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अनुक्रमणिका

 वित्तीय प्रबन्धन

 वित्तीय प्रबन्ध की परिभाषा

 वित्तीय प्रबन्धन की प्रकृति

 वित्तीय प्रबन्ध का क्षेत्र

 जवाबदे ही

 निर्वाचन क्षेत्र के संबंध

 सार्वजनिक/निजी ओवरलैप

 शिक्षा के क्षेत्र में जवाबदे ही

 प्रबंधन में प्राधिकरण, जिम्मेदारी और जवाबदे ही

 प्राधिकरण की विशेषताएं

 औपचारिक या शास्त्रीय प्राधिकरण सिद्धांत

 प्राधिकरण के प्रकार

 प्राधिकरण के प्रतिबंध

 प्राधिकरण प्रतिनिधि सीमाएँ

 निष्कर्ष

 सन्दर्भ

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वित्तीय प्रबन्धन

वित्तीय प्रबन्धन के दक्ष एवं प्रभावी प्रबन्धन है ताकि संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति


की जा सके। वित्त

प्रबन्धन का कार्य संगठन के सबसे ऊपरी प्रबन्धकों का विशिष्ट कार्य है । मनष्ु य


द्वारा अपने जीवन काल में प्रायः दो प्रकार की क्रियाएं सम्पादित की जाती है
आर्थिक क्रियायें तथा अनार्थिक क्रियाएं। आर्थिक क्रियाओं के अर्न्तगत हम उन
समस्त क्रियाओं को सम्मिलित करते हैं जिनमें प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से धन की
संलग्नता होती है जैसे रोटी, कपड़े, मकान की व्यवस्था आदि। अनार्थिक क्रियाओं के
अन्तर्गत पूजा-पाठ, व अन्य सामाजिक व राजनैतिक कार्यों को सम्मिलित किया
जा सकता है ।

जब हम किसी प्रकार का व्यवसाय करते हैं अथवा उद्योग लगाते हैं अथवा फिर
कतिपय तकनीकी दक्षता प्राप्त करके किसी पेशे को अपनाते हैं तो हमें सर्वप्रथम
वित्त (finance) धन (money) की आवश्यकता पड़ती है जिसे हम पँज
ू ी (capital)
कहते हैं। जिस प्रकार किसी मशीन को चलाने हे त ु ऊर्जा के रूप में तेल, गैस या
बिजली की आवश्यकता होती है उसी प्रकार किसी भी आर्थिक संगठन के संचालन
हे तु वित्त की आवश्यकता होती है । अतः वित्त जैसे अमूल्य तत्व का प्रबन्ध ही
वित्तीय प्रबन्धन कहलाता है । व्यवसाय के लिये कितनी मात्रा में धन की
आवश्यकता होगी, वह धन कहॉ ं से प्राप्त होगा और उपयोग संगठन में किस रूप में
किया जायेगा, वित्तीय प्रबन्धक को इन्हीं प्रश्नों के उत्तर खोजने पड़ते हैं। व्यवसाय
का उद्देश्य अधिकतम लाभ अर्जन करना होता है

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जो पांच प्रकार से किया जा सकता है ।

1. निर्मित वस्तु का मल्


ू य बढ़ाकर अथवा वस्तु को अत्यधिक लाभ में बेचकर
2. निर्मित वस्तु की उत्पादन लागत घटाकर अथवा खरीदी गई वस्तु पर कम
लाभ लेकर अधिक मात्रा में बिक्री करके।
3. वित्तीय प्रबन्धन का प्रमुख उद्देश्य लाभ एवं व्यवसाय की परिसम्पत्तियों को
अधिकतम करना होता है । प्रतिस्पर्धा के कारण हम प्रथम विकल्प पर विचार
नहीं कर सकते।
4. संगठन को दीर्घकाल तक संचालित करने हे तु दस
ू रे विकल्प अर्थात वस्तु की
उत्पादन लागत
5. घटाकर, तथा खरीदी गई वस्तु की अधिक मात्रा बेचकर ही लाभ को
अधिकतम किया जाना श्रेयस्कर होगा।

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वित्तीय प्रबन्ध की परिभाषा

प्रमुख वित्त विशेषज्ञों द्वारा दी गई परिभाषाएं निम्नलिखित हैं -

 हावर्ड एवं उपटन (Haward and Upton)) : वित्तीय प्रबन्ध से आशय नियोजन


एंव नियंत्रण कार्यो को वित्त कार्य पर लागू करना है ।

 जे. एल. मैसी (J.L. Massie) : वित्तीय प्रबन्ध एक व्यवसाय की वह


संचालनात्मक प्रक्रिया है जो कुशल प्रचालनों के लिए आवश्यक वित्त को प्राप्त
करने तथा उसका प्रभावशाली ढं ग से उपयोग करने हे तु उत्तरदायी होता है ।

 बियरमैन व स्मिथ (Bierman and Smith) : वित्तीय प्रबन bfh खोजने वाली


विधि है ।

 वेस्टर्न एवं जाइगम : वित्तीय प्रबन्धन वित्तीय निर्णयन की वह प्रक्रिया है जो


व्यक्तिगत मामलों एवं उपक्रम के लक्ष्यों के मध्य मेल स्थापित करती है ।

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि वर्तमान समय में वित्तीय प्रबन्धन के अन्तर्गत


कोषों को एकत्रित करने के साथ साथ नियोजन, निर्णयन, संचालन, पूजी स्रोतों के
निर्धारण एवं अनुकूलतम प्रयोग से घनिष्टता पूर्वक सम्बन्धित है ।

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वित्तीय प्रबन्धन की प्रकृति

परम्परागत एवं आधनि


ु क विचारधाराओं के आधार पर वित्तीय प्रबन्ध की प्रकृति
एवं विशेषताओं को निम्न प्रकार से प्रस्तत
ु किया जा सकता है -

 केन्द्रीय प्रकृति : व्यवसायिक प्रबन्धन के अन्तर्गत वित्तीय प्रबन्धन ही ऐसा क्षेत्र


है , जिसकी प्रकृति केन्द्रीयकृत होती है । आधुनिक औद्योगिक प्रबन्धन में
विपणन व उत्पादन कार्यों को हम विकेन्द्रीकृत करके सफल हो सकते हैं किन्तु
वित्त कार्य का विकेन्द्रीकरण सम्भव नहीं होता है । अर्थात इसे हम अनेक
व्यक्तियों के मध्य विभाजित नहीं कर सकते। चूकि वित्त कार्य में समन्वय व
नियंत्रण की स्थिति केन्द्रीयकरण द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है ।
 निर्णयन में सहायक : आधनि
ु क संदर्भ में वित्तीय प्रबन्धन, सर्वोच्च प्रबन्धन को
निर्णय लेने में सहायता पहुचाता है । अर्थात सर्वोच्च प्रबन्धन की सफलता
वित्तीय प्रबन्ध के कुशल मार्गदर्शन से ही सम्भव होती हैं।

 व्यावसायिक समन्वय : विभिन्न व्यावसायिक गतिविधियों को एक सूत्र में बॉधने
का कार्य वित्त के द्वारा ही किया जाता है । विभिन्न क्रियाओं के मध्य समन्वय
स्थापित करके हम व्यावसायिक लागतों (Business costs) को उचित सीमाओं
में बॉधं सकते हैं। समन्वय के द्वारा उपलब्ध संसाधनों का अनुकूलतम आवंटन
(ptimum allocation) तथा अधिकतम उपयोग सम्भव हो सकता है ।
 कार्य निष्पत्ति का मापक : किसी भी संगठन के कार्य निष्पात्ति का मापन हम
वित्त के माध्यम से ही कर सकते हैं। वित्तीय निर्णयन का प्रभाव नीति निर्धारण,
जोखिम की मात्रा एवं लाभदायकता पर पड़ता है । अर्थात ‘वित्तीय निर्णयन आय

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की मात्रा तथा व्यावसायिक जोखिम, दोनों तत्वों को प्रभावित करते हैं। तथा इन
दोनों कारकों द्वारा सामहि
ू क रूप से फर्म के मल्
ू य को निर्धारित किया जाता है ।
 विश्लेषणात्मक एवं व्यापक स्वरूप : परम्परागत वित्तीय प्रबन्धन विगत
अनुभव तथा अन्तप्रेरणा से प्रेरित था किन्तु आधुनिक वित्तीय प्रबंधन के
अन्तर्गत सांख्यकीय आँकड़ों तथा तथ्यों के आधार पर परिस्थिति विशेष में हानि
तथा लाभ का मल्
ू यांकन करके तदनरू
ु प निर्णयन द्वारा जोखिम की मात्रा को कम
किया जा सकता है । वित्तीय प्रबन्धन का वर्तमान स्वरूप विश्लेषणात्मक
(Analytical) है , वर्णनात्मक (Descriptive) नहींI
 सतत प्रशासनिक क्रिया : वित्तीय प्रबंधन के पारम्परिक स्वरूप में वित्तीय
प्रबन्ध का कार्य कोषों की व्यवस्था तक सीमित था, संगठन की स्थापना
के आरम्भिक चरण में अथवा पर्न
ु गठन, के समय में ही वित्तीय प्रबन्धन
की महती भमि
ू का रहती थी। किन्तु वर्तमान युग में वित्तीय प्रबन्धन कार्य
एक सतत प्रशासनिक प्रक्रिया है । जो व्यवसाय की स्थापना से लेकर
संचालन, तथा समापन तक अनवरत जारी रहता है ।

वित्तीय प्रबन्ध का क्षेत्र

वित्तीय प्रबन्धन की पारम्परिक विचारधारा के अन्तर्गत वित्तीय प्रबन्धक का


कार्य केवल वित्त प्राप्ति की व्यवस्था तक ही सीमित था किन्तु वित्तीय
प्रबन्ध की विचारधारा में परिवर्तन एवं परिमार्जन के साथ ही वित्तीय प्रबन्ध
के क्षेत्र में भी व्यापक परिवर्तन हुआ है । अब वित्त प्रबन्धन कोषों की
व्यवस्था के साथ-साथ उपलब्ध कोषों के प्रभाव पूर्ण उपयोग (Effective
Utilisation) हे तु भी उत्तरदायी होता है । अर्थात वर्तमान युग में वित्तीय

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प्रबन्धन, नियोजन की प्रक्रिया (process of Decision making) से
घनिष्ठतापर्व
ू क जड़
ु गया है । आधनि
ु क संदर्भों में वित्तीय प्रबन्धन का क्षेत्र
निम्नलिखित कार्यों तक फैला हुआ है ।

 वित्तीय नियोजन में सहायक : वर्तमान युग में वित्तीय प्रबन्धन की भूमिका
वित्तीय नियोजन के क्षेत्र में अग्रणी है । इसके अर्न्तगत उद्देश्यों, नीतियों, एवं
कार्यविधियों का निर्धारण, वित्तीय योजनाओं एवं पंज
ू ी ढांचे का निर्माण आदि को
सम्मिलित किया जाता है ।
 वित्त प्राप्ति की व्यवस्था : वित्तीय प्रबन्धन का प्रमुख कार्य संगठन के
प्रस्तावित पूंजी ढांचे के अनुरूप विभिन्न श्रोतों से व्यवसाय संचालन हे तु अपेक्षित
पंज
ू ी की व्यवस्था करना होता है ।
 वित्त कार्य का प्रशासन : इसके अन्तर्गत वित्तीयप्रबन्धन द्वारा वित्त विभाग
एवं उवविभागों का संगठन, कोषाध्यक्ष तथा नियंत्रक के कार्यों, दायित्वों एवं
अधिकारों का निर्धारण एवं लेखा पुस्तकों के रख-रखाव की व्यवस्था की जाती है ।
वित्तीय प्रबन्ध सम्पत्तियों के प्रभाव पर्ण
ू उपयोग एवं प्रबंधन हे तु भी उत्तरदायी
होता है ।स्थिर सम्पत्तियों (fixed assets) के क्रय सम्बन्धी वित्तीय पहलओ
ु ं पर
उचित परामर्श के साथ-साथ चल सम्पत्तियों (current assets) की समयानुकूल
आपूर्ति सुनिश्चित करना भी वित्तीय प्रबन्धन के कार्य क्षेत्र में सम्मिलित होता
है । वित्तीय नियंत्रण वित्तीय प्रशासन का प्रमख
ु अंग है । वित्तीय प्रबन्ध द्वारा
वित्तीय नियन्त्रण के माध्यम से ही व्यावसायिक लक्ष्यों की पर्ति
ू (अधिकतम
लाभार्जन) की जा सकती है । वित्तीय नियंत्रण की स्थापना हे तु पॅंज
ू ीबजटिंग,
रोकड़ बजट, तथा लोचपूर्ण बजटिंग नामक तकनीकों का प्रयोग किया जा सकता
है ।

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ं नीति का निर्धारण
 शुद्ध लाभ का आवंटन (Allocation of Net Profit) : लाभॉश
वित्तीय प्रबन्धक का प्रमख
ु कार्य होता है । शद्ध
ु लाभ का कितना भाग अंशधारकों
के मध्य वितरित किया जाय तथा कितना भाग संचित कोषों के रूप में रोक
(retain) लिया जाय, जिसका प्रयोग संगठन के विकास, सम्वर्धन एवं
लाभदे यकता में वद्धि
ृ हे तु किया जा सके। इस निर्णय का सीधा प्रभाव अंशों के
भावी बाजार मल्
ू यों पर पड़ता है । यदि हम समस्त शद्ध
ु लाभ के अधिकांश भाग को
अंशधारकों के मध्य विभाजन का निर्णय लेते हैं तो अल्पकाल में अंशों के बाजार
मूल्य में वद्धि
ृ स्वाभाविक है किन्तु संगठन के विकास की भावी योजनाओं को
क्रियान्वित नहीं किया जा सकेगा, तथा दीर्घ काल में संगठन की लाभदे यकता
प्रभावित हो सकती है । इसके विपरीत यदि वित्तीय प्रबंधक समस्त लाभों या लाभ
के अधिकांश भाग को प्रतिधारित (retain) करता है । तो अंशों का बाजार मूल्य
अत्यन्त कम हो सकता है । परिणाम स्वरूप भविष्य में पूंजी संग्रहण की कठिनाई
आ सकती है अतः लाभों के आवंटन में वित्तीय प्रबन्धन की भमि
ू का पर संगठन
का भावी विकास एवं अंशों का बाजार मल्
ू य प्रभावित होता है ।
 विकास एवं विस्तार : वित्तीय प्रबन्धन संगठन के भावी विकास, एवं
विस्तार हे तु भी उत्तरदायी होता है । संगठन के विकास एवं विस्तार हे तु
अतिरिक्त पूंजी की लागत, स्वामित्व, नियंत्रण, जोखिम, एवं आय पर
पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण भी वित्तीय प्रबन्धन के क्षेत्र में सम्मिलित
होता है ।

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जवाबदे ही

उत्तरदायित्व, नैतिकता और शासन की एक ऐसी संकल्पना है , जिसके कई अर्थ हैं।

इसका इस्तेमाल अक्सर जिम्मेदारी, जवाबदे ही, दोषारोपण, दायित्व जैसी

संकल्पनाओं तथा जवाबदे ही से जुड़े अन्य शब्दों के पर्यावाची के तौर पर भी किया

जाता है ।[1]जवाबदे ही का अर्थ सरकारी अधिकारियों में निहित विवेकाधिकारो तथा

प्राधिकारों की राज्य व्यवस्था के विभिन्न अंगों द्वारा बाह्य समीक्षा करना है |

शासन के एक पहलू के तौर पर, यह सार्वजनिक क्षेत्र, गैर-लाभकारी और निजी क्षेत्रों

की समस्याओं से जुड़ी बहस का केंद्र रहा है । नेतत्ृ व की भमि


ू का में जवाबदे ही के

अंतर्गत कार्यों, उत्पादों, फैसलों को स्वीकार करना और उनकी जिम्मेदारी लेने के

साथ-साथ प्रशासन, शासन और उन्हें अपनी भूमिका के दायरे में लागू करने तथा

उसकी परिणति के प्रति जवाबदे ह होना भी शामिल है ।

प्रशासन से संबधि
ं त शब्द के तौर पर जवाबदे ही को परिभाषित करना मुश्किल है ।[2]

[3]
 अक्सर इसका वर्णन अलग-अलग व्यक्तियों के बीच जवाबदे ह रिश्ते के तौर पर

किया जाता है , जैसे, "ए बी के प्रति जवाबदे ह है जहां ए बी को ए के (भूत और भविष्य

के) कार्यों और फैसलों की सच


ू ना दे ता है , उसे न्यायोचित करार दे ता है और अगर कोई

गलती होती है , तो उसकी सजा भी भग


ु तता है ".[4]जवाबदे ही बिना उचित जिम्मेदारी

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के अस्तित्व में नहीं रह सकती, दस
ू रे शब्दों में कहा जा सकता है कि जहां जिम्मेदारी

नहीं होगी, वहां जवाबदे ही नहीं होगी.

जवाबदे ही के प्रकार

ब्रूस स्टोन, ओमप्रकाश द्विवेदी और जोसफ जी जाबरा ने 8 प्रकार की जवाबदे ही के

बारे में बताया है , इनमें नैतिक, प्रशासनिक, राजनैतिक, प्रबंधकीय, बाजार,

कानूनी/न्यायिक, निर्वाचन क्षेत्र के संबंध और पेशेवर शामिल हैं।[13] नेतत्ृ व की

जवाबदे ही इनमें से कइयों में शामिल होती है ।

राजनीतिक जवाबदे ही

राजनीतिक जवाबदे ही सरकार, नौकरशाहों और राजनेताओं की जनता और कांग्रेस

अथवा संसद जैसी विधायिका के प्रति जवाबदे ही है ।

कुछ मामलों में चुने हुए अधिकारी को हटाने के लिए पन


ु र्मतदान का भी इस्तेमाल

किया जा सकता है । हालांकि आमतौर पर मतदाताओं के पास चुने हुए प्रतिनिधियों

को उनके चुने हुए कार्यकाल के दौरान प्रत्यक्ष तौर पर जवाबदे ह ठहराने का कोई

तरीका नहीं होता है । इसके अतिरिक्त कुछ अधिकारियों और विधायकों को चुनने के

बजाए नियुक्त किया जा सकता है । संविधान अथवा कानून एक विधायिका को ये

अधिकार दे सकता है कि वो अपने सदस्यों, सरकार और सरकारी निकायों को

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जवाबदे ह ठहरा सके. ऐसा आंतरिक या स्वतंत्र जांच के माध्यम से किया जा सकता

है । आमतौर पर किसी कदाचार या भ्रष्टाचार के आरोप पर ही जांच कराई जाती है ।

इस मामले में शक्ति, प्रक्रिया और प्रतिबंध अलग-अलग दे शों में अलग होते हैं।

विधायिका के पास ये अधिकार हो सकता है कि वो किसी व्यक्ति पर महाभियोग

चलाए, उन्हें हटा दे या फिर उन्हें उनके पद से कुछ समय के लिए निलंबित कर सके.

आरोपी व्यक्ति सन
ु वाई से पहले खद
ु भी इस्तीफा दे ने का फैसला कर सकता है ।

अमेरिका में महाभियोग का इस्तेमाल चुने हुए प्रतिनिधियों और जिला अदालत के

जजों जैसे अन्य सार्वजनिक दफ्तरों के प्रतिनिधियों पर भी किया जाता है ।

नैतिक जवाबदे ही

नैतिक जवाबदे ही समग्र निजी और सांगठनिक प्रदर्शन को जिम्मेदार उपायों और

पेशेवर विशेषज्ञता विकसित और उसे प्रचारित कर उन्नत करने का तरीका है और

इसके साथ ही प्रभावी माहौल की वकालत कर लोगों तथा संगठनों को टिकाऊ विकास

अपनाने के लिए प्रेरित करने का भी तरीका है । नैतिक जवाबदे ही में व्यक्ति के साथ-

साथ छोटे व बड़े कारोबार, गैर-लाभकारी संगठनों, शोध संस्थानों और शिक्षाविदों

तथा सरकार को शामिल किया जा सकता है । किसी विद्वान ने अपने लेख में लिखा

है कि सामाजिक बदलाव के लिए लोगों की जानकारी और ज्ञान की खोज किए बिना

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किसी योजना पर काम शुरू करना अनैतिक होगा, क्योंकि उस कार्य योजना को लागू

करने की जिम्मेदारी लोगों की होगी, साथ ही उससे उन्हीं की जिंदगी प्रभावित होगी.

प्रशासनिक जवाबदे ही

सरकार के प्रशासन में नौकरशाहों को जवाबदे ह बनाने के लिए आंतरिक नियमों और

मानदं डों के साथ-साथ कुछ स्वतंत्र आयोग भी होते हैं। विभाग या मंत्रालय के अंदर

सबसे पहले बर्ताव नियमों और विनियमों से घिरा होता है ; दस


ू रे नौकरशाह पदों के

मुताबिक अपने वरिष्ठों के मातहत होते हैं और उन्हीं के प्रति जवाबदे ह होते हैं। फिर

भी विभागों पर नजर रखने और उन्हें जवाबदे ह बनाने के लिए कुछ स्वतंत्र निगरानी

ईकाइयां होती हैं; इन आयोगों की वैधता उनकी स्वतंत्रता पर निर्भर होती है , जो हितों

के टकराव होने से बचाती है । आंतरिक जांच के अलावा कुछ निगरानी ईकाइयां होती

हैं जो नागरिकों से शिकायतें लेती हैं, इससे सरकार और समाज नौकरशाहों को सिर्फ

सरकारी विभागों के प्रति नहीं बल्कि नागरिकों के प्रति भी जवाबदे ह बनाते हैं।

बाजार जवाबदे ही

सरकार की विकेंद्रीकरण और निजीकरण की आवाज के तहत इन दिनों ग्राहकों को

केंद्र कर सेवाएं मह
ु ै या कराई जा रही हैं और इसका उद्देश्य नागरिकों को सवि
ु धा और

विभिन्न विकल्प मुहैया कराना होना चाहिए; इस परिप्रेक्ष्य में सार्वजनिक और निजी

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सेवाओं के बीच तुलना और प्रतिस्पर्धा होती है और इससे सेवा की गुणवत्ता उन्नत

होती है । जैसा कि ब्रस


ू स्टोन ने उल्लेख किया है कि जवाबदे ही का मूल्यांकन संप्रभू

ग्राहकों के प्रति सेवा प्रदाताओं प्रभावनीय हो और जो उन्नत क्वालिटी की सेवा मुहैया

कराए. बाहर से सेवा हासिल करना बाजार की जवाबदे ही अपनाने का एक माध्यम हो

सकता है । आउटसोर्स सेवा के लिए सरकार चिन्हित की हुई कंपनियों में से चुन

सकती है ; सरकार करार की अवधि के दौरान करार की शर्तें बदलकर कंपनी को रोक

सकती है अथवा उस काम के लिए किसी दस


ू री कंपनी का चयन कर सकती है ।

निर्वाचन क्षेत्र के संबंध

किसी निर्वाचन क्षेत्र या इलाके की विभिन्न एजेंसियों, समूहों या संस्थानों के जो कि

सार्वजनिक क्षेत्र से अलग और नागरिकों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वालों के

परिप्रेक्ष्य में जो आवाज उठती है और सुनी जाती है , उसके लिए विशेष एजेंसी या

सरकार जवाबदे ह होती है । फिर भी सरकार एजेंसियों के सदस्यों को ये अधिकार

प्रदान करने के लिए बाध्य है जिससे कि उन्हें चुनाव में खड़ा होने और चुने जाने का

राजनीतिक अधिकार मिले. या फिर उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र में सरकारी प्रतिनिधि के

तौर पर नियक्
ु त करे और नीति-निर्धारण की प्रक्रिया में सभी निर्वाचन क्षेत्रों की

आवाज को शामिल किए जाने को सनि


ु श्चित करे .

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सार्वजनिक/निजी ओवरलैप

पिछले कुछ दशकों के दौरान सार्वजनिक सेवा के प्रावधानों में निजी संस्थाओं की,

खासकर ब्रिटे न और अमेरिका में बढ़ती भागीदारी की वजह से कई लोग मांग करने

लगे हैं कि गैर-राजनीतिक संस्थाओं पर भी राजनीतिक जवाबदे ही का ये तंत्र लागू

किया जाए. उदाहरण के लिए कानन


ू की विद्वान एन्ने डेविस का तर्क है कि यन
ू ाइटे ड

किंगडम में सार्वजनिक सेवा के प्रावधानों में सरकारी संस्थानों और निजी संस्थानों के

बीच का फर्क कुछ खास क्षेत्रों में घटता जा रहा है और इससे उन क्षेत्रों में राजनीतिक

जवाबदे ही में समझौता किया जा सकता है । उनके साथ-साथ दस


ू रों का भी तर्क है कि

जवाबदे ही के इस खालीपन को भरने के लिए प्रशासनिक कानन


ू में कुछ सध
ु ार की

जरूरत है ।

अमेरिका में हाल ही में सार्वजनिक/निजी ओवरलैप की वजह से सरकारी सेवाओं का

निजी क्षेत्रों में जाने और उससे जवाबदे ही में कमी आने के मामले पर लोगों की चिंता

तब जाहिर हुई थी, जब इराक की सुरक्षा संस्था ब्लैकवाटर में गोलीबारी की घटना हुई

थी।

शिक्षा के क्षेत्र में जवाबदे ही

सडब्यरू ी स्कूल्स मानते थे कि छात्र अपने कार्यों के लिए निजी तौर पर खद


ु ही

जिम्मेदार होते हैं, ये धारणा आज के दस


ू रे स्कूलों के बिलकुल उलट है जो इससे

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इंकार करते हैं। ये इंकार तीन पराक्र से है : स्कूल छात्रों को पूरी तरह से अपने तरीके

का चयन करने की इजाजत नहीं दे ता है ; एक बार तय करने के बाद स्कूल छात्रों को

कोर्स शुरू करने की इजाजत नहीं दे ते हैं और एक बार स्वीकार करने के बाद स्कूल

छात्रों को कोर्स के परिणाम भुगतने की इजाजत नहीं दे ते हैं। चुनने की आजादी, काम

करने की आजादी, काम का नतीजा सहन करने की आजादी-ऐसी तीन महान आजादी

हैं जिनसे निजी जिम्मेदारी बनती है । सडब्यरू ी स्कूल्स का दावा है कि "एथिक्स"

यानी आचार एक ऐसा पाठ्यक्रम है जिसे जिंदगी के अनभ


ु व से ही सीखा जाता

है । उन्होंने मल्
ू यों को हासिल करने और नैतिक कार्य के लिए जो सबसे जरूरी घटक

पेश किया है वो है निजी जिम्मेदारी. स्कूलों को तब नैतिकता की सीख दे ने में शामिल

हो जाना चाहिए जब वो लोगों का समद


ु ाय बन जाते हैं और जो एक-दस
ू रे के विकल्प

चुनने के हक का आदर करते हैं। सही मायने में स्कूलों को नैतिक मूल्यों का पैरोकार

बनने के लिए सही तरीका यही है कि अगर वो छात्रों और वयस्कों को नैतिक मूल्यों

को आयात करने वाले जिंदगी के अनुभवों से सीखने का मौका मुहैया कराए. छात्रों को

उनकी शिक्षा के लिए पूरी जिम्मेदारी दी जाती है और स्कूल प्रत्यक्ष लोकतंत्र से

संचालित किया जाता है जहां छात्र और कर्मचारी समान होते हैं।

उत्तरदायित्व प्रदर्शन किया जाने वाला कार्य का व्युत्पन्न है और अधिकार जिम्मेदारी

से प्राप्त होता है , बदले में जवाबदे ही, प्राधिकरण का एक तार्कि क व्यत्ु पन्न है । जब

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एक सब-ऑर्डिनेट को असाइनमें ट दिया जाता है और उसे पूरा करने के लिए आवश्यक

अधिकार दिया जाता है , तो मल


ू संगठन संबध
ं ों में अंतिम परिणाम के लिए अधीनस्थ

को पकड़ रहा है । दस
ू रे शब्दों में , अधीनस्थ जिम्मेदारी के निर्वहन के लिए प्राधिकरण

और खाते के उचित उपयोग द्वारा असाइनमें ट को पूरा करने के लिए एक दायित्व

करता है ।

इस प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए प्रदर्शन के मानकों को एक कार्य सौंपने से पहले

निर्धारित किया जाना चाहिए और उप-समन्वय द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिए।

इस बनि
ु यादी संबंध को नियंत्रित करने वाले प्रबंधन का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत एकल

जवाबदे ही है । एक व्यक्ति को केवल एक तत्काल बेहतर और अधिक नहीं के लिए

जवाबदे ह होना चाहिए।

तीन पद, प्राधिकरण, उत्तरदायित्व और जवाबदे ही अंतर-संबधि


ं त हैं। प्राधिकरण

शक्ति प्रदान करने को निरूपित करता है । उत्तरदायित्व दायित्व के संतोषजनक रूप

से पूरा होने का संकेत दे ता है और जवाबदे ही से तात्पर्य किसी के कार्य और आचरण से

संबधि
ं त जवाबदे ही से है ।

प्राधिकरण को प्रत्यायोजित किया जा सकता है , हालांकि, जिम्मेदारी साझा की जा

सकती है , लेकिन प्रत्यायोजित नहीं की जा सकती। जवाबदे ही न तो साझा की जा

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सकती है और न ही प्रत्यायोजित की जा सकती है । एक को अपने काम और आचरण

के बारे में जवाब दे ना होगा।

तीनों पद एक साथ चलते हैं। प्राधिकरण और जिम्मेदारी एक दस


ू रे का अनुसरण करते

हैं। अधिकार के बिना जिम्मेदारी के रूप में प्राधिकरण के बिना जिम्मेदारी के रूप में

अर्थहीन है । दोनों को होना चाहिए। एक अकेला नहीं चल सकता। इसी तरह, जवाबदे ही

जिम्मेदारी का पालन करती है ।

जवाबदे ही केवल इसलिए उठती है क्योंकि एक प्राधिकरण है , जिसका उद्देश्य पूरी

जिम्मेदारी के साथ किए गए निर्णय को प्राप्त करना है । इसी तरह जवाबदे ही की

जरूरत है क्योंकि उद्देश्यों को प्राप्त करना है । जवाबदे ही उसकी जिम्मेदारियों के प्रति

जागरूक करती है जिसके बिना कोई भी भटक सकता है और अपनी जिम्मेदारी से बच

सकता है ।

प्रबंधन में प्राधिकरण, जिम्मेदारी और जवाबदे ही

आपको प्रबंधन में अधिकार, जिम्मेदारी, जवाबदे ही के बारे में जानने की जरूरत है ।

प्राधिकरण - Or प्राधिकरण ’का अर्थ है Authority कानन


ू ी या सही शक्ति, कमांड का

अधिकार या कार्य करने का अधिकार’। प्रबंधकीय नौकरियों के लिए लागू, अधीनस्थ

को कार्य करने या किसी विशेष तरीके से कार्य करने की आज्ञा दे ने के लिए श्रेष्ठ की

शक्ति को 'अधिकार' कहा जाता है ।

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ज़िम्मेदारी - सौंपे गए कर्तव्यों का पालन करना एक अधीनस्थ का दायित्व है । यह

हमेशा श्रेष्ठ और उप-समन्वय के बीच बंधी होती है । जब श्रेष्ठ अपने कर्तव्य को

प्रस्तुत करने के लिए किसी भी कर्तव्य या कार्य को सौंपता है तो यह उस कर्तव्य को

निभाने के लिए उप-समन्वय के हिस्से पर एक जिम्मेदारी बन जाता है ।

चेस्टर बरनार्ड ने "चरित्र का अनौपचारिक संगठन में एक आदे श के एक चरित्र के रूप

में प्राधिकरण को परिभाषित किया है , जिसके द्वारा उस संगठन के सदस्यों द्वारा

कार्रवाई को नियंत्रित करने के रूप में स्वीकार किया जाता है , जो कि वे क्या करना है

या क्या नहीं करना है , यह निर्धारित या निर्धारित कर रहा है ।" जहाँ तक संगठन का

सवाल है । ”

जॉर्ज आर। टे री के अनस


ु ार- "प्राधिकरण आधिकारिक और कानन
ू ी अधिकार है कि वह

दस
ू रों पर कार्रवाई का आदे श दे सकता है और अनुपालन लागू कर सकता है । - इस

तरह से अधिकार का प्रयोग किया जाता है " –

(i) निर्णय लेने के द्वारा, और

(ii) यह दे खकर कि वे किए जाते हैं। के माध्यम से बाहर, (ए) अनुनय, (बी)

प्रतिबंधों, (सी) अनरु ोधों, और (डी) भी ज़बरदस्ती, बाधा या बल।

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2. जिम्मेदारी:

शब्द के सामान्य अर्थों में जिम्मेदारी व्यक्ति के दायित्व को दर्शाती है कि वह अपनी

निर्धारित नौकरी को अपनी क्षमता के अनुसार पूरी तरह से कर सकता है । हालांकि,

जिम्मेदारी हमेशा परिणाम-उन्मुख होती है , जहां तक प्रबंधन का संबध


ं है । जॉर्ज आर।

टे री ने प्रबंधन के दृष्टिकोण से इसे रखा है - "जिम्मेदारी एक व्यक्ति का दायित्व है कि

वह अपने वरिष्ठों और स्वयं द्वारा भागीदारी के माध्यम से पारस्परिक रूप से

निर्धारित परिणामों को प्राप्त करे ।"

जैसे ही वह अपने द्वारा निष्पादित की जाने वाली नौकरी को स्वीकार करता है ,

जिम्मेदारी एक व्यक्ति पर आ जाती है । एक उद्यम के उद्देश्यों को प्राप्त करना एक

दायित्व है जिसे आमतौर पर कार्यकर्ता द्वारा स्वीकार किया जाता है । यह उसका

दायित्व है जो जिम्मेदारी के साथ शुरू होता है । अधीनस्थ को अपनी जिम्मेदारी को

अच्छी तरह से निभाने में सक्षम बनाने के लिए, श्रेष्ठ को पूर्व को स्पष्ट रूप से बताना

चाहिए कि उससे क्या अपेक्षित है । दस


ू रे शब्दों में , प्रतिनिधि को उस कार्य या कर्तव्य

को स्पष्ट रूप से निर्धारित करना चाहिए जो प्रतिनिधि को सौंपा गया है ।

फ़ंक्शन के संदर्भ में या उद्देश्यों के संदर्भ में कर्तव्य को व्यक्त किया जाना चाहिए। यदि

किसी सब-ऑर्डिनेट को मशीन के संचालन को नियंत्रित करने के लिए कहा जाता है ,

तो कार्य फ़ंक्शन के संदर्भ में होता है । लेकिन अगर उसे किसी उत्पाद के विशेष टुकड़ों

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का उत्पादन करने के लिए कहा जाता है , तो कर्तव्य लक्ष्य या उद्देश्य के संदर्भ में है ।

उद्देश्यों के संदर्भ में कर्तव्यों का निर्धारण उप-समन्वय को यह जानने में सक्षम करे गा

कि उनके प्रदर्शन का मूल्यांकन किन मानकों से किया जाएगा।

3. जवाबदे ही:

उत्तरदायित्व प्रदर्शन किया जाने वाला कार्य का व्युत्पन्न है और अधिकार जिम्मेदारी

से प्राप्त होता है , बदले में जवाबदे ही, प्राधिकरण का एक तार्कि क व्यत्ु पन्न है । जब एक

सब-ऑर्डिनेट को असाइनमें ट दिया जाता है और उसे पूरा करने के लिए आवश्यक

अधिकार दिया जाता है , तो मल


ू संगठन संबंधों में अंतिम परिणाम के लिए अधीनस्थ

को पकड़ रहा है । दस
ू रे शब्दों में , अधीनस्थ जिम्मेदारी के निर्वहन के लिए प्राधिकरण

और खाते के उचित उपयोग द्वारा असाइनमें ट को परू ा करने के लिए एक दायित्व

करता है । जिम्मेदारी हमेशा जवाबदे ह होती है । एक हमेशा अपने वरिष्ठों के काम के

लिए जवाबदे ह होता है जिसे उन्होंने प्रदर्शन करना स्वीकार किया है । उत्तरदायित्व

और जवाबदे ही पर्यायवाची नहीं हैं, बल्कि दो शब्द हैं। जिम्मेदारी, अगर स्वीकार की

जाती है , तो पूरी करनी होगी। इसे कैसे पूरा किया गया है ? परिणाम क्या रहे हैं? क्या

जिम्मेदारी को परू ा करने में जारी किए गए आदे शों और निर्देशों का पालन किया गया

है ? इन सवालों का जवाब व्यक्ति को दे ना होगा, इससे पहले कि वह खुद को और

अपने वरिष्ठों को संतष्ु ट करे कि उसने काम परू ा कर लिया है ।

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निर्देशों के अनुरूप कार्य पूरा करने के बारे में वरिष्ठों को जवाबदे ही कहा जाता है ।

जवाबदे ही दायित्व है कि श्रेष्ठ द्वारा स्थापित प्रदर्शन मानकों के संदर्भ में जिम्मेदारी

और व्यायाम प्राधिकरण को पूरा करना। जवाबदे ही का निर्माण एक विशेष कार्य की

उपलब्धि के लिए एक अधीनस्थ को अधिकार दे ने के औचित्य की प्रक्रिया है ।

इस प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए प्रदर्शन के मानकों को एक कार्य सौंपने से पहले

निर्धारित किया जाना चाहिए और उप-समन्वय द्वारा स्वीकार किया जाना चाहिए।

इस बनि
ु यादी संबंध को नियंत्रित करने वाले प्रबंधन का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत एकल

जवाबदे ही है । एक व्यक्ति को केवल एक तत्काल बेहतर और अधिक नहीं के लिए

जवाबदे ह होना चाहिए।

तीन पद, प्राधिकरण, उत्तरदायित्व और जवाबदे ही अंतर-संबधि


ं त हैं। प्राधिकरण

शक्ति प्रदान करने को निरूपित करता है । उत्तरदायित्व दायित्व के संतोषजनक रूप

से पूरा होने का संकेत दे ता है और जवाबदे ही से तात्पर्य किसी के कार्य और आचरण से

संबधि
ं त जवाबदे ही से है ।

प्राधिकरण को प्रत्यायोजित किया जा सकता है , हालांकि, जिम्मेदारी साझा की जा

सकती है , लेकिन प्रत्यायोजित नहीं की जा सकती। जवाबदे ही न तो साझा की जा

सकती है और न ही प्रत्यायोजित की जा सकती है । एक को अपने काम और आचरण

के बारे में जवाब दे ना होगा।

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तीनों पद एक साथ चलते हैं। प्राधिकरण और जिम्मेदारी एक दस
ू रे का अनुसरण करते

हैं। प्राधिकरण प्रबंधन साहित्य में सबसे मोटे अर्थ जंगलों में से एक है । अधिकार का

अर्थ सरल और स्पष्ट नहीं है । कुछ विद्वान अधिकार के साथ अधिकार की पहचान

करते हैं, अन्य सही और नेतत्ृ व के साथ। कुछ विद्वानों का कहना है कि अधिकार

निर्णय लेने की शक्ति है और कुछ की राय है कि यह दस


ू रों को प्रभावित करने का

अधिकार और शक्ति है । कुछ इसे सही बताते हैं। इसलिए यहाँ विभिन्न विद्वानों में

प्राधिकार के अर्थ को समझने के लिए प्रख्यात विद्वानों द्वारा दिए गए अधिकार की

कुछ विशिष्ट परिभाषाएँ दी गई हैं।

स प्रकार, उपर्युक्त परिभाषाओं का अवलोकन करके, कोई यह निष्कर्ष निकाल सकता

है कि प्राधिकरण में तीन तत्व शामिल हैं। निर्देशों का उपयोग करने की शक्ति और

निर्णय लेने के लिए, अपनी आज्ञाकारिता के लिए मजबूर करने का अधिकार और

अधीनस्थों के व्यवहार या कार्यों को प्रभावित करने की शक्ति। तो उपरोक्त चर्चा के

साथ कोई यह कह सकता है कि प्राधिकरण के बिना एक प्रबंधक प्रबंधक बनना बंद

कर दे ता है । यह प्राधिकरण संगठन को एक साथ रखता है ।

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प्राधिकरण की विशेषताएं:

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर, प्राधिकरण की निम्नलिखित विशेषताओं की

पहचान की जा सकती है :

1. यह निर्णय लेने और यह दे खने की शक्ति है कि उन्हें सही समय पर सही तरीके से

किया जाता है ।

1. औपचारिक या शास्त्रीय प्राधिकरण सिद्धांत:

 इसे शीर्ष-डाउन प्राधिकरण के रूप में भी जाना जाता है । इस सिद्धांत के अनस


ु ार,

प्राधिकरण एक संगठन के शीर्ष पर उत्पन्न होता है और प्रतिनिधिमंडल की प्रक्रिया के

माध्यम से नीचे की ओर बहता है । संगठन में प्रत्येक प्रबंधक के पास केवल इतना

अधिकार होता है कि वह अपने श्रेष्ठ द्वारा उसे सौंप दिया गया हो। वह संगठन में

अपनी औपचारिक स्थिति से अपने अधिकार प्राप्त करता है । प्राधिकरण शीर्ष पर

केंद्रित है ।

 यह सिद्धांत पहले मैरी पार्क र फोलेट द्वारा तैयार किया गया था और बाद में चेस्टर

बर्नार्ड और साइमन द्वारा इसे लोकप्रिय बनाया गया। वे इस विचार को रखते हैं कि

प्राधिकरण वह संबंध है जो व्यक्तियों के बीच मौजूद होता है जब कोई दस


ू रे के निर्देश

को स्वीकार करता है । दस
ू रे शब्दों में , एक संचार प्राधिकारी करता है यदि यह

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प्राप्तकर्ताओं द्वारा आधिकारिक के रूप में स्वीकार किया जाता है । इस प्रकार,

प्रबंधक के अधिकार के स्रोत की यह अभिव्यक्ति उसके अधीनस्थों द्वारा स्वीकृति

है ।

 प्राधिकरण के स्रोत की यह अभिव्यक्ति प्रबंधन के व्यवहार संबध


ं ी दृष्टिकोण पर

आधारित है । यह दिखाता है कि प्रबंधक के पास कोई वास्तविक अधिकार नहीं है , जब

तक कि व्यक्तिगत अधीनस्थ उस पर भरोसा न करें । एक सब-ऑर्डिनेट अपने श्रेष्ठ

के अधिकार को स्वीकार करता है क्योंकि कुछ कारक श्रेष्ठता का पालन करते हैं,

विधिवत गठित अधिकारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले नेतत्ृ व की गण


ु वत्ता का

जवाब दे ते हैं, पुरस्कार प्राप्त करते हैं और अपने श्रेष्ठ से प्रोत्साहन प्राप्त करते हैं,

संगठन उद्देश्य की प्राप्ति में योगदान करते हैं।

 इस प्रकार, स्वीकृति सिद्धांत प्राधिकरण के लिए कानूनी और सामाजिक आधार पर

ध्यान दे ने की अनुमति दे ता है । यह नेतत्ृ व के व्यक्तिगत लक्षणों पर एक बड़े विस्तार

पर निर्भर करता है , संगठन के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए दस


ू रों को मनाने के लिए

राजी करने की क्षमता। स्वीकृति सिद्धांत का मूल्य व्यक्ति के निर्णय की अपनी

मान्यता में निहित है कि क्या वह प्राप्त संचार पर कार्य करे गा।

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3. क्षमता प्राधिकरण सिद्धांत:

 उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति ज्ञान के किसी विशेष क्षेत्र में निपुण है , तो

अन्य लोग उसका मार्गदर्शन चाहते हैं और उसकी सलाह मानें जैसे कि वह एक

आदे श था। इसी तरह, अन्य सामाजिक समूहों में करिश्मा वाले लोगों का एक

ही अधिकार है ।

4. स्थिति का अधिकार:

यह सिद्धांत भी फोलेट द्वारा तैयार किया गया था। यह आपातकालीन या संकट की

स्थितियों पर लागू होता है जहां तरु ं त कार्रवाई की जानी है । जो व्यक्ति उस

आपातकालीन स्थिति में शामिल होता है , वह उस स्थिति को संभालने के लिए

प्राधिकरण का उपयोग करता है , हालांकि यह औपचारिक रूप से उसे कमान की

श्रंख
ृ ला के माध्यम से नहीं सौंपा गया है । उदाहरण के लिए, यदि कार्यालय में आग

लगी है , तो उस स्थिति में मौजूद कर्मचारी घंटी का उपयोग करने के लिए औपचारिक

अधिकार के बिना आपातकालीन स्थिति को इंगित करने के लिए अलार्म घंटी का

उपयोग कर सकते हैं। इस प्रकार, यहां कार्यकर्ता औपचारिक अधिकार के बिना घंटी

का उपयोग कर रहा है ।

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प्राधिकरण के प्रकार:

 तीन प्रकार के प्राधिकरण हैं जिनके बारे में यहां चर्चा की गई है :

 1. लाइन प्राधिकरण:

 इस प्राधिकरण का उपयोग प्रबंधकों द्वारा उनकी स्थिति के आधार पर किया

जाता है । यह आदे श, निर्देश और निर्णय जारी करने का अधिकार है जो लोगों

द्वारा पदानक्र
ु म में लागू किया जाता है । इस प्राधिकरण के माध्यम से

संगठनात्मक उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है । यह ऊपर से नीचे की ओर

बहता है और बेहतर-उप-समन्वयित संबध


ं (स्केलर चेन) बनाता है ।

 2. कर्मचारी प्राधिकरण:

 इस प्राधिकरण का उपयोग स्टाफ विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है जो कमांड की

औपचारिक श्रंख
ृ ला का हिस्सा नहीं बनते हैं। संगठनों के आकार में वद्धि
ृ के

साथ, लाइन प्रबंधकों को अपने दम पर हर स्थिति से निपटना मुश्किल लगता

है । कर्मचारी विशेषज्ञ, इसलिए, विभिन्न मामलों में लाइन प्रबंधकों की सलाह,

सलाह और सहायता करते हैं।

 3. कार्यात्मक प्राधिकरण:

 प्रत्येक विभागीय प्रमुख अपने विभाग की गतिविधियों को नियंत्रित करता है

और ऐसा करने में विभिन्न स्टाफ विशेषज्ञों द्वारा सहायता प्रदान की जाती है ।

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कर्मचारी विशेषज्ञ लाइन विभागों के लोगों पर लाइन प्राधिकरण का आनंद नहीं

लेते हैं, लेकिन वे विशेषज्ञता और व्यायाम प्राधिकरण (अन्य विभागों के

प्रबंधकों से अधिक) के अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं, जो उनकी विशेषज्ञता और

क्षमता के कारण औपचारिक है । इसे कार्यात्मक प्राधिकरण के रूप में जाना

जाता है ।

प्राधिकरण के प्रतिबंध:

अपने अधीनस्थों पर प्रबंधक द्वारा प्राधिकरण का उपयोग निम्नलिखित कारकों

द्वारा प्रतिबंधित है :

1. कानूनी अड़चनें:

एक प्रबंधक का अधिकार उद्यम के लक्ष्यों, उद्देश्यों, राजनीति, कार्यक्रमों और

प्रक्रियाओं आदि द्वारा प्रतिबंधित है । ये सभी लेख और एसोसिएशन के ज्ञापन

द्वारा शासित हैं जो दे श के वाणिज्यिक और औद्योगिक कानूनों द्वारा स्वयं

नियंत्रित होते हैं। संगठन में किसी भी स्तर पर प्रत्येक प्रबंधक को इन कानूनों,

परं पराओं और प्रतिबंधों का सम्मान करना चाहिए।

2. प्राकृतिक या जैविक सीमाएँ:

किसी भी उप-समन्वय को ऐसा काम करने का आदे श नहीं दिया जा सकता है

जो जैविक सीमाओं के कारण निष्पादित किया जाना असंभव है । उदाहरण के

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लिए, कोई व्यक्ति किसी भवन के किनारे तक चलने या ऐसी असंभव चीजों को

करने का आदे श शायद ही कोई दे सकता है ।

3. शारीरिक सीमाएँ:

 भौतिक सीमाएं जैसे कि जलवायु, भग


ू ोल, रासायनिक तत्व और इतने पर

अधिकार की सीमाएं, उदाहरण के लिए, तांबे से सोना बनाने का एक आदे श

अप्रभावी होगा।

4. तकनीकी सीमाएँ:

 प्राधिकार पर तकनीकी सीमाएँ भी हैं। जब तक और जब तक कोई प्रदर्शन

तकनीकी रूप से संभव नहीं होता, तब तक इस तरह का कोई भी काम करने का

आदे श परिमित होगा।

5. प्राधिकरण प्रतिनिधि सीमाएँ:

 वे प्राधिकरण के प्रतिनिधिमंडल का विस्तार भी एक प्रबंधक के अधिकार को

प्रतिबंधित करते हैं। आम तौर पर, निर्णय लेने का अधिकार या आदे श का

अधिकार कम हो जाता है क्योंकि यह किसी भी संगठन के उच्चतम से

निम्नतम स्तर तक आगे बढ़ता है ।

6. सामाजिक बाधाओं:

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 सामाजिक कारक एक प्रबंधक द्वारा प्राधिकरण के अभ्यास पर प्रतिबंध

लगाते हैं। उदाहरण के लिए, कर्मचारियों को सौंपा गया कार्य समूह की मूलभत

सामाजिक मान्यताओं, मानदं डों, कोडों और रीति-रिवाजों के अनुरूप होना

चाहिए।

7. संगठनात्मक सीमाएँ:

 एक प्रबंधक का अधिकार संगठन के उद्देश्यों, नीतियों, नियमों के अनस


ु ार होता

है , जैसे कि ज्ञापन, एसोसिएशन के ट्रिक्स, साझेदारी समझौते, नीति

नियमावली आदि।

8. आर्थिक बाधाएं:

 बाजार की ताकत और अन्य आर्थिक स्थितियां प्रबंधकीय अधिकार को

प्रतिबंधित करती हैं। एक बिक्री प्रबंधक अपने बिक्री व्यक्तियों को उच्च

प्रतिस्पर्धी बाजार में उच्च कीमत पर उत्पाद बेचने के लिए नहीं कह सकता।

9. सीमित अवधि:

 एक प्रबंधक का अधिकार सीमित होता है क्योंकि अधीनस्थों की संख्या पर एक

सीमा होती है जिसका वह प्रभावी रूप से पर्यवेक्षण कर सकता है । कोई प्रबंधक

उप-निर्देश के असीमित संख्या के बारे में निर्णय नहीं ले सकता है ।

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प्राधिकरण की सीमाएं प्रभावित करने वाले कारक:

एक प्रबंधक के अधिकार की सीमा को प्रभावित करने वाले कारक निम्न में दे खे जा

सकते हैं:

बाहरी कारक:

 सरकारी नियम और कानून

 सामहि
ू क सौदे बाजी और समझौते

 डीलर, आपूर्तिकर्ता और ग्राहक समझौते

 सामाजिक विश्वास, लक्ष्य आदतें और रीति-रिवाज

आतंरिक कारक:

 कॉर्पोरे ट कानन
ू और संगठन चार्ट

 बजट

 नीतियां, नियम और कानून

 स्थिति विवरण

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विशेषताएं:

 यह केवल मनष्ु य को सौंपा जा सकता है न कि निर्जीव चीजों जैसे मशीनों

को।

 यह श्रेष्ठ और अधीनस्थ रिश्तों से उत्पन्न होता है ।

 यह किसी एक व्यक्ति के प्रदर्शन तक ही सीमित रहने की बाध्यता हो

सकती है ।

 यह कार्य या लक्ष्य या लक्ष्य के संदर्भ में परिभाषित किया जा सकता है ।

 जिम्मेदारी का सार उसे सौंपे गए कर्तव्य को परू ा करना है ।

 यह प्राधिकार का व्युत्पन्न है ।

जिम्मेदारी के रूप:

यह जिम्मेदारी दो प्रकार की हो सकती है :

 (i) ऑपरे टिग


ं जिम्मेदारी और

 (ii) अंतिम जिम्मेदारी।

 (i) परिचालन उत्तरदायित्व - किसी कर्मचारी का यह दायित्व है कि वह सौंपे

गए कार्यों को परू ा करे ।

 (ii) अंतिम जिम्मेदारी - यह प्रबंधक का अंतिम दायित्व है जो यह सनि


ु श्चित

करता है कि कार्य कुशलतापर्व


ू क कर्मचारियों द्वारा किया जाता है ।

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 जवाबदे ही:

 इसका मतलब किसी भी श्रेष्ठ के स्पष्टीकरण के लिए जिम्मेदार होना है । जब

एक अधीनस्थ एक मालिक के अधीन काम करता है और उसे प्रदर्शन करने के

लिए कुछ कर्तव्य सौंपे जाते हैं, तो वह उस काम को करने या न करने के लिए

जवाबदे ह होगा। इस प्रकार, जवाबदे ही जिम्मेदारी का एक व्युत्पन्न है । तो

जवाबदे ही परिणामों के लिए व्यक्तिगत जवाबदे ही है ।

प्रबंधन में प्राधिकरण, जिम्मेदारी और जवाबदे ही:

प्राधिकरण और जिम्मेदारी:

Or प्राधिकरण ’का अर्थ है Authority कानूनी या सही शक्ति, कमांड का अधिकार या

कार्य करने का अधिकार’। प्रबंधकीय नौकरियों के लिए लागू, अधीनस्थ को कार्य

करने या किसी विशेष तरीके से कार्य करने की आज्ञा दे ने के लिए श्रेष्ठ की शक्ति को

'अधिकार' कहा जाता है । दस


ू रे शब्दों में , प्राधिकरण "अधीनस्थों के व्यवहार को

प्रभावित करने वाले निर्णय लेने के लिए उनकी औपचारिक स्थिति के आधार पर एक

श्रेष्ठ क्षमता है "। अधीनस्थों के मार्गदर्शन, आचरण या व्यवहार के लिए निर्णय लेने

की शक्ति को भी 'अधिकार' माना जाता है ।

एक प्रबंधकीय स्थिति में निहित प्राधिकरण, समह


ू ों में एक साथ काम करने वाले

व्यक्तियों के प्रदर्शन के लिए एक वातावरण बनाने और बनाए रखने की शक्ति,

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विवेक का उपयोग करने की शक्ति है । यह अथक है कि अधिकार का प्रयोग अनन
ु य,

जबरदस्ती या आर्थिक और सामाजिक प्रतिबंध या अन्य माध्यमों से किया जाता है ।

किसी आदे श को लागू करने की ऐसी शक्ति के बिना, उद्यम अव्यवस्थित हो सकता

है और अराजकता हो सकती है ।

मल
ू प्रकार का अधिकार रे खा, कर्मचारी, कार्यात्मक और समिति है । लाइन अथॉरिटी

दस
ू रों की प्रतिक्रियाओं को प्रसारित और निर्देशित करती है । कर्मचारी प्राधिकरण

सहायक और सुविधाजनक गतिविधियों तक सीमित है । इसे कमांड करने का

अधिकार नहीं है । दोनों कर्मचारी और कार्यात्मक प्राधिकरण लाइन प्राधिकरण के

अधीनस्थ हैं। कार्यात्मक प्राधिकरण एक विशेष क्षेत्र में सीमित है ।

ज़िम्मेदारी:

उत्तरदायित्व को एक अधीनस्थ के दायित्व के रूप में परिभाषित किया जा सकता है ,

जिसके लिए एक कर्तव्य सौंपा गया है , जो कि अपनी क्षमता के अनस


ु ार कर्तव्य को

पूरा करने के लिए। उत्तरदायित्व को केवल समूह के उद्देश्यों को सहयोग या आगे

बढ़ाने की इच्छा के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। यह विशिष्ट कर्तव्यों की एक सच
ू ी

द्वारा व्यक्त किया जा सकता है जिसे फ़ंक्शन को परू ा करने के लिए परू ा किया जाना

चाहिए। अपनी निर्धारित नौकरी को पूरा करने के लिए ऐसा करना अपेक्षित है ।

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निष्कर्ष

जब हम किसी प्रकार का व्यवसाय करते हैं अथवा उद्योग लगाते हैं अथवा फिर
कतिपय तकनीकी दक्षता प्राप्त करके किसी पेशे को अपनाते हैं तो हमें सर्वप्रथम
वित्त (finance) धन (money) की आवश्यकता पड़ती है जिसे हम पँज
ू ी (capital)
कहते हैं। जिस प्रकार किसी मशीन को चलाने हे त ु ऊर्जा के रूप में तेल, गैस या
बिजली की आवश्यकता होती है उसी प्रकार किसी भी आर्थिक संगठन के संचालन
हे तु वित्त की आवश्यकता होती है । अतः वित्त जैसे अमूल्य तत्व का प्रबन्ध ही
वित्तीय प्रबन्धन कहलाता है । व्यवसाय के लिये कितनी मात्रा में धन की
आवश्यकता होगी, वह धन कहॉ ं से प्राप्त होगा और उपयोग संगठन में किस रूप में
किया जायेगा, वित्तीय प्रबन्धक को इन्हीं प्रश्नों के उत्तर खोजने पड़ते हैं। व्यवसाय
का उद्देश्य अधिकतम लाभ अर्जन करना होता है

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सन्दर्भ

 "संग्रहीत प्रति". मल
ू से 13 जनवरी 2016 को परु ालेखित. अभिगमन तिथि 14
जनवरी 2016.
 "संग्रहीत प्रति". मल
ू से 7 अगस्त 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14
जनवरी 2016.
 "संग्रहीत प्रति". मल
ू से 5 मार्च 2016 को परु ालेखित. अभिगमन तिथि 14
जनवरी 2016.
 "संग्रहीत प्रति". मल
ू से 4 फ़रवरी 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 14
जनवरी 2016.

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35

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