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वृत्तचित्र

ह्रदय नारायण दीक्षित


संस्कृ ति के सूत्रधार
Documentry Film on जन्म: लउवा उन्नाव उत्तर प्रदेश

हृदय नारायण दीक्षित शिक्षा: एम.ए. अर्थशास्त्र


सार्वजानिक जीवन:
जिला परिषद् उन्नाव के सदस्य(१९७२)
जीवन के आयाम
आपातकाल जेल: १९७५-७७,१९ माह
जन समस्याओं को लेकर लगातार आन्दोलन/ पद यात्राएँ
पूत के पाँव पालने में दिख जाते हैं. ऐसा ही कु छ हुआ संस्कृ ति के सूत्रधार, राजनीति के गुरु और ज्ञान के पुरोधा ह्रदय
भारतीय आदर्श एंग्लो संस्कृ ति इंटर कॉलेज उन्नाव के प्रबंधक (१९८१ तक)
नारायण जी दीक्षित के साथ. बचपन की आधारभूमि पर ह्रदय नारायण जी ने जो मिट्टी का महल खडा किया उसमें आज भी
पंडित दीन दयाल उपाध्याय कन्या इंटर कॉलेज के संस्थापक प्रबंधक
बचपन के तत्व साफ़ दिखायी देते हैं. दीक्षित जी का रुझान आरम्भ से ही अपने राष्ट्र, धर्म, कला, संस्कृ ति और मानवता के
मुख्या प्रवक्ता भाजपा, उत्तर प्रदेश
प्रति था और आज भी वह उन उद्देश्यों की दिशा में अग्रसर हैं जिसकी अभिव्यक्ति उनकी रचनाओं और राजनितिक जीवन में
पूर्व सदस्य विधान सभा, विधान परिषद् उत्तर प्रदेश
स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है. उनकी सामाजिक सोच हो या राजनीतिक,सब उनकी पुस्तकों में अभिव्यंजित होती हैं. इसलिए हम
उप में पंचायती राज मंत्री/संसदीय मंत्री रहे/विधान मंडल की प्राक्कलन समिति के
उनकी रचनाओं और उनके चिंतन के माध्यम से उन्हें देखने का प्रयास करेंगे.क्योंकि उन्होंने जो किया और जिया है उनकी सभापति
रचनाओं से अधिक किसी अन्य माध्यम से शायद ही समझा जा सकता है. सृजन, प्रकाशन, प्रोत्साहन और सम्मेलन के सम्प्रति: अध्यक्ष विधान सभा
माध्यम से उन्होंने अभिव्यक्ति को अधिकाधिक सम्प्रेषणीय बनाने की दिशा में जो अभियान चलाया वह सर्वथा स्तुत्य है.वे
धर्म और अध्यात्म को वैदिक परम्परा का उत्स मानते हैं, यही कारण रहा कि वे पुरातन पंथी और ढोंगी धर्माचार्यों के सदा
विरोधी रहे. वे चाहते हैं कि नयी पीढी वैदिक चिंतन परम्परा को वैज्ञानिक और प्रगति शील नज़रिए से देखे और सूचना से
इतर ज्ञान से समृद्ध हो !
Presentation
 
Journey of life

o गाँव की गलियाँ. बच्चों की धमा-चौकड़ी..


o उन्हीं बच्चों में एक, ह्रदय नारायण...
o बपचन से ही न्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने की भावना.
o सामाजिक कार्यों में हिस्सेदारी.
o कर्म और धर्म दोनों में सामान विश्वास.
o ऐसे विचारों और संस्कारों से प्रेरित होकर गीता पर पुस्तक का
लेखन. लेखन में शब्दों का अनुशासन.
o भाषा को मर्यादा.
o राजनेता और उच्च कोटि का लेखन बनी जीवन की राह.
o काल चिंतन पत्रिका के संपादक रहे
o राष्ट्रधर्म पत्रिका के संपादक रहे
o पांचजन्य के संपादक / स्वतंत्र भारत राष्ट्रीय स्वरुप/ डेली न्यूज़
एक्टिविस्ट/ सामना जनसंदेश आदि में साप्ताहिक स्तम्भ
o दैनिक जागरण में १० सालों से लेखन
o विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लेखन
कृ ति
o ऋग्वेद और डॉ रामविलास शर्मा
o ऋग्वेद कालीन समाज संस्कृ ति सभ्यता धर्म अर्थ व्यवस्था आदि पर
लेखन
o सांस्कृ तिक राष्ट्र दर्शन
o भारतीय संस्कृ ति की भूमिका
o भगवत गीता
अनिश्चित भविष्य के साथ जीवन की शुरुआत की. बच्चों को पालने और जीवन यापन के लिए अपने पिता को
दर दर की ठोकरे खाते देखा और उनका साथ देने के लिए हमेशा तत्पर रहे. भविष्य अनिश्चित था इसलिए o भारतीय समाज राजनैतिक संक्रमण
बेहतर की उम्मीद कभी नहीं की.
Visuals and shoot plan
बचपन का गाँव
इस भाग का फिल्मांकन दीक्षित जी की बचपन की यादों के आधार किया जाएगा. जिसमें सामाजिक परिस्थितियों, माता-पिता का स्नेह...और बचपन की सोच का
महत्वपूर्ण स्थान होगा... इसमें बचपन के मित्रों, सम्बन्धियों और हितैषियों से की बातचीत का समावेश किया जायेगा.

२. चिंतन और ज्ञान की बढती परिधि


दीक्षित जी की स्मृतियों के आधार पर किशोरावस्था की सोच और चिंतन प्रक्रिया को कहानी के रूप में फिल्मांकित किया जाएगा. इस भाग में तत्कालीन परिस्थितियां,
संवेदनायें, राजनितिक सोच और चिंतन दिशा को महत्वपूर्ण स्थान दिया जायेगा.

३. मंथन; विद्यालय से महाविद्यालय तक


इस भाग में जीवन की दिशा तय करने के कारकों, उत्प्रेरकों, साधनों और सुविधाओं को रेखांकित करने की कोशिश होगी. इसमें कला, साहित्य और राष्ट्र भावना को
महत्वपूर्ण स्थान दिया जाएगा.

४. कर्म क्षेत्र, अनुभव और अनुभूतियाँ


यह भाग दीक्षित जी की कार्य शैली, सृजन की प्रक्रिया, साहित्य और राष्ट्र की सेवा के साथ राजनीतिक सोच की यात्रा का अनुभव तथा सामाजिक बदलाव की दिशा में किये
गए कार्यों का विश्लेषण होगा जो समकालीन राजनीतिज्ञों, समकक्ष मित्रों और साहित्यकारों आदि से की गयी बातचीत पर आधारित होगा.
Technical details of the proposed Film
Name : Sanskriti ke Sootradhaar
Hriday Narayan Dikshit
Duration : 40 minute
Camera : Red Epic
Format: 4K
Aspect Ration: 2.35(Cinemascope)
Locations of shooting –
Birth place, school, college,University
Unnao, lucknow-Vidhan sabha and
Delhi
Important personalities interview –
Childhood friends/Sangh friends/Friends in
journalism/Friends in Politics/Personalities
from field of literature art and culture.
We will also include ,Chief minister of U.P.,
Shri Yogi Adity nath, Governor of west
Bengal-hon,ble Shri Keshari Nath Tripathi ,
Governor of Rajasthan , hon,ble Shri
Kalayan Singh,Speaker of lok sabha,Hon
Sumitra Mahajan. Etc
We will visit various libraries for more Research .

Post production work will be done in Mumbai


संघर्षों से दो चार होते ह्रदय नारायण ने अर्थशास्त्र में एम.ए. किया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक से जड़
ु .े और
फिर हुई जीवन की रोमांचक यात्रा.
जीवन में अवकाश कहाँ?
ज़मीनी−राजनीति में सक्रियता के साथ अध्ययन व लेखन के प्रति इमानदार बने रहे . कहते हैं कि हृदय नारायण
जी यदि राजनीति छोड़ दे ते तो समाज सेवा के क्षेत्र में एक रिक्ति आ जाती और यदि लेखन छोड़ दे ते तो
साहित्य जगत का नक ु सान होता.
विधायक बने.मान सम्मान मिला,पर अपने घर−परिवार की न सोच कर गरीबों का भला करते
रहे .
Elements of the film “घर में इतनी घनघोर गरीबी थी कि उजाले के लिए लालटेन
ख़रीदने के भी पैसे नहीं थे. ढिबरी की रोशनी में एम ए तक पढाई
करनी पड़ी. ख़ैर...परीक्षा का नतीजा हर बार दख ु
हर लेता था..उस दौर में प्रथम श्रेणी से
अपना धरातल एमए पास हुए तो सोचे कि किसी डिग्री
कॉलेज में पढ़ाने को मिल जाए तो रोज़ी
रोटी का भी जुगाड़ हो जाएगा और हमेशा
पढ़ने-लिखने से नाता भी बना रहे गा.
मगर उनके मुस्तकबिल में तो नेता बनना
लिखा था. बस फिर क्या था कि कदम
जाने-अन्जाने उसी राह पर चल पड़े. हम
बात कर रहे जाने-माने स्तंभकार व भाजपा
नेता हृदयनारायण दीक्षित की.
यूँ तो वह किसी परिचय के मोहताज नहीं
हैं. उनके विद्वतापूर्ण लेख अक्सर  अख़बारों
के संपादकीय पेज पर प्रकाशित होते रहते
हैं. उन्हें निर्विरोध उत्तर प्रदे श का
विधानसभा अध्यक्ष चन ु ा गया”
“1984. कांग्रेस के पाले में ज़बरदस्त सहानुभूति की लहर. दोस्तों ने मज़ाक़ मज़ाक़ में कहा-पंडितजी
वो साइकिल आज भी नहीं भूलती पुरवा(उन्नाव) सीट से चुनाव लड़ो-मज़ा आएगा. तैयार हो गया. भला सोचिए, जो बिना लालटेन के पढाई कर
डाला हो उसके घर में साइकिल कहाँ होगी, ख़ैर दोस्तों के दबाव में पर्चा भरा. फिर पैदल चुनाव प्रचार में जुट गया.
कु छ लोगों को तरस आया. उन्होंने चंदे से साइकिल ख़रीदने की सलाह दी. उस वक़्त 170 रुपये में साइकिल
मिलती थी. हमने साथियों के साथ 170 लोगों से एक-एक रुपये चंदा लिया. फिर 170 रुपये में साइकिल
ख़रीदी तो प्रचार अभियान में गति आई. बोलचाल से प्रभावित हुए तमाम युवाओं और छात्रजीवन के साथियों का
कारवाँ जुड़ता गया. हमने छात्रजीवन में छु आछू त मिटाओ मुहिम शुरू की थी. उस अनुभव का बहुत लाभ मिला.
दलित हमारे समर्थक हो गए. खुलकर प्रचार करने लगे। मुझे ख़ुद के जीतने का भरोसा नहीं था. ..... अप्रत्याशित
रूप से मैं दो हज़ार से बढ़त बना चुका था. सब कु छ सपने जैसा रहा। जीत भी गया तो हाथ में सर्टिफ़िके ट आने पर
भी भरोसा नहीं हो रहा था. विधायक बनने से पहले मैं उन्नाव में भाजपा का ज़िलाध्यक्ष था. मगर एक प्रदेश
पदाधिकारी से मतभेद के कारण पार्टी छोड़ दी थी मगर संघ से नाता बचपन से रहा. जब निर्दल विधायक बना तो
एक दिन कलराज मिश्रा और लालजी टंडन घर आए. बोले पंडितजी नाराज़ होकर निर्दलीय ही रहोगे कि अब
घरवापसी भी करोगे. आपका स्थान भाजपा में है. फिर कु छ दिन बाद भाजपा में शामिल हुआ. दो-तीन मौक़ों पर
हारा तो पार्टी एमएलसी बनाकर असेंबली भेजती रही. मगर पहले चुनाव की वो साइकिल आज भी नहीं भूलती.”
ज्ञान का मान-सम्मान
Great thoughts

“मैं ऐसा तंत्र विकसित कर रहा हूं, जिसमें प्रदेश स्तर के , राष्ट्रीय स्तर के बड़े मुद्दे आते हैं उन मुद्दों पर विधायकों के
साथ विशेषज्ञ लोग बैठक कर बात कर सकें . ऐसा मैं विधानसभा से अलग जीएसटी पर पहले भी करा चुका हूं. इसके
अलावा हमारी विधानसभा की लाइब्रेरी में शोध अधिकारी होते हैं, वो प्रतिदिन के अखबारों में छपने वाले आर्टिकल्स
की कटिंग रखते हैं, आर्थिक से लेकर मनोरंजन से संबंधित विषय की कटिंग अलग-अलग रखी जाती है यदि विधायक
वहां जाता है तो शोध अधिकारी उनसे पूछते हैं कि किस विषय पर पढऩा चाहते हैं उनके कहने पर वह उससे संबंधित
सामग्री उपलब्ध कराते हैं मेरा मानना है कि विधायकों को जनता से जुड़ी चीजों के बारे में अधिक ध्यान देना चाहिए।
क्योंकि हम जनता के सामने हाथ-जोडक़र विधायक बनते हैं. विधायक की कोशिश होनी चाहिए कि वह विधानसभा में
प्रभावी विधायक बनें. प्रभावी विधायक बनने का आनंद मैं जानता हूं, मैं कभी किसी मंत्री के दफ्तर नहीं गया, सन
1985 में विधायक बनकर आया था.
पिछले दस सालों में प्रदेश की नौकरशाही में काफी परिवर्तन देखने को मिला है. आपने काफी आन्दोलन किए आप तो
समझते ही होंगे कि नौकरशाही की एक मानसिकता ऐसी बन गयी है कि जैसे वो इस समाज के नहीं हैं, वो कहीं अलग
से आए हैं. कु छ अधिकारी तो गरीब आदमी से मिलना जुलना बिल्कु ल भी पसंद नहीं करते. तो इस खाईं को कै से भरा
जा सकता है? ये इस समाज की बेहद गंभीर और बड़ी समस्या है.”
Sanskrit ke Sootradhaar
Look and Feel
Realistic approach
Journey starts here
We are together…..
Towards great mission
A Halt for endless journey…
Thanks

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