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पंचम इकाई : वसध

ु व
ै कुटुम्बकम एवं सहसम्बद्धता

आपसे थोड़ी सी बातचीत

प्यारे बच्चो!

सीखना जीवनभर चलने वाली प्रक्रिया है । हम प्रतिदिन कक्षा में तथा कक्षा के बाहर भी बहुत कुछ नया
सीखते ही रहते हैं। हम सब जानते हैं कि भाषा हमारे भावों को व्यक्त करने का एक शक्तिशाली
माध्यम होती है । हम यह भी जानते हैं कि किसी भी व्यक्ति के गुण ही उसे उसके समाज और संस्कृति
से जोड़ने का काम करते हैं। यह ध्यान में रखते हुए इस इकाई में हम अपनी संस्कृति, पहचान
(अस्मिता) एवं विचार आदि के आपसी संबंधों को पहचानते हुए उनके विश्व के साथ सबंधों को जानने
की कोशिश करें गे, जिससे हम अपने समाज में अपनी भमि
ू का पहचान सकें।

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पंचम इकाई - वसध
ु व
ै कुटुम्बकम एवं सहसम्बद्धता
प्यारे बच्चो!

⮚ इस इकाई में हम अलग-अलग उदाहरणों के माध्यम से जानेंगे कि मनष्ु य का इस परू े ग्लोब


के साथ किस प्रकार का सम्बन्ध है और हम कैसे इस ग्लोबल परिवार का हिस्सा होने
के साथ साथ एक दस
ू रे से संबंधित हैंI
⮚ हम समझेंगे कि ‘’मानवता और सहसम्बन्धता ही वैश्विक विकास के लिए सरु क्षित आधार हैं’’
⮚ हम जानेंगे कि वैश्विक मानवीय संबध
ं ों का स्वरुप कैसा होना चाहिए और साहित्य और भाषा के
क्षेत्र में संवहनीयता किस प्रकार महत्त्वपर्ण
ू हो सकती है ?

⮚ साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे साक्षात्कार, जीवनी लेखन, संस्मरण आदि से परिचित हो
सकेंगे I
⮚ व्याकरण की कुछ कोटियों जैसे संधि, विच्छे द से भी परिचित हो सकेंगे I

कविता – मनष्ु यता


(कवि - मैथिलीशरण गप्ु त)

सप्ताह 1

प्यारे बच्चो,

⮚ सीखना और सिखाना जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है । हम प्रतिदिन कक्षा में तथा
कक्षा के बाहर भी बहुत कुछ नया सीखते ही रहते हैं। जैसा कि हम जानते ही हैं कि
मनष्ु य केवल किसी क्षेत्र, समाज, नगर या राष्ट्र का ही नागरिक नहीं है बल्कि वह इस
परू े ग्लोब/पथ्
ृ वी के साथ साथ ब्रह्माण्ड का हिस्सा है और इसके परिवार का सदस्य है ,
अतः परू ी कायनात/सष्टि
ृ के लिए उसकी कुछ विशेष जिम्मेदारियां और जवाबदे हियां भी
हैं। हमें ज्ञात है कि भाषा भावों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम होती है । इसी
कारण भाषा के विभिन्न कौशलों (श्रवण, वाचन, पठन और लेखन) को समद्
ृ ध बनाना
ही भाषा शिक्षण का मख्
ु य उद्दे श्य होता है और यह इकाई भी इस उद्दे श्य को आगे
बढ़ाने का कार्य करती है । इसमें हम वैश्वीकरण और सम्वहनीयता को समझने और
आत्मसात करने का प्रयास करें गे।

1
⮚ इकाई शीर्षक - वसध
ु व
ै कुटुम्बकम एवं सहसम्बद्धता

⮚ अधिगम उद्दे श्य- यनि


ू ट के माध्यम से छात्र- श्रवण, वाचन, पठन और लेखन कौशलों
के उन उन्नत रूपों में दक्षता प्राप्त कर सकेंगे, जिनके माध्यम से छात्र विश्लेषण,
विषय वस्तु के उद्घाटन और भाषा व्यवहार के विभिन्न स्तरों पर प्रवीणता हासिल
करते हुए वैज्ञानिक एवं तकनीकी नवाचार के सम्प्रेषण द्वारा सामाजिक संरचना में
परिवर्तन एवं प्राकृतिक संरक्षण

⮚ स्रोत- कविता- मनष्ु यता, कवि – मैथिलीशरण गुप्त, पाठ- मानवीय करुणा की दिव्य
चमक (संस्मरण), लेखक- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, भाषा व्यवहार- संधि (भेद
सहित), रचनात्मक-साक्षात्कार विधा/जीवनी लेखन

गतिविधि-1

भाव अभिव्यक्ति समय : एक दिन

दिए गए चित्र को दे खकर अपने मन के भावों को


कम से कम 50 शब्दों में व्यक्त कीजिए-

चलो, अब हम इस कविता को यति, गति, लय और तक ु के साथ पढ़ते हैं और उसके भावार्थ पर चर्चा
करते हैं, साथ ही साथ हम इस कविता में संधि शब्दों की पहचान भी करें गे-

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कविता- मनष्ु यता

विचार लो कि मर्त्य हो न मत्ृ यु से डरो कभी रहो न भल


ू के कभी, मदांध तच्
ु छ वित्त में
मरो परं तु यों मरो कि याद जो करें सभी अनाथ कौन है यहां? त्रिलोकनाथ साथ हैं
हुई न यों सम
ु त्ृ यु तो, वथ
ृ ा मरे वथ
ृ ा जिए सनाथन जान आपको करो न गर्व चित्त में
मरा नहीं वही कि जो जिया न आपके लिए दयालु दीनबंधु के बड़े विशाल हाथ हैं
वही पशु प्रवत्ति
ृ है कि आप आप ही चरे अतीव भाग्यहीन है अधीर भाव जो करे
वही मनष्ु य है कि जो मनष्ु य के लिए मरे ।। वही मनष्ु य है कि जो मनष्ु य के लिए मरे ।।
उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती अनंत अंतरिक्ष में अनंत दे व है खड़े
उसी उदार से धरा कृतार्थ भाव मानती समक्ष ही स्वबाहु जो बढ़ा रहे बड़े-बड़े
उसी उदार की सदा सजीव कीर्ति कूजती परस्परावलंब से उठो तथा बढ़ो सभी
तथा उसी उदार को समस्त सष्टि
ृ पज
ू ती अभी अमर्त्य अंक में अपंक हो चढ़ो सभी
अखंड आत्म भाव जो असीम विश्व में भरे रहो न यों, कि एक से न काम और का सरे
वही मनष्ु य है कि जो मनष्ु य के लिए मरे ।। वही मनष्ु य है कि जो मनष्ु य के लिए मरे ।।
क्षुधार्त रं तिदे व ने दिया करस्थ थाल भी मनष्ु य मात्र बंधु है , यही बड़ा विवेक है
तथा दधीचि ने दिया परार्थ अस्थि जाल भी परु ाणपरु
ु ष स्वयंभू पिता प्रसिद्ध एक है
उशीनर क्षितीश ने स्वमांस दान भी किया फलानस
ु ार कर्म के अवश्य बाह्य भेद है
सहर्ष वीर कर्ण ने शरीर चर्म भी दिया परं तु अंतरै क्य में प्रमाणभत
ू वेद हैं,
अनित्य दे ह के लिए, अनादि जीव क्या डरे अनर्थ है कि बंधु ही न बंधु की व्यथा हरे
वही मनष्ु य है कि जो मनष्ु य के लिए मरे ।। वही मनष्ु य है कि जो मनष्ु य के लिए मरे ।।
सहानभ
ु ति
ू चाहिए, महाविभति
ू है यही: चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए
वशीकृता सदै व है बनी हुई स्वयं मही। विपत्ति विघ्न जो पड़े उन्हें ढकेलते हुए
विरुद्धवाद बद्
ु ध का दया प्रवाह में बहा, घटे न हे ल मेल हां, बढ़े न भिन्नता कभी
विनीत लोकवर्ग क्या न सामने झक
ु ा रहा? अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी
अहा! वही उदार है परोपकार जो करे तभी समर्थ भाव है कि तारता हुआ तरे ,
वही मनष्ु य है कि जो मनष्ु य के लिए मरे ।। वही मनष्ु य है कि जो मनष्ु य के लिए मरे ।।

गतिविधि

समह
ू चर्चा समय: दस मिनट

मनष्ु यता कविता के माध्यम से कवि किन गण


ु ों की संवह्नीयता की बात करता है , चर्चा/डिबेट
द्वारा” इनको बिन्दव
ु ार नोट कीजिए-
(भाव-साम्य की कविता के लिए आप अज्ञेय जी की- ‘असाध्य वीणा’ कविता को भी पढ़ सकते हैं।

3
गतिविधि

अभिव्यक्ति लेखन समय : एक दिन

कोई ऐसी तकनीक, जो आपकी जीवनचर्या को बेहतर बनाने के साथ साथ आपको किसी तरह का
नक
ु सान भी पहुंचा रही है ? लगभग १०० शब्दों में उस पर अपने विचार लिखकर अभिव्यक्त
कीजिए-

मेरे अनभ
ु व मेरे विचार

1. मैंने क्या सीखा है ?


_______________________________________________________________________
_______________________________________________________________________
2. मझ
ु े क्या समझ में नहीं आया?
_______________________________________________________________________
_______________________________________________________________________
3. क्या अच्छा लगा?

_________________________________________________________________________
_____________________________________________________________________

4. गतिविधि के दौरान मझ
ु े किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?

_______________________________________________________________________
_______________________________________________________________________

5. उपर्युक्त बिंदओ
ु ं पर शिक्षक/सहपाठी/अभिभावक के सझ
ु ाव

_______________________________________________________________________
_______________________________________________________________________

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सप्ताह 2

पाठ- मानवीय करुणा की दिव्य चमक

लेखक- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

जीवन परिचय एवं पाठ के लिए दे खें- https://ncert.nic.in/textbook/pdf/ihks115.pdf

प्यारे बच्चो,

पिछले सप्ताह हमने ‘मैथिलीशरण गप्ु त’ जी की कविता ‘मनष्ु यता’ को पढ़ा था, जिसमें हमने
प्राकृतिक वातावरण के साथ मानवीय संबंधों के तादात्म्य पर चर्चा की थी और उसे व्यक्तिगत एवं
सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के दृष्टिकोण से दे खा था I इस सप्ताह में हम रामवक्ष ृ बेनीपरु ी द्वारा रचित
रे खाचित्र को पढ़ें गे और इसके साथ ही हम समाज को दिशा दे ने वाली हस्तियों पर भी बातचीत करें गे।

गतिविधि

प्रोजेक्ट कार्य समय: एक दिन

हम सबके आस पास समाज में कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो अपनी सामाजिक सेवाओं के
कारण काफी नामचीन और सम्मानित होते हैं, ऐसे ही किसी व्यक्ति के विषय में कम से कम
२०० शब्दों में जानकारी दे ते हुए स्केच तैयार कीजिए-

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● चलिए, अब हम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विख्यात व्यक्तित्व “फादर कामिल बल्
ु के” से जड़
ु े
इस संस्मरण को व्याकरणिक नियमों का पालन करते हुए उचित आरोह-अवरोह के साथ भाव
समझते हुए पढ़ते हैं।

● पढ़ते समय हम सभी कठिन, अपरिचित या नवीन शब्दों को चिह्नित कर लेंगे ताकि उनको
समझा जा सके।

● पाठ में प्रयक्


ु त लोकोक्तियों और मह ु ावरों के साथ-साथ दे शज, विदे शज शब्दों को भी हम पढ़ते
हुए चिह्नित कर लेंगे और उन्हें शिक्षक की सहायता से स्पष्ट करें गे।

मानवीय करुणा की दिव्य चमक

फादर को जहरबाद से नहीं मरना चाहिए था। जिसकी रगों में दस


ू रों के लिए मिठास भरे अमत
ृ के
अतिरिक्त और कुछ नहीं था उसके लिए इस जहर का विधान क्यों हो? यह सवाल किस ईश्वर से पछ
ू े?
प्रभु की आस्था हो जिसका अस्तित्व था। वह दे ह की इस यातना की परीक्षा उम्र की आखिरी दे हरी पर
क्यों दे ? एक लंबी, पादरी के सफेद चोगे से ढकी आकृति सामने है - गोरा रं ग सफ़ेद झाँई मारती भरू ी
दाढ़ी, नीली आँखें बाहे खोल गले लगाने को आतरु इतनी ममता, इतना अपनत्व इस साधु में अपने हर
एक प्रियजन के लिए उमड़ता रहता था। मैं पैंतीस साल से इसका साक्षी था। तब भी जब वह इलाहाबाद
में थे और तब भी जब वह दिल्ली आते थे। आज उन बाँहों का दबाव में अपनी छाती पर महसस
ू करता
है ।

फादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सन


ु ने जैसा है । उनको दे खना करुणा के निर्मल जल में
स्नान करने जैसा था और उनसे बात करना कर्म के संकल्प से भरना था। मझ
ु े 'परिमल' के वे दिन याद
आते हैं जब हम सब एक पारिवारिक रिश्ते में बंधे जैसे थे जिसके बड़े फादर बल्
ु के थे। हमारे
हं सी-मजाक में वह निर्लिप्त शामिल रहते हमारी गोष्ठियों में वह गंभीर बहस करते हमारी रचनाओं पर
बेबाक राय और सझ
ु ाव दे ते और हमारे घरों के किसी भी उत्सव और संस्कार में वह बड़े भाई और
परु ोहित जैसे खड़े हो हमे अपने आशीषों से भर दे त।े मझ
ु े अपना बच्चा और फादर का उसके मख
ु में
पहली बार अन्न डालना याद आता है और नीली आंखों की चमक में तैरता वात्सल्य भी जैसे किसी
ऊँचा पर दे वदास की छाया में खड़े हो।

कहाँ से शरू
ु करें इलाहाबाद की सड़कों पर फादर की साइकिल चलती दीख रही है । वह हमारे पास
आकर रुकती है , मस
ु कराते हुए उतरते हैं, 'दे खिए-दे खिए मैंने उसे पढ़ लिया है और मैं कहना चाहता हूँ'
उनको क्रोध में कभी नहीं दे खा, आवेश में दे खा है और ममता तथा प्यार में सवाल छलकता महसस ू
किया है । अकसर उन्हें दे खकर लगता कि बेल्जियन में इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष में पहुँचकर उनके
मन में संन्यासी बनने की इच्छा कैसे जा गई जबकि घर भरा-परू ा था दो भाई, एक बहिन माँ पिता
सभी थे।

"आपको अपने दे श की याद आती है ?"

" मेरा दे श तो अब भारत है । "

"मैं जन्मभमि
ू की पछ
ू रहा हूँ?"

"हाँ आती है । बहुत सद


ंु र है मेरी जन्मभमि
ू -रे म्सचैपल। "

"घर में किसी की याद?" "माँ की याद आती है बहुत याद आती है ।"

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फिर अकसर माँ की स्मति
ृ में डूब जाते दे खा है । उनकी माँ की चिट्ठियाँ अकसर उनके पास आती थीं।
अपने अभिन्न मित्र डॉ. रघव
ु श
ं को वह उन चिट्टियों को दिखाते थे। पिता और भाइयों के लिए बहुत
लगाव मन में नहीं था। पिता व्यवसायी थे। एक भाई वहीं पादरी हो गया है । एक भाई काम करता है ,
उसका परिवार है । बहन सख्त और जिद्दी थी। बहुत दे र से उसने शादी की। फ़ादर को एकाध बार
उसकी शादी की चिंता व्यक्त करते उन दिनों दे खा था। भारत में बस जाने के बाद दो या तीन बार
अपने परिवार से मिलने भारत से बेल्जियम गए थे।

"लेकिन मैं तो संन्यासी हूँ।" आप सब छोड़कर क्यों चले आए?"

"प्रभु की इच्छा थी।" वह बालकों की सी सरलता से मस


ु कराकर कहते, "माँ ने बचपन में ही
घोषित कर दिया था कि लड़का हाथ से गया। और सचमच
ु इंजीनियरिंग के अंतिम वर्ष की
पढ़ाई छोड़ फादर बल्
ु के संन्यासी होने जब धर्म गरु
ु के पास गए और कहा कि मैं संन्यास लेना
चाहता हूँ तथा एक शर्त रखी (संन्यास लेते समय संन्यास चाहने वाला शर्त रख सकता है ) कि
मैं भारत जाऊंगा।"

"भारत जाने की बात क्यों उठी?"

"नहीं जानता, बस मन में यह था।"

उनकी शर्त मान ली गई और वह भारत आ गए। पहले 'जिसेट संघ' में दो साल पादरियों के
बीच धर्माचार की पढ़ाई की। फिर 9-10 वर्ष दार्जिलिंग में पढ़ते रहे । कलकत्ता (कोलकाता) से
बीए किया और फिर इलाहाबाद से एम.ए.। उन दिनों डॉ. धीरें द्र वर्मा हिंदी विभाग के अध्यक्ष
शोधप्रबंध प्रयाग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में रहकर 1950 में परू ा किया-'रामकथा
उत्पत्ति और विकासा' 'परिमल' में उसके अध्याय पढ़े गए थे। फादर ने मातरलिंक के प्रसिद्ध
नाटक 'ब्लू बर्ड' का रूपांतर भी किया है "नीलपंछी' के नाम से। बाद में वह सेंट जेवियर्स
कॉलिज, राँची में हिंदी तथा संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष हो गए और यहीं उन्होंने अपना
प्रसिद्ध अंग्रेजी-हिंदी कोश तैयार किया और बाइबिल का अनव
ु ाद भी... और वहीं बीमार पड़े
पटना आए। दिल्ली आए और चले गए-47 वर्ष दे श में रहकर और 73 वर्ष की जिंदगी जीकर।

फ़ादर बल्
ु के संकल्प से संन्यासी थे। कभी-कभी लगता है यह मन से संन्यासी नहीं थे। रिश्ता
बनाते थे तो तोड़ते नहीं थे। दसियों साल बाद मिलने के बाद भी उसकी गंध महसस
ू होती थी।
वह जब भी दिल्ली आते जरूर मिलते-खोजकर, समय निकालकर, गर्मी, सर्दी. बरसात झेलकर
मिलते, चाहे दो मिनट के लिए ही सहीं। यह कौन सन्यासी करता है ? उनकी चिंता हिंदी को
राष्ट्रभाषा के रूप में दे खने की थी। हर मंच से इसकी तकलीफ़ बयान करते. इसके लिए
अकाट्य तर्क दे त।े बस इसी एक सवाल पर उन्हें झंझ
ु लाते दे खा है और हिंदी वालों द्वारा ही
हिंदी की उपेक्षा पर दख
ु करते उन्हें पाया है । घर-परिवार के बारे में , निजी दख
ु तकलीफ़ के बारे
में पछ
ू ना उनका स्वभाव था और बड़े से बड़े दख
ु में उनके मख
ु से सांत्वना के जाद ू भरे दो
शब्द सन
ु ना एक ऐसी रोशनी से भर दे ता था जो किसी गहरी तपस्या से जनमती है । 'हर मौत
दिखाती है जीवन को नयी राह मझ
ु े अपनी पत्नी और पत्र
ु की मत्ृ यु याद आ रही है और फ़ादर
के शब्दों से झरती विरल शांति भी।

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आज वह नहीं है । दिल्ली में बीमार रहे और पता नहीं चला। बाँहें खोलकर इस बार उन्होंने गले
नहीं लगाया। जब दे खा तब वे बाँहें दोनों हाथों की सज
ू ी उँ गलियों को उलझाए ताबत
ू में जिस्म
पर पड़ी थीं। जो शांति बरसती थी वह चेहरे पर थिर थी। तरलता जम गई थी। वह 18 अगस्त
1982 की सब
ु ह दस बजे का समय था। दिल्ली में कश्मीरी गेट के निकलसन कब्रगाह में
उनका ताबत
ू एक छोटी सी नीली गाड़ी में से उतारा गया। कुछ पादरी, रघव
ु ंश जी का बेटा और
उनके परिजन राजेश्वरसिंह उसे उतार रहे थे। फिर उसे उठाकर एक लंबी संकरी उदास पेड़ों की
घनी छाँह वाली सड़क से कब्रगाह के आखिरी छोर तक ले जाया गया जहाँ धरती की गोद में
सल
ु ाने के लिए कर अवाक् मँह
ु खोले लेटी थी। ऊपर करील की पनी छाँह थी और चारों ओर
करें और तेज धप
ू के वत्त
ृ ा जैनेंद्र कुमार, विजयंद्र स्नातक, अजित कुमार, डॉ. निर्मला जैन और
मसीही समद
ु ाय के लोग, पादरीगण उनके बीच में गैरिक बसन पहने इलाहाबाद के प्रसिद्ध
विज्ञान-शिक्षक डॉ. सत्यप्रकाश और डॉ. रघव
ु ंश भी जो अकेले उस संकरी सड़क की ठं डी उदासी
में बहुत पहले से खामोश दख ु की किन्ही अपरिचित आहटों से दबे हुए थे, सिमट आए थे कब्र
के चारों तरफ़ फ़ादर की दे ह पहले कब्र के ऊपर लिटाई गई। मसीही विधि से अंतिम संस्कार
शरू
ु हुआ। राँची के फ़ादर पास्कल तोयना के द्वारा। उन्होंने हिंदी में मसीही विधि से प्रार्थना
की फिर सेंट जेवियर्स के रे क्टर फ़ादर पास्कल ने उनके जीवन और कर्म पर श्रद्धांजलि अर्पित
करते हुए कहा, 'फादर बल्
ु के धरती में जा रहे हैं। इस धरती से ऐसे रत्न और पैदा हों।' डॉ.
सत्यप्रकाश ने भी अपनी श्रद्धांजलि में उनके अनक ु रणीय जीवन को नमन किया। फिर दे ह
कब्र में उतार दी गई...।

मैं नहीं जानता इस संन्यासी ने कभी सोचा था या नहीं कि उसकी मत्ृ यु पर कोई रोएगा।

लेकिन उस क्षण रोने वालों की कमी नहीं थी। (नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है ।) इस
तरह हमारे बीच से वह चला गया जो हममें से सबसे अधिक छायादार फल-फूल गंध से भरा
और सबसे अलग, सबका होकर, सबसे ऊँचाई पर मानवीय करुणा की दिव्य चमक में
लहलहाता खड़ा था। जिसकी स्मति
ृ हम सबके मन में जो उनके निकट थे किसी यज्ञ की पवित्र
आग की आँच की तरह आजीवन बनी रहे गी। मैं उस पवित्र ज्योति की याद में श्रद्धानत हूँ।

ऐसे ही एक अन्य निबंध को आप इस लिंक के माध्यम से भी पढ़ सकते हैं-

निबंध- अजंता (भगवत शरण उपाध्याय) https://www.youtube.com/watch?v=vuM8hkQ7BUQ

समाप्त

आवश्यक स्पष्टता हे तु शब्दों का चयन-


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पाठ में पाए गए मह
ु ावरे /समास/संधि शब्द-
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गतिविधि

लाइब्रेरी वर्क समय 1 दिन

लाइब्रेरी या इंटरनेट के माध्यम से किसी ऐसी सामाजिक धरोहर का पता लगाकर, जो आज


विलप्ु त हो रही है , उस पर रिपोर्ट तैयार कीजिए-

मेरे अनभ
ु व मेरे विचार

1. मैंने क्या सीखा है ?


_______________________________________________________________________
_______________________________________________________________________
2. मझ
ु े क्या समझ में नहीं आया?
_______________________________________________________________________
_______________________________________________________________________
3. क्या अच्छा लगा?

_________________________________________________________________________
_____________________________________________________________________

4. गतिविधि के दौरान मझ
ु े किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?

_______________________________________________________________________
_______________________________________________________________________

5. उपर्युक्त बिंदओ
ु ं पर शिक्षक/सहपाठी/अभिभावक के सझ
ु ाव

_______________________________________________________________________
_______________________________________________________________________

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सप्ताह 3

मानवीय करुणा की दिव्य चमक (क्रमशः)

प्यारे बच्चो,

पिछले सप्ताह हमने ‘’मानवीय करुणा की दिव्य चमक’’ को पढ़ा था और उसके आधार पर कुछ
गतिविधियों को किया था I पिछली इकाई में हमने ‘अव्यय’ को समझ लिया था, आज हम पाठ में
प्रयक्
ु त अव्ययों और विदे शी शब्दों की तलाश करें गे और उन्हें बिन्दव
ु ार तालिका में नोट करें गे-
गतिविधि

अव्यय/विदे शी शब्द समय:एक कालांश

अव्यय विदे शी शब्द


............................................................. .............................................................
............................................................. .............................................................

प्यारे बच्चो,

हमने दे खा कि फादर कामिल बल्


ु के, बेल्जियम के रहने वाले थे लेकिन उन्होंने भारत को अपनी
कर्मस्थली बनाया और भारत के लिए परू े समर्पित भाव से काम कियाI क्या आपके मन में कभी ऐसा
ख्याल आया कि आप भी मानवता के लिए कोई विशेष काम कर सकते हैं!

गतिविधि

स्वयं को विश्व परिवार से जोड़ना समय : एक कालांश

यदि आप को ऐसा अवसर मिले तो आप सम्पर्ण


ू मानवता के लिए कौन सा काम करना चाहें गे,
उसके बारे में कुछ बातें बताइए-

10
गतिविधि

जीवन मल्
ू य के महत्त्व को समझना/अपनाना समय : एक कालांश

इस पाठ को पढने के बाद आपको फादर कामिल बल्


ु के की कौन सी बात अपने जीवन में उतारने के
लिए महत्त्वपर्ण
ू लगी, लिखकर व्यक्त कीजिए-

मेरे अनभ
ु व मेरे विचार

1. मैंने क्या सीखा है ?


_______________________________________________________________________
_______________________________________________________________________
2. मझ
ु े क्या समझ में नहीं आया?
_______________________________________________________________________
_______________________________________________________________________
3. क्या अच्छा लगा?

_________________________________________________________________________
_____________________________________________________________________

4. गतिविधि के दौरान मझ
ु े किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?

_______________________________________________________________________
_______________________________________________________________________

5. उपर्युक्त बिंदओ
ु ं पर शिक्षक/सहपाठी/अभिभावक के सझ
ु ाव

_______________________________________________________________________
_______________________________________________________________________

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सप्ताह 4

संधि और उसके भेद

प्यारे बच्चो,

पिछले सप्ताह हमने ‘’मानवीय करुणा की दिव्य चमक’’ के विषय में अध्ययन किया था,
जिसमें तत्सम, तद्भव, दे शज, विदे शज जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया थाI आज हम ऐसे
ही कुछ शब्दों की चर्चा करें गे, जो कुछ अलग हैं और इनमें एक से अधिक शब्द छुपे हुए हैं
और ये व्याकरण के कुछ नियमों से बंधे हुए हैंI आज हम इन्हीं नियमों को समझने का प्रयास
करें गे, जिसे व्याकरण की भाषा में ‘’संधि’’ कहा जाता है I

गतिविधि

शब्द पहचान समय : एक कालांश

नीचे कुछ विशेष शब्द दिए जा रहे हैं, जिनको तोड़ने पर हम दे खते हैं कि ये शब्द दो अलग
अलग शब्दों से मिलकर बने हैं-

विद्यालय विद्या + आलय = विद्यालय

रमेश रमा + ईश = रमेश

दिव्यांग दिव्य + अंग = दिव्यांग

महौषधि महा + औषधि = महौषधि

मनस्थिति मनः + स्थिति = मनस्थिति

इस प्रकार हम दे ख रहे हैं कि इन शब्दों के आपस में जड़ ु ने पर कुछ व्याकरण के नियम


प्रयक्
ु त हो रहे हैं, जिन्हें हम संधि/संधि विच्छे द के माध्यम से समझ सकते हैं I

संधि की परिभाषा- ‘सन्धि’ शब्द का अर्थ है 'मेल' या जोड़। दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो
विकार (परिवर्तन) होता है वह संधि कहलाता है । संस्कृत, हिन्दी एवं अन्य भाषाओं में परस्पर स्वरों या
वर्णों के मेल से उत्पन्न विकार को सन्धि कहते हैं।

संधि तीन प्रकार की होती हैं – १. स्वर सन्धि 2. व्यञ्जन सन्धि 3. विसर्ग सन्धि

हम स्वर संधि के सभी प्रकारों को उदाहरण के साथ समझने का प्रयास करते हैं-

दो स्वरों के मेल से होने वाले विकार (परिवर्तन) को स्वर-संधि कहते हैं। जैसे - विद्या + आलय =
विद्यालय। स्वर-संधि पाँच प्रकार की होती हैं -

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1.दीर्घ संधि 2.गण
ु संधि 3.वद्
ृ धि संधि 4.यण संधि 5.अयादि संधि

1.दीर्घ संधि : ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ के बाद यदि ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ आ जाएँ तो दोनों मिलकर दीर्घ
आ, ई और ऊ हो जाते हैं। जैसे-

धर्म + अर्थ = धर्मार्थ (अ + आ = आ)

हिम + आलय = हिमालय (अ + आ =आ)

2.गण
ु संधि : इसमें अ, आ के आगे इ, ई हो तो ए ; उ, ऊ हो तो ओ तथा ऋ हो तो अर् हो जाता है । इसे
गुण-संधि कहते हैं। जैसे-

अ + इ = ए ; नर + इंद्र = नरें द्र

अ + उ = ओ ; ज्ञान + उपदे श = ज्ञानोपदे श

अ + ऋ = अर् दे व + ऋषि = दे वर्षि

3.वद्
ृ धि संधि : अ, आ का ए, ऐ से मेल होने पर ऐ तथा अ, आ का ओ, औ से मेल होने पर औ हो
जाता है । इसे वद्
ृ धि संधि कहते हैं। जैसे –
अ + ए = ऐ ; एक + एक = एकैक

आ + ए = ऐ ; सदा + एव = सदै व

4.यण संधि :

इ, ई के आगे कोई विजातीय (असमान) स्वर होने पर इ ई को ‘य ्’ हो जाता है ।

उ, ऊ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर उ ऊ को ‘व ्’ हो जाता है ।

‘ऋ’ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर ऋ को ‘र्’ हो जाता है । इन्हें यण-संधि कहते हैं।

उदाहरण-

इ + अ = य ् + अ ; यदि + अपि = यद्यपि

ई + आ = य ् + आ ; इति + आदि = इत्यादि।

उ + अ = व ् + अ ; अनु + अय = अन्वय

उ + आ = व ् + आ ; सु + आगत = स्वागत

5.अयादि संधि : ए, ऐ और ओ औ से परे किसी भी स्वर के होने पर क्रमशः अय ्, आय ्, अव ् और आव ् हो


जाता है । इसे अयादि संधि कहते हैं। जैसे-

ए + अ = अय ् + अ ; ने + अन = नयन

ऐ + अ = आय ् + अ ; गै + अक = गायक

ओ + अ = अव ् + अ ; पो + अन = पवन

13
गतिविधि

संधि/विच्छे द अभ्यास समय : एक कालांश

अब हमने स्वर संधि के नियमों को समझ लिया है , इसके स्थाई ज्ञान के लिए संधि और
विच्छे द का अभ्यास अत्यंत जरुरी है I अतः हम कुछ शब्द और विच्छे द के माध्यम से इसका
अभ्यास करें गे-

संधि शब्द विच्छे द कीजिए- विच्छे द शब्द संधि कीजिए-

मेघालय मत + ऐक्य

दे वेश महा + इंद्र

भानु + उदय
प्रत्येक
मनि
ु + इंद्र
दर्गु
ु ण
हिम + आलय
नाविक
महा + उत्सव
महोर्मि
एक + एक

मेरे अनभ
ु व मेरे विचार

1. मैंने क्या सीखा है ?


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2. मझ
ु े क्या समझ में नहीं आया?
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3. क्या अच्छा लगा?

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4. गतिविधि के दौरान मझ
ु े किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?

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5. उपर्युक्त बिंदओ
ु ं पर शिक्षक/सहपाठी/अभिभावक के सझ
ु ाव

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