You are on page 1of 214

ch-,-¼vkWulZ½ jktuhfrd foKku lsesLVj&III

isij&VII
varjkZ"Vªh; laca/kksa vkSj fo'o bfrgkl ij ifjizs{;
(Perspectives on International Relations and World History

vè;;u lkexzh % bdkbZ 1-3

eqDr f'k{kk fo|ky;


fnYyh fo'ofo|ky;

laiknd % çks- riu fcLoky


MkW- eaxy nso
jktuhfrd foKku foHkkx
नातक पा यक्रम 

पेपर-VII : अंतरार् ट्रीय संबध


ं और िव व इितहास पर पिरप्रे य 
(Perspectives on International Relations and World History)
अनुक्रम  प.ृ सं.
इकाई-1 : पाठ-1 : अंतरार् ट्रीय संबंध का अ ययन : उ भव एवं ऐितहािसक िवकास 
       डॉ. संतोष कुमार  01
पाठ-2  : इितहास और आई.आर. : अंतररा ट्रीय रा य प्रणाली का उ भव; 
    पाठ-3 : प्री-वे टफेिलया और वे टफेिलया  डॉ. अिभषेक चौधरी  14 
अनुवादक : स ृ टी
पाठ-4  : पो ट-वे टफेिलया डॉ. अिभषेक चौधरी, अनुवादक : काजल  30
इकाई-2 : पाठ-1 : अंतररा ट्रीय संबंध एवं यथाथर्वाद डॉ. प्रमोद कुमार 46
पाठ-2  : उदारवाद  डॉ. िहजम िलज़ा डालो िरहमो, अनुवादक : िवक् 
की झा  59
पाठ-3 : अंतरार् ट्रीय संबंध  म माक्सर्वादी िस धांत लुकी कुमारी  75
अनुवादक : िवक्की झा
पाठ-4  : नारीवादी पिरप्रे य  डॉ. िहजम िलज़ा डालो िरहमो  91
       अनुवादक : नारायण रॉय
पाठ-5 : यरू ोकिद्रकता और वैि वक दिक्षण के पिरप्रे य  डॉ. अिभषेक चौधरी  107
इकाई-3  : पाठ-1 : प्रथम िव वयु ध : कारण और पिरणाम; पाठ-2 : बो शेिवक क्रांित
का मह  व  नारायण रॉय  126
पाठ-3  : फ़ासीवाद और नाजीवाद का उदय  अनीता, अनुवादक : नारायण रॉय  143
पाठ-4  :  िवतीय िव वयु ध : कारण और पिरणाम  नारायण रॉय  156
पाठ-5  : शीत यु ध  डॉ. ि मता अग्रवाल/ नारायण रॉय  171 
पाठ-7  : सोिवयत संघ का िवघटन और शीत यु ध का अंत  अनीता/ नारायण रॉय  187
पाठ-8  : शीत यु ध प चात ् युग : अमेिरकी वचर् व और तीसरे  िव व दे श  
    का उदय; पाठ-6 : तीसरी दिु नया का उदय 
       डॉ. ि मता अग्रवाल, अनुवादक : नारायण रॉय  199 
संपादक :
प्रो. तपन िब वाल 
डॉ. मंगल दे व 

मुक्त िशक्षा िव ालय


िदल्ली िवश्विव ालय
5, के वेलरी लेन, िदल्ली-110007
इकाई-1 

पाठ-1 : अंतरार् ट्रीय संबंध का अ ययन : उ भव एवं ऐितहािसक िवकास 


डॉ. संतोष कुमार 
 
पिरचय 

अंतरार् ट्रीय  संबंध  का  िवषय  उ नीसवीं  एवं  बीसवीं  शता दी  के  समयकाल  म  धीरे -धीरे  
िवकिसत  हुआ।  जेरेमी बथम ने  सवर्प्रथम  1780 म ‘अंतरार् ट्रीय’ श द का प्रयोग कानून  की 
एक  शाखा  के  प म अंतरार् ट्रीय िविधशा त्र को समझाने  के िलए िकया। उसके बाद से  ही 
यह  श द  िविभ न  रा ट्र-रा य   के  म य  संबंध   को  दशार्ने  के  िलए  प्रयोग  म  आता  रहा  है । 
भले  ही  अंतरार् ट्रीय  संबंध  एक  िवषय  के  प  म  प्रथम  िव वयु ध  के  बाद  ही  अकादिमक 
जगत  म  थािपत  हुआ,  पर तु  अंतरार् ट्रीय  संबंध  एक  कायर्प्रणाली  के  प  म  बेहद  पूव र् म 
थािपत  ग्रीक  नगर  रा य   के  समय  से  संचािलत  है ,  िजसका  प्रमाण  हम  ग्रीक  इितहासकार 
यूसीडाईडस  (460-395  ई.पू.)  वारा  िलिखत  ‘द  िह ट्री  ऑफ़  पेलोपेनेिशयन  वॉर’  म  प्रा त 
होता है । ग्रीक नगर रा य  के म य आपसी संघष  को ना सल
ु झा पाना अंतरार् ट्रीय संबंध  की 
भी एक सम या थी। वहीं  एथस का  पाटार्  की तुलना म एक कमज़ोर नगर रा य होना भी 
अंतरार् ट्रीय संबंध की अ य सम या को ही दशार्ता है । इन दोन  नगर रा य  के म य  या त 
संघषर्  शिक्त  और  शिक्तशाली  होने  के  िवचार  को  पिरलिक्षत  करता  है ,  तथा  बाद  म  रोमन 
साम्रा य  वारा  ग्रीक  नगर  रा य   पर  अपना  अिधप य  जमाना  भी  शिक्त  के  िवचार  को 
िचि हत  करता  है ।  बैरी  बुज़ान  एवं  िरचडर्  िलटल  यह  बताते  ह  िक  3500  ईसा  पूव र् म 
सम
ु ेिरयन रा य प्रणाली के दौरान भी अंतरार् ट्रीय  यव था का संचालन िदखाई दे ता है । पर तु 
अंतरार् ट्रीय संबंध  के िवकास का मल
ू  िबंद ु हम ग्रीस के नगर रा य  की  यव था म ही पाते 
ह,  जहाँ  नगर  रा य   के  म य  अपनी-अपनी  वचर् वता  थािपत  करने  की  होड़  म  संघषर्  एवं 
छोटे   तर  के  यु ध  होते  रहते  थे।  तभी  यह  मत  है   िक  ग्रीस  नगर  रा य  से  लेकर  रोमन 
साम्रा य तक का समय काल यु ध , अिधप य  एवं  वचर् व आिद उ दे य  पर ही आधािरत 
रहा। और इ हीं  उ दे य  एवं िवषय-व तुओं  ने  आगे  चलकर अंतरार् ट्रीय संबंध को एक िवषय 
के  प म  थािपत करने म के द्रीय भिू मका िनभाई। इसी समय काल म भारत म भी रा य  
के म य संबंध  से  संबंिधत िवचार रखे  जा रहे   थे, जैसे  कौिट य का अथर्शा त्र जो रा य के 
बेहतर  संचालन  एवं  अ य  रा य   के  साथ  उसके  यवहार  और  संबंध   पर  िनदश  दे ता  है । 
मगर, आधिु नक अंतरार् ट्रीय संबंध  के िवषय की शु आत 20वीं  शता दी के उ राधर्  से  होती 
है ,  जब  कई  िवचारक   ने  यह समझाने  का  प्रयास  िकया  िक  रा य  िजस  प्रकार  का  यवहार 
करते  ह  उसके  पीछे   क्या  कारण  है ,  यह  यवहार  क्य   यु ध   एवं  संघष   को  ज म  दे ता  है , 

1
और िकस प्रकार से  इन यु ध  को होने  से  रोका जा सकता है । प्रथम िव वयु ध के प चात ् 
यूनाइटे ड  िकंगडम  की  यिू नविसर्टी  ऑफ़  वे स  म  अंतरार् ट्रीय  राजनीित  की  एक  िवशेष  चेयर 
की  थापना होने से अकादिमक जगत म अंतरार् ट्रीय संबंध के एक िवषय के  प म  थािपत 
होने  के  िलए  एक  मज़बूत  आधार  िमला।  इसके  साथ  ही  वषर्  1920  म  लंदन  कूल  ऑफ़ 
इकोनॉिमक्स  म  भी  अंतरार् ट्रीय  राजनीित  के  िचंतन  के  िलए  िफ़िलप  िनओल  बेकर  के  नाम 
पर  एक  िवशेष  चेयर  की  थापना  की  गई।  प्रथम  िव वयु ध  से  पहले  अंतरार् ट्रीय संबंध  को 
इितहास, राजनीित व अंतरार् ट्रीय कानून शा त्र के एक उप-िवषय के  प म पढ़ा व समझा 
जाता था, इसीिलए एक मख्
ु य िवषय के  प म इसका अ ययन काफी आधुिनक है । आधुिनक 
रा ट्र  रा य   के  म य  अब  संबंध  पहले  से  कहीं  अिधक  जिटल  व  अंतरिनभर्र  हो  गये  ह, 
इसिलए  इनके  अ ययन  के  िलए  नये  िवषय   व  ज्ञान  शाखाओं  की  ज़ रत  महसस
ू   हुई, 
अंतरार् ट्रीय  संबंध  का  िवषय  उसी  ज़ रत  का  नतीजा  है ।  यह  िवषय  वतर्मान  समय  के  कई 
मह  वपूण र् मु द   की  जाँच  करने  का  प्रयास  करता  है ,  जैसे—अंतरार् ट्रीय  सहयोग  एवं  संघषर्, 
कूटनीित,  शिक्त-संघषर्,  वै वीकरण  की  प्रकृित  एवं  रा य   पर  पड़  रहे   उसके  प्रभाव,  सरु क्षा 
संबंधी खतरे —आतंकवाद, जलवायु पिरवतर्न, त करी, प्रवसन, िनधर्नता आिद।  
परं परागत  प  से  दे खा  जाए  तो  अंतरार् ट्रीय  संबंध  िवषय  के  कद्र  म  मख्
ु यतः  रा य 
यव था  एवं  यापक  िव व  यव था  से  संबंिधत  मु द   और  पिरवतर्न   पर  ही  अिधकतम 
िवचार  िकया  गया  है ।  यह  थािपत  िकया  गया  िक  रा य  के  यवहार  एवं  अ य  रा य   के 
साथ  उसके  संबंध   के  अ ययन  के  मा यम  से  ही  संघषर्  के  कारण  व  ि थितय   एवं  शांित 
थापना  की  संभावनाओं  का  ठीक  प्रकार  िव लेषण  िकया  जा  सकता  है ।  यह  भी  समझना 
आव यक  है   िक  समकालीन  अंतरार् ट्रीय  िस धांत  केवल  राजनीितक  संबंध  नहीं  अिपतु 
मानवािधकार,  बहुरा ट्रीय  सं थाओं,  अंतरार् ट्रीय  सं थाओं,  बहुपक्षीयतावाद,  पािरि थितकी, 
जडर, िवकास, आतंकवाद आिद आयाम  पर भी अपने िवचार  को िव तत ृ  करता है ।  
यह पाठ अंतरार् ट्रीय संबंध  के ऐितहािसक उ भव का िज़क्र करता है । पाठ के प्रार भ म 
राजनीित िवज्ञान के अंतगर्त एक अनुशासन के  प म अंतरार् ट्रीय संबंध के अथर्  एवं  उससे 
जड़
ु  े हुए  के द्रीय  िवचार  का  एक  िव लेषण  प्र तुत  िकया  गया  है ।  उसके  प चात ्  अंतरार् ट्रीय 
संबंध एवं  अंतरार् ट्रीय राजनीित के मह  वपूण र् अंतर को पेश िकया गया है । पाठ का अगला 
भाग  तीन  तरीय  िव लेषण  अथार्त ्  यिक्तगत,  रा य  तथा  अंतरार् ट्रीय  तर  के  लस  से 
अंतरार् ट्रीय संबंध  के अ ययन की आव यकता को िचि हत करता है । इसके बाद अ याय म 
हम अंतरार् ट्रीय राज ्य  यव था के उदगमन, वे टफेिलया के पूव र् व उ र काल की ि थितय  
एवं आधुिनक रा ट्र रा य  के िनमार्ण की पड़ताल करगे।  

2
अंतरार् ट्रीय संबंध : अथर् एवं पिरभाषा 

अंतरार् ट्रीय संबंध एक ऐसा िवषय है   िजसके अथर्  एवं  पिरभाषा को लेकर िविभ न िवचारक  


के  म य  मतैक्यता  थािपत  नहीं  हो  पाई  है ।  अलग-अलग  िवचारक   एवं  िचंतक   ने  अलग-
अलग पिरप्रे य  व पक्ष  के आधार पर इसके अथर् को समझाया है , उ हीं म से कुछ का आगे 
िववरण  प्र तुत  है ।  िक्वंसी  राईट  के  मतानुसार  अंतरार् ट्रीय  संबंध  रा य   के  म य  थािपत 
औपचािरक  संबंध   की  वा तिवकताओं  को  समझने  और  उनका  वैज्ञािनक  अ ययन  करने  म 
योगदान  दे ता  है ।  इसी  कारण  यह  राजनीित  के  दायरे   से  बाहर  जाकर  वािण य  और 
कूटनीितक पहलओ
ु  ं पर भी  यान दे ता है । प्रो.  लेचर इसे  जहाँ  महज़ रा य  के म य संबंध 
के  प म प्रदिशर्त करते  ह तो वहीं  अपनी प्रतीिक्षत पु तक ‘पॉिलिटक्स अमंग नेश स : द 
ट्रगल  फॉर  पॉवर  एंड  पीस’  म  हं स  जे.  मोगर्ंथाऊ  कहते  ह  िक  “अंतरार् ट्रीय  संबंध  रा ट्र   के 
म य शिक्त के िलए संघषर्  है ।” चा सर्  रे नो स अंतरार् ट्रीय संबंध  को एक प्रिक्रया मानते  ह 
िजसके तहत वैि वक  तर पर संघषर् उ प न भी होते ह और उनका समाधान भी िकया जाता 
है ।  
हे रो ड  एवं  मारग्रेट  प्राऊट  के  अनस
ु ार  अंतरार् ट्रीय  संबंध  का  अनश
ु ासन  वतंत्र 
राजनीितक  इकाइय   के  म य  संपकर्  एवं  संबंध   की  जाँच  करता  है   एवं  उनम  टकराव   व 
समझौत  की संभावनाओं  को िचि हत करता है । अ फ्रेड िज़ मेरन इस पक्ष पर प्रकाश डालते 
ह िक  िवतीय िव वयु ध तक भी अंतरार् ट्रीय संबंध एक पण
ू  र् अनश
ु ासन या उपागम के  प 
म  िवकिसत  नहीं  हो  पाया  था  और  ना  ही  इसकी  कोई  सावर्भौिमक  िवषय-व त ु व  िशक्षण 
प्रणाली थी। हटर् मेन के क यानस
ु ार अंतरार् ट्रीय  यव था मख्
ु यतः उन प्रिक्रयाओं  पर आधािरत 
होती है   िजनके मा यम से  एक रा य दस
ू रे   रा य  के िवरोध म अपने  िहत  को समायोिजत 
करता है । यहाँ  यह  यान दे ने  वाली बात है   िक अंतरार् ट्रीय  यव था म अिधकतर रा य  के 
िहत आपसी टकराव की ि थित म होते  ह, इसी कारणवश मोगर्ंथाऊ इसे  शिक्त संबंध  तथा 
संघष  की उपि थित का क्षेत्र कहते ह जहाँ शिक्त ही अपने िहत  को प्रा त करने का मा यम 
होती है । 
फल व प हम दे खते  ह िक अंतरार् ट्रीय संबंध रा य  के म य  थािपत संबंध  पर अपना 
यान अिधक केि द्रत करता है । पर तु  कई िचंतक  की पिरभाषाओं  म गैर-रा य कतार्ओं  की 
उपि थित  को  भी  दजर्  िकया  गया  है ।  अतः  अंतरार् ट्रीय  संबंध  िवषय  की  प्रकृित  अ तर-
अनुशासना मक  है ।  यह  राजनीित  िवज्ञान,  इितहास,  अथर्शा त्र,  जैसे  िवषय   के  साथ-साथ 
अिधकार,  िनधर्नता,  जलवायु  पिरवतर्न,  वै वीकरण  और  पयार्वरण  स ब धी  मु द   को  भी 
अपनी पिरिध म समेटता है । 

3
अंतरार् ट्रीय संबंध तथा अंतरार् ट्रीय राजनीित 

अंतरार् ट्रीय संबंध एवं  अंतरार् ट्रीय राजनीित दोन  अकसर समान अथ  म एक-दस


ू रे   के  थान 
पर प्रयोग िकये  जाते  ह। मोगर्ंथाऊ व केनेथ थो पसन दोन  श द  को लगातार एक ही अथर् 
म प्रयोग करते ह। अंतरार् ट्रीय संबंध असल म अंतरार् ट्रीय राजनीित से अिधक िव तत
ृ  समझ 
को  पेश  करता  है   क्य िक  इसके  अंतगर्त  न  केवल  राजनीितक  अिपतु  आिथर्क,  सामािजक, 
सां कृितक,  कूटनीितक  व  गैर  कूटनीितक  संबंध   की  चचार्  होती  है ।  हे रो ड  तथा  मारग्रेट 
प्राउट  अंतरार् ट्रीय  संबंध  को  ऐसा  क्षेत्र  मानते  ह  जो  मानवीय  यवहार  के  पैटनर्  की  जाँच 
करने के साथ-साथ यह भी परीक्षण करते  ह िक कैसे  रा ट्र के भीतर के मानव  यवहार रा ट्र 
की  सीमाओं  और  उससे  संबंिधत  होने  वाली  हलचल   से  प्रभािवत  होता  है ।  वहीं  अंतरार् ट्रीय 
राजनीित  तल
ु ना मक  तौर  पर  संकीणर्  िवचार  है ,  जो  मख्
ु यतः  रा य   के  म य  राजनीितक 
सत्र
ू , िववाद , संघष  व सहयोग को कद्र म रखता है । पा मर एवं  पिकर् स दोबारा यह  प ट 
करते  ह िक इस अंतरार् ट्रीय जगत की राजनीित म केवल रा य  यव था ही भागीदार होता 
है । 
अंतरार् ट्रीय  संबंध  एवं  राजनीित  दोन   अ ययन  प्रणाली  के  मामले  म  भी  एक-दस
ू रे   से 
िभ न ह। अंतरार् ट्रीय संबंध म अ ययन की प धित जहाँ अिधक  याख्या मक है  िजसम कई 
कारक  और पक्ष  की  याख्या व िववरण संभव होता है , वहीं  अंतरार् ट्रीय राजनीित की प्रकृित 
अिधक  िव लेषणा मक  होती  है ।  इस  िलहाज़  से  अंतरार् ट्रीय  संबंध  अंतरार् ट्रीय  राजनीित  से 
कहीं  यादा अिधक िव तत
ृ  होता है , पर त ु दोन  क्षेत्र  के म य काफी िनकट संबंध भी होता 
है । यहाँ  तक िक कई िचंतक  ने  अंतरार् ट्रीय राजनीित को अंतरार् ट्रीय संबंध का ही एक उप 
क्षेत्र माना है । दोन  म िकतनी भी िविभ नताएँ, समानताएँ  या आपसी संबंध हो, पर तु  इस 
बात को अ वीकार नहीं  िकया जा सकता िक अंत म दोन  ही क्षेत्र समान उ दे य  व ल य  
की पूितर् करने की कोिशश करते ह।  

अंतरार् ट्रीय संबंध का िवषय-व तु एवं संभावनाएँ 

वषर्  1947  म  ग्रेयसन  कीकर्  ने  अंतरार् ट्रीय  संबंध  के  5  आव यक  िवषय-व तु  की  बात  की 
थी—रा य   की  प्रकृित  एवं  कायर्,  रा य  शिक्त  के  िनमार्ण  व  उसको  िनधार्िरत  करने  वाले 
कारक, िव व शिक्त रा य  की िव व  यव था म ि थित एवं  यवहार, समकालीन अंतरार् ट्रीय 
संबंध का उ भव एवं  िवकास तथा, अिधक  थायी िव व  यव था की  थापना। वहीं  1948 
म  इंटरनेशनल  पॉिलिटकल  साइंस  एसोिसएशन  के  पेिरस  स मेलन  म  यह  िनधार्िरत  िकया 
गया  िक  अंतरार् ट्रीय  संबंध  के  िवषय-व तु  म  अंतरार् ट्रीय  राजनीित,  अंतरार् ट्रीय  सं थाओं, 
प्रशासन एवं अंतरार् ट्रीय कानून को शािमल िकया जाना चािहए।  

4
कालर्  यूच  इसके  िवषय-व तु  को  थोड़ा  और  िव तत
ृ   करते  ह  और  इससे  िविभ न 
पहलओ
ु  ं को  जोड़ते  ह  जैसे  रा य  एवं  िव व;  वैि वक  प्रिक्रयाएँ  एवं  वैि वक  अंतरिनभर्रता; 
संघषर्;  शिक्त  संबंध  एवं  सीिमतताएँ;  वैि वक  राजनीित  एवं  समाज;  िव व  जनसंख्या  एवं 
पयार्वरण  संबंधी  सम याएँ;  िविभ न  अि मताएँ;  पिरवतर्न  एवं  यथा थािय व  आिद।  िव सट 
बकर्र  (1970)  ने  भी  अंतरार् ट्रीय  संबंध  के  िवषय-व तु  के  7  मख्
ु य  त व
    की  चचार्  की  है —
रा ट्रीय  शिक्त  के  त  व;  रा ट्रीय  िहत  म  व ृ िध  के  उपल ध  मा यम;  वैि वक  राजनीित  की 
प्रकृित;  अंतरार् ट्रीय  यव था  के  राजनीितक,  सामािजक-आिथर्क  आयाम,  रा ट्र  शिक्त  का 
िनयंत्रण  एवं  सीिमतताएँ;  सभी  प्रमख
ु   एवं  िव वशिक्त  दे श   की  िवदे श  नीितय   के  साथ-साथ 
कुछ मह  वपण
ू  र् छोटे  दे श  की भी िवदे श नीित; हाल की अंतरार् ट्रीय घटनाओं का इितहास।  
बेिलस  तथा  ि मथ  के  मतानुसार  वै वीकरण  के  िवकास  ने  कई  नए  मु द   व  पक्ष   को 
अंतरार् ट्रीय संबंध के िवषय-व तु म जोड़ा है । इस नये प्रकृित के िवषय-व तु म मानवािधकार, 
पयार्वरण संबंधी सम याएँ  एवं  जडर मु द  को शािमल िकया गया है । आधुिनक अंतरार् ट्रीय 
संबंध िवषय के क्षेत्र एवं  संभावनाओं  का मख्
ु य उ दे य रा य के अपने  िहत और अंतरार् ट्रीय 
यव था म उसकी पिरि थित के म य संबंध  थािपत करना ही रहा है । इसी कारण बेिलस 
तथा  ि मथ  िवषय-व त ु को  और  अिधक  िव तत
ृ   करने  के  िलए  अपने  लेखन  म  ‘वैि वक 
राजनीित’ श द का प्रयोग करते ह।  

अंतरार् ट्रीय संबंध के अ ययन की आव यकता : तीन- तरीय िव लेषण  

अंतरार् ट्रीय संबंध  का अ ययन करने  की के द्रीय आव यकता इस त य म िछपी हुई है   िक 


िव व  के  सभी  लोग  िकसी  ना  िकसी  समदु ाय   का  िह सा  है   जो  रा ट्र  का  िनमार्ण  करती  ह 
और ये रा ट्र िफर रा ट्र रा य  म त दील हुए। आज सभी लोग इसी रा य नामक राजनीितक 
इकाई  का  िह सा  ह  और  ये  इकाइयाँ  िमलकर  अंतरार् ट्रीय  यव था  का  िनमार्ण  करती  ह। 
वतर्मान  म  वैधािनक  प  से  सभी  रा य  एक-दस
ू रे   से  वतंत्र  तो  ह,  पर त ु इसका  अथर्  यह 
नहीं  िक वे  अलगाव म ह। वे  केवल सीमाओं  के आधार पर एक-दस
ू रे   से  पथ
ृ क्   िदखाई पड़ते 
ह,  पर त ु अंतरार् ट्रीय  यव था  म  कई  मा यम   से  एक-दस
ू रे   को  प्रभािवत  करते  रहते  ह। 
फल व प  समकालीन  िव व  रा य   की  एक  ऐसी  यव था  के  प  म  पिरलिक्षत  होता  है  
िजसम सभी रा य एक-दस
ू रे  को प्रभािवत करते ह एवं एक-दस
ू रे  पर आपसी  प से िनभर्र भी 
ह।  इसिलए  यह  ज़ री  है   िक  इस  आपसी  िनभर्रता  और  संबंध  का  अ ययन  िकया  जाए, 
वतर्मान की वैि वक घटनाओं को समझा जाए। 
आज  के  दौर  म,  अंतरार् ट्रीय  संबंध  अनश
ु ासन  के  उ दे य  यापक  हो  गये  ह,  जैसे—
अंतरार् ट्रीय  तर पर हो रहे   िववाद  के मल
ू  कारण  की खोज करना व शांित की ज़ रत एवं 
संभावनाओं  को  तलाशना,  साथ  ही  यह  अनश
ु ासन  अंतरार् ट्रीय  तर  पर  प्रयोग  की  जा  रही 
शिक्त  की  प्रकृित  एवं  उपयोग  को  समझने  का  प्रयास  करता  है   और  अंत  म  यह  वैि वक 
5
पिर य के दो मख्
ु य कतार् रा य एवं गैर रा य अिभकतार्ओं की प्रकृित एवं  यवहार की जाँच 
का प्रय न करता है ।  
हम 21वीं  सदी के िव व म जी रहे   ह जहाँ  अंतरार् ट्रीय सहयोग िनरं तर  प से  बढ़ रहा 
है । इसी कारण संयक्
ु त  रा ट्र  संघ  और उसकी अ य सं थाओं  के  साथ-साथ िविभ न क्षेत्रीय 
अंतरार् ट्रीय सं थाओं और इनम कायर्रत  यिक्तय  की कायार् मक उपयोिगता म व ृ िध हुई है । 
जहाँ  एक और अंतरार् ट्रीय आतंकवाद ने  बेहद बड़ी संख्या म रा य रा ट्र  को प्रभािवत िकया 
ु ा  कोष  जैसी  आिथर्क  अंतरार् ट्रीय  सं थाओं  ने  भी 
है ,  तो  वहीं  िव व  बक  और  अंतरार् ट्रीय  मद्र
अंतरार् ट्रीय  यव था  और  संबंध  म  मह  वपूण र् पिरवतर्न  िकये  ह।  इन  सबके  तहत  ही 
अंतरार् ट्रीय संबंध अनुशासन के िव यािथर्य , िशक्षक  एवं  िचंतक  के िलए इस अनुशासन को 
पढ़ने की प्रासंिगकता और भी बढ़ी है ।  

तीन  तरीय िव लेषण 

पाठ के इस भाग का प्रमख
ु  उ दे य अंतरार् ट्रीय संबंध के बेहद मह  वपूण र् त  व–तीन  तरीय 
िव लेषण के िवचार के अथर्  एवं  उपयोिगता को जाँचना है । अंतरार् ट्रीय संबंध के अंतगर्त तीन 
िविभ न  तर  पर अंतरार् ट्रीय संबंध  का िव लेषण िकया जाता है । यह िवचार मख्
ु यतः केनेथ 
वा ज़ से  संबंिधत है   िज ह ने  अपनी पु तक ‘मैन, द  टे ट एंड वॉर’ म रा य  के यु ध के 
प्रित  यवहार और िनणर्य   को  समझने  के िलए तीन  तर   का िव लेषण प्रितपािदत  िकया। 
इसके  अंतगर्त  वा ज़  ने  उन  तीन  तर   या  पक्ष   की  बात  की  िजनपर  रा य  एवं  उसके 
िनणर्य िनमार्ता अपनी िवदे श नीित तय करते ह।  
1. िव लेषण का  यिक्तगत  तर 
वा ज़  के  मत
ु ािबक,  यिक्त  िव लेषण  का  प्रथम  तर  होता  है ।  अथार्त ्  संघष   की  उ पि  
यिक्त  या  मानव  यवहार  और  राजनीितक  िनणर्य िनमार्ता  के  यिक्त व  से  होती  है ।  अतः 
िव लेषण का प्रथम  तर मानव  यवहार पर केि द्रत है । िनणर्य िनमार्ताओं के  प  यिक्त ही 
िवदे श  नीित  का  िनधार्रण  करते  ह  और  ये  िवदे श  नीित  ही  वैि वक  यव था  म  रा य   के 
यवहार को सिु नि चत करती है । इस  तर के अंतगर्त  यान का मख्
ु य कद्र मानव की प्रकृित 
एवं  यवहारगत  पैटनर्  होते  ह।  वा ज़  के  अनुसार  यिक्त  का  वाथर्वादी,  विहत  केि द्रत 
आवेगशाली  यवहार ही संघष  को ज म दे ता है । यह  तर ये  थािपत करता है   िक यु ध  
की उ पि  के पीछे  मानव  यवहार ही कारण है   या िकसी राजनेता का  यिक्त व, जैसा िक 
हम इराक़ म स दाम हुसन
ै  और जमर्नी के िहटलर के स दभर् म दे ख सकते ह।  
2. िव लेषण का रा यगत  तर 
िवतीय  तर  रा य  के  यवहार  को  अपने  िव लेषण  का  कद्र  िबंद ु मानता  है ।  वा ज़  के 
अनुसार रा य की वे  िवशेषताएँ  बेहद मह  व की होती ह जो उसकी नीितय  व उ दे य  को 

6
प्र यक्ष-अप्र यक्ष  प  से  प्रभािवत  करती  ह।  इन  िवशेषताओं  म  रा य  की  सरकार  का  प, 
उसके  आंतिरक  कारक,  रा य  म  की  जा  रही  प्रमख
ु   आिथर्क  गितिविधय   के  प्रकार  और 
िवतरण प्रणाली शािमल होते  ह। इस  तर म रा य को केवल राजनीितक इकाई के तौर पर 
ही नहीं  अिपतु  सं कृित, धािमर्क पहचान , पर पराओं, इितहास और भौगोिलक िविश टताओं 
के  धारक  के  प  म  भी  समझा  जाता  है ।  वा ज़  इस  तर  के  अंतगर्त  रा य  की आंतिरक 
राजनीितक  यव था एवं  उससे  जड़
ु  े िविभ न पक्ष  पर अपना  यान केि द्रत करते  ह। इसके 
संदभर्  म  वे  लेिनन  के  साम्रा यवाद  के  िस धांत  की  ओर  इशारा  करते  ह  िक  कैसे  पँज
ू ीवादी 
रा य अपनी आंतिरक ज़ रत  और मह व
  ाकांक्षाओं के कारण अपनी साम्रा यवादी नीितय  का 
पालन  करते  थे।  रा य   की  आंतिरक  यव था  भी  यु ध  एवं  संघष   को  ज म  दे ती  ह  जैसा 
हम  असफल  रा य  जैसे  उ री  कोिरया  के  केस  म  दे खते  ह।  उसी  प्रकार  अमेिरका  की 
आदशर्वादी  िवदे श  नीित  और  उसका  यह  कहना  िक  वह  िव व  का  लोकतंत्रीकरण  करने  म 
िव वास रखता है  उसके इराक़ एवं कई अ य रा ट्र  म िकये ह तक्षेप को समझाता है ।  
3. िव लेषण का  यव थागत  तर 
यह  तर  िव व  म  थािपत  यव था  को  िव लेषण  के  कद्र  म  रखता  है   और  यह  परीक्षण 
करता है  िक कैसे वैि वक  यव था रा य के  यवहार को प्रभािवत करता है । वा ज़ यह मत 
रखते  ह िक अंतरार् ट्रीय  यव था की प्रकृित अराजकवादी है , अथार्त ् रा य  के ऊपर कोई भी 
िनयंत्रणकारी  शिक्त  मौजद
ू   नहीं  और  यही  अराजकवादी  अंतरार् ट्रीय  यव था  ही  रा य  के 
उ दे य   को  िनधार्िरत  करती  है   और  इस  यव था  म  रा य  कुछ  िवशेष  प्रकार  का  यवहार 
करने  की ओर उ दे ि यत होते  ह। इससे  यह भी  प ट होता है   िक इस अंतरार् ट्रीय  यव था 
म कोई पिरवतर्न रा य  के  यवहार म भी पिरवतर्न को ज  म दे ते ह। इस  यव था म सबसे 
मह  वपूण र् त  व रा ट्र रा य की अिधकृत शिक्त होती है । कुछ रा य  के पास अिधक शिक्त 
होती है  तो कुछ रा य तुलना मक  प से कम शिक्त के धारक होते ह। शीत यु ध के दौरान 
केवल दो िव व शिक्तयाँ  मौजद
ू  थीं  संयुक्त रा ट्र अमेिरका तथा सोिवयत संघ। परं त ु उस दो 
ध्रुवीय िव व  यव था ने  िव व के सभी रा य  को प्रभािवत िकया। वतर्मान एकध्रुवीय िव व 
म भी रा य  के  यवहार इस एक ध्रुवीयता से िनधार्िरत होते  ह। इस िव लेषण के  वारा यह 
आसानी से समझा जा सकता है  िक अमेिरका ने इराक म ह तक्षेप क्य  िकया होगा? यह भी 
दे खा  जा  सकता  है   िक  कैसे  अमेिरका  पूरे  िव व  को  उस  एक  कतार्  के  िवरोध  म  ला  खड़ा 
करता है   जो उसके  वयं  के िलए खतरा होता है । अमेिरका िव व  यव था को बनाये  रखने 
एवं  अपने  वचर् व  को  बनाए  रखने  के  िलए  अपने  िवरोिधय   और  सभी  प्रकार  के  खतर   को 
ख म करने की कोिशश म लगा रहता है । 

7
अंतरार् ट्रीय रा य  यव था के उ भव एवं िवकास का इितहास  

अगला  भाग  आधुिनक  अंतरार् ट्रीय  संबंध  के  िवषय  म  वैि वक  तर  की  यव था  के  उ भव 
एवं  िवकास  की  िववेचना  करता  है ।  िविभ न  िचंतक   ने  रा य  यव था  के  उ भव  की  जड़े 
1648 की वे टफेिलया संिध म ही खोजी िजससे  30 वषीर्य यु ध पर िवराम लगा। इस भाग 
के  अंतगर्त हम वे टफेिलया के पूव र् की ि थित, वे टफेिलया संिध एवं  उसके बाद की िव व 
यव था का आकलन करगे। 
पूव-र् वे टफेिलया ि थित  
वे टफेिलया संिध से पहले भी रा य मौजद
ू  थे और आपसी संबंध म उपि थत थे, पर तु उन 
रा य   को  संप्रभत
ु ा  नहीं  प्रा त  थी,  क्य िक  उ ह  रोमन  चचर्  वारा  सीिमत  िकया  जाता  था। 
उस  दौरान  लोग  संप्रभ ु इकाइय   का  िह सा  नहीं  थे।  मानव  इितहास  पर  नज़र  डाले  तो  हम 
पाते  ह  िक  मनु  य  ने  हमेशा  से  ही  अपनी  सहूिलयत   के  िलए  िकसी-न-िकसी  राजनीितक 
यव था  को  थािपत  िकया  है ।  इन  यव थाओं  म  सबसे  मह  वपण
ू  र् रोमन  तथा  ओटोमन 
साम्रा य  थे।  आगे  के  वष   म  मानव  इितहास  म  रा ट्र
    रा य   की  उ पि   हुई  और  वतर्मान 
तक उ हीं का अि त व  थािपत है । परं तु  ऐसा हो सकता है   िक इन रा ट्र रा य  की भिव य 
म प्रासंिगकता ख म हो जाए और िकसी अ य प्रकार की राजनीितक  यव थाएँ  ज म ले  ल। 
हर  राजनीितक  यव था  एक  लंबे  अंतराल  म  धीरे -धीरे   िवकिसत  होती  है   और  मानव  अपने 
िहत ,  आकांक्षाओं  एवं  पिरि थितय   के  अनुसार  उन  यव थाओं  को  अपनाता  है ।  रा य  की 
प्रकृित  के  समान  राजनीितक  इकाइय   का  अि त व  हम  ग्रीस  म  500-100  ईसा  पूव र् समय 
काल म दे ख सकते  ह जहाँ  आधुिनक रा य  जैसी ही कुछ  यव थाएँ  मौजद
ू  थीं। इस समय 
काल के दौरान ग्रीस म नगर रा य या पोिलस मौजद
ू  थे  िजनम सबसे  प्रमख
ु   पाटार्, एथस 
और  कोिरंथ  थे।  हालाँिक,  जैसे  िक  पहले  बताया  गया  िक  ये  यव थाएँ  िवशेषता म
  क  एवं 
कायार् मक  प से  आधिु नक रा य  से  काफी िभ न थे  एवं  इनकी तरह संप्रभ ु नहीं  थे। ग्रीस 
के इस नगर रा य आधािरत  यव था का अंत रोमन साम्रा य के वचर् व के िव तार के साथ 
हुआ,  पि चम  एिशयाई  और उ री  अफ्रीका के  बहुत  बड़े  भाग  इस साम्रा  य  के  अिधप य  म 
थे।  
रोमन  साम्रा य  िविभ न  राजनीितक  इकाइय   को  अपने  अिधप य  म  लेकर  उ ह  अपने 
अधीन  दजार्  दे ता  था  बजाए  उनके  साथ  समान  तर  पर  समायोजन  करके।  इस  संदभर्  म 
अ य राजनीितक  यव थाओं  के पास मख्
ु यतः दो ही उपाय बचते  थे  या तो रोमन साम्रा य 
के अिधप य और अपनी अधीनता को  वीकार करना या उसके िव ध श त्र उठाकर जवाबी 
िहंसा करना। इसी प्रकार के िवरोध  के नतीजे म ही सिदय  तक चले रोमन साम्रा य का अंत 
भी हुआ। रोमन साम्रा य के पतन के प चात ् दो नए साम्रा य  का उदय हुआ एक पि चम 
यरू ोप  म  और  दस
ू रा  पव
ू  र् का  बाईज़ानटाईन  साम्रा य।  इसके  अितिरक्त  म य  पव
ू  र् म 
8
इ लािमक प्रकृित के साम्रा य भी थे  और भारत एवं  ईरान की समानांतर स यताएँ  भी जारी 
थीं। इसी संदभर्  म हम चीनी साम्रा य को भी दे खते  ह जो सबसे  प्राचीनतम साम्रा य  म से 
एक रहा िजसके अनेकानेक शासक रहे । संपूण र् म यकालीन युग इ हीं  तरह के साम्रा यवादी 
यव थाओं  व उनके म य हुए संघष  का गवाह रहा। इस समय काल म रा य साम्रा य  के 
प म अि त व म थे। परं तु  वे  आधुिनक समझ के अनुसार  वतंत्र व संप्रभु  नहीं  थे  न ही 
उनकी  कोई  सिु नि चत  सीमाएँ  व  क्षेत्रीयता  थी  अथार्त ्  िजस  प्रकार  की  राजनीितक  वतंत्रता 
एवं  क्षेत्रीय  संप्रभत
ु ा  आधुिनक  रा य   के संबंध  म पाई जाती  है   वैसी  वे टफेिलया  से  पूव र् के 
समय काल के इन साम्रा य  म अनुपि थत थी। यह समय काल संघषर्, िववाद, संकट एवं 
यु ध  का भी समय काल रहा।  

वे टफेिलया की संिध एवं आधुिनक रा य  यव था का उदय  

वतर्मान की अंतरार् ट्रीय रा य  यव था की  थापना वषर् 1648 वे टफेिलया संिध के ह ताक्षर 


होने से ही संबंिधत है । इस संिध के साथ ही 1618 से चल रहे  तीस वषीर्य यु ध का अंत हो 
गया,  जो  धािमर्क  कारण   से  जारी  था।  तीस  वष   तक  चला  यह  यु ध  रोमन  साम्रा य  के 
अंदर है सबगर् के कैथोिलक और बोिहिमया के प्रोटे टट के बीच िववाद पर आधािरत था। छोटे  
दज  के  िववाद  से  शु   हुआ  यह  संघषर्  धीरे -धीरे   अ यिधक  बड़े  राजनीितक  उथल-पथ
ु ल  एवं 
यु ध  म  त दील  हो  गया  िजसम  कई  अ य  कतार्  भी  शािमल  हो  गए।  एक  तरफ  कैथोिलक 
पक्ष म ऑि ट्रया व  पेन शािमल थे  तो वहीं  दस
ू री ओर प्रोटे टट के पक्ष म डेनमाकर्, फ्रांस, 
और  वीडन खड़े थे। अतः इस यु ध म स पण
ू  र् यरू ोप ही शािमल हो गया था और यरू ोप का 
अिधकतर भाग इस यु ध की चपेट म आकर तबाह भी हो गया था। वे टफेिलया संिध को 
ह ताक्षिरत कर सभी यरू ोपीय शिक्तय  ने  आपस म एक-दस
ू रे   की संप्रभत
ु ा एवं  वतंत्रता का 
स मान करने का िनणर्य व आ वासन िलया तथा शांित की  थापना की। इसके बाद एक नई 
प्रकार की राजनीितक इकाई की  थापना हुई िजसकी प्रकृित एवं  संरचना पहले  से  िभ न थी, 
जो  असल  म  आधुिनक  रा य  था।  इन  आधुिनक  रा य   की  मख्
ु य  िवशेषता  इनकी  संप्रभत
ु ा 
थी। इसके अितिरक्त इस संिध के बाद रा य  के म  य कूटनीित एवं म य थता म भी व ृ िध 
हुई। रा य  एवं उनम िनवािसत जनसंख्या के म य एक नये प्रकार के संबंध  का िवकास भी 
हुआ। साथ ही अंतरार् ट्रीय  यव था म नये  प्रकार के कानून  और संरचनाओं  की भी  थापना 
हुई। वतर्मान की सबसे  मह  वपूण र् अंतरार् ट्रीय सं था संयुक्त रा ट्र संघ की  थापना होना भी 
इसी  का  नतीजा  माना  जा  सकता  है ।  आज  की  अंतरार् ट्रीय  यव था  और  इसम  होने  वाली 
सभी घटनाओं  की जड़े  कहीं-न-कहीं  वे टफेिलया की संिध से  ही जड़
ु ी हुई ह। वे टफेिलया की 
इस शांित संिध के प चात ् रा य ही अंतरार् ट्रीय  यव था म एकमात्र वैधािनक प्रािधकार एवं 
स ा के  ोत के  प म उभर कर सामने  आया। अब केवल संप्रभ ु रा ट्र रा य ही यु ध  पर 
जा सकते  ह, गठबंधन म आ सकते  ह और िविभ न संघ का िह सा बन सकते  ह। अंततः 

9
इस  संिध  के  मा यम  से  संप्रभत
ु ा,  क्षेत्रीय  अखंडता,  राजनीितक  वतंत्रता  एवं  समानता  के 
िस धांत  की अंतरार् ट्रीय रा य  यव था म  थापना हुई।  

उ र वे टफेिलया की रा य  यव था 

1648 से आर भ वे टफेिलयन  यव था अगली कुछ ही शताि दय  म यूरोप से िनकलकर पूरे 


िव व म  थािपत हो गयी और इस  यव था की प्रासंिगकता अनेक कारण  से  बढ़ी। पहला, 
इसने  वैि वक  राजनीित  को  धमर्  व  पर पराओं  से  पथ
ृ क्   करके  रा य   के  िहत   पर  केि द्रत 
िकया। दस
ू रा, इस संिध व  यव था ने  अंतरार् ट्रीय संबंध म संप्रभत
ु ा के िस धांत को मख्
ु य 
प से  थािपत िकया। तीसरा, इसने यह िवचार िदया िक वैि वक राजनीित के दायरे  म सभी 
रा य  का दजार्  सामान होगा, अथार्त ् समानता को बढ़ावा। इ हीं  िवशेषताओं  के कारण धीरे -
धीरे   एिशया,  अफ्रीका  और  लैिटन  अमेिरका  म  भी  वे टफेिलया  यव था  का  िव तार  होता 
गया। इस  यव था के बाद प्रचिलत कूटनीितक चलन  ने प्रथम िव वयु ध के दौरान व उसके 
बाद  अंतरार् ट्रीय  सहयोग  को  थािपत  करने  का  प्रयास  िकए  गए।  प्रथम  िव वयु ध  के  बाद 
थािपत  रा ट्र  संघ  (लीग  ऑफ़  नेशंस)  और  िवतीय  िव वयु ध  के  बाद  1945  थािपत 
संयक्
ु त रा ट्र संघ (यन
ू ाइटे ड नेशंस) वे टफेिलया शांित की िवशेषताओं को पिरलिक्षत करते ह।  
वे टफेिलया  की  संिध  ने  ही  उ र  वे टफेिलया  िव व  की  राह  तय  की  और  इस  उ र 
वे टफेिलया िव व म संघषर्  और सहयोग के साथ साथ सह-अि त व की भावना ही वतर्मान 
स चाई है । पर तु  कुछ िवशेष प्रकार के मु द  और घटनाओं  के कारण समानता के िस धांत 
से शु  हुई इस  यव था म थोड़ी पदसोपनीयता की उपि थित दजर् होती है ।  

वे टफेिलया  यव था के समक्ष सम याएँ एवं संकट 

िविभ न  िवचारक   और  नीित  िनधार्रक   के  म य  इस  प्र न  पर  िववाद  है   िक  क्या  वतर्मान 
अंतरार् ट्रीय  यव था  आज  भी  वे टफेिलया  यव था  से  प्रभािवत  हो  रही  है ?  वतर्मान  िव व 
वै वीकरण के प्रभाव के अंतगर्त कायर्रत है , साथ ही यह बहुरा ट्रीयता के साथ-साथ संकीणर्ता 
का  भी  अनुपालन  कर  रहा  है ।  आज  कई  गैर  रा य  कतार्  जैसे  अंतरार् ट्रीय  संगठन  एवं 
बहुरा ट्रीय एजिसयाँ  संप्रभ ु रा य के साथ प्रित वं िवता म संलग् न ह। वैि वक सं थाओं  एवं 
संगठन   की  संख्या  म  भी  अ यिधक  व ृ िध  हुई  है ।  वै वीकरण  के  असर  के  फल व प 
राजनीित  रा य  की  सीमाओं  के  इतर  भी  संचािलत  हो  रही  है ,  अनेकानेक  सहयोग  आधािरत 
संगठन  के मा यम से। आज सभी दे श एक जिटल अंतरार् ट्रीय अंतरिनभर्र शासन म संलग् न 
ह िजसम बहुरा ट्रीय एजिसयाँ, अंतरार् ट्रीय संघ एवं  गैर रा ट्रीय संगठन भी सि मिलत होते 
ह।  अथार्त ्  समकालीन  िव व  वे टफेिलया  के  रा य  आधािरत  यव था  को  एक  हद  तक 
चुनौती दे  रहा है ।  
 

10
वै वीकरण  के  प्रभाव  केवल  वैि वक  गितिविधय   को  ही  नहीं  अिपतु  उस  स ा  को  भी 
चुनौती  दे   रहे   ह  जो  रा ट्र  रा य   के  फैसल   म  िनिहत  होती  है ।  मौजद
ू ा  दौर  म  नीितगत 
िनणर्य व रा य  के फैसल  म केवल रा य ही के द्रीय भिू मका म नहीं  रहा अिपतु  रा य के 
अलावा भी कई कतार्ओं  की भिू मका  थािपत हुई है । 1990 के दशक से  ये  भिू मकाएँ  अिधक 
पैमाने  पर बढ़ने  लगी और रा य की संप्रभत
ु ा को इससे  खतरा  प ट  प से  पेश आने  लगा। 
अतः  यह  कहा  जा  सकता  है   िक  बदलते  दौर  म  वे टफेिलया  वारा  थािपत  रा य  की 
संप्रभत
ु ा म बहुत बदलाव हुए ह और इसे  चुनौितय  का भी सामना करना पड़ा है । साथ ही 
िवतीय िव वयु ध के उपरांत रा य  वारा अनुपािलत  व केि द्रत व  विहत का  यवहार भी 
सीिमत हुआ है   क्य िक रा य को कई वैि वक िनयम  का पालन एवं  वै वीकृत  यव था का 
दबाव झेलना पड़ा है । शीत यु ध के दौरान भी जहाँ  एक तरफ शिक्त प्रदशर्न के उ दे य से 
संघ  का िनमार्ण हुआ तो वहीं  दस
ू री तरफ संघष  को कम करने  व सहयोग  थापना के िलए 
भी  िविभ न  संगठन   की  थापना  की  गई।  शीत  यु ध  के  अंत  तक  आते-आते  अंतरार् ट्रीय 
संगठन  जैसे—WTO, IMF, WHO की भिू मका म इज़ाफ़ा हुआ तो वहीं  क्षेत्रीय संगठन  जैसे 
यूरोपीय संघ, आिसयान, साकर्, नाटो आिद की उपयोिगता म भी व ृ िध हुई।  
िवचारक  एवं िविभ न िवशेषज्ञ  का मत है  िक वे टफेिलयन  यव था अपने दौर म बेहद 
प्रभावशाली एवं  क्रांितकारी ज़ रत थी। इसने  अंतरार् ट्रीय स ब ध, राजनीित एवं  कूटनीित को 
उ नत िकया, एक ऐसा िवचार व  यव था जो 17वीं  शता दी से  पहले  अि त व म नहीं  थी। 
और यह वे टफेिलया का मॉडल वतर्मान समय म भी बेहद प्रासंिगक बना हुआ है ।  

िन कषर्  

प्र तत
ु  पाठ म हमने  मख्
ु यतः यह दे खा िक अंतरार् ट्रीय संबंध िवषय िकस प्रकार समकालीन 
समय म िवकिसत हुआ और  वयं  म एक मह व   पण
ू  र् अ ययन क्षेत्र म त दील हो गया। पाठ 
की शु आत अंतरार् ट्रीय संबंध के अथर्  एवं  पिरभाषाओं  को समझने  से  हुई और आगे  चलकर 
हमने  दे खा  िक  िकस  प्रकार  यह  एक  अकादिमक  िवषय  के  प  म  उभरकर  सामने  आया। 
इसके बाद अंतरार् ट्रीय राजनीित व अंतरार् ट्रीय संबंध म अंतर एवं  संिक्ष त तल
ु ना को िचित्रत 
िकया गया, िजसम यह  प ट हुआ िक कैसे  ये  दोन  िवचार काफी समान अथ  को प्रदिशर्त 
करते  ह,  पर तु  िफर  भी  एक  तर  पर  दोन   म  िभ नता  मौजद
ू   है ।  इसके  अगले  भाग  म 
हमने  दे खा  िक  िकस  प्रकार  वा ज़  वारा  प्रितपािदत  तीन  तरीय  िव लेषण  से  अंतरार् ट्रीय 
संबंध के िवषय-व तु  को सरलतापूवक
र्  समझा जा सकता है ।  यिक्तगत  तर मानव  यवहार 
को िव लेषण के कद्र म रखता है   तो वहीं  रा यगत  तर रा य के आंतिरक संरचनाओं  और 
यवहार को तथा  यव थागत  तर अंतरार् ट्रीय  यव था की अराजक  यव था को िव लेषण 
के कद्र म रखते  ह। िवचारक   वारा यह तकर् िदया जाता रहा है   िक 1648 की वे टफेिलया 
संिध  ने  ही  आधुिनक  संप्रभ ु रा य   का  िनमार्ण  िकया  और  वतर्मान  की  रा य  यव था  की 

11
थापना  की।  इस  यव था  की  थापना  से  पूव र् अन ्य  प्रकार  की  राजनीितक  यव थाएँ  भी 
मौजद
ू   थी  िजनम  सबसे  प्रमख
ु   साम्रा य  थे।  इन  साम्रा य   व  आज  के  रा ट्र  रा य   म  कई 
िभ नताएँ  भी  थीं,  िजनका  उ लेख  पथ  म  िकया  गया।  कई  िचंतक   ने  यह  मत  रखा  िक 
वै वीकरण के प्रभाव ने  इस वे टफेिलयन  यव था व रा य की संप्रभत
ु ा को काफी बदला है  
और इसके िखलाफ चुनौती भी पेश की। पर तु  इस वै वीकृत िव व म एक आधुिनक रा य 
एक नई प्रकार की राजनीितक  यव था का िह सा बन रहे   ह, िजसम वे  केवल एक-दस
ू रे   से 
नहीं  अिपतु  अ य गैर रा य अिभकतार्ओं  के साथ भी संबंध म ह, और ये  पर पर प्रिक्रयाएँ 
एक नये प्रकार की अंतरार् ट्रीय  यव था का िनमार्ण करने म लगी हुई ह।  

स दभर्-सच
ू ी 
बेिलस  जॉन,  ि मथ  टीव  और  पैिट्रका  ओवेन  (संपािदत),  (2008)  ‘द  ग्लोबलाइजेशन  ऑफ 
व डर् पॉिलिटक् 
स : इंट्रोडक्शन टू इंटरनेशनल िरलेश स’ ऑक्सफोडर् यूनविसर्टी प्रेस. 

सी. ब्राउन और के. ऐनले. (2009) अंडर टिडंग इंटरनेशनल िरलेशनस, बिसंग टोक : पालग्रेव. 

िक्रि चयन क्रूडर सॉ नेन और बरनहाडर्  ज़ांगल (2005) िवच पो ट वे टफेिलस? इंटरनेशनल 


ऑगर्नाइजेश स  बी वीन  कॉन टी यश
ु निल म  एंड  ऑथोरीटे िरयिन म'  यरू ोपीयन  जनर्ल  ऑफ 
इंटरनेशनल िरलेश स, वॉ यम
ू  21(3). 568-594. 

जैक्सन रॉबटर्   एंड सोरसन जॉजर्, (2010), “इंट्रोडक्शन टू इंटरनेशनल िरलेशनस; थयोरीज़ एंड 
ऐप्रोचेस” ऑक्सफोडर् यूिनविसर्टी प्रेस. 

जयाब्रत  सरकार  (2015)  'िडबेिटंग  ए  पो ट  वे टफेिलयन  इंटरनेशनल  ऑडर्र'  मैन ट्रीम, 


वॉ यम
ू  III, नंबर 5. 

के.  बूथ  और  एस.  ि मथ,  (संपािदत),  ‘इंटरनेशनल  िरलेश स  योरी  टुडे’  पेनिसलवेिनया,  द 
पेनिसलवेिनया  टे ट यूिनविसर्टी प्रेस. 

लांसफॉडर्,  टॉम.  (2000),  ‘पो ट-वे टफेिलयन  यूरोप?  सोवरे नटी  एंड  द  मॉडनर्  नेशन- टे ट’, 
इंटरनेशनल  टडीज़ 37(1): 1-15. 

लेवल ऑफ एनािलिसस इन इंटरनेशनल िरलेशनस बाय वेबर: पे ट फ्रॉम शीट :  

https://www.academia.edu/25476049/Levels_of_Analysis_in_International_Relati
ons#:~:text=Levels%20of%20Analysis%20in%20International%20Relations%20P
olitical%20Science%20151%3A%20Professor,complex%20problems%20in%20w
orld%20politics.  

12
िलटल,  िरचडर्.  (2005),  “सोवरे नटी”,  इन  एनसाइक्लोपीिडया  ऑफ  इंटरनेशनल  िरलेशनस  एंड 
ग्लोबल पॉिलिटक्स, (संपािदत) एम. िग्रिफथस. लंदन: राउटलेज. 

एम. िनकोलसन, (2003) ‘इंटरनेशनल िरलेशनस : ए कंसाइज इंट्रोडक्शन’  यूयॉकर् यूिनविसर्टी 
प्रेस. 

एम.  ि मथ  और  आर.  िलटल  (2000)  (संपािदत),  ‘पसर्पेिक्ट स  ऑन  व डर्  पॉिलिटक्स', 
यूयॉकर्,  टलेज. 

Patton,  टीवन  (2019)  “द  पीस  ऑफ  वे टफेिलया  एंड  इट  अफेक् स  ऑन  इंटरनेशनल 
िरलेशनस, िड लोमेसी एंड फॉरे न पॉिलसी, द िह टरीज : वॉ यम
ू  10 : इ य ू 1: 

https://digitalcommons.lasalle.edu/the_histories/vol10/iss1/5 

आर  िमंग ट  (2011)  एसिशयलस  ऑफ  इंटरनेशनल  िरलेशनस,  यय


ू ॉकर्  :  डब य.ू   डब य.ू  
नॉटर् न एंड कंपनी. 

रे मड
ं , ग्रेगोरी ए. 2005. “वे टफेिलया” इन एनसाइक्लोपीिडया ऑफ इंटरनेशनल िरलेशनस & 
ग्लोबल पॉिलिटक्स, (संपािदत) एम. िग्रिफथस. लंदन: राउटलेज. 

एस. जोशुआ. गो ड टीन और जे. पेवहाउस, (2007) इंटरनेशनल िरलेशंस,  यूयॉकर्, िपयरसन 


ल गमन. 

वैगन माइकल, ‘आ टर वे टफेिलया, िवदर द नेशन  टे टस, इ स पीपल एंड इ स गवनर्मटल 


इं टी यश
ू न’  पेपर  प्रेसटे ड  एट  द  इंटरनेशनल  टडीज़  एसोिसएशन  एिशया  पैसेिफक  रीजनल 
कांफ्रस ऑन िसतंबर 29, 2011. 

वरमानी  आर.सी.  (2017)  ‘पसर्पेिक्ट स  ऑन  इंटरनेशनल  िरलेशनस  एंड  व डर्  िह ट्री’ 
ं  हाउस, नई िद ली. 
गीतांजिल पि लिशग

 
 

13
इकाई-1 

पाठ-2 : इितहास और आई.आर. : अंतररा ट्रीय रा य प्रणाली का उ भव 


पाठ-3 : प्री-वे टफेिलया और वे टफेिलया 
डॉ. अिभषेक चौधरी 
अनुवादक : स ृ टी 
 
1.  पिरचय 

अंतररा ट्रीय  संबंध   को  समझने  के  िलए  ऐितहािसक  घटनाओं  को  समझना  आव यक  है । 
1
िवषय  की  प्रमख
ु   अवधारणाएँ  ऐितहािसक  पिरि थितय   के  पिरणाम  रही  ह ।  इितहास  का 
मह  व  इस त य  से  भी  प ट होता है   िक िव वान अतीत की सै धांितक  अवधारणाओं  को 
वतर्मान  घटनाक्रम   को  समझने  के  िलए  दे खते  ह।  इस  संबंध  म,  यह  अ याय  अंतररा ट्रीय 
रा य प्रणाली के उ भव का िव लेषण प्र तुत करता है । 

अंतररा ट्रीय  प्रणाली  को  िनयिमत  वातार्लाप  से  जड़


ु  े समान  या  िविवध  सं थाओं  के 
एकत्रीकरण  के  प  म  पिरभािषत  िकया  जा  सकता  है ।  अंतररा ट्रीय  क्षेत्र  म  मख्
ु य  अिभनेता 
रा य ह, तब भी जब वै वीकरण की प्रभाव  के आगमन के साथ अ य अिभनेता मह  व प्रा त 
कर  रहे   ह।  एक  कानूनी  अवधारणा  के  प  म  ‘रा य ’  की  िवशेषता  है —  (ए)  पिरभािषत 
सीमाओं  के  साथ  एक  क्षेत्र;  (बी)  एक  जनसंख्या;  (सी)  एक  सरकार;  और  (डी)  अ य  संप्रभ ु
रा य   वारा  एक  संप्रभ ु रा य  के  प  म  मा यता2।  रा य   की  यह  पिरभाषा  रा य  की 
संप्रभत
ु ा  की  अवधारणा  को  दशार्ती  है   जो  1933  के  म टे वीिडयो  क वशन  के  अनु छे द  1  म 
िनिहत है । लेख रा य को िन निलिखत योग्यता रखने  वाले  के  प म पिरभािषत करता है —
(ए) एक  थायी जनसंख्या; (बी) एक पिरभािषत क्षेत्र; (सी) सरकार; और (डी) अ य रा य  के 
साथ संबंध  म प्रवेश करने की क्षमता3। इस प्रकार, रा य की संप्रभत
ु ा एक प्रमख
ु  पहल ू है । 

बॉक्स : संप्रभत
ु ा 

संप्रभत
ु ा  राजनीितक  अिधकार  के  िलए  नीित  बनाने  या  घरे ल ू या  िवदे श  म  िनणर्य लेने  का 
ढ़  कथन  है ।  यह  पिरभाषा  दो  बुिनयादी  िस धांत   पर  िटकी  हुई  है ।  ये  क्षेत्रीयता  और 
वाय ता  के  दोहरे   िस धांत  ह।  प्रादे िशकता  का  ता पयर्  है   िक  रा य  एक  पिरभािषत 
भौगोिलक  थान पर अन य राजनीितक अिधकार रखने  के अिधकार का दावा करते  ह। यह 

1
Mingst, Karen (2011), Essentials of International Relations, p. 17. 
2
Viotti, Paul and Mark Kauppi (2001), International Relations and World Politics, p. 32. 
3
Mansbach, R. and K. Taylor (2008), Introduction to Global Politics, p. 36. 
14
संप्रभत
ु ा  का  आंतिरक  आयाम  है ।  वाय ता  से  ता पयर्  यह  है   िक  रा य  की  सीमाओं  के 
भीतर िकसी बाहरी कतार् को अिधकार प्रा त नहीं है । यह संप्रभत
ु ा का बाहरी आयाम है । 

संप्रभत
ु ा की अवधारणा ने  जोर पकड़ना शु  कर िदया और वे टफेिलया की शांित (1648) 
के  साथ  िन ठा  व  ईमानदारी  पर  यान  किद्रत  करने  के  प  म  रा ट्र-रा य  के  िवचार  म 
योगदान िदया। 

2.  अंतररा ट्रीय प्रणािलय  के प्रकार 

िवयोटी और कौ पी (2001) अंतररा ट्रीय प्रणािलय  के चार आदशर्  प्रकार  की पहचान करते 


ह—  वतंत्र; आिधप य; शाही; और सामंत — तथा अंतररा ट्रीय संबंध  के इितहास को समझने 
के िलए इस वैचािरक  ेणी को लागू  करने  के लाभ  की  याख्या करते  ह1। ये  आदशर्  प्रकार 
ह— इसका अथर्  है   िक ये  वा तव म उस सटीक तरीके से  उपि थत नहीं  थे  जैसा िक  ेिणयाँ 
सझ
ु ाती ह। य यिप, अंतररा ट्रीय प्रणािलयाँ  यापक अथ  म इन  ेिणय  के अंतगर्त आती ह। 
साथ  ही,  वा तिवक  िव व  म,  ेिणय   के  म य  अित या त  होने  की  संभावना  है   जैसा  िक 
अिग्रम भाग प्रदिशर्त करे गा। 

सवर्प्रथम,  वतंत्र रा य प्रणाली  राजनीितक सं थाएँ  ह जो िवदे श नीित और घरे ल ू िनणर्य 


लेने  के  अिधकार  के  साथ  संप्रभ ु होने  का  दावा  करती  ह।  शिक्त  संतुलन  बनाए  रखना  और 
संप्रभत ू रा, आिधप य वाली रा य प्रणाली म, एक 
ु ा का स मान इस प्रणाली के कद्र म है । दस
या  एक  से  अिधक  रा य  प्रणाली  पर  हावी  होते  ह  और  अ य  रा य   के  बाहरी  मामल   पर 
सीधा  प्रभाव  डालते  ह।  ऐसी  यव था  एकध्रव
ु ीय  (एकल  प्रभु व  वाला  रा य),  िवध्रव
ु ीय  या 
दोहरा  आिधप य  (दो  प्रमखु   रा य),  बहुध्रवु ीय  या  सामिू हक  आिधप य  (तीन  या  अिधक 
प्रभावशाली  रा य)  हो  सकती  है ।  तीसरा,  शाही  यव था  या  अिधरा य  प्रणाली  म  िनयिमत 
वातार्लाप से  जड़
ु ी िभ न–िभ न सामािजक इकाइयाँ  होती ह, िक त ु उनम से  एक राजनीितक 
वचर् व का दावा करती है   और एक िवषय रा य या उपिनवेश के मामल  का प्रबंधन करती 
है ।  चौथा,  सामंती  यव था  को  स ा  की  अपनी  िवशेषता  से  िभ न  िकया  जाता  है ,  िजसका 
दावा एक बहुत ही िवके द्रीकृत प्रणाली म राजाओं, ता लक ु दार ,  यापािरक घरान  और पोप 
2
सिहत सरकारी इकाइय  के एक िविवध समह ू   वारा िकया जाता है । 
तथाकिथत  “प्री-वे टफेिलयन  व डर्”  को  त कालीन  उपि थत  :  रा य   की  यव था  को 
दे खकर  समझा  जा  सकता  है ।  प्रमख
ु   ऐितहािसक  अंतररा ट्रीय  प्रणािलय   का  िव लेषण  हम 
प्रणािलय , अिभनेताओं और प्रिक्रयाओं की िविवधता को समझने की अनुमित दे ता है 3। 

1
Viotti and Kauppi (2001), ibid., p. 35. 
2
ibid. p. 35, 37. 
3
ibid. p. 39. 
15
3.  पूव-र् वे टफेिलयन चरण म प्रमख
ु  ऐितहािसक अंतररा ट्रीय प्रणािलयाँ 

िविभ न प्रकार की अंतररा ट्रीय प्रणािलयाँ— आदशर्  प्रकार के  वतंत्र, आिधप य, साम्रा यवादी 


और  सामंती  प्रणािलय   के  अंतगर्त  व  उसके  आसपास—इितहास  म  मौजद
ू   थीं।  िवयोटी  और 
कौ पी  (2001)  इस  यापक  वगीर्करण  की  याख्या  करने  के  िलए  कुछ  प्रमख
ु   ऐितहािसक 
1
अंतररा ट्रीय  प्रणािलय   को  सच
ू ीब ध  करते  ह ।  ये  थे—  1.  फारसी  साम्रा य  -  एक  शाही 
यव था के आदशर्  प्रकार के करीब। 2. शा त्रीय ग्रीस  -  वतंत्र रा य प्रणाली व आिधप य 
प्रणाली  के  आदशर्  प्रकार   के  अंतगर्त  आता  है ।  3.  भारत  -  वतंत्र  रा य  यव था  और 
साम्रा यवादी  यव था का प्रितिनिध व। 4. रोमन साम्रा य। तथा 5. म यकालीन यूरोप एक 
सामंती  यव था का प्रितिनिध व करता है । 

3.1 फारसी साम्रा य 
फारस  (वतर्मान  ईरान  म  किद्रत)  प्राचीन  दिु नया  म  शाही  संगठन  का  एक  उदाहरण  है । 
फारसवासी  उन  क्षेत्र   के  थानीय  रीित-िरवाज   को  आ मसात  करने  म  िवशेषज्ञ  थे  िज ह  वे 
अपने  साम्रा य म सि मिलत करना चाहते  थे। इसने  सरल िव तारीकरण एवं  उनके साम्रा य 
के कुशल िनयंत्रण की अनम
ु ित दी। उदाहरण के िलए, उ ह ने  प्रशासन और िवज्ञान म िम  
की  प्रगित  को  अपनाया।  उ ह ने  उ म  संचार  के  िलए  िविजत  क्षेत्र  की  थानीय  भाषा  को 
सामा य भाषा के  प म प्रयोग िकया। फारसी साम्रा य का िवकद्रीकृत िनयंत्रण था। जबिक 
आंतिरक कोर को सीधे प्रशािसत िकया गया था, िनयंत्रण उन क्षेत्र  म अिधक िवके द्रीकृत था 
जो  राजधानी से  दरू   थे। ऐसे  क्षेत्र   के क्षेत्र अधर्- वाय  थे  िजसका अथर्  था िक उनका कुछ 
हद  तक  िनयंत्रण  था।  िनयंत्रण  बनाए  रखने  का  प्रमख
ु   तरीका  अनन
ु य  के  मा यम  से  था। 
राजनीितक शासक, सलाहकार पिरषद  की सहायता से,  थानीय कमांडर  की तुलना म एक 
िभ न  क्षेत्रािधकार  का  प्रयोग  करते  थे।  थानीय  प्रशासिनक  रीित-िरवाज   का  स मान  िकया 
गया  और  दरू -दराज  के  साम्रा य  म  क्षेत्रीय  और  सां कृितक  अंतर  वाले  क्षेत्र   को  प्रशािसत 
करने  के  िलए  अपनाया  गया।  साम्रा य  के  प्रित  फारसी  शासक   का  ि टकोण  घटक  क्षेत्रीय 
इकाइय   को  आंतिरक  वाय ता  प्रदान  करने  पर  आधािरत  था।  इससे,  बदले  म,  सै य  और 
प्रशासिनक लागत म काफी कमी आई। 

3.2. शा त्रीय ग्रीस 
शा त्रीय  ग्रीस  (छठी  -  पहली  शता दी  ईसा  पूव)र्   म  िविभ न  राजनीितक  सं थाएँ  सि मिलत 
थीं  िज ह शहर-रा य कहा जाता था िजनकी छोटी जनसंख्या व सीिमत बाहरी िनयंत्रण था। 
ग्रीक शहर-रा य  म सरकार के प्रकार म ऐसे  राजतंत्र सि मिलत थे  जो िनरं कुशता की ओर 

1
ibid. p. 39-51.
16
प्रव ृ   थे।  अ य  प्रकार  के शासन म प्रबु ध  अिभजात  वगर्, शोषक  कुलीन वगर्  और लोकतंत्र 
भी सि मिलत थे। 

बॉक्स : अर तू के अनुसार सरकार के प्रकार 

अर तू ने शासक  की संख्या के आधार पर छह प्रकार की सरकार की पहचान की। शु ध  प 
आदशर्-प्रकार के होते  ह, जो उनके घिटत होने  की संभावना को कम करते  ह। िवचिलत  प 
िवकृत प्रकार ह िज ह वा तिवक दिु नया म आसानी से दे खा जा सकता है । 

संख्या  शु ध  प  संगत िवचलन से 

एक शासक  राजतंत्र  िनरं कुश 

कुछ शासक  अिभजात वगर्  कुलीनतंत्र 

कई शासक  राजनीित  लोकतंत्र 

िविभ न  शहर-रा य   ने  अपनी  वतंत्रता  बनाए  रखने  की  िदशा  म  कायर्  िकया।  शिक्तशाली 
शहर-रा य  ने  कमजोर शहर-रा य  पर हावी का प्रयास िकया और सै य सरु क्षा के बदले  म 
धांजिल दी। राजनियक प्रथाएँ  मुख्य  प से  प्रितिनिधमंडल  पर िटकी हुई थीं  िज ह अ य 
शहर-रा य  म माँग  को पेश करने, िववाद  को सल
ु झाने या  यापार समझौत  म प्रवेश करने 
के  िलए  भेजा गया था। 18वीं  और 19वीं  शता दी म यूरोपीय  और  अमेिरकी राजनियक  के 
िलए अंतररा यीय संबंध इस शा त्रीय यूनानी काल पर आधािरत थे1। 

5वीं  शता दी ईसा पूव र् के दौरान दो सबसे  शिक्तशाली शहर-रा य  के  प म  पाटार्  और 


एथस  का  उदय  हुआ।  वतंत्र  रा य  यव था  के  थान  पर  दोहरे   आिधप य  के  दौर  प्रारं भ 
हुआ।  पाटर् स और एथेिनयाई लोग  ने  एक से  अिधक बार फारसी आक्रमण  को रोकने  म 
हाथ  िमलाया।  490  ई.पू.  म  उ री  यूनान  पर  फारसी  आक्रमण  को  रोका  गया।  कुछ  वषर् 
प चात ्,  पाटर् स दस
ू रे   फ़ारसी आक्रमण को पीछे  हटाने  के िलए एक संयुक्त यूनानी सेना के 
साथ सेना म सि मिलत हो गए। फारसी राजा ज़ेरक्स की सेना को अंततः एथेिनयन नौसेना 
के समथर्न से  परािजत िकया गया था। एथस ने  एक और फारिसय  के आक्रमण को रोकने 
के  िलए  डेिलयन  लीग  बनाने  का  िवचार  प्र तत
ु   िकया।  डेिलयन  लीग  शहर-रा य   का  एक 
गठबंधन  था  जो  फारसी  दबाव  के  िलए  सबसे  कमजोर  थे।  इस  यव था  के  साथ,  एथस  ने 
अ य  शहर-रा य   को  संभािवत  फ़ारसी  आक्रमण  से  बचाने  के  नाम  पर  नौसेना  और  अ य 
सै य बल  का िव तार करना जारी रखा। इस प्रिक्रया म, एथस एक प्रमख
ु  सै य शिक्त बन 
गया। य यिप, डेिलयन लीग को सम याओं का सामना करना पड़ा क्य िक सद य रा य  को 

1
ibid. p. 41.
17
एथस को  धांजिल दे ने  के िलए मजबूर िकया गया था। इसके अितिरक्त, एथस ने  अपनी 
िवदे शी और मह व
  पूण र् घरे ल ू नीितय  पर हावी होना शु  कर िदया। 

बॉक्स : शिक्त संतुलन 

शिक्त  संतुलन  को  िकसी  भी  प्रणाली  के  प  म  पिरभािषत  िकया  जा  सकता  है   िजसम 
अिभनेता - इस मामले म रा य - अपेक्षाकृत समान शिक्त का आनंद लेते ह और ऐसा कोई 
भी रा य या रा य  का गठबंधन नहीं  है   जो िस टम म अ य अिभनेताओं  पर हावी होने  म 
सक्षम हो। 

शिक्त  संतुलन  िस धांत  की  मल


ू   धारणा  यह  है   िक  रा य  अपनी  सरु क्षा  या  शिक्त  को 
अिधकतम  करने  के  िलए  तकर्संगत  प  से  कायर्  करते  ह  िजससे  िक  अराजक  प्रणािलय   म 
जीिवत  रह सक,  िजसके  अंतगर्त  उ च  स ा  की  कमी  होती  है   जो  िववाद   को  िनयंित्रत  कर 
सकते  ह। अराजकता के कारण, रा य  को अपनी शिक्त बढ़ाने  के िलए मजबूर िकया जाता 
है   तथा +स ा के िलए प्रित पधार्  अंतररा ट्रीय राजनीित म एक  वाभािवक ि थित बन जाती 
है । जब एक रा य या रा य  का गठबंधन दस
ू र  पर हावी होने  लगता है , तो कमजोर रा य 
अपनी सरु क्षा के िहत म संतुिलत गठबंधन बनाने के िलए एक साथ आते ह। 

शिक्त  संतल
ु न  एक  एकीकृत  िस धांत  नहीं  है   और  िविभ न  िस धांतकार   के  वणर्न  तथा 
िवषय-व त 
ु म  िभ नता  है   िक  शिक्त  संतल
ु न  का  क्या  अथर्  है ।  शिक्त  संतल
ु न  की  धारणा 
अिनवायर्  प  से  एक  यथाथर्वादी  य तता  बनी  हुई  है ।  मॉग थाऊ  जैसे  शा त्रीय  यथाथर्वादी 
तकर् दे ते ह िक एक बहुध्रव
ु ीय प्रणाली अिधक ि थर होती है । केनेथ वा ज जैसे संरचना मक 
या  नव-यथाथर्वादी  िवध्रव
ु ीय  प्रणाली  के  पक्ष  म  तकर्  दे ते  ह।  शिक्त  संतल
ु न  एक  एकीकृत 
िस धांत  नहीं  है   और  िविभ न  िस धांतकार   के  वणर्न  तथा  िवषय-व त ु म  िभ नता  है   िक 
शिक्त संतुलन होने का अथर् क्या है । 

यूनािनय  और फारिसय  ने 449 ईसा पूव र् म एक शांित संिध म प्रवेश िकया। एथेिनयाई और 


पाटर् स ने  प्रभाव के संबंिधत क्षेत्र  को पहचानना शु  कर िदया। इसने  दो शहर-रा य  और 
उनके संबंिधत सहयोिगय  के म य ‘शिक्त संतल
ु न’ बनाया। इस शांित संिध ने  दो आिधप य 
प्रित वं िवय   को  अपने-अपने  क्षेत्र   म  िनयंत्रण  सु ढ़  करने  की  अनम
ु ित  दी।  ग्रीक 
अंतररा ट्रीय प्रणाली ने  एथस और  पाटार्  के ‘दोहरे   आिधप य’ को प्रदिशर्त िकया। 404 ईसा 
पव
ू  र् म  एथस  की  पराजय  के  साथ  वतंत्र  रा य  प्रणाली  वापस  आ  गई।  य यिप,  पाटार्  ने 
अ य  ग्रीक  शहर-रा य   के  आंतिरक  मामल   म  ह तक्षेप  करके  अपने  आिधप य  का  दावा 
करना शु  कर िदया और अंततः अपने पूव र् सहयोिगय  का समथर्न खो िदया। फारसी िवरोधी 
आिधप य गठबंधन म सि मिलत हो गए और अपनी सीमाओं  पर ि थरता सिु नि चत करने 

18
के  िलए  पाटार्  और  अ य  जझ
ु ा   लोग   के  साथ  बातचीत  की  शांित  के  िलए  दबाव  डाला। 
पिरणामी  अंतररा ट्रीय  यव था  वतंत्र  रा य   के  म य  शिक्त  संतुलन  पर  आधािरत  थी। 
शांित  अ पकािलक  थी  और  पाटर् स,  एथेिनयन  और  थेबंस  ने  अपनी-अपनी  आिधप य 
मह वाकांक्षाओं  को बनाए रखा। एक सामा य यूनानी पहचान ने  उनके म य यु ध को नहीं 
रोका।  मैसेडोन  के  िफिलप  और  उनके  बेटे  िसकंदर  महान  (356-323  ईसा  पूव)र्   के  उदय  के 
साथ  फारसी  साम्रा य  तथा  ग्रीक  प्रणाली  अंततः  मैसेडोिनया  के  शाही  शासन  के  अधीन  आ 
गई। 

बॉक्स : आिधप य और आिधप य शिक्त 

प्राचीन यूनानी िवचारक  के िलए, आिधप य की अवधारणा (होगेमोिनया) का अथर्  मागर्दशर्न 


और  नेत ृ व  के  साथ-साथ  स ा  का  प्रयोग  करने,  शासन  करने  तथा  रा य   के  म य  आदे श 
दे ने  का अिधकार से  था। आिधप य शिक्तयाँ  वे  रा य ह जो संब ध रा ट्र  के गठबंधन का 
नेत ृ व  कर  सकते  ह  और  अपनी  प्रमख
ु   क्षमताओं  (सामग्री  या  भौितक  तथा  वैचािरक,  कठोर 
या कठोर तथा नरम शिक्त) के कारण वैि वक राजनीितक और आिथर्क  यव था पर हावी हो 
सकते  ह।  एक  वचर् ववादी  शिक्त  उन  िनयम   को  थािपत  तथा  बनाए  रख  सकती  है   जो 
अपनी  प्राथिमकताओं  के  आधार  पर  रा य   की  अंतररा ट्रीय  प्रणाली  के  भीतर  बातचीत  को 
िनयंित्रत करते ह1। 

3.3. भारत 

छठी शता दी ईसा पूव र् से  पहले  प्राचीन भारत भौगोिलक  प से  अलग-थलग था और इसकी 


पहचान  िहंद ू धमर्  का  पयार्य  थी।  िहंद ू िवचार  भारतीय  सं कृित  म  िनिहत  मू य   के  एक 
यापक  समह
ू   का  प्रितिनिध व  करते  ह।  य यिप,  एक  समान  स यता  होने  के  बावजद
ू , 
भारतीय उपमहा वीप कई  वतंत्र राजनीितक इकाइय  म िवभािजत था। कुछ दस
ू र  की तुलना 
म अिधक शिक्तशाली थे, तथा यु ध और िव तारवाद सामा य थे। िहंद ू धमर्  ने  एक साझा 
सां कृितक पहचान और अ यो याि तता प्रदान की। इसने सामा य तथा और रीित-िरवाज  के 
िवकास म सहायता की, जो िविभ न रा य  के म य संबंध  को िनदिशत करते थे। अिधकांश 
रा य क्षित्रय जाित के राजाओं  वारा शािसत थे — वणर्  यव था के भीतर दस
ू री  ेणी — जो 
मानते थे िक जीवन म उनकी प्राथिमक भिू मका शासन करना और लड़ना है । 

जब फारसी साम्रा य ने अपना पव
ू  र् की ओर िव तार शु  िकया, तो भारतीय शासक  और 
िशिक्षत  जाितय   को  ‘साम्रा य’  की  अवधारणा  के  बारे   म  पता  चला।  फारिसय   का  प्रभाव 
लगभग  दो  शताि दय   तक  जारी  रहा,  327  ईसा  पूव र् तक।  इसके  प चात ्  िसकंदर  का 

1
Masciulli, Joseph and Mikhail A. Molchanov (2012), “Hegemonic Power”, p. 787-790.
19
आक्रमण हुआ िजससे  नए यन ू ानी िवचार सामने  आए। बौ ध धमर्  के प्रसार का िहंद ू जीवन 
पर  भी  बड़ा  प्रभाव  पड़ा।  यह  उथल-पुथल  चंद्रगु त  मौयर्  के  उदय  की  प ृ ठभिू म  म  थी। 
कौिट य  ने  उसके  उ थान  म  मह व
  पूण र् भिू मका  िनभाई  और  िसकंदर  की  म ृ यु  के  प चात ्, 
दोन   ने  मौयर्  साम्रा य  को  थािपत  करने  के  अवसर  को  ज त  कर  िलया  िजसने  भारत  के 
अिधकांश  भाग  को  िनयंित्रत  िकया।  प्रारं िभक  वष   म  घरे ल ू और  िवदे शी  सरु क्षा  के  कारण 
यापार  म  िव तार  दे खा  गया।  तथािप,  चंद्रगु त  मौयर्  भारी-भरकम  होने  लगे  और 
पिरणाम व प शत्र ु बन गए। अगली दो पीिढ़य  तक साम्रा य िनमार्ण िनरं तर जारी रहा और 
उनके पोते, अशोक (272-231 ईसा पूव)र्  को एक प्रमख
ु  शासक के  प म स मािनत िकया 
जाता है । अशोक ने  प्रारं िभक वष  म साम्रा य का िव तार करने  के िलए क्रूर तरीके अपनाए 
िक तु एक बार बौ ध बनने के प चात ्, वह अपनी प्रजा के क याण पर अपनी िचंता के िलए 
जाने जाते थे। य यिप, उनकी म ृ यु  के प चात ्, साम्रा य के बंधन ढीले  पड़ने  लगे।  वतंत्रता 
की  इ छा  को पूरे  साम्रा य  म त  व   वारा िफर से  जोर िदया गया िजससे  स ा का संकट 
पैदा  हो  गया।  इससे  साम्रा य  का  अंतत:  पतन  हुआ  और  भारत  वतंत्र  यु धरत  रा य   की 
यव था म वापस चला गया। 

3.4. रोमन साम्रा य 

रोमन  साम्रा य  साम्रा यवादी  अंतररा ट्रीय  यव था  की  अंितम  ऐितहािसक  अिभ यिक्त  है । 
यह  एक  शहर-रा य  के  प  म  प्रारं भ  हुआ  और  िनयत  समय  म  सभी  िदशाओं  म  अपने 
िनयंत्रण  का  िव तार  िकया।  ऑग टस  (63-14  ईसा  पूव)र्   के  शासनकाल  से  प्रारं भ  होकर, 
रोमन  साम्रा य  कुछ  शताि दय   के  िलए  आंतिरक  प  से  ि थर  था।  रोम  ने  ‘रा य, 
अंतररा ट्रीय कानन
ू  और अंतररा ट्रीय समाज के बारे   म िवचार और  यवहार’ को आकार दे ने 
म एक प्रमख
ु  भिू मका िनभाई। 

रोम  म  कुलीन  शासन  के  िवकास  के  साथ,  सीनेट  अि त व  म  आया  तथा  कायर्कारी 
अिधकार का संचालन िकया। िनयिमत आंतिरक संघषर्  के बावजद
ू  रोमन शासन का िव तार 
हुआ।  सक्षम  शासक   के  साथ  संयुक्त  धन  म  व ृ िध  के  साथ  सीनेट  ने  अिधक  से  अिधक 
शिक्त  प्रा त  करना  जारी  रखा।  सीनेट  ने  बड़ी  चतुराई  से  महसस
ू   िकया  िक  यिद  वे  नए 
अधीन  समद
ु ाय   का  द ु पयोग  करते  ह  तो  उनके  दीघर्कािलक  िहत   को  नुकसान  होगा।  इस 
प्रकार, उ ह ने उस आबादी को रोमन कानून व  यव था से लाभ उठाने की अनुमित दी। कुछ 
यिक्तय   के  िलए  रोमन  नागिरकता  भी  बढ़ा  दी  गई  थी।  दरू   के  समुदाय   ने  पयार् त  व-
शासन का दावा िकया क्य िक प्र यक्ष शासन की िडग्री राजधानी से  बढ़ती दरू ी के साथ कम 
हो गई थी। 

20
250 से  200 ईसा पूव र् तक, रोम और काथज वचर् व की तलाश म दो प्रमख
ु  शिक्तयाँ 
थीं, लेिकन रोम ने  यूिनक यु ध  (264 से  146 ईसा पूव)र्  म जीत के साथ काथार्िगिनयन 
साम्रा य  को  अवशोिषत  कर  िलया।  यूनािनय   और  मैसेडोिनया  के  म य  िकसी  भी  िवरोधी-
आिधप य  गठबंधन  के  अभाव  म  रोम  ने  पूव र् की  ओर  िनयंत्रण  प्रा त  कर  िलया।  रोमन 
साम्रा य की भिू म को प्रांत  म िवभािजत िकया गया था जो रोमन रा यपाल   वारा शािसत 
और कर लगाए गए थे। रा य  को  थानीय  वाय ता दी गई थी तथा  वदे शी रीित-िरवाज  
का स मान तब तक िकया जाता था जब तक वे  िन ठा की प्रितज्ञा करते  थे। कद्र सरकार 
की  कायर्कारी  शिक्त  और  नौकरशाही  कमजोर  थी  और  प्रदे श   को  प्रभावी  ढं ग  से  िनयंित्रत 
करना मिु कल था। ऐसे  पिर य म, सै य नेताओं  ने  केवल और अिधक अशांित पैदा करने 
के िलए शू य को भरने  के िलए कदम बढ़ाने  की कोिशश की। सीज़र ऑग टस ने  साम्रा य 
को आंतिरक संघषर्  से  राहत प्रदान की और परम शिक्त को बरकरार रखा। उ ह ने  सीनेट के 
कुछ िवशेषािधकार  और िज मेदािरय  को बहाल करके भी वैधता प्रा त की। 

रोमन साम्रा य के िलए सम याएँ सामा य युग तीसरी शता दी म पुन: उभरने लगीं जब 


फारसी सासािनद साम्रा य की सेनाओं  वारा रोमन क्षेत्र पर आक्रमण िकया गया।  यव था 
को  बहाल  करने  के  नाजक
ु   प्रयास   के  साथ  कई  रोमन  सेनापित  स ा  म  आए।  शाही  स ा 
सम्राट के हाथ  म किद्रत हो गई और सीनेट की शिक्त खो गई। सीई 476 तक, जमर्नी के 
आक्रमण के प चात ् पि चम म रोमन साम्रा य का औपचािरक अंत हो गया। 

3.5. म यकालीन यरू ोप एक सामंती  यव था का प्रितिनिध व करता है  

5वीं  शता दी तक रोमन साम्रा य के पतन के प चात ् म य युग के  प म जाना जाने  वाला 


काल प्रारं भ हुआ। यह अविध 15 वीं  और 16 वीं शता दी के पुनजार्गरण और सध
ु ार के साथ 
समा त हुई। इस अविध का मह  व इसके आधुिनक रा य  यव था के िलए त काल पूवव
र् तीर् 
होने म है । 

ईसाई चचर्  सव च अिधकार था और इसकी िशक्षाएँ  तीसरी शता दी सी ई के आसपास 


रोमन  साम्रा य  का  धमर्  बन  गईं।  यह  रोम  के  सम्राट,  कॉ सटटाइन  के  ईसाई  धमर्  म 
1
पिरवितर्त होने  के प चात ् हुआ (कुछ का मानना है   िक उ ह ने  ईसाई नेताओं  को सह-चन
ु ा)  
एक एकीकृत शाही धमर्। ईसाई धमर्  ने  एक धािमर्क-सां कृितक ढाँचा प्र तुत िकया जो पहले 
के  टोइक दाशर्िनक जड़  के अनु प था। रोमन साम्रा य के पतन के प चात ् ईसाई नेताओं 
ने  अपने  इंजील (evangelical) िमशन का समथर्न करने  के िलए सांसािरक शिक्त के अपने 
ोत   को  िवकिसत  करने  की  आव यकता  को  महसस
ू   िकया।  इस  प्रकार  चचर्  को  धन  और 
वैधता  प्रा त  होने  लगी।  ईसाई  धमर्  वह  ढाँचा  था  िजसके  भीतर  म यकालीन  युग  म  िनजी 

1
Viotti and Kauppi (2001), ibid. p. 48
21
और सावर्जिनक जीवन का संचालन िकया जाता था। पि चमी यूरोप म चचर्  ने  धािमर्क क्षेत्र 
म सावर्भौिमक वैधता की घोषणा की। हालाँिक, राजनीितक शिक्त गहराई से  खंिडत रही और 
कई अिभनेताओं ने वैधता का दावा करने की माँग की। 

जमर्नी  म  किद्रत  पिवत्र  रोमन  साम्रा य  की  थापना  9वीं  शता दी  की  शु आत  म 
शारलेमेन ने  की थी। उ रािधकािरय  शारलेमेन ने  शाही शिक्त के मा यम से  चचर्  की बढ़ती 
शिक्त  का  मक
ु ाबला  करने  की  प्रयास  िकया।  तथािप,  हं गेिरयन  आक्रमण   के  साथ  िमलकर 
आंतिरक कमजोिरय  के कारण पिवत्र रोमन साम्रा य प्रभावी  प से  व त हो गया। तथािप 
संघटक रा य उपि थत थे, िक तु उनके पास कुशल नौकरशाही और सै य बल  की कमी थी। 
इसिलए, राजाओं  के पास  थानीय बैरन पर बहुत कम शिक्त थी। पिरणाम व प,  यव था 
सामंतवाद  म  पिरवितर्त  हो  गई  जहाँ  19वीं  शता दी  के  दौरान  थानीय  बैरन  को  प्रमख
ु ता 
िमली। सावर्जिनक स ा को सामंत  के िनजी हाथ  म रखा गया था, जो राजाओं  की कीमत 
पर  अपना  अिधकार  रखते  थे।  पूरे  यूरोप  म  राजनीितक  स ा  खंिडत  थी  क्य िक  थानीय 
सरकार  राजाओं  के  दाव   से  अिधक  शिक्तशाली  थी।  थानीय  बैरन,  िबशप,  राजा  और  पोप 
सिहत  सं थान   और  यिक्तय   के  िविवध  संग्रह  वारा  राजनीितक  अिधकार  का  दावा  िकया 
गया था।1 इन सं थाओं  म से  िकसी एक को उनकी ि थित के आधार पर राजनियक दजार् 
या  दत
ू ावास  का  अिधकार  िदया  या  अ वीकार  िकया  जा  सकता  है ।  म ययुगीन  काल  म 
कूटनीित उपि थत थी। तथािप, रा ट्रीय िहत के  थान पर, िवशेष शासक  और राजवंश  के 
िहत उपि थत थे। उ च  तर की वंशवादी अ यो या यता थी। जो मख्
ु य  प से  राजनियक 
िववाह और राजनीितक प्रेमालाप का पिरणाम थी। 

4.  वे टफेिलया 

4.1  तीस वषर् का यु ध : प्रारं भ एवं यु ध की कायर्प्रणाली 


इितहास  ने  प्रदिशर्त  िकया  है   िक  वतंत्र  रा य  यव था  म  कुछ  रा य  आिधप य  या 
साम्रा यवादी  यव था की ओर अिधक प्रव ृ  होते  ह और अ य रा य इसे  रोकने  का प्रयास 
करते  ह।  यह  प्रमख
ु   सै य  िवजय  का  कारण  भी  रहा  है ।  िव वान   ने  यह  तकर्  दे कर 
अंतररा ट्रीय  संबंध   के  इितहास  को  भी  सरल  बनाया  है   िक  समकालीन  यव था  1648  के 
प चात ्  उभरी।  तीस  वषर्  का  यु ध  धमर्,  धािमर्क  अिधकार  एवं  पिवत्र  रोमन  साम्रा य  की 
शिक्त के ऊपर एक संघषर् था। 

तीस  वषर्  का  यु ध  23  मई,  1618  को  प्राग  (Prague)  म  िवद्रोह  के  साथ  शु   हुआ। 
िवद्रोह  मख्
ु य  प  से  सम्राट  मिथयास  के  िव ध  एक  िवरोध  िवद्रोह  था,  िजसने  ऑि ट्रयाई 
है सबगर्  म  ‘प्रित-सध
ु ार’  के  साथ  आगे  बढ़ने  का  िनणर्य  िलया।  लामबंदी  प्रोटे टट  धमर्  के 

1
ibid. p. 50
22
रईस  पर आधािरत थी। 1619 म मथायस की म ृ यु के प चात ्, है सबगर् भिू म को आकर् यूक 
फिडर्नड  (1619-1637)  के  िनयंत्रण  म  छोड़  िदया  गया  था,  जो  सध
ु ार  के  िव ध  भी 
आक्रामक था। बोहे िमयन िवद्रोिहय  को प्रोटे टटवाद के िखलाफ फिडर्नड की इस नीित के बारे  
म  पता  था।  उ ह ने  4  नवंबर,  1619  को  बोहे िमया  के  राजा  के  प  म  पैलािटन  के 
कैि वनवादी िनवार्चक फ्रेडिरक v का ताज पहनाया1। 

कैथोिलक और प्रोटे टट : प्र थान के िबंद ु

ईसाई  धमर्  के  दो  प्रमुख  पहल ू -  कैथोिलक  और  प्रोटे टटवाद  -  उनके  िव वास,  नु खे  व 
िनधार्रण  एवं  अिधकार  म  िभ नता  ह।  जबिक  कैथोिलक  पोप  व  पदानुक्रिमत  अिधकार  की 
प्रधानता  म  िव वास  करते  ह,  प्रोटे टट  बाइबल  को  एकमात्र  अिधकार  मानते  ह  क्य िक  यह 
ई वर  का  वचन  है ।  इसके  अितिरक्त,  जबिक  कैथोिलक  कमर्कांड   और  मोक्ष  प्रा त  करने  के 
मानवीय  प्रयास   म  िव वास  करते  ह,  प्रोटे टट  इस  बात  पर  जोर  दे ते  ह  िक  उ धार  केवल 
क्राइ ट  के  मा यम  से  प्रा त  िकया  जा  सकता  है   और  िकसी  भी  मानव  की  धािमर्क  प्रशंसा 
नहीं की जा सकती है । 

ऑग्सबगर्  की 1555 शांित िरयासत  पर िववाद  व केि वनवाद के िवकास के कारण मर रही 


थी।  जमर्न  प्रोटे टट  राजकुमार   ने  1608  म  इवजेिलकल  यिू नयन  का  गठन  िकया।  इसके 
प चात ्  1609  म  बवेिरया  के  िनवार्चक  ने  कैथोिलक  लीग  का  गठन  िकया।  दोन   समह
ू   के 
म य तनाव के कारण केि वनवादी और कैथोिलक दावेदार  के म य डची का िवभाजन हुआ। 
केि वनवािदय  के ह सबगर्  िवरोधी िवद्रोह को बाहरी ह तक्षेप के मा यम से  दबा िदया गया 
था और इवजेिलकल लीग को पीछे  हटने  के िलए आ व त िकया गया था। 8 नवंबर, 1620 
को  हाइट माउं टे न की लड़ाई म कैथोिलक सेना ने प्रोटे टट की सेना को कुचल िदया था। 

कलिविनज़म 

केि वनवाद  जॉन  केि वन  (1509-64)  के  लेखन  पर  आधािरत  धािमर्क  आधार  है ।  यह 
प्रोटे टट  ईसाई  धमर्  की  एक  शाखा  है   जो  बाइिबल  को  ईसाई  जीवन  और  िवचार  के  िलए 
अंितम  अिधकार  मानती  है ।  यह  पाँच  बुिनयादी  िस धांत   पर  आधािरत  है ,  िज ह  ‘ यिू लप’ 
श द  से  दशार्या  गया  है —कुल  भ्र टता,  िबना  शतर्  चन
ु ाव,  सीिमत  प्रायि चत,  अप्रितरो य 
अनुग्रह, और संत  की  ढ़ता2। 1550 के दशक के बाद केि वनवाद एक ‘अनुशािसत, उग्रवादी 
और अंतररा ट्रीय आंदोलन’ के  प म उभरा और जमर्न राजकुमार  से आकिषर्त हुआ िज ह ने 
िनवार्चक फ्रेडिरक पंचम का समथर्न िकया। 

1
Nexon, Daniel H. (2009), “Westphalia Reframed”, p. 266.
2
For details, see Melton, J. Gordon (2005), Encyclopedia of Protestantism, New York: facts on File, Inc., p. 117-
120.
23
पैिनश है सबगर्  और डच गणरा य के बीच ‘बारह वषर्  का संघषर्  िवराम’ तब समा त हुआ 
जब  कैथोिलक  बल   ने  इलेक्टर  फ्रेडिरक  को  स ा  से  हटाने  का  प्रयास  िकया।  आंतिरक 
िवभाजन  कमजोर  िवदे शी  गठबंधन ,  राजनीितक  एवं  धािमर्क  संघष   के  कारण  डच  एक 
नुकसानदे ह  ि थित  म  थे।  1619  तक  िढ़वादी  कैि वनवादी  पाटीर्  ने  गणतंत्र  को  िनयंित्रत 
िकया और जमर्नी म चरमपंथी प्रोटे टट  को िव ीय और सै य सहायता प्रदान की। अंतत:, 
कैथोिलक बल  ने 1623 म िनवार्चक फ्रेडिरक को हराया और बावेिरया के मैिक्सिमिलयन को 
चुनावी  अिधकार  िदया।  एक  प्रितिक्रया  के  प  म,  डेनमाकर्  के  लथ
ू रन  राजकुमार  िक्रि चयन 
IV, नीदरलड, इंग्लड के राजकुमार और फ्रेडिरक पंचम के म य एक नया प्रोटे टट गठबंधन 
हुआ।  इस  प्रकार,  पेिनश-डच  यु ध  जमर्न  संघषर्  से  जड़ु   गया।  बाद  म,  ईसाई  चतुथ र् की 
सेनाओं  को  1627  म  अ ब्रेक्ट  वॉन  वाल टीन  के  नेत ृ व  म  शाही  सैिनक   वारा  परािजत 
िकया गया था। 1629 म, फ्रांस और  पेन के म य एक सीिमत यु ध हुआ था। यह  यूक 
िवंसट  िवतीय की म ृ यु  के प चात ् मंटुआ के डची पर दाव  से  संबंिधत था।  पेिनश सेना 
कैसले  (casale)की  लंबी  घेराबंदी  म  सि मिलत  थी  और  अक्टूबर  1628  म  ला  रोशेल  शाही 
सेना  म  िगर  गई  और  धमर्  के  नौव  फ्रांसीसी  यु ध  को  समा त  कर  िदया।  फ्रांस  कािडर्नल 
िरशे यू (Cardinal Richelieu) के िनदशन म कारर् वाई करने के िलए  वतंत्र था और फरवरी 
1629 म, फ्रांस ने  पेन को कैसले (casale) की घेराबंदी उठाने के िलए मजबूर िकया। संघषर् 
जारी रहा और डच  के साथ यु ध से संसाधन  और  यान को हटाने का कारण बना1। 

फिडर्नड  ने  मई  1629  के  ‘पुन थार्पना  के  आदे श’  म  जमर्न  प्रोटे टट  के  िव ध  सख्त 
शत िनि चत कीं, िजसने  कैि वनवाद को प्रितबंिधत िकया। इसने  प्रोटे टट  को भड़का िदया 
और िरशे य ू ने  वीडन के राजा गु तावस एडॉ फस को प्रोटे टट कारण के िलए जमर्नी म 
ह तक्षेप  करने  के  िलए  मना  िलया।  वीडन  ने  बड़ी  सफलताओं  के  साथ  शु आत  की। 
य यिप,  नवंबर  1632  तक,  इसकी  ि थित  कमजोर  होने  लगी  और  िसतंबर  1634  म 
ऑि ट्रया  और  पेन  की  संयुक्त  सेना  वारा  अंततः  इसे  परािजत  िकया  गया।  जमर्नी  म 
है सबगर् स ा जीत रही थी क्य िक अिधकांश प्रोटे टट जमर्न राजकुमार प्राग की 1635 शांित 
के िलए सहमत थे। िरशे यू  ने  वीडन को यु ध म बनाए रखने  के िलए ह तक्षेप करने  का 
फैसला  िकया।  जमर्नी  के  है सबग्सर्  पर  िबना  िकसी  दबाव  के  पेन  के  पास  खुली  छूट  थी। 
साथ  ही,  यु ध  के  प्रित  फ्रांसीसी  प्रितब धता  के  साथ,  तीस  वषीर्य  यु ध  एक  पैन-यूरोपीय 
यु ध  बन  गया।  वीिडश  और  फ्रांसीसी  सेना  जमर्नी  म  लगी  रही  िजससे  बड़े  पैमाने  पर 
हताहत हुए और नागिरक  का िव थापन हुआ2। 

1
Nexon, Daniel H. (2009), ibid., p. 268
2
ibid., p. 269-70.
24
4.2  वे टफेिलया की संिध 

वे टफेिलया  की  शांित  (1648)  ने  तीस  वषर्  के  यु ध  को  समा त  कर  िदया  और  अपने 
अिधकार  क्षेत्र  म  लोग   पर  अिधकार  का  प्रयोग  करने  के  िलए  राजकुमार   के  अिधकार  की 
थापना  की।  अपने  अिधकार  क्षेत्र  के  भीतर,  राजकुमार   को  िवदे शी  संबंध   के  संचालन  म 
वाय   होना  था।  इसने  धािमर्क  स ा  के  शासन  को  समा त  कर  िदया  और  यूरोप  म 
धमर्िनरपेक्ष  अिधकािरय   का  उदय  हुआ।  वे टफेिलया  की  शांित  म  दो  प्रमख
ु   संिधयाँ 
सि मिलत थीं, एक ओ नाब्रक ु  म पिवत्र रोमन साम्रा य और फ्रांस के म य ह ताक्षिरत थी, 
और दस
ू री पिवत्र रोमन साम्रा य और  वीडन के म य मु टर म ह ताक्षिरत थी। 

वे टफेिलया  की  दो  संिधय   म  ऑि ट्रयाई  है सबगर्  ने  अपने  शत्रओ


ु ं  के  साथ  शांित 
थािपत की।  पेन ने औपचािरक  प से डच  को मा यता दी और उनके साथ शांित  थािपत 
की। तथािप, फ्रांस के साथ यु ध जारी रहा।  पेन ने  कुछ हद तक घरे ल ू ि थरता हािसल की 
िक तु  िफिलप IV ने  यु ध जारी रखने  का िनणर्य िकया और 1656 म इंग्लड ने  पेन के 
िव ध  रै ली  की।  तथािप,  1659  म,  िफिलप  IV  को  फ्रांस  के  साथ  शांित  संिध  के  िलए 
सहमत होने के िलए मजबूर होना पड़ा1। 

यह  यान रखना मह  वपूण र् है   िक भले  ही वे टफेिलया की शांित को संप्रभत


ु ा के आदश  
को  प्रकट  करने  के  िलए  दे खा  जाता  है ,  कैथोिलक  और  प्रोटे टट  के  म य  शांितपूण र् सह-
अि त व  थािपत  करने  का  पहला  कानूनी  प्रयास  लगभग  एक  सदी  पहले  िकया  गया  था2। 
1655 म, ऑग्सबगर्  की शांित ने  राजकुमार  को इस िस धांत के तहत नई शिक्तयाँ  प्रदान 
कीं  िक िवषय  का धमर्  उस  यिक्त  वारा तय िकया जाएगा जो क्षेत्र को िनयंित्रत करता है । 
ऑग्सबगर्  शांित पोप और पिवत्र रोमन साम्रा य से  िरयासत  की  वतंत्रता की िदशा म एक 
बड़ा  कदम  था।  हालाँिक,  यह  धािमर्क  िववाद  को  समा त  करने  म  सफल  नहीं  हुआ।  जीन 
बोिडन और थॉमस हॉ स जैसे  दाशर्िनक  ने  इस वातावरण म संप्रभत
ु ा के िवचार पर िवचार 
िकया3।

1
ibid., p. 270.
2
Mansbach and Taylor (2008), ibid., p. 42-43.
3
op cit.
25
1
Fig: The 1648 Peace of Westphalia: Europe

4.2. संप्रभत
ु ा 
यापक वगीर्करण  का उपयोग करते  हुए, संप्रभत
ु ा श द का प्रयोग चार िभ न –िभ न तरीक  
से  िकया गया है — घरे ल ू संप्रभत
ु ा, जो “एक रा य के भीतर सावर्जिनक प्रािधकरण के संगठन 
और अिधकार रखने वाल   वारा प्रयोग िकए जाने वाले प्रभावी िनयंत्रण के  तर” को संदिभर्त 
करती  है ;  अ यो याि त  संप्रभत
ु ा,  जो  “सीमा  पार  आंदोलन   को  िनयंित्रत  करने  के  िलए 

1
Nexon, Daniel H. (2009), ibid., p. 274
26
सावर्जिनक अिधकािरय  की क्षमता” को संदिभर्त करती है ; अंतररा ट्रीय कानूनी संप्रभत
ु ा, जो 
“रा य  या अ य सं थाओं  की पार पिरक मा यता” को संदिभर्त करती है ; और वे टफेिलयन 
संप्रभत
ु ा,  जो  “घरे ल ू प्रािधकरण  िव यास  से  बाहरी  अिभनेताओं  के  बिह करण”  को  संदिभर्त 
करता है 1। 

बॉक्स : जीन बोिडन और थॉमस हॉ स के अनुसार संप्रभत
ु ा 
जीन  बोिडन  (1530-1596)  एक  फ्रांसीसी  वकील  थे  जो  प्रोटे टट  और  कैथोिलक   के  म य 
धािमर्क यु ध के युग के दौरान रहते  थे। बोिडन ने  संप्रभत
ु ा को कानून बनाने  की शिक्त के 
2
प  म  समझा।  संप्रभत
ु ा  ‘रा ट्रमंडल  म  िनिहत  पूण र् और  शा वत  शिक्त’  थी ।  गणतंत्र  की 
अपनी  िसक्स  बुक्स  (1576)  म,  उ ह ने  एक  संयुक्त  फ्रांस  के  िलए  राजा  के  िलए  अिधक 
अिधकार की वकालत की। उ ह ने  तकर् िदया िक एक संप्रभु  रा य को नागिरक  और िवषय  
पर सव च शिक्त का आनंद लेना चािहए। तथािप, नेता ई वर के िनयम , प्रकृित के िनयम , 
संवैधािनक  कानून   वारा  सीिमत  थे।  लोग   के  साथ  िकए  गए  अनुबंध,  वाचा  और  वादे   भी 
अिधकार पर सीमाएँ प्रदान करते ह। 

थॉमस हॉ स (1588-1679) एक अंग्रेजी दाशर्िनक थे  िज ह ने  लेिवथान के िवचार को प्र तत


ु  
िकया—  एक  सु ढ़  कद्रीय  प्रािधकरण।  हॉ स  मानव  वभाव  के  बारे   म  िनराशावादी  थे  और 
मनु य के जीवन को एका त, िनधर्न, बरु ा, क्रूर और संिक्ष त मानते थे3। उ ह ने गहृ यु ध की 
ु  िकया।  टुअटर्  िकंग चा सर्-I के शाही समथर्क  को 
सम या का एक स ावादी समाधान प्र तत
ओिलवर क्रॉमवेल के संसदीय समथर्क  के िव ध खड़ा िकया गया था। हॉ स ने  तकर् िदया 
िक  केवल  एक  िनरं कुश  सरकार  ही  ऐसी  दिु नया  म  शांित  और  सरु क्षा  बनाए  रख  सकती  है  
िजसम हर कोई हर िकसी के साथ लगातार यु ध म था। लेिवथान, तथािप, इस त य से भी 
शिक्त म सीिमत था िक वह उन लोग  को चोट नहीं  पहुँचा सकता जो एक साथ आए और 
उ ह अपनी सरु क्षा के िलए बनाया। 

4.3  एक िवचार एवं एक प्रिक्रया के  प म ‘वे टफेिलया’ 

‘वे टफेिलया’,  एक  िवचार  के  प  म  िव व  यव था  के  रा य-किद्रत  चिरत्र  का  प्रितिनिध व 
करता है  जहाँ सद यता िवशेष  प से क्षेत्रीय संप्रभ ु रा य  को दी जाती है 4। जब इस अथर् म 
प्रयोग िकया जाता है , तो यह श द 1648 के ऐितहािसक िबंद ु से  आगे  बढ़ता है   और िव व 

1
Krasner, Stephen D. (1999), Sovereignty: Organized Hypocrisy, p. 3-4.
2
Jean Bodin (1976), Six Books on the Commonwealth, Oxford, Basil Blackwell. Quoted in Karen Mingst (2011),
ibid, p. 26.
3
Hobbes, Thomas (1991), Leviathan, edited by Richard Tuck, Cambridge: Cambridge University Press.

4
Falk, Richard (2002), “Revisiting Westphalia, Discovering Post-Westphalia”, p. 312.
27
यव था  की  एक  यापक  िवशेषता  बताता  है —  रा य  एक  अंतररा ट्रीय  प्रणाली  म  एकमात्र 
सद य ह। 

दस
ू री  ओर,  ‘वे टफेिलया’,  एक  प्रिक्रया  के  प  म,  रा य  और  रा य  िश प  के  बदलते 
चिरत्र  का  प्रितिनिध व  करता  है   क्य िक  यह  संिधय   पर  वातार्लाप  के  प चात ्  से  350  से 
अिधक  वष   के  दौरान  िवकिसत  हुआ  है ।  यह  उस  समय  का  प्रितिनिध व  करता  है   िजसम 
उपिनवेशवाद,  उपिनवेशवाद,  अंतररा ट्रीय  सं थान   की  थापना,  वै वीकरण  के  आगमन  और 
वैि वक बाजार के उदय और वैि वक नागिरक समाज के उ भव जैसे कुछ प्रमख
ु  िवकास दे खे 
गए1। 

5.  िन कषर् 

अंतररा ट्रीय  संबंध   के  कई  िव वान   ने  वे टफेिलया  की  संिधय   को  आधुिनक  अंतररा ट्रीय 
संबंध  को आकार दे ने वाली प्रमख
ु  घटना माना है । य यिप, कुछ िव वान  ने वे टफेिलया की 
शांित को िदए गए मह  व का िवरोध िकया है । सामा य िवचार यह है   िक भले  ही शांित के 
योगदान को नकारा नहीं जा सकता है , यह सझ
ु ाव दे ना अित सरलीकरण होगा िक वषर् 1648 
एक वाटरशेड के  प म िचि नत था। वे टफेिलया की शांित,  प ट होने  के िलए, परू े   यरू ोप 
ु ा  का  िव तार  नहीं  करती  थी।  इसने  केवल  साम्रा य  के  संघा मक  चिरत्र  की  पन
म  संप्रभत ु : 
पिु ट की2। 

दस
ू रा  पहल ू यह  है   िक  वे टफेिलयन  संिध  पैन-यूरोपीय  भी  नहीं  थी।  इसम  केवल  तीन 
पक्ष सि मिलत थे— पिवत्र रोमन साम्रा य, फ्रांस और  वीडन। यह दावा करने  के िलए िक 
इसे  संपूण र् अंतररा ट्रीय प्रणाली पर लाग ू िकया जा सकता है , एक अितशयोिक्त होगी। िजस 
स दभर्  और पिरि थित के अंतगर्त संिध दजर्  की गई थी उसका एक िवशेष ऐितहािसक तकर् 
था तथा वतर्मान संदभर् के बारे  म ऐसा नहीं कहा जा सकता है । 

संदभर्-सच
ू ी 

Bodin,  Jean  (1976),  Six  Books  on  the  Commonwealth,  Oxford,  Basil 
Blackwell.  Quoted  in  Karen  Mingst  (2011),  Essentials  of  International 
Relations, New York: W.W. Norton and Company, p. 26. 

Falk,  Richard  (2002),  “Revisiting  Westphalia,  Discovering  Post-Westphalia”, 


The Journal of Ethics, 6 (4): 311-352. 

1
op cit.
2
Benno Teschke (2003), The Myth of 1648: Class, Geopolitics and the Making of Modern International
Relations. London: Verso.
28
Hobbes,  Thomas  (1991),  Leviathan,  Richard  Tuck  (ed.),  Cambridge: 
Cambridge University Press. 

Krasner,  Stephen  D.  (1999),  Sovereignty:  Organized  Hypocrisy,  Princeton, 


NJ: Princeton University Press. 

Masciulli,  Joseph  and  Mikhail  A.  Molchanov  (2012),  “Hegemonic  Power”,  in 
Helmut  K.  Anheier  and  Mark  Juergensmeyer  (eds.)  Encyclopedia  of  Global 
Studies, Los Angeles and London: Sage Publications, Inc. 

Mansbach,  R.  and  K.  Taylor  (2008),  Introduction  to  Global  Politics,  New 
York: Routledge. 

Melton, J. Gordon (2005), Encyclopedia of Protestantism, New York: facts on 
File, Inc. 

Mingst,  K.  (2011),  Essentials  of  International  Relations,  New  York:  W.W. 
Norton and Company. 

Nexon, Daniel H. (2009), “Westphalia Reframed”, in  The Struggle for Power 
in  Early  Modern  Europe:  Religious  Conflict,  Dynastic  Empires,  and 
International Change, Princeton and Oxford: Princeton University Press. 

Teschke,  Benno  (2003),  The  Myth  of  1648:  Class,  Geopolitics  and  the 
Making of Modern International Relations. London: Verso.  

Viotti, Paul R. and Mark V. Kauppi (2001)  International Relations and World 
Politics: Security, Economy, Identity, Second Edition, Delhi: Prentice Hall. 

29
इकाई-1 

पाठ-4 : पो ट-वे टफेिलया 


डॉ. अिभषेक चौधरी 
अनुवादक : काजल  
 

1. पिरचय 

‘पो ट-वे टफेिलया’  श द  उस  पिरवतर्नशील  संदभर्  को  दशार्ता  है   िजसम  रा य   की  प्रधानता 
पर प्र न उठाए जाते  ह। इस िवकास का एक प्रमख
ु  कारक वै वीकरण का अ यिधक प्रभाव 
रहा है । िव वान  ने  वे टफेिलयन िव व  यव था म िनिहत सम याओं  और िवरोधाभास  की 
पहचान की है । वै वीकरण के आगमन और आतंकवाद के प्रसार से  उ प न इक्कीसवीं  सदी 
की नई चुनौितय  के साथ संप्रभत
ु ा की पुनपर्िरभाषा के िवषय म िवचार सामने आने लगे। नई 
चुनौितय   के  िलए  िचंता  की  प्रमख
ु   व तु  के  प  म  रा ट्र   के  िवचार   पर  पुनिवर्चार  की 
आव यकता  है ।  जब  इन  ताकत   के  िनिहताथर्  क्षेत्रीय  सीमाओं  तक  सीिमत  नहीं  ह,  तो  इन 
ि थितय  की प्रितिक्रयाओं  को सीिमत करना एक त्रिु टपूण र् ि टकोण होगा। इसके अितिरक्त, 
तीन  सिदय   से  अिधक  पुराने  एक  आदशर्  को  िवशेष  प  से  पारं पिरक  वैधता  की  चुनौितयाँ 
और शिक्त संतुलन म पिरवतर्न के संदभर् म एक पुनपर्िरभाषा की आव यकता होती है ।1 

संप्रभत
ु ा  की  पिरभाषा,  जैसा  िक  पहले  बताया  गया  है ,  इस  तर  पर  पन
ु यार्ख्या  की 
आव यकता है । संप्रभत
ु ा की वतर्मान अवधारणा 1648 म वे टफेिलयन संिधय   वारा आकार 
की गई अवधारणा नहीं  है । वह इसे  िवशेष  प से  पिवत्र रोमन साम्रा य से  संबंिधत मानता 
है  और सावर्भौिमक  प से लाग ू नहीं होता है ।2 वै वीकरण का प्रभाव एक बड़ी चन
ु ौती प्र तत
ु  
करता  है —जबिक  राजनीितक  संरचना  बहुत  हद  तक  रा ट्र-रा य  पर  आधािरत  है ,  आिथर्क 
यव था  वैि वक हो गई है । इस अलगाव के  कारण, आिथर्क और राजनीितक प्रिक्रयाओं  के 
प्रबंधक   के  म य  तनाव  बना  रहता  है ।3  मानवािधकार  एक  अ य  मु दा  क्षेत्र  है   िजसम 
4
‘संप्रभत
ु ा  की  पारं पिरक  धारणाओं  से  समझौता  िकया  गया  है ’।   िन निलिखत  खंड  इनम  से 
कुछ चुनौितय  से संबंिधत है ।  

1
Kissinger, Henry (2014), World Order, p. 365.
2
Osiander, Andreas (2001), “Sovereignty, International Relations, and the Westphalian Myth”, p. 251.
3
Kissinger, Henry (2014), World Order, p. 368-369.
4
Krasner, Stephen D. (1999), Sovereignty: Organized Hypocrisy, p. 123.
30
2. वे टफेिलयन युग के प चात ् : वे टफेिलयन धारणा के िलए चुनौितयाँ  

वै वीकरण के संदभर्  म, संप्रभत
ु ा और रा य-किद्रतता की वे टफेिलयन धारणा को चुनौती दे ने 
म  अिभनेताओं  के  दो  समह
ू   सबसे  प्रमख
ु   ह।  एक  ओर  वे  वैि वक  िनगम  लाभ  से  प्रेिरत  ह 
और  दिु नया  को  ‘उ पादन,  खपत  और  िनवेश  के  िलए  एक  िवशाल  बाजार’  मानते  ह।  दस
ू री 
ओर,  ऐसे  अंतरार् ट्रीय  अिभनेता  ह  जो  अिधक  परोपकारी  ह  और  दिु नया  को  आम  मानवता 
वारा एक साथ बुनते  हुए दे खते  ह जो ‘सभी  यिक्तय  के मल
ू  अिधकार ’ को बनाए रखते 
ह।1  इन  पिरि थितय   म,  रा य  दस
ू र   को  पुनपर्िरभािषत  और  यागते  हुए  कुछ  को 
समायोिजत  और  बनाए  रखते  हुए  चुनौितय   को  समायोिजत  करने  का  प्रयास  करते  ह। 
वे टफेिलयन संप्रभत
ु ा की पिरवतर्नीय धारणा के संदभर् के िलए असंगत प्रतीत होती है  िजसम 
यह अब यु धरत रा य  के िवषय म नहीं  अिपतु  रा य  के भीतर आंतिरक गड़बड़ी के िवषय 
म ह। रा य  के म य बढ़ती हुई अ यो या यता के साथ, एक क्षेत्र म अशाि त अब अ य 
क्षेत्रीय  प से  सीिमत क्षेत्र  को प्रभािवत करने  की अिधक संभावना है । इसके अितिरक्त, कई 
प्रकार  के  गैर-रा य  अिभनेताओं  के  प्रसार  के  साथ  रा य  के  िनिवर्वाद  अिधकार  पर  प्र न 
उठाया जाता है । 

2.1 अंतरार् ट्रीय संगठन  का प्रसार  

वे टफेिलयन  से  उ र-वे टफेिलयन  यग


ु   के  प चात ्  के  पिरवतर्न  को  अंतरार् ट्रीय  संगठन   की 
बढ़ती  उपि थित  से  िचि नत  िकया  गया  है   जो  ‘अिधकार  के  वतंत्र  थल’  बन  रहे   ह।2 
पिरवतर्न आगे  सप
ु रनेशनल प्रािधकार की ओर एक कदम का प्रितिनिध व करता है । सामिू हक 
अंतरार् ट्रीय  संगठन  िनकाय   को  िनणर्य  लेने  का  ह तांतरण  िकया  गया  है   जहाँ  ‘ यिक्तगत 
रा य वीटो के िलए अपनी शिक्त खो दे ते ह’। अंतरार् ट्रीय संगठन  के सद य रा य भी अपने 
अिधकार  सप
ु रनेशनल  िनकाय   को  स प  रहे   ह।  इसके  अितिरक्त,  अंतरार् ट्रीय  संगठन  रा य  
के  घरे ल ू मामल   म  अिधक  ह तक्षेप  दे ने  लगे  ह।  ड लट
ू ीओ  हम  कॉपीराइट  उ लंघन  जैसी 
मु द   को  उठाता  है   जो  रा य   की  घरे ल ू िचंता  का  िवषय  हुआ  करते  थे।  इसके  अितिरक्त, 
संयुक्त रा ट्र सरु क्षा पिरषद ‘समह
ू  और यहाँ तक िक  यिक्तय  के िव ध’ कारर् वाई करती है  
3
यिद  उ ह  ‘शांित  के  िलए  खतरा’  माना  जाता  है ।   ये  पिरवतर्न  िकतने  लोकतांित्रक  या 
संवैधािनक  ह,  यह  बहस  का  िवषय  रहा  है ।  हालाँिक  कुछ  अवसर   पर  इसका  सकारा मक 
प्रभाव  पड़ता  है   और  इसका  संवैधािनक  प्रभाव  भी  होता  है ,  अ य  अवसर   पर,  आिधकािरक 
घुसपैठ का  प ट मामला दे खा जा सकता है । 

1
Falk, Richard (2002), “Revisiting Westphalia, Discovering Post-Westphalia”, p. 321.
2
Kreuder-Sonnen, Christian and Bernhard Zangl (2015), “Which post-Westphalia?”, p. 568.
3
ibid. p.571-572.
31
अंतरार् ट्रीय संगठन और रा ट्र-िनमार्ण : संयुक्त रा ट्र और है ती का िवषय 

1991 म सै य तख्तापलट के प चात ्, बड़े पैमाने पर मानवािधकार  का उ लंघन हुआ और 


शरणािथर्य  का बड़े पैमाने पर पलायन भी हुआ। इसने संयक्
ु त रा ट्र सरु क्षा पिरषद को है ती 
म  अमेिरका  के  नेत ृ व  वाले  मानवीय  ह तक्षेप  को  अिधकृत  करने  वाले  प्र ताव  940 
(1994) को अपनाने  के िलए प्रेिरत िकया। घोिषत उ दे य रा ट्रपित जीन-बट्रड एिर टाइड 
को बहाल करना और मानवािधकार  के उ लंघन को समा त करना था। हालाँिक, पि चमी 
शैली  का  लोकतंत्रीकरण  िवफल  रा य  के  अनुकूल  नहीं  है ।  इस  संदभर्  म  यह  होना  चािहए 
िक  सबसे  पहले  ऐसे  सं थान   की  थापना  होना  चािहए  जो  लोग   को  ‘मानव  गिरमा  के 
अनुकूल पिरि थितय ’ म रहने म सक्षम बनाए। अमेिरका के नेत ृ व म अंतरार् ट्रीय समद
ु ाय 
शु  म ‘तेजी से  लोकतंत्रीकरण’ पर िनभर्र था। 2004 की िहंसा के प चात ्, संक प 1542 
ने  संयुक्त  रा ट्र  चाटर् र  के  अ याय  VII  के  अनुसार  है ती  (MINUSTAH)  म  संयुक्त  रा ट्र 
ि थरीकरण िमशन की  थापना को िनधार्िरत िकया गया। िमशन को वषर्-प्रित-वषर्  आधार 
पर बढ़ाया गया है । इसके अिधदे श के अनुसार, उ दे य रा ट्र िनमार्ण को आगे  बढ़ाना है ।1 
संक प 1892 (2009) के अनुसार, संयुक्त रा ट्र सरु क्षा पिरषद है ती म राजनीितक ि थरता 
और लोकतंत्र की मजबूती पर बल दे ती है । जबिक सभी रा य  के उ दे य  को पूरा नहीं 
िकया जाता है , अंतरार् ट्रीय संगठन  के मा यम से अंतरार् ट्रीय समद
ु ाय पर िकए गए प्रयास 
पहले के समय म संप्रभ ु रा य  के तरीके म पिरवतर्न लाते ह। 

पिरवितर्त वैि वक संदभर्  रा य  से  परे   अिभनेताओं  के बीच एक िनयिमत आदान-प्रदान और 


बातचीत  पर  आधािरत है । इस संबंध म, अंतरार् ट्रीय संगठन एक मह व
  पूण र् भिू मका  िनभाते 
ह।  जबिक  अिधकांश  अंतरार् ट्रीय  संगठन   की  सद यता  रा य  के  आधार  पर  होती  है ,  मु दे  
िविश ट  संगठन  अपने  अिधकार  क्षेत्र  को  केवल  रा य   तक  सीिमत  नहीं  रखते  ह।  यह  वह 
पिरवतर्न है  जो वे टफेिलयन के बाद के क्रम म बदलाव को सामने लाता है । वतर्मान वैि वक 
यव था  के  िसफर्  एक  पहल ू म  रा य   पर  यान  किद्रत  करना।  इस  तरह  के  सप
ु रनेशनल 
िनकाय  के आगमन के साथ गैर-रा य अिभनेताओं, दबाव समह
ू , प्रचारक  और पैरवी करने 
वाल  को और अिधक आधार िमल रहा है । 

2.2 सरु क्षा एवं मानवीय ह तक्षेप का उ रदािय व 

िर पॉि सिबिलटी टू प्रोटे क्ट (आरटूपी ) का िवचार संप्रभत


ु ा की अवधारणा को कद्रीयता प्रदान 
करता है । हालाँिक, यह ‘संप्रभत
ु ा के  प म अिधकार’ से  ‘संप्रभत
ु ा के  प म िज मेदारी’ के 
अथर्  को पिरवितर्त कर दे ता है । मानव अिधकार के स मान के एक िनि चत मानक की पूितर् 
को  दे खते  हुए  यह  पिरवतर्न  अिनवायर्  प  से  रा य   से  यिक्तय   तक  िचंता  का  कद्र  है । 

1
Heintze, Hans-Joachim (2015), “Humanitarian assistance and failed states”, p. 429-430.
32
कोफी  अ नान  की  िरपोटर्   ने  इस  पिरवतर्न  का  उदाहरण  िदया।  उ ह ने  कहा  िक  “यिद 
आपरािधक  यवहार पर झक
ु े  हुए रा य जानते  ह िक सीमाएँ  पूण र् रक्षा नहीं  ह और यिद वे 
जानते  ह िक सरु क्षा पिरषद मानवता के िव ध अपराध  को रोकने  के िलए कारर् वाई करे गी, 
1
तो वे संप्रभत
ु ा की उ मीद म इस प्रकार की कारर् वाई नहीं करगे।”  

आर2पी की धारणा तब सामने  आई जब मानवीय ह तक्षेप म सि मिलत दिु वधाओं  पर 


बहस हो रही थी। कोफी अ नान  वारा संयुक्त रा ट्र चाटर् र के िस धांत  को बनाए रखने और 
मानव  अिधकार   के  घोर  उ लंघन  से  मानवता  की  रक्षा  करने  के  िलए  एक  सामा य  आधार 
िवकिसत करने के अनरु ोध के उ र म, कनाडा सरकार ने वषर् 2000 म ‘इंटरनेशनल कमीशन 
ऑन  इंटरवशन  एंड  टे ट’  की  थापना  की।  ‘संप्रभत
ु ा’,  जो  2001  म  अपनी  िरपोटर् ,  “द 
िर पॉि सिबिलटी  टू  प्रोटे क्ट”  के  साथ  सामने  आई।  आईसीआईएसएस  िरपोटर्   ने  “मानवीय 
ह तक्षेप”  की  भाषा  को  “रक्षा  करने  का  उ रदािय व”  के  साथ  पिरवितर्त  कर  िदया,  तािक 
“ह तक्षेप करने का अिधकार” बहस  वारा गितरोध से दरू  हो सके।2 

गैर-ह तक्षेप  और  उ रदािय व  के  प  म  संप्रभुता  का  मानदं ड  एक  दस


ू रे   के  साथ  जड़
ु ा 
  पूण,र्   रा य  के  उ रदािय व  का  िवषय  है ।3 
हुआ  है ।  आर2पी,  सवर्प्रथम  और  सबसे  मह व
संप्रभत
ु ा  को िज मेदारी  के  प म सोचना, इसे  केवल अिधकार के  प म सोचने  के िवरोध 
म,  इसका  अथर्  है   िक  रा य  प्रािधकरण  अपने  नागिरक   की  सरु क्षा  और  क याण  के  िलए 
उ रदायी  ह।  प ट  प  से,  यिद  संबंिधत  रा य  इस  उ रदािय व  को  पूण र् करने  म  िवफल 
रहता है , तो यह दे खने का उ रदािय व अंतरार् ट्रीय समद
ु ाय पर आ जाता है  िक उस रा य के 
नागिरक  सरु िक्षत  ह।  “इन  शत   म  संप्रभत
ु ा  की  सोच  अंतरार् ट्रीय  मानवािधकार  मानदं ड   के 
लगातार बढ़ते  प्रभाव और मानव सरु क्षा की अवधारणा के अंतरार् ट्रीय प्रवचन से  प्रबल होती 
है ”।4  जबिक  गैर-ह तक्षेप  का  िस धांत  अंतरार् ट्रीय  यव था  की  आधारिशला  बना  हुआ  है , 
कुछ अ याय ह जो गैर-ह तक्षेप के िस धांत को ओवरराइड करने  की अनम
ु ित दे ते  ह। गह
ृ  
यु ध   और  प्रमख
ु   मानवीय  आपात  ि थितय   के  िवषय   म  जहाँ  आबादी  के  अि त व  के 
अिधकार  का घोर उ लंघन हो रहा है , ह तक्षेप करने  के अितिरक्त कोई और िवक प नहीं 
है ।5 

माइकल वा ज़र (2002) मानवीय ह तक्षेप के िलए एक प्रबल तकर् दे ते हुए अपने िवचार 


रखते  ह  िक  मानवीय  ह तक्षेप  म  उ पीिड़त  लोग   की  ओर  से  सै य  कारर् वाई  सि मिलत  है , 
और इसके िलए आव यक है   िक ह तक्षेप करने  वाला रा य उन लोग  के उ दे य  म प्रवेश 

1
Annan, Kofi (1999), Annual Report of the Secretary-General to the General Assembly.
2
Badescu, Cristina G. (2011), Humanitarian Intervention and the Responsibility to Protect, p. 6.
3
UNGA (2009), “Implementing the responsibility to protect”.
4
ICISS (2001), “The Responsibility to Protect”.
5
Doyle, Michael W. (2006), “Sovereignty and Humanitarian Military Intervention”. p. 4.
33
करे ।  लोग   पर  अ याचार  िकया  जाता  है ,  संभवतः,  क्य िक  वे  अपने  उ पीड़क   के  िलए 
अ वीकायर् कुछ अंत चाहते थे। कोई उनकी ओर से और उनके िसर  के िव ध ह तक्षेप नहीं 
कर  सकता।  वा ज़र  ने  यह  कहते  हुए  इसे  योग्य  बनाया  िक  ऐसा  नहीं  है   िक  उ पीिड़त   के 
उ दे य आव यक  प से  यायसंगत ह, बि क यह िक वे  उिचत  यान दे ने  योग्य ह। इसके 
अितिरक्त, वह  प ट  प से  अवसर , पसंदीदा एजट , ह तक्षेप के बारे   म जानने  का तरीका 
और ह तक्षेप समा त करने का समय प्रदान करता है ।1 

हीलर  सरु क्षा  पिरषद  के  ह तक्षेप   की  पिरवितर्त  सीमाओं  को  भी  दे खता  है   और  इसे 
कोफी अ नान के दावे  के अनु प पाता है   िक खतरे   म नागिरक  की रक्षा के िलए ह तक्षेप 
का एक नया मानदं ड है । हालाँिक, वह सतकर् है   और तकर् दे ते  ह िक “इस मानक पिरवतर्न 
की  सीमा  को  बहुत  दरू   नहीं  धकेला  जाना  चािहए”।  संयक्
ु त  रा ट्र  के  ह तक्षेप  के  एक  नए 
मानदं ड के िवकास का नेत ृ व पि चमी रा य  ने िकया है  िज ह ने ‘आदशर् उ यिमय ’ ( हीलर 
2004) की भिू मका िनभाई है ।  हीलर (2004) ने  ह तक्षेप को ‘मानवतावादी’ कहने  के िलए 
ज ट वॉर परं परा से  प्रा त चार आव यकताओं  की  परे खा तैयार की है । ये। (ए) एक उिचत 
कारण, या सव च मानवीय आपातकाल होना चािहए; (बी) बल का प्रयोग अंितम उपाय होना 
चािहए; (सी) इसे  आनुपाितकता की आव यकता को पूरा करना होगा; और (डी) इस बात की 
उ च संभावना होनी चािहए िक बल प्रयोग से सकारा मक मानवीय पिरणाम प्रा त ह गे।2 

2.3 सवर्देशीयवाद और वैि वक  याय  

वैि वक  याय एक सै धांितक  ख है  जो ‘स पूण र् िव व म लाभ और बोझ के उिचत िवतरण’ 


के  मु दे   को  संबोिधत  करता  है   और  ‘ऐसे  यायपूण र् िवतरण  को  सरु िक्षत’  करने  के  िलए 
आव यक  सं थान   की  यवहायर्ता  को  भी  दे खता  है ।3  सवर्देशीय  वैि वक  याय  का  आधार 
यिक्तगत मानव को िचंता का प्राथिमक उ दे य माना जाता है   िजसम क्षेत्रीय सीमाएँ  याय 
के िवतरण म कोई बाधा नहीं  दशार्ती ह। वैि वक  याय का िवचार सवर्देशीयवाद के िस धांत 
म  िनिहत  है ,  िजसे  एक  नैितक  आदशर्  के  प  म  पिरभािषत  िकया  गया  है   जो  मतभेद   के 
प्रित सिह णत
ु ा पर बल दे ता है   और एक अिधक  यायपूण र् िव व  यव था की संभावना की 
पिरक पना  करता  है ।  कॉ मोपॉिलटन  िस धांत  मानता  है   िक  दस
ू र   को  संसाधन  िवतिरत 
करने  के  हमारे   दािय व  रा य  की  सीमाओं  पर  नहीं  कते  ह।  िवचार  यह  है   िक  मनु य  के 
प्रित मनु य के कतर् य साथी दे श के  यिक्त तक सीिमत नहीं  होने  चािहए।4 सवर्देशीयतावाद 
की  कद्रीय  िचंता  यह  है   िक  सभी  यिक्तय   का  समान  नैितक  मू य  है ,  चाहे   उनकी 

1
Walzer, Michael (2002), “Arguing for Humanitarian Intervention”.
2
Wheeler, Nicholas J. (2004), “The Humanitarian Responsibilities of Sovereignty”.
3
Kukathas, Chandran (2006), “The Mirage of Global Justice”, p. 1-2.
4
Cabrera, Luis (2004), Political Theory of Global Justice, p. 1.
34
नागिरकता  कुछ  भी  हो।  वैि वक  याय  के  समथर्क  दिु नया  को  एक  सामा य  मानवता  के 
आधार पर दे खते ह जहाँ क्षेत्रीय सीमाएँ सबसे कम आव यक ह।1 

सवर्देशीयवाद और इसके प्रकार 

   को साझा करते ह2— 
सवर्देशीयवाद के सभी अनुयायी तीन त व

1.  यिक्तवाद  -  िकसी  अ य  सांप्रदाियक  या  रा ट्रीय  पहचान  के  बजाय  िचंता  की  अंितम 
इकाइयाँ मनु य या  यिक्त ह। 

2. सावर्भौिमकता - यह धारणा िक मनु य अंितम इकाई है , सभी पर समान  प से  लागू 


होती है , भले ही अ य अंतर कुछ भी ह । एक  वेत पु ष एक अ वेत मिहला के समान है ।  

3. सामा यता - का ता पयर्  है   िक  यिक्त सभी के िलए िचंता की अंितम इकाइयाँ  ह, न 


िक केवल अपने दे श के नागिरक  के िलए या साथी धमर्वािदय  के िलए। 

इन सामा य िस धांत  के अितिरक्त, सवर्देशीयवाद के िस धांत  के म य  यापक अंतर ह। 


3
ू ीब ध ह — 
ऐसे तीन भेद यहाँ सच

1. नैितक और सं थागत सवर्देशीयवाद 

नैितक  सवर्देशीयवाद  का  यह  मानना  है   िक  नैितक  सरोकार  की  अंितम  इकाई  के  प  म 
प्र येक  यिक्त  का  वैि वक  कद  है ।  वह  अपनी  नागिरकता  या  रा ट्रीयता  की  िचंता  िकए 
िबना समान िवचार करने का अिधकारी है । सं थागत महानगरीय लोग वैि वक  यव था म 
यापक  सं थागत  पिरवतर्न   की  आव यकता  के  िलए  तकर् दे ते  ह  तािक  महानगरीय  ि ट 
को पयार् त  प से साकार िकया जा सके। 

2. चरम बनाम उदारवादी सवर्देशीयवाद 

चरम  महानगरीय  मू य  के  ोत  के  िवषय  म कठोर  ह  और  तकर्  दे ते  ह  िक नैितकता  के 
अ य  सभी  िस धांत   को  महानगरीय  मू य   के  संबंध  म  उिचत  ठहराया  जाना  चािहए। 
उदारवादी  महानगरीय  लोग  मू य  के  ोत  पर  एक  अिधक  बहुलवादी  रे खा  लेते  ह  और 
मानते ह िक कुछ गैर-महानगरीय मू य  का भी अंितम नैितक मू य हो सकता है । 

3. कमजोर बनाम मजबूत सवर्देशीयवाद 

कमजोर महानगरीय लोग ही ठीक ह क्य िक केवल बुिनयादी ि थितयाँ  ही मनु य के िलए 


‘ यूनतम  स य  जीवन’  जीने  के  िलए  सावर्भौिमक  प  से  आव यक  ह।  हालाँिक,  मजबूत 

1
Choudhary, Abhishek (2018), “Global Justice”.
2
Pogge, Thomas W. (1992), “Cosmopolitanism and Sovereignty”, p. 89.
3
Brock, Gillian (2009), Global Justice: A Cosmopolitan Account, p. 11-13.
35
महानगरीय  वैि वक  िवतरण  समानता  के  अिधक  माँग  वाले  प  के  िलए  तकर्  दे ते  ह, 
िजसका ल य  यूनतम स य जीवन जीने  के िबंद ु से  परे   असमानताओं  को समा त करना 
है । 

2.4. मानव सरु क्षा की अवधारणा  

मानव सरु क्षा की अवधारणा 1994 की संयुक्त रा ट्र की मानव िवकास िरपोटर्   से  उभरी और 


न केवल “सीमाओं की सुरक्षा बि क लोग  के जीवन की सरु क्षा” को सि मिलत करने के िलए 
सरु क्षा नीित और िव लेषण के फोकस को  यापक बनाने की माँग की िरपोटर्  म “सात घटक ” 
की  परे खा  है ।  मानव  सरु क्षा—आिथर्क,  खा य,  वा य,  पयार्वरण,  यिक्तगत,  सामद
ु ाियक 
और राजनीितक प्रितभिू तयाँ। मानव सरु क्षा की चार प्रमख
ु  िवशेषताएँ  ह—यह एक सावर्भौिमक 
अवधारणा है , घटक अ यो याि त ह, ह तक्षेप के बजाय रोकथाम पर बल िदया गया है  और 
यह जन-किद्रत है ।”1 

मानव सरु क्षा के समथर्क इसे  “अचानक संकट के िव ध एक मह  वपण


ू  र् सरु क्षा के  प 
म दे खते  ह जो मानव िवकास लाभ को उलट सकता है ”।2 इससे  भी मह  वपूण र् बात यह है  
िक यह  ि टकोण  यिक्तय  पर  यान किद्रत करके और मख्
ु यधारा, रा य-किद्रत  ि टकोण  
पर प्र न उठाकर सरु क्षा की सम या की गहरी समझ प्रदान करता है । अभाव से  मिु क्त और 
भय से मिु क्त जैसी धारणाओं को दे खते हुए सरु क्षा का िवचार िवकास के िवचार से जड़
ु  जाता 
है । 

मानव सरु क्षा की धारणा रा य के आसपास किद्रत पारं पिरक  ि टकोण  से परे  सरु क्षा का 


यान किद्रत करती है । यह पिरवतर्न एक सांिख्यकीवादी  ि टकोण से  एक  यिक्तगत किद्रत 
ि टकोण की  ओर  है ।  यिक्तय  के प्रित इस पिरवितर्त फोकस के  साथ, सै यीकृत रा ट्रीय 
सरु क्षा की िदशा म पहले  के िनिवर्वाद अिभयान को चुनौती दी गई है । मख्
ु यतः मानव सरु क्षा 
का अथर् है  ‘आव यकता से मिु क्त’ और ‘भय से मिु क्त’।3 मानव सरु क्षा के अिधकांश िव वान  
ने  यह  तकर्  िदया  है   िक  मानव  सरु क्षा  को  ‘लोग   के  क याण’  पर  यान  दे ने  के  साथ 
‘नीितगत पिरवतर्न’ होना चािहए।4 मानव सरु क्षा, एक गैर-पारं पिरक सरु क्षा  ि टकोण के  प 
म,  सरु क्षा  की  नवयथाथर्वादी  अवधारणाओं  म  िनिहत  सांिख्यकीवादी  िढ़वािदता  को  चुनौती 
दे ती है । मानव सरु क्षा के पैरोकार  के िलए प्र थान का एक प्रमख
ु  िबंद ु यह है   िक सरु क्षा के 
िलए  प्रमख
ु   खतरे   ‘आंतिरक  संघषर्,  बीमारी,  भख
ू ,  पयार्वरण  प्रदष
ू ण  या  आपरािधक  िहंसा’  से 

1
UNDP, 1994: 22-25
2
Tadjbakhsh, S. and Chenoy, A. (2007), Human Security: Concepts and Implications.
3
Newman, Edward (2010), “Critical Human Security Studies”, p.78.
4
op. cit.
36
उ प न होते  ह।1 लोग  के िलए खतरे   का प्रमख
ु   ोत बाहरी िवरोधी नहीं  अिपतु  उनके अपने 
रा य  ह।  इस  दावे  का  अथर्  यह  नहीं  है   िक  मानव  सरु क्षा  रा य  की  सरु क्षा  के  साथ  संघषर् 
करती  है ।  हालाँिक,  यह  िनिहत  है   िक  ‘रा य  सरु क्षा  पर  अिधक  जोर’  ‘मानव  क याण 
आव यकताओं’  के  िलए  हािनकारक  है ।  इस  प्रकार,  रा य  सरु क्षा  की  पारं पिरक  अवधारणा 
आव यक है  और यह ‘मानव क याण की पयार् त ि थित’ नहीं है ।2 

मानव सरु क्षा पर आयोग की िरपोटर्  

मानव सरु क्षा आयोग की िरपोटर्   के अनुसार, मानव सरु क्षा चार प्रकार से  रा य की सरु क्षा 


का पूरक है 3— 

 इसकी िचंता रा य की बजाय  यिक्त और समद


ु ाय है । 
 इसम लोग  की सरु क्षा के िलए खतरे   और शत शािमल ह िज ह हमेशा रा य की 
सरु क्षा के िलए खतर  के  प म वगीर्कृत नहीं िकया गया है । 

 अिभनेताओं की सीमा अकेले रा य से परे  िव तािरत है ।  

 मानव सरु क्षा  प्रा त  करने  म न केवल लोग  की रक्षा करना सि मिलत है , अिपतु 


लोग  को अपनी रक्षा करने के िलए सशक्त बनाना भी सि मिलत है । 

आयोग ने िन निलिखत िसफािरश प्रदान कीं4— 

 िहंसक संघषर् म लोग  की रक्षा करना। 

 हिथयार  के प्रसार से लोग  की रक्षा करना। 

 इस कदम पर लोग  की मानव सरु क्षा का समथर्न करना। 

 संघषर् के प चात ् की ि थितय  के िलए मानव सरु क्षा संक्रमण कोष की  थापना।  

 अ यिधक  गरीब   को  लाभ  पहुँचाने  के  िलए  िन पक्ष  यापार  और  बाजार   को 
प्रो सािहत करना। 

 हर जगह  यूनतम जीवन  तर प्रदान करना। 

 बुिनयादी  वा य दे खभाल तक सावर्भौिमक पहुँच को उ च प्राथिमकता के अनुसार 


दे ना। 

 पेटट  अिधकार   के  िलए  एक  कुशल  और  यायसंगत  वैि वक  प्रणाली  िवकिसत 
करना। 

1
ibid. 79.
2
ibid. 79.
3
CHS, 2003, p.4
4
Ibid. 133.
37
 अिधक प्रबल वैि वक और रा ट्रीय प्रयास  के मा यम से सभी लोग  को सावर्भौिमक 
बुिनयादी िशक्षा के साथ सशक्त बनाना। 

 िविवध  पहचान  और  संब धता  रखने  के  िलए  यिक्तय   की  वतंत्रता  का  स मान 
करते हुए एक वैि वक मानव पहचान की आव यकता को  प ट करना। 

2.5 संकट समाज की अवधारणा 

क्षेत्रीय  सीमाओं  को  पार  करने  वाले  खतर   की  वैि वक  पहुँच  ने  कुछ  िव वान   को  ‘जोिखम 
समाज’ कहा है । यह पिरवतर्न  प ट  प से  अंतरार् ट्रीय  यव था म रा य  की प्रधानता को 
पुनः  पिरभािषत  करने  के  िलए  खड़ा  है ।  जोिखम  समाज  की  अवधारणा  को  पिरभािषत  करते 
हुए,  िगडस  का  तकर्  है   िक  यह  एक  ऐसी  सामािजक  यव था  को  यक्त  करता  है   जहाँ 
यिक्त ‘भिव य के प्रित अिधक  य त होता है , जो जोिखम की धारणा उ प न करता है ’।1 
उलिरच  बेक  इसे  आधिु नकीकरण  वारा  प्रेिरत  ‘खतर   और  असरु क्षाओं’  से  िनपटने  के  िलए 
‘एक  यवि थत तरीके’ के  प म दे खते  ह।2 अगोचर जोिखम और नुकसान ह िज ह  प ट 
प से  उपल ध नहीं  दे खा जा सकता है । बेक ने  इसका उपयोग धन और जोिखम समाज के 
संदभर्  म िकया है । उनका तकर् है   िक जब बोधग य धन और अगोचर जोिखम के म य एक 
दौड़  होती  है ,  तो  ‘अ य  जोिखम  दौड़  जीतते  ह’।  अगोचर  जोिखम   की  उपेक्षा  करना  आगे 
जोिखम और खतर  के बढ़ने  और फलने-फूलने  के िलए प्रजनन  थल के  प म कायर्  करता 
है । बढ़ती अ यो या यता और अंतरार् ट्रीय मु द  की दिु नया म, रा य सरु क्षा की एक संकीणर् 
याख्या कोई उ र नहीं है । 

वे टफेिलयन  संप्रभत
ु ा  की  पारं पिरक  धारणा  पर  यिक्तय   पर  यान  दे ने  के  साथ  प्र न 
उठाया  जाता  है ।  जबिक  रा य  की  संप्रभत
ु ा  की  पारं पिरक  धारणा  सरकार  वारा  क्षेत्र  के 
िनयंत्रण पर िटकी हुई है , मानव सरु क्षा  ि टकोण यह मानता है  िक रा य की संप्रभत
ु ा लोग  
की  सेवा  और  समथर्न  पर  िटकी  हुई  है ।  ‘सशतर्  संप्रभत
ु ा’  का  िवचार चलन  म  आता  है   जहाँ 
रा य  की  संप्रभत
ु ा  कम  से  कम बुिनयादी अिधकार  के संरक्षण  पर  सशतर्  होती  है । संप्रभत
ु ा 
सीिमत है  क्य िक अिधकार के गठन वाले कतर् य अंतरार् ट्रीय समाज से संबंिधत प्र येक संप्रभु 
की  गितिविध  को  बािधत  करते  ह।3  मानव  सरु क्षा  आयोग,  मानव  सरु क्षा  ट्र ट  फंड  और 
अंतरार् ट्रीय  ह तक्षेप  और  रा य  संप्रभत
ु ा  आयोग  जैसे  संगठन  मानव  सरु क्षा  के  िवचार  को 
गित प्रदान करते ह। 

1
Giddens, Anthony, 1999,
2
Beck, Ulrich, 1992
3
Shue, Henry (2004), “Limiting Sovereignty”, p. 15.
38
3. बहस योग्य पो ट-वे टफेिलयन संभावनाएँ 

िरचडर्  फा क  (2002)  “वे टफेिलयन  के  प चात ्  के  चार  अंत”  की  पहचान  करता  है —िव व 
सरकार;  वैि वक  बाज़ार;  वैि वक  गाँव  और  वैि वक  साम्रा य।  वह उ ह  इस  त य के  कारण 
1
मत
ृ  अंत कहता है   िक वे  “अप्रा य या अवांछनीय, या दोन ” ह।  इन पिर य  की यूटोिपयन 
प्रकृित  उ ह  गंभीर  यान  दे ने  योग्य  नहीं  बनाती  है ।  हालाँिक,  उनम  अंत र्ि ट  होती  है   जो 
वैि वक  झान  और आकांक्षाओं के संबंध म पिरवतर्न  को समझने म सहायता करती है । 

3.1 िव व सरकार  

‘िव व सरकार’ एक सामा य राजनीितक अिधकार के अनुसार एकजट


ु  सभी मानव जाित के 
िवचार  को  संदिभर्त  करता  है ।  यह  कोई  नया  िवचार  नहीं  है   क्य िक  एक  एकीकृत  वैि वक 
राजनीितक स ा के प्र ताव प्राचीन काल से उपल ध ह।2 िव व सरकार के आदशर् का समथर्न 
करने  वाले  इसे  ‘राजनीितक  संगठन  का  आदशर्’  मानते  ह।  इसे  मानवता  वारा  सामना  की 
जाने  वाली सम याओं  जैसे  ‘यु ध, सामिू हक िवनाश के हिथयार  का िवकास, वैि वक गरीबी 
और  असमानता,  और  पयार्वरणीय  िगरावट’  के  एकमात्र  ‘िनि चत  समाधान’  के  प  म  दे खा 
जाता  है ।3  इस  प्रकार  के  एक  आदशर्  की  प्राि त  के  साथ  सम या  ‘शांित  बनाए  रखने  के 
अिधकार  के  िनिहत  ह तांतरण’  के  प्रित  अिन छा  और  संदेह  म  िनिहत  है ,  जब  रा ट्रीय 
भावनाएँ  कमजोर  होने  से  बहुत  दरू   ह।  रा ट्रीयता  और  स यताओं  से  जड़
ु ी  पहचान  अभी  भी 
बहुत  मजबत ू   ह  और  िविवधताएँ  वे टफेिलयन  संरचना  के  तहत  संरिक्षत  ह।  एक  ‘साझा 
लोकतांित्रक ढाँचे’ को  वीकार करने  से  और अिधक असमानताएँ  और संसाधन की कमी पैदा 
होगी  जो  अमीर  और  गरीब  दोन   के  िलए  समान  प  से  खतरा  होगी।  िव व  सरकार  का 
आदशर्  अप्रा य  है   और  अगर  यह  थािपत  भी  हो  जाता  है ,  तो  यह  िनि चत  प  से  एक 
वैि वक अ याचार और एक प्रितिक्रयावादी ‘बड़े पैमाने पर नागिरक यु ध’ की आशंका उ प न 
करे गा।4 

िविभ न सै धांितक  ि टकोण और िव व सरकार के िवचार5 

यथाथर्वादी  और  नवयथाथर्वादी  अ तरार् ट्रीय  यव था  को  हॉि सयन  प्रकृित  की  अव था  के 
समान  मानते  ह।  प्रकृित  की  ऐसी  ि थित  म  याय  और  अ याय  की  धारणाओं  के  िलए 
कोई  थान  नहीं  है ।  प्र येक  इकाई  अपने  अि त व  को  सिु नि चत  करने  के  िलए  अपनी 
शिक्त के भीतर हर साधन को आगे  बढ़ाने  के िलए तकर्संगत  प से  प्रेिरत होती है   और 

1
Falk, Richard (2002), “Revisiting Westphalia, Discovering Post-Westphalia”, p. 332.
2
Lu, Catherine, “World Government”.
3
ibid.
4
Falk, Richard (2002), ibid., p. 334
5
Lu, Catherine, “World Government”. 
39
यह  दस
ू र   के  िहत   की  कीमत  पर  भी  ऐसा  करती  है ।  केनेथ  वा ज  ने  अपने  1979  के 
लेख  योरी  ऑफ  इंटरनेशनल  पॉिलिटक्स  म,  िव व  सरकार  पर  संप्रभ ु रा य   की  एक 
प्रणाली  का  समथर्न  िकया।  वा ज  के  अनुसार,  िव व  सरकार  सावर्भौिमक,  उदासीन, 
िन पक्ष  याय,  यव था  या  सरु क्षा  प्रदान  नहीं  करे गी।  हालाँिक,  यह  घरे ल ू सरकार   की 
भाँित ही होगा और अपने  वयं  के िवशेष या िविश ट संगठना मक िहत  से  प्रेिरत होगा। 
इन िहत  का पीछा “रा य  के िहत  और  वतंत्रता की कीमत पर” िकया जाएगा। इसिलए, 
जबिक वा ज अंतरार् ट्रीय अराजकता के गण
ु  का ज न मनाता है   िजसके अनुसार रा य  
को  “रा ट्रीय  वतंत्रता”  दी  जाती  है ।  इसिलए,  वा तव  म,  वा ज  का  तकर्  है   िक  “संप्रभ ु
रा य  का एक परमाण ु आदे श” एक “अिधक एकीकृत एक से  बेहतर है   जो रा य  पर बोझ 
डाल सकता है  और उनकी  वाय ता को बािधत कर सकता है ”। 

बीसवीं  सदी  के  म य  के  शा त्रीय  यथाथर्वादी  समकालीन  यथाथर्वािदय   की  तुलना  म 
वैि वक  सं थागत  सध
ु ार  के  िवचार   के  प्रित  अिधक  सहानुभिू त  रखते  थे।  शा त्रीय  और 
प्रगितशील  यथाथर्वादी  जैसे  रे नहो ड  नीबुहर,  ई.एच.  कैर,  हं स  मोगथाऊ,  जॉन  हज़र्  और 
फ्रेडिरक  शुमान,  एक  “वैि वक  सध
ु ारवादी  एजडा  के  पक्ष  म  थे,  जो  आिथर्क  वै वीकरण, 
तकनीकी  पिरवतर्न,  आधिु नक  कुल  यु ध  और  परमाण ु क्रांित  के  आगमन  से  प्रेिरत  था”। 
रे नहो ड  नीबुहर  के  अनुसार,  वैि वक  संघीय  यव था  के  प  म  िव व  सरकार  के  प्रित 
वैि वक  राजनीितक  पिरवतर्न  की  यवहायर्ता  “गहन  वैि वक  सामािजक  एकीकरण  और 
सामंज य”  पर  िनभर्र  करे गी।  नीबुहर  के  अनस
ु ार  वैि वक  राजनीितक  एकता  के  िलए 
आव यक  सामािजक  और  सां कृितक  आधार  के  अभाव  म  िव व  सरकार  की  उपलि ध 
अवांछनीय होगी। इस प्रकार की िव व सरकार को शासन करने के िलए स ावादी उपकरण  
की आव यकता होगी और इससे वैि वक अ याचारी शिक्त का उदय होगा। 

इंिग्लश  कूल िस धांतकार, या अंतरार् ट्रीय समाज के िस धांतकार, िव व सरकार के िवचार 


को अंतरार् ट्रीय  यव था की अराजक प्रकृित से  जोड़ते  ह। उनका तकर् है   िक संप्रभ ु रा य  
के  ऊपर  एक  कद्रीय  अिधभावी  प्रािधकरण  की  अनुपि थित  के  बाद  भी, उनके  संबंध  “पूण र्
प  से  कानूनिवहीन  या  आिधकािरक  और  लाग ू करने  योग्य  मानदं ड   और  आचरण  के 
िनयम  से रिहत नहीं ह”। हे डली बुल के अनुसार, रा य  के म य की अराजकता रा य  के 
आदशर्-शािसत  समाज  की  अवधारणा  को  बािधत  नहीं  करती  है ।  इंिग्लश  कूल  के 
िस धांतकार एक कद्रीय वैि वक प्रािधकरण की अनुपि थित को ‘सभी के िखलाफ सभी के 
यु ध’  की  ि थित  के  प  म  नहीं  दे खते  ह।  इसिलए,  वे  िव व  सरकार  के  िवचार  को 
अनाव यक और संभािवत  प से  खतरनाक मानते  ह, क्य िक यह अंततः रा य  के म य 
साम्रा यवादी  वचर् व  के  संघषर्  म  एक  लबादे   के  प  म  काम  कर  सकता  है ।  एक  अ य 
अंग्रेजी  कूल िस धांतकार, मािटर् न वाइट के िलए, सवर्देशीयवाद के नैितक आदशर्  आमतौर 

40
पर राजनीितक अ याचार और साम्रा यवाद म  यवहार म अनुवाद करते  ह। िव व सरकार 
के िवक प के  प म, िक्रस ब्राउन “नैितक  प से  वाय ता की बहुलता का िवचार, शांित 
और कानून के ढाँचे  म एक-दसू रे   से  संबंिधत समद
ु ाय  को प्र तुत करता है ”। तकर् की यह 
पंिक्त  कांिटयन  आदशर्  के  अनु प  है ।  आदशर्  प  से  क पना  की  गई  एक  अंतरार् ट्रीय 
समाज की  थापना, एक सव च िव व सरकार को अनाव यक बना दे गी। 

उदारवादी अंतरार् ट्रीयवािदय  के िलए, रा य की संप्रभत


ु ा के पारं पिरक खात  की  प ट  प 
से  आलोचना मक है । िरचडर्  फा क ने  िन निलिखत बीमािरय  की पहचान करते  हुए: एक 
अरब  से  अिधक  मनु य   को  प्रभािवत  करने  वाली  वैि वक  गंभीर  गरीबी,  सामािजक  और 
सां कृितक  प  से  कमजोर  समह
ू   को  मानवािधकार   से  वंिचत  करना,  यु ध  का  लगातार 
उपयोग  और  खतरा  राजनीित  के  एक  साधन  के  प  म,  पयार्वरणीय  िगरावट,  और 
अंतरार् ट्रीय  लोकतांित्रक  जवाबदे ही  की  कमी  (1995,  1-2),  समकालीन  िव व  यव था  को 
“अमानवीय शासन” म से एक के  प म िचित्रत िकया है । एक उदार अंतरार् ट्रीयवादी एजडा 
तब आगे  बढ़ता है   जब इन बुराइय  को दरू  करने  या ठीक करने  की िदशा म प्रगित होती 
है । हालाँिक, फा क  प ट है   िक “िव व सरकार के िबना मानवीय शासन प्रा त िकया जा 
सकता  है ,  और  यह  कारर् वाई  की  अिधक  संभावना  और  अिधक  वांछनीय  प्रिक्रया  दोन   है ” 
(8)।  िव व  सरकार  वारा,  फा क  का  अथर्  वैि वक  राजनीितक  संगठन  का  एक  प  है , 
िजसम कम से  कम िन निलिखत िवशेषताएँ  ह—“कानून के अनुसार तीसरे   पक्ष के िनणर्य 
वारा सभी िववाद  का अिनवायर्  शांितपूण र् समाधान; रा य और क्षेत्रीय  तर  पर सामा य 
और पूण र् िनर त्रीकरण; प्रवतर्न क्षमताओं  वारा समिथर्त एक वैि वक िवधायी क्षमता; और 
िकसी  प्रकार  का  कद्रीकृत  नेत ृ व”(7)।  िव व  सरकार  के  बजाय,  फा क  वैि वक  नागिरक 
समाज के साथ-साथ संयुक्त रा ट्र सुधार से “अंतरार् ट्रीय लोकतांित्रक पहल” की माँग करता 
है ,  जो  दोन   सांिख्यकी  और  बाजार  बल   को  चुनौती  दगे  और  पूरक  ह गे  जो  वतर्मान  म 
हमारे  समकालीन वैि वक बीमािरय  (207) का उ पादन करते ह। 

3.2 वैि वक बाज़ार  थान 

‘बाजार संचािलत राजनीितक और वैचािरक संरचना’ म बड़े  पैमाने  पर व ृ िध एक ‘वा तिवक 


वैि वक  स यता’  की  ओर  एक  कदम  और  एक  वैि वक  बाजार  की  थापना  की  पिरक पना 
करती है । िवचार क्षेत्रीय रा य  की ि थित को अधीन थ करता है । हालाँिक, ऐसा आदशर्  इस 
त य पर  यान नहीं दे ता िक वै वीकरण ‘स यता, धािमर्क और जातीय पहचान  को िनयंित्रत 
करने  के  बजाय  मजबूत  होता  है ’।1  इसके  अितिरक्त,  रा य  ऐसे  पिरवतर्न   के  प्रित  अिधक 
लचीला हो सकता है  जो ऐसे आदशर् के समथर्क   वारा प्र यािशत है । 

1
ibid., p. 333
41
3.3 वैि वक गाँव  

वैि वक  गाँव  के  िवचार  को  टे लीिवजन  और  मीिडया  के  बढ़ते  प्रभाव  से  प्रो साहन  िमला  है  
िजसने  साझा जाग कता और पर पर जड़
ु ाव की भावना उ प न की है । इस दावे  का पुरजोर 
समथर्न  है   िक  नागिरकता  ‘नेिटजनिशप  और  साइबर  पॉिलिटक्स  वारा  प्रित थािपत’  हो  रही 
है ।  प्र तावक  अिधकतम  उदारवादी  ह  जो  मानते  ह  िक  रा य  के  िनयम   पर  िव वास  नहीं 
िकया जा सकता है । भले  ही सच
ू ना और संचार प्रौ योिगकी म क्रांित का प्रभाव अभत
ू पूव र् है , 
यह सझ
ु ाव दे ना एक दरू   ि ट होगी िक यह उपल ध प्रणािलय  को पण
ू  र् प से पिरवितर्त कर 
दे गा। इन पिरवतर्न   को  मौजद
ू ा  संरचनाओं  के भीतर समायोिजत करने  की अिधक संभावना 
है ।  साथ  ही,  ‘गैर-पि चमी’  दिु नया  वैि वक  गाँव  के  िवचार  को  अिनवायर्  प  से  आिधप य 
मानती है । नागिरक समाज के मा यम से  थोपे  गए वै वीकरण का िवरोध करने  वाली ताकत 
1
एक वैि वक गाँव के िकसी भी िवचार के िलए एक मजबत
ू  चन
ु ौती पेश करती ह।  

3.4 वैि वक साम्रा य  

अमेिरका के नेत ृ व वाले  सरु क्षा ढाँचे  ने  उन चन


ु ौितय  के साथ वैधता प्रा त करना प्रारं भ कर 
िदया,  जो  9/11  के  आतंकवादी  हमल   ने  वे टफेिलयन  ढाँचे  के  सामने  पेश  की  थीं।  पूरी 
दिु नया पर अमेिरकी शैली की िव व  यव था को लाग ू करना खतरे  की संभािवत पिरमाण की 
वीकृित के साथ तकर् प्रा त करना प्रारं भ कर िदया। यह खतरा अंतिरक्ष के श त्रीकरण और 
िमसाइल  रक्षा  के  प्रावधान  सिहत  अमेिरकी  सेना  के  प्रभु व  के  िलए  भी  अनुमित  दे ता  है ।2 
हालाँिक, वा तव म ‘वैि वक साम्रा य’ का ऐसा िवचार अप्रा य है । यह िवचार एक सरलीकृत 
आधार  पर  िटका  हुआ  है   िक  अमेिरका  को  िबना  िकसी  प्रितिक्रया  के  सै यीकरण  और  हावी 
होने  की अनुमित दी जाएगी। इस प्रकार की साम्रा यवादी मह व
  ाकांक्षा वैि वक साम्रा य की 
खोज को रोकने  के िलए प्रितिक्रयाशील संरचनाओं  और गठबंधन  को उ प न करने  के िलए 
बा य है । यह अ यिधक संभावना है  िक अ य दे श अमेिरका के िनिवर्वाद प्रभु व और वैि वक 
साम्रा य  थािपत  करने  की  उसकी  बोली  को  वीकार  नहीं  करगे।3  अमेिरकी  आिधप य  के 
िलए चुनौती भी दो कारक  पर िनभर्र है —आम धारणा है  िक दिु नया एकध्रुवीय नहीं होगी; और 
एंग्लो-अमेिरकन वचर् व वाली दिु नया के बाहर आिथर्क शिक्तय  का उदय। 

4. िन कषर्  

वै वीकरण का प्रभाव और ‘उ र-रा ट्रीय राजनीित’ की ओर  झान वतर्मान अंतरार् ट्रीय संदभर् 


म  प ट  है ।  अंतरार् ट्रीय  मानवािधकार  यव था,  सरु क्षा  के  प्रित  अिधक  मानवीय  ि टकोण 

1
ibid., p. 335.
2
op. cit.
3
ibid. p. 336 
42
की  ओर  यान  किद्रत  करना  और  अिधक  ‘ यायसंगत’  आदे श  की  माँग  इस  प्रकार  की 
प्रविृ य   का  उदाहरण  है ।  वे टफेिलयन  प्रणाली  अपनी  पिवत्रता  खोती  िदख  रही  है   और 
िनिवर्वाद  सांिख्यकी  एजडा  कई  साइट   से  चुनौितय   का  सामना  कर  रहा  है ।  हालाँिक,  यह 
सझ
ु ाव दे ना एक अित सरलीकरण होगा िक अंतरार् ट्रीय संबंध एक ऐसे चरण म प्रवेश कर रहे  
ह  जो  रा य प्रणाली से  वतंत्र  है । रा य प्रणाली के सामने  आने  वाली चुनौितयाँ  सध
ु ार की 
गज
ुं ाइश प्रदान करती ह जहाँ  कठोरता को अिधक समायोजना मक  ि टकोण से  प्रित थािपत 
िकया जा रहा है । 

References 

Agnew, John (2005), “Sovereignty Regimes: Territoriality and State Authority 
in  Contemporary  World  Politics”,  Annals  of  the  Association  of  American 
Geographers, 95 (2): 437-461. 

Annan,  Kofi  (1999),  Annual  Report  of  the  Secretary-General  to  the  General 
Assembly, 20 September 1999, [Online: Web] Accessed 10 April 2019, URL: 
http://www.un.org/News/Press/docs/1999/19990920.sgsm7136.html 

Badescu,  Cristina  Gabriela  (2011),  Humanitarian  Intervention  and  the 


Responsibility to Protect: Security and Human Rights, London and New York: 
Routledge. 

Beck, Ulrich (1992),  Risk Society: Towards a New Modernity, London: Sage 
Publications. 

Brock,  Gillian  (2009),  Global  Justice:  A  Cosmopolitan  Account,  Oxford: 


Oxford University Press. 

Cabrera,  Luis  (2004),  Political  Theory  of  Global  Justice:  A  Cosmopolitan 


Case for the World State, Oxfordshire: Routledge. 

CHS  (2003),  Human  Security  Now,  Report  of  the  Commission  on  Human 
Security, New York. 

Choudhary, Abhishek (2018), “Global Justice”, in Ali Farazmand (ed.)  Global 
Encyclopedia of Public Administration, Public Policy, and Governance, Cham, 
Switzerland: Springer. 

43
Doyle,  Michael  W.  (2006),  “Sovereignty  and  Humanitarian  Military 
Intervention”,  March  2006,  [online:  web]  Accessed  17  August  2019,  URL: 
https://www.princeton.edu/~pcglobal/conferences/normative/papers/Session5_Do
yle.pdf 

Falk,  Richard  (2002),  “Revisiting  Westphalia,  Discovering  Post-Westphalia”, 


The Journal of Ethics, 6 (4): 311-352. 

Giddens,  Anthony  (1999),  “Risk  and  Responsibility”, The  Modern  Law 


Review, 62 (1): 1–10. 

Heintze,  Hans-Joachim  (2015),  “Humanitarian  assistance  and  failed  states: 


still  an  issue  of  sovereignty?  The  case  study  of  Haiti”,  in  Andrej  Zwitter, 
Christopher  K.  Lamont,  Hans-Joachim  Heintze  and  Joost  Herman  (eds.) 
Humanitarian  Action:  Global,  Regional  and  Domestic  Legal  Responses, 
Cambridge: Cambridge University Press. 

ICISS  (2001),  “The  Responsibility  to  Protect”,  Report  of  the  International 
Commission  on  Intervention  and  State  Sovereignty,  Ottawa:  International 
Development Research Centre, December 2001, [Online: Web] Accessed 10 
April 2019, URL: http://responsibilitytoprotect.org/ICISS%20Report.pdf 

Kissinger, Henry (2014), World Order: Reflections on the Character of Nation 
and the Course of History, London: Allen Lane. 

Krasner,  Stephen  D.  (1999),  Sovereignty:  Organized  Hypocrisy,  Princeton, 


NJ: Princeton University Press. 

Kreuder-Sonnen,  Christian  and  Bernhard  Zangl  (2015),  “Which  post-


Westphalia?  International  organizations  between  constitutionalism  and 
authoritarianism”, European Journal of International Relations, 21(3): 568–594. 

Kukathas, Chandran (2006), “The Mirage of Global Justice”, in Ellen F. Paul, 
Fred  D.  Miller,  Jr.  and  Jeffrey  Paul  (eds)  Justice  and  Global  Politics, 
Cambridge: Cambridge University Press. 

Lu,  Catherine  (2015),  “World  Government”,  in  Edward  N.  Zalta  (ed)  The 
Stanford  Encyclopedia  of  Philosophy,  [online:  web]  Accessed  13  August 
2017, URL: http://plato.stanford.edu/archives/win2015/entries/world-government 
44
Newman,  Edward  (2010),  “Critical  Human  Security  Studies”,  Review  of 
International Studies, 36 (1): 77-94.  

Nexon, Daniel H. (2009), “Westphalia Reframed”, in  The Struggle for Power 
in  Early  Modern  Europe:  Religious  Conflict,  Dynastic  Empires,  and 
International Change, Princeton and Oxford: Princeton University Press. 

Osiander,  Andreas  (2001),  “Sovereignty,  International  Relations,  and  the 


Westphalian Myth”, International Organization, 55 (2): 251-287. 

Pogge,  Thomas  W.  (1992),  “Cosmopolitanism  and  Sovereignty”,  Ethics,  103 


(1): 48-75. 

Shue,  Henry  (2004),  “Limiting  Sovereignty”,  in  Jennifer  M.  Welsh  (ed.), 
Humanitarian  Intervention  and  International  Relations,  Oxford:  Oxford 
University Press.  

Tadjbakhsh,  S.  and  Chenoy,  A.  (2007),  Human  Security:  Concepts  and 
Implications, New York: Routledge. Cited in Natalie F. Hudson, et al. (2013) 
“Human Security”, in Laura J. Shepherd (ed.) Critical Approaches to Security: 
An Introduction to theories and methods, London and New York: Routledge. 

UNDP (1994),  Human Development Report 1994, [Online: Web] Accessed 2 
March 2019, URL: http://hdr.undp.org/en/media/hdr_1994_en_chap2.pdf 

UNGA  (2009),  “Implementing  the  responsibility  to  protect”,  Report  of  the 
Secretary-General, 12 January 2009, [Online: Web] Accessed 10 April 2013, 
URL: http://responsibilitytoprotect.org/implementing%20the%20rtop.pdf 

Walzer,  Michael  (2002),  “Arguing  for  Humanitarian  Intervention”,  in  Nicolaus 


Mills  and  Kira  Brunner  (eds.),  The  New  Killing  Fields:  Massacre  and  the 
Politics of Intervention, New York: Basic Books. 

Wheeler,  Nicholas  J.  (2004),  “The  Humanitarian  Responsibilities  of 


Sovereignty:  Explaining  the  Development  of  a  New  Norm  of  Military 
Intervention  for  Humanitarian  Purposes  in  International  Society”,  in  Jennifer 
M. Welsh (ed.), Humanitarian Intervention and International Relations, Oxford: 
Oxford University Press. 

45
इकाई-2 

पाठ-1 : अंतररा ट्रीय संबंध एवं यथाथर्वाद 
डॉ. प्रमोद कुमार 
 
पिरचय 

अंतररा ट्रीय  संबंध   के  अ ययन  एवं  उसकी  समझ  िवकिसत  करने  के  िलए  यथाथर्वाद  को 
सवार्िधक मह  वपूण र् िस धा त के  प म माना जाता है । यथाथर्वादी पर परा को हम िविभ न 
प्राचीन िव वान  के पिरप्रे य से  समझ सकते  ह जैसे  यूनानी दाशर्िनक  यूिसडीएड, इटली के 
िचंतक  मैिकयावेली,  िब्रिटश  राजनीितक  दाशर्िनक  थॉमस  हॉ स,  फ्रांसीसी  िव वान  सो 
इ यािद।  बीसवीं  शता दी  म  एडवडर्  है लट  टे ड  कार,  रै नहो ड  नेबूर,  हं स  जे.  मोरगे थो,  जॉजर् 
कैनन, रे मड
ं  एरोन एवं  अ य यथाथर्वादी िचंतक  ने  अंतररा ट्रीय राजनीित की  यावहािरकता 
पर  बल  दे त े हुए  इसके  अ ययन  के  िलए  अ यंत  मह  वपण
ू  र् तकनीक   को  िवकिसत  िकया। 
नव-यथाथर्वादी  अथवा  संरचना मक  यथाथर्वादी  िचंतक  जैसे  केनेथ  वा ज,  टीफन  कासर्न 
और रॉबटर्   िगलिपन ने  शीतयु यो र िव व की संरचना को गहराई से  िव लेिषत िकया। जॉन 
िमयरशेमर,  रे डल  वेलर,  चा सर्  गलेशर,  टीफन  वॉ ट  सभी  ने  समसामियक  िव व 
राजनीित  की  यथाथर्ता  एवं  व तुपरकता  का  िववेचन  िकया।  वहीं  दस
ू री  ओर  नव-पर परागत 
यथाथर्वािदय   जैसे  फरीद  जकािरया,  िगडेनरोज  ने  तकर्  िदया  िक  अंतररा ट्रीय  राजनीित  म 
रा ट्र-रा य  अपनी  सापेिक्षक  क्षमताओं  के  साथ-साथ  घरे ल ू कारक   जैसे  राजनीितक  संरचना 
और नेत ृ व आिद से  भी प्रभािवत होते  ह। अतः अंतररा ट्रीय राजनीित के अ ययन के क्रम 
म घरे ल ू कारक  के मह  व को दरिकनार नहीं कर सकते। 

अंतररा ट्रीय राजनीित का यथाथर्वादी पिरप्रे य 

यथाथर्वादी िचंतक मानव  वभाव की चातुरता एवं  तकर् क्षमता पर बल दे ते  हुए मानते  ह िक 


अंतररा ट्रीय राजनीित की जड़ मानव की  वाथर्परता तथा उसके  वभाव म अंतिनर्िहत होती 
ह।  ये  सावर्भौिमक  अहं वाद  उस  संक पना  म  िव वास  रखते  ह  िजसका  सत्र
ू पात  मल
ू   प  म 
मैिकयावेली के िचंतन म िमलता है । वहीं अंतररा ट्रीय  यव था के िवषय म इनका मानना है  
िक  एक  िनयंत्रणकारी  कद्रीय  अिधस ा  के  अभाव  म  अंतररा ट्रीय  यव था  का  मल
ू   चिरत्र 
अराजकतापूण र् होता  है ।  इसिलए  रा ट्र-रा य  अपने  अि त व  की  रक्षाथर्  सदै व  अिधकािधक 
शिक्त  संचयन  म  संलग्न  रहते  ह।  इस  प्रकार  अराजकतापण
ू  र् अंतररा ट्रीय  संबंध   म  रा य 
सैदव ‘शिक्त अिभव र्धनकारी’ के  प म िचि हत होते  ह। यथाथर्वादी िचंतक  का मानना है  
िक  अंतररा ट्रीय  यव था  म  रा ट्र-रा य  मख्
ु य  अिभकतार्  होते  ह  अत:  ‘रा य-के द्रीयता’ 

46
स पूण र् यथाथर्वादी  सै धाि तक  पर परा  म  सवार्िधक  मह  वपूण र् िवशेषता  है ।  इस  प्रकार 
यथाथर्वादी  रा य  से  परे   िकसी  भी  अ य  सं थाओं  के  मह  व  को  गौण  प  से  ही  वीकार 
करते  ह। अंतररा ट्रीय अराजकतापूण र् यव था म रा य अपने  िहत  की पूितर्  म सैदव अपनी 
‘उपयोिगता  अिभविधर्’  म  ि टगोचर  होते  ह।  ये  रा य  अपने  रा ट्रिहत   की  पूितर्  के  िलए 
हमेशा  व-किद्रत  यवहार करते  हुए नजर आते  ह। जहाँ  तक रा ट्र िहत  का सवाल है   तो ये 
सदै व  शिक्त  के  प  म  ही  पिरभािषत  होते  ह।  इस  प्रकार  शिक्त  तथा  रा ट्रिहत  पर पर 
अ तर-स बि धत होते  ह। तो कहा जा सकता है   िक िकसी भी रा ट्र की िवदे श नीित हमेशा 
रा ट्रिहत  के म दे नजर िनधार्िरत होती है । यथाथर्वादी मािमर्क और गैर मािमर्क रा ट्रिहत  का 
भी  िवभाजन  करते  हुए  तकर्  दे त े ह  िक  इकाइयाँ  कभी  भी  अपने  मािमर्क  रा ट्रिहत   से 
समझौता करने  को तैयार नहीं  होती चाहे   उ ह इनकी रक्षा के िलए यु ध ही क्य  न करना 
पड़े लेिकन वो इससे भी पीछे  नहीं हटती। 

अंतररा ट्रीय  अराजकतापूण र् यव था  म  रा य  सैदव  अपने  ‘अि त व  रक्षा’  को  लेकर 
िचंितत  रहते  ह  िजसकी  रक्षाथर्  वे  अपनी  ‘सरु क्षा  अिभविधर्’  को  प्राथिमकता  दे ते  ह।  इसिलए 
सरु क्षा  के  िलए  वे  ‘ व-रक्षा’  के  िस धांत  को  ही  अिनवायर्  प  म  वीकारते  ह।  क्य िक 
अंतररा ट्रीय  यव था  म  कोई  भी  दे श  िकसी  अ य  दे श  की  रक्षा  हे तु  तब  तक  त पर  नहीं 
होता जब तक िक उसके अपने िहत  की पूितर् इसके  वारा सिु नि चत न होती हो। 

इस  प्रकार  अपनी  सरु क्षा  एवं  अि त व  रक्षा  के  िलए  रा य   को  इस  अराजकतापूण र्
यव था म अकेले  ही संघषर्  करना पड़ता है । इस त य को  वीकारते  हुए यथाथर्वादी मानते 
ह िक इकाइयाँ  सैदव अपने  िहत  को लेकर ही अग्रसर होती ह। इसे  प्रमािणत करने  के िलए 
हम  िवतीय िव वयु ध के उदाहरण ले  सकते  ह जब जमर्नी और फ्रांस के म य यु ध हुआ। 
उस  दौरान  फ्रांस  की  शिक्त  क्षमता  जमर्नी  की  तल
ु ना  म  िन न  तर  थी।  इसके 
पिरणाम व प फ्रांस जमर्नी के हाथ  परािजत हो गया। लेिकन फ्रांस की रक्षा के िलए उसके 
यरू ोपीय िमत्र और अमेिरका उसकी सहायता के िलए नहीं  आये। ज्ञात य है   िक इस संघषर्  म 
जमर्नी ने  फ्रांस के बबर्र तरीके से  दमन कर िदया था। इस प्रकार अंतररा ट्रीय  यव था म 
रा ट्र   को  संघषर्  की  ि थित  म  सैदव  अकेला  ही  दे खा  जाता  रहा  है ।  इसिलए  रा य   को 
अंतररा ट्रीय अराजकतापूण र् यव था म  व सहायता पर िव वास करते  हुए अपनी शिक्त म 
अिभविधर् करते रहना पड़ता है । 

यथाथर्वादी  कूल की मा यता के अनुसार स यिन ठा और नैितकता के िलए अंतररा ट्रीय 


राजनीित  म  कोई  जगह  नहीं  होती।  इस  स प्रदाय  का  मानना  है   िक  शिक्त  अिभव र्धन  का 
सदै व  स यिन ठा  और नैितकता  से  अिधक मह  वपूण र् थान होता है । और सै य क्षमता की 
तुलना म स यिन ठा और नैितकता का  थान  िवतीय ही होता है । य यिप स यिन ठा और 
नैितकता सामा य जन के िलए मह  वपूण र् मागर्दशर्न का िवषय हो सकते ह, लेिकन रा य  के 

47
िलए ये  सवर्था मह  वहीन होते  ह। इटली के प्रिस ध दाशर्िनक िनकोलो मैक्यावली ने  अपनी 
कृित  ‘द  िप्रंस'  म  उ लेिखत  िकया  िक  शासक  को  अपनी  स ा  को  बनाये  रखने,  उसे  सु ढ़ 
करने  और जनता पर अपनी पूण र् स ा के उपयोग के िलए नैितक और  स यिन ठ  होने  की 
कतई आव यकता नहीं है । मैक्यावली का यह भी मानना है  िक अ य दे श  के साथ स ब ध  
के अनुसरण म भी शासक को नैितकता के मानदं ड  के अनुसरण की आव यकता नहीं है । 

प्रारि भक ऐितहािसक यथाथर्वादी  

यथाथर्वादी  िचंतन  एवं  िस धांत  की  जड़े  एवं  उ पि   हमे  प्राचीन  िव वान   जैसे  यूसीडाइड, 
सन
ू   ज़,ू  कौिट य म दे खने  को िमलती है । ग्रीक इितहासकार िव वान ्  यूसीडाइड को सबसे 
प्राचीन  यथाथर्वादी  की  ेणी  म  रखा  जाता  है   उ ह ने  पेलोपोनेिसयन  यु ध  (431-404  ईसा 
पूव)र्  का अ ययन िकया था। पेलोपोनेिसयन यु ध का िव लेषण करने  के बाद उ ह ने  पाया 
िक  रा य   के  बीच  जो  संघषर्  और  प्रित पधार्  होती  है   उसका  मख्
ु य  कारण  अंतररा ट्रीय 
राजनीित  म  स ा  के  असमान  िवतरण  है ।  उनका  तकर्  है   िक  सभी  रा य  को  शिक्त  के 
असमान  िवतरण  की  वा तिवकता  को  वीकार  करना  चािहए  तािक  वे  वैि वक  शिक्त 
पदानुक्रम म अपनी ि थित म सध
ु ार कर सक। जो रा य कम समय म अिधक शिक्तशाली 
हो  जाते  ह, वह अिधक सरु िक्षत,  वतंत्र और लंबी अविध के िलए वचर् वशाली हो जाते  ह। 
इसिलए अंतररा ट्रीय राजनीित म रा य को अपने  ि टकोण म सतकर् और िनणर्या मक होना 
चािहए।  

प्राचीन  चीनी  िव वान  सन  ज़,ु   िज ह ने  2000  साल  पहले  अपने  िवचार  और  िस धांत 
प्र तुत िकये, उ ह ने  िव लेषण िकया की रा य  के बीच यु ध की िनरं तरता चलती रहती है । 
सन
ू   ज़ु  का  मानना  था  िक  राजाओं  को  सश त्र  िवपरीत  पिरि थितय   से  िनपटने  के  िलए 
अपने  तकर्  म  अ यिधक  नैितकता  नहीं  होनी  चािहए,  बि क  अपने  िहत  की  रक्षा  करने  और 
जीिवत रहने के िलए सभी के साथ संघषर् करना चािहए। 

यथाथर्वाद  के  िवचार  के  ेणीब ध  िवचारक   म,  कौिट य  प्राचीन  भारतीय  िव वान  का 
एक  बहुत  सम ृ ध  योगदान  दे ता  है ।  कौिट य  अंतररा ट्रीय  राजनीित  के  अ ययन  म  शिक्त 
और प्रस  नता की अवधारणा प्र तुत है । वह तकर् दे ते  ह िक शिक्त के िववेकपूण र् उपयोग से 
खश
ु ी हािसल की जा सकती है । वह यह भी कहते ह िक प्रस  नता सफल िवदे श नीित का भी 
एक  संकेत  है   िजसका  धािमर्कता  और  आंतिरक  ि थरता  म  आधार  है ,  िजससे  अंतररा ट्रीय 
ि थित  के  िनधार्रण  म  नई  अवधारणाएँ  सामने  आती  ह।  कौिट य  के  मंडल  िस धांत  ने 
िविजगीष ु (धमीर् राजा) और उसके िमत्रो की पहचान की — एक िवज अिर (िविजगीष ु का शत्र)ु  
और उसके िमत्र अिधक  े ठ और जिटल ह; ढीले  िवध्रव
ु ी प्रणाली की समझ की तल
ु ना म। 
यह  इंिगत  करता  है   िक  भौगोिलक  प  से  दे श  करीब  हो  सकते  ह  और  इसिलए  एक  ढीली 

48
किद्रतता का अनुकरण करते  ह। गुटिनरपेक्ष राजाओं  और तट थ उदासीन राजा की कौिट य 
की  पहचान  अंतररा ट्रीय  संबंध   के  अ ययन  म  अ िवतीय  योगदान  है ।  कौिट य  की 
अंतररा ट्रीय संबंध  की समझ म राजा का  थान िनधार्रण का यह अथर् है  िक एक का पड़ोसी 
िकसी  का  द ु मन  है   और  इसी  आधार  पर  पड़ोसी  शत्र ु अ य  का  िमत्र  है ।  कौिट य  राजा 
(िविजगीषु)  को  अपनी  शिक्त  बढ़ाने  के  िलए  प्रेिरत  करता  है   और  इसिलए  जब  तक  वह 
‘सावर्भोम’ (संपूण र् प ृ वी का राजा) नहीं  बन जाता तब तक िनरं तर यु ध म संलग्न रहता है । 
इसिलए  कौिट य  ने  प्राचीन  समय  म  यथाथर्वादी  िवचार   को  िस ध  िकया  था,  जहाँ 
अंतररा ट्रीय  संबंध   म शिक्त और  गौरव  प्रा त करने  के िलए िहंसा का उपयोग िकया गया 
था। 

उ रकालीन ऐितहािसक यथाथर्वादी 

यथाथर्वाद की प्राचीन समझ सिदय  से  चली आ रही है   िजसम कई यु ध भी हुए और इससे 


अंतररा ट्रीय  राजनीित  म  नए  मोड़  आए।  इन  मोड़  ने  अंतररा ट्रीय  संबंध   को  नए  आयाम 
िदए।  यथाथर्वाद  के  िवचार   को  उठाते  हुए  िनकोलो  मैिकयावेली  एक  इतालवी  िवचारक, 
राजनियक और लेखक ने  अपनी कृित ‘द िप्रंस' म यथाथर्वाद के िस धांत की संक पना की, 
िजसे  1513 म िलखा गया था। उ ह ने  राजा की भिू मका, रा ट्र-रा य  के मह  व और रा ट्र  
के बीच कूटनीित पर िवचार िदए। मैिकयावेली ने कहा िक िप्रंस को शेर की तरह बहादरु  और 
लोमड़ी की तरह चालाक होना चािहए। शेर यु ध म अपनी ताकत और साहस िदखा सकता 
है ।  जबिक  लोमड़ी  जाल  म  फाँस  सकती  है ।  इसिलए  िप्रंस  को  साहसी  और  चालाक  होना 
चािहए। मैिकयावेली ने  िप्रंस को अपने  प्रित वं वी के िखलाफ मजबूत और चालाक बनने  के 
िलए  कहा।  उनका  मानना  था  िक  िप्रंस  को  क्रूर  और  चालाक  होना  चािहए  तािक  वह  घरे ल ू
सेना  म  उसके िखलाफ िकसी भी तरह के िवद्रोह को दबा सके। मैिकयावेली का मानना था 
िक सामा य जनता के िलए मानदं ड, नैितकता और धमर् का उपयोग केवल िप्रंस  वारा िकया 
जाना  चािहए।  िप्रंस  को  लोग   को  धमर्  और  नैितकता  का  पालन  करने  के  िलए  प्रो सािहत 
करना  चािहए  तािक  वे  िवनम्र  और  आज्ञाकारी  बन।  उ ह ने  कहा  िक  अगर  कोई  िप्रंस  घरे ल ू
राजनीित म अपनी शिक्त और ि थित को मजबूत कर सकता है   तो वह अपनी शिक्त और 
ि थित को अंतररा ट्रीय संबंध  म भी मजबत
ू  कर सकता है । इसिलए, मैिकयावेली के काय  
म शिक्त व ृ िधकरण, रणनीित और िश प के वा तिवक िवचार की क पना की गई थी। 

अंग्रेजी  राजनीितक  दाशर्िनक  थॉमस  हॉ स  के  काम  म  यथाथर्वादी  िवचार  की  समझ  को 
प्रमख
ु ता  से  यक्त  िकया  गया  था  और इनकी  अवधारणा  को काफी  हद तक  वीकार  िकया 
गया  था।  हॉ स  की  महान  कृित  लेिवथान  को  1651  म  प्रकािशत  िकया  गया  था  िजसम 
मानव  वभाव की प्रकृित की ि थित की क पना की गई थी। हॉ स ने  तीन धारणाएँ  बनाईं, 
पहला, सभी मानव समान ह, दस
ू रा, अराजकता म मनु य  की  िच होती है । और तीसरा, वे 
49
प्रित पधार्,  अंतर  और  मिहमा  से  प्रेिरत  ह।  इन  पिरि थितय   का  पिरणाम  सभी  के  िखलाफ 
यु ध  था।  हॉ स  का  मानना  है   िक  चँ िू क  मानव  खुद  को  समान  मानते  थे,  इसिलए  उ ह ने 
संसाधन   और  स ा  पर  िनयंत्रण  के  िलए  प्रित पधार्  की।  इस  प्रिक्रया  म  कमजोर  मानव 
मजबूत  मानव  से  दब  गए।  पु ष   के  बीच  िनरं तर  संघषर्  ने  मनु य   के  जीवन  को  एका त, 
गरीब, बुरा, क्रूर और छोटा बना िदया। िजससे  मनु य शिक्तशाली लेिवयाथन के िवचार की 
क पना करते ह जो वचर् वशाली है । हॉ स का मानना था िक लड़ाई, मजदरू ी यु ध, संसाधन  
और मिहमा के िलए प्रित पधार्  करना मानव  वभाव था। सभी का सभी के िखलाफ यु ध ने 
एक  अंतररा ट्रीय  अराजकतापूण र् यव था  का  अनुकरण  िकया।  िजसम  वैि वक  यव था  के 
थािय व के िलए एक वचर् वशाली की आव यकता थी। हॉ स का मानना था िक अंतररा ट्रीय 
संबंध  म अराजकता प्रणाली प्रमख
ु  थी और  यिक्त को अपने  अि त व को बनाये  रखने  के 
िलए िनरं तर संघषर् करना पड़ेगा। आधुिनक समय म यथाथर्वाद की समझ म हॉ स के िवचार 
प्रमख
ु   भिू मका  िनभाते  ह।  समाज  म  अराजकता  और  पदानुक्रम  का  हॉ स  का  य 
अंतररा ट्रीय  अराजकता  यव था  को  समझने  का  एक  उदाहरण  था।  इसिलए  हॉ स  ने 
यथाथर्वाद के िवचार  को आकार दे ने म मह  वपण
ू  र् भिू मका िनभाई। 

शा त्रीय यथाथर्वाद 

शा त्रीय यथाथर्वािदय  का मानना है  िक यह एक शांितपूण र् िव व  यव था बनाने के िलए पूरी 


तरह  से  इ ट  है ,  लेिकन  अंतररा ट्रीय  संबंध  की  वा तिवकता  सरु क्षा,  शिक्त  संघषर्  और 
इकाइय   के  बीच  संघषर्  है ।  इसिलए,  एक  शांितपूण र् िव व  यव था  बनाने  के  िलए  यह  एक 
मोहक  िवचार  हो  सकता  है   लेिकन  यह  संभव  नहीं  है ।  अमेिरकी  यथाथर्वादी  िव वान  ई.एच. 
कैर “मौजद
ू ा ताकत  की अद य ताकत और मौजद
ू ा प्रविृ य  के अपिरहायर् चिरत्र पर जोर दे ने 
के  िलए,  कहते  ह िक  उ चतम  ज्ञान  वीकार  करने  और इन  ताकत   और प्रविृ य   के  िलए 
खुद  को  ढालने  म  िनिहत  है ”।  जमर्न  रणनीितकार   कालर्  वॉन  क्लॉिज़ ज़  ने  तकर्  िदया  िक 
“यु ध अ य तरीक  से  राजनीित की िनरं तरता है ”। शा त्रीय यथाथर्वािदय  ने  उस रा य को 
अंतररा ट्रीय  यव था म प्रमख
ु  कतार्  के  प म माना है   जो महान शिक्तय  की राजनीित म 
िव वास  करते  ह।  वे  िव व  यु ध  की  राजनीित  के  दौरान  उदारवािदय   की  यूटोिपयन 
मा यताओं की आलोचना करते ह। 

ई.एच. कैर का योगदान (E.H. Carr) 

िब्रिटश  इितहासकार  और  पत्रकार  ई.एच.  कैर  ने  अपनी  कृित  ‘द  वटी  ईयसर्  ऑफ़  िक्रिसस’ 
(1939) यथाथर्वाद और यूटोिपयनवाद के बीच अंतर करते  ह। कैर ने  यथाथर्वाद की नींव की 
ि थित  का  इ तेमाल  िकया,  जो  मैिकयावेली  के  लेखन  म  रे खांिकत  है ।  वह  मानते  ह  िक 
इितहास कारण और प्रभाव का अनुक्रम है   जो न केवल मह  वकांशी लेिकन बौ िधक प्रयास  

50
से उजागर करना है । दस
ू रा, िस धांत प्रैिक्सस का िनमार्ण नहीं  करता है   बि क यह राजनीित 
वारा  बनाया  गया  है ।  तीसरा,  राजनीित  नैितकता  से  िनधार्िरत  नहीं  होती  है ।  यहाँ  तक  िक 
नैितकता  राजनीित  का  एक  कायर्  है   और  नैितकता  शिक्त  का  उ सजर्न  है ।  इसिलए 
अंतररा ट्रीय संबंध  म प्रमख
ु  शिक्त ह न िक नैितकता। कैर का मानना है   िक अंतररा ट्रीय 
संबंध  की वा तिवकता को समझने के िलए यथाथर्वाद एक अ छी तरह से  थािपत मागर् है । 
दस
ू री ओर यूटोिपयन ने  ‘क्या होना चािहए’ पर जोर िदया और वे  क पनाओं  से  दिु नया को 
बनाए रखने  की कोिशश करते  ह। यूटोिपयन का मानना है   िक अगर लीग ऑफ नेशंस जैसी 
अंतररा ट्रीय एंजेिसयाँ  मौजद
ू  ह  तो एक शांितपूण र् दिु नया हािसल की जा सकती है । लेिकन 
कैर ने  कहा िक लीग ऑफ नेशंस अवा तिवक है   और वसार्य की संिध  िवतीय िव व यु ध 
का  मख्
ु य  कारण  है ।  उ ह ने  जापान  और  मंचूिरया  (1931)  और  इटली  के  अबीसीिनया 
(1935) पर हुए हमले  के बीच कुछ उदाहरण िदए, िजसके दौरान रा ट्र संघ इस समय एक 
मकू   दशर्क  के  प  म  दे खता  रहा।  इसिलए,  एक  अंतररा ट्रीय  एजसी  होते  हुए  भी  यह  पूरी 
तरह से  यु ध को रोकने  और शांितपूण र् िव व  यव था बनाए रखने  म िवफल रही। अंत म, 
ई.एच. कैर ने  आरोप लगाया िक क पनावादी भी स ा की राजनीित की ठोस  याख्या करने 
म असमथर् ह। 

हस जे. मोगथाऊ का योगदान 

हस जे. मोगथाऊ की प्रिति ठत कृित ' रा ट्र  म राजनीित—शिक्त तथा शांित हे तु संघषर् 


(1948)  ने  अंतररा ट्रीय  राजनीित  के  क्षेत्र  म  नए  प्रितमान   को  ज म  िदया।  मोगथाऊ  की 
कृित को प्रिति ठत इसिलए भी माना जाता है   क्य िक इसके भीतर मोगथाऊ ने  अंतररा ट्रीय 
राजनीित  की  समझ  हे तु  अ यंत  मौिलक  और  प धितगत  प्र न  खड़े  िकये  ह।  उ ह ने  रा ट्र 
रा य  की राजनीित का अ ययन करने  के िलए प्र यक्षवादी प धित का उपयोग िकया तथा 
अंतररा ट्रीय  राजनीितक  िवज्ञान  को  ि थर  करने  की  चुनौती  को  वीकार  िकया।  उ ह ने 
वैज्ञािनक  प धित  का  प्रयोग  करते  हुए  अंतररा ट्रीय  राजनीित  के  उ दे यपरक  कानून   और 
वा तिवकताओं  को समझने  का प्रयास िकया। उदाहरण व प मोगथाऊ िस धांत की पिरभाषा 
करते  हुए  प्राकृितक  िवज्ञान  का  सहारा  लेते  ह।  उनका  गहन  िव वास  था  िक  यिद  िस धांत 
वा तिवकता से संबंिधत न हो तथा अमत
ू  र् मा यताओं या क पनाओं पर आधािरत हो तो उसे 
कभी भी सही नहीं  ठहराया जा सकता है । मागथाऊ के अनस
ु ार िस धांत त य , िवज्ञान और 
अनभ
ु वज य  अवलोकन  आिद  पर  आधािरत  होना  चािहए।  मागथाऊ  ने  वा तिवक  शिक्त  की 
राजनीित को समझने  के िलए नए उपकरण  का आिव कार िकया। वह  ढ़तापव
ू क
र्  तकर् दे ता 
है   िक  रा ट्र  रा य   के  बीच  संघषर्  को  समझने  के  िलए;  शिक्त  संतल
ु न  प्रणाली  अिधक 
यावहािरक है । वह सामिू हक  सरु क्षा; की उदार  अवधारणा  को अपयार् त पाता  है , इसका यह 
अिभप्राय है   िक रा य  को अ य दे श  के साथ िमत्रता करनी होगी तथा  वयं  की शिक्त म 

51
िव तार  करना  होगा।  िनकोलो  मैिकयावेली  की  तरह  मागथाऊ  भी  मानव  वभाव  के  मल
ू  
लक्षण  की  याख्या करते ह तथा मनु य के  वभाव की अपूणत
र् ा पर बल दे ते ह। उनका तकर् 
है   िक  िव व म  या त  खािमयाँ  मानव  प्रकृित म  िनिहत  का  पिरणाम।  मोगथाऊ ने  संयुक्त 
रा य अमेिरका की िवदे श नीित के गठन म मह  वपूण र् योगदान िदया, अमेिरकी िवदे श नीित 
के  िस धांत   म  उनके  िवचार   के  िविभ न  प्रितिबंब  दे खे  जा  सकते  ह।  उ ह ने  अपने  छह 
ु  नींव डाली। 
िस धांत  के  वारा समकालीन िव व की राजनीित और यथाथर्वाद की प्रमख

मोगथाऊ के छह िस धांत 
1.  मोगथाऊ  का  मानना  है   िक  आम  तौर  पर  राजनीित  व तुिन ठ  िनयम   वारा  शािसत 
होती  है   और  उनकी  जड़  मानव  वभाव  म  होती  ह  जो  िक  अपिरवितर्त  होता  ह। 
अंतररा ट्रीय संबंध के अनुशासन को  यावहािरक  प म समझने  के िलए एक तकर्संगत 
धारणा िवकिसत करना संभव है । मानव प्रकृित से जड़
ु  े हुए ये सावर्भौिमक कानून समय 
और  थान के अनुसार नहीं  बदलते, यही कारण है   िक ये  मानदं ड मानव प्राथिमकताओं 
के िलए अभे य ह। अंतररा ट्रीय संबंध और उनकी बौ िधक नींव हमेशा मानव प्रकृित 
म  िनिहत  कानून   पर  िनभर्र  है ।  इसिलए,  ये  व तुिन ठ  िनयम  अंतररा ट्रीय  संबंध   के 
िस धांत  म पिरलिक्षत होते ह। 

2.  शिक्त के  प म पिरभािषत िकये  गए िहत की अवधारणा, जो िक राजनीित के िवषय 


क्षेत्र  म  तािकर्क  यव था  को  बनाए  रखने  हे तु  कायर्  करती  है   तथा  उसकी  सै धांितक 
समझ को संभव बनाती ह। शिक्त तथा िहत यथाथर्वादी परं परा की प्रमख
ु  अवधारणाएँ 
ह और ये  अवधारणाएँ  अंतररा ट्रीय संबंध  के अ ययन को अ य अनुशासन  के प्रभाव 
से  मक्
ु त करते  हुए अिधक  वतंत्र बनाती ह, यही कारण है   िक राजनीित एक  वाय  
अनश
ु ासन के  प म मौजद
ू  है   तथा इितहास या अथर्शा त्र पर िनभर्र नहीं  है । मोगथाऊ 
ने शिक्त की राजनीित के बारे  म एक नई धारणा प्रदान की। 

  उनका तकर् है   िक िवदे श नीित तथा रा य  की  यावहािरक ि थित शिक्त तथा िहत के 


वारा िनधार्िरत की जाती है । इसिलए, अंतररा ट्रीय प्रणाली म रा य हमेशा शिक्त को 
बढ़ाकर अपने िहत  को सरु िक्षत रखने का प्रयास करते ह। 

3.  यथाथर्वाद मानता है   िक िहत  की मल


ू  अवधारणा शिक्त के  प म पिरभािषत होती है  
जो सावर्भौिमक  प से मा य है । मागथाऊ का तकर् है  िक शिक्त का सावर्भौिमक कानन
ू  
रा ट्र रा य  के  यवहार पर लागू होता है  और रा ट्रीय िहत को शिक्त के मा यम से ही 
बनाए रखा जा सकता है । मागथाऊ शिक्त के मल
ू  मह  व का वणर्न करते हुए प्राकृितक 
संसाधन   जैसे  िक  औ योिगक  संसाधन,  औ योगीकरण  की  क्षमता,  सै य  क्षमताओं, 
भग
ू ोल, जनसंख्या के आकार, रा ट्रीय चिरत्र, राजनियक क्षमताओं इ यािद के मह  व की 

52
चचार्  करते  ह। वे  यापक  प म शिक्त को पिरभािषत करने  की कोिशश करते  ह तथा 
वह  भी  तकर्  दे त े ह  िक  स ा  का  व प  और  िवषय-क्षेत्र  समय,  थान  और  संदभर्  के 
साथ बदलता रहता है । मोगथाऊ शिक्त और िहत के बीच एक अहम स ब ध पाते  ह; 
यिद  शिक्त  के  आयाम  म  िकसी  प्रकार  का  पिरवतर्न  होता  है ,  तो  याज  का  उ दे य 
वयं ही पिरवितर्त हो जाता है । 

4.  राजनीितक  यथाथर्वाद  राजनीितक  कारर् वाई  के  नैितक  मह व


    को  मानने  से  इंकार  कर 
दे ता है । अंतररा ट्रीय प्रणाली म इकाइय  की कारर् वाई नैितकता से  िनधार्िरत नहीं  होती 
है ।  यिक्त  नैितक  आचार  संिहता  से  प्रभािवत  हो  सकता  है   लेिकन  रा ट्र  रा य   को 
अंतररा ट्रीय  संबंध   वयं  म  ही  नैितक  कतार्  माना  जाता  है ।  जब  रा ट्र  अपनी  िवदे श 
नीित  का  िनमार्ण  करते  ह  तो  वे  कभी  भी  नैितकता  पर  िवचार  नहीं  करते,  वे  केवल 
अपने  क्रूर रा ट्रीय िहत की ओर  यान दे ते  ह। राजनीितक यथाथर्वाद के अनुसार रा य  
का िववेकपण
ू  र् यवहार हमेशा नैितकता के िनयम  को उलट दे ता है । 
  इसिलए,  अंतररा ट्रीय  संबंध   म  हम  रा य  के  वारा  नैितक  यवहार  की  उ मीद  नहीं 
कर सकते, क्य िक उ ह हमेशा उपयोिगता अिधकतम करने  वाले  कतार्  के  प म माना 
जाता है । 

5.  राजनीितक यथाथर्वाद ब्र मांड को संचािलत करने  वाले  नैितक कानून  की पहचान करने 


से इंकार करता है । सावर्भौिमक नैितक कानून, अंतररा ट्रीय संबंध म रा य के बुिनयादी 
यवहार  का मागर्दशर्न नहीं  करते। जब रा ट्र रा य ने  कुछ सावर्भौिमक नैितक कानून  
की  घोषणा  की  तो  वे  मल
ू   प  से  अपने  रा ट्रीय  और  सां कृितक  मानदं ड   को  पूरी 
दिु नया  पर  थोपना  चाहते  ह।  जब  भी  रा ट्र  रा य  नैितकता  के  बिु नयादी  मानदं ड   का 
पालन करते ह तो वे वा तव म नैितकता का उ लंघन कर रहे  ह। 

6.  राजनीितक  यथाथर्वाद  राजनीितक  क्षेत्र  की  वाय ता  को  बनाए  रखता  है ।  राजनीितक 
यथाथर्वाद  के  अनस
ु ार  राजनीित  नैितकता,  अथर् यव था  और  िकसी  भी  प्रकार  के 
सावर्भौिमक कानन
ू  से  वाय  है । वहीं  दस
ू री ओर अंतररा ट्रीय राजनीित हमेशा शिक्त, 
तकर् और रा ट्रीय िहत की प्रमख
ु  अवधारणाओं से िनधार्िरत होती है । 

आलोचना 

1960 और 70 के दशक के दौरान, शा त्रीय यथाथर्वाद की मा यता को चन


ु ौती िमली िजसम 
इसके  प िधित,  सै धांितकरण  और  नीित  एजडा  को  चन
ु ौती  दी  गयी  जो  अराजकता  पर 
आधािरत  थी। िन निलिखत धारणाओं  ने  अंतररा ट्रीय संबंध  िस धांत म शा त्रीय यथाथर्वाद 
की प्रबलता को चन
ु ौती दी। 

53
1.  यवहारवादी का मानना था िक शा त्रीय यथाथर्वाद एक सस
ु ग
ं त िस धांत नहीं  था और 
यह वैज्ञािनक जाँच को संतु ट नहीं करता था। 

2.  राजनीितक यथाथर्वाद म बड़ी संख्या म योगदान के बावजद
ू  सटीकता की कमी है । यह 
शिक्त  संतुलन,  रा ट्रीय  िहत  और  अवरोध  जैसी  अवधारणाओं  के  बारे   म  िनराशापूण र्
िवचार प्रदान करता है । 

3.  यह  त या मक  िव लेषण  और  िवषय  का  यवि थत  अ ययन  करने  म  असमथर्  था। 
यथाथर्वाद  रा ट्रीय  सरु क्षा,  सै य  हिथयार   और  श त्र   जैसे  यावहािरक  दिु नया  के  कुछ 
सवाल  के जवाब दे ने म भी िवफल रहा। 

4.  यथाथर्वादी िव वान शिक्त की अवधारणा का मू यांकन करने  म िवफल रहे   क्य िक वे 


यह  नहीं  बता  सके  िक  रा ट्र  को  अपनी  सरु क्षा  और  अि त व  के  िलए  िकतनी  शिक्त 
प्रा त करने  की ज रत है । उ ह ने  रा ट्र  के बीच स ा की राजनीित एवं  रा य  से  परे  
अ य कारक  को भी कम मह  व िदया। 

5.  उ र  आधुिनकतावादी  ने  मोगथाऊ  के  िवचार   की  आलोचना  की,  िक  मानव  वभाव 
वाथीर्  और  नकारा मक  है ।  उ ह ने  यथाथर्वादी  दावे  का  िवरोध  िकया  िक  शिक्त  और 
ज्ञान  का  व तुिन ठ  अथर्  है ।  तथा  िन निलिखत  धारणाओं  ने  अंतररा ट्रीय  संबंध 
िस धांत म शा त्रीय यथाथर्वाद की प्रबलता को चुनौती दी। 

जे.एन. िटकनर  वारा मॉगथाऊ की आलोचना 

नारीवादी िव वान जे एन िटकनर ने मोगथाऊ राजनीितक यथाथर्वाद के छह सं थापक िनयम 


की आलोचना की। उनका तकर् है  िक मोगथाऊ का यथाथर्वाद के बारे  म िस धांत पूरी तरह से 
पु ष व और लिगक िवभेदीकरण पर आधािरत है । मोगथाऊ ने दावा िकया िक मानव  वभाव 
सावर्भौिमक  प से  आ म-किद्रत है   और हमेशा शिक्त की व ृ िध की खोज करता है   लेिकन 
िटकर  का  मानना  है   यह  उनकी  अधूरी  अवधारणा  है   जो  पु ष व  पर  आधािरत  है   और  जो 
मानव  प्रकृित  म  मिहलाओं  के  प्रित  पक्षपाती  है ।  यह  मिहलाओं  और  त्री व  िवशेषताओं  के 
अपवजर्न पर आधािरत है , जो अंतररा ट्रीय राजनीित को समझने  के िलए लिगक पूवार्ग्रह को 
दशार्ता  है ,  जहाँ  नािरय   को  राजनीितक  यथाथर्वाद  के  वैचािरक  ढाँचे  म  शािमल  नहीं  िकया 
जाता  है । राजनीितक यथाथर्वाद  म यु ध का गौरव पु ष व को शिक्त प्रदान करता है   और 
नारीवादी  पिरपेक्ष  की  उपेक्षा  करता  है ।  उ ह ने  कहा  िक  मोगथाऊ  केवल  एक  राजनीितक 
यिक्त म  िच रखते ह जो िववेकपण
ू ,र्  तकर्संगत होना चािहए, लेिकन नैितक नहीं। मोगथाऊ 
ने  अंतररा ट्रीय राजनीित के नैितक आयाम  की परू ी तरह से  उपेक्षा की है   जबिक मू य और 
नैितकता नारीवादी स गण
ु  का एक अिभ न अंग है । जे  एन िटकनर के अनस
ु ार राजनीितक 
यथाथर्वाद  के  िनयम  और  मल
ू भत
ू   िस धांत  अंतररा ट्रीय  स ब ध  को  समझने  का 

54
िपतस
ृ ा मक  पिरप्रे य  है ।  उ ह ने  बताया  की  अंतररा ट्रीय  संबंध   का  िवषय  मिहलाओं  के 
िलए अ वीकायर्  हो गया है । और यह अपनी मा यताओं, िववरण  और पिरप्रे य के संदभर्  म 
पु ष  व पर आधािरत है । इसिलए, पु ष  के िलए यह एक आरामदायक क्षेत्र प्रदान करता है , 
लेिकन मिहलाओं के िलए यह अमानवीय है । 

िटकनर यह धारणा क्य  बनती है ? 

मिहलाओं  को  अ य  उप-प्रभाग  जैसे  िक  िलंग  अ ययन,  राजनीितक  अथर् यव था  और 
पयार्वरण  अ ययन  आिद  म  मिहलाओं  के  योगदान  को  उ कृ ट  माना  जाता  जबिक 
अंतररा ट्रीय िस धांत  की मख्
ु यधारा के सरु क्षा संबंिधत अ ययन व बल के उपयोग या बल 
के  उपयोग  के  खतरे   के  अ ययन  म  उ ह  पयार् त  थान  नहीं  िदया  गया  है ।  अंतररा ट्रीय 
समाज पु ष व मिहलाओं  म पक्षपात के िस धांत का िशकार रहा है । सरु क्षा म, सै य सरु क्षा 
का अनुपातहीन प्रभु व है , जहाँ  पु ष जो कुछ भी कर रहे   ह वह मानकीकृत है । अंतररा ट्रीय 
राजनीित  म  शांित  की  अपेक्षा  शिक्त  पर  अिधक  बल  िदया  गया  है ,  जो  िक  शोषणा मक 
क्षमता के िव तार पर आधािरत है । रा य को समाज पर िवशेषािधकार प्रा त है , साधनवाद 
को प्रिक्रया पर िवशेषािधकार प्रा त है  और तकर् को नैितकता पर िवशेषािधकार है । 

नव यथाथर्वाद/ संरचना मक यथाथर्वाद 

नव  यथाथर्वाद  अथवा  संरचना मक  यथाथर्वाद  को  अंतररा ट्रीय  संबंध   म  मख्
ु यधारा  या 
आधारभत
ू   िस धांत  के  प  म  जाना  जाता  है ।  नव  यथाथर्वाद  का  यह  िव वास  है   िक 
अंतररा ट्रीय राजनीित का मल
ू भत
ू  चिरत्र अराजकतापूण र् होता है  इसिलये अंतररा ट्रीय  यव था 
म  रा य   के  यवहार  यव थागत  अवरोधक   एवं  संरचना  वारा  िनधार्िरत  होते  ह।  इस 
अराजकतापूण र् िव व  यव था म इकाइयाँ सदै व अपने अि त व की रक्षा और सापेिक्षत शिक्त 
की  अिभविधर्  को  लेकर  िचंितत  होते  ह।  िकंतु  इकाइयाँ  अपने  अि त व  की  रक्षा  को  केवल 
‘ व-सहायता’  वारा  ही  सिु नि चत  कर  सकती  है ।  इस  प्रकार  िकसी  एक  कद्रीय  अिधस ा/ 
सरकार  के  अभाव  मे  रा य  हमेशा  शिक्त  अिभव ृ िध  के  िस धांत  का  अनुसरण  करते  हुए 
यव था  म  वयं  को  बनाये  रखते  ह।  रा य-किद्रत  ि टकोण  नव-यथाथर्वाद  की  एक  और 
मह  वपूण र् अवधारणा  है ,  इनका  मानना  है   िक  अंतररा ट्रीय  संबंध   म  रा य  सवर्प्रमख
ु   एवं 
एकमात्र अिभकतार् होते ह, अंतरा ट्रीय राजनीित की धुरी के कद्र म सदै व रा ट्र- रा य ही पाये 
जाते  ह।  नव-यथाथर्वाद  के  प्रमख
ु   िव वान   के  प  म  केनेथ  वॉ ज़,  जॉन  मीयरशीमर, 
जोसेफ ग्रीको और  टीफ़ेन, वॉ ट इ यािद को माना जाता है ।  

नव यथाथर्वाद म केनेथ वॉ ज़ का योगदान 

केनेथ  वॉ ज़  की  कृित  ‘िथयरी  ऑफ  इंटरनेशनल  पॉिलिटक्स’  (1979)  को  यथाथर्वादी  धारा 
की नीव डालने  वाली रचना के  प म  वीकारा जा सकता है । राजनीितक िवज्ञान म केनेथ 

55
वॉ ज़ का योगदान नव-यथाथर्वाद के िनमार्ण-कतार् के तौर पर माना जाता है । इनका मानना 
है   िक रा य  का  यवहार  यव था के दबाव से  िनमंित्रत होता है   इसीिलए रा य  के समक्ष 
बेहद कम िवक प ही शेष बचते  ह। इनका मानना है   िक अंतरा ट्रीय  यव था  थायी  प म 
अराजकतापूण र् होती  है ।  इ ह ने  अराजकतापूण र् अंतररा ट्रीय  यव था  एवं  पादसोपानीय  घरे ल ू
राजनीितक  यव था  का  बेहद  तािकर्क  िवभेदन  िकया  िजसे  इ ह ने  आदे शा मक  िस धांत 
(ordering principles) का नाम िदया। वॉ ज़ का मानना है   िक घरे ल ू राजनीितक  यव था 
का  व प  पादसोपानीय  होता  है   क्य िक  घरे ल ू तर  पर  यिक्तय   के  अतािकर्क  एवं  दरु - 
यवहार  को  िनमंित्रत  करने  के  िलए  एक  कद्रीय  अिधस ा  अि त वमान  होती  है ।  घरे ल ू
राजनीितक  तर  पर  यह  कद्रीय  अिधस ा  क़ानून ,  िनयम   एवं  मानक   की  परे खा  का 
िनमार्ण करती है । एवं  इन िनयम  तथा मानक  का उ लंघन करने  वाल  को दं िडत करने  की 
अंितम शिक्त भी इस कद्रीय अिधस ा के अभाव म रा ट्र-रा य  के  यवहार के िनमंित्रत नहीं 
िकया जा सकता इसिलए रा य अपने  अि त व की रक्षाथर्  सदै व अपनी सापेिक्षक शिक्त म 
अिभव ृ िध करते हुए अपनी सरु क्षा दिु वधा से बाहर िनकलने हे तु प्रयासरत रहते ह। इस प्रकार 
अराजकतापूण र् यव था म कद्रीय अिधस ा का अभाव रा य  को अपने  अि त व की रक्षा के 
िलए  वयं प्रयास करने के िलए बा य करती है । 

केनेथ वॉ ज़  वारा प्रितपािदत सम त तक  से  यह प्रमािणत होता है   िक  यव था के 


दबाव  के  कारण  रा य  अपनी  ‘सरु क्षा  अिभव ृ िध  म  संलग्न  रहते  हुए  सापेिक्षत  शिक्त’  को 
बढ़ाते ह। इसीिलये रा य  का  यवहार सरु क्षा अिभव ृ िध करना होता है  तािक उनके अि त व 
पर  आँच  न  आने  पाये।  इस  स दभर्  म  वॉ ज़  का  मानना  है   िक  रा य   की  क्षमताओं  म 
िभ नता होने  के बावजद
ू  भी अंतररा ट्रीय  यव था म उनके  यवहार म एक पता पिरलिक्षत 
होती  है   चाहे   वो  अमेिरका,  स,  चीन,  भारत  जैसी  महाशिक्तयाँ  ह   या  िफर  नेपाल,  भट
ू ान 
आिद  जैसे  छोटे   रा य  ह ।  रा य   की  क्षमताओं  का  यह  िवभेदन  अंतररा ट्रीय  यव था  म 
उनकी  ि थित  को  िनधार्िरत  करता  है   साथ  ही  क्षमताओं  की  यही  िभ नता  अंतररा ट्रीय 
राजनीित के ढाँचे  को भी पिरभािषत करती है । रा य  की क्षमताओं  म फेरबदल अंतररा ट्रीय 
यव था  के  व प  को  भी  पिरवितर्त  करता  है   उदाहरण व प  एक-ध्रव
ू ीय  अथवा  बहू-ध्रव
ु ीय 
िव व  यव था का िनमार्ण होना। 

वॉ ज़ के अनुसार अपने  येय की प्राि त के िलए रा य दो तरह के साधन  का उपयोग 


करते  ह। प्रथम, आंतिरक प्रयास जैसे  िक अपनी अथर् यव था तथा सै य क्षमता का िव तार 
करना।  अथर् यव था  का  िवकास  अिधशेष  पँज
ू ी  का  िनमार्ण  करता  है   जो  िक  अंतररा ट्रीय 
यव था म रा ट्र की राजनयन क्षमता को मजबूत बनाता है   तथा सै य क्षमता इस बात की 
गारं टी दे ती है   िक राज ्य की सीमाएँ  सरु िक्षत रह सके। दस
ू रा साधन रा य  वारा िकये  जाने 

56
वाला बाहरी प्रयास होता है  िजसके  वारा रा य अपने गठबंधन  को बढ़ाकर अपने प्रित वं वी 
को प्रित-संतुिलत करते ह। 

िन कषर् 
यथाथर्वादी पिरप्रे य ने  अंतररा ट्रीय संबंध  के प्रितमान  को एक िवषय के  प म िनधार्िरत 
िकया  है ।  यथाथर्वादी  वैज्ञािनक  अ ययन  प धित  जो  िक  प्र य यवादी  ज्ञानमीमांसा  को 
अंतररा ट्रीय राजनीित के  यवि थत अ ययन के कद्र म  थािपत करती है  और इस त य पर 
बल दे ती है   िक हमारा आनुभािवक अनुभव एवं  त य होने  चािहए। इनके अ ययन म मू य  
के िलए कोई  थान नहीं है । इससे आगे बढ़कर यथाथर्वादी िवचारक  ने अंतररा ट्रीय राजनीित 
के  अ ययन  के  िलए  शिक्त,  सरु क्षा,  भय,  अराजकता,  रा य   की  ि थित  एवं  नैितकता  की 
मह ा  जैसी  अवधारणाओं  का  अ वेषण  िकया।  यथाथर्वादी  संप्रदाय  यु ध   के  कारण   के 
वा तिवक कारक  का तािकर्क अ वेषण करता है , ये  इस त य का भी िव लेषण करते  ह िक 
यूिसडाइड, कौिट य, सन
ु ा-जँ  ू से लेकर आज के समय तक कैसे अंतररा ट्रीय संबंध  म शिक्त 
एवं  सरु क्षा की अवधारणाय परभािषत होती ह। इस प्रकार यथाथर्वादी संप्रदाय वैि वक नेत ृ व 
को  िदशा-िनदश  दे ता  है   िक  वो  कैसे  अपनी  सै य  क्षमता  को  बढ़ाए  तथा  अपने  सा य  की 
प्राि त करे । 

स दभर् 
Ashley,  R.  K.  (1981),  ‘Political  Realism  and  Human  Interests’,  International 
Studies Quarterly, 25. 
Ashley  R.K.  and  Walker  R.B.J.  (1990),  ‘Speaking  the  Language  of  Exile: 
Dissidence in International Studies, International Studies Quaterly, 34(3). 
Barry,  B.  (1998),  ‘International  Society  from  a  Cosmopolitan  Perspective’  in 
D.  Marpel  and  T.  Nardin  (eds.),  International  Society:  Diverse  Ethical 
Perspective, Princeton University Press. 
Bell,  Duncan.  ed.  (2010),  Political  Thought  and  International  Relations: 
Variations on a Realist Theme, Oxford: Oxford University Press. 
Blieker,  R.  (2000),  Popular  Dissent,  Human  Agency  and  Global  Politics, 
Cambridge University Press. 
Booth, K. (2007), Theory of World Security, Cambridge University Press. 
Bull,  H.  (1966),  ‘The  Grotian  Conception  of  International  Society’  in  H. 
Butterfield  and  M.  Wight  (eds.),  Diplomatic  Investigations:  Essays  in  the 
Theory of International Relations, London. 

57
Bull,  H.  and  Watson,  A.  (eds.)  (1984),  The  Expansion  of  International 
Society, Oxford University Press. 
Burchill,  S.,  Linklater,  Devetak,  R.  et  al.  (2009),  Theories  of  International 
Relations, Palgrave Macmillan. 
Carr  E.H.  (1939),  The  Twenty  Years’  Crisis:  1919-1939:  An  Introduction  to 
the study of International Relations, London. 
Hobbes, T. (1946), Leviathan, Basil Blackwell: Oxford. 
Jervis, Robert (1998), "Realism m the Study of World Politics",  International 
Organization, 52 (4): 971-991. 
Machievelli, N. (1950),  The Prince and the Discourses,  M. Lerner (eds.) with 
an introduction, New York: Random House. 
Molloy, Sean (2006),  The Hidden History of Realism: A Genealogy of Power 
Politics. London: Palgrave. 
Morgenthau, H.J. (1946), Scientific Man Versus Power Politics, Chicago 
Morgenthau,  H.J.  (1948),  Politics  among  Nations:  The  Struggle  for  Power 
and Peace, New York. 
Ruggie, J. (1983), ‘Continuity and Transformation in the World Polity: Toward 
a Neo-Realist Synthesis, World Politics, 35(2). 
Tickner,  J.  A.  (1997),  “You  Just  Don’t  Understand:  Troubled  Engagements 
Between Feminist  and IR Theorists”,  International Studies Quarterly, 41,  pp. 
611-632. 
Thucydides  (1972),  History  of  Peloponnesian  War,  translated  by  R.  Warner, 
London: Penguin. 
Walker,  R.  B.  J.  (1987),  “Realism,  Change,  and  International  Political 
Theory”, International Studies Quarterly, 31 (1), 65-86. 
Waltz,  K.  N.  (1959),  Man,  the  State  and  War,  New  York:  Columbia 
University of Press. 
 

58
इकाई-2 

पाठ-2 : उदारवाद 
डॉ. िहजम िलज़ा डालो िरहमो 
अनुवादक : िवक् 
की झा 

पिरचय 

 उदारवाद  एक  ऐसा  श द  है ,  िजसका  प्रयोग  वतर्मान  िव व  म  यापक  पैमाने  पर  िकया 
जाता  है ।  यह  श द  आधुिनकता,  व ृ िध  और  प्रगित  के  साथ  सामा यतः  संबंिधत  है । 
उदारवाद  एक  ऐसा  ि टकोण  है   िजसका  िव तार  मानव  जीवन  के  प्र येक  पहल ू और 
मानव संगठन के प्र येक  प तक है । यरू ोप म, प्रबोधन काल के पिरणाम व प उदारवाद 
एक  आंदोलन  के  प  म  उभरा  िजसने  िक  स पूण र् िव व  म  लोग   के  राजनीितक  और 
आिथर्क  संगठन  को  प्रभािवत  िकया।  उदारवाद  समाज,  राजनीित  और  अथर्  यव था  पर 
एक  ढ़  िस धांत  प्रदान  करता  है ।  वै वीकरण,  बहुसं कृितवाद,  अंतररा ट्रीय  संगठन   के 
िवकास, बहुरा ट्रीय और रा ट्रीय िनगम  और वैि वक अथर् यव था के कारण उदारवाद का 
मह  व काफी बढ़ा है । उदारवाद एक राजनीितक और आिथर्क दशर्न है   जो िक  यिक्तगत 
वतंत्रता के िवचार पर आधािरत है । उदारवाद एक  यिक्त के स पूण र् िवकास पर िवचार 
करता है । यह दशर्न पूणत
र् ः इस धारणा पर िटका हुआ है   िक मानव  वाभािवक तौर से 
अ छा होता है । यह मानता है   िक सभी के िहत  के संबंध म  यिक्तय  म सहयोग करने 
की  क्षमता  होती  है ।  प्र येक  यिक्त  म  उसके  सवर् े ठ  प  को  उभारने  तथा  मानव  को 
प्रगित  की  िदशा  म  अग्रसर  करने  के  िलए,  यह  वतंत्रता,  तािकर्कता,  नैितक  वायता, 
मानव  अिधकार,  उदार  लोकतंत्र,  अवसर  एवं  चयन  के  िस धांत   पर  बल  दे ते  ह।  इन 
मल
ू भत
ू   िस धांत   के  आधार  पर  उदारवाद  मानव  जीवन  के  सभी  पहलओ
ु ं  की  याख्या 
करने  के  िलए  अपने  दशर्न  का  िव तार  करता  है   भले  ही  वह  आिथर्क  और  राजनीितक 
प्रकृित  का  हो।  आमतौर  से  उदारवाद  मक्
ु त  यापार,  संपि   के  अिधकार,  मक्
ु त  बाजार, 
सीिमत  सरकार,  कानून  के  शासन,  पँज
ू ीवाद  और  एक-दस
ू रे   के  बीच  मक्
ु त  एवं  िन पक्ष 
प्रित पधार्  का  समथर्न  करता  है ।  इस  अ याय  म  उदारवाद  के  अथर्,  उ भव  के  इितहास, 

59
इसके मख्
ु य िवचार, िविभ न  ि टकोण, आलोचना मक मू यांकन और इसकी समकालीन 
प्रासंिगकता बताने का प्रयास िकया गया है । 

उदारवादी 

उदारवादी लोग उदारवाद की िवचारधारा के समथर्क है   परं त ु उदारवाद के िविभ न  ि टकोण  


म अंतर दे खने को िमलता है   जो िक इस समझ पर िनभर्र करता है   िक चन
ु ाव, अिभ यिक्त, 
अवसर की  वतंत्रता और मानव प्रगित से उनका क्या ता पयर् है । इन िविवधताओं के बावजद
ू  
उदारवादी अपने  िव लेषण और  ि टकोण के संदभर्  म,  यिक्तगत  वतंत्रता पर एक समान 
िवचार रखते  थे। मानव  का अपना आ म-िहत होता है । आ मिहत की पूितर्  की उनकी इ छा 
उ ह तािकर्क अिभकतार्  बनाती है । वे  िनणर्य िनमार्ण के दौरान तािकर्क चुनाव करते  ह तािक 
वे अपने िहत को प्रा त कर सक और यिद इस दौरान उ ह सहयोग करने से अिधक लाभ हो 
तो  वह  सहयोग  भी  करने  को  तैयार  रहते  ह।  वह  इस  बात  पर  अ यािधक  जोर  दे ते  ह  िक 
आ म िहत और  यिक्तवाद हमेशा ही असहयोगी नहीं  होते  ह। बि क इसका अथर्  यह है   िक 
मानव  अपने  िलए  अिधकतम  लाभ  या  वांछनीय  पिरणाम  प्रा त  करने  के  उ दे य  से  लाभ-
हािन िव लेषण करते ह। 

िपछले  कुछ  वष   म  यथाथर्वाद,  सामािजक  रचनावाद  और  माक्सर्वाद  जैसे  िस धांत   ने 
उदारवाद  की  काफी  आलोचना  की  है ।  परं त ु आज  भी  इसका  दशर्न  िव वान  और  नीित 
िनमार्ताओं  को प्रभािवत करता रहा है । वतर्मान िव व म उदारवाद अपनी प्रासंिगकता िनरं तर 
बनाए  हुए  ह।  त य  यह  है   िक  उदारवादी  लोग  जीवन  के  प्र येक  पहल ू का  वणर्न  करने  का 
प्रयास  करते  ह।  इसी  आधार  पर  अनेक  लोग   ने  उदारवादी  श द  की  अलग-अलग  प्रकार  से 
याख्या  करते  हुए  वयं  को  उदारवादी  िवचारक   म  शािमल  िकया  है ।  ‘‘उदारवादी’’  श द  का 
प्रयोग  िविभ न  प्रकार  के  लोग   के  िलए  िकया  जाता  है ।  उदारवादी  परं परा  पर  उपल ध 
सािह य  की जाँच करते हुए, डंकन बेल (2014 : 682) कहते ह िक बीसवीं शता दी के म य 
तक से उदारवादी परं परा ने पि चम की िनिमर्त िवचारधारा के  प म अपना अथर् बदल िदया 
है । जबिक उदारवादी परं परा के अंतगर्त ही कुछ दरार िदखाई पड़ती है । हालाँिक उ ह ने  यह 
सही  कहा  िक  उदारवादी  परं परा  पर  उपल ध  सािह य  वघोिषत  उदारवािदय   के  िविभ न 
ि टकोण  को दशार्ने के बजाय  यापक तौर से पूण र् उदारवादी परं परा को ही दशार्ते ह।  

60
इस बात से सहमत होते हुए कहन कहते ह िक यूरोप म उदारवाद को इसके िवरोधाभास  
वारा  पिरभािषत  िकया  गया  है ।  िजसम  िक  उदारवाद  म  ‘‘दिक्षण  पंथी’’  और  ‘‘वाम  पंथी’’ 
आंदोलन   के  आस-पास  के  बहस   ने  इसकी  जाँच  की।  (कहन  2003  :  1)  िजल  टइंस  भी 
मानते  ह  िक  भले  ही  समाज  के  आिथर्क  संगठन   पर  कई  प्र न  िकए  जाए,  िजसम  िक 
राजनीितक  तौर  से  वामपंथी  और  राजनीितक  तौर  से  दिक्षण  पंथी  के  बीच  उदारवादी  िवचार 
पर मतभेद दे खने  को िमले  परं तु  इसके बावजद
ू  उदारवादी राजनीितक दशर्न और उसके मल
ू  
िस धांत  िफर  भी  प्रचिलत  रहगे  ( टइंस  एट  अल.  2010  :  24)।  उदारवादी  जो  िक 
राजनीितक तौर से  दिक्षण पंथी है , वे  मानते  ह िक  यिक्तगत  वतंत्रता का िव तार आिथर्क 
गितिविध तक िकया जाना चािहए। वे  मक्
ु त बाजार म अपने  म, व तु  सेवा और संपि  को 
बेचने  और खरीदने  के िलए  वतंत्र होने  चािहए और इस संबंध म रा य की भिू मका सीिमत 
होनी चािहए। वह  यिक्त के उ चतम िवकास के िलए  यन
ू तम िविनयमन पर बल दे ते  ह। 
वही दस
ू रे  तरफ राजनीितक वामपंथी िविनयमन के कुछ  प  पर बल दे ते ह क्य िक वे मानते 
ह  िक  यिद आिथर्क शिक्त और संपि  पर कुछ  ही  लोग   का  िनयंत्रण हो जाएगा तो इससे 
वतंत्रता और समानता के िस धांत  के िलए खतरा उ प न हो सकता है । इसिलए वह  यादा 
ह तक्षेपकारी रा य का समथर्न करते  ह तािक वह कमजोर लोग  को बुिनयादी सिु वधा और 
अवसर  उपल ध  करवा  सके।  परं त ु उदारवाद  म  इन  िविवधताओं  के  बावजद
ू ,  बेल  के  समान 
ही, वे मानते ह िक यह िवचार  का एक सस
ु ग
ं त  कूल है । 

ऊपर  िदए  तक   के  आधार  पर  यह  कहा  जा  सकता  है   िक  उदारवादी  दशर्न  के  दरू गामी 
पिरणाम है । इसकी काफी  यापक पहुँच है ।  यिक्तगत आ मिहत के आधार पर,  यिक्तवाद 
के िवचार को एक  यिक्त के जीवन के आिथर्क संगठन पर लाग ू िकया जा सकता है  जो िक 
संपि ,  कायर्,  अवसर,  उ पादन  की  प्रिक्रया,  प्रित पधार्,  आिद  से  संबंिधत  है ।  एक  आिथर्क 
प्रणाली  के  प  म  उदारवाद  और  पँज
ू ीवाद  काफी  िनकटता  से  जड़
ु  े हुए  ह,  इसिलए  अथर् 
िनकालने  के  िलए  कभी-कभी  इनका  एक  साथ  प्रयोग  िकया  जाता  है ।  राजनीितक  क्षेत्र  म 
उदारवादी  दशर्न की  याख्या  वतंत्रता, समानता और  याय के संदभर्  म की जा  सकती है । 
उदारवादी  लोकतंत्र  म  यह  िस धांत  सदै व  ही  िनिहत  रहते  ह।  वा तव  म  20वीं  शता दी  के 
दौरान  उदारवाद  एक  राजनीितक  िवचारधारा  था  िजसे  अनेक  दे श   ने  अपने  राजनीितक  और 
आिथर्क प्रणाली के  प म अपनाया था। उदारवादी दशर्न केवल घरे ल ू राजनीितक शासन का 
ही वणर्न नहीं  करता है । बि क यह अंतररा ट्रीय संबंध  के राजनीितक क्षेत्र  को भी प्रभािवत 

61
करता है  जो िक िवशेष तौर से अंतररा ट्रीय राजनीितक अथर् यव था के अंतगर्त सहयोग और 
संघषर्  के मामले  म रा य  के  यवहार से  संबिं धत है । अतः उदारवाद के िवकास की समीक्षा 
करते हुए इसे  यापक तौर से दो भाग  म बाँटा जा सकता है , िजसे राजनीितक इितहास और 
आिथर्क इितहास के संदभर्  म दे खा जा सकता है । अथर्शाि त्रय  और राजनीितक दाशर्िनक  ने 
अपने-अपने िवचार  के  वारा उ ह ने उदारवाद के िवचार म अपना योगदान िदया है । हालाँिक 
उनके िवचार अपने  आप म िवशेष नहीं  है   और कई बार उनके िवचार एक-दस
ू रे   से  आंिशक 
तौर से  िमलते  रहे   ह। इसके मख्
ु य  ि टकोण  के संदभर्  म राजनीितक और आिथर्क िक म  
का  एक  सामा य  आधार  है ,  उदाहरणतः  यिक्तगत  वतंत्रता।  यिक्तवाद  ही  वह  आधार  है  
िजस आधार पर वे अपना िव लेषण करते ह। इस पाठ के अगले ख ड म उदारवादी दशर्न के 
उ भव के इितहास को संक्षेप म समझाने का प्रयास िकया गया है । 

उ भव का इितहास 

उदारवाद  के  ऐितहािसक  प ृ ठभिू म  की  प  रे खा  म  यह  दे खा  जा  सकता  है   िक  इसका  मल
ू  
आिथर्क और राजनीितक दोन  प्रकार के बौ िधक परं पराओं  म है । वे  एक-दस
ू रे   से  अलग नहीं 
है   बि क  वे  एक-दस
ू रे   पर  पर पर  िनभर्र  है ।  यरू ोप  म  प्रबोधन  काल  के  दौरान  वतंत्र  और 
अ य उदारवादी िवचार  का मह व
   काफी बढ़ गया था। आिथर्क और सावर्जिनक नीितय  के 
िलए  उदारवाद  एक  प्रमुख  मागर्दशर्क  िस धांत  के  प  िब्रटे न  म  उभरा,  इसके  बाद  संयुक्त 
रा य अमेरीका और बाद म यूरोप के अ य भाग  और िफर स पूण र् िव व म फैलता गया। 
18वीं  और 19वीं  शता दी के दौरान, यूरोपीय समाज के आिथर्क और सामािजक संगठन  म 
पिरवतर्न हुआ था। वह सामंतवाद से  पँज
ू ीवाद की तरफ संक्रमण का दौर था (फुकन 2016)। 
पँज
ू ीवाद  िनजी  वािम व,  उदारीकरण  और  मक्
ु त  बाजार  पर  आधािरत  है   जोिक  उदारवादी 
मू य  को  दशार्ते  ह।  आिथर्क  और  राजनीितक  दाशर्िनक   ने  चचर्-रा य  को  सीिमत  करने  के 
िलए  धमर्-िनरपेक्ष  सं थान   का  समथर्न  िकया  था।  यह  वतंत्रता  को  उपयोग  करने  और 
यिक्त के उ च क्षमताओं को बढ़ाने के िलए आव यक है । 

आिथर्क उदारवाद 

यह  िवचार  िनजी  संपि ,  मक्


ु त  बाजार  और  सीिमत  सरकार  के  िस धांत  पर  आधािरत  है । 
यिक्तवाद उदारवाद का कद्र था हालाँिक इसके िविभ न  प थे  (रोिस ली 2020 : 4)। जब 
से इ ह ने  यिक्त पर बल िदया है  तब से इ ह ने  यिक्त और रा य के बीच एक नए प्रकार 

62
के संबंध पर ज़ोर िदया है । इसम एक कानूनी प्रणाली के मा यम से  यिक्त अपने संपि  के 
वािम व  का  अिधकार  प्रा त  करता  है ।  िजसम  रा य  और  समाज  वारा  उनके  संपि   के 
अिधकार  का  उ लंघन  नहीं  िकया  जाता  है ।  विविनयिमत  बाजार  उदारवाद  का  ही  एक 
िस धांत है । आिथर्क गितिविध जैसे  उ पादन िविनमय और लेन-दे न को इसके यंत्र  पर छोड़ 
दे ना चािहए। इसके पीछे  यह िव वास है   िक ‘‘यिद प्र येक  यिक्त अपने  िहत को  यान म 
रखकर कोई कायर् करता है  तो इससे वह समाज के ही सव म िहत  को पूरा करता है  (िगसी 
2008)।” इस  यव था म सरकार की भिू मका सीिमत होनी चािहए। 

एडम ि मथ और डेिवड िरकाड  के काय  म आिथर्क उदारवाद को दे खा जा सकता है । वे 


मानते  थे  िक  िनजी  संपि   यिक्त  को  उ पादन  बढ़ाने  के  िलए  प्रो सािहत  करते  थे  और 
बाजार  का  संचालन  मक्
ु त  प  से  होना  चािहए  िजसम  सरकार  का  कोई  ह तक्षेप  न  हो। 
िजससे  िक  यह  उ च  उ पादन  और  धन  प्राि त  की  ओर  ले  जाएगा  तािक  जीवन  के  उ च 
गण
ु व ा को प्रा त िकया जा सके।  यहाँ  म और संसाधन  का कुशलतापूवक
र्  िवभाजन और 
िव रण होता है  जो िक बाजार के माँग और आपूितर्  वारा िनधार्िरत होता है  िजससे संसाधन  
की  यन
ू तम  हािन  होती  है ।  हालाँिक  एडम  ि मथ  का  यह  भी  मानना  है   िक  लोग   की 
बुिनयादी ज रत  का  यान रखने  के िलए सरकार की आव यकता है । वह इस बात के प्रित 
सचेत  थे  िक  बाजार  के  वारा  सावर्जिनक  व तओ
ु ं  का  अिनवायर्  तौर  से  उ पादन  नहीं  होगा 
( टइंस एट. अल. 2010 : 28)। वह सरकार के सीिमत भिू मका को पिरभािषत करते  ह और 
वह सरकार की सीिमत भिू मका को पिरभािषत करते  ह और सरकार के काय  म सामािजक 
यव था बनाए रखना, भ्र टाचार रोकना, िन पक्ष प्रित पधार्  लाग ू करना और यह सिु नि चत 
करना िक अनुबंध न टूटे  जैसे कायर् शािमल ह। संक्षेप म बाजार के व ृ िध के िलए ि थर एवं 
अनुकूल माहौल उपल ध करवाया जा सके इसिलए सरकार की भिू मका सीिमत होनी चािहए। 

हालाँिक यह उदारवादी आिथर्क नीित एवं बाजार अथर् यव था केवल घरे ल ू अथर् यव था के 


िलए  ही  नहीं  है   बि क  यह  अंतररा ट्रीय  आिथर्क  यव था  के  िलए  भी  है ,  क्य िक  रा ट्रीय 
संपि  और आिथर्क व ृ िध को बढ़ाने के िलए यहाँ मक्
ु त  यापार की आव यकता है । दे श एक 
दस
ू रे  के साथ  वतंत्रतापूवक
र्   यापार करने म सक्षम हो। िरकाड  के तुलना मक लाभ के कायर् 
को  यहाँ  यह  याख्या  करने  के  िलए  लाग ू िकया  जा  सकता  है   िक  कैसे  घरे ल ू बाजार  के 
िवकास के कारण क चे माल  की माँग बढ़े गी। िजसकी आपूितर् अंतररा ट्रीय  यापार के  वारा 
की जाएगी। इस वै वीकरण के दौर म उनके तक  का काफी मह व है   जहाँ  पर भी  यापार 

63
और  िव   की  उपल धता  बहुत  अिधक  है ।  अंतररा ट्रीय  यापार  के  वारा  वह  वैि वक 
अथर् यव था ि थर है । 

राजनीितक उदारवाद 

प्रबोधन  काल  के  दौरान  उदारवादी  राजनीितक  दाशर्िनक   ने  अपने  िवचार   के  मा यम  से 
उदारवादी िवचार  को आकार दे ने और उदारवादी मू य  को िवकिसत करने म अपना योगदान 
िदया। जॉन लॉक के राजनीितक लेख उदारवादी दशर्न को िवकिसत करने  के मल
ू भत
ू  आधार 
थे। इ ह ने  अपने  लेख टू ट्रीटीज ऑफ गवनर्मट (1690) म जीवन, संपि  और  वतंत्रता के 
अिधकार को प्रकृित का िस धांत माना था। जब वह इस बात पर जोर दे ते  ह िक रा य  के 
िलए उनके शािसत  की सहमित होना आव यक है   तो इस दौरान वह प्रािधकार को ही वैधता 
प्रदान कर रहे   थे। इस कारण से  जॉन लॉक को आधिु नक उदारवाद का जनक भी कहा जाता 
है । यिद संप्रभ ु प्रािधकार लोग  को  याय प्रदान कर पाने, उनके जीवन और िनजी संपि  को 
सरु क्षा  प्रदान  कर  पाने  और  अपने  कतर् य   को  पूण र् कर  पाने  म  असफल  रहते  ह  तो  इस 
दौरान  लॉक  ने  राजनीितक  िस धांत   के  अपने  लेख   म  क्रांित  को  यायोिचत  ठहराया  है । 
वा तव  म  उदारवाद  के  राजनीितक  दशर्न  पर  ऐितहािसक  घटनाओं,  मख्
ु य  तौर  से  फ्रांसीसी 
क्रांित (1789) का मह वपण
ू  र् प्रभाव पड़ा है । इस क्रांित के दौरान अिधनायकवादी शासन को 
हटाने  के िलए  वतंत्रता, समानता और बंधु व के िस धांत  का आवा न िकया गया था जो 
िक उदारवादी मू य  को दशार्ता है   फ्रांसीसी क्रांित ने  उदारवाद के प्रसार को काफी बल िदया 
क्य िक  क्रांित  के  बाद  उदारवािदय   ने  ‘‘मानव   के  अिधकार  की  घोषणा’’  के  साथ  वयं  को 
जोड़ िलया था जो िक उदारवादी िस धांत  पर आधािरत था (कहन 2003 : 1)। इस क्रांित के 
बाद  यह  संदेश  तेजी  से  फैला  की  िनरं कुश  शासन,  अिधनायकवादी  शासन  और  अ य 
दमनकारी  शिक्तय   पर  िवजय  प्रा त  की  जा  सकती  है   तथा  नागिरक  वतंत्रता  को  संरक्षण 
दे कर  यिक्त का िवकास िकया जा सकता है । 

अ य प्रिस ध राजनीितक दाशर्िनक  की सच


ू ी म मा टे क्य ू का नाम भी शािमल िकया 
जाता  है   िज ह ने  िक  अपने  शिक्तय   के  पथ
ृ क्करण  के  िवचार  वारा  उदारवादी  दशर्न  के 
िवकास  म  अपना योगदान िदया था।  इनका  मानना था िक मानव के पूण र् िवकास के िलए 
वतंत्रता  सिु नि चत  करना  अिनवायर्  है   िजसके  िलए  उपयुक्त  शासन  यव था  आव यक  है । 
शिक्तय   के  पथ
ृ क्करण  के  िवचार  वारा  यह  सिु नि चत  करने  का  प्रयास  िकया  गया  िक 

64
शासन  यव था म शिक्तय  का िवभाजन हो, िजससे िक  यिक्त के  वतंत्रता को कोई खतरा 
न हो। इस प्रकार, इ ह ने संवैधािनक सरकार का समथर्न िकया जो िक लोग  की ज रत  को 
पूरा कर और कानून के शासन को बनाए रखे। राजनीितक ि थरता के  वारा उदारवादी मू य  
को िनरं तर बरकरार रखा जा सकता है । इसके अलावा कानून का शासन काफी मह व
  पूण र् है  
तािक  यिक्तय  के साथ समान  यवहार िकया जा सके। उनके अिधकार  का संरक्षण िकया 
जा सके और आिथर्क गितिविधय  के िलए बेहतर माहौल उपल ध करवाया जा सके िजससे 
िक समाज म प्रगित और िवकास हो सके। उदारवाद नैितक दशर्न  पर आधािरत है   जो िक 
यिक्त  के  जीवन,  वतंत्रता  और  संपि   जैसे  अिधकार   पर  बल  दे ता  है ।  यह  सरकार  का 
सव च  ल य  है ।  इस  प्रकार  उदारवािदय   के  िलए  यिक्त  का  िवकास  ही  एक  यायोिचत 
राजनीितक  यव था का आधार है । इसिलए उदारवादी सदै व ही सं थाओं  के संबंध म िचंितत 
रहते  ह  तािक  िनरं कुश  राजनीितक  शिक्तय   से  यिक्त  के  वतंत्रता  का  संरक्षण  िकया  जा 
सके। 

इसके अलावा जरमी बै थम और जे.एस. िमल ने  भी राजनीितक उदारवाद के िवकास म 


अपना  योगदान  िदया।  जरमी  बै थम  का  राजनीितक  िस धांत  उपयोिगतावाद  के  िवचार   पर 
आधािरत था। जो िक इस िवचार पर आधािरत था िक  यिक्तय  का अपना आ मिहत होता 
है   और वे  वही कायर्  करते  ह, िजसम िक उ ह अिधकतम सख
ु  प्रा त होता है । इस िस धांत 
के  अनुसार  कोई  यिक्त  अपने  वांिछत  उ दे य   को  प्रा त  करने  के  िलए  ही  पिरकिलत 
कायर्वाही  करता  है   क्य िक  मनु य  तािकर्क  प्राणी  होते  ह  जो  कोई  भी  कायर्  करने  से  पहले 
लाभ एवं  हािन का आकलन कर लेते  ह। उदारवाद म इस तरह के तािकर्कता के िवचार भी 
होते ह क्य िक उदारवािदय  का भी मानना है  िक मनु य तािकर्क प्राणी होते  ह। जे.एस. िमल 
ने  अपने  राजनीितक लेख ‘‘ऑन िलबटीर्’’ म  वतंत्रता के िवचार को मह व
   िदया है । उ ह ने 
एक  यिक्त  वारा अपने  वतंत्रता के प्रयोग करने  के मापदं ड  की समीक्षा की है । िमल ने 
अपने  लेख  म बहुसख्
ं यक  की शिक्त को लेकर संदेह प्रकट िकया है । उनका मानना था िक 
िकसी  यिक्त के  वतंत्रता को केवल तभी सीिमत िकया जा सकता है   जब उस  यिक्त की 
वतंत्रता  से  दस
ू रे   यिक्त  के  वतंत्रता  के  िलए  खतरा  उ प न  हो  जाए।  उनके  अनुसार, 
वतंत्रता और उपयोिगतावाद म कोई िवरोधाभास नहीं  है   क्य िक यिद िकसी  यिक्त को सख
ु  
प्रा त  करना  है   तो  उसे  मक्
ु त  वातावरण  म  िवकिसत  होना  चािहए।  इसम  वतंत्रता  ही  वह 
मानद ड है  िजसके आधार पर अिधकतम सख
ु  प्रा त हो सकता है । 

65
हालाँिक  अलग-अलग  बौ िधक  परं पराओं  के  आने  से  उदारवाद  काफी  सम ृ ध  हुआ  है । 
उनके लेख  वतंत्रता के िवचार  पर आधािरत है   और उ ह ने  इस िवचार का िव तार आिथर्क 
एवं  राजनीितक  जीवन  की  याख्या  करने  के  िलए  िकया।  आिथर्क  उदारवाद  एवं  राजनीितक 
उदारवाद के बीच िवभाजन से  कोई गलतफहमी उ प न नहीं  होनी चािहए िक वे  एक-दस
ू रे   से 
अलग है , बि क वे एक-दस
ू रे  के पूरक ह। 

परु ाना और नया उदारवाद 

20वीं शता दी के प्रारं भ म आिथर्क और राजनीितक पिर य के िवकास की समीक्षा करने पर 


हम  उदारवादी  नीितय   म  पिरवतर्न  दे खने  को  िमलता  है ।  शा त्रीय  उदारवाद  ने  उदारवाद  के 
नए  प  के  िलए  मागर्  प्रश त  िकया,  िजसम  िक  एक  मजबूत  िविनयामक  ढाँचे  का  िनमार्ण 
हुआ  था।  इस  दौरान  राजनीितक  नेताओं  ने  अपने  समि ट  आिथर्क  नीितय   म  सामािजक 
क याणकारी  कायर्क्रम   को  काफी  मह व
    िदया  था।  नीित-िनमार्ता  बाजार  अथर् यव था  और 
लोक  नीित  के  संदभर्  म  अलग-अलग  ि टकोण   को  अपना  रहे   थे  परं तु  उ ह ने  उदारवादी 
िस धांत   को  पूरी  तरह  से  नहीं  छोड़ा  था।  इस  ख ड  म  उदारवादी  आंदोलन  के  िवकास  की 
संिक्ष त  परे खा प्र तुत की जाएगी और उन पिरि थितय  को भी समझाने  का प्रयास िकया 
जाएगा िजनके कारण पुराने उदारवाद से नए उदारवाद म पिरवतर्न हुआ। 

जॉन लॉक, एडम ि मथ, िरकाड  बे थम, जे.एस. िमल और अ य प्रिस ध आिथर्क एवं 


राजनीितक  दाशर्िनक   के  योगदान   को  यापक  तौर  से  शा त्रीय  उदारवाद  म  वगीर्कृत  िकया 
जाता है । शा त्रीय उदारवादी मानते  ह िक िनजी संपि  पर आधािरत आिथर्क  यव था िकसी 
यिक्त के  वतंत्रता के आनंद के अनु प है । जब तक िक  यिक्त बाजार म अपने  म और 
संपि   को  खरीद  और  बेच  नहीं  सकता  है ,  तब  तक  वह  वा तव  म  वतंत्र  नहीं  है ।  इन 
आिथर्क िनणर्य  को लेने  की योग्यता म काफी हद तक  वतंत्रता की धारणा भी शािमल है । 
वही प्रबोधन काल के बाद से  संपण
ू  र् िव व म उदारवाद का प्रसार करने  म यरू ोप और संयक्
ु त 
रा य  अमेरीका  की  मह व
  पण
ू  र् भिू मका  रही  है ।  यरू ोपीय  साम्रा यवािदय   ने  पँज
ू ीवाद  की  प 
रे खा  इस  प्रकार  से  तैयार  की  थी  िक  िजससे  िनजी  संपि ,  कानून  का  शासन  और  मक्
ु त 
यापार के संदभर्  म उदारवादी िवचार  को प्रसािरत िकया जा सके। पँज
ू ीवाद और उदारवाद म 
कुछ िवरोधाभास भी है  परं तु कई बार कुछ सीमा तक इन दोन  के बीच पार पिरक संबंध भी 
दे खने  को  िमलता  है ।  हालाँिक  आज  के  समय  म  यह  मानना  गलत  होगा  की  उदारवाद  ही 

66
पँज
ू ीवाद है । उदारवाद एक आिथर्क राजनीितक दशर्न है  परं त ु दस
ू रे  तरफ पँज
ू ीवाद एक आिथर्क 
प्रणाली है  जो िक अिनवायर् तौर से उन उदारवादी मू य  को दशार्ता है । ये दोन  न तो एक ही 
है   और  न  ही  समान  है ।  पुराने  उदारवादी  िवचार  की  दस
ू री  मह  वपूण र् िवशेषता  यह  थी  िक 
इसम  वतंत्रता  की  सरु क्षा  के  िलए  िनजी  संपि   को  मह वपूण र् माना  जाता  था।  इसके  पीछे  
तकर्  िदया  जाता  है   िक  िनजी  संपि   के  अह तांतरणीय  अिधकार  के  कारण  रा य  के 
अितक्रमण  से  यिक्त  अपने  वतंत्रता  की  रक्षा  कर  सकता  है ।  इससे  रा य  की  भिू मका  भी 
सीिमत हो जाएगी। 

19वीं  शता दी  के  अंत  और  20वीं  शता दी  के  प्रारं भ  म,  बाजार  आधािरत  यव था  पर 
प्र न िकए जाने  लगे। इसी कारण इस  यव था म संशोधन िकया गया िजससे  नव उदारवाद 
का  उ भव  हुआ।  इस  दौरान  अिधकतर  मल
ू भूत  उदारवादी  िस धांत   को  बरकरार  रखा  गया 
परं तु बाजार म अि थरता और िव व यु ध के बाद के आिथर्क संकट  को दे खते हुए उदारवाद 
के  बुिनयादी  धारणाओं  की  पुनः  समीक्षा  की  गई।  ‘‘इन  महान  यु ध   ने  उदारवादी  आिथर्क 
ि ट को, भारी झटका िदया — हम आिथर्क जीवन म रा य के ह तक्षेप  को दे ख सकते  ह’’ 
(रोिसली 2020)। इसम रा य के शािमल होने से एक महान िवचलन दे खने को िमला जो िक 
पुराने से नए उदारवाद का सच
ू क है । इस दौरान बाजार उ च बेरोजगारी के साथ अि थर था। 
एक  वतंत्र  समाज  के  िलए  और  जीवन  के  आिथर्क  संगठन  के  िलए  शा त्रीय  उदारवाद  के 
िस धांत  पर प्र न िकए जा रहे   थे। जबिक दस
ू री तरफ सरकार और उनके आिथर्क नीितय  
जैसे  क याणकारी  कायर्क्रम   पर  लोग   का  भरोसा  काफी  बढ़ने  लगा  था।  बाजार  को  ि थर 
करने  म रा य की भिू मका के िवचार और लोग  की धारणा म आए पिरवतर्न के कारण ही 
उदारवाद म भी संशोधन िकया गया। 

यह माना गया िक रा य और उसकी भिू मका को लंबे  समय तक सीिमत नहीं  िकया जा 


सकता  है ।  हालाँिक  मजबत
ू   सरकार  के  इन  क याणकारी  कायर्क्रम   का  वागत  िकया  गया 
और  उनके  पुनिवर्तरणकारी  नीितय   को  बाजार-आधािरत  अथर् यव था  को  सु ढ़  करने  और 
उदार मू य  का िव तार करने  के संदभर्  म दे खा गया। जॉन मेनाडर्  कींस आधुिनक समय के 
अ य मह व
  पूण र् िवचारक थे  िज ह ने  बेरोजगारी की सम या को कम करने  के िलए मजबूत 
िव   और  मौिद्रक  नीितय   के  मा यम  से  रा य  के  ह तक्षेप  के  संदभर्  म  िसफािरश  की  थी 
(कस 1936)।  

67
इस  दौरान  यह  भी  समझा  जा  रहा  था  िक  संपि   के  अिधकार  ने  असमानता  को 
प्रो सािहत  िकया  है ।  भले  ही  सै धांितक  तौर  से  यह  कानन
ू   के  समक्ष  समानता  मक्
ु त  एवं 
िन पक्ष  प्रित पधार्,  आिद  का  िनधार्रण  करता  हो  परं तु  वा तव  म,  संपि   और  सम ृ िध  के 
संदभर्  म अंतर होने  के कारण कुछ  यिक्तय  को अ य लोग  की तुलना म अ यिधक लाभ 
िदया जाता था। इस प्रकार यह लोग , िवशेषतः  िमक वग  की  वतंत्रता की रक्षा कर पाने 
म  असफल  रहा।  जॉन  रा स  के  याय  के  िस धांत  ने  उदारवाद  के  इस  नए  एवं  सामािजक 
याय की अवधारणा म अपना योगदान िदया। उनका मानना था िक एक  यायपण
ू  र् समाज 
का  िनमार्ण  ऐसे  तरीक   से  िकया  जाना  चािहए  िजसम  िक  यूनतम  प्रितिनिध  समह
ू   को 
अिधकतम  लाभ  िदया  जा  सके।  उ ह ने  सामािजक  और  आिथर्क  असमानताओं  को  पुनः 
यवि थत  करने  का  प्रयास  िकया  था।  वे  मानते  थे  िक  वतंत्रता  और  याय  एक-दस
ू रे   से 
संबंिधत है । रा स अपने  इस तकर् को आगे  बढ़ाते  ह िक एक  यायोिचत समाज म ही केवल 
यिक्त के स चे  वतंत्रता की रक्षा हो सकती है । ये उदारवादी और समतावादी  ि टकोण नव 
उदारवाद के ही घटक है । 

उदारवाद और अंतररा ट्रीय संबंध 

अब  तक  इस  पाठ  म  घरे ल ू राजनीित  की  ही  चचार्  की  गई  है   परं त ु अंतररा ट्रीय  राजनीितक 
अथर् यव था के क्षेत्र म, िवशेषतौर से  उदारवािदय  के िलए, अंतररा ट्रीय संबंध भी मह वपूण र्
है । वतर्मान समय म वै वीकरण और बहुसं कृितवाद के कारण यह सामा य समझ बन गया 
है   िक अंतररा ट्रीय  तर पर िकसी एक दे श की गितिविधय  से  अ य दे श  म घरे ल ू तर पर 
वतंत्रता का िवचार प्रभािवत होता है । उदाहरण के िलए, भले ही कोई रा य अपने रा ट्र िहत  
को  यान  म  रखकर  सै यकरण  और  प्रितभिू मकरण  को  बढ़ावा  दे ने  का  प्रयास  कर।  िजसके 
पिरणाम व प  उस  रा य  के  सै य  शिक्त  म  भी  व ृ िध  हो  परं तु  ऐसा  भी  हो  सकता  है   िक 
रा य इन शिक्तय  का प्रयोग अपने  ही नागिरक  के िव ध उनके अिधकार  का हनन करने 
के  िलए  कर  (मैसेर  2018)।  इसी  कारण  से  एक  उदारवादी  राजनीितक  यव था  सदै व  ही 
सै य शिक्तय  को सीिमत करने  और सेना के ऊपर लोकतांित्रक िनयंत्रण  थािपत करने  का 
प्रयास  करती  है ।  सै यकरण  और  प्रितभिू तकरण  के  साथ  दस
ू री  सम या  यह  है   िक  यह 
अंतररा ट्रीय  तर पर सहयोग के बजाय संघषर् को बढ़ावा दे गा िजसके कारण बाजार मू य  म 
भी िगरावट होगी। 

68
अंतररा ट्रीय संघष  का अंतररा ट्रीय अथर् यव था, रा ट्रीय सम ृ िध और  वतंत्रता पर कैसे 
प्रितकूल  प्रभाव  पड़ता  है ,  इस  बात  की  समीक्षा  के  दौरान  यह  तकर्  िदया  जाता  है   िक 
उदारवािदय   ने  लोकतांित्रक  शांित  िस धांत  िदया  है ।  इस  िस धांत  के  वारा  ही  उ ह ने 
अंतररा ट्रीय संबंध  म मह वपूण र् योगदान िदया है । लोकतांित्रक शांित िस धांत म यह माना 
जाता है   िक उदारवादी लोकतांित्रक दे श कभी यु ध नहीं  करते  क्य िक वे  मानते  ह िक यु ध 
काफी  हािनकारक  होता  है ।  जब  से  उदारवादी  तािकर्कता  और  उपयोिगतावादी  मू य   के 
िस धांत  को मानने  लगे  ह तब से  वे  मानते  ह िक यु ध  यिक्त के  वतंत्रता,  यापार और 
मक्
ु त बाजार के िलए बेहतर नहीं  है । तािकर्कतावाद के कारण ही समकालीन उदार-सं थावादी 
बहुरा ट्रीय  िनगम ,  अंतररा ट्रीय  मद्र
ु ा  कोष,  यूरोपीय  संघ,  िव व  यापार  संगठन  आिद  जैसे 
सं थान   को  मह वपूण र् माना  जाता  ह।  वे  मानते  ह  िक  पर पर  आिथर्क  िनभर्रता  से  रा य  
को वा तिवक लाभ होता है । उदारवादी िवशेषतः उदारवादी सं थावादी यह मानते  ह िक जब 
से  यिक्त एक तािकर्क प्राणी के तौर पर बेहतर पिरणाम प्रा त करने  के िलए सामिू हक कायर् 
करने  की क्षमता रखने  लगे  ह, तब से  इन सं थाओं  ने  सहयोग को बढ़ाने  का प्रयास िकया। 
इसके साथ ही इन सं थाओं  ने  उन संघष  को भी कम करने  का प्रयास िकया जो िक भारी 
हािन पहुँचा सकते  ह। ये  सं थाएँ  ऐसी पिरि थितय  का िनमार्ण करती ह िजससे  िक रा य  
के  बीच  यापार  से  आपसी  लाभ  होता  है   और  संघषर्  कम  होता  है ,  िजसके  पिरणाम व प 
रा य यु ध को कम पसंद करते  ह क्य िक यु ध भीषण नक
ु सान पहुँचाता है । िजसके कारण 
यापार से प्रा त होने वाला लाभ िमलना बंद हो जाता है । 

अब हम उदारवादी िव व  यव था  वारा िनिमर्त एक अंतररा ट्रीय  यव था म रह रहे  ह। 


‘‘घरे ल ू उदारवादी  सं थाओं  और  मू य   के  समान  ही  इस  िव व  यव था  के  अंतररा ट्रीय 
सं थाओं, संगठन  और मू य  का भी िनमार्ण िकया गया है —िजससे  िक रा य  के िहंसा मक 
शिक्त को िनयंित्रत िकया जा सके (मैसर 2018) अंतररा ट्रीय  तर पर आक्रमण  को रोकने 
के  िलए  कई  अंतररा ट्रीय  कानून  ह।  इसिलए  यिद  कोई  रा य  यु ध  करता  है   तो  उसे  यह 
मालम
ू   होता  है   िक  वह  अंतररा ट्रीय  कानन
ू   तोड़  रहा  है   और  वह  अंतररा ट्रीय  प्रिक्रयाओं  के 
िलए तैयार है । अंतररा ट्रीय अथर् यव था और अंतररा ट्रीय सं थाओं  के िव लेषण के आधार 
पर यह तकर् िदया जा सकता है   िक यहाँ  अंतररा ट्रीय उदारवादी मू य उपल ध है । ये  मू य 
अंतररा ट्रीय  सहयोग,  मानवािधकार,  बाजार  आधािरत  अथर् यव था  और  िनयम  आधािरत 
यव था को बढ़ावा दे त े ह। यिद इन अंतररा ट्रीय मू य  को  वीकार नहीं  िकया जाता है   तो 

69
इसके पिरणाम व प काफी नुकसान होता है । परं तु यिद इन अंतररा ट्रीय उदारवादी मू य  को 
वीकार िकया जाता है , तो सरु क्षा, उ पादकता और प्रगित के संदभर्  म काफी लाभ होता है । 
इस प्रकार ऐसे  उपक्रम  की सफलता के िलए बड़े  पैमाने  पर समथर्न िकया जाता है । साथ ही 
स पूण र् िव व म ऐसे मू य  को अपनाया जाता है । 

उदारवाद की मख्
ु य मा यताएँ 

जैसा िक ऊपर चचार्  की गई है , ऐसा माना जा सकता है   िक उदारवाद तक  का एक एकल 


संरचना प्र तुत नहीं  करता है । वे  िवकिसत होने  के साथ-साथ बदलते  रहे   ह। इससे  संबंिधत 
यापक ग्रंथ  के किमय  के बावजद
ू  भी इसे वतर्मान समय के राजनीितक और आिथर्क दशर्न  
म  यापक  तौर  से  वीकार  िकया  जाता  है ।  उदारवाद  की  अनेक  बुिनयादी  तौर  से  वीकार 
िकया जाता है । उदारवाद की अनेक बिु नयादी मा यताएँ  ह, िजनम से  कुछ की चचार्  नीचे  की 
गई है । 

 मानव  वभाव— उदारवािदय  के अनस


ु ार मानव  वभाव अ छा होता है । ये  मानते  ह िक 
मानव  अिनवायर्  तौर  से  बरु े   नहीं  होते  ह।  वे  प्र येक  समय  सबसे  खराब  ि थित  की 
मा यताओं  को नहीं  मानते  ह। इनका मानना है   िक मानव  म यह क्षमता होती है   िक वे 
एक दस
ू रे  के साथ सहयोग करके पिरवतर्न ला सके। 

 यिक्तवाद—  उदारवाद  यिक्तवाद  पर  जोर  दे ता  है ।  उदाहरण  एक  यिक्त  के  सव च 
िवकास  के  िलए  प्रयास  करता  है ।  उदारवािदय   की  यह  मा यता  है   िक  यिक्तय   का 
अपना आ मिहत होता है ।  वतंत्रता संपि  के अिधकार और मक्
ु त  यापार के िस धांत  
पर  उनके  िहत   की  प्राि त  िनभर्र  करती  है ।  इनका  मानना  है   िक  यिद  प्र येक  यिक्त 
अपने  िहत   को  यान  म  रखकर  कायर्  कर  तो  इस  दौरान  वह  सामािजक  िहत   म  ही 
अपना योगदान दे ता है । 

 वतंत्रता—  यिक्त  की  वतंत्रता  उदारवाद  का  आधार  है ।  उनका  मानना  है   िक  वतंत्रता 
की  पिरि थित  म  मानव  अपने  वांिछत  उ दे य   के  सव च  संभावनाओं  को  प्रा त  कर 
सकता है । प्रगित और व ृ िध के  यव था के िलए यह आव यक है  िक  यिक्त अपने  म 
को  वतंत्रतापूवक
र्  बेच सके। वही इस दौरान रा य को अिनवायर्  तौर से  सीिमत भिू मका 
िनभाना चािहए। 

70
 संपि  का  अिधकार— उदारवाद िनजीकरण और बाजार के उदारीकरण का समथर्न करता 
है । संपि  का  वािम व और अ य उ पादन प्रिक्रयाएँ उ पादक एवं व ृ िध को प्रेिरत करती 
है । यह उ लेख करना भी मह वपण
ू  र् है   िक जब रा य  को िनजी संपि य  म अितक्रमण 
करने से रोक िदया जाता है  तो इस दौरान  वतंत्रता का कुछ  तर दे खने को िमलता है ।  

 कानून का शासन—  वतंत्रता और संपि  के अिधकार  का सव च संभािवत प्रयोग करने 


के िलए यह आव यक है   िक रा य उनकी रक्षा कर। सभी कानून के समक्ष समान हो। 
रा य के  वारा  थािपत िकए गए कानून  यव था का दस
ू रा कायर्  यह सिु नि चत करना 
है  िक लोग   वारा अनुबंध  का स मान िकया जाए। लोग  के बीच िन पक्ष प्रित पधार् को 
सिु नि चत  िकया  जाए,  भ्र टाचार  को  ख म  िकया  जाए  और  बाजार  को  बढ़ाने  के  िलए 
राजनीितक ि थरता प्रदान की जाए। बेहतरीन समि ट आिथर्क नीितयाँ  लोग  को उ पादन 
और पँज
ू ी बढ़ाने के िलए प्रचुर अवसर उपल ध करवाता है । 

 तािकर्कतावाद—  यह  उदारवाद  का  मख्


ु य  िवषय  है ।  यह  उपयोगीतावाद  के  िस धांत 
‘‘अिधकतम  लोग   का  अिधक म  सख
ु   की  प्राि त’’  पर  आधािरत  है ।  इस  िस धांत  का 
मानना  है   िक  यिक्त  तब  ही  सहयोग  करता  है   जब  उसे  अकेले  काम  करने  के  बजाए 
सहयोग  से  बेहतर  पिरणाम  प्रा त  हो।  मानव  एक  तािकर्क  प्राणी  है   क्य िक  वे  कोई  भी 
कायर्  करने  से  पहले  उसके हािन और लाभ का िव लेषण कर लेते  ह। यह उपयोगीतावादी 
िस धांत  से  संबंिधत  है ,  जो  मानते  ह  िक  यिक्त  उसी  तरह  से  कायर्  करते  ह  जो  िक 
उनके िहत  को बढ़ाए।  

 मक्
ु त  यापार और मक्
ु त बाजार— इनकी मा यता यह है   िक जब रा य के िविनयमन से 
बाजार मक्
ु त होता है   तो इससे  उदारवादी मू य बेहतर तरह से  कायम होते  ह। कोई भी 
अपने  चुनाव के  वतंत्रता का प्रयोग और अपने  िवकास के सव च  तर को तभी प्रा त 
कर सकता है   जब बाजार  वतंत्र हो। एक िविनयिमत बाजार  यिक्त के चुनाव पर रोक 
लगाता है , िजससे  यह भी कहा जा सकता है   िक  यिक्त के  वतंत्रता म  कावट आती 
है । हालाँिक नव उदारवािदय  ने रा य के सीिमत भिू मका के िवचार म पिरवतर्न कर िदया 
क्य िक  ये  एक  यायोिचत  सामािजक  यव था म समानता और  वतंत्रता की प्राि त के 
िलए एक मजबूत रा य के नीितय  का समथर्न करते थे। 

71
 सहयोग— उदारवािदय  का मानना है   िक जब लोग अपने  िहत  को प्रा त करने  का प्रयास 
करते  ह तो इस दौरान उनके बीच िहत  के संदभर्  म सामंज य हो सकता है । वे  मानव 
वभाव  के  संदभर्  म  आशावादी  ि टकोण  रखते  ह।  समान  उ दे य  को  प्रा त  करने  के 
िलए  वे  एक-दस
ू रे   के  साथ  सहयोग  करगे।  सं थाओं  के  वारा  भी  इस  तरह  के  सहकारी 
यवहार म मदद िमलता है । अिनवायर्  तौर से  उदारवादी मानते  ह िक बहुरा ट्रीय िनगम, 

ु ा  कोष,  िव व  बक  और  अ य  अंतर  सरकारी  संगठन   जैसे  गैर-रा य 


अंतररा ट्रीय  मद्र
अिभकतार्ओं  का  मह  व  काफी  बढ़  रहा  है   जो  िक  रा य   के  प्रित वं वी  है ।  अब 
अंतररा ट्रीय  यव थाओं म रा य केवल एकमात्र अिभकतार् नहीं रह गया है । 

 घरे ल ू राजनीित और अंतररा ट्रीय राजनीित— उदारवादी मानते  ह िक उनके दे श म लोग  


की  वतंत्रता बाहरी अंतररा ट्रीय गितिविधय  से  प्रभािवत हो सकती है । इनका मानना है  
िक  घरे ल ू राजनीित  और  अंतररा ट्रीय  राजनीित  म  कोई  वा तिवक  अंतर  नहीं  है ।  इस 
वै वीकरण के दौर म पार पिरक िनभर्रता, बहुसं कृितवाद, बहुलवाद, अंतररा ट्रीयवाद और 
अ य प्रकार के संबंध यहाँ  दे खने  को िमलते  ह िज ह ने  िक रा ट्रीय सीमाओं  को भी पार 
कर िलया है । 

आलोचना मक मू यांकन 

लड
ु िवग वो िमसेस मानते  ह िक उन समाज  म जहाँ  िक उदारवादी नीितय  को लाग ू िकया 
गया है  वह आमतौर से पँज
ू ीवादी समाज है  और उस समाज की पिरि थितय  को पँज
ू ीवादी के 
नाम से  जाना जाता है   (िमसेस  1985 :  10) वतर्मान समय म, उदारवाद और पँज
ू ीवाद  के 
बीच  नजदीकी  संबंध  होने  के  कारण  अकसर  इन  दोन   को  समानाथीर्  माना  जाता  है   जो  िक 
पूणत
र् ः भ्रामक है । इसिलए पँज
ू ीवाद के िवरोधी भी अकसर उदारवाद की आलोचना करते  हुए 
िदखाई  दे त े ह।  पँज
ू ीवाद  एक  आिथर्क  यव था  है   जो  िक  िनजी  संपि ,  उदारवादी 
अथर् यव था, लोकतंत्र आिद का समथर्न करते  ह। इसी कारण से  उदारवाद और पँज
ू ीवाद के 
बीच भ्रम की ि थित उ प न हो गई है । इस तरह के भ्रम से  यह सम या उ प न हो जाती 
है   िक  उदारवाद  ही  अ यायपूण र् और  असमान समाज  का  कारण  है ।  जबिक  वा तव  म  ठीक 
इसके  िवतरीत  दे खने  को  िमलता  है ।  िवचारधारा मक  तौर  से  उदारवाद  अिधकतम  लोग   के 
िलए  बेहतर  संभािवत  वांिछत  पिरणाम   को  प्रा त  करने  का  प्रयास  करता  है ।  यह  वतर्मान 

72
अ यायपूण र् सामािजक  यव था का वैचािरक पूवग
र् ामी उदाहरण नहीं  है , जैसा िक कुछ लोग  
ने दे खा होगा। 

हालाँिक  यह  भी  दे खा  जा  सकता  है   िक  कुछ  उदारवादी  लोग  जैसे  शा त्रीय  उदारवादी 
िवचारधारा मक  तर  पर  वतंत्रता,  िन पक्ष  प्रित पधार्,  मक्
ु त  बाजार  और  रा य  के  सीिमत 
ह तक्षेपवादी िस धांत को मानते  ह। जबिक जमीनी वा तिवकता यह है   िक इससे  सामािजक 
और आिथर्क असमानताओं  को प्रो साहन िमलता है । जब पँज
ू ीवाद का प्रसार हो रहा था और 
उसी  समय  पँज
ू ीवाद  को  यायोिचत  ठहराने  के  िलए  उदारवादी  मू य   का  प्रयोग  िकया  गया 
था तो इस दौरान इसे अिभजात सामािजक वगर् के अिभ यिक्त के तौर पर दे खा जा रहा था। 
संक्षेप म, उदारवाद को सतही तौर खािरज करना अब सामा य हो गया है   िजसको लेकर यह 
माना जाता था िक यह िवशेषािधकार प्रा त वग  के हे तु एक मख
ु ौटा था। हालाँिक यह क्षैितज 
प  से  दिु नया  के बाकी िह स  म पि चमी प्रभु व का प्रसार करने  के  िलए  कोई  चाल  नहीं 
थी। 

िन कषर् 

अतः यह कहा जा सकता है   िक उदारवाद एक मह वपूण र् आिथर्क राजनीितक दशर्न है । हमारे  


समाज  के  प्र येक  पहलओ
ु ं  म  उदारवादी  मू य  िनिहत  है ।  हालाँिक  उदारवाद  के  समीक्षा  के 
प चात ् हम कई प्रकार के उदारवादी  ि टकोण दे खने को िमलते ह जो िक उदारवादी िस धांत 
के  याख्याओं  पर िनभर्र करता है । यह सभी  ि टकोण उदारवादी परं परा के अंतगर्त ही ह। 
इस पाठ म उनम से कई उदारवादी तक  का वणर्न करते हुए समझाने का प्रयास िकया गया 

ु य उदारवादी िस धांत  को िनधार्िरत करते  हुए उनम से  कुछ मह वपूण र्


है । एक तरफ तो मख्
िस धांत  को रे खांिकत करते  हुए समझाने  का प्रयास िकया गया है । िजस पर िक उदारवाद 
िनभर्र  करता  है ।  इस  पाठ  म  िकए  गए  चचार्  के  आधार  पर  हम  यह  मान  सकते  ह  िक 
उदारवाद एक उभरता हुआ िवचार है । ऐितहािसक संदभर्  के आधार पर रा य की भिू मका की 
तरह ही उदारवाद की कुछ प्रमख
ु  मा यताओं को दे ख के उदार प्रयास  के अनक
ु ू ल बदल िदया 
गया है । घरे ल ू राजनीित और अंतररा ट्रीय राजनीित के बीच की चुनौती ही उदारवाद की दस
ू री 
मह वपूण र् िवशेषता  है ।  उदारवाद  को  घरे ल ू क्षेत्र   तक  ही  सीिमत  नहीं  िकया  जा  सकता  है । 
हालाँिक यह अंतररा ट्रीय संबंध  के संचालन को भी काफी प्रभािवत करता है । यह त य है  िक 
यथाथर्वादी और माक् 
सवर् ादी जैसे  अ य िस धांत  के  वारा उदारवाद की काफी आलोचना की 

73
गई है   परं त ु इसके बावजद
ू  अभी भी उदारवाद को एक मजबूत शिक्त के तौर पर दे खा जाता 
है , जो िक आज भी एक प्रबल िस धांत है । इसे आज भी कई दे श  ढ़तापव
ू क
र्  अपनाते ह। 

संदभर्-सच
ू ी 

1.  बेल, डंकन (2014), ‘‘वट इज िलबराली म?’’ पािलिटकल  योरी, 42(6) : 682-715 

2.  िगसी, िवलयम (2008), पािलिटकल इकॉनमी ऑफ वायलस एंड नान-वायलस, ‘‘ले टर 


कुटर् ज, इनसाइक्लोपीिडया ऑफ वायलेस, पीस एंड कनि लक्ट, एकेडिमया प्रेस 

3.  कहन  ए.  एस.  (2003),  ‘‘इंट्रोडक्शन  :  िडफाइिनंग  िलबराली म’’  इन  िलबराली म  इन 
नाइनिट थ सचूरी यूरोप. पालग्रेव मैकमैलन, लंदन 

4.  कींस,  जॉन  मेनाडर्  (2018),  द  जनरल  योरी  ऑफ  ए लायमट,  इंटरे ट  एड  मनी 
प्रींगर 

5.  मैसर,  जेफ्री.  ड य.ू   (2018),  ‘‘इंट्रो यिू संग  िलबराली म  इन  इंटरनेशनल  िरलेशन 
योरी’’ 

6.  िमसेस  लड
ु िवंग  वोन  (1985),  िलबरािल म  इन  क्लािसकल  ट्रे िडशन,  कैिलफोिनर्या, 
कोबडेन प्रेस 

7.  फुकन मीनाक्षी (2016), द राइट ऑफमॉडनर् वे ट : सोशल एंड इकॉनािमक िह ट्री ऑफ 


अलीर् मॉडनर् यूरोप,  यू दे ही : ट्रीिनटी प्रेस 

8.  रो स, जॉन (2009), अ  योरी ऑफ ज टीस हावर्ड र् यूिनविसर्टी प्रेस 

9.  रोिसली,  अ स द्रो  (2020),  इकानािमक  िफलासािफज  :  िलबराली म,  नेशनिल म, 
सोशिल म : डू दे  मेटर? लंदन : पालग्रेव मैकमेलन 

10.  वे दामेरी, एिलना (2015), ‘‘द इ लए
ु ंस ऑफ िलबराजी म इन द डेिफनेशन ऑफ द 
आइिडया ऑफ द नेशन इन इंिडया 

74
इकाई-2 

पाठ-3 : अंतरार् ट्रीय संबंध  म माक्सर्वादी िस धांत 


लक
ु ी कुमारी 
अनुवादक : िवक्की झा 
 
पिरचय 

जहाँ  एक  तरफ  अंतरार् ट्रीय  संबंध   का  माक्सर्वादी  ि टकोण,  िव व  के  दिक्षणी  दे श   के 
ि टकोण  से  अंतरार् ट्रीय  संबंध  िवषय  को  समझाने  के  िलए  कुछ  मह वपूण र् उपकरण  प्रदान 
करता  है ,  तो  वहीं  दस
ू री  तरफ  यह  रा य,  शिक्त,  अराजकता  और  वचर् व  जैसे  मल
ू भत
ू  
िस धांत  के मल
ू  अवधारणाओं से संबंिधत सम याओं को भी ढूँढ़ने का प्रयास करता है । शीत 
यु ध  की  समाि त  और  सोिवयत  संघ  के  िवघटन  के  बाद  िव वान   ने  पँज
ू ीवाद  और  मक्
ु त 
प्रित पधीर्  बाजार  आिथर्क  प्रणाली  के  िवजय  की  घोषणा  की  थी।  इस  संदभर्  म  “फ्रांिसस 
फुकुयामा”  ने  अपने  कृित  “द  एंड  ऑफ  द  िह ट्री  ऑफ  द  ला ट  मैन”  म  यह  तकर्  दे ते  हुए 
कहा  था  िक  सोिवयत  संघ  का  िवघटन  यह  सािबत  करता  है   िक  िव व  म  ऐसे  प्रित पधीर् 
सै धांितक प्रितमान का कोई अि त व नहीं  बचा है , जो िक उदारवादी पँज
ू ीवादी वयव था को 
चुनौती दे   सके। इन तक  से  िभ न कुछ िव वान यह मानते  ह िक भले  ही 1990 के दशक 
के शु आत से िव व एक ध्रुवीय हो गया है  या पैक्स अमेिरका के  प म अमेिरका का वचर् व 
कायम  हो  गया  है ,  परं तु  इसके  बावजद
ू   माक्सर्वादी  िस धांत  की  प्रासंिगकता  म  भी  काफी 
बढ़ोतरी हुई है । हालाँिक अंतरार् ट्रीय संबंध  के अ य िस धांत  की तरह माक्सर्वादी िस धांत 
यथाि थित  को  बनाए  रखने  म  िव वास  नहीं  करता  है ,  बि क  यह  प्रमख
ु   राजनीितक  और 
सामािजक  यव था म पिरवतर्न लाने का प्रयास करता है । इसी कारण से ऐसा माना जाता है  
िक सामािजक िवज्ञान के सभी िस धांत  म से  माक्सर्वादी िस धांत काफी प्रभावशाली  प से 
िवकिसत  हुआ  है ।  इसके  अलावा  माक्सर्वाद  वैि वक  असमानता, वगर्  संघषर्,  उ पादन  प्रणाली 
के बदलते तरीके, उ पादन की शिक्तय  और बुजआ
ुर्  एवं सवर्हारा दोन  के अलगाव आिद जैसे 
बाजार उ मुख आिथर्क प्रणाली के कानून  और उनके िवशेषताओं की  याख्या करने पर किद्रत 
है । इसी कारण से माक्सर्वादी िस धांत समाज को एक समतावादी िव व  यव था और मिु क्त 
के  एक  साधन  के  प  म  बदल  दे ता  है ,  जो  िक  सभी  के  िलए  वतंत्रता  और  समानता  की 
वा तिवक  दिु नया  को  बढ़ावा  दे ।  इसके  अलावा  माक्सर्वाद  का  एक  मह वपण
ू  र् आयाम  यह  है  
िक  यह  अंतरार् ट्रीय  संबध
ं   की  एक  वैकि पक  समझ  प्रदान  करता  है ।  वहीं  दस
ू री  तरफ  यह 
अंतरार् ट्रीय संबंधो के यथाथर्वादी िस धांत के मल
ू  अवधारणाओ से संबंिधत सम याओ को भी 
ढूँढ़ने  का  प्रयास करता है ।  माक्सर्वाद का आधार हम कालर्  माक्सर्  के िवशेष लेख  म दे खने 

75
को िमलता है , जो िक उ ह ने  पँज
ू ीवादी राजनीितक  यव था के दशर्न, आिथर्क िनधार्रण और 
वैज्ञािनक िव लेषण के संदभर् म िलखे थे। 

माक्सर्वाद की सै धांितक  परे खा 

अंतरार् ट्रीय संबंध  म माक्सर्वादी िस धांत, यथाथर्वादी  ि टकोण और एडम ि मथ एवं  डेिवड 


िरकाड  जैसे  िवचारको  वारा िवकिसत उदारवादी आिथर्क िवचारधारा के िव ध एक प्रितवाद 
के  प म उभरा था। उदारवादी आिथर्क िस धांत के संदभर्  म ि मथ और िरकाड  ने  सझ
ु ाव 
दे ते  हुए  यह  कहा  था  िक  अंतरार् ट्रीय  प्रणाली  के  अंतगर्त  तुलना मक  लाभ  और  प्रित पधीर् 
बाजार आिथर्क प्रणाली का िस धांत सबसे प्रमुख है , िजसम रा य की भिू मका काफी  यूनतम 
रहती है । इस संदभर् म वे तकर् दे ते हुए कहते ह बाजार प्रणाली के प्राकृितक घटना म “अ य 
हाथ”  (इनिविजबल  हड)  काफी  मह वपूण र् भिू मका  िनभाता  है ।  इसी  कारण  से  ि मथ  और 
िरकाड   मानते  ह िक एक मक्
ु त बाजार प्रणाली म आ म-संतुलन की अपनी क्षमता होती  है  
और इसिलए बाजार के प्राकृितक घटना म रा य जैसी िकसी बाहरी शिक्त को कोई ह तक्षेप 
करने  की आव यकता नहीं  है । इस संदभर्  म वे  मानते  ह िक बाजार प्रणाली का मूल िवचार 
माँग  और  आपूितर्  की  एक  बहुत  ही  पारं पिरक  लेिकन  प्रासंिगक  अवधारणा  पर  आधािरत  है । 
इसी कारण से यह व त ु के गण
ु व ा को बढ़ाने के साथ-साथ बाजार प्रणाली म पँज
ू ी के मक्
ु त 
प्रवाह और ती  प्रित पधार् को बढ़ावा दे ता ह। वहीं एक प्रित पधीर् बाजार आिथर्क  यव था म 
उ पादक  और  उपभोक्ता  के  बीच  प ट  संबंध  होता  है ,  िजसके  पिरणाम व प  उ पादक   के 
बीच की यह प्रित पधार्  बाजार को  यूनतम लागत वाली व तुओं  का िनमार्ण करने  के िलए 
प्रेिरत  करती  है ।  हालाँिक  वहीं  दस
ू री  तरफ  माक्सर्वादी  िव वान   ने  इन  उदारवादी  आिथर्क 
ि टकोण को चुनौती दे ते  हुए कहा िक उदारवादी िस धांत पूणत
र् ः गरीब लोग  के शोषण पर 
आधािरत  है ।  इस  संदभर्  म  माक्सर्वादी  यह  मानते  ह  िक  उ पादन  के  पँज
ू ीवादी  प्रणाली  म 
बाजार की शिक्तय  पर पँज
ू ीपित वगर्  का वचर् व होता है   और ये  पँज
ू ीपित वगर्  अपने  िनजी 
लाभ  के  िलए ही बाजार की माँग  और  आपूितर्  को िनयंित्रत करते  ह। इसके अलावा उ ह ने 
बाजार के आ म-संतुलन के प्राकृितक क्षमता की भी आलोचना की, क्य िक इस संदभर्  म वे 
मानते ह िक यह आिथर्क संसाधन के असमान िवतरण पर आधािरत है । अतः इसी कारण से 
माक्सर्वादी  मानते  ह  िक  उदारवादी  अथर् यव था  म  असमानता  के  कानन
ू   का  काफी  वचर् व 
रहा  है ।  इ हीं  पिरि थितय   के  कारण  माक्सर्वादी  जहाँ  एक  तरफ  मानते  ह  िक  पँूजी  का 
सकद्रण केवल कुछ ही हाथ  तक सीिमत हो कर रह गया है , तो वहीं दस
ू रे  तरफ वह कहते ह 
िक  इससे  गरीब  लोग   के  बीच  क्रय  समानता  म  भी  भारी  िगरावट  आई  है ,  िजसके 
पिरणाम व प िव व म आिथर्क मंदी आई और एक मक्
ु त प्रित पधीर्  बाजार अथर् यव था का 
पतन हो गया है । इस संदभर्  म माक्सर्वादी कहते  ह िक ऐसा इसिलए हुआ क्य िक बाजार म 
‘माँग और आपिू तर्’ के आधार पर मू य  का िनधार्रण करने  के बजाय ‘व तओ
ु ं  और सेवाओं’ 
76
के  आधार  पर  मू य   का  िनधार्रण  िकया  जाने  लगा,  िजसके  पिरणाम  व प  बाजार  केवल 
िमक  के शोषण का  थान बन कर रह गया क्य िक अब बाजार म  िमक  को बहुत कम 
वेतन  िदया  जाता  है ,  जो  िक  वा तव  म  बाजार  के  उन  व तुओं  और  सेवाओं  का  उ पादन 
करते ह। 

इसके अलावा माक्सर्वाद सिदय  से  कई ऐसे  मामल  को सामने  लाता रहा है , जो बुजआ


ुर्  
और सवर्हारा वगर्  के बीच के आिथर्क शिक्तय  के असमानताओं  को दशार्ता है । इस संदभर्  म 
कालर्  माक्सर्  कहते  ह िक यिद आिथर्क संसाधन  का िनयंत्रण िनजी  यिक्त के हाथ  म होगा 
तो इसका पिरणाम हम आिथर्क असमानताओ और  िमक  के शोषण के  प म दे ख सकते ह 
(िजसका िनजी क्षेत्र एक अ छा उदाहरण है )। वहीं  अंतरार् ट्रीय संबंध  के माक्सर्वादी िस धांत 
ने  इस बात पर बल िदया िक रा य और उसके सम त तंत्र सवर्हारा वगर्  के शोषण का एक 
साधन है । इसिलए माक्सर्  ने  रा य को गरीब और कमजोर लोग  के शोषण के एक यंत्र के 
तौर पर दे खा, जो दे श के संप न और प्रभावशाली वग  की एक कठपत
ु ली भर है । इसी कारण 
से  माक्सर्  यह मानते  थे  िक रा य अमीर  को और अिधक अमीर और शिक्तशाली को और 
शिक्तशाली बनाता है । इसके पिरणाम व प ही माक्सर्वािदय  ने  “रा य के यंत्रवादी िस धांत” 
के िवचार को प्रितपािदत िकया। 

इसके  अलावा  माक्सर्वादी  िव वान  “वगर्  संघषर्”  को  अंतरार् ट्रीय  यव था  को  समझने  के 
िलए एक मह वपूण र् कारक मानते ह। वगर् संघषर् के संदभर् म कालर् माक्सर् कहते ह िक बुजआ
ुर्  
(आिथर्क  तौर  से  संप न वगर्) और सवर्हारा ( िमक वगर्)  के बीच िवरोधपूण र् संबंध होता है । 
हालाँिक इस दौरान आिथर्क तौर से  संप न वगर्  िमक वग  का शोषण करने  म सक्षम होते 
ह।  इसी  कारण  से  िमक   के  िहत   के  कीमत  पर  पँज
ू ीपित  वगर्  अपने  लाभ  के  िलए 
अंतरार् ट्रीय राजनीितक एवं आिथर्क संसाधन  और कानन
ू  के साथ-साथ रा य के सं थान  का 
भी प्रयोग करते ह। 

इसके पिरणाम व प माक्सर्वािदय  ने  उदारीकरण, िनजीकरण और वै वीकरण को बढ़ावा 


दे ने वाले िव व  यापार संगठन, अंतरार् ट्रीय मद्र
ु ा कोष और िव व बक के अंतरार् ट्रीय सं थान  
की काफी आलोचना की। इन संगठन  को लेकर माक्सर्वािदय  का यह िवचार था िक भले  ही 
िव व  यापार  संगठन  ‘टै िरफ’  कम  करने  और  यापार  को  आसान  बनाने  के  िलए  कायर्  कर 
रहा है   परं त ु इसके बावजद
ू  यह संगठन  िमक  को वेतन के मामले  म पयार् त सरु क्षा प्रदान 
कर पाने और उनके काय  के िलए उपयुक्त वातावरण का िनमार्ण कर पाने म िवफल रहा है । 

इसके  अलावा  माक्सर्वािदय   का  यह  तकर्  ह  िक  बहुरा ट्रीय  िनगम  उन  जगह   पर  ही 
व तुओं  और सेवाओं  का उ पादन आसानी से  कर पाते  ह, जहाँ  पर  िमक  के मानवािधकार 
का  हनन  होता  है ।  वहीं  बहुरा ट्रीय  िनगम  स ते  म  उपल धता  और  िमक   के  शोषण  के 

77
कारण  ही  भारी  मात्रा  म  व तुओं  का  उ पादन  कर  पाने  म  सफल  होते  ह।  स ते  म  की 
उपल धता और  िमक  के शोषण की पिरि थितय  ने इन िनगमो के लाभ  को काफी  यादा 
बढ़ाया  है   क्य िक  ये  िनगम  इन  व तुओं  का  स ते  म  उ पादन  करके  उ ह  महँ गे  दाम   पर 
बेचते  ह।  इसी  कारण  से  जहाँ  एक  तरफ  िमक   को  लगातार  काफी  चुनौितय   का  सामना 
करना  पड़ता  है   तो  वहीं  दस
ू रे   तरफ  इन  िनगम   को  ऐसी  िकसी  चुनौितय   का  सामना  नहीं 
करना पड़ता है  और इसी कारण से वे अपना लाभ बढ़ाते रहते ह। अतः ऐसी पिरि थितय  के 
कारण ही  िमक  को अपनी नौकरी खोने  और रा य एवं  मािलक   वारा उ ह दं ड िदए जाने 
का डर लगा रहता है  और इसी कारण ही वे अपने साथ हुए अ याय  का िवरोध नहीं करते ह 
(बेकर, 2003)। 

इसके  अलावा  माक्सर्वाद  उपिनवेशवाद  को  ऐितहािसक  तौर  से  एक  मह वपण
ू  र् घटना  के 
प  म  दे खते  ह  क्य िक  इसके  मा यम  से  ही  दिु नया  भर  के  समाज   म  िनजी  संपि   के 
िवचार को फैलाया और उिचत ठहराया गया है । उपिनवेशवाद ने  पँज
ू ीवाद की उन समाज  म 
फैलने  म  मदद  की,  जो  िक  पँज
ू ीवादी  िवचार   से  काफी  दरू   थे।  हालाँिक  पँज
ू ीवाद  ने  संपण
ू  र्
िव व म औ योिगक िवकास की शु आत की, जो िक समाजवादी समाज के  थापना की पूव र्
शतर् थी (िलंकलेटर 1986)। इसके अलावा इस दौर म, पँज
ू ीवादी अथर् यव था का प्रचार करने 
वाले उपिनवेशवािदय  के िखलाफ संघषर् को उभरते होते हुए दे खा जा सकता है । इस संदभर् म 
डेवनपोटर्   (2011)  कहते  ह  िक  19वीं  शता दी  म  पि चमी  यूरोप  म  समाजवादी  क्रांित  की 
शु आत काफी भ्रिमत करने  वाली थी क्य िक इसके बाद पँज
ू ीवाद पिरिध अथवा गैर-पँज
ू ीवाद 
वाले  दे श  म तेजी से  फैला। वहीं  माक्सर्  और एंग स के तक  की तुलना म, साम्रा यवाद का 
िस धांत  अंतरार् ट्रीय  राजनीित  की  गितशीलता  को  पँज
ू ी  संचय  की  बदलती  प्रकृित  के  साथ 
जोड़ने का प्रयास करता है  क्य िक साम्रा यवादी िस धांत एकािधकार पँज
ू ीवादी गितशीलता का 
एक भाग है । इसी कारण से  क्रांित के प्र याशा म माक्सर्वाद ने  युग और अनुमान के संदभर् 
म अपने िव लेषण का बीड़ा उठाया है । इसिलए इस िवचार ने लंबे समय तक एक प्रमख
ु  और 
मह वपूण र् िवचार के  प म सबका  यान आकिषर्त िकया है । 

इसिलए  ऐसा  कहा  जा  सकता  है   िक  अंतरार् ट्रीय  संबंध   म  माक्सर्वादी  िस धांत  केवल 
रा य  और  गैर-रा य  अिभक ार्ओं  वारा  लोग   के  शोषण  के  बारे   म  ही  बात  नहीं  करता  है  
बि क यह लोग  को शोषण के बंधन से  मक्
ु त करने  संबध
ं ी संघष  के बारे   म भी बताता है  
(बेकर 2003)। इस संदभर् म माक्सर्वादी मानते ह िक शोषण को रोकने और अ याय से  वयं 
को मक्
ु त करने  का एकमात्र तरीका यह है   िक हम पँज
ू ीपित और  िमक  के बीच के आिथर्क 
िवभाजन  को  समा त  करना  होगा।  हालाँिक  यह  तभी  हो  सकता  है ,  जब  संपूण र् िव व  के 
िमक, समाज म िकसी भी प्रकार के आिथर्क मतभेद  और पँज
ू ीपितय  के िव ध एकजट
ु  हो 
जाए।  इसके  अलावा  माक्सर्वादी  मानते  ह  िक  सा यवादी  यव था  तभी  अि त व  म  आ 

78
सकता  है ,  जब  वगर्  से  संबंिधत  िवचार  समा त  हो  जाए  और  इसके  पिरणाम व प  एक 
वगर्िवहीन  और  रा यिवहीन  समाज  का  िनमार्ण  हो,  जहाँ  पर  सभी  लोग   के  साथ  समान 
यवहार िकया जाएगा (बेकर 2003)। इसिलए वे  मानते  ह िक उ पादन के साधन  पर िकसी 
एक  यिक्त  का  िनयंत्रण  नहीं  होना  चािहए  बि क  इसके  बजाय  उ पादन  के  साधन   का 
रा ट्रीयकरण  िकया  जाना  चािहए  क्य िक  ऐसी  अव था  म  प्र येक  यिक्त  अपनी  क्षमता  के 
आधार पर अपना बेहतर प्रदशर्न कर पाएगा। इसी कारण से  अंतरार् ट्रीय संबंध  म रा य के 
माक्सर्वादी िस धांत का उ दे य रा य और सरकार के आधुिनक संरचना को समा त करना 
है   और यिद यह ल य हािसल हो जाता है , तो अपने  सभी गण
ु  के साथ यह सा यवाद का 
शु ध  प बनकर उभरे गा। वहीं  जब माक्सर्  वगर्  की  याख्या करते  ह तो उस दौरान वगर्  से 
उनका  अिभप्राय  बुजव
ुर् ा  और  सवर्हारा  जैसे  दो  वग   से  है ।  हालाँिक  माक्सर्  िकसान   को 
आधुिनक वगर्  के बजाय पारं पिरक वगर्  मानते  थे  क्य िक इनको लेकर माक्सर्  का िवचार था 
िक  इनम  वगर्  चेतना  का  अभाव  होता  है ।  इसके  अलावा  माक्सर्  आधुिनक  वग   को  एकमात्र 
अंितम वगर्  मानते  थे  क्य िक उ ह ने  पँज
ू ीवाद को सा यवादी समाज के िनमार्ण से  पहले  का 
अंितम प्रितकूल चरण माना था। इसके अलावा िनजी संपि  के संदभर् म माक्सर् का िवचार था 
िक  िनजी  संपि   पारं पिरक  वगर्  को  पँज
ू ीपित  वगर्  म  पिरवितर्त  करने  म  मह वपण
ू  र् भिू मका 
िनभाती  है ।  अतः  इसी  कारण  से  माक्सर्  का  यह  ढ़  िव वास  था  िक  अंितम  पिरवतर्न  एक 
सा यवादी  समाज  के  िनमार्ण  म  पिरणत  होगा।  इसके  अलावा  माक्सर्  यह  भी  मानते  थे  िक 
अंतरार् ट्रीय  यव था म शांित प्रा त करने  के िलए “रा य  यव था” को समा त करना होगा 
(बेकर 2003)। 

अंतरार् ट्रीय संबंध  म माक्सर्वाद का उदय 

पािकर्सन (1999) मानते  ह िक साम्रा यवाद के बारे   म अिधकांश िस धांत माक्सर्  और उनके 


िश य   के  िवचार   से  उभरे   और  िवकिसत  हुए  ह।  इसके  अलावा  कालर्  माक्सर्  और  े डिरक 
एंगे स ऐसे  पहले  यिक्त थे, िज ह ने  वैज्ञािनक समाजवादी िस धांत का िनमार्ण िकया था। 
हालाँिक  इस  संदभर्  म  वे  एडम  ि मथ  और  डेिवड  िरकाड   के  पँज
ू ीवाद  के  िस धांत  से 
अ यिधक  प्रभािवत  थे।  इसके  अलावा  वैज्ञािनक  समाजवादी  और  ि मथ  एवं  िरकाड   जैसे 
प्रारं िभक  पँज
ू ीवादी  िवचारक   के  वारा  कुछ  सामा य  धारणाएँ  भी  साझा  की  जाती  थी,  इस 
संदभर्  म  पहली  धारणा  यह  थी  िक  एक  सम प  िव व  बाजार  “पँज
ू ीवाद”  (उ पादन  और 
यापार) के िव तार के िलए आधार प्रदान करता है , दस
ू री धारणा यह थी िक प्रारं िभक  तर 
पर रा य और उसके यंत्र सदै व शासक वगर्  के िहत  को ही बढ़ावा दे ते  ह, जबिक इनके बीच 
तीसरी  धारणा  यह  थी  िक  “िवचार”  अप्रासंिगक  होते  ह  क्य िक  वे  मानते  थे  िक  मख्
ु य 
प्रित पधीर्  बाजार आिथर्क प्रणाली सीमा पार के  यापार  यव थाओं  पर आधािरत है , जो िक 
अपने  प्रकृित म सावर्भौिमक है । हालाँिक उ पादन के पँज
ू ीवादी प्रणाली और बाजार के अपने 
79
मल
ू   पहलओ
ु  ं को  लेकर  दोन   के  अलग-अलग  अथर्  है ।  इस  संदभर्  म  वैज्ञािनक  समाजवादी 
उ पादन के पँज
ू ीवादी प्रणाली और तुलना मक लाभ (मक्
ु त बाजार) के िस धांत म आंतिरक 
िवरोधाभास को दे खते  ह। इसी कारण से  उ ह ने  जोर दे त े हुए कहा था िक पँज
ू ीवाद म  वयं 
उसके िवनाश के बीज िनिहत है   क्य िक पँज
ू ीवाद सामािजक और आिथर्क असमानता (बुजव
ुर् ा 
और  सवर्हारा),  िवषमता  के  कानून,  उ पादन  के  लाभ  दर  म  िगरावट,  वगर्  संघषर्  आिद  पर 
आधािरत  है ।  इसिलए  माक्सर्वादी  यह  मानते  ह  िक  पँूजीवाद  अपने  आंतिरक  िवरोध 
(ऐितहािसक भौितकतावाद) के कारण  वतः ही न ट हो जाएगा और इसके साथ ही रा य भी 
समा त  हो  जाएगा।  इससे  इतर  समकालीन  माक्सर्वादी  िव वान  यह  मानते  ह  िक  िव व  म 
िवकिसत और िवकासशील दे श  के बीच आिथर्क संसाधन  का असमान िवतरण हो रखा है । 
इसके अलावा जहाँ एक तरफ “ए.जी. फ्रक” कद्र-पिरिध मॉडल और िनभर्रता िस धांत की बात 
करते  ह तो वहीं  दस
ू री तरफ “इमैनअ
ु ल वालर टीन” ने  अंतरार् ट्रीय  यापार पर िवकिसत दे श  
के  वचर् व  और  प्रभु व  के  िवचार  को  उजागर  िकया।  इसके  अलावा,  इस  संदभर्  म  नव-
माक्सर्वादी  मानते  ह  िक  अंतरार् ट्रीय  तर  पर  पँज
ू ीवाद  अनुिचत  संघष   का  कारण  बना  है , 
क्य िक  साम्रा यवाद  अपयार् त  घरे ल ू माँग   म  उलझा  रहता  है ,  िजसके  कारण  पँज
ू ीवाद  को 
िवदे श  म बाजार खोजने के िलए मजबूर होना पड़ता है  और इसके िलए यिद आव यक हो तो 
कई बार उ ह बल प्रयोग का भी सहारा लेना पड़ता है । अतः माक्सर्वाद के अंतगर्त इस तरह 
के िववाद  ने दो प्रकार के िवचार  को ज म िदया, जो िन निलिखत ह— 

(1)  सध
ु ारवादी समह
ू  — इसम कालर् काउ की और जोसफ शु पीटर का नाम प्रमख
ु  है ।  

(2)  क्रांितकारी  समह


ू   —  इसम  रोजा  लक्जमबगर्,  एन.आई.  बुखािरन  और  लेिनन  का  नाम 
प्रमख
ु  है । 

लेिनन  अपने  प्रिस ध  कृित  “साम्रा यवाद—पँज


ू ीवाद  की  उ चतम  अव था”  (1916)  म  यह 
मानते ह िक साम्रा यवाद पँूजीवाद का एक अपिरहायर् पिरणाम है । इस संदभर् म लेिनन अपने 
कृित  म  यह  उ लेख  करते  हुए  कहते  ह  िक  संपि   का  असमान  िवतरण  और  संसाधन   की 
कमी, वैि वक  तर पर आिथर्क तनाव को ज म दे ता है । 

अंतरार् ट्रीय संबंध  के संदभर् म माक्सर्वादी  ि टकोण 

यथाथर्वाद और उदारवाद के िवपरीत माक्सर्वाद एक सामािजक दिु नया म िव वास करता है , 


िजसके  संदभर्  म  वह  मानता  है   िक  इसका  समग्रता  म  िव लेषण  िकया  जाना  चािहए।  वहीं 
प्रिस ध  यथाथर्वादी  िव वान  “केनेथ  वा ज”  माक्सर्वाद  को  अंतरार् ट्रीय  संबंध   की  “दस
ू री 
छिव” मानते ह। वा ज ऐसा इसिलए कहते ह क्य िक इस संदभर् म माक्सर्वादी मानते ह िक 
यिद एक समाजवादी शासन अि त व म आ जाएगा तो इससे  रा य  के बीच के संघषर्  को 
रोका जा सकता है । इसके अलावा माक्सर्वादी यह भी मानते ह िक वैि वक राजनीित की मल
ू  
80
छिव  “ऑक्टोपस  मॉडल”  पर  आधािरत  है ,  िजसम  पँज
ू ीवादी  महाशिक्तय   ने  संपूण र् िव व 
यव था पर अपना िनयंत्रण  थािपत कर रखा है । इसके अलावा इस खंड म हम चार मानक  
का उ लेख करगे िजसके मा यम से हम माक्सर्वाद के आव यक त व
   और अंतरार् ट्रीय संबंध 
िवषय म उनके योगदान को समझ सकते ह। 

(1)  िव व  यव था िस धांत। 

(2)  आलोचना मक िस धांत। 

(3)  ग्रा शीवाद 

(4)  नव-माक्सर्वाद 

 िव व  यव था िस धांत 

माक्सर्  का  सामािजक  िस धांत  “पँज


ू ीवाद  और  उसके  अंतिवर्रोध”  के  िव लेषण  पर  आधािरत 
था।  वहीं  दस
ू री  तरफ  वतर्मान  समय  एक  प्रासंिगक  “िव व- यव था  िस धांत”  का  गवाह  है , 
जो 1970 के दशक म इ मैनुएल वालर टीन  वारा िवकिसत िकया गया था। िव व  यव था 
िस धांत का उदय ऐसे समय म हुआ था जब िवकास को समझने के िलए आधुिनकीकरण के 
िस धांत  की  आलोचना  हो  रही  थी।  उसी  समय  िनभर्रता-िस धांत  ने  अफ्रीका  और  लैिटन 
अमेिरका  के  संदभर्  म  िवकास  के  अवधारणा  को  समझाने  के  िलए  एक  वैकि पक  ि टकोण 
प्र तुत िकया। इसके अलावा इ मैनुएल वालर टीन, टे रस हॉपिकंस, समीर अमीन, आंद्रे गु डर 
फ्रक  और  िजयोव नी  अिरघी  जैसे  कुछ  प्रमुख  िव वान   ने  माक्सर्वादी  परं परा  के  अंतगर्त 
िनभर्रता  िस धांत  को  िवकिसत  िकया  था।  इस  संदभर्  म  वालर टीन  ने  कहा  था  िक 
अंतरार् ट्रीय प्रणाली म असमानता की एक  तरीकृत संरचना है   जो िक सं थागत शोषण पर 
आधािरत  है   इसिलए  िव व  यव था  िस धांत  संपण
ू  र् अंतरार् ट्रीय  प्रणाली  को  िव लेषण  की 
इकाई मानता है । इसके अलावा िव व  यव था िस धांत यह भी मानता है   िक िवकास और 
अ पिवकास वैि वक शिक्त संबंध  का पिरणाम है । 

इ मैनुएल  वालर टीन  मानते  ह  िक  पँज


ू ीवाद  ने  16वीं  शता दी  म  यूरोप  और  इसके 
पिरिध म अपनी जड़ मजबूत की थी, िजसके कारण “कद्र” के दे श  को आिथर्क गितिविधय  
से  अिधकतम  लाभ  िमल  रहा  है   क्य िक  “कद्र”  के  दे श  उपिनवेशीकरण  की  प्रिक्रया  और 
असमान  िविनमय पर आधािरत  म  के अंतरार् ट्रीय िवभाजन  वारा अधर्-पिरिध और पिरिध 
के दे श  का शोषण कर रहे   ह। वहीं  िव व  यव था िस धांत को समझाने  के िलए िविभ न 
िवचारक   ने  कई प्रकार के िवचार प्र तुत  िकए  ह, जो िक वैि वक असमानता पर आधािरत 
है । हालाँिक इसके बावजद
ू  उनके श दावली म थोड़ी िभ नता रही है । उदाहरण के िलए जहाँ 
एक तरफ समीर अमीन और आंद्रे  गु डर फ्रक ने  कद्र और पिरिध के संबंध  पर काफी जोर 

81
िदया तो वहीं  इसके बेहतर िव लेषण के िलए वालर टीन ने  तीन- तरीय संरचना का उ लेख 
िकया, िजसम उ ह ने  अ र्ध पिरिध के अवधारणा को कद्र और पिरिध के अवधारणा के साथ 
रखा था। वहीं िव व  यव था िस धांत के आने के साथ ही सभी का  यान तीसरी दिु नया के 
दे श   पर  चला  गया,  जो  पिरिध  और  अधर्-पिरिध  के  प  म  जाने  जाते  थे।  इसी  कारण  से 
वतर्मान समय म िव व के उ री दे श  को “कद्र” और िव व के दिक्षणी दे श  को “पिरिध” और 
“अधर्-पिरिध”  के  प  म  दे खा  जाता  है ।  वहीं  वालर टीन  कहते  ह  िक  आधुिनक  रा ट्र-रा य 
आिथर्क,  राजनीितक  और  कानूनी  ढाँचे  के  एक  समह
ू   के  प  म  अंतःिक्रया  करते  ह,  िजसे 
िव व  यव था कहा जाता है । इसके अलावा वह कहते  ह िक रा य के  यवहार का िव लेषण 
तब  तक  नहीं  िकया  जा  सकता  है ,  जब  तक  िक  उसके  यवहार  को  उसके  वा तिवक 
सामािजक सां कृितक प्रणाली के  प म नहीं  दे खा जाता है । इसिलए रा ट्र रा य  या समाज  
के मौजद
ू ा ि थित को िव व प्रणाली का िव लेषण िकए िबना नहीं समझा जा सकता है ।  

वहीं  इ मैनए
ु ल वालर टीन के िव व  यव था िस धांत को समझने  के िलए, उनके तक  
को चार  ेिणय  म रखा जा सकता है , जो िक िन निलिखत ह। 

(1)  िव लेषण की इकाई 

(2)  िव व  यव था िस धांत का िवकास 

(3)  कद्र, पिरिध और अधर्-पिरिध का संबंध  

(4)  वैि वक पँूजीवादी  यव था का पतन एवं संकट 

इस  संदभर्  म  इ मैनुएल  वालर टीन  मानते  ह  िक  जैसे-जैसे  औ योिगक  उ पादन  म  व ृ िध 
होती  है   वैसे-वैसे  पँज
ू ीवादी  िव व  अथर् यव था  भी  बढ़ती  रहती  है ।  इसिलए  वे  मानते  ह  िक 
आधिु नक  पँज
ू ीवादी  वैि वक  अथर् यव था,  िनरं तरता  और  पिरवतर्न  के  कई  चरण   के  साथ 
िवकिसत हुआ है । 

िव व  यव था िस धांत की समझ 

इ मैनए
ु ल  वालर टीन  के  अनस
ु ार  “िव व  यव था  एक  ऐसी  सामािजक  यव था  है ,  िजसम 
सीमाएं, संरचनाएं, सद य समह
ू , वैधता और सस
ु ग
ं ता के िनयम शािमल होते  ह। यह पर पर 
िवरोधी ताकत  से  बना है , जो िक तनाव और िवभाजन के  वारा इ ह एक साथ जोड़ रखता 
ह”। इस िव व- यव था म समह
ू  का प्र येक सद य अपने-अपने  िहत  को लेकर िचंितत रहते 
ह।  इसके  अलावा  वालर टीन  के  पथ
ृ क्   समाज  की  अवधारणा  को  उसके  िव व  यव था  के 
िस धांत  का  िव लेषण  करने  के  बाद  ही  समझा  जा  सकता  है ।  वहीं  आधुिनक  रा ट्र-रा य 
िव व  यव था  का  िह सा  है ,  इसिलए  वे  िविभ न  प्रकार  की  सामािजक  यव था  बनाते  ह। 
अतः यहाँ हम तीन प्रकार के सामािजक  यव था को दे ख सकते ह। 

82
1. छोटी प्रणाली : छोटी प्रणाली एक छोटे   सजाितय समाज  का समह
ू  है । वह अपेक्षाकृत 
आिथर्क तौर से  आ मिनभर्र होते  ह, क्य िक वे  अस य तौर से  अपना जीवन जीते  ह, 
िजसम वे  िशकार करने, भोजन संग्रिहत करने  आिद जैसे  काय  म लगे  रहते  ह। इस 
छोटे   प्रणाली म रा य अपने  प्रणाली के अंतगर्त सभी आव यक व तुओ ं और सेवाओं 
का  उ पादन  करता  है , िजस कारण से  यह प्रणाली बाहरी दिु नया के साथ अंतःिक्रया 
नहीं  करती  है ,  इसके  बजाय  ये  छोटे   प्रणाली  के  समूह  थानीय  तर  पर  और 
आव यकता के आधार पर अंतःिक्रया करते ह। 

2. सामािजक  प्रणाली  :  छोटी  प्रणाली  के  तल


ु ना  म  सामािजक  प्रणाली  काफी  बड़ी  और 
यापक  यव था है , इस कारण से  इसे  िव व साम्रा य कहा जाता है । इसके अलावा 
सामािजक  यव था म अिधशेष व तओ
ु ं  और सेवाओं  को अथर् यव था के बाहरी क्षेत्र 
से िनकाला जाता है , िजसम से  अितिरक्त मू य का एक बहुत बड़ा भाग सेनाओं और 
प्रशासक  को, समाज पर उनके प्रभु व बनाए रखने  संबंधी सेवाओं  के बदले  क्षितपिू तर् 
के  प  म  िदया  जाता  है ।  वहीं  बाकी  बचे  अिधशेष  रा य  के  राजनीितक  नेत ृ व  को 
क्षितपूितर् करने के िलए िदए जाते ह।  

3. िव व  अथर् यव थाएँ  अथवा  वैि वक  पँूजीवादी  प्रणाली  :  वैि वक  अथर् यव था  या 
वैि वक  पँज
ू ीवादी  प्रणाली  के  प्रितपादक  इ मैनुएल  वालर टीन  थे।  16वी  शता दी  म 
यूरोप  म  इसी  प्रणाली  का  वचर् व  रहा  था,  िजस  कारण  से  उस  समय  यूरोप  म 
पँज
ू ीवादी  यव था  अपने  चरम  पर  थी  और  उस  दौरान  वहाँ  पँज
ू ीवादी  आिथर्क 
गितिविधय   पर  आधािरत  िविश ट प्रकार  के  यापार  संबंधी  िनयम   का  पालन  िकया 
जाता था। इसी कारण से  बाद म वालर टीन िव व  यव था को क्रमशः कद्र, पिरिध 
और अधर्-पिरिध के  प म अलग-अलग करते  हुए इसके िव तार से  िव लेषण करते 
ह। 

 कद्र 

िव व अथर् यव था के पँज
ू ीवादी प्रकृित से कद्र दे श  को सबसे अिधक लाभ हुआ था। यरू ोप के 
उ र-पि चमी दे श   को  कद्र  दे श  के  प म जाना जाता है । कद्र दे श   का  उ लेख करते  हुए 
वालर टीन कहते  ह िक लोकतांित्रक शासन की उपि थित, उ च क्रय शिक्त, क चे  माल का 
आयात और िनिमर्त मालो का िनयार्त आिद इन दे श  के प्रमख
ु  िवशेषताएँ  ह। इसके अलावा 
कद्र  दे श   म  ि थर  और  मजबूत सरकार होती  ह, िज ह पेशेवर नौकरशाही और सेना  वारा 
सहायता  प्रदान  की  जाती  है ।  इस  कारण  से  यह  संगिठत  यव था  घरे ल ू पँज
ू ीपितय   को 
अंतरार् ट्रीय  यापार  और  वािण य  पर  उ च  िनयंत्रण  प्रा त  करने  म  मदद  करती  है ,  िजससे 
उ ह  आिथर्क  मोच  पर  काफी  लाभ  िमलता  है ।  इसके  अलावा  उिचत  कर  प्रबंधन,  अनुसध
ं ान 

83
और अ य बुिनयादी संरचनाओं  का िवकास और खरीद के िलए सरकारी नीितय  के साथ यह 
“कद्रीय दे श” पँज
ू ी संचय को बढ़ावा दे ते ह। वहीं वगर् संघषर् और िवरोध संबंधी खतर  को कम 
करने  के िलए ये  कद्र दे श एक उिचत सामािजक  यव था बनाए रखते  ह। इसके अलावा इन 
कद्र रा य  की एक अ य मह वपूण र् िवशेषता यह है   िक ये  कद्र दे श वैि वक अथर् यव था म 
पँज
ू ीवाद को काफी बढ़ावा दे ते ह। 

 पिरिध 

वे  दे श िजनकी कद्र  तर पर मजबूत सरकार नहीं  होती है , बि क ठीक इसके िवपरीत िजन 


दे श   की  सरकार  काफी  कमजोर  होती  है   और  िजन  दे श   पर  अ य  दे श   वारा  आसानी  से 
अपना प्रभाव या िनयंत्रण  थािपत कर िलया जाता है   उन दे श  को पिरिध दे श  की  ेणी म 
रखा  जाता  है ।  इन  पिरिध  संबंधी  दे श   की  प्रमख
ु   िवशेषता  यह  है   िक  यह  कद्र  के  दे श   को 
क चा माल िनयार्त करते  ह। इसके अलावा कद्र और पिरिध दे श  के बीच असमान  यापार 
संबंध  होने  के  कारण,  पिरिध  के  दे श   वारा  भारी  मात्रा  म  अिधशेष  उ प न  िकए  जाने  के 
बावजद
ू  भी केवल कद्र दे श  को ही उसका लाभ िमलता है । इसी कारण से  पिरिध दे श, िव व 
के सबसे कम िवकिसत दे श ह। इसके अलावा कद्र के दे श खिनज के  प म क चे माल, वन 
उ पादन और कृिष उ पादनो के  प म व तुओ ं का आयात करवाकर और स ते  म के  प 
म पिरिध के दे श  का शोषण करते ह। 

 अधर्-पिरिध 

वालर टीन के अनुसार अधर्-पिरिध के दे श  म केवल वे दे श ही नहीं आते ह, जो कभी कद्र के 


दे श  म शािमल थे और िजनका अब पतन हो गया है  (उदहारण के िलए  पेन और पुतग
र् ाल), 
बि क इसम वे  दे श भी आते  ह, जो पहले  पिरिध म थे  परं त ु अब वे  वैि वक अथर् यव था म 
अपनी  ि थित  मजबत
ू   करने  का  प्रयास  कर  रहे   ह  (उदहारण  के  िलए  ब्राजील  और  दिक्षण 
अफ्रीका)। इन अधर्-पिरिध दे श  की प्रमख
ु  िवशेषता यह है  िक यहाँ कद्र  तर पर सरकार और 
प्रमख
ु   थानीय  समद
ु ाय   के  बीच  तनाव  दे खने  को  िमलता  है ।  अधर्-पिरिध  वाले  दे श   की 
अंतरार् ट्रीय बिकंग तक केवल सीिमत पहुँच होती है । इसके अलावा इन अधर्-पिरिध दे श  की 
उ च लागत और उ च गण ु व ा वाले िनिमर्त व तओ ु ं के उ पादन तक भी सीिमत पहुँच होती 
है । इसी कारण से ये अधर् पिरिध वाले दे श अंतरार् ट्रीय  यापार म सफल नहीं हो सके ह और 
इसके  पिरणाम व प  ये  अधर्-पिरिध  वाले  दे श,  “कद्र  दे श ”  की  तरह  अंतरार् ट्रीय  यापार  से 
लाभ नहीं  उठा सके। इसके अलावा अधर्-पिरिध म ‘जमीदार वगर्’, कमजोर पँज
ू ीवादी ग्रामीण 
अथर् यव था पर अपना दावा करते  ह। इस दौरान अधर्-पिरिध वाले दे श एक म यवतीर् ि थित 
म  होते  ह,  िजसम  एक  तरफ  जहाँ  कद्र  दे श   वारा  अधर्-पिरिध  वाले  दे श   का  शोषण  िकया 
जाता  है ,  तो  वहीं  दस
ू रे   तरफ  यह अधर्-पिरिध के  दे श   वारा  भी  पिरिध  के  दे श  का  शोषण 

84
करते ह। वहीं समकालीन समय म ये अधर् पिरिध वाले दे श उन िविनमार्ण गितिविधय  िवशेष 
तौर से उन क्षेत्र  तक अपना िव तार कर रहे  ह, िज ह कद्र दे श  ने लाभहीन बना िदया था।  

इस संदभर्  म वालर टीन कहते  ह िक वैि वक पँूजीवादी  यव था एक गितशील  यव था 


है ,  जो  समय  के  साथ  बदलती  रहती  है ,  परं तु  इसके  बावजद
ू   इसकी  मल
ू   िवशेषताएँ  ि थर 
रहती  है ।  इसकी  सबसे  मह वपूण र् िवशेषताओं  म  से  एक  िवशेषता  यह  है   िक  इससे  उ री-
पि चमी दे श  को सबसे  यादा लाभ होता रहा है , िजसम की पिरिध दे श  के कीमत पर कद्र 
दे श   को  लाभ  होता  रहा  है   क्य िक  कद्र  के  दे श  पिरिध  दे श   के  साथ  उनके  क चे  माल  के 
बदले  अपने  िनिमर्त व तओ
ु ं  का आदान-प्रदान करते  ह, िजससे  अंतरार् ट्रीय  यापार म पिरिध 
दे श  के कीमत पर कद्र दे श  को काफी लाभ होता है । हालाँिक इसका यह मतलब नहीं  है   िक 
इससे पिरिध के सभी दे श गरीब और कद्र के सभी दे श अमीर बनते  जा रहे   ह, बि क इसका 
अथर्  यह है   िक पिरिध दे श  के जमीदार वग  को भी इससे  काफी लाभ हुआ है   और वे  कम 
वेतन पाने  वाले  िमक  के कीमत पर अमीर बनते  जा रहे   ह। इसी कारण से  कद्र दे श  म 
ग्रामीण लोग  को अपना जमीन गवानी पड़ी ह और उ ह दै िनक मजदरू  के  प म कायर् करने 
को  मजबूर  होना  पड़ा  है ,  िजसका  पिरणाम  यह  हुआ  है   िक  उनका  जीवन  तर  काफी  नीचे 
चला गया है  और इसके कारण उनके आय म भी काफी िगरावट आई है । इसिलए वालर टीन 
मानते  ह  िक  पँज
ू ीवादी  यव था  दिु नया  के  अिधकांश  लोग   के  िलए  उपयुक्त  नहीं  है ।  वहीं 
वालर टीन ने  अपने  िस धांत के मा यम से  दिु नया म आधुिनककरण के  यापक प्रभाव  की 
याख्या करने  का प्रयास िकया। इस संदभर्  म वे  मानते  ह िक यूरोप के उ री-पि चमी भाग  
म  सामंतवादी  यव था  के  पतन  के  कारण  वहाँ  कई  प्रकार  के  राजनीितक  और  आिथर्क 
पिरवतर्न हुए ह, िजसने  की यरू ोप को दिु नया की एक प्रमख
ु  आिथर्क और राजनीितक शिक्त 
के  प  म  बदल  िदया  है ।  वहीं  जैसे-जैसे  पँज
ू ीवादी  अथर् यव था  का  दिु नया  भर  म  िव तार 
हुआ  है ,  वैसे-वैसे  ही  दिु नया  भर  म  राजनीितक  और  म  की  पिरि थितय   म  भी  बदलाव 
आया  है ।  इस  कारण  से  कद्र,  अधर्-पिरिध  और  पिरिध  के  बीच  के  संबंध  बदलते  रहे   ह  और 
इसी कारण से  ये  संबंध कभी भी ि थर नहीं  रहे   ह। वहीं  वालर टीन इस बात पर जोर दे ते 
हुए  कहते  ह  िक  हम  पँजू ीवादी  अथर् यव था  के  इितहास  का  अ ययन  और  िव लेषण  करना 
चािहए  क्य िक  इसने  दिु नया  म  िवकास  के  िवकृत  प  को  बढ़ावा  िदया  है ।  इसी  कारण  से 
जहाँ  एक  तरफ  पँज
ू ीवादी  यव था  ने  िविभ न  वग   के  बीच  आिथर्क  और  सामािजक 
असमानता  को  बढ़ावा  िदया  है ,  तो  वहीं  दस
ू री  तरफ  िव व  अथर् यव था  म  यह  अपने  उ च 
व ृ िध के बावजद
ू  आम जनता के िलए सम ृ िध नहीं ला सका है । 
 ग्रा शीवाद 
इटली  के  माक्सर्वादी  िवचारक  एंटोिनयो  ग्रा शी  को  माक्सर्वाद  के  इस  िस धांत  का  प्रमख
ु  
प्रितपादक  माना  जाता  है ।  इस  संदभर्  म  ग्रा शी  इस  मख्
ु य  प्र न  का  गहनता  से  िव लेषण 

85
करते ह िक “पि चमी यूरोप के दे श  म क्रांित क्य  नहीं हुई।” इस संदभर् म ग्रा शी वचर् व की 
अवधारणा को इस प्र न का उ र मानते  ह। हालाँिक वचर् व की अवधारणा की  याख्या करते 
हुए ग्रा शी, मैिकयावेली के शिक्त के अवधारणा को  वीकार करते  ह (मैिकयावेली शिक्त को 
सटोर अथार्त ् आधा जानवर और आधा मनु य के  प म दे खते  थे)। अतः ग्रा शी राजनीितक 
संदभर्  म वचर् व को बल-प्रयोग और सहमित के एक िम ण के  प म दे खते  ह। इस कारण 
से  ग्रा शी पँूजीवादी समाज को एक िवशेष समाज के तौर पर दे खते  ह, जहाँ  पर प्रभु व के 
साथ-साथ वचर् व की अवधारणा भी दे खने को िमलती है । 

इस  दौरान  पँज


ू ीवादी  के  संदभर्  म  ग्रा शी  कहते  ह  िक  पँज
ू ीवादी  दो  अलग-अलग 
संरचनाओं के मा यम से अपना वचर् व बनाए रखता ह, जो िन न प्रकार के ह— 

(1)  वैधता  की  संरचना  :  ग्रा शी  के  अनुसार  नागिरक  समाज,  कूल,  धमर्  (चचर्),  पिरवार, 
सामािजक  मू य आिद की प्रिक्रय  के मा यम से  पँज
ू ीवाद  के शोषण  और संरचना  को 
सहमित और वैधता प्रदान करता है । 

(2)  बल-प्रयोग  :  ग्रा शी,  रा य  और  उसके  यंत्र   को  नागिरक   पर  बल-प्रयोग  का  प्रमख
ु  
प्रािधकार मानते ह, िजसम वह सेना, पुिलस बल और  वयं रा य को शािमल करते ह। 
इस  संदभर्  म  ग्रा शी  कहते  ह  िक  जब  भी  वैधता  की  संरचना  िवफल  होती  है   तो 
पँज
ू ीवादी समह
ू  बलप्रयोग का सहारा लेते ह।  

इसके अलावा ग्रा शी वै वीकरण की प्रिक्रया की आलोचना करते  ह। इस क्रम म वे  मानते  ह 


िक  पँज
ू ीवादी  अथर् यव था  ने  िवकासशील  दे श   पर  अपना  वचर् व  बनाए  रखने  के  िलए 
वै वीकरण की प्रिक्रया को जबरन थोपा ह। इसके अलावा प्रथम िव व, अपने  आिथर्क लाभ  
के  िलए  वै वीकरण  की  परू ी  प्रिक्रया  को  वैध  बनाने  का  प्रयास  करते  ह, तािक  वे  इन  सबसे 
संबंिधत प्रचिलत सामािजक और आिथर्क संरचनाओं  को बनाए रख सक। इसिलए ग्रा शी यह 
सझ
ु ाव  दे ते  ह  िक  सवर्हारा  वगर्  और  िवकासशील  दे श   को  वयं  अपना बौ िधक  वगर्  बनाना 
चािहए तािक वे  थािपत वचर् व का िवरोध कर सक। 

 आलोचना मक िस धांत 

अंतरार् ट्रीय संबंध  म आलोचना मक िस धांत का उ भव कांट, हीगल और माक्सर् के लेख  से 


हुआ  है ।  आलोचना मक  िस धांत  का  मख्
ु य  उ दे य  वतर्मान  समाज  के  ऐितहािसक  और 
सामािजक पिरवतर्न  का अ ययन करके और इसके जिटलताओं और वचर् व के प धितय  को 
समझ  कर,  इसकी  मख्
ु य  िवशेषताओं  का  िव लेषण  करना  रहा  है ।  वहीं  समकालीन  िव व 
यव थाओं  म  मिु क्त  की  संभावनाओं  को  समझने  के  िलए  कांट  और  माक्सर्  ने  मानव  के 
तकर्संगत संगठन  के प्रित एक अंतिनर्िहत प्रविृ  के साथ-साथ मिु क्त प्रिक्रया म आने  वाले 
बाधाओं  का  भी  गंभीर  प  से  अ ययन  िकया।  इस  संबंध  म  इन  माक्सर्वादी  िव वान   के 
86
अ ययन  का  िवषय  परं परागत  माक्सर्वािदय   से  अलग  रहा।  जहाँ  एक  तरफ  परं परागत 
माक्सर्वादी  पिरवार  की  संरचनाओं,  ज्ञान  उ पि ,  सं कृित,  नौकरशाही  और  सामािजक  संबंध  
जैसे  प्रमख
ु  मु द  का ही अ ययन करते  थे, तो वहीं  दस
ू रे   तरफ आलोचना मक िस धांतकार  
ने  समाज म मीिडया और सं कृित की भिू मका का काफी कुशलता से  अ ययन िकया। इसके 
अलावा  इन  आलोचना मक  िस धांतकरो  ने  “आधार”  (अथार्त ्  अथर् यव था)  के  बजाय 
“अिधसंरचना”  (िजसम  समाज  के  कानून,  सं कृित,  आिद  को  शािमल  िकया  जाता  है )  के 
अ ययन  पर  काफी  जोर  िदया।  इसके  अलावा  आलोचना मक  िस धांतकार   ने  माक्सर्  के 
िवचार (िक समाज के समकालीन सवर्हारा वगर्  समाज को पिरवितर्त और मक्
ु त कर पाने  म 
सक्षम ह) के प्रित संदेह प्रकट िकया है । 

रोबटर्   कॉक्स  अपने  प्रिस ध  कृित  “सोशल  फोसज  एंड  व डर्  ऑडर्र  :  िबय ड  इंटरनेशनल 
िरलेशंस  योरी”  (1981)  म  यह  कहते  ह  िक  “िस धांत”  हमेशा  िकसी  के  िलए  और  िकसी 
उ दे य  को  यान  म  रखकर  बनाया  जाता  है ।  इस  कारण  से  वह  मानते  ह  िक  कोई  भी 
िस धांत और सै धांतीकरण की प्रिक्रया कोई प्राकृितक प्रिक्रया नहीं  है । कॉक्स यह भी मानते 
ह िक प्रचिलत सामािजक, राजनीितक और आिथर्क  यव थाएँ सदै व ही यथाि थित को बढ़ावा 
दे ती  ह।  इसके  अलावा  कॉक्स,  हाखार्ईमर  के  वारा  िकए  गए  पारं पिरक  िस धांत   और 
आलोचना मक  िस धांत   के  बीच  के  अंतर  से  सहमत  ह।  वह  परं परागत  िस धांत   को 
सकारा मक िस धांत  के  प म वगीर्कृत करते  ह, िज ह िक वह सम या-समाधान (प्रॉ लम 
सॉि वंग)  िस धांत  मानते  ह।  इसी  कारण  से  कॉक्स  नव-यथाथर्वाद  और  नव-उदारवाद  को 
सम या  समाधान  िस धांत  मानते  ह  क्य िक  यह  दोन   िस धांत  ज्ञान  के  प्रभु वशाली  और 
वचर् वशाली  संरचना  को  बनाए  रखते  ह।  इसके  अलावा  रोबटर्   कॉक्स  यह  भी  मानते  ह  िक 
‘वचर् व’  घरे ल ू यव था  के  साथ-साथ  अंतरार् ट्रीय  यव था  म  ि थरता  बनाए  रखने  म 
मह वपूण र् भिू मका िनभाता है । 

 नव-माक्सर्वाद 

अंतरार् ट्रीय  संबंध   म  नव-माक्सर्वाद  के  प्रमख


ु   प्रितपादक  “िबल  वॉरे न”  और  “जि टन 
रोसेनबगर्”  है ।  इस  संदभर्  म  उ ह ने  माना  िक  इस  िवषय  के  अ ययन  के  दौरान  माक्सर्वादी 
िवचार   के  मल
ू   िस धांत   की  उपेक्षा  की  जाती  है ।  इसके  अलावा  बाद  के  पीिढ़य   वारा 
माक्सर्वाद  की  कई  बार  गलत  याख्या  भी  की  गई।  उनके  अनुसार  माक्सर्वाद  अंतरार् ट्रीय 
संबंध  की गहन समझ प्रदान करता है । इसके अलावा नव-माक्सर्वािदय  ने  उनके मख्
ु यधारा 
से  संबंिधत िस धांत  के मल
ू  अवधारणाओं  की सम याओं  को ढूँढ़ने  का प्रयास िकया, जो िक 
अंतरार् ट्रीय संबंध  के संपूण र् सै धांितक परं परा पर हावी रहे   ह। इसी संदभर्  म िबल वॉरे न ने 
अपने  प्रिस ध  कृित  “इंिपिरयिल म  पायिनर  ऑफ  कैिपटिल म”  (1980)  म  लेिनन  के 

87
“साम्रा यवाद—पँज
ू ीवाद की उ चतम अव था” संबंधी िवचार  को खािरज कर िदया। इस संदभर् 
म वॉरे न मानते ह िक लेिनन साम्रा यवाद और पँूजीवाद के बीच के संबंध को सै धांितक  प 
से  समझने  म  िवफल  रहे ।  वॉरे न  कहते  ह  िक  साम्रा यवाद  को  पँज
ू ीवाद  उ चतम  तर  के 
बजाय पँूजीवाद के अग्रदत
ू  के  प म दे खा जाना चािहए। उनके अनुसार पँज
ू ीवाद ने पिरिध के 
दे श  म उ पादन के साधन  को िवकिसत करने  म एक ऐितहािसक भिू मका िनभाई है । इसके 
अलावा  पँज
ू ीवाद  ने  आने  वाले  समाजवादी  पीिढ़य   और  शहरी  सवर्हारा  वग   को  जगह  भी 
प्रदान िकया है , िजससे वह अपने शोषण के िव ध संघषर् कर सके। 

वहीं  दस
ू री  तरफ  जि टन  रोसेनबगर्  ने  अपने  प्रिस ध  कृित  “एंपायर  ऑफ  िसिवल 
सोसाइटी  :  अ  िक्रिटक  ऑफ  द  िरयिल ट  योरी  ऑफ  इंटरनेशनल  िरलेशंस”  (1994)  म 
अंतरार् ट्रीय  संबंध   के  यथाथर्वादी  पिरप्रे य  की  आलोचना  की।  रोसेनबगर्  ने  मख्
ु यतः  तीन 
आधार  पर यथाथर्वाद की आलोचना की।  

(1)  घरे ल ू और अंतरार् ट्रीय क्षेत्र  के बीच पर पर िक्रया के दौहराव का प्र न 

(2)  इसके िव लेषण की ऐितहािसक प्रकृित 

(3)  यह एक िस धांत नहीं  बि क एक संचालन िनयमावली है , जो अंतरार् ट्रीय राजनीित के 


काम  करने  के  तरीके  के  बजाय  शिक्त  संतुलन  के  जिटल  संचालन  के  बारे   म  अिधक 
यािख्यत करता है ।  

इसी  कारण  से  रोसेनबगर्  मानते  ह  िक  अराजकता  पँज


ू ीवादी  यव था  का  एक  पिरणाम  है । 
इसिलए यह केवल पिरि थितय  के ही कुछ समूह नहीं  है , जो िक अंतरार् ट्रीय संबंध  से  जड़
ु े 
हुए  ह  बि क  ये  उन  सामािजक  संबंध   म  समािहत  है   जो  उ पादन  के  पँूजीवादी  प धित  से 
िवकिसत  हुए  ह।  इसी  कारण  से  रोसेनबगर्,  कालर्  माक्सर्  के  काय   को  िवकिसत  करने  का 
प्रयास  करते  ह  तािक  वे  अंतरार् ट्रीय  संबंध   म  िढवािदय   की  आलोचना  करते  हुए  एक 
वैकि पक िस धांत तैयार कर सके। इसी कारण से  रोसेनबगर्  यह उ लेिखत करने  म सफल 
रहे   ह  िक  अंतरार् ट्रीय  संबंध   के  यथाथर्वाद  से  जड़
ु  े संप्रभत
ु ा  और  शिक्त  संतुलन  जैसी 
अवधारणाओं  का कोई ऐितहािसक उ भव नहीं  रहा है । इसके अलावा रोसेनबगर्  मानते  ह िक 
संप्रभत
ु ा और शिक्त संतल
ु न जैसी अवधारणाओं  की उ पि  आधुिनक रा ट्र-रा य के उदय के 
साथ हुई है , िज ह की 1815 से  1914 के बीच अंतरार् ट्रीय  यव था म प्रमख
ु ता प्रा त हुई 
थी। इसी कारण से रोसेनबगर् इस बात पर जोर दे ते ह िक संप्रभत
ु ा और शिक्त संतुलन संबंधी 
अवधारणा  िव व  म  पँज
ू ीवाद  के  उदय  के  साथ  िवकिसत  हुई  ह।  इसिलए  वह  मानते  ह  िक 
“अ य हाथ” और “शिक्त संतुलन” जैसी अवधारणाए आधुिनक पँज
ू ीवादी रा य  को समझने 
के  िलए  मह वपूण र् अवधारणाएँ  ह।  इसके  अलावा  जि टन  रोसेनबगर्  यह  भी  मानते  ह  िक 

88
पँज
ू ीवाद ने “सावर्जिनक” सरकारी व तुओं को “िनजी” आिथर्क व तुओं से अलग कर िदया है , 
िजसके पिरणाम व प पँूजीवाद इस उ प न ि थित से काफी लाभ उठा रहा है ।। 

िन कषर् 

माक्सर्वाद,  अंतरार् ट्रीय  संबंध   को  समझने  के  िलए  एक  नया  ि टकोण  पेश  करता  है ,  जो 
आिथर्क  िनयितवाद  और  ऐितहािसक  भौितकवाद  पर  आधािरत  है ।  वहीं  माक्सर्वादी 
िस धांतकार   का  यह  भी  मानना  है   िक  आिथर्क  शिक्तयाँ  और  उ पादन  की  प धितयाँ 
अंतरार् ट्रीय  यव था के  यावहािरक गितशीलता को िनधार्िरत करती ह। इसके अलावा इ ह ने 
सै य  शिक्त  और  रा ट्रीय  सरु क्षा  जैसे  बुिनयादी  िस धांत   के  मल
ू   अवधारणा  से  संबंिधत 
सम याओं  का भी पता लगाया है । वहीं  इ ह ने  रा ट्र-रा य के वा तिवक ि थित और उसके 
सामािजक, आिथर्क एवं  राजनीितक ि थित को समझने  के िलए एक िव व- यव था िस धांत 
िवकिसत  िकया  है ।  इसके  अलावा,  माक्सर्वाद  ने  हमारा  यान  वै वीकरण  के  पिरणाम  और 
उसके  आंतिरक  अंतिवर्रोध  की  ओर  भी  आकिषर्त  िकया  है ।  इस  संदभर्  म  जहाँ  एक  तरफ 
माक्सर्वादी मानते  ह िक वै वीकरण ने  आिथर्क सम ृ िध को ती  करने  के साथ-साथ आिथर्क 
व ृ िध  को  भी  बढ़ावा  िदया  है ,  तो  वहीं  दस
ू री  तरफ  वे  यह  भी  मानते  ह  िक  वै वीकरण  ने 
अमीर और गरीब के बीच सामािजक और आिथर्क अंतर को भी काफी बढ़ाया है । इसी कारण 
से  ग्रा शी ने  वै वीकरण को िवकासशील दिु नया पर वचर् व कायम करने  का एक मह वपूण र्
साधन  माना  है ।  इसिलए  अंतरार् ट्रीय  संबंध   का  माक्सर्वादी  िस धांत  अंतरार् ट्रीय  यव थाओ 
और समाज के बीच वगर् संघष  को समझने के िलए अभी भी काफी प्रासंिगक है । 

संदभर् सच
ू ी 

 बेकर,  आर.  (2003)  कालर्  माक्सर्  क से शन  ऑफ  इंटरनेशनल  िरलेश स,  ग्लदोन 
पेपर, पेज नंबर 49-58। 
 कॉक्स, आर. (1981), सोशल फोसज,  टे स एंड व डर्  आडर्र : िबयॉ ड इंटरनेशनल 
िरलेश स  योरी”, िमलेिनयम जनर्ल ऑफ इंटरनेशनल  टडीज 10(2):126-155।  
 कॉक्स,  आर.  (1983),  “ग्रा शी,  हे जेमनी  एंड  इंटरनेशनल  िरलेश स  :  एन  ए से  इन 
मेथड”, िमलेिनयम जनर्ल ऑफ इंटरनेशनल  टडीज 12(2): 162-175।  
 डेवनपोटर् ,  एं ,  “मिक्सर्सम  इन  इंटरनेशनल  िरलेश स  :  कंडेमनेड  टू  अ  िरयिल ट 
फेट?” यूरोिपयन जनर्ल ऑफ इंटरनेशनल िरलेश स, 19(1), 2013:27-48।  
 ं , टी., कुकीर्, एम., एंड  ि मथ, एस.  (2010),  “इंटरनेशनल  िरलेश स  थेओिरएस : 
डुन
िडिसि लन एंड डाइविसर्टी”, सेक ड एिडशन, लंदन : ऑक्सफोडर् यूिनविसर्टी प्रेस।  
 एफ़.  पािकर्सन,  (1977),  द  िफलोसोफी  ऑफ  इंटरनेशनल  िरलेश स  :  अ  केस  टडी 
इन द िह ट्री ऑफ थॉट, बेवलीर् िह स: सेज पि लकेशन।  

89
 गो ड टीन,  जे.  एंड  पेवेहाउस,  जे.  (2007),  “  इंटरनेशनल  िरलेश स”,  यूयॉकर्  : 
पीयसर्न लांगमैन, पेज नंबर 494-496;500-503।  
 िलंकलेटर,  ए.  (1986),  “मिक्सर्सम”  इन  बरिचल,  कोटर् ,  थेओिरस  ऑफ  इंटरनेशनल 
िरलेश स,  यूयॉकर्, एस. टी. मािटर् न प्रेस।  
 िलंकलेटर,  ए.  (1986),  “िरयिल म,  मिक्सर्सम  एंड  िक्रिटकल  इंटरनेशनल  योरी”, 
िर यु ऑफ इंटरनेशनल  टडीज, 12(4), पेज नंबर, 301-312।  
 माक्सर्, के. (1953), क युिन ट मैिनफे टो”, इन डाई  े चिरफटन एिडशन, सीएिग्रएड 
लडशट,  टुटगाटर्  : क्रोएनेर। 
 िमिलबड, आर. (1988), “माक्सर् एंड द  टे ट”, इन टॉम बोटोमोर, एिडशन, इंटरपेटेशन 
ऑफ माक्सर्,  यूयॉकर् :  लैकवेल। 
 रोसेनबगर्,  जे.  (1994),  ‘द  ए पायर  ऑफ  िसिवल  सोसाइटी  :  अ  िक्रिटक  ऑफ  द 
िरयिल ट  योरी ऑफ इंटरनेशनल िरलेशन’ लंदन : वस । 
 वालर टीन, आई. (2004), “व डर्  िस टम एनािलिसस: एन इंट्रोडक्शन” डरहम,  यूक 
यूिनविसर्टी प्रेस। 
 वालर टीन, आई. (1974), “ द राइज एंड  यूचर डीमाइस ऑफ द व डर्  कैिपटिल ट 
िस टम”, क पेरेिटव  टडीज इन सोसाइटी एंड िह ट्री, 16(4) : 387-415। 
 वालर टीन, आई. (2000), “ द राइज एंड  यूचर डीमाइस ऑफ द व डर्  कैिपटिल ट 
िस टम : कांसे ट फ़ॉर क पेरेिटव एनािलिसस”, इन माइकल ि मथ एंड िरचडर् िलिटल 
(एिडशन),  “पसर्पेिक्टव  ऑन  व डर्  पॉिलिटक्स”,  यूयॉकर्  :  रॉउटलेज  पेज  नंबर.  305-
317। 
 वारे न,  बी.  (1980),  इ पेरेिल म  :  पायिनयर  ऑफ  कैिपटिल म,  लंदन:  एन.एल.बी. 
एंड वस । 

90
इकाई-2 

पाठ-4 : नारीवादी पिरप्रे य 
डॉ. िहजम िलज़ा डालो िरहमो 
अनुवादक : नारायण रॉय 
 
पिरचय 

अंतरार् ट्रीय संबंध   के  क्षेत्र  म नारीवादी  ि टकोण  अपेक्षाकृत  एक  नवीन  िवकास  है ।  य यिप 
लिगक  समानता  के  िलए  एक  आंदोलन  के  प  म,  नारीवाद  पहले  से  ही  अ य  सामािजक 
िवज्ञान िवषय  म एक मजबूत उपि थित दजर्  करा चुका था, पर तु  अंतरार् ट्रीय-संबंध िवषय 
के  क्षेत्र  म  1980  के  दशक  के  उ राधर्  तक  ही,  एक  कठोर  नारीवादी  बौ िधक  पिरप्रे य  का 
उदय दे खा गया था। शीत यु ध के अंत तक अंतरार् ट्रीय-संबंध के क्षेत्र म नारीवादी िव लेषण 
को मजबूती से  थािपत िकया गया था। शीत यु ध के बाद की अविध म नए मु द  की एक 
पूरी  ंख
ृ ला  उभरी  और  रा य,  शिक्त,  रा ट्रीय  सरु क्षा,  यु ध,  शांित,  कूटनीित  आिद  जैसे 
अंतरार् ट्रीय-संबंध के मुख्यधारा के िस धांत  से  संबंिधत कुछ प्रमख
ु  सै धांितक धारणाओं  को 
नारीवादी िव वान   वारा  यवि थत  प से  चुनौती दी गई। नारीवादी िव वान िव लेषण कर 
रहे   थे  िक  िलंग  अंतरार् ट्रीय  संबध
ं   िस धांत  और  यवहार  को  कैसे  प्रभािवत  करता  है । 
नारीवादी  िव वान   का  मत  है   िक  अंतरार् ट्रीय-संबंध  क्षेत्र  मख्
ु यत:  पु ष  किद्रत  है   और 
मिहलाओं  के  जीिवत  अनुभव  को  मह  व  नहीं  िदया  गया  है ।  नारीवादी  िव वान   के  अनुसार, 
यह मौजद
ू ा प्रमख
ु  अंतरार् ट्रीय-संबंध िस धांत  जैसे िक उदारवाद, यथाथर्वाद और रचनावाद की 
एक  प्रमख
ु   सै धांितक  सीमा  है ।  नारीवादी  िव वान   ने  अंतरार् ट्रीय  संबंध   की  मल
ू  
अवधारणाओं  जैसे  यु ध,  रा य,  कूटनीित,  नीित  िनधार्रण  आिद  का  िलंग  के  ि टकोण  से 
िव लेषण िकया ह। 

नारीवाद की लहर और अंतरार् ट्रीय संबंध 

नारीवाद, िलंग आधिरत सामािजक, आिथर्क और राजनीितक समानता के िलए एक आंदोलन 
है   ( यासली 1999)। यह केवल मिहलाओं  के िवषय म नहीं  है । आधिु नक नारीवादी आंदोलन 
को चार लहर  म िवभािजत िकया जा सकता है । श द ‘लहर’ एक  पक है   िजसका उपयोग 
नारीवाद की िविभ न पीिढ़य  और उसके उ दे य  की पहचान करने  के िलए िकया जाता है । 
नारीवाद  के  िविभ न  िक म   के  बीच  अलग-अलग  ि टकोण,  एजडा  और  उ दे य  मौजद
ू   ह 
और कभी-कभी इनम से  कुछ अवतरण अंतरार् ट्रीय-संबंध अनुशासन म पिरवितर्त हो जाते  ह। 
संक्षेप म जाँच करने के िलए… 

91
 
प्रथम लहर, 19वीं  सदी के अंत और 20वीं  शता दी के प्रारं भ से  शु  हुई और वे  मख्
ु य 
प  से  मतदान के अिधकार, िशक्षा, सावर्जिनक कायार्लय  तक पहुँच  आिद  से  संबंिधत  थीं। 
मिहलाओं  की सावर्जिनक क्षेत्र तक पहुँच सिु नि चत करने  के उनके राजनीितक उ दे य अभी 
भी  समकालीन  अंतरार् ट्रीय  संबंध  के  नारीवादी  िव वान,  जो  आज  मिहलाओं  को  अंतरार् ट्रीय 
संबंध  म  लाना चाहते  ह जो अ यथा  एक  पु ष-प्रधान क्षेत्र है , के साथ प्रित विनत होते  ह। 
अंतरार् ट्रीय  राजनीित  म  रणनीितकार,  सैिनक,  राजनियक,  राजनेता,  शांित  दलाल,  नीित 
िनयंता, आिद  यादातर पु ष ह। पर तु हाल ही म इस क्षेत्र म मिहलाओं की संख्या बढ़ी है । 
दसू री  लहर  1960  के  दशक  म  शु   हुई  और  1990  के  दशक  म  भी  जारी  रही,  के 
नारीवादी  िव वान  अपनी  माँग   को  लेकर  क टरपंथी  थे।  इस  दौरान  नागिरक  अिधकार 
आंदोलन और यु ध िवरोधी संघषर् भी चल रहे  थे। नारीवादी िव वान  ने यह तकर् दे ते हुए िक 
सेक्स, चाइ ड-कैअर, ज म िनयंत्रण, घरे ल ू म िज ह एक िनजी मामला माना जाता है , वे 
वा तव म सं थागत और राजनीितक है , मख्
ु यतः यह घोषणा की िक ‘िनजी राजनीितक है ’, 
और  यह  मिहलाओं  की  समानता  के  िलए  लड़ाई  के  िलए  मौिलक  है ।  यह  सावर्जिनक  और 
िनजी  िवभाजन  अंतरार् ट्रीय-संबंध  के  एक  नारीवादी  िव लेषण  के  िलए  आज  भी  प्रासंिगक  है  
जब  हम  िलंग  के  पिरप्रे य  को  वहाँ  रखते  ह,  जहाँ  पु ष व  का  िनमार्ण  सावर्जिनक  और 
राजनीितक  थान  के िलए अनुकूल दे खा जाता है  (गो ड टीन और पेवहाउस 2007 : 103)। 
तीसरी  लहर  1990  के  दशक  म  शु   हुई।  यह  दस
ू री-लहर  की  िनरं तरता  और  उसकी 
किथत िवफलताओं  की प्रितिक्रया दोन  थी। इस दौरान नारीवादी िव वान  ने मत  व मतभेद  
की  बहुलता  पर  यान  किद्रत  िकया  और  रं ग,  न ल,  उप-औपिनवेिशक  अनुभव  आिद  के 
आधार  पर  अंतरानुभागीयता  को  वीकार  िकया।  अपने  से  पहले  के  समकक्ष   से  हटकर, 
अंतरार् ट्रीय-संबंध  के  नारीवादी  िव वान   ने  अंतरानुभागीयता  की  िदशा  म  भी  कायर्  िकया। 
उ ह ने  िविभ न  तरीक ,  ेिणय ,  िलंग,  जाित,  वगर्,  लिगकता  आिद  पर  यान  दे ते  हुए  यह 
दशार्ने  का  प्रयास  िकया  िक  िव व- यव था  कैसे  काम  करती  है   और  शिक्त  संबंध   के 
पदानुक्रम का खुलासा करती है  (हिचंग्स 2014)। 
अंततः, चतुथ र् लहर (चबरलेन 2017 : 1) एक हािलया िवकास है  जो 2008 से, नारीवादी 
सिक्रयता  के  िलए  इंटरनेट  के  बढ़ते  उपयोग  के  साथ  शु   हुआ।  समान  अिधकार   की  माँग 
करने, जानकारी साझा करने  और प्रितरोध करने  म सोशल मीिडया ने  एक शिक्तशाली मंच 
के  प म  उभरा है । 2010 के दशक म, ‘अरब ि प्रंग’ म  िवटर और फेसबुक जैसे  सोशल 
मीिडया  की भिू मका सव पिर थी,  ( टे पानोवा 2011 :  1)  जहाँ  िवशेष  प से  मिहलाएँ, एक 
िढ़वादी  समाज  म,  अिधकािरय   के  िव ध  सड़क   पर  िनकली  और  अंतरार् ट्रीय  संबंध   को 
प्रभािवत िकया। 

92
हालाँिक, िविभ न लहर  के बीच एक सामा य अंत र्ि ट यह है   िक ये  सभी ‘अंतरार् ट्रीय 
संबंध  कैसे  काम  करता  है ’  को  समझने  म  ‘िलंग’  के  मायने  को  थािपत  करते  ह।  यह  इस 
बात पर प्रकाश डालता है   िक मिहलाओं  को िलंग के पदानक्र
ु िमत आयोजन िस धांत म कैसे 
वंिचत,  अ य  और  शिक्त  संरचनाओं  के  िनचले  भाग  पर  रखा  गया  है ।  यह  असमानता  है , 
जो  पु ष   और  मिहलाओं  के  बीच  पदानुक्रिमत  िलंग  भेद  से  उ प न  हुई  ह,  कायर्,  मजदरू ी, 
सावर्जिनक भागीदारी, कायर् िवभाजन आिद के संदभर् म िनरं तर और  थायी है । 

िलंग और अंतरार् ट्रीय संबंध के प्रारं िभक नारीवादी िव वान  

अंतरार् ट्रीय  संबंध,  म  नारीवादी  िव वान  िलंग  अवधारणा  से  अपनी  बात  प्रार भ  करते  ह। 
अंतरार् ट्रीय संबंध म नारीवादी िव वान िलंग को िव लेषण की एक  ेणी के  प म पेश करना 
चाहते  ह। जब वैि वक मामल  का िव लेषण िलंग भिू मकाओं  के पिरप्रे य से  िकया जाता है , 
तो इसे आमतौर पर िलंग लस के मा यम से िव व के अथर् को समझना कहा जाता है । जडर 
एक सामािजक  प से  िनिमर्त  ेणी (बटलर 1990) है   जहाँ  ‘पु ष’ और ‘मिहला’ को क्रमशः 
पु ष व और  त्री िवशेषताओं  के साथ जोड़ कर दे खा जाता है । लिगक संबंध  की यह धारणा 
अंतरार् ट्रीय  संबंध   की  परे खा  िनधार्िरत  करने  म  मह  वपण
ू  र् भिू मका  िनभाती  ह।  अंतरार् ट्रीय 
संबंध म नारीवादी पिरप्रे य की शु आत जीन बेथेक्लेटन, िसंिथया ए लो और जे.एन. िटकनर 
की रचनाओं से हुई। यु ध, कूटनीित, नीित िनमार्ण आिद जैसे अंतरार् ट्रीय राजनीित के कद्रीय 
िवषय   का  िव लेषण  करने  के  िलए  अंतरार् ट्रीय  संबंध  के  क्षेत्र  म  िलंग  की  अवधारणा  को 
प्रार भ करने के िलए ये नारीवादी िव वान बेहद िज मेदार ह। आज, उनकी रचनाएँ नारीवादी 
अंतरार् ट्रीय  संबंध   के  पिरचया मक  वगर्  के  िलए  मौिलक  रचनाओं  का  िनमार्ण  करती  ह। 
उ ह ने  ज्ञान के एक नए  प और अंतरार् ट्रीय राजनीित को समझने  के एक नए वैकि पक 
ि टकोण की शु आत की। अंतरार् ट्रीय संबंध क्षेत्र की औपचािरक बहस म यह मिहलाओं और 
िलंग  को  थािपत  नहीं  करता  है   (िस वे टर  2004  :  10),  वे  गायब  थी  अथवा  उ ह  बस 
अनदे खा िकया गया था और ये  अंतरार् ट्रीय संबंध के नारीवादी िव वान उस गलत को सही 
करने का प्रयास कर रहे  थे। 
जीन बेथेक्लेटन 
जीन  बेथेक्लेटन,  नारीवादी  अंतरार् ट्रीय  संबंध   की  सबसे  अग्रणी  िव वान   म  से  एक  ह,  जो 
अपनी पु तक वीमेन एंड वॉर (1987) म िलंग की अवधारणा का उपयोग यु ध के िड कोसर् 
की जाँच करने  के िलए िकया, जहाँ  त्री व को उस मिहला के  प म समझा जाता है   िजसे 
‘संरक्षण’ की आव यकता है  और पु ष व को ‘पु ष एक रक्षक है ’, के  प म समझा जाता है । 
यह  िलंग  वगीर्कृत  वगीर्करण  पु ष   और  मिहलाओं  के  बीच  संबंध  और  उनकी  शिक्त  की 
ि थित  को  बताता  है   जो  बाद  म  यु ध  म  उनकी  भिू मका  के  िलए  िनधार्रक  बन  जाता  है । 
उदाहरण के िलए, पु ष को सैिनक और मिहलाओं को नागिरक या पीिड़ता के  प म दे खना। 
93
उनकी  रचनाएँ  न  केवल  पु ष   और  मिहलाओं  के  बीच,  शिक्त  संरचनाओं  के  संदभर्  म, 
असमानता  को  प्रदिशर्त  करने  म  िलंग  की  भिू मका  की  जाँच  करने  के  िलए  मह व
  पूण र् है , 
बि क  राजनीितक  क्षेत्र  पु ष व  या  पु ष  िवशेषताओं  से  जड़
ु ा  है ,  ऐसी  सामा य  धारणा  को 
उजागर करने म भी मह  वपूण र् है । साथ ही उनकी रचनाओं ने मिहलाओं और पीिड़त  के बीच 
थािपत  स ब ध  पर  प्र न  िच ह  लगाया।  इस  पु तक  के  मा यम  से,  उ ह ने  उन  प्रमख
ु  
प्रतीक  की आलोचना की, जो पु ष  को ‘ज ट वािरयर’ और मिहलाओं को ‘ यूटीफुल सोल’ के 
प म मा यता दे ते थे। 
यह जडिरंग प्रिक्रया एक िनद ष पिरयोजना नहीं  है   क्य िक इसम यु ध के िस धांत और 
यवहार के स दभर्  म, पु ष  और मिहलाओं  की उपयुक्त िलंग भिू मकाओं  के बारे   म धारणा 
को  यक्त िकया गया है । िलंग की इस भिू मका के कारण, मिहलाएँ यु ध क्षेत्र म िदखाई नहीं 
दे ती  ह,  नागिरक   के  प  म  उ ह  दरू   रखा  गया,  जबिक  पु ष  जो  सेनानी,  रणनीितकार, 
वातार्कार  और  शांित-दलाल  थे,  ने  यु ध   के  इितहास  को  िलखा।  मिहलाओं  की  भूिमका  को 
नग य बना िदया जाता है । हालाँिक, यु ध के स दभर् म मिहलाओं की एक गैर-लड़ाकू धारणा 
को  वतर्मान  समय  म  बड़ी  चुनौितयाँ  िमली  ह,  क्य िक  कई  मिहलाएँ  सै य  सेवाओं  म  भी 
समान  प से आक्रामक ह और उनके पु ष समकक्ष  की तरह ही प्रमख
ु  ह। 
िसंिथया ए लो 
नारीवादी  अंतरार् ट्रीय  संबंध   के  िव वान   का  मत  है   िक  अंतरार् ट्रीय  संबंध   के  अनुशासन  म 
मिहलाओं का प्रितिनिध व कम है । अंतरार् ट्रीय संबंध  के िस धांत जडर- लाइंड (िलंग के प्रित 
अंधे)  हो  गए  ह  क्य िक  अंतरार् ट्रीय  संबंध   के  नारीवादी  िव लेषण  के  उ भव  तक,  प्रमख
ु  
अंतरार् ट्रीय संबंध िस धांत  ने  वैि वक मामल  म िविभ न िलंग अनुभव  को काफी हद तक 
नजरअंदाज  िकया  है ।  िहत   की  सामा य  कमी,  और  अंतरार् ट्रीय  संबंध   म  मिहलाओं  की 
अनुपि थित  के  कारण  नारीवादी  िव वान   ने  नाराजगी  जताई  थी,  और  यह  प्र न  उभरा  िक 
‘मिहलाएँ कहाँ ह?’ (ए लो 1990)। 
अपनी  प्रिस ध  पु तक  ‘बनाना,  बीचेस,  एंड  बेसेस’  (Banana,  Beaches  and  Bases 
1990)  म  वह  मिहलाओं  को  पु ष   के  वचर् व  वाले  अंतरार् ट्रीय  राजनीितक  पिर य  म 
थािपत करती है , जहाँ पहले मिहलाएँ अ य थीं। उदाहरणतः राजनियक की प नी, रसोइया, 
नसर्, पिरधान  िमक आिद। मिहलाओं  की िलंग भिू मकाओं  ने  अंतरार् ट्रीय राजनीितक को नई 
अंत र्ि ट प्रदान की है । एक राजनियक की प नी, एक दो ताना राित्रभोज पाटीर्  की मेजबानी 
कर सकती है , जहाँ  िवदे शी दत
ू  एक साथ बैठ, औपचािरक समझौते  से  पूव,र्  अनौपचािरक  प 
से  िवदे शी संबंध  को प्रभािवत करने  वाले  िवचार  का आदान-प्रदान करते  ह। इसी तरह, एक 
यु ध की ि थित म पु ष यु ध के मैदान म लड़ते ह लेिकन ये घरे ल ू कामगार, नसर्, रसोइया 
और  दजीर्  ही  िकला  का  रख-रखाव  करती  ह।  उनकी  वजह  से  सैिनक   को  पहनने  के  िलए 

94
कपड़े  िमलते  ह,  उ ह  िखलाया  जाता  है ,  उनकी  दे खभाल  की  जाती  है ,  लेिकन  कोई  भी 
इितहास  उनके  इन  योगदान  का  उ लेख  नहीं  करता  है ।  यह  लिगक  असमानता  है ।  पर त ु
िलंग का िवषय मख्
ु यधारा के अंतरार् ट्रीय संबंध  के िस धांत  से बच जाता है । 
जे.एन. िटकनर 
अंतरार् ट्रीय राजनीित म काफी हद तक पु ष ही हावी है , िज ह ने इसे मिहलाओं के िलए एक 
बहुत ही दग
ु म
र्  वातावरण बनाया है   और इसी कारण जे.एन. िटकनर ने  कहा िक ‘अंतरार् ट्रीय 
राजनीित  एक  पु ष  की  दिु नया  है ...’  (िटकनर  1988  :  429)।  िलंग  भेद  के  कारण  िवदे शी 
और  सै य  नीित-िनमार्ण  के  क्षेत्र  म  मिहलाएँ  हािशए  पर  है ,  क्य िक  िलंग  िढ़वािदता  के 
अनस
ु ार  ये  मिहलाओं  की  भिू मका  नहीं  ह।  इन  गितिविधय   को  बड़े  पैमाने  पर  पु ष   वारा 
आयोिजत  िकया  जाता  है   और  इस  तरह,  उनका  अ ययन  करने  वाला  कोई  भी  अनश
ु ासन 
मख्
ु य  प से  पु ष अथवा पु ष व प्रधान होने के िलए बा य है   (िटकनर 1992)। इस प्रकार, 
मख्
ु यधारा  के  अंतरार् ट्रीय  संबंध  िस धांत,  िवशेष  प  से  यथाथर्वाद,  िलंग-अंधापन  (जडर 
लाइंडनेस) से ग्र त है । 
िटकनर मोगथ ु के राजनीितक यथाथर्वाद के िस धांत  की आलोचना के िलए जानी जाती 
है ,  िजसम  उ ह ने  यह  िदखाया  िक  ये  िस धांत  एक  पु ष व  पक्षपात  है ।  अपने  तक   को 
प ट  करने  के  िलए,  वह  कहती  है   िक  व तिु न ठता  को  िजस  तरह  से  सां कृितक  प  से 
पिरभािषत  िकया  गया  है   िक  वह  पु ष व  से  जड़
ु ा  हुआ  है ।  रा ट्रीय  िहत  बहुआयामी  है , 
इसिलए इसे  केवल शिक्त के  प म पिरभािषत नहीं  िकया जा सकता है , शिक्त को प्रभु व 
संप न के िवशेषािधकार के  प म पिरभािषत करना सामिू हक सशक्तीकरण की संभावना की 
अनदे खी  करता  है ।  सभी  राजनीितक  कायर्  नैितक  मह  व  के  हो  सकते  ह  और  ये  सामा य 
नैितक  मू य  संघषर्  के  समाधान  का  आधार  बन  सकते  ह।  िटकनर  वाय ता  की  वैधता  से 
इनकार करती ह, क्य िक यह पु ष व के साथ जड़
ु ा हुआ है  और ऐसी िव व- ि ट का िनमार्ण 
कर  रहा  है   जो  मिहलाओं  की  िचंताओं  और  योगदान  को  शािमल  नहीं  करता  है   (िटकनर 
1988: 438)। 

िचंतनशीलतावाद के अंतगर्त नारीवादी िव लेषण का पता लगाना 

अंतरार् ट्रीय  संबंध  के  नारीवादी  िव वान   ने  अंतरार् ट्रीय  संबंध   के  अ ययन  और  याख्या  के 
वैकि पक  तरीक   की  शु आत  करके  अंतरार् ट्रीय  संबंध  क्षेत्र  म  योगदान  िदया।  नारीवादी 
िव वान   ने  अपने  अ ययन  के  िवषय  का  िव तार  कर  अंतरार् ट्रीय  संबंध  के  अनुशासन  को 
सम ृ ध  िकया  और  िजसके  पिरणाम व प  जडर  (िलंग)  को  गंभीरता  से  लेना  शु   कर  िदया 
गया है । उ ह ने  रा य क्या है   और रा य अंतरार् ट्रीय प्रणाली म कैसे  संचािलत होता है   जैसे 
संरचना मक िस धांत के सज
ृ न म िलंग के मह व
   पर जोर िदया। अंतरार् ट्रीय संबंध  का िलए 

95
नारीवादी  ि टकोण  मख्
ु य  धारा  के  ि टकोण  से  अलग  है ।  तो  सवाल  यह  है   िक  हम 
अंतरार् ट्रीय संबंध  म नारीवादी िव लेषण कहाँ पाते ह? 
अंतरार् ट्रीय संबंध अनश
ु ासन के िवकास म प्रित पधीर् प्रितमान मौजद
ू  ह, जोिक यथाथर्वाद 
और नव-यथार्थवाद जैसे  प्रमख
ु  िस धांत ह। आदशर्वाद और यथाथर्वाद के बीच ‘प्रथम महान 
बहस’ और ‘ िवतीय बहस’ या यथाथर्वाद और नव-यथाथर्वाद के बीच अंतर-प्रितवाद बहस के 
बीच  सभी,  अंतरार् ट्रीय  संबंध   के  अपने  िस धांत  म  मिहलाओं  के  अनभ
ु व  का  कोई  उ लेख 
नहीं है  (िस वे टर 2004)। यह एक पु ष की दिु नया थी, जहाँ िवशेष  प से पि चम के एक 
कुलीन और  वेत पु ष का अनुभव यह तय करता है   िक अंतरार् ट्रीय संबंध  म क्या हो रहा 
है । और इस चयिनत पु ष के अनुभव को सावर्भौिमक मानव अनुभव के  प म पेश िकया 
जाता है । इसके अितिरक्त, उदारवाद, यथाथर्वाद और गेम- योरी जैसे प्रमख
ु  अंतरार् ट्रीय संबंध 
िस धांत  तकर्संगतता,  िन पक्षता  और  कद्रीयता  पर  आधािरत  यापक  सै धांितक  दाव   पर 
आधािरत  ह।  प्रमख
ु   अंतरार् ट्रीय  संबंध  िस धांत   वारा  यह  सावर्भौिमक  ि टकोण,  जो 
‘तकर्संगतता’  पर  आधािरत  है ,  अनजाने  म  मत   की  िविवधता  और  िचंताओं  को  प्रितबंिधत 
करता है , जो अंतरार् ट्रीय मामल  जैसे  िलंग, वगर्, न ल आिद म अ य िनधार्रक  का िवरोध 
करते  ह।  उनके  सै धांितक  ढाँचे  म  बहुलवाद  की  कमी  के  पिरणाम व प  अंतरार् ट्रीय  संबंध 
अनुशासन के भीतर प्रणालीगत पक्षपात होता है , क्य िक वे  तय करते  ह िक क्या अ ययन 
करना है , क्या लाग ू करना है , मल
ू   प से, वे  िनधार्िरत करते  ह िक अंतरार् ट्रीय संबंध क्या 
ह। 
हालाँिक, ‘तीसरी बहस’ के दौरान इस परवतीर्  ने  एक मोड़ ले  िलया क्य िक उ ह, उनके 
ज्ञान  और  िविधय   को  चुनौती  दी  गई  थी।  उ र-आधुिनकतावादी  और  नारीवादी  ने  उनकी 
बौ िधक परं परा की आलोचना की। उनका प्रयास अंतरार् ट्रीय संबंध अनुशासन के मख्
ु यधारणा 
के  ि टकोण   का  पुनमूर् यांकन  करना  और  रा ट्र-रा य,  अराजकता,  यु ध,  कूटनीित,  नीित 
िनधार्रण, वैि वक अथर् यव था जैसे  मह  वपूण र् क्षेत्र  का पुनमूर् यांकन करना और इसे  अिधक 
समावेशी और िलंग-संवेदनशील बनाना था। य यिप, अंतरार् ट्रीय संबंध के िलए इस प्रयास के 
बावजद
ू  ‘आज के उपकरण  से  इितहास को िफर से  दे खना पर, मिहलाएँ, िलंग और नारीवाद 
अभी  भी  गायब  ह’  (िस वे टर  2004  :  14)।  नारीवाद  की  थोड़ी  सी  सफलता  के  बावजद
ू , 
इसने  िविभ न  तरीक   की  सोच,  कायर्प्रणाली  और  िस धांत  को  पेश  िकया  क्य िक  उनका 
ि टकोण  मौिलक  अंतरार् ट्रीय  संबध
ं   िस धांत ,  जो  तकर्संगतता  पर  आधािरत  थे,  से  अलग 
था।  यह  तीसरी  बहस  तकर्वाद  और  िचंतनवाद  के  बीच  है ।  अ य  मह व
  पूण र् िस धांत   और 
उ र आधुिनक सोच के साथ नारीवाद िचंतनशीलतावाद के भीतर ि थत ह। 
िचंतनशीलतावादी  ि टकोण  अंतरानुभागीय  अथर्  और  ज्ञान  पर  यान  किद्रत  ह।  एक 
िचंतनवादी  ि टकोण के  प म, नारीवादी अंतरार् ट्रीय संबंध अनुशासन ने  इस बात पर जोर 

96
िदया  िक  ‘पु ष व’  और  ‘ त्री व’  जैसे  सामािजक  अथ   की  याख्या  और  उनका  प्रयोग  कैसे 
िकया जाता है । उदाहरण के िलए, ‘पु ष व’ को पु ष की पु ष व के  प म समझा जाता है , 
िजसम एक पु ष एक सेनानी बनता है   और यु ध उसका एक कायर्  िवशेषािधकार बनाता है । 
और ‘नारी व’ की  याख्या नारी व के सार के  प म की जाती है , िजसम एक मिहला एक 
दे खभाल  करने  वाली  और  एक  पोषणकतार्  बन  जाती  है ,  जो  उसके  सां कृितक  मू य   और 
आदश   का  संरक्षक  बनाती  है ।  इस  तरह  की  याख्याओं  का  अंतरार् ट्रीय  संबंध   पर  प्रभाव 
पड़ता  है ।  िमसाल  के  तौर  पर,  जब  यु ध  होता  है   तो  जवान   की  मौत  हो  जाती  है ,  जबिक 
सां कृितक  मू य   और  समद
ु ाय  के  स मान  का  प्रितिनिध व  करने  वाली  मिहलाओं  पर 
हमलावर  पक्ष  वारा  यौन  िहंसा  की  जाती  है ,  िजसे  वे  अ य  पु ष   के  स मान  पर  हमला 
करने  के  प  म  दे खते  ह।  एक  मिहला  का  शरीर  रा य  की  सीमाओं  (पे मन  1997)  का 
िनधार्रक  है ।  ऐसे  ही  यु ध  को  समझने  म  िलंग  मह  वपण
ू  र् है   क्य िक  मिहलाओं  के  यु ध 
अनुभव पु ष  से अलग होते ह। 

अंतरार् ट्रीय संबंध नारीवाद के प्रकार 

अंतरार् ट्रीय संबंध  के नारीवादी िव लेषण के िविभ न  प ह। अंतरार् ट्रीय संबंध के िलए कोई 


एक  नारीवादी  ि टकोण  नहीं  है ,  बि क  कई  ह।  गो ड टीन  और  पेवहाउस  (2007)  के 
अनस
ु ार, वे ह— 
1) अंतर  नारीवाद  :  नारीवाद  के  इस  पक्ष  के  अनुसार  पु ष   और  मिहलाओं  के  बीच 
मतभेद ह। यह अंतर सां कृितक प्रथाओं  अथवा जैिवक  प से  पु ष  और मिहलाओं 
के अलग-अलग अनुभव के कारण बढ़ा है । हालाँिक, िविभ न अनुभव और कुछ जैिवक 
भिू मकाएँ,  जैसे  िक  प्रजनन,  के  िभ न  होने  का  अथर्  यह  नहीं  है   िक  उन  पर  मू य 
िनणर्य  (वै य ू जजमट)  िकया  जाना  चािहए,  क्य िक  दोन   ही  िलंग  मनु य  ह।  इस 
धारणा  के  आधार  पर,  अंतर  नारीवाद  राजनीितक  क्षेत्र  म  मिहलाओं  के  अ िवतीय 
योगदान को मह  व दे ता है  और उसे  वीकार भीकरता है । उदाहरणतः, चँ िू क मिहलाओं 
की  कुछ िलंग भिू मकाएँ  सामािजक  दे खभाल और पोषणकतार्  के  प म होती  है   इसी 
कारण  वे  सामािजक  संबंध   को  पु ष   की  तल
ु ना  म  बेहतर  समझती  ह,  जो  संघषर्-
समाधान और शांित-िनमार्ण प्रिक्रया के िलए एक संभावना है । समाज  और राजनीित 
के संदभर्  म मिहला का  ि टकोण, वह आधार बनता ह, िजसम अंतरार् ट्रीय संबंध के 
पारं पिरक  ि टकोण   का  अवलोकन,  िव लेषण  और  आलोचना  करना  संभव  है  
(गो ड टीन और पेवहाउस 2007: 103)। 
2) उदारवादी नारीवाद : नारीवाद का यह पक्ष  िढ़वादी लिगक भिू मकाओं  को पूरी तरह 
से  खािरज  करता  है ।  उनके  िलए, पु ष  और मिहला  समान  ह।  उ ह ने  स ा  के  पद  
जैसे  रा य के नेताओं, सै य, अथर् यव था, शांित वातार्कार  आिद, सिहत अंतरार् ट्रीय 

97
संबंध   म  मिहलाओं  को  शािमल  करने  का  समथर्न  िकया,  जो  सामा यतः  पु ष   के 
िलए  आरिक्षत  रहे   ह  हालाँिक,  मिहलाओं  को  शािमल  करने  का  यह  मतलब  नहीं  िक 
यह  अंतरार् ट्रीय  प्रणाली  की  प्रकृित  को  बदल  दे गा।  यह  नारीवादी  पक्ष  अंतरार् ट्रीय 
शिक्त  संरचनाओं  को  चुनौती  नहीं  दे ता  है ,  बि क  केवल  मिहलाओं  के  बिह करण 
प्रथाओं को चुनौती दे ता है , दस
ू रे  श द  म कहे  तो, यह केवल पु ष वचर् व को चुनौती 
दे ती है । 
3) उ र  आधुिनक  नारीवाद  :  उ रआधुिनक  नारीवाद  के  अनुसार,  मिहलाओं  का  कोई 
प्रामािणक  अनुभव  या  ि टकोण  नहीं  है ,  िजससे  हम  सामािजक  और  राजनीितक 
दिु नया  को  समझ  सक  (िजल  टे स  और  एट  अल।  2010:  163)।  यह  एक 
सावर्भौिमक मिहला वगर्  के अि त व को खािरज करता है । इन िव वान  के अनुसार 
मिहलाएँ  िविश ट सामािजक और सां कृितक संबंध  का उ पाद ह। िजसे  ‘मदार्ना’ या 
‘ त्रैण’ माना जाता है , उसे सां कृितक  प से भाषा, प्रतीक  और कहािनय  के मा यम 
से िनिमर्त िकया जाता है , क्य िक िलंग की इस तरह का कोई एक ि थर या िनि चत 
ेणी  नहीं  है   िजसका  उपयोग  अंतरार् ट्रीय  संबध
ं   के  िव लेषण  के  िलए  िकया  जा 
सकता है । 

िवषय-व त ु

िविभ न  ि टकोण   के  बावजद


ू ,  नारीवादी  िव वान  अंतरार् ट्रीय  संबंध   के  इितहास  को  पन
ु ः 
िलखना  चाहते  ह  और  उ ह ने  अंतरार् ट्रीय  क्षेत्र  म  कुछ  मख्
ु य  अवधारणाओं  को  न  केवल 
मिहलाओं,  बि क  हािशए  के  वग   के  इितहास  और  अनभ
ु व  को  शािमल  करने  के  िलए  पन
ु ः 
पिरभािषत  िकया  है ।  अंतरार् ट्रीय  संबंध   के  कद्रीय  िस धांत   की  इन  पुन:  अवधारणा  को 
अंतरार् ट्रीय संबंध  म नारीवादी मख्
ु य धारणाओं के  प म पहचाना जा सकता है । 
रा य और स ा 
अंतरार् ट्रीय  संबंध  के  मख्
ु यधारा  के  िस धांत  मख्
ु यतः  रा य-किद्रत  ह।  नारीवादी  िव वान   के 
अनुसार, चँ िू क रा य के मख्
ु य िनणर्य-िनकाय जैसे  सै य, उ योग, नीित िनयंता, राजनियक, 
कॉरपोरे ट  क्षेत्र  आिद  म  पु ष   की  बहुलता  है ,  इसिलए  रा य  एक  लिगक  सं था  है ।  रा य 
अपनी  प्रकृित  व प  पु ष व  सं था  है ,  जहाँ  मिहलाएँ  रा य  के  िलए  अ य  ह  और  उ ह 
रा य  के  काम  से  अपविजर्त  रखा  गया  है ।  रा य  िलंग-तट थ  नहीं  है   और  वह  पािरवािरक 
कानन
ू ,  प्रथागत  कानन
ू ,  िवरासत  कानन
ू   और  म  कानून   के  मा यम  से  मिहलाओं  को 
पु ष  से  िभ न  प म प्रभािवत करता है । रा य के पु ष व को रक्षा पर अिधक  यय और 
सामािजक सरु क्षा  व  वा य दे खभाल पर कम  यय से  आंका जा सकता है । आमतौर पर, 
पु ष की तल
ु ना उस रा य से  की जाती है , जो रा य तकर्संगतता, िन पक्षता और रा ट्र की 

98
रक्षा करने की क्षमता से संप न होता है , वही रा ट्र की तुलना उस मिहला के साथ की जाती 
है  िजसे सरु क्षा की आव यकता है । 
राजनीितक  क्षेत्र  म  मिहलाओं  का  कम  प्रितिनिध व,  एक  कायर्वाहक,  पोषणकतार्  और 
िशिक्षका  के  प  म  उनकी  लिगक  भिू मका  के  कारण  है ।  िलंग  एक  ऐसी  सामािजक  ेणी  है  
िजसम  संबंधा मक  शिक्तयाँ  होती  ह  और  जहाँ  पु ष  मिहलाओं  से  प्रभु वशील  होते  ह।  इस 
पु ष  वचर् व  को  सावर्जिनक / िनजी  िवभाजन  वारा समिथर्त और वैध बनाया गया है , जो 
िक  लिगक  संबंध  संबंध  पर  आधािरत  होता  है ।  यह  िलंग  संबंध  रा य  के  सभी  पहलओ
ु ं  म 
या त  है ।  इस  प्रकार, सावर्जिनक  /  िनजी िवभाजन  अंतरार् ट्रीय  संबंध  की  हमारी  समझ  के 
िलए  कद्रीय  है   और  िसंिथया  ए लो  के  श द   म  कहा  जाये  तो  ‘िनजी  अंतरार् ट्रीय  है ’  ( टस 
और एट अल. 2010: 168)। 
संघषर् और िहंसा 
नारीवादी के अनुसार, अंतरार् ट्रीय संबंध  म रा य और िहंसा के बीच घिन ठ संबंध है । रा य 
का  सै य  तंत्र  प्रकृित  म  पुि लंग  है   क्य िक  सै य  गितिविधयाँ  आक्रामकता,  िवनाश  और 
वचर् व से  स बंिधत ह। हालाँिक, जब बात सै य उ योग की  थापना, जीिवका और पु ष व 
की  थापना की आती है , तो पु ष और मिहला दोन  रा य सै य तंत्र के पु ष व को मजबत
ू  
करने  म एजट हो सकते  ह। नारीवादी के अनस
ु ार, सै यवाद और संरचना मक िहंसा के बीच 
भी  एक  संबंध  है ।  जब  कोई  रा य  अपने  सै य  खचर्  को  बढ़ाता  है ,  तो  कम  संसाधन   को 
भोजन और क याण पर खचर् िकया जाता है । उनके िवचार म, ‘अ य ’ से सरु क्षा प्रदान करने 
के  बजाय,  सै य-औ योिगक  पिरसर  वा तव  म  दे श  के  अंदर  के  'कमजोर’  को  नक
ु सान 
पहुँचाता है , क्य िक रा य के संसाधन  को िवकास, िशक्षा,  वा य, क याण आिद के बजाय 
सै य सरु क्षा म बदल िदया जाता है । 
मिहलाओं  पर  िहंसा  के  प्र यक्ष  प   म  से  एक  ‘यौन  िहंसा’  है ।  अंतरार् ट्रीय  संबध
ं   के 
नारीवािदय   ने  मानव  त करी  और  यौन  िहंसा  को  अंतरार् ट्रीय  संबंध   को  समझने  के  िलए 
मह  वपण
ू  र् िवषय  माना  है ।  ये  ि टकोण  अंतरार् ट्रीय  संबध
ं   के  मख्
ु यधारा  के  िस धांत   के 
िव लेषण म शािमल नहीं ह। वे लिगक िहंसा के प्रित अंधे ह। िवशेष  प से, यु ध के दौरान 
यौन िहंसा और बला कार मिहलाओं के यु ध के अनुभव के िलए जीवंत वा तिवकता है । यौन 
िहंसा  यु ध  िड कोसर्  का  एक  प्रमख
ु   िह सा  है   और  अंतरार् ट्रीय  संबंध  के  नारीवादी  िव वान 
इसे  शािमल  करने  और  यु ध  के  िड कोसर्  को  िव तत
ृ   करने  की  कोिशश  कर  रहे   ह,  जो 
अंतरार् ट्रीय संबंध  की एक मख्
ु य अवधारणा है । 

99
यु ध और शांित 
जीन बेथेक्लेटन ने अंतरार् ट्रीय संबंध की मल
ू  अवधारणा यु ध को अपनाया और अपनी रचना 
‘वीमेन एंड वॉर’ म यु ध के िलंग संबंधी वा तिवकताओं  को उजागर िकया है । उ ह ने  यु ध 
के लिगक पहलओ
ु ं  का पता लगाया और पु ष  और मिहलाओं  के सै यवाद और शांितवाद के 
िविभ न संबध
ं  का िव लेषण िकया। पु ष व और यु ध िड कोसर्  की जाँच का मह  व यह है  
िक इसने  सै यीकृत सरु क्षा पर बहुत अिधक मह  व िदया है   और रक्षा प्रित ठान की पु ष व 
प्रकृित उसे मानवीय भावनाओं से दरू  करती है  (Cohn 1987: 691)। 
नारीवादी  िस धांत  ने  सरु क्षा  के  इस  सै यीकरण  की  अवधारणा  की  आलोचना  की  और 
िशक्षा,  व छ  पयार्वरण,  थायी  अथर् यव था,  भोजन  आिद  जैसे  मानव  सरु क्षा  के  प्रित 
सै यीकृत रा य से  परे   सरु क्षा की अवधारणा को  यापक बनाया। मिहलाओं  की िलंग भिू मका 
के कारण उनकी सोच पु ष  की तकर्संगत सरु क्षा के तरीक  से िबलकुल अलग है । नारीवािदय  
ने  सै यकृत  सरु क्षा,  जो  िक  आयध ु ा  है ,  के  पीछे   तकर्संगतता  की  अप्रभावीता  की 
ु   से  जड़
आलोचना और खुलासा िकया है । उनका मत है   िक इससे  हिथयार  की दौड़ बढ़ती है , तनाव 
बढ़ता है  और अिधक असरु क्षा पैदा होती है । 
मिहलाएँ  शांित  और  सरु क्षा  का  अथर्  खा य  सरु क्षा,  मानव  सरु क्षा,  जल  सरु क्षा,  वा य 
और िशक्षा, िवकास आिद के संदभर् म सोचती ह। मिहलाएँ यु ध-िवरोधी संघष  म सिक्रय रही 
ह, जो  उग्रवाद, िहंसा और प्रभु व  का प्रतीक है । उ ह ने  पर पर संपकर्, संवाद और सहयोग 
पर जोर िदया। इस प्रकार, नारीवाद एक वैकि पक  ि टकोण प्रदान करता है   जो शांित और 
सरु क्षा पर उन शत  को पन
ु ः पिरभािषत और पन
ु रीिक्षत करता है , िजनम सावर्जिनक िड कोसर् 
आयोिजत िकए जाते  ह। इस प्रकार, आधुिनक शांित िनमार्ण प्रिक्रया म मिहलाओं  को सिक्रय 
प से संलग्न होने की आव यकता है ।  
हालाँिक,  यह  मानना  भी  उिचत  नहीं  िक  ‘ त्री व’  और  ‘शांित’  के  बीच  एक  वचािलत 
संबंध है , बि क इसका कारण मिहला की वह लिगक भिू मका और मात ृ व के अपने  अनभ
ु व 
है  जो मिहलाओं को शांित के िलए एक करीबी िर ता दे ता है । 
रा ट्रीय सरु क्षा 
रा ट्रीय  सरु क्षा सै य शिक्त से  जड़
ु ी हुई है ।  इसे  अंतरार् ट्रीय संबंध नारीवादी  िव वान   वारा 
चुनौती दी गई है , क्य िक यह सरु क्षा के पु ष व  ि टकोण को दशार्ता है । यो धा के  प म 
पु ष   की  और  शांितवादी  के  प  म  मिहलाओं  की  अवधारणा  हम  एक  पु ष व  सं कृित  की 
ओर ले जाती है  जोिक एक सै य सरु क्षा प्रदान करती है । चँ िू क मिहलाओं को यु ध क्षेत्र  और 
शांित व संघषर्  समाधान के िलए बातचीत से  बाहर रखा गया है , और शांित प्रेमी के  प म 
दे खा जाता है , इसिलए उ ह ने  रा ट्रीय सरु क्षा पिरयोजनाओं  के िनमार्ण म कोई भिू मका नहीं 

100
िनभाई  और  इसिलए  अंतरार् ट्रीय  संबंध  म  मानव  सरु क्षा  के  बजाय  सै य  सरु क्षा  पर  यान 
किद्रत िकया गया है । 
नारीवाद को शांितवाद के साथ मिहला को जोड़कर दे खने  की अवधारणा से  भी सम या 
है ।  पैिसिफ़ म  यािन  शांितवाद  एक  मिहला  का  अंतिनर्िहत  आव यक  गण
ु   नहीं  है ,  यह  िलंग 
िढ़वािदता  है ।  मागर्रेट  थैचर,  इंिदरा  गांधी,  मैडल
े ीन  अलब्राइट,  क डोलेज़ा  राइस  आिद  जैसी 
स ा म कुछ क टरपंथी मिहलाएँ ह िज ह ने लिगक भिू मका िनभाई है । 
हालाँिक,  जब  से  मिहलाओं  को  एक  कायर्वाहक  और  एक  पोषणकतार्  के  प  म,  उनकी 
िलंग भिू मका के संदभर्  म उनका समाजीकरण िकया गया है , इसीिलए वे  संघषर्  के समाधान 
करने  म अिधक सशक्त और समझदार ह। संघषर्  और यु ध के दौरान मिहलाओं  और ब च  
को बहुत पीड़ा होती है   पर त ु सामा यतः मिहलाएँ  शांित वातार्  की मेज पर अनप
ु ि थत रहती 
ह। हालाँिक, नारीवादी आव यक मिहलाओं  को िनि क्रय और शांित प्रेमी के  प म अ वीकार 
करते  ह  लेिकन  उिचत  िलंग  भिू मकाओं  म  उनके  समाजीकरण  के  कारण,  वे  मिहलाओं  को 
शांित िनमार्ण प्रिक्रया म लाना चाहते  ह। इसिलए नहीं  क्य िक वे  मिहलाएँ  ह, बि क इसिलए 
िक उ ह एक मिहला के  प म यु ध के प्रभाव , जैसे यौन िहंसा, का अनुभव िकया है  जोिक 
पु ष  के अनुभव से िभ न है । 
पहचान, और ज्ञान का सज
ृ न 
नारीवादी जडर, लिगकता और यौन पहचान के िविभ न मु द  क्षेत्र  पर काम कर रहे  ह।  त्री 
और  पु ष  के  प  म  एक  शरीर  की  पहचान  एक  सामािजक  िनमार्ण  है ।  यह  हमारे   जैिवक 
शरीर की सां कृितक  याख्या है   और यह हमारी लिगक पहचान, हमारी सामािजक भिू मकाओं 
और  यौन  अिभ यिक्तय   को  िनधार्िरत  करती  है ।  इस  ज्ञान  का  सज
ृ न  िक  हम  कौन  ह  या 
हमारी  पहचान  के  क्या  है ,  यह  न  केवल  हमारे   समाज  म  शिक्त  संबंध   को  समझने  बि क 
अंतरार् ट्रीय राजनीित के िव तत
ृ  संदभर्  म भी मह  वपण
ू  र् है । िकसके ज्ञान की सन
ु वाई होती है  
या िकसका ज्ञान वैध है , यह भी नारीवादी िव वान  के िलए अ यन का एक और कद्र िबंद ु
है । हम दिु नया का िनमार्ण कैसे  करते  ह और हम दिु नया को कैसे  िसखाते  ह इसका दिु नया 
पर  बड़ा  प्रभाव  पड़ता  है   (िटकर  2016)।  लिगक  भिू मकाओं,  भाषा, सामािजक  सं थाओं  और 
रा य तंत्र के मा यम से पु ष  ने अपना प्रभु व  थािपत िकया और उसे बनाए रखा। वैसे ही 
ज्ञान एक पदानुक्रिमत और अनु पतावादी पैटनर् (केलर 1996) लाग ू करता है  जो एक पु ष व 
प्रकृित को दशार्ता है । 
अंतरार् ट्रीय संबंध के नारीवादी िव वान  को अंतरानभ
ु ागीयता म भी  िच है । उ ह ने  इस 
बात पर जोर िदया िक िविभ न तरह से  िविभ न पहचान  जैसे  जडर, जाित, वगर्, लिगकता, 
िवकलांगता आिद को वगीर्कृत िकया जाता है   को, यह दिु नया कैसे  काम करती है , के स दभर् 

101
म समझना इसिलए मह  वपूण र् है   क्य िक यह उन  ेिणय  के कारण पदानुक्रम और भेदभाव 
को समझने म हमारी मदद करता है । 
नारीवादी रा ट्र-रा य िनमार्ण की पि चमी अवधारणा के भी आलोचक ह। वे टफेिलया की 
पि चमी रा ट्र-रा य प्रणाली मिहलाओं के जीिवत अनभ
ु व  पर आधािरत नहीं है । रा य के एक 
िस धांत  की  क पना  म  मिहलाएँ  अनप
ु ि थत  ह।  वे  उपिनवेश   और  दिमत   की  उपेिक्षत 
आवाज भी ह। वे टफेिलयन रा य प्रणाली के बारे   म ज्ञान का सज
ृ न उनसे  िवयोिजत/ बेमेल 
है । 
यहाँ  तक  िक  रा ट्रीय  पहचान,  सामािजक  प  से  बनाई  जाती  है   जहाँ  मिहलाओं  को 
रा ट्रीय  सं कृित,  वदे शी  धमर्  और  परं पराओं  की  संरक्षक  माना  जाता  है ।  यह  मिहलाओं  को 
पु ष  वारा  िनधार्िरत  रा य  की  सीमाओं  के  भीतर  रखने  का  कायर्  करता  है ।  जैसे  िक  वे 
अक्सर  पहचान  को  सीमांिकत  करने  के  िहत   म,  मिहलाओं  के  शरीर  को  िनयंित्रत  करते  ह 
( टस 2014 : 169)। यह सश त्र संघष  और ऑनर िकिलंग (स मान के िलए ह याओं) म 
यौन िहंसा से जड़
ु ा है । 
सं थाएँ और िव व  यव था 
अंतरार् ट्रीय  राजनीितक  अथर् यव था  के  क्षेत्र  म  भी  अंतरार् ट्रीय  संबंध  के  नारीवादी  िव वान  
वारा मह  वपूण र् कायर् िकया गया ह। उ ह ने िव लेषण की  ेणी के  प म िलंग का उपयोग, 
अंतरार् ट्रीय अथर् यव था म  म के िलंग िवभाजन को उजागर करने म िकया। असमान िलंग 
संबंध   को  उजागर  करने  वाले  नारीवादी  सािह य  की  संख्या  बढ़  रही  है ,  जहाँ  ‘मिहलाओं  का 
काम’  आमतौर  पर  अवैतिनक  है ।  घरे ल ू काम  या  मिहला  के  काम  उसके  िलंग  के  िलए 
वाभािवक/प्राकृितक  माना  जाता  है ।  मिहलाओं  के  काम  को,  यह  कहकर  की  यह  उसकी 
भिू मका और िज़ मेदारी है   अथवा ‘माँ  के  यार’, ‘प नी के कतर् य’ या ‘लड़की की िज़ मेदारी’ 
के नाम पर उिचत ठहराते  हुए िविनयोिजत और अवैतिनक रखा गया है । इसिलए, मिहलाओं 
के काम को, रा य, बाजार  और अंतरार् ट्रीय सं थान  की गितिविधय  ( टस और एट अल. 
2010  :  171)  का  िह सा  नहीं  माना  जाता  है ।  हालाँिक,  ये  सभी  सामिू हक  प  से  िव व 
यव था का िनमार्ण करते  ह िफर भी चँ िू क, मिहलाओं  का काम उस रा य के िलए अ य 
है , उसे अंतरार् ट्रीय प्रणाली म भी अ य बना दे ती ह। 
हालाँिक, वष  से अंतरार् ट्रीय संगठन और सं थान िलंग और अ य िलंग संबंधी मु द  पर 
अिधक संज्ञान म ले  रहे   ह। बढ़ती नारीवादी सिक्रयता और उनके पयार् त अनभ
ु वज य कायर् 
ने  अंतरार् ट्रीय  सं थान   को  प्रभािवत  िकया  है   जैसे  िक  िव व  बक  जोिक  अिधक-से-अिधक 
लिगक समानता के िलए प्रितब ध है । जडर इिक्वटी िलंग संवेदीकरण, समान वेतन संरचना, 
कायर् थल उ पीड़न के िखलाफ नीित,  बेहतर काम करने  की ि थित, मात ृ व अवकाश आिद 

102
के  मा यम  से  भौितक  हो  सकती  है ।  ये  सभी  िवकास  वैि वक  अथर् यव था  के  शासन  म 
पिरवतर्न लाते ह। 
असमानता और  याय 
नारीवादी  वारा सबसे  प्रमख
ु  काम म से  एक है   लिगक समानता। दिु नया भर के समाज  म 
लिगक  असमानता  प्रचिलत  है ।  काम,  मजदरू ी,  नौकरी,  धन  और  िवरासत  के  िवभाजन  जैसी 
असमानताएँ  इतनी  सामा यीकृत  ह  िक  कभी-कभी  इ ह  महसस
ू   करना  भी  मिु कल  होता  है  
िक ऐसा हो भी रहा है । िकसी के िलंग के कारण असमानताएँ िविभ न  तर  के िव लेषण की 
ु ित  दे ती  ह;  जैसे  सामािजक,  रा ट्रीय  और  अंतरार् ट्रीय।  िलंग  संबंध  मल
अनम ू   प  से  शिक्त 
संबंध है । वै वीकरण के कारण वैि वक आिथर्क व ृ िध हुई है   लेिकन पु ष  और मिहलाओं  के 
बीच धन का समान िवतरण नहीं हुआ है । 
वैि वक  बाजार  अथर् यव था  की  एक  और  परे शान  करने  वाली  िवशेषता  यह  है   िक 
मिहलाओं  का  काम  अक्सर  रा य के  िलए अवैतिनक और अ य होता है ।  मिहलाओं  वारा 
अिजर्त  िकसी  भी  आय  को  अितिरक्त  आय  और  पु ष   को  ही  प्राथिमक  कमानेवाला  माना 
जाता है । मिहलाओं  के काम को शायद ही रा ट्रीय िवकास म योगदान माना जाता है । उनका 
काम अ य है   और रा य के िलए इसका अ य होना एक मिहला की िनंदा है   क्य िक वह 
उसकी कानन
ू ी और िनयामक ढाँचे के बाहर रहती है । वह  म कानन
ू   वारा संरिक्षत नहीं है , 
पु ष   की  तल
ु ना  म कम कमाती है , और कायर् थल उ पीड़न के िलए अिधक असरु िक्षत है । 
मिहलाओं  को  यादातर  अनौपचािरक  क्षेत्र  म  िनयक्
ु त  िकया  जाता  है ,  जो  उनकी  सम याओं 
को  और  बढ़ाता  है ।  िव व  तर  पर  मिहला  म  कमर्चािरय   की  संख्या  बढ़  रही  है ,  लेिकन 
2004 म, अंतरार् ट्रीय  म संगठन ने  बताया िक उन मिहलाओं  म  यादातर कम आय वाले 
असरु िक्षत नौकिरय  म संलग्न ह। लिगक समानता और  याय अंतरार् ट्रीय संबंध के नारीवादी 
िव वान  के िलए एक कद्रीय पूवार्ग्रह है । 
आलोचनाओं 
अंतरार् ट्रीय संबंध के नारीवादी पिरप्रे य के िव ध सबसे  यापक  तर की आलोचना यह है  
िक  यह  मिहलाओं  पर  किद्रत  है ।  िलंग  आधािरत  अ ययन  म  मिहलाओं  पर  बहुत  अिधक 
यान िदया जाता है   िजससे  िक िलंग को मिहलाओं  के पयार्यवाची के  प से  दे खा जाता है । 
अ ययन  के  िवषय  के  प  म  ‘पु ष  और  पु ष व’  पर  कम  यान  िदया  जाता  है ।  इसके 
िवपरीत, आलोचक  का तकर् यह है   िक पु ष  और पु ष व पर समान  यान िदया जा सकता 
है   िक कैसे  पु ष भी िवषाक्त (टॉिक्सक) पु ष व से  पीिड़त ह। उदाहरण के िलए, पु ष  को 
एक कमानेवाला, रक्षक, मजबत
ू , बहादरु , तकर्संगत, दबंग होना चािहए, अ यथा वे  पिवत्र ह 
और ‘मदार्ना’ नहीं ह। पु ष  को भी, अपने पु ष व को सािबत करना होता है । 

103
हालाँिक, िटकनर जैसे  अ य अंतरार् ट्रीय संबंध के नारीवािदय  ने  अपने  काम म पु ष व 
और  त्री व दोन  की जाँच की है । नारीवादी अंतरानुभागीयता और ज्ञान के वैकि पक  प  पर 
काम कर रहे   ह, उदाहरण के िलए  वदे शी ज्ञान परं परा। नारीवािदय  का तकर् यह है   िक जब 
नारीवादीय   ने  अंतरार् ट्रीय  संबंध   के  साथ  अपने  बौ िधक  जड़
ु ाव  की  शु आत  की  थी,  उस 
समय उनका अ यन मख्
ु यतः मिहलाओं  पर किद्रत इसिलए था क्य िक वे  सबसे  बड़ा हािशए 
का समह
ू  थी िजस पर प्रमख
ु  अंतरार् ट्रीय संबंध िस धांत  ने  यान म नहीं  िदया था। लेिकन 
समय  के  साथ-साथ  जब  अंतरार् ट्रीय  संबंध  िस धांत   ने  िलंग  िव लेषण  को  अपनाया  तो 
नारीवादी ने अ य क्षेत्र  म भी अपनी िचंताओं और िवचार  का िव तार िकया। 
अंतरार् ट्रीय  संबंध  के  नारीवादी  िव वान   के  िखलाफ  एक  और  आलोचना  यह  है   िक  वे 
मह  वपूण र् अंत र्ि ट प्रदान करते हुए, अपने  वयं के िस धांत का िनमार्ण करने म िवफल रहे  
ह।  अंतरार् ट्रीय  संबंध   के  नारीवादी  िव लेषण  को  मोटे   तौर  पर  एक  मेटा-िस धांत  (meta-
theory) के  प म माना जाता है  क्य िक उनके पास उदारवाद और यथाथर्वाद जैसे पारं पिरक 
िस धांत  की  तरह  कोई  अंतरार् ट्रीय  राजनीित  के  बारे   म  िवशाल  िस धांत  नहीं  ह।  उन  पर 
अंतरार् ट्रीय संबंध  की प्रकृित का एक सस
ु ग
ं त वणर्न प्रदान करने म असक्षमता का आरोप है । 
कोई  एक  ‘नारीवादी  प्रितमान’  नहीं  है , बि क  इसके  कई  िविभ न  प  ह।  नारीवादी  समद
ु ाय 
की  त काल  प्रितिक्रया  यह  थी  िक  एक  िस धांत  म  कई  वा तिवकताओं  को  समावेश  संभव 
नहीं था और न ही यह वांछनीय है । 
अंतरार् ट्रीय  संबंध  के  नारीवादी  िव वान   को  ‘मिहला  की  सावर्भौिमक  ेणी’  की  धारणा 
वारा  भी  चुनौती  दी  जाती  है ।  मिहलाओं  के  अनुभव  अलग  ह;  यह  प्र येक  समाज  और 
सं कृित म िभ न-िभ न होते ह। पि चमी दिु नया की मिहलाओं का अनुभव तीसरी दिु नया के 
दे श   म  ि थत  मिहलाओं  के  िवपरीत  है ।  यह  तकर्  पि चमी  उपिनवेशवाद  के  बाद  के 
औपिनवेिशक  और  उ र-संरचना मकवाद  की  आलोचना  का  कद्र  है ।  नारीवादी  के  बीच  इस 
‘अंतर’  की  राजनीित  की  एक  सामा य  वीकायर्ता  है ,  लेिकन  वे  इसे  बनाए  रखते  हुए  काम 
करते  ह।  हम  अ ययन  के  दौरान  सभी  सं कृितय   और  समाज   म  मिहलाओं  पर  लिगक 
असमानताओं और िहंसा के िनरं तर अि त व की अवहे लना नहीं करनी चािहए। 

िन कषर् 

अंतरार् ट्रीय संबंध  का नारीवादी िव लेषण हम अंतरार् ट्रीय क्षेत्र म कुछ मख्


ु य अवधारणाओं को 
पन
ु िवर्चार करने म मदद करता है । उ ह ने ज्ञान का एक अलग  प पेश िकया और िव व को 
आकार दे ने वाली पदानक्र
ु म  और असमानताओं  को दरू  करने  म मदद की। अंतरार् ट्रीय संबंध  
की  जाँच  के  िलए  उनका  मख्
ु य  योगदान  िव लेषण  की  ेणी  के  प  म  ‘िलंग’  को  थािपत 
करना है । िलंग संबंध अंतरार् ट्रीय संबंध  के हर पहल ू जैसे रा य, यु ध, कूटनीित, अंतरार् ट्रीय 
राजनीितक अथर् यव था आिद, को प्रभािवत करते ह। नारीवादी िवचारक पारं पिरक अंतरार् ट्रीय 
104
संबंध िस धांत  को अि थर करते  ह लेिकन इनके योगदान के कारण एक अनुशासन के  प 
म अंतरार् ट्रीय संबंध  को नई अंत र्ि ट भी िमली। शीत यु ध के बाद से अंतरार् ट्रीय संबंध  म 
नारीवादी  अ ययन  म  भारी  व ृ िध  हुई  है ।  आज,  अंतरार् ट्रीय  संबंध  के  नारीवादी  िव वान 
सीमांत  क्षेत्र   म  उ यम  कर  रहे   ह  और  इसके  बारे   म  मख
ु र  ह।  अंतरार् ट्रीय  संबंध   के  िलए 
नारीवादी पिरप्रे य मह व
  पूण र् है । 

संदभर् 

1. बे ली, िक्रस (1999), फेिमिन म क्या है ?  यूयॉकर् : सेज पि लकेशन। 


2. बटलर, जिू डथ (1990), जडर ट्रबल,  यूयॉकर् : राउटलेज, रीिप्रंट 2016। 
3. चे बरलेन,  प्रूडस  (2017),  द  फेिमिन ट  फोथर्  वेव  :  एफेिक्टव  टे पोिरटी,  लंदन: 
पालग्रेव मैकिमलन। 
4. ए सटन,  जीन  बेथके  (1987),  वीमेन  एंड  वॉर,  िशकागो  :  िशकागो  िव विव यालय 
प्रेस। 
5. एनलो,  िसंिथया  (1990),  बनाना,  बीचेज  एंड  बे स  :  मेिकंग  फेिमिन ट  सस  ऑफ 
इंटरनेशनल  पॉिलिटक्स,  बकर्ले  :  यिू नविसर्टी  ऑफ  कैिलफोिनर्या  प्रेस,  2014  को 
पन
ु मिुर् द्रत िकया गया। 
6. गो ड टीन,  जोशआ
ु   एस  और  पेवहाउस,  जॉन  सी.  (2007),  इंटरनेशनल  िरलेश स: 
ू ॉकर् : िडयरसन। 
ब्रीफ 2006-2007 सं करण,  यय
7. हिचंग,  िक बरली  (2014),  इंटरनेशनल  िरलेश स-फेिमिन म  एंड  इंटरनेशनल 
िरलेश स,  [ऑनलाइन  :  वेब]  17  अक्टूबर  2020,  URL 
https://www.youtube.com/watch?v=ajAWGztPUiU&ab_channel=OpenLearn
fromTheOpenUniversity 
8. केलर,  एविलन  फॉक्स  (1996),  रे लेक्शन  ओन  जडर  एंड  साइंस,  यू  हे वन  :  येल 
यूिनविसर्टी प्रेस। 
9. पेटमैन, जान िजंडी (1997), "बॉडी पॉिलिटक्स : इंटरनेशनल सेक्स टूिर म," थडर् व डर् 
क्वाटर् रली, 18 (1)। 
10. टे स,  िजल  एट  अल।  (2010),  एन  इंट्रोडक्शन  टू  इंटरनैशनल  िरलेशंस  योरी: 
पसर्पेिक्ट स एंड थी स, थडर् एिडशन, हाल  : पीयरसन। 
11. टे पानोवा,  एकाटे िरना  (2011),  द  रोल  ऑफ़  इनफामशन  क युिनकेशन  टे क्नोलॉजीज 
इन द अरब ि प्रंग : इि लकेश स िबयॉ ड द रीजन, [ऑनलाइन : वेब] 17 अक्टूबर 
2020 तक पहुँचा, URL http://pircenter.org/kosdata/page_doc/p2594_2.pdf 
12. िस वे टर, िक्र टीन (2004), फेिमिन ट इंटरनेशनल िरलेशंस : एन अनिफिन ड जनीर्, 
कैि ब्रज : कैि ब्रज यूिनविसर्टी प्रेस। 

105
13. िटकर, जे.एन. (1992), जडर इन इंटरनेशनल िरलेशंस : फेिमिन ट पसर्पेिक्ट स ऑन 
अिचंिगंग ग्लोबल िसक्योिरटी,  यूयॉकर् : कोलंिबया यूिनविसर्टी प्रेस। 
14. िटकर,  जे.एन.  (2016),  “ हाट  है ज  फेिमिन म  दोने  फॉर  इंटरनेशनल  िरलेश स?  
प्रोफेसर  एन  िटकर,”  [ऑनलाइन:  वेब]  17  अक्टूबर  2020को  अक्से सेड,  URL 
https://www.youtube.com/watch?v=B33FkDx4__k&ab_channel=CentreforIn
ternationalSecurityStudies 
15. िटकर, जे.एन.एन. (1988), “हं स मोगथाऊ'स िप्रंिसप स ऑफ़ पोिलिटकल रे अिल म : 
अ  फेिमिन ट  रे फोमल
ूर् ेशन,”  िमलेिनयम  :  जनर्ल  ऑफ  इंटरनेशनल  टडीज,  17  (3): 
429-440। 
 

106
इकाई-2 

पाठ-5 : यूरोकिद्रकता और वैि वक दिक्षण के पिरप्रे य 
डॉ. अिभषेक चौधरी  

1.  पिरचय : यूरोकिद्रकता और उसके आलोचक 

अंतरार् ट्रीय  संबंध  की  िव याशाखा  यरू ोकिद्रक  रही  है ।  यरू ोकिद्रकता  का  अिभप्राय  यह  है   िक 
‘पा चा य प्रितमान’ को शेष िव व से बेहतर दे खा जाता है । इस प्रकार की संकीणर्ता के कारण 
एक  िवशेष  यव था की प्राधा यपण
ू  र् प्रकृित का  थायीकरण हो जाता है ।  इसके कारण ‘ व 
बनाम  अ य’  का  पव
ू ार्ग्रह  भी  बढ़ता  है ।  इस  कारण  ‘ व’  की  पिरभाषा  ‘अ य’  के  संबंध  म 
िनधार्िरत होने  लगती है । अंतरार् ट्रीय संबंध की िव याशाखा के िवशेष संदभर्  म यूरोकिद्रकता 
का  अथर्  है   ‘ यान  केवल  पि चम  के  अनुभव ,  पि चम  वारा  िस धांत   के  अवधारण  और 
वह
ृ त िस धांत  का पि चम पर उपयक्
ु तता पर ही सीिमत रहना’। 

1.1  यूरोकिद्रकता का उदय  

एडवडर् सईद  वारा प्रितपािदत मानक  ि टकोण के अनुसार यूरोकिद्रकता अथवा प्रा यवाद का 


िनमार्ण यूरोप म अठारहवीं  शता दी के म य म हुआ था। हॉबसन (2020) तकर् करते  ह िक 
“ पेन  वारा अमेिरका के औपिनवेशीकरण के दौरान यूरोकिद्रकता के एक अपिरपक्व  व प 
का िनमार्ण हुआ था”। फ्रैि स को डे  िवटोिरया के ग्रंथ  ‘ऑन द अमेिरकन इंिडय स’ ने  मल
ू  
िनवािसय   को  समझने  के  िलए  “स यता/अस यता”  के  िवमशर्  का  आिव कार  िकया,  लेिकन 
यह उनके औपिनवेशीकरण का औिच य बन गया। “सामािजक कायर्कुशलता” के साम्रा यवादी 
िवचार का उदय भी सोलहवीं  शता दी के आरं भ म हुआ। इस िवचार के आधार पर इस बात 
पर  बल  िदया  गया  िक  “यिद  गैर-पि चमी  लोग  अपनी  भिू म  को  उ पादकतापूवक
र्   िवकिसत 
करने म असफल ह गे, तो यूरोपीय  को उनकी भिू म का अिधग्रहन करने और उनके बदले यह 
कायर् करने का अिधकार होगा” (हॉबसन 2020)। 

यूरोकिद्रकता का उ भव “यूरोपीय अि मता के िनमार्ण की संपूण र् प्रिक्रया” से  संबंिधत है  


(हॉबसन  2020)।  सत्रहवीं  शता दी  तक  यूरोप  का  कोई  अि त व  नहीं  था  और  उसे  ईसाई-
जगत (िक्र टे नडम) के  प म जाना जाता था। लेिकन कैथोिलक ईसाई जगत को अि मता के 
संकट  का  सामना  करना  पड़ा।  यह  संकट  “सत्रहवीं  से  उ नीसवीं  शता दी  तक  पुजार्गरण 
(िरनैसां), सध
ु ार  (िरफॉमशन) और संप्रभ ु रा य  यव था के उदय और पोपतंत्र की राजनीितक 
भिू मका  को  इससे  िमली  चुनौती”  के  सि मलन  से  आया  (हॉबसन  2020)।  इसी  कारण, 
यव था के भाव को बनाए रखने  के िलए एक “नई अि मता को गढ़ना आव यक था”। इस 

107
नवीन  यूरोपीय अि मता  को  यूरोपीय पुजार्गरण के काल के दौरान पिरपक्व यूरोकिद्रकता के 
आिव कार के मा यम से गढ़ा गया।  

1.2  अंतरार् ट्रीय संबंध की िव याशाखा म पि चम का प्रभु व 

अंतरार् ट्रीय  संबंध  की  िव याशाखा  के  िवशेष  संदभर्  म,  आचायार्  और  बुज़ान  (2007)  “िव व 
इितहास की यूरोकिद्रक गठन” को अंतरार् ट्रीय संबंध के िस धांत म पि चम के प्रभु व की दो 
प्रमख
ु  अिभ यिक्तय  म से एक के  प म प्र तुत करते ह। इस प्रभु व की दस
ू री अिभ यिक्त 
यह  है   िक  “अिधकांश  मख्
ु यधारा  अंतरार् ट्रीय  संबंध  िस धांत  का  उ भव”  पा चा य  दशर्न, 
राजनीितक  िस धांत  और  इितहास  म  िनिहत  है   (आचायार्  और  बुज़ान  2007)।  पा चा य 
इितहास  को  िव व  के  इितहास  के  प  म  माना  जाता  है   और  पि चम  के  अनुभव   को 
सावर्भौिमक अनुभव  के  प म दे खा जाता है । 

आचायार् और बज़
ु ान (2007) अंतरार् ट्रीय संबंध के िस धांत म पि चम के प्रभु व के िलए 
पाँच  प टीकरण   की िववेचना करते  ह। अंतरार् ट्रीय संबंध की िव याशाखा के प्रमख
ु  िवचार 
की “गहरी जड़ यूरोपीय इितहास की िविश टताओं और िवलक्षणताओं  म है । इसके अितिरक्त, 
“पि चम  के  उदय”  की  ऐितहािसक  वा तिवकता  और  अपनी  राजनीितक  संरचना  को  बाकी 
िव व  पर  थोपने  के  कारण  वे  अपने  िव व  दशर्न  को  प्राधा यपूण र् प  से  और  ढ़तापूवक
र्  
सामने  रख  पाते  ह।  वे टिम सटर  प्रितमान  को  संसदीय  यव था  के  प्रितमान  के  प  म 
थोपना इसका उदाहरण है । अत:, अकादिमक अंतरार् ट्रीय संबंध “पा चा य िचंतन से अ यिधक 
प्रभािवत  रहता  है ”  (आचायार्  और  बुज़ान  2007)।  पि चम  के  प्रभु व  के  पाँच  िविश ट 
प टीकरण  पर वापस आते हुए, उनका पथ
ृ क परीक्षण उिचत है — 

a)  “पा चा य  अंतरार् ट्रीय  संबंध  िस धांत  ने  अंतरार् ट्रीय  संबंध  को  समझने  का  सही  मागर् 
खोज िलया है ।” 

इस  दावे  का  अिभप्राय  है   िक  पा चा य  िस धांत  सावर्भौिमक  ह  और  सामािजक  संदभर्  पर 
िनभर्र  नहीं  ह।  इस  कारण  पि चमी  और  गैर-पि चमी  के  अंतर  पर  तकर्-िवतकर्  िनरथर्क  हो 
जाता है । इस आधार पर, यह अपेक्षा नहीं की जाती िक अंतरार् ट्रीय संबंध के िनयम िविभ न 
सामािजक  संदभर्  के  लोग   की  िववेचना  से  बदलगे।  हालाँिक  अनेक  भागीदािरय   के  वारा 
िववेचना  करने  से  “समालोचना,  अंत र्ि ट,  और  अनुप्रयोग  की  गण
ु व ा”  म  व ृ िध  हो  सकती 
है ।  इस  दावे  के  वीकरण  के  कारण  यव थीकरण  िस धांत  के  प  म  “अराजकता”  पर 
अ यिधक  बल  िदया  जाता  है   और  “अंतरार् ट्रीय  यव थाओं  और  समाज ”  के  िनमार्ण  के 
वैकि पक  तरीक   की संभावना को नजरअंदाज िकया जाता है । इस  ि टकोण की  “जड़ एक 
बहुत ही िवशेष इितहास म” है  (आचायार् और बुज़ान 2007)। 

 
108
b)  “पा चा य  अंतरार् ट्रीय  संबंध  के  िस धांत   ने  ग्रा सीवादी  भाव  म  प्राधा यपूण र् अव था 
प्रा त कर ली है ।” 

यह  प टीकरण  इस  िवचार  पर  आधािरत  है   िक  पा चा य  अंतरार् ट्रीय  संबंध  िस धांत  को 
वा तव  म  “ग्रा सीवादी  प्राधा यपूण र् अव था”  प्रा त
    हो  चुकी  है ।  इसका  अिभप्राय  है   िक  यह 
“ यापक  प  से  अनजाने  ही  अ य  लोग   के  मनस  म  कायर्रत  रहता  है ”।  “पा चा य 
साम्रा यवाद  के  बौ िधक  प्रभाव  ने  पि चम  की  समझ  को”  गैर-पि चमी  मनस  पर 
“सफलतापव र्  अंिकत कर िदया है ”। “राजनीितक अथर् यव था, प्रादे िशकता, संप्रभत
ू क ु ा, रा ट्रवाद 
के  अनश
ु ीलन”  के  पा चा य  िवचार  को  नए  िवऔपिनवेशीकृत  गैर-पि चम  के  थानीय 
अिभजात वगर्  ने  अपना िलया। वे टफािलयाई संप्रभत
ु ा के प्रमख
ु  त  व  और “लोकतंत्र, बाज़ार 
और मानवािधकार” जैसे  आदश  को तीसरी दिु नया  वारा त परता से  अपना िलया गया। अब 
यिद  पा चा य  अंतरार् ट्रीय  संबंध  के  िस धांत  ने  अपनी  यथाथर्ता  के  कारण  प्राधा यपण
ू  र्
अव था प्रा त िक है , तो “गैर-पि चम योगदान के िलए कम ही गज
ंु ाइश है ”। हालाँिक, यिद 
यह  प्रभु व  पि चमी  शिक्त  के  साथ  इसके  जड़
ु ाव  के  कारण  है ,  तो  गैर-पि चमी  वर  को 
िवकिसत करने की गज
ुं ाइश भी है  और औिच य भी” (आचायार् और बुज़ान 2007)। 

c)  “गैर-पि चमी अंतरार् ट्रीय संबंध के िस धांत अि त व म तो ह, िकंतु प्र छ न ह।” 

गैर-पि चमी अंतरार् ट्रीय संबंध के िस धांत, यिद अि त व म ह, दो कारण  से  प्र छ न रहते 


ह। पहला, और प्रमख ू रा, इस त य के कारण िक वे  अ ययन के 
ु   प से भाषाई अवरोध। दस
उन  क्षेत्र   म  ि थत  ह  जो  पि चम  वारा  अंतरार् ट्रीय  संबंध  के  पिरभािषत  क्षेत्र  के  बाहर  ह 
(आचायार् और बुज़ान 2007)। 

d)  “ थानीय  पिरि थित  अंतरार् ट्रीय  संबंध  के  िस धांत  के  उ पादन  के  िव ध  भेदभाव 
करती है ।” 

ऐसे  अनेक  ऐितहािसक,  सां कृितक,  राजनीितक  और  सं थागत  थानीय  पिरि थितयाँ  ह  जो 
यह  प ट कर सकती ह िक पि चम का अकादिमक पिरवेश गैर-पि चम से  अिधक अनुकूल 
क्य  है । दोन  िव व यु ध ऐितहािसक  प से मह व
  पूण र् क्षण रहे  ह और अंतरार् ट्रीय संबंध का 
िस धांत अपने उ भव के समय से “प्रबल सम या-समाधान उ मख
ु ीकरण से स प न रहा” है  
(आचायार् और बुज़ान 2007)। यु ध के भय ने अंतरार् ट्रीय संबंध सै धांतीकरण के िवकास को 
आकार प्रदान िकया। पि चम और गैर-पि चम सां कृितक िभ नता के घटक से  िवभािजत है । 
साधारणतया, िस धांत “काय  को करने का पि चमी तरीका है ” (आचायार् और बुज़ान 2007)। 
गैर-पि चम  का  यान  मख्
ु य  प  से  थानीय  मु द   पर  किद्रत  था,  जबिक  पा चा य 
सामािजक िस धांत वह
ृ त कथानक प्रदान करने की प्रविृ  के कारण तथाकिथत सावर्भौिमकता 

109
पर  आधािरत  था।  इसके  अितिरक्त,  संसाधन ,  िव -पोषण  की  आम  कमी  और  आजीिवका-
प्रणाली की प्रकृित एक संभव वैकि पक िस धांत को अव ध करती है । 

e)  “पि चम को बड़ी शु आती बढ़त िमली है , और हम अभी उस  तर तक पहुँचने के काल 


को दे ख रहे  ह।” 

आचायार्  और बुज़ान (2007) तकर् करते  ह िक यिद शु आती बढ़त का  प टीकरण सही है , 


तो  मख्
ु य  सम या  समय  और  संसाधन  के  प्र न  से  जड़
ु ी  है ।  यिद  अंतरार् ट्रीय  संबंध  के 
अ ययन के िलए संसाधन उपल ध ह, तो हम अंतरार् ट्रीय संबंध म  थानीय िवकास के प्रकट 
होने  की अपेक्षा करनी चािहए। ऐसे  मामले  जहाँ  ऐसे  संसाधन उपल ध ह , पि चम और गैर-
पि चम के बीच का अंतर कम हो सकता है । 

पि चम  के  प्रभु व  के  यह  प टीकरण  एक  दस


ू रे   के  साथ  भी  कायर्रत  हो  सकते  ह। 
लेिकन  इस  प्रभु व  के  होने  पर  कोई  प्र न  नहीं  उठाया  जा  सकता।  हाल  के  एक  संपािदत 
पु तक,  ‘इंटरनैशनल  िरलेश स  ॉम  द  ग्लोबल  साउथ’,  म  नवनीता  च ढा  बेहरा  (2020) 
यूरोकिद्रकता,  ज्ञानमीमांसीय  ढाँचा  और  अनुभववाद  की  तीन  सम याओं  की  याख्या  प्रदान 
करती ह। रा य और संप्रभत
ु ा के मु द  के िवशेष संदभर् म उनका तकर् है  िक यूरोप को “सभी 
सै धांतीकरण   के  मल
ू भत
ू   आधार”  के  प  म  रखा  जाता  है   (बेहरा  2020)।  प्र यक्षवाद  और 
उ र-प्र यक्षवाद के िवभाजन के दोन  ओर आधुिनक रा य के उ भव के यूरोकिद्रक समझ का 
मल
ू भत
ू  आधार, िबना प्र न उठाए, साझा िकया गया। अत:, यूरोकिद्रकता “आधुिनक रा य के 
मल
ू   िवचार  के  डीएनए  म  बड़ी  गहराई  से  अंत: थािपत  है ”  जो  1648  की  वे टफािलया  की 
शांित को “िव व राजनीित के महािव फोट िस धांत के  प म” मानता है  (हॉबसन 2012)। 

इस उपधारणा पर िन निलिखत कारण  से प्र न उठाया जा सकता है  (बेहरा 2020)— 

क)  यह मान कर चलता है   िक “िकसी पूवीर्  सहयोग की अनुपि थित म यूरोपीय  ने  अकेले 


ही संप्रभु रा य का िनमार्ण िकया”। इस पिरघटना का िनमार्ण यूरोप म हुआ और इसके 
उपरांत इसका बाकी िव व म िनयार्त हुआ। भारत, चीन, पि चम एिशया और अ ीका 
के दे श  का पूवक
र् ालीन इितहास यह संकेत करता है   िक वा तिवकता इससे  बहुत िभ न 
है  (हॉबसन 2013, बेहरा 2020 म उ धत
ृ )। 

ख)  यह  1648  से  पहले  के  इितहास  पर  यान  दे ने  म  िवफल  है ।  ग्रोिटयस,  डे  िवटोिरया, 
हॉ स और लॉक जैसे  पि चमी िव वान  ने  एक यूरोकिद्रक “स यता के मानक” िवमशर् 
का सज ू  ि थित के उदाहरण” के  प म गिठत 
ृ न िकया। अमेिरका को “प्रकृित की मल
िकया गया जहाँ  अस य और बबर्र लोग िनवास करते  थे  और जहाँ  तकर्मल
ू क सं थान  
की  कमी  थी।  इस  िचत्रण  को  यूरोप  के  “स य  सं थान ”  के  मक
ु ाबले  रखा  गया  (बेहरा 

110
2020; हॉबसन 2013)। गैर-यूरोपीय िव व म संप्रभत
ु ा के अभाव और यूरोपीय संप्रभत
ु ा 
के उ भव ने साम्रा यवाद को प्राकृितक और िविध-स मत िचित्रत िकया।  

ग)  “यूरोकिद्रक  ऐितहािसकता”  सम याप्रद  है   क्य िक  यह  “आधुिनकता  के  एकल, 
सावर्भौिमकारक  कथानक  के  अि त व  को  मान  कर  चलता  है ”।  साथ  ही  यह 
“सामियकता के उन वैकि पक साधन ” को भी  वीकार नहीं  कर सकता है   िजनके पास 
“राजनीितक  की  अपने  वयं  की  अवधारणा  है ”  (चक्रबतीर्  2000,  बेहरा  2020  म 
ृ )।  ऐसा  अ वीकरण  उपिनवेशवाद  के  “स यता-प्रसार  िमशन”  को  वैध  बनाता  है । 
उ धत
अत:, यरू ोप के बाहर रा य िनमार्ण प्रिक्रया के इितहास को अनदे खा करते  हुए “यरू ोपीय 
इितहास के एक िवशेष खंड को सब के िलए आम िस धांत” बनाने  के एकल आधार म 
प म पयार् त माना जाता है । गैर-पि चम को “अंतरार् ट्रीय राजनीित के ज्ञान सज
ृ न के 
थल” के  प म “संरचना मक और मल
ू भत
ू   प से हटाया गया, और इसी कारण िकसी 
प्रकार के वैकि पक अवधारण का भी अपवजर्न होता रहा” (बेहरा 2020)। 

2.  पि चम  के  परे   अंतरार् ट्रीय  संबंध  का  सै धांतीकरण  :  अंतरार् ट्रीय  संबंध  की  वैकि पक 
याख्याएँ 

पि चम के परे  अंतरार् ट्रीय संबंध की क पना की संभावना के साथ स ब ध होने के प्रयास के 


िलए  यह  आव यक  है   िक  “िभ न  प्र न  पछ
ू े   जाएँ  और  िभ न  थान   पर  उनके  उ र  खोजे 
जाएँ”।  यह  आव यक  है   िक  “संप्रभ ु रा य  के  सावर्भौिमक  िवचार”  को  खोजने  के  बजाय 
“राजनीितक प्रािधकार की िभ न क पनाएँ, रा य व की िभ न मात्राएँ  और िविवध िन पण ” 
की  संभावना  को  पहचाना  जाए  (बेहरा  2020)।  इन  क पनाओं  को  रा य  िनमार्ण  के  िविवध 
इितहास  के  साथ  साथ  िविभ न  राजनीितक,  सामािजक,  आिथर्क,  सै य  और  सां कृितक 
शिक्तय  के प्रभाव के मा यम से आकार िमलता है ।  

अंतरार् ट्रीय संबंध की यूरोकिद्रकता को चुनौती दे ने के प्रयासरत िव वान  ने ऐसे तकर् िदए 


ह जो इस िव याशाखा के वैकि पक उ भव की ओर संकेत करते  ह। डेिवस, ठाकुर और वेल 
(2020)  “यरू ोकिद्रक  इितहास-शा त्र ”  को  चुनौती  दे ने  के  मा यम  से  अंतरार् ट्रीय  संबंध  के 
िवउपिनवेशीकरण का प्रसाय करते ह। वे अंतरार् ट्रीय संबंध िव याशाखा के  वीकृत उ भव को 
चन
ु ौती दे ते  ह। इसके िवपरीत, इस िव याशाखा के वा तिवक उ भव का पता लगाने  के िलए 
वे  ‘राउं ड  टे बल’  सोसायटी  पर  यान  किद्रत  करते  ह।  वे  अन वेिषत  अिभलेख   को  अनव ृ  
करते हुए यह तकर् करते ह िक अंतरार् ट्रीय संबंध िव याशाखा की नींव डालने म प्रजाित (रे स) 
ने एक प्रमख
ु  भिू मका िनभाई है । सभी महा वीप  म राउं ड टे बल की यात्रा का अनरु े खण करते 
हुए  डेिवस,  ठाकुर  और  वेल  (2020)  अंतरार् ट्रीय  संबंध  िव याशाखा  के  िनिवर्वाद  यरू ोकिद्रक 
उ भव के परे   जाते  ह। ऑ ट्रे िलया, कनाडा,  यज़ ू ीलड, दिक्षण अफ्रीका और भारत के िब्रिटश 

111
साम्रा यवादी  सोसायटी  ने  राउं ड  टे बल  नामक  एक  मंडली  का  गठन  िकया।  इसी  मंडली  के 
प्रयास   ने  वा तव  म  अंतरार् ट्रीय  संबंध  की  उस  िव याशाखा  को  थािपत  िकया  िजसे  हम 
आज जानते  ह। राउं ड टे बल का आरं िभक उ दे य अिधक कायर्कुशल साम्राि यक अिभशासन 
सिु नि चत  करना  और  साम्रा य  को  िव व  के  मामल   म  िनयंत्रक  के  दज  पर  रखना  था। 
लेिकन  अंततोग वा  उसने  वैि वक  दिक्षण  को  अंतरार् ट्रीय  संबंध  की  नींव  रखने  म  मह  वपूण र्
दज  पर  रख  िदया।  इसी  अविध  म  अंतरार् ट्रीय  संबंध  की  िव व ा  साम्र यवादी  प्रजातीय 
िचंतन  के  साथ  अंतवर्ियत  हो  गई।  ऐसा  िवऔपिनवेिशक  पिरप्रे य  हम  वैकि पक 
वा तिवकताओं  और  संभावनाओं  के  बारे   म  िवचार  करने  की  अनुमित  दे ता  है   जो  अ यथा 
प्र छ न रहते ह। 

3.  वैि वक दिक्षण के पिरप्रे य : क्षेत्रीय िस धांत 

वैि वक  दिक्षण  मोटे   तौर  पर  लैिटन  अमेिरका,  एिशया,  अफ्रीका  और  ओशेिनया  के  क्षेत्र   से 
संबंिधत है । यह श द  के समह
ू  म से एक है  िजसम “तीसरी दिु नया” और “पिरिध” शािमल ह 
और ऐसे  क्षेत्र  को  यक्त करता है   जो यूरोप और उ र अमेिरका के बाहर के क्षेत्र ह। इनम 
से  अिधकांश  (िकंतु  सभी  नहीं)  कम  आय  वाले  दे श  ह  और  आमम
ू न  राजनीितक  अथवा 
सां कृितक  प  से  हािशए  पर  ह।  वैि वक  दिक्षण  वाक्यांश  का  प्रयोग  िवकास  अथवा 
सां कृितक िभ नता पर कद्रीय  यान के बजाय शिक्त के भ-ू राजनीितक संबंध पर बल दे ने 
की  ओर  पिरवतर्न  को  दशार्ता  है   (डैडस  और  कॉ नेल  2012)।  वैि वक  दिक्षण  श द  केवल 
“अ पिवकास  के  पक”  म  कायर्  नहीं  करता।  इसका  संबंध  “उपिनवेशवाद,  नव-साम्रा यवाद, 
और िवभेदक आिथर्क और सामािजक पिरवतर्न के संपूण र् इितहास” से है  िजसने “जीवन  तर, 
आय ु संभा यता,  और  संसाधन   की  उपलि ध  म  अ यिधक  असमानता”  को  कायम  रखा  है  
(डैडस और कॉ नेल 2012)। 

वैि वक  दिक्षण  के  प्रमख


ु   िव व ापूण र् ह तक्षेप  संप्रभत
ु ा  की  वे टफािलयाई  धारणा  को 
वीकार  करने  के  िव ध  तकर्  करते  ह।  वे टफािलया  की  शांित  और  आधुिनक  रा य  की 
पिरणामी  अवधारणा  यूरोप  की  िवशेष  पिरघटना  है ।  रा य,  संप्रभत
ु ा,  िव व  यव था,  याय 
तथा अ य प्रासंिगक अवधारणाओं की वैकि पक संक पना की खोज म िव वान  ने अतीत से 
िवचार  ढूँढ़ने  का  प्रसाय  िकया।  एिशया,  अ ीका,  और  लैिटन  अमेिरका  के  दे श   का  पूव-र्
औपिनवेिशक  इितहास  हम  यव था,  याय,  रा य,  रा ट्र  और  संप्रभत
ु ा  की  ऐसी  िवशेष 
धारणाएँ प्रदान करता ह जो वे टफािलयाई  यव था पर आधािरत यूरोकिद्रक धारणाओं के परे  
जाते ह। 

112
3.1  भारत : रा य का िस धांत, अिधराज व,  यव था 

िबनॉय  कुमार  सरकार  (1919)  के  अनुसार,  आरं िभक  िहंद ू राजनीितक  िस धांतकार   के  पास 
संप्रभत
ु ा की एक दे शज अवधारणा थी जो रा य प्रािधकार के प्रयोग के िलए ‘ व-शासन’ और 
रा ट्रीय  वावलंबन  के  मह  व  को  पहचानती  थी।  कॉिट य  को  िव व  के  प्राचीनतम 
यथाथर्वािदय   के  प  म  दे खा  जाता  है   और  इस  संबंध  म  उनका  योगदान  मह व
  पूण र् है । 
साम्रा य-िनमार्ण के कायर्  के िलए आव यक  यवहार का िस धांत दे ते  हुए कॉिट य ने  अपने 
मंडल (प्रभाव क्षेत्र) िस धांत के  वारा उन िवचार  को िवकिसत िकया िक िकस प्रकार राजा 
को  अपने  पड़ोसी  दे श   के  साथ  गठबंधन  और  शत्रत
ु ा  के  संबंध   का  प्रबंधन  करना  चािहए। 
सरकार (1919) मंडल िस धांत का िव लेषण करते हुए कहते ह िक इसम ‘शिक्त के संतल
ु न’ 
के साथ संप्रभत
ु ा के साथ इसके संबंध का िवचार उपि थत था। मंडल िस धांत को िविजगीषु 
(िवजय अथवा िव तार का आकांक्षी) का िस धांत माना जाता है । शत्रत
ु ापण
ू ,र्  उदासीस अथवा 
मैत्रीपण
ू  र् के  प  म  यवहार  िविजगीष ु से  उनकी  दरू ी  पर  िनभर्र  करता  है   (सरकार  1919)। 
रा य  का  भौगोिलक  प्रसार  उनकी  मनोविृ   को  प्रभािवत  करता  है   और  इस  िस धांत  के 
अनुसार िविजगीषु  और उसके अिर (शत्र)ु  के बीच एक पिरकि पत र साकशी का यु ध सदै व 
चलता रहता है । इनके साथ इस पिरक पना को पूरा करने  के िलए दो अ य रा य  की भी 
िगनती आव यक है । यह िनरं तर तैयार रहने  की ि थित है  और इस  यव था म चार सद य 
शािमल ह— 

1.  िविजगीषु अथवा आकांक्षी; 

2.  अिर अथवा शत्र ु जो आकांक्षी के क्षेत्र की पिरिध के ठीक बाद कहीं ि थत है ; 

3.  म यम (म य थ) जो आकांक्षी और उसके शत्र ु के िनकट ि थत है   और अलग-अलग 


दोन  की सहायता करने अथवा दोन  का प्रितरोध करने की क्षमता रखता है ; 

4.  उदासीन  (तट थ)  जो  1,  2,  और  3  के  परे   ि थत  है   और  जो  िविजगीषु,  शत्र ु और 
म य थ की एक साथ अथवा अलग-अलग सहायता करने, अथवा अलग-अलग इनका 
प्रितरोध करने की शिक्त और क्षमता रखता है  (सरकार 1919)। 

मंडल िस धांत ने  हम “म य  याय म” अथवा हॉ स के पशओ


ु ं  और अराजकता के िनयम 
के समान मछली के तकर् के अंतग
र् त बने  रहने  के िलए अग्रसर कर िदया है ”। यह िस धांत 
मानता है   िक िव व अनंतकाल के िलए यु धरत रा य  से  बना है   और यह िस धांत इसके 
िलए स ज है । रा य का िस धांत दो पूणत
र् या िवपरीत अवधारणाओं पर आधािरत था— 

1.  दं ड  का  िस धांत,  जो  प्रजा  (एकल  रा य  के  सद य)  के  म य  म य  याय  का  अंत 
करता है ;  

113
2.  मंडल का िस धांत, जो मानव पिरवार म अंतरार् ट्रीय म य  याय अथवा प्रजाितय  के 
गह
ृ  यु ध को कायम रखता है । 

संप्रभत
ु ा का िहंद ू िस धांत सावर्भौिमक म य  याय के िस धांत के परे  जाता है । इसने िव व 
वचर् व की  थापना के मा यम से  सावर्भौिमक शांित की संक पना का भी सज
ृ न िकया। एक 
बिहगार्मी बल के  प म मंडल का िस धांत सवर्-भौम (संपूण र् प ृ वी का शासक) के िस धांत 
के अंतगार्मी प्रविृ  से  संतुिलत होता था। िव व संप्रभत
ु ा की संक पना प्राचीनतम वेिदक ग्रंथ  
म पाई जा सकती है । ऐतरे य ब्रा मण के अनस
ु ार “सव च राज-तंत्र के पास प्राकृितक सीमा 
तक फैला साम्रा य होना चािहए, यह क्षेत्रीय  तर पर सवर् यापी हो और इसे  समद्र
ु  तक एक 
रा य और प्रशासन की  थापना करनी चािहए” (सरकार 1919 म उ धत
ृ )। िव व रा ट्रवाद के 
इस  िस धांत  ने  िहंदओ
ु ं  के  राजनीितक  क पनाओं  पर  प्रबल  प्रभाव  डाला।  चक्रवतीर्  का 
िस धांत इसी िव व रा य अथवा सावर्भौिमक संप्रभत
ु ा के िवचार को  यक्त करता है । इसका 
संकेत  है   िक  रा य  के  रथ  का  चक्र  अथवा  पिहया  िबना  अवरोध  के  सवर्त्र  घम
ू ता  है । 
चक्र/पिहया संप्रभत
ु ा का प्रतीक है । यह एक “पंथिनरपेक्ष अिधपित के राजनीितक िरयासत” की 
अवधारणा है  (सरकार 1919)। 

बेहरा (2020) अिधराज व (सज़
ु रटी) के भारतीय अनुभव से  ऐितहािसक उदाहरण प्र तत
ु  
करती ह। किवराज (2010, बेहरा 2020 म उ धत
ृ ) मनु मिृ त, अथर्शा त्र और महाभारत का 
िव लेषण  करते  ह।  किवराज  (2010)  का  तकर्  है   िक  “अप्रितबंिधत  शाही  प्रािधकार  की 
आव यकता को पहचानते  हुए”, उस पर प्रितबंध लगाए गए। यह प्रितबंध एक ऐसी  यव था 
के मा यम से  लगाए गए जो नैितक  प से  सभी सीमाओं  से  बाहर था और प्रािधकार “इस 
यव था के अधीन भी था और अंततोग्तवा इसके िलए उ दायी भी” (किवराज 2010, बेहरा 
2020  म  उ धत
ृ )।  “िविध”  (दं ड)  और  एक  दोषक्षम  मानव  अिभकतार्  (राजा)  के  बीच  अंतर 
करते  हुए, मन ु एक ऐसी सै धांितक संरचना का िनमार्ण करते  ह, जहाँ  राजा शतर्रिहत और 
िनरं कुश शिक्त का उपभोग नहीं  कर सकता क्य िक वह धमर्  के नैितक ढाँचे  के अधीन थ है  
(किवराज  2010,  बेहरा  2020  म  उ धत
ृ )।  “पारं पिरक  भारतीय  यव था  म  राजनीितक 
प्रािधकार  और  िनयंत्रण  म  प्रािधकार  के  िविभ न  तर   म  प्रसािरत  और  िवतिरत  होने  की 
प्रविृ  थी” (बेहरा 2020)। इन  तर  म सामंती रा य, क्षेत्रीय राज व और साम्रा य शिमल थे 
जो  आधुिनक  संप्रभु  रा य  की  कद्रीकृत  राजनीितक  एकता  से  िभ न  थे।  एक  अ य  प्रमख
ु  
िभ नता  यह  थी  िक  सामंती  राजा  संिवदा  के  बजाय  आमम
ू न  “िविधस मत  िवजय”  अथवा 
धमर्िवजय के मा यम से राजा बनते थे। अिधराज (सज़
ु रे न) इस प्रकार कायर् करते थे िक एक 
अि थर  और  लचीले  राजनीितक  यव था  का  िनमार्ण  होता  था  और  राज व  के  राजनीितक 
दज और िन ठा म िनरं तर पिरवतर्नशीलता थी। 

114
हाल  के  इितहास  और  वतर्मान  को  अनाव ृ   करते  हुए  कांित  बाजपेयी  (2003)  िव व 
राजनीित  पर  भारतीय  िवमशर्  म  यव था  और  याय  की  भारतीय  अवधारणा  के  चार 
पिरप्रे य   की  पहचान  करते  ह।  यह  है —  नेह वादी  अंतरार् ट्रवाद  अथवा  नेह वाद,  गाँधीवादी 
िव ववाद अथवा गाँधीवाद, राजनीितक िहंदव
ू ाद अथवा िहंद ु व, और नव-उदारवादी वैि वकवाद 
अथवा नव-उदारवाद। इन चार अवधारणाओं  को “प्रभावी वे टफािलयाई अवधारणा के िव ध 
रखा जा सकता है ” (बाजपेयी 2003)। 

पहले  पिरप्रे य,  नेह   की  ‘वे टफािलया  जोड़  गट


ु -िनरपेक्षता’  यव था  की  धारणा,  को 
पारं पिरक  वे टफािलया  के  अनक
ु ू ल  दे खा  जा  सकता  है ।  तथािप,  रणनीितक  िवक प  की 
वतंत्रता  और  “ यव था  िनमार्ण  म  गट
ु -िनरपेक्ष  दे श   वारा  रचना मक  भिू मका  िनभाने  की 
क्षमता”  पर  गट
ु -िनरपेक्षता  वारा  बल  िदए  जाने  के  कारण  यह  यव था  की  वे टफािलयाई 
धारणा के साथ तनाव म रहता है । इस पिरप्रे य के आधार पर, “वे  महाशिक्तयाँ  नहीं  अिपतु 
गट
ु -िनरपेक्ष  दे श ह जो  िव व के  मामल   म  सकारा मक  और  असाधारण  भिू मका िनभाने  के 
िलए उपयुक्त  थान पर ह (बाजपेयी 2003)। पारं पिरक वे टफािलयाई धारणा को एक अ य 
चुनौती  आिथर्क  समानता  के  तकर्  से  िमलती  है ।  यह  तकर्  इस  धारणा  पर  आधािरत  है   िक 
आिथर्क  दब
ु ल
र् ता  के  साथ  औपचािरक  वतंत्रता  “दबाव  के  िविभ न  प   म  अरिक्षतता”  का 
िनमार्ण  करती  है   जो  वतंत्र  िनणर्यन  की  संभावना  को  प्रभािवत  करती  है ।  नेह वािदय   के 
अनुसार, “उ र-औपिनवेिशक िव व म गरीबी, िनरा यता, और आिथर्क िपछड़ेपन से  छुटकारा 
पाने के िलए उ री और दिक्षणी दे श  को साथ आना होगा” (बाजपेयी 2003)। 

ू रा  पिरप्रे य,  गाँधीवादी  िव ववाद,  “रा ट्र  रा य  के  बारे   म  उभयभावी”  है   जो 
दस
वे टफािलयाई  यव था  की  मल
ू   इकाई  है ।  गाँधीवादी  यह  अव य  मानते  ह  िक  इितहास  के 
िवशेष पड़ाव पर रा ट्रवाद एक प्रबल मिु क्तकारक बल है   और यह “लोग   वारा आ मचेतना, 
मिु क्त और  वतंत्रता प्राि त की संभावना को दशार्ता है ”। वे  अंतरार् ट्रीय  यव था और अ य 
संबंिधत  पिरघटनाओं,  जैसे  िक  अराजकता,  संप्रभत
ु ा,  संघषर्  और  यु ध  के  त व  को  भी 
वीकारते  ह। लेिकन गाँधीवािदय  के िलए, मानवता को अ याव यक  प से  “रा ट्र रा य के 
परे   जाना  चािहए,  और  वह  उसके  परे   जाएगा”  (बाजपेयी  2003)।  गाँधीवािदय   के  अनस
ु ार 
“ यव था  म  यिक्त,  समद
ु ाय,  रा य  और  अ य  अिभकतार्ओं  के  सबंध ,  अिधकार   और 
दािय व  की समग्रता समािहत है ” (बाजपेयी 2003)। गाँधीवादी “आिथर्क समानता” के पक्ष म 
तकर्  करते  ह  जो  िकसी  यव था  के  दीघर् थािय व  के  िलए  अ याव यक  है ।  गाँधीवािदय   के 
िलए, िहंसा का कोई  थान नहीं  है । उनका तकर् है   िक कद्रीकृत राजनीितक प्रािधकार, शिक्त, 
और  िहंसा  के  बजाय  नैितकता  और  विनयमन  ही  यव था  के  आधार  ह।  प्र येक  यिक्त, 
समद
ु ाय और “रा य को  व-अनुशासन का अ यास करना चािहए और यह सिु नि चत करना 

115
चािहए िक उनका  यवहार अिहंसा और नैितक स य के िस धांत  के अनुकूल हो” (बाजपेयी 
2003)। 

तीसरा पिरप्रे य, राजनीितक िहंदव
ू ाद अथवा िहंद ु व, भारत को मात्र एक रा ट्र रा य नहीं 
अिपतु एक स यता—एक िहंद ू स यता मानता है । िहंद ु व के प्र तावक  का मानना है  िक िहंद ू
स यता को अपनी प्राणशिक्त और अखंडता को पुन: प्रा त करने  की आव यकता है । िहंद ु व 
समथर्क  िहंसा  के  प्रित  सकारा मक  ि ट  रखते  ह  और  मानते  ह  िक  िहंसा  दबे  और 
ु त  कर  सकता  है ।  उनका  तकर्  है   िक  जहाँ  पि चम  के 
औपिनवेशीकृत  लोग   को  मक्
“ यिक्तवाद,  भौितकवाद  और  उपयोिगतावाद”  ने  उसे  शिक्तशाली,  सम ृ ध  और  कायर्कुशल 
बनाया,  इ हीं  िवशेषताओं  ने  उसे  “ वाथीर्,  वकिद्रत  और  अन यवादी”  भी  बनाया।  इसके 
िवपरीत, िहंद ू प्र येक  यिक्त के क याण पर आधािरत आ मसंयम, आ याि मकता, स य की 
खोज और सवर् यापी समावेिशता म िव वास करते  ह। िहंद ू एक ऐसे  िव व रा य की क पना 
करते  ह, जहाँ  यिक्तगत मतभेद का सामिू हक िहत के साथ सामंज य  थािपत हो। धमर्  के 
अनुकूल  यवहार के िनयम इस एकता को िनयिमत करगे  जहाँ  प्र येक  यिक्त, समद
ु ाय और 
रा ट्र  के  पास  “समग्रता  म  अपना  थान  और  अपनी  भिू मका  होगी  और  वे  समरसता  म 
सहवतीर् ह गे” (बाजपेयी 2003)। 

चौथा  पिरप्रे य  नव-उदारवादी  वैि वकवाद  का  है   जो  अराजक  अंतरार् यीय  यव था  को 
अंतरार् ट्रीय जीवन के मल
ू  आधार के  प म दे खते ह जहाँ रा ट्र िहत का अनुसरण करने वाले 
संप्रभ ु रा य  अंतरार् ट्रीय  संबंध  की  मल
ू   इकाई  ह।  िकसी  अिधरा ट्रीय  प्रािधकार  के  अभाव  म 
अंतरार् ट्रीय  यव था एक “ व-सहायता  यव था है   जहाँ  संघषर्, यु ध और प्रित वं िवता की 
संभावनाएँ  िनरं तर बनी रहती ह” (बाजपेयी 2003)। लेिकन वे  तकर् करते  ह िक बढ़ते  पर पर 
िनभर्रता के कारण रा य  का िहत एक-दस
ू रे  के क याण म होना आरं भ हो जाएगा और यु ध 
एक आ मघाती संभावना बन जाएगी। तथािप, भारत के नव-उदारवादी वैि वकवादी इस बात 
के प्रित शंका पद रहते  ह िक पि चमी महाशिक्तयाँ  इसका प्रयोग बाकी िव व के मामल  म 
ह तक्षेप  करने  के  बहाने  के  प  म  करगे  (बाजपेयी  2003)।  यव था  के  वे टफािलया  और 
नव-उदारवादी वैि वकवादी  ि ट के बीच कुछ तनाव के क्षेत्र ह। पहला, वैि वकरणीय िव व म 
यव था-िनमार्ण के िलए सावर्भौिमक मानक की आव यकता है   जो आिथर्क और सामािजक 
आचरण को अिभशािसत करे । यह वे टफािलया की संप्रभत
ु ा की धारणा के िव ध जाता है , 
जहाँ रा ट्रीय आिथर्क और सामािजक नीितयाँ घरे ल ू अिधकार-क्षेत्र के मामले ह। दस
ू रा, रा ट्रीय 
से  मानव सरु क्षा की िदशा म सापेिक्षक पिरवतर्न होने  से  तनाव उ प न होता है । रा य  के 
िलए  अंतरार् ट्रीय  जवाबदे ही  का  मु दा  इस  पूवध
र् ारणा  के  िव ध  जाता  है   िक  रा य  सरु क्षा 
सव पिर है   और क याण तथा  वतंत्रता के  तर आंतिरक मामले  ह। तीसरा, नव-उदारवािदय  
का  सझ
ु ाव  है   िक  उदारवाद  और  लोकतंत्र  के  मल
ू ्य  ि थर  यव था  के  कद्र  म  ह।  यह  इस 

116
वे टफािलयाई धारणा के िव ध जाता है   िक “घरे ल ू मू य और सं थान अंतरार् ट्रीय  यव था 
की अपेक्षाओं से  वाय  ह” (बाजपेयी 2003)। 

3.2  अफ्रीका : संप्रभत
ु ा, उब टू, पराि तता 

यह तकर् िकया गया है  िक पा चा य अंतरार् ट्रीय िस धांत या तो अ ीका की वा तिवकता को 


गलत ढं ग से  प्र तुत करता है , या िफर “नव-औपिनवेिशक सै धांितक प्राधा य के अ यास म 
भाग  लेता  ह”  (ब्राउन  2006)।  एमी  िनयांग  (2018)  पि चम  अ ीका  के  पूव-र् औपिनवेिशक 
अतीत पर  यान दे ते  हुए उन सामािजक संरचनाओं  की समझ को प्र तुत करती ह िज ह ने 
अ ीका  के  राजनीितक  जीवन  को  कायम  रखा।  उनके  अनुसार,  मो सी  रा य  अ ीका  के 
वो टाई  क्षेत्र  म  अरं िभक  वष   (15वीं  और  16वीं  शता दी)  म  प्रेरणा ोत  बन  गया  था।  यह 
रा य  नाम  और  टे गा  के  दो  िवचार   पर  िनिमर्त  था।  नाम  राजनीितक  प्रािधकार  की  एक 
मल
ू प अवधारणा है   िजसने  राजनीितक  यव था को  थािपत िकया और समािजक अनुभव 
की  संपूण र् प  रे खा  को  आकार  प्रदान  िकया।  तथािप,  इसे  “पूवव
र् तीर्  सामािजक  संरचना  की 
प्रितरोध  की  क्षमता”  का  मक
ु ाबला  करना  पड़ा,  जैसे  िक  “धरती  पुजारी,  और  अ य  प्रथम-
िनवासी के प्रतीक जो टे गा के नैितक प्रािधकार के अंतगर्त कायर्रत थे  (िनयांग 2018; बेहरा 
2020)।  नाम  और  टे ग  प्रािधकार  (वैधीकरण  की  नैितकता),  सां कृितक  चिरत्र  (िव वास, 
मू य,  कला मक  अिभ यिक्त)  और  आ थापकता  (सामािजक  ओहदा  और  संबंध,  पात्रता)  की 
“क पनाओं  के  सा य  अिभ यिक्तय ”  को  सं थािपत  करते  थे।  वा तव  म,  यह  सभी  एक 
िविधक  अनुबंध  के  वारा  साथ  आए  “िजसके  शत   को  औपचारीकृत  रीितय   के  माधयम  से 
िनयिमत  प से संशोिधत िकया जाता था” (िनयांग 2018; बेहरा 2020)। 

इन अंतिनर्िहत वैधािनक िवचार   और रीितय  जैसे  मानक की प्रकृित की  याख्या करते 


हुए िनयांग (2018) तकर् करती ह िक यह “पार पिरक  प से बा यकारी संबंध” म अंतवर्ियत 
थे  और आंतिरक तथा आनुभािवक  प से  प ट थे  (बेहरा 2020)। उ र-औपिनवेिशक रा य 
ने  ना केवल साम्रा यवादी शासक   वारा पोिषत रा य और समाज के मल
ू प िवभाजन को 
ढ़ िकया, बि क रा य शिक्त को पूण र् प से  संप्रभ ु के हाथ म भी स प िदया। जब रा य 
केवल एक राजनीितक उपकरण बन गया, वह अिधकांश अ ीकी रा य  की कीमत पर अपने 
भत
ू पूव र् औपिनवेिशक  वामी  के  लाभ  के  िलए  अपने  जारी  शोषणकारी  उपयोग  के  प्रित 
अितसंवेदनशील  बन  गया।  िनयांग  (2018)  के  अनुसार,  इसके  कारण  िविभ न  प्रकार  के 
प्रितवाद   का  आरं भ  हुआ  िजसम  रा य  को  एक  परा यी  व तु  के  प  म  प्र यक्ष  प  से 
अ वीकार िकया गया। इस रा य को बा य अिनवायर्ताओं और िहत  के िलए िव थािपत और 
अधीनस ्थ  कर  िदया  गया।  लोग  प्रितरोध,  पिरहार,  वजर्न  और  अ य  साधन   के  वारा  म 
रा य  के  संरक्षण  से  दरू   जाने  लगे  (िनयांग  2018,  बेहरा  2020  म  उ धत
ृ )।  वा तिवक 

117
रा य व का िवचार “आिदकालीन सावर्भौिमक सूत्रीकरण पर िनधार्िरत” है , जो प्र येक रा य के 
िलए  यूनतम  मानदं ड  के  प  म  कायर्  करता  है   िजसकी  बराबरी  सबको  करनी  है ।  अ ीकी 
रा य   की  “ थानीय  और  िविवध  पूव-र् औपिनवेिशक  अतीत  पर  कोई  यान  नहीं  िदया  जाता” 
और  अ ीका  के  औपिनवेिशक  अतीत  को  पूणत
र् या  “पि चम  की  स यता-प्रसार  िमशन  के 
ि टकोण  से”  समझा  जाता  है   (बेहरा  2020)।  इस  स यता-प्रसार  िमशन  को  एक  “नैितक, 
िविधक, भौितक सहायता संरचना” िजसने “अ ीका को बनाए रखा” और आम तौर पर “रा य 
यव था के आरं भ और िवकास म मल
ू प से  एक रक्तहीन प्रकरण” के  प म चिरत्र िचित्रत 
िकया  गया  (डोटी  1996,  बेहरा  2020  म  उ धत
ृ )।  इसके  अितिरक्त,  यह  “रा य-िनमार्ण  के 
आंतिरक  और  बा य  गतीशीलता  के  बीच  िकसी  संरचना मक  संपकर्  को  असंभव  बनाता  है ” 
(बेहरा  2020)।  अ ीकी  रा य   की  िवफलता  का  दोष  उनके  अपने  “ व-शासन  की  दे शज 
क्षमता  की  कमी”  के  साथ  साथ  भ्र टाचार  और  अक्षमता  को  िदया  गया।  तीसरी  दिु नया  के 
अन ्य  रा य   के  साथ  अ ीकी  रा य   को  “अंतरार् ट्रीय  यव था  म  मु तखोर ”  के  प  म 
िचित्रत  िकया  गया  जो  सामिू हक  िवचारधारा  का  अनुसरण  करते  हुए  संप्रभ ु वावलंबन  प्रा त 
कर “िनयामक दिु वधा” का सज
ृ न करते  ह और िफर भी अ य दे श  से  िवकास सहायता की 
माँग करते ह (बेहरा 2020)। 

उब टू  एक  अ य  प्रासंिगक  अवधारणा  है ।  ज़ल


ु  ु म,  उब टू  को  “उम टू  उम टू  गाबा टू” 
अथवा “एक  यिक्त अ य लोग  के मा यम से  ही एक  यिक्त है ” से  यक्त िकया जाता है । 
इसका संबंध इस िवचार से  है   िक  यिक्त अिनवायर्  प से  ‘पूण’र्  का िह सा है   और वा तव 
म वह समद
ु ाय के सम प है । यह िचर थायी सामािजक  यव था के िनमार्ण हे त ु “स मान, 
अितिथ-स कार, अ यो यता, संयुक्तता, और अ यो या य” को नैितक उपकरण ” के  पे  म 
ृ )।  उब टू की धारणा एक समह
प्र तुत करता है  (ए कोया 2009, ि मथ 2020 म उ धत ू वादी 
िव वदशर्न  पर  यान  किद्रत  करती  है   जो  “ यव था  के  अिधक  िनयामक  िनवर्चन ”  के  साथ 
संरेिखत है   और “ याय, समानता, इ यािद जैसे  त  व ” पर िवचार करती है   (ि मथ 2020)। 
उब टू की धारणा यह मानती है   िक जब समद
ु ाय म  यव था अशांत हो, उदाहरणतया संघषर् 
के  वारा, तब  यव था की भावना को वापस लाने  के िलए सामिू हक प्रयास की आव यकता 
होती है । इसका अथर् है  िक हर कोई, हर िकसी के प्रित उ रदायी है , िकसी कतर् य की भावना 
के कारण नहीं, अिपतु  इस कारण की वे  अपथ
ृ क्करणीय  प से  जड़
ु  े हुए ह। इसी प्रकार, एक 
के प्रित अ याय, सभी लोग  के प्रित अ याय है । यह पि चम के  यिक्त व की  यिक्तवादी, 
वाथीर् समझ के िव ध है । 

पि चम अ ीकी रा य  की  याख्या प्रदान करते हुए समीर अमीन (1976) ने ‘कद्र (कोर) 


और  पिरिध’  की  अवधारणा  का  प्रितपादन  िकया।  अमीन  “उ पादन  के  पिरि थितय   और 
संबंध ”  के  बारे   म  सोच  रहे   थे  (मािटर् यू सेन  1997  म  उ धत
ृ )।  अमीन  ने  दो  आदशर्-प्र प 
118
सामािजक  प्रितमान  प्रदान  िकया—आ म-किद्रत  अथर् यव था  और  पिरधीय  अथर् यव था। 
आ म-किद्रत अथर् यव था अ म-िनभर्र है   िकंतु  वहाँ  आ म-पयार् तता का अभाव है । वह वह
ृ त 
अंतरार् ट्रीय  यापार  पर  िनभर्र  है ।  दस
ू री  ओर,  पिरधीय  अथर् यव था  के  पास  एक 
“अितिवकिसत  िनयार्त  क्षेत्रक”  है   जो  िवलासी  उपभोग  के  व तुओं  का  उ पादन  करती  है  
(मािटर् यू सेन  1997)।  हम  यहाँ  पँज
ू ी  के  संचलन  मे  पँज
ू ीवाद  को  दे ख  सकते  ह,  लेिकन 
उ पादन  िविध  पूव-र् पँज
ू ीवादी  ही  है ।  इसी  कारण  कद्र  पिरिध  से  संसाधन  और  स ते  म  का 
िन कषर्ण  करता है   और  उ च लाभ  का अजर्न करता है । पराि तता का यह संबंध असमान 
आदान-प्रदान पर आधािरत है  और इस असमिमत संबंध के कारण पराि तता जारी रहती है । 

3.3  लैिटन अमेिरका : िवकास और पराि तता 

आंद्रे  गु डर  ै क (1966) ने  “अ पिवकास के िवकास” का िवचार िदया।  ै क के अनुसार, 


अनुभव  की  िभ नता  के  कारण  तीसरी  दिु नया  कभी  भी  पि चम  वारा  िलए  गए  मागर्  का 
अनुगमन  नहीं  कर  सकती  (सो  1990)।  पि चम  ने  उपिनवेशवाद  का  अनुभव  नहीं  िकया 
जबिक  तीसरी  दिु नया  के  अिधकांश  दे श  पि चम  के  भत
ू पूव र् उपिनवेश  ह।  इसिलए  ै क  ने 
आधुिनकीकरण  मत-संप्रदाय  के  ‘आंतिरक  प टीकरण’  को  खािरज  िकया  और  ‘बा य 
प टीकरण’ पर बल िदया। साधारण श द  म, तीसरी दिु नया का िपछड़ापन सामंतवाद अथवा 
अिभजाततंत्र  के  कारण  नहीं  था,  बि क  यह  औपिनवेिशक  अनुभव  तथा  िवेदेशी  प्रभु व  का 
पिरणाम था। 

ै क ने  तीसरी दिु नया के अ पिवकास की  याख्या करने  के िलए “मेट्रोपोिलस-सैटेलाइट 


प्रितमान”  का  िन पण  िकया।  औपिनशीकरण  ने  मेट्रोपोल  (अथवा  उपिनवेशवािदय )  और 
सैटेलाइट  (अथवा  उपिनवेश)  के  बीच  एक  ऐसे  संपकर्  का  िनमार्ण  िकया  जो  यापार  के 
असमान संबंध पर आधािरत था। संपूण र् अिधशेष का अिधग्रहण मेट्रोपोल  वारा िकया जाता 
िजसने  सैटेलाइट  गरीब  रह  जाता।  थानीय  बूजआ
ुर्   ने  भी  सैटेलाइट  के  बाहर  अिधशेष  का 
पलायन  कर  इस  अ पिवकास  म  योगदान  िकया  और  इसे  आंतिरक  तर  पर  िनवेश  और 
िवकास के िलए उपयोम म ना लाते हुए अंतरार् ट्रीय असमानता को कायम रखा। इसी कारण, 
िव व बाजार के साथ संपकर् के कारण अ पिवकास का िवकास घिटत हुआ। िव व बाजार से 
संपकर् तोड़ना इस दोषपूण र् चक्र से िनकलने का एकमात्र तरीका है  (सो 1990)। 

पराि तता िस धांत  वारा िव तािरत  वाय ता का िस धांत एक मह व


  पूण र् िस धांत है । 
वाय ता के िस धांत का अिभप्राय है , “बा य िनयंत्रण और/अथवा प्रभाव से  वतंत्रता, प्र येक 
राजनीितक  समद
ु ाय  वारा  वयं  पर  शासन  की  क्षमता  होना”।  पराि तता  की  पिरभाषा  है  
“बाहरी  रा ट्र   और  उ योग   पर  व तप
ु रक  आिथर्क  अधीनता  की  ि थित”।  इसे  वाय ता  के 
िस धांत की प्राि त म प्रमख
ु  बाधा के  प म दशार्या जाता है । (काड सो और फ़ैले टो 1979, 

119
कैि किवक  2020  म  उ धत
ृ )।  पँज
ू ीवादी  म  िवभाजन  वारा  उ प न  वैि वक  पद-सोपिनकी 
को  चुनौती  दे ते  हुए,  पराि तता  िचंतन  तीसरी  दिु नया  के  रा य   वारा  आ मिनणर्य  और 
आ मबोध की प्राि त के िलए संप्रभत
ु ा और  वाय  िवकास के मागर्  को अपनाता है   (काड सो 
और फ़ैले टो 1979; कैि किवक 2020)। 

3.4  चीन : क यश
ु सवाद और िट्र यट
ू री  यव था 

संप्रभ ु समानता  के  आधार  पर  संयोिजत  क्षैितज  वे टफािलया  यव था  के  िवपरीत, 
िटयांिक्सया  अथवा  “ऑल-अंडर-हे वन”  की  अवधारणा  पद-सोपिनकी  पर  संयोिजत  है   (बेहरा 
2020)। यह एक सोपािनक  यव था है  जो  वतंत्रता से अिधक  यव था, नैितकता से अिधक 
िविध,  और  लोकतंत्र  तथा  मानवािधकार  से  अिधक  अिभजन  अिभशासन  को  मू य  दे ती  है  
(कै लाहै न 2008)। ज़ाओ (2005) के अनुसार, आज अंतरार् ट्रीय राजनीित म सम या “िवफल 
रा य” की नहीं  बि क एक “िवफल िव व” की है   जहाँ  अ यव था और अराजकता िव यमान 
है ।  जहाँ  कई  लोग  िव व  अ यव था  को  एक  राजनीितक  अथवा  आिथर्क  सम या के  प  म 
दे खते  ह, ज़ाओ का तकर् है   िक िव व अ यव था एक संक पना मक सम या है । “िव व को 
यवि थत  करने  के  िलए  पहले  हम  नए िव व  संक पनाओं  का  िनमार्ण  करना  होगा  िजससे 
नई  िव व  संरचनाएँ  प्रा त  ह गी”  (ज़ाओ  2005,  कै लाहै न  2008  म  उ धत
ृ )।  वे टफािलयाई 
यव था  जैसी  पा चा य  संक पनाओं  की  िनंदा  करते  हुए  ज़ाओ  तकर्  करते  ह  िक  केवल 
िटयांिक्सया  अथवा  “ऑल-अंडर-हे वन”  की  चीनी  संक पना  ही  समाधान  है ।  िटयांिक्सया  एक 
“क पनालोक  है   जो  ऐसे  िव लेषणा मक  और  सं थाना मक  ढाँचे  को  थािपत  करता  है   जो 
िव व  की  सम याओं  के समाधान के  िलए  आव यक  ह”।  शा त्रीय और आधुिनक  श दकोश  
के अनुसार, िटयांिक्सया का अथर्  चीन भी है । साम्रा यवादी चीन की िटयांिक्सया अिभशासन 
यव था  अ छा  कायर्  कर  रही  थी  जब  तक  इसे  “पि चमी  साम्रा यवाद  की  चन
ु ौती  िमली” 
(कै लाहै न 2008)। इस चन
ु ौती के कारण चीन को जबरन आधिु नक रा ट्र-रा य बनाना पड़ा। 

ज़ाओ  के  लेखनी  के  अनुसार,  िटयांिक्सया  के  तीन  अंतवर्ियत  अथर्  ह।  पहले  अथर्  के 
अनुसार, िटयांिक्सया एक भौगोिलक श द है । िटयान का शाि दक अथर्  है   “आकाश, दे वलोक, 
और जो भी ऊपर है ”, जबिक िसया का अथर् है  “नीचे, िनचला, िन न”। ज़ाओ तकर् दे ते ह िक 
िव व  की  अ यव था  का  उ भव  िव व  के  दशर्न  के  प्रित  अनुिचत  पिरप्रे य  के  उपयोग  से 
होता है । िफर इसी अनुिचत पिरप्रे य के आधार पर सम या का अवधारण और समाधान का 
िन पण  होता  है ।  ज़ाओ  तकर्  करते  ह  िक  मौजद
ू ा  वे टफािलयाई  िव व  यव था  संघषर्  का 
सज
ृ न करती है   क्य िक यह रा ट्र िहत  की प्रित पधार्  पर आधािरत है । इसिलए, हम “िव व 
यव था  के संबंध म वा तिवक  प  से  वैि वक नजिरए से  सोचना चािहए” (ज़ाओ 2005)। 
िव व की सम याएँ  िकसी भी एक रा ट्र, महाशिक्त, क्षेत्र अथवा अंतरार् ट्रीय संगठन के िलए 

120
बहुत बड़ी ह। िटयांिक्सया एक िविध है   िजससे  वा तिवक  प से  वैि वक पिरप्रे य के  वारा 
िव व  की  सम याओं  और  िव व  यव था  को  दे खा  जा  सकता  है ।  यह  िव व  को  एक  सवर्-
समावेशी  (वुवाई)  तरीके  से  दे खने  का  अवसर  दे ता  है ।  िव व  यव था  होने  के  िलए  यह 
आव यक है  िक हम “िव व का माप एक िव व मानक के अनुसार कर, ना िक रा ट्र िहत  के 
अनुसार”। ज़ाओ (2005) तकर् करते ह िक हम “सम याओं की संपूण र् और िनद ष समझ और 
सवर्-समावेशी समाधान तब प्रा त हो सकते  ह जब हम ‘सवर्त्र के दशर्न’ के मा यम से  िव व 
पर िचंतन कर”।  

इस भौितक और भौगोिलक भाव के अितिरक्त, िटयांिक्सया के दो अ य मह  वपण


ू  र् अथर् 
भी  ह  जो  ना  केवल  वणर्ना मक  ह,  अिपत ु िनयामक  भी  ह—  (1)  “सभी  लोग”  के  प  म 
िटयांिक्सया, और (2) “िव व सं थान” के  प म िटयांिक्सया (ज़ाओ 2005, कै लाहै न 2008 
ृ )।  “सभी  लोग”  के  प  म  िटयांिक्सया  यह  बतलाता  है   िक  “चीन  का  अितउदार 
म  उ धत
िचंतन  ‘अ य’  को  अ वीकार  नहीं  करता  (ज़ाओ  2005,  कै लाहै न  2008  म  उ धत
ृ )।  जहाँ 
पि चम  िव व  को  प्रजाित  (रे स)  के  आधार  पर  िवभािजत  करता  है ,  “चीनी  िचंतन  इसे  एक 
नैितक तकर् के आधार पर संयुक्त करता है  जो सां कृितक है ” (कै लाहै न 2008)। िटयांिक्सया 
यव था  का  उ दे य  “ पांतरण”  (हुवा)  है   जो  व  और  अ य  को  पिरवितर्त  करता  है ।  यह 
‘अनेक’  को  ‘एक’  म  पांतिरत  कर”  ‘अ यव था’  को  िनयामक  प  से  यवि थत  करता  है  
(ज़ाओ  2005)।  िटयांिक्सया  यव था  को  “िव व  सं थान”  के  प  म  पिरभािषत  करते  हुए 
ज़ाओ तकर् करते  ह िक “वैकि पक िव व  यव था की  थापना और रखरखाव िव व सं थान 
के मा यम से होना चािहए” (ज़ाओ 2005)। चँ िू क िटयांिक्सया का संबंध “मह म  यव था” से 
है , एक िव व सं थान के  प म इसकी संरचना के पास “मल ू  वैधता” है   (ज़ाओ 2005)। 
ू भत
यूरोपीय संघ और संयुक्त रा ट्र की सीमाओं  को अधोरे िखत करते  हुए ज़ाओ तकर् करते  ह िक 
“वे  ऐसे  िव वदशर्न  से  सीिमत  ह जो  रा ट्र-रा य  पर  आधािरत  है ” (कै लाहै न 2008)। अत:, 
जहाँ  पि चम राजनीितक जीवन को “ यिक्त, समद
ु ाय, और रा ट्र-रा य के  तर ” के अनुसार 
संगिठत  करता  है ,  चीनी  राजनीितक  िचंतन  “िटयांिक्सया,  रा य,  और  पिरवार”  के  तर   को 
दे खता है । जहाँ  पि चमी िव व  यिक्त को वरीयता दे ता है   और रा ट्र-रा य के संदभर्  म कायर् 
करता  है ,  िटयांिक्सया  यव था  सबसे  बड़े  तर,  अथार्त ्  िटयांिक्सया,  पर  आरं भ  होता  है  
(कै लाहै न 2008; ज़ाओ 2005)। 

िटयांिक्सया  यव था इस आधािरका पर आधािरत है   िक िव व एकता के पिरणाम व प 


िव व  शांित  और  िव व  समरसता  की  प्राि त  होगी।  घरे ल ू और  अंतरार् ट्रीय  यव था  से  जड़
ु ी 
चीन की नैितक  यव था को वे टफािलयाई िव व  यव था म कायर्रत  वाथीर्  पि चमी रा ट्र-
रा य की िहंसक प्रविृ य  ने  न ट कर िदया। िटयांिक्सया  यव था िव व की सम याओं  के 
संभािवत  समाधान  के  प  म  प्रद   है ।  िट्र यूटरी  यव था  पर  आधािरत  िव व  यव था  का 

121
यह  दशर्न,  िजसे  पैक्स  िसिनका  कहा  जाता  है ,  यव था  के  एक  ऐसे  वैकि पक  दशर्न  को 
प्रकट  करता  है   जो  सोपािनक  है   और  पि चमी  िव वान   के  अराजकता  की  पूवध
र् ारणा  को 
चुनौती दे ता है । 

गआ
ु ंजी  अंतरार् ट्रीय  की  चीनी  अवधारण  से  संबंिधत  एक  अ य  िवचार  है ।  गआ
ु ंजी  का 
शाि दक  अथर्  है   “बाधाओं  के  आर-पार  संपकर्”।  इस  िवचार  के  अनुसार,  “वैि वक  जीवन  का 
जिटल  व प संबंधपरकता (िरलेशनैिलटी) और गितशीलता से  संबंिधत है , ना िक  व-अ य/ 
कद्र-पिरिध प्रितमान  म अंतिनर्िहत ि थर और  थािनक  यव थापन से” (कवा की 2018)। 
यह संबंधपरक  ढाँचा िनयम-आधािरत ढाँचे  के िव ध है । यह एक  “कारर् वाई के िलए संदभर्” 
प्रदान  करता  है   जहाँ  िव व  के  मामल   म  “सिक्रय,  समिपर्त,  और  िज मेदार  सहभािगता”  से 
उ दे य  की प्राि त हो सकती है  (कवा की 2018)। 

4.  अंतरार् ट्रीय संबंध म  वदे शी (होमग्रोन) सै धांतीकरण 

अंतरार् ट्रीय संबंध की िव याशाखा म एक नई  िच का आरं भ हुआ है   जो “ वदे शी (होमग्रोन) 


सै धांतीकरण” का उपयोग करती है । यह “पिरिध म पिरिध के बारे  म मल
ू  सै धांतीकरण” को 
प्रकट करने  का प्रयास है । (एिड ली और िब टे िकन 2018)। एिड ली और िब टे िकन (2018) 
ने  वदे शी सै धांतीकरण का प्रा िपक ढाँचा प्रदान िकया है । उ ह ने  वदे शी सै धांतीकरण को 
तीन  समह
ू   म  िवभािजत  िकया  है —  समु िदष ्ट  (िरफरे ि शयल),  पिरवतर्क  (ऐ टरे िटव)  और 
प्रामािणक  (ऑथेि टक)।  यह  समह
ू   क्रमश:  समु दे य  की  िबंद,ु   प्रसंगाधीन  पांतरण  प्रदान 
करने  की संभावना, और संक पना मक नवीनता की संभा यता के आधार पर बनाए गए ह। 
एिड ली और िब टे िकन (2018) का तकर् है  िक कद्र (कोर) के बाहर सै धांतीकरण की मौजद
ू ा 
समीक्षा  म  से  अिधकांश  या  तो  “भ-ू सां कृितक  वगीर्करण,  जैसे  िक  चीनी  अथवा  जापानी 
अंतरार् ट्रीय  संबंध  के  िस धांत”  पर  िनभर्र  करते  ह,  या  िफर  एक  िवशेष  दे श  म  वतंत्र 
सै धांतीकरण  पर।  ऐसे  भ-ू सां कृितक  वगीर्करण  अंतरार् ट्रीय  संबंध  को  सै धांतीकृत  करने  के 
उन  मू यवान  प्रयास   को  पहचानने  म  अपयार् त  ह  जो  यूरोप  अथवा  अमेिरका  के  बाहर 
उ प न होते ह। 

5.  िन कषर् 

अंतरार् ट्रीय  संबंध  की  िव याशाखा  पर  पि चम  का  प्रभु व  है ।  इस  संबंध  म  इस  अ याय  म 
यूरोकिद्रकता  की  अंतिनर्िहत  सम याएँ  और  अंतरार् ट्रीय  संबंध  की  वैकि पक  याख्याएँ  प्रदान 
की  गई  ह।  अ य  िवचार   के  साथ  संप्रभत
ु ा,  यव था  और  रा य  की  वैकि पक  अवधारणाएँ 
यूरोकिद्रक अवधारणाओं  के परे   दे खने  की संभावना और वांछनीयता की ओर संकेत करती ह। 
यथािप, यहाँ थोड़ा सचेत रहने की आव यकता है । िचंता की दो िबंदए
ु  ँ ह। पहला, जब हम यह 
तकर्  करते  ह  िक  िस धांत  को  संदभर्  िवशेष  के  बारे   म  होना  चािहए,  तब  इस  पर  थानीय 
122
अथवा  सहजनज्ञानवाद  का  आरोप  लगता  है ।  दस
ू रा,  जब  यह  तकर्  िकया  जाता  है   िक  एक 
वैकि पक  िस धांत  को  सवर्त्र  लाग ू िकया  जा  सकता  है ,  तब  यह  उसी  चुनौती  का  सामना 
करन को बा य हो जाता है  जो मौजूदा सावर्भौिमक और “वह
ृ त िस धांत” को करना पड़ता है । 
इसिलए,  अंतरार् ट्रीय  संबंध  के  िवषय  क्षेत्र  के  एक  अिधक  संपूण र् िचत्रण  को  प्रदान  करने  के 
िलए िविभ न वैकि पक पिरप्रे य  पर िवचार करना आव यक है । वैि वक दिक्षण के ह तक्षेप 
यह  संकेत  करते  ह  िक  यह  वा तव  म  संभव  है   िक  हम  अिधक  समावेशी  और  संवेदनशील 
सै धांतीकरण की क पना कर सक। 

6.  संदभर्-सच
ू ी और अितिरक्त पाठ-सामग्री 

अमीन, समीर (1976), अनईक्वल डेवलपमे ट, ससेक्स : हाव टर प्रेस। 

आचायार्,  अिमताव  और  बैरीर्  बुज़ान  (2007),  “वाई  इज़  दे यर  नो  नॉन-वे टनर्  इंटरनैशनल 
िरलेश स  थेरी?  ऐन  इंट्रोडक्शन”,  इंटरनैशनल  िरलेश स  ऑफ़  द  एिशया  पैिसिफ़क,  अंक  7, 
प ृ  ठ 287–312। 

एिड ली,  असल  और  गॉ का  िब टे िकन  (2018),  “इंट्रोडक्शन:  वाइडिनंग  द  व डर्  ऑफ़ 
आईआर”  और  “अ  टाइपोलॉजी  ऑफ़  होमग्रोन  थेयराइिज़ंग”,  असल  एिड ली  और  गॉ का 
िब टे िकन  (सं.)  वाइडिनंग  द  व डर्  ऑफ़  इंटरनैशनल  िरलेश स  :  होमग्रोन  थेयराइिज़ंग  म, 
ऑक्सॉन और  यू यॉकर्: रॉलेज। 

ए कोया,  ए वस
ु ेलेलो  (2009),  “उब टू  :  ग्लोबलाइज़ेशन,  ऐक्कॉमोडेशन,  एंड  कंटे टे शन  इन 
ं टन डीसी: अमेिरकन यिू नविसर्टी।  
साउथ अ ीका,” पी-एच.डी. शोध प्रबंध, वािशग

कवा की, एमीिलयन (2018), “चाईनीज़ कॉ से स एंड िरलेशनल इंटरनैशनल पॉिलिटक्स”, 


असल  एिड ली  और  गॉ का  िब टे िकन  (सं.)  वाइडिनंग  द  व डर्  ऑफ़  इंटरनैशनल  िरलेश स: 
होमग्रोन थेयराइिज़ंग म, ऑक्सॉन और  यूयॉकर् : रॉलेज। 

किवराज, सिु द ता (2010), द ट्रै जेक्टरी ऑफ़ द इंिडयन  टे ट : पॉिलिटक्स एंड आइिडयाज़, 


नई िद ली : पमार्ने ट  लैक। 

काड सो,  एफ.  एच.  और  ए ज़ो  फ़ैले टो  (1979),  िडपे डे सी  एंड  डेवलपमट  इन  लैिटन 
अमेिरका  (माज री  मै िट गली  युिक्वर्डी  वारा  अनुवािदत),  बकर्ली  :  यूिनविसर्टी  ऑफ़ 
कैिलफ़ॉिनर्या प्रेस। 

कैि किवक,  आसली  (2020),  “फ़ॉरे न  पॉिलसी”,  आलीर्न  बी.  िटकनर  और  कैरे न  ि मथ 
(संपािदत)  इंटरनैशनल  िरलेश स  ॉम  द  ग्लोबल  साउथ  :  व र्स  ऑफ़  िड फरे स  म, 
ऑक्सॉन और  यूयॉकर् : रॉलेज। 

123
कै लाहै न,  िवि लयम  ए.  (2008),  “चाइनीज़  िवज़ स  ऑफ़  व डर्  ऑडर्र  :  पोस ्ट-हे जेमिनक 
ऑर अ  यू हे जेमनी?”, इंटरनैशनल  टडीज़ री य,ू  10: 749–761। 

चक्रबतीर्,  दीपेश  (2000),  प्रोिवि शयलाइिज़ंग  यूरोप  :  पो टकोलोिनयल  थॉट  एंड  िह टोिरकल 
िडफरस, िप्रं टन : िप्रं टन यूिनविसर्टी प्रेस। 

ज़ाओ, िट गयै ग (2005), द िटयांिक्सया िस टम : अ िफ़लॉसफ़ी फ़ॉर द व डर्  इं टी यूशन, 


नानियंग : िजयांगसू िजआऊ चुबा शे। 

डेिवस, ऐलेक्ज़ै डर ई, िवनीत ठाकुर और पीटर वेल (2020), द इ पेिरयल िडिसि लन : रे स 


एंड द फ़ाउं िडंग ऑफ़ इंटरनैशनल िरलेश स, लंदन :  लट
ू ो प्रेस। 

डैडस, नूर और रै िवन कॉ नेल (2012), “द ग्लोबल साउथ,” क टे क् स, 11 (1): 12–13। 

डोटी,  रॉक्सान  (1996),  इ पेिरयल  इनकाउं टसर्  :  द  पॉिलिटक्स  ऑफ़  नॉथर्-साउथ  िरलेश स, 
िमिनयैपोिलस : यिू नविसर्टी ऑफ़ िमने सोटा प्रेस। 

िनयांग,  एमी  (2018),  द  पो ट-कोलोिनयल  टे ट  इन  ट्रा ज़ीशन:  टे टनेस  एंड  मो स  ऑफ़ 
सॉवरटी,  यूयॉकर् : रोमैन एंड िलटलफ़ी ड। 

ै क, आंद्रे गु डर (1966), “द डेवलनमे ट ऑफ़ अंडरडेवलनमे ट”, मंथली री य,ू  18 (4)। 

बाजपेयी,  कांित  (2003),  “इंिडयन  कॉ से श स  ऑफ़  ऑडर्र  एंड  जि टस  :  नेह िवयन, 
गांिधयन, िह द ु व एंड नीयो-िलबरल”, रोज़मैरी फूट, जॉन गै िडस और ऐं य ू हरल (संपािदत) 
ऑडर्र एंड जि टस इन इंटरनैशनल िरलेश स म,  यूयॉकर् : ऑक्सफ़डर्  यूिनविसर्टी प्रेस, प ृ  ठ 
236-261। 

बेहरा,  नवनीता  च ढा  (2020),  “ टे ट  एंड  सॉवरटी”,  आलीर्न  बी.  िटकनर  और  कैरे न  ि मथ 
(संपािदत) इंटरनैशनल िरलेश स  ॉम द ग्लोबल साउथ: व र्स ऑफ़ िड फरे स म, ऑक्सॉन 
और  यूयॉकर् : रॉलेज। 

ब्राउन, िवि लयम (2006), “अ ीका एंड इंटरनैशनल िरलेश स : अ कमट ऑन आईआर थेरी, 


अनाकीर् एंड  टे टहुड”, री य ू ऑफ़ इंटरनैशनल  टडीज़, 32 (1): 119-143। 

मािटर् यू सेन, जॉन (1997), सोसायटी,  टे ट एंड माकट : अ गाइड टु क पीिटंग थेरीज़ ऑफ़ 


डेवलनमे ट, लंदन : ज़ेड बुक्स िल.। 

सरकार,  िबनॉय  कुमार  (1919),  “िहंद ू थेरी  ऑफ़  इंटरनैशनल  िरलेश स”,  अमेिरकन 
पॉलीिटकल सांइ स री यू, 13 (3): 400–414। 

124
सो, ऐि वन वाई. (1990), सोशल चज एंड डेवलपमे ट : मॉडनार्इज़ेशन, िडपे डे सी एंड व डर् 
िस टम क्रीज़, लंदन : सेज पि लकेशन। 

ि मथ, कैरे न (2020), “ऑडर्र, ऑडर्िरंग एंड िडसऑडर्र”, आलीर्न बी. िटकनर और कैरे न ि मथ 


(सं.) इंटरनैशनल िरलेश स  ॉम द ग्लोबल साउथ : व स
र्  ऑफ़ िड फरे स, ऑक्सॉन और 
यूयॉकर् : रॉलेज। 

हॉबसन,  जॉन  एम.  (2012),  द  यूरोसेि ट्रक  कॉ से शन  औफ़  व डर्  पॉिलिटक्स  :  वे टनर् 
इंटरनैशनल थेरी, 1760-2010, कैि ब्रज : कैि ब्रज यूिनविसर्टी प्रेस। 

हॉबसन, जॉन एम. (2013) “द अदर साइड ऑफ़ द वे टफािलयन  ं िटयर”, संजय सेठ (सं.) 


पो टकोलोिनयल थेरी एंड इंटरनैशनल िरलेश स, लंदन : रॉलेज। 

हॉबसन,  जॉन  एम.  (2020),  “ग्लोबलाइज़ेशन”,  आलीर्न  बी.  िटकनर  और  कैरे न  ि मथ  (सं.) 
इंटरनैशनल  िरलेश स  ॉम  द  ग्लोबल  साउथ  :  व र्स  ऑफ़  िड फरे स  म,  ऑक्सॉन  और 
यूयॉकर् : रॉलेज। 

125
इकाई-3 

पाठ-1 : प्रथम िव वयु ध : कारण और पिरणाम 


पाठ-2 : बो शेिवक क्रांित का मह व  
नारायण रॉय

भिू मका

समकालीन  िव व  प्रणाली  एक  वै वीकृत  एकीकृत  प्रणाली  है   िजसम  प्र येक  रा य  का,
अंतरार् ट्रीय  क्षेत्र  के  स दभर्  म  यवहार  यह  िनधार्िरत  करता  है   िक  दिु नया  िकस  प  म 
िवकिसत  होगी? लेिकन  कुछ  सिदय   पहले  ऐसा  नहीं  था। आधुिनक  भम
ू ड
ं लीकृत  दिु नया  की 
उ पि   से  पहले  िव व  राजनीित, मख्
ु य  प  से  यूरो-किद्रत  थी  और  उस  समय  जो  कुछ  भी 
यूरोपीय  महा वीप  म  हुआ  था, उसने  आधुिनक  िव व  यव था  के  उदय  को  काफी  प्रभािवत 
िकया है । एक राजनीितक इकाई के  प म, रा ट्र-रा य का और आिथर्क  यव था के  प म 
पँज
ू ीवाद का उदय भी यरू ोप म हुआ था। रा ट्रवाद, जो रा ट्र-रा य के िवचार से संबंिधत है , और 
आिथर्क  साम्रा यवाद, जो  पँज
ू ीवाद  से  संबंिधत  है , ऐसे  प्रमख
ु   कारक  थे  िज ह ने  उ नीसवीं 
शता दी के अंतरार् ट्रीय संबंध को आकार िदया था। रा ट्रवाद, आिथर्क साम्रा यवाद और यूरोपीय 
दे श   वारा  अपने  म य  शिक्त  संतुलन  थािपत  करने  का  प्रयास, आिद  ही  वे  कारण  थे 
िजनके कारण अंततः 1914 म यु ध हुआ िजसका न तो यरू ोप और न ही दिु नया ने पव
ू  र् कभी 
अनभु व िकया था। इस यु ध को िव व इितहास का सबसे घातक मानवीय संघषर् कहा जाता है  
िजसने कई दे श  को िवकास की िदशा से मोड़ खंडहर जैसी ि थित म पहुँचा िदया, और लाख  
सै यकिमर्य   और  नागिरक   की  इस  कारण  मौत  हो  गई।  इसके  अितिरक्त  इस  यु ध  ने 
असंख्य अ य लोग  को शारीिरक और मनोवैज्ञािनक  प से भी प्रभािवत िकया। इस यु ध की 
प्रकृित और िवनाशकारी प्रभाव  के कारण ही इस यु ध को प्रथम िव वयु ध कहा गया।

िट्रपल  एंटे ते (Triple Entente)  और  िट्रपल  एलायंस (Triple Alliance)  के  बीच  का  तनाव 
ू   फ्रांज  फिडर्नड, जोिक  ऑि ट्रया-हं गरी  के  िसंहासन  का 
उस  समय  भड़क  उठा  जब  आकर् यक
उ रािधकारी था, की बोि नयाई सबर्  रा ट्रवादी  वारा, उसकी सिजर्यो की यात्रा के दौरान ह या 
कर दी गयी। ऑि ट्रया-हं गरी ने हमले के िलए सिबर्या को दोषी ठहराया। 28 जल
ु ाई, 1914 को 
ऑि ट्रया-हं गरी  ने  सिबर्या  पर  आक्रमण  करने  की  घोषणा  कर  दी  और  दोन   दे श   को  उनके 
संबंिधत सहयोिगय  ने  समथर्न िदया और ज द ही कई अ य दे श भी इस यु ध म शािमल 
हो गए और इस तरह दो दे श  के बीच का यु ध मानव इितहास के पहले िव वयु ध म बदल 
गया। इस यु ध म शािमल दे श मख्
ु यतः दो गठबंधन  म िवभािजत थे, िजसम एक ओर िट्रपल 
एंटटे   (फ्रांस, िब्रिटश साम्रा य और  स), िज ह एलाइड और एसोिसएटे ड शिक्तय  के नाम से 

126
भी  जाना  जाता  है , और  दस
ू री  ओर  िट्रपल  एलायंस  (जमर्नी, ऑि ट्रया-हं गरी  और  ओटोमन 
साम्रा य)  िज ह  कद्रीय  शिक्तय   के  नाम  से  भी  जाना  जाता  है , एक-दस
ू रे   के  आमने  सामने 
थे। तीन साल बाद, तट थता की अपनी नीित को  याग कर, अमेिरका भी यु ध म शािमल हो 
गया। यु ध के ही दौरान, स म बो शेिवक क्रांित िछड़ गई थी और उसने  वयं को यु ध से 
अलग  कर  िलया  था।  नवंबर  1918 म  जमर्नी  के  िबना  शतर्  आ मसमपर्ण  करने  के  साथ  ही 
इस  यु ध  की  समाि त  हुई।  उस  समय  िविभ न  िव वान   ने, इस  यु ध  को  "यु ध   की 
समाि त के िलए यु ध" के  प म िचित्रत िकया था, पर तु  इसके िवपरीत यह यु ध दिु नया 
को  दस
ू रे   िव वयु ध  की  ओर  लेकर  गया।  यह  समझने  के  िलए  िक  प्रथम  िव व-यु ध  क्य  
हुआ और इसके क्या प्रभाव रहे , हम उस समय के यूरोप और िव व की समकालीन ि थित 
को समझने  की आव यकता है । प्रथम िव व-यु ध के प ृ ठभिू म की चचार्  हम इस अ याय के 
अग्रिलिखत अनुभाग म करगे  और त प चात ् िव वयु ध के कारण  और प्रभाव  की चचार्  की 
जाएगी।

रा ट्र रा य का उदय

कैथोिलक है सबगर्  और प्रोटो टट रा य  के बीच, यूरोपीय महा वीप पर वचर् व के िलए हुआ 


तीस वषीर्य यु ध (1618-1648) "पीस ऑफ वे टफेिलया" 1648 नामक संिधय  की एक  ंख
ृ ला 
पर ह ताक्षर के साथ समा त हुआ। इसके बाद, िव व राजनीित का पिर य धीरे -धीरे   बदलता 
रहा, िव व ईसाई धमर्  और रोमन साम्रा य के वचर् व से  दरू , और रा ट्र-रा य (शाि दक रा ट्र 
रा य का अथर्  है   एक एकल रा ट्र का प्रभु व एक एकल रा ट्र का प्रभु व) के उ भव की ओर 
बढ़ता  रहा, जो  अब  वयं  के  संसाधन   और  नागिरक की  क्षमता  का  उपयोग  अपने  िववेक 
अनुसार, िबना िकसी बाहरी और भीतरी िनयंत्रण, कर सकते  थे। इन यूरोपीय रा य  के म य 
आपसी शिक्त संतुलन बनाए रखने और अपनी सापेक्ष शिक्त को अिधकतम करने की होड़ के 
कारण कई यु ध हुए। 18वीं  शता दी के यूरोप म, पि चमी दिु नया म दो महान क्रांितयाँ  हुईं,
िजसके पिरणाम व प दो अलग-अलग रा य  का िनमार्ण हुआ। इनम से  प्रथम क्रांित 1776
म हुई जब िब्रटे न के तेरह अमेिरकी उपिनवेश  ने  वयं  को िब्रटे न से  वतंत्र घोिषत िकया। 
इन  तेरह  उपिनवेश   ने  एक  साझा  संिवधान  अपना  कर, संयुक्त  रा य  अमेिरका  नामक  एक 
पिरसंघ  का  गठन  िकया।  ऐसी  ही  दस
ू री  क्रांित  थी, फ्रांसीसी  क्रांित, जो  1789  म  ' वतंत्रता,
समानता  और  बंधु व' के  नारे   के  साथ  हुई  थी।  फ्रांस  की  क्रांित  के  बाद, यरू ोप  म, एक  नए 
रा ट्र-रा य  के  िनमार्ण  की  प्रिक्रया  को  गित  िमली  और  इस  प्रिक्रया  ने  समकालीन  यरू ोपीय 
शिक्त  संतल
ु न  को  चन
ु ौती  दी। इसका  एक  उदाहरण  है , नेपोिलयन  बोनापाटर्   वारा  फ्रांसीसी 
क्रांित  के  कारण  उभरे   अि थरता  का  लाभ  उठा  वयं  को  फ्रांस  का  राजा  घोिषत  करना  था। 
फ्रांस  का  शासक  बनने  के बाद, नेपोिलयन बोनापाटर्   ने  अपनी िव तारवादी नीितय  को लाग ू
करना  प्रार भ  िकया  िजसके  कारण  सभी  यरू ोपीय  दे श  फ्रांस  के  िखलाफ  हो  गए।  इस  प्रकार 

127
की  नीितयाँ  यूरोपीय  शांित  के  िलए  खतरा  बन  उभरी  और  ऐसी  ि थित  म  शिक्त  संतुलन 
बनाए रखने के िलए, समकालीन यूरोप म शिक्त गठबंधन बनाने की प्रविृ  का उभार हुआ। 

वाटरल ू का यु ध और िवयना कांग्रेस

उ नीसवीं  शता दी  की  दो  महान  घटनाएँ  नेपोिलयन  के  शासनकाल  का  अंत  और  िवयना 
कांग्रेस का होना थीं। फ्रांसीसी क्रांित के दौरान नेपोिलयन बोनापाटर्   फ्रांस का शासक बना था 
और  त प चात ्  उसने  कई  यु ध  जीते  थे।  वह  स पण
ू  र् यरू ोप  पर  अपना  आिधप य  थािपत 
करना  चाहता  था  लेिकन  समद्र
ु   पर  िब्रिटश  आिधप य  के  कारण  ऐसा  संभव  नहीं  हुआ।
नेपोिलयन के शासन के िलए, एक और चुनौती, उन रा य  म रा ट्रवाद की लहर का उ प  न 
होना था, िजन पर उसने िवजय प्रा त की थी। ऐसी ि थित और चन
ु ौितय  के कारण बोनापाटर्  
का पतन िनि चत सा हो गया था। जन
ू  1815 म, वाटरल ू की लड़ाई म, नेपोिलयन को िब्रिटश 
और प्रिशयाई से हार का सामना करना पड़ा और इस घटना से यूरोप पर फ्रांस के प्रभु व का 
अंत हो गया। फ्रांस के वचर् व के पतन के बाद, फ्रांस ने  एक संिध पर ह ताक्षर िकए, िजसके 
वारा  लई
ु   चौदहव  को  फ्रांस  का  राजा  बनाया  गया  और  फ्रांस  की  सीमाओं  का  पुनिनर्धार्रण 
िकया  गया। वाटरल ू के  यु ध  से  पूव र् ही, यूरोप  की  सीमाओं  को  पुनः  सीमांकन  करने  के 
उ दे य से, िसतंबर 1814 म, िवयना (ऑि ट्रया) म, एक यूरोपीय स मेलन (कांग्रेस) शु  िकया 
गया।  इस  स मेलन  म  कई  यूरोपीय  रा य   की  सीमाएँ  िफर  से  िनधार्िरत  की  गईं  लेिकन 
जमर्नी को एक रा ट्र के  प म संगिठत न कर, उसे 39 रा य  के एक संघ के  प म गिठत 
िकया गया। ‘चतु कोणीय गठबंधन’ (Quadruple Alliance), िजसम ऑि ट्रया, िब्रटे न, प्रिशया और 
स शािमल थे, को िवयना संिध को लागू  करने  की िज मेदारी दी गई थी। बाद म, 1818 म,
फ्रांस भी इस गठबंधन म शािमल हो गया और यह 'िक्वंटु ले  गठबंधन' (Quintuple alliance)
बन गया। कांग्रेस की िवयना  वारा  थािपत शांित लंबे समय तक ि थर नहीं रही और पुराने 
गठबंधन  के  थान पर नए गठबंधन बनने लगे।

फ्रांस-प्रिशया यु ध और जमर्नी का पुनगर्ठन

1871 तक जमर्नी का अि त व उस तरह नहीं  था जैसा िक आज है । जमर्नी का पुनगर्ठन 39 


रा य   के  एक  पिरसंघ  के  प  म  िवयना  कांग्रेस  वारा  िकया  गया  था, पर तु  यह  यव था 
अिधक लंबे  समय तक नहीं  बनी रह पायी। प्रिशया, जोिक इस पिरसंघ का सबसे  प्रबल अंग 
था, का चांसलर ओटो वॉन िब माकर् इस पिरसंघ को समा त कर एक नया जमर्न रा ट्र की 
थापना करना चाहता था। इसके िलए िब माकर् ने  "रक्त और लोहे   की नीित" को अपनाया 
था। ऑि ट्रया, जो िक पिरसंघ के सद य  म से  एक था, ने  िब माकर् के जमर्न एकीकरण के 
सपने  की  राह  म  एक  बड़ी  चुनौती  पेश  की। ऑि ट्रया  यूरोप  के  कॉ सटर्   का  सद य  भी  था,
िजसे  यूरोपीय  प्रणाली  को  बनाए  रखने  के  िलए  थािपत  िकया  गया  था।  प्रिशया  की  तरह 

128
ऑि ट्रया  भी  जमर्न  पिरसंघ  पर  अिधप य  थािपत  करना  चाहता  था, लेिकन  उसे  हं गेिरयन,
चेक, लोवाक, पो स और क्रोएिशयाई जैसे  कई गैर-जमर्न रा ट्र  का समथर्न नहीं  िमला। 1866
म, प्रिशया को ऑि ट्रया पर िनणार्यक जीत िमली और ऑि ट्रया का साम्रा य ऑि ट्रया और 
हं गरी  के  दोहरे   राजशाही  म  िवभािजत  हो  गया।  शे सिवग-हो टीन  के  यु ध  म, 1864 म,
प्रिशया ने डेनमाकर् को हराया। डेनमाकर् की हार के बाद, 1870 म, प्रिशया ने फ्रांस पर आक्रमण 
िकया और अक्टूबर 1870 म उसे  हरा िदया। फ्रांस-प्रिशया यु ध म प्रिशया की िनणार्यक जीत 
के साथ, िब माकर् का जमर्नी के पुनगर्ठन का िमशन 50 वष  म पूरा हुआ। प्रिशया का राजा 
जमर्नी का कैसर (राजा) बना और ओटो वॉन िब माकर् जमर्नी का चांसलर (प्रधानमंत्री) बना। 
यु ध के प चात ्, जमर्नी ने फ्रांस पर एक संिध थोप कर फ्रांस के दो प्रांत लोरे न और अलसेस 
को जमर्नी म शािमल कर िलया।

इटली का पन
ु गर्ठन

िवयना की कांग्रेस म, इटली प्राय वीप के नक्शे को पुनः सीमांिकत करने के कुछ प्रयास िकए 


गए थे। िजन क्षेत्र  को पुनः सीमांिकत िकया गया उनम—द िकंगडम ऑफ पीडम ट-सािडर्िनया 
(सािडर्िनया), ट कनी  के  ग्रड  डची, पमार्  के  यूकी, पापल  टे स, और  द  िससली  ऑफ़  द  टू 
िससली (नेप स के पुराने  साम्रा य िसिसली के साथ जड़
ु ा हुआ) शािमल थे  पर त ु यह सभी 
राजनीितक  प  से  खंिडत थे। कई वष  म, कई बार, इस राजनीितक  प से  खंिडत क्षेत्र  को 
संयुक्त  इटली  रा य  म  संगिठत  करने  के  प्रयास  िकया  गए  थे।  19वीं  शता दी  के  म य  म 
इस  प्राय वीप  के  िविभ न  क्षेत्र   म  रा ट्रवादी  भावनाओं  को  गित  िमली। 1859 के  फ्रको-
ऑि ट्रयाई  यु ध  से  राजनीितक  एकीकरण  की  प्रिक्रया  की  शु आत  हुई  और  सािडर्िनया  का 
राजशाही  इटली  के  पुनगर्ठन  का  कद्र  बनकर  उभरा।  िकंगडम  ऑफ  पीडम ट-सािडर्िनया  के 
राजनियक फ्रांस के साथ उसके गठबंधन  थािपत कराने  म सफल होते  ह। इस गठबंधन के 
िनमार्ण  के  प चात ्, फ्रांस  और  पीडम ट  ने  संयुक्त  प  से, ऑि ट्रया  को  हराया  और  1859 म 
लो बाडीर्  क्षेत्र, िजसे  सािडर्िनया  म  शािमल  िकया  गया  था, पर  िनयंत्रण  हािसल  कर  िलया।
1859-60 म, कई इटली प्राय वीप के रा य  ने  पीडम ट-सािडर्िनया के रा य म शािमल होने  के 
समथर्न म मतदान िकया। 1860 म, Giuseppe Garibaldi (इटली का एक जनरल) ने  एक सेना 
को एकजट
ु  कर "थाउज़ड" नाम िदया और दिक्षण की ओर माचर्  करना प्रार भ िकया। 1860
तक, रोमाग्ना, िसिसली, नेप स, मोडेना, ट कनी सभी को पीडम ट-सािडर्िनया साम्रा य म शािमल 
िकया  गया  था। 17 माचर्, 1861 को  इटली  रा य  की  थापना  हुई  और  िवक्टर  इमैनए
ु ल  II,
िकंगडम ऑफ पीडम ट-सािडर्िनया के राजा को इटली का राजा घोिषत िकया गया। इस समय 
तक, रोम  और  वेनेिटया, इटली  के  दो  प्रमख
ु   रा य, इटली  के  अिधकार  क्षेत्र  से  बाहर  थे। 
ऑि ट्रया-प्रिशया  यु ध  (1866) म, इटली  और  प्रिशया  ने  एक-साथ  िमल  वेनेिशया  को  जीत 
िलया। फ्रको-प्रिशया यु ध (1870) के दौरान, इटली की सेना ने  रोम म प्रवेश िकया और रोम 

129
और  पपल  क्षेत्र  को  इटली  म  शािमल  कर  िलया, और  इसी  के  साथ  इटली  का  पुनगर्ठन 
स प  न हुआ।

संिध  यव था और गठबंधन  का िनमार्ण 

समय  के  साथ  बढ़ते  तनाव  और  खतरे   के  कारण, यरू ोपीय  दे श   ने  शिक्त  संतल
ु न  के  िलए,
गठबंधन   का  िनमार्ण  करना  शु   कर  िदया, और  इस  कारण  यु ध  के  समय  तक  यरू ोप  दो 
गट
ु  म िवभािजत हो चक
ू ा था। ये गठबंधन िन निलिखत थे—
िव दे िशये गठबंधन
जमर्नी  के  पुनः एकीकरण के साथ, िब माकर् यूरोप म सबसे  मजबूत नेता के  प  म उभरा। 
िब माकर्  स के काय  के बारे   म अिनि चत था।  स का मक
ु ाबला करने  के िलए िब माकर् 
ने  संिधय  की नीित को अपनाया। उसने  1879 म ऑि ट्रया-हं गरी के साथ अपनी दो ती को 
मजबूत करने, िवदे शी आक्रमण के िखलाफ खद
ु  की रक्षा करने  और यथाि थित बनाए रखने 
के उ दे य से  एक गु त संिध पर ह ताक्षर कर एक गठबंधन बनाया। इस संिध का प्रावधान 
यह था िक, अगर  स इन दोन  म से  िकसी पर भी आक्रमण करे गा, तो दोन  िमलकर बचाव 
करगे।  साथ  ही  यह  भी  तय  िकया  गया  था  िक  अगर  कोई  भी  अ य  दे श, उन  दोन   म  से 
िकसी पर भी आक्रमण करे गा तो दोन  सहयोगी िमलकर एक-दस
ू रे  का बचाव करगे।
ित्र गट
ु  
फ्रांस और इटली दोन  को ही िवयना की कांग्रेस से  यादा कुछ हािसल नहीं  हुआ था। फ्रांस 
और जमर्नी दोन  ही अफ्रीका के उ र-पि चमी िह स  पर िनयंत्रण के िलए प्रित पधार्  कर रहे  
थे। फ्रांस ने  पहले  ही अ जीिरया पर िनयंत्रण कर चुका था और िवयना कांग्रेस के तीन साल 
के बाद, फ्रांस ने  यन
ू ीिशया पर अिधकार प्रा त कर िलया।  यूनीिशया पर फ्रांस के िनयंत्रण 
के साथ, इटली की उ री अफ्रीकी पर िनयंत्रण की मह  वाकांक्षा का अंत हो गया और उसने 
फ्रांस  के  िव ध  समथर्न  की  माँग  की।  उस  समय, ओटो  वॉन  िब माकर्  ने  सझ
ु ाव  िदया  िक 
जमर्नी, इटली  और  ऑि ट्रया-हं गरी  को  एक  गठबंधन  बनाना  चािहए।  बाद  म, जैसा  िक 
ु ाव िदया, इटली ने  20 मई 1882 को जमर्नी और ऑि ट्रया-हं गरी के साथ एक 
िब माकर् ने  सझ
गु त संिध पर ह ताक्षर िकए और द िट्रपल एलायंस का गठन िकया। इस गठबंधन म समय 
के साथ बदलाव िकये  जब तक िक यह 1915 म, प्रथम िव वयु ध के दौरान, यह समा त नहीं 
हो गया था। इस संिध  वारा यह िनणर्य िलया गया था िक यिद फ्रांस जमर्नी पर आक्रमण 
करे गा  तो  इटली  और  ऑि ट्रया-हं गरी  तरु ं त  ही  उसकी  सहायता  करगे।  लेिकन  यिद  इनम  से 
कोई भी दे श फ्रांस के अलावा िकसी अ य दे श के साथ यु ध करता है , तो गठबंधन के अ य 
साझेदार 'परोपकारी तट थता’ की नीित का पालन करगे। साथ ही यह भी िनणर्य िलया गया 
िक यिद यरू ोपीय शांित के िलए कोई खतरा उ प न होगा, तो तीन  दे श एक-दस
ू रे   से  परामशर् 

130
करगे।  यह  भी  तय  िकया  गया  िक  इस  संिध  का  इ तेमाल  िब्रटे न  के  िखलाफ  नहीं  िकया 
जाएगा।

िट्रपल एंटट
िट्रपल एलायंस के गठन की प्रितिक्रया म, ग्रेट िब्रटे न, फ्रांस और  सी साम्रा य ने  िट्रपल एंटटे  
का गठन िकया। लेिकन िट्रपल एलायंस के िवपरीत, यह गठबंधन एक एकल संिध  वारा नहीं 
बनाया  गया  था, बि क  यह  समय  के  साथ  िवकिसत  हुआ  था  और  तीन  अलग-अलग 
िवपक्षीय  संिधय   का  पिरणाम  था।  ये  संिधयाँ  थीं—फ्रांस- सी  गठबंधन  (1894), एंग्लो-फ्रच 
एंटटे  कॉिडर्अल (1904) और एंग्लो- सी समझौता (1907)।

1890 और 1910 के बीच, यूरोप का शिक्त समीकरण बदल गया। 1891 म फ्रांस ने  स 
के  साथ  एक  गैर  सै य  मैत्रीपूण-र् एंटटे   पर  ह ताक्षर  िकए, िजसका  उ दे य  मैत्रीपूण र् संबंध 
िवकिसत  करना  और  शांित  के  िलए  खतरे   की  ि थित  म  एक-दस
ू रे   के  साथ  परामशर्  करना 
था।  1894  म, फ्रांस  और  स  ने  फ्रको- सी  सै य  गठबंधन  बनाने  के  िलए  एक  औपचािरक 
संिध  पर  ह ताक्षर  िकए।  इस  गठबंधन  का  उ दे य  सद य  दे श की  सै य  प  से  सहायता 
करना, यिद कोई अ य दे श िट्रपल एलायंस दे श  म से िकसी पर भी आक्रमण करता है ।

दस
ू री तरफ, िब्रटे न और जमर्नी के शाही पिरवार  के बीच रक्त संबंध थे  लेिकन नौसैिनक 
शिक्त और समद्र
ु  पर प्रभु व के िलए प्रित पधार्  िब्रटे न और जमर्नी के बीच संबंध  के पतन 
की ओर ले जाती है । वही दस
ू री और, 1899 म, सड
ू ान पर प्रभु व के िलए, फ्रांस और िब्रटे न की 
ू रे   के  आमने  सामने  यु ध  के  मोच  पर  थीं।  इस  समय  फ्रांस  को  एक  िमत्र  की 
सेना  एक-दस
आव यकता  थी  इसिलए  उसने  सड
ू ान  पर  प्रभु व  की  इ छा  को  याग  िदया।  इस  घटना  से 
फ्रांस और िब्रटे न के बीच मैत्रीपण
ू  र् संबंध का उदय हुआ और अंततः दोन  ने  1904 के एंग्लो-
फ्रच एंटटो कॉिडर्एल पर ह ताक्षर कर स ब धो को और मजबत
ू  िकया। 
इस तरह, 1904 तक, फ्रांस के दो प्रमख
ु  िमत्र थे—िब्रटे न और  स, लेिकन इन दोन  दे श  
के बीच कोई मैत्रीपण
ू  र् संबंध नहीं था। फ्रांस ने इन दोन  को करीब लाने म मह  वपण
ू  र् भिू मका 
िनभाई और िब्रटे न और  स दोन  ने  1907 म एंग्लो- सी समझौते  पर ह ताक्षर िकए। इस 
संिध  वारा 'द िट्रपल एंटटे ' को औपचािरक  प िमला।

1907 तक, यरू ोपीय रा य  के बीच का आपसी शिक्त संघषर्  दो प्रमख


ु  गट
ु , जो की िट्रपल 
एलायंस (जमर्नी, ऑि ट्रया-हं गरी और इटली) और िट्रपल एंटे ते  (िब्रटे न, फ्रांस, स) थे, के बीच 
के शिक्त संघषर् म बदल गया।

ऑि ट्रया-हं गरी  वारा बोि नया-हज़गोिवना का रा य-हरण


बिलर्न  की  कांग्रेस  वारा  (1878), बोि नया-हज़गोिवना  का  क्षेत्र, जहाँ  लाव  जाित  के  लोग 
रहते  थे, को कानूनी तौर पर ओटोमन साम्रा य के शासन के तहत रखा गया था, लेिकन इस 

131
क्षेत्र को अ थायी  प से ऑि ट्रया-हं गरी की दोहरी राजशाही के संरक्षण म भी रखा गया था। 
यह िनणर्य, यूरोप म शिक्त के संतुलन को बनाए रखने  के िलए िलया गया था। इस क्षेत्र के 
लाव लोग  की रा ट्रवादी मह व
  ाकांक्षा बढ़ रही थी और जल
ु ाई 1908 म, ‘यंग तुकर्’ (िविभ न 
सध
ु ार समह
ू  का गठबंधन) ने  संवैधािनक शासन  थािपत करने  के िलए समकालीन स ावादी 
शासन  के  िखलाफ  िवद्रोह  िकया।  अक्टूबर  1908  म, नए  शासन  की  थापना  से  पहले  ही 
ऑि ट्रया-हं गरी  के  राजशाही  ने  बोि नया-हजगोिवना  क्षेत्र  पर  आक्रमण  कर  िदया।  ऑि ट्रया-
हं गरी के हमले  ने  यूरोपीय शिक्त संतुलन को िबगाड़ िदया और ‘ लाव रा ट्र’ के िनमार्ण के 
मागर् को अवरोिधत िकया।

साराजेवो की घटना और प्रथम िव वयु ध की शु आत


20वीं  सदी  के  पहले  दशक  के  अंत  तक, दो  प्रमख
ु   राजनीितक-सै य  सहयोगी  गट
ु   यूरोप  म 
उभरे   और  प्रथम  िव वयु ध  की  शु आत  के  समय  तक  पूरा  यूरोप  दो  िवरोधी  गट
ु   म 
िवभािजत हो चुका था। यु ध से  पूव र् ही यरू ोप, दे श  के बीच सै य वचर् व की होड़ चल रही 
थी  और  िविभ न  कारण   से  यूरोप  म, यु ध  जैसी  ि थित  उ प न  हो  गई  थी।  यु ध  की 
वा तिवक शु आत से  एक साल पहले  ही, यूरोप म, खासकर दिक्षण-पूव र् यूरोप के बा कन क्षेत्र 
म, तनाव का माहौल था और साराजेवो घटना से यह सारा तनाव यु ध  प म भड़क उठा।

जन
ू  1914 म, आकर् यूक फ्रांज फिडर्नड, ऑि ट्रयन-हं गेिरयन िसंहासन के उ रािधकारी और 
उनकी प नी, आकर् यूस सोिफया, साराजेवो (बोि नया की राजधानी, वही क्षेत्र िजसका 1908 म 
ऑि ट्रया-हं गरी  ने  रा य-हरण  िकया  था)  म  शाही  सश त्र  बल  का  िनरीक्षण  करने  गए  थे।। 
बोि नया-हजगोिवना के रा य-हरण के कारण सिबर्याई रा ट्रवादी नाराज थे  और इसी तरह के 
एक रा ट्रवादी समह
ू  ने  साराजेवो की यात्रा के दौरान आकर् यक
ू  फ्रांज फिडर्नड को मारने  की 
सािजश रची। 28 जन
ू  1914 की सब
ु ह, जब वे  अपने  गंत य की ओर बढ़े , एक यव
ु ा सिबर्याई 
रा ट्रवादी  ने  ऑि ट्रयाई  िसंहासन  के  उ रािधकारी  और  उसकी  प नी  की  गोली  मारकर  ह या 
कर  दी।  यह  ह या  परू ी  दिु नया  के  िलए  मह व
  पण
ू  र् मोड़  सािबत  हुई, िजसके  बाद  कई  अ य 
घटनाएँ  हुईं और इन सभी घटनाओं  ने  दे श  के बीच तनाव को मानव इितहास के अभत
ू पव
ू  र्
और िवनाशकारी संघषर् म बदल िदया, िजसे अब हम प्रथम िव वयु ध के  प म जानते ह।

प्रथम िव वयु ध का एक संिक्ष त वणर्न 


ऑि ट्रया  ने  ह या  के  िलए  सिबर्या  को  दोषी  ठहराया  और  जमर्नी  के  समथर्न  से  23 जल
ु ाई 
1914 को, उसने  कुछ  शत   के  साथ, सिबर्या  को  अंितम  चेतावनी  दी।  सिबर्या  शु   म  सशतर् 
म य थता के िलए तैयार हो जाता है , लेिकन  स से समथर्न के आ वासन के बाद, सिबर्या ने 
ऑि ट्रया  की  शत   को  वीकार  करने  से  इनकार  कर  िदया।  28 जल
ु ाई  1914 को  ऑि ट्रया-
हं गरी ने  सिबर्या पर यु ध की घोषणा की।  स भी यु ध म शािमल हो गया क्य िक उसने 

132
सिबर्या के साथ गठबंधन िकया था। इसके बाद, 1 अग त 1914 को जमर्नी ने  स पर यु ध 
की घोषणा की, क्य िक उसने  ऑि ट्रया-हं गरी के साथ गठबंधन िकया था। उसी वषर्  3 अग त 
को, जमर्नी  ने  फ्रांस  के  िखलाफ  यु ध  की  घोषणा  की  और  तट थ  बेि जयम  पर  आक्रमण 
िकया और इसके पिरणाम व प, िब्रटे न ने जमर्नी पर आक्रमण िकया, क्य िक उसके बेि जयम 
और फ्रांस की रक्षा करने  के िलए दोन  से  समझौते  िकये  थे। कई अ य ह त  म, अ य दे श 
भी  यु ध  म  शािमल  हुए।  सिबर्या  और  ऑि ट्रया-हं गरी  के  बीच  शु   हुआ  यु ध  दो  गट
ु   के 
बीच  एक  यु ध  म  बदल  गया, जो  थे  'एलाइड  पॉवसर्' (िब्रटे न, फ्रांस, स  और  उनके  सहयोगी 
जैसे  इटली, जापान  और  संयुक्त  रा य  अमेिरका)  और  'सट्रल  पॉवसर्' ( जमर्नी  और  उसके 
सहयोगी जैसे  ऑि ट्रया-हं गरी, ओटोमन साम्रा य और बु गािरया)। प्रथम िव वयु ध के दौरान 
लड़ी  गई  प्रमख
ु   लड़ाइय   म  'मान  का  प्रथम  यु ध', 'सो मे  का  यु ध', 'टै नबगर्  का  यु ध',
'गैलीपोली का यु ध' और 'वदर् न
ु  का यु ध' आिद शािमल थे। 
यह यु ध यरू ोप, एिशया और अफ्रीका जैसे िविभ न महा वीप  म, िविभ न मोच  पर लड़ा 
गया।  सबसे  मह  वपूण र् मोच   म  ‘पि चमी  मोचार्’  था  जहाँ  एक  ओर  जमर्नी  और  दस
ू री  ओर 
िब्रटे न, फ्रांस और अमेिरका (1917 के बाद) आमने-सामने  थे  और दस
ू रा मोचार्  ‘पूवीर्  मोचार्’ था 
जहाँ  िसय   ने  जमर्न   और  ऑि ट्रयाई-हं गरी  का  सामना  िकया।  संिक्ष त  अविध  के  िलए,
जमर्नी, पूवीर्  और पि चमी दोन  मोच  पर िवजयी होता रहा, लेिकन 1917 के बाद, दो घटनाओं 
के कारण पूरा पिर य बदल गया। प्रथम, संयुक्त रा य अमेिरका सहयोगी दे श की ओर से 
यु ध  म  शािमल  हो  गया, और  दस
ू रा, स  ने  बो शेिवक  क्रांित  के  बाद  यु ध  से  वयं  को 
अलग  कर  िलया  और  उसने  जमर्नी  के  साथ  बाद  म  एक  अलग  शांित  संिध  पर  ह ताक्षर 
िकए। 1918 म, िमत्र  रा ट्र   की  जवाबी  कारर् वाई  के  कारण, जमर्न  सेना  पीछे   हट  गई।  जमर्नी 
और उसके सहयोिगय  की हार और जमर्नी म घिटत क्रांित िजसने  िव हे म II (जमर्न सम्राट) 
का  पतन  िकया।  11 नवंबर, 1918 को  जमर्नी  वारा  यु धिवराम  पर  ह ताक्षर  करने  और  'द 
ग्रेट  वॉर' अथवा  'वॉर  टू  एंड  वॉसर्', जैसा  िक  इसे  कई  िव वान   वारा  कहा  गया, समा त  हो 
गया।

प्रथम िव वयु ध

यह यु ध कई ऐसी घटनाओं  का पिरणाम था, िजनकी चचार्  हमने  ऊपर की है । इस यु ध के 


कारण इतने  जिटल थे  िक उ ह सच
ू ीब ध करना आसान नहीं। 19वीं  और 20वीं  शता दी म 
घिटत  घटनाओं  की  ख
ं ृ ला  इस  दिु नया  को  िव वयु ध  की  ओर  ले  जाती  है , पर त ु इसके 
वा तिवक मल
ू  कारण बहुत गहरे   थे। इसके कारण  की संक्षेप  प म चचार्  हम अग्रिलिखत 
भाग म करगे।

133
1. सै यवाद
यूरोप म सै यवाद की शु आत उ नीसवीं  शता दी म हुई। नेपोिलयन बोनापाटर्   का, पूरे  यूरोप 
की तुलना  म, सबसे  मजबूत और वचर् व वाली सेना के साथ मख्
ु य नेता के  प म उभरना 
सै यवाद  की  शु आत  एक  मख्
ु य  कारण  रहा।  नेपोिलयन  का  उदय, यूरोप  के  अ य  दे श   म 
तेजी  से  और  भारी  सै यवाद  का  कारण  बना  और  यह  उसकी  म ृ यु  के  बाद  भी  जारी  रहा। 
फ्रांस-प्रिशया  यु ध  (1870) म  फ्रांस  की  हार  के  बाद  यरू ोप  म  सै यवाद  एक  नए  तर  पर 
पहुँचा।  20वीं  शता दी  की  शु आत  तक, सै यवाद  अंतरार् ट्रीय  राजनीित  का  मह व
  पूण र् पहल ू
बन गया। इस िवचार म िव वास िक हर दे श के पास  वयं के अि त व की रक्षा का एकमात्र 
िवक प  ‘से फ  हे प’ है , ने  दे श   के  म य  सै यवाद  और  हिथयार   की  होड़  को  अपेक्षाकृत 
अिधक ती  कर िदया। 1914 तक, जमर्नी अपनी सेना म  यापक  तर पर िव तार कर चुका 
था  और  नौसैिनक  शिक्त  के  िलए  जमर्नी  और  िब्रटे न  के  बीच  कड़ी  प्रित वं िवता  थी।  यहाँ 
तक िक, सद
ु रू  पूव र् क्षेत्र म, जापान  वारा सै यवाद चीन, कोिरया, यहाँ  तक िक, संयुक्त रा य 
अमेिरका के िलए भी  खतरा बन गया। सै यवाद की इस अ यिधक ती  गित ने  िव व को 
यु ध की िदशा म मोड़ने का कायर् िकया।

2. गट
ु  िनमार्ण और आपसी रक्षा संिधयाँ
आपसी शांित और शिक्त का संतुलन बनाए रखने  के िलए यूरोपीय दे श   वारा गु त गट
ु  व 
गठबंधन  का िनमार्ण और गु त संिधय  पर ह ताक्षर करना, अंत म इसकी शांित और शिक्त 
संतुलन के िलए ही खतरा बन गया। 1871 म फ्रांस पर िब माकर् की जीत के साथ गठबंधन 
बनाने का युग शु  हुआ। जमर्नी के पुनः एकीकरण के बाद; उसने अिधक से अिधक गठबंधन 
बनाकर और फ्रांस को िमत्र  थािपत कर शिक्त म व ृ िध करने  का प्रयास िकया। इस तरह 
की  गु त  संिधय   और  गठबंधन   का  उ दे य  यह  था  िक  यिद  िकसी  अ य  दे श  वारा 
सि धकृत दे श  म से िकसी एक पर आक्रमण िकया गया, तो सभी सहयोगी दे श उसका बचाव 
करने  के  िलए  बा य  थे।  इस  प्रविृ   की  िनरं तरता  के  पिरणाम व प  िविभ न  गट
ु   व 
गठबंधन   का  िनमार्ण  हुआ; स  और  सिबर्आ  के  बीच; जमर्नी, इटली  और  ऑि ट्रया-हं गरी 
(िट्रपल  एलायंस); फ्रांस  और  स; िब्रटे न, फ्रांस  और  बेि जयम।  इसी  तरह  की  संिधय   और 
गट
ु बंदी के कारण, सिबर्या और ऑि ट्रया-हं गरी के बीच हुआ यु ध िव वयु ध म बदल गया।
3. साम्रा यवाद
साम्रा यवाद  एक  दे श  वारा  िकसी  अ य  क्षेत्र  पर  िनयंत्रण  व  वचर् व  थािपत  करके  शिक्त 
संवधर्न करने  का तरीका है । यूरोप म उिदत हुए औ योिगक क्रांित के ती  व अताह िव तार 
ने  साम्रा यवाद  और  उपिनवेशवाद  को  बढ़ावा  िदया।  यूरोपीय  दे श  अपनी  सापेक्ष  शिक्त  को 
बढ़ाने  के िलए ऐसे  अवसर  की िनरं तर खोज म लगे  हुए थे। िव वयु ध से  पहले  ही, अफ्रीकी 

134
और  एिशयाई  क्षेत्र  पर  वचर् व  अथवा  िनयंत्रण  की  चाह, यरू ोपीय  शिक्तय   के  बीच  संघषर्  का 
एक िबंद ु बन गया था। अफ्रीकी और एिशयाई क्षेत्र पि चमी दे श  के 'उ योग  के िलए क चे 
माल' और  'तैयार  माल  के  िलए  बाजार' का  मुख्य  ोत  थे  और  इसी  कारण  यह  संघषर्  का 
मख्
ु य िबंद ु बना। िनरं तर बढ़ती प्रित पधार् और उनके संबंिधत साम्रा य  के िव तार की इ छा 
के कारण टकराव की दर म व ृ िध हुई िजसने दिु नया को प्रथम िव वयु ध म धकेल िदया।
4. रा ट्रवाद
प्रथम िव वयु ध के संबंध म, रा ट्रवाद, एकीकरण और िवभाजन दोन  का कारण था। जमर्नी 
और  इटली  के  पुन:  एकीकरण  के  पीछे   रा ट्रवाद  प्रमख
ु   बल  था, पर तु  दस
ू री  और  ओटोमन 
साम्रा य के िवघटन का कारण भी यही था। यहाँ  तक िक, रा ट्रवाद यु ध का प्रमख
ु  कारण 
भी था। बोि नया और हज़गोिवना क्षेत्र म रहने वाले  लाव रा ट्रवादी लोग , ऑि ट्रया-हं गरी का 
िह सा नहीं  बने  रहना चाहते  थे  और ऑि ट्रया-हं गरी  वारा रा य-हरण ने  लािवक रा ट्र के 
िनमार्ण  के  मागर्  को  अव ध  कर  िदया  था।  रा य-हरण  के  कारण  सिबर्याई  रा ट्रवादीय   म 
उभरा गु सा साराजेवो की घटना का कारण बना और अंततः इसके पिरणाम व प ही प्रथम 
िव वयु ध का आर भ हुआ।
5. अ य कारण :
क) नेताओं की मह व
  ाकांक्षा
रा य   के  नेताओं  की  िव तारवादी  मह व
  ाकांक्षा  यु ध  के  प्रमख
ु   कारण   म  से  एक  थी।  एक 
तरफ, प्रिशया के चांसलर, ओटो वॉन िब माकर्  की मह  वाकांक्षा के  पिरणाम व प  जमर्नी का 
पुनः एकीकरण हुआ, लेिकन दस
ू री ओर, कैसर िविलयम  िवतीय की पूरे  यूरोप पर अिधप य 
की मह  वाकांक्षा यूरोप को िव वयु ध की ओर ले  गयी। यूरोप के अ य शासक  की भी ऐसी 
ही िव तारवादी मह व
  ाकांक्षाएँ थीं।
ख) समाचार-पत्र  की नकारा मक भिू मका
िव वयु ध आरं भ होने से पूव र् और यु ध के दौरान भी, िप्रंट मीिडया की भिू मका मख्
ु य  प से 
भड़काऊ  प्रकृित  की  रही  थी।  अखबार  और  पित्रका  जैसे  िप्रंट  मीिडया  ने  दे श   के  बीच  मैत्री 
संबंध  िवकिसत  करने  की  कोिशश  नहीं  की  थी, बि क, शत्रत
ु ापूण र् प्रचार  प्रसार  कर, उसने 
शासक   वारा यु ध को टालने  और शांित  थािपत करने  के िविभ न प्रयास  को नाकाम कर 
िदया। इस तरह इसने यु ध जैसे वातावरण के िनमार्ण म भिू मका िनभाई।
ग) प्रथम  िव वयु ध  का  ता कािलक  कारण  आकर् यूक  फ्रांज  फिडर्नड  की  ह या  थी, जो 
साराजेवो घटना के  प म प्रिस ध है ।

135
प्रथम िव वयु ध के पिरणाम

प्रथम िव वयु ध के पिरणाम व प दिु नया भर म राजनीितक, आिथर्क और सामािजक क्षेत्र म 


बहुत सारे   बदलाव आए, यहाँ  तक िक उन क्षेत्र  म भी जो सीधे  तौर पर इससे  जड़ ु  े नहीं  थे। 
आिथर्क  और  संरचना मक  तबाही  और  इसके कारण  होने  वाले  रक्तपात  ने  यरू ोप  को  बबार्दी 
और दिु नया को दःु ख के छोर पर ला खड़ा िकया। तकनीकी उ नित के कारण, इस यु ध म 
बड़े पैमाने पर बख्तरबंद टक, ज़हर गैस, हवाई मक
ु ाबले जैसे मा यम का उपयोग ही इस तरह 
के  नरसंहार  और  िवनाश  का  कारण  िस ध  हुआ।  इसके  पिरणाम व प, ओटोमन  साम्रा य,
ऑि ट्रया-हं गरी  साम्रा य  जैसे  साम्रा य   का  पतन  हुआ  और  नए  रा य   का  उदय  हुआ  और 
रा य   बीच  सीमा-रे खा  पुनः  खींची  गयी।  यह  यु ध  स  के  सीज़र  िनकोलस  िवतीय  और 
जमर्नी के कैसर िव हे म के शासन के अंत का कारण भी बना।

भिव य  म  इस  तरह  के  यु ध  को  रोकने  के  प्रयास   म, कई  संिधय   पर  ह ताक्षर  िकए 
गए थे  और अंतरार् ट्रीय  तर पर शांित और  यव था बनाए रखने  के उ दे य से  अंतरार् ट्रीय 
सं था  की  थापना  की  गई  थी।  िमत्र  रा ट्र   ने  पेिरस  शांित  स मेलन  म  जमर्नी  के  साथ 
िवचार-िवमशर्  के  िबना, जमर्नी  के  साथ  एक  बदनाम  संिध, “वसार्य  की  संिध”  पर  ह ताक्षर 
कराये। इस प्रकार, इसी शांित स मेलन म िमत्र रा ट्र  ने  ऐसा बीज बोया जो 20 साल बाद,
िव व शांित के िलए एक और खतरे  के  प म उभरा। प्रथम िव वयु ध के िविभ न पिरणाम  
की चचार् अग्रिलिखत खंड म की गई है ।

1. पेिरस शांित स मेलन
शांित  थािपत  करने  और  यूरोप  व  दिु नया  के  नक्शे  को  िफर  से  पिरभािषत  करने  के  िलए,
िमत्र दे श  के नेताओं  ने  जनवरी 1919 म पेिरस म मल
ु ाकात की।  यावहािरकता म यह एक 
'िवक्टर क्लब' बना रहा क्य िक परािजत दे श के नेता को अपने  िवचार रखने  का मौका नहीं 
िदया  गया  था।  स मेलन  म  32 रा य   के  70 प्रितिनिधय   ने  भाग  िलया, लेिकन  सबसे 
मह  वपूण र् भिू मका िवजेता दे श  के चार नेताओं  वारा िनभाई गई, जो थे, लॉयड जॉजर् (िब्रटे न),
िवटोिरयो इमानुएल ऑरलडो (इटली), जॉजस क्लेि मयो (फ्रांस), और वुडरो िव सन (यूएसए)। 
पेिरस  स मेलन  म, 18 जनवरी  1919 को  पहला  खुला  अिधवेशन  और  बाद  म  ऐसे  ही  पाँच 
अिधवेशन और आयोिजत हुए। इस शांित स मेलन म अ य लघ ु पिरषद  की मदद से  काम 
िकया  गया  था, िज ह  पहले  "काउं िसल  ऑफ  टे स"  कहा  जाता  था, लेिकन  बाद  म  इसका 
थान  "महान  चार  एलाइड  नेताओं  की  पिरष "  ने  िलया।  इस  शांित  स मेलन  म  वैचािरक 
संघषर्  भी  उभरा  िजसम  एक  ओर  वड
ु रो  िव सन  (आदशर्वादी)  थे, िज ह ने  सहयोग  और 
स भावना  के  साथ  नई  िव व  यव था  के  िनमार्ण  के  िवचार  का  समथर्न  िकया, और  दस
ू री 
ओर ऑरलडो और क्लेमको (यथाथर्वादी) थे, िज ह ने  जमर्नी और उसके सहयोिगय  को दं िडत 

136
िकये  जाने  के  िवचार का  समथर्न  िकया।  लॉयड  जॉजर्, म यम  मागर्  का  अनुसरण  करते  हुए,
जमर्नी  की  शिक्त  को  सीिमत  करना  चाहते  थे  पर तु  इस  स दभर्  म  वे  उदार  नीितय   को 
अपनाने  के  समथर्क  थे।  िविभ  न  िव वान   का  मत  है   िक  यह  शांित  स मेलन  बदले  की 
भावना से कायर् कर रहा था और शांित की  थापना का ल य गौण रहा था।

2. िव व शांित के िलए वुडरो िव सन के चौदह सत्र


ू ीय कायर्क्रम
चौदह सत्र
ू ीय कायर्क्रम, अमेिरकी कांग्रेस के समक्ष 8 जनवरी, 1918 को अमेिरकी रा ट्रपित वुडरो 
िव सन  वारा प्र तुत िकया गया था जोिक  यायपूण र् और िचर थायी अंतरार् ट्रीय शांित की 
थापना और रा ट्रीय सरु क्षा हािसल करने के िलए बुिनयादी िस धांत थे। अ य िमत्र रा ट्र  के 
नेता, जैसे  लॉयड  जॉजर्  और  जॉजस  क्लेम यू, िव सन  को  इसी  कारण  से  'बहुत  आदशर्वादी'
मानते थे। दोन  को इस बात पर संदेह था िक क्या यह कायर्क्रम वा तव म कायार्ि वत िकए 
जा सकते  ह। उन िबंदओ
ु ं  का सारांश है , (ए) "शांित की ऐसी संिवदा िजनके िन कषर्  तक खुले 
तौर  पर  पहुँचा  गया  हो"।  (बी)  "समद्र
ु   की  वतंत्रता"।  (ग)  "सभी  आिथर्क  बाधाओं  को  दरू  
करना  यथा  संभव  प्रयास  करना", (घ)  "घरे ल ू सरु क्षा  के  अनु प  सबसे  यूनतम  सीमा  तक 
रा ट्रीय आयध
ु  की कमी", (ई) "सभी औपिनवेिशक दाव  के समान समायोजन", (च) "सभी  सी 
और  बेि जयम  की  िनकासी  और  अ य  दे श   के  िलए  ऐसी  योजना", (छ)  "रा ट्र   के  एक 
सामा य संघ का गठन, िजसका उ दे य अपने  सद य  को राजनीितक  वतंत्रता और क्षेत्रीय 
अखंडता की गारं टी दे ने हो", िजसे रा ट्र संघ की उ पि  माना जाता है ।

3. संिधय  पर ह ताक्षर


प्रथम  िव वयु ध  के  बाद, संिधय   की  एक  ंख
ृ ला  यिक्तगत  या  संयक्
ु त  प  से  जीत  और 
परािजत रा य  के बीच हुई। उनम से  सबसे  मह  वपण
ू  र् 'वसार्य की संिध' थी। अ य मह  वपण
ू  र्
संिधयाँ िजन पर िवजयी दे श  ने ह ताक्षर िकए थे, वे ह—

a)  10 िसतंबर 1919 को ऑि ट्रया के साथ "सट जमन की संिध" पर ह ताक्षर िकए गए।

b)  27 नवंबर, 1919 को बु गािरया के साथ " यल


ु ी की संिध" पर ह ताक्षर िकए गए।
c)  "ट्रायोन की संिध" पर हं गरी के साथ 4 जन
ू , 1920 को ह ताक्षर िकए गए।
d)  तक
ु ीर्  के साथ अग त, 1920 म एक संिध ह ताक्षर की गई लेिकन इसे  लाग ू नहीं  िकया 
गया  था  और  बाद  म, 23  जल
ु ाई  1923  को  ह ताक्षिरत  "लॉज़ेन  की  संिध"  वारा  इसे 
प्रित थािपत िकया गया था।

e)  स और जमर्नी के बीच "ब्रे ट-िलटो क की संिध" अलग से ह ताक्षिरत की गयी।

f)  वसार्य की संिध : 28 जन
ू , 1919 को पेिरस शांित स मेलन म ह ताक्षर िकए गए। जमर्नी 
ने  इसे  "िडकैट" या िडक्टे ट शांित कहा, क्य िक, प्रथमतः, यह संिध जमर्नी पर थोपी गयी 

137
थी और िवतीयः इस संिध के अनु छे द 231 वारा एक 'यु ध अपराध' का बोध जमर्नी 
पर  लाद  िदया  गया  था।  िव सन  के  "जीत  के  िबना  शांित"  के  िवचार  के  िवपरीत, इस 
संिध  वारा जमर्नी को अपमािनत िकया गया। इस संिध  वारा जमर्नी की सै य शिक्त 
(वायु सेना के िवसै यीकरण और पूणत
र् ः िनषेध सिहत) पर कई प्रितबंध लगाए, उसे भारी 
जम
ु ार्ने  का भग
ु तान करना पड़ा, इसके कुल क्षेत्रफल का लगभग 13% और इसकी आबादी 
का  दसवाँ  िह सा, और  पूरे  औपिनवेिशक  वचर् व  को  भी  छीन  िलया  गया।  जमर्नी  को 
मजबूरन अपने  कैसर, िव हे म II यु ध अपराध  के  याियक परीक्षण शु  करना पड़ा। 
"एलाइड  एंड  एसोिसएटे ड  पॉवसर्"  के  इन  कम   के  कारण  िवतीय  िव वयु ध  के  बीज 
इसी स मेलन म बो िदए गए।

4. िनर त्रीकरण के िलए प्रयास और सरु क्षा की खोज 


फ्रांस  भले  ही  प्रथम  िव वयु ध  म  िवजयी  दे श   म  से  एक  था  पर तु  िफर  भी, यु ध  के 
प चात ्, वह अपनी सरु क्षा के बारे   म अिनि चत था। पेिरस शांित स मेलन म फ्रांस ने  अपनी 
सरु क्षा का मामला भी उठाया था। वह लीग ऑफ नेशंस के प्रावधान  से  संतु ट नहीं  था और 
उसने  अंतरार् ट्रीय  पिु लस  बल  की  थापना  का  प्र ताव  भी  रखा  था, िजसे  उस  समय  खािरज 
कर िदया गया था। फ्रांस को संतु ट करने  के िलए, अमेिरका और िब्रटे न ने  संयक्
ु त  प  से 
जमर्नी से उसकी सरु क्षा का आ वासन िदया। संयुक्त एंग्लो-अमेिरकन आ वासन की िवफलता 
और  उसके  बाद, िब्रिटश  आ वासन  के  बाद  भी, फ्रांस  एक  एलायंस  प्रणाली  बनाने  का  प्रयास 
करता है । अंतरार् ट्रीय शांित की  थापना के िलए, 'वसार्य की संिध' म िनर त्रीकरण के प्रावधान 
भी  िकये  गए  थे, लेिकन  प्रमख
ु तः  ये  सभी  प्रावधान  (आयध
ु   नीित  पर  प्रितबंध  के  प  म) 
जमर्नी से ही स बंिधत थे। यहाँ तक िक "िमत्र रा ट्र  का एक िनयंत्रण आयोग", िजसे बाद म 
समा त  कर  िदया  गया  था, वसार्य  की  संिध  के  कायार् वयन  और  सै य  व  िनर त्रीकरण 
प्रावधान  को सिु नि चत करने के िलए  थािपत िकया गया था।

5. लीग ऑफ द नेशंस की  थापना
सरु क्षा की खोज रा ट्र संघ के िनमार्ण का एक कारण था। राजनीितक  वतंत्रता और क्षेत्रीय 
अखंडता सिु नि चत करने के िलए प्रयास, िजसका उ लेख वड
ु रो िव सन ने अपने चौदह सत्र
ू ीय 
कायर्क्रम म भी िकया था, पेिरस शांित स मेलन के प्रमख
ु  उ दे य  म से  एक था। इसे  प्रा त 
करने  के िलए, 28 जन
ू , 1919 को "लीग ऑफ द नेशंस" के चाटर् र अथवा 'रा ट्र संघ के चाटर् र'
पर ह ताक्षर करके रा ट्र संघ की  थापना की गई। यह दे श  के बीच संघषर्  और असहमित 
का  शांितपूण र् िनपटारे   के  उ दे य  के  साथ, 10  जनवरी, 1920  से  प्रभावी  हो  गया।  प्रारं भ  म,
इसके  42  सद य  थे  (य.ू एस.  को  छोड़कर)  और  1927  तक, यह  संख्या  बढ़कर  56  हो  गई। 
रा ट्र  संघ  म  तीन  मख्
ु य  अंगो  म, एक  िवधानसभा, एक  पिरष   और  सिचवालय  शािमल  थे। 
िवतीय  िव वयु ध  के  अमानवीय  नरसंहार  को  रोकने  म  लीग  ऑफ  नेशंस  िवफल  रहा। 
138
सवर्स मत िनणर्य के प्रावधान ने  इसकी कायर्प्रिक्रया को मिु कल, लगभग असंभव बना िदया 
था। 

इसके बावजद
ू  भी, शांितपूण र् िव व  यव था सिु नि चत करने  के िलए बहुत सारे   प्रावधान 
थे  पर तु  'सवर्स मत िनणर्य के प्रावधान' और अ य िविभ न कारण  से, रा ट्र संघ उन दे श  
को रोकने  म िवफल रहा, िज ह ने अंतरार् ट्रीय शांित के िलए खतरा उ प न िकया और दिु नया 
ने 1939 से 1945 के बीच घिटत हुआ एक और यु ध-नरसंहार दे खा।

सी क्रांित

पासचडेले की लड़ाई (Ypres की तीसरी लड़ाई) के समय, जब कुछ िमत्र रा ट्र 'पि चमी मोच' पर 


जमर्नी के साथ यु ध म उलझे हुए थे, उसी दौरान  स म एक क्रांित फुट पड़ती है ।  लािदमीर 
लेिनन के नेत ृ व म, बो शेिवक  ने सीज़र िनकोलस II के शासन के िखलाफ एक िहंसक िवद्रोह 
िकया  और  स ा  पर  क ज़ा  थािपत  कर  िलया।  यह  क्रांित  एक  अचानक  घटी  राजनीितक 
घटना थी िजसने  न केवल  स के राजनीितक और सामािजक संरचना को बदल िदया, बि क 
िव व  यव था  को  भी  एक  नई  िदशा  दी।  क्रांित  के  बाद  स  म, एक  गह
ृ   यु ध  शु   हुआ,
िजसम पि चमी दे श  ने  प्रित-क्रांितकािरय  का समथर्न िकया। गह
ृ यु ध को सफलतापूवक
र्  दबा 
िदया गया और दिु नया का पहला समाजवादी दे श उभरा, जो  िवतीय िव वयु ध के बाद एक 
िव व शिक्त के  प म भी उभरा।

सी  क्रांित  का  िव लेषण  करने  के  िलए, हम  स  की  समकालीन  आिथर्क-सामािजक-
राजनीितक ि थित के बारे  म जानना होगा। हालाँिक, स भौगोिलक  प से एक बड़ा साम्रा य 
था, लेिकन  इसकी  आिथर्क  ि थित  आिदम  और  दयनीय  थी।  इसकी  कुल  आबादी  का  80%
िह सा  गरीब  कृषक  थे।  जाऱ  एलेक्सडर  िवतीय, हाँलािक  दासता  को  समा त  कर  भिू म  का 
पुनिवर्तरण  िकया, लेिकन  इस  पुनिवर्तरण  से  केवल  'कुलक ' (अमीर  कृषक)  को  लाभ  हुआ। 
अ यिधक  अप्र यक्ष  कर   और  यूनतम  आजीिवका  अिजर्त  करने  तक  के  िलए  संसाधन   की 
कमी के कारण 1905 म जाऱ के शासन के िखलाफ एक असफल क्रांित हुई। 1905 की क्रांित 
के बाद भी, शासक  ने  नागिरको के जीवन को सध
ु ारने  की कोिशश नहीं  की। 1914 तक, जब 
औ योिगकीकरण के कारण यूरोपीय अथर् यव थाएँ  फलफूल रही थीं, स म छुट-पुट उ योग 
थे  और इसकी रे लवे  इ फ्रा- ट्रक्चर अमेिरकी रे लवे  नेटवकर् का एक छठे  िह से  के बराबर भी 
नहीं  थी और आबादी का बड़ा िह सा िनरक्षर था। राजनीितक िनयंत्रण िनरं कुश राजशाही के 
अधीन था जो की  िढ़वादी चचर्  के प्रित वफादार था। जाऱ िनकोलस  िवतीय एक अकुशल 
शासक  था  और  उसका  प्रशासन  परू ी  तरह  से  अंत  के  कगार  पर  था।  सी-जापानी  यु ध 
(1904-05) म  स  की  हार  के  बाद, जो  मंचिू रया  और  कोिरया  म  प्रित वं वी  शाही 
मह  वाकांक्षाओं पर लड़ा गया था, राजनीितक असंतोष चरम पर था। "खन
ु ी रिववार" (शांितपण
ू  र्

139
प्रदशर्नकािरय  के हजार  लोग मारे   गए) की घटना 1905 की असफल क्रांित की ओर ले  जाती 
है ।  इस  क्रांित के बाद, जाऱ ने  स की ि थितय  म सध
ु ार करने  की कोिशश  की, लेिकन ये 
प्रयास केवल अपने  शासन को बचाने  के िलए िसफर् एक  वांग मात्र था। प्रथम िव वयु ध के 
दौरान, 1917 के वषर् म, ऐसी अिप्रय ि थितय  के कारण, बो शेिवक क्रांित ने जाऱ के शासन को 
उखाड़ फका और पहले समाजवादी रा य की नींव रखी।

बो शेिवक क्रांित, िजसे  अक्टूबर क्रांित के  प म भी जाना जाता है , का नेत ृ व  लािदमीर 


लेिनन  और  ट्रॉ की  ने  िकया  था।  इस  क्रांित  की  शु आत  बो शेिवक  पाटीर्  की  थापना  के 
साथ  हुई, िजसके  नेता  लेिनन  थे  और  ट्रॉ की, बाद  म, इसके  सद य  बने  थे।  दो  समह
ू ,
सोशिल ट  डेमोक्रेिटक  (कारखाने  के  िमक   वारा  प्रमख
ु   प  से  समिथर्त)  और  समाजवादी 
क्रांितकारी (प्रमख
ु   प से  िकसान   वारा समिथर्त)  सी क्रांितकािरय  के दो गट
ु  थे। 1903 म,
सोशिल ट डेमोक्रेिटक पाटीर्  के लंदन स मेलन के दौरान, पाटीर्  दो गट
ु  म िवभािजत हो गयी। 
इस िवभाजन म अिधकांश पाटीर्-सद य  ने  लेिनन का समथर्न िकया और लेिनन के नेत ृ व 
वाले  दल को 'बो शेिवक' (बहुमत का मतलब) कहा जाने  लगा और वहीं  दस ू री ओर, पाटीर्  के 
दस
ू रे   अ पसंख्यक गट
ु  को 'मशेिवक' नाम िदया गया। बाद म ट्रॉ की भी, जो शु  म लेिनन 
के आलोचक थे, बो शेिवक म शािमल हो गए।

दो  क्रांितय   के  कारण  समाजवादी  रा य  की  पिरक पना  एक  हकीकत  बन  पायी, प्रथम,
" यूमा" (संसद का िनचला सदन, िजसे  1905 के िवद्रोह के बाद  थािपत िकया गया था) ने 
जाऱ का  याग कर िदया और  िवतीय, क्रांित  वारा माक्सर्वादीय  ने  िसंहासन पर क जा कर 
िलया।  बो शेिवक  क्रांित  से  पहले, ’ यूमा’ ने  जाऱ  के  शासन  के  िखलाफ  पहली  क्रांित  की,
िजसके  वारा  जाऱ  का  शासन  समा त  हो गया और  िप्रंस लवॉव के नेत ृ व म एक अंतिरम 
सरकार  थािपत  हुई।  इस  क्रांित  को  'फरवरी  क्रांित' अथवा  'बज ु आ
ुर्   क्रांित' (जैसा  िक 
समाजवादीय   ने  इससे  नाम  िदया) के  प  म  जाना  जाता  है ।  "चौथा  यम ू ा", िजसने  िप्रंस 
लवॉव  के  नेत ृ व  म  एक  अंतिरम  सरकार  की  थापना  की, को  बहुत  लोकिप्रय  समथर्न  नहीं 
िमला  और  राजकुमार  लवॉव  के  इ तीफे  के  साथ  यह  यव था  समा त  हो  गयी।  अलेक्जडर 
केरे की  स के नए प्रधानमंत्री बने लेिकन वे भी लोकिप्रय समथर्न पाने म सफल नहीं हुए। 
िसतंबर 1917 म, लावर कोिनर्लोव, सेना के जनरल ने केरे की के शासन को उखाड़ फकने का 
प्रयास  िकया, लेिकन  बो शेिवको  वारा  केरे की  को  प्रदान  की  गई  सहायता  के  कारण  वह 
सफल नहीं हो पाया।

इस घटना के बाद, लेिनन ने  केरे की के अंतिरम शासन को उखाड़ फकने  की योजना 


बनाई और लेिनन की योजना को बो शेिवक  का समथर्न भी िमला। ट्रॉ की ने पूरी रणनीित 
बनाई और वह "लाल सैिनक" से  समथर्न प्रा त करने  म सफल रहा। अक्टूबर 1917 म, लाल 
सेना के 20000 सैिनक  ने  मह  वपण
ू  र् कायार्लय  पर िनयंत्रण करना शु  िकया और 7 नवंबर,

140
1917 तक  ( सी  कैलडर  के  अनुसार  25 अक्टूबर  1917) लाल  सेना  ने  पेट्रोग्रैड  (वतर्मान  नाम 
सट  पीटसर्बगर्)  को  अपने  िनयंत्रण  म  ले  िलया।  इसके  बाद, सोिवयत  संघ  की  दस
ू री  अिखल 
सी  कांग्रेस  म, एक  नई  सरकार, िजसे  "जनता  का  सोिवयत  कॉिमसर  (Soviet of people’s
Commissars) नाम  िदया  गया  था, लािदमीर  लेिनन  के  नेत ृ व  म  थािपत  की  गई  थी, और 
इसके  साथ, बो शेिवक  क्रांित  ने  क युिन ट  शासन  की  थापना  के  अपने  ल य  को  प्रा त 
िकया।  1918 म, बो शेिवक  पाटीर्  और  स  का  नाम  बदलकर  क्रमशः  क युिन ट  पाटीर्  और 
सोिवयत सोशिल ट गणरा य  का संघ (Unions of Soviet Socialist Republic) रख िदया गया।

1918 म, काउं टर-क्रांितकािरय , िजसम िविभ न राजनीितक समह


ू , धािमर्क नेताओं और पूव र्
जाऱ शासन के अिधकारी शािमल थे, ने  साइबेिरया म  गह
ृ  यु ध शु  िकया। तीन मह  वपूण र्
कद्र  थान   पर  गह
ृ   यु ध  िवकिसत  हुआ  :  उ र  म  साइबेिरया, मरमं क  और  अखर्ंगेल  और 
यूएसएसआर  के  दिक्षणी  भाग  म।  यूरोपीय  दे श , अमेिरका  और  जापान  ने  भी  गह
ृ यु ध  म 
ह तक्षेप िकया। उदाहरण के िलए, नवंबर 1918 म, एडिमरल को चाक ने साइबेिरया पर क जा 
कर  िलया  और  उ ह  70,000  जापानी  और  70000  अमेिरिकय   ने  समथर्न  िदया।  ज द  ही,
लेिनन  और  ट्रॉ की  ने  लाल  सेना  को  एकजुट  िकया  और  काउं टर-क्रांितकािरय   का  दमन 
करना  शु   कर  िदया।  रक्तपात  के  तीन  वष , काउं टर-क्रांितकािरय   को  दबा  िदया  गया  और 
पि चमी दे श  का ह तक्षेप का प्रयास िवफल रहा और गह
ृ  यु ध समा त हो गया। शासन के 
पहले  चार  वष   के  दौरान  नई  समाजवादी  सरकार  को  भीतर  और  बाहर  से  चुनौितय   का 
सामना करना पड़ा था, लेिकन बाद म यह िव व की महाशिक्त के  प म उभरा और  िवतीय 
िव वयु ध के बाद इसने  अमेिरका के आिधप य को चन
ु ौती भी दी और इन दोनो म शासन 
व प्रभाव-क्षेत्र के िव तार के िलए प्रित पधार्  शु  हुई िजसे  हम सभी 45 वष  के शीत यु ध 
काल के  प म जानते ह।

िन कषर्

प्रथम  महायु ध, िजसे  'महायु ध' के  नाम  से  भी  जाना  जाता  है , अपने  तरह  का  प्रथम  यु ध 
था।  पहली  बार, मानव  इितहास  म  िकसी  यु ध  के  ऐसे  िवनाशकारी  पिरणाम  थे।  ऑि ट्रया-
हं गरी और सिबर्या के बीच आकर् यक
ू  फ्रांज फिडर्नड की ह या के कारण यु ध िछड़ गया और 
इस  यु ध  ने  परू े   यरू ोप  को  खींच  िलया।  इस  यु ध  से  न  केवल  लाख   की  जान-माल  का 
नक
ु सान  हुआ, बि क  परू ी  दिु नया  की  सारी  संरचना  और  िड कोसर्  को  भी  बदल  िदया।  इस 
यु ध के कारण, चार साम्रा य िवघिटत हो गए, रा य  की सीमाएँ  िफर से  यवि थत की गईं,
अमेिरका, िजसने  अपने  क्षेत्र  पर  यु ध  का  अनुभव  नहीं  िकया  था, िव व  शिक्त  के  प  म 
उभरा। यु ध के बाद, भिव य म इस तरह के नरसंहार से  बचने  के िलए संिधय  की  ख
ं ृ ला 
पर ह ताक्षर िकए गए थे, और यहाँ  तक िक यु ध को रोकने  और िवचार-िवमशर्  के मा यम 
से  िववाद  को िनपटाने  के िलए एक अंतरार् ट्रीय राजनियक संगठन की  थापना की गई थी। 
141
लेिकन यह सारी कोिशश िवफल हो गयी, जब 1 िसतंबर, 1939 को दिु नया ने दस
ू रे  िव वयु ध 
की शु आत दे खी, िजसने दिु नया को और भी बुरी तरह प्रभािवत िकया।

स दभर् सच
ू ी

 बेयलीस,  जे,  ि मथ,  एस  एंड  ओवे स  पी.  (2011)  द  ग्लोबलाइज़ेशन  ऑफ  व डर् 
पॉिलिटक्स, एन इंट्रोडक्शन टू इंटरनेशनल िरलेश स. ऑक्सफोडर् यिू नविसर्टी प्रेस; िद ली 
 ं  हाउस प्राइवेट िलिमटे ड; 
ख ना, वी. एन. (2013) अंतरार् ट्रीय संबंध. िवकास पि लिशग
नई िद ली 
• नॉमर्न, एल. (2013) मा टे िरंग मॉडनर् व डर् िह ट्री. पालग्रेव मैकिमलन; लंदन 
• (https://www.britannica.com/event/World-War-I ) प्रथम िव वयु ध 

142
इकाई-3 

पाठ-3 : फ़ासीवाद और नाजीवाद का उदय 
अनीता 
अनुवादक : नारायण रॉय 

पिरचय 

वे टफेलीया  की  शांित  नामक  समझौते  के  बाद  अंतरार् ट्रीय  राजनीित  म  रा ट्र  रा य   की 
अवधारणा  का  ज म  हुआ।  इन  रा ट्र  रा य   ने  तब  से  लेकर  अब  तक  अंतरार् ट्रीय  िव व 
यव था के िवकास की िदशा और गित को तय िकया है । इन रा ट्र रा य  के म य सदै व 
शिक्त  और  स ा  के  िव तार  के  िलए  संघषर्  रहा  है ,  जोिक  दशक   से  वतर्मान  अंतरार् ट्रीय 
राजनीित  की  एक  स चाई  है ।  20वीं  शता दी  के  प्रारं िभक  दशक   म,  यरू ोप  के  कुछ  दे श   व 
साम्रा य के म य उभरे   ऐसे  ही एक संघषर्  ने  अंततः प्रथम िव वयु ध को ज म िदया। इस 
यु ध  के  बाद  यूरोप  के  राजनीितक  मानिचत्र  को  दोबारा  से  िचित्रत  करने  के  िलए  और  एक 
शांित समझौते  वारा सभी संघषर्  के मु द  का समाधान करने  के िलए पेिरस म 1919 म, 
एक शांित स मेलन का आयोजन िकया गया। इस शांित स मेलन से  दो रा ट्र , जमर्नी और 
इटली,  को  भारी  िनराशा  हाथ  लगी।  इस  िनराशा  के  चलते  और  यु ध  के  कारण  िबगड़ी 
सामािजक-आिथर्क  ि थित  के  कारण  इन  दोन   दे श   म  यु धो र  काल  म  राजनीितक 
अि थरता  बनी  रही।  इस  संकटकालीन  पिरि थित  म,  इन  दोन   दे श   म  एक  रा ट्रवादी 
आंदोलन  शु   हुआ,  िजसे  इटली  म  मस
ु ोिलनी  और  जमर्नी  म  िहटलर  वारा  नेत ृ व  प्रदान 
िकया  गया। मस
ु ोिलनी  और  िहटलर  ने  िजस वैचािरक अवधारणा के अनु प  अपनी नीितयाँ, 
राजिनितक कायर्क्रम, शासन  यव था और िवदे श नीित को तय िकया उसे  क्रमशः फ़ासीवाद 
और नाजीवाद के नाम से  जाना गया। फ़ासीवाद और नाजीवाद एक ऐसी शासन  यव था है  
िजसम तानाशाही फ़ासीवाद और नाजीवाद शासन की एक ऐसी प्रणाली है   िजसम तानाशाही, 
उग्र अथवा अित रा ट्रवाद, िवपक्षीय आवाज  और त व
   का दमन, अथर् यव था और समाज 
पर शासन तंत्र का कठोर िनयंत्रण आिद िवशेषताएँ शािमल है । 

इस  अ याय  म  हम  यरू ोप  म  फ़ासीवाद  और  नाजीवाद  के  उदय  की  िव तार  म  चचार् 
करगे।  इसके  अितिरक्त  हम  उन  कारण   और  पिरि थितय   की  भी  चचार्  करगे,  िज ह ने 
फ़ासीवाद और नाजीवाद जैसी शासन  यव था के उदय का मागर्  प्रस त िकया। इस शासन 
यव था  के  उदय  म  मस
ु ोिलनी  और  फ़ािस ट  पाटीर्  तथा  िहटलर  और  ना सी  पाटीर्  वारा 
िनभाई गई भिू मका की भी िव तार से चचार् की गई है । फ़ासीवाद और नाजीवाद के उदय को 
समझने  के िलए इस अ याय को मख्
ु यतः तीन खंड  म िवभािजत िकया गया। प्रथम खंड म 
143
हम नाजीवाद के उदय की िव तार से  चचार्  करगे, साथ ही यह समझने  का प्रयास करगे  िक 
कैसे  जमर्नी  म  िहटलर  के  नेत ृ व  म  एक  क्रूर  और  तानाशाही  शासन  ज मा।  अगले  खंड  म 
हम  फ़ासीवाद  के  उिदत  होने  की  प्रिक्रया  और  कैसे  मस
ु ोिलनी  ने  इटली  म  अपनी  स ा 
थािपत की, को समझगे। इस अ याय के तत
ृ ीय खंड म हम फ़ासीवाद और नाजीवाद जैसी 
शासन  यव था के क्या प्रभाव रहे   और िकस तरह से  इन शासन प्रणाली ने  िवश ्व  यव था 
को प्रभािवत िकया को संक्षेप म समझने का प्रयास करगे। 

खंड-1 : नाजीवाद 

नाजीवाद एक राजनीितक अवधारणा है   िजसका उदय िहटलर के नेत ृ व म जमर्नी म हुआ। 


िहटलर 1889 म ऑि ट्रया म पैदा हुआ था। उसके िपता ऑि ट्रया के सीमा शु क िवभाग म 
अिधकारी थे। बचपन म िहटलर को िचत्रकला का शौक था लेिकन उसके िपता चाहते  थे  िक 
वह एक सरकारी अिधकारी बने। िहटलर ने िवयना की शाही कला अकादमी म प्रवेश के िलए 
प्रयास  भी  िकया  था  लेिकन  वह  असफल  रहा।  ऑि ट्रया  छोड़कर  जाने  से  पहले  िहटलर  ने 
अपना  समय  ऑि ट्रया-हं गरी  के  जमर्न  भाषी  लोग   की  सामािजक,  आिथर्क,  राजनीितक 
सम याओं से संबंिधत सािह य पढ़ने म लगाया िजसके बाद वह 1912 म जमर्नी चला गया। 
सािह य के प्रभाव से िहटलर के िवचार  म पिरवतर्न हुआ और वह क टर यहूदी िवरोधी तथा 
सा यवाद का िवरोधी हो गया था। प्रथम िव वयु ध के समय वह सेना म भतीर् हो गया और 
बहादरु ी  के  साथ  यु ध  म  लड़ा  पर तु  यु ध  के  अंितम  समय  म  वह  घायल  हो  गया  था। 
उसकी  इस  बहादरु ी  के  िलए  उसकी  पदो नित  हुई  और  आयरन  क्रॉस  नामक  पुर कार  प्रदान 
िकया गया था। यु ध म जमर्नी को िमली हार िहटलर के िलए अिव वसनीय और असहनीय 
थी और उसने इस हार का िज मेदार सा यवािदय  और यहूिदय  को ठहराया था।  

 ना सी पाटीर् का उदय 

प्रथम िव वयु ध के बाद यूरोप के कुछ दे श  म जहाँ  एक ओर, सा यवादी प्रविृ य  ने  तेजी 


पकड़ी और अ यवि थत समािजक  यव था का उदय हुआ वहीं  दस ू री ओर जमर्नी म िहटलर 
के नेत ृ व म ना सी दल की  थापना हुई। प्रथम िव वयु ध के प चात ् िहटलर को सेना म 
राजनीितक िवभाग के राज व समाचार  यूरो म िनरीक्षण अिधकारी के पद पर िनयुक्त िकया 
गया था। इसके तहत िसतंबर 1919 म उसे “जमर्न वकर्सर् पाटीर्” के छोटे  समह
ू  की मीिटंग के 
परीक्षण की िज मेदारी दी गई थी। जमर्न वकर्सर्  पाटीर्  6 सद य  का गट
ु  था िजसम िहटलर 
सातव सद य के  प म शािमल हुआ और अप्रैल 1920 म सेना के पद से  यागपत्र दे  िदया। 
जमर्न  वकर्सर्  पाटीर्  म  सि मिलत  होने  के  प चात ्  िहटलर  ने  संगठन  को  मजबत
ू   करने  म 
अपना सारा साम यर्, समय और शिक्त लगा दी। िहटलर के प्रयास  से  पाटीर्  म सद य  की 

144
संख्या  म  तेजी  से  व ृ िध  हुई  और  बाद  मे,  जमर्न  वकर्सर्  पाटीर्  का  नया  नाम  “नेशनल 
सोशिल ट जमर्न लेबर पाटीर्” रखा गया िजसे संक्षेप म, ना सी पाटीर् कहा जाने लगा। 

 िहटलर की सिक्रय राजनीित म शु आत 

ना सी पाटीर्  के गठन के बाद िहटलर ने  नवंबर 1923 म जमर्न सरकार के िखलाफ िवद्रोह 


का  प्रयास  िकया  लेिकन  वह  इसम  सफल  नहीं  हुआ  और  िहटलर  पर  दे शद्रोह  का  मक
ु दमा 
चलाया गया। 1924 म िहटलर को पाँच वषर्  की सजा सन
ु ाई गई परं तु  उसे  समय से  पहले 
जेल से िरहा कर िदया गया था। जेल म िहटलर ने अपनी पु तक “मीन कै फ” िलखी िजसम 
िहटलर ने  अपने  राजनीितक ल य  का वणर्न िकया था। उसने  यह भी कहा िक आयर्  जाित 
सभी जाितय  से  े ठ है  और जमर्न आयर् ह इसीिलए उ ह िव व का नेत ृ व करना चािहए। 

जैसा  िक  हम  पहले  भी  चचार्ं  कर  चक


ु े   ह,  प्रथम  िव वयु ध  के  बाद,  यरू ोपीय  दे श   के 
सामने  न  केवल  आिथर्क  पतन  की  सम या  उभरी  बि क  इनम  से  कुछ  दे श   ने,  यु धो र 
काल  म  राजिनितक  अि थरता  और  तानाशाही  प्रविृ य   के  िवकास  जैसी  ि थित  का  भी 
सामना िकया। जमर्नी म िहटलर के  वारा ना सी पाटीर्  का गठन िकया जाना और इटली म 
फ़ासीवाद  िवचारधारा  का  उभार  इन  तानाशाही  प्रविृ य   के  िवकास  का  प्रमाण  है ।  िहटलर  ने 
अपनी प्रितभा, योग्यता व राजनीितक चतुरता के कारण जमर्न गणतंत्र पर अपना आिधप य 
थािपत  करने  म  सफलता  प्रा त  की  थी  िहटलर  और  ना सी  पाटीर्  को  यह स ा  एवं  शिक्त 
एकाएक  प  म  प्रा त  नहीं  हुई,  बि क  उनकी  शिक्त  का  िवकास  धीरे -धीरे   हुआ  था।  अगले 
खंड म हम िहटलर और ना सी पाटीर्  के स ा म उदय की स पूण र् कहानी की संक्षेप म चचार्ं 
करगे।  

 िहटलर का जमर्न की स ा पर कािबज होना 

िव वयु ध समा त होने  के बाद जमर्नी म वाइमर संिवधान के अनुसार लोकतंत्र की  थापना 


की  गई  थी।  यु धो र  काल  म  भी  जमर्नी  की  अथर् यव था  म  िगरावट  जारी  रही  और 
त कालीन  जमर्न  सरकार  इस  आिथर्क  संकट  से  जमर्नी  को  िनकालने  म  असफल  रही।  इस 
आिथर्क  संकट  से  ज मी  पिरि थित  जैसे  बढ़ती  बेरोजगारी  दर,  दै िनक  ज रत  की  सामिग्रय  
की  बढ़ती  कीमत,  और  िवशेषकर  सा यवाद  के  प्रसार  का  बढ़ता  डर  आिद  िहटलर  के  िलए 
लाभकारी रही। साथ ही, िहटलर की आ मकथा मेरा संघषर्, िजसम उसने  अपने  महान जमर्न 
रा य (तीसरे  रीख) के  व न और राजनीितक िवचारधारा की  याख्या की थी, की लोकिप्रयता 
भी  बढ़ने  लगी।  इसका  प्रभाव  यह  हुआ  िक  िहटलर  और  ना सी  पाटीर्  की  लोकिप्रयता  बढ़ने 
लगी और पाटीर् की सद य संख्या म तेजी से व ृ िध होने लगी। 1926 म पाटीर् म सद य  की 
संख्या  17000  थी,  जो  अगले  2  वष   म  60,000  हो  गई  थी।  1926  के  चुनाव  म  ना सी 
पाटीर्  के  दो  प्रमख
ु   सद य  नेता  गोिरंग  तथा  गोएबे स  संसद  सद य  के  प  म  चुने  गए। 

145
चुनाव  के  बाद,  िहटलर  ने  अपनी  राजनीितक  कूटता  से  वाइमर  सरकार,  यहूिदय ,  सा यवाद 
की आलोचना करना शु  कर दी और जमर्नी के लोग  को अपने  भाषण  से  प्रभािवत करना 
जारी रखा। 1930 म हुए चुनाव  म ना सी पाटीर्  के सांसद  की संख्या म व ृ िध हुई जो 12 
से  बढ़कर  107  पर  जा  पहुँची  थी,  िजसके  पिरणाम  व प  ना सी  पाटीर्  जमर्नी  की  दस
ू री 
सबसे  प्रभावशाली पाटीर्  बन गई थी। संसद म नाि सओ की बढ़ती संख्या त कालीन सरकार 
की िचंता का िवषय बन गया था। 1932 के चुनाव म ना सी पाटीर् को 37 फ़ीसदी वोट प्रा त 
हुए थे। मई 1932 म जमर्नी म रा ट्रपित पद के िलए चुनाव हुए िजसम िहटलर ने  भी भाग 
िलया  और उसे  अपने  प्रित वं वी  िहंडनबगर्  से  इस  चुनाव म  हार  प्रा त  हुई।  िहंडनबगर्  पुनः 
जमर्नी  के  रा ट्रपित  चन
ु े  गए।  इस  समय  जमर्नी  म  आिथर्क  संकट  गहराया  हुआ  था, 
बेरोजगारी  िनरं तर  बढ़ती  जा  रही  थी।  िदन-प्रितिदन  िबगड़ती  ि थित  के  चलते  जमर्नी  के 
चांसलर  हे निरच  ब्रूिनंग  ने  रा ट्रपित  के  चुनाव  के  बाद  अपना  यागपत्र  दे   िदया।  रा ट्रपित 
िहंडनबगर्  ने  फ्रांज़  वॉन  पेपन  को  नया  प्रधानमंत्री  िनयुक्त  िकया,  परं तु  संसद  म  बहुमत  ना 
िमलने  के कारण वह  यादा िदन सरकार नहीं  चला पाए। पेपन की िसफािरश पर िहंडनबगर् 
वारा संसद को भंग करा िदया गया और नवंबर 1932 म पुन: आम चन
ु ाव कराए गए। इस 
चुनाव  म ना सी पाटीर्  के चयिनत सद य  की संख्या म िगरावट आई, जो 230 से  घटकर 
196 हो गई थी, परं तु  िफर भी ना सी दल एक बड़े  दल के  प म उभरा। चांसलर पेपन के 
वारा  यागपत्र दे ने के बाद रा ट्रपित िहडंनबगर् ने िहटलर को चांसलर का पदभार संभालने के 
िलए  आमंित्रत  िकया,  पर तु  िहटलर  के  वारा  रा ट्रपित  के  समक्ष  कुछ  शत  रखी  गई  थी, 
िज ह िहडंनबगर्  ने  अ वीकार कर िदया और जनरल कुतर्  वॉन शलेशर को प्रधानमंत्री िनयुक्त 
कर िदया गया। बहुमत म ना होने के कारण यह सरकार भी केवल 8 स ताह ही शासन कर 
सकी और कत ुर् ने  भी रा ट्रपित को  यागपत्र स प िदया। इस राजनीितक अि थरता के चलते 
िहडंनबगर्  के  पास  कोई  अ य  िवक प  नहीं  बचा  था  और  उ ह ने  िहटलर  को  पुनः  सरकार 
बनाने  का प्र ताव िदया। इस बार िहटलर ने  िबना िकसी शतर्  के प्र ताव को  वीकार िकया 
और 30 जनवरी, 1933 को प्रधानमंत्री पद का कायर्भार संभाला। 

िहटलर  के  पहले  मंित्रमंडल  म  तीन  ना सी  और  आठ  रा ट्रवादी  सद य  थे।  रा ट्रवादी 
सद य  पेपन  को  उप-प्रधानमंत्री  िनयुक्त  िकया  गया  और  रक्षा  मंत्री  के  पद  पर  जनरल 
लम
ू बगर्  को  िनयुक्त  िकया  था,  तािक  िहटलर  को  िनयंत्रण  म  रखा  जा  सके।  िहटलर  के 
सरकारी सद य बोिरंग ने कहा था िक ‘स ा हमारे  पास आ गई तो हम इसे कभी नहीं छोड़गे 
जब तक िक हमारे   शव  को कायार्लय से  ले  जाया जाएगा’ और भिव य म यह कथन सही 
िस ध  हुआ।  स ा  म  आने  के  बाद,  िहटलर  ने  एक  नया  जनादे श  प्रा त  करने  का  फैसला 
िकया और नवंबर 1932 म िनवार्िचत संसद को भंग कर िदया गया। 3 माचर्, 1933 के िदन, 
नए िसरे  से चुनाव कराने का आदे श पािरत िकया गया। चुनाव से पूव,र्  बिलर्न म ि थत संसद 

146
भवन म भी म अिग्न कांड हुआ िजसके िलए िहटलर ने  सा यवािदय  को दोषी ठहराया और 
उनका दमन करना शु  कर िदया। 
माचर्  म हुए आम चन
ु ाव  म ना सी पाटीर्  के मतदान प्रितशत और चयिनत सद य  की 
संख्या दोन  म व ृ िध हुई और िहटलर के नेत ृ व म ना सी पाटीर्  ने  साधारण बहुमत प्रा त 
कर सरकार का गठन िकया। स ा म आने  के बाद िहटलर ने  संवैधािनक शासन की संरचना 
और  सं थान   को  भंग  करना  शु   कर  िदया।  माचर्  1933  को  “इनेबिलंगएक्ट”  नामक  एक 
िवशेष  कानून  पािरत  िकया  गया  िजसके  वारा  जमर्नी  म  तानाशाही  थािपत  की  गई।  इस 
कानून  के  वारा  िहटलर  ने  संसद  को  हािशए  पर  ला  खड़ा  िकया  और  केवल  अ यादे श  के 
जिरए  शासन  चलाने  का  िनरं कुश  अिधकार  प्रा त  िकया।  जमर्नी  म,  ना सी  पाटीर्  के  अलावा 
अ य  सभी  दल   व  संगठन   को  अवैध  घोिषत  कर  िदया  गया।  सेना, मीिडया,  यायपािलका 
और  अथर् यव था  को  पूणत
र् ः  रा य  के  िनयंत्रण  के  अधीन  कर  िदया  गया।  इसके  अलावा, 
िहटलर ने ना सीवादी िवचारधारा के अनु प शासन के संचालन िलए अलग-अलग संगठन  के 
गठन  और  रक्षा  के  िलए  सेना  के  गठन  का  आदे श  िदया।  िहटलर  के  नेत ृ व  म  “गे टापो” 
नामक एक गु तचर संगठन का गठन िकया िजसका कायर्  राजनीितक िवरोिधय  को दं ड दे ना 
था। 30 जनवरी, 1934 को, शासन की पहली वषर्गाँठ के अवसर पर, िहटलर ने  रा य की 
िवधाियका  को भंग  कर  िदया  और  उसी  वषर्  4  फरवरी  को ऊपरी  सदन  को भी  िनर त  कर 
िदया।  रा ट्रपित  िहडंनबगर्  की  म ृ यु  से  पहले  ही  मंित्रमंडल  के  वारा  यह  िनणर्य  िलया  गया 
िक  िहडंनबगर्  की  म ृ यु  के  प चात ्  रा ट्रपित  और  प्रधानमंत्री  के  पद   को  िमलाकर  एक  कर 
िदया जाएगा। अग त 1934 म रा ट्रपित िहडंनबगर्  की म ृ यु  के बाद िहटलर के  वारा एक 
जनमत संग्रह कराया गया िजसम पौने  चार करोड़ मतदाताओं  ने  िहटलर को प्रधानमंत्री और 
रा ट्रपित के  प म  वीकार िकया था। 
इस  प्रकार  जमर्नी  की  स ा  का  कद्रीकरण  प्रार भ हुआ  और  स पूण र् स ा-शिक्त िहटलर 
के हाथ  म आ गयी। इसके बाद, िहटलर ने  एक और कानून लाग ू िकया िजसके तहत एक 
दे श,  एक  सेना,  एक  नेता  के  प्रित  वफादारी  की  शपथ  लेना  अिनवायर्  कर  िदया  गया।  इस 
तरह से िहटलर रा य, सरकार व सेना का अ यक्ष बन गया और उसने  वयं को जमर्न रा ट्र 
का प्रतीक और एकमात्र नेता (फुहरे र) घोिषत िकया। 
 नाजीवाद के उ थान के िलए उ रदायी कारक 
 वसार्य की संिध 
प्रथम िव वयु ध के बाद, 1919 म, वसार्य की संिध को यु ध और संघषर्  को समा त करने 
के िलए संिध के  प म ह ताक्षिरत िकया गया था। इस शांित संिध का मसौदा तैयार करने 
म न तो जमर्न प्रितिनिधय  की भागीदारी थी और न ही िमत्र रा ट्र   वारा उनकी राय पर 
िवचार िकया गया था। जमर्न प्रितिनिधय  को इस संिध पर ह ताक्षर करने  के िलए मजबरू  
147
िकया गया था। इस संिध के तहत, जमर्नी के कई क्षेत्र (जैसे  अलसैस-लोरे न) और यूरोप से 
बाहर  के  उसके  सभी  उपिनवेश  जमर्नी  से  छीन  िलए  गए,  उसकी  सै य  शिक्त  पर  प्रितबंध 
लगाए  गए  और  उस  पर  कई  अ य  प्रकार  के  प्रितबंध  भी  थोपे  गए।  इसके  अलावा,  प्रथम 
िव वयु ध के िलए अकेले  जमर्नी को िज मेदार ठहराया गया था, और यु ध से  हुए नुकसान 
की भरपाई के िलए जमर्नी पर 650 िमिलयन पाउं ड का जम
ु ार्ना लगाया गया था।  प ट तौर 
पर  यह  संिध  पूरी  तरह  से  पक्षपाती  थी,  जमर्नी  के  िलए  वा तव  म  अ यायपूण र् थी  और 
इसिलए जमर्न लोग  ने इस संिध को “िडक्टे ड पीस” कहा था।  
 सा यवाद के प्रसार का डर  

प्रथम  िव व  के  प चात ्  स पूण र् यूरोप  म  आिथर्क  िदवािलयापन  की  ि थित  उभरी  थी।  दोन  
गट
ु  के दे श  को भारी आिथर्क व संरचना मक हािन वहन करनी पड़ी थी पर तु  जमर्नी को 
यु ध के कारण दोहरी मार झेलनी पड़ी थी। अथार्त ् एक ओर जमर्नी को यु ध के कारण हुई 
क्षित का भार उठाना पड़ा और दस
ू रीं ओर वसार्य की शांित संिध  वारा आरोिपत आिथर्क दं ड 
ने  उसकी इस ि थित को और दज़
ु रर्  कर िदया। जमर्नी म उभरी इस आिथर्क पिरि थित ने 
सा यवाद के प्रसार एवं  उ थान के िलए सकारा मक पिरि थित प्रदान की और सा यवािदय  
वारा  जमर्नी  म  क्रांित  लाने  का  प्रय न  िकया  जाने  लगा।  िहटलर  का  मानना  था  िक 
सा यवादी िवचारधारा जमर्नी की रा ट्रीयता के िलए भारी खतरा है   साथ ही उसे  यह भय भी 
था िक सा यवादी िवचारधारा के प्रबल होने से जमर्नी  स का दास बनकर रह जाएगा। इसके 
िलए िहटलर ने अपने भाषण  के मा यम से जनता को सा यवाद के िवनाशकारी पिरणाम  से 
अवगत कराया और साथ ही साथ जमर्न लोग  म रा ट्रवाद की भावना को जागत
ृ  िकया और 
उ ह  सा यवाद  से  दरू   रहने  का  आदे श  िदया।  िहटलर  के  इस  दावे  को  जमर्नी  के 
कुलीन/अिभजात वगर्  और धिनक वगर्  वारा समथर्न िमला। इसके पिरणाम व प सा यवाद 
के  खतरे   से  बचने  के  िलए  भारी  संख्या  म  लोग  ना सी  पाटीर्  से  जड़
ु ने  लगे  और  इस  तरह 
सा यवाद के उभार का डर, नाजीवाद की उ नित म सहायक िस ध हुआ। 

 आिथर्क संकट का प्रभाव 

जैसा की हम जानते ह, यु ध की समाि त के प चात ् जमर्नी को एक भारी आिथर्क संकट का 


सामना करना पड़ा था। यु ध काल म जमर्नी की अथर् यव था िछ न-िभ न तो हो ही चुकी 
थी और वसार्य संिध के कारण जमर्नी को और भी भारी आिथर्क क्षित हुई थी। उ योग धंधे 
तबाह हो गए थे, दे श म बेकारी भख
ु मरी जोर  पर थी। प्रजातांित्रक सरकार (भले  ही वो फ्रांज़ 
वॉन पेपन की सरकार हो या जनरल कुतर्  वॉन शलेशर की) इस आिथर्क संकट से  िनपटने  म 
असफल  रही।  इस  कारण  से  जनता  का  सरकार के  प्रित  िव वास घटता  जा  रहा  था  िजसके 
पिरणाम  व प  गरीब,  िमक,  िकसान  व  पीिड़त  वगर्  ना सी  पाटीर्  की  ओर  आकिषर्त  हुए। 

148
इस  पिरि थित  म  ना सी  पाटीर्  को  अपनी  शिक्त  बढ़ाने  व  लोकिप्रयता  बढ़ाने  का  सन
ु हरा 
अवसर प्रा त हुआ था और ना सी पाटीर् िदन प्रितिदन उ नित की ओर अग्रसर हो रही थी। 

 लोकतांित्रक शासन म बढ़ता अिव वास  

िहटलर  और  ना सी  पाटीर्  के  उ कषर्  का  एक  कारण  जमर्न  जनता  म  प्रजाताि त्रक  शासन 
प धित  के  िव ध  अ िच  होना  था।  बहुत  से  जमर्न,  संसदा मक  शासन  प्रणाली  और  िजस 
ढं ग  से  वह  कायर्  कर  रही  थी,  से  वे  ऊब  गये  थे।  त कालीन  जमर्न  राजनीितज्ञ  लोग   से 
ि थित को बदलने का वादा कर रहे  थे लेिकन ये वादे  केवल खोकली बात सािबत हो रही थी। 
इससे  सामा य  जनता  को  भारी  आघात पहुँचता और वे  एक शिक्तशाली  यिक्त को जमर्नी 
का  भाग्य  िवधाता  दे खना  चाहती  थी  जो  िक  जनता  को  मौजद
ू ा  दयनीय  ि थित  से  मिु क्त 
िदलवा सके। 

 िहटलर का प्रभावशाली व आकषर्क  यिक्त व 

ना सीदल  के  उ कषर्  का  एक  प्रमख


ु   कारण  िहटलर  का  असाधारण  यिक्त व  था।  उसम 
जननायक  होने  के  सभी  गण
ु   थे।  वह  एक  मंझा  हुआ  राजनीतीज्ञ,  एक  प्रभावान  एवं  महान 
वक्ता  और  एक  वीर  सैिनक  था।  उसम  पिरि थितय   के  अनुसार  राजनीितक  दाँव-पेच   को 
अपने  अनुकूल कायार्ि वत करने  की अ भत
ु  योग्यता थी। िहटलर ने  भाषण  मा यम से  एक 
महान जमर्न रा य के  व न को लोग  तक पहुँचाया था और साथ ही उसने  जमर्न लोग  से 
वसार्य की संिध के अपमान का बदला लेने  का वादा भी िकया था। िहटलर के इस  यिक्तव 
ने जमर्न लोग  को आकिषर्त िकया और उ ह ये भरोसा हो गया था िक एक मात्र  यिक्त जो 
जमर्नी की दद
ु र् शा को सध
ु ार दे श की महानता को पुनः  थािपत कर सकता है   वह िहटलर है । 
िहटलर की इस अिव वसनीय लोकिप्रयता ने नाजीवाद के प्रसार को गित दी।  

खंड-2 : फ़ासीवाद  

फ़ािस ट  श द  की  उ पि   “फािसयो”  श द  से  हुई  है   जो  लैिटन  श द  “फासेज”  से  बना  है  
िजसका सामा य अथर् छड़  का ग ठर है । िजसे अिधकार का प्रतीक माना जाता था। फ़ािस ट 
श द के िलए फािस म और फ़ासीवाद जैसे श द भी प्रयोग िकए जाते ह। फ़ासीवाद का उदय, 
बेिनटो मस
ु ोिलनी के नेत ृ व म, इटली म हुआ। मस ु ोिलनी का ज म इटली के रोमग्ना शहर 
म  1883  म  हुआ  था।  उनके  िपता  पेशे  से  लोहार  थे  और  माता  कूल  म  अ यािपका  थी। 
मस
ु ोिलनी पर अपने  िपता के समाजवादी िवचार  का प्रभाव पड़ा था। शु आती समय म, वह 
एक अ यापक बना िकंत ु कुछ समय प चात ् ही वह यह  यवसाय छोड़कर ि व जरलड चला 
गया। वहाँ  वह समाजवादी दल के संपकर् म आया तथा उसने  सरकार िवरोधी आंदोलन  और 
हड़ताल  का आयोजन प्रारं भ िकया िजसके कारण उससे जेल म डाल िदया गया। जेल से िरहा 

149
होने  के  बाद  मस
ु ोिलनी  ने  समाजवादी  पित्रका  “अवंती”  का  संपादन  करना  शु   िकया।  प्रथम 
यु ध के शु आती समय म वह इटली की तट थता नीित का समथर्क था िकंतु बाद म उसने 
इटली के  वारा यु ध म भाग लेने का समथर्न िकया िकंतु समाजवादी दल ने इस िनणर्य का 
िवरोध िकया इसिलए मस
ु ोिलनी ने समाजवादी पाटीर् को छोड़कर यु ध के दौरान सेना म भतीर् 
हो हुआ  और सैिनक  के  तौर  पर यु ध  म  भाग  िलया।  यु ध म घायल  होने  के  कारण  उसे 
1917 म सेना से सेवािनव ृ  कर िदया गया। 

 फासीवादी पाटीर् का उदय 

फािस म  का  ज मदाता  मस


ु ोिलनी  को  माना  जाता  है ।  प्रथम  िव वयु ध  की  समाि त  के 
प चात ्, 1919 म, मस
ु ोिलनी के  वारा अपने  िमत्र  और पव
ू  र् सैिनक  की बैठक का आयोजन 
िकया  गया  था, िज ह ने  इटली  के  प्रथम  िव वयु ध  म  शािमल होने  का समथर्न  िकया था। 
इन सभी को एकजट
ु  कर मस
ु ोिलनी म फासी ट पाटीर्  की इटली म  थापना की थी। फासी 
पाटीर्  ने  वयं  को  अधर्  सैिनक   की  तरह  संगिठत  िकया  था।  दल  म  सेवािनव ृ   सैिनक, 
िकसान, मजदरू , म यम वगर्  व िव याथीर्  भी शािमल हुए। इस दल के सद य काली कमीज 
पहनते  थे  और  अ त्र  श त्र  धारण  करते  थे।  मस
ु ोिलनी  ने  इटलीवािसय   को  िनराशा  से 
िनकालने  हे तु  “फ़ािस टका बािटमेयो”  नामक  संगठन  बनाया।  मस
ु ोिलनी  के  वारा  प्राचीन 
रोमन साम्रा य का प्रतीक िच ह “कु हाड़ी सिहत लकिड़य  का ग ठर” को अपने  संगठन के 
प्रतीक िच ह  प म अपनाया। उसने  इटली के जमीदार  तथा उ योगपितय  से  सा यवािदयो 
के  िव ध  संघषर्  का  वचन  िदया  और  िविभ न  प्रकार  के  कायर्क्रम   की  घोषणा  की  िजसके 
तहत कारखान  का रा ट्रीयकरण, उ योग  पर मजदरू  का िनयंत्रण, मजदरू  के िलए िनि चत 
कायर्-अविध, वय क मतािधकार, चचर्  की संपि  को ज़ त करना, जैसे  कायर्क्रम शािमल थे। 
शीघ्र  ही,  वयंसेवक   ने  सा यवािदय   पर  श त्र  आक्रमण  करने  आरं भ  कर  िदए  िजसके 
पिरणाम  व प  पाटीर्  के  सद य   म  व ृ िध  हुई  और  पाटीर्  की  लोकिप्रयता  बढ़ने  लगी। 
फ़ािस ट दल की संख्या जो 1919 म 22000 थी उसम व ृ िध होकर वह पाँच लाख हो गई 
थी। 

 मस
ु ोिलनी का इटली की राजनीित म प्रवेश 

एक ओर, इटली म सा यवािदय  के िव ध फ़ािस ट पाटीर् के संघषर्  के कारण फ़ािस ट पाटीर् 


की  लोकिप्रयता  और  जनाधार  बढ़  रहा  था  वहीं  दस
ू री  ओर,  सा यवािदय   म  आपसी  फूट  के 
कारण  इटली  म  गह
ृ यु ध  जैसी  ि थित  उ प न  हो  गई  थी  िजसका  फ़ािस ट  पाटीर्  को 
सकारा मक लाभ िमला एवं  इस पिरि थित म पाटीर्  और अिधक फूली बड़ी। पाटीर्  की अिधक 
लोकिप्रयता  के  कारण  1921  म  फ़ािस ट  पाटीर्  के  केवल  55  सद य  संसद  म  शािमल  हो 
सके।  इसके  बावजद
ू   भी  मस
ु ोिलनी  को  सरकार  के  वारा  मंत्री  पद  के  िलए  आमंित्रत  िकया 

150
गया परं तु  मस
ु ोिलनी ने  प्र ताव को अ वीकार कर िदया। इसके बाद भी, संगठन को मजबूत 
बनाए रखने  के कायर्क्रम  को सच
ु ा   प से  जारी रखा गया और संगठन को राजनीितक दल 
के  प  म  थािपत  िकया  गया।  इसके  प चात ्  उसने  अपने  दल  के  साथ,  इटली  के  राजा 
िवक्टर  इमैनुअल  तत
ृ ीय  को  आक्रमण  की  चुनौती  दी।  िसतंबर  1922  म  मस
ु ोिलनी  ने  “रोम 
चलो” का नारा िदया और अक्टूबर 1922 म ‘ने लस’ म हुए फ़ािस ट स मेलन म फ़ािस ट 
कायर्कतार्ओं  को  रोम  की  ओर  प्र थान  करने  का  आ वान  िकया  और  उसने  अपने  30000 
वयंसेवक   के  साथ  रोम  पर  अिधकार  करने  के  िलए  प्र थान  िकया।  वयंसेवक   ने  रे लवे 
टे शन, डाकघर व अ य सरकारी कायार्लय  पर क जा कर िलया। रोम की कानून  यव था 
भंग  हो  गई,  सरकार  कोई  भी  कायर्वाही  करने  म  असफल  रही।  इस  ि थित  म  प्रधानमंत्री 
फाक्ता  वारा राजा को परामशर् िदया गया िक वह दे श म सै य कानून (माशर्ल लॉ) लागू कर 
दे , परं तु राजा ने परामशर् को अ वीकार कर िदया, िजसके बाद प्रधानमंत्री फाक्ता ने  यागपत्र 
दे   िदया।  िबगड़ती  राजनीितक  ि थित  को  म यनज़र  रखते  हुए  और  गह
ृ   यु ध  से  बचने  के 
िलए  राजा  िवक्टर  इमैनुअल  तत
ृ ीय  ने  30  अक्टूबर,  1922  को  मस
ु ोिलनी  को  प्रधानमंत्री 
िनयुक्त कर िदया। इस तरह, मस
ु ोिलनी का इटली म वा तिवक प्रवेश हुआ।  

मस
ु ोिलनी की तानाशाही 

प्रधानमंत्री के  प म मस
ु ोिलनी की िनयुिक्त संवैधािनक थी परं तु  उसे  संसद म बहुमत प्रा त 
नहीं  था। मस
ु ोिलनी की इस पद पर िनयुिक्त राजा  वारा “सरकार की िनयिु क्त के अिधकार” 
के तहत की गयी थी, वह 1923 के अंत तक बहुमत के बगैर शासन का संचालन कर सकता 
था। इस अिधकार के साथ इटली म तानाशाही व िनरं कुश सरकार की  यव था  थािपत हुई। 
संसद  ने  सरकार  को  अिधक  असीिमत  शिक्तयाँ  प्रदान  करने  के  प्र ताव  को  वीकार  कर 
लोकतंत्र  के  िव वंस  को  गित  प्रदान  की।  सरकार  के  वारा  चुनाव  यव था  म  बदलाव  कर 
संसद को भंग करवा िदया गया और अप्रैल 1924 म संसद के चुनाव कराएँ  गए। इस चुनाव 
मे  फ़ािस ट  पाटीर्  को  अिधक  मत  प्रा त  हुए  और  संसद  म  दो  ितहाई  सीट  प्रा त  हुई 
पिरणाम व प मस ु ोिलनी को अब िवधाियका और प्रशासन दोन  पर संपूण र् िनयंत्रण प्रा त हो 
गया था। चुनाव के प चात ् िवपक्षी दल के नेता की ह या करवा दी गई िजससे अ य िवपक्षी 
दल   के  सद य   म  भय  का  वातावरण  फैल  गया  और  धीरे -धीरे   तानाशाही  मस
ु ोिलनी  ने 
सरकार िवरोिधय  को समा त कर िदया। फल व प इटली के सम त पद अब फासीवािदय  
िनयंत्रण  म  थे।  मस
ु ोिलनी  ने  संपण
ू  र् शिक्तयाँ  अपने  हाथ  म  ले  ली,  प्रेस  को प्रितबंिधत  पर 
िदया और  वयं को इटली का अिधनायक घोिषत पर िदया। 

151
 फ़ासीवाद के उदय के कारण 

 वसार्य संिध से उ प न िनराशा 

प्रथम िव वयु ध के शु आत म इटली ने  वयं को तट थ रखा, पर तु बाद म इटली ने िमत्र 


रा ट्र  की ओर से भाग लेने का िनणर्य िलया था। यु ध की समाि त के बाद इटली को पेिरस 
शांित स मेलन से काफी कुछ प्राि त की आशा थी, पर तु उसे गहरी िनराशा और असंतोष के 
िसवा  कुछ  नहीं  िमला।  वसार्य  की  संिध  म  िमत्र  रा ट्र   ने  इटली  को  जो  क्षेत्र  दे ने  का  वादा 
िकया  था  वह  उसे  नहीं  िमले।  िमत्र  रा ट्र   के  िव वासघात  के  कारण  इटली  की  जनता  म 
िनराशा और असंतोष  या त हो गया। इटली की जनता ने इसका कारण कमजोर जनतंत्र को 
बताया तथा इसका सवार्िधक लाभ मस
ु ोिलनी के फासी ट दल को प्रा त हुआ। 

 आिथर्क असंतोष 

यु ध  म  यापक  तर  पर  जनधन  का  भारी  तर  पर  िवनाश  हुआ  था।  यु ध  के  प चात ् 
िमली िनराशा के फल व प इटली की आिथर्क ि थित म िगरावट आने  लगी। महँगाई अपने 
चरम  पर पहुँच गई। उ योग,  यापार, कृिष आिद को भी बहुत हािन हुई तथा आम  जीवन 
पर इसका सीधा प्रभाव पड़ा। चार  और बेरोजगारी फैल गई िजससे  वहाँ  के मजदरू  व सैिनक 
बेरोजगार हो गए। इटली की मद्र
ु ा म 70% की िगरावट आई। सरकार आिथर्क पिरि थितय  
का हल िनकालने  म असफल रही िजसके कारण जनता म सरकार के प्रित िवद्रोह का ज म 
हुआ। 

 इटली म बढ़ता सा यवाद का प्रभाव  

स की क्रांित के प चात ् सा यवाद यूरोप म भी बढ़ने  लगा। इटली म सा यवाद का प्रसार 


बड़ी तेजी से  फैल रहा था। वहाँ  की जनता के मन म वसार्य की संिध के प्रित असंतोष था, 
इसका  फायदा  उठाते  हुए  सा यवािदय   ने  वहाँ  की  जनता  को  यह  िव वास  िदलाया  िक  वह 
इटली को सशक्त बनाएगा परं त ु इसके िवपरीत सा यवािदय   वारा अथर् यव था पर िनयंत्रण 
जनता की िचंता का िवषय बनने लगा। िवचार अिभ यिक्त पर अंकुश का भय, पँज
ू ीपितय  म 
उनकी पँज
ू ी के छीन जाने  का भय,  यापािरय  को मू य को िनि चत कर उनके मन
ु ाफे पर 
लगाए जाने  वाले  अकंु श का भय लगने  लगा। इस कारण से  इटली की जनता मस
ु ोिलनी के 
पक्ष म हो गई। 

 जनतांित्रक सरकार की असफलता 

एक  ओर,  यु ध  म  हुई  आिथर्क  हािन,  वसार्य  संिध  म  हुए  िव वघात  के  कारण  जनता  म 
असंतोष  या त  था  वहीं  दस
ू री  ओर  दे श  का  आिथर्क  ढाँचा  अ यवि थत  था।  इटली  की 
त कालीन सरकार दे श म फैली अ यव था, अराजकता और संतोष को दरू  करने के िलए कोई 

152
प्रभावी  कायर्वाही  नहीं  कर  पायी  थी  और  जनता  को  िव वास  िदलाने  म  नाकामयाब  रही। 
पिरणाम व प  वहाँ  की  जनता  जनतंत्र  म  अपना  िव वास  खोने  लगी।  इन  पिरि थितय   म 
मस
ु ोिलनी ने उ ह ि थर सरकार और संव ृ िध दे ने का िव वास िदलाया। 

 मस
ु ोिलनी का  यिक्त व 

फ़ासीवाद के उदय का एक प्रमख
ु  कारण मस
ु ोिलनी का  यवहारवादी  यिक्त व था। वह प्रबल 
रा ट्रवादी था, अपने उ दे य की प्राि त के िलए साधन  पर  यान किद्रत करता था सा य पर 
नहीं।  उसके  िलए  उिचत-अनुिचत  नैितक-अनैितक  धमर्-अधमर्  जैसी  चीज़े  मायने  नहीं  रखती 
थी।  उसका  उ बोधन  अ यंत  प्रभावशाली  होता  था  जो  िक  लोग   को  बहुत  अिधक  प्रभािवत 
करता था। 

खंड-3 : नाजीवाद और फ़ासीवाद के पिरणाम 

जमर्नी  म  नाजीवाद  के  उदय  के  नकारा मक  और  सकारा मक  दोन   तरह  के  पिरणाम  हुए। 
िहटलर  के  शासन  काल  म  जमर्नी  को  आिथर्क  संकट  से  राहत  िमली  जोिक  सकारा मक 
पिरणाम  था।  जहाँ  एक  ओर  स पूण र् िव व  ने  1930  के  दशक  म  आिथर्क  मंदी  का  सामना 
िकया  वहीं  दस
ू री  ओर,  जमर्नी  वारा  आिथर्क  संकट  से  िनपटने  के  िलए  िकये  गए  प्रय न 
सफल रहे । िहटलर  वारा रा य म  िमक  और कारीगर  के िलए िविभ न  यवसाय आरं भ 
िकए  गए  और  उ योग  क्षेत्र  म  बदलाव  कर  आिथर्क  यव था  को  सध
ु ारने  का  प्रयास  िकया 
गया।  आिथर्क  ि थित  म  सध
ु ार  के  साथ  साथ  जमर्नी  की  सै य  शिक्त  म  भी  व ृ िध  हुई। 
वसार्य संिध  वारा जमर्नी पर िविभ न सै य प्रितबंध लगे थे िजसके तहत जमर्नी की सैिनक 
सेना को कम व नेवी सेना पर प्रितबंध लगा िदया गया था। ना सी पाटीर्  के शासन म आने 
के बाद िहटलर ने  वसार्य संिध के सभी उपबंध  का उ लंघन िकया और अपने  सै य शिक्त 
को मजबूत बनाने  के िलए पुनः सै यीकरण की प्रिक्रया आरं भ की। सै यीकरण की शु आत 
ने यूरोपीय दे श  के बीच तनाव को पुनः उभारा और स पूण र् िव व को  िवतीय िव वयु ध की 
ओर धकेला। जमर्नी म नाजीवाद के उदय के नकारा मक पिरणाम भी हुए जैसे िहटलर  वारा 
सभी राजनीितक दल  व संगठन  पर प्रितबंध लगाना, यहूिदय  और सा यवािदय  के िव ध 
नीितय  का प्रसार और नरसंहार। िहटलर ने यहूिदय  व सा यवािदय  को प्रथम िव वयु ध की 
हार का िज मेदार ठहराया था। िहटलर शासन काल के दौरान हजार  सा यवािदय , यहूिदय  
और  ना सी  िवरोधी  लोग   को  िशिवर  म  भेज  िदया  जाता,  जहाँ  उ ह  िविभ न  प्रकार  की 
यातनाएँ  दी गईं। सावर्जिनक  कूल , बाजार , अ पताल  म यहूिदय  का आना बंद कर िदया 
गया। सरकारी िवभाग  म िनयक्
ु त सभी यहूिदय  को नौकिरय  से िनकाल िदया गया। जातीय 
शु धीकरण के नाम पर हजार  लोग  को मौत के घाट उतारा गया था। 

153
नाजीवाद के उदय का प्रभाव केवल जमर्नी के भीतर तक ही सीिमत नहीं रहा था। जमर्नी 
के बाहर भी, िव व भर म, नाजीवाद के प्रभाव दे खने को िमले। गैथानर् के अनुसार िहटलर के 
तानाशाही काल म जमर्नी का पुन थान िव व को सबसे  अिधक प्रभािवत करने  वाला कारक 
था। िहटलर की तानाशाही ने न केवल वैि वक राजनीित को प्रभािवत िकया बि क अ य सभी 
दे श   की  िवदे श  नीितय   को  सीधे  तौर  पर  प्रभािवत  िकया।  िहटलर  की  सै यीकरण  और 
िव तारवादी  नीितय ,  वसार्य  संिध  के  प्रित  आक्रोश  और  जमर्नी  को  शिक्तशाली  बनाने  की 
िज द ने  जमर्नी और अ य सभी रा य  को  िवतीय िव वयु ध के हािशए पर ला खड़ा कर 
िदया था और िव व को एक और नरसंहार दे खना पड़ा। 

नाजीवाद की भाँित, फ़ासीवाद का प्रभाव भी दो तरफ़ा रहा। नकारा मक और सकारा मक 


दोन   तरह  के  पिरणाम  हुए।  मस
ु ोिलनी  के  शासन  काल  म  इटली  ने  आिथर्क,  सै य  और 
रा ट्रीय प्रगित हुई। बहुत से  इटलीवािसय  को मस
ु ोिलनी की तानाशाही से  केवल आिथर्क तंगी 
और  मानवािधकार  का  हनन  िमला,  वहीं  कुछ  लोग   के  िलए  फासीवादी  शासन  रा ट्रीय  गवर् 
और आिथर्क-सामािजक ि थरता लाया। मस
ु ोिलनी ने  इटली वािसय  से  इटली को पुनः रोमन 
साम्रा य िजतना महान बनाने  का वादा िकया था, िजसके िलए मस
ु ोिलनी ने  सै यकरण और 
क्षेत्रीय  िव तारवादी  नीित  को  बढ़ावा  िदया।  वसार्य  की  संिध  म  यह  तय  िकया  गया  था  िक 
रा ट्र   वारा  हिथयार   का  िनमार्ण  नहीं  िकया  जायेगा,  पर तु  इस  संिध  के  प्रावधान   के 
िवपरीत मस
ु ोिलनी ने  इटली म श त्रीकरण को तेजी बढ़ावा िदया। इस िव तारवादी नीित के 
कारण  यूरोप  म  पुनः  गट
ु   िनमार्ण  शु   हुआ।  मस
ु ोिलनी  की  तानाशाही  और  उसकी  नीितयाँ 
धीरे -धीरे  इटली को एक अ य िव वयु ध की ओर ले गयी। 

िन कषर् 

फ़ासीवाद  और  नाजीवाद  का  उदय  एक  आंदोलन  के  प  म  हुआ  था।  एक  ऐसा  आंदोलन 
िजसकी  उ पित  रा ट्रवादी  भावना  से  प्रेिरत  थी।  िहटलर  और  मस
ु ोिलनी  दोन   ने  ही  इस 
रा ट्रवादी  भावना  को  अपने  भाषण  एवं  कायर्कम   वारा  आम  जनता  म  प्रसािरत  िकया  था। 
िहटलर ने  जमर्नी  को  और मस
ु ोिलनी ने  इटली  को  पुनः िव व  पटल पर महान रा ट्र बनाने 
का  व न  दे खा  था  और  लोग   को  िदखाया  था,  इसी  उ दे य  की  प्राि त  के  िलए  दोन  
राजनीित म सिक्रय भी हुए और एक लोकताि त्रक मागर्  वारा स ा की बागडोर हाथ  म ली। 
पर तु  उनके हाथ म स ा के आते  ही स पूण र् ि तिथ बदल गयी। रा ट्रवाद की धारणा उग्र 
रा ट्रवाद म बदल गयी, दोन  शासक  ने शासन के तानाशाही  प को अपनाया। दोन  ही दे श  
म  लोकताि त्रक  िस धांत ,  संरचनाओं  और  यव था  को  स पूणत
र् ः  बबार्द  कर  िदया  गया, 
आम जन के मानवािधकार  का हनन िकया गया। अपने  अपने दे श को महान बनाने  के िलए 
दोन  ही शासक  ने  सै यकरण, श त्रीकरण, क्षेत्रीय सीमाओं  के िव तार और गट
ु -िनमार्ण को 

154
बढ़ावा  िदया।  नाजीवाद  और  फ़ासीवाद  की  ये  आंतिरक  और  बा य  नीितयाँ  न  केवल  जमर्नी 
और इटली के िलए, या यूरोप िलए, बि क िव व भर के िलए घातक िस ध हुई। 

स दभर् 

 ं  हाउस प्राइवेट िलिमटे ड: 
ख ना, वी. एन. (2013) अंतरार् ट्रीय संबंध. िवकास पि लिशग
नई िद ली 

 नॉमर्न, एल. (2013) मा टे िरंग मॉडनर् व डर् िह ट्री. पालग्रेव मैकिमलन: लंदन 

 (https://www.britannica.com/event/Nazism) फ़ासीवाद 

 (https://www.britannica.com/topic/fascism ) नाजीवाद 

 (https://www.historians.org/about-aha-and-membership/aha-history-and-
archives/gi-roundtable-series/pamphlets/em-18-what-is-the-future-of-italy-
(1945)/the-rise-and-fall-of-fascism) फ़ासीवाद 

155
इकाई-3

पाठ-4 :  िवतीय िव वयु ध : कारण और पिरणाम


नारायण रॉय

पिरचय

अंतरार् ट्रीय राजनीित के स दभर्  म, यु ध हमेशा िवदे श नीित के ल य  को प्रा त करने  और 


दे श   के  बीच  िववाद   के  िनपटारे   का  प्रमख
ु   और  सवार्िधक  चयिनत  मा यम  रहा  है , पर तु 
वा तिवकता म यु ध ने  िववाद  को सल
ु झाने  के बजाय हमेशा दे श  के बीच संघषर्  को और 
अिधक गहराया है । हालाँिक प्रथम िव वयु ध को िविभ न िवचारक  ने  "सभी यु ध  के अंत 
के िलए यु ध" (वॉर टू एंड ऑल वॉसर्) की संज्ञा दी, के बावजद
ू  प्रथम िव वयु ध भी उपरोक्त 
कथन  का  अपवाद  नहीं  कहा  जा  सकता  है ।  प्रथम  िव वयु ध  ने  न  केवल  कई  मु द   को 
अनसल
ु झा छोड़ िदया, बि क कुछ नए िववािदत व संघषर्  के मु द  को ज म भी िदया, जैसे 
िक  राजनीितक  अि थरता, िववािदत  सीमाएँ, जातीय  अ पसंख्यक   की  सम या  आिद, िजनके 
कारण एक और वैि वक सै य संघषर् ने ज म िलया, िजसे आप और हम " िवतीय िव वयु ध" 
के  प  म  जानते  ह।  पेिरस  शांित  स मेलन  म  शांित  थापना  और  सामा य  सरु क्षा  की 
िचर थायी  यव था  करने  के  िलए  िकये  गए  प्रयास, थायी  वैि वक  शांित  बनाने  म  सफल 
नहीं हुए। पेिरस शांित स मेलन की शु आत के दो दशक  के बाद, एक और िव व संघषर् िछड़ 
गया, जो और भी अिधक िवनाशकारी सािबत हुआ, िजसने और भी अिधक जान-माल को क्षित 
पहुँचाई  और  िपछले  की  तुलना  म, िजसम  कहीं  अिधक  नरसंहार  हुआ।  यह  यु ध दो  अलग-
अलग  घटनाओं  के  साथ  शु   हुआ, जो  थे, चीन-जापानी  यु ध  और  पोलड  म  जमर्न-सोिवयत 
आक्रमण। 23 अग त 1939 को, जमर्नी और सोिवयत संघ ने एक दस साल के गैर-आक्रामकता 
समझौते  पर ह ताक्षर िकए, िजसके  वारा दोन , एक-दस
ू रे   के िव ध कोई सै य कारर् वाई न 
करने  के  िलए  सहमत  हुए।  इस  समझौते  ने  जमर्नी  और  सोिवयत  संघ  के  म य  पोलड  के 
िवभाजन का मागर् प्रश त िकया। 1 िसतंबर, 1939 को जमर्नी ने पोलड को अपने अिधकार-क्षेत्र 
म शािमल करने  के उ दे य से  हमला िकया और इस आक्रमण के साथ ही यरू ोपीय दे श  के 
बीच यु ध भड़क उठा।
िवतीय िव वयु ध, जोिक छह वष  (1939-1945) तक चला, के दौरान िव व का अिधकांश 
भाग  दो  प्रित वं िवय   गट
ु   म  िवभािजत  था, जो  थे  "िमत्र  रा ट्र"  (यूएसए, िब्रटे न  और  उसके 
उपिनवेश, फ्रांस, यूएसएसआर, पोलड और यूगो लािवया) बनाम "धुरी रा ट्र" (जमर्नी, बु गािरया,
हं गरी, इटली, जापान, रोमािनया)। इस यु ध ने इन दे श  को "कुल यु ध" (total war) की ि थित 
म  ला  खड़ा  िकया, िजसम  लाख   की  संख्या  म  सै यकमीर्  शािमल  थे  और, िजसम  रा य   ने 

156
अपने  संपूण र् आिथर्क, वैज्ञािनक  और  औ योिगक  संसाधन   और  क्षमताओं  का  उपयोग  िकया,
इसी कारण यह यु ध इितहास का सबसे  यापक और तकनीकी  प से  उ नत यु ध िस ध 
हुआ। 8 मई, 1945 को जमर्नी और अग त 15, 1945 को जापान  वारा िमत्र रा ट्र  के समक्ष 
िबना शतर्  आ मसमपर्ण के साथ यह यु ध समा त हुआ। इस यु ध ने  अंतरार् ट्रीय  यव था 
पर  थायी व गहरे  छाप छोड़े और पूरी अंतरार् ट्रीय शिक्त संरचना को ही उलट िदया। जमर्नी,
िब्रटे न जैसी यूरोपीय शिक्तयाँ, वैि वक मंच पर, कम मह  वपूण र् हो गईं और यह भी कह सकते 
ु  भिू मका खो गई। यु ध के बाद, सोिवयत संघ (USSR)
ह िक िव व राजनीित म उनकी प्रमख
और अमेिरका (USA) दो प्रित वं वी महाशिक्तय  के  प म उभरे   और अगले  40-50 वष  के 
िलए, िव व  पटल  पर  एक  यु ध  सी  ि थित  बनी  रही।  इस  बार, वैि वक  सरु क्षा  और  शांित 
थापना  के  प्रयास  अिधक  यथाथर्वादी  ि टकोण  से  िकये  गए  और  िवतीय  िव वयु ध  की 
िवरासत के  प म संयुक्त रा ट्र संघ (UNO) का उदय हुआ। 
हालाँिक यह यु ध पोलड पर जमर्नी के आक्रमण के साथ शु  हुआ था, लेिकन िकसी भी 
अ य यु ध  की  तरह, इस  यु ध के िव फोट के िविभ न कारण थे।  अ याय के  अग्रिलिखत 
भाग म हम इस यु ध के कारण  तथा बाद म इसके पिरणाम  की चचार् करगे।

िवतीय िव वयु ध के कारण

िवतीय िव वयु ध जमर्न वेहरमैच (रक्षा बल)  वारा पोलड पर आक्रमण से  शु  हुआ, िजसे 


िब्रटे न और फ्रांस दोन  ने  सरु क्षा का आ व
  ासन िदया था और जैसा िक वादा िकया गया था,
जमर्न  आक्रमण  के  तुरंत  बाद  ही  दोन   ने  जमर्नी  के  िव ध  यु ध  की  घोषणा  कर  दी। 
लेिकन, 1 िसतंबर, 1939 के िदन, िजस िदन यु ध आरं भ हुआ, उस समय तक यरू ोप म यु ध 
जैसी ि थित पहले  से  ही बनी हुई थी, तनाव िदन-प्रितिदन तेज हो रहा था और यु ध होना 
लगभग तय सा था। कुछ िव वान  के अनस
ु ार, यु ध के मल
ू  कारण  को वसार्य की संिध तक 
म  दे खा  जा  सकता  है ।  1918  के  बाद  म  िव व  शांित  के  प्रयास   के  बावजद
ू   भी  िवतीय 
िव वयु ध  िछड़  गया  इसीिलए  यह  आव यक  हो  जाता  है   िक  इस  यु ध  की  यापक  गहन 
समझ के िलए, हम 1919 और 1939 के बीच के िव व यापी घटनाक्रम  और घिटत घटनाओं 
का िव लेषण कर। इस यु ध के िविभ न अ य कारण िन निलिखत थे— 
1. वसार्य की संिधयाँ
1919 म, प्रथम िव वयु ध की समाि त के तुरंत बाद, िमत्र रा ट्र  ने एक  यायपूण र् और आदशर् 
िव व  यव था, जो  याय, शांित  और  िनर त्रीकरण  के  िस धांत   पर  आधािरत  हो, थािपत 
करने  के िलए पेिरस म शांित स मेलन का आयोजन िकया, लेिकन बाद म, इस स मेलन का 
प्रमख
ु  उ दे य जमर्नी से  यु ध के नक
ु सान का मआ
ु वजा वसल
ू ना और बदला लेना बन गया। 
इसी कारण यह स मेलन दस
ू रे   िव वयु ध के िलए बीज बो कर समा त हुआ। िमत्र रा ट्र  ने 

157
इस एजडे को हािसल करने के िलए जमर्नी पर न केवल कठोर दं ड आरोिपत िकये गए, बि क 
उसकी  सै य  और  औपिनवेिशक  शिक्त  के  संबंध  म  बड़े  पैमाने  पर  प्रितबंध  भी  लगाए  और 
इ ही  कारण   के आधार पर, िविभ न िवचारक  ने इस संिध  को जमर्नी  को  अपमािनत  करने 
वाला  कृ य  कहा।  इस  स मेलन  म  जमर्न  प्रितिनिधय   को  अपना  पक्ष  रखने  तक  का  कोई 
अवसर नहीं िदया गया था और इसके राजनाियक  या प्रितिनिधय  को कैिदय  के  प म रखा 
व सभा म लाया गया था, यही नहीं, यहाँ तक िक जमर्नी पर "वॉर िग ट" भी आरोिपत िकया 
गया  और  अकेले  जमर्नी  को  यूरोपीय  शांित  भंग  करने  का  एकमात्र  दोषी  माना  गया  था। 
जमर्नी  से  बंदक
ू   की  नोक  पर  संिध  पर  ह ताक्षर  करवाए  गए।  इन  सभी  आधार   पर  यह 
आसानी  से  िन कषर्  िनकाला  जा  सकता  है   िक  यह  संिध  जमर्नी  को  शू य  पर  लाने  का 
"िवक्टर क्लब" (िवजयी रा ट्र  का समहू) का एक प्रयास मात्र थी क्य िक केवल िमत्र रा ट्र  ने 
वयं  ही,  एकतरफा  प से, प्रितबंध  और  दं ड  को िनधार्रण िकया  था।  जमर्न  लोग   ने  इस 
संिध  को  "िडकैट"  या  िडक्टे ट  शांित  कहा  और  इस  अपमान  के  ज मे  गु से  ने,  जमर्न   को 
अपने पक्ष म एकजट
ु  करने और स ा पर क जा करने म िहटलर को लाभाि वत िकया।
2. 1929 की महान आिथर्क मंदी 
29 अक्टूबर  1929 को  वॉल  ट्रीट  बाजार  घटना  ने  िव व  के  िवकास  की  गित  को  महान 
आिथर्क मंदी की ओर मोड़ िदया। यह आिथर्क मंदी कई दे श  को आिथर्क अि थरता की ओर 
ले  जाता  है । इसके कारण बेरोजगारी, आिथर्क-असरु क्षा बढ़ी और लोकतांित्रक जीवन शैली पर 
प्रितकूल  प्रभाव  पड़ा।  मंदी  के  कारण  उभरे   इस  उथल-पुथल  के  साथ-साथ  राजनीितक 
अि थरता  और  क युिन ट  िनयंत्रण  के  िव तार  का  डर  भी  यूरोप  के  दे श   म  उभर  रहा  था 
और इसने जमर्नी और इटली सिहत कई यूरोपीय दे श  म अिधनायकवादी और अित रा ट्रवादी 
सरकार  के उदय का मागर्  प्रश त िकया। बेिनटो मस
ु ोिलनी (इटली म) और एडो फ िहटलर 
(जमर्नी म) ने  अपने-अपने  दे श  म ऐसी ही ि थित का लाभ उठाया और लोकतांित्रक शासन 
को  उखाड़  तानाशाही  की  थापना  की।  यह  िन कषर्  अितशयोिक्त  होगा  िक  अकेले  आिथर्क 
मंदी ही इन शासन  के उदय के िलए िज मेदार थी, पर तु  िवतीय िव वयु ध को उभारने  मे 
यह एक मह व
  पूण र् कारक अव य था।
3. यूरोप म अिधनायकवादी शासन का उदय
हालाँिक यूरोप म उभरी अिधनायकवादी सरकार अपने कामकाज-प्रणाली म एक-दस
ू रे  से िभ न 
थी, पर तु  िजन  मल
ू   कारण   से  इन  शासन  यव थाओं  का  उभार  हुआ, उसे  ये  सभी  साझा 
करते  ह जैसे  यु ध के बाद की राजनीितक उथल-पुथल, भयावह आिथर्क पिरि थितयाँ, मौजद
ू ा 
राजनीितक  यव था के िखलाफ असंतोष और अित-रा ट्रवाद की उभरती लहर। फ़ासीवाद और 
नाज़ीवाद, सबसे  प्रिस ध  स ावादी  शासन, का  उदय  भी  प्रथम  िव वयु ध  के  कारण  उभरी 
आिथर्क, राजनीितक  और  सामािजक  अि थरता  के  कारण  हुआ।  बेिनटो  मस
ु ोिलनी  (इटली  का 

158
फ़ासीवादी शासक) और एडो फ िहटलर (जमर्नी का नाज़ी शासक) दोन  ही लोकतांित्रक तरीके 
से  स ा  म  आए  लेिकन  स ा  की  डोर  अपने  हाथो  म  आते  ही, इन  दोन   ने  लोकतांित्रक 
यव था को तानाशाही से  बदल िदया तथा सै यीकरण और क्षेत्रीय िव तार को बढ़ावा िदया। 
अग्रिलिखत  अनुभाग  म  इन  दोन   अिधनायकवादी  यव थाओं  के  उदय-प्रिक्रया  की  संिक्ष त 
प से चचार् की गई— 
 फासीवाद का उदय
“फासीवाद”  श द  को  बेिनटो  मस
ु ोिलनी  ने  वयं, अपने  उस  राजनीितक  आंदोलन  को  विणर्त 
करने  के  िलए  गढ़ा  था, िजसके  वारा  उसने  स ा  पर  क जा  िकया  और  इटली  को  प्राचीन 
रोमन साम्रा य जैसा शिक्तशाली रा य बनाने के  वयं के  व  न को साकार करने का प्रयास 
िकया।  'फासीवाद' श द  एक  रा ट्रवादी  आंदोलन  के  उदय  को  दशार्ता  है   जोिक, िवशेष  प  से 
इटली म, दिक्षणपंथी और अिधनायकवादी स ा के समथर्न म और लोकतांित्रक और उदारवादी 
िवचारधारा  के  िवरोध  म  उभरा  था।  संक्षेप  म, इस  िवचारधारा  के  िन निलिखत  घटक  ह।  
(i) अित रा ट्रवाद; (ii) वतर्मान की तुलना म अतीत की महानता पर जोर; (iii) रा ट्र की ि थित 
म िगरावट के िलए न लीय अशु धता को दोष दे ना; (iv) उदार प्रणाली को िवभाजनकारी और 
स ावादी को एकजट
ु  करने वाले बल के  प म दे खा जाना।
इटली िवजयी दे श  म से  एक था, पर त ु िफर भी अ य िमत्र रा ट्र  की तरह संतु ट नहीं 
था। प्रथम िव वयु ध म परािजत दे श  से  िमले  मआ
ु वजे  म से  पयार् त िह से  के िमलने  की 
उसे  उ मीद थी, लेिकन पेिरस शांित स मेलन से  उसे  कुछ बहुत ख़ास प्रा त नहीं  हुआ। इस 
असंतोष के कारण इटली के लोग  ने, आक्रोश म, इस जीत को "उ पीिड़त िवजय" की संज्ञा दी,
वहीं दस
ू री ओर, िबगड़ती आिथर्क ि थित तथा सा यवादी गितिविधय  म व ृ िध के कारण यह 
रोष िदन-प्रितिदन बढ़ने  लगा था। इस पिर य म, इटली के लोग  ने  मस
ु ोिलनी के इटली को 
रोमन  साम्रा य  जैसा  शिक्तशाली  बनाने  के  व  न  म  अपने  िव वास  को  िनिहत  कर, उसके 
आंदोलन  का  समथर्न  िकया।  बेिनटो  मस
ु ोिलनी  प्रथम  िव वयु ध  का  एक  िसपाही  था, िजसने 
1919 म  अ य  यु व-िदग्गज   के  साथ  "फािस  डी  कॉ बेटीमटो"  (फाइिटंग  लीग)  की  थापना 
की। उसने  अपने  समथर्क  के साथ समाजवादी, क युिन ट और कमजोर सरकार की पकड़ से 
इटली को मुक्त करने के िलए एक आंदोलन शु  िकया। इस आंदोलन ने 1920-21, जब इटली 
म  गह
ृ   यु ध  जैसी  ि थित  उ प न  हो  गई, के  दौरान  तेजी  पकड़ी।  पिरि थित  िबगड़ने  के 
कारण, प्रधानमंत्री  िजयोव नी  िगयोिल टी  ने  इ तीफा  दे   िदया  और  लइ
ु गी  फैक्टा  नए 
प्रधानमंत्री  बने।  लइ
ु गी  फैक्टा  भी  कानून- यव था  की  िवकट  ि थित  को  िनयंित्रत  करने  म 
सफल नहीं  हुए और राजा को दे श म माशर्ल लॉ घोिषत करने  की सलाह दी। प्रधानमंत्री की 
सलाह के िवपरीत, राजा ने  मस
ु ोिलनी को प्रधानमंत्री के पद की कमान लेने  के िलए आमंित्रत 

159
िकया  और  जैसे  ही  मस
ु ोिलनी  ने  प्रधानमंत्री  पद  की  कमान  अपने  हाथ  म  ली, इटली  म 
स ावादी शासन का युग शु  हो गया।
य यिप  मस
ु ोिलनी  1922 म, लोकतांित्रक  तरीके  से  स ा  म  आया, लेिकन  ज द  ही  1926
तक, उसने  इटली की स पण
ू  र् रा य यव था को एक अिधनायकवादी  यव था म बदल िदया,
जो उदारवाद िवरोधी, समाजवादी-िवरोधी और इटली को पन
ु ः शिक्तशाली रा ट्र बनाने  के िलए 
िव तारवादी  प्रविृ य   से  परू ी  तरह  प्रेिरत  थी।  मस
ु ोिलनी  ने  अपने  सपन   का  साम्रा य, जो 
ू य  सागर से  उ री और पूवीर्  अफ्रीका  तक  और  पूव र् म  सीिरया और  लेबनान तक फैला 
भम
था, बनाने  के  िलए  तेजी  से  सै यीकरण  शु   िकया  और  1924 म  िफमे, 1927 म  अ बािनया 
और  1935-36 म  इिथयोिपया  को  इटली  के  साम्रा य  सीमा  म  शािमल  िकया।  मस
ु ोिलनी  के 
िव तारवादी प्रयास  ने यरू ोपीय शिक्त संतुलन को अि थर कर िदया और यूरोप को यु ध की 
ओर धकेलने म भिू मका िनभाई।
 नाज़ीवाद का उदय
नाज़ीवाद  से  ता पयर्  उस  शासन  यव था  से  है   िजसका  उदय, जमर्नी  म, एडॉ फ  िहटलर  के 
नेत ृ व  म  "रा ट्रवादी  सोशिल ट  जमर्न  वकर्र  पाटीर्"  अथवा  नाज़ी  पाटीर्  के  स ा  म  आने  से 
हुआ।  वैचािरक  प  से, नाज़ीवाद  "सामािजक  डािवर्नवाद"  (िस धांत  जो  िक  योग्यतम  की 
उ रजीिवता अथवा “सवार्इवल ऑफ़ द िफटे ट” म िव वास करता है ) के िस धांत पर िव वास 
म िनिहत था। इस िस धांत के अनस
ु ार जैिवक  प से  े ठतर और योग्यतम न ल, जो िक 
िहटलर के अनस
ु ार जमर्न-आयर्न थे, को जैिवक  प से  हीन लोग  के िहत को ताक पर रख 
अपना  साम्रा य  िव तार  करने  का  अिधकार  है ।  िहटलर  ने  जमर्न  इितहास  के  नए  यग
ु   की 
नींव  रखने  का  प्रयास  िकया  िजसम  "तीसरे   रीच"  (एक  िवशाल  क्षेत्रीय  जमर्न  साम्रा य)  को 
िव व राजनीित म प्रमख
ु  और िनणार्यक शिक्त बनना था। िहटलर "ग्रेटर लेबे सरम" (जमर्न 
वो क/ नागिरको के िनवास का क्षेत्र)  थािपत करना चाहता था और उसने  जमर्न लोग  को 
यह िव वास िदलाया िक यु ध और सै यीकरण इस महान उ दे य की प्राि त के िलए अित 
आव यक है ।
1933 के जमर्न चन
ु ाव म, रा ट्रवादी सोशिल ट जमर्न वकर्र पाटीर्  ने  सफलता हािसल की 
और  30 जनवरी, 1933 को  एडॉ फ  िहटलर  ने  चांसलर  के  प  म  सरकार  की  कमान  संभाली 
और तीसरे  रीच का युग शु  हुआ। चांसलर के  प म स ा म आने के बाद, िहटलर ने जमर्न 
लोग   और  जमर्न  रा य  दोन   पर  पकड़  बनाने  के  िलए  हर  संभव  साधन  का  उपयोग  िकया 
और ज द ही, जमर्न जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं  बचा, जो प्र यक्ष या अप्र यक्ष  प से  थडर् 
रीच या नाजी िवचारधारा के िनयंत्रण म न था। िहटलर ने  रा य और समाज को पूरी तरह 
से बदलने का एक सफल प्रयास िकया, िजससे एक िनदर् यी तानाशाही और एकािधकािरक स ा-
यव था का उदय हुआ। नाजी शासन के उ भव के कई कारण थे, लेिकन इनम से  कुछ जो 

160
प्रमख
ु  थे, वे  ह (i) वसार्य की आरोिपत संिध िजससे  जमर्न लोग  को आिथर्क, राजनीितक और 
सबसे  मह  वपूण,र् मनोवैज्ञािनक  नुकसान  पहुँचा; (ii) आिथर्क  महामंदी  और  सा यवादी 
गितिविधय   म  अचानक  व ृ िध; (iii) वीमर  गणरा य  की  िबगड़ती  ि थित  को  सध
ु ारने  म 
असफलता  और  इसके  कारण, लोकतंत्र  म  जमर्न  लोग   के  िव वास  का  पतन; (iv) िहटलर  की 
बढ़ती लोकिप्रयता और वसार्य की संिध के पहलओ
ु ं  को संशोिधत कर, बदला लेने  की उसकी 
मह  वाकांक्षा।
"ग्रेटर लेबे सरम" के िनमार्ण के प्रयास म, जमर्न "वेहरमैच" (रक्षा बल) ने  कई यूरोपीय 
क्षेत्र   पर  आक्रमण  कर  उ ह  तीसरे   िरच  म  शािमल  िकया।  ये  क्षेत्र  या  तो  प्र यक्ष  अथवा 
अप्र यक्ष  प  से, नाज़ी  शासन  के  िनयंत्रण  म  थे।  िवतीय  िव वयु ध  के  अंत  तक, नाज़ी 
शासन के िनयंत्रण म यूरोप का िवशाल क्षेत्र था जोिक, पूव र् म मोजदोक प्रा त (यूएसएसआर) 
से  पि चम  म  उशांत  (फ्रांस)  के  वीप  तक  और  उ र  िदशा  म  ब र्सबगर्  (नॉव)  से  लेकर 
दिक्षण  म  गो डोस  के  वीप  (ग्रीस)  तक  था।  यूरोप  के  अलावा  "अफ्रीका  को सर्"  (जमर्न 
अफ्रीका  वािहनी)  ने  उ री  अफ्रीका  के  पि चमी  रे िग तानी  क्षेत्र   जैसे  िम , िलिडया  म  नाजी 
शासन का िव तार करने  के िलए "उ र अफ्रीकी अिभयान" शु  िकया। शासन के िव तार के 
िलए  इस  तरह  की  भख
ू   ने  जमर्न   को  पोलड  म  आक्रमण  करने  का  लालच  िदया  और  इसी 
आक्रमण के साथ  िवतीय िव वयु ध का आर भ हुआ।
4. िव तारवादी शिक्तय  के प्रित तुि टकरण की नीित
िव तारवादी शिक्तय  के इरादे , चाहे   वे  यरू ोप म नािज़य  व फासीवादीय  के ह  या सद
ु रू -पूव र्
म जापान के ह , शु  से  प ट थे, लेिकन िमत्र रा ट्र  ने  उ ह रोकने  के िलए अिधक प्रयास 
नहीं  िकए।  िवतीय िव वयु ध से  पहले  ही, िव व शांित के िलए तीन मोच  पर खतरा उभर 
रहा  था—प्रशांत  महासागर  म  (शाओ  शासक  वारा); म य  यूरोप  म  (िहटलर  वारा)  और 
भम
ू य सागर म (मस
ु ोिलनी  वारा)। एक ओर िमत्र दे श उस समय तक यु ध के िलए तैयार 
नहीं  थे  और  दस
ू री  ओर, िमत्र  रा ट्र   वारा  थािपत  "कॉमन  िसक्योिरटी"  की  नीित  अलग-
थलग पड़ने  लगी थी। वे  इन आक्रामक शिक्तय  को रोकने  म सक्षम नहीं  थे, इसिलए उ ह ने 
इन तानाशाह  के साथ बातचीत के मा यम से  संघष  को सल
ु झाने  और शांित  थािपत करने 
का प्रयास िकया। तुि टकरण की नीित, जो संघषर्  के शांितपूण र् समाधान के िलए चुनी गयी,
"िकसी भी कीमत पर शांित" बनाये  रखने  के िलए आक्रामक शिक्त के प्रित कृपालत
ु ा िदखा 
शांित  बनाये  रखने  की  एक  कूटनीितक  नीित  थी।  1930 के  दशक  के  दौरान, िमत्र  शिक्तय  
(िवशेष  प से  िब्रटे न और फ्रांस) ने  शांित की इस नीित को अपनाया, िजसने  शांित  थापना 
की बजाए इन िव तारवादी शासक  की लालसा को बढ़ाने म योगदान िदया।
सद
ु रू  पूव र् क्षेत्र म, 1931 म (शोवा यग
ु  के दौरान) जापान  वारा मंचूिरया पर आक्रमण के 
साथ, जापानी  साम्रा य िव तार  शु   हुआ।  यह  अपने  चरम  सीमा  पर  उस  समय  पहुँचा  जब 

161
जापान ने चीन पर हमला कर कुख्यात नरसंहार को अंजाम िदया। सद
ु रू  पूव र् की इन घटनाओं 
को आधार बना िहटलर ने  जमर्नी को िजनेवा िनर त्रीकरण स मेलन और लीग ऑफ नेशंस 
(1933 म) से अलग कर, पुनः श त्रीकरण आरं भ िकया। जमर्नी का अनुसरण करते हुए, बाद म 
मस
ु ोिलनी  ने  भी  इटली  को  1937 म  लीग  ऑफ  नेशंस  से  अलग  कर  िलया।  इस  अविध  के 
दौरान, साम्रा य-िव तार  और  सै यकरण  को  गित  िमली।  इटली  ने  1935 म  एिबिसिनया 
(इिथयोिपया)  पर  आक्रमण  िकया  और  1936 तक  इसे  अपने  अिधकार  क्षेत्र  म  शािमल  कर 
ू री  तरफ  जमर्नी  ने  राइनलड  पर  1936 म, और  1938 म  ऑि ट्रया  पर, जमर्नी  के 
िलया।  दस
साथ  उसका  एकीकरण  कर  "आंसलस"  के  िनमार्ण  के  िलए, आक्रमण  कर  िदया।  " यूिनख 
स मेलन"  म  िब्रिटश  पीएम  नेिवल  चे बरलेन, फ्रांसीसी  नेता  एडुआडर्  डालािडयर, इटली  के 
तानाशाह  बेिनटो  मस
ु ोिलनी  और  िहटलर  ने  मल
ु ाकात  की  और  जमर्नी  की  सड
ु ट
े े नलड 
(चेको लोवािकया  का  इलाका  िजसम  जमर्न   का  िनवास  था)  को  अिधकार  क्षेत्र  म  शािमल 
करने  की उसकी माँग पर सहमित जताई और बदले  म िहटलर ने  चेको लोवािकया के अ य 
िह स   पर  आक्रमण  न  करने  का  आ  वासन  िदया।  िव वान  ने  " यूिनख  स मेलन"  के 
समझौते  को  'तुि टकरण  का  चरमिबंद'ु कहा  वहीं  चे बरलेन  ने  दावा  िकया  िक  उ ह ने  इस 
समझौते  वारा "अपने समय म शांित"  थािपत की है ।
5. अ य कारण—
ए)  रा ट्र  संघ  और  सामिू हक  सरु क्षा  की  िवफलता  :  पेिरस  शांित  स मेलन  म  "सामिू हक 
सरु क्षा" के िस धांत को ‘अंतरार् ट्रीय शांित’ और ‘रा ट्र  की रा ट्रीय अखंडता’ की रक्षा 
के िलए आधार  वीकार िकया गया था। सामिू हक सरु क्षा के िस धांत के आधार पर 
िमत्र  रा ट्र   ने  रा ट्र  संघ  की  नींव  रखी।  यह  िनणर्य  िलया  गया  था  िक, िकसी  भी 
सद य  के  िखलाफ  आक्रमण  सभी  सद य   के  िखलाफ  आक्रमण  माना  जाएगा  और 
अ य  रा य  सामिू हक  प  से  उस  दे श  की  सहायता  करगे।  1920 और  1930 की 
घटनाओं  के िव लेषण से  यह  प तः पता चलता है   िक िमत्र रा ट्र  की कथनी और 
करनी के बीच अंतर रहा। इटली  वारा अबीसीिनया (इिथयोिपया) पर आक्रमण करने 
के बाद रा ट्र संघ ने  पहली बार िकसी रा ट्र को आक्रमक घोिषत िकया और उस पर 
प्रितबंध  भी  लगाए  लेिकन  ये  प्रितबंध  बहुत  अिधक  प्रभावी  नहीं  थे, वहीं  दस
ू री  ओर 
मंचूिरया म जापान के ह तक्षेप रोकने  अथवा जापान  वारा आक्रमण के बाद उस पर 
प्रितबंध  लगाने  म  लीग  ऑफ  नेशस
ं   पूणत
र् ः  िवफल  रहा।  इन  दो  घटनाओं  के  आधार 
पर यह आसानी से िन कषर् िनकाल सकता है  िक सामिू हक सरु क्षा का िवचार अप्रभावी 
रहा  क्य िक  सद य  रा ट्र  अंतरार् ट्रीय  शांित  की  रक्षा  करने  और  अंतरार् ट्रीय  क्षेत्र  म 
ि थरता बनाए रखने म िवफल रहे ।

162
बी)  िनर त्रीकरण  की  िवफलता  :  प्रथम  िव वयु ध  की  तुलना  म, िवतीय  िव वयु ध 
अिधक उ नत वैज्ञािनक-हिथयार  के उपयोग के कारण हजार  गण
ु ा  यादा िवनाशकारी 
रहा। प्रथम िव वयु ध के बाद, पेिरस शांित स मेलन म, रा य  ने  सहमित  यक्त की 
िक वैज्ञािनक-हिथयार मानव जाित और अंतरार् ट्रीय शांित के िलए खतरा है । आक्रामक 
प्रकृित  के  हिथयार   के  उ पादन  और  उपयोग  दोन   को  सीिमत  करने  के  प्रयास  म,
1932 म  िजनेवा  म  हिथयार   की  मात्रा  म  कमी  और  उनके  िनमार्ण  की  सीमा  के 
िनधार्रण  के  िलए, िव व  िनर त्रीकरण  स मेलन  आयोिजत  िकया  गया  था।  यह 
स मेलन िनर त्रीकरण के अपने  उ दे य को प्रा त करने  म सफल नहीं  हुआ। इसके 
अितिरक्त, जहाँ  एक  ओर, िनर त्रीकरण  के  िलए  संयुक्त  रा य  अमेिरका  और 
यूएसएसआर सिहत दे श  के सामिू हक प्रयास आम सहमित बनाने  म िवफल रहे , वही 
दस
ू री ओर, जमर्नी ने 1933 म िफर से  श त्रीकरण शु  िकया िजसने  हिथयार  की दौड़ 
को और तेज िकया।
सी) जातीय  अ पसंख्यक   की  सम या  :  प्रथम  िव वयु ध  के  बाद, कई  साम्रा य  अपना 
अि त व  खो  बैठे  और  सीमाओं  का  पुनः  िनधार्रण  िकया  गया।  यूएसए  के  रा ट्रपित 
वुडरो  िव सन  ने  यह  सझ
ु ाव  िदया  िक  "आ मिनणर्य"  का  िस धांत  नए  रा य   के 
िनमार्ण  आधार  होना  चािहए, लेिकन  कई  कारण   से  इस  िस धांत  को  सही  मायने  म 
लाग ू नहीं िकया गया और जातीय अ पसंख्यक  की सम या अनसल
ु झी रही। उदाहरण 
के िलए, चेको लोवािकया और पोलड म बड़ी संख्या म जमर्न जनसंख्या िनवास करती 
थी, रोमािनया  और  पोलड  म  सी  अ पसंख्यक  थे, रोमािनया  और  यग
ू ो लािवया  म 
हं गेिरयन  अ पसंख्यक  थे  और  इसी  तरह, इटली  म  लाव  और  जमर्न  लोग  प्रमुख 
अ पसंख्यक  थे।  इन  जातीय  अ पसंख्यक   की  इ छा  पड़ोसी  दे श ,  जहाँ  इन 
जातीयताओं का बोलबाला था, के साथ एकजट
ु  होने  की थी। जातीय अ पसंख्यक  की 
इस सम या ने आक्रमण और िवनाश और अंततः यु ध के ज म म योगदान िदया।
डी)  त कािलक कारण : "ग्रेटर लेबे सरम" की  थापना के िलए 1 िसतंबर 1939 को जमर्न 
"वेहरमाट"  (रक्षा  बल)  ने  पोलड  पर  आक्रमण  िकया  और  उसके  दो  िदन   के  बाद,
जवाबी  कायर्वाही  म  िब्रटे न  और  फ्रांस  ने  (जमर्नी  के  िखलाफ  पोलड  के  साथ  अपने 
सै य गठबंधन के उ दे य को पूरा करने के िलए), जमर्नी के िव ध यु ध की घोषणा 
कर दी और  िवतीय िव वयु ध की शु आत हुई।

िवतीय िव वयु ध का संिक्ष त वणर्न

1 िसतंबर, 1939 को पोलड पर जमर्न आक्रमण के साथ  िवतीय िव वयु ध की शु आत हुई,


और लगभग 48 घंट  के बाद, िब्रटे न और फ्रांस ने पोलड को दी गई सरु क्षा गारं टी का स मान 
करते  हुए जमर्नी के िखलाफ यु ध की घोषणा की। प्रथम िव वयु ध की तरह, इस यु ध म 
163
भी  रा य  दो  िवरोधी  गुट   म  िवभािजत  थे, जो  थे  "िमत्र  रा ट्र  (यूएसए, िब्रटे न  और  उसके 
उपिनवेश, फ्रांस, यूएसएसआर, पोलड और यूगो लािवया) बनाम "धुरी रा ट्र (जमर्नी, बु गािरया,
हं गरी, इटली)  जापान, रोमािनया)।  1940 के  म य  तक, जमर्नी  ने  डेनमाकर्  और  नॉव  पर 
आक्रमण कर उन पर अिधकार कर िलया। जमर्न सेना ने नीदरलड, बेि जयम सिहत यूरोप के 
पि चमी क्षेत्र पर अिधकार करने के िलए “ि ल जक्रेग” ( विरत हमल ) की नीित अपनायी थी। 
जल
ु ाई  1940 तक, इटली  तट थ  रहा  लेिकन  उसी  वषर्  10 जुलाई  को  वह  भी  धुरी  रा ट्र   की 
तरफ से  यु ध म शािमल हो गया। जल
ु ाई से  अक्टूबर 1940 तक जमर्नी ने  "िब्रटे न के यु ध" 
म िब्रटे न पर हवाई हमले  िकए। यु ध के दौरान ही, 22 िसतंबर 1940 को जमर्नी, इटली और 
जापान ने  एक संिध पर ह ताक्षर कर धुरी गट
ु  की  थापना की। जन
ू  1941 म, धुरी गट
ु  के 
चार लाख सैिनक  ने  स पर हमला िकया। 7 िदसंबर, 1941 को जापान ने  अमेिरका के पलर् 
हाबर्र ि थत  नेवी  बेस  पर अचानक हमला िकया और अगले  ही िदन यूएसए  ने  िमत्र रा ट्र  
की ओर से  यु ध म प्रवेश िकया। जून 1942 म, "िमडवे  के यु ध" म अमेिरका ने  जापान की 
नौसेना को हराया। इस यु ध के बाद, िवतीय िव वयु ध का पिर य बदलना शु  हो गया। 
10 जल
ु ाई  1942 को  िमत्र  रा ट्र   ने  िसिसली  पर  क जा  कर  िलया  और  3 िसतंबर, 1943 को 
इटली ने  आ मसमपर्ण कर िदया और मस
ु ोिलनी िहटलर की मदद से  इटली छोड़ भाग गया। 
ू  1944, डी-डे  के िदन िमत्र शिक्तय  ने  फ्रांस पर हमला िकया और जमर्न सेना को पीछे  
जन
धकेल िदया। 30 अप्रैल 1945 को, िहटलर ने  जमर्नी की हार की सच
ू ना िमलते  ही आ मह या 
कर  ली।  अग त  1945 म, यूएसए  ने  जापान  के  दो  शहर   पर  दो  परमाण ु बम  िगराए  जो 
िहरोिशमा (6 अग त) और नागासाकी (9 अग त को) थे  और 2 िसतंबर, 1945 को जापान की 
सेना ने  अमरीका के सामने  आ मसमपर्ण कर िदया और छह साल तक चले  यु ध का अंत 
हुआ। इस यु ध के पिरणाम व प्रभाव िवनाशकारी थे। इस यु ध म 1940 की िव व आबादी 
की तल
ु ना म लगभग तीन प्रितशत, (लगभग 70-90 लाख) िव व की आबादी मारी गई। यरू ोप 
के  पव
ू ीर्  िह स   म  सबसे  अिधक  जनसंख्या  का  नक
ु सान  हुआ।  इसी  क्षेत्र  म  से  एक  रा य 
पोलड  था, िजसने  अपनी  आबादी  का  20% िह सा  खो  िदया  था।  आिथर्क  और  संरचना मक 
नक
ु सान अभत
ू पव
ू  र् था, और इ हीं  प्रभाव  के कारण यु ध के बाद के यग
ु  म कोई भी यरू ोपीय 
दे श िव व शिक्त नहीं रहा।

िवतीय िव वयु ध के पिरणाम 

  िवतीय िव वयु ध के पिरणाम पूरी दिु नया के िलए िवनाशकारी थे, लेिकन यूरोपीय दे श  को 


इसने तुलना मक  प से अिधक प्रभािवत िकया था। यु ध के अंत तक, लाख  लोग  ने अपनी 
जान  गवाई  और  लाख   लोग  बेघर  हो  गए।  इस  यु ध  ने  प्रथम  िव वयु ध  की  तुलना  म 
यूरोपीय  अथर् यव था और इसके औ योिगक बुिनयादी ढाँचे  पर और भी अिधक िवनाशकारी 
प्रभाव  डाला  है ।  यु ध  के  बाद  िव व  राजनीित  का  एक  नया  युग  प्रार भ  हुआ  िजसम  सभी 

164
औपिनवेिशक शिक्तय  के साम्रा य का अंत हो गया और िव व पटल पर नए  वतंत्र रा ट्र  
का उदय हुआ। प्रित पधीर्  औपिनवेिशक शिक्तय  का  थान दो नई महाशिक्तय  ने  ले  िलया,
जो यु ध की समाि त के तुरंत बाद एक-दस ू रे   के प्रित वं वी बन गए और  िव-ध्रुवीय िव व-
यव था उभरी। िवजयी दे श  ने  िव व शांित की सरु क्षा करने  और उसे  मजबूती प्रदान करने 
के उ दे य से  UNO की  थापना की, जो रा ट्र संघ का एक बेहतर प्रित थापन िस ध हुआ,
और कई िनर त्रीकरण संिधयाँ  की गईं। सरल श द  म, यह कहा जा सकता है   िक यु ध के 
बाद हमारी दिु नया और इसके कामकाज, दे श  के बीच संबध
ं  और कई अ य चीज बदल गईं 
और  इन  पिरवतर्न   के  प्रभाव  को  आज  भी  दे खा  जा  सकता  है ।  इस  खंड  म  हम  दस
ू रे  
िव वयु ध के मह  वपूण र् पिरणाम  के बारे  म संक्षेप म चचार् करगे।
1. यूरोपीय शिक्तय  का पतन
औ योिगक  क्रांित  के  पूव र् से  ही, यरू ोप  हमेशा  िव व  राजनीित  का  कद्र  बना  रहा।  चाहे   वह 
यरू ोप  म  साम्रा यवाद  का  उदय  और  पतन  हो  या  राजनीितक  उथल-पथ
ु ल  या  यरू ोपीय 
अथर् यव था  म  पिरवतर्न, यूरोप  म  घिटत  िकसी  भी  घटना  ने  पूरे  िव व  के  िवकास  को 
प्रभािवत  िकया  है ।  यूनाइटे ड  िकंगडम, फ्रांस, जमर्नी  और  इटली  जैसे  महान  यूरोपीय  शिक्तय  
को इस य ध के कारण, िवकास के अपने  अिधकांश लाभ से  हाथ धोना पड़ा। यु ध प चात ् 
यूरोप खंडहर म था, पूरी तरह से जीवन शिक्त का िवनाश हो गया था। यरू ोपीय शिक्तय  को 
अपने  उपिनवेश , अपने  साम्रा य और अंतरार् ट्रीय क्षेत्र म उ ह प्रा त दज से  हाथ धोना पड़ा। 
यु ध  प चात ्  जमर्नी  तबाह  और  िवभािजत  हो  गया  था; फ्रांस  और  इटली  िदवािलयापन  के 
कगार पर थे; हालाँिक, िब्रटे न अपने साम्रा य के साथ मजबूत और िवजयी लग रहा था, लेिकन 
यु ध की लागत उसे  भी उठानी पड़ी थी। इस यु ध ने  यरू ोप के लोग  को दो प्रमख
ु  सवाल  
के साथ छोड़ िदया : पहला प्र न जोिक राजनीितक था, वह यह था िक यूरोपीय दे श आपसी 
संघषर्  और गला-काट प्रित पधार्  से  वयं  को कैसे  बचाए तािक भिव य म इस तरह का एक 
और  यु ध  न  हो; दस
ू रा  सवाल  जोिक  आिथर्क  था, वह  यह  था  िक  अथर् यव था  को  कैसे 
पुनजीर्िवत िकया जाए?
यु ध  के  बाद, माशर्ल  लान  के  तहत  अमेिरका  से  कुछ  सहायता  प्रा त  होने  के  साथ,
यूरोपीय दे श  ने  ज द ही अपने  संसाधन  को एकजट
ु  कर वैि वक बाजार म अपनी आिथर्क 
ि थित को पुनजीर्िवत करने  की कोिशश की और ज द ही इसम सफल रहे । राजनीितक क्षेत्र 
म, यूरोपीय  रा य   म  नई  राजनीितक  लामबंदी  शु   हुई  और  चरमपंथी  रा ट्रवादी  लहर  की 
वापसी के साथ यूरोपीय एकता को सहानुभिू तपूवक
र्  दे खा गया।
2. अमेिरकी वचर् व के युग का आर भ 
अग त 1945 म, अमरीका ने  िहरोिशमा और नागासाकी पर क्रमशः "िलिटल बॉय" और "फैट 
मैन"  नाम  के  दो  परमाण ु बम  िगराए  और  दोन   ने  हजार   लोग   को  तरु ं त  मार  डाला  और 
165
िविकरण के कारण दिसय  हज़ार  लोग  की बाद म भी मौत हुई। इस घटना ने  दिु नया भर 
म  संयुक्त  रा य  अमेिरका  के  आिधप य  की  थापना  को  िचि नत  िकया।  िवजयी  दे श   म 
संयुक्त  रा य  अमेिरका  सबसे  कम  प्रभािवत  था।  यु ध  प चात ्  युग  म, अमेिरका  के  पास 
सबसे  बड़ी  नौसेना  और  वायु  सेना  थी  और  कुछ  वष   तक  इसका  परमाण ु शिक्त  पर  भी 
एकािधकार रहा था। यु ध के बाद, यूएसए ने  न केवल अपनी अथर् यव था के पुन धार कर 
अपने  बाजार  का  िव तार  िकया, बि क  कई  यूरोपीय  दे श   और  अ य  दे श   को  अपनी-अपनी 
अथर् यव था  के  पुन धार  म  भी  सहायता  की।  इस  आधार  पर  यह  िन कषर्  िनकाला  जा 
सकता  है   िक  संयुक्त  रा य  अमेिरका  न  केवल  सै य  प  से  बि क  अथर् यव था  के  आधार 
पर भी महाशिक्तशाली रा य के  प म उभरा। इसके अलावा, उपभोक्ता अथर् यव था म तेजी 
और उ च माँग के कारण, अमेिरका का सकल रा ट्रीय उ पाद (जीडीपी), जोिक 1940 म 200
िबिलयन  $ थी, से  बढ़कर  1950 म, 300 िबिलयन  $ हो  गई।  महान  अथर् यव था, सबसे 
शिक्तशाली  सेना, परमाणु  शिक्त  और  िविभ न  कारक   के  कारण  संयुक्त  रा य  अमेिरका  के 
आिधप य का उदय हुआ।
3. शीत यु ध का उदय
शीत यु ध का स ब ध, सामा य  प से, िव व इितहास की उस कालाविध से  है   िजस दौरान 
िव व  की  दो  महाशिक्तय , यूएसए  और  यूएसएसआर, के  बीच  कई  दशक   तक  तनावपूण र्
स ब ध बने रहे  थे। शीत यु ध को “दे श  के बीच तनाव की उस ि थित के  प म पिरभािषत 
िकया जा सकता है   िजसम प्र येक पक्ष  वयं  को मजबूत करने  वाली नीितय  को अपनाता है  
और वा तिवक यु ध की स भावना को कम करने  का प्रयास करते  है ”। दस
ू रे   िव वयु ध के 
दौरान, अमेिरका और सोिवयत संघ सहयोगी दे श थे  और एक ही पक्ष से  दोन  यु ध म लड़े 
थे, पर तु  यु ध  के  बाद, िवशेष  प  से  या टा  और  पॉ सडैम  स मेलन  के  बाद, दोन   जमर्नी 
और  पूवीर्  यरू ोप  के  भिव य  के  िवकास  के  सवाल  पर  एक-दस
ू रे   के  िवरोधी  बन  गए।  दोन  
महाशिक्तय  म अथर् यव था और राजनीित को कैसे  प्रबंिधत िकया जाए के प्र न को लेकर 
वैचािरक  अंतर  था।  अमेिरका  एक  और, मक्
ु त  बाजार  अथर् यव था  के  िस धांत  पर  आधािरत 
पँज
ू ीवादी उदारवादी लोकतांित्रक शासन का समथर्क था; वही दस
ू री ओर, सोिवयत िवकास का 
मॉडल एकल पाटीर्, जो िक क युिन ट पाटीर् थी, के शासन तहत रा य िनयंित्रत और िनयोिजत 
अथर् यव था  के  िस धांत  पर  आधािरत  था।  दोन   महाशिक्तय   ने  अपनी-अपनी  शिक्त  और 
प्रभु व को बढ़ाने  तथा अपने-अपने  प्रभाव क्षेत्र का िव तार करने  की कोिशश की और इसके 
िलए उ ह ने  गठबंधन करना भी शु  कर िदया, इस क्रम म यूएसए और उसके समथर्क  ने 
तीन  गठबंधन  NATO, SEATO, CENTO का  गठन  िकया  और  दस
ू री  ओर, सोिवयत  संघ  अपने 
सहयोगी दे श  के साथ िमल ‘वारसॉ पैक्ट’ की  थापना की। इसी तरह दोन  महाशिक्तय  ने 
एक-दस
ू रे   के  िवकास  का  मक
ु ाबला  करने  के  िलए  िविभ न  उपाय   का  इ तेमाल  िकया  था। 

166
शीत यु ध की दशक  ल बी अविध के दौरान, दोन  के बीच प्रित पधार् व संघषर् की ती ता म 
उतार-चढ़ाव आते  रहे , और िकसी-िकसी समय इस प्रित वं िवता ने  ऐसी ि थित पैदा की, जैसे 
िक  1962 म  क्यूबा  संकट  या  1961 के  बिलर्न  संकट  के  दौरान  (बिलर्न  का  िवभाजन  और 
बिलर्न की दीवार का िनमार्ण), जो दिु नया को एक और िव वयु ध की ओर ले जा सकती थी। 
इस  काल  म  िव व  ने  दोन   महाशिक्तय   म  म य  संघषर्  के  साथ-साथ,  िनर त्रीकरण  और 
शांित  थापना के कुछ प्रयास  को भी दे खा। 1991 म सोिवयत संघ के िवघटन के साथ इस 
प्रित वं िवता का अंत हो गया और संयुक्त रा य अमेिरका, नए एकध्रुवीय िव व म एकलौती 
महाशिक्त के  प म उभरा।
4. संयुक्त रा ट्र संघ की  थापना
यु ध के बाद, पहले  की ही भाँित, इस बार भी िमत्र रा ट्र  ने  एक अंतरार् ट्रीय संगठन  थािपत 
करने  का प्र ताव रखा जो िव व म शांित और  यव था बनाए रखने  के िलए काम करे गा। 
इस  बार  महान  शिक्त  ने  उन  सभी  कमजोिरय   को  दरू   करने  की  कोिशश  की, िज ह ने 
मस
ु ोिलनी  और  िहटलर  जैसे  आक्रामक  तानाशाह   पर  लगाम  लगाने  म  रा ट्रसंघ  को  अक्षम 
बना  िदया  था।  1945 म, सैन  फ्रांिस को  म, संयुक्त  रा ट्र  के  चाटर् र  को  बनाया  गया  और 
अक्टूबर  1945 म  संयुक्त  रा ट्र  संघ  आिधकािरक  तौर  पर  अि त व  म  आया।  संयुक्त  रा ट्र 
संघ  के  प्रमख
ु   उ दे य  ह  (i) “शांित  बनाए  रखने  और  यु ध  का  अंत”; (ii) “दिु नया  भर  म,
िवशेषकर अ प-िवकिसत दे श  म आिथर्क, सामािजक, शैिक्षक, वैज्ञािनक और सां कृितक प्रगित 
को  प्रो सािहत  करके  संघषर्  के  कारण   को  दरू   करना”; (iii) “सभी  मनु य   और  रा ट्र   के 
अिधकार   की  रक्षा  करना”।  हालाँिक  यूएनओ  की  सभी  अक्षमताओं  को  दरू   करने  के  प्रयास 
िकया गया, िफर भी यह कई अंतरार् ट्रीय या अंतर-रा य िववाद  का, िवशेषकर शीत यु ध के 
दौर म, समाधान करने  म असफल रहा। िफर भी, इसने  संघषर्  िवराम और वातार्  की  यव था 
या शांित िमशन  के मा यम से  कुछ िववाद  को हल करने  के प्रयास िकए थे  और वैि वक 
शांित  और  यव था  बनाए  रखने  म  मह  वपूण र् भिू मका  िनभाई  थी।  इसके  अलावा, UNO ने 
कुछ  गैर-राजनैितक  क्षेत्र  म  भी  मह  वपूण र् काम  िकया  है , जैसे  िक  मानव  जीवन  की  ि थित 
और  उनके  जीवन  म  सध
ु ार, शरणािथर्य   की  दे खभाल, मानव  अिधकार   की  सरु क्षा, आिथर्क 
िनयोजन  और  िव व  वा य, जनसंख्या  और  अकाल  की  सम याओं  से  िनपटने  के  प्रयास 
आिद क्षेत्र  म प्रशंसनीय सफलता हािसल की है ।
5. िव-उपिनवेशीकरण और गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन का उदय
यूरोपीय दे श , पँज
ू ीवाद के तेजी से  बढ़ने  के कारण, यूरोप से  बाहर अपने उ योग  के िलए नए 
बाजार और क चे  माल के  ोत की तलाश म िनकले  और इस प्रिक्रया म उपिनवेशवाद का 
उदय  हुआ।  इन  उपिनवेश   पर  प्रभु व, यूरोपीय  शिक्तय   के  बीच  यु ध  का  एक  कारण  था। 
यु ध के बाद, उपिनवेशवाद के िवघटन की प्रिक्रया शु  हुई और नए रा य  के  प म तीसरी 

167
दिु नया  उभरी।  िवतीय  िव वयु ध  के  दौरान  ही  अफ्रीका  और  एिशया  के  उपिनवेश   म, और 
ऐसे  ही  अ य  उपिनवेश   म, रा ट्रवादी  आंदोलन   का  उदय  हुआ, िजसे  यूरोपीय  शिक्तय   के 
कमजोर  होने  और  िव व  तर  पर  िव-उपिनवेशीकरण  के  िलए  बढ़ते  समथर्न  के  कारण 
सफलता  िमली  और  िव-उपिनवेशीकरण  की  प्रिक्रया  म  तेजी  आयी।  इनम  से  अिधकांश  नए 
रा य पँूजीवाद और सा यवाद के बीच प्रित वं िवता की अविध (यािन शीत यु ध) के दौरान 
उभरे । इन नए  वतंत्र रा य  म से  कुछ सोिवयत संघ (सा यवाद) या अमेिरका (पँज
ू ीवाद) म 
शािमल  हो  गए, और  कुछ  अ य, जैसे  भारत, घाना, इंडोनेिशया, िम   और  यूगो लािवया  ने 
गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन शु  कर िदया और दोन  महाशिक्तय  से गैर-गठबंधन (तट थ) बने रहे ।
6. िनर त्रीकरण और हिथयार िनयंत्रण
यु ध के बाद के यग
ु  म, हिथयार  के कारण हुए बड़े  पैमाने  पर िवनाश को म दे नजर रखते 
हुए, िनर त्रीकरण  और  हिथयार   के  िनयंत्रण  के  प्रयास   को  गित  िमली  और  यह  न  केवल 
अंतरार् ट्रीय  राजनीित  के  िलए, बि क  रा ट्र   के  रा ट्रीय-नीित  के  िलए  भी  मल
ू भत
ू   मु दा  बन 
गया। दे श  के बीच एक आम सहमित उभरी िक िनर त्रीकरण की प्रिक्रया दिु नया को संघष  
के शांितपूण र् समाधान की ओर ले  जा सकती है । इस बार, िनर त्रीकरण के अथर्  को  यापक 
और समावेशी  ि टकोण से  पिरभािषत िकया गया और  यापक और समावेशी  ि टकोण से 
ही इस िदशा म प्रयास भी िकया गए। िनर त्रीकरण के प्रयास  म न केवल हिथयार  की कमी 
पर, बि क िवनाशकारी हिथयार  के िनमार्ण और  यापार दोन  को सीिमत और िनयंित्रत करने,
साथ ही िवसै यीकरण पर भी समान  यान िदया गया। हालाँिक  िवतीय िव वयु ध के बाद 
महाशिक्तय  के बीच संघषर्  का एक युग भी उभरता है , लेिकन 1960 और 1970 के दशक म,
दोन  महाशिक्तयाँ  भी िनर त्रीकरण के प्रयास  की िदशा म बढ़ते  हुए LTBT (आंिशक परमाण-ु
परीक्षण-प्रितबंध संिध), SALT I और II, START I और II, जैसे समझौत  पर ह ताक्षर िकए। इसके 
अलावा, 1996 म संयुक्त रा ट्र महासभा ने, िजनेवा म, िनर त्रीकरण स मेलन म एक हिथयार 
िनयंत्रण  संिध  का  प्र ताव  रखा  और  CTBT ( यापक  परमाण-ु परीक्षण-प्रितबंध  संिध)  को 
अपनाया, िजसके  वारा ह ताक्षिरत सभी दे श  को कही भी परमाण ु िव फोट  करना प्रितबंिधत 
िकया  गया  है ।  हिथयार   के  यापार  और  प्रसार  को  िनयंित्रत  करने  के  िलए  परमाणु 
आपूितर्कतार्  समह
ू   (NSG), िमसाइल  प्रौ योिगकी  िनयंत्रण  यव था  (MTCR) और  अंतरार् ट्रीय 
परमाण ु ऊजार्  एजसी (IAEA) की भी  थापना की गई। ये  सभी प्रयास भी हिथयार  के प्रसार 
को पूरी तरह से रोकने म सफल नहीं हुए, पर तु इन प्रयास  ने िव व शांित और  यव था के 
रखरखाव म मह  वपूण र् योगदान िदया है ।
7. अ य मह  वपूण र् पिरणाम
 अटलांिटक  चाटर् र  यु ध  के  बाद  के  िवकास  के  बारे   म  िमत्र  रा ट्र   की  नीित  थी। 
अमेिरका  (फ्रकिलन  डी।  जवे ट)  और  िब्रटे न  (िवं टन  चिचर्ल)  के  नेताओं  ने  इसे 

168
िवकिसत िकया था और अ य सहयोगी शिक्त ने  बाद म इस पर अपनी सहमित दी 
थी। चाटर् र ने आठ प्रमख
ु  ल य  को बताया िज ह ने बाद म कई अंतरार् ट्रीय समझौत  
पर  ह ताक्षर  करने  और  संगठन   की  थापना  के  िलए  प्रेिरत  िकया; साथ  ही  इन 
िस धांत  ने यु ध के बाद के िव व- यव था को आकार िदया।
 यु ध  के  दौरान, ब्रेटन  वु स  म, यु ध  के  बाद  की  आिथर्क  यव था  के  िनधार्रण  के 
िलए एक स मेलन आयोिजत िकया गया था। इस स मेलन म, अंतरार् ट्रीय मद्र
ु ा कोष 
(IMF) और इंटरनेशनल बक फॉर िरकं ट्रक्शन एंड डेवलपमट (IBRD), वतर्मान म िव व 
बक समह
ू  का िह सा, की  थापना नई आिथर्क िव व  यव था के िनमार्ण के िलए की 
गई  थी, िजसम  अमेिरकी  डॉलर  अंतरार् ट्रीय  लेन-दे न  और  यापार  की  एक  सामा य 
मद्र
ु ा होगी।
 गैर-लोकतांित्रक  शासन   ने  िव व  को  दो  िव व  यु ध   की  ओर  धकेल  िदया  था, इस 
वजह  से, िवतीय  िव वयु ध  के  बाद, लोकतंत्र  की  एक  लहर  पैदा  हुई  और  अिधकांश 
नए  वतंत्र रा य  ने लोकतंत्र को शासन के मा यम के  प म चुना।
 िवतीय िव वयु ध का अंत होते-होते  स पूण र् िव व परमाण ु हिथयार की िवनाशकारी 
क्षमता दे ख चुका था। यु ध के बाद के युग म, ये  परमाण ु हिथयार रा य  की शिक्त 
का  मह  वपूण र् पहल ू बन  गए  और  परमाण ु कूटनीित  के  युग  का  उदय  हुआ, िजसम 
रा य  ने  अपने  राजनियक  उ दे य   की  पूितर्  के  िलए  परमाण ु हिथयार   की  कूटनीित 
का उपयोग िकया।

िन कषर्

िवतीय िव वयु ध की शु आत 1 िसतंबर, 1939 को पोलड पर िहटलर के आक्रमण के साथ 


हुई  और  इसके  छह  साल  बाद  यह  यु ध  समा त  हुआ, िजससे  स पूण र् िव व  को  अभतू पूव र्
नुकसान  हुआ।  परमाण ु हिथयार   जैसे  अिधक  उ नत  रक्षा  रणनीित  के  उपयोग  के  कारण 
मत
ृ क   और  घायल   की  संख्या  भयावह  थी  और  75 िमिलयन  से  अिधक  लोग  मारे   गए  थे। 
नागिरक  क्षेत्र   म  हवाई  बमबारी, जानबूझकर  िकये  गए  नरसंहार, बीमारी  और  भख
ु मरी  जैसे 
कारण  से मत
ृ क  म नागिरक की संख्या सै य किमर्य  से  कहीं  अिधक थी। हालाँिक यु ध के 
प्रभाव दिु नया भर म दे खे  गए पर तु  यूरोपीय दे श सबसे  बरु ी तरह प्रभािवत हुए थे। यु ध के 
दौरान ही, फ्रकिलन डी  जवे ट और िवं टन चिचर्ल ने  यु ध प चात ् िवकास का एक मसौदा 
तैयार िकया, िजसे  बाद म अ य सहयोिगय  ने  सहमित  यक्त दी, और अटलांिटक चाटर् र के 
प म इसे  वीकार िकया। यु ध के बाद, अमेिरका और सोिवयत संघ के बीच कई दशक  की 
प्रित वं िवता उभरी, िजसम िव व पुनः दो गट
ु  म िवभािजत हो गया, लेिकन कई रा य दोन  
गट
ु  से तट थ बने रहे  और एक गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन को ज म िदया। इस यु ध के बाद भी,
दे श   वारा, भिव य म इस तरह के संघषर् से बचने के िलए, िनर त्रीकरण संिधय  पर ह ताक्षर 

169
करने, संयुक्त रा ट्र संघ की  थापना, जैसे प्रयास िकए गए थे। UNO, िजसने लीग ऑफ नेशंस 
की जगह ली, को वैि वक शांित और  यव था बनाए रखने  के प्रमख
ु  उ दे य के साथ यु ध 
की  राख  पर  थािपत  िकया  गया।  यु ध  के  दौरान  ही, अंतरार् ट्रीय  मद्र
ु ा  कोष  (IMF) और 
इंटरनेशनल  बक  फॉर  िरकं ट्रक्शन  एंड  डेवलपमट  (IBRD) की  थापना,  नई  आिथर्क  िव व 
यव था, जो उदारवाद, पँज
ू ीवाद और मक्
ु त-खुली िव व अथर् यव था के िस धांत पर आधािरत 
होगी, के िनमार्ण के िलए की गई। शांित और  यव था सिु नि चत करने  के िलए और िव व 
को अिधक एकीकृत, अ यो याि त और िवकिसत बनाने के िलए यु ध के बाद का हर प्रयास,
िव वयु ध की पुनराविृ  को रोकने म काफी हद तक सफल रहा है ।

स दभर् सच
ू ी
 बेयलीस, जे, ि मथ, एस  एंड  ओवे स  पी.  (2011) द  ग्लोबलाइज़ेशन  ऑफ  व डर् 
पॉिलिटक्स;  एन  इंट्रोडक्शन  टू  इंटरनेशनल  िरलेश स,  ऑक्सफोडर्  यूिनविसर्टी  प्रेस; 
िद ली
 फािदया, बी. एल., और फािदया, के. (2019) अंतरार् ट्रीय संबंध। सािह य भवन प्रकाशन; 
आगरा
 ं   हाउस  प्राइवेट  िलिमटे ड; 
ख ना, वी.  एन.  (2013) अंतरार् ट्रीय  संबंध.  िवकास  पि लिशग
नई िद ली
 नॉमर्न, एल. (2013) मा टे िरंग मॉडनर् व डर् िह ट्री. पालग्रेव मैकिमलन; लंदन
 (https://www.britannica.com/event/World-War-II ) िवतीय िव वयु ध

170
इकाई-3

पाठ-5 : शीत यु ध
डॉ. ि मता अग्रवाल / नारायण रॉय

पिरचय

शीत  यु ध  एक  यु ध  जैसी  ि थित  थी  पर तु  यह  िकसी  वा तिवक  सश त्र  टकराव  रिहत 
यु ध था। जैसे  जैसे  िवतीय िव वयु ध अपने  अंत की ओर बढ़ रहा था, िमत्र रा ट्र  के बीच 
अिव वास  और  ई यार्  भी  बढ़  रही  थी  और  यु ध  प चात ्, िव व  ने  यु धकालीन  दो  सहयोगी 
दे श-अमेिरका और सोिवयत संघ-के बीच दशक  लंबी प्रित वं िवता दे खी। शीत यु ध श द को 
राजनीित श दकोश म “दे श  के बीच तनाव की उस ि थित के  प म पिरभािषत िकया गया 
है   िजसम प्र येक पक्ष  वयं  को मजबूत करने  वाली नीितय  को अपनाता है   और वा तिवक 
यु ध  की  स भावना  को  कम  करने  का  प्रयास  करते  ह” (अरोड़ा  और  चंद्र:  1997, 182)।  कई 
िव वान  के अनुसार, यह यु ध प्रमख
ु तः पँज
ू ीवाद और सा यवाद की असंगित के कारण उभरा 
एक  वैचािरक  टकराव  था, िजसके  कारण  पूवीर्  गट
ु   (सोिवयत  संघ  और  उसके  सहयोगी)  और 
पि चमी गट
ु  (संयुक्त रा य अमेिरका और उसके सहयोगी) के बीच प्र यक्ष यु ध सीिमत रहे । 
शीत यु ध के यग
ु  म हिथयार  का उपयोग सीिमत था और इसके बजाय दोन  प्रित वं िवय  
ने एक-दस
ू रे  के प्रभाव को रोकने के तरीके के  प म प्रचार प्रसार का इ तेमाल िकया। 1947
म कोलंिबया के  टे ट हाउस म, अपने  एक भाषण म अमेिरकी रा ट्रपित के सलाहकार, बनर्बडर् 
बा च म पहली बार ‘शीत यु ध’ श द का इ तेमाल िकया गया था, जब उ ह ने  कहा था िक 
“हम  धोके  म  न  रखा  जाये, हम  आज  एक  शीत  यु ध  के  बीच  म  ह” (िब्रटािनका 
इनसाइक्लोपीिडया, 1998)।  िवतीय  िव वयु ध  के  दौरान  घिटत  घटनाओं  के  कारण  ही  दोन  
महाशिक्तय   के  बीच  यह  आपसी  अिव वास  और  ई यार्  का  दौर  उभरा  था।  इनम  से  प्रथम 
घटना  थी, अमेिरका  और  िब्रटे न  वारा  जानबूझकर  जमर्न  सैिनक   के  िखलाफ  दस
ू रा  मोचार् 
खोलने  म दे री, िजस कारण सोिवयत संघ को जान-माल का बहुत नुकसान उठाना पड़ा। इस 
घटना ने  सोिवयत नेताओं  के मन म पि चमी शिक्तय  के प्रित अिव वास के बीज बो िदए। 
यह अिव वास अमरीका  वारा जापान पर परमाण ु बम के हमले  के बाद और भी गहरा गया 
क्य िक  अमेिरका  ने  सोिवयत  संघ  से  अपने  मैनह टन  प्रोजेक्ट  (परमाण ु हिथयार   को 
िवकिसत करने  के िलए यूएसए का शोध प्रोजेक्ट) को गु त रखा था। शीत यु ध के आर भ 
के बाद, दोन  पक्ष  के नेत ृ व म पिरवतर्न के साथ-साथ शीत यु ध की प्रकृित म भी पिरवतर्न 
हुआ।  उदाहरण  के  िलए, टािलन  के  शासनकाल  तक  प्रित वं िवता  ती   थी, लेिकन  जब 
सोिवयत  कमान  िनिकता  ख्रु चेव  को  स प  दी  गयी  दोन   महाशिक्तय   के  म य  दे तांत  का 

171
आर भ हुआ। सोिवयत संघ के िवघटन के साथ शीत यु ध समा त हो गया और एकध्रुवीय 
िव व का उदय हुआ िजसम अमेिरका एकमात्र महाशिक्त बनकर उभरा।

शीत यु ध के उदय के कारण
लािदमीर  लेिनन  के  नेत ृ व  म  बो शेिवक  क्रांित ने  सी  साम्रा य  से  जाऱ  के  शासन  को 
समा त कर क युिन ट पाटीर्  के अधीन, सोिवयत संघ की  थापना का मागर्  प्रश त िकया। 
िवतीय िव वयु ध के अंत तक, सोिवयत संघ िव व की सबसे  बड़ी  थायी सेना और दस
ू री 
सबसे  बड़ी  अथर् यव था  के  साथ  महाशिक्त  के  प  म  उभरा, जोिक  पि चम, िवशेष  प  से 
अमेिरका  के  िलए  िचंता  का  िवषय  बना।  सा यवादी  शासन  की  थापना  के  समय  से  ही,
पि चमी पँज
ू ीवादी दे श इसके िवरोधी रहे   और सा यवादी शासन के प्रसार को िनयंित्रत करना 
चाहते  थे। एक ओर, जब सोिवयत संघ ने  लीग ऑफ़ नेशंस की सरु क्षा प्रणाली के तहत सभी 
दे श   को  एक  साझा  मंच  पर  ला  शांित  बनाने  की  कोिशश  की  और  पि चमी  शिक्तय   को 
जमर्नी के प्रित तिु टकरण की उनकी नीित के िखलाफ चेतावनी दी थी, तब पि चमी शिक्तय  
ने  इस पर  यादा  यान नहीं  िदया था। वहीं  दस
ू री ओर, उ ह ने  क युिन ट शािसत सोिवयत 
संघ को मा यता भी नहीं  दी। 1924 म िब्रटे न और बाद म, 1933 म अमेिरका ने  सोिवयत संघ 
को मा यता दी। हालाँिक सोिवयत संघ और पि चमी दे श  के बीच एक वैचािरक संघषर् प्रार भ 
से  ही  था, लेिकन  इस  संघषर्  की  जड़  िवतीय  िव वयु ध  म  भी  दे खी  जा  सकती  ह।  दो 
महाशिक्तय  के बीच प्रित वं िवता संबंध को ज म दे ने वाले कुछ प्रमुख कारण िन निलिखत 
थे—
1. सोिवयत संघ पर जमर्न हमला और दस
ू रे  मोच का प्र न
दस
ू रे   िव वयु ध  के  दौरान  सोिवयत  संघ “िमत्र  रा ट्र ”  के  गट
ु   म  शािमल  था।  “ऑपरे शन 
बारब्रोसा” के तहत, सोिवयत संघ के पि चमी क्षेत्र को जीतने  के िलए, नाजी जमर्न सेना ने 
22 जन
ू  1941 को सोिवयत संघ पर हमला िकया। इस आक्रमण से  जन-धन की बहुत हािन 
हुई। उस समय सोिवयत संघ ने िमत्र रा ट्र  से अनुरोध िकया िक वे जमर्नी पर दस ू रे  मोच से 
हमला  कर, लेिकन  िब्रटे न  और  अमेिरका,  दोन   के  नेता  सोिवयत  संघ  के  इस  अनुरोध  को 
अनसन
ु ा करते  रहे ।  टािलन और सोिवयत संघ की क युिन ट पाटीर्  के अ य प्रमख
ु  नेताओं 
ने यह मान िलया िक सहायता प्रदान करने म जानबूझकर दे री की गई थी, तािक जमर्न सेना 
सोिवयत  संघ  को  नुकसान  पहुँचा  सके।  इस  तरह,  पि चमी  दे श   की  जमर्नी  के  िव ध 
पि चमी मोचार् खोलने म हुई दे री ने पूवीर् और पि चमी गट
ु  के बीच गहरा अिव वास पैदा कर 
िदया।
2. यु ध प चात ् उ दे य  के संबंध म िववाद
िवतीय िव वयु ध के प चात ् िव व पटल पर दो िवरोधी गट
ु  उभरे  : एक ओर अमेिरका और 
अ य पि चमी दे श थे, जो भिव य म वैि वक आिथर्क मंदी से  बचने  के िलए, अमेिरकी डॉलर 

172
पर  आधािरत  िव व  अथर् यव था  की  थापना  कर  िव व  अथर् यव था  म  ि थरता  लाने  के 
समथर्क  थे।  साथ  ही  पि चमी  ताकत  यु ध  प चात ्  यूरोप  म  लोकतांित्रक  शासन, जो  वतंत्र 
और िनयिमत चुनाव  पर आधािरत हो,  थािपत करना चाहती थीं। वहीं  दस
ू री ओर  टािलन 
का मानना था िक क युिन ट शासन वा तिवक लोकतंत्र है   और वह यु ध प चात ् िव व भर 
म क युिन ट शासन का िव तार करना चाहता था। इसके अलावा, वह जमर्नी को िवभािजत 
करने  का समथर्क था तािक इसे  पि चम और पव
ू ीर्  यूरोप के दे श  के बीच बफर जोन के  प 
म इ तेमाल िकया जा सके। इससे  प ट होता है   िक संयुक्त रा य अमेिरका और सोिवयत 
संघ के बीच मतभेद इसिलए था क्य िक दोन  अपने-अपने प्रभावक्षेत्र का िव तार करना चाहते 
थे।

3. िविभ न समझौत  का उ लंघन


या टा, पो सडैम और बा कन जैसे  स मेलन म, िवजयी दे श   वारा यु ध प चात ् िव व की 
यव था तय की गई थी लेिकन यु ध प चात ् वे  अपने  समझौत  पर बने  नहीं  रहे । या टा 
स मेलन (1945) म  टािलन, चिचर्ल और  जवे ट के बीच यह िनणर्य िलया गया िक यु ध 
प चात ् पोलड म एक  वतंत्र प्रितिनिध सरकार की  थापना की जाएगी पर तु  जैसे  ही यु ध 
समा त  हुआ, सोिवयत  संघ  ने  पोलड  म  एक  क युिन ट  शासन  का  समथर्न  िकया  और 
सोिवयत  संघ  समिथर्त  "पोिलश  पीप स  िरपि लक"  की  थापना  की।  यही  नहीं, सोिवयत 
प्रशासन ने  यूगो लािवया, हं गरी, रोमािनया और चेको लोवािकया म भी क युिन ट शासन की 
थापना म मदद की। सोिवयत संघ  वारा समझौत  के उ लंघन ने पि चमी शिक्तय  (िवशेष 
प  से  अमेिरका  और  िब्रटे न)  क   सोिवयत  संघ  व  क युिन ट  शासन  के  िव ध  कर  िदया 
और उनके बीच शांित और स भाव की संभावना को कम कर िदया।

4. अ य कारण :
 िव वान   ने  शीत  यु ध  को  पँज
ू ीवाद  और  सा यवाद, इन  दो  िवचारधाराओं  के  बीच 
असंगित  के  कारण  ज मे  पार पिरक  शत्रत
ु ा  या  िवरोध  के  पिरणाम  के  प  म 
पिरभािषत  िकया  था।  उदाहरण  के  िलए, जे स  एफ  बायरनेस  ( मैन  के  प्रेसीडसी  के 
दौरान अमेिरकी िवदे श मंत्री) ने  कहा था िक “यए
ू सए और  स की िवचारधाराओं  म 
इतना अंतर है  िक एक साथ काम करना एक सम या होगी” (लोव 1997: 122)।
 िवतीय िव वयु ध के दौरान, यूएसए ने  “मैनह टन प्रोजेक्ट” की अनुमित दी, िजसके 
तहत  अमेिरकी  वैज्ञािनक   वारा  परमाण ु हिथयार  िवकिसत  िकए  गए  थे।  यु ध  म,
अमेिरका  ने  जापान  पर  इन  परमाण ु बम   का  इ तेमाल  िकया  और  उसके  दो  शहर 
‘िहरोिशमा और  नागासाकी’ को न ट कर िदया। बु िधजीिवय   की  ि ट म, अमेिरका 
वारा  परमाण ु शिक्त  के  उपयोग  ने  िमत्र  रा ट्र   के  बीच  िव वास  को  भी  क्षित 
पहुँचाई। अमेिरका की इस कारर् वाई से  सोिवयत संघ के नेताओं  का अमेिरका के प्रित 
173
संदेह और भी गहराया। इसके पिरणाम व प दोन  महाशिक्तय  के बीच हिथयार  की 
होड़ म तेजी आई और िर ते और भी अिधक िबगड़ते गए।
 सोिवयत संघ  वारा सरु क्षा पिरष  म वीट  के अिनयिमत उपयोग ने भी, इन दो गट
ु  
के बीच संदेह और तनाव को ती  करने  म योगदान िदया। सोिवयत संघ, पि चम की 
कारर् वाई के प्रित संिदग्ध था और सरु क्षा पिरष  को संयुक्त रा य अमेिरका के िलए 
अपनी िवदे श नीित के उ दे य  को प्रा त करने के मा यम के  प म दे खता था।
 शीत यु ध शु  करने वाली अंितम घटना सोिवयत संघ  वारा पूवीर् यूरोप म अमेिरका 
के िव तार को रोकने  के िलए काले  समद्र
ु  और डे यूब के रा ते  खोलने  से  मना कर 
दे ना थी।
 5 माचर्  1946 को, वे टिमं टर कॉलेज (फु टन) म पूव र् िब्रिटश पीएम िवं टन चिचर्ल ने 
यूरोप  के  संबंध  म  सोिवयत  संघ  की  नीितय   की  िनंदा  की  और  घोषणा  की, िक
“बाि टक  क्षेत्र  के  टै िटन  से  एिड्रयािटक  के  ट्राए टीन  तक, एक  लोहे   का  पदार्  पूरे 
महा वीप  से  उतरा  है ।”  साथ  ही  उ ह ने  कहा  िक  सोिवयत   के  आिधप य  से  केवल 
बल  की  भाषा  वारा  ही  िनपटा  जा  सकता  है   और  एंग्लो-अमेिरकन  एलायंस  का  भी 
प्र ताव रखा। कई िव वान   वारा चिचर्ल के भाषण को उस प्र वलन बल के  प म 
िचि नत िकया गया िजसने शीत यु ध की शु आत की।

शीत यु ध के चरण और राजनीित

िवतीय  िव वयु ध  प चात ्  दो  सहयोगी  एक-दस


ू रे   के  सबसे  बड़े  िवरोधी  बन  गए।  उ ह ने 
अपने  प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने  के िलए दशक  तक प्रित पधार्  की और एक-दस
ू रे   की शिक्त या 
प्रभाव  को  कम  करने  के  िलए  हर  अवसर  का  फायदा  उठाया।  हालाँिक, ऐसा  भी  नहीं  है   िक 
दोन   महाशिक्तय   के  बीच  िनरं तर  प्रित वं िवता  थी, बहुत  सारे   ऐसे  भी  उदाहरण  थे, जैसे 
िनिकता  ख्रु चेव  की  अमेिरकी  यात्रा, एलटीबीटी, एनपीटी  जैसी  िनर त्रीकरण  संिधय   पर 
ह ताक्षर, जहाँ  दोन  पक्ष  के नेताओं  ने  आपसी सामंज य व शांित बनाए रखने  की कोिशश 
की  थी।  इस  प्रकार  यह  कहा  जा  सकता  है   िक  शीत  यु ध  के  दशक   लंबे  समय  के  दौरान 
िव व ने िविभ न उतार-चढ़ाव दे खे  ह। शीत यु ध के बारे   म  यापक समझ के िलए हम उन 
सभी  चरण   के  आधार  पर, पव
ू ीर्  और  पि चमी  गट
ु   के  बीच  संबंध   की  जाँच  करने  की 
आव यकता है , िज ह एक पता के आधार पर िवभािजत िकया गया है ।

प्रथम चरण (1946-1949)
यु ध के समय के सहयोिगय  के बीच यु ध प चात ्, प्रित वं िवता की शु आत, िसफर् नेताओं 
की गलत धारणा के कारण नहीं हुई थी, बि क दोन  गट
ु  के नेताओं ने जानबझ
ू कर एक-दस
ू रे  
के  शासन  के  िव तार का  मक
ु ाबला  करने  की  कोिशश  की  थी।  उदाहरण  के  िलए, चिचर्ल  का 

174
‘आयरन कटन भाषण’, िजसम उ ह ने  सोिवयत संघ के िव ध, शांित और ि थरता की रक्षा 
के  िलए, यूएसए  और  िब्रटे न  की  भिू मका  पर  जोर  िदया।  चिचर्ल  ने  “लोहे   के  पद”  श द  का 
प्रयोग, सोिवयत संघ  वारा  वयं  को और इसके संरेिखत रा य  को पि चमी रा य  के साथ 
खुले  संपकर् से  रोकने  के िलए बनाए गए राजनीितक, सै य और वैचािरक अवरोध का उ लेख 
करने  के  िलए  िकया।  इसी  तरह, अमेिरकी  नेताओं  ने  महसस
ू   िकया  िक, अगर  वे  सोिवयत 
शासन पर अपनी सै य और परमाण ु शिक्त पर एकािधकार के प्रभाव का उपयोग कर दबाव 
डालगे, तो वह धराशायी हो जाएगा। वही दस
ू री तरफ, टािलन क यिु न ट शासन का िव तार 
करना  चाहते  थे  और  इसीिलए  उ ह  यु धकालीन  समझौते  का  पालन  करना  आव यक  नहीं 
लगा। या टा और पो सडैम स मेलन म यह िनणर्य िलया गया था िक पूवीर् यूरोपीय दे श  को 
आ मिनणर्य के िस धांत के अनु प उनके लोग   वारा चुने  गए लोकतांित्रक शासन के तहत 
रखा जाएगा। यु ध प चात ् यूरोप के पूवीर् क्षेत्र, िवशेष  प से जमर्नी और पोलड के भिव य के 
प्र न ने दोन  महाशिक्तय  के बीच तनाव को ज म िदया और इसके साथ ही शीत यु ध का 
पहला चरण शु  हुआ।

िवतीय  िव वयु ध  के  िवनाश  के  कारण, यूरोप  के  पूवीर्  क्षेत्र  म  भ-ू राजनीितक  ि थित 
अि थर थी; स ने इस ि थित का फायदा उठा पोलड म क युिन ट सरकार की  थापना की। 
इसके  बाद, सोिवयत  संघ  ने  बु गािरया, मािनया, हं गरी  और  यूगो लािवया  जैसे  अ य  पूवीर् 
यूरोपीय  दे श   म  क युिन ट  शासन  का  िव तार  िकया।  इसके  िलए  आम  तौर  पर  भ्रामक 
रणनीितय   (जैसे  िक  नेताओं  की  ह या)  और  कभी-कभी  बल  का  भी  उपयोग  िकया  गया। 
ु ाबला  करने  के  िलए, अमेिरका  के  रा ट्र-प्रमख
सा यवाद  के  िव तार  का  मक ु   ने  दोन   उपाय ,
प्र यक्ष सै य सहायता (माचर्  1947 के  मैन िस धांत के अनस
ु ार) और आिथर्क सहायता (जन
ू  
1947 के माशर्ल  लान के अनस
ु ार) का प्रयोग िकया था। दोन  नीितय  का ल य सा यवाद के 
िव तार का मक
ु ाबला करना था।  मैन िस धांत के अनस
ु ार, अमेिरका ने उन दे श  को हिथयार 
या  सै य  सहायता  प्रदान  की, जो  संयक्
ु त  रा य  अमेिरका  समिथर्त  शासन  की  थापना  के 
उ दे य  से  िवदे शी  शासन  से  वतंत्र  होने  का  प्रयास  कर  रहे   थे।  माशर्ल  लान  के  अनस
ु ार,
अमेिरका ने पि चमी यरू ोपीय दे श  को अपना पन
ु धार करने के िलए िव ीय सहायता प्रदान 
की, जो यु ध से  सबसे  अिधक प्रभािवत थे  और गरीबी, बेरोजगारी, बहुत कम िवकास दर और 
अि थरता की सम या के कारण जजर्र ि थित म थे। सोिवयत संघ ने अमेिरका की इन दोन  
योजना के जवाब म और अपने सहयोिगय  को सरु क्षा प्रदान करने के िलए, “मो टोवो योजना” 
की  घोषणा  की।  इस  योजना  का  उ दे य  पूवीर्  यूरोप  म  उन  दे श   को  पुनिनर्मार्ण  के  िलए 
सहायता प्रदान करना था जो राजनीितक और आिथर्क  प से सोिवयत संघ से जड़
ु  े थे। इसके 
अितिरक्त  सभी  क युिन ट  पािटर् य   को  एक-साथ  एक  छाते  के  तहत  लाने  के  िलए 
“कॉिमनफॉमर्”  की  थापना  की।  सा यवादी  शासन  का  और  िव तार  करने  के  िलए, सोिवयत 

175
संघ ने चेको लोवािकया म ह तक्षेप िकया और 1948 म इसे क युिन ट शासन के तहत लाने 
म सफल रहा।

इस  चरण  के  दौरान, तनाव  तब  गहरा  गया  जब  1948 म  पि चमी  गट
ु   ने  अपने  अधीन 
क्षेत्र को एक कर ट्राईज़ोिनया (िजसे  बाद म ‘जमर्न संघीय गणरा य’ का नाम िदया गया) की 
थापना  की।  सोिवयत  संघ  ने  भी  अपने  अधीन  के  जमर्न  क्षेत्र  को  एक  कर  ‘जमर्न 
लोकतांित्रक गणरा य’ म पिरवितर्त कर िदया। ट्राईज़ोिनया म नई मद्र
ु ा की शु आत के साथ 
दोन  गट
ु  के बीच तनाव और बढ़ गया। इसके जवाब म सोिवयत पक्ष ने  ‘बिलर्न नाकाबंदी’
लगाकर  पि चमी  गट
ु   के  िलए  रे लवे, सड़क, और  नहर  की  पहुँच  को  अव ध  कर  िदया  और 
पूवीर्  जमर्नी  तक  पहुँचने  से  रोक  िदया।  बिलर्न  की  नाकेबंदी  के  पिरणाम व प  ‘बिलर्न 
एयरिल ट’ हुआ, िजसके तहत पि चमी दे श   वारा एयर क्रूज  से  पि चम जमर्नी के लोग  को 
आव यक  सामग्री  आपूितर्  कराई  गई  थी।  इसी  दौरान, अमेिरका  वारा  चीन  की  क युिन ट 
सरकार  की  बजाय  ‘फॉम सा’  सरकार  का  समथर्न  करना  और  नाटो  (उ र  अटलांिटक  संिध 
संगठन) के गठन ने दोन  महाशिक्तय  के बीच प्रित वं िवता को और गहरा िदया।

िवतीय चरण (1949-1953)
इस  चरण  म, अमेिरका  ने  क यिु न ट  शासन  के  प्रसार  का  मक
ु ाबला  करने  के  िलए  अपनी 
आिथर्क और सै य सहायता जारी रखी। इसी िदशा म, उ र और दिक्षण कोिरया के बीच चल 
रहे   सश त्र  टकराव  के  दौरान, अमेिरका  ने  पहली  बार  यूजीलड  और  ऑ ट्रे िलया  के  साथ  1
िसतंबर 1951 को एक सुरक्षा संिध, अ जस
ु  (ANZUS) पर ह ताक्षर िकए और बाद म, 8 िसतंबर 
1951 को  जापान  के  साथ  भी  शांित  संिध  पर  ह ताक्षर  िकए।  हालाँिक  दोन   गट
ु   के  बीच 
प्रित वं िवता  जारी  थी, िफर  भी  तनाव  को  शांत  करने  के  िलए, मा को  स मेलन  को  जारी 
रखने  जैसे  कुछ  प्रयास, इस  चरण  म  िकए  गए  थे।  मा को  स मेलन  म, सोिवयत  संघ,
अमेिरका और िब्रटे न ने सद
ु रू  पव
ू  र् क्षेत्र, िवशेषकर कोिरया म, ि थरता लाने  का समझौता िकया 
था लेिकन ये  सभी प्रयास  यथर्  रहे । 1950 म, कोिरयाई संकट का मामला संयक्
ु त रा ट्र संघ 
के पास भेजा गया था, लेिकन िकसी भी समझौता तक पहुँचने से पहले ही, क यिु न ट शािसत 
उ र कोिरया ने  दिक्षण कोिरया पर हमला कर िदया। इस दौरान सोिवयत संघ सरु क्षा पिरष  
की बैठक  म मौजद
ू  नहीं था और इसी कारण, अमेिरका संयुक्त रा ट्र संघ के सद य  के बीच 
आम  सहमित  बनाने  म  सफल  रहा  और  संयुक्त  रा ट्र  संघ  ने  उ र  कोिरया  को  शांित  का 
उ लंघन  करने  का  दोषी  घोिषत  िकया।  संयुक्त  रा ट्र  संघ  ने  दिक्षण  कोिरया  को  सै य 
सहायता भेजी और इसी के साथ वैचािरक प्रित वं िवता सश त्र टकराव म बदल गई। संयुक्त 
रा ट्र के अ य सद य  के साथ संयक्
ु त रा य अमेिरका दिक्षण कोिरया का समथर्न कर रहा 
था, जबिक सोिवयत संघ और चीन क युिन ट शािसत उ र कोिरया का समथर्न कर रहे   थे। 
लगभग  चार  साल  बाद, अनुकूल  राजनीितक  ि थित  के  कारण, उ र  कोिरया  और  दिक्षण 

176
कोिरया  ने  1953 म  शांित  संिध  पर  ह ताक्षर  िकए  और  यु ध  समा त  हो  गया।  कोिरयाई 
यु ध ने  महाशिक्तय  के बीच आपसी अिव वास और प्रित वं िवता को गहराया िजससे  एक-
दस
ू रे  के प्रभाव को कम करने के प्रयास  म तेजी आई। सोिवयत प्रभाव का मक
ु ाबला करने के 
िलए अमेिरका ने सा यवाद के िखलाफ प्रचार म लाख  डॉलर खचर् करने शु  कर िदए। दस
ू री 
ओर, सोिवयत  संघ  ने  परमाण ु बम  का  सफल  परीक्षण  िकया, िजससे  वह  अमेिरका  के  साथ 
बराबरी के प्रयास म सफल रहा। इस चरण म िव व ने  एक ऐसा शिक्त-संघषर्  दे खा, िजसम 
एक ओर, तनाव को कम करने  के िलए कुछ प्रयास िकए गए, वही दस
ू री ओर दोन  गट
ु  एक-
दस
ू रे  के प्रभाव को कम करने के िलए हर संभव अवसर का लाभ उठा रहे  थे।
तत
ृ ीय चरण (1953-1957)
इस  चरण  म  दोन   ओर  नेत ृ व  पिरवतर्न  हुआ  और  िव व  को  उ मीद  थी  िक  इससे  आपसी 
तनाव म कमी हो सकती है । 1953 म, टािलन की म ृ यु  के बाद, िजनकी नीितयाँ  शीत यु ध 
का प्रमख
ु  कारण थीं, सोिवयत कमान अिधकार रा ट्रपित िनिकता ख्रु चेव के हाथ म आई, जो 
शांितपूण र् सह-अि त व  के  समथर्क  थे  और  समझौत   की  नीित  म  िव वास  करते  थे।  दस
ू री 
तरफ, यूएसए  म, रा ट्रपित  है री  एस  मैन  का  कायर्काल  समा त  हो  गया  और  आइजनहावर 
अमेिरका के नए रा ट्रपित बने। आइजनहावर की अ यक्षता के दौरान भी, यूएसए ने  सोिवयत 
संघ के िखलाफ अपने सै य और आिथर्क प्रयास  को जारी रखा। सोिवयत संघ को घेरने और 
भारत-प्रशांत महासागर क्षेत्र म सा यवादी प्रभाव को कम करने  के उ दे य से, संयुक्त रा य 
अमेिरका  और  उसके सहयोिगय  ने  अपने  समथर्क एिशयाई दे श   जैसे  पािक तान, िफलीपींस,
थाईलड  के  साथ  एक  बहुपक्षीय  रक्षा  संिध  पर  ह ताक्षर  कर  8  िसतंबर  1954  को  SEATO
(दिक्षण पव
ू  र् एिशया संिध संगठन) का गठन िकया। इसी तरह, 1955 म, अमेिरका म य पव
ू  र्
दे श  के साथ म य पव
ू  र् रक्षा संगठन (MEDO) का गठन िकया। इस चरण म, अमेिरका ने  43 
दे श   को  सै य  सहायता  प्रदान  कर  और  सोिवयत  संघ  के  आसपास  तीन  हजार  से  अिधक 
सै य िठकान  की  थापना करके सा यवादी िव तार को सीिमत करने म एक हद तक सफल 
प्रा त की थी। इसके जवाब म, सोिवयत संघ ने 1955 म 12 दे श  के साथ एक सामिू हक रक्षा 
संिध कर, एक सामिू हक रक्षा तंत्र बनाने के उ दे य से, “वारसा संिध संगठन” (औपचािरक तौर 
पर “िमत्रता, सहयोग और पार पिरक सहायता की संिध”) का गठन िकया। दोन  महाशिक्तय  
के बीच आपसी टकराव पुनः िवयतनामी यु ध (1955 म शु  हुआ) और 1956 म हं गरी म 
सोिवयत संघ के ह तक्षेप के दौरान उभरा। हं गरी को क युिन ट शासन से  मक्
ु त करने  का 
पि चमी प्रयास िवफल हो गया। यह ि थित, अमेिरका  वारा “आइजनहावर िस धांत”, िजसके 
अनुसार  कोई  भी  म य  पूव र् दे श  अमेिरका  से  आिथर्क  या  सै य  सहायता  का  अनुरोध  कर 
सकता है   अगर उसे  सश त्र आक्रामकता का खतरा महसस
ू  होता है , की घोषणा के साथ और 
िबगड़ गई। हाइड्रोजन बम के परीक्षण के साथ हिथयार  की होड़ एक नए  तर पर पहुँच गई। 

177
इस  चरण  म  िविभ न  कारण   से  ऐसा  प्रतीत  हुआ  था  िक  दोन   ही  गट
ु   के  बीच  यु ध 
अपिरहायर्  है , लेिकन दोन  महाशिक्तय  ने  संयम बनाए रखा, उदाहरणतः  वेज संकट (1956)
का मु दा िजसम दोन  दे श  ने  अपने  संबंिधत सहयोिगय  की मदद न करने  के िलए सहमत 
हुए।

चतुथ र् चरण (1957-1962)
1962  से  शु   हुए  शीत  यु ध  के  पाँचव  चरण  म, िव व  ने  दो  महाशिक्तय   के  बीच  सह-
अि त व  के िलए टकराव और प्रयास  की घटनाओं  को दे खा  है । िसतंबर 1959 म, सोिवयत 
संघ  की  क युिन ट  पाटीर्  के  समकालीन  महासिचव  और  सोिवयत  संघ  के  प्रमख
ु   िनिकता 
ख्रु चेव ने  आिधकािरक तौर पर संयुक्त रा य अमेिरका का दौरा िकया। िकसी भी सोिवयत 
नेता की पहली अमेिरकी यात्रा, बु िधजीिवय   वारा प्रित वं वी महाशिक्तय  के बीच स भाव 
और शांित के प्रतीक के  प म िदखाई गई थी। हालाँिक इस यात्रा के दौरान कोई औपचािरक 
समझौता  नहीं  हुआ, पर तु  इसकी  वजह  से  दोन   महाशिक्तय   के  नेताओं  के  बीच  एक 
यिक्तगत संबंध िवकिसत हुआ, िजसने  तनाव को शांत करने  म योगदान िदया और संयुक्त 
रा य अमेिरका और सोिवयत संघ के बीच दे तांत की िव व को उ मीद हुई। यह आशा लंबे 
समय  तक  नहीं  रही  और  सहयोग  की  जगह  पर  िव व  भयानक  और  खतरनाक  टकराव  का 
साक्षी बना, िजसे  क्यूबा िमसाइल संकट के  प म जाना जाता है ।  U-2 जासस
ू ी-िवमान और 
बिलर्न संकट की घटना की वजह से  तनाव और संघषर्  पुनः शु  हो गया। 1 मई, 1960 को 
U-2 नामक एक अमेिरकी जासस
ू ी-िवमान को USSR ने  अपने  संप्रभ ु क्षेत्र म जासस
ू ी करते  हुए 
पकड़ा।  अमेिरकी  रा ट्रपित  आइजनहावर  ने  सोिवयत  संघ  के  आरोप   की  पुि ट  की  और  यह 
कहकर जासस
ू ी करने के कृ य को सही ठहराया िक इस तरह के कृ य यए
ू सए को  सी हमले 
से  बचाए  रखने  के  िलए  मह  वपण
ू  र् ह  क्य िक  उसने  ‘आयरन  कटर् न’ (चिचर्ल  वारा  अपने 
फु टन  भाषण  म  प्रयक्
ु त  श द)  के  पीछे   अपनी  गितिविधय   को  िछपा  रखा  है ।  साथ  ही 
रा ट्रपित आइजनहावर ने  यह भी कहा िक अमेिरका, भिव य म, अपनी संप्रभत
ु ा को बरकरार 
रखने के िलए ऐसा करना जारी रखेगा। U-2 की घटना ने शांित के प्रयास  को बहुत नक
ु सान 
पहुँचाया और यहाँ  तक िक इसके कारण, अमेिरका-सोिवयत संघ िशखर बैठक (जोिक 16 मई 
1960 को पेिरस म आयोिजत होनी थी) नहीं  हुई और सफल वातार्  के सभी अवसर शू य हो 
गए। एक अ य घटना, िजसने शांित के प्रयास  को नुकसान पहुँचाया, वह बिलर्न संकट था जो 
सोिवयत  संघ  वारा  पि चमी  िमत्र  रा ट्र   को  पव
ू ीर्  जमर्नी  से  अपनी  सेना  को  वापस  बुलाने 
और क्षेत्र को खाली करने  के अ टीमेटम से  शु  हुआ था। 1961 म, िवयना िशखर स मेलन 
म, सोिवयत प्रीिमयर िनिकता ख्रु चेव ने  यह अ टीमेटम िदया और चेतावनी दी िक सोिवयत 
संघ  पूवीर्  जमर्नी  के  साथ  एकतरफा  संिध  करे गा  तािक  उस  क्षेत्र  को  सोिवयत  संघ  के  पूण र्
िनयंत्रण  म  लाया  जा  सके।  इसी  समय, पि चम  से  पूवीर्  जमर्नी  म  प्रवास  बहुत  अिधक  था। 

178
जब  पि चमी  शिक्तय   वारा  इस  मु दे   को  हल  करने  के  िलए  कोई  गंभीर  आ वासन  नहीं 
िदया गया, तब 1961 म सोिवयत संघ को मजबूरन बिलर्न की दीवार बनवानी पड़ी। इस चरण 
म क्यूबा िमसाइल संकट के  प म शांित के िलए एक और बड़ा खतरा उभरा, िजसने  शीत 
यु ध के तनाव को और बढ़ा िदया। िफदे ल का त्रो के नेत ृ व म क्यूबा म क युिन ट शासन 
की  थापना के साथ संकट की शु आत हुई। अमेिरका की बजाय, का त्रो ने  सोिवयत संघ के 
साथ संबंध िवकिसत करना शु  कर िदया और सोिवयत संघ से बहुत-सी सहायता प्रा त की। 
1962 म, अमेिरकी तट  से िसफर् 90 मील की दरू ी पर सोिवयत संघ  वारा क्यूबा म परमाण-ु
सश त्र  िमसाइले  तैनात  की  गयी।  इसके  जवाब  म, अमेिरकी  रा ट्रपित  केनेडी  ने  अमेिरकी 
जहाज   को  क्यूबा  के  चार   ओर  नाकाबंदी  लागू  करने  के  िलए  आदे श  िदया।  इस  घटना  ने 
संकट की ि थित पैदा कर दी िजससे  दिु नया परमाण ु यु ध के कगार पर आ खड़ी हुई थी। 
संकट के कारण, दोन  पक्ष  का नेत ृ व तनावपूण र् सै य और राजनीितक गितरोध म लगे  हुए 
थे। हालाँिक, जब दोन  सरकार ने  बड़े  पैमाने  पर िवनाश की स भावना को महसस
ू  िकया, तब 
बातचीत  शु   हुई  और  अमेिरका  ने  सोिवयत  नेता  िनिकता  ख्रु चेव  की  माँग  पर  सहमित 
यक्त  की  और  क्यूबा  की  िमसाइल   को  हटाने  के  बदले, क्यूबा  पर आक्रमण  नहीं  करने  का 
वादा िकया। इस तरह क्यूबा संकट के शांितपूण र् समाधान के साथ यह चरण समा त हुआ। 

पाँचवाँ चरण (1962-1969)
1962 के क्यूबा िमसाइल संकट के दौरान दो प्रित वं वी महाशिक्तय , संयुक्त रा य अमेिरका 
और  सोिवयत  संघ  के  बीच  उ च  तनाव  के  कारण  तीसरे   िव वयु ध  की  संभावना  थी।  इस 
संकट ने  िव व के लोग  को यह महसस
ू  कराया िक परमाण ु हिथयार या सामिू हक िवनाश के 
हिथयार  (वेपंस  ऑफ  मास  िड ट्रक्शन)  परू े   मानव  जाित  के  िलए  खतरनाक  है   और  इन 
सामिू हक िवनाश के हिथयार  के अप्रसार पर एक आम सहमित उभरी और इस आम सहमित 
के साथ शीत यु ध का पाँचवाँ  चरण शु  हुआ। 1963 म, िजनेवा म, अमेिरका और सोिवयत 
संघ के नेताओं के बीच घिन ठ संबंध  थािपत करने के िलए, मा को और वािशगं टन के बीच 
हॉट-लाइन  थािपत करने  का िनणर्य िलया गया। सोिवयत संघ के रा ट्रपित िनिकता ख्रु चेव 
ू  र् सह-अि त व  के  प्रमख
शांितपण ु   नायक  के  प  म  उभरे ।  उ ह ने  अपनी  “अमेिरका  की 
स भावना यात्रा” के दौरान भी ख्रु चेव ने  आइजनहावर (उस समय के अमेिरकी रा ट्रपित) के 
साथ इस बारे   म बात की थी। इसके अितिरक्त, संयुक्त रा ट्र महासभा म अपने  संबोधन म 
भी उ ह ने  रा ट्र  से  िनर त्रीकरण और शांितपण
ू  र् सह-अि त व की अपील की। इस ल य की 
िदशा म बढ़ने, शांितपूण र् अि त व को संभव बनाने  और महाशिक्तय  के बीच तनाव को कम 
करने के िलए, दोन  महाशिक्तय  ने इस चरण म कई समझौत  पर ह ताक्षर िकए, िजनम से 
“आंिशक  परीक्षण  प्रितबंध  संिध”  (िजसे  एलटीबीटी  भी  कहा  जाता  है )  सबसे  मह  वपूण र् संिध 
थी। आंिशक परीक्षण प्रितबंध संिध, िजसने  आउटर  पेस और अंडर वॉटर म परमाण ु हिथयार 

179
के  परमाणु  हिथयार  के  परीक्षण  पर  प्रितबंध  लगा  िदया, 5 अग त, 1963 को  मा को  म 
अमेिरका, िब्रटे न और सोिवयत संघ  वारा ह ताक्षिरत की गयी। एलटीबीटी पर ह ताक्षर एक 
मह  वपूण र् िनणर्य था, और परमाण ु अप्रसार संिध (एनपीटी) भी परमाण ु हिथयार  पर प्रितबंध 
लगाने  की  ही  िदशा  म  एक  अितिरक्त  कदम  था।  जैसा  की  संयुक्त  रा ट्र  संघ  वारा 
उि लिखत  िकया  गया  है , “एनपीटी  एक  मह व
  पूण र् अंतरार् ट्रीय  संिध  थी  िजसका  उ दे य 
परमाण ु हिथयार  और हिथयार  की तकनीक के प्रसार को रोकना, परमाण ु ऊजार्  के शांितपूण र्
उपयोग  म  सहयोग  को  बढ़ावा  दे ना  और  परमाण ु िनर त्रीकरण  और  सामा य  व  पूण र्
िनर त्रीकरण  के  ल य  को  हािसल  करना  है ।” इन  सभी  सहयोगा मक  प्रयास   के  बावजद
ू ,
जमर्नी की सम या बनी रही और बिलर्न व िवयतनाम यु ध के िवषय म भी दोन  ही पक्ष  
वारा कोई िनणर्य नहीं िलया गया।

छठा चरण (1969-1978)
इस चरण म िव व ने  पूव र् और पि चम दोन  गट
ु  के बीच अिधक स भावना और सहयोग 
दे खा, और इस वजह से  अंतरार् ट्रीय संबंध के िव वान  ने  इस चरण को ‘दे तांते  (िजसका अथर् 
है   तनाव म कमी) का चरण’ कहा। अमेिरकी-सोिवयत संबंध को बेहतर बनाने  के प्रयास  के 
आर भ  का  ेय  अमेिरकी  रा ट्रपित  जॉन  िफ जगेरा ड  केनेडी  और  सी  रा ट्रपित  िनिकता 
ख्रु चेव को जाता है । इस प्रिक्रया को अमेिरकी रा ट्रपित िरचडर् िनक्सन और सोिवयत संघ के 
अ यक्ष िलयोिनद ब्रेज़नेव ने  भी आगे  बढ़ाया, िज ह ने  अमेिरकी-सोिवयत संबंध की िदशा को 
मोड़ने  और शीत यु ध के तनाव को शांत करने  म मह  वपण
ू  र् भिू मका िनभाई थी। इस चरण 
म, आंतिरक प्रित वं िवता और टकराव का  थान सां कृितक आदान-प्रदान, िविभ न समझौत  
और  एक-दस
ू रे   के  रा य  म  नेताओं  के  दौरे   ने  िलया।  दे तांत  के  चरण  म, सहयोग  का  तर 
समय  के  साथ  पिरवितर्त  होता  रहा, और  इसी  कारण  1960 के  दशक  के  प्रारं िभक  वष   को 
िव वान   ने  “िनि क्रय  दे तांत”  और  1970 के  दशक  के  बाद  के  चरण  को  “सिक्रय दे तांत”  का 
नाम िदया। वे  मह  वपण
ू  र् समझौते  और घटनाएँ  िजनके आधार पर िव वान  ने  इस चरण को 
“दे तांत का चरण” कहा है , िन निलिखत ह—

1.  मॉ को की संिध : 1970 के शु आती वषर्  म तनाव कम करने  के िलए दोन  ओर से 


प्रयास  िकए  गए  थे।  शांित  और  तनाव  को  कम  करने  के  िलए  प्राथिमक  प्रयास,
सोिवयत  संघ  और  पि चम  जमर्नी  वारा  िकया  गया  था, जब  12 अग त  1970 को 
मा को  की  संिध, िजसे “मॉ को  बॉन  समझौता” के  प  म  भी  जाना  जाता  था, पर 
ह ताक्षर  िकए  गए  थे।  इस  संिध  के  वारा  सोिवयत  संघ  ने  पि चम  जमर्नी  के 
िखलाफ  बल  के  उपयोग  को  याग  िदया  और  यु ध-प चात ्  िनधार्िरत  सीमाओं  को 
मा यता दी, िजसके  वारा पूवीर् जमर्नी और पि चम जमर्नी के बीच िवभाजन को भंग 
कर िदया गया और इसने दोन  दे श  के बीच ि थरता लाने म योगदान िदया।

180
2.  1971 का बिलर्न समझौता : जन
ू  1948 म, पूवीर्  जमर्नी के क्षेत्र म पि चमी दे श  को 
आवाजाही से  इनकार करने  का सोिवयत संघ का िनणर्य शीत यु ध का पहला प्रमख
ु  
अंतरार् ट्रीय  मु दा  था, िजसे  आिधकािरक  तौर  पर  “बिलर्न  नाकाबंदी”  कहा  गया  था। 
पि चमी िमत्र दे श  ने  पव
ू ीर्  जमर्नी म रहने  वाले  लोग  की सहायता के िलए एक वषर् 
की अविध के िलए “बिलर्नर लु ब्रक
ु ” (यािन ‘बिलर्न एयर िब्रज’) का आयोजन िकया। 
अंततः, अग त 1971 म, 18 महीने की लंबी वातार् के बाद, दोन  गट
ु  ने सहमित  यक्त 
की  और  अमेिरका, िब्रटे न  और  सोिवयत  संघ  ने  बिलर्न  म  एक  संिध  पर  ह ताक्षर 
िकए, िजसके  वारा सोिवयत ने पि चमी दे श  को पूवीर् जमर्नी के लोग  तक पहुँच की 
गारं टी दी।
3.  इसी  िदशा  म, ‘द  कॉ फ्रस  ऑन  िसक्योिरटी  एंड  कोऑपरे शन  इन  यूरोप  (CSCE)’ की 
तीन  चरण  की  बैठक  बुलाई  गई।  “हे लिसंकी  समझौते”  (िजसे  प्रशंसक  वारा  ‘शीत 
यु ध का अंत’ कहा गया) पर अग त 1975 म, हे लिसंकी (िफनलड) म, CSCE के अंितम 
चरण म, ह ताक्षर िकए गए। दोन  महाशिक्तय  ने  हे लिसंकी समझौते  के िस धांत  
का पालन करने  का संक प िलया। हे लिसंकी समझौते  के अंितम अिधिनयम म कई 
मु द  पर िनणर्य िलया गया, जोिक िवशेष  प से  तीन क्षेत्र  से  संबंिधत थे, (i) सीमा 
िववाद   और  शांित  थापना  से  संबिं धत  राजनीितक  और  सै य  मु दे   थे, (ii) आिथर्क 
मु दे   जैसे  वैज्ञािनक  िवकास  और  यापार  म  सहयोग, (iii) ) मानव  अिधकार   से 
संबंिधत  थे।  हे लिसंकी  स मेलन  की  तरह  बेलग्रेड  स मेलन  (1978) ने  भी  दोन  
शिक्तय  के बीच आंतिरक प्रित वं िवता को कम करने म योगदान िदया।
ं टन के आपसी संबंध के स दभर्  म दोन  रा य  के नेताओं  वारा 
4.  मॉ को और वािशग
एक-दस
ू रे   के क्षेत्र म यात्राएँ  सबसे मह  वपण
ू  र् प्रगित कही जा सकती ह। मई 1972 म,
अमेिरकी  रा ट्रपित  िरचडर्  िनक्सन  5 िदन   की  राजकीय  यात्रा  के  िलए  मा को  गए। 
इस दौरान दोन  महाशिक्तय  के बीच कई समझौते हुए, िजनम मह  वपण
ू  र् ह;
(i)  एबीएम  संिध  :  दोन   पक्ष  के  नेत ृ व  ने  श त्र  िनयंत्रण  के  मह  व  पर  सहमित 
यक्त की और एंटी-बैिलि टक िमसाइल (एबीएम) प्रणाली को सीिमत करने  के 
िलए एक संिध पर ह ताक्षर िकए। एंटी-बैिलि टक िमसाइल  का िनमार्ण परमाण ु
हमले  के  िखलाफ  अपने  क्षेत्र  की  रक्षा  करने  के  िलए  िकया  गया  था।  एंटी-
बैिलि टक िमसाइल संिध के प्रावधान  के तहत दोन   वयं  को मात्र दो एबीएम 
पिरसर  तक सीिमत करने  के िलए सहमत हुए, िजनम से  प्र येक के पास केवल 
100 एंटी-बैिलि टक िमसाइल ह गे।
(ii) SALT I : संयुक्त रा य अमेिरका और उसके सोिवयत समकक्ष दोन  कुछ  ेणी के 
हिथयार   की  संख्या  को  सीिमत  करने  के  िलए  सहमत  हुए।  26 मई  1972 को 

181
SALT I पर  ह ताक्षर  करके, दोन   ने  रणनीितक  बैिलि टक  िमसाइल  लांचर  की 
संख्या को वही तक सीिमत करने  के िलए सहमित  यक्त की, जो िक संिध पर 
ह ताक्षर के समय तक थी और एबीएम प्रणाली की तैनाती के िलए प्र येक को 
केवल  एक  साइट  के  अिधकार  िलए  सहमत  हुई।  इसी  तरह, अह तक्षेप  और 
उिचत आचरण के कुछ िस धांत  पर दोन  पक्ष सहमत हुए और दोन  ने  एक-
दस
ू रे  की संप्रभत
ु ा को मा यता दी।
5.  1973 म, सोिवयत संघ के अ यक्ष िलयोिनद ब्रेझनेव ने  यए
ू सए का दौरा िकया। इस 
िशखर  स मेलन  म, दोन   नेताओं  ने  हिथयार   की  होड़  व  शांित  से  संबंिधत  कई 
मह  वपूण र् मु द   पर चचार्  की  और कुछ  मह  वपूण र् समझौत   पर ह ताक्षर  िकए, जो 
कृिष  अनुसध
ं ान, सां कृितक  िव तार  और  वैज्ञािनक  िविनमय  जैसे  कई  क्षेत्र   म 
सहयोग का मागर्  प्रश त करते  ह। दे तांत से  पहले, एक ओर चीन और संयुक्त रा य 
अमेिरका और दस
ू री ओर सोिवयत संघ और चीन के बीच एक नया तनाव पैदा हो 
गया था। 1970 के दशक म, अमेिरकी नेत ृ व ने  इस स ब ध को सध
ु ारने  के प्रयास 
िकए।  1971 म, अमेिरकी  िवदे श  सिचव  हे नरी  िकिसंजर  की  चीन  की  यात्रा  के  दौरान 
‘शंघाई िवज्ञि त’ पर दोन  पक्ष  ने  ह ताक्षर िकये। इस घटना को अमेिरका और चीन 
के बीच शीत यु ध के अंत के संकेत के  प म दे खा गया था।

हालाँिक, दे तांत के काल का यह आशय कदािप नहीं  है   िक सोिवयत गट


ु  और पि चमी गट
ु  के 
बीच कोई प्रित वं िवता और तनाव नहीं  था। एक तरफ, दोन  एक साथ शांित बनाने  के िलए 
संिधय  और समझौत  पर ह ताक्षर कर रहे  थे, वहीं दस
ू री तरफ दोन  एक-दस
ू रे  की शिक्त को 
कम करने  की कोिशश भी कर रहे   थे। इसके कुछ उदाहरण ह, सोिवयत संघ की तल
ु ना म,
ू  र् पर अपना िनयंत्रण बढ़ाने के िलए अमेिरका ने ईरान म आयध
म य पव ु  िनमार्ण का समथर्न 
जारी रखा। िहंद महासागर क्षेत्र म सोिवयत िव तार को िनयंित्रत रखने  के िलए, अमेिरका ने 
‘िडएगो गािसर्या’ को एक सै य अ डे म बदल िदया, िजसने सोिवयत संघ के मन म संदेह बढ़ा 
िदया।  यहाँ  तक  की  कुछ  घटनाओ  म  उ ह ने  दो  िवपरीत  प्रित वं िवय   का  समथर्न  तक 
िकया, उदाहरणतः 1971 का भारत-पाक यु ध और 1973 का िम -इजरायल यु ध।

अंितम चरण (1979-1989)
इस चरण म, शीत यु ध के तनाव को कम करने के प्रयास जारी रहे  पर तु इनकी गित धीमे 
पड़ने  लगी थी और दोन  महाशिक्तय  के बीच शत्रत
ु ा पुनः शांित के प्रयास  का  थान लेने 
लगी  थी।  उदाहरणतः, अमेिरकी  रा ट्रपित  िजमी  काटर् र  ने  सोिवयत  संघ  के  िव ध  माहौल 
बनाने के िलए सा यवादी क्षेत्र  म मानवािधकार  और खुली कूटनीित जैसे साधन  का उपयोग 
िकया। यूएस सीनेट के SALT II संिध को संशोिधत न करने  के िनणर्य और रा ट्रपित काटर् र के 
हवाई  क्रूज  िमसाइल  को  तैनात  करने  के  िनणर्य  ने  आग  म  घी  डालने  का  काम  िकया। 

182
िव वान   का  मत  है   िक  इस  चरण, िजसे  नव  शीत  यु ध  कहा  गया, की  उ पि   के  कारण 
अफगान संकट तक ढूंढ़े  जा सकते  ह। िदसंबर 1979 म, सोिवयत संघ ने  अफ़गािन तान पर 
आक्रमण  िकया  और  हािफ़ज़ु लाह  अमीन  (त कालीन  अफगान  रा ट्रपित)  की  ह या  कर,
बाबरकमल (सोिवयत सहयोगी) को रा ट्रपित बना िदया। इस घटना के बाद पि चमी शिक्तय  
ने  अफगान  िवद्रोही  समह
ू   िज ह  मज
ु ािहदीन  कहा  जाता  है   (जो  लोग  सोिवयत  सैिनक   को 
बाहर  िनकालना  चाहते  थे)  का  समथर्न  िकया।  मज
ु ािहदीन  और  सोिवयत  सैिनक   के  बीच 
सश त्र टकराव से  हजार सोिवयत सैिनक  की मौत हो गई, इसिलए इस ह तक्षेप से  सोिवयत 
ु सान हुआ। पिरि थित इतनी िबगड़ गई िक संयुक्त रा य प्रशासन ने  1980 के 
को बहुत नक
ओलंिपक खेल  का बिह कार करने  का फैसला िकया, जो मॉ को म आयोिजत िकए जाने  थे। 
इसके  अलावा, रोना ड  रीगन  ने  अपने  रा ट्रपित  चुनाव  अिभयान  म  गैर-दे तांत  एजडे  का 
इ तेमाल िकया और 1981 म रोना ड रीगन के रा ट्रपित कायर्काल की शु आत को, दे तांत के 
अंत और नए शीत यु ध की शु आत माना जाता है । 

1983 म िब्रटे न, जमर्नी और इटली म ‘पिशर्ंग II िमसाइल ’ और क्रूज की तैनाती के बाद 


हिथयार   की  होड़  तेज  हो  गई।  बढ़ती  शत्रत
ु ा  के  कारण, सोिवयत  संघ  ने  1984  के  लॉस 
एंिज स ओलंिपक खेल  का बिह कार करने  का फैसला िकया। 1985 तक, अफगािन तान क्षेत्र 
म  ि थितयाँ  और  बदतर  हो  गईं  और  नए  समझौत   पर  ह ताक्षर  करके  दोन   पक्ष   ने 
अफगािन तान  से  हटने  का  फैसला  िकया।  इस  युग  म  सोिवयत  प्रशासन  ने  अमेिरका  का 
मक
ु ाबला करने  के िलए चीन के साथ संबंध िवकिसत करने  का फैसला िकया और 1985 म 
पंच-वषीर्य  यापार  समझौत   पर  ह ताक्षर  करने  के  साथ  ही  चीन-सोिवयत  संबध
ं   का  एक 
नया यगु  शु  हुआ। कई िव वान  के अनस
ु ार, शीत यु ध के प्रारं िभक वष  के मक
ु ाबले  यह 
चरण, यािन नए शीत यु ध का चरण, अिधक खतरनाक था। इस बार चीन, जापान और अ य 
दे श कम सिक्रय थे  और प्रित वं िवता मख्
ु य  प से  दोन  महाशिक्तय  के बीच थी। दस
ू रा,
इस अविध म  यिू क्लयर आ सर्  रे स नए  तर पर पहुँच गई, िजसने  काफी तनाव बढ़ा िदया 
था।  इस  चरण  म  न  केवल  श त्रागार  की  संख्या  और  आकार  म  व ृ िध  की  गई, बि क 
वैचािरक  प्रित वं िवता  हिथयार   और  स ा  के  िलए  प्रित वं िवता  और  प्रित पधार्  से  बदल 
गई।

भले  ही ि थित िबगड़ रही थी, िफर भी दोन  पक्ष  के नेत ृ व के कुछ शांित प्रयास सफल 


हुए, जो िन निलिखत ह—

a) SALT II संिध :  यह  संिध  दोन   गट


ु   के  नेताओं  के  बीच  बातचीत  की  एक  ंख
ृ ला  का 
पिरणाम  थी  और  आिखरकार  1970  के  दशक  के  अंत  म, रा ट्रपित  िजमी  काटर् र  और 
सोिवयत महासिचव िलयोिनद ब्रेझनेव ने 1979 म SALT II की संिध पर ह ताक्षर िकए। 
SALT I के  बाद  चल  रही  वातार्ओं  ने  दोन   पक्ष   को  पहली  परमाण ु हिथयार  संिध  पर 

183
ह ताक्षर  करने  के  िलए  प्रेिरत  िकया  और  दोन   पक्ष  रणनीितक  परमाण ु हिथयार   के 
िनमार्ण पर रोक लगाने पर सहमत हुए।
b) टाटर्   संिध :  अपने  िवघटन  से  ठीक  पहले, सोिवयत  संघ  ने  अमेिरका  के  साथ 
िनर त्रीकरण के इितहास म सबसे  बड़ी और सबसे  जिटल हिथयार िनयंत्रण संिध पर 
ह ताक्षर िकए। रा ट्रपित जॉजर्  एच.ड य.ू  बुश और िमखाइल गोबार्चेव ने  31 जल
ु ाई,
1991 को रणनीितक श त्र  यूनीकरण संिध ( टाटर् ) पर ह ताक्षर िकए। इस संिध के 
वारा दोन  पक्ष रणनीितक आक्रामक हिथयार  की संख्या को कम करने  और सीिमत 
करने के िलए सहमत हुए। यह भी तय िकया गया की दोन  6,000 से अिधक परमाण-ु
वारहे ड तैनात नहीं  करगे  और 1,600 से  अिधक अंतर-महा वीपीय बैिलि टक िमसाइल 
और  बमवषर्क  तैनात  नहीं  करगे।  इस  संिध  के  कारण, लगभग  80 प्रितशत  सामिरक 
परमाण ु हिथयार जो अि त व म थे, 2001 के अंत तक िनर त कर िदए गए।

पव
ू ीर् गट
ु  और सा यवाद का पतन

सा यवाद  का  पतन,  सोिवयत  संघ  के  संरेिखत  क्षेत्र  म  बढ़ती  अशांित  और  राजनीितक 
घटनाओं  के अचानक पिरवतर्न की ओर संकेत करता है । यह प्रिक्रया पोलड म ट्रे ड यूिनयन  
वारा  आयोिजत  बड़े  पैमाने  पर  हड़ताल  के  साथ  शु   हुई, िजसका  उ दे य  उस  समय  के 
मौजद
ू ा  एक-दलीय  क युिन ट  शासन  को  ख म  करना  था।  नागिरक  प्रदशर्न  और  प्रितरोधी 
अिभयान   की  िनरं तरता, पिरवतर्न  के  िलए  दबाव  बनाने  म  सफल  रहे ।  1989 म, सोिवयत 
सरकार ने  मक्
ु त चुनाव कराने  की घोषणा की, जो उसी वषर्  जन
ू  म हुए, िजसम ट्रे ड यूिनयन  
की  एकजट
ु ता  ने  क युिन ट  पाटीर्  पर  भारी  जीत  हािसल  की, िजससे  दे श  म  सा यवाद  का 
शांितपूण र् पतन हुआ। क युिन ट शासन के िखलाफ क्रांित की यह लहर पोलड से  परे , म य 
और पूवीर् यरू ोप के पूरे क्षेत्र म भी फैल गई। पोलड के सफल होने के बाद, ट्राइक, राजनीितक 
अशांित, प्रदशर्न  के फैलने  से  बु गािरया, चेको लोवािकया, पूवीर्  जमर्नी, हं गरी और रोमािनया म 
भी  सा यवाद  का  पतन  हुआ।  पूवीर्  यूरोप  की  इन  घटनाओं  की  सामा य  िवशेषता, रोमािनया 
(जहाँ  नागिरक क युिन ट शासन को िहंसक  प से  उखाड़ फकते  ह) और पूवीर्  जमर्नी (जहाँ 
ि थित  पूरी  तरह  से  अलग  थी)  को  छोड़कर, सभी  जगह  प्रितरोध  के  शांितपूण र् तरीक   का 
यापक  उपयोग  िकया  गया  था।  पूवीर्  जमर्नी  म, सबसे  पहले  क यिु न ट  नेता  ने  िवरोधी 
आंदोलन  का िनयंत्रण अपने हाथ  म लेने की कोिशश की, लेिकन जनता  वारा भारी प्रितरोध 
के कारण सफल नहीं  हुए। हं गरी-ऑि ट्रया बोडर्र पर बाड़ा हटाने  और प्रितरोध  की िनरं तरता 
के कारण अंततः “आयरन कटर् न” म छे द हो गया िजस कारण पव
ू ीर्  जमर्न सरकार की स ा 
पर  पकड़  कमजोर  हो  गई  और  अंततः  बिलर्न  की  दीवार  के  पतन  के  साथ  जमर्नी  का  पन
ु ः 
एकीकरण हुआ। वषर् 1991 के अंत तक, सोिवयत संघ कई नए गणरा य  म िवघिटत हो चक
ु ा 

184
था और 25 िदसंबर 1991 को िमखाइल गोबार्चेव के इ तीफे के साथ, सा यवादी शासन का युग 
समा त हो गया।

सोिवयत संघ के िवघटन के साथ शीत यु ध का अंत हो गया और िव व  तर पर नए 


संरेखण  सामने  आए।  प्रथमतः, उ री  अटलांिटक  संिध  संगठन  (नाटो)  और  वारसॉ  संिध  के 
सद य दे श   वारा एक समझौते  पर ह ताक्षर िकए गए और वे  साझे  लाभ के िलए भिव य 
म  एक-दस
ू रे   के  साथ  सहयोग  करने  के  िलए  सहमत  हुए।  दस
ू रा, नए  गणरा य   म  एक 
राजनीितक  उथल-पुथल  और  संघषर्  शु   हुआ, जो  क युिन ट  शासन  के  पतन  के  बाद  उभरा 
और  अंततः  नए  रा य   के  िवभाजन  के  साथ  समा त  हुआ।  उदाहरणतः, यूगो लाव  यु ध  
(जोिक िहंसक जातीय संघष  की एक  ंख
ृ ला थी िजसम लाख  लोग  की मौत हुई) 1991 से 
पूव र् ही यूगो लािवया रा य म शु  हुआ और इसके पिरणाम व प यूगो लािवया पाँच अलग-
अलग  रा य   म  िवघिटत  हुआ, जो  थे, बोि नया-हज़गोिवना, क्रोएिशया, मैसेडोिनया, सिबर्या 
(म टे नेग्रो  के  साथ)  और  लोवेिनया।  इसी  तरह, चेको लोवािकया, जो  राजनीितक  अशांित  के 
कारण चेक और  लोवाक म भी िवभािजत हो गया है । बोि नया म रहने  वाले  सबर्, क्रोट और 
मस
ु लमान  1995 के  संघषर्  िवराम  तक  एक-दस
ू रे   से  लड़ते  रहे ।  तीसरा, महाशिक्तय   के  बीच 
शीत  यु ध  के  दौरान  शु   हुई  एक  श त्र  होड़  िजसके  पिरणाम व प  परमाण ु बम, हाइड्रोजन 
बम जैसे  बड़े  पैमाने  पर िवनाश के हिथयार  का प्रसार हुआ था। शीत यु ध की समाि त के 
बाद, सोिवयत  संघ  के  िवघटन  के  कारण  उभरे   नए  अि थर  शासन   की  इन  हिथयार   तक 
आसान पहुँच थी और इस कारण इन हिथयार  का प्रबंधन और पयर्वेक्षण अंतरार् ट्रीय समदु ाय 
के िलए िसरददर्  बन गया। चतथ
ु ःर्  मक्
ु त-बाजार की अथर् यव थाओं अपना उभरे  नए गणरा य  
(जो पहले सा यवाद की  थापना के तहत थे) का सग
ु म  पांतरण एक बड़ी िचंता थी, क्य िक 
सोिवयत संघ के िवघटन, राजनीितक उथल-पथ
ु ल, गरीबी और संसाधन  की कमी के कारण, ये 
गणरा य  बहुत  सी  सम या  का  सामना  कर  रहे   थे।  उ ह  िवकास  के  िलए  एक  बहुत  ही 
योजनाब ध  और  यापक  िव ीय  सहायता  की  आव यकता  थी; अ यथा  इस  क्षेत्र  की 
अिनि चतता  िव व-शांित  के  िलए  खतरा  हो  सकती  थी।  अंततः, पव
ू ीर्  गट
ु   के  िवघटन  ने 
पि चमी  शिक्तय   के संबंध को भी प्रभािवत िकया। अब  जब एक साझा शत्र,ु सोिवयत संघ,
िव व  शिक्त  संघषर्  से  गायब  हो  गया, तब  अमेिरका  ने  खद
ु   को  नई  एक-ध्रुवीय  िव व  म 
महाशिक्त के  प म बनाए रखने  तक सीिमत कर िलया और िव व म शांित और  यव था 
के रखरखाव म अपना ह तक्षेप कम कर िदया। उदाहरण के िलए, वतर्मान समय म अमेिरका 
ने  अक्सर संयुक्त रा ट्र ‘शांित िमशन’ म सहायता या सैिनक प्रदान करने  से  माना िकया है  
और शांित व ि थरता बनाए रखने का दािय व अ य सद य दे श  पर छोड़ िदया है ।

185
स दभर् सच
ू ी

 बेयलीस, जे, ि मथ, एस  एंड  ओवे स  पी.  (2011) द  ग्लोबलाइज़ेशन  ऑफ  व डर् 
पॉिलिटक्स  :  एन  इंट्रोडक्शन  टू  इंटरनेशनल  िरलेश स.  ऑक्सफोडर्  यिू नविसर्टी  प्रेस  : 
िद ली
 नॉमर्न, एल. (2013) मा टे िरंग मॉडनर् व डर् िह ट्री. पालग्रेव मैकिमलन : लंदन
 चंदर  पी  एंड  अरोरा  पी  (1984) तल
ु ना मक  राजनीित  और  अंतरार् ट्रीय  संबंध।  बुक 
हाइवस : िद ली
 पेक्टर, रोना ड एच. िवयतनाम यु ध, 2016
(https://www.britannica.com/print/article/628478)
 (https://www.britannica.com/print/article/125110 ) शीत यु ध

186
इकाई-3  

पाठ-7 : सोिवयत संघ का िवघटन और शीत यु ध का अंत 
अनीता / नारायण रॉय 
 
पिरचय  

जब एक ओर सारे   िव व का  यान प्रथम िव वयु ध की ओर किद्रत था उसी समय  स म 


(जो िक िमत्र रा ट्र  म से  एक दे श था) एक ऐसा क्रांितकारी तख्तापलट हुआ, िजसने  िव व 
को शासन का एक नया िवक प, अथार्त ् पँज
ू ीवादी शासन का िवक प, प्रदान िकया।  स के 
ज़ार सीजर िनकोलस  िवतीय के क्रूर और अिप्रय शासन के िव ध बो शेिवक   वारा 1917 
म  सा यवादी  क्रांित  की  गयी  िजसके  पिरणाम व प  सोिवयत  संघ  अि त व  म  आया। 
बो शेिवक क्रांित (िजसके  सी क्रांित और अक्टूबर क्रांित के नाम से  जाना जाता है ), िजसका 
नेत ृ व  लािदमीर  लेिनन  और  ट्रॉ की  वारा  िकया  गया  था,  बीसवीं  शता दी  की  एक 
मह  वपूण र् घटना थी िजसने  िव व को सा यवादी अथर् यव था का एक िवक प प्रदान िकया। 
ऐसा  नहीं  था  िक  ज़ारशाही  शासन  यव था  से  सा यवादी  पाटीर्  के  हाथ   म  स ा  का  यह 
ह तांतरण शांितपूण र् और सरल था। समाजवादी क्रांित एक िहंसक क्रांित थी और इस क्रांित 
के सफल हो जाने  के तुरंत बाद  स म गह
ृ  यु ध िछड़ गया था िजसे  ‘ सी गह
ृ  यु ध’ कहा 
जाता  है ।  यह  गह
ृ   यु ध  नवंबर  1917  से  अक्टूबर  1922  तक  चला।  यह  एक  बहुत  ही 
शिक्तशाली संघषर्  था जो बो शेिवक क्रांित के िवरोिधय  (िजनम िविभ न राजिनितक समह
ू , 
धािमर्क नेता और पूव र् ज़ार शासन के अिधकारी शािमल थे, िजनको पि चमी दे श  का सहयोग 
भी प्रा त हुआ था) और  स की नई स ा  यव था के म य िछड़ा था। इस गह ृ  यु ध ने  स 
के राजनीितक संचालन की दशा-िदशा िनधार्रण करने  के म मह  वपण
ू  र् िनभाई थी। लाल सेना 
वारा क्रांित िवद्रोिहय  को परािजत िकये  जाने  के साथ ही गह
ृ  यु ध पर िवराम लगाया गया 
और िदसंबर 1922 म औपचािरक  प से  सोिवयत संघ की  थापना हुई। सा यवादी  स 15 
इकाइय  का एक समहू  था िजसम मख्
ु यतः  स, यूक्रेन, बेला स प्रमख
ु  थे, और इसीिलए इसे 
सोिवयत  समाजवादी  गणतंत्र   का  संघ  कहा  गया।  यह  एक  सा यवादी  यव था  थी  िजसम 
अथर् यव था  पर  कद्रीय  सरकार  का  पूण र् प  िनयंत्रण  था।  बो शेिवक  क्रांित  का  प्रभाव  न 
केवल  स की राजनीित और सामािजक  य था पर पड़ा बि क इस घटना ने  िव व-राजनीित 
को एक नवीन िदशा भी प्रदान की। सा यवादी िवचारधारा के आधार पर  थािपत इस नयी 
शासन  यव था के कारण,  स कुछ ही दशक  बाद एक महाशिक्त बन कर उभरा और  स 
के इस  विरत िवकास ने  एक नए समाज, नई सां कृितक मू य  व नई स यता को ज म 
िदया था। िव व पटल पर  स का सा यवादी शासन के अधीन महाशिक्त के  प म उभरना 

187
एक  ऐसी  घटना थी  िजसने  िव व-राजनीित को  दोहरे   प से  प्रभािवत  िकया।  एक  ओर  स 
(िजसकी सामिजक और आिथर्क  यव था सा यवादी शासन से  पूव र् पूरी तरह जजर्र अव था 
म थी) का महाशिक्त के  प म उभार, सा यवाद के प्रसार का कारण बना क्य िक बहुत से 
दे श सा यवादी  यव था अपनाने लगे थी िजसने पि चमी रा ट्र  और सा यवादी  स के म य 
स ब धो को प्रित पधीर्  एवं  कटु बनाया। वहीं  दस
ू री ओर,  िवतीय िव वयु ध के दौरान हुई 
तबाही ने  िमत्र और धुरी दोन  गट
ु  के रा ट्र  को बहुत गंभीर  प से  प्रभािवत िकया था और 
यु ध के बाद अमेिरका और सोिवयत संघ ही महाशिक्त बचे थे। अमेिरका और सोिवयत संघ 
िवतीय िव वयु ध के दौरान सहयोगी दे श थे, पर तु  यु ध की समाि त के बाद इनके बीच 
सवर्शिक्तशाली बनने की होड़ ने शीत यु ध को ज म िदया। 

शीत  यु ध  एक  यु ध  जैसी ि थित है , इसम कोई वा तिवक यु ध  नहीं  लड़ा जाता है । 


शीत यु ध को ऐसी तनावपण
ू  र् ि थित के  प म पिरभािषत िकया जाता है   िजसम एक ओर 
दो गट
ु  अथवा दो दे श  वयं  अपनी शिक्त को बढ़ाने  और मजबत
ू  करने  का प्रयास करते  ह 
और वही दस
ू री ओर ऐसी नीितय  का अनुसरण करते  ह िजससे  प्रित वं वी पक्ष को कमजोर 
िकया जा सके और साथ ही दोन  पक्ष वा तिवक यु ध की स भावना को टालने  का प्रय न 
करते ह। सोिवयत संघ का शीत यु ध से एक  प ट स ब ध है ।  िवतीय िव वयु ध के बाद 
सोिवयत  संघ  एक  महाशिक्त  के  प  म  उभरा  था।  इसके  इस  उभार  को  पि चमी  दे श , 
िवशेषकर अमेिरका,  वारा एक चुनौती के  प म दे खा गया था िजस कारण से पँज
ू ीवादी गट
ु  
(िजसका नेत ृ व अमेिरका ने  िकया था) और सा यवादी गट
ु  (िजसका नेत ृ व सोिवयत संघ ने 
िकया  था)  के  बीच एक प्रित वं िवता  का काल ज म लेता  है   िजसे  आप और हम  शीत  के 
यु ध काल के नाम से  जानते ह। इस स पूण र् तनावपूण र् काल के दौरान िविभ न अवसर  पर 
अमेिरका और सोिवयत संघ प्र यक्ष तौर आमने-सामने भी आये, पर तु सौभाग्यवश इन दोन  
दे श   के  बीच  कोई  यु ध  नहीं  हुआ।  शीत  यु ध  के  दशक   ल बे  तनावपूण र् और  प्रित पधीर् 
काल का अंत एक महाशिक्त के िवघटन के साथ हुआ जोिक सोिवयत संघ था। 

इस  अ याय  का  उ दे य  आपको  िव व  इितहास  की  दो  पर पर  स बि धत  घटनाओं  से 
अवगत  करना  है   जो  ‘सोिवयत  संघ  का  िवघटन’  और  ‘शीत  यु ध  का  अंत’  थे।  अतः  इस 
अ याय  म  हमारा  यान  दो  िवषय   पर  किद्रत  होगा।  एक  ओर  हम  महाशिक्त  के  प 
सोिवयत  संघ  की  ि थित  और  उसके  िवघटन  के  कारण  एवं  प्रिक्रया  को  समझने  का  प्रयास 
करगे, वही दसू री ओर हम सोिवयत संघ के िवघटन से समा त हुए शीत यु ध के प्रभाव  की 
संक्षेप म चचार् करगे। 

188
महाशिक्त के  प म सोिवयत संघ 

बो शेिवक क्रांित के बाद  थािपत सा यवादी सोिवयत सरकार ने  स के िवकास के भरसक 


प्रय न िकये िजनके कारण  िवतीय िव वयु ध के बाद सोिवयत संघ ने महाशिक्त के  प म 
वयं  को िव व पटल पर  थािपत िकया। यह िव व की दस
ू री महाशिक्त के  प म सामने 
आया  क्य िक  िवतीय  िव वयु ध  के  दौरान  फ्रांस,  िब्रटे न,  जमर्नी  और  अ य  दे श  अपनी 
शिक्तशाली पहचान खो चुका थे। अपनी  थापना के बाद, यू.एस.एस.आर. ने  आिथर्क क्षेत्र म 
ती   गित  से  िवकास  िकया  और  अपनी  अथर् यव था  को  िव व  तर  पर  मजबूत  बनाया। 
लेिनन और  टािलन के शासन समय म यू.एस.एस.आर. ने  ना केवल सै य शिक्त म परं त ु
आिथर्क  क्षेत्र  म  भी  यापक  प्रगित  की।  सोिवयत  संघ  वारा  1928  म  िवकास  के  िलए 
शु आत  की  गई  पंचवषीर्य योजना ने  इस िवकास को गित प्रदान की और 1950 के दशक 
तक यू.एस.एस.आर. कृिष प्रधान समाज से  औ योिगक शिक्त के  प म िवकिसत हो चुका 
था।  सोिवयत  संघ  ने  अपनी  संचार  प्रणाली  को  उ नत  तकनीक  वारा  िवकिसत  िकया  था। 
यहाँ  पर  सभी  प्रकार  के  उ पाद   का  उ पादन  िकया  जाने  लगा  था।  सा यवादी  सरकार  ने 
अपने नागिरक  के िलए एक  यन
ू तम जीवन  तर सिु नि चत कर िदया था। सोिवयत संघ ने 
वयं को अंतिरक्ष अनस
ु ध
ं ान के क्षेत्र म भी िवकिसत िकया। 1957 म सोिवयत संघ के  वारा 
िव व  का  पहला  मानव  िनिमर्त  कृित्रम  उपग्रह,  िजसका  नाम  ‘ पत
ु िनक-I’  था,  को  प ृ वी  के 
कक्ष म  थािपत िकया था। सै य क्षमता की  ि ट से  सोिवयत संघ के पास िव व की दस
ू री 
सबसे  बड़ी  सेना  सेना  थी  िजसके  पास  आधिु नक  हिथयार  टक,  हिथयार,  बम  इ यािद  थे। 
सोिवयत संघ ने  अपना पहला परमाण ु बम परीक्षण 1949 म िकया था िजसका नाम फ टर्  
लाइटिनंग था। तत ्प चात ् यू.एस.एस.आर. परमाण ु हिथयार संप न दे श  की सच
ू ी म शािमल 
हुआ और इसके पास इन िवनाशकारी हिथयार  का सबसे  बड़ा भंडार था।  िवतीय िव वयु ध 
के  बाद  जब  रा ट्र  संघ  की  थापना  हुई  तब  यू.एस.एस.आर.  को  सरु क्षा  पिरषद  म  थाई 
सद यता प्रा त हुई। इसके अितिरक्त सोिवयत संघ यूरोप म सरु क्षा और सहयोग संगठन का 
भी  सद य  था। पि चमी दे श   वारा नाटो, सीट   एवं  सटो नामक सै य गट
ु  के िनमार्ण  के 
िव ध यू.एस.एस.आर. के  वारा वारसा पैक्ट का भी गठन िकया गया था जो 1955 म पूवीर् 
यूरोप के दे श  के साथ गठबंधन  वारा गिठत िकया गया था। इसके मख्
ु य सद य दे श पोलड, 
हं गरी आिद थे और इसका मख्
ु यालय मॉ को म था और इस सै य संगठन का उ दे य नाटो 
म  सि मिलत  दे श   का  यूरोप  म  मक
ु ाबला  करना  था।  इस  प्रकार  हम  दे ख  सकते  ह  िक 
यू.एस.एस.आर.  ने  वयं  को  आिथर्क,  प्रौ योिगकी,  परमाण ु हिथयार,  तकनीकी,  अनुसध
ं ान 
खोज आिद सभी क्षेत्र  म िव व पटल पर महाशिक्त के  प म िवकिसत कर िलया था। 

189
सोिवयत संघ के िवघटन के कारण 

जैसा की अभी हमने  चचार्  की िक सोिवयत संघ के िवकास को सा यवादी शासन के अधीन 


अ यिधक  गित  प्रा त  हुई।  सोिवयत  संघ  आिथर्क,  प्रौ योिगकी,  सै य,  तकनीकी,  यु ध 
हिथयार   के  िनमार्ण  आिद  सभी  क्षेत्र   म  अपने  प्रित वं वी  अमेिरका  के  समान  था।  कुछ 
दशक  के  विरत िवकास के बाद सोिवयत संघ के िवकास की गित िविभ न कारण  से धीमी 
पड़ने  लगी  और  अंततः  सोिवयत  संघ  का  िवघटन  हो  गया।  सोिवयत  संघ  के  िवघटन  म 
आंतिरक  व  बा य  कारक   की  िवशेष  भिू मका  रही।  कमजोर  अथर् यव था,  िमखाइल  गोबार्चेव 
की सध
ु ार नीितयाँ, खा य संकट जैसी कुछ मह  वपूण र् घटनाएँ यू.एस.एस.आर. के िवघटन का 
कारण बनी। अग्रिलिखत भाग म हम इन कारण  की संक्षेप म चचार् करगे। 

 आंतिरक कारण 

 आिथर्क  यव था का पतन 

प्रारं भ म, आिथर्क िनयोिजत योजना और िनयंित्रत अथर् यव था के कारण सोिवयत संघ की 


िवकास दर काफी उ च रही थी। पहली पंचवषीर्य योजना के पिरणाम अ यिधक लाभकारी रहे । 
समय  के  साथ-साथ  सोिवयत  संघ  की  अथर् यव था  कृिष  प्रधान  अथर् यव था  से  औ योिगक 
समाज के  प म िवकिसत होने  लगी। पर तु  िवतीय िव वयु ध के बाद ि थित पिरवितर्त 
होने  लगी।  िवतीय  िव वयु ध  के  बाद  उिदत  शीत  यु ध  के  प्रित वं वी  वातावरण  म 
सोिवयत संघ ने  हिथयार िनमार्ण व अनुसध
ं ान क्षेत्र  म अिधक आिथर्क िनवेश करना प्रार भ 
कर  िदया  था  और  उ योग  व  यापार  पर  सा यवादी  सरकार  कम  यान  दे ने  लग  गयी  थी 
िजसके  पिरणाम व प  अथर् यव था  कमजोर  होने  लगी।  िगरती  अथर् यव था  का  सोिवयत 
नागिरक   पर  नकारा मक  प्रभाव  पड़ा  क्य िक  उनके  आम  जन-जीवन  म  काफी  आिथर्क 
किठनाइयाँ बढ़ने लगी और सरकार के प्रित असंतोष की भावना पैदा होने लगी। सोिवयत संघ 
जो  एक  आ मिनभर्र  महाशिक्त  थी, धीरे -धीरे   पि चमी  दे श   से  प्रौ योिगकी  और  उ पादन  के 
क्षेत्र  म  पीछे   छूटने  लगी  िजसका  सीधा  प्रभाव  उसके  बाजार  पर  पड़ा।  दै िनक  ज रत   की 
व तुओं की कमी होने लगी और औ योिगकरण पर अिधक  यान न होने के कारण सोिवयत 
संघ ने  खा या न पर अपनी आ मिनभर्रता खो दी। प्रित वषर्  खा या न के आयात की मात्रा 
बढ़ने  लगी और दे श म खा या न संकट की ि थित उ प न हो गई थी। 1970 के दशक के 
अंितम  वष   म  दे श  की  अथर् यव था  कमजोर  पड़  चक
ु ी  थी  िजसके  बाद  खा या न  संकट, 
िवदे शी  मद्र
ु ा  की  कमी  महसस
ू   की  गई।  इस  पिरि थित  म  लोग   के  रहन-सहन  के  तर  म 
िगरावट आने लगी, दै िनक ज रत  के सामान  की कीमत  म व ृ िध होने लगी िजसके कारण 
नागिरक  के आम जीवन पर नकारा मक प्रभाव पड़ा। इस प्रकार आिथर्क  यव था का पतन 
य.ू एस.एस.आर. के िवघटन का एक मख्
ु य कारण बना। 

190
 श त्र िनमार्ण व अंतिरक्ष अनुसध
ं ान म अ यिधक िनवेश 

िवतीय  िव वयु ध  म  अमेिरका  के  वारा  परमाण ु बम  के  प्रयोग  ने  संपूण र् िव व  को  च का 
िदया  था।  इसी  समय  को  परमाण ु युग  की  शु आत  की  संज्ञा  दी  जाती  है ।  1943  म 
यू.एस.एस.आर. ने भी परमाण ु प्रौ योिगकी को िवकिसत करने के प्रयास की शु आत की और 
अग त  1949  के  पहले  परमाण ु परीक्षण  म  उसे  सफलता  भी  प्रा त  हुई।  अमेिरका  व  अ य 
पि चमी दे श  की बराबरी करने के िलए यू.एस.एस.आर. ने अपने संसाधन  का अिधकांश भाग 
परमाण ु हिथयार   और  सै य  साजो  सामान  िनमार्ण  करने  म  िनवेश  िकया,  िजसकी  शु आत 
1943  म  परमाण ु बम  बनाने  की  प्रिक्रया  के  साथ  शु   हुई।  अमेिरका  के  हाइड्रोजन  बम  के 
िनमार्ण के 3 साल बाद नवंबर 1955 को य.ू एस.एस.आर. ने  अपना पहला हाइड्रोजन बम का 
परीक्षण िकया। सा यवादी सरकार  वारा श त्र िनमार्ण की होड़ म अथर् यव था की अनदे खी 
की  गई  िजससे  अथर् यव था  को  भारी  नक
ु सान  हुआ  और  इसकी  भरपाई  करने  म  सोिवयत 
संघ असफल रहा। 1949-1990 के कायर्काल म सोिवयत संघ ने  715 परीक्षण िकए िजसम 
परमाण ु तोपखाने  के गोले  से  लेकर म टीमेगाटन िमसाइल वारहे ड और कई तरह के हिथयार 
शािमल  थे।  हिथयार  िनमार्ण  की  अंधी  होड़  के  कारण  सोिवयत  यव था  िवकास  की  बजाये 
पतन की और उ मख
ु  हुई।  

 बाि टक रा य   वारा िवरोध 

सोिवयत संघ ने  अपनी पि चमी सीमा क्षेत्र की सरु क्षा के िलए बाि टक सागर के पास ि थत 


तीन  दे श  ए तोिनया,  लाि वया  तथा  िलथुआिनया  (िज हे   सयुंक्त  प  से  बाि टक  गणरा य 
कहते  थे) पर जबरन क जा कर उनका सोिवयत संघ म िवलय िकया था, लेिकन इन रा य  
ने  वयं  को कभी सोिवयत संघ का भाग नहीं  माना और सदै व सोिवयत संघ से  अलग होने 
के िलए संघषर्  करते  रहे । 1989 तक, बाि टक रा य  म सोिवयत संघ से  वतंत्रता के िलए 
कई बार जनमत कराए गए और अंततः िमखाइल गोबार्चेव ने िवद्रोह को दबाने की बजाये इन 
रा य  की  वतंत्रता को वैधािनक  प से मंजरू ी प्रदान की। इन रा य  ने भी सोिवयत संघ के 
एकीकृत  व प  को  िवखंिडत  करने  म  अहम  भिू मका  िनभाई।  बाि टक  गणरा य   के  वारा 
िवरोध ने अ य रा य  को भी सोिवयत संघ से अलग होने के िलए प्रेिरत िकया था। 

 गोबार्चेव की सध
ु ारवादी नीितयाँ 

िजस  समय  तक  सोिवयत  संघ  की  स ा  की  कमान  गोबार्चेव  के  हाथ   म  आयी,  उस  समय 
तक सोिवयत संघ की आिथर्क व राजनैितक  यव था कमजोर हो चुकी थी। गोबार्चेव 1985 
म  सोिवयत  संघ  के  महासिचव  बने  थे।  उनकी  िवचारधाराओं,  नीितयाँ  व  कायर्शैली  उनके 
पूवव
र् तीर्  महासिचव  की िवचारधाराओं, नीितओं  व कायर्शैिलय  के िवपरीत थी। स ा म आने 
के  प चात,  गोबार्चेव  ने  सोिवयत  संघ  की  त कालीन  पिरि थितय   को  सध
ु ारने  के  िलए  व 

191
सोिवयत  संघ  म  वतंत्र  और  लोकतांित्रक  समाज  की  थापना के िलए  िविभ न  नीितय  की 
शु आत की। ये बदलाव और नीितयाँ अग्रिलिखत है — 

 ग्ला नो त-  यह  नीित  1980  के  दशक  के  उ राधर्  म  शु   की  गई।  ग्ला नो त  एक 
सी श द है   िजसका शाि दक अथर्  ‘खुलापन’ है । इस नीित का उ दे य सोिवयत  स 
के सरकारी सं थान  म एवं  उनकी िक्रयाकलाप  म खुलेपन एवं  पारदिशर्ता को बढ़ावा 
दे ना था। इस नीित के  वारा सोिवयत संघ के नए महासिचव सा यवादी प्रणाली का 
पन
ु ः नए तरीके से  यवि थत कर, पतन की ओर अग्रसर होती  यव था को मजबत
ू  
करना  चाहते  थे।  इसके  अितिरक्त,  सरकार  और  सरकारी  प्रिक्रया  म  िनिहत  यापक 
भ्र टाचार को कम करने  तथा कद्रीय आयोग म प्रशासिनक शिक्तय  के द ु पयोग को 
सीिमत करने के िलए ग्ला नो त नीित का प्रार भ िकया गया था। 
 पेरे त्रोइका- पेरे त्रोइका एक  सी श द है   िजसका शाि दक अथर्  ‘पन
ु िनर्मार्ण’ होता है । 
पेरे त्रोइका  का  उ दे य  सोिवयत  समाज  म  ऐसे  सध
ु ार  लाने  का  प्रयास  करना  था 
िजससे  सरकार के काय  म नागिरक  की सिक्रय भागीदारी को बढ़ावा िदया जा सके। 
इसके  अितिरक्त  इस  नीित  का  उ दे य  सरकार  की  त्रिु टय   को  दरू   करना,  नागिरक  
को िवचार की अिभ यिक्त की  वतंत्रता प्रदान करना, तथा नागिरक  को सच
ू ना एवं 
जानकारी  प्रा त  करने  के  की  वतंत्रता  दे ना  था  िजससे  िढ़वादी  यव था  व  उसकी 
कठोरता का अंत हो सके और सोिवयत नागिरक  के आिथर्क, सामािजक, राजनीितक, 
सां कृितक  िवकास  का  मागर्  प्रश त  हो  सके।  पेरे त्रोइका  की  नीित  के  मा यम  से 
गोबार्चेव सोिवयत संघ को नए समाज की ओर ले  जाना चाहते  थे  जो लोकतंत्रीकरण 
और  स ा  के  िवकद्रीकरण  के  िस धांत  पर  आधािरत  हो।  गोबार्चेव  ने  पेरे त्रोइका  की 
नीित के संदभर्  म कहा था िक “हम पेरे त्रोइका की उसी प्रकार आव यकता है , जैसे 
हवा की”। 

उनकी इन नीितय  के कारण सोिवयत संघ की कद्रीय स ा कमजोर होने  लगी। आम जन-


जीवन  पर  कद्रीय  स ा  की  पकड़  के  कमजोर  होते  ही  कद्र  के  िव ध  संघषर्  करने  वाली 
शिक्तय   के  हौसल   म  बढ़ोतरी  हुई  और  सा यवादी  सरकार  के  िव ध  संघषर्  बढ़ने  लगा। 
गोबार्चेव  की  यह  सध
ु ार  नीितयाँ  धरातल  पर  वा तिवक  प  से  सध
ु ार  लाने  म  असफल  रही 
और यही नीितयाँ सोिवयत संघ के िवघटन का त कालीन कारण िस ध हुई। 

 क युिन ट पाटीर्  वारा लोकत त्रीय िवचारधारा की अ वीकारता 

सा यवाद की हठधिमर्ता ने  जनता को लोकत त्रीय िवचारधारा की ओर जाने  पर िववश कर 


िदया  था।  जनता  सा यवादी  अ याचार   से  मिु क्त  पाने  को  तैयार  थी।  िमखाइल  गोबार्चेव 
वारा  सध
ु ारवादी  प्रयास  िकये  जाने  पर  जनता  को  1991  म  वह  अवसर  िमला  िजसका 

192
सोिवयत  नागिरक   को  काफी  समय  से  इंतज़ार  था।  पूवीर्  यूरोप  के  दे श  वत त्र  िनवार्चन 
प्रणाली वाली बहुदलीय लोकत त्रीय राजनीितक  यव था को अपनाने  लगे। सोिवयत संघ के 
सभी नवोिदत  वत त्र रा य  ने  िमखाइल गोबार्चेव के उदारवादी नीितय  का फायदा उठाकर 
सा यवाद को न ट कर िदया। सोिवयत संघ म भी 1990 म सा यवादी पाटीर्  पर प्रितब ध 
लगा  िदया  गया।  िमखाइल  गोबार्चेव  वारा  जन  भावनाओं  को  यापक  मह व
    िदया  गया, 
लोग   के  मन  पि चमी  दे श   के  प्रित  सहयोग  व  प्रेम  की  भावना  का  ज म  हुआ  और  दे खते 
दे खते  सा यवादी दे श  म पि चमी दे श  के प्रित अिव वास की भावना की पूरी तरह समाि त 
हो गई। 

 मक्
ु त बाजार अथर् यव था का प्रसार 

1990  म  पूवीर्  यूरोप  के  अिधकतर  दे श   ने  लोकत त्रीय  राजनीितक  यव था  के  साथ  साथ 
मक्
ु त बाजार  यव था को भी  वीकार कर िलया। सोिवयत संघ की िबगड़ती आिथर्क दशा को 
न सध
ु ार पाने  के कारण आिथर्क िवकास का क युिन ट मॉडल अप्रासांिगक प्रतीत होने  लगा 
था।  के द्रीयकृत  अथर् यव था  के  कारण  जनता  की  क्रय  शिक्त  म  कमी  होने  लगी  थी। 
गोबार्चेव  ने  अपने  उदारवादी  कायर्क्रम  म  मक्
ु त  बाजार  अथर् यव था  को  प्रमख
ु   थान  िदया 
था। लोग  की ल बे  समय से  चली आ रही मांग  को पूरा करने  के िलए गोबार्चेव ने  वयं 
अपनी  इस  नीित  की  घोषणा  की  थी।  इससे  सोिवयत  संघ  और  पि चमी  दे श   के  म य 
यापािरक  स ब घ  बनने  लगे  और  यापार  म  व ृ िध  होने  लगी।  इन  आिथर्क  सध
ु ार   के 
कारण जी-7 दे श  से  भी आिथर्क सहायता प्रा त होने  की स भावना म व ृ िध हुई। अमेिरका 
तथा जमर्नी ने  सोिवयत संघ को आिथर्क मदद दे कर जनता के मन म अपने  प्रित चली आ 
रही  वैमन य  की  भावना  को  समा त  कर  िदया।  जनता  ने  अपने  सा यवादी  नेताओं  और 
उनके  आिथर्क कायर्क्रम  की आलोचना  शु  कर दी। इससे  उनकी मक्
ु त बाजार अथर् यव था 
का  व न परू ा हुआ और सा यवादी  यव था अप्रासंिगक हो गयी। यह सब सोिवयत संघ के 
पतन का कारण बना। 

 बा य कारण 

सोिवयत संघ ने सा यवादी िवचारधारा के प्रचार के िलए और पँज
ू ीवाद के प्रसार को रोकने के 
िलए,  िव व  के  कई  अ य  सा यवादी  दल   को  आिथर्क  प  से  सहायता  प्रदान  की  थी  और 
उ ह सै य उपकरण भी उपल ध कराये  थे। पँज
ू ीवादी िवचारधारा के प्रसार को रोकने  के िलए 
िविभ न प्रकार के कायर्क्रम  का अ य दे श म आयोजन िकया जाता था िजसम भारी मात्रा म 
आिथर्क संसाधन  का प्रयोग िकया जाता था। इन  यय  का यू.एस.एस.आर. की अथर् यव था 
पर  प्रितकूल  प्रभाव  पड़ा  और  उसकी  अथर् यव था  का  पतन  हुआ।  सोिवयत-अफगान  यु ध 
(1979-89)  ने  इस  स दभर्  म  आग  म  घी  डालने  का  काम  िकया।  सोिवयत-अफगान  यु ध 

193
(1979-89)  सोिवयत  संघ  के  िवघटन  का  एक  अ य  मह वपूण र् कारण  था  क्य िक  इसने 
सोिवयत संघ के आिथर्क और सै य संसाधन  को काफी क्षित पहुँचाई थी। अफगािन तान म 
लगभग  90000  सोिवयत  सैिनक   को  तैनात  िकया  गया  था  जो  1989  म,  10  वष   के 
प चात ् सोिवयत संघ वापस लौटे  थे। अफगािन तान म सोिवयत संघ के ह तक्षेप का अनुभव 
प्रितकूल  रहा,  यह  अ यिधक  महं गा  व  मनोबल  िगराने  वाला  था।  इसके  अलावा  बिलर्न  की 
दीवार  का  िगरना  (1989)  त कालीन  समय  की  मख्
ु य  घटना  थी।  िजस  प्रकार  बिलर्न  की 
दीवार  िनमार्ण  और  जमर्नी  का  िवभाजन  शीत  यु ध  के  प्रारं िभक  चरण  की  घटना  थी  उसी 
प्रकार  बिलर्न  की  दीवार  का  िगरना  और  जमर्नी  का  एकीकरण  शीत  यु ध  की  समाि त  की 
ु  घटना िस ध हुई। 
प्रमख

सोिवयत संघ के िवघटन म िमखाइल गोबार्चेव की भिू मका  

1985 म िमखाइल गोबार्चेव सोिवयत संघ के नए महासिचव बने। उ ह ने  स ा म आने  के 


बाद सभी राजिनितक और सामािजक  यव थाओं म बदलाव करने प्रार भ िकये। उनके  वारा 
शु  की गई सध
ु ारवादी नीितय  को दे तांत की पुनः शु आत माना जाता है । गोबार्चेव सोिवयत 
संघ  के  राजिनितक  और  सामािजक  यव था  को  लोकतांित्रक  यव था  म  ढालना  चाहते  थे 
िजसम नागिरक  तथा मीिडया को अिभ यिक्त की  वतंत्रता प्रा त हो। उनकी नई नीितय  का 
आधार संयुक्त रा ट्र संघ से शांित के संबंध  थािपत कर, पि चमी दे श  के साथ िमत्रता कर, 
अपने  नागिरक  की ज रत  पर  यान किद्रत करना था िजससे  उनके रहन-सहन के  तर म 
सध
ु ार  हो  सके  क्य िक  सा यवाद  म  सोिवयत  संघ  के  नागिरक   के  रहन-सहन  के  तर  म 
भारी  िगरावट  आई  थी।  जहाँ  एक  ओर  इन  नीितय   के  कारण  सोिवयत  संघ  की  अपनी 
इकाइय  पर पकड़ कमजोर हो गई और फल व प सोिवयत संघ म कद्रीय स ा के िव ध 
संघषर्  करने  वाली  शिक्तय   के  हौसले  बढ़ते  गए।  वहीं  दस
ू री  ओर  गोबार्चेव  की  जनतांित्रक 
नीितय   ने  संघ  की  इकाइय   को  संघ  से  अलग  होने  की  मा यता  दे   दी  िजसके  फल व प 
दे खते  ही दे खते  एक के बाद एक इकाइयाँ  सोिवयत संघ से  अलग और  वतंत्र हो गयी और 
अंततः  सोिवयत  संघ  का  िवघटन  हो  गया।  िमखाइल  गोबार्चेव  की  नीितय   का  उ दे य 
सोिवयत संघ को मजबूत बनना था पर तु, इसके िवपरीत, इन सध
ु ारवादी नीितय  के कारण 
सोिवयत सा यवादी दल की घटती शिक्त म िनरं तर  ास होता गया। गोबार्चेव की सध
ु ारवादी 
नीितय  का आकार िव तत
ृ  था िजसम अिधक संख्या म सम याओं  को सल
ु झाने  का प्रय न 
िकया  गया  था।  इसके  अलावा,  उ ह ने  सोिवयत  संघ  की  अथर् यव था  को  सध
ु ारने  और  इसे 
पि चमी  दे श   के  बराबर  करने  की  कोिशश  की।  सा यवादी  सरकार  म  या त  भ्र टाचार  के 
कारण  लोग   म  सरकार  के  प्रित  अिव वास  बढ़  रहा  था  और  सरकार  के  वारा  इन 
पिरि थितय  को िनयंित्रत करने  के प्र येक प्रयास असफल रहे   थे। अंततः 1990 म गोबार्चेव 
के  वारा  एक  िनयम बनाया  गया  िजसके  तहत  सा यवादी  पाटीर्  के  एकािधकार  को  समा त 
194
कर बहु-पाटीर्  राजनीितक की शु आत की, िजसने  यू.एस.एस.आर. के पतन की गित को और 
तेज िकया।  

शीत यु ध का अंत (1985-1991) 

शीत  यु ध  को  ‘श त्र  सि जत  शाि त’  के  नाम  से  भी  जाना  जाता  है   िजसकी  शु आत 
िवतीय िव वयु ध के बाद संयक्
ु त रा य अमेिरका और सोिवयत  स के बीच उ प न तनाव 
की ि थित से  हुई।  िवतीय िव वयु ध के दौरान संयक्
ु त रा य अमेिरका, िब्रटे न और  स ने 
िमलकर जमर्नी, इटली और जापान के िव ध यु ध िकया था। िक तु  यु ध की समाि त से 
पूव र् ही  िविभ न  कारण   से,  जैसे  जमर्नी  के  िव ध  दस
ू रे   मोच  को  खोलने  म  िब्रटे न  और 
अमेिरका  वारा  की  गई  दे री,  अमेिरका  वारा  मैनहट न  प्रोजेक्ट  को  गु त  रखना  आिद, 
िब्रटे न-अमेिरका  तथा  सोिवयत  संघ  म  ती   मतभेद  उ प न  होने  लगे।  बहुत  ज द  ही  इन 
मतभेद  ने  पि चमी दे श  और सोिवयत संघ के बीच तनाव की भयंकर ि थित उ प न कर 
दी। तनाव की इसी ि थित को शीत यु ध कहा गया; अथार्त ् ऐसी अव था जब दो या दो से 
अिधक दे श  के बीच वातावरण उतेिजत व तनावपूण र् हो िक तु  वा तिवक  प से  कोई यु ध 
ना हो। 

यिद हम शीत यु ध के अंत के काल की बात कर तो यह समय 1985 से  1991 तक 


माना  जाता  है   िजसकी  शु आत  1985  म  िजनेवा  वातार्  से  मानी  जाती  है ।  इस  दौरान 
अमेिरका  के  रा ट्रपित  रीगन  तथा  सोिवयत  संघ  के  रा ट्रपित  गोबार्चेव  के  म य  बहुपक्षीय 
मु द   पर  सहमित  बनी  और  त प चात ्  िव व  शांित  की  िदशा  म  1987  म  गोबार्चेव  और 
िरगन के म य शांित-सहयोग संिध पर ह ताक्षर हुए। इस प्रकार हम कह सकते  ह की शीत 
यु ध का अंत और सोिवयत संघ का िवघटन आपस म जड ु ी घटनाएँ है । गोबार्चेव ने सोिवयत 
संघ की ि थित को सध
ु ारने के िलए, न केवल आंतिरक  तर पर बदलवा िकये (िजनकी चचार् 
हम पहले  कर चुके है )  बि क  िवदे श नीित के स दभर्  म भी बदलाव िकये, िजनम पि चमी 
दे श   के  साथ  (िवशेषकर  अमेिरका) संबंध  को सध
ु ारना, शांित-संिध  पर  ह ताक्षर  करना  और 
सोिवयत संघ की अथर् यव था को खोलना आिद प्रमख
ु   प से  शािमल थे। सोिवयत संघ की 
पतन  होती  आिथर्क,  सामािजक,  राजिनितक  यव था  और  इसको  सध
ु ारने  के  गोबार्चेव  के 
प्रयास  ने जहाँ एक ओर सोिवयत संघ के िवघटन का मागर् प्रश त िकया वहीं दस
ू री ओर इन 
कारण  से  शीत यु ध भी अपने  अंत की ओर पंहुचा। हालाँिक इसी काल खंड म घिटत अ य 
घटनाओं जैसे शीत यु ध के प्रतीक बिलर्न की दीवार का िगरना, जमर्नी का एकीकरण, वारसा 
पैक्ट  के  दे श   का  नाटो  के  दे श   के  साथ  शांित  संिध  पर  ह ताक्षर  करना  आिद  ने  भी  शीत 
यु ध के अंत को गित प्रदान की। शीत यु ध के अंत का िव व भर म प्रभाव पड़ा, िजनकी 
चचार् हम अग्रिलिखत भाग म करगे। 

195
शीत यु ध के अंत के पिरणाम 

शीत यु ध का अंत दो महाशिक्तय  म से  एक महाशिक्त, अथार्त ् सोिवयत संघ, के िवघटन 


से  हुआ। सोिवयत संघ कई इकाइय  से  बना एक संघ था िजसके िवघटन के पिरणाम व प 
िव व  पटल  पर  15  नए  वतंत्र  रा ट्र   का  उदय  हुआ  िजनम  से  स  सबसे  बड़ा  रा ट्र  और 
सोिवयत संघ का उ रािधकारी था। इसके अितिरक्त, सोिवयत संघ की  थापना के बाद कुछ 
ही  दशक   म  सा यवाद  की  ि थित  खराब  हो  गई  थी।  िव वभर  ने  सा यवादी  सरकार  म 
या त  भ्र टाचार,  भाई  भतीजावाद  जैसे  त व   को  दे खा  था  इसीिलए  अिधकतर  िवकासशील 
दे श   का  पँज
ू ीवाद  की  तरफ  आकषर्ण  बढ़  रहा  था  और  वे  सा यवादी  यव था  को  याग 
पँज
ू ीवाद  यव था  को  अपना  रहे   थे।  इ ही  कारण   से  शीत  यु ध  प चात ्  काल  म  पँज
ू ीवाद 
यव था िव व अथर् य था बनकर उभरी िजसम लगभग सभी दे श  ने  पँज
ू ीवादी  यव था को 
अपनाया था। शीत यु ध की समाि त के बाद, िव व म अमेिरका एक मात्र और सबसे  बड़ी 
महाशिक्त  बची  थी।  शीत  यु ध  के  िवचारधारा मक  संघषर्  म  पँज
ू ीवादी  िवचारधारा  जीत  गई 
और  सा यवादी  िवचारधारा  का  पतन  हुआ  और  इस  कारण  संसार  म  अमेिरका  का  वचर् व 
कायम  हुआ।  अमेिरकी  नेत ृ व  म  एक-ध्रव ु ीय  िव व  की  भी  थापना  हुई  िजसम  सभी 
अंतरार् ट्रीय  गितिविधय   का  एक  मात्र  कद्र  अमेिरका  बना।  एक-ध्रव
ु ीय  िव व  अमेिरका  के 
प्रभु व का पिरचायक है  िजसकी शु आत 1991 से हुई। 

इन सबके अितिरक्त, शीत यु ध प चात ् काल म िव व-शांित के िलए पुनः प्रयास िकये 


गए। ये  प्रयास नकारा मक और सकरा मक दोन  प्रकृित के थे। नकारा मक उपाय  की  ेणी 
म  वे  उपाय  शािमल  है   िजनम  ‘िकसी  चीज  को  होने  से  रोकने’  का  प्रयास  िकया  गया।  जैसे 
िनश त्रीकरण  को  बढ़वा  दे ना,  िववाद   समाधन  कर  यु ध  होने  रोकना  आिद।  सकारा मक 
उपाय   की  ेणी  म  वे  उपाय  शािमल  है   िजनम  ‘यु ध  को  ज म  दे ने  वाले  प्र यक्ष  अप्र यक्ष 
कारक   को  िनयंित्रत  करने  का  प्रयास’  िकया  गया  जैसे  संगठन  िनमार्ण  वारा  दे श   के  बीच 
अिव वास  को कम कर आिथर्क-सामािजक-राजनीितक-सां कृितक  क्षेत्र  म सहयोग को बढ़ावा 
दे ना।  शीत  यु ध  की  शु आत  हिथयार   की  होड़  के  साथ  हुई  थी।  दोन   दे श   म  महाशिक्त 
बनने  के  िलए  िविभ न  प्रकार  के  हिथयार   का  िनमार्ण  िकया  था  िजसके  कारण  िव व  म 
तत
ृ ीय िव वयु ध की संभावना बनी रहती थी, लेिकन सोिवयत संघ के पतन के बाद हिथयार  
की  होड़  म  कमी  आई।  हालाँिक  इसकी  शु आत  अमेिरका  के  रा ट्रपित  िरगन  और  सोिवयत 
संघ के महासिचव िमखाइल गोबार्चेव के  वारा 1985 म की गई वातार्  के बाद शु  हो गई 
थी।  इन  वातार्ओं  के  पिरणाम  व प  िविभ न  संिधय   जैसे  START  I  और  II,  ABM, 
CTBT, NPT आिद  वारा िनश त्रीकरण को बढ़वा िदया गया। इन संिधय  के  वारा श त्र  
की होड़ को रोका गया। शीत यु ध के चलते परमाण ु श त्र  की संख्या को दोन  महाशिक्तय  
वारा अंधाधन
ु  बढ़ाया जा रहा था। प ृ वी को और मानव जाित को इन जनसंहार के हिथयार  
196
से  और  यादा नुकसान ना  हो  इसिलए शीत यु ध के प चात ् िविभ न संिधय   वारा सभी 
दे श   तक  इन  परमाण ु एवं  जनसंहार  के  हिथयार   के  प्रसार  को  रोकने  का  प्रयास  भी  िकया 
गया। िव व शांित को बनाए रखने  िलए और दे श  के बीच अिव वास को कम कर आिथर्क-
सामािजक-राजनीितक-सां कृितक क्षेत्र  म सहयोग को बढ़ावा दे ने  के िलए शीत यु ध प चात ् 
काल म बहुत से  अंतरार् ट्रीय व क्षेत्रीय संगठन  का गठन िकया गया। इन संगठन  ने  िव व 
शांित को बनाये रखने म दोहरी भिू मका िनभाई है । एक ओर ये संगठन रा य  को सम याओं 
और  िववाद   के  शांितपूण र् समाधान  के  िलए  बातचीत  व  समझौता  करने  के  िलए  एक  साझा 
मंच  प्रदान  करते  ह।  वहीं  दस
ू री  ओर  ये  संगठन  सद य  दे श   के  म य  सहयोग  के  िविभ न 
स भावन   को  खोज  दे श   के  म य  िमत्रतापूण-र् सहयोगा मक  स ब ध  थािपत  करते  ह  और 
अिनि चत  अंतरार् ट्रीय  वातावरण  म  दे श   के  बीच  िव वास  बहाली  का  कायर्  करते  ह।  इसी 
कारण से  शीत यु ध की समाि त के प चात ् िव व पटल पर राजनीितक पिर य म बदलाव 
आए और िव व  तर पर नए क्षेत्रीय व सहयोग संगठन  का उदय हुआ।  

िन कषर्  

फ्रांसीसी फुकुयामा ने अपनी पु तक “द ए ड ऑफ़ िह ट्री एंड द ला ट मैन” म सोिवयत संघ 


के  िवघटन  को  ‘इितहास  के  अंत’  की  संज्ञा  दी।  फ्रांिसस  फुकुयामा  का  तकर्  है   िक  पि चमी 
उदार  लोकतंत्र  के  उदय  के  साथ  —  जो  शीत  यु ध  (1945-1991)  और  सोिवयत  संघ  के 
िवघटन (1991) के बाद हुआ — मानवता “न केवल ... एक यु ध िवशेष के बाद की अविध 
तक  पहुँच  गई  है   बि क  यह  इितहास  का  अंत  है —  अथार्त ्,  यह  मानव  जाित  के  वैचािरक 
िवकास का अंितम िबंद ु है   और पि चमी उदार लोकतंत्र का सावर्भौिमकरण मानव सरकार का 
अंितम  प  है ।”1  फुकुयामा  का  मत  है   िक  उदारवादी  लोकतांित्रक  यव था  का  अब  कोई 
बुिनयादी  िवरोधी  नहीं  है   और  इस  कारण  से  उदार  लोकतंत्र  (पँज
ू ीवाद)  जीत  गयी  है ।  इस 
प्रकार  शीत  यु ध  के  अंत  और  सोिवयत  संघ  के  िवघटन  को  जहाँ  एक  ओर  उदारवादी 
लोकतांित्रक  यव था  और  पँज
ू ीवाद  की  जीत  के  साथ-साथ  एक-ध्रुवीय  िव व  म  अमेिरकी 
वचर् व की शु आत माना गया। वहीं दस
ू री ओर बहुत से िव वान  ने शीत यु ध के अंत और 
सोिवयत संघ के िवघटन को बहु-ध्रव
ु ीय िव व  यव था की शु आत माना िजसम यूरोिपयन 
यिू नयन,  चीन,  जापान  और  िब्रक्स  दे श   को  उभरते  शिक्त  कद्र  का  थान  िदया  गया  है । 
अंततः यह कहा जा सकता है   िक शीत यु ध के अंत और सोिवयत संघ के िवघटन के साथ 
िव व राजनीित का एक नवीन अ याय शु  हुआ। 

1
फुकुयामा, फ्रांिसस (1989)। “द ए ड ऑफ िह ट्री?”, द नेशनल इंट्रे ट (16): 3-18.
197
संदभर्-सच
ू ी 

 बेयलीस,  जे,  ि मथ,  एस  एंड  ओवे स  पी.  (2011)  द  ग्लोबलाइज़ेशन  ऑफ  व डर् 
पॉिलिटक्स  :  एन  इंट्रोडक्शन  टू  इंटरनेशनल  िरलेश स.  ऑक्सफोडर्  यूिनविसर्टी  प्रेस  : 
िद ली 

 नॉमर्न, एल. (2013), मा टे िरंग मॉडनर् व डर् िह ट्री. पालग्रेव मैकिमलन : लंदन 

 ं  हाउस प्राइवेट िलिमटे ड: 
ख ना, वी. एन. (2013) अंतरार् ट्रीय संबंध. िवकास पि लिशग
नई िद ली 

 चंदर  पी.  एंड  अरोरा  पी.  (1984),  क पेरेिटव  पॉिलिटक्स  एंड  इंटरनेशनल  िरलेश स. 
बुक हाइवस : िद ली 

 (https://www.britannica.com/print/article/125110 ) शीत यु ध 

 (https://www.britannica.com/event/the-collapse-of-the-Soviet-Union) 
सोिवयत संघ का पतन 

198
इकाई-3 

पाठ-8 : शीत यु ध प चात ् युग : अमेिरकी वचर् व और तीसरे  


िव व दे श  का उदय 
पाठ-6 : तीसरी दिु नया का उदय 
डॉ. ि मता अग्रवाल 
अनुवादक : नारायण रॉय 
  
पिरचय 

शीत यु ध प चात ् युग को एक ऐसे  चरण के  प म पिरभािषत िकया गया है   जो 1991 म 


सोिवयत संघ के िवघटन और उस िवचारधारा मक संघषर्  के अंत के बाद उभरा िजसने  िव व 
को 1945 के बाद आगे  की ओर बढ़ाया था। कई िस धांतकार  ने  सोिवयत संघ के पतन को 
समाजवादी  िवचारधारा  के  अंत  और  पँज
ू ीवादी  वचर् व  की  थापना  के  प  म  दे खा  है   जो 
संयुक्त रा य अमेिरका (यूएस) के वचर् व के उदय के सहसंबंधी था। बहरहाल, शीत यु ध के 
बाद  के  घटनाक्रम  पर  यिद  हम  एक  नज़र  डाले  तो  “अमेिरकी  वचर् व  म  िवरोधाभास”  नजर 
आता है , जो िक शीत यु ध प चात ् युग के अ य िवकास पर प्रकाश डालते  ह। इन िवकास  
म  मख्
ु य  थे,  प्रथमतः  “तीसरी  दिु नया  के  दे श   िवशेषकर  िब्रक्स  दे श ”  का  उदय  और  दस
ू रा, 
शिक्त  के  अ य  कद्र   का  उदय  था  िज ह ने  पिरणाम व प  िव व  की  िवकास  गित  को 
“क्षेत्रीयकरण” और “स ा के क्षेत्रीय कद्र  के उदय” की ओर मोड़ िदया। इस अ याय म हम 
इन घटनाओं  की “अमेिरकी वचर् व के िवघटन” को िवशेष  यान म रख चचार्  करे गा, िजसने 
“िवचारधारा के अंत” िववाद को चन
ु ौती दी और िजसके पिरणाम व प सीिमत रा य संप्रभत
ु ा 
(जोिक सीमा-पार आतंकवाद, परमाण ु प्रसार और पयार्वरणीय पतन के कारण उभरी चन
ु ौितय  
के कारण था) के साथ वै वीकरण के उदय का मागर् प्रश त हुआ। 

शीत यु ध प चात ् काल क्या है ? 

शीत  यु ध  प चात ्  एक  नए  चरण  की  शु आत  होती  है ,  जो  िक  शीत  यु ध  के  दौरान  की 
िवध्रव
ु ीयता  और  शिक्त  संतल
ु न  के  अंत  के  साथ  शु   हुई  थी।  यह  िवध्रव
ु ीयता  पँज
ू ीवादी 
यव था और समाजवादी  यव था के वैचािरक िवभेद का पिरणाम थी िजसने  िव व को इन 
दो िवचारधाराओं  के अनय
ु ाियय  के आधार पर, दो गट
ु  म िवभािजत कर िदया था। हालाँिक 
शीत यु ध के दौर म कोई प्र यक्ष यु ध नहीं  लड़ा गया पर त ु तनाव और िवरोधाभास इस 
तर का था िक परू ा िव वयु ध क्षेत्र के  प म बदला हुआ था। सोिवयत संघ के िवघटन ने 
सा यवादी  िवचारधारा  के  अंत  को  िचि नत  िकया,  िजसे  कुछ  िट पणीकार   ने  “बहुध्रव
ु ीय 

199
िवशेषताओं  वाले  एकध्रुवीय  िव व  यव था”  के  उदय  के  प  म  दे खा।  मख्
ु यतः  इस  दौर  को 
उस युग के  प म दे खा गया िजसम अमेिरकी वचर् व  थािपत हुआ, लेिकन िव व राजनीित 
म अ य दे श  के प्रभाव को हािशए पर नहीं  दे खा गया था। शीत यु ध के दौरान के वे  नए 
मु दे   जो पूवत
र् ः गौण थे, वो अब वतर्मान युग के िलए कारर् वाई का मागर्  प्रश त कर रहे   थे। 
ये  मु दे   परमाण ु प्रसार, अंतरार् ट्रीय आतंकवाद, जलवायु  पिरवतर्न, पयार्वरणीय पतन, जातीय 
संघषर्, सोिवयत संघ के िवघटन से  उ प न बड़े  पैमाने  पर शरणाथीर्  सम या,  थानीय संघष  
का उदय और शीत यु ध से  पूव र् हुए  यापक पैमाने  पर मानव अिधकार  के उ लंघन आिद 
से  उ प न होने  वाले  खतरे   थे। पयर्वेक्षक  के िलए मह  वपण
ू  र् सवाल यह था िक गट
ु  िनरपेक्ष 
दे श, जो अपने  आकार और संख्या म पयार् त थे  और िज ह ने  अपने  िलए एक िभ न एजडा 
िनधार्िरत  था,  की  वतर्मान  िव व  के  संदभर्  म  भिू मका  क्या  होगी?  महाशिक्तय   के  बीच 
प्रित वं िवता के अंत के बाद, ये दे श अपनी िवकास की गित को आगे बढ़ाते हुए शीत यु ध 
युग  म  कुछ  प्रासंिगक  एजड   को  प्रा त  करना  चाहते  ह।  इन  एजड   म  अ य  उ दे य   के 
अलावा, िवदे शी संबंध  म  वतंत्रता, सतत िवकास, पयार्वरणीय सरु क्षा, राजनीितक, आिथर्क व 
सां कृितक  क्षेत्र   म  अंतरार् ट्रीय  सहयोग,  यापािरक  संबंध   म  समानता,  संयुक्त  रा ट्र  का 
लोकतंत्रीकरण और मानव अिधकार  की सरु क्षा को बढ़ावा दे ने के गट
ु िनरपेक्ष के लंबे समय के 
ल य,  और  हिथयार   पर  िबक्री  पर  िनयंत्रण  और  िनर त्रीकरण  नीित  पर  यान  दे ते  हुए 
अंतरार् ट्रीय शांित और सरु क्षा को बढ़ावा दे ना आिद शािमल थे। 

अमेिरकी वचर् व  

1990 के दशक की शु आत म सोिवयत संघ के पतन ने  अंतरार् ट्रीय प्रणाली को  िवध्रुवीय 


प्रणाली से  एक-ध्रुवीय प्रणाली म बदल िदया। कुछ िव लेषक  की भिव यवािणय  के िवपरीत, 
यह महसस
ू  िकया गया था िक अंतरार् ट्रीय प्रणाली एक हॉि सयन दिु नया म वापस आ जाएगी 
जो िवखंडन और अराजकता का कारण उभरे गी और लोगो को यु ध और भय के वातावरण 
म  रहना  होगा।  यह  ि थित  एक  क्षिणक  अविध  के  िलए  पैदा  नहीं  हुई  और  अमेिरका  शीत 
यु ध  प चात ्  युग  म  वचर् व  की  ओर  बढ़  गया।  अमेिरका  यूरोप  और  पूवीर्  एिशया  म  एक 
अितिरक्त  क्षेत्रीय  संतुलन  िनमार्ता  के  प  म  उभरा,  जो  “ यापार  उदारीकरण  और  उदार 
लोकतंत्र”  का  समथर्क  था।  इसने  अमेिरका  को  एक  वचर् वशील  शिक्त  बना  िदया।  अमेिरका 
आिथर्क  ि थित,  परमाण ु शिक्त  के  साथ-साथ  सबसे  शिक्तशाली  रा य  था।  इस  आधार  पर 
कई िट पणीकार  और िस धांतकार  ने  िन कषर्  िनकाला है   िक वतर्मान संरचना एकध्रव
ु ीय है । 
शीत यु ध के बाद अमेिरका अंतरार् ट्रीय पटल म एक वैि वक शिक्त के  प म उभरा और 
एक ऐसी एक-ध्रव ु ीय िव व का उदय हुआ, जो रोमन काल म प्रचिलत एक एकध्रव ु ीयता जैसी 
थी।  “अमेिरकी  वचर् व”  का  अथर्  है   िक  अमेिरका  वैि वक  पटल  पर  एक  िनिवर्वाद  नेता  बन 
गया है  अथवा िव व म प्रभु व प्रा त कर चक
ु ा है । 

200
 

अंतरार् ट्रीय संबंध म हे जेमनी का उपयोग मल


ू   प से  प्राचीन ग्रीस के अ य नगर-रा य  
की तुलना म एथस की प्रमख
ु  ि थित को दशार्ने के िलए िकया गया था। अंतरार् ट्रीय संबंध म 
वचर् व के िविभ न अथर् ह। 

प्रथमत  :  प्रभु व  का  अथर्  सै य  क्षमता  म  प्रभु व  से  संबंिधत  है ।  यह  रा य   के  बीच 
सै य क्षमता के संबंध और संतुलन को दशार्ता है । उस समय अमेिरकी शिक्त अपनी सै य 
शिक्त के आधार पर अ यिधक  े ठतर थी। अमेिरका ने  पूण र् और सापेक्ष दोन  ही ि थितय  
म  प्रभु व  प्रा त  िकया  और  सोिवयत  संघ  के  िवघटन  के  बाद,  अमेिरका  एकमात्र  वैि वक 
शिक्त बन उभरा। अमेिरका की शिक्त का कोई अ य प्रितयोगी नहीं  था इसिलए इसने  पूण र्
शिक्त प्रा त की। अमेिरका, िबना  वयं  को कोई क्षित पहुँचाय, िकसी भी रा य को कभी भी 
न ट  कर  सकता था। उस समय अमेिरका, अपने  बाद के संयुक्त 12 रा य  की तुलना म, 
अपनी  सै य  क्षमता  पर  सबसे  अिधक  खचर्  कर  रहा  था।  अमेिरका  ने  अपने  बजट  का  एक 
बड़ा  िह सा  ‘अनुसध
ं ान  और  िवकास’  म  िनवेश  िकया  था  िजसने  इसे  अपनी  शिक्त  पन
ु : 
थािपत  करने  की  क्षमता  प्रदान  की।  अपने  हाथ   म  पण
ू  र् शिक्तय   के  साथ,  अमेिरका  ने 
सापेक्ष  शिक्तयाँ  भी  प्रा त  कीं  क्य िक  अ य  रा य   की  तुलना  म  तकनीकी  उ नित  और 
हिथयार  पर अिधकार के मामले म गण
ु ा मक अंतर उभरा। 
आिथर्क  ि ट से वचर् व श द का प्रयोग अमेिरका की आिथर्क शिक्त के स दभर् म िकया 
गया  था।  सोिवयत  संघ  के  िवघटन  के  बाद,  अमेिरका  का  आिथर्क  क्षेत्र  म  भी  प्रभु वशील 
शिक्त के  प म उभरने को कई िव लेषक , जैसा िक फ्रांिसस फयुतुमा ने “इितहास की बहस 
के अंत के  प म” घोिषत िकया। यह िन कषर्  मख्
ु यतः सोिवयत संघ के पतन और पँज
ू ीवादी 
िस धांत की जीत के साथ सा यवादी िस धांत के अंत के  प म पेश िकया गया था। इसका 
अथर्  यह िनकाला गया िक अब िव व भर म पँज
ू ीवादी िस धांत का वचर् व होगा। इस बात 
को  यान  म  रखते  हुए,  अमेिरका  ने  परू े   िव व  म  मक्
ु त  बाजार  अथर् यव था  और 
लोकतंत्रीकरण प्रिक्रया का प्रचार-प्रसार करना आर भ िकया। अमरीका  वारा िव व बक और 
आईएमएफ को सबसे  अिधक िव  पोषण (फंिडंग) िमलने  के कारण, ये  सं थाएँ  प्रभावी  प 
से  अमेिरका  वारा  िनयंित्रत  की  जाने  लगी।  अमेिरका  मक्
ु त  बाजार  िस धांत   का  समथर्न 
करने के िलए संलग्न शत  के साथ, अिवकिसत दे श  को िवकास के िलए नरम (सॉ ट) ऋण 
दे कर  अपनी  योजना  को  आगे  बढ़ाने  लगा।  इस  ऋण  प्रणाली  को  संरचना मक  समायोजन 
कायर्क्रम (एसएपी) का नाम िदया गया। इन कायर्क्रम   वारा उन मानदं ड  को  थािपत िकया 
जो अमेिरकी अथर् यव था के पक्षधर थे। इस प्रकार अंतरार् ट्रीय प्रणाली के कारण आिथर्क क्षेत्र 
म अमेिरका का प्रभु व उ प न हुआ जो एकध्रुवीय बन गया। पिरणाम व प अमेिरका ने एक 
िवशेष  तरीके  से  वैि वक  अथर् यव था  को  आकार  दे ना  शु   कर  िदया।  इसने  ब्रेटन  वु स 

201
प्रणाली  को  िव व  अथर् यव था  के  स ब ध  म  प्रमख
ु   बनाया  जो  िक  िवतीय  िव वयु ध  के 
बाद  अमेिरका  वारा  थािपत  की  गयी  थी।  अमेिरका  ने  सबसे  बड़ा  िनवेशक  होने  के  नाते 
ब्रेटन वु स की पँज
ू ी प्रणाली के आधार पर िव व अथर् यव था की बुिनयादी संरचना  थािपत 
की।  इस  कारण  शीत  यु ध  की  समाि त  के  बाद  पँज
ू ीवादी  यव था  की  िवजय  हुई  और 
अमेिरकी वचर् व  थािपत हुआ। 

अमेिरका ने  अपने  प्रभु व की  थापना के िलए िजस तीसरे   तरीके को अपनाया वह थी 


‘सहमित बनाने’ की उसकी क्षमता। सहमित का उपयोग उसने ‘सॉ ट पावर’ के  प म िकया, 
िजसम उसने लोग  को िव व को एक बेहतर  थान बनाने के िलए अपनी क्षमता के संबंध म 
सभी  को  एकमत  िकया।  यह  काफी  हद  तक  संभव  हो  पाया  क्य िक  शीत  यु ध  ने  एक 
शत्रत
ु ापूण र् वातावरण  और  अि थरता  को  ज म  िदया  था।  अमेिरका  ने  आिथर्क  शिक्तय   को 
अपने  हाथ म रखते  हुए, िव व के समक्ष अमेिरकी जीवन को सबसे  अ छा पेश िकया िजसे 
अ य   को  भी  अपनाना  चािहए।  ‘अमेिरकन  ड्रीम’  वारा  अमेिरका  ने  सभी  की  क पना  पर 
क जा कर िलया था। इस कारण अमेिरकी जीवनशैली को अपनाना सभी के िलए, िवशेष  प 
से  दिु नया भर के म यम वगर्  िलए, अ छे  जीवन और  यिक्तगत सफलता आधार बन गया 
था।  यह  बड़े  पैमाने  पर  अमेिरका  वारा  अनुसध
ं ान  और िवकास  म  भारी  मात्रा  म  धन  खचर् 
करने  के  कारण  हुआ,  िजसम  ‘बौ िधक  क्षमता’  की  आव यकता  थी,  िजसके  पिरणाम व प 
अमेिरका की तरफ भारी मात्रा म “ब्रेन ड्रेन” हुआ क्य िक अमेिरका म काम करने  वाले  एक 
यिक्त का औसत वेतन दिु नया के िकसी अ य िह से  की तुलना म बहुत अिधक था। इन 
अवसर   से  अिधकतम  लाभ  प्रा त  करने  वाले  म यम  वगर्  के  िलए  यह  वपन  जीवन  बन 
गया। वचर् व तब  थािपत होता है   जब प्रभु वशाली वगर्  या दे श उस कण-कण के जीवन को 
िदखाते  हुए  लोग   और  अ य  दे श   की  सहमित  जीतने  म  सक्षम  होते  ह,  िजसे  वे  िदखाना 
चाहते ह। िव व राजनीित के क्षेत्र म, वचर् व की इस धारणा का अथर् है  िक एक प्रमख
ु  शिक्त 
न  केवल  सै य  शिक्त,  बि क  वैचािरक  संसाधन   का  प्रयोग  प्रित पधीर्  शिक्तय   के  यवहार 
को  आकार  दे ने  व  िनयंित्रत  करने  के  िलए  करती  है ।  अमेिरकी  सपने  की  ढ़ता,  दे श   को 
लोकतांित्रक  बनाने  पर  आधािरत  थी।  सोिवयत  संघ  के  िवघटन  ने  इस  िवचार  को  भी  बल 
प्रदान िकया िक पािटर् य  की बहुलता, समय-समय पर चुनाव  और जांच और संतुलन की एक 
प्रणाली के आधार पर लोकतंत्र केवल कुछ हाथ  म शिक्त को किद्रत होने  से  रोक सकता है । 
पिरणाम व प  इस  िवचार  को  “लोकतांित्रकरण”  के  अमेिरकी  एजडे  वारा  आगे  बढ़ाया  गया, 
िजसम  अ य  गैर-लोकतांित्रक  शासन   को  बािधत  कर  पिरवतर्न  के  िलए  मजबूर  िकया  गया। 
पूवव
र् तीर्  सोिवयत दे श  म लोकतंत्रीकरण की प्रिक्रया को आगे  बढ़ाने  और मानव अिधकार  का 
चिपयन बनने  के एजडे  के मा यम से  इसका प्रचार िकया गया था। इस एजडे  को उन दे श  
म जो लोकतंत्र के अमेिरकी िस धांत  का पालन नहीं  करते  थे, म  यापार संबंध  को बािधत 

202
कर या प्रितबंध  को थोप कर अथवा “आतंकवाद के िव ध यु ध” छे ड़ने जैसे मा यम  वारा 
प्रसािरत िकया गया था। अमेिरका ने अपने िनजी लाभ के िलए कमजोर दे श  के  यवहार को 
प्रभािवत  करके  भी  अपने  अिधप य  की  थापना  की  कोिशश  की  थी।  अ याचारी  दे श,  जो 
असमान  शत   पर  अमेिरका  के  साथ  यापार  करने  के  िलए  असहमत  थे,  के  िव ध 
सावर्जिनक  राय  बना  अमेिरका  ने  अपने  इन  एजड   की  पूितर्  की।  इस  सावर्जिनक  राय  का 
िनमार्ण  उन  दे श   म  आम  जनमानस  के  अिधकार   की  कमी  को  दशार्ते  हुए  िकया  गया  था 
और  इस  प्रकार यह अमेिरका का कतर् य बन गया िक वह एक उ धारकतार्  बन और यु ध 
लड़। 1991  के बाद से, बुश प्रथम शासन के इराक यु ध म ह तक्षेप के िनणर्य के कारण 
अमेिरका  को  भारी  नुकसान  हुआ  था।  यह  यु ध  इराकी  जनरल  स दाम  हुसन
ै ,  िज ह ने 
अमेिरका  के  साथ  तेल  का  यापार  नहीं  िकया  था,  वारा  सामिू हक  िवनाश  के  हिथयार  
(WMD)  के  िनमार्ण  के  नाम  पर  छे ड़  िदया  गया  था।  यह  आम  सहमित  संयुक्त  रा ट्र  म 
िनिमर्त  की  गई  थी  और  इराक  पर  हमला  िकया  गया  था।  वैचािरक  वचर् व  के  प्रसार  का 
समापन एक पँज ू ीवादी  यव था के  प म हुआ, िजससे  अमेिरका ने  िव व को ‘आज के िलए 
जीना’  और  शू य-बचत  करना  िसखाया।  2006  म  उभरी  पिरि थितय   के  कारण  अंततः 
अमेिरकी जीवन के  व न
   का बुलबुला फूट गया और इसने सभी सपन  को  व त कर िदया। 

अमेिरकी वचर् व को चुनौती 

अमेिरकी वचर् व को िन निलिखत तरीक  से  चुनौती दी जा रही थी : शीत यु ध के दौरान 


और  इसके  अंत  के  एक  दशक  बाद  अमेिरका  ने  सै य  और  उससे  स बंिधत  क्षेत्र   म  अपनी 
शिक्त  म  बहुत  व ृ िध  दे खी।  इसने  अंतिरक्ष  प्रौ योिगकी  म  भी  उसे  एक  प्रमख
ु   शिक्त  बना 
िदया अपने  शत्र ु दे श  का मक
ु ाबला, िबना  वयं  को क्षित पहुचाये, करने  के िलए अमेिरका ने 
कई साल पहले  टार वासर् िस टम और िमसाइल िडफस िस टम को लॉ च िकया था। उसके 
बाद धीरे -धीरे   प्रौ योिगकी के प्रसार के साथ नई शिक्तय , िवशेष  प से  यूरोपीय संघ (ईयू), 
भारत, चीन, ने  अमेिरकी अंतिरक्ष वचर् व को चुनौती दे ना शु  कर िदया। यह “पण
ू  र् पेक्ट्रम 
प्रभु व”  की  अमेिरकी  नीित  के  कारण  पैदा  हुए  एक  संघषर्  का  पिरणाम  था।  “पूण र् पेक्ट्रम 
प्रभु व”  से  अिभप्राय  सै य  पहल ू म  सव चता  से  था  तािक  कोई  अ य  दे श  अमेिरका  से 
प्रित पधार् न कर सके। पर त ु वही दस
ू री ओर इस प्रणाली के तहत इस तकनीकी का उपयोग 
अमेिरका ने  अपने  सहयोगी दे श  के साथ भी िकया था, िजस दौरान तकनीक का ह तांतरण 
हुआ,  िजससे  अमेिरका  ने  वयं  के  ‘फुल पेक्ट्रम  प्रभु व’  को  कम  कर  िलया।  यह  तब  हुआ, 
जब  यरू ोपीय  संघ  ने  अमेिरकी  पोिजशिनंग  िस टम  (जो  पटागन  िनयंत्रण  के  तहत  थी)  को 
चन
ु ौती  दे ने  के  िलए  अपने  गैलीिलयो  िस टम  (2004  तक  चाल ू होने  की  योजना  बनाई)  म 
3.6  िबिलयन  यरू ो  का  िनवेश  िकया  था  तब  अमेिरका,  रा ट्रीय  सरु क्षा  के  आधार  पर  कुछ 
समय के िलए जीपीएस के साथ गैलीिलयो को अंतर-संचािलत करने के िलए यरू ोपीय संघ को 

203
मजबूर  करने  म  सफल  रहा  था।  लेिकन  दबाव  की  रणनीित  लंबे  समय  तक  काम  नहीं  कर 
पाई  और  यरू ोपीय  संघ  ने  आिथर्क  क्षेत्र  म  अमेिरकी  प्रमख
ु   िहत ,  िवशेष  प  से  “प्रित पधार् 
नीित”  (िवलय  व  अिधग्रहण  और  अमेिरकी  एकािधकार  शिक्त  के  िलए  चुनौितयाँ,  जैसे 
माइक्रोसॉ ट  के  िखलाफ)  का  सामना  करना  शु   कर  िदया  था।  2000  म  यूरोपीय  संघ  ने 
अपनी िल बन घोषणा  वारा यह घोषणा की िक यूरोप 2010 तक िव व का सबसे  अिधक 
प्रित पधीर् आिथर्क  थान बन जाएगा, िजससे भिव य म अमेिरकी वैि वक आिथर्क नेत ृ व को 
चुनौती  िमलेगी।  िफर  भी,  हालाँिक  यूरोपीय  संघ  कुछ  मामल   म  अपनी  सापेक्ष  वाय ता 
बढ़ाने  का  ल य  बना  रहा  है ,  पर तु  यूरोपीय  संघ  वारा  अपनाए  गए  मापद ड  आज  भी 
अमेिरकी शासन की पँज
ू ीवाद और कॉप रे ट गवनस पर आधािरत उदारीकरण की नीितय  का 
पालन करते  ह। वा तव म यूरोपीय संघ ने  अपने  संघ की सद यता दे ने  के िलए जो िनयम 
और शत तय की ह, वे भी काफी हद तक अमेिरकी के नवउदारवाद शैली का अनुसरण करती 
ह। यूरोपीय संघ की इस िवशेषता को पूवीर्  सोिवयत दे श , जो पूवीर्  यूरोपीय दे श  से  संबिं धत 
है ,  म  उसके  पुनिनर्मार्ण  काय   म  दे खा  जा  सकता  है ।  हालाँिक,  जो  नव-उदारवादी  नीितयाँ 
यूरोपीय संघ अपना रहा है , वह पूरी तरह से  अमेिरकी नव-उदारवादी िस धांत  का अनुसरण 
नहीं  करती  है ।  इस  बात  को  इस  त य  से  आंका  जा  सकता  है   िक  यूरोपीय  संघ  के  सद य 
रा य   म  बनी  कई  सरकार  समाजवादी  हिरत  अथर् यव था  का  अनुसरण  करती  ह।  वे  ऐसे 
िवकास म िव वास करते  ह जो पयार्वरण के िलए िचंता के साथ समतावाद को बढ़ावा दे ता 
हो। यह एक मख्
ु य कारण था िक यूरोप और अमेिरका के बीच बड़े पैमाने पर ट्रांस एटलांिटक 
यापार और िनवेश संबंध  का लंबा इितहास  होने  के बावजूद, कई यूरोपीय  दे श, बड़े  पैमाने 
पर  िवनाश  के  हिथयार   की  उपि थित  के  झठ
ू े   आधार  पर  इराक  म  अमेिरकी  ह तक्षेप  के 
सबसे बड़े प्रित वं वी के  प म उभरे । 

दस
ू री ओर कई अ य आिथर्क बाधाएँ  ह िज ह ने  अमेिरकी वचर् व को चन
ु ौती दी है   और 
इसे  नीचे  खींच रही है । उदाहरण के िलए, जनसंख्या, भग
ू ोल और अथर् यव था के मामले  म 
दिक्षण के बड़े दे श जैसे भारत, ब्राजील और चीन ने आपसी सहयोग से िब्रक्स के  प म एक 
प्रितकारी  गट
ु   थािपत िकया है , तािक वे  आपस म  यापार कर और अ य सामिरक मु द  
पर सहयोग कर अमेिरका और यूरोपीय संघ के लाभ, िवशेष  प से  यापार और िनवेश के 
मामल  म, को कम कर सके। सरकार और अथर् यव था के संचालन के िव  के िलए िवदे शी 
पँज
ू ी पर भारी िनभर्रता के कारण, इस तरह का बिह करण अमेिरकी आिथर्क िहत  को काफी 
नुकसान पहुँचाएगा और इसके िनयम  और शत  को आरोिपत करने  की क्षमता को कम कर 
सकता है । इससे स बंिधत आँकड़े इस बात की ओर इशारा करते ह िक “2004 के म य तक 
अमेिरका के 50 प्रितशत से अिधक कोषागार िवदे शी हाथ  म थे। इसम बहुलतम िह सा चीनी 
और  जापानी  कद्रीय  बक   का  है   जो  बड़े  पैमाने  पर  डॉलर  का  समथर्न  करते  ह  जोिक  उनके 

204
अमेिरकी  िनयार्त  बाजार   की  रक्षा करता  है   (िजसके  पिरणाम व प  पूवीर्  एिशयाई  मद्र
ु ाओं  के 
सापेक्ष डॉलर का अिधमू यन लगभग 20 प्रितशत है )”। इस गंभीर ि थित के आने  से, प्रमख
ु  
अमेिरकी  अथर्शा त्री  अ यिधक  अि थर  वैि वक  अथर् यव था  के  बढ़ते  जोिखम ,  िवशेषकर 
अमेिरका  और  जापान  के  बीच  बढ़ते  यापार  असंतुलन  से  िचंितत  ह।  यह  त य  अमेिरकी 
अथर्शाि त्रय  की उस िचंता की ओर इशारा करते  ह, िज ह ने  दे खा िक यिद अमेिरकी वचर् व 
को  बनाए  रखा  गया  या  बढ़ाया  गया,  तो  इससे  यह  िव व  तर  पर  िवनाशकारी  प्रभाव   को 
यापक  बना  दे गा  क्य िक  इससे  िव व  म  ऋण  संकट  पैदा  होगा,  और  अ य  शिक्तयाँ  भी 
प्रभािवत ह गी जोिक अंततः िपछले  दस से  पंद्रह वष  म बढ़े , संपि  के बुलबुले  के फटने  म 
पिरणत हो सकती है । यह घातक जाल, अमेिरकी िव ीय कंपिनय  ने  वयं  ही तैयार िकया 
था,  िज ह ने  िव व  के  लोग   को  आज  के  िलए  जीवन  जीने  की  क्षमता  से  परे   उधार  लेना 
िसखाया  तािक  बाजार  म  िव   प्रवाह  चलता  रहे ।  यह  “मोहक  अफीम”  जो  स ते  याज  के 
शासन  के  आधार  पर  िव ीय  एजिसय   वारा  प्रचिलत  की  गयी  थी,  जो  कम  याज  दर   के 
कारण उपल ध थी और डॉलर के घटते  मू य ने  आिखरकार एक पिरि थित को ज म िदया 
िजस कारण संिचत दर  म बढ़ोतरी हुई और अंततः अमेिरकी चाल ू खाते के घाटे  की वजह से 
‘डॉलर के मू य म िवनाशकारी िगरावट’ आयी। इस िगरावट ने  अमेिरकी िव ीय और मौिद्रक 
शिक्त के साथ-साथ “फुल पेक्ट्रम प्रभु व” के िव  पोषण करने की अमेिरकी क्षमता के समक्ष 
दीघर्कािलक बाधाओं को बढ़ा िदया। वतर्मान समय म, िव व मद्र
ु ा बाजार  म डॉलर के वचर् व 
के िवक प, जैसे  िक यूरो, युआन, येन और िरयाल को डॉलर के संकट की भरपाई के िलए 
मजबूत िकया जा रहा है । 

तत
ृ ीयतः, अमेिरका ने  वयं को वचर् व शिक्त बनाने के िलए अवैध हिथयार  के क जे के 
नाम पर इराक, अफगािन तान और अ य दे श  म यु ध छे ड़ िदए थे। अमेिरका ने इस तरीके 
का  प्रयोग  वा तिवक  अथ   म  इन  दे श   को  अनश
ु ािसत  करने  के  िलए  तथा  उ ह  अमेिरकी 
शैली की नवउदारवादी नीितय  को अपनाने  के िलए िववश करने  और िवशेषतः उनसे  स ता 
तेल  लेने  के  िलए  िकया  था  िजससे  िक  उससे  आिथर्क  शिक्त  बने  रहने  म  मदद  िमली। 
हालाँिक,  वचर् व  की  भी  सीमाएँ  होती  ह,  िजसके  पिरणाम व प  अमेिरका  इराक  और 
अफगािन तान दोन  दे श  म नवउदारवादी शैली के शासन को लाग ू करने  म िवफल रहा है । 
सै य खचर्  म बढ़ोतरी और बड़े  पैमाने  पर िवनाश, और हिथयार  के क जे  के नाम पर इस 
अनुशासना मक रणनीित के कारण, अमेिरकी शिक्त म िगरावट आई है । अमेिरका की पतन 
होती ि थित का अनुमान इन दो मामले  से  भी लगाया जा सकता है । जहाँ  एक तरफ इराक 
और अफगािन तान म अपनी यु ध पूव र् सरकार की शैली म वापस जाने के िलए इन दे श  म 
आंतिरक  प्रितरोध  हुआ।  वहीं  दस
ू री  ओर  वैि वक  जनमत  अमेिरका  को  शांितपूण र् िव व 
यव था  के िलए बड़े  खतरे   के  प म दे खने  लगा था जोिक अमेिरकी  वाथीर्  राजनीित की 

205
ओर  इशारा  करता  है ,  िजसने  दिु नया  भर  म  अमेिरका  की  पहले  से  ही  अि थर  ि थित  को 
गंभीर  प से  नुकसान पहुँचाया है । इराक म अमेिरकी स ा की अराजकता और गैर-कानूनीता 
आंिशक  प से बताती है  िक अमेिरका भीतर और बाहर से राजनीितक िवरोध क्य  बढ़ा है । 

इस प्रकार हम दे खते  ह िक अमेिरका का “पूण र् पेक्ट्रम प्रभु व” का सपना अपने  वयं 


के प्रितिक्रया के पिरणाम व प उ प न हुआ जब इसने  सबसे  बड़े  िव ीय संकट का सामना 
िकया। यह मख् ु यतः इराक, अफगािन तान और अ य दे श  म ‘आतंकवाद के िव ध यु ध’ 
के नाम पर िकए गए भारी खच  के पिरणाम व प हुआ। सै य खचर्  म व ृ िध और आिथर्क 
मंदी  के  कारण  एक  समय  पर  अमेिरका  आईएमएफ  और  िव व  बक  का  सबसे  बड़ा  कजर्दार 
बन  गया।  पिरणाम व प  िविनमय  दर   की  नई  प्रणाली  प्रार भ  हुई  िजसने  स ा  के  अ य 
कद्र  के उभरने का मागर् प्रश त िकया। 

तीसरी दिु नया के दे श  का उदय 

दिु नया  के  सबसे  महान  जीिवत  इितहासकार   म  से  एक,  एिरक  हॉ सबोन  ने  कहा  था  िक 
“अमेिरका  एकतरफा  बल  वारा  एक  नया  िव व  यव था  लाग ू करने  म  िवफल  रहा  है   और 
अिनवायर्  प से िवफल हो जाएगा, भले ही, वतर्मान म बहुत अिधक शिक्त संबंध इसके पक्ष 
म ह, और यहाँ तक िक यिद गठबंधन (अपिरहायर् अ पकािलक) भी इसका समथर्न करते ह।” 
अंतरार् ट्रीय प्रणाली बहुपक्षीय रहे गी और इसका िविनयमन कई प्रमख
ु  इकाइय  की एक दस
ू रे  
के साथ सहमित की क्षमता पर िनभर्र करे गा, भले  ही इनम से  कोई भी रा य सै य प्रबलता 
का आनंद नहीं  लेता है । “अमेिरका  वारा की गई अंतरार् ट्रीय सै य कारर् वाई अ य रा य  की 
बातचीत के समझौते पर िनभर्र है , जोिक पहले से ही  प ट है  ... िबना शतर् आ मसमपर्ण के 
साथ  समा त  होने  वाले  यु ध   का  युग  िनकट  भिव य  म  वापस  नहीं  आएगा”  (हॉ सबॉम 
एिरक, प ृ ठ 27)। 

िवतीय िव वयु ध के अंत ने  दिु नया भर म िवउपिनवेशीकरण की प्रिक्रया के चरण को 


िचि नत  िकया  िजससे  त कालीन  उपिनवेिशत  रा य  वतंत्र  हो  गए।  हालाँिक  शीत  यु ध  के 
ु ापूण र् अंतरार् ट्रीय  वातावरण,  इनम  से  कई  वतंत्र  दे श   को 
कारण  उस  समय  प्रचिलत  शत्रत
िकसी भी पक्ष की ओर  ख करने  से  बचता है । वे  ि थित के अनुसार दोन  पक्ष  की मदद 
लेने  के िलए िनरपेक्ष बने  रहना पसंद करते  थे। इस प्रिक्रया ने  गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन (NAM) 
को  ज म  िदया।  इस  आंदोलन  ने  अपने  गठन  के  समय  लगभग  दो-ितहाई  िव व  जनसंख्या 
का  प्रितिनिध व  िकया  और  आज  इसकी  सद यता  120  दे श   तक  पहुँच  गई  है ।  उस  समय 
गट
ु िनरपेक्ष  आंदोलन  का  मह  वपण
ू  र् एजडा  िववाद   के  शांितपण
ू  र् समाधान  पर  यान  किद्रत 
करना  था  और  यह  िवशेष  प  से  सं थागत  यव थाओं  पर  किद्रत  था,  तािक  सहयोग  की 
तलाश और शांित को बढ़ावा िदया जा सके। यह आंदोलन उस समय उभरे   वैचािरक गट
ु  के 

206
िव ध  था।  इस  रणनीित  ने  शीत  यु ध  के  समय  म  सम ृ ध  लाभांश  का  भग
ु तान  िकया 
क्य िक उस समय गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन ने  िवध्रव
ु ी प्रणाली म संतुलन-कतार्  के  प म उभरा। 
शीत  यु ध की समाि त के बाद कई  िट पणीकार  ने  कहा था िक अब गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन 
की म ृ यु हो गई है । यह भिव यवाणी इसिलए की गई क्य िक उ ह ने इसे  िवध्रुवी प्रणाली के 
अंत  और  अमेिरकी  वचर् व  के  साथ  एकध्रुवीय  प्रणाली  के  उदय  के  प  म  दे खा।  1  िसतंबर 
ु िनरपेक्ष आंदोलन  के िवदे श मंित्रय  की बैठक के बाद  22 
1991  म  अकरा म  आयोिजत  गट
पेज  की  घोषणा  जारी  की  गई,  िजसका  शीषर्क  था,  “घटते  संघषर्  से  बढ़ते  सहयोग  की  ओर 
संक्रमण म एक िव व”। इस घोषणा म गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन के नए उ दे य  पर जोर िदया 
गया, जो गरीबी, भख
ु मरी, कुपोषण और अिशक्षा के उ मूलन पर जोर दे कर दिु नया को एक 
बेहतर जगह बनाने  म मदद करना था और इस स दभर्  म उ ह ने  अंतररा ट्रीय समद
ु ाय से 
मदद करने  का आ वान भी िकया। गट
ु िनरपेक्ष दे श  चाहते  थे  िक संयक्
ु त रा ट्र को “अिधक 
लोकतांित्रक,  प्रभावी  और  कुशल”  बनाकर  आगे  बढ़ाया  जाए।  गट
ु िनरपेक्ष  दे श  G77  समह
ू   के 
साथ  गठजोड़  करना  चाहते  थे,  िजससे  इसकी  सद यता  का  ओवरलैप  था  तािक  नए  और 
बेहतर  आिथर्क  तंत्र  को  अंतररा ट्रीय  प्रणाली  म  थािपत  करने  पर  बल  िदया  जा  सके। 
गट
ु िनरपेक्ष  आंदोलन  ने  शीत  यु ध  के  बाद  की  दिु नया  म  उस  तर  तक  अपनी  उपयोिगता 
नहीं  िनभाई, पर तु  वा तव म संकेत ह िक वतर्मान म आंदोलन अिधक लोकिप्रय हो रहा है  
और  इसके  मह  व  को  यापक  प  से  पहचाना  जा  रहा  है ।  इसका  अनुमान  इस  बात  से 
लगाया  जा  सकता  है   िक  कई  अ य  दे श  गट
ु िनरपेक्ष  आंदोलन  की  सद यता  लेना  चाहते  ह। 
कई  िवकिसत  दे श  पयर्वेक्षक  का  दजार्  भी  माँग  रहे   ह।  हाल  ही  म  मंगोिलया  इसका  सद य 
बना है । जमर्नी और नीदरलड ने  सत्र  म भाग लेने  की अनम
ु ित का अनरु ोध िकया। वतर्मान 
समय म इस आंदोलन का नाम गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन से  बदल ‘तीसरे   िव व आंदोलन’ रखने 
के  संबंध  म  बहुत  सारी  चचार्एँ  ह।  हालाँिक  यह  पिरवतर्न  उन  दे श   के  एक  बड़े  िह से  को 
अलग-थलग  कर  दे गा  िज ह ने  लंबे  समय  से  गट
ु िनरपेक्ष  आंदोलन  की  तट थता  की 
िवचारधारा  का  समथर्न  िकया  है   और  अंतरार् ट्रीय  शांित  चाहते  ह।  िजस  तरह  से  िव व 
महाशिक्तय   के  पतन  के  साथ  एक  बहु  ध्रव
ु ीय  िव व- यव था  की  ओर  बढ़  रही  है ,  हम 
वा तव  म  यह  दे खने  की  ज रत  है   िक  क्या  “तीसरी  दिु नया  के  दे श ”  की  ेणी  अभी  भी 
प्रासंिगक है   या नहीं? शिक्तय  के नए कद्र, िवशेष  प से  जापान, चीन, भारत, ब्राजील और 
कई क्षेत्रीय संगठन पैदा हुए ह िजनके पास गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन की सद यता ह और जो एक 
समान िव व की तलाश म अपनी आवाज उठा रहे  ह। 

शीत  यु ध  समा त  हो  गया  है ,  लेिकन  जैसा  िक  एन.  कृ णन  ने  हम  याद  िदलाया, 
“दिु नया म शांित को अभी भी चरमपंथ, कलह, आक्रामक रा ट्रवाद और आतंकवाद और बड़े 
पैमाने  पर  िवनाश  के  हिथयार   के  बड़े  भंडार  से  खतरा  है ”।  वह  इस  त य  की  ओर  इशारा 

207
करते  ह िक “वै वीकरण की गितशीलता ने  नई सम याओं  का एक पूरा सेट तैयार िकया है  
िजस ओर गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन को  यान दे ना चािहए” (फ्रंटलाइन, वॉ यूम 18, अंक 26. 24 
नवंबर—04 िदसंबर 2011)। क्यूबा के उप िवदे श मंत्री एबेलाड  मोरे नो, जो जनवरी के अंितम 
स ताह  म  नई  िद ली  म  गट
ु िनरपेक्ष  आंदोलन  के  िशखर  स मेलन  की  तैयारी  के  िलए  एक 
उ च- तरीय  मंित्र तरीय  बैठक  म  भाग  लेने  के  बाद,  फ्रंटलाइन  को  बताया  िक  कुआलालंपुर 
बैठक  “संगठन  के  इितहास  म  सबसे  मह  वपूण र् गट
ु िनरपेक्ष  आंदोलन  िशखर  स मेलन  म  से 
एक  होने  जा  रहा  है ।  िशखर  स मेलन  गट
ु िनरपेक्ष  आंदोलन  के  पुनरो धार  के  िलए  खुद  को 
समिपर्त  करे गा।  उ ह ने  कहा  िक  गट
ु िनरपेक्ष  आंदोलन  को  साथर्क  भिू मका  िनभाने,  जो  हम 
लगता  है   िक  इसे  अंतरार् ट्रीय  मामल   म  िनभानी  चािहए,  के  िलए  नए  प्रो साहन  की 
आव यकता थी।” 

िसतंबर  2006  म  14व  गट


ु िनरपेक्ष  आंदोलन  िशखर  स मेलन  म  भाग  लेने  के  िलए 
हिरयाणा जाने के दौरान, भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन िसंह ने शीत यु ध प चात ् की दिु नया 
म  गट
ु िनरपेक्ष  आंदोलन  की  प्रासंिगकता  को  रे खांिकत  करते  हुए  कहा  था,  िक  यह  आंदोलन 
“एक मानिसक ि थित था और वतर्मान म एक बेहद अिनि चत, असरु िक्षत दिु नया म िव व-
भर  के  िविभ न  समह
ू   से  सामंज यपूण र् भिू मका  िनभाने  का  आग्रह  िकया”।  संयुक्त  रा ट्र 
महासिचव बॉन की-मन
ू  ने  गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन के 15 व िशखर स मेलन (2009) म कहा 
था, “यह  प ट है  िक कोई भी दे श — भले ही उसके पास िकतने ही संसाधन  हो— वह अकेले 
वतर्मान  सम याओं  को  हल  नहीं  कर  सकता  है ।  यह  ि थित  एक  बेहतर  दिु नया  को  आकार 
दे ने  म  गट
ु िनरपेक्ष  आंदोलन  के  मह  व  और  थान  को  बढ़ाता  है ”।  उ ह ने  कहा  िक 
“िवकासशील दे श  की िचंता को  यान म रखते  ह, वैि वक अथर् यव था को पन
ु जीर्िवत करने 
के िलए योजनाब ध कदम उठाये जाये यह सिु नि चत करने म गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन की बहुत 
बड़ी  िह सेदारी  है ।  इनम  खा य  सरु क्षा,  पयार्वरण  और  वैि वक  सं थाओं  म  सध
ु ार  की 
चन
ु ौितयाँ  शािमल  ह।”  2020  म  गट
ु िनरपेक्ष  आंदोलन  की  हािलया  बैठक  ने  िफर  से  “नैितक 
आवाज”  होने  के  प  म  गट
ु िनरपेक्ष  आंदोलन  के  मह  व  को  दोहराया  जो  दिु नया  को  अिधक 
समावेशी  बना  सकता  है ।  जैसा  िक  दिु नया  आिथर्क  संकट  से  िघरी  हुई  है ,  गट
ु िनरपेक्ष  दे श 
अपनी  ताकत,  समेकन  और  सहयोग  के  साथ,  आिखरकार  कुछ  ख्याित  प्रा त  कर  सकते  ह 
क्य िक वे बहुध्रुवीय दिु नया म अपिरहायर् बल  म से एक बन सकते ह। 

अमेिरका के वचर् व को चुनौती दे ने  म गट


ु िनरपेक्ष आंदोलन के मह  व की अवेहलना नहीं 
की जा सकती है । वा तव म इस आंदोलन के मल
ू   व प के कुछ मु द , िवशेषकर एक नए 
समावेशी आिथर्क  यव था, को दिु नया को धीरे -धीरे  आ मसात िकया जा रहा है । 

208
नव अंतरार् ट्रीय आिथर्क  यव था (NIEO) 

नव  अंतरार् ट्रीय  आिथर्क  यव था  की  माँग  अमेिरकी  वचर् व  को  चन
ु ौती  दे ने  का  एक  अ य 
तरीका था। हालाँिक िवकासशील दे श   वारा शीत यु ध के दौरान 1974 म इसकी अवधारणा 
दी गई थी, यह िवकिसत और िवकासशील दे श  के बीच असमान वा तिवकता को बदलने का 
एक प्रयास था। बड़े  पैमाने  पर यह पँज
ू ीवादी  यव था को अिधक मानवीय बनाने  का प्रयास 
था।  नव  अंतरार् ट्रीय  आिथर्क  यव था  की  प्रमख
ु   माँग   म  असमानताओं  को  कम  करने, 
यापार असंतुलन को कम करने, तकनीकी उपयोग का आदान-प्रदान करने, ऊजार्  की खपत 
के असमान  तर  को बदलने  िजसके कारण असमान िवकास का उदय हुआ था, आिद प्रमख
ु  
थे। नव अंतरार् ट्रीय आिथर्क  यव था, एक दाता और प्रा तकतार्  की अवधारणा पर आधािरत 
पदानुक्रिमक संबंध  पर आधािरत नहीं  है । न ही यह दान की अवधारणा पर आधािरत है   जो 
िवकिसत दे श  से  िवकासशील दे श   वारा माँग की जा रही है । जैसे-जैसे  िवकासशील दे श  म 
िवकास  हुआ  है ,  उ ह  यह  महसस
ू   हुआ  िक  िवकासशील  रा य   की  आिथर्क  सम याओं  को 
केवल  सहायता  के  मा यम  से  हल  नहीं  िकया  जा  सकता  है ।  इसके  िलए  नई  ढ़ता  की 
आव यकता है । यह उ र और दिक्षण के बीच पार पिरकता के िस धांत पर आधािरत होना 
चािहए। नव अंतरार् ट्रीय आिथर्क  यव था उ र और दिक्षण के बीच पार पिरक पार पिरकता 
के आधार पर एक नया संबंध का िवकास चाहती है , जो दाता और प्रा तकतार्  की अवधारणा 
पर  आधािरत  नहीं  होना  चािहए,  िजसम  अंततः  िवकिसत  दे श   को  भी  लाभ  होगा।  यह  एक 
भिव य  अथवा  भिव य  उ मख
ु ी  पिर य  की  थापना  करना  चाहता  है ।  इसिलए  जब  तक 
िवकासशील  दे श  वंिचत  रहगे,  दिु नया  म  वा तिवक  और  थायी  शांित  नहीं  हो  सकती।  इस 
प्रकार नव अंतरार् ट्रीय आिथर्क  यव था अंतरार् ट्रीय शांित और सरु क्षा के िलए आव यक है । 
यह िवकासशील दे श  के सवार्ंगीण  िवकास पर आधािरत है   और उनके  यापार-लाभ के िलए 
अिधक  अनुकूल  पिरि थितय   की  तलाश  करता  है ।  यह  आिथर्क  और  तकनीकी  सहयोग  पर 
आधािरत दिक्षण-दिक्षण सहयोग पर बल दे ता है । इसकी प्रमख
ु  माँग  म शािमल ह— 
1. िवकासशील और िवकिसत दे श  के बीच बातचीत के मा यम  थािपत िकए जाए। 
2. िवकासशील दे श  से  आने  वाले  िविनिमर्त व तुओ ं के िनयार्त पर टै िरफ को कम िकया 
जाए। 
3. िवकासशील  दे श   से  व तओ
ु ं  के  िनयार्त  के  िलए  एक  एकीकृत  मू य  समथर्न  प्रणाली 
को अपनाया जाए। 
4. भख
ू   से  िनपटने  के  िलए  एक  अंतरार् ट्रीय  खा य  कायर्क्रम  िवकिसत  िकया  जाना 
चािहए। 

209
5. िवकासशील  दे श   को  प्रौ योिगकी  ह तांतिरत  करने  के  िलए  एक  तंत्र  थािपत  िकया 
जाए तािक उनके उ पाद बाजार  यव था म प्रित पधीर्  बन सक। प्रौ योिगकी का यह 
ह तांतरण प्र यक्ष पँूजी िनवेश से अलग था जो िवकिसत दे श  से होगा। 

नव अंतरार् ट्रीय आिथर्क  यव था की माँग को आगे बढ़ाने के तरीक  म से एक को िव व 


यापार  संगठन  (WTO)  की  थापना  के  प  म  दे खा  जा  सकता  है ।  हालाँिक  िव व  यापार 
संगठन  की  थापना  1995  म  हुई  थी,  लेिकन  इस  संगठन  के  िस धांत  और  उ दे य  नव 
अंतरार् ट्रीय आिथर्क  यव था िस धांत  जैसे  ही है । यह “जनरल एग्रीमट ऑन ट्रे ड एंड टै िरफ” 
के  नाम  से  थािपत  ब्रेटन  वु स  की  प्रणाली  के  संगठन   म  से  एक,  का  उ रािधकारी  था, 
िजसका  कायर्  अंतरार् ट्रीय  यापार  आधािरत  टै िरफ  संरक्षण  और  यापार  के  अ य  भेदभाव 
रिहत िनयम  की दे ख-रे ख करना था। यह िव व के दे श  के बीच प्रितकूल  यापार िनयम  के 
िकसी भी भयावह  यव था को बािधत करने  की कोिशश करता है   क्य िक इसे  गैर-उ मल
ू न 
के  िलए  प्रितबंध  लगाने  की  शिक्त  प्रा त  है ।  यह  आयात  और  िनयार्त  के  गैर-िवचारा मक 
िस धांत  को  थािपत  करने  की  कोिशश  करता  है ।  यह  िवकासशील  दे श   को  अ य  दे श   के 
साथ समझौत  म प्रवेश करने के िलए अपनी प्रितब धताओं को पूरा करने के िलए अितिरक्त 
समय दे ता है । यह अित-िवकासशील दे श  के िलए ऐसे  यापार कानून बनाकर जो उ ह लाभ 
दे   सकते  ह और लचीलता प्रदान कर उनका िवशेष  यान रखता है । ऐसा इसिलए संभव हो 
पाया  है   क्य िक  िवकासशील  दे श,  केवल  मजबूत  पँूजीवादी  दे श   को  लाभ  पहुँचने  वाली 
यव था  को  सभी  के  िलया  िवकास  प्रदान  करने  वाली  यव था  म  पिरवितर्त  कर  पाए  ह। 
2002  म, िव व  यापार संगठन  ने  अित-िवकासशील दे श  के िलए एक कामकाजी कायर्क्रम 
अपनाया िजसम अिधक तकनीकी सहायता, बाजार म सध
ु ार और उन दे श  म रोजगार बढ़ाने 
म समथर्न जैसे  प्रावधान शािमल थे  जो उ ह गरीबी से  बाहर आने  म मदद कर सकते  थे। 
िव व  यापार  संगठन  ने  एंटी-डंिपंग  गितिविधय ,  सि सडी  और  बौ िधक  संपदा  अिधकार 
नीितय  आिद से  संबंिधत भेदभाव को दरू  करने  के संदभर्  म कई उपलि धयाँ  हािसल की जो 
िवकासशील  दे श   के  िलए  प्रितकूल  थीं।  इन  सभी  समझौत   ने  अमेिरकी  आिथर्क  िस धांत  
वारा  प्रसािरत  भेदभावपण
ू  र् प्रथाओं  को  चन
ु ौती  दी।  इससे  िवकासशील  दे श   को  मदद  िमली। 
इस  स दभर्  म  सबसे  बड़ी  जीत  तब  हािसल  हुई  जब  भारत  और  ब्राजील  की  अगव
ु ाई  वाले 
िवकासशील दे श  ने  यह मु दा उठाया की अमेिरका और यूरोपीय संघ  वारा अपने  कृिष क्षेत्र 
के  िलए  संरक्षण  नीितयाँ  अपनायी  जाती  है ,  जबिक  वे  िवकासशील  दे श   के  बाजार   के  िलए 
पहुँच  चाहते  ह,  जो  अपनी  िवशाल  जनसंख्या  के  कारण  आकार  म  िवशाल  थे।  जब  कोई 
सहमित  नहीं  बनी  तो  समझौता  तक  पहुँचने  के  िलए  बातचीत  शु   हुई।  यह  वातार्  कैनकन 
िशखर स मेलन म िफर से  शु  हुई, जब कृिष संबंधी मु द  पर असहमित होने  पर बातचीत 
पूरी तरह से  टूट गई। िव व  यापार संगठन को उस सं थान के  प म दे खा जा सकता है  

210
जहाँ िवकिसत दे श िवकासशील दे श  पर अपने िनणर्य को थोप नहीं पाते ह। ऐसा िवकासशील 
दे श   की  आपसी  एकता  की  वजह  से  था,  िजसके  वारा  उ ह ने  अपनी  शिक्त  को  प्रदिशर्त 
िकया था। सहकािरता से ही  यापार सम ृ ध हो सकता है  क्य िक स ा की अपनी सीमाएँ ह। 

जब हम िव व  यापार संगठन की उपलि धय  को दे खते  ह तो यह सेवा क्षेत्र  म काफी 


हद  तक  सफल  रहा  है ।  िवकिसत और  िवकासशील  दोन   तरह  के  दे श  इससे  लाभाि वत  हुए 
है । िवकासशील दे श पयर्टन,  वा य दे खभाल और सेवाओं  को बढ़ावा दे ने  म सक्षम ह, वहीँ 
िवकिसत  दे श  को भी  िवकासशील  दे श   के दरू संचार, बिकंग, बीमा और तकनीकी  क्षेत्र  तक 
पहुँच  िमली है ।  यापार की शत एक  दे श से  दस
ू रे   दे श म िभ न होती ह, िजनके पास यह 
तय करने की पूरी संप्रभत
ु ा होती है  िक वे दस
ू रे  दे श  को िकतना शु क दगे। 
िव व  यापार  संगठन  का  समग्र  एजडा  िव व  भर  के  दे श   के  िलए  यापार  के  समान 
अवसर पैदा करना रहा है । अब इस अवसर की माँग के साथ, अमेिरका  यापार िनयम  को 
प्रभािवत कर उ ह केवल  वयं  के पक्ष म मोड़ नहीं  सकता ह। इस तरह से उसके वचर् व को 
एक  झटका  िमला  है ।  िव व  यापार  संगठन  की  सफलता  के  साथ,  कई  क्षेत्रीय  संगठन   का 
ज म  हुआ,  िज ह ने  शिक्त  हािसल  कर  अमेिरकी  वचर् व  को  चुनौती  दी  है   या  वयं  के 
यिक्तगत ताकत को महसस ू  कर एकजट ु  हो अमेिरकी वचर् व के प्रभाव को कम करने  की 
कोिशश की है । हालाँिक कई नव उिदत शिक्तयाँ कद्र म ह, िज ह क्षेत्रीय संगठन  के उदय के 
प म दे खा जा सकता है   जो िक क्षेत्र िविश ट ह, लेिकन उनम से  कुछ वा तव म अमेिरकी 
वचर् व को चुनौती दे ने  म मह  वपूण र् रहे   ह। वे  यूरोपीय संघ, िब्रक्स और चीन ह जो स ा के 
अ य कद्र  के  प म उभरे  ह और अमेिरकी एकध्रव
ु ीयता को चुनौती दे  रहे  ह। 

िन कषर् 

शीत यु ध प चात ् युग िजसे  एकध्रुवीय िव व के  प म दे खा गया था वह एक िमथक है । 


यह काफी हद तक इस त य से  दे खा जाता है   िक शीत यु ध ने  इस वचर् व को चुनौती दे ने 
के  िलए  पहले  से  ही  ि थितयाँ  बना  ली  थीं।  िव व  म  एक  आिथर्क,  राजनीितक  और 
सां कृितक प्रणाली को िनधार्िरत करने म सक्षम शिक्त के  प म वचर् वशील शिक्त को दे खा 
गया  था।  सोिवयत  संघ  के  पतन  और  कई  अ य  कारक   ने  पहले  ही  िव व  को  अमेिरकी 
आिथर्क,  राजनीितक  और  सां कृितक  प्रणाली  के  मॉडल  के  कई  अ य  सं करण  िदखाए  थे। 
इ हे   गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन और नव अंतरार् ट्रीय आिथर्क  यव था म उ प न हुई माँग  के  प 
म दे खा जा सकता है । इन दोन  को उन िवकासशील दे श   वारा उठाया गया था जो शांित 
और  िवकास  को  एक  मानवीय  चेहरे   के  साथ  दे खना  चाहते  थे।  आतंकवादी  हमल   और 
पयार्वरणीय संकट  के कारण िव व के समक्ष सबसे  बड़े  खतरे   उभरे । दोन  खतर  से  िनपटने 
के िलए परा-रा ट्रीय सहयोग की आव यकता है । इसके पिरणाम व प इसने  क्षेत्रीय संगठन  

211
को  भी  ज म  िदया, जो िव व भर म उभरे   और आम िहत  को एकजुट कर स ा के अ य 
कद्र  का िनमार्ण िकया जो अमेिरका से आगे िनकल गए। 

ग्र थ-सच
ू ी 

 फुकुयामा, एफ (1989) द ए  ड ऑफ़ िह ट्री? ‘से टर फॉर नेशनल इंटरे ट’ pp 3-18 


 िगल, एस. (2005) ‘कॉ ट्रिडक्श स ऑफ़ यए
ू स सप्र
ु ीमसी’ L पिनच, एल. एंड लेयस, 
सी. (सं.) के  सोिसए ट  रिज टर  : द ए पायर रीलोडेड. लंदन : मिलर्न प्रेस. 2004, 
लंदन, मिलर्न प्रेस और  यूयॉकर्, मंथली िर यू प्रेस. सोिसए ट रिज टर. 
 हॉ सबॉम,  ई.  (1995)  एज  ऑफ़  एक्सट्रीम  :  द  शॉटर्   वटीथ  सचुरी,  1914-1991. 
लंदन : अबेकस. 
 लेने, सी. (1993). यूनीपोलर इ यज
ू न :  हाई  यू  ग्रेट पावर िवल राइज. इंटरनेशनल 
िसक्योिरटी, 17 (4), 5-51। डोई : 10.2307 / 2,539,020 
 कॉट, एल. (2005) ‘इंटरनेशनल िह ट्री, 1945-1990’ ‘बायिलस, जे एंड ि मथ, एस. 
म  (एड.)  (2008)  द  ग्लोबलाइज़ेशन  ऑफ  व डर्  पॉिलिटक्सएन  :  इंट्रोडक्शन  टू 
इंटरनेशनल िरलेश स. ed 4. ऑक्सफोडर् : ऑक्सफोडर् यूिनविसर्टी प्रेस. 
 फ्रंटलाइन पित्रका खंड 18, अंक 24, िदनांक Nov. 24-Dec.04, 2001. 
 

212

You might also like