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•लोकतांत्रिक पुनरुत्थान:

•दीन दयाल उपाध्याय का एकात्म


मानववाद।
पंडित दीनदयाल के विचार एवं कृ तित्वः समाजवाद, लोकतंत्र अथवा
मानववाद
• उनका जन्म 25 सितंबर 1916 में चंद्रभान गांव में हुआ था, जिसे अब मथुरा जिले के फराह कस्बे के पास
दीनदयाल धाम कहा जाता है।
• 1937 में कानपुर के सनातन धर्म कॉलेज में छात्र होने के दौरान, वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस)
के संपर्क में आए।
• उन्होंने 1942 से आरएसएस में पूर्णकालिक कार्य शुरू किया। उपाध्याय आरएसएस के आजीवन प्रचारक
बन गए। उन्होंने लखीमपुर जिले के लिए प्रचारक के रूप में काम किया और 1955 से उत्तर प्रदेश के संयुक्त
प्रधान प्रचारक (क्षेत्रीय आयोजक) के रूप में काम किया।
• उन्हें अनिवार्य रूप से आरएसएस के आदर्श स्वयंसेवक के रूप में माना जाता था क्योंकि ‘उनके भाषण संघ
के शुद्ध विचार-वर्तमान परिलक्षित होते हैं।’
• Pandit Deendayal Upadhyaya was a philosopher, sociologist, economist and politician.
• The philosophy presented by him is called 'Integral Humanism' which was intended
to present an 'indigenous socio-economic model’ in which human being remains at
the centre of development.
• The aim of Integral Humanism is to ensure dignified life for every human being while
balancing the needs of the individual and society.
• It supports sustainable consumption of natural resources so that those resources can
be replenished.
• Integral humanismsm enhances not only political but also economic and social
democracy and freedom.
• As it seeks to promote diversity, it is best suited for a country as diverse as India.
दीनदयाल उपाध्याय की प्रमुख पुस्तकें
• दो योजनाएं
• राजनीतिक डायरी
• भारतीय अर्थ नीति का अवमूल्यन
• सम्राट चंद्रगुप्त
• जगद्गुरु शंकराचार्य
• एकात्म मानववाद
• राष्ट्रीय जीवन की दिशा और
• एक प्रेम कथा आदि उनके प्रमुख पुस्तकें
विचारधारा

• उपाध्याय ने राजनीतिक दर्शन एकात्म मानवतावाद की कल्पना की। यह दर्शन शरीर, मन और बुद्धि और
प्रत्येक इंसान की आत्मा के एक साथ और एकीकृ त कार्यक्रम की वकालत करता है।
• दीनदयाल उपाध्याय के अनुसार भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में व्यक्तिगत विचारों, लोकतंत्र, समाजवाद,
साम्यवाद या पूंजीवाद जैसी पश्चिमी अवधारणाओं पर भरोसा नहीं कर सकता है।
• उनका मानना ​था कि भारतीय सिद्धांत पश्चिमी सिद्धांतों से घिरा हुआ था।
• उन्होंने आधुनिक तकनीक का स्वागत किया लेकिन चाहते थे कि इसे भारतीय आवश्यकताओं के अनुरूप
अनुकू लित किया जाए। उनका स्वराज (“आत्म-शासन”) में विश्वास था।
दीन दयाल जी का एकात्म मानववाद
दीनदयाल जी और एकात्म मानववाद

• एकात्म मानववाद के इस वैचारिक दर्शन का प्रतिपादन पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने मुंबई में 22 से 25
अप्रैल, 1965 में चार अध्यायों में दिए गए भाषण में किया। इस भाषण में उन्होंने एक मानव के संपूर्ण सृष्टि
से संबंध पर व्यापक दृष्टिकोण रखने का काम किया था। वे मानव को विभाजित करके देखने के पक्षधर नहीं
थे। वे मानवमात्र का हर उस दृष्टि से मूल्यांकन करने की बात करते हैं, जो उसके संपूर्ण जीवनकाल में छोटी
अथवा बड़ी जरूरत के रूप में संबंध रखता है। दुनिया के इतिहास में सिर्फ 'मानव-मात्र' के लिए अगर किसी
एक विचार दर्शन ने समग्रता में चिंतन प्रस्तुत किया है तो वो एकात्म मानववाद का दर्शन है। 
Integral humanism of Deen Dayal Upadhyaya
• The philosophy of Integral Humanism is based on the following three
principles:
•  Primacy of whole, not part
•  Supremacy of Dharma
•  Autonomy of Society
• दीनदयाल पश्चिमी मार्क्सवादी समाजवाद और पूंजीवादी व्यक्ति वाद के पक्षधर नहीं थे।
• उनके अनुसा यें दोनों विचारधाराएं मानव के भौतिकवादी उद्देश्य पर आधारित है जबकि मानव का संपूर्ण
विकास करने के लिए इन दोनों विचारधारा के साथ-साथ आत्मिक विकास भी बेहद जरूरी है ।हालांकि वे
पश्चिमी संस्कृ ति के विरोधी थे परंतु इसके बावजूद दीनदयाल आधुनिक तकनीकी और पश्चिमी विज्ञान के
समर्थक थे।
• दीनदयाल विकें द्रीकरण के पक्षधर थे।
• दीनदयाल सामाजिक क्षेत्रों के राष्ट्रीयकरण के विरोधी थे
• उनके अनुसार शासन को व्यापार में दखल नहीं देना चाहिए और व्यापारी के हाथ में शासन भी नहीं आना
चाहिए। शासन का उद्देश्य अंतोदय होना चाहिए
• समाजवादद और साम्यवाद को कागजी और अव्यावहारिक सिद्धांत के रूप में देखते थे।
• विके न्द्रित व्यवस्था के पक्षधर थे।
• राष्ट्रीयकरण के खिलाफ थे।
• एकात्म मानवतावाद ना के वल राजनैतिक बल्कि सामाजिक आर्थिक और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता को भी बढ़ाता
है।
• Pandit Deendayal Upadhyaya opposed both Western 'capitalist
individualism' and 'Marxist socialism’.
• According to Deendayal Upadhyaya, capitalist and socialist ideologies only
consider the needs of the human body and mind, so they are based on
materialistic purpose .
• whereas spiritual development is equally considered important for the
complete development of human being which is missing in both capitalism
and socialism.
• Basing his philosophy on the internal conscience, pure human soul to be
called Chhitti, Deendayal Upadhyaya envisaged a classless, casteless and
conflict-free social system.
• भारत को चलाने के लिए भारतीय दर्शन ही कारगर वैचारिक उपकरण हो सकता है। चाहे राजनीति का प्रश्न
हो, चाहे अर्थव्यवस्था का प्रश्न हो अथवा समाज की विविध जरूरतों का प्रश्न हो, उन्होंने मानवमात्र से जुड़े
लगभग प्रत्येक प्रश्न की समाधानयुक्त विवेचना अपने वैचारिक लेखों में की है। भारतीय अर्थनीति कै सी हो,
इसका स्वरूप क्या हो, इन सारे विषयों को पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने 'भारतीय अर्थनीति विकास की
दिशा' में रखा है। 

• 
एकात्म मानववाद पर आधारित आर्थिक विचार
एकात्म मानव दर्शन पर आधारित आर्थिक विचार
• सुनिश्चित लक्ष्य- दीनदयाल के अनुसार जब तक लक्ष्य निश्चित नहीं होता तब तक निश्चित दिशा भी
प्राप्त नहीं हो सकती अंतिम बिंदु के निर्धारण के बिना माध्यम का चुनाव की असंभव है इसीलिए लक्ष्य का
निर्धारण अनिवार्य है
• आत्मशांति- उनके अनुसार भारतीय संस्कृ ति में शारीरिक जरूरतों के साथ साथ आध्यात्मिक जरूरतें
पूरी करने की भी क्षमता है।
• राष्ट्रीय पहचान- पश्चिमी देशों से हमारे देश के निवासियों का लक्ष्य होना चाहिए कि देश सही दिशा में आगे
बढ़े जिसमें हर नागरिक अपना योगदान देने को तत्पर हूं जब देश का प्रत्येक नागरिक अपनी क्षमता अनुरूप
विकास में योगदान देगा तभी देश का सर्वोत्तम विकास होगा उनका मानना था कि भारत इसलिए समस्याओं
से घिरा है क्योंकि नागरिकों की राष्ट्रीय पहचान की अनदेखी हुई है।
• क्षरणकोश का सिद्धांत- दीनदयाल के अनुसार हमें ध्यान देना होगा की उद्योगों के विकास हेतु कच्चे माल के
लिए प्राकृ तिक संसाधनों का अत्याधिक दोहन ना होकर नियंत्रित उपयोग के मूल सिद्धांत को अपनाया जाए
जिससे हम पर्यावरण कें द्रित विकास को बढ़ावा दे सके इसका इस विकास का मूल बिंदु व्यक्ति ना होकर
प्रकृ ति होना चाहिए यहां दीनदयाल जी हमें गांधीवादी सिद्धांत के काफी करीब नजर आते हैं गांधी भी मनुष्य
के विकास हेतु प्रकृ ति के नियंत्रित दोहन को ही उचित मानते थे ताकि व्यक्ति और प्रकृ ति दोनों का सतत
विकास होता रहे।
• प्रत्येक को रोजगार- दीनदयाल के अनुसार कार्य की संभावना हर आर्थिक नियोजन का प्राथमिक उद्देश्य
होना चाहिए एक प्रगतिशील अर्थव्यवस्था में हर काम करने वाले हाथ को काम मिलना चाहिए ऐसा तभी संभव
है जब देश के पास पर्याप्त कोष हो।
• नियंत्रित उपयोग- धन को तभी संचित किया जा सकता है जब उसके उपयोग पर नियंत्रण है आर्थिक रूप
से कमजोर देश तब कर में डू ब जाते हैं जब उत्पादन और उपभोग के आर्थिक सुदृढ़ देशों के ढांचे को अपनाते
हैं क्योंकि विकसित और विकासशील देशों की सामाजिक आर्थिक राजनीतिक शैक्षिक और धार्मिक सभी
परिस्थितियां भिन्न-भिन्न होती है।
• मशीनें श्रमिक की सहायक- मशीनें किसी भी देश की औद्योगिक संपत्ति होती है परंतु इस संपत्ति को
अर्जित करते समय ध्यान रखने की जरूरत है कि यह श्रमिक के शारीरिक श्रम को कम करके उसकी क्षमता
तथा कार्य निपुणता में बढ़ोतरी करें मशीनें मजदूर की सहायक होनी चाहिए उनकी प्रतिद्वंदी नहीं अन्यथा
मजदूरों का कार्य मशीनें ही करने लगेंगे जिससे बेरोजगारी वृहद स्तर पर फै ल जाएगी।
• समग्र विकास- देश की आर्थिक नीतियों के मूल में मानव का समग्र विकास होना चाहिए क्योंकि मानव ही
एक समग्र स्वरूप है।
• आर्थिक विकें द्रीकरण- दीनदयाल के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति का सर्वांगीण विकास तभी संभव है जब देश में
आर्थिक विकें द्रीकरण संभव हो क्योंकि आर्थिक कें द्रीकरण मानवीयता को बढ़ाता है।
• स्वदेशी को बढ़ावा- दीनदयाल का मानना था की हमारे आर्थिक पुनर्निर्माण में स्वदेशी को आधारशिला के
रूप में सम्मिलित होना चाहिए। विदेशी उत्पादों पर निर्भरता ने हमारे व्यक्तित्व को क्षति पहुंचाई है स्वदेशी
अपनाना ना तू प्रतिक्रियावादी है नाही पुरातन को धोना बल्कि यह तो हमारे देश के व्यक्तित्व के लिए गौरव की
बात है।
• पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने बताया था कि एकात्म मानववाद मानव जीवन व सम्पूर्ण सृष्टि के एकमात्र
सम्बन्ध का दर्शन है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय कहते थे कि यहाँ एकता, ममता, समता और बंधुता होती है
वहाँ एकात्म मानववाद का दर्शन होता है। वास्तव मैं कहा जाए तो एकात्म मानववाद एक ऐसी विचारधारा है
जो मनुष्य को जीना सिखाती है और एक ऐसे समाज का उदय करती है यहाँ एकता हो, समानता हो और वहाँ
के लोग भाईचारे के साथ रहते हैं। एकात्म को हम अविभाज्य या एकीकरण भी कह सकते है।ं इसका मतलब
होता है एक ऐसा समाज यहाँ किसी प्रकार का विभाजन न हो और एकता हो। मानववाद एक ऐसी विचारधारा
है जो मानव के मूल्यों और उन से सम्बंधित मसलों पर ध्यान देती है। क
• एकात्म को हम अविभाज्य या एकीकरण भी कह सकते है।ं इसका मतलब होता है एक ऐसा समाज यहाँ
किसी प्रकार का विभाजन न हो और एकता हो। मानववाद एक ऐसी विचारधारा है जो मानव के मूल्यों और
उन से सम्बंधित मसलों पर ध्यान देती है। कहा जाए तो मानववाद एक भरोसा अथवा धारणा है जो मानवता
के प्रति लोगों को आकर्षित करती है। जहाँ एकात्म मानववाद दर्शन का अनुसरण किया जाता है। ऐसे समाज में
संघर्ष के लिए कोई जगह नहीं होती। वहां लोग सिर्फ प्रेम और भाईचारे के साथ इकट्ठे होकर रहते हैं। कहा जाए
तो आज विश्व को एकात्म मानववाद जैसी विचारधारा कि जरुरत है। जिससे पूरे विश्व में शांति, एकता,
समता और बंधुता कायम हो सकती है।

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