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SC5 Grade 10
SC5 Grade 10
ु व
ै कुटुम्बकम एवं सहसम्बद्धता
प्यारे बच्चो!
सीखना जीवनभर चलने वाली प्रक्रिया है । हम प्रतिदिन कक्षा में तथा कक्षा के बाहर भी बहुत कुछ नया
सीखते ही रहते हैं। हम सब जानते हैं कि भाषा हमारे भावों को व्यक्त करने का एक शक्तिशाली
माध्यम होती है । हम यह भी जानते हैं कि किसी भी व्यक्ति के गुण ही उसे उसके समाज और संस्कृति
से जोड़ने का काम करते हैं। यह ध्यान में रखते हुए इस इकाई में हम अपनी संस्कृति, पहचान
(अस्मिता) एवं विचार आदि के आपसी संबंधों को पहचानते हुए उनके विश्व के साथ सबंधों को जानने
की कोशिश करें गे, जिससे हम अपने समाज में अपनी भमि
ू का पहचान सकें।
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पंचम इकाई - वसध
ु व
ै कुटुम्बकम एवं सहसम्बद्धता
प्यारे बच्चो!
⮚ साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे साक्षात्कार, जीवनी लेखन, संस्मरण आदि से परिचित हो
सकेंगे I
⮚ व्याकरण की कुछ कोटियों जैसे संधि, विच्छे द से भी परिचित हो सकेंगे I
सप्ताह 1
प्यारे बच्चो,
⮚ सीखना और सिखाना जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है । हम प्रतिदिन कक्षा में तथा
कक्षा के बाहर भी बहुत कुछ नया सीखते ही रहते हैं। जैसा कि हम जानते ही हैं कि
मनष्ु य केवल किसी क्षेत्र, समाज, नगर या राष्ट्र का ही नागरिक नहीं है बल्कि वह इस
परू े ग्लोब/पथ्
ृ वी के साथ साथ ब्रह्माण्ड का हिस्सा है और इसके परिवार का सदस्य है ,
अतः परू ी कायनात/सष्टि
ृ के लिए उसकी कुछ विशेष जिम्मेदारियां और जवाबदे हियां भी
हैं। हमें ज्ञात है कि भाषा भावों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम होती है । इसी
कारण भाषा के विभिन्न कौशलों (श्रवण, वाचन, पठन और लेखन) को समद्
ृ ध बनाना
ही भाषा शिक्षण का मख्
ु य उद्दे श्य होता है और यह इकाई भी इस उद्दे श्य को आगे
बढ़ाने का कार्य करती है । इसमें हम वैश्वीकरण और सम्वहनीयता को समझने और
आत्मसात करने का प्रयास करें गे।
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⮚ इकाई शीर्षक - वसध
ु व
ै कुटुम्बकम एवं सहसम्बद्धता
⮚ स्रोत- कविता- मनष्ु यता, कवि – मैथिलीशरण गुप्त, पाठ- मानवीय करुणा की दिव्य
चमक (संस्मरण), लेखक- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, भाषा व्यवहार- संधि (भेद
सहित), रचनात्मक-साक्षात्कार विधा/जीवनी लेखन
गतिविधि-1
चलो, अब हम इस कविता को यति, गति, लय और तक ु के साथ पढ़ते हैं और उसके भावार्थ पर चर्चा
करते हैं, साथ ही साथ हम इस कविता में संधि शब्दों की पहचान भी करें गे-
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कविता- मनष्ु यता
गतिविधि
समह
ू चर्चा समय: दस मिनट
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गतिविधि
कोई ऐसी तकनीक, जो आपकी जीवनचर्या को बेहतर बनाने के साथ साथ आपको किसी तरह का
नक
ु सान भी पहुंचा रही है ? लगभग १०० शब्दों में उस पर अपने विचार लिखकर अभिव्यक्त
कीजिए-
मेरे अनभ
ु व मेरे विचार
_________________________________________________________________________
_____________________________________________________________________
4. गतिविधि के दौरान मझ
ु े किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?
_______________________________________________________________________
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5. उपर्युक्त बिंदओ
ु ं पर शिक्षक/सहपाठी/अभिभावक के सझ
ु ाव
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सप्ताह 2
प्यारे बच्चो,
पिछले सप्ताह हमने ‘मैथिलीशरण गप्ु त’ जी की कविता ‘मनष्ु यता’ को पढ़ा था, जिसमें हमने
प्राकृतिक वातावरण के साथ मानवीय संबंधों के तादात्म्य पर चर्चा की थी और उसे व्यक्तिगत एवं
सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के दृष्टिकोण से दे खा था I इस सप्ताह में हम रामवक्ष ृ बेनीपरु ी द्वारा रचित
रे खाचित्र को पढ़ें गे और इसके साथ ही हम समाज को दिशा दे ने वाली हस्तियों पर भी बातचीत करें गे।
गतिविधि
हम सबके आस पास समाज में कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो अपनी सामाजिक सेवाओं के
कारण काफी नामचीन और सम्मानित होते हैं, ऐसे ही किसी व्यक्ति के विषय में कम से कम
२०० शब्दों में जानकारी दे ते हुए स्केच तैयार कीजिए-
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● चलिए, अब हम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विख्यात व्यक्तित्व “फादर कामिल बल्
ु के” से जड़
ु े
इस संस्मरण को व्याकरणिक नियमों का पालन करते हुए उचित आरोह-अवरोह के साथ भाव
समझते हुए पढ़ते हैं।
● पढ़ते समय हम सभी कठिन, अपरिचित या नवीन शब्दों को चिह्नित कर लेंगे ताकि उनको
समझा जा सके।
कहाँ से शरू
ु करें इलाहाबाद की सड़कों पर फादर की साइकिल चलती दीख रही है । वह हमारे पास
आकर रुकती है , मस
ु कराते हुए उतरते हैं, 'दे खिए-दे खिए मैंने उसे पढ़ लिया है और मैं कहना चाहता हूँ'
उनको क्रोध में कभी नहीं दे खा, आवेश में दे खा है और ममता तथा प्यार में सवाल छलकता महसस ू
किया है । अकसर उन्हें दे खकर लगता कि बेल्जियन में इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में पहुँचकर उनके
मन में संन्यासी बनने की इच्छा कैसे जा गई जबकि घर भरा-परू ा था दो भाई, एक बहिन माँ पिता
सभी थे।
"मैं जन्मभमि
ू की पछ
ू रहा हूँ?"
"घर में किसी की याद?" "माँ की याद आती है बहुत याद आती है ।"
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फिर अकसर माँ की स्मति
ृ में डूब जाते दे खा है । उनकी माँ की चिट्ठियाँ अकसर उनके पास आती थीं।
अपने अभिन्न मित्र डॉ. रघव
ु श
ं को वह उन चिट्टियों को दिखाते थे। पिता और भाइयों के लिए बहुत
लगाव मन में नहीं था। पिता व्यवसायी थे। एक भाई वहीं पादरी हो गया है । एक भाई काम करता है ,
उसका परिवार है । बहन सख्त और जिद्दी थी। बहुत दे र से उसने शादी की। फ़ादर को एकाध बार
उसकी शादी की चिंता व्यक्त करते उन दिनों दे खा था। भारत में बस जाने के बाद दो या तीन बार
अपने परिवार से मिलने भारत से बेल्जियम गए थे।
उनकी शर्त मान ली गई और वह भारत आ गए। पहले 'जिसेट संघ' में दो साल पादरियों के
बीच धर्माचार की पढ़ाई की। फिर 9-10 वर्ष दार्जिलिंग में पढ़ते रहे । कलकत्ता (कोलकाता) से
बीए किया और फिर इलाहाबाद से एम.ए.। उन दिनों डॉ. धीरें द्र वर्मा हिंदी विभाग के अध्यक्ष
शोधप्रबंध प्रयाग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में रहकर 1950 में परू ा किया-'रामकथा
उत्पत्ति और विकासा' 'परिमल' में उसके अध्याय पढ़े गए थे। फादर ने मातरलिंक के प्रसिद्ध
नाटक 'ब्लू बर्ड' का रूपांतर भी किया है "नीलपंछी' के नाम से। बाद में वह सेंट जेवियर्स
कॉलिज, राँची में हिंदी तथा संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष हो गए और यहीं उन्होंने अपना
प्रसिद्ध अंग्रेजी-हिंदी कोश तैयार किया और बाइबिल का अनव
ु ाद भी... और वहीं बीमार पड़े
पटना आए। दिल्ली आए और चले गए-47 वर्ष दे श में रहकर और 73 वर्ष की जिंदगी जीकर।
फ़ादर बल्
ु के संकल्प से संन्यासी थे। कभी-कभी लगता है यह मन से संन्यासी नहीं थे। रिश्ता
बनाते थे तो तोड़ते नहीं थे। दसियों साल बाद मिलने के बाद भी उसकी गंध महसस
ू होती थी।
वह जब भी दिल्ली आते जरूर मिलते-खोजकर, समय निकालकर, गर्मी, सर्दी. बरसात झेलकर
मिलते, चाहे दो मिनट के लिए ही सहीं। यह कौन सन्यासी करता है ? उनकी चिंता हिंदी को
राष्ट्रभाषा के रूप में दे खने की थी। हर मंच से इसकी तकलीफ़ बयान करते. इसके लिए
अकाट्य तर्क दे त।े बस इसी एक सवाल पर उन्हें झंझ
ु लाते दे खा है और हिंदी वालों द्वारा ही
हिंदी की उपेक्षा पर दख
ु करते उन्हें पाया है । घर-परिवार के बारे में , निजी दख
ु तकलीफ़ के बारे
में पछ
ू ना उनका स्वभाव था और बड़े से बड़े दख
ु में उनके मख
ु से सांत्वना के जाद ू भरे दो
शब्द सन
ु ना एक ऐसी रोशनी से भर दे ता था जो किसी गहरी तपस्या से जनमती है । 'हर मौत
दिखाती है जीवन को नयी राह मझ
ु े अपनी पत्नी और पत्र
ु की मत्ृ यु याद आ रही है और फ़ादर
के शब्दों से झरती विरल शांति भी।
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आज वह नहीं है । दिल्ली में बीमार रहे और पता नहीं चला। बाँहें खोलकर इस बार उन्होंने गले
नहीं लगाया। जब दे खा तब वे बाँहें दोनों हाथों की सज
ू ी उँ गलियों को उलझाए ताबत
ू में जिस्म
पर पड़ी थीं। जो शांति बरसती थी वह चेहरे पर थिर थी। तरलता जम गई थी। वह 18 अगस्त
1982 की सब
ु ह दस बजे का समय था। दिल्ली में कश्मीरी गेट के निकलसन कब्रगाह में
उनका ताबत
ू एक छोटी सी नीली गाड़ी में से उतारा गया। कुछ पादरी, रघव
ु ंश जी का बेटा और
उनके परिजन राजेश्वरसिंह उसे उतार रहे थे। फिर उसे उठाकर एक लंबी संकरी उदास पेड़ों की
घनी छाँह वाली सड़क से कब्रगाह के आखिरी छोर तक ले जाया गया जहाँ धरती की गोद में
सल
ु ाने के लिए कर अवाक् मँह
ु खोले लेटी थी। ऊपर करील की पनी छाँह थी और चारों ओर
करें और तेज धप
ू के वत्त
ृ ा जैनेंद्र कुमार, विजयंद्र स्नातक, अजित कुमार, डॉ. निर्मला जैन और
मसीही समद
ु ाय के लोग, पादरीगण उनके बीच में गैरिक बसन पहने इलाहाबाद के प्रसिद्ध
विज्ञान-शिक्षक डॉ. सत्यप्रकाश और डॉ. रघव
ु ंश भी जो अकेले उस संकरी सड़क की ठं डी उदासी
में बहुत पहले से खामोश दख ु की किन्ही अपरिचित आहटों से दबे हुए थे, सिमट आए थे कब्र
के चारों तरफ़ फ़ादर की दे ह पहले कब्र के ऊपर लिटाई गई। मसीही विधि से अंतिम संस्कार
शरू
ु हुआ। राँची के फ़ादर पास्कल तोयना के द्वारा। उन्होंने हिंदी में मसीही विधि से प्रार्थना
की फिर सेंट जेवियर्स के रे क्टर फ़ादर पास्कल ने उनके जीवन और कर्म पर श्रद्धांजलि अर्पित
करते हुए कहा, 'फादर बल्
ु के धरती में जा रहे हैं। इस धरती से ऐसे रत्न और पैदा हों।' डॉ.
सत्यप्रकाश ने भी अपनी श्रद्धांजलि में उनके अनक ु रणीय जीवन को नमन किया। फिर दे ह
कब्र में उतार दी गई...।
मैं नहीं जानता इस संन्यासी ने कभी सोचा था या नहीं कि उसकी मत्ृ यु पर कोई रोएगा।
लेकिन उस क्षण रोने वालों की कमी नहीं थी। (नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है ।) इस
तरह हमारे बीच से वह चला गया जो हममें से सबसे अधिक छायादार फल-फूल गंध से भरा
और सबसे अलग, सबका होकर, सबसे ऊँचाई पर मानवीय करुणा की दिव्य चमक में
लहलहाता खड़ा था। जिसकी स्मति
ृ हम सबके मन में जो उनके निकट थे किसी यज्ञ की पवित्र
आग की आँच की तरह आजीवन बनी रहे गी। मैं उस पवित्र ज्योति की याद में श्रद्धानत हूँ।
समाप्त
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गतिविधि
मेरे अनभ
ु व मेरे विचार
_________________________________________________________________________
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4. गतिविधि के दौरान मझ
ु े किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?
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5. उपर्युक्त बिंदओ
ु ं पर शिक्षक/सहपाठी/अभिभावक के सझ
ु ाव
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सप्ताह 3
प्यारे बच्चो,
पिछले सप्ताह हमने ‘’मानवीय करुणा की दिव्य चमक’’ को पढ़ा था और उसके आधार पर कुछ
गतिविधियों को किया था I पिछली इकाई में हमने ‘अव्यय’ को समझ लिया था, आज हम पाठ में
प्रयक्
ु त अव्ययों और विदे शी शब्दों की तलाश करें गे और उन्हें बिन्दव
ु ार तालिका में नोट करें गे-
गतिविधि
प्यारे बच्चो,
गतिविधि
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गतिविधि
जीवन मल्
ू य के महत्त्व को समझना/अपनाना समय : एक कालांश
मेरे अनभ
ु व मेरे विचार
_________________________________________________________________________
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4. गतिविधि के दौरान मझ
ु े किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?
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_______________________________________________________________________
5. उपर्युक्त बिंदओ
ु ं पर शिक्षक/सहपाठी/अभिभावक के सझ
ु ाव
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सप्ताह 4
प्यारे बच्चो,
पिछले सप्ताह हमने ‘’मानवीय करुणा की दिव्य चमक’’ के विषय में अध्ययन किया था,
जिसमें तत्सम, तद्भव, दे शज, विदे शज जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया थाI आज हम ऐसे
ही कुछ शब्दों की चर्चा करें गे, जो कुछ अलग हैं और इनमें एक से अधिक शब्द छुपे हुए हैं
और ये व्याकरण के कुछ नियमों से बंधे हुए हैंI आज हम इन्हीं नियमों को समझने का प्रयास
करें गे, जिसे व्याकरण की भाषा में ‘’संधि’’ कहा जाता है I
गतिविधि
नीचे कुछ विशेष शब्द दिए जा रहे हैं, जिनको तोड़ने पर हम दे खते हैं कि ये शब्द दो अलग
अलग शब्दों से मिलकर बने हैं-
संधि की परिभाषा- ‘सन्धि’ शब्द का अर्थ है 'मेल' या जोड़। दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो
विकार (परिवर्तन) होता है वह संधि कहलाता है । संस्कृत, हिन्दी एवं अन्य भाषाओं में परस्पर स्वरों या
वर्णों के मेल से उत्पन्न विकार को सन्धि कहते हैं।
संधि तीन प्रकार की होती हैं – १. स्वर सन्धि 2. व्यञ्जन सन्धि 3. विसर्ग सन्धि
हम स्वर संधि के सभी प्रकारों को उदाहरण के साथ समझने का प्रयास करते हैं-
दो स्वरों के मेल से होने वाले विकार (परिवर्तन) को स्वर-संधि कहते हैं। जैसे - विद्या + आलय =
विद्यालय। स्वर-संधि पाँच प्रकार की होती हैं -
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1.दीर्घ संधि 2.गण
ु संधि 3.वद्
ृ धि संधि 4.यण संधि 5.अयादि संधि
1.दीर्घ संधि : ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ के बाद यदि ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ आ जाएँ तो दोनों मिलकर दीर्घ
आ, ई और ऊ हो जाते हैं। जैसे-
2.गण
ु संधि : इसमें अ, आ के आगे इ, ई हो तो ए ; उ, ऊ हो तो ओ तथा ऋ हो तो अर् हो जाता है । इसे
गुण-संधि कहते हैं। जैसे-
3.वद्
ृ धि संधि : अ, आ का ए, ऐ से मेल होने पर ऐ तथा अ, आ का ओ, औ से मेल होने पर औ हो
जाता है । इसे वद्
ृ धि संधि कहते हैं। जैसे –
अ + ए = ऐ ; एक + एक = एकैक
आ + ए = ऐ ; सदा + एव = सदै व
4.यण संधि :
‘ऋ’ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर ऋ को ‘र्’ हो जाता है । इन्हें यण-संधि कहते हैं।
उदाहरण-
उ + अ = व ् + अ ; अनु + अय = अन्वय
उ + आ = व ् + आ ; सु + आगत = स्वागत
ए + अ = अय ् + अ ; ने + अन = नयन
ऐ + अ = आय ् + अ ; गै + अक = गायक
ओ + अ = अव ् + अ ; पो + अन = पवन
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गतिविधि
अब हमने स्वर संधि के नियमों को समझ लिया है , इसके स्थाई ज्ञान के लिए संधि और
विच्छे द का अभ्यास अत्यंत जरुरी है I अतः हम कुछ शब्द और विच्छे द के माध्यम से इसका
अभ्यास करें गे-
मेघालय मत + ऐक्य
भानु + उदय
प्रत्येक
मनि
ु + इंद्र
दर्गु
ु ण
हिम + आलय
नाविक
महा + उत्सव
महोर्मि
एक + एक
मेरे अनभ
ु व मेरे विचार
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4. गतिविधि के दौरान मझ
ु े किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?
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5. उपर्युक्त बिंदओ
ु ं पर शिक्षक/सहपाठी/अभिभावक के सझ
ु ाव
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