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Perspectives On International Relations and World History Hindi Medium
Perspectives On International Relations and World History Hindi Medium
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(Perspectives on International Relations and World History
अंतरार् ट्रीय संबंध का िवषय उ नीसवीं एवं बीसवीं शता दी के समयकाल म धीरे -धीरे
िवकिसत हुआ। जेरेमी बथम ने सवर्प्रथम 1780 म ‘अंतरार् ट्रीय’ श द का प्रयोग कानून की
एक शाखा के प म अंतरार् ट्रीय िविधशा त्र को समझाने के िलए िकया। उसके बाद से ही
यह श द िविभ न रा ट्र-रा य के म य संबंध को दशार्ने के िलए प्रयोग म आता रहा है ।
भले ही अंतरार् ट्रीय संबंध एक िवषय के प म प्रथम िव वयु ध के बाद ही अकादिमक
जगत म थािपत हुआ, पर तु अंतरार् ट्रीय संबंध एक कायर्प्रणाली के प म बेहद पूव र् म
थािपत ग्रीक नगर रा य के समय से संचािलत है , िजसका प्रमाण हम ग्रीक इितहासकार
यूसीडाईडस (460-395 ई.पू.) वारा िलिखत ‘द िह ट्री ऑफ़ पेलोपेनेिशयन वॉर’ म प्रा त
होता है । ग्रीक नगर रा य के म य आपसी संघष को ना सल
ु झा पाना अंतरार् ट्रीय संबंध की
भी एक सम या थी। वहीं एथस का पाटार् की तुलना म एक कमज़ोर नगर रा य होना भी
अंतरार् ट्रीय संबंध की अ य सम या को ही दशार्ता है । इन दोन नगर रा य के म य या त
संघषर् शिक्त और शिक्तशाली होने के िवचार को पिरलिक्षत करता है , तथा बाद म रोमन
साम्रा य वारा ग्रीक नगर रा य पर अपना अिधप य जमाना भी शिक्त के िवचार को
िचि हत करता है । बैरी बुज़ान एवं िरचडर् िलटल यह बताते ह िक 3500 ईसा पूव र् म
सम
ु ेिरयन रा य प्रणाली के दौरान भी अंतरार् ट्रीय यव था का संचालन िदखाई दे ता है । पर तु
अंतरार् ट्रीय संबंध के िवकास का मल
ू िबंद ु हम ग्रीस के नगर रा य की यव था म ही पाते
ह, जहाँ नगर रा य के म य अपनी-अपनी वचर् वता थािपत करने की होड़ म संघषर् एवं
छोटे तर के यु ध होते रहते थे। तभी यह मत है िक ग्रीस नगर रा य से लेकर रोमन
साम्रा य तक का समय काल यु ध , अिधप य एवं वचर् व आिद उ दे य पर ही आधािरत
रहा। और इ हीं उ दे य एवं िवषय-व तुओं ने आगे चलकर अंतरार् ट्रीय संबंध को एक िवषय
के प म थािपत करने म के द्रीय भिू मका िनभाई। इसी समय काल म भारत म भी रा य
के म य संबंध से संबंिधत िवचार रखे जा रहे थे, जैसे कौिट य का अथर्शा त्र जो रा य के
बेहतर संचालन एवं अ य रा य के साथ उसके यवहार और संबंध पर िनदश दे ता है ।
मगर, आधिु नक अंतरार् ट्रीय संबंध के िवषय की शु आत 20वीं शता दी के उ राधर् से होती
है , जब कई िवचारक ने यह समझाने का प्रयास िकया िक रा य िजस प्रकार का यवहार
करते ह उसके पीछे क्या कारण है , यह यवहार क्य यु ध एवं संघष को ज म दे ता है ,
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और िकस प्रकार से इन यु ध को होने से रोका जा सकता है । प्रथम िव वयु ध के प चात ्
यूनाइटे ड िकंगडम की यिू नविसर्टी ऑफ़ वे स म अंतरार् ट्रीय राजनीित की एक िवशेष चेयर
की थापना होने से अकादिमक जगत म अंतरार् ट्रीय संबंध के एक िवषय के प म थािपत
होने के िलए एक मज़बूत आधार िमला। इसके साथ ही वषर् 1920 म लंदन कूल ऑफ़
इकोनॉिमक्स म भी अंतरार् ट्रीय राजनीित के िचंतन के िलए िफ़िलप िनओल बेकर के नाम
पर एक िवशेष चेयर की थापना की गई। प्रथम िव वयु ध से पहले अंतरार् ट्रीय संबंध को
इितहास, राजनीित व अंतरार् ट्रीय कानून शा त्र के एक उप-िवषय के प म पढ़ा व समझा
जाता था, इसीिलए एक मख्
ु य िवषय के प म इसका अ ययन काफी आधुिनक है । आधुिनक
रा ट्र रा य के म य अब संबंध पहले से कहीं अिधक जिटल व अंतरिनभर्र हो गये ह,
इसिलए इनके अ ययन के िलए नये िवषय व ज्ञान शाखाओं की ज़ रत महसस
ू हुई,
अंतरार् ट्रीय संबंध का िवषय उसी ज़ रत का नतीजा है । यह िवषय वतर्मान समय के कई
मह वपूण र् मु द की जाँच करने का प्रयास करता है , जैसे—अंतरार् ट्रीय सहयोग एवं संघषर्,
कूटनीित, शिक्त-संघषर्, वै वीकरण की प्रकृित एवं रा य पर पड़ रहे उसके प्रभाव, सरु क्षा
संबंधी खतरे —आतंकवाद, जलवायु पिरवतर्न, त करी, प्रवसन, िनधर्नता आिद।
परं परागत प से दे खा जाए तो अंतरार् ट्रीय संबंध िवषय के कद्र म मख्
ु यतः रा य
यव था एवं यापक िव व यव था से संबंिधत मु द और पिरवतर्न पर ही अिधकतम
िवचार िकया गया है । यह थािपत िकया गया िक रा य के यवहार एवं अ य रा य के
साथ उसके संबंध के अ ययन के मा यम से ही संघषर् के कारण व ि थितय एवं शांित
थापना की संभावनाओं का ठीक प्रकार िव लेषण िकया जा सकता है । यह भी समझना
आव यक है िक समकालीन अंतरार् ट्रीय िस धांत केवल राजनीितक संबंध नहीं अिपतु
मानवािधकार, बहुरा ट्रीय सं थाओं, अंतरार् ट्रीय सं थाओं, बहुपक्षीयतावाद, पािरि थितकी,
जडर, िवकास, आतंकवाद आिद आयाम पर भी अपने िवचार को िव तत ृ करता है ।
यह पाठ अंतरार् ट्रीय संबंध के ऐितहािसक उ भव का िज़क्र करता है । पाठ के प्रार भ म
राजनीित िवज्ञान के अंतगर्त एक अनुशासन के प म अंतरार् ट्रीय संबंध के अथर् एवं उससे
जड़
ु े हुए के द्रीय िवचार का एक िव लेषण प्र तुत िकया गया है । उसके प चात ् अंतरार् ट्रीय
संबंध एवं अंतरार् ट्रीय राजनीित के मह वपूण र् अंतर को पेश िकया गया है । पाठ का अगला
भाग तीन तरीय िव लेषण अथार्त ् यिक्तगत, रा य तथा अंतरार् ट्रीय तर के लस से
अंतरार् ट्रीय संबंध के अ ययन की आव यकता को िचि हत करता है । इसके बाद अ याय म
हम अंतरार् ट्रीय राज ्य यव था के उदगमन, वे टफेिलया के पूव र् व उ र काल की ि थितय
एवं आधुिनक रा ट्र रा य के िनमार्ण की पड़ताल करगे।
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अंतरार् ट्रीय संबंध : अथर् एवं पिरभाषा
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अंतरार् ट्रीय संबंध तथा अंतरार् ट्रीय राजनीित
वषर् 1947 म ग्रेयसन कीकर् ने अंतरार् ट्रीय संबंध के 5 आव यक िवषय-व तु की बात की
थी—रा य की प्रकृित एवं कायर्, रा य शिक्त के िनमार्ण व उसको िनधार्िरत करने वाले
कारक, िव व शिक्त रा य की िव व यव था म ि थित एवं यवहार, समकालीन अंतरार् ट्रीय
संबंध का उ भव एवं िवकास तथा, अिधक थायी िव व यव था की थापना। वहीं 1948
म इंटरनेशनल पॉिलिटकल साइंस एसोिसएशन के पेिरस स मेलन म यह िनधार्िरत िकया
गया िक अंतरार् ट्रीय संबंध के िवषय-व तु म अंतरार् ट्रीय राजनीित, अंतरार् ट्रीय सं थाओं,
प्रशासन एवं अंतरार् ट्रीय कानून को शािमल िकया जाना चािहए।
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कालर् यूच इसके िवषय-व तु को थोड़ा और िव तत
ृ करते ह और इससे िविभ न
पहलओ
ु ं को जोड़ते ह जैसे रा य एवं िव व; वैि वक प्रिक्रयाएँ एवं वैि वक अंतरिनभर्रता;
संघषर्; शिक्त संबंध एवं सीिमतताएँ; वैि वक राजनीित एवं समाज; िव व जनसंख्या एवं
पयार्वरण संबंधी सम याएँ; िविभ न अि मताएँ; पिरवतर्न एवं यथा थािय व आिद। िव सट
बकर्र (1970) ने भी अंतरार् ट्रीय संबंध के िवषय-व तु के 7 मख्
ु य त व
की चचार् की है —
रा ट्रीय शिक्त के त व; रा ट्रीय िहत म व ृ िध के उपल ध मा यम; वैि वक राजनीित की
प्रकृित; अंतरार् ट्रीय यव था के राजनीितक, सामािजक-आिथर्क आयाम, रा ट्र शिक्त का
िनयंत्रण एवं सीिमतताएँ; सभी प्रमख
ु एवं िव वशिक्त दे श की िवदे श नीितय के साथ-साथ
कुछ मह वपण
ू र् छोटे दे श की भी िवदे श नीित; हाल की अंतरार् ट्रीय घटनाओं का इितहास।
बेिलस तथा ि मथ के मतानुसार वै वीकरण के िवकास ने कई नए मु द व पक्ष को
अंतरार् ट्रीय संबंध के िवषय-व तु म जोड़ा है । इस नये प्रकृित के िवषय-व तु म मानवािधकार,
पयार्वरण संबंधी सम याएँ एवं जडर मु द को शािमल िकया गया है । आधुिनक अंतरार् ट्रीय
संबंध िवषय के क्षेत्र एवं संभावनाओं का मख्
ु य उ दे य रा य के अपने िहत और अंतरार् ट्रीय
यव था म उसकी पिरि थित के म य संबंध थािपत करना ही रहा है । इसी कारण बेिलस
तथा ि मथ िवषय-व त ु को और अिधक िव तत
ृ करने के िलए अपने लेखन म ‘वैि वक
राजनीित’ श द का प्रयोग करते ह।
पाठ के इस भाग का प्रमख
ु उ दे य अंतरार् ट्रीय संबंध के बेहद मह वपूण र् त व–तीन तरीय
िव लेषण के िवचार के अथर् एवं उपयोिगता को जाँचना है । अंतरार् ट्रीय संबंध के अंतगर्त तीन
िविभ न तर पर अंतरार् ट्रीय संबंध का िव लेषण िकया जाता है । यह िवचार मख्
ु यतः केनेथ
वा ज़ से संबंिधत है िज ह ने अपनी पु तक ‘मैन, द टे ट एंड वॉर’ म रा य के यु ध के
प्रित यवहार और िनणर्य को समझने के िलए तीन तर का िव लेषण प्रितपािदत िकया।
इसके अंतगर्त वा ज़ ने उन तीन तर या पक्ष की बात की िजनपर रा य एवं उसके
िनणर्य िनमार्ता अपनी िवदे श नीित तय करते ह।
1. िव लेषण का यिक्तगत तर
वा ज़ के मत
ु ािबक, यिक्त िव लेषण का प्रथम तर होता है । अथार्त ् संघष की उ पि
यिक्त या मानव यवहार और राजनीितक िनणर्य िनमार्ता के यिक्त व से होती है । अतः
िव लेषण का प्रथम तर मानव यवहार पर केि द्रत है । िनणर्य िनमार्ताओं के प यिक्त ही
िवदे श नीित का िनधार्रण करते ह और ये िवदे श नीित ही वैि वक यव था म रा य के
यवहार को सिु नि चत करती है । इस तर के अंतगर्त यान का मख्
ु य कद्र मानव की प्रकृित
एवं यवहारगत पैटनर् होते ह। वा ज़ के अनुसार यिक्त का वाथर्वादी, विहत केि द्रत
आवेगशाली यवहार ही संघष को ज म दे ता है । यह तर ये थािपत करता है िक यु ध
की उ पि के पीछे मानव यवहार ही कारण है या िकसी राजनेता का यिक्त व, जैसा िक
हम इराक़ म स दाम हुसन
ै और जमर्नी के िहटलर के स दभर् म दे ख सकते ह।
2. िव लेषण का रा यगत तर
िवतीय तर रा य के यवहार को अपने िव लेषण का कद्र िबंद ु मानता है । वा ज़ के
अनुसार रा य की वे िवशेषताएँ बेहद मह व की होती ह जो उसकी नीितय व उ दे य को
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प्र यक्ष-अप्र यक्ष प से प्रभािवत करती ह। इन िवशेषताओं म रा य की सरकार का प,
उसके आंतिरक कारक, रा य म की जा रही प्रमख
ु आिथर्क गितिविधय के प्रकार और
िवतरण प्रणाली शािमल होते ह। इस तर म रा य को केवल राजनीितक इकाई के तौर पर
ही नहीं अिपतु सं कृित, धािमर्क पहचान , पर पराओं, इितहास और भौगोिलक िविश टताओं
के धारक के प म भी समझा जाता है । वा ज़ इस तर के अंतगर्त रा य की आंतिरक
राजनीितक यव था एवं उससे जड़
ु े िविभ न पक्ष पर अपना यान केि द्रत करते ह। इसके
संदभर् म वे लेिनन के साम्रा यवाद के िस धांत की ओर इशारा करते ह िक कैसे पँज
ू ीवादी
रा य अपनी आंतिरक ज़ रत और मह व
ाकांक्षाओं के कारण अपनी साम्रा यवादी नीितय का
पालन करते थे। रा य की आंतिरक यव था भी यु ध एवं संघष को ज म दे ती ह जैसा
हम असफल रा य जैसे उ री कोिरया के केस म दे खते ह। उसी प्रकार अमेिरका की
आदशर्वादी िवदे श नीित और उसका यह कहना िक वह िव व का लोकतंत्रीकरण करने म
िव वास रखता है उसके इराक़ एवं कई अ य रा ट्र म िकये ह तक्षेप को समझाता है ।
3. िव लेषण का यव थागत तर
यह तर िव व म थािपत यव था को िव लेषण के कद्र म रखता है और यह परीक्षण
करता है िक कैसे वैि वक यव था रा य के यवहार को प्रभािवत करता है । वा ज़ यह मत
रखते ह िक अंतरार् ट्रीय यव था की प्रकृित अराजकवादी है , अथार्त ् रा य के ऊपर कोई भी
िनयंत्रणकारी शिक्त मौजद
ू नहीं और यही अराजकवादी अंतरार् ट्रीय यव था ही रा य के
उ दे य को िनधार्िरत करती है और इस यव था म रा य कुछ िवशेष प्रकार का यवहार
करने की ओर उ दे ि यत होते ह। इससे यह भी प ट होता है िक इस अंतरार् ट्रीय यव था
म कोई पिरवतर्न रा य के यवहार म भी पिरवतर्न को ज म दे ते ह। इस यव था म सबसे
मह वपूण र् त व रा ट्र रा य की अिधकृत शिक्त होती है । कुछ रा य के पास अिधक शिक्त
होती है तो कुछ रा य तुलना मक प से कम शिक्त के धारक होते ह। शीत यु ध के दौरान
केवल दो िव व शिक्तयाँ मौजद
ू थीं संयुक्त रा ट्र अमेिरका तथा सोिवयत संघ। परं त ु उस दो
ध्रुवीय िव व यव था ने िव व के सभी रा य को प्रभािवत िकया। वतर्मान एकध्रुवीय िव व
म भी रा य के यवहार इस एक ध्रुवीयता से िनधार्िरत होते ह। इस िव लेषण के वारा यह
आसानी से समझा जा सकता है िक अमेिरका ने इराक म ह तक्षेप क्य िकया होगा? यह भी
दे खा जा सकता है िक कैसे अमेिरका पूरे िव व को उस एक कतार् के िवरोध म ला खड़ा
करता है जो उसके वयं के िलए खतरा होता है । अमेिरका िव व यव था को बनाये रखने
एवं अपने वचर् व को बनाए रखने के िलए अपने िवरोिधय और सभी प्रकार के खतर को
ख म करने की कोिशश म लगा रहता है ।
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अंतरार् ट्रीय रा य यव था के उ भव एवं िवकास का इितहास
अगला भाग आधुिनक अंतरार् ट्रीय संबंध के िवषय म वैि वक तर की यव था के उ भव
एवं िवकास की िववेचना करता है । िविभ न िचंतक ने रा य यव था के उ भव की जड़े
1648 की वे टफेिलया संिध म ही खोजी िजससे 30 वषीर्य यु ध पर िवराम लगा। इस भाग
के अंतगर्त हम वे टफेिलया के पूव र् की ि थित, वे टफेिलया संिध एवं उसके बाद की िव व
यव था का आकलन करगे।
पूव-र् वे टफेिलया ि थित
वे टफेिलया संिध से पहले भी रा य मौजद
ू थे और आपसी संबंध म उपि थत थे, पर तु उन
रा य को संप्रभत
ु ा नहीं प्रा त थी, क्य िक उ ह रोमन चचर् वारा सीिमत िकया जाता था।
उस दौरान लोग संप्रभ ु इकाइय का िह सा नहीं थे। मानव इितहास पर नज़र डाले तो हम
पाते ह िक मनु य ने हमेशा से ही अपनी सहूिलयत के िलए िकसी-न-िकसी राजनीितक
यव था को थािपत िकया है । इन यव थाओं म सबसे मह वपण
ू र् रोमन तथा ओटोमन
साम्रा य थे। आगे के वष म मानव इितहास म रा ट्र
रा य की उ पि हुई और वतर्मान
तक उ हीं का अि त व थािपत है । परं तु ऐसा हो सकता है िक इन रा ट्र रा य की भिव य
म प्रासंिगकता ख म हो जाए और िकसी अ य प्रकार की राजनीितक यव थाएँ ज म ले ल।
हर राजनीितक यव था एक लंबे अंतराल म धीरे -धीरे िवकिसत होती है और मानव अपने
िहत , आकांक्षाओं एवं पिरि थितय के अनुसार उन यव थाओं को अपनाता है । रा य की
प्रकृित के समान राजनीितक इकाइय का अि त व हम ग्रीस म 500-100 ईसा पूव र् समय
काल म दे ख सकते ह जहाँ आधुिनक रा य जैसी ही कुछ यव थाएँ मौजद
ू थीं। इस समय
काल के दौरान ग्रीस म नगर रा य या पोिलस मौजद
ू थे िजनम सबसे प्रमख
ु पाटार्, एथस
और कोिरंथ थे। हालाँिक, जैसे िक पहले बताया गया िक ये यव थाएँ िवशेषता म
क एवं
कायार् मक प से आधिु नक रा य से काफी िभ न थे एवं इनकी तरह संप्रभ ु नहीं थे। ग्रीस
के इस नगर रा य आधािरत यव था का अंत रोमन साम्रा य के वचर् व के िव तार के साथ
हुआ, पि चम एिशयाई और उ री अफ्रीका के बहुत बड़े भाग इस साम्रा य के अिधप य म
थे।
रोमन साम्रा य िविभ न राजनीितक इकाइय को अपने अिधप य म लेकर उ ह अपने
अधीन दजार् दे ता था बजाए उनके साथ समान तर पर समायोजन करके। इस संदभर् म
अ य राजनीितक यव थाओं के पास मख्
ु यतः दो ही उपाय बचते थे या तो रोमन साम्रा य
के अिधप य और अपनी अधीनता को वीकार करना या उसके िव ध श त्र उठाकर जवाबी
िहंसा करना। इसी प्रकार के िवरोध के नतीजे म ही सिदय तक चले रोमन साम्रा य का अंत
भी हुआ। रोमन साम्रा य के पतन के प चात ् दो नए साम्रा य का उदय हुआ एक पि चम
यरू ोप म और दस
ू रा पव
ू र् का बाईज़ानटाईन साम्रा य। इसके अितिरक्त म य पव
ू र् म
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इ लािमक प्रकृित के साम्रा य भी थे और भारत एवं ईरान की समानांतर स यताएँ भी जारी
थीं। इसी संदभर् म हम चीनी साम्रा य को भी दे खते ह जो सबसे प्राचीनतम साम्रा य म से
एक रहा िजसके अनेकानेक शासक रहे । संपूण र् म यकालीन युग इ हीं तरह के साम्रा यवादी
यव थाओं व उनके म य हुए संघष का गवाह रहा। इस समय काल म रा य साम्रा य के
प म अि त व म थे। परं तु वे आधुिनक समझ के अनुसार वतंत्र व संप्रभु नहीं थे न ही
उनकी कोई सिु नि चत सीमाएँ व क्षेत्रीयता थी अथार्त ् िजस प्रकार की राजनीितक वतंत्रता
एवं क्षेत्रीय संप्रभत
ु ा आधुिनक रा य के संबंध म पाई जाती है वैसी वे टफेिलया से पूव र् के
समय काल के इन साम्रा य म अनुपि थत थी। यह समय काल संघषर्, िववाद, संकट एवं
यु ध का भी समय काल रहा।
वे टफेिलया की संिध एवं आधुिनक रा य यव था का उदय
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इस संिध के मा यम से संप्रभत
ु ा, क्षेत्रीय अखंडता, राजनीितक वतंत्रता एवं समानता के
िस धांत की अंतरार् ट्रीय रा य यव था म थापना हुई।
िविभ न िवचारक और नीित िनधार्रक के म य इस प्र न पर िववाद है िक क्या वतर्मान
अंतरार् ट्रीय यव था आज भी वे टफेिलया यव था से प्रभािवत हो रही है ? वतर्मान िव व
वै वीकरण के प्रभाव के अंतगर्त कायर्रत है , साथ ही यह बहुरा ट्रीयता के साथ-साथ संकीणर्ता
का भी अनुपालन कर रहा है । आज कई गैर रा य कतार् जैसे अंतरार् ट्रीय संगठन एवं
बहुरा ट्रीय एजिसयाँ संप्रभ ु रा य के साथ प्रित वं िवता म संलग् न ह। वैि वक सं थाओं एवं
संगठन की संख्या म भी अ यिधक व ृ िध हुई है । वै वीकरण के असर के फल व प
राजनीित रा य की सीमाओं के इतर भी संचािलत हो रही है , अनेकानेक सहयोग आधािरत
संगठन के मा यम से। आज सभी दे श एक जिटल अंतरार् ट्रीय अंतरिनभर्र शासन म संलग् न
ह िजसम बहुरा ट्रीय एजिसयाँ, अंतरार् ट्रीय संघ एवं गैर रा ट्रीय संगठन भी सि मिलत होते
ह। अथार्त ् समकालीन िव व वे टफेिलया के रा य आधािरत यव था को एक हद तक
चुनौती दे रहा है ।
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वै वीकरण के प्रभाव केवल वैि वक गितिविधय को ही नहीं अिपतु उस स ा को भी
चुनौती दे रहे ह जो रा ट्र रा य के फैसल म िनिहत होती है । मौजद
ू ा दौर म नीितगत
िनणर्य व रा य के फैसल म केवल रा य ही के द्रीय भिू मका म नहीं रहा अिपतु रा य के
अलावा भी कई कतार्ओं की भिू मका थािपत हुई है । 1990 के दशक से ये भिू मकाएँ अिधक
पैमाने पर बढ़ने लगी और रा य की संप्रभत
ु ा को इससे खतरा प ट प से पेश आने लगा।
अतः यह कहा जा सकता है िक बदलते दौर म वे टफेिलया वारा थािपत रा य की
संप्रभत
ु ा म बहुत बदलाव हुए ह और इसे चुनौितय का भी सामना करना पड़ा है । साथ ही
िवतीय िव वयु ध के उपरांत रा य वारा अनुपािलत व केि द्रत व विहत का यवहार भी
सीिमत हुआ है क्य िक रा य को कई वैि वक िनयम का पालन एवं वै वीकृत यव था का
दबाव झेलना पड़ा है । शीत यु ध के दौरान भी जहाँ एक तरफ शिक्त प्रदशर्न के उ दे य से
संघ का िनमार्ण हुआ तो वहीं दस
ू री तरफ संघष को कम करने व सहयोग थापना के िलए
भी िविभ न संगठन की थापना की गई। शीत यु ध के अंत तक आते-आते अंतरार् ट्रीय
संगठन जैसे—WTO, IMF, WHO की भिू मका म इज़ाफ़ा हुआ तो वहीं क्षेत्रीय संगठन जैसे
यूरोपीय संघ, आिसयान, साकर्, नाटो आिद की उपयोिगता म भी व ृ िध हुई।
िवचारक एवं िविभ न िवशेषज्ञ का मत है िक वे टफेिलयन यव था अपने दौर म बेहद
प्रभावशाली एवं क्रांितकारी ज़ रत थी। इसने अंतरार् ट्रीय स ब ध, राजनीित एवं कूटनीित को
उ नत िकया, एक ऐसा िवचार व यव था जो 17वीं शता दी से पहले अि त व म नहीं थी।
और यह वे टफेिलया का मॉडल वतर्मान समय म भी बेहद प्रासंिगक बना हुआ है ।
िन कषर्
प्र तत
ु पाठ म हमने मख्
ु यतः यह दे खा िक अंतरार् ट्रीय संबंध िवषय िकस प्रकार समकालीन
समय म िवकिसत हुआ और वयं म एक मह व पण
ू र् अ ययन क्षेत्र म त दील हो गया। पाठ
की शु आत अंतरार् ट्रीय संबंध के अथर् एवं पिरभाषाओं को समझने से हुई और आगे चलकर
हमने दे खा िक िकस प्रकार यह एक अकादिमक िवषय के प म उभरकर सामने आया।
इसके बाद अंतरार् ट्रीय राजनीित व अंतरार् ट्रीय संबंध म अंतर एवं संिक्ष त तल
ु ना को िचित्रत
िकया गया, िजसम यह प ट हुआ िक कैसे ये दोन िवचार काफी समान अथ को प्रदिशर्त
करते ह, पर तु िफर भी एक तर पर दोन म िभ नता मौजद
ू है । इसके अगले भाग म
हमने दे खा िक िकस प्रकार वा ज़ वारा प्रितपािदत तीन तरीय िव लेषण से अंतरार् ट्रीय
संबंध के िवषय-व तु को सरलतापूवक
र् समझा जा सकता है । यिक्तगत तर मानव यवहार
को िव लेषण के कद्र म रखता है तो वहीं रा यगत तर रा य के आंतिरक संरचनाओं और
यवहार को तथा यव थागत तर अंतरार् ट्रीय यव था की अराजक यव था को िव लेषण
के कद्र म रखते ह। िवचारक वारा यह तकर् िदया जाता रहा है िक 1648 की वे टफेिलया
संिध ने ही आधुिनक संप्रभ ु रा य का िनमार्ण िकया और वतर्मान की रा य यव था की
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थापना की। इस यव था की थापना से पूव र् अन ्य प्रकार की राजनीितक यव थाएँ भी
मौजद
ू थी िजनम सबसे प्रमख
ु साम्रा य थे। इन साम्रा य व आज के रा ट्र रा य म कई
िभ नताएँ भी थीं, िजनका उ लेख पथ म िकया गया। कई िचंतक ने यह मत रखा िक
वै वीकरण के प्रभाव ने इस वे टफेिलयन यव था व रा य की संप्रभत
ु ा को काफी बदला है
और इसके िखलाफ चुनौती भी पेश की। पर तु इस वै वीकृत िव व म एक आधुिनक रा य
एक नई प्रकार की राजनीितक यव था का िह सा बन रहे ह, िजसम वे केवल एक-दस
ू रे से
नहीं अिपतु अ य गैर रा य अिभकतार्ओं के साथ भी संबंध म ह, और ये पर पर प्रिक्रयाएँ
एक नये प्रकार की अंतरार् ट्रीय यव था का िनमार्ण करने म लगी हुई ह।
स दभर्-सच
ू ी
बेिलस जॉन, ि मथ टीव और पैिट्रका ओवेन (संपािदत), (2008) ‘द ग्लोबलाइजेशन ऑफ
व डर् पॉिलिटक्
स : इंट्रोडक्शन टू इंटरनेशनल िरलेश स’ ऑक्सफोडर् यूनविसर्टी प्रेस.
जैक्सन रॉबटर् एंड सोरसन जॉजर्, (2010), “इंट्रोडक्शन टू इंटरनेशनल िरलेशनस; थयोरीज़ एंड
ऐप्रोचेस” ऑक्सफोडर् यूिनविसर्टी प्रेस.
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पेनिसलवेिनया टे ट यूिनविसर्टी प्रेस.
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गीतांजिल पि लिशग
13
इकाई-1
अंतररा ट्रीय संबंध को समझने के िलए ऐितहािसक घटनाओं को समझना आव यक है ।
1
िवषय की प्रमख
ु अवधारणाएँ ऐितहािसक पिरि थितय के पिरणाम रही ह । इितहास का
मह व इस त य से भी प ट होता है िक िव वान अतीत की सै धांितक अवधारणाओं को
वतर्मान घटनाक्रम को समझने के िलए दे खते ह। इस संबंध म, यह अ याय अंतररा ट्रीय
रा य प्रणाली के उ भव का िव लेषण प्र तुत करता है ।
बॉक्स : संप्रभत
ु ा
संप्रभत
ु ा राजनीितक अिधकार के िलए नीित बनाने या घरे ल ू या िवदे श म िनणर्य लेने का
ढ़ कथन है । यह पिरभाषा दो बुिनयादी िस धांत पर िटकी हुई है । ये क्षेत्रीयता और
वाय ता के दोहरे िस धांत ह। प्रादे िशकता का ता पयर् है िक रा य एक पिरभािषत
भौगोिलक थान पर अन य राजनीितक अिधकार रखने के अिधकार का दावा करते ह। यह
1
Mingst, Karen (2011), Essentials of International Relations, p. 17.
2
Viotti, Paul and Mark Kauppi (2001), International Relations and World Politics, p. 32.
3
Mansbach, R. and K. Taylor (2008), Introduction to Global Politics, p. 36.
14
संप्रभत
ु ा का आंतिरक आयाम है । वाय ता से ता पयर् यह है िक रा य की सीमाओं के
भीतर िकसी बाहरी कतार् को अिधकार प्रा त नहीं है । यह संप्रभत
ु ा का बाहरी आयाम है ।
संप्रभत
ु ा की अवधारणा ने जोर पकड़ना शु कर िदया और वे टफेिलया की शांित (1648)
के साथ िन ठा व ईमानदारी पर यान किद्रत करने के प म रा ट्र-रा य के िवचार म
योगदान िदया।
1
Viotti and Kauppi (2001), ibid., p. 35.
2
ibid. p. 35, 37.
3
ibid. p. 39.
15
3. पूव-र् वे टफेिलयन चरण म प्रमख
ु ऐितहािसक अंतररा ट्रीय प्रणािलयाँ
3.1 फारसी साम्रा य
फारस (वतर्मान ईरान म किद्रत) प्राचीन दिु नया म शाही संगठन का एक उदाहरण है ।
फारसवासी उन क्षेत्र के थानीय रीित-िरवाज को आ मसात करने म िवशेषज्ञ थे िज ह वे
अपने साम्रा य म सि मिलत करना चाहते थे। इसने सरल िव तारीकरण एवं उनके साम्रा य
के कुशल िनयंत्रण की अनम
ु ित दी। उदाहरण के िलए, उ ह ने प्रशासन और िवज्ञान म िम
की प्रगित को अपनाया। उ ह ने उ म संचार के िलए िविजत क्षेत्र की थानीय भाषा को
सामा य भाषा के प म प्रयोग िकया। फारसी साम्रा य का िवकद्रीकृत िनयंत्रण था। जबिक
आंतिरक कोर को सीधे प्रशािसत िकया गया था, िनयंत्रण उन क्षेत्र म अिधक िवके द्रीकृत था
जो राजधानी से दरू थे। ऐसे क्षेत्र के क्षेत्र अधर्- वाय थे िजसका अथर् था िक उनका कुछ
हद तक िनयंत्रण था। िनयंत्रण बनाए रखने का प्रमख
ु तरीका अनन
ु य के मा यम से था।
राजनीितक शासक, सलाहकार पिरषद की सहायता से, थानीय कमांडर की तुलना म एक
िभ न क्षेत्रािधकार का प्रयोग करते थे। थानीय प्रशासिनक रीित-िरवाज का स मान िकया
गया और दरू -दराज के साम्रा य म क्षेत्रीय और सां कृितक अंतर वाले क्षेत्र को प्रशािसत
करने के िलए अपनाया गया। साम्रा य के प्रित फारसी शासक का ि टकोण घटक क्षेत्रीय
इकाइय को आंतिरक वाय ता प्रदान करने पर आधािरत था। इससे, बदले म, सै य और
प्रशासिनक लागत म काफी कमी आई।
3.2. शा त्रीय ग्रीस
शा त्रीय ग्रीस (छठी - पहली शता दी ईसा पूव)र् म िविभ न राजनीितक सं थाएँ सि मिलत
थीं िज ह शहर-रा य कहा जाता था िजनकी छोटी जनसंख्या व सीिमत बाहरी िनयंत्रण था।
ग्रीक शहर-रा य म सरकार के प्रकार म ऐसे राजतंत्र सि मिलत थे जो िनरं कुशता की ओर
1
ibid. p. 39-51.
16
प्रव ृ थे। अ य प्रकार के शासन म प्रबु ध अिभजात वगर्, शोषक कुलीन वगर् और लोकतंत्र
भी सि मिलत थे।
बॉक्स : अर तू के अनुसार सरकार के प्रकार
अर तू ने शासक की संख्या के आधार पर छह प्रकार की सरकार की पहचान की। शु ध प
आदशर्-प्रकार के होते ह, जो उनके घिटत होने की संभावना को कम करते ह। िवचिलत प
िवकृत प्रकार ह िज ह वा तिवक दिु नया म आसानी से दे खा जा सकता है ।
संख्या शु ध प संगत िवचलन से
िविभ न शहर-रा य ने अपनी वतंत्रता बनाए रखने की िदशा म कायर् िकया। शिक्तशाली
शहर-रा य ने कमजोर शहर-रा य पर हावी का प्रयास िकया और सै य सरु क्षा के बदले म
धांजिल दी। राजनियक प्रथाएँ मुख्य प से प्रितिनिधमंडल पर िटकी हुई थीं िज ह अ य
शहर-रा य म माँग को पेश करने, िववाद को सल
ु झाने या यापार समझौत म प्रवेश करने
के िलए भेजा गया था। 18वीं और 19वीं शता दी म यूरोपीय और अमेिरकी राजनियक के
िलए अंतररा यीय संबंध इस शा त्रीय यूनानी काल पर आधािरत थे1।
1
ibid. p. 41.
17
एथस को धांजिल दे ने के िलए मजबूर िकया गया था। इसके अितिरक्त, एथस ने अपनी
िवदे शी और मह व
पूण र् घरे ल ू नीितय पर हावी होना शु कर िदया।
बॉक्स : शिक्त संतुलन
शिक्त संतुलन को िकसी भी प्रणाली के प म पिरभािषत िकया जा सकता है िजसम
अिभनेता - इस मामले म रा य - अपेक्षाकृत समान शिक्त का आनंद लेते ह और ऐसा कोई
भी रा य या रा य का गठबंधन नहीं है जो िस टम म अ य अिभनेताओं पर हावी होने म
सक्षम हो।
शिक्त संतल
ु न एक एकीकृत िस धांत नहीं है और िविभ न िस धांतकार के वणर्न तथा
िवषय-व त
ु म िभ नता है िक शिक्त संतल
ु न का क्या अथर् है । शिक्त संतल
ु न की धारणा
अिनवायर् प से एक यथाथर्वादी य तता बनी हुई है । मॉग थाऊ जैसे शा त्रीय यथाथर्वादी
तकर् दे ते ह िक एक बहुध्रव
ु ीय प्रणाली अिधक ि थर होती है । केनेथ वा ज जैसे संरचना मक
या नव-यथाथर्वादी िवध्रव
ु ीय प्रणाली के पक्ष म तकर् दे ते ह। शिक्त संतल
ु न एक एकीकृत
िस धांत नहीं है और िविभ न िस धांतकार के वणर्न तथा िवषय-व त ु म िभ नता है िक
शिक्त संतुलन होने का अथर् क्या है ।
18
के िलए पाटार् और अ य जझ
ु ा लोग के साथ बातचीत की शांित के िलए दबाव डाला।
पिरणामी अंतररा ट्रीय यव था वतंत्र रा य के म य शिक्त संतुलन पर आधािरत थी।
शांित अ पकािलक थी और पाटर् स, एथेिनयन और थेबंस ने अपनी-अपनी आिधप य
मह वाकांक्षाओं को बनाए रखा। एक सामा य यूनानी पहचान ने उनके म य यु ध को नहीं
रोका। मैसेडोन के िफिलप और उनके बेटे िसकंदर महान (356-323 ईसा पूव)र् के उदय के
साथ फारसी साम्रा य तथा ग्रीक प्रणाली अंततः मैसेडोिनया के शाही शासन के अधीन आ
गई।
3.3. भारत
जब फारसी साम्रा य ने अपना पव
ू र् की ओर िव तार शु िकया, तो भारतीय शासक और
िशिक्षत जाितय को ‘साम्रा य’ की अवधारणा के बारे म पता चला। फारिसय का प्रभाव
लगभग दो शताि दय तक जारी रहा, 327 ईसा पूव र् तक। इसके प चात ् िसकंदर का
1
Masciulli, Joseph and Mikhail A. Molchanov (2012), “Hegemonic Power”, p. 787-790.
19
आक्रमण हुआ िजससे नए यन ू ानी िवचार सामने आए। बौ ध धमर् के प्रसार का िहंद ू जीवन
पर भी बड़ा प्रभाव पड़ा। यह उथल-पुथल चंद्रगु त मौयर् के उदय की प ृ ठभिू म म थी।
कौिट य ने उसके उ थान म मह व
पूण र् भिू मका िनभाई और िसकंदर की म ृ यु के प चात ्,
दोन ने मौयर् साम्रा य को थािपत करने के अवसर को ज त कर िलया िजसने भारत के
अिधकांश भाग को िनयंित्रत िकया। प्रारं िभक वष म घरे ल ू और िवदे शी सरु क्षा के कारण
यापार म िव तार दे खा गया। तथािप, चंद्रगु त मौयर् भारी-भरकम होने लगे और
पिरणाम व प शत्र ु बन गए। अगली दो पीिढ़य तक साम्रा य िनमार्ण िनरं तर जारी रहा और
उनके पोते, अशोक (272-231 ईसा पूव)र् को एक प्रमख
ु शासक के प म स मािनत िकया
जाता है । अशोक ने प्रारं िभक वष म साम्रा य का िव तार करने के िलए क्रूर तरीके अपनाए
िक तु एक बार बौ ध बनने के प चात ्, वह अपनी प्रजा के क याण पर अपनी िचंता के िलए
जाने जाते थे। य यिप, उनकी म ृ यु के प चात ्, साम्रा य के बंधन ढीले पड़ने लगे। वतंत्रता
की इ छा को पूरे साम्रा य म त व वारा िफर से जोर िदया गया िजससे स ा का संकट
पैदा हो गया। इससे साम्रा य का अंतत: पतन हुआ और भारत वतंत्र यु धरत रा य की
यव था म वापस चला गया।
3.4. रोमन साम्रा य
रोमन साम्रा य साम्रा यवादी अंतररा ट्रीय यव था की अंितम ऐितहािसक अिभ यिक्त है ।
यह एक शहर-रा य के प म प्रारं भ हुआ और िनयत समय म सभी िदशाओं म अपने
िनयंत्रण का िव तार िकया। ऑग टस (63-14 ईसा पूव)र् के शासनकाल से प्रारं भ होकर,
रोमन साम्रा य कुछ शताि दय के िलए आंतिरक प से ि थर था। रोम ने ‘रा य,
अंतररा ट्रीय कानन
ू और अंतररा ट्रीय समाज के बारे म िवचार और यवहार’ को आकार दे ने
म एक प्रमख
ु भिू मका िनभाई।
रोम म कुलीन शासन के िवकास के साथ, सीनेट अि त व म आया तथा कायर्कारी
अिधकार का संचालन िकया। िनयिमत आंतिरक संघषर् के बावजद
ू रोमन शासन का िव तार
हुआ। सक्षम शासक के साथ संयुक्त धन म व ृ िध के साथ सीनेट ने अिधक से अिधक
शिक्त प्रा त करना जारी रखा। सीनेट ने बड़ी चतुराई से महसस
ू िकया िक यिद वे नए
अधीन समद
ु ाय का द ु पयोग करते ह तो उनके दीघर्कािलक िहत को नुकसान होगा। इस
प्रकार, उ ह ने उस आबादी को रोमन कानून व यव था से लाभ उठाने की अनुमित दी। कुछ
यिक्तय के िलए रोमन नागिरकता भी बढ़ा दी गई थी। दरू के समुदाय ने पयार् त व-
शासन का दावा िकया क्य िक प्र यक्ष शासन की िडग्री राजधानी से बढ़ती दरू ी के साथ कम
हो गई थी।
20
250 से 200 ईसा पूव र् तक, रोम और काथज वचर् व की तलाश म दो प्रमख
ु शिक्तयाँ
थीं, लेिकन रोम ने यूिनक यु ध (264 से 146 ईसा पूव)र् म जीत के साथ काथार्िगिनयन
साम्रा य को अवशोिषत कर िलया। यूनािनय और मैसेडोिनया के म य िकसी भी िवरोधी-
आिधप य गठबंधन के अभाव म रोम ने पूव र् की ओर िनयंत्रण प्रा त कर िलया। रोमन
साम्रा य की भिू म को प्रांत म िवभािजत िकया गया था जो रोमन रा यपाल वारा शािसत
और कर लगाए गए थे। रा य को थानीय वाय ता दी गई थी तथा वदे शी रीित-िरवाज
का स मान तब तक िकया जाता था जब तक वे िन ठा की प्रितज्ञा करते थे। कद्र सरकार
की कायर्कारी शिक्त और नौकरशाही कमजोर थी और प्रदे श को प्रभावी ढं ग से िनयंित्रत
करना मिु कल था। ऐसे पिर य म, सै य नेताओं ने केवल और अिधक अशांित पैदा करने
के िलए शू य को भरने के िलए कदम बढ़ाने की कोिशश की। सीज़र ऑग टस ने साम्रा य
को आंतिरक संघषर् से राहत प्रदान की और परम शिक्त को बरकरार रखा। उ ह ने सीनेट के
कुछ िवशेषािधकार और िज मेदािरय को बहाल करके भी वैधता प्रा त की।
1
Viotti and Kauppi (2001), ibid. p. 48
21
और सावर्जिनक जीवन का संचालन िकया जाता था। पि चमी यूरोप म चचर् ने धािमर्क क्षेत्र
म सावर्भौिमक वैधता की घोषणा की। हालाँिक, राजनीितक शिक्त गहराई से खंिडत रही और
कई अिभनेताओं ने वैधता का दावा करने की माँग की।
जमर्नी म किद्रत पिवत्र रोमन साम्रा य की थापना 9वीं शता दी की शु आत म
शारलेमेन ने की थी। उ रािधकािरय शारलेमेन ने शाही शिक्त के मा यम से चचर् की बढ़ती
शिक्त का मक
ु ाबला करने की प्रयास िकया। तथािप, हं गेिरयन आक्रमण के साथ िमलकर
आंतिरक कमजोिरय के कारण पिवत्र रोमन साम्रा य प्रभावी प से व त हो गया। तथािप
संघटक रा य उपि थत थे, िक तु उनके पास कुशल नौकरशाही और सै य बल की कमी थी।
इसिलए, राजाओं के पास थानीय बैरन पर बहुत कम शिक्त थी। पिरणाम व प, यव था
सामंतवाद म पिरवितर्त हो गई जहाँ 19वीं शता दी के दौरान थानीय बैरन को प्रमख
ु ता
िमली। सावर्जिनक स ा को सामंत के िनजी हाथ म रखा गया था, जो राजाओं की कीमत
पर अपना अिधकार रखते थे। पूरे यूरोप म राजनीितक स ा खंिडत थी क्य िक थानीय
सरकार राजाओं के दाव से अिधक शिक्तशाली थी। थानीय बैरन, िबशप, राजा और पोप
सिहत सं थान और यिक्तय के िविवध संग्रह वारा राजनीितक अिधकार का दावा िकया
गया था।1 इन सं थाओं म से िकसी एक को उनकी ि थित के आधार पर राजनियक दजार्
या दत
ू ावास का अिधकार िदया या अ वीकार िकया जा सकता है । म ययुगीन काल म
कूटनीित उपि थत थी। तथािप, रा ट्रीय िहत के थान पर, िवशेष शासक और राजवंश के
िहत उपि थत थे। उ च तर की वंशवादी अ यो या यता थी। जो मख्
ु य प से राजनियक
िववाह और राजनीितक प्रेमालाप का पिरणाम थी।
4. वे टफेिलया
तीस वषर् का यु ध 23 मई, 1618 को प्राग (Prague) म िवद्रोह के साथ शु हुआ।
िवद्रोह मख्
ु य प से सम्राट मिथयास के िव ध एक िवरोध िवद्रोह था, िजसने ऑि ट्रयाई
है सबगर् म ‘प्रित-सध
ु ार’ के साथ आगे बढ़ने का िनणर्य िलया। लामबंदी प्रोटे टट धमर् के
1
ibid. p. 50
22
रईस पर आधािरत थी। 1619 म मथायस की म ृ यु के प चात ्, है सबगर् भिू म को आकर् यूक
फिडर्नड (1619-1637) के िनयंत्रण म छोड़ िदया गया था, जो सध
ु ार के िव ध भी
आक्रामक था। बोहे िमयन िवद्रोिहय को प्रोटे टटवाद के िखलाफ फिडर्नड की इस नीित के बारे
म पता था। उ ह ने 4 नवंबर, 1619 को बोहे िमया के राजा के प म पैलािटन के
कैि वनवादी िनवार्चक फ्रेडिरक v का ताज पहनाया1।
ईसाई धमर् के दो प्रमुख पहल ू - कैथोिलक और प्रोटे टटवाद - उनके िव वास, नु खे व
िनधार्रण एवं अिधकार म िभ नता ह। जबिक कैथोिलक पोप व पदानुक्रिमत अिधकार की
प्रधानता म िव वास करते ह, प्रोटे टट बाइबल को एकमात्र अिधकार मानते ह क्य िक यह
ई वर का वचन है । इसके अितिरक्त, जबिक कैथोिलक कमर्कांड और मोक्ष प्रा त करने के
मानवीय प्रयास म िव वास करते ह, प्रोटे टट इस बात पर जोर दे ते ह िक उ धार केवल
क्राइ ट के मा यम से प्रा त िकया जा सकता है और िकसी भी मानव की धािमर्क प्रशंसा
नहीं की जा सकती है ।
कलिविनज़म
केि वनवाद जॉन केि वन (1509-64) के लेखन पर आधािरत धािमर्क आधार है । यह
प्रोटे टट ईसाई धमर् की एक शाखा है जो बाइिबल को ईसाई जीवन और िवचार के िलए
अंितम अिधकार मानती है । यह पाँच बुिनयादी िस धांत पर आधािरत है , िज ह ‘ यिू लप’
श द से दशार्या गया है —कुल भ्र टता, िबना शतर् चन
ु ाव, सीिमत प्रायि चत, अप्रितरो य
अनुग्रह, और संत की ढ़ता2। 1550 के दशक के बाद केि वनवाद एक ‘अनुशािसत, उग्रवादी
और अंतररा ट्रीय आंदोलन’ के प म उभरा और जमर्न राजकुमार से आकिषर्त हुआ िज ह ने
िनवार्चक फ्रेडिरक पंचम का समथर्न िकया।
1
Nexon, Daniel H. (2009), “Westphalia Reframed”, p. 266.
2
For details, see Melton, J. Gordon (2005), Encyclopedia of Protestantism, New York: facts on File, Inc., p. 117-
120.
23
पैिनश है सबगर् और डच गणरा य के बीच ‘बारह वषर् का संघषर् िवराम’ तब समा त हुआ
जब कैथोिलक बल ने इलेक्टर फ्रेडिरक को स ा से हटाने का प्रयास िकया। आंतिरक
िवभाजन कमजोर िवदे शी गठबंधन , राजनीितक एवं धािमर्क संघष के कारण डच एक
नुकसानदे ह ि थित म थे। 1619 तक िढ़वादी कैि वनवादी पाटीर् ने गणतंत्र को िनयंित्रत
िकया और जमर्नी म चरमपंथी प्रोटे टट को िव ीय और सै य सहायता प्रदान की। अंतत:,
कैथोिलक बल ने 1623 म िनवार्चक फ्रेडिरक को हराया और बावेिरया के मैिक्सिमिलयन को
चुनावी अिधकार िदया। एक प्रितिक्रया के प म, डेनमाकर् के लथ
ू रन राजकुमार िक्रि चयन
IV, नीदरलड, इंग्लड के राजकुमार और फ्रेडिरक पंचम के म य एक नया प्रोटे टट गठबंधन
हुआ। इस प्रकार, पेिनश-डच यु ध जमर्न संघषर् से जड़ु गया। बाद म, ईसाई चतुथ र् की
सेनाओं को 1627 म अ ब्रेक्ट वॉन वाल टीन के नेत ृ व म शाही सैिनक वारा परािजत
िकया गया था। 1629 म, फ्रांस और पेन के म य एक सीिमत यु ध हुआ था। यह यूक
िवंसट िवतीय की म ृ यु के प चात ् मंटुआ के डची पर दाव से संबंिधत था। पेिनश सेना
कैसले (casale)की लंबी घेराबंदी म सि मिलत थी और अक्टूबर 1628 म ला रोशेल शाही
सेना म िगर गई और धमर् के नौव फ्रांसीसी यु ध को समा त कर िदया। फ्रांस कािडर्नल
िरशे यू (Cardinal Richelieu) के िनदशन म कारर् वाई करने के िलए वतंत्र था और फरवरी
1629 म, फ्रांस ने पेन को कैसले (casale) की घेराबंदी उठाने के िलए मजबूर िकया। संघषर्
जारी रहा और डच के साथ यु ध से संसाधन और यान को हटाने का कारण बना1।
फिडर्नड ने मई 1629 के ‘पुन थार्पना के आदे श’ म जमर्न प्रोटे टट के िव ध सख्त
शत िनि चत कीं, िजसने कैि वनवाद को प्रितबंिधत िकया। इसने प्रोटे टट को भड़का िदया
और िरशे य ू ने वीडन के राजा गु तावस एडॉ फस को प्रोटे टट कारण के िलए जमर्नी म
ह तक्षेप करने के िलए मना िलया। वीडन ने बड़ी सफलताओं के साथ शु आत की।
य यिप, नवंबर 1632 तक, इसकी ि थित कमजोर होने लगी और िसतंबर 1634 म
ऑि ट्रया और पेन की संयुक्त सेना वारा अंततः इसे परािजत िकया गया। जमर्नी म
है सबगर् स ा जीत रही थी क्य िक अिधकांश प्रोटे टट जमर्न राजकुमार प्राग की 1635 शांित
के िलए सहमत थे। िरशे यू ने वीडन को यु ध म बनाए रखने के िलए ह तक्षेप करने का
फैसला िकया। जमर्नी के है सबग्सर् पर िबना िकसी दबाव के पेन के पास खुली छूट थी।
साथ ही, यु ध के प्रित फ्रांसीसी प्रितब धता के साथ, तीस वषीर्य यु ध एक पैन-यूरोपीय
यु ध बन गया। वीिडश और फ्रांसीसी सेना जमर्नी म लगी रही िजससे बड़े पैमाने पर
हताहत हुए और नागिरक का िव थापन हुआ2।
1
Nexon, Daniel H. (2009), ibid., p. 268
2
ibid., p. 269-70.
24
4.2 वे टफेिलया की संिध
वे टफेिलया की शांित (1648) ने तीस वषर् के यु ध को समा त कर िदया और अपने
अिधकार क्षेत्र म लोग पर अिधकार का प्रयोग करने के िलए राजकुमार के अिधकार की
थापना की। अपने अिधकार क्षेत्र के भीतर, राजकुमार को िवदे शी संबंध के संचालन म
वाय होना था। इसने धािमर्क स ा के शासन को समा त कर िदया और यूरोप म
धमर्िनरपेक्ष अिधकािरय का उदय हुआ। वे टफेिलया की शांित म दो प्रमख
ु संिधयाँ
सि मिलत थीं, एक ओ नाब्रक ु म पिवत्र रोमन साम्रा य और फ्रांस के म य ह ताक्षिरत थी,
और दस
ू री पिवत्र रोमन साम्रा य और वीडन के म य मु टर म ह ताक्षिरत थी।
1
ibid., p. 270.
2
Mansbach and Taylor (2008), ibid., p. 42-43.
3
op cit.
25
1
Fig: The 1648 Peace of Westphalia: Europe
4.2. संप्रभत
ु ा
यापक वगीर्करण का उपयोग करते हुए, संप्रभत
ु ा श द का प्रयोग चार िभ न –िभ न तरीक
से िकया गया है — घरे ल ू संप्रभत
ु ा, जो “एक रा य के भीतर सावर्जिनक प्रािधकरण के संगठन
और अिधकार रखने वाल वारा प्रयोग िकए जाने वाले प्रभावी िनयंत्रण के तर” को संदिभर्त
करती है ; अ यो याि त संप्रभत
ु ा, जो “सीमा पार आंदोलन को िनयंित्रत करने के िलए
1
Nexon, Daniel H. (2009), ibid., p. 274
26
सावर्जिनक अिधकािरय की क्षमता” को संदिभर्त करती है ; अंतररा ट्रीय कानूनी संप्रभत
ु ा, जो
“रा य या अ य सं थाओं की पार पिरक मा यता” को संदिभर्त करती है ; और वे टफेिलयन
संप्रभत
ु ा, जो “घरे ल ू प्रािधकरण िव यास से बाहरी अिभनेताओं के बिह करण” को संदिभर्त
करता है 1।
बॉक्स : जीन बोिडन और थॉमस हॉ स के अनुसार संप्रभत
ु ा
जीन बोिडन (1530-1596) एक फ्रांसीसी वकील थे जो प्रोटे टट और कैथोिलक के म य
धािमर्क यु ध के युग के दौरान रहते थे। बोिडन ने संप्रभत
ु ा को कानून बनाने की शिक्त के
2
प म समझा। संप्रभत
ु ा ‘रा ट्रमंडल म िनिहत पूण र् और शा वत शिक्त’ थी । गणतंत्र की
अपनी िसक्स बुक्स (1576) म, उ ह ने एक संयुक्त फ्रांस के िलए राजा के िलए अिधक
अिधकार की वकालत की। उ ह ने तकर् िदया िक एक संप्रभु रा य को नागिरक और िवषय
पर सव च शिक्त का आनंद लेना चािहए। तथािप, नेता ई वर के िनयम , प्रकृित के िनयम ,
संवैधािनक कानून वारा सीिमत थे। लोग के साथ िकए गए अनुबंध, वाचा और वादे भी
अिधकार पर सीमाएँ प्रदान करते ह।
‘वे टफेिलया’, एक िवचार के प म िव व यव था के रा य-किद्रत चिरत्र का प्रितिनिध व
करता है जहाँ सद यता िवशेष प से क्षेत्रीय संप्रभ ु रा य को दी जाती है 4। जब इस अथर् म
प्रयोग िकया जाता है , तो यह श द 1648 के ऐितहािसक िबंद ु से आगे बढ़ता है और िव व
1
Krasner, Stephen D. (1999), Sovereignty: Organized Hypocrisy, p. 3-4.
2
Jean Bodin (1976), Six Books on the Commonwealth, Oxford, Basil Blackwell. Quoted in Karen Mingst (2011),
ibid, p. 26.
3
Hobbes, Thomas (1991), Leviathan, edited by Richard Tuck, Cambridge: Cambridge University Press.
4
Falk, Richard (2002), “Revisiting Westphalia, Discovering Post-Westphalia”, p. 312.
27
यव था की एक यापक िवशेषता बताता है — रा य एक अंतररा ट्रीय प्रणाली म एकमात्र
सद य ह।
दस
ू री ओर, ‘वे टफेिलया’, एक प्रिक्रया के प म, रा य और रा य िश प के बदलते
चिरत्र का प्रितिनिध व करता है क्य िक यह संिधय पर वातार्लाप के प चात ् से 350 से
अिधक वष के दौरान िवकिसत हुआ है । यह उस समय का प्रितिनिध व करता है िजसम
उपिनवेशवाद, उपिनवेशवाद, अंतररा ट्रीय सं थान की थापना, वै वीकरण के आगमन और
वैि वक बाजार के उदय और वैि वक नागिरक समाज के उ भव जैसे कुछ प्रमख
ु िवकास दे खे
गए1।
5. िन कषर्
अंतररा ट्रीय संबंध के कई िव वान ने वे टफेिलया की संिधय को आधुिनक अंतररा ट्रीय
संबंध को आकार दे ने वाली प्रमख
ु घटना माना है । य यिप, कुछ िव वान ने वे टफेिलया की
शांित को िदए गए मह व का िवरोध िकया है । सामा य िवचार यह है िक भले ही शांित के
योगदान को नकारा नहीं जा सकता है , यह सझ
ु ाव दे ना अित सरलीकरण होगा िक वषर् 1648
एक वाटरशेड के प म िचि नत था। वे टफेिलया की शांित, प ट होने के िलए, परू े यरू ोप
ु ा का िव तार नहीं करती थी। इसने केवल साम्रा य के संघा मक चिरत्र की पन
म संप्रभत ु :
पिु ट की2।
दस
ू रा पहल ू यह है िक वे टफेिलयन संिध पैन-यूरोपीय भी नहीं थी। इसम केवल तीन
पक्ष सि मिलत थे— पिवत्र रोमन साम्रा य, फ्रांस और वीडन। यह दावा करने के िलए िक
इसे संपूण र् अंतररा ट्रीय प्रणाली पर लाग ू िकया जा सकता है , एक अितशयोिक्त होगी। िजस
स दभर् और पिरि थित के अंतगर्त संिध दजर् की गई थी उसका एक िवशेष ऐितहािसक तकर्
था तथा वतर्मान संदभर् के बारे म ऐसा नहीं कहा जा सकता है ।
संदभर्-सच
ू ी
Bodin, Jean (1976), Six Books on the Commonwealth, Oxford, Basil
Blackwell. Quoted in Karen Mingst (2011), Essentials of International
Relations, New York: W.W. Norton and Company, p. 26.
1
op cit.
2
Benno Teschke (2003), The Myth of 1648: Class, Geopolitics and the Making of Modern International
Relations. London: Verso.
28
Hobbes, Thomas (1991), Leviathan, Richard Tuck (ed.), Cambridge:
Cambridge University Press.
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29
इकाई-1
1. पिरचय
‘पो ट-वे टफेिलया’ श द उस पिरवतर्नशील संदभर् को दशार्ता है िजसम रा य की प्रधानता
पर प्र न उठाए जाते ह। इस िवकास का एक प्रमख
ु कारक वै वीकरण का अ यिधक प्रभाव
रहा है । िव वान ने वे टफेिलयन िव व यव था म िनिहत सम याओं और िवरोधाभास की
पहचान की है । वै वीकरण के आगमन और आतंकवाद के प्रसार से उ प न इक्कीसवीं सदी
की नई चुनौितय के साथ संप्रभत
ु ा की पुनपर्िरभाषा के िवषय म िवचार सामने आने लगे। नई
चुनौितय के िलए िचंता की प्रमख
ु व तु के प म रा ट्र के िवचार पर पुनिवर्चार की
आव यकता है । जब इन ताकत के िनिहताथर् क्षेत्रीय सीमाओं तक सीिमत नहीं ह, तो इन
ि थितय की प्रितिक्रयाओं को सीिमत करना एक त्रिु टपूण र् ि टकोण होगा। इसके अितिरक्त,
तीन सिदय से अिधक पुराने एक आदशर् को िवशेष प से पारं पिरक वैधता की चुनौितयाँ
और शिक्त संतुलन म पिरवतर्न के संदभर् म एक पुनपर्िरभाषा की आव यकता होती है ।1
संप्रभत
ु ा की पिरभाषा, जैसा िक पहले बताया गया है , इस तर पर पन
ु यार्ख्या की
आव यकता है । संप्रभत
ु ा की वतर्मान अवधारणा 1648 म वे टफेिलयन संिधय वारा आकार
की गई अवधारणा नहीं है । वह इसे िवशेष प से पिवत्र रोमन साम्रा य से संबंिधत मानता
है और सावर्भौिमक प से लाग ू नहीं होता है ।2 वै वीकरण का प्रभाव एक बड़ी चन
ु ौती प्र तत
ु
करता है —जबिक राजनीितक संरचना बहुत हद तक रा ट्र-रा य पर आधािरत है , आिथर्क
यव था वैि वक हो गई है । इस अलगाव के कारण, आिथर्क और राजनीितक प्रिक्रयाओं के
प्रबंधक के म य तनाव बना रहता है ।3 मानवािधकार एक अ य मु दा क्षेत्र है िजसम
4
‘संप्रभत
ु ा की पारं पिरक धारणाओं से समझौता िकया गया है ’। िन निलिखत खंड इनम से
कुछ चुनौितय से संबंिधत है ।
1
Kissinger, Henry (2014), World Order, p. 365.
2
Osiander, Andreas (2001), “Sovereignty, International Relations, and the Westphalian Myth”, p. 251.
3
Kissinger, Henry (2014), World Order, p. 368-369.
4
Krasner, Stephen D. (1999), Sovereignty: Organized Hypocrisy, p. 123.
30
2. वे टफेिलयन युग के प चात ् : वे टफेिलयन धारणा के िलए चुनौितयाँ
वै वीकरण के संदभर् म, संप्रभत
ु ा और रा य-किद्रतता की वे टफेिलयन धारणा को चुनौती दे ने
म अिभनेताओं के दो समह
ू सबसे प्रमख
ु ह। एक ओर वे वैि वक िनगम लाभ से प्रेिरत ह
और दिु नया को ‘उ पादन, खपत और िनवेश के िलए एक िवशाल बाजार’ मानते ह। दस
ू री
ओर, ऐसे अंतरार् ट्रीय अिभनेता ह जो अिधक परोपकारी ह और दिु नया को आम मानवता
वारा एक साथ बुनते हुए दे खते ह जो ‘सभी यिक्तय के मल
ू अिधकार ’ को बनाए रखते
ह।1 इन पिरि थितय म, रा य दस
ू र को पुनपर्िरभािषत और यागते हुए कुछ को
समायोिजत और बनाए रखते हुए चुनौितय को समायोिजत करने का प्रयास करते ह।
वे टफेिलयन संप्रभत
ु ा की पिरवतर्नीय धारणा के संदभर् के िलए असंगत प्रतीत होती है िजसम
यह अब यु धरत रा य के िवषय म नहीं अिपतु रा य के भीतर आंतिरक गड़बड़ी के िवषय
म ह। रा य के म य बढ़ती हुई अ यो या यता के साथ, एक क्षेत्र म अशाि त अब अ य
क्षेत्रीय प से सीिमत क्षेत्र को प्रभािवत करने की अिधक संभावना है । इसके अितिरक्त, कई
प्रकार के गैर-रा य अिभनेताओं के प्रसार के साथ रा य के िनिवर्वाद अिधकार पर प्र न
उठाया जाता है ।
1
Falk, Richard (2002), “Revisiting Westphalia, Discovering Post-Westphalia”, p. 321.
2
Kreuder-Sonnen, Christian and Bernhard Zangl (2015), “Which post-Westphalia?”, p. 568.
3
ibid. p.571-572.
31
अंतरार् ट्रीय संगठन और रा ट्र-िनमार्ण : संयुक्त रा ट्र और है ती का िवषय
1
Heintze, Hans-Joachim (2015), “Humanitarian assistance and failed states”, p. 429-430.
32
कोफी अ नान की िरपोटर् ने इस पिरवतर्न का उदाहरण िदया। उ ह ने कहा िक “यिद
आपरािधक यवहार पर झक
ु े हुए रा य जानते ह िक सीमाएँ पूण र् रक्षा नहीं ह और यिद वे
जानते ह िक सरु क्षा पिरषद मानवता के िव ध अपराध को रोकने के िलए कारर् वाई करे गी,
1
तो वे संप्रभत
ु ा की उ मीद म इस प्रकार की कारर् वाई नहीं करगे।”
1
Annan, Kofi (1999), Annual Report of the Secretary-General to the General Assembly.
2
Badescu, Cristina G. (2011), Humanitarian Intervention and the Responsibility to Protect, p. 6.
3
UNGA (2009), “Implementing the responsibility to protect”.
4
ICISS (2001), “The Responsibility to Protect”.
5
Doyle, Michael W. (2006), “Sovereignty and Humanitarian Military Intervention”. p. 4.
33
करे । लोग पर अ याचार िकया जाता है , संभवतः, क्य िक वे अपने उ पीड़क के िलए
अ वीकायर् कुछ अंत चाहते थे। कोई उनकी ओर से और उनके िसर के िव ध ह तक्षेप नहीं
कर सकता। वा ज़र ने यह कहते हुए इसे योग्य बनाया िक ऐसा नहीं है िक उ पीिड़त के
उ दे य आव यक प से यायसंगत ह, बि क यह िक वे उिचत यान दे ने योग्य ह। इसके
अितिरक्त, वह प ट प से अवसर , पसंदीदा एजट , ह तक्षेप के बारे म जानने का तरीका
और ह तक्षेप समा त करने का समय प्रदान करता है ।1
हीलर सरु क्षा पिरषद के ह तक्षेप की पिरवितर्त सीमाओं को भी दे खता है और इसे
कोफी अ नान के दावे के अनु प पाता है िक खतरे म नागिरक की रक्षा के िलए ह तक्षेप
का एक नया मानदं ड है । हालाँिक, वह सतकर् है और तकर् दे ते ह िक “इस मानक पिरवतर्न
की सीमा को बहुत दरू नहीं धकेला जाना चािहए”। संयक्
ु त रा ट्र के ह तक्षेप के एक नए
मानदं ड के िवकास का नेत ृ व पि चमी रा य ने िकया है िज ह ने ‘आदशर् उ यिमय ’ ( हीलर
2004) की भिू मका िनभाई है । हीलर (2004) ने ह तक्षेप को ‘मानवतावादी’ कहने के िलए
ज ट वॉर परं परा से प्रा त चार आव यकताओं की परे खा तैयार की है । ये। (ए) एक उिचत
कारण, या सव च मानवीय आपातकाल होना चािहए; (बी) बल का प्रयोग अंितम उपाय होना
चािहए; (सी) इसे आनुपाितकता की आव यकता को पूरा करना होगा; और (डी) इस बात की
उ च संभावना होनी चािहए िक बल प्रयोग से सकारा मक मानवीय पिरणाम प्रा त ह गे।2
1
Walzer, Michael (2002), “Arguing for Humanitarian Intervention”.
2
Wheeler, Nicholas J. (2004), “The Humanitarian Responsibilities of Sovereignty”.
3
Kukathas, Chandran (2006), “The Mirage of Global Justice”, p. 1-2.
4
Cabrera, Luis (2004), Political Theory of Global Justice, p. 1.
34
नागिरकता कुछ भी हो। वैि वक याय के समथर्क दिु नया को एक सामा य मानवता के
आधार पर दे खते ह जहाँ क्षेत्रीय सीमाएँ सबसे कम आव यक ह।1
सवर्देशीयवाद और इसके प्रकार
को साझा करते ह2—
सवर्देशीयवाद के सभी अनुयायी तीन त व
1. यिक्तवाद - िकसी अ य सांप्रदाियक या रा ट्रीय पहचान के बजाय िचंता की अंितम
इकाइयाँ मनु य या यिक्त ह।
1. नैितक और सं थागत सवर्देशीयवाद
नैितक सवर्देशीयवाद का यह मानना है िक नैितक सरोकार की अंितम इकाई के प म
प्र येक यिक्त का वैि वक कद है । वह अपनी नागिरकता या रा ट्रीयता की िचंता िकए
िबना समान िवचार करने का अिधकारी है । सं थागत महानगरीय लोग वैि वक यव था म
यापक सं थागत पिरवतर्न की आव यकता के िलए तकर् दे ते ह तािक महानगरीय ि ट
को पयार् त प से साकार िकया जा सके।
2. चरम बनाम उदारवादी सवर्देशीयवाद
चरम महानगरीय मू य के ोत के िवषय म कठोर ह और तकर् दे ते ह िक नैितकता के
अ य सभी िस धांत को महानगरीय मू य के संबंध म उिचत ठहराया जाना चािहए।
उदारवादी महानगरीय लोग मू य के ोत पर एक अिधक बहुलवादी रे खा लेते ह और
मानते ह िक कुछ गैर-महानगरीय मू य का भी अंितम नैितक मू य हो सकता है ।
3. कमजोर बनाम मजबूत सवर्देशीयवाद
1
Choudhary, Abhishek (2018), “Global Justice”.
2
Pogge, Thomas W. (1992), “Cosmopolitanism and Sovereignty”, p. 89.
3
Brock, Gillian (2009), Global Justice: A Cosmopolitan Account, p. 11-13.
35
महानगरीय वैि वक िवतरण समानता के अिधक माँग वाले प के िलए तकर् दे ते ह,
िजसका ल य यूनतम स य जीवन जीने के िबंद ु से परे असमानताओं को समा त करना
है ।
2.4. मानव सरु क्षा की अवधारणा
1
UNDP, 1994: 22-25
2
Tadjbakhsh, S. and Chenoy, A. (2007), Human Security: Concepts and Implications.
3
Newman, Edward (2010), “Critical Human Security Studies”, p.78.
4
op. cit.
36
उ प न होते ह।1 लोग के िलए खतरे का प्रमख
ु ोत बाहरी िवरोधी नहीं अिपतु उनके अपने
रा य ह। इस दावे का अथर् यह नहीं है िक मानव सरु क्षा रा य की सरु क्षा के साथ संघषर्
करती है । हालाँिक, यह िनिहत है िक ‘रा य सरु क्षा पर अिधक जोर’ ‘मानव क याण
आव यकताओं’ के िलए हािनकारक है । इस प्रकार, रा य सरु क्षा की पारं पिरक अवधारणा
आव यक है और यह ‘मानव क याण की पयार् त ि थित’ नहीं है ।2
मानव सरु क्षा पर आयोग की िरपोटर्
आयोग ने िन निलिखत िसफािरश प्रदान कीं4—
िहंसक संघषर् म लोग की रक्षा करना।
अ यिधक गरीब को लाभ पहुँचाने के िलए िन पक्ष यापार और बाजार को
प्रो सािहत करना।
पेटट अिधकार के िलए एक कुशल और यायसंगत वैि वक प्रणाली िवकिसत
करना।
1
ibid. 79.
2
ibid. 79.
3
CHS, 2003, p.4
4
Ibid. 133.
37
अिधक प्रबल वैि वक और रा ट्रीय प्रयास के मा यम से सभी लोग को सावर्भौिमक
बुिनयादी िशक्षा के साथ सशक्त बनाना।
िविवध पहचान और संब धता रखने के िलए यिक्तय की वतंत्रता का स मान
करते हुए एक वैि वक मानव पहचान की आव यकता को प ट करना।
2.5 संकट समाज की अवधारणा
क्षेत्रीय सीमाओं को पार करने वाले खतर की वैि वक पहुँच ने कुछ िव वान को ‘जोिखम
समाज’ कहा है । यह पिरवतर्न प ट प से अंतरार् ट्रीय यव था म रा य की प्रधानता को
पुनः पिरभािषत करने के िलए खड़ा है । जोिखम समाज की अवधारणा को पिरभािषत करते
हुए, िगडस का तकर् है िक यह एक ऐसी सामािजक यव था को यक्त करता है जहाँ
यिक्त ‘भिव य के प्रित अिधक य त होता है , जो जोिखम की धारणा उ प न करता है ’।1
उलिरच बेक इसे आधिु नकीकरण वारा प्रेिरत ‘खतर और असरु क्षाओं’ से िनपटने के िलए
‘एक यवि थत तरीके’ के प म दे खते ह।2 अगोचर जोिखम और नुकसान ह िज ह प ट
प से उपल ध नहीं दे खा जा सकता है । बेक ने इसका उपयोग धन और जोिखम समाज के
संदभर् म िकया है । उनका तकर् है िक जब बोधग य धन और अगोचर जोिखम के म य एक
दौड़ होती है , तो ‘अ य जोिखम दौड़ जीतते ह’। अगोचर जोिखम की उपेक्षा करना आगे
जोिखम और खतर के बढ़ने और फलने-फूलने के िलए प्रजनन थल के प म कायर् करता
है । बढ़ती अ यो या यता और अंतरार् ट्रीय मु द की दिु नया म, रा य सरु क्षा की एक संकीणर्
याख्या कोई उ र नहीं है ।
वे टफेिलयन संप्रभत
ु ा की पारं पिरक धारणा पर यिक्तय पर यान दे ने के साथ प्र न
उठाया जाता है । जबिक रा य की संप्रभत
ु ा की पारं पिरक धारणा सरकार वारा क्षेत्र के
िनयंत्रण पर िटकी हुई है , मानव सरु क्षा ि टकोण यह मानता है िक रा य की संप्रभत
ु ा लोग
की सेवा और समथर्न पर िटकी हुई है । ‘सशतर् संप्रभत
ु ा’ का िवचार चलन म आता है जहाँ
रा य की संप्रभत
ु ा कम से कम बुिनयादी अिधकार के संरक्षण पर सशतर् होती है । संप्रभत
ु ा
सीिमत है क्य िक अिधकार के गठन वाले कतर् य अंतरार् ट्रीय समाज से संबंिधत प्र येक संप्रभु
की गितिविध को बािधत करते ह।3 मानव सरु क्षा आयोग, मानव सरु क्षा ट्र ट फंड और
अंतरार् ट्रीय ह तक्षेप और रा य संप्रभत
ु ा आयोग जैसे संगठन मानव सरु क्षा के िवचार को
गित प्रदान करते ह।
1
Giddens, Anthony, 1999,
2
Beck, Ulrich, 1992
3
Shue, Henry (2004), “Limiting Sovereignty”, p. 15.
38
3. बहस योग्य पो ट-वे टफेिलयन संभावनाएँ
िरचडर् फा क (2002) “वे टफेिलयन के प चात ् के चार अंत” की पहचान करता है —िव व
सरकार; वैि वक बाज़ार; वैि वक गाँव और वैि वक साम्रा य। वह उ ह इस त य के कारण
1
मत
ृ अंत कहता है िक वे “अप्रा य या अवांछनीय, या दोन ” ह। इन पिर य की यूटोिपयन
प्रकृित उ ह गंभीर यान दे ने योग्य नहीं बनाती है । हालाँिक, उनम अंत र्ि ट होती है जो
वैि वक झान और आकांक्षाओं के संबंध म पिरवतर्न को समझने म सहायता करती है ।
3.1 िव व सरकार
यथाथर्वादी और नवयथाथर्वादी अ तरार् ट्रीय यव था को हॉि सयन प्रकृित की अव था के
समान मानते ह। प्रकृित की ऐसी ि थित म याय और अ याय की धारणाओं के िलए
कोई थान नहीं है । प्र येक इकाई अपने अि त व को सिु नि चत करने के िलए अपनी
शिक्त के भीतर हर साधन को आगे बढ़ाने के िलए तकर्संगत प से प्रेिरत होती है और
1
Falk, Richard (2002), “Revisiting Westphalia, Discovering Post-Westphalia”, p. 332.
2
Lu, Catherine, “World Government”.
3
ibid.
4
Falk, Richard (2002), ibid., p. 334
5
Lu, Catherine, “World Government”.
39
यह दस
ू र के िहत की कीमत पर भी ऐसा करती है । केनेथ वा ज ने अपने 1979 के
लेख योरी ऑफ इंटरनेशनल पॉिलिटक्स म, िव व सरकार पर संप्रभ ु रा य की एक
प्रणाली का समथर्न िकया। वा ज के अनुसार, िव व सरकार सावर्भौिमक, उदासीन,
िन पक्ष याय, यव था या सरु क्षा प्रदान नहीं करे गी। हालाँिक, यह घरे ल ू सरकार की
भाँित ही होगा और अपने वयं के िवशेष या िविश ट संगठना मक िहत से प्रेिरत होगा।
इन िहत का पीछा “रा य के िहत और वतंत्रता की कीमत पर” िकया जाएगा। इसिलए,
जबिक वा ज अंतरार् ट्रीय अराजकता के गण
ु का ज न मनाता है िजसके अनुसार रा य
को “रा ट्रीय वतंत्रता” दी जाती है । इसिलए, वा तव म, वा ज का तकर् है िक “संप्रभ ु
रा य का एक परमाण ु आदे श” एक “अिधक एकीकृत एक से बेहतर है जो रा य पर बोझ
डाल सकता है और उनकी वाय ता को बािधत कर सकता है ”।
बीसवीं सदी के म य के शा त्रीय यथाथर्वादी समकालीन यथाथर्वािदय की तुलना म
वैि वक सं थागत सध
ु ार के िवचार के प्रित अिधक सहानुभिू त रखते थे। शा त्रीय और
प्रगितशील यथाथर्वादी जैसे रे नहो ड नीबुहर, ई.एच. कैर, हं स मोगथाऊ, जॉन हज़र् और
फ्रेडिरक शुमान, एक “वैि वक सध
ु ारवादी एजडा के पक्ष म थे, जो आिथर्क वै वीकरण,
तकनीकी पिरवतर्न, आधिु नक कुल यु ध और परमाण ु क्रांित के आगमन से प्रेिरत था”।
रे नहो ड नीबुहर के अनुसार, वैि वक संघीय यव था के प म िव व सरकार के प्रित
वैि वक राजनीितक पिरवतर्न की यवहायर्ता “गहन वैि वक सामािजक एकीकरण और
सामंज य” पर िनभर्र करे गी। नीबुहर के अनस
ु ार वैि वक राजनीितक एकता के िलए
आव यक सामािजक और सां कृितक आधार के अभाव म िव व सरकार की उपलि ध
अवांछनीय होगी। इस प्रकार की िव व सरकार को शासन करने के िलए स ावादी उपकरण
की आव यकता होगी और इससे वैि वक अ याचारी शिक्त का उदय होगा।
40
पर राजनीितक अ याचार और साम्रा यवाद म यवहार म अनुवाद करते ह। िव व सरकार
के िवक प के प म, िक्रस ब्राउन “नैितक प से वाय ता की बहुलता का िवचार, शांित
और कानून के ढाँचे म एक-दसू रे से संबंिधत समद
ु ाय को प्र तुत करता है ”। तकर् की यह
पंिक्त कांिटयन आदशर् के अनु प है । आदशर् प से क पना की गई एक अंतरार् ट्रीय
समाज की थापना, एक सव च िव व सरकार को अनाव यक बना दे गी।
1
ibid., p. 333
41
3.3 वैि वक गाँव
वैि वक गाँव के िवचार को टे लीिवजन और मीिडया के बढ़ते प्रभाव से प्रो साहन िमला है
िजसने साझा जाग कता और पर पर जड़
ु ाव की भावना उ प न की है । इस दावे का पुरजोर
समथर्न है िक नागिरकता ‘नेिटजनिशप और साइबर पॉिलिटक्स वारा प्रित थािपत’ हो रही
है । प्र तावक अिधकतम उदारवादी ह जो मानते ह िक रा य के िनयम पर िव वास नहीं
िकया जा सकता है । भले ही सच
ू ना और संचार प्रौ योिगकी म क्रांित का प्रभाव अभत
ू पूव र् है ,
यह सझ
ु ाव दे ना एक दरू ि ट होगी िक यह उपल ध प्रणािलय को पण
ू र् प से पिरवितर्त कर
दे गा। इन पिरवतर्न को मौजद
ू ा संरचनाओं के भीतर समायोिजत करने की अिधक संभावना
है । साथ ही, ‘गैर-पि चमी’ दिु नया वैि वक गाँव के िवचार को अिनवायर् प से आिधप य
मानती है । नागिरक समाज के मा यम से थोपे गए वै वीकरण का िवरोध करने वाली ताकत
1
एक वैि वक गाँव के िकसी भी िवचार के िलए एक मजबत
ू चन
ु ौती पेश करती ह।
4. िन कषर्
1
ibid., p. 335.
2
op. cit.
3
ibid. p. 336
42
की ओर यान किद्रत करना और अिधक ‘ यायसंगत’ आदे श की माँग इस प्रकार की
प्रविृ य का उदाहरण है । वे टफेिलयन प्रणाली अपनी पिवत्रता खोती िदख रही है और
िनिवर्वाद सांिख्यकी एजडा कई साइट से चुनौितय का सामना कर रहा है । हालाँिक, यह
सझ
ु ाव दे ना एक अित सरलीकरण होगा िक अंतरार् ट्रीय संबंध एक ऐसे चरण म प्रवेश कर रहे
ह जो रा य प्रणाली से वतंत्र है । रा य प्रणाली के सामने आने वाली चुनौितयाँ सध
ु ार की
गज
ुं ाइश प्रदान करती ह जहाँ कठोरता को अिधक समायोजना मक ि टकोण से प्रित थािपत
िकया जा रहा है ।
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45
इकाई-2
पाठ-1 : अंतररा ट्रीय संबंध एवं यथाथर्वाद
डॉ. प्रमोद कुमार
पिरचय
अंतररा ट्रीय संबंध के अ ययन एवं उसकी समझ िवकिसत करने के िलए यथाथर्वाद को
सवार्िधक मह वपूण र् िस धा त के प म माना जाता है । यथाथर्वादी पर परा को हम िविभ न
प्राचीन िव वान के पिरप्रे य से समझ सकते ह जैसे यूनानी दाशर्िनक यूिसडीएड, इटली के
िचंतक मैिकयावेली, िब्रिटश राजनीितक दाशर्िनक थॉमस हॉ स, फ्रांसीसी िव वान सो
इ यािद। बीसवीं शता दी म एडवडर् है लट टे ड कार, रै नहो ड नेबूर, हं स जे. मोरगे थो, जॉजर्
कैनन, रे मड
ं एरोन एवं अ य यथाथर्वादी िचंतक ने अंतररा ट्रीय राजनीित की यावहािरकता
पर बल दे त े हुए इसके अ ययन के िलए अ यंत मह वपण
ू र् तकनीक को िवकिसत िकया।
नव-यथाथर्वादी अथवा संरचना मक यथाथर्वादी िचंतक जैसे केनेथ वा ज, टीफन कासर्न
और रॉबटर् िगलिपन ने शीतयु यो र िव व की संरचना को गहराई से िव लेिषत िकया। जॉन
िमयरशेमर, रे डल वेलर, चा सर् गलेशर, टीफन वॉ ट सभी ने समसामियक िव व
राजनीित की यथाथर्ता एवं व तुपरकता का िववेचन िकया। वहीं दस
ू री ओर नव-पर परागत
यथाथर्वािदय जैसे फरीद जकािरया, िगडेनरोज ने तकर् िदया िक अंतररा ट्रीय राजनीित म
रा ट्र-रा य अपनी सापेिक्षक क्षमताओं के साथ-साथ घरे ल ू कारक जैसे राजनीितक संरचना
और नेत ृ व आिद से भी प्रभािवत होते ह। अतः अंतररा ट्रीय राजनीित के अ ययन के क्रम
म घरे ल ू कारक के मह व को दरिकनार नहीं कर सकते।
अंतररा ट्रीय राजनीित का यथाथर्वादी पिरप्रे य
46
स पूण र् यथाथर्वादी सै धाि तक पर परा म सवार्िधक मह वपूण र् िवशेषता है । इस प्रकार
यथाथर्वादी रा य से परे िकसी भी अ य सं थाओं के मह व को गौण प से ही वीकार
करते ह। अंतररा ट्रीय अराजकतापूण र् यव था म रा य अपने िहत की पूितर् म सैदव अपनी
‘उपयोिगता अिभविधर्’ म ि टगोचर होते ह। ये रा य अपने रा ट्रिहत की पूितर् के िलए
हमेशा व-किद्रत यवहार करते हुए नजर आते ह। जहाँ तक रा ट्र िहत का सवाल है तो ये
सदै व शिक्त के प म ही पिरभािषत होते ह। इस प्रकार शिक्त तथा रा ट्रिहत पर पर
अ तर-स बि धत होते ह। तो कहा जा सकता है िक िकसी भी रा ट्र की िवदे श नीित हमेशा
रा ट्रिहत के म दे नजर िनधार्िरत होती है । यथाथर्वादी मािमर्क और गैर मािमर्क रा ट्रिहत का
भी िवभाजन करते हुए तकर् दे त े ह िक इकाइयाँ कभी भी अपने मािमर्क रा ट्रिहत से
समझौता करने को तैयार नहीं होती चाहे उ ह इनकी रक्षा के िलए यु ध ही क्य न करना
पड़े लेिकन वो इससे भी पीछे नहीं हटती।
अंतररा ट्रीय अराजकतापूण र् यव था म रा य सैदव अपने ‘अि त व रक्षा’ को लेकर
िचंितत रहते ह िजसकी रक्षाथर् वे अपनी ‘सरु क्षा अिभविधर्’ को प्राथिमकता दे ते ह। इसिलए
सरु क्षा के िलए वे ‘ व-रक्षा’ के िस धांत को ही अिनवायर् प म वीकारते ह। क्य िक
अंतररा ट्रीय यव था म कोई भी दे श िकसी अ य दे श की रक्षा हे तु तब तक त पर नहीं
होता जब तक िक उसके अपने िहत की पूितर् इसके वारा सिु नि चत न होती हो।
इस प्रकार अपनी सरु क्षा एवं अि त व रक्षा के िलए रा य को इस अराजकतापूण र्
यव था म अकेले ही संघषर् करना पड़ता है । इस त य को वीकारते हुए यथाथर्वादी मानते
ह िक इकाइयाँ सैदव अपने िहत को लेकर ही अग्रसर होती ह। इसे प्रमािणत करने के िलए
हम िवतीय िव वयु ध के उदाहरण ले सकते ह जब जमर्नी और फ्रांस के म य यु ध हुआ।
उस दौरान फ्रांस की शिक्त क्षमता जमर्नी की तल
ु ना म िन न तर थी। इसके
पिरणाम व प फ्रांस जमर्नी के हाथ परािजत हो गया। लेिकन फ्रांस की रक्षा के िलए उसके
यरू ोपीय िमत्र और अमेिरका उसकी सहायता के िलए नहीं आये। ज्ञात य है िक इस संघषर् म
जमर्नी ने फ्रांस के बबर्र तरीके से दमन कर िदया था। इस प्रकार अंतररा ट्रीय यव था म
रा ट्र को संघषर् की ि थित म सैदव अकेला ही दे खा जाता रहा है । इसिलए रा य को
अंतररा ट्रीय अराजकतापूण र् यव था म व सहायता पर िव वास करते हुए अपनी शिक्त म
अिभविधर् करते रहना पड़ता है ।
47
िलए ये सवर्था मह वहीन होते ह। इटली के प्रिस ध दाशर्िनक िनकोलो मैक्यावली ने अपनी
कृित ‘द िप्रंस' म उ लेिखत िकया िक शासक को अपनी स ा को बनाये रखने, उसे सु ढ़
करने और जनता पर अपनी पूण र् स ा के उपयोग के िलए नैितक और स यिन ठ होने की
कतई आव यकता नहीं है । मैक्यावली का यह भी मानना है िक अ य दे श के साथ स ब ध
के अनुसरण म भी शासक को नैितकता के मानदं ड के अनुसरण की आव यकता नहीं है ।
प्रारि भक ऐितहािसक यथाथर्वादी
यथाथर्वादी िचंतन एवं िस धांत की जड़े एवं उ पि हमे प्राचीन िव वान जैसे यूसीडाइड,
सन
ू ज़,ू कौिट य म दे खने को िमलती है । ग्रीक इितहासकार िव वान ् यूसीडाइड को सबसे
प्राचीन यथाथर्वादी की ेणी म रखा जाता है उ ह ने पेलोपोनेिसयन यु ध (431-404 ईसा
पूव)र् का अ ययन िकया था। पेलोपोनेिसयन यु ध का िव लेषण करने के बाद उ ह ने पाया
िक रा य के बीच जो संघषर् और प्रित पधार् होती है उसका मख्
ु य कारण अंतररा ट्रीय
राजनीित म स ा के असमान िवतरण है । उनका तकर् है िक सभी रा य को शिक्त के
असमान िवतरण की वा तिवकता को वीकार करना चािहए तािक वे वैि वक शिक्त
पदानुक्रम म अपनी ि थित म सध
ु ार कर सक। जो रा य कम समय म अिधक शिक्तशाली
हो जाते ह, वह अिधक सरु िक्षत, वतंत्र और लंबी अविध के िलए वचर् वशाली हो जाते ह।
इसिलए अंतररा ट्रीय राजनीित म रा य को अपने ि टकोण म सतकर् और िनणर्या मक होना
चािहए।
प्राचीन चीनी िव वान सन ज़,ु िज ह ने 2000 साल पहले अपने िवचार और िस धांत
प्र तुत िकये, उ ह ने िव लेषण िकया की रा य के बीच यु ध की िनरं तरता चलती रहती है ।
सन
ू ज़ु का मानना था िक राजाओं को सश त्र िवपरीत पिरि थितय से िनपटने के िलए
अपने तकर् म अ यिधक नैितकता नहीं होनी चािहए, बि क अपने िहत की रक्षा करने और
जीिवत रहने के िलए सभी के साथ संघषर् करना चािहए।
यथाथर्वाद के िवचार के ेणीब ध िवचारक म, कौिट य प्राचीन भारतीय िव वान का
एक बहुत सम ृ ध योगदान दे ता है । कौिट य अंतररा ट्रीय राजनीित के अ ययन म शिक्त
और प्रस नता की अवधारणा प्र तुत है । वह तकर् दे ते ह िक शिक्त के िववेकपूण र् उपयोग से
खश
ु ी हािसल की जा सकती है । वह यह भी कहते ह िक प्रस नता सफल िवदे श नीित का भी
एक संकेत है िजसका धािमर्कता और आंतिरक ि थरता म आधार है , िजससे अंतररा ट्रीय
ि थित के िनधार्रण म नई अवधारणाएँ सामने आती ह। कौिट य के मंडल िस धांत ने
िविजगीष ु (धमीर् राजा) और उसके िमत्रो की पहचान की — एक िवज अिर (िविजगीष ु का शत्र)ु
और उसके िमत्र अिधक े ठ और जिटल ह; ढीले िवध्रव
ु ी प्रणाली की समझ की तल
ु ना म।
यह इंिगत करता है िक भौगोिलक प से दे श करीब हो सकते ह और इसिलए एक ढीली
48
किद्रतता का अनुकरण करते ह। गुटिनरपेक्ष राजाओं और तट थ उदासीन राजा की कौिट य
की पहचान अंतररा ट्रीय संबंध के अ ययन म अ िवतीय योगदान है । कौिट य की
अंतररा ट्रीय संबंध की समझ म राजा का थान िनधार्रण का यह अथर् है िक एक का पड़ोसी
िकसी का द ु मन है और इसी आधार पर पड़ोसी शत्र ु अ य का िमत्र है । कौिट य राजा
(िविजगीषु) को अपनी शिक्त बढ़ाने के िलए प्रेिरत करता है और इसिलए जब तक वह
‘सावर्भोम’ (संपूण र् प ृ वी का राजा) नहीं बन जाता तब तक िनरं तर यु ध म संलग्न रहता है ।
इसिलए कौिट य ने प्राचीन समय म यथाथर्वादी िवचार को िस ध िकया था, जहाँ
अंतररा ट्रीय संबंध म शिक्त और गौरव प्रा त करने के िलए िहंसा का उपयोग िकया गया
था।
उ रकालीन ऐितहािसक यथाथर्वादी
अंग्रेजी राजनीितक दाशर्िनक थॉमस हॉ स के काम म यथाथर्वादी िवचार की समझ को
प्रमख
ु ता से यक्त िकया गया था और इनकी अवधारणा को काफी हद तक वीकार िकया
गया था। हॉ स की महान कृित लेिवथान को 1651 म प्रकािशत िकया गया था िजसम
मानव वभाव की प्रकृित की ि थित की क पना की गई थी। हॉ स ने तीन धारणाएँ बनाईं,
पहला, सभी मानव समान ह, दस
ू रा, अराजकता म मनु य की िच होती है । और तीसरा, वे
49
प्रित पधार्, अंतर और मिहमा से प्रेिरत ह। इन पिरि थितय का पिरणाम सभी के िखलाफ
यु ध था। हॉ स का मानना है िक चँ िू क मानव खुद को समान मानते थे, इसिलए उ ह ने
संसाधन और स ा पर िनयंत्रण के िलए प्रित पधार् की। इस प्रिक्रया म कमजोर मानव
मजबूत मानव से दब गए। पु ष के बीच िनरं तर संघषर् ने मनु य के जीवन को एका त,
गरीब, बुरा, क्रूर और छोटा बना िदया। िजससे मनु य शिक्तशाली लेिवयाथन के िवचार की
क पना करते ह जो वचर् वशाली है । हॉ स का मानना था िक लड़ाई, मजदरू ी यु ध, संसाधन
और मिहमा के िलए प्रित पधार् करना मानव वभाव था। सभी का सभी के िखलाफ यु ध ने
एक अंतररा ट्रीय अराजकतापूण र् यव था का अनुकरण िकया। िजसम वैि वक यव था के
थािय व के िलए एक वचर् वशाली की आव यकता थी। हॉ स का मानना था िक अंतररा ट्रीय
संबंध म अराजकता प्रणाली प्रमख
ु थी और यिक्त को अपने अि त व को बनाये रखने के
िलए िनरं तर संघषर् करना पड़ेगा। आधुिनक समय म यथाथर्वाद की समझ म हॉ स के िवचार
प्रमख
ु भिू मका िनभाते ह। समाज म अराजकता और पदानुक्रम का हॉ स का य
अंतररा ट्रीय अराजकता यव था को समझने का एक उदाहरण था। इसिलए हॉ स ने
यथाथर्वाद के िवचार को आकार दे ने म मह वपण
ू र् भिू मका िनभाई।
शा त्रीय यथाथर्वाद
ई.एच. कैर का योगदान (E.H. Carr)
िब्रिटश इितहासकार और पत्रकार ई.एच. कैर ने अपनी कृित ‘द वटी ईयसर् ऑफ़ िक्रिसस’
(1939) यथाथर्वाद और यूटोिपयनवाद के बीच अंतर करते ह। कैर ने यथाथर्वाद की नींव की
ि थित का इ तेमाल िकया, जो मैिकयावेली के लेखन म रे खांिकत है । वह मानते ह िक
इितहास कारण और प्रभाव का अनुक्रम है जो न केवल मह वकांशी लेिकन बौ िधक प्रयास
50
से उजागर करना है । दस
ू रा, िस धांत प्रैिक्सस का िनमार्ण नहीं करता है बि क यह राजनीित
वारा बनाया गया है । तीसरा, राजनीित नैितकता से िनधार्िरत नहीं होती है । यहाँ तक िक
नैितकता राजनीित का एक कायर् है और नैितकता शिक्त का उ सजर्न है । इसिलए
अंतररा ट्रीय संबंध म प्रमख
ु शिक्त ह न िक नैितकता। कैर का मानना है िक अंतररा ट्रीय
संबंध की वा तिवकता को समझने के िलए यथाथर्वाद एक अ छी तरह से थािपत मागर् है ।
दस
ू री ओर यूटोिपयन ने ‘क्या होना चािहए’ पर जोर िदया और वे क पनाओं से दिु नया को
बनाए रखने की कोिशश करते ह। यूटोिपयन का मानना है िक अगर लीग ऑफ नेशंस जैसी
अंतररा ट्रीय एंजेिसयाँ मौजद
ू ह तो एक शांितपूण र् दिु नया हािसल की जा सकती है । लेिकन
कैर ने कहा िक लीग ऑफ नेशंस अवा तिवक है और वसार्य की संिध िवतीय िव व यु ध
का मख्
ु य कारण है । उ ह ने जापान और मंचूिरया (1931) और इटली के अबीसीिनया
(1935) पर हुए हमले के बीच कुछ उदाहरण िदए, िजसके दौरान रा ट्र संघ इस समय एक
मकू दशर्क के प म दे खता रहा। इसिलए, एक अंतररा ट्रीय एजसी होते हुए भी यह पूरी
तरह से यु ध को रोकने और शांितपूण र् िव व यव था बनाए रखने म िवफल रही। अंत म,
ई.एच. कैर ने आरोप लगाया िक क पनावादी भी स ा की राजनीित की ठोस याख्या करने
म असमथर् ह।
हस जे. मोगथाऊ का योगदान
51
िव तार करना होगा। िनकोलो मैिकयावेली की तरह मागथाऊ भी मानव वभाव के मल
ू
लक्षण की याख्या करते ह तथा मनु य के वभाव की अपूणत
र् ा पर बल दे ते ह। उनका तकर्
है िक िव व म या त खािमयाँ मानव प्रकृित म िनिहत का पिरणाम। मोगथाऊ ने संयुक्त
रा य अमेिरका की िवदे श नीित के गठन म मह वपूण र् योगदान िदया, अमेिरकी िवदे श नीित
के िस धांत म उनके िवचार के िविभ न प्रितिबंब दे खे जा सकते ह। उ ह ने अपने छह
ु नींव डाली।
िस धांत के वारा समकालीन िव व की राजनीित और यथाथर्वाद की प्रमख
मोगथाऊ के छह िस धांत
1. मोगथाऊ का मानना है िक आम तौर पर राजनीित व तुिन ठ िनयम वारा शािसत
होती है और उनकी जड़ मानव वभाव म होती ह जो िक अपिरवितर्त होता ह।
अंतररा ट्रीय संबंध के अनुशासन को यावहािरक प म समझने के िलए एक तकर्संगत
धारणा िवकिसत करना संभव है । मानव प्रकृित से जड़
ु े हुए ये सावर्भौिमक कानून समय
और थान के अनुसार नहीं बदलते, यही कारण है िक ये मानदं ड मानव प्राथिमकताओं
के िलए अभे य ह। अंतररा ट्रीय संबंध और उनकी बौ िधक नींव हमेशा मानव प्रकृित
म िनिहत कानून पर िनभर्र है । इसिलए, ये व तुिन ठ िनयम अंतररा ट्रीय संबंध के
िस धांत म पिरलिक्षत होते ह।
52
चचार् करते ह। वे यापक प म शिक्त को पिरभािषत करने की कोिशश करते ह तथा
वह भी तकर् दे त े ह िक स ा का व प और िवषय-क्षेत्र समय, थान और संदभर् के
साथ बदलता रहता है । मोगथाऊ शिक्त और िहत के बीच एक अहम स ब ध पाते ह;
यिद शिक्त के आयाम म िकसी प्रकार का पिरवतर्न होता है , तो याज का उ दे य
वयं ही पिरवितर्त हो जाता है ।
6. राजनीितक यथाथर्वाद राजनीितक क्षेत्र की वाय ता को बनाए रखता है । राजनीितक
यथाथर्वाद के अनस
ु ार राजनीित नैितकता, अथर् यव था और िकसी भी प्रकार के
सावर्भौिमक कानन
ू से वाय है । वहीं दस
ू री ओर अंतररा ट्रीय राजनीित हमेशा शिक्त,
तकर् और रा ट्रीय िहत की प्रमख
ु अवधारणाओं से िनधार्िरत होती है ।
आलोचना
53
1. यवहारवादी का मानना था िक शा त्रीय यथाथर्वाद एक सस
ु ग
ं त िस धांत नहीं था और
यह वैज्ञािनक जाँच को संतु ट नहीं करता था।
2. राजनीितक यथाथर्वाद म बड़ी संख्या म योगदान के बावजद
ू सटीकता की कमी है । यह
शिक्त संतुलन, रा ट्रीय िहत और अवरोध जैसी अवधारणाओं के बारे म िनराशापूण र्
िवचार प्रदान करता है ।
3. यह त या मक िव लेषण और िवषय का यवि थत अ ययन करने म असमथर् था।
यथाथर्वाद रा ट्रीय सरु क्षा, सै य हिथयार और श त्र जैसे यावहािरक दिु नया के कुछ
सवाल के जवाब दे ने म भी िवफल रहा।
5. उ र आधुिनकतावादी ने मोगथाऊ के िवचार की आलोचना की, िक मानव वभाव
वाथीर् और नकारा मक है । उ ह ने यथाथर्वादी दावे का िवरोध िकया िक शिक्त और
ज्ञान का व तुिन ठ अथर् है । तथा िन निलिखत धारणाओं ने अंतररा ट्रीय संबंध
िस धांत म शा त्रीय यथाथर्वाद की प्रबलता को चुनौती दी।
जे.एन. िटकनर वारा मॉगथाऊ की आलोचना
54
िपतस
ृ ा मक पिरप्रे य है । उ ह ने बताया की अंतररा ट्रीय संबंध का िवषय मिहलाओं के
िलए अ वीकायर् हो गया है । और यह अपनी मा यताओं, िववरण और पिरप्रे य के संदभर् म
पु ष व पर आधािरत है । इसिलए, पु ष के िलए यह एक आरामदायक क्षेत्र प्रदान करता है ,
लेिकन मिहलाओं के िलए यह अमानवीय है ।
िटकनर यह धारणा क्य बनती है ?
मिहलाओं को अ य उप-प्रभाग जैसे िक िलंग अ ययन, राजनीितक अथर् यव था और
पयार्वरण अ ययन आिद म मिहलाओं के योगदान को उ कृ ट माना जाता जबिक
अंतररा ट्रीय िस धांत की मख्
ु यधारा के सरु क्षा संबंिधत अ ययन व बल के उपयोग या बल
के उपयोग के खतरे के अ ययन म उ ह पयार् त थान नहीं िदया गया है । अंतररा ट्रीय
समाज पु ष व मिहलाओं म पक्षपात के िस धांत का िशकार रहा है । सरु क्षा म, सै य सरु क्षा
का अनुपातहीन प्रभु व है , जहाँ पु ष जो कुछ भी कर रहे ह वह मानकीकृत है । अंतररा ट्रीय
राजनीित म शांित की अपेक्षा शिक्त पर अिधक बल िदया गया है , जो िक शोषणा मक
क्षमता के िव तार पर आधािरत है । रा य को समाज पर िवशेषािधकार प्रा त है , साधनवाद
को प्रिक्रया पर िवशेषािधकार प्रा त है और तकर् को नैितकता पर िवशेषािधकार है ।
नव यथाथर्वाद/ संरचना मक यथाथर्वाद
नव यथाथर्वाद अथवा संरचना मक यथाथर्वाद को अंतररा ट्रीय संबंध म मख्
ु यधारा या
आधारभत
ू िस धांत के प म जाना जाता है । नव यथाथर्वाद का यह िव वास है िक
अंतररा ट्रीय राजनीित का मल
ू भत
ू चिरत्र अराजकतापूण र् होता है इसिलये अंतररा ट्रीय यव था
म रा य के यवहार यव थागत अवरोधक एवं संरचना वारा िनधार्िरत होते ह। इस
अराजकतापूण र् िव व यव था म इकाइयाँ सदै व अपने अि त व की रक्षा और सापेिक्षत शिक्त
की अिभविधर् को लेकर िचंितत होते ह। िकंतु इकाइयाँ अपने अि त व की रक्षा को केवल
‘ व-सहायता’ वारा ही सिु नि चत कर सकती है । इस प्रकार िकसी एक कद्रीय अिधस ा/
सरकार के अभाव मे रा य हमेशा शिक्त अिभव ृ िध के िस धांत का अनुसरण करते हुए
यव था म वयं को बनाये रखते ह। रा य-किद्रत ि टकोण नव-यथाथर्वाद की एक और
मह वपूण र् अवधारणा है , इनका मानना है िक अंतररा ट्रीय संबंध म रा य सवर्प्रमख
ु एवं
एकमात्र अिभकतार् होते ह, अंतरा ट्रीय राजनीित की धुरी के कद्र म सदै व रा ट्र- रा य ही पाये
जाते ह। नव-यथाथर्वाद के प्रमख
ु िव वान के प म केनेथ वॉ ज़, जॉन मीयरशीमर,
जोसेफ ग्रीको और टीफ़ेन, वॉ ट इ यािद को माना जाता है ।
नव यथाथर्वाद म केनेथ वॉ ज़ का योगदान
केनेथ वॉ ज़ की कृित ‘िथयरी ऑफ इंटरनेशनल पॉिलिटक्स’ (1979) को यथाथर्वादी धारा
की नीव डालने वाली रचना के प म वीकारा जा सकता है । राजनीितक िवज्ञान म केनेथ
55
वॉ ज़ का योगदान नव-यथाथर्वाद के िनमार्ण-कतार् के तौर पर माना जाता है । इनका मानना
है िक रा य का यवहार यव था के दबाव से िनमंित्रत होता है इसीिलए रा य के समक्ष
बेहद कम िवक प ही शेष बचते ह। इनका मानना है िक अंतरा ट्रीय यव था थायी प म
अराजकतापूण र् होती है । इ ह ने अराजकतापूण र् अंतररा ट्रीय यव था एवं पादसोपानीय घरे ल ू
राजनीितक यव था का बेहद तािकर्क िवभेदन िकया िजसे इ ह ने आदे शा मक िस धांत
(ordering principles) का नाम िदया। वॉ ज़ का मानना है िक घरे ल ू राजनीितक यव था
का व प पादसोपानीय होता है क्य िक घरे ल ू तर पर यिक्तय के अतािकर्क एवं दरु -
यवहार को िनमंित्रत करने के िलए एक कद्रीय अिधस ा अि त वमान होती है । घरे ल ू
राजनीितक तर पर यह कद्रीय अिधस ा क़ानून , िनयम एवं मानक की परे खा का
िनमार्ण करती है । एवं इन िनयम तथा मानक का उ लंघन करने वाल को दं िडत करने की
अंितम शिक्त भी इस कद्रीय अिधस ा के अभाव म रा ट्र-रा य के यवहार के िनमंित्रत नहीं
िकया जा सकता इसिलए रा य अपने अि त व की रक्षाथर् सदै व अपनी सापेिक्षक शिक्त म
अिभव ृ िध करते हुए अपनी सरु क्षा दिु वधा से बाहर िनकलने हे तु प्रयासरत रहते ह। इस प्रकार
अराजकतापूण र् यव था म कद्रीय अिधस ा का अभाव रा य को अपने अि त व की रक्षा के
िलए वयं प्रयास करने के िलए बा य करती है ।
56
वाला बाहरी प्रयास होता है िजसके वारा रा य अपने गठबंधन को बढ़ाकर अपने प्रित वं वी
को प्रित-संतुिलत करते ह।
िन कषर्
यथाथर्वादी पिरप्रे य ने अंतररा ट्रीय संबंध के प्रितमान को एक िवषय के प म िनधार्िरत
िकया है । यथाथर्वादी वैज्ञािनक अ ययन प धित जो िक प्र य यवादी ज्ञानमीमांसा को
अंतररा ट्रीय राजनीित के यवि थत अ ययन के कद्र म थािपत करती है और इस त य पर
बल दे ती है िक हमारा आनुभािवक अनुभव एवं त य होने चािहए। इनके अ ययन म मू य
के िलए कोई थान नहीं है । इससे आगे बढ़कर यथाथर्वादी िवचारक ने अंतररा ट्रीय राजनीित
के अ ययन के िलए शिक्त, सरु क्षा, भय, अराजकता, रा य की ि थित एवं नैितकता की
मह ा जैसी अवधारणाओं का अ वेषण िकया। यथाथर्वादी संप्रदाय यु ध के कारण के
वा तिवक कारक का तािकर्क अ वेषण करता है , ये इस त य का भी िव लेषण करते ह िक
यूिसडाइड, कौिट य, सन
ु ा-जँ ू से लेकर आज के समय तक कैसे अंतररा ट्रीय संबंध म शिक्त
एवं सरु क्षा की अवधारणाय परभािषत होती ह। इस प्रकार यथाथर्वादी संप्रदाय वैि वक नेत ृ व
को िदशा-िनदश दे ता है िक वो कैसे अपनी सै य क्षमता को बढ़ाए तथा अपने सा य की
प्राि त करे ।
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58
इकाई-2
पाठ-2 : उदारवाद
डॉ. िहजम िलज़ा डालो िरहमो
अनुवादक : िवक्
की झा
पिरचय
उदारवाद एक ऐसा श द है , िजसका प्रयोग वतर्मान िव व म यापक पैमाने पर िकया
जाता है । यह श द आधुिनकता, व ृ िध और प्रगित के साथ सामा यतः संबंिधत है ।
उदारवाद एक ऐसा ि टकोण है िजसका िव तार मानव जीवन के प्र येक पहल ू और
मानव संगठन के प्र येक प तक है । यरू ोप म, प्रबोधन काल के पिरणाम व प उदारवाद
एक आंदोलन के प म उभरा िजसने िक स पूण र् िव व म लोग के राजनीितक और
आिथर्क संगठन को प्रभािवत िकया। उदारवाद समाज, राजनीित और अथर् यव था पर
एक ढ़ िस धांत प्रदान करता है । वै वीकरण, बहुसं कृितवाद, अंतररा ट्रीय संगठन के
िवकास, बहुरा ट्रीय और रा ट्रीय िनगम और वैि वक अथर् यव था के कारण उदारवाद का
मह व काफी बढ़ा है । उदारवाद एक राजनीितक और आिथर्क दशर्न है जो िक यिक्तगत
वतंत्रता के िवचार पर आधािरत है । उदारवाद एक यिक्त के स पूण र् िवकास पर िवचार
करता है । यह दशर्न पूणत
र् ः इस धारणा पर िटका हुआ है िक मानव वाभािवक तौर से
अ छा होता है । यह मानता है िक सभी के िहत के संबंध म यिक्तय म सहयोग करने
की क्षमता होती है । प्र येक यिक्त म उसके सवर् े ठ प को उभारने तथा मानव को
प्रगित की िदशा म अग्रसर करने के िलए, यह वतंत्रता, तािकर्कता, नैितक वायता,
मानव अिधकार, उदार लोकतंत्र, अवसर एवं चयन के िस धांत पर बल दे ते ह। इन
मल
ू भत
ू िस धांत के आधार पर उदारवाद मानव जीवन के सभी पहलओ
ु ं की याख्या
करने के िलए अपने दशर्न का िव तार करता है भले ही वह आिथर्क और राजनीितक
प्रकृित का हो। आमतौर से उदारवाद मक्
ु त यापार, संपि के अिधकार, मक्
ु त बाजार,
सीिमत सरकार, कानून के शासन, पँज
ू ीवाद और एक-दस
ू रे के बीच मक्
ु त एवं िन पक्ष
प्रित पधार् का समथर्न करता है । इस अ याय म उदारवाद के अथर्, उ भव के इितहास,
59
इसके मख्
ु य िवचार, िविभ न ि टकोण, आलोचना मक मू यांकन और इसकी समकालीन
प्रासंिगकता बताने का प्रयास िकया गया है ।
उदारवादी
िपछले कुछ वष म यथाथर्वाद, सामािजक रचनावाद और माक्सर्वाद जैसे िस धांत ने
उदारवाद की काफी आलोचना की है । परं त ु आज भी इसका दशर्न िव वान और नीित
िनमार्ताओं को प्रभािवत करता रहा है । वतर्मान िव व म उदारवाद अपनी प्रासंिगकता िनरं तर
बनाए हुए ह। त य यह है िक उदारवादी लोग जीवन के प्र येक पहल ू का वणर्न करने का
प्रयास करते ह। इसी आधार पर अनेक लोग ने उदारवादी श द की अलग-अलग प्रकार से
याख्या करते हुए वयं को उदारवादी िवचारक म शािमल िकया है । ‘‘उदारवादी’’ श द का
प्रयोग िविभ न प्रकार के लोग के िलए िकया जाता है । उदारवादी परं परा पर उपल ध
सािह य की जाँच करते हुए, डंकन बेल (2014 : 682) कहते ह िक बीसवीं शता दी के म य
तक से उदारवादी परं परा ने पि चम की िनिमर्त िवचारधारा के प म अपना अथर् बदल िदया
है । जबिक उदारवादी परं परा के अंतगर्त ही कुछ दरार िदखाई पड़ती है । हालाँिक उ ह ने यह
सही कहा िक उदारवादी परं परा पर उपल ध सािह य वघोिषत उदारवािदय के िविभ न
ि टकोण को दशार्ने के बजाय यापक तौर से पूण र् उदारवादी परं परा को ही दशार्ते ह।
60
इस बात से सहमत होते हुए कहन कहते ह िक यूरोप म उदारवाद को इसके िवरोधाभास
वारा पिरभािषत िकया गया है । िजसम िक उदारवाद म ‘‘दिक्षण पंथी’’ और ‘‘वाम पंथी’’
आंदोलन के आस-पास के बहस ने इसकी जाँच की। (कहन 2003 : 1) िजल टइंस भी
मानते ह िक भले ही समाज के आिथर्क संगठन पर कई प्र न िकए जाए, िजसम िक
राजनीितक तौर से वामपंथी और राजनीितक तौर से दिक्षण पंथी के बीच उदारवादी िवचार
पर मतभेद दे खने को िमले परं तु इसके बावजद
ू उदारवादी राजनीितक दशर्न और उसके मल
ू
िस धांत िफर भी प्रचिलत रहगे ( टइंस एट अल. 2010 : 24)। उदारवादी जो िक
राजनीितक तौर से दिक्षण पंथी है , वे मानते ह िक यिक्तगत वतंत्रता का िव तार आिथर्क
गितिविध तक िकया जाना चािहए। वे मक्
ु त बाजार म अपने म, व तु सेवा और संपि को
बेचने और खरीदने के िलए वतंत्र होने चािहए और इस संबंध म रा य की भिू मका सीिमत
होनी चािहए। वह यिक्त के उ चतम िवकास के िलए यन
ू तम िविनयमन पर बल दे ते ह।
वही दस
ू रे तरफ राजनीितक वामपंथी िविनयमन के कुछ प पर बल दे ते ह क्य िक वे मानते
ह िक यिद आिथर्क शिक्त और संपि पर कुछ ही लोग का िनयंत्रण हो जाएगा तो इससे
वतंत्रता और समानता के िस धांत के िलए खतरा उ प न हो सकता है । इसिलए वह यादा
ह तक्षेपकारी रा य का समथर्न करते ह तािक वह कमजोर लोग को बुिनयादी सिु वधा और
अवसर उपल ध करवा सके। परं त ु उदारवाद म इन िविवधताओं के बावजद
ू , बेल के समान
ही, वे मानते ह िक यह िवचार का एक सस
ु ग
ं त कूल है ।
ऊपर िदए तक के आधार पर यह कहा जा सकता है िक उदारवादी दशर्न के दरू गामी
पिरणाम है । इसकी काफी यापक पहुँच है । यिक्तगत आ मिहत के आधार पर, यिक्तवाद
के िवचार को एक यिक्त के जीवन के आिथर्क संगठन पर लाग ू िकया जा सकता है जो िक
संपि , कायर्, अवसर, उ पादन की प्रिक्रया, प्रित पधार्, आिद से संबंिधत है । एक आिथर्क
प्रणाली के प म उदारवाद और पँज
ू ीवाद काफी िनकटता से जड़
ु े हुए ह, इसिलए अथर्
िनकालने के िलए कभी-कभी इनका एक साथ प्रयोग िकया जाता है । राजनीितक क्षेत्र म
उदारवादी दशर्न की याख्या वतंत्रता, समानता और याय के संदभर् म की जा सकती है ।
उदारवादी लोकतंत्र म यह िस धांत सदै व ही िनिहत रहते ह। वा तव म 20वीं शता दी के
दौरान उदारवाद एक राजनीितक िवचारधारा था िजसे अनेक दे श ने अपने राजनीितक और
आिथर्क प्रणाली के प म अपनाया था। उदारवादी दशर्न केवल घरे ल ू राजनीितक शासन का
ही वणर्न नहीं करता है । बि क यह अंतररा ट्रीय संबंध के राजनीितक क्षेत्र को भी प्रभािवत
61
करता है जो िक िवशेष तौर से अंतररा ट्रीय राजनीितक अथर् यव था के अंतगर्त सहयोग और
संघषर् के मामले म रा य के यवहार से संबिं धत है । अतः उदारवाद के िवकास की समीक्षा
करते हुए इसे यापक तौर से दो भाग म बाँटा जा सकता है , िजसे राजनीितक इितहास और
आिथर्क इितहास के संदभर् म दे खा जा सकता है । अथर्शाि त्रय और राजनीितक दाशर्िनक ने
अपने-अपने िवचार के वारा उ ह ने उदारवाद के िवचार म अपना योगदान िदया है । हालाँिक
उनके िवचार अपने आप म िवशेष नहीं है और कई बार उनके िवचार एक-दस
ू रे से आंिशक
तौर से िमलते रहे ह। इसके मख्
ु य ि टकोण के संदभर् म राजनीितक और आिथर्क िक म
का एक सामा य आधार है , उदाहरणतः यिक्तगत वतंत्रता। यिक्तवाद ही वह आधार है
िजस आधार पर वे अपना िव लेषण करते ह। इस पाठ के अगले ख ड म उदारवादी दशर्न के
उ भव के इितहास को संक्षेप म समझाने का प्रयास िकया गया है ।
उ भव का इितहास
उदारवाद के ऐितहािसक प ृ ठभिू म की प रे खा म यह दे खा जा सकता है िक इसका मल
ू
आिथर्क और राजनीितक दोन प्रकार के बौ िधक परं पराओं म है । वे एक-दस
ू रे से अलग नहीं
है बि क वे एक-दस
ू रे पर पर पर िनभर्र है । यरू ोप म प्रबोधन काल के दौरान वतंत्र और
अ य उदारवादी िवचार का मह व
काफी बढ़ गया था। आिथर्क और सावर्जिनक नीितय के
िलए उदारवाद एक प्रमुख मागर्दशर्क िस धांत के प िब्रटे न म उभरा, इसके बाद संयुक्त
रा य अमेरीका और बाद म यूरोप के अ य भाग और िफर स पूण र् िव व म फैलता गया।
18वीं और 19वीं शता दी के दौरान, यूरोपीय समाज के आिथर्क और सामािजक संगठन म
पिरवतर्न हुआ था। वह सामंतवाद से पँज
ू ीवाद की तरफ संक्रमण का दौर था (फुकन 2016)।
पँज
ू ीवाद िनजी वािम व, उदारीकरण और मक्
ु त बाजार पर आधािरत है जोिक उदारवादी
मू य को दशार्ते ह। आिथर्क और राजनीितक दाशर्िनक ने चचर्-रा य को सीिमत करने के
िलए धमर्-िनरपेक्ष सं थान का समथर्न िकया था। यह वतंत्रता को उपयोग करने और
यिक्त के उ च क्षमताओं को बढ़ाने के िलए आव यक है ।
आिथर्क उदारवाद
62
के संबंध पर ज़ोर िदया है । इसम एक कानूनी प्रणाली के मा यम से यिक्त अपने संपि के
वािम व का अिधकार प्रा त करता है । िजसम रा य और समाज वारा उनके संपि के
अिधकार का उ लंघन नहीं िकया जाता है । विविनयिमत बाजार उदारवाद का ही एक
िस धांत है । आिथर्क गितिविध जैसे उ पादन िविनमय और लेन-दे न को इसके यंत्र पर छोड़
दे ना चािहए। इसके पीछे यह िव वास है िक ‘‘यिद प्र येक यिक्त अपने िहत को यान म
रखकर कोई कायर् करता है तो इससे वह समाज के ही सव म िहत को पूरा करता है (िगसी
2008)।” इस यव था म सरकार की भिू मका सीिमत होनी चािहए।
63
और िव की उपल धता बहुत अिधक है । अंतररा ट्रीय यापार के वारा वह वैि वक
अथर् यव था ि थर है ।
राजनीितक उदारवाद
प्रबोधन काल के दौरान उदारवादी राजनीितक दाशर्िनक ने अपने िवचार के मा यम से
उदारवादी िवचार को आकार दे ने और उदारवादी मू य को िवकिसत करने म अपना योगदान
िदया। जॉन लॉक के राजनीितक लेख उदारवादी दशर्न को िवकिसत करने के मल
ू भत
ू आधार
थे। इ ह ने अपने लेख टू ट्रीटीज ऑफ गवनर्मट (1690) म जीवन, संपि और वतंत्रता के
अिधकार को प्रकृित का िस धांत माना था। जब वह इस बात पर जोर दे ते ह िक रा य के
िलए उनके शािसत की सहमित होना आव यक है तो इस दौरान वह प्रािधकार को ही वैधता
प्रदान कर रहे थे। इस कारण से जॉन लॉक को आधिु नक उदारवाद का जनक भी कहा जाता
है । यिद संप्रभ ु प्रािधकार लोग को याय प्रदान कर पाने, उनके जीवन और िनजी संपि को
सरु क्षा प्रदान कर पाने और अपने कतर् य को पूण र् कर पाने म असफल रहते ह तो इस
दौरान लॉक ने राजनीितक िस धांत के अपने लेख म क्रांित को यायोिचत ठहराया है ।
वा तव म उदारवाद के राजनीितक दशर्न पर ऐितहािसक घटनाओं, मख्
ु य तौर से फ्रांसीसी
क्रांित (1789) का मह वपण
ू र् प्रभाव पड़ा है । इस क्रांित के दौरान अिधनायकवादी शासन को
हटाने के िलए वतंत्रता, समानता और बंधु व के िस धांत का आवा न िकया गया था जो
िक उदारवादी मू य को दशार्ता है फ्रांसीसी क्रांित ने उदारवाद के प्रसार को काफी बल िदया
क्य िक क्रांित के बाद उदारवािदय ने ‘‘मानव के अिधकार की घोषणा’’ के साथ वयं को
जोड़ िलया था जो िक उदारवादी िस धांत पर आधािरत था (कहन 2003 : 1)। इस क्रांित के
बाद यह संदेश तेजी से फैला की िनरं कुश शासन, अिधनायकवादी शासन और अ य
दमनकारी शिक्तय पर िवजय प्रा त की जा सकती है तथा नागिरक वतंत्रता को संरक्षण
दे कर यिक्त का िवकास िकया जा सकता है ।
64
शासन यव था म शिक्तय का िवभाजन हो, िजससे िक यिक्त के वतंत्रता को कोई खतरा
न हो। इस प्रकार, इ ह ने संवैधािनक सरकार का समथर्न िकया जो िक लोग की ज रत को
पूरा कर और कानून के शासन को बनाए रखे। राजनीितक ि थरता के वारा उदारवादी मू य
को िनरं तर बरकरार रखा जा सकता है । इसके अलावा कानून का शासन काफी मह व
पूण र् है
तािक यिक्तय के साथ समान यवहार िकया जा सके। उनके अिधकार का संरक्षण िकया
जा सके और आिथर्क गितिविधय के िलए बेहतर माहौल उपल ध करवाया जा सके िजससे
िक समाज म प्रगित और िवकास हो सके। उदारवाद नैितक दशर्न पर आधािरत है जो िक
यिक्त के जीवन, वतंत्रता और संपि जैसे अिधकार पर बल दे ता है । यह सरकार का
सव च ल य है । इस प्रकार उदारवािदय के िलए यिक्त का िवकास ही एक यायोिचत
राजनीितक यव था का आधार है । इसिलए उदारवादी सदै व ही सं थाओं के संबंध म िचंितत
रहते ह तािक िनरं कुश राजनीितक शिक्तय से यिक्त के वतंत्रता का संरक्षण िकया जा
सके।
65
हालाँिक अलग-अलग बौ िधक परं पराओं के आने से उदारवाद काफी सम ृ ध हुआ है ।
उनके लेख वतंत्रता के िवचार पर आधािरत है और उ ह ने इस िवचार का िव तार आिथर्क
एवं राजनीितक जीवन की याख्या करने के िलए िकया। आिथर्क उदारवाद एवं राजनीितक
उदारवाद के बीच िवभाजन से कोई गलतफहमी उ प न नहीं होनी चािहए िक वे एक-दस
ू रे से
अलग है , बि क वे एक-दस
ू रे के पूरक ह।
परु ाना और नया उदारवाद
66
पँज
ू ीवाद है । उदारवाद एक आिथर्क राजनीितक दशर्न है परं त ु दस
ू रे तरफ पँज
ू ीवाद एक आिथर्क
प्रणाली है जो िक अिनवायर् तौर से उन उदारवादी मू य को दशार्ता है । ये दोन न तो एक ही
है और न ही समान है । पुराने उदारवादी िवचार की दस
ू री मह वपूण र् िवशेषता यह थी िक
इसम वतंत्रता की सरु क्षा के िलए िनजी संपि को मह वपूण र् माना जाता था। इसके पीछे
तकर् िदया जाता है िक िनजी संपि के अह तांतरणीय अिधकार के कारण रा य के
अितक्रमण से यिक्त अपने वतंत्रता की रक्षा कर सकता है । इससे रा य की भिू मका भी
सीिमत हो जाएगी।
19वीं शता दी के अंत और 20वीं शता दी के प्रारं भ म, बाजार आधािरत यव था पर
प्र न िकए जाने लगे। इसी कारण इस यव था म संशोधन िकया गया िजससे नव उदारवाद
का उ भव हुआ। इस दौरान अिधकतर मल
ू भूत उदारवादी िस धांत को बरकरार रखा गया
परं तु बाजार म अि थरता और िव व यु ध के बाद के आिथर्क संकट को दे खते हुए उदारवाद
के बुिनयादी धारणाओं की पुनः समीक्षा की गई। ‘‘इन महान यु ध ने उदारवादी आिथर्क
ि ट को, भारी झटका िदया — हम आिथर्क जीवन म रा य के ह तक्षेप को दे ख सकते ह’’
(रोिसली 2020)। इसम रा य के शािमल होने से एक महान िवचलन दे खने को िमला जो िक
पुराने से नए उदारवाद का सच
ू क है । इस दौरान बाजार उ च बेरोजगारी के साथ अि थर था।
एक वतंत्र समाज के िलए और जीवन के आिथर्क संगठन के िलए शा त्रीय उदारवाद के
िस धांत पर प्र न िकए जा रहे थे। जबिक दस
ू री तरफ सरकार और उनके आिथर्क नीितय
जैसे क याणकारी कायर्क्रम पर लोग का भरोसा काफी बढ़ने लगा था। बाजार को ि थर
करने म रा य की भिू मका के िवचार और लोग की धारणा म आए पिरवतर्न के कारण ही
उदारवाद म भी संशोधन िकया गया।
67
इस दौरान यह भी समझा जा रहा था िक संपि के अिधकार ने असमानता को
प्रो सािहत िकया है । भले ही सै धांितक तौर से यह कानन
ू के समक्ष समानता मक्
ु त एवं
िन पक्ष प्रित पधार्, आिद का िनधार्रण करता हो परं तु वा तव म, संपि और सम ृ िध के
संदभर् म अंतर होने के कारण कुछ यिक्तय को अ य लोग की तुलना म अ यिधक लाभ
िदया जाता था। इस प्रकार यह लोग , िवशेषतः िमक वग की वतंत्रता की रक्षा कर पाने
म असफल रहा। जॉन रा स के याय के िस धांत ने उदारवाद के इस नए एवं सामािजक
याय की अवधारणा म अपना योगदान िदया। उनका मानना था िक एक यायपण
ू र् समाज
का िनमार्ण ऐसे तरीक से िकया जाना चािहए िजसम िक यूनतम प्रितिनिध समह
ू को
अिधकतम लाभ िदया जा सके। उ ह ने सामािजक और आिथर्क असमानताओं को पुनः
यवि थत करने का प्रयास िकया था। वे मानते थे िक वतंत्रता और याय एक-दस
ू रे से
संबंिधत है । रा स अपने इस तकर् को आगे बढ़ाते ह िक एक यायोिचत समाज म ही केवल
यिक्त के स चे वतंत्रता की रक्षा हो सकती है । ये उदारवादी और समतावादी ि टकोण नव
उदारवाद के ही घटक है ।
उदारवाद और अंतररा ट्रीय संबंध
अब तक इस पाठ म घरे ल ू राजनीित की ही चचार् की गई है परं त ु अंतररा ट्रीय राजनीितक
अथर् यव था के क्षेत्र म, िवशेषतौर से उदारवािदय के िलए, अंतररा ट्रीय संबंध भी मह वपूण र्
है । वतर्मान समय म वै वीकरण और बहुसं कृितवाद के कारण यह सामा य समझ बन गया
है िक अंतररा ट्रीय तर पर िकसी एक दे श की गितिविधय से अ य दे श म घरे ल ू तर पर
वतंत्रता का िवचार प्रभािवत होता है । उदाहरण के िलए, भले ही कोई रा य अपने रा ट्र िहत
को यान म रखकर सै यकरण और प्रितभिू मकरण को बढ़ावा दे ने का प्रयास कर। िजसके
पिरणाम व प उस रा य के सै य शिक्त म भी व ृ िध हो परं तु ऐसा भी हो सकता है िक
रा य इन शिक्तय का प्रयोग अपने ही नागिरक के िव ध उनके अिधकार का हनन करने
के िलए कर (मैसेर 2018)। इसी कारण से एक उदारवादी राजनीितक यव था सदै व ही
सै य शिक्तय को सीिमत करने और सेना के ऊपर लोकतांित्रक िनयंत्रण थािपत करने का
प्रयास करती है । सै यकरण और प्रितभिू तकरण के साथ दस
ू री सम या यह है िक यह
अंतररा ट्रीय तर पर सहयोग के बजाय संघषर् को बढ़ावा दे गा िजसके कारण बाजार मू य म
भी िगरावट होगी।
68
अंतररा ट्रीय संघष का अंतररा ट्रीय अथर् यव था, रा ट्रीय सम ृ िध और वतंत्रता पर कैसे
प्रितकूल प्रभाव पड़ता है , इस बात की समीक्षा के दौरान यह तकर् िदया जाता है िक
उदारवािदय ने लोकतांित्रक शांित िस धांत िदया है । इस िस धांत के वारा ही उ ह ने
अंतररा ट्रीय संबंध म मह वपूण र् योगदान िदया है । लोकतांित्रक शांित िस धांत म यह माना
जाता है िक उदारवादी लोकतांित्रक दे श कभी यु ध नहीं करते क्य िक वे मानते ह िक यु ध
काफी हािनकारक होता है । जब से उदारवादी तािकर्कता और उपयोिगतावादी मू य के
िस धांत को मानने लगे ह तब से वे मानते ह िक यु ध यिक्त के वतंत्रता, यापार और
मक्
ु त बाजार के िलए बेहतर नहीं है । तािकर्कतावाद के कारण ही समकालीन उदार-सं थावादी
बहुरा ट्रीय िनगम , अंतररा ट्रीय मद्र
ु ा कोष, यूरोपीय संघ, िव व यापार संगठन आिद जैसे
सं थान को मह वपूण र् माना जाता ह। वे मानते ह िक पर पर आिथर्क िनभर्रता से रा य
को वा तिवक लाभ होता है । उदारवादी िवशेषतः उदारवादी सं थावादी यह मानते ह िक जब
से यिक्त एक तािकर्क प्राणी के तौर पर बेहतर पिरणाम प्रा त करने के िलए सामिू हक कायर्
करने की क्षमता रखने लगे ह, तब से इन सं थाओं ने सहयोग को बढ़ाने का प्रयास िकया।
इसके साथ ही इन सं थाओं ने उन संघष को भी कम करने का प्रयास िकया जो िक भारी
हािन पहुँचा सकते ह। ये सं थाएँ ऐसी पिरि थितय का िनमार्ण करती ह िजससे िक रा य
के बीच यापार से आपसी लाभ होता है और संघषर् कम होता है , िजसके पिरणाम व प
रा य यु ध को कम पसंद करते ह क्य िक यु ध भीषण नक
ु सान पहुँचाता है । िजसके कारण
यापार से प्रा त होने वाला लाभ िमलना बंद हो जाता है ।
69
इसके पिरणाम व प काफी नुकसान होता है । परं तु यिद इन अंतररा ट्रीय उदारवादी मू य को
वीकार िकया जाता है , तो सरु क्षा, उ पादकता और प्रगित के संदभर् म काफी लाभ होता है ।
इस प्रकार ऐसे उपक्रम की सफलता के िलए बड़े पैमाने पर समथर्न िकया जाता है । साथ ही
स पूण र् िव व म ऐसे मू य को अपनाया जाता है ।
उदारवाद की मख्
ु य मा यताएँ
यिक्तवाद— उदारवाद यिक्तवाद पर जोर दे ता है । उदाहरण एक यिक्त के सव च
िवकास के िलए प्रयास करता है । उदारवािदय की यह मा यता है िक यिक्तय का
अपना आ मिहत होता है । वतंत्रता संपि के अिधकार और मक्
ु त यापार के िस धांत
पर उनके िहत की प्राि त िनभर्र करती है । इनका मानना है िक यिद प्र येक यिक्त
अपने िहत को यान म रखकर कायर् कर तो इस दौरान वह सामािजक िहत म ही
अपना योगदान दे ता है ।
वतंत्रता— यिक्त की वतंत्रता उदारवाद का आधार है । उनका मानना है िक वतंत्रता
की पिरि थित म मानव अपने वांिछत उ दे य के सव च संभावनाओं को प्रा त कर
सकता है । प्रगित और व ृ िध के यव था के िलए यह आव यक है िक यिक्त अपने म
को वतंत्रतापूवक
र् बेच सके। वही इस दौरान रा य को अिनवायर् तौर से सीिमत भिू मका
िनभाना चािहए।
70
संपि का अिधकार— उदारवाद िनजीकरण और बाजार के उदारीकरण का समथर्न करता
है । संपि का वािम व और अ य उ पादन प्रिक्रयाएँ उ पादक एवं व ृ िध को प्रेिरत करती
है । यह उ लेख करना भी मह वपण
ू र् है िक जब रा य को िनजी संपि य म अितक्रमण
करने से रोक िदया जाता है तो इस दौरान वतंत्रता का कुछ तर दे खने को िमलता है ।
मक्
ु त यापार और मक्
ु त बाजार— इनकी मा यता यह है िक जब रा य के िविनयमन से
बाजार मक्
ु त होता है तो इससे उदारवादी मू य बेहतर तरह से कायम होते ह। कोई भी
अपने चुनाव के वतंत्रता का प्रयोग और अपने िवकास के सव च तर को तभी प्रा त
कर सकता है जब बाजार वतंत्र हो। एक िविनयिमत बाजार यिक्त के चुनाव पर रोक
लगाता है , िजससे यह भी कहा जा सकता है िक यिक्त के वतंत्रता म कावट आती
है । हालाँिक नव उदारवािदय ने रा य के सीिमत भिू मका के िवचार म पिरवतर्न कर िदया
क्य िक ये एक यायोिचत सामािजक यव था म समानता और वतंत्रता की प्राि त के
िलए एक मजबूत रा य के नीितय का समथर्न करते थे।
71
सहयोग— उदारवािदय का मानना है िक जब लोग अपने िहत को प्रा त करने का प्रयास
करते ह तो इस दौरान उनके बीच िहत के संदभर् म सामंज य हो सकता है । वे मानव
वभाव के संदभर् म आशावादी ि टकोण रखते ह। समान उ दे य को प्रा त करने के
िलए वे एक-दस
ू रे के साथ सहयोग करगे। सं थाओं के वारा भी इस तरह के सहकारी
यवहार म मदद िमलता है । अिनवायर् तौर से उदारवादी मानते ह िक बहुरा ट्रीय िनगम,
लड
ु िवग वो िमसेस मानते ह िक उन समाज म जहाँ िक उदारवादी नीितय को लाग ू िकया
गया है वह आमतौर से पँज
ू ीवादी समाज है और उस समाज की पिरि थितय को पँज
ू ीवादी के
नाम से जाना जाता है (िमसेस 1985 : 10) वतर्मान समय म, उदारवाद और पँज
ू ीवाद के
बीच नजदीकी संबंध होने के कारण अकसर इन दोन को समानाथीर् माना जाता है जो िक
पूणत
र् ः भ्रामक है । इसिलए पँज
ू ीवाद के िवरोधी भी अकसर उदारवाद की आलोचना करते हुए
िदखाई दे त े ह। पँज
ू ीवाद एक आिथर्क यव था है जो िक िनजी संपि , उदारवादी
अथर् यव था, लोकतंत्र आिद का समथर्न करते ह। इसी कारण से उदारवाद और पँज
ू ीवाद के
बीच भ्रम की ि थित उ प न हो गई है । इस तरह के भ्रम से यह सम या उ प न हो जाती
है िक उदारवाद ही अ यायपूण र् और असमान समाज का कारण है । जबिक वा तव म ठीक
इसके िवतरीत दे खने को िमलता है । िवचारधारा मक तौर से उदारवाद अिधकतम लोग के
िलए बेहतर संभािवत वांिछत पिरणाम को प्रा त करने का प्रयास करता है । यह वतर्मान
72
अ यायपूण र् सामािजक यव था का वैचािरक पूवग
र् ामी उदाहरण नहीं है , जैसा िक कुछ लोग
ने दे खा होगा।
हालाँिक यह भी दे खा जा सकता है िक कुछ उदारवादी लोग जैसे शा त्रीय उदारवादी
िवचारधारा मक तर पर वतंत्रता, िन पक्ष प्रित पधार्, मक्
ु त बाजार और रा य के सीिमत
ह तक्षेपवादी िस धांत को मानते ह। जबिक जमीनी वा तिवकता यह है िक इससे सामािजक
और आिथर्क असमानताओं को प्रो साहन िमलता है । जब पँज
ू ीवाद का प्रसार हो रहा था और
उसी समय पँज
ू ीवाद को यायोिचत ठहराने के िलए उदारवादी मू य का प्रयोग िकया गया
था तो इस दौरान इसे अिभजात सामािजक वगर् के अिभ यिक्त के तौर पर दे खा जा रहा था।
संक्षेप म, उदारवाद को सतही तौर खािरज करना अब सामा य हो गया है िजसको लेकर यह
माना जाता था िक यह िवशेषािधकार प्रा त वग के हे तु एक मख
ु ौटा था। हालाँिक यह क्षैितज
प से दिु नया के बाकी िह स म पि चमी प्रभु व का प्रसार करने के िलए कोई चाल नहीं
थी।
िन कषर्
73
गई है परं त ु इसके बावजद
ू अभी भी उदारवाद को एक मजबूत शिक्त के तौर पर दे खा जाता
है , जो िक आज भी एक प्रबल िस धांत है । इसे आज भी कई दे श ढ़तापव
ू क
र् अपनाते ह।
संदभर्-सच
ू ी
3. कहन ए. एस. (2003), ‘‘इंट्रोडक्शन : िडफाइिनंग िलबराली म’’ इन िलबराली म इन
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आइिडया ऑफ द नेशन इन इंिडया
74
इकाई-2
जहाँ एक तरफ अंतरार् ट्रीय संबंध का माक्सर्वादी ि टकोण, िव व के दिक्षणी दे श के
ि टकोण से अंतरार् ट्रीय संबंध िवषय को समझाने के िलए कुछ मह वपूण र् उपकरण प्रदान
करता है , तो वहीं दस
ू री तरफ यह रा य, शिक्त, अराजकता और वचर् व जैसे मल
ू भत
ू
िस धांत के मल
ू अवधारणाओं से संबंिधत सम याओं को भी ढूँढ़ने का प्रयास करता है । शीत
यु ध की समाि त और सोिवयत संघ के िवघटन के बाद िव वान ने पँज
ू ीवाद और मक्
ु त
प्रित पधीर् बाजार आिथर्क प्रणाली के िवजय की घोषणा की थी। इस संदभर् म “फ्रांिसस
फुकुयामा” ने अपने कृित “द एंड ऑफ द िह ट्री ऑफ द ला ट मैन” म यह तकर् दे ते हुए
कहा था िक सोिवयत संघ का िवघटन यह सािबत करता है िक िव व म ऐसे प्रित पधीर्
सै धांितक प्रितमान का कोई अि त व नहीं बचा है , जो िक उदारवादी पँज
ू ीवादी वयव था को
चुनौती दे सके। इन तक से िभ न कुछ िव वान यह मानते ह िक भले ही 1990 के दशक
के शु आत से िव व एक ध्रुवीय हो गया है या पैक्स अमेिरका के प म अमेिरका का वचर् व
कायम हो गया है , परं तु इसके बावजद
ू माक्सर्वादी िस धांत की प्रासंिगकता म भी काफी
बढ़ोतरी हुई है । हालाँिक अंतरार् ट्रीय संबंध के अ य िस धांत की तरह माक्सर्वादी िस धांत
यथाि थित को बनाए रखने म िव वास नहीं करता है , बि क यह प्रमख
ु राजनीितक और
सामािजक यव था म पिरवतर्न लाने का प्रयास करता है । इसी कारण से ऐसा माना जाता है
िक सामािजक िवज्ञान के सभी िस धांत म से माक्सर्वादी िस धांत काफी प्रभावशाली प से
िवकिसत हुआ है । इसके अलावा माक्सर्वाद वैि वक असमानता, वगर् संघषर्, उ पादन प्रणाली
के बदलते तरीके, उ पादन की शिक्तय और बुजआ
ुर् एवं सवर्हारा दोन के अलगाव आिद जैसे
बाजार उ मुख आिथर्क प्रणाली के कानून और उनके िवशेषताओं की याख्या करने पर किद्रत
है । इसी कारण से माक्सर्वादी िस धांत समाज को एक समतावादी िव व यव था और मिु क्त
के एक साधन के प म बदल दे ता है , जो िक सभी के िलए वतंत्रता और समानता की
वा तिवक दिु नया को बढ़ावा दे । इसके अलावा माक्सर्वाद का एक मह वपण
ू र् आयाम यह है
िक यह अंतरार् ट्रीय संबध
ं की एक वैकि पक समझ प्रदान करता है । वहीं दस
ू री तरफ यह
अंतरार् ट्रीय संबंधो के यथाथर्वादी िस धांत के मल
ू अवधारणाओ से संबंिधत सम याओ को भी
ढूँढ़ने का प्रयास करता है । माक्सर्वाद का आधार हम कालर् माक्सर् के िवशेष लेख म दे खने
75
को िमलता है , जो िक उ ह ने पँज
ू ीवादी राजनीितक यव था के दशर्न, आिथर्क िनधार्रण और
वैज्ञािनक िव लेषण के संदभर् म िलखे थे।
इसके अलावा माक्सर्वादी िव वान “वगर् संघषर्” को अंतरार् ट्रीय यव था को समझने के
िलए एक मह वपूण र् कारक मानते ह। वगर् संघषर् के संदभर् म कालर् माक्सर् कहते ह िक बुजआ
ुर्
(आिथर्क तौर से संप न वगर्) और सवर्हारा ( िमक वगर्) के बीच िवरोधपूण र् संबंध होता है ।
हालाँिक इस दौरान आिथर्क तौर से संप न वगर् िमक वग का शोषण करने म सक्षम होते
ह। इसी कारण से िमक के िहत के कीमत पर पँज
ू ीपित वगर् अपने लाभ के िलए
अंतरार् ट्रीय राजनीितक एवं आिथर्क संसाधन और कानन
ू के साथ-साथ रा य के सं थान का
भी प्रयोग करते ह।
इसके अलावा माक्सर्वािदय का यह तकर् ह िक बहुरा ट्रीय िनगम उन जगह पर ही
व तुओं और सेवाओं का उ पादन आसानी से कर पाते ह, जहाँ पर िमक के मानवािधकार
का हनन होता है । वहीं बहुरा ट्रीय िनगम स ते म उपल धता और िमक के शोषण के
77
कारण ही भारी मात्रा म व तुओं का उ पादन कर पाने म सफल होते ह। स ते म की
उपल धता और िमक के शोषण की पिरि थितय ने इन िनगमो के लाभ को काफी यादा
बढ़ाया है क्य िक ये िनगम इन व तुओं का स ते म उ पादन करके उ ह महँ गे दाम पर
बेचते ह। इसी कारण से जहाँ एक तरफ िमक को लगातार काफी चुनौितय का सामना
करना पड़ता है तो वहीं दस
ू रे तरफ इन िनगम को ऐसी िकसी चुनौितय का सामना नहीं
करना पड़ता है और इसी कारण से वे अपना लाभ बढ़ाते रहते ह। अतः ऐसी पिरि थितय के
कारण ही िमक को अपनी नौकरी खोने और रा य एवं मािलक वारा उ ह दं ड िदए जाने
का डर लगा रहता है और इसी कारण ही वे अपने साथ हुए अ याय का िवरोध नहीं करते ह
(बेकर, 2003)।
इसके अलावा माक्सर्वाद उपिनवेशवाद को ऐितहािसक तौर से एक मह वपण
ू र् घटना के
प म दे खते ह क्य िक इसके मा यम से ही दिु नया भर के समाज म िनजी संपि के
िवचार को फैलाया और उिचत ठहराया गया है । उपिनवेशवाद ने पँज
ू ीवाद की उन समाज म
फैलने म मदद की, जो िक पँज
ू ीवादी िवचार से काफी दरू थे। हालाँिक पँज
ू ीवाद ने संपण
ू र्
िव व म औ योिगक िवकास की शु आत की, जो िक समाजवादी समाज के थापना की पूव र्
शतर् थी (िलंकलेटर 1986)। इसके अलावा इस दौर म, पँज
ू ीवादी अथर् यव था का प्रचार करने
वाले उपिनवेशवािदय के िखलाफ संघषर् को उभरते होते हुए दे खा जा सकता है । इस संदभर् म
डेवनपोटर् (2011) कहते ह िक 19वीं शता दी म पि चमी यूरोप म समाजवादी क्रांित की
शु आत काफी भ्रिमत करने वाली थी क्य िक इसके बाद पँज
ू ीवाद पिरिध अथवा गैर-पँज
ू ीवाद
वाले दे श म तेजी से फैला। वहीं माक्सर् और एंग स के तक की तुलना म, साम्रा यवाद का
िस धांत अंतरार् ट्रीय राजनीित की गितशीलता को पँज
ू ी संचय की बदलती प्रकृित के साथ
जोड़ने का प्रयास करता है क्य िक साम्रा यवादी िस धांत एकािधकार पँज
ू ीवादी गितशीलता का
एक भाग है । इसी कारण से क्रांित के प्र याशा म माक्सर्वाद ने युग और अनुमान के संदभर्
म अपने िव लेषण का बीड़ा उठाया है । इसिलए इस िवचार ने लंबे समय तक एक प्रमख
ु और
मह वपूण र् िवचार के प म सबका यान आकिषर्त िकया है ।
इसिलए ऐसा कहा जा सकता है िक अंतरार् ट्रीय संबंध म माक्सर्वादी िस धांत केवल
रा य और गैर-रा य अिभक ार्ओं वारा लोग के शोषण के बारे म ही बात नहीं करता है
बि क यह लोग को शोषण के बंधन से मक्
ु त करने संबध
ं ी संघष के बारे म भी बताता है
(बेकर 2003)। इस संदभर् म माक्सर्वादी मानते ह िक शोषण को रोकने और अ याय से वयं
को मक्
ु त करने का एकमात्र तरीका यह है िक हम पँज
ू ीपित और िमक के बीच के आिथर्क
िवभाजन को समा त करना होगा। हालाँिक यह तभी हो सकता है , जब संपूण र् िव व के
िमक, समाज म िकसी भी प्रकार के आिथर्क मतभेद और पँज
ू ीपितय के िव ध एकजट
ु हो
जाए। इसके अलावा माक्सर्वादी मानते ह िक सा यवादी यव था तभी अि त व म आ
78
सकता है , जब वगर् से संबंिधत िवचार समा त हो जाए और इसके पिरणाम व प एक
वगर्िवहीन और रा यिवहीन समाज का िनमार्ण हो, जहाँ पर सभी लोग के साथ समान
यवहार िकया जाएगा (बेकर 2003)। इसिलए वे मानते ह िक उ पादन के साधन पर िकसी
एक यिक्त का िनयंत्रण नहीं होना चािहए बि क इसके बजाय उ पादन के साधन का
रा ट्रीयकरण िकया जाना चािहए क्य िक ऐसी अव था म प्र येक यिक्त अपनी क्षमता के
आधार पर अपना बेहतर प्रदशर्न कर पाएगा। इसी कारण से अंतरार् ट्रीय संबंध म रा य के
माक्सर्वादी िस धांत का उ दे य रा य और सरकार के आधुिनक संरचना को समा त करना
है और यिद यह ल य हािसल हो जाता है , तो अपने सभी गण
ु के साथ यह सा यवाद का
शु ध प बनकर उभरे गा। वहीं जब माक्सर् वगर् की याख्या करते ह तो उस दौरान वगर् से
उनका अिभप्राय बुजव
ुर् ा और सवर्हारा जैसे दो वग से है । हालाँिक माक्सर् िकसान को
आधुिनक वगर् के बजाय पारं पिरक वगर् मानते थे क्य िक इनको लेकर माक्सर् का िवचार था
िक इनम वगर् चेतना का अभाव होता है । इसके अलावा माक्सर् आधुिनक वग को एकमात्र
अंितम वगर् मानते थे क्य िक उ ह ने पँज
ू ीवाद को सा यवादी समाज के िनमार्ण से पहले का
अंितम प्रितकूल चरण माना था। इसके अलावा िनजी संपि के संदभर् म माक्सर् का िवचार था
िक िनजी संपि पारं पिरक वगर् को पँज
ू ीपित वगर् म पिरवितर्त करने म मह वपण
ू र् भिू मका
िनभाती है । अतः इसी कारण से माक्सर् का यह ढ़ िव वास था िक अंितम पिरवतर्न एक
सा यवादी समाज के िनमार्ण म पिरणत होगा। इसके अलावा माक्सर् यह भी मानते थे िक
अंतरार् ट्रीय यव था म शांित प्रा त करने के िलए “रा य यव था” को समा त करना होगा
(बेकर 2003)।
(1) सध
ु ारवादी समह
ू — इसम कालर् काउ की और जोसफ शु पीटर का नाम प्रमख
ु है ।
(4) नव-माक्सर्वाद
िव व यव था िस धांत
81
िदया तो वहीं इसके बेहतर िव लेषण के िलए वालर टीन ने तीन- तरीय संरचना का उ लेख
िकया, िजसम उ ह ने अ र्ध पिरिध के अवधारणा को कद्र और पिरिध के अवधारणा के साथ
रखा था। वहीं िव व यव था िस धांत के आने के साथ ही सभी का यान तीसरी दिु नया के
दे श पर चला गया, जो पिरिध और अधर्-पिरिध के प म जाने जाते थे। इसी कारण से
वतर्मान समय म िव व के उ री दे श को “कद्र” और िव व के दिक्षणी दे श को “पिरिध” और
“अधर्-पिरिध” के प म दे खा जाता है । वहीं वालर टीन कहते ह िक आधुिनक रा ट्र-रा य
आिथर्क, राजनीितक और कानूनी ढाँचे के एक समह
ू के प म अंतःिक्रया करते ह, िजसे
िव व यव था कहा जाता है । इसके अलावा वह कहते ह िक रा य के यवहार का िव लेषण
तब तक नहीं िकया जा सकता है , जब तक िक उसके यवहार को उसके वा तिवक
सामािजक सां कृितक प्रणाली के प म नहीं दे खा जाता है । इसिलए रा ट्र रा य या समाज
के मौजद
ू ा ि थित को िव व प्रणाली का िव लेषण िकए िबना नहीं समझा जा सकता है ।
वहीं इ मैनए
ु ल वालर टीन के िव व यव था िस धांत को समझने के िलए, उनके तक
को चार ेिणय म रखा जा सकता है , जो िक िन निलिखत ह।
(1) िव लेषण की इकाई
(3) कद्र, पिरिध और अधर्-पिरिध का संबंध
इस संदभर् म इ मैनुएल वालर टीन मानते ह िक जैसे-जैसे औ योिगक उ पादन म व ृ िध
होती है वैसे-वैसे पँज
ू ीवादी िव व अथर् यव था भी बढ़ती रहती है । इसिलए वे मानते ह िक
आधिु नक पँज
ू ीवादी वैि वक अथर् यव था, िनरं तरता और पिरवतर्न के कई चरण के साथ
िवकिसत हुआ है ।
िव व यव था िस धांत की समझ
इ मैनए
ु ल वालर टीन के अनस
ु ार “िव व यव था एक ऐसी सामािजक यव था है , िजसम
सीमाएं, संरचनाएं, सद य समह
ू , वैधता और सस
ु ग
ं ता के िनयम शािमल होते ह। यह पर पर
िवरोधी ताकत से बना है , जो िक तनाव और िवभाजन के वारा इ ह एक साथ जोड़ रखता
ह”। इस िव व- यव था म समह
ू का प्र येक सद य अपने-अपने िहत को लेकर िचंितत रहते
ह। इसके अलावा वालर टीन के पथ
ृ क् समाज की अवधारणा को उसके िव व यव था के
िस धांत का िव लेषण करने के बाद ही समझा जा सकता है । वहीं आधुिनक रा ट्र-रा य
िव व यव था का िह सा है , इसिलए वे िविभ न प्रकार की सामािजक यव था बनाते ह।
अतः यहाँ हम तीन प्रकार के सामािजक यव था को दे ख सकते ह।
82
1. छोटी प्रणाली : छोटी प्रणाली एक छोटे सजाितय समाज का समह
ू है । वह अपेक्षाकृत
आिथर्क तौर से आ मिनभर्र होते ह, क्य िक वे अस य तौर से अपना जीवन जीते ह,
िजसम वे िशकार करने, भोजन संग्रिहत करने आिद जैसे काय म लगे रहते ह। इस
छोटे प्रणाली म रा य अपने प्रणाली के अंतगर्त सभी आव यक व तुओ ं और सेवाओं
का उ पादन करता है , िजस कारण से यह प्रणाली बाहरी दिु नया के साथ अंतःिक्रया
नहीं करती है , इसके बजाय ये छोटे प्रणाली के समूह थानीय तर पर और
आव यकता के आधार पर अंतःिक्रया करते ह।
3. िव व अथर् यव थाएँ अथवा वैि वक पँूजीवादी प्रणाली : वैि वक अथर् यव था या
वैि वक पँज
ू ीवादी प्रणाली के प्रितपादक इ मैनुएल वालर टीन थे। 16वी शता दी म
यूरोप म इसी प्रणाली का वचर् व रहा था, िजस कारण से उस समय यूरोप म
पँज
ू ीवादी यव था अपने चरम पर थी और उस दौरान वहाँ पँज
ू ीवादी आिथर्क
गितिविधय पर आधािरत िविश ट प्रकार के यापार संबंधी िनयम का पालन िकया
जाता था। इसी कारण से बाद म वालर टीन िव व यव था को क्रमशः कद्र, पिरिध
और अधर्-पिरिध के प म अलग-अलग करते हुए इसके िव तार से िव लेषण करते
ह।
कद्र
िव व अथर् यव था के पँज
ू ीवादी प्रकृित से कद्र दे श को सबसे अिधक लाभ हुआ था। यरू ोप के
उ र-पि चमी दे श को कद्र दे श के प म जाना जाता है । कद्र दे श का उ लेख करते हुए
वालर टीन कहते ह िक लोकतांित्रक शासन की उपि थित, उ च क्रय शिक्त, क चे माल का
आयात और िनिमर्त मालो का िनयार्त आिद इन दे श के प्रमख
ु िवशेषताएँ ह। इसके अलावा
कद्र दे श म ि थर और मजबूत सरकार होती ह, िज ह पेशेवर नौकरशाही और सेना वारा
सहायता प्रदान की जाती है । इस कारण से यह संगिठत यव था घरे ल ू पँज
ू ीपितय को
अंतरार् ट्रीय यापार और वािण य पर उ च िनयंत्रण प्रा त करने म मदद करती है , िजससे
उ ह आिथर्क मोच पर काफी लाभ िमलता है । इसके अलावा उिचत कर प्रबंधन, अनुसध
ं ान
83
और अ य बुिनयादी संरचनाओं का िवकास और खरीद के िलए सरकारी नीितय के साथ यह
“कद्रीय दे श” पँज
ू ी संचय को बढ़ावा दे ते ह। वहीं वगर् संघषर् और िवरोध संबंधी खतर को कम
करने के िलए ये कद्र दे श एक उिचत सामािजक यव था बनाए रखते ह। इसके अलावा इन
कद्र रा य की एक अ य मह वपूण र् िवशेषता यह है िक ये कद्र दे श वैि वक अथर् यव था म
पँज
ू ीवाद को काफी बढ़ावा दे ते ह।
पिरिध
अधर्-पिरिध
84
करते ह। वहीं समकालीन समय म ये अधर् पिरिध वाले दे श उन िविनमार्ण गितिविधय िवशेष
तौर से उन क्षेत्र तक अपना िव तार कर रहे ह, िज ह कद्र दे श ने लाभहीन बना िदया था।
85
करते ह िक “पि चमी यूरोप के दे श म क्रांित क्य नहीं हुई।” इस संदभर् म ग्रा शी वचर् व की
अवधारणा को इस प्र न का उ र मानते ह। हालाँिक वचर् व की अवधारणा की याख्या करते
हुए ग्रा शी, मैिकयावेली के शिक्त के अवधारणा को वीकार करते ह (मैिकयावेली शिक्त को
सटोर अथार्त ् आधा जानवर और आधा मनु य के प म दे खते थे)। अतः ग्रा शी राजनीितक
संदभर् म वचर् व को बल-प्रयोग और सहमित के एक िम ण के प म दे खते ह। इस कारण
से ग्रा शी पँूजीवादी समाज को एक िवशेष समाज के तौर पर दे खते ह, जहाँ पर प्रभु व के
साथ-साथ वचर् व की अवधारणा भी दे खने को िमलती है ।
(1) वैधता की संरचना : ग्रा शी के अनुसार नागिरक समाज, कूल, धमर् (चचर्), पिरवार,
सामािजक मू य आिद की प्रिक्रय के मा यम से पँज
ू ीवाद के शोषण और संरचना को
सहमित और वैधता प्रदान करता है ।
(2) बल-प्रयोग : ग्रा शी, रा य और उसके यंत्र को नागिरक पर बल-प्रयोग का प्रमख
ु
प्रािधकार मानते ह, िजसम वह सेना, पुिलस बल और वयं रा य को शािमल करते ह।
इस संदभर् म ग्रा शी कहते ह िक जब भी वैधता की संरचना िवफल होती है तो
पँज
ू ीवादी समह
ू बलप्रयोग का सहारा लेते ह।
रोबटर् कॉक्स अपने प्रिस ध कृित “सोशल फोसज एंड व डर् ऑडर्र : िबय ड इंटरनेशनल
िरलेशंस योरी” (1981) म यह कहते ह िक “िस धांत” हमेशा िकसी के िलए और िकसी
उ दे य को यान म रखकर बनाया जाता है । इस कारण से वह मानते ह िक कोई भी
िस धांत और सै धांतीकरण की प्रिक्रया कोई प्राकृितक प्रिक्रया नहीं है । कॉक्स यह भी मानते
ह िक प्रचिलत सामािजक, राजनीितक और आिथर्क यव थाएँ सदै व ही यथाि थित को बढ़ावा
दे ती ह। इसके अलावा कॉक्स, हाखार्ईमर के वारा िकए गए पारं पिरक िस धांत और
आलोचना मक िस धांत के बीच के अंतर से सहमत ह। वह परं परागत िस धांत को
सकारा मक िस धांत के प म वगीर्कृत करते ह, िज ह िक वह सम या-समाधान (प्रॉ लम
सॉि वंग) िस धांत मानते ह। इसी कारण से कॉक्स नव-यथाथर्वाद और नव-उदारवाद को
सम या समाधान िस धांत मानते ह क्य िक यह दोन िस धांत ज्ञान के प्रभु वशाली और
वचर् वशाली संरचना को बनाए रखते ह। इसके अलावा रोबटर् कॉक्स यह भी मानते ह िक
‘वचर् व’ घरे ल ू यव था के साथ-साथ अंतरार् ट्रीय यव था म ि थरता बनाए रखने म
मह वपूण र् भिू मका िनभाता है ।
नव-माक्सर्वाद
87
“साम्रा यवाद—पँज
ू ीवाद की उ चतम अव था” संबंधी िवचार को खािरज कर िदया। इस संदभर्
म वॉरे न मानते ह िक लेिनन साम्रा यवाद और पँूजीवाद के बीच के संबंध को सै धांितक प
से समझने म िवफल रहे । वॉरे न कहते ह िक साम्रा यवाद को पँज
ू ीवाद उ चतम तर के
बजाय पँूजीवाद के अग्रदत
ू के प म दे खा जाना चािहए। उनके अनुसार पँज
ू ीवाद ने पिरिध के
दे श म उ पादन के साधन को िवकिसत करने म एक ऐितहािसक भिू मका िनभाई है । इसके
अलावा पँज
ू ीवाद ने आने वाले समाजवादी पीिढ़य और शहरी सवर्हारा वग को जगह भी
प्रदान िकया है , िजससे वह अपने शोषण के िव ध संघषर् कर सके।
वहीं दस
ू री तरफ जि टन रोसेनबगर् ने अपने प्रिस ध कृित “एंपायर ऑफ िसिवल
सोसाइटी : अ िक्रिटक ऑफ द िरयिल ट योरी ऑफ इंटरनेशनल िरलेशंस” (1994) म
अंतरार् ट्रीय संबंध के यथाथर्वादी पिरप्रे य की आलोचना की। रोसेनबगर् ने मख्
ु यतः तीन
आधार पर यथाथर्वाद की आलोचना की।
88
पँज
ू ीवाद ने “सावर्जिनक” सरकारी व तुओं को “िनजी” आिथर्क व तुओं से अलग कर िदया है ,
िजसके पिरणाम व प पँूजीवाद इस उ प न ि थित से काफी लाभ उठा रहा है ।।
िन कषर्
माक्सर्वाद, अंतरार् ट्रीय संबंध को समझने के िलए एक नया ि टकोण पेश करता है , जो
आिथर्क िनयितवाद और ऐितहािसक भौितकवाद पर आधािरत है । वहीं माक्सर्वादी
िस धांतकार का यह भी मानना है िक आिथर्क शिक्तयाँ और उ पादन की प धितयाँ
अंतरार् ट्रीय यव था के यावहािरक गितशीलता को िनधार्िरत करती ह। इसके अलावा इ ह ने
सै य शिक्त और रा ट्रीय सरु क्षा जैसे बुिनयादी िस धांत के मल
ू अवधारणा से संबंिधत
सम याओं का भी पता लगाया है । वहीं इ ह ने रा ट्र-रा य के वा तिवक ि थित और उसके
सामािजक, आिथर्क एवं राजनीितक ि थित को समझने के िलए एक िव व- यव था िस धांत
िवकिसत िकया है । इसके अलावा, माक्सर्वाद ने हमारा यान वै वीकरण के पिरणाम और
उसके आंतिरक अंतिवर्रोध की ओर भी आकिषर्त िकया है । इस संदभर् म जहाँ एक तरफ
माक्सर्वादी मानते ह िक वै वीकरण ने आिथर्क सम ृ िध को ती करने के साथ-साथ आिथर्क
व ृ िध को भी बढ़ावा िदया है , तो वहीं दस
ू री तरफ वे यह भी मानते ह िक वै वीकरण ने
अमीर और गरीब के बीच सामािजक और आिथर्क अंतर को भी काफी बढ़ाया है । इसी कारण
से ग्रा शी ने वै वीकरण को िवकासशील दिु नया पर वचर् व कायम करने का एक मह वपूण र्
साधन माना है । इसिलए अंतरार् ट्रीय संबंध का माक्सर्वादी िस धांत अंतरार् ट्रीय यव थाओ
और समाज के बीच वगर् संघष को समझने के िलए अभी भी काफी प्रासंिगक है ।
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90
इकाई-2
पाठ-4 : नारीवादी पिरप्रे य
डॉ. िहजम िलज़ा डालो िरहमो
अनुवादक : नारायण रॉय
पिरचय
अंतरार् ट्रीय संबंध के क्षेत्र म नारीवादी ि टकोण अपेक्षाकृत एक नवीन िवकास है । य यिप
लिगक समानता के िलए एक आंदोलन के प म, नारीवाद पहले से ही अ य सामािजक
िवज्ञान िवषय म एक मजबूत उपि थित दजर् करा चुका था, पर तु अंतरार् ट्रीय-संबंध िवषय
के क्षेत्र म 1980 के दशक के उ राधर् तक ही, एक कठोर नारीवादी बौ िधक पिरप्रे य का
उदय दे खा गया था। शीत यु ध के अंत तक अंतरार् ट्रीय-संबंध के क्षेत्र म नारीवादी िव लेषण
को मजबूती से थािपत िकया गया था। शीत यु ध के बाद की अविध म नए मु द की एक
पूरी ंख
ृ ला उभरी और रा य, शिक्त, रा ट्रीय सरु क्षा, यु ध, शांित, कूटनीित आिद जैसे
अंतरार् ट्रीय-संबंध के मुख्यधारा के िस धांत से संबंिधत कुछ प्रमख
ु सै धांितक धारणाओं को
नारीवादी िव वान वारा यवि थत प से चुनौती दी गई। नारीवादी िव वान िव लेषण कर
रहे थे िक िलंग अंतरार् ट्रीय संबध
ं िस धांत और यवहार को कैसे प्रभािवत करता है ।
नारीवादी िव वान का मत है िक अंतरार् ट्रीय-संबंध क्षेत्र मख्
ु यत: पु ष किद्रत है और
मिहलाओं के जीिवत अनुभव को मह व नहीं िदया गया है । नारीवादी िव वान के अनुसार,
यह मौजद
ू ा प्रमख
ु अंतरार् ट्रीय-संबंध िस धांत जैसे िक उदारवाद, यथाथर्वाद और रचनावाद की
एक प्रमख
ु सै धांितक सीमा है । नारीवादी िव वान ने अंतरार् ट्रीय संबंध की मल
ू
अवधारणाओं जैसे यु ध, रा य, कूटनीित, नीित िनधार्रण आिद का िलंग के ि टकोण से
िव लेषण िकया ह।
नारीवाद की लहर और अंतरार् ट्रीय संबंध
नारीवाद, िलंग आधिरत सामािजक, आिथर्क और राजनीितक समानता के िलए एक आंदोलन
है ( यासली 1999)। यह केवल मिहलाओं के िवषय म नहीं है । आधिु नक नारीवादी आंदोलन
को चार लहर म िवभािजत िकया जा सकता है । श द ‘लहर’ एक पक है िजसका उपयोग
नारीवाद की िविभ न पीिढ़य और उसके उ दे य की पहचान करने के िलए िकया जाता है ।
नारीवाद के िविभ न िक म के बीच अलग-अलग ि टकोण, एजडा और उ दे य मौजद
ू ह
और कभी-कभी इनम से कुछ अवतरण अंतरार् ट्रीय-संबंध अनुशासन म पिरवितर्त हो जाते ह।
संक्षेप म जाँच करने के िलए…
91
प्रथम लहर, 19वीं सदी के अंत और 20वीं शता दी के प्रारं भ से शु हुई और वे मख्
ु य
प से मतदान के अिधकार, िशक्षा, सावर्जिनक कायार्लय तक पहुँच आिद से संबंिधत थीं।
मिहलाओं की सावर्जिनक क्षेत्र तक पहुँच सिु नि चत करने के उनके राजनीितक उ दे य अभी
भी समकालीन अंतरार् ट्रीय संबंध के नारीवादी िव वान, जो आज मिहलाओं को अंतरार् ट्रीय
संबंध म लाना चाहते ह जो अ यथा एक पु ष-प्रधान क्षेत्र है , के साथ प्रित विनत होते ह।
अंतरार् ट्रीय राजनीित म रणनीितकार, सैिनक, राजनियक, राजनेता, शांित दलाल, नीित
िनयंता, आिद यादातर पु ष ह। पर तु हाल ही म इस क्षेत्र म मिहलाओं की संख्या बढ़ी है ।
दसू री लहर 1960 के दशक म शु हुई और 1990 के दशक म भी जारी रही, के
नारीवादी िव वान अपनी माँग को लेकर क टरपंथी थे। इस दौरान नागिरक अिधकार
आंदोलन और यु ध िवरोधी संघषर् भी चल रहे थे। नारीवादी िव वान ने यह तकर् दे ते हुए िक
सेक्स, चाइ ड-कैअर, ज म िनयंत्रण, घरे ल ू म िज ह एक िनजी मामला माना जाता है , वे
वा तव म सं थागत और राजनीितक है , मख्
ु यतः यह घोषणा की िक ‘िनजी राजनीितक है ’,
और यह मिहलाओं की समानता के िलए लड़ाई के िलए मौिलक है । यह सावर्जिनक और
िनजी िवभाजन अंतरार् ट्रीय-संबंध के एक नारीवादी िव लेषण के िलए आज भी प्रासंिगक है
जब हम िलंग के पिरप्रे य को वहाँ रखते ह, जहाँ पु ष व का िनमार्ण सावर्जिनक और
राजनीितक थान के िलए अनुकूल दे खा जाता है (गो ड टीन और पेवहाउस 2007 : 103)।
तीसरी लहर 1990 के दशक म शु हुई। यह दस
ू री-लहर की िनरं तरता और उसकी
किथत िवफलताओं की प्रितिक्रया दोन थी। इस दौरान नारीवादी िव वान ने मत व मतभेद
की बहुलता पर यान किद्रत िकया और रं ग, न ल, उप-औपिनवेिशक अनुभव आिद के
आधार पर अंतरानुभागीयता को वीकार िकया। अपने से पहले के समकक्ष से हटकर,
अंतरार् ट्रीय-संबंध के नारीवादी िव वान ने अंतरानुभागीयता की िदशा म भी कायर् िकया।
उ ह ने िविभ न तरीक , ेिणय , िलंग, जाित, वगर्, लिगकता आिद पर यान दे ते हुए यह
दशार्ने का प्रयास िकया िक िव व- यव था कैसे काम करती है और शिक्त संबंध के
पदानुक्रम का खुलासा करती है (हिचंग्स 2014)।
अंततः, चतुथ र् लहर (चबरलेन 2017 : 1) एक हािलया िवकास है जो 2008 से, नारीवादी
सिक्रयता के िलए इंटरनेट के बढ़ते उपयोग के साथ शु हुआ। समान अिधकार की माँग
करने, जानकारी साझा करने और प्रितरोध करने म सोशल मीिडया ने एक शिक्तशाली मंच
के प म उभरा है । 2010 के दशक म, ‘अरब ि प्रंग’ म िवटर और फेसबुक जैसे सोशल
मीिडया की भिू मका सव पिर थी, ( टे पानोवा 2011 : 1) जहाँ िवशेष प से मिहलाएँ, एक
िढ़वादी समाज म, अिधकािरय के िव ध सड़क पर िनकली और अंतरार् ट्रीय संबंध को
प्रभािवत िकया।
92
हालाँिक, िविभ न लहर के बीच एक सामा य अंत र्ि ट यह है िक ये सभी ‘अंतरार् ट्रीय
संबंध कैसे काम करता है ’ को समझने म ‘िलंग’ के मायने को थािपत करते ह। यह इस
बात पर प्रकाश डालता है िक मिहलाओं को िलंग के पदानक्र
ु िमत आयोजन िस धांत म कैसे
वंिचत, अ य और शिक्त संरचनाओं के िनचले भाग पर रखा गया है । यह असमानता है ,
जो पु ष और मिहलाओं के बीच पदानुक्रिमत िलंग भेद से उ प न हुई ह, कायर्, मजदरू ी,
सावर्जिनक भागीदारी, कायर् िवभाजन आिद के संदभर् म िनरं तर और थायी है ।
अंतरार् ट्रीय संबंध, म नारीवादी िव वान िलंग अवधारणा से अपनी बात प्रार भ करते ह।
अंतरार् ट्रीय संबंध म नारीवादी िव वान िलंग को िव लेषण की एक ेणी के प म पेश करना
चाहते ह। जब वैि वक मामल का िव लेषण िलंग भिू मकाओं के पिरप्रे य से िकया जाता है ,
तो इसे आमतौर पर िलंग लस के मा यम से िव व के अथर् को समझना कहा जाता है । जडर
एक सामािजक प से िनिमर्त ेणी (बटलर 1990) है जहाँ ‘पु ष’ और ‘मिहला’ को क्रमशः
पु ष व और त्री िवशेषताओं के साथ जोड़ कर दे खा जाता है । लिगक संबंध की यह धारणा
अंतरार् ट्रीय संबंध की परे खा िनधार्िरत करने म मह वपण
ू र् भिू मका िनभाती ह। अंतरार् ट्रीय
संबंध म नारीवादी पिरप्रे य की शु आत जीन बेथेक्लेटन, िसंिथया ए लो और जे.एन. िटकनर
की रचनाओं से हुई। यु ध, कूटनीित, नीित िनमार्ण आिद जैसे अंतरार् ट्रीय राजनीित के कद्रीय
िवषय का िव लेषण करने के िलए अंतरार् ट्रीय संबंध के क्षेत्र म िलंग की अवधारणा को
प्रार भ करने के िलए ये नारीवादी िव वान बेहद िज मेदार ह। आज, उनकी रचनाएँ नारीवादी
अंतरार् ट्रीय संबंध के पिरचया मक वगर् के िलए मौिलक रचनाओं का िनमार्ण करती ह।
उ ह ने ज्ञान के एक नए प और अंतरार् ट्रीय राजनीित को समझने के एक नए वैकि पक
ि टकोण की शु आत की। अंतरार् ट्रीय संबंध क्षेत्र की औपचािरक बहस म यह मिहलाओं और
िलंग को थािपत नहीं करता है (िस वे टर 2004 : 10), वे गायब थी अथवा उ ह बस
अनदे खा िकया गया था और ये अंतरार् ट्रीय संबंध के नारीवादी िव वान उस गलत को सही
करने का प्रयास कर रहे थे।
जीन बेथेक्लेटन
जीन बेथेक्लेटन, नारीवादी अंतरार् ट्रीय संबंध की सबसे अग्रणी िव वान म से एक ह, जो
अपनी पु तक वीमेन एंड वॉर (1987) म िलंग की अवधारणा का उपयोग यु ध के िड कोसर्
की जाँच करने के िलए िकया, जहाँ त्री व को उस मिहला के प म समझा जाता है िजसे
‘संरक्षण’ की आव यकता है और पु ष व को ‘पु ष एक रक्षक है ’, के प म समझा जाता है ।
यह िलंग वगीर्कृत वगीर्करण पु ष और मिहलाओं के बीच संबंध और उनकी शिक्त की
ि थित को बताता है जो बाद म यु ध म उनकी भिू मका के िलए िनधार्रक बन जाता है ।
उदाहरण के िलए, पु ष को सैिनक और मिहलाओं को नागिरक या पीिड़ता के प म दे खना।
93
उनकी रचनाएँ न केवल पु ष और मिहलाओं के बीच, शिक्त संरचनाओं के संदभर् म,
असमानता को प्रदिशर्त करने म िलंग की भिू मका की जाँच करने के िलए मह व
पूण र् है ,
बि क राजनीितक क्षेत्र पु ष व या पु ष िवशेषताओं से जड़
ु ा है , ऐसी सामा य धारणा को
उजागर करने म भी मह वपूण र् है । साथ ही उनकी रचनाओं ने मिहलाओं और पीिड़त के बीच
थािपत स ब ध पर प्र न िच ह लगाया। इस पु तक के मा यम से, उ ह ने उन प्रमख
ु
प्रतीक की आलोचना की, जो पु ष को ‘ज ट वािरयर’ और मिहलाओं को ‘ यूटीफुल सोल’ के
प म मा यता दे ते थे।
यह जडिरंग प्रिक्रया एक िनद ष पिरयोजना नहीं है क्य िक इसम यु ध के िस धांत और
यवहार के स दभर् म, पु ष और मिहलाओं की उपयुक्त िलंग भिू मकाओं के बारे म धारणा
को यक्त िकया गया है । िलंग की इस भिू मका के कारण, मिहलाएँ यु ध क्षेत्र म िदखाई नहीं
दे ती ह, नागिरक के प म उ ह दरू रखा गया, जबिक पु ष जो सेनानी, रणनीितकार,
वातार्कार और शांित-दलाल थे, ने यु ध के इितहास को िलखा। मिहलाओं की भूिमका को
नग य बना िदया जाता है । हालाँिक, यु ध के स दभर् म मिहलाओं की एक गैर-लड़ाकू धारणा
को वतर्मान समय म बड़ी चुनौितयाँ िमली ह, क्य िक कई मिहलाएँ सै य सेवाओं म भी
समान प से आक्रामक ह और उनके पु ष समकक्ष की तरह ही प्रमख
ु ह।
िसंिथया ए लो
नारीवादी अंतरार् ट्रीय संबंध के िव वान का मत है िक अंतरार् ट्रीय संबंध के अनुशासन म
मिहलाओं का प्रितिनिध व कम है । अंतरार् ट्रीय संबंध के िस धांत जडर- लाइंड (िलंग के प्रित
अंधे) हो गए ह क्य िक अंतरार् ट्रीय संबंध के नारीवादी िव लेषण के उ भव तक, प्रमख
ु
अंतरार् ट्रीय संबंध िस धांत ने वैि वक मामल म िविभ न िलंग अनुभव को काफी हद तक
नजरअंदाज िकया है । िहत की सामा य कमी, और अंतरार् ट्रीय संबंध म मिहलाओं की
अनुपि थित के कारण नारीवादी िव वान ने नाराजगी जताई थी, और यह प्र न उभरा िक
‘मिहलाएँ कहाँ ह?’ (ए लो 1990)।
अपनी प्रिस ध पु तक ‘बनाना, बीचेस, एंड बेसेस’ (Banana, Beaches and Bases
1990) म वह मिहलाओं को पु ष के वचर् व वाले अंतरार् ट्रीय राजनीितक पिर य म
थािपत करती है , जहाँ पहले मिहलाएँ अ य थीं। उदाहरणतः राजनियक की प नी, रसोइया,
नसर्, पिरधान िमक आिद। मिहलाओं की िलंग भिू मकाओं ने अंतरार् ट्रीय राजनीितक को नई
अंत र्ि ट प्रदान की है । एक राजनियक की प नी, एक दो ताना राित्रभोज पाटीर् की मेजबानी
कर सकती है , जहाँ िवदे शी दत
ू एक साथ बैठ, औपचािरक समझौते से पूव,र् अनौपचािरक प
से िवदे शी संबंध को प्रभािवत करने वाले िवचार का आदान-प्रदान करते ह। इसी तरह, एक
यु ध की ि थित म पु ष यु ध के मैदान म लड़ते ह लेिकन ये घरे ल ू कामगार, नसर्, रसोइया
और दजीर् ही िकला का रख-रखाव करती ह। उनकी वजह से सैिनक को पहनने के िलए
94
कपड़े िमलते ह, उ ह िखलाया जाता है , उनकी दे खभाल की जाती है , लेिकन कोई भी
इितहास उनके इन योगदान का उ लेख नहीं करता है । यह लिगक असमानता है । पर त ु
िलंग का िवषय मख्
ु यधारा के अंतरार् ट्रीय संबंध के िस धांत से बच जाता है ।
जे.एन. िटकनर
अंतरार् ट्रीय राजनीित म काफी हद तक पु ष ही हावी है , िज ह ने इसे मिहलाओं के िलए एक
बहुत ही दग
ु म
र् वातावरण बनाया है और इसी कारण जे.एन. िटकनर ने कहा िक ‘अंतरार् ट्रीय
राजनीित एक पु ष की दिु नया है ...’ (िटकनर 1988 : 429)। िलंग भेद के कारण िवदे शी
और सै य नीित-िनमार्ण के क्षेत्र म मिहलाएँ हािशए पर है , क्य िक िलंग िढ़वािदता के
अनस
ु ार ये मिहलाओं की भिू मका नहीं ह। इन गितिविधय को बड़े पैमाने पर पु ष वारा
आयोिजत िकया जाता है और इस तरह, उनका अ ययन करने वाला कोई भी अनश
ु ासन
मख्
ु य प से पु ष अथवा पु ष व प्रधान होने के िलए बा य है (िटकनर 1992)। इस प्रकार,
मख्
ु यधारा के अंतरार् ट्रीय संबंध िस धांत, िवशेष प से यथाथर्वाद, िलंग-अंधापन (जडर
लाइंडनेस) से ग्र त है ।
िटकनर मोगथ ु के राजनीितक यथाथर्वाद के िस धांत की आलोचना के िलए जानी जाती
है , िजसम उ ह ने यह िदखाया िक ये िस धांत एक पु ष व पक्षपात है । अपने तक को
प ट करने के िलए, वह कहती है िक व तिु न ठता को िजस तरह से सां कृितक प से
पिरभािषत िकया गया है िक वह पु ष व से जड़
ु ा हुआ है । रा ट्रीय िहत बहुआयामी है ,
इसिलए इसे केवल शिक्त के प म पिरभािषत नहीं िकया जा सकता है , शिक्त को प्रभु व
संप न के िवशेषािधकार के प म पिरभािषत करना सामिू हक सशक्तीकरण की संभावना की
अनदे खी करता है । सभी राजनीितक कायर् नैितक मह व के हो सकते ह और ये सामा य
नैितक मू य संघषर् के समाधान का आधार बन सकते ह। िटकनर वाय ता की वैधता से
इनकार करती ह, क्य िक यह पु ष व के साथ जड़
ु ा हुआ है और ऐसी िव व- ि ट का िनमार्ण
कर रहा है जो मिहलाओं की िचंताओं और योगदान को शािमल नहीं करता है (िटकनर
1988: 438)।
िचंतनशीलतावाद के अंतगर्त नारीवादी िव लेषण का पता लगाना
अंतरार् ट्रीय संबंध के नारीवादी िव वान ने अंतरार् ट्रीय संबंध के अ ययन और याख्या के
वैकि पक तरीक की शु आत करके अंतरार् ट्रीय संबंध क्षेत्र म योगदान िदया। नारीवादी
िव वान ने अपने अ ययन के िवषय का िव तार कर अंतरार् ट्रीय संबंध के अनुशासन को
सम ृ ध िकया और िजसके पिरणाम व प जडर (िलंग) को गंभीरता से लेना शु कर िदया
गया है । उ ह ने रा य क्या है और रा य अंतरार् ट्रीय प्रणाली म कैसे संचािलत होता है जैसे
संरचना मक िस धांत के सज
ृ न म िलंग के मह व
पर जोर िदया। अंतरार् ट्रीय संबंध का िलए
95
नारीवादी ि टकोण मख्
ु य धारा के ि टकोण से अलग है । तो सवाल यह है िक हम
अंतरार् ट्रीय संबंध म नारीवादी िव लेषण कहाँ पाते ह?
अंतरार् ट्रीय संबंध अनश
ु ासन के िवकास म प्रित पधीर् प्रितमान मौजद
ू ह, जोिक यथाथर्वाद
और नव-यथार्थवाद जैसे प्रमख
ु िस धांत ह। आदशर्वाद और यथाथर्वाद के बीच ‘प्रथम महान
बहस’ और ‘ िवतीय बहस’ या यथाथर्वाद और नव-यथाथर्वाद के बीच अंतर-प्रितवाद बहस के
बीच सभी, अंतरार् ट्रीय संबंध के अपने िस धांत म मिहलाओं के अनभ
ु व का कोई उ लेख
नहीं है (िस वे टर 2004)। यह एक पु ष की दिु नया थी, जहाँ िवशेष प से पि चम के एक
कुलीन और वेत पु ष का अनुभव यह तय करता है िक अंतरार् ट्रीय संबंध म क्या हो रहा
है । और इस चयिनत पु ष के अनुभव को सावर्भौिमक मानव अनुभव के प म पेश िकया
जाता है । इसके अितिरक्त, उदारवाद, यथाथर्वाद और गेम- योरी जैसे प्रमख
ु अंतरार् ट्रीय संबंध
िस धांत तकर्संगतता, िन पक्षता और कद्रीयता पर आधािरत यापक सै धांितक दाव पर
आधािरत ह। प्रमख
ु अंतरार् ट्रीय संबंध िस धांत वारा यह सावर्भौिमक ि टकोण, जो
‘तकर्संगतता’ पर आधािरत है , अनजाने म मत की िविवधता और िचंताओं को प्रितबंिधत
करता है , जो अंतरार् ट्रीय मामल जैसे िलंग, वगर्, न ल आिद म अ य िनधार्रक का िवरोध
करते ह। उनके सै धांितक ढाँचे म बहुलवाद की कमी के पिरणाम व प अंतरार् ट्रीय संबंध
अनुशासन के भीतर प्रणालीगत पक्षपात होता है , क्य िक वे तय करते ह िक क्या अ ययन
करना है , क्या लाग ू करना है , मल
ू प से, वे िनधार्िरत करते ह िक अंतरार् ट्रीय संबंध क्या
ह।
हालाँिक, ‘तीसरी बहस’ के दौरान इस परवतीर् ने एक मोड़ ले िलया क्य िक उ ह, उनके
ज्ञान और िविधय को चुनौती दी गई थी। उ र-आधुिनकतावादी और नारीवादी ने उनकी
बौ िधक परं परा की आलोचना की। उनका प्रयास अंतरार् ट्रीय संबंध अनुशासन के मख्
ु यधारणा
के ि टकोण का पुनमूर् यांकन करना और रा ट्र-रा य, अराजकता, यु ध, कूटनीित, नीित
िनधार्रण, वैि वक अथर् यव था जैसे मह वपूण र् क्षेत्र का पुनमूर् यांकन करना और इसे अिधक
समावेशी और िलंग-संवेदनशील बनाना था। य यिप, अंतरार् ट्रीय संबंध के िलए इस प्रयास के
बावजद
ू ‘आज के उपकरण से इितहास को िफर से दे खना पर, मिहलाएँ, िलंग और नारीवाद
अभी भी गायब ह’ (िस वे टर 2004 : 14)। नारीवाद की थोड़ी सी सफलता के बावजद
ू ,
इसने िविभ न तरीक की सोच, कायर्प्रणाली और िस धांत को पेश िकया क्य िक उनका
ि टकोण मौिलक अंतरार् ट्रीय संबध
ं िस धांत , जो तकर्संगतता पर आधािरत थे, से अलग
था। यह तीसरी बहस तकर्वाद और िचंतनवाद के बीच है । अ य मह व
पूण र् िस धांत और
उ र आधुिनक सोच के साथ नारीवाद िचंतनशीलतावाद के भीतर ि थत ह।
िचंतनशीलतावादी ि टकोण अंतरानुभागीय अथर् और ज्ञान पर यान किद्रत ह। एक
िचंतनवादी ि टकोण के प म, नारीवादी अंतरार् ट्रीय संबंध अनुशासन ने इस बात पर जोर
96
िदया िक ‘पु ष व’ और ‘ त्री व’ जैसे सामािजक अथ की याख्या और उनका प्रयोग कैसे
िकया जाता है । उदाहरण के िलए, ‘पु ष व’ को पु ष की पु ष व के प म समझा जाता है ,
िजसम एक पु ष एक सेनानी बनता है और यु ध उसका एक कायर् िवशेषािधकार बनाता है ।
और ‘नारी व’ की याख्या नारी व के सार के प म की जाती है , िजसम एक मिहला एक
दे खभाल करने वाली और एक पोषणकतार् बन जाती है , जो उसके सां कृितक मू य और
आदश का संरक्षक बनाती है । इस तरह की याख्याओं का अंतरार् ट्रीय संबंध पर प्रभाव
पड़ता है । िमसाल के तौर पर, जब यु ध होता है तो जवान की मौत हो जाती है , जबिक
सां कृितक मू य और समद
ु ाय के स मान का प्रितिनिध व करने वाली मिहलाओं पर
हमलावर पक्ष वारा यौन िहंसा की जाती है , िजसे वे अ य पु ष के स मान पर हमला
करने के प म दे खते ह। एक मिहला का शरीर रा य की सीमाओं (पे मन 1997) का
िनधार्रक है । ऐसे ही यु ध को समझने म िलंग मह वपण
ू र् है क्य िक मिहलाओं के यु ध
अनुभव पु ष से अलग होते ह।
अंतरार् ट्रीय संबंध नारीवाद के प्रकार
97
संबंध म मिहलाओं को शािमल करने का समथर्न िकया, जो सामा यतः पु ष के
िलए आरिक्षत रहे ह हालाँिक, मिहलाओं को शािमल करने का यह मतलब नहीं िक
यह अंतरार् ट्रीय प्रणाली की प्रकृित को बदल दे गा। यह नारीवादी पक्ष अंतरार् ट्रीय
शिक्त संरचनाओं को चुनौती नहीं दे ता है , बि क केवल मिहलाओं के बिह करण
प्रथाओं को चुनौती दे ता है , दस
ू रे श द म कहे तो, यह केवल पु ष वचर् व को चुनौती
दे ती है ।
3) उ र आधुिनक नारीवाद : उ रआधुिनक नारीवाद के अनुसार, मिहलाओं का कोई
प्रामािणक अनुभव या ि टकोण नहीं है , िजससे हम सामािजक और राजनीितक
दिु नया को समझ सक (िजल टे स और एट अल। 2010: 163)। यह एक
सावर्भौिमक मिहला वगर् के अि त व को खािरज करता है । इन िव वान के अनुसार
मिहलाएँ िविश ट सामािजक और सां कृितक संबंध का उ पाद ह। िजसे ‘मदार्ना’ या
‘ त्रैण’ माना जाता है , उसे सां कृितक प से भाषा, प्रतीक और कहािनय के मा यम
से िनिमर्त िकया जाता है , क्य िक िलंग की इस तरह का कोई एक ि थर या िनि चत
ेणी नहीं है िजसका उपयोग अंतरार् ट्रीय संबध
ं के िव लेषण के िलए िकया जा
सकता है ।
िवषय-व त ु
98
रक्षा करने की क्षमता से संप न होता है , वही रा ट्र की तुलना उस मिहला के साथ की जाती
है िजसे सरु क्षा की आव यकता है ।
राजनीितक क्षेत्र म मिहलाओं का कम प्रितिनिध व, एक कायर्वाहक, पोषणकतार् और
िशिक्षका के प म उनकी लिगक भिू मका के कारण है । िलंग एक ऐसी सामािजक ेणी है
िजसम संबंधा मक शिक्तयाँ होती ह और जहाँ पु ष मिहलाओं से प्रभु वशील होते ह। इस
पु ष वचर् व को सावर्जिनक / िनजी िवभाजन वारा समिथर्त और वैध बनाया गया है , जो
िक लिगक संबंध संबंध पर आधािरत होता है । यह िलंग संबंध रा य के सभी पहलओ
ु ं म
या त है । इस प्रकार, सावर्जिनक / िनजी िवभाजन अंतरार् ट्रीय संबंध की हमारी समझ के
िलए कद्रीय है और िसंिथया ए लो के श द म कहा जाये तो ‘िनजी अंतरार् ट्रीय है ’ ( टस
और एट अल. 2010: 168)।
संघषर् और िहंसा
नारीवादी के अनुसार, अंतरार् ट्रीय संबंध म रा य और िहंसा के बीच घिन ठ संबंध है । रा य
का सै य तंत्र प्रकृित म पुि लंग है क्य िक सै य गितिविधयाँ आक्रामकता, िवनाश और
वचर् व से स बंिधत ह। हालाँिक, जब बात सै य उ योग की थापना, जीिवका और पु ष व
की थापना की आती है , तो पु ष और मिहला दोन रा य सै य तंत्र के पु ष व को मजबत
ू
करने म एजट हो सकते ह। नारीवादी के अनस
ु ार, सै यवाद और संरचना मक िहंसा के बीच
भी एक संबंध है । जब कोई रा य अपने सै य खचर् को बढ़ाता है , तो कम संसाधन को
भोजन और क याण पर खचर् िकया जाता है । उनके िवचार म, ‘अ य ’ से सरु क्षा प्रदान करने
के बजाय, सै य-औ योिगक पिरसर वा तव म दे श के अंदर के 'कमजोर’ को नक
ु सान
पहुँचाता है , क्य िक रा य के संसाधन को िवकास, िशक्षा, वा य, क याण आिद के बजाय
सै य सरु क्षा म बदल िदया जाता है ।
मिहलाओं पर िहंसा के प्र यक्ष प म से एक ‘यौन िहंसा’ है । अंतरार् ट्रीय संबध
ं के
नारीवािदय ने मानव त करी और यौन िहंसा को अंतरार् ट्रीय संबंध को समझने के िलए
मह वपण
ू र् िवषय माना है । ये ि टकोण अंतरार् ट्रीय संबध
ं के मख्
ु यधारा के िस धांत के
िव लेषण म शािमल नहीं ह। वे लिगक िहंसा के प्रित अंधे ह। िवशेष प से, यु ध के दौरान
यौन िहंसा और बला कार मिहलाओं के यु ध के अनुभव के िलए जीवंत वा तिवकता है । यौन
िहंसा यु ध िड कोसर् का एक प्रमख
ु िह सा है और अंतरार् ट्रीय संबंध के नारीवादी िव वान
इसे शािमल करने और यु ध के िड कोसर् को िव तत
ृ करने की कोिशश कर रहे ह, जो
अंतरार् ट्रीय संबंध की एक मख्
ु य अवधारणा है ।
99
यु ध और शांित
जीन बेथेक्लेटन ने अंतरार् ट्रीय संबंध की मल
ू अवधारणा यु ध को अपनाया और अपनी रचना
‘वीमेन एंड वॉर’ म यु ध के िलंग संबंधी वा तिवकताओं को उजागर िकया है । उ ह ने यु ध
के लिगक पहलओ
ु ं का पता लगाया और पु ष और मिहलाओं के सै यवाद और शांितवाद के
िविभ न संबध
ं का िव लेषण िकया। पु ष व और यु ध िड कोसर् की जाँच का मह व यह है
िक इसने सै यीकृत सरु क्षा पर बहुत अिधक मह व िदया है और रक्षा प्रित ठान की पु ष व
प्रकृित उसे मानवीय भावनाओं से दरू करती है (Cohn 1987: 691)।
नारीवादी िस धांत ने सरु क्षा के इस सै यीकरण की अवधारणा की आलोचना की और
िशक्षा, व छ पयार्वरण, थायी अथर् यव था, भोजन आिद जैसे मानव सरु क्षा के प्रित
सै यीकृत रा य से परे सरु क्षा की अवधारणा को यापक बनाया। मिहलाओं की िलंग भिू मका
के कारण उनकी सोच पु ष की तकर्संगत सरु क्षा के तरीक से िबलकुल अलग है । नारीवािदय
ने सै यकृत सरु क्षा, जो िक आयध ु ा है , के पीछे तकर्संगतता की अप्रभावीता की
ु से जड़
आलोचना और खुलासा िकया है । उनका मत है िक इससे हिथयार की दौड़ बढ़ती है , तनाव
बढ़ता है और अिधक असरु क्षा पैदा होती है ।
मिहलाएँ शांित और सरु क्षा का अथर् खा य सरु क्षा, मानव सरु क्षा, जल सरु क्षा, वा य
और िशक्षा, िवकास आिद के संदभर् म सोचती ह। मिहलाएँ यु ध-िवरोधी संघष म सिक्रय रही
ह, जो उग्रवाद, िहंसा और प्रभु व का प्रतीक है । उ ह ने पर पर संपकर्, संवाद और सहयोग
पर जोर िदया। इस प्रकार, नारीवाद एक वैकि पक ि टकोण प्रदान करता है जो शांित और
सरु क्षा पर उन शत को पन
ु ः पिरभािषत और पन
ु रीिक्षत करता है , िजनम सावर्जिनक िड कोसर्
आयोिजत िकए जाते ह। इस प्रकार, आधुिनक शांित िनमार्ण प्रिक्रया म मिहलाओं को सिक्रय
प से संलग्न होने की आव यकता है ।
हालाँिक, यह मानना भी उिचत नहीं िक ‘ त्री व’ और ‘शांित’ के बीच एक वचािलत
संबंध है , बि क इसका कारण मिहला की वह लिगक भिू मका और मात ृ व के अपने अनभ
ु व
है जो मिहलाओं को शांित के िलए एक करीबी िर ता दे ता है ।
रा ट्रीय सरु क्षा
रा ट्रीय सरु क्षा सै य शिक्त से जड़
ु ी हुई है । इसे अंतरार् ट्रीय संबंध नारीवादी िव वान वारा
चुनौती दी गई है , क्य िक यह सरु क्षा के पु ष व ि टकोण को दशार्ता है । यो धा के प म
पु ष की और शांितवादी के प म मिहलाओं की अवधारणा हम एक पु ष व सं कृित की
ओर ले जाती है जोिक एक सै य सरु क्षा प्रदान करती है । चँ िू क मिहलाओं को यु ध क्षेत्र और
शांित व संघषर् समाधान के िलए बातचीत से बाहर रखा गया है , और शांित प्रेमी के प म
दे खा जाता है , इसिलए उ ह ने रा ट्रीय सरु क्षा पिरयोजनाओं के िनमार्ण म कोई भिू मका नहीं
100
िनभाई और इसिलए अंतरार् ट्रीय संबंध म मानव सरु क्षा के बजाय सै य सरु क्षा पर यान
किद्रत िकया गया है ।
नारीवाद को शांितवाद के साथ मिहला को जोड़कर दे खने की अवधारणा से भी सम या
है । पैिसिफ़ म यािन शांितवाद एक मिहला का अंतिनर्िहत आव यक गण
ु नहीं है , यह िलंग
िढ़वािदता है । मागर्रेट थैचर, इंिदरा गांधी, मैडल
े ीन अलब्राइट, क डोलेज़ा राइस आिद जैसी
स ा म कुछ क टरपंथी मिहलाएँ ह िज ह ने लिगक भिू मका िनभाई है ।
हालाँिक, जब से मिहलाओं को एक कायर्वाहक और एक पोषणकतार् के प म, उनकी
िलंग भिू मका के संदभर् म उनका समाजीकरण िकया गया है , इसीिलए वे संघषर् के समाधान
करने म अिधक सशक्त और समझदार ह। संघषर् और यु ध के दौरान मिहलाओं और ब च
को बहुत पीड़ा होती है पर त ु सामा यतः मिहलाएँ शांित वातार् की मेज पर अनप
ु ि थत रहती
ह। हालाँिक, नारीवादी आव यक मिहलाओं को िनि क्रय और शांित प्रेमी के प म अ वीकार
करते ह लेिकन उिचत िलंग भिू मकाओं म उनके समाजीकरण के कारण, वे मिहलाओं को
शांित िनमार्ण प्रिक्रया म लाना चाहते ह। इसिलए नहीं क्य िक वे मिहलाएँ ह, बि क इसिलए
िक उ ह एक मिहला के प म यु ध के प्रभाव , जैसे यौन िहंसा, का अनुभव िकया है जोिक
पु ष के अनुभव से िभ न है ।
पहचान, और ज्ञान का सज
ृ न
नारीवादी जडर, लिगकता और यौन पहचान के िविभ न मु द क्षेत्र पर काम कर रहे ह। त्री
और पु ष के प म एक शरीर की पहचान एक सामािजक िनमार्ण है । यह हमारे जैिवक
शरीर की सां कृितक याख्या है और यह हमारी लिगक पहचान, हमारी सामािजक भिू मकाओं
और यौन अिभ यिक्तय को िनधार्िरत करती है । इस ज्ञान का सज
ृ न िक हम कौन ह या
हमारी पहचान के क्या है , यह न केवल हमारे समाज म शिक्त संबंध को समझने बि क
अंतरार् ट्रीय राजनीित के िव तत
ृ संदभर् म भी मह वपण
ू र् है । िकसके ज्ञान की सन
ु वाई होती है
या िकसका ज्ञान वैध है , यह भी नारीवादी िव वान के िलए अ यन का एक और कद्र िबंद ु
है । हम दिु नया का िनमार्ण कैसे करते ह और हम दिु नया को कैसे िसखाते ह इसका दिु नया
पर बड़ा प्रभाव पड़ता है (िटकर 2016)। लिगक भिू मकाओं, भाषा, सामािजक सं थाओं और
रा य तंत्र के मा यम से पु ष ने अपना प्रभु व थािपत िकया और उसे बनाए रखा। वैसे ही
ज्ञान एक पदानुक्रिमत और अनु पतावादी पैटनर् (केलर 1996) लाग ू करता है जो एक पु ष व
प्रकृित को दशार्ता है ।
अंतरार् ट्रीय संबंध के नारीवादी िव वान को अंतरानभ
ु ागीयता म भी िच है । उ ह ने इस
बात पर जोर िदया िक िविभ न तरह से िविभ न पहचान जैसे जडर, जाित, वगर्, लिगकता,
िवकलांगता आिद को वगीर्कृत िकया जाता है को, यह दिु नया कैसे काम करती है , के स दभर्
101
म समझना इसिलए मह वपूण र् है क्य िक यह उन ेिणय के कारण पदानुक्रम और भेदभाव
को समझने म हमारी मदद करता है ।
नारीवादी रा ट्र-रा य िनमार्ण की पि चमी अवधारणा के भी आलोचक ह। वे टफेिलया की
पि चमी रा ट्र-रा य प्रणाली मिहलाओं के जीिवत अनभ
ु व पर आधािरत नहीं है । रा य के एक
िस धांत की क पना म मिहलाएँ अनप
ु ि थत ह। वे उपिनवेश और दिमत की उपेिक्षत
आवाज भी ह। वे टफेिलयन रा य प्रणाली के बारे म ज्ञान का सज
ृ न उनसे िवयोिजत/ बेमेल
है ।
यहाँ तक िक रा ट्रीय पहचान, सामािजक प से बनाई जाती है जहाँ मिहलाओं को
रा ट्रीय सं कृित, वदे शी धमर् और परं पराओं की संरक्षक माना जाता है । यह मिहलाओं को
पु ष वारा िनधार्िरत रा य की सीमाओं के भीतर रखने का कायर् करता है । जैसे िक वे
अक्सर पहचान को सीमांिकत करने के िहत म, मिहलाओं के शरीर को िनयंित्रत करते ह
( टस 2014 : 169)। यह सश त्र संघष और ऑनर िकिलंग (स मान के िलए ह याओं) म
यौन िहंसा से जड़
ु ा है ।
सं थाएँ और िव व यव था
अंतरार् ट्रीय राजनीितक अथर् यव था के क्षेत्र म भी अंतरार् ट्रीय संबंध के नारीवादी िव वान
वारा मह वपूण र् कायर् िकया गया ह। उ ह ने िव लेषण की ेणी के प म िलंग का उपयोग,
अंतरार् ट्रीय अथर् यव था म म के िलंग िवभाजन को उजागर करने म िकया। असमान िलंग
संबंध को उजागर करने वाले नारीवादी सािह य की संख्या बढ़ रही है , जहाँ ‘मिहलाओं का
काम’ आमतौर पर अवैतिनक है । घरे ल ू काम या मिहला के काम उसके िलंग के िलए
वाभािवक/प्राकृितक माना जाता है । मिहलाओं के काम को, यह कहकर की यह उसकी
भिू मका और िज़ मेदारी है अथवा ‘माँ के यार’, ‘प नी के कतर् य’ या ‘लड़की की िज़ मेदारी’
के नाम पर उिचत ठहराते हुए िविनयोिजत और अवैतिनक रखा गया है । इसिलए, मिहलाओं
के काम को, रा य, बाजार और अंतरार् ट्रीय सं थान की गितिविधय ( टस और एट अल.
2010 : 171) का िह सा नहीं माना जाता है । हालाँिक, ये सभी सामिू हक प से िव व
यव था का िनमार्ण करते ह िफर भी चँ िू क, मिहलाओं का काम उस रा य के िलए अ य
है , उसे अंतरार् ट्रीय प्रणाली म भी अ य बना दे ती ह।
हालाँिक, वष से अंतरार् ट्रीय संगठन और सं थान िलंग और अ य िलंग संबंधी मु द पर
अिधक संज्ञान म ले रहे ह। बढ़ती नारीवादी सिक्रयता और उनके पयार् त अनभ
ु वज य कायर्
ने अंतरार् ट्रीय सं थान को प्रभािवत िकया है जैसे िक िव व बक जोिक अिधक-से-अिधक
लिगक समानता के िलए प्रितब ध है । जडर इिक्वटी िलंग संवेदीकरण, समान वेतन संरचना,
कायर् थल उ पीड़न के िखलाफ नीित, बेहतर काम करने की ि थित, मात ृ व अवकाश आिद
102
के मा यम से भौितक हो सकती है । ये सभी िवकास वैि वक अथर् यव था के शासन म
पिरवतर्न लाते ह।
असमानता और याय
नारीवादी वारा सबसे प्रमख
ु काम म से एक है लिगक समानता। दिु नया भर के समाज म
लिगक असमानता प्रचिलत है । काम, मजदरू ी, नौकरी, धन और िवरासत के िवभाजन जैसी
असमानताएँ इतनी सामा यीकृत ह िक कभी-कभी इ ह महसस
ू करना भी मिु कल होता है
िक ऐसा हो भी रहा है । िकसी के िलंग के कारण असमानताएँ िविभ न तर के िव लेषण की
ु ित दे ती ह; जैसे सामािजक, रा ट्रीय और अंतरार् ट्रीय। िलंग संबंध मल
अनम ू प से शिक्त
संबंध है । वै वीकरण के कारण वैि वक आिथर्क व ृ िध हुई है लेिकन पु ष और मिहलाओं के
बीच धन का समान िवतरण नहीं हुआ है ।
वैि वक बाजार अथर् यव था की एक और परे शान करने वाली िवशेषता यह है िक
मिहलाओं का काम अक्सर रा य के िलए अवैतिनक और अ य होता है । मिहलाओं वारा
अिजर्त िकसी भी आय को अितिरक्त आय और पु ष को ही प्राथिमक कमानेवाला माना
जाता है । मिहलाओं के काम को शायद ही रा ट्रीय िवकास म योगदान माना जाता है । उनका
काम अ य है और रा य के िलए इसका अ य होना एक मिहला की िनंदा है क्य िक वह
उसकी कानन
ू ी और िनयामक ढाँचे के बाहर रहती है । वह म कानन
ू वारा संरिक्षत नहीं है ,
पु ष की तल
ु ना म कम कमाती है , और कायर् थल उ पीड़न के िलए अिधक असरु िक्षत है ।
मिहलाओं को यादातर अनौपचािरक क्षेत्र म िनयक्
ु त िकया जाता है , जो उनकी सम याओं
को और बढ़ाता है । िव व तर पर मिहला म कमर्चािरय की संख्या बढ़ रही है , लेिकन
2004 म, अंतरार् ट्रीय म संगठन ने बताया िक उन मिहलाओं म यादातर कम आय वाले
असरु िक्षत नौकिरय म संलग्न ह। लिगक समानता और याय अंतरार् ट्रीय संबंध के नारीवादी
िव वान के िलए एक कद्रीय पूवार्ग्रह है ।
आलोचनाओं
अंतरार् ट्रीय संबंध के नारीवादी पिरप्रे य के िव ध सबसे यापक तर की आलोचना यह है
िक यह मिहलाओं पर किद्रत है । िलंग आधािरत अ ययन म मिहलाओं पर बहुत अिधक
यान िदया जाता है िजससे िक िलंग को मिहलाओं के पयार्यवाची के प से दे खा जाता है ।
अ ययन के िवषय के प म ‘पु ष और पु ष व’ पर कम यान िदया जाता है । इसके
िवपरीत, आलोचक का तकर् यह है िक पु ष और पु ष व पर समान यान िदया जा सकता
है िक कैसे पु ष भी िवषाक्त (टॉिक्सक) पु ष व से पीिड़त ह। उदाहरण के िलए, पु ष को
एक कमानेवाला, रक्षक, मजबत
ू , बहादरु , तकर्संगत, दबंग होना चािहए, अ यथा वे पिवत्र ह
और ‘मदार्ना’ नहीं ह। पु ष को भी, अपने पु ष व को सािबत करना होता है ।
103
हालाँिक, िटकनर जैसे अ य अंतरार् ट्रीय संबंध के नारीवािदय ने अपने काम म पु ष व
और त्री व दोन की जाँच की है । नारीवादी अंतरानुभागीयता और ज्ञान के वैकि पक प पर
काम कर रहे ह, उदाहरण के िलए वदे शी ज्ञान परं परा। नारीवािदय का तकर् यह है िक जब
नारीवादीय ने अंतरार् ट्रीय संबंध के साथ अपने बौ िधक जड़
ु ाव की शु आत की थी, उस
समय उनका अ यन मख्
ु यतः मिहलाओं पर किद्रत इसिलए था क्य िक वे सबसे बड़ा हािशए
का समह
ू थी िजस पर प्रमख
ु अंतरार् ट्रीय संबंध िस धांत ने यान म नहीं िदया था। लेिकन
समय के साथ-साथ जब अंतरार् ट्रीय संबंध िस धांत ने िलंग िव लेषण को अपनाया तो
नारीवादी ने अ य क्षेत्र म भी अपनी िचंताओं और िवचार का िव तार िकया।
अंतरार् ट्रीय संबंध के नारीवादी िव वान के िखलाफ एक और आलोचना यह है िक वे
मह वपूण र् अंत र्ि ट प्रदान करते हुए, अपने वयं के िस धांत का िनमार्ण करने म िवफल रहे
ह। अंतरार् ट्रीय संबंध के नारीवादी िव लेषण को मोटे तौर पर एक मेटा-िस धांत (meta-
theory) के प म माना जाता है क्य िक उनके पास उदारवाद और यथाथर्वाद जैसे पारं पिरक
िस धांत की तरह कोई अंतरार् ट्रीय राजनीित के बारे म िवशाल िस धांत नहीं ह। उन पर
अंतरार् ट्रीय संबंध की प्रकृित का एक सस
ु ग
ं त वणर्न प्रदान करने म असक्षमता का आरोप है ।
कोई एक ‘नारीवादी प्रितमान’ नहीं है , बि क इसके कई िविभ न प ह। नारीवादी समद
ु ाय
की त काल प्रितिक्रया यह थी िक एक िस धांत म कई वा तिवकताओं को समावेश संभव
नहीं था और न ही यह वांछनीय है ।
अंतरार् ट्रीय संबंध के नारीवादी िव वान को ‘मिहला की सावर्भौिमक ेणी’ की धारणा
वारा भी चुनौती दी जाती है । मिहलाओं के अनुभव अलग ह; यह प्र येक समाज और
सं कृित म िभ न-िभ न होते ह। पि चमी दिु नया की मिहलाओं का अनुभव तीसरी दिु नया के
दे श म ि थत मिहलाओं के िवपरीत है । यह तकर् पि चमी उपिनवेशवाद के बाद के
औपिनवेिशक और उ र-संरचना मकवाद की आलोचना का कद्र है । नारीवादी के बीच इस
‘अंतर’ की राजनीित की एक सामा य वीकायर्ता है , लेिकन वे इसे बनाए रखते हुए काम
करते ह। हम अ ययन के दौरान सभी सं कृितय और समाज म मिहलाओं पर लिगक
असमानताओं और िहंसा के िनरं तर अि त व की अवहे लना नहीं करनी चािहए।
िन कषर्
संदभर्
105
13. िटकर, जे.एन. (1992), जडर इन इंटरनेशनल िरलेशंस : फेिमिन ट पसर्पेिक्ट स ऑन
अिचंिगंग ग्लोबल िसक्योिरटी, यूयॉकर् : कोलंिबया यूिनविसर्टी प्रेस।
14. िटकर, जे.एन. (2016), “ हाट है ज फेिमिन म दोने फॉर इंटरनेशनल िरलेश स?
प्रोफेसर एन िटकर,” [ऑनलाइन: वेब] 17 अक्टूबर 2020को अक्से सेड, URL
https://www.youtube.com/watch?v=B33FkDx4__k&ab_channel=CentreforIn
ternationalSecurityStudies
15. िटकर, जे.एन.एन. (1988), “हं स मोगथाऊ'स िप्रंिसप स ऑफ़ पोिलिटकल रे अिल म :
अ फेिमिन ट रे फोमल
ूर् ेशन,” िमलेिनयम : जनर्ल ऑफ इंटरनेशनल टडीज, 17 (3):
429-440।
106
इकाई-2
पाठ-5 : यूरोकिद्रकता और वैि वक दिक्षण के पिरप्रे य
डॉ. अिभषेक चौधरी
1. पिरचय : यूरोकिद्रकता और उसके आलोचक
अंतरार् ट्रीय संबंध की िव याशाखा यरू ोकिद्रक रही है । यरू ोकिद्रकता का अिभप्राय यह है िक
‘पा चा य प्रितमान’ को शेष िव व से बेहतर दे खा जाता है । इस प्रकार की संकीणर्ता के कारण
एक िवशेष यव था की प्राधा यपण
ू र् प्रकृित का थायीकरण हो जाता है । इसके कारण ‘ व
बनाम अ य’ का पव
ू ार्ग्रह भी बढ़ता है । इस कारण ‘ व’ की पिरभाषा ‘अ य’ के संबंध म
िनधार्िरत होने लगती है । अंतरार् ट्रीय संबंध की िव याशाखा के िवशेष संदभर् म यूरोकिद्रकता
का अथर् है ‘ यान केवल पि चम के अनुभव , पि चम वारा िस धांत के अवधारण और
वह
ृ त िस धांत का पि चम पर उपयक्
ु तता पर ही सीिमत रहना’।
1.1 यूरोकिद्रकता का उदय
107
नवीन यूरोपीय अि मता को यूरोपीय पुजार्गरण के काल के दौरान पिरपक्व यूरोकिद्रकता के
आिव कार के मा यम से गढ़ा गया।
अंतरार् ट्रीय संबंध की िव याशाखा के िवशेष संदभर् म, आचायार् और बुज़ान (2007) “िव व
इितहास की यूरोकिद्रक गठन” को अंतरार् ट्रीय संबंध के िस धांत म पि चम के प्रभु व की दो
प्रमख
ु अिभ यिक्तय म से एक के प म प्र तुत करते ह। इस प्रभु व की दस
ू री अिभ यिक्त
यह है िक “अिधकांश मख्
ु यधारा अंतरार् ट्रीय संबंध िस धांत का उ भव” पा चा य दशर्न,
राजनीितक िस धांत और इितहास म िनिहत है (आचायार् और बुज़ान 2007)। पा चा य
इितहास को िव व के इितहास के प म माना जाता है और पि चम के अनुभव को
सावर्भौिमक अनुभव के प म दे खा जाता है ।
आचायार् और बज़
ु ान (2007) अंतरार् ट्रीय संबंध के िस धांत म पि चम के प्रभु व के िलए
पाँच प टीकरण की िववेचना करते ह। अंतरार् ट्रीय संबंध की िव याशाखा के प्रमख
ु िवचार
की “गहरी जड़ यूरोपीय इितहास की िविश टताओं और िवलक्षणताओं म है । इसके अितिरक्त,
“पि चम के उदय” की ऐितहािसक वा तिवकता और अपनी राजनीितक संरचना को बाकी
िव व पर थोपने के कारण वे अपने िव व दशर्न को प्राधा यपूण र् प से और ढ़तापूवक
र्
सामने रख पाते ह। वे टिम सटर प्रितमान को संसदीय यव था के प्रितमान के प म
थोपना इसका उदाहरण है । अत:, अकादिमक अंतरार् ट्रीय संबंध “पा चा य िचंतन से अ यिधक
प्रभािवत रहता है ” (आचायार् और बुज़ान 2007)। पि चम के प्रभु व के पाँच िविश ट
प टीकरण पर वापस आते हुए, उनका पथ
ृ क परीक्षण उिचत है —
a) “पा चा य अंतरार् ट्रीय संबंध िस धांत ने अंतरार् ट्रीय संबंध को समझने का सही मागर्
खोज िलया है ।”
इस दावे का अिभप्राय है िक पा चा य िस धांत सावर्भौिमक ह और सामािजक संदभर् पर
िनभर्र नहीं ह। इस कारण पि चमी और गैर-पि चमी के अंतर पर तकर्-िवतकर् िनरथर्क हो
जाता है । इस आधार पर, यह अपेक्षा नहीं की जाती िक अंतरार् ट्रीय संबंध के िनयम िविभ न
सामािजक संदभर् के लोग की िववेचना से बदलगे। हालाँिक अनेक भागीदािरय के वारा
िववेचना करने से “समालोचना, अंत र्ि ट, और अनुप्रयोग की गण
ु व ा” म व ृ िध हो सकती
है । इस दावे के वीकरण के कारण यव थीकरण िस धांत के प म “अराजकता” पर
अ यिधक बल िदया जाता है और “अंतरार् ट्रीय यव थाओं और समाज ” के िनमार्ण के
वैकि पक तरीक की संभावना को नजरअंदाज िकया जाता है । इस ि टकोण की “जड़ एक
बहुत ही िवशेष इितहास म” है (आचायार् और बुज़ान 2007)।
108
b) “पा चा य अंतरार् ट्रीय संबंध के िस धांत ने ग्रा सीवादी भाव म प्राधा यपूण र् अव था
प्रा त कर ली है ।”
यह प टीकरण इस िवचार पर आधािरत है िक पा चा य अंतरार् ट्रीय संबंध िस धांत को
वा तव म “ग्रा सीवादी प्राधा यपूण र् अव था” प्रा त
हो चुकी है । इसका अिभप्राय है िक यह
“ यापक प से अनजाने ही अ य लोग के मनस म कायर्रत रहता है ”। “पा चा य
साम्रा यवाद के बौ िधक प्रभाव ने पि चम की समझ को” गैर-पि चमी मनस पर
“सफलतापव र् अंिकत कर िदया है ”। “राजनीितक अथर् यव था, प्रादे िशकता, संप्रभत
ू क ु ा, रा ट्रवाद
के अनश
ु ीलन” के पा चा य िवचार को नए िवऔपिनवेशीकृत गैर-पि चम के थानीय
अिभजात वगर् ने अपना िलया। वे टफािलयाई संप्रभत
ु ा के प्रमख
ु त व और “लोकतंत्र, बाज़ार
और मानवािधकार” जैसे आदश को तीसरी दिु नया वारा त परता से अपना िलया गया। अब
यिद पा चा य अंतरार् ट्रीय संबंध के िस धांत ने अपनी यथाथर्ता के कारण प्राधा यपण
ू र्
अव था प्रा त िक है , तो “गैर-पि चम योगदान के िलए कम ही गज
ंु ाइश है ”। हालाँिक, यिद
यह प्रभु व पि चमी शिक्त के साथ इसके जड़
ु ाव के कारण है , तो गैर-पि चमी वर को
िवकिसत करने की गज
ुं ाइश भी है और औिच य भी” (आचायार् और बुज़ान 2007)।
d) “ थानीय पिरि थित अंतरार् ट्रीय संबंध के िस धांत के उ पादन के िव ध भेदभाव
करती है ।”
ऐसे अनेक ऐितहािसक, सां कृितक, राजनीितक और सं थागत थानीय पिरि थितयाँ ह जो
यह प ट कर सकती ह िक पि चम का अकादिमक पिरवेश गैर-पि चम से अिधक अनुकूल
क्य है । दोन िव व यु ध ऐितहािसक प से मह व
पूण र् क्षण रहे ह और अंतरार् ट्रीय संबंध का
िस धांत अपने उ भव के समय से “प्रबल सम या-समाधान उ मख
ु ीकरण से स प न रहा” है
(आचायार् और बुज़ान 2007)। यु ध के भय ने अंतरार् ट्रीय संबंध सै धांतीकरण के िवकास को
आकार प्रदान िकया। पि चम और गैर-पि चम सां कृितक िभ नता के घटक से िवभािजत है ।
साधारणतया, िस धांत “काय को करने का पि चमी तरीका है ” (आचायार् और बुज़ान 2007)।
गैर-पि चम का यान मख्
ु य प से थानीय मु द पर किद्रत था, जबिक पा चा य
सामािजक िस धांत वह
ृ त कथानक प्रदान करने की प्रविृ के कारण तथाकिथत सावर्भौिमकता
109
पर आधािरत था। इसके अितिरक्त, संसाधन , िव -पोषण की आम कमी और आजीिवका-
प्रणाली की प्रकृित एक संभव वैकि पक िस धांत को अव ध करती है ।
ख) यह 1648 से पहले के इितहास पर यान दे ने म िवफल है । ग्रोिटयस, डे िवटोिरया,
हॉ स और लॉक जैसे पि चमी िव वान ने एक यूरोकिद्रक “स यता के मानक” िवमशर्
का सज ू ि थित के उदाहरण” के प म गिठत
ृ न िकया। अमेिरका को “प्रकृित की मल
िकया गया जहाँ अस य और बबर्र लोग िनवास करते थे और जहाँ तकर्मल
ू क सं थान
की कमी थी। इस िचत्रण को यूरोप के “स य सं थान ” के मक
ु ाबले रखा गया (बेहरा
110
2020; हॉबसन 2013)। गैर-यूरोपीय िव व म संप्रभत
ु ा के अभाव और यूरोपीय संप्रभत
ु ा
के उ भव ने साम्रा यवाद को प्राकृितक और िविध-स मत िचित्रत िकया।
ग) “यूरोकिद्रक ऐितहािसकता” सम याप्रद है क्य िक यह “आधुिनकता के एकल,
सावर्भौिमकारक कथानक के अि त व को मान कर चलता है ”। साथ ही यह
“सामियकता के उन वैकि पक साधन ” को भी वीकार नहीं कर सकता है िजनके पास
“राजनीितक की अपने वयं की अवधारणा है ” (चक्रबतीर् 2000, बेहरा 2020 म
ृ )। ऐसा अ वीकरण उपिनवेशवाद के “स यता-प्रसार िमशन” को वैध बनाता है ।
उ धत
अत:, यरू ोप के बाहर रा य िनमार्ण प्रिक्रया के इितहास को अनदे खा करते हुए “यरू ोपीय
इितहास के एक िवशेष खंड को सब के िलए आम िस धांत” बनाने के एकल आधार म
प म पयार् त माना जाता है । गैर-पि चम को “अंतरार् ट्रीय राजनीित के ज्ञान सज
ृ न के
थल” के प म “संरचना मक और मल
ू भत
ू प से हटाया गया, और इसी कारण िकसी
प्रकार के वैकि पक अवधारण का भी अपवजर्न होता रहा” (बेहरा 2020)।
2. पि चम के परे अंतरार् ट्रीय संबंध का सै धांतीकरण : अंतरार् ट्रीय संबंध की वैकि पक
याख्याएँ
111
साम्रा यवादी सोसायटी ने राउं ड टे बल नामक एक मंडली का गठन िकया। इसी मंडली के
प्रयास ने वा तव म अंतरार् ट्रीय संबंध की उस िव याशाखा को थािपत िकया िजसे हम
आज जानते ह। राउं ड टे बल का आरं िभक उ दे य अिधक कायर्कुशल साम्राि यक अिभशासन
सिु नि चत करना और साम्रा य को िव व के मामल म िनयंत्रक के दज पर रखना था।
लेिकन अंततोग वा उसने वैि वक दिक्षण को अंतरार् ट्रीय संबंध की नींव रखने म मह वपूण र्
दज पर रख िदया। इसी अविध म अंतरार् ट्रीय संबंध की िव व ा साम्र यवादी प्रजातीय
िचंतन के साथ अंतवर्ियत हो गई। ऐसा िवऔपिनवेिशक पिरप्रे य हम वैकि पक
वा तिवकताओं और संभावनाओं के बारे म िवचार करने की अनुमित दे ता है जो अ यथा
प्र छ न रहते ह।
वैि वक दिक्षण मोटे तौर पर लैिटन अमेिरका, एिशया, अफ्रीका और ओशेिनया के क्षेत्र से
संबंिधत है । यह श द के समह
ू म से एक है िजसम “तीसरी दिु नया” और “पिरिध” शािमल ह
और ऐसे क्षेत्र को यक्त करता है जो यूरोप और उ र अमेिरका के बाहर के क्षेत्र ह। इनम
से अिधकांश (िकंतु सभी नहीं) कम आय वाले दे श ह और आमम
ू न राजनीितक अथवा
सां कृितक प से हािशए पर ह। वैि वक दिक्षण वाक्यांश का प्रयोग िवकास अथवा
सां कृितक िभ नता पर कद्रीय यान के बजाय शिक्त के भ-ू राजनीितक संबंध पर बल दे ने
की ओर पिरवतर्न को दशार्ता है (डैडस और कॉ नेल 2012)। वैि वक दिक्षण श द केवल
“अ पिवकास के पक” म कायर् नहीं करता। इसका संबंध “उपिनवेशवाद, नव-साम्रा यवाद,
और िवभेदक आिथर्क और सामािजक पिरवतर्न के संपूण र् इितहास” से है िजसने “जीवन तर,
आय ु संभा यता, और संसाधन की उपलि ध म अ यिधक असमानता” को कायम रखा है
(डैडस और कॉ नेल 2012)।
112
3.1 भारत : रा य का िस धांत, अिधराज व, यव था
िबनॉय कुमार सरकार (1919) के अनुसार, आरं िभक िहंद ू राजनीितक िस धांतकार के पास
संप्रभत
ु ा की एक दे शज अवधारणा थी जो रा य प्रािधकार के प्रयोग के िलए ‘ व-शासन’ और
रा ट्रीय वावलंबन के मह व को पहचानती थी। कॉिट य को िव व के प्राचीनतम
यथाथर्वािदय के प म दे खा जाता है और इस संबंध म उनका योगदान मह व
पूण र् है ।
साम्रा य-िनमार्ण के कायर् के िलए आव यक यवहार का िस धांत दे ते हुए कॉिट य ने अपने
मंडल (प्रभाव क्षेत्र) िस धांत के वारा उन िवचार को िवकिसत िकया िक िकस प्रकार राजा
को अपने पड़ोसी दे श के साथ गठबंधन और शत्रत
ु ा के संबंध का प्रबंधन करना चािहए।
सरकार (1919) मंडल िस धांत का िव लेषण करते हुए कहते ह िक इसम ‘शिक्त के संतल
ु न’
के साथ संप्रभत
ु ा के साथ इसके संबंध का िवचार उपि थत था। मंडल िस धांत को िविजगीषु
(िवजय अथवा िव तार का आकांक्षी) का िस धांत माना जाता है । शत्रत
ु ापण
ू ,र् उदासीस अथवा
मैत्रीपण
ू र् के प म यवहार िविजगीष ु से उनकी दरू ी पर िनभर्र करता है (सरकार 1919)।
रा य का भौगोिलक प्रसार उनकी मनोविृ को प्रभािवत करता है और इस िस धांत के
अनुसार िविजगीषु और उसके अिर (शत्र)ु के बीच एक पिरकि पत र साकशी का यु ध सदै व
चलता रहता है । इनके साथ इस पिरक पना को पूरा करने के िलए दो अ य रा य की भी
िगनती आव यक है । यह िनरं तर तैयार रहने की ि थित है और इस यव था म चार सद य
शािमल ह—
1. िविजगीषु अथवा आकांक्षी;
4. उदासीन (तट थ) जो 1, 2, और 3 के परे ि थत है और जो िविजगीषु, शत्र ु और
म य थ की एक साथ अथवा अलग-अलग सहायता करने, अथवा अलग-अलग इनका
प्रितरोध करने की शिक्त और क्षमता रखता है (सरकार 1919)।
1. दं ड का िस धांत, जो प्रजा (एकल रा य के सद य) के म य म य याय का अंत
करता है ;
113
2. मंडल का िस धांत, जो मानव पिरवार म अंतरार् ट्रीय म य याय अथवा प्रजाितय के
गह
ृ यु ध को कायम रखता है ।
संप्रभत
ु ा का िहंद ू िस धांत सावर्भौिमक म य याय के िस धांत के परे जाता है । इसने िव व
वचर् व की थापना के मा यम से सावर्भौिमक शांित की संक पना का भी सज
ृ न िकया। एक
बिहगार्मी बल के प म मंडल का िस धांत सवर्-भौम (संपूण र् प ृ वी का शासक) के िस धांत
के अंतगार्मी प्रविृ से संतुिलत होता था। िव व संप्रभत
ु ा की संक पना प्राचीनतम वेिदक ग्रंथ
म पाई जा सकती है । ऐतरे य ब्रा मण के अनस
ु ार “सव च राज-तंत्र के पास प्राकृितक सीमा
तक फैला साम्रा य होना चािहए, यह क्षेत्रीय तर पर सवर् यापी हो और इसे समद्र
ु तक एक
रा य और प्रशासन की थापना करनी चािहए” (सरकार 1919 म उ धत
ृ )। िव व रा ट्रवाद के
इस िस धांत ने िहंदओ
ु ं के राजनीितक क पनाओं पर प्रबल प्रभाव डाला। चक्रवतीर् का
िस धांत इसी िव व रा य अथवा सावर्भौिमक संप्रभत
ु ा के िवचार को यक्त करता है । इसका
संकेत है िक रा य के रथ का चक्र अथवा पिहया िबना अवरोध के सवर्त्र घम
ू ता है ।
चक्र/पिहया संप्रभत
ु ा का प्रतीक है । यह एक “पंथिनरपेक्ष अिधपित के राजनीितक िरयासत” की
अवधारणा है (सरकार 1919)।
बेहरा (2020) अिधराज व (सज़
ु रटी) के भारतीय अनुभव से ऐितहािसक उदाहरण प्र तत
ु
करती ह। किवराज (2010, बेहरा 2020 म उ धत
ृ ) मनु मिृ त, अथर्शा त्र और महाभारत का
िव लेषण करते ह। किवराज (2010) का तकर् है िक “अप्रितबंिधत शाही प्रािधकार की
आव यकता को पहचानते हुए”, उस पर प्रितबंध लगाए गए। यह प्रितबंध एक ऐसी यव था
के मा यम से लगाए गए जो नैितक प से सभी सीमाओं से बाहर था और प्रािधकार “इस
यव था के अधीन भी था और अंततोग्तवा इसके िलए उ दायी भी” (किवराज 2010, बेहरा
2020 म उ धत
ृ )। “िविध” (दं ड) और एक दोषक्षम मानव अिभकतार् (राजा) के बीच अंतर
करते हुए, मन ु एक ऐसी सै धांितक संरचना का िनमार्ण करते ह, जहाँ राजा शतर्रिहत और
िनरं कुश शिक्त का उपभोग नहीं कर सकता क्य िक वह धमर् के नैितक ढाँचे के अधीन थ है
(किवराज 2010, बेहरा 2020 म उ धत
ृ )। “पारं पिरक भारतीय यव था म राजनीितक
प्रािधकार और िनयंत्रण म प्रािधकार के िविभ न तर म प्रसािरत और िवतिरत होने की
प्रविृ थी” (बेहरा 2020)। इन तर म सामंती रा य, क्षेत्रीय राज व और साम्रा य शिमल थे
जो आधुिनक संप्रभु रा य की कद्रीकृत राजनीितक एकता से िभ न थे। एक अ य प्रमख
ु
िभ नता यह थी िक सामंती राजा संिवदा के बजाय आमम
ू न “िविधस मत िवजय” अथवा
धमर्िवजय के मा यम से राजा बनते थे। अिधराज (सज़
ु रे न) इस प्रकार कायर् करते थे िक एक
अि थर और लचीले राजनीितक यव था का िनमार्ण होता था और राज व के राजनीितक
दज और िन ठा म िनरं तर पिरवतर्नशीलता थी।
114
हाल के इितहास और वतर्मान को अनाव ृ करते हुए कांित बाजपेयी (2003) िव व
राजनीित पर भारतीय िवमशर् म यव था और याय की भारतीय अवधारणा के चार
पिरप्रे य की पहचान करते ह। यह है — नेह वादी अंतरार् ट्रवाद अथवा नेह वाद, गाँधीवादी
िव ववाद अथवा गाँधीवाद, राजनीितक िहंदव
ू ाद अथवा िहंद ु व, और नव-उदारवादी वैि वकवाद
अथवा नव-उदारवाद। इन चार अवधारणाओं को “प्रभावी वे टफािलयाई अवधारणा के िव ध
रखा जा सकता है ” (बाजपेयी 2003)।
ू रा पिरप्रे य, गाँधीवादी िव ववाद, “रा ट्र रा य के बारे म उभयभावी” है जो
दस
वे टफािलयाई यव था की मल
ू इकाई है । गाँधीवादी यह अव य मानते ह िक इितहास के
िवशेष पड़ाव पर रा ट्रवाद एक प्रबल मिु क्तकारक बल है और यह “लोग वारा आ मचेतना,
मिु क्त और वतंत्रता प्राि त की संभावना को दशार्ता है ”। वे अंतरार् ट्रीय यव था और अ य
संबंिधत पिरघटनाओं, जैसे िक अराजकता, संप्रभत
ु ा, संघषर् और यु ध के त व को भी
वीकारते ह। लेिकन गाँधीवािदय के िलए, मानवता को अ याव यक प से “रा ट्र रा य के
परे जाना चािहए, और वह उसके परे जाएगा” (बाजपेयी 2003)। गाँधीवािदय के अनस
ु ार
“ यव था म यिक्त, समद
ु ाय, रा य और अ य अिभकतार्ओं के सबंध , अिधकार और
दािय व की समग्रता समािहत है ” (बाजपेयी 2003)। गाँधीवादी “आिथर्क समानता” के पक्ष म
तकर् करते ह जो िकसी यव था के दीघर् थािय व के िलए अ याव यक है । गाँधीवािदय के
िलए, िहंसा का कोई थान नहीं है । उनका तकर् है िक कद्रीकृत राजनीितक प्रािधकार, शिक्त,
और िहंसा के बजाय नैितकता और विनयमन ही यव था के आधार ह। प्र येक यिक्त,
समद
ु ाय और “रा य को व-अनुशासन का अ यास करना चािहए और यह सिु नि चत करना
115
चािहए िक उनका यवहार अिहंसा और नैितक स य के िस धांत के अनुकूल हो” (बाजपेयी
2003)।
तीसरा पिरप्रे य, राजनीितक िहंदव
ू ाद अथवा िहंद ु व, भारत को मात्र एक रा ट्र रा य नहीं
अिपतु एक स यता—एक िहंद ू स यता मानता है । िहंद ु व के प्र तावक का मानना है िक िहंद ू
स यता को अपनी प्राणशिक्त और अखंडता को पुन: प्रा त करने की आव यकता है । िहंद ु व
समथर्क िहंसा के प्रित सकारा मक ि ट रखते ह और मानते ह िक िहंसा दबे और
ु त कर सकता है । उनका तकर् है िक जहाँ पि चम के
औपिनवेशीकृत लोग को मक्
“ यिक्तवाद, भौितकवाद और उपयोिगतावाद” ने उसे शिक्तशाली, सम ृ ध और कायर्कुशल
बनाया, इ हीं िवशेषताओं ने उसे “ वाथीर्, वकिद्रत और अन यवादी” भी बनाया। इसके
िवपरीत, िहंद ू प्र येक यिक्त के क याण पर आधािरत आ मसंयम, आ याि मकता, स य की
खोज और सवर् यापी समावेिशता म िव वास करते ह। िहंद ू एक ऐसे िव व रा य की क पना
करते ह, जहाँ यिक्तगत मतभेद का सामिू हक िहत के साथ सामंज य थािपत हो। धमर् के
अनुकूल यवहार के िनयम इस एकता को िनयिमत करगे जहाँ प्र येक यिक्त, समद
ु ाय और
रा ट्र के पास “समग्रता म अपना थान और अपनी भिू मका होगी और वे समरसता म
सहवतीर् ह गे” (बाजपेयी 2003)।
चौथा पिरप्रे य नव-उदारवादी वैि वकवाद का है जो अराजक अंतरार् यीय यव था को
अंतरार् ट्रीय जीवन के मल
ू आधार के प म दे खते ह जहाँ रा ट्र िहत का अनुसरण करने वाले
संप्रभ ु रा य अंतरार् ट्रीय संबंध की मल
ू इकाई ह। िकसी अिधरा ट्रीय प्रािधकार के अभाव म
अंतरार् ट्रीय यव था एक “ व-सहायता यव था है जहाँ संघषर्, यु ध और प्रित वं िवता की
संभावनाएँ िनरं तर बनी रहती ह” (बाजपेयी 2003)। लेिकन वे तकर् करते ह िक बढ़ते पर पर
िनभर्रता के कारण रा य का िहत एक-दस
ू रे के क याण म होना आरं भ हो जाएगा और यु ध
एक आ मघाती संभावना बन जाएगी। तथािप, भारत के नव-उदारवादी वैि वकवादी इस बात
के प्रित शंका पद रहते ह िक पि चमी महाशिक्तयाँ इसका प्रयोग बाकी िव व के मामल म
ह तक्षेप करने के बहाने के प म करगे (बाजपेयी 2003)। यव था के वे टफािलया और
नव-उदारवादी वैि वकवादी ि ट के बीच कुछ तनाव के क्षेत्र ह। पहला, वैि वकरणीय िव व म
यव था-िनमार्ण के िलए सावर्भौिमक मानक की आव यकता है जो आिथर्क और सामािजक
आचरण को अिभशािसत करे । यह वे टफािलया की संप्रभत
ु ा की धारणा के िव ध जाता है ,
जहाँ रा ट्रीय आिथर्क और सामािजक नीितयाँ घरे ल ू अिधकार-क्षेत्र के मामले ह। दस
ू रा, रा ट्रीय
से मानव सरु क्षा की िदशा म सापेिक्षक पिरवतर्न होने से तनाव उ प न होता है । रा य के
िलए अंतरार् ट्रीय जवाबदे ही का मु दा इस पूवध
र् ारणा के िव ध जाता है िक रा य सरु क्षा
सव पिर है और क याण तथा वतंत्रता के तर आंतिरक मामले ह। तीसरा, नव-उदारवािदय
का सझ
ु ाव है िक उदारवाद और लोकतंत्र के मल
ू ्य ि थर यव था के कद्र म ह। यह इस
116
वे टफािलयाई धारणा के िव ध जाता है िक “घरे ल ू मू य और सं थान अंतरार् ट्रीय यव था
की अपेक्षाओं से वाय ह” (बाजपेयी 2003)।
3.2 अफ्रीका : संप्रभत
ु ा, उब टू, पराि तता
117
रा य व का िवचार “आिदकालीन सावर्भौिमक सूत्रीकरण पर िनधार्िरत” है , जो प्र येक रा य के
िलए यूनतम मानदं ड के प म कायर् करता है िजसकी बराबरी सबको करनी है । अ ीकी
रा य की “ थानीय और िविवध पूव-र् औपिनवेिशक अतीत पर कोई यान नहीं िदया जाता”
और अ ीका के औपिनवेिशक अतीत को पूणत
र् या “पि चम की स यता-प्रसार िमशन के
ि टकोण से” समझा जाता है (बेहरा 2020)। इस स यता-प्रसार िमशन को एक “नैितक,
िविधक, भौितक सहायता संरचना” िजसने “अ ीका को बनाए रखा” और आम तौर पर “रा य
यव था के आरं भ और िवकास म मल
ू प से एक रक्तहीन प्रकरण” के प म चिरत्र िचित्रत
िकया गया (डोटी 1996, बेहरा 2020 म उ धत
ृ )। इसके अितिरक्त, यह “रा य-िनमार्ण के
आंतिरक और बा य गतीशीलता के बीच िकसी संरचना मक संपकर् को असंभव बनाता है ”
(बेहरा 2020)। अ ीकी रा य की िवफलता का दोष उनके अपने “ व-शासन की दे शज
क्षमता की कमी” के साथ साथ भ्र टाचार और अक्षमता को िदया गया। तीसरी दिु नया के
अन ्य रा य के साथ अ ीकी रा य को “अंतरार् ट्रीय यव था म मु तखोर ” के प म
िचित्रत िकया गया जो सामिू हक िवचारधारा का अनुसरण करते हुए संप्रभ ु वावलंबन प्रा त
कर “िनयामक दिु वधा” का सज
ृ न करते ह और िफर भी अ य दे श से िवकास सहायता की
माँग करते ह (बेहरा 2020)।
119
कैि किवक 2020 म उ धत
ृ )। पँज
ू ीवादी म िवभाजन वारा उ प न वैि वक पद-सोपिनकी
को चुनौती दे ते हुए, पराि तता िचंतन तीसरी दिु नया के रा य वारा आ मिनणर्य और
आ मबोध की प्राि त के िलए संप्रभत
ु ा और वाय िवकास के मागर् को अपनाता है (काड सो
और फ़ैले टो 1979; कैि किवक 2020)।
3.4 चीन : क यश
ु सवाद और िट्र यट
ू री यव था
संप्रभ ु समानता के आधार पर संयोिजत क्षैितज वे टफािलया यव था के िवपरीत,
िटयांिक्सया अथवा “ऑल-अंडर-हे वन” की अवधारणा पद-सोपिनकी पर संयोिजत है (बेहरा
2020)। यह एक सोपािनक यव था है जो वतंत्रता से अिधक यव था, नैितकता से अिधक
िविध, और लोकतंत्र तथा मानवािधकार से अिधक अिभजन अिभशासन को मू य दे ती है
(कै लाहै न 2008)। ज़ाओ (2005) के अनुसार, आज अंतरार् ट्रीय राजनीित म सम या “िवफल
रा य” की नहीं बि क एक “िवफल िव व” की है जहाँ अ यव था और अराजकता िव यमान
है । जहाँ कई लोग िव व अ यव था को एक राजनीितक अथवा आिथर्क सम या के प म
दे खते ह, ज़ाओ का तकर् है िक िव व अ यव था एक संक पना मक सम या है । “िव व को
यवि थत करने के िलए पहले हम नए िव व संक पनाओं का िनमार्ण करना होगा िजससे
नई िव व संरचनाएँ प्रा त ह गी” (ज़ाओ 2005, कै लाहै न 2008 म उ धत
ृ )। वे टफािलयाई
यव था जैसी पा चा य संक पनाओं की िनंदा करते हुए ज़ाओ तकर् करते ह िक केवल
िटयांिक्सया अथवा “ऑल-अंडर-हे वन” की चीनी संक पना ही समाधान है । िटयांिक्सया एक
“क पनालोक है जो ऐसे िव लेषणा मक और सं थाना मक ढाँचे को थािपत करता है जो
िव व की सम याओं के समाधान के िलए आव यक ह”। शा त्रीय और आधुिनक श दकोश
के अनुसार, िटयांिक्सया का अथर् चीन भी है । साम्रा यवादी चीन की िटयांिक्सया अिभशासन
यव था अ छा कायर् कर रही थी जब तक इसे “पि चमी साम्रा यवाद की चन
ु ौती िमली”
(कै लाहै न 2008)। इस चन
ु ौती के कारण चीन को जबरन आधिु नक रा ट्र-रा य बनाना पड़ा।
ज़ाओ के लेखनी के अनुसार, िटयांिक्सया के तीन अंतवर्ियत अथर् ह। पहले अथर् के
अनुसार, िटयांिक्सया एक भौगोिलक श द है । िटयान का शाि दक अथर् है “आकाश, दे वलोक,
और जो भी ऊपर है ”, जबिक िसया का अथर् है “नीचे, िनचला, िन न”। ज़ाओ तकर् दे ते ह िक
िव व की अ यव था का उ भव िव व के दशर्न के प्रित अनुिचत पिरप्रे य के उपयोग से
होता है । िफर इसी अनुिचत पिरप्रे य के आधार पर सम या का अवधारण और समाधान का
िन पण होता है । ज़ाओ तकर् करते ह िक मौजद
ू ा वे टफािलयाई िव व यव था संघषर् का
सज
ृ न करती है क्य िक यह रा ट्र िहत की प्रित पधार् पर आधािरत है । इसिलए, हम “िव व
यव था के संबंध म वा तिवक प से वैि वक नजिरए से सोचना चािहए” (ज़ाओ 2005)।
िव व की सम याएँ िकसी भी एक रा ट्र, महाशिक्त, क्षेत्र अथवा अंतरार् ट्रीय संगठन के िलए
120
बहुत बड़ी ह। िटयांिक्सया एक िविध है िजससे वा तिवक प से वैि वक पिरप्रे य के वारा
िव व की सम याओं और िव व यव था को दे खा जा सकता है । यह िव व को एक सवर्-
समावेशी (वुवाई) तरीके से दे खने का अवसर दे ता है । िव व यव था होने के िलए यह
आव यक है िक हम “िव व का माप एक िव व मानक के अनुसार कर, ना िक रा ट्र िहत के
अनुसार”। ज़ाओ (2005) तकर् करते ह िक हम “सम याओं की संपूण र् और िनद ष समझ और
सवर्-समावेशी समाधान तब प्रा त हो सकते ह जब हम ‘सवर्त्र के दशर्न’ के मा यम से िव व
पर िचंतन कर”।
121
यह दशर्न, िजसे पैक्स िसिनका कहा जाता है , यव था के एक ऐसे वैकि पक दशर्न को
प्रकट करता है जो सोपािनक है और पि चमी िव वान के अराजकता की पूवध
र् ारणा को
चुनौती दे ता है ।
गआ
ु ंजी अंतरार् ट्रीय की चीनी अवधारण से संबंिधत एक अ य िवचार है । गआ
ु ंजी का
शाि दक अथर् है “बाधाओं के आर-पार संपकर्”। इस िवचार के अनुसार, “वैि वक जीवन का
जिटल व प संबंधपरकता (िरलेशनैिलटी) और गितशीलता से संबंिधत है , ना िक व-अ य/
कद्र-पिरिध प्रितमान म अंतिनर्िहत ि थर और थािनक यव थापन से” (कवा की 2018)।
यह संबंधपरक ढाँचा िनयम-आधािरत ढाँचे के िव ध है । यह एक “कारर् वाई के िलए संदभर्”
प्रदान करता है जहाँ िव व के मामल म “सिक्रय, समिपर्त, और िज मेदार सहभािगता” से
उ दे य की प्राि त हो सकती है (कवा की 2018)।
5. िन कषर्
अंतरार् ट्रीय संबंध की िव याशाखा पर पि चम का प्रभु व है । इस संबंध म इस अ याय म
यूरोकिद्रकता की अंतिनर्िहत सम याएँ और अंतरार् ट्रीय संबंध की वैकि पक याख्याएँ प्रदान
की गई ह। अ य िवचार के साथ संप्रभत
ु ा, यव था और रा य की वैकि पक अवधारणाएँ
यूरोकिद्रक अवधारणाओं के परे दे खने की संभावना और वांछनीयता की ओर संकेत करती ह।
यथािप, यहाँ थोड़ा सचेत रहने की आव यकता है । िचंता की दो िबंदए
ु ँ ह। पहला, जब हम यह
तकर् करते ह िक िस धांत को संदभर् िवशेष के बारे म होना चािहए, तब इस पर थानीय
122
अथवा सहजनज्ञानवाद का आरोप लगता है । दस
ू रा, जब यह तकर् िकया जाता है िक एक
वैकि पक िस धांत को सवर्त्र लाग ू िकया जा सकता है , तब यह उसी चुनौती का सामना
करन को बा य हो जाता है जो मौजूदा सावर्भौिमक और “वह
ृ त िस धांत” को करना पड़ता है ।
इसिलए, अंतरार् ट्रीय संबंध के िवषय क्षेत्र के एक अिधक संपूण र् िचत्रण को प्रदान करने के
िलए िविभ न वैकि पक पिरप्रे य पर िवचार करना आव यक है । वैि वक दिक्षण के ह तक्षेप
यह संकेत करते ह िक यह वा तव म संभव है िक हम अिधक समावेशी और संवेदनशील
सै धांतीकरण की क पना कर सक।
6. संदभर्-सच
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125
इकाई-3
भिू मका
समकालीन िव व प्रणाली एक वै वीकृत एकीकृत प्रणाली है िजसम प्र येक रा य का,
अंतरार् ट्रीय क्षेत्र के स दभर् म यवहार यह िनधार्िरत करता है िक दिु नया िकस प म
िवकिसत होगी? लेिकन कुछ सिदय पहले ऐसा नहीं था। आधुिनक भम
ू ड
ं लीकृत दिु नया की
उ पि से पहले िव व राजनीित, मख्
ु य प से यूरो-किद्रत थी और उस समय जो कुछ भी
यूरोपीय महा वीप म हुआ था, उसने आधुिनक िव व यव था के उदय को काफी प्रभािवत
िकया है । एक राजनीितक इकाई के प म, रा ट्र-रा य का और आिथर्क यव था के प म
पँज
ू ीवाद का उदय भी यरू ोप म हुआ था। रा ट्रवाद, जो रा ट्र-रा य के िवचार से संबंिधत है , और
आिथर्क साम्रा यवाद, जो पँज
ू ीवाद से संबंिधत है , ऐसे प्रमख
ु कारक थे िज ह ने उ नीसवीं
शता दी के अंतरार् ट्रीय संबंध को आकार िदया था। रा ट्रवाद, आिथर्क साम्रा यवाद और यूरोपीय
दे श वारा अपने म य शिक्त संतुलन थािपत करने का प्रयास, आिद ही वे कारण थे
िजनके कारण अंततः 1914 म यु ध हुआ िजसका न तो यरू ोप और न ही दिु नया ने पव
ू र् कभी
अनभु व िकया था। इस यु ध को िव व इितहास का सबसे घातक मानवीय संघषर् कहा जाता है
िजसने कई दे श को िवकास की िदशा से मोड़ खंडहर जैसी ि थित म पहुँचा िदया, और लाख
सै यकिमर्य और नागिरक की इस कारण मौत हो गई। इसके अितिरक्त इस यु ध ने
असंख्य अ य लोग को शारीिरक और मनोवैज्ञािनक प से भी प्रभािवत िकया। इस यु ध की
प्रकृित और िवनाशकारी प्रभाव के कारण ही इस यु ध को प्रथम िव वयु ध कहा गया।
िट्रपल एंटे ते (Triple Entente) और िट्रपल एलायंस (Triple Alliance) के बीच का तनाव
ू फ्रांज फिडर्नड, जोिक ऑि ट्रया-हं गरी के िसंहासन का
उस समय भड़क उठा जब आकर् यक
उ रािधकारी था, की बोि नयाई सबर् रा ट्रवादी वारा, उसकी सिजर्यो की यात्रा के दौरान ह या
कर दी गयी। ऑि ट्रया-हं गरी ने हमले के िलए सिबर्या को दोषी ठहराया। 28 जल
ु ाई, 1914 को
ऑि ट्रया-हं गरी ने सिबर्या पर आक्रमण करने की घोषणा कर दी और दोन दे श को उनके
संबंिधत सहयोिगय ने समथर्न िदया और ज द ही कई अ य दे श भी इस यु ध म शािमल
हो गए और इस तरह दो दे श के बीच का यु ध मानव इितहास के पहले िव वयु ध म बदल
गया। इस यु ध म शािमल दे श मख्
ु यतः दो गठबंधन म िवभािजत थे, िजसम एक ओर िट्रपल
एंटटे (फ्रांस, िब्रिटश साम्रा य और स), िज ह एलाइड और एसोिसएटे ड शिक्तय के नाम से
126
भी जाना जाता है , और दस
ू री ओर िट्रपल एलायंस (जमर्नी, ऑि ट्रया-हं गरी और ओटोमन
साम्रा य) िज ह कद्रीय शिक्तय के नाम से भी जाना जाता है , एक-दस
ू रे के आमने सामने
थे। तीन साल बाद, तट थता की अपनी नीित को याग कर, अमेिरका भी यु ध म शािमल हो
गया। यु ध के ही दौरान, स म बो शेिवक क्रांित िछड़ गई थी और उसने वयं को यु ध से
अलग कर िलया था। नवंबर 1918 म जमर्नी के िबना शतर् आ मसमपर्ण करने के साथ ही
इस यु ध की समाि त हुई। उस समय िविभ न िव वान ने, इस यु ध को "यु ध की
समाि त के िलए यु ध" के प म िचित्रत िकया था, पर तु इसके िवपरीत यह यु ध दिु नया
को दस
ू रे िव वयु ध की ओर लेकर गया। यह समझने के िलए िक प्रथम िव व-यु ध क्य
हुआ और इसके क्या प्रभाव रहे , हम उस समय के यूरोप और िव व की समकालीन ि थित
को समझने की आव यकता है । प्रथम िव व-यु ध के प ृ ठभिू म की चचार् हम इस अ याय के
अग्रिलिखत अनुभाग म करगे और त प चात ् िव वयु ध के कारण और प्रभाव की चचार् की
जाएगी।
रा ट्र रा य का उदय
127
की नीितयाँ यूरोपीय शांित के िलए खतरा बन उभरी और ऐसी ि थित म शिक्त संतुलन
बनाए रखने के िलए, समकालीन यूरोप म शिक्त गठबंधन बनाने की प्रविृ का उभार हुआ।
उ नीसवीं शता दी की दो महान घटनाएँ नेपोिलयन के शासनकाल का अंत और िवयना
कांग्रेस का होना थीं। फ्रांसीसी क्रांित के दौरान नेपोिलयन बोनापाटर् फ्रांस का शासक बना था
और त प चात ् उसने कई यु ध जीते थे। वह स पण
ू र् यरू ोप पर अपना आिधप य थािपत
करना चाहता था लेिकन समद्र
ु पर िब्रिटश आिधप य के कारण ऐसा संभव नहीं हुआ।
नेपोिलयन के शासन के िलए, एक और चुनौती, उन रा य म रा ट्रवाद की लहर का उ प न
होना था, िजन पर उसने िवजय प्रा त की थी। ऐसी ि थित और चन
ु ौितय के कारण बोनापाटर्
का पतन िनि चत सा हो गया था। जन
ू 1815 म, वाटरल ू की लड़ाई म, नेपोिलयन को िब्रिटश
और प्रिशयाई से हार का सामना करना पड़ा और इस घटना से यूरोप पर फ्रांस के प्रभु व का
अंत हो गया। फ्रांस के वचर् व के पतन के बाद, फ्रांस ने एक संिध पर ह ताक्षर िकए, िजसके
वारा लई
ु चौदहव को फ्रांस का राजा बनाया गया और फ्रांस की सीमाओं का पुनिनर्धार्रण
िकया गया। वाटरल ू के यु ध से पूव र् ही, यूरोप की सीमाओं को पुनः सीमांकन करने के
उ दे य से, िसतंबर 1814 म, िवयना (ऑि ट्रया) म, एक यूरोपीय स मेलन (कांग्रेस) शु िकया
गया। इस स मेलन म कई यूरोपीय रा य की सीमाएँ िफर से िनधार्िरत की गईं लेिकन
जमर्नी को एक रा ट्र के प म संगिठत न कर, उसे 39 रा य के एक संघ के प म गिठत
िकया गया। ‘चतु कोणीय गठबंधन’ (Quadruple Alliance), िजसम ऑि ट्रया, िब्रटे न, प्रिशया और
स शािमल थे, को िवयना संिध को लागू करने की िज मेदारी दी गई थी। बाद म, 1818 म,
फ्रांस भी इस गठबंधन म शािमल हो गया और यह 'िक्वंटु ले गठबंधन' (Quintuple alliance)
बन गया। कांग्रेस की िवयना वारा थािपत शांित लंबे समय तक ि थर नहीं रही और पुराने
गठबंधन के थान पर नए गठबंधन बनने लगे।
फ्रांस-प्रिशया यु ध और जमर्नी का पुनगर्ठन
128
ऑि ट्रया भी जमर्न पिरसंघ पर अिधप य थािपत करना चाहता था, लेिकन उसे हं गेिरयन,
चेक, लोवाक, पो स और क्रोएिशयाई जैसे कई गैर-जमर्न रा ट्र का समथर्न नहीं िमला। 1866
म, प्रिशया को ऑि ट्रया पर िनणार्यक जीत िमली और ऑि ट्रया का साम्रा य ऑि ट्रया और
हं गरी के दोहरे राजशाही म िवभािजत हो गया। शे सिवग-हो टीन के यु ध म, 1864 म,
प्रिशया ने डेनमाकर् को हराया। डेनमाकर् की हार के बाद, 1870 म, प्रिशया ने फ्रांस पर आक्रमण
िकया और अक्टूबर 1870 म उसे हरा िदया। फ्रांस-प्रिशया यु ध म प्रिशया की िनणार्यक जीत
के साथ, िब माकर् का जमर्नी के पुनगर्ठन का िमशन 50 वष म पूरा हुआ। प्रिशया का राजा
जमर्नी का कैसर (राजा) बना और ओटो वॉन िब माकर् जमर्नी का चांसलर (प्रधानमंत्री) बना।
यु ध के प चात ्, जमर्नी ने फ्रांस पर एक संिध थोप कर फ्रांस के दो प्रांत लोरे न और अलसेस
को जमर्नी म शािमल कर िलया।
इटली का पन
ु गर्ठन
129
और पपल क्षेत्र को इटली म शािमल कर िलया, और इसी के साथ इटली का पुनगर्ठन
स प न हुआ।
समय के साथ बढ़ते तनाव और खतरे के कारण, यरू ोपीय दे श ने शिक्त संतल
ु न के िलए,
गठबंधन का िनमार्ण करना शु कर िदया, और इस कारण यु ध के समय तक यरू ोप दो
गट
ु म िवभािजत हो चक
ू ा था। ये गठबंधन िन निलिखत थे—
िव दे िशये गठबंधन
जमर्नी के पुनः एकीकरण के साथ, िब माकर् यूरोप म सबसे मजबूत नेता के प म उभरा।
िब माकर् स के काय के बारे म अिनि चत था। स का मक
ु ाबला करने के िलए िब माकर्
ने संिधय की नीित को अपनाया। उसने 1879 म ऑि ट्रया-हं गरी के साथ अपनी दो ती को
मजबूत करने, िवदे शी आक्रमण के िखलाफ खद
ु की रक्षा करने और यथाि थित बनाए रखने
के उ दे य से एक गु त संिध पर ह ताक्षर कर एक गठबंधन बनाया। इस संिध का प्रावधान
यह था िक, अगर स इन दोन म से िकसी पर भी आक्रमण करे गा, तो दोन िमलकर बचाव
करगे। साथ ही यह भी तय िकया गया था िक अगर कोई भी अ य दे श, उन दोन म से
िकसी पर भी आक्रमण करे गा तो दोन सहयोगी िमलकर एक-दस
ू रे का बचाव करगे।
ित्र गट
ु
फ्रांस और इटली दोन को ही िवयना की कांग्रेस से यादा कुछ हािसल नहीं हुआ था। फ्रांस
और जमर्नी दोन ही अफ्रीका के उ र-पि चमी िह स पर िनयंत्रण के िलए प्रित पधार् कर रहे
थे। फ्रांस ने पहले ही अ जीिरया पर िनयंत्रण कर चुका था और िवयना कांग्रेस के तीन साल
के बाद, फ्रांस ने यन
ू ीिशया पर अिधकार प्रा त कर िलया। यूनीिशया पर फ्रांस के िनयंत्रण
के साथ, इटली की उ री अफ्रीकी पर िनयंत्रण की मह वाकांक्षा का अंत हो गया और उसने
फ्रांस के िव ध समथर्न की माँग की। उस समय, ओटो वॉन िब माकर् ने सझ
ु ाव िदया िक
जमर्नी, इटली और ऑि ट्रया-हं गरी को एक गठबंधन बनाना चािहए। बाद म, जैसा िक
ु ाव िदया, इटली ने 20 मई 1882 को जमर्नी और ऑि ट्रया-हं गरी के साथ एक
िब माकर् ने सझ
गु त संिध पर ह ताक्षर िकए और द िट्रपल एलायंस का गठन िकया। इस गठबंधन म समय
के साथ बदलाव िकये जब तक िक यह 1915 म, प्रथम िव वयु ध के दौरान, यह समा त नहीं
हो गया था। इस संिध वारा यह िनणर्य िलया गया था िक यिद फ्रांस जमर्नी पर आक्रमण
करे गा तो इटली और ऑि ट्रया-हं गरी तरु ं त ही उसकी सहायता करगे। लेिकन यिद इनम से
कोई भी दे श फ्रांस के अलावा िकसी अ य दे श के साथ यु ध करता है , तो गठबंधन के अ य
साझेदार 'परोपकारी तट थता’ की नीित का पालन करगे। साथ ही यह भी िनणर्य िलया गया
िक यिद यरू ोपीय शांित के िलए कोई खतरा उ प न होगा, तो तीन दे श एक-दस
ू रे से परामशर्
130
करगे। यह भी तय िकया गया िक इस संिध का इ तेमाल िब्रटे न के िखलाफ नहीं िकया
जाएगा।
िट्रपल एंटट
िट्रपल एलायंस के गठन की प्रितिक्रया म, ग्रेट िब्रटे न, फ्रांस और सी साम्रा य ने िट्रपल एंटटे
का गठन िकया। लेिकन िट्रपल एलायंस के िवपरीत, यह गठबंधन एक एकल संिध वारा नहीं
बनाया गया था, बि क यह समय के साथ िवकिसत हुआ था और तीन अलग-अलग
िवपक्षीय संिधय का पिरणाम था। ये संिधयाँ थीं—फ्रांस- सी गठबंधन (1894), एंग्लो-फ्रच
एंटटे कॉिडर्अल (1904) और एंग्लो- सी समझौता (1907)।
1890 और 1910 के बीच, यूरोप का शिक्त समीकरण बदल गया। 1891 म फ्रांस ने स
के साथ एक गैर सै य मैत्रीपूण-र् एंटटे पर ह ताक्षर िकए, िजसका उ दे य मैत्रीपूण र् संबंध
िवकिसत करना और शांित के िलए खतरे की ि थित म एक-दस
ू रे के साथ परामशर् करना
था। 1894 म, फ्रांस और स ने फ्रको- सी सै य गठबंधन बनाने के िलए एक औपचािरक
संिध पर ह ताक्षर िकए। इस गठबंधन का उ दे य सद य दे श की सै य प से सहायता
करना, यिद कोई अ य दे श िट्रपल एलायंस दे श म से िकसी पर भी आक्रमण करता है ।
दस
ू री तरफ, िब्रटे न और जमर्नी के शाही पिरवार के बीच रक्त संबंध थे लेिकन नौसैिनक
शिक्त और समद्र
ु पर प्रभु व के िलए प्रित पधार् िब्रटे न और जमर्नी के बीच संबंध के पतन
की ओर ले जाती है । वही दस
ू री और, 1899 म, सड
ू ान पर प्रभु व के िलए, फ्रांस और िब्रटे न की
ू रे के आमने सामने यु ध के मोच पर थीं। इस समय फ्रांस को एक िमत्र की
सेना एक-दस
आव यकता थी इसिलए उसने सड
ू ान पर प्रभु व की इ छा को याग िदया। इस घटना से
फ्रांस और िब्रटे न के बीच मैत्रीपण
ू र् संबंध का उदय हुआ और अंततः दोन ने 1904 के एंग्लो-
फ्रच एंटटो कॉिडर्एल पर ह ताक्षर कर स ब धो को और मजबत
ू िकया।
इस तरह, 1904 तक, फ्रांस के दो प्रमख
ु िमत्र थे—िब्रटे न और स, लेिकन इन दोन दे श
के बीच कोई मैत्रीपण
ू र् संबंध नहीं था। फ्रांस ने इन दोन को करीब लाने म मह वपण
ू र् भिू मका
िनभाई और िब्रटे न और स दोन ने 1907 म एंग्लो- सी समझौते पर ह ताक्षर िकए। इस
संिध वारा 'द िट्रपल एंटटे ' को औपचािरक प िमला।
131
क्षेत्र को अ थायी प से ऑि ट्रया-हं गरी की दोहरी राजशाही के संरक्षण म भी रखा गया था।
यह िनणर्य, यूरोप म शिक्त के संतुलन को बनाए रखने के िलए िलया गया था। इस क्षेत्र के
लाव लोग की रा ट्रवादी मह व
ाकांक्षा बढ़ रही थी और जल
ु ाई 1908 म, ‘यंग तुकर्’ (िविभ न
सध
ु ार समह
ू का गठबंधन) ने संवैधािनक शासन थािपत करने के िलए समकालीन स ावादी
शासन के िखलाफ िवद्रोह िकया। अक्टूबर 1908 म, नए शासन की थापना से पहले ही
ऑि ट्रया-हं गरी के राजशाही ने बोि नया-हजगोिवना क्षेत्र पर आक्रमण कर िदया। ऑि ट्रया-
हं गरी के हमले ने यूरोपीय शिक्त संतुलन को िबगाड़ िदया और ‘ लाव रा ट्र’ के िनमार्ण के
मागर् को अवरोिधत िकया।
जन
ू 1914 म, आकर् यूक फ्रांज फिडर्नड, ऑि ट्रयन-हं गेिरयन िसंहासन के उ रािधकारी और
उनकी प नी, आकर् यूस सोिफया, साराजेवो (बोि नया की राजधानी, वही क्षेत्र िजसका 1908 म
ऑि ट्रया-हं गरी ने रा य-हरण िकया था) म शाही सश त्र बल का िनरीक्षण करने गए थे।।
बोि नया-हजगोिवना के रा य-हरण के कारण सिबर्याई रा ट्रवादी नाराज थे और इसी तरह के
एक रा ट्रवादी समह
ू ने साराजेवो की यात्रा के दौरान आकर् यक
ू फ्रांज फिडर्नड को मारने की
सािजश रची। 28 जन
ू 1914 की सब
ु ह, जब वे अपने गंत य की ओर बढ़े , एक यव
ु ा सिबर्याई
रा ट्रवादी ने ऑि ट्रयाई िसंहासन के उ रािधकारी और उसकी प नी की गोली मारकर ह या
कर दी। यह ह या परू ी दिु नया के िलए मह व
पण
ू र् मोड़ सािबत हुई, िजसके बाद कई अ य
घटनाएँ हुईं और इन सभी घटनाओं ने दे श के बीच तनाव को मानव इितहास के अभत
ू पव
ू र्
और िवनाशकारी संघषर् म बदल िदया, िजसे अब हम प्रथम िव वयु ध के प म जानते ह।
132
सिबर्या के साथ गठबंधन िकया था। इसके बाद, 1 अग त 1914 को जमर्नी ने स पर यु ध
की घोषणा की, क्य िक उसने ऑि ट्रया-हं गरी के साथ गठबंधन िकया था। उसी वषर् 3 अग त
को, जमर्नी ने फ्रांस के िखलाफ यु ध की घोषणा की और तट थ बेि जयम पर आक्रमण
िकया और इसके पिरणाम व प, िब्रटे न ने जमर्नी पर आक्रमण िकया, क्य िक उसके बेि जयम
और फ्रांस की रक्षा करने के िलए दोन से समझौते िकये थे। कई अ य ह त म, अ य दे श
भी यु ध म शािमल हुए। सिबर्या और ऑि ट्रया-हं गरी के बीच शु हुआ यु ध दो गट
ु के
बीच एक यु ध म बदल गया, जो थे 'एलाइड पॉवसर्' (िब्रटे न, फ्रांस, स और उनके सहयोगी
जैसे इटली, जापान और संयुक्त रा य अमेिरका) और 'सट्रल पॉवसर्' ( जमर्नी और उसके
सहयोगी जैसे ऑि ट्रया-हं गरी, ओटोमन साम्रा य और बु गािरया)। प्रथम िव वयु ध के दौरान
लड़ी गई प्रमख
ु लड़ाइय म 'मान का प्रथम यु ध', 'सो मे का यु ध', 'टै नबगर् का यु ध',
'गैलीपोली का यु ध' और 'वदर् न
ु का यु ध' आिद शािमल थे।
यह यु ध यरू ोप, एिशया और अफ्रीका जैसे िविभ न महा वीप म, िविभ न मोच पर लड़ा
गया। सबसे मह वपूण र् मोच म ‘पि चमी मोचार्’ था जहाँ एक ओर जमर्नी और दस
ू री ओर
िब्रटे न, फ्रांस और अमेिरका (1917 के बाद) आमने-सामने थे और दस
ू रा मोचार् ‘पूवीर् मोचार्’ था
जहाँ िसय ने जमर्न और ऑि ट्रयाई-हं गरी का सामना िकया। संिक्ष त अविध के िलए,
जमर्नी, पूवीर् और पि चमी दोन मोच पर िवजयी होता रहा, लेिकन 1917 के बाद, दो घटनाओं
के कारण पूरा पिर य बदल गया। प्रथम, संयुक्त रा य अमेिरका सहयोगी दे श की ओर से
यु ध म शािमल हो गया, और दस
ू रा, स ने बो शेिवक क्रांित के बाद यु ध से वयं को
अलग कर िलया और उसने जमर्नी के साथ बाद म एक अलग शांित संिध पर ह ताक्षर
िकए। 1918 म, िमत्र रा ट्र की जवाबी कारर् वाई के कारण, जमर्न सेना पीछे हट गई। जमर्नी
और उसके सहयोिगय की हार और जमर्नी म घिटत क्रांित िजसने िव हे म II (जमर्न सम्राट)
का पतन िकया। 11 नवंबर, 1918 को जमर्नी वारा यु धिवराम पर ह ताक्षर करने और 'द
ग्रेट वॉर' अथवा 'वॉर टू एंड वॉसर्', जैसा िक इसे कई िव वान वारा कहा गया, समा त हो
गया।
प्रथम िव वयु ध
133
1. सै यवाद
यूरोप म सै यवाद की शु आत उ नीसवीं शता दी म हुई। नेपोिलयन बोनापाटर् का, पूरे यूरोप
की तुलना म, सबसे मजबूत और वचर् व वाली सेना के साथ मख्
ु य नेता के प म उभरना
सै यवाद की शु आत एक मख्
ु य कारण रहा। नेपोिलयन का उदय, यूरोप के अ य दे श म
तेजी से और भारी सै यवाद का कारण बना और यह उसकी म ृ यु के बाद भी जारी रहा।
फ्रांस-प्रिशया यु ध (1870) म फ्रांस की हार के बाद यरू ोप म सै यवाद एक नए तर पर
पहुँचा। 20वीं शता दी की शु आत तक, सै यवाद अंतरार् ट्रीय राजनीित का मह व
पूण र् पहल ू
बन गया। इस िवचार म िव वास िक हर दे श के पास वयं के अि त व की रक्षा का एकमात्र
िवक प ‘से फ हे प’ है , ने दे श के म य सै यवाद और हिथयार की होड़ को अपेक्षाकृत
अिधक ती कर िदया। 1914 तक, जमर्नी अपनी सेना म यापक तर पर िव तार कर चुका
था और नौसैिनक शिक्त के िलए जमर्नी और िब्रटे न के बीच कड़ी प्रित वं िवता थी। यहाँ
तक िक, सद
ु रू पूव र् क्षेत्र म, जापान वारा सै यवाद चीन, कोिरया, यहाँ तक िक, संयुक्त रा य
अमेिरका के िलए भी खतरा बन गया। सै यवाद की इस अ यिधक ती गित ने िव व को
यु ध की िदशा म मोड़ने का कायर् िकया।
2. गट
ु िनमार्ण और आपसी रक्षा संिधयाँ
आपसी शांित और शिक्त का संतुलन बनाए रखने के िलए यूरोपीय दे श वारा गु त गट
ु व
गठबंधन का िनमार्ण और गु त संिधय पर ह ताक्षर करना, अंत म इसकी शांित और शिक्त
संतुलन के िलए ही खतरा बन गया। 1871 म फ्रांस पर िब माकर् की जीत के साथ गठबंधन
बनाने का युग शु हुआ। जमर्नी के पुनः एकीकरण के बाद; उसने अिधक से अिधक गठबंधन
बनाकर और फ्रांस को िमत्र थािपत कर शिक्त म व ृ िध करने का प्रयास िकया। इस तरह
की गु त संिधय और गठबंधन का उ दे य यह था िक यिद िकसी अ य दे श वारा
सि धकृत दे श म से िकसी एक पर आक्रमण िकया गया, तो सभी सहयोगी दे श उसका बचाव
करने के िलए बा य थे। इस प्रविृ की िनरं तरता के पिरणाम व प िविभ न गट
ु व
गठबंधन का िनमार्ण हुआ; स और सिबर्आ के बीच; जमर्नी, इटली और ऑि ट्रया-हं गरी
(िट्रपल एलायंस); फ्रांस और स; िब्रटे न, फ्रांस और बेि जयम। इसी तरह की संिधय और
गट
ु बंदी के कारण, सिबर्या और ऑि ट्रया-हं गरी के बीच हुआ यु ध िव वयु ध म बदल गया।
3. साम्रा यवाद
साम्रा यवाद एक दे श वारा िकसी अ य क्षेत्र पर िनयंत्रण व वचर् व थािपत करके शिक्त
संवधर्न करने का तरीका है । यूरोप म उिदत हुए औ योिगक क्रांित के ती व अताह िव तार
ने साम्रा यवाद और उपिनवेशवाद को बढ़ावा िदया। यूरोपीय दे श अपनी सापेक्ष शिक्त को
बढ़ाने के िलए ऐसे अवसर की िनरं तर खोज म लगे हुए थे। िव वयु ध से पहले ही, अफ्रीकी
134
और एिशयाई क्षेत्र पर वचर् व अथवा िनयंत्रण की चाह, यरू ोपीय शिक्तय के बीच संघषर् का
एक िबंद ु बन गया था। अफ्रीकी और एिशयाई क्षेत्र पि चमी दे श के 'उ योग के िलए क चे
माल' और 'तैयार माल के िलए बाजार' का मुख्य ोत थे और इसी कारण यह संघषर् का
मख्
ु य िबंद ु बना। िनरं तर बढ़ती प्रित पधार् और उनके संबंिधत साम्रा य के िव तार की इ छा
के कारण टकराव की दर म व ृ िध हुई िजसने दिु नया को प्रथम िव वयु ध म धकेल िदया।
4. रा ट्रवाद
प्रथम िव वयु ध के संबंध म, रा ट्रवाद, एकीकरण और िवभाजन दोन का कारण था। जमर्नी
और इटली के पुन: एकीकरण के पीछे रा ट्रवाद प्रमख
ु बल था, पर तु दस
ू री और ओटोमन
साम्रा य के िवघटन का कारण भी यही था। यहाँ तक िक, रा ट्रवाद यु ध का प्रमख
ु कारण
भी था। बोि नया और हज़गोिवना क्षेत्र म रहने वाले लाव रा ट्रवादी लोग , ऑि ट्रया-हं गरी का
िह सा नहीं बने रहना चाहते थे और ऑि ट्रया-हं गरी वारा रा य-हरण ने लािवक रा ट्र के
िनमार्ण के मागर् को अव ध कर िदया था। रा य-हरण के कारण सिबर्याई रा ट्रवादीय म
उभरा गु सा साराजेवो की घटना का कारण बना और अंततः इसके पिरणाम व प ही प्रथम
िव वयु ध का आर भ हुआ।
5. अ य कारण :
क) नेताओं की मह व
ाकांक्षा
रा य के नेताओं की िव तारवादी मह व
ाकांक्षा यु ध के प्रमख
ु कारण म से एक थी। एक
तरफ, प्रिशया के चांसलर, ओटो वॉन िब माकर् की मह वाकांक्षा के पिरणाम व प जमर्नी का
पुनः एकीकरण हुआ, लेिकन दस
ू री ओर, कैसर िविलयम िवतीय की पूरे यूरोप पर अिधप य
की मह वाकांक्षा यूरोप को िव वयु ध की ओर ले गयी। यूरोप के अ य शासक की भी ऐसी
ही िव तारवादी मह व
ाकांक्षाएँ थीं।
ख) समाचार-पत्र की नकारा मक भिू मका
िव वयु ध आरं भ होने से पूव र् और यु ध के दौरान भी, िप्रंट मीिडया की भिू मका मख्
ु य प से
भड़काऊ प्रकृित की रही थी। अखबार और पित्रका जैसे िप्रंट मीिडया ने दे श के बीच मैत्री
संबंध िवकिसत करने की कोिशश नहीं की थी, बि क, शत्रत
ु ापूण र् प्रचार प्रसार कर, उसने
शासक वारा यु ध को टालने और शांित थािपत करने के िविभ न प्रयास को नाकाम कर
िदया। इस तरह इसने यु ध जैसे वातावरण के िनमार्ण म भिू मका िनभाई।
ग) प्रथम िव वयु ध का ता कािलक कारण आकर् यूक फ्रांज फिडर्नड की ह या थी, जो
साराजेवो घटना के प म प्रिस ध है ।
135
प्रथम िव वयु ध के पिरणाम
भिव य म इस तरह के यु ध को रोकने के प्रयास म, कई संिधय पर ह ताक्षर िकए
गए थे और अंतरार् ट्रीय तर पर शांित और यव था बनाए रखने के उ दे य से अंतरार् ट्रीय
सं था की थापना की गई थी। िमत्र रा ट्र ने पेिरस शांित स मेलन म जमर्नी के साथ
िवचार-िवमशर् के िबना, जमर्नी के साथ एक बदनाम संिध, “वसार्य की संिध” पर ह ताक्षर
कराये। इस प्रकार, इसी शांित स मेलन म िमत्र रा ट्र ने ऐसा बीज बोया जो 20 साल बाद,
िव व शांित के िलए एक और खतरे के प म उभरा। प्रथम िव वयु ध के िविभ न पिरणाम
की चचार् अग्रिलिखत खंड म की गई है ।
1. पेिरस शांित स मेलन
शांित थािपत करने और यूरोप व दिु नया के नक्शे को िफर से पिरभािषत करने के िलए,
िमत्र दे श के नेताओं ने जनवरी 1919 म पेिरस म मल
ु ाकात की। यावहािरकता म यह एक
'िवक्टर क्लब' बना रहा क्य िक परािजत दे श के नेता को अपने िवचार रखने का मौका नहीं
िदया गया था। स मेलन म 32 रा य के 70 प्रितिनिधय ने भाग िलया, लेिकन सबसे
मह वपूण र् भिू मका िवजेता दे श के चार नेताओं वारा िनभाई गई, जो थे, लॉयड जॉजर् (िब्रटे न),
िवटोिरयो इमानुएल ऑरलडो (इटली), जॉजस क्लेि मयो (फ्रांस), और वुडरो िव सन (यूएसए)।
पेिरस स मेलन म, 18 जनवरी 1919 को पहला खुला अिधवेशन और बाद म ऐसे ही पाँच
अिधवेशन और आयोिजत हुए। इस शांित स मेलन म अ य लघ ु पिरषद की मदद से काम
िकया गया था, िज ह पहले "काउं िसल ऑफ टे स" कहा जाता था, लेिकन बाद म इसका
थान "महान चार एलाइड नेताओं की पिरष " ने िलया। इस शांित स मेलन म वैचािरक
संघषर् भी उभरा िजसम एक ओर वड
ु रो िव सन (आदशर्वादी) थे, िज ह ने सहयोग और
स भावना के साथ नई िव व यव था के िनमार्ण के िवचार का समथर्न िकया, और दस
ू री
ओर ऑरलडो और क्लेमको (यथाथर्वादी) थे, िज ह ने जमर्नी और उसके सहयोिगय को दं िडत
136
िकये जाने के िवचार का समथर्न िकया। लॉयड जॉजर्, म यम मागर् का अनुसरण करते हुए,
जमर्नी की शिक्त को सीिमत करना चाहते थे पर तु इस स दभर् म वे उदार नीितय को
अपनाने के समथर्क थे। िविभ न िव वान का मत है िक यह शांित स मेलन बदले की
भावना से कायर् कर रहा था और शांित की थापना का ल य गौण रहा था।
f) वसार्य की संिध : 28 जन
ू , 1919 को पेिरस शांित स मेलन म ह ताक्षर िकए गए। जमर्नी
ने इसे "िडकैट" या िडक्टे ट शांित कहा, क्य िक, प्रथमतः, यह संिध जमर्नी पर थोपी गयी
137
थी और िवतीयः इस संिध के अनु छे द 231 वारा एक 'यु ध अपराध' का बोध जमर्नी
पर लाद िदया गया था। िव सन के "जीत के िबना शांित" के िवचार के िवपरीत, इस
संिध वारा जमर्नी को अपमािनत िकया गया। इस संिध वारा जमर्नी की सै य शिक्त
(वायु सेना के िवसै यीकरण और पूणत
र् ः िनषेध सिहत) पर कई प्रितबंध लगाए, उसे भारी
जम
ु ार्ने का भग
ु तान करना पड़ा, इसके कुल क्षेत्रफल का लगभग 13% और इसकी आबादी
का दसवाँ िह सा, और पूरे औपिनवेिशक वचर् व को भी छीन िलया गया। जमर्नी को
मजबूरन अपने कैसर, िव हे म II यु ध अपराध के याियक परीक्षण शु करना पड़ा।
"एलाइड एंड एसोिसएटे ड पॉवसर्" के इन कम के कारण िवतीय िव वयु ध के बीज
इसी स मेलन म बो िदए गए।
5. लीग ऑफ द नेशंस की थापना
सरु क्षा की खोज रा ट्र संघ के िनमार्ण का एक कारण था। राजनीितक वतंत्रता और क्षेत्रीय
अखंडता सिु नि चत करने के िलए प्रयास, िजसका उ लेख वड
ु रो िव सन ने अपने चौदह सत्र
ू ीय
कायर्क्रम म भी िकया था, पेिरस शांित स मेलन के प्रमख
ु उ दे य म से एक था। इसे प्रा त
करने के िलए, 28 जन
ू , 1919 को "लीग ऑफ द नेशंस" के चाटर् र अथवा 'रा ट्र संघ के चाटर् र'
पर ह ताक्षर करके रा ट्र संघ की थापना की गई। यह दे श के बीच संघषर् और असहमित
का शांितपूण र् िनपटारे के उ दे य के साथ, 10 जनवरी, 1920 से प्रभावी हो गया। प्रारं भ म,
इसके 42 सद य थे (य.ू एस. को छोड़कर) और 1927 तक, यह संख्या बढ़कर 56 हो गई।
रा ट्र संघ म तीन मख्
ु य अंगो म, एक िवधानसभा, एक पिरष और सिचवालय शािमल थे।
िवतीय िव वयु ध के अमानवीय नरसंहार को रोकने म लीग ऑफ नेशंस िवफल रहा।
138
सवर्स मत िनणर्य के प्रावधान ने इसकी कायर्प्रिक्रया को मिु कल, लगभग असंभव बना िदया
था।
इसके बावजद
ू भी, शांितपूण र् िव व यव था सिु नि चत करने के िलए बहुत सारे प्रावधान
थे पर तु 'सवर्स मत िनणर्य के प्रावधान' और अ य िविभ न कारण से, रा ट्र संघ उन दे श
को रोकने म िवफल रहा, िज ह ने अंतरार् ट्रीय शांित के िलए खतरा उ प न िकया और दिु नया
ने 1939 से 1945 के बीच घिटत हुआ एक और यु ध-नरसंहार दे खा।
सी क्रांित
सी क्रांित का िव लेषण करने के िलए, हम स की समकालीन आिथर्क-सामािजक-
राजनीितक ि थित के बारे म जानना होगा। हालाँिक, स भौगोिलक प से एक बड़ा साम्रा य
था, लेिकन इसकी आिथर्क ि थित आिदम और दयनीय थी। इसकी कुल आबादी का 80%
िह सा गरीब कृषक थे। जाऱ एलेक्सडर िवतीय, हाँलािक दासता को समा त कर भिू म का
पुनिवर्तरण िकया, लेिकन इस पुनिवर्तरण से केवल 'कुलक ' (अमीर कृषक) को लाभ हुआ।
अ यिधक अप्र यक्ष कर और यूनतम आजीिवका अिजर्त करने तक के िलए संसाधन की
कमी के कारण 1905 म जाऱ के शासन के िखलाफ एक असफल क्रांित हुई। 1905 की क्रांित
के बाद भी, शासक ने नागिरको के जीवन को सध
ु ारने की कोिशश नहीं की। 1914 तक, जब
औ योिगकीकरण के कारण यूरोपीय अथर् यव थाएँ फलफूल रही थीं, स म छुट-पुट उ योग
थे और इसकी रे लवे इ फ्रा- ट्रक्चर अमेिरकी रे लवे नेटवकर् का एक छठे िह से के बराबर भी
नहीं थी और आबादी का बड़ा िह सा िनरक्षर था। राजनीितक िनयंत्रण िनरं कुश राजशाही के
अधीन था जो की िढ़वादी चचर् के प्रित वफादार था। जाऱ िनकोलस िवतीय एक अकुशल
शासक था और उसका प्रशासन परू ी तरह से अंत के कगार पर था। सी-जापानी यु ध
(1904-05) म स की हार के बाद, जो मंचिू रया और कोिरया म प्रित वं वी शाही
मह वाकांक्षाओं पर लड़ा गया था, राजनीितक असंतोष चरम पर था। "खन
ु ी रिववार" (शांितपण
ू र्
139
प्रदशर्नकािरय के हजार लोग मारे गए) की घटना 1905 की असफल क्रांित की ओर ले जाती
है । इस क्रांित के बाद, जाऱ ने स की ि थितय म सध
ु ार करने की कोिशश की, लेिकन ये
प्रयास केवल अपने शासन को बचाने के िलए िसफर् एक वांग मात्र था। प्रथम िव वयु ध के
दौरान, 1917 के वषर् म, ऐसी अिप्रय ि थितय के कारण, बो शेिवक क्रांित ने जाऱ के शासन को
उखाड़ फका और पहले समाजवादी रा य की नींव रखी।
दो क्रांितय के कारण समाजवादी रा य की पिरक पना एक हकीकत बन पायी, प्रथम,
" यूमा" (संसद का िनचला सदन, िजसे 1905 के िवद्रोह के बाद थािपत िकया गया था) ने
जाऱ का याग कर िदया और िवतीय, क्रांित वारा माक्सर्वादीय ने िसंहासन पर क जा कर
िलया। बो शेिवक क्रांित से पहले, ’ यूमा’ ने जाऱ के शासन के िखलाफ पहली क्रांित की,
िजसके वारा जाऱ का शासन समा त हो गया और िप्रंस लवॉव के नेत ृ व म एक अंतिरम
सरकार थािपत हुई। इस क्रांित को 'फरवरी क्रांित' अथवा 'बज ु आ
ुर् क्रांित' (जैसा िक
समाजवादीय ने इससे नाम िदया) के प म जाना जाता है । "चौथा यम ू ा", िजसने िप्रंस
लवॉव के नेत ृ व म एक अंतिरम सरकार की थापना की, को बहुत लोकिप्रय समथर्न नहीं
िमला और राजकुमार लवॉव के इ तीफे के साथ यह यव था समा त हो गयी। अलेक्जडर
केरे की स के नए प्रधानमंत्री बने लेिकन वे भी लोकिप्रय समथर्न पाने म सफल नहीं हुए।
िसतंबर 1917 म, लावर कोिनर्लोव, सेना के जनरल ने केरे की के शासन को उखाड़ फकने का
प्रयास िकया, लेिकन बो शेिवको वारा केरे की को प्रदान की गई सहायता के कारण वह
सफल नहीं हो पाया।
140
1917 तक ( सी कैलडर के अनुसार 25 अक्टूबर 1917) लाल सेना ने पेट्रोग्रैड (वतर्मान नाम
सट पीटसर्बगर्) को अपने िनयंत्रण म ले िलया। इसके बाद, सोिवयत संघ की दस
ू री अिखल
सी कांग्रेस म, एक नई सरकार, िजसे "जनता का सोिवयत कॉिमसर (Soviet of people’s
Commissars) नाम िदया गया था, लािदमीर लेिनन के नेत ृ व म थािपत की गई थी, और
इसके साथ, बो शेिवक क्रांित ने क युिन ट शासन की थापना के अपने ल य को प्रा त
िकया। 1918 म, बो शेिवक पाटीर् और स का नाम बदलकर क्रमशः क युिन ट पाटीर् और
सोिवयत सोशिल ट गणरा य का संघ (Unions of Soviet Socialist Republic) रख िदया गया।
िन कषर्
प्रथम महायु ध, िजसे 'महायु ध' के नाम से भी जाना जाता है , अपने तरह का प्रथम यु ध
था। पहली बार, मानव इितहास म िकसी यु ध के ऐसे िवनाशकारी पिरणाम थे। ऑि ट्रया-
हं गरी और सिबर्या के बीच आकर् यक
ू फ्रांज फिडर्नड की ह या के कारण यु ध िछड़ गया और
इस यु ध ने परू े यरू ोप को खींच िलया। इस यु ध से न केवल लाख की जान-माल का
नक
ु सान हुआ, बि क परू ी दिु नया की सारी संरचना और िड कोसर् को भी बदल िदया। इस
यु ध के कारण, चार साम्रा य िवघिटत हो गए, रा य की सीमाएँ िफर से यवि थत की गईं,
अमेिरका, िजसने अपने क्षेत्र पर यु ध का अनुभव नहीं िकया था, िव व शिक्त के प म
उभरा। यु ध के बाद, भिव य म इस तरह के नरसंहार से बचने के िलए संिधय की ख
ं ृ ला
पर ह ताक्षर िकए गए थे, और यहाँ तक िक यु ध को रोकने और िवचार-िवमशर् के मा यम
से िववाद को िनपटाने के िलए एक अंतरार् ट्रीय राजनियक संगठन की थापना की गई थी।
141
लेिकन यह सारी कोिशश िवफल हो गयी, जब 1 िसतंबर, 1939 को दिु नया ने दस
ू रे िव वयु ध
की शु आत दे खी, िजसने दिु नया को और भी बुरी तरह प्रभािवत िकया।
स दभर् सच
ू ी
बेयलीस, जे, ि मथ, एस एंड ओवे स पी. (2011) द ग्लोबलाइज़ेशन ऑफ व डर्
पॉिलिटक्स, एन इंट्रोडक्शन टू इंटरनेशनल िरलेश स. ऑक्सफोडर् यिू नविसर्टी प्रेस; िद ली
ं हाउस प्राइवेट िलिमटे ड;
ख ना, वी. एन. (2013) अंतरार् ट्रीय संबंध. िवकास पि लिशग
नई िद ली
• नॉमर्न, एल. (2013) मा टे िरंग मॉडनर् व डर् िह ट्री. पालग्रेव मैकिमलन; लंदन
• (https://www.britannica.com/event/World-War-I ) प्रथम िव वयु ध
142
इकाई-3
पाठ-3 : फ़ासीवाद और नाजीवाद का उदय
अनीता
अनुवादक : नारायण रॉय
पिरचय
वे टफेलीया की शांित नामक समझौते के बाद अंतरार् ट्रीय राजनीित म रा ट्र रा य की
अवधारणा का ज म हुआ। इन रा ट्र रा य ने तब से लेकर अब तक अंतरार् ट्रीय िव व
यव था के िवकास की िदशा और गित को तय िकया है । इन रा ट्र रा य के म य सदै व
शिक्त और स ा के िव तार के िलए संघषर् रहा है , जोिक दशक से वतर्मान अंतरार् ट्रीय
राजनीित की एक स चाई है । 20वीं शता दी के प्रारं िभक दशक म, यरू ोप के कुछ दे श व
साम्रा य के म य उभरे ऐसे ही एक संघषर् ने अंततः प्रथम िव वयु ध को ज म िदया। इस
यु ध के बाद यूरोप के राजनीितक मानिचत्र को दोबारा से िचित्रत करने के िलए और एक
शांित समझौते वारा सभी संघषर् के मु द का समाधान करने के िलए पेिरस म 1919 म,
एक शांित स मेलन का आयोजन िकया गया। इस शांित स मेलन से दो रा ट्र , जमर्नी और
इटली, को भारी िनराशा हाथ लगी। इस िनराशा के चलते और यु ध के कारण िबगड़ी
सामािजक-आिथर्क ि थित के कारण इन दोन दे श म यु धो र काल म राजनीितक
अि थरता बनी रही। इस संकटकालीन पिरि थित म, इन दोन दे श म एक रा ट्रवादी
आंदोलन शु हुआ, िजसे इटली म मस
ु ोिलनी और जमर्नी म िहटलर वारा नेत ृ व प्रदान
िकया गया। मस
ु ोिलनी और िहटलर ने िजस वैचािरक अवधारणा के अनु प अपनी नीितयाँ,
राजिनितक कायर्क्रम, शासन यव था और िवदे श नीित को तय िकया उसे क्रमशः फ़ासीवाद
और नाजीवाद के नाम से जाना गया। फ़ासीवाद और नाजीवाद एक ऐसी शासन यव था है
िजसम तानाशाही फ़ासीवाद और नाजीवाद शासन की एक ऐसी प्रणाली है िजसम तानाशाही,
उग्र अथवा अित रा ट्रवाद, िवपक्षीय आवाज और त व
का दमन, अथर् यव था और समाज
पर शासन तंत्र का कठोर िनयंत्रण आिद िवशेषताएँ शािमल है ।
इस अ याय म हम यरू ोप म फ़ासीवाद और नाजीवाद के उदय की िव तार म चचार्
करगे। इसके अितिरक्त हम उन कारण और पिरि थितय की भी चचार् करगे, िज ह ने
फ़ासीवाद और नाजीवाद जैसी शासन यव था के उदय का मागर् प्रस त िकया। इस शासन
यव था के उदय म मस
ु ोिलनी और फ़ािस ट पाटीर् तथा िहटलर और ना सी पाटीर् वारा
िनभाई गई भिू मका की भी िव तार से चचार् की गई है । फ़ासीवाद और नाजीवाद के उदय को
समझने के िलए इस अ याय को मख्
ु यतः तीन खंड म िवभािजत िकया गया। प्रथम खंड म
143
हम नाजीवाद के उदय की िव तार से चचार् करगे, साथ ही यह समझने का प्रयास करगे िक
कैसे जमर्नी म िहटलर के नेत ृ व म एक क्रूर और तानाशाही शासन ज मा। अगले खंड म
हम फ़ासीवाद के उिदत होने की प्रिक्रया और कैसे मस
ु ोिलनी ने इटली म अपनी स ा
थािपत की, को समझगे। इस अ याय के तत
ृ ीय खंड म हम फ़ासीवाद और नाजीवाद जैसी
शासन यव था के क्या प्रभाव रहे और िकस तरह से इन शासन प्रणाली ने िवश ्व यव था
को प्रभािवत िकया को संक्षेप म समझने का प्रयास करगे।
खंड-1 : नाजीवाद
ना सी पाटीर् का उदय
144
संख्या म तेजी से व ृ िध हुई और बाद मे, जमर्न वकर्सर् पाटीर् का नया नाम “नेशनल
सोशिल ट जमर्न लेबर पाटीर्” रखा गया िजसे संक्षेप म, ना सी पाटीर् कहा जाने लगा।
िहटलर की सिक्रय राजनीित म शु आत
िहटलर का जमर्न की स ा पर कािबज होना
145
चुनाव के बाद, िहटलर ने अपनी राजनीितक कूटता से वाइमर सरकार, यहूिदय , सा यवाद
की आलोचना करना शु कर दी और जमर्नी के लोग को अपने भाषण से प्रभािवत करना
जारी रखा। 1930 म हुए चुनाव म ना सी पाटीर् के सांसद की संख्या म व ृ िध हुई जो 12
से बढ़कर 107 पर जा पहुँची थी, िजसके पिरणाम व प ना सी पाटीर् जमर्नी की दस
ू री
सबसे प्रभावशाली पाटीर् बन गई थी। संसद म नाि सओ की बढ़ती संख्या त कालीन सरकार
की िचंता का िवषय बन गया था। 1932 के चुनाव म ना सी पाटीर् को 37 फ़ीसदी वोट प्रा त
हुए थे। मई 1932 म जमर्नी म रा ट्रपित पद के िलए चुनाव हुए िजसम िहटलर ने भी भाग
िलया और उसे अपने प्रित वं वी िहंडनबगर् से इस चुनाव म हार प्रा त हुई। िहंडनबगर् पुनः
जमर्नी के रा ट्रपित चन
ु े गए। इस समय जमर्नी म आिथर्क संकट गहराया हुआ था,
बेरोजगारी िनरं तर बढ़ती जा रही थी। िदन-प्रितिदन िबगड़ती ि थित के चलते जमर्नी के
चांसलर हे निरच ब्रूिनंग ने रा ट्रपित के चुनाव के बाद अपना यागपत्र दे िदया। रा ट्रपित
िहंडनबगर् ने फ्रांज़ वॉन पेपन को नया प्रधानमंत्री िनयुक्त िकया, परं तु संसद म बहुमत ना
िमलने के कारण वह यादा िदन सरकार नहीं चला पाए। पेपन की िसफािरश पर िहंडनबगर्
वारा संसद को भंग करा िदया गया और नवंबर 1932 म पुन: आम चन
ु ाव कराए गए। इस
चुनाव म ना सी पाटीर् के चयिनत सद य की संख्या म िगरावट आई, जो 230 से घटकर
196 हो गई थी, परं तु िफर भी ना सी दल एक बड़े दल के प म उभरा। चांसलर पेपन के
वारा यागपत्र दे ने के बाद रा ट्रपित िहडंनबगर् ने िहटलर को चांसलर का पदभार संभालने के
िलए आमंित्रत िकया, पर तु िहटलर के वारा रा ट्रपित के समक्ष कुछ शत रखी गई थी,
िज ह िहडंनबगर् ने अ वीकार कर िदया और जनरल कुतर् वॉन शलेशर को प्रधानमंत्री िनयुक्त
कर िदया गया। बहुमत म ना होने के कारण यह सरकार भी केवल 8 स ताह ही शासन कर
सकी और कत ुर् ने भी रा ट्रपित को यागपत्र स प िदया। इस राजनीितक अि थरता के चलते
िहडंनबगर् के पास कोई अ य िवक प नहीं बचा था और उ ह ने िहटलर को पुनः सरकार
बनाने का प्र ताव िदया। इस बार िहटलर ने िबना िकसी शतर् के प्र ताव को वीकार िकया
और 30 जनवरी, 1933 को प्रधानमंत्री पद का कायर्भार संभाला।
िहटलर के पहले मंित्रमंडल म तीन ना सी और आठ रा ट्रवादी सद य थे। रा ट्रवादी
सद य पेपन को उप-प्रधानमंत्री िनयुक्त िकया गया और रक्षा मंत्री के पद पर जनरल
लम
ू बगर् को िनयुक्त िकया था, तािक िहटलर को िनयंत्रण म रखा जा सके। िहटलर के
सरकारी सद य बोिरंग ने कहा था िक ‘स ा हमारे पास आ गई तो हम इसे कभी नहीं छोड़गे
जब तक िक हमारे शव को कायार्लय से ले जाया जाएगा’ और भिव य म यह कथन सही
िस ध हुआ। स ा म आने के बाद, िहटलर ने एक नया जनादे श प्रा त करने का फैसला
िकया और नवंबर 1932 म िनवार्िचत संसद को भंग कर िदया गया। 3 माचर्, 1933 के िदन,
नए िसरे से चुनाव कराने का आदे श पािरत िकया गया। चुनाव से पूव,र् बिलर्न म ि थत संसद
146
भवन म भी म अिग्न कांड हुआ िजसके िलए िहटलर ने सा यवािदय को दोषी ठहराया और
उनका दमन करना शु कर िदया।
माचर् म हुए आम चन
ु ाव म ना सी पाटीर् के मतदान प्रितशत और चयिनत सद य की
संख्या दोन म व ृ िध हुई और िहटलर के नेत ृ व म ना सी पाटीर् ने साधारण बहुमत प्रा त
कर सरकार का गठन िकया। स ा म आने के बाद िहटलर ने संवैधािनक शासन की संरचना
और सं थान को भंग करना शु कर िदया। माचर् 1933 को “इनेबिलंगएक्ट” नामक एक
िवशेष कानून पािरत िकया गया िजसके वारा जमर्नी म तानाशाही थािपत की गई। इस
कानून के वारा िहटलर ने संसद को हािशए पर ला खड़ा िकया और केवल अ यादे श के
जिरए शासन चलाने का िनरं कुश अिधकार प्रा त िकया। जमर्नी म, ना सी पाटीर् के अलावा
अ य सभी दल व संगठन को अवैध घोिषत कर िदया गया। सेना, मीिडया, यायपािलका
और अथर् यव था को पूणत
र् ः रा य के िनयंत्रण के अधीन कर िदया गया। इसके अलावा,
िहटलर ने ना सीवादी िवचारधारा के अनु प शासन के संचालन िलए अलग-अलग संगठन के
गठन और रक्षा के िलए सेना के गठन का आदे श िदया। िहटलर के नेत ृ व म “गे टापो”
नामक एक गु तचर संगठन का गठन िकया िजसका कायर् राजनीितक िवरोिधय को दं ड दे ना
था। 30 जनवरी, 1934 को, शासन की पहली वषर्गाँठ के अवसर पर, िहटलर ने रा य की
िवधाियका को भंग कर िदया और उसी वषर् 4 फरवरी को ऊपरी सदन को भी िनर त कर
िदया। रा ट्रपित िहडंनबगर् की म ृ यु से पहले ही मंित्रमंडल के वारा यह िनणर्य िलया गया
िक िहडंनबगर् की म ृ यु के प चात ् रा ट्रपित और प्रधानमंत्री के पद को िमलाकर एक कर
िदया जाएगा। अग त 1934 म रा ट्रपित िहडंनबगर् की म ृ यु के बाद िहटलर के वारा एक
जनमत संग्रह कराया गया िजसम पौने चार करोड़ मतदाताओं ने िहटलर को प्रधानमंत्री और
रा ट्रपित के प म वीकार िकया था।
इस प्रकार जमर्नी की स ा का कद्रीकरण प्रार भ हुआ और स पूण र् स ा-शिक्त िहटलर
के हाथ म आ गयी। इसके बाद, िहटलर ने एक और कानून लाग ू िकया िजसके तहत एक
दे श, एक सेना, एक नेता के प्रित वफादारी की शपथ लेना अिनवायर् कर िदया गया। इस
तरह से िहटलर रा य, सरकार व सेना का अ यक्ष बन गया और उसने वयं को जमर्न रा ट्र
का प्रतीक और एकमात्र नेता (फुहरे र) घोिषत िकया।
नाजीवाद के उ थान के िलए उ रदायी कारक
वसार्य की संिध
प्रथम िव वयु ध के बाद, 1919 म, वसार्य की संिध को यु ध और संघषर् को समा त करने
के िलए संिध के प म ह ताक्षिरत िकया गया था। इस शांित संिध का मसौदा तैयार करने
म न तो जमर्न प्रितिनिधय की भागीदारी थी और न ही िमत्र रा ट्र वारा उनकी राय पर
िवचार िकया गया था। जमर्न प्रितिनिधय को इस संिध पर ह ताक्षर करने के िलए मजबरू
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िकया गया था। इस संिध के तहत, जमर्नी के कई क्षेत्र (जैसे अलसैस-लोरे न) और यूरोप से
बाहर के उसके सभी उपिनवेश जमर्नी से छीन िलए गए, उसकी सै य शिक्त पर प्रितबंध
लगाए गए और उस पर कई अ य प्रकार के प्रितबंध भी थोपे गए। इसके अलावा, प्रथम
िव वयु ध के िलए अकेले जमर्नी को िज मेदार ठहराया गया था, और यु ध से हुए नुकसान
की भरपाई के िलए जमर्नी पर 650 िमिलयन पाउं ड का जम
ु ार्ना लगाया गया था। प ट तौर
पर यह संिध पूरी तरह से पक्षपाती थी, जमर्नी के िलए वा तव म अ यायपूण र् थी और
इसिलए जमर्न लोग ने इस संिध को “िडक्टे ड पीस” कहा था।
सा यवाद के प्रसार का डर
प्रथम िव व के प चात ् स पूण र् यूरोप म आिथर्क िदवािलयापन की ि थित उभरी थी। दोन
गट
ु के दे श को भारी आिथर्क व संरचना मक हािन वहन करनी पड़ी थी पर तु जमर्नी को
यु ध के कारण दोहरी मार झेलनी पड़ी थी। अथार्त ् एक ओर जमर्नी को यु ध के कारण हुई
क्षित का भार उठाना पड़ा और दस
ू रीं ओर वसार्य की शांित संिध वारा आरोिपत आिथर्क दं ड
ने उसकी इस ि थित को और दज़
ु रर् कर िदया। जमर्नी म उभरी इस आिथर्क पिरि थित ने
सा यवाद के प्रसार एवं उ थान के िलए सकारा मक पिरि थित प्रदान की और सा यवािदय
वारा जमर्नी म क्रांित लाने का प्रय न िकया जाने लगा। िहटलर का मानना था िक
सा यवादी िवचारधारा जमर्नी की रा ट्रीयता के िलए भारी खतरा है साथ ही उसे यह भय भी
था िक सा यवादी िवचारधारा के प्रबल होने से जमर्नी स का दास बनकर रह जाएगा। इसके
िलए िहटलर ने अपने भाषण के मा यम से जनता को सा यवाद के िवनाशकारी पिरणाम से
अवगत कराया और साथ ही साथ जमर्न लोग म रा ट्रवाद की भावना को जागत
ृ िकया और
उ ह सा यवाद से दरू रहने का आदे श िदया। िहटलर के इस दावे को जमर्नी के
कुलीन/अिभजात वगर् और धिनक वगर् वारा समथर्न िमला। इसके पिरणाम व प सा यवाद
के खतरे से बचने के िलए भारी संख्या म लोग ना सी पाटीर् से जड़
ु ने लगे और इस तरह
सा यवाद के उभार का डर, नाजीवाद की उ नित म सहायक िस ध हुआ।
आिथर्क संकट का प्रभाव
148
इस पिरि थित म ना सी पाटीर् को अपनी शिक्त बढ़ाने व लोकिप्रयता बढ़ाने का सन
ु हरा
अवसर प्रा त हुआ था और ना सी पाटीर् िदन प्रितिदन उ नित की ओर अग्रसर हो रही थी।
लोकतांित्रक शासन म बढ़ता अिव वास
िहटलर और ना सी पाटीर् के उ कषर् का एक कारण जमर्न जनता म प्रजाताि त्रक शासन
प धित के िव ध अ िच होना था। बहुत से जमर्न, संसदा मक शासन प्रणाली और िजस
ढं ग से वह कायर् कर रही थी, से वे ऊब गये थे। त कालीन जमर्न राजनीितज्ञ लोग से
ि थित को बदलने का वादा कर रहे थे लेिकन ये वादे केवल खोकली बात सािबत हो रही थी।
इससे सामा य जनता को भारी आघात पहुँचता और वे एक शिक्तशाली यिक्त को जमर्नी
का भाग्य िवधाता दे खना चाहती थी जो िक जनता को मौजद
ू ा दयनीय ि थित से मिु क्त
िदलवा सके।
िहटलर का प्रभावशाली व आकषर्क यिक्त व
खंड-2 : फ़ासीवाद
फ़ािस ट श द की उ पि “फािसयो” श द से हुई है जो लैिटन श द “फासेज” से बना है
िजसका सामा य अथर् छड़ का ग ठर है । िजसे अिधकार का प्रतीक माना जाता था। फ़ािस ट
श द के िलए फािस म और फ़ासीवाद जैसे श द भी प्रयोग िकए जाते ह। फ़ासीवाद का उदय,
बेिनटो मस
ु ोिलनी के नेत ृ व म, इटली म हुआ। मस ु ोिलनी का ज म इटली के रोमग्ना शहर
म 1883 म हुआ था। उनके िपता पेशे से लोहार थे और माता कूल म अ यािपका थी।
मस
ु ोिलनी पर अपने िपता के समाजवादी िवचार का प्रभाव पड़ा था। शु आती समय म, वह
एक अ यापक बना िकंत ु कुछ समय प चात ् ही वह यह यवसाय छोड़कर ि व जरलड चला
गया। वहाँ वह समाजवादी दल के संपकर् म आया तथा उसने सरकार िवरोधी आंदोलन और
हड़ताल का आयोजन प्रारं भ िकया िजसके कारण उससे जेल म डाल िदया गया। जेल से िरहा
149
होने के बाद मस
ु ोिलनी ने समाजवादी पित्रका “अवंती” का संपादन करना शु िकया। प्रथम
यु ध के शु आती समय म वह इटली की तट थता नीित का समथर्क था िकंतु बाद म उसने
इटली के वारा यु ध म भाग लेने का समथर्न िकया िकंतु समाजवादी दल ने इस िनणर्य का
िवरोध िकया इसिलए मस
ु ोिलनी ने समाजवादी पाटीर् को छोड़कर यु ध के दौरान सेना म भतीर्
हो हुआ और सैिनक के तौर पर यु ध म भाग िलया। यु ध म घायल होने के कारण उसे
1917 म सेना से सेवािनव ृ कर िदया गया।
फासीवादी पाटीर् का उदय
मस
ु ोिलनी का इटली की राजनीित म प्रवेश
150
गया परं तु मस
ु ोिलनी ने प्र ताव को अ वीकार कर िदया। इसके बाद भी, संगठन को मजबूत
बनाए रखने के कायर्क्रम को सच
ु ा प से जारी रखा गया और संगठन को राजनीितक दल
के प म थािपत िकया गया। इसके प चात ् उसने अपने दल के साथ, इटली के राजा
िवक्टर इमैनुअल तत
ृ ीय को आक्रमण की चुनौती दी। िसतंबर 1922 म मस
ु ोिलनी ने “रोम
चलो” का नारा िदया और अक्टूबर 1922 म ‘ने लस’ म हुए फ़ािस ट स मेलन म फ़ािस ट
कायर्कतार्ओं को रोम की ओर प्र थान करने का आ वान िकया और उसने अपने 30000
वयंसेवक के साथ रोम पर अिधकार करने के िलए प्र थान िकया। वयंसेवक ने रे लवे
टे शन, डाकघर व अ य सरकारी कायार्लय पर क जा कर िलया। रोम की कानून यव था
भंग हो गई, सरकार कोई भी कायर्वाही करने म असफल रही। इस ि थित म प्रधानमंत्री
फाक्ता वारा राजा को परामशर् िदया गया िक वह दे श म सै य कानून (माशर्ल लॉ) लागू कर
दे , परं तु राजा ने परामशर् को अ वीकार कर िदया, िजसके बाद प्रधानमंत्री फाक्ता ने यागपत्र
दे िदया। िबगड़ती राजनीितक ि थित को म यनज़र रखते हुए और गह
ृ यु ध से बचने के
िलए राजा िवक्टर इमैनुअल तत
ृ ीय ने 30 अक्टूबर, 1922 को मस
ु ोिलनी को प्रधानमंत्री
िनयुक्त कर िदया। इस तरह, मस
ु ोिलनी का इटली म वा तिवक प्रवेश हुआ।
मस
ु ोिलनी की तानाशाही
प्रधानमंत्री के प म मस
ु ोिलनी की िनयुिक्त संवैधािनक थी परं तु उसे संसद म बहुमत प्रा त
नहीं था। मस
ु ोिलनी की इस पद पर िनयुिक्त राजा वारा “सरकार की िनयिु क्त के अिधकार”
के तहत की गयी थी, वह 1923 के अंत तक बहुमत के बगैर शासन का संचालन कर सकता
था। इस अिधकार के साथ इटली म तानाशाही व िनरं कुश सरकार की यव था थािपत हुई।
संसद ने सरकार को अिधक असीिमत शिक्तयाँ प्रदान करने के प्र ताव को वीकार कर
लोकतंत्र के िव वंस को गित प्रदान की। सरकार के वारा चुनाव यव था म बदलाव कर
संसद को भंग करवा िदया गया और अप्रैल 1924 म संसद के चुनाव कराएँ गए। इस चुनाव
मे फ़ािस ट पाटीर् को अिधक मत प्रा त हुए और संसद म दो ितहाई सीट प्रा त हुई
पिरणाम व प मस ु ोिलनी को अब िवधाियका और प्रशासन दोन पर संपूण र् िनयंत्रण प्रा त हो
गया था। चुनाव के प चात ् िवपक्षी दल के नेता की ह या करवा दी गई िजससे अ य िवपक्षी
दल के सद य म भय का वातावरण फैल गया और धीरे -धीरे तानाशाही मस
ु ोिलनी ने
सरकार िवरोिधय को समा त कर िदया। फल व प इटली के सम त पद अब फासीवािदय
िनयंत्रण म थे। मस
ु ोिलनी ने संपण
ू र् शिक्तयाँ अपने हाथ म ले ली, प्रेस को प्रितबंिधत पर
िदया और वयं को इटली का अिधनायक घोिषत पर िदया।
151
फ़ासीवाद के उदय के कारण
वसार्य संिध से उ प न िनराशा
आिथर्क असंतोष
यु ध म यापक तर पर जनधन का भारी तर पर िवनाश हुआ था। यु ध के प चात ्
िमली िनराशा के फल व प इटली की आिथर्क ि थित म िगरावट आने लगी। महँगाई अपने
चरम पर पहुँच गई। उ योग, यापार, कृिष आिद को भी बहुत हािन हुई तथा आम जीवन
पर इसका सीधा प्रभाव पड़ा। चार और बेरोजगारी फैल गई िजससे वहाँ के मजदरू व सैिनक
बेरोजगार हो गए। इटली की मद्र
ु ा म 70% की िगरावट आई। सरकार आिथर्क पिरि थितय
का हल िनकालने म असफल रही िजसके कारण जनता म सरकार के प्रित िवद्रोह का ज म
हुआ।
इटली म बढ़ता सा यवाद का प्रभाव
जनतांित्रक सरकार की असफलता
एक ओर, यु ध म हुई आिथर्क हािन, वसार्य संिध म हुए िव वघात के कारण जनता म
असंतोष या त था वहीं दस
ू री ओर दे श का आिथर्क ढाँचा अ यवि थत था। इटली की
त कालीन सरकार दे श म फैली अ यव था, अराजकता और संतोष को दरू करने के िलए कोई
152
प्रभावी कायर्वाही नहीं कर पायी थी और जनता को िव वास िदलाने म नाकामयाब रही।
पिरणाम व प वहाँ की जनता जनतंत्र म अपना िव वास खोने लगी। इन पिरि थितय म
मस
ु ोिलनी ने उ ह ि थर सरकार और संव ृ िध दे ने का िव वास िदलाया।
मस
ु ोिलनी का यिक्त व
फ़ासीवाद के उदय का एक प्रमख
ु कारण मस
ु ोिलनी का यवहारवादी यिक्त व था। वह प्रबल
रा ट्रवादी था, अपने उ दे य की प्राि त के िलए साधन पर यान किद्रत करता था सा य पर
नहीं। उसके िलए उिचत-अनुिचत नैितक-अनैितक धमर्-अधमर् जैसी चीज़े मायने नहीं रखती
थी। उसका उ बोधन अ यंत प्रभावशाली होता था जो िक लोग को बहुत अिधक प्रभािवत
करता था।
खंड-3 : नाजीवाद और फ़ासीवाद के पिरणाम
जमर्नी म नाजीवाद के उदय के नकारा मक और सकारा मक दोन तरह के पिरणाम हुए।
िहटलर के शासन काल म जमर्नी को आिथर्क संकट से राहत िमली जोिक सकारा मक
पिरणाम था। जहाँ एक ओर स पूण र् िव व ने 1930 के दशक म आिथर्क मंदी का सामना
िकया वहीं दस
ू री ओर, जमर्नी वारा आिथर्क संकट से िनपटने के िलए िकये गए प्रय न
सफल रहे । िहटलर वारा रा य म िमक और कारीगर के िलए िविभ न यवसाय आरं भ
िकए गए और उ योग क्षेत्र म बदलाव कर आिथर्क यव था को सध
ु ारने का प्रयास िकया
गया। आिथर्क ि थित म सध
ु ार के साथ साथ जमर्नी की सै य शिक्त म भी व ृ िध हुई।
वसार्य संिध वारा जमर्नी पर िविभ न सै य प्रितबंध लगे थे िजसके तहत जमर्नी की सैिनक
सेना को कम व नेवी सेना पर प्रितबंध लगा िदया गया था। ना सी पाटीर् के शासन म आने
के बाद िहटलर ने वसार्य संिध के सभी उपबंध का उ लंघन िकया और अपने सै य शिक्त
को मजबूत बनाने के िलए पुनः सै यीकरण की प्रिक्रया आरं भ की। सै यीकरण की शु आत
ने यूरोपीय दे श के बीच तनाव को पुनः उभारा और स पूण र् िव व को िवतीय िव वयु ध की
ओर धकेला। जमर्नी म नाजीवाद के उदय के नकारा मक पिरणाम भी हुए जैसे िहटलर वारा
सभी राजनीितक दल व संगठन पर प्रितबंध लगाना, यहूिदय और सा यवािदय के िव ध
नीितय का प्रसार और नरसंहार। िहटलर ने यहूिदय व सा यवािदय को प्रथम िव वयु ध की
हार का िज मेदार ठहराया था। िहटलर शासन काल के दौरान हजार सा यवािदय , यहूिदय
और ना सी िवरोधी लोग को िशिवर म भेज िदया जाता, जहाँ उ ह िविभ न प्रकार की
यातनाएँ दी गईं। सावर्जिनक कूल , बाजार , अ पताल म यहूिदय का आना बंद कर िदया
गया। सरकारी िवभाग म िनयक्
ु त सभी यहूिदय को नौकिरय से िनकाल िदया गया। जातीय
शु धीकरण के नाम पर हजार लोग को मौत के घाट उतारा गया था।
153
नाजीवाद के उदय का प्रभाव केवल जमर्नी के भीतर तक ही सीिमत नहीं रहा था। जमर्नी
के बाहर भी, िव व भर म, नाजीवाद के प्रभाव दे खने को िमले। गैथानर् के अनुसार िहटलर के
तानाशाही काल म जमर्नी का पुन थान िव व को सबसे अिधक प्रभािवत करने वाला कारक
था। िहटलर की तानाशाही ने न केवल वैि वक राजनीित को प्रभािवत िकया बि क अ य सभी
दे श की िवदे श नीितय को सीधे तौर पर प्रभािवत िकया। िहटलर की सै यीकरण और
िव तारवादी नीितय , वसार्य संिध के प्रित आक्रोश और जमर्नी को शिक्तशाली बनाने की
िज द ने जमर्नी और अ य सभी रा य को िवतीय िव वयु ध के हािशए पर ला खड़ा कर
िदया था और िव व को एक और नरसंहार दे खना पड़ा।
िन कषर्
फ़ासीवाद और नाजीवाद का उदय एक आंदोलन के प म हुआ था। एक ऐसा आंदोलन
िजसकी उ पित रा ट्रवादी भावना से प्रेिरत थी। िहटलर और मस
ु ोिलनी दोन ने ही इस
रा ट्रवादी भावना को अपने भाषण एवं कायर्कम वारा आम जनता म प्रसािरत िकया था।
िहटलर ने जमर्नी को और मस
ु ोिलनी ने इटली को पुनः िव व पटल पर महान रा ट्र बनाने
का व न दे खा था और लोग को िदखाया था, इसी उ दे य की प्राि त के िलए दोन
राजनीित म सिक्रय भी हुए और एक लोकताि त्रक मागर् वारा स ा की बागडोर हाथ म ली।
पर तु उनके हाथ म स ा के आते ही स पूण र् ि तिथ बदल गयी। रा ट्रवाद की धारणा उग्र
रा ट्रवाद म बदल गयी, दोन शासक ने शासन के तानाशाही प को अपनाया। दोन ही दे श
म लोकताि त्रक िस धांत , संरचनाओं और यव था को स पूणत
र् ः बबार्द कर िदया गया,
आम जन के मानवािधकार का हनन िकया गया। अपने अपने दे श को महान बनाने के िलए
दोन ही शासक ने सै यकरण, श त्रीकरण, क्षेत्रीय सीमाओं के िव तार और गट
ु -िनमार्ण को
154
बढ़ावा िदया। नाजीवाद और फ़ासीवाद की ये आंतिरक और बा य नीितयाँ न केवल जमर्नी
और इटली के िलए, या यूरोप िलए, बि क िव व भर के िलए घातक िस ध हुई।
स दभर्
ं हाउस प्राइवेट िलिमटे ड:
ख ना, वी. एन. (2013) अंतरार् ट्रीय संबंध. िवकास पि लिशग
नई िद ली
(https://www.britannica.com/event/Nazism) फ़ासीवाद
(https://www.britannica.com/topic/fascism ) नाजीवाद
(https://www.historians.org/about-aha-and-membership/aha-history-and-
archives/gi-roundtable-series/pamphlets/em-18-what-is-the-future-of-italy-
(1945)/the-rise-and-fall-of-fascism) फ़ासीवाद
155
इकाई-3
पिरचय
156
अपने संपूण र् आिथर्क, वैज्ञािनक और औ योिगक संसाधन और क्षमताओं का उपयोग िकया,
इसी कारण यह यु ध इितहास का सबसे यापक और तकनीकी प से उ नत यु ध िस ध
हुआ। 8 मई, 1945 को जमर्नी और अग त 15, 1945 को जापान वारा िमत्र रा ट्र के समक्ष
िबना शतर् आ मसमपर्ण के साथ यह यु ध समा त हुआ। इस यु ध ने अंतरार् ट्रीय यव था
पर थायी व गहरे छाप छोड़े और पूरी अंतरार् ट्रीय शिक्त संरचना को ही उलट िदया। जमर्नी,
िब्रटे न जैसी यूरोपीय शिक्तयाँ, वैि वक मंच पर, कम मह वपूण र् हो गईं और यह भी कह सकते
ु भिू मका खो गई। यु ध के बाद, सोिवयत संघ (USSR)
ह िक िव व राजनीित म उनकी प्रमख
और अमेिरका (USA) दो प्रित वं वी महाशिक्तय के प म उभरे और अगले 40-50 वष के
िलए, िव व पटल पर एक यु ध सी ि थित बनी रही। इस बार, वैि वक सरु क्षा और शांित
थापना के प्रयास अिधक यथाथर्वादी ि टकोण से िकये गए और िवतीय िव वयु ध की
िवरासत के प म संयुक्त रा ट्र संघ (UNO) का उदय हुआ।
हालाँिक यह यु ध पोलड पर जमर्नी के आक्रमण के साथ शु हुआ था, लेिकन िकसी भी
अ य यु ध की तरह, इस यु ध के िव फोट के िविभ न कारण थे। अ याय के अग्रिलिखत
भाग म हम इस यु ध के कारण तथा बाद म इसके पिरणाम की चचार् करगे।
157
इस एजडे को हािसल करने के िलए जमर्नी पर न केवल कठोर दं ड आरोिपत िकये गए, बि क
उसकी सै य और औपिनवेिशक शिक्त के संबंध म बड़े पैमाने पर प्रितबंध भी लगाए और
इ ही कारण के आधार पर, िविभ न िवचारक ने इस संिध को जमर्नी को अपमािनत करने
वाला कृ य कहा। इस स मेलन म जमर्न प्रितिनिधय को अपना पक्ष रखने तक का कोई
अवसर नहीं िदया गया था और इसके राजनाियक या प्रितिनिधय को कैिदय के प म रखा
व सभा म लाया गया था, यही नहीं, यहाँ तक िक जमर्नी पर "वॉर िग ट" भी आरोिपत िकया
गया और अकेले जमर्नी को यूरोपीय शांित भंग करने का एकमात्र दोषी माना गया था।
जमर्नी से बंदक
ू की नोक पर संिध पर ह ताक्षर करवाए गए। इन सभी आधार पर यह
आसानी से िन कषर् िनकाला जा सकता है िक यह संिध जमर्नी को शू य पर लाने का
"िवक्टर क्लब" (िवजयी रा ट्र का समहू) का एक प्रयास मात्र थी क्य िक केवल िमत्र रा ट्र ने
वयं ही, एकतरफा प से, प्रितबंध और दं ड को िनधार्रण िकया था। जमर्न लोग ने इस
संिध को "िडकैट" या िडक्टे ट शांित कहा और इस अपमान के ज मे गु से ने, जमर्न को
अपने पक्ष म एकजट
ु करने और स ा पर क जा करने म िहटलर को लाभाि वत िकया।
2. 1929 की महान आिथर्क मंदी
29 अक्टूबर 1929 को वॉल ट्रीट बाजार घटना ने िव व के िवकास की गित को महान
आिथर्क मंदी की ओर मोड़ िदया। यह आिथर्क मंदी कई दे श को आिथर्क अि थरता की ओर
ले जाता है । इसके कारण बेरोजगारी, आिथर्क-असरु क्षा बढ़ी और लोकतांित्रक जीवन शैली पर
प्रितकूल प्रभाव पड़ा। मंदी के कारण उभरे इस उथल-पुथल के साथ-साथ राजनीितक
अि थरता और क युिन ट िनयंत्रण के िव तार का डर भी यूरोप के दे श म उभर रहा था
और इसने जमर्नी और इटली सिहत कई यूरोपीय दे श म अिधनायकवादी और अित रा ट्रवादी
सरकार के उदय का मागर् प्रश त िकया। बेिनटो मस
ु ोिलनी (इटली म) और एडो फ िहटलर
(जमर्नी म) ने अपने-अपने दे श म ऐसी ही ि थित का लाभ उठाया और लोकतांित्रक शासन
को उखाड़ तानाशाही की थापना की। यह िन कषर् अितशयोिक्त होगा िक अकेले आिथर्क
मंदी ही इन शासन के उदय के िलए िज मेदार थी, पर तु िवतीय िव वयु ध को उभारने मे
यह एक मह व
पूण र् कारक अव य था।
3. यूरोप म अिधनायकवादी शासन का उदय
हालाँिक यूरोप म उभरी अिधनायकवादी सरकार अपने कामकाज-प्रणाली म एक-दस
ू रे से िभ न
थी, पर तु िजन मल
ू कारण से इन शासन यव थाओं का उभार हुआ, उसे ये सभी साझा
करते ह जैसे यु ध के बाद की राजनीितक उथल-पुथल, भयावह आिथर्क पिरि थितयाँ, मौजद
ू ा
राजनीितक यव था के िखलाफ असंतोष और अित-रा ट्रवाद की उभरती लहर। फ़ासीवाद और
नाज़ीवाद, सबसे प्रिस ध स ावादी शासन, का उदय भी प्रथम िव वयु ध के कारण उभरी
आिथर्क, राजनीितक और सामािजक अि थरता के कारण हुआ। बेिनटो मस
ु ोिलनी (इटली का
158
फ़ासीवादी शासक) और एडो फ िहटलर (जमर्नी का नाज़ी शासक) दोन ही लोकतांित्रक तरीके
से स ा म आए लेिकन स ा की डोर अपने हाथो म आते ही, इन दोन ने लोकतांित्रक
यव था को तानाशाही से बदल िदया तथा सै यीकरण और क्षेत्रीय िव तार को बढ़ावा िदया।
अग्रिलिखत अनुभाग म इन दोन अिधनायकवादी यव थाओं के उदय-प्रिक्रया की संिक्ष त
प से चचार् की गई—
फासीवाद का उदय
“फासीवाद” श द को बेिनटो मस
ु ोिलनी ने वयं, अपने उस राजनीितक आंदोलन को विणर्त
करने के िलए गढ़ा था, िजसके वारा उसने स ा पर क जा िकया और इटली को प्राचीन
रोमन साम्रा य जैसा शिक्तशाली रा य बनाने के वयं के व न को साकार करने का प्रयास
िकया। 'फासीवाद' श द एक रा ट्रवादी आंदोलन के उदय को दशार्ता है जोिक, िवशेष प से
इटली म, दिक्षणपंथी और अिधनायकवादी स ा के समथर्न म और लोकतांित्रक और उदारवादी
िवचारधारा के िवरोध म उभरा था। संक्षेप म, इस िवचारधारा के िन निलिखत घटक ह।
(i) अित रा ट्रवाद; (ii) वतर्मान की तुलना म अतीत की महानता पर जोर; (iii) रा ट्र की ि थित
म िगरावट के िलए न लीय अशु धता को दोष दे ना; (iv) उदार प्रणाली को िवभाजनकारी और
स ावादी को एकजट
ु करने वाले बल के प म दे खा जाना।
इटली िवजयी दे श म से एक था, पर त ु िफर भी अ य िमत्र रा ट्र की तरह संतु ट नहीं
था। प्रथम िव वयु ध म परािजत दे श से िमले मआ
ु वजे म से पयार् त िह से के िमलने की
उसे उ मीद थी, लेिकन पेिरस शांित स मेलन से उसे कुछ बहुत ख़ास प्रा त नहीं हुआ। इस
असंतोष के कारण इटली के लोग ने, आक्रोश म, इस जीत को "उ पीिड़त िवजय" की संज्ञा दी,
वहीं दस
ू री ओर, िबगड़ती आिथर्क ि थित तथा सा यवादी गितिविधय म व ृ िध के कारण यह
रोष िदन-प्रितिदन बढ़ने लगा था। इस पिर य म, इटली के लोग ने मस
ु ोिलनी के इटली को
रोमन साम्रा य जैसा शिक्तशाली बनाने के व न म अपने िव वास को िनिहत कर, उसके
आंदोलन का समथर्न िकया। बेिनटो मस
ु ोिलनी प्रथम िव वयु ध का एक िसपाही था, िजसने
1919 म अ य यु व-िदग्गज के साथ "फािस डी कॉ बेटीमटो" (फाइिटंग लीग) की थापना
की। उसने अपने समथर्क के साथ समाजवादी, क युिन ट और कमजोर सरकार की पकड़ से
इटली को मुक्त करने के िलए एक आंदोलन शु िकया। इस आंदोलन ने 1920-21, जब इटली
म गह
ृ यु ध जैसी ि थित उ प न हो गई, के दौरान तेजी पकड़ी। पिरि थित िबगड़ने के
कारण, प्रधानमंत्री िजयोव नी िगयोिल टी ने इ तीफा दे िदया और लइ
ु गी फैक्टा नए
प्रधानमंत्री बने। लइ
ु गी फैक्टा भी कानून- यव था की िवकट ि थित को िनयंित्रत करने म
सफल नहीं हुए और राजा को दे श म माशर्ल लॉ घोिषत करने की सलाह दी। प्रधानमंत्री की
सलाह के िवपरीत, राजा ने मस
ु ोिलनी को प्रधानमंत्री के पद की कमान लेने के िलए आमंित्रत
159
िकया और जैसे ही मस
ु ोिलनी ने प्रधानमंत्री पद की कमान अपने हाथ म ली, इटली म
स ावादी शासन का युग शु हो गया।
य यिप मस
ु ोिलनी 1922 म, लोकतांित्रक तरीके से स ा म आया, लेिकन ज द ही 1926
तक, उसने इटली की स पण
ू र् रा य यव था को एक अिधनायकवादी यव था म बदल िदया,
जो उदारवाद िवरोधी, समाजवादी-िवरोधी और इटली को पन
ु ः शिक्तशाली रा ट्र बनाने के िलए
िव तारवादी प्रविृ य से परू ी तरह प्रेिरत थी। मस
ु ोिलनी ने अपने सपन का साम्रा य, जो
ू य सागर से उ री और पूवीर् अफ्रीका तक और पूव र् म सीिरया और लेबनान तक फैला
भम
था, बनाने के िलए तेजी से सै यीकरण शु िकया और 1924 म िफमे, 1927 म अ बािनया
और 1935-36 म इिथयोिपया को इटली के साम्रा य सीमा म शािमल िकया। मस
ु ोिलनी के
िव तारवादी प्रयास ने यरू ोपीय शिक्त संतुलन को अि थर कर िदया और यूरोप को यु ध की
ओर धकेलने म भिू मका िनभाई।
नाज़ीवाद का उदय
नाज़ीवाद से ता पयर् उस शासन यव था से है िजसका उदय, जमर्नी म, एडॉ फ िहटलर के
नेत ृ व म "रा ट्रवादी सोशिल ट जमर्न वकर्र पाटीर्" अथवा नाज़ी पाटीर् के स ा म आने से
हुआ। वैचािरक प से, नाज़ीवाद "सामािजक डािवर्नवाद" (िस धांत जो िक योग्यतम की
उ रजीिवता अथवा “सवार्इवल ऑफ़ द िफटे ट” म िव वास करता है ) के िस धांत पर िव वास
म िनिहत था। इस िस धांत के अनस
ु ार जैिवक प से े ठतर और योग्यतम न ल, जो िक
िहटलर के अनस
ु ार जमर्न-आयर्न थे, को जैिवक प से हीन लोग के िहत को ताक पर रख
अपना साम्रा य िव तार करने का अिधकार है । िहटलर ने जमर्न इितहास के नए यग
ु की
नींव रखने का प्रयास िकया िजसम "तीसरे रीच" (एक िवशाल क्षेत्रीय जमर्न साम्रा य) को
िव व राजनीित म प्रमख
ु और िनणार्यक शिक्त बनना था। िहटलर "ग्रेटर लेबे सरम" (जमर्न
वो क/ नागिरको के िनवास का क्षेत्र) थािपत करना चाहता था और उसने जमर्न लोग को
यह िव वास िदलाया िक यु ध और सै यीकरण इस महान उ दे य की प्राि त के िलए अित
आव यक है ।
1933 के जमर्न चन
ु ाव म, रा ट्रवादी सोशिल ट जमर्न वकर्र पाटीर् ने सफलता हािसल की
और 30 जनवरी, 1933 को एडॉ फ िहटलर ने चांसलर के प म सरकार की कमान संभाली
और तीसरे रीच का युग शु हुआ। चांसलर के प म स ा म आने के बाद, िहटलर ने जमर्न
लोग और जमर्न रा य दोन पर पकड़ बनाने के िलए हर संभव साधन का उपयोग िकया
और ज द ही, जमर्न जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा, जो प्र यक्ष या अप्र यक्ष प से थडर्
रीच या नाजी िवचारधारा के िनयंत्रण म न था। िहटलर ने रा य और समाज को पूरी तरह
से बदलने का एक सफल प्रयास िकया, िजससे एक िनदर् यी तानाशाही और एकािधकािरक स ा-
यव था का उदय हुआ। नाजी शासन के उ भव के कई कारण थे, लेिकन इनम से कुछ जो
160
प्रमख
ु थे, वे ह (i) वसार्य की आरोिपत संिध िजससे जमर्न लोग को आिथर्क, राजनीितक और
सबसे मह वपूण,र् मनोवैज्ञािनक नुकसान पहुँचा; (ii) आिथर्क महामंदी और सा यवादी
गितिविधय म अचानक व ृ िध; (iii) वीमर गणरा य की िबगड़ती ि थित को सध
ु ारने म
असफलता और इसके कारण, लोकतंत्र म जमर्न लोग के िव वास का पतन; (iv) िहटलर की
बढ़ती लोकिप्रयता और वसार्य की संिध के पहलओ
ु ं को संशोिधत कर, बदला लेने की उसकी
मह वाकांक्षा।
"ग्रेटर लेबे सरम" के िनमार्ण के प्रयास म, जमर्न "वेहरमैच" (रक्षा बल) ने कई यूरोपीय
क्षेत्र पर आक्रमण कर उ ह तीसरे िरच म शािमल िकया। ये क्षेत्र या तो प्र यक्ष अथवा
अप्र यक्ष प से, नाज़ी शासन के िनयंत्रण म थे। िवतीय िव वयु ध के अंत तक, नाज़ी
शासन के िनयंत्रण म यूरोप का िवशाल क्षेत्र था जोिक, पूव र् म मोजदोक प्रा त (यूएसएसआर)
से पि चम म उशांत (फ्रांस) के वीप तक और उ र िदशा म ब र्सबगर् (नॉव) से लेकर
दिक्षण म गो डोस के वीप (ग्रीस) तक था। यूरोप के अलावा "अफ्रीका को सर्" (जमर्न
अफ्रीका वािहनी) ने उ री अफ्रीका के पि चमी रे िग तानी क्षेत्र जैसे िम , िलिडया म नाजी
शासन का िव तार करने के िलए "उ र अफ्रीकी अिभयान" शु िकया। शासन के िव तार के
िलए इस तरह की भख
ू ने जमर्न को पोलड म आक्रमण करने का लालच िदया और इसी
आक्रमण के साथ िवतीय िव वयु ध का आर भ हुआ।
4. िव तारवादी शिक्तय के प्रित तुि टकरण की नीित
िव तारवादी शिक्तय के इरादे , चाहे वे यरू ोप म नािज़य व फासीवादीय के ह या सद
ु रू -पूव र्
म जापान के ह , शु से प ट थे, लेिकन िमत्र रा ट्र ने उ ह रोकने के िलए अिधक प्रयास
नहीं िकए। िवतीय िव वयु ध से पहले ही, िव व शांित के िलए तीन मोच पर खतरा उभर
रहा था—प्रशांत महासागर म (शाओ शासक वारा); म य यूरोप म (िहटलर वारा) और
भम
ू य सागर म (मस
ु ोिलनी वारा)। एक ओर िमत्र दे श उस समय तक यु ध के िलए तैयार
नहीं थे और दस
ू री ओर, िमत्र रा ट्र वारा थािपत "कॉमन िसक्योिरटी" की नीित अलग-
थलग पड़ने लगी थी। वे इन आक्रामक शिक्तय को रोकने म सक्षम नहीं थे, इसिलए उ ह ने
इन तानाशाह के साथ बातचीत के मा यम से संघष को सल
ु झाने और शांित थािपत करने
का प्रयास िकया। तुि टकरण की नीित, जो संघषर् के शांितपूण र् समाधान के िलए चुनी गयी,
"िकसी भी कीमत पर शांित" बनाये रखने के िलए आक्रामक शिक्त के प्रित कृपालत
ु ा िदखा
शांित बनाये रखने की एक कूटनीितक नीित थी। 1930 के दशक के दौरान, िमत्र शिक्तय
(िवशेष प से िब्रटे न और फ्रांस) ने शांित की इस नीित को अपनाया, िजसने शांित थापना
की बजाए इन िव तारवादी शासक की लालसा को बढ़ाने म योगदान िदया।
सद
ु रू पूव र् क्षेत्र म, 1931 म (शोवा यग
ु के दौरान) जापान वारा मंचूिरया पर आक्रमण के
साथ, जापानी साम्रा य िव तार शु हुआ। यह अपने चरम सीमा पर उस समय पहुँचा जब
161
जापान ने चीन पर हमला कर कुख्यात नरसंहार को अंजाम िदया। सद
ु रू पूव र् की इन घटनाओं
को आधार बना िहटलर ने जमर्नी को िजनेवा िनर त्रीकरण स मेलन और लीग ऑफ नेशंस
(1933 म) से अलग कर, पुनः श त्रीकरण आरं भ िकया। जमर्नी का अनुसरण करते हुए, बाद म
मस
ु ोिलनी ने भी इटली को 1937 म लीग ऑफ नेशंस से अलग कर िलया। इस अविध के
दौरान, साम्रा य-िव तार और सै यकरण को गित िमली। इटली ने 1935 म एिबिसिनया
(इिथयोिपया) पर आक्रमण िकया और 1936 तक इसे अपने अिधकार क्षेत्र म शािमल कर
ू री तरफ जमर्नी ने राइनलड पर 1936 म, और 1938 म ऑि ट्रया पर, जमर्नी के
िलया। दस
साथ उसका एकीकरण कर "आंसलस" के िनमार्ण के िलए, आक्रमण कर िदया। " यूिनख
स मेलन" म िब्रिटश पीएम नेिवल चे बरलेन, फ्रांसीसी नेता एडुआडर् डालािडयर, इटली के
तानाशाह बेिनटो मस
ु ोिलनी और िहटलर ने मल
ु ाकात की और जमर्नी की सड
ु ट
े े नलड
(चेको लोवािकया का इलाका िजसम जमर्न का िनवास था) को अिधकार क्षेत्र म शािमल
करने की उसकी माँग पर सहमित जताई और बदले म िहटलर ने चेको लोवािकया के अ य
िह स पर आक्रमण न करने का आ वासन िदया। िव वान ने " यूिनख स मेलन" के
समझौते को 'तुि टकरण का चरमिबंद'ु कहा वहीं चे बरलेन ने दावा िकया िक उ ह ने इस
समझौते वारा "अपने समय म शांित" थािपत की है ।
5. अ य कारण—
ए) रा ट्र संघ और सामिू हक सरु क्षा की िवफलता : पेिरस शांित स मेलन म "सामिू हक
सरु क्षा" के िस धांत को ‘अंतरार् ट्रीय शांित’ और ‘रा ट्र की रा ट्रीय अखंडता’ की रक्षा
के िलए आधार वीकार िकया गया था। सामिू हक सरु क्षा के िस धांत के आधार पर
िमत्र रा ट्र ने रा ट्र संघ की नींव रखी। यह िनणर्य िलया गया था िक, िकसी भी
सद य के िखलाफ आक्रमण सभी सद य के िखलाफ आक्रमण माना जाएगा और
अ य रा य सामिू हक प से उस दे श की सहायता करगे। 1920 और 1930 की
घटनाओं के िव लेषण से यह प तः पता चलता है िक िमत्र रा ट्र की कथनी और
करनी के बीच अंतर रहा। इटली वारा अबीसीिनया (इिथयोिपया) पर आक्रमण करने
के बाद रा ट्र संघ ने पहली बार िकसी रा ट्र को आक्रमक घोिषत िकया और उस पर
प्रितबंध भी लगाए लेिकन ये प्रितबंध बहुत अिधक प्रभावी नहीं थे, वहीं दस
ू री ओर
मंचूिरया म जापान के ह तक्षेप रोकने अथवा जापान वारा आक्रमण के बाद उस पर
प्रितबंध लगाने म लीग ऑफ नेशस
ं पूणत
र् ः िवफल रहा। इन दो घटनाओं के आधार
पर यह आसानी से िन कषर् िनकाल सकता है िक सामिू हक सरु क्षा का िवचार अप्रभावी
रहा क्य िक सद य रा ट्र अंतरार् ट्रीय शांित की रक्षा करने और अंतरार् ट्रीय क्षेत्र म
ि थरता बनाए रखने म िवफल रहे ।
162
बी) िनर त्रीकरण की िवफलता : प्रथम िव वयु ध की तुलना म, िवतीय िव वयु ध
अिधक उ नत वैज्ञािनक-हिथयार के उपयोग के कारण हजार गण
ु ा यादा िवनाशकारी
रहा। प्रथम िव वयु ध के बाद, पेिरस शांित स मेलन म, रा य ने सहमित यक्त की
िक वैज्ञािनक-हिथयार मानव जाित और अंतरार् ट्रीय शांित के िलए खतरा है । आक्रामक
प्रकृित के हिथयार के उ पादन और उपयोग दोन को सीिमत करने के प्रयास म,
1932 म िजनेवा म हिथयार की मात्रा म कमी और उनके िनमार्ण की सीमा के
िनधार्रण के िलए, िव व िनर त्रीकरण स मेलन आयोिजत िकया गया था। यह
स मेलन िनर त्रीकरण के अपने उ दे य को प्रा त करने म सफल नहीं हुआ। इसके
अितिरक्त, जहाँ एक ओर, िनर त्रीकरण के िलए संयुक्त रा य अमेिरका और
यूएसएसआर सिहत दे श के सामिू हक प्रयास आम सहमित बनाने म िवफल रहे , वही
दस
ू री ओर, जमर्नी ने 1933 म िफर से श त्रीकरण शु िकया िजसने हिथयार की दौड़
को और तेज िकया।
सी) जातीय अ पसंख्यक की सम या : प्रथम िव वयु ध के बाद, कई साम्रा य अपना
अि त व खो बैठे और सीमाओं का पुनः िनधार्रण िकया गया। यूएसए के रा ट्रपित
वुडरो िव सन ने यह सझ
ु ाव िदया िक "आ मिनणर्य" का िस धांत नए रा य के
िनमार्ण आधार होना चािहए, लेिकन कई कारण से इस िस धांत को सही मायने म
लाग ू नहीं िकया गया और जातीय अ पसंख्यक की सम या अनसल
ु झी रही। उदाहरण
के िलए, चेको लोवािकया और पोलड म बड़ी संख्या म जमर्न जनसंख्या िनवास करती
थी, रोमािनया और पोलड म सी अ पसंख्यक थे, रोमािनया और यग
ू ो लािवया म
हं गेिरयन अ पसंख्यक थे और इसी तरह, इटली म लाव और जमर्न लोग प्रमुख
अ पसंख्यक थे। इन जातीय अ पसंख्यक की इ छा पड़ोसी दे श , जहाँ इन
जातीयताओं का बोलबाला था, के साथ एकजट
ु होने की थी। जातीय अ पसंख्यक की
इस सम या ने आक्रमण और िवनाश और अंततः यु ध के ज म म योगदान िदया।
डी) त कािलक कारण : "ग्रेटर लेबे सरम" की थापना के िलए 1 िसतंबर 1939 को जमर्न
"वेहरमाट" (रक्षा बल) ने पोलड पर आक्रमण िकया और उसके दो िदन के बाद,
जवाबी कायर्वाही म िब्रटे न और फ्रांस ने (जमर्नी के िखलाफ पोलड के साथ अपने
सै य गठबंधन के उ दे य को पूरा करने के िलए), जमर्नी के िव ध यु ध की घोषणा
कर दी और िवतीय िव वयु ध की शु आत हुई।
164
औपिनवेिशक शिक्तय के साम्रा य का अंत हो गया और िव व पटल पर नए वतंत्र रा ट्र
का उदय हुआ। प्रित पधीर् औपिनवेिशक शिक्तय का थान दो नई महाशिक्तय ने ले िलया,
जो यु ध की समाि त के तुरंत बाद एक-दस ू रे के प्रित वं वी बन गए और िव-ध्रुवीय िव व-
यव था उभरी। िवजयी दे श ने िव व शांित की सरु क्षा करने और उसे मजबूती प्रदान करने
के उ दे य से UNO की थापना की, जो रा ट्र संघ का एक बेहतर प्रित थापन िस ध हुआ,
और कई िनर त्रीकरण संिधयाँ की गईं। सरल श द म, यह कहा जा सकता है िक यु ध के
बाद हमारी दिु नया और इसके कामकाज, दे श के बीच संबध
ं और कई अ य चीज बदल गईं
और इन पिरवतर्न के प्रभाव को आज भी दे खा जा सकता है । इस खंड म हम दस
ू रे
िव वयु ध के मह वपूण र् पिरणाम के बारे म संक्षेप म चचार् करगे।
1. यूरोपीय शिक्तय का पतन
औ योिगक क्रांित के पूव र् से ही, यरू ोप हमेशा िव व राजनीित का कद्र बना रहा। चाहे वह
यरू ोप म साम्रा यवाद का उदय और पतन हो या राजनीितक उथल-पथ
ु ल या यरू ोपीय
अथर् यव था म पिरवतर्न, यूरोप म घिटत िकसी भी घटना ने पूरे िव व के िवकास को
प्रभािवत िकया है । यूनाइटे ड िकंगडम, फ्रांस, जमर्नी और इटली जैसे महान यूरोपीय शिक्तय
को इस य ध के कारण, िवकास के अपने अिधकांश लाभ से हाथ धोना पड़ा। यु ध प चात ्
यूरोप खंडहर म था, पूरी तरह से जीवन शिक्त का िवनाश हो गया था। यरू ोपीय शिक्तय को
अपने उपिनवेश , अपने साम्रा य और अंतरार् ट्रीय क्षेत्र म उ ह प्रा त दज से हाथ धोना पड़ा।
यु ध प चात ् जमर्नी तबाह और िवभािजत हो गया था; फ्रांस और इटली िदवािलयापन के
कगार पर थे; हालाँिक, िब्रटे न अपने साम्रा य के साथ मजबूत और िवजयी लग रहा था, लेिकन
यु ध की लागत उसे भी उठानी पड़ी थी। इस यु ध ने यरू ोप के लोग को दो प्रमख
ु सवाल
के साथ छोड़ िदया : पहला प्र न जोिक राजनीितक था, वह यह था िक यूरोपीय दे श आपसी
संघषर् और गला-काट प्रित पधार् से वयं को कैसे बचाए तािक भिव य म इस तरह का एक
और यु ध न हो; दस
ू रा सवाल जोिक आिथर्क था, वह यह था िक अथर् यव था को कैसे
पुनजीर्िवत िकया जाए?
यु ध के बाद, माशर्ल लान के तहत अमेिरका से कुछ सहायता प्रा त होने के साथ,
यूरोपीय दे श ने ज द ही अपने संसाधन को एकजट
ु कर वैि वक बाजार म अपनी आिथर्क
ि थित को पुनजीर्िवत करने की कोिशश की और ज द ही इसम सफल रहे । राजनीितक क्षेत्र
म, यूरोपीय रा य म नई राजनीितक लामबंदी शु हुई और चरमपंथी रा ट्रवादी लहर की
वापसी के साथ यूरोपीय एकता को सहानुभिू तपूवक
र् दे खा गया।
2. अमेिरकी वचर् व के युग का आर भ
अग त 1945 म, अमरीका ने िहरोिशमा और नागासाकी पर क्रमशः "िलिटल बॉय" और "फैट
मैन" नाम के दो परमाण ु बम िगराए और दोन ने हजार लोग को तरु ं त मार डाला और
165
िविकरण के कारण दिसय हज़ार लोग की बाद म भी मौत हुई। इस घटना ने दिु नया भर
म संयुक्त रा य अमेिरका के आिधप य की थापना को िचि नत िकया। िवजयी दे श म
संयुक्त रा य अमेिरका सबसे कम प्रभािवत था। यु ध प चात ् युग म, अमेिरका के पास
सबसे बड़ी नौसेना और वायु सेना थी और कुछ वष तक इसका परमाण ु शिक्त पर भी
एकािधकार रहा था। यु ध के बाद, यूएसए ने न केवल अपनी अथर् यव था के पुन धार कर
अपने बाजार का िव तार िकया, बि क कई यूरोपीय दे श और अ य दे श को अपनी-अपनी
अथर् यव था के पुन धार म भी सहायता की। इस आधार पर यह िन कषर् िनकाला जा
सकता है िक संयुक्त रा य अमेिरका न केवल सै य प से बि क अथर् यव था के आधार
पर भी महाशिक्तशाली रा य के प म उभरा। इसके अलावा, उपभोक्ता अथर् यव था म तेजी
और उ च माँग के कारण, अमेिरका का सकल रा ट्रीय उ पाद (जीडीपी), जोिक 1940 म 200
िबिलयन $ थी, से बढ़कर 1950 म, 300 िबिलयन $ हो गई। महान अथर् यव था, सबसे
शिक्तशाली सेना, परमाणु शिक्त और िविभ न कारक के कारण संयुक्त रा य अमेिरका के
आिधप य का उदय हुआ।
3. शीत यु ध का उदय
शीत यु ध का स ब ध, सामा य प से, िव व इितहास की उस कालाविध से है िजस दौरान
िव व की दो महाशिक्तय , यूएसए और यूएसएसआर, के बीच कई दशक तक तनावपूण र्
स ब ध बने रहे थे। शीत यु ध को “दे श के बीच तनाव की उस ि थित के प म पिरभािषत
िकया जा सकता है िजसम प्र येक पक्ष वयं को मजबूत करने वाली नीितय को अपनाता है
और वा तिवक यु ध की स भावना को कम करने का प्रयास करते है ”। दस
ू रे िव वयु ध के
दौरान, अमेिरका और सोिवयत संघ सहयोगी दे श थे और एक ही पक्ष से दोन यु ध म लड़े
थे, पर तु यु ध के बाद, िवशेष प से या टा और पॉ सडैम स मेलन के बाद, दोन जमर्नी
और पूवीर् यरू ोप के भिव य के िवकास के सवाल पर एक-दस
ू रे के िवरोधी बन गए। दोन
महाशिक्तय म अथर् यव था और राजनीित को कैसे प्रबंिधत िकया जाए के प्र न को लेकर
वैचािरक अंतर था। अमेिरका एक और, मक्
ु त बाजार अथर् यव था के िस धांत पर आधािरत
पँज
ू ीवादी उदारवादी लोकतांित्रक शासन का समथर्क था; वही दस
ू री ओर, सोिवयत िवकास का
मॉडल एकल पाटीर्, जो िक क युिन ट पाटीर् थी, के शासन तहत रा य िनयंित्रत और िनयोिजत
अथर् यव था के िस धांत पर आधािरत था। दोन महाशिक्तय ने अपनी-अपनी शिक्त और
प्रभु व को बढ़ाने तथा अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र का िव तार करने की कोिशश की और इसके
िलए उ ह ने गठबंधन करना भी शु कर िदया, इस क्रम म यूएसए और उसके समथर्क ने
तीन गठबंधन NATO, SEATO, CENTO का गठन िकया और दस
ू री ओर, सोिवयत संघ अपने
सहयोगी दे श के साथ िमल ‘वारसॉ पैक्ट’ की थापना की। इसी तरह दोन महाशिक्तय ने
एक-दस
ू रे के िवकास का मक
ु ाबला करने के िलए िविभ न उपाय का इ तेमाल िकया था।
166
शीत यु ध की दशक ल बी अविध के दौरान, दोन के बीच प्रित पधार् व संघषर् की ती ता म
उतार-चढ़ाव आते रहे , और िकसी-िकसी समय इस प्रित वं िवता ने ऐसी ि थित पैदा की, जैसे
िक 1962 म क्यूबा संकट या 1961 के बिलर्न संकट के दौरान (बिलर्न का िवभाजन और
बिलर्न की दीवार का िनमार्ण), जो दिु नया को एक और िव वयु ध की ओर ले जा सकती थी।
इस काल म िव व ने दोन महाशिक्तय म म य संघषर् के साथ-साथ, िनर त्रीकरण और
शांित थापना के कुछ प्रयास को भी दे खा। 1991 म सोिवयत संघ के िवघटन के साथ इस
प्रित वं िवता का अंत हो गया और संयुक्त रा य अमेिरका, नए एकध्रुवीय िव व म एकलौती
महाशिक्त के प म उभरा।
4. संयुक्त रा ट्र संघ की थापना
यु ध के बाद, पहले की ही भाँित, इस बार भी िमत्र रा ट्र ने एक अंतरार् ट्रीय संगठन थािपत
करने का प्र ताव रखा जो िव व म शांित और यव था बनाए रखने के िलए काम करे गा।
इस बार महान शिक्त ने उन सभी कमजोिरय को दरू करने की कोिशश की, िज ह ने
मस
ु ोिलनी और िहटलर जैसे आक्रामक तानाशाह पर लगाम लगाने म रा ट्रसंघ को अक्षम
बना िदया था। 1945 म, सैन फ्रांिस को म, संयुक्त रा ट्र के चाटर् र को बनाया गया और
अक्टूबर 1945 म संयुक्त रा ट्र संघ आिधकािरक तौर पर अि त व म आया। संयुक्त रा ट्र
संघ के प्रमख
ु उ दे य ह (i) “शांित बनाए रखने और यु ध का अंत”; (ii) “दिु नया भर म,
िवशेषकर अ प-िवकिसत दे श म आिथर्क, सामािजक, शैिक्षक, वैज्ञािनक और सां कृितक प्रगित
को प्रो सािहत करके संघषर् के कारण को दरू करना”; (iii) “सभी मनु य और रा ट्र के
अिधकार की रक्षा करना”। हालाँिक यूएनओ की सभी अक्षमताओं को दरू करने के प्रयास
िकया गया, िफर भी यह कई अंतरार् ट्रीय या अंतर-रा य िववाद का, िवशेषकर शीत यु ध के
दौर म, समाधान करने म असफल रहा। िफर भी, इसने संघषर् िवराम और वातार् की यव था
या शांित िमशन के मा यम से कुछ िववाद को हल करने के प्रयास िकए थे और वैि वक
शांित और यव था बनाए रखने म मह वपूण र् भिू मका िनभाई थी। इसके अलावा, UNO ने
कुछ गैर-राजनैितक क्षेत्र म भी मह वपूण र् काम िकया है , जैसे िक मानव जीवन की ि थित
और उनके जीवन म सध
ु ार, शरणािथर्य की दे खभाल, मानव अिधकार की सरु क्षा, आिथर्क
िनयोजन और िव व वा य, जनसंख्या और अकाल की सम याओं से िनपटने के प्रयास
आिद क्षेत्र म प्रशंसनीय सफलता हािसल की है ।
5. िव-उपिनवेशीकरण और गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन का उदय
यूरोपीय दे श , पँज
ू ीवाद के तेजी से बढ़ने के कारण, यूरोप से बाहर अपने उ योग के िलए नए
बाजार और क चे माल के ोत की तलाश म िनकले और इस प्रिक्रया म उपिनवेशवाद का
उदय हुआ। इन उपिनवेश पर प्रभु व, यूरोपीय शिक्तय के बीच यु ध का एक कारण था।
यु ध के बाद, उपिनवेशवाद के िवघटन की प्रिक्रया शु हुई और नए रा य के प म तीसरी
167
दिु नया उभरी। िवतीय िव वयु ध के दौरान ही अफ्रीका और एिशया के उपिनवेश म, और
ऐसे ही अ य उपिनवेश म, रा ट्रवादी आंदोलन का उदय हुआ, िजसे यूरोपीय शिक्तय के
कमजोर होने और िव व तर पर िव-उपिनवेशीकरण के िलए बढ़ते समथर्न के कारण
सफलता िमली और िव-उपिनवेशीकरण की प्रिक्रया म तेजी आयी। इनम से अिधकांश नए
रा य पँूजीवाद और सा यवाद के बीच प्रित वं िवता की अविध (यािन शीत यु ध) के दौरान
उभरे । इन नए वतंत्र रा य म से कुछ सोिवयत संघ (सा यवाद) या अमेिरका (पँज
ू ीवाद) म
शािमल हो गए, और कुछ अ य, जैसे भारत, घाना, इंडोनेिशया, िम और यूगो लािवया ने
गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन शु कर िदया और दोन महाशिक्तय से गैर-गठबंधन (तट थ) बने रहे ।
6. िनर त्रीकरण और हिथयार िनयंत्रण
यु ध के बाद के यग
ु म, हिथयार के कारण हुए बड़े पैमाने पर िवनाश को म दे नजर रखते
हुए, िनर त्रीकरण और हिथयार के िनयंत्रण के प्रयास को गित िमली और यह न केवल
अंतरार् ट्रीय राजनीित के िलए, बि क रा ट्र के रा ट्रीय-नीित के िलए भी मल
ू भत
ू मु दा बन
गया। दे श के बीच एक आम सहमित उभरी िक िनर त्रीकरण की प्रिक्रया दिु नया को संघष
के शांितपूण र् समाधान की ओर ले जा सकती है । इस बार, िनर त्रीकरण के अथर् को यापक
और समावेशी ि टकोण से पिरभािषत िकया गया और यापक और समावेशी ि टकोण से
ही इस िदशा म प्रयास भी िकया गए। िनर त्रीकरण के प्रयास म न केवल हिथयार की कमी
पर, बि क िवनाशकारी हिथयार के िनमार्ण और यापार दोन को सीिमत और िनयंित्रत करने,
साथ ही िवसै यीकरण पर भी समान यान िदया गया। हालाँिक िवतीय िव वयु ध के बाद
महाशिक्तय के बीच संघषर् का एक युग भी उभरता है , लेिकन 1960 और 1970 के दशक म,
दोन महाशिक्तयाँ भी िनर त्रीकरण के प्रयास की िदशा म बढ़ते हुए LTBT (आंिशक परमाण-ु
परीक्षण-प्रितबंध संिध), SALT I और II, START I और II, जैसे समझौत पर ह ताक्षर िकए। इसके
अलावा, 1996 म संयुक्त रा ट्र महासभा ने, िजनेवा म, िनर त्रीकरण स मेलन म एक हिथयार
िनयंत्रण संिध का प्र ताव रखा और CTBT ( यापक परमाण-ु परीक्षण-प्रितबंध संिध) को
अपनाया, िजसके वारा ह ताक्षिरत सभी दे श को कही भी परमाण ु िव फोट करना प्रितबंिधत
िकया गया है । हिथयार के यापार और प्रसार को िनयंित्रत करने के िलए परमाणु
आपूितर्कतार् समह
ू (NSG), िमसाइल प्रौ योिगकी िनयंत्रण यव था (MTCR) और अंतरार् ट्रीय
परमाण ु ऊजार् एजसी (IAEA) की भी थापना की गई। ये सभी प्रयास भी हिथयार के प्रसार
को पूरी तरह से रोकने म सफल नहीं हुए, पर तु इन प्रयास ने िव व शांित और यव था के
रखरखाव म मह वपूण र् योगदान िदया है ।
7. अ य मह वपूण र् पिरणाम
अटलांिटक चाटर् र यु ध के बाद के िवकास के बारे म िमत्र रा ट्र की नीित थी।
अमेिरका (फ्रकिलन डी। जवे ट) और िब्रटे न (िवं टन चिचर्ल) के नेताओं ने इसे
168
िवकिसत िकया था और अ य सहयोगी शिक्त ने बाद म इस पर अपनी सहमित दी
थी। चाटर् र ने आठ प्रमख
ु ल य को बताया िज ह ने बाद म कई अंतरार् ट्रीय समझौत
पर ह ताक्षर करने और संगठन की थापना के िलए प्रेिरत िकया; साथ ही इन
िस धांत ने यु ध के बाद के िव व- यव था को आकार िदया।
यु ध के दौरान, ब्रेटन वु स म, यु ध के बाद की आिथर्क यव था के िनधार्रण के
िलए एक स मेलन आयोिजत िकया गया था। इस स मेलन म, अंतरार् ट्रीय मद्र
ु ा कोष
(IMF) और इंटरनेशनल बक फॉर िरकं ट्रक्शन एंड डेवलपमट (IBRD), वतर्मान म िव व
बक समह
ू का िह सा, की थापना नई आिथर्क िव व यव था के िनमार्ण के िलए की
गई थी, िजसम अमेिरकी डॉलर अंतरार् ट्रीय लेन-दे न और यापार की एक सामा य
मद्र
ु ा होगी।
गैर-लोकतांित्रक शासन ने िव व को दो िव व यु ध की ओर धकेल िदया था, इस
वजह से, िवतीय िव वयु ध के बाद, लोकतंत्र की एक लहर पैदा हुई और अिधकांश
नए वतंत्र रा य ने लोकतंत्र को शासन के मा यम के प म चुना।
िवतीय िव वयु ध का अंत होते-होते स पूण र् िव व परमाण ु हिथयार की िवनाशकारी
क्षमता दे ख चुका था। यु ध के बाद के युग म, ये परमाण ु हिथयार रा य की शिक्त
का मह वपूण र् पहल ू बन गए और परमाण ु कूटनीित के युग का उदय हुआ, िजसम
रा य ने अपने राजनियक उ दे य की पूितर् के िलए परमाण ु हिथयार की कूटनीित
का उपयोग िकया।
िन कषर्
169
करने, संयुक्त रा ट्र संघ की थापना, जैसे प्रयास िकए गए थे। UNO, िजसने लीग ऑफ नेशंस
की जगह ली, को वैि वक शांित और यव था बनाए रखने के प्रमख
ु उ दे य के साथ यु ध
की राख पर थािपत िकया गया। यु ध के दौरान ही, अंतरार् ट्रीय मद्र
ु ा कोष (IMF) और
इंटरनेशनल बक फॉर िरकं ट्रक्शन एंड डेवलपमट (IBRD) की थापना, नई आिथर्क िव व
यव था, जो उदारवाद, पँज
ू ीवाद और मक्
ु त-खुली िव व अथर् यव था के िस धांत पर आधािरत
होगी, के िनमार्ण के िलए की गई। शांित और यव था सिु नि चत करने के िलए और िव व
को अिधक एकीकृत, अ यो याि त और िवकिसत बनाने के िलए यु ध के बाद का हर प्रयास,
िव वयु ध की पुनराविृ को रोकने म काफी हद तक सफल रहा है ।
स दभर् सच
ू ी
बेयलीस, जे, ि मथ, एस एंड ओवे स पी. (2011) द ग्लोबलाइज़ेशन ऑफ व डर्
पॉिलिटक्स; एन इंट्रोडक्शन टू इंटरनेशनल िरलेश स, ऑक्सफोडर् यूिनविसर्टी प्रेस;
िद ली
फािदया, बी. एल., और फािदया, के. (2019) अंतरार् ट्रीय संबंध। सािह य भवन प्रकाशन;
आगरा
ं हाउस प्राइवेट िलिमटे ड;
ख ना, वी. एन. (2013) अंतरार् ट्रीय संबंध. िवकास पि लिशग
नई िद ली
नॉमर्न, एल. (2013) मा टे िरंग मॉडनर् व डर् िह ट्री. पालग्रेव मैकिमलन; लंदन
(https://www.britannica.com/event/World-War-II ) िवतीय िव वयु ध
170
इकाई-3
पाठ-5 : शीत यु ध
डॉ. ि मता अग्रवाल / नारायण रॉय
पिरचय
शीत यु ध एक यु ध जैसी ि थित थी पर तु यह िकसी वा तिवक सश त्र टकराव रिहत
यु ध था। जैसे जैसे िवतीय िव वयु ध अपने अंत की ओर बढ़ रहा था, िमत्र रा ट्र के बीच
अिव वास और ई यार् भी बढ़ रही थी और यु ध प चात ्, िव व ने यु धकालीन दो सहयोगी
दे श-अमेिरका और सोिवयत संघ-के बीच दशक लंबी प्रित वं िवता दे खी। शीत यु ध श द को
राजनीित श दकोश म “दे श के बीच तनाव की उस ि थित के प म पिरभािषत िकया गया
है िजसम प्र येक पक्ष वयं को मजबूत करने वाली नीितय को अपनाता है और वा तिवक
यु ध की स भावना को कम करने का प्रयास करते ह” (अरोड़ा और चंद्र: 1997, 182)। कई
िव वान के अनुसार, यह यु ध प्रमख
ु तः पँज
ू ीवाद और सा यवाद की असंगित के कारण उभरा
एक वैचािरक टकराव था, िजसके कारण पूवीर् गट
ु (सोिवयत संघ और उसके सहयोगी) और
पि चमी गट
ु (संयुक्त रा य अमेिरका और उसके सहयोगी) के बीच प्र यक्ष यु ध सीिमत रहे ।
शीत यु ध के यग
ु म हिथयार का उपयोग सीिमत था और इसके बजाय दोन प्रित वं िवय
ने एक-दस
ू रे के प्रभाव को रोकने के तरीके के प म प्रचार प्रसार का इ तेमाल िकया। 1947
म कोलंिबया के टे ट हाउस म, अपने एक भाषण म अमेिरकी रा ट्रपित के सलाहकार, बनर्बडर्
बा च म पहली बार ‘शीत यु ध’ श द का इ तेमाल िकया गया था, जब उ ह ने कहा था िक
“हम धोके म न रखा जाये, हम आज एक शीत यु ध के बीच म ह” (िब्रटािनका
इनसाइक्लोपीिडया, 1998)। िवतीय िव वयु ध के दौरान घिटत घटनाओं के कारण ही दोन
महाशिक्तय के बीच यह आपसी अिव वास और ई यार् का दौर उभरा था। इनम से प्रथम
घटना थी, अमेिरका और िब्रटे न वारा जानबूझकर जमर्न सैिनक के िखलाफ दस
ू रा मोचार्
खोलने म दे री, िजस कारण सोिवयत संघ को जान-माल का बहुत नुकसान उठाना पड़ा। इस
घटना ने सोिवयत नेताओं के मन म पि चमी शिक्तय के प्रित अिव वास के बीज बो िदए।
यह अिव वास अमरीका वारा जापान पर परमाण ु बम के हमले के बाद और भी गहरा गया
क्य िक अमेिरका ने सोिवयत संघ से अपने मैनह टन प्रोजेक्ट (परमाण ु हिथयार को
िवकिसत करने के िलए यूएसए का शोध प्रोजेक्ट) को गु त रखा था। शीत यु ध के आर भ
के बाद, दोन पक्ष के नेत ृ व म पिरवतर्न के साथ-साथ शीत यु ध की प्रकृित म भी पिरवतर्न
हुआ। उदाहरण के िलए, टािलन के शासनकाल तक प्रित वं िवता ती थी, लेिकन जब
सोिवयत कमान िनिकता ख्रु चेव को स प दी गयी दोन महाशिक्तय के म य दे तांत का
171
आर भ हुआ। सोिवयत संघ के िवघटन के साथ शीत यु ध समा त हो गया और एकध्रुवीय
िव व का उदय हुआ िजसम अमेिरका एकमात्र महाशिक्त बनकर उभरा।
शीत यु ध के उदय के कारण
लािदमीर लेिनन के नेत ृ व म बो शेिवक क्रांित ने सी साम्रा य से जाऱ के शासन को
समा त कर क युिन ट पाटीर् के अधीन, सोिवयत संघ की थापना का मागर् प्रश त िकया।
िवतीय िव वयु ध के अंत तक, सोिवयत संघ िव व की सबसे बड़ी थायी सेना और दस
ू री
सबसे बड़ी अथर् यव था के साथ महाशिक्त के प म उभरा, जोिक पि चम, िवशेष प से
अमेिरका के िलए िचंता का िवषय बना। सा यवादी शासन की थापना के समय से ही,
पि चमी पँज
ू ीवादी दे श इसके िवरोधी रहे और सा यवादी शासन के प्रसार को िनयंित्रत करना
चाहते थे। एक ओर, जब सोिवयत संघ ने लीग ऑफ़ नेशंस की सरु क्षा प्रणाली के तहत सभी
दे श को एक साझा मंच पर ला शांित बनाने की कोिशश की और पि चमी शिक्तय को
जमर्नी के प्रित तिु टकरण की उनकी नीित के िखलाफ चेतावनी दी थी, तब पि चमी शिक्तय
ने इस पर यादा यान नहीं िदया था। वहीं दस
ू री ओर, उ ह ने क युिन ट शािसत सोिवयत
संघ को मा यता भी नहीं दी। 1924 म िब्रटे न और बाद म, 1933 म अमेिरका ने सोिवयत संघ
को मा यता दी। हालाँिक सोिवयत संघ और पि चमी दे श के बीच एक वैचािरक संघषर् प्रार भ
से ही था, लेिकन इस संघषर् की जड़ िवतीय िव वयु ध म भी दे खी जा सकती ह। दो
महाशिक्तय के बीच प्रित वं िवता संबंध को ज म दे ने वाले कुछ प्रमुख कारण िन निलिखत
थे—
1. सोिवयत संघ पर जमर्न हमला और दस
ू रे मोच का प्र न
दस
ू रे िव वयु ध के दौरान सोिवयत संघ “िमत्र रा ट्र ” के गट
ु म शािमल था। “ऑपरे शन
बारब्रोसा” के तहत, सोिवयत संघ के पि चमी क्षेत्र को जीतने के िलए, नाजी जमर्न सेना ने
22 जन
ू 1941 को सोिवयत संघ पर हमला िकया। इस आक्रमण से जन-धन की बहुत हािन
हुई। उस समय सोिवयत संघ ने िमत्र रा ट्र से अनुरोध िकया िक वे जमर्नी पर दस ू रे मोच से
हमला कर, लेिकन िब्रटे न और अमेिरका, दोन के नेता सोिवयत संघ के इस अनुरोध को
अनसन
ु ा करते रहे । टािलन और सोिवयत संघ की क युिन ट पाटीर् के अ य प्रमख
ु नेताओं
ने यह मान िलया िक सहायता प्रदान करने म जानबूझकर दे री की गई थी, तािक जमर्न सेना
सोिवयत संघ को नुकसान पहुँचा सके। इस तरह, पि चमी दे श की जमर्नी के िव ध
पि चमी मोचार् खोलने म हुई दे री ने पूवीर् और पि चमी गट
ु के बीच गहरा अिव वास पैदा कर
िदया।
2. यु ध प चात ् उ दे य के संबंध म िववाद
िवतीय िव वयु ध के प चात ् िव व पटल पर दो िवरोधी गट
ु उभरे : एक ओर अमेिरका और
अ य पि चमी दे श थे, जो भिव य म वैि वक आिथर्क मंदी से बचने के िलए, अमेिरकी डॉलर
172
पर आधािरत िव व अथर् यव था की थापना कर िव व अथर् यव था म ि थरता लाने के
समथर्क थे। साथ ही पि चमी ताकत यु ध प चात ् यूरोप म लोकतांित्रक शासन, जो वतंत्र
और िनयिमत चुनाव पर आधािरत हो, थािपत करना चाहती थीं। वहीं दस
ू री ओर टािलन
का मानना था िक क युिन ट शासन वा तिवक लोकतंत्र है और वह यु ध प चात ् िव व भर
म क युिन ट शासन का िव तार करना चाहता था। इसके अलावा, वह जमर्नी को िवभािजत
करने का समथर्क था तािक इसे पि चम और पव
ू ीर् यूरोप के दे श के बीच बफर जोन के प
म इ तेमाल िकया जा सके। इससे प ट होता है िक संयुक्त रा य अमेिरका और सोिवयत
संघ के बीच मतभेद इसिलए था क्य िक दोन अपने-अपने प्रभावक्षेत्र का िव तार करना चाहते
थे।
4. अ य कारण :
िव वान ने शीत यु ध को पँज
ू ीवाद और सा यवाद, इन दो िवचारधाराओं के बीच
असंगित के कारण ज मे पार पिरक शत्रत
ु ा या िवरोध के पिरणाम के प म
पिरभािषत िकया था। उदाहरण के िलए, जे स एफ बायरनेस ( मैन के प्रेसीडसी के
दौरान अमेिरकी िवदे श मंत्री) ने कहा था िक “यए
ू सए और स की िवचारधाराओं म
इतना अंतर है िक एक साथ काम करना एक सम या होगी” (लोव 1997: 122)।
िवतीय िव वयु ध के दौरान, यूएसए ने “मैनह टन प्रोजेक्ट” की अनुमित दी, िजसके
तहत अमेिरकी वैज्ञािनक वारा परमाण ु हिथयार िवकिसत िकए गए थे। यु ध म,
अमेिरका ने जापान पर इन परमाण ु बम का इ तेमाल िकया और उसके दो शहर
‘िहरोिशमा और नागासाकी’ को न ट कर िदया। बु िधजीिवय की ि ट म, अमेिरका
वारा परमाण ु शिक्त के उपयोग ने िमत्र रा ट्र के बीच िव वास को भी क्षित
पहुँचाई। अमेिरका की इस कारर् वाई से सोिवयत संघ के नेताओं का अमेिरका के प्रित
173
संदेह और भी गहराया। इसके पिरणाम व प दोन महाशिक्तय के बीच हिथयार की
होड़ म तेजी आई और िर ते और भी अिधक िबगड़ते गए।
सोिवयत संघ वारा सरु क्षा पिरष म वीट के अिनयिमत उपयोग ने भी, इन दो गट
ु
के बीच संदेह और तनाव को ती करने म योगदान िदया। सोिवयत संघ, पि चम की
कारर् वाई के प्रित संिदग्ध था और सरु क्षा पिरष को संयुक्त रा य अमेिरका के िलए
अपनी िवदे श नीित के उ दे य को प्रा त करने के मा यम के प म दे खता था।
शीत यु ध शु करने वाली अंितम घटना सोिवयत संघ वारा पूवीर् यूरोप म अमेिरका
के िव तार को रोकने के िलए काले समद्र
ु और डे यूब के रा ते खोलने से मना कर
दे ना थी।
5 माचर् 1946 को, वे टिमं टर कॉलेज (फु टन) म पूव र् िब्रिटश पीएम िवं टन चिचर्ल ने
यूरोप के संबंध म सोिवयत संघ की नीितय की िनंदा की और घोषणा की, िक
“बाि टक क्षेत्र के टै िटन से एिड्रयािटक के ट्राए टीन तक, एक लोहे का पदार् पूरे
महा वीप से उतरा है ।” साथ ही उ ह ने कहा िक सोिवयत के आिधप य से केवल
बल की भाषा वारा ही िनपटा जा सकता है और एंग्लो-अमेिरकन एलायंस का भी
प्र ताव रखा। कई िव वान वारा चिचर्ल के भाषण को उस प्र वलन बल के प म
िचि नत िकया गया िजसने शीत यु ध की शु आत की।
शीत यु ध के चरण और राजनीित
प्रथम चरण (1946-1949)
यु ध के समय के सहयोिगय के बीच यु ध प चात ्, प्रित वं िवता की शु आत, िसफर् नेताओं
की गलत धारणा के कारण नहीं हुई थी, बि क दोन गट
ु के नेताओं ने जानबझ
ू कर एक-दस
ू रे
के शासन के िव तार का मक
ु ाबला करने की कोिशश की थी। उदाहरण के िलए, चिचर्ल का
174
‘आयरन कटन भाषण’, िजसम उ ह ने सोिवयत संघ के िव ध, शांित और ि थरता की रक्षा
के िलए, यूएसए और िब्रटे न की भिू मका पर जोर िदया। चिचर्ल ने “लोहे के पद” श द का
प्रयोग, सोिवयत संघ वारा वयं को और इसके संरेिखत रा य को पि चमी रा य के साथ
खुले संपकर् से रोकने के िलए बनाए गए राजनीितक, सै य और वैचािरक अवरोध का उ लेख
करने के िलए िकया। इसी तरह, अमेिरकी नेताओं ने महसस
ू िकया िक, अगर वे सोिवयत
शासन पर अपनी सै य और परमाण ु शिक्त पर एकािधकार के प्रभाव का उपयोग कर दबाव
डालगे, तो वह धराशायी हो जाएगा। वही दस
ू री तरफ, टािलन क यिु न ट शासन का िव तार
करना चाहते थे और इसीिलए उ ह यु धकालीन समझौते का पालन करना आव यक नहीं
लगा। या टा और पो सडैम स मेलन म यह िनणर्य िलया गया था िक पूवीर् यूरोपीय दे श को
आ मिनणर्य के िस धांत के अनु प उनके लोग वारा चुने गए लोकतांित्रक शासन के तहत
रखा जाएगा। यु ध प चात ् यूरोप के पूवीर् क्षेत्र, िवशेष प से जमर्नी और पोलड के भिव य के
प्र न ने दोन महाशिक्तय के बीच तनाव को ज म िदया और इसके साथ ही शीत यु ध का
पहला चरण शु हुआ।
िवतीय िव वयु ध के िवनाश के कारण, यूरोप के पूवीर् क्षेत्र म भ-ू राजनीितक ि थित
अि थर थी; स ने इस ि थित का फायदा उठा पोलड म क युिन ट सरकार की थापना की।
इसके बाद, सोिवयत संघ ने बु गािरया, मािनया, हं गरी और यूगो लािवया जैसे अ य पूवीर्
यूरोपीय दे श म क युिन ट शासन का िव तार िकया। इसके िलए आम तौर पर भ्रामक
रणनीितय (जैसे िक नेताओं की ह या) और कभी-कभी बल का भी उपयोग िकया गया।
ु ाबला करने के िलए, अमेिरका के रा ट्र-प्रमख
सा यवाद के िव तार का मक ु ने दोन उपाय ,
प्र यक्ष सै य सहायता (माचर् 1947 के मैन िस धांत के अनस
ु ार) और आिथर्क सहायता (जन
ू
1947 के माशर्ल लान के अनस
ु ार) का प्रयोग िकया था। दोन नीितय का ल य सा यवाद के
िव तार का मक
ु ाबला करना था। मैन िस धांत के अनस
ु ार, अमेिरका ने उन दे श को हिथयार
या सै य सहायता प्रदान की, जो संयक्
ु त रा य अमेिरका समिथर्त शासन की थापना के
उ दे य से िवदे शी शासन से वतंत्र होने का प्रयास कर रहे थे। माशर्ल लान के अनस
ु ार,
अमेिरका ने पि चमी यरू ोपीय दे श को अपना पन
ु धार करने के िलए िव ीय सहायता प्रदान
की, जो यु ध से सबसे अिधक प्रभािवत थे और गरीबी, बेरोजगारी, बहुत कम िवकास दर और
अि थरता की सम या के कारण जजर्र ि थित म थे। सोिवयत संघ ने अमेिरका की इन दोन
योजना के जवाब म और अपने सहयोिगय को सरु क्षा प्रदान करने के िलए, “मो टोवो योजना”
की घोषणा की। इस योजना का उ दे य पूवीर् यूरोप म उन दे श को पुनिनर्मार्ण के िलए
सहायता प्रदान करना था जो राजनीितक और आिथर्क प से सोिवयत संघ से जड़
ु े थे। इसके
अितिरक्त सभी क युिन ट पािटर् य को एक-साथ एक छाते के तहत लाने के िलए
“कॉिमनफॉमर्” की थापना की। सा यवादी शासन का और िव तार करने के िलए, सोिवयत
175
संघ ने चेको लोवािकया म ह तक्षेप िकया और 1948 म इसे क युिन ट शासन के तहत लाने
म सफल रहा।
इस चरण के दौरान, तनाव तब गहरा गया जब 1948 म पि चमी गट
ु ने अपने अधीन
क्षेत्र को एक कर ट्राईज़ोिनया (िजसे बाद म ‘जमर्न संघीय गणरा य’ का नाम िदया गया) की
थापना की। सोिवयत संघ ने भी अपने अधीन के जमर्न क्षेत्र को एक कर ‘जमर्न
लोकतांित्रक गणरा य’ म पिरवितर्त कर िदया। ट्राईज़ोिनया म नई मद्र
ु ा की शु आत के साथ
दोन गट
ु के बीच तनाव और बढ़ गया। इसके जवाब म सोिवयत पक्ष ने ‘बिलर्न नाकाबंदी’
लगाकर पि चमी गट
ु के िलए रे लवे, सड़क, और नहर की पहुँच को अव ध कर िदया और
पूवीर् जमर्नी तक पहुँचने से रोक िदया। बिलर्न की नाकेबंदी के पिरणाम व प ‘बिलर्न
एयरिल ट’ हुआ, िजसके तहत पि चमी दे श वारा एयर क्रूज से पि चम जमर्नी के लोग को
आव यक सामग्री आपूितर् कराई गई थी। इसी दौरान, अमेिरका वारा चीन की क युिन ट
सरकार की बजाय ‘फॉम सा’ सरकार का समथर्न करना और नाटो (उ र अटलांिटक संिध
संगठन) के गठन ने दोन महाशिक्तय के बीच प्रित वं िवता को और गहरा िदया।
िवतीय चरण (1949-1953)
इस चरण म, अमेिरका ने क यिु न ट शासन के प्रसार का मक
ु ाबला करने के िलए अपनी
आिथर्क और सै य सहायता जारी रखी। इसी िदशा म, उ र और दिक्षण कोिरया के बीच चल
रहे सश त्र टकराव के दौरान, अमेिरका ने पहली बार यूजीलड और ऑ ट्रे िलया के साथ 1
िसतंबर 1951 को एक सुरक्षा संिध, अ जस
ु (ANZUS) पर ह ताक्षर िकए और बाद म, 8 िसतंबर
1951 को जापान के साथ भी शांित संिध पर ह ताक्षर िकए। हालाँिक दोन गट
ु के बीच
प्रित वं िवता जारी थी, िफर भी तनाव को शांत करने के िलए, मा को स मेलन को जारी
रखने जैसे कुछ प्रयास, इस चरण म िकए गए थे। मा को स मेलन म, सोिवयत संघ,
अमेिरका और िब्रटे न ने सद
ु रू पव
ू र् क्षेत्र, िवशेषकर कोिरया म, ि थरता लाने का समझौता िकया
था लेिकन ये सभी प्रयास यथर् रहे । 1950 म, कोिरयाई संकट का मामला संयक्
ु त रा ट्र संघ
के पास भेजा गया था, लेिकन िकसी भी समझौता तक पहुँचने से पहले ही, क यिु न ट शािसत
उ र कोिरया ने दिक्षण कोिरया पर हमला कर िदया। इस दौरान सोिवयत संघ सरु क्षा पिरष
की बैठक म मौजद
ू नहीं था और इसी कारण, अमेिरका संयुक्त रा ट्र संघ के सद य के बीच
आम सहमित बनाने म सफल रहा और संयुक्त रा ट्र संघ ने उ र कोिरया को शांित का
उ लंघन करने का दोषी घोिषत िकया। संयुक्त रा ट्र संघ ने दिक्षण कोिरया को सै य
सहायता भेजी और इसी के साथ वैचािरक प्रित वं िवता सश त्र टकराव म बदल गई। संयुक्त
रा ट्र के अ य सद य के साथ संयक्
ु त रा य अमेिरका दिक्षण कोिरया का समथर्न कर रहा
था, जबिक सोिवयत संघ और चीन क युिन ट शािसत उ र कोिरया का समथर्न कर रहे थे।
लगभग चार साल बाद, अनुकूल राजनीितक ि थित के कारण, उ र कोिरया और दिक्षण
176
कोिरया ने 1953 म शांित संिध पर ह ताक्षर िकए और यु ध समा त हो गया। कोिरयाई
यु ध ने महाशिक्तय के बीच आपसी अिव वास और प्रित वं िवता को गहराया िजससे एक-
दस
ू रे के प्रभाव को कम करने के प्रयास म तेजी आई। सोिवयत प्रभाव का मक
ु ाबला करने के
िलए अमेिरका ने सा यवाद के िखलाफ प्रचार म लाख डॉलर खचर् करने शु कर िदए। दस
ू री
ओर, सोिवयत संघ ने परमाण ु बम का सफल परीक्षण िकया, िजससे वह अमेिरका के साथ
बराबरी के प्रयास म सफल रहा। इस चरण म िव व ने एक ऐसा शिक्त-संघषर् दे खा, िजसम
एक ओर, तनाव को कम करने के िलए कुछ प्रयास िकए गए, वही दस
ू री ओर दोन गट
ु एक-
दस
ू रे के प्रभाव को कम करने के िलए हर संभव अवसर का लाभ उठा रहे थे।
तत
ृ ीय चरण (1953-1957)
इस चरण म दोन ओर नेत ृ व पिरवतर्न हुआ और िव व को उ मीद थी िक इससे आपसी
तनाव म कमी हो सकती है । 1953 म, टािलन की म ृ यु के बाद, िजनकी नीितयाँ शीत यु ध
का प्रमख
ु कारण थीं, सोिवयत कमान अिधकार रा ट्रपित िनिकता ख्रु चेव के हाथ म आई, जो
शांितपूण र् सह-अि त व के समथर्क थे और समझौत की नीित म िव वास करते थे। दस
ू री
तरफ, यूएसए म, रा ट्रपित है री एस मैन का कायर्काल समा त हो गया और आइजनहावर
अमेिरका के नए रा ट्रपित बने। आइजनहावर की अ यक्षता के दौरान भी, यूएसए ने सोिवयत
संघ के िखलाफ अपने सै य और आिथर्क प्रयास को जारी रखा। सोिवयत संघ को घेरने और
भारत-प्रशांत महासागर क्षेत्र म सा यवादी प्रभाव को कम करने के उ दे य से, संयुक्त रा य
अमेिरका और उसके सहयोिगय ने अपने समथर्क एिशयाई दे श जैसे पािक तान, िफलीपींस,
थाईलड के साथ एक बहुपक्षीय रक्षा संिध पर ह ताक्षर कर 8 िसतंबर 1954 को SEATO
(दिक्षण पव
ू र् एिशया संिध संगठन) का गठन िकया। इसी तरह, 1955 म, अमेिरका म य पव
ू र्
दे श के साथ म य पव
ू र् रक्षा संगठन (MEDO) का गठन िकया। इस चरण म, अमेिरका ने 43
दे श को सै य सहायता प्रदान कर और सोिवयत संघ के आसपास तीन हजार से अिधक
सै य िठकान की थापना करके सा यवादी िव तार को सीिमत करने म एक हद तक सफल
प्रा त की थी। इसके जवाब म, सोिवयत संघ ने 1955 म 12 दे श के साथ एक सामिू हक रक्षा
संिध कर, एक सामिू हक रक्षा तंत्र बनाने के उ दे य से, “वारसा संिध संगठन” (औपचािरक तौर
पर “िमत्रता, सहयोग और पार पिरक सहायता की संिध”) का गठन िकया। दोन महाशिक्तय
के बीच आपसी टकराव पुनः िवयतनामी यु ध (1955 म शु हुआ) और 1956 म हं गरी म
सोिवयत संघ के ह तक्षेप के दौरान उभरा। हं गरी को क युिन ट शासन से मक्
ु त करने का
पि चमी प्रयास िवफल हो गया। यह ि थित, अमेिरका वारा “आइजनहावर िस धांत”, िजसके
अनुसार कोई भी म य पूव र् दे श अमेिरका से आिथर्क या सै य सहायता का अनुरोध कर
सकता है अगर उसे सश त्र आक्रामकता का खतरा महसस
ू होता है , की घोषणा के साथ और
िबगड़ गई। हाइड्रोजन बम के परीक्षण के साथ हिथयार की होड़ एक नए तर पर पहुँच गई।
177
इस चरण म िविभ न कारण से ऐसा प्रतीत हुआ था िक दोन ही गट
ु के बीच यु ध
अपिरहायर् है , लेिकन दोन महाशिक्तय ने संयम बनाए रखा, उदाहरणतः वेज संकट (1956)
का मु दा िजसम दोन दे श ने अपने संबंिधत सहयोिगय की मदद न करने के िलए सहमत
हुए।
चतुथ र् चरण (1957-1962)
1962 से शु हुए शीत यु ध के पाँचव चरण म, िव व ने दो महाशिक्तय के बीच सह-
अि त व के िलए टकराव और प्रयास की घटनाओं को दे खा है । िसतंबर 1959 म, सोिवयत
संघ की क युिन ट पाटीर् के समकालीन महासिचव और सोिवयत संघ के प्रमख
ु िनिकता
ख्रु चेव ने आिधकािरक तौर पर संयुक्त रा य अमेिरका का दौरा िकया। िकसी भी सोिवयत
नेता की पहली अमेिरकी यात्रा, बु िधजीिवय वारा प्रित वं वी महाशिक्तय के बीच स भाव
और शांित के प्रतीक के प म िदखाई गई थी। हालाँिक इस यात्रा के दौरान कोई औपचािरक
समझौता नहीं हुआ, पर तु इसकी वजह से दोन महाशिक्तय के नेताओं के बीच एक
यिक्तगत संबंध िवकिसत हुआ, िजसने तनाव को शांत करने म योगदान िदया और संयुक्त
रा य अमेिरका और सोिवयत संघ के बीच दे तांत की िव व को उ मीद हुई। यह आशा लंबे
समय तक नहीं रही और सहयोग की जगह पर िव व भयानक और खतरनाक टकराव का
साक्षी बना, िजसे क्यूबा िमसाइल संकट के प म जाना जाता है । U-2 जासस
ू ी-िवमान और
बिलर्न संकट की घटना की वजह से तनाव और संघषर् पुनः शु हो गया। 1 मई, 1960 को
U-2 नामक एक अमेिरकी जासस
ू ी-िवमान को USSR ने अपने संप्रभ ु क्षेत्र म जासस
ू ी करते हुए
पकड़ा। अमेिरकी रा ट्रपित आइजनहावर ने सोिवयत संघ के आरोप की पुि ट की और यह
कहकर जासस
ू ी करने के कृ य को सही ठहराया िक इस तरह के कृ य यए
ू सए को सी हमले
से बचाए रखने के िलए मह वपण
ू र् ह क्य िक उसने ‘आयरन कटर् न’ (चिचर्ल वारा अपने
फु टन भाषण म प्रयक्
ु त श द) के पीछे अपनी गितिविधय को िछपा रखा है । साथ ही
रा ट्रपित आइजनहावर ने यह भी कहा िक अमेिरका, भिव य म, अपनी संप्रभत
ु ा को बरकरार
रखने के िलए ऐसा करना जारी रखेगा। U-2 की घटना ने शांित के प्रयास को बहुत नक
ु सान
पहुँचाया और यहाँ तक िक इसके कारण, अमेिरका-सोिवयत संघ िशखर बैठक (जोिक 16 मई
1960 को पेिरस म आयोिजत होनी थी) नहीं हुई और सफल वातार् के सभी अवसर शू य हो
गए। एक अ य घटना, िजसने शांित के प्रयास को नुकसान पहुँचाया, वह बिलर्न संकट था जो
सोिवयत संघ वारा पि चमी िमत्र रा ट्र को पव
ू ीर् जमर्नी से अपनी सेना को वापस बुलाने
और क्षेत्र को खाली करने के अ टीमेटम से शु हुआ था। 1961 म, िवयना िशखर स मेलन
म, सोिवयत प्रीिमयर िनिकता ख्रु चेव ने यह अ टीमेटम िदया और चेतावनी दी िक सोिवयत
संघ पूवीर् जमर्नी के साथ एकतरफा संिध करे गा तािक उस क्षेत्र को सोिवयत संघ के पूण र्
िनयंत्रण म लाया जा सके। इसी समय, पि चम से पूवीर् जमर्नी म प्रवास बहुत अिधक था।
178
जब पि चमी शिक्तय वारा इस मु दे को हल करने के िलए कोई गंभीर आ वासन नहीं
िदया गया, तब 1961 म सोिवयत संघ को मजबूरन बिलर्न की दीवार बनवानी पड़ी। इस चरण
म क्यूबा िमसाइल संकट के प म शांित के िलए एक और बड़ा खतरा उभरा, िजसने शीत
यु ध के तनाव को और बढ़ा िदया। िफदे ल का त्रो के नेत ृ व म क्यूबा म क युिन ट शासन
की थापना के साथ संकट की शु आत हुई। अमेिरका की बजाय, का त्रो ने सोिवयत संघ के
साथ संबंध िवकिसत करना शु कर िदया और सोिवयत संघ से बहुत-सी सहायता प्रा त की।
1962 म, अमेिरकी तट से िसफर् 90 मील की दरू ी पर सोिवयत संघ वारा क्यूबा म परमाण-ु
सश त्र िमसाइले तैनात की गयी। इसके जवाब म, अमेिरकी रा ट्रपित केनेडी ने अमेिरकी
जहाज को क्यूबा के चार ओर नाकाबंदी लागू करने के िलए आदे श िदया। इस घटना ने
संकट की ि थित पैदा कर दी िजससे दिु नया परमाण ु यु ध के कगार पर आ खड़ी हुई थी।
संकट के कारण, दोन पक्ष का नेत ृ व तनावपूण र् सै य और राजनीितक गितरोध म लगे हुए
थे। हालाँिक, जब दोन सरकार ने बड़े पैमाने पर िवनाश की स भावना को महसस
ू िकया, तब
बातचीत शु हुई और अमेिरका ने सोिवयत नेता िनिकता ख्रु चेव की माँग पर सहमित
यक्त की और क्यूबा की िमसाइल को हटाने के बदले, क्यूबा पर आक्रमण नहीं करने का
वादा िकया। इस तरह क्यूबा संकट के शांितपूण र् समाधान के साथ यह चरण समा त हुआ।
पाँचवाँ चरण (1962-1969)
1962 के क्यूबा िमसाइल संकट के दौरान दो प्रित वं वी महाशिक्तय , संयुक्त रा य अमेिरका
और सोिवयत संघ के बीच उ च तनाव के कारण तीसरे िव वयु ध की संभावना थी। इस
संकट ने िव व के लोग को यह महसस
ू कराया िक परमाण ु हिथयार या सामिू हक िवनाश के
हिथयार (वेपंस ऑफ मास िड ट्रक्शन) परू े मानव जाित के िलए खतरनाक है और इन
सामिू हक िवनाश के हिथयार के अप्रसार पर एक आम सहमित उभरी और इस आम सहमित
के साथ शीत यु ध का पाँचवाँ चरण शु हुआ। 1963 म, िजनेवा म, अमेिरका और सोिवयत
संघ के नेताओं के बीच घिन ठ संबंध थािपत करने के िलए, मा को और वािशगं टन के बीच
हॉट-लाइन थािपत करने का िनणर्य िलया गया। सोिवयत संघ के रा ट्रपित िनिकता ख्रु चेव
ू र् सह-अि त व के प्रमख
शांितपण ु नायक के प म उभरे । उ ह ने अपनी “अमेिरका की
स भावना यात्रा” के दौरान भी ख्रु चेव ने आइजनहावर (उस समय के अमेिरकी रा ट्रपित) के
साथ इस बारे म बात की थी। इसके अितिरक्त, संयुक्त रा ट्र महासभा म अपने संबोधन म
भी उ ह ने रा ट्र से िनर त्रीकरण और शांितपण
ू र् सह-अि त व की अपील की। इस ल य की
िदशा म बढ़ने, शांितपूण र् अि त व को संभव बनाने और महाशिक्तय के बीच तनाव को कम
करने के िलए, दोन महाशिक्तय ने इस चरण म कई समझौत पर ह ताक्षर िकए, िजनम से
“आंिशक परीक्षण प्रितबंध संिध” (िजसे एलटीबीटी भी कहा जाता है ) सबसे मह वपूण र् संिध
थी। आंिशक परीक्षण प्रितबंध संिध, िजसने आउटर पेस और अंडर वॉटर म परमाण ु हिथयार
179
के परमाणु हिथयार के परीक्षण पर प्रितबंध लगा िदया, 5 अग त, 1963 को मा को म
अमेिरका, िब्रटे न और सोिवयत संघ वारा ह ताक्षिरत की गयी। एलटीबीटी पर ह ताक्षर एक
मह वपूण र् िनणर्य था, और परमाण ु अप्रसार संिध (एनपीटी) भी परमाण ु हिथयार पर प्रितबंध
लगाने की ही िदशा म एक अितिरक्त कदम था। जैसा की संयुक्त रा ट्र संघ वारा
उि लिखत िकया गया है , “एनपीटी एक मह व
पूण र् अंतरार् ट्रीय संिध थी िजसका उ दे य
परमाण ु हिथयार और हिथयार की तकनीक के प्रसार को रोकना, परमाण ु ऊजार् के शांितपूण र्
उपयोग म सहयोग को बढ़ावा दे ना और परमाण ु िनर त्रीकरण और सामा य व पूण र्
िनर त्रीकरण के ल य को हािसल करना है ।” इन सभी सहयोगा मक प्रयास के बावजद
ू ,
जमर्नी की सम या बनी रही और बिलर्न व िवयतनाम यु ध के िवषय म भी दोन ही पक्ष
वारा कोई िनणर्य नहीं िलया गया।
छठा चरण (1969-1978)
इस चरण म िव व ने पूव र् और पि चम दोन गट
ु के बीच अिधक स भावना और सहयोग
दे खा, और इस वजह से अंतरार् ट्रीय संबंध के िव वान ने इस चरण को ‘दे तांते (िजसका अथर्
है तनाव म कमी) का चरण’ कहा। अमेिरकी-सोिवयत संबंध को बेहतर बनाने के प्रयास के
आर भ का ेय अमेिरकी रा ट्रपित जॉन िफ जगेरा ड केनेडी और सी रा ट्रपित िनिकता
ख्रु चेव को जाता है । इस प्रिक्रया को अमेिरकी रा ट्रपित िरचडर् िनक्सन और सोिवयत संघ के
अ यक्ष िलयोिनद ब्रेज़नेव ने भी आगे बढ़ाया, िज ह ने अमेिरकी-सोिवयत संबंध की िदशा को
मोड़ने और शीत यु ध के तनाव को शांत करने म मह वपण
ू र् भिू मका िनभाई थी। इस चरण
म, आंतिरक प्रित वं िवता और टकराव का थान सां कृितक आदान-प्रदान, िविभ न समझौत
और एक-दस
ू रे के रा य म नेताओं के दौरे ने िलया। दे तांत के चरण म, सहयोग का तर
समय के साथ पिरवितर्त होता रहा, और इसी कारण 1960 के दशक के प्रारं िभक वष को
िव वान ने “िनि क्रय दे तांत” और 1970 के दशक के बाद के चरण को “सिक्रय दे तांत” का
नाम िदया। वे मह वपण
ू र् समझौते और घटनाएँ िजनके आधार पर िव वान ने इस चरण को
“दे तांत का चरण” कहा है , िन निलिखत ह—
180
2. 1971 का बिलर्न समझौता : जन
ू 1948 म, पूवीर् जमर्नी के क्षेत्र म पि चमी दे श को
आवाजाही से इनकार करने का सोिवयत संघ का िनणर्य शीत यु ध का पहला प्रमख
ु
अंतरार् ट्रीय मु दा था, िजसे आिधकािरक तौर पर “बिलर्न नाकाबंदी” कहा गया था।
पि चमी िमत्र दे श ने पव
ू ीर् जमर्नी म रहने वाले लोग की सहायता के िलए एक वषर्
की अविध के िलए “बिलर्नर लु ब्रक
ु ” (यािन ‘बिलर्न एयर िब्रज’) का आयोजन िकया।
अंततः, अग त 1971 म, 18 महीने की लंबी वातार् के बाद, दोन गट
ु ने सहमित यक्त
की और अमेिरका, िब्रटे न और सोिवयत संघ ने बिलर्न म एक संिध पर ह ताक्षर
िकए, िजसके वारा सोिवयत ने पि चमी दे श को पूवीर् जमर्नी के लोग तक पहुँच की
गारं टी दी।
3. इसी िदशा म, ‘द कॉ फ्रस ऑन िसक्योिरटी एंड कोऑपरे शन इन यूरोप (CSCE)’ की
तीन चरण की बैठक बुलाई गई। “हे लिसंकी समझौते” (िजसे प्रशंसक वारा ‘शीत
यु ध का अंत’ कहा गया) पर अग त 1975 म, हे लिसंकी (िफनलड) म, CSCE के अंितम
चरण म, ह ताक्षर िकए गए। दोन महाशिक्तय ने हे लिसंकी समझौते के िस धांत
का पालन करने का संक प िलया। हे लिसंकी समझौते के अंितम अिधिनयम म कई
मु द पर िनणर्य िलया गया, जोिक िवशेष प से तीन क्षेत्र से संबंिधत थे, (i) सीमा
िववाद और शांित थापना से संबिं धत राजनीितक और सै य मु दे थे, (ii) आिथर्क
मु दे जैसे वैज्ञािनक िवकास और यापार म सहयोग, (iii) ) मानव अिधकार से
संबंिधत थे। हे लिसंकी स मेलन की तरह बेलग्रेड स मेलन (1978) ने भी दोन
शिक्तय के बीच आंतिरक प्रित वं िवता को कम करने म योगदान िदया।
ं टन के आपसी संबंध के स दभर् म दोन रा य के नेताओं वारा
4. मॉ को और वािशग
एक-दस
ू रे के क्षेत्र म यात्राएँ सबसे मह वपण
ू र् प्रगित कही जा सकती ह। मई 1972 म,
अमेिरकी रा ट्रपित िरचडर् िनक्सन 5 िदन की राजकीय यात्रा के िलए मा को गए।
इस दौरान दोन महाशिक्तय के बीच कई समझौते हुए, िजनम मह वपण
ू र् ह;
(i) एबीएम संिध : दोन पक्ष के नेत ृ व ने श त्र िनयंत्रण के मह व पर सहमित
यक्त की और एंटी-बैिलि टक िमसाइल (एबीएम) प्रणाली को सीिमत करने के
िलए एक संिध पर ह ताक्षर िकए। एंटी-बैिलि टक िमसाइल का िनमार्ण परमाण ु
हमले के िखलाफ अपने क्षेत्र की रक्षा करने के िलए िकया गया था। एंटी-
बैिलि टक िमसाइल संिध के प्रावधान के तहत दोन वयं को मात्र दो एबीएम
पिरसर तक सीिमत करने के िलए सहमत हुए, िजनम से प्र येक के पास केवल
100 एंटी-बैिलि टक िमसाइल ह गे।
(ii) SALT I : संयुक्त रा य अमेिरका और उसके सोिवयत समकक्ष दोन कुछ ेणी के
हिथयार की संख्या को सीिमत करने के िलए सहमत हुए। 26 मई 1972 को
181
SALT I पर ह ताक्षर करके, दोन ने रणनीितक बैिलि टक िमसाइल लांचर की
संख्या को वही तक सीिमत करने के िलए सहमित यक्त की, जो िक संिध पर
ह ताक्षर के समय तक थी और एबीएम प्रणाली की तैनाती के िलए प्र येक को
केवल एक साइट के अिधकार िलए सहमत हुई। इसी तरह, अह तक्षेप और
उिचत आचरण के कुछ िस धांत पर दोन पक्ष सहमत हुए और दोन ने एक-
दस
ू रे की संप्रभत
ु ा को मा यता दी।
5. 1973 म, सोिवयत संघ के अ यक्ष िलयोिनद ब्रेझनेव ने यए
ू सए का दौरा िकया। इस
िशखर स मेलन म, दोन नेताओं ने हिथयार की होड़ व शांित से संबंिधत कई
मह वपूण र् मु द पर चचार् की और कुछ मह वपूण र् समझौत पर ह ताक्षर िकए, जो
कृिष अनुसध
ं ान, सां कृितक िव तार और वैज्ञािनक िविनमय जैसे कई क्षेत्र म
सहयोग का मागर् प्रश त करते ह। दे तांत से पहले, एक ओर चीन और संयुक्त रा य
अमेिरका और दस
ू री ओर सोिवयत संघ और चीन के बीच एक नया तनाव पैदा हो
गया था। 1970 के दशक म, अमेिरकी नेत ृ व ने इस स ब ध को सध
ु ारने के प्रयास
िकए। 1971 म, अमेिरकी िवदे श सिचव हे नरी िकिसंजर की चीन की यात्रा के दौरान
‘शंघाई िवज्ञि त’ पर दोन पक्ष ने ह ताक्षर िकये। इस घटना को अमेिरका और चीन
के बीच शीत यु ध के अंत के संकेत के प म दे खा गया था।
अंितम चरण (1979-1989)
इस चरण म, शीत यु ध के तनाव को कम करने के प्रयास जारी रहे पर तु इनकी गित धीमे
पड़ने लगी थी और दोन महाशिक्तय के बीच शत्रत
ु ा पुनः शांित के प्रयास का थान लेने
लगी थी। उदाहरणतः, अमेिरकी रा ट्रपित िजमी काटर् र ने सोिवयत संघ के िव ध माहौल
बनाने के िलए सा यवादी क्षेत्र म मानवािधकार और खुली कूटनीित जैसे साधन का उपयोग
िकया। यूएस सीनेट के SALT II संिध को संशोिधत न करने के िनणर्य और रा ट्रपित काटर् र के
हवाई क्रूज िमसाइल को तैनात करने के िनणर्य ने आग म घी डालने का काम िकया।
182
िव वान का मत है िक इस चरण, िजसे नव शीत यु ध कहा गया, की उ पि के कारण
अफगान संकट तक ढूंढ़े जा सकते ह। िदसंबर 1979 म, सोिवयत संघ ने अफ़गािन तान पर
आक्रमण िकया और हािफ़ज़ु लाह अमीन (त कालीन अफगान रा ट्रपित) की ह या कर,
बाबरकमल (सोिवयत सहयोगी) को रा ट्रपित बना िदया। इस घटना के बाद पि चमी शिक्तय
ने अफगान िवद्रोही समह
ू िज ह मज
ु ािहदीन कहा जाता है (जो लोग सोिवयत सैिनक को
बाहर िनकालना चाहते थे) का समथर्न िकया। मज
ु ािहदीन और सोिवयत सैिनक के बीच
सश त्र टकराव से हजार सोिवयत सैिनक की मौत हो गई, इसिलए इस ह तक्षेप से सोिवयत
ु सान हुआ। पिरि थित इतनी िबगड़ गई िक संयुक्त रा य प्रशासन ने 1980 के
को बहुत नक
ओलंिपक खेल का बिह कार करने का फैसला िकया, जो मॉ को म आयोिजत िकए जाने थे।
इसके अलावा, रोना ड रीगन ने अपने रा ट्रपित चुनाव अिभयान म गैर-दे तांत एजडे का
इ तेमाल िकया और 1981 म रोना ड रीगन के रा ट्रपित कायर्काल की शु आत को, दे तांत के
अंत और नए शीत यु ध की शु आत माना जाता है ।
183
ह ताक्षर करने के िलए प्रेिरत िकया और दोन पक्ष रणनीितक परमाण ु हिथयार के
िनमार्ण पर रोक लगाने पर सहमत हुए।
b) टाटर् संिध : अपने िवघटन से ठीक पहले, सोिवयत संघ ने अमेिरका के साथ
िनर त्रीकरण के इितहास म सबसे बड़ी और सबसे जिटल हिथयार िनयंत्रण संिध पर
ह ताक्षर िकए। रा ट्रपित जॉजर् एच.ड य.ू बुश और िमखाइल गोबार्चेव ने 31 जल
ु ाई,
1991 को रणनीितक श त्र यूनीकरण संिध ( टाटर् ) पर ह ताक्षर िकए। इस संिध के
वारा दोन पक्ष रणनीितक आक्रामक हिथयार की संख्या को कम करने और सीिमत
करने के िलए सहमत हुए। यह भी तय िकया गया की दोन 6,000 से अिधक परमाण-ु
वारहे ड तैनात नहीं करगे और 1,600 से अिधक अंतर-महा वीपीय बैिलि टक िमसाइल
और बमवषर्क तैनात नहीं करगे। इस संिध के कारण, लगभग 80 प्रितशत सामिरक
परमाण ु हिथयार जो अि त व म थे, 2001 के अंत तक िनर त कर िदए गए।
पव
ू ीर् गट
ु और सा यवाद का पतन
सा यवाद का पतन, सोिवयत संघ के संरेिखत क्षेत्र म बढ़ती अशांित और राजनीितक
घटनाओं के अचानक पिरवतर्न की ओर संकेत करता है । यह प्रिक्रया पोलड म ट्रे ड यूिनयन
वारा आयोिजत बड़े पैमाने पर हड़ताल के साथ शु हुई, िजसका उ दे य उस समय के
मौजद
ू ा एक-दलीय क युिन ट शासन को ख म करना था। नागिरक प्रदशर्न और प्रितरोधी
अिभयान की िनरं तरता, पिरवतर्न के िलए दबाव बनाने म सफल रहे । 1989 म, सोिवयत
सरकार ने मक्
ु त चुनाव कराने की घोषणा की, जो उसी वषर् जन
ू म हुए, िजसम ट्रे ड यूिनयन
की एकजट
ु ता ने क युिन ट पाटीर् पर भारी जीत हािसल की, िजससे दे श म सा यवाद का
शांितपूण र् पतन हुआ। क युिन ट शासन के िखलाफ क्रांित की यह लहर पोलड से परे , म य
और पूवीर् यरू ोप के पूरे क्षेत्र म भी फैल गई। पोलड के सफल होने के बाद, ट्राइक, राजनीितक
अशांित, प्रदशर्न के फैलने से बु गािरया, चेको लोवािकया, पूवीर् जमर्नी, हं गरी और रोमािनया म
भी सा यवाद का पतन हुआ। पूवीर् यूरोप की इन घटनाओं की सामा य िवशेषता, रोमािनया
(जहाँ नागिरक क युिन ट शासन को िहंसक प से उखाड़ फकते ह) और पूवीर् जमर्नी (जहाँ
ि थित पूरी तरह से अलग थी) को छोड़कर, सभी जगह प्रितरोध के शांितपूण र् तरीक का
यापक उपयोग िकया गया था। पूवीर् जमर्नी म, सबसे पहले क यिु न ट नेता ने िवरोधी
आंदोलन का िनयंत्रण अपने हाथ म लेने की कोिशश की, लेिकन जनता वारा भारी प्रितरोध
के कारण सफल नहीं हुए। हं गरी-ऑि ट्रया बोडर्र पर बाड़ा हटाने और प्रितरोध की िनरं तरता
के कारण अंततः “आयरन कटर् न” म छे द हो गया िजस कारण पव
ू ीर् जमर्न सरकार की स ा
पर पकड़ कमजोर हो गई और अंततः बिलर्न की दीवार के पतन के साथ जमर्नी का पन
ु ः
एकीकरण हुआ। वषर् 1991 के अंत तक, सोिवयत संघ कई नए गणरा य म िवघिटत हो चक
ु ा
184
था और 25 िदसंबर 1991 को िमखाइल गोबार्चेव के इ तीफे के साथ, सा यवादी शासन का युग
समा त हो गया।
185
स दभर् सच
ू ी
बेयलीस, जे, ि मथ, एस एंड ओवे स पी. (2011) द ग्लोबलाइज़ेशन ऑफ व डर्
पॉिलिटक्स : एन इंट्रोडक्शन टू इंटरनेशनल िरलेश स. ऑक्सफोडर् यिू नविसर्टी प्रेस :
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(https://www.britannica.com/print/article/125110 ) शीत यु ध
186
इकाई-3
पाठ-7 : सोिवयत संघ का िवघटन और शीत यु ध का अंत
अनीता / नारायण रॉय
पिरचय
187
एक ऐसी घटना थी िजसने िव व-राजनीित को दोहरे प से प्रभािवत िकया। एक ओर स
(िजसकी सामिजक और आिथर्क यव था सा यवादी शासन से पूव र् पूरी तरह जजर्र अव था
म थी) का महाशिक्त के प म उभार, सा यवाद के प्रसार का कारण बना क्य िक बहुत से
दे श सा यवादी यव था अपनाने लगे थी िजसने पि चमी रा ट्र और सा यवादी स के म य
स ब धो को प्रित पधीर् एवं कटु बनाया। वहीं दस
ू री ओर, िवतीय िव वयु ध के दौरान हुई
तबाही ने िमत्र और धुरी दोन गट
ु के रा ट्र को बहुत गंभीर प से प्रभािवत िकया था और
यु ध के बाद अमेिरका और सोिवयत संघ ही महाशिक्त बचे थे। अमेिरका और सोिवयत संघ
िवतीय िव वयु ध के दौरान सहयोगी दे श थे, पर तु यु ध की समाि त के बाद इनके बीच
सवर्शिक्तशाली बनने की होड़ ने शीत यु ध को ज म िदया।
इस अ याय का उ दे य आपको िव व इितहास की दो पर पर स बि धत घटनाओं से
अवगत करना है जो ‘सोिवयत संघ का िवघटन’ और ‘शीत यु ध का अंत’ थे। अतः इस
अ याय म हमारा यान दो िवषय पर किद्रत होगा। एक ओर हम महाशिक्त के प
सोिवयत संघ की ि थित और उसके िवघटन के कारण एवं प्रिक्रया को समझने का प्रयास
करगे, वही दसू री ओर हम सोिवयत संघ के िवघटन से समा त हुए शीत यु ध के प्रभाव की
संक्षेप म चचार् करगे।
188
महाशिक्त के प म सोिवयत संघ
189
सोिवयत संघ के िवघटन के कारण
आंतिरक कारण
आिथर्क यव था का पतन
190
श त्र िनमार्ण व अंतिरक्ष अनुसध
ं ान म अ यिधक िनवेश
िवतीय िव वयु ध म अमेिरका के वारा परमाण ु बम के प्रयोग ने संपूण र् िव व को च का
िदया था। इसी समय को परमाण ु युग की शु आत की संज्ञा दी जाती है । 1943 म
यू.एस.एस.आर. ने भी परमाण ु प्रौ योिगकी को िवकिसत करने के प्रयास की शु आत की और
अग त 1949 के पहले परमाण ु परीक्षण म उसे सफलता भी प्रा त हुई। अमेिरका व अ य
पि चमी दे श की बराबरी करने के िलए यू.एस.एस.आर. ने अपने संसाधन का अिधकांश भाग
परमाण ु हिथयार और सै य साजो सामान िनमार्ण करने म िनवेश िकया, िजसकी शु आत
1943 म परमाण ु बम बनाने की प्रिक्रया के साथ शु हुई। अमेिरका के हाइड्रोजन बम के
िनमार्ण के 3 साल बाद नवंबर 1955 को य.ू एस.एस.आर. ने अपना पहला हाइड्रोजन बम का
परीक्षण िकया। सा यवादी सरकार वारा श त्र िनमार्ण की होड़ म अथर् यव था की अनदे खी
की गई िजससे अथर् यव था को भारी नक
ु सान हुआ और इसकी भरपाई करने म सोिवयत
संघ असफल रहा। 1949-1990 के कायर्काल म सोिवयत संघ ने 715 परीक्षण िकए िजसम
परमाण ु तोपखाने के गोले से लेकर म टीमेगाटन िमसाइल वारहे ड और कई तरह के हिथयार
शािमल थे। हिथयार िनमार्ण की अंधी होड़ के कारण सोिवयत यव था िवकास की बजाये
पतन की और उ मख
ु हुई।
गोबार्चेव की सध
ु ारवादी नीितयाँ
िजस समय तक सोिवयत संघ की स ा की कमान गोबार्चेव के हाथ म आयी, उस समय
तक सोिवयत संघ की आिथर्क व राजनैितक यव था कमजोर हो चुकी थी। गोबार्चेव 1985
म सोिवयत संघ के महासिचव बने थे। उनकी िवचारधाराओं, नीितयाँ व कायर्शैली उनके
पूवव
र् तीर् महासिचव की िवचारधाराओं, नीितओं व कायर्शैिलय के िवपरीत थी। स ा म आने
के प चात, गोबार्चेव ने सोिवयत संघ की त कालीन पिरि थितय को सध
ु ारने के िलए व
191
सोिवयत संघ म वतंत्र और लोकतांित्रक समाज की थापना के िलए िविभ न नीितय की
शु आत की। ये बदलाव और नीितयाँ अग्रिलिखत है —
ग्ला नो त- यह नीित 1980 के दशक के उ राधर् म शु की गई। ग्ला नो त एक
सी श द है िजसका शाि दक अथर् ‘खुलापन’ है । इस नीित का उ दे य सोिवयत स
के सरकारी सं थान म एवं उनकी िक्रयाकलाप म खुलेपन एवं पारदिशर्ता को बढ़ावा
दे ना था। इस नीित के वारा सोिवयत संघ के नए महासिचव सा यवादी प्रणाली का
पन
ु ः नए तरीके से यवि थत कर, पतन की ओर अग्रसर होती यव था को मजबत
ू
करना चाहते थे। इसके अितिरक्त, सरकार और सरकारी प्रिक्रया म िनिहत यापक
भ्र टाचार को कम करने तथा कद्रीय आयोग म प्रशासिनक शिक्तय के द ु पयोग को
सीिमत करने के िलए ग्ला नो त नीित का प्रार भ िकया गया था।
पेरे त्रोइका- पेरे त्रोइका एक सी श द है िजसका शाि दक अथर् ‘पन
ु िनर्मार्ण’ होता है ।
पेरे त्रोइका का उ दे य सोिवयत समाज म ऐसे सध
ु ार लाने का प्रयास करना था
िजससे सरकार के काय म नागिरक की सिक्रय भागीदारी को बढ़ावा िदया जा सके।
इसके अितिरक्त इस नीित का उ दे य सरकार की त्रिु टय को दरू करना, नागिरक
को िवचार की अिभ यिक्त की वतंत्रता प्रदान करना, तथा नागिरक को सच
ू ना एवं
जानकारी प्रा त करने के की वतंत्रता दे ना था िजससे िढ़वादी यव था व उसकी
कठोरता का अंत हो सके और सोिवयत नागिरक के आिथर्क, सामािजक, राजनीितक,
सां कृितक िवकास का मागर् प्रश त हो सके। पेरे त्रोइका की नीित के मा यम से
गोबार्चेव सोिवयत संघ को नए समाज की ओर ले जाना चाहते थे जो लोकतंत्रीकरण
और स ा के िवकद्रीकरण के िस धांत पर आधािरत हो। गोबार्चेव ने पेरे त्रोइका की
नीित के संदभर् म कहा था िक “हम पेरे त्रोइका की उसी प्रकार आव यकता है , जैसे
हवा की”।
192
सोिवयत नागिरक को काफी समय से इंतज़ार था। पूवीर् यूरोप के दे श वत त्र िनवार्चन
प्रणाली वाली बहुदलीय लोकत त्रीय राजनीितक यव था को अपनाने लगे। सोिवयत संघ के
सभी नवोिदत वत त्र रा य ने िमखाइल गोबार्चेव के उदारवादी नीितय का फायदा उठाकर
सा यवाद को न ट कर िदया। सोिवयत संघ म भी 1990 म सा यवादी पाटीर् पर प्रितब ध
लगा िदया गया। िमखाइल गोबार्चेव वारा जन भावनाओं को यापक मह व
िदया गया,
लोग के मन पि चमी दे श के प्रित सहयोग व प्रेम की भावना का ज म हुआ और दे खते
दे खते सा यवादी दे श म पि चमी दे श के प्रित अिव वास की भावना की पूरी तरह समाि त
हो गई।
मक्
ु त बाजार अथर् यव था का प्रसार
1990 म पूवीर् यूरोप के अिधकतर दे श ने लोकत त्रीय राजनीितक यव था के साथ साथ
मक्
ु त बाजार यव था को भी वीकार कर िलया। सोिवयत संघ की िबगड़ती आिथर्क दशा को
न सध
ु ार पाने के कारण आिथर्क िवकास का क युिन ट मॉडल अप्रासांिगक प्रतीत होने लगा
था। के द्रीयकृत अथर् यव था के कारण जनता की क्रय शिक्त म कमी होने लगी थी।
गोबार्चेव ने अपने उदारवादी कायर्क्रम म मक्
ु त बाजार अथर् यव था को प्रमख
ु थान िदया
था। लोग की ल बे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने के िलए गोबार्चेव ने वयं
अपनी इस नीित की घोषणा की थी। इससे सोिवयत संघ और पि चमी दे श के म य
यापािरक स ब घ बनने लगे और यापार म व ृ िध होने लगी। इन आिथर्क सध
ु ार के
कारण जी-7 दे श से भी आिथर्क सहायता प्रा त होने की स भावना म व ृ िध हुई। अमेिरका
तथा जमर्नी ने सोिवयत संघ को आिथर्क मदद दे कर जनता के मन म अपने प्रित चली आ
रही वैमन य की भावना को समा त कर िदया। जनता ने अपने सा यवादी नेताओं और
उनके आिथर्क कायर्क्रम की आलोचना शु कर दी। इससे उनकी मक्
ु त बाजार अथर् यव था
का व न परू ा हुआ और सा यवादी यव था अप्रासंिगक हो गयी। यह सब सोिवयत संघ के
पतन का कारण बना।
बा य कारण
सोिवयत संघ ने सा यवादी िवचारधारा के प्रचार के िलए और पँज
ू ीवाद के प्रसार को रोकने के
िलए, िव व के कई अ य सा यवादी दल को आिथर्क प से सहायता प्रदान की थी और
उ ह सै य उपकरण भी उपल ध कराये थे। पँज
ू ीवादी िवचारधारा के प्रसार को रोकने के िलए
िविभ न प्रकार के कायर्क्रम का अ य दे श म आयोजन िकया जाता था िजसम भारी मात्रा म
आिथर्क संसाधन का प्रयोग िकया जाता था। इन यय का यू.एस.एस.आर. की अथर् यव था
पर प्रितकूल प्रभाव पड़ा और उसकी अथर् यव था का पतन हुआ। सोिवयत-अफगान यु ध
(1979-89) ने इस स दभर् म आग म घी डालने का काम िकया। सोिवयत-अफगान यु ध
193
(1979-89) सोिवयत संघ के िवघटन का एक अ य मह वपूण र् कारण था क्य िक इसने
सोिवयत संघ के आिथर्क और सै य संसाधन को काफी क्षित पहुँचाई थी। अफगािन तान म
लगभग 90000 सोिवयत सैिनक को तैनात िकया गया था जो 1989 म, 10 वष के
प चात ् सोिवयत संघ वापस लौटे थे। अफगािन तान म सोिवयत संघ के ह तक्षेप का अनुभव
प्रितकूल रहा, यह अ यिधक महं गा व मनोबल िगराने वाला था। इसके अलावा बिलर्न की
दीवार का िगरना (1989) त कालीन समय की मख्
ु य घटना थी। िजस प्रकार बिलर्न की
दीवार िनमार्ण और जमर्नी का िवभाजन शीत यु ध के प्रारं िभक चरण की घटना थी उसी
प्रकार बिलर्न की दीवार का िगरना और जमर्नी का एकीकरण शीत यु ध की समाि त की
ु घटना िस ध हुई।
प्रमख
सोिवयत संघ के िवघटन म िमखाइल गोबार्चेव की भिू मका
शीत यु ध का अंत (1985-1991)
शीत यु ध को ‘श त्र सि जत शाि त’ के नाम से भी जाना जाता है िजसकी शु आत
िवतीय िव वयु ध के बाद संयक्
ु त रा य अमेिरका और सोिवयत स के बीच उ प न तनाव
की ि थित से हुई। िवतीय िव वयु ध के दौरान संयक्
ु त रा य अमेिरका, िब्रटे न और स ने
िमलकर जमर्नी, इटली और जापान के िव ध यु ध िकया था। िक तु यु ध की समाि त से
पूव र् ही िविभ न कारण से, जैसे जमर्नी के िव ध दस
ू रे मोच को खोलने म िब्रटे न और
अमेिरका वारा की गई दे री, अमेिरका वारा मैनहट न प्रोजेक्ट को गु त रखना आिद,
िब्रटे न-अमेिरका तथा सोिवयत संघ म ती मतभेद उ प न होने लगे। बहुत ज द ही इन
मतभेद ने पि चमी दे श और सोिवयत संघ के बीच तनाव की भयंकर ि थित उ प न कर
दी। तनाव की इसी ि थित को शीत यु ध कहा गया; अथार्त ् ऐसी अव था जब दो या दो से
अिधक दे श के बीच वातावरण उतेिजत व तनावपूण र् हो िक तु वा तिवक प से कोई यु ध
ना हो।
195
शीत यु ध के अंत के पिरणाम
िन कषर्
1
फुकुयामा, फ्रांिसस (1989)। “द ए ड ऑफ िह ट्री?”, द नेशनल इंट्रे ट (16): 3-18.
197
संदभर्-सच
ू ी
बेयलीस, जे, ि मथ, एस एंड ओवे स पी. (2011) द ग्लोबलाइज़ेशन ऑफ व डर्
पॉिलिटक्स : एन इंट्रोडक्शन टू इंटरनेशनल िरलेश स. ऑक्सफोडर् यूिनविसर्टी प्रेस :
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बुक हाइवस : िद ली
(https://www.britannica.com/print/article/125110 ) शीत यु ध
(https://www.britannica.com/event/the-collapse-of-the-Soviet-Union)
सोिवयत संघ का पतन
198
इकाई-3
शीत यु ध प चात ् एक नए चरण की शु आत होती है , जो िक शीत यु ध के दौरान की
िवध्रव
ु ीयता और शिक्त संतल
ु न के अंत के साथ शु हुई थी। यह िवध्रव
ु ीयता पँज
ू ीवादी
यव था और समाजवादी यव था के वैचािरक िवभेद का पिरणाम थी िजसने िव व को इन
दो िवचारधाराओं के अनय
ु ाियय के आधार पर, दो गट
ु म िवभािजत कर िदया था। हालाँिक
शीत यु ध के दौर म कोई प्र यक्ष यु ध नहीं लड़ा गया पर त ु तनाव और िवरोधाभास इस
तर का था िक परू ा िव वयु ध क्षेत्र के प म बदला हुआ था। सोिवयत संघ के िवघटन ने
सा यवादी िवचारधारा के अंत को िचि नत िकया, िजसे कुछ िट पणीकार ने “बहुध्रव
ु ीय
199
िवशेषताओं वाले एकध्रुवीय िव व यव था” के उदय के प म दे खा। मख्
ु यतः इस दौर को
उस युग के प म दे खा गया िजसम अमेिरकी वचर् व थािपत हुआ, लेिकन िव व राजनीित
म अ य दे श के प्रभाव को हािशए पर नहीं दे खा गया था। शीत यु ध के दौरान के वे नए
मु दे जो पूवत
र् ः गौण थे, वो अब वतर्मान युग के िलए कारर् वाई का मागर् प्रश त कर रहे थे।
ये मु दे परमाण ु प्रसार, अंतरार् ट्रीय आतंकवाद, जलवायु पिरवतर्न, पयार्वरणीय पतन, जातीय
संघषर्, सोिवयत संघ के िवघटन से उ प न बड़े पैमाने पर शरणाथीर् सम या, थानीय संघष
का उदय और शीत यु ध से पूव र् हुए यापक पैमाने पर मानव अिधकार के उ लंघन आिद
से उ प न होने वाले खतरे थे। पयर्वेक्षक के िलए मह वपण
ू र् सवाल यह था िक गट
ु िनरपेक्ष
दे श, जो अपने आकार और संख्या म पयार् त थे और िज ह ने अपने िलए एक िभ न एजडा
िनधार्िरत था, की वतर्मान िव व के संदभर् म भिू मका क्या होगी? महाशिक्तय के बीच
प्रित वं िवता के अंत के बाद, ये दे श अपनी िवकास की गित को आगे बढ़ाते हुए शीत यु ध
युग म कुछ प्रासंिगक एजड को प्रा त करना चाहते ह। इन एजड म अ य उ दे य के
अलावा, िवदे शी संबंध म वतंत्रता, सतत िवकास, पयार्वरणीय सरु क्षा, राजनीितक, आिथर्क व
सां कृितक क्षेत्र म अंतरार् ट्रीय सहयोग, यापािरक संबंध म समानता, संयुक्त रा ट्र का
लोकतंत्रीकरण और मानव अिधकार की सरु क्षा को बढ़ावा दे ने के गट
ु िनरपेक्ष के लंबे समय के
ल य, और हिथयार पर िबक्री पर िनयंत्रण और िनर त्रीकरण नीित पर यान दे ते हुए
अंतरार् ट्रीय शांित और सरु क्षा को बढ़ावा दे ना आिद शािमल थे।
अमेिरकी वचर् व
200
प्रथमत : प्रभु व का अथर् सै य क्षमता म प्रभु व से संबंिधत है । यह रा य के बीच
सै य क्षमता के संबंध और संतुलन को दशार्ता है । उस समय अमेिरकी शिक्त अपनी सै य
शिक्त के आधार पर अ यिधक े ठतर थी। अमेिरका ने पूण र् और सापेक्ष दोन ही ि थितय
म प्रभु व प्रा त िकया और सोिवयत संघ के िवघटन के बाद, अमेिरका एकमात्र वैि वक
शिक्त बन उभरा। अमेिरका की शिक्त का कोई अ य प्रितयोगी नहीं था इसिलए इसने पूण र्
शिक्त प्रा त की। अमेिरका, िबना वयं को कोई क्षित पहुँचाय, िकसी भी रा य को कभी भी
न ट कर सकता था। उस समय अमेिरका, अपने बाद के संयुक्त 12 रा य की तुलना म,
अपनी सै य क्षमता पर सबसे अिधक खचर् कर रहा था। अमेिरका ने अपने बजट का एक
बड़ा िह सा ‘अनुसध
ं ान और िवकास’ म िनवेश िकया था िजसने इसे अपनी शिक्त पन
ु :
थािपत करने की क्षमता प्रदान की। अपने हाथ म पण
ू र् शिक्तय के साथ, अमेिरका ने
सापेक्ष शिक्तयाँ भी प्रा त कीं क्य िक अ य रा य की तुलना म तकनीकी उ नित और
हिथयार पर अिधकार के मामले म गण
ु ा मक अंतर उभरा।
आिथर्क ि ट से वचर् व श द का प्रयोग अमेिरका की आिथर्क शिक्त के स दभर् म िकया
गया था। सोिवयत संघ के िवघटन के बाद, अमेिरका का आिथर्क क्षेत्र म भी प्रभु वशील
शिक्त के प म उभरने को कई िव लेषक , जैसा िक फ्रांिसस फयुतुमा ने “इितहास की बहस
के अंत के प म” घोिषत िकया। यह िन कषर् मख्
ु यतः सोिवयत संघ के पतन और पँज
ू ीवादी
िस धांत की जीत के साथ सा यवादी िस धांत के अंत के प म पेश िकया गया था। इसका
अथर् यह िनकाला गया िक अब िव व भर म पँज
ू ीवादी िस धांत का वचर् व होगा। इस बात
को यान म रखते हुए, अमेिरका ने परू े िव व म मक्
ु त बाजार अथर् यव था और
लोकतंत्रीकरण प्रिक्रया का प्रचार-प्रसार करना आर भ िकया। अमरीका वारा िव व बक और
आईएमएफ को सबसे अिधक िव पोषण (फंिडंग) िमलने के कारण, ये सं थाएँ प्रभावी प
से अमेिरका वारा िनयंित्रत की जाने लगी। अमेिरका मक्
ु त बाजार िस धांत का समथर्न
करने के िलए संलग्न शत के साथ, अिवकिसत दे श को िवकास के िलए नरम (सॉ ट) ऋण
दे कर अपनी योजना को आगे बढ़ाने लगा। इस ऋण प्रणाली को संरचना मक समायोजन
कायर्क्रम (एसएपी) का नाम िदया गया। इन कायर्क्रम वारा उन मानदं ड को थािपत िकया
जो अमेिरकी अथर् यव था के पक्षधर थे। इस प्रकार अंतरार् ट्रीय प्रणाली के कारण आिथर्क क्षेत्र
म अमेिरका का प्रभु व उ प न हुआ जो एकध्रुवीय बन गया। पिरणाम व प अमेिरका ने एक
िवशेष तरीके से वैि वक अथर् यव था को आकार दे ना शु कर िदया। इसने ब्रेटन वु स
201
प्रणाली को िव व अथर् यव था के स ब ध म प्रमख
ु बनाया जो िक िवतीय िव वयु ध के
बाद अमेिरका वारा थािपत की गयी थी। अमेिरका ने सबसे बड़ा िनवेशक होने के नाते
ब्रेटन वु स की पँज
ू ी प्रणाली के आधार पर िव व अथर् यव था की बुिनयादी संरचना थािपत
की। इस कारण शीत यु ध की समाि त के बाद पँज
ू ीवादी यव था की िवजय हुई और
अमेिरकी वचर् व थािपत हुआ।
202
कर या प्रितबंध को थोप कर अथवा “आतंकवाद के िव ध यु ध” छे ड़ने जैसे मा यम वारा
प्रसािरत िकया गया था। अमेिरका ने अपने िनजी लाभ के िलए कमजोर दे श के यवहार को
प्रभािवत करके भी अपने अिधप य की थापना की कोिशश की थी। अ याचारी दे श, जो
असमान शत पर अमेिरका के साथ यापार करने के िलए असहमत थे, के िव ध
सावर्जिनक राय बना अमेिरका ने अपने इन एजड की पूितर् की। इस सावर्जिनक राय का
िनमार्ण उन दे श म आम जनमानस के अिधकार की कमी को दशार्ते हुए िकया गया था
और इस प्रकार यह अमेिरका का कतर् य बन गया िक वह एक उ धारकतार् बन और यु ध
लड़। 1991 के बाद से, बुश प्रथम शासन के इराक यु ध म ह तक्षेप के िनणर्य के कारण
अमेिरका को भारी नुकसान हुआ था। यह यु ध इराकी जनरल स दाम हुसन
ै , िज ह ने
अमेिरका के साथ तेल का यापार नहीं िकया था, वारा सामिू हक िवनाश के हिथयार
(WMD) के िनमार्ण के नाम पर छे ड़ िदया गया था। यह आम सहमित संयुक्त रा ट्र म
िनिमर्त की गई थी और इराक पर हमला िकया गया था। वैचािरक वचर् व के प्रसार का
समापन एक पँज ू ीवादी यव था के प म हुआ, िजससे अमेिरका ने िव व को ‘आज के िलए
जीना’ और शू य-बचत करना िसखाया। 2006 म उभरी पिरि थितय के कारण अंततः
अमेिरकी जीवन के व न
का बुलबुला फूट गया और इसने सभी सपन को व त कर िदया।
अमेिरकी वचर् व को चुनौती
203
मजबूर करने म सफल रहा था। लेिकन दबाव की रणनीित लंबे समय तक काम नहीं कर
पाई और यरू ोपीय संघ ने आिथर्क क्षेत्र म अमेिरकी प्रमख
ु िहत , िवशेष प से “प्रित पधार्
नीित” (िवलय व अिधग्रहण और अमेिरकी एकािधकार शिक्त के िलए चुनौितयाँ, जैसे
माइक्रोसॉ ट के िखलाफ) का सामना करना शु कर िदया था। 2000 म यूरोपीय संघ ने
अपनी िल बन घोषणा वारा यह घोषणा की िक यूरोप 2010 तक िव व का सबसे अिधक
प्रित पधीर् आिथर्क थान बन जाएगा, िजससे भिव य म अमेिरकी वैि वक आिथर्क नेत ृ व को
चुनौती िमलेगी। िफर भी, हालाँिक यूरोपीय संघ कुछ मामल म अपनी सापेक्ष वाय ता
बढ़ाने का ल य बना रहा है , पर तु यूरोपीय संघ वारा अपनाए गए मापद ड आज भी
अमेिरकी शासन की पँज
ू ीवाद और कॉप रे ट गवनस पर आधािरत उदारीकरण की नीितय का
पालन करते ह। वा तव म यूरोपीय संघ ने अपने संघ की सद यता दे ने के िलए जो िनयम
और शत तय की ह, वे भी काफी हद तक अमेिरकी के नवउदारवाद शैली का अनुसरण करती
ह। यूरोपीय संघ की इस िवशेषता को पूवीर् सोिवयत दे श , जो पूवीर् यूरोपीय दे श से संबिं धत
है , म उसके पुनिनर्मार्ण काय म दे खा जा सकता है । हालाँिक, जो नव-उदारवादी नीितयाँ
यूरोपीय संघ अपना रहा है , वह पूरी तरह से अमेिरकी नव-उदारवादी िस धांत का अनुसरण
नहीं करती है । इस बात को इस त य से आंका जा सकता है िक यूरोपीय संघ के सद य
रा य म बनी कई सरकार समाजवादी हिरत अथर् यव था का अनुसरण करती ह। वे ऐसे
िवकास म िव वास करते ह जो पयार्वरण के िलए िचंता के साथ समतावाद को बढ़ावा दे ता
हो। यह एक मख्
ु य कारण था िक यूरोप और अमेिरका के बीच बड़े पैमाने पर ट्रांस एटलांिटक
यापार और िनवेश संबंध का लंबा इितहास होने के बावजूद, कई यूरोपीय दे श, बड़े पैमाने
पर िवनाश के हिथयार की उपि थित के झठ
ू े आधार पर इराक म अमेिरकी ह तक्षेप के
सबसे बड़े प्रित वं वी के प म उभरे ।
दस
ू री ओर कई अ य आिथर्क बाधाएँ ह िज ह ने अमेिरकी वचर् व को चन
ु ौती दी है और
इसे नीचे खींच रही है । उदाहरण के िलए, जनसंख्या, भग
ू ोल और अथर् यव था के मामले म
दिक्षण के बड़े दे श जैसे भारत, ब्राजील और चीन ने आपसी सहयोग से िब्रक्स के प म एक
प्रितकारी गट
ु थािपत िकया है , तािक वे आपस म यापार कर और अ य सामिरक मु द
पर सहयोग कर अमेिरका और यूरोपीय संघ के लाभ, िवशेष प से यापार और िनवेश के
मामल म, को कम कर सके। सरकार और अथर् यव था के संचालन के िव के िलए िवदे शी
पँज
ू ी पर भारी िनभर्रता के कारण, इस तरह का बिह करण अमेिरकी आिथर्क िहत को काफी
नुकसान पहुँचाएगा और इसके िनयम और शत को आरोिपत करने की क्षमता को कम कर
सकता है । इससे स बंिधत आँकड़े इस बात की ओर इशारा करते ह िक “2004 के म य तक
अमेिरका के 50 प्रितशत से अिधक कोषागार िवदे शी हाथ म थे। इसम बहुलतम िह सा चीनी
और जापानी कद्रीय बक का है जो बड़े पैमाने पर डॉलर का समथर्न करते ह जोिक उनके
204
अमेिरकी िनयार्त बाजार की रक्षा करता है (िजसके पिरणाम व प पूवीर् एिशयाई मद्र
ु ाओं के
सापेक्ष डॉलर का अिधमू यन लगभग 20 प्रितशत है )”। इस गंभीर ि थित के आने से, प्रमख
ु
अमेिरकी अथर्शा त्री अ यिधक अि थर वैि वक अथर् यव था के बढ़ते जोिखम , िवशेषकर
अमेिरका और जापान के बीच बढ़ते यापार असंतुलन से िचंितत ह। यह त य अमेिरकी
अथर्शाि त्रय की उस िचंता की ओर इशारा करते ह, िज ह ने दे खा िक यिद अमेिरकी वचर् व
को बनाए रखा गया या बढ़ाया गया, तो इससे यह िव व तर पर िवनाशकारी प्रभाव को
यापक बना दे गा क्य िक इससे िव व म ऋण संकट पैदा होगा, और अ य शिक्तयाँ भी
प्रभािवत ह गी जोिक अंततः िपछले दस से पंद्रह वष म बढ़े , संपि के बुलबुले के फटने म
पिरणत हो सकती है । यह घातक जाल, अमेिरकी िव ीय कंपिनय ने वयं ही तैयार िकया
था, िज ह ने िव व के लोग को आज के िलए जीवन जीने की क्षमता से परे उधार लेना
िसखाया तािक बाजार म िव प्रवाह चलता रहे । यह “मोहक अफीम” जो स ते याज के
शासन के आधार पर िव ीय एजिसय वारा प्रचिलत की गयी थी, जो कम याज दर के
कारण उपल ध थी और डॉलर के घटते मू य ने आिखरकार एक पिरि थित को ज म िदया
िजस कारण संिचत दर म बढ़ोतरी हुई और अंततः अमेिरकी चाल ू खाते के घाटे की वजह से
‘डॉलर के मू य म िवनाशकारी िगरावट’ आयी। इस िगरावट ने अमेिरकी िव ीय और मौिद्रक
शिक्त के साथ-साथ “फुल पेक्ट्रम प्रभु व” के िव पोषण करने की अमेिरकी क्षमता के समक्ष
दीघर्कािलक बाधाओं को बढ़ा िदया। वतर्मान समय म, िव व मद्र
ु ा बाजार म डॉलर के वचर् व
के िवक प, जैसे िक यूरो, युआन, येन और िरयाल को डॉलर के संकट की भरपाई के िलए
मजबूत िकया जा रहा है ।
तत
ृ ीयतः, अमेिरका ने वयं को वचर् व शिक्त बनाने के िलए अवैध हिथयार के क जे के
नाम पर इराक, अफगािन तान और अ य दे श म यु ध छे ड़ िदए थे। अमेिरका ने इस तरीके
का प्रयोग वा तिवक अथ म इन दे श को अनश
ु ािसत करने के िलए तथा उ ह अमेिरकी
शैली की नवउदारवादी नीितय को अपनाने के िलए िववश करने और िवशेषतः उनसे स ता
तेल लेने के िलए िकया था िजससे िक उससे आिथर्क शिक्त बने रहने म मदद िमली।
हालाँिक, वचर् व की भी सीमाएँ होती ह, िजसके पिरणाम व प अमेिरका इराक और
अफगािन तान दोन दे श म नवउदारवादी शैली के शासन को लाग ू करने म िवफल रहा है ।
सै य खचर् म बढ़ोतरी और बड़े पैमाने पर िवनाश, और हिथयार के क जे के नाम पर इस
अनुशासना मक रणनीित के कारण, अमेिरकी शिक्त म िगरावट आई है । अमेिरका की पतन
होती ि थित का अनुमान इन दो मामले से भी लगाया जा सकता है । जहाँ एक तरफ इराक
और अफगािन तान म अपनी यु ध पूव र् सरकार की शैली म वापस जाने के िलए इन दे श म
आंतिरक प्रितरोध हुआ। वहीं दस
ू री ओर वैि वक जनमत अमेिरका को शांितपूण र् िव व
यव था के िलए बड़े खतरे के प म दे खने लगा था जोिक अमेिरकी वाथीर् राजनीित की
205
ओर इशारा करता है , िजसने दिु नया भर म अमेिरका की पहले से ही अि थर ि थित को
गंभीर प से नुकसान पहुँचाया है । इराक म अमेिरकी स ा की अराजकता और गैर-कानूनीता
आंिशक प से बताती है िक अमेिरका भीतर और बाहर से राजनीितक िवरोध क्य बढ़ा है ।
दिु नया के सबसे महान जीिवत इितहासकार म से एक, एिरक हॉ सबोन ने कहा था िक
“अमेिरका एकतरफा बल वारा एक नया िव व यव था लाग ू करने म िवफल रहा है और
अिनवायर् प से िवफल हो जाएगा, भले ही, वतर्मान म बहुत अिधक शिक्त संबंध इसके पक्ष
म ह, और यहाँ तक िक यिद गठबंधन (अपिरहायर् अ पकािलक) भी इसका समथर्न करते ह।”
अंतरार् ट्रीय प्रणाली बहुपक्षीय रहे गी और इसका िविनयमन कई प्रमख
ु इकाइय की एक दस
ू रे
के साथ सहमित की क्षमता पर िनभर्र करे गा, भले ही इनम से कोई भी रा य सै य प्रबलता
का आनंद नहीं लेता है । “अमेिरका वारा की गई अंतरार् ट्रीय सै य कारर् वाई अ य रा य की
बातचीत के समझौते पर िनभर्र है , जोिक पहले से ही प ट है ... िबना शतर् आ मसमपर्ण के
साथ समा त होने वाले यु ध का युग िनकट भिव य म वापस नहीं आएगा” (हॉ सबॉम
एिरक, प ृ ठ 27)।
206
िव ध था। इस रणनीित ने शीत यु ध के समय म सम ृ ध लाभांश का भग
ु तान िकया
क्य िक उस समय गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन ने िवध्रव
ु ी प्रणाली म संतुलन-कतार् के प म उभरा।
शीत यु ध की समाि त के बाद कई िट पणीकार ने कहा था िक अब गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन
की म ृ यु हो गई है । यह भिव यवाणी इसिलए की गई क्य िक उ ह ने इसे िवध्रुवी प्रणाली के
अंत और अमेिरकी वचर् व के साथ एकध्रुवीय प्रणाली के उदय के प म दे खा। 1 िसतंबर
ु िनरपेक्ष आंदोलन के िवदे श मंित्रय की बैठक के बाद 22
1991 म अकरा म आयोिजत गट
पेज की घोषणा जारी की गई, िजसका शीषर्क था, “घटते संघषर् से बढ़ते सहयोग की ओर
संक्रमण म एक िव व”। इस घोषणा म गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन के नए उ दे य पर जोर िदया
गया, जो गरीबी, भख
ु मरी, कुपोषण और अिशक्षा के उ मूलन पर जोर दे कर दिु नया को एक
बेहतर जगह बनाने म मदद करना था और इस स दभर् म उ ह ने अंतररा ट्रीय समद
ु ाय से
मदद करने का आ वान भी िकया। गट
ु िनरपेक्ष दे श चाहते थे िक संयक्
ु त रा ट्र को “अिधक
लोकतांित्रक, प्रभावी और कुशल” बनाकर आगे बढ़ाया जाए। गट
ु िनरपेक्ष दे श G77 समह
ू के
साथ गठजोड़ करना चाहते थे, िजससे इसकी सद यता का ओवरलैप था तािक नए और
बेहतर आिथर्क तंत्र को अंतररा ट्रीय प्रणाली म थािपत करने पर बल िदया जा सके।
गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन ने शीत यु ध के बाद की दिु नया म उस तर तक अपनी उपयोिगता
नहीं िनभाई, पर तु वा तव म संकेत ह िक वतर्मान म आंदोलन अिधक लोकिप्रय हो रहा है
और इसके मह व को यापक प से पहचाना जा रहा है । इसका अनुमान इस बात से
लगाया जा सकता है िक कई अ य दे श गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन की सद यता लेना चाहते ह।
कई िवकिसत दे श पयर्वेक्षक का दजार् भी माँग रहे ह। हाल ही म मंगोिलया इसका सद य
बना है । जमर्नी और नीदरलड ने सत्र म भाग लेने की अनम
ु ित का अनरु ोध िकया। वतर्मान
समय म इस आंदोलन का नाम गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन से बदल ‘तीसरे िव व आंदोलन’ रखने
के संबंध म बहुत सारी चचार्एँ ह। हालाँिक यह पिरवतर्न उन दे श के एक बड़े िह से को
अलग-थलग कर दे गा िज ह ने लंबे समय से गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन की तट थता की
िवचारधारा का समथर्न िकया है और अंतरार् ट्रीय शांित चाहते ह। िजस तरह से िव व
महाशिक्तय के पतन के साथ एक बहु ध्रव
ु ीय िव व- यव था की ओर बढ़ रही है , हम
वा तव म यह दे खने की ज रत है िक क्या “तीसरी दिु नया के दे श ” की ेणी अभी भी
प्रासंिगक है या नहीं? शिक्तय के नए कद्र, िवशेष प से जापान, चीन, भारत, ब्राजील और
कई क्षेत्रीय संगठन पैदा हुए ह िजनके पास गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन की सद यता ह और जो एक
समान िव व की तलाश म अपनी आवाज उठा रहे ह।
शीत यु ध समा त हो गया है , लेिकन जैसा िक एन. कृ णन ने हम याद िदलाया,
“दिु नया म शांित को अभी भी चरमपंथ, कलह, आक्रामक रा ट्रवाद और आतंकवाद और बड़े
पैमाने पर िवनाश के हिथयार के बड़े भंडार से खतरा है ”। वह इस त य की ओर इशारा
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करते ह िक “वै वीकरण की गितशीलता ने नई सम याओं का एक पूरा सेट तैयार िकया है
िजस ओर गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन को यान दे ना चािहए” (फ्रंटलाइन, वॉ यूम 18, अंक 26. 24
नवंबर—04 िदसंबर 2011)। क्यूबा के उप िवदे श मंत्री एबेलाड मोरे नो, जो जनवरी के अंितम
स ताह म नई िद ली म गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन के िशखर स मेलन की तैयारी के िलए एक
उ च- तरीय मंित्र तरीय बैठक म भाग लेने के बाद, फ्रंटलाइन को बताया िक कुआलालंपुर
बैठक “संगठन के इितहास म सबसे मह वपूण र् गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन िशखर स मेलन म से
एक होने जा रहा है । िशखर स मेलन गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन के पुनरो धार के िलए खुद को
समिपर्त करे गा। उ ह ने कहा िक गट
ु िनरपेक्ष आंदोलन को साथर्क भिू मका िनभाने, जो हम
लगता है िक इसे अंतरार् ट्रीय मामल म िनभानी चािहए, के िलए नए प्रो साहन की
आव यकता थी।”
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नव अंतरार् ट्रीय आिथर्क यव था (NIEO)
नव अंतरार् ट्रीय आिथर्क यव था की माँग अमेिरकी वचर् व को चन
ु ौती दे ने का एक अ य
तरीका था। हालाँिक िवकासशील दे श वारा शीत यु ध के दौरान 1974 म इसकी अवधारणा
दी गई थी, यह िवकिसत और िवकासशील दे श के बीच असमान वा तिवकता को बदलने का
एक प्रयास था। बड़े पैमाने पर यह पँज
ू ीवादी यव था को अिधक मानवीय बनाने का प्रयास
था। नव अंतरार् ट्रीय आिथर्क यव था की प्रमख
ु माँग म असमानताओं को कम करने,
यापार असंतुलन को कम करने, तकनीकी उपयोग का आदान-प्रदान करने, ऊजार् की खपत
के असमान तर को बदलने िजसके कारण असमान िवकास का उदय हुआ था, आिद प्रमख
ु
थे। नव अंतरार् ट्रीय आिथर्क यव था, एक दाता और प्रा तकतार् की अवधारणा पर आधािरत
पदानुक्रिमक संबंध पर आधािरत नहीं है । न ही यह दान की अवधारणा पर आधािरत है जो
िवकिसत दे श से िवकासशील दे श वारा माँग की जा रही है । जैसे-जैसे िवकासशील दे श म
िवकास हुआ है , उ ह यह महसस
ू हुआ िक िवकासशील रा य की आिथर्क सम याओं को
केवल सहायता के मा यम से हल नहीं िकया जा सकता है । इसके िलए नई ढ़ता की
आव यकता है । यह उ र और दिक्षण के बीच पार पिरकता के िस धांत पर आधािरत होना
चािहए। नव अंतरार् ट्रीय आिथर्क यव था उ र और दिक्षण के बीच पार पिरक पार पिरकता
के आधार पर एक नया संबंध का िवकास चाहती है , जो दाता और प्रा तकतार् की अवधारणा
पर आधािरत नहीं होना चािहए, िजसम अंततः िवकिसत दे श को भी लाभ होगा। यह एक
भिव य अथवा भिव य उ मख
ु ी पिर य की थापना करना चाहता है । इसिलए जब तक
िवकासशील दे श वंिचत रहगे, दिु नया म वा तिवक और थायी शांित नहीं हो सकती। इस
प्रकार नव अंतरार् ट्रीय आिथर्क यव था अंतरार् ट्रीय शांित और सरु क्षा के िलए आव यक है ।
यह िवकासशील दे श के सवार्ंगीण िवकास पर आधािरत है और उनके यापार-लाभ के िलए
अिधक अनुकूल पिरि थितय की तलाश करता है । यह आिथर्क और तकनीकी सहयोग पर
आधािरत दिक्षण-दिक्षण सहयोग पर बल दे ता है । इसकी प्रमख
ु माँग म शािमल ह—
1. िवकासशील और िवकिसत दे श के बीच बातचीत के मा यम थािपत िकए जाए।
2. िवकासशील दे श से आने वाले िविनिमर्त व तुओ ं के िनयार्त पर टै िरफ को कम िकया
जाए।
3. िवकासशील दे श से व तओ
ु ं के िनयार्त के िलए एक एकीकृत मू य समथर्न प्रणाली
को अपनाया जाए।
4. भख
ू से िनपटने के िलए एक अंतरार् ट्रीय खा य कायर्क्रम िवकिसत िकया जाना
चािहए।
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5. िवकासशील दे श को प्रौ योिगकी ह तांतिरत करने के िलए एक तंत्र थािपत िकया
जाए तािक उनके उ पाद बाजार यव था म प्रित पधीर् बन सक। प्रौ योिगकी का यह
ह तांतरण प्र यक्ष पँूजी िनवेश से अलग था जो िवकिसत दे श से होगा।
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जहाँ िवकिसत दे श िवकासशील दे श पर अपने िनणर्य को थोप नहीं पाते ह। ऐसा िवकासशील
दे श की आपसी एकता की वजह से था, िजसके वारा उ ह ने अपनी शिक्त को प्रदिशर्त
िकया था। सहकािरता से ही यापार सम ृ ध हो सकता है क्य िक स ा की अपनी सीमाएँ ह।
िन कषर्
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को भी ज म िदया, जो िव व भर म उभरे और आम िहत को एकजुट कर स ा के अ य
कद्र का िनमार्ण िकया जो अमेिरका से आगे िनकल गए।
ग्र थ-सच
ू ी
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