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मनुष्यता

१. कवि ने कैसी मत्ृ यु को सुमत्ृ यु कहा है?

उत्तर१. कवि के अनुसार इस नश्िर संसार में जिस व्यजतत ने िन्म लिया है उसे एक न एक दिन तो मरना ही
है। कवि की दृजष्ि में सुमत्ृ यु िह है, जिसके मरने के बाि भी िोग उसे उसके सत कमों के कारण याि करें ।
उसके मरने के बाि भी अगर िोगों रोए तो उसकी यािों को कभी ना भूिे। िो व्यजतत परोपकार के कारण
समाि में सम्माननीय होता है और उसका िीिन िस
ू रों के लिए प्रेरणा का स्रोत होता है ,ऐसे यशस्िी व्यजतत
की मत्ृ यु को कवि ने सुमत्ृ यु कहा है।

२. उिार व्यजतत की पहचान कैसे होती है ?


उत्तर २. िो व्यजतत इस असीम संसार को अखंड सत्य के िशशन कराएं िही उिार हैं। िो व्यजतत प्राणी के
साथ अपनेपन का व्यिहार करता है , ननत्य परोपकार करता ही रहते हैं। िस
ू रों के प्रनत परोपकार करने और
िस
ू रों के प्रनत सहानुभूनत का जिसके पास िज्बा बुिंि होता है िह व्यजतत उिार है। िो व्यजतत िस
ू रों की
प्राण रक्षा के लिए सिशस्ि ननछािर कर िे ते हैं िह उिार हैं। िो व्यजतत िानत, धमश, िे श और रं ग रूप में
भेि ककए बबना मनुष्यता का पररचय िे ते चिता है िही व्यजतत उिार है। िो व्यजतत समाि में प्रेम,
भाईचारे और उिारता की एक लमसाि कायम करते हैं, कवि की निर में िही व्यजतत उिार है।
३. कवि ने िधीचच, कणश आदि महान व्यजततयों का उिाहरण िे कर “मनुष्यता” के लिए तया संिेश दिया है?
उत्तर ३. कवि िधीचच और कणश िैसे महान व्यजततयों का उिाहरण िे कर मनुष्य को त्याग की भािना और
बलििान की भािना का संिेश िे ना चाहते हैं। अपने लिए तो सभी िीते हैं परं तु िो व्यजतत परोपकार करता
है और िस
ू रों के दहत के लिए अपना सिशस्ि त्याग कर िे ता है िही िास्ति में मनुष्यता का पररचायक है।
पौराणणक कथाओं के अनुसार िधीचच ऋवि ने िे िताओं की रक्षा करने के लिए अपनी अजस्थयों का िान कर
दिया था, रािा रं नतिे ि ने द्िार पर आए याचक को अपने भोिन से भरे थाि को िान कर दिया था,
उशीनर रािा ने एक कबूतर की िान बचाने के लिए स्िमांस भी िान ककया था। इन महान व्यजततयों की
कथाएं हमें परोपकार का संिेश िे ती हैं। ऐसे िोगों ने अपने िीिन का त्याग करके मानि िानत का
कल्याण एिं उद्धार ककया। कवि ने इस बात को स्पष्ि रूप से कह दिया है कक यह शरीर नश्िर है और
एक न एक दिन नष्ि हो ही िाएगा, इसलिए िो अनादि िीि थे उन्होंने इस नश्िर शरीर से कभी प्रेम ही
नहीं ककया। कवि की दृजष्ि में सच्चा मनष्ु य िही है िो मनष्ु य के लिए त्याग करता चिे और उसके बििे
में ककसी चीि की कामना भी ना करें ।
No need to do question number 4.
५.“मनुष्य मात्र बंधु है” से आप तया समझते हैं? स्पष्ि कीजिए।
उत्तर ५. इस बात से पूरी तरह से स्पष्ि कर िे ना चाहते हैं ईश्िर सिशत्र व्याप्त हैं और हर एक मनुष्य में
ईश्िर का ही अंश है । मनुष्य को सबसे बडी यह सोच रखनी होगी कक हर एक मनुष्य िस
ू रे मनुष्य का बंधु
है अथाशत लमत्र है। एक ही परमवपता परमेश्िर की संतान होने के नाते हमें परोपकार की भािना को उिागर
करना होगा छोिे -बडे, ऊंच-नीच, रं गरूप, िानतभेि के आधार पर हमें कुछ भी हालसि नहीं होगा। हम
जितना सद्भाि रखेंगे, हम जितना हेिमेि रखेंगे उतनी ही बंधुत्ि की भािना बढ़ती िाएगी। िो मनुष्य
बंधुत्ि की भािना से समाि में रहकर समाि कल्याण के कायश करता है िह िे िताओं का परम वप्रय होता
है और िे िता उसका स्िागत भी करते हैं। अहंकार िवृ त्त का त्याग करके मनुष्य को बंधुत्ि की भािना
समाि में फैिानी चादहए।
६. कवि ने सभी को एक साथ चिने की प्रेरणा तयों िी है?
उत्तर६. कवि ने सभी को एक साथ चिने की प्रेरणा इसलिए िी है तयोंकक िो बात मेिभाि से हो सकती है
िह बात लभन्नता से नहीं हो सकती। अगर सभी िोग एक साथ लमिकर चिेंगे तो इस िीिन रूपी संग्राम
में जितनी भी विघ्न बाधाएं आएंगी, रुकाििें आएंगी उन सब का हम सहिश सामना करते चिेंगे और अपने
मागश को प्रशस्त करते चिेंगे। एक साथ चिने से सहानुभूनत की भािना, उिारता की भािना, एक िस
ू रे का
सहारा बनने की भािना और शत्रत
ु ा का नाश होता है । मनष्ु य में मनष्ु यता की भािना प्रबि होती है और
िह प्रगनत के रास्ते पर आगे बढ़ता ही िाता है ।
७. व्यजतत को ककस प्रकार का िीिन व्यतीत करना चादहए? कविता के आधार पर लिणखए।
उत्तर७. कवि मैचथिीशरण गुप्त ने परू ी कविता में मनुष्य को परोपकारी होने का ही संिेश दिया है । िो
व्यजतत परोपकारी है , उिार हैं, सहानुभूनत िािा है और िो मानि दहत के लिए अपना सिशस्ि त्याग करता
है, ऐसे व्यजतत ही अपने िीिन में त्याग को सिोपरर मानकर चिते हैं। हमें अपने तुच्छ धन पर कभी भी
घमंड नहीं करना चादहए, ननरं तर कमशशीि रहना चादहए और फि की कामना नहीं करनी चादहए। कवि ने
इस बात को स्पष्ि कर दिया है कक मनुष्य िैसे कमश करता है उसे िैसे ही फि लमिते हैं। पुराणों ने भी
इस बात को स्िीकार ककया है कक स्ियंभू अथाशत ईश्िर ही परम वपता परमेश्िर है , ईश्िर ही बत्रिोकीनाथ है
िो सबकी रक्षा करता है और सबका सहारा बनता है । संसार में कोई भी अनाथ नहीं है तयोंकक उसके साथ
ईश्िर है। मनुष्यता के रास्ते पर चिते हुए इस बात का पूणश रूप से ध्यान रखना होगा कक हेिमेि कम
नहीं होना चादहए और लभन्नता आनी नहीं चादहए, नहीं तो इस कविता का कोई अथश ही नहीं होगा। मनुष्य
जितना कमशशीि होकर आगे बढ़ता िाएगा उसका िीिन भी उतना ही विकलसत होता िाएगा।
८.“मनुष्यता” के माध्यम से कवि तया संिेश िे ना चाहता है?
उत्तर८. मानि िीिन एक विलशष्ि िीिन है और इस विलशष्ि िीिन में मनुष्य में प्रेम, त्याग, परोपकार,
उिारता, परस्परिािम्ब की भािना होनी चादहए। इस िीिन का सिप
ु योग होना चादहए। हमें अपने तच्
ु छ
धन पर कभी भी घमंड नहीं करना चादहए। पौराणणक कथाओं में से महान व्यजततयों के त्याग से हमें
सबक सीखना चादहए जिन्होंने मनष्ु यता की रक्षा करने के लिए अपना सिशस्ि त्याग कर दिया। िीन
िणु खयों, िरूरतमंिों के लिए बडे से बडा त्याग करने के लिए तत्पर रहना चादहए। हमें इस िीिन में ऐसे
सत्कमश करने चादहए ताकक हमारे मरने के बाि भी िोग हमें हमारे कमों के कारण याि करें हमारा िीिन

ू रों के लिए एक लमसाि बन िाना चादहए । ननस्िाथश भाि से िीिन िीना, िस


िस ू रों के काम आना ि स्ियं
ऊंचा उठने के साथ-साथ िस
ू रों को भी ऊंचा उठाना मनुष्यता कविता का मुख्य संिेश है ।
Note:
१.“मनुष्यता” कविता का प्रनतपाद्य और अनतररतत प्रश्न(additional questions), will be forwarded
shortly)

Please submit these question and answers by 20 December .


Thank you.

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