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भारत में संघ बजट तैयारी की प्रक्रिया एक समग्र और संरचित प्रक्रिया है जिसमें कई चरण

षष
मिल हैं। यहां कुछ मुख्य चरणों का विले ण है:
णले
लेले

1. *बजट अनुमान का निर्माण:*

- *रसीद और व्यय:* प्रक्रिया उस समय शुरू होती है जब वित्त मंत्रालय सभी मंत्रालयों और विभागों
को आगामी वित्त वर्ष के लिए अनुमान तैयार करने के लिए दिशानिर्देश जारी करता है।

- *डेटा का संग्रहण:* मंत्रालय और विभाग अपनी आवयकताओं


कताओंश्य
और उद्देयोंश्यों
के आधार पर
रसीद और व्यय का विस्तृत अनुमान प्रदान करते हैं।

2. *मैक्रो-आर्थिक रूपरेखा:*

- *आर्थिक सर्वेक्षण:* वित्त मंत्रालय आर्थिक सर्वेक्षण जारी करता है, जिसमें
अर्थव्यवस्था का एक अवलोकन होता है। यह दस्तावेज बजटीय नीतियों और प्राथमिकताओं पर
प्रभाव डालता है।

3. *राजस्व और व्यय बजट:*

- *राजस्व बजट:* इसमें सरकार के राजस्व और व्यय शामिल होते हैं। इसमें सरकार के
राजस्व खाता शामिल है, जो कर और अकर राजस्वों को कवर करता है।

- *पूंजी बजट:* इसमें पूंजी प्राप्तियां और भुगतान शामिल होते हैं। पूंजी व्यय संपत्ति के
सृष्टि पर खर्च होता है, जबकि पूंजी प्राप्तियां सरकार द्वारा उधार ली जाती हैं।

4. *परामार्और पूर्व-बजट मीटिंग्स:*

- *हितधारक परामार् :* वित्त मंत्रालय विभिन्न हितधारकों, सहित उद्योग विशेषज्ञों, आर्थिकज्ञों, और
विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिष्ठानुसार परामार्करता है।

- *पूर्व-बजट मीटिंग्स:* वित्त मंत्री विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के साथ मीटिंग्स करता है ताकि
वह उनकी बजटीय आवयकताओंकता ओंश्य को समझ सके।

5. *बजट का प्रस्तावना:*

- *बजट भाषण:* वित्त मंत्री संसद में संघ बजट का प्रस्तावना करता है। भाषण में सरकार की
वित्त नीतियों, प्रस्तावित आवंटनों, और आगामी वित्त वर्ष के लिए पहल को बताया जाता है।

- *बजट दस्तावेज़:* बजट भाषण के साथ साथ विस्तृत


formulas

(A) **Trade Balance = Exports - Imports

(B) **Current Account Balance = Trade Balance +Net Services +Net Transfers

(C) *Overall Balance (or Balance of Payments):*= Current Account Balance} +Capital Account Balance

(1) Capital Receipts:=

Recovery of Loans+ Borrowing and Other Liabilities

Capital Receipts=Recovery of Loans+Borrowing and Other Liabilitie

(2) Total Receipts: =

Tax Revenue+Non-Tax Revenue+Recovery of Loans+Other Receipts

Total Receipts=Tax Revenue+Non-Tax Revenue+Recovery of Loans+Other Receipts

(3) Fiscal Deficit=Total Expenditure−Total Receipts Revenue Deficit=Total Revenue


Expenditure−Revenue Receipts

खाता संतुलन (Capital Account Balance):

पूंजी खाता संतुलन=बाह्य सहायता (नेट)+बाह्य वाणिज्यक उधार (नेट)+अपकालीन साख+बैंक पूंजी
(नेट)+विदेशी निवेश (नेट)+अन्य प्रवाह (नेट)

पूंजी खाता संतुलन=बाह्य सहायता (नेट)+बाह्य वाणिज्यक उधार (नेट)+अपकालीन साख+बैंक पूंजी
(नेट)+विदेशी निवेश (नेट)+अन्य प्रवाह (नेट भारत का वस्त्र व्यापार विले षसे
ण श्ले संबंधित
है जिसमें विदे शों के साथ माल की खरीददारी और बिक्री शा मिलहै। इसमें निर्यात (अन्य
देशों को बेचे जाने वाले माल) और आयात (अन्य दे शों से खरीदे जाने वाले माल) शामिल हैं। इसके विभिन्न
वर्गीकरण और दिशा ने पिछले कु छ वर्षों में भारत के व्यापार को परिभाषित किया है। यहां एक अवलोकन है:

भारत के व्यापार का रचना:*


1. *निर्यात:*
- भारत ने विभिन्न माल को निर्यात किया है। मुख्य निर्यात क्षेत्रों में
सूचना प्रौद्योगिकी, फार्मास्यूटिकल्स, उत्पाद और रासायनिक्स,
इंजीनियरिंग उत्पाद, और कृषि उत्पाद शा मिलहैं।
- सेवाएं, वि षकर
आ शेईटी और सॉफ़्टवेयर सेवाएं, भी भारत के निर्यात
कमाई में महत्वपूर्ण योगदान करती हैं।
2. *आयात:*
- भारत ने कच्चे तेल, म नरी
नरी, इलेक्ट्रॉनिक वस्त्र, सोना, और
शी
रासायनिक्स जैसे विभिन्न मालें आयात की हैं।
- तेल के आयात का महत्वपूर्ण हिस्सा होने के कारण, इसका प्रभाव भारत
के व्यापार शे षको बड़ा करता है।
*भारत के व्यापार की दि शु
:*
1. *मुख्य व्यापारिक साथी:*
- भारत के विभिन्न व्यापारिक साथियों हैं। प्रमुख व्यापारिक साथी में
संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, संयुक्त अरब अमीरात, सउदी अरब, और
यूरोपीय देश शा मिलहैं।
- संयुक्त राज्य और संयुक्त अरब अमीरात, दोनों ही भारत के निर्यात और
आयात में महत्वपूर्ण योगदानकर्ता हैं।
2. *व्यापार घातक:*
- भारत ने व्यापार घातक का सामना किया है, जिसमें आयात की माल की
मूल्य निर्यात की माल की मूल्य से अधिक है। इसका कारण प्रमुख रूप से
बड़े पैम्प में तेल के आयात और मशीनरी और इलेक्ट्रॉनिक वस्त्र की मांग है।
- नीतियों के विभिन्न उपायों और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए
प्रयासों के माध्यम से व्यापार संतुलन को साधा जा रहा है।
3. *व्यापार पैटर्न में बदलाव:* - वर्षों के बाद, भारत के व्याप
ार पैटर्न में बदलाव हुआ है। हालांकि पारंपरिक क्षेत्र जैसे वस्त्र
और कृषि महत्वपूर्ण हैं, तकनीक और ज्ञान के आधारित उद्योगों पर बढ़ती
चुनौतियों पर जोर दिया जा रहा है।
- सेवा क्षेत्र, वि षकर
आ शेईटी और सॉफ़्टवेयर सेवाएं, भी भारत के
निर्यात राजाँयिक में महत्वपूर्ण योगदानकर्ता बन गई हैं।
4. *वैविक
आ श्वि
पूर्ति श्रृंरृंगार:*
- भारत वैविक आ श्वि पूर्ति श्रृंरृंगार में सक्रिय रूप से भाग लेता है,
विभिन्न माल की निर्माण और निर्यात में योगदान करता है। निर्यात को
बढ़ावा देने के लिए निर्माण क्षमताओं को बढ़ावा देने और विदेशी निवेशों को आकर्षित करने के लिए
प्रयास हो रहे हैं।
5. *व्यापार समझौते:*
- भारत ने विभिन्न दे शों और क्षेत्रीय ब्लॉक्स के साथ व्यापार समझौतों
और साझेदारियों में शा मिलहोने के लिए व्यापार के सुगम होने के लिए
कुशलता बनाई है। इसमें पूरी प्रदर्नी नी , सार्वजनिक समर्थन, और
र्श
बीआरआइसी जैसे संगठनों में भागीदारी शामिल है।
6. *चुनौतियां:*
- भारत को बृहद्दृष्टि में, ब्यूरोक्रे टिक कठिनाईयों, और वैविक
आ श्वि
र्थिक
अनिचि
चि तता
की
ओं चि चुनौतियोंजै सी समस्याओंका सामनाकरनापड़रहाहैजोव्यापार गतिविधियोंको
प्रभावित कर सकती हैं।

सारांश में, भारत का वस्त्र व्यापार विविध है, जिसमें पारंपरिक और


आधुनिक क्षेत्रों का मिरणहै श्र । देश व्यापार तंतुओं को संतुलित करने,
निर्माण क्षमताओं को बढ़ाने, और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए काम
कर रहा है।

*पहला पंचवर्षीय योजना (1951-1956):*

*मुख्य ध्यान:*
- *कृषि क्षेत्र:* भारतीय अर्थव्यवस्था की कंधी, इसलिए कृषि पर मुख्य ध्यान था।
- *उद्देय
य :* भोजन की कमी, गरीबी, और बेरोजगारी की समस्याओं का समाधान।

- *लक्ष्य:* राष्ट्रीय आय में 15% की वृद्धि, सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि,
औद्योगिक विकास।
### *दूसरा पंचवर्षीय योजना (1956-1961):*
*मुख्य ध्यान:*
- *औद्योगिकरण और सार्वजनिक क्षेत्र:* ध्यान कोणों को औद्योगिकरण और
सार्वजनिक क्षेत्र के विकास पर ले जाया गया था।
- *उद्देश्य:* आर्थिक असमानता को कम करना, विभिन्न क्षेत्रों में विकास करना।
- *लक्ष्य:* भारी उद्योगों का विस्तार, हरित क्रांति, यातायात और संचार में सुधार।
### *तीसरा पंचवर्षीय योजना (1961-1966):*
*मुख्य ध्यान:*
- *औद्योगिकरण और सामाजिक क्षेत्र:* ध्यान अब भी औद्योगिकरण पर था,
लेकिन सामाजिक क्षेत्र में भी बल दिया गया था।
- *उद्देश्य:* गरीबी और असमानता को कम करना, सामाजिक न्याय और समानता
बढ़ाना।
- *लक्ष्य:* खाद्यान्न के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली का विस्तार, भारी उद्योगों
का विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य पर ध्यान।

ये तीन पंचवर्षीय योजनाएं ने भारत के आर्थिक विकास के लिए मौलिक नींव


रखी हैं, जिनमें औद्योगिकरण और सामाजिक कल्याण दोनों पर जोर दिया गया है।
ये योजनाएं ने गरीबी और असमानता के सामाजिक मुद्दे, औद्योगिक और कृषि
क्षेत्र में विकास, और विभिन्न क्षेत्रों में समृद्धि को समझने का मार्ग
प्रशस्त किया।

*सरकारी प्राप्तियां:*

1. *कर राजस्व:*
- प्रत्यक्ष कर: व्यक्तियों और व्यापारों से सीधे वसूले जाने
वाले, जैसे कि आयकर, कॉर्पोरेट कर.
- पर्यक्त कर: वस्तुओं और सेवाओं पर लगाए जाने वाले, जैसे
कि जीएसटी (गुड़्ड़े और सेवा कर), एक्साइज ड्यूटी.
2. *गैर-कर राजस्व:*
- ब्याज राजस्व: सरकार द्वारा दी जाने वाली ऋणों से आय।
- डिविडेंड और लाभ: सरकारी निवे शों
से आय।
- शुल्क और जुर्माने: वि ष्ट
सेशिवाओं और जुर्मानों के लिए शुल्क।
3. *पूंजी राजस्व:*
- उधार लेना: ऋण, बॉन्ड्स, और अन्य वित्तीय उपकरणों के माध्यम
से जुटाए गए धन.
- निवे शों
की घटना: सरकारी संपत्तियों को बेचकर या सार्वजनिक
उद्यमों में स्वामित्व कम करके उत्पन्न की जाने वाली आय।
### *सरकारी व्यय:*
1. *राजस्व व्यय:*
- वेतन और मजदूरी: सरकारी कर्मचारियों को दी जाने वाली भुगतान।
- ब्याज भुगतान: सरकारी ऋणों पर किए जाने वाले भुगतान।
- पेंशन: सेवानिवृत्त होने वाले सरकारी कर्मचारियों को दी जाने
वाली भुगतान।
- उपदान: समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए वि ष्ट
क्शि
षेत्रों या
उद्यमों को धनरा । ।शि
2. *पूंजी व्यय:*
- बुनियादी ढांचा विकास: सड़कें, पुल, रेलवे आदि की बनावट में
निवेश।
- शिक्षा और स्वास्थ्य: शिक्षा और स्वास्थ्य सिस्टम को सुधारने पर खर्च।
- रक्षा: राष्ट्रीय सुरक्षा और सुरक्षा पर खर्च।
- सार्वजनिक क्षेत्र निवेश: सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में
पूंजी विन्यास।
3. *अनुदान और स्थानांतरण:*
- राजस्व अनुदान: राज्यों और अन्य इकाइयों को उनके सामान्य
खर्चों के लिए सहारा।
- पूंजी अनुदान: वि ष्ट
पूं
शिजीकरण परियोजनाओं या निवे शों
के लिए
स्थानांतरण।
4. *ऋण चुकता:*
- ऋण चुकता: उधार लिए गए धन की मूल रा शि
का वापसी करना।
*चर्चा:*
- *कर राजस्व:* प्रमुख आय स्रोत, सीधे रूप से आर्थिक गत

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