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भारतीय बैं कों में लेखा परीक्षण और निरीक्षण - चिंता और अवसर

"आं तरिक लेखा परीक्षण एक स्वतं तर् , वस्तु निष्ठ आश्वासन और परामर्श संबंधित गतिविधि है जिसे सं गठन के
सं चालन में सु धार करने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह जोखिम प्रबं धन, नियं तर् ण और शासन प्रक्रियाओं की
प्रभावशीलता का मूल्यांकन और सु धार करने के लिए एक व्यवस्थित, अनु शासित दृष्टिकोण लाकर संगठन के
उद्दे श्यों को पूरा करने में मदद करता है ”- आंतरिक लेखा परीक्षक संस्थान।

किसी भी दे श में बैं किंग प्रणाली की सु दृढ़ता उस दे श की आर्थिक मजबूती का एक प्रमु ख सं केतक है । एक
मजबूत बैं किंग प्रणाली का उद्भव किसी दे श के आर्थिक विकास में योगदान दे ता है । दुनिया में बैं किंग प्रणाली
विशे ष रूप से पिछले एक दशक में काफी उतार-चढ़ाव के दौर से गु जर रही है और भारत भी इसका अपवाद नहीं
है । भारत में बैं किंग प्रणाली ने जिस तरह से आर्थिक दबावों और मुश्किलों का सामना किया है, उसकी सुदृढ़ता सराहनीय है। इस
जीवंतता का श्रेय उन सभी को जाता है जो इस कठिन काल में बैं किंग प्रणाली को नियं त्रित और प्रबं धित कर रहे
थे । बैं कों की ले खा परीक्षा प्रणाली ने उस कठिन समय में भी दे श में सं पर्ण
ू बैं किंग प्रणाली की निगरानी के लिए
नियामकों की सहायता करने में एक प्रमु ख भूमिका निभाई।

लेखा परीक्षण एक स्वतं तर् प्रबं धन कार्य है , जिसमें किसी संस्थान के रणनीतिक जोखिम, प्रबं धन जोखिम और आं तरिक
नियं तर् ण प्रणाली के कामकाज का निरं तर मूल्यांकन किया जाता है । बैंक में एक स्वतंत्र लेखा परीक्षण विभाग का होना शीर्ष प्रबंधन की
मुख्य जिम्मेदारी है। आं तरिक ले खा परीक्षण विभाग मुख्य रूप से शीर्ष प्रबंधन के प्रति उत्तरदायी होता है, परन्तु उदारीकृत परिवे श में इसकी
भूमिका बहुत व्यापक हो गई है और अब यह शे यरधारकों, जमाकर्ताओं और नियामकों के प्रति भी उत्तरदायी है ।

भारत में बैं किं ग संरचना

भारत में बैं किंग प्रणाली की सं रचना दे श की अनूठी भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक विशे षताओं को ध्यान
में रखकर विकसित की गई है। भारत में केंद्रीय बैं किंग की भूमिका भारतीय रिजर्व बैं क द्वारा सं भाली जाती है । भारत में
एक व्यापक कानूनी व्यवस्था है जो दे श में बैं किंग प्रणाली को नियं त्रित करती है । दे श में बैं किंग सं चालन और
गतिविधियों को नियं त्रित करने वाले प्रमु ख कानून नीचे दिए गए हैं ।

• भारतीय रिजर्व बैं क अधिनियम, 1934

• बैं किंग विनियमन अधिनियम, 1949

• भारतीय स्टे ट बैं क अधिनियम, 1955

• कंपनी अधिनियम, 1956

• भारतीय स्टे ट बैं क (सहायक बैं क) अधिनियम, 1959

• बैं किंग कंपनी (उपक् रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1970

• क्षे तर् ीय ग्रामीण बैं क अधिनियम, 1976

• बैं किंग कंपनी (उपक् रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1980

• सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000

• धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002

• वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पु नर्निर्माण और प्रतिभूति हित का प्रवर्तन अधिनियम,2002

• क् रे डिट सूचना कंपनी विनियमन अधिनियम, 2005


बैं किं ग व्यवसाय- बदलते रुझान

बैं किंग का प्राथमिक व्यवसाय जमा स्वीकार करना , उधार देना और निवे श गतिविधियाँ करना है । हालां कि, बैं कों
के बीच प्रतिस्पर्धा के साथ-साथ प्रौद्योगिकी उन्नति ने बैं कों को विभिन्न अभिनव व्यवसायिक गतिविधियों को अपनाने के लिए
प्रेरित एवं मजबूर किया है । बैं किंग के अं तर्राष्ट् रीयकरण ने भी बैं कों के लिए बहुत सारी चु नौतियाँ और अवसर प्रस्तुत किये हैं।
पिछले कुछ वर्षों में बैं किंग व्यवसाय का तरीका ते जी से बदल रहा है जिसके परिणामस्वरूप बैं किंग का स्वरूप भी बदल
गया है । स्वाभाविक रूप से बैं किंग व्यवसाय में जोखिमों का मूल्यांकन भी नए परिवे श में किये जाने की आवश्यकता है।

बैं क लेखा परीक्षा के उद्दे श्य

ले खा परीक्षण और निरीक्षण का मु ख्य उद्दे श्य है -

• बैं क की गतिविधियों की नियामक/सां विधिक/आं तरिक दिशानिर्देशों के आधार पर जांच करना।

• आं तरिक नियं तर् णों के अनु पालन की निगरानी करना और बैं क की नियं तर् ण प्रणाली में सु धार करने में सहायता
करना

• व्यवस्थित अनु शासित दृष्टिकोण से जोखिम प्रबं धन, नियं तर् ण और शासन प्रक्रिया की प्रभावशीलता में
सु धार करने के लिए बैं क की सहायता करना

• सभी हितधारकों की बे हतरी के लिए बैं किंग व्यवसाय में पारदर्शिता स्थापित करना

बैं क लेखा परीक्षण के प्रकार

बैं कों की अपनी आं तरिक लेखा परीक्षण प्रणाली होती है और साथ ही बैं कों का परीक्षण बाहरी लेखा परीक्षकों के द्वारा भी
किया जाता है । जहां आं तरिक लेखा परीक्षण बैं कों के एक स्वतं तर् विभाग द्वारा किया जाता है , बाहरी परीक्षण प्रमु ख
रूप से सी.ए., अधिवक्ताओं, इं जीनियरों और नियामकों द्वारा नियु क्त पे शेवरों आदि जै से विशिष्ट लोगों द्वारा
किया जाता है ।
बैं क लेखा परीक्षण में चुनौतियां

बैं कों में व्यवसाय अभिविन्यास में परिवर्तन के परिणामस्वरूप जटिल उत्पाद, प्रक्रिया, प्रौद्योगिकि, मानव
सं साधन कौशल आदि का विकास हुआ है । ले खापरीक्षा की स्थापित प्रक्रियाए अब बढ़ती जटिलता से निपटने के लिए
पर्याप्त नहीं हैं । पिछले कुछ वर्षों में , भारत में बैं किंग ने काफी बड़े स्तर पर धोखाधड़ी, प्रक्रियात्मक चूक, निगरानी
विफलता दे खी है , जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लेखा परीक्षण प्रक्रिया की अक्षमता को दर्शाता है । इस समय लेखा
परीक्षण के सामने निम्नलिखित प्रमुख चुनौतियां हैं-

1. तकनीकी क्षमता
आधुनिक बैं क प्रौद्योगिकी-आधारित उत्पादों , ले खांकन, सूचना प्रबं धन प्रणाली आदि में प्रौद्योगिकी का भरपूर
उपयोग कर रहे हैं। कई बार, आं तरिक और बाहरी लेखा परीक्षक, परीक्षण प्रक्रिया को पूरा करने के लिए प्रौद्योगिकी
की आवश्यकता से निपटने में खु द को असमर्थ पाते हैं । पारंपरिक रूप से ले खा परीक्षक को नियमों, विनियमों, कानूनों,
मानकों, प्रक्रियाओं आदि का ज्ञान होना आवश्यक था, ले किन अब तकनीकी क्षमता सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है।
बाहरी ले खापरीक्षक प्राथमिक रूप से बैं क प्रणाली और सॉफ्टवे यर का उपयोग करने के आदी नहीं होते ,
इसलिए वे ले खा परीक्षण के लिए आवश्यक जानकारी के लिए प्रबं धन पर निर्भर हो जाते हैं । आं तरिक ले खा
परीक्षकों को भी उत्पादों की विविधता और प्रौद्योगिकी की उन्नति का सामना करने में परे शानी का सामना करना पड़ रहा
है।

2. नई व्यावसायिक रणनीतियो के साथ सामंजस्य स्थापित करना

घटते मार्जिन बैं कों को अपनी व्यावसायिक रणनीतियों में विविधता लाने और नई राजस्व धाराओं को अपनाने के लिए
मजबूर कर रहे हैं। ले किन हर नई राजस्व धारा और व्यापार रणनीति अपने साथ नए प्रकार के जोखिम भी प्रस्तुत करती है। ले खा
परीक्षक की मु ख्य जिम्मे दारियों में से एक सक्रिय रूप से आकलन करना है कि एक नई व्यवसाय रणनीति या
उत्पाद, सं स्थान के जोखिम मानकों को कैसे प्रभावित करे गा । कभी-कभी जब तक लेखा परीक्षक जोखिम मापदं डों
और नियं तर् णों का पता लगा पाते हैं, तब तक नु कसान पहले ही हो चु का होता है ।
3. लेखापरीक्षा संसाधनों का पु नः आबंटन
व्यावसायिक दबाव बैंको को खर्चों में कटौती के लिए मजबूर कर रहे हैं जिसमें लेखा परीक्षण विभाग के खर्चे भी शामिल है। लेखा परीक्षण विभाग को नए
उत्पादों, रणनीतियों, प्रौद्योगिकियों और बढ़ी हुई नियामक आवश्यकताओं और इसके लिए आवश्यक
सं साधनों के साथ तालमे ल बिठाने के लिए काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

4. आवश्यक ज्ञान का अभाव

भारतीय बैं किंग उद्योग अभी भी विकास के चरण में है । हर दिन एक नई चु नौती है और प्रत्येक समस्या का एक
नया समाधान है । नियामक, सरकार, प्रबं धन हर दस ू रे दिन नए नियम, विनियम, नीतियां और दिशा-निर्दे श ले कर
आ रहे हैं । से वा उद्योग में होने के कारण, बैं कों को उच्चतम स्तर के मानकों को बनाए रखना आवश्यक है। वित्तीय
व्यवसाय पूर्ण पारदर्शिता की मां ग करता है । लेखा परीक्षण विभाग को सभी नियमों, विनियमों, मानकों, नीतियों के
अनु पालन की जांच करने इसके लिए इन सभी का पूरा ज्ञान होना चाहिए जो एक असाधारण मां ग है । ज्ञान में अं तर
ले खापरीक्षा और निरीक्षण गतिविधि के उद्दे श्य को विफल कर सकता है ।
चुनौतियों का सामना करने के उपाय

ज्ञान, कौशल, दृष्टिकोण को नियमित रूप से अद्यतन करना लेखा परीक्षण विभाग की कार्यकु शलता को स्थापित करने की
कुंजी है । प्रौद्योगिकी जो एक चु नौती है , वही समाधान भी है क्योंकि यह मानवीय कमियों की भरपाई करने में सक्षम हैं।

1. ले खा परीक्षण विभाग को नीतियों को पढ़ने और उसके खिलाफ अनु पालन की पु ष्टि करने की अपनी पुरानी
मानसिकता से बाहर आने की जरूरत है । समय की मां ग है कि वे अब नीति, नियम, विनियम निर्माण प्रक्रिया का
सक्रिय रूप से हिस्सा बनें । यह कार्य में नीति कार्यान्वयन और अनु पालन के सत्यापन के बीच के समय के
अं तराल को कम करे गा।
2. व्यक्तिगत ले खा परीक्षा के कौशल का मानचित्रण आवश्यक है । सभी दक्षताओं और विशे षज्ञताओं को एक
स्थान पर चित्रित एवं चिह्नित किया जाना चाहिए और फिर सं गठन और नियामकों की आवश्यकता के अनु सार उन्हें
परिष्कृत किया जाना चाहिए।

3. ले खापरीक्षा और निरीक्षण विभाग में सं साधनों के आवंटन का वैज्ञानिक यु क्तिकरण भी आवश्यक है । हमें यह
समझने की जरूरत है कि जिस तरह एक शिक्षक सभी विषयों को नहीं पढ़ा सकता, उसी तरह एक लेखा परीक्षक सभी
मापदं डों की जांच नहीं कर सकता है । ले खा परीक्षा विभाग में विविध विशिष्ट व्यक्तियों की आवश्यकता होती
है और उनके कौशल का उपयोग एक व्यावसायिक इकाई की ले खा परीक्षा की आवश्यकता के अनु सार किया
जाना चाहिए। अं केक्षण के कार्य के आवं टन के दौरान कौशल के अनु सार तार्कि क आवं टन की अत्यधिक
आवश्यकता है ।
4. ले खा परीक्षकों को नवीनतम ज्ञान, कौशल और दृष्टिकोण में अद्यतन रखने के लिए ले खा परीक्षकों के नियमित
प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है । ले खा परीक्षकों को नियमों, विनियमों, नीतियों और उनके कार्यान्वयन के
सं बंध में उच्चतम स्तर के मानकों को बनाए रखने के उत्तरदायित्व का पालन करना होता है, इसलिए उन्हें नियमित प्रशिक्षण दिया जाना
अत्यधिक आवश्यक है।

5. मानकों को बनाए रखने के लिए ले खा परीक्षकों की जवाबदे ही तय करने की भी आवश्यकता है , जो लगातार


जांच के तहत नहीं रखे जाने पर कमजोर पड़ जाते हैं । इसलिए लेखा परीक्षकों के भी परीक्षण की आवश्यकता है।

अंत में, यह कहना सही होगा कि वै श्वीकरण और वित्तीय प्रणाली की बढ़ती जटिलता के साथ, स्थिर वित्तीय प्रणाली
के लिए लेखा परीक्षण और निरीक्षण बहुत महत्वपूर्ण है । ले खा परीक्षकों को अपने ज्ञान, कौशल और दृष्टिकोण को
अद्यतन और उन्नत करने की आवश्यकता है । कल होने की आवश्यकता है । सभी हितधारकों के हित साधने के लिए, ले खा
परीक्षक को अधिक पे शेवर, योग्य, निष्पक्ष, नै तिक और मूल्य सं चालित होने के साथ साथ जागरूकता और
दरू दर्शिता की भी आवश्यकता है ।
सं दर्भ:
1. www.rbi.org - श्री शक्तिकांत दास, गवर्नर आरबीआई,का भाषण के अंश।

2. www.bcasonline.org
3. www.bankdirector.com
4. ले खा परीक्षण और निरीक्षण नीति- यूनियन बैं क ऑफ इं डिया।

प्रस्तुति:

राजकु मार शर्मा, मुख्य प्रबंधक, 670961

यूनियन लर्निंग अकै डमी- रिस्क एक्सीलेंस, मंगलुरु

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