You are on page 1of 198

महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 1


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

माग िनदशन सिमित


ो. िगरी वर िम ो. आनदं वधन शमा ो. अरिबदं कुमार झा
कुलपित, म.गां.अ.ं िह.ं िव., वधा ितकुलपित, म.गां.अ.ं िह.ं िव., िनदेशक, दरू िश ा िनदेशालय,
वधा म.गां.अ.ं िह.ं िव., वधा
पाठ्यचया िनमाण सिमित
ो. मनोज कुमार डॉ. िमिथलेश कुमार डॉ. िशविसंह बघेल
िनदेशक – म.गां. य.ू गु. समाज काय अ ययन अिस टट ोफे सर , म.गां. य.ू गु. समाज अिस टट ोफे सर , म.गां. य.ू गु. समाज काय
क , म.गां.अं.िह.ं िव., वधा काय अ ययन क , म.गां.अ.ं िह.ं िव., वधा अ ययन क , म.गां.अ.ं िह.ं िव., वधा
ी अमोद गजु र डॉ. शभं ू जोशी
अिस टट ोफे सर , म.गां. य.ू गु. समाज काय अिस टट ोफे सर एवं पाठ्य म सयं ोजक,
अ ययन क , म.गां.अ.ं िह.ं िव., वधा दरू िश ा िनदेशालय, म.गां.अ.ं िह.ं िव.,
वधा

संपादन मंडल
ो. मनोज कुमार डॉ. िमिथलेश कुमार डॉ. शंभू जोशी
िनदेशक – म.गां. य.ू गु. समाज काय अ ययन अिस टट ोफे सर , म.गां. य.ू गु. समाज अिस टट ोफे सर एवं पाठ्य म सयं ोजक, दरू
क , म.गां.अं.िह.ं िव., वधा काय अ ययन क , म.गां.अ.ं िह.ं िव., वधा िश ा िनदेशालय, म.गां.अ.ं िह.ं िव., वधा

इकाई लेखन
खंड -1 खंड -2 खंड -3 खंड -4
ी गजानन िनलामे इकाई 1 व 2 ी िशवाजी जोगदंड डॉ.अिमत िव वास डॉ.िशविसंह बघेल
इकाई 3 व 4 ी गजानन िनलामे

कायालयीन एवं मु ण सहयोग


ी िवनोद वै ी महे साद
सहायक कुलसिचव, द.ू िश. िनदेशालय सहायक संपादक , द.ू िश. िनदेशालय
डॉ. मेघा आचाय
ू रीडर, द.ू िश. िनदेशालय

सु ी राधा
टंकक, द.ू िश. िनदेशालय

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 2


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

अनु म
.सं. खडं का नाम पृ ठ सं या
1 खंड - 1 – परामश के मल ू तव 5
इकाई - 1 परामश : अरथ् , अवधारणा और उ े य 6-14
इकाई - 2 परामश क ि या एवं अव थाएं 15-24
इकाई - 3 परामश तकनीक और उपकरण 25-33
इकाई - 4 समाज काय म परामश अ यास 34-40
2 खंड - 2 – परामश ि या 41
इकाई - 1 यि गत परामश 42-53
इकाई - 2 यगु ल और प रवार परामश 54-63
इकाई - 3 परामश एवं थेरेपी : अतं रसबं ंध 64-75
इकाई - 4 सामािजक कायकता : एक परामशदाता के प म 76-82
3 खंड - 3 – सच ं ार के मूल त व 83
इकाई - 1 सचं ार : अथ एवं अवधारणा 84-101
इकाई - 2 सचं ार के चरण एवं ा प 102-119
इकाई - 3 संचार सै ािं तक : सं कृ ित उ पाद, पि लक फे यर एवं सहमित िनमाण 120-133
इकाई - 4 भारत म सचं ार प र य 134-152
4 खंड - 4 – सच ं ार एवं समाज काय 153
इकाई - 1 वैयि क समाज काय अ यास म सचं ार 154-166
इकाई - 2 समहू समाज काय अ यास म सचं ार 167-175
इकाई - 3 सामदु ाियक सगं ठन अ यास म सचं ार 176-185
इकाई - 4 सामािजक ि या अ यास म सचं ार 186-198

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 3


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

MSW 15 परामश एवं स ेषण: समाज काय प र े य

खंड प रचय
ि य िव ािथय ,

एमएसड यू पाठ्य म (चतथु स ) के प MSW 15 परामश एवं स ेषण : समाज काय प र े य


म आपका वागत है। इस प को चार खडं म िवभािजत िकया गया है।

पहले खंड म यह बताया गया है परामश का अथ, अवधारणा और उ े य या ह? इसके प चात इसक
ि या और अव थाओ ं का उ लेख िकया गया है। समाज काय म यु त क जाने वाली परामश तकनीक
और उपकरण को रे खािं कत करते हए समाज काय म परामश अ यास को बताया गया है।

दूसरा खंड िविभ न सामािजक प रे वश


े म परामश ि या को रे खांिकत करता है। इसम यि गत परामश,
यगु ल एवं प रवार परामश का उ लेख िकया गया है। इसके प चात थेरेपी और परामश को समझाते हए इनम
अतं र को प ट िकया गया है। परामशदाता के प म सामािजक कायकता क या भिू मका होनी चािहए, इस
पर भी काश डाला गया है।

तीसरे खडं म सच ं ार क अवधारणा को प ट िकया गया है। सव थम सचं ार का अथ एवं अवधारणा को


ततु िकया है त प चात सचं ार के चरण और िविभ न ा प का उ लेख िकया गया है। सचं ार सै ािं तक
के अतं गत िविभ न पहलओ ु ं को समझाया गया है और अतं म भारत म संचार प र य को बताया गया है।

चौथे खंड म संचार और समाज काय के अतं सबंध को प ट िकया गया है। वैयि क समाज काय, समहू
काय, सामदु ाियक संगठन और सामािजक ि या म संचार क या भिू मका होती है और िकस तरह से संचार
का उपयोग िकया जाता है, इसका उ लेख इस खडं म िकया गया है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 4


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

खंड – 1
परामश के मूल त व

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 5


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

इकाई : 01 परामश : अथ अवधारणा और उ े य


इकाई क परेखा
1.0 उ े य
1.1 तावना
1.2 परामश
1.3 परामश का अथ
1.4 प रभाषाएं
1.5 परामश क अवधारणा
1.6 परामश के मु य घटक
1.7 परामश के ल य और उ े य
1.8 परामश के े
1.9 सारांश
1.10 बोध
1.11 स दभ एवं उपयोगी थ

1.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के बाद आप -
1. परामश का अथ एवं अवधारणा को समझ सकगे।
2. परामश के ल य, उ े य को समझते हए उसके घटक के ित समझ िवकिसत कर पाएगं ।े

1.1 तावना
वतमान म िविभ न सामािजक प रवतन के कारण मानवीय जीवन शैली म काफ बदलाव आए ह। बदलते
पा रवा रक स दभ म कुछ जगह इस तरह खाली हई है िजसके कारण समाज म उन भिू मकाओ ं के िनवहन के
िलए सं थािनक संरचनाओ ं क आव यकता महससू होने लगी है। उदाहरण के िलए संयु प रवार म या
ामीण समाज म ‘सलाह-मशिवरे ’ के िलए एक जगह हआ करती थी िक तु शहरीकरण के बोझ,
आधिु नकता एवं औ ोिगक करण के चलते ये जगह धीरे -धीरे गायब होने लगी है। तभी इन जगह के िवक प
के प म सलाह-मशिवरे के िलए परामश का उ म एक यावसाियक सेवा के प म होता है।19व सदी के
तीसरे -चौथे दशक म िव भर म इसका िवकास शु हो जाता है।
िव भर म परामश ि या क बेहतरी सं थागत संरचना को बढ़ावा देने के िलए िविभ न संगठन चलाए जाने
लगे ह। इस कड़ी म ि टेन म द टिडंग क िसल फॉर द एडवासं मट ऑफ़ काउंसेिलगं (SCAC) 1971 तथा
ि िटश एसोिसएशन फॉर काउ सेिलंग (BAC) 1972 जैसे संगठन का िनमाण हआ। 2001 म BAC का
नाम बदलकर ि िटश एसोिसएशन फॉर काउ सेिलंग एंड सायकोथेरेपी रखा गया। अमे रका म 1951 म
अमे रकन सायकोलोिजकल एसोिसएशन के अतं गत काउ सेिलगं सायकोलोजी नाम से नए िडिवजन खोले

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 6


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

गए। (McLeod, 2003, p. 5) साथ ही 1952 म अमे रका परामश संबिधत शीष थ सं थाओ;ं द नेशनल
वोके शनल गाइडस एसोिसएशन (NVGA), द नेशनल एसोिसएशन ऑफ़ गाइडस एडं काउंसेलर ेनस
(NAGCT), द टूडट पस नेल एसोिसएशन फॉर टीचर एजक ु े शन (SPATE) तथा द अमे रकन कॉलेज
पस नेल एसोिसएशन ने परामश यावसाियक क आवाज बल ु ंद करने के िलए एक साथ आकर द अमे रकन
पेस नेल एडं गाइडस एसोिसएशन (APGA) क थापना क , बाद म 1983 म इसका नाम बदलकर द
अमे रकन एसोिसएशन ऑफ़ काउ सेिलंग एडं डेवलपमट (AACD) रखा गया िक तु 1 जल ु ाई 1992 म िफर
से इसका नाम बदलकर अमे रकन एसोिसएशन ऑफ़ काउ सेिलंग रखा गया जो आज भी चल रहा है।
(American Counseling Asociation : Our History, 2017) भारत म अभी भी परामश को लेकर
उतनी जाग कता नह िदखाई देती बावजदू इसके नेशनल इिं टट्यटू ऑफ मटल हे थ एडं यरू ो साइसं ,
बगलु तथा इिं डयन इिं टट्यटू ऑफ़ काउ सेिलगं जैसे सं थान परामश को ो सािहत करते िदखाई देते ह,
साथ ही 2005 म थािपत काउ सेिलंग एसोिसएशन ऑफ इिं डया एवं 1970 म थािपत इिं डयन सोसायटी
ऑफ ोफे शनल सोशल वक जैसे संगठन इसक यावसाियकता को बनाए रखने के िलए ितब है।
परामश भारत म एक उभरता हआ िवषय है। इसके ित लोग का झान शु आती समय म कम था िक तु
आज कल परामश दैनिं दन जीवन क आव यकता बन रहा है। यही कारण है िक शैि क प र े य म इसक
ओर झक ु ाव यादा देखा जाने लगा है। ऑल इिं डया इिं टट्यटू ऑफ़ मेिडकल साइसं के सव के अनसु ार चार
लाख क जनसं या पर एक मनोिचिक सक काम कर रहा है। भारत म िफलहाल 4000 मनोिचिक सक,
1000 मनोवै ािनक और 3000 सामािजक कायकता कायरत है (Prabhakar & Dubouis, 2017)।
वतमान म देश वा य े म कािमक कमी क सम या से गजु र रहा है। ऐसे म समाज काय इन
यावसाियक क कमी को अंशत: परू ी करने क िज मेदारी उठाने क मता रखता है। परामश के अंतगत ही
वतमान सम या को सल ु झाया जा सकता है इसिलए समाज काय पाठ्य म म परामश मह वपणू जगह बनाए
हए है।

1.2 परामश
आम तौर पर परामश से ता पय होता है- सलाह, मशिवरा देना। समाज म रहते हए मनु य के सामने अनेक
ऐसी सम याएं आती ह िजसका िनबटान करने के िलए उसे िकसी और (जो इसके ित अनभु व, ान या
िवशेष ता रखता हो) के सलाह क आव यकता होती है। जैस-े घर-गृह थी म िनणय लेने के िलए बजु गु से
सलाह मशिवरा िकया जाता है। लेिकन जब हम परामश क बात करते ह तो इसम एक खास अथ िनधा रत
िकया जाता है िजसम के वल अनभु व, ान और िवशेष ता ही नह बि क सम या क समझ, सम या त के
यि व आिद के आधार पर एक आचार संिहता म रहते हए यावसाियक तरीके से सम या सुलझाने के
िलए िकया गया यास ही परामश कहलाता ह। परामश को समझने के िलए हम उसके अथ और िव ान ारा
दी गई प रभाषाओ ं को समझना होगा।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 7


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

1.3 परामश का अथ
परामश श द क उ पि ओ ड च Conseil से मानी जाती है जो खदु लैिटन श द Consulere से बना है
िजसका शाि दक अथ Advice है। िहदं ी म अं ेजी श द counselling के िवक प के प म परामश श द
योग िकया जाता है।
म रयम वेब टर िड शनरी (2017) के अनसु ार counsel श द 14व शता दी म पहली बार उपयोग म लाया
गया। तथा इसके बाद counseling श द 1927 म उपयोग म लाया गया। आज कल Counselling के
पयायवाची श द के प म advise, Consult तथा treat जैसे श द का उपयोग िकया जाता है।

1.4 प रभाषाएं
म रयम वेब टर मेिडकल िड शनरी (2017) के अनसु ार “परामश एक यि को िदया जाने वाला
यावसाियक िनदशन है िजसके िलए मनोवै ािनक प ितय का उपयोग िकया जाता है िवशेषत: के स िह ी
म त य संकलन के िलए। साथ ही यि गत सा ा कार क िविभ न तकनीक एवं अिभवृि और िहत के
परी ण का उपयोग भी इसम िकया जाता है।”
थ ांग (Ruth Strang, 1956) के अनसु ार “परामश ि या एक संयु यास है। परामश ि या का
सारत व इन संबंध म है िजसम परामश ा यि , वयं को पणू त: अिभ य करने के िलए वतं ता का
अनभु व करता है तथा अपने ल य , सा य के बारे म प ीकरण व सा य ाि हेतु साम य और सम या
कट होने पर उसके समाधान हेतु यु साधन एवं िविधय के ित आ मिव ास ा करता है” (राय &
अ थाना, 2015, पृ. 326)।
ि िटश एसोिसएशन फॉर काउ सेिलंग (1984) के अनसु ार “परामश श द म यि के साथ िकए जाने वाले
ऐसे काय और संबंध िनिहत है जो शायद िवकासा मक, संकट सहायता, सायकोथेरे यिू टक, िनदशन या
सम या समाधान परक हो... परामश काय के अतं गत ‘सेवाथ ’ को अ वेषण एवं खोज का अवसर तथा
यादा से यादा संतोषपणू एवं संसाधनयु जीवन जीने क राह का प ीकरण ा होता है” (McLeod,
2003, पृ. 7)।
कुल िमलाकर परामश एक सि मिलत यास है िजसम परामशदाता तथा सेवाथ सि मिलत प से सम या
का समाधान खोजते ह। परामश मल ू त: सेवाथ के ि त ि या होती है। इसिलए परामश सेवाथ ारा मांगे
जाने पर िदया जाता है।
उ प रभाषाओ ं एवं अ य िव ान के मतानसु ार परामश क िन निलिखत िवशेषताएं िदखाई देती है-
 परामश एक ि या है।
 परामश म परामशदाता एवं सेवाथ के बीच अतं :ि या मक सबं धं है।
 परामश का व प िवकासा मक, संकट सहयोग, सम या समाधान, िनरोधा मक एवं उपचारा मक
होता है।
 परामश ि या आमने-सामने एवं सेवाथ के ि त होती है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 8


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

 परामश ि या म िविभ न अव थाए-ं पवू -तैयारी, आरंिभक, म यवत , समापन और अनवु त


अव थाएं शािमल होती ह।

1.5 परामश क अवधारणा


परामश का अथ एवं प रभाषा को समझने के प ात हम इसक अवधारणा को समझने क कोिशश करगे।
वैसे तो अथ और प रभाषा म ही परामश क अवधारणा का पता चलता है बावजदू इसके यहाँ हम सरल
श द म परामश के मु य घटक , उपागम एवं े के बारे म सं ेप म जानकारी ा करगे।

1.6 परामश के मु य घटक (Components of Counselling)


परामश ि या म चार घटक मह वपूण होते ह िजनके अभाव म परामश पूण नह हो सकता या सफलता को
ा नह कर पाता। वे चार घटक ह- परामशदाता, सेवाथ , सं था, सै ांितक उपागम। इ ह स ेप म हम यहाँ
समझगे।
परामशदाता - सम या त सेवाथ को परामश दान करने वाले यावसाियक कम को परामशदाता कहा
जाता है। परामश ि या म परामशदाता क मह वपूण भिू मका होती है। परामशदाता के अनभु व, द ता,
यावसाियक अिभवृि , नैितक आचरण आिद क भिू मका मह वपूण मानी जाती है। परामशदाता सेवाथ क
सम याओ ं को समझते हए उसके सं ान, अनुभिू त, यवहार और अतं वयि क सबं धं के े म िविभ न
िविधय के मा यम से ह त ेप कर सम याओ ं के समाधान तथा उिचत ल य ाि क िदशा म सहयोग
दान करता है (राय & अ थाना, 2015, पृ. 349 )।
सेवाथ - परामश ि या म सम या त यि को सेवाथ के प म या याियत िकया जाता है। इसे
परामश भी कहा जाता है। सम याएं मानिसक, शारी रक, आिथक, मनो-सामािजक, वा य, घरे ल,ू शैि क,
कािमक आिद कार क हो सकती है िक तु जब तक यि को न लगे िक वह उस सम या से खदु नह
िनबट सकता या दसू रे श द म कह तो जब तक वह परामशदाता के पास आकर अपनी सम या के ित
परामश क मागं नह करता तब तक वह सेवाथ नह ह। अत: सेवाथ वह है जो सेवा क मागं करता हो या
आव यकता महससू करता हो।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 9


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

परामशदाता

परामश
सै ांितक
ि कोण ि या के सेवाथ
मु य घटक

सं था

सं था - समाज काय म सं था मह वपणू घटक मानी जाती है चूँिक वतमान समय सं थानीकरण का है, ऐसे
म परामशदाता एवं सेवाथ के िलए उपयु संरचना के प म सं था को देखा जाता है। जहां सेवाथ सहजता
से परामश ा कर सके । वतमान म िव ालय, पा रवा रक यायालय, पनु वास क , अ पताल, मानिसक
अ पताल आिद ऐसी जगह ह जहां सेवाथ सहजता से परामश ा करता है।
सै ांितक उपागम - परामश ि या के प म ि याि वत करने के िलए सै ांितक आधार क आव यकता
होती है। मल
ू तः परामश मनोिव ान से यादा जड़ु ाव रखता है इसिलए इसके इितहास म यह बात रे खांिकत
क जाती है िक बीसव सदी के म य म काल रोजस के यि व, मनोिचिक सा एवं परामश संबंधी िस ांत
और तकनीक का िवकास हो पाया (राय & अ थाना, 2015, पृ. 325 )। माना जाता है िक परामश और
यि व के िस ांत के बीच गहरा संबंध ह। इसके साथ ही दशन शा , िचिक सा िव ान, समाज काय तथा
िश ा आिद िवषय के ान का उपयोग इसम िकया जाता है। परामश म मल ू तः िन निलिखत सै ािं तक
उपागम मह वपणू है-
सै ांितक उपागम सबं ंिधत िव ान मुख िविध, तकनीक एवं ह त ेप नीित
मनोिव े षणा मक िस मडं ायड मु साहचय, व न िव े षण आिद
उपागम
यवहार उपागम पावलोव, ि कनर, जोसेफ अ यास एवं पनु बलन, ित प सीखना,
वो पे, अ बट बंडूरा आिद अनावृि (Exposure), िवसंवदे ीकरण,
अनिु या प रहार, सं ाना मक यवहार थेरेपी,
यवहार प रमाजन आिद।
सं ाना मक उपागम ओरोन बेक, जे. एस. बेक सो े िटक वे िनगं , लागत-लाभ िव े षण,
रयिलटी टेि टंग, अ टरनेिटव पसपेि टव

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 10


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

आिद।
तािकक-संवगे ा मक अ बट एिलस िश ण, तक और िववेक, सझु ाव, राजी करना,
यवहार उपचार मकु ाबला, िस ातं िश ण आिद।
अि त ववादी उपागम यां पॉल सा एवं अलबट अि त ववादी परामशन का ल य ‘अ छे के
कामू आिद अि त ववादी िलए’ होने के कारण िस ांतत: िकसी भी
दाशिनक तथा िव टर कल, िविधय को वीकार नह करता। ह त ेप
आर. डी. लग आिद परामश नीित म खल ु ापन, िव ास आिद मानवीय
मनोवै ािनक। मू य क मांग रखता है।
यि -के ि त काल रोजस अ ितबिं धत सकारा मक स मान,
उपागम/मानवतावादी परानभु िु तपणू समझ आिद
उपागम
गे टा टवादी उपागम
का का, कोहलर, कट लेिवन शारी रक बोध पर यान देना, भाषा पर यान
आिद देना, वु का अ वेषण, सायको ामा वक,
िनदशा मक बोध योग आिद।
िविभ न दशन ाही इगन, एं , गारफ ड एवं अ य सं ाना मक िव लेषणा मक उपचार,
सम वयवादी उपागम बहआयामी उपचार, द सहयोगी मॉडल
आिद

1.7 परामश के ल य और उ े य
परामश ि या सेवाथ के िहत म होती है िजसम िविभ न उपागम का उपयोग कर परामशदाता सेवाथ को
उिचत ल य तक पहँचने म मदद करता है। इस ि या के दौरान िविभ न ल य बनाकर उसक ाि का काय
सेवाथ परामशदाता के सहयोग से करता है। इस सामा य ल य के बावजदू परामश ि या के अ य
मह वपणू ल य ह जो िन निलिखत ह-
 सहयोग
 सशि करण
 बहाली (Restitution)
 मनोवै ािनक िश ा
 सामािजक कौशल का अजन
 िनणय-रचना
 सम या समाधान
 समायोजन
 आपातकालीन ह त ेप एवं बंधन

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 11


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

 ल ण उ मल ू न तथा सधु ार
 आ म-बोध का िवकास
 आ म- वीकृ ित का िवकास
 आ म-वा तिवक करण या वैयि करण
 नवजागरण
 सम या समाधान
 प रवेश एवं वयं के ित सकारा मक ि कोण का िवकास
 जीवन म साथकता एवं अथबोध का िवकास
 अप रहाय को वीकारने हेतु त परता का िवकास
 सं ाना मक प रवतन
 यवहार प रमाजन एवं यि व प रवतन
 यव था, संगठन तथा समाज म प रवतन
 उपयु वा य यवहार का िवकास
 सझू का िवकास
 अ य के साथ संतोषजनक संबंध थापना
परामश के उ े य
परामश म उपयोगी िविभ न उपागम के अपने उ े य ह िजसे परामशदाता सेवाथ के साथ काम करते समय
यान म रखते हए काय करता है। जैसे अि त ववादी उपागम के अनसु ार यि के ‘अ छे के िलए’ सोचना
यादा सिु वधाजनक रहेगा, मानवतावादी उपागम म मानवीय मू य को उ च थान िदया गया है। वैसे ही
यवहारवादी उपागम यि के सीखने क ि या को मजबूत बनाने के उ े य से कायरत होता है। िक तु
परामश जो इन सभी उपागम को साथ लेकर चलता है इसके कुछ अपने उ े य ह। इसे हम िन निलिखत प
से देख सकते ह-
 मानिसक वा य
 यि के ससं ाधन का सवं धन
 काया मक ि से यि का िवकास सहज बनाना
 व-आ मीकरण
 आ म-िसि आिद

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 12


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

1.8 परामश के े
परामश मल ू त: यि के संपणू िवकास क िज मेदारी लेता है। िवकास के येक पड़ाव पर आने वाली
काया मक एवं मनोसामािजक सम याओ ं म सहयोग कर सम या त यि को सामा य वग म प रवितत
करने क मता यह रखता है और इसी उ े य से वह काय करता है।
परामशदाता क भिू मका को हन कर सामािजक कायकता िविभ न णािलय के अतं गत सेवािथय को
उिचत, िनयोिजत सहायता दान कर सकता है। समाज काय के अपने ख़ास े -िवषय के अलावे कुछ अ य
े म भी परामश ि या ारा उिचत सहयोग दान िकया जा सकता है। ऐसा देखा गया है िक यि
अपनी अपणू इ छाओ ं के कारण दबाव, तनाव, कंु ठा, ं आिद रोजमरा क सम याओ ं को हल करने म
आई असफलता के कारण बड़ी सम या का िशकार हो जाता है। ऐसे म अगर यि क इन रोजमरा क
सम याओ ं को यह छोटे तर पर हल िकया जाए तो कम समय और उिचत ढगं से सामािजक कायकताओ ं
ारा सेवािथय क सम या को हल िकया जा सकता ह। इस स दभ म रोजमरा क कुछ मह वपणू सम याएं
िजनक ओर परामशदाता को अपना यान आकिषत करना होगा वे िन निलिखत ह-
 मानिसक सम या- दबाव, आघात, िचतं ा तथा गभं ीर मानिसक सम याए;ं
 कूल म ब च क समायोजन क सम याए;ं
 कॉलेज म कै रयर संबंधी सम याए;ं
 पा रवा रक जीवन म समायोजन सबं धं ी सम याए;ं
 वैवािहक सामंज य तथा
 कायरत जगह क सम याएं आिद

1.9 सारांश
इस इकाई म हमने परामश के वैि क प रवेश तथा भारतीय प रवेश को देखा िजसम भारत आज भी काफ दरू
खड़ा िदखाई देता है। साथ ही हमने परामश का अथ तथा िविभ न िव ान ारा दी गई प रभाषाओ ं के
सहयोग से परामश क अवधारणा को समझा। परामश के मु य घटक को समझते हए इसके ल य एवं
उ े य को सं ेप म समझा।
समाज काय म परामश वैयि क सेवा काय म उपयोगी एवं मु य िविध के प म काम आता है। इस कारण
समाज काय और परामश का संबंध ढ़ होता िदखाई देता है। हालांिक भारत म परामश को एक यवसाय के
प म िकतनी जगह िमलती है यह िवचारणीय है बावजदू इसके बड़े शहर म इसक उपयोिगता को देखा
गया है। हाल म मल
ू भारतीय णािलय -योग, िस ा आिद को साथ पि मी परामश ि या को िमलाकर नए
परामश पाठ्य म बनाएं जा रहे ह। समाज काय म भी योग एवं ाकृ ितक िचिक सा आधा रत तकनीक का
उपयोग परामश ि या म िकया जा रहा है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 13


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

1.10 बोध
1. परामश के शाि दक अथ को समझाए।ं
2. परामश के मु य घटक पर चचा कर।
3. परामश से संबंिधत िविभ न सं थान को बताए।ं
4. परामश के ल य एवं उ े य पर िट पणी कर।
5. परामश के िविभ न उपागम को सं ेप म बताए।ं

1.11 स दभ एवं उपयोगी थ


American Counseling Asociation : Our History. (2017). Retrieved Feb. 3, 2017, from
counseling.org: https://www.counseling.org/about-us/about-aca/our-history
McLeod, J. (2003). An Introduction To Counselling (3rd Edition ed.). Jaipur: Ravat Publication.
Prabhakar, A., & Dubouis, K. (2017, June 16). Finally, a national survey on mental health
disorders in India. Retrieved Feb. 3, 2017, from dnaindia.com:
http://www.dnaindia.com/health/report-finally-a-national-survey-on-mental-health-disorders-
in-india-1848694
राय, ए., & अ थाना,ए म. (2015). नदशन एवं परामश (2nd पुनमु ण ed.). द ल : मोतीलाल बनारसीदास.
Rogers, C. R. (1931). Client Centered Therapy. Boston: Houghton Miffin Co.
उपयोगी लंक
http://timesofindia.indiatimes.com/india/One-in-five-Indians-needs-mental-health-
counselling-reveals-govt-statistics/articleshow/16747494.cms
https://www.counseling.org/about-us/about-aca/our-history
https://c.ymcdn.com/sites/www.csi-
net.org/resource/resmgr/Research,_Essay,_Papers,_Articles/Counseling_Around_the_
World-.pdf
https://www.merriam-webster.com/dictionary/counseling#medicalDictionary
http://www.isca.in/IJSS/Archive/v3/i3/9.ISCA-IRJSS-2014-12.pdf
http://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/22182/7/07_chapter%203.pdf

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 14


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

इकाई : 02 परामश क ि या और अव थाएं

इकाई क परेखा
2.0 उ े य
2.1 तावना
2.2 परामश ि या
2.3 ि या : परामश के स दभ म
2.4 परामश संबंध एवं ितवेश
2.5 परामश ि या क अव थाएं
2.5.1 परामश क आरंिभक अव था
2.5.2 परामश क म याव था
2.5.3 परामश क समापन अव था
2.6 सारांश
2.7 बोध
2.8 स दभ एवं उपयोगी थ

2.0 उ े य
िपछली इकाई म हमने परामश क अवधारणा को समझने क कोिशश क थी। इस इकाई म हम परामश
ि या क संरचना तथा उसके चरण एवं अव थाओ ं पर काश डालगे।
इस इकाई के अ ययन के बाद आप-
1. परामश क ि या को समझ सकगे।
2. परामश म संबंध एवं ितवेश (Setting) के मह व को िव े िषत कर सकगे।
3. परामश क िविभ न चरण एवं अव थाओ ं को समझ सकगे।

2.1 तावना
परामश, िजसम दो या कभी-कभी दो से अिधक लोग एक साथ आमने-सामने बैठकर सम या का समाधान
या उिचत ल य ाि क ि या को संप न करते ह। इस ि या को एक ख़ास संरचना म पूण िकया जाता है
तथा िविभ न चरण एवं अव थाओ ं से गजु रते हए यह ि या पणू होती है। िपछली इकाई म हमने देखा िक
परामश म मु य घटक के प म परामश के िविभ न सै ांितक उपागम आते ह। इन उपागम म से एक या
एक कृ त प से कुछ उपागम का गठजोड़ बनाकर परामशदाता सेवाथ को सम या सल ु झाने म मदद करता
ह। परामश तब तक ि या का व प हण नह करता जब तक क उसम कोई ि याकलाप, िनि त चरण
एवं अव थाएं न ह । इसके िलए परामशदाता को सेवाथ का यि व और सेवाथ क सम या को समझते
हए उसके साथ िमलकर िविभ न ि याकलाप चरणब तरीके से करने पड़ते ह। इन ि याकलाप को कब

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 15


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

और कै से करना ह? उपकरण एवं तकनीक का चयन आिद बात को यान म रखते हए परामशदाता सेवाथ
के साथ ि याकलाप करता है। ऐसा करने के प ात ही परामश एक ि या का प हण कर लेता है।
इस इकाई म हम परामश क संरचना, चरण एवं अव थाओ ं का अ ययन करने वाले ह िजससे परामश क
ि या को समझने म मदद िमलेगी।

2.2 परामश ि या
समाज काय म परामश के अतं गत सेवाथ को अिधकतम आव यकताओ ं क पिू त हेतु े रत िकया जाता है
साथ ही उसके मानिसक, सामािजक, आिथक तथा शारी रक िवकास म सहयोग दान िकया जाता है।
परामश क ि या ारा यि के सं ान, यवहार, अनभु िू त, क पना और अतं वयि क यवहार से संबंिधत
कारक के े म ह त ेप करके उसका िवकास सगं ित, व-आ मीकरण, आ मिसि तथा सकारा मक
मानिसक वा य क िदशा म सिु नि त िकया जाता है (राय & अ थाना, 2015, पृ. 364)। तीन मु य
घटक परामशदाता, सेवाथ तथा उपयु प रवेश सृजन(सं था) का उिचत तालमेल ही परामश है। वैसे तो
परामश म परामशदाता और सेवाथ के बीच सा ा कार ही मख ु मा यम होता है, इसके बावजदू ऐसे कई
कारक ह। िज ह यथायो य तरीके से परामशदाता सेवाथ को सहयोग देने म उपयोग करता है। इसे एक ख़ास
प ित या रा ते से पणू िकया जाता है इसिलए परामश को परामश िकया के प म देखा जाता है। आगे
बढ़ने से पहले हम ि या श द का अिधक गहनता से अ ययन करगे तािक परामश ि या को एक पता म
समझ सक।

2.3 ि या: परामश के स दभ म


परामश को समझने से पहले हम ‘ ि या’ पर थोडा काश डालगे। साधारणत: ि या का शाि दक अथ है-
घटनाओ ं का एक ंख ृ लाब तरीके से िनि त अविध म घिटत होना। अकादिमक सािह य म ि या को
समझने के िविभ न तरीके बताए गए ह िक तु वे कभी-कभी िमत कर देते ह। जॉन मै लोड अपनी िकताब
एन इं ोड शन टू काउ सेिलगं म ि या श द के चार सरल अथ बताते ह -
1. पहला, एक बड़े ि ितज के प म येक ि याकलाप जो प रवतन के िलए मह वपणू ह उसे
ि या के प म प रभािषत िकया जाता है। इसके अनसु ार ि या एक िवचार है जो मब ि या
क जगह लेता है।
2. दसू री ओर शोध-सािह य म ि या को िजस तरह प रभािषत िकया जाता है; व तुत: सेवाथ पर
िचिक सक य भाव डालने वाले कारक के एक बड़े सेट क मौजदू गी के कारण ‘आउटकम’ एवं
‘ ि या’ के बीच अतं िवरोध पाया जाता है। िचिक सक य ि याएं एक साधन क तरह आउटकम
म भागीदारी िनभाती ह। इ ह अनसु धं ान के अतं गत जांच-परख के बाद अनसु धं ानकता ि या के
प म या रखना है? का िनधारण करता है। जैसे-ल य म एकमत, सेवाथ -भिू मका क तैयारी, फ़ स
चर आिद मह वपणू साधन है।
3. ि या का तीसरा अथ थेरेपी के मानवतावादी ि कोण से ा होता है। यह प रभाषा मनु यता के
आव यक गणु के प म ि या को िवशेषीकृ त करती है। रोजस के िवचार पर आधा रत यह अथ

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 16


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

उसके सािह य म भी िदखाई देता है जैसे िक वे मानते थे मनु य जैसा भी है, वह एक धारा- वाह क
तरह है उसके िलए िनि त प रवतन ि या नह होनी चािहए।
4. चौथे अथ म ि या का अथ परामशदाता सेवाथ के जीवन के अवरोिधत अनभु व का वणन करने
तथा उसे और अिधक समझ के साथ य करने के िलए यु रा ते के प म ह। सेवाथ के क चे
अनभु व का अथ लगाने क कोिशश इसम क जाती है। कभी-कभी इसे ‘िनिमत ि या’
(Manufacturing Process) के प म देखा जाता है।
उ ि या के िविभ न अथ ह िज ह परामशदाता अपने ख़ास ि कोण एवं िस ांत के आधार पर
योग म लाते ह। तल ु ना मक प से देखे तो इसम से कोई भी ि या का अिधक सही या गलत अथ
नह ह बि क परामशदाताओ ं ारा यवहार म यादातर उपयोग म लाए जाने वाले अथ के पंजू के प
म इसे के वल यहाँ दशाया गया है। जॉन मै लोड का यह सझु ाव है िक चौथे अथ म ि या का उपयोग
बड़ी मा ा म िकया जता है।

2.4 परामश संबंध एवं ितवेश


सफल परामश म ऐसे सुसंरिचत अिभ यि पणू संबंध क आव यकता होती है जो सेवाथ को अपने बारे म
एक सीमा तक समझ अिजत करने म सहयोग देता हो िजससे वह नव-अिभमख ु काश म अपने िलए पहल
करने म स म हो सके । इसके िलए परामशदाता एवं सेवाथ के बीच बेहतर संबध क आव यकता होती है
िजसे ितवेश के सृजन के अंतगत अिधक गाढ़ िकया जाता है। रोजस परामश ि या म यि से यि के
सबं धं का वणन करते है अथात वे परामशदाता एवं सेवाथ के बारे म ही बताते है। दसू री ओर लाकसन
(1995)- काया मक संबंध, थानांतरण संबंध, सधु ारक संबंध, यि से यि का संबध तथा परावैयि क
संबंध क बात करते ह। िव ान का मानना है िक परामश म परामशदाता एवं सेवाथ का संबंध लचीला,
घिन ठ और समावेशी होना चािहए।
परामश ितवेश से ता पय है ऐसा वातावरण िजसम उपचारा मक उ े य से े रत िविश मानवीय संबंध
का िवकास, अनरु ण और बधं न होता हो यह सारे काय परामशदाता क यो यता पर िनभर है। परामशदाता
के साम य से ही उिचत सबंध िनिमित के िलए ितवेश/प रवेश का सृजन िकया जाता है। रोजस परामश
ितवेश क कुछ िवशेषताएं बताते ह जो िन निलिखत है-
1. दो यि सपं क म ह।
2. सेवाथ िवसगं ित क अव था म ह, वह असरु ि त या िचंितत है।
3. परामशदाता या थेरेिप ट संगित क अव था म ह।
4. परामशदाता लायंट के िलए अ ितबंिधत सकारा मक स मान का अनभु व कर रहा है।
5. परामशदाता को सेवाथ क आतं रक स दभ के सरं चना के बारे म परानभ
ु ूितक समझ क अनभु िू त
हो रही है।
6. सेवाथ को परामशदाता क अनभु िू तय -सकारा मक स मान और परानभु िू तक समझ क यनू तम
मा ा म अव य ही अनभु िू त हो रही है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 17


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

उ िवशेषताओ ं से तीन पद-संगित, अ ितबंिधत सकारा मक स मान तथा परानुभिू त यह मह वपूण के ीय


िवशेषताओ ं के प म िनकलकर सामने आते है। परामश ि या म ितवेश सृजन के िलए इन तीन िब दओ ु ं
को मह वपणू माना गया है।

2.5 परामश ि या क अव थाएं


अब तक के िव े षण से हम यह ात होता है िक परामश क ि या म िनिहत मु य तीन घटक है-
परामशदाता, सेवाथ और परामश ितवेश। इसम से परामश ितवेश को हमने सं ेप म समझा है और उसके
िलए परामशदाता क या भिू मका होती है? और उसे बेहतर बनाने के िलए उसक के ीय िवशेषताओ ं को
भी हमने देखा है। ि या या है? यह जानने के बाद वो कै से घिटत होती है? उसके चरण एवं अव थाओ ं को
जानना हमारे िलए आव यक बन जाता है। परामश ि या म उन सभी घटनाओ ं को शािमल िकया जा
सकता है िजससे सेवाथ को उिचत सहयोग ा हो सके िक तु इसके िलए परामशदाता को या तैया रयां
करनी पड़ती है और िकन-िकन चरण एवं अव थाओ ं से गजु रते हए परामश ि या को अिधक सफल
बनाया जा सकता है, इसे जानना भी हमारे िलए आव यक है।
परामश ि या मल ू तः मनोिव ान से िनयिमत होती है बावजदू इसके िविभ न ानानश ु ासन एवं दैनंिदन
सम याओ ं क कृ ित तथा सां कृ ितक प रवेश के आधार पर इसक ि या म काफ िभ नता देखी जाती है।
इस कारण परामश ि या के चरण क सं या से यादा मह वपणू ये बात है िक वो मगत है िक नह ।
य िक िविभ न िव ान ने चरण क सं या म घट-जोड़ िकया है िक तु ि या के म म वे सब सही है
ि या को अिधक सरल बनाने के िलए तथा चरण को अिधक प ता से समझने के िलए सं या का
घटाना-बढ़ाना सामा य बात है। जैसे िक रोजस अपने लेखन म सात चरण क बात करते ह कुछ िव ान आठ
तथा पांच चरण को भी मा यता देते ह। दसू री ओर आधिु नक परामश मनोिव ान के िव ान चरण से यादा
अव थाओ ं को मह वपूण मानते है। िजसम तीन अव थाएं मह वपणू मानते ह- आरंिभक अव था,
म याव था तथा स ांत अव था। िच -01 म हम देख सकते ह, िजसम अव थाओ ं एवं चरण दोन को
दशाया गया है। अत: हम परामश ि या क अव थाओ ं एवं चरण को सम ता म देखते ह।
2.5.1 परामश क आरंिभक अव था:- परामश क यह शु आती अव था है। इसम पवू -तैयारी चरण या
पवू -परामश स िनिहत होते ह। यादातर मामल म थम सपं क से पहले ही परामश क शु आत हो चक ु
होती है। एक दसू रे के ित िव ास िनिमित म सहायक ि याएं इस अव था म घिटत होती है। इसिलए
परामशदाता एवं सेवाथ को अपनी-अपनी भिू मका िनवहन क तैयारी करनी पड़ती है तथा इसी दर यान एक
दसू रे के ित यवि थत समझ भी िवकिसत करनी पड़ती है। इस अव था म िजन प का मह व होता है वे
िन निलिखत है-
1. परामशदाता और सेवाथ का एक दसू रे के ित पवू ान।
2. भिू मका प क।
3. थम संपक।
4. भौितक ितवेश तथा।
5. सेवाथ के आने से पहले क पवू -तैयारी।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 18


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

यह अव था इं ोड टरी होने के कारण इसम दोन (सेवाथ और परामशदाता) एक-दसू रे को परखते ह। इसी
स दभ म सेवाथ परामशदाता से अपनी अपे ाओ ं क पिू त के स दभ म जानकारी हािसल करने क कोिशश
करता है तो दसू री ओर परामशदाता भिू मका प क के साथ समय, धन और सेवाथ क अपे ाओ ं को जानने
क कोिशश कर रहा होता है। थम संपक आगे के संबंध पर असर डालता है इस कारण काफ सावधानी एवं
तैयारी के साथ सच ं ार (आमने-सामने हो या टेिलफोिनगं ) िकया जाता है। थम सपं क क जगह इस अव था
म मह वपूण होती है य िक येक प रवेश का सेवाथ के मनोवै ािनक दशा पर असर पडता है, इसिलए
शांितपणू एवं गोपनीयता को बनाए रखने वाले ितवेश को चनु ना आव यक माना जाता है। और अंितम म
सेवाथ से सा ा कार के समय िविभ न चीज को यान म रखने वाले चीज मह वपणू मानी जाती है, जैसे
सेवाथ क इसके पहले क कोई के स िह ी या रे फरल प आिद चीज क औपचा रकता को इसी अव था
म पणू िकया जाना आव यक माना जाता है।
पवू -तैयारी के बाद आरंिभक अव था म धीरे से वेश करते हए परामश ि या क शु आत होती है। एक-
दसू रे के मू याक
ं न के बाद आमने-सामने बातचीत का दौर शु हो जाता है िजसे स कहा जाता है। स क
शु आत अिभवादन एवं थान हण करने से होती है तथा बातचीत के साथ इं ोड शन क शु आत होती है।
स के अिं तम म काय योजना का िनधारण िकया जाता है। स क शु आत म कुछ यान देने यो य बात
िन निलिखत ह-
1. द उपि थित और सनु ना।
 बातचीत को आगे बढाने म सहयोग
 करना
 ले रिफके शन
2. िनवचन या या या।
3. दोहराना।
4. सं ेपीकरण।
5. टकराव।
6. सेवाथ का स मान।
7. बातचीत को संरिचत करना, सम या या अपे ाओ ं का ाथिमक करण करना।
8. काय-योजना का िनधारण करना तथा।
9. परामश स को समेटना।

2.5.2 परामश क म याव था:- म याव था परामश ि या का सबसे मह वपणू और बड़ा िह सा होता
है। मु यत: परामश के मह वपूण इसी अव था म पणू िकए जाते ह। इसी अव था म सेवाथ क सम या को
समझकर उिचत ह त ेप नीित के आधार पर उसे सल ु झाने क कोिशश क जाती है। िविभ न सै ािं तक
उपागम के अतं गत परामशदाता ल य िसि के िलए सेवाथ के साथ िमलकर काय करता है। इसी कारण
इस अव था को काय अव था भी कहा जाता है। िविभ न िस ांतो के अ यास म िभ नता िदखाई देती है
िजसके कारण ल य भी अलग-अलग होते ह तथा सेवाथ क सम या एवं अपे ाओ ं क पूित को यान म

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 19


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

रखकर परामशदाता को उिचत िस ांत का चनु ाव करना पड़ता है। म याव था म काय करने क प ित एक
बड़े ल य को ा करने के िलए छोटे-छोटे ि यागत ल य क ाि के अंतगत तय क जाती है। उदाहरण
के तौर पर पा रवा रक परामश के अतं गत आने वाली सम याओ ं को देखा जा सकता है। इसम पित-प नी के
बीच के ं को ख़ म कर एक साथ एक प रवार के प म समायोिजत करने का एक

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 20


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

परामश परामश परामश


क तीन क पांच ि या
अव थाएं अव थाएं के चरण

सेवाथ के साथ स का
नधारण

तैयार अव था

पव
ू -परामश स

आरं भक अव था

परामशन संबध
ं ो का
वकास

आरं भक अव था

परामशन के व श ट
ल य क पहचान

परामश या
ल य ाि त के लए
म याव था म यवत अव था काय योजना वकास एवं
या वयन

परामश संबध
ं का
स ांत अव था
समापन

स ांत अव था
परामश प रणाम का
मू यांकन

अनव
ु तन अव था

अनव
ु त काय

च - 1 परामश क या क अव थाएं एवं चरण

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 21


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

बड़ा ल य होता है िक तु इस बड़े ल य क ाि के िलए छोटे-छोटे ल य जैसे- पित-प नी के बीच बातचीत


को बढ़ावा देना, उनक अलग-अलग अपे ाओ ं को समझकर एक दसू रे के सामने रखना, गलितय म सधु ार
लाने के िलए अवसर दान करना आिद ल य रखकर उसे ा करने क कोिशश क जाती है। िजससे बड़ा
ल य अपने आप ा होगा।
इअन हट न (Ian Horton, 2000) ने परामश के इस काय अव था के कुछ मह वपणू काय ल य का
िनधारण िकया है जो िन निलिखत है-
1. परामशन संबंध एवं काया मक संबंध को और ढ़ करना।
2. परामश सबं धं म सेवाथ क सम या तथा सेवाथ के मन म कोई अ य ं , हो तो उसके
अिभ यि के िलए झरोखे क तरह उपयोग म लाना।
3. परामश के ल य और सै ािं तक अिभ ह के अनु प ससु गं त अिधगम और प रवतन क
ि या को सहज बनाना।
4. पनू मु यांकनस का आयोजन करना और गित का आकलन करना।
उ ल य के अतं गत म याव था म यह यान रखा जाता है क जो ल य रखा गया है वह ा य हो अ ा य
ल य नह रखे जाते। िजन ल य क ाि के िलए परामशदाता सेवाथ के साथ िमलकर स आयोिजत कर
रहा है उससे सेवाथ म या प रवतन आ रहे ह? प रवतन क िदशा या है? सेवाथ के िलए सहायक एवं
बाधक या है? वो कौन सी किठनाइयाँ है िजसके कारण सेवाथ िनि त ल य तक नह पहँच पा रहा है
आिद का समालोचन एवं मू यांकन और संभव हो तब-तब काय योजना म प रवतन का िसलिसला
म याव था म चलता है।
2.5.3 परामश समापन अव था:- परामश ि या म परामशदाता एवं सेवाथ के बीच के संबंध
यवसाियक होते ह, इसिलए इसका आधार एक यवसाियक संिवदा के अंतगत आता है। इसे िनि त अविध
म पवू िनधा रत उ े य क थापना के िलए उपयोग म लाया जाता है। जैसे ही परामश के उ े य के अतं गत
िनधा रत ल य क ाि हो जाती है उसके बाद धीरे -धीरे परामश ि या समापन क और माग मण करती
है। जैसे िक इसके पहले क दो अव थाओ ं म हमने देखा-परामशदाता सेवाथ को उिचत ल य ाि म
सहयोग करता है िजसके िलए अ वेषण के अतं गत एक ख़ास तरह के ितवेश का सृजन करता है िजसके
भीतर परामशदाता सेवाथ को सं ेषण के मा यम से िविभ न तकनीक एवं ि याओ ं से अवगत कराता है
िजससे सेवाथ ल य ा कर सके । जब परामशदाता को लगे िक सेवाथ अपनी सम या सल ु झाने म समथ
हो गया है या सेवाथ को लगे िक वो अब अपने ल य को खदु ा कर सकता है तथा अपे ाओ ं के बीच
आने वाले अवरोध से वयं िनबट सकता है ऐसे म दोन एक दसू रे क सहमित से परामश समापन करते ह।
समापन क अव था म यान देने यो य बात यह है िक परामशदाता के सहयोग एवं सृिजत वातावरण म
सेवाथ को अपनी यो यताओ ं पर भरोसा तो आ जाता है िक तु इसके बाहर जो वा तिवक संसार है िजसम
सेवाथ को वयं काय करना है। वहां के िलए उसे एकाएक भेजना उिचत नह है। य िक समापन के समय के
नजदीक आने के साथ ही सेवाथ म िफर से नई िचंताए उ प न होना शु हो जाती है िजसका संबंध बाहरी
िव से होता है। ऐसे म परामशदाता सेवाथ को शु आती परामश स क ओर उसका यान ख चता है
और सतकता के साथ समापन के िलए सेवाथ को तैयार करता है। वा तिवक जीवन म वापसी के बीच आने

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 22


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

वाली येक दिु वधाओ ं का शमन परामशदाता इसी अव था म करता है तािक सेवाथ उससे े रत हो और
सजगता से अपने आप को समाज म समायोिजत कर सके । समापन अव था म परामश ि या का मू यांकन
करने के िलए इअन हट न (Ian Horton, 2000) पांच िबंदु दान करते ह जो िन निलिखत ह-
 परामश क उपलि धयां या रही?
 अभी और या ा िकया जाना शेष है?
 प रवतन य घिटत हआ?
 भिव य म या हो सकता है?
 परामश संबंध का व प या रहा ?
इसके अतं गत यह सिु नि त करना होता है क सेवाथ को इससे या लाभ हआ और या हािन। इस
मू यांकन के बाद ही परामश का स समापन क ओर अ सर होता है।
समापन अव था म दसू री मह वपणू बात यह है िक परामश समापन के बाद परामशदाता का काम ख़ म नह
होता। वा तिवक जीवन म लौटने के बाद सेवाथ को आने वाली सम याओ,ं अवरोध को समझकर उसे
बीच-बीच म े रत करने का काम भी उसको बीच-बीच म करना पडेगा। इस ि या को अनवु तन
(Follow-Up) कहा जाता है। समापन स के प ात सािं विदक प से सेवाथ से सबं धं ख़ म हो जाता है
बावजदू इसके सेवाथ अपने जीवन म परामश ि या के दौरान िसखाए गए तकनीक का उपयोग िकस तरह
कर रहा है? उसम आने वाली तकलीफ से उबरने के िलए वह परामशदाता के पास वापस आ सकता है तब
परामशदाता का यह दािय व है िक पुन: उसे े रत एवं अिधगम के साथ समायोजन म मदद कर। हालांिक
समापन के बाद इन भेट क मा ा धीरे -धीरे कम होती जानी चािहए अ यथा समापन स के बाद संबंध ख़ म
होने के कारण सेवाथ म अवसाद क ि थितयां उ प न हो सकती है। ऐसे म समापन के बाद अनवु तन
आव यक बन जाता है। अनवु तन काय को उ े य के आधार पर दो कार म िवभािजत िकया जाता है-
 अनवु त अ ययन; तथा
 अनवु तन सेवा।
अनवु त अ ययन के अतं गत वा तिवक जीवन म लौटने के बाद सेवाथ का मू यांकन िकया जाता है। िजसम
यह देखा जाता है िक परामश ि या से अिजत लाभ ा कर सेवाथ वा तिवक जीवन म िकस कार काय
कर रहा है? उसके जीवन म अब ‘उस’ सम या क दर िकतनी है। दसू री ओर अनुवतन सेवा के उ े य से िकए
गए अनुवतन म सम या क पुनरावृि को रोकना होता है। परामश समापन के कुछ अतं राल के बाद िफर से
सेवाथ के साथ परामश स आयोिजत कर शु आती परामश स से ा लाभ को िफर से याद कराया
जाता है तथा उन लाभ को पूनबिलत (Reinforce) िकया जाता है िजससे सेवाथ का आ मिव ास अिधक
ढ़ हो जाता है। इन दोन अनवु तन के कार म से सेवाथ के िलए लाभकारी अनवु तन सेवा है। इससे सेवाथ
को अिधक लाभ ा होता है। इसिलए यादातर परामश ि या म अनवु तन सेवा को ाथिमकता दी जाती
है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 23


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

2.6 सारांश
परामश ि या एक िवशेषीकृ त ि या है िजसके िलए परामश को िवशेष िश ण क आव यकता होती
है। साथ ही िविभ न िस ांत क समझ भी इसम मह वपूण शत मानी जाती है। परामश ि या क सफलता
को भािवत करने वाले कई कारक होते िजसम परामशदाता क िवशेषताए,ं यो यता, द ता, सम या का ान
आिद क उिचत समझ को मह वपणू माना गया है। परामशदाता को सेवाथ क सम या क कृ ित, उसक
अपे ाओ ं और यि व के आधार पर ही िस ांत , तकनीक एवं उपकरण का उपयोग करना होगा। उसी के
आधार पर काय-योजना एवं ह त ेप नीित का िनधारण िकया जाना चािहए। साथ ही परामशदाता को
ितवेश सृजन/िनमाण म उ सभी िब दओ ु ं को यान म रखना आव यक है। तभी सेवाथ उिचत ल य तक
पहँच सकता है और परामश ि या सफल हो सकती है। वे सेवाथ के साथ काम करते समय िविभ न
यवसाियक मागदिशकाओ ं का पालन करे और यान रहे िक िविभ न सं कृ ितय म काम करते समय
थानीय रीती- रवाज एवं भाषा को समझने क कोिशश परामशदाता को करनी चािहए तािक सेवाथ के
साथ संबंध गाढ़ बन सके । यह मान लेना आव यक है िक परामश ि या म सं ेषण ही मह वपूण मा यम है
िजससे आप सेवाथ को समझ सकते ह और समझा सकता ह।

2.7 बोध
1. परामश या है? अपने श द म िलखे।
2. पा रवा रक परामश क म भट देकर उसका वणन करे ।
3. परामश ि या क अव थाओ ं को िव तार से बताए।ं
4. परामश ि या को भािवत करने वाले कारक क सं ेप म चचा कर।
5. आरंिभक अव था का वणन कर।
6. अनवु तन के दो कार को बताए।ं

2.8 संदभ एवं उपयोगी ंथ


McLeod, J. (2003). An Introduction To Counselling (3rd Edition ed.). Jaipur: Ravat Publication.
Prabhakar, A., & Dubouis, K. (2017, June 16). Finally, a national survey on mental health
disorders in India. Retrieved Feb. 3, 2017, from dnaindia.com:
http://www.dnaindia.com/health/report-finally-a-national-survey-on-mental-health-disorders-
in-india-1848694
राय, ए., & अ थाना,ए म. (2015). नदशन एवं परामश (2nd पन ु मु ण ed.). द ल : मोतीलाल बनारसीदास.
Rogers, C. R. (1931). Client Centered Therapy. Boston: Houghton Miffin Co.
https://www.google.co.in/search?q=Counselling+process&source=lnms&tbm=isch&sa=X&ved=
0ahUKEwjV2ZOqlcnSAhVBwpQKHYl4DBwQ_AUICCgB&biw=1517&bih=735#tbm=isch&q=stages+
in+counselling+process&*&imgrc=op6QJzU46cPvQM:
http://www.psychotherapy.net/data/uploads/5110340dadcda.pdf
https://healthpsychologyconsultancy.wordpress.com/2015/07/26/counselling-process-the-7-
stages/
http://www.nlep.nic.in/pdf/Annex%20VIII%20Counselling%20process.pdf
http://www.yoursocialworker.com/p-articles/sexual-abuse-counselling_physcians.htm

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 24


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

इकाई : 03 परामश के ि कोण एवं तकनीक


इकाई क परेखा
3.0 उ े य
3.1 तावना
3.2 परामश के िविभ न ि कोण
3.2.1 मनोिव े षणा मक ि कोण
3.2.2 िव े षणा मक ि कोण
3.2.3 एडलरवादी ि कोण
3.2.4 यवहारा मक ि कोण
3.2.5 सं ाना मक ि कोण
3.2.6 तािकक सवं ेगा मक यवहार िचिक सा ि कोण
3.2.7 यि गत िनिमित ि कोण
3.2.8 यि के ि त ि कोण
3.2.9 अि त ववादी ि कोण
3.2.10 गे टा ट ि कोण
3.3 अ य ि कोण
3.4 परामश ि या म उपयोगी तकनीक
3.5 सारांश
3.6 बोध
3.7 संदभ एवं उपयोगी थ

3.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के प ात आप -
1. परामश ि या म उपयोगी िविभ न ि कोण क चचा कर सकगे।
2. परामश ि या के अतं गत उपयोग म लाए जाने वाले तकनीक एवं ह त ेप नीित क या या कर
सकगे।

3.1 तावना
इसके पहले क दो इकाइय म हमने परामश या है, और उसक ि या को समझ िलया है। अब हम परामश
ि या म उपयोगी ि कोण के अतं गत उपयोग म लाए जाने वाले िविभ न ि कोण एवं तकनीक क बात
इस इकाई म करगे। आम तौर पर कोई भी काय करने के िलए हम एक िनि त ि कोण (Approach) क
आव यकता होती है और साथ ही कुछ उपकरण एवं तकनीक क आव यकता होती है। चँिू क कोई भी
काय बेहतर तभी हो सकता है जब उसमे प रशु ता हो। जैसे िक कोई भी ान तभी िव ान होता है जब उसम

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 25


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

मापन प ितयाँ एवं कसौिटयां हो। इसी के आधार पर कोई िव ान अपने आप को थािपत कर सकता है।
दसू री ओर िविभ न यवसाय म िविभ न कार के उपकरण एवं तकनीक का उपयोग िकया जाता है।
परामश ि या के िविभ न अव थाओ ं एवं चरण के दौरान परामशदाता सेवाथ के सहयोग के उ े य से
िविभ न ि कोण के अंतगत उपकरण एवं तकनीक का उपयोग करता है। इसका उपयोग परामशदाता
सेवाथ क सम या को जानने तथा उससे िनबटने के िलए बनाई जाने वाली काय योजना म करता है।
सा ा कार को परामश म एक आमने-सामने सा ा कार क ि या मानना अलग बात है तथा परामश
ि या के अंतगत सा ा कार को एक उपकरण के प म उपयोग म लाना अलग बात है। दोन समय म
सा ा कार का व प अलग होता है।

3.2 परामश के िविभ न ि कोण


परामश ि या म सेवाथ क सम या समाधान एवं िनधा रत ल य ाि के िलए परामशदाता ारा एक
ख़ास सै ांितक ि कोण का आधार िलया जाता है, िजसम मल ू तः मनोिव ान के यि व िस ांत, मल
ू भतू
अिभक पना या दशन, मानव िवकास या यि व िवकास का िस ातं , नैदािनक िस ातं तथा
परामशन/थेरेि टक प रचालन और तकनीक शािमल है। परामश ि या म इन ि कोण के अतं गत सेवाथ
और सम या के बीच के संबंध तथा सेवाथ क कृ ित एवं सम या क कृ ित का िव ेषण िकया जाता है।
िन कष के प म इसी के आधार पर परामश ि या म सेवाथ क िविभ न मनोसामािजक ि याओ ं जैसे-
बाहरी पयावरण या वा तिवकता के ित य ण, ितरोपण, िव ास, मू य तथा सेवाथ क िनजी
वा तिवकता क सरं चना का िव ेषण शािमल है। साथ ही सामािजक-सां कृ ितक स दभ म सेवाथ क
वैयि कता का िव ेषण भी देखा जाता है। इसे समझने के िलए उ िस ांत , अिभक पनाओ,ं प रचालन-
तकनीक का सहारा िलया जाता है। जो अंततः सेवाथ को समझने का एक िवशेष ि कोण दान करती है।
इनम से कुछ मख ु ि कोण को सं ेप म यहाँ समझने क कोिशश करगे जो िन निलिखत ह-
 मनोिव े षणा मक ि कोण (Psychoanalytic Approach)
 िव ेषणा मक ि कोण (Analytic Approach)
 एडलरवादी ि कोण (Adlerian Approach)
 यवहारा मक ि कोण (Behavioural Approach)
 सं ाना मक ि कोण (Cognitive Approach)
 तािकक संवगे ा मक यवहार िचिक सा ि कोण (Rationale Emotive Behaviour Therapy)
 यि गत िनिमित ि कोण (Personal Construct Approach)
 यि के ि त ि कोण (Person Centred Approach)
 अि त ववादी ि कोण (Existential Approach)
 गे टा ट ि कोण (Gestalt Approach)
अब हम इन सभी सै ांितक ि कोण को स ेप म समझने क कोिशश करगे। इन ि कोण को सं ेप म
समझना मिु कल होगा इसिलए यहाँ हम के वल इसके ितपादक, सम या क या या, ल य तथा उनके ारा

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 26


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

यु तकनीक को समझगे। यह ि कोण सेवाथ क सम या को कै से या याियत करते ह? का िव ेषण


सम या क या या म ह। साथ ही उस सम या के उपाय के िलए परामशदाता ारा िजन चीज ( यवहार,
सं ान, भावना आिद) म प रवतन लाना आव यक समझा गया है तथा उसी के आधार पर ल य का िनधारण
िकया जाना आव यक माना गया है उसे ल य के प म या याियत िकया गया है। प रवतन संबंधी ल य
ाि के िलए िजन ि याकलाप एवं प रवतनीय कारक का उपयोग िकया जाना है उसे तकनीक के प म
िदया गया है। यहाँ येक ि कोण एक दसू रे से अलग है य िक इनके मल ू भतू िस ांत या िवचार म अंतर
है। अत: इन ि कोण को िन निलिखत प से समझगे-
3.2.1 मनोिव े षणा मक ि कोण (Psychoanalytic Approach) : यह ि कोण िवयना के िस
तंि कािव ानी िसगमंड ायड के िवचार पर आधा रत है। इनका शु आती िवचार था िक ‘बातचीत’ से
उपचार सभं व है। उनका मानना था िक यि म यादातर सम याएं दमन से सबं िं धत होती ह, इसिलए इ ह ने
सम या क या या कंु ठा, ं , िचंता, िवकासा मक बाधाए,ं आघात तथा अहम् र ा तं के प म क ह।
इसके उपचार हेतु सेवाथ म प रवतन संबधी ल य के प म वे िजन प रवतन क बात करते ह वे ह- अचेतन
साम ी को चेतन म लाना, अतं रण, ितरोध को दरू करना तथा अतं ि का िवकास। इन प रवतन के िलए वे
मु सहचय, व न िव ेषण, ितरोध का िव ेषण, अंतरण क या या जैसी तकनीक के उपयोग क बात
करते ह।
3.2.2 िव े षणा मक ि कोण (Analytic Approach): काल जगुं के िव े षणा मक मनोिव ान के
िवचार पर आधा रत इस ि कोण का िवकास हआ है। इसी कारण इसे परामश से यादा मानिसक उपचार
प ित के प म लोग जानते ह। इस ि कोण का मल ू भतू िवचार यह है िक मानवीय यवहार के व प का
िनधारण यि गत एवं जातीय इितहास तथा उ े य एवं आकां ाओ ं के ारा होता है। जंगु का यह िवचार
ायड से काफ िभ न तथा रह यवादी लगता है। जगंु सम या क या या करते हए कहते ह िक िमथक ,
व न , कमकांड तथा कला मक काय के साथ-साथ मनो ोभ एवं िवकृ ितय के प म आिकटाइ स
अिभ य होते ह। चेतन और अचेतन मन के संतुलन से यि व म संतुलन बना रहता है। असंतल ु नक
दशा म यि व िवभािजत हो जाता है, िजससे मानिसक सम याएं उ प न होती ह। िव े षणा मक ि कोण
इन सम या से िनजात पाने के िलए प रवतन संबंधी ल य के प म अचेतन क साम ी को चेतन ारा
वीकार िकया जाना और उसका संपणू यि व के साथ एक करण हो, इस बात पर जोर देता है। इसके
अतं गत भावातं रण एवं ित-भावातं रण क ि या के अतं गत सेवाथ म प रवतन क िदशा िनयत क जाती
है। िव लेषणा मक ि कोण का मख ु उ े य सेवाथ का यि व एक करण एवं व िसि है। इसक ाि
के िलए वे व न िव े षण ( ायड से अलग ि या के प म इसे जगंु ने अपनाया), कला (पिटंग आिद)
तथा श द सहचय िविध का अनमु ोदन करते ह। यहाँ यह समझना आव यक है िक जगुं ारा दी गयी तकनीक
ायड क तकनीक से अिधक प रमािजत है िजनका वैचा रक आधार िबलकुल िभ न ह।
3.2.3 एडलरवादी ि कोण (Adlerian Approach): अ े ड एडलर िज ह ायड के थम िव ोही
तथा यि गत मनोिव ान के ितपादक के प म भी जाना जाता ह। एडलर हीनता तथा े ता मनो ंिथ के
आधार पर मानवीय यवहार क या या करते ह तथा ब च के ज म म म होने वाली िु टय के आधार पर
सम या का िव े षण करते ह। उनका मानना था िक यि ारा अनभु तू अपूणता के कारण हीनता मनो ंिथ

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 27


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

का िवकास होता है। इसक ितपिू त के िलए यि म े ता मनो ंिथ क रचना होती है। एडलर क
यि गत उपचार णाली का मु य ल य सेवाथ के अचेतन म ि थत ल य, िव ास एवं िवचार को
अना छािदत कर उसे चेतन बोध म लाना है। एडलर का दसू रा ल य सेवाथ के मांगे जाने पर उपल ध
करवाया जाता है। एडलर के अनसु ार सेवाथ के जीवन के तीन े यवसाय, सामािजक जीवन तथा अतं रंग
सबं धं इन तीन क सतं िु लत भागीदारी से मानिसक वा य ा िकया जा सकता है। इसिलए वे सलाह देते
ह िक सेवाथ के सामने वा तिवकतापणू ल य रख। इस ल य तक पहँचने के िलए वे समानता एवं पार प रक
स मान के आधार पर संबंध क थापना, सेवाथ के साथ लोकतांि क संबंध क थापना, जीवन शैली का
मू याक ं न एवं प रवतन, आरंिभक मृितय का िव ेषण तथा सेवाथ के िनजी तक का परी ण आिद
तकनीक के उपयोग क सलाह देते ह। इस ि कोण म यु तकनीक का मु य आधार सेवाथ को अ य
लोग के साथ समानता के स ब ध का अनभु व कराना तथा अपने यवहार तथा िव ास के िवषय म
अतं ि का िवकास करना होता है।
3.2.4 यवहारा मक ि कोण (Behavioural Approach): इस िस ातं से सबं धं रखने वाले िव ान
म पैवलव, ि कनर, जोसेफ वो पे, अ बट बडं ू रा आिद ह। यि क सभी अनिु याएं अिजत होती है।
अिधगम, परु कार एवं दडं तथा य न एवं िु टयाँ आिद इसक मख ु अिभधारणाएं ह। इ ही िस ांत एवं
िवचार के आधार पर इस ि कोण का िवकास हआ है। यवहार प रमाजन के े के साथ-साथ
सं ाना मक- यवहार ि कोण का भी िवकास हआ है। इसिलए इन दोन को एक साथ सि मिलत भी िकया
जाता है। इसी के आधार पर समकालीन चिलत सं ाना मक- यवहार थेरेपी (Cognitive-Behavioural
Therapy) का िवकास हआ है। लग (Laing, 1979) ने इस ि कोण के अतं गत सम या क या या करते
हए ि आयामी ि कोण िदया है िजसे दु के प म िव े िषत िकया जाता है। इस दु म
प रहार/पलायन, िचंता, प रि थितय क भयावहता का अनभु व शािमल है। अत: इस ि कोण का मख ु
ल य इस दु को तोड़ना ह। िजसके िलए छोटे-छोटे ल य; समायोजना मक अनिु याओ ं के िलए
सकारा मक पनु बलन, कुसमायोजना मक अनिु याओ ं के िलए नकारा मक पनु बलन, सुरि त प रवेश म
अवसर उपल धता तथा प र ण का अवसर, िशिथलीकरण सबं धं ी मता का िवकास आिद को शािमल
िकया जाता है। यवहार ि कोण मल ू तः समायोजना मक सम याओ ं पर यान के ि त करता है। इस कारण
इसक तकनीक म ित प अिधगम, िवसंविे दकरण, अनावृि , अनिु या प रहार, िशिथलीकरण, गृहकाय,
डायरी रखना आिद को शािमल िकया जाता है।
3.2.5 सं ाना मक ि कोण (Cognitive Approach): ऑरोन बेक (Aaron Beck, 1964) ारा
िकए गए िचतं न और िवषाद के सबं धं ो के अ ययन म उसने नकारा मक सं ान ि पद क अिभक पना का
िवकास िकया। बाद म यह देखा गया िक मानिसक सम याओ ं म भी सं ाना मक िवकार दिशत हो सकता
है, इसिलए इसके उपचार के िलए सं ान के तर पर ह त ेप णाली िवकिसत क गयी। आज कल के
परामशदाता एवं थेरेिप ट इसका उपयोग CBT (Cognitive Behavioural Therapy) के प म करते ह।
सं ान से ता पय है बाहरी प रवेश म शारी रक इि य ारा िकसी घटना, वा तु के बोध से ह िजसम यि
क या या, मू यांकन एवं िन कष भी शािमल होते ह। उदाहरण के तौर पर बाहरी प रवेश म यि को
िकसी घटना का य ण आतंिकत कर देने वाला हो तब यि के दैिहक ि याओ ं पर उसका असर पड़ता

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 28


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

है। जैसे- सन गित ती हो जाना आिद िजससे वह ोध, आ ामकता तथा पलायन का यवहार करता है।
ऐसे म यि उस घटना का मू यांकन एवं या या कर वयं अपने यवहार म संशोधन कर सकता है। बेक ने
तीन कार के सं ान क चचा क है- सचू ना संसाधन, वचािलत िवचार तथा क मा। सं ाना मक ि कोण
यि क सम या क या या िवकृ त िचंतन णाली के प म करता ह। बेक ने िवकृ त सूचना संसाधन के
तीन प बताए ह- मनमाना िन कष, ि भाजी िचतं न तथा वृि करण एवं अ पीकरण। इसके उपचार हेतु यह
ि कोण मानता है िक परामशदाता को सेवाथ म सम या क अवधारणा को िवकिसत करने का ल य
िनधा रत िकया जाना चािहए। सं ाना मक िु टय को चनु ौती देकर प रवतन का यास करना, िवकृ त िवचार
का प रमाजन आिद ल य रखे जाते ह। इसके िलए परामशदाता स य-िनदशा मक परामश प ित के
अतं गत िश क क भिू मका िनभाता है। तथा दसू री ओर अ य िव ान ने इस ि कोण के अंतगत छ:
सं ाना मक ेिणय एवं पाच ं यवहार तकनीक को उपयोगी माना है। जो मश: है- सो े िटक वे िनगं ,
लागत-लाभ िव े षण, सेवाथ को वत: फूत िवचार , सवं गे तथा यवहार के भाव को समझने म मदद
करना, वैकि पक प र े य का िवकास, वा तिवकता प र ण, सं ाना मक अ यास, िमक अनावृि ,
गितिविधय का बोधन, अितिविधय क अनसु चू ी तैयार करना, यवहार प र ण, िव ािं त िविधयां
शािमल है।
3.2.6 तािकक संवेगा मक यवहार िचिक सा ि कोण (Rationale Emotive Behaviour
Therapy): मनु य तािकक ाणी है वह अपने आरंिभक अनभु व के आधार पर तािकक िचंतन क िविश
शैली का िवकास करने म समथ है। ऐसी िचंतन शैली यि के यवहार को भी भािवत करती है। इस
अिभधारणा को आधार मानकर अलबट इि लस (Albert Ellis, 193) ने तक, संवगे एवं यवहार के
गठजोड़ से एक उपचार णाली का िवकास िकया। इि लस का मानना है िक मानवीय सम याएं यि के
अतािकक िव वास म िनिहत ह। इसिलए इस ि कोण का मु य ल य सं ाना मक, संवगे ा मक,
यवहारा मक प रवतन का उपयोग कर अतािकक िव ास क जगह नए तािकक िव ास का िनवेशन करना
है। इस काय के िलए िश ण, तक और िववेक, सझु ाव, राजी करना, मक ु ाबला, िस ांत िश ण आिद
तकनीक को सेवाथ के बेहतरी के िलए उपयोग म लाया जाता है।
3.2.7 यि गत िनिमित ि कोण (Personal Construct Approach): जाज के ली(George
Keley, 1955) के अनसु ार अनभु िू तय म िचंतन और यवहार वैसे ही िनिहत होते ह जैसे िक यवहार म
अनभु िू त एवं िचतं न शािमल होते ह। इस कार यि गत अनभु व सदैव सपं णू ता को समेटे हए देखे जा सकते
ह। यि घटनाओ ं का िजस प म पवू नमु ान करता है उसी कार से उसक मानिसक ि याएं अपने माग
का चयन करती ह। ऐसे म यि क यि गत िनिमितयां घटनाओ ं का भिव य कथन करने म िवफल होने से
िचंता उ प न होने लगती है। इसिलए के ली ने यि के िनिमितय को पनु सरिचत करने म तीन सहायक
तकनीक बतायी ह- व-च र िच ण, ि थर भिू मका उपचार, भंडार ीड तकनीक। इसके बावजदू इस
ि कोण से जड़ु े िव ान गायड़ेनो (Guidano, 1987) आिद ने ि या उ मख ु थेरेपी के प म मह वपणू
योगदान िदया ह।
3.2.8 यि के ि त ि कोण (Person Centred Approach): इस ि कोण को Client-
Centred Therapy के प म भी जाना जाता है। मानवतावाद पर आधा रत इस ि कोण के ितपादक

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 29


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

काल रोजस (Carl Rogers, 1951) ह। इस ि कोण म यि के व को मह वपणू थान ा ह। रोजस


का मानना था िक अनभु व कर रहे ाणी का आ मीकरण, अनरु ण, और उ नयन करने क एकमा
मलू वृि और त परता यि म होती ह। इसिलए आ मिनदशन क मता के िवकास से यि सम या से
िनजात पाने म समथ हो सकता ह। रोजस मानवतावादी ि कोण से सम या क या या करते हए िलखते ह
िक यि को बा समाज ारा अ ितबिं धत स मान ा नह होता है िजससे उसम िवसगं ित िनमाण होती
ह। िवसंगित क अिधकता होने पर यि क सरु ा णाली आ म-सं यय को परािजत होने से बचा नह
पाती िजसके कारण यि का यवहार िव वसं क, िवघिटत, अ यवि थत हो जाता है। इसके उपचार हेतु
रोजस ने तीन मल ू दशाओ ं क चचा क है िजसे परामशदाता को परामश के समय म यान रखना होगा;
अ ितबंिधत सकारा मक स मान, परानभु िू तपणू समझ और इन दो मल ू दशाओ ं (अ ितबंिधत सकारा मक
स मान, परानभु िु तपणू समझ) का सेवाथ तक उिचत सं ेषण शािमल ह। इसके बावजदू रोजस उिचत प रवेश
िनमाण क सलाह भी देते ह। उिचत प रवेश का सेवाथ पर काफ गहरा असर पड़ता है। अत: उ तीन मल ू
दशाओ ं को बनाए रखने से सेवाथ क संगित क पनु थापना सभं व है।
3.2.9 अि त ववादी ि कोण (Existential Approach): यह ि कोण िविभ न िवचारक के
िवचार-दशन पर आधा रत है िजसम से मख ु है- यां पॉल सा एवं अलबट कामू आिद अि त ववादी
दाशिनक तथा िव टर कल, आर. डी. लग आिद शािमल है। अि त ववादी उपचार या परामश क कोई
प ित नह है बि क इसके दाशिनक-िचंतन के आधार पर परामश काय म अि त ववादी िचंतन
परामशदाताओ ं को िविभ न तरह से सहयोग देता है। इ मी वान ड्यसू ने (2000) का मानना है िक
अि त ववादी ि कोण यि को जीवन क उलझन भरी जिटलताओ ं के साथ सामजं य थािपत करने म
सहयोग दान करता है। वे मानते ह िक सम या मानवीय जीवन का अिवभा य अंग है। इससे संघष क
ि थित म यि के जीवन म सृजन, रोमांच का अिवभाव होता है। िक तु कुछ लोग जीवन को सरल बनाने के
िलए अनिु चत माग का चयन कर लेते है। यही से िविभ न सम याए,ं िचंता, वा तिवकता से िवमख ु होना
आिद सम याएं उ प न होती ह। ऐसे म अि त ववादी ि कोण यि को सम त िवरोधाभासी
वा तिवकताओ ं सिहत अनभु व को वीकार करने हेतु स म बनाने का ल य रखता है। इसके सफलता के
िलए परामश ि या म परामशदाता परामश को स मान, संर ण और बोध के साथ वीकार करते हए
उसक अिभवृि य म खल ु ापन या िन कपटता िवकिसत करने के िलए उसे ो सािहत करता है। सेवाथ के
अ तिनिहत िव ास , मू य , आिद को बाहर लाने क कोिशश तथा अ वेषण का काय भी इसम िकया जाता
है। यह ि कोण परामशदाता को सेवाथ के साथ और सेवाथ के िलए होने का आ ह रखता है।
3.2.10 गे टा ट ि कोण (Gestalt Approach): का का, कोहलर, कट लेिवन आिद के िस ांत-
िवचार को गे टा ट ि कोण क आधार िशला माना जाता है। यि के यवहार को टुकड़ म बांटकर न
देखते हए उसे संपूणता अथात सम त यवहार, िवचार, अनभु िू त और अनिु या के योग के फल के प म
देखा जाना चािहए। एक व थ यि म ाणीगत आ म िनयं ण का िवकास पाया जाता है। आव यकताओ ं
के आधार पर गठन और िवघटन या संपक और याहार का च िनयिमत चलता रहता है। इस च म
यवधान उ प न हो जाता है तब यि शु आत म सृजना मक प से आने वाले संकट के साथ समायोजन
थापना का यास करता है। इस ि या म अिनयं ण के कारण िविभ न सम याएं उ प न हो जाती है। ऐसे म

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 30


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

गे टा ट ि कोण यि क आ म-िनयं ण क गे टा ट ि या के पनु :अ वेषण क बात करता है। परामश


ारा यि के अपूण काय क पूित का ल य रखा जाता है। इसके साथ ही इन प रवतन के ल य ाि के
िलए गे टा ट ि कोण परामशदाता को िन निलिखत तकनीक के उपयोग क सलाह देता ह- शारी रक बोध
पर यान देना, भाषा पर यान देना, वु का अ वेषण, मनो-नाटक काय, िनदशा मक बोध योग आिद।
3.3 अ य ि कोण
उ मह वपणू ि कोण के अलावे आज कल परामश म िविभ न ि कोण चलन म ह। िवचारधारा मक
तर, नए आयाम एवं ह त ेप िनित आिद के िवशेषता के प म इन नए ि कोण का िवकास हआ है। वे
िन निलिखत ह-
 वृ ांत ि कोण (Narrative Approach)
 सं यवहार िव े षण (Transactional Analysis)
 लाइन का मनोग या मक ि कोण (Klein’s Psychodynamics Approach)
 सं यवहार िव े षण (Transactional Analysis)
 आिद- भाव उपचार (Primal Therapy)
साथ ही राय एवं अ थाना(2015) ारा चिलत ि कोण को दो प म वग कृ त िकया है, जो िन निलिखत
है-
िविवध-दशन ाही-सम वयवादी ि कोण(Eclectic Integrative Approach):
 सं ाना मक िव लेषणा मक उपचार
 बहआयामी उपचार
 द ित प सहयोगी मॉडल
 परा-सै ािं तक ि कोण
तथा परामश के िविश ि कोण (Special Approach of counseling):
 परामश म समूह ि कोण (Group Approach in Counseling)
 िनदशा मक प ित (Directive Method)
 नारीवादी ितमान (Feminist Paradigm)
 प रवार एवं सवागी ितमान (Family and Systemic Paradigm)
 परा-वैयि क प र े य (Trans-personal Perspective)
3.4 परामश ि या म उपयोगी तकनीक
परामशन के िव ान ारा परामश ि या म उपयोगी ह त ेप क मख ु तकनीक को पांच वग म बाँट कर
देखा जाता है। वे िन निलिखत ह-
प रवतन संबंधी ह त ेप क तकनीक
कारक

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 31


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

यवहार  यवहार प रमाजन, अ यास, पनु बलन (Behaviour Modification,


Rehaesal, Reinforcement)
 यवहार सघु टन (Behaviour Shaping)
 िवसंवदे ीकरण (Desensitization)
 अनावरण (Exposure)
 अनिु या प रहार (Response Prevention)
 िशिथलीकरण (Relaxation)
 गृहकाय (Homework)
 डायरी तैयार करना (Preparing Diary)
 ढ़ ािहता िश ण (Assertiveness Training)
 तनाव ितरोध िश ण (Stress Inoculation Training)
भावनाए/ं अनुभिू तयाँ  परानभु िू त के टार क अिभ यि और सं ेषण
 भावना मक अिभ यि (Catharsis)
 र थान काय (Empty Chair work)
िबंब पक  पक का उपयोग (Use of Metaphors)
 संविे गक िबंब (Emotive Imagery)
 व न काय (Dream Work)
सं ान  सं ाना मक पनु सगठन (Cognitive Restructuring)
 नए प र े य का िवकास (Development of New Perspectives)
 िवगत-वतमान संबंध क रचना (Making Past and Present
Connections)
 सकारा मक गणु अ वेषण (Positive Asset Search)
 ल य का िनधारण (Setting the Goal)
 शि - े िव ेषण (Force Field Analysis)
 िनणय-लेना (Decision-Making)
अतं वयि क कारक  संबंध म थाना तरण
 भावनाओ ं म थाना तरण

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 32


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

3.5 सारांश
जैसे िक हमने देखा परामश ि या म सेवाथ को सहयोग तथा उसक सम या को समझने के िलए िविभ न
ि कोण ारा िभ न-िभ न तकनीक के उपयोग के िवक प उपल ध ह। िक तु आज कल बदली हई जीवन
शैली के कारण सम याओ ं का व प जिटल बनता जा रहा है। िजसके प रणाम व प परामशदाता को
सेवाथ क सम या क समझ तथा उसके यि व को समझने म काफ तकलीफ को झेलना पड़ रहा ह।
ऐसे म कुछ परामशदाताओ ं ने िविभ न ि कोण एवं िस ांत को एक साथ िमलाकर एक कृ त ि कोण
अपनाना शु िकया ह। दसू री ओर हम देखते ह िक िजस तरह से मनोिव ान म िजन िस ांत के हवाले ये
ि कोण तैयार हए थे उनम से कुछ िकशोराव था या यवु ाव था तक के िवकास को समझने म मदद करते ह।
ऐसे म वय काव था तथा वृ ाव था क सम याओ ं को समझने के िलए कोई ि कोण परामशदाता के पास
उपल ध नह ह तब ान क सरं चना को नए िसरे से समझने के िलए नए िस ातं का िनमाण आव यक बन
गया है। जैसे िक वय काव था तथा वृ ाव था के िवकास को समझने के िलए आज हमारे पास लाइफ- पैन
डेवलपमट (life-span Development) का ि कोण उपल ध ह। इसिलए परामशदाता को अ तन ान
के सपं क म रहना बहत ज री होता है। के वल इन तकनीक से ही नह बि क ऐसे कुछ सगं ठन ह िज ह ने
वैकि पक तकनीक के िनमाण िकया ह िजसम अमे रकन एसोिशएशन ऑफ़ काउंसेिलंग मह वपणू ह।
साथ ही इस बात को भी यान रखना होगा िक यह ि कोण एवं तकनीक सभी सामािजक-सां कृ ितक
प र े य म उपयोगी हो ही ऐसा भी नह ह। भारतीय प र य म परामशदाता यह मानते ह िक जंगु ीयन परामश
तकनीक का उपयोग यहाँ काफ कारगर ह। वैसे ही िह द,ू बौ , जैन आिद धम के दशन ारा ा तकनीक
का उपयोग भी यहाँ पर कारगर माना जाता है।

3.6 बोध
1. परामश म ि कोण के मह व पर काश डालते हए मनोिव लेषणा मक ि कोण क चचा कर।
2. यवहारवादी ि कोण को समझाए।ं
3. यि के ि त ि कोण क चचा करते हए उसम उपयोगी तकनीक पर काश डाले।
4. परामश ि या म अि त ववादी ि कोण क चचा कर।
5. परामश ि या िजन कारक म प रवतन क मागं होती है उ ह सं ेप म समझाएं।
6. यि म प रवतन के मख ु तकनीक को िचि हत कर।

3.7 संदभ एवं उपयोगी थ


राय, ए., & अ थाना,ए म. (2015). नदशन एवं परामश (2nd पुनमु ण ed.). द ल : मोतीलाल बनारसीदास.
Rogers, C. R. (1931). Client Centered Therapy. Boston: Houghton Miffin Co.

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 33


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

इकाई : 04 समाज काय म परामश अ यास

इकाई क परेखा
4.0 उ े य
4.1 तावना
4.2 समाज काय म परामश अ यास क आव यकता
4.3 सामािजक वैयि क सेवा काय म परामश अ यास
4.4 समूह परामश
4.4.1 ोत
4.4.2 अव थाएं
4.5 समाज काय के मुख े म परामश अ यास
4.6 अ य े
4.7 सारांश
4.8 बोध
4.9 स दभ एवं उपयोगी थ
4.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के बाद आप -
 समाज काय म परामश क आव यकता को समझ सकगे।
 समकाज काय के िविभ न काय े म परामश क पहचान कर सकगे।

4.1 तावना
19 व शता दी के शु आत म समाज काय अपनी एक ठोस आधार संरचना के साथ िवषय के प म
िवकिसत हआ। समाज काय के उ म म ही इस मल ू अवधारणा के बीज थे िक यह समदु ाय के सहयोग के
िलए काय करे गा। इसीिलए इसके उ े य म भी इसक झलक िदखती है जैसे िक शु आती समय म समाज
काय का मु य उ े य सामािजक प पात से पीिड़त का सशि करण तथा सहयोग रखा गया था। यि क
े ता तथा उनके सामािजक समावेशन के म ने जर उनके जीवन म आने वाली मनोसामािजक सम याएं तथा
उन सम याओ ं को समझने के िलए आव यक दैिहक एवं िचिक सक य ान समाज काय ारा अपनाया गया
है। इस ान को समाज उपयोगी बनाने के िलए समाज काय लगातार नवीन तकनीक , प ितय एवं ि कोण
से अपनी ान सरंचना को समृ करता रहा है।
व तुत; देखा जाए तो समाज काय और परामश क उ म ि थित एक समान है। ये दोन िवषय िविभ न िवषय
एवं यवसाय क ान संरचना पर आधा रत है। ठीक वैसे ही इन दोन िवषय म मनोिव ान और इससे
संबंिधत िवषय का बहतायत म उपयोग िकया जाता है। इसिलए इन दोन का गहरा संबंध देखा जाता है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 34


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

दोन ही वत प से यवसाय होने के बावजदू एक-दसू रे के सहयोगी भी है। अत: इस बात को यान म
रखते हए हम इस इकाई म समाज काय म परामश का अ यास या समाज काय अ यास म परामश को
समझने क कोिशश करगे।

4.2 समाज काय म परामश अ यास क आव यकता


समाज काय क शु आत भले ही सामदु ाियक सहयोग से हई हो िक तु धीरे -धीरे सम याओ ं के िनधारण म
मु य प से यि आता गया। अ य िवषय तथा समाज काय अ यास के िव ान को यह समझने के िलए
देर नह लगी िक सम याओ ं क जड़ मल ू तः यि के तनावपणू प रि थितय , तकलीफदेह अनभु व म है जो
भावनाए,ं संबंध, बेरोजगारी, कायि थित, अकाय मता, भेदभाव, दु यवहार, आिथक सम याए,ं घरे लू िहसं ा,
गरीबी एवं सामािजक बिह करण आिद से सबं िं धत होती ह। ऐसे म जब सम याओ ं क बह- ेिणय के कारण
समाज काय अ यास क कुछ सीमाएं आगे आने लगती है तब यावहा रकता के धरातल पर यह आव यक
हो जाता है िक हम भी अपनी यावहा रक तकनीक ेणी को नए िसरे से िवकिसत करे । इसम मु यत: तीन
िब दओु ं क बात आती ह-
तकनीक एवं कुशलताओ ं क िविभ नता (Variety);
ऐसी िविध िवकिसत करना िजससे िविभ तापणू तकनीक एवं कुशलताओ ं का सामािजक कायकता तक
ह तांतरण हो सके तथा
िविभ नतापणू ितवेश (Settings); कूल, कॉलेज, प रवार, अ पताल, कारागृह, सरु ा गृह, तथा िश ण
एवं सामदु ाियक के म समाज काय को पहचं ाने के िलए काय णाली (Procedure) का िवकास करना
(Patron, 1996)।
समाज काय अ यास ख़ास तौर से लाभािथय /सेवा उपयोगकता क सम याओ ं को सल ु झाने पर अपना यान
कि त करता है। चूँिक उन लाभािथय के सामािजक, मानिसक, शारी रक तथा सामािजक दशा के सुधार और
अनरु ण पर ही समाज काय ह त ेप क भािवता िनभर है (Miller, 2005)। यादातर लाभाथ जो
समाज काय ारा सहयोग ा करते ह वे सामािजक एवं आिथक प से िपछड़े हए होते ह और इस भे ता
(Vulnerability) म सेवा दाताओ ं के क कृ ित और उनके साथ लाभाथ के संबंध से बनी प रि थितयां
मह वपूण भागीदारी िनभाती है (Miller, 2005)। ऐसे म समाज काय िविभ न ानानुशासन से बड़े पैमाने पर
सचू नाएं तथा ान अिजत कर उसे उपयोग यो य बनाता है; पहले तो इस अिजत ान और कुशलताओ ं का
उपयोग समाज काय अपने अ यास को सश बनाकर लाभािथय को जटु ाता है और बाद म उनके अवांिछत
मनोदशाओ ं और यावहा रक अिभवृि य या उनके सामािजक अ मतापणू ि थित म सकारा मक प रवतन
लाता है (Miller, 2005)।
परामश का व प समाज काय अ यास के मख ु ति तय (Planks) म से एक है साथ ही यह एक तरह से
लाभािथय से सीधे जड़ु ने का सरल माग (Chief Mode) है; परामश ही लाभािथय के बीच समाज काय के
ि याकलाप का जनवादी चेहरा एवं ि या के एकि त काय म का िनधारण करता है, साथ ही यह भी
िनधा रत करने म मदद होती है िक कौन भे ातापणू है और िकसे सहयोग क ज रत है, इ ह एक परामशदाता
कै से िशि त और िशि त करने म सहयोग दे सकता है। के वल परामश म ही ऐसी जगह िमलती है जहां

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 35


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

परामशदाता और लाभाथ परामश ि याकलाप के मा यम से आमने-सामने अंत:ि या म पहँचते ह। इससे


आगे जाकर परामश क उिचत योजनाओ ं ारा ही सीधे लाभाथ पर भाव पड़ता है। अब यह बात अलग है
िक कुछ ख़ास ि थितय म िकस तरह के ह त ेपीय ि कोण को अपनाना है और कौन से ि याकलाप करने
है इसका िनधारण लाभाथ य क ितपिु के आधार पर परामशदाता िनधा रत करता है।

4.3 सामािजक वैयि क सेवा काय म परामश अ यास


व तुत; देखा जाए तो समाज काय और परामश क उ म ि थित एक समान है। ये दोन िवषय िविभ न िवषय
एवं यवसाय क ान सरं चना पर आधा रत है। ठीक वैसे ही इन दोन िवषय म मनोिव ान और इससे
संबंिधत िवषय का बहतायत म उपयोग िकया जाता है। रौलड (Rowland, 1993) के अनुसार समाज काय
और परामश मनोिचिक सा एवं इससे सबं ंिधत उपयोगी तकनीक ख़ास कर सा ा कार म लोग के िनजी,
सामािजक, यावसाियक, िचिक सक य तथा शैि क आयाम को छूते हए इसके बीच के अंतर को पाटता है।
पीस एंड फूक (Pease and Fook, 1999) के अनसु ार, समाज काय के कुछ आलोचना मक िस ांत
(Principles) के साथ परामश का अ छा सबं धं बनता है, ख़ास कर मनु य का स मान तथा यि के
अ तिनिहत मू य क पहचान के स दभ म। साथ ही वे कहते ह िक ऐसे कई प पाए जाते ह िजनसे परामश
और वैयि क सेवा काय म उिचत संबंध िदखाई देते ह। आम तौर पर इन दोन के घटक और ि याएं अलग
अलग िदखाई देती ह बावजदू इसके वे एक-दसू रे के िलए सहयोगी है, ख़ास कर तब जब दोन को ही िकसी
यि को सेवा और सहयोग देनी हो। ऐसे म वैयि क सेवा कायकता इन दोन क मदद से सेवाथ के
सहयोग ि या को बेहतरी से परू ा करता है। इससे से भी आगे जाकर उनका कहना है िक एक वैयि क सेवा
कायकता म परामशदाता क भिू मका अ तिनिहत होती ह, िजसे सामािजक कायकता सेवाथ क सम या,
यि व, यवहार के अनसु ार अपने भिू मका म प रवतन कर लेता है। उदाहरण के िलए वैयि क सेवा काय
म रोजस क परामश संबंधी िवशेष बाते (संगती, अ ितबंिधत सकारा मक स मान तथा परनभु िु तक समझ)
उतनी ही मह वपणू है िजतनी वैयि क सेवा काय के िलए।
उ चचा से कुछ ख़ास िबदं ु िनकलकर सामने आते ह जो वैयि क समाज काय एवं परामश के बीच सबं ध
थापना एवं समाज काय म परामश क उपयोिगता को दशाते ह-
 परामश और वैयि क सेवा काय दोन ही सेवाथ को सेवा एवं सहयोग देने म उपयोगी ि याकलाप
शािमल करते ह।
 वैयि क सेवा काय और परामश म सा ा कार को मह वपणू तकनीक के प म मा यता ा है।
 यि गत मू य एवं यि के स मान तथा े ता के संबंध म परामश और वैयि क सेवा काय म
समानता िदखती है।
 परामश वैयि क सेवा काय को आव यक परामशन का ि कोण दान करता ह तथा
 वैयि क सेवा कायकता म परामशदाता क भिू मका अ तिनिहत होती ह।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 36


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

4.4 समूह परामश


समाज काय क ाथिमक णाली म से एक के प म समहू काय को देखा जाता है। दसू री और परामश म
िविश ि कोण के प म समहू काय को देखा जाता है। परामश से संबंध रखने वाले िव ान का मानना है
िक ि तीय िव यु के बाद दिु नया क प रि थितयाँ काफ खराब हई थी िजसम यि क िविभ न एवं
नवीन सम याओ ं को सल ु झाने के िलए सेवा दाता, थेरेिप ट, सामािजक कायकता तथा परामशदाता क
बड़ी मागं पैदा हई। ऐसे म येक यि को अलग-अलग सेवा देने म सम या कट होने लगी िजसके
िनवारण के प म समहू परामश जैसी िविध का िवकास हआ जो काफ िकफायती एवं बचतपणू सािबत हई।
दसू री ओर समाज काय म समहू काय को णाली बनने से पवू एक आदं ोलन के प म देखा जाता था।
समाज काय के इितहास पर तीन बड़े चरण पर यान के ि त करके समहू काय के िवकास को समझा जा
सकता है-
 1930 के दशक म समहू काय एसोिसएशन क संरचना,
 1950 के दशक म समहू काय एसोिसएशन का समाज कायकताओ ं क रा ीय एसोिसएशन म
िवलय, और
 1970 के दशक म समहू काय क पनु : उ पि ।
अथात उि कास क अविध के प म सामािजक समहू काय और परामश म समहू काय का ा प
समकालीन ही िदखाई पड़ते ह। इतना ही नह ये दोन एक ही ोत, सामािजक मनोिव ान के समहू
ग या मकता ि कोण के भाव से आगे िवकिसत हो पाए ह।
4.4.1 ोत
मल ू तः च मनोवै ािनक ली बॉन (Le Bon, 1910) ने सव थम इसक पहचान क िक समहू म लोग एक-
दसू रे से िभ न िति या करते ह व तुत: वे वैसे नह होते ह। इसके कारण क खोज के प म उसने समहू म
होने वाली पार पा रक सपं क शि को मह वपणू माना िजसे वे ‘समहू ससं ग’ तथा ‘समहू िवचार’ के प म
प करते ह। बाद म इस िवचार का भाव ायड क िकताब Group Psychology and the Analysis
of the Ego (1921) म िदखाई देता है िजसके आधार पर समहू ग या मकता ि कोण का िवकास हआ।
यह ि कोण िजतना समहू काय के िलए उपयोगी है उतना ही समहू परामश के िलए भी मह वपणू है।
4.4.2 अव थाएं
परामश म समहू काय ि कोण के अतं गत परामशन हेतु कुछ अव थाएं बतायी गई है जो सामािजक समहू
काय से काफ िमलती जल ु ती है इ ह हम िन निलिखत प से देख सकते ह-
 येक सद य के ल य क पहचान
 समहू का गठन
 संचार संबंध क थापना तथा वाता का आरंभ करना
 सद य के म य संबंध का िवकास
 थािपत सद य क सद यता का समापन एवं

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 37


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

 परामश क सफलता का मू यांकन।


ठीक इसी तरह से समाज काय म भी समहू काय के अतं गत सेवाथ समहू क सम या को सामिू हक संबध
ारा हल िकया जाता है। जैसे-फॉिमग (आकार देना), टोिमग (हमला बोलना), नोिमग (मानक कृ त करना),
परफोिमग (काय-िन पादन) इन चार अव थाओ ं के साथ एक पांचवी अव था फॉलो अप (अनवु त काय) को
भी जोड़ा जाता है।
समहू म अ य सद य के साथ संबंध थापना के कारण यि सम या का व प, कृ ित तथा उनसे िनबटने
क मता ज दी हण कर लेता है। इसके िलए िविभ न काय म का आयोजन तथा भिू मका िनवहन,
मनोनाटक आिद तकनीक का उपयोग िकया जाता है।

4.5 समाज काय के मुख े म परामश अ यास


समाज काय का े बड़ा यापक है। चँिू क यि क मनोसामािजक सम याओ ं का अ ययन और उसम
सेवा सहायता इसक िविभ न णािलय ारा क जाती है इसिलए नवीन े भी इसम लगातार जड़ु ते देखे
जाते ह। समाज काय से सबं िं धत िविभ न े िज ह अब तक िचि हत िकया गया है वे िन निलिखत है-
 मिहला एवं बाल
 िमक
 िचिक सा
 मानिसक वा य
 वृ
 यवु ा
 आपदा बधं न तथा
 प रवार एवं यगु ल आिद
इन सभी े म इन भे तापणू समहू को िशि त, जाग क करने के िलए समकालीन समय म समहू परामश
क सहायता ली जा रही है। कूल , कॉलेज, हॉि पटल, कारखाने, मानिसक हॉि पटल, वृ ा म, छा ावास,
पा रवा रक यायालय आिद सं थाओ ं म सामािजक कायकता के पद भरे जा रहे ह। िजनमे परामश क मता
हो ऐसे लोग ारा परामश ि या के मा यम से लोग क सम याओ ं को सनु ा-समझा एवं उिचत सलाह
मशिवरा दान िकया जाता है।

4.6 अ य े
भारत एक िवशाल देश है जहां सबको सभी सिु वधाएं पहचं ा पाने म वयं सरकार भी खदु को असमथ पाती
है। ऐसे म एक कृ त प से परामश ि या के मा यम से ही उन लाभाथ , सेवा उपभोगकता तक पहँचने का
एकमा स ता रा ता िदखाई देता है। परामशदाता क भिू मका को वीकार कर सामािजक कायकता िविभ न
णािलय के अंतगत सेवािथय को उिचत, िनयोिजत सहायता दान कर सकता है। समाज काय के अपने

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 38


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

ख़ास े -िवषय के अलावे कुछ अ य े म भी परामश ि या ारा उिचत सहयोग दान िकया जा
सकता है। ऐसा देखा गया है िक यि अपनी अपणू इ छाओ ं के कारण दबाव, तनाव, कंु ठा, ं आिद
रोजमरा क सम याओ ं को हल करने म आई असफलता के कारण बड़ी सम या का िशकार हो जाता है। ऐसे
म अगर यि क इन रोजमरा क सम याओ ं को यह छोटे तर पर हल िकया जाए तो कम समय और
बचतपणू ढगं से सामािजक कायकताओ ं ारा सेवािथय क सम या को हल िकया जा सकता है। इस स दभ
रोजमरा क कुछ मह वपणू सम याएं िजनक और परामशदाता को अपना यान आकिषत करना होगा वे
िन निलिखत ह-
 मानिसक सम या- दबाव, आघात, िचतं ा तथा गभं ीर मानिसक सम याएं
 कूल म ब च क समायोजन क सम याएं
 कॉलेज म कै रयर संबंधी सम याएं
 पा रवा रक जीवन म समायोजन सबं धं ी सम याएं
 वैवािहक सामंज य
 कायरत जगह क सम याएं तथा
 वैयि क, सां कृ ितक तथा संरचना मक भेदभाव, असमानता एवं पवू ा ह (Thomson,2001 PCS
model)
इन े के साथ-साथ था सन (Thomson,2001) का िवचार था िक भेदभाव, असमानता एवं पवू ा ह को
समा करना सामािजक कायकता का ल य होना चािहए। उनके अनसु ार भेदभाव, असमानता एवं पवू ा ह
तीन तर पर िनिमत होता है- वैयि क, सां कृ ितक तथा संरचना मक। और यह येक यि म दसू र के
ित समान प से देखा जाता है। जैसे समहू के बाहरी लोग, रंगभेद, जाितभेद, धािमक एवं भाषाई आधार पर
यह असमानता, भेदभाव और पूवा ह िनमाण होते रहते ह। कभी कभार अ य के िलए तैयार वैयि क मत
सां कृ ितक धरातल पर पहँचने से पूवा ह म त दील हो जाता है। इसी से शोषक एवं शोिषत क ंख ृ ला
िवकिसत हो जाती है। इस ंख ृ ला को तोड़ने का काय परामश ि या ारा सामािजक काय बेहतरी से कर
सकता है।

4.7 सारांश
परामश एक जिटल और मांगपरक ि या है। यह ि या उिचत ान और कौशल ा लोग क मांग रखती
है। परानभु िु तक समझ तथा यि एवं उसक सम या क समझ आिद इससे अछूते नह ह। िक तु यह सारे
ि याकलाप एक तरह से समाज काय के एकि त घटक है जो सामािजक कुशल (Social Good) के िलए
आव यक ह। इसम परामश िस ांत िपछले आधे दशक के बाद शािमल हए ह; िजनके िविभ न उ म थान है,
इसके कारण इसके व प म जिटलता देखी जाती है िक तु इसके बावजदू समाज काय और परामश म काफ
समानताएं भी है िज ह बस सेवाथ क आव यकता अनसु ार वीकार करने क देर ह। हालांिक इन िस ांत
को अंगीकृ त करना एवं यवहार म लाना आसान काय नह है। इसके िलए यह आव यक है िक उन िस ांत
को उ नत ढंग से समझकर यवहार यो य बनाना िजससे परामश काय भावपणू बने। इसक परू ी िज मेदारी

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 39


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

उस परामशदाता क होगी िक वो अपनी यो यता, मता और अपनी कृ ित के आधार पर सेवाथ को


मू योिचत संबंध थािपत कर उसपर गहरा भाव डाले।
भारतीय संदभ म देखे तो समाज काय और परामश का उ म एक ही दशक म माना जाता है। 1936 म समाज
काय और 1938-40 के आस-पास परामश क िविधवत थापना भारत म हई। कुछ ख़ास े जैसे िश ा,
यवसाय आिद को छोड़कर दोन का ही िवकास मनोवािं छत ढगं से नह हो पाया। ामीण े से यादा
शहरी ख़ास तौर पर महानगर तक ये दोन िवधाएं सीिमत िदखाई देती है। िक तु परामश भारतीयता को हन
करने के प ात काफ लोकि य िवधा सािबत हो रही है। योग, मेिडटे शन तथा अ य भारतीय तकनीक म
भारतीय िव ास को नए से ा कर िलया है। अ ययन बताते ह िक मानिसक सम याओ ं को कम करने म
योग एवं मेिडटेशन काफ मह वपणू भिू मका िनभाते ह। ऐसे म इन तकनीक को समझकर समाज काय को
परामश क कुशलताओ ं को आ मसात कर आगे बढना आव यक है।
4.8 बोध
समाज काय म परामश क आव यकता पर काश डाले।
वैयि क समाज काय म परामश अ यास को समझाए।ं
समहू परामश क िववेचना कर।
समाज काय के मखु े म परामश अ यास के मह व को समझाए।ं

4.9 संदभ एवं अ य उपयोगी थ


Miller, L. (2005). Counselling Skills for Social Work. Lomdon: Sage Publication.
Patron, N. (1996). Social Theory, Social Chnage and Social Work. (N. Patron, Ed.) London:
Routledge.
Pease, B. & Fook, J. (1999). Transforming Social Work Practice: Postmodern Critical Perspectives.
London: Routledge.
Thompson, N. (2001) Anti-Discriminatory Practice. Third Edition, London: Palgrave.
Dryden, W. (2006). Counselling in a nutshell. London: Sage Publications Ltd.
Dryden, W. & Mytton, J. (1999). Four Approaches to Counselling and Psychotherapy. London:
Routledge.
Feltham, C. (1995). What Is Counselling? The Promise and Problem of the Talking Therapies.
London: Sage Publications Ltd.
Rowland, N, 1993, Chapter 3 What is Counselling? In Counselling in General Practice, Corney, R.
& Jenkins, R. (Eds.) (pp. 17-30) London: Routledge.
राय, ए., & अ थाना,ए म. (2015). नदशन एवं परामश (2nd पन
ु मु ण ed.). द ल : मोतीलाल बनारसीदास.
https://www.ukessays.com/essays/socialwork/counsellinginsocialwork.php

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 40


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

खडं – 2
परामश ि या

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 41


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

इकाई-1 वैयि क परामश


इकाई क परेखा
1.0 उ े य
1.1 तावना
1.2 यि गत परामश
1.3 वैयि क परामश क मा यताएँ
1.4 वैयि क परामश काय अ यास के िस ांत
1.5 वैयि क परामश काय म कायकता-सेवाथ संबंध
1.6 वैयि क परामश के अवयव
1.7 सारांश
.18 बोध
.19 संदभ एवं उपयोगी ंथ

1.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के प ात आप -
1. यि गत परामश क अवधारणा को समझ सकगे
2. यि गत परामश क ि या से संबंिधत ान ा कर सकगे
3. समाज काय म वैयि क परामश के मह व को ितपािदत कर सकगे

1.1 तावना
मानवीय समाज ने अपने िवकास म म जीवन िनवाह के िलए प रवार, समहू , समदु ाय आिद
संरचनाओ ं का िनमाण िकया था। बदलते समाज म इन िनिमत सं थाओ ं का व प भी बदलता गया।
स यता-सं कृ ित जैसे भारी-भरकम श द के साथ-साथ फै शन जैसे नई दिु नयावी श द जड़ु ने लगे।आधिु नक
समय म यि वािदता के सू पात ने यि - यि के बीच सीमारे खा ख चने का काम िकया और उ र-
आधिु नक समाज म तो यि गत सम याओ ं का व प और भी जिटल होता गया।यहाँ सारी सरं चनाएँ ढह-
सी गई ह और जीवन शैलीगत नई सम याओ ं का उभार इससे होने लगा है। वै ीकरण म आिथक वतं ता के
बावजदू सीिमत समझ क सम या के कारण छोटी-छोटी चीज के िलए यि को िकसी और (सेवा दाता
सं था, सगं ठन, या कोई अथॉ रटी आिद) पर िनभर होना पड़ रहा है। इन सबके बावजदू प रवार या युगल के
प म रहते समय या काय क जगह पर यि को अ य के साथ सामजं य बनाए रखने के िलए काफ
ज ोजहद करनी रही पड़ती है। इस तरह से जब सम याओ ं का व प बदल रहा है, ऐसे म समाज काय को
अपनी सेवा णाली म परामश को अिनवाय प से जगह देने क मांग भी जोर पकड़ने लगी। ि तीय िव यु
के प ात इसका आिवभाव संपूण िव म देखा जा सकता है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 42


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

आधिु नकता ने मानवीय समाज को ‘ यि वािदता’ म इतना गहरा उलझा िदया है िक मनु य खदु को
‘अ य’ से अलग-थलग महसूस कर रहा है। ‘सामिू हक जीवन’ को ितलांजिल देकर िजस तरह से मनु य ने
वैयि क जीवन को चनु ा है,उससे सम याओ ं म काफ बढ़ोतरी हई है। मनु य के इस चनु ाव ने मानवीय
सम याओ ं म आमूल प रवतन िकया है। इस प रवतन को िविभ न ान शाखाओ ं ने अलग से समझने एवं
उसके िनवारण के िलए काफ सराहनीय काय िकया है, िजसम मनोिव ान, समाजशा एवं समाज काय
आिद अ णी शाखाएं ह। यि , यि व, यि गत इ छा और आकां ाएं आिद के सम वय तथा
असमायोजन क सम या के समाधान के िलए परामश का उ व हआ है।सम या क कृ ित के आधार पर
परामश को िविभ न कार म बाँटा जाता है जैसे िक यि गत सम याओ ं के िलए यि गत परामश, यगु ल
एवं प रवार से संबंिधत सम याओ ं के िलए युगल एवं पा रवा रक परामश आिद। इस इकाई म हम यि गत
परामश को समझगे।

1.2 यि गत परामश
यि गत परामश का सबं धं सीधे यि गत सम याओ ं से होता है। इसिलए यि के जीवन म
आनेवाली िविभ न मनो-सामािजक सम याओ ं को हल करने का काय यि गत परमश के मा यम से िकया
जाता है।समाज काय म परामशन क शु आत करने का ेय बथा रे नो ड्स (1932) को जाता है।
वैयि क परामश क कुछ िव ान ारा दी गयी प रभाषाएँ:
मेरी रचम ड (1915) ने वैयि क परामश को िविभ न यि य के साथ सहयोग करते हए उनक अपनी
तथा समाज क एक साथ भलाई करने हेतु उनके साथ िविभ न कार के काय को करने क कला प म
प रभािषत िकया है। लेिकन बाद म 1922 म इसम कुछ प रवतन करते हए कहा िक यह ऐसी ि या से है जो
यि य एवं उनके सामािजक पयावरण के बीच एक चेतन प से लाये गए समायोजन के मा यम से
यि व का िवकास करती है।
टे ट (1922) ने वैयि क परामश को प रभािषत करते हए कहा है िक यि के यवहार, यि व और
सामािजक स ब ध को समझने तथा एक अिधक अ छे सामािजक एवं वैयि क समायोजन लाने म उसक
सहायता करने के यास यु कुसमायोजन यि का सामािजक स ब ध को समझने तथा एक अिधक
अ छे सामािजक एवं वैयि क समायोजन लाने म उसक सहायता करने के यास यु कुसमायोिजत यि
का सामािजक उपचार है।
वीथन बोवस (1949) के अनसु ार वैयि क परामश ऐसी कला है िजसके अतं गत मानव सबं धं म ान
तथा सबं धं क िनपणु ता का योग यि क उपयु मताओ ं तथा समदु ाय के ससं ाधन क सेवाथ तथा
उसके संपणू पयावरण के सम त अंग अथवा िकसी अंग के बीच अिधक अ छे समायोजन के िलए
गितशील बनाने हेतु िकया जाता है।
देसाई (1956) वैयि क परामश यि क न के वल यथाि थित के साथ समायोजन करने बि क प रवतन
तथा नए-नए तर पर अपने प रवितत होते हए पयावरण के साथ समायोजन करने क ि या म सि य
भागीदार बनने म सहायता दान करने क ि या है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 43


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

उ िव ान क प रभाषाओ ं के िव े षण के आधार पर कहा जा सकता है िक वैयि क परामश क प रभाषा


के मल
ू त व िन निलिखत ह:
अ) वैयि क परामश एक प ित है।
आ) वै ािनक ान एवं कौशल से यु िशि त समाज कायकता ारा इसे योग म लाया
जाता है।
इ) इस प ित का योग एक ि या के प म िनजी एवं सावजिनक अिभकरण ारा िकया जाता है।
ई) इसके मा यम से समाज म असमायोिजत एवं सम या त लोग क इस कार सहायता क जाती है
िक वे बेहतर सामािजक समायोजन के साथ यि गत प से सतं ोष द एवं अपेि त े जीवन को
ा कर सक तथा समाज क उ नत रचना म सि य भागीदारी दान कर सक।

1.3 वैयि क परामश क मा यताएँ


वैयि क सेवाकाय के िविभ न अगं है िज ह िव ान ने अपने-अपने मत के अनसु ार प रभािषत
िकया है। बाले र पा डेय (2017) ने अपनी िकताब ‘परामश के नए आयाम’ म हैिम टन (Hamilton) और
हॉिलस (Hollis) के मौिलक मा यताओ ं क चचा िक है जो िन निलिखत है:
हैिम टन के अनसु ार
अ) यि एवं समाज अ योनाि त होते ह।
आ) सामािजक शि याँ यवहार एवं मनोवृि य को भािवत करती ह और िजस संसार म हम रहते ह,
उसके ित अपना योगदान देने तथा आ म िवकास के िलए अवसर दान करती ह।
इ) स पणू सम याएँ न के वल मनौवै ािनक, आतं रक व बा होती है लेिकन अिधकतम वैयि क
परामश क सम याएँ अंतर-वैयि क होती ह, यािन यि के उपचार म एक से अिधक यि य के
शािमल िकए जाने क संभावना होती है, इसिलए वैयि क परामश म प रवार इकाई िवशेष प से
शािमल होती है।
ई) अपनी सम या को हल करने के िलए सेवाथ येक तर पर एक िज मेदार सहभागी होता है।
उ) उपचार के ल य हेतु वैयि क परामश ि या का क कायकता सेवाथ संबंध का सचेतन एवं
िनयंि त योग होता है।
हॉिलस के अनुसार
अ) वैयि क परामश मानव यि व,सामािजक मू य व ल य के ित कुछ मौिलक मा यताओ ं पर
आधा रत है।
आ) सव थम वैयि क परामश मानव मू य, यि क अि तीय िवशेषता (Uniqueness)तथा
अपनी संतुि के अनसु ार िवकास एवं समायोजन करने क कुशलता पर आधा रत है।
इ) वैयि क परामश क यह धारणा है िक सामािजक सरं चना का ल य यि को उ म जीवनयापन के
यो य बनाना है। रा य क रचना यि के क याण के िलए क जाती है। यि और समाज का िहत
एक-दसू रे के परू क एवं अ यो याि त है।अतः यि के क याण म ही परू े समाज का क याण िनिहत

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 44


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

है। यि ,वैयि क एवं सामिू हक तर पर एक-दसू रे के क याण के िलए िज मेदार होते हऔर इसके
साथ ही साथ अपने उ े य भी ाि कर सकते ह।

1.4 वैयि क परामश काय अ यास के िस ांत


वैयि क परामश काय अ यास म यु िकए जाने वाले िस ातं क सचू ी बनाना किठन काय
लगता है य िक इस संबंध म िव ान म मतभेद है। बाले र पा डेय ने अपनी िकताब ‘परामश के नए
आयाम’ म वैयि क परामश के िस ांत का वणन िकया है जो िन निलिखत है:

वीकृित का िस ांत
सेवाथ सक
ं ट त, कमजोर होता है और कायकता यावसाियक ान, अनभु व, यो यता से प रपणू
होता है। दोन जब सव थम िमलते ह तब उन दोन के म य सहानभु िू त का सामना करने का व प, उसक
अहम शि क ि थित आिद का ान कायकता म िव मान होता है। इसी ान के प र े य म वह सेवाथ को
एक यि के प म आदर-स मान दान करता है। इसी ान व आदर-स मान के यवहार से ही वह सेवाथ
के यवहार एवं त संबंधी कारण को समझकर उसके ित एक अिनणया मक ि कोण बनाता है। कायकता
सेवाथ म िच लेकर तथा उसक दशा के बारे म िचंितत होकर कारण क जानकारी एवं उनम प रवतनीय
सधु ार करने का यास करता है। किठनाइय से जझू रहे सेवाथ को िजस भी ि थित म होता है, उसे कायकता
एक यि के प म वैसे ही वीकार कर लेता है। कायकता सेवाथ क भावनाओ ं एवं मनोवृि य का
अ ययन करता है िजसके आधार पर वह सेवाथ को समझने का य न करता है। सेवाथ को कायकता ारा
वीकार कर िलए जाने पर वह अपनी आ मर ण वृि य को छोड़ देता है और अपनी बात सहजता से बता
देता है य िक उसे यह िव ास हो जाता है िक उसे वतमान ि थितय सिहत कायकता ने वीकार कर िलया
है।

संचार का िस ांत
सम या समाधान क ि या के अतं गत कायकता और सेवाथ के बीच अतं ःि याएं होती ह।
य िप इसके पूव दोन एक-दसू रे से अनजाने होते ह और सेवाथ म कुछ संकोच बना होता है लेिकन ार भ
म कायकता सेवाथ के यि व, सम या व प रि थितय का गहन अ ययन कर उसके साथ घिन व
िव सनीय संबंध थािपत कर िविश संकेत , िच ह , भाषा व हाव-भाव का योग करते हए समझाता है।
दोन के बीच िकसी िवषय पर सहमित-असहमित हो सकती है, लेिकन धीरे -धीरे उनम एक समझ बननी
आव यक है। उ ह एक-दसू रे क भिू मका क पूण जानकारी होनी चािहए। अतः कायकता और सेवाथ के
बीच अतं ःि या संचार ारा होती है तथा भावनाओ ं व त य का आदान- दान स यक ढंग से होता है। सही
जानकारी पाने हेतु कायकता उसक समिु चत सहायता करता है। सं था कै से उसक सहायता कर सकती है
और इसके एवज म सं था सेवाथ से या उ मीद रखती है, इसका प ीकरण कायकता ारा िकया जाता है।
सेवाथ के अदं र सही ढंग से भावनाओ ं का आदान- दान न हो पाने क दशा म कायकता कुछ बात को
ि गत रखते हए संचार के िस ांत का पालन करता है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 45


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

वैयि करण का िस ांत


इस िस ांत के अतं गत परामशदाता यह वीकार करता है िक य िप येक यि म कुछ ऐसी
िवशेषताएँ होती ह जो दसू रे से िमलती है तथािप हर यि क कुछ ऐसी िवशेषताएँ भी होती ह जो दसू र म
नह पायी जाती है। इस आधार पर हर यि दसू रे से अलग िकया जा सकता है अथात येक यि अपने
यि गत िवशेषताओ ं के आधार पर एक-दसू रे से िभ न रहता है। वैयि करण का िस ांत इ ह िभ नताओ ं
को समझने पर ज़ोर देता है। येक यि क सम याएँ होती ह लेिकन एक यि क सम या से दसू रे क
सम या म िभ नता िदखाई देती है। सम या एक सी ही य न हो लेिकन उनके कारण म िभ नता ि गोचर
होती है। साथ ही एक ही सम या का भाव अलग-अलग यि य पर उनके वैयि क गणु -दोष के आधार
पर िभ न-िभ न प म िदखाई दे सकती है। इसके अित र सम या के समाधान भी िभ न होते ह।

सहभािगता का िस ांत
सम या समाधान क ि या के यास म सेवाथ क येक थान पर सि य भागीदारी होनी
चािहए, यही इस िस ातं क मल
ू भावना है। कायकता इस िस ातं का अनसु रण करते हए सेवाथ के िलए
ऐसा अवसर दान करता है िक वह अपनी यथाथ ि थित को प करते हए सम या के िनदान म सहभाग
करे , इससे सेवाथ क आ म शि म वृि हो सकती है। अतः सम या समाधान ि या के अंतगत सेवाथ
कायकता संबंध क प रिध म कायकता सेवाथ क सि य भागीदारी करने का य न करता है।

आ म-चेतना का िस ांत
सेवाथ क तरह कायकता भी जिटल सं ेरणाओ ं से यु एक मानव ाणी होता है। उसके अदं र
सां कृ ितक िव ास एवं मू य क छाप होती है। कायकता के संवेग एवं मनोवृि याँ एवं सा ा कार क
अविध म िविभ न सेवािथय के सबं ंध को भािवत कर सकती ह, इसिलए आ म-चेतना के िस ांत के
अनसु ार कायकता क यि गत भावनाएँ, मनोवृि याँ एवं सं ेरणाएँ कायकता-सेवाथ संबंध म दखल न द,
ऐसी कायकता से अपे ा रहती है। कायकता- सेवाथ संबधं म कायकता क यि गत जीवन सबं धं ी
वृि य , झकु ाव , अवेग व भावनाओ ं का कोई थान नह होना चािहए। आ म-चेतना के िस ांत से ता पय
है िक सेवाथ कायकता संबंध म कायकता को अपनी सकारा मक व नकारा मक यि गत भावनाओ ं का
िनरी ण कर उ ह िनयिं त रखना चािहए। कायकता से अपे ा क जाती है िक वह अपने िश ण के दौरान
ही यावसाियक यि व म यह िनपणु ता लाए। अतः कायकता को सेवाथ के साथ अपने संबंध का उपयोग
उसक अहम शि के िवकास हेतु करने का य न करना चािहए।

गोपनीयता का िस ांत
वैयि क परामश काय का यह मख ु िस ातं है िजसके अतं गत कायकता सेवाथ के साथ घिन
संबंध थािपत कर उसे यह िव वास िदलाता है िक सं था क नीित के अनु प सा ा कार के मा यम से
िमली सूचनाएँ एवं त य गु रखे जाएगं े। िव ास अिजत करने के बाद ही सेवाथ अपनी सम याओ ं के
समाधान के िलए कायकता को वीकार कर उससे अपनी आंत रक मनोभाव एवं संकटपणू ि थित का

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 46


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

रह यो ाटन कर सहभाग करता है। सेवाथ ारा दी गयी सचू नाएँ आव यक सहायता हेतु अिभकरण के अदं र
व बाहर मा यावसाियक संबंध क सीमा रखी जाती है। सेवाथ के वृि -अिभलेख (caserecord) गु रखे
जाते है, अिभकरण के अंदर या बाहर अ य यावसाियक कायकता को कोई सचू ना सेवाथ क अनमु ित से
ही दी जाती है। गोपनीयता के िस ांत क मौिलक अिनवायता यह है िक इन सचू नाओ ं के दु पयोग से सेवाथ
को पणू वै ािनक सरु ा दान क जाती है। इस कार िज मेदारीपवू क सेवाथ क मनोसामािजक
प रि थितय का आंकलन कर त प ात अिभकरण क नीितय के अनसु ार उसका समाधान ढूंढ़ा जाना
चािहए।

सेवाथ क मनोदशा के अनस ु ार कायार भ का िस ांत


शु आत म कायकता सेवाथ के िलए अनजान रहता है। ऐसी प रि थित म यिद सेवाथ क
मनोदशा के अनु प ही कायकता वातालाप करना शु करता है तो सहज प से सेवाथ कायकता क तरफ
आकिषत हो जाता है। तदनु प िच का दशन करता है। इस तरह धीरे -धीरे संबंध बनने लगते है, िजससे
सेवाथ कायकता से भावना मक िनकटता व िव ास क अनभु िू त करता है, फल व प कायकता सहायता
हेतु योजना बनाना शु कर देता है। कभी-कभी ारंभ म सेवाथ क मनोदशा क जानकारी नह होती है तो
कायकता सेवाथ को अपनी बात कहने के िलए ो सािहत करता है और िफर उस आधार पर सेवाथ क
मानिसक दशा एवं मता क जानकारी ा कर अनक ु ू ल वातावरण म काय करता है।

सहायता काय के दौरान आव यक साधन के उपयोग का िस ांत


परामश क ि या के अतं गत कायकता से यह अपे ा क जाती िक अिभकरण व समदु ाय म
उपल ध िविभ न साधन क िविधवत जानकारी उसे अव य होनी चािहए और आव यकतानुसार सेवाथ क
मता वृि हेतु उनका सही उपयोग होना चािहए। इसके अित र और बात यान देने यो य है िक कायकता
साधन के योग के समय सदैव सेवाथ को उन साधन का ान कराते रह तथा सेवाथ को वयं के ारा
साधन के ाि हेतु ो सािहत करे । लेिकन सेवाथ साधन के चयन म असफल होता है तो ऐसी प रि थित
म कायकता अपने वयं के यास ारा सेवाथ के िलए आव यक साधन क उपलि ध करा देता है और
इस कर सफलता हािसल हो जाती है।

सहकार का िस ांत
यह िस ातं जातं व वावलबं न क भावना से ओत ोत है। कायकता हमेशा इस ढ़ िव ास से
काय करता है िक वह उसके साथ (with) काय कर रहा है न िक उसके िलए (for) काय कर रहा है (एहसान
नह )। इससे सेवाथ म परावल बन क भावना कम हो जाती है और आगे भिव य म वह अपने वयं करने
स म हो जाता है व सफलता ा करता है। इस कार सम या समाधान ि या के अतं गत योजना बनाने व
उसे ि याि वत करने म सेवाथ का सि य सहभाग िमलता है। ऐसी यव था म कायकता का िवशेष यान
रहता है।
संबंध थापन का िस ांत

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 47


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

वैयि क परामश ि या म कायकता एवं सेवाथ के म य संबंध का अित मह वपूण थान होता है।
ो. राजाराम शा ी के अनसु ार सेवाथ के साथ थािपत संबंध ही एक ऐसा उपकरण होता है िजसके मा यम
से कायकता-सेवाथ के उपचार क योजना के काया वयन म लगता है। कायकता सेवाथ क सम या एवं
उसके आतं रक एवं बाहर के वातावरण से संबंिधत जानकारी समिु चत संबंध थापन के उपरांत ही ा कर
सकता है। साथ ही िवषयगत एवं व तगु त दोन तरह क भावनाएँ सबं धं थापन म समािहत होती है। कौशल
से कायकता अपने ‘ व’ का सचेतन उपयोग कर अपनी भावनाओ ं के ित सदैव सचेत रहता है। साथ ही
वा तिवक व थानांत रत भावनाओ ं को भी सदैव यान म रखकर उनका समिु चत िनयं ण और उपयोग
करता है। कायकता का िदमाग सबं धं के यावसाियक प क तरफ भी के ि त होता है। इसम सबं धं
यावसाियक िकसी िविश ल य ाि से थािपत होते है। इन संबंध के बीच कायकता क यि गत बात
गौण हो जाती ह। इस तरह के सबं धं म पर पर-िज मेदारी, पर पर एक-दसू रे क मा यता और मतभेद क
वीकृ ित शािमल होती है। तािक कायकता सेवाथ को आदर-स मान देता है, इसिलए सेवाथ महससू करता
है िक उसक भावनाओ ं को वीकृ ित दान क गयी है और इसके साथ ही सेवाथ के अ तमन म कायकता
के ित एक िव ास क भावना भी जा त होती है, फल व प सेवाथ अपनी किठनाइय को प प से
कायकता को य कर देता है और कायकता क सलाह को भी वीकार करने लगता है।

िवभेदक िस ांत
ि डलडर (friedlander) ने वीकृ ित, संचार, वैयि करण, सहभािगता, आ मचेतना एवं
गोपनीयता के सामा य िस ांत के अित र सामािजक वैयि क परामश के िवभेदक िस ातं का भी
उ लेख करते हए यह प है िक िविभ न प रि थितय म उपचार क अलग-अलग िविधयाँ होती है। कुछ
प रि थितयाँ म उपचार क कुछ िविश िविधयाँ ह तो इसके ितकूल कुछ अ य प रि थितय म उपचार क
िविश िविधयाँ होती ह। कायकता सेवाथ के संबंध म उसक सम या का अ ययन व िनदान करके उसक
सम या के िनराकरण क िविधय को िनधा रत करता है जो अ य दसू रे िकसी सेवाथ के संबंध म उपयु भी
नह हो सकती है। अतः यह कहा जा सकता है िक एक सेवाथ क अपे ा दसू रे सेवाथ हेतु उपचार क
िविधयाँ अलग होती है। सेवािथय म िभ नता के कारण िवभेदक िस ांत का योग िकया जाता है। उपचार
योजना चयन म सहायता पहचं ाने के साथ-साथ उपचार- ि या के दौरान इसम ज री बदलाव लाने म यह
िवभेदक िस ातं सहायक िस होता है।

1.5 यि गत परामश ि या
परामश ि या अभी ल य ( यि के मानिसक वा य, आ म िनणय और आ मिसि क
मता म वृि आिद) क िदशा म आरं भ से अंत तक एक सू म बंधी होती है। ि या का अथ यह है िक
कई घटनाएँ एक ंखृ ला म एक िनि त अविध म घिटत होती है। यह अविध तीस या चालीस िमनट का स
हो सकती है या कई माह क अविध म अनेक स म फै ली हो सकती है। यि गत परामश ि या अभी
ल य क ाि के माग म कुछ म यवत ल य को ा करने का य न करती है। ि या ल य का व प
आरंिभक ल य को अिजत िकए िबना अगले ल य को अिजत नह िकया जा सकता है इसिलए परामश क

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 48


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

ि या को कुछ सिु नि त चरण एवं अव थाओ ं के मा यम से सिु नि त म म अ सर होना चािहए।


साधारणतया यि गत परामश ि या के आठ चरण बताए जाते है:
1) सेवाथ के साथ समय स का िनधारण
2) पवू -परामश स
3) परामश सबं धं का िवकास
4) परामश के िविश ल य क पहचान
5) ल य िसि के िलए काय योजना का िवकास और ि या वयन
6) परामश सबं धं का समापन
7) परामश के प रणाम का मू याकंन और
8) अनवु त काय।
परामश के चरण को बहधा पाँच अव थाओ ं क संरचना म िवभािजत िकया जाता है: तैयारी अव था;
आरंिभक अव था; म यवत अव था; स ांत अव था; अनवु तन अव था। परामश ि या के चरण एवं
अव था के बारे म ‘परामश एवं थेरेपी’ इकाई म िव तार से चचा क है। यि गत परामश ि या म चरण
एवं अव था के संरचना ारा ल य क ाि करते हए यि के समायोजन म िनमाण सम या का िनदान कर
सहायता क जाती है।

1.6 वैयि क परामश काय म कायकता-सेवाथ सबं ध ं


वैयि क परामश एक ऐसी ि या है जो वै ािनक ान और मानव सबं धं क िनपणु ता पर
आधा रत है। परामश काय अ यास म यावसाियक संबंध क एक मह वपणू भिू मका होती है। कायकता
सेवाथ के साथ उ े यपूण यावसाियक संबंध क थापना करता है। सम त संबंध के िव ान और कला पर
ही वैयि क परामश काय, सामिू हक परामश और सामदु ाियक परामश आधा रत होते ह। कायकता और
सेवाथ अिभकरण के साधन तथा अ य सामदु ाियक साधन से भािवत होते ह। वैयि क परामश के
अ यास के दौरान सेवाथ क सहायता करने के िलए कायकता- सेवाथ सबं धं यावसाियक होता है तथा यह
मै ी संबंध थापन क ि से ही नह थािपत िकया जाता, बि क यावसाियक ल य क ाि के िलए
और आ मीयता थािपत करने के िलए बनाया जाता है तािक सेवाथ क सम या के समाधान सफलतापणू
हो सके । इसके िलए हम सेवाथ के साथ सबं धं थािपत करने के िलए िकन-िकन बारीिकय को यान म
रखना आव यक होता है वे िन निलिखत ह-
कायकता-सेवाथ सबं ंध के िस ांत
सम या समाधान क ि या म कायकता-सेवाथ संबंध क मह वपूण भिू मका होती है।इस संपणू
ि या म सम या त/सेवाथ के सहयोग क अपे ा तभी क जा सकती है जब कायकता-सेवाथ संबंध
अित घिन ह । वैयि क परामश ि या म कायकता-सेवाथ के सबं धं पर बी टेक ारा दी गए िस ातं
िन नवत ह:

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 49


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

य करण का िस ांत
सेवाथ जब कायकता के पास सम या समाधान के िलए आता है तो वह समाज का एक सद य एवं
यि होता है। समाज म नए-नए प रवतन होते रहते ह,इसम यि को समायोजन म बाधाएँ िनमाण होती
है,िजसम उसक सम याएँ िविश एवं यि गत होती ह,िजसे अ छी तरह समझकर सहायता दान करने के
िलए लाभाथ का अलग-अलग सामािजक प रि थितय म य करण करना आव यक हो जाता है।
य करण अथात सम या त यि के िवशेष गणु क मब तरीके से जानकारी जटु ाना,उसक
सम याओ ं का मनोसामािजक अ ययन व िनदान कर उपचार हेतु वैयि क परामश के िस ांत , ि याओ ं व
िविधय का उपयोग करके उसक सम या का समाधान कर सहायता करना, तािक वह अपनी सामािजक
प रि थितय व पयावरण के साथ उ चतम सामजं य कर सके ।

ल यपूण अिभ यि का िस ांत


वैयि क परामश काय म कायकता ारा सेवाथ को अपनी भावनाओ ं क अिभ यि का संपणू
अवसर एवं वतं ता दान क जाती है। सेवाथ क भावनाएँ चाहे नकारा मक या सकारा मक हो दोन तरह
क भावनाओ ं को य करने से कायकता न रोकता है न ही उसक िनंदा करता है। बि क सेवाथ के सम त
बात को यानपवू क सनु ता है। उसक भावनाओ ं क अिभ यि करने म सहायता दान करता है,तािक इन
भावनाओ ं के उ े यपणू अिभ यि करण से लाभाथ के उपचार म मह वपणू सहायता िमलती है। अतः
भावनाओ ं का उ े यपूण कटन साथक होता है।

िनयंि त सवं ेगा मक संबंध का िस ांत


कायकता ारा यह यास िकया जाता है िक लाभाथ िजन भावनाओ ं को अिभ यि करता है
उसको हण करके यावसाियक ल य के अनु प ही उनका यु र दे। इस िस ांत के अनपु ालन म
कायकता सेवाथ क भावनाओ ं के ित जो भावना कट करता है वह पणू तः िनयंि त होनी चािहए। तािक
सेवाथ को लगे कायकता उसके बात पर यानपवू क सनु रहा है। कायकता-सेवाथ सबं धं िनयिं त सवं गे के
घेरे म यावसाियक ल य क पिू त हेतु ही बने होने चािहए।

वीकृित का िस ांत
सेवाथ जैसा है या िजस भी कार क प रि थित म है उसे उसी प म वीकार करके उसक
वतमान दशा के अनु प उसके साथ यवहार िकया जाना चािहए। सेवाथ वतमान प रि थितय को स मख ु
रखकर ही उसके ित मत बनाया जाए। सेवाथ क यो यता, मता,शि य अथवा कमजो रय एवं
िवघटनकारी मनोवृि य एवं यवहार को यान म रखकर कायकता को अपने यवहार का िनधारण करना
चािहए। सेवाथ के वैयि क मू य से भी कायकता का यवहार भािवत होना चािहए। कायकता सेवाथ को
िबना प पात व अपने संवगे ,भावनाओ,ं िव ास ,मू य व पवू ा ह का समावेश िकए यथाथ प म उसी
कार वीकार करता है और वीकृ ित सम या-समाधान हेतु आव यक होती है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 50


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

अिनणया मक मनोवृि का िस ांत


वैयि क परामश ि या के दौरान कायकता क मनोवृि याँ सेवाथ के गणु -दोष के संबंध म
अिनणया मक होनी चािहए। उसे सेवाथ के िकसी यवहार क न तो िनंदा करनी चािहए और न ही उसके
गणु -दोष के संबंध म कोई िनणय भी लेना चािहए। कायकता अपने ान एवं अनभु व के सहायता से लाभाथ
क मनोवृि , ि याकलाप व यवहार आिद का व तिु न प से मू याकंन करता है। इस मू याकन म
समाज के मू य , पर पराओ,ं आदश व िव ास आिद का भी याल रखा जाता है। इस मू याकंन का
आधार नैितक न होकर उसका ान, िनपणु ता व अनुभव होता है।

सेवाथ के आ म-िनदशन का िस ांत


सेवाथ को अपनी सम या के बारे म और िनदान म सहभागी क तरह शािमल होने एवं अपनी िच
के अनसु ार संबंिधत सम या के समाधान का पणू अिधकार होता है। आ म-िनदशन िस ांत के अतं गत यह
पणू अिधकार है िक सेवाथ िक सम या का िजस भी कार समाधान िकया जाए, सम या के समाधान म
िजन साधन का उपयोग िकया जाए तथा सेवाथ व उसके सम या के सबं धं म जो भी िनणय िलया जाए वह
सेवाथ का वयं िनणय होना चािहए। सम या समाधान क ि या म लाभाथ को अपनी अहम सहमित के
िवकास का मौका दान िकया जाना चािहए तािक वह अपने जीवन संबंिधत िनणय लेने म समथ हो सके ।
सेवाथ के िलए इसका मह व सवािधक है।

गोपनीयता का िस ांत
वैयि क परामश ि या म सेवाथ क सहायता के दौरान कायकता को यह आव यक है िक
सेवाथ के संबंध म जो भी मह वपणू सचू नाएँ एवं त य ात है उ ह पणू तः गोपनीय रखना चािहए तािक
कायकता- सेवाथ के बीच िव ासपणू संबंध का िवकास हो और संबंध का सम या के अ ययन, िनदान
और उपचार म सफलतापवू क योग िकया जा सके । सेवाथ अपने यि गत जीवन से संबंिधत रह य , िनजी
बात एवं सवं ेगा मक भावनाओ ं को सहज प से य करता है इसिलए कायकता का नैितक एवं
यावसाियक कत य बनता है िक वह सेवाथ संबंधी सभी सचू नाएँ गु रखे। साथ ही सेवाथ को यह िव ास
भी हो िक उससे संबंिधत सभी सचू नाएँ गोपनीय रखी जाएगं ी। इस तरह से गोपनीयता का िव ास होने पर
सेवाथ िनःसकं ोच अपनी सम या क तह म जाकर सभी प को उजागर करता है।

1.7 वैयि क परामश के अवयव


वैयि क परामश के चार मख
ु अवयव है। जो िन निलिखत है:
1) यि
2) सम या
3) थान
4) ि या

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 51


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

1) यि (Person): यि से अिभ ाय उस सामा य यि से है जो सामािजक मू य ,


मा यताओ,ं आदश व पर पराओ ं आिद के अनु प समांज य थािपत कर अपनी ि थित एवं भिू मका
के समिु चत िनवहन का य न करता हो, िजसम उसके वयं के एवं परू े समाज के िवकास व क याण क
अिभ िच िव मान हो। यिद ऐसी संभावना िदखे िक यि म ऐसी अिभ िच का अभाव हो तो इस दशा
म यि के सबं धं म समहू के दसू रे सद य से जानकरी ा क जा सकती है। कभी-कभी िकसी यि
के समाज िवरोधी काय व यवहार क ि थित म भी इसे सहायताथ वीकार कर समाज क मु य धारा
से जोड़कर उसे उपयोगी सद य बनाने का यास िकया जा सकता है।
2) सम या (Problem): यि के जीवन म कुछ ऐसी बाधाएँ एवं अवरोध उ प न हो जाते ह िजनके
कारण उसक काय करने क शि भािवत हो जाती है। वह ऐसे िकसी काय को करने म असमथ हो
जाता है िजससे उसके तनाव व दबाव म कमी आ सके , ऐसी प रि थित म यि सम या से त कहा
जाता है। ऐसे सम या त यि क सम याओ ं के समाधान हेतु िकसी बा सहायता क आव यकता
पड़ती है जो सं था/अिभकरण के मा यम से दान क जाती है।
3) थान (Place): वैयि क परामश काय क ि या स प न करने के िलए िकसी थान िवशेष क
आव यकता होती है जहां पर िशि त कायकता एक िविश ि या ारा एक अविध म एक
सम या त का समाधान कर सहायता दान करता है। सामा य प से इस काय क सपं नता के िलए
कुछ आव यक उपकरण, िवशेष क सेवाएँ, कुछ भौितक व तुएँ या पए पैसे आिद का बंध भी
इसी थान पर अपेि त होता है। इस तरह के थान को सं था/अिभकरण कहते है। पलमैन के मतानसु ार
फॉर पी (4Ps) का तीसरा त व अिभकरण/सं था है। सं था वह थान है जहां यावसाियक कायकता
सम या त यि क प पात के िबना सहायता दान करता है तािक सम या त यि अपनी
सम या का समाधान करके समाज म समायोिजत होकर अपना व समाज का क याण कर सके ।
वैयि क परामश ि या म उ ह अिभकरण को शािमल िकया जा सकता है जो मानव िहत व क याण
क ल यपिू त हेतु थािपत होते ह तथा सम या समाधान म सहायक होते है।
4) ि या (Process): ि या से ता पय उन मागत ि याओ ं से है िजसके ारा सम या के समाधान
हेतु वै ािनक आधार पर यावसाियक िविधय एवं िविधय का सदैव योग िकया जाता है। िजसम
कायकता और सेवाथ के बीच उिचत संचार होता है। कायकता सेवाथ से ल यपणू संबंध थािपत कर
यि क सम याओ ं का अ ययन एवं िनदान करता है, उन सम याओ ं व उनके कारण क जानकारी
यि को भी कराता है। साथ ही, उनक आतं रक व बा मताओ/ं यो यताओ ं को उ े रत करता है
तािक अपनी सम याओ ं को हल करने व मताओ ं के िवकास के म म समिु चत यास हेतु यो य बन
सके और अिधकतम सुखमय व संतोष द जीवनयापन कर सके ।
इस ि या के अंतगत समा यतः सम या त यि को िकसी अिभकरण के मा यम से िशि त
कायकता ारा वैयि क सेवा काय क िविभ न िविधय व िस ातं का उपयोग कर सहायता दान क
जाती है। कायकता ि या म सेवाथ क सम या, उसका यि व और सामािजक पयावरण के संबंध
म त य का अ ययन करता है। िनदान म सम या क उ पि पर यि व व सामािजक पयावरण का

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 52


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

भाव और इसे कै से दरू िकया जाए उसक काय योजना बनाता है। साथ ही िविभ न बा एवं आंत रक
साधन के उपयोग से सम या का उपचार करता है।

.18 सारांश
इस इकाई म हमने समाज काय म वैयि क परामश काय के व प को समझा। इसे समझने के िलए
हमने सम या त यि के साथ िजन िब दओ ु ं पर कायकता को यान देने क आव यकता होती है उनको
भी समझा।कायकता सम या त यि के सम या समाधान के िलए वैयि क परामश के िस ांत का
अनपु ालन कर उसके उपचार क ओर बढ़ता है। इसी के साथ ही सफल उपचार के िलए कायकता और
सेवाथ म िकस िजन संबंध क आव यकता होती है उन संबंध को भी समझा। साथ ही वैयि क परामश के
मह वपणू अवयव के बारे म भी हमने जानकारी ा करने क कोिशश क है।

.19 बोध
1. वैयि क परामश क अवधारणा को प क िजए।
2. हैिम टन एवं हॉिलस ारा य वैयि क परामश क मा यताओ ं का उ लेख क िजए।
3. वैयि क परामश काय के िस ांत क चचा कर।
4. वैयि क परामश ि या म कायकता-सेवाथ संबंध क मह ा को रे खांिकत क िजए।
5. वैयि क परामश काय के मह वपणू अवयव को प क िजए।

1.10 संदभ एवं अ य पु तक


1. पा डेय, बाले र (2017). परामश के नए आयाम जयपरु : रावत पि लके शन.
2. राय,अमरनाथ एवं अ थाना, मधु (2010) आधिु नक परामशन मनोिव ान. िद ली: मोतीलाल
बनारसीदास.
3. राय,अमरनाथ एवं अ थाना, मधु (2003) िनदशन एवं परामशन (सं यय, े एवं उपागम).
िद ली: मोतीलाल बनारसीदास.
4. दु गल, स य पाल (2007). िनदशन और परामश (सं क.पचं म). पचं कूला: ह रयाणा सािह य
अकादमी.

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 53


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

इकाई-2 यगु ल और प रवार परामश


इकाई क परेखा
2.0 उ े य
2.1 तावना
2.2 युगल परामश
2.3 युगल संबंध का यवहारा मक प
2.4 प रवार परामश
2.5 सारांश
2.6 बोध
2.7 सदं भ एवं अ य पु तक

2.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन प ात आप-
1. यगु ल परामश और उसक ि या को िव तारपवू क समझ सकगे
2. यगु ल परामश ि या म यवहारा मक प क भिू मका को जान सकगे
3. प रवार परामश क ि या से सबं िं धत जानकारी ा कर सकगे

2.1 तावना
मानव जीवन म प रवार का तथा यगु ल जीवन म यौिनक संबंध का िवशेष मह व है। िववाह
पा रवा रक जीवन का आधार िब दु है, हमारे जीवन म पा रवा रक एवं वैवािहक संबंध क िवशेषताओ ं का
यापक भाव पड़ता है। यिद वैवािहक सबं धं म िकसी कार क सम या हो तो जीवन क गणु व ा म तथा
जीवन के िविवध प से संबंिधत सख ु ानभु िू त म कमी आती है। प रवार हमारे अतं रंग, अितघिन संबंध का
पारंप रक प है।

2.2 युगल परामश


ेमपणू र ते हमारे जीवन म सबसे अहम होते ह। एक साथी का चयन करना और जीवनभर एकि त
रहना शायद ही कभी सरल होता है। जब हम अपनी पसंद से शादी करते ह और प रवार के साथ रहते ह, तो
आ यजनक प से के वल जिटलता से ही जड़ु ते ह।इस जिटलता म कुछ सकारा मक एवं नकारा मक
अनभु िू तयां मु य भिू मका िनभाती है।िजसम यगु ल के आपसी सबं धं , जीवन साथी के िलए उ साह क मा ा,
यौिनक संबंध म संतुि , आय, गृह वािम व, िश ा, सामािजक समानता, सहयोगा मक एवं देखभाल पूण
यवहार आिद क आव यकता होती है,िक तु सबं धं म ित पधा, वाथ, धोखा, जोर-
जबरद ती/बल योग,वैवािहक संबंध म असंतुि ,असहयोगा मक एवं सहयोगा मक यवहार न होना आिद
कारण से उ प न तनाव मानिसक सम याओ ं को ज म देता है। एक-दसू रे के ित षे भाव वातावरण का

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 54


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

िनमाण हो जाता है तथा आपसी संवाद का अभाव होता है; एक- दसू रे के िवचार या भावनाओ ं को हम
समझते नह ह तब संबंध म दू रयां बढ़ने लगती है और संबंध िवघटन क ओर बढ़ता जाता है।
यगु ल संबंध म थािय व क या या करने के िलए लागत-लाभ िव े षण संबंधी दो उपागम
मह वपूण होते ह। थम, आिथक मॉडल जो यगु ल संबंध के लागत-लाभ और िवक प के लागत-लाभ क
गणना एवं तल ु ना को यगु ल सबं धं के भिव य का सक
ं े तक मानता है। दसू रा, थीबॉट और के ली (1959) का
सामािजक िविनमय िस ा त िजसम लागत और लाभ के थान पर वैवािहक/यगु ल संबंध म ा हो रहे
परु कार (सकारा मक एवं नकारा मक अनभु िू तय ) क तल ु ना को आधार बनाया जाता है। लेिवंजर (1979)
ने सामािजक िविनमय िस ा त के िव तार म यह कहा है िक यगु ल सबं धं म कुछ आकषण के ोत होते ह,
जो संबंध को मजबतू ी दान करते ह तथा कुछ अ य ऐसे कारक होते ह जो इसे िवघिटत होने से रोकते ह।
सबं धं को मजबतू ी दान करने वाले आकषण के घटक म सकारा मक अनभु िू तयाँ जैसे- जीवन साथी के
िलए उ साह क मा ा, यौिनक संबंध म संतुि , आय, गृह वािम व, िश ा, सामािजक समानता आिद को
देखा जाता है। इसके िवपरीत धम, ब चे, वैधािनक एवं आिथक बाधा, प रवार एवं समाज/समदु ाय के भाव
यगु ल संबधं को िवघिटत होने से रोकते ह।

युगल परामश या है?


यगु ल परामश (इसको िववाह परामश के प म उपयोग िकया जा सकता है) यह एक ऐसी िचिक सा
है जो संवाद को बेहतर बनाने और अतं रंग संबंध (IntimateRelationship) क सम या का समाधान म
सहायता दान करता है। यगु ल सबं धं क सम या को परामश ारा समझौता म,पणू तः यि गत स के
मा यम से,पणू िकया जा सकता है। बातचीत िचिक सा (Talktherapy) म युगल परामश टम (Term) को
दो यि य के बीच संबंध के िलए उपयोग म लाया जाता है।
यगु ल परामश क एक मह वपणू िवशेषता यह है िक इसम सेवाथ पित या प नी अथवा सहवासी नह अिपतु
उनके म य का संबंध और उस संबंध क िवशेषताएँ होती है। परामशदाता का यान यि नह , णाली पर
कि त होता है। अ य कार के परामश म यि (सं ान, अनभु िू त, अनिु या आिद) म प रवतन क अपे ा
क जाती है िक तु यगु ल परामश म दो यि य के बीच के संबंध म प रवतन अपेि त होता है। इस बात को
यान म रखकर परामशदाता िचिक सा क ऐसी प ित को अपनाता है जो ासंिगक िश ण से युगल क
गितशीलता म सहायता करती है। यगु ल परामश के समय परामशदाता के अनसु ार आदश प से यगु ल
एकि त स के िलए अनक ु ू ल होने क ि थित म एकि त स क सहायता लेता है। सम या क पहचान होने
के उपरातं यगु ल परामश को यि गत स म िवभािजत कर सहायक बनाता है।
यगु ल परामश म सम या पहचान ारा संबंध क ग या मकता का पता लगाया जाता है। यगु ल जीवन म आने
वाली सम याओ ं का कारण प के वल संबंिधत यि य तक सीिमत नह रहता है। यि से बाहर उसके
सपं क म आने वाले सामािजक समहू उसके ारा भािवत होते ह तथा उसे भािवत भी करते ह। इस कार
यगु ल जीवन को भािवत करने वाली णािलय के तीन तर होते ह: यि , यगु ल एवं सामािजक समहू । इन
तीन तर के भाव वतं नह , पर पर अ योनाि त होते ह। इन कारण के पार प रक कारणा मकता
(MutualCausality) या च ानुगत संबंध परामश क ि से मह वपणू है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 55


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

इसके प ात दसू रा मह वपूण प परामश काय म यु होने वाले िविवध प र े य ह। परामशदाता युगल या
एक सद य को अनेक उपागम क सहायता से लाभ पहचं ा सकता है। सम याओ ं के व प के अनु प कभी
यवहारा मक उपागम ारा िकसी अनिु या/आदत का पुनबलन या िवलोपन िकया जा सकता है। सवाग
उपागम के मा यम से युगल सद य के समहू (प रवार) म या शि संतुलन को प रमािजत िकया जा
सकता है। िजन अनिु याओ ं का मल
ू आरंिभक जीवन के अवदिमत अनभु व हो, उ ह मनोग या मक उपागम
के मा यम से लाभाि वत िकया जा सकता है। अवदिमत अनभु व के कारण अवांिछत एवं अतािकक
अनिु याओ ं का िवकास होता है अतः ऐसे अनभु व को यि के चेतन तर पर बाहर लाकर औिच यपणू
अनिु याओ ं को िवकिसत करना सभं व हो पाता है। परामशदाता अनेक उपागम के म य िव मान सामा य
त व को यान म रखकर उनके उपयु योग को भी यु करते ह।

2.3 युगल परामश ि या


परामश ि या अभी ल य ( यि के मानिसक वा य, आ म िनणय और आ मिसि क
मता म वृि आिद) क िदशा म आर भ से अतं तक एक सू म बधं ी होती है। ि या का अथ यह है िक
कई घटनाएँ एक ंख ृ ला म एक िनि त अविध म घिटत होती है। यह अविध तीस या चालीस िमनट का स
हो सकती है या कई माह क अविध म अनेक स म फै ली हो सकती है। युगल परामश ि या अभी
ल य क ाि के माग म कुछ म यवत ल य को ा करने का य न करती है। ि या ल य का व प
आरंिभक ल य को अिजत िकए िबना अगले ल य को अिजत नह िकया जा सकता है। इसिलए परामश क
ि या को कुछ सिु नि त चरण एवं अव थाओ ं के मा यम से िनधा रत म म अ सर होना चािहए।
साधारणतया यगु ल परामश के आठ चरण बताए जाते ह:
1) सेवाथ के साथ समय स का िनधारण
2) पवू -परामश स
3) परामश संबंध का िवकास
4) परामश के िविश ल य क पहचान
5) ल य िसि के िलए काय योजना का िवकास और ि या वयन
6) परामश संबंध का समापन
7) परामश के प रणाम का मू याकंन और
8) अनवु त काय।
परामश के चरण को बहधा पाँच अव थाओ ं क सरं चना म िवभािजत िकया जाता है:

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 56


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

तैयार
अव था

अनुव तन आरं भक
अव था। अव था

स ांत म यव त
अव था अव था

तैयारी अव था; आरंिभक अव था; म यवत अव था; स ांत अव था; अनवु तन अव था। परामश ि या
के चरण एवं अव था के बारे म ‘परामश एवं थेरेपी’ इकाई म िव तार से चचा क गई है। युगल परामश
ि या म चरण एवं अव था क संरचना ारा ल य क ाि करते हए युगल संबंध म िनिहत सम या का
िनदान कर सहायता क जाती है।

2.3 युगल सबं ध ं का यवहारा मक प (Behavioral Aspects of Couple)


मनोवै ािनक के िलए यगु ल के सामािजक प क तल ु ना म यवहारा मक प अिधक मह वपणू
है। िविभ न समाज वै ािनक ारा यवहार के सेट आयाम क पहचान क गई है; इनम से तीन : सहचा रता
(companionship) वैवािहक भिू मका िन पादन (Marital Role Performance) एवं अतं ि या का
भावा मक गणु को ू टन एवं अ य (1987) ने वैवािहक संबंध क िवशेषता से संबंिधत बताया है। जबिक
अ य चार:- मल ू प रवार एवं अ य प रजन के साथ संिल ता (Involvement With Family of Origin
and other Kins), िम सहकिमय एवं अ य गैर प रजनीय सबं धं म सिं ल ता,ब च के साथ सिं ल ता
एवं सामदु ाियक गितिविधय म संिल ता का संबंध सामािजक संदभ या अंतरवैयि क संबंध तं से है।
ू टन एवं अ य (1987) ने अपने शोधकाय म पित/प नी एवं युगल के जीवन क घटनाओ ं के आ म-वणन
(Self-Report)के आक ं ड़ के आधार पर सम त गितिविधय को
अ) गृह काय
ब) िव ाम-काल गितिविधयाँ
स) सकारा मक एवं नकारा मक घटना क ेणी म िवभािजत िकया है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 57


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

प रवार एवं यगु ल क वैवािहक सम याओ ं को समझने क ि से इन सकारा मक एवं नकारा मक घटनाओ ं
का वणन मह वपणू है। जो िन नवत ह-

सकारा मक/सख ु दायी यवहार (Positive/Pleasing Behaviors)


 आपके पित/प नी ने आपका अथवा आपके ारा िकए गए काय का अनमु ोदन िकया।
 आपके पित/प नी ने कुछ ऐसा िकया अथवा कहा िजस पर आप हँसे।
 आपके पित/प नी ने आपसे ‘आई लव यू’ कहा।
 आपने एक-दसू रे से ऐसे िवषय म बात क जो उस समय घिटत हआ जबिक आप अलग थे।
 शारी रक संबंध बनाने।
 आपने शारी रक सबं धं बनाते समय शरीर क भाषा म नेह दिशत िकया, यथा चबंु न, आिलगं न
आिद जगु ाली।
 अपनी भावनाओ,ं अनभु िू तय या सम याओ ं के िवषय म एक-दसू रे से बात क ।
 पित/प नी ने आपके साथ शारी रक संबंध बनाने के िलए पहल क ।
 पित/प नी ने आपके ित कुछ ऐसा अ छा िकया िजसके िवषय म आपने अपे ा नह क थी।
नकारा मक/दुखदायी यवहार (Negative/Displeasing Behaviors)
 पित/प नी आपक बातचीत से बोर या उसम िच न लेते हए तीत हए।
 पित/प नी आपक वाता म वच व थािपत कर रहे थे, आपको बोलने से रोक रहे थे या आपको
बोलने का अवसर नह दे रहे थे।
 पित/प नी ने अपनी ऊंची आवाज, िच लाकर, फटकार कर आपके ित ोध या अधीरता कट
क।
 आपने जो कुछ िकया अथवा नह भी िकया उसक आपके पित/प नी ने आलोचना या िशकायत
क।
 पित/प नी ने आपक शारी रक संबंध बनाने के िवषय म पहल को नकार िदया।
 पित/प नी ने वह नह िकया िजसक आपने उनसे अपे ा क थी।
 पित/प नी ने कुछ ऐसा िकया िजसके िवषय म उ ह ात था िक इससे आपको झझंु लाहट होगी जैसे-
कोई आदत, िबजली जलती छोड़ देना, अपने कपड़े ठीक से न रखना आिद।
वैवािहक संबंध म सम याएँ
डेरेक िह ल ने (DerekHill,2000) पित-प नी के संबंध म िन निलिखत मख ु सम याओ ं का उ लेख
िकया है:
1) आपसी सवं ाद क सम या
2) आव यकताओ ं का ं एवं पाथ य
3) िववाहेतर ेम सगं

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 58


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

4) यौिनक सम याएँ
5) माता-िपता के प म ं
6) बलपवू क थािपत भिू मका म बदलाव
7) आ ामकता औषिध/पदाथ दु पयोग
8) ई या/ व वबोध (पजेिसवनेस)
यौिनक सम याओ ं के तीन प होते ह-
i. नारी यौिनक काया मकता के दोष- शारी रक संबंध म िच एवं उ ेजना का अभाव, आगा म
(चरम सखु ) क ाि न होने क सम या, आिद।
ii. पु ष क यौिनक काया मकता के दोष- शारी रक संबंध म िच का अभाव, िलंग त भन एवं शी
पतन क सम या आिद।
दपं ि तर क सम या- दोन सद य क शारी रक संबंध बनाने संबंधी िच क मा ा म अतं र, संवाद क
सम या आिद।

2.4 प रवार परामश


यि सामािजक संबंध का अिभ न अंग है। संबंध से पृथक वह न तो मनोवै ािनक एक पता ा
कर सकता है और न ही मानवीय दशाओ ं को समझने क यो यता उ प न कर सकता है। उसका अि त व,
िवकास तथा यवहार उसके तथा पयावरण के म य अ तरि या पर िनभर होता है। वह एक जैिवक य
मनोसामािजक जिटलता है िजसके तीन अगं का पृ क करण अस भव है अथात यि के तीन अिभ न
अगं ह: 1) जैिवक य 2) मनोवै ािनक 3) सामािजक। वह मनोसामािजक व प प रवार क इकाई के मा यम
से ा करता है।
आिदकालीन सरल समाज से लेकर वतमान जिटल समाज तक प रवार सामािजक संगठन क एक
आव यक इकाई रहा है। इसका ज म संभवतः तभी हआ जब यि का हआ य िक मानव समाज म
प रवार ही एक ऐसी सामािजक आधारभतू इकाई है िजसके अतं गत तथा िजसके ारा यि पाशिवक
वृि य का शोधन तथा समाजीकृ त कर सामािजक कृ ित ा करने म सफल हो सका है। यि का
अि त व प रवार म ही संभव होता है। ब चा प रवार म न के वल ज म लेता है बि क यह वह सामािजक
गणु का िवकास कर समाज का एक िविभ न अगं बनाता है। उसके यि व का िवकास प रवार म ही होता
है। प रवार के अतं गत ही समाज के रीित- रवाज , थाओ,ं रीितय , यवहार , मा यताओ,ं आदश तथा
िव ास को सीखता है तथा उन मू य के अनक ु ू ल अपने-अपने यवहार को ढालने का य न करता है। अतः
प रवार एक सावभौिमक सं था है और िजसका िवकास सामािजक जीवन से संबंिधत आव यकताओ ं क
पिू त के अिनवाय साधन के प म हआ है।

प रवार परामश का अथ:


नाथन अकरमैन, (1958) के अनसु ार, प रवार परामश का ता पय उस उपचारा मक अिभगम से है,
िजसके ारा उन पा रवा रक संबंध यव थाओ ं म प रवतन तथा संशोधन लाया जाता है जो प रवार तथा

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 59


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

इसके सद य के िदन- ितिदन के काय म यवधान उ प न करती है। प रवार िचिक सा म िचिक सा का क
िब दु यि न होकर प रवार वयं होता है। य िप यि क आव यकताओ ं तथा िवशेषताओ ं को यान म
रखा जाता है परंतु प रवार क अ तरि या यव था पर िवशेष प से यान कि त िकया जाता है।
प रवार परामश एक उपचारा मक अिभगम है जो सेवाथ के पा रवा रक संबंध यव थाओ ं तथा
उनका सद य पर चेतन व अचेतन भाव का अ ययन करता है। अतः वह मनोिव े षणा मक िस ा त से
काफ िमलता-जल ु ता है। यह अिभगम यि को ही पणू ता म न देखकर यव था के एक अगं के प म
देखता है। यह एक सामिू हक अिभगम (GroupApproach) है जो प रवार के एक यि के थान पर कई
यि य पर अपना यान क करता है तथा लघु समहू ग या मक िस ातं तथा िविधय का उपयोग करता
है।
ारंिभक तर: परामश क ि या लोकतांि क िस ांत पर आधा रत है। अतः परामशदाता तभी ह त ेप
करता है जबिक उसे ऐसा करने के िलए आमिं त िकया जाता है। सव थम सेवाथ को परामश क
आव यकता का बोध होना चािहए; उसे अपने यवहार म िकसी सम या का य ण और बाहरी सहायता
क आव यकता अनभु व होनी चािहए। कायकता सेवाथ के ल ण के आधार पर यह िनि त करता है िक
थम सा ा कार िकससे करना है तथा िकन-िकन लोग को उसम सि मिलत करना है। यह कायकता क
कायशैली पर िनभर करता है िक वह िकस कार काय ार भ करता है। कुछ कायकता पहले माता-िपता का
सा ा कार करते ह, कुछ कायकता स पणू प रवार के सद य का प रचय ा कर लेना िनदान ि या के
िलए आव यक समझते ह। साधारणतया िजस कार क िशकायत अथवा सम या होती है, उसी आधार पर
ारंिभक काय का िनधारण होता है। जैसे यिद सम या का सबं धं िववाह से है तो वैवािहक जोड़े का
सा ा कार थम होगा और यिद सम या का संबंध ब च से है तो स पणू प रवार को सि मिलत िकया
जाएगा।
प रवार से सा ा कार का उ े य प रवार तथा प रवार के सद य से सम या क कृ ित, ल ण, ोत आिद से
अवगत कराना है। इससे उपचारा मक ि या के िलए बल िमलता है तथा प रवार के सद य म सम या
समाधान क मता बढ़ती है। कायकता तथा सेवाथ के प रवार के म य सव थम िचिक सा मक समझौता
होता है। इससे गितरोध म कमी आती है तथा नयी िदशा एवं फूित जा त होकर दोन म िव ासपणू संबंध
थािपत होते ह। प रवार को यह िव ास होता है िक कायकता वा तव म सम या का समाधान करना चाहता
है तथा कायकता को भी िव ास होता है िक प रवार उसक सहायता का इ छुक है। इस समझौते के कारण
ही दोन म सांवेिगक संबंध थािपत होते ह और अपने-अपने उ रदािय व का हण, लगन तथा इ छा से
होता है।
पा डेय, बाले र एवं िसंह, क ित िव म (2017) ने अपनी िकताब ‘परामश के नए आयाम’ म परामश हेतु
प रवार इकाई से सा ा कार के िन नवत उ े य बताए ह:
1. वतमान सम या के सदं भ म प रवार के सद य या भिू मका िनभा रहे ह तथा या समझ रहे ह। इसको
दिशत करना िजससे वे प रवार क सम या क जिटलता एवं भावा मकता को समझ सक।
2. एक-दसू रे क भावनाओ ं तथा उनके यवहार पर भाव को दिशत करना।
3. अकाया मक िविध तथा उसके िनरंतर उपयोग को प रवार के सम उपि थत करना।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 60


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

4. पा रवा रक िचिक सा संबंध का िवकास करना।


5. इस त य को बताना िक य प रवार के सभी सद य को िचिक सा ि या म सा ा कार करने क
आव यकता है।

मू याकंन(Assessment):
िन निलिखत आधार पर मू यांकन िकया जाता है:
1) िवषयव तु (Content)- प रवार का प रचय, प रवार सद य सं या, येक सद य क आय,ु
सबं धं , काय, िश ा, आिथक, तर, धािमक िच आिद। वतमान सम या, िशकायत, ाथना,
ाथना-प देने का कारण, सम या क कृ ित, सम या िजससे संबंिधत है, कब से सम या है,
प रवार के सद य क सम या के ित या िति याएँ ह, समान तथा िवभेदी िवषय कौन-कौन से
ह आिद।
2) पा रवा रक सरं चना तथा िति याएँ (Family Structure and Processes)- I) उ तथा
भिू मका के आधार पर उ रदािय व का बटं वारा िदन- ितिदन के काय को परू ा करने के पा रवा रक
तरीके । II) अिभ ान के तरीके तथा भिू मका िनवाह, भिू मका के आधार पर पा रवा रक संबंध।
3) उ ेशीय संबंध क कृित- सद य िकस कार एक-दसू रे क आव यकताओ ं का यान रखते ह,
संतोष ा करने का यास करते ह, प रवार के सद य को कहाँ तक वैयि क िच परू ी करने क
छूट है, आयु के आधार पर िकतनी िनभरता, अलगाव, आ मिनभरता है।
4) प रवार क भावनाओ ं को िकस कार समझा जाता है, भावनाओ ं क अिभ यि क या कृ ित है,
िकतनी सहनशीलता है, िनयं ण िकतना है, आ मीयता, उ ता, लिगकता, िचंता, ितगमन, धािमक
रीित- रवाज आिद का या प है। सद य को येक े म िकतनी वत ता है, वे िकतना
िनयं ण वीकार करते ह आिद।
5) वा तिवक य ीकरण क िकतनी मता है, आ म अवलोकन क या य ीकरण है, प रवार म
मनो-सरु ा मक यं का कहाँ तक उपयोग होता है, अवरोध कौन-कौन से ह आिद।
6) संघष एवं समाधान के तरीके - प रवार म िनणय ि या, तनाव दरू करने के तरीके , सम या
समाधान के तरीके , िवचार क िभ नता वाले िवषय।
7) प रवार के मू य- सां कृ ितक तथा सामािजक भाव, नैितक, धािमक ि कोण का थान तथा
उनके ह तांतरण के तरीके , सामािजक आकां ाएँ तथा इ छाएँ, प रवार का समाज म थान।
8) संचार के तरीके - सां कृ ितक भाव, मौिलक एवं अ-मौिलक संचार ि या क शैली, संचार का
भाव तथा उ े य, संचार का ि तर, वीकृ ित तथा अ वीकृ ित के े , भाषा का उपयोग तथा
उसक प ता।
9) प रवार का इितहास- सम या से संबंिधत आव यक आंकड़े जैसे- वैवािहक जीवन का इितहास,
बाल िवकास, मह वपणू घटनाएँ, प रवार म भिू मका का प रवतन, बीमा रयाँ, हािन आिद सामािजक
अनक ु ू लन तथा सामािजक आव यकताएँ।
10) सद य का इितहास- यवहार, ल ण, वा य, अनक ु ू लन, प रवार म किठनाईयाँ आिद।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 61


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

11) सम या समाधान हेतु उपल ध शि - येक सद य म सम या से लड़ने क शि तथा


सं ामकता, वैयि क िच तथा यो यता, सम या पर काय करने क इ छा, वैवािहक संबंध के
ित भय, िचंता, प रवार म घिन ता तथा अलगाव क इ छा तथा कृ ित आिद।
परामशदाता उपयु िनदशन िब दओ ु ं का उपयोग करके िवषय-व त,ु ि या, पा रवा रक संरचना
आिद का ान होने पर उपचार क योजना बनाता है। उ े य िनधा रत करता है तथा िविश काय-
णाली बनाता है। इन िब दओ ु ं के मा यम से िन न जानकारी ा होती है:
1. वतमान सम या का क िब दु या है, या यह अतं रवैयि क संबंध म ि थर है; परू े
प रवार से सबं िं धत है या िकसी एक यि से सबं िं धत है अथवा प रवार से बाहर इसका
कोई संबंध है।
2. प रवार के थािय व म या बाधाएँ ह तथा थािय व य नह बन पा रहा है।
3. उपचारा मक ि या म िकतना सहयोग िमलने क आशा है, िकस यि को य प
से िचिक सा ि या म लगाना है आिद।
4. िकन-िकन िविधय तथा िविधय का उपयोग लघु तथा दीघकालीन उ े य क ाि के
िलए करना है। उ े य कुछ भी हो, कायकता तथा प रवार दोन क वीकृ ित आव यक है।

पा रवा रक परामश का उ े य
पा रवा रक परामश म प रवार क संबंध यव था म संशोधन तथा प रवतन करती है। य िप
यव थाएँ थायी होती ह परंतु िकसी कारणवश सद य क िचयाँ एवं इ छाओ ं को परू ा करने म असमथ
होती ह। वे िदन- ितिदन के काय म बाधा उ प न कर देती ह। सहायता उस समय क जाती है जब प रवार
क शि कम होती है तथा िचंता अिधक होती है। प रवार म ितकूिलत भिू मका के सधु ार के िलए उिचत
भिू मका थािपत करने के िलए इसका उपयोग होता है। इस ि या का अंितम उ े य प रवार के संबंध म
थािय व तथा घिन ता उ प न करना है। साथ ही प रवार के सद य क सहायता करना िजससे वे एक-दसू रे
को अ छे तरीके से समझ सक, भावनाओ ं का आदर कर, आव यकता पिू त म सहायता कर, सचं ार ि या
सकारा मक हो, उसम प ता हो तथा वा तिवक उ े य क ाि संभव हो सके ।

2.5 सारांश
इस इकाई म हमने यगु ल एवं प रवार परामश क ि या को समझा साथ ही यगु ल के बीच अतं रंग
सबं धं से सबं िं धत सम या को िकस तरह सहायता दी जाती है, को जाना। यगु ल सबं धं के यवहारा मक प
को जानने के िलए परामशदाता को िकन िब दओ ु ं पर यान देना चािहए उसे रे खांिकत िकया गया है। प रवार
परामश म िचिक सा का क िब दु यि न होकर प रवार वयं होता है।पा रवा रक संबंध यव थाओ ं म
प रवतन तथा सश ं ोधन क ि या म परामशदाता क द ता को समझा साथ ही पा रवा रक परामश के
उ े य को देखा।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 62


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

2.6 बोध
1. यगु ल परामश क अवधारणा को प क िजए।
2. यगु ल परामश म यवहारा मक प क चचा कर।
3. प रवार परामश ि या को िव तार से समझाएँ।
4. प रवार परामश म मू याकंन के िब दओ
ु ं चचा कर।

2.7 सदं भ एवं उपयोगी थ ं


1. पा डेय, बाले र (2017). परामश के नए आयाम. जयपरु : रावत पि लके शन.
2. राय,अमरनाथ एवं अ थाना, मधु (2010) आधिु नक परामशन मनोिव ान. िद ली: मोतीलाल
बनारसीदास.
3. राय,अमरनाथ एवं अ थाना, मधु (2003) िनदशन एवं परामशन (सं यय, े एवं उपागम).
िद ली: मोतीलाल बनारसीदास.
4. दु गल, स य पाल (2007). िनदशन और परामश. पचं कूला: ह रयाणा सािह य अकादमी.

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 63


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

इकाई-3 परामश एवं थेरेपी: अंतरसबं ध



इकाई क परेखा
3.0 उ े य
3.1 तावना
3.2 परामश : एक प रचय
3.3 परामश के ल य और उ े य
3.4 सायकोथेरेपी: एक प रचय
3.5 सायकोथेरेपी के मुख घटक
3.6 सायकोथेरेपी क ि या को भािवत करनेवाले मुख कारक
3.7 सायकोथेरेपी क ि या
3.8 परामश एवं सायकोथेरेपी के बीच सबं ध

3.9 सारांश
3.10 बोध
3.11 सदं भ एवं उपयोगी थ

3.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के प ात आप -
1. परामश और थेरेपी के अतं सबंध को समझ सकगे।
2. परामश और थेरेपी के बीच के अतं र को प कर सकगे।

3.1 तावना
िव ान का मानना है िक परामश तथा अ य िचिक सा िव ान अपने इितहास और अपने मह वपणू
िब दओु ं के आधार पर अलग ह। बावजदू इसके इन दोन ानानश ु ासन का एक दसू रे के साथ का संबंध एवं
अतं :ि या लगातार देखने को िमलती है। िचिक सा िव ान के अलावे अ य सहायक णािलयाँ जैसे
मनोिचिक सा और नैदािनक मनोिव ान मल ू प से गभं ीर संवेगा मक यवहार के प रवतन पर यान देती ह।
जैसे िक समाज काय मल ू प से दसू र क सहायता करने म सामािजक और िविधक प को यान म रखता
है तथा िचिक सा िव ान से अलग परामश िश ा एवं अ पकािलक उपचार के मा यम से वैयि क िवकास
तथा मानिसक वा य सम याओ ं क रोकथाम पर यान देता है। इन सबका अपना-अपना एक ल य है परंतु
इन सब िव ान का अिं तम ल य मानव को उिचत सेवा दान करना है। इसक ाि के िलए यह सभी
वृि यां एक दसू रे को सहयोग करती िदखाई देती है।
िपछले कुछ दशक म मानिसक वा य के े म बड़े बदलाव हए ह। मानिसक िवकृ ितय , रोग के
वग करण का चलन काफ बढ़ा प रणामत: यरू ोिसस (Neurosis) और सायकोिसस (Psychosis) म
मानिसक वा य से संबंिधत बीमा रय का बंटवारा हआ.

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 64


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

यरू ोिसस म उन िवकृ ितय और बीमा रय को रखा गया िजसे सामा यत: सामािजक पयावरण म ही
ठीक िकया जा सकता है। उदाहरण के िलए िचंता, दबाव, कंु ठा आिद। िकंतु सायकोिसस से संबंिधत
बीमा रय के िलए हॉि पटल एवं फामाकोलोजी क आव यकता को महससू िकया जाता है। उदाहरण के
िलए ि कजो े िनया, बायोपोलर िडसऑडर आिद।
यही समय था जब के स मैनेजमट के अतं गत बह- यवसायी, बह- ानानशु ासना मक टीम के प म
सेवाथ को सेवा महु यै ा कराने का चलन बढ़ गया। ऐसे म ख़ास कर यरू ोिसस से संबंिधत बीमा रय एवं
िवकृ ितय से िनजात पाने म थेरेपी एवं परामश जैसी शु आती सहयोग ि याओ ं का चलन काफ बढ़
गया है। यि क बदली हई जीवन शैली को समझने एवं उनक सम याओ ं क जिटलता को समझते हए
सम या से िनबटान म परामश और सायकोथेरेपी (Psychotherepy) जैसी ि याएं एक दसू रे को सहयोग
करती हई िदखती है।
इस इकाई म हम पहले परामश क समिु चत ि या को समझगे तथा उसके बाद सायकोथेरेपी क ि या को
समझने क कोिशश करगे। साथ ही परामश और सायकोथेरेपी के बीच अतं सबंध क चचा करगे और अतं म
इन दोन के बीच भेद के कारक क चचा करगे।

3.2 परामश : एक प रचय


म रयम वेब टर मेिडकल िड शनरी (2017) के अनसु ार “परामश एक यि को िदया जाने वाला
यावसाियक िनदशन है िजसके िलए मनोवै ािनक प ितय का उपयोग िकया जाता है िवशेषत: के स िह ी
म त य सक ं लन के िलए। साथ ही यि गत सा ा कार क िविभ न तकनीक एवं अिभवृि और िहत के
प र ण का उपयोग भी इसम िकया जाता है।”
थ ांग के अनसु ार “परामश ि या एक संयु यास है। परामश ि या का सारत व इन संबंध म है
िजसम परामश ा यि , वयं को पणू त: अिभ य करने के िलए वतं ता का अनुभव करता है तथा
अपने ल य , सा य के बारे म प ीकरण व सा य ाि हेतु साम य और सम या कट होने पर उसके
समाधान हेतु यु साधन एवं िविधय के ित आ मिव ास ा करता है” (राय & अ थाना, 2015, पृ.
326)।
ि िटश एसोिशएशन फॉर काउ सेिलंग (1984) के अनसु ार “परामश श द म यि के साथ िकए जाने वाले
ऐसे काय और सबं धं िनिहत है जो शायद िवकासा मक, सक ं ट सहायता, सायकोथेरे यिू टक, िनदशन या
सम या समाधान परक हो... परामश काय के अतं गत ‘सेवाथ ’ को अ वेषण एवं खोज का अवसर तथा
यादा से यादा सतं ोषपणू एवं ससं ाधनयु जीवन जीने क राह का प ीकरण ा होता है” (McLeod,
2003, पृ. 7)।
कुल िमलाकर परामश एक सि मिलत यास है िजसम परामशदाता तथा सेवाथ सि मिलत प से सम या
का समाधान खोजते ह। परामश मल ू त: सेवाथ के ि त ि या होती है। इसिलए परामश सेवाथ ारा मागं े
जाने पर िदया जाता है।
उ प रभाषाओ ं एवं अ य िव ान के मतानसु ार परामश क िन निलिखत िवशेषताएं िदखाई देती है-
• परामश एक ि या है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 65


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

• परामश म परामशदाता एवं सेवाथ के बीच अतं :ि या मक संबंध है।


• परामश का व प िवकासा मक, संकट सहयोग, सम या समाधान, िनरोधा मक एवं उपचारा मक
होता है।
• परामश ि या आमने-सामने एवं सेवाथ के ि त होती है।
• परामश ि या म िविभ न अव थाए-ं पवू -तैयारी, आरंिभक, म यवत , समापन और अनुवत अव थाएं
शािमल होती ह।

परामश के मु य घटक (Components of Counselling)


परामश ि या म चार घटक मह वपूण होते ह िजनके अभाव म परामश पूण नह हो सकता या सफलता को
ा नह कर पाता। वे चार घटक ह- परामशदाता, सेवाथ , सं था, सै ांितक उपागम। (अिधक जानकारी हेतु
देख MSW 15 खडं 01 क इकाई -01)।

3.3 परामश के ल य और उ े य
परामश ि या सेवाथ के िहत म होती है िजसम िविभ न उपागम का उपयोग कर परामशदाता सेवाथ को
उिचत ल य तक पहँचने म मदद करता है। इस ि या के दौरान िविभ न ल य बनाकर उसक ाि का काय
सेवाथ परामशदाता के सहयोग से करता है। इस सामा य ल य के बावजदू परामश ि या के अ य
मह वपूण ल य ह जो िन निलिखत ह-
• सहयोग
• सशि करण
• बहाली (Restitution)
• मनोवै ािनक िश ा
• सामािजक कौशल का अजन
• िनणय-रचना
• सम या समाधान
• समायोजन
• आपातकालीन ह त ेप एवं बंधन
• ल यण उ मल
ू न तथा सधु ार
• आ म-बोध का िवकास

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 66


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

• आ म- वीकृ ित का िवकास
• आ म-वा तािवक करण या वैयि करण
• नवजागरण
• सम या समाधान
• प रवेश एवं वयं के ित सकारा मक ि कोण का िवकास
• जीवन म साथकता एवं अथबोध का िवकास
• अप रहाय को वीकारने हेतु त परता का िवकास
• सं ाना मक प रवतन
• यवहार प रमाजन एवं यि व प रवतन
• यव था, संगठन तथा समाज म प रवतन
• उपयु वा य यवहार का िवकास
• सझू का िवकास
• अ य के साथ संतोषजनक संबंध थापना
परामश के उ े य
• मानिसक वा य
• यि के संसाधन का संवधन
• काया मक ि से यि का िवकास सहज बनाना
• व-आ मीकरण
• आ म-िसि आिद
परामश के े
• मानिसक सम या- दबाव, आघात, िचंता तथा गभं ीर मानिसक सम याएं
• कूल म ब च क समायोजन क सम याएं
• कॉलेज म कै रयर संबंधी सम याएं
• पा रवा रक जीवन म समायोजन संबंधी सम याएं

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 67


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

• वैवािहक सामंज य तथा


• कायरत जगह क सम याएं आिद

3.4 सायकोथेरेपी: एक प रचय


मनु य का यि गत जीवन अपने आस-पास घटने वाली प रघटनाओ ं से काफ जड़ु ा रहता है यही
कारण है िक उन सब का असर यि के जीवन पर िचंता, तनाव, अवसाद आिद के प म िदखने लगता है।
ऐसे म यि के र ा तं मजबूत प से काम कर रह हो तो ठीक है, परंतु कभी-कभी एक साथ कई
सम याओ ं का जीवन म वेश करना यि को िमत अथवा दबाव म डाल सकता है। ऐसे म इन सम याओ ं
से िनजात पाने म कुछ ता कािलक सझु ाव एवं िचिक सा णािलय क सहायता ली जा सकती है। परामश
एक लंबी चलने वाली ि या है िजसम धन और समय यादा खच भी होता है ऐसे म सायकोथेरेपी के
अतं गत समय और धन को बचाते हए कम समय म िनबटान िकए जाने वाली सम याओ ं से िनजात पाई जाती
है।
साइकोथेरेपी श द क यु पि , ाचीन ीक श द साइक से हई है, िजसका अथ होता है ास या आ मा
और थेरैिपया का अथ होता है, प रचया करना या उपचार करना. इस श द के थम योग का उ लेख 1890
के आसपास िमलता है। इसे एक िविश िस ांत या ितमान पर आधा रत मा यम के योग ारा िचंता से
आराम िदलाया जाता है। इस तरह के उपचार का संपादन करने वाले ितिनिध के पास इसके िन पादन के
िलए िकसी (ख़ास) कार का िश ण ा होना चािहए। अतं के दोन िबंदु सायकोथेरेपी को परामश और
देखरे ख के अ य ा प से अलग करते ह।
मे रयम-वेब टर िड शनरी (2017) के अनसु ार “सायकोथेरेपी श द का अथ ऐसी िचिक सा से लगाया जाता
है जहां मानिसक या सांविे गक बीमा रय म मेिडिसन अथवा दवाइय क अपे ा सम या संबंधी बातचीत पर
जोर िदया जाता हो (Merriam-Webster, 2017)।”
इसी िड शनरी म मेिडकल पदावली के अतं गत सायकोथेरेपी को प रभािषत िकया गया है:
“एक ऐसी िचिक सा िजसम मनोवै ािनक अथ म मानिसक, सांविे गक िवकृ ितयाँ तथा कुसमायोजन का
उपचार िकया जाता हो, ख़ास कर वािचक संचार (इसके अतं गत मनोिव े षण, अिनदिशत सायकोथेरेपी,
पनु ःिश ा या स मोहन आिद) ारा (Merriam-Webster, 2017)।”
ओलवग (1967) के अनसु ार “सायकोथेरेपी सावं ेिगक कृ ित क सम याओ ं के उपचार का एक ा प है
इसम िशि त यि एक रोगी के साथ जान-बूझकर पेशेवर संबंध बनाता है िजसका उ े य उस यि म
सकारा मक यि व िवकास करना तथा वतमान मिं दत यवहार ल यण को दरू कर उसके यवहार को
प रमािजत करता है।”
रौटर (1976) के अनसु ार, “सायकोथेरेपी मनोवै ािनक ारा क जाने वाली एक सिु नयोिजत ि या होती है
िजसका उ े य यि के जीवन म ऐसा प रवतन लाना है िजससे उस यि के भीतरी जीवन बहत खश ु और
अिधक संरचना मक बना रह।”

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 68


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

उपयु त प रभाषाओ ं से यह तो ात होता है िक सायकोथेरेपी क ि या सेवाथ और थेरेिप ट के बीच


उ े यपणू संबंध थािपत होते ह िजसके अतं गत रोगी को अपनी सम या अिभ यि क जगह िमल जाती है
और थेरेिप ट उस जगह का उपयोग सेवाथ म सम या के ित नज रया, सम या िनबटान हेतु यवहार
प रमाजन आिद का उपयोग कर उसका आ म स मान और आ म िव ास पनु :कायम करने म करता है।

3.5 सायकोथेरेपी के मुख घटक


1. सेवाथ
2. थेरेिप ट
3. थेरेि टक संबंध
4. सायकोथेरेपी क तकनीक
सेवाथ से ता पय ऐसे यि से है जो सम या समाधान या िचिक सा क मांग रखता ह । इसम मानिसक,
सांविे गक, मादक पदाथ दु पयोग, दिु ंता, अवसाद आिद नायु िवकृ ितय से िसत तथा आिथक एवं अ य
सामािजक, पा रवा रक सम याओ ं से सबं िं धत यि को सेवाथ के प म या याियत िकया जाता है।
सायकोथेरेपी म दसू रा मह वपणू घटक थेरेिप ट होता है जो िवशेष िश ण से लैस एवं यि य क
ऊपरिलिखत सम याओ ं के समाधान काय का अनभु व उसके पास हो। थेरेपी के िलए आव यक कौशल एवं
िनपणु ताओ ं के साथ उसे यि के यि व, यवहार क अ छी समझ होनी चािहए (जोडावत, 2015)।
मनोिचिक सा िभ न कार क यो यताओ ं से यु िचिक सक ारा अ यास म लायी जा सकती है, िजसमे
मनोरोग िचिक सा, नैदािनक मनोिव ान, सलाहा मक मनोिव ान, मानिसक वा थ सबं धं ी परामश, नैदािनक
या मनोरोग संबंधी सामािजक काय, िववाह और प रवार संबंधी मनोिचिक सा, पनु सधार
ु परामश, संगीत
मनोिचिक सा, यवसाय संबंधी मनोिचिक सा, मनोरोग संबंधी प रचया, मनोिव े षण और अ य सि मिलत
ह।
थे रेि टक सबं ध ं से ता पय सेवाथ और थेरेिप ट के म य जान-बझू कर या वत: फूत तैयार होने वाले
यवसाियक सबं धं से है। इन सबं धं का मु य उ े य सेवाथ और थेरेिप ट सबं धं के िनमाण के िलए
आव यक अतं :ि याओ ं के िनयम एवं ल य का िनधारण करना है। ल य िनधा रत करते समय सेवाथ क
सहभािगता बहत मह वपणू होती है। यहाँ यह यान रखना आव यक है िक कोई िवक प या ल य थेरेिप ट
ारा सेवाथ पर लादा नह जाना चािहए। थेरेिप ट को उिचत सचं ार मा यम , गोपनीयता, परानभु िू त आिद
कौशल का उिचत उपयोग करते हए सेवाथ को िनधा रत ल य तक पहँचने तक यावसाियक संबंध बनाए
रखना आव यक है।
सायकोथेरेपी क ि या के अतं गत थेरेिप ट ारा सेवाथ को सम या से िनजात िदलाने के उ े य से
िनधा रत येय तक पहचं ाने म उपयोगी साधन को सायकोथेरेपी तकनीक के प म प रभािषत िकया जाता
है। यह तकनीक कह न कह मनोवै ािनक ान पर आधा रत ह। यह मनोवै ािनक ान यि के यि व
के ित समझ को दशाता है जो यि म वांिछत प रवतन लाने म थेरेिप ट को स म बनाता है। यह एक
ि कोण या शैली के प म यि तथा उसके पयावरण को समझने म सहयोग दान करता है। इस स दभ म
मनोिव े षण, गे टा ट, यावहा रक आिद ि कोण मनोिव ान म थािपत ह (अिधक जानकारी के िलए

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 69


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

देखे MSW 15 खडं 01)। इन उपागम के अतं गत िविभ न तकनीक को योग म लाया जाता है इसम से
कुछ मख ु तकनीक िन निलिखत ह-
1. िववेचन ो साहन
2. सांविे गक अशांित को कम करना
3. नई सच ू ना दान करना
4. िववेक उ प न करना
5. प रवतन क उ मीद एवं िव ास कायम करना।
इन मख ु तकनीक को िन निलिखत िविधय के अतं गत वैयि क और सामिू हक प से थेरेपी क ि या
म उपयोग म लाया जाता है।
मनोग या मक थेरेपी
यावहा रक थेरेपी
सं ाना मक यवहार थेरेपी
1. रै शनल इमोिटव थेरेपी
2. कॉि निटव थेरेपी
3. ेस-इ कुलेशन थेरेपी
4. म टीमॉडल थेरेपी
5. मू नीटे रयन-ए सपे रमटल थेरेपी
इन मु य थेरेिपज के अलावे सेवाथ को सम या से िनजात िदलाने के िलए कुछ ख़ास तकनीक आधा रत
थेरेिपज का उभार हआ है िजसम से िन निलिखत मह वपणू ह-
1. लायटं सटड थेरेपी
2. एि स टिशयल थेरेपी
3. गे टा ट थेरेपी
4. लोगो-थेरेपी
5. िफ ड रोल थेरेपी
6. पु थेरेपी
उ थेरेिपज का उपयोग थेरिप ट सेवाथ म सांविे गक प रवतन लाने के िलए करता है। इसके बावजदू
सायको ामा, फॅ िमली थेरेपी, मै रटल अथवा कपल थेरेपी आिद का चयन थेरेिप ट सेवाथ क सम या क
कृ ित के आधार पर करता है।

3.6 सायकोथेरेपी क ि या को भािवत करनेवाले मुख कारक


1. सेवाथ क िवशेषताएं
2. थेरेिप ट क िवशेषताएं
3. सेवाथ और थेरेिप ट के बीच का सबं धं
4. उपचार का अविध

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 70


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

5. सामािजक-सां कृ ितक िनधारक, आिद


सायकोथेरेपी ि या म सेवाथ के यि व के आधार पर थेरेपी का चयन करना होता है, जैस-े
स मोहन जैसी तकनीक के योग के िलए यह माना जाता है िक इसका योग अंतमखी ु यि य पर यादा
सफल होता है। ऐसे म बिहमखी ु यि व के यि पर स मोहन का भाव उिचत नह होगा। दसू री ओर
थेरेिप ट के अपने ान क सीमा होती है. उसके िश ण, िश ण एवं अनभु व का कोई एक े ख़ास होता
है इस कारण यह कहना उिचत नह होगा िक िकसी भी तरह के सम या म एक ही थेरेिप ट कारगर िस हो।
ऐसे मनु य के कौशल एवं तकनीक क िवशेषता के आधार पर ही उसे अपने सेवाथ के सम या का
समाधान करना होगा। सेवाथ और थेरेिप ट के बीच के सबं धं , सायकोथेरेपी ि या को भािवत करने वाला
तीसरा और मह वपणू कारक है। इस ि या म दोन ही सि य प से सहभागी होने चािहए तभी थेरेपी
लाभदायी होती है। साथ ही यह माना जाता है िक थेरेिप ट और सेवाथ के यि व के बीच क समानता
उपचार को भािवत करती है। इसके अलावे उपचार के िलए आयोिजत स का समय तथा उपचार के िलए
लगने वाला समय सेवाथ के उपचार पर भाव डालता है। उपचार का समय अिधक न हो, इसक सलाह दी
जाती है। चँिू क थेरेपी को परामश से अलग समय सीमा के आधार पर ही िकया जाता है। इसिलए उपचार का
समय यादा लंबा नह होना चािहए। साथ ही उपचार के समय म आयोिजत स का समय िनि त एवं
िनयिमत हो वह यादा या कम नह होना चािहए।
इन बिु नयादी कारक के बावजदू सामािजक-सां कृ ितक कारक, मानक, पवू ा ह होते ह िजसका
पालन थेरेिप ट को समाज म काय करते समय करना चािहए। भारत जैसे देश म अनेक मा यताए,ं परंपराएं है
उनका उ लंघन न करते हए उपचार ि या को आगे बढाया जाना चािहए। साथ ही आव यकता के आधार
पर पवू ा ह आिद का िनमलन ू म थेरेिप ट को भागीदारी करनी चािहए। इस स दभ म एक मनोिचिक सक का
यह कहना िक भारत के बड़े शहर म भी मनोिचिक सा के िलए रोिगय को पं ह िदन पहले से समझाना
पड़ता है िक उनके साथ या िकया जाएगा। यह कथन लोग के थेरेपी के ित अ ान को दशाता है। ऐसे कई
पवू ा ह को समय रहते ही दरू करने का काय थेरेिप ट ारा िकया जाना चािहए अ यथा वह सेवाथ -थेरेिप ट
के बीच के सबं धं को भािवत करे गा। प रणामत: थेरेपी क संपणू ि या को भािवत करे गा।

3.7 सायकोथेरेपी क ि या
सायकोथेरेपी क ि या म सेवाथ को सहायता दान करने हेतु थेरेिप ट को िविभ न भिू मकाओ ं
का िनवहन करना पड़ता है. एक ख़ास म म िविधय , थेरेिपय का उिचत िनधारण करते हए सायकोथेरेपी
क ि या को जारी रखा जाता है।
होक सन (hokanson, 1983) के अनसु ार थेरेपी क ि या िन निलिखत चरण से गजु रते हए पणू होती है-
1. आरंिभक संपक (Initial Contact)
2. मू याक
ं न (assesment)
3. उपचार का ल य (Goals of Treatment)
4. उपचार का ि या वयन (Implementation of Treatment)
5. समापन, मू यांकन एवं अनवु तन (Termination, Evaluation and Follow-Up)

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 71


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

थेरेपी क पहली अव था आरंिभक संपक होती है। इस अव था म थेरेिप ट आपसी जानकारी ा


करते हए घिन ठ संबंध थािपत करते ह। थेरेिप ट अपनी यो यता तथा सेवाथ अपनी सम या के स दभ म
बताता है। इसी समय उपचार के िलए लगने वाली अविध, फ स तथा अ य सेवाओ ं के स दभ म सेवाथ को
जानकारी देना आव यक समझा जाता है। आव यकता होने पर अ य िवशेष क सलाह लेने संबंधी
जानकारी का काय भी इसी समय म होता है। इस चरण के प ात ही सेवाथ तय करता है िक थेरेिप ट से सेवा
ा करनी है िक नह । जब सेवाथ यह तय कर लेता है िक सेवाएं लेनी है तभी दसू रे चरण म वेश कर सकते
ह। दसू रे चरण का मु य ल य होता है सेवाथ क सम या को समझना तथा उसके संबंधी त य का संकलन
कर उिचत िनदान तक पहँचना। इस ल य क ाि के िलए थेरेिप ट सेवाथ का गहराई से अ ययन करता है।
और इसके प ात थेरेिप ट सेवाथ के मदद से ल य को िनि त कर लेता है। वहां तक पहँचने के िलए
थेरेिप ट छोटे-छोटे ल य का िनधारण भी करता है िज ह सीिमत अविध म परू ा करना होता है। इस ल य
िनिमित क ि या को उपचार का लान भी कहा जाता है। जब यह लान तैयार हो जाता है तब थेरेिप ट
सेवाथ के सहयोग से इस लान को अगले चरण उपचार का ि या वयन म ि याि वत करता है। उिचत
थेरेपी, िविध का चनु ाव तथा आव यकता के अनसु ार काय का बटं वारा इसी चरण म होता है। इसम थेरेिप ट
और सेवाथ दोन सहभागी होते ह। बड़े ल य तक पहँचने के िलए िनि त छोटे-छोटे ल य को ा िकया
जाता है। इस दौरान उपचार ि या का मू यांकन जारी रहता है।
जब सेवाथ अपनी सम या से िनबटने म स म हो जाए या िनयोिजत उपचार का ल य ा हो जाए तब
धीरे -धीरे थेरेिप ट उपचार ि या को समापन चरण क ओर बढ़ाता है। उदाहरण के िलए, स के बीच क
अविध बढ़ाना, अलगाव (Deatchmnt) ि या को उपयोग म लाना आिद । साथ ही इसी दौरान सेवाथ
का मू यांकन कर उसको समाज म वापसी के िलए तैयार िकया जाता है। इसका अथ यह नह िक थेरेिप ट
और सेवाथ के बीच का संबंध ख़ म हो गया, बि क इसके बाद भी थेरेिप ट को सेवाथ को फ़ॉलो-अप सेवा
के अतं गत बीच-बीच म सेवा देनी पड़ सकती है। इन फ़ॉलो-अप स के दौरान पहले के चरण म दी गयी
ि या को दोहराया जाता है या सेवाथ को उन ि याकलाप को याद करवाया जाता है िजससे उसे समाज म
समायोिजत होने म मदद िमल सके । यह ि या तब तक जारी रहती है जब तक सेवाथ समाज म परू ी तरह से
समायोिजत न हो सके . बावजदू इसके अगर सेवाथ क सम या का समाधान नह होता है तब दसू रे िवशेष
क आव यकता के अनसु ार सहायता ली जाती है।

3.8 परामश एवं सायकोथेरेपी के बीच सबं ध ं


समाज म बहत पहले से ही परामश ि या चलती आ रही है। सदा से समाज म कुछ ऐसे यि होते
ह जो दसू र क सम याओ ं को यानपवू क सुनकर उनक सम याओ,ं किठनाईय को हल करने के िलए
सझु ाव, सलाह-मशिवरा दान करते ह। हालांिक परामश क यावसाियक वृि आधिु नक समय क मागं ह।
दसू री ओर हम देखते ह िक सायकोथेरेपी का यावसाियक िवकास लगभग परामश के साथ ही हआ है।
पारंपा रक प से सायकोथेरेपी अचेतन, आतं रक एवं वैयि क सम याओ ं तथा अतं से संबंिधत गंभीर
सम याओ ं पर के ि त होती है। सायकोथेरेपी क इस िवशेषता के कारण िन निलिखत आयाम पर परामश से
अलग ि कोण के अंतगत यादा यान िदया जाता है-

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 72


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

1. वतमान क अपे ा भतू काल पर


2. प रवतन क अपे ा अतं ि पर
3. थेरेिप ट के अलगाव पर
4. एक िवशेष के प म थेरेिप ट क भिू मका पर
सायकोथेरेपी श द का उपयोग सामा यत: नैदािनक मनोिव ान तथा साय याि ट अपने काय तथा
सेवाथ के उपचार का िववरण देने के िलए करते ह।
सेवाथ ारा ा क जाने वाली सेवा परामश है या सायकोथेरेपी इसका िनधारण सेवा दाता के
यवसाियकता के आधार पर तय होता है। सेवा दाता अगर पेशे से परामशदाता है तो वह परामश कहलाया
जाएगा और अगर वह पेशे से सायकोथेरेिप ट ह तो इस ि या को सायकोथेरेपी माना जाएगा। परामश और
सायकोथेरेपी एक ही सै ािं तक बिु नयाद पर िटका हआ है, बस इन दोन क काय- कृ ित और कुछ मामल म
उपकरण क िभ नता पायी जाती है। इसके बावजदू यह देखा जाता है िक कुछ परामश िस ांत थेरेपी के प
म ही उभरे है तथा कुछ थेरेिपज परामश सेिटंग म यु िकया जाना आव यक होता है। इसिलए यह माना
जाता है िक परामश और सायकोथेरेपी म अनेक ि यागत, सै ािं तक समानताएं ह। इसके बावजदू परामश
और सायकोथेरेपी के अंतगत यु सहायता ि या के चरण म इन दोन के अतं सबंधो को देखा जा सकता
है।
परामश और सायकोथेरेपी के चरण क एक पता के िबंदु िन निलिखत है-
1. ारंिभक संरचना क थापना
2. भावपणू सबं धं िवकिसत करना
3. सम या क पहचान करना
4. व- य ीकरण े क पहचान और यवहार क खोज
5. पयावरणीय िनवेश के सं ह का संभव िनधारण
6. सम या समाधान
7. िनणय लेना
8. ि या योजना
9. अनवु तन या अित र योजनाओ ं का संभव िवकास
इसके बावजदू मनोिचिक सा और परामश के बीच अंतर करने के मापदंड िन निलिखत है-
परामश परामश ि या के अतं गत लगभग 8 से 12 स तथा यह छ: महीने से कम समय वाले होते ह। परामश
ि या िवकासा मक तथा प रि थितज य सम याओ ं के समाधान पर के ि त होती है।
मानिसक वा य से सबं िं धत सम याओ ं से िसत रोिगय को बा रोगी ितवेश(Out-patient
setting) म तथा कूल, कॉलेज जैसे गैर-आवासीय सं थाओ ं म परामश दान िकया जाता है।
सायकोथेरेपी सायकोथेरेपी म ाय: 20 से 40 स तक लगभग छ: महीन से दो वष तक चलने वाले दीघकालीन
उपचार के सबं धं होते ह। साथ ही इसम पनु रचना मक प रवतन पर बल िदया जाता है।
मानिसक वा य एवं अ य वा य से संबंिधत बीमार रोिगय को अंत:रोगी ितवेश (In-patient
Setting) म आवासीय जगह पर थेरेपी दान क जाती है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 73


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

उ मापदडं के आधार पर परामश और सायकोथेरेपी के बीच िवभेद िकया जाता है। इसके अलावे इन दोन
ि याओ ं के बीच समानता के िबंदु भी है िज ह हम ि यागत प से देख चक
ु े ह।

3.9 सारांश
इसके अलावे आज के समय म िविभ न यो यताओ ं से यु िचिक सक , उपचारकताओ,ं कुशल
थेरेिप ट ारा सायकोथेरेपी उपयोग म लाई जाने लगी है िजसम मनोरोग िचिक सा, नैदािनक मनोिव ान,
सलाह मनोिव ान, मानिसक वा य सबं धं ी परामश, नैदािनक या मनोरोग सबं धं ी सामािजक काय, िववाह
और प रवार संबंधी मनोिचिक सा, पनु सधार
ु परामश, संगीत मनोिचिक सा, यवसाय संबंधी मनोिचिक सा,
मनोरोग सबं धं ी प रचया, मनोिव ेषण आिद सि मिलत ह।
भारत म हीिलंग िस टम म िविवधता ह। यही कारण है िक थेरेपी के प म अनेक देशज िविधय
को भी थेरेिप ट ारा उपयोग म लाया जा रहा है। जैस;े योग, स संग आिद इसम शािमल है। इसके बावजदू
थेरेपी श द का उपयोग समाज म इतना आम हो गया है िक आज कल कुछ लोग , यवसाियक ारा िनिमत
ान को भी थेरेपी श द के आड़ म ततु िकया जाने लगा है। ऐसे छ थेरेिपज क जांच पड़ताल करके ही
उसको उपयोग म लाया जाना चािहए। इसक िज मेदारी सामािजक कायकताओ ं को एक थेरेिप ट या
परामशदाता के प म लेनी होगी।

3.10 बोध
1. परामश ि या को सं ेप म समझाए।ं
2. सायकोथेरेपी के मख ु घटक क चचा कर।
3. सायकोथेरेपी क ि या को समझाए।ं
4. सायकोथेरेपी एवं परामश के बीच के संबंध को प कर।
5. सायकोथेरेपी को भािवत करनेवाले कारक क चचा कर।

3.11 सदं भ एवं अ य पु तक


• पा डे, बा., & िसहं , िक. िव. (2017). परामश के नए आयाम. जयपरु : रावत पि लके शन.
• िम , प. (2013). सामािजक वैयि क सेवा काय (8th ed.). लखनऊ: उ र देश िहदं ी सं थान.
• राय, अ., & अ थाना, म. (2015). िनदशन एवं परामश (2nd पनु मु ण ed.). िद ली: मोतीलाल
बनारसीदास.
• McLeod, J. (2003). An Introduction To Counselling (3rd Edition ed.). Jaipur:
Ravat Publication.

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 74


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

• Merriam-Webster, D. (2017, november 14). Psychotherapy. Retrieved


november 14, 2017, from merriam-webster.com: https://www.merriam-
webster.com/dictionary/psychotherapy
• जोडावत, र. (2015). मनोिवकृ ितिव ान . (अ. कुमार, Ed.) कोटा: वधमान महावीर खल
ु ा
िव िव ालय, कोटा.
• मनोिचिक सा. (n.d.). Retrieved 11 13, 2017, from hi.wikipedia.org:
https://hi.wikipedia.org/wiki/मनोिचिक सा

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 75


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

इकाई-4 सामािजक कायकता: एक परामशदाता के प म


इकाई क परेखा
4.0 उ े य
4.1 तावना
4.2 समाज काय और परामश का संबंध
4.3 समाज काय और परामश के मूल घटक
4.4 समाज काय णािलयाँ और परामश तकनीक
4.5 सामािजक कायकता एक परामशदाता के प म
4.6 परामशदाता के कत य
4.7 सारांश
4.8 बोध
4.9 संदभ एवं उपयोगी ंथ

4.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के प ात आप -
1. समाज काय म परामश क भिू मका को समझ सकगे
2. परामशदाता के प म सामािजक कायकता क भिू मका का वणन कर सकगे
3. वैयि क सेवा काय म परामश क उपयोिगता को या याियत कर सकगे
4. परामशदाता क भिू मका एवं कत य को समझा सकगे।

4.1 तावना
ि तीय िव यु के बाद िव भर म िविभ न सेवा (Service) दाता समहू का ारंभ हआ। िव यु
जैसे जिटल समय म सामािजक जीवन को िनबाध बनाए रखने के िलए िविभ न ानशाखाओ ं ने िविभ न
तरीके से ह त ेप ारा पनु वास क णाली का िवकास िकया था। इस समय म िव म मानिसक रोिगय क
सं या भी काफ बढ़ गई थी जो िक िव यु का असर था। ऐसे म दो नए िवषय, परामश और समाज काय
लगभग एक साथ िव पटल पर अपनी पहचान बनाने म स म हो चक ु े थे। दसू री ओर हम यह भी देखते ह िक
समाज काय क कुछ णािलय के िनमाण को मनोिव ान ने काफ भािवत िकया है।
एक ओर मनोिव ान अपने ि या मक व प म या यँू कह िक सामा यीकरण हेतु िनदशन एवं परामश जैसी
णािलय को िवकिसत करता ह वह समाज काय भी अपने यावसाियक िहत क पिू त के िलए इन
णािलय को एक तकनीक के प म मा यता दान कर उसे लोग तक पहचं ाने का काम करता है। समाज
काय ख़ास कर वैयि क सेवा काय म परामश क उपयोिगता को नकारा नह जा सकता।
सामािजक कायकता समाज काय क िविभ न णािलय के अतं गत सेवािथय को सेवा दान करते हए
िविभ न भिू मकाएं िनभाता है जैसे-वैयि क सेवा कायकता, सामिू हक कायकता, सामदु ाियक सगं ठक इन सब

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 76


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

के साथ-साथ वतक, शैि क कायकता, ेनर, परामशदाता, िनदशक तथा थेरेिप ट आिद भिू मकाओ ं का
वहन करता है। इन सब भिू मकाओ ं के िलए अलग-अलग ान, कुशलताओ ं तथा िवशेष ता क
आव यकता होती है। इसे िच के अनसु ार कायकता चनु ता है। परामशदाता क भिू मका के िलए िजन
कौशल एवं ान क आव यकता होती है वह समाज काय का अिभ न अगं है य िक परामश को छोड़
अ य िवशेष ता के चयन का अिधकार भले ही सामािजक कायकता के पास हो लेिकन परामश समाज काय
क अिनवाय मागं है, इस यो यता को संपािदत करना सामािजक कायकता के िलए आव यक माना जाता है।
अत: इस इकाई म हम सामािजक कायकता को एक परामशदाता के प म कौन-सी भिू मकाएं िनभानी पड़ती
है और उसके िलए कौन-से कौशल तथा ान क आव यकता होती है, आिद को समझते हए सामािजक
कायकता को एक परामशदाता के प म समझने क कोिशश करगे।

4.2 समाज काय और परामश का संबंध


20व सदी म उभरे समाज काय यवसाय का मह वपणू उ े य लोग के आरो य और जीवन
गणु व ा को ा त करना तथा उिचत मागदशन करना था। शु आती दशक म समाज काय अपने
ि याकलाप ारा मानवीय और सामािजक ि थित म सधु ार लाने क कोिशश म था। यह इसिलए भी
ज री था य िक उस समय सामािजक कायकता अपनी पारंप रक तकनीक , ान एवं कुशलताओ ं ारा
लोग क सम या-िनवारण िकया करता था। इसम काफ िभ नता िदखाई देती थी।
आज समय बदल गया है, नवीन नवाचार ने मानवीय जीवन को काफ भािवत िकया। ठीक इसी समय
मानवीय जीवन के िविभ न आयाम को समझने के िलए अनेक िवषय का उभार हआ। मानवीय सम याओ ं
क जिटलता को जानने और समझने के िलए यि के यि व, भावनाओ,ं अिभ ेरणाओ,ं आव यकताओ ं
आिद को समझना अिनवाय हो गया। समाज काय का सुधारा मक रवैया बदलकर यि के ि त हो गया।
1960 के दर यान मानवतावादी आ दोलन के दबाव ने यि के ि त तकनीक एवं णािलय के उभार का
माग खोल िदया। इससे काफ हद तक समाज काय भािवत हआ।
शु आत के िदन म समाज काय क णाली, सामािजक वैयि क सेवा काय म परामश काय के िवकास का
ेय बथा रे नो ड्स (1932) को जाता है। आगे धीरे -धीरे सामािजक सं थाओ ं म हए प रवतन तथा उन
प रवतन के कारण उपजी सम याओ ं से िसत सेवािथय को दी जाने वाली सिु वधाओ ं के व प एवं कृ ित
के आधार पर परामश ि या को समाज काय िविधय म शािमल िकया जाने लगा।
परामश का सीधा संबंध यि क यि गत सम या के साथ होता है उदाहरण के िलए उसक मनो-
सामािजक सम याएं जैसे-िचतं ा, कंु ठा, दबाव, सघं ष आिद। इन सम याओ ं से िनपटान के िलए परामश का
सहयोग समाज काय के अंतगत सामािजक कायकता ारा िलया जाता है। समाज काय म परामश क
वीकायता के आधार पर समाज काय के कुछ िव ान ने इसे प रभािषत करने क कोिशश क है जो
िन निलिखत है-
गोडन हैिमलटन के अनसु ार “परामश, तािककता के आधार पर एक यि क मताओ ं तथा इ छाओ ं
को तकपणू बनाने म सहायता दान करता है। परामश का मख ु उ े य सामािजक सम याओ ं तथा
सामािजक अनक ु ू लन के िलए चेतन अहं (Conscious Ego) को ो सािहत करना है।”

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 77


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

आ टेकर के अनसु ार “परामश उस सम या-समाधान क ओर लि त वैयि क सहायता है िजसका


समाधान कर सकने म वह यि खदु को असमथ पाता है और िनपणु यि से सहयोग क अपे ा रखते हए
उससे सहयोग ा करता है।”
4.3 समाज काय और परामश के मूल घटक
समाज काय के अतं गत सहायता- ि या को पणू करने के िलए सेवाथ , सम या, सं था तथा
सामािजक कायकता क आव यकता होती है। िक तु परामश ि या को पणू करने के िलए सेवाथ ,
परामशदाता और सम या इन तीन मल ू घटक क आव यकता होती है। इसम सं था वैकि पक होती है इसके
होने न होने से परामश ि या पर
समाज काय के मूल घटक परामश के मूल घटक
सेवाथ सेवाथ
सम या सम या
सामािजक कायकता परामशदाता
सं था सं था (वैकि पक)
कोई भाव नह पड़ता। िक तु समाज काय म सं था मह वपणू घटक है, िजसक संरचना का उपयोग करते
हए सामािजक कायकता सं था क सेवाओ ं से सेवाथ को लाभ िदलाने म सहयोग दान करता है। परामश म
मलू तः सेवाथ म अतं ि के िवकास पर अिधक यान िदया जाता है। यही कारण है िक परामश म सम या
के साथ-साथ यि , उसका यि व एवं यि व को भािवत करने वाले िविभ न कारक का
अ ययन/अ वेषण िकया जाता है। इस मामले म परामश समाज काय से अलग यि व आधा रत तकनीक
का योग करते िदखाई देता है। साथ ही दोन म ि यागत िभ नताएं भी पाई जाती है।

4.4 समाज काय णािलयाँ और परामश तकनीक


समाज काय और परामश म सेवाथ को सेवा, सहयोग िदलाने म मख ु भिू मका णािलय और
तकनीक क होती है। समाज काय क णािलय और परामश तकनीक अपने-अपने िस ातं के आधार पर
यि को सहयोग देने का काय करती है। समाज काय मल ू त: सेवाथ क मनोसामािजक सम या से जड़ु ी
सहायता दान करने हेतु छः णािलयाँ- वैयि क सेवा काय, समहू काय, समदु ाय सगं ठन, सामािजक ि या,
समाज क याण शासन तथा समाज काय शोध- उपयोग म लाता है। यहाँ यान म रखना होगा िक समाज
काय म सेवाथ से ता पय यि , समहू समदु ाय होता है, वह परामश ि या म सेवाथ का अथ के वल एक
यि से है तथा आव यकता पड़ने पर उससे सबं िं धत लोग का सहयोग िलया जाता है। यही कारण है िक
समाज काय म परामश ि या क उपयोिगता वैयि क सेवा काय णाली म अिधक मानी जाती है। चूँिक
वैयि क सेवा काय म एक यि को सहायता देते हए परामश ि या को उपयोग म लाया जाता है इस
कारण वैयि क सेवा काय का परामश से संबंध बाक णािलय से अिधक घिन ठ होता है।
परामश ‘आमने सामने क ि या’ है तथा उसे ‘मांगे जाने पर’ िदया जाता है। इस कारण यि क
यि गत सम याओ ं जैसे-पा रवा रक, काय थल क सम याए,ं वैवािहक समायोजन तथा अ य यवहार एवं

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 78


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

समायोजन संबंधी सम याओ ं म इस सेवा का लाभ िदया जा सकता है। यही कारण है िक समाज काय क
अ य णािलय म परामश का संचालन य प से नह िकया जाता।

4.5 सामािजक कायकता एक परामशदाता के प म


वैयि क सेवा काय और परामश के बीच के सबं धं को समझने के बाद परामश म सामािजक
कायकता क भिू मका को समझना अिनवाय बन जाता है। वैसे तो वैयि क सेवा काय के अतं गत दान क
जाने वाली सभी सेवाओ ं म सामािजक कायकता को परामश ि या को उपयोग म लाना आव यक माना
गया है। बावजदू इसके सेवाथ क सम या, सम या का व प, सेवाथ का यि व आिद के आधार पर
सामािजक कायकता अपनी भिू मका का चयन करता है। सामािजक कायकता एक परामशदाता के प म
िविभ न भिू मकाओ ं का िनवहन करता है जैस-े िश क, िश क, वकालत, व ा, सलाहकार, सिु वधा-
दाता आिद।
बाले र पांडे एवं क ित िव म िसंह (2017) अपनी िकताब परामश के नए आयाम म परामशदाता क
भिू मका को प करते ह। िजसम वे ई. सी. िविलय सन, मायस तथा टीवाट को उ तृ करते ह। ई. सी.
िविलय सन ने अपनी िकताब योरी ऑफ़ काउंसिलगं म परामश दाता क भिू मका का वणन िन निलिखत
प से िकया है-
1. छा को उनके यवहार म प रवतन करने म सहायता देना
2. सेवािथय को उनके यवहार म प रवतन लाने म सहायता करना
3. सचू नाओ ं का परी ण तथा एक ीकरण करना
4. परामशदाता ारा सेवाथ से सम या आधा रत सवाल करना
5. सेवाथ को सझु ाव देना
6. सचू नाओ ं क उिचत या या करना
7. सेवाथ को सचू नाएं दान करना
8. सेवाथ को सामािजक प रवेश के बारे म सचू नाएं दान करना
9. मानव यवहार के िविभ न यय एवं यवहार क ग या मकता के बारे म सचू ना दान करना
10. दिु वधापणू यवहार के बारे म सचू ना दान करना
11. दसू रे लोग के यवहार के उिचत कारण क जानकारी देना
12. िनणय ि या के बारे म सचू ना देना
13. परामशदाता क एक सलाहकार के प म भिू मका
14. सेवाथ के िलए वकालत या व ा क भिू मका
15. सेवाथ के संबंध म सचू नाओ ं का सं हण
16. ितमान मल ू क त य का सं हण
परामश ि या का मख ु उ े य सेवाथ को उिचत यवहार िसखाना होता है, िजससे उसका समाज
म पनु :समायोजन हो सके । इसके िलए परामशदाता उपयु त भिू मकाओ ं का िनवहन करता है- यवहार
प रवतन, बातचीत, सचु ना सं हण, सेवाथ ारा दान सचू नाओ ं का सं हण तथा उसके एक ीकरण के

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 79


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

अतं गत सम या क सही या या, उस या या पर आधा रत सचू नाएं दान करना आिद। कभी-कभी सेवाथ
को समाज के बारे म उिचत ान न होने के कारण सेवाथ अ य लोग के साथ समायोजन थािपत करने म
असमथ होता है, ऐसे म उसे सामािजक प रवेश के बारे म उिचत सचू नाएं दान कर सेवाथ को दसू रे लोग के
यवहार के उिचत कारण क जानकारी देना आिद परामशदाता का काम होता है। संघष, दिु वधाओ ं म फंसे
सेवाथ म उिचत िनणय ि या का िवकास करने क िज मेदारी भी परामशदाता पर होती है। इसके बावजदू
सेवाथ के यवहार क ग या मकता को समझकर उसे उिचत सचू ना एवं सलाह देना तथा यवहार प रवतन
म सहयोग देने का काय परामशदाता करता है।
4.6 परामशदाता के कत य
कुछ िव ान ने परामशदाता के कत य के बारे म चचा क है िजसम मायस एवं टीवाट मख ु ह।
इ ह ने परामशदाता के कत य को दो भाग म, मु य कत य एवं िन िपत कत य म िवभािजत िकया है वे
िन निलिखत ह-
मायस ारा िदए गए परामशदाता के मु य कत य -
1. मीिटंग के समय का िनधारण
2. बैठक का आयोजन
3. बैठक क तैयारी
4. बैठक आरंभ करना
5. बैठक के अिभलेख का रखरखाव करना
टीवाट ारा िदए गए कूली परामशदाता के िन िपत कत य -
1. सेवाथ को इस कार सहायता देना िक वह अपने अनभु व का मू य िनधा रत कर सके
2. संबंिधत यि के बारे म आधारभतू साम ी का एक ीकरण
3. यि य क आव यकता एवं सम या को समझना
4. बैठक का आयोजन
5. कूल और प रवार तथा कूल और लास के बीच सबं धं बनाना
6. िश ा एवं सामािजक संपक क गित म तालमेल बनाना
7. समहू िनदशन

4.7 सारांश
मानव अपने जीवन म ज म से लेकर मृ यु तक िविभ न अव थाओ ं से गजु रता है ऐसे म उसे िविभ न
सम याओ ं का सामना करना पड़ता है। िजसके कारण उनका समाज म उिचत समायोजन नह हो पाता या
कुसमायोजन होता है। ऐसे म उन यि य को पनु : समाज म समायोिजत करने के िलए सामािजक कायकता
यि को सेवाएं दान करता है। यहाँ यान रखना आव यक है िक यि जब तक सेवा क मागं नह करता
है तब तक परामश को दान नह िकया जा सकता। ऐसे म िनदशन णाली का उपयोग िकया जा सकता है।
परामश के वल मागं े जाने पर दी जाने वाली सेवा है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 80


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

जैसे िक हमने देखा है वैयि क समाज काय और परामश का घिन संबंध है। वैयि क समाज काय सेवाओ;ं
कूली समाज काय, प रवार परामश, यगु ल परामश, यवसाय परामश आिद के अतं गत सामािजक कायकता
िविभ न भिू मकाओ ं जैसे- यवसाय परामशदाता, िश ा परामशदाता, पा रवा रक परामशदाता आिद
भिू मकाओ ं का िनवहन करता है। इन भिू मकाओ ं का िनवहन करते हए सामािजक कायकता को परामशदाता
के िविभ न कत य का पालन करते हए सेवाथ को सम या से िनजात पाने म सहयोग दान करना पड़ता है।
इस इकाई म हमने समाज काय और परामश के बीच के संबधं को देखते हए परामशदाता क भिू मकाओ ं और
कत य के बारे चचा क है। इसके बावजदू सामािजक कायकता अपने कौशल एवं िवशेष ताओ ं के आधार
पर सेवाथ क सम या को हल करने का यास करता है। परामश क िनरंतर चलने वाली ि या के अतं गत
सामािजक कायकता सेवाथ को सहयोग दान करता ह।

4.8 बोध
1. समाज काय और परामश के बीच के संबंध को प कर।
2. परामश के मल
ू घटक को प कर।
3. वैयि क सेवा काय म परामश क उपयोिगता को समझाए।ं
4. परामशदाता क भिू मका का वणन कर।
5. परामश म परामशदाता के कत य क चचा कर।

4.9 संदभ एवं उपयोगी ंथ


The Role and Applicability of Counselling in Social Work Practice: Social Work -
Counselling in Social Work. (2015, 03 23). Retrieved 03 15, 2017, from
www.ukessays.com: https://www.ukessays.com/essays/socialwork/
पा डे, बा., & िसंह, िक. िव. (2017). परामश के नए आयाम. जयपरु : रावत पि लके शन.
िम , प. (2013). सामािजक वैयि क सेवा काय (8th ed.). लखनऊ: उ र देश िहदं ी सं थान.
राय, अ., & अ थाना, म. (2015). िनदशन एवं परामश (2nd पनु मु ण ed.). िद ली: मोतीलाल
बनारसीदास.
Bond, T, 2000, Standards and Ethics for Counselling in Action, Sage Publications Ltd.
London
Corney, R. & Jenkins, R, (Eds.), 1993, Counselling in General Practice. London:
Routledge
Dryden, W, 2006, Counselling in a nutshell, Sage Publications Ltd. London
Dryden, W., & Mytton, J, 1999, Four Approaches to Counselling and Psychotherapy,
London: Routledge
Feltham, C, 1995, What Is Counselling? The Promise and Problem of the Talking
Therapies, Sage Publications Ltd. London

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 81


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

Harris, J, 2002, The Social Work Business /. London: Routledge


Hornby, G., Hall, C., & Hall, E. (Eds.), 2003, Counselling Pupils in Schools: Skills
and Strategies for Teachers, London: RoutledgeFalmer
Miller, L, 2005, Counselling Skills for Social Work, Sage Publications Ltd. London
Nelson-Jones, R, 2000, Six key approaches to counselling and therapy, Sage
Publications Ltd. London
Noonan, E, 1983, Counselling Young People. London: Tavistock Routledge
Pease, B. & Fook, J. (Eds.), 1999, Transforming Social Work Practice: Postmodern
Critical Perspectives. London: Routledge

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 82


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

खडं – 3
सच
ं ार के मूल त व

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 83


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

इकाई 1
सच
ं ार : अथ एवं अवधारणा
इकाई क परेखा
1.1 उ े य
1.2 तावना
1.3 संचार क अवधारणा
1.4 संचार का अथ एवं प रभाषा
1.5 संचार शोर
1.6 संचार क िवशेषताएं
1.7 सचं ार के छह ककार
1.8 संचार के कार
1.9 संचार और जनसंचार म अंतर
1.10 सारांश
1.11 बोध न
बहिवक पीय न
लघु उ तरीय न
दीघ उ तरीय न
1.12 सदं भ एवं उपयोगी थ

1.1 उ े य
इस इकाई का अ ययन करने के प चात आप -
1. ततु इकाई के मा यम से संचार क अवधारणा को समझना।
2. संचार के अथ एवं इसके कार को जानना।
3. सचं ार म होने वाले शोर या अवरोध को समझना।
4. संचार क िवशेषताओ ं को जानना।

1.2 तावना
मानव जीवन म जीवंतता के िलए संचार का होना आव यक ही नह , अिपतु अप रहाय है। पृ वी पर संचार
का उ व मानव स यता के साथ माना जाता है। मनु य के पवू ज ने जब से समहू म रहना सीखा तभी से सच
ं ार
का इ तेमाल हो रहा है, तब खतर क चेतावनी देने के िलए संदेश के आदान- दान क बड़े पैमाने पर ज रत
महससू क गई। ारंिभक यगु का मानव अपनी भाव-भंिगमाओ,ं यवहारज य संकेत और तीक िच ह के
मा यम से सच
ं ार करने लगा। िलिखत इितहास म सबसे पहले भाषा का औजार िवकिसत हआ। इितहास क
शु आत म ही अ र का ज म हआ। नगाड़ और अ य संकेत क गजुं पहले पहल हवा म सा रत हई।
तराशे गए प थर के सक ं लन से पहली लाइ ेरी बनी। जैसे ही पहली पु तक और द तावेज छापाखान से

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 84


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

छपकर बाहर िनकली तो वे स ाधा रय का हिथयार बन गए, ांित के अ भी बने। अखबार का प ना


यापार यवसाय का भावी मा यम सािबत हई। मिु त िकताब से िश ा व ान का अकूत भंडार िमल
गया।
16 व 17 व शता दी आते-आते पि काएं और पो टर-पच राजनीित के मख ु औजार बन गए।
यिद जनसच ं ार के साधन न होते या ि िटश, अमरीक और ासं ीसी ािं तयां सभं व हो पाती? 15 व
शता दी क बड़ी घटना या है?, एक ऐसी मशीन का िवकास हआ िजससे ह तिलिप क 100 ितिलिपयां
शी ता से तैयार कर सके । इसी तरह 19 व शता दी म बेल, माक नी जैसे वै ािनक व अ य योगशालाओ ं
ने ऐसी मशीन का िवकास िकया जो काफ दरू बैठे लोग के िलए देखने व सनु ने के िलए सभं व हआ। 20व
शता दी म अतं र म जगह-जगह लटके उप ह ने परू ी दिु नया को एक गांव म बदल िदया। आधिु नक यगु म
सचू ना ौ ोिगक के े म ािं तकारी अनसु धं ान के कारण मानव सचं ार बल ु दं ी पर पहचं गया है। वतमान म
रे िडयो, टेलीिवजन, िसनेमा, टेलीफोन, मोबाइल, फै स, इटं रनेट, ई-मेल, वेब पोट स, टेलीि टर, टेले स,
इटं रकॉम, टेलीटै स, टेली-का िसंग, के बल, सोशल नेटविकग साइट्स, समाचार प , पि काएं इ यािद
मानव सच ं ार के अ याधिु नक और बहचिचत मा यम ह।

1.3 संचार क अवधारणा (Concept of Communication)


संचार एक अनवरत ि या है। इसक उ पि पृ वी पर मानव स यता के साथ हई है इसिलए कहा जाता है
िक संचार और मानव के साथ चोली दामन का र ता है। मानव अपने को थािपत करने के िलए संदेश का
सं ेषण (सदं ेश का आदान- दान) करना शु िकया। सचं ार का व प ही मानव सचं ार का आधार है और
िबना मानव आधार के संचार संभव नह है। दरअसल यह एक मानिसक ि या है िजसम पहला यि
अपनी बात दसू रे को समझाने क यव था करता है और दसू रा यि उसे समझने के िलए भी करता है
और उसे अपने ढंग से समझने का यास करता है। संचार के अतगत िवचार का और अथ का आदान- दान
होता है। मानव के जीवन म संचार क कला सबसे ाचीन और मौिलक प म रही है। आज भी िच िलिप
गफु ाओ,ं कंदराओ,ं एजतं ा एलोरा, एिलफटा, खजरु ाहो क च ान, िभि य पर जीवतं िच सचं ार के प म
िव मान ह।
एक ब चा पैदा होते ही सव थम रोने ( विन) क आवाज अपने अि त व क पहचान करा देता है।
वह आवाज बता देता है िक ‘म आ गया हँ’। अपने ज म के कुछ ही समय बाद यदा-कदा मु करा भी देता है।
जैसे-जैसे वह बड़ा होता है उसक पसंदगी नापसंदगी, उसका गु सा, िच लाना, भ ह िचढ़ाना, उनके संचार के
भाव को य त करता है। उसक खिु शयां, स नता, सतं ोष, शसं ा, सदं हे , भय, सरु ा और असरु ा क
भावना सभी संचार के ारा य त होता है। जैसे जैसे वह और बढ़ता है वह अपने आस-पास के वातावरण ,
माता-िपता, प रजन से भाषा, रीित- रवाज सीखता है। साथ ही साथ उसक आिं गक भाषा के ारा भी संचार
य त करने लगता है और वह यह उिचत सक ं े त से अथ हण करता चला जाता है। उसम इतनी समझ आ
जाती है िक वह संकेत के ारा अपनी ज रत , आव यकताओ,ं उ सक ु ता को िवचार ारा य त करता है
इसके बाद वह शाि दक, अशाि दक और भाषा ारा संचार करने लगता है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 85


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

एक परु ानी कहावत है िक ‘चेहरा दय का दपण’ है। कई मनोवै ािनक शोध से यह बात मािणत
भी हो चक ु है िक यि के ता कािलक सोच और भाव सामा यतया चेहरे का हष-िवषाद, आ चय,
उ तेजना, ोध, ल जा, आशा-िनराशा, परे शानी िआद जो िक उसके चेहरे से अिभ यि करने का दपण
होता है। मानव म कम से कम छह मल ू संवेग- हष-िवषाद, आ चय, भय, ोध, घृणा आनन-फानन म प ट
प से य त ये सच ं ार के प ह। सचं ार म सं पश का िवशेष मह व है जैसे यार से महँु चमू ना, ेमी- ेिमका
का चंबु न, यार से पीठ थपथपाना, पैर छू कर णाम करना, हाथ िमलाना इ यािद संचार के प ह। वचा
संदशे सारण और संदश े हण दोन ही प म काय करती है। सं पश य सं ेषण कदािचत पूणत: िन भावी
नह होता है यह तीका मक ि या ारा के वल िस या िव ता रत िकया जाता है। भाषा के ारा सच ं ार
हमारे समाज म लगभग 80 ितशत और अशाि दक संचार लगभग 20 ितशत होता है। ारंिभक युग म
मानव अपनी भाव-भिं गमाओ ं और तीक िच ह के मा यम से सचं ार करता था, िकंतु आधिु नक यगु म
सचू ना ौ ोिगक के े म ांितकारी अनुसंधान के कारण संचार के व प म ती गित से प रवतन आया
है। लोग सचू ना से यथाशी अवगत होना चाहते ह, फल व प आज रे िडयो, टेलीिवजन, िसनेमा, टेलीफोन,
मोबाइल, इटं रनेट, ई-मेल, वेब साइट्स, टेलीि टर, इटं रकॉम, टेली-का िसगं , के बल, समाचार प , पि का
इ यािद के मा यम से सचू नाएं ा त करते ह।
संचार मा यम को अ याधुिनक बनाने म यु क भिू मका मह वपणू रही है। 20 व शता दी के
म य तक संचार को वतं िवषय नह माना जाता था। राजनीितशा , समाजशा , मानवशा तथा
मनोिव ान के िवशेष अपने िवषय क ज रत के मतु ािबक अ ययन करते थे। हालांिक, इसक िविश ता
का एहसास दिु नया को थम िव यु (1914-1918) के बाद होने लगा था। एक वतं िवषय के प म
इसके अ ययन क आव यकता तब महससू क गई, जब ि तीय िव यु (1939-1945) के दौरान जमनी
के तानाशाह शासक िहटलर के चार मं ी गोयब स ने कहना शु िकया- “िकसी झठू को बार-बार
दोहराओ तो सच हो जाता है।” ि तीय िव यु के बाद परू ी दिु नया दो गटु म िवभािजत हो गई थी। एक गटु
का सा ा यवादी अमे रका तथा दसू रे गटु का सा यवादी सोिवयत संघ नेतृ व करने लगा। दोन महाशि य
के बीच िवदेशी उपिनवेश से मु होने वाले भारत जैसे कुछ तीसरी दिु नया के देश थे, िज ह अपने गटु म
शािमल करने के िलए महाशि य के बीच होड़ मची थी। इसके िलए दोन अपने सै य बल को अ याधुिनक
हिथयार (नािभक य व जैिवक बम ) तथा खिु फया तं को अ याधुिनक संचार मा यम से लैस करने म लगे
थे। इसी दौरान अमे रक ितर ा िवभाग ने इटं रनेट का आिव कार िकया। सोिवयत संघ के िवघटन के बाद
अमे रका ने अपने इटं रनेट का दरवाजा दिु नया को उपयोग करने के िलए खोल िदया है, जो वतमान समय म
सबसे व रत गित का सच ं ार मा यम है।

1.4 संचार का अथ एवं प रभाषा (Meaning and Definition of Communication)


संचार श द सं कृ त के चर धातु से बना है, िजसका अिभ ाय है- चलना। साथक िच ह ारा सचू नाओ ं को
आदान - दान करने क ि या संचार है। िकसी सचू ना या जानकारी को दसू र तक पहँचाना संचार है। जब
मनु य अपने हाव-भाव, संकेत और वाणी के मा यम से सूचनाओ ं का आदान- दान आपस म करता है तो
वह संचार कहलाता है। ‘संचार’ श द अं ेजी भाषा के ‘communication’ श द से बना है, िजसक उ पि

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 86


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

लैिटन भाषा के ‘communis’ श द से हई है। ‘Communis’ का अथ होता है–अपने िवचार एवं भाव को
दसू र के साथ बाँटना अथवा िकसी मा यम ारा अपने िवषय या व तु क साझेदारी करना। संचार श द
सं कृ त के चर धातु से िनकला है। िजसका आशय है-चलना। अपने यापक अथ म इसका योग चलने,
दौड़ने जैसी ि याओ ं के िलए होता है, लेिकन आज संचार श द एक तकनीक श द बन चक ु ा है, जो अं ेजी
के क यिु नके शन का िहदं ी पातं र है। यह श द वा तव म लैिटन भाषा क क यिु नके यर ि या से िनकलकर
आया है, िजसका आशय है- टू इपं ोट, टू शेयर, टू ांसिमट, टू टॉक टूगदे र confer discourse and consult
one with another अथात् सच ू नाओ ं के आदान- दान, समदु ाय या मनु य का एक-दसू रे के साथ यवहार,
भाईचारा, मै ीभाव, साझेदारी, सहभािगता या थोड़े से श द म कह तो सामा य भागीदारी यु त सचू ना एवं
उसका सं ेषण। यह लैिटन भाषा के क यिु नस श द से भी जड़ु ता है, िजसका अथ है to take common, to
share, to import, to train, to transfer अथात् सामा यीकरण, सामा य भागीदारीयु सचू ना, सं ेषण
यानी इसे समझ या साझा आधार भी कहा जा सकता है। प ट श द म संचार एक ऐसा यास है िजसके
मा यम से एक यि दसू रे यि के िवचार , भावनाओ ं एवं मनोवृि य म सहभागी होता है। मनु य अपने
सदं श
े को अपने भाव , िवचार , आशय को मा यम ारा सचं रण करते ह।
संचार एक तकनीक श द है, जो अं ेजी के क यिु नके शन का िहदं ी पांतरण है। इसका अथ होता
है, िकसी सचू ना या जानकारी को दसू र तक पहँचाना। इसके मा यम से मनु य के सामािजक संबंध बनते और
िवकिसत होते ह। मानवीय समाज क सम त ि या संचार पर आधा रत है। इसके िबना मानव नह रह
सकता। येक मनु य अपनी जा ताव था म संचार करता है, अथात बोलने, सनु ने, सोचने, देखने, पढ़ने,
िलखने या िवचार िवमश म अपना समय लगाता है। जब मनु य अपने हावभाव सक ं े त और वाणी के मा यम
से सचू नाओ ं का आदान- दान करता है तो वह संचार कहलाता है।
संचार श द का सामा य अथ होता है- िकसी सूचना या संदश े को एक यि से दसू रे यि तक
पहँचाना या सं ेिषत करना। दसू रे श द म संचार का ता पय भाव, िवचार, जानकारी अथवा सूचनाओ ं को
दसू र तक पहँचाना या थनांत रत करना है। सामा य भाषा म संचार का अथ है- एक यि से दसू रे यि
तक सचू ना या सदं श े को सं ेिषत करना या िकसी सचू ना या तकनीक को दसू रे तक पहँचाना।
जब दो या दो से अिधक यि आपस म कुछ साथक िच , संकेत या तीक के मा यम से
िवचार या भावनाओ ं का आदान- दान करते ह तो उसे संचार कहते ह (Communication refers to the
act by one or more persons of sending and receiving messages–distorted by noise-with
some effect and some opportunity for feedback)।
सचं ार का अथ एक-दसू रे को जानना, समझना, सबं ंध बनाना, सचू नाओ ं का आदान- दान करना
आिद से है। इसके मा यम से मनु य अपने िवचार , भाव , अनभु व को एक-दसू रे से बांटता है। वा तव म
िवचार क अिभ यि िज ासाओ ं को पर पर बांटना ही सचं ार का मु य उ े य है।
सच ं ार मनु य के अलावा पशु पि य म भी होता इसके िलए मा यम का होना अित आव यक है।
िचिड़या का चहचहाना, कु े का भ कना, सप का भक ंु ार मारना, शेर का दहाड़ना, गाय का रंभाना, मढ़क का
टर-टर करना भी संचार है। भाषा ही संचार का पहला मा यम है। भाषा के मा यम से ही हम अपने िवचार को
समाज म आदान- दान करते ह। इसीिलए कहा जा सकता है िक सचू नाओ,ं िवचार एवं भावनाओ ं को एक

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 87


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

यि से दसू रे यि तक भाषा के मा यम से ही अपने िवचार अनभु व को समाज के सामने रख कर यथे


सचू ना का ेषण करते ह।
प टत: संचार एक ऐसा यास है, िजसके मा यम से एक यि दसू रे यि के िवचार , भावनाओ ं
एवं मनोवृि य म सहभागी बनता है। संचार का आधार संवाद और सं ेषण है। उदाहरण व प जब एक
िश क अपने िवचार को पहचानने के िलए भाषण या ले चर का सहारा लेता है, तो िश क का उ े य उ
संचार के अथ को मा सं ेिषत करना होता है।

िविभ न िवधाओ ं के िवशेष ने संचार को प रभािषत करने का यास िकया है, लेिकन िकसी एक
प रभाषा पर सवस मत नह बन सक है। िफर भी, कुछ चिलत प रभाषाएं िन निलिखत ह -
ए साइ लोपीिडया ऑफ क यिु नके शन के अनसु ार- “the transfer of thoughts and messages are
contrasted with transportation of goods and persons. अथात् िवचार या संदश े के आदान- दान
को संचार कहते ह जो चीज और यि य क ढुलाई या प रवहन से अलग है।”
डैिनस मे वैल के अनसु ार, ‘‘सचं ार वह ि या है जो समानता को बढ़ाती है (Communication is a
process which increases commonality)।’’
कॉफ न ए ड शॉ के श द म, ‘‘संचार आपसी समझ का एक िविनमय है (Communication is an
exchange of understanding)।’’
ऑ सफोड िड शनरी के अनुसार, “िवचार , जानका रय आिद का िविनमय, िकसी और तक पहँचाना या
बाँटना, चाहे वह िलिखत, मौिखक या साक ं े ितक हो, सचं ार है।”
ई.एम. रोजस एवं शमू क
े र के श द म, “संचार वह ि या है िजसम ोत एवं ोता के म य सूचना सं ेषण
होता है।
लईु स ए. एलेन के अनसु ार, “संचार उन सभी ि याओ ं का योग है, िजनके ारा एक यि दसू रे के साथ
समझदारी थािपत करना चाहता है। संचार अथ का एक पुल है। इसम कहने, सनु ने और समझने क एक
यवि थत तथा िनयिमत ि या शािमल है। (Communication is the sum of all the things one
person does when he wants to create understanding in the mind of another. It involves
a systematic and continuous process of telling, listening and understanding.)
रॉबट एडं रसन के अनसु ार, “वाणी, लेखन या सक ं े त के ारा िवचार अिभमत अथवा सचू ना का िविनमय
करना संचार कहलाता है।”
चा स ई. रे डफ ड (Charles E. Redfield) के अनसु ार- “सचं ार से आशय उस यापक े से है, िजसके
मा यम से मनु य त य एवं अिभमत का आदान- दान करता है। टेलीफोन, तार, रे िडयो अथवा इस कार के
अ य तकनीक साधन संचार नह है।” (Communication is the field of human interchange of
facts and opinion and not the technologies of telegraph, radio and the like.)
शैनन एवं वीवर के अनसु ार, “ यापक अथ म संचार के अतं गत वे सभी ि याएं सि मिलत ह, िजसके ारा
एक यि िदमागी तौर पर दसू रे यि को भािवत करता है। इसम न वािचक एवं िलिखत भाषा का योग
होता है, बि क मानव यवहार के अ य मा यम जैसे-संगीत, िच कला, नाटक इ यािद सि मिलत ह।”

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 88


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

े च एवं सािथय के अनसु ार, “िकसी व तु के िवषय म समान या सहभागी ान क ाि के िलए तीक का
उपयोग ही संचार है। य िप मनु य म संचार का मह वपणू मा यम भाषा ही है, िफर भी अ य तीक का
योग हो सकता है।”
चा स ई. ऑसगडु (Charles E. Osgood) के अनुसार, “आम तौर पर संचार तब होता है, जब एक िस टम
या ोत िकसी दसू रे या गतं य को िविभ न कार के सक ं े त के मा यम से भािवत कर।” (In the most
general sense, we have communication whenever one system is a source of influence,
another the destination by manipulation of alternative signals which can be
transmitted.)
बैरलो के अनसु ार, “संचार म अथ संचा रत नह होता। इसम अथ न तो संचा रत होते ह और न ही
थानातं रत होते ह। के वल सदं ेश ही सचं ा रत होते ह तथा सदं श
े म अथ नह होते, वे तो सं ेषक म होते ह जो
संदश े देते ह।”
लडु बग के अनसु ार, “संकेत ारा होने वाला सं ेषण संचार है।”
लीलड ाउन के अनसु ार, “मनु य के काय े िवचार व भावनाओ ं के सारण व आदान- दान क ि या
संचार है।” (Communicationis the transmission and interchange of facts, ideas, feelings
or course of action.)
थीयो हैमान के अनसु ार, “संचार वह ि या है िजसके ारा सचू ना व संदश े एक यि से दसू रे यि तक
पहँचे।”
जे पाल लीग स के अनसु ार, “सच ं ार एक ऐसी ि या है िजसम दो या दो से अिधक यि िवचार, त य,
भावनाओ ं का िविनमय करते ह, तािक दोन क समझ बढे़।”
ए बी शनमगु न के अनसु ार, “ ान, अनभु व, संवदे ना, िवचार और यहाँ तक िक अि त व म होने वाले
अिभनव प रवतन क साझेदारी ही संचार है।”
लिू मक और बीगल के अनसु ार, “संचार एक ि या है, िजसम सामािजक यव था के ारा सचू ना, िनणय
और िनदश िदए जाते ह और यह एक माग है िजसम ान, िवचार और ि कोण को िनिमत अथवा
प रवितत िकया जाता है।”
मैगीनसन के अनसु ार, “संचार समानभु िू त क ि या या ंख ृ ला है, जो िक एक सं था के सद य को ऊपर से
नीचे तक और नीचे से ऊपर तक जोड़ती है।”
िव बर ाम के अनसु ार, संचार म एक यि या यि य के समहू के साथ एक ऐ य या सामा यतया क
थापना समािहत होती है।
मैक डेिवड और हरारी के अनसु ार, “मनोवै ािनक ि से संचार से ता पय यि य के बीच िवचार और
अिभ यि य के आदान- दान से है।”
कै थ डैिवस के अनसु ार, “एक यि से दसू रे यि को सचू ना भेजने तथा समझने क िविध है। यह
आव यक तौर पर लोग म अथ का एक पल ु है। पल
ु का योग करके एक यि आराम से गलत समझने क
नदी को पार कर सकता है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 89


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

पीटर िलिटल के अनुसार- संचार एक ऐसी ि या है िजसके मा यम से सूचना यि य या संगठन के बीच


सं ेिषत क जाती है तािक समझ म वृि हो।”
ो. रमेश जैन के श द म, “िकसी एक यि से दसू रे यि को अथवा िकसी एक यि से कई यि य
को कुछ साथक िच ह , संकेत या तीक के सं ेषण से सचू ना, जानकारी, ान या मनोभाव का आदान-
दान करना सच ं ार है।”
डॉ. ह रमोहन के अनसु ार, “संचार एक जिटल ि या का प रणाम है, िजसके ारा एक यि से दसू रे यि
के बीच अथपणू संदेश का आदान- दान िकया जाता है। ये अथपणू संदेश भेजने वाले और संदशे पाने वाल
के बीच एक समझदारी या साझेदारी बनाते ह।”
उपरो प रभाषाओ ं के आधार पर कहा जा सकता है िक िकसी एक यि से दसू रे यि अथवा
समहू को कुछ साथक िच , सक ं े त या तीक के मा यम से ान, सचू ना, जानकारी व मनोभाव का
आदान- दान करना ही संचार है। इस कार संचार एक ऐसी ि या है िजसके मा यम से दो या दो से अिधक
यि संकेत, िच या भाषा के ारा अपनी सचू नाओ,ं भावनाओ,ं िवचार का आदान- दान करते ह। संचार
क ि या के मा यम से एक यि दसू रे के िवचार को समझता है, सहभागी होता है तथा आपसी
समझदारी बढ़ाता है। इन प रभाषाओ ं के आधार पर हमारे सामने तीन बात उभर कर सामने आती ह-
1. यह िविनमय या सूचना ेषण मौिखक, िलिखत अथवा संकेत म ही हो सकता है लेिकन िजस प
म हो, वह अथपणू संदेश होना चािहए। िबना अथ के यह संदेश यथ है।
2. संचार एक जिटल ि या होती है। इससे हमारे वाक् अवयव से लेकर अनेक कार क मशीन
का योग िकया जाता है।
3. संदश े अथपणू हो और उनका भाव दसू रे लोग पर होना चािहए। वे कुछ िति या द, यह भी
आव यक है।

1.5 सचं ार शोर (Communication Noise)


ितपिु के आधार के िलए सच ं ार म शोर को समझना आव यक तीत होता है। सचं ार ि या म दो कार
से बाधा होती है -
1. तकनीक बाधा (Technical Noise)
2. अथ सबं धं ी बाधा (Semantic Noise)
1.5.1 सं ेषण म अवरोध (Communication Barriers)
1. भाषा सबं धं ी अवरोध (Language Barriers)
2. उ े य क बाधा (Barriers of Unsound Objectives)
3. समयाभाव क किठनाइयाँ (Barriers of shortage of time)
4. भौगोिलक दरू ी (Geographical Distance)
5. म (Confusion)
6. िववेकपणू न सनु ना (Barriers of improper Listening)
7. भावना मक धारणाएँ (Emotional Attitudes)

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 90


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

8. वैयि क िभ नता संबंधी बाधाएँ (Barriers of personal differentiation)


9. बौि क ि थित संबंधी बाधाएँ (Barriers of Mental Status)

सच ं ार का मह व एवं काय
सचं ार जीवन को अथपणू एवं जीवतं ता दान करता है। यह यि के जीवन का मह वपणू अगं है। जब सच ं ार
होता है तो उसम सोच, िवचार, भावनाओ,ं जानकारी आिद का आदान- दान होता है। संचार के काय को
िन न प म िवभािजत िकया है : 1. सचू ना, 2. समाजीकरण, 3. ेरणा, 4. वाद-िववाद, 5. िश ा, 6.
सां कृ ितक सार, 7. मनोरंजन, 8. एक करण, 9. सामिू हक स ता क अपे ा, 10. प रवतन, 11. िनयं ण
और 11. िनयं ण एवं िनगराणी। संचार के मख ु काय िन नवत ह -
1. सूचना मक (To Inform) : संचार का मख ु काय सूचनाओ ं का सं ह और सार करना होता
है। जनसंचार मा यम (समाचार प -पि काए,ं रे िडयो, दरू दशन, इटं रनेट आिद) के ारा समाजोपयोगी
सचू नाओ ं का सं ेषण िकया जाता है। जनमा यम घर बैठे ही लोग को िव व म होने वाली घटनाओ ं
को तरु ं त सचू नाएं देने म सफल है।
2. ेरणा मक (To Intimate) : संचार क मह ता उससे िमलने वाली ेरणा के प म वीकार क
जाती है। सचं ार के ारा िकसी के बारे म राय बनाने के िलए े रत करते ह। सचं ार ही सम त ल य
क खोज म यि गत या सामुदाियक ि याओ ं को िवकिसत करता है। समाज के लोग संचार से ही
ेरणा लेकर अपने ल य तक पहँचते ह।
3. िश ा मक (To Educate) : संचार के मा यम से समाज म लोग को िशि त िकया जाता है।
िश ा का संचार िजतना यापक होगा जीवन के िविवध चरण म उतने ही िवकास क संभावनाएं
बढ़ जाती ह।
4. मनोरंजना मक (To Entertainment) : संचार मा यम का मह वपणू काय लोग का मनोरंजन
करना भी होता है। जनमा यम लेख, वृ तिच , िफ म, काटून, संगीत, किवता, कहानी, नाटक आिद
का सारण कर लोग का मनोरंजन करते ह।

1.6 सचं ार क िवशेषताएं (Features of Communication)- सचं ार का उ े य सचू नाओ ं तथा अनभु व
को पर पर बाटं ना, िवचार क अिभ यि , िज ासाओ ं का समाधान दसू रे को ो साहन व प रवतन आिद से
है। वतमान म तकनीक ांित के िनमाण एवं ानाधा रत समाज के िलए संचार का मह व बढ़ गया है। संचार
के िलए िन न िवशेषताओ ं का होना आव यक है-
 संदश े का सं ेषण एवं िव लेषण करना।
 संचार उ े यपणू होना चािहए।
 सच ं ार भावी होने के साथ-साथ साथक भी होना चािहए। दो यि य म साथकता का िनमाण
सं ेषण से होता है।
 सं ेषक को पहले सचू ना एवं त य को दयंगम कर लेना चािहए।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 91


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

 सं ाहक पर संदेश के भाव का मू यांकन अपेि त है।


सचं ार क अ य मख ु िवशेषताएं िन नवत ह -
गितशीलता (mobility): सच ं ार गितशील होता है, य िक इसम ेिषत तथा ा होने वाले सदं ेश का
व प एवं अथ प रवतनशील होता है। उदाहरण व प ‘काय के ित िन ावान रह’ यह सदं ेश औ ोिगक
ित ान, सरकारी द तर म कायालय कमचारी, कूल या कॉलेज के छा , िश क आिद के िलए अलग-
अलग अथ रखता है।
जिटलता (complexity) : संचार क ि या को भािवत करने वाले अनेक त व होते ह, जैस-े यि व,
पसंद-नापसंद, ेरणा, मनोवृि , यवहार के तौर -तरीके आिद। चँिू क संचार एक अंत: ि या मक ि या है,
इसिलए संचार को भािवत करने वाले ये कारक त व संचार को जिटल बना देते ह।
मब ता (seriality) : संचार एक यवि थत ि या है, य िक इसके अतं गत यि य के बीच आदान-
दान होने वाले चर एक-दसू रे पर आि त होते ह।
सच
ं ार मौिखक और िलिखत दोन प म होता है। सचं ार का तीसरा चरण मु ण से सबं ंध रखता है
और चौथे चरण को जनसंचार कहा जाता है। वा तव मे संचार एक ि या है, संदश े नह । इस ि या म एक
मनु य दसू रे मनु य से बातचीत करता है। अपने अनुभव को बांटता है। संचार ने ही पूरी दिु नया को एक छोटे
से गांव म त दील कर िदया है। अमे रक िव ान पिसग ने मानव संचार के छह घटक बताए ह।
1.7 सच ं ार के छह ककार : सफल सचं ार के िलए छह ककार 5 ‘W’ and 1 ‘H’ (कौन, या, िकस
मा यम से, िकससे, िकस भाव के साथ और कै से) आव यक अवयव ह। िकसी सदं ेश के िलए िन न
का उ र पछू ना अित आव यक है :
1. कौन (Who) कहता है?
2. या (What) कहता है?
3. िकस (Which) मा यम से कहता है?
4. िकससे (Whom) कहता है?
5. िकस भाव के साथ (With what effect) कहता है?
6. कै से (How)?

1.8 संचार के कार – संचार मनु य जीवन के िलए अप रहाय है। संचार क ि या ोता एवं ोत दो
मखु त व के बीच संचािलत होती है। इ ह दो त व को यान म रखकर संचार िवशेष ने संचार के
िविभ न कार का िनधारण िकया है। संचार के िविभ न कार को िन न आधार पर िवभािजत िकया जा
सकता है-
क. संचार ि या म भाग लेने वाले यि य क सं या के आधार पर (On the basis of Peoples
participation in Communication Process) : 1. अतं ः वैयि क संचार (Intra Personal
Communication), 2. अतं र वैयि क संचार (Inter Personal Communication), 3. समहू संचार
(Group Communication) और 4. जन संचार (Mass Communication)

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 92


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

1. अंतः वैयि क संचार (Intra Personal Communication): यह संचार मा यम का आधार तभं


है य िक इसके िबना संचार क प रक पना नह क जा सकती है। मनु य एक मनोवै ािनक ाणी है और म
यह संचार मनु य के अतं ःमन म सि य रहता है। आ म िववेचन, आ म िव े षण, तक-िवतक, अतं
आिद इस ेणी के सच ं ार ह। व ततु ः यह एक मनोवै ािनक ि या है, जो यि के मन के दायरे म ही सपं न
होता है। अपने िनजी अनभु व , िवचार , मृितय के आधार पर यह मन ही मन यि य , घटनाओ,ं भाव के
प रणाम का आकलन करता है। विचंतन, ई र या अलौिकक शि य क आराधना अंतःवैयि क संचार
का सव म उदाहरण है।
2. अंतर वैयि क सच ं ार (Inter Personal Communication): ऐसा संचार दो या दो से अिधक
यि य के छोटे से समहू के भीतर घिटत होता है इसम ितपिु तरु ं त ही संप न हो सकती है। अंतः यि
संचार क ि या म संदेश का ेषण मौिखक भी हो सकता है अथवा पश या चेहरे के हाव-भाव या शरीर
क मु ाओ ं से संभव हो सकता है। दरू भाष ारा सचं ार भी अतं वैयि क सचं ार का ही अगं है, जबिक दोन
यि आमने-सामने भी उपि थत नह होते ह।
छोटे समहू म अंतर वैयि क संचार तभी संभव है, जब ितपिु तरु ं त ा त हो सके । समहू के यि य म
पर पर सचं ार भी इसम िनिहत है। प रचचाएं गोि याँ, छोटी दावत, ीितभोज आिद अवसर पर क गई चचा
इसके उदाहरण ह, पर ोताओ ं क सं या व सीिमत (10 से अिधक नह ) होनी चािहए।
3. समहू सच ं ार (Group Communication) : समहू सचं ार म ोता एक यि न होकर एकि त यि
समहू होता है। ोत ारा ेिषत सूचना या संदेश इसी समहू ोता के िलए ेिषत िकया जाता है, िजसका िहत
या उ े य समान होता है और जो संदश े ाि के िलए ही एक थान पर एकि त होता है। सभा, गो ी,
स मेलन, नाटक, वाद-िववाद, संगीत-नृ य, समहू संचार के ही प ह।
समहू सचं ार म ोता एक यि न होकर एकि त यि समहू होता है। ोता ारा ेिषत सचू ना या
संदशे इसी समहू ोता के िलए ेिषत िकया जाता है, िजसका िहत या उ े य समान होता है और जो संदश े
ाि के िलए ही एक थान पर एकि त होता है! सभा, गो ठी, स मेलन, नाटक, वाद-िववाद, संगीत-नृ य,
समहू संचार के ही प ह।
4. जन संचार (Mass Communication): जनसंचार का संबंध आधिु नक यगु से है। पँूजीवाद के उदय के
उपरांत िव तृत बाजार का उदय हआ। अपना माल यादा से यादा लोग तक पहँचाने और उ ह खरीदने के
िलए यातायात और संचार के साधन पया नह हो रहे थे। दिु नया के कई देश म लोकतांि क शासन
यव था कायम होने से लोग के िवचार को अपने प म मोड़ने क ज रत के अनसु ार ही जनसच ं ार के
मा यम का िवकास अित ती गित से हआ। मीिडया के मा यम से ु त गित म अपने सदं श े को यथाशी
भेजने क यव था कायम हई। जनसच ं ार का अथ वह वृहत जन समदु ाय है, िजसे सदं ेश ेिषत िकया जाता है।
यह जनसमदु ाय समहू के प म कह एक न होकर िबखरा होता है।
जनसंचार को प रभािषत करते हए जोसेफ िडिवटो ने कहा था, “Mass communication is the
process of transmitting informations, ideas and attitudes of many People casually through
a machine”

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 93


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

एडिवन एमरी के श द म : जनसंचार एक यि से दसू रे को सचू नाओ,ं िवचार और ि कोण को सं ेिषत


करने क एक कला है। इस सदं भ म जवरीमल पा रख कहते ह िक जनसचं ार का अथ ‘जन’ के िलए सच ं ार के
मा यम/इसम जनता का न तो िनि य भागीदारी होती है और न ही येक सं ेिषत संदश े को आसानी से
वीकार कर लेती बि क इन मा यम को भािवत भी करती है और भािवत भी होती है।
जनसंचार के मा यम - जनसंचार के मा यम यथा: समाचार प -पि काए,ं रे िडयो, टेलीिवजन व यू मीिडया
आिद का मल ू उ े य जनता को जानका रयाँ देना, उ ह िशि त बनाना और जनता का मनोरंजन करना है।
वतमान सदं भ म भारत म दो कार के जनसचं ार मा यम ह- एक आधिु नक मा यम और दसू रा लोकमा यम।
इनका िवभाजन िन न कार से िकया जा सकता है-
1. मिु त मा यम- समाचारप , पि काएँ, पु तक व िव ापन आिद।
2. घोिषत श द- आकाशवाणी।
3. य- य मा यम- दरू दशन, वीिडयो और िफ म।
4. लोक मा यम- लोकगीत, लोक नृ य, नौटंक , कठपतु ली, सामिू हक गान आिद।
5. मौिखक- यि गत संपक, सावजिनक सभाएँ आिद।
6. े ीय सार- िफ म, िसनेमा, लाइड, योन साइन, मिु त मा यम आिद।

1.9 संचार और जनसंचार म अंतर (Difference between Communication and


Mass Communication)
1. सच
ं ार (Communication) क याि सीिमत है, जबिक जनसचं ार (Mass Communication)
क याि म फै लाव है।
2. संचार म कौशल िवकास क मह ता पर बल नह िदया जाता है, जबिक जनसंचार म कौशल
िवकास पर बल िदया जाता है।
3. संचार म मनु य-मनु य ही इनकोडर और डीकोडर होता है, जबिक जनसंचार म यि इनकोडर और
यं डीकोडर होता है।
4. संचार म संदेश को समझनेवाला समझा रहा है तो हम क यिू नके ट कर देते ह, जबिक जनसंचार म
हमारे समाज म या त है उसे ही यवहार म लाया जाता है।
5. संचार का फै लाव कम है इसिलए इसके ारा सामािजक े म कम प रवतन लाता है, जबिक
जनसंचार म मीिडया (यथा : समाचार प , पि काए,ं टीवी, रे िडयो, इटं रनेट आिद) के ारा हमारे
सामािजक यवहार म भाव पड़ता है। इसम बहलता के ारा जैसे खान-पान, रहन-सहन, पहनावे,
बोलचाल, फै शन आिद के ारा समाज म भाव पड़ता है। इसके ारा परू ी दिु नया ‘वैि क ाम’ म
त दील हो गई है।
6. सच ं ार परू े समाज को िवशेषकर पँजू ीपितय (बाजारवाद) के िशकंजे से बाहर है, जबिक जनसच
ं ार
पँजू ीपितय व बाजारवाद के ितल मी जाल म जकड़े है।
7. सच ं ार मानवीय है जबिक जनसचं ार टे नोलॉजी ारा सचं ािलत है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 94


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

ख. भाषा के आधार पर (On the basis of Language) : संचार के िलए संदश े क संरचना म भाषा
का मह वपणू थान है। संदेश के आधार पर संचार का वग करण िन न कार से िकया जा सकता है-
1. शाि दक / भािषक सच ं ार (Verbal Communication) : मानव क सबसे बड़ी िवशेषता उसक
शाि दक भाषा (Verbal Communication) है। शाि दक सचं ार मल ू प से भाषा पर आधा रत होता है।
भाषा मनु य क बुि को खर बनाती है और साथ ही पर पर सहयोग एवं संचार को भी प र कृ त करती है।
श द भाषा से अिभ यि सरल, सगु म एवं बोधग य हो जाती है। शाि दक संचार को दो वग म रखा गया है-
अ. मौिखक सच ं ार (Oral Communication) ब. िलिखत सचं ार (Written Communication)।
अ. मौिखक सच ं ार (Oral Communication) – जब कोई सवं ाद एवं सचू ना मौिखक उ चारण से ेिषत
क जाए तो उसे मौिखक सच ं ार कहा जाता है। मौिखक सचं ार से आशय, सं ेषक ारा िकसी सचू ना या सदं श

को मख ु से उ चारण कर ोता तक ेिषत करने से है। इसम दो प - सं ेषक और संदश े ा तकता के बीच
मौिखक संवाद होता है। लॉरे स ए पल के मतानसु ार, “मौिखक श द ारा पार प रक सं ेषण संदेशवाहन का
सव े ठ कला है।” इसिलए कहा जाता है िक मौिखक सचं ार ही वह सू है जो मानवीय सबं धं को थािपत
करता है। घर, सावजिनक थल आिद म यि मौिखक संचार के मा यम से अपने संबंध को गाढ़ बनाता
है। भावी मौिखक संचार के िलए ांिसस जे.बरिगन ने सात त व बताए ह िजनको Seven ‘C’ के नाम से
पकु ारते ह जो इस कार ह- Clear ( प ट), Complete (पणू ), Concise (संि त), Correct (शु ),
Candid (सरल), Concrete (वा तिवक) और Courteous (सौहादपणू )। मौिखक संचार मानवीय जीवन
म सहज एवं सरल होता है, िजसे हम िन न प म समझ सकते ह- 1. सू म सचं ार (Micro
Communication) एवं 2. थूल संचार (Macro Communication)।
1. सू म संचार (Micro Communication) – संचार ि या म जब संकेत क सहायता से भावािभ यि
हो तो उसे सू म संचार कहते ह और इसम भाषा का योग नह होता है, बि क संकेत के मा यम से ही
संचार क ि या परू ी होती है।
2. थूल सच ं ार (Macro Communication) – सचं ार िकया म जब भाषा का योग सचं ार के िलए िकया
जाता है तब अिभ यि या संदेश ेषण का भौितक व प थूल होता है।
मौिखक सच ं ार के मा यम (Medium of Oral Communication) – मौिखक संचार के थूल प से
कई मा यम ह- क. आमने-सामने वातालाप, ख. दरू भाष पर वातालाप, ग. रे िडयो सारण, घ. वाद-िववाद,
च. संगो ठी, छ. भाषण, ज. िवचार गोि यां आिद।
मौिखक संचार के लाभ (Advantage of Oral Communication) – मौिखक संचार के िन न लाभ ह-
1. शी संचार – मौिखक संचार से धन एवं समय क बचत होती है य िक संदश े का सं ेषण मौिखक
प से हो जाता है, इससे शी संचार होता है।
2. भावी सच ं ार – मौिखक संचार अिधक भावशाली होता है। उ चारण के ढ़गं , अिभ यि क
भाव-भंिगमा एवं हाव-भाव ारा संदेश को भावशाली तरीके से रखा जा सकता है।
3. अिवलंब ितपिु – मौिखक संचार म संदेश आसानी से समझ म आ जाता है। यिद संदेश म कोई
संशय होता है तो उसका तुरंत िनराकरण भी कर िलया जाता है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 95


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

4. काय मता म वृि – मौिखक संचार ारा यि य के वा चातुय, यावहा रक कुशलता आिद का
िवकास होता है फल व प काय मता म वृि होती है।
मौिखक संचार के दोष (Disadvantage of Oral Communication) – मौिखक संचार के िन न दोष
ह-
1. सीिमत े – मौिखक सच ं ार म सं ेषक और ोता दोन का एक साथ उपि थत रहना आव यक
है। यिद ोता उपि थत नह है तो मौिखक संचार यथ हो जाता है साथ ही सं ेषक को संदश े के बारे
म सोचने का कम समय िमलता है िजससे कभी-कभी संदश े भावी नह होता है। ि थरता के मामले
म ोता के मरण शि पर िनभर करता है। यिद ोता को सदं श े के कुछ समय बाद पनु : समझने क
आव यकता पड़ती है तो यह ाय: िन तर हो जाती है।
2. वैधािनक मा यता का अभाव- मौिखक सचं ार भिव य म िववाद उ प न होने क ि थित म
माण व प ततु नह िकया जा सकता है। अतएव मौिखक संचार का कोई थायी मह व नह
होता है और इसक कोई वैधािनक मा यता नह होती है।
ब. िलिखत संचार (Written Communication) – जब संदेश का आदान- दान िलिखत प म होता है
तो उसे िलिखत संचार कहा जाता है। िलिखत संचार से आशय ऐसी सचू नाओ ं से है, जो मौिखक न हो वरन्
िलखकर दी गई हो। िव तृत संदेश या थायी तथा भिव य म संदभ के प म रखे जाने वाले संदेश का
िलिखत संचार िकया जाता है। जब संदश े को एक साथ िविवध थल पर अनेक यि य को संचा रत
करना हो तो िलिखत संचार उपयोगी होता है। िलिखत संचार म मिु त एवं टंिकत सं ेषण भी शािमल है।
िलिखत सच ं ार म प , टेली ाम, बल ु ेिटन, प रप , ापन, ितवेदन, सचू ना, नावली, पु तक, समाचार प ,
पि काए,ं है डिबल, चाट, ई-मेल, सीडी, डीवीडी एवं िलिखत श द शािमल ह। िलिखत संचार प ट, पणू
एवं बोधग य होना चािहए।
िलिखत संचार के लाभ (Advantage of Written Communication) –
1. पहँच यापक – िलिखत संचार का े यापक है। इसम सं ेषक और हीता दोन एक साथ
उपि थत नह होते। दरू थ े म जहाँ सचं ार के आधिु नक साधन उपल ध नह ह िलिखत सच ं ार
आसानी से पहँच जाता है। एक ही समय म कई यि य के साथ सगु मता से िलिखत संचार म
अिभ यि क जा सकती है।
2. वैधािनक एवं थायी रकाड – िलिखत सचं ार का सा य वैधािनक प से मा य है। इसे भिव य म
रकाड के िलए संरि त िकया जा सकता है। हम जानते ह िक िलिखत या िलिपब रकाड के िबना
ान के भडं ार न ट हो जाते ह। िलिखत मा यम ान के भडं ार को जीिवत रखने म लाभदायी होता है,
य िक ान के हर पहलू को पीढ़ी दर पीढ़ी मरण शि ारा जीिवत व जारी रखना संभव नह है।
3. ि या वयन म सुिवधा – िलिखत संचार म संदेश ापक को संदश े पर िवचार करने तथा िव लेषण
करने का पया त समय तथा अवसर रहता है, िजससे ि या वयन क सही ि या का िनधारण
िकया जा सके ।
िलिखत संचार के दोष (Disadvantage of Written Communication) –

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 96


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

1. महँगी ि या – िलिखत संचार म येक सूचना चाहे वह छोटी हो या बड़ी िलिखत/मिु त प म


ही ततु क जाती है और इस ि या म बहत अिधक समय तथा धन का अप यय होता है। इसके
िवपरीत आमने-सामने क जाने वाली वातालाप म समय तथा धन दोन क बचत होती है।
2. समय लगाने वाली ि या – िलिखत संचार अनाव यक समय लगाने वाली ि या है, य िक हम
जानते ह िक हरे क छोटी-मोटी बात को हमेशा िलिखत प म सं ेिषत करना सभं व नह होता। यिद
िलिखत संदेश म यिद कोई बात छूट जाए तो पुन: िलखकर ेिषत करने म अित र त समय लगता है
और फल व प संदश े पहँचने म िवलबं होता है।
3. या या म किठनाई – कभी-कभी िलिखत सचं ार सं ेषक क भावनाओ ं को कट करने म असमथ
हो जाता है।
2. अशाि दक/िनभािषक सच ं ार (Non-Verbal Communication) – यह संचार क एक ऐसी ि या
है, िजसके अंतगत हम अपने िवचार , भावनाओ ं तथा अिभ यि य को िबना श द के योग िकए य त
करते ह। जब संदेश श द के अलावा िच , ल ण या संकेत तथा सिू चत िच के ारा संचा रत हो तो उसे
अशाि दक सच ं ार कहा जाता है। रे म ड एवं जान के श द म, “सचं ार के वे सभी मा यम अशाि दक सच
ं ार म
शािमल होते ह जो न तो िलिखत और न ही मौिखक श द म य त ह। (All Communications that
involve neither written nor spoken words but occurs without use of words are termed
as non-verbal communication.)” ारंिभक दौर म मनु य ने अशाि दक संचार के तहत भाव को
अिभ य त िकया। भाव संचार क एक ऐसी ि थित होती है, िजसे हम सू म और थूल ि थित से भी अलग
‘अिनवचनीय’ कहते ह। इसे सच ं ारिवद् वीण दीि त ने या याियत िकया है िक, “एक पवती षोडसी
ेिमका और उसके ेमी के म य के वल संकेत के मा यम से य त होने वाली भाव वणता और
णयानभु िू त को जब संसार के बड़े-बड़े महाकिवय क वाणी भी यथावत य त करने म समथ नह होती तो
और कौन समथ होगाॽ क पना क िजए िक आप िकसी बस या ेन से या ा कर रहे ह। आप के आगे क
सीट पर एक युवती दो वष के एक व य संदु र बालक को गोद म िलए बैठी है। आप उसे देखकर आनंिदत
होते ह। आपके चेहरे के आनदं भाव को देखकर अपनी माता क गोद म बैठा न हा िशशु आनदं ानभु िू त से भर
जाता है। वह बार-बार आप क ओर देखकर मु कुराता है और बार-बार अपनी माता के आचं ल म महुँ छुपा
लेता है। आचं ल से महँु िनकालकर आप क ओर देखने और मु कराने म बालक क जो भावना सि य होती
है, भला आप उसको कौन सी सं ा दगेॽ उस बाल क िन छल िनिल त और समु धरु मु कान म अतं िनिहत
अिनवचनीय संवाद को भला कौन सा मा यम श द और भाषा के बंधन म बांध सकता है” ( वीण दीि त
क पु तक ‘जनमा यम और प का रता’, पृ. 1 व 2 से उ तृ )। इस कार के कई उदाहरण हमारे सम
ि गोचर होते ह। अशाि दक संचार क परंपरा ाचीन काल से ही हमारे समाज म िव मान है और आज भी
िकसी-न-िकसी प म यु त हो रही है। शारी रक भंिगमाए,ं मख ु आभा मंडल क िविवध अिभ यि याँ,
ि आिद से अशाि दक सच ं ार िकया जाता है। अशाि दक सचं ार को सामा यत: तीन ेिणय म िवभ त
िकया जा सकता है- क. संकेत भाषा, ख. ि या भाषा ग. व तु भाषा।
क. संकेत भाषा - इसके तहत वे सभी िवधाएं सि निहत ह, िजसम श द, अक ं तथा िवराम िच का योग
खास व तओ ु ं क ओर इिं गत करते ह।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 97


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

ख. ि या भाषा – इसम वे सभी अंग संचार के अंतगत आते ह, िज ह के वल संकेत के प म योग नह


िकया जाता। जैसे हमारा यवहार, हँसी-िवषाद आिद से संबंिधत भाव-भंिगमाएं हमारी भावनाओ ं को बहत
हद तक अिभ य त कर देते ह। इसी कार आँख क भाषा से भी बहत कुछ अिभ य त हो जाता है।
ग. व तु भाषा – काटून, फोटो आिद व तु भाषा के ही प ह।
ग. औपचा रकता के आधार पर (On the basis formalities) – औपचा रकता के आधार पर
संचार को दो प म िवभ त िकया जा सकता है- 1. औपचा रक संचार 2. अनौपचा रक सचं ार।
1. औपचा रक संचार – औपचा रक यव था के अतं गत संचार संदश े का संचरण िनि त प म िनयोिजत
िकया जाता है। औपचा रक संचार दो प –िलिखत और मौिखक प म होता है, लेिकन यह िकसी सं था म
यि के पद या तर के आधार पर होता है। औपचा रक सचं ार म सं था के अिधकारी अपने पद या ि थित
के आधार पर िविवध िनयम तथा कायिविधय क औपचा रकताओ ं म बँधे रहते हए अपने अधीन थ को
आव यक िनदश देने क ि थित म संचार होता है, िजसका एक प उिचत मा यम ारा संचार के प म
सि यता बताता है।
2. अनौपचा रक संचार – अनौपचा रक संचार यव था सं ेषक और ापक के म य अनौपचा रक संबंध
पर िनभर करती है। अनौपचा रक संचार अिभ यि भावभंिगमाओ,ं संकेत , हाव-भाव या मक ू ता के प म
यि गत या समहू तर पर हो सकता है।
घ. संचार वाह के आधार पर (On the basis of Communication flow) – इस आधार
पर संचार के दो प ह- 1. ैितज संचार और 2. समतल संचार।
1. ैितज संचार – ैितज संचार के प होते ह- अधोमख ु ी और ऊ वमख ु ी। अधोमुखी संचार के तहत कोई
संदशे उ चवग य शासक क ओर से अधीन थ तक पहँचाया जाता है। अधोमख ु ी संचार के ठीक िवपरीत
ऊ वमख ु ी संचार के अतं गत जब संदश
े का आदान- दान नीचे से ऊपर क ओर होता है।
2. समतल सच ं ार – जब दो समान तरीय यि य के म य िवचार-िवमश अथवा सचू नाओ ं का आदान-
दान होता है तो उसे समतलीय संचार कहते ह।
ङ. मा यम के आधार पर (On the basis of Medium)- मा यम के आधार पर संचार को
िन निलिखत वग म िवभ त िकया जा सकता है- 1. य संचार, 2. य संचार और 3. य- य संचार।
1. य संचार – संचार के ऐसे मा यम, िजसके ारा ोता के वल संदेश को सनु सकता है, य संचार
कहलाता है। इसम रे िडयो, टेलीिवजन, संगो ठी, नेताओ ं के भाषण, लोकगीत आिद शािमल ह।
2. य संचार – ऐसे मा यम से ापक देखकर संदेश को समझ सकता है, उसे य संचार कहते ह। इसम
होिड स, काटून, फोटो ा स आिद शािमल ह।
3. य– य सच ं ार – य– य सचं ार मा यम से ापक अपने ने और कान का उपयोग करके सदं श े
ा त करता है। इन मा यम म टेलीिवजन, िफ म, रंगमचं आिद आते ह। आधिु नक यगु म सचं ार के नवीन
मा यम म संदेश देखा और सनु ा जा सकता है। इसके िलए उप ह संचार, इटं रनेट आिद णाली सल ु भ ह।
पंरपरागत सच
ं ार (Traditional Communication)
लोकगीत, लोक नाट्य आिद क परंपरागत िवधाएं सिदय से संचार के प म सश मा यम रही है। समाज
के धािमक और सां कृ ितक प से सबं ं पारंप रक सचं ार मा यम क िवषय व तु लोग के िलए सहज ा

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 98


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

होती है। साथ ही उनम लोग को भािवत करने क मता भी अिधक होती है। भारत के िस शा ीय नृ य
क थक, भारत नाट्यम, मिणपुरी और कथकली भी पांरप रक संचार मा यम ह, िजसे कलाकार ाचीन
कथाओ ं म िनिहत संदेश को संगीत वा और अिभनय मु ाओ ं के साथ तुत करते ह।
सहजता, सगु मता और सुलभता के चलते पारंप रक संचार मा यम सामािजक जाग कता के सही
सवं ाहक होते ह। इसक साथकता आजादी के आदं ोलन के समय िस हई जब गाँव के सड़क पर िनकलने
वाली भात फे रयाँ और पथ नाट्य ने जनांदोलन को ती िकया। सामािजक सम याओ ं जैसे बाल िववाह,
बह िववाह, जनसं या िव फोट, िनर रता, मिदरापान, सां दाियक िव षे , कुपोषण, अ व छता, जाित था,
दहेज था आिद के िवरोध क बात िजतने पारंप रक सचं ार मा यम के ारा य िकया जा सकता वैसा
अ य मा यम ारा नह िकया जा सकता है। यनू े को क रपोट म भी परंपरागत संचार को समकालीन मु
के ित जाग क बनाने म स म पाया गया। पारं प रक संचार क मख ु िवशेषता उनक ोत से िनकटता,
थानीयता और िव वसनीयता है। ापक भी बोलचाल भी भाषा म, रोजमरा क िजंदगी के माहौल म कही
गई बात को समझ लेता है। वा य िवभाग, िश ा िवभाग, समाज क याण िवभाग आिद, ने अपनी नई
योजनाओ ं को पारंप रक मा यम म सा रत िकया और सकारा मक प रणाम भी उ ह िमला। आज के रे िडयो
और दरू दशन जैसे जनसंचार मा यम पारंप रक संचार के ही िवकिसत प ह।

1.13 सारांश
मनु य आिदमानव था तो अनेक कार क समान अनभु िू तय को संकेत म एक-दसू रे से बाँटता था। धीरे -धीरे
भाषाओ ं और िलिपय का िवकास हआ और सचं ार एक यवि थत प म सभं व हआ। इससे अिधकांश
अ तरवैयि क संचार ही संभव हआ। उ ोग और यापार के े म जब तकनीक का िवकास हआ, नए-नए
आिव कार हए तो संचार ने भी नए आयाम क तरफ कदम बढाए। अब तक गांव या कबीले तक सीिमत
संचार यापक े और यापक जनसमदु ाय तक िव तार पा गया। छापेखाने के आिव कार से शु हई संचार
ांित फोटो ाफ , टेली ाफ , रे िडयो और टेलीिवज़न के आिव कार से समृ होते हए इटं रनेट तक पहँच गई
है। इटं रनेट से पहले रे िडयो और टेलीिवज़न ने ही वा तिवक सचं ार ािं त को ज म िदया। अनेक कार क
आधिु नक सारण तकनीक के आिव कार के कारण रे िडयो और टेलीिवजन ने सारी दिु नया को एक इकाई के
प म त दील कर िदया। सूचनाओ ं और िवचार का आदान- दान सबसे सश प म ु त गित से संभव
हआ। रेिडयो ने जहाँ आवाज़ के मा यम से सचू नाओ ं को पख ं लगाए वह टेलीिवजन ने इस सचं ार को
या मकता से जोड़कर आँख दान क ।
सचं ार कई प म हमारे सामने आता है यथा : अतं :वैयि क सचं ार, अतं र वैयि क सचं ार, समहू
संचार और जनसंचार। सभी तरह के संचार के प क बिु नयाद वैयि क संचार है। संचार ि या म चार
घटक अिनवाय होते ह, पहला- सं ेषक, दसू रा- संदश े , तीसरा मा यम और चौथा- ा कता। दरअसल संचार
से आशय है सचू नाओ ं का सं षे ण। अथात् जब कोई सदं ेश एक यि से दसू रे यि तक एक थान से दसू रे
थान तक और एक समय से दसू रे समय म सं ेिषत िकया जाता है तो वह संचार और जो संचार बहत बड़े
पैमाने पर बहत बड़ी सं या तक पहँचाने के िलए उ पािदत िकया जाता है तो वह जनसंचार कहलाता है।
जनसंचार का संबंध पँजू ीवादी तथा लोकतांि क प रवतन क ेणी म संब है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 99


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

1.11 बोध
बहिवक पीय न
न 1 : ‘क यिू नके शन’ श द क उ पि िकस भाषा से हई हैॽ
क. लैिटन ख. अं ेजी
ग. पजु गीज घ. च उ र : क.
न 2 : सचं ार से आशय हैॽ
क. सचू नाओ ं का सं ेषण ख. मा यम का होना
ग. ितपिु का नह िमलना घ. िवचार को संकेत िच म बदलना उ र : क.
न 3 : बस म दो यि य ारा क जाने वाली वातालाप संचार क िकस ेणी म आता हैॽ
क. अतं :वैयि क संचार ख. अतं र वैयि क संचार
ग. समहू संचार घ. जनसंचार उ र : ख.
न 4 : संचार ि या के िलए िन न म से कौन सा आव यक अवयव नह हैॽ
क. ेषक ख. संदशे
ग. भाव घ. ा तकता उ र : ग.
न 5 : वग क ा म अ यापक ारा कराया गया अ यापन को कौन सा संचार कहा जाएगाॽ
क. अतं :वैयि क संचार ख. अतं र वैयि क संचार
ग. समहू सच ं ार घ. जनसचं ार उ र : ग.

लघु उ रीय न
न 1 : संचार के आशय को प ट क िजए।
न 2 : अतं : वैयि क सच
ं ार और अतं र वैयि क सचं ार म अतं र प ट क िजए ।
न 3 : संचार और जनसंचार के अतं र को प ट क िजए ।

दीघ उ रीय न
न 1 : संचार से आप या समझते ह, िविभ न िव ान ारा िदए गए संचार क प रभाषा पर काश
डािलएॽ
न 2 : संचार के कार को प ट करते हए संचार क िवशेषताएं बताएॽं

यवहार
काय 1 : संचार क आव यकता मनु य को कब और य पड़ती हैॽ आज के समय क तल
ु ना उस समय से
क िजए जब संचार के आधिु नक साधन उपल ध नह थे। आपक ि म कौन-सा समय जनिहत म यादा
बेहतर माना जा सकता है और य ॽ
किठन श दावली

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 100


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

 सदं ेश : सच
ं ार ि या क िवषय व तु सदं ेश है। सदं ेश म सूचना, िवचार, सक
ं े त, ि कोण, िनदश,
सझु ाव आिद शािमल ह। सदं श े यानी वह बात जो एक से दसू रे तक ेिषत क जाती है। यह िलिखत,
मौिखक, शाि दक अथवा सांकेितक होता है जो िकसी भी प म हो सकती है, विन के प म,
य के प म, सक ं े त के प म या अ य िकसी प म।
 ितपिु : सच ं ार िकया को सफल बनाने म ितपिु एक मख ु अवयव है। सं ेषक को सदं श े
सा रत करने के प चात यह जानना आव यक है िक सं ाहक ने उसे हण िकया या नह । सच ं ा रत
संदशे उपयोगी हो रहा है अथवा नह , ितपिु कहलाता है।

1.12 उपयोगी ंथ सूची


 कुल े ठ, िव. एवं जैन, ह.ं , (2005). ‘जनसचं ार शोध िविधया’ं , जयपरु : माया काशन।
 िसहं , ीका त, (2001). ‘सं ेषण: ित प एवं िस ातं ’, फै जाबाद : भारती पि लशस ए ड िड ी यटू सा
 सरदाना, चं कातं ा एवं मेहता, कृ .िश., ‘जनसचं ार कल, आज और कल’, िद ली: ान गगं ा।
 Kumar, keval j., (2004). ‘Mass Communication in India’, Mumbai: Jaico Publishing
House.
 Rayudu, C.S., (2008). ‘Communication’, Mumbai: Himalaya Publishing House.
 जैन, रमेश, (2003). ‘जनसचं ार एवं प का रता’, जयपरु : मगं लदीप पि लके श स।
 Desai, Amit, ‘Journalism and Mass Communication’, New Delhi: Reference Press.
 बघेल, सजं य िसहं , ‘सचं ार, समाज और सािह य’, गािजयाबाद : के .एल. पचौरी काशन।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 101


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

इकाई 2
संचार के चरण एवं ा प
इकाई क परेखा
2.1. उ े य
2.2 तावना
2.3. संचार ि या
2.4. संचार के त व
2.5. संचार मॉडल
2.6. संचार ित प के काय
2.7. सचं ार के बिु नयादी ित प
2.7.1. अर तू का संचार ित प
2.7.2. हेरा ड डी. लासवेल का ित प
2.7.3. ोडॉक का ित प
2.7.4. शैनन एवं वीवर का ित प
2.7.5. डी. योर का ित प
2.7.6. सी.ई. ऑसगुड एवं िव बर ेम का ित प
2.7.7. िव बर ेम के अ य ित प
2.7.8. िव बर ेम के अ य ित प
2.7.9. जाज गबनर का सामा य संचार ित प
2.7.10. गबनर का शाि दक ित प
2.7.11. गबनर का रेखीय का ित प
2.7.12. जाज गबनर का 1964 का ित प
2.8. सारांश
2.9. बोध न
2.9.1. बहिवक पीय
2.9.2. लघु उ तरीय
2.9.3. दीघ उ तरीय
2.9.4. यवहार
2.10. किठन श दावली
2.11. संदभ ंथ

2.1. उ े य
इस इकाई के उ े य िन नवत ह -
5. ततु इकाई के मा यम से सचं ार ि या को समझना।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 102


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

6. संचार के बुिनयादी त व को जानना।


7. सचं ार ित प के काय को जानना।
8. सच ं ार के बुिनयादी ित प को समझना।

2.2 तावना
संचार मनु य के िलए अिनवाय त व है। इस इकाई म हम देखगे िक िवशेष ने संचार को प रभािषत कर
उसके िकस व प या ित प को ितपािदत िकया। संचार के इन व प या ित प को बुिनयादी या
आधारभतू माना जाता है। सचं ार के ित प म सरल प से समचू ी ि या और यथाथ का िववरण िनिहत
होता है। इन ित प ारा संचार संरचना, उनके अदं र िनिहत संघटक को उ लेिखत िकया जाता है और
साथ ही इनके बीच म सि य सबं धं का भी उ लेख होता है। ततु इकाई म सचं ार ि या, सचं ार के
बुिनयादी त व, संचार ित प तथा उनके काय एवं ित प पर काश डाला गया है।
2.3. सच ं ार ि या
सचं ार ि या म सदं ेश भेजने वाला ेषक कहलाता है और सदं ेश ा करने वाला ा कता। दोन के बीच
एक मा यम होता है िजसके सहयोग से ेषक का संदश े ा कता तक पहँचता है। ा कता के िदल िदमाग पर
भाव डालता है, िजससे सामािजक सरोकार म बदलाव आता है। देश तथा िवदेश म मनु य क द तक
बढ़ती है इसिलए संचार ि या का पहला चरण ेषक होता है। इसे इनकोिडंग भी कहते ह। इनकोिडंग के
बाद िवचार साथक संदश े के प म ढल जाता है। जब ा कता अपने मि तक म उ संदेश को ढाल लेता है
तो सच ं ार क भाषा म डीकोिडंग कहते ह। डीकोिडंग के बाद ा कता उस सदं ेश का अथ समझता है। वह
अपनी िति या ेषक को भेजता है तो उस ि या को फ डबैक कहते ह। संचार ि या को िन न कार
समझा जा सकता है –
ेषक सदं श
े मा यम ा तकता

अथात् ेषक और ा तकता के बीच म संदश े और मा यम से ही संचार ि या संप न होती है लेिकन इसम
कुछ बात का िवचार और आव यक है। सफल संचार वही है िजसम ेषक ारा िदए गए संदेश का वही अथ
ा कता ा कर सके , जो ेषक ेिषत करना चाहता है। इसके िलए सदं ेश क इनकोिडंग और डीकोिडगं को
समझना आव यक है। इसका अथ यह है िक संचार के िलए ेषक और ा कता के बीच समान अनुभिू त या
समझ का होना आव यक है। यह समान समझ क सबसे अिधक सभं ावना भाषा और श द ारा सभं व है।
उदाहरण के तौर पर ेषक िकसी व तु को ‘कं यटू र’ कहता है तो ा कता के िलए उसके श द का अथ
समझने के िलए पहले इस कोड अथात भाषा से प रचय ज री है। इनकोिडंग और डीकोिडंग के आधार पर
ही सच ं ार के इितहास को भी समझा जा सकता है।
संचार ि या िन निलिखत काय को संप न करती ह –
• सचू ना या जानकारी देना ।
• संचार से जड़ु े यि य को े रत और भािवत करना।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 103


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

• संचार यि य समाज और देश के बीच संबंध थािपत करता है।


• संचार िविभ न त य , िवचार मसल पर यापक िवचार-िवमश करने म सहायक होता है।
• मनु य का मनोरंजन करना संचार का एक मह वपणू काय है।
• संचार रा क आिथक व औ ोिगक उ नित म सहायक होता है।
2.4. संचार के त व
संचारिवद् जे. पाल लीग स ने संचार ि या के िन निलिखत त व का उ लेख िकया है -
1. सं ेषक या संचारक या ोत (Communicator or Source)
2. सदं शे (Message or Content)
3. संचार मा यम या संचार-सरिण (Communication Channel)
4. सक ं े तीकरण (Encoding)
5. संकेतवाचन (Decoding)
6. संचार बाधा (Communication Noise)
7. सं ाहक/ ापक अथवा ा तकता (Receiver)
8. ितपिु (Feedback)
1. सं ेषक या संचारक या ोत (Communicator or Source)- संचार ि या को ि याि वत करने
का मु य काय सं ेषक का होता है। यह संदश े क पणू जानकारी रखता है। डेिवड बल ने सं ेषक म चार
गणु (संचार क िनपणु ता, मनोवृि , ान का तर और सामािजक-सां कृ ितक आचरण) का होना आव यक
बतलाया है। सं ेषक सदं शे के प रणाम और उसके मू याक ं न, सचं ार- ि या, सचं ार-मा यम के ित सतक
रहता है।
2. संदेश (Message or Content)– संचारक बोलकर, िलखकर, िच बनाकर या संकेत से अपने िवचार
या सचू ना को ोता से कहता है वही संदेश है। संदेश ऐसी सचू ना है िजसे संचारक ारा हण करने, समझने,
वीकृ त करने या उसपर ि या वयन करना है। सामा यतया संदेश के सचं रण करते समय सं ेषक को
िन निलिखत बात पर यान देना आव यक होता है− सदं श े -सक
ं े त (कोड), िवषय-व तु (कंटट) और सदं ेश
ितपादन ( ीटमट)।
कोई भी सं ेषक संदश े को भावकारी बनाने के िलए िन निलिखत न के उ तर भलीभाँित जान
लेता है िक- (क.) वह कौन सा सदं ेश हैॽ जो सवािधक मह वपणू है, (ख.) वह सबसे कौन सी िविध हैॽ
िजसके ारा संदेश का ितवेदन िकया जा सकता है, (ग.) संदश े को पहँचाने के िलए आप य यास करते
हॽ और (घ.) कौन-कौन से सच ं ार मा यम हॽ िजसके ारा दशक- ोता-पाठक तक संदश े सरलता से
पहँचाया जा सकता हैॽ
3. सच ं ार मा यम या सच ं ार-सरिण (Communication Channel)– सं ेषक और ा तकता के बीच
सेतु का काम करने वाला सच ं ार मा यम कहलाता है अथात् सदं श े को िजस मा यम के ारा सं ेषक अपने
लि त समहू / यि तक पहँचाता है वही संचार मा यम है। मा यम या चैनल कुछ भी हो सकता है, जैस-े
आपसी बातचीत, प ाचार, सभाएं या बैठक, टेलीफोन, टेलीिवजन, रे िडयो, समाचार-प , पु तक, वीिडयो
िफ म, ई-मेल आिद। भावी संचार मा यम ही संदश े को भावी बनाता है। माशल मैकलूहान ने तो यहाँ तक

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 104


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

कहा है िक ‘मा यम ही संदशे है’। यह सामा यतया संकेत और संदश े को पांत रत करने का उपकरण होता
है। संचार मा यम का चयन करते समय संचारक को िन न िबंदओ ु ं पर यान देना आव यक है- ‘1. संदशे के
त व और उसके वभाव को यान म रखकर संचार मा यम का चयन, 2. दशक- ोता-पाठक (द ोपा) तक
सरलता से पहँचने वाले मा यम का चयन, 3. द ोपा को एक से अिधक ानि य के योग करने के िलए
बा य करने वाला मा यम, 4. सच ं ारक को उिचत समय पर मा यम क उपल धता और भावशीलता के
आधार पर मा यम पर कम यय का िनधारण’ (जनसंचार शोध िविधयाँ, िवजय कुल े ठ एवं हसं ा जैन, पृ.
20)।
4. संकेतीकरण (Encoding)– सं ेषक जब भाव या िवचार को संकेत के प म प रवितत करके
रचना मक िविध से ा तकता तक पहँचाता है तो इसे संकेतीकरण कहा जाता है, जैसे– श द , संकेत , भाव
भिं गमाओ ं आिद के ारा सदं ेश को सा रत करना। जे. पाल लीग स के अनसु ार, “श द सचं ार ि या का
मु य मा यम है िकंतु श द तभी तक भावशाली होते ह जब इनके साथ संकेत, िच आिद का योग हो।
संकेत, संचार ि या म सहायक होने के साथ ही साथ उसे भावशाली भी बनाते ह।” कोई भी श द तब
तक साथक नह होता, जब तक िक उसका सही अथ नह ात हो। श द सक ं े त इस िदशा म सहायक होते ह।
अथ क अ ानता के कारण अ छे से अ छे श द िनरथक तथा अनपु योगी हो जाते ह। सचं ार ि या को
साथक बनाने के िलए ऐसे सक ं े त का चयन आव यक है जो िवचार को सही प म य त कर सक और
िजनका अथ सं ेषक तथा हीता दोन एक समान ही समझते ह । सं ेषक सचू ना देने से पहले संदेश को
अपने ढंग से प रवितत करता है, िजसे संकेतीकरण कहते ह।
5. संकेतवाचन (Decoding)– संकेतवाचन से आशय है- ापक ारा संदश े को अपने मि त क म उसी
अथ म ढाल लेना। संकेतवाचन ापक क समझ मता पर िनभर करता है। हीता संदेश को अपने ढंग से
समझता और हण करता है, इस िके या को संकेतवाचन कहा जाता है। यिद ापक क यो यता तथा मता
म कोई कमी होगी तो वांिछत संदेश का अथ भी अपेि त प म ा त नह होगा। इनकोिडंग और डीकोिडंग
म पूरी तरह सामजं य नह होता। सामजं य क ि थित सं ेषक और ापक के गणु ा मक तर पर िनभर करती
है और यह सामजं य सं ेषण इनकोडर और हीता िडकोडर के मानक करण क ि थित पर सामजं य क
ि थित िनभर करती है।
6. सच ं ार बाधा या शोर (Communication Noise)– सदं श े जब िक ह अड़चन , बाधाओ ं और
अवरोध के कारण गतं य ( ापक) तक नह पहँच पाता है, तो उसे सचं ार बाधा/शोर कहते ह। िकसी सभा म
सभी ोताओ ं का एक साथ समय पर उपि थत न होना, संदश े को पढ़ने म स म न होना, संचार मा यम के
सचं ालन म तकनीक िु ट आिद कई ऐसे त व ह िजनसे सचं ार बाधा क ि थित पैदा होती है और सदं श े
ापक को ापत् नह होता। जब संचार ि या म बाधा उ प न होती है तो सं ेषक और ापक दोन को
परेशानी होती है। संचार ि या म दो कार से बाधा होती है -
1. तकनीक बाधा (Technical Noise) और 2. अथ सबं धं ी बाधा (Semantic Noise)। इतना ही नह
संचार ि या म शोर उ प न होने के िविवध कारण म शािमल ह- भाषा संबंधी अवरोध (Language
Barriers), उ े य क बाधा (Barriers of Unsound Objectives), समयाभाव क किठनाइयाँ
(Barriers of shortage of time), भौगोिलक दरू ी (Geographical Distance), म (Confusion),

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 105


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

िववेकपणू न सनु ना (Barriers of improper Listening), भावना मक धारणाएँ (Emotional


Attitudes), वैयि क िभ नता संबंधी बाधाएँ (Barriers of personal differentiation), बौि क
ि थित संबंधी बाधाएँ (Barriers of Mental Status) आिद।
7. सं ाहक/ ापक अथवा ा तकता (Receiver)– सदं श े को ा त करने वाला सं ाहक या ापक
कहलाता है। ापक सव अथवा अ प हो सकता है। वह धैयपवू क सनु ने वाला अथवा प ट प से सोचने
समझने वाला या िमत ोता हो सकता है। वह पु ष, ी, यवु क, वृ आिद के अलावा िविवध समदु ाय के
प म भी हो सकता है और वह यि तथा समहू या जनसमहू के प म भी हो सकता है। सफल संचार
ि या के िलए सं ाहक को िन न गणु का होना आव यक है।
क. उसे संदेश को धैय पवू क हण करना चािहए।
ख. सदं शे को प ट प से हण कर उसका अनपु ालन करना चािहए।
ग. िव वनीय सचू नाओ ं का चयन करने क साम य होनी चािहए।
संचार ि या के िलए सं ाहक िजतना ही संचारक के सम प होता है, संचार उतना ही भावी होता है और
ापक सच ं ारक क भाँित ही सच
ं ार- ि या म मह वपणू थान रखता है। इस कार से यह कहा जा सकता है
िक संचारक को ोता के प म भी जानते ह। ोता वग से आशय संचार मा यम से सचू ना ा त करने वाले
लोग से है। ोता दो कार के होते ह- (क.) ाथिमक ोता और (ख.) ि तीयक ोता। ाथिमक ोता से
आशय है, जो ेिषत संदश े सीधे हण करता है, जैस-े आकाशवाणी या दरू दशन का ोता या दशक और
ि तीयक ोता से आशय है, ये जन मा यम से संदेश सीधे हण नह करते बि क जनमत नेता ारा संदेश
को ा त करते ह। जैसे आकाशवाणी या दरू दशन के ोता या दशक ारा सनु े गए यि से सदं ेश को सनु ना।
यहाँ यह प ट है िक सामा य प से सं ाहक अपनी अिभ िच के अनु प सचू नाओ ं को हण करते ह।
8. ितपुि / िति या (Feedback)− संचार ि या को सफल बनाने म ितपिु एक आव यक अवयव
है। ितपिु ि माग ि या है अथात् सं ाहक से सं ेषक तक और सं ेषक से सं ाहक तक। सं ेषक को
संदशे सा रत करने के प चात् यह जानना ज री है िक सं ाहक ने उसे हण िकया अथवा नह । ापक जब
सदं शे ा त या हण करता है, तब सदं श े पर उसक िति या िकसी न िकसी प म य त: िदखाई पड़ती
है। उसक अिभ यि ही ितपिु कहलाती है। संचार ि या क ि थरता तथा संतल ु न के िलए ितपिु
बहत ही आव यक है। संचार के तर पर वह शी ही ा त क जा सकती है जबिक जनसंचार के तर पर
ितपिु िमलने म पया त समय लगता है। येक जनसचं ार मा यम दशक- ोता-पाठक क िति या अपने
काय म तथा सं ेिषत सचू नाओ ं के ित जानना चाहता है। दशक- ोता-पाठक क िति या के आधार पर
काय म एवं सं ेिषत सचू ना सं ेषण के ा प को प रवितत एवं प रविधत िकया जाता है। सचू ना क
वृि के आधार पर यह सामा यतया दो कार क होती है- (क.) सकारा मक- इसम ोता/ ापक
सकारा मक ितपिु / िति या देता है। (ख.) नकारा मक – इसम ोता नकारा मक िति या य त करता
है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 106


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

2.5 संचार मॉडल


संचार मॉडल ( यादश/ ित प) संचार ि या क वह मगत तुित है, िजसके ारा यह समझाने का
यास िकया जाता है िक संचार के िविवध अवयव िकस कार काय करते ह और आपस म कै से एक-दसू रे से
संब रहते ह अथवा संचार ि या को रे खािच या िच ारा य त करना ही संचार मॉडल कहा जाता है।
डयू क (Deutsh) ने 1952 ई. म सचं ार ित प को प रभािषत करते हए िलखा िक ित प तीक एवं
िनयम को ि याि वत करने वाली एक संरचना है जो एक अि त व संरचना या ि या म समान गणु वाले
िबंदओु ं के सं ह को ासंिगक प म तुत करती है।
2.6. संचार ित प के काय (Functions of Communication Model)
येक सं ेषण ि या को हम देख नह सकते, उसे पश भी नह कर सकते िकंतु समझ सकते ह। समझने
क ि या म यादश सहायक होता है।
डयू क ने यादश के चार काय बतलाए ह— 1. संगिठत करना (Organising), 2. वतः अ वेषण
(Heuristic),
3. अनमु ान यो य बनाना (Predictivity), 4. मापन सबं धं ी काय (Measuring Function)।
1. संगिठत करना (Organising)– ित प त य और आक ं ड़ को एकि त कर एक यवि थत प म
सँजोता है यानी िकस त व को कहाँ, िकस प म रखना है तथा उन त व के आपसी संबंध का िनधारण
करना और उसे उसी प म ततु करने का काय इसके ारा संप न होता है।
2. वतः अ वेषण (Heuristic)– ित प के मा यम से नए त य क खोज करने म सहायता िमलती है।
3. अनमु ान यो य बनाना (Predictivity)– ित प के मा यम से भिव य क सभं ािवत प रि थितय का
अनमु ान भी लगाया जाता है। यिद ित प म प ट या या क गई है तो ही अनमु ान लगाने क संभावना
बनती है।
4. मापन संबंधी काय (Measuring Function)– िवषय के तर के िनधारण म ित प क मह वपूण
भिू मका होती है। इसके िलए दो मु य आधार ह- 1. गणु व ता और 2. सं या मक ततु ीकरण।

2.7. संचार के बुिनयादी ित प (Basic Models of Communication)


2.7.1. अर तू का सच ं ार ित प (Communication model of Aristotle)
अर तू का सच ं ार ित प ाचीन भारतीय जनसचं ार ि या के अनु प है। उस समय सतं एवं उपदेशक
देशाटन करके लोग को धािमक संदेश देते थे, जो उपदेशात्मक होते थे। इन संदश
े का यि एवं समहू के
बीच आदान- दान होता था। अर तू ने सचं ार का जो ा प ततु िकया िजसम मु यत: पाँच त व मौजदू ह
:
व ता भाषण
(Speaker) अरोतातू अवसर भाव
(Speech) (Audience) (Occasion) (Effect)
)
1. व ता (Speaker)
2. भाषण (Speech)

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 107


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

3. ोता (Audience)
4. अवसर (Occasion)
5. भाव (Effect)
अर तू के संचार ित प के मा यम से यह प ट है िक व ता अथात् संदेश सा रत करने वाला अपना संदेश
मौिखक प से भाषण ारा िकसी िवशेष अवसर पर सा रत करता था। उस सदं ेश का ोता पर भाव पड़ता
था। ोता िकसी िवशेष अवसर पर ही एक होते थे।

2.7.2. हेरा ड डी. लासवेल का ित प– संचारिवद् हेरा ड डी. लासवेल ारा 1948 ई. म ितपािदत
ित प को शाि दक यादश (Verbal Communication) के प म भी जाना जाता है। यह सूचना चालन
एवं सच ं ार ि या पर आधा रत है। ि तीय िव वयु के दौरान अमे रका म ोपेगे डा के मह व का अ ययन
िकया गया। अमे रक यव था को देखकर लगने लगा िक वहाँ भी िकसी िहटलर जैसे यि का भु व
कायम हो जाएगा य िक िहटलर भी लोकतांि क दल के मा यम से तानाशाह शासक बना था ठीक उसी
कार क प रि थितयाँ अमे रका म भी िनिमत हो रही थी।
उसी दौरान वहाँ शीतयु भी आरंभ हो चक ु ा था और यह अ ययन िकया जा रहा था िक ोपेगे डा या
है, कै से होता है, कौन करता हैॽ लासवेल इस अ ययन के मख ु अ येता के प म पाया िक संचार यि के
िवचार, काय, यवहार एवं तौर-तरीक को प रवितत ही नह बि क भािवत भी करता ह। लासवेल का
संचार ित प संचार ि या एवं सचू ना चालन पर आधा रत है। लासवेल का ित प शाि दक यादश का
उदाहरण है। इस यादश को हम िन निलिखत तरीके से समझ सकते ह –
कौन या कहता है िकस मा यम से िकससे िकस भाव से
सं ेषक संदश
े हीता

हेरा ड डी लासवेल का सचं ार ित प


कौन (Who)− ोत (Source)
या कहता है (What Says)− संदशे (Message)
िकस मा यम से (In which channel)− मा यम (Medium)
िकससे (To Whom) - ोता (Audience)
उसका भाव या है (With What Effect)− भाव (Effect)
लासवेल के ित प को संचार के े म काफ मह व िदया गया। संचार अनसु धं ान के े म इस ित प
क मह वपणू भिू मका है। लासवेल के यादश को ािफक प म िन निलिखत तरीके से िव लेिषत िकया जा
सकता है-

कौन या कहता है िकस मा यम से िकससे िकस भाव से


अ ययन िनयं ण अतं व तु िव लेषण मीिडया िव लेषण ोता िव लेषण भाव का िव लेषण

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 108


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

उपरो त अ ययन से यह प ट है िक लासवेल के ित प म हर तर पर शोध एवं िव लेषण िकया जा


सकता है। लासवेल के ित प क यह िवशेषता है िक वे भाव को मह व देते ह तथा संचार को सचू नाओ ं
का आदान- दान मानते ह। इसम यह मानकर चला जाता है िक हणकता पर संचार का िनि त भाव पड़ेगा
इसिलए सच ं ार को मल
ू तः पसुएट करने वाली ि या के प म ही हण करना चािहए।

2.7.3. ोडॉक का ित प− सच ं ार ोडॉक ने 1958 ई. म हेरा ड डी. लासवेल के मॉडल म कुछ


प रवतन करते हए उ ह ने बताया िक समाचार ि या म भाव, प रि थितय (िकन प रि थितय म सदं ेश
को सं ेिषत िकया गया और उ े य purpose, संदश
े पहँचाने का उ े य या था) पर िनभर करता है। ोडॉक
ने जो सशं ोिधत यादश ततु िकया उसम उ ह ने दो और त व को जोड़ा। ये त व िन न ह-
1. कौन
2. या कहता है
3. िकस मा यम से
4. िकससे
5. िकस प रि थितय म
6. िकस उ े य से
7. भाव या है

कौन या कहता है िकस मा यम से िकससे


Who Message Medium Receiver
(
िकस अव था म/िकन प रि थित म
िकस उ े य के िलए
सीमाएँ या भाव पड़ा

सीमाएँ : ोडॉक का ित प ोपेगे डा म अिधक प ट करता है य िक ोपेगे डा म सदैव ल य को


भािवत करने के उ े य से सं ेषण िकया जाता है।
इस ित प के अनसु ार ोत (Who) चाहता है िक वह ोता (To Whom) को भािवत करने के
उ े य से सं ेषण करे िकंतु सदैव ऐसा होता नह है य िक माँ और बेटे के बीच का सचं ार ि या भािवत
करने उ े य से नह होता है। इस यादश के कारण सं ेषण को जादईु ि या माना जाने लगा है और इसम
ितपृि को थान नह िदया गया है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 109


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

2.7.4. शैनन एवं वीवर का ित प− लाउडेन शैनन एवं वारे न वीवर दोन अमे रक बेल टेलीफोन
योगशाला म अिधकारी के पद पर कायरत थे। उन दोन ने टेलीफोन से संचार ि या के आधार पर एक
यादश ितपािदत िकया। यह यादश उनके ारा 1949 ई. म तुत िकया गया इसे गिणतीय ित प
(Mathematical Model) भी कहा जाता है।

संदश
े संकेत ा त संकेत संदश

सचू ना ेषक ािहता गंत य
ोत थल

शोर

इस ित प के आधार पर ही संचार का गिणतीय िस ांत (Mathematical theory of


Communication) का ितपादन हआ। इस िस ातं के अनसु ार A टेलीफोन पर B से बात करता है। यहाँ
A सचू ना ोत है। वह अपना संदेश टेलीफोन से ेिषत करता है। टेलीफोन ांसमीटर है। त प चात् A का
शाि दक संदेश टेलीफोन ( ांसमीटर) यांि क प से संदश
े को प रवितत कर B के टेलीफोन तक पहँचाता है।
यह संदेश िफर शाि दक संदश े म प रवितत होकर B के पास पहँच जाता है त प चात् B मत का िनमाण
करता है।
सीमाएँ : इस ित प क सीमाएँ िन नवत् ह-
1. यह ित प रे खीय संचार (Linear Communication) को तुत करता है।
2. इस ित प म एक प ीय संचार होता है।
दु योजन– शोर (Noise) उपि थत होकर सं ेषण ि या म बाधा पहँचाता है। यह यांि क एवं गैर-यांि क
दोन हो सकता है।
2.7.5. डी. योर का ित प− डी. योर के ित प को ‘ ीडोमीनटॉरी मॉडल ऑफ मास
क यिु नके शन (Predominatory Model of Mass Communication) भी कहा जाता है। इ ह ने
Channel को Mass Media Device माना। ो. एम.एस.डी. योर ने 1966 म शैनन वीवर के ित प
क किमय को दरू करने का यास िकया। उ ह ने शैनन वीवर के ित प क सीमाओ ं म कुछ सधु ार िकया।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 110


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

जनमा यम योग

सक
ं ेत सक
ं ेत सदं श

सदं श

ोत ेषक मा यम ापक गंत य थल

शोर

गंत य थल ापक मा यम ेषक ोत

सदं श
े सक
ं ेत सक
ं ेत सदं श

ितपिु साधन

इस ित प म डी. योर ने प िकया िक शोर हर तर पर उपि थत हो सकता है। गंत य संदेश क ितपिु
भी देता है। उ ह ने Channel को Mass Media Device माना है। ितपिु क कमी शैनन एवं वीवर के
ित प म थी, िजसे डी. योर ने सधु ार कर दरू िकया।

2.7.6. सी.ई. ऑसगुड एवं िव बर ेम का ित प− सी.ई. ऑसगडु एवं िव बर ेम ने 1954 ई. म


अपना ित प ितपािदत िकया। इस यादश को उ ह ने सकुलर मॉडल कहा है।
सी.ई. ऑसगडु एवं िव डर ेम के ित प और शैनन एवं वीवर के ित प म मु य अंतर यह िदखता है
िक जहाँ शैनन एवं वीवर अपने Mathematical Model म सं ेषक और हीता के बीच चैनल के बारे म
यादा गंभीर थे वह ऑसगडु एवं ेम ने संचार ि या के मख
ु त व सं ेषक और हीता के यवहार पर
यादा जोर िदया है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 111


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

इस ित प को रे खीय व प ( ािफक फाम) देने का काय िव बर ेम ने िकया। शैनन और वीवर के


ित प से इस ित प म कुछ िभ नताओ ं के बावजदू कई समानताएँ ह जैसे शैनन एवं वीवर ने ोत एवं
ांसमीटर के बीच तथा गंत य और ापक के बीच अतं र िकया है। दसू रे श द म कहा जा सकता है उ ह ने
संदशे भेजने तथा हण करने वाले दोन के िलए अलग-अलग ि याओ ं का िज िकया है।
ये ासं मीटर और रसीवर क जगह इटं र ेटर, इनकोडर और डीकोडर को अलग-अलग करके दोन ही
ि याओ ं म अलग-अलग ि या का िज करते ह। इस कार से इनकोिडंग को शैनन वीवर ने ांसमीिटंग
के प म तथा डीकोिडंग को शैनन एवं वीवर के रसीिवंग के प म देखा जा सकता है।
ेम ने िलखा है िक- यह सोचना गलत है िक सचं ार क ि या कह एक िसरे से शु होकर िकसी दसू र िसरे
पर ख म हो जाती है। व तुतः यह अतं हीन है जो हम िनरंतर सचू ना और संदेश दान करती रहती है।

संदश

संकेतीकरण कता संकेतीकरण कता

या याताकार या याताकार

संकेतवाचक संकेतवाचक

संदश

यह यादश मु यत: अतं वयि क सच


ं ार को समझने म मह वपणू है।

2.7.7. िव बर ेम के अ य ित प− ेम ने इस मॉडल म यह िदखाया िक संदश े िकतने समय म हीता


तक पहँचता ह। हीता को संदश
े समझने के िलए भाषा का अनुभव आव यक है।

ोत इनकोडर संकेत िडकोडर गंत य थल

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 112


महा मा गांधी अंतररा ीयय िहदं ी िव विव
व ालय

अनभु व का े
अनभु व का े

ोत सक
ं ेत गतं य
इनकोडर
डर िडकोडर थल

2.7.8. िव बर ेम के अ य ित पप− इस ित प म इनकोडर यांि क िडवाइस है और ोत मानवीय


िडवाइस है
इसे मू ने बीइगं (Human being) मॉडल भी कहा जाता है।

ेम का जनसंचार का ित प
1. ाथिमक ोता (Primary
Primary Receiver
Receiver) : जो जनसंचार मा यम (रे िडयो, दरू दशन)
दशन से वयं समाचार
को सनु ता है, ाथिमक ोता कहलाता है।
2. ि तीयक ोता (Secondary
Secondary Receiv
Receiver) : जो अ य यिि य से समाचार ा त करता है उसे
ि तीयक ोता कहा जाता है। ि तीयक ोता समाचार को सीधे जनसचं ार मा यम य से ा त नह
करते।
मे के यादश
दश क मल
ू आ मा मीिडया संगठन म है जहाँ िक वे सारी ि याएँ परू ी क जाती है िजनक
िज
चचा सरकुलर यादश म क गई है अथात् इनकोिडंग, इटं र ेिटंग और डीकोिडंग।

2.7.9. जाज गबनर का सामा य सच ं ार ित पप− इस यादश को जाज गबनर ने 1956 ई. म तुत
िकया था। गबनर अमे रक सचं ारिवद् ह। उनका उ े य सचं ार का एक ऐसा यादश तैयार करना था
जो संचार के यापक े पर लागू हो।
इस यादश क मख ु बात यह है िक ‘‘ससचं ार क िविभ न ि थितय पर िनभर करने वाले िविभ न
व प का वणन िकया गया है’’ अथात् ‘‘िकसिकस ि थित म िकस तरह का संचार होगा’’,
होगा इसके िविभ न
व प का वणन अलग-अलग अलग प म जोड़ा जा सकता है। इस मॉडल ारा संचार के सरल या जिटल हर

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 113


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

ि या को समझा जा सकता है। संदश


े क रचना िकस तरह होती है और सं ेिषत करने वाली घटना का िकस
कार अवबोधन होता है।
 यह ित प संदश
े क रचना ि या तथा संदेश क अवबोधन के बीच के संबंध को प करता है।
 गबनर अपने यादश को शाि दक तथा रे खीय दोन प म ततु िकया है।
2.7.10. गबनर का शाि दक ित प− गबनर का शाि दक यादश लासवेल सू के अनु प है। इसम
िन न प को प िकया जा सकता है।
1. कुछ (Some One)
2. िकसी घटना का अवबोधन करके (Perceivers and Event)
3. िति या करता है (And react)
4. एक ि थित (In a situation)
5. िकसी साधन ारा (Through some means)
6. तािक उपल ध सम ी को बना सके (To make available materials)
7. िकसी प म (In some form)
8. िकसी प र े य म (and contest)
9. भेजने यो य संदेश (Conveying contest)
10. िकसी िन कष के साथ (With some consequence)
िट स− सं ेषक का अवबोधन

2.7.10. गबनर का रेखीय का ित प− गबनर के शाि दक यादश म िजतने चरण और त व दिशत


िकए गए ह वे सभी ािफक यादश म सि मिलत नह ह। ािफक यादश म बताया गया है िक
िकसी घटना का कोई यि िकस तरह अवबोधन करता है और िफर उसे िकस तरह एक सदं ेश के
प म ढालकर भेजता है। इस ि या म कोई ज री नह िक घटना को वह संदेश के प म डालकर
भेजे।
िदलच प बात तो यह है िक यही ि या पनु ः आगे बढ़ती है य िक जब उसके ारा भेजा गया सदं ेश
िकसी दसू रे तक पहँचता है तो वह अपने तरीके से उसका अवबोधन करता है और संदश े के प म ढालकर
पनु ः दसू रे तक पहँचता है। इस ि या म िकसी घटना का अवबोधन करने वाले के चयन के तरीके , प र े य
तथा उपल ध साधन का मह वपणू असर होता है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 114


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

M
यि या िच

चयन सदं भ E घटना


E1
साधन िनयं ण

अथ और िनयं ण आयाम

S E
उ पादन करना अतं व तु

इस यादश के क म M ( यि या समहू ) है, जो िकसी घटना E को देखता है िकंतु अपनी चयन


ि या प र े य तथा उपल ध साधन के कारण E को E1 के बतौर देखता है यानी वह जो अवबोधन करता
है वह नह , बि क E1 है जबिक वा तिवक चीज E है। इसतरह E, M तथा E1 के बीच अवबोधन का
सबं धं है।
अब M उस घटना के संबंध म दसू र को बताना चाहता है इसके िलए वह संदेश क रचना S E के प
म करता है यहाँ S का ता पय Shape या Form से है जबिक E का ता पय अतं व तु से है। इस कार सदं ेश
अथात् S E को भेजने के िलए तीन चीज पर िनभर है -
1. साधन (Channel)
2. मा यम (Media)
3. अतं व तु (Content)
इस कार से कहा जा सकता है िक मीिडया पर वयं M का िनयं ण है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 115


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

2.7.11. जाज गबनर का 1964 का ित प− गबनर ने अपने ारा ितपािदत संचार ित प को


िवकिसत करते हए 1964 म पनु : नया ित प ततु िकया। इस ित प म उ ह ने बताया िक M ने E
को E1 के बतौर अवबोधन करके S E के प म दसू र तक भेजा। अब यह दसू रा अथात् M 2 उस
संदश
े यानी S E को S E1 के प म अवबोधन करे गा। यह ि या उसी प म चलेगी जैसा M के साथ
चली थी अथात् M 2 अपनी चयन ि या प र े य और उपल ध साधन के आधार पर S E को
अवबोिधत S E1 के प म करे गा।
यह ित प अवबोधन-रचना-अवबोधन क शृख ं ला पर आधा रत है। जैसे िकसी मैच म गद क सं या
को को देखकर M को लगता है िक मैच जीत िलया जाएगा और वह अपना सदं ेश इसी प म भेजता है। इस
तरह M2 के पास जो संदशे पहँच रहा है वह वा तिवकता से िभ न है। संभव है िक M2 भी इस संदेश का
अवबोधन िभ न प म कर।

M
घटना समझने क तरह
E
E1
मैच क जीत मैच म बॉल क अिधकतम
समझ क तरह

सं या

अथ

कथन
M2

S E घटना के संबंध म
SE1 मा ा अतं व तु
मैच जीतना
अनु म
M E1 E

उ पादन करना

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 116


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

इस ित प ारा मौिखक संचार क ि या आ मगत हो सकती है। इस ित प ारा गबनर इस को


उठाते ह िक जनमा यम ारा िकसी घटना के संबंध म जो जानकारी दी जाती है और उसे हीता िजस प म
हण करता है ये दोन चीज वा तिवकता से िकतना मेल खाती है।
E अथात् घटना को M यानी मा यम E1 के प म अवबोिधत करता है और S E के प म ोता तक
पहँचाता है। यह पनु : ोता यानी M2 उस S E को S E1 के प म हण करता है। इस तरह मल ू चीज E थी
जो E1 को S E बनने के बाद ोता तक S E के प म पहँचाती है।
2.8. सारांश
संचार एक अनवरत ि या है। मानव अपने को थािपत करने के िलए संदेश का सं ेषण करना शु िकया।
यह एक मानिसक ि या है िजसम पहला यि अपनी बात दसू रे को समझाने क यव था करता है और
दसू रा यि उसे समझने के िलए भी करता है और उसे अपने ढंग से समझने का यास करता है। संचार
के अंतगत िवचार का और अथ का आदान- दान होता है। संचार सं ेषण के िलए िविभ न संचारवद ने
क यिु नके शन मॉडल ितपािदत िकए। सचं ार के ित प म सं ेषक, सदं श
े और हीता, ये तीन मु य त व ह
िजससे िक संचार के िविवध प , च र तथा अथ क खोज क जा सकती है। इस इकाई म संचार ि या,
संचार के त व, संचार ित प के काय तथा संचार के बुिनयादी ित प को या याियत िकया गया है।

2.9. बोध
2.10. बहिवक पीय
न 1 : सचं ार ि या म सदं ेश भेजने वाला िन न म से या कहलाता हैॽ
िवक प : क. ेषक ख. संदशे
ग. मा यम घ. ा तकता उ र : क.
न 2 : संचार ित प के काय म से कौन सा गलत है ॽ
िवक प : क. वत: अ वेषण संबंधी काय ख. अनमु ान यो य बनाना
ग. मापन सबं धं ी काय घ. असगं िठत बनाना उ र : घ.
न 3 : िन न म से िकस संचार के ित प को शाि दक यादश (Verbal Communication) कहा
जाता हैॽ
िवक प : क. अर तू का संचार ित प ख. हेरा ड डी. लासवेल का ित प
ग. ोडॉक का ित प घ. शैनन एवं वीवर का ित प उ र : ख.
न 4 : िन न म से िकस ित प को ‘ ीडोमीनटरी मॉडल ऑफ मास क यिु नके शन’ कहा जाता हैॽ
िवक प : क. डी. योर का ित प ख. शैनन एवं वीवर का ित प
ग. हेरा ड डी. लासवेल का ित प घ. िव बर ेम का ित प उ र : क.
न 5 : िन न म से िकस ित प को ‘सं ेषण का जादईु ि या’ कहा जाता हैॽ
िवक प : क. हेरा ड डी. लासवेल का ित प ख. ोडॉक का ित प
ग. शैनन एवं वीवर का ित प घ. डी. योर का ित प उ र : ख.

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 117


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

2.9.1. लघु उ रीय


न एक : संचार ित प के काय को प ट क िजए।
न दो : सचं ार के त व को उ लेिखत क िजए ।
न तीन : संचार ि या पर काश डाल ।

2.9.2. दीघ उ रीय


न एक : ‘सं ेषण म शोर’ को डी. योर के ित प के मा यम से समझाएं।
न दो : हेरा ड डी. लासवेल के सचं ार ित प पर काश डालॽ
यवहार
काय एक : सच ं ार म शोर कह से भी उ प न हो सकता है, इस कथन क पिु क िजए ॽ

2.10. किठन श दावली


 संदेश : संचार ि या क िवषय व तु संदेश है। संदेश म सूचना, िवचार, संकेत, ि कोण, िनदश,
सझु ाव आिद शािमल ह। संदश े यानी वह बात जो एक से दसू रे तक ेिषत क जाती है। यह िलिखत,
मौिखक, शाि दक अथवा सांकेितक होता है जो िकसी भी प म हो सकती है, विन के प म,
य के प म, संकेत के प म या अ य िकसी प म।
 ितपुि : संचार िकया को सफल बनाने म ितपिु एक मख ु अवयव है। सं ेषक को संदश

सा रत करने के प चात यह जानना आवशयक ् है िक सं ाहक ने उसे हण िकया या नह ।
सचं ा रत सदं ेश उपयोगी हो रहा है अथवा नह , ितपिु कहलाता है।
 संकेतीकरण (Encoding)– सं ेषक जब भाव या िवचार को संकेत के प म प रवितत करके
रचना मक िविध से ा तकता तक पहँचाता है तो इसे सक ं े तीकरण कहा जाता है जैसे –श द ,
संकेत , भाव भिं गमाओ ं आिद के ारा संदेश को सा रत करना। अथवा, सं ेषक सचू ना देने से
पहले सदं ेश को अपने ढगं से प रवितत करता है, िजसे सक ं े तीकरण कहते ह।
 सक ं े तवाचन (Decoding)– सक ं े तवाचन से आशय है- ापक ारा सदं श े को अपने मि त क म
उसी अथ म ढ़ाल लेना। सक ं े तवाचन ापक क समझ मता पर िनभर करता है। हीता सदं ेश को
अपने ढंग से समझता और हण करता है, इस िके या को संकेतवाचन कहा जाता है।

2.11 संदभ थं
 कुल े ठ, िव. एवं जैन, ह.ं (2005). ‘जनसंचार शोध िविधयाँ’. जयपरु : माया काशन।
 िसहं , ीका त. (2001). ‘सं ेषण : ित प एवं िस ातं ’. फै जाबाद : भारती पि लशस ए ड
िड ी यटू सा
 सरदाना, चं कांता एवं मेहता. कृ .िश. ‘जनसंचार कल, आज और कल’. िद ली : ान गंगा।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 118


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

 Kumar, keval j., (2004). ‘Mass Communication in India’, Mumbai : Jaico


Publishing House.
 Rayudu, C.S. (2008). ‘Communication’. Mumbai : Himalya Publishing House.
 जैन, रमेश. (2003). ‘जनसंचार एवं प का रता’. जयपरु : मगं लदीप पि लके श स।
 Desai, Amit, ‘Journalism and Mass Communication’. New Delhi : Reference
Press.
 बघेल, संजय िसंह. ‘संचार, समाज और सािह य’. गािजयाबाद : के .एल. पचौरी काशन।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 119


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

इकाई- 3 सच
ं ार सै ांितक , सं कृित उ पाद, पि लक फेयर एवं जनमत
इकाई क परेखा
3.0. उ े य
3.1. तावना
3.2. संचार सै ांितक
3.3. जनसच ं ार के िनयामक िस ांत
3.4. सं कृित उ पाद
3.5. सं कृित-उ ोग
3.6. पि लक ि फयर
3.7. जनमत
3.7.1. जनमत : अथ एवं व प
3.7.2. जनमत का िनमाण
3.7.3. जनमत के प
3.7.4. जनमत िनमाण क ि या
3.7.5. जनमत िनमाण के साधन
3.7.6. जनमत िनमाण के तर
3.7.7. जनमत को भािवत करने वाले त व
3.8. सारांश
3.9. बोध न
3.10. किठन श दावली
3.11. संदभ एवं उपयोगी थ ं सूची

3.0. उ े य
इस इकाई का उ े य िन नवत ह -
1. सचं ार क सै ािं तक सिहत जनसचं ार के िनयामक िस ातं को जानना।
2. सं कृ ित उ पाद और जनसंचार के अतं सबंध को समझना।
3. पि लक फे यर को जानना।
4. जनमत को समझना।

3.1. तावना
संचार मा यम ने यापक जनसमहू के जीवन को भािवत िकया है। जनसचार के े म होने वाले
तकनीक प रवतन ने हमारे आिथक, सामािजक, राजनीितक और सां कृ ितक े को तेजी से भािवत
करना शु कर िदया है। इस इकाई म सचं ार सै ािं तक पर िवमश करते हए जनसचं ार के िनयामक िस ातं पर

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 120


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

िव तृत प से चचा क गई है। जनसंचार के उ पाद को सां कृ ितक उ पाद क ेणी म शािमल िकया जाता
है। सं कृ ित म मनु य के जीवन क येक गितिविध या सि मिलत ह। जनसंचार ने मनु य को िकस तरह के
सां कृ ितक जीवन के िलए े रत िकया है। या इसके ारा अपसं कृ ित को बढ़ावा िदया जा रहा है, सं कृ ित
के उ ोग म बदलने से या लोग क रचना मकता को कंु िठत िकया जा रहा है आिद िबंदओु ं क चचा ततु
इकाई म क गई है और साथ ही पि लक ि फयर और जनमत पर भी चचा को शािमल िकया गया है।

3.2. सचं ार सै ांितक


आम चिलत अं ेजी श द Theory का िहदं ी पातं र है – िस ातं है। Theory श द क उ पि ीक
भाषा के Theoria श द से हई है, िजसका आशय ‘समझने क ि से िचंतन क अव था म ा त िकसी
मानिसक ि से है जो िक उस व तु के अि त व एवं कारण को कट करती है।’ िस ांत का सबं धं कुछ
िविश ट घटनाओ ं से नह अिपतु घटनाओ ं क संपणू ेिणय से होता है। राबट के . मटन ने अपनी पु तक
‘सोिशयोलॉजी ऑफ टुडे’ म िस ांत को प रभािषत िकया है िक ‘के वल उसी अव था म जबिक
अवधारणाएँ एक योजना के प म अतं :सबं िं धत हो जाते ह तभी एक िस ातं पनपना ारंभ हो जाता है।’ इसी
कार टालकट पारस स ने िस ांत को इस कार से प रभािषत िकया है- ‘िस ांत कुछ ात त य से िनकाले
गए सामा यीकरण से बनता है और वह इस अथ म िक ात त य समहू का औिच य, कौन से सामा य कथन
करगे।’
संचार िस ांत क चचा करते समय यि के मन पर सचं ार के पड़ने वाले भाव का अ ययन ज री है
य िक सच ं ार के िलए सं ेषक और ापक क मन:ि थितपरक तथा यि गत िभ नता दोन ही िस ातं के
ितपादन अपनी साथकता बनाते ह। संचार िस ांत का उ लेख एवं वग करण िन न प म िकया जा सकता
है-
1. मनोवै ािनक िस ांत वग
क. संतुलन का िस ांत
I. हाइडर िथत सतं ल
ु न का िस ातं
II. यक
ू ॉ ब िथत अतं वैयि क स मित का िस ांत
III. रोजन वग एबेलसन िथत सतु ंलन का िस ांत
IV. कॉटज- टॉटलड िथत अिभ ेरणा का िस ातं
V. ऑसगडु -टेननबाम िथत अनु प का िस ांत
VI. मै यगरु ी िथत स यता ि ि या का िस ातं
VII. फे ट जर िथत सं ाना मक असंगित का िस ांत
ख. सामजं य िवषयक िस ांत
ग. य ीकरण का िस ातं
घ. सं ाना मक असंवािदता का िस ांत
ङ. भावना मक सं ाना मक संगित का िस ांत
2. समाजशा ीय िस ांत वग

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 121


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

I. चचावली िनधारण का िस ांत


II. उपयोिगता एवं प रतिु का िस ांत
III. छिव िवकास का िस ांत
IV. िनभरता का िस ांत
V. ेषण- ि या बलु ैट िस ातं
VI. सामािजक िस ांत
VII. माशल मै लहु ान का िस ांत
3. अतं :ि या मक िस ातं वग
I. ि पद एवं बहपद िस ांत
II. यमू नै िथत मौन का वलय िस ातं
4. जनसंचारीय िनयामक िस ांत वग
I. लेटो का सवस तावादी/ भु ववादी िस ांत
II. वतं ता/उदारवादी िस ातं
III. सा यवादी जनमा यम का िस ांत
IV. सामािजक उ तरदािय व का िस ांत
हम यहाँ जनसंचार के िनयामक िस ांत क चचा करगे।

3.3. जनसंचार के िनयामक िस ांत


अमे रका के सु िस समाज वै ािनक एवं संचारिवद् जी.एफ. साइबट, टी. पीटसन और ड यू ेम
ने िव व क मख ु राजनीितक यव था के आधार पर ेस के चार िस ांत िन िपत िकए ह। उनका मानना है
िक िजस देश क शासन यव था जैसी होगी वहाँ क संचार यव था भी वैसी ही होगी।
जनसंचार के िनयामक के चार िस ांत ह- I. सवस तावादी/ भु ववादी िस ांत, II. वतं ता/उदारवादी
िस ातं , III. सा यवादी िस ातं और IV. सामािजक उ तरदािय व का िस ातं ।
I. सवस तावादी/ भु ववादी िस ांत - ेस के संबंध म यह िस ांत ाचीन है। िनरंकुश
राजस ताओ ं म यह िस ांत कई प म शु से ही मौजदू रहा है। दिु नयाभर के िनरंकुश
राजनीितक ढाँचे म राजस ता को यि से ऊपर का थान िदया जाता रहा है। यहाँ तक िक
स ता पर कािबज लोग को दैवीय शि से यु त देवयु त या सवशि मान सवगणु संप न
समझा जाता था। इस कार राजा व जा के बीच भेद उ प न हो जाता था। ‘राजा ही काननू है’
रोमन चच के िनरंकुश परंपरा म यह बात िनिहत थी िक जनता के िहत को पूरा करने के िलए ही
राजा के ारा द त सम त अिधकार का योग राजस ता करती है। इस तरह ारंभ से ही लोग
को वैसी ही सचू ना देना उिचत समझा जाता था जो राजस ता के िहत के अनक ु ू ल हो उसम
राजस ता क शि को िकसी भी तरह संदहे के घेरे म लाना या उसे चनु ौती देना ितबंिधत था।
इस िस ांत के अनसु ार, जनमा यम शासन एवं सरकार के िहत म ही बँधकर रह जाते ह। उिचत-
अनिु चत का प र याग करके ये जनमा यम मा सरकारी चारतं बनकर रह जाते ह और परो

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 122


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

प से शासक य यव था का अगं बन जाते ह। ऐसी ि थित म जनमा यम के गणु -दोष का


मू यांकन संभव ही नह हो पाता है। यही कारण है िक काफ लंबे समय तक ेस िनजी
वािम व म रहा है।
II. उदारवादी/ वतं अिभ यि का िस ांत - िव बर ेम के अनसु ार, सोलहव शता दी म
उदारवादी िस ातं क अवधारणा बनी, 17 व शता दी म अक ं ु रत हई और अठारहव शता दी
म िवकिसत हई तथा उ नीसव शता दी म इसे प लिवत होते देखा गया। जी.एस. साइबट ने
उदारवादी िस ांत का ितपादन िकया है। इस िस ांत के अनसु ार, ऐसे देश म जहाँ
लोकतािं क शासन यव था है वहाँ सं कृ ित, तकनीक और सामािजक िवकास क ि थित
उ प न भले ही न हो िकंतु जनमा यम शासक य िनयं ण से पूणतया मु त होते ह। इन देश म
नाग रक को िअभ यि क वतं ता का अिधकार सिं वधान ारा द त होता है। इन देश म
जनमा यम यापक लोकिहत एवं जनक याण के िलए काम करते ह। गणु -दोष का मू यांकन
करके िवकास के नए आयाम को तैयार करते ह। ऐसे देश म संचार मा यम ाय: एक वतं
उ ोग अथवा वाय तशासी सगं ठन के प म काय करते ह। अिभ यि क वतं ता काननू
ारा संरि त होने के कारण वे गलत शासक य नीितय तथा दोष का खल ु कर आलोचना करते
ह। इन देश म जनमा यम का ाय: सचू नाएँ व य मनोरंजन और सदि् श ा दान करने क
ओर िवशेष यान रहता है। सन् 1963 म साइबट, पीटसन तथा ेम ने लचीलापन, प रवतन
को हण करने क मता, आ मिव वास को उदारवादी िस ांत क िवशेषता बताया है।
III. सा यवादी िस ातं - यह िस ातं मु यतया सा यवादी िवचारक काल मा स, एिं ज स, टािलन
एवं लेिनन के िवचार पर आधा रत है। इस िस ांत के अनुसार, मीिडया िवचार का मानिसक
उ पादन है अत: इसका िनयं ण मजदरू ारा िकया जाना चािहए। एक सा यवादी क थापना
जो िक व ततु : वगिवहीन समाज होगा क प रक पना थी। इसके िलए मीिडया का यह काय
माना गया िक वह कोई ऐसी बात न कहे जो वग-भेद उ प न करते ह और समाज म एक वग
िवशेष को बढ़ावा देते ह । इस िस ातं के अनसु ार सचं ार मा यम ारा िन न एवं शोिषत वग
क उपे ा िकए जाने पर समाचार म असंतुलन उ प न होता है। सा यवादी संचार मा यम
िस ांत का संशोिधत सं करण शासक वग के िहत के संदभ म संचार मा यम के वैचा रक
भाव को रे खािं कत करता है।
IV. सामािजक उ तरदािय व का िस ांत - जनमा यम लोकतांि क यव था म अपने सामािजक
दािय व का िनवहन करते ह तथा अपने आपको शासक य यव था से अलग रखते ह। इस
िस ांत के ितपादक का मानना है िक जनमा यम के वल समाज के दपण ही नह होते बि क
उनके कुछ सामािजक दािय व भी होते ह। जनमा यम का काय समाज म घटी घटनाओ ं क
त वीर पेश करना है। जनमा यम का यह भी दािय व होता है िक अपने काय म के मा यम से
समाज म या त कुरीितय को दरू करने, िश ा का सार, सां दाियक स ाव और एकता
कायम करने तथा रा ीय िहत क र ा करने म समाज क सहायता करे । जनमा यम को
के वल जनता क इ छा से िनयंि त नह होना चािहए िक वह या देखना, सनु ना और पढ़ना

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 123


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

चाहता है बि क एक अ छे पथ- दशक के प म यह िनणय करना चािहए िक या देखना,


सनु ना और पढ़ना समाज के िहत म है।
अमे रक संचारिवद् साइबट, पीटसन, ेम ारा ितपािदत ेस के चार िस ांत म डेिनस मै वेल ने दो और
िस ांत - (जनमा यम का िवकास िस ांत और जनतांि क सहभािगता का िस ांत) को जोड़कर मानक
िस ातं क सं ा दी।
जनमा यम का िवकास िस ांत - संचार िवकास के िलए एक मह वपणू पहलू है। इस बात को लेकर
िवकासशील देश म बहस शु हई और 1978 ई. म मैक ाइड कमीशन ने अपनी रपोट ‘मेनी वायसेज वन
व ड’ म माना िक समाचार मा यम ारा सा रत समाचार नकारा मक नह होना चािहए बि क िवकास एवं
दािय व के िनवहन के िलए दािय वपणू एवं सकारा मक समाचार भी होना चािहए। िवकास के िलए सुझाव
िदया जाना चािहए। यह ज री है िक सचं ार मा यम समाज के लोग को हतो सािहत न कर अिपतु उसम
उ साह का संचार कर। सरकार क योजनाओ ं को लाभदायी बनाने एवं उसके ि या वयन म सहयोग कर।
जनतािं क सहभािगता का िस ांत - इस िस ातं का ितपादन कफट कूल, जमनी म िकया गया। इस
सै ािं तक अवधारणा के ितपादक मै वेल थे। इस िस ातं के अनसु ार लोकतािं क यव था म जनमा यम
ारा सं ेषण का अिधकार समान प से सभी को ा त हो। यह िस ांत जनमा यम के वािम व के
क ीकरण का िवरोध करता है और दशक- ोता के मा हणकता होने के कथन को भी अ वीकार करता है।
जनमा यम को उ तरदायी होना चािहए। सरकारी अथवा बड़े औ ोिगक घरान के िनयं ण से मु त होना
चािहए। मै वेल का मानना है िक इस िस ांत के अनु प ही जनमा यम का व प होना चािहए तािक
जनतािं क िवकास म आमजन क सहभािगता सिु नि त क जा सके ।

3.4. सं कृित उ पाद


मनु य क पहचान जो उसे जानवर से अलग करती है, वह है उसक िववेक मता। िववेक मता
मनु य के जीवन को सां कृ ितक आयाम देती है। सं कृ ित मनु य जीवन क सभी ि याओ ं म समािहत होता
है। उसके खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने से लेकर सभी ि याओ ं का सबं धं सं कृ ित से है। यही सं कृ ित मनु य को
मनु य होने का अथ देती है। समाज और सं कृ ित का संबंध बहत गहरा है। समाज का िनमाण सामािजक
संबंध से होता है जबिक सं कृ ित का िनमाण मानव िनिमत भौितक व तओ ु ं या अभौितक त व से होता है।
सामािजक और सां कृ ितक प रवतन के सदं भ म पारस स ने कहा है, ‘सां कृ ितक प रवतन का सबं धं
िविभ न मू य , िवचार और तीका मक अथपूण यव थाओ ं म प रवतन से है, जबिक सामािजक प रवतन
का सबं धं यि और समाज के बीच होने वाली अतं :ि याओ ं म प रवतन से है।’’ सां कृ ितक प रवतन के
तर पर सं कृ ित के असंतल ु न, भौितकतावादी धानता, ौ ोिगक य िवकास या ितरोध, वाथपू रत
अवरोध सां कृ ितक संघष, बा सं कृ ित का आयात आिद मह वपूण भिू मका िनभाते ह।
जनसच ं ार के साथ ही जन सं कृ ित क सकं पना भी ततु हई। जनसचं ार और जनसं कृ ित के
पर पर संबंध के संदभ म कफट कूल क िवचारधारा का उ लेख आमतौर पर िकया जाता है। कफट
कूल के िवचारक ने ही सबसे पहले जनसंचार के संदभ म सां कृ ितक न पर गहनता से िवचार िकया था।
इन िवचारक म सबसे मह वपणू ह- मै स होखाइमर और टी.ड य.ू एड नो। इसके साथ ही वा टर बजािमन

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 124


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

और हबट मा यजू क भी गणना क जाती है। इनके अनुसार- इजारे दार पँजू ी अपनी कामयाबी के िलए िजन
मख
ु साधन का इ तेमाल करती है उनम जन सं कृ ित का थान सबसे मख ु है। व तओ ु ,ं सेवाओ ं और
िवचार के जनो पादन क संपणू णाली पूँजीवादी यव था म बेचे और खरीदे जाते ह। यह यव था येक
व तु और िवचार को िजसं म बदल देती है, जो यह मानती है िक लिलत कलाओ ं का सव तम अिभ यि याँ
हो या िवरोधी या आलोचना मक सं कृ ित सभी को बेचा जा सकता है।
जनसंचार उ ोग कुछ खास तरह के उ ोग का िनमाण करती है। एक तर पर वह अ य उ ोग क
तरह व तओ ु ं (कै सेट, पु तक, डीवीडी, िफ म क रील) और सेवाओ ं (कलाकार , तकनीिशयन ) का
उ पादन करती है, तो दसू री तर पर वह इनसे यादा भी कुछ कर सकती है। वह लोग को सख ु द और सपं न
भिवषय् का सपना बेचती है। जनसंचार मा यम ने जन सं कृ ित को पैदा िकया है। सां कृ ितक प से
जनसच ं ार एक तर पर आिभजा य सं कृ ित और जनसं कृ ित के अतं राल को कम करता है, तो दसू रे तर पर
वह नए तरह के भेदभाव भी पैदा करता है। जनसंचार ने ऐसी ौ ोिगक को िवकिसत िकया है, िजसके कारण
कला के िविवध प यथा गायन, नृ य आिद को सभी के िलए उपल ध हो पाया है जो पहले िसफ उ च वग
तक ही सीिमत थे। वह दसू री ओर इसने िवकृ त और मानव िवरोधी सां कृ ितक प को घर-घर तक पहँचा
िदया है। इस कार लोग क सां कृ ितक अिभ िचय को िवकृ त भी िकया है। इसने िविभ न कला प म
जनता क भागीदारी को बढ़ाया है और लोग को सृजना मकता के अवसर उपल ध कराए ह। जॉन बी
थॉ पसन ने इस संबंध म कहा है िक “आधिु नक समाज म तीका मक प का उ पादन और सार
जनमा यम उ ोग क गितिविधय से अलग नह िकया जा सकता।’’ मीिडया क भिू मका से हम सब
वािकफ ह, यही कारण है यह आज हमारे जीवन का अिभ न िह सा बन चक ु ा है। जनसं कृ ित के िविवध प
का सार इसीिलए संभव हआ है िक वह उनका बार-बार पनु पादन कर सकती है। तीका मक प क
पनु पादकता ने ही जनसंचार के यावसाियक दोहन क यापक संभावना पैदा क है और इसी वजह से
तीका मक प का उपभोगीकरण हआ है।

3.5. सं कृित-उ ोग
1991 ई. म कािशत पु तक ‘िद क चर इडं ी’ म एड नो और होखाइमर ने बोधन क
आलोचना के एक मख ु िबंदु ‘सं कृ ित-उ ोग’ क चचा क है। इसम उ ह ने ‘सं कृ ित-उ ोग’ क
प रचायक एवं पोषक ‘जन-सं कृ ित’ का आलोचना मक िव लेषण ततु करते हए कहा है िक ‘जन-
सं कृ ित सं कृ ित-उ ोग का वािणि यक उ पादन है जो जन-संचार के िविभ न साधन के मा यम से सं कृ ित-
िवशेष के साथ-साथ कितपय सां कृ ितक त व क ािं डंग और िवपणन करता है। ऐसी ािं डंग और िवपणन
बहधा ऐसे अितशयोि पणू और त यहीन िव ापन के साथ क जाती है, िजनका वा तिवकता से आिं शक
संबंध अथवा कोई संबंध नह होता है।’’
जनसच ं ार मा यम के िवकास ने सं कृ ित को उ ोग का प दे िदया है। सं कृ ित उ ोग क
संक पना रखने का ेय कफट कूल के िवचारक को है। उ ह ने सं कृ ित उ ोग क कृ ित और प रणितय
के बारे म िवचार िकया है। मै स होखाइमर और टी. ड य.ू एड नो ने सं कृ ित उ ोग पद का योग
सां कृ ितक प के उपभोगीकरण के संदभ म िकया है, िजसका िवकास यरू ोप और अमरीका म उ नीसव

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 125


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

सदी के अतं म और बीसव सदी के आरंभ म मनोरंजन उ ोग के उ थान के साथ हआ था। उ ह ने इस संदभ
म िफ म, रे िडयो, टेलीिवजन, लोकि य संगीत, पि काओ ं और समाचारप के बारे म िवचार-िवमश िकया
है। इन िवचारक का मानना है िक मनोरंजन उ ोग के पँजू ीवादी उ म के प म पनपने का प रणाम
सां कृ ितक प के मानक करण और िववेक करण म िनकला है। इस ि या का प रणाम यह हआ है िक
यि म इन उ पाद के बारे म आलोचना मक और वाय त प म सोचने और कर सकने क मता खोता
जा रहा है। इन उ ोग के ारा जो सां कृ ितक व तओ ु ं का उ पादन हो रहा है वह पँजू ीवादी संचयन और
मनु ाफा हािसल करने के िलए हो रहा है। वे जनता ारा वत: फूत ढंग से नह पनप रहे ह, बि क जनता ारा
उनका यापक पैमाने पर उपभोग हो सके , इस नज रए से उनका उ पादन हो रहा है।
हबट मा यजू ने अपनी पु तक ‘वन डाइमशनल मेन’ म िलखा है िक िवकिसत पूँजीवाद म उ पादन
क य िववेकशीलता ही सामािजक यव था को उसी प म आलोचना के िलए िनरापद बना देती है।
यव था अपनी सफलता, व तओ ु ं क उ पािदत करने क अपनी मता ‘बेचती’ है। उनके अनुसार
‘‘उ पादक य उपकरण और व तओ ु ं और सेवाओ ं िजसके ारा वह (िवकिसत पँजू ीवाद) पणू सामािजक
यव था को थोपने या ‘िव य’ का उ पादन करती है। जन प रवहन और जनसचं ार के साधन , आवास,
भोजन और व क उपभो ता व तओ ु ,ं मनोरंजन और सचू ना के अ ितरोधी उ पादन अपने साथ िनधा रत
वृि य और आदत , िनि त बौि क और भावा मक िति याओ ं को लाते ह, जो उपभो ताओ ं को
उ पादक से कमोबेश खश ु ी से बाँधे रखते ह और बाद वाले (मनोरंजन और सचू ना उ पादन) के ज रए वह
संपणू ( यव था) से बँधा रहता है। उ पाद िशि त करते ह और जोड़तोड़ करते ह; वे िम या चेतना को
ो सािहत करते ह, जो िक इस िम यात व के िव ितरि त होते ह... इस कार एक आयामी िवचार और
यवहार का पैटन उभरता है िजसम िक िवचार, आका ाएँ और उ े य, अपनी अंतव तु के ारा िवमश और
यवहार क थािपत सावभौिमकता के पार चले जाते ह और जो या तो इस सावभौिमकता क शत पर
अमा य हो जाता है या बलहीन हो जाते ह।’’

3.6. पि लक ि फयर
जमन दाशिनक जगु न हैबरमास ने 1962 ई. म कािशत अपनी पु तक ‘ चरल ासं फॉमशन
ऑफ दी पि लक ि फयर’ म ‘मानव जीवन के सामािजक े ’ क चचा क है। सावजिनक े , सामािजक
जीवन का वह े है जहाँ यि य को वतं प से चचा करने और सामािजक सम याओ ं क पहचान
करने के िलए एकि त होकर एक अवसर दान करता है और उस चचा के मा यम से सावजिनक प से जड़ु ी
सम याओ ं के समाधान का यास िकया जाता है। जीवन के सावजिनक े म परंपराओ,ं सां कृ ितक
मा यताओ,ं रीित- रवाज , धम , सं दाय , शि , स ता आिद से संबंिधत यि गत अनभु व एवं यि िन ठ
मू य हेतु कोई थान नह होता है। इसम सहभािगता तथा अ य लोग से यि य क अतं ि या मक
पार प रकता के भाव म समाज म या त पार प रक िवरोध क समाि के अवसर िनिमत होते ह और
जीवन के सावजिनक े म स ाव क दशा अपे ाकृ त बढ़ जाती है। हैबरमास ने यि के मल ू भतू िहत को
तीन ेिणय म िवभािजत िकया है- पहला, तकनीक िहत, दसू रा, यावहा रक िहत और तीसरा, मिु संबंधी
िहत। हैबरमास ने प ट कहा है िक, यि का ान उसके िहत क पिू त और संर ण के संदभ म आव यक

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 126


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

साधन तथा उपाय क पहचान म सहायता करता है। यि के ान और िहत क ही तरह िहत क पूित के
साधन तीन कार के ह– पहला, काय एवं गितिविधयाँ, दसू रा, भाषा और तीसरा ािधकार।
हैबरमास का तक है िक सावजिनक े के िलए यि गत-संब ध ारा ‘जनमत’ क अवधारणा म
आकार िदया जा सकता है। इतना ही नह आिथक और संरचना मक प रवतन क वजह से बजु आ ु
सावजिनक े अतं तः समा हो गया। अतं त: रा य और समाज के बीच क सीमाएँ धधंु ली हई ह। उनका
प ट मत है िक जन मीिडया क दिु नया स ती और शि शाली है और यह हेरफे र करने का यास करता है
जहाँ कोई भी मौजदू नह है तथा सवस मित पैदा करता है। यहाँ यह कहना समीचीन है िक पँजू ीपितय के
सावजिनक े से पहले ितिनिध चार हआ, जो म य यगु से अठारहव शता दी तक मौजदू था। इसम
राजा या वामी को शािमल िकया गया, जो दशक के सामने खदु का ितिनिध व करता है; राजा एकमा
सावजिनक यि था और अ य सभी दशक थे, सावजिनक और िनजी े अलग नह हए थे।
सावजिनक े के िवकास म आिथक िवकास मह वपूण है। हैबरमास के अनसु ार-“बाजार क
धानता वाली आधिु नक अथ यव था के िवकास एवं वच व म भी सावजिनक े क भिू मका महती है
य िक यह आम-नाग रक , बिु जीिवय , यापा रय , उ िमय , उपभो ताओ,ं सावजिनक े म काय
करने वाले यि य , कलाकार आिद क आव यकताओ-ं आकां ाओ ं के साथ-साथ नवीन िवचार एवं
नवाचार को सामािजक वीकृ ित िदलाने के साथ-साथ नवीन तकनीक एवं आव यकताओ ं क पूित क
यापा रक एवं औ ोिगक संभावनाओ ं के मू याक ं न हेतु एक यापक, सहज और सवसुलभ मचं उपल ध
कराता था। हैबरमास का मत है िक ‘पँजू ीवाद के अनाव यक एवं अतािकक िव तार, नौकरशाही के िवकास
एवं काननू क सहायता से रा य ारा यि क वतं ता पर िनयं ण मानव जीवन के सावजिनक े के
संकुचन अथवा पतन के मख ु कारण रहे ह। उनके अनसु ार सावजिनक े को जीिवत करके यि के दमन
और शोषण को कम िकया जा सकता है।” हैबरमास उ पादन के पँजू ीवादी तरीके और इस िवकास म
समाचार और व तुओ ं के यापार क भिू मका पर बल देता है। इसने रा य ारा वच व क जाँच क और
स ा के अवैध इ तेमाल पर भी िववेचन ततु िकया। कॉफ हाऊस, सैलनू , चाय क दक ु ान आिद सं थान
म, बजु आ
ु पि लक के भीतर तकसगं त-मह वपणू बहस हई। हैबरमास सावजिनक े को प रवार क िनजी
सं था के िवकास के प म देखता है, और वह ‘सािहि यक सावजिनक े ’ कहता है, जहाँ कला और
सािह य क चचा पहली बार संभव हो गई थी। हैबरमास सावजिनक े क भिू मका पर जोर देता है िक
िसिवल सोसायटी के अपने िहत को प करने के िलए एक बेहतर अवसर दान करता है।

3.7. जनमत
जनसंचार मा यम ारा यि के मनो-सामािजक दशा को य त िकया जाता है। मा यम ारा
सा रत संदश
े के मा यम से यि के यवहार म प रवतन आता है। जनसंचार मा यम ारा िकसी संदेश के
ित यि य के िदलो िदमाग म ऐसा सवं ेग बनाता है, िजससे े रत होकर यि िकसी खास मु के ित
अपना सहमित य त करता है। सहमित िनमाण क ि या यि गत होती है हालांिक जनसंचार मा यम
ारा जनमत का िनमाण िकया जाता है। सहमित िनमाण से ही जनमत क िनिमित संभव है या य कह िक
सहमित िनमाण और जनमत दोन अ यो याि त ह। इसिलए हम यहाँ जनमत पर काश डालगे।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 127


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

3.7.1. जनमत : अथ एवं व प- जनमत श द दो श द - जन और मत के योग से बना है। जनमत से


आशय है- जनता का मत (Public Opinion)। जनता या जन ऐसा मनु य–समहू होता है िजनके िहत समान
होते ह और जो िकसी भी िववादा पद िवषय पर समान मत रखते ह। जनमत जनता का मत होता है।
मनोवै ािनक प से जनता का योग उस समहू के िलए िकया जाता है, िजसके सद य म आमने-सामने को
सबं धं तो नह होता िकंतु वे सभी समान मत और इ छाओ ं से बँधे होते ह। सु िस राजनीितशा ी जॉन
टुअट िमल ने जनमत के संबंध म कहा है, “जनमत के नाम पर या कानून ारा थािपत यव था के आधार
पर, जनसाधारण से एक िवशेष तर के यवहार और आचरण क अपे ा क जाती है। यवहार के यह
मापदडं या तो वयं जनसाधारण ि थर करते ह या समाज के स ताधारी वग अपने भाव से काम लेते ह। यह
िनणय संबंिधत वग क िच या अ िच पर ही होता है, िजसे जनमत क सं ा दी जाती है।” जे स ाइस
कहते ह, “एक समदु ाय के सद य जनसाधारण के जीवन से सबं िं धत सम याओ ं पर जो भी िवचार रखते ह,
उन सबके सामिू हक प को जनमत क सं ा दी जाती है।” यंग के श द म “जनमत वयं सचेत समदु ाय का
एक सामा य मह व के के उपर िववेकपणू सावजिनक िववेचना के बाद का सामािजक िनणय है।”
िवलोबी के अनसु ार- “जनमत वह शि है, जो काननू और यव था को ठोस आधार देती है। इसके िबना
सामािजक जीवन म ि थरता असंभव है।” डॉ. बलदेवराज गु त के अनसु ार- “मनु य आज के संचार मा यम
और िविभ न साधन को अपनाकर जनमत िनमाण के काय म जझू ा हआ है। यह यवसाय िदनिदन तकनीक
और वै ािनक प लेता जा रहा है।” जे स टी. यंग के अनसु ार- “जनमत वयं सचेत समदु ाय का एक
सामा य मह व के न के ऊपर िववेकपणू सावजिनक िववेचना के बाद सामािजक िनणय है।’ जनमत एक
ऐसा िनणय है, जो बहत वाद-िववाद के बाद सोच-िवचार से िलया जाता है। इसम िववेकशीलता का गणु
होता है। जनमत के संदभ म उपरो त प रभाषाओ ं के आधार पर कहा जा सकता है िक जनमत म जनसाधारण
क िविवध अिभवृि य एवं ि थितय का अ ययन करने और इसके त ु प प रणाम से जनमत िनमाण क
ि या अपनाने क ज रत है। यह इसिलए भी आव यक है िक जनसंचार म से यि तर पर िकसी भी
अिभवृि या ि थित को प टत: और पणू त: जाने बगैर जनमत िनमाण का साथक लाभ नह िमलता है।
3.7.2. जनमत का िनमाण- जनमत का िनमाण कुछ मा यताओ ं पर आधा रत होता है, िजसम कहा जाता है
िक जनता के सद य एक दसू रे के ित सहनशील, िवचार सनु ने वाला, िवचार ततु करने क वतं ता हो,
िनणय का आदर करने वाले (बहमत-अ पमत) जनमत का िनमाण सद य के आपसी सहयोग से होता है।
जनमत का सबं धं सावजिनक िवषय से होता है।
3.7.3. जनमत के प- यह जनसाधारण क समान अिभवृि य क प टत: य त क जा सकने वाली
यव था है, िजसके दो मख ु प ह-
क. य जनमत– य जनमत से आशय है जनता का ऐसा आचरण िजसको सभी य देख
सकते ह यानी कथनी और करनी म भेद नह िदखता।
ख. अ य जनमत– अ य जनमत से आशय है जनमत का अ य प ऐसा होता है िजसक
य त: कोई जानकारी नह दी जा सकती तथा अनसाधारण अपने सिु वचा रत एवं सिु नि त िनणय
का उ लेख िकसी से नह करता है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 128


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

3.7.4. जनमत िनमाण क ि या (Process of formulation of Public Opinion)- इसके िलए


िन न िबंदओु ं पर यान देना आव यक है- 1. कोई सम या या मु ा (Any Problem or issues), 2.
ारंिभक छानबीन संबंधी िवचार िवमश (Preliminary and exploratory thinking), 3. सावजिनक
वाद-िववाद (Public Debate) और 4. एकमत का तर (The stage of consensus)।
1. कोई सम या या मु ा (Any Problem or issues)- जनमत का सबं धं िकसी सम या या मु ा से
होता है, िजसका संबंध सारे समहू , समाज या समदु ाय से होता है।
2. ारंिभक छानबीन संबंधी िवचार िवमश (Preliminary and exploratory thinking)- जनमत
िनमाण के दसू रे तर पर समहू या समदु ाय से सबं िं धत लोग उस िवषय या सम या से सबं िं धत
छानबीन करते ह, उसके कारण , प रणाम एवं गंभीरतापूवक उसे हल करने के उपाय पर सोचते ह।
3. सावजिनक वाद-िववाद (Public Debate)- िकसी सम या पर िवचार करते समय ारंिभक
छानबीन एवं त य के ात हो जाने के उपरांत संबंिधत िवषय पर प एवं िवप म तक िवतक
करते ह। इससे सम या के समाधान के िलए कई उपाय सामने आते ह।
4. एकमत का तर (The stage of consensus)- िकसी भी सम या के समाधान के िलए प िवप
म तक िवतक करने के उपरांत एकमत पर पहँचते ह। इसका आशय यह कदािप नह िक समहू के
सभी यि एक मत को वीकार कर लेते ह।
3.7.5. जनमत िनमाण के साधन (The agencies of formation of Public Opinion)- लोकतांि क
यव था म िकसी भी कार का प रवतन करने के िलए उसके प म जनमत िनमाण करना आव यक हो
जाता है। आज भारत म ससं दीय बनाम रा पित णाली पर जनमत तैयार करने क बात शु हो गई है।
जनमत िकसी साधन के िबना संभव नही होता। जनमत िनमाण के मख ु साधन ह– 1. समाचार प , पि काएँ
एवं एजिसयाँ (Newspaper, Magazine and Agencies), 2. रे िडयो (Radio), 3. चलिच
(Cinema), 4. दरू दशन (Television), 5. इ तेहार (Posters) और 6. जनमत नेता (Opinion
Leaders)।
1. समाचार प , पि काएं एवं एजिसयां (Newspaper, Magazine and Agencies)- वतमान
समय म जनमत िनमाण के िलए समाचार प -पि काओ ं क महती भिू मका है। समाचार एजिसयाँ सिहत प -
पि काएँ समाज म या त सम याओ ं पर िविवध ि कोण से िवचार य त करते ह, िजससे समाज म िकसी
खास मु े पर जनमत तैयार होता है।
2. रे िडयो (Radio)- रे िडयो जनमत िनमाण के िलए आव यक उपकरण है। भारत म कुछ लोग िनर र भी
ह, उनसे सवं ाद थािपत करने के िलए रेिडयो एक मह वपणू मा यम है। िकसी सम या या िवषय के प म
जनमत बनाने के उ े य से अनुकूल सचू नाओ ं को सा रत िकया जाता है।
3. चलिच (Cinema)- चलिच या िसनेमा अिभ यि का एक सश त मा यम है। जनमत िनमाण म
इसक भिू मका मह वपणू है। िफ म िनमाता िकसी िवशेष उ े य को यान म रखकर ही िफ म क कहानी,
संवाद, गीत आिद का िनमाण करता है। अिभनेता-अिभने ी ारा आकषक तरीके से सम याओ ं के समाधान
पर काश डालते ह, इससे जनता भािवत होती है और जनमत का िनमाण होता है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 129


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

4. दूरदशन (Television)- आधिु नक यगु म दरू दशन सबसे शि शाली एवं भावशाली मा यम है य िक
इसम य तथा य दोन िव मान ह। दरू दशन पर िविवध िवषय तथा सम याओ ं से संबंिधत भाषण ,
िव ान एवं िवशेष के िवचार, वाद-िववाद, नाटक आिद ततु िकए जाते ह, िजससे एक िवशेष जनमत
का िनमाण होता है।
5. इ तेहार (Posters)- आजकल िभ न-िभ न िच एवं श द के मा यम से घटनाओ ं को ततु करके
जनता के मत को एक िवशेष िदशा म मोड़ने का यास इ तेहार ारा िकया जाता है। सामािजक मु े यथा
क या णू ह या से बचाव, प रवार क याण, पयावरण, सरु ा, िश ा आिद के संबंध म इ तेहार का योग
काफ सफल रहा है।
6. जनमत नेता (Opinion Leaders)- जनमत नेता समाज म भावशाली लोग होते ह और इनक बात
से लोग भािवत होते ह। हमारे समाज म जनमत नेताओ ं का यि गत भाव लोग के मत एवं रवैये को
प रवितत करने म सवािधक मह वपूण होता है। जनमत नेता संगोि य , बैठक एवं अपने संपक ारा
यि गत प से सूचनाओ ं का िव लेषण अपने तरीके से करते ह।
3.7.6. जनमत िनमाण के तर (Important step involved in the Public Opinion)
क. िकसी सम या या मु े का उपि थत होना- िकसी सम या या मु े का होना जनमत िनमाण का पहला
चरण होता है- िहदं ओ ू ं म िवधवा पनु िववाह क था के अनक ु ू ल जनमत बनाने के िलए यह
आव यक है िक िहदं ू यह समझे िक िवधवा पनु िववाह उनके समाज क एक सम या है और इसका
समाधान होना चािहए।
ख. ाथिमक खोजबीन का तर- सम या के ित िच रखने वाले यि कुछ ऐसे साधन क खोज
कर, जो सम या के समाधान म सहायक हो। वे सम या को समझने क कोिशश भी करते ह। जैसे
िहदं ओ
ु ं म िवधवा पनु िववाह के संबंध म इस तर पर पता लगाया जाता है िक यह िकस सीमा तक
जिटल सम या है। इस सम या के कारण िवधवा ि याँ िकतनी दयनीय है।
ग. सावजिनक वाद-िववाद का संगिठत प- जब सम या एक िनि त व प धारण कर लेती है, तो
सम या के सबं धं म लोग म वाद-िववाद होता है और मत का पर पर आदान- दान होता है।
घ. मत िनमाण का तर- यह जनमत िनमाण का अिं तम चरण है। इस तर पर जनता क बात , वाद-
िववाद , िवचार-िवमश आिद के ारा सहमित का िनमाण हो जाता है। यहाँ यह उ लेखनीय है िक
िजस अिं तम मत पर लोग पहँचते ह वह सभी यि य का एक सा िवचार नह होता है कुछ लोग
इस मत का िवरोध भी कर सकते ह।
3.7.7. जनमत को भािवत करने वाले त व (Influencing factors of Public Opinion)
1. यि गत िन य- जनमत को भािवत करने वाले त व म यि गत त व का महती योगदान है।
येक यि म अपनी कुछ मानिसक ितमाएँ, अिभवृि याँ, मू य व आदश होते ह, जो जनमत
को यादा भािवत करते ह।
2. िवरोधी दवाब- समाज म िकसी सम या के ित लोग का मत िभ न-िभ न होता है, समहू म बँटे
रहते ह। इन समहू के उ े य एवं काय िभ न-िभ न होते ह, जो एक-दसू रे के िवरोधी हो सकते ह। इन

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 130


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

िवरोधी भाव को हम िवरोधी दवाब कहते ह। िवरोधी दवाब का जनमत के िनमाण म मह वपणू
योगदान होता है।
3. सामािजक वग- यि िजस सामािजक वग का सद य होता है उस वग का भी उसके मत
िनधारण म योगदान होता है ायः वह दसू रे वग के िवचार और िहत से अनश ु ािसत होता है
इसिलए जैसा उसके सामािजक वग का मत होता है वैसा ही अपना ही मत बनाता है।
4. नेतृ व- िकसी भी सम या के ित जनमत बनाने के िलए नेतृ व क ज रत पड़ती है। समाज के
ईमानदार और साफ सथु रा च र वाले यि का नेतृ व जनमत िनमाण के िलए आव यक त व है।
5. िश ा- जनमत िनमाण के िलए िश ा एक मख ु त व है।
6. यि य के सच ू ना का तर- सचू ना ही शि है। िकसी भी घटना या सम या के ित त य के
सदं भ म जानकारी रखकर लोग से वातालाप करने से सबं िं धत यि या समहू पर असर पड़ता है।
7. समािजक घटनाएँ- जनमत िनमाण म सामािजक घटनाओ ं का भी भाव पड़ता है।
8. म यम का भाव- जनमत के िनमाण म जनसचं ार मा यम क भिू मका मह वपणू है। जनसच ं ार
मा यम यथा रे िडयो, टेलीिवजन, समाचार प , पि काएँ, सोशल मीिडया ारा सा रत सदं ेश का
भाव जनमत िनमाण म िकया जाता है।
9. सावजिनक भाषण- समाज से जड़ु ी िकसी भी सम या के ित भाषण ारा व ता य प से
संवाद करते ह और ोताओ ं को िवषय से संबंिधत त य से अवगत कराते ह। सावजिनक भाषण
से जनमत का िनमाण िकया जाता है।
10. जनमत नेता- जनमत नेता समाज म िकसी सम या के ित जनमत िनमाण म मह वपणू भिू मका
का िनवाह करता है।
इस कार से कहा जा सकता है िक जनमत के िनमाण म जनसंचार मा यम क मह वपूण
उपयोिगता होती है।

3.8 सारांश
इस इकाई म संचार सै ांितक को या याियत करते हए जनसंचार के िनयामक िस ांत क
िव तारपूवक चचा क गई है। सं कृ ित का संबंध मानव जीवन क गितिवधय से सि निहत है। मानव स यता
के िवकास के साथ सं कृ ित का िवकास होता है और इसम जनसचं ार मा यम क भिू मका मह वपणू होती है।
ौ ोिगक समाज म जन सं कृ ित के िव तार के साथ सं कृ ित ने एक उ ोग का प धारण कर िलया है।
सां कृ ितक उ पाद को एक उ ोग का प देना पँजू ीवादी यव था क प रघटना है, िजसका मकसद इसके
ारा पूँजी का सचं यन और मनु ाफा कमाना है। एड नो और होखाइमर ारा ितपािदत ‘सं कृ ित उ ोग’ को
भी समझने का यास िकया गया है। हैबरमास ारा ितपािदत पि लक ि फयर ारा इस बात को समझने का
यास िकया गया है िक बाजार क धानता वाली आधिु नक अथ यव था के िवकास एवं वच व म भी
सावजिनक े क भिू मका उ लेखनीय है। जनमत पर िव तार से चचा करते हए यह समझने का यास
िकया गया है िक, जनमत का िनमाण सद य के आपसी सहयोग से होता है और इसका संबंध सावजिनक

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 131


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

िवषय से होता है। जनमत िनमाण के िलए सामािजक, राजनीितक, आिथक, शैि क प रवेश क अनक
ु ू लता
आव यक होती है।

3.9. बोध
बहिवक पीय
न 1 : श द Theoria क उ पि िकस भाषा से हई हैॽ
िवक प : क. ीक ख. लैिटन
ग. पतु गीज घ. च
उ र : क.
न 2 : ‘पि लक ि फयर’ पदबंध के योगकता थेॽ
िवक प : क. एड नो ख. होखाइमर
ग. मा यजू घ. हैबरमास उ र : घ.
न 3 : िन न म से िकस िव ान ने ‘सं कृ ित उ ोग’ का ितपादन िकया ॽ
िवक प : क. हैबरमास ख. एड नो
ग. लासवेल घ. ेम उ र : ख.
न 4 : जनसंचार के िनयामक िस ांत के िलए िन न म से िकस िव ान का संबंध नह रहा है ॽ
िवक प : क. टी. पीटसन ख. जी.एफ. साइबट
ग. हेरा ड डी. लासवेल घ. ड य.ू ेम उ र : ग.
न 5 : िन न म से िकस किमटी क रपोट ‘मेनी वायसेज वन व ड’ के प म ितपािदत क गईॽ
िवक प : क. चंदा सिमित ख. मैक ाइड सिमित
ग. वग ज सिमित घ. जोशी सिमित उ र : ख.

लघु उ रीय
न 1 : सं कृ ित उ ोग पर िट पणी िलिखए।
न 2 : जनमत से आप या समझते ह, जनमत िनमाण के साधन बताइए।
न 3 : जनमा यम का िवकास िस ांत को या याियत क िजए।
दीघ उ रीय
न 1 : जनसंचार के िनयामक िस ांत पर काश डािलए।
न 2 : जनसंचार और सं कृ ित के अतं सबंध क समी ा मक िववेचना क िजएॽ

यवहार
काय एक : जनसंचार मा यम ारा सां कृ ितक उ पाद के उ ोग के प म िवकिसत होने क सामािजक
ि थितय पर अपना ि कोण ततु क िजएॽ

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 132


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

3.10. किठन श दावली


 सं कृित : मनु य क िववेक मता के कारण उसे अ य जानवर से अलग करती है। यह िववेक
मता उसके जीवन को सां कृ ितक आयाम देती है। सं कृ ित मनु य जीवन क सभी ि याओ ं म
समािहत होता है। उसके खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने से लेकर उसके रचने, बनाने क सारी ि याओ ं
का संबंध सं कृ ित से है। सं कृ ित मनु य को मनु य होने के अथ देती है।
 ौ ोिगक समाज : ऐसा समाज जो अपनी अिधकांश संपदा और आय उन उ पादन िविधय से
ा त करता है जो ऊजा के आधिु नक ोत जैसे िक कोयले, िबजली, पे ोल, यू लीय शि
इ यािद पर आधा रत हो।

3.11. सदं भ एव उपयोगी थ ं सचू ी


1. कुल े ठ, िव. एवं जैन, ह.ं , (2005). जनसचं ार शोध िविधयां. जयपरु : माया काशन।
2. िसंह, ीका त. (2001). सं ेषण : ित प एवं िस ांत’. फै जाबाद : भारती पि लशस ए ड
िड ी यटू स।
3. जनसच ं ार के िस ातं -4, कोटा खल ु ा िव विव ालय, कोटा
4. कौल, अशोक कुमार एवं कुमार सश ु ील. (2016). उ चतर समाजशा ीय िस ांत. नोएडा :
िपयसन इिं डया एजक ु े शन सिवसेज ा. िल.।
5. एडन , टी.ड य.ू , अन.ु िसंह, राम कव , (2006). सं कृ ित उ ोग. िद ली : ंथ िश पी काशन।
6. िविलय स, रे मडं . संचार मा यम का वग च र . िद ली : ंथ िश पी काशन।
7. पारख, जवरीमल. जनसच ं ार मा यम का वैचा रक प र े य. िद ली : थं िश पी काशन।
8. जोशी, परू नचं . सं कृ ित िवकास और संचार ांित. िद ली : ंथ िश पी काशन।
9. कुल े ठ, िवजय. जनसंपक, चार एवं िव ापन. जयपरु : राज थान काशन।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 133


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

इकाई – 4
भारत म सच
ं ार प र य
इकाई क परेखा
4.1. उ े य
4.2. मानव संचार का िवकास
4.3. जनसंचार मा यम क िवकास या ा
4.4. य मा यम-आकाशवाणी (रे िडयो) क िवकास या ा
4.5. य- य मा यम (टेलीिवजन) का िवकास
4.6. वैकि पक मीिडया के प म इटं रनेट
4.7. सारांश
4.8. बोध न
4.8.1. बहिवक पीय
4.8.2. लघु उ तरीय
4.8.3. दीघ उ तरीय
4.8.4. यवहार
4.9. उपयोगी ंथ सूची

4.1. उ े य
इस इकाई के उ ेशय् िन नवत ह −
1. ततु इकाई म मानव संचार के िवकास म को समझना।
2. भारत म मिु त मा यम के िवकास को जानना।
3. य मा यम आकाशवाणी (रे िडयो) को जानना।
4. य- य मा यम (टेलीिवजन) को समझना।
5. वैकि पक मीिडया के संवाहक इटं रनेट क िवकास या ा को समझना।

4.2. मानव सच
ं ार का िवकास
मानव जीवन म सांस और सच ं ार का अटूट र ता है। अतएव हम सचं ार के िवकास म को जानना
आव यक है। दरअसल मानव िवकास का इितहास कृ ित से जझू ते हए िनरंतर अपने अि त व को बचाए
रखने का इितहास है। इस संघष के दौरान ही उसने समहू म रहना शु िकया। आिद मानव अपने सहयोिगय
के साथ िशकार के दौरान सक
ं े त और विनय के प म संचार करता था। मनु य जब से समहू म रहना सीखा
तभी से हम संचार कर रहे ह, खतर क चेतावनी देने के िलए संदेश के आदान- दान क बड़े पैमाने पर
ज रत महससू क गई। विनय और इशार के सामिू हक प म िवशेष अथ थे। कई आिदमानव समाज ने

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 134


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

अपनी गफ ु ाओ ं म िभि िच क मदद से अपनी भावनाओ ं को उके रना शु िकया। दिु नया के कई िह स म
इस कार के िच उपल ध ह। म य देश के भीमबेटका म भी िशकार करते मानव के िच िमलते ह, िज ह
िव ान आिद मानव काल म संचार के प को बताते ह। संचार का यह आिदम प था। मनु य जब झंडु म
रहने के बजाए कबील म जीवन जीने लगा तो उसका संचार पहले से अिधक यवि थत हआ। मानव ने
त वीर और तीक के ज रए संचार करना सीख िलया। यवि थत भाषा का ज म मनु य क एक बड़ी
उपलि ध थी। मनु य िशकारी जीवन से कृ षक जीवन को अपनाया। वे अब घमु तं ू जीवन छोड़ एक थान पर
नगर बसाने लगे। हड़ पा, मोहनजोदड़ क सं कृ ित म हम मूितय और िस क के प म अनेक तीक पाते
ह, िजससे पता चलता है िक ये नगरीय समाज एक समृ भाषा िवकिसत कर चक ु ा था। यही नह तीक क
भाषा (िप टो ािफ स) के कई िच िमले ह, िज ह अभी तक परू ी तरह पढ़ा नह जा सका है।
वैिदक काल म िु तयाँ और वेद सभी कुछ वािचक परंपरा म मौजदू था। य म मं ो चारण के
ज रए ही देवताओ ं को खश ु करने क कोिशश क जाती थी। सारा ान भी वािचक परंपरा के मा यम से ही
एक पीढ़ी से दसू री पीढ़ी तक पहँचता था। वेद को बहत बाद म िलिपब िकया गया। गु अपने िश य को
परू ा का परू ा वेद याद करवा देता था। ऋचाओ ं को प पर िलखकर सरं ि त करने क कोिशश क गई। बौ
और जैन काल म समृ भाषा िवकिसत हो चुक थी और उसको प थर पर उके र कर थायी बनाने क भी
परंपरा चिलत हो गई थी। महा मा बु ने आम लोग ारा बोली जाने वाली ाकृ त भाषा म अपने वचन
िदए, तािक जन-जन तक उनक बात पहँच सके । मिं दर या सावजिनक थल संचार के भावशाली क बने।
इस काल म ढ़ोल-नगाड़ के मा यम से गाँव-गाँव म मनु ादी भी राजा के आदेश को जनता तक पहँचाने का
एक मा यम था। इस सबके बावजदू ाचीन समाज म वािचक परंपरा ही लबं े समय तक मख ु सचं ार मा यम
बनी रही।
िलिखत इितहास म सबसे पहले भाषा का िवकास हआ और इस म म अ र का ज म हआ।
नगाड़ और अ य संकेत क गजँू पहले पहल हवा म सा रत हई। तराशे गए प थर के संकलन से पहली
लाइ ेरी बनी। जैसे ही पहली पु तक और द तावेज छापाखान से छपकर बाहर िनकली तो वे स ाधा रय
का हिथयार बन गए, ांित के अ भी बने। अखबार का प ना यापार यवसाय का भावी मा यम सािबत
हई। मिु त िकताब से िश ा व ान का अकूत भंडार िमल गया।
16व 17व शता दी आते-आते प -पि काएँ और पो टर-पच आिद ान के मख ु औजार बन
गए। ि िटश, अमरीक और ासं ीसी ािं तयाँ सभं व इसिलए हो पाई य िक इ ह ने जनसचं ार के साधन को
अपनाया। 15व शता दी क बड़ी घटना या है?, एक ऐसी मशीन का िवकास हआ, िजससे ह तिलिप क
100 ितिलिपयाँ शी ता से तैयार कर सके । इसी तरह 19व शता दी म बेल, माक नी जैसे वै ािनक व
अ य योगशालाओ ं ने ऐसी मशीन का इजाद िकया, जो काफ दरू बैठे लोग के िलए देखने व सनु ने के िलए
संभव हआ। 20व शता दी म अतं र म जगह-जगह लटके उप ह ने परू ी दिु नया को एक गाँव म बदल
िदया।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 135


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

4.3 जनसंचार मा यम क िवकास या ा


मुि त मा यम का िवकास− जनसंचार मा यम का िवकास मानव िवकास के इितहास म एक नवीन
प रघटना है। छापाखाना का आिव कार जॉन गटु ेनबग ारा 1450 ई. म िकया गया, जो िक जनसंचार
मा यम के िवकास के माग को श त िकया। इस छापेखाने के आिव कार ने एक अभतू पवू ांित का
सू पात िकया, िजसे औ ोिगक ािं त ने काफ ती गित से बढ़ाया। औ ोिगक ािं त से उ प न पजँू ीवादी
यव था म इस तकनीक का यावसाियक इ तेमाल उस समय क माँग बन गई। जे.बी. ि मरोज के अनसु ार
भारत म थम छापेखाने क थापना गोवा के ‘संत पॉल कॉलेज’ म नवबं र 1556 ई. म क गई थी। यह
अिवसीिनयन ोजे ट का एक िह सा था। यह से भारत म मु ण का ारंभ माना जा सकता है। सन् 1557 म
गोवा म थािपत छापाखाने म पहली पु तक के प म सट ांिसस सै वीयर िलिखत ‘ईसाई धम क पु तक’
मलयालम भाषा म छप । भारत म जनसचं ार के मा यम के ारंभ होने म अं ेज एवं पतु गािलय का बहत
बड़ा योगदान है। यरू ोिपयन ारा छापेखाने क थापना का ारंिभक उ े य ईसाई धम का चार- सार करना
था, लेिकन जैसे-जैसे वे यापारी से शासक के प म त दील होने लगे, उनके काय े म िव तार होता गया।
दसू रा ेस सन् 1578 म तिमलनाडु के ितनेवल े ी िजले के पौरीक ल नामक थान पर लगा। तीसरा ेस
मालाबार के िविपकोटा म पाद रय ने सन् 1602 म थािपत िकया। सन् 1616 म जब अं ेज भारत म आए
तो पतु गािलय ने बंबई म ेस लगाया। ईसाई पाद रय से उ सािहत और े रत होकर कुछ भारतीय ने अपने
धम ंथ मिु त और कािशत करने का साहस िकया। कािठयावाड़ के ‘भीमजी पारख’ ने सन् 1662 म बंबई
म छापाखाना थािपत िकया।
‘‘कंपनी ारा 1674 ई. म ही बबं ई म ि िं टंग ेस क थापना हो गई थी और उसे काफ मा ा म
टाइप और कागज क आपिू त क जाती थी। एक दसू रा ेस म ास म 1772 ई. म थािपत िकया गया और
एक सरकारी ि ंिटंग ेस क थापना 1779 ई. म कलक ा म क गई।’’ कंपनी के पास ि ंिटंग ेस तो था
लेिकन वे समाचारप िनकालने क पहल नह कर रहे थे। ‘‘इस संदभ म यह बात मह वपणू है िक
समाचारप शु करने का पहला यास कलक ा म ही 1776 ई. म िविलयम बो टस ारा िकया गया,
िजसने उसी वष कुछ समय पहले कंपनी के ािधकार के तहत िनजी यापार करने पर कोट ऑफ डायरे टस
ारा ितबंध लगा िदए जाने के बाद कंपनी क सेवा से यागप दे िदया था।’’ लेिकन उसके इराद को
जानकर कंपनी ने उसे ऐसा करने से रोक िदया और उसे वापस यरू ोप भेज िदया।
इसके बाद जे स आग टस िहक (जो अपने आपको कंपनी का पवू मल ु ािजम घोिषत करता था), ने
30 जनवरी, 1780 को ‘बंगाल गजट’ या ‘कलक ा जनरल एडवरटाइजर’ नाम के समाचारप का काशन
शु िकया। यह समाचारप मल ू तः कंपनी के कमचा रय के िनजी जीवन को सावजिनक करने का काय
करती थी। उसके ारा िकए जा रहे इन काय के कारण थोड़े िदन अथात् सन् 1782 म उसके छापाखाना एवं
संपि ज त कर ली गई। इससे उसे अनेक किठनाईय का सामना करना पड़ा और जनरल पो ट ऑिफस से
समाचारप को िवत रत करने क सिु वधा से भी विं चत कर िदया गया। उसे एक मामले म जनू 1781 म एक
वष क सजा एवं 5000 पये का जमु ाना भी लगाया गया। लेिकन इसके बावजदू भी वह िवचिलत नह हआ।
िहक को िगर तार िकया गया परंतु वे िनभ क क भाँित जेल से प का संपादन करते रहे। िहक का यह
व य िक ‘अपने मन और आ मा क वतं ता के िलए अपने शरीर को बंधन म डालने म मुझे आनंद आता

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 136


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

है।’ यह व त य प कार के िलए आज भी ेरणा द है। अपने प क नीित के बारे म उ ह ने िलखा था िक-
“यह राजनीितक और यापा रक प खल ु ा तो सबके िलए है, पर भािवत िकसी से नह । भारत म ेस को
ज म देने का ेय िहक को ही है।
िहक के इस यास से सबक लेते हए हेि टं स समिथत समाचारप 1780 ई. म मेसस बी. मेसिनक
और पीटर रीड ने ‘इिं डया गजट’ का काशन शु िकया। 1784 म ‘कलक ा गजट’ का काशन सीधे
सरकार के संर ण म शु हआ। 1785 म ‘बंगाल जनल’ और मािसक प ‘ओ रएंटल मैगजीन ऑफ
कलक ा ए यजू मट’ कािशत हए। ‘‘िहक क तरह ‘बंगाल जनरल’ के संपादक िविलयम डुएन ने कंपनी
क कारगजु ा रय के िव अिभयान चलाने का यास िकया लेिकन कंपनी क ताकत भारी पड़ी और उसे
अपनी संपि छोड़कर भारत से जाना पड़ा।’’ इसी दौरान म ास म सबसे पहला समाचारप 1785 ई. म
‘म ास कू रयर’ नाम से, 1791 म ‘हरका ’ के नाम से कािशत हआ। इसका काशक रचड जौनसन एक
सरकारी मु क था। बंबई से 1789 म ‘ब बई हेरा ड’ का काशन शु हआ।
भारतीय भाषाई समाचारप का दौर सन् 1816 से ारंभ हआ। इससे पवू जो भी समाचारप
कािशत हए उनके सपं ादक और काशक यरू ोपीय ही थे। इस वष पहला भारतीय समाचारप ‘बगं ाल
गजट’ के नाम से अि त व म आया। इसे ‘गंगाधर भ ाचाय’ ने गितवादी िहदं ु व धम के ितपादन के िलए
िनकालना शु िकया था। लेिकन यह एक वष म ही बंद हो गया। दरअसल इस समय देश म ऐसे िशि त वग
का उदय होने लगा था जो देश क बदहाली, सामािजक िपछड़ेपन और सां कृ ितक हीनताबोध के मल ू भतू
कारण को समझने लगे थे और इ ह दरू करने के िलए यासरत भी थे। इसी बीच सेरामपरु के ईसाई
िमशन रय ने अपने धािमक िव ास के चार के िलए तीन पि काओ ं का काशन शु िकया। िद दशन नाम
से बांगला भाषा क मािसक पि का, समाचार दपण नाम से बांगला सा ािहक समाचारप और ड ऑफ
इिं डया नाम से अं ेजी मािसक पि का।
इसी दौरान भारतीय समाचारप जगत म दो िविश यि य का पदापण हआ- जे स िस क
बिकंघम और राजा राममोहन राय। इन दोन ने ेस क वतं ता के िलए चले संघष म मह वपूण भिू मका
िनभाई। जे स िस क बिकंघम ने आठ पृ का स ाह म दो बार कािशत होने वाला ‘कलक ा जनल’ शु
िकया। उसने बताया िक संपादक का काम ‘गवनर को उनके यि व क याद िदलाना, उनके ारा क जाने
वाली गलितय के िलए उनक भ सना करना और असहमितजनक स य भी बोलना है’। दसू री ओर राजा
राममोहन राय (जो िक खर सामािजक और धािमक सधु ारक थे) ने भारतीय भाषाई प का रता क न व
रखी। उ ह ने बांगला म ‘संवाद कौमदु ी’, फारसी म ‘िमरात-उल-अखबार’ तथा अं ेजी म ‘िद ा िणकल
मैगजीन’ का काशन िकया। वे भारतीय प का रता क न व ऐसे समय म रखी जब ई ट इिं डया कंपनी अपनी
तानाशाही को सामािजक, आिथक, सां कृ ितक े म मतू प दान कर रही थी। राजा राममोहन राय ने
सां कृ ितक हमले के िव संघष क न व रखी। उ ह ने प का रता के मा यम से समाज म या सम याओ ं
के समाधान करने का यास िकया और वे कुछ हद तक इसम सफल भी हए। उ ह ने सती- था का अतं करने
के िलए अिभयान चलाया, िजसके प रणाम व प लाड िविलयम बिटक ने 14 जनवरी, 1830 को इसे समा
करने के िलए िवधेयक पा रत िकया।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 137


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

भारत म िहदं ी प का रता क न व रखी जा रही थी। ‘पंिडत जगु ल िकशोर शु ल’ ने ‘‘उद त
मात ड’ का घोषणाप 9 फरवरी, 1826 को कलक ा म सरकार के सम तुत िकया। 30 मई, 1826 को
‘उद त मात ड’ पहली बार कािशत हई। यह िहदं ी का थम समाचारप था। पंिडत जगु लिकशोर शु ल
कानपरु के मल ू िनवासी थे और कलक ता म वासी रहकर सदर दीवानी अदालत म लक क पेशा से जड़ु े
थे। ी शु ल अं ेजी, फारसी, सं कृ त, जभाषा और खड़ी बोली के िन णात िव ान थे। ‘उद त मात ड’
भाषा और समाचार दोन कार से ससु ंपािदत प था। इसक रपोट देश-िवदेश के समाचार, अ लेख आिद
को पाठक खबू पसंद करते थे।’’ इस प को िनकालने के पीछे उनका उ े य भारतीय का िहत एवं िहदं ी ेम
भी था। अपनी भाषा म अपने भाव को अिभ यि िमले और अपनी भाषा म समाचार ात हो, यही उनका
मु य उ े य था। ‘उद त मात ड’ ने िनभ क नीित अपनाने के साथ-साथ सरकारी सहायता का याचक भी
बना। इसके बाद भी बंगाल म िहदं ी का चार न होने, िव ापन न िमलने एवं अ य आिथक किठनाईय के
कारण यह प मा 19 महीने ही कािशत हो सका। इसके मा 79 अक ं ही कािशत हो पाए। िदसंबर,
1827 के अिं तम अक ं म ‘उद त मात ड’ क या ा क पीड़ा इन श द म रे खांिकत क गई है-
‘‘आज िदवस ल उग चु य , मात ड उद त।
अ ताचल को जात है िदनकर िदन अब अ त।।’’
िहदं ी के पहले समाचारप से िहदं ी प का रता को स य, संक प एवं सही िदशा िमली। इसके बाद राजा
राममोहन राय ने अपने अं ेजी के प ‘िह दू हेरा ड’ को अपने िवचार के यापक चार- सार के िलए 10
मई 1829 को िहदं ी म ‘बंगदतू ’ िनकाला। इसके थम संपादक नीलरतन हालदार थे। सन् 1845 म थम
िहदं ी सा ािहक ‘बनारस अखबार’ को काशी से राजा िशव साद िसतारे िह द ने िनकाला। इसके सपं ादक पं.
गोिव द रघनु ाथ थे। इसम अरबी-फारसी श द क भरमार रहती थी। 1846 ई. म कलक ा से ‘इिं डयन सन’
पाँच भाषाओ ं म िनकला, िजसम िहदं ी भी शािमल था।
1850 ई. के बाद िहदं ी प का रता का ती गित से िवकास हआ। 1854 ई. म यामसु दर सेन के
संपादक व म कलक ा से कािशत ‘समाचार सुधावषण’ िहदं ी का पहला दैिनक प था। सन् 1857 के
थम वाधीनता सं ाम म इसका मह वपणू योगदान रहा। फरवरी, 1857 म िद ली से कािशत ‘पयामे
आजादी’ िहदं ी प का रता म अपना िविश थान रखता है। इस प के वतक ‘अजीमु ला खाँ’ वयं
वतं ता सेनानी थे। अब लोग म िविभ न देश के समाचार को जानने क इ छा पैदा हो चक ु थी तािक वे
समकालीन ि थितय को समझ सक। इस सं ाम के बाद स ा तो ई ट इिं डया कंपनी के हाथ से िनकलकर
सीधे ि िटश स ता संरचना के आधीन आ गई। लेिकन स ा के मल ू च र म कोई बदलाव नह आया।
‘‘सरकार क यवहा रक नीित पवू वत् बनी रही। पहले जैसी ही लटू और शोषण जारी रहा।’’ यरू ोप म हए
औ ोिगक ांित के उपरांत माल का उ पादन संभव हो गया था। लेिकन इसके िलए क चे माल एवं िब
के िलए बाजार क आव यकता थी। भारत इन दोन के िलए उपयु था। ि िटश ने अपने यापार िव तार के
िलए यहाँ क अथ यव था के सतं ल ु न को समा कर िदया। इन औपिनवेिशक नीितय का दु प रणाम यह
हआ िक यहाँ के लोग अकाल, भख ू मरी और बेरोजगारी के िशकार होने लगे।
1857 ई. के बाद कािशत होने वाले िहदं ी समाचारप म देश क बदहाली को बार-बार रे खांिकत
िकया गया। ‘‘सन् 1854 म कलक ा से कािशत थम िहदं ी दैिनक ‘समाचार सधु ावषण’ को अपनी

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 138


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

िनिभकता और गितशीलता के कारण ि िटश सरकार का कोपभाजन बनना पड़ा।’’ लेिकन यही समय िहदं ी
प का रता के िवकास और िव तार का भी है। ‘‘िहदं ी म प -पि काओ ं क कोई जीिवत परंपरा न थी, परंतु
एकाएक उ र भारत म न जाने िकतने नगर से प क एक बाढ़ सी आ गयी। इसम से बहत-से कुछ महीने या
कुछ वष चलकर ठप हो गये; कुछ दीघकाल तक िहदं ी क सेवा करते रहे। लाहौर, ब बई और कलक ा को
यिद तीन सीधी रे खाओ ं म िमला िदया िदया जाय तो जो ि कोण बनेगा, उसके भीतर देश का वह भाग आ
जाएगा, जहां से इस कार के प िनकले थे।’’ 19व शता दी के उ रा म िहदं ी प का रता ने अपना
िव तार बंगाल, िबहार, उ र देश, म य देश और पंजाब तक िकया, जहां से अनेक प -पि काएं कािशत
होने लगी। सन् 1874 म कलक ा से ‘िबहार बधं ’ु अलीगढ़ से ‘भारत बधं ’ु , मेरठ से ‘नागरी काश’,
जबलपरु से ‘जबलपरु समाचार’ और िद ली से ‘सदादश’ एवं ‘पयामे आजादी’ का काशन शु हआ।
सन् 1857 के बाद के भारते दु ह र ने िह दी प का रता और सािह य को नई िदशा दान क
िजसके कारण इसे भारते दु युग भी कहा जाता है। उ ह ने सािह यकार और प कार के एक ऐसे नए वग को
उभारा िज ह ने सािह य एवं प का रता के े म नई पहचान बनाई। भारते दु ह र ने 15 अग त 1867
को ‘किव वचन सधु ा’ का काशन िकया। उ ह ने ‘ह र मैगजीन’, ‘ह र चि का’ तथा
‘बालबोिधनी’ का संपादन व काशन भी िकया। भारते दु जी का िहदं ी प का रता म वही थान है जो बंगला
प का रता म राजा राममोहन राय का है। इस काल के दौरान पं. बालकृ ण भ ने िसत बर, 1877 म याग से
‘िह दी दीप’ मािसक िनकाला। इस यगु म प.ं दगु ा साद िम के संपादक व म कलक ा से कािशत होने
वाले तीन मख ु प थे- ‘भारत िम ’ (1878), ‘सार सधु ािनिध’ (1879) और ‘उिचत व ा’(1880)।
‘उिचत व ा’ ने वना यल ू र ेस ए ट का खल ु कर िवरोध िकया। सन् 1885 म कालाकाक ं र से राजा
रामपालिसहं ारा कािशत ‘िह दो तान’ िहदं ी े से कािशत होने वाला स पणू िहदं ी दैिनक प था। प.ं
मदन मोहन मालवीय इसके संपादक थे। बालमक ु ु द गु , महामना मदन मोहन मालवीय तथा तापनारायण
िम जैसे ितभाशाली लेखक के संपादन म इसक भिू मका मयािदत, रा वादी, जाग क हरी और
सां कृ ितक संर ण क रही। ‘‘िह दो थान’ िहदं ी भाषा और उदार िवचार का समथक था।’’ िहदं ी दैिनक का
ारंभ भारते दु यगु म होने लगा था। इसी समय दसू री भाषाओ ं म महादेव गोिवदं रानाडे, बाल गगं ाधर ितलक
तथा गोखले ने समाज सधु ार पर यादा जोर िदया। ितलक ने ‘के सरी’ और ‘मराठा’ अखबार के मा यम से
समाज सधु ार के काय को बढ़ावा िदया।
सन् 1857 क असफल ांित ने लोग म एक जाग कता का सचं ार िकया िजसके कारण वे देश
और दिु नया का हाल जानने के िलए उ सक ु हए। वे जानना चाहते थे िक देश क इतनी बरु ी अव था के िलए
िज मेदार कौन है। सा ा यवादी शोषण के कारण िकसान, मजदरू और िश पकार क अव था धीरे -धीरे
खराब होने लगी। अकाल, भख ु मरी और महामारी ने आम जन जीवन क सम याओ ं को और बढ़ा िदया था।
इनके कारण देश म एक ऐसा बुि जीवी वग उ प न हो गया था जो इन प रि थितय से अ य त िख न था।
धािमक अधं िव ास और सामािजक िढ़य ने उसक िचतं ा को और बढ़ा िदया था। इस बिु जीवी वग ने
राजनीितक शोषण, सामािजक-राजनीितक िढ़य के िवरोध म जनता को जाग क करने का काय िकया।
िहदं ी अखबार ने इस पनु जागरण म मह वपणू योगदान िकया। वे इसके िलए ऐसे खबर को कािशत करने
लगे जो शोषण और उ पीड़न से संबंिधत थे। ‘किववचन सधु ा’ से भारते दु ने वदेशी क न व रख दी थी।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 139


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

‘‘सा ा यवाद क लटू के कारण कै से देशी पंजू ी बाहर चली जाती है, कै से देशी पंजू ी और जीवन क र ा के
िलए वदेशी का होना अिनवाय है, इस सार को भारते दु और उसके समकालीन ने अ छी तरह समझ िलया
था।’’
िहदं ी प का रता क ि से बीसव शता दी का ीगणेश गौरवपूण ढ़ंग से हआ। 20व सदी का
शु आती दशक प का रता और राजनीित म अनेक प रवतन एवं हलचल से भरा था। इस यगु म एक ओर
‘भारत िम ’ कलक ा से कािशत होकर संपणू जगत को आलोिकत कर रहा था तो दसू री ओर याग से प.ं
महावीर साद ि वेदी के संपादन म ‘सर वती’ का उदय हआ। ि वेदी जी 1903 म जब ‘सर वती’ के
सपं ादक बने तब उ ह ने ‘सर वती’ को िहदं ी प का रता का ‘सर वती’ बना िदया। इस समय देश म
प का रता क दो धाराएं चल रही थी। एक धारा सा ा यवादी यव था क प धर थी या परू ी तरह से
तट थ। जबिक दसू री धारा रा ीय िवचारधारा से े रत एवं सचं ािलत हो रही थी। ‘‘महावीर साद ि वेदी इस
यगु क प का रता के के िबंदु थे। उ ह ने आगे आने वाली प का रता के दो मल ू भतू त व का खल ु ासा कर
िदया था। एक िवचार धानता तािक लोग म जनजागरण हो, उनम बौि क उजा पनपे। दसू रे जन िच को
जानना।’’
‘‘सन् 1905 से 1918 तक आते-आते िहदं ी प का रता घटु न चलने लगी थी। िव ीय पंजू ीवाद के
इस दौर म भारत पर शोषण का िशकंजा और कस गया था। थम िव यु का भारतीय अथ- यव था पर
गहरा भाव पड़ा। िजसने देश के आिथक आधार क न व िहला दी। िहदं ी प -पि काओ ं ने उपिनवेशवादी
शासन के इस दोहरे च र को बखबू ी उजागर िकया िक सा ा यवादी िहत क र ा के िलए भारतीय
ससं ाधन का इस महायु म ि िटश शासन ने िकतना दु पयोग िकया।’’ इस काल क िह दी प का रता क
मल ू िवषय-व तु सामािजक या धािमक ही थी। इस समय के प -पि काओ ं म ‘सर वती’(1900),
‘देवनागर’(1907), ‘नृिसंह’(1907), ‘कलक ा समाचार’(1914), ‘िव िम ’(1916) आिद मख ु थे।
‘सर वती’ िजसके संपादक महावीर साद ि वेदी थे, ने भाषा, सािह य और सां कृ ितक िवकास क ि से
मह वपूण काय िकया। राजनीितक अखबार म ‘िहदं ी दीप’ सबसे परु ाना अखबार था। ‘‘इस ंख ृ ला के
अ य अखबार थे- ‘िहदं ी के सरी’(1907), जो ितलक के मराठी अखबार का िहदं ी पातं र था, अरिवदं घोष
के ‘कमयोगीन’ से भािवत ‘कमयोगी’(1910), मदन मोहन मालवीय ारा संचािलत ‘अ यदु य’(1907),
‘ ताप’(1913) और ‘ ान शि ’ (1916)। इन समाचार प ने वाधीनता आदं ोलन के िलए एक पृ भिू म
िनिमत क ।
भारतीय राजनीित म महा मा गांधी का वेश 1920 ई. म हआ। उनके भाव के कारण भारतीय
राजनीित म यापक बदलाव आया। अब वतं ता आ दोलन के के म महा मा गाधं ी थे। उ ह ने उ तेवर
अपनाने के बदले रचना मक तेबर अपनाये और ि िटश स ा से िवरोध दज कराने के िलए स या ह,
असहयोग आ दोलन एवं सिवनय अव ा आ दोलन का सहारा िलया और इन आंदोलन म उ ह ने
प का रता को एक हिथयार बनाया। उ ह ने गजु राती ‘नवजीवन’ का िह दी पातं र ‘िह दी नवजीवन’ 1921
ई. म और 1933 ई. म ‘ह रजन सेवक’ िहदं ी म िनकाला। अपनी बात को जनता तक पहचं ाने के िलए
गांधीजी ने ‘यंग इिं डया’ के संपादन का काय 8 अ टूबर, 1919 ई. से ारंभ िकया। ‘‘इसके साथ-साथ उ ह ने
‘नवजीवन’ का संपादन-काय भी शु कर िदया, िजसे उ ह ने गजु राती मािसक प से एक सा ािहक प म

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 140


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

प रवितत कर िदया था।’’ बाद म गांधी जी ने महादेव देसाई के संपादन म ‘ह रजन’ का काशन भी शु
िकया िजसके यादातर लेख गांधी जी ही िलखा करते थे। बाद म 1933 ई. म उ ह ने ‘ह रजन सेवक’ िह दी
म िनकाला। ‘‘गांधीजी अपनी आ मकथा म प का रता के उ े य को िन निलिखत श द म प रभािषत करते
ह; ‘‘िकसी समाचारप का पहला उ े य सावजिनक संवदे ना को समझना तथा उसे अिभ यि दान करना,
दसू रा उ े य लोग म वाछ ं नीय भावनाएं जा त करना तथा तीसरा उ े य सावजिनक दोष का िनडर होकर
पदाफाश करना होता है।’’ गांधीजी के भाव म आकर िह दी प का रता म भी एक नई ऊजा का वाह
हआ। ‘‘उनके रचना मक काय म और असहयोग आ दोलन के चार के िलए देश म अनेक दैिनक,
सा ािहक और मािसक प का काशन िहदं ी म हआ।’’ गांधीजी ने स पक भाषा के प म अं ेजी के थान
पर ‘िह दु तानी’ को आगे बढ़ाया। उनके िवचार के कारण िहदं ी के समाचार प के िवकास म ेरक के प
म काय िकया। इन समाचार प ने आजादी के आ दोलन को जन-जन तक पहचं ाने म अपना मह वपणू
योगदान िदया। इसके कारण इ ह अनेक दमना मक कायवािहय का सामना करना पड़ा। ‘‘समय-समय पर
कािशत सरकारी रपोट से ात होता है िक अनायास ही स पादक को चेतावनी देना, प को ज त कर
लेना या ेस को तहस-नहस कर देना उ च अिधका रय क हाबी थी िफर भी िह दी प का रता के कणधार
हार वीकारने को तैयार नह थे।’’ इन ि थितय म भी स पादक -प कार ने अपने कम के ित िन ा का
पालन िकया और अनेक आिथक एवं शासिनक किठनाईय के बावजदू उ ह ने अखबार िनकाले। 1925 ई.
म वृदं ावन सािह य स मेलन के अ तगत आयोिजत थम स मेलन म यात स पादक पराडकर जी ने कहा
था िक -‘‘हमारे समाचार-प क वतमान अव था अभी संतोषजनक नह है। पर भिव य उ वल है।... पहले
प के सार अिधक न होने के कारण पर िवचार करना आव यक है। मेरी अ पमित के अनसु ार धानतः
तीन कारण ह- 1. प का समाज के ितिब ब न होना, 2. धनाभाव और जनता म िवशेषकर िह दी भािषय
म सा रता का अ प सार। अ तु कहने का ता पय यह है िक प क उ नित के साथ-साथ प पर धिनय
का भाव अिधकािधक प रमाण म अव य पड़ेगा। अभी तो धनी अपने अ य वाथ से अथवा कविचत
शु देश भि से े रत होकर इस काम म धन लगाते ह।... अं ेजी के बड़े-बड़े समाचार-प या भारत म,
या भारत के बाहर, लागत से कम दाम म ाहक को िदए जाते ह। िह दी प भी लागत क चरम सीमा तक
पहचं गए ह। अब यह आव यक हो गयी है िक मू य लागत से कम िकया जाए। अथात् प के यय और
लाभ के िलए िव ापन क आय पर हम अिधकािधक िनभर रहना पड़ेगा। यह िनभरता िजतनी बढ़ेगी उतनी ही
लेखन पर स पादक क वतं ता घटेगी और कायकुशल यव थापक क बढ़ेगी।’’ इस बदलते दौर म भी
स पादक क वतं ता यादा बािधत नह हई थी।
1920 ई. म अिं बका साद वाजपेयी ारा ‘ वतं ’ नामक अखबार िनकाला गया जो गांधीजी के
असहयोग आदं ोलन को समथन देने एवं 1930 ई. म सरकार ारा जमानत-रािश के प म जमा करने के
िनदश के बाद बहत ज द ही लोकि य हो गया। 1920 ई. म ही बनारस से ‘आज’ का काशन ारंभ हआ,
जो आज भी कािशत हो रहा और िहदं ी का एक मह वपणू अखबार है। इसके थम सपं ादक ी काश थे
और बाबूराव िव णु पराड़कर उनके सहायक थे। 1923 ई. म पराडकर जी वयं संपादक बन गए और लगातार
30 वष तक इसका संपादन काय (बीच के चार वष को छोड़कर) िकया एवं इस अखबार को प का रता
जगत म नई ऊंचाईय तक पहचं ाया। ‘‘सन् 1923 ई. म घन याम दास िबड़ला ने िद ली से ‘अजन’ ु नामक

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 141


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

अखबार का काशन शु िकया। लेिकन कुछ ही समय बाद संपादक को जेल हो गई और कुछ महीन बाद
ेस अिधिनयम के तहत अखबार को 10,000 पये जमानत-रािश के प म जमा करने को कहा गया। इसके
बाद अखबार िनकलना बंद हो गया और िफर जमानत-रािश घटकर 4,000 पए िकए जाने के बाद ही यह
िनकल पाया।’’
बीसव शता दी के तीसरे और चौथे दशक म जैस-े जैसे भारतीय वतं ता आ दोलन तेज हआ,
िहदं ी म अनेक अखबार िनकले और उ ह ने इसम अपना मह वपूण योगदान िदया। उ रा ीय िवचार के
िलए ही मालवीय जी ने 1907 ई. म ‘अ यदु य’, गणेशशक ं र िव ाथ ने 1913 म ‘ ताप’ िशव साद गु
और पराड़कर जी ने 1920 म ‘आज’, आचाय नरे देव ने 1937 म ‘सघं ष’, कमलापित ि पाठी ने 1944 म
‘संसार’, कृ णद पालीवाल ने 1925 म ‘सैिनक’ जैसे मह वपणू प का काशन िकया। आचाय नरे देव
व बाबरू ाव िव णु पराड़कर ने ‘रणभेरी’ नामक भिू मगत प के ारा वाधीनता आदं ोलन के अलख को
जलाये रखा। इसी कार म य देश से भी अनेक प िनकले। माधवराव स े का ‘छ ीसगढ़ िम ’ (1902),
माखनलाल चतवु दी का ‘कमवीर’ (1919), िस नाथ माधव आगरकर का ‘ वरा य’, पं. ा रका साद
िम के ‘लोकमत’ (14फरवरी, 1930) और ‘सारथी’ (1941) आिद का वतं ता आदं ोलन म महती
भिू मका रही। आजादी आदं ोलन के दौरान जो अखबार यादा मह वपणू रहे वे िमक प से िन न ह-
‘‘सैिनक (आगरा, 1928), शि (लाहौर, 1930), ताप (कानपरु ), नवयगु (िद ली), नवरा (बंबई),
भारत (इलाहाबाद, 1933), लोकमत (नागपरु , 1931), लोकमा य (कलक ा, 1930), वतमान (कानपरु ,
1920), िव िम (कलक ा, 1917; बंबई, 1941, नई िद ली, 1942), नवभारत (नागपरु , 1934),
अिधकार (लखनऊ, 1938), अ गामी (काशी, 1938), उजाला (आगरा, 1940), आयावत (पटना,
1942), इदं ौर समाचार (इदं ौर, 1943), रा वाणी (पटना, 1942), संसार(काशी, 1943), नया िहदं ु तान
(िद ली, 1944), जयिहदं (जबलपरु , 1946) और स माग (काशी व कलक ा, 1946)। सामा य प से
मह वपूण अ य प थे- अजन(1923),ु वीर अजन(िद
ु ली, 1934), िहदं ु तान (िद ली, 1934), मजदरू
समाचार (1934), कां ेस (िद ली, 1940), िहदं ी िमलाप (लाहौर, 1930), िहदं ी वराज (म य ांत 1930)
और िहदं ू ससं ार (िद ली)।’’ इस समय क िह दी पि काओ ं ‘माधरु ी’ (1923), ‘चादं ’ (1922), ‘हसं ’
(1930), ‘क याण’ (1926), ‘ यागभिू म’ (1928), ‘मतवाला’(1923), ‘सेनापित’ (1926), ‘सरोज’
(1928), ‘वाणी’ (1930), ‘नाल दा’ (1935) आिद ने भी सािहि यक जगत म अपने को थािपत िकया एवं
साथ ही साथ वािधनता आ दोलन को आगे बढ़ाने म भी योगदान िदया। 1938 ई. म गाधं ीजी के िवचार का
समथन करते हए रामगोपाल माहे री ने ‘नवभारत’ का काशन शु िकया। इस यगु म प का रता वृित से
नह त क भावना से क जाती थी। इस यगु म यवसाियकता तो थी ज र पर नैितकता का आवरण भी
िनिहत था। फल व प प कार समाज के िवकास को अपनी िज मेदारी मानते थे।
देश क वतं ता के बाद िहदं ी समाचार-प म उ साह क एक नई लहर आयी और बड़ी पंजू ी के
िनवेश के साथ ही अनेक नए अखबार भी िनकलने लगे। इस दौर म िहदं ी प ने तमाम े म अपनी
ाथिमकताओ ं के एजे डे का पनु िनधारण िकया। यह स पादक का विणम काल भी था, जहां अब वे
अं ेज क गल ु ामी से मु थे वह आिथक प से भी यादा सबल थे। अब इसका ल य आिथक िहत को
साधना भी बनने लगा था। बड़ी पूंजी के िनवेशकताओ ं ने इसके आिथक सफलता का आकलन पहले ही कर

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 142


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

िलया था। आजादी के बाद जो मख ु िह दी समाचार-प िनकले उनम ‘नवभारत टाइ स’ (िद ली, 1947),
‘ दीप’ (पटना, 1947), ‘नई दिु नया’ (इदं ौर,1947), ‘ वतं भारत’ (लखनऊ, 1947), ‘जागरण’ (कानपरु ,
1947), ‘नवजीवन’ (लखनऊ, 1947), ‘स माग’ (कलक ा, 1948), ‘नव भात’ ( वािलयर, 1948),
‘अमर उजाला’(आगरा, 1948), 'जागरण' (1950), ‘यगु धम’(नागपरु , 1951), ‘वीर ताप’(जालंधर),
‘राजदतू ’(जयपरु , 1951), ‘वीर अजन’ु (िद ली, 1954), ‘नवयगु दैिनक’ (जयपरु ), ‘राज थान पि का’
(जयपरु , 1956), ‘देशबंध’ु (भोपाल, रायपुर 1956), ‘पंजाब के सरी’ (जालंधर, 1964) आिद मख ु ह
िज ह ने अपने को थािपत िकया। इन समाचार ने प का रता को वृित से नह अिपतु त क भावना से
समाज को एक िदशा देने का काय िकया है।
1962 ई. के भारत चीन यु ने नेह क राजनीितक असफलता को उजागर िकया और जनता म
एक नये कार क उ जे ना एवं रा वाद क लहर दौड़ा दी। ‘‘इस जागृित के कारण हमारे अखबार और
प कार म एक नयी यथाथ चेतना, एक नयी ताजगी और नया संक प कट हआ और िहदं ी म साथक और
यथाथवादी प का रता सामने आयी।’’ यु ने लोग के मन म जानने क नई ललक पैदा कर दी। इसके कारण
अनेक नये पाठक अखबार से जड़ु े। ‘‘सन् 1964 म नेह जी क मृ यु के प ात् लालबहादरु शा ी के प म
िहदं ी प का रता को एक ऐसा नायक िमला जो िक पगड डी से उठकर धानमं ी बना था। िहदं ी प का रता ने
नये धानमं ी को औसत भारतीय के प म देखा और सन् 1965 क भारत पाक जंग के बाद शा ीजी को
‘भारत का नया हीरो’ के प म िचि त िकया।’’ इसके कारण समाचार-प क सार सं या म अभतू पवू
वृि दज क गई। इसका फायदा उठाने के िलए कई नए समाचार-प कािशत होने लगे एवं साथ ही साथ
नए सं करण भी सामने आए।
सातव दशक म िहदं ी प का रता ने भारतीय राजनीित म आए बदलाव, िजसम गैर-कां ेसी सरकार
का रा य म बनना एवं अनेक े ीय पािटय का उभार के साथ-साथ शासिनक ाचार क शु आत के
कारण समाचार-प ने अपने को यावसाियक प से सफल बनाने के यास म अपने म बदलाव लाया।
बीसव सदी के आठव दशक म िहदं ी समाचारप ने देश म राजनीितक, आिथक, सामािजक एवं सां कृ ितक
े म हो रहे यापक बदलाव को ततु िकया एवं िविनयोिजत िवकास क किमय यथा ाचार,
लालफ ताशाही, शि का के ीकरण जैसी सम याओ ं का समाधान तलाशने पर अपना यान के ीत
िकया। ‘‘न सलबाड़ी आ दोलन’ इस दौर का ऐितहािसक िव फोट था िजसने भारतीय राजस ा को सीधे
िहसं ा मक तेवर से ललकारा था और बदलाव के नये िवक प जनता के सम रखे थे। पि म बगं ाल और
आ देश के प ात् लगभग समचू ा िहदं ी े कम- यादा इससे भािवत था।’’ इसी दौरान देश म
आपातकाल लागू िकया गया जो भारतीय लोकतं के िलए सबसे किठन दौर था। इस दौरान समाचार-प
पर अनेक कार क पाबिं दयां भी लगाई गई ं और ेस क वतं ता को पहली बार खतरे म महससू िकया
गया। ‘‘ ेस पर चार ओर से दवाब डालकर कमजोर करने का यास िकया गया।’’ यह आजादी के पहले के
िदन को िफर से जीवतं करने के जैसा था। ‘‘आपातकाल ने तो प का रता को सरासर बेनकाब कर िदया और
िदखला िदया िक महावीर साद ि वेदी, गणेशशक ं र िव ाथ , मदनमोहन मालवीय, सयू का त ि पाठी
‘िनराला’, माखनलाल चतवु दी, बाबूराव िव णु पराड़कर, अि बका साद वाजपेयी जैसे यो ा प कार के
उ रािधका रय क रीढ़ िकस कदर पोली है।’’ लेिकन इस दौर म भी अनेक सपं ादक एवं प कार ने

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 143


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

प का रता क ग रमा के अनु पक काय िकया और िवरोध के वर को िजदं ा रखा। इनम राजे माथुर, भाष
जोशी, िगरधर राठी, कमलेश शु ल आिद को शािमल िकया जाता है। आपातकाल के बाद बनी जनता पाट
सरकार के समय कुछ प कार ने सरकार का साथ िदया और बदले म अनेक कार के लाभ उठाये। आपात
काल के दौरान िहदं ी क े ीय प का रता का ती गित से िव तार हआ और इनके सार क यापक
सभं ावना थी। इसी दौरान िहदं ी म राजनीितक िव ेषण क धानता वाली सा ािहक का भी तेजी से सार
बढ़ा। ‘रिववार’ इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
1980 ई. के बाद िहदं ी समाचारप को सरकारी िव ापन के साथ-साथ िनजी कंपिनय से भी
िव ापन िमलने लगे य िक सरकार ने अथ यव था को िनजी े के िलए खोलना ारंभ कर िदया था।
बाजार के िव तार क इस संभावना को यावसाियक अवसर के प म देखते हए िहदं ी समाचारप का
यापक िव तार होने के साथ ही इसक यव था म बधं न का मह व बढ़ने लगा और मशीन का तेजी से
आधिु नक करण िकया जाने लगा तािक सार सं या के अनु प उ पादन िकया जा सके । िहदं ी अखबार के
नए सं करण भी कािशत होने लगे। िहदं ी अखबार ने खल ु े यापार क संभावनाओ ं को देखकर आए
बहरा ीय िनगम और बड़ी कंपिनय क आव यकताओ ं के अनु प िजसम वे शहर के अित र क ब म
भी अपना बाजार िव तार करना चाहते थे, के िलए अखबार को क ब और गांव तक पहचं ाना शु िकया।
जल ु ाई, 1991 ई. के बाद भारत ने मु यापार को बढ़ावा देने के िलए उदारीकरण तथा िनजीकरण को पूणतः
अपना िलया। मु यापार को बढ़ावा देने के िलए आिथक नीितय को लाल फ ताशाही यव था से मु
करने का हर संभव यास िकया गया। उ ोग-ध ध को सरकार अपने हाथ से मु कर िनजी े को देने
लगी। अब सरकार क सोच यह बनी िक सरकार का काय यापार करना नह बि क शासन और सरु ा
जैसे मु े पर यान कि त करना है। यह पणू तः बाजारवादी यव था के अनक ु ू ल थी। इन नीितय को अपनाने
के पीछे का तक आिथक संकट से िनपटना बताया गया।

4.4 य मा यम- आकाशवाणी (रेिडयो) क िवकास या ा


आकाशवाणी श द से हमारे जेहन म य मा यम के प म रेिडयो का नाम याद आता है। आकाशवाणी का
दिु नया म िनयिमत सारण अमे रका के पीट्सबग म सन् 1920 म शु हआ था जबिक इं लै ड म माक नी
क कंपनी चे सफोड ने 23 फरवरी, 1920 को पहली बार सफल सारण िकया था। यही कारण है िक ि िटश
ॉडकाि टंग कंपनी ने नवबं र, 1922 म काम करना शु िकया। इसी दौरान भारत म ‘‘अग त 1921 म ‘द
टाइ स ऑफ इिं डया’ ने डाक एवं टेली ाफ िवभाग के साथ िमलकर अपने बंबई ि थत कायालय से पहला
रे िडयो सारण िकया।’’ नवबं र 1923 म कलक ा ि थत रे िडयो लब ऑफ बंगाल को अ थायी तौर पर
रे िडयो सारण क अनुमित दे दी गई। अगले वष जनू 1924 म बॉ बे रे िडयो लब ने भी अपना सारण शु
िकया। इसके चंद िदन बाद म ास म 31 जल ु ाई, 1924 को रे िडयो सारण क औपचा रक शु आत हई। 20
माच 1925 को उ ोग एवं म िवभाग ारा िशमला के मैटकै फ हाऊस म आयोिजत बैठक म हए िनणय के
बाद सिमित ारा ‘ ॉडकाि टंग इन ि िटश इिं डया’ नाम से एक नोट जारी कर िसफा रश क गई िक रे िडयो
सारण के िलए कंपनी को दस साल के िलए लाइसस िदया जाए। रे िडयो सारण के दौरान सरकार को िकसी
भी रे िडयो टेशन पर ससरिशप, ी ससरिशप या अ य कार क रोक लगाने क छूट होनी चािहए। इसके

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 144


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

अलावा लाइससधारी कंपनी को सरकार संबंधी सभी सचू नाएं यथा: सरकारी आदेश, मौसम समाचार,
शै िणक चार िनशु क करना पड़ेगा। 31 माच, 1926 को रे िडयो सारण के िलए एक अलग कंपनी
(इिं डयन ॉडकाि टंग कंपनी) का कंपनी अिधिनयम के तहत पंजीकरण करवाया गया। इसी वष 13 िसतंबर
को रे िडयो सारण के समझौते पर कंपनी ने सरकार के साथ ह ता र िकए। 23 जल ु ाई 1927 को सं या 6
बजे लाड इरिवन ने बबं ई टेशन का उ ाटन करते हए कहा था िक ‘‘ सारण क भारत म असीम सभं ावनाएं
ह। इसक लंबी दू रयां और िवशाल े फल इसे सारण के िलए संभावनाओ ं से भरा बनाता है। भारत के दरू -
दराज के गांव म ऐसे लोग ह जो काम से थकने के बाद सु ताना चाहते ह। इसी कार काम के िलए अपने
घर से दरू जानेवाले अनेक लोग भी अपने प रजन क कमी महससू करते ह। भारत म अनेक घर ऐसे ह,
िजनक परंपराएं उ ह मनोरंजन के िलए घर से बाहर जाने क अनमु ित नह देत । इन सब के िलए सारण
िकसी शानदार उपहार से कम नह है। चाहे मनोरंजन क बात हो या िफर िश ा क , रे िडयो सारण म असीम
संभावनाएं िछपी ह, इतनी िक हम अभी तक उसका ठीक से अनुमान भी नह लगा पाए ह। भारत म सारण
अभी अपनी बा याव था से गजु र रहा है; िकंतु मझु े यक न है िक कुछ ही साल म रे िडयो के ोताओ ं क
सं या कई गनु ा बढ़ जाएगी और िव ापन के इस नए योग को पसदं करनेवाले भारत के हर कोने म मौजदू
ह गे।’’ रे िडयो यहां के लोग के िदल पर राज करने लगा था। जगह-जगह रे िडयो टेशन खोले जा रहे थे। 1
अ ैल 1930 को इिं डयन ॉडकाि टंग कंपनी का नाम बदलकर ‘इिं डयन टेट्स ॉडकाि टंग सिवस
(आई.एस.बी.एस.) कर िदया गया। यह वही दौर था जब हम आिथक मदं ी से झल ु स रहे थे। करीब एक वष
बाद सरकार ने िनरंतर हो रहे घाटे से ऊबकर रे िडयो सारण बंद करने क घोषणा कर दी। हालांिक इसका
ती िवरोध हआ, खासकर बगं ाल म। ‘‘िवरोध को देखते हए सरकार ने अ थायी तौर पर रे िडयो सारण को
जारी रखने का फै सला िकया और सारी अटकल को िवराम देते हए अंततः मई 1932 म सरकार ने इिं डयन
टेट्स ॉडकाि टंग सिवस को सरकारी बंधन के तहत चलाने का िनणय िलया।’’
30 अग त, 1935 को बी.बी.सी. से आए िलयोनल िफ डन ने देश के पहले सारण िनयं क का
पदभार संभाला। वे अपनी रचना मकता से ऑल इिं डया रे िडयो के व प को बदलते रहे। उनक शासिनक
मता को देखते हए सरकार ने इिं डयन टेट्स ॉडकाि टंग सिवस के िवकास के िलए 20 लाख पये क
ांट दी। िफ डन भारत म रे िडयो सेवा के नाम ‘इिं डयन टेट्स ॉडकाि टंग’ को नापसदं करते थे। उ ह ने
इिं डयन टेट्स ॉडकाि टंग सिवस का नाम बदलकर ‘ऑल इिं डया रे िडयो’ करवाया। दरअसल, ‘‘उनका
तक था िक एक तो ‘इिं डयन टेट्स’ बोलना बड़ा अटपटा सा लगता है; दसू रा ‘ ॉडकाि टंग’ भारतीय के
िलए उ चारण म िद कत पैदा करता है। िफ डन ऐसा नाम चाहते थे जो आम लोग क जबु ान पर चढ़ जाए।
िफ डन भारतीय सं कित के िहमायती थे।’’ िफ डन बीमार हो गए थे तो उनक अनपु ि थित म ो. अहमद
शाह बख ु ारी ने पदभार संभाला। आजादी आदं ोलन के दौरान सरकार रे िडयो पर िशकंजा कसना चाहती थी पर
रा ीय नेताओ ं ने रे िडयो के िवकास के िलए अभतू पवू योगदान िदया। ‘‘सन् 1938 के महास मेलन म
नेशनल लािनगं कमेटी का गठन िकया गया था। वयं जवाहरलाल नेह इस सिमित के अ य थे। इस
सिमित ने देश के िवकास से जड़ु े हर मसले पर उप-सिमितय का भी गठन िकया। इस सिमित ने ऑल इिं डया
रे िडयो के बंधन और उपयोग के संबंध म अपने सुझाव सरकार के पास भेज।े सिमित क िसफा रश के

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 145


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

आधार पर लािनंग कमेटी ने ताव पास िकया िक संचार और सारण जन-उपयोग क सेवाएं ह और आम
लोग के जीवन को भािवत करती ह।’’
वतं ता ाि के उपरांत सरदार पटेल देश के पहले सूचना एवं सारण मं ी बने। सरकार ने
आकाशवाणी के चहमं ख ु ी िवकास क वृहद योजना बनायी। ‘‘इसे ‘पायलेट ोजे ट’ के नाम से जाना जाता
है। देश के सभी िह स म रे िडयो टेशन और टूिडयो थािपत करने क योजना बनाई गई। सबसे पहले
जालंधर म 1 नव बर, 1947 को रे िडयो टेशन खोला गया; य िक पंजाब म बड़ी सं या म शरणािथय का
आना जारी था और उनक यव था के िलए रे िडयो सही सचू नाओ ं को सा रत करने म मह वपूण भिू मका
िनभा सकता था। एक महीने बाद ही 1 िदसबं र, 1947 को ज मू म रे िडयो टेशन ने काम करना आरंभ कर
िदया। अगले साल पटना, कटक, गवु ाहाटी, नागपरु , िवजयवाड़ा, ीनगर म एक के बाद एक नए रे िडयो
टेशन खोले गए। सन् 1949 म इलाहाबाद और अहमदाबाद म रे िडयो टेशन ने काम करना ारंभ कर िदया
तो 1950 म धारवाड़ और कोझीकोड म रे िडयो टेशन खोले गए।’’ रे िडयो जनमानस के िलए मनोरंजन का
एक मख ु ज रया बन चक ु थी। रे िडयो सीलोन क लोकि यता का मक ु ाबला करने के िलए 3 अ टूबर,
1957 को आकाशवाणी ने अपनी ‘िविवध भारती’ सेवा ारंभ क । सन् 1956 म यनू े को ने भारत को अपने
रे िडयो रल फोर स ोजे ट के िलए चुना। इस ोजे ट के तहत पनू ा के 144 गांव को चनु कर रे िडयो रल
फोरम बनाए गए और आकाशवाणी ारा काय म सा रत करने के बाद वहां ामीण के साथ वातालाप
िकया गया। ‘‘इस प रयोजना का नारा था-सनु ो, चचा करो और उसके बाद उसे लागू करो।’’ रे िडयो के
िवकास के िलए 4 िदस बर, 1964 को गिठत चंदा किमटी ने 18 अ ैल, 1966 को अपनी रपोट देते हए
कहा िक अगर आकाशवाणी का िवकास अिधक यवसाियक ढ़गं से करना है तो इसे एक वाय िनगम के
हवाले कर देना चािहए। आकाशवाणी और दरू दशन को अलग-अलग कर िदया जाए। िव ान और कृ िष से
जड़ु े काय म को ाथिमकता दी जाए। चौथी पंचवष य योजना (1969-74) के दौरान 1967 ई. म
आकाशवाणी ने यवसाियक सेवा आरंभ क । अब िविवध भारती सेवा के सारण म िव ापन सा रत िकये
जाने लगे। ‘‘सन् 1967 म थानीय क के िलए नौ िबंदओ ु ं क एक सारण आचार संिहता उस समय बनाई
गई जब कलक ा के आकाशवाणी क पर वामपथं ी साझा सरकार के ममं ी सबु ोध बनज के सा रत
िकए जाने वाले एक भाषण पर क िनदेशक पी.सी. चटज ने आपि उठाई। इस िववाद के बाद संसद म
थानीय क के िलए एक आचार संिहता बनाई गई।’’
आपातकाल के दौरान सरकारी मा यम क वाय ता का मु ा जोर-शोर से उठा। आपातकाल के
हटते ही जनता पाट क सरकार ने 17 अग त, 1977 को िह दु तान टाइ स के पवू संपादक बी.जी. वग ज
क अ य ता म एक सिमित का गठन िकया। सिमित ने 24 फरवरी, 1978 को अपनी रपोट म ‘आकाश
भारती’ रा ीय सारण यास बनाना, शै िणक चैनल खोलने के िलए िनजी कंपिनय को आमिं त करने
आिद का सुझाव िदया। सरकार ने 1976 म चंदा किमटी क रपोट को वीकार करते हए आकाशवाणी से
दरू दशन को अलग कर िदया। सन् 1977 म देश म पहला एफ.एम. सारण म ास से आरंभ हआ। 15
अग त, 1993 से िद ली और मु बई म िनजी रे िडयो चैनल खोला। 1994 ई. म आकाशवाणी क उप ह
सेवा काई रे िडयो आरंभ क गई तथा 1995 ई. म रे िडयो पेिजगं क शु आत हई। 1996 ई. म आकाशवाणी
के काय म इटं रनेट पर उपल ध होने लगे। 23 नवबं र, 1997 को सार भारती अिधिनयम लागू होने के बाद

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 146


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

आकाशवाणी को सार भारती िनगम के अतं गत लाया गया। ‘‘अ ैल 1998 म आकाशवाणी ारा िनजी
िनमाताओ ं से काय म बनवाने पर रोक लगा दी। इसके बाद एक बार िफर सारे काय म आकाशवाणी क
ारा ही बनाए जाने लगे। लेिकन इस बार िनजी एफ.एम. चैनल को अनमु ित देने पर सरकार ने गभं ीरता से
िवचार िकया और सन् 1999 म अतं तः क सरकार ने नीितगत िनणय लेते हए एफ.एम. तरंग को िनजी
कंपिनय के िलए खोल िदया। य िक सव च यायालय ने सन् 1995 म अपने एक मह वपणू िनणय म
रे िडयो तरंग को सावजिनक संपि घोिषत िकया था। सूचना एवं सारण मं ालय बनाम ि के ट एसोिसएशन
ऑफ बंगाल मामले म फै सला देते हए यायालय ने रे िडयो तरंग पर सरकार के एकािधकार को सही नह
बताया था। यायालय ने कहा िक सरकार को यह सिु न त करना चािहए िक रे िडयो तरंग का जनिहत म
यापक इ तेमाल िकया जाए तािक देश म अिभ यि क वतं ता का सही उपयोग हो सके ।’’ सन् 2003
म आकाशवाणी ने िद ली के एफ.एम.-1 को एफ.एम. ‘गो ड’ और एफ.एम.-2 को एफ.एम. ‘रे नबो’ नाम दे
िदया। अब गो ड पर परु ाने िफ मी गीत तथा रे नबो पर नए व अं ेजी गाने भी सा रत होने लगे। रे िडयो के
संदभ म कहा जा सकता है िक जहां सामदु ाियक रे िडयो से समाज के िवकास क संक पना को साकार होते
हम देख पा रहे ह वह नए, परु ाने गीत, रे िडयो जॉक तथा घटं े-घटं े समाचार से यह आम िदल पर राज कर रहा
है।

4.5 य- य मा यम (टेलीिवजन) का िवकास- दरू -दशन (Television) आज हमारे जीवन का


मह वपूण िह सा बन चक ु ा है। जब हम ‘दरू -दशन’ िलखते ह तो हमारा आशय “Television” या TV से
होता है; लेिकन जब हम ‘दरू दशन’ िलखते ह तो इसका अथ है- भारत का सरकारी टेलीिवजन क और
चैनल, िजसे अं ेजी म “Doordarshan” के प म जाना जाता है। टेलीिवजन ीक एवं लैिटन भाषा से
िलया गया एक संयु श द है। टेली ीक भाषा का श द है, िजसका अथ है-दरू ी और िवजन लैिटन श द है
िजसका अथ है-देखना। सन् 1925 म जे. एल. बेयड ने ि टेन म टेलीिवजन का पहला सावजिनक दशन
िकया था। यनू े को ने टेलीिवजन सारण आरंभ करने के िलए भारत के सामने मदद का ताव िदया। सरकार
दरू दशन क लगाने म आिथक ि थित के कारण पेशोकश म थी। इसी दौरान 1957 ई. म िद ली के गित
मैदान म औ ोिगक यापार मेला लगा। इधर िफिल स कंपनी औ ोिगक यापार मेले म अपने साथ लाए
टेलीिवजन उपकरण को बेचने का ताव सरकार को िदया। 15 िसत बर 1959 को राजधानी िद ली क
पािलयामट ीट म आकाशवाणी भवन से देश का पहला टेलीिवजन ांसमीटर काम करना शु िकया।
दरू दशन नामक इस टेलीिवजन सेवा का उ ाटन त कालीन रा पित डॉ. राजे साद ने िकया। करीब 25
िकमी क रज के इस ासं मीटर से स ाह म दो िदन मगं लवार और शु वार को कुल 60 िमनट के काय म
सा रत िकये जाते थे। िजसम 40 िमनट सचू ना मक तथा 20 िमनट मनोरंजना मक काय म होते थे। ‘सोशल
एजक ु े शन ोजे ट’ के तहत योिगक सारण के प म ये काय म आस-पास के े के 21 सामदु ाियक
टेलीिवजन सेट पर देखे जाते थे। ‘‘सन् 1961 म दरू दशन क ायोिगक सेवा को िनयिमत करके पी.वी.
कृ णामिू त को इसका पहला िनदेशक बनाया गया। इसी दौरान जनवरी से माच 1960 के दौरान ायोिगक प
म टेलीिवजन पर शाम को 3 से 4 बजे तक कूली ब च के िलए काय म सा रत िकए गए। ब चे िनयिमत
टेलीिवजन देख पाएं, इसके िलए िद ली सरकार ने कूल से ब च को टेली- लब तक लाने क यव था

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 147


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

कर दी।’’ इसके िव तार व प 23 अ टूबर, 1961 को आकाशवाणी ने अमे रका के फोड फाऊंडेशन के
साथ एक सहमित-प पर ह ता र िकए, िजसके अंतगत चार साल तक िद ली के कूल म शै िणक
सारण िकया जाना था। समझौते के अनसु ार अमे रका के िवशेष भारत आए और िद ली के मा यिमक
कूल म 600 टेलीिवजन सेट थािपत िकए गए। बाद म ांसमीटर क सारण मता को भी बढ़ाकर 5
िकलोवाट कर िदया गया। 15 अग त 1965 को भारतीय टेलीिवजन पर रोजाना समाचार बल ु िे टन क
शु आत हई। उस समय टेलीिवजन आकाशवाणी का एक अंग था। जािहर है िक टेलीिवजन समाचार भी
आकाशवाणी क समाचार इकाई पर पूरी तरह िनभर था। समाचार म ि थर िच को िदखाया जाता था।
1960 ई. का दशक भारत म ह रत ािं त का दौर था। ह रत ािं त के जनक डॉ. एम.एस. वामीनाथन और
सिु व यात वै ािनक डॉ. िव म साराभाई क पहल पर 26 जनवरी 1967 से ‘कृ िष दशन’ का सारण शु
िकया गया। स ाह के बधु वार व शु वार के 20 िमनट के काय म म िकसान को नए खाद, बीज और उ तम
खेती के बारे म बताकर जनजागृित फै लायी जाने लगी।
सन् 1975 भारतीय टेलीिवजन के इितहास म मील का प थर सािबत हआ य िक इसी साल
भारतीय वै ािनक ने पहली बार उप ह सारण शु िकया। सैटेलाइट इं शनल टेलीिवजन ए सपेरीमट
(SITE) नामक इस प रयोजना के तहत अमे रक सैटेलाइट ATS-6 को एक साल के िलए िकराए पर िलया
गया। योिगक तौर पर देश के छह रा य (िबहार, उड़ीसा, आं देश, राज थान और कनाटक) के 2400
सबसे िपछड़े गांव म उप ह के ज रए एक साल (1 अग त 1975 से 31 जल ु ाई, 1976) का सारण िकया
गया। इस काय म के तहत वा य, कृ िष, प रवार िनयोजन, रा ीय एकता, सं कृ ित के मसल पर
ाना मक जानका रयां दी जाने लगी। ये काय म िहदं ी, उिड़या, तेलगु ु और क नड़ भाषा म सा रत िकए
जाते थे। रोजाना चार घटं े के काय म म सुबह 90 िमनट शै िणक और शाम को 150 िमनट अ य िवषय पर
सारण होता था। साइट के काय म समाज को िदशा देने म महती भिू मका अदा क ।
1 जनवरी 1976 को दरू दशन पर पहली बार िव ापन का सारण शु हआ। इसी वष 1 अ ैल को
दरू शन को आकाशवाणी से अलग कर िदया गया। ‘‘इस िदन को िविश बनाने के िलए धानमं ी इिं दरा
गाधं ी ने देश के नाम सदं ेश भी िदया। यह िवशेष सारण साइट प रयोजना के 2400 गांव म भी उप ह के
ज रए सा रत िकया गया। अलग होने के बाद दरू दशन के पहले महािनदेशक पी.वी. कृ णमिू त बनाए गए
और िद ली के मडं ी हाऊस म दरू दशन का मु य कायालय बनाया गया। दरू दशन का अपना मोनो ाम और
सक ं े त धनु भी बनाई गई।’’
1980 के दशक म दरू दशन के िवकास म चार चादं लगा। 10 अ ैल, 1982 को अमे रका के के प
कै नेडी से देश का पहला सच ं ार सैटेलाइट इनसेट 1-ए छोड़ा गया। लेिकन यह उप ह अिधक िदन तक काम
नह कर पाया लेिकन इसी वष 30 अग त को एक और उप ह इनसेट-1 बी छोड़ा गया तदपु रांत देशभर के
टेलीिवजन क को उप ह से जोड़ िदया गया। सन् 1982 म 19 नव बर से 4 िदस बर को हए एिशयाई खेल
का मनोरंजन दरू दशन के मा यम से भारत सिहत अ य देश के दशक ने उठाया। वतं ता िदवस 15 अग त,
1982 के िदन लाल िकले पर वजारोहण के सीधे सारण के साथ दरू दशन ने अपना रंगीन सारण क
शु आत क । संचार मा यम ारा िवकिसत रा के काय म को अिधकािधक िदखाने के कारण िपछड़े
देश म सां कृ ितक पहचान का संकट पैदा होने लगा था तो इसी दौरान वैि क मीिडया प र य म बनाए गए

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 148


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

मैक ाइड कमीशन क तज पर भारत म माच 1983 म पी.सी. जोशी क अ य ता म एक सिमित का गठन
िकया। सिमित ने 2 अ ैल, 1984 को अपनी रपोट (An Indian Personality for Television Report
of the Working Group on Software for Doordarshan) म दरू दशन के काय म म सधु ार लाने के
िलए िव तृत सुझाव िदया। जोशी कमेटी के नाम से इस सिमित ने भारतीय आव यकताओ ं के अनु प देशज
काय म बनाने पर बल िदया। खास देशज सं कृ ित पर किदत काय म बनने लगे। 15 जल ु ाई 1984 को देश
का पहला ायोिजत धारावािहक ‘हमलोग’ शु िकया गया। कुल 156 किड़य के इस धारावािहक को ने ले
मैगी नडू स ने ायोिजत िकया था। हमलोग क सफलता के बाद तमस, बुिनयाद, खानदान, क का जी
किहन, भारत एक खोज जैसे धारावािहक के सारण से दरू दशन क लोकि यता बढ़ी। राजीव गाधं ी के
धानमं ी बनते ही समाज के िवकास के िलए दरू दशन को अिनवाय अंग माना। यही कारण है िक सन् 1987
म रामानदं सागर ारा िनिमत रामायण, 1988 म बी आर चोपड़ा ारा बनाए गए महाभारत और याम
बेनेगल ारा बनायी गई भारत एक खोज, जैसे बड़े धारावािहक को राजीव गांधी के िनजी िच के
फल व प हम देख पाए। सन् 1984 म डीडी-2 नाम से दरू दशन का दसू रा चैनल शु िकया गया। इसी वष
शै िणक सार के िलए िव िव ालय अनदु ान आयोग ने कं ीवाइड लास म का सारण शु िकया।
1987 ई. म रामायण धारावािहक को दरू दशन पर िदखाये जाने से अपनी लोकि यता के सारे रकाड तोड़
िदए। इसके बाद महाभारत के सारण को भी लोग ने खबू सराहा। कहा जाता है िक रामायण और महाभारत
जैसे धारावािहक ने टीवी को घर-घर पहचं ा िदया।
1990 के दशक म खासकर जब भमू डं लीकरण का दौर शु हो रहा था। बहरा ीय कंपिनयां अपने
उ पाद को ाहक तक पहचं ाने के िलए टीवी िव ापन को एक अ छा मा यम समझने लगी तो ऐसे ही दौर
म सन् 1992 म देश का पहला िनजी टेलीिवजन चैनल जी टीवी को ह रयाणा के उ ोगपित सभु ाषचं ने शु
िकया। अब चौबीस घटं े समाचार, मनोरंजन के चैनल क भरमार हो गई है।

4.6 वैकि पक मीिडया के प म इटं रनेट- इटं रनेट आज सव यापी उपकरण या मा यम बन गया है। आज
इटं रनेट लोबल है, इसके सभी िवधा प लोबल ह। इसक तेज गित इसे अ य मा यम से गणु ा मक तौर पर
अलग करती है। यह दिु नया को वैि क ाम का वासी होने का अवसर महु यै ा कराता है। कोई भी इटं रनेट
योगकता यह कह सकता है िक अब तक िजतने मा यम िवकिसत हए ह उनम इटं रनेट सबसे यादा
ताकतवर है। दरअसल यह हाई-टेक का पयाय है और सचू ना ािं त का सवं ाहक भी। अब तक ईजाद हए
मा यम म यह एक मा यम नह है, बि क मा यम का िपतामह है। यह अपने आप म वतं कोई आिव कार
नह है, बि क यह कं यटू र और टेलीफोन से िमलाकर िकया गया एक अिभनव योग के तौर पर सचू नाओ ं
को बड़ी तेजी से एक थान से दसू रे थान पर भेजे जाने क यिु है। ‘‘इसे कुछ लोग व ड वाइड वेब यानी
िव यापी तरंग कहते ह, िकंतु इटं रनेट िवशेष इस नाम से सहमत नह ह। वे इसके कई और भी नाम देते ह
जैसे-साइबर पेस, सपु र हाइवे, इ फोमशन सपु र हाइवे, द नेट या ऑन लाइन आिद।’’
1990 के दशक म इटं रनेट क तेजी से गित हई। इसके िवकास पर नज़र डाल तो हम पाते ह िक
अमे रका के पटागन एडवां ड रसच ोजे ट एजसी (ए.आर.पी.ए) ने 1969 म एआरपीएनेट के प म इसक
शु आत क थी। इसका मल ू उ े य देश के िविभ न भाग म फै ली सैिनक छाविनय के बीच आपसी संपक

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 149


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

थािपत करना था। आपसी संवाद के िलए एआरपीएनेट कं यटू र को आपस म जोड़ने और डाटा भेजने हेतु
िवकिसत क गई ि या को ांसिमशन कं ोल ोटोकोल/इटं रनेट ोटोकोल (टीपीसी/आई.पी.) कहा गया।
‘‘अमे रका म सैिनक मु यालय म कायरत वै ािनक और इजं ीिनयर ने इस एआरपीएनेट का उपयोग र ा
संबंधी सचू नाओ ं के आदान- दान करने के िलए भी करना शु िकया। इसके अगले कथन के प म उ ह ने
इले ॉिनक मेल का तरीका भी िवकिसत िकया िजसे ‘ई-मेल’ क सं ा दी गई।’’ इटं रनेट क उपयोिगता को
देखते हए करीब दस वष के उपरांत 1979 ई. म एक शै िणक नेटवक ‘यजू नेट यजू ’ के प म इसका
पहला सावजिनक िव तार हआ। इटं रनेट क लोकि यता के कारण यह अब सरकारी िनयं ण से बाहर आकर
आम जनता के िलए सल ु भ हो गया है। भारत म इसक शु आत सव थम सैिनक अनसु धं ान नेटवक (ईआर
नेट) ने र ा और अनुसंधान े के िलए उसका उपयोग शु िकया। यह ईआरनेट भारत सरकार के
इले ॉिनक िवभाग तथा यनू ाईटेड नेश स डेवलपमट ो ाम का एक सयं ु उप म था। इसके उपरातं सच ं ार
के मा यम के प म एक बूम आयी और लोग इसको पसंद करने लगे। इटं रनेट के उपयोग के मु य पांच े
ह यथाः ई-मेल, बातचीत (चैिटंग), ई-बिकंग, ई-कॉमस, ई- शासन आिद। आज इटं रनेट पर अिभ यि का
सश मा यम बना है- लॉग। जहां िक कोई सपं ादक य कची नह चलती, अपने मन क अिभ यि कर
सकते ह। इटं रनेट वभावतः सामािजक है। यह येक को समान अवसर देता है। इसका साझा े है
सावजिनक थान। अ ना आदं ोलन हो या िम म हए जनांदोलन म इटं रनेट के सोशल मीिडया नेटवक क
अहम भिू मका रही है। इटं रनेट ने ि ंट समिथत एकािधकार को समा कर िदया। ऐसे म कहा जा सकता है िक
मौजदू ा दौर मीिडया का नह बि क साइबर मीिडया का है।

4.7 सारांश
जनसंचार ऐसी संचार यव था का प है जो यांि क संचालन के साथ-साथ सामिू हक प से समाज क
येक इकाई क भिू मका िलए हए है। संचार यव था, चाहे वह ि ंट हो या इले ॉिनक मा यम (रे िडयो,
टेलीिवजन या यू मीिडया), इससे भारत क सामािजक, आिथक, सां कृ ितक एवं राजनीितक े म यापक
बदलाव आया है। भारतीय मीिडया तो इससे यापक तर पर भािवत हई है। यह भाव उसके ढ़ाचं ागत तर
से लेकर समाचार के चयन, तुतीकरण तक म देखने को िमल रहा है। िहदं ी के अखबार पंजू ी, तकनीक,
तुितकरण, सार और कलेवर क ि से यादा स प न हए ह। इलै ािनक मीिडया के भाव से हम -
ब- ह। इटं रे नट के मा यम से हम वैकि पक मीिडया का उपयोग कर रहे ह।

4.8 बोध
4.8.1 बहिवक पीय
न 1 : िहदं ी का पहला समाचार प ‘उद त मात ड’ का काशन कब हआॽ
िवक प : क. 30 जनवरी, 1826 ख. 30 फरवरी, 1826
ग. 30 जनू , 1826 घ. 30 िदसंबर, 1826 उ र:
क.
न 2 : आकाशवाणी क िविवध भारती सेवा कब ारंभ हईॽ

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 150


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

िवक प : क. 03 अ टूबर, 1960 ख. 03 अ टूबर, 1959


ग. 03 अ टूबर, 1958 घ. 03 अ टूबर, 1957 उ र : घ.
न 3 : िन न म से िकस संपादक का स ब ‘किववचनसधु ा’ से रहा है ॽ
िवक प : क. भारतदु ह र चं ख. राजा राममोहन राय
ग. पं. यगु ल िकशोर शु ल घ. पं. बालकृ ण भ उ र : क.
न 4 : िन न म से िकस किमटी क रपोट पर आकाशवाणी से दरू दशन को अलग िकया गयाॽ
िवक प : क. वग ज किमटी ख. मदु ि् लयार किमटी
ग. चदं ा किमटी घ. मजीिठया किमटी उ र : ग.
न 5 : देश का पहला टेलीिवजन ासं मीटर कब से काम करना शु िकयाॽ
िवक प : क. 15 िसतंबर, 1959 ख. 15 िसतंबर, 1949
ग. 15 िसतंबर, 1939 घ. 15 िसतंबर, 1929 उ र : क.

4.8.2 लघु उ रीय


1. िहदं ी का पहला समाचार प ‘उद त मात ड’ पर काश डािलए।
2. प का रता को राजा राममोहन राय क देन पर िट पणी िलिखए।
3. टेलीिवजन के िवकास म म ‘साइट’ (SITE - सैटेलाइट इं शनल टेलीिवजन ए सपेरीमट)पर
काश डािलए।

4.8.3 दीघ उ रीय


न एक : गांधीजी ने प का रता को आदं ोलन का हिथयार बनाया, प ट क िजए।
न दो : टेलीिवजन के िवकास म पर काश डािलएॽ

4.8.4 यवहार
काय एक : आज वैकि पक मीिडया क मह ता अप रहाय है, इस कथन क पिु क िजए

4.9 उपयोगी थ ं सच
ू ी
िसहं , देव त, (2007). ‘भारतीय इले ॉिनक मीिडया’, िद ली : भात काशन।
पचौरी, सधु ीश, (1994). ‘दरू दशन : िवकास से बाजार तक’, नई िद ली : काशन िवभाग, संचना एवं
सारण मं ालय
चौधरी, ओमकार, (2011). ‘टेलीिवजन प का रता’, पचं कुला : ह रयाणा सािह य अकादमी।
कुमार, सरु े श, (2004). ‘इटं रनेट प का रता’, नई िद ली : त िशला काशन।
मेहरा, रमेश, (2007). ‘मीिडया और सारण’, नई िद ली : त िशला काशन।
शमा, कमल, (2009). ‘रे िडयो सारण’, नई िद ली : ितभा ित ठान।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 151


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

नटराजन, जे., (2002). ‘भारतीय प का रता का इितहास’, नई िद ली : काशन िवभाग, संचना एवं सारण
मं ालय।
Kumar, keval j., (2004). ‘Mass Communication in India’, Mumbai : Jaico Publishing
House.
Rayudu, C.S., (2008). ‘Communication’, Mumbai : Himalya Publishing House.
जैन, रमेश, (2003). ‘जनसंचार एवं प का रता’, जयपरु : मगं लदीप पि लके श स।
Desai, Amit, ‘Journalism and Mass Communication’, New Delhi: Reference Press.
बघेल, सजं य िसहं , ‘सच
ं ार, समाज और सािह य’, गािजयाबाद : के .एल. पचौरी काशन।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 152


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

खंड – 4
संचार एवं समाज काय

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 153


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

इकाई -1 सामािजक वैयि क सेवाकाय और सच


ं ार
इकाई क परेखा
1.0 उ े य
1.1 तावना
1.2 सामािजक वैयि क सेवाकाय
1.3 सामािजक वैयि क सेवा काय ि या के चरण
1.4 संचार क अवधारणा
1.5 संचार के कार एवं काय
1.6 सामािजक वैयि क सेवा काय ि या म सचं ार क भूिमका
1.7 सारांश
1.8 बोध
1.9 संदभ एवं उपयोगी ंथ

1.0 उ े य
इस इकाई का अ ययन करने के प चात आप -
1. सामािजक वैयि क काय क अवधारणा को प ट कर सकगे।
2. सामािजक वैयि क काय क ि या एवं अगं भतू िस ांत से भली-भांित प रिचत हो सकगे।
3. सचं ार क अवधारणा एवं काय को या याियत कर सकगे।
4. सामािजक वैयि क सेवा काय ि या म संचार क भिू मका को अिभ य त कर सकगे।

1.1 तावना
सामािजक वैयि क सेवाकाय समाज काय क ाथिमक णाली के प म जानी जाती है। यह एक
कला है िजसम मानवीय संबधं के िव ान के ान और सबं धं म िनपणु ता का उपयोग इस ि से िकया जाता
है िक यि म उसक यो यताओ ं और समदु ाय म साधन को गितमान िकया जाए िजससे सेवाथ और उसके
पयावरण के कुछ या सम त भाग के बीच उ चतर समायोजन थािपत हो सके । कायकता ारा सेवाथ के
प र े य म यह यास िकया जाता है िक िकन-िकन िविधय , तकनीक एवं कुशलताओ ं से वह सेवाथ के
साथ िमलकर काय कर सके । सामािजक वैयि क सेवाकाय यावसाियक गणु पर आधा रत एक काय है,
िजसम िविभ न कार क कौशल या िजसे हम िनपणु ता भी कहते ह, का उपयोग िकया जाता है। वैयि क
कायकता कुछ कौशल के साथ-साथ कुछ तकनीक का भी उपयोग संपणू वैयि क काय ि या म करता
है, िजसके आधार पर वह सेवाथ क सम या का समाधान करने म स म बन पाता है। कौशल एवं
तकनीक का उपयोग समहू काय ि या ारंभ होने से अतं तक िकया जाता है। िकसी यावसाियक काय म
कुशलता एवं तकनीक का होना उसके व प व मह व को प ट करता है। मानव यवहार क जो सम याएं

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 154


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

ह, उन सम याओ ं का तब तक समाधान नह िकया जा सकता, जब तक िक उन सम याओ ं के समाधान हेतु


िवशेष यो यता एवं कौशल का उपयोग न िकया गया हो। सामािजक वैयि क सेवाकाय ि या म संचार को
एक तकनीक एवं कौशल के प म जाना जाता है िजसका उपयोग कर कायकता सेवाथ एवं सेवाथ से
संबंिधत यि य तक अपनी बात को पहचं ाने का यास करता है। उ त इकाई के मा यम से िव ाथ
वैयि क काय ि या म सच ं ार के मह व एवं भिू मका के सबं ंध म िव तार से अ ययन कर सकगे।

1.2 सामािजक वैयि क सेवाकाय


सामािजक वैयि क सेवा काय एक ऐसी णाली है िजसम सेवाथ क मु य प से मनोसामािजक
सम याओ ं का अ ययन कर िनदान ततु करने का यास िकया जाता है। िजसका क िबंदु यि एवं
यि से सबं िं धत सम या होती है। इस णाली के मा यम से कायकता सेवाथ को समाज म समायोिजत
करने उसम सामजं य थािपत करने का यास करता है। सामािजक वैयि क सेवाकाय को िविभ न िव ान
ने िभ न-िभ न कार से प रभािषत करने का यास िकया है।
मेरी रचमडं के अनसु ार “सामािजक वैयि क सेवाकाय म वे ि याएँ आती ह जो एक-एक करके
यि य एवं उनके सामािजक पयावरण के बीच सचेतन प से समायोजन थािपत करती है।”
टै ट एक दसू रे िव ान थे िज ह ने 1920 म सामािजक वैयि क सेवाकाय को यि क सामािजक
िचिक सा के प म प रभािषत िकया। उनके अनसु ार-
‘‘सामािजक वैयि क सेवाकाय समायोजन रिहत यि क सामािजक िचिक सा है िजससे इस
बात का यास िकया जाता है िक उसके यि व, यवहार एवं सामािजक संबंध को समझा जाए और
उसक सहायता क जाए िजससे िक वह एक उ चतर सामािजक एवं वैयि क समायोजन ा त कर सके ।’’
वैयि क काय क ि या को पूण प से प रभािषत करने वाली प रभाषा गोडन हेिम टन (1956)
अपनी िकताब Theory and Practice a Social Case Work म देते ह। उनके अनसु ार-
‘‘सामािजक वैयि क काय म सेवाथ को वयं अपनी प रि थितय के अ ययन म सहभागी बनाते
हए उसके िलए बनी योजनाओ ं को उनसे साझा करने और उन योजनाओ ं का उपयोग वह अपनी सम या
सलु झाने म सि य यास कर इसके िलए वह खदु के ससं ाधन या उस समदु ाय, िजसम वह रह रहा है, म
उपल ध एवं उपयु त संसाधन का उपयोग करने के िलए सेवाथ को ो सािहत िकया जाता है।’’
उ त सभी प रभाषाएँ सामािजक वैयि क काय को एक ि या के प म प रभािषत करती िदखती
है िक तु इनम कुछ छूट रहा था िजसे एच.एच. पलमन ने अपनी िकताब Social Case Work : A Problem
Solving Process म िव लेिषत िकया है। एच.एच. पलमन (1957) के अनस ु ार-
‘‘सामािजक वैयि क सेवाकाय एक ि या है िजसका योग कुछ मानव क याण सं थाएँ करती
है तािक यि य क सहायता क जाए िजससे िक वे सामािजक काया मकता क सम याओ ं का सामना
उ चतर कार से कर सक।’’ पलमन ने अपनी पु तक म सामािजक वैयि क काय के चार मख ु अगं
(Constituents) का वणन िकया है:
1) यि (Person)

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 155


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

2) सम या (Problem)
3) थान (Place)
4) ि या (Process)
इसको वैयि क सेवाकाय म मॉडल क तरह भी उपयोग म लाया जाता है, आमतौर पर इसे
सामािजक वैयि क काय क श दावली म 4P के प म जाना जाता है।
अत: इस कार से िविभ न िव ान ने सामािजक वैयि क सेवाकाय को प रभािषत करने का यास िकया है
। िजससे इसका अथ भी प ट हो जाता है िक सामािजक वैयि क सेवाकाय एक यि को सामािजक
कायकता ारा दी जाने वाली सेवा है, यह सेवा उपचारा मक या सहायता परक दोन हो सकती है।

1.3 सामािजक वैयि क सेवा काय ि या के चरण


सामािजक वैयि क सेवाकाय (Case Work) क ि या को मैरी रचम ड (1917) ने तीन
भाग - अ ययन, िनदान और उपचार म िवभािजत िकया लेिकन वतमान प रवेश को देखते हए मौजदू ा
िव ान ने इस ि या को पाँच भाग अ ययन, िनदान, उपचार, समाि तथा मू यांकन म िवभािजत कर
उसका िव तृत वणन ततु िकया है जो िन नवत है :-
Steps in case work

अ ययन (Study)
िनदान/आँकलन (Diagnosis)
उपचार /म य थता (Treatment)
समाि (Ternination) तथा

मू यांकन (Evaluation)
सामािजक वैयि क सेवा काय म अ ययन (Study) से ता पय उस ि या से है िजसके ारा के स वक
(Case Work) को ारंभ िकया जाता है और कायकता सेवाथ (Client) क मनोसामािजक
(Psychosocial) सम याओ ं का अ ययन िव तार से करता है। मैरी रचम ड कहती है िक “सामािजक
अ ययन म वैयि क काय को उस येक कारक को सरु ि त करना चािहए जो एक साथ होने पर तकपणू
तथा अनमु ािनत तक के ज रए, सेवाथ के यि व तथा उपयु त उपचार, म य थता के िलए ि थित को
उजागर करे गा ।”

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 156


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

सामािजक वैयि क काय म िनदान आँकलन के ज रए कायकता सेवाथ क सम या से संबिं धत तीन न


का उ र ढूँढने क कोिशश करता है िक सम या या है? यह कै से उ प न हई है? इसे दरू करने के िलए या
िकया जा सकता है? इ ह तीन न के उ र के ज रए कायकता सेवाथ (Client) सम याओ ं क पहचान
करने क कोिशश करता है।
के स वक म उपचार म य थता से ता पय सेवाथ को मतावान बनाना, उसके आ मिव वास को बढ़ाना
और उसे सामािजक प से िवघिटत होने से बचाना है। यह सेवाथ के सक ु ू न, संतुि तथा आ म अनुभव को
बढ़ाने के िलए होता है।
के स वक म समाि (Termination) से ता पय इस ि या (अ ययन, िनदान और उपचार) को समा त
करना है जो तब आरंभ हई थी जब सेवाथ सामािजक वैयि क काय म य थता (िनदान) ि या से गजु रने
को सहमत हआ था। समाि ि या का िनणय सेवाथ तथा कायकता ारा आपसी सहमित से िलया जाता
है। यह वह ि थित होती है जब सेवाथ को वतमान तथा िवगत ि थितय से िनपटने क अपनी मता म
िव वास हो जाता है।
के स वक म मू यांकन से ता पय उस ि या से है िजसम यह जानने क कोिशश क जाती है िक या के स
वक अपने वांिछत ल य को ा त कर चक ु ा ह और या सेवाथ (Client) अपनी िविभ न मनोसामािजक
(Psychosocial) सम याओ ं से वाकई िनजात ा त कर चकु ा है या अपनी सम याओ ं को दरू करने म
स म हो चक ु ा है ? आिद न का उ र कायकता जानने क कोिशश करता है। वैयि क सेवा काय क
उपरो त ि या के सदं भ म फन लॉरी (1936) अपने िवचार को कट करते हए कहते है िक िजस कार
िकसी र सी क लिडय ़ को बीच से काट िदया जाता है तो वह उझलकर िगर जाती ह ठीक उसी कार इस
के स वक क ि या भी एक दसू रे से गथु ी हई है, अगर इसम से िकसी एक के िबना इस ि या को आगे
बढ़ाया जाए तो वाकई कह न कह सेवाथ क सम या, सम या ही बनकर रह जाएगी।

सं था, सेवाथ णाली तथा काय


सामािजक कायकता का उ े य है सेवाथ क सामािजक काय णाली म सुधार करना। सेवाथ के साथ संबंध
थािपत करके ही सामािजक कायकता यह उ े य ा कर सकता है। ि या तब शु होती है जब सेवाथ
अपने आप पहल करके या िफर िकसी और के कहने पर सं था के पास मदद के िलए आता है। कई बार तो
सेवाथ का यह काय सं था ारा संचािलत िकए गए िकसी काय म का ही प रणाम होता है। उदाहरण के
िलए एच.आई. वी. एड्स के बारे म जाग कता अिभयान उन लोग को सं था से सपं क करने के िलए
ो सािहत करे गा जो स ं िमत होने क शक
ं ा से त ह। अ य मामल म वह दसू रे संगठन व सं थाओ ं के
पास भेजा जा सकता है। इसके प ात सं था यह मामला सामािजक कायकता को आविं टत कर देता है।
सं था क भिू मका है आव यक संसाधन क यव था करना। सेवाथ इस सारी ि या का क िबंदु होता है।
इसिलए सेवाथ सामािजक कायकता सं था णाली को ठीक कार से समझा जाना चािहए।
सेवाथ कुछ अपे ाओ ं या हो सकता है िक कुछ आशक ं ाओ ं के साथ सं था से सपं क करता है। उसक अपने
मू य-तं , यि गत अनभु व और सामािजक संरचना म ि थित पर आधा रत अपनी एक िव ि होती है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 157


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

सामािजक काय क ि या के बारे म सेवाथ के अपने कुछ िनि त िवचार हो सकते है। उदाहरण के िलए
आिथक सम याओ ं से त एक यि िव ीय मदद क अपे ा करता है तो उसके िलए सलाह-मशिवरे क
सारी ि या समय क बबादी है। दसू री तरफ सं था क अपनी िवचारधारा तथा अपनी सीमाएं होती ह।
उनको इ ह मू य एवं िवचारधारा के आधार पर आगे बढ़ना होता है। सामािजक कायकता का यावसाियक
मू य और नैितकता पर आधा रत अपना मू याक ं न होता है। यह मह वपणू है िक िविश यि गत अनभु व
से िनिमत यि गत मू य सेवाथ के ित उसक अवधारणा को भािवत न कर। सामािजक काय के िस ांत
सहभािगता, सामािजक कायकता क ओर से गणु व ा क आव यकता पर बल देते ह। इसिलए एक
सामािजक कायकता को सबं ंध म यि गत अनभु व के असर को संयिमत करने के िलए वचेतना का एक
िनि त तर कर लेना चािहए -
1. आपक सामािजक काय णाली के सदं भ म अपनी पसदं एवं नापसदं , जैसे िम के बारे म आपक पसदं
और वह काय िजसम आपको आनंद आता है या िजसे आप नापसंद करते ह तथा ऐसे मामले म आपके
िवचार से मह वपणू ह, क सचू ी बना ल एवं उन पर िवचार-िवमश कर।
2. एक यि /समहू /समदु ाय का पहला भाव कै सा है और या तदपु रातं हए स तथा अिधक सचू नाओ ं
क ाि के बाद इसम कोई प रवतन हआ है।
3. सेवाथ , सं था को िकस ि से देखता है और य ?
क) सहायक ख) िम ग) संबंधी घ) दलाल ड.) डॉ टर च) यवसायी छ) अ य कुछ
4. सं था क सेवाथ के बारे म या सोच है?
क) गरीब और असहाय ख) ससं ाधनहीन
(यहाँ सेवाथ को सेवा दान करने के औिच य पर िवचार िकया जा सकता है। सेवा दान करने के िलए कुछ
मह वपूण कारण इस कार ह-धािमक, परोपकारी, यावसाियक, उ मशीलता संबंधी एवं जन संपक म
सधु ार।)
वैयि क काय क ि या म कायकता को िन न स के मा यम से संपणू काय णाली को ि याि वत
करना होता है।
थम स ( थम अनुकूलन दौरा )
थम स म कायकता सेवाथ के साथ िन न कार से िमलकर काय करता ह-
 सव थम कायकता सेवाथ के साथ यावसाियक सबं धं थािपत करता ह ।
 सेवाथ से संबंिधत सम याओ ं को प रभािषत एवं रे खांिकत करता ह ।
 सेवाथ क सम या एवं काय का मू यांकन करता ह ।
 सेवाथ एवं वैयि क कायकता के उ े य एवं भिू मका को िनधा रत करता ह ।
 सेवाथ क आव यक जानकारी जैसे – सेवाथ का नाम , सेवाथ का पता, सेवाथ क उ , िलंग,
शैि क यो यता, धम, जाित, णे ी ( ामीण, शहरी, जनजातीय) सेवाथ का यवसाय, सामािजक
तर एवं आय इ यािद सबं धं ी जानकारी को एकि त करता ह ।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 158


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

 सेवाथ क पा रवा रक पृ ठभिू म को जानना – कायकता सेवाथ क पा रवा रक पृ ठभिू म को जानने


का यास करता ह यिद सेवाथ अनाथ ह या उसके प रवार के सद य भी नह ह तो कायकता ारा
सेवाथ के अिधक िनकट यि य क सचू ी तैयार कर सेवाथ से सबं िं धत त य को एकि त िकया
िकया जाता ह । इसके िलए कायकता ारा िन न तािलका का उपयोग िकया जाता ह -
मांक संबंिधत यि य के सेवाथ से संबंध उ शैि क यो यता यवसाय एवं आय
नाम

 सेवाथ संबंध – सामािजक वैयि क काय ि या म संबंध थापन एक मह वपणू कौशल माना
जाता ह िजसके अंतगत समाज कायकता सेवाथ से संबंध रखने वाले िविभ न यि य से सेवाथ
सबं िं धत जानकारी एकि त करता ह । कायकता सेवाथ से य एवं अ य प से सबं धं रखने
वाले यि य से जानकारी ा त कर सकता ह एवं मू यांकन करता ह । सेवाथ के जीवन म उन
लोग से संबंध, जो सवािधक मह वपूण ह एवं सेवाथ को भािवत करते ह इ ह उदाहरण के प म
देखा जा सकता ह ।
o सेवाथ के माता से संबंध
o सेवाथ के िपता से संबंध
o अ य ब च के साथ संबंध
o चाचा, चाची एवं अ य चचेरे भाई-बहन के साथ संबंध
o माता-िपता के बीच संबंध
o ब च के साथ माता –िपता के संबंध
o मह वपूण संबंध यिद कोई है (िकसी भी अ य के साथ )
o पडोिसय के साथ संबंध
o कूल एवं िश ण सं थाओ ं के साथ संबंध
o यवसाय एवं रोजगार से संबंध रखने वाले यि य से संबंध
 दघु टना तथा सदमे से भािवत यि क जानकारी : यिद सेवाथ िकसी दघु टना या सदमे से
भािवत ह या वह िकसी मनोसामािजक सम या से िसत हो गया ह तो यह सिु नि त करे िक या

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 159


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

िकसी दघु टना या सदमे ने सेवाथ को भािवत िकया ह ? उसके भाव को जानने के प चात ही
आप िकसी िनदान तक पहँच सकते ह।
 भावी योजनाऍ: सेवाथ क मनोदशा को ात करने के िलए आप सेवाथ से उसक भावी योजना के
संबंध
म जानकारी ा त कर सकते ह ।
 स का समापन : स का समापन करते समय सेवाथ से यह पछ ू लेना चािहए िक वह पनु : कब
िमलेगा ? साथ ही साथ समय एवं थान का भी िनधारण कर लेना चािहए । आपको (कायकता को)
भी यान रखना चािहए िक आप सेवाथ को िदए समयानसु ार ही उससे िमले ।
इस तरह से कायकता संपणू ि या कर थम स क समाि कर ि तीय स क ओर अ सर होता
है।
स ि तीय ( ि तीय अनक ु ू लन दौरा )
थम स के प चात आपके पास सेवाथ से सबं िं धत िविभ न कार क आव यक सचू नाएं एकि त
हो जाती है। इसके आधार पर ही आप सेवाथ से संबंिधत िविभ न कार के सवाल को पछू कर उनसे
आपको सेवाथ से संबंिधत मह वपणू जानकारी ा त हो जाएगी । थम स के मा यम से आपने सेवाथ से
संबंध थािपत कर िलया ह अब सेवाथ िकसी भी कार से आपसे िहचिकचाहट महससू नह करे गा िजससे
आप सेवाथ क सम या से सबंिधत सीधे न को पछू सकते ह । संबंध थािपत हो जाने के प चात आप
सेवाथ से यह भी पछू सकते ह िक आपक सम या के पीछे कौन-कौन से कारण ह या कोई दसू रे यि
आपको िकसी कारण से प रशान कर रहे ह? या आपने आस-पास के लोग से आपको कोई परे शानी ह ?
आप यह भी पछू सकते ह िक जो दसू रे लोग सम या पैदा कर रहे ह उनका कारण या ह? कई बार सेवाथ
आपसे झठू भी बोल सकता है। आपको इस बात का अहसास हो जाता है िफर भी आपको ऐसा बताव करना
चािहए िजससे सेवाथ पर नकारा मक भाव न पड़े। आगे आप बडी ही सावधानीपवू क सेवाथ के
पा रवा रक माहौल के सदं भ म जानकारी ा त कर लेते ह।
स तृतीय (तृतीय अनुकूलन दौरा )
तृतीय स के दौरान कायकता सेवाथ का गृह- मण अथात् घर का दौरा करता ह । घर का दौरा
करने के पवू कायकता को इस कार का सबं धं थािपत कर लेना चािहए िजससे सेवाथ सहज प से
सहयोग दान कर सके । इस स म सेवाथ संबंिधत यि य से अवलोकन एवं सा ा कार िविध के मा यम
से सम या सबधीं कारण को ात करने का यास करता ह । अवलोकन के संदभ म कायकता सेवाथ के
िनवास थान क ि थित, आसपास का वातावरण, जीवन तर, पडोस क ि थित इ यािद का अवलोकन
करता ह । सा ा कार के दौरान कायकता सेवाथ के माता, िपता एवं अ य संबंिधत यि य का सा ा कार
करता है ।
अवलोकन एवं सा ा कार क ाि या के प चात आप अतं : ेप क योजना बना सकते ह जािक
िन न कार से हो सकती ह –
o सम या क जॉंच और िव लेषण

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 160


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

o सम या के कारण
o सभं ािवत समाधान
o उपल ध भौितक और गैर-भौितक ससं ाधन
o सेवाथ , सं था एवं कायकता क सीमाएं
o अतं : ेप योजना के उ े य
o अतं : ेप के ित प के काया वयन क समय सीमा ।
स चतुथ (चतुथ अनक ु ू लन दौरा – स समाधान क खोज )
उपयु त स क ि या पणू होने के प चात आपको सेवाथ क सम या के कारण ात हो जाते ह इस
स के मा यम से आप सेवाथ को िन न कार से सहायता कर सकते ह -
o सेवाथ को परामश देकर आप उसक सम या का समाधान कर सकत ह ।
o सेवाथ क सम या के आधार पर कायकता सेवाथ को सम या समाधान के तरीक के संदभ म
सचू ना दान करा सकता ह जैसे िक िकसी सम या समाधान करने वाले यि के पास सेवाथ को
पहचं ा सकता ह या िफर सरकारी एवं गैर-सरकारी योजनाओ ं के मा यम से सेवाथ को अवगत
कराकर उसे सूचना दान कराई जा सकती ह ।
o सेवाथ को समझा-बूझाकर एवं िदशा – िनदशन का योग कर ।
o कायकता सेवाथ को भावना मक प से सहयोग देकर उसक सहायता कर सकता ह ।
o कायकता ारा सेवाथ को ऐसे कौशल को िसखाना चािहए िजससे सेवाथ सामािजक प रि थित म
भावपणू तरीके से काय कर सके ।

स पाँच एवं छह (पंचम अनुकूलन दौरा – मू यांकन एवं समापन )


स पाँच म कायकता को सम त काय णाली का मू यांकन कर सम या का उपचार करना चािहए एवं स
छठव म कायता ारा िनधा रत िकए गए उ े य के अनु प व प प रणाम ा त हो जाने पर ि या का
समापन कर देना चािहए।

सामािजक वैयि क सेवा का कौशल और िस ांत


िविभ न िव ान ने सामािजक वैयि क कायकता म यु त िकए जाने वाले िविभ न कौशल का
वणन िकया है जैसे:
1. संबंध थापना का कौशल
2. सम या का गहराई के साथ अ वेषण करने का कौशल
3. मानव यवहार के ान का कौशल
4. उपल ध संसाधन के उपयोग का कौशल
5. सम या समाधान-ढूँढने का कौशल
6. संचार कौशल

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 161


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

उ त इकाई म संचार कौशल के संदभ म िव तृत वणन तुत िकया जा रहा है।
इन कुशलताओ ं के साथ कायकता और सेवाथ के बीच संबंध िनि चत करने हेतु एफ.बी. बी टेक
(1957) ने The Casework Relationship म कायकता –सेवाथ संबंध के िन निलिखत िस ांत बताएँ
है-
1. वीकृ ित िस ातं
2. गोपनीयता का िस ातं
3. वैयि करण का िस ातं
4. भावनाओ ं का उ े यपणू गटन का िस ातं
5. िनयिं त सवं गे ा मक सबं धं का िस ातं
6. अिनणया मक मनोवृि
7. सेवाथ का आ म-िनधारण का अिधकार

1.4 संचार क अवधारणा


संचार का येक मानव जीवन म अ यंत मह व होता है। इसी तकनीक के मा यम से येक यि
अपनी बात या आव यकताओ ं को दसू रे यि तक पहँचाने का यास करता है। यह एक ऐसा मा यम है
िजसक सहायता से कायकता संपणू ि या को सफलतापवू क ि याि वत करता है। येक कायकता म
सेवाथ के ित पर पर काय क िव वसनीयता और सहजता को थािपत िकया जाना एक आव यक पहलू
होता है। कायकता का यह उ तरदािय व होता है िक वह अपनी बात, सझु ाव, मदद, ताव आिद को सेवाथ
के सम रखे साथ ही उसे उिचत अिभ यि भी दे सके । इसी कुशलता के िलए संचार कौशल क
आव यकता मह वपणू सािबत होती है। सचं ार कौशल म सेवाथ के ित सवं दे ना, उ साह व सहानभु िू त कट
करने के साथ सकारा मकता आिद को य त करने क द ता मह वपणू होती है। हांलािक यह ि थित पर
िनभर करे गा िक िकस प रि थित म िकस कार का सचं ार करना उिचत होगा। वह संचार कौशल के प म
तकनीक का योग भी ासंिगक होता है। ाय: संचार के िकसी मा यम का योग सेवाथ या सेवाथ समहू
को बेहतर समझ िवकिसत करने म मदद करता है। यह एक कार से बात रखने और पर पर समझने क कला
है िजसक िनपणु ता का लाभ समाजकाय के े म सचं ार कौशल के मा यम से िकया जा सकता है।
वैयि क कायकता तब सफल माना जाता है जब वह सेवाथ से संचार ि या करने क िविध म िनपणु
होता है । इसी संदभ म के .ए.हसन ने तीन कार से संचार कौशल को बताया है –
(1) सांवेिगक तर म संचार – जब कोई कायकता (िचिक सीय) सेवाथ के ित सिह णतु ा तथा लगाव
दिशत करते हए उसक सम याओ ं को यान पवू क सुनता है तो सेवाथ के मन म यह भाव आने लगते है
िक कायकता उसम िच ले रहा है तो वह गोपनीय त य को बताने म िहचिकचाहट महससू नह करता है ।
संबंध घिन ठ तभी बनते ह जब सेवाथ अपनी संपणू बात को कायकता से बताए ।
(2) सां कृितक तर पर सच ं ार – कायकता को पवू से अवगत होना चािहए िक वह िजस सेवाथ के साथ
काय कर रहा है वह िकस सां कृ ितक प रवेश से है य िक सां कृ ितक वातावरण से सेवाथ क सम या का

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 162


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

जड़ु ाव कह न कह आव यक प से होता है अत: आव यक है िक सेवाथ से सां कृ ितक अनक ु ू लता के


अनसु ार यवहार करना चािहए ।
(3) बौि क तर पर संचार- कायकता को हमेशा यह यास करना चािहए िक सेवाथ िजस बौि क तर
का है उसी के अनसु ार वह सचं ार एवं यवहार कर अ यथा सेवाथ को कायकता क बात समझ नह आएगी
। इस कार से सचं ार कौशल तकनीक का योग करते समय इन उपयु त बात को यान म रखना चािहए ।

1.5 संचार के कार एवं काय


सामािजक वैयि क सेवा काय ि या म संचार एक मह वपूण ि या है । इस ि या के अतं गत कायकता
सेवाथ से अपनी बात को उिचत मा यम से पहचं ाने का यास करता है । सचं ार ि या म सचं ार के अनेक
कार होते है िजनक िन न कार से समझा जा सकता है ।

संचार के कार – संचार के कार को मु य प से चार भाग म बांटा गया है -

 अतं ः वैयि क संचार (Intrapersonal Communication)


 अतं र वैयि क सचं ार (Inter Personal Communication)
 समहू संचार (Group Communication) एवं
 जनसंचार (Mass Communication)

 अतं ः वैयि क संचार (Intrapersonal Communication) : यह संचार मनु य के अतं ःमन म


सि य रहता है। आ म िववेचन, आ म िव े षण, तक-िवतक, अतं आिद इस ेणी के संचार
ह। व तुतः यह एक मनोवै ािनक ि या है जो यि के मन के दायरे म ही संप न होती है। अपने
िनजी अनभु व , िवचार , मृितय के आधार पर यह मन ही मन यि य , घटनाओ,ं भाव के
प रणाम का आक ं लन करता है।

 अतं र वैयि क संचार (Inter Personal Communication): ऐसा संचार दो या दो से अिधक


यि य के छोटे से समहू के भीतर घिटत होता है इसम ितपिु तरु ं त ही सपं न हो सकती है। अतं र
संचार क ि या म संदश े का ेषण मौिखक भी हो सकता है अथवा पश या चेहरे के हाव-भाव
या शरीर क मु ाओ ं से संभव हो सकता है। दरू भाष ारा संचार भी वैयि क संचार का ही अगं है
जबिक दोन यि आमने-सामने भी उपि थत नही होते ह।

 समहू सच
ं ार (Group Communication) : समहू सचं ार म ोता एक यि न होकर एकि त
यि समहू होता है। ोत ारा ेिषत सूचना या संदेश इसी समहू ोता के िलए ेिषत िकया जाता

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 163


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

है िजसका िहत या उ े य समान होता है और जो संदेश ाि के िलए ही एक थान पर एकि त


होता है। सभा, गो ी, स मेलन, नाटक, वाद-िववाद, संगीत-नृ य, समहू संचार के ही प ह।

 जनसंचार (Mass Communication): जनसंचार का सबं ंध आधिु नक यगु से है। पंजू ीवाद के
उदय के उपरांत िव तृत बाजार का उदय हआ। अपना माल यादा से यादा लोग तक पहचं ाने
और उ ह खरीदने के िलए यातायात और संचार के साधन पया नह हो रहे थे। दिु नया के कई देश
म लोकतांि क शासन यव था कायम होने से लोग के िवचार को अपने प म मोड़ने क ज रत
के अनसु ार ही जनसचं ार के मा यम का िवकास अित ती गित से हआ। मीिडया के मा यम से
ुत गित म अपने संदेश को यथाशी भेजने क यव था कायम हई।
जन संचार का अथ वह वृहत जन समदु ाय है िजसे संदेश ेिषत िकया जाता है। यह जनसमदु ाय समहू
के प म कह एक न होकर िबखरा होता है।

सचं ार ि या िन निलिखत काय को सपं न करती है –


• सचू ना या जानकारी देना ।
• संचार से जड़ु े यि य को े रत और भािवत करना।
• सचं ार यि य समाज और देश के बीच सबं धं थािपत करता है।
• संचार िविभ न त य िवचार मसल पर यापक िवचार िवमश करने म सहायक होता है।
• मनु य का मनोरंजन करना सच ं ार का एक मह वपणू काय है।
• संचार रा क आिथक व औ ोिगक उ नित म सहायक होता है।
संचार का मह व एवं काय – 1. सचू ना, 2. समाजीकरण, 3. ेरणा, 4. वाद-िववाद, 5. िश ा, 6. सां कृ ितक
सार, 7. मनोरंजन, 8. एक करण, 9. सामिू हक स ता क अपे ा, 10. प रवतन, 11. िनयं ण और 11.
िनयं ण एवं िनगरानी।
संचार के चार काय
5. सचू ना मक (To Inform)
6. ेरणा मक (To Intimate)
7. िश ा मक (To Educate)
8. मनोरंजना मक (To Entertainment)
संचार के त व - जे. पाल लीग स ने संचार ि या के िन निलिखत त व का उ लेख िकया है
9. सं ेषक या संचारक या ोत (Communicator or Source)
10. संदशे (Message or Content)
11. सचं ार मा यम या सचं ार सरणी (Communication Channel)
12. संकेतीकरण (Encoding)
13. संकेतवाचन (Decoding)

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 164


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

14. संचार बाधा (Communication Noise)


15. सं ाहक/ ापक अथवा ा तकता (Receiver)
16. िति या (Feedback)

1.6 िलखना बाक है


1.7 सारांश
तुत इकाई म हमने सामािजक वैयि क सेवा काय के सभी अंग को समािहत करने का यास
िकया है। िजसम सामािजक वैयि क काय क अवधारणा और इसके िनमाण म सहयोगी िविभ न
ानशाखाओ ं का अ ययन इस इकाई म िकया है। साथ ही सामािजक वैयि क सेवा काय क मल ू
मा यताओ ं पर भी काश डाला है और इसके अगं िजसम यि ,सम या, थान एवं ि या िनिहत है, का
िव तार से अ ययन िकया है। इस इकाई म सामािजक वैयि क सेवाकाय को णाली के प म समझने क
कोिशश क है, सामािजक वैयि क सेवाकाय को एक णाली के प म समझने यो य साम ी का यथासभं व
िव लेषण िकया है। हमने देखा िक संचार क अवधारणा काफ मह वपणू हो गई है। समाज काय म
सामािजक कायकता संचार क समझ से वैयि क सेवाकाय को बेहतर तरीके से ि याि वत कर सकता है।

1.8 बोध
1. वैयि क सेवाकाय क अवधारणा को प क िजए।
2. सामािजक वैयि क सेवाकाय के अथ को प करते हए इसक मल ू मा यताओ ं को िव े िषत
क िजए।
3. सामािजक वैयि क सेवाकाय के अगं भतू त व क सं ेप म चचा कर।
4. वैयि क सेवाकाय म संचार क भिू मका पर काश डािलए।

1.9 संदभ एवं उपयोगी थ



Felix Paul Biestek. (1957). The Casework Relationship.Chicago: Loyala University Press.
Gorden Hemilton. (1948). Theory and Practice of Social Case Work .Colambia University Press.
H. H. Aptekar. (1955). The Dynamics of Case Work and Counselling .Newyork: Hathton Miclin
Co.
H.H. Parlman. (1957). Social Case Work: A Problem Solving Process .Chicago: The University of
Chicago Press.
Wiliam Jems,&Others. (1955). Psychology.Fransisco Newyork: Freeman and Co.
पी. डी. म . (2003). सामािजक वैयि तक सेवा काय. लखनऊ: उ त र दे श हंद सं थान.
उपयोगी वेब िलंक
http://www.historyofsocialwork.org/PDFs/1922,%20Richmond,%20what
%20is%20social%20casework%20OCR%20C.pdf (10-09-2015)

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 165


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

http://www.yourarticlelibrary.com/sociology/social-casework-nature-
values-principles-and-trends/36541/(10-09-2015)
http://christcollegemsw.blogspot.in/

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 166


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

इकाई – 2 समहू समाज काय अ यास म सच


ं ार
इकाई क परेखा
2.0 उ े य
2.1 तावना
2.2 सामािजक समूह काय अथ एवं प रभाषाएं
2.3 समूह काय के कौशल
2.4 संचार कौशल क तकनीक
2.5 सामािजक समूह काय और संचार
2.6 सारांश
2.7 बोध
2.8 सदं भएवं उपयोगी थ

2 .0 उ े य
इस इकाई का अ ययन करने के प चात आप -
5. सामािजक समहू काय क अवधारणा को प ट कर सकगे।
6. सामािजक समहू काय क ि या एवं अगं भतू िस ांत से भली-भांित प रिचत हो सकगे।
7. संचार क अवधारणा एवं काय को रे खांिकत कर सकगे।
8. सामािजक वैयि क सेवा काय ि या म सचं ार क भिू मका को या याियत कर सकगे।
2.1 तावना
मानव समाज के इितहास म सभी देश एवं यगु म िनधन, िनराि त, अपंग, अनाथ, बेरोजगार, रोगी
यि रहे है तथा ऐसी अनेक सम याएँ आई है जहाँ इन यि य को अनेक किठनाईय का सामना करना
पड़ा है। अतः इन यि य क सम याओ ं का समाधान करने तथा इसक परे शािनय को समझने के िलए
आिद काल से यास िकए जा रहे ह। समाज काय क उ पि इ ह यास के फल व प हई है। मानव और
समाज पणू प से एक-दसू रे पर आि त है। िजस कार समाज ने मनु य को अनेक कार के मानवीय
अि त व दान िकए ह, वह समाज म अनेक कार क सम याएँ जैसे बेरोज़गारी आिद भी या ह। अतः
इन सभी सम याओ ं को दरू करने हेतु अनेक यास िकए जा रहे ह। इ ह यास के फल व प काय को
समाजकाय के नाम से जाना जाता है। आज समाजकाय के िलए के वल दया,क णा, ेम क भावना ही पया
नह है। आज समाजकाय ने यवसाय का प ले िलया है। सामािजक समहू काय को समाज काय क एक
णाली के प म यु िकया जाता है िजसम वैि य क सहायता समहू कुछ रचना मक गितिविधय के
मा यम से एवं यि य म नेतृ व का िवकास कर उ ह स म बनाने का यास िकया जाता है। समहू काय
यावसाियक गणु पर आधा रत एक काय है, िजसम िविभ न कार के कौशल एवं तकनीक का योग
िकया जाता है। समहू कायकता कुछ कौशल के साथ-साथ कुछ तकनीक का भी उपयोग संपणू समहू काय

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 167


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

ि या म करता है, िजसके आधार पर समहू के उ े य को ा त िकया जाता है। कौशल एवं तकनीक का
उपयोग समहू काय ि या ारंभ होने से अतं तक िकया जाता है। िकसी यावसाियक काय म कुशलता एवं
तकनीक का होना उसके व प व मह व को प ट करता है। मानव यवहार क जो सम याएं ह, उन
सम याओ ं का तब तक समाधान नह िकया जा सकता, जब तक िक उन सम याओ ं के समाधान हेतु िवशेष
यो यता एवं कौशल का उपयोग न िकया गया हो। उ त इकाई के मा यम से छा -छा ाओ ं को समहू काय
ि या म यु त क जाने वाली संचार कौशल के संबंध म िव तार से बताया जा रहा है।

2. 2 सामािजक समूह काय – अथ एवं प रभाषा


िविभ न िव ान ारा समहू काय क कुछ प रभाषाएँ दी गई ह- यजू टे के ारा 1935 म दी गई
प रभाषा म कहा गया है िक - ‘ वैि छक संघ ारा यि के िवकास तथा सामािजक समायोजन पर बल देते
हए तथा एक साधन के प इस संघ का उपयोग सामािजक इि छत उ े य को आगे बढ़ाने के िलए िश ा
ि या के प म सामिू हक काय को प रभािषत िकया जा सकता है।’
वायल, ेस ने 1939 म कहा िक - ‘सामािजक सामिू हक काय का उ े य सामिू हक ि थितय म
यि य क अतं : ि याओ ं ारा यि य का िवकास करना तथा ऐसी सामिू हक ि थितय को उ प न करना
िजससे समान उ े य के िलए एक कृ त, सहयोगी सामिू हक ि या हो सके ।’
िव सन ए ड राइलड (1949) -‘सामािजक सामूिहक सेवा काय एक ि या और एक णाली है,
िजसके ारा सामिू हक जीवन एक कायकता ारा भािवत होता है जो समहू क पर पर संबंधी ि या को
उ े य ाि के िलए सचेत प से िनदिशत करता है। िजससे जातािं क ल य को ा िकया जा सके ।’
हैिम टन ने सामािजक समहू काय को 1949 म प करते हए कहा िक - ‘सामािजक सामिू हक
काय एक मनोसामािजक ि या है, जो नेतृ व क यो यता और सहका रता के िवकास से उतनी ही संबंिधत
है, िजतनी सामािजक उ े य के िलए सामिू हक अिभ िचय के िनमाण से है।’
कल, आड्म (1950) - ‘‘सामिू हक काय के एक प के प म, सामिू हक सेवा काय का उ े य,
समहू के अपने सद य के यि व प रिध का िव तार करना और उनके मानवीय सपं क को बढ़ाना है। यह
एक ऐसी णाली है िजसके मा यम से यि के अदं र ऐसी मताओ ं का िवकास िकया जाता है, जो उसके
अ य यि य के साथ संपक बढ़ाने क ओर िनदिशत होती है।’
ैकर - ‘सामािजक समहू काय एक णाली है। िजसके ारा यि य क सामािजक सं थाओ ं के
अतं गत समहू म एक कायकता ारा सहायता क जाती है। यह कायकता काय म संबंधी ि याओ ं म
यि य के पर पर सबं धं ी ि या का मागदशन करता है, िजससे वे एक-दसू रे से सबं धं थािपत कर सके
और वैयि क, सामिू हक एवं सामदु ाियक िवकास क ि से अपनी आव यकताओ ं एवं मताओ ं के
अनसु ार िवकास के सअ ु वसर का अनभु व कर सक।’
कोनो का - सामािजक सामहू काय समाजकाय क एक णाली है जो यि य क सामािजक
काया मकता बढ़ाने मे सहायता दान करती है, उ े यपणू सामिू हक अनुभव ारा यि गत, सामिू हक और
सामदु ाियक सम याओ ं को भावकारी ढ़ंग से सुलझाने मे सहायता दान करती है।’’ उपयु त सम त
प रभाषाओ ं के िव लेषण के प चात कहा जा सकता है िक यजू ेट ने जी प रभाषा दी है उसम के वल

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 168


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

सामिू हक काय को एक िश ा मक ि या बताया है और कहा िक वैि छक संघ ही इस िदशा म काम करते


है। अनेक प रभाषाओ ं से प ट हो जाता है िक यह के वल िश ा मक काय ही नह करता बि क इसके ारा
सेवा दान क जाती है। यह काय वैि छक एवं सावजिनक संगठन दोन के मा यम से िकया जाता है।
है िम टन ने अपनी प रभाषा म सबसे अलग कार से समहू काय को तुत िकया है और बताया है िक
समहू काय एक मनोसामािजक ि या है। उनका मानना है िक इसके ारा यि को मानिसक तथा
सामािजक प से दोन कार से भािवत िकया जाता है। यह सामािजक उ े य क पिू त के िलए सामिू हक
अिभ िचय के िवकास का य न करता है। साथ ही साथ उनके नेतृ व एवं सहका रता क भावना के
िवकास पर बल देता है। टैकर ने सामािजक सामिू हक काय क सबसे उपयु प रभाषा दी है। उनके अनसु ार
सामािजक सामिू हक सेवाकाय को एक णाली या प ित कहा गया है िजसम एक िवशेष णाली ारा
योजनाब व सु यवि थत काय म से समहू को सेवा दान क जाती है। इसम सेवा दान करने के दौरान
वै ािनक ान, समहू बोध िस ांत एवं कौशल का समावेश होता है। ेकर ने सामािजक समहू काय को और
आगे प ट करते हए कहा है िक सामिू हक कायकता वीकृ ित, वैयि करण, काय म एवं उ े य िनधारण म
समहू क सहायता, ेरणा व िनदशन ,सगं ठन तथा साधन के उपयोग पर आधा रत सबं ंध ारा समहू का
मागदशन करता है। उ ह ने काय म िनयोजन पर भी बल दान िकया है इसम उ ह ने प िकया िक
काय म का आयोजन समूह सद य क यो यता एवं मता के अनसु ार िकया जाना चािहए। आगे उ ह ने
और िव तृत प से कहा िक यि एवं समहू के यवहार म इस कार सपु रवतन लाया जाना चािहए िजससे
वे जातांि क िस ांत जैसे समानता वतं ता, सौहा , यि का आदर, यि क यो यता म िव ास,
क य एवं अिधकार, यि क आ म िवकास क मता के िव वास और इस सबं धं म अवसर दान करने
म िव ास िकया जा सके । अत: उपयु त त य से समाज काय म समहू काय क उपयोिगता एवं इसके एक
णाली के प म काय करने को समझा जा सकता है।

2.3 समूह काय के कौशल


कौशलता यवसाय क ि से अ य त मह वपणू गणु है। सामा य भाषा म इसके अथ को काय
करने क मता के प म जाना जाता है। समूह काय ि या म यह परम् आव यक होता है िक येक
कायकता इस कार क कुशलताओ ं से यु त हो।
कुशलता का अथ
ेकर ने कुशलता के अथ को प ट करते हए िलखा िक ‘ कायकता क िवशेष प रि थितय म ान
एवं समय के उपयोग क मता ह।’
िवरजाइना रॉिब सन के अनसु ार – ‘ िविश ट व तु म प रवतन क ि या को इस कार गितशील
व िनयंि त करने क मता, िजससे व तु म होने वाला प रवतन उस व तु क द ता व गणु क उपयोिगता
और उ च कोिट के िचतं न ारा भािवत होता है।
वेब टर श द के अनसु ार िनपुणता का ता पय काय के ि या वयन व उसे पूण करने के ान एवं
द ता से है। इन प रभाषाओ ं से प ट होता है िक यि जो भी िनपणु ता ा त करता है वह उसके ान व

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 169


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

अनभु व के आधार पर होती है। जब कोई भी यि िकसी भी काय को लगातार लंबे समय तक करता रहता
है तो उसम वाभािवक प से उस काय के ित िनपुणता आना ारंभ हो जाती है।

2.4 सच ं ार कौशल क तकनीक


संचार का मानव जीवन म अ यतं मह व होता है। इसी तकनीक के मा यम से येक यि अपनी
बात या आव यकताओ ं को दसू रे यि तक पहँचाने का यास करता है। यह एक ऐसा मा यम है िजसक
सहायता से कायकता संपणू ि या को सफलतापूवक ि याि वत करता है। कायकता का यह उ तरदािय व
होता है िक वह अपनी बात, सझु ाव, मदद, ताव आिद को समहू के सम रखे साथ ही उसे उिचत
अिभ यि भी दे। इस कौशल हेतु संचार तकनीक क आव यकता होती है। संचार कौशल म समहू के ित
सवं दे ना, उ साह व सहानभु िू त कट करने के साथ सकारा मकता को य त करने क द ता मह वपणू होती
है। संचार कौशल के प म तकनीक का योग भी ासंिगक होता है। ाय: संचार के िकसी मा यम का योग
समहू को बेहतर समझ िवकिसत करने म मदद करता है। यह एक कार से बात रखने और पर पर समझने क
कला है, िजसक िनपणु ता का लाभ समाजकाय के े म सचं ार कौशल के मा यम से िकया जा सकता है।

समूह काय कौशल एवं तकनीक को अिजत करने के तरीके


सव थम कायकता ारा यि गत प से संपक िकया जाना चािहए और अपने अवलोकन मता
के आधार पर उस यि ा का खोजना चािहए जो िक समहू के साथ काय करने हेतु स म हो। आपको वयं
का तर जानने के िलए वयं क जाचं क िजए और यह ात क िजए िक आप िकस थान पर है। यान रखने
वाली बात है यह है िक सभी यि य को एक ि कोण के अनसु ार नह देखना चािहए। सभी यि य को
अलग-अलग नजर से देखना चािहए, य िक सभी यि य क यो यता िभ न-िभ न होती ह। इस कार के
गणु को आ मसात करना चािहए, काय करने म लोकतांि क नेतृ व क शैली म गहराई से आक ं लन करना
चािहए और सभी तरह से आपसी समझ को िवकिसत करना चािहए। अनभु व के आधार पर ात होता है िक
यो यता का िनधारण नेतृ व के गणु के आधार पर िकया जाना चािहए। इसके अित र त िन निलिखत त य
के मा यम से भी समहू काय म कौशल एवं तकनीक को अिजत िकया जा सकता ह।
 अनेक अ ययन जैसे- पु तकालय , ािधकृ त वेबसाइट्स, जन स, रपोट इ यािद से ासंिगक
साम ी का अ ययन कर कुशलता एवं तकनीक को अिजत करने म सहायता ा त होती है।
 समहू के साथ िकए गए काय क ितिदन क डायरी एवं िलिखत द तावेज के मा यम से अपने
आप को प रप व बनाया जा सकता है।
 वयं का मू याँकन करके ।
 आपसी अतं :ि या के मा यम से।
अत: इस कार के ान से समहू कायकता िविभ न कौशल एवं तकनीक को अिजत कर सकता ह।
समहू काय कौशल को हण करने म दसू र क सहायता आव यक प से करनी चािहए व समहू काय
कौशल के संबंध म लगातार आ मिनरी ण व पनु परी ण करते रहना चािहए।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 170


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

2.5 सामािजक समूह काय और संचार


उपयु त त य के मा यम से यह कहा जा सकता है िक सामािजक समहू काय म संचार एक
मह वपणू कौशल एवं तकनीक के प म माना जाता है। सचं ार कौशल के मा यम से कायकता समहगत ू
ि यािविध को सकुशल संचािलत करने का यास करता है। सामािजक वातालाप और प रवतन के िलए
येक समहू क मतानसु ार अनेक मा यम या संचार तकनीक को िवकिसत िकया जा सकता है। समहू काय
म सचं ार को समझने के पवू समहू को समझना अित आव यक है। सामािजक समहू ऐसे यि य का एक
सं ह या संगठन है, िजनके बीच िकसी-न-िकसी कार का संबंध पाया जाता है। समहू का अथ प करते
हए मेकाइवर एवं पेज ने िलखा है, “समहू से ता पय यि य के िकसी भी ऐसे समहू से है, जो एक-दसू रे के
साथ संबंध थािपत करते है।” टी.बी.बाटोमोर ने कहा है िक, “सामािजक समहू यि य के उस संकलन को
कहते ह, िजसम िविभ न यि य के बीच िनि त संबंध होते है और येक यि समहू और उसके तीक
के ित सचेत होता है।” अ य श द म, एक सामािजक समहू का कम-से-कम ारंिभक ढाँचा और सगं ठन
(िनयम , सं कार सिहत) होता है और उसके सद य क चेतना का मनोवै ािनक आधार होता है। इस कार
एक प रवार, गांव, रा , मजदरू संगठन अथवा राजनीितक दल एक सामािजक समहू है।
आर.बी.के टल ने अनुसार है िक समहू यि य के उस एक ीकरण को कहते ह, िजसम येक यि क
कुछ आव यकताओ ं क पिू त के िलए सभी का सहयोग िलया जाए। हेरी एम. जॉनसन भी समहू के िनमाण के
िलए यि य मे आपसी सहयोग को आव यक मानते ह।
मटन के अनुसार, समहू के िलए िन निलिखत बात का होना आव यक हैः
1) दो या दो से अिधक यि य का होना।
2) इनम सामािजक संबंध का पाया जाना। यह संबंध यि य म बार-बार अतं : ि या से ही बनता है।
3) यि को िकसी समहू का सद य माना जाने के िलए यह आव यक है िक वह वयं अपने को िकसी
समहू िवशेष का सद य समझे, उसके ित ‘हम क भावना’ रखे। साथ ही यह भी आव यक है िक
समहू के अ य सद य तथा दसू रे समहू भी उसे उस समहू िवशेष का सद य समझ।
कुछ िव ान ारा समहू को िन न कार से प रभािषत िकया गया है-
िविलयम के अनसु ार- “एक सामािजक समहू यि य के उस िनि त सं ह को कहते ह, जो पर पर
संबंिधत ि याएं करते ह और जो इस अतं :ि या क इकाई के प म ही वयं या दसू रे के ारा मा य होते ह।”
से डरसन के अनसु ार- “समहू दो या दो से अिधक उन यि य का सं ह है िजनके म य
मनोवै ािनक अतं :ि या का िनि त ितमान पाया जाता है। वे अपने एक िविश सामिू हक यवहार के
कारण अपने सद य तथा सामा य प से दसू रे के ारा ही एक वा तिवक व तु माने जाते है।”
सै रफ एवं सै रफ के अनसु ार- “समहू एक सामािजक इकाई है, िजसका िनमाण ऐसे यि य से होता
है, िजनके बीच ( यनू ािधक) िनि त प रि थित एवं भिू मका िवषयक संबंध हो तथा यि -सद य के
आचरण को, कम-से-कम समहू के िलए मह वपणू मामल म, िनयिमत करने के िलए िजसके अपने कुछ
मू य या आदश-िनयम ह ।”

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 171


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

आर.एम.िविलयम के अनसु ार – ‘एक सामािजक समहू मनु य के उस िनि त समदु ाय को कहते ह,


जो अतं :संबंिधत भिू मकाओ ं को अदा करते ह और जो अपने या दसू र के ारा अतं ःि या क इकाई के प
म वीकृ त होते ह।’
कूले ने अपनी पु तक ‘सोशल आगनाइजेशन’ (Social Organization) म सन 1909 म
ाथिमक समहू क अवधारणा को ततु िकया। कूले ने ाथिमक समहू को प करते हए कहा िक िजन
सद य म आमने-सामने के संबंध पाए जाते हो अथात सद य एक-दसू रे के संपक म य प से आते ह ,
उस समहू को ाथिमक समहू के नाम से जाना जाता है। जैसे- िम , पड़ोसी, साथी, प रवार के सद य तथा
सदैव िमलने वाले लोग आते ह। चा स कूले ने सव थम खेल-कूद के सािथय , प रवार तथा पड़ोस क
कृ ित को प करने हेतु ही ‘ ाथिमक समहू ’ श द का योग िकया है। कूले ने ाथिमक समहू के संदभ म
कहा है िक ये समहू ाथिमक समहू इसिलए है, य िक ये मह व एवं भाव क ि से यि के जीवन म
ाथिमक है।
ाथिमक समहू को प रभािषत करते हए चा स कूले ने िलखा है िक ाथिमक समहू से मेरा ता पय ऐसे
समहू से है िजनक िवशेषता आमने-सामने के घिन संबंध और सहयोग है। वे अनेक अथ म ाथिमक है,
परंतु मु यतः इस बात म िक वे यि क सामािजक कृ ित और आदश के िनमाण म मौिलक है। घिन
सबं धं का प रणाम यह होता है िक एक सामा य सपं णू ता म वैयि कताओ ं का इस कार एक करण हो जाता
है, िजससे ायः कई योजन के िलए यि का अहम समहू का सामा य जीवन और उ े य बन जाता है।
इस संपणू ता के वणन के िलए अित सरल िविध ‘हम’ कहना ह, य िक यह अपने म उस कार क
सहानुभिू त और पार प रक एका मीकरण (Mutual Identification) को समािव करता है, िजसके
िलए ‘हम’ ही वाभािवक अिभ यि है। ाथिमक समहू को प रभािषत करते हए, िजसबट ने कहा िक
ाथिमक समहू यि गत सबं ंध पर आधा रत होता है, िजसम सद य तरु ं त एक-दसू रे के साथ यवहार करते
ह। अ य समाजशा ी िक बाल यंग ने ाथिमक समहू के संदभ म कहा है िक ाथिमक समहू म पर पर
घिन आमने-सामने के संपक होते ह और सभी यि सम प काय करते ह। ये ऐसे क -िबंदु ह जहां यि
का यि व िवकिसत होता है। इन सभी प रभाषाओ ं के मा यम से यह कहा जा सकता है िक कूले ने
प रवार, ड़ा समहू व पड़ोस को ाथिमक समहू माना है, जबिक मैकाइवर व पेज ने प रवार, ड़ा-समहू ,
िम -मडं ली, गपशप समहू , साझेदारी, थानीय भाईचारा, अ ययन समहू , गग, जनजाित प रषद् आिद को इस
ेणी म रखा है।
समहू संचार कई सामािजक प रवेश म पाया जाता है। जैसे- क ा, रंगमचं , कमेटी हॉल, बैठक
इ यािद। अनेक िव ान ारा समहू सचं ार म सद य क सं या को 20 माना गया है। जबिक कुछ िव ान
सं या के आधार पर नह वरन गणु ा मक आधार पर समहू संचार को मानते है। गणु के आधार पर यिद
वग करण कहा जाए तो यह कहा जा सकता है िक समहू सचं ार और अतं रवैयि क सचं ार के कुछ गणु
आपस म िमलते है। समहू संचार िकतना बेहतर होगा, फ डबैक िकतना अिधक िमलेगा, यह समहू के धान
और उसके सद य के पर पर स ब ध पर िनभर करता है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 172


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

िवशेषताएं :
समहू संचार िक िवशेषताओ ं को िन न कार से समझा जा सकता है :
 समहू सच ं ार म जो ापक होता है उसक सं या िनि त मानी जाती है। सभी अपनी इ छा व साम य
के अनसु ार सहयोग करते ह,
 समहू संचार म सद य के बीच समान प से िवचार , भावनाओ ं का आदान- दान होता है,
 सच ं ारक और ापक के बीच िनकटता होती है,
 िवचार-िवमश के मा यम से सम याओ ं का समाधान िकया जाता है,
 समहू संचारक का उ े य सद य के म य चेतना का िवकास करना होता है। इस आधार पर यह कहा
जा सकता है िक ापक को चेतना िवकिसत कर दािय व बोध कराना होता है,
 समय-समय पर फ डबैक सद य से ा होता रहता है, और
 सम या के मल ू उ े य के अनु प संदश े स ेिषत िकया जाता है।
समहू सच ं ार म ोता एक यि न होकर एकि त यि समहू होता है। ोत ारा ेिषत सचू ना या सदं श े
इसी समहू ोता के िलए ेिषत िकया जाता है िजसका िहत या उ े य समान होता है और जो संदेश ाि के
िलए ही एक थान पर एकि त होता है। सभा, गो ी, स मेलन, नाटक, वाद-िववाद, संगीत-नृ य, समहू संचार
के ही प ह। िन न िबंदओ ु ं के मा यम से सामािजक समहू काय और संचार के मह व को और अिधक प ट
प से समझा सकता है।
 िकसी समहू क छिव िनमाण क मत, योगदान क Trick अथवा Branding कर सकता है।
 समहू क पार प रकता के आधार के प म संचार और इसके मा यम अपनी भिू मका िनभा सकते
है।
 सपं क, पनु सयं ोजन, नई पहल, सचू ना का आदान- दान, सहभागी उ थान करने म सचं ार मा यम
उपयोगी हो सकता है।
 एक और अिभ यि का मचं जो िक िकसी समदु ाय क वकालत तथा अपील करने म अ य सभी
यास से ती व उ कृ ट हो सकता है। ऐसा काय भी सचं ार मा यम ही कर सकते ह।
 समहू को एकि त िकए िबना भी समहू को उसक मल ू भावना और उ े य से जोड़ने म ि या वयन
म िवकिसत प र य क थापना कर सकते है।
 सच ं ार तथा इसके मा यम सू य िवसगं ितय को सीिमत कर एक पया त रचना मक/सजना मक पथ
को िनिमत करता है।
 यह समहू म आभासी िव वास है य िक इसक उपल धता समय, सिु वधा तथा अ य तरीक से
अिधकािधक दी जा सकती है।
 संचार मा यम मानव संसाधन को भी कम और यवि थत प से िवकिसत करने म अपना योगदान
देते है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 173


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

 मा यम आिद के वीकार या खा रज करने के अलावा कई मानद ड से सामािजक काय को प


देने का काय हो सकता है। वह इस ि से शोध या अनसु धं ान करने म भी मदद क जा सकती है।
 सच ं ार मा यम समहू के िलए एजडा सेिटंग (Agenda setting) का भी काय करने म स म ह।
 किठन ल य के ित सहज काय योजना और ि या वयन का ा प उपल ध करना।
 समान ल य के अनसु ार सामािजक िवपणन (Social marking) को थानीय, े ीय, रा ीय व
अतं ररा ीय तर पर उपयोगी बनाने के िलए सचं ार मा यम अपनी भिू मका िनवहन कर सकते है।
 बड़े फै सले और पहल को प रिचत और उनके अ य न के समाधान हेतु तथा प रचालन के िलए
संचार मा यम उपयोगी है।
 गित काययोजना को लागू करने के साथ अनके िवसगं ितय को बधं न के साथ आगे बढ़ने का
माग है सचांर मा यम का उपयोग।
 संचार संगठना मक यव था के िलए अनेक जनमा यम व उनके उपकरण का योग, जनसंपक
आिद से समझने व यक न िदलाने म एक बेहतव प ट परेखा तैयार करता है।
समूह संचार हेतु आव यक त व
संचार को समहू म ेिषत करने हेतु कुछ आव यक त व का उपयोग करना पडता है िजसम समहू
कायकता यह बखबू ी कार से िनभाता है। एक अ छे कायकता क मता का आँकलन उसके बौि क तर
के साथ उसक कायशैली के आधार पर भी करना चािहए। समहू म भावी संचार के िलए आव यक है िक
कायकता को समहू क यो यता एवं मता के अनसु ार समहू से बात करना चािहए। कायकता को यह
आँकलन कर लेना चािहए िक िकस कार एवं िकस मा यम से समहू तक वह अपनी बात को पँहचा सकता
है जो िक समहू के िलए भावी सािबत होगी। समहू तक अपनी बात को पहचं ाने हेतु कायकता जनसंचार के
लोक मा यम- लोकगीत, लोक नृ य, नौटंक , कठपतु ली, सामिू हक गान इ यािद एवं मौिखक मा यम जैसे -
यि गत संपक, सावजिनक सभाएं इ यािद मा यम का वह योग कर सकता है। इन संचार के अित र त
कायकता को येक तर पर प रवेश के साथ सपं क थािपत करना चािहए। समहू क भावनाओ ं का समझते
हए उनसे बात करनी चािहए।

2.6 सारांश :
सामािजक समहू काय एक ऐसी णाली है जो िक वै ािनक प ित के मा यम से समहू क
सम याओ ं का समाधान करती है और समहू क आव यकता क पिू त करती ह। बेहतर सचं ार के मा यम से
कायकताओ ं इस णाली का उपयोग कुछ मह वपूण िनपणु ताओ ं एवं तकनीक के मा यम से करने का यास
िकया जाता ह। संचार समहू काय म एक भावी ि या है िजसके मा यम से समहू काय के येक चरण को
आसानी से पणू िकया जा सकता है। समहू काय म सचं ारकता ारा कौशल पणू तकनीक का योग िकया
जाता है। समहू म आ मिव वास क भावना जा त करने हेतु भी संचार अ यंत मह वपूण होता है। अत:
संचार के उिचत मा यम से कायकता समहू के ल य को आसानी से ा त कर सकता है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 174


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

2.7 बोध न
1. समहू काय से आप या समझते है ? प ट क िजए।
2. समहू काय ि या म यु त िक जाने वाली संचार कौशल तकनीक को समझाइए।
3. सामािजक समहू काय म सचं ार के मह व को प ट क िजए।
4. समहू संचार हेतु आव यक त व को बताइए।ं
5. संचार सबं ंधी िनपणु ता से आपका या ता पय ह ?

2.8 सदं भ एवं उपयोगी पु तक


1. ेकर, एच बी (1955).सोशल पु वक ि िं सप स एडं ैि टस, ययू ाक: हाइटसाइड
2. https://hi.wikipedia.org/wiki/ retrived on 03/08/2016
3. िम ा, यागदीन (2015). सामािजक समहू काय.लखनऊ : िहदं ी सं थान।
4. कोयले, एल. जी. (1947). पु इ सपी रय स एडं डेमो े िटक वै यमू . ययू ाक : िद वमू े स ेस
5. साद मिणशक ं र, स य काश, कुमार अ ण,कुमार संजय,सैफ मो.खान एवं िसंह अभव कुमार
(2103). यजू ीसी नेट/जेआरएफ/ लेट समाज काय.िद ली: अ रहतं पि लेकेशन (इिं डया) िलिमटेड।
6. तेज, संगीता. पा डेय तेज कर (2010). समाज काय. लखनऊ: जबु ली एच फाउंडेशन।
7. इिं दरा गांधी रा ीय मु िवशविव ालय (2009).सामािजक समहू काय.िद ली: समाज काय
िव ापीठ।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 175


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

इकाई -3 सामदू ाियक सगं ठन और सच


ं ार
इकाई क परेखा
3.0 उ े य
3.1 तावना
3.2 सामुदाियक संगठन: अथ तथा प रभाषाएं
3.3 सामुदाय और संचार
3.4 समुदाय और जनसच ं ार
3.5 जनसंचार के िविवध मा यम
3.6 सारांश
3.7 बोध
3.8 संदभ एवं उपयोगी ंथ

3 .0 उ े य
इस इकाई का अ ययन करने के प चात आप:-
9. सामदू ियक संगठन क अवधारणा को प ट कर सकगे।
10. सामदू ाियक सगं ठन म सच
ं ार के िविभ न मा यम सेभिल-भांित प रिचत हो सकगे।
11. सामदू ाियक संगठन म जनसंचार से अवगत हो सकगे ।

a. तावना
सामदू ाियक संगठन को समाज काय क ाथिमक णाली के प म जाना जाता है । सामदू ाियक संगठन क
ि या म कायकता िविभ न तकनीक एवं कौशल के मा यम से सामदू ाय म उ प न होने वाली सम या के
िनराकरण हेतू यास करता है । हम जानते है िक मनु य एक सामािजक ाणी है उसक इसी सामािजकता के
आधार पर वह िकसी न िकसी समहू का सद य आव यक प से होता है । समदु ाय म आव यक त व ‘हम
क भावना’ होती है जोिक िकसी न िकसी िनि चत भौगोिलक े म िनवास करता है । समदू ाय संगठन म
संचार को एक आव यक कौशल के प म माना जाता है िजसके मा यम से जनसमदू ाय तक िकसी भी त य
को आसानी से पहचं ाया जा सकता है । सचं ार वतमान समय म एक सश त मा यम माना जाता है। सच
ं ार का
एक सश त मा यम जनसंचार है िजसने पूंजीवादी समाज को ज म िदया है। वैशिवक प र य म
समान/व तओ ु ं क खरीदी – िव हेतू जनसंचार को िवशेष मह व गट होता है । जनसंचार का संबंध
आधिु नक यगु से है। पजंू ीवाद के उदय के उपरातं िव तृत बाजार का उदय हआ। अपना माल यादा से
यादा लोग तक पहचं ाने और उ ह खरीदने के िलए यातायात और संचार के साधन पया नह हो रहे थे।
दिु नया के कई देश म लोकतािं क शासन यव था कायम होने से लोग के िवचार को अपने प म मोड़ने
क ज रत के अनसु ार ही जनसचं ार के मा यम का िवकास अित ती गित से हआ। मीिडया के मा यम से
ुत गित म अपने संदशे को यथाशी भेजने क यव था कायम हई। वतमान इकाई के मा यम से िव ािथय

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 176


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

को सामदू ाय म यु त िकए जाने वाले जनसंचार के मा यम के बार म अवगत कराया गया है िजससे िक जन
समदू ाय तक अपनी बात को आसानी से पहचं ाया जा सके ।

3.2 सामुदाियक सगं ठन: अथ तथा प रभाषाएं


शाि दक ि से समदु ाय के अथ पर िवचार िकया जाए तो हम देखते है िक अं ेजी का ‘Community’
(समदु ाय) श द लैिटन के दो श द - ‘Com’ तथा ‘munis’ से िमलकर बना है। Com का अथ
‘together’ अथात ‘एक साथ’ से और ‘munis’ का अथ ‘Serving’ अथात ‘सेवा करने’ से है। इन श द
के आधार पर समदु ाय का ता पय साथ-साथ िमलकर सेवा करने से है। दसू रे श द म कहे तो समदु ाय का
अथ यि य के ऐसे समहू से है जो िनि त भ-ू भाग पर साथ-साथ रहते है और िकसी एक उ े य के िलए
नह बि क सामा य उ े य के िलए इनम रहते ह। उनका स पणू जीवन सामा यत: यह यतीत होता है।
सामदु ाियक संगठन ि या का उपयोग समदु ाय क आव कताओ ं को ात करने एवं सम या के िनराकरण
हेतू कायकता के ारा िकया जाता है । यावसाियक कायकता िविभ न तकनीक एवं कौशल के मा यम से
समदु ाय क सहायता करता है। सामदु ाियक सगं ठन एक प रवतनशील अवधारणा है, इसी कारण इसक
सवमा य प रभाषा देना संभव नही है। िकंतु िविभ न िव ान के ारा सामदु ाियक संगठन को िन न कार से
प रभािषत करने का यास िकया है–
 डलै डर- ‘‘सामदु ाियक संगठन िकसी भौिगिलक े म समाज क याण आव यकताओ ं तथा
सामदु ाियक संसाधन के बीच उ तरो तर अिधक भावशाली समायोजन थािपत करने वाली
समाज काय ि या है।’’
 डनहम- ‘‘समाज क याण के िलए सामदु ाियक संगठन का अथ एक भौगोिलक े या काय े के
समाज क याण संसाधन म समायोजन लाने तथा बनाये रखने क ि या से है।’’
 पैिटट- “सामदु ाियक संगठन एक समहू के लोग क उनक सामा य आव यकताओ ं को पहचानने
तथा इन आव यकताओ ं क पिू त म सहायता करने के प म उ म कार से प रभािषत िकया जा
सकता है।”
 लेन- “सामदु ाियक संगठन का सामा य उ े य समाज क याण आव यकताओ ं और समाज
क याण साधन के म य गितशील एवं अिधक भावशाली समायोजन लाना और उसे बनाए
रखना है। इसका ता पय है िक सामदु ाियक संगठन का संबंध 1. आव यकताओ ं क खोज और
प रभाषा, 2. सामािजक आव यकताओ ं और अयो यताओ ं क जहां तक संभव हो रोकथाम व
समाि , 3. प रवितत होती आव यकताओ ं को अ छे ढंग से परू ा करने के िलए साधन से समिु चत
उपयोग से है।”
 रॉस- ‘‘सामदु ाियक संगठन ऐसी ि या है िजसके ारा कई लोग अपनी सा ी आव यकताओ ं
और उ े य क पहचान करते है, इन आव यककताओ ं तथा उ े य को म म रखते है। इन
आव यकताओ ं तथा उ े य के िलए िव वास एवं काय क इ छा का िवकास करते है, इनसे

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 177


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

िनपटने के िलए संसाधनो का पता लगाते है, उनके एवं सहयोगा मक वृि य वृि य एवं ि या
यवहार का िवकास एवं िव तार करते है।’’
 सै डरसन ए ड पो सन- “सामदु ाियक संगठन का उ े य समहू तथा यि य के म य ऐसे
स ब ध िवकिसत करना है िजससे उ ह ऐसी सिु वधाओ ं तथा सम याओ ं का िनमाण करने तथा उ ह
बनाये रखने के िलए एक साथ काय करने म सहायता िमलेगी तथा िजसके मा यम से समदु ाय के
सभी सद य के समान कलयाण म अपने उ चतम मू य का अनभु व कर सके ।”
 िल डमैन- वष 1921 म कािशत िल डेमनै क पु तक, उ री अमे रका क पहली ऐसी पु तक है
िजसम सव थम सामदु ाियक सगं ठन िवषय को ततु िकया गया। िल डेमनै ने सामदु ाियक सगं ठन
को सामदु ाियक संगठन के उन चरण के प म प रभािषत िकया िजनसे समदु ाय क ओर से अपने
यवहार व मामल को लोकतांि क िविध से िनयंि त करने तथा पार प रक मा यता ा त
अतं सबधं के उपाय ारा इनके िवशेष , सगं ठन , एजिसय तथा सं याओ ं क ओर से उ चतम
सेवाएं संकिलत करने का चेतनापणू यास िकया जाता है।
 मरे जी. रोस- सामदु ाियक संगठन पर मरे जी रोस का लेखन संभवत: िविश कोिट का था। उनके
लेखन का अमे रका म सामदु ाियक संगठन के अ यास को लोकि य बनाने म अभतू पवू योगदान
रहा। उनका मानना था िक सामदु ाियक संगठन एक ऐसी ि या है, िजसके ारा समदु ाय अपनी
आव यकताओ ं अथवा उ े य के िलए काम करने का िव वास अिजत करता है और इन
आव यकताओ ं और उ े य को परू ा करने के िलए संसाधन (बाहरी और आतं रक) व साधन
तलाशता है, उनके बारे म कायवाही करता है, और साथ ही समदु ाय म सहयोगा मक व सहभागी
अिभवृितय तथा यवहार का िव तार व िवकास करता है। उ ह ने सामदु ाियक संगठन के तीन
मखु दिु कोण क पहचान क है-
A. िविनिद ट िवषयव तु ि कोण: इसके ारा कोई कायक ा अथवा सगं ठन िकसी सम या
अथवा सम याओ ं के समु च को पहचानकर उनका समाधान तुत करने के िलए िकसी
काय म का िनयोजन करता है ।
B. सामा य ि कोण: इसके ारा कोई समहू , संगठन अथवा प रषद िविश ट े म सेवाओ ं के
समि वत तथा सिु नयोिजत िवकास का य न करता है ।
C. ि या ि कोण: इसका उ े य िवषयव तु (सिु वधाएं या सेवाए) नह , बि क एक ि या
का िनवाह करना होता है िजसम समदु ाय से संबि धत लोग ारा अपनी आव यकताओ ं तथा
सम याओ ं को पहचानने तथा उसके बारे म कायवाही करना सि मिलत होता है।
 हापर- हापर (1959) के अनुसार सामदु ाियक संगठन समाज क याण के िनर तर अिधकािधक
संसाधन और सामदु ाियक आव यकताओ ं के बीच भावी समायोजन बनाने का एक यास होता
है। यह प रभाषा इन मलू िब दुओ ं से संबि धत है:
A. आव यकता क खोज और िनधारण
B. सामदु ाियक आव यकताओ ं तथा अ मताओ ं का उ मल ू न व रोकथाम

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 178


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

C. संसाधन तथा आव यकताओ ं का स ब ध और


D. बदलती हई आव यकताओ ं का बेहतर सामना करने के उ े य से लगातार पनु : समायोजन ।

उपरो त िव ान ारा तुत क गयी सामदु ाियक संगठन क प रभाषाओ ं से प ट होता है िक यह


सामदु ाियक सद य म अपनी सम याओ ं एवं आव यकताओ ं को उपल ध साधन के आधार पर
समसया ् समाधान हेतु यु त िक जाने वाली एक णाली है ।

सामुदाय के सदं भ म िन न सवमा य त व को देखा जा सकता है :


 यह एक िनि त भ-ू भाग म रहने वाले सद य का समहू है ।
 यह ि या कायकता के ान तथा कौशल पर आधा रत है।
 यह एक ि या है िजसके ारा समाज पहले से अिधक समरा मक व रचना मक प से काय करने
क मता िवकिसत करता है। कता इस ि या को जान-बूझकर उपयोग म लाता है।
 इस ि या के ारा समदु ाय अपनी मल ू भतू आव यकताओ ं को जानने तथा उनक पूित क मह ा
को पहचानने म सफल होता है।
 समदु ाय वयं क आव यकताओ ं क पूित तथा सम या समाधान का यास करता है। इस ि थित म
कता का पहला काय समदु ाय क आव यकताओ ं पर यान आकृ ट करने म सहायता करना होता है
िजनसे उनका स पणू जीवन भािवत होता है।
 कायकता का यास होता है िक वह समदु ाय म उ प न सम याओ ं के िनराकरण हेतु यास करता है

 कता समदु ाय को उन संसाधन क खोज करने म तथा उन सं थाओ ं का पता लगाने म सहायता
करता है िजनसे आव यकताओ ं क पिू त तथा सम याओ ं का समाधान सभं व है।

3.3 समुदाय और सच ं ार
सामदु ाियक सगं ठन क ि या म सचं ार का उपयोग समदु ाय के सद य को स म(Capable) बनाने के ,
सद य को जाग क बनाने एवं सहभािगता के िलए मु य प से िकया जाता है । समदु ाय को जानने और उसे
बताने के िलए अ य समहु से िविश ट सचं ार करने के िलए समदु ाय के अनेक सरं चना मक और सगं ठना मक
ा प का िवकास िकया जाता है । साथ-साथ म बंधन हेतु संचार िजसम भाषा ान व िच के तर पर
उपयोिगता व समझ के तर पर थानीयता से लेकर वैि वक तर का भाव ात िकया जाता है । िन न
िबदं ओ
ु ं के मा यम से समदु ाय म सच
ं ार को िन न कास से समझा जा सकता है –
 समदु ाय म नेतृ व एवं कायकुशलता हेतु संचार का अिधक मह व होता है ।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 179


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

 जनमत िनमाण और उसे ा त करने हेतु सामदु ाियक तर पर संचार ारा अिधकािधक
योग िकए जा सकते है ।
 समदु ाय क आव यकताओ ं के आधार पर जीवन व सभं ावी उ े य के िनिहताथ
सश त संचार ही कर सकता है ।
 सामदु ाियक तर पर समान व पारदश यवहार के िलए तथा छोटे-छोटे समहु पर
िनधा रत सचं ार णाली और बधं न का सू धार ।
 सार और आ ह के िलए संचार ।
 योजना के अनश ु ीलन व अनक
ु रण के िलए संचार ।
 मू यांकन व िनगरानी के िलए सचं ार यव था तथा णाली का योग ।
 िनयिमत आदान- दान क सचू नाओ ं क साझा सं कृ ित तैयार करने के िलए संचार
ि या और उपकरण का योग ।
 सदं भ आधा रत व कि त िवषय तथा उप म के िलए जनमा याम का योग ।
 सा ा कार, फोकस पु के िलए िव लेषण व सव ण इ यािद हेतु ।
 शासक य और गैर-शासक य संगठन के बीच म य थता व कुशल बंधन हेतु संचार
का योग सभं व ।
 िविश ट उपबंध व सहभािगता के प रणाम के ा त करने के िलए सचं ार का उपयोग ।
 सहभािगता के िलए िविभ न जनमा यम जैसे – प -पि का, बुकलेट, प पलैट और
इले ािनक मा यम से सदं ेश , आिडय –वीिडय व नव जनमा यम के योग करना

 घटना िवशेष व समदु ाय के आपसी सहसबंध पर कुशल, ि या मक संभव ।
 मीिडया को ोत के प म योग करना ।
 वैधािनक और मािणकता के िलए संचार मा यम का योग ।
इन उपयु त आधार पर संचार को समझा जा सकता है िक यह िकस कार से जन मा यम के बीच
काय करता है । सच ं ार के मा यम म जनसचं ार एक अित आव यक मा यम है िजसने सपं णू जन
समदु ाय को वैि वक तर पर भािवत िकया है ।

3.4 जनसंचार (Mass Communication):


जन संचार वतमान समय म अ यंत ही भावी संचार मा यम है । जनसंचार श द दो श द से िमलकर बना है
जन और सच ं ार । जन का अथ जनता अथात् भीड़ । ऑ सफोड िड शनरी के अनसु ार, जन का अथ पणू प
से यि वािदता का अतं है। िग सवग के अनसु ार, जनता असंगिठत और अनाकार यि य का समहू है
िजसके सद य सामा य इ छाओ ं एवं मत के आधार पर एक दसू रे से बंधे रहते ह, परंतु इसक सं या इतनी

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 180


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

बड़ी होती है िक वे एक-दसू रे के साथ य प से यि गत स ब ध बनाये नह रख सकते ह। समहू संचार


को वृहद प म जनसंचार कहा जाता है । जनसंचार श द का सव थम योग 19 व सदी के तीसरे दशक
के अिं तम दौर म संदेश स ेषण के िलए िकया गया । संचार ांित के यगु म जैसे-जैसे समाचार प , रेिडयो,
टेलीिवजन, के बल, इटं रनेट, वेब पोट स इ यािद का योग बढ़ता गया, वैस-े वैसे जनसंचार के े का
िव तार होता गया। जनसच ं ार को अं ेजी भाषा म Mass Communication कहते ह, िजसका अिभ ाय
िबखरी हई जनता तक संचार मा यम क मदद से सचू ना को पहचं ाना है। उदाहरण प म जनसंचार के िन न
कार है –
 समाचार प
 टेलीिवजन
 रे िडयो
 िसनेमा
 के बल
 इटं रनेट
 वेब पोट स इ यािद
संचार िवशेष ने जनसंचार क िन निलिखत प से प रभािषत करने का यास िकया है :

 जोसेफ िडिवट के अनसु ार- जनसंचार बहत से यि य म एक मशीन के मा यम से सचू नाओ,ं िवचार
और ि कोण को पांत रत करने क ि या है।
 कानर के अनसु ार- जनसंचार संदेश के बड़े पैमाने पर उ पादन तथा वृहद तर पर िवषमवग य जनसमहू म
ुतगामी िवतरण करने क ि या है। इस ि या म िजन उपकरण अथवा तकनीक का उपयोग िकया जाता
है उ ह जनसंचार मा यम कहते ह।
 बाकर के अनसु ार- जनसंचार ोताओ ं के िलए अपे ाकृ त कम खच म पनु उ पादन तथा िवतरण के िविभ न
साधन का इ तेमाल करके िकसी संदेश को यापक लोग तक, दरू -दरू तक फै ले हए ोताओ ं तक रे िडयो,
टेलीिवजन, समाचार प जैसे िकसी चैनल ारा पहचं ाया जाता है।
 ले सीकॉन यूिनवसल इनसाइ लोपीिडया के अनसु ार- कोई भी संचार, जो लोग के मह वपूण प से
यापक समहू तक पहचं ता हो, जनसंचार है।
 कु पू वामी के अनसु ार- जनसंचार तकनीक आधार पर िवशाल अथवा यापक प से लोग तक सचू ना के
सं ह एवं ेषण पर आधा रत ि या है। आधिु नक समाज म जनसंचार का काय सचू ना ेषण, िव े षण,
ान एवं मू य का सार तथा मनोरंजन करना है।
 जॉज ए.िमलर के अनसु ार- जनसंचार का अथ सचू ना को एक थान से दसू रे थान पहचं ाना है।
 डी.एस. मेहता के अनसु ार- जनसंचार का अथ जनसंचार मा यम जैसे- रे िडयो, टेलीिवजन, ेस और
चलिच ारा सचू ना, िवचार और मनोरंजन का चार- सार करना है।
 रवस िपटरसन और जॉनसन के अनसु ार-

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 181


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

 जनसंचार ि या एक तरफ से होने वाली ि या है ।


 इस ि या के अतं गत संदेश का सार अिधक होता है ।
 सामािजक प रवेश जनसंचार को भािवत करता है तथा जनसंचार का असर सामािजक प रवेश पर
पड़ता है।
 जनसचं ार मा यम से जो सचू ना आमजन तक पहचं ाई जाती है उसके िलए यह उपयु त समय का
चयन करता है ।
 जनसंचार आमजन तक सचु ना पहचाने का एक सश त मा यम है ।

 डेिनस मैकवेल के अनसु ार-


- जनसचं ार के िलए औपचा रक तथा यि थत सगं ठन ज री है, य िक सदं ेश को िकसी मा यम
ारा
िवशाल जनसमहू तक पहचं ाना होता है।
- जनसचं ार िवशाल, अप रिचत जनसमहु के िलए िकया जाता है।
- जनसंचार मा यम सावजिनक होते ह। इसम भाषा व वग के िलए कोई भेद नह होता है।
- ोताओ ं क रचना िवजातीय होती है तथा वे िविभ न सं कृ ित, वग, भाषा से स बि धत होते ह।
- जनसंचार ारा दरू -दराज के े म एक ही समय पर स पक संभव है।
- इसम संदेश का यांि क प म बहल सं या म तुितकरण या स ेषण होता है।

उपयु त प रभाषाओ ं के आधार पर यह कहा जा सकता है िक जनसंचार यं संचािलत संचार है


िजसके मा यम से िकसी भी संदेश को शी ता के साथ पहचं ाया जा सकता है ।

समुदाय म जनसच ं ार क िवशेषताएं :


जनसचं ार म सदं श
े को िषत करने के िलए मा यम का मख ु मह व होता है । कौन सा मा यम
जनसंचार हेतू उपयु त े के िलए भावी होगा यह चयन एक मह वपणू ि या है । जनसंचार
मा यम से सचू नाओ ं को ेिषत करने क िन न िवशेषताओ ं को देखा जा सकता है ।

 जनसंचार के मा यम के ारा अलग-अलग थान म रहने वाले यि य को एक साथ


सचू ना पहचं ाई जा सकती है ।
 िव तृत े म रहने वाले यि य से सपं क थािपत िकया जा सकता है ।
 सभी यि य के िलए संदेश समान प से खल ु ा होता है।
 संचार मा यम क मदद से संदेश का स ेषण िकया जाता है।
 िकसी भी स ेषण हेतू एक औपचा रक सगं ठन होता है ।
 सावजिनक सचं ार मा यम का उपयोग अिधक िकया जाता है ।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 182


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

3.5 जनसंचार के िविवध मा यम


जनसंचार हेतू िविवध कार के मा यम को देखा जा सकता है िजनक अपनी-अपनी िविश टताएं होती है ।
इन सभी जन मा यम का उपयोग समदु ाय को देश-िवदेश क जानकारी दान कराना है िजससे क सम त
जन को आव यक जानकारी ा त हो सके । साथ- साथ म कुछ मा यम का उपयोग जनता के मनोरंजन के
िलए भी िकया जाता है । इन जन मा यम को िन न कार से देखा जा सकता है । कुछ जन मा यम आधिु नक
है एवं कुछ लोकमा यम है ।
 मिु त मा यम- समाचारप , पि काए,ं पु तक व िव ापन आिद।
 घोिषत श द- आकाशवाणी।
 य य मा यम- दरू दशन, वीिडयो और िफ म।
 लोक मा यम- लोकगीत, लोक नृ य, नौटंक , कठपतु ली, सामिू हक गान आिद।
 मौिखक- यि गत संपक, सावजिनक सभाएं आिद।
 े ीय सार- िफ म, िसनेमा, लाइड, योन साइन, मिु त मा यम आिद।
कुछ सामदु ाय आधा रत जनसंचार के मा यम को िव तृत कार से समझा जा सकता है।

 दूरदशन (Doordarshan)
दरू दशन का सव थम पहला सारण 15 िसत बर, 1959 को आकाशवाणी भवन, नई िद ली म
िकया गया। वष 1965 म समाचार बल ु ेिटन का िनयिमत सारण शु हआ। सात वष बाद मु बई म दसू रे
टेलीिवजन के म सारण सेवा शु हई। रंगीन सारण क शु आत वष 1982 म नई िद ली म आयोिजत
एिशयाई खेल के दौरान हई। इस समय दरू दशन के 25 चैनल से काय मिदखाए जा रहे ह। डी.डी., नेशनल
डी.डी. यजू , डी.डी. पोट्स, डी.डी. भारती, डी.डी. ानदशन आिद।डी.डी. नेशलन के मा यम से जो
काय म िदखाएं जाते है वे मु य प से रा ीय एकता को बढ़ावा देने वालक तथा एकजटु ता एवं भाईचारे
क भावना पैदा करने वाले होते है। गणु व तायु त िश ा तक सबक पहँच कायम करने के उ े य से दरू दशन
ने 26 जनवरी, 2000 से शै िणक चैनल ान दशन आर भ िकया है। यह उप ह चैनल इ नू और मानव
संसाधन िवकास मं ालय के सहयोग से संचािलत िकया जा रहा है
ेस एवं ि ट / समाचार प पज ं ीयक (Press and Print Media)
सन 1953 म थम अयोग क िसफा रश के आधार पर 1 जल ु ाई, 1956 को भारत के समाचार प
पंजीयन या ेस पंजीयक का कायालय अि त व म आया। वष 2003-2004 क रपोट के अनसु ार 31 माच,
2004 तक पंजीकृ त समाचार प /पि काओ ं क कुल सं या 58,469 थी। इसम 6,287 दैिनक, 361 ि /ि
सा तािहक, 20,329 सा तािहक, 7,694 पाि क, 17,124 मािसक, 4,101 ैमािसक, 541 वािषक एवं
2,032 अ य काल अविध के थे। िद ली म 11 भाषाओ ं म प -पि काओ ं का काशन हआ। इसके बाद
महारा म 10 भाषाओ ं म,के रल तथा कनाटक म 9-9 भाषाओ ं म तथा पि मी बगं ाल म 7 भाषाओ ं म
काशन हआ। उ तर देश म सबसे अिधक (9,492) समाचार प का पंजीकरण हआ। महारा से
कािशत हो रहा ‘बा बे समाचार’ देश का सबसे परु ाना अखबार है।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 183


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

समाचार एजेि सयाँ (news Agencies)


ेस ट ऑफ इि डया (पी.टी.आई) : यह भारत क सबसे बड़ी समाचार एजे सी ह, जो िबना िकसी
मनु ाफे के चलाई जाने वाली सहकारी सं था है। इसक थापना 27 अग त, 1947 को हई और 1 फरवरी,
1949 से इसने अपनी सेवाऍ ं ार भ कर दी। पी.टी.आई. अं ेजी और िह दी म अपनी समाचार सेवाऍ ं दे रही
है। भषा एजे सी क िह दी समाचार सेवा है।
यूनाइटे ड यूज ऑफ इि डया (यू.एन.आई.) : यनू ाइटेड यजू ऑफ इि डया क थापना वष 1956 के
क पनी कानून के तहत 19 िदसंबर, 1956 को हई। यह सं था मु य प से 21 माच, 1961 से काय करना
शु िकया। वष 1982 म असने पणू प से िह दी तार सेवा ‘यिू नवाता’ का शभु ार भ िकया और भारत क
पहली िह दी समाचार एजे सी बन गई।
गुटिनरपे समाचार एजे सी पूल : यह सं था वष 1976 से ारंभ हई इसका उ े य मु य प से
गटु िनरपे देश क समाचार एजेि सय के बीच समाचार आदान- दान क यव था करना है। था। यह
एजे सी मु य प से अं ेजी, पेिनश, च और अरबी म समाचार िषत करती है ।
भारतीय ेस प रषद : 11 माच, 2005 को यायमिू त ी जी.एन. रे को भारतीय ेस प रषद का अ य
बनाया गया। इसक थापना समाचार प क वत ता क र ा करने और भारत म समाचार प और
समाचार एजेि सय के तर को बनाए रखने और उसम सधु ार लाने के उ े य से िकया गया ।
य- वय मीिडया (Audio-Visual Media)
वष 1895 म तिु मयर ब धुओ ं ारा मोशन िप चर फोटो ाफ के बाद य मीिडया अि त व म
आया। मक ू िफ म के यगु म वष 1912-13 म आर.जी.टोनी ने एन.जी. िच े के साथ एक िफ म ‘पु डिलक’
बनाई थी। दसू री िफ म ‘राजा ह रशच् ’ दादा साहेब फा के ने बनाई थी। पहली भारतीय बोलती िफ म
‘आलमआरा’ आदशीर ईरानी ने बनाई।

इस कार से यह सम त समाचार एजे सी भारत म संचार के े म काय करती है िजनका मु य उ े य


समदु ाय तक जानकारी उपल ध कराना है । िजससे िक सम त जन अपने अिधकार कत य एवं अ य
आव यक मह वपणू जानकारी को ा त कर सक ।

3.6 सारांश
सामदू ाियक सगं ठन णाली के मा यम से जन समदु ाय क आव यकताओ ं को जानकर उनक सम या
समाधान का यास िकया जाता है । सामदू ाियक सगं ठन णाली म अनेक कौशल तकनीक का योग िकया
जाता है िजससे िक यह ि या आसानी के साथ क जा सके । संचार सामदू ाियक संगठन म एक मख ु
कौशल एवं तकनीक के प म उपयोग िकया जाता है । संचार क महती भिू मका मु य प से सामदू ाय के
म य सबं धं थापन से लेकर सचू नाओ ं के आदान- दान तक क जाती है । वतमान समय म समदू ाय हेतू
जनसंचार मा यम का योग मु य प से िकया जा रहा है । िजससे िक सामदू ाय म उ प न सम याओ ं का
िनराकरण िकया जा सके ।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 184


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

3 .7 बोध
1. सामदू ायक संगठन से आप या समझते ह ?
2. सामदू ाियक संगठन क ि या म संचार के मह व को प ट क िजए ।
3. जनसंचार या है ? वतमान समय म इसक उपयोिगता पर काश डािलए ।
4. जनसच ं ार क िविभ न मा यम को उदाहरण सिहत समझाए ।
5. समदू ाय और संचार के म य अतं संबध प ट क िजए ।

3 .8 संदभ एवं उपयोगी ंथ


1. भषू ण, िब ा एवं सचदेवा, डी.आर. (2012) समाजशा . नई िद ली:डािलग िकं सले (इिं डया)
ा.िल.
2. गु ा, एम एल एवं शमा, डीडी.(1998) समाजशा . आगरा: सािह य भवन पि लके शन.
3. िसंह, ए.एन. (2002) सामदु ाियक संगठन. पंचकूला : ह रयाणा सािह य अकादमी.
4. गु ा, एम.एल. एवं शमा, डीडी.(2004) भारतीय ामीण समाजशा . आगरा: सािह य भवन
पि लके शन.
5. Ogburn & Nimkoff (1957) A Hand Book of Sociology. Landon : Rutledge and
Kegan pall Limited.
6. Gillin,john Lewis & Gillin ,john Philip(1948) Cultural Sociology NewYork:
Macmillan Company.
7. Paul, Handershon & David, Jones &David, Thomas N.(1980)The Boundaries
of Change In Community Work . London: Allen And Anwin Publication.
8. Rozer, Hadley &Mike cooper & Graham Stacy(1987).A community Social
workers handbook. London: Tevistock Publication
9. सरदाना, चं कातं ा एवं मेहता, कृ .िश., ‘जनसचं ार कल, आज और कल’, िद ली: ान गगं ा।
10. कुल े ठ, िव. एवं जैन, ह.ं , (2005). ‘जनसंचार शोध िविधयां’, जयपरु : माया काशन।
11. िसंह, ीका त, (2001). ‘सं ेषण: ित प एवं िस ांत’, फै जाबाद : भारती पि लशस ए ड
िड ी यटू सा
12. जैन, रमेश, (2003). ‘जनसंचार एवं प का रता’, जयपरु : मगं लदीप पि लके श स।
13. Desai, Amit, ‘Journalism and Mass Communication’, New Delhi: Reference
Press Kumar, keval j., (2004). ‘Mass Communication in India’, Mumbai: Jaico
Publishing House.
14. Rayudu, C.S., (2008). ‘Communication’, Mumbai: Himalaya Publishing
House.
15. बघेल, संजय िसंह, ‘संचार, समाज और सािह य’, गािजयाबाद : के .एल. पचौरी काशन।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 185


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

इकाई – 4 सामािजक ि या एवं सच


ं ार

इकाई क परेखा
4.1 उ े य
4.2 तावना
4.3 सामािजक ि या का अथ एवं प रभाषा
4.4 सामािजक ि या के उ े य एवं े
4.5 सामािजक ि या क ासिं गकता एवं सचं ार
4.6 सामािजक ि या म संचार कौशल
4.7 सामािजक ि या पुवावलोकन
4.8 सारांश
4.9 बोध न
4.10 स दभ एवं उपयोगी थ

4.1 उ े य
इस इकाई के अ ययन प चात आप
1. सामािजक ि या के अथ एवं प रभाषा क या या कर सकगे।
2. सामािजक ि या के उ े य े को रे खांिकत कर सकगे।
3. सामािजक ि या के इितहास एवं ासंिगगकता म संचार क भािवता को समझ सकग।
4. सामािजक ि या एवं संचार के पवु ावलोकन क या या कर सकगे।

4.2 तावना
सामािजक ि या समाज काय क एक सहायक णाली है। सामािजक ि या को ारंिभक समाज काय
सािह य म समाज सुधार का नाम िदया गया। यह समाजकाय अ यास म मह वपणू थान रखती है।
सामािजक ि या मानव समाज के िवकास क ि या का िह सा रही है। समाज िवकास म शायद कोई ऐसा
दौर नह रहा होगा,जहाँ लोग ने वयं को संगिठत न िकया हो, अ याय का िवरोध नह िकया हो। राजनीितक,
आिथक और सामािजक असमानता को समा त करने या दरू करने क कोिशश न क हो । लोग क
िशकायत को दरू करने क कोिशश, समाज के विं चत एवं उपेि त लोग क लड़ाई को बेहतर समाज बनाने
के िलए तथा उनक लड़ाई को ल य तक पहँचाने क कोिशश सदैव क गई। सामािजक ि या को िसफ
समाज काय क प ित के प म ही न देखकर इसे भारत म समाज काय िश ा के पीछे िनिहत दशन के प
म भी देखना चािहए। सामािजक ि या म संचार क अहम भिू मका होती है । संचार ही एक ऐसा मा यम है
िजसके अनसु ार आमजन तक एक सश त मा यम से कायकता अपनी बात को पहचं ाता है । उ त इकाई म

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 186


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

भारतीय प र य म सामािजक ि या म संचार क भिू मका एवं ासंिगकता के आधार पर िव तार से चचा क
जाएगी।

4.3 सामािजक ि या का अथ एवं प रभाषा


पारसंस ने ‘द चर ऑफ सोशल ए शन’ (1937) तथा िश स के साथ िलखी अपनी पु तक
‘टू वड्स ए योरी ऑफ सोशल ए शन’(1951) म यह थािपत िकया है िक सामािजक ि या िस ांत
व तुतः एक वैि छक ि या का िस ांत है । वैि छक इसिलए िक कता अपने ल य को ा करने के िलए
उपल ध िवक प म से जो कुछ उसे सही िदखाई पड़ता है, हण कर लेता है । इस तरह सामािजक ि या का
वैि छक िस ा त उपयोिगतावाद, य वाद व आदशवाद को अपने अदं र समेट लेता है ।
पोटर ली आर के अनसु ार (1937) “सामािजक ि या का उ े य समाज म चिलत पर पराओ ं को बदलने,
कानून म प रवतन करने तथा नई यव था के िलए आदं ोलन चलाना होता है । इसम कुछ संगठन वग-संघष
को आिथक प म बदल कर समाज म अिधक संतल ु न बनाते ह । इसम जो िवचार िनिहत है यही सामािजक
ि या है । सरु ा अिभयान एवं सामदु ाियक िहत के आदं ोलन, सामािजक ि या के उदाहरण ह । कोई भी ऐसा
यास य या परो िजससे सामािजक क याण होता है, वह सामािजक ि या है” । ली के अनसु ार चंिू क
इसका संबंध ऐि छक समहू से है और िविभ न समहू क आपसी गितिविधय से है, अतः यह सामािजक
संगठन का अिभ न अगं है ।
कै नेथ एल. एम. े (1945) के अनसु ार, सामािजक ि या एक समझपणू यास है िजसका भाव य
प से सामािजक प रि थितय एवं नीितय पर पड़ता है तथा उससे सामािजक बनावट पर अ छा व खराब
असर भी पड़ता है, जो सामािजक कायकताओ ं को देखना होता है । सामािजक कायकता को सामािजक सेवा
के दौरान कुछ मिु कल व बाधाओ ं का सामना करना होता है जो उनको अ छी सेवाएँ देने से रोकती है ।
सामािजक ि या म इनको हल करते हए आगे बढ़ाना होता है ।
आथर डनहेम (1958) के अनसु ार, सामािजक ि या, सामािजक कायकताओ ं ारा समाज के िलए अ छे
समझे जाने वाले उ े य हेतु वतमान चिलत यव था म िश ा, जाग कता, दबाव आिद मा यम के ारा
बदलाव लाने का एक यास है। उ ह ने कहा िक टकराव क ि थित म ल य को पाने के िलए कायवाई क
िविधय म प रवतन करना उिचत है । सामािजक ि या, ि थितय के बीच टकराव है तथा उ े य को आगे
बढ़ाती है । उ ह ने टकराव क ि थित म ि या मक एवं सीधे कायवाई को उिचत ठहराया ।
भारतीय समाजकाय के एनसाइ लोपीिडया ारा 1965 म दी गयी प रभाषा के अनस ु ार, सामािजक
ि या वह सामािजक गितिविध है िजसम सगं िठत प से सामािजक सं थाओ ं को पातं रत करना, प रवतन
करना, नीितयाँ बनाना है िजससे परू ा सामािजक प रवेश िनिमत होता है । सामािजक ि या का संबंध एक
बेहतर सामािजक वातावरण बनाने से होता है । िजसम सभी यि य को सुिवधाएं ा हो तथा उनके बीच
अ छा सहसंबधं हो िजससे उनक दैिनक गितिविध सचु ा प से चल सके । सामािजक ि या के ारा एक
नयी यव था उ प न होती है, नये क याणकारी काय म सामने आते ह तथा उन बाधाओ ं को दरू करना
होता है जो सधु ार व क याणकारी प रवतन के रा ते म आते ह ।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 187


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

4.4 सामािजक ि या के उ े य एवं े


उ े य-
1. सामािजक सम याओ ं के ित जनता म जाग कता और बोध उ प न करना, क याणकारी
योजनाओ ं क वीकृ ित ा त करना और सामदु ाियक नेताओ ं का समथन ा त करना।
2. अिवकिसत समहू के िवकास के िलए आव यक सेवाओ ं क मागं करना।
3. वा य एवं क याण के े म थानीय, ांतीय तथा रा ीय तर पर िकये जाने वाले काय को
करना।
4. समाज काय के े ीय अनभु व, ािविधक कुशलता और ान पर आधा रत सामािजक सम याओ ं
के िलए आव यक सझु ाव देना।
5. समाज कायकताओ ं एवं सामािजक सं थाओ ं ारा एकि त सामािजक आँकड़ का िव लेषण
करना।
े -
िकसी भी ि या का िव तार या उपयोिगता उस यवसाय के तरीके , उ े य, ल य व आशय को
िकस कार प रभािषत िकया गया है उस पर िनभर करता है। दसू रे , उसका योग िकस संदभ म िकया गया है
खास तौर पर सामािजक व आिथक व सां कृ ितक संदभ म जो िक संवधै ािनक दािय व भी है।
कै नेथ एल. एम. .े सामािजक ि या और समाजकाय के बीच संबंध पर एक मु य न उठाते ह-
िक या समाजकाय एक यवसाय के प म कोई िवशेष उ रदािय व लेता है? लोग क आव यकता
अनु प ल य क ाि हेतु कौश य का योग करता है या िफर इस यवसाय का उ रदािय व मा
प रि थितय के दायरे म लोग क सहायता करना रह गया है, चाहे वो प रि थितयाँ कुछ भी ह ? इस के
उ र पर ही इस यवसाय का ल य िनधा रत होना चािहये।
सामािजक ि या का िव तार इसके उ े य पर िनभर करता है। इसका उ े य समाज काय के
यवसाय पर िनभर है। यिद समाज काय यवसाय का उ े य लोग को साधन सपं न बनाना है तो सामािजक
कायकताओ ं का उ े य मा बाधाओ ं को रोकना है न िक मल ू सम याओ ं का िनवारण। यह इस पर िनभर
करता है िक मानवीय सम याओ ं के कारण को िकस ि कोण से समझा गया है? यिद सामािजक ि या का
उ े य िकसी काननू म प रवतन करना या कोई आ दोलन खड़ा करना है तो ये सब सामािजक ि या के के
िब दु ह गे। कुछ उदार कायवाईय म आिथक ोत को बढ़ावा व सामािजक सेवाओ ं को और िवकिसत
करना आिद पर यादा यान के ि त िकया जाता है। तब सामािजक सेवाओ ं म अ मता तथा सामािजक
कानून और दसू रे मु य मु े होते ह। लेिकन न उठता है िक या समानता आधा रत िवकास हो रहा है? या
कोई सतािवत
् िवकास या नमनू े का िवक प है तो सामािजक ि या का संबंध इन सभी न के समाधान से
होता। ऐसे म सामािजक ि या चिलत वैधािनक िनयम के दायरे के बाहर चली जाती है चँिू क वैधािनकता
एक सापे अवधारणा है। तब सामािजक ल य पि म के अथवा िविश ट यि य के ि कोण से िनधा रत
ह गे तथा अ य न को कौन िनधा रत करे िक ल य वांछनीय है, वैधािनक है या नह तथा ये िकस आधार
पर सामािजक ि या क ाथिमकता है? ये सभी मु े िवचारणीय ह।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 188


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

4.5 सामािजक ि या क ासंिगकता एवं संचार


संचार मानव क उ पित के ारंभ से लेकर आज तक चली आ रही एक अन वरत ि या है। जबिक
सामािजक ि या भी सदैव से मानव समाज के िवकास ि या का िह सा रही है। सचं ार के अभाव म
सामिजक ि या हेतु लोग को संगिठत नह िकया जा सकता। अ याय के िखलाफ एकजटु होने, िशकायत
को दरू करने, असमान सामािजक, आिथक और राजनीितक ढॉंचे को बदलने के िलए, कोिशश, आिद ये
सभी संचार के अभाव म च रताथ नह हो सकते। मौिखक संचार तथा अ य अनेक संकेतो के जिटये, मनु य
अपनी संचार संबंधी आव यकताएं, परु ी करता रहा है। 20व शता दी के ारंभ तक संचार व इसके
मा यम को, िकसी वतं िचतं न, का िवषय भले ही न माना गया हो लेिकन आधी सदी गजु रने तक इसक
िविश टता का अहसास सबको हो चुका था। वैि दक यास और जन भागीदारी को िकसी भी िवकास काय
क कामयाबी के िलए ज री माना जाता ह। सचू ना ािं त के िविभ न प , तथा तकनीक म िनरंतर िवकास से
संचार के े म नये-नये आयाम जोड़े ह। संचार के एक वतं ता एवं स पणू िवषय के बतौर, अ ययन क
परंपरा, पहले नही रही है। एक िवषय के प म संचार का इितहास महज 70 से 80 साल तक पुराना है। ारंभ
म सच ं ार का अ ययन अलग-अलग े जैसे राजनीितक िव ान, समाजशा , मनोिव ान, आिद े के
लोगो ारा िकया जाता था। समाजकाय के े म संचार का योग सदैव से ही चला आ रहा ह।
ऐितहािसक िवकास क ि से समाज काय के वतमान वै ािनक व प का अवलोकन करने पर यह पता
चलता है िक 1922 म ही मेरी रचमडं ने सामािजक ि या का उ लेख समाज काय क चार मख ु णािलय
मे से एक णाली के प म िकया था। सामािजक ि या के शु आत म प रभािषत करते हए मेरी रचमडं ने
सच ं ारके मह व को प रभािषत िकया था। उ ह ने सामािजक ि या को सामािजक िव ान और ोपोगडं ा या
चार के ज रये लोग क बेहतरी के दौरे पर देखा था अथात चार जो िक संचार का एक मह वपणू साधन
है।1940 म जॉन िफंच ने एक कॉ स म सामािजक ि या कृ ित के ऊपर एक मह वपणू िनबंध तुत िकया
। इसके एक वष बाद िफंच ने सोशल वक ईयर बक ु म सामािजक आंदोलन पर िनबंध िलखा। 1945 म के नेथ
एिलयम े ने “सोशल वक एंड सोशल ए शन” नामक एक लेख िलखा िजसके अनसु ार यह माना जाने लगा
िक सामािजक ि या सामदु ाियक सगं ठन का एक अगं नह है । यह समाज काय क एक अलग िविध है ।
बाद म चल कर बात प हो गयी िक सामदु ाियक संगठन के अतं गत काय एक सीिमत े म िकया जाता है
िक तु सामािजक ि या म काय बड़े पैमाने पर होता है । सामािजक ि या उतनी ही परु ानी है िजतना िक
समाज ।1963 म ड़लै डर ने सच ं ार को सामािजक ि या के प म देखा तथा बताया िक सामािजक
ि या समाजकाय दशन और यवहार के तहत, चलाया जाता है। सामािजक ि या का उ े य, सामािजक
गित, सामािजक नीितय म बदलाव, सामािजक िव ान, वा य और क याण सेवाओ ं म बेहतरी है। रोजन
वाि डवन क सामािजक ि या िक प रभाषा म संचार क भिू मका और भी प ट होती है। उ ह ने सामािजक
ि या को प रभािषत करते हए बताया िक सामािजक ि या, सामािजक और आिथक सं थान को बदलने क
सगं िठत कोिशश है। यह समाजकाय व समाज सेवा से अलग वह े है िजसम ज री नह िक थािपत
सं थान म बदलाव क कोिशश है। राजनीितक सधु ार, औ ोिगक, लोकतं , सामािजक िवचार, सामािजक
और न लीय याय, धािमक आजादी, और नाग रक अिधकार सभी सामािजक ि या तहत आते है। चार-
सार, शोध और गटु बनाना उसक तकनीक है। यहॉं तक िक चार सार शोध और गटु बनाने हेतु संचार

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 189


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

क अ यंत आव यकता है। अगर प टत: तौर पर हम कह तो यह कह सकते है िक संचार के अभाव म िकसी
भी कार क सामािजक ि या नही हो सकती है। वही सामािजक ि या के संदभ म गैि यल िबटो संघष पर
जोर देते ह। सामािजक ि या संघष से भरपूर उतार-चढाव वाली ि या है। उसक पहल या संचालन आम
लोग या खास लोग का समहू करते ह। पॉल भी सामािजक ि या हेतु संचार को मह वपणू मानते है। वे कहते
है िक सामािजक ि या सगं िठत और िनयोिजत गितिविधय ह, जो हैिसयत, स ता और ससं ाधन क
आव यकता होती है। संचार िनि ल नही बि एक गितशील ि या है। यह संबंधी पर आधा रत है यह
संबंध जोड़ने का एक बड़ा हिथयार है। यह एक यि को दसू रे यि से एक समहू को दसू रे समहू से तथा
एक समदु ाय को दसू रे समदु ाय से जोड़ना सचं ार का काम है। अत: सचं ार सामािजक पार पा रक ि याक
ि या है। इसके सू ऐितहािसक द तावेज म उपल ध है– पाँचवी शता दी पवू रोम के िव लैिबयन
िवरोध के प म, ाचीन रोम से अमे रका के नाग रक अिधकार के आदं ोलन, तक सामािजक ि या का एक
लंबा इितहास है । पि म म भी इसका उदाहरण म य 16 व शता दी म नीदरलड से पेन के िवरोध के प म
उपल ध है । वष 1880 म आयरलड के िकसान ारा बिह कार, वष 1905 म खनू ी रिववार के प म सी
ािं त,1917 क सी ािं त, वष 1953 म पवू जमनी का उदय ,1956 का हगं री आदं ोलन और अ ो –
अमे रकन ारा बस बिह कार, आिद सामािजक ि या के उदाहरण है ।
भारत म बौ धम एवं जैन धम का उदय भी एक धािमक आदं ोलन ारा सामािजक िवरोध क
कारवाई ारा हआ । भारत म 1857 का वत ता सं ाम जो अ याचारी शासक , दमनकारी आिथक
नीितय और राजनैितक नीितयाँ जो भख ु मरी का कारण बनी, अ यायपूण कर-नीित, बारदौली िकसान
आदं ोलन, अ पृ यता सबं धं ी आदं ोलन तथा भारत म कृ षक आदं ोलन, वतमान म अ पसं यक , बालक
एवं मिहलाओ ं के आदं ोलन, ाचार आदं ोलन आिद मख ु ह जो आज भी िनरंतर जारी है ।
भारत म औपिनवेिशक दौर म भी िविभ न भाग म जनता के बदहाल जीवन तर सुधारने, शै िणक
अवसर क असमानता, जाितवाद, अ यायपूण कराधान आिद के िवरोध म कई आदं ोलन हए ह और इस
कार सामािजक ि या से सामािजक सधु ार हए । योितबा फुले ,पंिडता रामाबाई ने प प से अपने
आदं ोलन को लोग के जीवन तर को सधु ारने एवं उनके आ मिव ास को बढ़ाने म के ि त िकया जो िक
सामािजक, आिथक एवं शै िणक प से िपछड़े हए थे। वतं ता संघष के दौरान ही भारतीय रा ीय
काँ ेस का ज म हआ िजसने ारि भक दौर म टकराव का रा ता न चनु कर िमलजल ु कर, सधु ार का काय –
साथ िकया गया जो बाद म अलग-थलग हो गया ।
आजादी के आदं ोलन क शु आत योजनाब व प प से अं ेजी राज के िव भारतीय
नेताओ ं ने क थी िजसम गाधं ी के सामािजक सधु ार का काय म, सम राजनैितक, सामािजक आदं ोलन
के मा यम से वत ता से जड़ु ा था । गांधी ने सृजना मकता के साथ सां कृ ितक ऐितहािसक पर पराओ ं क
यव था का संदु र समागम िकया और सभी बुराइय का अिहसं क तरीके से िवरोध का रा ता अपनाया ।
गाधं ी जी ने सभी सं थागत बरु ाइय के िव जझु ा प से अिहसं क तरीक का योग िकया
उदाहरण के तौर पर कई आदं ोलन जैसे असहयोग आदं ोलन, बारदौली स या ह, नमक स या ह इन
आदं ोलन म गांधी का यि व एक ांितकारी के प उभर कर आता है। सामािजक ि या पर ि डालने
पर पता चलता है िक गांधी क यह ांितकारी सोच अ छी थी। अ याय के िव गांधीजी के अिहसं क

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 190


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

तरीक का योग मािटन लथू र ने अ वेत लोग के अिधकार क लड़ाई म िकया और जय काश नारायण ने
अपने स पणू ाि त आदं ोलन म िकया।
गांधी के योग म अनश ु ासन, आ ा व िनयं ण, आ मक सहन जैसे योग म लाये जाने वाले
हिथयार का यथोिचत समय पर िवशेष यान िदया गया तथा भड़काऊ, उ े यहीन व िहसं क तरीक को नजर
अदं ाज िकया गया ।
जय काश नारायण ने इन तरीक को अपनाते हए प ट िकया िक िकसी ांितकारी आदं ोलन के
दौरान उ े य ठीक वही नह रहते जो उसके ार भ के दौर म रहते ह । उस आदं ोिलत माहौल का लाभ लेते
हए सामािजक सधु ार या लाभ के मु को उसम सि मिलत कर लेना चािहए। जय काश नारायण का मानना
था िक सामािजक प रवतन के िलए सामािजक ि या के मक़ ु ाबले राजनीितक ि या गौण है। कुछ ि याएँ जो
यावसाियक सं थाओ ं के दायरे से बाहर है िक तु सामािजक ि या से यादा ससु गं त है सामािजक प रवतन
म मह वपणू औज़ार के प म योग म लाई जाती है ।
वतं ता ाि के बाद भी भारत म बहत से संघष हए जैसे बारगर दल आंदोलन, मछली–पालने
वाल का आदं ोलन, मिहला आदं ोलन, भिू म अिधकार के िलए भिू महीन आिदवासी आदं ोलन, मानवािधकार
आदं ोलन एवं नाग रक अिधकार आंदोलन इ यािद । इसके अित र त पयावरणीय आदं ोलन, टाचार
आदं ोलन इ यािद। टाचार आदं ोलन जो िक अ ना हज़ारे के नेतृ व मे लड़ा गया सामािजक ि या का
अ छा उदाहरण रहा और यहाँ तक िक इसे स ा प रवतन के प म देखा गया य िक आदं ोलन के कुछ
महीने बाद सरकार बदल गयी ।
सामािजक ि या समाज काय क एक वतं –सहायक प ित के प म वीकृ ित पा चक ु है िक तु
इसका उपयोग यापक तर पर नह होता । इसका एक कारण तो यह है िक यह यापक प रवतन से संबि धत
है इसम बड़ी शि और साम य क आव यकता होती है; दसू रे , इसके प रणाम के ित भी लोग को काफ
संदहे बना रहता है । आमतौर पर राजनीितक या आिथक समहू से संबि धत ि याओ ं का भाव इतना
अिधक होता है िक बहत कुछ सामािजक मू य क ि थित िनयंि त ही रहती है । कोई भी समाज हो उसम
प रवतन तो होते ही रहते है और ायः अनेक आव यकताएँ परू े सामािजक पैमाने पर महससू क ही जाती
रहती ह । इन आव यकताओ ं क पिू त के िलए आव यक ि थित लाना अ य तरीक के अित र बहत कुछ
सामािजक ि या से भी संभव होता है । समाज काय क यह प ित समाज- काय के दशन और िस ांत ारा
मा यता ा जनतािं क मू य क थापना एवं िवकास हेतु योग म लायी जाती है । आज के समाज के
ऊँच-नीच, िपछड़े और िवकिसत तथा ी और पु ष के आधार पर जो भेद ह ,उनको िमटाना जनतांि क
काय है । अनसु िू चत जाितयाँ ,आदम जाितयाँ, िमक, मिहला, अिशि त, कृ षक, िवधवा, वे या, इ यािद
ऐसे वग ह िजनका सामा य समाज म सामा य प से सामजं य होना चािहए ।
सवण या धिनक-वग म आिं शक प म आज भी अछूत या गरीब के ित हेय भावना है जो दरू
होनी चािहए, शासन तं और प ित के ऐसे अनेक दोष ह िजनसे िक कुछ अ यतं साधारण ि थित के यि
अपनी आवाज या ाथना स म अिधकारी तक नह पहचं ा पाते । देश के एक बहत बड़े तबके म आज भी
अिश ा िव मान है और जीवन–यापन के िलए आव यक यनू तम साधन क भी कमी है । इन सब
सामािजक सम याओ ं को दरू करने के िलए बहत से य न िकए जाते रह ह और िकए जा रहे ह । ये य न

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 191


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

सरकारी और गैर-सरकारी दोन ही तर पर ह। इन य न के बावजदू ये सामािजक सम याएँ, आज भी


अ यिधक यापक है और कुछ नई ऐसी यि गत या पा रवा रक मू यगत सम याएँ भी उपि थत होती जा
रही ह जो िक औ ोिगक युग क देन ह । इन सभी सम याओ ं को काननू ारा या जन चेतना ारा काफ हद
तक दरू करने क कोिशश क जा सकती है । चाहे शासन ारा काननू के िनमाण और उसके प रपालन क
बात हो या संबि धत वग और समदु ाय के म य जनभावना, जन शि या लोकशि को िवकिसत करने,
उनके अिधकािधक उपयोग क बात हो दोन ही; ि थितय म सामािजक ि या क प ित को योग म लाया
जा सकता है और इसक मदद से अनेक ऐसी सामािजक सम याओ ं जो िक नव जनतांि क -मू य के ढ़ाचे से
दरू हो, हल िकया जा सकता है ।
नए जनतांि क मू य के अंतगत सबको भोजन ,आवास ,व ,औषिध और िश ा क मल ू
आव यकताओ ं के साथ –साथ अिभ यि और सहज उपल ध साधन का समान प से उपभोग करने क
वतं ता और संभावना होनी चािहये। ऐसी ि थित हेतु वैयि क तर पर वैयि क काय, छोटे-छोटे समहू के
तर पर सामिू हक काय व समुदाय के तर पर सामदु ाियक संगठन से संबि धत काय इ यािद ारा य न िकए
जाते है। िक तु आज इन य न से न तो इतना अिधक लाभ ह हो पा रहा है िक परू े समाज का व प
बदलता हआ नजर आये और न इन य न ारा यापक तर पर किथत जनतांि क मू य क थापना और
संभावना ही हो सकती है।
वतमान यगु जनतांि क यगु कहा जाता है और रा य तथा समाज का दािय व सामािजक याय,
समानता और वतं ता का है। समय क इस चुनौती का सामना तभी हो सकता है जबिक सामािजक पैमाने
पर इन मू य क थापना क चे ा क जाए। कोई भी सामािजक कायकता इस काय को सामािजक ि या के
मा यम से ही कर सकता है । सामािजक ि या क प ित का उपयोग कर समाजगत प रवतन क अपे ा को
परू ा करना चािहये । जब राजक य काननू के व प को मानवीय ि कोण से ओत ोत और प रवितत करने
क आव यकता महससू क जाती है तो इस हेतु सामािजक ि या का सहारा िलया जाता है । सामािजक
कायकता ,सामािजक संगठन, सामािजक अिभकरण या इनके बड़े बड़े संगठन, इसके िलए आवाज उठाते ह ।
जब ऐसी आवाज उठानी होती है तो इसके िलए वे तमाम सबं ि धत ि थितय का अ छी कार अ ययन और
िचंतन करते ह। अपना ि कोण और काय म िनि त कर लेने के उपरांत वे शासन के पदािधका रय ,
िवधानसभा या लोकसभा के सद य और संबि धत े के िवशेष से संपक करते ह। यह संपक प ाचार
ारा, य वाता ारा तथा समाचार प म व य के मा यम से हो सकता है । ये काय अलग-अलग भी
िकये जा सकते ह और संयु प से भी । कभी-कभी संबि धत अिधका रय के पास अपने ितिनिध म डल
को भेज कर भी ऐसा िकया जा सकता है ।
िभकरण या सामािजक कायकता सामािजक ज रत से अिभ े रत इन काय म समाज के उस वग
और यि य को भी सि मिलत करते ह िजन पर इसका भाव होता है । चार ओर से िवशेष सामािजक
प रवतन क आव यकता और उसक आवाज उठाने पर ही यह यादा सभं व होता है िक समाज के अ य
समहू संबि धत अिधकारी और संबि धत शासन या सरकार भी इसका एहसास करे । इस एहसास के
फल व प सरकार ऐसी सिमितयाँ बना सकती ह जो िक संबि धत ि थित क जांच-पड़ताल करके उसके
पास अपना ितवेदन तुत कर। कई बार िबना इन सिमितय के ितवेदन के भी सरकार यान देती है और

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 192


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

िवचार िविनमय करके अपना कदम िनि त करती ह। जब तक अपेि त सामािजक प रवतन हेतु िनयम-कानून
संशोधन या िनमाण नह हो जाता अथवा उसके िलए आव यक अ य यव थाएँ नह कर दी जाती तब तक
सामािजक ि या के ये य न जारी रखे जाते ह । जब समाज म यि य के यवहार को जनतांि क मोड़ देने
होते ह तो सामािजक ि या क मदद ली जाती है।
आज हमारे देश मे जनतािं क मू य क थापना होती हई िदख रही है और इसको अिधक से
अिधक यापक तर पर थािपत करना बाक है। इसके िलए यापक तर पर इन मू य क आव यकता को
समझना है और ऐसी जन-जागृित तथा जन-चेतना को बढ़ाना है, िजससे िक यापक जन समदु ाय इ ह
आ मसात कर सके । जब ऐसे मू य को यापक पैमाने पर यि य और समदु ाय को हण या आ मसात
करना या कराया जाना होता है तो इसके िलए सामािजक ि या क मदद बहत ही उपयोगी होती है।
जनजागृित या जनचेतना ारा मू यगत, सामािजक प रवतन क अिभलाषा तृि हेतु यवहारगत, सामािजक
चे ा या ि या के पवू , सभी संभावनाओ ं और शि य का समिु चत मू यांकन, अनमु ान और ान होना
अ यंत आव यक होता है। समाज म अनेक यि य और वग ारा अनेक सामािजक ि याओ ं का एक
साथ ही योग होता रहता है। हम जानते ह िक सामािजक ि याएं जहाँ एक ओर िवधायी होती है वह दसू री
ओर अ य बहत सी ि याएं िवघटनकारी भी होत ह । िवधायी ि याओ ं का उपयोग करके सामािजक
ि या क गित को ती करना चािहए और िवघटनकारी ि याओ ं पर सतक ि रख कर उनसे बचाव के
उपाय भी करते रहना आव यक होता है।
जन भावनाओ ं म प रवतन ारा सामािजक मा यताओ ं या मू य के व प म प रवतन के िलए यह
आव यक है िक उसके अनसु ार जन िश ा के काय म चलाए जाएँ। यहाँ जन िश ा का अथ यह है िक जो
भी िढ़गत मू य या पर पराएँ ह उनक आव यकता और हािनकारक ि थित का वैचा रक तर पर आम
लोग को एहसास कराया जाय और जो अपेि त प रवतन या मू य अथवा मा यता हो उसक आव यकता
और संभावना समझायी और दशायी जाय। ऐसा करने के िलए समदु ाय या समहू के यि य म आव यक
चार िकया जाता है और समाज के भौितक और मानवीय साधन का उपयोग िकया जाता है, ऐसा करने से
सारा काय म जनता को अ ना काय म मालमू होता है। जनतं के िलए यह आव यक शत भी परू ी होती है
िक जो भी काय हो वे न मा जनता के िलए हो वरन जनता ारा भी हो। जनतं का यह िस ांत समाज काय
का भी एक िस ांत है और समाजकाय म भागीदारी को अ यिधक मह व िदया जाता है और इसक बड़ी
उपयोिगता समझी जाती है। सामािजक ि या उतनी ही सबल और साथक हो सकती है िजतना क अिधक
जन सहयोग और जन भागीदारी िक उपि थित होगी। जनता के िवचार म प रवतन के िलए जन-जन म ेम,
सौहाद और आ था भी होना ज री है। यह ेम और आ था िजतनी ही अिधक होती है उतनी ही अिधक
सफलता क ि थित होती है।
सामािजक कायकता, अिभकरण या सं थाओ ं को इनक उपि थित और वृि क चे ा म संल न
होना चािहए। जब सम या वयं क अनभु िू त होती है और उसके िनराकरण के उपाय वयं ही तैयार िकए
जाते है तो काय म िदलच पी यादा वाभािवक तौर पर होती है। सामािजक ि या के दौरान इस बात का
याल रखना चािहए िक सेवाथ तथा जन समदु ाय के य न के दौरान ऐसी चे ा होनी चािहए िजससे िक
यादा से यादा ऐसा मालमू हो िक सारे ि या-कलाप जन समदु ाय के वयं के ही ह ।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 193


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

4.6 सामािजक ि या म संचार कौशल


सामािजक कायकता को जो सामािजक ि या क ि या म भाग लेते ह, इन ि याओ ं को संप न
करने के िलए कुछ िनपुणताओ ं या कौशल क आव यकता होती है जो सामािजक ि या के िनयोजन के
दौरान सामािजक कायकता क मदद करती है। सामािजक ि या के कौशल िन नानसु ार ह:-
1. सबं ंध थािपत करने का कौशल :- सामािजक कायकता के पास यि य तथा समहू के साथ
सबं धं थािपत करने क कुशलता होनी चािहए। उ ह सेवािथय के साथ यावसाियक सबं धं बनाने
और अनरु ि त करने म स म होना चािहए। सेवाथ समहू के बीच िकसके पास नेतृ व का गणु ह,
उसको पहचानने क मता, सामािजक कायकता के पास होनी चािहए। तथा इन गणु का उपयोग
सामािजक ि या म िकस कार हो सकता है? इसका ान होना आव यक है। समहू के बाहर एवं
भीतर के िववाद से भावपणू तरीके से िनपटने म स म होना चािहए। समाज म, तनाव उ प न करने
वाली प रि थितय को पहचानने एवं उसका िनदान ि थित के गभं ीर होने से पहले तथा दमन करने
क िनपणु ता होनी चािहए। लोग क सहायता करने के िलए समाज मे कायरत िविभ न सरकारी एवं
गैर सरकारी संगठन के साथ सौहादपणू संबंध बनाने म कुशल होना चािहए ।
2. सं ेषण कौशल :- सं ेषण कौशल सामािजक ि या के िलए अ यंत मह वपणू होता है। थानीय
सगं ठन तथा नेताओ ं के साथ भावपणू जनसपं क थािपत करने क िनपणु ता सामािजक कायकता
म होनी चािहए। उ ह भावशाली भाषण देने एवं इसके िलए लोग को पहचानने क मता होनी
चािहए। मीिडया को लि त समहू के साथ संवाद थािपत करने के िलए तैयार करने म िनपणु होना
चािहए। िविभ न समहू के अनुकूल काय म बनाने एवं उसको लागू करने म िनपणु होना चािहए।
सामािजक कायकता को जन मीिडया तथा िविवध समहू के अनक ु ू ल लोक मू यांकन करने और
इसका इ तेमाल करने म िनपणु होना चािहए। सं ेषण कौशल का उपयोग नारे बनाने, ेरक गीत
तैयार करने, जनसमहू के कुशल संचालन के िलए भाषण तथा सचू ना िश ा संचार साम ी आिद
तैयार करने के िलए िकया जाता है। सामािजक कायकता म प ट प से इस आव यक कौशल का
ान होना चािहए िजससे वह सरल वाता आिद कर सक।
3. िव लेषण एवं शोध से संबंिधत कौशल:- सामािजक ि या म भाग ले रहे सामािजक
कायकताओ ं को सामािजक, सां कृ ितक तथा आिथक सम याओ ं इ यािद के व तिु न ठ अ ययन
करने क मता होनी चािहए। उ ह सेवाथ समहू क आव यकताओ ं तथा सम याओ ं क पहचान
करने म स म होना चािहए। इ ह सामािजक सम याओ ं का िव लेषण करने, सामािजक, आिथक,
राजनीितक, िवचारधारा मक, सां कृ ितक, पयावरणीय पहलुओ ं पर सम या म बढ़ोतरी करने वाले
कारक के भाव का िव लेषण करने म स म होना चािहए। उ ह शोध करने तथा शोध अ ययन
के संभािवत भाव को समझने म स म होना चािहए। सामािजक कायकता के पास यह कौशल रहे
िक वे समदु ाय के लोग को अपनी आव यकताओ ं के बारे म िबना िहचिकचाएं बोल सके और
उनक ाथिमकता तय कर सके । सामािजक कायकता को समदु ाय के लोग पर सामािजक ि थित
या सम याओ ं के बारे म अपनी खदु क िवचार या समझ नह थोपनी चािहए।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 194


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

4. म य थता कौशल :- सामािजक कायकता म यह मता होनी चािहए िक वह सेवाथ समहू क


सम या से िनपटने के िलए यावहा रक म य थता रणनीित तैयार कर सके । सामािजक ि या के
दौरान ािधका रय के साथ टकराव अपेि त होता है इसिलए सेवाथ समहू को िविभ न िवक प
उपल ध कराने चािहए । सामािजक कायकताओ ं को धरन , बिह कार , हड़ताल जैसे कदम उठाने
से पहले उसके दु प रणाम से समदु ाय को अवगत करा देना चािहए। कायकता को समदु ाय के लोग
के बीच आव यक प रवतन लाने हेतु असतं ोष तथा भावना मक उ े य क अनभु िू त, उ साह तथा
साहस का वांिछत तर अिधक समय तक बनाएँ रखने म स म होना चािहए य िक ल य या
उ े य को ा त करने से पहले समहू संचालन क िवफलता कम हो सके । सामािजक कायकता को
धैय एवं शािं त बनाए रखने म स म होना चािहए य िक उ ह सेवाथ समहू के भावना मक आवेग
का सामना करना पड़ सकता है। म य थता ि या का िवकास आव यक संसाधन तथा समदु ाय
के सामािजक सां कृ ितक प रवेश को यान म रखकर करना चािहए।
5. बंधक य कौशल :- सामािजक कायकता के पास बंधक य कौशल का ान होना चािहए। उ ह
िविभ न समहू तथा थानीय नेताओ ं के साथ सम वय व सहयोग करने म स म होना चािहए,
िजससे सेवाथ समहू को अपेि त म य थता के िलए एकजटु िकया जा सके । नीितयाँ तथा काय म
बनाने, काय म िनयोजन, सम वय, रकािडग, बजिटंग तथा िविभ न रकाड का अनरु ण करने
म कुशल होना चािहए। सामािजक कायकताओ ं को मानवीय तथा भौितक संसाधन क िनगरानी
करने तथा लि त समदु ाय के क याण एवं िवकास के िलए उसक भावी उपयोिगता कै से हो का
भी कौशल होना चािहए।
6. िश ण कौशल :- सामािजक कायकता को िश ण कौशल का ान होना चािहए य िक उसे
थानीय नेताओ ं तथा जो नेता िचि हत िकये गये ह उ ह जनसमहू का संचालन संभालने तथा
िविभ न अिधका रय से टकराव हेतु िशि त करने म कुशल होना चािहए। सामािजक, ि या के
िलए उठाये गये मु े तथा टकराव ि या समेत म य थता कै से क जाती है तथा थानीय तर पर
चयिनत लोग को िशि त करने म स म होना चािहए। जनमत तैयार करने तथा लोग क पहचान
कर सामिजक ि या म शािमल करने के िलए उ ह िशि त िकया जाना चािहए। िबना िहसं ा का
सहारा िलए सामािजक ि या क रणनीितय तथा यिु य का योग करने के िलए उनको िशि त
करने म कुशल होना चािहए।

4.7 सामािजक ि या पुवावलोकन


सामािजक ि या के उ े य प रवतनवादी या बदलाववादी हो सकते है जैसे ये मौजदू ा ढाचं े क बात
करते है। ये अ सर िवक प सुझाते है। यह सब सं षन के अभाव म नही हो पाएगा।
सामािजक ि या दिु नया क या वैि क मामल जैसे पयावरण क सरु ा और सरं ण, उसक
िगरावट को रोकने से लेकर स्थानीय मु े जैसे अपराध, शराब क िब , ामीण सामदु ाियक संसाधन को
वहॉं पर हावी यि य या समहू का गलत इ तेमाल मजदरू का शोषण, गलत काम करने वाले को सजा,
पेड क गैर काननू ी कटाई इ यािद सबम कही न कह सं ेषन एवं सचं ार क आव यकता पड़ती है। थानीय

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 195


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

मामल म भी सामािजक ि या के काय म िकसी एक मु े पर आधा रत या के ि त हो सकते है। तािक उसके


िलए ज री समथन जटु ा िलया जाए और दबाव समहू को संगिठत कर िलया जाए। समथप जटु ाने और दबाव
समहू को संगिठत करने हेत,ु संचार क मह ता बढ़ जाती है। संचार क महता, सचू ना व जानकारी देन,े
ेरणा, वाद-िववाद और प रचचा सां कृ ितक िवकास, एक करण, मनोरंजन, िवकास इ यािद के िलए
सच ं ारक आव यकता पड़ती है।
सामािजक ि या क रणनीितय को भावी बनाने के िलए संचार क भिू मका ली जाती है।
िव वसनीयता को बढ़ाने के िलए, संचार के मा यम से सामािजक मू य के आधार पर नेतृ व, ायोजक ,
और िह सेदारी क लोग म बेहतर छवी बनाया जाता है। वै ता को बढ़ाने हेतु आदं ोलन के उ े य को
नैितक तौर पर सही सािबत करते हए बढ़ावा देना और सामािजक कारवाही को नैितक तौर परी वै और
वीकाय बनाये के िलए, सच ं ार के साधन का योग करना। सचं ार का सबसे बिढया योग, सामािजक ि या
क मह वपूण रणनीित म िकया जाता है।सामािजक ि या क बहआयामी रणनीितय का मतलब ि या के
समि वत काय म से है। जैसे वकालत, िश ा समझाना बुझाना कारवाही को अजं ाम देना, दबाव बनाने हेतु
सच ं ार क ि या का सहारा िलया जाता है।
सामािजक ि या क यिु य पूणत: संचार पर िनभर करती है। समाज काय क यिु य म
व या वेषण या पड़ताल, औपचा रक और अनौपचा रक मा यम का इ तेमाल करते हए चार सार
वकालत िश ा जाग कता अिभयान अतं आ मा क जागृित इ यादी सभी म म संचार क आव यकता पड़ती
है। संचार सं थािनक ढॉंचे को थािपत करने, राजनीितक ि याओकं े ज रये समथन जटु ाने और जनमत
बनान म काय करती है। सच ं ार का योग सामािजक ि या म सहयोगया समझौतो को लागू करने, नार का
इ तेमाल करने संिधवाता या बातचीत करने लेन-देने म य थता िवरोध, दशन, जल ू सू , धरना हड़ताल
बिह कार, अनश, घेराव आिद म भी िकया जाता है। सामािजक ि या म संघष और टकराव िनिहत होता है।
लेिकन यादातर सामािजक ि या िहसं ा का ह तेमाल नही होता है। संघष या टकरावकाहल नैितक और
जनदबाव बनाकर, सामािजक ि या के मा यम से िकया जा सकता है। यादातर सामािजक ि या के दौरान
सच ं ार चैनल बनाकर सामािजक ि या म जाग कता अिभयान चलाने लोग को सगं िठत करने रणनीित
िवकिसत करने कारवाई इ यादीमे संचार का योग िकया जाता है। सामािजक ि या म संचार क मह वपणू
भिू मका को हम नमदा बचाओ ं आंदोलन म देख सकते है। सामािजक ि या आदं ोलन ने िवकास के मु े पर
काय कर रही कई सं थाओ ं को इसम सचं ार ने लोग को एकजटू िकया। नमदा बाधं के िनमाण से होनेवाली
पयावरणीय, सम या से जडु ने के िलए ये इक े हए। आज इस आदं ोलन क समाज के कई वग का जबद त
समथन हािसल है। उस िनमाण से सीधे पीिडत लोग का समथन तो इ ह हािसल ही है इस आदं ोलन से कई
िस समाज सेवी िव ानी बुि जीवी छा और थानीय गॉंवो के लोग एक-दसू रे से जडु े हए है। इन लोग ने
जबद त िवरोध या ा और दशन िकय। उसम कई रा य के दरू पास के ामवािसय ने िह सा िलया। उ ह ने
अपने बैनर एवं झडं ो के साथ नारे लगाते हए नमदा के िकनारे मानवीय ख
ं ला बनायी। बॉंध िनमान थल पर
जोरदार दशन िकया ये सभी चीज संचार एवं सं ेषण के अभाव म नह हो सकता इसको मीिडया ने भी कुछ
यास- चार िकया तथा लोग को जाग क करने म मह वपूण भिू मका िनभाई। यहा संचार मा यम से लोग

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 196


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

ने फै सला लेने वालो को संदेश िदया िक योजना से लेकर लागू करने तक, हर तर पर जन भागीदारी होनी
चािहए।
अत: हम कह सकते है िक सामािजक ि या िक प रभाशा से लेकर रणनीितय एवं यिु य बनाते
आदं ोलन करने इन येक तर या संचार क मह वपणू भिू मका होती है।
4.8 सारांश :
सारांश के प म कहा जा सकता है िक सामािजक ि या के मा यम से कायकता समाज म या त सम या के
िनराकरण हेतू यास करता है िजसम एक सश त मा यम संचार होता है । संचार मा यम से वह आमजन तक
ि या के उ े य को पहचं ाता है िजससे सामािजक भागीदारी बल होती है । य िक हम जानते है िक िकसी
भी सामािजक ि या म सफलता तब तक ा त नह हो सकती जब तक िक उस ि या म आमजन शािमल
ना ह । अत: सामािजक ि या म सचं ार एक सश त मा यम है जोिक इस सपं णू ि या िविध म सहायक
सािबत होता है ।

4.9 बोध न :
1. सामािजक ि या या है ? इसके अथ एवं प रभाषा को षट क िजए ।
2. सामािजक ि या के उ े य एवं े को रे खांिकत क िजए ।
3. सामािजक ि या के इितहास एवं ासंिगगकता म संचार क भािवता का िव तार पूवक वणन
क िजए ।
4. सामािजक ि या एवं सच
ं ार के पवु ावलोकन क या या क िजए ।
5. सामािजक ि या क ि या म संचार िकस कार से अपनी महती भिू मका को अदा करता है प ट
क िजए ।

4.10 सदं भ एवं उपयोगी थ ं :


5 अहमद, िमजा रफ उ ीन (1967): समाजकाय दशन एवं णािलयाँ. लखनऊ : ि िटश बक ु िडपो।
6 दोषी एस.एल. एवं ि वेदी एम.एस.(2013) : उ चतर समाजशा ीय िस ांत. जयपरु : रावत
पि लके शन।
7 िसहं , सरु े एवं िम पी.डी. (2010) : समाजकाय इितहास दशन एवं णािलयाँ. लखनऊ : यू रॉयल
बुक कंपनी।
8 िसहं , ए.एन. एवं िसहं , ए.पी.( 2007) : समाजकाय, लखनऊ : रै िपड बक
ु सिवस ।
9 गु ा, एम एल .एवं शमा,डीडी.(1998):समाजशा ,आगरा: सािह य भवन पि लके शन
10 इ नू ,एम एस ड यू 003 सामदु ाियक िवकास के िलए समदु ाय संगठन का बंधन, नई िद ली : इ न।ू
11 Siddiqui, H.Y. (1984) : Social Work and Social Action. New Delhi : Harnam
Publication.
12 Arthur, Hillman (1954) : Community Organization and Planning. New York :
Macmillan Company.
13 Moorthy, M.V. (1966) : Social Action, Mumbai : Asia Publishing House.

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 197


महा मा गांधी अंतररा ीय िहदं ी िव विव ालय

14 Samuel John (2000) : Social Action : An Indian Panorama New Delhi :Voluntary
Action Network India.
15 Singh, Surendra (1986) : Horizons of Social Work (Edited) By Surendra Sing and
K.S. Soodan. Lucknow: Jyotsana publication
16 Davis, Martin (2000) : The Blackwell Encyclopedia of Social Work (Edited)
Massachusetts : Blackwell Publication.
17 Friedlander, Walter. A. (1977) : Introduction to Social Welfare. New Jersey :
Prentice Hall.
18 Foran, J. (2003) : The Future of Revolutions. London : Zed Books.
19 D. Paul Chowdhry (1964) : Introduction to Social work History Concepts methods
And Fields. Delhi : Atma Ram and Sons.
20 Pathak S.H. (1971) : Social Welfare and Family Planning. New Delhi: Planning
Commission GoI
21 Ogburn & Nimkoff (1957) : A Hand Book of Sociology. Landon : Rutledge and
Kegan pall Limited.
22 Aptheker Herbert (1941) : Basic Concepts in Social Work. North Carolina : Press
Chappel Hill.
23 कुल े ठ, िव. एवं जैन, ह.ं , (2005). ‘जनसंचार शोध िविधयां’, जयपरु : माया काशन।
24 िसहं , ीका त, (2001). ‘सं ेषण: ित प एवं िस ातं ’, फै जाबाद : भारती पि लशस ए ड
िड ी यटू सा
25 सरदाना, चं कातं ा एवं मेहता, कृ .िश., ‘जनसचं ार कल, आज और कल’, िद ली: ान गगं ा।
26 Kumar, keval j., (2004). ‘Mass Communication in India’, Mumbai: Jaico
Publishing House.
27 Rayudu, C.S., (2008). ‘Communication’, Mumbai: Himalaya Publishing House.
28 जैन, रमेश, (2003). ‘जनसंचार एवं प का रता’, जयपरु : मगं लदीप पि लके श स।
29 Desai, Amit, ‘Journalism and Mass Communication’, New Delhi: Reference Press.
30 बघेल, संजय िसंह, ‘संचार, समाज और सािह य’, गािजयाबाद : के .एल. पचौरी काशन।

दूर िश ा िनदेशालय – एमएसड यू चतुथ स Page 198

You might also like