Professional Documents
Culture Documents
संपादन मंडल
ो. मनोज कुमार डॉ. िमिथलेश कुमार डॉ. शंभू जोशी
िनदेशक – म.गां. य.ू गु. समाज काय अ ययन अिस टट ोफे सर , म.गां. य.ू गु. समाज अिस टट ोफे सर एवं पाठ्य म सयं ोजक, दरू
क , म.गां.अं.िह.ं िव., वधा काय अ ययन क , म.गां.अ.ं िह.ं िव., वधा िश ा िनदेशालय, म.गां.अ.ं िह.ं िव., वधा
इकाई लेखन
खंड -1 खंड -2 खंड -3 खंड -4
ी गजानन िनलामे इकाई 1 व 2 ी िशवाजी जोगदंड डॉ.अिमत िव वास डॉ.िशविसंह बघेल
इकाई 3 व 4 ी गजानन िनलामे
अनु म
.सं. खडं का नाम पृ ठ सं या
1 खंड - 1 – परामश के मल ू तव 5
इकाई - 1 परामश : अरथ् , अवधारणा और उ े य 6-14
इकाई - 2 परामश क ि या एवं अव थाएं 15-24
इकाई - 3 परामश तकनीक और उपकरण 25-33
इकाई - 4 समाज काय म परामश अ यास 34-40
2 खंड - 2 – परामश ि या 41
इकाई - 1 यि गत परामश 42-53
इकाई - 2 यगु ल और प रवार परामश 54-63
इकाई - 3 परामश एवं थेरेपी : अतं रसबं ंध 64-75
इकाई - 4 सामािजक कायकता : एक परामशदाता के प म 76-82
3 खंड - 3 – सच ं ार के मूल त व 83
इकाई - 1 सचं ार : अथ एवं अवधारणा 84-101
इकाई - 2 सचं ार के चरण एवं ा प 102-119
इकाई - 3 संचार सै ािं तक : सं कृ ित उ पाद, पि लक फे यर एवं सहमित िनमाण 120-133
इकाई - 4 भारत म सचं ार प र य 134-152
4 खंड - 4 – सच ं ार एवं समाज काय 153
इकाई - 1 वैयि क समाज काय अ यास म सचं ार 154-166
इकाई - 2 समहू समाज काय अ यास म सचं ार 167-175
इकाई - 3 सामदु ाियक सगं ठन अ यास म सचं ार 176-185
इकाई - 4 सामािजक ि या अ यास म सचं ार 186-198
खंड प रचय
ि य िव ािथय ,
पहले खंड म यह बताया गया है परामश का अथ, अवधारणा और उ े य या ह? इसके प चात इसक
ि या और अव थाओ ं का उ लेख िकया गया है। समाज काय म यु त क जाने वाली परामश तकनीक
और उपकरण को रे खािं कत करते हए समाज काय म परामश अ यास को बताया गया है।
चौथे खंड म संचार और समाज काय के अतं सबंध को प ट िकया गया है। वैयि क समाज काय, समहू
काय, सामदु ाियक संगठन और सामािजक ि या म संचार क या भिू मका होती है और िकस तरह से संचार
का उपयोग िकया जाता है, इसका उ लेख इस खडं म िकया गया है।
खंड – 1
परामश के मूल त व
1.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के बाद आप -
1. परामश का अथ एवं अवधारणा को समझ सकगे।
2. परामश के ल य, उ े य को समझते हए उसके घटक के ित समझ िवकिसत कर पाएगं ।े
1.1 तावना
वतमान म िविभ न सामािजक प रवतन के कारण मानवीय जीवन शैली म काफ बदलाव आए ह। बदलते
पा रवा रक स दभ म कुछ जगह इस तरह खाली हई है िजसके कारण समाज म उन भिू मकाओ ं के िनवहन के
िलए सं थािनक संरचनाओ ं क आव यकता महससू होने लगी है। उदाहरण के िलए संयु प रवार म या
ामीण समाज म ‘सलाह-मशिवरे ’ के िलए एक जगह हआ करती थी िक तु शहरीकरण के बोझ,
आधिु नकता एवं औ ोिगक करण के चलते ये जगह धीरे -धीरे गायब होने लगी है। तभी इन जगह के िवक प
के प म सलाह-मशिवरे के िलए परामश का उ म एक यावसाियक सेवा के प म होता है।19व सदी के
तीसरे -चौथे दशक म िव भर म इसका िवकास शु हो जाता है।
िव भर म परामश ि या क बेहतरी सं थागत संरचना को बढ़ावा देने के िलए िविभ न संगठन चलाए जाने
लगे ह। इस कड़ी म ि टेन म द टिडंग क िसल फॉर द एडवासं मट ऑफ़ काउंसेिलगं (SCAC) 1971 तथा
ि िटश एसोिसएशन फॉर काउ सेिलंग (BAC) 1972 जैसे संगठन का िनमाण हआ। 2001 म BAC का
नाम बदलकर ि िटश एसोिसएशन फॉर काउ सेिलंग एंड सायकोथेरेपी रखा गया। अमे रका म 1951 म
अमे रकन सायकोलोिजकल एसोिसएशन के अतं गत काउ सेिलगं सायकोलोजी नाम से नए िडिवजन खोले
गए। (McLeod, 2003, p. 5) साथ ही 1952 म अमे रका परामश संबिधत शीष थ सं थाओ;ं द नेशनल
वोके शनल गाइडस एसोिसएशन (NVGA), द नेशनल एसोिसएशन ऑफ़ गाइडस एडं काउंसेलर ेनस
(NAGCT), द टूडट पस नेल एसोिसएशन फॉर टीचर एजक ु े शन (SPATE) तथा द अमे रकन कॉलेज
पस नेल एसोिसएशन ने परामश यावसाियक क आवाज बल ु ंद करने के िलए एक साथ आकर द अमे रकन
पेस नेल एडं गाइडस एसोिसएशन (APGA) क थापना क , बाद म 1983 म इसका नाम बदलकर द
अमे रकन एसोिसएशन ऑफ़ काउ सेिलंग एडं डेवलपमट (AACD) रखा गया िक तु 1 जल ु ाई 1992 म िफर
से इसका नाम बदलकर अमे रकन एसोिसएशन ऑफ़ काउ सेिलंग रखा गया जो आज भी चल रहा है।
(American Counseling Asociation : Our History, 2017) भारत म अभी भी परामश को लेकर
उतनी जाग कता नह िदखाई देती बावजदू इसके नेशनल इिं टट्यटू ऑफ मटल हे थ एडं यरू ो साइसं ,
बगलु तथा इिं डयन इिं टट्यटू ऑफ़ काउ सेिलगं जैसे सं थान परामश को ो सािहत करते िदखाई देते ह,
साथ ही 2005 म थािपत काउ सेिलंग एसोिसएशन ऑफ इिं डया एवं 1970 म थािपत इिं डयन सोसायटी
ऑफ ोफे शनल सोशल वक जैसे संगठन इसक यावसाियकता को बनाए रखने के िलए ितब है।
परामश भारत म एक उभरता हआ िवषय है। इसके ित लोग का झान शु आती समय म कम था िक तु
आज कल परामश दैनिं दन जीवन क आव यकता बन रहा है। यही कारण है िक शैि क प र े य म इसक
ओर झक ु ाव यादा देखा जाने लगा है। ऑल इिं डया इिं टट्यटू ऑफ़ मेिडकल साइसं के सव के अनसु ार चार
लाख क जनसं या पर एक मनोिचिक सक काम कर रहा है। भारत म िफलहाल 4000 मनोिचिक सक,
1000 मनोवै ािनक और 3000 सामािजक कायकता कायरत है (Prabhakar & Dubouis, 2017)।
वतमान म देश वा य े म कािमक कमी क सम या से गजु र रहा है। ऐसे म समाज काय इन
यावसाियक क कमी को अंशत: परू ी करने क िज मेदारी उठाने क मता रखता है। परामश के अंतगत ही
वतमान सम या को सल ु झाया जा सकता है इसिलए समाज काय पाठ्य म म परामश मह वपणू जगह बनाए
हए है।
1.2 परामश
आम तौर पर परामश से ता पय होता है- सलाह, मशिवरा देना। समाज म रहते हए मनु य के सामने अनेक
ऐसी सम याएं आती ह िजसका िनबटान करने के िलए उसे िकसी और (जो इसके ित अनभु व, ान या
िवशेष ता रखता हो) के सलाह क आव यकता होती है। जैस-े घर-गृह थी म िनणय लेने के िलए बजु गु से
सलाह मशिवरा िकया जाता है। लेिकन जब हम परामश क बात करते ह तो इसम एक खास अथ िनधा रत
िकया जाता है िजसम के वल अनभु व, ान और िवशेष ता ही नह बि क सम या क समझ, सम या त के
यि व आिद के आधार पर एक आचार संिहता म रहते हए यावसाियक तरीके से सम या सुलझाने के
िलए िकया गया यास ही परामश कहलाता ह। परामश को समझने के िलए हम उसके अथ और िव ान ारा
दी गई प रभाषाओ ं को समझना होगा।
1.3 परामश का अथ
परामश श द क उ पि ओ ड च Conseil से मानी जाती है जो खदु लैिटन श द Consulere से बना है
िजसका शाि दक अथ Advice है। िहदं ी म अं ेजी श द counselling के िवक प के प म परामश श द
योग िकया जाता है।
म रयम वेब टर िड शनरी (2017) के अनसु ार counsel श द 14व शता दी म पहली बार उपयोग म लाया
गया। तथा इसके बाद counseling श द 1927 म उपयोग म लाया गया। आज कल Counselling के
पयायवाची श द के प म advise, Consult तथा treat जैसे श द का उपयोग िकया जाता है।
1.4 प रभाषाएं
म रयम वेब टर मेिडकल िड शनरी (2017) के अनसु ार “परामश एक यि को िदया जाने वाला
यावसाियक िनदशन है िजसके िलए मनोवै ािनक प ितय का उपयोग िकया जाता है िवशेषत: के स िह ी
म त य संकलन के िलए। साथ ही यि गत सा ा कार क िविभ न तकनीक एवं अिभवृि और िहत के
परी ण का उपयोग भी इसम िकया जाता है।”
थ ांग (Ruth Strang, 1956) के अनसु ार “परामश ि या एक संयु यास है। परामश ि या का
सारत व इन संबंध म है िजसम परामश ा यि , वयं को पणू त: अिभ य करने के िलए वतं ता का
अनभु व करता है तथा अपने ल य , सा य के बारे म प ीकरण व सा य ाि हेतु साम य और सम या
कट होने पर उसके समाधान हेतु यु साधन एवं िविधय के ित आ मिव ास ा करता है” (राय &
अ थाना, 2015, पृ. 326)।
ि िटश एसोिसएशन फॉर काउ सेिलंग (1984) के अनसु ार “परामश श द म यि के साथ िकए जाने वाले
ऐसे काय और संबंध िनिहत है जो शायद िवकासा मक, संकट सहायता, सायकोथेरे यिू टक, िनदशन या
सम या समाधान परक हो... परामश काय के अतं गत ‘सेवाथ ’ को अ वेषण एवं खोज का अवसर तथा
यादा से यादा संतोषपणू एवं संसाधनयु जीवन जीने क राह का प ीकरण ा होता है” (McLeod,
2003, पृ. 7)।
कुल िमलाकर परामश एक सि मिलत यास है िजसम परामशदाता तथा सेवाथ सि मिलत प से सम या
का समाधान खोजते ह। परामश मल ू त: सेवाथ के ि त ि या होती है। इसिलए परामश सेवाथ ारा मांगे
जाने पर िदया जाता है।
उ प रभाषाओ ं एवं अ य िव ान के मतानसु ार परामश क िन निलिखत िवशेषताएं िदखाई देती है-
परामश एक ि या है।
परामश म परामशदाता एवं सेवाथ के बीच अतं :ि या मक सबं धं है।
परामश का व प िवकासा मक, संकट सहयोग, सम या समाधान, िनरोधा मक एवं उपचारा मक
होता है।
परामश ि या आमने-सामने एवं सेवाथ के ि त होती है।
परामशदाता
परामश
सै ांितक
ि कोण ि या के सेवाथ
मु य घटक
सं था
सं था - समाज काय म सं था मह वपणू घटक मानी जाती है चूँिक वतमान समय सं थानीकरण का है, ऐसे
म परामशदाता एवं सेवाथ के िलए उपयु संरचना के प म सं था को देखा जाता है। जहां सेवाथ सहजता
से परामश ा कर सके । वतमान म िव ालय, पा रवा रक यायालय, पनु वास क , अ पताल, मानिसक
अ पताल आिद ऐसी जगह ह जहां सेवाथ सहजता से परामश ा करता है।
सै ांितक उपागम - परामश ि या के प म ि याि वत करने के िलए सै ांितक आधार क आव यकता
होती है। मल
ू तः परामश मनोिव ान से यादा जड़ु ाव रखता है इसिलए इसके इितहास म यह बात रे खांिकत
क जाती है िक बीसव सदी के म य म काल रोजस के यि व, मनोिचिक सा एवं परामश संबंधी िस ांत
और तकनीक का िवकास हो पाया (राय & अ थाना, 2015, पृ. 325 )। माना जाता है िक परामश और
यि व के िस ांत के बीच गहरा संबंध ह। इसके साथ ही दशन शा , िचिक सा िव ान, समाज काय तथा
िश ा आिद िवषय के ान का उपयोग इसम िकया जाता है। परामश म मल ू तः िन निलिखत सै ािं तक
उपागम मह वपणू है-
सै ांितक उपागम सबं ंिधत िव ान मुख िविध, तकनीक एवं ह त ेप नीित
मनोिव े षणा मक िस मडं ायड मु साहचय, व न िव े षण आिद
उपागम
यवहार उपागम पावलोव, ि कनर, जोसेफ अ यास एवं पनु बलन, ित प सीखना,
वो पे, अ बट बंडूरा आिद अनावृि (Exposure), िवसंवदे ीकरण,
अनिु या प रहार, सं ाना मक यवहार थेरेपी,
यवहार प रमाजन आिद।
सं ाना मक उपागम ओरोन बेक, जे. एस. बेक सो े िटक वे िनगं , लागत-लाभ िव े षण,
रयिलटी टेि टंग, अ टरनेिटव पसपेि टव
आिद।
तािकक-संवगे ा मक अ बट एिलस िश ण, तक और िववेक, सझु ाव, राजी करना,
यवहार उपचार मकु ाबला, िस ातं िश ण आिद।
अि त ववादी उपागम यां पॉल सा एवं अलबट अि त ववादी परामशन का ल य ‘अ छे के
कामू आिद अि त ववादी िलए’ होने के कारण िस ांतत: िकसी भी
दाशिनक तथा िव टर कल, िविधय को वीकार नह करता। ह त ेप
आर. डी. लग आिद परामश नीित म खल ु ापन, िव ास आिद मानवीय
मनोवै ािनक। मू य क मांग रखता है।
यि -के ि त काल रोजस अ ितबिं धत सकारा मक स मान,
उपागम/मानवतावादी परानभु िु तपणू समझ आिद
उपागम
गे टा टवादी उपागम
का का, कोहलर, कट लेिवन शारी रक बोध पर यान देना, भाषा पर यान
आिद देना, वु का अ वेषण, सायको ामा वक,
िनदशा मक बोध योग आिद।
िविभ न दशन ाही इगन, एं , गारफ ड एवं अ य सं ाना मक िव लेषणा मक उपचार,
सम वयवादी उपागम बहआयामी उपचार, द सहयोगी मॉडल
आिद
1.7 परामश के ल य और उ े य
परामश ि या सेवाथ के िहत म होती है िजसम िविभ न उपागम का उपयोग कर परामशदाता सेवाथ को
उिचत ल य तक पहँचने म मदद करता है। इस ि या के दौरान िविभ न ल य बनाकर उसक ाि का काय
सेवाथ परामशदाता के सहयोग से करता है। इस सामा य ल य के बावजदू परामश ि या के अ य
मह वपणू ल य ह जो िन निलिखत ह-
सहयोग
सशि करण
बहाली (Restitution)
मनोवै ािनक िश ा
सामािजक कौशल का अजन
िनणय-रचना
सम या समाधान
समायोजन
आपातकालीन ह त ेप एवं बंधन
ल ण उ मल ू न तथा सधु ार
आ म-बोध का िवकास
आ म- वीकृ ित का िवकास
आ म-वा तिवक करण या वैयि करण
नवजागरण
सम या समाधान
प रवेश एवं वयं के ित सकारा मक ि कोण का िवकास
जीवन म साथकता एवं अथबोध का िवकास
अप रहाय को वीकारने हेतु त परता का िवकास
सं ाना मक प रवतन
यवहार प रमाजन एवं यि व प रवतन
यव था, संगठन तथा समाज म प रवतन
उपयु वा य यवहार का िवकास
सझू का िवकास
अ य के साथ संतोषजनक संबंध थापना
परामश के उ े य
परामश म उपयोगी िविभ न उपागम के अपने उ े य ह िजसे परामशदाता सेवाथ के साथ काम करते समय
यान म रखते हए काय करता है। जैसे अि त ववादी उपागम के अनसु ार यि के ‘अ छे के िलए’ सोचना
यादा सिु वधाजनक रहेगा, मानवतावादी उपागम म मानवीय मू य को उ च थान िदया गया है। वैसे ही
यवहारवादी उपागम यि के सीखने क ि या को मजबूत बनाने के उ े य से कायरत होता है। िक तु
परामश जो इन सभी उपागम को साथ लेकर चलता है इसके कुछ अपने उ े य ह। इसे हम िन निलिखत प
से देख सकते ह-
मानिसक वा य
यि के ससं ाधन का सवं धन
काया मक ि से यि का िवकास सहज बनाना
व-आ मीकरण
आ म-िसि आिद
1.8 परामश के े
परामश मल ू त: यि के संपणू िवकास क िज मेदारी लेता है। िवकास के येक पड़ाव पर आने वाली
काया मक एवं मनोसामािजक सम याओ ं म सहयोग कर सम या त यि को सामा य वग म प रवितत
करने क मता यह रखता है और इसी उ े य से वह काय करता है।
परामशदाता क भिू मका को हन कर सामािजक कायकता िविभ न णािलय के अतं गत सेवािथय को
उिचत, िनयोिजत सहायता दान कर सकता है। समाज काय के अपने ख़ास े -िवषय के अलावे कुछ अ य
े म भी परामश ि या ारा उिचत सहयोग दान िकया जा सकता है। ऐसा देखा गया है िक यि
अपनी अपणू इ छाओ ं के कारण दबाव, तनाव, कंु ठा, ं आिद रोजमरा क सम याओ ं को हल करने म
आई असफलता के कारण बड़ी सम या का िशकार हो जाता है। ऐसे म अगर यि क इन रोजमरा क
सम याओ ं को यह छोटे तर पर हल िकया जाए तो कम समय और उिचत ढगं से सामािजक कायकताओ ं
ारा सेवािथय क सम या को हल िकया जा सकता ह। इस स दभ म रोजमरा क कुछ मह वपणू सम याएं
िजनक ओर परामशदाता को अपना यान आकिषत करना होगा वे िन निलिखत ह-
मानिसक सम या- दबाव, आघात, िचतं ा तथा गभं ीर मानिसक सम याए;ं
कूल म ब च क समायोजन क सम याए;ं
कॉलेज म कै रयर संबंधी सम याए;ं
पा रवा रक जीवन म समायोजन सबं धं ी सम याए;ं
वैवािहक सामंज य तथा
कायरत जगह क सम याएं आिद
1.9 सारांश
इस इकाई म हमने परामश के वैि क प रवेश तथा भारतीय प रवेश को देखा िजसम भारत आज भी काफ दरू
खड़ा िदखाई देता है। साथ ही हमने परामश का अथ तथा िविभ न िव ान ारा दी गई प रभाषाओ ं के
सहयोग से परामश क अवधारणा को समझा। परामश के मु य घटक को समझते हए इसके ल य एवं
उ े य को सं ेप म समझा।
समाज काय म परामश वैयि क सेवा काय म उपयोगी एवं मु य िविध के प म काम आता है। इस कारण
समाज काय और परामश का संबंध ढ़ होता िदखाई देता है। हालांिक भारत म परामश को एक यवसाय के
प म िकतनी जगह िमलती है यह िवचारणीय है बावजदू इसके बड़े शहर म इसक उपयोिगता को देखा
गया है। हाल म मल
ू भारतीय णािलय -योग, िस ा आिद को साथ पि मी परामश ि या को िमलाकर नए
परामश पाठ्य म बनाएं जा रहे ह। समाज काय म भी योग एवं ाकृ ितक िचिक सा आधा रत तकनीक का
उपयोग परामश ि या म िकया जा रहा है।
1.10 बोध
1. परामश के शाि दक अथ को समझाए।ं
2. परामश के मु य घटक पर चचा कर।
3. परामश से संबंिधत िविभ न सं थान को बताए।ं
4. परामश के ल य एवं उ े य पर िट पणी कर।
5. परामश के िविभ न उपागम को सं ेप म बताए।ं
इकाई क परेखा
2.0 उ े य
2.1 तावना
2.2 परामश ि या
2.3 ि या : परामश के स दभ म
2.4 परामश संबंध एवं ितवेश
2.5 परामश ि या क अव थाएं
2.5.1 परामश क आरंिभक अव था
2.5.2 परामश क म याव था
2.5.3 परामश क समापन अव था
2.6 सारांश
2.7 बोध
2.8 स दभ एवं उपयोगी थ
2.0 उ े य
िपछली इकाई म हमने परामश क अवधारणा को समझने क कोिशश क थी। इस इकाई म हम परामश
ि या क संरचना तथा उसके चरण एवं अव थाओ ं पर काश डालगे।
इस इकाई के अ ययन के बाद आप-
1. परामश क ि या को समझ सकगे।
2. परामश म संबंध एवं ितवेश (Setting) के मह व को िव े िषत कर सकगे।
3. परामश क िविभ न चरण एवं अव थाओ ं को समझ सकगे।
2.1 तावना
परामश, िजसम दो या कभी-कभी दो से अिधक लोग एक साथ आमने-सामने बैठकर सम या का समाधान
या उिचत ल य ाि क ि या को संप न करते ह। इस ि या को एक ख़ास संरचना म पूण िकया जाता है
तथा िविभ न चरण एवं अव थाओ ं से गजु रते हए यह ि या पणू होती है। िपछली इकाई म हमने देखा िक
परामश म मु य घटक के प म परामश के िविभ न सै ांितक उपागम आते ह। इन उपागम म से एक या
एक कृ त प से कुछ उपागम का गठजोड़ बनाकर परामशदाता सेवाथ को सम या सल ु झाने म मदद करता
ह। परामश तब तक ि या का व प हण नह करता जब तक क उसम कोई ि याकलाप, िनि त चरण
एवं अव थाएं न ह । इसके िलए परामशदाता को सेवाथ का यि व और सेवाथ क सम या को समझते
हए उसके साथ िमलकर िविभ न ि याकलाप चरणब तरीके से करने पड़ते ह। इन ि याकलाप को कब
और कै से करना ह? उपकरण एवं तकनीक का चयन आिद बात को यान म रखते हए परामशदाता सेवाथ
के साथ ि याकलाप करता है। ऐसा करने के प ात ही परामश एक ि या का प हण कर लेता है।
इस इकाई म हम परामश क संरचना, चरण एवं अव थाओ ं का अ ययन करने वाले ह िजससे परामश क
ि या को समझने म मदद िमलेगी।
2.2 परामश ि या
समाज काय म परामश के अतं गत सेवाथ को अिधकतम आव यकताओ ं क पिू त हेतु े रत िकया जाता है
साथ ही उसके मानिसक, सामािजक, आिथक तथा शारी रक िवकास म सहयोग दान िकया जाता है।
परामश क ि या ारा यि के सं ान, यवहार, अनभु िू त, क पना और अतं वयि क यवहार से संबंिधत
कारक के े म ह त ेप करके उसका िवकास सगं ित, व-आ मीकरण, आ मिसि तथा सकारा मक
मानिसक वा य क िदशा म सिु नि त िकया जाता है (राय & अ थाना, 2015, पृ. 364)। तीन मु य
घटक परामशदाता, सेवाथ तथा उपयु प रवेश सृजन(सं था) का उिचत तालमेल ही परामश है। वैसे तो
परामश म परामशदाता और सेवाथ के बीच सा ा कार ही मख ु मा यम होता है, इसके बावजदू ऐसे कई
कारक ह। िज ह यथायो य तरीके से परामशदाता सेवाथ को सहयोग देने म उपयोग करता है। इसे एक ख़ास
प ित या रा ते से पणू िकया जाता है इसिलए परामश को परामश िकया के प म देखा जाता है। आगे
बढ़ने से पहले हम ि या श द का अिधक गहनता से अ ययन करगे तािक परामश ि या को एक पता म
समझ सक।
उसके सािह य म भी िदखाई देता है जैसे िक वे मानते थे मनु य जैसा भी है, वह एक धारा- वाह क
तरह है उसके िलए िनि त प रवतन ि या नह होनी चािहए।
4. चौथे अथ म ि या का अथ परामशदाता सेवाथ के जीवन के अवरोिधत अनभु व का वणन करने
तथा उसे और अिधक समझ के साथ य करने के िलए यु रा ते के प म ह। सेवाथ के क चे
अनभु व का अथ लगाने क कोिशश इसम क जाती है। कभी-कभी इसे ‘िनिमत ि या’
(Manufacturing Process) के प म देखा जाता है।
उ ि या के िविभ न अथ ह िज ह परामशदाता अपने ख़ास ि कोण एवं िस ांत के आधार पर
योग म लाते ह। तल ु ना मक प से देखे तो इसम से कोई भी ि या का अिधक सही या गलत अथ
नह ह बि क परामशदाताओ ं ारा यवहार म यादातर उपयोग म लाए जाने वाले अथ के पंजू के प
म इसे के वल यहाँ दशाया गया है। जॉन मै लोड का यह सझु ाव है िक चौथे अथ म ि या का उपयोग
बड़ी मा ा म िकया जता है।
यह अव था इं ोड टरी होने के कारण इसम दोन (सेवाथ और परामशदाता) एक-दसू रे को परखते ह। इसी
स दभ म सेवाथ परामशदाता से अपनी अपे ाओ ं क पिू त के स दभ म जानकारी हािसल करने क कोिशश
करता है तो दसू री ओर परामशदाता भिू मका प क के साथ समय, धन और सेवाथ क अपे ाओ ं को जानने
क कोिशश कर रहा होता है। थम संपक आगे के संबंध पर असर डालता है इस कारण काफ सावधानी एवं
तैयारी के साथ सच ं ार (आमने-सामने हो या टेिलफोिनगं ) िकया जाता है। थम सपं क क जगह इस अव था
म मह वपूण होती है य िक येक प रवेश का सेवाथ के मनोवै ािनक दशा पर असर पडता है, इसिलए
शांितपणू एवं गोपनीयता को बनाए रखने वाले ितवेश को चनु ना आव यक माना जाता है। और अंितम म
सेवाथ से सा ा कार के समय िविभ न चीज को यान म रखने वाले चीज मह वपणू मानी जाती है, जैसे
सेवाथ क इसके पहले क कोई के स िह ी या रे फरल प आिद चीज क औपचा रकता को इसी अव था
म पणू िकया जाना आव यक माना जाता है।
पवू -तैयारी के बाद आरंिभक अव था म धीरे से वेश करते हए परामश ि या क शु आत होती है। एक-
दसू रे के मू याक
ं न के बाद आमने-सामने बातचीत का दौर शु हो जाता है िजसे स कहा जाता है। स क
शु आत अिभवादन एवं थान हण करने से होती है तथा बातचीत के साथ इं ोड शन क शु आत होती है।
स के अिं तम म काय योजना का िनधारण िकया जाता है। स क शु आत म कुछ यान देने यो य बात
िन निलिखत ह-
1. द उपि थित और सनु ना।
बातचीत को आगे बढाने म सहयोग
करना
ले रिफके शन
2. िनवचन या या या।
3. दोहराना।
4. सं ेपीकरण।
5. टकराव।
6. सेवाथ का स मान।
7. बातचीत को संरिचत करना, सम या या अपे ाओ ं का ाथिमक करण करना।
8. काय-योजना का िनधारण करना तथा।
9. परामश स को समेटना।
2.5.2 परामश क म याव था:- म याव था परामश ि या का सबसे मह वपणू और बड़ा िह सा होता
है। मु यत: परामश के मह वपूण इसी अव था म पणू िकए जाते ह। इसी अव था म सेवाथ क सम या को
समझकर उिचत ह त ेप नीित के आधार पर उसे सल ु झाने क कोिशश क जाती है। िविभ न सै ािं तक
उपागम के अतं गत परामशदाता ल य िसि के िलए सेवाथ के साथ िमलकर काय करता है। इसी कारण
इस अव था को काय अव था भी कहा जाता है। िविभ न िस ांतो के अ यास म िभ नता िदखाई देती है
िजसके कारण ल य भी अलग-अलग होते ह तथा सेवाथ क सम या एवं अपे ाओ ं क पूित को यान म
रखकर परामशदाता को उिचत िस ांत का चनु ाव करना पड़ता है। म याव था म काय करने क प ित एक
बड़े ल य को ा करने के िलए छोटे-छोटे ि यागत ल य क ाि के अंतगत तय क जाती है। उदाहरण
के तौर पर पा रवा रक परामश के अतं गत आने वाली सम याओ ं को देखा जा सकता है। इसम पित-प नी के
बीच के ं को ख़ म कर एक साथ एक प रवार के प म समायोिजत करने का एक
सेवाथ के साथ स का
नधारण
तैयार अव था
पव
ू -परामश स
आरं भक अव था
परामशन संबध
ं ो का
वकास
आरं भक अव था
परामशन के व श ट
ल य क पहचान
परामश या
ल य ाि त के लए
म याव था म यवत अव था काय योजना वकास एवं
या वयन
परामश संबध
ं का
स ांत अव था
समापन
स ांत अव था
परामश प रणाम का
मू यांकन
अनव
ु तन अव था
अनव
ु त काय
वाली येक दिु वधाओ ं का शमन परामशदाता इसी अव था म करता है तािक सेवाथ उससे े रत हो और
सजगता से अपने आप को समाज म समायोिजत कर सके । समापन अव था म परामश ि या का मू यांकन
करने के िलए इअन हट न (Ian Horton, 2000) पांच िबंदु दान करते ह जो िन निलिखत ह-
परामश क उपलि धयां या रही?
अभी और या ा िकया जाना शेष है?
प रवतन य घिटत हआ?
भिव य म या हो सकता है?
परामश संबंध का व प या रहा ?
इसके अतं गत यह सिु नि त करना होता है क सेवाथ को इससे या लाभ हआ और या हािन। इस
मू यांकन के बाद ही परामश का स समापन क ओर अ सर होता है।
समापन अव था म दसू री मह वपणू बात यह है िक परामश समापन के बाद परामशदाता का काम ख़ म नह
होता। वा तिवक जीवन म लौटने के बाद सेवाथ को आने वाली सम याओ,ं अवरोध को समझकर उसे
बीच-बीच म े रत करने का काम भी उसको बीच-बीच म करना पडेगा। इस ि या को अनवु तन
(Follow-Up) कहा जाता है। समापन स के प ात सािं विदक प से सेवाथ से सबं धं ख़ म हो जाता है
बावजदू इसके सेवाथ अपने जीवन म परामश ि या के दौरान िसखाए गए तकनीक का उपयोग िकस तरह
कर रहा है? उसम आने वाली तकलीफ से उबरने के िलए वह परामशदाता के पास वापस आ सकता है तब
परामशदाता का यह दािय व है िक पुन: उसे े रत एवं अिधगम के साथ समायोजन म मदद कर। हालांिक
समापन के बाद इन भेट क मा ा धीरे -धीरे कम होती जानी चािहए अ यथा समापन स के बाद संबंध ख़ म
होने के कारण सेवाथ म अवसाद क ि थितयां उ प न हो सकती है। ऐसे म समापन के बाद अनवु तन
आव यक बन जाता है। अनवु तन काय को उ े य के आधार पर दो कार म िवभािजत िकया जाता है-
अनवु त अ ययन; तथा
अनवु तन सेवा।
अनवु त अ ययन के अतं गत वा तिवक जीवन म लौटने के बाद सेवाथ का मू यांकन िकया जाता है। िजसम
यह देखा जाता है िक परामश ि या से अिजत लाभ ा कर सेवाथ वा तिवक जीवन म िकस कार काय
कर रहा है? उसके जीवन म अब ‘उस’ सम या क दर िकतनी है। दसू री ओर अनुवतन सेवा के उ े य से िकए
गए अनुवतन म सम या क पुनरावृि को रोकना होता है। परामश समापन के कुछ अतं राल के बाद िफर से
सेवाथ के साथ परामश स आयोिजत कर शु आती परामश स से ा लाभ को िफर से याद कराया
जाता है तथा उन लाभ को पूनबिलत (Reinforce) िकया जाता है िजससे सेवाथ का आ मिव ास अिधक
ढ़ हो जाता है। इन दोन अनवु तन के कार म से सेवाथ के िलए लाभकारी अनवु तन सेवा है। इससे सेवाथ
को अिधक लाभ ा होता है। इसिलए यादातर परामश ि या म अनवु तन सेवा को ाथिमकता दी जाती
है।
2.6 सारांश
परामश ि या एक िवशेषीकृ त ि या है िजसके िलए परामश को िवशेष िश ण क आव यकता होती
है। साथ ही िविभ न िस ांत क समझ भी इसम मह वपूण शत मानी जाती है। परामश ि या क सफलता
को भािवत करने वाले कई कारक होते िजसम परामशदाता क िवशेषताए,ं यो यता, द ता, सम या का ान
आिद क उिचत समझ को मह वपणू माना गया है। परामशदाता को सेवाथ क सम या क कृ ित, उसक
अपे ाओ ं और यि व के आधार पर ही िस ांत , तकनीक एवं उपकरण का उपयोग करना होगा। उसी के
आधार पर काय-योजना एवं ह त ेप नीित का िनधारण िकया जाना चािहए। साथ ही परामशदाता को
ितवेश सृजन/िनमाण म उ सभी िब दओ ु ं को यान म रखना आव यक है। तभी सेवाथ उिचत ल य तक
पहँच सकता है और परामश ि या सफल हो सकती है। वे सेवाथ के साथ काम करते समय िविभ न
यवसाियक मागदिशकाओ ं का पालन करे और यान रहे िक िविभ न सं कृ ितय म काम करते समय
थानीय रीती- रवाज एवं भाषा को समझने क कोिशश परामशदाता को करनी चािहए तािक सेवाथ के
साथ संबंध गाढ़ बन सके । यह मान लेना आव यक है िक परामश ि या म सं ेषण ही मह वपूण मा यम है
िजससे आप सेवाथ को समझ सकते ह और समझा सकता ह।
2.7 बोध
1. परामश या है? अपने श द म िलखे।
2. पा रवा रक परामश क म भट देकर उसका वणन करे ।
3. परामश ि या क अव थाओ ं को िव तार से बताए।ं
4. परामश ि या को भािवत करने वाले कारक क सं ेप म चचा कर।
5. आरंिभक अव था का वणन कर।
6. अनवु तन के दो कार को बताए।ं
3.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के प ात आप -
1. परामश ि या म उपयोगी िविभ न ि कोण क चचा कर सकगे।
2. परामश ि या के अतं गत उपयोग म लाए जाने वाले तकनीक एवं ह त ेप नीित क या या कर
सकगे।
3.1 तावना
इसके पहले क दो इकाइय म हमने परामश या है, और उसक ि या को समझ िलया है। अब हम परामश
ि या म उपयोगी ि कोण के अतं गत उपयोग म लाए जाने वाले िविभ न ि कोण एवं तकनीक क बात
इस इकाई म करगे। आम तौर पर कोई भी काय करने के िलए हम एक िनि त ि कोण (Approach) क
आव यकता होती है और साथ ही कुछ उपकरण एवं तकनीक क आव यकता होती है। चँिू क कोई भी
काय बेहतर तभी हो सकता है जब उसमे प रशु ता हो। जैसे िक कोई भी ान तभी िव ान होता है जब उसम
मापन प ितयाँ एवं कसौिटयां हो। इसी के आधार पर कोई िव ान अपने आप को थािपत कर सकता है।
दसू री ओर िविभ न यवसाय म िविभ न कार के उपकरण एवं तकनीक का उपयोग िकया जाता है।
परामश ि या के िविभ न अव थाओ ं एवं चरण के दौरान परामशदाता सेवाथ के सहयोग के उ े य से
िविभ न ि कोण के अंतगत उपकरण एवं तकनीक का उपयोग करता है। इसका उपयोग परामशदाता
सेवाथ क सम या को जानने तथा उससे िनबटने के िलए बनाई जाने वाली काय योजना म करता है।
सा ा कार को परामश म एक आमने-सामने सा ा कार क ि या मानना अलग बात है तथा परामश
ि या के अंतगत सा ा कार को एक उपकरण के प म उपयोग म लाना अलग बात है। दोन समय म
सा ा कार का व प अलग होता है।
का िवकास होता है। इसक ितपिू त के िलए यि म े ता मनो ंिथ क रचना होती है। एडलर क
यि गत उपचार णाली का मु य ल य सेवाथ के अचेतन म ि थत ल य, िव ास एवं िवचार को
अना छािदत कर उसे चेतन बोध म लाना है। एडलर का दसू रा ल य सेवाथ के मांगे जाने पर उपल ध
करवाया जाता है। एडलर के अनसु ार सेवाथ के जीवन के तीन े यवसाय, सामािजक जीवन तथा अतं रंग
सबं धं इन तीन क सतं िु लत भागीदारी से मानिसक वा य ा िकया जा सकता है। इसिलए वे सलाह देते
ह िक सेवाथ के सामने वा तिवकतापणू ल य रख। इस ल य तक पहँचने के िलए वे समानता एवं पार प रक
स मान के आधार पर संबंध क थापना, सेवाथ के साथ लोकतांि क संबंध क थापना, जीवन शैली का
मू याक ं न एवं प रवतन, आरंिभक मृितय का िव ेषण तथा सेवाथ के िनजी तक का परी ण आिद
तकनीक के उपयोग क सलाह देते ह। इस ि कोण म यु तकनीक का मु य आधार सेवाथ को अ य
लोग के साथ समानता के स ब ध का अनभु व कराना तथा अपने यवहार तथा िव ास के िवषय म
अतं ि का िवकास करना होता है।
3.2.4 यवहारा मक ि कोण (Behavioural Approach): इस िस ातं से सबं धं रखने वाले िव ान
म पैवलव, ि कनर, जोसेफ वो पे, अ बट बडं ू रा आिद ह। यि क सभी अनिु याएं अिजत होती है।
अिधगम, परु कार एवं दडं तथा य न एवं िु टयाँ आिद इसक मख ु अिभधारणाएं ह। इ ही िस ांत एवं
िवचार के आधार पर इस ि कोण का िवकास हआ है। यवहार प रमाजन के े के साथ-साथ
सं ाना मक- यवहार ि कोण का भी िवकास हआ है। इसिलए इन दोन को एक साथ सि मिलत भी िकया
जाता है। इसी के आधार पर समकालीन चिलत सं ाना मक- यवहार थेरेपी (Cognitive-Behavioural
Therapy) का िवकास हआ है। लग (Laing, 1979) ने इस ि कोण के अतं गत सम या क या या करते
हए ि आयामी ि कोण िदया है िजसे दु के प म िव े िषत िकया जाता है। इस दु म
प रहार/पलायन, िचंता, प रि थितय क भयावहता का अनभु व शािमल है। अत: इस ि कोण का मख ु
ल य इस दु को तोड़ना ह। िजसके िलए छोटे-छोटे ल य; समायोजना मक अनिु याओ ं के िलए
सकारा मक पनु बलन, कुसमायोजना मक अनिु याओ ं के िलए नकारा मक पनु बलन, सुरि त प रवेश म
अवसर उपल धता तथा प र ण का अवसर, िशिथलीकरण सबं धं ी मता का िवकास आिद को शािमल
िकया जाता है। यवहार ि कोण मल ू तः समायोजना मक सम याओ ं पर यान के ि त करता है। इस कारण
इसक तकनीक म ित प अिधगम, िवसंविे दकरण, अनावृि , अनिु या प रहार, िशिथलीकरण, गृहकाय,
डायरी रखना आिद को शािमल िकया जाता है।
3.2.5 सं ाना मक ि कोण (Cognitive Approach): ऑरोन बेक (Aaron Beck, 1964) ारा
िकए गए िचतं न और िवषाद के सबं धं ो के अ ययन म उसने नकारा मक सं ान ि पद क अिभक पना का
िवकास िकया। बाद म यह देखा गया िक मानिसक सम याओ ं म भी सं ाना मक िवकार दिशत हो सकता
है, इसिलए इसके उपचार के िलए सं ान के तर पर ह त ेप णाली िवकिसत क गयी। आज कल के
परामशदाता एवं थेरेिप ट इसका उपयोग CBT (Cognitive Behavioural Therapy) के प म करते ह।
सं ान से ता पय है बाहरी प रवेश म शारी रक इि य ारा िकसी घटना, वा तु के बोध से ह िजसम यि
क या या, मू यांकन एवं िन कष भी शािमल होते ह। उदाहरण के तौर पर बाहरी प रवेश म यि को
िकसी घटना का य ण आतंिकत कर देने वाला हो तब यि के दैिहक ि याओ ं पर उसका असर पड़ता
है। जैसे- सन गित ती हो जाना आिद िजससे वह ोध, आ ामकता तथा पलायन का यवहार करता है।
ऐसे म यि उस घटना का मू यांकन एवं या या कर वयं अपने यवहार म संशोधन कर सकता है। बेक ने
तीन कार के सं ान क चचा क है- सचू ना संसाधन, वचािलत िवचार तथा क मा। सं ाना मक ि कोण
यि क सम या क या या िवकृ त िचंतन णाली के प म करता ह। बेक ने िवकृ त सूचना संसाधन के
तीन प बताए ह- मनमाना िन कष, ि भाजी िचतं न तथा वृि करण एवं अ पीकरण। इसके उपचार हेतु यह
ि कोण मानता है िक परामशदाता को सेवाथ म सम या क अवधारणा को िवकिसत करने का ल य
िनधा रत िकया जाना चािहए। सं ाना मक िु टय को चनु ौती देकर प रवतन का यास करना, िवकृ त िवचार
का प रमाजन आिद ल य रखे जाते ह। इसके िलए परामशदाता स य-िनदशा मक परामश प ित के
अतं गत िश क क भिू मका िनभाता है। तथा दसू री ओर अ य िव ान ने इस ि कोण के अंतगत छ:
सं ाना मक ेिणय एवं पाच ं यवहार तकनीक को उपयोगी माना है। जो मश: है- सो े िटक वे िनगं ,
लागत-लाभ िव े षण, सेवाथ को वत: फूत िवचार , सवं गे तथा यवहार के भाव को समझने म मदद
करना, वैकि पक प र े य का िवकास, वा तिवकता प र ण, सं ाना मक अ यास, िमक अनावृि ,
गितिविधय का बोधन, अितिविधय क अनसु चू ी तैयार करना, यवहार प र ण, िव ािं त िविधयां
शािमल है।
3.2.6 तािकक संवेगा मक यवहार िचिक सा ि कोण (Rationale Emotive Behaviour
Therapy): मनु य तािकक ाणी है वह अपने आरंिभक अनभु व के आधार पर तािकक िचंतन क िविश
शैली का िवकास करने म समथ है। ऐसी िचंतन शैली यि के यवहार को भी भािवत करती है। इस
अिभधारणा को आधार मानकर अलबट इि लस (Albert Ellis, 193) ने तक, संवगे एवं यवहार के
गठजोड़ से एक उपचार णाली का िवकास िकया। इि लस का मानना है िक मानवीय सम याएं यि के
अतािकक िव वास म िनिहत ह। इसिलए इस ि कोण का मु य ल य सं ाना मक, संवगे ा मक,
यवहारा मक प रवतन का उपयोग कर अतािकक िव ास क जगह नए तािकक िव ास का िनवेशन करना
है। इस काय के िलए िश ण, तक और िववेक, सझु ाव, राजी करना, मक ु ाबला, िस ांत िश ण आिद
तकनीक को सेवाथ के बेहतरी के िलए उपयोग म लाया जाता है।
3.2.7 यि गत िनिमित ि कोण (Personal Construct Approach): जाज के ली(George
Keley, 1955) के अनसु ार अनभु िू तय म िचंतन और यवहार वैसे ही िनिहत होते ह जैसे िक यवहार म
अनभु िू त एवं िचतं न शािमल होते ह। इस कार यि गत अनभु व सदैव सपं णू ता को समेटे हए देखे जा सकते
ह। यि घटनाओ ं का िजस प म पवू नमु ान करता है उसी कार से उसक मानिसक ि याएं अपने माग
का चयन करती ह। ऐसे म यि क यि गत िनिमितयां घटनाओ ं का भिव य कथन करने म िवफल होने से
िचंता उ प न होने लगती है। इसिलए के ली ने यि के िनिमितय को पनु सरिचत करने म तीन सहायक
तकनीक बतायी ह- व-च र िच ण, ि थर भिू मका उपचार, भंडार ीड तकनीक। इसके बावजदू इस
ि कोण से जड़ु े िव ान गायड़ेनो (Guidano, 1987) आिद ने ि या उ मख ु थेरेपी के प म मह वपणू
योगदान िदया ह।
3.2.8 यि के ि त ि कोण (Person Centred Approach): इस ि कोण को Client-
Centred Therapy के प म भी जाना जाता है। मानवतावाद पर आधा रत इस ि कोण के ितपादक
3.5 सारांश
जैसे िक हमने देखा परामश ि या म सेवाथ को सहयोग तथा उसक सम या को समझने के िलए िविभ न
ि कोण ारा िभ न-िभ न तकनीक के उपयोग के िवक प उपल ध ह। िक तु आज कल बदली हई जीवन
शैली के कारण सम याओ ं का व प जिटल बनता जा रहा है। िजसके प रणाम व प परामशदाता को
सेवाथ क सम या क समझ तथा उसके यि व को समझने म काफ तकलीफ को झेलना पड़ रहा ह।
ऐसे म कुछ परामशदाताओ ं ने िविभ न ि कोण एवं िस ांत को एक साथ िमलाकर एक कृ त ि कोण
अपनाना शु िकया ह। दसू री ओर हम देखते ह िक िजस तरह से मनोिव ान म िजन िस ांत के हवाले ये
ि कोण तैयार हए थे उनम से कुछ िकशोराव था या यवु ाव था तक के िवकास को समझने म मदद करते ह।
ऐसे म वय काव था तथा वृ ाव था क सम याओ ं को समझने के िलए कोई ि कोण परामशदाता के पास
उपल ध नह ह तब ान क सरं चना को नए िसरे से समझने के िलए नए िस ातं का िनमाण आव यक बन
गया है। जैसे िक वय काव था तथा वृ ाव था के िवकास को समझने के िलए आज हमारे पास लाइफ- पैन
डेवलपमट (life-span Development) का ि कोण उपल ध ह। इसिलए परामशदाता को अ तन ान
के सपं क म रहना बहत ज री होता है। के वल इन तकनीक से ही नह बि क ऐसे कुछ सगं ठन ह िज ह ने
वैकि पक तकनीक के िनमाण िकया ह िजसम अमे रकन एसोिशएशन ऑफ़ काउंसेिलंग मह वपणू ह।
साथ ही इस बात को भी यान रखना होगा िक यह ि कोण एवं तकनीक सभी सामािजक-सां कृ ितक
प र े य म उपयोगी हो ही ऐसा भी नह ह। भारतीय प र य म परामशदाता यह मानते ह िक जंगु ीयन परामश
तकनीक का उपयोग यहाँ काफ कारगर ह। वैसे ही िह द,ू बौ , जैन आिद धम के दशन ारा ा तकनीक
का उपयोग भी यहाँ पर कारगर माना जाता है।
3.6 बोध
1. परामश म ि कोण के मह व पर काश डालते हए मनोिव लेषणा मक ि कोण क चचा कर।
2. यवहारवादी ि कोण को समझाए।ं
3. यि के ि त ि कोण क चचा करते हए उसम उपयोगी तकनीक पर काश डाले।
4. परामश ि या म अि त ववादी ि कोण क चचा कर।
5. परामश ि या िजन कारक म प रवतन क मागं होती है उ ह सं ेप म समझाएं।
6. यि म प रवतन के मख ु तकनीक को िचि हत कर।
इकाई क परेखा
4.0 उ े य
4.1 तावना
4.2 समाज काय म परामश अ यास क आव यकता
4.3 सामािजक वैयि क सेवा काय म परामश अ यास
4.4 समूह परामश
4.4.1 ोत
4.4.2 अव थाएं
4.5 समाज काय के मुख े म परामश अ यास
4.6 अ य े
4.7 सारांश
4.8 बोध
4.9 स दभ एवं उपयोगी थ
4.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के बाद आप -
समाज काय म परामश क आव यकता को समझ सकगे।
समकाज काय के िविभ न काय े म परामश क पहचान कर सकगे।
4.1 तावना
19 व शता दी के शु आत म समाज काय अपनी एक ठोस आधार संरचना के साथ िवषय के प म
िवकिसत हआ। समाज काय के उ म म ही इस मल ू अवधारणा के बीज थे िक यह समदु ाय के सहयोग के
िलए काय करे गा। इसीिलए इसके उ े य म भी इसक झलक िदखती है जैसे िक शु आती समय म समाज
काय का मु य उ े य सामािजक प पात से पीिड़त का सशि करण तथा सहयोग रखा गया था। यि क
े ता तथा उनके सामािजक समावेशन के म ने जर उनके जीवन म आने वाली मनोसामािजक सम याएं तथा
उन सम याओ ं को समझने के िलए आव यक दैिहक एवं िचिक सक य ान समाज काय ारा अपनाया गया
है। इस ान को समाज उपयोगी बनाने के िलए समाज काय लगातार नवीन तकनीक , प ितय एवं ि कोण
से अपनी ान सरंचना को समृ करता रहा है।
व तुत; देखा जाए तो समाज काय और परामश क उ म ि थित एक समान है। ये दोन िवषय िविभ न िवषय
एवं यवसाय क ान संरचना पर आधा रत है। ठीक वैसे ही इन दोन िवषय म मनोिव ान और इससे
संबंिधत िवषय का बहतायत म उपयोग िकया जाता है। इसिलए इन दोन का गहरा संबंध देखा जाता है।
दोन ही वत प से यवसाय होने के बावजदू एक-दसू रे के सहयोगी भी है। अत: इस बात को यान म
रखते हए हम इस इकाई म समाज काय म परामश का अ यास या समाज काय अ यास म परामश को
समझने क कोिशश करगे।
4.6 अ य े
भारत एक िवशाल देश है जहां सबको सभी सिु वधाएं पहचं ा पाने म वयं सरकार भी खदु को असमथ पाती
है। ऐसे म एक कृ त प से परामश ि या के मा यम से ही उन लाभाथ , सेवा उपभोगकता तक पहँचने का
एकमा स ता रा ता िदखाई देता है। परामशदाता क भिू मका को वीकार कर सामािजक कायकता िविभ न
णािलय के अंतगत सेवािथय को उिचत, िनयोिजत सहायता दान कर सकता है। समाज काय के अपने
ख़ास े -िवषय के अलावे कुछ अ य े म भी परामश ि या ारा उिचत सहयोग दान िकया जा
सकता है। ऐसा देखा गया है िक यि अपनी अपणू इ छाओ ं के कारण दबाव, तनाव, कंु ठा, ं आिद
रोजमरा क सम याओ ं को हल करने म आई असफलता के कारण बड़ी सम या का िशकार हो जाता है। ऐसे
म अगर यि क इन रोजमरा क सम याओ ं को यह छोटे तर पर हल िकया जाए तो कम समय और
बचतपणू ढगं से सामािजक कायकताओ ं ारा सेवािथय क सम या को हल िकया जा सकता है। इस स दभ
रोजमरा क कुछ मह वपणू सम याएं िजनक और परामशदाता को अपना यान आकिषत करना होगा वे
िन निलिखत ह-
मानिसक सम या- दबाव, आघात, िचतं ा तथा गभं ीर मानिसक सम याएं
कूल म ब च क समायोजन क सम याएं
कॉलेज म कै रयर संबंधी सम याएं
पा रवा रक जीवन म समायोजन सबं धं ी सम याएं
वैवािहक सामंज य
कायरत जगह क सम याएं तथा
वैयि क, सां कृ ितक तथा संरचना मक भेदभाव, असमानता एवं पवू ा ह (Thomson,2001 PCS
model)
इन े के साथ-साथ था सन (Thomson,2001) का िवचार था िक भेदभाव, असमानता एवं पवू ा ह को
समा करना सामािजक कायकता का ल य होना चािहए। उनके अनसु ार भेदभाव, असमानता एवं पवू ा ह
तीन तर पर िनिमत होता है- वैयि क, सां कृ ितक तथा संरचना मक। और यह येक यि म दसू र के
ित समान प से देखा जाता है। जैसे समहू के बाहरी लोग, रंगभेद, जाितभेद, धािमक एवं भाषाई आधार पर
यह असमानता, भेदभाव और पूवा ह िनमाण होते रहते ह। कभी कभार अ य के िलए तैयार वैयि क मत
सां कृ ितक धरातल पर पहँचने से पूवा ह म त दील हो जाता है। इसी से शोषक एवं शोिषत क ंख ृ ला
िवकिसत हो जाती है। इस ंख ृ ला को तोड़ने का काय परामश ि या ारा सामािजक काय बेहतरी से कर
सकता है।
4.7 सारांश
परामश एक जिटल और मांगपरक ि या है। यह ि या उिचत ान और कौशल ा लोग क मांग रखती
है। परानभु िु तक समझ तथा यि एवं उसक सम या क समझ आिद इससे अछूते नह ह। िक तु यह सारे
ि याकलाप एक तरह से समाज काय के एकि त घटक है जो सामािजक कुशल (Social Good) के िलए
आव यक ह। इसम परामश िस ांत िपछले आधे दशक के बाद शािमल हए ह; िजनके िविभ न उ म थान है,
इसके कारण इसके व प म जिटलता देखी जाती है िक तु इसके बावजदू समाज काय और परामश म काफ
समानताएं भी है िज ह बस सेवाथ क आव यकता अनसु ार वीकार करने क देर ह। हालांिक इन िस ांत
को अंगीकृ त करना एवं यवहार म लाना आसान काय नह है। इसके िलए यह आव यक है िक उन िस ांत
को उ नत ढंग से समझकर यवहार यो य बनाना िजससे परामश काय भावपणू बने। इसक परू ी िज मेदारी
खडं – 2
परामश ि या
1.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के प ात आप -
1. यि गत परामश क अवधारणा को समझ सकगे
2. यि गत परामश क ि या से संबंिधत ान ा कर सकगे
3. समाज काय म वैयि क परामश के मह व को ितपािदत कर सकगे
1.1 तावना
मानवीय समाज ने अपने िवकास म म जीवन िनवाह के िलए प रवार, समहू , समदु ाय आिद
संरचनाओ ं का िनमाण िकया था। बदलते समाज म इन िनिमत सं थाओ ं का व प भी बदलता गया।
स यता-सं कृ ित जैसे भारी-भरकम श द के साथ-साथ फै शन जैसे नई दिु नयावी श द जड़ु ने लगे।आधिु नक
समय म यि वािदता के सू पात ने यि - यि के बीच सीमारे खा ख चने का काम िकया और उ र-
आधिु नक समाज म तो यि गत सम याओ ं का व प और भी जिटल होता गया।यहाँ सारी सरं चनाएँ ढह-
सी गई ह और जीवन शैलीगत नई सम याओ ं का उभार इससे होने लगा है। वै ीकरण म आिथक वतं ता के
बावजदू सीिमत समझ क सम या के कारण छोटी-छोटी चीज के िलए यि को िकसी और (सेवा दाता
सं था, सगं ठन, या कोई अथॉ रटी आिद) पर िनभर होना पड़ रहा है। इन सबके बावजदू प रवार या युगल के
प म रहते समय या काय क जगह पर यि को अ य के साथ सामजं य बनाए रखने के िलए काफ
ज ोजहद करनी रही पड़ती है। इस तरह से जब सम याओ ं का व प बदल रहा है, ऐसे म समाज काय को
अपनी सेवा णाली म परामश को अिनवाय प से जगह देने क मांग भी जोर पकड़ने लगी। ि तीय िव यु
के प ात इसका आिवभाव संपूण िव म देखा जा सकता है।
आधिु नकता ने मानवीय समाज को ‘ यि वािदता’ म इतना गहरा उलझा िदया है िक मनु य खदु को
‘अ य’ से अलग-थलग महसूस कर रहा है। ‘सामिू हक जीवन’ को ितलांजिल देकर िजस तरह से मनु य ने
वैयि क जीवन को चनु ा है,उससे सम याओ ं म काफ बढ़ोतरी हई है। मनु य के इस चनु ाव ने मानवीय
सम याओ ं म आमूल प रवतन िकया है। इस प रवतन को िविभ न ान शाखाओ ं ने अलग से समझने एवं
उसके िनवारण के िलए काफ सराहनीय काय िकया है, िजसम मनोिव ान, समाजशा एवं समाज काय
आिद अ णी शाखाएं ह। यि , यि व, यि गत इ छा और आकां ाएं आिद के सम वय तथा
असमायोजन क सम या के समाधान के िलए परामश का उ व हआ है।सम या क कृ ित के आधार पर
परामश को िविभ न कार म बाँटा जाता है जैसे िक यि गत सम याओ ं के िलए यि गत परामश, यगु ल
एवं प रवार से संबंिधत सम याओ ं के िलए युगल एवं पा रवा रक परामश आिद। इस इकाई म हम यि गत
परामश को समझगे।
1.2 यि गत परामश
यि गत परामश का सबं धं सीधे यि गत सम याओ ं से होता है। इसिलए यि के जीवन म
आनेवाली िविभ न मनो-सामािजक सम याओ ं को हल करने का काय यि गत परमश के मा यम से िकया
जाता है।समाज काय म परामशन क शु आत करने का ेय बथा रे नो ड्स (1932) को जाता है।
वैयि क परामश क कुछ िव ान ारा दी गयी प रभाषाएँ:
मेरी रचम ड (1915) ने वैयि क परामश को िविभ न यि य के साथ सहयोग करते हए उनक अपनी
तथा समाज क एक साथ भलाई करने हेतु उनके साथ िविभ न कार के काय को करने क कला प म
प रभािषत िकया है। लेिकन बाद म 1922 म इसम कुछ प रवतन करते हए कहा िक यह ऐसी ि या से है जो
यि य एवं उनके सामािजक पयावरण के बीच एक चेतन प से लाये गए समायोजन के मा यम से
यि व का िवकास करती है।
टे ट (1922) ने वैयि क परामश को प रभािषत करते हए कहा है िक यि के यवहार, यि व और
सामािजक स ब ध को समझने तथा एक अिधक अ छे सामािजक एवं वैयि क समायोजन लाने म उसक
सहायता करने के यास यु कुसमायोजन यि का सामािजक स ब ध को समझने तथा एक अिधक
अ छे सामािजक एवं वैयि क समायोजन लाने म उसक सहायता करने के यास यु कुसमायोिजत यि
का सामािजक उपचार है।
वीथन बोवस (1949) के अनसु ार वैयि क परामश ऐसी कला है िजसके अतं गत मानव सबं धं म ान
तथा सबं धं क िनपणु ता का योग यि क उपयु मताओ ं तथा समदु ाय के ससं ाधन क सेवाथ तथा
उसके संपणू पयावरण के सम त अंग अथवा िकसी अंग के बीच अिधक अ छे समायोजन के िलए
गितशील बनाने हेतु िकया जाता है।
देसाई (1956) वैयि क परामश यि क न के वल यथाि थित के साथ समायोजन करने बि क प रवतन
तथा नए-नए तर पर अपने प रवितत होते हए पयावरण के साथ समायोजन करने क ि या म सि य
भागीदार बनने म सहायता दान करने क ि या है।
है। यि ,वैयि क एवं सामिू हक तर पर एक-दसू रे के क याण के िलए िज मेदार होते हऔर इसके
साथ ही साथ अपने उ े य भी ाि कर सकते ह।
वीकृित का िस ांत
सेवाथ सक
ं ट त, कमजोर होता है और कायकता यावसाियक ान, अनभु व, यो यता से प रपणू
होता है। दोन जब सव थम िमलते ह तब उन दोन के म य सहानभु िू त का सामना करने का व प, उसक
अहम शि क ि थित आिद का ान कायकता म िव मान होता है। इसी ान के प र े य म वह सेवाथ को
एक यि के प म आदर-स मान दान करता है। इसी ान व आदर-स मान के यवहार से ही वह सेवाथ
के यवहार एवं त संबंधी कारण को समझकर उसके ित एक अिनणया मक ि कोण बनाता है। कायकता
सेवाथ म िच लेकर तथा उसक दशा के बारे म िचंितत होकर कारण क जानकारी एवं उनम प रवतनीय
सधु ार करने का यास करता है। किठनाइय से जझू रहे सेवाथ को िजस भी ि थित म होता है, उसे कायकता
एक यि के प म वैसे ही वीकार कर लेता है। कायकता सेवाथ क भावनाओ ं एवं मनोवृि य का
अ ययन करता है िजसके आधार पर वह सेवाथ को समझने का य न करता है। सेवाथ को कायकता ारा
वीकार कर िलए जाने पर वह अपनी आ मर ण वृि य को छोड़ देता है और अपनी बात सहजता से बता
देता है य िक उसे यह िव ास हो जाता है िक उसे वतमान ि थितय सिहत कायकता ने वीकार कर िलया
है।
संचार का िस ांत
सम या समाधान क ि या के अतं गत कायकता और सेवाथ के बीच अतं ःि याएं होती ह।
य िप इसके पूव दोन एक-दसू रे से अनजाने होते ह और सेवाथ म कुछ संकोच बना होता है लेिकन ार भ
म कायकता सेवाथ के यि व, सम या व प रि थितय का गहन अ ययन कर उसके साथ घिन व
िव सनीय संबंध थािपत कर िविश संकेत , िच ह , भाषा व हाव-भाव का योग करते हए समझाता है।
दोन के बीच िकसी िवषय पर सहमित-असहमित हो सकती है, लेिकन धीरे -धीरे उनम एक समझ बननी
आव यक है। उ ह एक-दसू रे क भिू मका क पूण जानकारी होनी चािहए। अतः कायकता और सेवाथ के
बीच अतं ःि या संचार ारा होती है तथा भावनाओ ं व त य का आदान- दान स यक ढंग से होता है। सही
जानकारी पाने हेतु कायकता उसक समिु चत सहायता करता है। सं था कै से उसक सहायता कर सकती है
और इसके एवज म सं था सेवाथ से या उ मीद रखती है, इसका प ीकरण कायकता ारा िकया जाता है।
सेवाथ के अदं र सही ढंग से भावनाओ ं का आदान- दान न हो पाने क दशा म कायकता कुछ बात को
ि गत रखते हए संचार के िस ांत का पालन करता है।
सहभािगता का िस ांत
सम या समाधान क ि या के यास म सेवाथ क येक थान पर सि य भागीदारी होनी
चािहए, यही इस िस ातं क मल
ू भावना है। कायकता इस िस ातं का अनसु रण करते हए सेवाथ के िलए
ऐसा अवसर दान करता है िक वह अपनी यथाथ ि थित को प करते हए सम या के िनदान म सहभाग
करे , इससे सेवाथ क आ म शि म वृि हो सकती है। अतः सम या समाधान ि या के अंतगत सेवाथ
कायकता संबंध क प रिध म कायकता सेवाथ क सि य भागीदारी करने का य न करता है।
आ म-चेतना का िस ांत
सेवाथ क तरह कायकता भी जिटल सं ेरणाओ ं से यु एक मानव ाणी होता है। उसके अदं र
सां कृ ितक िव ास एवं मू य क छाप होती है। कायकता के संवेग एवं मनोवृि याँ एवं सा ा कार क
अविध म िविभ न सेवािथय के सबं ंध को भािवत कर सकती ह, इसिलए आ म-चेतना के िस ांत के
अनसु ार कायकता क यि गत भावनाएँ, मनोवृि याँ एवं सं ेरणाएँ कायकता-सेवाथ संबंध म दखल न द,
ऐसी कायकता से अपे ा रहती है। कायकता- सेवाथ संबधं म कायकता क यि गत जीवन सबं धं ी
वृि य , झकु ाव , अवेग व भावनाओ ं का कोई थान नह होना चािहए। आ म-चेतना के िस ांत से ता पय
है िक सेवाथ कायकता संबंध म कायकता को अपनी सकारा मक व नकारा मक यि गत भावनाओ ं का
िनरी ण कर उ ह िनयिं त रखना चािहए। कायकता से अपे ा क जाती है िक वह अपने िश ण के दौरान
ही यावसाियक यि व म यह िनपणु ता लाए। अतः कायकता को सेवाथ के साथ अपने संबंध का उपयोग
उसक अहम शि के िवकास हेतु करने का य न करना चािहए।
गोपनीयता का िस ांत
वैयि क परामश काय का यह मख ु िस ातं है िजसके अतं गत कायकता सेवाथ के साथ घिन
संबंध थािपत कर उसे यह िव वास िदलाता है िक सं था क नीित के अनु प सा ा कार के मा यम से
िमली सूचनाएँ एवं त य गु रखे जाएगं े। िव ास अिजत करने के बाद ही सेवाथ अपनी सम याओ ं के
समाधान के िलए कायकता को वीकार कर उससे अपनी आंत रक मनोभाव एवं संकटपणू ि थित का
रह यो ाटन कर सहभाग करता है। सेवाथ ारा दी गयी सचू नाएँ आव यक सहायता हेतु अिभकरण के अदं र
व बाहर मा यावसाियक संबंध क सीमा रखी जाती है। सेवाथ के वृि -अिभलेख (caserecord) गु रखे
जाते है, अिभकरण के अंदर या बाहर अ य यावसाियक कायकता को कोई सचू ना सेवाथ क अनमु ित से
ही दी जाती है। गोपनीयता के िस ांत क मौिलक अिनवायता यह है िक इन सचू नाओ ं के दु पयोग से सेवाथ
को पणू वै ािनक सरु ा दान क जाती है। इस कार िज मेदारीपवू क सेवाथ क मनोसामािजक
प रि थितय का आंकलन कर त प ात अिभकरण क नीितय के अनसु ार उसका समाधान ढूंढ़ा जाना
चािहए।
सहकार का िस ांत
यह िस ातं जातं व वावलबं न क भावना से ओत ोत है। कायकता हमेशा इस ढ़ िव ास से
काय करता है िक वह उसके साथ (with) काय कर रहा है न िक उसके िलए (for) काय कर रहा है (एहसान
नह )। इससे सेवाथ म परावल बन क भावना कम हो जाती है और आगे भिव य म वह अपने वयं करने
स म हो जाता है व सफलता ा करता है। इस कार सम या समाधान ि या के अतं गत योजना बनाने व
उसे ि याि वत करने म सेवाथ का सि य सहभाग िमलता है। ऐसी यव था म कायकता का िवशेष यान
रहता है।
संबंध थापन का िस ांत
वैयि क परामश ि या म कायकता एवं सेवाथ के म य संबंध का अित मह वपूण थान होता है।
ो. राजाराम शा ी के अनसु ार सेवाथ के साथ थािपत संबंध ही एक ऐसा उपकरण होता है िजसके मा यम
से कायकता-सेवाथ के उपचार क योजना के काया वयन म लगता है। कायकता सेवाथ क सम या एवं
उसके आतं रक एवं बाहर के वातावरण से संबंिधत जानकारी समिु चत संबंध थापन के उपरांत ही ा कर
सकता है। साथ ही िवषयगत एवं व तगु त दोन तरह क भावनाएँ सबं धं थापन म समािहत होती है। कौशल
से कायकता अपने ‘ व’ का सचेतन उपयोग कर अपनी भावनाओ ं के ित सदैव सचेत रहता है। साथ ही
वा तिवक व थानांत रत भावनाओ ं को भी सदैव यान म रखकर उनका समिु चत िनयं ण और उपयोग
करता है। कायकता का िदमाग सबं धं के यावसाियक प क तरफ भी के ि त होता है। इसम सबं धं
यावसाियक िकसी िविश ल य ाि से थािपत होते है। इन संबंध के बीच कायकता क यि गत बात
गौण हो जाती ह। इस तरह के सबं धं म पर पर-िज मेदारी, पर पर एक-दसू रे क मा यता और मतभेद क
वीकृ ित शािमल होती है। तािक कायकता सेवाथ को आदर-स मान देता है, इसिलए सेवाथ महससू करता
है िक उसक भावनाओ ं को वीकृ ित दान क गयी है और इसके साथ ही सेवाथ के अ तमन म कायकता
के ित एक िव ास क भावना भी जा त होती है, फल व प सेवाथ अपनी किठनाइय को प प से
कायकता को य कर देता है और कायकता क सलाह को भी वीकार करने लगता है।
िवभेदक िस ांत
ि डलडर (friedlander) ने वीकृ ित, संचार, वैयि करण, सहभािगता, आ मचेतना एवं
गोपनीयता के सामा य िस ांत के अित र सामािजक वैयि क परामश के िवभेदक िस ातं का भी
उ लेख करते हए यह प है िक िविभ न प रि थितय म उपचार क अलग-अलग िविधयाँ होती है। कुछ
प रि थितयाँ म उपचार क कुछ िविश िविधयाँ ह तो इसके ितकूल कुछ अ य प रि थितय म उपचार क
िविश िविधयाँ होती ह। कायकता सेवाथ के संबंध म उसक सम या का अ ययन व िनदान करके उसक
सम या के िनराकरण क िविधय को िनधा रत करता है जो अ य दसू रे िकसी सेवाथ के संबंध म उपयु भी
नह हो सकती है। अतः यह कहा जा सकता है िक एक सेवाथ क अपे ा दसू रे सेवाथ हेतु उपचार क
िविधयाँ अलग होती है। सेवािथय म िभ नता के कारण िवभेदक िस ांत का योग िकया जाता है। उपचार
योजना चयन म सहायता पहचं ाने के साथ-साथ उपचार- ि या के दौरान इसम ज री बदलाव लाने म यह
िवभेदक िस ातं सहायक िस होता है।
1.5 यि गत परामश ि या
परामश ि या अभी ल य ( यि के मानिसक वा य, आ म िनणय और आ मिसि क
मता म वृि आिद) क िदशा म आरं भ से अंत तक एक सू म बंधी होती है। ि या का अथ यह है िक
कई घटनाएँ एक ंखृ ला म एक िनि त अविध म घिटत होती है। यह अविध तीस या चालीस िमनट का स
हो सकती है या कई माह क अविध म अनेक स म फै ली हो सकती है। यि गत परामश ि या अभी
ल य क ाि के माग म कुछ म यवत ल य को ा करने का य न करती है। ि या ल य का व प
आरंिभक ल य को अिजत िकए िबना अगले ल य को अिजत नह िकया जा सकता है इसिलए परामश क
य करण का िस ांत
सेवाथ जब कायकता के पास सम या समाधान के िलए आता है तो वह समाज का एक सद य एवं
यि होता है। समाज म नए-नए प रवतन होते रहते ह,इसम यि को समायोजन म बाधाएँ िनमाण होती
है,िजसम उसक सम याएँ िविश एवं यि गत होती ह,िजसे अ छी तरह समझकर सहायता दान करने के
िलए लाभाथ का अलग-अलग सामािजक प रि थितय म य करण करना आव यक हो जाता है।
य करण अथात सम या त यि के िवशेष गणु क मब तरीके से जानकारी जटु ाना,उसक
सम याओ ं का मनोसामािजक अ ययन व िनदान कर उपचार हेतु वैयि क परामश के िस ांत , ि याओ ं व
िविधय का उपयोग करके उसक सम या का समाधान कर सहायता करना, तािक वह अपनी सामािजक
प रि थितय व पयावरण के साथ उ चतम सामजं य कर सके ।
वीकृित का िस ांत
सेवाथ जैसा है या िजस भी कार क प रि थित म है उसे उसी प म वीकार करके उसक
वतमान दशा के अनु प उसके साथ यवहार िकया जाना चािहए। सेवाथ वतमान प रि थितय को स मख ु
रखकर ही उसके ित मत बनाया जाए। सेवाथ क यो यता, मता,शि य अथवा कमजो रय एवं
िवघटनकारी मनोवृि य एवं यवहार को यान म रखकर कायकता को अपने यवहार का िनधारण करना
चािहए। सेवाथ के वैयि क मू य से भी कायकता का यवहार भािवत होना चािहए। कायकता सेवाथ को
िबना प पात व अपने संवगे ,भावनाओ,ं िव ास ,मू य व पवू ा ह का समावेश िकए यथाथ प म उसी
कार वीकार करता है और वीकृ ित सम या-समाधान हेतु आव यक होती है।
गोपनीयता का िस ांत
वैयि क परामश ि या म सेवाथ क सहायता के दौरान कायकता को यह आव यक है िक
सेवाथ के संबंध म जो भी मह वपणू सचू नाएँ एवं त य ात है उ ह पणू तः गोपनीय रखना चािहए तािक
कायकता- सेवाथ के बीच िव ासपणू संबंध का िवकास हो और संबंध का सम या के अ ययन, िनदान
और उपचार म सफलतापवू क योग िकया जा सके । सेवाथ अपने यि गत जीवन से संबंिधत रह य , िनजी
बात एवं सवं ेगा मक भावनाओ ं को सहज प से य करता है इसिलए कायकता का नैितक एवं
यावसाियक कत य बनता है िक वह सेवाथ संबंधी सभी सचू नाएँ गु रखे। साथ ही सेवाथ को यह िव ास
भी हो िक उससे संबंिधत सभी सचू नाएँ गोपनीय रखी जाएगं ी। इस तरह से गोपनीयता का िव ास होने पर
सेवाथ िनःसकं ोच अपनी सम या क तह म जाकर सभी प को उजागर करता है।
भाव और इसे कै से दरू िकया जाए उसक काय योजना बनाता है। साथ ही िविभ न बा एवं आंत रक
साधन के उपयोग से सम या का उपचार करता है।
.18 सारांश
इस इकाई म हमने समाज काय म वैयि क परामश काय के व प को समझा। इसे समझने के िलए
हमने सम या त यि के साथ िजन िब दओ ु ं पर कायकता को यान देने क आव यकता होती है उनको
भी समझा।कायकता सम या त यि के सम या समाधान के िलए वैयि क परामश के िस ांत का
अनपु ालन कर उसके उपचार क ओर बढ़ता है। इसी के साथ ही सफल उपचार के िलए कायकता और
सेवाथ म िकस िजन संबंध क आव यकता होती है उन संबंध को भी समझा। साथ ही वैयि क परामश के
मह वपणू अवयव के बारे म भी हमने जानकारी ा करने क कोिशश क है।
.19 बोध
1. वैयि क परामश क अवधारणा को प क िजए।
2. हैिम टन एवं हॉिलस ारा य वैयि क परामश क मा यताओ ं का उ लेख क िजए।
3. वैयि क परामश काय के िस ांत क चचा कर।
4. वैयि क परामश ि या म कायकता-सेवाथ संबंध क मह ा को रे खांिकत क िजए।
5. वैयि क परामश काय के मह वपणू अवयव को प क िजए।
2.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन प ात आप-
1. यगु ल परामश और उसक ि या को िव तारपवू क समझ सकगे
2. यगु ल परामश ि या म यवहारा मक प क भिू मका को जान सकगे
3. प रवार परामश क ि या से सबं िं धत जानकारी ा कर सकगे
2.1 तावना
मानव जीवन म प रवार का तथा यगु ल जीवन म यौिनक संबंध का िवशेष मह व है। िववाह
पा रवा रक जीवन का आधार िब दु है, हमारे जीवन म पा रवा रक एवं वैवािहक संबंध क िवशेषताओ ं का
यापक भाव पड़ता है। यिद वैवािहक सबं धं म िकसी कार क सम या हो तो जीवन क गणु व ा म तथा
जीवन के िविवध प से संबंिधत सख ु ानभु िू त म कमी आती है। प रवार हमारे अतं रंग, अितघिन संबंध का
पारंप रक प है।
िनमाण हो जाता है तथा आपसी संवाद का अभाव होता है; एक- दसू रे के िवचार या भावनाओ ं को हम
समझते नह ह तब संबंध म दू रयां बढ़ने लगती है और संबंध िवघटन क ओर बढ़ता जाता है।
यगु ल संबंध म थािय व क या या करने के िलए लागत-लाभ िव े षण संबंधी दो उपागम
मह वपूण होते ह। थम, आिथक मॉडल जो यगु ल संबंध के लागत-लाभ और िवक प के लागत-लाभ क
गणना एवं तल ु ना को यगु ल सबं धं के भिव य का सक
ं े तक मानता है। दसू रा, थीबॉट और के ली (1959) का
सामािजक िविनमय िस ा त िजसम लागत और लाभ के थान पर वैवािहक/यगु ल संबंध म ा हो रहे
परु कार (सकारा मक एवं नकारा मक अनभु िू तय ) क तल ु ना को आधार बनाया जाता है। लेिवंजर (1979)
ने सामािजक िविनमय िस ा त के िव तार म यह कहा है िक यगु ल सबं धं म कुछ आकषण के ोत होते ह,
जो संबंध को मजबतू ी दान करते ह तथा कुछ अ य ऐसे कारक होते ह जो इसे िवघिटत होने से रोकते ह।
सबं धं को मजबतू ी दान करने वाले आकषण के घटक म सकारा मक अनभु िू तयाँ जैसे- जीवन साथी के
िलए उ साह क मा ा, यौिनक संबंध म संतुि , आय, गृह वािम व, िश ा, सामािजक समानता आिद को
देखा जाता है। इसके िवपरीत धम, ब चे, वैधािनक एवं आिथक बाधा, प रवार एवं समाज/समदु ाय के भाव
यगु ल संबधं को िवघिटत होने से रोकते ह।
इसके प ात दसू रा मह वपूण प परामश काय म यु होने वाले िविवध प र े य ह। परामशदाता युगल या
एक सद य को अनेक उपागम क सहायता से लाभ पहचं ा सकता है। सम याओ ं के व प के अनु प कभी
यवहारा मक उपागम ारा िकसी अनिु या/आदत का पुनबलन या िवलोपन िकया जा सकता है। सवाग
उपागम के मा यम से युगल सद य के समहू (प रवार) म या शि संतुलन को प रमािजत िकया जा
सकता है। िजन अनिु याओ ं का मल
ू आरंिभक जीवन के अवदिमत अनभु व हो, उ ह मनोग या मक उपागम
के मा यम से लाभाि वत िकया जा सकता है। अवदिमत अनभु व के कारण अवांिछत एवं अतािकक
अनिु याओ ं का िवकास होता है अतः ऐसे अनभु व को यि के चेतन तर पर बाहर लाकर औिच यपणू
अनिु याओ ं को िवकिसत करना सभं व हो पाता है। परामशदाता अनेक उपागम के म य िव मान सामा य
त व को यान म रखकर उनके उपयु योग को भी यु करते ह।
तैयार
अव था
अनुव तन आरं भक
अव था। अव था
स ांत म यव त
अव था अव था
तैयारी अव था; आरंिभक अव था; म यवत अव था; स ांत अव था; अनवु तन अव था। परामश ि या
के चरण एवं अव था के बारे म ‘परामश एवं थेरेपी’ इकाई म िव तार से चचा क गई है। युगल परामश
ि या म चरण एवं अव था क संरचना ारा ल य क ाि करते हए युगल संबंध म िनिहत सम या का
िनदान कर सहायता क जाती है।
प रवार एवं यगु ल क वैवािहक सम याओ ं को समझने क ि से इन सकारा मक एवं नकारा मक घटनाओ ं
का वणन मह वपणू है। जो िन नवत ह-
4) यौिनक सम याएँ
5) माता-िपता के प म ं
6) बलपवू क थािपत भिू मका म बदलाव
7) आ ामकता औषिध/पदाथ दु पयोग
8) ई या/ व वबोध (पजेिसवनेस)
यौिनक सम याओ ं के तीन प होते ह-
i. नारी यौिनक काया मकता के दोष- शारी रक संबंध म िच एवं उ ेजना का अभाव, आगा म
(चरम सखु ) क ाि न होने क सम या, आिद।
ii. पु ष क यौिनक काया मकता के दोष- शारी रक संबंध म िच का अभाव, िलंग त भन एवं शी
पतन क सम या आिद।
दपं ि तर क सम या- दोन सद य क शारी रक संबंध बनाने संबंधी िच क मा ा म अतं र, संवाद क
सम या आिद।
इसके सद य के िदन- ितिदन के काय म यवधान उ प न करती है। प रवार िचिक सा म िचिक सा का क
िब दु यि न होकर प रवार वयं होता है। य िप यि क आव यकताओ ं तथा िवशेषताओ ं को यान म
रखा जाता है परंतु प रवार क अ तरि या यव था पर िवशेष प से यान कि त िकया जाता है।
प रवार परामश एक उपचारा मक अिभगम है जो सेवाथ के पा रवा रक संबंध यव थाओ ं तथा
उनका सद य पर चेतन व अचेतन भाव का अ ययन करता है। अतः वह मनोिव े षणा मक िस ा त से
काफ िमलता-जल ु ता है। यह अिभगम यि को ही पणू ता म न देखकर यव था के एक अगं के प म
देखता है। यह एक सामिू हक अिभगम (GroupApproach) है जो प रवार के एक यि के थान पर कई
यि य पर अपना यान क करता है तथा लघु समहू ग या मक िस ातं तथा िविधय का उपयोग करता
है।
ारंिभक तर: परामश क ि या लोकतांि क िस ांत पर आधा रत है। अतः परामशदाता तभी ह त ेप
करता है जबिक उसे ऐसा करने के िलए आमिं त िकया जाता है। सव थम सेवाथ को परामश क
आव यकता का बोध होना चािहए; उसे अपने यवहार म िकसी सम या का य ण और बाहरी सहायता
क आव यकता अनभु व होनी चािहए। कायकता सेवाथ के ल ण के आधार पर यह िनि त करता है िक
थम सा ा कार िकससे करना है तथा िकन-िकन लोग को उसम सि मिलत करना है। यह कायकता क
कायशैली पर िनभर करता है िक वह िकस कार काय ार भ करता है। कुछ कायकता पहले माता-िपता का
सा ा कार करते ह, कुछ कायकता स पणू प रवार के सद य का प रचय ा कर लेना िनदान ि या के
िलए आव यक समझते ह। साधारणतया िजस कार क िशकायत अथवा सम या होती है, उसी आधार पर
ारंिभक काय का िनधारण होता है। जैसे यिद सम या का सबं धं िववाह से है तो वैवािहक जोड़े का
सा ा कार थम होगा और यिद सम या का संबंध ब च से है तो स पणू प रवार को सि मिलत िकया
जाएगा।
प रवार से सा ा कार का उ े य प रवार तथा प रवार के सद य से सम या क कृ ित, ल ण, ोत आिद से
अवगत कराना है। इससे उपचारा मक ि या के िलए बल िमलता है तथा प रवार के सद य म सम या
समाधान क मता बढ़ती है। कायकता तथा सेवाथ के प रवार के म य सव थम िचिक सा मक समझौता
होता है। इससे गितरोध म कमी आती है तथा नयी िदशा एवं फूित जा त होकर दोन म िव ासपणू संबंध
थािपत होते ह। प रवार को यह िव ास होता है िक कायकता वा तव म सम या का समाधान करना चाहता
है तथा कायकता को भी िव ास होता है िक प रवार उसक सहायता का इ छुक है। इस समझौते के कारण
ही दोन म सांवेिगक संबंध थािपत होते ह और अपने-अपने उ रदािय व का हण, लगन तथा इ छा से
होता है।
पा डेय, बाले र एवं िसंह, क ित िव म (2017) ने अपनी िकताब ‘परामश के नए आयाम’ म परामश हेतु
प रवार इकाई से सा ा कार के िन नवत उ े य बताए ह:
1. वतमान सम या के सदं भ म प रवार के सद य या भिू मका िनभा रहे ह तथा या समझ रहे ह। इसको
दिशत करना िजससे वे प रवार क सम या क जिटलता एवं भावा मकता को समझ सक।
2. एक-दसू रे क भावनाओ ं तथा उनके यवहार पर भाव को दिशत करना।
3. अकाया मक िविध तथा उसके िनरंतर उपयोग को प रवार के सम उपि थत करना।
मू याकंन(Assessment):
िन निलिखत आधार पर मू यांकन िकया जाता है:
1) िवषयव तु (Content)- प रवार का प रचय, प रवार सद य सं या, येक सद य क आय,ु
सबं धं , काय, िश ा, आिथक, तर, धािमक िच आिद। वतमान सम या, िशकायत, ाथना,
ाथना-प देने का कारण, सम या क कृ ित, सम या िजससे संबंिधत है, कब से सम या है,
प रवार के सद य क सम या के ित या िति याएँ ह, समान तथा िवभेदी िवषय कौन-कौन से
ह आिद।
2) पा रवा रक सरं चना तथा िति याएँ (Family Structure and Processes)- I) उ तथा
भिू मका के आधार पर उ रदािय व का बटं वारा िदन- ितिदन के काय को परू ा करने के पा रवा रक
तरीके । II) अिभ ान के तरीके तथा भिू मका िनवाह, भिू मका के आधार पर पा रवा रक संबंध।
3) उ ेशीय संबंध क कृित- सद य िकस कार एक-दसू रे क आव यकताओ ं का यान रखते ह,
संतोष ा करने का यास करते ह, प रवार के सद य को कहाँ तक वैयि क िच परू ी करने क
छूट है, आयु के आधार पर िकतनी िनभरता, अलगाव, आ मिनभरता है।
4) प रवार क भावनाओ ं को िकस कार समझा जाता है, भावनाओ ं क अिभ यि क या कृ ित है,
िकतनी सहनशीलता है, िनयं ण िकतना है, आ मीयता, उ ता, लिगकता, िचंता, ितगमन, धािमक
रीित- रवाज आिद का या प है। सद य को येक े म िकतनी वत ता है, वे िकतना
िनयं ण वीकार करते ह आिद।
5) वा तिवक य ीकरण क िकतनी मता है, आ म अवलोकन क या य ीकरण है, प रवार म
मनो-सरु ा मक यं का कहाँ तक उपयोग होता है, अवरोध कौन-कौन से ह आिद।
6) संघष एवं समाधान के तरीके - प रवार म िनणय ि या, तनाव दरू करने के तरीके , सम या
समाधान के तरीके , िवचार क िभ नता वाले िवषय।
7) प रवार के मू य- सां कृ ितक तथा सामािजक भाव, नैितक, धािमक ि कोण का थान तथा
उनके ह तांतरण के तरीके , सामािजक आकां ाएँ तथा इ छाएँ, प रवार का समाज म थान।
8) संचार के तरीके - सां कृ ितक भाव, मौिलक एवं अ-मौिलक संचार ि या क शैली, संचार का
भाव तथा उ े य, संचार का ि तर, वीकृ ित तथा अ वीकृ ित के े , भाषा का उपयोग तथा
उसक प ता।
9) प रवार का इितहास- सम या से संबंिधत आव यक आंकड़े जैसे- वैवािहक जीवन का इितहास,
बाल िवकास, मह वपणू घटनाएँ, प रवार म भिू मका का प रवतन, बीमा रयाँ, हािन आिद सामािजक
अनक ु ू लन तथा सामािजक आव यकताएँ।
10) सद य का इितहास- यवहार, ल ण, वा य, अनक ु ू लन, प रवार म किठनाईयाँ आिद।
पा रवा रक परामश का उ े य
पा रवा रक परामश म प रवार क संबंध यव था म संशोधन तथा प रवतन करती है। य िप
यव थाएँ थायी होती ह परंतु िकसी कारणवश सद य क िचयाँ एवं इ छाओ ं को परू ा करने म असमथ
होती ह। वे िदन- ितिदन के काय म बाधा उ प न कर देती ह। सहायता उस समय क जाती है जब प रवार
क शि कम होती है तथा िचंता अिधक होती है। प रवार म ितकूिलत भिू मका के सधु ार के िलए उिचत
भिू मका थािपत करने के िलए इसका उपयोग होता है। इस ि या का अंितम उ े य प रवार के संबंध म
थािय व तथा घिन ता उ प न करना है। साथ ही प रवार के सद य क सहायता करना िजससे वे एक-दसू रे
को अ छे तरीके से समझ सक, भावनाओ ं का आदर कर, आव यकता पिू त म सहायता कर, सचं ार ि या
सकारा मक हो, उसम प ता हो तथा वा तिवक उ े य क ाि संभव हो सके ।
2.5 सारांश
इस इकाई म हमने यगु ल एवं प रवार परामश क ि या को समझा साथ ही यगु ल के बीच अतं रंग
सबं धं से सबं िं धत सम या को िकस तरह सहायता दी जाती है, को जाना। यगु ल सबं धं के यवहारा मक प
को जानने के िलए परामशदाता को िकन िब दओ ु ं पर यान देना चािहए उसे रे खांिकत िकया गया है। प रवार
परामश म िचिक सा का क िब दु यि न होकर प रवार वयं होता है।पा रवा रक संबंध यव थाओ ं म
प रवतन तथा सश ं ोधन क ि या म परामशदाता क द ता को समझा साथ ही पा रवा रक परामश के
उ े य को देखा।
2.6 बोध
1. यगु ल परामश क अवधारणा को प क िजए।
2. यगु ल परामश म यवहारा मक प क चचा कर।
3. प रवार परामश ि या को िव तार से समझाएँ।
4. प रवार परामश म मू याकंन के िब दओ
ु ं चचा कर।
3.1 तावना
िव ान का मानना है िक परामश तथा अ य िचिक सा िव ान अपने इितहास और अपने मह वपणू
िब दओु ं के आधार पर अलग ह। बावजदू इसके इन दोन ानानश ु ासन का एक दसू रे के साथ का संबंध एवं
अतं :ि या लगातार देखने को िमलती है। िचिक सा िव ान के अलावे अ य सहायक णािलयाँ जैसे
मनोिचिक सा और नैदािनक मनोिव ान मल ू प से गभं ीर संवेगा मक यवहार के प रवतन पर यान देती ह।
जैसे िक समाज काय मल ू प से दसू र क सहायता करने म सामािजक और िविधक प को यान म रखता
है तथा िचिक सा िव ान से अलग परामश िश ा एवं अ पकािलक उपचार के मा यम से वैयि क िवकास
तथा मानिसक वा य सम याओ ं क रोकथाम पर यान देता है। इन सबका अपना-अपना एक ल य है परंतु
इन सब िव ान का अिं तम ल य मानव को उिचत सेवा दान करना है। इसक ाि के िलए यह सभी
वृि यां एक दसू रे को सहयोग करती िदखाई देती है।
िपछले कुछ दशक म मानिसक वा य के े म बड़े बदलाव हए ह। मानिसक िवकृ ितय , रोग के
वग करण का चलन काफ बढ़ा प रणामत: यरू ोिसस (Neurosis) और सायकोिसस (Psychosis) म
मानिसक वा य से संबंिधत बीमा रय का बंटवारा हआ.
यरू ोिसस म उन िवकृ ितय और बीमा रय को रखा गया िजसे सामा यत: सामािजक पयावरण म ही
ठीक िकया जा सकता है। उदाहरण के िलए िचंता, दबाव, कंु ठा आिद। िकंतु सायकोिसस से संबंिधत
बीमा रय के िलए हॉि पटल एवं फामाकोलोजी क आव यकता को महससू िकया जाता है। उदाहरण के
िलए ि कजो े िनया, बायोपोलर िडसऑडर आिद।
यही समय था जब के स मैनेजमट के अतं गत बह- यवसायी, बह- ानानशु ासना मक टीम के प म
सेवाथ को सेवा महु यै ा कराने का चलन बढ़ गया। ऐसे म ख़ास कर यरू ोिसस से संबंिधत बीमा रय एवं
िवकृ ितय से िनजात पाने म थेरेपी एवं परामश जैसी शु आती सहयोग ि याओ ं का चलन काफ बढ़
गया है। यि क बदली हई जीवन शैली को समझने एवं उनक सम याओ ं क जिटलता को समझते हए
सम या से िनबटान म परामश और सायकोथेरेपी (Psychotherepy) जैसी ि याएं एक दसू रे को सहयोग
करती हई िदखती है।
इस इकाई म हम पहले परामश क समिु चत ि या को समझगे तथा उसके बाद सायकोथेरेपी क ि या को
समझने क कोिशश करगे। साथ ही परामश और सायकोथेरेपी के बीच अतं सबंध क चचा करगे और अतं म
इन दोन के बीच भेद के कारक क चचा करगे।
3.3 परामश के ल य और उ े य
परामश ि या सेवाथ के िहत म होती है िजसम िविभ न उपागम का उपयोग कर परामशदाता सेवाथ को
उिचत ल य तक पहँचने म मदद करता है। इस ि या के दौरान िविभ न ल य बनाकर उसक ाि का काय
सेवाथ परामशदाता के सहयोग से करता है। इस सामा य ल य के बावजदू परामश ि या के अ य
मह वपूण ल य ह जो िन निलिखत ह-
• सहयोग
• सशि करण
• बहाली (Restitution)
• मनोवै ािनक िश ा
• सामािजक कौशल का अजन
• िनणय-रचना
• सम या समाधान
• समायोजन
• आपातकालीन ह त ेप एवं बंधन
• ल यण उ मल
ू न तथा सधु ार
• आ म-बोध का िवकास
• आ म- वीकृ ित का िवकास
• आ म-वा तािवक करण या वैयि करण
• नवजागरण
• सम या समाधान
• प रवेश एवं वयं के ित सकारा मक ि कोण का िवकास
• जीवन म साथकता एवं अथबोध का िवकास
• अप रहाय को वीकारने हेतु त परता का िवकास
• सं ाना मक प रवतन
• यवहार प रमाजन एवं यि व प रवतन
• यव था, संगठन तथा समाज म प रवतन
• उपयु वा य यवहार का िवकास
• सझू का िवकास
• अ य के साथ संतोषजनक संबंध थापना
परामश के उ े य
• मानिसक वा य
• यि के संसाधन का संवधन
• काया मक ि से यि का िवकास सहज बनाना
• व-आ मीकरण
• आ म-िसि आिद
परामश के े
• मानिसक सम या- दबाव, आघात, िचंता तथा गभं ीर मानिसक सम याएं
• कूल म ब च क समायोजन क सम याएं
• कॉलेज म कै रयर संबंधी सम याएं
• पा रवा रक जीवन म समायोजन संबंधी सम याएं
देखे MSW 15 खडं 01)। इन उपागम के अतं गत िविभ न तकनीक को योग म लाया जाता है इसम से
कुछ मख ु तकनीक िन निलिखत ह-
1. िववेचन ो साहन
2. सांविे गक अशांित को कम करना
3. नई सच ू ना दान करना
4. िववेक उ प न करना
5. प रवतन क उ मीद एवं िव ास कायम करना।
इन मख ु तकनीक को िन निलिखत िविधय के अतं गत वैयि क और सामिू हक प से थेरेपी क ि या
म उपयोग म लाया जाता है।
मनोग या मक थेरेपी
यावहा रक थेरेपी
सं ाना मक यवहार थेरेपी
1. रै शनल इमोिटव थेरेपी
2. कॉि निटव थेरेपी
3. ेस-इ कुलेशन थेरेपी
4. म टीमॉडल थेरेपी
5. मू नीटे रयन-ए सपे रमटल थेरेपी
इन मु य थेरेिपज के अलावे सेवाथ को सम या से िनजात िदलाने के िलए कुछ ख़ास तकनीक आधा रत
थेरेिपज का उभार हआ है िजसम से िन निलिखत मह वपणू ह-
1. लायटं सटड थेरेपी
2. एि स टिशयल थेरेपी
3. गे टा ट थेरेपी
4. लोगो-थेरेपी
5. िफ ड रोल थेरेपी
6. पु थेरेपी
उ थेरेिपज का उपयोग थेरिप ट सेवाथ म सांविे गक प रवतन लाने के िलए करता है। इसके बावजदू
सायको ामा, फॅ िमली थेरेपी, मै रटल अथवा कपल थेरेपी आिद का चयन थेरेिप ट सेवाथ क सम या क
कृ ित के आधार पर करता है।
3.7 सायकोथेरेपी क ि या
सायकोथेरेपी क ि या म सेवाथ को सहायता दान करने हेतु थेरेिप ट को िविभ न भिू मकाओ ं
का िनवहन करना पड़ता है. एक ख़ास म म िविधय , थेरेिपय का उिचत िनधारण करते हए सायकोथेरेपी
क ि या को जारी रखा जाता है।
होक सन (hokanson, 1983) के अनसु ार थेरेपी क ि या िन निलिखत चरण से गजु रते हए पणू होती है-
1. आरंिभक संपक (Initial Contact)
2. मू याक
ं न (assesment)
3. उपचार का ल य (Goals of Treatment)
4. उपचार का ि या वयन (Implementation of Treatment)
5. समापन, मू यांकन एवं अनवु तन (Termination, Evaluation and Follow-Up)
उ मापदडं के आधार पर परामश और सायकोथेरेपी के बीच िवभेद िकया जाता है। इसके अलावे इन दोन
ि याओ ं के बीच समानता के िबंदु भी है िज ह हम ि यागत प से देख चक
ु े ह।
3.9 सारांश
इसके अलावे आज के समय म िविभ न यो यताओ ं से यु िचिक सक , उपचारकताओ,ं कुशल
थेरेिप ट ारा सायकोथेरेपी उपयोग म लाई जाने लगी है िजसम मनोरोग िचिक सा, नैदािनक मनोिव ान,
सलाह मनोिव ान, मानिसक वा य सबं धं ी परामश, नैदािनक या मनोरोग सबं धं ी सामािजक काय, िववाह
और प रवार संबंधी मनोिचिक सा, पनु सधार
ु परामश, संगीत मनोिचिक सा, यवसाय संबंधी मनोिचिक सा,
मनोरोग सबं धं ी प रचया, मनोिव ेषण आिद सि मिलत ह।
भारत म हीिलंग िस टम म िविवधता ह। यही कारण है िक थेरेपी के प म अनेक देशज िविधय
को भी थेरेिप ट ारा उपयोग म लाया जा रहा है। जैस;े योग, स संग आिद इसम शािमल है। इसके बावजदू
थेरेपी श द का उपयोग समाज म इतना आम हो गया है िक आज कल कुछ लोग , यवसाियक ारा िनिमत
ान को भी थेरेपी श द के आड़ म ततु िकया जाने लगा है। ऐसे छ थेरेिपज क जांच पड़ताल करके ही
उसको उपयोग म लाया जाना चािहए। इसक िज मेदारी सामािजक कायकताओ ं को एक थेरेिप ट या
परामशदाता के प म लेनी होगी।
3.10 बोध
1. परामश ि या को सं ेप म समझाए।ं
2. सायकोथेरेपी के मख ु घटक क चचा कर।
3. सायकोथेरेपी क ि या को समझाए।ं
4. सायकोथेरेपी एवं परामश के बीच के संबंध को प कर।
5. सायकोथेरेपी को भािवत करनेवाले कारक क चचा कर।
4.0 उ े य
इस इकाई के अ ययन के प ात आप -
1. समाज काय म परामश क भिू मका को समझ सकगे
2. परामशदाता के प म सामािजक कायकता क भिू मका का वणन कर सकगे
3. वैयि क सेवा काय म परामश क उपयोिगता को या याियत कर सकगे
4. परामशदाता क भिू मका एवं कत य को समझा सकगे।
4.1 तावना
ि तीय िव यु के बाद िव भर म िविभ न सेवा (Service) दाता समहू का ारंभ हआ। िव यु
जैसे जिटल समय म सामािजक जीवन को िनबाध बनाए रखने के िलए िविभ न ानशाखाओ ं ने िविभ न
तरीके से ह त ेप ारा पनु वास क णाली का िवकास िकया था। इस समय म िव म मानिसक रोिगय क
सं या भी काफ बढ़ गई थी जो िक िव यु का असर था। ऐसे म दो नए िवषय, परामश और समाज काय
लगभग एक साथ िव पटल पर अपनी पहचान बनाने म स म हो चक ु े थे। दसू री ओर हम यह भी देखते ह िक
समाज काय क कुछ णािलय के िनमाण को मनोिव ान ने काफ भािवत िकया है।
एक ओर मनोिव ान अपने ि या मक व प म या यँू कह िक सामा यीकरण हेतु िनदशन एवं परामश जैसी
णािलय को िवकिसत करता ह वह समाज काय भी अपने यावसाियक िहत क पिू त के िलए इन
णािलय को एक तकनीक के प म मा यता दान कर उसे लोग तक पहचं ाने का काम करता है। समाज
काय ख़ास कर वैयि क सेवा काय म परामश क उपयोिगता को नकारा नह जा सकता।
सामािजक कायकता समाज काय क िविभ न णािलय के अतं गत सेवािथय को सेवा दान करते हए
िविभ न भिू मकाएं िनभाता है जैसे-वैयि क सेवा कायकता, सामिू हक कायकता, सामदु ाियक सगं ठक इन सब
के साथ-साथ वतक, शैि क कायकता, ेनर, परामशदाता, िनदशक तथा थेरेिप ट आिद भिू मकाओ ं का
वहन करता है। इन सब भिू मकाओ ं के िलए अलग-अलग ान, कुशलताओ ं तथा िवशेष ता क
आव यकता होती है। इसे िच के अनसु ार कायकता चनु ता है। परामशदाता क भिू मका के िलए िजन
कौशल एवं ान क आव यकता होती है वह समाज काय का अिभ न अगं है य िक परामश को छोड़
अ य िवशेष ता के चयन का अिधकार भले ही सामािजक कायकता के पास हो लेिकन परामश समाज काय
क अिनवाय मागं है, इस यो यता को संपािदत करना सामािजक कायकता के िलए आव यक माना जाता है।
अत: इस इकाई म हम सामािजक कायकता को एक परामशदाता के प म कौन-सी भिू मकाएं िनभानी पड़ती
है और उसके िलए कौन-से कौशल तथा ान क आव यकता होती है, आिद को समझते हए सामािजक
कायकता को एक परामशदाता के प म समझने क कोिशश करगे।
समायोजन संबंधी सम याओ ं म इस सेवा का लाभ िदया जा सकता है। यही कारण है िक समाज काय क
अ य णािलय म परामश का संचालन य प से नह िकया जाता।
अतं गत सम या क सही या या, उस या या पर आधा रत सचू नाएं दान करना आिद। कभी-कभी सेवाथ
को समाज के बारे म उिचत ान न होने के कारण सेवाथ अ य लोग के साथ समायोजन थािपत करने म
असमथ होता है, ऐसे म उसे सामािजक प रवेश के बारे म उिचत सचू नाएं दान कर सेवाथ को दसू रे लोग के
यवहार के उिचत कारण क जानकारी देना आिद परामशदाता का काम होता है। संघष, दिु वधाओ ं म फंसे
सेवाथ म उिचत िनणय ि या का िवकास करने क िज मेदारी भी परामशदाता पर होती है। इसके बावजदू
सेवाथ के यवहार क ग या मकता को समझकर उसे उिचत सचू ना एवं सलाह देना तथा यवहार प रवतन
म सहयोग देने का काय परामशदाता करता है।
4.6 परामशदाता के कत य
कुछ िव ान ने परामशदाता के कत य के बारे म चचा क है िजसम मायस एवं टीवाट मख ु ह।
इ ह ने परामशदाता के कत य को दो भाग म, मु य कत य एवं िन िपत कत य म िवभािजत िकया है वे
िन निलिखत ह-
मायस ारा िदए गए परामशदाता के मु य कत य -
1. मीिटंग के समय का िनधारण
2. बैठक का आयोजन
3. बैठक क तैयारी
4. बैठक आरंभ करना
5. बैठक के अिभलेख का रखरखाव करना
टीवाट ारा िदए गए कूली परामशदाता के िन िपत कत य -
1. सेवाथ को इस कार सहायता देना िक वह अपने अनभु व का मू य िनधा रत कर सके
2. संबंिधत यि के बारे म आधारभतू साम ी का एक ीकरण
3. यि य क आव यकता एवं सम या को समझना
4. बैठक का आयोजन
5. कूल और प रवार तथा कूल और लास के बीच सबं धं बनाना
6. िश ा एवं सामािजक संपक क गित म तालमेल बनाना
7. समहू िनदशन
4.7 सारांश
मानव अपने जीवन म ज म से लेकर मृ यु तक िविभ न अव थाओ ं से गजु रता है ऐसे म उसे िविभ न
सम याओ ं का सामना करना पड़ता है। िजसके कारण उनका समाज म उिचत समायोजन नह हो पाता या
कुसमायोजन होता है। ऐसे म उन यि य को पनु : समाज म समायोिजत करने के िलए सामािजक कायकता
यि को सेवाएं दान करता है। यहाँ यान रखना आव यक है िक यि जब तक सेवा क मागं नह करता
है तब तक परामश को दान नह िकया जा सकता। ऐसे म िनदशन णाली का उपयोग िकया जा सकता है।
परामश के वल मागं े जाने पर दी जाने वाली सेवा है।
जैसे िक हमने देखा है वैयि क समाज काय और परामश का घिन संबंध है। वैयि क समाज काय सेवाओ;ं
कूली समाज काय, प रवार परामश, यगु ल परामश, यवसाय परामश आिद के अतं गत सामािजक कायकता
िविभ न भिू मकाओ ं जैसे- यवसाय परामशदाता, िश ा परामशदाता, पा रवा रक परामशदाता आिद
भिू मकाओ ं का िनवहन करता है। इन भिू मकाओ ं का िनवहन करते हए सामािजक कायकता को परामशदाता
के िविभ न कत य का पालन करते हए सेवाथ को सम या से िनजात पाने म सहयोग दान करना पड़ता है।
इस इकाई म हमने समाज काय और परामश के बीच के संबधं को देखते हए परामशदाता क भिू मकाओ ं और
कत य के बारे चचा क है। इसके बावजदू सामािजक कायकता अपने कौशल एवं िवशेष ताओ ं के आधार
पर सेवाथ क सम या को हल करने का यास करता है। परामश क िनरंतर चलने वाली ि या के अतं गत
सामािजक कायकता सेवाथ को सहयोग दान करता ह।
4.8 बोध
1. समाज काय और परामश के बीच के संबंध को प कर।
2. परामश के मल
ू घटक को प कर।
3. वैयि क सेवा काय म परामश क उपयोिगता को समझाए।ं
4. परामशदाता क भिू मका का वणन कर।
5. परामश म परामशदाता के कत य क चचा कर।
खडं – 3
सच
ं ार के मूल त व
इकाई 1
सच
ं ार : अथ एवं अवधारणा
इकाई क परेखा
1.1 उ े य
1.2 तावना
1.3 संचार क अवधारणा
1.4 संचार का अथ एवं प रभाषा
1.5 संचार शोर
1.6 संचार क िवशेषताएं
1.7 सचं ार के छह ककार
1.8 संचार के कार
1.9 संचार और जनसंचार म अंतर
1.10 सारांश
1.11 बोध न
बहिवक पीय न
लघु उ तरीय न
दीघ उ तरीय न
1.12 सदं भ एवं उपयोगी थ
ं
1.1 उ े य
इस इकाई का अ ययन करने के प चात आप -
1. ततु इकाई के मा यम से संचार क अवधारणा को समझना।
2. संचार के अथ एवं इसके कार को जानना।
3. सचं ार म होने वाले शोर या अवरोध को समझना।
4. संचार क िवशेषताओ ं को जानना।
1.2 तावना
मानव जीवन म जीवंतता के िलए संचार का होना आव यक ही नह , अिपतु अप रहाय है। पृ वी पर संचार
का उ व मानव स यता के साथ माना जाता है। मनु य के पवू ज ने जब से समहू म रहना सीखा तभी से सच
ं ार
का इ तेमाल हो रहा है, तब खतर क चेतावनी देने के िलए संदेश के आदान- दान क बड़े पैमाने पर ज रत
महससू क गई। ारंिभक यगु का मानव अपनी भाव-भंिगमाओ,ं यवहारज य संकेत और तीक िच ह के
मा यम से सच
ं ार करने लगा। िलिखत इितहास म सबसे पहले भाषा का औजार िवकिसत हआ। इितहास क
शु आत म ही अ र का ज म हआ। नगाड़ और अ य संकेत क गजुं पहले पहल हवा म सा रत हई।
तराशे गए प थर के सक ं लन से पहली लाइ ेरी बनी। जैसे ही पहली पु तक और द तावेज छापाखान से
एक परु ानी कहावत है िक ‘चेहरा दय का दपण’ है। कई मनोवै ािनक शोध से यह बात मािणत
भी हो चक ु है िक यि के ता कािलक सोच और भाव सामा यतया चेहरे का हष-िवषाद, आ चय,
उ तेजना, ोध, ल जा, आशा-िनराशा, परे शानी िआद जो िक उसके चेहरे से अिभ यि करने का दपण
होता है। मानव म कम से कम छह मल ू संवेग- हष-िवषाद, आ चय, भय, ोध, घृणा आनन-फानन म प ट
प से य त ये सच ं ार के प ह। सचं ार म सं पश का िवशेष मह व है जैसे यार से महँु चमू ना, ेमी- ेिमका
का चंबु न, यार से पीठ थपथपाना, पैर छू कर णाम करना, हाथ िमलाना इ यािद संचार के प ह। वचा
संदशे सारण और संदश े हण दोन ही प म काय करती है। सं पश य सं ेषण कदािचत पूणत: िन भावी
नह होता है यह तीका मक ि या ारा के वल िस या िव ता रत िकया जाता है। भाषा के ारा सच ं ार
हमारे समाज म लगभग 80 ितशत और अशाि दक संचार लगभग 20 ितशत होता है। ारंिभक युग म
मानव अपनी भाव-भिं गमाओ ं और तीक िच ह के मा यम से सचं ार करता था, िकंतु आधिु नक यगु म
सचू ना ौ ोिगक के े म ांितकारी अनुसंधान के कारण संचार के व प म ती गित से प रवतन आया
है। लोग सचू ना से यथाशी अवगत होना चाहते ह, फल व प आज रे िडयो, टेलीिवजन, िसनेमा, टेलीफोन,
मोबाइल, इटं रनेट, ई-मेल, वेब साइट्स, टेलीि टर, इटं रकॉम, टेली-का िसगं , के बल, समाचार प , पि का
इ यािद के मा यम से सचू नाएं ा त करते ह।
संचार मा यम को अ याधुिनक बनाने म यु क भिू मका मह वपणू रही है। 20 व शता दी के
म य तक संचार को वतं िवषय नह माना जाता था। राजनीितशा , समाजशा , मानवशा तथा
मनोिव ान के िवशेष अपने िवषय क ज रत के मतु ािबक अ ययन करते थे। हालांिक, इसक िविश ता
का एहसास दिु नया को थम िव यु (1914-1918) के बाद होने लगा था। एक वतं िवषय के प म
इसके अ ययन क आव यकता तब महससू क गई, जब ि तीय िव यु (1939-1945) के दौरान जमनी
के तानाशाह शासक िहटलर के चार मं ी गोयब स ने कहना शु िकया- “िकसी झठू को बार-बार
दोहराओ तो सच हो जाता है।” ि तीय िव यु के बाद परू ी दिु नया दो गटु म िवभािजत हो गई थी। एक गटु
का सा ा यवादी अमे रका तथा दसू रे गटु का सा यवादी सोिवयत संघ नेतृ व करने लगा। दोन महाशि य
के बीच िवदेशी उपिनवेश से मु होने वाले भारत जैसे कुछ तीसरी दिु नया के देश थे, िज ह अपने गटु म
शािमल करने के िलए महाशि य के बीच होड़ मची थी। इसके िलए दोन अपने सै य बल को अ याधुिनक
हिथयार (नािभक य व जैिवक बम ) तथा खिु फया तं को अ याधुिनक संचार मा यम से लैस करने म लगे
थे। इसी दौरान अमे रक ितर ा िवभाग ने इटं रनेट का आिव कार िकया। सोिवयत संघ के िवघटन के बाद
अमे रका ने अपने इटं रनेट का दरवाजा दिु नया को उपयोग करने के िलए खोल िदया है, जो वतमान समय म
सबसे व रत गित का सच ं ार मा यम है।
लैिटन भाषा के ‘communis’ श द से हई है। ‘Communis’ का अथ होता है–अपने िवचार एवं भाव को
दसू र के साथ बाँटना अथवा िकसी मा यम ारा अपने िवषय या व तु क साझेदारी करना। संचार श द
सं कृ त के चर धातु से िनकला है। िजसका आशय है-चलना। अपने यापक अथ म इसका योग चलने,
दौड़ने जैसी ि याओ ं के िलए होता है, लेिकन आज संचार श द एक तकनीक श द बन चक ु ा है, जो अं ेजी
के क यिु नके शन का िहदं ी पातं र है। यह श द वा तव म लैिटन भाषा क क यिु नके यर ि या से िनकलकर
आया है, िजसका आशय है- टू इपं ोट, टू शेयर, टू ांसिमट, टू टॉक टूगदे र confer discourse and consult
one with another अथात् सच ू नाओ ं के आदान- दान, समदु ाय या मनु य का एक-दसू रे के साथ यवहार,
भाईचारा, मै ीभाव, साझेदारी, सहभािगता या थोड़े से श द म कह तो सामा य भागीदारी यु त सचू ना एवं
उसका सं ेषण। यह लैिटन भाषा के क यिु नस श द से भी जड़ु ता है, िजसका अथ है to take common, to
share, to import, to train, to transfer अथात् सामा यीकरण, सामा य भागीदारीयु सचू ना, सं ेषण
यानी इसे समझ या साझा आधार भी कहा जा सकता है। प ट श द म संचार एक ऐसा यास है िजसके
मा यम से एक यि दसू रे यि के िवचार , भावनाओ ं एवं मनोवृि य म सहभागी होता है। मनु य अपने
सदं श
े को अपने भाव , िवचार , आशय को मा यम ारा सचं रण करते ह।
संचार एक तकनीक श द है, जो अं ेजी के क यिु नके शन का िहदं ी पांतरण है। इसका अथ होता
है, िकसी सचू ना या जानकारी को दसू र तक पहँचाना। इसके मा यम से मनु य के सामािजक संबंध बनते और
िवकिसत होते ह। मानवीय समाज क सम त ि या संचार पर आधा रत है। इसके िबना मानव नह रह
सकता। येक मनु य अपनी जा ताव था म संचार करता है, अथात बोलने, सनु ने, सोचने, देखने, पढ़ने,
िलखने या िवचार िवमश म अपना समय लगाता है। जब मनु य अपने हावभाव सक ं े त और वाणी के मा यम
से सचू नाओ ं का आदान- दान करता है तो वह संचार कहलाता है।
संचार श द का सामा य अथ होता है- िकसी सूचना या संदश े को एक यि से दसू रे यि तक
पहँचाना या सं ेिषत करना। दसू रे श द म संचार का ता पय भाव, िवचार, जानकारी अथवा सूचनाओ ं को
दसू र तक पहँचाना या थनांत रत करना है। सामा य भाषा म संचार का अथ है- एक यि से दसू रे यि
तक सचू ना या सदं श े को सं ेिषत करना या िकसी सचू ना या तकनीक को दसू रे तक पहँचाना।
जब दो या दो से अिधक यि आपस म कुछ साथक िच , संकेत या तीक के मा यम से
िवचार या भावनाओ ं का आदान- दान करते ह तो उसे संचार कहते ह (Communication refers to the
act by one or more persons of sending and receiving messages–distorted by noise-with
some effect and some opportunity for feedback)।
सचं ार का अथ एक-दसू रे को जानना, समझना, सबं ंध बनाना, सचू नाओ ं का आदान- दान करना
आिद से है। इसके मा यम से मनु य अपने िवचार , भाव , अनभु व को एक-दसू रे से बांटता है। वा तव म
िवचार क अिभ यि िज ासाओ ं को पर पर बांटना ही सचं ार का मु य उ े य है।
सच ं ार मनु य के अलावा पशु पि य म भी होता इसके िलए मा यम का होना अित आव यक है।
िचिड़या का चहचहाना, कु े का भ कना, सप का भक ंु ार मारना, शेर का दहाड़ना, गाय का रंभाना, मढ़क का
टर-टर करना भी संचार है। भाषा ही संचार का पहला मा यम है। भाषा के मा यम से ही हम अपने िवचार को
समाज म आदान- दान करते ह। इसीिलए कहा जा सकता है िक सचू नाओ,ं िवचार एवं भावनाओ ं को एक
िविभ न िवधाओ ं के िवशेष ने संचार को प रभािषत करने का यास िकया है, लेिकन िकसी एक
प रभाषा पर सवस मत नह बन सक है। िफर भी, कुछ चिलत प रभाषाएं िन निलिखत ह -
ए साइ लोपीिडया ऑफ क यिु नके शन के अनसु ार- “the transfer of thoughts and messages are
contrasted with transportation of goods and persons. अथात् िवचार या संदश े के आदान- दान
को संचार कहते ह जो चीज और यि य क ढुलाई या प रवहन से अलग है।”
डैिनस मे वैल के अनसु ार, ‘‘सचं ार वह ि या है जो समानता को बढ़ाती है (Communication is a
process which increases commonality)।’’
कॉफ न ए ड शॉ के श द म, ‘‘संचार आपसी समझ का एक िविनमय है (Communication is an
exchange of understanding)।’’
ऑ सफोड िड शनरी के अनुसार, “िवचार , जानका रय आिद का िविनमय, िकसी और तक पहँचाना या
बाँटना, चाहे वह िलिखत, मौिखक या साक ं े ितक हो, सचं ार है।”
ई.एम. रोजस एवं शमू क
े र के श द म, “संचार वह ि या है िजसम ोत एवं ोता के म य सूचना सं ेषण
होता है।
लईु स ए. एलेन के अनसु ार, “संचार उन सभी ि याओ ं का योग है, िजनके ारा एक यि दसू रे के साथ
समझदारी थािपत करना चाहता है। संचार अथ का एक पुल है। इसम कहने, सनु ने और समझने क एक
यवि थत तथा िनयिमत ि या शािमल है। (Communication is the sum of all the things one
person does when he wants to create understanding in the mind of another. It involves
a systematic and continuous process of telling, listening and understanding.)
रॉबट एडं रसन के अनसु ार, “वाणी, लेखन या सक ं े त के ारा िवचार अिभमत अथवा सचू ना का िविनमय
करना संचार कहलाता है।”
चा स ई. रे डफ ड (Charles E. Redfield) के अनसु ार- “सचं ार से आशय उस यापक े से है, िजसके
मा यम से मनु य त य एवं अिभमत का आदान- दान करता है। टेलीफोन, तार, रे िडयो अथवा इस कार के
अ य तकनीक साधन संचार नह है।” (Communication is the field of human interchange of
facts and opinion and not the technologies of telegraph, radio and the like.)
शैनन एवं वीवर के अनसु ार, “ यापक अथ म संचार के अतं गत वे सभी ि याएं सि मिलत ह, िजसके ारा
एक यि िदमागी तौर पर दसू रे यि को भािवत करता है। इसम न वािचक एवं िलिखत भाषा का योग
होता है, बि क मानव यवहार के अ य मा यम जैसे-संगीत, िच कला, नाटक इ यािद सि मिलत ह।”
े च एवं सािथय के अनसु ार, “िकसी व तु के िवषय म समान या सहभागी ान क ाि के िलए तीक का
उपयोग ही संचार है। य िप मनु य म संचार का मह वपणू मा यम भाषा ही है, िफर भी अ य तीक का
योग हो सकता है।”
चा स ई. ऑसगडु (Charles E. Osgood) के अनुसार, “आम तौर पर संचार तब होता है, जब एक िस टम
या ोत िकसी दसू रे या गतं य को िविभ न कार के सक ं े त के मा यम से भािवत कर।” (In the most
general sense, we have communication whenever one system is a source of influence,
another the destination by manipulation of alternative signals which can be
transmitted.)
बैरलो के अनसु ार, “संचार म अथ संचा रत नह होता। इसम अथ न तो संचा रत होते ह और न ही
थानातं रत होते ह। के वल सदं ेश ही सचं ा रत होते ह तथा सदं श
े म अथ नह होते, वे तो सं ेषक म होते ह जो
संदश े देते ह।”
लडु बग के अनसु ार, “संकेत ारा होने वाला सं ेषण संचार है।”
लीलड ाउन के अनसु ार, “मनु य के काय े िवचार व भावनाओ ं के सारण व आदान- दान क ि या
संचार है।” (Communicationis the transmission and interchange of facts, ideas, feelings
or course of action.)
थीयो हैमान के अनसु ार, “संचार वह ि या है िजसके ारा सचू ना व संदश े एक यि से दसू रे यि तक
पहँचे।”
जे पाल लीग स के अनसु ार, “सच ं ार एक ऐसी ि या है िजसम दो या दो से अिधक यि िवचार, त य,
भावनाओ ं का िविनमय करते ह, तािक दोन क समझ बढे़।”
ए बी शनमगु न के अनसु ार, “ ान, अनभु व, संवदे ना, िवचार और यहाँ तक िक अि त व म होने वाले
अिभनव प रवतन क साझेदारी ही संचार है।”
लिू मक और बीगल के अनसु ार, “संचार एक ि या है, िजसम सामािजक यव था के ारा सचू ना, िनणय
और िनदश िदए जाते ह और यह एक माग है िजसम ान, िवचार और ि कोण को िनिमत अथवा
प रवितत िकया जाता है।”
मैगीनसन के अनसु ार, “संचार समानभु िू त क ि या या ंख ृ ला है, जो िक एक सं था के सद य को ऊपर से
नीचे तक और नीचे से ऊपर तक जोड़ती है।”
िव बर ाम के अनसु ार, संचार म एक यि या यि य के समहू के साथ एक ऐ य या सामा यतया क
थापना समािहत होती है।
मैक डेिवड और हरारी के अनसु ार, “मनोवै ािनक ि से संचार से ता पय यि य के बीच िवचार और
अिभ यि य के आदान- दान से है।”
कै थ डैिवस के अनसु ार, “एक यि से दसू रे यि को सचू ना भेजने तथा समझने क िविध है। यह
आव यक तौर पर लोग म अथ का एक पल ु है। पल
ु का योग करके एक यि आराम से गलत समझने क
नदी को पार कर सकता है।
सच ं ार का मह व एवं काय
सचं ार जीवन को अथपणू एवं जीवतं ता दान करता है। यह यि के जीवन का मह वपणू अगं है। जब सच ं ार
होता है तो उसम सोच, िवचार, भावनाओ,ं जानकारी आिद का आदान- दान होता है। संचार के काय को
िन न प म िवभािजत िकया है : 1. सचू ना, 2. समाजीकरण, 3. ेरणा, 4. वाद-िववाद, 5. िश ा, 6.
सां कृ ितक सार, 7. मनोरंजन, 8. एक करण, 9. सामिू हक स ता क अपे ा, 10. प रवतन, 11. िनयं ण
और 11. िनयं ण एवं िनगराणी। संचार के मख ु काय िन नवत ह -
1. सूचना मक (To Inform) : संचार का मख ु काय सूचनाओ ं का सं ह और सार करना होता
है। जनसंचार मा यम (समाचार प -पि काए,ं रे िडयो, दरू दशन, इटं रनेट आिद) के ारा समाजोपयोगी
सचू नाओ ं का सं ेषण िकया जाता है। जनमा यम घर बैठे ही लोग को िव व म होने वाली घटनाओ ं
को तरु ं त सचू नाएं देने म सफल है।
2. ेरणा मक (To Intimate) : संचार क मह ता उससे िमलने वाली ेरणा के प म वीकार क
जाती है। सचं ार के ारा िकसी के बारे म राय बनाने के िलए े रत करते ह। सचं ार ही सम त ल य
क खोज म यि गत या सामुदाियक ि याओ ं को िवकिसत करता है। समाज के लोग संचार से ही
ेरणा लेकर अपने ल य तक पहँचते ह।
3. िश ा मक (To Educate) : संचार के मा यम से समाज म लोग को िशि त िकया जाता है।
िश ा का संचार िजतना यापक होगा जीवन के िविवध चरण म उतने ही िवकास क संभावनाएं
बढ़ जाती ह।
4. मनोरंजना मक (To Entertainment) : संचार मा यम का मह वपणू काय लोग का मनोरंजन
करना भी होता है। जनमा यम लेख, वृ तिच , िफ म, काटून, संगीत, किवता, कहानी, नाटक आिद
का सारण कर लोग का मनोरंजन करते ह।
1.6 सचं ार क िवशेषताएं (Features of Communication)- सचं ार का उ े य सचू नाओ ं तथा अनभु व
को पर पर बाटं ना, िवचार क अिभ यि , िज ासाओ ं का समाधान दसू रे को ो साहन व प रवतन आिद से
है। वतमान म तकनीक ांित के िनमाण एवं ानाधा रत समाज के िलए संचार का मह व बढ़ गया है। संचार
के िलए िन न िवशेषताओ ं का होना आव यक है-
संदश े का सं ेषण एवं िव लेषण करना।
संचार उ े यपणू होना चािहए।
सच ं ार भावी होने के साथ-साथ साथक भी होना चािहए। दो यि य म साथकता का िनमाण
सं ेषण से होता है।
सं ेषक को पहले सचू ना एवं त य को दयंगम कर लेना चािहए।
1.8 संचार के कार – संचार मनु य जीवन के िलए अप रहाय है। संचार क ि या ोता एवं ोत दो
मखु त व के बीच संचािलत होती है। इ ह दो त व को यान म रखकर संचार िवशेष ने संचार के
िविभ न कार का िनधारण िकया है। संचार के िविभ न कार को िन न आधार पर िवभािजत िकया जा
सकता है-
क. संचार ि या म भाग लेने वाले यि य क सं या के आधार पर (On the basis of Peoples
participation in Communication Process) : 1. अतं ः वैयि क संचार (Intra Personal
Communication), 2. अतं र वैयि क संचार (Inter Personal Communication), 3. समहू संचार
(Group Communication) और 4. जन संचार (Mass Communication)
ख. भाषा के आधार पर (On the basis of Language) : संचार के िलए संदश े क संरचना म भाषा
का मह वपणू थान है। संदेश के आधार पर संचार का वग करण िन न कार से िकया जा सकता है-
1. शाि दक / भािषक सच ं ार (Verbal Communication) : मानव क सबसे बड़ी िवशेषता उसक
शाि दक भाषा (Verbal Communication) है। शाि दक सचं ार मल ू प से भाषा पर आधा रत होता है।
भाषा मनु य क बुि को खर बनाती है और साथ ही पर पर सहयोग एवं संचार को भी प र कृ त करती है।
श द भाषा से अिभ यि सरल, सगु म एवं बोधग य हो जाती है। शाि दक संचार को दो वग म रखा गया है-
अ. मौिखक सच ं ार (Oral Communication) ब. िलिखत सचं ार (Written Communication)।
अ. मौिखक सच ं ार (Oral Communication) – जब कोई सवं ाद एवं सचू ना मौिखक उ चारण से ेिषत
क जाए तो उसे मौिखक सच ं ार कहा जाता है। मौिखक सचं ार से आशय, सं ेषक ारा िकसी सचू ना या सदं श
े
को मख ु से उ चारण कर ोता तक ेिषत करने से है। इसम दो प - सं ेषक और संदश े ा तकता के बीच
मौिखक संवाद होता है। लॉरे स ए पल के मतानसु ार, “मौिखक श द ारा पार प रक सं ेषण संदेशवाहन का
सव े ठ कला है।” इसिलए कहा जाता है िक मौिखक सचं ार ही वह सू है जो मानवीय सबं धं को थािपत
करता है। घर, सावजिनक थल आिद म यि मौिखक संचार के मा यम से अपने संबंध को गाढ़ बनाता
है। भावी मौिखक संचार के िलए ांिसस जे.बरिगन ने सात त व बताए ह िजनको Seven ‘C’ के नाम से
पकु ारते ह जो इस कार ह- Clear ( प ट), Complete (पणू ), Concise (संि त), Correct (शु ),
Candid (सरल), Concrete (वा तिवक) और Courteous (सौहादपणू )। मौिखक संचार मानवीय जीवन
म सहज एवं सरल होता है, िजसे हम िन न प म समझ सकते ह- 1. सू म सचं ार (Micro
Communication) एवं 2. थूल संचार (Macro Communication)।
1. सू म संचार (Micro Communication) – संचार ि या म जब संकेत क सहायता से भावािभ यि
हो तो उसे सू म संचार कहते ह और इसम भाषा का योग नह होता है, बि क संकेत के मा यम से ही
संचार क ि या परू ी होती है।
2. थूल सच ं ार (Macro Communication) – सचं ार िकया म जब भाषा का योग सचं ार के िलए िकया
जाता है तब अिभ यि या संदेश ेषण का भौितक व प थूल होता है।
मौिखक सच ं ार के मा यम (Medium of Oral Communication) – मौिखक संचार के थूल प से
कई मा यम ह- क. आमने-सामने वातालाप, ख. दरू भाष पर वातालाप, ग. रे िडयो सारण, घ. वाद-िववाद,
च. संगो ठी, छ. भाषण, ज. िवचार गोि यां आिद।
मौिखक संचार के लाभ (Advantage of Oral Communication) – मौिखक संचार के िन न लाभ ह-
1. शी संचार – मौिखक संचार से धन एवं समय क बचत होती है य िक संदश े का सं ेषण मौिखक
प से हो जाता है, इससे शी संचार होता है।
2. भावी सच ं ार – मौिखक संचार अिधक भावशाली होता है। उ चारण के ढ़गं , अिभ यि क
भाव-भंिगमा एवं हाव-भाव ारा संदेश को भावशाली तरीके से रखा जा सकता है।
3. अिवलंब ितपिु – मौिखक संचार म संदेश आसानी से समझ म आ जाता है। यिद संदेश म कोई
संशय होता है तो उसका तुरंत िनराकरण भी कर िलया जाता है।
4. काय मता म वृि – मौिखक संचार ारा यि य के वा चातुय, यावहा रक कुशलता आिद का
िवकास होता है फल व प काय मता म वृि होती है।
मौिखक संचार के दोष (Disadvantage of Oral Communication) – मौिखक संचार के िन न दोष
ह-
1. सीिमत े – मौिखक सच ं ार म सं ेषक और ोता दोन का एक साथ उपि थत रहना आव यक
है। यिद ोता उपि थत नह है तो मौिखक संचार यथ हो जाता है साथ ही सं ेषक को संदश े के बारे
म सोचने का कम समय िमलता है िजससे कभी-कभी संदश े भावी नह होता है। ि थरता के मामले
म ोता के मरण शि पर िनभर करता है। यिद ोता को सदं श े के कुछ समय बाद पनु : समझने क
आव यकता पड़ती है तो यह ाय: िन तर हो जाती है।
2. वैधािनक मा यता का अभाव- मौिखक सचं ार भिव य म िववाद उ प न होने क ि थित म
माण व प ततु नह िकया जा सकता है। अतएव मौिखक संचार का कोई थायी मह व नह
होता है और इसक कोई वैधािनक मा यता नह होती है।
ब. िलिखत संचार (Written Communication) – जब संदेश का आदान- दान िलिखत प म होता है
तो उसे िलिखत संचार कहा जाता है। िलिखत संचार से आशय ऐसी सचू नाओ ं से है, जो मौिखक न हो वरन्
िलखकर दी गई हो। िव तृत संदेश या थायी तथा भिव य म संदभ के प म रखे जाने वाले संदेश का
िलिखत संचार िकया जाता है। जब संदश े को एक साथ िविवध थल पर अनेक यि य को संचा रत
करना हो तो िलिखत संचार उपयोगी होता है। िलिखत संचार म मिु त एवं टंिकत सं ेषण भी शािमल है।
िलिखत सच ं ार म प , टेली ाम, बल ु ेिटन, प रप , ापन, ितवेदन, सचू ना, नावली, पु तक, समाचार प ,
पि काए,ं है डिबल, चाट, ई-मेल, सीडी, डीवीडी एवं िलिखत श द शािमल ह। िलिखत संचार प ट, पणू
एवं बोधग य होना चािहए।
िलिखत संचार के लाभ (Advantage of Written Communication) –
1. पहँच यापक – िलिखत संचार का े यापक है। इसम सं ेषक और हीता दोन एक साथ
उपि थत नह होते। दरू थ े म जहाँ सचं ार के आधिु नक साधन उपल ध नह ह िलिखत सच ं ार
आसानी से पहँच जाता है। एक ही समय म कई यि य के साथ सगु मता से िलिखत संचार म
अिभ यि क जा सकती है।
2. वैधािनक एवं थायी रकाड – िलिखत सचं ार का सा य वैधािनक प से मा य है। इसे भिव य म
रकाड के िलए संरि त िकया जा सकता है। हम जानते ह िक िलिखत या िलिपब रकाड के िबना
ान के भडं ार न ट हो जाते ह। िलिखत मा यम ान के भडं ार को जीिवत रखने म लाभदायी होता है,
य िक ान के हर पहलू को पीढ़ी दर पीढ़ी मरण शि ारा जीिवत व जारी रखना संभव नह है।
3. ि या वयन म सुिवधा – िलिखत संचार म संदेश ापक को संदश े पर िवचार करने तथा िव लेषण
करने का पया त समय तथा अवसर रहता है, िजससे ि या वयन क सही ि या का िनधारण
िकया जा सके ।
िलिखत संचार के दोष (Disadvantage of Written Communication) –
होती है। साथ ही उनम लोग को भािवत करने क मता भी अिधक होती है। भारत के िस शा ीय नृ य
क थक, भारत नाट्यम, मिणपुरी और कथकली भी पांरप रक संचार मा यम ह, िजसे कलाकार ाचीन
कथाओ ं म िनिहत संदेश को संगीत वा और अिभनय मु ाओ ं के साथ तुत करते ह।
सहजता, सगु मता और सुलभता के चलते पारंप रक संचार मा यम सामािजक जाग कता के सही
सवं ाहक होते ह। इसक साथकता आजादी के आदं ोलन के समय िस हई जब गाँव के सड़क पर िनकलने
वाली भात फे रयाँ और पथ नाट्य ने जनांदोलन को ती िकया। सामािजक सम याओ ं जैसे बाल िववाह,
बह िववाह, जनसं या िव फोट, िनर रता, मिदरापान, सां दाियक िव षे , कुपोषण, अ व छता, जाित था,
दहेज था आिद के िवरोध क बात िजतने पारंप रक सचं ार मा यम के ारा य िकया जा सकता वैसा
अ य मा यम ारा नह िकया जा सकता है। यनू े को क रपोट म भी परंपरागत संचार को समकालीन मु
के ित जाग क बनाने म स म पाया गया। पारं प रक संचार क मख ु िवशेषता उनक ोत से िनकटता,
थानीयता और िव वसनीयता है। ापक भी बोलचाल भी भाषा म, रोजमरा क िजंदगी के माहौल म कही
गई बात को समझ लेता है। वा य िवभाग, िश ा िवभाग, समाज क याण िवभाग आिद, ने अपनी नई
योजनाओ ं को पारंप रक मा यम म सा रत िकया और सकारा मक प रणाम भी उ ह िमला। आज के रे िडयो
और दरू दशन जैसे जनसंचार मा यम पारंप रक संचार के ही िवकिसत प ह।
1.13 सारांश
मनु य आिदमानव था तो अनेक कार क समान अनभु िू तय को संकेत म एक-दसू रे से बाँटता था। धीरे -धीरे
भाषाओ ं और िलिपय का िवकास हआ और सचं ार एक यवि थत प म सभं व हआ। इससे अिधकांश
अ तरवैयि क संचार ही संभव हआ। उ ोग और यापार के े म जब तकनीक का िवकास हआ, नए-नए
आिव कार हए तो संचार ने भी नए आयाम क तरफ कदम बढाए। अब तक गांव या कबीले तक सीिमत
संचार यापक े और यापक जनसमदु ाय तक िव तार पा गया। छापेखाने के आिव कार से शु हई संचार
ांित फोटो ाफ , टेली ाफ , रे िडयो और टेलीिवज़न के आिव कार से समृ होते हए इटं रनेट तक पहँच गई
है। इटं रनेट से पहले रे िडयो और टेलीिवज़न ने ही वा तिवक सचं ार ािं त को ज म िदया। अनेक कार क
आधिु नक सारण तकनीक के आिव कार के कारण रे िडयो और टेलीिवजन ने सारी दिु नया को एक इकाई के
प म त दील कर िदया। सूचनाओ ं और िवचार का आदान- दान सबसे सश प म ु त गित से संभव
हआ। रेिडयो ने जहाँ आवाज़ के मा यम से सचू नाओ ं को पख ं लगाए वह टेलीिवजन ने इस सचं ार को
या मकता से जोड़कर आँख दान क ।
सचं ार कई प म हमारे सामने आता है यथा : अतं :वैयि क सचं ार, अतं र वैयि क सचं ार, समहू
संचार और जनसंचार। सभी तरह के संचार के प क बिु नयाद वैयि क संचार है। संचार ि या म चार
घटक अिनवाय होते ह, पहला- सं ेषक, दसू रा- संदश े , तीसरा मा यम और चौथा- ा कता। दरअसल संचार
से आशय है सचू नाओ ं का सं षे ण। अथात् जब कोई सदं ेश एक यि से दसू रे यि तक एक थान से दसू रे
थान तक और एक समय से दसू रे समय म सं ेिषत िकया जाता है तो वह संचार और जो संचार बहत बड़े
पैमाने पर बहत बड़ी सं या तक पहँचाने के िलए उ पािदत िकया जाता है तो वह जनसंचार कहलाता है।
जनसंचार का संबंध पँजू ीवादी तथा लोकतांि क प रवतन क ेणी म संब है।
1.11 बोध
बहिवक पीय न
न 1 : ‘क यिू नके शन’ श द क उ पि िकस भाषा से हई हैॽ
क. लैिटन ख. अं ेजी
ग. पजु गीज घ. च उ र : क.
न 2 : सचं ार से आशय हैॽ
क. सचू नाओ ं का सं ेषण ख. मा यम का होना
ग. ितपिु का नह िमलना घ. िवचार को संकेत िच म बदलना उ र : क.
न 3 : बस म दो यि य ारा क जाने वाली वातालाप संचार क िकस ेणी म आता हैॽ
क. अतं :वैयि क संचार ख. अतं र वैयि क संचार
ग. समहू संचार घ. जनसंचार उ र : ख.
न 4 : संचार ि या के िलए िन न म से कौन सा आव यक अवयव नह हैॽ
क. ेषक ख. संदशे
ग. भाव घ. ा तकता उ र : ग.
न 5 : वग क ा म अ यापक ारा कराया गया अ यापन को कौन सा संचार कहा जाएगाॽ
क. अतं :वैयि क संचार ख. अतं र वैयि क संचार
ग. समहू सच ं ार घ. जनसचं ार उ र : ग.
लघु उ रीय न
न 1 : संचार के आशय को प ट क िजए।
न 2 : अतं : वैयि क सच
ं ार और अतं र वैयि क सचं ार म अतं र प ट क िजए ।
न 3 : संचार और जनसंचार के अतं र को प ट क िजए ।
दीघ उ रीय न
न 1 : संचार से आप या समझते ह, िविभ न िव ान ारा िदए गए संचार क प रभाषा पर काश
डािलएॽ
न 2 : संचार के कार को प ट करते हए संचार क िवशेषताएं बताएॽं
यवहार
काय 1 : संचार क आव यकता मनु य को कब और य पड़ती हैॽ आज के समय क तल
ु ना उस समय से
क िजए जब संचार के आधिु नक साधन उपल ध नह थे। आपक ि म कौन-सा समय जनिहत म यादा
बेहतर माना जा सकता है और य ॽ
किठन श दावली
सदं ेश : सच
ं ार ि या क िवषय व तु सदं ेश है। सदं ेश म सूचना, िवचार, सक
ं े त, ि कोण, िनदश,
सझु ाव आिद शािमल ह। सदं श े यानी वह बात जो एक से दसू रे तक ेिषत क जाती है। यह िलिखत,
मौिखक, शाि दक अथवा सांकेितक होता है जो िकसी भी प म हो सकती है, विन के प म,
य के प म, सक ं े त के प म या अ य िकसी प म।
ितपिु : सच ं ार िकया को सफल बनाने म ितपिु एक मख ु अवयव है। सं ेषक को सदं श े
सा रत करने के प चात यह जानना आव यक है िक सं ाहक ने उसे हण िकया या नह । सच ं ा रत
संदशे उपयोगी हो रहा है अथवा नह , ितपिु कहलाता है।
इकाई 2
संचार के चरण एवं ा प
इकाई क परेखा
2.1. उ े य
2.2 तावना
2.3. संचार ि या
2.4. संचार के त व
2.5. संचार मॉडल
2.6. संचार ित प के काय
2.7. सचं ार के बिु नयादी ित प
2.7.1. अर तू का संचार ित प
2.7.2. हेरा ड डी. लासवेल का ित प
2.7.3. ोडॉक का ित प
2.7.4. शैनन एवं वीवर का ित प
2.7.5. डी. योर का ित प
2.7.6. सी.ई. ऑसगुड एवं िव बर ेम का ित प
2.7.7. िव बर ेम के अ य ित प
2.7.8. िव बर ेम के अ य ित प
2.7.9. जाज गबनर का सामा य संचार ित प
2.7.10. गबनर का शाि दक ित प
2.7.11. गबनर का रेखीय का ित प
2.7.12. जाज गबनर का 1964 का ित प
2.8. सारांश
2.9. बोध न
2.9.1. बहिवक पीय
2.9.2. लघु उ तरीय
2.9.3. दीघ उ तरीय
2.9.4. यवहार
2.10. किठन श दावली
2.11. संदभ ंथ
2.1. उ े य
इस इकाई के उ े य िन नवत ह -
5. ततु इकाई के मा यम से सचं ार ि या को समझना।
2.2 तावना
संचार मनु य के िलए अिनवाय त व है। इस इकाई म हम देखगे िक िवशेष ने संचार को प रभािषत कर
उसके िकस व प या ित प को ितपािदत िकया। संचार के इन व प या ित प को बुिनयादी या
आधारभतू माना जाता है। सचं ार के ित प म सरल प से समचू ी ि या और यथाथ का िववरण िनिहत
होता है। इन ित प ारा संचार संरचना, उनके अदं र िनिहत संघटक को उ लेिखत िकया जाता है और
साथ ही इनके बीच म सि य सबं धं का भी उ लेख होता है। ततु इकाई म सचं ार ि या, सचं ार के
बुिनयादी त व, संचार ित प तथा उनके काय एवं ित प पर काश डाला गया है।
2.3. सच ं ार ि या
सचं ार ि या म सदं ेश भेजने वाला ेषक कहलाता है और सदं ेश ा करने वाला ा कता। दोन के बीच
एक मा यम होता है िजसके सहयोग से ेषक का संदश े ा कता तक पहँचता है। ा कता के िदल िदमाग पर
भाव डालता है, िजससे सामािजक सरोकार म बदलाव आता है। देश तथा िवदेश म मनु य क द तक
बढ़ती है इसिलए संचार ि या का पहला चरण ेषक होता है। इसे इनकोिडंग भी कहते ह। इनकोिडंग के
बाद िवचार साथक संदश े के प म ढल जाता है। जब ा कता अपने मि तक म उ संदेश को ढाल लेता है
तो सच ं ार क भाषा म डीकोिडंग कहते ह। डीकोिडंग के बाद ा कता उस सदं ेश का अथ समझता है। वह
अपनी िति या ेषक को भेजता है तो उस ि या को फ डबैक कहते ह। संचार ि या को िन न कार
समझा जा सकता है –
ेषक सदं श
े मा यम ा तकता
अथात् ेषक और ा तकता के बीच म संदश े और मा यम से ही संचार ि या संप न होती है लेिकन इसम
कुछ बात का िवचार और आव यक है। सफल संचार वही है िजसम ेषक ारा िदए गए संदेश का वही अथ
ा कता ा कर सके , जो ेषक ेिषत करना चाहता है। इसके िलए सदं ेश क इनकोिडंग और डीकोिडगं को
समझना आव यक है। इसका अथ यह है िक संचार के िलए ेषक और ा कता के बीच समान अनुभिू त या
समझ का होना आव यक है। यह समान समझ क सबसे अिधक सभं ावना भाषा और श द ारा सभं व है।
उदाहरण के तौर पर ेषक िकसी व तु को ‘कं यटू र’ कहता है तो ा कता के िलए उसके श द का अथ
समझने के िलए पहले इस कोड अथात भाषा से प रचय ज री है। इनकोिडंग और डीकोिडंग के आधार पर
ही सच ं ार के इितहास को भी समझा जा सकता है।
संचार ि या िन निलिखत काय को संप न करती ह –
• सचू ना या जानकारी देना ।
• संचार से जड़ु े यि य को े रत और भािवत करना।
कहा है िक ‘मा यम ही संदशे है’। यह सामा यतया संकेत और संदश े को पांत रत करने का उपकरण होता
है। संचार मा यम का चयन करते समय संचारक को िन न िबंदओ ु ं पर यान देना आव यक है- ‘1. संदशे के
त व और उसके वभाव को यान म रखकर संचार मा यम का चयन, 2. दशक- ोता-पाठक (द ोपा) तक
सरलता से पहँचने वाले मा यम का चयन, 3. द ोपा को एक से अिधक ानि य के योग करने के िलए
बा य करने वाला मा यम, 4. सच ं ारक को उिचत समय पर मा यम क उपल धता और भावशीलता के
आधार पर मा यम पर कम यय का िनधारण’ (जनसंचार शोध िविधयाँ, िवजय कुल े ठ एवं हसं ा जैन, पृ.
20)।
4. संकेतीकरण (Encoding)– सं ेषक जब भाव या िवचार को संकेत के प म प रवितत करके
रचना मक िविध से ा तकता तक पहँचाता है तो इसे संकेतीकरण कहा जाता है, जैसे– श द , संकेत , भाव
भिं गमाओ ं आिद के ारा सदं ेश को सा रत करना। जे. पाल लीग स के अनसु ार, “श द सचं ार ि या का
मु य मा यम है िकंतु श द तभी तक भावशाली होते ह जब इनके साथ संकेत, िच आिद का योग हो।
संकेत, संचार ि या म सहायक होने के साथ ही साथ उसे भावशाली भी बनाते ह।” कोई भी श द तब
तक साथक नह होता, जब तक िक उसका सही अथ नह ात हो। श द सक ं े त इस िदशा म सहायक होते ह।
अथ क अ ानता के कारण अ छे से अ छे श द िनरथक तथा अनपु योगी हो जाते ह। सचं ार ि या को
साथक बनाने के िलए ऐसे सक ं े त का चयन आव यक है जो िवचार को सही प म य त कर सक और
िजनका अथ सं ेषक तथा हीता दोन एक समान ही समझते ह । सं ेषक सचू ना देने से पहले संदेश को
अपने ढंग से प रवितत करता है, िजसे संकेतीकरण कहते ह।
5. संकेतवाचन (Decoding)– संकेतवाचन से आशय है- ापक ारा संदश े को अपने मि त क म उसी
अथ म ढाल लेना। संकेतवाचन ापक क समझ मता पर िनभर करता है। हीता संदेश को अपने ढंग से
समझता और हण करता है, इस िके या को संकेतवाचन कहा जाता है। यिद ापक क यो यता तथा मता
म कोई कमी होगी तो वांिछत संदेश का अथ भी अपेि त प म ा त नह होगा। इनकोिडंग और डीकोिडंग
म पूरी तरह सामजं य नह होता। सामजं य क ि थित सं ेषक और ापक के गणु ा मक तर पर िनभर करती
है और यह सामजं य सं ेषण इनकोडर और हीता िडकोडर के मानक करण क ि थित पर सामजं य क
ि थित िनभर करती है।
6. सच ं ार बाधा या शोर (Communication Noise)– सदं श े जब िक ह अड़चन , बाधाओ ं और
अवरोध के कारण गतं य ( ापक) तक नह पहँच पाता है, तो उसे सचं ार बाधा/शोर कहते ह। िकसी सभा म
सभी ोताओ ं का एक साथ समय पर उपि थत न होना, संदश े को पढ़ने म स म न होना, संचार मा यम के
सचं ालन म तकनीक िु ट आिद कई ऐसे त व ह िजनसे सचं ार बाधा क ि थित पैदा होती है और सदं श े
ापक को ापत् नह होता। जब संचार ि या म बाधा उ प न होती है तो सं ेषक और ापक दोन को
परेशानी होती है। संचार ि या म दो कार से बाधा होती है -
1. तकनीक बाधा (Technical Noise) और 2. अथ सबं धं ी बाधा (Semantic Noise)। इतना ही नह
संचार ि या म शोर उ प न होने के िविवध कारण म शािमल ह- भाषा संबंधी अवरोध (Language
Barriers), उ े य क बाधा (Barriers of Unsound Objectives), समयाभाव क किठनाइयाँ
(Barriers of shortage of time), भौगोिलक दरू ी (Geographical Distance), म (Confusion),
3. ोता (Audience)
4. अवसर (Occasion)
5. भाव (Effect)
अर तू के संचार ित प के मा यम से यह प ट है िक व ता अथात् संदेश सा रत करने वाला अपना संदेश
मौिखक प से भाषण ारा िकसी िवशेष अवसर पर सा रत करता था। उस सदं ेश का ोता पर भाव पड़ता
था। ोता िकसी िवशेष अवसर पर ही एक होते थे।
2.7.2. हेरा ड डी. लासवेल का ित प– संचारिवद् हेरा ड डी. लासवेल ारा 1948 ई. म ितपािदत
ित प को शाि दक यादश (Verbal Communication) के प म भी जाना जाता है। यह सूचना चालन
एवं सच ं ार ि या पर आधा रत है। ि तीय िव वयु के दौरान अमे रका म ोपेगे डा के मह व का अ ययन
िकया गया। अमे रक यव था को देखकर लगने लगा िक वहाँ भी िकसी िहटलर जैसे यि का भु व
कायम हो जाएगा य िक िहटलर भी लोकतांि क दल के मा यम से तानाशाह शासक बना था ठीक उसी
कार क प रि थितयाँ अमे रका म भी िनिमत हो रही थी।
उसी दौरान वहाँ शीतयु भी आरंभ हो चक ु ा था और यह अ ययन िकया जा रहा था िक ोपेगे डा या
है, कै से होता है, कौन करता हैॽ लासवेल इस अ ययन के मख ु अ येता के प म पाया िक संचार यि के
िवचार, काय, यवहार एवं तौर-तरीक को प रवितत ही नह बि क भािवत भी करता ह। लासवेल का
संचार ित प संचार ि या एवं सचू ना चालन पर आधा रत है। लासवेल का ित प शाि दक यादश का
उदाहरण है। इस यादश को हम िन निलिखत तरीके से समझ सकते ह –
कौन या कहता है िकस मा यम से िकससे िकस भाव से
सं ेषक संदश
े हीता
2.7.4. शैनन एवं वीवर का ित प− लाउडेन शैनन एवं वारे न वीवर दोन अमे रक बेल टेलीफोन
योगशाला म अिधकारी के पद पर कायरत थे। उन दोन ने टेलीफोन से संचार ि या के आधार पर एक
यादश ितपािदत िकया। यह यादश उनके ारा 1949 ई. म तुत िकया गया इसे गिणतीय ित प
(Mathematical Model) भी कहा जाता है।
संदश
े संकेत ा त संकेत संदश
े
सचू ना ेषक ािहता गंत य
ोत थल
शोर
जनमा यम योग
सक
ं ेत सक
ं ेत सदं श
े
सदं श
े
शोर
सदं श
े सक
ं ेत सक
ं ेत सदं श
े
ितपिु साधन
इस ित प म डी. योर ने प िकया िक शोर हर तर पर उपि थत हो सकता है। गंत य संदेश क ितपिु
भी देता है। उ ह ने Channel को Mass Media Device माना है। ितपिु क कमी शैनन एवं वीवर के
ित प म थी, िजसे डी. योर ने सधु ार कर दरू िकया।
संदश
े
या याताकार या याताकार
संकेतवाचक संकेतवाचक
संदश
े
अनभु व का े
अनभु व का े
ोत सक
ं ेत गतं य
इनकोडर
डर िडकोडर थल
र
ेम का जनसंचार का ित प
1. ाथिमक ोता (Primary
Primary Receiver
Receiver) : जो जनसंचार मा यम (रे िडयो, दरू दशन)
दशन से वयं समाचार
को सनु ता है, ाथिमक ोता कहलाता है।
2. ि तीयक ोता (Secondary
Secondary Receiv
Receiver) : जो अ य यिि य से समाचार ा त करता है उसे
ि तीयक ोता कहा जाता है। ि तीयक ोता समाचार को सीधे जनसचं ार मा यम य से ा त नह
करते।
मे के यादश
दश क मल
ू आ मा मीिडया संगठन म है जहाँ िक वे सारी ि याएँ परू ी क जाती है िजनक
िज
चचा सरकुलर यादश म क गई है अथात् इनकोिडंग, इटं र ेिटंग और डीकोिडंग।
2.7.9. जाज गबनर का सामा य सच ं ार ित पप− इस यादश को जाज गबनर ने 1956 ई. म तुत
िकया था। गबनर अमे रक सचं ारिवद् ह। उनका उ े य सचं ार का एक ऐसा यादश तैयार करना था
जो संचार के यापक े पर लागू हो।
इस यादश क मख ु बात यह है िक ‘‘ससचं ार क िविभ न ि थितय पर िनभर करने वाले िविभ न
व प का वणन िकया गया है’’ अथात् ‘‘िकसिकस ि थित म िकस तरह का संचार होगा’’,
होगा इसके िविभ न
व प का वणन अलग-अलग अलग प म जोड़ा जा सकता है। इस मॉडल ारा संचार के सरल या जिटल हर
M
यि या िच
अथ और िनयं ण आयाम
S E
उ पादन करना अतं व तु
M
घटना समझने क तरह
E
E1
मैच क जीत मैच म बॉल क अिधकतम
समझ क तरह
सं या
अथ
कथन
M2
S E घटना के संबंध म
SE1 मा ा अतं व तु
मैच जीतना
अनु म
M E1 E
उ पादन करना
2.9. बोध
2.10. बहिवक पीय
न 1 : सचं ार ि या म सदं ेश भेजने वाला िन न म से या कहलाता हैॽ
िवक प : क. ेषक ख. संदशे
ग. मा यम घ. ा तकता उ र : क.
न 2 : संचार ित प के काय म से कौन सा गलत है ॽ
िवक प : क. वत: अ वेषण संबंधी काय ख. अनमु ान यो य बनाना
ग. मापन सबं धं ी काय घ. असगं िठत बनाना उ र : घ.
न 3 : िन न म से िकस संचार के ित प को शाि दक यादश (Verbal Communication) कहा
जाता हैॽ
िवक प : क. अर तू का संचार ित प ख. हेरा ड डी. लासवेल का ित प
ग. ोडॉक का ित प घ. शैनन एवं वीवर का ित प उ र : ख.
न 4 : िन न म से िकस ित प को ‘ ीडोमीनटरी मॉडल ऑफ मास क यिु नके शन’ कहा जाता हैॽ
िवक प : क. डी. योर का ित प ख. शैनन एवं वीवर का ित प
ग. हेरा ड डी. लासवेल का ित प घ. िव बर ेम का ित प उ र : क.
न 5 : िन न म से िकस ित प को ‘सं ेषण का जादईु ि या’ कहा जाता हैॽ
िवक प : क. हेरा ड डी. लासवेल का ित प ख. ोडॉक का ित प
ग. शैनन एवं वीवर का ित प घ. डी. योर का ित प उ र : ख.
2.11 संदभ थं
कुल े ठ, िव. एवं जैन, ह.ं (2005). ‘जनसंचार शोध िविधयाँ’. जयपरु : माया काशन।
िसहं , ीका त. (2001). ‘सं ेषण : ित प एवं िस ातं ’. फै जाबाद : भारती पि लशस ए ड
िड ी यटू सा
सरदाना, चं कांता एवं मेहता. कृ .िश. ‘जनसंचार कल, आज और कल’. िद ली : ान गंगा।
इकाई- 3 सच
ं ार सै ांितक , सं कृित उ पाद, पि लक फेयर एवं जनमत
इकाई क परेखा
3.0. उ े य
3.1. तावना
3.2. संचार सै ांितक
3.3. जनसच ं ार के िनयामक िस ांत
3.4. सं कृित उ पाद
3.5. सं कृित-उ ोग
3.6. पि लक ि फयर
3.7. जनमत
3.7.1. जनमत : अथ एवं व प
3.7.2. जनमत का िनमाण
3.7.3. जनमत के प
3.7.4. जनमत िनमाण क ि या
3.7.5. जनमत िनमाण के साधन
3.7.6. जनमत िनमाण के तर
3.7.7. जनमत को भािवत करने वाले त व
3.8. सारांश
3.9. बोध न
3.10. किठन श दावली
3.11. संदभ एवं उपयोगी थ ं सूची
3.0. उ े य
इस इकाई का उ े य िन नवत ह -
1. सचं ार क सै ािं तक सिहत जनसचं ार के िनयामक िस ातं को जानना।
2. सं कृ ित उ पाद और जनसंचार के अतं सबंध को समझना।
3. पि लक फे यर को जानना।
4. जनमत को समझना।
3.1. तावना
संचार मा यम ने यापक जनसमहू के जीवन को भािवत िकया है। जनसचार के े म होने वाले
तकनीक प रवतन ने हमारे आिथक, सामािजक, राजनीितक और सां कृ ितक े को तेजी से भािवत
करना शु कर िदया है। इस इकाई म सचं ार सै ािं तक पर िवमश करते हए जनसचं ार के िनयामक िस ातं पर
िव तृत प से चचा क गई है। जनसंचार के उ पाद को सां कृ ितक उ पाद क ेणी म शािमल िकया जाता
है। सं कृ ित म मनु य के जीवन क येक गितिविध या सि मिलत ह। जनसंचार ने मनु य को िकस तरह के
सां कृ ितक जीवन के िलए े रत िकया है। या इसके ारा अपसं कृ ित को बढ़ावा िदया जा रहा है, सं कृ ित
के उ ोग म बदलने से या लोग क रचना मकता को कंु िठत िकया जा रहा है आिद िबंदओु ं क चचा ततु
इकाई म क गई है और साथ ही पि लक ि फयर और जनमत पर भी चचा को शािमल िकया गया है।
और हबट मा यजू क भी गणना क जाती है। इनके अनुसार- इजारे दार पँजू ी अपनी कामयाबी के िलए िजन
मख
ु साधन का इ तेमाल करती है उनम जन सं कृ ित का थान सबसे मख ु है। व तओ ु ,ं सेवाओ ं और
िवचार के जनो पादन क संपणू णाली पूँजीवादी यव था म बेचे और खरीदे जाते ह। यह यव था येक
व तु और िवचार को िजसं म बदल देती है, जो यह मानती है िक लिलत कलाओ ं का सव तम अिभ यि याँ
हो या िवरोधी या आलोचना मक सं कृ ित सभी को बेचा जा सकता है।
जनसंचार उ ोग कुछ खास तरह के उ ोग का िनमाण करती है। एक तर पर वह अ य उ ोग क
तरह व तओ ु ं (कै सेट, पु तक, डीवीडी, िफ म क रील) और सेवाओ ं (कलाकार , तकनीिशयन ) का
उ पादन करती है, तो दसू री तर पर वह इनसे यादा भी कुछ कर सकती है। वह लोग को सख ु द और सपं न
भिवषय् का सपना बेचती है। जनसंचार मा यम ने जन सं कृ ित को पैदा िकया है। सां कृ ितक प से
जनसच ं ार एक तर पर आिभजा य सं कृ ित और जनसं कृ ित के अतं राल को कम करता है, तो दसू रे तर पर
वह नए तरह के भेदभाव भी पैदा करता है। जनसंचार ने ऐसी ौ ोिगक को िवकिसत िकया है, िजसके कारण
कला के िविवध प यथा गायन, नृ य आिद को सभी के िलए उपल ध हो पाया है जो पहले िसफ उ च वग
तक ही सीिमत थे। वह दसू री ओर इसने िवकृ त और मानव िवरोधी सां कृ ितक प को घर-घर तक पहँचा
िदया है। इस कार लोग क सां कृ ितक अिभ िचय को िवकृ त भी िकया है। इसने िविभ न कला प म
जनता क भागीदारी को बढ़ाया है और लोग को सृजना मकता के अवसर उपल ध कराए ह। जॉन बी
थॉ पसन ने इस संबंध म कहा है िक “आधिु नक समाज म तीका मक प का उ पादन और सार
जनमा यम उ ोग क गितिविधय से अलग नह िकया जा सकता।’’ मीिडया क भिू मका से हम सब
वािकफ ह, यही कारण है यह आज हमारे जीवन का अिभ न िह सा बन चक ु ा है। जनसं कृ ित के िविवध प
का सार इसीिलए संभव हआ है िक वह उनका बार-बार पनु पादन कर सकती है। तीका मक प क
पनु पादकता ने ही जनसंचार के यावसाियक दोहन क यापक संभावना पैदा क है और इसी वजह से
तीका मक प का उपभोगीकरण हआ है।
3.5. सं कृित-उ ोग
1991 ई. म कािशत पु तक ‘िद क चर इडं ी’ म एड नो और होखाइमर ने बोधन क
आलोचना के एक मख ु िबंदु ‘सं कृ ित-उ ोग’ क चचा क है। इसम उ ह ने ‘सं कृ ित-उ ोग’ क
प रचायक एवं पोषक ‘जन-सं कृ ित’ का आलोचना मक िव लेषण ततु करते हए कहा है िक ‘जन-
सं कृ ित सं कृ ित-उ ोग का वािणि यक उ पादन है जो जन-संचार के िविभ न साधन के मा यम से सं कृ ित-
िवशेष के साथ-साथ कितपय सां कृ ितक त व क ािं डंग और िवपणन करता है। ऐसी ािं डंग और िवपणन
बहधा ऐसे अितशयोि पणू और त यहीन िव ापन के साथ क जाती है, िजनका वा तिवकता से आिं शक
संबंध अथवा कोई संबंध नह होता है।’’
जनसच ं ार मा यम के िवकास ने सं कृ ित को उ ोग का प दे िदया है। सं कृ ित उ ोग क
संक पना रखने का ेय कफट कूल के िवचारक को है। उ ह ने सं कृ ित उ ोग क कृ ित और प रणितय
के बारे म िवचार िकया है। मै स होखाइमर और टी. ड य.ू एड नो ने सं कृ ित उ ोग पद का योग
सां कृ ितक प के उपभोगीकरण के संदभ म िकया है, िजसका िवकास यरू ोप और अमरीका म उ नीसव
सदी के अतं म और बीसव सदी के आरंभ म मनोरंजन उ ोग के उ थान के साथ हआ था। उ ह ने इस संदभ
म िफ म, रे िडयो, टेलीिवजन, लोकि य संगीत, पि काओ ं और समाचारप के बारे म िवचार-िवमश िकया
है। इन िवचारक का मानना है िक मनोरंजन उ ोग के पँजू ीवादी उ म के प म पनपने का प रणाम
सां कृ ितक प के मानक करण और िववेक करण म िनकला है। इस ि या का प रणाम यह हआ है िक
यि म इन उ पाद के बारे म आलोचना मक और वाय त प म सोचने और कर सकने क मता खोता
जा रहा है। इन उ ोग के ारा जो सां कृ ितक व तओ ु ं का उ पादन हो रहा है वह पँजू ीवादी संचयन और
मनु ाफा हािसल करने के िलए हो रहा है। वे जनता ारा वत: फूत ढंग से नह पनप रहे ह, बि क जनता ारा
उनका यापक पैमाने पर उपभोग हो सके , इस नज रए से उनका उ पादन हो रहा है।
हबट मा यजू ने अपनी पु तक ‘वन डाइमशनल मेन’ म िलखा है िक िवकिसत पूँजीवाद म उ पादन
क य िववेकशीलता ही सामािजक यव था को उसी प म आलोचना के िलए िनरापद बना देती है।
यव था अपनी सफलता, व तओ ु ं क उ पािदत करने क अपनी मता ‘बेचती’ है। उनके अनुसार
‘‘उ पादक य उपकरण और व तओ ु ं और सेवाओ ं िजसके ारा वह (िवकिसत पँजू ीवाद) पणू सामािजक
यव था को थोपने या ‘िव य’ का उ पादन करती है। जन प रवहन और जनसचं ार के साधन , आवास,
भोजन और व क उपभो ता व तओ ु ,ं मनोरंजन और सचू ना के अ ितरोधी उ पादन अपने साथ िनधा रत
वृि य और आदत , िनि त बौि क और भावा मक िति याओ ं को लाते ह, जो उपभो ताओ ं को
उ पादक से कमोबेश खश ु ी से बाँधे रखते ह और बाद वाले (मनोरंजन और सचू ना उ पादन) के ज रए वह
संपणू ( यव था) से बँधा रहता है। उ पाद िशि त करते ह और जोड़तोड़ करते ह; वे िम या चेतना को
ो सािहत करते ह, जो िक इस िम यात व के िव ितरि त होते ह... इस कार एक आयामी िवचार और
यवहार का पैटन उभरता है िजसम िक िवचार, आका ाएँ और उ े य, अपनी अंतव तु के ारा िवमश और
यवहार क थािपत सावभौिमकता के पार चले जाते ह और जो या तो इस सावभौिमकता क शत पर
अमा य हो जाता है या बलहीन हो जाते ह।’’
3.6. पि लक ि फयर
जमन दाशिनक जगु न हैबरमास ने 1962 ई. म कािशत अपनी पु तक ‘ चरल ासं फॉमशन
ऑफ दी पि लक ि फयर’ म ‘मानव जीवन के सामािजक े ’ क चचा क है। सावजिनक े , सामािजक
जीवन का वह े है जहाँ यि य को वतं प से चचा करने और सामािजक सम याओ ं क पहचान
करने के िलए एकि त होकर एक अवसर दान करता है और उस चचा के मा यम से सावजिनक प से जड़ु ी
सम याओ ं के समाधान का यास िकया जाता है। जीवन के सावजिनक े म परंपराओ,ं सां कृ ितक
मा यताओ,ं रीित- रवाज , धम , सं दाय , शि , स ता आिद से संबंिधत यि गत अनभु व एवं यि िन ठ
मू य हेतु कोई थान नह होता है। इसम सहभािगता तथा अ य लोग से यि य क अतं ि या मक
पार प रकता के भाव म समाज म या त पार प रक िवरोध क समाि के अवसर िनिमत होते ह और
जीवन के सावजिनक े म स ाव क दशा अपे ाकृ त बढ़ जाती है। हैबरमास ने यि के मल ू भतू िहत को
तीन ेिणय म िवभािजत िकया है- पहला, तकनीक िहत, दसू रा, यावहा रक िहत और तीसरा, मिु संबंधी
िहत। हैबरमास ने प ट कहा है िक, यि का ान उसके िहत क पिू त और संर ण के संदभ म आव यक
साधन तथा उपाय क पहचान म सहायता करता है। यि के ान और िहत क ही तरह िहत क पूित के
साधन तीन कार के ह– पहला, काय एवं गितिविधयाँ, दसू रा, भाषा और तीसरा ािधकार।
हैबरमास का तक है िक सावजिनक े के िलए यि गत-संब ध ारा ‘जनमत’ क अवधारणा म
आकार िदया जा सकता है। इतना ही नह आिथक और संरचना मक प रवतन क वजह से बजु आ ु
सावजिनक े अतं तः समा हो गया। अतं त: रा य और समाज के बीच क सीमाएँ धधंु ली हई ह। उनका
प ट मत है िक जन मीिडया क दिु नया स ती और शि शाली है और यह हेरफे र करने का यास करता है
जहाँ कोई भी मौजदू नह है तथा सवस मित पैदा करता है। यहाँ यह कहना समीचीन है िक पँजू ीपितय के
सावजिनक े से पहले ितिनिध चार हआ, जो म य यगु से अठारहव शता दी तक मौजदू था। इसम
राजा या वामी को शािमल िकया गया, जो दशक के सामने खदु का ितिनिध व करता है; राजा एकमा
सावजिनक यि था और अ य सभी दशक थे, सावजिनक और िनजी े अलग नह हए थे।
सावजिनक े के िवकास म आिथक िवकास मह वपूण है। हैबरमास के अनसु ार-“बाजार क
धानता वाली आधिु नक अथ यव था के िवकास एवं वच व म भी सावजिनक े क भिू मका महती है
य िक यह आम-नाग रक , बिु जीिवय , यापा रय , उ िमय , उपभो ताओ,ं सावजिनक े म काय
करने वाले यि य , कलाकार आिद क आव यकताओ-ं आकां ाओ ं के साथ-साथ नवीन िवचार एवं
नवाचार को सामािजक वीकृ ित िदलाने के साथ-साथ नवीन तकनीक एवं आव यकताओ ं क पूित क
यापा रक एवं औ ोिगक संभावनाओ ं के मू याक ं न हेतु एक यापक, सहज और सवसुलभ मचं उपल ध
कराता था। हैबरमास का मत है िक ‘पँजू ीवाद के अनाव यक एवं अतािकक िव तार, नौकरशाही के िवकास
एवं काननू क सहायता से रा य ारा यि क वतं ता पर िनयं ण मानव जीवन के सावजिनक े के
संकुचन अथवा पतन के मख ु कारण रहे ह। उनके अनसु ार सावजिनक े को जीिवत करके यि के दमन
और शोषण को कम िकया जा सकता है।” हैबरमास उ पादन के पँजू ीवादी तरीके और इस िवकास म
समाचार और व तुओ ं के यापार क भिू मका पर बल देता है। इसने रा य ारा वच व क जाँच क और
स ा के अवैध इ तेमाल पर भी िववेचन ततु िकया। कॉफ हाऊस, सैलनू , चाय क दक ु ान आिद सं थान
म, बजु आ
ु पि लक के भीतर तकसगं त-मह वपणू बहस हई। हैबरमास सावजिनक े को प रवार क िनजी
सं था के िवकास के प म देखता है, और वह ‘सािहि यक सावजिनक े ’ कहता है, जहाँ कला और
सािह य क चचा पहली बार संभव हो गई थी। हैबरमास सावजिनक े क भिू मका पर जोर देता है िक
िसिवल सोसायटी के अपने िहत को प करने के िलए एक बेहतर अवसर दान करता है।
3.7. जनमत
जनसंचार मा यम ारा यि के मनो-सामािजक दशा को य त िकया जाता है। मा यम ारा
सा रत संदश
े के मा यम से यि के यवहार म प रवतन आता है। जनसंचार मा यम ारा िकसी संदेश के
ित यि य के िदलो िदमाग म ऐसा सवं ेग बनाता है, िजससे े रत होकर यि िकसी खास मु के ित
अपना सहमित य त करता है। सहमित िनमाण क ि या यि गत होती है हालांिक जनसंचार मा यम
ारा जनमत का िनमाण िकया जाता है। सहमित िनमाण से ही जनमत क िनिमित संभव है या य कह िक
सहमित िनमाण और जनमत दोन अ यो याि त ह। इसिलए हम यहाँ जनमत पर काश डालगे।
4. दूरदशन (Television)- आधिु नक यगु म दरू दशन सबसे शि शाली एवं भावशाली मा यम है य िक
इसम य तथा य दोन िव मान ह। दरू दशन पर िविवध िवषय तथा सम याओ ं से संबंिधत भाषण ,
िव ान एवं िवशेष के िवचार, वाद-िववाद, नाटक आिद ततु िकए जाते ह, िजससे एक िवशेष जनमत
का िनमाण होता है।
5. इ तेहार (Posters)- आजकल िभ न-िभ न िच एवं श द के मा यम से घटनाओ ं को ततु करके
जनता के मत को एक िवशेष िदशा म मोड़ने का यास इ तेहार ारा िकया जाता है। सामािजक मु े यथा
क या णू ह या से बचाव, प रवार क याण, पयावरण, सरु ा, िश ा आिद के संबंध म इ तेहार का योग
काफ सफल रहा है।
6. जनमत नेता (Opinion Leaders)- जनमत नेता समाज म भावशाली लोग होते ह और इनक बात
से लोग भािवत होते ह। हमारे समाज म जनमत नेताओ ं का यि गत भाव लोग के मत एवं रवैये को
प रवितत करने म सवािधक मह वपूण होता है। जनमत नेता संगोि य , बैठक एवं अपने संपक ारा
यि गत प से सूचनाओ ं का िव लेषण अपने तरीके से करते ह।
3.7.6. जनमत िनमाण के तर (Important step involved in the Public Opinion)
क. िकसी सम या या मु े का उपि थत होना- िकसी सम या या मु े का होना जनमत िनमाण का पहला
चरण होता है- िहदं ओ ू ं म िवधवा पनु िववाह क था के अनक ु ू ल जनमत बनाने के िलए यह
आव यक है िक िहदं ू यह समझे िक िवधवा पनु िववाह उनके समाज क एक सम या है और इसका
समाधान होना चािहए।
ख. ाथिमक खोजबीन का तर- सम या के ित िच रखने वाले यि कुछ ऐसे साधन क खोज
कर, जो सम या के समाधान म सहायक हो। वे सम या को समझने क कोिशश भी करते ह। जैसे
िहदं ओ
ु ं म िवधवा पनु िववाह के संबंध म इस तर पर पता लगाया जाता है िक यह िकस सीमा तक
जिटल सम या है। इस सम या के कारण िवधवा ि याँ िकतनी दयनीय है।
ग. सावजिनक वाद-िववाद का संगिठत प- जब सम या एक िनि त व प धारण कर लेती है, तो
सम या के सबं धं म लोग म वाद-िववाद होता है और मत का पर पर आदान- दान होता है।
घ. मत िनमाण का तर- यह जनमत िनमाण का अिं तम चरण है। इस तर पर जनता क बात , वाद-
िववाद , िवचार-िवमश आिद के ारा सहमित का िनमाण हो जाता है। यहाँ यह उ लेखनीय है िक
िजस अिं तम मत पर लोग पहँचते ह वह सभी यि य का एक सा िवचार नह होता है कुछ लोग
इस मत का िवरोध भी कर सकते ह।
3.7.7. जनमत को भािवत करने वाले त व (Influencing factors of Public Opinion)
1. यि गत िन य- जनमत को भािवत करने वाले त व म यि गत त व का महती योगदान है।
येक यि म अपनी कुछ मानिसक ितमाएँ, अिभवृि याँ, मू य व आदश होते ह, जो जनमत
को यादा भािवत करते ह।
2. िवरोधी दवाब- समाज म िकसी सम या के ित लोग का मत िभ न-िभ न होता है, समहू म बँटे
रहते ह। इन समहू के उ े य एवं काय िभ न-िभ न होते ह, जो एक-दसू रे के िवरोधी हो सकते ह। इन
िवरोधी भाव को हम िवरोधी दवाब कहते ह। िवरोधी दवाब का जनमत के िनमाण म मह वपणू
योगदान होता है।
3. सामािजक वग- यि िजस सामािजक वग का सद य होता है उस वग का भी उसके मत
िनधारण म योगदान होता है ायः वह दसू रे वग के िवचार और िहत से अनश ु ािसत होता है
इसिलए जैसा उसके सामािजक वग का मत होता है वैसा ही अपना ही मत बनाता है।
4. नेतृ व- िकसी भी सम या के ित जनमत बनाने के िलए नेतृ व क ज रत पड़ती है। समाज के
ईमानदार और साफ सथु रा च र वाले यि का नेतृ व जनमत िनमाण के िलए आव यक त व है।
5. िश ा- जनमत िनमाण के िलए िश ा एक मख ु त व है।
6. यि य के सच ू ना का तर- सचू ना ही शि है। िकसी भी घटना या सम या के ित त य के
सदं भ म जानकारी रखकर लोग से वातालाप करने से सबं िं धत यि या समहू पर असर पड़ता है।
7. समािजक घटनाएँ- जनमत िनमाण म सामािजक घटनाओ ं का भी भाव पड़ता है।
8. म यम का भाव- जनमत के िनमाण म जनसचं ार मा यम क भिू मका मह वपणू है। जनसच ं ार
मा यम यथा रे िडयो, टेलीिवजन, समाचार प , पि काएँ, सोशल मीिडया ारा सा रत सदं ेश का
भाव जनमत िनमाण म िकया जाता है।
9. सावजिनक भाषण- समाज से जड़ु ी िकसी भी सम या के ित भाषण ारा व ता य प से
संवाद करते ह और ोताओ ं को िवषय से संबंिधत त य से अवगत कराते ह। सावजिनक भाषण
से जनमत का िनमाण िकया जाता है।
10. जनमत नेता- जनमत नेता समाज म िकसी सम या के ित जनमत िनमाण म मह वपणू भिू मका
का िनवाह करता है।
इस कार से कहा जा सकता है िक जनमत के िनमाण म जनसंचार मा यम क मह वपूण
उपयोिगता होती है।
3.8 सारांश
इस इकाई म संचार सै ांितक को या याियत करते हए जनसंचार के िनयामक िस ांत क
िव तारपूवक चचा क गई है। सं कृ ित का संबंध मानव जीवन क गितिवधय से सि निहत है। मानव स यता
के िवकास के साथ सं कृ ित का िवकास होता है और इसम जनसचं ार मा यम क भिू मका मह वपणू होती है।
ौ ोिगक समाज म जन सं कृ ित के िव तार के साथ सं कृ ित ने एक उ ोग का प धारण कर िलया है।
सां कृ ितक उ पाद को एक उ ोग का प देना पँजू ीवादी यव था क प रघटना है, िजसका मकसद इसके
ारा पूँजी का सचं यन और मनु ाफा कमाना है। एड नो और होखाइमर ारा ितपािदत ‘सं कृ ित उ ोग’ को
भी समझने का यास िकया गया है। हैबरमास ारा ितपािदत पि लक ि फयर ारा इस बात को समझने का
यास िकया गया है िक बाजार क धानता वाली आधिु नक अथ यव था के िवकास एवं वच व म भी
सावजिनक े क भिू मका उ लेखनीय है। जनमत पर िव तार से चचा करते हए यह समझने का यास
िकया गया है िक, जनमत का िनमाण सद य के आपसी सहयोग से होता है और इसका संबंध सावजिनक
िवषय से होता है। जनमत िनमाण के िलए सामािजक, राजनीितक, आिथक, शैि क प रवेश क अनक
ु ू लता
आव यक होती है।
3.9. बोध
बहिवक पीय
न 1 : श द Theoria क उ पि िकस भाषा से हई हैॽ
िवक प : क. ीक ख. लैिटन
ग. पतु गीज घ. च
उ र : क.
न 2 : ‘पि लक ि फयर’ पदबंध के योगकता थेॽ
िवक प : क. एड नो ख. होखाइमर
ग. मा यजू घ. हैबरमास उ र : घ.
न 3 : िन न म से िकस िव ान ने ‘सं कृ ित उ ोग’ का ितपादन िकया ॽ
िवक प : क. हैबरमास ख. एड नो
ग. लासवेल घ. ेम उ र : ख.
न 4 : जनसंचार के िनयामक िस ांत के िलए िन न म से िकस िव ान का संबंध नह रहा है ॽ
िवक प : क. टी. पीटसन ख. जी.एफ. साइबट
ग. हेरा ड डी. लासवेल घ. ड य.ू ेम उ र : ग.
न 5 : िन न म से िकस किमटी क रपोट ‘मेनी वायसेज वन व ड’ के प म ितपािदत क गईॽ
िवक प : क. चंदा सिमित ख. मैक ाइड सिमित
ग. वग ज सिमित घ. जोशी सिमित उ र : ख.
लघु उ रीय
न 1 : सं कृ ित उ ोग पर िट पणी िलिखए।
न 2 : जनमत से आप या समझते ह, जनमत िनमाण के साधन बताइए।
न 3 : जनमा यम का िवकास िस ांत को या याियत क िजए।
दीघ उ रीय
न 1 : जनसंचार के िनयामक िस ांत पर काश डािलए।
न 2 : जनसंचार और सं कृ ित के अतं सबंध क समी ा मक िववेचना क िजएॽ
यवहार
काय एक : जनसंचार मा यम ारा सां कृ ितक उ पाद के उ ोग के प म िवकिसत होने क सामािजक
ि थितय पर अपना ि कोण ततु क िजएॽ
इकाई – 4
भारत म सच
ं ार प र य
इकाई क परेखा
4.1. उ े य
4.2. मानव संचार का िवकास
4.3. जनसंचार मा यम क िवकास या ा
4.4. य मा यम-आकाशवाणी (रे िडयो) क िवकास या ा
4.5. य- य मा यम (टेलीिवजन) का िवकास
4.6. वैकि पक मीिडया के प म इटं रनेट
4.7. सारांश
4.8. बोध न
4.8.1. बहिवक पीय
4.8.2. लघु उ तरीय
4.8.3. दीघ उ तरीय
4.8.4. यवहार
4.9. उपयोगी ंथ सूची
4.1. उ े य
इस इकाई के उ ेशय् िन नवत ह −
1. ततु इकाई म मानव संचार के िवकास म को समझना।
2. भारत म मिु त मा यम के िवकास को जानना।
3. य मा यम आकाशवाणी (रे िडयो) को जानना।
4. य- य मा यम (टेलीिवजन) को समझना।
5. वैकि पक मीिडया के संवाहक इटं रनेट क िवकास या ा को समझना।
4.2. मानव सच
ं ार का िवकास
मानव जीवन म सांस और सच ं ार का अटूट र ता है। अतएव हम सचं ार के िवकास म को जानना
आव यक है। दरअसल मानव िवकास का इितहास कृ ित से जझू ते हए िनरंतर अपने अि त व को बचाए
रखने का इितहास है। इस संघष के दौरान ही उसने समहू म रहना शु िकया। आिद मानव अपने सहयोिगय
के साथ िशकार के दौरान सक
ं े त और विनय के प म संचार करता था। मनु य जब से समहू म रहना सीखा
तभी से हम संचार कर रहे ह, खतर क चेतावनी देने के िलए संदेश के आदान- दान क बड़े पैमाने पर
ज रत महससू क गई। विनय और इशार के सामिू हक प म िवशेष अथ थे। कई आिदमानव समाज ने
अपनी गफ ु ाओ ं म िभि िच क मदद से अपनी भावनाओ ं को उके रना शु िकया। दिु नया के कई िह स म
इस कार के िच उपल ध ह। म य देश के भीमबेटका म भी िशकार करते मानव के िच िमलते ह, िज ह
िव ान आिद मानव काल म संचार के प को बताते ह। संचार का यह आिदम प था। मनु य जब झंडु म
रहने के बजाए कबील म जीवन जीने लगा तो उसका संचार पहले से अिधक यवि थत हआ। मानव ने
त वीर और तीक के ज रए संचार करना सीख िलया। यवि थत भाषा का ज म मनु य क एक बड़ी
उपलि ध थी। मनु य िशकारी जीवन से कृ षक जीवन को अपनाया। वे अब घमु तं ू जीवन छोड़ एक थान पर
नगर बसाने लगे। हड़ पा, मोहनजोदड़ क सं कृ ित म हम मूितय और िस क के प म अनेक तीक पाते
ह, िजससे पता चलता है िक ये नगरीय समाज एक समृ भाषा िवकिसत कर चक ु ा था। यही नह तीक क
भाषा (िप टो ािफ स) के कई िच िमले ह, िज ह अभी तक परू ी तरह पढ़ा नह जा सका है।
वैिदक काल म िु तयाँ और वेद सभी कुछ वािचक परंपरा म मौजदू था। य म मं ो चारण के
ज रए ही देवताओ ं को खश ु करने क कोिशश क जाती थी। सारा ान भी वािचक परंपरा के मा यम से ही
एक पीढ़ी से दसू री पीढ़ी तक पहँचता था। वेद को बहत बाद म िलिपब िकया गया। गु अपने िश य को
परू ा का परू ा वेद याद करवा देता था। ऋचाओ ं को प पर िलखकर सरं ि त करने क कोिशश क गई। बौ
और जैन काल म समृ भाषा िवकिसत हो चुक थी और उसको प थर पर उके र कर थायी बनाने क भी
परंपरा चिलत हो गई थी। महा मा बु ने आम लोग ारा बोली जाने वाली ाकृ त भाषा म अपने वचन
िदए, तािक जन-जन तक उनक बात पहँच सके । मिं दर या सावजिनक थल संचार के भावशाली क बने।
इस काल म ढ़ोल-नगाड़ के मा यम से गाँव-गाँव म मनु ादी भी राजा के आदेश को जनता तक पहँचाने का
एक मा यम था। इस सबके बावजदू ाचीन समाज म वािचक परंपरा ही लबं े समय तक मख ु सचं ार मा यम
बनी रही।
िलिखत इितहास म सबसे पहले भाषा का िवकास हआ और इस म म अ र का ज म हआ।
नगाड़ और अ य संकेत क गजँू पहले पहल हवा म सा रत हई। तराशे गए प थर के संकलन से पहली
लाइ ेरी बनी। जैसे ही पहली पु तक और द तावेज छापाखान से छपकर बाहर िनकली तो वे स ाधा रय
का हिथयार बन गए, ांित के अ भी बने। अखबार का प ना यापार यवसाय का भावी मा यम सािबत
हई। मिु त िकताब से िश ा व ान का अकूत भंडार िमल गया।
16व 17व शता दी आते-आते प -पि काएँ और पो टर-पच आिद ान के मख ु औजार बन
गए। ि िटश, अमरीक और ासं ीसी ािं तयाँ सभं व इसिलए हो पाई य िक इ ह ने जनसचं ार के साधन को
अपनाया। 15व शता दी क बड़ी घटना या है?, एक ऐसी मशीन का िवकास हआ, िजससे ह तिलिप क
100 ितिलिपयाँ शी ता से तैयार कर सके । इसी तरह 19व शता दी म बेल, माक नी जैसे वै ािनक व
अ य योगशालाओ ं ने ऐसी मशीन का इजाद िकया, जो काफ दरू बैठे लोग के िलए देखने व सनु ने के िलए
संभव हआ। 20व शता दी म अतं र म जगह-जगह लटके उप ह ने परू ी दिु नया को एक गाँव म बदल
िदया।
है।’ यह व त य प कार के िलए आज भी ेरणा द है। अपने प क नीित के बारे म उ ह ने िलखा था िक-
“यह राजनीितक और यापा रक प खल ु ा तो सबके िलए है, पर भािवत िकसी से नह । भारत म ेस को
ज म देने का ेय िहक को ही है।
िहक के इस यास से सबक लेते हए हेि टं स समिथत समाचारप 1780 ई. म मेसस बी. मेसिनक
और पीटर रीड ने ‘इिं डया गजट’ का काशन शु िकया। 1784 म ‘कलक ा गजट’ का काशन सीधे
सरकार के संर ण म शु हआ। 1785 म ‘बंगाल जनल’ और मािसक प ‘ओ रएंटल मैगजीन ऑफ
कलक ा ए यजू मट’ कािशत हए। ‘‘िहक क तरह ‘बंगाल जनरल’ के संपादक िविलयम डुएन ने कंपनी
क कारगजु ा रय के िव अिभयान चलाने का यास िकया लेिकन कंपनी क ताकत भारी पड़ी और उसे
अपनी संपि छोड़कर भारत से जाना पड़ा।’’ इसी दौरान म ास म सबसे पहला समाचारप 1785 ई. म
‘म ास कू रयर’ नाम से, 1791 म ‘हरका ’ के नाम से कािशत हआ। इसका काशक रचड जौनसन एक
सरकारी मु क था। बंबई से 1789 म ‘ब बई हेरा ड’ का काशन शु हआ।
भारतीय भाषाई समाचारप का दौर सन् 1816 से ारंभ हआ। इससे पवू जो भी समाचारप
कािशत हए उनके सपं ादक और काशक यरू ोपीय ही थे। इस वष पहला भारतीय समाचारप ‘बगं ाल
गजट’ के नाम से अि त व म आया। इसे ‘गंगाधर भ ाचाय’ ने गितवादी िहदं ु व धम के ितपादन के िलए
िनकालना शु िकया था। लेिकन यह एक वष म ही बंद हो गया। दरअसल इस समय देश म ऐसे िशि त वग
का उदय होने लगा था जो देश क बदहाली, सामािजक िपछड़ेपन और सां कृ ितक हीनताबोध के मल ू भतू
कारण को समझने लगे थे और इ ह दरू करने के िलए यासरत भी थे। इसी बीच सेरामपरु के ईसाई
िमशन रय ने अपने धािमक िव ास के चार के िलए तीन पि काओ ं का काशन शु िकया। िद दशन नाम
से बांगला भाषा क मािसक पि का, समाचार दपण नाम से बांगला सा ािहक समाचारप और ड ऑफ
इिं डया नाम से अं ेजी मािसक पि का।
इसी दौरान भारतीय समाचारप जगत म दो िविश यि य का पदापण हआ- जे स िस क
बिकंघम और राजा राममोहन राय। इन दोन ने ेस क वतं ता के िलए चले संघष म मह वपूण भिू मका
िनभाई। जे स िस क बिकंघम ने आठ पृ का स ाह म दो बार कािशत होने वाला ‘कलक ा जनल’ शु
िकया। उसने बताया िक संपादक का काम ‘गवनर को उनके यि व क याद िदलाना, उनके ारा क जाने
वाली गलितय के िलए उनक भ सना करना और असहमितजनक स य भी बोलना है’। दसू री ओर राजा
राममोहन राय (जो िक खर सामािजक और धािमक सधु ारक थे) ने भारतीय भाषाई प का रता क न व
रखी। उ ह ने बांगला म ‘संवाद कौमदु ी’, फारसी म ‘िमरात-उल-अखबार’ तथा अं ेजी म ‘िद ा िणकल
मैगजीन’ का काशन िकया। वे भारतीय प का रता क न व ऐसे समय म रखी जब ई ट इिं डया कंपनी अपनी
तानाशाही को सामािजक, आिथक, सां कृ ितक े म मतू प दान कर रही थी। राजा राममोहन राय ने
सां कृ ितक हमले के िव संघष क न व रखी। उ ह ने प का रता के मा यम से समाज म या सम याओ ं
के समाधान करने का यास िकया और वे कुछ हद तक इसम सफल भी हए। उ ह ने सती- था का अतं करने
के िलए अिभयान चलाया, िजसके प रणाम व प लाड िविलयम बिटक ने 14 जनवरी, 1830 को इसे समा
करने के िलए िवधेयक पा रत िकया।
भारत म िहदं ी प का रता क न व रखी जा रही थी। ‘पंिडत जगु ल िकशोर शु ल’ ने ‘‘उद त
मात ड’ का घोषणाप 9 फरवरी, 1826 को कलक ा म सरकार के सम तुत िकया। 30 मई, 1826 को
‘उद त मात ड’ पहली बार कािशत हई। यह िहदं ी का थम समाचारप था। पंिडत जगु लिकशोर शु ल
कानपरु के मल ू िनवासी थे और कलक ता म वासी रहकर सदर दीवानी अदालत म लक क पेशा से जड़ु े
थे। ी शु ल अं ेजी, फारसी, सं कृ त, जभाषा और खड़ी बोली के िन णात िव ान थे। ‘उद त मात ड’
भाषा और समाचार दोन कार से ससु ंपािदत प था। इसक रपोट देश-िवदेश के समाचार, अ लेख आिद
को पाठक खबू पसंद करते थे।’’ इस प को िनकालने के पीछे उनका उ े य भारतीय का िहत एवं िहदं ी ेम
भी था। अपनी भाषा म अपने भाव को अिभ यि िमले और अपनी भाषा म समाचार ात हो, यही उनका
मु य उ े य था। ‘उद त मात ड’ ने िनभ क नीित अपनाने के साथ-साथ सरकारी सहायता का याचक भी
बना। इसके बाद भी बंगाल म िहदं ी का चार न होने, िव ापन न िमलने एवं अ य आिथक किठनाईय के
कारण यह प मा 19 महीने ही कािशत हो सका। इसके मा 79 अक ं ही कािशत हो पाए। िदसंबर,
1827 के अिं तम अक ं म ‘उद त मात ड’ क या ा क पीड़ा इन श द म रे खांिकत क गई है-
‘‘आज िदवस ल उग चु य , मात ड उद त।
अ ताचल को जात है िदनकर िदन अब अ त।।’’
िहदं ी के पहले समाचारप से िहदं ी प का रता को स य, संक प एवं सही िदशा िमली। इसके बाद राजा
राममोहन राय ने अपने अं ेजी के प ‘िह दू हेरा ड’ को अपने िवचार के यापक चार- सार के िलए 10
मई 1829 को िहदं ी म ‘बंगदतू ’ िनकाला। इसके थम संपादक नीलरतन हालदार थे। सन् 1845 म थम
िहदं ी सा ािहक ‘बनारस अखबार’ को काशी से राजा िशव साद िसतारे िह द ने िनकाला। इसके सपं ादक पं.
गोिव द रघनु ाथ थे। इसम अरबी-फारसी श द क भरमार रहती थी। 1846 ई. म कलक ा से ‘इिं डयन सन’
पाँच भाषाओ ं म िनकला, िजसम िहदं ी भी शािमल था।
1850 ई. के बाद िहदं ी प का रता का ती गित से िवकास हआ। 1854 ई. म यामसु दर सेन के
संपादक व म कलक ा से कािशत ‘समाचार सुधावषण’ िहदं ी का पहला दैिनक प था। सन् 1857 के
थम वाधीनता सं ाम म इसका मह वपणू योगदान रहा। फरवरी, 1857 म िद ली से कािशत ‘पयामे
आजादी’ िहदं ी प का रता म अपना िविश थान रखता है। इस प के वतक ‘अजीमु ला खाँ’ वयं
वतं ता सेनानी थे। अब लोग म िविभ न देश के समाचार को जानने क इ छा पैदा हो चक ु थी तािक वे
समकालीन ि थितय को समझ सक। इस सं ाम के बाद स ा तो ई ट इिं डया कंपनी के हाथ से िनकलकर
सीधे ि िटश स ता संरचना के आधीन आ गई। लेिकन स ा के मल ू च र म कोई बदलाव नह आया।
‘‘सरकार क यवहा रक नीित पवू वत् बनी रही। पहले जैसी ही लटू और शोषण जारी रहा।’’ यरू ोप म हए
औ ोिगक ांित के उपरांत माल का उ पादन संभव हो गया था। लेिकन इसके िलए क चे माल एवं िब
के िलए बाजार क आव यकता थी। भारत इन दोन के िलए उपयु था। ि िटश ने अपने यापार िव तार के
िलए यहाँ क अथ यव था के सतं ल ु न को समा कर िदया। इन औपिनवेिशक नीितय का दु प रणाम यह
हआ िक यहाँ के लोग अकाल, भख ू मरी और बेरोजगारी के िशकार होने लगे।
1857 ई. के बाद कािशत होने वाले िहदं ी समाचारप म देश क बदहाली को बार-बार रे खांिकत
िकया गया। ‘‘सन् 1854 म कलक ा से कािशत थम िहदं ी दैिनक ‘समाचार सधु ावषण’ को अपनी
िनिभकता और गितशीलता के कारण ि िटश सरकार का कोपभाजन बनना पड़ा।’’ लेिकन यही समय िहदं ी
प का रता के िवकास और िव तार का भी है। ‘‘िहदं ी म प -पि काओ ं क कोई जीिवत परंपरा न थी, परंतु
एकाएक उ र भारत म न जाने िकतने नगर से प क एक बाढ़ सी आ गयी। इसम से बहत-से कुछ महीने या
कुछ वष चलकर ठप हो गये; कुछ दीघकाल तक िहदं ी क सेवा करते रहे। लाहौर, ब बई और कलक ा को
यिद तीन सीधी रे खाओ ं म िमला िदया िदया जाय तो जो ि कोण बनेगा, उसके भीतर देश का वह भाग आ
जाएगा, जहां से इस कार के प िनकले थे।’’ 19व शता दी के उ रा म िहदं ी प का रता ने अपना
िव तार बंगाल, िबहार, उ र देश, म य देश और पंजाब तक िकया, जहां से अनेक प -पि काएं कािशत
होने लगी। सन् 1874 म कलक ा से ‘िबहार बधं ’ु अलीगढ़ से ‘भारत बधं ’ु , मेरठ से ‘नागरी काश’,
जबलपरु से ‘जबलपरु समाचार’ और िद ली से ‘सदादश’ एवं ‘पयामे आजादी’ का काशन शु हआ।
सन् 1857 के बाद के भारते दु ह र ने िह दी प का रता और सािह य को नई िदशा दान क
िजसके कारण इसे भारते दु युग भी कहा जाता है। उ ह ने सािह यकार और प कार के एक ऐसे नए वग को
उभारा िज ह ने सािह य एवं प का रता के े म नई पहचान बनाई। भारते दु ह र ने 15 अग त 1867
को ‘किव वचन सधु ा’ का काशन िकया। उ ह ने ‘ह र मैगजीन’, ‘ह र चि का’ तथा
‘बालबोिधनी’ का संपादन व काशन भी िकया। भारते दु जी का िहदं ी प का रता म वही थान है जो बंगला
प का रता म राजा राममोहन राय का है। इस काल के दौरान पं. बालकृ ण भ ने िसत बर, 1877 म याग से
‘िह दी दीप’ मािसक िनकाला। इस यगु म प.ं दगु ा साद िम के संपादक व म कलक ा से कािशत होने
वाले तीन मख ु प थे- ‘भारत िम ’ (1878), ‘सार सधु ािनिध’ (1879) और ‘उिचत व ा’(1880)।
‘उिचत व ा’ ने वना यल ू र ेस ए ट का खल ु कर िवरोध िकया। सन् 1885 म कालाकाक ं र से राजा
रामपालिसहं ारा कािशत ‘िह दो तान’ िहदं ी े से कािशत होने वाला स पणू िहदं ी दैिनक प था। प.ं
मदन मोहन मालवीय इसके संपादक थे। बालमक ु ु द गु , महामना मदन मोहन मालवीय तथा तापनारायण
िम जैसे ितभाशाली लेखक के संपादन म इसक भिू मका मयािदत, रा वादी, जाग क हरी और
सां कृ ितक संर ण क रही। ‘‘िह दो थान’ िहदं ी भाषा और उदार िवचार का समथक था।’’ िहदं ी दैिनक का
ारंभ भारते दु यगु म होने लगा था। इसी समय दसू री भाषाओ ं म महादेव गोिवदं रानाडे, बाल गगं ाधर ितलक
तथा गोखले ने समाज सधु ार पर यादा जोर िदया। ितलक ने ‘के सरी’ और ‘मराठा’ अखबार के मा यम से
समाज सधु ार के काय को बढ़ावा िदया।
सन् 1857 क असफल ांित ने लोग म एक जाग कता का सचं ार िकया िजसके कारण वे देश
और दिु नया का हाल जानने के िलए उ सक ु हए। वे जानना चाहते थे िक देश क इतनी बरु ी अव था के िलए
िज मेदार कौन है। सा ा यवादी शोषण के कारण िकसान, मजदरू और िश पकार क अव था धीरे -धीरे
खराब होने लगी। अकाल, भख ु मरी और महामारी ने आम जन जीवन क सम याओ ं को और बढ़ा िदया था।
इनके कारण देश म एक ऐसा बुि जीवी वग उ प न हो गया था जो इन प रि थितय से अ य त िख न था।
धािमक अधं िव ास और सामािजक िढ़य ने उसक िचतं ा को और बढ़ा िदया था। इस बिु जीवी वग ने
राजनीितक शोषण, सामािजक-राजनीितक िढ़य के िवरोध म जनता को जाग क करने का काय िकया।
िहदं ी अखबार ने इस पनु जागरण म मह वपणू योगदान िकया। वे इसके िलए ऐसे खबर को कािशत करने
लगे जो शोषण और उ पीड़न से संबंिधत थे। ‘किववचन सधु ा’ से भारते दु ने वदेशी क न व रख दी थी।
‘‘सा ा यवाद क लटू के कारण कै से देशी पंजू ी बाहर चली जाती है, कै से देशी पंजू ी और जीवन क र ा के
िलए वदेशी का होना अिनवाय है, इस सार को भारते दु और उसके समकालीन ने अ छी तरह समझ िलया
था।’’
िहदं ी प का रता क ि से बीसव शता दी का ीगणेश गौरवपूण ढ़ंग से हआ। 20व सदी का
शु आती दशक प का रता और राजनीित म अनेक प रवतन एवं हलचल से भरा था। इस यगु म एक ओर
‘भारत िम ’ कलक ा से कािशत होकर संपणू जगत को आलोिकत कर रहा था तो दसू री ओर याग से प.ं
महावीर साद ि वेदी के संपादन म ‘सर वती’ का उदय हआ। ि वेदी जी 1903 म जब ‘सर वती’ के
सपं ादक बने तब उ ह ने ‘सर वती’ को िहदं ी प का रता का ‘सर वती’ बना िदया। इस समय देश म
प का रता क दो धाराएं चल रही थी। एक धारा सा ा यवादी यव था क प धर थी या परू ी तरह से
तट थ। जबिक दसू री धारा रा ीय िवचारधारा से े रत एवं सचं ािलत हो रही थी। ‘‘महावीर साद ि वेदी इस
यगु क प का रता के के िबंदु थे। उ ह ने आगे आने वाली प का रता के दो मल ू भतू त व का खल ु ासा कर
िदया था। एक िवचार धानता तािक लोग म जनजागरण हो, उनम बौि क उजा पनपे। दसू रे जन िच को
जानना।’’
‘‘सन् 1905 से 1918 तक आते-आते िहदं ी प का रता घटु न चलने लगी थी। िव ीय पंजू ीवाद के
इस दौर म भारत पर शोषण का िशकंजा और कस गया था। थम िव यु का भारतीय अथ- यव था पर
गहरा भाव पड़ा। िजसने देश के आिथक आधार क न व िहला दी। िहदं ी प -पि काओ ं ने उपिनवेशवादी
शासन के इस दोहरे च र को बखबू ी उजागर िकया िक सा ा यवादी िहत क र ा के िलए भारतीय
ससं ाधन का इस महायु म ि िटश शासन ने िकतना दु पयोग िकया।’’ इस काल क िह दी प का रता क
मल ू िवषय-व तु सामािजक या धािमक ही थी। इस समय के प -पि काओ ं म ‘सर वती’(1900),
‘देवनागर’(1907), ‘नृिसंह’(1907), ‘कलक ा समाचार’(1914), ‘िव िम ’(1916) आिद मख ु थे।
‘सर वती’ िजसके संपादक महावीर साद ि वेदी थे, ने भाषा, सािह य और सां कृ ितक िवकास क ि से
मह वपूण काय िकया। राजनीितक अखबार म ‘िहदं ी दीप’ सबसे परु ाना अखबार था। ‘‘इस ंख ृ ला के
अ य अखबार थे- ‘िहदं ी के सरी’(1907), जो ितलक के मराठी अखबार का िहदं ी पातं र था, अरिवदं घोष
के ‘कमयोगीन’ से भािवत ‘कमयोगी’(1910), मदन मोहन मालवीय ारा संचािलत ‘अ यदु य’(1907),
‘ ताप’(1913) और ‘ ान शि ’ (1916)। इन समाचार प ने वाधीनता आदं ोलन के िलए एक पृ भिू म
िनिमत क ।
भारतीय राजनीित म महा मा गांधी का वेश 1920 ई. म हआ। उनके भाव के कारण भारतीय
राजनीित म यापक बदलाव आया। अब वतं ता आ दोलन के के म महा मा गाधं ी थे। उ ह ने उ तेवर
अपनाने के बदले रचना मक तेबर अपनाये और ि िटश स ा से िवरोध दज कराने के िलए स या ह,
असहयोग आ दोलन एवं सिवनय अव ा आ दोलन का सहारा िलया और इन आंदोलन म उ ह ने
प का रता को एक हिथयार बनाया। उ ह ने गजु राती ‘नवजीवन’ का िह दी पातं र ‘िह दी नवजीवन’ 1921
ई. म और 1933 ई. म ‘ह रजन सेवक’ िहदं ी म िनकाला। अपनी बात को जनता तक पहचं ाने के िलए
गांधीजी ने ‘यंग इिं डया’ के संपादन का काय 8 अ टूबर, 1919 ई. से ारंभ िकया। ‘‘इसके साथ-साथ उ ह ने
‘नवजीवन’ का संपादन-काय भी शु कर िदया, िजसे उ ह ने गजु राती मािसक प से एक सा ािहक प म
प रवितत कर िदया था।’’ बाद म गांधी जी ने महादेव देसाई के संपादन म ‘ह रजन’ का काशन भी शु
िकया िजसके यादातर लेख गांधी जी ही िलखा करते थे। बाद म 1933 ई. म उ ह ने ‘ह रजन सेवक’ िह दी
म िनकाला। ‘‘गांधीजी अपनी आ मकथा म प का रता के उ े य को िन निलिखत श द म प रभािषत करते
ह; ‘‘िकसी समाचारप का पहला उ े य सावजिनक संवदे ना को समझना तथा उसे अिभ यि दान करना,
दसू रा उ े य लोग म वाछ ं नीय भावनाएं जा त करना तथा तीसरा उ े य सावजिनक दोष का िनडर होकर
पदाफाश करना होता है।’’ गांधीजी के भाव म आकर िह दी प का रता म भी एक नई ऊजा का वाह
हआ। ‘‘उनके रचना मक काय म और असहयोग आ दोलन के चार के िलए देश म अनेक दैिनक,
सा ािहक और मािसक प का काशन िहदं ी म हआ।’’ गांधीजी ने स पक भाषा के प म अं ेजी के थान
पर ‘िह दु तानी’ को आगे बढ़ाया। उनके िवचार के कारण िहदं ी के समाचार प के िवकास म ेरक के प
म काय िकया। इन समाचार प ने आजादी के आ दोलन को जन-जन तक पहचं ाने म अपना मह वपणू
योगदान िदया। इसके कारण इ ह अनेक दमना मक कायवािहय का सामना करना पड़ा। ‘‘समय-समय पर
कािशत सरकारी रपोट से ात होता है िक अनायास ही स पादक को चेतावनी देना, प को ज त कर
लेना या ेस को तहस-नहस कर देना उ च अिधका रय क हाबी थी िफर भी िह दी प का रता के कणधार
हार वीकारने को तैयार नह थे।’’ इन ि थितय म भी स पादक -प कार ने अपने कम के ित िन ा का
पालन िकया और अनेक आिथक एवं शासिनक किठनाईय के बावजदू उ ह ने अखबार िनकाले। 1925 ई.
म वृदं ावन सािह य स मेलन के अ तगत आयोिजत थम स मेलन म यात स पादक पराडकर जी ने कहा
था िक -‘‘हमारे समाचार-प क वतमान अव था अभी संतोषजनक नह है। पर भिव य उ वल है।... पहले
प के सार अिधक न होने के कारण पर िवचार करना आव यक है। मेरी अ पमित के अनसु ार धानतः
तीन कारण ह- 1. प का समाज के ितिब ब न होना, 2. धनाभाव और जनता म िवशेषकर िह दी भािषय
म सा रता का अ प सार। अ तु कहने का ता पय यह है िक प क उ नित के साथ-साथ प पर धिनय
का भाव अिधकािधक प रमाण म अव य पड़ेगा। अभी तो धनी अपने अ य वाथ से अथवा कविचत
शु देश भि से े रत होकर इस काम म धन लगाते ह।... अं ेजी के बड़े-बड़े समाचार-प या भारत म,
या भारत के बाहर, लागत से कम दाम म ाहक को िदए जाते ह। िह दी प भी लागत क चरम सीमा तक
पहचं गए ह। अब यह आव यक हो गयी है िक मू य लागत से कम िकया जाए। अथात् प के यय और
लाभ के िलए िव ापन क आय पर हम अिधकािधक िनभर रहना पड़ेगा। यह िनभरता िजतनी बढ़ेगी उतनी ही
लेखन पर स पादक क वतं ता घटेगी और कायकुशल यव थापक क बढ़ेगी।’’ इस बदलते दौर म भी
स पादक क वतं ता यादा बािधत नह हई थी।
1920 ई. म अिं बका साद वाजपेयी ारा ‘ वतं ’ नामक अखबार िनकाला गया जो गांधीजी के
असहयोग आदं ोलन को समथन देने एवं 1930 ई. म सरकार ारा जमानत-रािश के प म जमा करने के
िनदश के बाद बहत ज द ही लोकि य हो गया। 1920 ई. म ही बनारस से ‘आज’ का काशन ारंभ हआ,
जो आज भी कािशत हो रहा और िहदं ी का एक मह वपणू अखबार है। इसके थम सपं ादक ी काश थे
और बाबूराव िव णु पराड़कर उनके सहायक थे। 1923 ई. म पराडकर जी वयं संपादक बन गए और लगातार
30 वष तक इसका संपादन काय (बीच के चार वष को छोड़कर) िकया एवं इस अखबार को प का रता
जगत म नई ऊंचाईय तक पहचं ाया। ‘‘सन् 1923 ई. म घन याम दास िबड़ला ने िद ली से ‘अजन’ ु नामक
अखबार का काशन शु िकया। लेिकन कुछ ही समय बाद संपादक को जेल हो गई और कुछ महीन बाद
ेस अिधिनयम के तहत अखबार को 10,000 पये जमानत-रािश के प म जमा करने को कहा गया। इसके
बाद अखबार िनकलना बंद हो गया और िफर जमानत-रािश घटकर 4,000 पए िकए जाने के बाद ही यह
िनकल पाया।’’
बीसव शता दी के तीसरे और चौथे दशक म जैस-े जैसे भारतीय वतं ता आ दोलन तेज हआ,
िहदं ी म अनेक अखबार िनकले और उ ह ने इसम अपना मह वपूण योगदान िदया। उ रा ीय िवचार के
िलए ही मालवीय जी ने 1907 ई. म ‘अ यदु य’, गणेशशक ं र िव ाथ ने 1913 म ‘ ताप’ िशव साद गु
और पराड़कर जी ने 1920 म ‘आज’, आचाय नरे देव ने 1937 म ‘सघं ष’, कमलापित ि पाठी ने 1944 म
‘संसार’, कृ णद पालीवाल ने 1925 म ‘सैिनक’ जैसे मह वपणू प का काशन िकया। आचाय नरे देव
व बाबरू ाव िव णु पराड़कर ने ‘रणभेरी’ नामक भिू मगत प के ारा वाधीनता आदं ोलन के अलख को
जलाये रखा। इसी कार म य देश से भी अनेक प िनकले। माधवराव स े का ‘छ ीसगढ़ िम ’ (1902),
माखनलाल चतवु दी का ‘कमवीर’ (1919), िस नाथ माधव आगरकर का ‘ वरा य’, पं. ा रका साद
िम के ‘लोकमत’ (14फरवरी, 1930) और ‘सारथी’ (1941) आिद का वतं ता आदं ोलन म महती
भिू मका रही। आजादी आदं ोलन के दौरान जो अखबार यादा मह वपणू रहे वे िमक प से िन न ह-
‘‘सैिनक (आगरा, 1928), शि (लाहौर, 1930), ताप (कानपरु ), नवयगु (िद ली), नवरा (बंबई),
भारत (इलाहाबाद, 1933), लोकमत (नागपरु , 1931), लोकमा य (कलक ा, 1930), वतमान (कानपरु ,
1920), िव िम (कलक ा, 1917; बंबई, 1941, नई िद ली, 1942), नवभारत (नागपरु , 1934),
अिधकार (लखनऊ, 1938), अ गामी (काशी, 1938), उजाला (आगरा, 1940), आयावत (पटना,
1942), इदं ौर समाचार (इदं ौर, 1943), रा वाणी (पटना, 1942), संसार(काशी, 1943), नया िहदं ु तान
(िद ली, 1944), जयिहदं (जबलपरु , 1946) और स माग (काशी व कलक ा, 1946)। सामा य प से
मह वपूण अ य प थे- अजन(1923),ु वीर अजन(िद
ु ली, 1934), िहदं ु तान (िद ली, 1934), मजदरू
समाचार (1934), कां ेस (िद ली, 1940), िहदं ी िमलाप (लाहौर, 1930), िहदं ी वराज (म य ांत 1930)
और िहदं ू ससं ार (िद ली)।’’ इस समय क िह दी पि काओ ं ‘माधरु ी’ (1923), ‘चादं ’ (1922), ‘हसं ’
(1930), ‘क याण’ (1926), ‘ यागभिू म’ (1928), ‘मतवाला’(1923), ‘सेनापित’ (1926), ‘सरोज’
(1928), ‘वाणी’ (1930), ‘नाल दा’ (1935) आिद ने भी सािहि यक जगत म अपने को थािपत िकया एवं
साथ ही साथ वािधनता आ दोलन को आगे बढ़ाने म भी योगदान िदया। 1938 ई. म गाधं ीजी के िवचार का
समथन करते हए रामगोपाल माहे री ने ‘नवभारत’ का काशन शु िकया। इस यगु म प का रता वृित से
नह त क भावना से क जाती थी। इस यगु म यवसाियकता तो थी ज र पर नैितकता का आवरण भी
िनिहत था। फल व प प कार समाज के िवकास को अपनी िज मेदारी मानते थे।
देश क वतं ता के बाद िहदं ी समाचार-प म उ साह क एक नई लहर आयी और बड़ी पंजू ी के
िनवेश के साथ ही अनेक नए अखबार भी िनकलने लगे। इस दौर म िहदं ी प ने तमाम े म अपनी
ाथिमकताओ ं के एजे डे का पनु िनधारण िकया। यह स पादक का विणम काल भी था, जहां अब वे
अं ेज क गल ु ामी से मु थे वह आिथक प से भी यादा सबल थे। अब इसका ल य आिथक िहत को
साधना भी बनने लगा था। बड़ी पूंजी के िनवेशकताओ ं ने इसके आिथक सफलता का आकलन पहले ही कर
िलया था। आजादी के बाद जो मख ु िह दी समाचार-प िनकले उनम ‘नवभारत टाइ स’ (िद ली, 1947),
‘ दीप’ (पटना, 1947), ‘नई दिु नया’ (इदं ौर,1947), ‘ वतं भारत’ (लखनऊ, 1947), ‘जागरण’ (कानपरु ,
1947), ‘नवजीवन’ (लखनऊ, 1947), ‘स माग’ (कलक ा, 1948), ‘नव भात’ ( वािलयर, 1948),
‘अमर उजाला’(आगरा, 1948), 'जागरण' (1950), ‘यगु धम’(नागपरु , 1951), ‘वीर ताप’(जालंधर),
‘राजदतू ’(जयपरु , 1951), ‘वीर अजन’ु (िद ली, 1954), ‘नवयगु दैिनक’ (जयपरु ), ‘राज थान पि का’
(जयपरु , 1956), ‘देशबंध’ु (भोपाल, रायपुर 1956), ‘पंजाब के सरी’ (जालंधर, 1964) आिद मख ु ह
िज ह ने अपने को थािपत िकया। इन समाचार ने प का रता को वृित से नह अिपतु त क भावना से
समाज को एक िदशा देने का काय िकया है।
1962 ई. के भारत चीन यु ने नेह क राजनीितक असफलता को उजागर िकया और जनता म
एक नये कार क उ जे ना एवं रा वाद क लहर दौड़ा दी। ‘‘इस जागृित के कारण हमारे अखबार और
प कार म एक नयी यथाथ चेतना, एक नयी ताजगी और नया संक प कट हआ और िहदं ी म साथक और
यथाथवादी प का रता सामने आयी।’’ यु ने लोग के मन म जानने क नई ललक पैदा कर दी। इसके कारण
अनेक नये पाठक अखबार से जड़ु े। ‘‘सन् 1964 म नेह जी क मृ यु के प ात् लालबहादरु शा ी के प म
िहदं ी प का रता को एक ऐसा नायक िमला जो िक पगड डी से उठकर धानमं ी बना था। िहदं ी प का रता ने
नये धानमं ी को औसत भारतीय के प म देखा और सन् 1965 क भारत पाक जंग के बाद शा ीजी को
‘भारत का नया हीरो’ के प म िचि त िकया।’’ इसके कारण समाचार-प क सार सं या म अभतू पवू
वृि दज क गई। इसका फायदा उठाने के िलए कई नए समाचार-प कािशत होने लगे एवं साथ ही साथ
नए सं करण भी सामने आए।
सातव दशक म िहदं ी प का रता ने भारतीय राजनीित म आए बदलाव, िजसम गैर-कां ेसी सरकार
का रा य म बनना एवं अनेक े ीय पािटय का उभार के साथ-साथ शासिनक ाचार क शु आत के
कारण समाचार-प ने अपने को यावसाियक प से सफल बनाने के यास म अपने म बदलाव लाया।
बीसव सदी के आठव दशक म िहदं ी समाचारप ने देश म राजनीितक, आिथक, सामािजक एवं सां कृ ितक
े म हो रहे यापक बदलाव को ततु िकया एवं िविनयोिजत िवकास क किमय यथा ाचार,
लालफ ताशाही, शि का के ीकरण जैसी सम याओ ं का समाधान तलाशने पर अपना यान के ीत
िकया। ‘‘न सलबाड़ी आ दोलन’ इस दौर का ऐितहािसक िव फोट था िजसने भारतीय राजस ा को सीधे
िहसं ा मक तेवर से ललकारा था और बदलाव के नये िवक प जनता के सम रखे थे। पि म बगं ाल और
आ देश के प ात् लगभग समचू ा िहदं ी े कम- यादा इससे भािवत था।’’ इसी दौरान देश म
आपातकाल लागू िकया गया जो भारतीय लोकतं के िलए सबसे किठन दौर था। इस दौरान समाचार-प
पर अनेक कार क पाबिं दयां भी लगाई गई ं और ेस क वतं ता को पहली बार खतरे म महससू िकया
गया। ‘‘ ेस पर चार ओर से दवाब डालकर कमजोर करने का यास िकया गया।’’ यह आजादी के पहले के
िदन को िफर से जीवतं करने के जैसा था। ‘‘आपातकाल ने तो प का रता को सरासर बेनकाब कर िदया और
िदखला िदया िक महावीर साद ि वेदी, गणेशशक ं र िव ाथ , मदनमोहन मालवीय, सयू का त ि पाठी
‘िनराला’, माखनलाल चतवु दी, बाबूराव िव णु पराड़कर, अि बका साद वाजपेयी जैसे यो ा प कार के
उ रािधका रय क रीढ़ िकस कदर पोली है।’’ लेिकन इस दौर म भी अनेक सपं ादक एवं प कार ने
प का रता क ग रमा के अनु पक काय िकया और िवरोध के वर को िजदं ा रखा। इनम राजे माथुर, भाष
जोशी, िगरधर राठी, कमलेश शु ल आिद को शािमल िकया जाता है। आपातकाल के बाद बनी जनता पाट
सरकार के समय कुछ प कार ने सरकार का साथ िदया और बदले म अनेक कार के लाभ उठाये। आपात
काल के दौरान िहदं ी क े ीय प का रता का ती गित से िव तार हआ और इनके सार क यापक
सभं ावना थी। इसी दौरान िहदं ी म राजनीितक िव ेषण क धानता वाली सा ािहक का भी तेजी से सार
बढ़ा। ‘रिववार’ इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
1980 ई. के बाद िहदं ी समाचारप को सरकारी िव ापन के साथ-साथ िनजी कंपिनय से भी
िव ापन िमलने लगे य िक सरकार ने अथ यव था को िनजी े के िलए खोलना ारंभ कर िदया था।
बाजार के िव तार क इस संभावना को यावसाियक अवसर के प म देखते हए िहदं ी समाचारप का
यापक िव तार होने के साथ ही इसक यव था म बधं न का मह व बढ़ने लगा और मशीन का तेजी से
आधिु नक करण िकया जाने लगा तािक सार सं या के अनु प उ पादन िकया जा सके । िहदं ी अखबार के
नए सं करण भी कािशत होने लगे। िहदं ी अखबार ने खल ु े यापार क संभावनाओ ं को देखकर आए
बहरा ीय िनगम और बड़ी कंपिनय क आव यकताओ ं के अनु प िजसम वे शहर के अित र क ब म
भी अपना बाजार िव तार करना चाहते थे, के िलए अखबार को क ब और गांव तक पहचं ाना शु िकया।
जल ु ाई, 1991 ई. के बाद भारत ने मु यापार को बढ़ावा देने के िलए उदारीकरण तथा िनजीकरण को पूणतः
अपना िलया। मु यापार को बढ़ावा देने के िलए आिथक नीितय को लाल फ ताशाही यव था से मु
करने का हर संभव यास िकया गया। उ ोग-ध ध को सरकार अपने हाथ से मु कर िनजी े को देने
लगी। अब सरकार क सोच यह बनी िक सरकार का काय यापार करना नह बि क शासन और सरु ा
जैसे मु े पर यान कि त करना है। यह पणू तः बाजारवादी यव था के अनक ु ू ल थी। इन नीितय को अपनाने
के पीछे का तक आिथक संकट से िनपटना बताया गया।
अलावा लाइससधारी कंपनी को सरकार संबंधी सभी सचू नाएं यथा: सरकारी आदेश, मौसम समाचार,
शै िणक चार िनशु क करना पड़ेगा। 31 माच, 1926 को रे िडयो सारण के िलए एक अलग कंपनी
(इिं डयन ॉडकाि टंग कंपनी) का कंपनी अिधिनयम के तहत पंजीकरण करवाया गया। इसी वष 13 िसतंबर
को रे िडयो सारण के समझौते पर कंपनी ने सरकार के साथ ह ता र िकए। 23 जल ु ाई 1927 को सं या 6
बजे लाड इरिवन ने बबं ई टेशन का उ ाटन करते हए कहा था िक ‘‘ सारण क भारत म असीम सभं ावनाएं
ह। इसक लंबी दू रयां और िवशाल े फल इसे सारण के िलए संभावनाओ ं से भरा बनाता है। भारत के दरू -
दराज के गांव म ऐसे लोग ह जो काम से थकने के बाद सु ताना चाहते ह। इसी कार काम के िलए अपने
घर से दरू जानेवाले अनेक लोग भी अपने प रजन क कमी महससू करते ह। भारत म अनेक घर ऐसे ह,
िजनक परंपराएं उ ह मनोरंजन के िलए घर से बाहर जाने क अनमु ित नह देत । इन सब के िलए सारण
िकसी शानदार उपहार से कम नह है। चाहे मनोरंजन क बात हो या िफर िश ा क , रे िडयो सारण म असीम
संभावनाएं िछपी ह, इतनी िक हम अभी तक उसका ठीक से अनुमान भी नह लगा पाए ह। भारत म सारण
अभी अपनी बा याव था से गजु र रहा है; िकंतु मझु े यक न है िक कुछ ही साल म रे िडयो के ोताओ ं क
सं या कई गनु ा बढ़ जाएगी और िव ापन के इस नए योग को पसदं करनेवाले भारत के हर कोने म मौजदू
ह गे।’’ रे िडयो यहां के लोग के िदल पर राज करने लगा था। जगह-जगह रे िडयो टेशन खोले जा रहे थे। 1
अ ैल 1930 को इिं डयन ॉडकाि टंग कंपनी का नाम बदलकर ‘इिं डयन टेट्स ॉडकाि टंग सिवस
(आई.एस.बी.एस.) कर िदया गया। यह वही दौर था जब हम आिथक मदं ी से झल ु स रहे थे। करीब एक वष
बाद सरकार ने िनरंतर हो रहे घाटे से ऊबकर रे िडयो सारण बंद करने क घोषणा कर दी। हालांिक इसका
ती िवरोध हआ, खासकर बगं ाल म। ‘‘िवरोध को देखते हए सरकार ने अ थायी तौर पर रे िडयो सारण को
जारी रखने का फै सला िकया और सारी अटकल को िवराम देते हए अंततः मई 1932 म सरकार ने इिं डयन
टेट्स ॉडकाि टंग सिवस को सरकारी बंधन के तहत चलाने का िनणय िलया।’’
30 अग त, 1935 को बी.बी.सी. से आए िलयोनल िफ डन ने देश के पहले सारण िनयं क का
पदभार संभाला। वे अपनी रचना मकता से ऑल इिं डया रे िडयो के व प को बदलते रहे। उनक शासिनक
मता को देखते हए सरकार ने इिं डयन टेट्स ॉडकाि टंग सिवस के िवकास के िलए 20 लाख पये क
ांट दी। िफ डन भारत म रे िडयो सेवा के नाम ‘इिं डयन टेट्स ॉडकाि टंग’ को नापसदं करते थे। उ ह ने
इिं डयन टेट्स ॉडकाि टंग सिवस का नाम बदलकर ‘ऑल इिं डया रे िडयो’ करवाया। दरअसल, ‘‘उनका
तक था िक एक तो ‘इिं डयन टेट्स’ बोलना बड़ा अटपटा सा लगता है; दसू रा ‘ ॉडकाि टंग’ भारतीय के
िलए उ चारण म िद कत पैदा करता है। िफ डन ऐसा नाम चाहते थे जो आम लोग क जबु ान पर चढ़ जाए।
िफ डन भारतीय सं कित के िहमायती थे।’’ िफ डन बीमार हो गए थे तो उनक अनपु ि थित म ो. अहमद
शाह बख ु ारी ने पदभार संभाला। आजादी आदं ोलन के दौरान सरकार रे िडयो पर िशकंजा कसना चाहती थी पर
रा ीय नेताओ ं ने रे िडयो के िवकास के िलए अभतू पवू योगदान िदया। ‘‘सन् 1938 के महास मेलन म
नेशनल लािनगं कमेटी का गठन िकया गया था। वयं जवाहरलाल नेह इस सिमित के अ य थे। इस
सिमित ने देश के िवकास से जड़ु े हर मसले पर उप-सिमितय का भी गठन िकया। इस सिमित ने ऑल इिं डया
रे िडयो के बंधन और उपयोग के संबंध म अपने सुझाव सरकार के पास भेज।े सिमित क िसफा रश के
आधार पर लािनंग कमेटी ने ताव पास िकया िक संचार और सारण जन-उपयोग क सेवाएं ह और आम
लोग के जीवन को भािवत करती ह।’’
वतं ता ाि के उपरांत सरदार पटेल देश के पहले सूचना एवं सारण मं ी बने। सरकार ने
आकाशवाणी के चहमं ख ु ी िवकास क वृहद योजना बनायी। ‘‘इसे ‘पायलेट ोजे ट’ के नाम से जाना जाता
है। देश के सभी िह स म रे िडयो टेशन और टूिडयो थािपत करने क योजना बनाई गई। सबसे पहले
जालंधर म 1 नव बर, 1947 को रे िडयो टेशन खोला गया; य िक पंजाब म बड़ी सं या म शरणािथय का
आना जारी था और उनक यव था के िलए रे िडयो सही सचू नाओ ं को सा रत करने म मह वपूण भिू मका
िनभा सकता था। एक महीने बाद ही 1 िदसबं र, 1947 को ज मू म रे िडयो टेशन ने काम करना आरंभ कर
िदया। अगले साल पटना, कटक, गवु ाहाटी, नागपरु , िवजयवाड़ा, ीनगर म एक के बाद एक नए रे िडयो
टेशन खोले गए। सन् 1949 म इलाहाबाद और अहमदाबाद म रे िडयो टेशन ने काम करना ारंभ कर िदया
तो 1950 म धारवाड़ और कोझीकोड म रे िडयो टेशन खोले गए।’’ रे िडयो जनमानस के िलए मनोरंजन का
एक मख ु ज रया बन चक ु थी। रे िडयो सीलोन क लोकि यता का मक ु ाबला करने के िलए 3 अ टूबर,
1957 को आकाशवाणी ने अपनी ‘िविवध भारती’ सेवा ारंभ क । सन् 1956 म यनू े को ने भारत को अपने
रे िडयो रल फोर स ोजे ट के िलए चुना। इस ोजे ट के तहत पनू ा के 144 गांव को चनु कर रे िडयो रल
फोरम बनाए गए और आकाशवाणी ारा काय म सा रत करने के बाद वहां ामीण के साथ वातालाप
िकया गया। ‘‘इस प रयोजना का नारा था-सनु ो, चचा करो और उसके बाद उसे लागू करो।’’ रे िडयो के
िवकास के िलए 4 िदस बर, 1964 को गिठत चंदा किमटी ने 18 अ ैल, 1966 को अपनी रपोट देते हए
कहा िक अगर आकाशवाणी का िवकास अिधक यवसाियक ढ़गं से करना है तो इसे एक वाय िनगम के
हवाले कर देना चािहए। आकाशवाणी और दरू दशन को अलग-अलग कर िदया जाए। िव ान और कृ िष से
जड़ु े काय म को ाथिमकता दी जाए। चौथी पंचवष य योजना (1969-74) के दौरान 1967 ई. म
आकाशवाणी ने यवसाियक सेवा आरंभ क । अब िविवध भारती सेवा के सारण म िव ापन सा रत िकये
जाने लगे। ‘‘सन् 1967 म थानीय क के िलए नौ िबंदओ ु ं क एक सारण आचार संिहता उस समय बनाई
गई जब कलक ा के आकाशवाणी क पर वामपथं ी साझा सरकार के ममं ी सबु ोध बनज के सा रत
िकए जाने वाले एक भाषण पर क िनदेशक पी.सी. चटज ने आपि उठाई। इस िववाद के बाद संसद म
थानीय क के िलए एक आचार संिहता बनाई गई।’’
आपातकाल के दौरान सरकारी मा यम क वाय ता का मु ा जोर-शोर से उठा। आपातकाल के
हटते ही जनता पाट क सरकार ने 17 अग त, 1977 को िह दु तान टाइ स के पवू संपादक बी.जी. वग ज
क अ य ता म एक सिमित का गठन िकया। सिमित ने 24 फरवरी, 1978 को अपनी रपोट म ‘आकाश
भारती’ रा ीय सारण यास बनाना, शै िणक चैनल खोलने के िलए िनजी कंपिनय को आमिं त करने
आिद का सुझाव िदया। सरकार ने 1976 म चंदा किमटी क रपोट को वीकार करते हए आकाशवाणी से
दरू दशन को अलग कर िदया। सन् 1977 म देश म पहला एफ.एम. सारण म ास से आरंभ हआ। 15
अग त, 1993 से िद ली और मु बई म िनजी रे िडयो चैनल खोला। 1994 ई. म आकाशवाणी क उप ह
सेवा काई रे िडयो आरंभ क गई तथा 1995 ई. म रे िडयो पेिजगं क शु आत हई। 1996 ई. म आकाशवाणी
के काय म इटं रनेट पर उपल ध होने लगे। 23 नवबं र, 1997 को सार भारती अिधिनयम लागू होने के बाद
आकाशवाणी को सार भारती िनगम के अतं गत लाया गया। ‘‘अ ैल 1998 म आकाशवाणी ारा िनजी
िनमाताओ ं से काय म बनवाने पर रोक लगा दी। इसके बाद एक बार िफर सारे काय म आकाशवाणी क
ारा ही बनाए जाने लगे। लेिकन इस बार िनजी एफ.एम. चैनल को अनमु ित देने पर सरकार ने गभं ीरता से
िवचार िकया और सन् 1999 म अतं तः क सरकार ने नीितगत िनणय लेते हए एफ.एम. तरंग को िनजी
कंपिनय के िलए खोल िदया। य िक सव च यायालय ने सन् 1995 म अपने एक मह वपणू िनणय म
रे िडयो तरंग को सावजिनक संपि घोिषत िकया था। सूचना एवं सारण मं ालय बनाम ि के ट एसोिसएशन
ऑफ बंगाल मामले म फै सला देते हए यायालय ने रे िडयो तरंग पर सरकार के एकािधकार को सही नह
बताया था। यायालय ने कहा िक सरकार को यह सिु न त करना चािहए िक रे िडयो तरंग का जनिहत म
यापक इ तेमाल िकया जाए तािक देश म अिभ यि क वतं ता का सही उपयोग हो सके ।’’ सन् 2003
म आकाशवाणी ने िद ली के एफ.एम.-1 को एफ.एम. ‘गो ड’ और एफ.एम.-2 को एफ.एम. ‘रे नबो’ नाम दे
िदया। अब गो ड पर परु ाने िफ मी गीत तथा रे नबो पर नए व अं ेजी गाने भी सा रत होने लगे। रे िडयो के
संदभ म कहा जा सकता है िक जहां सामदु ाियक रे िडयो से समाज के िवकास क संक पना को साकार होते
हम देख पा रहे ह वह नए, परु ाने गीत, रे िडयो जॉक तथा घटं े-घटं े समाचार से यह आम िदल पर राज कर रहा
है।
कर दी।’’ इसके िव तार व प 23 अ टूबर, 1961 को आकाशवाणी ने अमे रका के फोड फाऊंडेशन के
साथ एक सहमित-प पर ह ता र िकए, िजसके अंतगत चार साल तक िद ली के कूल म शै िणक
सारण िकया जाना था। समझौते के अनसु ार अमे रका के िवशेष भारत आए और िद ली के मा यिमक
कूल म 600 टेलीिवजन सेट थािपत िकए गए। बाद म ांसमीटर क सारण मता को भी बढ़ाकर 5
िकलोवाट कर िदया गया। 15 अग त 1965 को भारतीय टेलीिवजन पर रोजाना समाचार बल ु िे टन क
शु आत हई। उस समय टेलीिवजन आकाशवाणी का एक अंग था। जािहर है िक टेलीिवजन समाचार भी
आकाशवाणी क समाचार इकाई पर पूरी तरह िनभर था। समाचार म ि थर िच को िदखाया जाता था।
1960 ई. का दशक भारत म ह रत ािं त का दौर था। ह रत ािं त के जनक डॉ. एम.एस. वामीनाथन और
सिु व यात वै ािनक डॉ. िव म साराभाई क पहल पर 26 जनवरी 1967 से ‘कृ िष दशन’ का सारण शु
िकया गया। स ाह के बधु वार व शु वार के 20 िमनट के काय म म िकसान को नए खाद, बीज और उ तम
खेती के बारे म बताकर जनजागृित फै लायी जाने लगी।
सन् 1975 भारतीय टेलीिवजन के इितहास म मील का प थर सािबत हआ य िक इसी साल
भारतीय वै ािनक ने पहली बार उप ह सारण शु िकया। सैटेलाइट इं शनल टेलीिवजन ए सपेरीमट
(SITE) नामक इस प रयोजना के तहत अमे रक सैटेलाइट ATS-6 को एक साल के िलए िकराए पर िलया
गया। योिगक तौर पर देश के छह रा य (िबहार, उड़ीसा, आं देश, राज थान और कनाटक) के 2400
सबसे िपछड़े गांव म उप ह के ज रए एक साल (1 अग त 1975 से 31 जल ु ाई, 1976) का सारण िकया
गया। इस काय म के तहत वा य, कृ िष, प रवार िनयोजन, रा ीय एकता, सं कृ ित के मसल पर
ाना मक जानका रयां दी जाने लगी। ये काय म िहदं ी, उिड़या, तेलगु ु और क नड़ भाषा म सा रत िकए
जाते थे। रोजाना चार घटं े के काय म म सुबह 90 िमनट शै िणक और शाम को 150 िमनट अ य िवषय पर
सारण होता था। साइट के काय म समाज को िदशा देने म महती भिू मका अदा क ।
1 जनवरी 1976 को दरू दशन पर पहली बार िव ापन का सारण शु हआ। इसी वष 1 अ ैल को
दरू शन को आकाशवाणी से अलग कर िदया गया। ‘‘इस िदन को िविश बनाने के िलए धानमं ी इिं दरा
गाधं ी ने देश के नाम सदं ेश भी िदया। यह िवशेष सारण साइट प रयोजना के 2400 गांव म भी उप ह के
ज रए सा रत िकया गया। अलग होने के बाद दरू दशन के पहले महािनदेशक पी.वी. कृ णमिू त बनाए गए
और िद ली के मडं ी हाऊस म दरू दशन का मु य कायालय बनाया गया। दरू दशन का अपना मोनो ाम और
सक ं े त धनु भी बनाई गई।’’
1980 के दशक म दरू दशन के िवकास म चार चादं लगा। 10 अ ैल, 1982 को अमे रका के के प
कै नेडी से देश का पहला सच ं ार सैटेलाइट इनसेट 1-ए छोड़ा गया। लेिकन यह उप ह अिधक िदन तक काम
नह कर पाया लेिकन इसी वष 30 अग त को एक और उप ह इनसेट-1 बी छोड़ा गया तदपु रांत देशभर के
टेलीिवजन क को उप ह से जोड़ िदया गया। सन् 1982 म 19 नव बर से 4 िदस बर को हए एिशयाई खेल
का मनोरंजन दरू दशन के मा यम से भारत सिहत अ य देश के दशक ने उठाया। वतं ता िदवस 15 अग त,
1982 के िदन लाल िकले पर वजारोहण के सीधे सारण के साथ दरू दशन ने अपना रंगीन सारण क
शु आत क । संचार मा यम ारा िवकिसत रा के काय म को अिधकािधक िदखाने के कारण िपछड़े
देश म सां कृ ितक पहचान का संकट पैदा होने लगा था तो इसी दौरान वैि क मीिडया प र य म बनाए गए
मैक ाइड कमीशन क तज पर भारत म माच 1983 म पी.सी. जोशी क अ य ता म एक सिमित का गठन
िकया। सिमित ने 2 अ ैल, 1984 को अपनी रपोट (An Indian Personality for Television Report
of the Working Group on Software for Doordarshan) म दरू दशन के काय म म सधु ार लाने के
िलए िव तृत सुझाव िदया। जोशी कमेटी के नाम से इस सिमित ने भारतीय आव यकताओ ं के अनु प देशज
काय म बनाने पर बल िदया। खास देशज सं कृ ित पर किदत काय म बनने लगे। 15 जल ु ाई 1984 को देश
का पहला ायोिजत धारावािहक ‘हमलोग’ शु िकया गया। कुल 156 किड़य के इस धारावािहक को ने ले
मैगी नडू स ने ायोिजत िकया था। हमलोग क सफलता के बाद तमस, बुिनयाद, खानदान, क का जी
किहन, भारत एक खोज जैसे धारावािहक के सारण से दरू दशन क लोकि यता बढ़ी। राजीव गाधं ी के
धानमं ी बनते ही समाज के िवकास के िलए दरू दशन को अिनवाय अंग माना। यही कारण है िक सन् 1987
म रामानदं सागर ारा िनिमत रामायण, 1988 म बी आर चोपड़ा ारा बनाए गए महाभारत और याम
बेनेगल ारा बनायी गई भारत एक खोज, जैसे बड़े धारावािहक को राजीव गांधी के िनजी िच के
फल व प हम देख पाए। सन् 1984 म डीडी-2 नाम से दरू दशन का दसू रा चैनल शु िकया गया। इसी वष
शै िणक सार के िलए िव िव ालय अनदु ान आयोग ने कं ीवाइड लास म का सारण शु िकया।
1987 ई. म रामायण धारावािहक को दरू दशन पर िदखाये जाने से अपनी लोकि यता के सारे रकाड तोड़
िदए। इसके बाद महाभारत के सारण को भी लोग ने खबू सराहा। कहा जाता है िक रामायण और महाभारत
जैसे धारावािहक ने टीवी को घर-घर पहचं ा िदया।
1990 के दशक म खासकर जब भमू डं लीकरण का दौर शु हो रहा था। बहरा ीय कंपिनयां अपने
उ पाद को ाहक तक पहचं ाने के िलए टीवी िव ापन को एक अ छा मा यम समझने लगी तो ऐसे ही दौर
म सन् 1992 म देश का पहला िनजी टेलीिवजन चैनल जी टीवी को ह रयाणा के उ ोगपित सभु ाषचं ने शु
िकया। अब चौबीस घटं े समाचार, मनोरंजन के चैनल क भरमार हो गई है।
4.6 वैकि पक मीिडया के प म इटं रनेट- इटं रनेट आज सव यापी उपकरण या मा यम बन गया है। आज
इटं रनेट लोबल है, इसके सभी िवधा प लोबल ह। इसक तेज गित इसे अ य मा यम से गणु ा मक तौर पर
अलग करती है। यह दिु नया को वैि क ाम का वासी होने का अवसर महु यै ा कराता है। कोई भी इटं रनेट
योगकता यह कह सकता है िक अब तक िजतने मा यम िवकिसत हए ह उनम इटं रनेट सबसे यादा
ताकतवर है। दरअसल यह हाई-टेक का पयाय है और सचू ना ािं त का सवं ाहक भी। अब तक ईजाद हए
मा यम म यह एक मा यम नह है, बि क मा यम का िपतामह है। यह अपने आप म वतं कोई आिव कार
नह है, बि क यह कं यटू र और टेलीफोन से िमलाकर िकया गया एक अिभनव योग के तौर पर सचू नाओ ं
को बड़ी तेजी से एक थान से दसू रे थान पर भेजे जाने क यिु है। ‘‘इसे कुछ लोग व ड वाइड वेब यानी
िव यापी तरंग कहते ह, िकंतु इटं रनेट िवशेष इस नाम से सहमत नह ह। वे इसके कई और भी नाम देते ह
जैसे-साइबर पेस, सपु र हाइवे, इ फोमशन सपु र हाइवे, द नेट या ऑन लाइन आिद।’’
1990 के दशक म इटं रनेट क तेजी से गित हई। इसके िवकास पर नज़र डाल तो हम पाते ह िक
अमे रका के पटागन एडवां ड रसच ोजे ट एजसी (ए.आर.पी.ए) ने 1969 म एआरपीएनेट के प म इसक
शु आत क थी। इसका मल ू उ े य देश के िविभ न भाग म फै ली सैिनक छाविनय के बीच आपसी संपक
थािपत करना था। आपसी संवाद के िलए एआरपीएनेट कं यटू र को आपस म जोड़ने और डाटा भेजने हेतु
िवकिसत क गई ि या को ांसिमशन कं ोल ोटोकोल/इटं रनेट ोटोकोल (टीपीसी/आई.पी.) कहा गया।
‘‘अमे रका म सैिनक मु यालय म कायरत वै ािनक और इजं ीिनयर ने इस एआरपीएनेट का उपयोग र ा
संबंधी सचू नाओ ं के आदान- दान करने के िलए भी करना शु िकया। इसके अगले कथन के प म उ ह ने
इले ॉिनक मेल का तरीका भी िवकिसत िकया िजसे ‘ई-मेल’ क सं ा दी गई।’’ इटं रनेट क उपयोिगता को
देखते हए करीब दस वष के उपरांत 1979 ई. म एक शै िणक नेटवक ‘यजू नेट यजू ’ के प म इसका
पहला सावजिनक िव तार हआ। इटं रनेट क लोकि यता के कारण यह अब सरकारी िनयं ण से बाहर आकर
आम जनता के िलए सल ु भ हो गया है। भारत म इसक शु आत सव थम सैिनक अनसु धं ान नेटवक (ईआर
नेट) ने र ा और अनुसंधान े के िलए उसका उपयोग शु िकया। यह ईआरनेट भारत सरकार के
इले ॉिनक िवभाग तथा यनू ाईटेड नेश स डेवलपमट ो ाम का एक सयं ु उप म था। इसके उपरातं सच ं ार
के मा यम के प म एक बूम आयी और लोग इसको पसंद करने लगे। इटं रनेट के उपयोग के मु य पांच े
ह यथाः ई-मेल, बातचीत (चैिटंग), ई-बिकंग, ई-कॉमस, ई- शासन आिद। आज इटं रनेट पर अिभ यि का
सश मा यम बना है- लॉग। जहां िक कोई सपं ादक य कची नह चलती, अपने मन क अिभ यि कर
सकते ह। इटं रनेट वभावतः सामािजक है। यह येक को समान अवसर देता है। इसका साझा े है
सावजिनक थान। अ ना आदं ोलन हो या िम म हए जनांदोलन म इटं रनेट के सोशल मीिडया नेटवक क
अहम भिू मका रही है। इटं रनेट ने ि ंट समिथत एकािधकार को समा कर िदया। ऐसे म कहा जा सकता है िक
मौजदू ा दौर मीिडया का नह बि क साइबर मीिडया का है।
4.7 सारांश
जनसंचार ऐसी संचार यव था का प है जो यांि क संचालन के साथ-साथ सामिू हक प से समाज क
येक इकाई क भिू मका िलए हए है। संचार यव था, चाहे वह ि ंट हो या इले ॉिनक मा यम (रे िडयो,
टेलीिवजन या यू मीिडया), इससे भारत क सामािजक, आिथक, सां कृ ितक एवं राजनीितक े म यापक
बदलाव आया है। भारतीय मीिडया तो इससे यापक तर पर भािवत हई है। यह भाव उसके ढ़ाचं ागत तर
से लेकर समाचार के चयन, तुतीकरण तक म देखने को िमल रहा है। िहदं ी के अखबार पंजू ी, तकनीक,
तुितकरण, सार और कलेवर क ि से यादा स प न हए ह। इलै ािनक मीिडया के भाव से हम -
ब- ह। इटं रे नट के मा यम से हम वैकि पक मीिडया का उपयोग कर रहे ह।
4.8 बोध
4.8.1 बहिवक पीय
न 1 : िहदं ी का पहला समाचार प ‘उद त मात ड’ का काशन कब हआॽ
िवक प : क. 30 जनवरी, 1826 ख. 30 फरवरी, 1826
ग. 30 जनू , 1826 घ. 30 िदसंबर, 1826 उ र:
क.
न 2 : आकाशवाणी क िविवध भारती सेवा कब ारंभ हईॽ
4.8.4 यवहार
काय एक : आज वैकि पक मीिडया क मह ता अप रहाय है, इस कथन क पिु क िजए
4.9 उपयोगी थ ं सच
ू ी
िसहं , देव त, (2007). ‘भारतीय इले ॉिनक मीिडया’, िद ली : भात काशन।
पचौरी, सधु ीश, (1994). ‘दरू दशन : िवकास से बाजार तक’, नई िद ली : काशन िवभाग, संचना एवं
सारण मं ालय
चौधरी, ओमकार, (2011). ‘टेलीिवजन प का रता’, पचं कुला : ह रयाणा सािह य अकादमी।
कुमार, सरु े श, (2004). ‘इटं रनेट प का रता’, नई िद ली : त िशला काशन।
मेहरा, रमेश, (2007). ‘मीिडया और सारण’, नई िद ली : त िशला काशन।
शमा, कमल, (2009). ‘रे िडयो सारण’, नई िद ली : ितभा ित ठान।
नटराजन, जे., (2002). ‘भारतीय प का रता का इितहास’, नई िद ली : काशन िवभाग, संचना एवं सारण
मं ालय।
Kumar, keval j., (2004). ‘Mass Communication in India’, Mumbai : Jaico Publishing
House.
Rayudu, C.S., (2008). ‘Communication’, Mumbai : Himalya Publishing House.
जैन, रमेश, (2003). ‘जनसंचार एवं प का रता’, जयपरु : मगं लदीप पि लके श स।
Desai, Amit, ‘Journalism and Mass Communication’, New Delhi: Reference Press.
बघेल, सजं य िसहं , ‘सच
ं ार, समाज और सािह य’, गािजयाबाद : के .एल. पचौरी काशन।
खंड – 4
संचार एवं समाज काय
1.0 उ े य
इस इकाई का अ ययन करने के प चात आप -
1. सामािजक वैयि क काय क अवधारणा को प ट कर सकगे।
2. सामािजक वैयि क काय क ि या एवं अगं भतू िस ांत से भली-भांित प रिचत हो सकगे।
3. सचं ार क अवधारणा एवं काय को या याियत कर सकगे।
4. सामािजक वैयि क सेवा काय ि या म संचार क भिू मका को अिभ य त कर सकगे।
1.1 तावना
सामािजक वैयि क सेवाकाय समाज काय क ाथिमक णाली के प म जानी जाती है। यह एक
कला है िजसम मानवीय संबधं के िव ान के ान और सबं धं म िनपणु ता का उपयोग इस ि से िकया जाता
है िक यि म उसक यो यताओ ं और समदु ाय म साधन को गितमान िकया जाए िजससे सेवाथ और उसके
पयावरण के कुछ या सम त भाग के बीच उ चतर समायोजन थािपत हो सके । कायकता ारा सेवाथ के
प र े य म यह यास िकया जाता है िक िकन-िकन िविधय , तकनीक एवं कुशलताओ ं से वह सेवाथ के
साथ िमलकर काय कर सके । सामािजक वैयि क सेवाकाय यावसाियक गणु पर आधा रत एक काय है,
िजसम िविभ न कार क कौशल या िजसे हम िनपणु ता भी कहते ह, का उपयोग िकया जाता है। वैयि क
कायकता कुछ कौशल के साथ-साथ कुछ तकनीक का भी उपयोग संपणू वैयि क काय ि या म करता
है, िजसके आधार पर वह सेवाथ क सम या का समाधान करने म स म बन पाता है। कौशल एवं
तकनीक का उपयोग समहू काय ि या ारंभ होने से अतं तक िकया जाता है। िकसी यावसाियक काय म
कुशलता एवं तकनीक का होना उसके व प व मह व को प ट करता है। मानव यवहार क जो सम याएं
2) सम या (Problem)
3) थान (Place)
4) ि या (Process)
इसको वैयि क सेवाकाय म मॉडल क तरह भी उपयोग म लाया जाता है, आमतौर पर इसे
सामािजक वैयि क काय क श दावली म 4P के प म जाना जाता है।
अत: इस कार से िविभ न िव ान ने सामािजक वैयि क सेवाकाय को प रभािषत करने का यास िकया है
। िजससे इसका अथ भी प ट हो जाता है िक सामािजक वैयि क सेवाकाय एक यि को सामािजक
कायकता ारा दी जाने वाली सेवा है, यह सेवा उपचारा मक या सहायता परक दोन हो सकती है।
अ ययन (Study)
िनदान/आँकलन (Diagnosis)
उपचार /म य थता (Treatment)
समाि (Ternination) तथा
मू यांकन (Evaluation)
सामािजक वैयि क सेवा काय म अ ययन (Study) से ता पय उस ि या से है िजसके ारा के स वक
(Case Work) को ारंभ िकया जाता है और कायकता सेवाथ (Client) क मनोसामािजक
(Psychosocial) सम याओ ं का अ ययन िव तार से करता है। मैरी रचम ड कहती है िक “सामािजक
अ ययन म वैयि क काय को उस येक कारक को सरु ि त करना चािहए जो एक साथ होने पर तकपणू
तथा अनमु ािनत तक के ज रए, सेवाथ के यि व तथा उपयु त उपचार, म य थता के िलए ि थित को
उजागर करे गा ।”
सामािजक काय क ि या के बारे म सेवाथ के अपने कुछ िनि त िवचार हो सकते है। उदाहरण के िलए
आिथक सम याओ ं से त एक यि िव ीय मदद क अपे ा करता है तो उसके िलए सलाह-मशिवरे क
सारी ि या समय क बबादी है। दसू री तरफ सं था क अपनी िवचारधारा तथा अपनी सीमाएं होती ह।
उनको इ ह मू य एवं िवचारधारा के आधार पर आगे बढ़ना होता है। सामािजक कायकता का यावसाियक
मू य और नैितकता पर आधा रत अपना मू याक ं न होता है। यह मह वपणू है िक िविश यि गत अनभु व
से िनिमत यि गत मू य सेवाथ के ित उसक अवधारणा को भािवत न कर। सामािजक काय के िस ांत
सहभािगता, सामािजक कायकता क ओर से गणु व ा क आव यकता पर बल देते ह। इसिलए एक
सामािजक कायकता को सबं ंध म यि गत अनभु व के असर को संयिमत करने के िलए वचेतना का एक
िनि त तर कर लेना चािहए -
1. आपक सामािजक काय णाली के सदं भ म अपनी पसदं एवं नापसदं , जैसे िम के बारे म आपक पसदं
और वह काय िजसम आपको आनंद आता है या िजसे आप नापसंद करते ह तथा ऐसे मामले म आपके
िवचार से मह वपणू ह, क सचू ी बना ल एवं उन पर िवचार-िवमश कर।
2. एक यि /समहू /समदु ाय का पहला भाव कै सा है और या तदपु रातं हए स तथा अिधक सचू नाओ ं
क ाि के बाद इसम कोई प रवतन हआ है।
3. सेवाथ , सं था को िकस ि से देखता है और य ?
क) सहायक ख) िम ग) संबंधी घ) दलाल ड.) डॉ टर च) यवसायी छ) अ य कुछ
4. सं था क सेवाथ के बारे म या सोच है?
क) गरीब और असहाय ख) ससं ाधनहीन
(यहाँ सेवाथ को सेवा दान करने के औिच य पर िवचार िकया जा सकता है। सेवा दान करने के िलए कुछ
मह वपूण कारण इस कार ह-धािमक, परोपकारी, यावसाियक, उ मशीलता संबंधी एवं जन संपक म
सधु ार।)
वैयि क काय क ि या म कायकता को िन न स के मा यम से संपणू काय णाली को ि याि वत
करना होता है।
थम स ( थम अनुकूलन दौरा )
थम स म कायकता सेवाथ के साथ िन न कार से िमलकर काय करता ह-
सव थम कायकता सेवाथ के साथ यावसाियक सबं धं थािपत करता ह ।
सेवाथ से संबंिधत सम याओ ं को प रभािषत एवं रे खांिकत करता ह ।
सेवाथ क सम या एवं काय का मू यांकन करता ह ।
सेवाथ एवं वैयि क कायकता के उ े य एवं भिू मका को िनधा रत करता ह ।
सेवाथ क आव यक जानकारी जैसे – सेवाथ का नाम , सेवाथ का पता, सेवाथ क उ , िलंग,
शैि क यो यता, धम, जाित, णे ी ( ामीण, शहरी, जनजातीय) सेवाथ का यवसाय, सामािजक
तर एवं आय इ यािद सबं धं ी जानकारी को एकि त करता ह ।
सेवाथ संबंध – सामािजक वैयि क काय ि या म संबंध थापन एक मह वपणू कौशल माना
जाता ह िजसके अंतगत समाज कायकता सेवाथ से संबंध रखने वाले िविभ न यि य से सेवाथ
सबं िं धत जानकारी एकि त करता ह । कायकता सेवाथ से य एवं अ य प से सबं धं रखने
वाले यि य से जानकारी ा त कर सकता ह एवं मू यांकन करता ह । सेवाथ के जीवन म उन
लोग से संबंध, जो सवािधक मह वपूण ह एवं सेवाथ को भािवत करते ह इ ह उदाहरण के प म
देखा जा सकता ह ।
o सेवाथ के माता से संबंध
o सेवाथ के िपता से संबंध
o अ य ब च के साथ संबंध
o चाचा, चाची एवं अ य चचेरे भाई-बहन के साथ संबंध
o माता-िपता के बीच संबंध
o ब च के साथ माता –िपता के संबंध
o मह वपूण संबंध यिद कोई है (िकसी भी अ य के साथ )
o पडोिसय के साथ संबंध
o कूल एवं िश ण सं थाओ ं के साथ संबंध
o यवसाय एवं रोजगार से संबंध रखने वाले यि य से संबंध
दघु टना तथा सदमे से भािवत यि क जानकारी : यिद सेवाथ िकसी दघु टना या सदमे से
भािवत ह या वह िकसी मनोसामािजक सम या से िसत हो गया ह तो यह सिु नि त करे िक या
िकसी दघु टना या सदमे ने सेवाथ को भािवत िकया ह ? उसके भाव को जानने के प चात ही
आप िकसी िनदान तक पहँच सकते ह।
भावी योजनाऍ: सेवाथ क मनोदशा को ात करने के िलए आप सेवाथ से उसक भावी योजना के
संबंध
म जानकारी ा त कर सकते ह ।
स का समापन : स का समापन करते समय सेवाथ से यह पछ ू लेना चािहए िक वह पनु : कब
िमलेगा ? साथ ही साथ समय एवं थान का भी िनधारण कर लेना चािहए । आपको (कायकता को)
भी यान रखना चािहए िक आप सेवाथ को िदए समयानसु ार ही उससे िमले ।
इस तरह से कायकता संपणू ि या कर थम स क समाि कर ि तीय स क ओर अ सर होता
है।
स ि तीय ( ि तीय अनक ु ू लन दौरा )
थम स के प चात आपके पास सेवाथ से सबं िं धत िविभ न कार क आव यक सचू नाएं एकि त
हो जाती है। इसके आधार पर ही आप सेवाथ से संबंिधत िविभ न कार के सवाल को पछू कर उनसे
आपको सेवाथ से संबंिधत मह वपणू जानकारी ा त हो जाएगी । थम स के मा यम से आपने सेवाथ से
संबंध थािपत कर िलया ह अब सेवाथ िकसी भी कार से आपसे िहचिकचाहट महससू नह करे गा िजससे
आप सेवाथ क सम या से सबंिधत सीधे न को पछू सकते ह । संबंध थािपत हो जाने के प चात आप
सेवाथ से यह भी पछू सकते ह िक आपक सम या के पीछे कौन-कौन से कारण ह या कोई दसू रे यि
आपको िकसी कारण से प रशान कर रहे ह? या आपने आस-पास के लोग से आपको कोई परे शानी ह ?
आप यह भी पछू सकते ह िक जो दसू रे लोग सम या पैदा कर रहे ह उनका कारण या ह? कई बार सेवाथ
आपसे झठू भी बोल सकता है। आपको इस बात का अहसास हो जाता है िफर भी आपको ऐसा बताव करना
चािहए िजससे सेवाथ पर नकारा मक भाव न पड़े। आगे आप बडी ही सावधानीपवू क सेवाथ के
पा रवा रक माहौल के सदं भ म जानकारी ा त कर लेते ह।
स तृतीय (तृतीय अनुकूलन दौरा )
तृतीय स के दौरान कायकता सेवाथ का गृह- मण अथात् घर का दौरा करता ह । घर का दौरा
करने के पवू कायकता को इस कार का सबं धं थािपत कर लेना चािहए िजससे सेवाथ सहज प से
सहयोग दान कर सके । इस स म सेवाथ संबंिधत यि य से अवलोकन एवं सा ा कार िविध के मा यम
से सम या सबधीं कारण को ात करने का यास करता ह । अवलोकन के संदभ म कायकता सेवाथ के
िनवास थान क ि थित, आसपास का वातावरण, जीवन तर, पडोस क ि थित इ यािद का अवलोकन
करता ह । सा ा कार के दौरान कायकता सेवाथ के माता, िपता एवं अ य संबंिधत यि य का सा ा कार
करता है ।
अवलोकन एवं सा ा कार क ाि या के प चात आप अतं : ेप क योजना बना सकते ह जािक
िन न कार से हो सकती ह –
o सम या क जॉंच और िव लेषण
o सम या के कारण
o सभं ािवत समाधान
o उपल ध भौितक और गैर-भौितक ससं ाधन
o सेवाथ , सं था एवं कायकता क सीमाएं
o अतं : ेप योजना के उ े य
o अतं : ेप के ित प के काया वयन क समय सीमा ।
स चतुथ (चतुथ अनक ु ू लन दौरा – स समाधान क खोज )
उपयु त स क ि या पणू होने के प चात आपको सेवाथ क सम या के कारण ात हो जाते ह इस
स के मा यम से आप सेवाथ को िन न कार से सहायता कर सकते ह -
o सेवाथ को परामश देकर आप उसक सम या का समाधान कर सकत ह ।
o सेवाथ क सम या के आधार पर कायकता सेवाथ को सम या समाधान के तरीक के संदभ म
सचू ना दान करा सकता ह जैसे िक िकसी सम या समाधान करने वाले यि के पास सेवाथ को
पहचं ा सकता ह या िफर सरकारी एवं गैर-सरकारी योजनाओ ं के मा यम से सेवाथ को अवगत
कराकर उसे सूचना दान कराई जा सकती ह ।
o सेवाथ को समझा-बूझाकर एवं िदशा – िनदशन का योग कर ।
o कायकता सेवाथ को भावना मक प से सहयोग देकर उसक सहायता कर सकता ह ।
o कायकता ारा सेवाथ को ऐसे कौशल को िसखाना चािहए िजससे सेवाथ सामािजक प रि थित म
भावपणू तरीके से काय कर सके ।
उ त इकाई म संचार कौशल के संदभ म िव तृत वणन तुत िकया जा रहा है।
इन कुशलताओ ं के साथ कायकता और सेवाथ के बीच संबंध िनि चत करने हेतु एफ.बी. बी टेक
(1957) ने The Casework Relationship म कायकता –सेवाथ संबंध के िन निलिखत िस ांत बताएँ
है-
1. वीकृ ित िस ातं
2. गोपनीयता का िस ातं
3. वैयि करण का िस ातं
4. भावनाओ ं का उ े यपणू गटन का िस ातं
5. िनयिं त सवं गे ा मक सबं धं का िस ातं
6. अिनणया मक मनोवृि
7. सेवाथ का आ म-िनधारण का अिधकार
समहू सच
ं ार (Group Communication) : समहू सचं ार म ोता एक यि न होकर एकि त
यि समहू होता है। ोत ारा ेिषत सूचना या संदेश इसी समहू ोता के िलए ेिषत िकया जाता
जनसंचार (Mass Communication): जनसंचार का सबं ंध आधिु नक यगु से है। पंजू ीवाद के
उदय के उपरांत िव तृत बाजार का उदय हआ। अपना माल यादा से यादा लोग तक पहचं ाने
और उ ह खरीदने के िलए यातायात और संचार के साधन पया नह हो रहे थे। दिु नया के कई देश
म लोकतांि क शासन यव था कायम होने से लोग के िवचार को अपने प म मोड़ने क ज रत
के अनसु ार ही जनसचं ार के मा यम का िवकास अित ती गित से हआ। मीिडया के मा यम से
ुत गित म अपने संदेश को यथाशी भेजने क यव था कायम हई।
जन संचार का अथ वह वृहत जन समदु ाय है िजसे संदेश ेिषत िकया जाता है। यह जनसमदु ाय समहू
के प म कह एक न होकर िबखरा होता है।
1.8 बोध
1. वैयि क सेवाकाय क अवधारणा को प क िजए।
2. सामािजक वैयि क सेवाकाय के अथ को प करते हए इसक मल ू मा यताओ ं को िव े िषत
क िजए।
3. सामािजक वैयि क सेवाकाय के अगं भतू त व क सं ेप म चचा कर।
4. वैयि क सेवाकाय म संचार क भिू मका पर काश डािलए।
http://www.yourarticlelibrary.com/sociology/social-casework-nature-
values-principles-and-trends/36541/(10-09-2015)
http://christcollegemsw.blogspot.in/
2 .0 उ े य
इस इकाई का अ ययन करने के प चात आप -
5. सामािजक समहू काय क अवधारणा को प ट कर सकगे।
6. सामािजक समहू काय क ि या एवं अगं भतू िस ांत से भली-भांित प रिचत हो सकगे।
7. संचार क अवधारणा एवं काय को रे खांिकत कर सकगे।
8. सामािजक वैयि क सेवा काय ि या म सचं ार क भिू मका को या याियत कर सकगे।
2.1 तावना
मानव समाज के इितहास म सभी देश एवं यगु म िनधन, िनराि त, अपंग, अनाथ, बेरोजगार, रोगी
यि रहे है तथा ऐसी अनेक सम याएँ आई है जहाँ इन यि य को अनेक किठनाईय का सामना करना
पड़ा है। अतः इन यि य क सम याओ ं का समाधान करने तथा इसक परे शािनय को समझने के िलए
आिद काल से यास िकए जा रहे ह। समाज काय क उ पि इ ह यास के फल व प हई है। मानव और
समाज पणू प से एक-दसू रे पर आि त है। िजस कार समाज ने मनु य को अनेक कार के मानवीय
अि त व दान िकए ह, वह समाज म अनेक कार क सम याएँ जैसे बेरोज़गारी आिद भी या ह। अतः
इन सभी सम याओ ं को दरू करने हेतु अनेक यास िकए जा रहे ह। इ ह यास के फल व प काय को
समाजकाय के नाम से जाना जाता है। आज समाजकाय के िलए के वल दया,क णा, ेम क भावना ही पया
नह है। आज समाजकाय ने यवसाय का प ले िलया है। सामािजक समहू काय को समाज काय क एक
णाली के प म यु िकया जाता है िजसम वैि य क सहायता समहू कुछ रचना मक गितिविधय के
मा यम से एवं यि य म नेतृ व का िवकास कर उ ह स म बनाने का यास िकया जाता है। समहू काय
यावसाियक गणु पर आधा रत एक काय है, िजसम िविभ न कार के कौशल एवं तकनीक का योग
िकया जाता है। समहू कायकता कुछ कौशल के साथ-साथ कुछ तकनीक का भी उपयोग संपणू समहू काय
ि या म करता है, िजसके आधार पर समहू के उ े य को ा त िकया जाता है। कौशल एवं तकनीक का
उपयोग समहू काय ि या ारंभ होने से अतं तक िकया जाता है। िकसी यावसाियक काय म कुशलता एवं
तकनीक का होना उसके व प व मह व को प ट करता है। मानव यवहार क जो सम याएं ह, उन
सम याओ ं का तब तक समाधान नह िकया जा सकता, जब तक िक उन सम याओ ं के समाधान हेतु िवशेष
यो यता एवं कौशल का उपयोग न िकया गया हो। उ त इकाई के मा यम से छा -छा ाओ ं को समहू काय
ि या म यु त क जाने वाली संचार कौशल के संबंध म िव तार से बताया जा रहा है।
अनभु व के आधार पर होती है। जब कोई भी यि िकसी भी काय को लगातार लंबे समय तक करता रहता
है तो उसम वाभािवक प से उस काय के ित िनपुणता आना ारंभ हो जाती है।
िवशेषताएं :
समहू संचार िक िवशेषताओ ं को िन न कार से समझा जा सकता है :
समहू सच ं ार म जो ापक होता है उसक सं या िनि त मानी जाती है। सभी अपनी इ छा व साम य
के अनसु ार सहयोग करते ह,
समहू संचार म सद य के बीच समान प से िवचार , भावनाओ ं का आदान- दान होता है,
सच ं ारक और ापक के बीच िनकटता होती है,
िवचार-िवमश के मा यम से सम याओ ं का समाधान िकया जाता है,
समहू संचारक का उ े य सद य के म य चेतना का िवकास करना होता है। इस आधार पर यह कहा
जा सकता है िक ापक को चेतना िवकिसत कर दािय व बोध कराना होता है,
समय-समय पर फ डबैक सद य से ा होता रहता है, और
सम या के मल ू उ े य के अनु प संदश े स ेिषत िकया जाता है।
समहू सच ं ार म ोता एक यि न होकर एकि त यि समहू होता है। ोत ारा ेिषत सचू ना या सदं श े
इसी समहू ोता के िलए ेिषत िकया जाता है िजसका िहत या उ े य समान होता है और जो संदेश ाि के
िलए ही एक थान पर एकि त होता है। सभा, गो ी, स मेलन, नाटक, वाद-िववाद, संगीत-नृ य, समहू संचार
के ही प ह। िन न िबंदओ ु ं के मा यम से सामािजक समहू काय और संचार के मह व को और अिधक प ट
प से समझा सकता है।
िकसी समहू क छिव िनमाण क मत, योगदान क Trick अथवा Branding कर सकता है।
समहू क पार प रकता के आधार के प म संचार और इसके मा यम अपनी भिू मका िनभा सकते
है।
सपं क, पनु सयं ोजन, नई पहल, सचू ना का आदान- दान, सहभागी उ थान करने म सचं ार मा यम
उपयोगी हो सकता है।
एक और अिभ यि का मचं जो िक िकसी समदु ाय क वकालत तथा अपील करने म अ य सभी
यास से ती व उ कृ ट हो सकता है। ऐसा काय भी सचं ार मा यम ही कर सकते ह।
समहू को एकि त िकए िबना भी समहू को उसक मल ू भावना और उ े य से जोड़ने म ि या वयन
म िवकिसत प र य क थापना कर सकते है।
सच ं ार तथा इसके मा यम सू य िवसगं ितय को सीिमत कर एक पया त रचना मक/सजना मक पथ
को िनिमत करता है।
यह समहू म आभासी िव वास है य िक इसक उपल धता समय, सिु वधा तथा अ य तरीक से
अिधकािधक दी जा सकती है।
संचार मा यम मानव संसाधन को भी कम और यवि थत प से िवकिसत करने म अपना योगदान
देते है।
2.6 सारांश :
सामािजक समहू काय एक ऐसी णाली है जो िक वै ािनक प ित के मा यम से समहू क
सम याओ ं का समाधान करती है और समहू क आव यकता क पिू त करती ह। बेहतर सचं ार के मा यम से
कायकताओ ं इस णाली का उपयोग कुछ मह वपूण िनपणु ताओ ं एवं तकनीक के मा यम से करने का यास
िकया जाता ह। संचार समहू काय म एक भावी ि या है िजसके मा यम से समहू काय के येक चरण को
आसानी से पणू िकया जा सकता है। समहू काय म सचं ारकता ारा कौशल पणू तकनीक का योग िकया
जाता है। समहू म आ मिव वास क भावना जा त करने हेतु भी संचार अ यंत मह वपूण होता है। अत:
संचार के उिचत मा यम से कायकता समहू के ल य को आसानी से ा त कर सकता है।
2.7 बोध न
1. समहू काय से आप या समझते है ? प ट क िजए।
2. समहू काय ि या म यु त िक जाने वाली संचार कौशल तकनीक को समझाइए।
3. सामािजक समहू काय म सचं ार के मह व को प ट क िजए।
4. समहू संचार हेतु आव यक त व को बताइए।ं
5. संचार सबं ंधी िनपणु ता से आपका या ता पय ह ?
3 .0 उ े य
इस इकाई का अ ययन करने के प चात आप:-
9. सामदू ियक संगठन क अवधारणा को प ट कर सकगे।
10. सामदू ाियक सगं ठन म सच
ं ार के िविभ न मा यम सेभिल-भांित प रिचत हो सकगे।
11. सामदू ाियक संगठन म जनसंचार से अवगत हो सकगे ।
a. तावना
सामदू ाियक संगठन को समाज काय क ाथिमक णाली के प म जाना जाता है । सामदू ाियक संगठन क
ि या म कायकता िविभ न तकनीक एवं कौशल के मा यम से सामदू ाय म उ प न होने वाली सम या के
िनराकरण हेतू यास करता है । हम जानते है िक मनु य एक सामािजक ाणी है उसक इसी सामािजकता के
आधार पर वह िकसी न िकसी समहू का सद य आव यक प से होता है । समदु ाय म आव यक त व ‘हम
क भावना’ होती है जोिक िकसी न िकसी िनि चत भौगोिलक े म िनवास करता है । समदू ाय संगठन म
संचार को एक आव यक कौशल के प म माना जाता है िजसके मा यम से जनसमदू ाय तक िकसी भी त य
को आसानी से पहचं ाया जा सकता है । सचं ार वतमान समय म एक सश त मा यम माना जाता है। सच
ं ार का
एक सश त मा यम जनसंचार है िजसने पूंजीवादी समाज को ज म िदया है। वैशिवक प र य म
समान/व तओ ु ं क खरीदी – िव हेतू जनसंचार को िवशेष मह व गट होता है । जनसंचार का संबंध
आधिु नक यगु से है। पजंू ीवाद के उदय के उपरातं िव तृत बाजार का उदय हआ। अपना माल यादा से
यादा लोग तक पहचं ाने और उ ह खरीदने के िलए यातायात और संचार के साधन पया नह हो रहे थे।
दिु नया के कई देश म लोकतािं क शासन यव था कायम होने से लोग के िवचार को अपने प म मोड़ने
क ज रत के अनसु ार ही जनसचं ार के मा यम का िवकास अित ती गित से हआ। मीिडया के मा यम से
ुत गित म अपने संदशे को यथाशी भेजने क यव था कायम हई। वतमान इकाई के मा यम से िव ािथय
को सामदू ाय म यु त िकए जाने वाले जनसंचार के मा यम के बार म अवगत कराया गया है िजससे िक जन
समदू ाय तक अपनी बात को आसानी से पहचं ाया जा सके ।
िनपटने के िलए संसाधनो का पता लगाते है, उनके एवं सहयोगा मक वृि य वृि य एवं ि या
यवहार का िवकास एवं िव तार करते है।’’
सै डरसन ए ड पो सन- “सामदु ाियक संगठन का उ े य समहू तथा यि य के म य ऐसे
स ब ध िवकिसत करना है िजससे उ ह ऐसी सिु वधाओ ं तथा सम याओ ं का िनमाण करने तथा उ ह
बनाये रखने के िलए एक साथ काय करने म सहायता िमलेगी तथा िजसके मा यम से समदु ाय के
सभी सद य के समान कलयाण म अपने उ चतम मू य का अनभु व कर सके ।”
िल डमैन- वष 1921 म कािशत िल डेमनै क पु तक, उ री अमे रका क पहली ऐसी पु तक है
िजसम सव थम सामदु ाियक सगं ठन िवषय को ततु िकया गया। िल डेमनै ने सामदु ाियक सगं ठन
को सामदु ाियक संगठन के उन चरण के प म प रभािषत िकया िजनसे समदु ाय क ओर से अपने
यवहार व मामल को लोकतांि क िविध से िनयंि त करने तथा पार प रक मा यता ा त
अतं सबधं के उपाय ारा इनके िवशेष , सगं ठन , एजिसय तथा सं याओ ं क ओर से उ चतम
सेवाएं संकिलत करने का चेतनापणू यास िकया जाता है।
मरे जी. रोस- सामदु ाियक संगठन पर मरे जी रोस का लेखन संभवत: िविश कोिट का था। उनके
लेखन का अमे रका म सामदु ाियक संगठन के अ यास को लोकि य बनाने म अभतू पवू योगदान
रहा। उनका मानना था िक सामदु ाियक संगठन एक ऐसी ि या है, िजसके ारा समदु ाय अपनी
आव यकताओ ं अथवा उ े य के िलए काम करने का िव वास अिजत करता है और इन
आव यकताओ ं और उ े य को परू ा करने के िलए संसाधन (बाहरी और आतं रक) व साधन
तलाशता है, उनके बारे म कायवाही करता है, और साथ ही समदु ाय म सहयोगा मक व सहभागी
अिभवृितय तथा यवहार का िव तार व िवकास करता है। उ ह ने सामदु ाियक संगठन के तीन
मखु दिु कोण क पहचान क है-
A. िविनिद ट िवषयव तु ि कोण: इसके ारा कोई कायक ा अथवा सगं ठन िकसी सम या
अथवा सम याओ ं के समु च को पहचानकर उनका समाधान तुत करने के िलए िकसी
काय म का िनयोजन करता है ।
B. सामा य ि कोण: इसके ारा कोई समहू , संगठन अथवा प रषद िविश ट े म सेवाओ ं के
समि वत तथा सिु नयोिजत िवकास का य न करता है ।
C. ि या ि कोण: इसका उ े य िवषयव तु (सिु वधाएं या सेवाए) नह , बि क एक ि या
का िनवाह करना होता है िजसम समदु ाय से संबि धत लोग ारा अपनी आव यकताओ ं तथा
सम याओ ं को पहचानने तथा उसके बारे म कायवाही करना सि मिलत होता है।
हापर- हापर (1959) के अनुसार सामदु ाियक संगठन समाज क याण के िनर तर अिधकािधक
संसाधन और सामदु ाियक आव यकताओ ं के बीच भावी समायोजन बनाने का एक यास होता
है। यह प रभाषा इन मलू िब दुओ ं से संबि धत है:
A. आव यकता क खोज और िनधारण
B. सामदु ाियक आव यकताओ ं तथा अ मताओ ं का उ मल ू न व रोकथाम
3.3 समुदाय और सच ं ार
सामदु ाियक सगं ठन क ि या म सचं ार का उपयोग समदु ाय के सद य को स म(Capable) बनाने के ,
सद य को जाग क बनाने एवं सहभािगता के िलए मु य प से िकया जाता है । समदु ाय को जानने और उसे
बताने के िलए अ य समहु से िविश ट सचं ार करने के िलए समदु ाय के अनेक सरं चना मक और सगं ठना मक
ा प का िवकास िकया जाता है । साथ-साथ म बंधन हेतु संचार िजसम भाषा ान व िच के तर पर
उपयोिगता व समझ के तर पर थानीयता से लेकर वैि वक तर का भाव ात िकया जाता है । िन न
िबदं ओ
ु ं के मा यम से समदु ाय म सच
ं ार को िन न कास से समझा जा सकता है –
समदु ाय म नेतृ व एवं कायकुशलता हेतु संचार का अिधक मह व होता है ।
जनमत िनमाण और उसे ा त करने हेतु सामदु ाियक तर पर संचार ारा अिधकािधक
योग िकए जा सकते है ।
समदु ाय क आव यकताओ ं के आधार पर जीवन व सभं ावी उ े य के िनिहताथ
सश त संचार ही कर सकता है ।
सामदु ाियक तर पर समान व पारदश यवहार के िलए तथा छोटे-छोटे समहु पर
िनधा रत सचं ार णाली और बधं न का सू धार ।
सार और आ ह के िलए संचार ।
योजना के अनश ु ीलन व अनक
ु रण के िलए संचार ।
मू यांकन व िनगरानी के िलए सचं ार यव था तथा णाली का योग ।
िनयिमत आदान- दान क सचू नाओ ं क साझा सं कृ ित तैयार करने के िलए संचार
ि या और उपकरण का योग ।
सदं भ आधा रत व कि त िवषय तथा उप म के िलए जनमा याम का योग ।
सा ा कार, फोकस पु के िलए िव लेषण व सव ण इ यािद हेतु ।
शासक य और गैर-शासक य संगठन के बीच म य थता व कुशल बंधन हेतु संचार
का योग सभं व ।
िविश ट उपबंध व सहभािगता के प रणाम के ा त करने के िलए सचं ार का उपयोग ।
सहभािगता के िलए िविभ न जनमा यम जैसे – प -पि का, बुकलेट, प पलैट और
इले ािनक मा यम से सदं ेश , आिडय –वीिडय व नव जनमा यम के योग करना
।
घटना िवशेष व समदु ाय के आपसी सहसबंध पर कुशल, ि या मक संभव ।
मीिडया को ोत के प म योग करना ।
वैधािनक और मािणकता के िलए संचार मा यम का योग ।
इन उपयु त आधार पर संचार को समझा जा सकता है िक यह िकस कार से जन मा यम के बीच
काय करता है । सच ं ार के मा यम म जनसचं ार एक अित आव यक मा यम है िजसने सपं णू जन
समदु ाय को वैि वक तर पर भािवत िकया है ।
जोसेफ िडिवट के अनसु ार- जनसंचार बहत से यि य म एक मशीन के मा यम से सचू नाओ,ं िवचार
और ि कोण को पांत रत करने क ि या है।
कानर के अनसु ार- जनसंचार संदेश के बड़े पैमाने पर उ पादन तथा वृहद तर पर िवषमवग य जनसमहू म
ुतगामी िवतरण करने क ि या है। इस ि या म िजन उपकरण अथवा तकनीक का उपयोग िकया जाता
है उ ह जनसंचार मा यम कहते ह।
बाकर के अनसु ार- जनसंचार ोताओ ं के िलए अपे ाकृ त कम खच म पनु उ पादन तथा िवतरण के िविभ न
साधन का इ तेमाल करके िकसी संदेश को यापक लोग तक, दरू -दरू तक फै ले हए ोताओ ं तक रे िडयो,
टेलीिवजन, समाचार प जैसे िकसी चैनल ारा पहचं ाया जाता है।
ले सीकॉन यूिनवसल इनसाइ लोपीिडया के अनसु ार- कोई भी संचार, जो लोग के मह वपूण प से
यापक समहू तक पहचं ता हो, जनसंचार है।
कु पू वामी के अनसु ार- जनसंचार तकनीक आधार पर िवशाल अथवा यापक प से लोग तक सचू ना के
सं ह एवं ेषण पर आधा रत ि या है। आधिु नक समाज म जनसंचार का काय सचू ना ेषण, िव े षण,
ान एवं मू य का सार तथा मनोरंजन करना है।
जॉज ए.िमलर के अनसु ार- जनसंचार का अथ सचू ना को एक थान से दसू रे थान पहचं ाना है।
डी.एस. मेहता के अनसु ार- जनसंचार का अथ जनसंचार मा यम जैसे- रे िडयो, टेलीिवजन, ेस और
चलिच ारा सचू ना, िवचार और मनोरंजन का चार- सार करना है।
रवस िपटरसन और जॉनसन के अनसु ार-
दूरदशन (Doordarshan)
दरू दशन का सव थम पहला सारण 15 िसत बर, 1959 को आकाशवाणी भवन, नई िद ली म
िकया गया। वष 1965 म समाचार बल ु ेिटन का िनयिमत सारण शु हआ। सात वष बाद मु बई म दसू रे
टेलीिवजन के म सारण सेवा शु हई। रंगीन सारण क शु आत वष 1982 म नई िद ली म आयोिजत
एिशयाई खेल के दौरान हई। इस समय दरू दशन के 25 चैनल से काय मिदखाए जा रहे ह। डी.डी., नेशनल
डी.डी. यजू , डी.डी. पोट्स, डी.डी. भारती, डी.डी. ानदशन आिद।डी.डी. नेशलन के मा यम से जो
काय म िदखाएं जाते है वे मु य प से रा ीय एकता को बढ़ावा देने वालक तथा एकजटु ता एवं भाईचारे
क भावना पैदा करने वाले होते है। गणु व तायु त िश ा तक सबक पहँच कायम करने के उ े य से दरू दशन
ने 26 जनवरी, 2000 से शै िणक चैनल ान दशन आर भ िकया है। यह उप ह चैनल इ नू और मानव
संसाधन िवकास मं ालय के सहयोग से संचािलत िकया जा रहा है
ेस एवं ि ट / समाचार प पज ं ीयक (Press and Print Media)
सन 1953 म थम अयोग क िसफा रश के आधार पर 1 जल ु ाई, 1956 को भारत के समाचार प
पंजीयन या ेस पंजीयक का कायालय अि त व म आया। वष 2003-2004 क रपोट के अनसु ार 31 माच,
2004 तक पंजीकृ त समाचार प /पि काओ ं क कुल सं या 58,469 थी। इसम 6,287 दैिनक, 361 ि /ि
सा तािहक, 20,329 सा तािहक, 7,694 पाि क, 17,124 मािसक, 4,101 ैमािसक, 541 वािषक एवं
2,032 अ य काल अविध के थे। िद ली म 11 भाषाओ ं म प -पि काओ ं का काशन हआ। इसके बाद
महारा म 10 भाषाओ ं म,के रल तथा कनाटक म 9-9 भाषाओ ं म तथा पि मी बगं ाल म 7 भाषाओ ं म
काशन हआ। उ तर देश म सबसे अिधक (9,492) समाचार प का पंजीकरण हआ। महारा से
कािशत हो रहा ‘बा बे समाचार’ देश का सबसे परु ाना अखबार है।
3.6 सारांश
सामदू ाियक सगं ठन णाली के मा यम से जन समदु ाय क आव यकताओ ं को जानकर उनक सम या
समाधान का यास िकया जाता है । सामदू ाियक सगं ठन णाली म अनेक कौशल तकनीक का योग िकया
जाता है िजससे िक यह ि या आसानी के साथ क जा सके । संचार सामदू ाियक संगठन म एक मख ु
कौशल एवं तकनीक के प म उपयोग िकया जाता है । संचार क महती भिू मका मु य प से सामदू ाय के
म य सबं धं थापन से लेकर सचू नाओ ं के आदान- दान तक क जाती है । वतमान समय म समदू ाय हेतू
जनसंचार मा यम का योग मु य प से िकया जा रहा है । िजससे िक सामदू ाय म उ प न सम याओ ं का
िनराकरण िकया जा सके ।
3 .7 बोध
1. सामदू ायक संगठन से आप या समझते ह ?
2. सामदू ाियक संगठन क ि या म संचार के मह व को प ट क िजए ।
3. जनसंचार या है ? वतमान समय म इसक उपयोिगता पर काश डािलए ।
4. जनसच ं ार क िविभ न मा यम को उदाहरण सिहत समझाए ।
5. समदू ाय और संचार के म य अतं संबध प ट क िजए ।
इकाई क परेखा
4.1 उ े य
4.2 तावना
4.3 सामािजक ि या का अथ एवं प रभाषा
4.4 सामािजक ि या के उ े य एवं े
4.5 सामािजक ि या क ासिं गकता एवं सचं ार
4.6 सामािजक ि या म संचार कौशल
4.7 सामािजक ि या पुवावलोकन
4.8 सारांश
4.9 बोध न
4.10 स दभ एवं उपयोगी थ
4.1 उ े य
इस इकाई के अ ययन प चात आप
1. सामािजक ि या के अथ एवं प रभाषा क या या कर सकगे।
2. सामािजक ि या के उ े य े को रे खांिकत कर सकगे।
3. सामािजक ि या के इितहास एवं ासंिगगकता म संचार क भािवता को समझ सकग।
4. सामािजक ि या एवं संचार के पवु ावलोकन क या या कर सकगे।
4.2 तावना
सामािजक ि या समाज काय क एक सहायक णाली है। सामािजक ि या को ारंिभक समाज काय
सािह य म समाज सुधार का नाम िदया गया। यह समाजकाय अ यास म मह वपणू थान रखती है।
सामािजक ि या मानव समाज के िवकास क ि या का िह सा रही है। समाज िवकास म शायद कोई ऐसा
दौर नह रहा होगा,जहाँ लोग ने वयं को संगिठत न िकया हो, अ याय का िवरोध नह िकया हो। राजनीितक,
आिथक और सामािजक असमानता को समा त करने या दरू करने क कोिशश न क हो । लोग क
िशकायत को दरू करने क कोिशश, समाज के विं चत एवं उपेि त लोग क लड़ाई को बेहतर समाज बनाने
के िलए तथा उनक लड़ाई को ल य तक पहँचाने क कोिशश सदैव क गई। सामािजक ि या को िसफ
समाज काय क प ित के प म ही न देखकर इसे भारत म समाज काय िश ा के पीछे िनिहत दशन के प
म भी देखना चािहए। सामािजक ि या म संचार क अहम भिू मका होती है । संचार ही एक ऐसा मा यम है
िजसके अनसु ार आमजन तक एक सश त मा यम से कायकता अपनी बात को पहचं ाता है । उ त इकाई म
भारतीय प र य म सामािजक ि या म संचार क भिू मका एवं ासंिगकता के आधार पर िव तार से चचा क
जाएगी।
क अ यंत आव यकता है। अगर प टत: तौर पर हम कह तो यह कह सकते है िक संचार के अभाव म िकसी
भी कार क सामािजक ि या नही हो सकती है। वही सामािजक ि या के संदभ म गैि यल िबटो संघष पर
जोर देते ह। सामािजक ि या संघष से भरपूर उतार-चढाव वाली ि या है। उसक पहल या संचालन आम
लोग या खास लोग का समहू करते ह। पॉल भी सामािजक ि या हेतु संचार को मह वपणू मानते है। वे कहते
है िक सामािजक ि या सगं िठत और िनयोिजत गितिविधय ह, जो हैिसयत, स ता और ससं ाधन क
आव यकता होती है। संचार िनि ल नही बि एक गितशील ि या है। यह संबंधी पर आधा रत है यह
संबंध जोड़ने का एक बड़ा हिथयार है। यह एक यि को दसू रे यि से एक समहू को दसू रे समहू से तथा
एक समदु ाय को दसू रे समदु ाय से जोड़ना सचं ार का काम है। अत: सचं ार सामािजक पार पा रक ि याक
ि या है। इसके सू ऐितहािसक द तावेज म उपल ध है– पाँचवी शता दी पवू रोम के िव लैिबयन
िवरोध के प म, ाचीन रोम से अमे रका के नाग रक अिधकार के आदं ोलन, तक सामािजक ि या का एक
लंबा इितहास है । पि म म भी इसका उदाहरण म य 16 व शता दी म नीदरलड से पेन के िवरोध के प म
उपल ध है । वष 1880 म आयरलड के िकसान ारा बिह कार, वष 1905 म खनू ी रिववार के प म सी
ािं त,1917 क सी ािं त, वष 1953 म पवू जमनी का उदय ,1956 का हगं री आदं ोलन और अ ो –
अमे रकन ारा बस बिह कार, आिद सामािजक ि या के उदाहरण है ।
भारत म बौ धम एवं जैन धम का उदय भी एक धािमक आदं ोलन ारा सामािजक िवरोध क
कारवाई ारा हआ । भारत म 1857 का वत ता सं ाम जो अ याचारी शासक , दमनकारी आिथक
नीितय और राजनैितक नीितयाँ जो भख ु मरी का कारण बनी, अ यायपूण कर-नीित, बारदौली िकसान
आदं ोलन, अ पृ यता सबं धं ी आदं ोलन तथा भारत म कृ षक आदं ोलन, वतमान म अ पसं यक , बालक
एवं मिहलाओ ं के आदं ोलन, ाचार आदं ोलन आिद मख ु ह जो आज भी िनरंतर जारी है ।
भारत म औपिनवेिशक दौर म भी िविभ न भाग म जनता के बदहाल जीवन तर सुधारने, शै िणक
अवसर क असमानता, जाितवाद, अ यायपूण कराधान आिद के िवरोध म कई आदं ोलन हए ह और इस
कार सामािजक ि या से सामािजक सधु ार हए । योितबा फुले ,पंिडता रामाबाई ने प प से अपने
आदं ोलन को लोग के जीवन तर को सधु ारने एवं उनके आ मिव ास को बढ़ाने म के ि त िकया जो िक
सामािजक, आिथक एवं शै िणक प से िपछड़े हए थे। वतं ता संघष के दौरान ही भारतीय रा ीय
काँ ेस का ज म हआ िजसने ारि भक दौर म टकराव का रा ता न चनु कर िमलजल ु कर, सधु ार का काय –
साथ िकया गया जो बाद म अलग-थलग हो गया ।
आजादी के आदं ोलन क शु आत योजनाब व प प से अं ेजी राज के िव भारतीय
नेताओ ं ने क थी िजसम गाधं ी के सामािजक सधु ार का काय म, सम राजनैितक, सामािजक आदं ोलन
के मा यम से वत ता से जड़ु ा था । गांधी ने सृजना मकता के साथ सां कृ ितक ऐितहािसक पर पराओ ं क
यव था का संदु र समागम िकया और सभी बुराइय का अिहसं क तरीके से िवरोध का रा ता अपनाया ।
गाधं ी जी ने सभी सं थागत बरु ाइय के िव जझु ा प से अिहसं क तरीक का योग िकया
उदाहरण के तौर पर कई आदं ोलन जैसे असहयोग आदं ोलन, बारदौली स या ह, नमक स या ह इन
आदं ोलन म गांधी का यि व एक ांितकारी के प उभर कर आता है। सामािजक ि या पर ि डालने
पर पता चलता है िक गांधी क यह ांितकारी सोच अ छी थी। अ याय के िव गांधीजी के अिहसं क
तरीक का योग मािटन लथू र ने अ वेत लोग के अिधकार क लड़ाई म िकया और जय काश नारायण ने
अपने स पणू ाि त आदं ोलन म िकया।
गांधी के योग म अनश ु ासन, आ ा व िनयं ण, आ मक सहन जैसे योग म लाये जाने वाले
हिथयार का यथोिचत समय पर िवशेष यान िदया गया तथा भड़काऊ, उ े यहीन व िहसं क तरीक को नजर
अदं ाज िकया गया ।
जय काश नारायण ने इन तरीक को अपनाते हए प ट िकया िक िकसी ांितकारी आदं ोलन के
दौरान उ े य ठीक वही नह रहते जो उसके ार भ के दौर म रहते ह । उस आदं ोिलत माहौल का लाभ लेते
हए सामािजक सधु ार या लाभ के मु को उसम सि मिलत कर लेना चािहए। जय काश नारायण का मानना
था िक सामािजक प रवतन के िलए सामािजक ि या के मक़ ु ाबले राजनीितक ि या गौण है। कुछ ि याएँ जो
यावसाियक सं थाओ ं के दायरे से बाहर है िक तु सामािजक ि या से यादा ससु गं त है सामािजक प रवतन
म मह वपणू औज़ार के प म योग म लाई जाती है ।
वतं ता ाि के बाद भी भारत म बहत से संघष हए जैसे बारगर दल आंदोलन, मछली–पालने
वाल का आदं ोलन, मिहला आदं ोलन, भिू म अिधकार के िलए भिू महीन आिदवासी आदं ोलन, मानवािधकार
आदं ोलन एवं नाग रक अिधकार आंदोलन इ यािद । इसके अित र त पयावरणीय आदं ोलन, टाचार
आदं ोलन इ यािद। टाचार आदं ोलन जो िक अ ना हज़ारे के नेतृ व मे लड़ा गया सामािजक ि या का
अ छा उदाहरण रहा और यहाँ तक िक इसे स ा प रवतन के प म देखा गया य िक आदं ोलन के कुछ
महीने बाद सरकार बदल गयी ।
सामािजक ि या समाज काय क एक वतं –सहायक प ित के प म वीकृ ित पा चक ु है िक तु
इसका उपयोग यापक तर पर नह होता । इसका एक कारण तो यह है िक यह यापक प रवतन से संबि धत
है इसम बड़ी शि और साम य क आव यकता होती है; दसू रे , इसके प रणाम के ित भी लोग को काफ
संदहे बना रहता है । आमतौर पर राजनीितक या आिथक समहू से संबि धत ि याओ ं का भाव इतना
अिधक होता है िक बहत कुछ सामािजक मू य क ि थित िनयंि त ही रहती है । कोई भी समाज हो उसम
प रवतन तो होते ही रहते है और ायः अनेक आव यकताएँ परू े सामािजक पैमाने पर महससू क ही जाती
रहती ह । इन आव यकताओ ं क पिू त के िलए आव यक ि थित लाना अ य तरीक के अित र बहत कुछ
सामािजक ि या से भी संभव होता है । समाज काय क यह प ित समाज- काय के दशन और िस ांत ारा
मा यता ा जनतािं क मू य क थापना एवं िवकास हेतु योग म लायी जाती है । आज के समाज के
ऊँच-नीच, िपछड़े और िवकिसत तथा ी और पु ष के आधार पर जो भेद ह ,उनको िमटाना जनतांि क
काय है । अनसु िू चत जाितयाँ ,आदम जाितयाँ, िमक, मिहला, अिशि त, कृ षक, िवधवा, वे या, इ यािद
ऐसे वग ह िजनका सामा य समाज म सामा य प से सामजं य होना चािहए ।
सवण या धिनक-वग म आिं शक प म आज भी अछूत या गरीब के ित हेय भावना है जो दरू
होनी चािहए, शासन तं और प ित के ऐसे अनेक दोष ह िजनसे िक कुछ अ यतं साधारण ि थित के यि
अपनी आवाज या ाथना स म अिधकारी तक नह पहचं ा पाते । देश के एक बहत बड़े तबके म आज भी
अिश ा िव मान है और जीवन–यापन के िलए आव यक यनू तम साधन क भी कमी है । इन सब
सामािजक सम याओ ं को दरू करने के िलए बहत से य न िकए जाते रह ह और िकए जा रहे ह । ये य न
िवचार िविनमय करके अपना कदम िनि त करती ह। जब तक अपेि त सामािजक प रवतन हेतु िनयम-कानून
संशोधन या िनमाण नह हो जाता अथवा उसके िलए आव यक अ य यव थाएँ नह कर दी जाती तब तक
सामािजक ि या के ये य न जारी रखे जाते ह । जब समाज म यि य के यवहार को जनतांि क मोड़ देने
होते ह तो सामािजक ि या क मदद ली जाती है।
आज हमारे देश मे जनतािं क मू य क थापना होती हई िदख रही है और इसको अिधक से
अिधक यापक तर पर थािपत करना बाक है। इसके िलए यापक तर पर इन मू य क आव यकता को
समझना है और ऐसी जन-जागृित तथा जन-चेतना को बढ़ाना है, िजससे िक यापक जन समदु ाय इ ह
आ मसात कर सके । जब ऐसे मू य को यापक पैमाने पर यि य और समदु ाय को हण या आ मसात
करना या कराया जाना होता है तो इसके िलए सामािजक ि या क मदद बहत ही उपयोगी होती है।
जनजागृित या जनचेतना ारा मू यगत, सामािजक प रवतन क अिभलाषा तृि हेतु यवहारगत, सामािजक
चे ा या ि या के पवू , सभी संभावनाओ ं और शि य का समिु चत मू यांकन, अनमु ान और ान होना
अ यंत आव यक होता है। समाज म अनेक यि य और वग ारा अनेक सामािजक ि याओ ं का एक
साथ ही योग होता रहता है। हम जानते ह िक सामािजक ि याएं जहाँ एक ओर िवधायी होती है वह दसू री
ओर अ य बहत सी ि याएं िवघटनकारी भी होत ह । िवधायी ि याओ ं का उपयोग करके सामािजक
ि या क गित को ती करना चािहए और िवघटनकारी ि याओ ं पर सतक ि रख कर उनसे बचाव के
उपाय भी करते रहना आव यक होता है।
जन भावनाओ ं म प रवतन ारा सामािजक मा यताओ ं या मू य के व प म प रवतन के िलए यह
आव यक है िक उसके अनसु ार जन िश ा के काय म चलाए जाएँ। यहाँ जन िश ा का अथ यह है िक जो
भी िढ़गत मू य या पर पराएँ ह उनक आव यकता और हािनकारक ि थित का वैचा रक तर पर आम
लोग को एहसास कराया जाय और जो अपेि त प रवतन या मू य अथवा मा यता हो उसक आव यकता
और संभावना समझायी और दशायी जाय। ऐसा करने के िलए समदु ाय या समहू के यि य म आव यक
चार िकया जाता है और समाज के भौितक और मानवीय साधन का उपयोग िकया जाता है, ऐसा करने से
सारा काय म जनता को अ ना काय म मालमू होता है। जनतं के िलए यह आव यक शत भी परू ी होती है
िक जो भी काय हो वे न मा जनता के िलए हो वरन जनता ारा भी हो। जनतं का यह िस ांत समाज काय
का भी एक िस ांत है और समाजकाय म भागीदारी को अ यिधक मह व िदया जाता है और इसक बड़ी
उपयोिगता समझी जाती है। सामािजक ि या उतनी ही सबल और साथक हो सकती है िजतना क अिधक
जन सहयोग और जन भागीदारी िक उपि थित होगी। जनता के िवचार म प रवतन के िलए जन-जन म ेम,
सौहाद और आ था भी होना ज री है। यह ेम और आ था िजतनी ही अिधक होती है उतनी ही अिधक
सफलता क ि थित होती है।
सामािजक कायकता, अिभकरण या सं थाओ ं को इनक उपि थित और वृि क चे ा म संल न
होना चािहए। जब सम या वयं क अनभु िू त होती है और उसके िनराकरण के उपाय वयं ही तैयार िकए
जाते है तो काय म िदलच पी यादा वाभािवक तौर पर होती है। सामािजक ि या के दौरान इस बात का
याल रखना चािहए िक सेवाथ तथा जन समदु ाय के य न के दौरान ऐसी चे ा होनी चािहए िजससे िक
यादा से यादा ऐसा मालमू हो िक सारे ि या-कलाप जन समदु ाय के वयं के ही ह ।
ने फै सला लेने वालो को संदेश िदया िक योजना से लेकर लागू करने तक, हर तर पर जन भागीदारी होनी
चािहए।
अत: हम कह सकते है िक सामािजक ि या िक प रभाशा से लेकर रणनीितय एवं यिु य बनाते
आदं ोलन करने इन येक तर या संचार क मह वपणू भिू मका होती है।
4.8 सारांश :
सारांश के प म कहा जा सकता है िक सामािजक ि या के मा यम से कायकता समाज म या त सम या के
िनराकरण हेतू यास करता है िजसम एक सश त मा यम संचार होता है । संचार मा यम से वह आमजन तक
ि या के उ े य को पहचं ाता है िजससे सामािजक भागीदारी बल होती है । य िक हम जानते है िक िकसी
भी सामािजक ि या म सफलता तब तक ा त नह हो सकती जब तक िक उस ि या म आमजन शािमल
ना ह । अत: सामािजक ि या म सचं ार एक सश त मा यम है जोिक इस सपं णू ि या िविध म सहायक
सािबत होता है ।
4.9 बोध न :
1. सामािजक ि या या है ? इसके अथ एवं प रभाषा को षट क िजए ।
2. सामािजक ि या के उ े य एवं े को रे खांिकत क िजए ।
3. सामािजक ि या के इितहास एवं ासंिगगकता म संचार क भािवता का िव तार पूवक वणन
क िजए ।
4. सामािजक ि या एवं सच
ं ार के पवु ावलोकन क या या क िजए ।
5. सामािजक ि या क ि या म संचार िकस कार से अपनी महती भिू मका को अदा करता है प ट
क िजए ।
14 Samuel John (2000) : Social Action : An Indian Panorama New Delhi :Voluntary
Action Network India.
15 Singh, Surendra (1986) : Horizons of Social Work (Edited) By Surendra Sing and
K.S. Soodan. Lucknow: Jyotsana publication
16 Davis, Martin (2000) : The Blackwell Encyclopedia of Social Work (Edited)
Massachusetts : Blackwell Publication.
17 Friedlander, Walter. A. (1977) : Introduction to Social Welfare. New Jersey :
Prentice Hall.
18 Foran, J. (2003) : The Future of Revolutions. London : Zed Books.
19 D. Paul Chowdhry (1964) : Introduction to Social work History Concepts methods
And Fields. Delhi : Atma Ram and Sons.
20 Pathak S.H. (1971) : Social Welfare and Family Planning. New Delhi: Planning
Commission GoI
21 Ogburn & Nimkoff (1957) : A Hand Book of Sociology. Landon : Rutledge and
Kegan pall Limited.
22 Aptheker Herbert (1941) : Basic Concepts in Social Work. North Carolina : Press
Chappel Hill.
23 कुल े ठ, िव. एवं जैन, ह.ं , (2005). ‘जनसंचार शोध िविधयां’, जयपरु : माया काशन।
24 िसहं , ीका त, (2001). ‘सं ेषण: ित प एवं िस ातं ’, फै जाबाद : भारती पि लशस ए ड
िड ी यटू सा
25 सरदाना, चं कातं ा एवं मेहता, कृ .िश., ‘जनसचं ार कल, आज और कल’, िद ली: ान गगं ा।
26 Kumar, keval j., (2004). ‘Mass Communication in India’, Mumbai: Jaico
Publishing House.
27 Rayudu, C.S., (2008). ‘Communication’, Mumbai: Himalaya Publishing House.
28 जैन, रमेश, (2003). ‘जनसंचार एवं प का रता’, जयपरु : मगं लदीप पि लके श स।
29 Desai, Amit, ‘Journalism and Mass Communication’, New Delhi: Reference Press.
30 बघेल, संजय िसंह, ‘संचार, समाज और सािह य’, गािजयाबाद : के .एल. पचौरी काशन।