भावार्थ मनुष्यता 1

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मनष्ु यता

मैथलीशरण गप्ु त
भावाथथ
1. ववचार लो कि ................................
प्रस्तुत िववता में िवव ने मनुष्यता और परोपिार िी प्रेरणा दी है ।
िवव िहते है कि हमें यह अच्छी प्रिार समझ लेना चाहहए
कि हमारा जीवन मरणशील है । अथाथत सभी िो एि-न-एि हदन मरना है ।
मनुष्य िो यह जानते हुए मत्ृ यु से नहीीं डरना चाहहए । मनुष्य िा जीवन ऐसा
होना चाहहए कि मरने िे बाद भी उसिे सद्गुणों िे िारण सभी उसे याद िरें ।
यहद मनुष्य िी ऐसी अच्छी मत्ृ यु नहीीं होती तो उसिा जीना और मरना दोनों ही
व्यथथ है । जो मनष्ु य िेवल अपने ललए नहीीं जीववत रहता और सदैव परोपिार
में लगा रहता है वही अमर है । दस
ू री और जो मनष्ु य िेवल अपने स्वाथथ िी पत
ू ी
िेललए जीववत रहता है वह पशुओीं िे समान है । पशु ही िेवल अपने पेट भरने
िेललए जीता है । िवव िा मत है कि सच्चा मनुष्य वही है जो सदा दस
ू रों िा
भला िरता है और जो सदा परोपिार में ही अपना जीवन व्यतीत िर दे ता है ।
2. उसी उदार ................................
िवव िहता है कि जो व्यक्तत समस्त ववश्व में अपनापन भर दें ,
अथाथत जो मनुष्य दानशील और उदार प्रववृ ि िा होता है , उसिी प्रशींसा सरस्वती
भी िरती है । उसी दानशील मनष्ु य िा पथ्
ृ वी भी आभार व्यतत िरती है । ऐसे
मनष्ु य िे यश िी मधरु ध्वनन चारों हदशाओीं में गूँज
ू ती रहती है । वह मनष्ु य
सींपूणथ ववश्व िेललए पूजनीय हो जाता है । अथाथत सभी उसी िी पूजा िरते है ।
जो मनुष्य सभी प्राणणयों िे साथ अपनापन िा व्यवहार िरता है , यह अपनापन
िा भाव सदैव अखींड होता है । िवव पुनः िहता है कि जो मनुष्य दस
ू रों िी
सहायता िरता है , वही सच्चा मनुष्य है ।
3. क्षुधाथथ ................................
प्रस्तुत पींक्तत में िवव ने ववश्व प्रलसद्ध दानी महापुरुषों िा वणथन
िरते हुए मनुष्य िो त्याग िरने िी प्रेरणा दी है ।
िवव िहता है कि हमारे दे श में समय-समय पर अनेि दानी महापुरुष
हुए है । इन महापरु ु षों ने अपने प्राणों िी चचींता किए बबना अपना सवथस्व दान
िर हदया । राजा रीं नतदे व ने भख
ू से व्यािुल होते हुए भी अपने भोजन िा थाल
लभक्षु िो सौंप हदया । महवषथ दधीजी ने असुरों िा सींहार िरने िेललए अपनी
हड्डडयाीं इन्द्र िो दान में दे हदया । राजा उशीनर ने बाज से िबूतर िे प्राण
बचाने िेललए अपने शरीर िा माूँस िाटिर दे हदया | दानवीर िणथ ने भी अपने
िवच िींु डल इन्द्र िो दान में दे हदए ।उसने हूँसते -हूँसते उन्द्हें दान िर हदया।
भला इस नश्वर शरीर िेललए यह अमर जीव तयों डरें ?सच्चा मनुष्य तो वही है
जो दस
ू रों िे िाम आए और परोपिार िा भाव रखे |
4. सहानुभूनत चाहहए ...........................................
िवव िहता है कि मनष्ु य िे मन में सहानभ
ु नू त िी भावना
होनी चाहहए दस
ू रों िे दख
ु िो दे खिर मन में िरुणा जागनी चाहहए । यह
सहानुभूनत ही मनुष्य िी सबसे बड़ी पूूँजी (धन) है । इस गुण िे िारण सारी धरती
मनुष्य िे वश में हो जाते है । भगवान बुद्ध िा तत्िालीन परीं पराओीं िा ववरोध
दया िे प्रवाह में बह गया । अथाथत लोग परीं पराओीं िो भूलिर उनिे दया भाव
से मुग्ध हो गए । जनता िो उनिे सामने ववनम्र होिर झुिना पड़ा। िवव पुनः
िहता है कि जो मनष्ु य दस
ू रों िो उदार और परोपिार िरता है वही सच्चा
मनुष्य है ।

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