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प्रतीकात्मक अंत:क्रियावाद में मीड का योगदान

शिकागो संप्रदाय के अमेरिकी दािश शिक तथा समाजिास्त्री जॉजश हर्शर्श मीड िे
व्यक्ति एवं समाज के संर्ंधों के संदर्श में इस शवचािधािा का समथश ि शकया शक सामाशजक
संिचिा व्यक्ति की चेतिा में र्िती है शर्गड़ती है औि परिवशतश त होती िहती है । मीड िे
समाज औि व्यक्ति के संर्ंधों के समाजिास्त्रीय अध्ययि के क्षेत्र में सामाशजक
अंतशरशयावाद की पिं पिा का प्रािं र् शकया शजसका शवकास प्रतीकात्मक अंतः शरयावाद के
रूप में हुआ है ।

मीड िे अपिी पुस्तक Mind, Self and Society में प्रतीकात्मक अन्तः शरयावाद
संर्ंधी अपिे शसद्ां त का प्रशतपादि चाि मुख्य अवधािणाओं के द्वािा किते हैं -:

स्व(Self)

मीड िे स्व की अवधािणा को प्रतीकात्मक अंतः शरयावाद का केंद्रीय आधाि र्िाया


है । उिके अिुसाि मिुष्य के र्ीति स्व होता है , जो व्यक्ति के जन्म के समय अपिे शविु द्
रूप में होता है । यह केवल सहजवृशि औि आवेग से र्िा होता है ।
मीड के शलए स्व सृजिात्मक सावयव है । वह र्िार्ि शरयािील िहता है । स्व अपिे
आप में केंद्रीय रूप से एक सामाशजक प्रशरया है । स्व स्वयं स्व से अंतशरशया किता है।
र्ाहि की दु शिया की र्ातें पहले स्व के पास पहुं चती हैं । स्व का इि र्ातों से आमिा सामिा
होता है औि यही स्व की अंतशरशया है । यही स्व र्ाहि की दु शिया की र्ूशमकाओं को अपिा
समझकि अपिा ले ता है औि धीिे -धीिे वह र्ाहिी दु शिया को अपिी दु शिया समझिे लगता
है ।

मिुष्य का स्व र्िार्ि सृजिात्मक औि शरयािील होता है । मीड िे स्व को दो


अवस्थाओं में दे खा। पहली अवस्था मैं(I) की है । यह मैं सावयव का शविुद् रूप है । इसके
प्रशत उिि असंगशित होते हैं । इसमें अपिे मूलर्ूत आवेग होते हैं । इि मूलर्ूत आवेगों का
समाज से कोई सिोकाि िहीं होता है । यह स्व मिमािे ढं ग से अपिी शरयाएं किता है ।

स्व की दू सिी अवस्था मुझे (Me)की है । इस अवस्था में दू सिों के प्रशत स्व की
अशर्वृशि असंगशित हो जाती हैं । मुझे की अवस्था में स्व दू सिों से सीखता है औि दू सिों
की वस्तुओ,ं मािकों, मूल्ों, र्ूशमकाओं आशद को मुझे का अंग र्िा लेता है । इस अवस्था
में दू सिों की अशर्व्यक्तियां औि मिोर्ाव स्व के अपिे हो जाते हैं। अर् दू सिों के प्रर्ाव
के कािण स्वयं व्यक्ति में चेतिा आ जाती है ।
स्व-अंतक्रििया

मीड का कहिा है शक व्यक्ति के स्व एवं र्ाहिी दु शिया में शििं ति अंतशरशया होती
िहती है । अंतशरशया शक इस प्रशरया द्वािा एक व्यक्ति दू सिे व्यक्ति की र्ूशमका को स्वयं
पि ओढ़ लेता है (र्ूशमका ग्रहण)। इसी अंतशरशया की प्रशरया में अपिे आप प्रतीकों की
सूची का आकाि र्ढ़ता जाता है । इस प्रकाि दू सिे लोगों के अिुर्वों को स्व ले ता िहता है
औि स्व के अिुर्वों का शििं ति शवस्ताि होता िहता है ।

स्व का क्रवकास

मीड के प्रतीकात्मक अंतः शरयावाद का र्ुशियादी तत्व का शवकास है। मीड कहते
हैं शक जर् मिुष्य पैदा होता है तो वह मात्र जै शवकीय प्राणी होता है। शििु को समाज के
शियम, आदिश, मूल्, मािक, व्यवहाि, जीिे के तिीके आशद शकसी की र्ी जािकािी िहीं
होती है । धीिे -धीिे वही जै शवकीय प्राणी एक सामाशजक प्राणी के रुप में शवकशसत होता है।
यह रम स्व के शवकास द्वािा संपन्न होता है ।(र्च्चे के िोिे पि मााँ का दू ध शपलािा)।

प्रतीकात्मक अक्रिप्राय

मीड मािते हैं शक (मिुष्य) स्व की अशधकां ि शिर्शिता प्रतीकों पि होती है । मिुष्य
का अशधकां ि व्यवहाि, शरया, अंतशरशया प्रतीकों द्वािा संचाशलत होते हैं । प्रतीकों के एक
ही अथश अथवा अशर्प्राय को सर्ी समझते हैं । इसशलए प्रतीकों के अशर्प्राय को अध्ययि
का मुख्य शर्ंदु मािते हुए अध्ययि कििे पि मीड र्ल दे ते हैं । प्रतीकों के माध्यम से मिुष्य
अंतशरशया किता है । प्रतीकों के अशर्प्राय से मिुष्य की अंतशरशया का मूल कािण स्पष्ट
होता है । इसशलए मीड प्रतीकात्मक अशर्प्राय को प्रतीकात्मक अंतःशरयावादी शसद्ां त की
एक आवश्यक अवधािणा मािते हैं । मीड िे प्रतीकों की संचाि पद्शत की र्ूशमका में
शवस्ताि से प्रकाि डाला है ।

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