP की समावेशी ववकास की पररभाषा ाईत्पादन और ाअय को समावेशी ववकास के घटकों के
रूप में रे खाांककत करती है:
"समावेशी ववकास वह प्रकिया और पररणाम है जहाां लोगों के सभी समूह सांवृवद् लाने में
भागीदारी कर चुके होते हैं और ाआससे समान रूप से लाभावन्वत हुए होते हैं। ाआस प्रकार, समावेशी
ववकास एक ऐसी समीकरण को दशाथती है- वजसमें बायीं ओर सांगठन तथा दायीं ओर लाभ रहते
हैं।”
 ववश्व बैंक समावेशी ववकास को वनम्नवलवखत तौर पर पररभावषत करता है:
"समावेशी ववकास सांववृ द् की रफ़्तार और प्रवतरूप दोनों को प्रदर्शशत करती है, जो ाअपस में जुड़े
होते हैं तथा ाआनसे एक ही साथ वनपटा जाना चावहए।"
 ाआस प्रकार, व्यापक रूप में समावेशी ववकास का ाऄथथ है ाअर्शथक ववकास की प्रकिया में समाज के
सभी वगों को शावमल करना और ाआसके लाभ को साझा करना। ाआसवलए, समावेशी ववकास के वल
एक पररणाम या ाऄांत नहीं, ाऄवपतु एक प्रकिया या स्वयां में एक साधन है।

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2. सै द्ाां वतक पररप्रे क्ष्य (Theoretical Perspective)
 समावेशी ववकास को भारतीय ाअर्शथक वनयोजन सावहत्यों में औपचाररक रूप से पररभावषत नहीं
ककया गया है। ाआसमें ाऄभी भी एक स्वस्थ सैद्ाांवतक पृष्ठभूवम की कमी है। वतथमान योजना समावेशी
ववकास के प्रवत एक वहट एांड िायल दृविकोण ाऄपनाती हैं। जहााँ एक ओर, यह ाअर्शथक सांवृवद् की
दर में वृवद् करती है तथा वहीं दूसरी ओर ाआसका पररणाम लवक्षत लाभाथी के ाऄपवजथन/बवहष्प्करण
के रूप में सामने ाअता है।
 भारतीय सांदभथ में "समावेशन" शब्द ाऄस्पि है; यहााँ समावेशन का तात्पयथ ाऄवधकााँश जनता पर
प्रभाव छोड़ना है ाऄथवा वचवन्हत लोगों ाऄथवा क्षेत्रों (जो छू ट गए हैं) तक पहुाँच बढ़ाकर ाईन्हें
सकारात्मक तौर पर प्रभाववत करना है। ाऄताः, समावेशी ववकास के शीषथकों को वैचाररक और
सैद्ाांवतक पृष्ठभूवम के माध्यम से पूरी स्पिता के साथ समझने की ाअवश्यकता है।

2.1. रिकल डााईन (Trickle down)

 रिकल डााईन थ्योरी (वनस्यांदन वसद्ाांत) का तकथ है कक सांवृवद् के लाभ स्वत: ही नीचे तक पहुाँचेंगे।
ाआस वसद्ाांत का यह भी दृढ़तापूवथक कहना है कक रिकल डााईन एक ऐसी प्रकिया है वजसे ाईसकी
प्राकृ वतक गवत और मागथ के भरोसे छोड़ देना चावहए; तथा बलपूवथक ाआसकी कदशा नीचे की ओर
करना ाऄनुत्पादक वसद् हो सकता है।
 रिकल डााईन दृविकोण भारत के सामावजक-ाअर्शथक ववकास के क्षेत्र में ाऄपेवक्षत प्रभावों की प्रावि में
ववफल रहा है। पुनर्शवतरण नीवत को समावेशी ववकास कायथिमों का एक भाग बनाए जाने का
सुझाव कदया जाता है। दूसरी ओर, ाऄथथशास्त्र में रिकल डााईन थ्योरी ाअर्शथक सांवृवद् के ाअपूर्शत पक्ष
की व्याख्या करती है।
 वसद्ाांत के ाऄनुसार, शीषथ ाअय ाऄजथकों पर कम कर लगाया जाना चावहए ताकक बाजार में वनवेश

को प्रोत्सावहत ककया जा सके ; और ाईपभोिाओं को कम कीमतों पर वस्तुएां एवां सेवाएाँ ाईपलब्ध

करााइ जा सकें । ाआस प्रकार, रिकल डााईन थ्योरी ाअर्शथक ववकास में टॉप-टू -बॉटम एप्रोच का पक्षधर
है।

2.2. कल्याणकारी ाऄथथ शास्त्र (Welfare Economics)

 कल्याणकारी ाऄथथशास्त्र, ाऄथथशास्त्र की शाखा है जो सामावजक या व्यविगत लागतों या लाभों के


सांदभथ में सांसाधनों के ाअबांटन और नीवत की जाांच करती है। कल्याणकारी ाऄथथशास्त्र के लक्ष्यों में से
एक बेहतर वनणथयों में समाज की सहायता करना है वजससे ाईसके वहत को ाऄवधकतम ककया जा
सके । कल्याणकारी ाऄथथशास्त्र के दृविकोण को ाऄपनाने से, समावेशी ववकास से सांबांवधत
वनम्नवलवखत मुद्दों का समाधान ककया जा सकता है:
o ाअर्शथक दक्षता के ाऄनुसार सांसाधनों का ाअबांटन।
o कल्याणकारी लाभों की समानता।
o नीवतगत ढाांचे की व्यवहायथता और वाांछनीयता।
o चयवनत लवक्षत लाभार्शथयों पर सांसाधनों के ाअबांटन का प्रभाव।
 कल्याणकारी ाऄथथशास्त्र का बल मुख्यताः दक्षता और ववतरण पर होता है। ाआसवलए, कल्याणकारी

ाऄथथव्यवस्था वस्तुताः प्रणाली, मानकों और वववनयामकीय सांस्थागत तांत्र को समावेशी ववकास


नीवत ढाांचे के महत्वपूणथ तत्वों के रूप में मानती है।

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2.3. बॉटम-ाऄप एप्रोच (Bottom-up approach)

 बॉटम-ाऄप एप्रोच ववकास प्रकिया में लोगों की भागीदारी को प्रोत्सावहत करती है। ववकें द्रीकरण,
स्थानीय-स्वशासन और ग्रामीण ववकास ाअकद बॉटम-ाऄप एप्रोच के ाऄांतगथत कु छ सामान्य तरीके हैं।
ग्रामीण शासन यह स्थावपत का प्रयत्न करता है कक क्या शासन का ववके न्द्रीकरण समावेशी और
गरीब-वहतैषी सांवृवद् के वलए प्रभावी है ाऄथवा नहीं। ाअवश्यक सेवाओं के प्रवाह में ाऄकु शलताएां,
ाऄवसर तथा ाअर्शथक सांवृवद् के लाभ तक लोगों की पहुाँच को बावधत करती हैं।
 ाआसवलए, ‘बॉटम-ाऄप एप्रोच' का सुझाव वहााँ कदया जाता है जहााँ लवक्षत जनसांख्या को वरीयता देने
हेतु ाऄवधक ववकें द्रीकरण की ाअशा की जाती है। दीघथकावलक सतत ाअर्शथक सांवृवद् को प्राि करने के
वलए, समावेशी ववकास को टॉप टू बॉटम के स्थान पर बॉटम-ाऄप तरीके से लागू ककये जाने की
ाअवश्यकता है।

2.4. समावे शी ववकास के प्रवत लोक सां बां ध दृ विकोण

(Public Relation Approach to Inclusive Growth)


 समावेशी ववकास के लोक सांबांध दृविकोण का ाईद्देश्य लोगों की सहभावगता बढ़ाना तथा ववकास
प्रकिया में लोगों की साझेदारी सुवनवित करना है। प्रभावी सांचार, प्रेरक रणनीवतयों और मानव
सांसाधन प्रबांधन के माध्यम से लोगों को एकजुट और एकीकृ त करना ाआस दृविकोण के ाऄांतगथत ाअने
वाली कु छ रणनीवतयाां हैं। लोक सांबांध दृविकोण ाईन सामावजक-मनोवैज्ञावनक कारकों की खोज की
प्रवृवत्त को समाववि करता है जो समावेशी ववकास प्रकिया में लोगों की भागीदारी को प्रोत्सावहत
या हतोत्सावहत करते हैं। राज्य मात्र एक ाईत्प्रेरक के रूप में कायथ करता है और एक मांच प्रदान
करता है। कृ वष ाईद्यमों में सूक्ष्म-स्तरीय ाईद्यमशीलता को प्रोत्साहन लोक सांबांध दृविकोण के
ाईदाहरणों में से एक है।
3. समावे शी ववकास के ाअयाम
(Dimensions of Inclusive Growth)

 वनम्नवलवखत समावेशी ववकास के ाअधारभूत स्तांभ हैं या सामान्य शब्दों में, ये ऐसे ाअदशथ हैं वजन
पर समावेशी ववकास ाअधाररत है। ाआन ाअदशों के वबना, समावेशी ववकास का कोाइ महत्व नहीं है।

3.1. समानता (Equality)

 बाजारों व सांसाधनों तक पहुाँच के सांदभथ में समानता तथा भेदभावरवहत वववनयामकीय वातावरण
समानता के लक्ष्य तक पहुाँचने के साधन हैं। ाऄसमानताएां वववभन्न रूपों में ववद्यमान रहती हैं, जैस-े
सामावजक ाऄसमानताएां, ग्रामीण-शहरी ववभाजन, क्षेत्रीय ाऄसमानताएां, वडवजटल ववभाजन ाअकद।
समावेशी ववकास को ाआसके पूणथ रूप में प्राि करने के वलए, समानता सबसे मूलभूत मानदांड है।
समावेशी ववकास और समानता एक-दूसरे को प्रभाववत करती हैं। समानता के वबना, समावेशी
ववकास को प्राि नहीं ककया जा सकता है और समावेशी ववकास का ाऄभाव वास्तववक या कवथत
रूपों में ाऄसमानता को बढ़ावा दे सकती है।
 ाआस प्रकार, समावेशी ववकास और समानता पारस्पररक रूप से एक दूसरे को सुदढ़ृ बनाने वाली
होती हैं। समकालीन ाअर्शथक पररदृश्य में, लैंवगक समानता समावेशी ववकास का मूल तत्व बन गाइ
है। लैंवगक ाऄसमानता वस्तुताः भारतीय सामावजक व्यवस्था में व्याि एक व्यापक समस्या है
वजसका मवहलाओं पर प्रवतकू ल प्रभाव पड़ता है। यद्यवप, भारतीय ाऄथथव्यवस्था ने प्रगवत की है,
तथावप, समानता सभी स्तरों, चाहे सामावजक या ाअर्शथक, पर कम हुाइ है। OECD की एक ररपोटथ
ने बताया है कक भारत में ाऄसमानता वनरां तर बढ़ रही है, वजसने समावेशीकरण को बढ़ावा देने में
नीवतगत चुनौवतयाां ाईत्पन्न कर दी हैं।

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3.2 सु शासन (Good Governance)

 सामान्य शब्दों में, शासन (गवनेंस) का ाऄथथ है वह वनयामकीय, वनगरानी या वनयांत्रण प्रकिया जो
सरकारी सेवाओं की प्रदायगी सुगम बनाती है। सुशासन का पररणाम प्रभावशालीता और दक्षता के
रूप में सामने ाअता है, यह वववध के शासन में न्याय और जवाबदेवहता बनाए रखता है, तथा जन-

भागीदारी, सवथसहमवत एवां समानता को प्रोत्सावहत करता है।


 दसवीं योजना शासन को वनम्नवलवखत तरीके से पररभावषत करती है:
"शासन ऐसी सभी प्रकियाओं के प्रबांधन से सांबांवधत है, जो ककसी भी समाज में एक ओर ाईस
वातावरण को पररभावषत करती हैं जो व्यवियों को ाईनकी क्षमताओं के स्तर को बढ़ाने की
ाऄनुमवत और सामथ्यथ प्रदान करता है, और दूसरी ओर, ाईन्हें ाईनकी क्षमता का लाभ ाईठाने व
ाईपलब्ध ववकल्पों के समूह को ववस्ताररत करने के ाऄवसर प्रदान करता है।”
 सुशासन राज्य, नागररक समाज और नागररकों का एक एकीकृ त प्रयास है। यहाां शासन का ाऄथथ

के वल राज्य का हस्तक्षेप हीं नहीं, ाऄवपतु सामान्य जन और वसववल सेवा सांगठनों (Civil Service
Organizations: CSOs) के ाईत्तरदावयत्व से भी है। सुशासन, ाअधारभूत लोक सेवाओं का
ाअधार है। यह पररकवल्पत पररणामों को प्राि करने की कदशा में समावेशी ववकास, लोक प्रशासन

और जवाबदेवहता को एकीकृ त करने का एक तांत्र है; ाईदाहरण के वलए, वनम्न स्तरीय स्वास्थ्य
ाऄवसांरचना की समस्याएां समावेशी ववकास के वलए एक बाधा हो सकती हैं तथा ाआसे प्रायाः
स्वास्थ्य और पररवार कल्याण मांत्रालय के ाऄप्रभावी शासन का एक पररणाम माना जा सकता है।
ाआसवलए, सुशासन सभी कताथओं के वलए एक साझा मांच प्रदान करता है और सामावजक-ाअर्शथक
रूपाांतरण को बनाए रखने के प्रवत स्वयां का ाऄनुकूलन करता है जो कक समावेशी ववकास की एक
पूव-थ शतथ है। जैसा कक स्पि है, शासन न के वल राज्य का श्रेष्ठ गुण है; ाऄवपतु प्रााआवेट गवनेंस
(ाऄशासकीय शासन) की भी समावेशी ववकास को बढ़ावा देने में एक महत्वपूणथ भूवमका है। यहााँ
प्रााआवेट गवनेंस पद का ाऄथथ है- बाजार में ाअपूर्शत और माांग का सांतल
ु न बनाए रखने में गैर-राज्य
ाऄवभकताथओं की भूवमका। प्रााआवेट गवनेंस समावेशी ववकास के वलए ाअवश्यक पूज
ां ी, सांसाधन और
कौशल की माांग को पूरा करने में वनजी क्षेत्र की भूवमका का भी ाईल्लेख करता है।

3.3. ववकें द्रीकरण (Decentralization)

 नेशनल कााईां वसल ऑफ एप्लााआड ाआकोनॉवमक ररसचथ (NCAER) का तकथ है कक ववकें द्रीकरण
समावेशी ववकास को बावधत करता है। स्थानीय स्वशासन की सांस्थाओं का सशविकरण समावेशी
ववकास के प्रदायगी तांत्रों में से एक है। 73वााँ और 74वााँ सांववधान सांशोधन भारतीय राजनीवत के

क्षेत्र में एक नवाचार हैं। कें द्र और राज्य सरकारों द्वारा PRIs (पांचायती राज सांस्थाएां) को ाआस
प्रकार सशि बनाना चावहए कक वे समावेशी ववकास को बढ़ावा देने का एक साधन बन पाएां। ाआस
सांबांध में, ग्यारहवीं योजना में एक ववके न्द्रीकरण सूचकाांक (Devolution Index) तैयार ककया
गया है वजसे PRIs-एम्पावरमेंट ाआां डक्
े स कहा गया है।
 ववके न्द्रीकरण के वबना, समावेशी ववकास ाअधाररत नीवतयों को लागू करना एक करठन कायथ है।
ाआसवलए, सरकार को शासन का हस्तान्तरण, प्रत्यायोजन और ववके न्द्रीकरण करना होता है।
ववकें द्रीकरण एक बॉटम-ाऄप एप्रोच है। समावेशी ववकास को प्राि करने के वलए ग्रामीण शासन का
ववकें द्रीकरण ाऄत्यांत महत्वपूणथ है। ववकें द्रीकरण का वतथमान स्तर तथा ाआसकी सांस्थागत

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ाऄवसांरचनाएां ाऄपयाथि हैं। स्थानीय स्वशासन की सांस्थाओं का लोकताांवत्रकरण करके , ववत्तीय
ववके न्द्रीकरण के ाईपायों को ाऄपनाकर ाऄथाथत् पयाथि ववत्तीय सांसाधन ाईपलब्ध करवाकर
ववकें द्रीकरण की कमी को दूर ककया जा सकता है। ाआसके ाऄलावा ववकें द्रीकरण की वनम्नवलवखत
कवमयाां भी समावेशी ववकास की सांभावनाओं को सीवमत करती हैं:
o ववत्त, ाईवचत सांस्थानों तथा ाईनकी भूवमकाओं एवां ाईत्तरदावयत्वों के प्रत्यायोजन का ाऄभाव।
o कायथिमों और कल्याणकारी योजनाओं में कें द्र और राज्यों के दृविकोणों में वभन्नता।
o राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर सांगठन में ाऄसांबद्ता।
o जवाबदेही, पारदर्शशता एवां वनगरानी का ाऄकु शल तांत्र।

3.4. जवाबदे ही और पारदर्शशता (Accountability and Transparency)

 सेवा प्रदायगी के वनष्प्पादन के प्रवत दावयत्व (answerability) ही जवाबदेही (एकााईां टेवबवलटी)


कहलाती है। यह पररणामों और प्रवतफल के सांदभथ में सपपे गए कायों की वजम्मेदारी सुवनवित
करती है। जवाबदेही को ाईध्वाथधर और क्षैवतज दोनों तरह से वनर्ददि ककया जाता है। यहााँ ाईध्वाथधर
का तात्पयथ सरकारी सांस्थाओं में ववभागीय पदानुिम से है जबकक क्षैवतज से तात्पयथ सरकारी
गवतवववधयों की वनगरानी और सांतल
ु न हेतु स्वायत्त एजेंवसयों, जैस-े CAG, PMO ाअकद से है।
ाऄवनवायथ सावथजवनक सेवाओं की कु शल प्रदायगी हेतु पारदर्शशता ाअवश्यक है; यह नागररकों को
मााँग सांबांधी सूचना तक पहुाँच बनाने में सक्षम बनाता है वजससे ाईन्हें ाईनके वनवमत्त रखे गए
ाऄनुदानों व ाऄनुलाभों पर ाऄपने दावों की पुनबथहाली में सहायता वमलती है।
 जवाबदेही और पारदर्शशता की कमी ने भारत सरकार के साथ लालफीताशाही, नौकरशाही एवां
भ्रिाचार जैसी बातों को जोड़ कदया है। सरकार ने ाआन समस्याओं को दूर करने के वलए काइ तरह के
प्रयास ककए गए हैं। वसटीजन चाटथर (नागररक घोषणा पत्र), सूचना का ाऄवधकार, के न्द्रीय सतकथ ता
ाअयोग ाअकद िाांवतकारी प्रयास हैं, परन्तु ाईनके कायाथन्वयन की ाऄकु शल वनगरानी ने ाआस तरह के
ववचारों की प्रभावकाररता में बाधा ाईत्पन्न की है।

3.5. सां धारणीयता (Sustainability)

 दीघाथववध में, यह ज्ञात हुाअ है कक, पयाथवरण के सांबांध में समावेशी ववकास के वलए ककए गए
भारतीय ाअर्शथक वनयोजन के पररणामों के बीच एक महत्वपूणथ ाऄसांतुलन है। यद्यवप, भारतीय
ाऄथथव्यवस्था में तीव्र सांवृवद् देखी गाइ है, तथावप पयाथवरण और गरीबों के जीवन स्तर में वगरावट
ाअाइ है। समावेशी ववकास से सांबांवधत मुद्दों (वजनके बारे में ाअगे चचाथ की गाइ है) के बारे में यह बात
वनकल कर ाअाइ है कक ाईदारीकरण, वनजीकरण और वैश्वीकरण (Liberalization, Privatization
and Globalization: LPG) ने पयाथवरण पर भारी दबाव डाला है और ग्रामीण-शहरी ववभाजन
को बढाया है। सांधारणीय और समावेशी ववकास को एक-दूसरे से ाऄलग करके हावसल नहीं ककया
जा सकता, ाऄवपतु वे एक-दूसरे के पूरक हैं। समावेशी ववकास में सांधारणीय तरीकों को ाऄपनाए
वबना, समावेशी ववकास नीवतयों के कायाथन्वयन का लड़खड़ाना तय है। समावेशी ववकास के वलए
नीवतगत ढाांचा तैयार करते समय वनम्नवलवखत स्तरों पर सांधारणीयता की ाअवश्यकता होती है:

3.5.1. ववत्तीय सां धारणीयता (Financial Sustainability)

 सरकार के समावेशी ववकास कायथिम और पररयोजनाएां ाअर्शथक रूप से व्यवहायथ होनी चावहएां।
यह देखा गया है कक सवब्सडी की ाऄवधकता और पररणाम ाऄवभमुखता (outcome orientation)
की कमी से राजकोषीय घाटे में वृवद् की समस्या ाईत्पन्न हो रही है।

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3.5.2. सामावजक सां धारणीयता (Social Sustainability)

 सामावजक सांधारणीयता से तात्पयथ वववशि सामावजक सांरचना और सांस्कृ वत को बनाए रखने की


ाअवश्यकता से है। ाआस प्रकार की समस्या ाअम तौर पर ाअकदवासी क्षेत्रों में देखने को वमलती है
जहाां ाअर्शथक सांवृवद् के वलए चलाए जा रहे ववकास कायथिमों और जनजातीय ाअबादी की
साांस्कृ वतक भावनाओं के साथ सांघषथ की वस्थवत ववद्यमान हैं।

3.5.3. पयाथ व रणीय सां धारणीयता (Environment Sustainability)

 दीघथकाल में, समावेशी ववकास के लक्ष्यों का ाऄनुसरण करने के िम में पयाथवरणीय मानकों को
खतरे में नहीं डाला जाना चावहए। जहााँ ाईवथरक का ाऄत्यवधक ाईपयोग वतथमान समय की माांग है,
वहीं ाआसके पररणामस्वरूप मृदा की ाईत्पादकता में कमी और प्रौद्योवगकी थकान (technology
fatigue) (ाआसकी चचाथ ाअगे की गयी है) की एक ाऄवद्वतीय समस्या ाईत्पन्न हो रही है।

4. समावे शी ववकास के मॉडल


(Models of Inclusive Growth)
 समावेशी ववकास की सांपूणथ वजम्मेदारी राज्य की नहीं है। समावेशी ववकास के लक्ष्यों को राज्यीय
और गैर-राज्यीय कताथओं द्वारा साथ वमलकर कायथ करने से प्राि ककया जा सकता हैं। समावेशी
ववकास के कु छ मॉडल हैं जो वतथमान में सरकार, वनजी एजेंवसयों और गैर-सरकारी सांगठनों द्वारा
ाऄपनाए जाते हैं। कु छ मॉडलों की चचाथ नीचे की गाइ हैं:

4.1. ववत्तीय समावे श न (Financial Inclusion)


 ववत्त मांत्रालय के ववत्तीय सेवाएां ववभाग ने ाईस ववशाल जनसमूह (जो ाऄब तक ाआन सेवाओं के दायरे
से बाहर रहा था) तक ववत्तीय सेवाओं को पहुांचाने की पहल की है ताकक ाईनकी सांवृवद् की
सांभावनाओं के द्वार खोले जा सकें । ववत्तीय समावेशन का तात्पयथ है; गैर-बैंककग पहुाँच वाली
ाअबादी को ाऄत्यवधक कम लागत पर ववत्तीय सेवाएां प्रदान करके औपचाररक बैंककग प्रणाली में
शावमल करना।
 रां गराजन सवमवत ने ववत्तीय समावेशन को वनम्नवलवखत तरीके से पररभावषत ककया है:
"यह एक ऐसी प्रकिया है वजसके माध्यम से कमजोर वगों और कम ाअमदनी वाले समूहों जैसी
सांवेदनशील श्रेवणयों को ाईनकी ाअवश्यकता के ाऄनुसार वहनीय लागत पर ववत्तीय सेवाओं तक
पहुाँच और समय पर पयाथि ाऊण ाईपलब्धता सुवनवित ककया जाता है।"
 ाआस प्रकार ववत्त मांत्रालय गरीब और वांवचत वगों को ाऊण/पूांजी ाईपलब्ध करवाकर ाऄवधक समावेशी
ववकास के लक्ष्य की ओर ाऄग्रसर है। बैंककग ाऄवसांरचना का ववस्तार, नाइ शाखाएां खोलना, जीरो-
किल बैंक खाते, बैंककग प्रवतवनवधयों (Banking Correspondents), व्यापाररक सुववधादाताओं
(Business Facilitators) और व्यावसावयक ाऄवभकताथओं (Business Correspondents) के
माध्यम से ववत्तीय और बैंककग सेवाएां प्रदान करने में मध्यस्थों की सेवाओं का ाईपयोग करना, तथा
ाऄवत लघु शाखाओं की स्थापना ाअकद बातें सरकार की ववत्तीय समावेशन रणनीवतयों के तहत कु छ
रूपरे खाएाँ हैं। स्वावभमान योजना ववत्तीय समावेशन कायथसूची के ाऄांतगथत चल रही एक योजना है,
वजसके माध्यम से बैंकों ने 2,000 से ज्यादा की ाअबादी वाली 75,000 से ाऄवधक वनवास-स्थलों
को बैंककग सुववधाएां प्रदान की हैं, वजनमें व्यावसावयक प्रवतवनवध एजेंटों (Business
Correspondents Agents) के माध्यम से शाखारवहत बैंककग सवहत वववभन्न मॉडलों और
प्रौद्योवगककयों का प्रयोग सवम्मवलत है। स्वावभमान जैसी योजनाओं के ाऄलावा बैंककग प्रवतवनवधय
मॉडल ("शाखा-मुि बैंककग") में भारत में सही ाऄथों में ववत्तीय समावेशन का लक्ष्य प्राि करने की
क्षमता है।

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4.2. ाआां क्लू वसव माके टटग (Inclusive Marketing)

 माके टटग समावेशी ववकास के वलए साधनों और साध्यों के सृजन हेतु महत्वपूणथ है। समावेशी
ववकास हेतु वनर्शमत वववभन्न योजनाओं की समुवचत माके टटग ाआसके साथ जुड़े मुद्दों को चुनौती देने
में महत्वपूणथ हो सकता है। ाआां क्लूवसव माके टटग सभी स्तरों पर ाअवश्यक है, जैस-े G2G, G2C,
G2B, B2B या B2C ाअकद। सरकार द्वारा ाआांक्लूवसव माके टटग के वलए IEC (सूचना, वशक्षा और
सांचार) को ाऄपनाया जा सकता है। जबकक कॉपोरे ट सामावजक ाईत्तरदावयत्व ाऄथाथत् CSR, वनजी
और सावथजवनक क्षेत्र की कां पवनयों द्वारा ाऄपनााइ जाने वाली वववधयों में से एक हो सकती है।
ाईदाहरण के वलए ITC की ाइ-चौपाल वजसमें ITC (एक वनजी क्षेत्र की कां पनी) ने तकनीकी और
ववत्तीय सहायता के माध्यम से ककसानों के वलए एक पहल ाअरम्भ की है।
 यकद समावेशी ववकास को एक साध्य माना जाए तथा ाआां क्लूवसव माके टटग को एक साधन, तब यह
स्पि हो जाता है कक ाआां क्लूवसव माके टटग गरीबों की ाअजीववका में सुधार के वलए समर्शपत है तथा
ाईन्हें ाईत्पाद और सेवाओं का ाईपभोिा मात्र नहीं समझता। समाज के वांवचत वगों को ाऄपनी
ाअजीववका चलाने में चुनौवतयों का सामना करना पड़ता है। बाजारों, कल्याणकारी योजनाओं तक
पहुांच में करठनााइ, ाईन्हें और ाऄवधक सुभेद्य बना देती हैं ाआसवलए, ाआां क्लूवसव माके टटग वांवचतों को
ववकास प्रकिया में एकीकृ त करने का एक तरीका है।

4.3. कॉपोरे ट सामावजक ाईत्तरदावयत्व

(Corporate Social Responsibility: CSR)

 समावेशी ववकास के लक्ष्यों को पूरा करने में CSR की प्रमुख भूवमका है। वनजी क्षेत्र समावेशी
ववकास को बढ़ावा देने तथा वववभन्न पहलों के साथ योगदान करने में महत्वपूणथ भूवमका वनभा रहा
है। CSR ाऄब भारतीय ाईद्योगों की कॉपोरे ट नीवत का एक वहस्सा बन गया है। ऐसा ाआसवलए है
क्योंकक सरकार ने ाईन ाईद्योगों को ववत्तीय प्रोत्साहन प्रदान ककया है जो CSR के ाऄांतगथत ाऄपने
लाभ का कम से कम 2% योगदान कर रहे हैं। फ्यूचर ग्रुप, जो वबग बाज़ार ब्ाांड नाम से प्रवसद्

ररटेल स्टोसथ चलाता है, CSR को ाऄपनी कां पनी की नीवत के एक घटक के रूप में मानता हैं क्योंकक
ाआस समूह का मानना है कक CSR ाईनके लोकाचार के कें द्र में है:
"फ्यूचर ग्रुप में, कॉपोरे ट सामावजक ाईत्तरदावयत्व, समावेशी ववकास और सांधारणीयता हमारी
रणनीवत और व्यवसावयक तौर-तरीकों के कें द्र में हैं। यह हमारे दीघथकावलक, सतत ववकास की एक
मजबूत नींव के वनमाथण के िम में समुदाय, पयाथवरण और प्रत्येक वहतधारक के प्रवत हमारी
प्रवतबद्ता में झलकता है।"
 समावेशी ववकास के साधन के रूप में CSR के कु छ ाऄन्य ाईदाहरण हैं: बहदुस्तान यूनीलीवर का
प्रोजेक्ट शवि, वजसमें मवहला समूह ववतरण चैनलों के रूप में कायथ करती हैं; मबहद्रा एांड मबहद्रा
की नन्ही कली नामक CSR पररयोजना जो सुववधाओं से वांवचत बावलकाओं के वलए वशक्षा प्रदान

करने का कायथ करती है। CSR के नकारात्मक प्रभावों का भी बारीकी से वनरीक्षण ककया जाना
चावहए। CSR कु छ हद तक ाईस वनजी क्षेत्र के वलए कॉपोरे ट सामावजक ाऄवसर (Corporate
Social Opportunity: CSO) का एक ाईपकरण बन गया है वजसका ाऄांवतम ाईद्देश्य लाभ प्राि
करना है।

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5. कायाथ न्वयन के वलए रणनीवतयााँ
(Strategies for Implementation)

 समावेशी ववकास के कायाथन्वयन के वलए काइ रणनीवतयाां हैं। ाऄवधकतर मामलों में, एक रणनीवत
ववकवसत करना समस्या नहीं है, ाऄवपतु ाईसका कायाथन्वयन और वनगरानी सुवनवित करना एक
समस्या है। समावेशी ववकास की नीवतयों को कायाथवन्वत करने के वलए कु छ प्रमुख दृविकोण नीचे
ाईवल्लवखत हैं:

5.1. सां साधन ाअबां ट न (Resource Allocation)

 सांसाधनों के समुवचत ाईपयोग के वबना गरीबी, समानता और ववकास के मुद्दे का समाधान नहीं
ककया जा सकता है। समावेशी ववकास ाअधाररत नीवतगत ढाांचे को कियावन्वत करने के वलए
सांसाधनों का न्यायोवचत बाँटवारा सबसे महत्वपूणथ साधनों में से एक है। सांसाधनों का ाअबांटन ाआस
तरह से ककया जाना चावहए वजससे कक जन-सामान्य को ाऄल्प और दीघथकाल में लाभ वमल सकें ।
ऐसा ाईपभोिा वस्तुओं की समुवचत ाईपलब्धता, लोगों की पहुांच को सुगम बनाकर, रोजगार के
मागथ खोलकर तथा ाअजीववका के मानकों में सुधार के माध्यम से हो सकता है। सावथजवनक ववतरण
प्रणाली (PDS) सांसाधनों के समुवचत ाअबांटन के माध्यम से समावेशी ववकास को सुदढ़ृ करने का
एक ाईत्कृ ि ाईदाहरण है। PDS को पुनाः सांरवचत ककया जाना चावहए। यह खाद्य सुरक्षा के वलए

महत्वपूणथ है। सरकार खाद्य सुरक्षा वबल पर पुनाः कायथ कर रही है; गरीबी रे खा, सांसाधनों के
ाअबांटन के मानदांडों में से एक है।

5.2. रोजगार सृ ज न (Employment Generation)

 समावेशी ववकास की सभी रणनीवतयों में रोजगार सबसे महत्वपूणथ कारक है। ाईल्लेखनीय है कक
रोजगार सृजन सरकार के समक्ष एक वास्तववक चुनौती है। ऐसा ाआसवलए क्योंकक भारत
जनसाांवख्यकीय सांिमण और जनसाांवख्यकीय लाभाांश के बोझ की ाऄवस्था से गुजर रहा है।
हालाांकक, नवीनतम जनगणना दशाथती है कक भारत की जनसाँख्या की दशकीय वृवद् दर घट रही है
लेककन श्रम बल में प्रवेश करने वाले युवाओं की जनसांख्या वनरां तर बढ़ रही है। योजना ाअयोग के
तत्वावधान में ककए गए एक शोध ाऄध्ययन से पता चलता है कक रोजगार ाऄपनी कु ल मात्रा में
सामान्य रूप से तथा गैर-कृ वष क्षेत्रों में ववशेष रूप से न बढ़ने की प्रवृवत्त दशाथ रहा है। हाल के वषों
में बेरोजगारी में वृवद् के साथ कै जुाऄलॉाआजेशन ाऄथाथत ाऄल्पकावलकता (वनयवमत श्रवमकों की
ाऄल्पकावलक पुनर्शनयुवि) और ाऄनौपचाररकता में वृवद् हुाइ है। ाऄजुन
थ सेनगुिा की ाऄध्यक्षता वाले
ाऄसांगरठत क्षेत्र के वलए ाईद्यमों पर राष्ट्रीय ाअयोग ने रोजगार में ाऄनौपचाररकता की ाआस समस्या
को हल करने के वलए काइ ाईपायों की वसफाररश की।

प्रमुख क्षेत्रों में सांगरठत और ाऄसांगरठत रोजगार (वमवलयन में)

प्रमुख क्षेत्र कु ल रोजगार ाऄसांगरठत रोजगार सांगरठत रोजगार

कृ वष 244.85 (100%) 242.11 (99%) 2.74 (1%)

वववनमाथण 50.74 (100%) 34.71 (69%) 16.03 (31%)

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गैर-वववनमाथण 48.28 (100%) 30.38 (63%) 17.90 (37%)

सेवाएां 116.34 (100%) 80.17 (69%) 36.17 (31%)

कु ल 450.22 (100%) 387.38 (84%) 72.84 (16%)

स्रोत: राष्ट्रीय नमूना सवेक्षण सांगठन (NSSO)

 ाऄसांगरठत से सांगरठत क्षेत्र में रोजगार वृवद् का सांिमण वस्तुताः सामावजक-ाअर्शथक ववकास का
एक सांकेतक होता है। हालााँकक रोजगार की वस्थवत ाआस सांिमण के ववपरीत है। भारतीय
ाऄथथव्यवस्था में प्रच्छन्न बेरोजगारी की वस्थवत देखने को वमलती है क्योंकक मानव बल का एक
बहुत बड़ा भाग कृ वष क्षेत्र में वनयोवजत है जहााँ सीमाांत ाईत्पादकता ाऄत्यांत कम है। ाईपरोि
तावलका ाआसी प्रवृवत्त को दशाथती है। वववनमाथण, गैर-वववनमाथण और सेवा क्षेत्रक में रोजगार
लगभग एक-वतहााइ हैं तथा ाऄसांगरठत रोजगार का एक बड़ा वहस्सा कृ वष क्षेत्र में है। एक समग्र
समावेशी ववकास के वलए, सरकार को सवोच्च प्राथवमकता के रूप में रोजगार सृजन हेतु
नीवतगत ढाांचा ववकवसत करने की ाअवश्यकता है। मनरे गा ाआस सांबांध में एक सफल प्रयास है।
सांसाधन ववतरण के माध्यम से गरीबी ाईन्मूलन योजनाएां ाऄल्पाववध के वलए रामबाण वसद्
हो सकती हैं ककतु दीघथकाल में रोजगार सृजन ही एकमात्र ाईपाय है। ऐसा ाआसवलए कक
सवब्सडी के जररए सांसाधन ववतरण राजकोषीय घाटे और सरकारी कोष पर बोझ को बढ़ाते
हैं, जबकक रोजगार ाऄपनी प्रवृवत्त में ाईत्पादक होता है।

5.3. कौशल वनमाथ ण और क्षमता ववकास

(Skill Building and Capacity Development)


 कौशल न्यूनता समावेशी ववकास के मागथ मे एक मुख्य ाऄवरोधक है। सरकार ने ाईद्यवमता के
ववकास हेतु एक रूपरे खा बनााइ है। जनसाँख्या के एक बड़े भाग के ाऄनौपचाररक क्षेत्रों में होने के
कारण रोज़गार सृजन रोज़गार की बढ़ती माांग की पूर्शत सांभवत: न कर पाए। ाआस प्रकार, कौशल

और क्षमता वनमाथण महत्वपूणथ हैं। भारत सरकार ने 2022 तक 500 वमवलयन लोगों को कौशल

प्रदान करने का लक्ष्य वनधाथररत ककया है। कु छ प्रमुख एजेंवसयाां जो ाआसमें सवम्मवलत हैं, ाईनमें

राष्ट्रीय कौशल ववकास पररषद, राष्ट्रीय व्यावसावयक प्रवशक्षण पररषद तथा रोजगार एवां प्रवशक्षण

महावनदेशालय, ाऄन्य सरकारी और गैर-सरकारी एजेंवसयाां, व्ययवसावयक चैम्बसथ ाअकद शावमल हैं।

 सरकार ने कौशल ववकास पहल योजना की भी शुरुाअत की है; मॉड्यूलर रोजगारयोग्य योजनाएां

(Modular Employable Schemes: MES) और व्ययवसावयक प्रवशक्षण प्रदाता

(Vocational Training Provider: VTP) सरकार की ऎसी पहलों के ाईदाहरण हैं। ाआसके

ाऄवतररि, ग्यारहवीं योजना में सरकार ने सूचना प्रौद्योवगकी और सांचार हस्तक्षेप के माध्यम से

50,000 कौशल ववकास कें द्रों पर प्रवशक्षुओं के वलए सुववधा के साथ एक 'ाअभासी कौशल ववकास

सांसाधन नेटवकथ ' बनाने का भी प्रस्ताव ककया है। एक राष्ट्रीय कौशल सूची का भी वनमाथण ककया
गया है जो एक डेटाबेस है। ाआसका कायथ वनयोिाओं व रोजगार चाहने वालों के बीच सूचना
वववनमय का साझा मांच प्रदान कर रोजगार के सांदभथ में "कौशल न्यूनता मानवचत्रण" करना है।

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5.4 कृ वष (Agriculture)

 कृ वष समावेशी ववकास का कें द्रीय ाअधार स्तांभ है। यह ाऄकु शल श्रवमकों को रोजगार प्रदान करती
है और ाअबादी को जीववत रखने में सहयोग प्रदान करती है। कृ वष और सांबद् क्षेत्रक की औसत
वार्शषक सांवृवद् दर, ग्यारहवीं योजना के समय 3.6% थी जो कक नौवीं और दसवीं योजना के
दौरान िमशाः 2.5% व 2.4% रही थी। हालाांकक दर में वृवद् हुाइ है ककतु ाआसी समय ग्रामीण क्षेत्रों
में सांकट, कृ षक ाअत्महत्या और ाऊणों में भी वृवद् दजथ हुाइ है। मुद्रास्फीवत, वैवश्वक वस्तुओं के

मूल्यों के प्रवत सुभेद्यता, क्षेत्रीय ाऄसमानताएां ाअकद वतथमान की नाइ ाईभरती हुाइ चुनौवतयााँ हैं।
सरकार का नीवतगत ढाांचा ाऄपयाथि है। ाअपूर्शत पक्ष और माांग पक्ष के बीच पूणथ ाऄसांतुलन की वस्थवत
है। भूवम सांबांधी मुद्द,े सवब्सडी तथा वनवेश की कमी, भूवम और जल-प्रबांधन, प्रौद्योवगकी, ाऊण,
ववववधीकरण एवां ववपणन, सांस्थागत ाऄवस्थापना व मूल्य हमेशा ववद्यमान रहने वाली समस्याएां
है।
 वे पाांच कारक वजन पर पर सरकार को कायथ करने की ाअवश्यकता है और जो कक कृ वष सांवृवद् की
सांभावनाओं के मागथ खोल सकते हैं, ाऄग्रवलवखत हैं: सावथजवनक वनवेश, वनजी वनवेश, प्रौद्योवगकी,
ववववधीकरण एवां ाईवथरक। यकद प्रयास लक्ष्योन्मुख हों तो कृ वष ाअर्शथक सांवृवद् का साधन हो सकती
है। कृ वष सांवृवद् दर को 4% से ाउपर और कृ वष में वनवेश सकल घरे लू ाईत्पाद का लगभग 15% -

20% होना चावहए। कृ वष ववकास के लाभों को जनसांख्या वपरावमड के वववभन्न स्तरों के बीच
समान रूप से बााँटे जाने की वनताांत ाअवश्यकता है। पयाथवरण वहतैषी तरीके सांधारणीयता प्रदान
कर सकते हैं। लक्ष्यों के ाऄवतररि सरकार को सवब्सडी की ाऄवतशयता पर भी वनयांत्रण करना
चावहए। एक सीमा से ाऄवधक सवब्सडी सरकारी कोष पर ाऄवतररि भार की तरह है और पयाथवरण
के वनम्नीकरण का कारण बनती है। ाईवचत प्रौद्योवगकी का चुनाव भी भारतीय कृ वष की एक प्रमुख
बचता है। ाअनुवांवशक रूप से सांशोवधत फसलों पर व्यापक बहस होती है और ववद्यमान प्रौद्योवगकी
में एक ववलक्षणता ाअ गाइ है वजसे 'प्रौद्योवगकी थकान' (technology fatigue) कहा जाता है।
ाआसका ाऄथथ है कक कृ वष में प्रयुि प्रौद्योवगकी कृ वष ाईत्पादकता बढ़ाने में ववफल रही है। कृ षकों और
वववभन्न फसलों के बीच भूवम के वववववधकरण ने कृ वष की सांवृवद् की सांभावनाओं को सीवमत कर
कदया है। छोटे कृ षक, बढ़ी हुाइ कृ वष ाईत्पादकता के ाऄवधकााँश लाभों को प्राि करने में सक्षम नहीं हैं।
कम जोवखम के कारण गेहां और चावल जैसी फसलें सबसे ाऄवधक ाईपजााइ जाती हैं। ाअधारभूत
ाऄवसांरचना के ाऄभाव के कारण भारतीय कृ वष में वृहद स्तर पर फसल वववववधकरण का प्रचलन
नहीं है।

6. समावे शी ववकास से सम्बां वधत मु द्दे


(Issues related to Inclusive Growth)

 जब समावेशी ववकास की बात ाअती है तो ाआसमें काइ मुद्दे सवम्मवलत होते हैं। कु छ मुद्दे बहुत
मूलभूत हैं वजनमें सामान्य दृविकोण की ाऄस्पिता रहती है; कु छ ाआच्छाशवि के ाऄभाव से सांबांवधत
हैं जबकक ाऄन्य मुद्दे ऐसी बाधाओं के कारण ववद्यमान हैं वजन्हें ाऄल्पाववध में दूर ककया जा सकता है।
समावेशी ववकास से सम्बांवधत कु छ प्रमुख मुद्दे वनम्नवलवखत हैं:

6.1. सां वृ वद् बनाम ववकास (Growth vs. Development)

 ाअर्शथक सुधारों के बाद से ाऄब तक, भारत की ाअर्शथक सांवृवद् का वास्तववक ववकास पर एक
वमवश्रत प्रभाव दृश्यमान रहा है। GDP को ाअर्शथक सांवृवद् का एक मुख्य पैमाना माना जाता है।

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जबकक वास्ताववकता यह है कक, GDP की सांवृवद् दर में ाईत्तरोतर वृवद् के बावजूद ाआसके लाभ
समाज के वांवचत एवां वनधथन लोगों तक नहीं पहुांची है। भारतीय ररजवथ बैंक के ाऄांतगथत एक स्वायत्त
बथक टैंक के रूप में कायथरत ाआां कदरा गाांधी ाआां स्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट ररसचथ द्वारा ककए गए एक
शोध ाऄध्ययन में पाया गया कक ाअर्शथक सांवृवद् शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में “रिकल डााईन”
(नीचे तक पहुाँचना) हुाइ तो है ककतु यह गरीबों के पक्ष में नहीं रही है। वहीं शहरी क्षेत्रों में, सांवृवद्
"गरीब-ववरोधी" रही है। BPL और वनधथनतम वगथ ाऄभी भी हावशए पर हैं। ऐसे मुद्दे वबल्कु ल
मौवलक प्रकृ वत के हैं क्योंकक ाआनमें दृविकोण की स्पिता और नीवतगत रणनीवत का ाऄभाव प्रदर्शशत
होता है। यह ाईवचत समय है, जब समावेशी ववकास को ाअर्शथक सांवृवद् के कें द्रीय एजेंडे के रूप में
रखा जाना चावहए।

6.2. वनधथ न ता को पररभावषत करना (Defining Poor)

 ककसे वनधथन माना जाए तथा कल्याणकारी योजनाओं के वास्तववक लाभाथी कौन हैं? ाआसे समझे
वबना तथा गरीबी की स्वीकायथ पररभाषा के वबना समावेशी ववकास हेतु ाईवचत नीवतगत ढाांचे का
ववकास नहीं ककया जा सकता। गरीबी रे खा को पररभावषत करने हेतु कै लोरी मूल्य, मजदूरी ाअकद
को मापदांड बनाने के प्रयास ककये गए है। गरीबी की पररभाषा की कवमयाां भी ाऄन्य सांबद् क्षेत्रों,
जैस-े रोजगार योजनाएां और गरीबों को दी जाने वाली सवब्सडी ाअकद पर प्रभाव डालती हैं। ाईि
सभी का समावेशी ववकास पर दुष्प्प्रभाव पड़ता है। सरकार गरीबी की घटती दर के ाऄवलोकन को
लेकर ाईत्सावहत तो है जो कम होकर 35% से नीचे ाअ गाइ है, ककतु ठीक ाईसी समय ाऄसमानता भी
बढ़ी है।

6.3. राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit)

 सरकार द्वारा सांचावलत ववकास योजनाओं ने बढ़ते राजकोषीय घाटे की दुववधा ाईत्पन्न कर दी है।
भारत की राजकोषीय घाटे की वतथमान वस्थवत ने ववकासपरक योजनाओं की सांभावनाओं को
सीवमत ककया है। भारत में ाऊण का GDP के साथ ाऄनुपात, व्यापार सांतल
ु न (नकारात्मक) व चालू

खाता घाटा (Current Account Deficit: CAD) काफी ाऄवधक है। वपछले वषथ के ाऄनुमान
ाऄग्रवलवखत थे: राजकोषीय घाटा: GDP का 5.2%; CAD: 9 2 वबवलयन ाऄमेररकी डॉलर;
प्रोत्साहन (stimulus) पैकेज: 1.84 लाख करोड़ रूपये (GDP का 3%)। सरकार ने 2016-17

तक राजकोषीय घाटे को कम करके 3 प्रवतशत के स्तर तक लाने का लक्ष्य रखा था। राजकोषीय
घाटे से मुद्रास्फीवत की समस्या भी पैदा होती है वजसके पररणामस्वरूप गरीबों की वस्थवत और भी
दयनीय हो जाती है। राजकोषीय घाटे की ाऄपेक्षा बढ़ता हुाअ CAD समावेशी ववकास के वलए
ाऄवधक हावनकारक है।

6.4 ाईदारीकरण, वनजीकरण और वै श्वीकरण के दु ष्प्प्र भाव

(Ill-effects of Liberalization, Privatization and Globalization: LPG)

 भारतीय ाऄथथव्ययस्था के ाईदारीकरण, वनजीकरण और वैश्वीकरण ने गरीबों को सुभेद्यता और

ाईपहास की ओर धके ला है। ाईदारीकरण और वनजीकरण ववशेष रूप से भारतीय वनजी कां पवनयों
और कु लीनों व ाऄमीरों के वलये ाऄनुकूल वसद् हुए हैं। वैश्वीकरण ने छोटे और मध्यम ाईद्यमों
(Small and Medium Enterprises: SMEs) के समक्ष ाऄवस्तत्व का प्रश्न ला खड़ा ककया है।

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जरा ाईत्तर भारत के कपास के खेतों में कायथरत मवहलाओं की दुदश
थ ा पर गौर कीवजए, ाआससे वस्थवत

और ाऄवधक स्पि हो जाएगी। वतथमान में, ववश्व व्यापार में भारतीय वस्त्र ाईद्योगों की वहस्सेदारी
ाईल्लेखनीय रूप से कम है। ाआन सबने सांवृवद् की सांभावनाओं को सीवमत ककया है और बेरोजगारी
की समस्या को पैदा ककया है। भारतीय सांदभथ में LPG के कु सांचालन ने नए मुद्दों, जैस-े लैंवगक
ाऄसमानता व मवहला सशविकरण पर दुष्प्प्रभाव ाअकद को जन्म कदया है।

6.5. सामावजक ाऄन्याय (Social Injustice)

 सरकार गरीबी दर को कम करने के ाऄपने प्रयासों को लेकर ाईत्सावहत है; यहााँ तक कक सांयुि राष्ट्र

की MDG (Millenium Development Goal) ररपोटथ भी ाआस बात की पुवि करती है कक 2015

तक भारत की गरीबी दर 1990 के 51% के मुकाबले 22% रह जाने की ाअशा है। ठीक ाआसी

समय, बाल कु पोषण जैसे कु छ ाऄन्य गांभीर मुद्दे हैं जो ाआसी ाऄववध में ाईभरे हैं। 2011 में भूख और

कु पोषण से सांबांवधत एक सवेक्षण में कु छ चपकाने वाले तथ्य सामने ाअए; सबसे खराब बाल ववकास

सांकेतकों वाले 100 वचवन्हत वजलों में 40 प्रवतशत से ाऄवधक बच्चों का वजन कम (underweight)

था और लगभग 60 प्रवतशत बच्चों की ाईां चााइ सामान्य से कम (stunted) थी। ाआस ररपोटथ का
हवाला देते हुए प्रधानमांत्री ने बचता व्यि की कक: कु पोषण की समस्या राष्ट्रीय शमथ का ववषय है।
धनवान और धनी हो गए हैं तथा गरीब और ाऄवधक गरीब हो गए हैं, हावशए पर मौजूद लोगों को

और भी ाईपेवक्षत छोड़ कदया गया है। साथ ही, वपछड़े वगों, ाऄल्पसांख्यकों, ाऄनुसूवचत जावतयों और
ाऄनुसूवचत जनजावतयों के बीच गरीबी और ाऄवधक सकें कद्रत हो गाइ है।

6.6. ाऄवसां र चना (Infrastructure)

 ाअर्शथक सांवृवद् और समावेशी ववकास के वलए ाऄवसांरचना एक मूलभूत कारक है। बजटीय ाअबांटनों
में, ाऄवसांरचना के वलए ाऄवधकतम रावश ाअबांरटत की जाती है। ाआस ाअबांटन का एक बड़ा भाग

ववद्युत ाईत्पादन, माल ढु लााइ गवलयारों और एयरपोटथ जैसी बड़ी पररयोजनाओं में जाता है, जबकक

ग्रामीण ाऄवसांरचना की ाऄत्यांत ाईपेक्षा की जाती है। काइ क्षेत्रों में, समुवचत ाऄवसांरचना की गांभीर
कमी है। सरकार द्वारा ाऄवसांरचना ववकास में मुख्य जोर औद्योवगक ववकास के दृविकोण से कदया
जाता है। ाईदाहरण के वलए, कृ वष पर सदैव कम ध्यान कदया गया है। कृ वष क्षेत्र में कोल्ड स्टोरेज

(शीत भांडारगृहों), प्रसांस्करण सुववधाओं, ग्रामीण पररवहन की सुववधा ाअकद के क्षेत्र में बैकवडथ
सांपकों (बलके ज) को सुगम बनाने हेतु ाऄवसांरचना पर फोकस करना समय की मााँग है। ाआसके
ाऄवतररि, ाऄवसांरचना ववकास में ग्रामीण-शहरी ववभाजन मुखर हो गया है। एक मामले में,
ग्यारहवीं योजना द्वारा यह स्वीकार ककया गया है कक: यह एक ववडांबना है कक दूरसांचार क्षेत्र में
ाऄभूतपूवथ वृवद् ने भी शहरी और ग्रामीण भारत के मध्य मोबााआल एवां लैंड लााआन कनेक्शन तथा
ाआां टरनेट और ब्ॉडबैंड कनेक्शन के सांदभथ में एक वडवजटल ववभाजन ाईत्पन्न कर कदया है। यह योजना
ग्रामीण ववद्युतीकरण के ाऄभाव को भी रे खाांककत करती है और मानती है कक ग्रामीण ववद्युतीकरण
एक ऐसा महत्वपूणथ साधन है वजसके माध्यम से ककसानों और ग्रामीण क्षेत्रों को ववद्युत ाईपलब्ध
करवाकर समावेशी ववकास लााइ जा सकती है।

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6.7. वनम्न प्रौद्योवगकी और नवाचार (Low Technology and Innovation)

 भारतीय ाऄथथव्यवस्था ववकवसत ाऄथथव्यवस्थाओं और ाऄन्य औद्योवगक ाऄथथव्यवस्थाओं के सापेक्ष एक


तरह के प्रौद्योवगकीय वपछड़ेपन की वशकार है। प्रौद्योवगकी और नवाचार की वनम्न वस्थवत, पूांजी
और सांसाधन ाअधार पर एक बोझ ाईत्पन्न करती है। भारत में कृ वष ाईत्पादकता ववकवसत देशों की
तुलना में बेहद कम है। कृ वष ाअर्शथक सांवृवद् का मुख्य ाअधार है और ाऄकु शल श्रमबल के वलए
रोजगार का एक स्रोत भी है। कृ वष जैसी प्राथवमक गवतवववधयों में हो रहा तेज प्रौद्योवगकीय
ववकास देश के नीवत वनमाथताओं के समक्ष ाअर्शथक द्वांद्व का एक प्रश्न ाईत्पन्न करता है। ाआसका तात्पयथ
है यह कक यकद प्राथवमक क्षेत्रक ाईद्योग में प्रौद्योवगकी की ाईच्च दर ाऄपनााइ जाती है, तो ाआससे
बेरोजगारी की दर ाईच्च हो सकती है, लेककन साथ ही, प्रौद्योवगकीय प्रगवत के वबना, ाईत्पादकता
कम रहेगी, वजससे ाऄथथव्यवस्था पर दबाब वनरां तर बना रहेगा। ाआसे ध्यान में रखते हुए, हररत
प्रौद्योवगकी, पयाथवरण-वहतैषी प्रौद्योवगककयों और ाऄक्षय ाउजाथ प्रौद्योवगकी जैसी प्रौद्योवगककयों की
तत्काल ाअवश्यकता है ताकक प्राकृ वतक सांसाधनों पर पड़ने वाले दबाव को समाि ककया जा सके ।
नीवत वनमाथताओं को ाआस ाअर्शथक द्वांद्व का समाधान वववेकपूणथ ढांग से करना होगा। ाआसके ाऄलावा,
ाअर्शथक सांवृवद् की ाऄगुाअाइ करने के वलए ाऄपने ाअप में एक नवाचार की ाअवश्यकता है वजसे
व्यापक ाऄथों में समावेशी नवाचार कहा जाता है।
 समावेशी नवाचार का ाअशय गरीबों के वलए प्रासांवगक ाईत्पाद और सेवाओं के सृजन और ाईनके
समावेश से है। ाआस मामले में SMEs, MSMEs और जमीनी स्तर पर नवाचार को समथथ बनाने
वाली एजेंवसयाां, जैस-े नेशनल ाआनोवेशन
े फााईां डेशन एक वनणाथयक भूवमका वनभा सकती हैं। ववत्त,
सामथ्यथ और ाऄवसांरचना समावेशी नवाचार की नींव हैं तथा समावेशी ववकास को समथथ बनाने
वाले हैं।

7. समावे शी ववकास के वलए नीवतगत दृविकोण


(Policy Approaches for Inclusive Growth)
 जहाां तक नीवतगत िे मवकथ का सांबांध है, सरकार के पास समावेशी ववकास हेतु एक ाईपयुि नीवत
का ाऄभाव है। तथावप, सरकार ने समावेशी ववकास के वववभन्न मॉडलों के साथ प्रयोग ककए हैं।
ववश्व बैंक द्वारा की गाइ भारतीय ववकासात्मक नीवत की समीक्षा के ाऄनुसार, समावेशी ववकास की
नीवत का कियान्वयन प्रमुख सावथजवनक सेवाओं की प्रदायगी तथा सांवृवद् के लाभों के ाऄवधक
व्यापक प्रसार के साथ-साथ तीव्र सांवृवद् दर बनाए रखने की दुववधा का सामना कर रहा है।
समावेशी ववकास हेतु रणनीवत को ाऄपने ाअप में एक समेककत रणनीवत होने की ाअवश्यकता है
वजसमें राज्य, बाजार, नागररक समाज और ाअम जन शावमल हों। स्वतांत्रता के पिात् से ही,
सरकार द्वारा वववभन्न प्रकार के नीवतगत ाईपाय ककए गए हैं, वजसमें से कु छ की चचाथ ाअगे की गाइ
है:

7.1. सां वृ वद् ाईन्मु ख नीवत (Growth Oriented Policy)

 भारत का ाअर्शथक वनयोजन सांवृवद् ाईन्मुख नीवत के साथ प्रारां भ हुाअ। प्रथम योजना (1951-56)
का ाअरां भ तीव्र एवां सांतवु लत सांववृ द् के ाईद्देश्य से ककया गया। दूसरी योजना (1956-61) में भी
औद्योवगकीकरण की तीव्र वृवद् पर जोर कदया गया। हाल ही में, बारहवीं पांचवषीय योजना
(2012-17) ने तीव्र, ाऄवधक समावेशी और धारणीय ववकास के ाईद्देश्य को सामने रखते हुए
ाअर्शथक सांवृवद् के साथ समावेशन का वमश्रण कर कदया है। भारत सरकार के पूवथ मुख्य ाअर्शथक

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सलाहकार ाऄरबवद ववरमानी ने ाअर्शथक सांवृवद् हेतु नीवतगत दृविकोणों (पॉवलसी एप्रोच) को
वनम्नवलवखत चरणों में ववभावजत ककया है:
o चरण 1: 1950-51 से 1979 -80 (दो ाईप-चरण: 1950-65 से 1966-79);
o चरण 2: 1980-81 से 1993-94 (नीवतगत व्यवस्था में पररवत्तथन, ाअर्शथक नीवत में सुधार

की पहल और सांरचनात्मक समायोजन); तथा


o चरण 3: 1994-95 से ाअगे (साांवख्यकीय रूप से महत्वपूणथ ाअर्शथक सांवृवद् के दौर का
पररचायक (1994-95) और बढ़ती सांवृवद् की प्रवृवत्त)।

 समय के साथ ाअर्शथक सांवृवद् की दर ववशेष रूप से चरण 3 में बढ़ी है, जो 1990 के दशक के
दौरान ककए गए महत्वपूणथ सुधारों का पररणाम है। हालाांकक, वनम्न और ाऄद्थ कु शल श्रवमकों के वलए
ाऄवधक रोजगारों को सृवजत करने और समावेशी ववकास पर ध्यान देने में यह ववफल रहा है।
सांवृवद् का समान रूप से बाँटवारा नहीं हुाअ है और ाऄभी भी देश के काइ वहस्सों में बड़ी सांख्या में
लोग गरीब और वांवचत हैं।

7.2. प्रत्यक्ष हस्तक्षे प (Direct Intervention)

 कानून, वववनयमन, ाऊण सुववधा, ाअजीववका सुरक्षा प्रदान करने ाअकद के माध्यम से ककए जाने
वाले प्रत्यक्ष हस्तक्षेप समावेशी ववकास को सुगम बनाते हैं। ये सब सरकार के प्रत्यक्ष हस्तक्षेप के
प्रकार हैं। ाऄब प्रशासवनक मशीनरी वनयामक के बजाये सुववधा-प्रदाता के रूप में पररवर्शतत हो
गयी है। समावेशी ववकास के पररप्रेक्ष्य से सरकार द्वारा ककए जाने वाले प्रत्यक्ष हस्तक्षेप को ाऄब
ाऄपेवक्षत सामावजक वनवेश ाईपलब्ध कराने, स्वतांत्र वनयामकीय सांस्थागत तांत्र की स्थापना,
प्रोत्साहन ाअधाररत नीवतगत मसौदा तैयार करने और ाईद्यमी नवाचार को प्रोत्सावहत करने वाले
के रूप में देखा जाना चावहए।

7.3. क्षमता वनमाथ ण (Capacity Building)

 कौशल ववकास को ाऄक्सर क्षमता ववकास के तौर पर सांदर्शभत ककया जाता है। हालाांकक, क्षमता
ववकास के वल कौशल वनमाथण या ाईद्यमीय नवाचार तक सीवमत नहीं है। ग्रामीण ववकास
कायथकताथओं के प्रवशक्षण के माध्यम से क्षमता ववकास भी क्षमता वनमाथण का एक साधन है। ाऄब,
के वल रोजगार और बाजार की माांग का सृजन ही क्षमता ववकास का एकमात्र मापदांड नहीं है।
दक्षता, प्रभावशीलता, जवाबदेही और पारदर्शशता को बढ़ाने को भी सरकार के क्षमता वनमाथण

पहल क्षेत्रों के ाऄांतगथत माना जाता है। ाईदाहरण के वलए, यकद ग्रामीण ववकास ववभाग का ाईद्देश्य
मनरे गा के माध्यम से ग्रामीण ाआलाकों में पररवारों की ाअजीववका की सुरक्षा में वृवद् करना है, तब
ग्राम सभा की प्रभावकाररता में वृवद् हेतु क्षमता वनमाथण ाआस ाईद्देश्य की प्रावि के तरीकों में से एक
होगा।

7.4. कल्याणकारी योजनाएां (Welfare Schemes)

 खाद्य सवब्सडी, ाअवश्यक वस्तुओं का सावथजवनक ववतरण, पोषण कायथिम, सूक्ष्म ववत्त के माध्यम
से ववत्तीय सहायता ाईन तरीकों के ाईदाहरण हैं वजनके द्वारा कल्याणकारी योजनाएां लागू की जाती
हैं। वववभन्न प्रकार के लाभार्शथयों (मवहलाएां, बच्चें, BPL ाअकद) के वलए कें द्र और राज्य सरकारें
तदनुकूल कल्याण योजनाएां लेकर ाअाइ हैं। कल्याणकारी योजनाओं का दृविकोण सांसाधनों का
ाआितम ाअबांटन करके तथा ाअवश्यक सेवाओं तक पहुाँच स्थावपत कर लाभार्शथयों को लाभ पहुाँचाना

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है। एकीकृ त बाल ववकास योजना एक कल्याणकारी योजना है वजसके लाभाथीं बच्चें एवां मवहलाएां
हैं। यह बच्चों की पोषण और ववकास सांबांधी ाअवश्यकताओं की पूर्शत हेतु भारत की एक प्रमुख
योजना है।

7.5. जन भागीदारी (Public Participation)

 शासन के वववभन्न स्तरों पर जन भागीदारी के वबना, समावेशी ववकास के लक्ष्य को पाना ाऄसांभव

है। सरकार द्वारा ववववध तरीकों से जन भागीदारी को प्रोत्सावहत ककया जा रहा है, वजसके प्रवत
ाअम जन की प्रवतकिया भी सकारात्मक और ाऄग्र-सकिय रहनी चावहए। स्व-सहायता समूहों
(SHGs) को बढ़ावा कदया जाना समावेशी ववकास हेतु जन भागीदारी का एक सामान्य ाईदाहरण

है। सरकार नागररक कें कद्रत सेवाओं के वलए के वल सहायक प्लेटफामथ प्रदान कर सकती है, जबकक

ाईस पर खरा ाईतरने का दावयत्व ाऄभी भी सामान्य-जन का ही है। SHGs समथथन और सांवधथन

कायथिमों ने दवक्षण भारत के राज्यों, ववशेषकर के रल और ाअांध्र प्रदेश में ाऄच्छे पररणाम कदए हैं।
के रल सरकार द्वारा समर्शथत कु डू म्बश्री कायथिम मवहला सशविकरण को बढ़ावा देने और गरीबी
कम करने में सफल रहा है। ाअांध्र प्रदेश सरकार की ाआसी तरह की पहल, 'ाआां कदरा िाांवत पातकम्'
सामावजक गवतशीलता एवां लैंवगक सशविकरण को बढ़ावा देने और ग्रामीण गरीबी को कम करने
में ाऄच्छी प्रगवत कदखा रही है।
 ाऄांतत:, नीवतगत हस्तक्षेप व्यवि और समवि (ाऄथाथत् सूक्ष्म और वृहत) दोनों स्तर पर ककया जाता

है। राजकोषीय ाऄनुशासन में सुधार लाना, व्यापार ाईदारीकरण, प्रत्यक्ष ववदेशी वनवेश को

प्रोत्साहन, वनजीकरण, वववनयमन हटाना, कर सुधार, श्रम कानून, सामावजक सुरक्षा जाल,
सावथजवनक व्यय ाअकद समवि नीवतगत ाईपायों के दृविकोण से महत्वपूणथ हैं जबकक व्यवि स्तर पर
ाअय की ाऄसमानता घटाना, जन/सामावजक ाऄवसांरचना को सुधारना, स्वास्थ्य सेवा, वशक्षा,

ाअवश्यक सेवाओं तक पहुांच, जवाबदेही एवां पारदर्शशता, मवहला सशविकरण, नागररक समाज
सांगठनों की भूवमका ाअकद व्यवि (सूक्ष्म) नीवतगत ाईपकरण हैं वजन पर पुन: कायथ ककया जाना
चावहए।

8. साराां श (Summary)
 जैसा कक प्रारां भ में चचाथ की गाइ थी कक 11वीं पांचवषीय योजना का दृविकोण पत्र ाआस बात को
स्वीकार करता है कक ाअर्शथक सांवृवद् समावेशी ववकास को हावसल करने में ाऄसफल रही है। यहााँ
ाऄसफलता का मामला ाआच्छाशवि से जुड़ा है, सामथ्यथ से नहीं। समावेशी ववकास के लक्ष्यों को प्राि
करने हेतु क्षमता का ाऄभाव नहीं है ाऄवपतु ाआच्छाशवि की कमी और ाऄदूरदर्शशता की ववद्यमानता
है। नीवतयों का वनमाथण बहुत ही ाईत्साह के साथ ककया जाता है, ककतु समावेशी ववकास की ओर ले
जाने वाली सभी नीवतयों की कायाथन्वन रणनीवतयों को जमीनी स्तर पर कियावन्वत करना ाअसान
होना चावहए और वे ाईत्पादक होनी चावहएां, ाऄथाथत् रोजगार सृजन को ाईत्पादक व पररणामोन्मुख

बनाया जाना चावहए। जब बात BPL या गरीबों में सबसे गरीब लोगों की हो, तब ाईत्पादकता

पररणाम पर ाअधाररत होनी चावहए न कक लक्ष्योंमुखी, क्योंकक समावेशी ववकास के ाऄांतगथत लवक्षत
जनसमूह वांवचत और ाऄकु शल जन समुदाय हैं।

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 SMEs और MSMEs श्रम गहन क्षेत्रक हैं। LPG के कारण, रोजगार में ाईनकी भागीदारी कम
हुाइ है। सरकार को घरे लू वहतों की रक्षा के वलए घरे लू स्तर पर श्रम कानूनों और ाऄांतरराष्ट्रीय स्तर
पर व्यापार कानूनों में पररवतथन की ओर ध्यान देना चावहए। समावेशी ववकास के दावयत्व को सभी
चैनल भागीदारों नामत: राज्य, नागररक समाज सांगठनों (Civil Society Organizations:
CSOs) व नागररकों ाअकद द्वारा साझा ककया जाना चावहए। सामावजक ववकास योजनाओं को
ाऄवधक कु शल बनाने के वलए CSOs ग्रामीण क्षेत्रों में PRIs के साथ वमलकर काम कर सकते हैं।

ाऄांत में, नीवतगत समन्वय की कमी है। ाऄताः, सामान्य जनता को प्राथवमकता देते हुए नीवतगत
िे मवकथ को रूपाांतररत करना होगा।

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Classroom Study Material

भारतीय ऄथथव्यवस्था
13. भारत में खाद्य प्रसंस्करण और सम्बंधधत ईद्योग - संभावनाएं और महत्व,
धस्थधत, ऄपस्रीम और डाईनस्रीम अवश्यकताएं, अपूर्तत श्ृख
ं ला प्रबंधन

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धवषय सूची
1. खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग _________________________________________________________________________ 3

2. भारतीय कृ धष और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का धवकास _____________________________________________________ 4

3. खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की अपूर्तत श्ृख


ं ला ______________________________________________________________ 5

3.1. बैकवडथ और फॉरवडथ ललके ज ___________________________________________________________________ 6

4. भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की संभावनाएं और महत्व __________________________________________________ 7

5. भारत में प्रसंस्कृ त खाद्य क्षेत्र की संभाव्यता ___________________________________________________________ 8

6. भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की सफलता के धलए ईत्तरदायी कारक _________________________________________ 8

7. खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में भारत की क्षमता ___________________________________________________________ 10

8. भारत में खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग का SWOT (Strengths, Weakness, Opportunities and
Threats) अधाररत धवश्लेषण______________________________________________________________________ 11

9. खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के समथथन हेतु सरकार द्वारा प्रारं भ की गईं नीधतगत पहलें और ईपाय _________________________ 12

9.1 खाद्य सुरक्षा और मानक ऄधधधनयम, 2006 _______________________________________________________ 15

9.2 खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में ऄवसंरचना धवकास________________________________________________________ 16

9.3 सरकारी पहलों के बावजूद धवद्यमान वतथमान चुनौधतयााँ _______________________________________________ 18

10. सुझाव और अगे की राह (Suggestions and Way Forward) _________________________________________ 19

11. धवगत वषों में Vision IAS GS मेंस टेस्ट सीरीज में पूछे गए प्रश्न _________________________________________ 21
1. खाद्य प्रसं स्करण ईद्योग
(Food Processing Industry)

प्रसंस्कृ त खाद्य क्या है ?

प्रसंस्कृ त खाद्य में, ऄंतर-मंत्रालयी धहतधारक समूह की बैठक द्वारा पररभाधषत धनम्नधलधखत दो

प्रक्रियाएं संबद्ध होती हैं:


 धवधनर्तमत प्रक्रियाएं- यक्रद कृ धष, पशुपालन या मछली के क्रकसी कच्चे ईत्पाद को प्रसंस्करण (श्म,

धवद्युत,् मशीन या धन के प्रयोग द्वारा) द्वारा आस प्रकार रूपांतररत क्रकया जाता है क्रक ईसके मूल

भौधतक गुणों में बदलाव अ जाता है और यक्रद रूपांतररत ईत्पाद खाने योग्य हो और आसका
वाधणधययक महत्व हो तो ये खाद्य प्रसंस्करण के कायथक्षेत्र में अते हैं।
 ऄन्य मूल्यवर्तधत प्रसंस्करण- यक्रद ईल्लेखनीय मूल्य संवधथन (शेल्फ लाआफ में ऄधभवृधद्ध, शेल युक्त

और ईपभोग के धलए तैयार आत्याक्रद) हो तो ऐसे ईत्पाद भी प्रसंस्कृ त खाद्य के ऄंतगथत अते हैं, चाहे

आसमें कोइ धवधनमाथण प्रक्रिया शाधमल न हो।


भारत में खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग के ऄंतगथत सधम्मधलत मदें
खाद्य प्रसंस्करण एक बृहद क्षेत्र है धजसमें कृ धष, बागवानी, वृक्षारोपण, पशुपालन और मत्स्य पालन

जैसी गधतधवधधयााँ शाधमल हैं। आसमें खाद्य ईत्पादों के धनमाथण के धलए कृ धष अगतों का ईपयोग करने
वाले ऄन्य ईद्योग भी सधम्मधलत हैं। औद्योधगक वगीकरण के ऄंतराथष्ट्रीय मानक के अधार पर यह माना
गया है क्रक धनम्नधलधखत समूहों में सूचीबद्ध कारखानों को खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग के रूप में वर्तणत
क्रकया जा सकता है।

S.No. NIC समूह धववरण

1. 151 मांस, मछली, फलों, सधजजयों, तेलों और वसाओं का ईत्पादन, प्रसंस्करण और

परररक्षण

2. 152 डेयरी ईत्पादों का धवधनमाथण

3. 153 ऄनाज ईत्पादों, स्टाचथ और स्टाचथ ईत्पादों तथा पशु ईत्पादों को तैयार करने

हेतु धवधनमाथण

4. 154 ऄन्य खाद्य ईत्पादों का धवधनमाथण

5. 155 पेय पदाथों का धवधनमाथण

स्रोत: डेटा बैंक ऑन आकोनॉधमक पैरामीटसथ ऑफ द फू ड प्रोसेलसग सेक्टर

*NIC– नेशनल आं डस्रीज क्लाधसक्रफके शन

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2. भारतीय कृ धष और खाद्य प्रसं स्करण क्षे त्र का धवकास
(Evolution of India Agriculture and Food rocessing Sector)

1960 के दशक के पूवथ 1960-1990 तक 1991 के बाद

नीधतयााँ कृ धष ईन्मुख नहीं थीं: ईद्योग कृ धष पर कें क्रित: मुख्य ईद्देश्य अर्तथक सुधार: कृ धष क्षेत्र
क्षेत्र (धवशेष रूप से पूंजीगत वस्तुओं खाद्यान्न में अत्मधनभथरता प्राप्त को नजरऄंदाज कर क्रदया
पर) पर ऄधधक ध्यान कें क्रित क्रकया करना, क्रकसानों को ईधचत मूल्य गया। ईद्योग-प्रथम
गया। हालांक्रक 1950-51 में भारत के क्रदलाना और ईपभोक्ताओं (Industry-first) का

सकल घरे लू ईत्पाद में 48% धहस्सा (धवशेष रूप से धनधथनों को) के दृधिकोण, औद्योधगक
कृ धष क्षेत्र का था। अत्मधनभथर और धलए वहनीय कीमतें धनधाथ ररत लाआसेंलसग को हटाने पर
धवधवधतापूणथ ईद्योग क्षेत्र के धनमाथण करना था।
ध्यान कें क्रित क्रकया गया,
की अवश्यकता ने योजनाकारों को सभी धवधनर्तमत और
अयात प्रधतस्थापन रणनीधत ऄपनाने हररत िांधत: चावल और गेहं की पूंजीगत वस्तुओं से अयात
के धलए प्रेररत क्रकया। ईच्च ईपज क्रकस्मों का प्रारं भ। लाआसेंस को हटाने का
फसलों के धलए लसचाइ
प्रयास, टैररफ कटौती और
सुधवधाओं और ईवथरकों तथा
1960 के प्रारम्भ में सकल घरे लू धवदेशी धनवेश के धलए
न्यूनतम समथथन मूल्य का
ईत्पाद की वृधद्ध दर 5% ऄनुमाधनत प्रावधान। धनयमों में छू ट प्रदान
करना।
थी, परन्तु यह के वल 3.9% रही। भोजन के धलए बफर स्टॉक का
धनमाथण तथा सावथजधनक धवतरण हालांक्रक, 2000 के बाद
आसी दौरान जनसंख्या वृधद्ध दर 1.4%
प्रणाली को मजबूत बनाना। सरकार ने खाद्य
ऄनुमाधनत थी, परन्तु यह 2.3% तक
हररत िांधत अयात को धनयाथत प्रसंस्करण ईद्योग पर
पहाँच गइ। पररणामतः भारत की खाद्य
अय के 1.9% तक लाने में ध्यान कें क्रित करते हए
सुरक्षा की दशा ऄत्यंत गंभीर हो गइ
सफल रही। खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में
और भारत ने ऄपनी कु ल धनयाथत अय
स्वचाधलत रूट से 100%
के 28% का खाद्यान्न अयात क्रकया।
हदबंदी कानून - 1972: FDI की ऄनुमधत दी।
भूधमहीन क्रकसानों को भूधम ऄल्कोहल, बीयर आत्याक्रद
ईपलजध कराने हेतु। क्रकसानों जैसी कु छ वस्तुओं को
द्वारा धाररत भूधम पर हदबंदी।
छोड़कर ईद्योग प्रारम्भ
धनयाथत पर प्रधतबंध:
कृ धष करने के धलए कोइ
वस्तुओं को धनयाथत करने से औद्योधगक लाआसेंस
प्रधतबंधधत क्रकया गया। आसके अवश्यक नहीं है।
ऄधतररक्त, प्रचधलत धवधनमय दर धनयाथत को प्रोत्साहन: फ़ू ड
धनयाथत के पक्ष में नहीं थी। पाकथ और धनयाथत क्षेत्र को
प्रोत्साधहत क्रकया गया।
आसने शुल्क मुक्त अयात
जैसे लाभ प्रदान क्रकए,
धनयाथत धबिी से प्राप्त लाभ
कॉपोरे ट कर से मुक्त क्रकये
गए।

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खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग नवजात चरण में था खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग का धवकास
भारत में कृ धष प्रसंस्करण ईद्योग के धवकास के 1991 के बाद खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग पर ध्यान
प्रमुख पररणाम। कें क्रित क्रकया गया:
खाद्य संकट और हररत िांधत:
 अर्तथक सुधारों के बाद, सरकार ने भारत में
 1960 के दशक में भारत में अए खाद्य संकट
खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग में सुधार करने पर
ने सरकार को हररत िांधत को ऄपनाने के ध्यान कें क्रित क्रकया।
धलए मजबूर क्रकया, धजसने भोजन में  धनवेश को अकर्तषत करने के धलए खाद्य
अत्मधनभथरता प्राप्त करने में सहायता की। प्रसंस्करण ईद्योग, धनयाथत संवधथन प्रोत्साहन
समाज के गरीब वगों में सुधार पर ध्यान कें क्रित
और ऄन्य योजनाओं में 100% FDI की
क्रकया गया:
ऄनुमधत दी गइ।
 समाज के गरीब वगों की अजीधवका में
 हालांक्रक, भारत में आस क्षेत्र के ऄंतगथत धनवेश
सुधार करने के धलए 1972 में हदबंदी क़ानून
बहत कम रहा है। सरकार ने खाद्य और कृ धष
- 1972 लागू क्रकया गया।
प्रसंस्करण ईद्योग की पहचान 'सनराआज
 प्राथधमक ईद्देश्य भूधमहीन क्रकसानों को भूधम
प्रदान करना था। आसने क्रकसानों के स्वाधमत्व (नवोक्रदत धवकासशील ईद्योग)' क्षेत्रों में से

वाली भूधम की सीमा को धनधाथररत क्रकया एक के रूप में की है। धजसमें घरे लू और
(17 हेक्टेयर तक सीधमत- यह सीमा धवधभन्न धनयाथत बाजारों की मांग को पूरा करने की
ईच्च क्षमता है।
राययों में धभन्न-धभन्न है )

3. खाद्य प्रसं स्करण क्षे त्र की अपू र्तत श्ृं ख ला


(Supply Chain of the Food Processing Sector)

अपूर्तत श्ृंखला तैयार ईत्पादों का धवपणन करने के धलए कच्चे माल के अपूर्ततकताथ (क्रकसान), कं पनी

(खाद्य संसाधक-food processor) और धवतरण तंत्र के मध्य एक नेटवकथ है। अपूर्तत श्ृंखला ग्राहक को
ईत्पाद या सेवा प्रदान करने में ऄपनाये गए चरणों का प्रधतधनधधत्व करती है।
धवधनर्तमत खाद्य ईत्पादों के प्रसंस्करण के धवधभन्न चरण धनम्नधलधखत हैं:
खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग में अपूर्तत श्ृंखला

स्रोत: डेटा बैंक ऑन आकोनॉधमक पैरामीटसथ ऑफ द फू ड प्रोसेलसग सेक्टर


 प्राथधमक प्रसंस्करण: कृ धष ईपज की सफाइ, ग्रेलडग, पाईडररग और ररफाआलनग; ईदाहरण के धलए,
गेहाँ को पीस कर अटा बनाना।
 धद्वतीयक प्रसंस्करण: अधारभूत मूल्यवधथन; ईदाहरण के धलए, टमाटर को पीस कर गाढ़ा बनाना,

कॉफी पॉईडर, मांस ईत्पादों का प्रसंस्करण।

 तृतीयक प्रसंस्करण: ईच्च मूल्यवधथन ईत्पाद जैसे जैम, सॉस, धबधस्कट और ईपभोग के धलए तैयार
ऄन्य बेकरी ईत्पाद।
कच्चे माल से खुदरा धविे ता तथा खुदरा धविे ता से ईपभोक्ता तक खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग की सामान्य
मूल्य श्ृंखला को नीचे धचत्र में दशाथया गया है।

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3.1. बै क वडथ और फॉरवडथ ललके ज

(Backward and Forward Linkages)

बैकवडथ ललके ज: आसका अशय कच्चे माल की अपूर्तत के स्रोतों और FPIs (खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग-
Food Processing industries) के मध्य संपकथ से है। ईदाहरण के धलए, एक के चऄप धवधनमाथता को
टमाटर जैसे कच्चे माल की अपूर्तत।
फॉरवडथ ललके ज: आसका अशय भौधतक ऄवसंरचना जैसे भंडारण, सड़क और रे ल नेटवकथ आत्याक्रद
धवतरण नेटवकथ के माध्यम से बाजारों और FPIs के मध्य संपकथ से है।
ललके ज का महत्त्व
 यह क्रकसानों को ईधचत गुणवत्ता के ईत्पादों के ईत्पादन हेतु प्रोत्साधहत करता है और समथथ बनाता
है।
 यह क्रकसानों धवशेषकर सीमांत और मध्यम क्रकसानों, को ईनकी ईपज के धलए ईधचत एवं
लाभकारी प्रधतफल (ररटनथ) प्राप्त करने में सहायता करता है।
 यह कम शेल्फ लाआफ वाले शीघ्र नि होने वाले ईत्पादों जैसे फल, सधजजयों, डेयरी ईत्पादों अक्रद
खाद्य पदाथों के ऄपव्यय को कम करता है।
 यह ईपभोक्ता बाजारों में खाद्य ईत्पादों का समयबद्ध धवतरण सुधनधित करता है।
 ईच्च गुणवत्तापूणथ ईत्पादों और बेहतर ऄवसंरचना के पररणामस्वरूप लागत में कमी और दक्षता में
वृधद्ध होती है।
 ये ललके ज सभी धहतधारकों के धलए एक समान ऄवसर प्रदान करते हैं और प्रधतस्पधाथ का सामना
करने में सहायता करते हैं।
 स्वच्छता और खाद्य सुरक्षा मानकों को बेहतर बनाने में सहायता करते हैं धजससे घरे लू और
ऄंतराथष्ट्रीय बाजार में प्रसंस्कृ त खाद्य की स्वीकायथता में वृधद्ध होती है।
सुदढ़ृ ललके ज स्थाधपत करने में धनम्नधलधखत चुनौधतयााँ धवद्यमान हैं:
 धवखंधडत भू-जोतों के कारण लघु और धबखरा हअ धबिी योग्य ऄधधशेष।
 कच्चे माल ईत्पादन की मौसम पर ईच्च धनभथरता।
 मध्यस्थों की ऄत्यधधक संख्या।
 शीत-भंडारण, पररवहन सुधवधाओं, धवद्युत आत्याक्रद जैसी ऄवसंरचनाओं की धनम्नस्तरीय सुधवधाएाँ।
 प्रसंस्करण ईद्योग ऄत्यधधक धवखंधडत है और आसमें ऄसंगरठत क्षेत्र की प्रधानता है।
 प्रसंस्करण ईद्योगों का धनम्न स्तर।

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 क्रकसानों और लघु प्रिमकों तक सूचना की ऄपयाथप्त पहाँच।
 कानूनों की ऄधधकता के कारण धवधनदेशों में धवरोधाभास, धववाक्रदत दृधिकोण, समन्वय में कमी
और प्रशासधनक धवलंब होता है।
o ईदाहरण के धलए, जैम और स्वै श जैसे धडजबाबंद खाद्य ईत्पादों के धनमाथताओं को कइ कानूनों
के तहत धनधाथररत गुणवत्ता मानकों और लेबल घोषणाओं का ऄनुपालन करने के धलए बाध्य
क्रकया जाता है, जैसे माप-तौल मानक (पैकेयड वस्तु) धनयम, खाद्य ऄपधमश्ण रोकथाम कानून

(PFA) और फल ईत्पाद अदेश (FPO)।


 ऄंतराथष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मानकों और घरे लू खाद्य कानूनों में धवसंगधतयााँ।
 ऄल्प धवकधसत खाद्य परीक्षण नेटवकथ ।

4. भारत में खाद्य प्रसं स्करण क्षे त्र की सं भावनाएं और महत्व


(Scope and Significance of the Food Processing Sector in India)
खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की संभावनाओं में मौजूदा पररचालन के स्तर /ईद्योग के अकार में वृधद्ध के साथ-
साथ भधवष्य की क्षमताओं में वृधद्ध सधम्मधलत हैं। आसकी संभावनाओं का ऄनुमान धनम्नधलधखत लबदुओं
द्वारा क्रकया जा सकता है:
 2016 में खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग ने धवधनमाथण के माध्यम से भारत की GDP में 8% से ऄधधक का
योगदान क्रदया है।
 2011-16 के दौरान, प्रसंस्कृ त खाद्य और संबंधधत ईत्पादों (पशु ईत्पादों सधहत) के धनयाथत में

11.74 प्रधतशत CAGR (Compound Annual Growth Rate) की वृधद्ध हइ और यह बढ़कर

16.2 धबधलयन ऄमेररकी डॉलर तक पहंच गइ है।

 धविय में खुदरा धबिी के 70 फीसदी योगदान के साथ भारतीय खाद्य और क्रकराना बाजार धवश्व
का छठा सबसे बड़ा बाजार बन गया है।
 ईत्पादन, ईपभोग, धनयाथत और संवृधद्ध के मामले में यह देश का पांचवााँ सबसे बड़ा ईद्योग है।

 खाद्य ईद्योग का वतथमान मूल्य 39.71 धबधलयन ऄमेररकी डॉलर है। आसका मूल्य 2018 तक 11

प्रधतशत की धमधश्त वार्तषक वृधद्ध दर (CAGR) से बढ़कर 65.4 धबधलयन ऄमेररकी डॉलर हो
जाने का ऄनुमान है।
 2020 तक भारत के जैधवक खाद्य ईत्पाद बाजार में तीन गुना वृधद्ध का ऄनुमान है।

 भारत 1.25 धबधलयन से ऄधधक जनसंख्या वाला देश है। पयाथप्त प्रयोयय अय के साथ बढ़ता मध्यम

वगथ घरे लू बाजार को महत्वपूणथ मांग के ऄवसर प्रदान करता है।

 आस क्षेत्र में 100% FDI की ऄनुमधत है। भारतीय ईद्योग पररसंघ (CII) का ऄनुमान है क्रक आस क्षेत्र

में अगामी 10 वषों में 33 धबधलयन ऄमेररकी डॉलर के धनवेश को अकर्तषत करने और 9 धमधलयन
लोगों के धलए रोजगार के ऄवसरों का सृजन करने की क्षमता है।
 भारत दूध, घी, ऄदरक, के ला, ऄमरुद, पपीता और अम के ईत्पादन में धवश्व में प्रथम स्थान पर है।

आसके ऄधतररक्त, चावल, गेहं और कइ ऄन्य सधजजयों और फलों के ईत्पादन में धवश्व में धद्वतीय

स्थान पर है। यक्रद ऄनाज, फल, सधजजयां, दूध, मछली, मांस और कु क्कु ट अक्रद के ऄधधशेष
ईत्पादन को प्रसंस्कृ त और देश के ऄंदर और बाहर धवपणन क्रकया जाता है तो आस क्षेत्र के धवकास
के धलए और ऄधधक ऄवसर प्राप्त होंगे।

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5. भारत में प्रसं स्कृ त खाद्य क्षे त्र की सं भाव्यता
(Potential of Processed Food Sector in India)
 मांग: एक ऄरब से ऄधधक की जनसंख्या और ईपभोक्ताओं के बजट के एक बड़े भाग के रूप में खाद्य
सामग्री होने के कारण यह क्षेत्र देश में ऄन्य व्यवसायों की तुलना में प्रमुखता की धस्थधत रखता है।
 लोच: 2008-09 में मंदी के दौरान GDP में धगरावट और कइ ऄन्य ईद्योगों के खराब प्रदशथन के
बावजूद आस क्षेत्र ने बेहतर प्रदशथन क्रकया। आस तथ्य पर धवचार करते हए भारत की ऄथथव्यवस्था के
धलए आस क्षेत्र का महत्व ऄधधक प्रासंधगक हो गया है।
 मूल्य श्ृख
ं ला: आस ईद्योग में ईपभोक्ता को ऄंधतम ईत्पाद ईपलजध कराने में गधतधवधधयों की एक
श्ृंखला शाधमल है। आसमें अगतों के ईत्पादन के धलए कृ षक गधतधवधधयााँ, ईत्पादों के धनमाथण के
धलए अगतों का प्रसंस्करण और ईत्पाद के धवतरण से संबद्ध अपूर्तत श्ृंखला सधम्मधलत है।
 फॉरवडथ-बैकवडथ ललके ज: आसे ग्रामीण ऄथथव्यवस्था के संचालन हेतु संभाधवत स्रोत के रूप में देखा
जा रहा है क्योंक्रक यह ईपभोक्ता, ईद्योग और कृ धष के मध्य तालमेल स्थाधपत करता है। एक
सुधवकधसत खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग से फामथ गेट कीमतों (ईत्पादन स्थल पर क्रकसी ईत्पाद का
मूल्य) में वृधद्ध करने, ऄपव्यय को कम करने, मूल्यवधथन सुधनधित करने, फसल धवधवधीकरण को

बढ़ावा देन,े रोजगार के ऄवसरों के साथ-साथ धनयाथत अय का सृजन ऄपेधक्षत है। यह क्षेत्र खाद्य

सुरक्षा के महत्वपूणथ मुद्दों का समाधान करने और लोगों को स्वस्थ, पौधिक भोजन प्रदान करने में
भी सक्षम है।
 धवकास की संभावनाएं: यद्यधप अकार के सन्दभथ में ईद्योग वृहद् है, तथाधप धवकास के संदभथ में यह

प्रारं धभक ऄवस्था में है। देश के कु ल कृ धष और खाद्य ईत्पादन में से के वल 2 प्रधतशत को ही प्रसंस्कृ त

क्रकया जाता है। हालांक्रक, कृ धष क्षेत्र की तुलना में सकल घरे लू ईत्पाद में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का
योगदान तेजी से बढ़ रहा है।
 कच्चा माल: कृ धष ऄथथव्यवस्था होने के कारण भारत में कच्चे माल की पयाथप्त अपूर्तत है।
 रोजगार सृजन: आसमें धवशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में ,गैर-कृ धष रोजगार सृजन करने की क्षमता है। यह
ईत्पादक रोजगार के ऄवसर प्रदान करके प्रच्छन्न बेरोजगारी को कम करे गा।
 धनवेश: आस क्षेत्र में स्वचाधलत मागथ के माध्यम से 100 प्रधतशत FDI (प्रत्यक्ष धवदेशी धनवेश) की

ऄनुमधत है। 2010-11 से 2016-17 (औद्योधगक नीधत एवं संवधथन धवभाग) के दौरान खाद्य

प्रसंस्करण क्षेत्र में 6492.19 धमधलयन ऄमेररकी डॉलर की FDI आक्रवटी का ऄन्तवाथह रहा। ये
धनवेश कृ धष अय और रोजगार को बढ़ावा देने के धलए ईत्प्रेरक के रूप में कायथ करते हैं।

6. भारत में खाद्य प्रसं स्करण क्षे त्र की सफलता के धलए


ईत्तरदायी कारक
(Factors Responsible for Success of Food Processing Sector in India)

भारतीय खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग की धवकास क्षमता ऄधववाक्रदत है; हालांक्रक, आसे ऄपनी क्षमता का पूणथ
लाभ प्राप्त करने के धलए कु छ धनधित दक्षताओं एवं सफलता प्राधप्त से संबंधधत कारकों की अवश्यकता
है। आसके ऄंतगथत मूल्य श्ृंखला में धवद्यमान ऄंतरालों का समाधान करने के साथ-साथ देश-प्रदत्त धवधभन्न
लाभों से भी लाभाधन्वत होना सधम्मधलत है। सफलता के धलए ईत्तरदायी कु छ प्रमु ख कारकों की नीचे
चचाथ की गइ है:

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 एकीकृ त अपूर्तत श्ृख
ं ला एवं पररचालन का स्तर (स्के ल ऑफ़ ऑपरे शन) (Integrated Supply

Chain and Scale of Operations)

फलों एवं सधजजयों के ईत्पादन में भारत दूसरे स्थान पर है, जबक्रक आसके ईत्पादन का लगभग 20

से 25 प्रधतशत फसल कटाइ के धवधभन्न चरणों में नि हो जाता है। आसका प्रमुख कारण बीज एवं
रोपण सामग्री की धनम्न स्तरीय गुणवत्ता तथा ईपज में सुधार हेतु प्रौद्योधगकी का ऄभाव है।
गुणवत्तायुक्त ईत्पादों को सुधनधित करने के धलए प्रौद्योधगकी में धनवेश और फसल के धलए लंबी
पररपवन ऄवधध की अवश्यकता होती है। गुणवत्तायुक्त ईत्पादन के पररणामस्वरूप ही बेहतर
गुणवत्तायुक्त प्रसंस्कृ त फलों का ईत्पादन हो पाता है। आसधलए ईपज की गुणवत्ता में सुधार हेतु
ऄनुबंध कृ धष जैसी व्यवस्थाओं की सहायता से क्रकसानों के साथ बैकवडथ ललके ज स्थाधपत करने की
अवश्यकता है। प्रसंस्करण ईद्योग में स्के ल (ईत्पादन की मात्रा और ईत्पादन आकाआयों का अकार
या मात्रा) एक महत्वपूणथ घटक है। लगभग 90 प्रधतशत खाद्य प्रसंस्करण आकाआयां छोटे स्तर की हैं
धजस कारण वे आकॉनमी ऑफ़ स्के ल (अकाररक धमतव्यधयता ऄथवा ययादा ईत्पादन आकाआयों से
ऄधधक मात्रा में ईत्पादन होने से प्रधत आकाइ ईत्पादन लागत कम हो जाती है) से पूणथ लाभाधन्वत
होने में ऄक्षम होती हैं। यह जोतों के संदभथ में भी सत्य है।
 प्रसंस्करण प्रौद्योधगकी (Processing Technology)

वतथमान समय में, भारत में ऄधधकांश प्रसंस्करण आकाआयााँ हस्तचाधलत (मैनऄ
ु ल) हैं। सधजजयों के

धलए प्री-कू ललग सुधवधाओं, धनयंधत्रत वातावरण में भंडारण तथा धवक्रकरण सुधवधाओं जैसी
तकनीकों का सीधमत ईपयोग क्रकया जाता है। यह तकनीकी फलों एवं सधजजयों के धवस्ताररत
भंडारण हेतु महत्वपूणथ है ताक्रक अगे ईनका प्रसंस्करण सुगम हो सके । मांस प्रसंस्करण के संदभथ में,

भारत में मौजूदा 3600 से ऄधधक लाआसेंस प्राप्त बूचड़खानों में तकनीक का ईपयोग सीधमत स्तर

पर क्रकया जाता है, धजसके पररणामस्वरूप पशु अबादी का कम ईपयोग हो पाता है। अधुधनक
तकनीक का ईपयोग एक ऐसा क्षेत्र है जहााँ मौजूदा धनवेशकों के साथ-साथ नए धनवेशकों का भी
ध्यान अकर्तषत क्रकया जा सकता है। आससे प्रक्रिया क्षमताओं के साथ-साथ ऄंधतम ईत्पाद की
गुणवत्ता में स्पि ऄंतर सुधनधित क्रकया जा सके गा।
 घरे लू बाजारों में बढ़ती पहाँच (Increasing Penetration in Domestic Markets)
ऄधधकांश प्रसंस्करण आकाआयााँ धनयाथतोन्मुखी हैं ऄतः घरे लू बाजारों तक आनकी पहाँच धनम्न स्तरीय
है। ईदाहरणाथथ:
o प्रसंस्कृ त फलों एवं सधजजयों की समग्र रूप से पहाँच मात्र 10 प्रधतशत है।

o ब्ांडड
े दुग्ध ईत्पादों धवशेषतः घी की पहाँच ऄभी 2 प्रधतशत से भी कम है।

o रसोइ (culinary) संबंधी ईत्पादों की पहाँच ऄभी भी 13.3 प्रधतशत है एवं वृहत पैमाने पर
आसका झुकाव महानगरों की ओर है।
o भारतीय ईपभोक्ताओं द्वारा पैक्ड धबधस्कट की खपत ऄभी भी 0.48 फीसदी से भी कम है

जबक्रक ऄमेररका में यह 4 प्रधतशत है।

यद्यधप, शहरी जनसंख्या के मध्य आन ईत्पादों की स्वीकृ धत में तेजी से वृधद्ध हो रही है। भारत में एक
बड़ा ऄप्रयुक्त ग्राहक अधार मौजूद है एवं घरे लू बाजार में ऄल्प पहाँच भी कं पधनयों को मात्रात्मक संख्या
में ऄधधक लाभ प्राप्त करने में सक्षम बना सकती है। घरे लू बाजार में स्वीकृ धत के साथ ही ईच्च पहाँच
धनम्नधलधखत कारकों द्वारा संचाधलत होती है:

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 प्रधतस्पधी मूल्य धनधाथरण (Competitive Pricing)
ईपभोक्ता प्रसंस्कृ त खाद्य पदाथों के मूल्य के प्रधत ऄत्यधधक संवेदनशील होते हैं। मूल्य धनधाथरण में
ऄल्प पररवतथन से ही ईपभोग पर महत्वपूणथ प्रभाव पड़ सकता है। ईदाहरण के धलए, नए मूल्य
वगों एवं पैकेज अकारों में PET बोतलों में नॉन-काबोनेटेड पेय (जैसे कोका कोला) के अगमन से

आसका घरे लू ईपभोग एक वषथ में 30% से बढ़कर 80% हो गया। प्रधतस्पधी मूल्य धनधाथरण ग्रामीण
बाजारों में भी पहाँच को सक्षम बनाता है।
 ब्ांड प्रधतस्पधाथत्मकता (Brand Competitiveness)
भारतीय ईपभोक्ताओं द्वारा की जाने वाली खरीद में ब्ांडड
े ईत्पादों के भाग में तेजी से वृधद्ध हो
रही है। यह शहरी ईपभोक्ताओं के संदभथ में धवशेष रूप से सत्य है। बासमती चावल तथा KFC’s
धचकन जैसे ब्ांडड
े ईत्पादों की सफलता ईधचत मूल्य पर स्वच्छ ब्ांडड
े ईत्पादों की ऄधधक मांग को
दशाथती है।
 ईत्पाद संबध
ं ी नवाचार (Product Innovation)
स्नैक्स फ़ू ड जैसी कु छ प्रसंस्कृ त खाद्य श्ेधणयां ऐसे ईत्पाद हैं धजनका िय ऄधधक मात्रा में क्रकया
जाता है और यहााँ ईपभोक्ता द्वारा नवीनता एवं नए स्वादों की खोज की जाती है और आसधलए आन
श्ेधणयों में ब्ांड धनष्ठा का ऄभाव है। क्रदखने में अकषथक पैककग क्रकसी भी वस्तु के ईपभोग को
बढ़ावा देती है। कायथशील मध्यम वगथ के मध्य बढ़ती समय बाध्यताओं ने आं स्टेंट सूप, नूडल्स एवं
रे डी-टू -मेक ईत्पादों के ईपभोग में धनरं तर वृधद्ध की है। पैकेलजग एवं ईत्पाद ईपयोग में नवाचार
प्रसंस्कृ त खाद्य पदाथों हेतु एक महत्वपूणथ सफलता कारक है।

7. खाद्य प्रसं स्करण क्षे त्र में भारत की क्षमता


(India’s Strengths in the Food Processing Sector)
खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में भारत की क्षमता धनम्नधलधखत में धनधहत है:
 ऄनुकूल कारक संबध
ं ी पररधस्थधतयााँ (Favourable-Factor Conditions )
धवधभन्न प्राकृ धतक संसाधनों तक असान पहाँच भारत को खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में प्रधतस्पधाथत्मक
लाभ प्रदान करती है। आसकी धवधवध कृ धष जलवायधवक पररधस्थधतयों के कारण आसके पास कच्चे
माल का व्यापक और वृहद् अधार धवद्यमान है, जो खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग हेतु ईपयुक्त है।
वतथमान में आनकी ऄत्यल्प मात्रा को ही मूल्यवर्तधत ईत्पादों में प्रसंस्कृ त क्रकया जाता है। ऄद्धथ-
प्रसंस्कृ त तथा तैयार खाद्य पदाथों के धडजबाबंद संस्करण ऄभी भी धवकास की प्रक्रिया में हैं।
घरे लू और धनयाथत बाजारों हेतु ऄत्यधधक धनम्न लागत वाले ईत्पादन संयत्र
ं ों की स्थापना के धलए
भारत में तुलनात्मक रूप से सस्ते श्मबल का ईपयोग क्रकया जा सकता है। भारत में ईत्पादन
लागत यूरोपीय संघ की तुलना में 40% तक तथा यूनाआटेड ककगडम की तुलना में लगभग 10-
15% तक कम है। आन कारक संबंधी पररधस्थधतयों के साथ खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग को अगे बढ़ाने
हेतु अवश्यक महत्वपूणथ धनवेश तक भारत को पहंच प्राप्त है। यहााँ न के वल घरे लू फमों एवं भारत
सरकार द्वारा क्रकए गए धनवेशों में बधल्क प्रत्यक्ष धवदेशी धनवेशों में भी वृधद्ध हो रही है।
 संबधं धत और सहायक ईद्योग (Related and Supporting Industries)
भारतीय खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग को सुधवकधसत ऄनुसंधान एवं धवकास तथा भारतीय फमों की
तकनीकी क्षमताओं का महत्वपूणथ सहयोग प्राप्त है। भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को तकनीकी एवं
धवकासात्मक समथथन प्रदान करने हेतु के न्िीय खाद्य प्रौद्योधगकी ऄनुसंधान संस्थान, के न्िीय
मधत्स्यकी प्रौद्योधगकी संस्थान, राष्ट्रीय डेयरी ऄनुसंधान संस्थान, राष्ट्रीय ऄनुसंधान एवं धवकास
कें ि, आत्याक्रद जैसे वृहद् संख्या में ऄनुसंधान संस्थान धवद्यमान हैं।

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 सरकारी धवधनयमन और समथथन (Government Regulations and Support)
भारत सरकार ने भारत में खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग के धवकास हेतु ऄनेक पहलें प्रारम्भ की हैं।
सरकार भारत में खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग को प्रोत्साहन देने हेतु कृ धष क्षेत्रों (agri-zones) तथा
मेगा फ़ू ड पाकों का धवकास कर रही है। खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में धनवेश को बढ़ावा देने हेतु हाधलया
वषों के दौरान धवधभन्न नीधतगत पहलें प्रारम्भ की गइ हैं, जैसे क्रक खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में 100%
FDI की ऄनुमधत प्रदान करना।

 प्रधतभाधगयों (कं पधनयों) की ऄत्यधधक संख्या (Large Number of Players)


भारत में संगरठत के साथ-साथ ऄसंगरठत क्षेत्र में भी ऄत्यधधक संख्या में प्रधतभागी धवद्यमान है।
संगरठत क्षेत्र छोटा है, परन्तु यह धवकास की प्रक्रिया में है- ईदाहरणाथथ, यह डेयरी क्षेत्र के 15% से
कम तथा फल और सधजजयों के प्रसंस्करण के लगभग 48% भाग का सृजन करता है। खाद्य
प्रसंस्करण क्षेत्र में धवकास की संभावनाएं धवद्यमान हैं तथा ऄत्यधधक संख्या में बहराष्ट्रीय कं पधनयााँ
आस ऄवसर का लाभ ईठाने हेतु भारत में प्रवेश कर चुकी हैं।
ईपयुथक्त क्षमताओं के ऄधतररक्त खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग मंत्रालय द्वारा धनम्नधलधखत क्षेत्रों की
पहचान की गइ है जहााँ धनवेश की अवश्यकता है:
o मेगा फ़ू ड पाकथ ,
o कृ धष-ऄवसंरचना तथा अपूर्तत श्ृख
ं ला एकीकरण,
o लॉधजधस्टक्स और शीत भंडार श्ृख
ं ला ऄवसंरचना,

o फल एवं सजजी ईत्पाद,


o पशु ईत्पाद, मांस एवं डेयरी ईत्पाद,
o मत्स्य पालन तथा समुिी खाद्य पदाथथ,

o खाद्यान्न, ईपभोक्ता खाद्य और तैयार खाद्य पदाथथ,


o वाआन एवं धबयर
o मशीनरी और पैकेलजग।

8. भारत में खाद्य प्रसं स्करण ईद्योग का SWOT


(Strengths, Weakness, Opportunities and
Threats) अधाररत धवश्ले ष ण
(A Brief SWOT Analysis of the Food Processing Industry in India)

सामथ्यथ दुबल
थ ताएं ऄवसर समस्याएं/ चुनौधतयां
(Strengths) (Weaknesses) (Opportunities) (Threats)

 कच्चे माल की  ऄधधक मात्रा में  देश में कृ धष-  वैधश्वक प्रधतभाधगयों
वषथ भर कायथशील पूज
ं ी पाररधस्थधतक से प्रधतस्पधाथ।
ईपलजधता। की अवश्यकता। पररवतथनशीलता के  बेहतर कायथ
 खाद्य  नवीन, कारण वृहद् फसल एवं पररधस्थधतयों के
प्रसंस्करण की धवश्वसनीय तथा सामग्री अधार खाद्य कारण ऄन्य ईद्योगों
एक महत्वपूणथ बेहतर ईपकरणों प्रसंस्करण एवं व्यवसायों में
क्षेत्र के रूप में एवं साधनों की गधतधवधधयों हेतु प्रधशधक्षत श्मबल

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सामाधजक कम ईपलजधता। व्यापक संभावनाएाँ का पलायन होना,
स्वीकायथता  सूचना प्रबंधन के प्रस्तुत करता है। धजसके
तथा कें ि संदभथ में ऄपयाथप्त  समकालीन पररणामस्वरूप
सरकार द्वारा स्वचालन। प्रौद्योधगक्रकयों जैसे खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र
समथथन।  ऄन्य क्षेत्रों की में श्मबल की कमी
आलेक्रॉधनक्स,
 सम्पूणथ देश में तुलना में आस की समस्या ईत्पन्न
धवधनमाथण क्षेत्र में प्रधतभा के मटेररयल साआंस,
हो सकती है।
सुधवधाओं का धलए कम कं प्यूटर, जैव-  समकालीन तीव्र
व्यापक अकषथक प्रौद्योधगकी अक्रद में धवकास तथा ईद्योग
नेटवकथ । पाररश्धमक। धवकास का एकीकरण की अवश्यकताएं
 धवशाल घरे लू  ऄनुसंधान एवं तीव्र सुधार एवं प्रगधत ऄप्रचलन की
बाजार। धवकास हेतु धवस्तृत कायथ क्षेत्र समस्या को तीव्र कर
प्रयोगशालाओं प्रदान करता है। सकते हैं।
तथा ईद्योग के  वैधश्वक बाजारों को
मध्य ऄपयाथप्त खोलने से धवकधसत
रूप से धवकधसत प्रौद्योधगक्रकयों के
सम्पकथ ता धनयाथत को प्रोत्साहन
(ललके ज)। तथा ऄधतररक्त अय
एवं रोजगार ऄवसरों
के सृजन को सुगमता
प्राप्त हो सकती है।

9. खाद्य प्रसं स्करण क्षे त्र के समथथ न हे तु सरकार द्वारा प्रारं भ की


गईं नीधतगत पहलें और ईपाय
(Policy Initiatives and Measures Taken by the Government to Support the Food
Processing Sector)
खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की धवकास क्षमताओं में वृधद्ध करने तथा ईनसे लाभ प्राप्त करने हेतु भारत सरकार
ने व्यापक सुधार प्रारं भ क्रकए हैं। सरकार द्वारा लागू क्रकए गए कु छ प्रमुख ईपायों में शाधमल हैं: कृ धष
ईत्पाद धवपणन सधमधत ऄधधधनयम में संशोधन, खाद्य कानूनों को तकथ संगत बनाना, राष्ट्रीय बागवानी
धमशन का कायाथन्वयन अक्रद। सरकार ने देश में खरीद, प्रसंस्करण, भण्डारण तथा पररवहन हेतु
एकीकृ त सुधवधाओं के साथ मेगा फ़ू ड पाकों की स्थापना द्वारा धनम्न स्तर की प्रसंस्करण गधतधवधधयों का
समाधान करने के प्रयास क्रकए हैं।
 लघु ईद्योग क्षेत्र तथा मादक पेय पदाथों हेतु अरधक्षत मदों को छोड़कर ऄधधकांश प्रसंस्कृ त खाद्य
मदों को औद्योधगक धवकास एवं धवधनयमन ऄधधधनयम, 1951 के तहत लाआसेंलसग के दायरे से छू ट
प्रदान की गइ है।
 1999 में खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग को बैंक ऊण प्राधप्त हेतु प्राथधमकता-प्राप्त क्षेत्र की सूची में
शाधमल क्रकया गया।
 शराब, बीयर और कु छ पररधस्थधतयों के ऄधीन लघु ईद्योग क्षेत्र हेतु अरधक्षत मदों को छोड़कर
ऄधधकााँश प्रसंस्कृ त खाद्य मदों के धलए 100% तक धवदेशी आक्रवटी की स्वचाधलत स्वीकृ धत ईपलजध
है।
 लाभों और पूज
ाँ ी का पूणथ प्रत्यावतथन (repatriation) ऄनुमोक्रदत क्रकया गया है।

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 100% धनयाथत ईन्मुख आकाआयों हेतु पूज
ं ीगत वस्तुओं एवं कच्चे माल पर शून्य अयात शुल्क।
 धनयाथत प्रसंस्करण क्षेत्र में धस्थत आकाआयों के धलए समस्त अयातों पर पूणथ शुल्क छू ट प्रदान की गइ
है।
 कें िीय बजट 2017-18 में, भारत सरकार ने 8,000 करोड़ रुपये (1.2 धबधलयन ऄमेररकी डॉलर)
के दुग्ध प्रसंस्करण और बुधनयादी धवकास धनधध (Dairy Processing & Infrastructure
Development Fund-DIDF) की स्थापना की है।
 कें िीय बजट 2016-17 द्वारा भारत में ईत्पाक्रदत और धनर्तमत खाद्य ईत्पादों के धवपणन में 100
प्रधतशत FDI प्रस्ताधवत की गयी थी।
 भारत सरकार ने आस क्षेत्र के धलए प्रत्यक्ष धवदेशी धनवेश (FDI) मानदंडों को सरल करते हए खाद्य
ईत्पाद इ-कॉमसथ में स्वचाधलत मागथ के माध्यम से 100 प्रधतशत FDI की ऄनुमधत प्रदान की है।
 भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधधकरण (FSSAI) ने 59 मौजूदा खाद्य परीक्षण
प्रयोगशालाओं को ऄपग्रेड करने और देश भर में 62 नइ मोबाआल परीक्षण प्रयोगशालाओं की
स्थापना करके भारत में खाद्य परीक्षण ऄवसंरचनाओं को सुदढ़ृ करने के धलए 482 करोड़ रुपये
(72.3 धमधलयन ऄमेररकी डॉलर) का धनवेश करने की योजना बनाइ है।
 आं धडयन काईं धसल फॉर फर्टटलाआजर एंड न्यूररएंट ररसचथ (ICFNR) द्वारा ईवथरक क्षेत्र में ऄनुसंधान
के धलए सवोत्तम ऄंतराथष्ट्रीय पद्धधतयों को ऄपनाया जाएगा। आससे क्रकसान क्रकफायती दरों पर
बेहतर गुणवत्ता वाले ईवथरक प्राप्त करने में सक्षम होंगे और आस प्रकार जन सामान्य के धलए खाद्य
सुरक्षा सुधनधित की जा सकती है।
 भारत सरकार द्वारा तटीय राययों में जलीय कृ धष (aquaculture) और मत्स्यपालन के धलए
एजेंधसयों की स्थापना एवं समुिी ईत्पादों के धनयाथत प्रोत्साहन सधहत मकें डाआज एक्सपोर्टसथ फ्रॉम
आं धडया स्कीम (MEIS: Merchandise Exports from India Seheme) के तहत धवधभन्न
ईपायों की घोषणा करते हए 1,500 करोड़ रुपये (225.7 धमधलयन ऄमरीकी डॉलर) अवंरटत
क्रकए हैं।
 FSSAI ने धनम्न मानक वाली (sub-standard) वस्तुओं के प्रवेश पर लचताओं का समाधान करने
के धलए तथा ईत्पादों का अयात करने के धलए नए धनयम जारी क्रकए हैं एवं शेल्फ लाआफ संबंधधत
मानदंडों और लेबललग क्रदशाधनदेशों को धशधथल करके प्रक्रिया को सरल बनाया है।
 खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग मंत्रालय ने खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में मानव संसाधन धवकास (HRD) के
धलए एक योजना की घोषणा की है। राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण धमशन के तहत रायय सरकारों के
माध्यम से HRD योजना लागू की जा रही है। आस योजना में धनम्नधलधखत चार घटक हैं:
o खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में धडग्री/धडप्लोमा पाठ्यिमों के धलए ऄवसंरचना सुधवधाओं का धनमाथण
o ईद्यधमता धवकास कायथिम (EDP-Entrepreneurship Development Programme )
o खाद्य प्रसंस्करण प्रधशक्षण कें ि (FPTC-Food Processing Training Centres)
o रायय/राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त संस्थानों में प्रधशक्षण
 स्वास्थ्य और पररवार कल्याण मंत्रालय के ऄंतगथत FSSAI द्वारा खाद्य सुरक्षा और मानक (खाद्य
ईत्पाद मानक और खाद्य संयोजी) धवधनयमावली, 2011 (Food Safety and Standards
(Food Product Standards and Food Additives) Regulations, 2011) और खाद्य
सुरक्षा और मानक (संदष
ू क, धवषैले तत्व एवं ऄवशेष) धवधनयमावली, 2011 (Food Safety
and Standards (Contaminants, Toxins and Residues) Regulations, 2011) जारी
क्रकए गये हैं। ये खाद्य ईत्पादों के धलए िमशः गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों को धनधाथररत करते हैं।

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 भारत सरकार ने धबहार, महाराष्ट्र, धहमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ राययों में पांच मेगा फू ड पाकथ
की स्थापना को स्वीकृ धत प्रदान की है। सरकार ऄगले तीन से चार वषों में पूरे देश में ऐसे 42 मेगा
फू ड पाकथ स्थाधपत करने की योजना बना रही है।
 भारत सरकार ने 14वें धवत्त अयोग चि की समयावधध के साथ वषथ 2016-20 तक की ऄवधध के
धलए 6,000 करोड़ रुपए के अवंटन से एक नइ कें िीय योजना- प्रधान मंत्री क्रकसान सम्पदा
योजना (SAMPADA-Scheme for Agro-Marine Processing and Development of
Agro-Processing Clusters) की शुरुअत की है।

प्रधानमंत्री क्रकसान संपदा योजना (PM Kisan SAMPADA Yojana)


प्रधान मंत्री क्रकसान संपदा योजना एक व्यापक पैकेज है धजसके पररणामस्वरूप खेत से लेकर खुदरा धबिी
कें िों तक दक्ष अपूर्तत श्ृंखला प्रबंधन के साथ अधुधनक ऄवसंरचना का सृजन होगा। आससे, देश में न के वल
खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की वृधद्ध को तीव्र गधत प्राप्त होगी बधल्क यह क्रकसानों को बेहतर मूल्य क्रदलाने तथा
क्रकसानों की अय को दोगुना करने, धवशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के भारी ऄवसरों का सृजन
करने, कृ धष ईपज की बबाथदी में कमी लाने, प्रसंस्करण तथा प्रसंस्कृ त खाद्य पदाथों के धनयाथत के स्तर को
बढ़ाने की क्रदशा में एक बड़ा कदम होगा।
प्रधान मंत्री क्रकसान संपदा योजना के ऄंतगथत धनम्नधलधखत योजनाओं का कायाथन्वयन क्रकया जाएगा:
 मेगा फू ड पाकथ
 एकीकृ त कोल्ड चेन और मूल्यवधथन ऄवसंरचना
 खाद्य प्रसंस्करण एवं परररक्षण क्षमताओं का सृजन / धवस्तार
 कृ धष प्रसंस्करण क्लस्टर ऄवसंरचना
 बैकवडथ और फारवडथ ललके ज का सृजन
 खाद्य संरक्षा और गुणवत्ता अश्वासन ऄवसंरचना
 मानव संसाधन और संस्थान

बजट 2018-19 में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के धलए नए प्रावधान (New Provisions for Food
Processing Sector in Budget 2018-19)
 प्रधानमंत्री क्रकसान संपदा योजना (PMKSY) हेतु वषथ 2017-18 के बजट ऄनुमान में क्रकए गए
715 करोड़ रुपए के अवंटन को वषथ 2018-19 के बजट ऄनुमान में बढ़ाकर 1400 करोड़ रुपए कर
क्रदया गया है।
 खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग मंत्रालय (MoFPI), वाधणयय और ऄन्य संबद्ध मंत्रालयों की भागीदारी में
कृ धष सहकाररता तथा क्रकसान कल्याण धवभाग (DAC & FW) ऄपनी चालू योजनाओं की
पुनसंरचना करे गा और कृ धष मदों एवं क्षेत्र के क्लस्टर अधाररत धवकास को प्रोत्साधहत करे गा।
 टमाटर, प्याज और अलू प्रसंस्करण- कृ षक ईत्पादक संगठनों (FPOs), कृ धष लॉधजधस्टक, प्रसंस्करण
सुधवधाओं और व्यवसाधयक प्रबंधन को प्रोत्साधहत करने के धलए 500 करोड़ रूपए के अवंटन से
ऑपरे शन ग्रीन का शुभारं भ क्रकया गया है।
 कृ धष धनयाथत क्षमता को वतथमान के 30 धबधलयन ऄमेररकी डॉलर से 100 धबधलयन ऄमेररकी डॉलर
तक बढ़ाने के ईद्देश्य से सभी 42 मेगा फू ड पाकों में ऄत्याधुधनक परीक्षण सुधवधाओं की स्थापना की
जाएगी।
 250 करोड़ रुपए तक का वार्तषक कारोबार करने वाली सभी क्षेत्रों की कं पधनयों के धनगम अयकर
को 30% से घटाकर 25% कर क्रदया गया है।

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 कृ धष के फसलोत्तर मूल्यवधथन जैसे क्रियाकलापों से प्राप्त होने वाले लाभ पर अयकर में 100% छू ट
से ऑपरे शन ग्रीन और PMKSY को प्रोत्साहन धमलेगा। यह ईपबंध, 100 करोड़ रुपए तक का
वार्तषक कारोबार करने वाले FPOs पर लागू होगा।
 मधत्स्यकी क्षेत्र के धलए मधत्स्यकी एवं मत्स्यपालन ऄवसंरचना धवकास धनधध (FAIDF-Fisheries
and Aquaculture Infrastructure Development Fund) तथा पशुपालन क्षेत्र की
ऄवसंरचना अवश्यकताओं को धवत्त ईपलजध करने के धलए पशुपालन ऄवसंरचना धवकास धनधध
(Animal Husbandry Infrastructure Development Fund: AHIDF) स्थाधपत की जाएगी।
आन दोनों नइ धनधधयों की कु ल राधश 10,000 करोड़ रुपये होगी।

9.1 खाद्य सु र क्षा और मानक ऄधधधनयम, 2006

(Food Safety and Standard Act, 2006)


वषथ 2005 तक खाद्य और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में 13 धवधभन्न कानून लागू थे। आन धवधभन्न
कानूनों/धवधनयमों के तहत खाद्य योजकों (food additives), संदष
ू कों (contaminants), खाद्य रं गों
(food colours), परररक्षकों (खाद्य वस्तुओं को खराब होने से बचाने वाले पदाथथ) तथा लेबललग के
संदभथ में धभन्न-धभन्न मानक धनधाथररत क्रकए गए थे। खाद्य कानूनों को तकथ संगत बनाने हेतु मंधत्रयों के
समूह (Group of Ministers: GoM) की स्थापना की गइ। आस समूह का कायथ खाद्य ईत्पादों के
धवधनयमन के संबंध में एक एकल संदभथ लबदु के रूप में, एकीकृ त खाद्य कानून के धनमाथण हेतु धवधायी
और ऄन्य पररवतथनों के धलए सुझाव देना था। GoM की ऄनुशस
ं ाओं के अधार पर खाद्य प्रसंस्करण
मंत्रालय ने खाद्य सुरक्षा और मानक ऄधधधनयम (FSSA), 2006 को ऄधधधनयधमत क्रकया।
आस ऄधधधनयम का ईद्देश्य खाद्य से संबंधधत कानूनों को समेक्रकत करना तथा भारतीय खाद्य सुरक्षा और
मानक प्राधधकरण (FSSAI-Food Safety and Standards Authority of India) की स्थापना
करना था। ज्ञातव्य है क्रक FSSAI का कायथ खाद्य सामधग्रयों के धलए धवज्ञान अधाररत मानक धनधाथररत
करना तथा ईनके धनमाथण, भंडारण, धवतरण, धबिी एवं अयात को धवधनयधमत करना है। आसके
ऄधतररक्त मानव ईपभोग तथा आससे संबंधधत या अकधस्मक मामलों हेतु सुरधक्षत और पौधिक खाद्य
पदाथों की ईपलजधता सुधनधित करना है।
ऄधधधनयम की महत्वपूणथ धवशेषताएाँ:
 आसका ईद्देश्य खाद्य से संबंधधत कानूनों को समेक्रकत करने, खाद्य पदाथों के धलए धवज्ञान-अधाररत
मानक धनधाथररत करने और ईनके धवधनमाथण, भंडारण, धवतरण, धविय एवं अयात को धवधनयधमत
करने तथा मानव ईपभोग हेतु सुरधक्षत एवं स्वास्थ्यप्रद खाद्य की ईपलजधता सुधनधित करने के
धलए भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधधकरण की स्थापना करना है।

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधधकरण में एक ऄध्यक्ष और 22 सदस्य शाधमल होते हैं, धजनमें से
एक-धतहाइ मधहलाएाँ होनी चाधहए।

 भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधधकरण को खाद्य सुरक्षा के मानकों को धनधाथररत करने हेतु
धवधभन्न वैज्ञाधनक पैनलों और एक कें िीय सलाहकार सधमधत द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी। आन
मानकों में संघटक, संदष
ू क, कीटनाशक ऄवशेष, जैधवक खतरों तथा लेबललग हेतु धवधनदेश शाधमल
होंगे।

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 यह ऄधधधनयम रायय खाद्य अयुक्तों तथा स्थानीय स्तर के ऄधधकाररयों के माध्यम से लागू क्रकया
जाएगा।
 खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में कायथरत प्रत्येक व्यधक्त या धनगम को एक लाआसेंस या पंजीकरण-पत्र प्राप्त
करना अवश्यक है, जो स्थानीय प्राधधकाररयों द्वारा जारी क्रकया जाएगा।
 प्रत्येक धवतरक को धनमाथता तथा प्रत्येक धविे ता को आसके धवतरक के क्रकसी खाद्य पदाथथ की
पहचान करने में समथथ होना चाधहए।
 धविय क्रकए गए खाद्य पदाथथ से धनर्ददि मानकों के ईल्लंघन की धस्थधत में आस क्षेत्र से संबंधधत
प्रत्येक व्यधक्त को प्रत्याहार प्रक्रियाओं (recall procedures) का ज्ञान होना अवश्यक है।

9.2 खाद्य प्रसं स्करण क्षे त्र में ऄवसं र चना धवकास

(Infrastructure Development in the Food Processing Sector)


सरकार द्वारा ईद्योगों की तीव्र संवृधद्ध को सुधवधाजनक बनाने हेतु भौधतक ऄवसंरचना के धवकास और
धवस्तार के धलए ईच्चतम प्राथधमकता धनधाथररत की गइ है। सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में
ऄवसंरचना संबंधी समस्या के समाधान हेतु धनम्नधलधखत घटकों को शाधमल करते हए ऄवसंरचना
धवकास के धलए योजना का कायाथन्वयन क्रकया है।
सरकार द्वारा भारत के प्रसंस्कृ त ईत्पादों की ऄंतराथष्ट्रीय मानकों के ऄनुरूप गुणवत्ता बढ़ाने, स्वास्थ्य
संबंधी लचताओं का समाधान करने तथा धनयाथत ऄवसरों का ईपयोग करने के धलए ऄनुसंधान संस्थाओं
के माध्यम से ऄनुसंधान एवं धवकास द्वारा समर्तथत गुणवत्ता धनयंत्रण और जााँच प्रयोगशालाओं व के न्िों
के नेटवकथ की स्थापना की जा रही है।
 शीत श्ृख
ं ला, मूल्यवधथन तथा परररक्षण ऄवसंरचना हेतु योजना (Scheme for Cold Chain,
Value Addition and Preservation Infrastructure)
आस योजना का ईद्देश्य ईत्पाद की खेत से ईपभोक्ता तक सतत एकीकृ त शीत भंडार श्ृंखला (cold
chain) तथा परररक्षण ऄवसंरचना सुधवधाओं के सृजन को सुगम बनाना है। आसका प्रयोजन शीत
भण्डारण क्षमता की कमी की समस्या का समाधान करना है। यह योजना तीन प्रकार की
सुधवधाओं के प्रावधान को शाधमल करती है जैसे क्रक-
o फामथ स्तर पर न्यून प्रसंस्करण कें िों की स्थापना। ये कें ि तोलने, छटाइ, ग्रेलडग, पूव-थ शीतलन
(pre-cooling), धनयंधत्रत वातावरण (कण्रोल एटमॉस्फीयर:CA)/ पररवर्ततत वातावरण
(मॉधडफाआड एटमॉस्फीयर:MA) भंडारण, आं धडधवजुऄल क्रवक फ्रीलजग (IQF) तथा सामान्य
भंडारण सुधवधाओं से युक्त हैं;
o मोबाआल प्री-कू ललग वैन तथा रीफर रक
o CA/MA कक्ष, बह-ईद्देशीय शीत भंडारगृह, पररवतथनीय अिथता कक्ष, IQF तथा जलास्ट
फ्रीलजग (खाद्य ईत्पादों धवशेषतया मत्स्य ईत्पादों को ऄधत धनम्न ताप पर रखना) अक्रद जैसी
सुधवधाओं से युक्त धवतरण कें ि।
 बूचड़खानों का अधुधनकीकरण (Modernization of Abattoirs)
आसका ईद्देश्य वैज्ञाधनक और स्वच्छ पशु-वध, ऄपधशि प्रबंधन हेतु अधुधनक प्रौद्योधगकी के प्रयोग,
ईप-ईत्पाद के बेहतर ईपयोग, शीतलन सुधवधा की व्यवस्था, रीटेल कोल्ड चेन प्रबंधन आत्याक्रद को
प्रोत्साहन देने के धलए मौजूदा बूचड़खानों का अधुधनकीकरण करना या अधुधनक बूचड़खानों की
स्थापना करना है। आस ईद्देश्य की पूर्तत धबल्ड-ओन-ऑपरे ट/धबल्ड-ऑपरे ट-रान्सफर (BOT)/संयक्त

ईपिम (JV) के अधार पर सावथजधनक-धनजी भागीदारी (PPP) प्रणाली के तहत की जाएगी।
आसमें स्थानीय धनकाय (पंचायतों और नगरपाधलकाओं) भी शाधमल होंगे।

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 मेक आन आं धडया (Make In India)

मेक आन आं धडया ऄधभयान के भाग के रूप में, 25 फोकस क्षेत्रों में से एक के रूप में खाद्य प्रसंस्करण
क्षेत्र की पहचान की गयी थी।
 खाद्य प्रसंस्करण कोष (Food Processing Fund)
मेगा फू ड पाकथ और फू ड पाकों में स्थाधपत होने वाली खाद्य प्रसंस्करण आकाआयों की सहायता के
धलए सस्ते ऊण ईपलजध कराने की व्यवस्था के धलए धवत्तीय वषथ 2014-15 में नाबाडथ के ऄंतगथत

2000 करोड़ रुपये के धवशेष कोष (फं ड) की स्थापना की गइ है।

 राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योधगकी, ईद्यमशीलता एवं प्रबंधन संस्थान (NIFTEM) (National Institute

of Food Technology Entrepreneurship and Management (NIFTEM)


हररयाणा के सोनीपत धजले के कुं डली में धस्थत है। यह खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में एक ज्ञान कें ि के
रूप में कायथ करता है।
 मेगा फ़ू ड पाकथ योजना (Mega Food Parks Scheme)
मेगा फ़ू ड पाकों की स्थापना के पीछे यह धवचार क्रदया गया क्रक लघु और मध्यम ईद्यधमयों द्वारा
पूाँजी-गहन गधतधवधधयों में धनवेश करने में करठनाइ का ऄनुभव क्रकया जाता है। आसका ईद्देश्य
क्रकसानों, प्रसंस्करणकताथओं तथा खुदरा धविे ताओं को एक साथ लाते हए कृ धष ईत्पादन को बाजार

से जोड़ने के धलए एक तंत्र ईपलजध कराना है ताक्रक मूल्यवधथन को ऄधधकतम, बबाथदी को न्यूनतम,
क्रकसानों की अय में वृधद्ध और धवशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार के ऄवसर सृधजत करना
सुधनधित क्रकया जा सके ।
मेगा फू ड पाकथ में संग्रहण कें िों, प्राथधमक प्रसंस्करण कें िों, कें िीय प्रसंस्करण कें िों, शीत श्ृंखला और

ईद्यधमयों द्वारा खाद्य प्रसंस्करण यूधनटों की स्थापना हेतु 30-35 पूणथ धवकधसत भूखंडों समेत
अपूर्तत श्ृंखला ऄवसंरचना शाधमल होती है।
मेगा फ़ू ड पाकों में शीत भण्डारण, खाद्य परीक्षण एवं धवश्लेषण प्रयोगशाला, औद्योधगक ऄपधशि

ईपचार संयत्र
ं , सामान्य प्रसंस्करण सुधवधाएाँ, पैकेलजग कें ि, धवद्युत् एवं जल अपूर्तत,
सेधमनार/सम्मेलन/प्रधशक्षण सुधवधाएाँ आत्याक्रद जैसी सामान्य सुधवधाएं शाधमल है।
मेगा फू ड पाकथ स्कीम हब एंड स्पोक मॉडल पर अधाररत एक “क्लस्टर” दृधिकोण है। आसके

ऄंतगथत, पाकों में सुस्थाधपत अपूर्तत श्ृंखला के साथ ईपलजध औद्योधगक भूखंडों में अधुधनक खाद्य
प्रसंस्करण यूधनटों की स्थापना के धलए सुपररभाधषत कृ धष/बागवानी जोन में ऄत्याधुधनक सहायक
ऄवसंरचना के सृजन की पररकल्पना की गइ है।
यह क्लस्टर अधाररत दृधिकोण खाद्य प्रसंस्करण को अर्तथक रूप से ऄधधक व्यवहायथ बनाता है।
ऄत्याधुधनक प्रसंस्करण ऄवसंरचना ईन्हें अवश्यक प्रौद्योधगकी बढ़त प्रदान करती है। मेगा फ़ू ड
पाकथ में ग्रामीण क्षेत्रों में वृहद् स्तर पर रोजगार ऄवसरों के सृजन के ऄधतररक्त क्रकसानों हेतु
प्रधतलाभों में वृधद्ध के माध्यम से धनकटवती क्षेत्रों में कृ धष को पुनजीधवत करने की क्षमता होती है।
मेगा फू ड पाकथ पररयोजना का कायाथन्वयन एक स्पेशल पपथज व्हीकल (SPV) द्वारा क्रकया जाता है।

यह कं पनी ऄधधधनयम के ऄंतगथत एक पंजीकृ त कॉरपोरे ट धनकाय होता है। रायय सरकार, रायय
सरकार की संस्थाओं एवं सहकाररताओं को मेगा फू ड पाकथ पररयोजना के कायाथन्वयन हेतु ऄलग से
SPV बनाने की अवश्यकता नहीं होती है।

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खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को अवश्यक प्रोत्साहन प्रदान करने हेतु सरकार के धनरं तर प्रयासों एवं पहलों के
बावजूद भारत में प्रसंस्करण गधतधवधधयााँ ऄभी भी अरधम्भक चरण में है। वतथमान में ईत्पाद की सभी
श्ेधणयों में प्रसंस्करण का स्तर धनम्न है।

9.3 सरकारी पहलों के बावजू द धवद्यमान वतथ मान चु नौधतयााँ

(Challenges that still remain despite Government Initiatives)


खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के समक्ष धवद्यमान चुनौधतयााँ धवधवधतापूणथ और व्यापक हैं। ऄधधकतम बाजार
लाभ की प्राधप्त हेतु आन चुनौधतयों से धवधभन्न मोचों पर धनपटने की अवश्यकता है। धनयंत्रणीय एवं
ऄधनयंत्रणीय कारकों के संयोजन ने आस क्षेत्र के धवकास को प्रभाधवत क्रकया है तथा आस क्षेत्र द्वारा ऄपनी
क्षमताओं को प्राप्त करने में एक ऄवरोध के रूप में भी कायथ क्रकया है।
ऄधनयंत्रणीय कारकों का समाधान करना ऄत्यंत करठन है। आसधलए क्षेत्र के ऄपयाथप्त धवकास के कारकों
का धनधाथरण करते समय आनकी ईपेक्षा की जानी चाधहए।
आसमें भू-जोतों का धवखंडन (धजसके पररणामस्वरूप आस ईद्योग के स्तर में समग्र रूप से धगरावट अइ है
और स्वचालन में धनवेश ऄलाभकारी बन गए हैं); क्षेत्रीय जलवायवीय पररवतथन (धजससे नगरीकरण,
धनमाथण कायों और औद्योगीकरण से ईत्पन्न प्रधतस्पद्धाथत्मक दबाव के कारण भूधम ईपलजधता में ऄवरोध
तथा ईत्पादन प्रभाधवत होता है) आत्याक्रद शाधमल हैं।
धनयंत्रणीय कारक, आनका समाधान सरकारी और धनजी ईद्यमों के हस्तक्षेप से क्रकया जा सकता है। आसमें
मंद गधत से प्रौद्योधगकी को ऄपनाने के साथ धनम्न श्म ईत्पादकता तथा कच्चे माल की गुणवत्ता और
मात्रा संबंधी मुद्दे शाधमल हैं। ऄवसंरचना मोचे पर अपूर्तत श्ृंखला और ऄपधशि संबंधी समस्याएं तथा
मूल्यवधथन के धनम्न स्तर आत्याक्रद जैसी समस्याएं धवद्यमान हैं। िे धडट तक सीधमत पहाँच, रायय और
के न्िीय नीधतयों में धवद्यमान ऄसंगतता आत्याक्रद कु छ ऄन्य समस्याएाँ भी हैं धजनके कारण आस क्षेत्र का
धवकास ऄवरुद्ध हअ है। ऄत: खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की समस्याओं के समाधान हेतु कें ि और रायय दोनों
को एक संयुक्त आकाइ के रूप में कायथ करने की अवश्यकता है।
खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग और आस ईद्योग के भधवष्य की संभावनाओं पर धवजन-2015 दस्तावेज के कु छ
प्रावधान (Vision 2015 document on Food Processing Industries and Future
Prospects of the Food Processing Industry)
खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के धवकास को बढ़ावा देने के धलए एक महत्वपूणथ धवजन, रणनीधत और कायथ
योजना को ऄंधतम रूप क्रदया गया है। खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय द्वारा स्वीकृ त धवजन-2015 का ईद्देश्य
धनम्नधलधखत लक्ष्यों को प्राप्त करना है:

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 प्रसंस्कृ त खाद्य क्षेत्र के अकार को तीन गुना करना।
 शीघ्र नि होने वाले पदाथों के प्रसंस्करण स्तर को 6% से बढ़ाकर 20% तक करना।
 मूल्यवधथन को 20% से बढ़ाकर 35% तक करना।
 वैधश्वक खाद्य व्यापार में साझेदारी को 1.5% से बढ़ाकर 3% तक करना।

 2015 में फलों और सधजजयों के धलए प्रसंस्करण का स्तर 15% तक बढ़ाने की पररकल्पना की गइ
है।
 मंधत्रमंडल द्वारा खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के धलए कृ धष व्यवसाय और दृधिकोण, रणनीधत एवं कायथ
योजना को बढ़ावा देने के धलए एकीकृ त रणनीधत को भी मंजरू ी प्रदान की गइ है।

धवजन दस्तावेज के अंकड़े

2003-04 2014-15
(धबधलयन डॉलर) (धबधलयन डॉलर)

कु ल खाद्य ईपभोग 205

प्रसंस्कृ त खाद्य 126 274

प्राथधमक प्रसंस्कृ त खाद्य 79 136

मूल्य संवर्तधत खाद्य 48 138

खाद्य ईत्पादों में मूल्य संवर्तधत 16% 50%


खाद्यों का धहस्सा

भारतीय खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग जनसांधख्यकीय पररवतथन, बढ़ती जनसंख्या और तीव्र शहरीकरण के
साथ सरकार के बढ़ते समथथन के कारण तीव्र धवकास के धलए तैयार है। ये कारक मूल्यवर्तधत ईत्पादों की
मांग में वृधद्ध करें गे और आस प्रकार भारत में खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग की संभावनाओं में सुधार होगा।
सरकार द्वारा प्राथधमकता प्राप्त क्षेत्र के रूप में खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग पर ध्यान कें क्रित करना, आस क्षेत्र

में धनवेश का समथथन करने और ऄधधक FDI अकर्तषत करने वाली नीधतयों के धनमाथण को सुधनधित
करे गा। प्राकृ धतक संसाधनों की व्यापक अपूर्तत और बढ़ते तकनीकी ज्ञान अधार के साथ भारत ऄन्य
देशों की तुलना में ऄपेक्षाकृ त ऄधधक लाभ की धस्थधत में है। CII के ऄनुसार, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में 10
वषों में 33 धबधलयन ऄमेररकी डॉलर के धनवेश को अकर्तषत करने और 9 धमधलयन व्यधक्तयों के धलए
रोजगार के ऄवसरों को सृधजत करने की क्षमता है। भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र स्पि रूप से धनवेश के
धलए एक अकषथक क्षेत्र है और धनवेशकों को महत्वपूणथ धवकास की संभावना प्रदान करता है।

10. सु झाव और अगे की राह (Suggestions and Way


Forward)
वतथमान समय में अईटपुट की गुणवत्ता एवं मूल्य में सुधार करने, प्रसंस्करणकताथओं के धलए कच्चे माल
की लागत को कम करने एवं क्रकसानों की अय के स्तर में सुधार करने के लक्ष्य पर बल देते हए ईपयुथक्त
चुनौधतयों (tailbacks) से धनपटने हेतु एक एकीकृ त दृधिकोण को ऄपनाने की अवश्यकता है।

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आस क्षेत्र को बढ़ावा देने के धलए क्रकसान-ईत्पादक संपकथ को बढ़ावा देने, खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग
स्थाधपत करने के धलए ईधचत कर प्रोत्साहन और छू ट प्रदान करने तथा बाजार को प्रोत्साहन और
सहायक गधतधवधधयों पर व्यय को कम करने हेतु प्रयास क्रकए जाने की अवश्यकता है।
अपूर्तत पक्ष और ऄवसंरचनात्मक बाधाओं को कम करने के धलए नीधतगत पहलें (Policy initiatives
to plug supply side and infrastructure bottlenecks)
कॉन्रैक्ट और कॉपोरे ट फार्ममग के धलए ऄनुकूल धवधनयामक ढांचे को धवकधसत करके बैकवडथ ललके ज के
धवकास को प्रोत्साधहत करना
 पूवोत्तर क्षेत्रों, पहाड़ी राययों (J&K, धहमाचल प्रदेश और पधिमी ईत्तर प्रदेश), द्वीपसमूह (A&N,
लक्षद्वीप) क्षेत्रों पर धवशेष ध्यान क्रदया जाना चाधहए क्योंक्रक ये क्षेत्र प्राकृ धतक रूप से खाद्य
प्रसंस्करण ईद्योगों के ऄनुकूल हैं।
 कमोधडटी क्लस्टर और गहन पशुधन पालन को प्रोत्साधहत करना।
 लॉधजधस्टक्स, भंडारण और प्रसंस्करण हेतु ऄवसंरचनात्मक धनमाथण के धलए प्रधतभाधगयों, जोधखम
साझाकरण तंत्र, राजकोषीय प्रोत्साहन और साझेदारी मॉडल की स्पि रूप से पररभाधषत
भूधमकाओं के साथ धनजी क्षेत्र की सहभाधगता को बढ़ावा देना।
 धनवेशकों को धवत्तीय सहायता प्रदान करके ऄनुसंधान एवं धवकास, पैकेलजग, खाद्य प्रसंस्करण
ईपकरण धनमाथण, खाद्य सुरक्षा प्रमाणन एजेंधसयों जैसे सहायक ईद्योगों के धवकास में धनवेश और
मौजूदा सुधवधाओं के प्रौद्योधगकी ईन्नयन को प्रोत्साधहत करना।
 ईच्च लागत प्रौद्योधगकी को ऄपनाने और स्तर में ईन्नयन को समायोधजत करने ऊणप्राधप्त हेतु
प्राथधमकता प्राप्त क्षेत्र के रूप में ऄहथता प्राप्त करने हेतु प्लांट और मशीनरी में 10 करोड़ रुपये के
धनवेश की वतथमान सीमा में वृधद्ध कर ऊणों तक बेहतर पहंच सुधनधित करना।
धवधनयामक संरचना को सुव्यवधस्थत करना (Streamlining the regulatory structure)
 एकल धखड़की के ऄंतगथत ऄनुमोदन प्राप्त करने के धलए कइ धवभागों और कानूनों की बाधाओं को
समाप्त करना।
 ऄवसंरचना के धवकास में धनजी क्षेत्र के धनवेश को प्रोत्साधहत करने के धलए APMC ऄधधधनयम के
एकसमान कायाथन्वयन को सुधनधित करना।
मानधसकता में पररवतथन - धहतधारकों को 'मांग और लाभ संचाधलत ईत्पादन' की ओर धनदेधशत करना
(Change in mindset - Orienting stakeholders towards ‘demand and profit driven
production)
 कृ धष मूल्य श्ृंखला के सहभाधगयों को बाजार में 'क्या ईत्पाक्रदत क्रकया गया है' के दृधिकोण से
'प्रसंस्कृ त क्रकस्मों और धवपणन योग्य ईत्पादों' के ईत्पादन की क्रदशा में ध्यान पररवर्ततत करने के
धलए वैधश्वक गुणवत्ता मानकों और धनगरानी (रेसेधबधलटी) अवश्यकताओं को पूरा करने और
गुणवत्ता धनयंत्रण संबंधी मानकों एवं अवश्यकता अधाररत व्यवहायथ प्रौद्योधगक्रकयों को ऄपनाने
की अवश्यकता है।
कु शल जनशधक्त के धलए बढ़ती मांग को पूरा करने के धलए मानव संसाधन धवकास (Human
resource development-to meet increasing demand for skilled manpower)
 प्रबंधन, सुरक्षा एवं प्रवतथन, प्रौद्योधगकी एवं ईत्पादन, भण्डारण एवं धवतरण संबंधी पहलुओं पर
प्रधशक्षण के धलए धवधशि संस्थानों एवं पाठ्यिम के धवकास हेतु ईद्योग, ऄकादधमक और सरकार के
संयुक्त प्रयासों को प्रोत्साधहत करना।
 रायय कृ धष धवश्वधवद्यालयों को खाद्य पैकेलजग, प्रसंस्करण, जैव-प्रौद्योधगकी, कृ धष क्षेत्र में सूचना
प्रौद्योधगकी और आसी प्रकार के संबद्ध क्षेत्रों में पाठ्यिमों को प्रारं भ करने के धलए प्रोत्साधहत
करना।

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11. धवगत वषों में Vision IAS GS में स टे स्ट सीरीज में पू छे
गए प्रश्न
(Previous Year Vision IAS GS Mains Test Series Questions)

1. “Despite continuous efforts and initiatives of the Government to provide the


required stimulus to the food processing sector, processing activity is still at a
nascent stage in India with low penetration”. In the above context, examine
the challenges ailing the food processing sector in India. 2014-9-410
“खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र हेतु अवश्यक प्रोत्साहन प्रदान करने के धलए सरकार के धनरं तर प्रयास और
पहलों के बावजूद, भारत में प्रसंस्करण गधतधवधधयां धनम्न पैठ के साथ ऄभी भी ईदीयमान ऄवस्था
में हैं।” ईपरोक्त संदभथ में भारत में रुग्ण खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की चुनौधतयों का परीक्षण कीधजए।
दृधिकोणः
 पहले खाद्य प्रसंस्करण से संबंधधत गधतधवधधयों/कायथिमों से संबंधधत कु छ तथ्य तथा सरकारी
पहलों का ईल्लेख कीधजए।
 तत्पिात आस ईद्योग के समक्ष मौजूद चुनौधतयों को धवश्लेधषत कीधजए।
ईत्तरः
भारत धवश्व में खाद्य-ईत्पादों का सबसे बड़ा ईत्पादक देश होने के साथ-साथ सबसे बड़ा ईपभोक्ता देश
भी है। भारत सरकार द्वारा आस क्षेत्र (खाद्य प्रसंस्करण) के सुधार तथा ईन्नयन हेतु व्यापक सुधार
कायथिम चलाए गये हैं। APMC कानून में संशोधन, खाद्य-कानूनों की तकथ संगत व्याख्या, राष्ट्रीय
बागवानी धमशन अक्रद कु छ ऐसे ही कायथिम हैं। धनम्न स्तरीय प्रसंस्करण ईद्योग के ईन्नयन हेतु सरकार
ने मेगा ‘फू ड पाकथ ’ जैसी ऄवसरं चनाओं के धनमाथण की योजनाएाँ भी बनायी हैं जहााँ खरीद, प्रसंस्करण,
भण्डारण तथा ईनके पररवहन की समधन्वत सुधवधा ईपलजध होगी। आसके ऄलावा खाद्य प्रसंस्करण व
शीत शृंखला ऄवसंरचना (कोल्ड स्टोरे ज चेन आंफ्रास्रक्चर) में 100 प्रधतशत FDI की ऄनुमधत भी
सरकार द्वारा प्रदत्त है।
सरकार द्वारा अवश्यक प्रोत्साहन देने के बावजूद प्रसंस्करण ईद्योग संबंधधत गधतधवधधयााँ कम पैठ के
साथ ऄपनी शैशव ऄवस्था में बनी हइ है। देश के कु ल कृ धष एवं खाद्य ईत्पादन का ऄभी भी मात्र 2
प्रधतशत ही प्रसंस्कृ त क्रकया जाता है।
खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग के धवकास में धनम्न चुनौधतयााँ है -
 ऄपयाथप्त ऄवसरं चनात्मक सुधवधाओं का होना आस क्षेत्रक के धवकास में सबसे बड़ी बाधा है। लम्बी
एवं टु कड़ों में बंटी अपूर्तत शृंखला ऄपयाथप्त शीत भण्डारण तथा गोदामों की सुधवधा, रे ल-सड़कों
बंदरगाहों की जजथर ऄवस्था अक्रद ऐसी ही बाधाएाँ हैं। आसके ऄलावा अधुधनक ‘लाधजधस्टक’
ऄवसरं चना जैस-े ‘लाधजधस्टक’ पाकथ , समधन्वत शीत श्ृंखला, रे ल से ऄधधक सड़कों पर धनभथरता,
अवश्यकतानुसार पररवहन सुधवधा, तकनीकी ईन्नयन तथा सरकार द्वारा आस क्षेत्र में PPP मॉडल
हेतु प्रोत्साहन देना अक्रद की कमी आस क्षेत्र के धवकास में बड़ी बाधा बन कर अती है।
 खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र हेतु राष्ट्र स्तरीय नीधत का ऄभाव : यह क्षेत्र एक समधन्वत व्यापक नीधत के
स्थान पर राययों की ऄपनी-ऄपनी नीधतयों द्वारा संचाधलत होता है।
 खाद्य सुरक्षा कानून तथा राययों व के न्ि की नीधतयों में ऄसंबद्धता - पूणथ खाद्य पयाथप्तता, खाद्य
सुरक्षा तथा खाद्य गुणवत्ता प्राप्त करने हेतु पूवथ में कइ कानूनों का धनमाथण क्रकया गया धजसका
पररणाम यह हअ क्रक जो क्षेत्र (खाद्य प्रसंस्करण) एक व्यापक समधन्वत नीधत के तहत संचाधलत
होने चाधहए थे वह धवधभन्न राययों द्वारा ऄपनी-ऄपनी नीधतयों एवं कानूनों से संचाधलत होने लगे।

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 ऄपयाथप्त कु शल श्मः धवशेष कौशल की मांग तथा अपूर्तत में ऄसंबद्धता के कारण आस क्षेत्र के
धवकास में बाधा ईत्पन्न हइ है।
 ऄधनयन्त्रणीय तथा धनयंत्रणीय कारक जो आस क्षेत्रक के धवकास को प्रभाधवत करते हैं :
o ऄधनयन्त्रणीय कारकों में - भूजोतों का धनरं तर बाँटना धजससे अधुधनकीकरण में धनवेश
हतोत्साधहत हअ है। क्षेत्रीय जलवायुवीय पररवतथन तथा नगरीकरण एवं औद्योगीकरण के
कारण कृ धष योग्य भूधम पर दबाव से भी ईत्पादन में कमी अइ है।
o धनयंत्रणयोग्य कारकों में - कच्चे माल की गुणवत्ता, न्यून श्धमक ईत्पादकता तथा तकनीकी
ऄनुकूलता की प्रक्रिया का धीमा होना अक्रद महत्वपूणथ कारक हैं।
ईपयुथक्त के ऄलावा कच्चे माल की ईत्पादन प्रक्रिया का जरटल होना, ऊण लेने में समस्या, ईपयुक्त
तकनीक का ऄभाव तथा ऄनुसंधान में कमी आस क्षेत्र के धवकास को बाधधत करने वाले महत्वपूणथ कारक
हैं।

2. Explain the backward and forward linkages across the supply chain in the
Food Processing Sector. Also discuss their importance in ensuring the
success of Supply Chain Management in the Food Processing Industry of
India. 2014-6-422
खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में अपूर्तत श्ृख
ं ला में फॉरवडथ और बैकवडथ ललके ज की व्याख्या कीधजये। आसके
साथ ही भारत के खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग में अपूर्तत श्ृख ं ला प्रबंधन की सफलता को सुधनधित
करने में ईनके महत्व की चचाथ कीधजये।
दृधिकोणः
 धवद्यार्तथयों को फॉरवडथ और बैकवडथ ललके ज के ऄथथ की व्याख्या को महत्त्व देना चाधहए। कोइ भी
ईद्धृत दृिान्त ईत्तर के प्रभाव को और बढ़ाने वाला होना चाधहए। आसके ऄधतररक्त, धद्वतीय भाग में
आस बात पर बल क्रदया जाना चाधहए की क्रकस प्रकार भारत की FPI में ईधचत फॉरवडथ और
बैकवडथ ललके ज का ऄभाव है और आस पहलू में सुधार भारत में FPI में समग्र धवकास को प्रोत्साधहत
करे गा।
ईत्तरः
 फॉरवडथ और बैकवडथ ललके ज का ऄथथ है खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग का बाजार और कच्चे माल के स्रोत
से िमशः जुड़ा होना।
 बैकवडथ ललके ज के तहत एक महत्वपूणथ ललके ज है कच्चा माल संबध ं ी ललके ज संयोजन ऄथाथत क्रकस
सीमा तक FPI देश के कृ धष क्षेत्र से कच्चा माल प्राप्त कर लेता है। ऄन्य महत्वपूणथ बैकवडथ ललके ज में
ईत्पादन में शाधमल पूज
ाँ ी और यंत्रों की मांग, तैयार माल की धडजबा-बंदी अक्रद शाधमल है।
 फॉरवडथ ललके ज के कु छ महत्वपूणथ ईत्पादों का लोगों द्वारा सीधे तौर पर ईपभोग क्रकया जाता है
जबक्रक कु छ ईत्पाद और ऄधधक पररष्कृ त कृ धष अधाररत ईत्पादों के धनमाथण के धलए ऄन्य ईद्योगों
में आनपुट धनवेश, अगत के रूप में आस्तेमाल क्रकये जा सकते हैं।
 ईदाहरण के धलए, यक्रद कोइ व्यधक्त छोटे पैमाने पर जैम मुरजबे का ईत्पादन करता है, तो ईसकी
बैकवडथ ललके ज है मूल ढांचा, जो ईसे कच्चे फलों के ईसके स्रोत से जोड़ती है, और ईसकी फॉरवडथ
ललके ज है वह ढांचा जो ईसे बाजार से जोड़ती है।
 ईत्पादन प्रक्रिया की बैकवडथ ललके ज में कच्चे मालों की तलाश और ईसे प्राप्त करना शाधमल है।
ईत्पादन प्रक्रिया के आस ऄंग का माल का प्रसंस्करण करने आत्याक्रद से कोइ लेना-देना नहीं है।
प्रक्रिया के आस भाग में धसफथ कच्चे माल की तलाश और प्राधप्त शाधमल है। आस प्रकार, कोइ भी
ईद्योग जो कच्चे माल के संग्रह पर अधाररत है वह ईत्पादन प्रक्रिया का ईत्तरवती चरण होता है।

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 ईत्पादन प्रक्रिया के फॉरवडथ ललके ज में संगृहीत सामग्री का तैयार ईत्पाद के रूप में प्रसंस्करण
करना शाधमल है। फॉरवडथ ललके ज में ऄन्य व्यवसायों, सरकारों और व्यधक्तयों को ईस ईत्पाद की
वास्तधवक धबिी शाधमल है। फॉरवडथ ललके ज में तैयार ईत्पाद के माध्यम से ग्राहक के साथ प्रत्यक्ष
जुड़ाव होता है।

फॉरवडथ और बैकवडथ ललके ज का महत्व

 खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग द्वारा समग्र औद्यधगक धवकास के धलए वांधछत गधत ईत्पन्न करने की सीमा
ईनके धवधभन्न ललके ज संबंधी प्रभावों पर धनभथर करे गी।
 प्रसंस्कृ त खाद्य पदाथथ ईत्पादन क्षेत्र की कं पधनयों को आनपुट की गुणवत्ता के एक समान न बने रहने,
ईत्पाद के धनमाथण क्षेत्र में पहाँचने तक बड़े स्तर पर नुकसान तथा न्यूनतम मूल्य वृधद्ध के साथ
ऄवांधछत लागत वृधद्ध जैसी समस्याओं का सामना ऄंतगाथमी अपूर्तत श्ृंखला में करना पड़ता है।
 ऐसा लम्बी और धवभाधजत अपूर्तत श्ृंखला के कारण होता है धजससे ये ऄपव्यय तथा मूल्य में वृधद्ध
सामने अते हैं। आससे कु छ कं पधनयों को ठे के पर अधाररत कृ धष- धजससे कं पनी कम से कम बबाथदी
के साथ एक धनधित गुणवत्ता के स्तर पर आनपुट को धनयंधत्रत करने में समथथ होती है- के माध्यम से
बैकवडथ ललके ज के धनमाथण की अवश्यकता होती है।
 खेतों से ले कर बाजार तक ऄबाधधत तापमान और जलवायु धनयंधत्रत कृ धष अपूर्तत श्ृंखला के धलए
फॉरवडथ और बैकवडथ दोनों ललके ज महत्वपूणथ होते हैं। ऄधधकााँश प्रसंस्कृ त खाद्य पदाथों को धविय के
समय भी धनयंधत्रत तापमान की अवश्यकता होती है।
 मजबूत फॉरवडथ और बैकवडथ ललके ज वाले खाद्य प्रसंस्करण ईद्योगों का ईदय क्रकसानों को बाजार
की मांग के ऄनुसार फसल ईत्पाक्रदत करने को प्रोत्साधहत करे गा। ऄन्य फायदों के साथ-साथ, आससे
धतलहन और दलहन के हमारे भारी अयात को कम करने में सहायता धमलेगी।
 कु छ अकलनों के ऄनुसार, फॉरवडथ और बैकवडथ ललके ज को मजबूती प्रदान करने से खाद्य पदाथथ की
बबाथदी को रोकने में सहायता धमलेगी धजसके बारे में अकलन है क्रक यह 40,000 करोड़ से उपर
की है। आससे मुिा-स्फीधत पर भी धनयंत्रण क्रकया जा सके गा।

3. Food processing industry needs a fillip in the form of better logistics, access
to credit, technology indigenisation and implementation of food safety laws.
Discuss. 2015-1-625
खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग के धलए ईत्तम प्रचालन तंत्र, ऊण ईपलजधता, स्वदेशी प्रौद्योधगकी और
खाद्य सुरक्षा के धलए धनर्तमत कानूनों के क्रियान्वयन के रूप में प्रोत्साहन की अवश्यकता है। चचाथ
करें ।
दृधिकोण :
 संक्षेप में भारत में खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग की संभावनाओं का पररचय दीधजये।
 खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग की संपण ू थ संभावनाओं का दोहन करने के धलए ईत्तम प्रचालन तंत्र के
धवकास, ऊण ईपलजधता, प्रौद्योधगकी के स्वदेशीकरण और खाद्य सुरक्षा कानून के क्रियान्वयन की
अवश्यकता के संबंध में समझाआये।
 क्रदए गए मुद्दों पर सुझाव सधहत पृथक शीषथकों के ऄंतगथत चचाथ की जा सकती है।
ईत्तर:
भारत के सकल घरे लू ईत्पाद के लगभग 21% के व्यय के साथ खाद्य और खाद्य ईत्पाद भारत में सबसे
बड़ी ईपभोग श्ेणी है। लेक्रकन कु ल प्रसंस्करण स्तर भारत में के वल 10% है जबक्रक कु छ धवकधसत देशों
में यह लगभग 80% तक पहाँच गया है। धवश्व व्यापार में प्रसंस्कृ त खाद्य पदाथों के धनयाथत में आसकी
धहस्सेदारी मात्र 1.5% है।

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खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग की कु छ प्रमुख बाधाएं हैं: ऄपयाथप्त प्रचालन, ऊण की ईपलजधता, प्रौद्योधगकी
का ऄपयाथप्त स्वदेशीकरण और खाद्य सुरक्षा कानूनों का क्रियान्वयन।

ईत्तम प्रचालन तंत्र की अवश्यकता

 ऄल्प क्षमता और यातायात की ऄधधकता के कारण राष्ट्रीय राजमागों पर ऄत्यधधक दबाव है


धजससे पररवहन में धवलंब होता है।
 माल ढू लाइ वाला रे ल नेटवकथ ऄंधतम छोर तक संपकथ , ऄकु शलता, वैगनों की ऄल्प ईपलजधता,
धनजी भागीदारी का ऄभाव अक्रद की कमी से पीधड़त है।
 मानव श्म पर धनभथरता और प्रौद्योधगकी का कम ईपयोग, लागत सधहत बंदरगाहों पर प्रधतवतथन
समय को प्रभाधवत करता है।
 रायय और राष्ट्रीय राजमागों के धलए कं िीटयुक्त दोहरे मालवाहक मागों से ऄनुपूररत समर्तपत फ्रेट
रे ल कॉररडोर का धवकास करने की तत्काल अवश्यकता है।
 संगरठत प्रचालन के न्ि के धवकास में सहयोग करने और एंड टु एंड प्रचालन और भंडारण की
स्थापना करने हेतु संचालकों को प्रोत्साधहत करने की अवश्यकता है।

ऊण ईपलजधता

 खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग को ऊण देने हेतु सरकार को नाबाडथ की तजथ पर राष्ट्रीय बैंक की स्थापना
करनी चाधहए या नाबाडथ के दायरे का धवस्तार करना चाधहए।
 आससे सदैव बैंकों से ऊण की ईपलजधता की कमी की समस्या से जूझने वाले खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र
के धलए फं ड का शीघ्र धवतरण सुधनधित होगा।
 रायय सरकारों को बैंकों, धवत्तीय संस्थानों, तकनीकी और प्रबंधन संस्थानों एवं क्रकसान समूहों के
साथ साझेदारी में ईत्प्रेरक की भूधमका धनभानी चाधहए ताक्रक छोटे व ऄसंगरठत भागीदार या कताथ
धवश्व स्तर पर प्रधतस्पधी बन जाएं।

प्रौद्योधगकी का स्वदेशीकरण

 ऄधधकांश ऄनुसंधान एवं धवकास संस्थान ऄधभनव ईत्पादों, प्रक्रियाओं और वैधश्वक स्तर की
मशीनरी का धवकास करने में सक्षम नहीं हए हैं। आसके धलए प्रमुख कारण व्यवहाररक ऄनुसंधान से
धशक्षाधवदों का पृथक्करण, ऄपयाथप्त ईद्योग ऄंतरपृष्ठ (inadequate industry interface), ऄल्प
वाधणधययक ऄधभधवन्यास और वैधश्वक साधथयों के साथ सहयोगात्मक प्रयासों का ऄभाव हैं।
 बड़े स्तर के ईद्योग और बनाना पेस्ट, धवधभन्न फलों के रसों का सांिण, छंटाइ, सफाइ, धुलाइ,
वैलक्सग और कच्चे फल व सधजजयों की पैकेलजग सदृश वस्तुओं के ईत्पादन के धलए धनयाथत ईन्मुख
इकाआयों हेतु ऄभी भी प्रौद्योधगकी का अयात क्रकया जा रहा है।
 वैधश्वक मानदंड और अत्मधनभथरता प्राप्त करने हेतु खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग में प्रौद्योधगकी के
स्वदेशीकरण की तत्काल अवश्यकता है।

खाद्य सुरक्षा कानूनों का कायाथन्वयन

 प्रधशधक्षत धनरीक्षकों और ऄत्याधुधनक प्रयोगशाला सुधवधाओं की संख्या में अवश्यक रूप से वृधद्ध
करने सधहत, सरकार को वास्तधवक रूप से खाद्य सुरक्षा और मानक ऄधधधनयम (एफएएसएएसएए)
का प्रवतथन सुधनधित करना चाधहए।
 एफएएसएएसएए के ईद्देश्यों और ऄधनवायथ पारदर्तशता को देखते हए यह महत्वपूणथ है क्रक: खाद्य
प्राधधकाररयों, वैज्ञाधनक पैनलों और वैज्ञाधनक सधमधतयों को जनता और ईद्योग की भागीदारी
द्वारा धनयम धनमाथण के धनर्ददि ईद्देश्य के साथ सुस्पि कायथ क्रदए जाने चाधहए।
 प्रसंस्कृ त खाद्य पदाथों के धनयाथत में वृधद्ध करने के धलए, वैधश्वक ऄपेक्षाओं के ऄनुसार कठोर सुरक्षा
मानदण्ड लागू क्रकए जाने की अवश्यकता है। सुरक्षा लचताओं के कारण भारतीय खाद्य ईत्पादों की
ऄस्वीकृ धत की कइ घटनाएं हइ हैं।

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“खाद्य प्रसंस्करण पर राष्ट्रीय धमशन” सरकार की एक महत्वपूणथ पहल है धजसका ईद्देश्य ईपयुथक्त
ऄवरोधों को दूर करना एवं भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की संभावनाओं को प्राप्त करना है।

4. Despite numerous schemes and programmes the growth of food processing

industry has been very slow in India. In this context examine the problems
with respect to various government initiatives to boost the food processing
sector in India. 2015-14-625
ऄनेक योजनाओं और कायथिमों के होते हए भी भारत में खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग का धवकास ऄधत
धीमा रहा है। आस संदभथ में भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को बढ़ावा देने हेतु सरकार की धवधभन्न
पहलों से जुड़ी समस्याओं का परीक्षण करें ।
दृधिकोण :
 संक्षेप में खाद्य प्रसंस्कण क्षेत्रक द्वारा प्राप्त की गइ संवृधद्ध का ईल्लेख कीधजए।
 आस संबंध में कु छ सरकारी योजनाओं का ईल्लेख कीधजए।
 व्याख्या कीधजए क्रक यह क्रकस प्रकार ऄभी भी ऄपनी क्षमता से कम प्रदशथन कर रहा है।
 ईन कारकों को प्रकट कीधजए धजन्होंने आन योजनाओं की सफलता को सीधमत क्रकया है।
ईत्तर :
भारत के कु ल खाद्य बाजार के लगभग 32% के धलए धजम्मेदार, खाद्य प्रसंस्कण ईद्योग को खपत,
धनयाथत और ऄपेधक्षत संवृधद्ध के पदों में पांचवें स्थान पर श्ेणीबद्ध क्रकया गया है। सरकार ने आस क्षेत्र की
संवृधद्ध के धलए धनम्नधलधखत पहलें की हैं:
 2005 तक खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग के संबंध में लगभग 13 कानून थे। सरकार ने धवधनयम के धलए

एकल संदभथ धबन्दु के रूप में कायथ करने हेतु खाद्य सुरक्षा और मानक ऄधधधनयम, 2006 पाररत
क्रकया।
 सरकार ने ईद्योग में 100% प्रत्यक्ष धवदेशी धनवेश की ऄनुमधत प्रदान की है।
 ऄवसंरचना सुधवधाएाँ: मेगा फू ड पाकथ , धडजबाबंदी के न्ि, समेक्रकत कोल्ड चेन सुधवधा, मूल्य संवर्तधत
के न्ि, क्रकरणन सुधवधाएाँ, कसाइखाने का अधुधनकीकरण।

 ईद्योग के सवथतोमुखी धवकास के धलए खाद्य प्रसंस्करण पर राष्रीय धमशन।


 कृ धष ईपज धवपणन सधमधत ऄधधधनयम में सुधार तथा खाद्य कानूनों को तकथ संगत बनाना।
सरकार द्वारा आन प्रयासों के कारण ईद्योग संतोषजनक दर से बढ़ रहा है। हालांक्रक, यह ऄभी भी क्षमता
से काफी कम स्तर पर है क्योंक्रक प्रसंस्करण गधतधवधध ऄभी भी नवजात स्तर पर है और आसकी पहंच
कम है।
सरकारी योजनाएाँ, सुधारों की ऄपयाथप्तता और ऄपयाथप्त कायाथन्वयन के कारण ईत्पन्न होने वाली
धनम्नधलधखत समस्याओं को संबोधधत करने में पयाथप्त रूप से सक्षम नहीं रही हैं।
 ऄपयाथप्त समथथन ऄवसंरचना, धनवेश और धनयाथत दोनों दृधियों से, आस क्षेत्र के धवस्तार में सबसे
बड़ा मागाथवरोध है। लम्बी और खधण्डत अपूर्तत श्ृंखला, ऄपयाथप्त शीत संग्रहण एवं भंडारण

सुधवधाएाँ, सड़क, रे ल एवं बंदरगाह ऄवसंरचना, अधुधनक संभरण क्षेत्र (लाधजधस्टक्स) ऄवसंरचना
जैसे क्रक लॉधजधस्टक्स पाकथ , समेक्रकत शीत श्ृंखला समाधान, ऄंधतम छोर तक सम्पकथ , रे लमागथ की
ऄपेक्षा सड़क मागथ पर धनभथरता, धवधशि पररवहन, तकनीकी ऄनुकूलन (बारकोलडग,
अरएएफएअइएडीए) को ऄभी भी संबोधधत नहीं क्रकया जाता है।

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 रायय और के न्ि की नीधतयों में धवसंगधत: क्रफक्की द्वारा क्रकए गए सवेक्षण में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र पर
राष्ट्रीय स्तर की व्यापक नीधत के ऄभाव को ईद्योग की संवृधद्ध बाधधत करने वाले दूसरे सबसे
महत्वपूणथ कारक के रूप में धचधन्हत क्रकया गया है।
 कु शल, ऄद्धथ-कु शल तथा ऄकु शल कमथचाररयों की कमी ने क्षेत्र की प्रधतस्पधाथत्मकता को हाधन
पहाँचाइ है।
 शोध और धवकास हेतु घटता हअ सहयोग।
 फसलों की मौसमी ईपलजधता, कच्चे माल की अपूर्तत की खराब गुणवत्ता तथा खेत से कारखाने
तक पररवहन के दौरान ईच्च हाधनयों के कारण कच्चे माल की ऄधस्थर तथा ऄपयाथप्त अपूर्तत होने
से कच्चे माल की ईपलजधता में बाधायें।
 मेगा फू ड पाकों जैसी महत्वपूणथ पररयोजनाओं में ईत्साही धनजी क्षेत्र की प्रधतभाधगता की कमी, जो

ऄभी भी बाहरी स्रोत से माल मंगाने को वरीयता देता है, आसके पररणामस्वरूप भारत में
एफएएमएसीएजीए द्वारा बेचे जाने वाले 50% प्रसंस्कृ त खाद्य हेतु बाहरी स्रोत से कच्चा माल मंगाया
जाता है।
 ॠण ऄब भी आस ईद्योग के धलए एक बड़ी समस्या है जो क्रकसानों तथा सूक्ष्म व लघु ईद्यमों को
एक बड़े स्तर पर सधम्मधलत करती है।
 भूधम जोत को एकीकृ त करने और ऄनुबंध कृ धष को बढ़ावा देने में ऄसफलता, जो ईद्योग की
सफलता के धलए महत्वपूणथ है।

5. Discuss the potential of Food Processing Industry with regards to


employment generation in India. What are the key impediments which need
to be overcome before the sector can become internationally competitive and
achieve high growth? 2016-10-751
भारत में रोजगार सृजन करने के संबध
ं में खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग की संभावनाओं पर चचाथ
कीधजए। वे प्रमुख बाधाएाँ कौन-सी हैं धजन्हें आस क्षेत्रक को ऄंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रधतस्पधी बनाने
एवं ईच्च धवकास प्राप्त करने हेतु दूर क्रकए जाने की अवश्यकता है?
दृधिकोण :
 ईन ऄवसरों पर चचाथ कीधजए जो रोजगार का धवकास करने के धलए खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग द्वारा
प्रदान क्रकए जा सकते हैं।
 ईद्योग के समक्ष प्रमुख ऄवरोध।
 क्रकस प्रकार यह ऄंतराथष्ट्रीय स्तर पर प्रधतस्पधी हो सकता है एवं ईच्च वृधद्ध प्राप्त कर सकता है।
ईत्तर :
रोजगार सृजन के धलए खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग की क्षमता
 यह ईद्योग ईपभोक्ताओं तक ऄधन्तम ईत्पाद पहाँचाने हेतु कृ धष गधतधवधधयों से अरम्भ कर अपूर्तत
श्ृंखला तक धवधवध प्रकार की गधतधवधधयों को समाधहत करता है।
 98 धबधलयन रुपए के अवंरटत धनवेश से 42 मेगा फू ड पाकथ स्थाधपत क्रकए जा रहे हैं।
 ऄन्य देशों की तुलना में कु शल श्मशधक्त की लागत ऄपेक्षाकृ त कम है।
 खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग प्रमुख रोजगार गहन क्षेत्रों में से एक है जो 2012-13 में पंजीकृ त सभी

कारखाना क्षेत्रक में सृधजत रोजगार में 13.04% का योगदान कर रहा है।

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 शहरी और ग्रामीण भारतीय पररवार के धलए भोजन पर क्रकया जाने वाला खचथ सबसे ऄधधक होता
है, जो वषथ 2011-12 में पररवारों के कु ल व्यय का िमशः 38.5% और 48.6% भाग रहा है।
 ऄनुकूल अर्तथक एवं सांस्कृ धतक पररवतथन, व्यवहार एवं जीवन शैली में बदलाव के साथ-साथ
ईपभोक्ता धवधभन्न प्रकार के व्यंजनों, स्वादों और नए ब्ांडों का प्रयोग कर रहे हैं। कल्याण और

स्वास्थ्य, ईच्च प्रोटीन मात्रा, कम वसा, साबुत ऄनाज एवं जैधवक खाद्य संबंधी जागरूकता और
लचता के धवषय में वृधद्ध हइ है।

खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग के समक्ष बाधाएाँ

 भूधम जोत का धवखंडन धजसने स्वचालन में धनवेश ऄलाभकारी बना क्रदया है;
 क्षेत्रीय जलवायु धवधवधताएाँ जो ईत्पादन को प्रभाधवत करती हैं; शहरीकरण से प्रधतस्पधी दबाव के
कारण भूधम की ईपलजधता में कमी।
 प्रौद्योधगकी ऄपनाने की धीमी गधत, ऄपधशि से संबंधधत समस्याएाँ, मूल्यवधथन के धनम्न स्तर।
 कायथशील पूज
ं ी की ईच्च अवश्यकता।
 नए, धवश्वसनीय और ऄधधक सटीक ईपकरणों की धनम्न ईपलजधता।
 सूचना प्रबंधन के संदभथ में ऄपयाथप्त स्वचालन।
 प्रधतभावान लोगों के धलए समकालीन धवषयों की तुलना में आस क्षेत्र में पाररश्धमक कम अकषथक
है।
 शोध एवं धवकास प्रयोगशालाओं एवं ईद्योग के बीच ऄपयाथप्त रूप से धवकधसत सम्पकथ ।

खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग सरकार एवं धनजी क्षेत्रक दोनों प्रकार की पहल के माध्यम से ऄपनी क्षमता को
प्राप्त कर सकते हैं। यह ईद्योग कइ धमधलयन रोजगारों का सृजन कर सकता है, खाद्य सुरक्षा को
सुधनधित कर सकता है और ऄपव्यय को कम कर सकता है।

6. Food safety laws are a critical factor hampering the growth of food processing
industry in India. Analyse. 2016-17-751
खाद्य संरक्षा कानून (फू ड सेफ्टी लॉ) भारत में खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग के धवकास को बाधधत करने
वाले महत्वपूणथ कारक हैं। धवश्लेषण कीधजए।
दृधिकोण:
 खाद्य सुरक्षा कानूनों तथा धनयमों से जुड़े मुद्दों को ईजागर करें ।
 चचाथ करें क्रक क्रकस प्रकार आसने आस ईद्योग को नकारात्मक रूप से प्रभाधवत क्रकया है।
 कु छ सुधारात्मक ईपायों पर सुझाव प्रस्तुत करें ।
ईत्तर :
2006 में, खाद्य सुरक्षा और मानक ऄधधधनयम (एफ़एएसएएसएएए) को खाद्य-सामग्री से सम्बधन्धत एकल
वैधाधनक धनकाय के रूप में अरम्भ करने तथा खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग के वैज्ञाधनक धवकास की व्यवस्था
करने संबंधी दोहरे ईद्देश्यों के साथ पाररत क्रकया गया था। आसने आस क्षेत्र के धलए ऄधस्तत्वमान बहत-से
कानूनों को प्रधतस्थाधपत कर क्रदया। यद्यधप, FICCI द्वारा क्रकए गए हाल के सवेक्षण में खाद्य सुरक्षा
कानूनों के कायाथन्वयन के मागथ की ऄड़चनों को खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्रक के धलए लचता के तीसरे गंभीर
क्षेत्र के रूप में पहचाना गया है।
आसकी कु छ महत्वपूणथ सीमाएाँ धनम्नधलधखत हैं:
 ऄधधधनयम का सुस्त कायाथन्वयन।
 दोषपूणथ प्रधशक्षण तथा अवश्यकता से कम संख्या में FSSAI कमथचारी।

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 भारत में धस्थत ऄधधकााँश प्रयोगशालाओं को मान्यता प्राप्त नहीं है तथा बहत थोड़ी संख्या में
प्रयोगशालाएं खाद्य ईद्योग की घरे लू तथा धनयाथत धनयामक परीक्षण संबंधी अवश्यकताओं को पूरा
करने के धलए अवश्यक ईपकरणों से पूरी तरह लैस हैं।
 ईन सभी व्यधक्तयों को आस ऄधधधनयम के क्षेत्राधधकार में रखा गया है धजनके द्वारा खाद्य व्यवसाय
पररचालक की पररभाषा के ऄंतगथत खाद्य व्यवसाय का संचालन क्रकया जाता है। आसका अधार
बहत बड़ा हो जाता है।
 संदष
ू ण का दाधयत्व धनमाथता का होता है। यद्यधप, ऄधधकााँश बार ईनका बाहर से खरीदी जाने
वाली तथा कइ बार संदष
ू ण की संभावनायुक्त ईस कच्ची खाद्य सामग्री पर कोइ धनयंत्रण नहीं
होता।
पररणामस्वरूप, जााँच या तो की ही नहीं जातीं या ऄत्यंत धवलम्ब से तथा लालफीताशाही के साथ की
जाती है। आन धवधनयमों का पररणाम स्वेच्छाचारी धनणथयों के रूप में हअ है धजससे आस ईद्योग में धनवेश
करने वाले हतोत्साधहत हए हैं। समान तथा सटीक खाद्य सुरक्षा प्रणाली के ऄभाव में यह ईद्योग
ऄधभयोगों तथा क़ानूनी धववादों का धशकार होकर रह जाता है। मैगी के मानदंडों से संबंधधत हाधलया
धववादों तथा एक ही ईत्पाद के धलए धभन्न प्रयोगशालाओं से प्राप्त होने वाले ऄलग-ऄलग पररणामों का
आस ईद्योग पर ऄच्छा प्रभाव नहीं पड़ा है।
आसधलए आस ऄधधधनयम के कायाथन्वयन को सशक्त करना तथा धनम्नधलधखत को सुधनधित करना समय
की मांग है:
 श्मशधक्त का धवकास तथा ऄवसंरचना तथा जरटल ईपकरणों के मामले में प्रयोगशालाओं का
ईन्नयन।
 नवीनतम तकनीकी से पूणथ ईन्नत ईत्कृ िता के न्िों की स्थापना ताक्रक ईद्योगों, नीधत-धनयंताओं,
धनयामकों तथा ईपभोक्ताओं की अवश्यकताओं को पूरा करने के धलए धवश्लेषणात्मक शोध-कायथ
क्रकए जा सकें ।
 धवषैले संदष
ू कों की ईपधस्थधत का धनधाथरण करने के धलए ऄवशेष की धनगरानी संबंधी योजनाएं।
 कें ि, राययों तथा धनजी क्षेत्र के बीच समधन्वत प्रयासों के साथ-साथ प्रभावी ईपभोक्ता जागरूकता।
 ऄनुबंध कृ धष को प्रोत्साहन देना ताक्रक यह ईद्योग धबना दोषारोपण में धलप्त हए कच्चे माल संबंधी
ऄपने मानकों को बनाए रख सके ।
आन सभी की सहायता से खाद्य सुरक्षा में वैधश्वक मानकों को प्राप्त क्रकया जा सके गा तथा यह क्षेत्र
ईद्यधमयों के धलए एक अकषथक गंतव्य बन सके गा।

7. Discuss the significance of food processing industry in the economic

development of the country and the challenges which need to be tackled for

sustained growth of the industry. Also elaborate on the salient features of

National Mission on Food Processing. 2017-2-864


देश के अर्तथक धवकास में खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग के महत्व के साथ-साथ ईन चुनौधतयों की भी
चचाथ कीधजए धजनसे धनपटना आस ईद्योग के संधारणीय धवकास हेतु अवश्यक है। राष्रीय खाद्य
प्रसंस्करण धमशन की प्रमुख धवशेषताओं की धवस्तारपूवकथ व्याख्या कीधजए।

दृधिकोण:
 भारत में खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग के महत्व एवं ईससे संबंधधत ऄंतर्तनधहत चुनौधतयों की चचाथ
कीधजए।
 राष्रीय खाद्य प्रसंस्करण धमशन की प्रमुख धवधशिताओं का ईल्लेख कीधजए।

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ईत्तर:
भारत में खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग, खाद्य ईत्पादन की प्रचुरता, धवधवध कृ धष-जलवायु क्षेत्रों की
ईपधस्थधत, कृ धष के क्षेत्र में संलग्न श्मशधक्त के बड़े ऄनुपात, प्रसंस्करण की कम लागत, श्म गहन प्रकृ धत
एवं धनयाथतों को बढ़ावा देने की आसकी क्षमता के कारण महत्वपूणथ है।
साथ ही भारत को वैधश्वक खाद्य फै क्टरी एवं वैधश्वक खाद्य बाजार बनाने हेतु सरकार की पहल, खाद्य
प्रसंस्करण क्षेत्रक के धलए व्यापक ऄवसर ईत्पन्न करती है। ऄन्य कारकों में धनम्नधलधखत सधम्मधलत हैं:
 यह ईद्योग धवधनमाथण संबंधी सकल घरे लू ईत्पाद (GDP) में 14 प्रधतशत, भारत के धनयाथत में 13

प्रधतशत एवं कु ल औद्योधगक धनवेश में 6 प्रधतशत का योगदान करता है। यह एक ईभरता हअ
ईद्योग है जो धवश्व स्तर पर धद्वऄंकीय वृधद्ध दर प्रदर्तशत कर रहा है। भारत में आसकी वृधद्ध दर
10% से ऄधधक है।
 धवकधसत खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग (FPI), भारतीय कृ धष के धलए घरे लू और ऄंतरराष्ट्रीय दोनों
प्रकार के बाजारों में ऄनुकूल व्यापार संबंधों की स्थापना करने में सहायता कर सकता है।
 देश की खाद्य सुरक्षा में सुधार करता है।
 यह क्रकसानों को ऄपनी ईपज के धलए बेहतर मूल्य प्राप्त करने में सहायता करे गा तथा आस प्रकार
ईनके अय के स्तरों में सुधार करे गा। यहां कृ धष ईपज के धलए सुधनधित मांग ईत्पन्न कर मूल्य
धस्थरता की धस्थधत ईत्पन्न करे गा। यह वतथमान में क्रकसानों की मेहनत की कीमत पर धबचौधलयों
को प्राप्त होने वाले ऄनुधचत लाभ को भी समाप्त करे गा।
 आसके पररणामस्वरुप देश के खाद्य संसाधनों का दक्ष ईपयोग होगा। भारत में मॉडनथ हावेलस्टग
टेक्नोलॉजीज एवं कोल्ड चेन आंफ्रास्रक्चर की कमी के कारण वार्तषक रूप से लगभग 4-18% फलों
एवं सधजजयों का ऄपव्यय होता है। ऄन्य शीघ्र रराब होने वाली वस्तुओं के मामले में भी ऄपव्यय
के स्तर ईल्लेखनीय रूप से ऄत्यधधक ईच्च हैं।
 यह हमारी ऄथथव्यवस्था के दो स्तम्भों- ईद्योग और कृ धष के बीच महत्वपूणथ सम्पकथ धवकधसत करने
में सहायता करे गा।
 कु शल और ऄधथ कु शल रोजगार सृजन की धवशाल संभावनाएं।

परन्तु यह क्षेत्रक ऄनेक चुनौधतयों का सामना कर रहा है:

 अपूर्तत पक्ष से सम्बद्ध बाधाएं:


o खंधडत जोतों के कारण लघु और धबखरे हए धवपणन योग्य ऄधधशेष।
o धनम्न कृ धष ईत्पादकता।
o कच्चे माल के धलए ईद्योगों और क्रकसानों के बीच संपकथ का धनम्न स्तर।
o ईच्च मौसमी प्रवृधत्त।
o भारतीय कृ धष में बाजार हेतु वांधछत वाधणधययक फसलों की तुलना में पारं पररक फसलों पर
ऄधधक ध्यान क्रदया जाता है।
 ऄवसंरचना से सम्बद्ध बाधाएं:
o ऄपयाथप्त कोल्ड चैन आंफ्रास्रक्चर एवं ऄपयाथप्त लॉधजधस्टक।
 धवधनयामक पररवेश में कधमयां:
o कानूनों और धनयमों की बहलता धजनके पररणामस्वरूप धवरोधाभास और धवलम्ब ईत्पन्न
होते हैं।
o खाद्य प्रसंस्करण पर लंबे समय से व्यापक राष्ट्रीय नीधत की ऄनुपधस्थधत।
o खाद्य प्रसंस्करण पररयोजनाओं के प्रवतथन, लाआसेंस/वैधाधनक स्वीकृ धतयााँ प्राप्त करने में धवलम्ब
एवं रायय सरकारों द्वारा कृ धष ईत्पाद बाजार सधमधत (APMC) ऄधधधनयम में लंधबत सुधार
अक्रद।

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 शोध एवं धवकास की न्यूनता।

राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण धमशन

''राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण धमशन'' 12 वीं पंचवषीय योजना के दौरान खाद्य प्रसंस्करण ईद्योग के धवधभन्न
पहलुओं ऄथाथत खाद्य प्रसंस्करण ईद्योगों के अधुधनकीकरण, मेगा फू ड पाकों की स्थापना, आं टीग्रेटेड
कोल्ड चैन एवं परररक्षण तथा बूचड़खानों के अधुधनकीकरण को पूरा करने हेतु अरम्भ क्रकया गया था।
यह मूल्य श्ृंखलाओं में संस्थागत और ऄवसंरचनात्मक दोनों प्रकार की कधमयों के समाधान पर ध्यान
के धन्ित करता है। आसमें फसल कटाइ ईपरांत प्रबंधन में कौशल धवकास, प्रधशक्षण तथा ईद्यधमता को
बढ़ावा देने हेतु प्रावधान भी सधम्मधलत हैं। मोटे तौर पर आसके ईद्देश्य आस प्रकार हैं:
 नइ प्रौद्योधगक्रकयों के माध्यम से खाद्य प्रसंस्करण की क्षमता को बढ़ाना।
 ऄंतरराष्ट्रीय मानकों के ऄनुसार खाद्य ईत्पादों की गुणवत्ता में सुधार करना।
 कृ धष ईपज के ऄपव्यय को कम करना।
 नइ प्रौद्योधगक्रकयों का समावेश करना।
 मानव संसाधन क्षमताओं को ईन्नत करना।

हाल ही में, भारत सरकार ने रायय सरकारों को ऄपने भौधतक लक्ष्य धनधाथररत करने तथा स्थानीय रूप
से ईगाए गए कच्चे माल का ईपयोग करके मूल्यवद्धथन की क्षमता का दोहन करने हेतु फोकस एररयाज
(focus areas) की पहचान करने हेतु लचीलापन प्रदान क्रकया है।

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