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और आव यकता
लेखक—
प्रकाशक :
—िवनोबा
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अभाग्य से हमारा धन, नीचता से हमारा यश, मुसीबत से हमारा
जोश, रोग से हमारा वा य, म ृ यु से हमारे िमत्र छीने जा सकते ह
िक तु हमारी म ृ यु के बाद भी हमारा पीछा नहीं छोड़गे।
—को टन
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आ मा और परमा मा का स ब ध
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जीव क्या है ? चेतना के िवशाल सागर की एक छोटी सी बंद
ू अथवा लहर। हर
शरीर म थोड़ा आकाश भरा होता है , उसका िव तार सीिमत है उसे नापा और जाना
जा सकता है , पर वह अलग दीखते हुए भी ब्र मा ड यापी आकाश का ही एक
है । उसका अपना अलग से कोई अि त व नहीं। जब तक वह काया कले वर म
िघरा है तभी तक सीिमत है, काया के न ट होते ही वह िवशाल आकाश म जा
िमलता है । फेफड़ म भरी सांस सीिमत है। पानी का बबूला वतंत्र है , िफर भी इनके
इनके सीमा ब धन अवा तिवक है । फेफड़े म भरी वायु का वतंत्र अि त व नहीं।
ब्र मा ड यापी वायु ही पिरि थितवश फेफड़ की छोटी पिरिध म कैद है । ब धन न
रहने पर वह यापक वायत
ु व से पथ
ृ क ि टगोचर न होगी। पानी का बबल
ू ा
हलचल तो वतंत्र करता दीखता है पर हवा और पानी का छोटा-सा संयोग िजस
क्षण भी झीना पड़ता है पानी पानी म और हवा हवा म जा िमलती है । बबूले का
वतंत्र अि त व समा त हो जाता है ।
ई वर के अवतार का दस
ू रा उ े य है धमर् की थापना—साधत
ु ा का उ कषर्।
यह परू क प्रिक्रया हुई। अधमर् का उ मल
ू न िनषेधा मक—धमर् की थापना
िवधेया मक, दोन ही एक दस
ू रे के पूरक ह। नींव खोदने के उपरा त दीवार चुनी
जाती है । खेत जोतने के बाद बीज बोया जाता है । झािड़यां काटकर समतल खेत
बनाये जाते ह अनीित को हटाकर नीित की थापना की जाती है । असुरता का
उ मल
ू न और दे व व का अिभवधर्न एक ही प्रयोजन के दो पक्ष ह। दजीर् कपड़े को
काटता भी है और सीता भी है । डॉक्टर आपरे शन के बाद मरहम पट्टी भी करता है ।
दग
ु ण
ुर् को हटा दे ना ही पयार् त नहीं, स गण
ु का बीजारोपण िसंचन एवं
अिभवधर्न भी उसी उ साह के साथ होना चािहए। गण
ु कमर् वभाव म समाई हुई
द ु प्रविृ तय को हटा दे ना तो खाई पाट दे ना भर हुआ। उस थान पर नये दे व
मि दर का सज
ृ न करने के साधन भी जट
ु ाये जाने चािहए। दब
ु िद्ध
ुर् छोड़ दे ना एक
पक्ष है उतने से तो हािन भर केगी लाभ कमाने के िलए स बिद्ध
ु को सिक्रय होना
चािहए। दहु ने पात्र के पदे म हुए छे द ब द करने से उसम भरी व तु के फैलने का
संकट भर दरू होता है । उस पात्र को दध
ू से भरने के िलए तो कुछ अ य आ तिरक
प्रयास करने पड़गे। छे द ब द कर दे ने मात्र से कोई यिक्त उस उ े य को परू ा
कर सकता िजसके िलए दध
ू दह
ु ने वाला पात्र खरीदा गया था।
गण
ु कमर्, वभाव के क्षेत्र म उ कृ टता का समावेश करते चलने वाली िद य
धारा का जब अ तःकरण म उभार आने लगे तो समझना चािहए िक ई वर का
अवतरण हो रहा है । गमीर् की ऋतु आते ही हर व तु का तापमान बढ़ जाता है
समझना चािहए िक यिक्त म ई वर का अवतरण आदशर्वादी गितिविधयां अपनाने
के िलए उ साह और साहस भरी ऊ मा उ प न िकये िबना रहे गा नहीं। वषार् ऋतु
आती है तो हवा म नमी बढ़ती है और धरती पर हिरयाली उगती है । ई वर वषार्
क णा, प्रेम, दया, द्धा जैसी सद्भावनाएं असीम आ म-संतोष प्रदान करती ह।
इ ह चिरताथर् करने के िलए कुछ क ट सहना, संयम बरतना और याग करना
उपयोगी आव यक का गह
ृ ण अनुपयोगी अनाव यक का पिर याग शरीर के
िनवार्ह क्रम का अिवि छ न अंग है । भोजन िमलता है उससे जो त व िजतनी मात्रा
मात्रा म प्रयक्
ु त हो सकता है उतना ग्रहण कर िलया जाता है और शेष मल प म
बाहर हटा िदया जाता है । संग्रह की तिनक भी उपयोिगता नहीं—संग्रह बढ़े गा तो
मलावरोध उ प न होगा और सड़न से अनेकानेक रोग उठ खड़े ह गे। मल िवसजर्न
की िक्रया दे खते ही बनती है । िवकृितयां जहां भी उ प न ह वहीं से उ ह खदे ड़
बाहर िकया जाना चािहए। शरीर म बड़े बड़े नौ िछद्र ह वे सभी मल िवसजर्न म
िनरत रहते ह। वचा के असंख्य िछद्र पसीने के मा यम से िवकृितय को बाहर
खदे ड़ते ह। फेफड़े म जाने वाली हर सांस उ प न हुए िवष को समेट कर लाती है
वन पित उगती है दस
ू र के िलए, वक्ष
ृ फलते ह दस
ू र के िलए, गाय दध
ू , भेड़
ऊन, मिक्खयां मधु दे ती ह, फूल िखलते और सुगध
ं िबखेरते ह—झरने झरते ह और
निदयां बहती ह—धरती अपने असंख्य अनद
ु ान से प्रािणय का पोषण करती है ।
पवन चलता है —सूरज उगता है , च द्रमा चमकता है और तारे िझलिमलाते ह। इन
सबका अपना प्र यक्ष लाभ क्या है ? ई वर ने वयं इस िवशाल सिृ ट का
क्य संभाला हुआ है ? इन प्र न का उ तर यिद खोजने के िलए उतरा जाय सिृ ट
कण कण उ कृ टता से ओत प्रोत हो रहा है और उसी के आधार पर इस िव व का
सूत्र संचालन हो रहा है । अवांछनीयताएं भी इस संसार म उ प न होती ह पर वे
पनपने नहीं पातीं अपनी मौत मरती है और े ठता की सघनता म उनका
िटक नहीं पाता। अंधेरा आता तो है पर प्रकाश के स मुख िटक नहीं पाता। प्रािणय
वारा यागा दग
ु िर् धत मल अनाचार की भी यहां स ता है पर वह है वहीं जहां
ई वरीय स ता की यूनता है । संसार म क ट, शोक, स ताप, िव वेष और िवघटन की
ई वर का दशर्न—ई वर का अनग्र
ु ह जीवन का ल य है । यह चमर् चक्षुओं से
संभव नहीं। चमड़े के बने नेत्र तो केवल जड़ पदाथ को दे ख सकते ह, चेतना तो
इि द्रयातीत है , उसकी अनुभूित ज्ञान चक्षुओं से, िववेक ि ट से हो सकती है ।
अ तरं ग को खोजने और बिहरं ग को िनहारने से हम ई वर की स ता का दशर्न हो
सकता है । परमाणु के पटक अ ततः िव यत
ु प्रवाह वे फुि लंग मात्र ह। पदाथर् की
मूल इकाई रासायिनक नहीं िव युतीय है । शिक्त ही य का प धारण करती है
समूचा िपंड और ब्र मांड ब्रा मी स ता का कलेवर है । यहां सवर्त्र ब्र म ही ब्र म
है । माया के आवरण ने उसके दशर्न आन द म यवधान उ प न िकया है । उपासना
उपासना और साधना की छे नी हथोड़े से उसी अवरोध को न ट करने की हटाने की
प्रिक्रया पण
ू र् की जाती है यिद इस त य को समझा जा सके तो ई वर दशर्न की
यास को सहज ही बुझा सकते ह। ई वर को जीवन का सहचर बना लेने उसकी
प्रकृित और प्रेरणा को दयंगम कर लेने पर जो असीम आन द िमलता है , शिक्तय
का अज ोत हाथ लगता है , तर म दे व व पिरलिक्षत होता है वही है जीव का
चरम ल य और वही है परम पु षाथर् का महानतम प्रितफल।
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अनवरत चलने वाला रक्त संचार, िनमेष, उ मेष, आकंु चन-प्रकंु चन, वास-
जैसी हलचल को दे ख कर इस य त्र का अनोखापन दे खते- दे खते तिृ त नहीं होती।
मन की िवचार शिक्त की उपयोिगता और गिरमा का तो कहना ही क्या? िनजीर्व जड़
जड़ पदाथ से बनी सिृ ट को िकतनी सु दर, सुखद और संवेदनशील बना िदया है ,
इस मन ने। यिद मन न होता तो गु म पादप की तरह उगते बढ़ते ज र पर
अनुभूित के हाथ सरसता का कोई आन द ले सकना संभव न रहा होता।
ई वर का ब्र म-सज
ृ ेता होना असंिदग्ध है । यिद संयोग से प्राणी और पदाथर्
बनते ह तो ई वरीय यव थाक्रम का यितरे क करके मानवी कुशलता के सहारे
िकसी अ य प्रकार से प्रािणय और पदाथ का नव िनमार्ण िकया जाना चािहए। ऐसा
ऐसा कर सकना मनु य के िलए संभव नहीं है । वह चल रही प्रकृित प्रिक्रया की
गितिविधय की जानकारी प्रा त करके—उस यव था का लाभ भर उठा सकता है ।
नया परमाणु—नया त व—नया जीवाणु मनु य की सारी कुशलता िमलकर भी नहीं
बना सकती। अ तु ई वर का सज
ृ ेता, स ृ टा ब्र म होना वयं िसद्ध है । इस क्षेत्र म
ई वर के न मानने का दरु ाग्रह कहीं आड़े नहीं आता और सिृ ट क तार् प्रकृित है
अथवा पु ष इस िववाद से कुछ बनता नहीं। जब हम नये सय
ू र् च द्र, तारागण, समद्र
ु ,
समुद्र, पवर्त, वक्ष
ृ प्राणी आिद नहीं बना सकते। सिृ ट म चल रही हलचल से िभ न
प्रकार की पिरपाटी खड़ी नहीं कर सकते तो ई वर को सिृ ट कतार् एवं ब्र मा मानने
की बात वीकार करने न करने से िकसी का कुछ बनता िबगड़ता नहीं। कोई सय
ू र्
के अि त व से इनकार करता रहे तो इससे उसे ही िविक्ष त दरु ाग्रही आिद माना
जायगा। सूयर् पर अथवा उससे लाभाि वत होने वाली सिृ ट पर इस इनकारी का
कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
भगवान का दस
ू रा व प है पोषण कतार्—िवकासवान, अग्रगामी िव णु। यह
स ता भी सवर्त्र काम करती हुई दे खी जा सकती है । परमाणु पिरवार से लेकर
सौरम डल तक सवर्त्र अग्रगामी सिक्रयता काम कर रही है । प्रािण जगत म शैशव,
झूठ बोलने से मुंह म छाले पड़ जाने, चोरी करने वाल के हाथ म ददर् उठ
पड़ने, कुमागर् गािमय को लकवा मार जाने, अिच य िच तन से िसरददर् होने, कु ि ट
वाल पर अ धता छा जाने जैसी त काल कमर् फल की यव था रही होती तो
अपनी दिु नया म कोई भी कुकमर् करने का द ु साहस न करता। आग पकड़ने,
िबजली छूने और िवष पीने की गलती कोई इसीिलए नहीं करता िक उनके पिरणाम
त काल सामने आ खड़े होते ह। स कमर् करने के प्रितफल यिद तुर त िमला करते
बीज को वक्ष
ृ बनने म दे र लगती है । खेत बोते ही िकसान फसल कब काटता
काटता है ? िव यालय म भतीर् होते ही नातक कौन बनता है । यायामशाला म
करते ही पहलवान बन सकना कहां संभव होता है । नवजात िशशु को प्रौढ़ बनने म
समय लगता है । िक्रया और प्रिक्रया के बीच जो अ तर रहता है उसकी धैयर् और
िव वास के साथ प्रतीक्षा करने वाल को ही दरू दशीर् कहा जाता है । वे ही कोई
मह वपूणर् कायर् कर सकते ह और दरू गामी योजना बना सकते ह। हथेली पर सरस
जमाने और बालू के महल बनाने के िलए आतरु लोग को उतावले और उपहासा पद
उपहासा पद कहा जाता है । ऐसी ही बाल बिद्ध
ु यिद कमर् फल के स ब ध म बरती
जाय तो उसे नाि तकता कहा जायगा।
थल
ू ि ट से दे खने पर त काल कमर् फल न िमलने के कारण यह भ्रम
होता है िक उ पादन का कोई क्रम भले ही हो िनयंत्रण की यव थता यहां नहीं है ।
ऐसे ही अंधेरगदीर् मची हुई है । पाप कमर् का दं ड और पु य का पुर कार संिदग्ध है ।
इसी भ्रांित से नाि तकता का ज म होता है । आि तकता का उ े य मनु य की
िच तन की गहराई म उतरना और यह समझना है िक दे र से कमर् फल िमलने की
यव था दे ख कर अधीर होने और अनिचत
ु पर उता होने की आव यकता नहीं है ।
है । गंभीर बना जाय और दे खा जाय िक अवांछनीयता की प्रितिक्रया न सही मंद
गित से होने की यव था िकस प्रकार चल रही है ।
िजसे िकसी का यार नहीं िमल सके, िजसके िलए िकसी के अंतःकरण म द्धा
द्धा नहीं जग सके, िजसका कोई स चा सहयोगी न हो वह बाहर से िकतना ही
ठाठ-बाट बना ले भीतर से अशा त और अत ृ त ही बना रहे गा। इस िवक्षोभ की
जलन से उ प न उ िवग्नता की अनुभूित हलकी करने के िलए ही प्रायः ऐसे लोग
नशेबाजी के अ य त बनते ह। इतना तो सुिनि चत है िक उद्धत मनु य कोई
मह वपूणर् सज
ृ ना मक कायर् करने म सफल नहीं हो सकते। वंस म िकसी की
गिरमा नहीं। एक छोटा ब चा भी िदयासलाई की तीली लेकर िकसी बड़े कारखाने
को भ म करने की भिमका
ू बना सकता है । गिरमा की परीक्षा तो सज
ृ न काय से
होती है । कारखाना खड़ा करने म िकसी की क्षमता आंकी जायगी। जला दे ने का
कायर् तो कोई बीमार और पागल भी कर सकता है ।
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