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drishtiias.com/hindi/printpdf/doubling-the-farmers-income-niti-aayog
संदभ
भारत म कृिष े क के िवकास के लये पूववत कायनीत ने मु यतया कृिष उ पादन को बढ़ाने और खा सुर ा को सुधारने
पर ज़ोर िदया। इस कायनीत म िन न ल खत मु को शािमल िकया गया था-
(a) बेहतर ौ ोिगक और िक म के मा यम से उ पादकता को बढ़ाना तथा गुणव ापूण बीज, उवरक, ↓सचाई और कृिष
रसायन के उपयोग को बढ़ावा देना।
(b) कुछ फसल के लये लाभकारी क मत तथा कृिष संबध ं ी िनवेश साम ी पर स सडय के प म ो साहन ढाँचा तैयार
करना।
(c) कृिष म और कृिष के लये सावजिनक िनवेश को बढ़ावा देना।
(d) इससे संब सं थाओं को सुिवधा दान करना।
इस कायनीत के कारण ही देश 1960 के दशक के म य म आए गंभीर खा संकट से िनपटने म समथ रहा। िवगत
पचास वष (1965 से 2015) के दौरान ह रत ांत को अपनाए जाने के बाद, भारत का खा उ पादन 3.7 गुना बढ़ा
जबिक जनसं या म 2.55 गुना क वृ हुई।
इस काय नीत ने न तो िकसान क आय को बढ़ाने क ज़ रत को प मा यता दी और न ही िकसान के क याण
को बढ़ावा देने के लये िकसी य उपाय का उ ेख िकया।
िकसान क थत क ओर िवशेष यान देने क ज़ रत को समझते हुए क सरकार ने 2015 म कृिष मं ालय के
नाम को बदलकर कृिष और िकसान क याण मं ालय कर िदया।
यह प है िक िकसान ारा कृिष से अ■जत आय, कृिष संबध ं ी संकट का समाधान करने और िकसान के क याण को
बढ़ावा देने के लये अ यंत मह वपूण है। इस पृ भूिम म धानमं ी नर मोदी ारा 2022-23 तक िकसान क आय
को दोगुना करने के लये िनधा रत िकया गया ल य, िकसान के क याण को बढ़ावा देने, कृिष संबध
ं ी संकट को कम
करने तथा िकसान और गैर-कृिष यवसाय म कायरत कामगार क आय म समानता लाने म अहम भूिमका िनभाएगा।
यह िवडंबना है िक CSO ारा िकसान क आय के अनुमान काशत नह िकये जाते ह, हालाँिक कृिष के लये समय ख
ृं ला
और े क य आय के अ तन अनुमान, रा ीय लेखा सां यक म उपल ध ह। तथािप, NSSO ने अपने रा यापी सव ण
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नामत: ‘िकसान क थत का आकलन 2003’ और ‘कृिष प रवार क थत का आकलन 2013’ के आधार पर िकसान
क आय के ोत और अनुमान का सृजन करना है।
इन दो सव ण के तहत िकसान अथवा िकसान प रवार क भ -भ प रभाषाएँ अपनाई गथी थी और इस लये इन
दो सव ण म सूचत िकये गए आय के अनुमान क तुलना नह क जा सकती है।
NSSO के दो रा ीय तर के सव ण नामत: िकसान क थत के आकलन संबध ं ी सव ण 2003 (59वाँ दौर) और
कृिष प रवार क थत के आकलन संबध ं ी सव ण (SAS) 2013 (70वाँ दौर) कृिष सिहत िवभ ोत से िकसान
क आय के अनुमान उपल ध कराते ह।
SAS के अनुसार
वष 2012-13 के लये कृिष और गैर-कृिष ोत से कृिष प रवार क औसत वा षक आय 77,112 पए थी।
कृिष प रवार क कुल आय का साठ तशत भाग कृिष कायकलाप (खेती और पशुओं क फा मग) से अ■जत िकया
गया था और 40 तशत भाग गैर-कृिष ोत (मज़दरू ी, वेतन, गैर-कृिष यवसाय आिद) से अ■जत िकया गया था।
कुल िमलाकर एक कृिष प रवार के लये कृिष से 36,938 पए क वा षक आय सृ■जत हुई है और पशुधन से 9,176
पए क आय सृ■जत हुई।
इस अनुमान के अनुसार कृिष प रवार क कुल कृिष आय म पशुधन संबधं ी कायकलाप का िह सा 19.89 तशत के
करीब था। यह उसी वष के लये कृिष े क म िनवल मू यवधन म पशुधन के िह से के संबधं म CSO के अनुमान जो
28.6 तशत था, से बहुत कम है।
इससे यह पता चलता है िक संभवत: SAS 2013 म उपयोग क गई िकसान क िवश प रभाषा क वजह से SAS म
सूचत क गई कृिष आय तथा कृिष आय के CSO मान म काफ अंतर है।
िकसान क आय म वृ के ोत
िकसान क वा तिवक आय को 2015-16 के आधार वष क तुलना म 2022-23 तक दोगुना करने के लये िकसान क
आय म 10.41 तशत क वा षक वृ दर अपे त है। इसका अथ यह है िक कृिष आय क वतमान और पूव म हा■सल क
गई वृ दर को तेज़ी से बढ़ाना होगा। अत: कृिष े क के अंदर और बाहर िकसान क आय को बढ़ाने के सभी संभािवत ोत
का सदपु योग करने के लये सश उपाय क ज़ रत होगी। कृषक े क के अंतगत चालनरत, वृ के मुख ोत
िन नानुसार ह:
कृिष उ पादन को बढ़ाने के दो ोत ह- अथात् े और उ पादकता। गैर-कृिष उपयोग के लये भूिम क बढ़ती मांग
तथा देश के सकल भौगो लक े म कृिष-यो य भूिम के पहले से ही उ िह से क वजह से कृिष े म आगे वृ
करना यवहाय नह है।
देश म अधकांश फसल क उ पादकता कम है और इसे बढ़ाने क काफ गुज ं ाइश है। गेहूँ को छोड़कर देश म अ य
फसल क उ पादकता वै क औसत से कम है और कृिष के े म अ णी देश क तुलना म यह काफ कम है। देश के
अंदर भी िवभ रा य क पैदावार म काफ अंतर है। िवभ रा य क पैदावार म एक बड़ा अंतर, ↓सचाई सुिवधा क
उपल धता म अंतर क वजह से है परंतु एकसमान ↓सचाई सुिवधा वाले रा य म भी उ पादकता म काफ अंतर िदखाई
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देता है।
↓सचाई के समान तर पर उ पादकता म भ ता और िव औसत क तुलना म भारत म कम पैदावार, बेहतर
ौ ोिगक के अपया तर अथवा इसके कम उपयोग क वजह से है। देश म कृिष उ पादकता और उ पादन को बढ़ाने
के लये ↓सचाई क उपल धता को बढ़ाना और ौ ोिगक य उ त, सबसे शि शाली साधन ह।
भारत म फसल उगाने के दो मु य मौसम ह नामत: खरीफ और रबी ■जसक वजह से एक ही भूखंड पर एक वष म दो फसल
क खेती करना संभव हो जाता है। ↓सचाई और नई ौ ोिगिकय क उपल धता के फल व प खरीफ के मु य मौसम और
रबी के मु य मौसम के बाद अ पावध फसल को उगाना संभव हो गया है।
िकसान या कृिष े क वा तिवक आय का आकलन करने के लये िवभ अ फ त कारक का उपयोग िकया गया है। इनम
से कुछ है- िकसान ार द मू य का सूचकांक, आगम मू य का सूचकांक और गैर-कृिष व तुओं के थोक मू य का
सूचकांक आिद।
इस काय हेतु CPIAL (कृिष िमक के लये उपभो ा मू य सूचकांक) का उपयोग अ फ त कारक के प म िकया
गया है तािक अनुमािनत कृिष आय को वा तिवक कृिष आय म तबदील िकया जा सके।
CPIAL ामीण े म व तुओं और सेवाओं क मु ा फ त को दशाता है और यह कृषक प रवार के सम मौजूद
मु ा फ त को िकसी भी अ य सूचकांक क तुलना म अधक सटीकता से दशाता है।
कृिष उ पाद के एवज म िकसान को िमली आय अगर CPIAL क तुलना म अधक तेज़ी से बढ़ती है तो इससे
वा तिवक आय म वृ होती है- चाहे उ पादन क मा ा म वृ न हुई हो तो भी।
2011-12 से 2015-16 के दौरान दो मामल म िकसान क आय काफ कम रही। एक, थर मू य पर कृिष म मू य
संवधत म वृ बहुत कम रही। दसू रे CPIAL म वृ कृिष उ पाद के कृषक को ा मू य म वृ क तुलना म 50
तशत अधक थी। भारत सरकार ने इस थत को अनुकूल बनाने के लये कई पहल क ह।
िकसान को बेहतर मू य िदलाने के उ े य से शु िकया गया एक मह वपूण उपाय है: ई-नैम।
ामीण े म कुल कायबल का 64 तशत िह सा कृिष े म लगा हुआ है और कुल ामीण िनवल घरेलू उ पाद म 39
तशत योगदान करता है (ता लका)। इससे पता चलता है िक कायबल कृिष पर एक सीमा से अधक िनभर है य िक रोज़गार
के अ य िवक प नह ह। इससे कृिष और गैर-कृिष े के बीच त िमक उ पादकता म यापक अंतर का भी पता चलता है।
कायबल को कृिष से इतर काय म लगाकर िकसान क आय म काफ वृ क जा सकती है।
कृिष म कायबल म कमी के बावजूद रोज़गार िविवधीकरण िन न कारण से काफ धीमा है:
उ पादन बढ़ाने और लागत को कम करने के उ े य से क सरकार ारा हाल ही म शु क गई कुछ िवकास पहल म शािमल
ह:
एक अ य मह वपूण पहल है- धानमं ी फसल बीमा योजना ■जसके तहत फसल और आय म हुए नुकसान क भरपाई
क जाती है।
निदय को पर पर जोड़ाना भी एक अ य मह वपूण पहल है ■जसम उ पादन और िकसान क आय बढ़ाने क काफ
संभावनाएँ ह।
इन काय म को समयब प म काया वत करने क आव यकता है तािक िकसान क आय पर अपे त भाव पड़
सके।
उ पादकता और कृषक आय म संधारणीय वृ के लये ह रत ांत के समय से ही भारतीय कृिष म धान रही इनपुट बहुल
ौ ोिगिकय क जगह नए िवक प को अपनाने क आव यकता है।
उ पादन और िकसान क आय म लगातार वृ के लये ए ोिनिमक ौ ोिगिकय , जैसे- े■सजन फा मग का दायरा
बढ़ने के सा य लगातार बढ़ते जा रहे ह। इसी कार आधुिनक मशीन , जैसे- भूिम समतल करने क लेजर मशीन,
प रशु बुआई और रोपण मशीन और प तय जैसे SRI (धान गहनता णाली), य बोया गया धान, शू य जुताई,
ऊपर उठी या रय म रोपण और मेढ़ रोपण से तकनीक प से उ कुशल कृिष होती है।
कतु इन ौ ोिगिकय का िवकास सावजिनक े ारा िकया जाता है और बाज़ार म बेचने क उनक मता बेहद
कमज़ोर है।
इन ौ ोिगिकय से िमलने वाले अवसर और ऋण लेना आसान बन जाने के बारे म िकसान को बताया जाना चािहये
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तथा उनके अंगीकरण के लये नीतगत माहौल बनाया जाना चािहये।
(3) नीतयाँ
भारत ने 1991 म नई आथक नीत के तहत यापक आथक सुधार को अपनाया। इन सुधार म उदारीकरण, िविनयमन और
िनजी े से अ यधक िनयं ण तथा तबंध को समा करना शािमल है ■जनसे आथक ि याकलाप म िनजी े क
सहभािगता के लये बड़ी अनुकूल प र थतयाँ पैदा हुई।ं इन प रवतन के यु र म संघ सरकार ने वष 2002 से कृिष े म
कई सुधार िकये। इनम शािमल ह:
िविन द आहार के लये लाइसस लेने, भंडारण सीमा और आवाजाही तबंध क समाि आदेश, 2002 और
2003। इस आदेश के अनुसार गेहूँ, धान/चावल, मोटे अनाज, चीनी, तलहन, खा तेल , दाल , गुड़, गेहूँ उ पाद और
हाइडोजेनेटेड वन पत तेल अथवा वन पत को आव यक व तु अधिनयम (1955) क सूची से हटा िदया गया
■जसके कारण इनके कारोबार, भंडारण और आवाजाही के लये िकसी अनुमत क आव यकता नह रह गई।
1992 के MMPO को आशोधत कर 2002 म द ु ध और द ु ध उ पाद आदेश लाया गया तथा द ु ध सं करण म नई
मता थािपत करने संबधं ी तबंध को समा कर िदया गया और िम कशेड क अवधारणा ख म कर दी गई।
वष 2003 म वादा कारोबार के िनषेध क समाि । इसके बाद कृिष िवपणन म सुधार के कदम उठाए गए। संघ सरकार
ने आदश APMC अधिनयम तैयार िकया ■जसे रा य कृिष उ पाद िवपणन (िवकास और िविनयमन) अधिनयम,
2003 कहा गया तथा इसे काया वयन हेतु सभी रा य के साथ साझा िकया।
कृिष े म अपे त सुधार क अनदेखी के कारण कृिष े और गैर-कृिष े के बीच गंभीर असमानता उ प हुई है।
1990-91 तक दोन े क िवकास दर एक जैसी थ और दोन म काफ करीबी ता क ु ात थे। जैसे-जैसे सुधार होते
गए, वृ -पथ म भ ता आती गई।
पाँच वष म औसत वा षक प रवतन दर से लगाए गए अनुमान के अनुसार अधकतर समयावध के दौरान गैर-कृिष े
क वृ दर 6.0 तशत से कम के तर से बढ़कर 8.0 तशत से अधक हो गई। कतु दीघका लक झान क ि
से कृिष े क वृ दर 2.8 तशत रही।
इस तुलना से पता चलता है िक बाज़ार सुधार के अभाव म, कृिष दर कम रही और यह े गैर-कृिष े क क वृ दर के
मुकाबले िपछड़ गया।
यह िवडंबना ही है िक कई रा य म कटाई के बाद कई फसल क क मत यूनतम समथन मू य से कम है। इससे पता चलता है
िक िकसान का यूनतम समथन मू य से अधक क मत िदलाना सुिन त करने के लये त प बाज़ार अथवा अ य तं
क िकतनी आव यकता है।
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भारतीय कृिष म यादातर िकसान सीमांत और बहुत छोटे ह ■ज ह कई तरह के गंभीर नुकसान झेलने पड़ते ह। खेत
का आकार छोटा होने के कारण कई िकसान अधक कार के फल और स जयाँ नह उगा पाते ■जसका मु य कारण
यह है िक मू य का जो खम रहता है और िवपणन काफ अलाभकारी होता है।
छोटे आकार के खेत के कारण आगम और िनगम बाज़ार म अलग-अलग तरह के लेन-देन के मामल मे भी िकसान क
सौदेका रता शि घटती है।
इन सम याओं का समाधान यह है िक िकसान को िकसी सां थािनक तं के तहत संगिठत िकया जाना चािहये, जैसे-
कृिष उ पाद संगठन।
िवकास पहल
िवकास पहल म बेहतर ौ ोिगक और वेरायटी के मा यम से तथा तरीय बीज , ↓सचाई, उवरक और कृिष रसायन
का उपयोग बढ़ाकर उ पादकता म वृ करना शािमल है।
फसल े के लये इन प रवतय के ल त तर को ता लका म दशाया गया है जो फसल और पशुधन से िकसान क
आय का लगभग 70 तशत है।
ोत आधार तर और वष ल य 2022-23
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ह रत ांत के 50 वष के बाद भी अनाज क फसल वाले कुल े फल के केवल 69 तशत म उ उ पादक िक म का
उपयोग हो रहा है। चावल जैसी मह वपूण फसल म देश के केवल 62 तशत े फल म उ उ पादक िक म का उपयोग
होता है- इसके बावजूद िक कुछ रा य एचवाईवी के अंतगत 100 तशत कवरेज दशा रहे ह। कम कवरेज वाले रा य म
माणत बीज क बेहतर आपूत के साथ पारंप रक िक म वाले े ो म उ उ पादक िक म का उपयोग िकया जा सकता है।
िकसान को आधुिनक इनपुट क खरीदारी और कृिष प रसंप य म िनवेश करने म स म बनाने के लये सां थािनक
ऋण एक अ य मह वपूण इनपुट है। सां थािनक ऋण म उचत दर से बढ़ो री हो रही है कतु कई रा य म ऋण सुिवधा
खराब होने और कुल ऋण म िमयादी ऋण क िह सेदारी घटने जैसे मु े ह। इसका समाधान करने क आव यकता है।
पशुधन उ पादकता
देश म पशुधन क उ पादकता बेहद कम है। पशुधन उ पादकता बढ़ाने के लये न ल संव न, बेहतर चारा और पोषाहार, पशु
ं समूहब ता आव यक है। िवकास पहल के लहाज से 2022-23 तक िन नांिकत ल य के सुझाव
वा य तथा बेहतर झुड
िदये जाते ह:
भारत म दधु ा पशुओं और भस म कृि म गभधान बमु कल 35 तशत है। कृि म गभाधान कम रहने का एक मु य
कारण है- सीमेन टॉ। कृि म गभाधान को उचत तर तक पहुँचाने के लये हम 160 िम लयन सीमट टॉ क
आव यकता है जबिक उपल धता केवल 81 िम लयन क है।
िफलहाल गभाधान यो य 4 िम लयन भस , ॉस ीड वाले 1.3 िम लयन पशुओं और गभाधान यो य 6 िम लयन
वदेशी पशुओं का जनन हुआ ही नह है। इनम से कम-से-कम 2 िम लयन भस , 0.8 िम लयन ॉस ीड और 3
िम लयन वदेशी पशुओं के मामले म जनन के ारा इनक सं या 2020 तक और बढ़ जानी चािहये।
2020 तक भस के युवा होने क उ को 3-4 महीने कम करना होगा। िफलहाल मुरा भसे लगभग 33 माह क उ म
युवाव था को करती ह।
नीतयाँ और सुधार
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भारतीय कृिष क संभा यता का उपयोग करने और िकसान क आय बढ़ाने क राह म सबसे बड़ी बाधा है- संगिठत िनजी े
क कृिष म कम भागीदारी होना।
कृिष बाज़ार को उदार बनाने और त प ा बढ़ाने के लये कई सुधार क पहचान क गई है। इसम रा य म APMC
अधिनयम म सुधार के लये सां थािनक उपाय करना तथा िवपणन म ौ ोिगक का उपयोग बढ़ाना शािमल है।
अ पका लक सुधार के लये चि त अ य दो े ह- भूिम प े का उदारीकरण और पेड़ क कटाई/आवाजाही तथा
लकड़ी आधा रत उ ोग पर लगे तबंध म ढील।
कृिष और िकसान क आय को बढ़ाने के लये िवभ कार के अ पका लक सुधार तथा प रवतन क एक सूची
ता लका म दी गई है।
A. कृिष िवपणन: ई-नैम नामक एक नई पहल शु क गई है तािक रा य कृिष व तुओं के लये ई- यापार मंच को अपना सक।
इसम इले टॉिनक ेटफॉम का उपयोग कर देश भर क APMC मंडय का एक करण करना शािमल है।
1.2 य िवपणन
1.3 अनुबध
ं कृिष
1.4 ई-टेडग
3. ई-NAM म भागीदारी
B. भूिम प ा: नीत आयोग ारा तािवत मॉडल भूिम प ा कानून के आधार पर भूिम प ा कानून को अधिनयिमत करना।
C. िनजी भूिम पर वािनक : वृ क कटाई और ढु लाई पर लगे तबंध को हटाना। पयावरण और वन मं ालय ारा जारी
िदशा-िनदश के अनुसार इमारती लकड़ी और का आधा रत उ ोग को अनुमत देना।
नीत आयोग एवं कृिष और िकसान क याण मं ालय, भारत सरकार कृिष सुधार को लागू और काया वत करने और
िवपणन क प त, भूिम प ा कानून और कृिष भूिम पर वािनक म प रवतन लाने के लये रा य को सहमत करने के
लये काय कर रहे ह।
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उ पादक के लये मू य ो साहन
िपछले पाँच दशक का अनुभव दशाता है िक कृिष िवकास पर मू य का गंभीर भाव पड़ता है और वे िकसान क आय के
मह वपूण िनधारक ह।
िकसान ारा ा िकये जाने वाले मू य पर सुधार का अपे त भाव नह पड़ने क थत म फसल कटाई के मौसम
म मू य MSP से नीचे नह िगरे, को सुिन त करने के लये सरकार को मू य ह त ेप का िव तार करना चािहये।
इसका काया वयान ापण के मा यम से या भरपाई मू य भुगतान णाली के मा यम से य मू य ह त ेप के
मा यम से होना चािहये। भरपाई क मत भुगतान के तहत उ पादक को उनके ारा बाज़ार म बेची गई उपज क मा ा के
लये तिनध बाज़ार म कृिष फसल मू य और यूनतम समथन मू य के बीच अंतर का भुगतान िकया जाता है।
आधुिनक णा लय और प तय के उपयोग क ि से हमारी कृिष म पूंजी और ान क कमी रही है। आधुिनक फम के
साथ संिवदा कृिष के िकसान को इनपुट और उ त ौ ोिगक , कौशल अंतरण, गारंटीकृत और लाभकारी मू य और
ं बाज़ार तक पहुँच का ावधान करने म मदद िमलती है।
भरोसेमद
कृिष उ पादन म आधुिनक ान और पूंजी के समावेशन म जो खम को साझा करने, उपज के लये आकषण बाज़ार
उपल ध कराने तथा उ मू य उ पाद म िविवधीकरण के ो साहन के लये िनजी े क क भागीदारी क भूिमका को
वीकार करते हुए िव मं ी ने बजट 2017-18 के भाषण म उ ेख िकया िक संिवदा कृिष पर एक आदश कानून तैयार
िकया जाएगा और अंगीकरण के लये रा य म प रचा लत िकया जाएगा।
बजट भाषण म APMC म से शी खराब होने वाली कृिष ■ज स को अनधसूचत करने के लये बाज़ार सुधार पर भी
ज़ोर िदया गया था।
मू य संव न को ो साहन
अनौपचा रक या परंपरागत आपूत ंखलाएँ भारत म कृिष क िवशेषताएँ ह जो थानीय म य थ यि य और उसके बाद
लघु थानीय भंडार को उ पाद उपल ध कराती ह। औपचा रक मू य संव न उसी उ पाद को सामा यत: बेहतर अथवा
अधक समान गुणव ा म, अधक वाण यक फम - थोक िव े ताओं, सुपर बाज़ार या िनयातक को उपल ध करवा सकते ह।
लघु उ पादक को घरेलू और िनयातो मुखी दोन कार के अधक आधुिनक मू य संवधन म समेिकत करने के लये माग
खोजने क आव यकता है।
िकसान ारा उपज का अधकांश भाग क े माल के प म बेचा जाता है जो फसल कटाई के बाद खेत से मंडी लाया
जाता है। इससे बाज़ार म आध य क थत पैदा हो जाती है और क मत कम रह जाती ह। िकसान कमी के महीन म
बेचने के लये उपज नह रखते ह। अब भंडारगृह ाि और WDRA पंजीकृत भंडारगृह म उपज को रखने के लये
ावधान है। इस सुिवधा का लाभ कुछ िकसान ही उठाते ह।
शी खराब होने वाली व तुओं के मामले म मू य का एकदम नीचे आना आम बात है। कृिष भूिम पर थत भंडारण
सुिवधा क कमी, उ पाद को अधक समय तक सुर त रखने के वै ािनक तरीक क कमी और देश म खराब
सं करण आधार, मू य म एकदम कमी के कुछ कारक म से है।
यिद बाज़ार सुधार को गंभीरता से काया वत िकया जाता है, तो यह एक बड़े पैमाने पर मू य संव न सिहत कृिष म
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िनजी े क के वेश के लये माग श त करेगा।
आगे क राह
िकसान क आय का िन न तर और इसम तवष उतार-चढ़ाव कृिष संबध ं ी संकट का एक मुख कारण है। िकसान
क आय का तरंतर िन न तर देश म कृिष के भिव य पर गंभीर तकूल भाव का कारण भी बन सकता है।
कृिष के भिव य को सुर त करने और भारत क जनसं या के आधे भाग क आजीिवका सुधार के लये िकसान के
क याण म सुधार और कृिष आय म वृ क ओर पया यान देने क आव यकता है।
इस ल य क ाि से कृिष और गैर-कृिष आय के म य थायी असमानता कम होगी, कृिष संबधं ी संकट घटगे,
समावेशी िवकास को ो साहन िमलेगा और कृिष े क म गतशीलता का समावेश होगा।
िन कष
2022 तक िकसान क आय को दोगुना करना िन य ही चुनौतपूण है लेिकन इसक आव यकता है और यह ा य है।
िकसान क आय को दोगुना करने के लये कृिष े म (1) िवकास पहल (2) ौ ोिगक और (3) नीतगत सुधार पर
कि त तीन सू ी कायनीतय क आव यकता है।
ल य को हा■सल करने के लये उ पादन को बढ़ाने वाले संसाधन क वृ दर म 33 तशत तक क बढ़ोतरी करने
क आव यकता है। देश म गुणव ा यु बीज, उवरक के उपयोग और कृिष े म िबजली क आपूत म मश: 12.8,
4.4 और 7.6 तशत तवष बढ़ोतरी करने क आव यकता है।
↓सचत े म 1.78 िम लयन हे टेयर का िव तार और दोहरी फसल वाले े म 1.85 िम लयन हे टेयर क बढ़ोतरी
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त वष क जानी चािहये। इसके अत र , फल और स जय के उ पादन वाले े म 5 तवष वृ क जाने क
आव यकता है।
पशुधन के संबधं म पशुओं क गुणव ा म सुधार, बेहतर चारा, कृि म गभाधान म बढ़ोतरी, ब े देने के अंतराल म कमी,
पहली बार ब ा देने क आयु म कमी करना वृ के संभािवत ोत ह।
ICAR और देश के कृिष िव िव ालय को कृिष आय पर यान देते हुए एक पैकेज म उनक सभी ौ ोिगिकय को
शािमल कर िवभ कार क समाजाथक और जैव भौतक प र थतय के लये कृिष णाली के त प िवक■सत
करने चािहये। इसम अ य उप- णा लय जैसे फसल म, फल िम ण, पशुधन, बागवानी, वािनक के साथ सभी उप-
णा लय के लये उ पादन, संर ण और फसल कटाई उपरांत मू यवधन को कवर करते हुए ौ ोिगक और उ म
प तयाँ शािमल ह गी।
िकसान क आय म लगभग एक तहाई वृ बेहतर क मत ाि , फसल कटाई उपरांत कुशल बंधन, त प ा मक
मू य संवधन और संब कायकलाप को अपनाने के मा यम से सरलता से ा य है। इसके लये बाज़ार म यापक
सुधार, भूिम प ा और िनजी भूिम पर वृ ारोपण क आव यकता है।
आधुिनक पूंजी और आधुिनक ान के अभाव म कृिष पर तकूल भाव पड़ा है। उ पादन और बाज़ार म
उ रदाय वपूण िनजी िनवेश को आक षत करने के लये कृिष केा उदार बनाने क आव यकता है।
त प ा मक बाज़ार या सरकारी ह त ेप के मा यम से कृिष उ पादन के लये MSP सुिन त करने मा से ही
बहुत से रा य म िकसान क आय म काफ वृ होगी।
कृिष के लये अधकांश िवकासा मक पहल और नीतयाँ राजय ारा काया वत क जाती ह। रा य ↓सचाई जैसे बहुत
से िवकासा मक कायकलाप पर क ारा प र यय क तुलना म बहुत अधक िनवेश करते ह। बाज़ार और भूिम प ा से
संबं धत िवभ सुधार क गत भी रा य का िवषय है। इस लये िकसान क आय को दोगुना करने के ल य को
अपनाने और उसे हा■सल करने के लये रा य और संघ रा य- े को संघिटत करना अिनवाय है।
यिद क और सभी रा य और संघ रा य- े ारा संगिठत और अ छी तरह से सम वत यास िकये जाते ह तो देश
वष 2022 तक िकसान क आय को दोगुना करने का ल य हा■सल कर सकता है।
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