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Approach – Answer: General Studies Mains Mock Test 1394 (2020)


1. Explain the value-added, income and expenditure methods of estimating national income.
राष्ट्रीय अय के अकलन की मूल्य-वर्धधत, अय और व्यय वववधयों को स्पष्ट कीवजए।
दृवष्टकोण:
 राष्ट्रीय अय की ऄवधारणा का संक्षेप में वणणन कीवजए।
 राष्ट्रीय अय का अकलन करने के वलए मूल्य-वर्धित ,अय और व्यय वववधयों की व्याख्या कीवजए।
 भारत में ईपयोग की जाने वाली वववधयों पर संवक्षप्त टिप्पणी के साथ ईत्तर समाप्त कीवजए।
ईत्तर:
राष्ट्रीय अय एक ववत्तीय वषण के दौरान ककसी देश में ईत्पाकदत सभी वस्तुओं और सेवाओं के मौकिक मूल्य को संदर्धभत करती है।
आसकी गणना सामान्यतया कारक लागत ऄथाणत् ईत्पादन के सभी कारकों की लागत ऄथवा बाजार मूल्य (वजसमें ईत्पादन
लागत, ईत्पादकों के वलए ऄप्रत्यक्ष कर और सवससडी सवममवलत हैं) पर सकल घरे लू ईत्पाद (GDP) या सकल राष्ट्रीय ईत्पाद

(GNP) के संदभण में की जाती है। राष्ट्रीय अय का अकलन वववभन्न वववधयों जैसे मूल्य-वर्धित वववध, अय वववध और व्यय वववध
से ककया जा सकता है।

मूल्य-वर्धित वववध: आसे ईत्पादन वववध या वस्तु-सूची (आन्वेंट्री) वववध के रूप में भी जाना जाता है। आसमें एक वनवित ऄववध के
दौरान देश में ईत्पाकदत सभी वस्तुओं और सेवाओं का बाजार मूल्य ज्ञात करना सवममवलत होता है। ऄंवतम वस्तुओं के ईत्पादन
के वलए ईपभोग ककए जाने वाले मध्यवती ईत्पादों के मूल्यों को घिा कदया जाता है, ताकक मूल्यों का दोहराव न हो। ईत्पादन
प्रकिया के दौरान ईपकरणों के मूल्यह्रास और ऄप्रत्यक्ष करों को भी घिा कदया जाता है। आन अकलनों के योग से औद्योवगक
ईत्पवत्त द्वारा वगीकृ त कारक लागत पर वनवल घरे लू ईत्पाद प्राप्त होता है। आसमें ववदेशों से प्राप्त होने वाली वनवल अय को भी
जोड़ा जाता है, वजससे वनवल राष्ट्रीय अय प्राप्त होती है।

NNPFC = GDPMP - वनवित पूज


ं ी की खपत (मूल्यह्रास) + ववदेशों से प्राप्त वनवल कारक अय - वनवल ऄप्रत्यक्ष कर

जहां, NNPFC= कारक लागत पर वनवल राष्ट्रीय ईत्पाद और GDPMP= बाजार मूल्य पर सकल घरे लू ईत्पाद है।

अय वववध: आस पिवत में ईत्पादन के कारकों ऄथाणत् मानव श्रम, पूूँजी, वनवित प्राकृ वतक संसाधनों (भूवम) और ईद्यमशीलता

द्वारा मजदूरी, सयाज, ककराए और लाभ के माध्यम से एक वनवित ऄववध के दौरान ऄर्धजत समस्त अय को जोड़ा जाता है।
राष्ट्रीय अय वनवल घरे लू कारक अय है वजसे ववदेशों से प्राप्त वनवल कारक अय के साथ जोड़ा जाता है।

NNPFC = GDPMP + ववदेशों से प्राप्त वनवल कारक अय।

जहां, NNPFC = कारक लागत पर वनवल घरे लू ईत्पाद है।

व्यय वववध: आस पिवत में राष्ट्रीय अय की गणना करने के वलए ककसी ऄथणव्यवस्था के भीतर ववत्तीय वषण के दौरान ईत्पाकदत
ऄंवतम वस्तुओं और सेवाओं के िय पर व्यय रावश के कु ल योग को अकवलत ककया जाता है। व्यय को चार श्रेवणयों में वगीकृ त
ककया जा सकता है;जैसे - वनजी ऄंवतम ईपभोग व्यय, सरकार द्वारा ककया गया ऄंवतम ईपभोग व्यय, वनवेश व्यय या सकल
घरे लू पूज
ं ी वनमाणण और वनवल वनयाणत (वनयाणत - अयात)।

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GDPMP = वनजी ऄंवतम ईपभोग व्यय + सरकारी ऄंवतम ईपभोग व्यय + वनवेश व्यय + वनवल वनयाणत (वनयाणत - अयात)।

NNPFC = GDPMP - मूल्यह्रास + ववदेशों से प्राप्त वनवल कारक अय - वनवल ऄप्रत्यक्ष कर

भारत में राष्ट्रीय अय की गणना के वलए आन वववधयों का ववववधतापूवणक ईपयोग ककया जाता है। कें िीय सांवख्यकी संगठन
(CSO) मूल्यवर्धित पिवत का ईपयोग करके कृ वष, वावनकी, मत्स्यन, खनन और वववनमाणण, वनमाणण अकद गवतवववधयों के

माध्यम से ककए गए मूल्यविणन की गणना करता है। व्यय वववध के तहत कें िीय सांवख्यकी संगठन (CSO) वनजी ऄंवतम

ईपभोग, सरकारी ऄंवतम ईपभोग, सकल वस्थर पूज


ं ी वनमाणण, वनवल वनयाणत व अयात जैसे व्यय के वववभन्न घिकों को जोड़ता
है।

2. Explain why Micro, Small and Medium Enterprises (MSME) sector is regarded as the ‘growth engine’ of
the Indian economy. Suggest key reforms that are required for improving the overall business climate
for MSMEs in India.
स्पष्ट कीवजए कक क्यों सूक्ष्म, लघु और मध्यम ईद्यम (MSME) क्षेत्रक को भारतीय ऄथणव्यवस्था का ‘ग्रोथ आं जन’ (वृवि आं जन)

माना जाता है। भारत में MSMEs के वलए समग्र व्यावसावयक पटरवेश में सुधार लाने हेतु अवश्यक महत्वपूणण सुधारों का
सुझाव दीवजए।
दृवष्टकोण:
 MSME क्षेत्रक को भारतीय ऄथणव्यवस्था के वृवि आंजन के रूप में माने जाने के कारणों पर प्रकाश डावलए।
 आस क्षेत्र के समक्ष मौजूद चुनौवतयों का संवक्षप्त वणणन कीवजए।
 भारत में MSME क्षेत्रक हेतु समग्र व्यावसावयक पटरवेश में सुधार के वलए सुधारात्मक ईपायों का सुझाव दीवजए।
ईत्तर:
लगभग 63.38 वमवलयन ईद्यमों के ववशाल नेिवकण के साथ MSME क्षेत्रक वववनमाणण क्षेत्र में लगभग 45 प्रवतशत, वनयाणत में

40 प्रवतशत से ऄवधक और GDP में 28 प्रवतशत से ऄवधक का योगदान करता है। आसके ऄवतटरक्त, MSMEs लगभग 111
वमवलयन लोगों के वलए रोजगार के ऄवसरों का सृजन करते हैं। यह क्षेत्रक सामान्य ईपभोक्ता वस्तुओं से लेकर ईच्च-पटरशुिता
और पटरष्कृ त तैयार ईत्पादों तक की एक ववस्तृत शृंखला का ईत्पादन करता है। व्यावसावयक नवाचारों के माध्यम से ईद्यमी
अधार के ववस्तार में भी आसका महत्वपूणण योगदान रहा है। अर्धथक ववकास पर आसके प्रभावशाली गुणक प्रभाव और ईद्योग के
साथ आसके ऄग्र एवं पि संबंधों के कारण आसे भारतीय ऄथणव्यवस्था का ‘वृवि आं जन’ माना जाता है।

हालांकक, भारत में MSMEs को वववभन्न बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जैसे - ऊण की ईच्च लागत, नइ तकनीक और

ववपणन तक ऄल्प पहंच, ऄंतरराष्ट्रीय बाजारों तक ऄपयाणप्त पहंच, कु शल श्रमबल का ऄभाव, ऄपयाणप्त ऄवसंरचना तथा

कराधान, श्रम कानूनों एवं व्यवसाय के ऄनुकूल पटरवेश से संबंवधत वववनयामकीय मुद्दे अकद।

आस संदभण में, यू.के .वसन्हा सवमवत की टरपोिण की ऄनुशंसाओं के ऄनुसार, MSMEs के वलए व्यावसावयक पटरवेश में सुधार हेतु
वनम्नवलवखत प्रमुख ईपाय ककए जाने की अवश्यकता है:
 बोवझल पंजीकरण प्रकिया का समाधान करना और खरीद, सरकार प्रायोवजत लाभों को ग्रहण करने आत्याकद हेतु वववशष्ट

ईद्यम पहचानकताण (Unique Enterprise Identifier: UEI) जैसे- PAN के ईपयोग को प्रोत्सावहत करना।

 ईद्यवमयों की क्षमता के वनमाणण के वलए प्रत्येक वजले में ईद्यम ववकास कें ि (EDCs) स्थावपत करना।

 MSME संकुलों द्वारा नवप्रवतणन ऄवसंरचना से युक्त कं पवनयों, ऄनुसध


ं ान एवं ववकास संस्थानों और ववश्वववद्यालयों के
साथ सहयोग ककया जाना।

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 MSMEs की सुभेद्यता और अकार को ध्यान में रखते हए, कदवावलया संवहता/प्रत्यायोवजत ववधायन द्वारा मध्यस्थता,

ऊण परामशण जैसी अईि-ऑफ-कोिण (न्यायालय से बाहर) सहायता का प्रावधान ककया जाना।


 ऊण-पटरचालन लागत को प्रभावी रूप से कम करने और साथ ही सूचनाओं संबंधी ववषमताओं की समस्या का समाधान
करने हेतु एक वडवजिल सावणजवनक ऄवसंरचना का वनमाणण ककया जाना, वजससे ऊण तक पहंच में सुधार होगा।

 सुसंगत नीवतगत दृवष्टकोण और समान वनगरानी की सुववधा हेतु MSMEs के वलए एक राष्ट्रीय पटरषद का वनमाणण ककया

जाना चावहए।
 सूक्ष्म, लघु और मध्यम ईद्यम ववकास (MSMED) ऄवधवनयम, 2006 में भी संशोधन करते हए आसमें मुख्य बल बाजार की

सुववधा एवं व्यवसाय करने में सुगमता पर कदया जाना।


यह सुवनवित ककया जाना चावहए कक MSMEs ऄथणव्यवस्था में जारी संरचनात्मक पटरवतणनों (जैसे GST) के साथ स्वयं को

संयोवजत कर सकें एवं ईनको स्वीकार कर सकें तथा वडवजिलीकरण में हो रही प्रगवत से पूणत
ण या लाभावन्वत हो सकें । आससे आस
क्षेत्रक के वलए लागत और प्रयुक्त समय में भी कमी अएगी तथा व्यवसाय करने की सुगमता में ऄवधक वृवि होगी।

3. The average size of holdings has shown a steady declining trend over the last three decades. What are
the challenges faced by farmers due to fragmentation of land? What needs to be done in this regard?
ववगत तीन दशकों के दौरान जोतों के औसत अकार में वनरं तर वगरावि की प्रवृवत्त देखी गइ है। भूवम के ववखंडन के कारण
ककसानों को ककन चुनौवतयों का सामना करना पड़ रहा है? आस संबध
ं में क्या ककये जाने की अवश्यकता है?

दृवष्टकोण:
 भू-जोतों के अकार में वगरावि और आसके वतणमान पटरदृश्य का संवक्षप्त वववरण दीवजए।
 भूवम के ववखंडन के कारण ककसानों के समक्ष ववद्यमान चुनौवतयों का ईल्लेख कीवजए।
 ववद्यमान चुनौवतयों को हल करने के वलए कु छ सुझाव दीवजए।
 सरकार द्वारा ईठाए गए कु छ कदमों पर चचाण करते हए वनष्कषण दीवजए।
ईत्तर:
कृ वष संगणना 2015-16 के ऄनुसार, पटरचालन जोतों का औसत अकार वषण 2010-11 के 1.15 हेक्िेयर के अकार की तुलना

में वषण 2015-16 में घिकर 1.08 हेक्िेयर हो गया है। वतणमान में लघु और सीमांत जोतें (<2 हेक्िेयर) कु ल भू-जोतों का 86

प्रवतशत, जबकक वृहत् जोतें (> 10 हेक्िेयर) के वल 0.57 प्रवतशत ही हैं।

ईच्च जनसंख्या दबाव, संयुक्त पटरवार व्यवस्था में वगरावि, बढ़ती ऊणग्रस्तता और ऄन्य ईपयोगों के वलए कृ वष भूवम का

रुपांतरण, आस ववखंडन हेतु ईत्तरदायी कु छ प्रमुख कारण हैं।

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भूवम के ववखंडन के कारण ककसानों के समक्ष ववद्यमान चुनौवतयां:

 ऄल्प ईत्पादकता: लघु और खंवडत भू-जोतें वनवाणह कृ वष के वलए ईपयुक्त हैं, वजसमें ककसान सकदयों पुरानी श्रम-गहन

तकनीकों का ईपयोग करने हेतु बाध्य होते हैं। आससे भूवम की ईत्पादकता घिती है और आसके प्रवतफल में ईत्पादकता में
वृवि के वलए वनवेश में भी कमी अती है।

 अधुवनकीकरण में कटठनाआयाूँ: बेहतर कृ वष पिवतयों ईदाहरणाथण ट्रैक्िर, सूक्ष्म-ससचाइ तकनीकों अकद का ईपयोग लघु भू-

जोतों के वलए ऄलाभकारी हो जाता है।


 भूवम का व्यथण ईपयोग: सीमाओं के वनधाणरण और बाड़ लगाने में भूवम के व्यथण ईपयोग में वृवि होती है।

 ऊणग्रस्तता: अर्धथक सवेक्षण-2016-17 के ऄनुसार, ऊणग्रस्तता और भू-जोत के अकार के मध्य एक व्युत्िम संबंध

ववद्यमान है। वबहार और पविम बंगाल में सीमांत भू-जोतों वाले 80% से ऄवधक पटरवार ऊणग्रस्त हैं।

 सीमाओं पर वववाद: लघु खंवडत भूवम सीमा वववाद से संबंवधत वशकायतों के प्रमुख कारणों में से एक है।

ऄतः आससे ककसान ईत्पादन जोवखम, जलवायु संबंधी जोवखम, मूल्य जोवखम, ऊण जोवखम, बाजार जोवखम और नीवतगत

जोवखम सवहत सभी प्रकार के कृ वषगत जोवखमों से ग्रवसत हो जाते हैं। आन मुद्दों के समाधान हेतु वनम्नवलवखत ईपाय ककए जा
सकते हैं:
 भू-जोतों का समेकन: भूवम के पट्टे को प्रोत्सावहत कर (पट्टेदारों की भूधृवत की सुरक्षा सुवनवित करने के वलए) और लघु
भूवमयों हेतु लैंड पूसलग (भूवम संयोजन) को बढ़ावा देकर भू-जोतों को समेककत ककया जा सकता है।

 सामूवहक खेती को प्रोत्सावहत करना: लघु ककसानों को सहकारी खेती करने के वलए प्रोत्सावहत ककया जा सकता है,

ईदाहरणाथण- ककसान ईत्पादक संगठन (FPO) जैसे संगठनों के गठन के माध्यम से।

 खेतों की अर्धथक व्यवहायणता: ईच्च मूल्य वाली फसलों के माध्यम से वमवश्रत खेती, सहकारी खेती और फसल ववववधीकरण

को बढ़ावा देकर लघु जोत वाले खेतों की अर्धथक व्यवहायणता में सुधार ककया जा सकता है।
 खेतों का स्पष्ट सीमांकन: खेत की सीमाओं और स्वावमत्व ऄवधकार पर ऄवधक स्पष्टता लाने के वलए भूवम टरकॉडण के
वडवजिलीकरण एवं अधुवनकीकरण को बढ़ावा कदया जाना चावहए।

 खेती पर दबाव को कम करना: ग्रामीण प्रवावसयों को अकर्धषत करने, गैर-कृ वष गवतवववधयों को बढ़ावा देने अकद हेतु

शहरी ववकास के माध्यम से वैकवल्पक अर्धथक ऄवसर प्रदान करके भूवम-मानव के ऄनुपात में सुधार ककया जा सकता है।

अदशण ऄनुबंध कृ वष ऄवधवनयम, 2018, खाद्य प्रसंस्करण ईद्योगों को बढ़ावा देने, कम लागत वाली कृ वष तकनीकों को ऄपनाने

जैसे कु छ कदमों के द्वारा भारत में लघु भू-जोतों के कारण होने वाली समस्याओं का समाधान ककया जा रहा है।

4. Distinguishing between a flexible and fixed exchange rate system, explain how exchange rate is
determined under a flexible exchange rate system.
लचीली और वस्थर वववनमय दर प्रणाली के मध्य ऄंतर स्पष्ट करते हए, समझाआए कक लचीली वववनमय दर प्रणाली के ऄंतगणत

वववनमय दर कै से वनधाणटरत होती है।


दृवष्टकोण:
 वववनमय दर को पटरभावषत करते हए ईत्तर अरं भ कीवजए।
 लचीली और वस्थर वववनमय दर प्रणाली के मध्य ऄंतर स्पष्ट कीवजए।
 समझाआए कक एक लचीली वववनमय दर प्रणाली के ऄंतगणत वववनमय दर ककस प्रकार वनधाणटरत होती है।

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ईत्तर:
ककसी मुिा का ऄन्य मुिाओं के सापेक्ष मूल्य ‘वववनमय दर’ के रूप में वर्धणत ककया जाता है। सामान्यतया वववनमय दर को वनधाणटरत

करने के वलए दो प्रकार की व्यवस्थाएं- वस्थर वववनमय दर प्रणाली और लचीली वववनमय दर प्रणाली ऄपनायी जाती हैं।

दोनों के मध्य ऄंतर

 वस्थर वववनमय दर मुिा की ऐसी वववनमय दर होती है जो ककसी वनवित स्तर पर ऄमेटरकी डॉलर या स्वणण जैसे कु छ
मानदंडों के अधार पर वनधाणटरत की जाती है और यह कभी-कभी ही समायोवजत की जाती है। जबकक लचीली
(Flexible/floating) वववनमय दर ऐसी वववनमय दर होती है, वजसे ववदेशी मुिा बाजार में मांग और अपूर्धत कारकों द्वारा

वनधाणटरत ककया जाता है।


 वस्थर दर सरकार या कें िीय बैंक द्वारा वनधाणटरत की जाती है और ईसे ईसी स्तर पर बनाए रखा जाता है। परन्तु लचीली
प्रणाली में कें िीय बैंक वववनमय दर के स्तर को प्रत्यक्षत: प्रभाववत करने हेतु कोइ ईपाय नहीं करते हैं।
 वस्थर वववनमय दर व्यवस्था में ऄवस्थरता और ईतार-चढ़ाव की संभावना कम होती है तथा सामान्यतः यह सरकारी नीवत
में पटरवतणन पर वनभणर करती है, जबकक लचीली वववनमय दर व्यवस्था के तहत मुिा, ऄवस्थरता एवं ईच्च ईतार-चढ़ाव के

प्रवत ऄवतसंवेदनशील होती हैं, क्योंकक यह कदन- प्रवतकदन की बाजार पटरवस्थवतयों पर वनभणर करती है।

 वस्थर व्यवस्था में वववनमय दर में पटरवतणन को ऄवमूल्यन या पुनमूल्ण यन (revaluation) के रूप में जाना जाता है जबकक

लचीली व्यवस्था में आसे मूल्यह्रास या मूल्यवृवि के रूप में वर्धणत ककया जाता है।

एक लचीली वववनमय दर प्रणाली के तहत वववनमय दर का वनधाणरण:


भारत और संयुक्त राज्य ऄमेटरका के मॉडल के ईदाहरण से एक लचीली वववनमय दर प्रणाली में वववनमय दर की वनधाणरण
प्रकिया को समझा जा सकता है:
 ककसी लचीली वववनमय दर प्रणाली के तहत, वववनमय की संतुलनकारी दर ववदेशी मुिा की मांग और अपूर्धत के कारकों

द्वारा वनधाणटरत की जाती है। वस्तुओं और सेवाओं का अयात करने, ववदेश में ववत्तीय संपवत्त खरीदने तथा ईपहार/ऄनुदान

अकद भेजने के वलए ववदेशी मुिा की मांग सृवजत होती है। यह वववनमय दर के साथ प्रवतलोमत: संबंवधत होती है ऄथाणत्
वववनमय दर ईच्च होने पर, प्रवत आकाइ डॉलर के वलए अवश्यक रुपयों की मात्रा ईच्च होगी और वववनमय दर कम होने पर

यह अवश्यकता कम होगी। आसवलए वववनमय दर के वलए अलेवखत वि नीचे की ओर वगरावि की प्रवृवत्त दशाणता है।
 आसी प्रकार, घरे लू वस्तुओं के वनयाणत, ववदेशी पयणिकों के अगमन, प्रत्यक्ष वनवेश करने वाले ववदेशी वनवेशकों, प्रेषण अकद

के कारण ववदेशी मुिा की अपूर्धत में वृवि होती है। ववदेशी मुिा की अपूर्धत वववनमय दर के साथ प्रत्यक्षत: पटरवर्धतत होती
है। ऐसा आसवलए है क्योंकक एक ईच्च वववनमय दर प्रवत आकाइ मुिा के रूप में ऄवधक रुपये ऄर्धजत करती है। आससे वनयाणतकों
की लाभप्रदता बढ़ती है। आसवलए वववनमय दर के सापेक्ष खींचा गया अपूर्धत-वि अगे की ओर झुका हअ होता है।
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 लचीली वववनमय दर प्रणाली भुगतान संतल
ु न में ककसी भी प्रकार के ऄसंतल
ु न (disequilibrium) का स्वतः वनवारण कर

देती है। आसका ऄथण यह है कक भुगतान संतल


ु न में कोइ भी कमी या ऄवधशेष स्वचावलत रूप से वववनमय दर को एक संतल
ु न
मूल्य की ओर ऄग्रसटरत करता है, वजससे ववदेशी मुिा की मांग और अपूर्धत पुन: समान हो जाती है।

 ईदाहरणाथण, यकद ककसी ऄथणव्यवस्था में घािे की वस्थवत ईत्पन्न होती है ऄथाणत् अयात में वनयाणत की तुलना में ऄवधक वृवि

होती है, तो ववदेशी मुिा की ऄवतटरक्त मांग सृवजत होगी। आस प्रकार की मांग से ववदेशी मुिा का ऄवधमूल्यन जबकक घरे लू

मुिा का मूल्यह्रास होगा। अयात महूँगे हो जाएंगे और वनयाणत ऄवधक लाभप्रद होगा। ववदेशी मुिा की मांग की मात्रा कम
हो जाएगी और मात्रा की अपूर्धत में घािा समाप्त होने तक वृवि जारी रहेगी। आस वस्थवत में वववनमय दर का एक नया
ईच्चतर संतुलन मूल्य प्राप्त होगा। आसी प्रकार, भुगतान संतुलन में ऄवधशेष, घरे लू मुिा को ऄवधमूल्यन की ओर ले जाता है।

फलत: वनयाणत में वगरावि होती है तथा जब तक वववनमय दर के नए वनचले संतुलन मूल्य पर ऄवधशेष समाप्त नहीं होता
तब तक अयात में वृवि होती है।
 ईत्तर में कदए गए वचत्र में ववदेशी मुिा वववनमय दर की ऄवतटरक्त मांग का वि ववदेशी मुिा की मांग में वृवि के कारण DD

से D1D1 की ओर स्थानांतटरत हो जाता है। वतणमान संतल


ु न दर r0 पर, E0K की सीमा तक ववदेशी मुिा की ऄवधक मांग से

घरे लू मुिा ऄथाणत् रुपये का मूल्यह्रास होगा। भारत में डॉलर की मांग ऄवधक होगी, वजसकी ऄब ऄमेटरका ऄवधक कीमत

पर अपूर्धत करे गा। ऐसे में वववनमय दर बाजार नए ईच्चतर संतल


ु न मूल्य E1 पर स्वतः स्थावपत हो जाता है, वजसके ऄनुरूप

नइ वववनमय दर r1 प्रचवलत होती है।

 ववदेशी मुिा की अपूर्धत में वृवि से अपूर्धत वि SS से S1S1 पर स्थानांतटरत हो जाएगा। r0 पर, E0L की सीमा तक

ववदेशी मुिा की ऄवधक अपूर्धत से भारतीय रुपये का ऄवधमूल्यन होगा ऄथाणत् वववनमय दर में कमी अएगी। ऐसे में
वववनमय दर बाजार एक वनम्नवती नवीन संतुलन मूल्य E2 के वलए स्वत: सुधार करे गा, वजसके ऄनुरूप नइ वववनमय दर r2

प्रचवलत होगी।

5. Discuss why enacting appropriate land leasing laws should be given priority in India.
चचाण कीवजए कक भारत में ईपयुक्त भूवम पट्टा कानूनों के ऄवधवनयमन को प्राथवमकता क्यों दी जानी चावहए।
दृवष्टकोण:
 भारत में भूवम सुधार के ईद्देश्यों की संवक्षप्त पृष्ठभूवम को प्रस्तुत करते हए ईत्तर अरं भ कीवजए।
 आन ईद्देश्यों को पूरा करने के संदभण में ववद्यमान चुनौवतयों का ईल्लेख कीवजए।
 एक ईपयुक्त भूवम पट्टेदारी कानून के ढांचे के लाभों पर चचाण कीवजए।
 ईपयुणक्त सबदुओं के अधार पर, संक्षेप में वनष्कषण प्रस्तुत कीवजए।

ईत्तर:
भारत में भूवम सुधारों के ऄंतगणत कृ वष प्रणाली के भीतर मौजूद सभी प्रकार के शोषण और सामावजक ऄन्याय को समाप्त करने,

काश्तकारों को सुरक्षा प्रदान करने और कृ वष ईत्पादन के समक्ष ववद्यमान बाधाओं को समाप्त करने का लक्ष्य रखा गया था।
हालांकक, आन ईद्देश्यों को प्राप्त करने में भूवम सुधार के वल अंवशक रूप से ही सफल रहे हैं।

आसके प्रमुख कारणों में से एक प्रवतबंधात्मक काश्तकारी (Tenancy) कानून रहे हैं, वजन्होंने भूवम की पट्टेदारी (leasing)

प्रणाली को ऄनौपचाटरक, ऄसुरवक्षत और ऄकु शल बनने हेतु बाध्य ककया है। अय के बढ़ते स्तर के साथ, कृ वष भूवम की कीमतों

में भी वृवि हो रही है, वजसके पटरणामस्वरूप भूवमहीन कृ वष-मजदूर और लघु/सीमांत ककसान भूवम का िय करने में ऄसमथण

होते जा रहे हैं। आसने भारत में कृ वष के ववकास पर प्रवतकू ल प्रभाव डाला है।
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ईपयुणक्त पटरवस्थवतयों के अलोक में ईपयुक्त भूवम पट्टेदारी कानून की अवश्यकता है जो वनम्नवलवखत तरीकों से लाभकारी होगा:
 काश्तकार को कायणकाल की सुरक्षा प्रदान करना: यह फसल ईत्पादक काश्तकारों को कृ वष भूवम संसाधनों में वनवेश करने

और ईनका संरक्षण करने हेतु प्रोत्सावहत करे गा, वजससे भूवम ईत्पादकता और लाभप्रदता में वृवि होगी।

 काश्तकारों को वववभन्न योजनाओं का लाभ प्रदान करना: ज्ञातव्य है कक कानूनी दस्तावेज़ संस्थागत ऊण तक पहंच की
सुववधा प्रदान कर सकते हैं। आसके ऄवतटरक्त, आससे वास्तववक कृ षकों को वववभन्न योजनाओं का लाभ प्रदान करना संभव हो

सके गा, जैसे कक ईवणरक सवससडी, फसल बीमा, अपदा राहत अकद के वलए प्रत्यक्ष लाभ ऄंतरण (DBT) प्रदान करना।

 भू-स्वामी की सुरक्षा: कानूनी प्रवतबंधों के कारण, भू-स्वावमयों में यह भय बना रहता है कक यकद वे भूवम को पट्टे पर देते हैं

तो ईनके भूस्वावमत्व ऄवधकार समाप्त हो जायेंगे, आसवलए वे ऄपनी भूवम को परती रखते हैं। ऄत: आन कानूनों के माध्यम से

आस समस्या का समाधान करने में सहायता वमलेगी।


 वववाद समाधान: एक कानूनी ढांचा भूस्वावमयों के साथ-साथ काश्तकारो को भी संघषण समाधान के वलए सुरवक्षत कानूनी
व्यवस्था प्रदान करे गा।
 भूवम जोतों का समेकन: यह पटरचालन योग्य भूवम जोतों के समेकन का मागण प्रशस्त करे गा जो कक व्यापक ऄथणव्यवस्था का
दोहन करने और कृ वष अय में वृवि करने हेतु अवश्यक है।
 कृ वष में वनजी वनवेश को बढ़ावा: दीधणकावलक पट्टेदारी व्यवस्था ऄनुबंध कृ वष को सुववधाजनक बनाने और फसल
ववववधीकरण को बढ़ावा देने, कृ वष में नवीन तकनीक एवं प्रौद्योवगकी की शुरुअत करने, किाइ पिात् प्रबंधन एवं

प्रसंस्करण में वनवेश करने अकद में सहायक वसि होगी।


आसवलए, कृ वष दक्षता, समता और व्यावसावयक ववववधीकरण के वलए ईपयुक्त भूवम पट्टेदारी कानूनों की ऄवत-अवश्यकता है।

आस संदभण में, नीवत अयोग द्वारा भूवम पट्टेदारी संबंधी एक मॉडल कानून (मॉडल लैंड लीसजग लॉ) भी प्रस्ताववत ककया गया है।

6. Gross Domestic Product (GDP) of a country can not be taken as an index of the welfare of the people
of that country. Analyse.
ककसी देश के सकल घरे लू ईत्पाद (GDP) को ईस देश के लोगों के कल्याण का सूचक नहीं माना जा सकता है। ववश्लेषण कीवजए।

दृवष्टकोण
 GDP की ऄवधारणा की व्याख्या कीवजए।

 आस ववचार पर चचाण कीवजए कक GDP ककसी देश में कल्याण का सूचकांक नहीं होती है।

 एक देश में सामावजक कल्याण के स्तर को वचवत्रत करने हेतु ईपयोग ककए जाने वाले कु छ ऄन्य संकेतकों का ईदाहरण
प्रस्तुत करते हए संक्षेप में वनष्कषण प्रस्तुत कीवजए।
ईत्तरः
सकल घरे लू ईत्पाद (GDP), ककसी वववशष्ट समयाववध में देश की सीमाओं के भीतर ईत्पाकदत सभी तैयार वस्तुओं एवं सेवाओं

के कु ल मौकिक या बाजार मूल्य को प्रदर्धशत करता है। व्यापक मापन के संदभण में सकल घरे लू ईत्पाद, देश के अर्धथक स्वास््य के

व्यापक ऄंकपत्र (स्कोरकाडण) के रूप में कायण करता है।

यह ककसी देश में लोगों की जीवन की वस्थवतयों को वचवत्रत करने हेतु एक ईपयुक्त संकेतक है, क्योंकक आसमें ईपभोग एवं वनवेश

जैसे कइ कारक सवममवलत होते हैं। हालांकक, आसे ककसी देश के लोगों के कल्याण के सूचकांक के रूप में ग्रहण नहीं ककया जा

सकता है। आसके कारण वनम्नवलवखत हैं-

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 यह अय ववतरण में समानता को नहीं मापती है: यकद ककसी देश की GDP में वृवि हो रही है, तो यह अवश्यक नहीं कक

आसके पटरणामस्वरूप ईसके सामावजक संकेतकों में भी वृवि हो। ऐसा आसवलए है, क्योंकक GDP में वृवि कु छ व्यवक्तयों या

फमों के मध्य कें कित हो सकती है। जबकक वास्तव में, आसके साथ-साथ ऄन्य व्यवक्तयों या फमों की अय में वगरावि भी हो

सकती है।

 गैर-मौकिक वववनमय (Non-monetary exchanges): ककसी ऄथणव्यवस्था में कइ गवतवववधयों का अकलन मौकिक रूप

में नहीं ककया जाता है। ईदाहरणाथण घरे लू कायों में संलग्न मवहलाएं, वजसके वलए ईन्हें ककसी प्रकार का भुगतान प्राप्त नहीं

होता है। चूंकक आसमें मुिा का वववनमय नहीं होता है, ऄतः ईनके योगदान को सामान्यतः GDP में शावमल नहीं ककया

जाता है, वजसके पटरणामस्वरूप GDP का वास्तववकता से कम अकलन होता है।

 बाह्यताएं (Externalities): जब कोइ फमण या व्यवक्त दूसरे के वलए लाभ (या हावन) का कारण बनते हैं तथा वजसके वलए

ईन्हें भुगतान (या दंवडत) भी नहीं ककया जाता, तो ईन्हें बाह्यताएं कहा जाता है। ईदाहरणाथण GDP की गणना करते

समय, ईद्योगों के कारण होने वाले प्रदूषण की कोइ गणना नहीं की जाती है। आसवलए जब हम GDP को ऄथणव्यवस्था के

कल्याण के मापक के रूप में ग्रहण करते हैं तो कल्याण का वास्तववकता से ऄवधक अकलन होने की संभावना होती है। वहीं
सकारात्मक बाह्यताओं के मामलों में सकल घरे लू ईत्पाद ऄथणव्यवस्था के वास्तववक कल्याण का कम अकलन करता है।
 ईत्पाकदत वस्तुओं के प्रकारः GDP ईन वस्तुओं के प्रकारों का वणणन नहीं करती है वजनका ईत्पादन ककया जा रहा है। चूंकक

GDP द्वारा ककसी ऄथणव्यवस्था के भीतर सभी तैयार वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य का समग्रता में मापन ककया जाता है

आसवलए आसमें ऐसे ईत्पाद भी सवममवलत होते हैं, वजनके सामावजक कल्याण पर नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं।

ईदाहरणाथण तमबाकू , अयुध अकद देश के भीतर वविय और ईपयोग ककए जाते हैं, परं तु ये समग्र सामावजक कल्याण पर

प्रवतकू ल प्रभाव ईत्पन्न करते हैं।

उपर वर्धणत कवमयों के अलोक में, सामावजक कल्याण को मापने के वलए ऄवधक सिीक और ववश्वसनीय संकेतक ववकवसत करने

के वववभन्न प्रयास ककये गए हैं। आन वैकवल्पक तरीकों में मानव ववकास सूचकांक (HDI), सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता सूचकांक

(GNH) और सामावजक प्रगवत सूचकांक (SPI) अकद सवमवलत हैं।

7. Bringing out the difference between depreciation and devaluation of a currency, explain how they
affect foreign trade of a country.
मुिा के मूल्यह्रास और ऄवमूल्यन के मध्य ऄंतर प्रकि करते हए, स्पष्ट कीवजए कक ये ककसी देश के ववदेशी व्यापार को कै से

प्रभाववत करते हैं।


दृवष्टकोण:
 मुिा के मूल्यह्रास और ऄवमूल्यन के ऄथण की संक्षप
े में चचाण कीवजए।
 मुिा के मूल्यह्रास और ऄवमूल्यन के मध्य मुख्य ऄंतरों पर प्रकाश डावलए।
 ककसी देश के ववदेशी व्यापार पर ईनके प्रभाव की चचाण कीवजए।

ईत्तरः
मूल्यह्रास एवं ऄवमूल्यन, दोनों ही एक ऐसी अर्धथक वस्थवत को प्रदर्धशत करते हैं, वजसमें ककसी ऄन्य मुिा की तुलना में घरे लू

मुिा के मूल्य में कमी होती है वजसके पटरणामस्वरूप ईस मुिा की िय शवक्त में वगरावि अती है। हालांकक आनके घटित होने के
तरीके वभन्न-वभन्न होते हैं। मूल्यह्रास एवं ऄवमूल्यन के मध्य वनम्नवलवखत ऄंतर हैं:

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 मूल्यह्रास नमय वववनमय दर (floating exchange rate) प्रणाली में घटित होता है, वजसमें बाजार कारकों के अधार पर

देश की मुिा का मूल्य वनधाणटरत होता है। दूसरी ओर, ऄवमूल्यन वस्थर वववनमय दर (fixed/pegged exchange rate)
प्रणाली के साथ संबि है।
 मांग एवं अपूर्धत जैसे बाजार कारकों के कारण घरे लू मुिा के मूल्य में कमी (मूल्यह्रास) होती है जबकक ऄवमूल्यन, कें िीय
बैंक द्वारा जानबूझकर ककसी ऄन्य मुिा के सापेक्ष घरे लू मुिा के मूल्य में की गइ कमी को प्रदर्धशत करता है। मूल्यह्रास दैवनक
अधार पर हो सकता है, जबकक ऄवमूल्यन सामान्यतया कें िीय बैंक द्वारा समय-समय पर ककया जाता है।

ककसी देश के ववदेशी व्यापार पर मूल्यह्रास और ऄवमूल्यन के प्रभाव:


 व्यापार घािे को कम करनाः मूल्यह्रास एवं ऄवमूल्यन दोनों के पटरणामस्वरूप अयात महंगे हो जाते हैं। आसवलए

नागटरकों द्वारा प्राय: अयावतत वस्तुओं की कम खरीद की जाती है। दूसरी ओर, ऄंतरराष्ट्रीय िे ताओं के वलए वनयाणत की

जाने वाली वस्तुएं ऄपेक्षाकृ त सस्ती हो जाती हैं, पटरणामस्वरूप वनयाणत की मांग में वृवि जाती है। आस प्रकार, अयात में

कमी तथा वनयाणत में वृवि के फलस्वरूप न के वल व्यापार घािे में कमी लाइ जा सकती है, बवल्क आससे ऄवधशेष का भी

सृजन हो सकता है। हालांकक, व्यापार घािे में अशानुरूप कमी नहीं हो सकती है और कु छ पटरवस्थवतयों में आसमें वृवि भी

हो सकती है, जैसे यकद ऐसी अवश्यक वस्तुओं का अयात ककया जा रहा हो, वजन्हें घरे लू ईत्पादों से प्रवतस्थावपत करना
कटठन हो।
 ववदेशी वनवेश में कमीः मूल्यह्रास एवं ऄवमूल्यन, दोनों को ही अर्धथक कमजोरी के संकेतकों के रूप में देखा जाता है,
वजसके कारण राष्ट्र की साख के समक्ष संकि ईत्पन्न हो सकता है। यह देश की ऄथणव्यवस्था के प्रवत वनवेशकों के ववश्वास में
कमी कर सकता है वजसके पटरणामस्वरूप ववदेशी वनवेश में कमी हो सकती है। हालांकक, यकद घिते अयात एवं ईच्च वनयाणत
मांग के कारण घरे लू ईत्पादों की समग्र मांग में वृवि होती है तथा ऄथणव्यवस्था में ईच्च मुिास्फीवत और आसके कारण ईच्च
सयाज दर की वस्थवत ईत्पन्न होती है, तो आसके फलस्वरूप ववदेशी वनवेश में भी वृवि हो सकती है।

 वैवश्वक बाजारों में ऄवस्थरताः व्यापाटरक भागीदारों के वलए यह सचता का ववषय हो सकता है, क्योंकक यह ईनके वनयाणत

ईद्योगों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। साथ ही, पड़ोसी देश ऄपने व्यापाटरक साझेदार के ऄवमूल्यन के प्रभावों से
बचने हेतु ऄपनी मुिाओं का भी ऄवमूल्यन कर सकते हैं। आस प्रकार प्रवतस्पधी ऄवमूल्यन के कारण वैवश्वक ववत्तीय बाजारों
में ऄवस्थरता ईत्पन्न हो जाती है वजसके पटरणामस्वरूप अर्धथक कटठनाआयां और ऄवधक गहन हो जाती हैं।
एक मुक्त बाजार ऄथणव्यवस्था में, ऄवमूल्यन का प्रयोग तकण संगत अधारों पर ककया जाना चावहए। जबकक मूल्यह्रास के

नकारात्मक प्रभावों का समाधान वनयाणत प्रवतस्पधाण में सुधार करके , अपूर्धत श्रृंखला की दक्षता को बढ़ाकर तथा सरकार की

ऄग्रसकिय नीवतयों जैसे दीघणकावलक ईपायों पर ध्यान कें कित करके ककया जा सकता है।

8. Explain the mechanism of credit creation by the banking system in an economy. What are the factors
that limit such credit creation?
ऄथणव्यवस्था में बैंककग प्रणाली द्वारा साख सृजन की कियावववध को स्पष्ट कीवजए। ऐसे कौन-से कारक हैं जो आस तरह के साख
सृजन को सीवमत करते हैं?
दृवष्टकोण:
 साख सृजन पर संवक्षप्त टिप्पणी करते हए ईत्तर अरं भ कीवजए।
 साख सृजन के वनधाणरण से संबि महत्वपूणण कारकों की वववेचना कीवजए।
 साख सृजन की प्रकिया की ववस्तृत व्याख्या कीवजए।
 बैंकों द्वारा ककए जाने वाले साख सृजन को सीवमत करने वाले कारकों की वववेचना कीवजए।

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ईत्तर:

साख सृजन वावणवज्यक बैंकों द्वारा जमाओं का वनमाणण करके ऊणों और ऄवग्रमों में वृवि की क्षमता को संदर्धभत करता है।
वावणवज्यक बैंक ऊण प्रदान करके और प्रवतभूवतयों की खरीद करके साख सृजन करते हैं। व्यवक्तयों और व्यवसायों को प्रदत्त की
जाने वाली ऊण की रावश आन बैंकों द्वारा धाटरत जनता की जमा रावश से प्राप्त होती है। बैंकों के वलए ऄवनवायण है कक वे आन
जमारावशओं के एक वनवित भाग को जमाकताणओं की नकद संबध
ं ी अवश्यकताओं की पूर्धत हेतु अरवक्षत रखें और सावणजवनक
जमाओं के के वल शेष भाग को ही ऊण के रूप में दें।

साख सृजन की कियावववध:

मान लीवजए कक बैंक X का ग्राहक आस बैंक में 1000 रुपये जमा करता है। बैंक X 20 प्रवतशत का नकद भंडार ऄथाणत 200 रुपये

अरवक्षत रखता है और शेष धनरावश ऄथाणत 800 रुपये का ईपयोग ऄपने ककसी ग्राहक को ऊण प्रदान करने हेतु करता है। बैंक

X से प्राप्त आस रावश का ईपयोग ईधारकताण ककसी व्यापारी से वस्तुओं को खरीदने में करता है और बैंक X पर चेक जारी करके

भुगतान करता है। मान लीवजए कक आस व्यापारी का बैंक Y में खाता है। यह 800 रुपये के आस चेक को बैंक X से एकत्र ककए

जाने के वलए बैंक Y में जमा करे गा।

आस प्रकार, 800 रुपये बैंक X से बैंक Y में स्थानांतटरत ककए जाएंगे। बैंक Y भी 20 प्रवतशत ऄथाणत 160 रुपये अरवक्षत रखता

है और ईसके पास 640 रुपये की शेष धनरावश बच जाती है, जो यह ककसी ऄन्य ग्राहक को ऊण के रूप में दे देता है। आस तरह

के एक ऄन्य लेन-देन में, बैंक Z के पास 512 रुपये ऊण हेतु शेष रह जाएंगे। आस प्रकार 1000 रुपये की प्रारं वभक जमा रावश के

पटरणामस्वरूप तीन बैंकों द्वारा (1000+800+640+512)= 2952 रुपये की जमा रावश का सृजन ककया गया है। आस प्रकार

संपूणण बैंककग प्रणाली नइ जमाओं का वनमाणण करने में सक्षम होगी। आस प्रकिया के माध्यम से साख सृजन होता है।

बैंक की साख सृजन प्रकिया आस धारणा पर अधाटरत है कक ककसी भी समय ऄंतराल के दौरान, आसके ग्राहकों में से के वल कु छ

को वास्तव में नकदी की अवश्यकता होती है। आसके ऄवतटरक्त, बैंक मानता है कक आसके सभी ग्राहक एक ही समय सबदु पर

ऄपनी जमा रावश के ववरुि नकदी की मांग नहीं करें गे।

साख सृजन को सीवमत करने वाले कारक:


 वावणवज्यक बैंकों के पास लोगों की जमा के रूप में नकदी की मात्रा वजतनी ऄवधक होगी ईतना ही ऄवधक साख सृजन
होगा। ऄतः ईपलसध जमा रावश की कम मात्रा साख सृजन को सीवमत करती है।
 नकद अरवक्षत ऄनुपात साख सृजन को प्रभाववत करता है। ऄनुपात वजतना कम होता है, साख सृजन की क्षमता ईतनी ही

ऄवधक होती है।

 साख सृजन की प्रकिया तभी अरमभ होती है जब ईधारकताण ऊण प्रयोजनों के वलए बैंक से मांग करते हैं। आसवलए
ववश्वसनीय ईधारकताणओं की संख्या साख सृजन को प्रभाववत करती है।
 एक वावणवज्यक बैंक स्वीकृ त प्रवतभूवतयों के ववरुि ऊण प्रदान करता है। साथ ही, प्रवतभूवतयों का मूल्य ऊण की रावश के

बराबर होना चावहए। यहां तक कक यकद बैंक के पास साख सृजन करने के वलए एक व्यापक नकद अधार है, तो भी वह

स्वीकायण प्रवतभूवत प्राप्त न होने पर ईधार नहीं देगा।


 साख सृजन प्रकिया ऄवतटरक्त अरवक्षत वनवध या मुिा ऄपवाह के रूप में नकदी की वनकासी से प्रभाववत हो सकती है।
 मुिास्फीवत, मंदी अकद बैंकों की व्यावसावयक वस्थवतयां भी साख सृजन प्रकिया को प्रभाववत करती हैं।

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9. With the help of a diagram, explain the circular flow of income in a simple economy.
एक रे खावचत्र की सहायता से, सरल ऄथणव्यवस्था में अय के वतुल
ण प्रवाह (सकुण लर फ्लो ऑफ़ आनकम) को स्पष्ट कीवजए।
दृवष्टकोण:
 अय के वतुणल प्रवाह की ऄवधारणा को संक्षप
े में रे खांककत कीवजए।
 रे खावचत्र के माध्यम से अय के प्रवाह के वववभन्न चरणों को वर्धणत कीवजए।
 रे खावचत्र की सहायता से सरल ऄथणव्यवस्था में अय के वतुल
ण प्रवाह की ऄवधारणा की ववस्तृत व्याख्या कीवजए और
तदनुसार वनष्कषण प्रदान करते हए ईत्तर समाप्त कीवजए।
ईत्तर:
अय का वतुणल प्रवाह एक अर्धथक मॉडल है, जो ककसी ऄथणव्यवस्था में वववभन्न ऄवभकताणओं के मध्य होने वाले अदान-प्रदान को

मुिा, सेवाओं अकद के प्रवाह के रूप में दशाणता है। यह मूल रूप से यह दशाणता है कक धन/कारक सेवाएूँ, ईत्पादकों से ईपभोक्ताओं
की ओर तथा पुनः एक ऄंतहीन लूप में ककस प्रकार प्रवावहत होती हैं।

अय के वतुल
ण प्रवाह के चरण:
 ईत्पादन चरण: फमें, कारक सेवाओं ऄथाणत भूवम, श्रम, पूज
ं ी और ईद्यमशीलता की सहायता से वस्तुओं और सेवाओं का
ईत्पादन करती हैं।
 अय चरण: आसमें फमों से पटरवारों को होने वाली कारक अय (ककराया, मजदूरी, सयाज, लाभ) का प्रवाह सवममवलत होता
है।
 व्यय चरण: ईत्पादन के कारकों द्वारा प्राप्त अय फमों द्वारा ईत्पाकदत वस्तुओं और सेवाओं पर व्यय की जाती है।

एक सरल ऄथणव्यवस्था में अय का वतुल


ण प्रवाह:
एक सरल ऄथणव्यवस्था में के वल दो क्षेत्रक होते हैं ऄथाणत 'पटरवार' और 'फमण' तथा 'पटरवारों' द्वारा कोइ सरकारी, बाह्य व्यापार
या कोइ बचत नहीं की जाती है। आस प्रकार घरे लू व्यय के ऄन्य सभी चैनलों ऄथाणत कर या वस्तुओं का अयात बंद हो जाता है।
पटरणामस्वरूप वे के वल घरे लू फमों द्वारा ईत्पाकदत ईन वस्तुओं और सेवाओं पर ऄपनी अय खचण कर सकते हैं, वजनके ईत्पादन
में ईन्होंने स्वयं सहायता प्रदान की होती है। ऄतः पटरवारों द्वारा कु ल ईपभोग ऄथणव्यवस्था में फमों द्वारा ईत्पाकदत वस्तुओं और
सेवाओं पर कु ल व्यय के समान होता है। आस प्रकार ऄथणव्यवस्था की संपूणण अय ईत्पादकों/फमों को वबिी राजस्व के रूप में पुनः
प्राप्त हो जाती है और कोइ टरसाव (leakage) नहीं होता है।

अगामी ऄववध में, फमें पुन: वस्तुओं और सेवाओं का ईत्पादन करें गी और ईत्पादन के कारकों ऄथाणत पटरवारों को पाटरश्रवमक
का भुगतान करें गी, वजनका ईपयोग एक बार पुन: वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने के वलए ककया जाएगा। आसवलए प्रत्येक वषण
ऄथणव्यवस्था की कु ल अय दो क्षेत्रकों यथा- फमों और पटरवारों के माध्यम से वतुणल रूप से गवतमान होती है।

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हालांकक, ईपयुणक्त ईदाहरण एक सरलीकृ त मॉडल है, जो वास्तववक ऄथणव्यवस्था का ववस्तार से वणणन नहीं करता है। ईदाहरण

के वलए, वास्तववक ऄथणव्यवस्था में पटरवार बचत करते हैं, आसमें सरकार सवममवलत होती है तथा ऄंतरराष्ट्रीय व्यापार अकद भी

शावमल होते हैं।

10. Explain the meaning of Balance of Payments and give an account of various components included
within current and capital account.
भुगतान संतल
ु न का ऄथण स्पष्ट कीवजए तथा चालू और पूज
ूँ ी खाते में सवममवलत वववभन्न घिकों का वववरण दीवजए।
दृवष्टकोण:
 भुगतान संतल
ु न की संवक्षप्त व्याख्या कीवजए और आसके घिकों का ईल्लेख कीवजए।
 चालू और पूज
ूँ ी खातों को पटरभावषत करते हए आनके वववभन्न घिकों का वववरण दीवजए।
 भुगतान संतल
ु न की समग्र ऄवधारणा का वणणन करते हए वनष्कषण प्रस्तुत कीवजए।
ईत्तर:

भुगतान संतुलन (BoP) ककसी देश की वववभन्न आकाआयों और ववश्व के शेष भागों के मध्य वनवित समयाववध में ककये गए सभी

लेन-देनों (वस्तुओं, सेवाओं एवं पटरसंपवत्तयों) का वववरण होता है। भुगतान संतुलन का ऄनुरक्षण एक राष्ट्र के कें िीय मौकिक

प्रावधकरण द्वारा ककया जाता है।

ऄंतरराष्ट्रीय मुिा कोष के ऄनुसार, भुगतान संतल


ु न में दो मुख्य खाते शावमल होते हैं ऄथाणत् चालू खाता और पूूँजी व ववत्तीय

खाता। हालांकक, भारत में ववत्तीय और पूज


ूँ ी खाते को एक ही खाते में सवममवलत ककया जाता है तथा आसे ही पूूँजी खाते के रूप में

वर्धणत ककया जाता है। पटरणामस्वरूप, भारत में भुगतान संतल


ु न में दो मुख्य खाते शावमल होते हैं ऄथाणत् चालू खाता और पूज
ूँ ी

खाता।

चालू खाता: चालू खाते में वस्तुओं एवं सेवाओं के वनयाणत व अयात, एकपक्षीय ऄंतरणों और ऄंतरराष्ट्रीय अयों से संबंवधत लेन-

देन का टरकॉडण शावमल होता है। आस प्रकार, चालू खाते के शेष का मान वनयाणत के मूल्य में से अयात के मूल्य को घिाकर ज्ञात

ककया जाता है, वजसे ऄंतरराष्ट्रीय अय और ऄंतरणों के वलए समायोवजत ककया जाता है। वस्तुओं के वनयाणत तथा अयात के मध्य

ईत्पन्न आस वनवल ऄंतर को व्यापार संतल


ु न के रूप में वनर्ददष्ट ककया जाता है। जब सेवाओं में व्यापार और वनवल ऄंतरणों को भी
व्यापार संतल
ु न में शावमल ककया जाता है तो यह चालू खाता संतल
ु न में पटरणत हो जाता है। चालू खाता संतल
ु न का सदैव
बराबर होना ऄथाणत् संतुलन में होना अवश्यक नहीं होता तथा यह ऄवधशेष या कमी भी प्रदर्धशत कर सकता है। ऄवधशेष चालू
खाते का ऄथण है कक राष्ट्र ऄन्य देशों के वलए ऊणदाता है और चालू खाता घािे का ऄथण है कक राष्ट्र ने ऄन्य देशों से ऊण वलया
हअ है।
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चालू खाते के घिक वनम्नवलवखत हैं:

पूज
ूँ ी खाता: पूूँजी खाता ववत्तीय और भौवतक, दोनों प्रकार की पटरसंपवत्तयों में पटरवतणन से संबंवधत समस्त ऄंतरराष्ट्रीय अर्धथक

लेन-देन का टरकॉडण रखता है। यह वनजी एवं सरकारी, दोनों प्रकार के ऄल्पकावलक और दीघणकावलक पूज
ं ीगत लेन-देनों का

वववरण होता है, वजसमें ईधार लेना, ईधार देना, ववदेशी मुिा का िय-वविय अकद सवममवलत होते हैं। ववदेशी पटरसंपवत्तयों की

खरीद पूूँजी खाते में एक डेवबि (वनकाली जाने वाली) मद (debit item) होती है (क्योंकक आससे ववदेशी मुिा भारत से बाहर

प्रवावहत होती है) जबकक घरे लू पटरसंपवत्तयों की वबिी पूज


ूँ ी खाते में एक िे वडि (जमा की जाने वाली) मद (credit item) होती

है।

पूूँजी खाते के घिक वनम्नवलवखत हैं:

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चालू खाता घािे का ववत्तीयन सामान्य रूप से वनवल पूज
ूँ ी ऄंतवाणह ऄथाणत् पटरसंपवत्तयों के वविय ऄथवा ववदेशों से ऊण लेकर
ककया जाता है। वैकवल्पक रूप से, घािे की वस्थवत में कोइ देश ववदेशी मुिा बाजार में ववदेशी मुिा वविय कर ऄपने ववदेशी मुिा

भंडार को कम कर सकता है। सरकारी राजकोष में कमी/वृवि को िमशः समग्र भुगतान संतल
ु न घािा/ऄवधशेष कहा जाता है।

जब ककसी देश के चालू खाते और ईसके गैर-अरवक्षत पूज


ूँ ी खाते का योग शून्य होता है तो ईस देश में भुगतान संतल
ु न की
वस्थवत संतवु लत ऄवस्था में मानी जाती है। आसका ऄथण यह होता है कक चालू खाता संतल
ु न ववदेशी मुिा भंडार में पटरवतणन ककए
वबना पूणणतया ऄंतरराष्ट्रीय ऊण द्वारा ववत्त पोवषत ककया गया है।
चालू और पूज
ं ी खातों के ऄवतटरक्त, त्रुटियाूँ और चूक (errors and omissions), भुगतान संतल
ु न में तीसरे तत्व का सृजन

करते हैं। व्यवहार में, ऄंतरराष्ट्रीय लेनदेन को ईवचत रीवत से टरकॉडण करने में देश की ऄसमथणता के कारण भुगतान संतुलन खाते

संभवतः ही कभी संतुवलत होते हैं। यही कारण है कक त्रुटियों और चूकों को 'संतुलन मद' माना जाता है, ताकक भुगतान संतल
ु न

खातों को संतल
ु न में रखा जा सके ।

11. Explain the demand-pull and cost-push factors of inflation in India.


भारत में मांग-प्रेटरत और लागत-जवनत मुिास्फीवत के कारकों को स्पष्ट कीवजए।
दृवष्टकोण:
 मुिास्फीवत की संवक्षप्त पटरभाषा के साथ ईत्तर अरं भ कीवजए।

 भारत में मांग-प्रेटरत और लागत-जवनत मुिास्फीवत के कारकों पर चचाण कीवजए।


 ईपयुणक्त सबदुओं के अधार पर वनष्कषण दीवजए।
ईत्तर:

मुिास्फीवत, वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में सामान्य वृवि को दशाणती है। मुिा की समान आकाइ द्वारा पूवण की तुलना में

वस्तुओं और सेवाओं की ऄल्प मात्रा िय की जाती है, वजससे ऄथणव्यवस्था में मुिा की िय शवक्त कम हो जाती है। मुिास्फीवत

ईत्पन्न करने वाले दो कारक होते हैं यथा:

मुिास्फीवत के मांग-प्रेटरत कारक:

जब ककसी ऄथणव्यवस्था की समग्र मांग ईसकी समग्र अपूर्धत से ऄवधक हो जाती है ऄथाणत् ऄथणव्यवस्था में होने वाला ईत्पादन
बढ़ती हइ मांग की पूर्धत करने में ऄसक्षम होता है, आससे वस्तुओं की कीमतों में वृवि हो जाती है। आसे मांग-प्रेटरत मुिास्फीवत

कहा जाता है।

मांग-प्रेटरत मुिास्फीवत के प्रमुख कारण वनम्नवलवखत हैं:


 वर्धित संववृ ि: जब सकल घरे लू ईत्पाद में वृवि होती है, तो आस कारण प्रवत व्यवक्त अय बढ़ जाती है। आसके

पटरणामस्वरूप सामान्य रूप से वस्तुओं और सेवाओं की मांग में भी बढ़ोतरी हो जाती है। जब ईपभोक्ता अर्धथक ववकास के
ववषय में अश्वस्त ऄनुभव करते हैं तो भी मांग में वृवि होगी।

 राजकोषीय प्रोत्साहन से ईच्च मांग: जब करों की दर कम होती है, तो ईपभोक्ताओं के पास ईपलसध प्रयोज्य अय में वृवि हो

जाती है, वजसके कारण मांग बढ़ जाती है। ईच्च सरकारी व्यय और ईधार में वृवि भी ऄथणव्यवस्था में मांग में बढ़ोतरी का

कारण बनती है।


 ईदार मौकिक नीवत: जब मौकिक नीवत का ऄथणव्यवस्था में व्ययों के ऄनुरूप ऄवभकल्पन ककया जाता है, ईदाहरणाथण सयाज

दरों में कमी करना, तो आससे ईच्च मांग की वस्थवत ईत्पन्न हो जाती है।

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 वर्धित ववदेशी वनवेश: आससे ऄथणव्यवस्था में धन का ऄंतवाणह होता है, जो ऄंततः मांग में वृवि का कारण बनता है।
 घरे लू मुिा का ऄवमूल्यन: आससे अयातों की कीमत बढ़ जाती है और ईस देश के वनयाणतों की कीमत कम हो जाती है।
वनयाणत वनरं तर बढ़ने और अयात में कमी होने से समग्र मांग में भी वृवि होती है, वजसके कारण कीमतों में बढ़ोतरी (मूल्य-
वृवि) हो जाती है।

मुिास्फीवत के लागत जवनत कारक:

यह वस्थवत तब ईत्पन्न होती है जब ईत्पादन लागत में वृवि के कारण वस्तुओं और सेवाओं की समग्र अपूर्धत कम हो जाती
है। सामान्य रूप से, लागत-जवनत मुिास्फीवत लोचहीन मांग की वस्थवत में ईत्पन्न होती है (जहां मांग में, बढ़ती कीमतों के
ऄनुरूप पटरवतणन नही होता)। लागत-जवनत मुिास्फीवत के प्रमुख कारक वनम्नवलवखत हैं:
 घिकों की लागत: कच्चे माल, मशीनरी के मूल्यों में बढ़ोतरी, बढ़ता ककराया और ऄन्य घिकों की कीमतों में वृवि, ईत्पादन
की लागत में वृवि का कारण बनती है।
 वर्धित मजदूरी: मजदूरी में बढ़ोतरी से ईत्पादन लागत में भी वृवि होती है।
 अपूर्धत अघात: अपूर्धत अघात की वस्थवत तब ईत्पन्न होती है जब कच्चे तेल जैसी महत्वपूणण वस्तुओं की कीमतों में ऄत्यवधक
वृवि होती है। आसके पटरणामस्वरूप पटरवहन लागत ईच्च हो जाती है और सभी कं पवनयों की लागत में वृवि पटरलवक्षत
होती है। प्राकृ वतक अपदाएं या प्राकृ वतक संसाधनों का ह्रास जैसे ऄन्य अपूर्धत अघात भी लागत जवनत मुिास्फीवत ईत्पन्न
कर सकते हैं।
 ऄवमूल्यन: ऄवमूल्यन से अयात की घरे लू कीमत बढ़ जाती है। आसवलए, ऄवमूल्यन के पिात् अयात की वर्धित लागत के
कारण प्रायः मुिास्फीवत में वृवि होती है।
 ववववध कारक: जैसे सरकार द्वारा ईच्च कराधान, एकावधकार, वववनमय दरों में वगरावि, अकद वजससे ईत्पादन की लागत
में वृवि हो सकती है।
भारत में, भारतीय टरजवण बैंक मौकिक नीवत रणनीवत का ईपयोग करके मूल्य स्तर को एक वनवित स्तर पर या एक सीमा के
भीतर बनाए रखता है। ज्ञातव्य है कक आस रणनीवत को मुिास्फीवत लक्ष्यीकरण के रूप में जाना जाता है।

12. Explain the different quantitative and qualitative policy tools used to regulate money supply in the
economy.
ऄथणव्यवस्था में मुिा की अपूर्धत को वववनयवमत करने के वलए प्रयुक्त वववभन्न मात्रात्मक और गुणात्मक नीवतगत साधनों को स्पष्ट
कीवजए।
दृवष्टकोण:
 मुिा अपूर्धत एवं आसकी कायणप्रणाली की संवक्षप्त व्याख्या करते हए ईत्तर अरं भ कीवजए।
 ऄथणव्यवस्था में मुिा की अपूर्धत को वववनयवमत करने के वलए प्रयुक्त वववभन्न मात्रात्मक और गुणात्मक नीवतगत साधनों को
पटरभावषत कीवजए।
 वववभन्न मात्रात्मक और गुणात्मक साधनों को सूचीबि कीवजए।
 ईपयुणक्त सबदुओं के अधार पर वनष्कषण दीवजए।
ईत्तर:

मुिा अपूर्धत से अशय एक वनवित ऄववध में ककसी देश की ऄथणव्यवस्था में पटरसंचरणशील मुिा एवं ऄन्य तरल प्रपत्रों के संपण
ू ण
भंडार से है। आसे कें िीय बैंक द्वारा मौकिक नीवतगत साधनों का ईपयोग करके वववनयवमत ककया जाता है। भारत में, मुिा अपूर्धत
का वववनयमन RBI द्वारा वववभन्न मात्रात्मक और गुणात्मक साधनों का ईपयोग करके ककया जाता है, ताकक मुिास्फीवत
लक्ष्यीकरण, मूल्य वस्थरता तथा वस्थर अर्धथक ववकास को सुवनवित ककया जा सके ।

मात्रात्मक या सामान्य वववधयों से अशय ईन वववधयों से है वजनका ईपयोग कें िीय बैंक द्वारा बैंककग प्रणाली में िे वडि और मुिा
अपूर्धत की कु ल मात्रा को प्रभाववत करने के वलए ककया जाता है, आन वववधयों का ईपयोग वबना ककसी ववचार-ववमशण के ककया
जाता है। जबकक गुणात्मक या चयनात्मक ईपायों से अशय ईन ईपायों से है, वजनका ईपयोग कें िीय बैंक द्वारा ऄथणव्यवस्था के
वववशष्ट क्षेत्रों में ऊण के प्रवाह को वववनयवमत करने के वलए ककया जाता है।

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मुिा वववनयमन की मात्रात्मक वववधयों में वनम्नवलवखत सवममवलत हैं:
 बैंक दर नीवत- वावणवज्यक बैंकों द्वारा ऊण के प्रवाह को प्रभाववत करने के वलए बैंक दर (वावणवज्यक बैंकों को ऊण देने के

वलए कें िीय बैंक द्वारा अरोवपत दर) में ककया गया सुववचाटरत पटरवतणन बैंक दर नीवत कहलाता है। बैंक दर में कमी होने से
ऊण सस्ता हो जाता है।
 खुले बाजार की संकियाएं– खुले बाजार की संकियाओं (OMOs) से अशय कें िीय बैंक द्वारा वावणवज्यक बैंकों को ककए जाने

वाले सरकारी प्रवतभूवतयों के िय-वविय से है। आसमें रे पो और टरवसण रे पो दरें सवममवलत होती हैं। ये बजिीय संसाधनों के
जुिाव को सक्षम बनाती हैं तथा प्रणाली में ऄवतटरक्त तरलता को समाप्त करने के वलए एक साधन के रूप में कायण करती हैं।
 टरजवण संबध
ं ी अवश्यकताएूँ: बैंक जमाओं की एक वनवित रावश कें िीय बैंक में अरवक्षत की जाती है। यह वावणवज्यक बैंकों

के ऄवतटरक्त टरजवण की मात्रा को तथा बैंककग प्रणाली के िे वडि गुणक को भी प्रभाववत करके मुिा अपूर्धत को वववनयवमत
करती है। भारत में आसे नकद अरवक्षत ऄनुपात (CRR) के रूप में वर्धणत ककया जाता है।

 सांवववधक तरलता ऄनुपात (SLR): SLR से अशय वनवधयों के ईस प्रवतशत से है, वजन्हें बैंकों को तरल संपवत्त के रूप में

सदैव बनाए रखना होता है। जब SLR ईच्च होता है, तब बैंकों के पास वावणवज्यक पटरचालन के वलए मुिा की ऄल्प मात्रा

ईपलसध होती है और आसवलए ऊण देने के वलए धन की मात्रा भी कम होती है।

 घािे की ववत्त व्यवस्था: कें िीय बैंक ऄवधक मुिा का मुिण कर सकता है, परन्तु आससे मुिास्फीवत में ऄवधक वृवि हो जाती है

तथा यह मुिा अपूर्धत को वववनयवमत करने के वलए बुविमत्तापूणण ववकल्प भी नहीं है।
 मात्रात्मक सहजता: कें िीय बैंक वावणवज्यक बैंकों और वनजी संस्थाओं से सरकारी बॉन्ड या ऄन्य ववत्तीय पटरसंपवत्तयां

खरीदकर ऄथणव्यवस्था में मुिा का एक पूव-ण वनधाणटरत मात्रा में समावेश करता है।

गुणात्मक वववधयों में वनम्नवलवखत वववधयाूँ सवममवलत हैं:

 मार्धजन अवश्यकता का वववनयमन- ‘मार्धजन’, कदए गए ऊण की रावश का वह वहस्सा होता है, वजसे बैंक द्वारा ववत्तपोवषत

नहीं ककया जाता। मार्धजन अवश्यकता में वृवि से प्रवतभूवतयों के ऄवधग्रहण मूल्य में संकुचन होता है और आसमें कमी से
ऄवधग्रहण मूल्य में वृवि होती है। मार्धजन अवश्यकताओं में पटरवतणन को वववशष्ट वस्तुओं के ववरुि िे वडि के प्रवाह को
प्रभाववत करने के वलए ऄवभकवल्पत ककया जाता है।

 िे वडि राशसनग- यह एक ऐसी वववध है वजसके द्वारा कें िीय बैंक द्वारा ऊण की ऄवधकतम रावश को सीवमत करने का प्रयास

ककया जाता है। यह ऄवांवछत क्षेत्रों में बैंकों के ऊण जोवखम को कम करने में सहायता करता है।
 ईपभोक्ता ऊण का वववनयमन- कें िीय बैंक आस वववध का ईपयोग मुिास्फीवत पर वनयंत्रण स्थावपत करने और ऄथणव्यवस्था

को वस्थर बनाए रखने के ईद्देश्य से ऊण शतों को प्रवतबंवधत या ईदार बनाने के वलए करता है।
 नैवतक प्रत्यायन (Moral Suasion)- नैवतक प्रत्यायन वह प्रकिया है वजसके ऄंतगणत कें िीय बैंक वावणवज्यक बैंकों को

सामान्य मौकिक नीवत का ऄनुपालन करने का परामशण देता है या ईन्हें प्रोत्सावहत करता है।

 प्रत्यक्ष कारण वाइ- यह कें िीय बैंक द्वारा वावणवज्यक बैंकों को ईनकी ईधार एवं वनवेश नीवतयों के संबंध में जारी ककए गए

वनदेशों को संदर्धभत करता है। आसका ईपयोग प्रायः तब ककया जाता है, जब कोइ बैंक कें िीय बैंक द्वारा वनधाणटरत शतों तथा

अवश्यकताओं का ईल्लंघन करता है।

समग्र रूप से, ककसी ऄथणव्यवस्था में मुिा अपूर्धत और ऊण वनयंत्रण ईपायों की प्रभावशीलता ऄनेक कारकों पर वनभणर करती है

तथा ये ईपाय एक ऄथणव्यवस्था की समग्र ववत्तीय वस्थवत को बेहतर बनाए रखने एवं आसके वृहद् अर्धथक संकेतकों को वस्थर
करने हेतु अवश्यक हैं।

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13. What is liquidity trap? Discuss its implications on the economy.
तरऱता पाश (लऱक्विडिटी ट्रै प) वया है? अर्थव्यिस्र्ा पर इसके निहहतार्ों की वििेचिा कीक्िए।

दृवष्टकोण:
 तरलता पाश (वलकिवडिी ट्रैप) की ऄवधारणा को स्पष्ट करते हए ईत्तर अरं भ कीवजए।
 ऄथणव्यवस्था पर तरलता पाश के वनवहताथों की ववस्तार से वववेचना कीवजए।

 आन्हें समाप्त करने हेतु ईपायों का सुझाव देते हए वनष्कषण दीवजए।

ईत्तर:

तरलता पाश से अशय ऐसी वस्थवत से है वजसमें प्रचवलत बाजार सयाज दरें आतनी कम होती हैं कक मुिा अपूर्धत में हइ वृवि का
सयाज दरों पर कोइ प्रभाव नहीं पड़ता और लोग आस मुिा को वनवेश या व्यय करने के स्थान पर मुिा शेष (money

balance) के रूप में रखते हैं। आस वस्थवत में, लोग आस धारणा के तहत बंधपत्रों (bonds) में वनवेश करने से बचते हैं, कक

सयाज दरों में शीघ्र ही वृवि होगी, वजससे बंधपत्रों के मूल्यों में कमी अएगी और पटरणामस्वरूप ईन्हें पूज
ं ीगत हावन का सामना

करना पड़ेगा। आसके पटरणामस्वरूप, सयाज दरें और कम हो जाती हैं।

ऄथणव्यवस्था पर वनवहताथण:
 तरलता पाश का एक प्रमुख वनवहताथण यह है कक अर्धथक ववकास के प्रेरक साधन के रूप में यह ववस्तारवादी मौकिक नीवत
को प्रभावहीन बनाता है।
 बंधपत्र बाजार, पटरयोजनाओं के दीघणकावलक ववत्तपोषण हेतु वनवध प्रदान करता है। जब लोग बंधपत्र में वनवेश नहीं करते

हैं, तब ऄवसंरचना जैसे क्षेत्रों के वलए अवश्यक ववत्त बावधत हो जाता है।

 आसके ऄवतटरक्त, तरलता पाश से ऄथणव्यवस्था में अर्धथक मंदी की वस्थवत ईत्पन्न हो सकती है, क्योंकक मुिा अपूर्धत में हइ

वृवि ऄथणव्यवस्था को प्रोत्साहन प्रदान करने में ववफल रहती है। यकद समान वस्थवत बनी रहती है, तो बेरोजगारी में वृवि

हो सकती है।
 ईद्यमी ऄपने व्यवसाय के ववस्तार हेतु वनवेश नहीं करते हैं। व्यवसाय नए पूज
ं ी ईपकरणों को खरीदने के बजाय पुराने
ईपकरणों पर ही वनवाणह करते हैं। वे कम सयाज दरों का लाभ ईठाते हैं और धन ईधार लेते हैं, परन्तु वे आसका ईपयोग

शेयरों को पुन: िय करने और स्िॉक की कीमतों को कृ वत्रम रूप से बढ़ाने के वलए करते हैं।
 कं पवनयों द्वारा ईतना पाटरश्रवमक नहीं कदया जाता वजतना ईन्हें देना चावहए, वजससे मजदूरी वस्थर बनी रहती है। अय में

वृवि के वबना, पटरवार के वल अवश्यक वस्तुओं का ही िय करते हैं और शेष धनरावश को बचत के रूप में संगह
ृ ीत करते हैं।

ऄल्प मजदूरी, अय ऄसमानता में वृवि करती है।

 ईपभोक्ता मूल्य वनम्न बने रहते हैं। मुिास्फीवत के वबना, कीमतों में वृवि से पूवण लोगों को िय हेतु कोइ प्रोत्साहन प्राप्त नहीं

होता। ऐसे में मुिास्फीवत के स्थान पर ऄपस्फीवत की वस्थवत भी ईत्पन्न हो सकती है। लोग वस्तुओं को खरीदने में ववलंब
करें ग,े क्योंकक वे जानते हैं कक कीमतों में वगरावि अएगी।

 बैंक ऊणों में वृवि नहीं करते। सामान्यतः बैंकों से ऄपेक्षा की जाती है कक वे कें िीय बैंक द्वारा ऄथणव्यवस्था में डाले गए

ऄवतटरक्त धन को लघु व्यावसावयक ऊणों या बंधक के अधार पर ऊण अकद के रूप में ईपलसध कराएं, परन्तु यकद लोग

अर्धथक ऄवनवितताओं के वातावरण में व्यय/वनवेश करने में वहचक रहे हैं तो ऐसी वस्थवत में वे ईधार भी नहीं लेंगे और

आसके पटरणामस्वरूप बैंकों द्वारा ऊण प्रदान ककया जाना सीवमत हो जाएगा।

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आसे समाप्त करने के वनम्नवलवखत ईपाय हैं:
ऄथणव्यवस्था को तरलता पाश से बाहर वनकालने हेतु वववभन्न सहायता ईपाय ववद्यमान हैं। आनमें से कोइ भी ईपाय स्वयं कायण नहीं
कर सकता, परन्तु आससे ईपभोक्ताओं में पुन: व्यय/वनवेश अरं भ करने हेतु ववश्वास ईत्पन्न करने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
 सयाज दरों में वृवि: आससे लोग ऄपने धन का संचय करने के स्थान पर, ईसका ऄवधक वनवेश करने के वलए प्रेटरत हो सकते

हैं। ईच्च दीघणकावलक दरें बैंकों को ईधार देने के वलए प्रोत्सावहत करती हैं, क्योंकक ईन्हें ईच्च प्रवतफल (टरिनण) प्राप्त होगा।
हालांकक, यह ईपाय प्रत्येक वस्थवत में प्रभावी नहीं होता है।
 सामान्य मूल्य स्तर में वगरावि: आस वस्थवत में लोग धन के व्यय को रोकने में ऄसमथण हो जाते हैं। कम कीमतों का प्रलोभन
ऄत्यवधक अकषणक हो जाता है और आन कम कीमतों का लाभ ईठाने के वलए बचत का ईपयोग ककया जाता है।
 सरकारी व्यय में वृवि: सरकार द्वारा ककये गए व्यय में वृवि का ऄथण है कक सरकार राष्ट्रीय ऄथणव्यवस्था के प्रवत प्रवतबि
और अश्वस्त है। आससे भववष्य में रोजगार के ऄवसरों में वृवि होती है।

 ववत्तीय नवाचार: आसमें पूणण रूप से एक नवीन बाजार का वनमाणण ककया जाता है। ईदाहरण के वलए ऐसा ही कु छ 1999 में
आं िरनेि बूम के समय घटित हअ था।
 वैवश्वक पुनसंतल
ु न: सरकारें वैवश्वक पुनसंतल
ु न को समवन्वत कर सकतीं हैं ऄथाणत् ऐसे देशों वजनके पास ककसी वस्तु का
ऄवधशेष होता है (ईदाहरण के वलए नकदी, श्रम आत्याकद) वे ईन देशों के साथ आसका व्यापार कर सकते हैं वजनके पास
आसकी कमी होती है।

14. Why is the RBI called as the 'lender of last resort'? What other functions are performed by RBI while
acting as a banker to commercial banks and the government?
RBI को 'ऄंवतम ऊणदाता' क्यों कहा जाता है? वावणवज्यक बैंकों एवं सरकार के बैंकर के रूप में कायण करते हए RBI द्वारा और

क्या कायण समपाकदत ककए जाते हैं?


दृवष्टकोण:
 ‘ऄंवतम ऊणदाता’ की ऄवधारणा का संवक्षप्त पटरचय दीवजए।
 चचाण कीवजए कक RBI को ‘ऄंवतम ऊणदाता’ क्यों कहा जाता है।
 RBI द्वारा संपाकदत ककए जाने वाले ऄन्य कायों का ईल्लेख कीवजए।
 ईपयुणक्त सबदुओं के अधार पर वनष्कषण दीवजए।
ईत्तर:

‘ऄंवतम ऊणदाता’ वह संस्था होती है, ( सामान्यतः एक देश का कें िीय बैंक) जो ववत्तीय कटठनाइ का सामना कर रहे या
ऄत्यवधक जोवखमपूणण या पतनोन्मुख माने जाने वाले बैंकों या ऄन्य पात्र संस्थानों को ऊण प्रदान करती है।

भारत में, जब वावणवज्यक बैंक तरलता संकि के समय ऄपनी वनवधयों का ऄनुपूरण करने हेतु सभी संसाधनों का पूणणतया
ईपयोग कर लेते हैं, तो वे ऄंवतम ऊणदाता के रूप में भारतीय टरज़वण बैंक (RBI) से मांग करते हैं। ऄंवतम ऊणदाता के रूप में,
RBI आन वावणवज्यक बैंकों को ईनकी पात्र प्रवतभूवतयों एवं वववनमय पत्रों की गणना करके व ईनकी प्रवतभूवतयों की गारं िी पर
ऊण प्रदान करके ऊणशोधन क्षमता प्रदान करता है तथा ववत्तीय अपूर्धत करता है।

आस प्रकार, RBI को ’ऄंवतम ऊणदाता’ की संज्ञा ईसके द्वारा वावणवज्यक बैंकों को प्रदान की जाने वाली ववत्तीय सुरक्षा के वलए

दी जाती है। RBI यह सुववधा, बैंक के जमाकताणओं के वहतों की रक्षा करने और बैंक की संभाववत ववफलता रोकने के वलए प्रदान

करता है, जो प्रवतफल में ऄन्य बैंकों एवं संस्थानों को भी प्रभाववत कर सकती है तथा वजससे बैंककग प्रणाली का संभाववत

ववघिन हो सकता है। यह ववत्तीय वस्थरता और देश की ऄथणव्यवस्था को प्रवतकू ल रूप से प्रभाववत कर सकती है।

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वावणवज्यक बैंक सामान्यत: RBI से ऊण प्राप्त करने का प्रयास नहीं करते हैं, क्योंकक आस प्रकार की कारण वाइ से यह संकेत

वमलता है कक बैंक ववत्तीय संकि का सामना कर रहा है। साथ ही, ऄंवतम ऊणदाता के ऄसीवमत ववस्तार से बैंक यह ऄपेक्षा करते

हए जोवखमपूणण वनणणय लेंगे कक RBI जोवखम लेने और ववफल होने वाले बैंक के सहायताथण अवश्यक ईपाय करे गा।

ऄंवतम ऊणदाता की ईपयुणक्त भूवमका के ऄवतटरक्त, RBI वनम्नवलवखत कायों का संपादन करता है:

 बैंकों के बैंकर के रूप में:


o बैंककग वववनयमन ऄवधवनयम, 1949 के ऄंतगणत, RBI को देश की बैंककग प्रणाली के वनरीक्षण और वनयंत्रण हेतु

व्यापक ऄवधकार प्राप्त हैं।


o यह ऄंतर-बैंक लेनदेन का सुचारु एवं त्वटरत समाशोधन और वनपिान संभव बनाता है।
o यह सभी बैंकों हेतु वनवध ऄंतरण के सक्षम साधन ईपलसध कराता है।
o यह बैंकों को सांवववधक अरवक्षत अवश्यकताओं और लेनदेन संतल
ु नों के ऄनुरक्षण हेतु RBI में ईनके खातों को बनाए

रखने में सक्षम बनाता है।


 सरकार के बैंकर के रूप में:
o भारतीय टरज़वण बैंक ऄवधवनयम, 1934 के ऄंतगणत, RBI सरकार के बैंकर, एजेंि और सलाहकार के रूप में कायण करता

है। यह कें ि सरकार और राज्य सरकारों के बैंककग व्यवसाय के सुव्यववस्थत संचालन हेतु ईत्तरदायी है। ईदाहरण के
वलए, RBI सरकार की ओर से सभी भुगतान प्राप्त करता है तथा सरकार की ओर से सभी प्रकार के भुगतान भी करता

है। आसके ऄवतटरक्त RBI सरकार की वनवधयों को ववप्रेवषत करता है, सरकार हेतु ववदेशी मुिाओं का िय-वविय करता

है और सभी बैंककग मामलों पर परामशण प्रदान करता है।


o RBI कें ि और राज्य सरकारों दोनों को नए ऊण जारी करने और सावणजवनक ऊण का प्रबंधन करने में सहायता प्रदान

करता है।
o RBI, कें ि सरकार की ओर से ट्रेजरी वबल का वविय करता है और ऄल्पकावलक ववत्त प्रदान करता है।

आस प्रकार, RBI ववत्तीय प्रणाली के माध्यम से देश की ऄथणव्यवस्था की वस्थरता बनाए रखने में ऄत्यंत महत्वपूणण भूवमका का

संपादन करता है।

15. What are the key issues in fiscal management in India? How can these issues be addressed?
भारत में राजकोषीय प्रबंधन में प्रमुख समस्याएं क्या हैं? आन समस्याओं को कै से दूर ककया जा सकता है?

दृवष्टकोण:
 राजकोषीय प्रबंधन के महत्व का संवक्षप्त ईल्लेख कीवजए।
 भारत में राजकोषीय प्रबंधन से संबंवधत वववभन्न समस्याओं पर चचाण कीवजए।
 आन समस्याओं के वनवारण हेतु ईपाय सुझाआए।
 ईपयुणक्त सबदुओं के अधार पर वनष्कषण दीवजए।
ईत्तर:

राजकोषीय प्रबंधन ववत्तीय संसाधनों के वनयोजन, वनदेशन और वनयंत्रण की एक प्रकिया है। यह वनवेश संबंधी प्रवृवत्तयों

(आन्वेस्िमेंि सेंटिमेंि) में सुधार लाने, वनजी क्षेत्र हेतु ऊण ईपलसधता में वृवि करने, मुिास्फीवत वनयंवत्रत करने और राजकोषीय

घािे को न्यून करने हेतु महत्वपूणण है।

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भारत में राजकोषीय प्रबंधन से संबवं धत समस्याएूँ:
 ऄपयाणप्त बजि प्रवतवेदन: बजि में प्राय: राजस्व ऄनुमानों को ऄवतरं वजत रूप में तथा व्यय को कम करके प्रदर्धशत ककया
जाता है।
 ऄवतटरक्त बजिीय संसाधन (EBRs) पर वनभणरता में वृवि: ववगत वषों के दौरान, सावणजवनक कायणिमों के ववत्तपोषण हेतु

EBRs जैसे कक LIC, SBI जैसे सरकारी स्वावमत्व वाले ईद्यमों की वनवधयों पर सरकार की वनभणरता में वृवि हो रही है।

हालांकक, यह राजकोषीय घािे से संबंवधत टरयल िाआम अंकड़ों में पटरलवक्षत नहीं होता है।

 सीवमत कर ईछाल (tax buoyancy): कर ईछाल की कोइ वस्थर प्रवृवत्त नहीं है तथा आस प्रकार, कर राजस्व का

पूवाणनुमान कटठन हो जाता है।


 राजकोषीय घािे को वास्तववकता से कम करके प्रदर्धशत करना (Understating fiscal deficits): रचनात्मक लेखांकन

तकनीकों का ईपयोग करके राजकोषीय घािे को वास्तववकता से कम करके प्रदर्धशत ककया जाता है, जैसे कक समग्र सवससडी

वबल और राज्यों को देय/प्राप्य रावश के एक भाग का अगामी ववत्तीय वषण हेतु ववस्तारण करना (रोसलग ओवर), वववनवेश

प्रकिया में वनधाणटरत वहस्सेदारी खरीदने के वलए LIC जैसे सावणजवनक क्षेत्र के ईद्यमों (PSEs) का ईपयोग करना अकद।

 कें ि और राज्यों के वलए समान राजकोषीय समेकन वनयमों की ऄनुपवस्थवत: आसके कारण राज्यों द्वारा ऄपने ववत्त का
प्रबंधन करने में बाधा ईत्पन्न होती है।
 राजकोषीय ईत्तरदावयत्व और बजि प्रबंधन ऄवधवनयम (FRBMA) के लक्ष्यों का ऄनुपालन न करना: आसके ऄवधवनयमन

के पिात् से ही FRBMA लक्ष्यों की कइ बार ईपेक्षा की गइ है। आसके ऄवतटरक्त, CAG द्वारा FRBMA के ऄनुपालन के

संबंध में ऄब तक के वल कायोत्तर अकलन ही ककया जाता रहा है।


 राजकोषीय लोकलुभावन ईपायों को ऄपनाना: जैसे ककसानों की ऊण माफी, MSMEs के वलए कर माफी अकद, वजसके

पटरणामस्वरूप राजकोषीय भार में वृवि हइ है।

आन समस्याओं का वनम्नवलवखत वववभन्न ईपायों के माध्यम से वनवारण ककया जा सकता है:


 राजकोषीय नीवतयों की वनगरानी करने, राजकोषीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करने तथा कें ि और राज्यों के

राजकोषीय समेकन पर वनयंत्रण रखने हेतु एन.के . ससह सवमवत द्वारा प्रस्ताववत एक स्वतंत्र राजकोषीय पटरषद की
स्थापना करना।
 बजि में राजस्व और व्यय का सही अकलन करना, ताकक अगे सुदढ़ृ अर्धथक नीवतयां तैयार की जा सकें ।

 राजकोषीय प्रबंधन से संबंवधत कानूनों के संदभण में कें ि और राज्यों के मध्य सामंजस्य स्थावपत करना।
 ववत्त अयोग और GST पटरषद के मध्य सहयोग बढ़ाना।

 लोकलुभावनवाद पर ऄंकुश लगाना और सरकार द्वारा राजकोषीय लक्ष्यों का दृढ़ता से ऄनुपालन करना। आसके ऄवतटरक्त,

सावणजवनक व्यय की ईवचत वनगरानी और कु शल प्रबंधन सुवनवित करना चावहए।


 FRBMA का युवक्तकरण, ताकक सकल घरे लू ईत्पाद की तुलना में सावणजवनक ऊण के ऄनुपात को संधारणीय स्तर पर

वस्थर बनाया जा सके ।


 सुदढ़ृ राजकोषीय प्रथाओं हेतु संस्थागत तंत्र की स्थापना करना, ताकक पारदर्धशता को बढ़ावा वमले और घरे लू एवं ववदेशी

वनवेशकों में ववश्वास सुदढ़ृ हो।


ऄथणव्यवस्था को वस्थर करने और वषण 2024 तक 5 टट्रवलयन डॉलर की ऄथणव्यवस्था बनने के भारत के लक्ष्य को प्राप्त

करने के वलए समुवचत राजकोषीय प्रबंधन ऄवत अवश्यक है।

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16. What is sterilization? Explain how it is deployed by RBI in stabilizing the money supply against external
shocks.
वस्थरीकरण (स्िरलाआजेशन) क्या है? समझाआए कक बाह्य अघातों के ववरुि मुिा की अपूर्धत वस्थर रखने में RBI द्वारा कै से
आसका ईपयोग ककया जाता है।
दृवष्टकोण:
 वस्थरीकरण की ऄवधारणा की व्याख्या करते हए ईत्तर अरं भ कीवजए।
 बाह्य अघातों के ववरुि मुिा अपूर्धत को वस्थर रखने में RBI द्वारा प्रयुक्त वस्थरीकरण की कियावववध को संक्षप
े में
समझाआए।
 ईपयुणक्त सबदुओं के अधार पर वनष्कषण दीवजए।
ईत्तर:
वस्थरीकरण मौकिक कारण वाइ का वह रूप है वजसमें कें िीय बैंक ववत्तीय पटरसंपवत्तयों की खरीद या वबिी के माध्यम से मुिा
अपूर्धत पर पूज
ं ी ऄंतवाणह और बवहवाणह के प्रभाव को सीवमत करने का प्रयास करता है। यह वृहत् वनवल पूंजी अवागमन ऄथाणत्
ऄंतवाणह (सकारात्मक अघात) या बवहवाणह (नकारात्मक अघात) के रूप में पटरचावलत होने वाले बाह्य अघातों के प्रवत
ऄनुकिया करने के वलए RBI द्वारा प्रयुक्त ककया जाने वाला एक महत्वपूणण साधन है। भारत के ववदेशी वनवेश का अकषणक गंतव्य

स्थान होने के कारण, RBI द्वारा मुख्यत: पूज


ं ी ऄंतवाणह की वस्थवत में वस्थरीकरण का प्रयोग ककया जाता है।

पूज
ं ी ऄंतवाणह की वस्थवत में RBI द्वारा वस्थरीकरण :

ववदेशी वनवेशकों द्वारा ववदेशी मुिा के माध्यम से भारतीय बंधपत्रों (बॉन्ड) की खरीद की जाती है , वजससे ववदेशी मुिा की

अपूर्धत में वृवि हो जाती है। आससे घरे लू मुिा में मूल्यवृवि होती है, वजससे भारतीय वनयाणत प्रवतकू ल रूप से प्रभाववत होता है।

आसवलए RBI द्वारा ववदेशी मुिा में नावमत पटरसंपवत्तयों को खरीदने हेतु घरे लू मुिा का वविय ककया जाता है। परन्तु घरे लू मुिा
का आस प्रकार का वविय देश में मुिास्फीवत का कारण बनता है। मांग में अनुपावतक वृवि के वबना मुिा अपूर्धत में वृवि से सयाज
दरों में भी वगरावि अती है।

आन वस्थवतयों में, भारतीय टरज़वण बैंक द्वारा ववदेशी मुिा ऄंतवाणह की रावश के समतुल्य रावश की सरकारी प्रवतभूवतयों का खुले

बाजार में वविय ककया जाता है। आसके द्वारा बाज़ार से ऄवतटरक्त नकदी को सोख (कमी) वलया जाता है, जो ऄन्यथा घरे लू

ऄथणव्यवस्था में संचवलत हो सकती थी। RBI द्वारा ऄन्य कम ईपयोग की जाने वाली वस्थरीकरण वववधयों में वावणवज्यक बैंकों के

नकद अरवक्षत ऄनुपात (CRR) में वृवि करना या कु ल ऊण पर ईच्चतम सीमा अरोवपत करना सवममवलत हैं। यह ईच्च

शवक्तशाली मुिा के भंडार और कु ल मुिा अपूर्धत को ऄपटरवर्धतत बनाए रखता है। आस प्रकार, यह प्रवतकू ल बाह्य अघातों के
ववरुि ऄथणव्यवस्था का वस्थरीकरण करता है। आससे वनम्नवलवखत लाभ होते हैं:
 यह मौकिक अधार को ऄपटरवर्धतत बनाए रखकर पूज
ं ी ऄंतवाणह से होने वाले ऄवांछनीय ववस्तारवादी प्रभावों को समाप्त
करता है।
 वस्थरीकरण के साथ-साथ ववदेशी मुिा बाजार हस्तक्षेप RBI को ऄंतरराष्ट्रीय मुिा भंडार (FOREX) का वनमाणण करने की

ऄनुमवत प्रदान करता है, जो भववष्य के अघातों का सामना करने में सहायता करता है।
 यह बाजार प्रवतभावगयों में ववश्वास ईत्पन्न करता है।

पूज
ं ी बवहवाणह की वस्थवत में (जैसा कक वषण 2008 के वैवश्वक संकि में पटरलवक्षत हअ था), देश से पूज
ं ी का बवहवाणह होता है और

घरे लू मुिा का मूल्यह्रास होता है। आसके मूल्य को संतुवलत करने हेतु, RBI द्वारा घरे लू मुिा का िय करने के वलए ऄपने ववदेशी
मुिा भंडार के कु छ भाग का ईपयोग ऄपनी मुिा की कृ वत्रम मांग का सृजन करने हेतु ककया जाता है। आसके पटरणामस्वरूप मुिा
की अपूर्धत में कमी हो जाती है, वजससे ऄपस्फीवतकारी प्रभाव ईत्पन्न होने की संभावना होती है। मुिा अपूर्धत पर प्रभाव को

प्रवत-संतवु लत करने के वलए RBI द्वारा प्रणाली (ऄथणव्यवस्था) में तरलता की अपूर्धत करने वाले खुले बाज़ार पटरचालन (OMO)
के माध्यम से ऄपने ववदेशी मुिा संबंधी हस्तक्षेप का वस्थरीकरण ककया जाता है।

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हालांकक, सयाज दरों को ईच्च ककए वबना दीघणकावलक वस्थरीकरण संभव नहीं हो सकता है। आससे अगे ववदेशी मुिा ऄंतवाणह में

और वृवि हो सकती है, वजससे वस्थरीकरण का प्रभाव वनष्प्रभावी हो सकता है। वस्थरीकरण अरं भ करने की ववत्तीय लागत भी

होती है, वजसे RBI को वहन करना पड़ता है। आस प्रकार, RBI द्वारा वस्थरीकरण पटरचालनों को अरं भ करने का वनणणय आसकी

लागत और लाभों का अकलन करने के पिात् ही वलया जाना चावहए।

17. Bringing out the difference between fiscal deficit, primary deficit and revenue deficit, explain the
implications of a high fiscal deficit on the economy.
राजकोषीय घािा, प्राथवमक घािा और राजस्व घािा के मध्य ऄंतर स्पष्ट करते हए, ऄथणव्यवस्था पर ईच्च राजकोषीय घािे के

वनवहताथों की व्याख्या कीवजए।


दृवष्टकोण:

 वववभन्न प्रकार के घािों की पटरभाषा के साथ ईत्तर अरं भ कीवजए और राजकोषीय घािे , प्राथवमक घािे तथा राजस्व घािे

के ऄथों को समझाते हए ईनके मध्य ऄंतर स्पष्ट कीवजए।

 ऄथणव्यवस्था हेतु ईच्च राजकोषीय घािे के वनवहताथों की चचाण कीवजए।


 संवक्षप्त वनष्कषण दीवजए।

ईत्तर:
ऄथणव्यवस्था में घािा तब होता है जब व्यय अय से ऄवधक हो जाता है। बजि के ऄंतगणत प्रावप्तयों और व्यय के प्रकारों के अधार
पर घािे को वववभन्न प्रकार के घािों में वगीकृ त ककया जा सकता है।
 राजकोषीय घािा (Fiscal deficit) एक ववत्तीय वषण के दौरान कु ल बजि प्रावप्तयों (ईधाटरयों को छोड़कर) के सापेक्ष कु ल

बजि व्यय के अवधक्य को दशाणता है।

राजकोषीय घािा = कु ल बजि व्यय - कु ल बजि प्रावप्तयां (ईधाटरयों को छोड़कर)।

= राजस्व व्यय + पूज


ं ीगत व्यय - राजस्व प्रावप्तयां - के वल गैर-ऊण पूंजीगत प्रावप्तयां।

यकद हम ऊण सृजक (debt-incurring) पूंजीगत प्रावप्तयों को जोड़ते हैं तो राजकोषीय घािा शून्य हो जाएगा। सरल शसदों में,

राजकोषीय घािा सरकार की ऊण अवश्यकताओं को दशाणता है।

 प्राथवमक घािा (Primary deficit) बजि घािे का एक प्रकार है, वजसे राजकोषीय घािे में से सयाज के भुगतान को घिाकर

प्राप्त ककया जाता है। राजकोषीय घािे और प्राथवमक घािे के मध्य ऄंतर ऄतीत में सृवजत सावणजवनक ऊण पर सयाज के
भुगतान के महत्त्व को दशाणता है।
 राजस्व घािा (Revenue deficit) से अशय सरकार की कु ल राजस्व प्रावप्तयों पर कु ल राजस्व व्यय के ऄवधशेष से है। यह

दशाणता है कक सरकार की ईपार्धजत अय स्वयं सरकारी ववभागों के सामान्य कायण-संचालन और सेवाओं संबंधी
अवश्यकताओं की पूर्धत करने हेतु ऄपयाणप्त है।

ऄथणव्यवस्था हेतु ईच्च राजकोषीय घािे के वनवहताथण:

 ऊण पाश (Debt trap): ईच्च राजकोषीय घािे का ऄथण है- ऄवधक ऊण। जैस-े जैसे सरकार के ऊण की मात्रा में वृवि होती

जाती है, ईसी के ऄनुरूप भववष्य में ऊण के साथ-साथ सयाज की देयता में भी वृवि होती जाती है। सयाज भुगतान से

राजस्व व्यय में वृवि होती है, वजससे राजस्व घािा ईच्च हो जाता है जो सरकार को और ऄवधक ऊण लेने के वलए बाध्य

करता है।
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 मुिास्फीवतक दबाव: ईच्च सरकारी व्यय से ईत्पन्न मांग के पटरणामस्वरूप ईच्च मुिास्फीवत की वस्थवत व्युत्पन्न होती है।
 भववष्य की संववृ ि को ऄवरुि करना: ऊण और सयाज रावश का भुगतान करना भावी पीकढ़यों पर एक ववत्तीय बोझ होता
है, वजससे ऄथणव्यवस्था की संवृवि दर मंद हो जाती है।
 कराधान में वृवि: ईच्च राजकोषीय घािे का ऄथण है कक सरकार व्यय के सापेक्ष अय सृवजत करने में ऄक्षम हो रही है।
 सयाज दरें : भारत जैसी ईभरती हइ ऄथणव्यवस्था में ईच्च राजकोषीय घािे के कारण सयाज दरों में किौती ककए जाने की
संभावना कम होती है। भारत जैसी प्रगवतशील ऄथणव्यवस्था में ईच्च सयाज दर वनजी वनवेश को प्रभाववत कर सकती है।
 ववदेशी वनभणरता: सरकार को बाह्य ऊणों पर वनभणर रहना पड़ सकता है, जो ऄन्य देशों पर आसकी वनभणरता बढ़ाता है।

आसके ऄवतटरक्त, ईच्च राजकोषीय घािा भारत की सॉवरे न रे टिग को प्रभाववत करता है और ववदेशी वनवेशकों के ववश्वास में

कमी करता है, वजससे ऊण की लागत में भी वृवि हो जाती है।


 वनजी क्षेत्र के वनवेश पर प्रभाव: सरकार द्वारा बाजार से औसत से ऄवधक ऊण प्राप्त करने से वनजी क्षेत्र हेतु ऊण प्राप्त करने
हेतु कम भंडार (पूल) शेष रह जाता है, वजससे वनजी क्षेत्र की ववकास योजनाएं बावधत हो जाती हैं।

यकद राजकोषीय घािे का ईपयोग के वल राजस्व घािे की पूर्धत हेतु ककया जाता है, तो यह ऄथणव्यवस्था के वलए ऄवहतकर वसि

हो सकता है। हालांकक, यकद राजकोषीय घािे से नवीन पूंजीगत पटरसंपवत्तयों का वनमाणण होता है, तो आसके ऄथणव्यवस्था पर
सकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं। आससे ईत्पादक क्षमता में वृवि होती है और भववष्योन्मुखी अय के स्रोतों का सृजन हो
सकता है।

18. What do you understand by fiscal policy? Explain its key objectives.
राजकोषीय नीवत से अप क्या समझते हैं? आसके प्रमुख ईद्देश्यों को स्पष्ट कीवजए।

दृवष्टकोण:
 राजकोषीय नीवत का ऄथण और ऄथणव्यवस्था में आसकी भूवमका की संवक्षप्त व्याख्या कीवजए।

 राजकोषीय नीवत के प्रमुख ईद्देश्यों की चचाण कीवजए।

 संवक्षप्त वनष्कषण दीवजए।

ईत्तर:

राजकोषीय नीवत एक ऐसा साधन है वजसके माध्यम से सरकार देश की ऄथणव्यवस्था के प्रदशणन की वनगरानी करने और
पटरणामस्वरूप ईसे प्रभाववत करने हेतु ऄपने व्यय के स्तर और कर की दरों में समायोजन करती है।

यह मुख्यतः जॉन मेनाडण कीन्स के ववचारों पर अधाटरत है। कीन्स द्वारा तकण कदया गया कक सरकार व्यय व कर नीवतयों को
समायोवजत करके व्यापार चि को वस्थर कर सकती है तथा अर्धथक ईत्पादन को वववनयवमत कर सकती है। राजकोषीय नीवत
दो प्रकार की होती है - ववस्तारवादी (व्ययों को बढ़ाकर ऄथवा करों को कम करके ऄथवा दोनों के माध्यम से अर्धथक ववकास को
बढ़ावा देने हेतु) और संकुचनवादी (मुिास्फीवत को कम करने हेतु) राजकोषीय नीवत।

राजकोषीय नीवत के मुख्य ईद्देश्य:


 संसाधनों के प्रभावी संग्रहण द्वारा ववकास: राजकोषीय नीवत का मुख्य ईद्देश्य कराधान, सावणजवनक व वनजी बचतों अकद
के ईपयोग के माध्यम से ववत्तीय संसाधनों के संग्रहण द्वारा तीव्र अर्धथक वृवि तथा ववकास को सुवनवित करना है।
 संसाधनों का आष्टतम अबंिन: कराधान और सावणजवनक व्यय कायणिमों जैसे राजकोषीय साधन, वववभन्न व्यवसायों तथा
क्षेत्रों में संसाधनों के अबंिन को बड़े स्तर पर प्रभाववत करते हैं।
 अय का प्रभावी पुनर्धवतरण: राजकोषीय नीवत का ईद्देश्य धन और अय का समान ववतरण करना है ताकक समाज में
ऄसमानताओं को कम ककया जा सके ।
 कीमत वस्थरता और मुिास्फीवत पर वनयंत्रण: राजकोषीय नीवत कु छ ऐसी होनी चावहए जो कीमत स्तर को यथोवचत वस्थर
बनाए रखे और मुिास्फीवत को वनयंत्रण में रखे तथा आस प्रकार समाज के सभी वगों को लाभावन्वत कर सके ।

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 रोजगार सृजन: ववकासशील ऄथणव्यवस्था में राजकोषीय नीवत का यह एक प्रमुख ईद्देश्य है। ईदाहरण के वलए, ऄवसंरचना
में वनवेश से प्रत्यक्ष एवं ऄप्रत्यक्ष रोजगार में वृवि होती है।
 संतवु लत क्षेत्रीय ववकास: सरकार वपछड़े क्षेत्रों में पटरयोजनाएं स्थावपत करने हेतु वववभन्न प्रोत्साहन प्रदान करती है, जैसे
कक नकद सवससडी, करों में टरयायत, टरयायती सयाज दरों पर ववत्त आत्याकद।
 भुगतान संतल
ु न बनाए रखना: राजकोषीय नीवत भुगतान संतल
ु न की समस्या का समाधान करने हेतु ऄवधक वनयाणतों को
प्रोत्सावहत करने और अयात को हतोत्सावहत करने का प्रयास करती है। यह ववदेशी मुिा ईपाजणन में वृवि के ईद्देश्य को
प्राप्त करने में भी सहायता करती है।
 पूज
ूँ ी वनमाणण: भारत में राजकोषीय नीवत का ईद्देश्य पूज
ूँ ी वनमाणण की दर में वृवि करना है, ताकक प्रमुख क्षेत्रों में वनवेश में
वृवि कर अर्धथक ववकास की दर को तीव्र ककया जा सके ।
राजकोषीय नीवत के ईद्देश्यों को सावणजवनक व्यय, कराधान, ऊण व घािे के ववत्तपोषण जैसे नीवतगत साधनों के प्रभावी ईपयोग
की वस्थवत में ही प्राप्त ककया जा सकता है। राजकोषीय नीवत की सफलता कायाणन्वयन के दौरान सामवयक ईपायों और ईनके
प्रभावी व्यवस्थापन पर भी वनभणर करती है।

19. Explain, in brief, the various components of budget receipts and expenditure.
बजि प्रावप्तयों और व्यय के वववभन्न घिकों को संक्षप
े में स्पष्ट कीवजए।
दृवष्टकोण:
 बजि की पटरभाषा और भारत में आसके संवैधावनक प्रावधानों का पटरचय देते हए ईत्तर अरं भ कीवजए।
 बजि प्रावप्तयों एवं बजि व्यय के वववभन्न घिकों का ववस्तारपूवक
ण वणणन कीवजए।
 संवक्षप्त वनष्कषण दीवजए।
ईत्तर:
सरकारी बजि एक वार्धषक ववत्तीय वववरण होता है जो एक ववत्तीय वषण के दौरान ऄपेवक्षत राजस्व और प्रत्यावशत व्यय के
मदवार ऄनुमानों को दशाणता है। भारत में संववधान के ऄनुच्छेद 112 के ऄंतगणत संसद के समक्ष 'वार्धषक ववत्तीय वववरण' प्रस्तुत
करना एक संवैधावनक ऄवनवायणता है, जो सरकार का मुख्य बजि दस्तावेज होता है।

सरकारी बजि के वववभन्न घिकों को नीचे दशाणया गया है:

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बजि प्रावप्तयों के घिक

 राजस्व प्रावप्तयां: राजस्व प्रावप्तयां वे प्रावप्तयां होती हैं जो न तो पटरसंपवत्तयों का सृजन करती हैं और न ही सरकार की

देयताओं को कम करती हैं। ईन्हें कर और गैर-कर राजस्व में ववभावजत ककया गया है।

o कर राजस्व में व्यवक्तगत अयकर, वनगम कर, संपवत्त कर, ईपहार कर अकद प्रत्यक्ष करों और वस्तु एवं सेवा कर, सीमा

शुल्क (भारत में अयावतत व यहां से वनयाणवतत वस्तुओं पर अरोवपत कर) जैसे ऄप्रत्यक्ष करों के रूप होने वाली
प्रावप्तयां सवममवलत होती हैं।
o कें ि सरकार के गैर-कर राजस्व में मुख्य रूप से कें ि सरकार द्वारा प्रदान ककए गए ऊण पर प्राप्त होने वाली सयाज

प्रावप्तयां, सरकार द्वारा ककए गए वनवेश पर लाभांश एवं लाभ, सरकार द्वारा प्रदत्त सेवाओं के वलए शुल्क और ऄन्य

प्रावप्तयां सवममवलत होती हैं। आसके ऄवतटरक्त ववदेशों और ऄंतरराष्ट्रीय संगठनों से प्राप्त नकद सहायता ऄनुदान भी

आसमें सवममवलत होते हैं।

 पूज
ूँ ीगत प्रावप्तयां: सरकार की वे सभी प्रावप्तयां जो देयताएं ईत्पन्न करती हैं या ववत्तीय पटरसंपवत्तयों को कम करती हैं,

पूंजीगत प्रावप्तयों के रूप में वर्धणत की जाती हैं। आनमें ऊण की वसूली, वववनवेश, ईधार अकद सवममवलत होते हैं। ये प्रावप्तयां

ऊण सृजक या गैर-ऊण सृजक हो सकती हैं।

बजि व्यय के घिक


 राजस्व व्यय: यह कें ि सरकार की भौवतक या ववत्तीय पटरसंपवत्तयों के सृजन को छोड़कर ऄन्य प्रयोजनों के वलए ककया गया

व्यय है। यह सरकारी ववभागों और वववभन्न सेवाओं के सामान्य कायण-संचालन, सरकार द्वारा ऊण के सयाज भुगतान पर

ककए गए व्यय तथा राज्य सरकारों और ऄन्य दलों को कदए गए ऄनुदान हेतु ककए गए व्ययों से संबंवधत होता है (हालांकक

कु छ ऄनुदान पटरसंपवत्तयों के सृजन के वलए हो सकते हैं)।

 पूज
ूँ ीगत व्यय: ये सरकार के ऐसे व्यय होते हैं वजनके पटरणामस्वरूप भौवतक या ववत्तीय पटरसंपवत्तयों का सृजन होता है या

ववत्तीय देयताओं में कमी होती है। आनमें भूवम के ऄवधग्रहण, भवन, मशीनरी, ईपकरण, शेयरों में वनवेश और कें ि सरकार

द्वारा राज्यों एवं संघ शावसत प्रदेश की सरकारों/प्रशासन, सावणजवनक क्षेत्र के ईपिमों तथा ऄन्य पक्षों को कदए जाने वाले

ऊण व ऄवग्रम संबंधी व्यय सवममवलत हैं।

वषण 2017-18 में कें ि सरकार ने भारतीय बजि में व्यय को योजना और गैर-योजना में ववभावजत करने की प्रणाली को समाप्त

कर कदया है। आसके ऄवतटरक्त, वषण 2017-18 में रे ल बजि का कें िीय बजि में ववलय कर कदया गया था।

20. Highlight the monetary and fiscal measures that can be taken to address the phenomenon of inflation.
Also explain their limitations.
मुिास्फीवत की पटरघिना से वनपिने हेतु ईठाए जा सकने वाले मौकिक और राजकोषीय ईपायों पर प्रकाश डावलए। साथ ही,

ईनकी सीमाओं का भी वणणन कीवजए।


दृवष्टकोण:
 मुिास्फीवत को पटरभावषत कीवजए।
 मुिास्फीवत को पृथक रूप से वनयंवत्रत करने के वलए ऄपनाए गए मौकिक और राजकोषीय ईपायों की चचाण कीवजए।
 भारत में मुिास्फीवत लक्ष्यीकरण की किया-वववध का संक्षप
े में ईल्लेख कीवजए।

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ईत्तर:

मुिास्फीवत वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में सामान्य वृवि को दशाणती है। आसके कारण मुिा की एक समान आकाइ पहले की

तुलना में कम वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने में सक्षम होती है, वजससे ऄथणव्यवस्था में मुिा की िय शवक्त कम हो जाती है।

यद्यवप मुिास्फीवत के मध्यम स्तर का ऄथणव्यवस्था पर सामान्यतः सकारात्मक प्रभाव होता है, तथावप ईच्च मुिास्फीवत दरें

ईपभोक्ताओं और ऄथणव्यवस्था के वलए ववनाशकारी प्रभाव ईत्पन्न करने वाली वसि हो सकती हैं।

मुिास्फीवत को वनयंवत्रत करने के ईपाय

 मौकिक ईपाय: कें िीय बैंक द्वारा ऄपनाए गए आन ईपायों का ईद्देश्य मुिा की अपूर्धत को कम करना होता है, वजससे समग्र

मांग में कमी तथा पटरणामस्वरूप मूल्यों में वगरावि होगी। मुिास्फीवत को वनयंवत्रत करने हेतु वनम्नवलवखत ईपाय ऄपनाए

जाते हैं:

o रे पो दर: यह वह दर है वजस पर भारतीय टरजवण बैंक ऄन्य बैंकों को ऄल्प ऄववधयों के वलए ऊण प्रदान करता है। रे पो

दर में वृवि नकदी और धन के प्रवाह को कम कर देती है।

o बैंक दर: बैंक दर में वृवि के पटरणामस्वरूप बैंकों और ऊण लेने वालों के वलए ईधार प्राप्त करने की लागत बढ़ जाती

है। आससे वावणवज्यक बैंकों से ऊण प्रावप्त में कमी होती है।

o अरवक्षत कोष ववषयक ऄवनवायणताएं: नकद अरवक्षत ऄनुपात/सांवववधक तरलता ऄनुपात के ऄंतगणत वर्धित अरवक्षत

कोष ववषयक ऄवनवायणताओं से वावणवज्यक बैंक की ऊण प्रदान करने की क्षमता कम हो जाती है। आससे जनता की

ओर धन का प्रवाह कम हो जाता है।

o खुले बाजार की संकियाएूँ: आनमें दीघणकावलक स्थायी तरलता वृवि करने और ईसका ऄवशोषण करने हेतु सरकारी

प्रवतभूवतयों की एकमुश्त खरीद और वबिी, दोनों सवममवलत होती हैं।

 राजकोषीय ईपाय: व्यय को कम करने और अपूर्धत प्रेटरत मुिास्फीवत का प्रबंधन करने के वलए सरकार द्वारा ऄपनाए गए

राजकोषीय ईपायों में सवममवलत हैं-

o व्यय में कमी: सरकार मुिास्फीवत के वनयंवत्रत होने तक गैर-ववकासकात्मक गवतवववधयों पर ऄनावश्यक व्यय को कम

कर सकती है, सावणजवनक ऊण की चुकौती को स्थवगत कर सकती है, अकद।

o करों में वृवि: आससे ऄल्प प्रयोज्य अय के कारण व्यवक्तगत ईपभोग व्यय में किौती होती है। साथ ही आससे

ऄथणव्यवस्था में समग्र मांग को कम करने में भी सहायता प्राप्त होती है।

o ऄवधशेष बजि: ऄवधशेष बजि का ऄथण यह होता है कक सरकार द्वारा व्ययों के माध्यम से धन की अपूर्धत की ऄपेक्षा
करों के माध्यम से जनता के पास ईपलसध ऄवधशेष तरलता में कमी ऄवधक की गइ है। आसके पटरणामस्वरूप मांग कम

हो जाती है।

o संरक्षणवादी ईपाय: सरकार घरे लू खपत को सहायता प्रदान करने के वलए दाल, तेल अकद अवश्यक वस्तुओं के

वनयाणत पर प्रवतबंध ऄवधरोवपत करके तथा शुल्कों को कम करके अयातों को प्रोत्सावहत करने जैसे कु छ संरक्षणवादी
ईपाय ऄपना सकती है।

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मुिास्फीवत को वनयंवत्रत करने में ईपयुणक्त ईपायों की सीमाएं:

 प्रभाव ईत्पन्न करने में लगने वाली दीघण ऄववध: ईच्च सयाज दरों द्वारा मांग में कमी करने का प्रभाव ईत्पन्न करने में 18 माह

तक की ऄववध लग सकती है। आस प्रकार, आसे भववष्य की मुिास्फीवत प्रवृवत्तयों के सिीक पूवाणनुमान की अवश्यकता होगी।

 ईपभोक्ता व्यय को कइ कारक प्रभाववत करते हैं: व्यवहार में, ईच्च सयाज दरें ईपभोक्ता व्यय को सभी पटरवस्थवतयों में कम

नहीं कर सकती हैं। ईदाहरण के वलए, यकद ईपभोक्ता का ववश्वास ऄवधक दृढ़ है और घरे लू कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है,

तो बढ़ी हइ सयाज दरें भी ईपभोक्ता व्यय को कम करने के वलए ऄपयाणप्त वसि हो सकती हैं।

 राजनीवतक प्रभाव: राजकोषीय नीवत सदैव अर्धथक ववचारों पर अधाटरत नहीं होती है। ईदाहरण के वलए, करों में वृवि से

समग्र मांग को कम करने में ऄवधक सहायता प्राप्त हो सकती है, परन्तु वास्तव में सत्तासीन सरकार द्वारा आस प्रकार का

वनणणय लेना प्राय: कटठन होता है।

 वृवि दर के साथ समन्वयन: यद्यवप ईपयुणक्त दोनों ईपायों से समग्र मांग को कम करने में सहायता प्राप्त हो सकती है, परन्तु

मांग में कमी वनवेश और अर्धथक ववकास की दर में कमी के रूप में भी प्रवतसबवबत होगी।

आस प्रकार, समग्र व्यय को प्रभाववत करने के वलए मौकिक और राजकोषीय ईपायों का ईवचत समेकन प्राप्त करना ऄत्यंत कटठन

है। आन दो वववधयों के ऄवतटरक्त, ऄन्य प्रत्यक्ष वववधयों जैसे मांगों की पूर्धत हेतु ईत्पादन में वृवि, पाटरश्रवमक नीवत को युवक्तसंगत

बनाना, प्रत्यक्ष मूल्य वनयंत्रण अकद का ईपयोग भी ककया जा सकता है।

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