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B.A.Hons.

Sem-II For BSS-121 Unit-4


Prepared By- D P Mitra For Sec-A

सामाजिक परिवर्तन(Social Change)


सामाजिक परिवर्तन की अवधािणा

आरंभ में सामाजिक पररवर्तन की अवधारणा का पररचय अगस्र् काम्ट ने कराया था िो फ्ांसीसी थे और समािशास्त्र के
िनक माने िार्े हैं। बाद में, सामाजिक पररवर्तन की अवधारणा हरबटत स्पेंसर, कार्त मार्कसत और बहुर् से अन्य समािशाजस्त्रयों द्वारा
पररष्कृ र् और जवकजसर् की गई। कोई भी मानव समाि जस्थर नहीं है और इस कार् में सामाजिक पररवर्तन के प्रकारों और जदशा का
अनमु ान र्गाना कजिन है। इसका कारण यह है जक सामाजिक पररवर्तन र्ाने वार्े कारक हमेशा समान नहीं रहर्े। िनसख्ं या पररवजर्तर्
होर्ी है, जवज्ञान और र्कनीक बढ़र्ी है, जवचारधारा और सामाजिक मल्ू य एक नया प्रकार ग्रहण कर र्ेर्े हैं और इसके पररणामस्वरूप
सामाजिक सरं चना, सामाजिक र्त्रं और सामाजिक संस्थान अपने कायत करने के र्रीके बदर् देर्े हैं औद्योगीकरण और शहरीकरण की
प्रजिया ने समस्र् सामाजिक सबं धं ों को बदर् जदया है। सामाजिक पररवर्तन 'शब्द' पररवर्तन को सक
ं े र् देर्ा है िो जक मानव बार्चीर्
एवं अन्र्र संबंधों में होर्ा है। समाि संबंधों का िार् है इसजर्ए सामाजिक पररवर्तन का अथत सामाजिक संबंधों की व्यवस्था में
पररवर्तन से है। यह स्पष्ट जदखर्ा है जक र्ात्काजर्क संसार समान रूप से नहीं बदर् रहा और साथ ही सामाजिक पररवर्तन में जवजभन्न
जवषमर्ाओ ं को प्रदजशतर् करर्ा है। सामाजिक पररवर्तन का धीमा और सरर् प्रकार र्ीव्र और िजटर् प्रकार से भी जवभाजिर् हो सकर्ा
है। अजशजिर् व्यजि के सदु रू ग्रामीण िेत्र से महानगरों की र्रफ पर्ायन से पाररवाररक िीवन की संस्थाएं प्रभाजवर् होंगी, िो शहरी
िीवन की र्ेि रफ्र्ार की विह होने वार्े र्नाव और कष्ट को बढ़ा देगा और औद्योजगक और शहरी िीवन के जर्ए नए सामाजिक
मल्ू यों की आवश्यकर्ा होंगी।

उन्नीसवीं शर्ाब्दी के मध्य के बाद से, बहुर् सारे समािशाजस्त्रयों ने सामाजिक पररवर्तन को पररभाजषर् करने के प्रयास जकए
हैं। सामाजिक पररवर्तन की कुछ पररभाषाएँ जनम्न प्रकार है:

अगस्र् काम्ट: समाि की उन्नजर् अनुमाजनर् अवस्था के िम में होर्ी है िो मानव ज्ञान के जवकास पर आधाररर् होर्ी है।

एन्डिसन औि पािकिः सामाजिक पररवर्तन में सामाजिक संरचना में बदर्ाव या सामाजिक प्रकारों या प्रजिया के कायत करने के र्रीके
में स्वर्ः ही बदर्ाव समाजहर् होर्ा है।

डेजवस: सामाजिक पररवर्तन का र्ात्पयत उन कुछ बदर्ावों से है िो सामाजिक संगिन में घजटर् होर्े हैं िो समाि की संरचना और कायत
हैं।

जगजिन औि जगजिनः सामाजिक पररवर्तन िीवन की मान्य रीजर्यों से जवचर्न है चाहे यह बदर्ाव भौगोजर्क जस्थजर्यों, सांस्कृ जर्क
उपकरणों में या िनसख्ं या की सरं चना इत्याजद की वज़ह से हो।

जिन्सबगत: सामाजिक पररवर्तन से मैं सामाजिक संरचना में पररवर्तन को समझर्ा ह।ँ उदाहरण समाि का आकार, उसके जहस्सों की
संरचना या सामंिस्य या उसके सगं िन का प्रकार ।
कोजनिंग: सामाजिक पररवर्तन का र्ात्पयत उन संशोधनों से है िो र्ोगों की िीवन पद्धजर् में होर्े हैं।

िुन्डवगत: सामाजिक पररवर्तन का र्ात्पयत जकसी भी संशोधन से है िो अन्र्ः मानवीय संबंधों और आचरण के मानकों की स्थाजपर्
पद्धजर् में होर्ा है।

मैकाइवि औि पेि: एक समािशास्त्री के रूप में हमारा सीधा संबधं सामाजिक संबंधों से है। इन संबधं ों में पररवर्तन को ही के वर् हम
सामाजिक पररवर्तन मानेंगे।

मिूमदािः सामाजिक पररवर्तन को हम पररभाजषर् कर सकर्े हैं उस नए फै शन या ररवाि में िो परु ानों को संशोजधर् या बदर् देर्ा है,
मानव के िीवन में या सामाजिक जिया में।

सामाजिक परिवर्तन की परिभाषाओ िं से सामने आने वािे महत्वपूणत र्थ्य हैं

१) सामाजिक पररवर्तन जकसी जनजिर् कारण का प्रभाव है।

२) सामाजिक पररवर्तन, सामाजिक संरचना, सामाजिक संगिन और सामाजिक जियाजवजध को संशोजधर् करर्ा है।

३) यह र्ोगों की िीवन पद्धजर् को संशोजधर् करर्ा है।

४) र्कनीकी और सांस्कृ जर्क पररवर्तन सामाजिक पररवर्तन से जभन्न है।

५) सामाजिक पररवर्तन सामाजिक व्यवहार, सामाजिक मल्ू यों और िीवनयापन के र्रीकों के माध्यम से पररर्जिर् होर्ा है।

सामाजिक परिवर्तन के मुख्य स्रोर्

१. आजवष्कार
२. खोि
३. प्रसार- पजिमीकरण, आधजु नकीकरण, भमू ण्डर्ीकरण,
४. आन्र्ररक जवभेदीकरण

सामाजिक परिवर्तन के जसद्ािंर्

सामाजिक पररवर्तन र्था सामाजिक रूपांर्रण के अनेक जसद्धार्ं हैं :

१) जवकासात्मक जसद्धार्ं अथवा उजद्वकासीय जसद्धांर्

२) चिात्मक जसद्धार्ं अथवा चिीय जसद्धांर्;

३) संरचनात्मक प्रकायातत्मक जसद्धार्ं


४) वगत संघषत का जसद्धार्ं

१. उजिकासीय जसद्ािंर्

उजद्वकासीय जसद्धार्ं की प्रमख


ु अवधारणा यह है जक सभी मानव समािों में सदा पररवर्तन होर्े रहर्े हैं। सभी पररवर्तनों की
प्रवृजर् र्गभग एक िैसी ही होर्ी है। अपने उद्गम से जवकास के चरण की ओर बढ़र्े िाना या जफर यह कहें जक सरर् और आरंजभक
दशा से िजटर् एवं आधजु नक अवस्था की ओर बढ़र्े िाना । उजद्वकासीय जसद्धांर् यह भी बर्ार्ा है जक जवकासमर् ू क पररवर्तन चरम
अवस्था में पहुचं ने के बाद चरम जबन्दु पर पहुचँ िार्ा है। यह जसद्धार्ं बर्ार्ा है जक समाि पररवर्तनशीर् है र्था यह सर्र् जवकास करर्े
िाना इसकी मर् ू प्रवृजि है। उजद्वकासीय जसद्धांर् को दो मख्ु य श्रेजणयों में जवभाजिर् जकया िा सकर्ा है- (क) पारंपररक उजद्वकासीय
जसद्धांर् (ख) नव उजद्वकासीय जसद्धार्ं ।

क) पाििंपरिक उजिकासीय जसद्ान्र्

इन जसद्धांर्ों का प्रादभु ातव मानवजवज्ञाजनयों र्था समािशाजस्त्रयों के प्रयासों से 19वीं शर्ाब्दी के आर्े आर्े हो चक
ु ा था।
यद्यजप इन सभी जवद्वानों की धारणाओ ं में एकरूपर्ा नहीं है, जफर र्गभग सभी जवचार यह मानर्े हैं जक जवकासमर् ू क पररवर्तन
एकरे खीय एवं एकर् जदशागामी होर्े है जिस प्रकार एककोजशकीय िीव से जवकजसर् होर्े-होर्े सभी िजटर् सरं चना वार्ी मानव देह
अवस्था र्क पहुचं र्ा है, उसी प्रकार समाि आजद अवस्था से आधजु नकर्म अवस्था र्क पहुचं ने के जर्ए सर्र् जवकजसर् होर्ा रहर्ा है।
समाि अजस्र्त्व में आर्े ही वृजद्ध करने र्गर्े हैं। समाि में रहने वार्े र्ोग समय के साथ-साथ बदर्र्े हुए जवकास के अनेक आयाम
र्ांघर्े हुए उसी प्रकार जवजशष्ट हो िार्े हैं िैसे करोडों देह कोजशकाएं जमर्कर जवजशष्ट देह प्रणार्ी का जनमातण करर्ी हैं। उदजवकासीय
जसद्धांर्ों के अजधष्ठार्ाओ ं में प्रमखु है अगस्र्कॉम्ट, हिबटत स्पेंसि, ई.बी. टॉयिि, एच.िे.एस. मेन, िे. एफ. मैक िेनन औि ऐस.
िे.िी फ्रेिि (जिजटश उजिकासीय स्कूि से), िेजवस हेनिी मॉगतन (अमेरिकी उजिकासीय स्कूि से) औि िे. िे. बाचोफे न,
अडोल्फ बाजस्टयन औि फडीनािंड टोनीि फडीनािंड टोनीि, (िमतन उजिकासीय स्कूि से) इन सभी जवचारकों ने मानव समाि
की जवकासमर् ू क प्रवृजियों पर उल्र्ेखनीय कायत जकए हैं।
ऑगस्ट कॉम्ट का मानना है जक सभी समाि जवकास की र्ीन अवस्थाओ ं से गिु रर्े है- धाजमतक स्र्र, आध्याजत्मक स्र्र,
प्रत्यिात्मक अथवा र्ाजकत क स्र्र। हरबटत स्पेंसर डाजबतन की िैजवक जवकास के जसद्धांर् में जवश्वास रखर्ा है और कहर्ा है जक मानव
समाि जवकास के अनेक अवस्थाओ ं से गिु रर्े हुए छोटे-छोटे मानव समहू ों र्था सरर् सामाजिक ढाचं ों से जनकर्कर आधजु नक कार्
में मौिदू जवशार् व िजटर् सामाजिक संरचनाओ ं र्क पहुचं ा है। इसे सामाजिक डाजवतनवाद भी कहा िार्ा है ई. बी. टॉयर्र के अनुसार
सारी दजु नया के सभी मनष्ु यों की सोच अपने अजस्र्त्व एवं जवकास के मामर्े में र्गभग एक िैसी होर्ी है। इसे मानजसक एकर्ा कहा
िार्ा है। सभी मनुष्य एक िैसी जवकासात्मक अवस्थाओ ं से गिु रर्े हैं। जिन्हें जनम्न र्ीन अवस्थाओ ं में समझा िा सकर्ा है-
सवातत्मकवाद, बहुदवे वाद, एके श्वरवाद । र्ेजवस हेनरी मॉगतन का मानना है जक मानव समाि अपनी जवकास यात्रा के दौरान र्ीन
अवस्थाओ ं से गिु रर्ा है और अर्ं र्ः र्कनीकी नवीनीकरण की अवस्था र्क पहुचं ा है। ये र्ीन अवस्थाएं हैं िगं र्ीपन, बबतर अवस्था,
और सभ्य अवस्था । -

ख) नव उजिकासीय जवचािक सप्रु जसद्ध समािशास्त्री बी. गाडतन, जचल्ड, िूजियन स्टीवडत र्था िेस्िी ह्वाइट ने
उजद्वकासीय जसद्धांर्ों में बीसवीं शर्ाब्दी में संशोधन जकये। इसके बाद उजद्वकासीय जसद्धार्ं ों का िो स्वरूप सामने आया वह परू ी र्रह
सह प्रमाण, सव्ु यवजस्थर् र्था र्कत संगर् था। उन्होंने अपने जसद्धार्ं ों को पारंपररक उजद्वकासीय जसद्धांर्ों से अर्ग करने के जर्ए उन्हें
नवीन उजद्वकासीय जसद्धांर् की संज्ञा दी और स्वयं को नव उजद्वकासीय जवचारक घोजषर् जकया। गाडतन, जचल्ड ने अपने जसद्धांर्ों को
र्कनीकी जवकास से िोडा। उन्होंने बर्ाया जक सस्ं कृ जर् का जवकास चार प्रमख ु अवजधयों से गिु रर्ा है। कास्ं य यगु र्था र्ौह यगु उनके
उजद्वकासीय जसद्धांर् के अनुसार जवकास की प्रकृ जर् रेखीय है जिसे वैजश्वक उदजवकासवाद भी कहा िार्ा है।

र्ेस्र्ी हाइट सांस्कृ जर्क जवकास को मनुष्य की ऊिात का समजु चर् प्रबंधन मानर्े हैं। उसकी सांस्कृ जर्क जवकास का मौजर्क
जसद्धांर् यह है जक संस्कृ जर् का जवकास मनुष्य के द्वारा होर्ा ही र्ब है िब मनुष्य की प्रजर् वषत ऊिात संचयन की मात्रा में वृजद्ध होने
र्गर्ी है। मनष्ु य की र्कनीकी दिर्ा का अथत है उसका अपनी ऊिात को अजधक से अजधक काम में र्गाना। दोनों घटक ऊिात सचं यन
एवं र्कनीकी जवकास साथ-साथ चर्र्े रहर्े हैं और दोनों में र्गार्ार वृजद्ध होर्ी रहर्ी है नवीन उजद्वकासवादी िजू र्यन स्टीवडत ने
बहुरेखीय जवकास के जसद्धार्ं को िन्म जदया। एकरेखीय र्था वैजश्वक जसद्धांर् के अजस्र्त्व को स्वीकार करर्े हुए उन्होंने अपने जसद्धांर्
की घोषणा की बहुरेखीय जवकास से स्टीवडत का र्ात्पयत यह है जक जवजभन्न सास्ं कृ जर्क िेत्र र्था सास्ं कृ जर्क उपिेत्रों में सास्ं कृ जर्क
जवकास की अवस्थाओ ं की पद्धजर्यां जभन्न-जभन्न होर्ी हैं। माशतर् डी सहजर्स र्था एर्मन सजवतस ने जवजशष्ट र्था सामान्य जवकास की
अवधारणा को िन्म जदया और इसके द्वारा जवकास के जवजभन्न जसद्धांर्ों के बीच सामंिस्य स्थाजपर् करने का प्रयास जकया। इन जसद्धार्ं ों
का मख्ु य दावा था जक जवकास की धारा को िैजवक पि र्था सास्ं कृ जर्क पि दोनों जदशाओ ं की ओर साथ-साथ प्रवाजहर् जकया िा
सके ।

२) चक्रीय जसद्ािंर्

चिीय जसद्धार्ं एक र्ंबी समयावजध में बार-बार बदर्र्ी पररजस्थजर्यों, घजटर् होर्ी घटनाओ,ं बदर्र्े रूपों र्था पहनावे की
शैजर्यों से जवशेष रूप से सरोकार रखर्ा है। यद्यजप जवजभन्न समयावजधयों में पररवर्तन के स्वरूप अर्ग-अर्ग देखे गए हैं। चिीय
जसद्धार्ं कार मानर्े हैं जक समाि पररवर्तन के अनेक दौरों से गज़ु रर्े हैं। जवजभन्न समयावजधयों में पररवर्तन के जवजभन्न दौर देखे िा सकर्े
हैं। कोई भी पररवर्तन समाि को पणू ातवस्था में नहीं पहुचं ा पार्ा है। देखने में यह आया है जक बदर्ाव का यह दौर व्यजियों, समािों को
आगे चर्कर उसी जस्थजर् में र्ा खडा करर्ा है िहां से बदर्ाव का दौर शरू ु हुआ था। इसके बाद जफर उसी प्रकार पररवर्तन का अगर्ा
चि शरू ु हो िार्ा है। ए एि क्रोबि चिीय पद्धजर् का शास्त्रीय जवश्लेषण पजिमी देशों में जस्त्रयों की कपडों में आने वार्े पररवर्तनों को
कें द्र में रखकर करर्ा है। िोबरने देखा जक पजिमी देशों में जस्त्रयां र्ंबे समय र्क एक खास र्रह के कपडे पहनर्ी हैं और उसके बाद
अर्ग र्रह के इनमें भी एक अवजध के बाद पररवर्तन आ िार्ा है। इस प्रकार के चिीय िम में उनके कपडों से िडु ी रुजचयों में बदर्ाव
आर्े रहर्े हैं िो बार-बार एक अवजध के बाद दोहराएं िार्े हैं। ओसवार् सपेंिर्र का जवचार है जक सभ्यर्ाएं उत्पन्न होर्ी हैं, जफर
जवकजसर् होर्ी हैं और एक अवजध के बाद उनमें िरणा की प्रजिया आरंभ हो िार्ी है। उदाहरण के जर्ए रोमन साम्राज्य बना, बहुर् ही
शजिशार्ी हुआ और जफर धीरे -धीरे उसका पर्न हो गया। इसी चि से जिजटश साम्राज्य भी गिु रा। जपटीरिम सोिोजकन का मानना था
जक सभी महान सभ्यर्ाएं र्ीन सांस्कृ जर्क िम से गिु रर्ी हैं िो परू ी र्रह चिीय होर्े हैं। (1) जवचारात्मक संस्कृ जर्, आस्था और रहस्य
उद्घाटन पर आधाररर् समाि (2) आदशतवादी संस्कृ जर्, अनुभववाद र्था अर्ौजकक जवचारों को मानने वार्ा समाि (3) अनुभवों के
आधार पर चर्ने वार्ा समाि उसका यह भी मानना था जक सभी समाि अजनवायत रूप से िररर् नहीं होर्े बजल्क जवकास की जवजभन्न
अवस्थाओ ं से गिु रर्े हुए अपनी आवश्यकर्ाओ ं के अनुसार चि बदर्र्े रहर्े हैं।

महान सभ्यर्ाओ ं का अध्ययन करने के बाद अनातल्ड टायनबी इस नर्ीिे पर पहुचं े थे जक सभ्यर्ाएं िन्मर्ी हैं, जवकजसर्
होर्ी हैं, िररर् होर्ी हैं और मर िार्ी हैं। उनका जवश्वास था जक वर्तमान में पजिम सभ्यर्ा अब िरण की अवस्था की ओर िा रही है।
जवल्फ्रेडो पीएटों ने रािनैजर्क कुर्ीनों का अध्ययन जकया था और उसके आधार पर कुर्ीनों ने चिीय िम में बदर्ने के बारे में अपने
जवचार प्रकट जकए। उन्होंने रािनीजर्क कुर्ीनों को दो श्रेजणयों में बांटा एक र्ोमडी की प्रवृजि वार्े रािनैजर्क कुर्ीन और दसू रे शेर की
प्रवृजि वार्े रािनैजर्क इन दोनों की रािनैजर्क शजि प्राप्त करने और उसे अपने जनयत्रं ण में रखने के र्रीके एक दसू रे से जबल्कुर् अर्ग
होर्े हैं। पहर्ी प्रकार के रािनीजर्ज्ञ छर् कपट और धर्ू र्त ा से रािनैजर्क शजि प्राप्त करर्े हैं और उसी शैर्ी में उस पर अपना कब्िा
बनाए रख हैं। िबजक दसू रे प्रकार के रािनीजर्ज्ञ सिा प्राप्त करने के जर्ए सैन्य शजि का खर् ु ा प्रयोग करर्े हैं। इसी प्रकार इन रािनीजर्ज्ञों
की एक दसू रे को सिा से हटाने और पनु ः सिा प्राप्त करने के र्रीके चिीय होर्े हैं। िैसे शेर की प्रवृजि वार्े रािनीजर्ज्ञ र्ोमडी की
प्रवृजि वार्े रािनीजर्ज्ञों को सैन्य बर् द्वारा सिा से हटा देर्े हैं और संपणू त आजधपत्य बनाए रखर्े हुए बर् पवू तक शासन करर्े रहर्े हैं।
िबजक र्ोमडी की प्रवृजर् वार्े रािनीजर्ज्ञों को जफर से सिा में आना होर्ा है र्ो वे शेर की प्रवृजर् वार्े रािनीजर्ज्ञों को हराने के जर्ए
रािनैजर्क गिबंधन करर्े हैं और अपनी र्ाकर् बढ़ार्े हुए र्रकीब से सिा हजथया र्ेर्े हैं र्ेजकन यह हमेशा सिा में नहीं बने रह सकर्े।
जसंह प्रवृजि वार्े रािनीजर्ज्ञ जफर से सैन्य बर् का इस्र्ेमार् करर्े हैं और र्ोमडी प्रवृजि के रािनीजर्ज्ञों से जफर सिा छीन र्ेर्े हैं। सिा
पररवर्तन का यह चिीय रूप से र्गार्ार चर्र्ा रहर्ा है।

३) सिंिचनात्मक प्रकायातत्मक जसद्ािंर्

ढांचागर् जियात्मक जसद्धांर् सामाजिक पररवर्तन के छोटे र्था मझोर्े स्र्र के पररवर्तनों से सीधे िडु े होर्े हैं। इन जसद्धांर्ों को
मानने वार्े जवचारक समाि को मानव-शरीर की र्रह मानर्े हैं। िैसे शरीर जवजभन्न अगं ों के सर्ं जु र्र् कायों से जियाशीर् रहर्ा है, उसी
प्रकार समाि के जवजभन्न संस्थान एक दसू रे के साथ समरसर्ा बनाए रखर्े हुए सामाजिक ढाचं े को बनाए रखर्े हैं। ये जवद्वान मानर्े हैं
जक पररवर्तन र्गार्ार होर्ा रहर्ा है। ये पररवर्तन र्ब र्क समाि के ढांचे को बार-बार बनार्े जबगाडर्े रहर्े हैं िब र्क समाि
सास्ं कृ जर्क स्वरूप प्राप्त नहीं कर र्ेर्ा। इनमें से उन पररवर्तनों को समाि स्वीकार भी करर्े हैं और आत्मसार् भी करर्ा है िो उनके
जर्ए उपयोगी होर्े हैं। गैर उपयोगी पररवर्तनों को समाि स्वीकार नहीं करर्े। िब-िब गैर िरूरी बदर्ावों के कारण सामाजिक संर्ुर्न
गडबडार्ा है, सामाजिक संस्थान र्माम गडबजडयों को दरु स्र् कर जफर से सामाजिक संर्र् ु न स्थाजपर् कर देर्े हैं िैसे प्राकृ जर्क आपदा,
भख ू मरी, शरणाजथतयों के बडी संख्या में घसु आने, अथवा यद्ध ु की जस्थजर् उत्पन्न हो िाने पर सामाजिक संर्ुर्न भगं हो िार्ा है और
सामाजिक संस्थानों पर जफर से इस संर्ुर्न को स्थाजपर् करने का दाजयत्व आ पडर्ा है। िोबटत मटतन का जवचार है जक सभी बडे
सामाजिक ढांचें या र्ो अपने आप में समय रहर्े आवश्यक सधु ार कर र्ेर्े हैं या जफर नष्ट हो िार्े हैं। िो समाि जकसी भी हार्ार् में
बदर्ने से इनकार कर देर्े हैं उनका अपने अजस्र्त्व को ज्यों का त्यों बनाए रखना मजु श्कर् हो िार्ा है।

४) वगत सघिं षत का जसद्ार्िं

इन जसद्धार्ं ों में जवश्वास रखने वार्े जवचारक यह मानर्े हैं जक िब समाि में ससं ाधनों का जवर्रण असमान होर्ा है और उनके
बीच बडे अंर्रार् आ िार्े हैं र्ो समाि में र्नाव पैदा हो िार्ा है, असहमजर् उत्पन्न हो िार्ी है और टकराव बढ़ने र्गर्े हैं। वगत संघषत
के जसद्धांर्ों को मानने वार्े जवचारक कहर्े हैं जक सभी समाि र्रर्ककी करना चाहर्े हैं। िब शोजषर् वगत अपनी िीवन दशा सधु ार र्ेर्े हैं
र्ो सामाजिक जवकास होर्ा है और टकरावों की सभं ावना बढ़ने र्गर्ी है। उनका जवश्वास है जक हर समाि में नीचे से ऊपर उिने की
प्रवृजि होर्ी है। वे मानर्े हैं जक टकराव बेहर्र समाि जनमातण के जर्ए िरूरी घटक हैं। वे यह भी मानर्े हैं जक सामाजिक टकरावों के
जबना पररवर्तन नहीं होर्े, टकराव पररवर्तन में सहयोगी होर्े है। वगत संघषत के जसद्धार्ं को िन्म देने का श्रेय मख्ु यर्ः काित मार्कसत को
िार्ा है। उनके बाद जिर्ने भी जवचारक आए जिनका जवश्वास वगत सघं षत के जसद्धार्ं में था, वे सब कार्त माकत स के पदजचन्हों पर ही चर्े
कार्त मार्कसत का जसद्धांर् पंिू ीपजर् र्था सवतहारा के बीच उत्पन्न होने वार्े वगत संघषत र्था उसके पररणामों पर आधाररर् है। कार्त मार्कसत
समाि को एक ऐसा संगिन मानर्ा है जिसमें दो जवरोधी वगत जनवास करर्े हैं एक शोषक दसू रा शोजषर् कार्त मार्कसत का मानना था जक
िब र्क पंिू ीवादी व्यवस्था रहेगी र्ब र्क शोजषर् वगत शोषक वगत के जखर्ाफ जनरंर्र संघषत करर्ा रहेगा। कार्त मार्कसत का जवश्वास था
जक दोनों वगों के बीच टकराव से समाि में िाजं र्कारी पररवर्तन होंगे और जफर एक ऐसा समाि बन िाएगा जिसमें वगों के जर्ए कोई
िगह नहीं होगी यह मानव समाि की उच्चवस्था होगी। कार्त मार्कसत पहर्ा जवचारक था जिसने हेगर् के द्वंदात्मक जसद्धांर् का
जवश्लेषण जकया। सामाजिक पररवर्तन की द्वंदात्मक पद्धजर् न र्ो एक रेखीय पररवर्तन का समथतन करर्ी है न ही चिीय पररवर्तन का यह
जसद्धार्ं यह मानर्ा है जक जवरोध और सघं षत के फर्स्वरूप नए सामाजिक ढाचं े का िन्म होर्ा है। परंपरागर् समाि में िब शोषक और
शोजषर् के बीच संघषत होर्ा है र्ो नए समाि का िन्म होर्ा है इस प्रकार यथाजस्थजर् से जवरोध उत्पन्न होर्ा है और जवरोध के
फर्स्वरूप िो संघषत पैदा होर्ा है वो सामाजिक जस्थरर्ा को िन्म देर्ा है र्ेजकन यह जस्थरर्ा अथवा समरसर्ा हमेशा बनी नहीं रहर्ी।
समाि में जफर जवजभन्न कारणों में से जफर और जफर वगत संघषत की जस्थजर् बनर्ी है और पररणामस्वरूप जफर से वगतहीन समरस समाि
जवकजसर् हो िार्ा है। वगत संघषत के जसद्धांर् में जवश्वास रखने वार्े जवद्वान यह मानर्े हैं जक समाि में यह प्रजिया बार-बार दोहराई िार्ी
रहर्ी है। आधजु नक यगु के जवचारक ऊपर बर्ाये गए सभी सामाजिक पररवर्तन के जवजभन्न जसद्धार्ं ों को कहीं न कहीं मान्यर्ा देर्े है।
बहुर् कम जवचारक ऐसे हैं िो इन जसद्धांर्ों से हटकर अपने नए मौजर्क जसद्धांर्ों को िन्म दे पाए हैं। ऐसे जवचारकों की संख्या भी बहुर्
कम है िो यह मानर्े हैं जक सामाजिक पररवर्तनों से सदैव सामाजिक जवकास ही होर्ा है अथवा समाि का पर्न और िरण आवश्यक
रूप से होर्ा है। जफर भी आमर्ौर पर र्ोगों का यह मानना है जक समाि बदर्र्े हैं और उनके पीछे सामाजिक पररजस्थजर्यां जकसी न
जकसी रूप में जवद्यमान रहर्ी हैं और समाि के बाहर भी, व्यवजस्थ र्भी हो सकर्ी हैं और अव्यवजस्थर् भी ज्यादार्र जवचारक हैं िो यह
मानर्े हैं जक सभी सामाजिक पररवर्तन अच्छे या बरु े की श्रेणी में नहीं आर्े। ये सभी इस मामर्े में एकमर् हैं जक संर्जु र्र् व समरस
समाि द्वदं ों से भरे और हाय र्ौबा वार्े समािों की र्र् ु ना में अच्छे होर्े हैं। यद्यजप सामाजिक जस्थरर्ा कभी-कभी शोषण, दमन और
अन्याय को भी िन्म देर्ी है। ऐसी जस्थजर् में िब समाि में अन्याय और शोषण बढ़र्ा ही िा रहा हो र्ब बेहर्र है जक शोजषर् व दजमर्
वगत शोषण व दमन के जखर्ाफ आवाि उिाएं और टकराव की जस्थजर् पैदा हो। इससे समाि अपने आप को बदर्ने के जर्ए जववश हो
िाएगा और इस बार् की सभं ावना रहेगी पररणामस्वरूप बेहर्र समाि का िन्म हो। इस प्रकार पररवर्तन समाि के जर्ए िरूरी है और
प्रायः यह माना िार्ा है जक इसका पररणाम अच्छा ही होगा। पररवर्तन और जस्थरर्ा दो ऐसी अवस्थाएं हैं िो एक दसू रे से िडु ी होर्ी हैं
और जकसी भी समाि में घजटर् होर्ी रह सकर्ी हैं।

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