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राष्ट्र का स्वरूप

I. एक शब्द या वाकयाांश या वाकय में उत्तर लिखिए :


प्रश्न 1. ककनके सम्ममिन से राष्ट्र का स्वरूप बनता है ?
उत्तरः भलू म, जन और सांस्कृतत के सम्ममिन से राष्ट्र का स्वरूप बनता है ।
प्रश्न 2. ककसकी कोि में अमूल्य तनधियााँ भरी हैं?
उत्तरः िरती माता की कोि में अमूल्य तनधियााँ भरी हैं।
प्रश्न 3. सच्चे अर्थों में पथ्
ृ वी का पुत्र कौन है?
उत्तरः तनष्ट्काम भाव से सेवा करने वािा ही सच्चे अर्थों में पथ्
ृ वी का पुत्र हैं।
प्रश्न 4. पुत्र का स्वाभाववक कततव्य कया है ?
उत्तरः माता के प्रतत अनुराग और सेवा भाव ही पुत्र का स्वाभाववक कततव्य है ।
प्रश्न 5. माता अपने सब पत्र
ु ों को ककस भाव से चाहती है ?
उत्तरः माता अपने सब पत्र
ु ों को समान भाव से चाहती है ।
प्रश्न 6. राष्ट्र का तीसरा अांग कौन-सा है ?
उत्तरः राष्ट्र का तीसरा अांग सांस्कृतत है ।
प्रश्न 7. राष्ट्र की वद्
ृ धि ककसके द्वारा सांभव है ?
उत्तरः राष्ट्र की वद्
ृ धि सांस्कृतत के द्वारा सांभव है ।
प्रश्न 8. राष्ट्र का सुिदायी रूप कया है ?
उत्तरः समन्वय युकत जीवन ही राष्ट्र का सुिदायी रूप है ।
प्रश्न 9. सांस्कृतत का अलमत भांडार ककसमें भरा हुआ है ?
उत्तरः सांस्कृतत का अलमत भांडार स्वच्छन्द िोक गीतों और ववकलसत िोक
कर्थाओां में भरा हुआ है ।
प्रश्न 10. ‘राष्ट्र का स्वरूप’ पाठ के िेिक कौन हैं?
उत्तरः ‘राष्ट्र का स्वरूप’ पाठ के िेिक श्री वासुदेवशरण अग्रवाि हैं।
II. तनमनलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिएः
प्रश्न 1. राष्ट्र को तनलमतत करनेवािे तत्वों का वणतन कीम्जए।
उत्तरः भूलम, भूलम पर बसने वािे जन और जन की सांस्कृतत इन तीनों के
सम्ममिन से राष्ट्र का स्वरूप बनता है । भलू म के प्रतत हम म्जतने जागत
ृ होंगे,
उतनी ही हमारी राष्ट्रीयता बिवती होगी। मातभ
ृ लू म पर तनवास करनेवािे मनष्ट्ु य
राष्ट्र का दस
ू रा अांग है । पथ्ृ वी माता है और जन उसके पुत्र हैं। राष्ट्र का तीसरा
अांग जन की सांस्कृतत है । सांस्कृतत के ववकास और अभ्युदय के द्वारा ही राष्ट्र
की वद्
ृ धि सांभव है ।
प्रश्न 2. िरती ‘वसुांिरा’ कयों कहिाती है ?
उत्तरः िरती माता की कोि में अमल्
ू य तनधियााँ भरी हैं, म्जनके कारण वह
वसांि
ु रा कहिाती है । िािो, करोडों वर्षो से अनेक प्रकार की िातओ
ु ां को पथ्
ृ वी के
गभत में पोर्षण लमिा है । नददयों ने पहाडों को पीस-पीसकर अगखणत प्रकार की
लमट्दियों से पथ्
ृ वी की दे ह को सजाया है । पथ्
ृ वी की गोद में जन्म िेनेवािे जड-
पत्र्थर कुशि लशम्ल्पयों से साँवारे जाने पर अत्यन्त सौन्दयत के प्रतीक बन जाते
हैं। नाना प्रकार के अनगढ़ रत्न, ववन््य की नददयों के प्रवाह में धचिकते घाि से
नई शोभा फूि पडती है ।
प्रश्न 3. राष्ट्र तनमातण में जन का कया योगदान होता है ?
उत्तरः जन के हृदय में राष्ट्रीयता की कांु जी है । इसी भावना से राष्ट्र-तनमातण के
अांकुर उत्पन्न होते हैं। जो जन पथ्ृ वी के सार्थ माता और पत्र
ु के समबन्ि को
स्वीकार करता है , उसे ही पथ्
ृ वी के वरदानों में भाग पाने का अधिकार है । माता
के प्रतत अनुराग और सेवा भाव पुत्र का स्वाभाववक कततव्य है । जो जन
मातभ
ृ ूलम के सार्थ अपना समबन्ि जोडना चाहता है , उसे अपने कततव्यों के प्रतत
पहिे ्यान दे ना चादहए।
प्रश्न 4. िेिक ने सांस्कृतत को जीवन-वविप का पुष्ट्प कयों कहा है ?
उत्तरः राष्ट्र के समग्र रूप में भूलम और जन के सार्थ-सार्थ जन की सांस्कृतत का
महत्वपूणत स्र्थान है । यदद भलू म और जन अपनी सांस्कृतत से ववरदहत कर ददए
जायाँ, तो राष्ट्र का िोप समझना चादहए। जीवन के वविप का पष्ट्ु प सांस्कृतत है ।
सांस्कृतत के सौंदयत और सौरभ में ही राष्ट्रीय जन के जीवन का सौन्दयत और
यश अन्ततनतदहत है । जीवन के ववकास की युम्कत ही सांस्कृतत के रूप में प्रकि
होती है ।
प्रश्न 5. समन्वययुकत जीवन के सांबांि में वासुदेवशरण अग्रवाि के ववचार प्रकि
कीम्जए।
उत्तरः माता अपने सब पुत्रों को समान भाव से चाहती है । इसी प्रकार पथ्
ृ वी पर
बसने वािे जन बराबर हैं। उनमें ऊाँच और नीच का भाव नहीां है । ये जन अनेक
प्रकार की भार्षाएाँ बोिने वािे और अनेक िमों को मानने वािे हैं, कफर भी ये
मातभ
ृ ूलम के पुत्र हैं और इस कारण इनका सौहार्द्त भाव अिांड है । समन्वय के
मागत से भरपूर प्रगतत और उन्नतत करने का सबको समान अधिकार है । राष्ट्रीय
जीवन की अनेक ववधियााँ राष्ट्रीय सांस्कृतत में समन्वय प्राप्त करती हैं।
समन्वययक
ु त जीवन ही राष्ट्र का सि
ु दायी रूप है ।
III. ससांदभत स्पष्ट्िीकरण कीम्जए:
प्रश्न 1. भूलम माता है , मैं उसका पुत्र हूाँ।
उत्तरः प्रसांग : प्रस्तुत गद्याांश हमारी पाठ्य पस्
ु तक ‘सादहत्य वैभव’ के ‘राष्ट्र का
स्वरूप’ नामक पाठ से लिया गया है म्जसके िेिक वासुदेवशरण अग्रवाि हैं।
सांदभत : जब तक िोगों के मन में भूलम के प्रतत स्वाभाववक प्रेम, आदर सेवाभाव
नहीां रहता – राष्ट्र की प्रगतत नहीां हो सकती।
स्पष्ट्िीकरण : मनुष्ट्य अपनी मााँ की कोि से जन्म िेता है , िेककन बाद में
उसका उदर पोर्षण करनेवािी माता पथ्
ृ वी माता है । पथ्
ृ वी न हो तो अन्न नहीां,
जीवन नहीां, सांस्कृती नहीां। पथ्ृ वी और जन दोनों के सम्ममिन से ही राष्ट्र का
स्वरूप सांपाददत होता है । इसलिये िेिक कहते है कक भलू म माता है , मैं उसका
पुत्र हूाँ।
प्रश्न 2. यह प्रणाम भाव ही भलू म और जन का दृढ़ बांिन होता है ।
उत्तरः प्रसांग : प्रस्तुत गद्याांश हमारी पाठ्य पस्
ु तक ‘सादहत्य वैभव’ के ‘राष्ट्र का
स्वरूप’ नामक पाठ से लिया गया है म्जसके िेिक वासुदेवशरण अग्रवाि हैं।
सांदभत : िेिक के अनुसार कक म्जस समय जन का हृदय भूलम के सार्थ माता
और पुत्र के सांबांि को पहचानता है , उसी समय (क्षण) आनांद और श्रद्िा से भरा
हुआ इसका प्रणाम भाव मातभ ृ लू म के लिए दृढ़ बांिन बन जाता है ।
स्पष्ट्िीकरण : िेिक कहते हैं कक – िोगों के हृदय में भलू म माता है , मैं उसका
पुत्र हूाँ। इसी भावना के द्वारा मनुष्ट्य पथ्ृ वी के सार्थ अपने सच्चे सांबांि को
प्राप्त करते हैं। जहााँ यह भाव नहीां है , वहााँ जन और भूलम का सांबांि अचेतन
और जड बना रहता है । म्जस समय जन का हृदय भूलम के सार्थ माता और पुत्र
के सांबांि को पहचानता है , उसी क्षण आनांद और श्रद्िा से भरा हुआ उसका
प्रणाम भाव मातभ ृ लू म के लिए इस प्रकार होता है कक यह प्रणाम भाव ही भूलम
और जन का दृढ़ बांिन होता है ।
प्रश्न 3. जन का प्रवाह अनांत होता है ।
उत्तरः प्रसांग : प्रस्तुत गद्याांश हमारी पाठ्य पस्
ु तक ‘सादहत्य वैभव’ के ‘राष्ट्र का
स्वरूप’ नामक पाठ से लिया गया है म्जसके िेिक वासुदेवशरण अग्रवाि हैं।
सांदभत : जन का प्रवाह अनांत होता है यदद भलू म और जन अपनी सांस्कृतत से
अिग कर ददये जाए तो राष्ट्र का िोप समझना चादहए।
स्पष्ट्िीकरण : हजारों वर्षों से भलू म के सार्थ राष्ट्रीय जन ने तादात्मय स्र्थावपत
ककया है । उसका प्रवाह अनांत है । जब तक सरू ज की ककरणें सांसार को अमत
ृ से
भरता रहे गा तब तक राष्ट्रीय जन का जीवन भी अमर है । जन का सांततवाही
जीवन नदी के प्रवाह की तरह है , म्जसमें कमत और श्रम के द्वारा उत्र्थान के
अनेक घािों का तनमातण करना होता है ।
प्रश्न 4. सांस्कृतत ही जन का मम्स्तष्ट्क है ।
उत्तरः प्रसांग : प्रस्तुत गद्याांश हमारी पाठ्य पस्
ु तक ‘सादहत्य वैभव’ के ‘राष्ट्र का
स्वरूप’ नामक पाठ से लिया गया है म्जसके िेिक वासद
ु े वशरण अग्रवाि हैं।
सांदभत : सांस्कृतत ही सारे जन-मानस को जोडती है । इसलिए सांस्कृतत ही जन का
मम्स्तष्ट्क है ।
स्पष्ट्िीकरण : सांस्कृतत ही जन का मम्स्तष्ट्क है । बबना सांस्कृतत के जन की
कल्पना कबांि मात्र है । सांस्कृतत के ववकास और अभ्युदय के द्वारा ही राष्ट्र की
वद्
ृ धि सांभव है । राष्ट्र के समग्र रूप में भलू म और जन की सांस्कृतत का
महत्वपूणत स्र्थान है ।
प्रश्न 5.उन सबका मूि आिार पारस्पररक सदहष्ट्णुता और समन्वय पर तनभतर
है ।
उत्तरः प्रसांग : प्रस्तत
ु गद्याांश हमारी पाठ्य पस्
ु तक ‘सादहत्य वैभव’ के ‘राष्ट्र का
स्वरूप’ नामक पाठ से लिया गया है म्जसके िेिक वासुदेवशरण अग्रवाि हैं।
सांदभत : िेिक उदाहरण के रूप में वन और समुर्द् को प्रस्तुत करते हुए कहते हैं
कक म्जस प्रकार नददयााँ जाकर समुर्द् का स्वरूप बनाते है उसी प्रकार ववलभन्न
सांस्कृततयााँ राष्ट्र का स्वरूप बनाते है ।
स्पष्ट्िीकरण : प्रत्येक जातत अपनी-अपनी ववशेर्षताओां के सार्थ सांस्कृतत का
ववकास करती है । प्रत्येक जन की अपनी-अपनी भावनाओां के अनुसार अिग-
अिग सांस्कृततयााँ राष्ट्र में ववकलसत होती हैं, परन्तु उन सबका मूि आिार
पारस्पररक सदहष्ट्णुता और समन्वय पर तनभतर है ।

IV. तनमनलिखित वाकय सच


ू नानस
ु ार बदलिए:
प्रश्न 1. हमारे ज्ञान के कपाि िुिते हैं। (भववष्ट्यत्काि में बदलिए)
उत्तरः हमारे ज्ञान के कपाि िुिेंगे।
प्रश्न 2. माता अपने सब पुत्रों को समान भाव से चाहती र्थी। (वततमानकाि में
बदलिए)
उत्तरः माता अपने सब पुत्रों को समान भाव से चाहती है ।
प्रश्न 3. मनुष्ट्य सभ्यता का तनमातण करे गा। (भूतकाि में बदलिए)
उत्तरः मनष्ट्ु य ने सभ्यता का तनमातण ककया र्था।
V. कोष्ट्ठक में ददए गए कारक धचन्हों से ररकत स्र्थान भररएः
(पर, का, के, में)
प्रश्न 1. जन ………… प्रवाह अनांत होता है ।
उत्तरःका
प्रश्न 2. जीवन नदी ……….. प्रवाह की तरह है।
उत्तरः के
प्रश्न 3. पथ्
ृ वी के गभत ……….. अमूल्य तनधियााँ है ।
उत्तरः में
प्रश्न 4. भलू म ……….. जन तनवास करते हैं।
उत्तरः पर
प्रश्न 5. उसने लभक्षुक …………. भीि दी।
उत्तरः को
V. समानार्थतक शब्द लिखिए:
प्रश्न 1. अांबर, िरती, पेड, नारी, सूयत।
उत्तरः
• अांबर – आकाश
• िरती – पथ्
ृ वी
• पेड – वक्ष

• नारी – स्त्री
• सूयत – भानु

VI. वविोम शब्द लिखिएः


प्रश्न 1. प्रसन्न, उत्साह, अमत
ृ , स्वाभाववक, जन्म, ज्ञान।
उत्तरः
• प्रसन्न – अप्रसन्न
• उत्साह – तनरुत्साह
• अमत
ृ – ववर्ष
• स्वाभाववक – अस्वाभाववक
• जन्म – मरण (मत्ृ य)ु
• ज्ञान – अज्ञान

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